Novel Cover Image

लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥

User Avatar

🌹deepika07(⁠✷कविता05✷⁠)🌹

Comments

31

Views

11784

Ratings

138

Read Now

Description

ये कहानी है सूर्यकांत सूर्यवंशी उर्फ सूर्या की जो की मुंबई का एक माफिया साथ ही पूरे इंडिया का नंबर वन बिजनेसमैन है , जिसके पीछे लड़कियां दीवानी है लेकिन अपने प्यार शनाया से धोखा खाने के बाद सूर्या करता है हर खूबसूरत लड़की से बेइंतेहा नफरत , लेकिन एक...

Total Chapters (58)

Page 1 of 3

  • 1. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 1

    Words: 855

    Estimated Reading Time: 6 min

    मुंबई की अंधेरी रात में बहुत-सी गाड़ियाँ तेज रफ्तार से आगे बढ़ रही थीं। गाड़ियों के अंदर कई गुर्गें हाथों में बंदूकें लिए और बुलेटप्रूफ जैकेट पहने हुए थे। उन्हीं गाड़ियों के बीच में एक मर्सिडीज़ चल रही थी, जिसके अंदर एक शख्स बैठा था जो उस वक्त बेहद गुस्से में था।

    अगर कोई उसके सामने आ जाता, तो वह उसे एक पल में खत्म कर देता। उसने अपनी सख्त टोन में गाड़ी चला रहे ड्राइवर से कहा, "स्पीड तेज करो! हमें जल्दी पहुँचना है। वह भागना नहीं चाहिए।"

    "सर, पहले से ही गाड़ी फुल स्पीड में है। अभी दस मिनट में हम पहुँचने वाले हैं," ड्राइवर डरते हुए बोला।

    वह आदमी अपने गुस्से को काबू करने के लिए अपनी उंगलियों को जल्दी-जल्दी चलाने लगा और आपस में रगड़ने लगा।

    यह था सूर्यकांत सूर्यवंशी, जिसे लोग सूर्या भाई कहते थे—अंडरवर्ल्ड की दुनिया का डॉन, और दुनिया की नज़रों में बिज़नेस टायकून और सूर्यवंशी इंडस्ट्रीज़ का मालिक, जो दुनिया की नंबर वन कंपनी थी। उसे लड़कियों से सख्त नफ़रत थी; वह किसी की तरफ़ भी आँख उठाकर नहीं देखता था। भूतकाल में कुछ ऐसा हुआ था जिससे उसे सभी लड़कियाँ धोखेबाज़ लगती थीं। उसके पास दिल नाम की कोई चीज़ नहीं थी, या यूँ कहें कि उसका दिल पत्थर का हो चुका था।

    (उम्र: 30; रंग: गोरा; कद: 6.2; आँखें: काली; लंबे बाल जो गर्दन तक आते थे, जिनकी वह चोटी बनाकर रखता था। घर पर वह फ़ॉर्मल कपड़े पहनता था और बिज़नेस मीटिंग में थ्री-पीस सूट। इस वक्त वह अपने बिज़नेस पार्टनर अमित रहेजा से मिलने जा रहा था, जिन्होंने उसके साथ पाँच सौ करोड़ की डील में गद्दारी की थी। उसे गद्दारों से सख्त नफ़रत थी, लेकिन अमित रहेजा यह नहीं जानता था कि सूर्या एक अंडरवर्ल्ड डॉन है और उसने सूर्या से धोखा किया था।)

    कुछ ही देर में सभी गाड़ियाँ रहेजा मेंशन के बाहर रुकीं और सूर्या के सभी गुर्गें उस मेंशन को चारों तरफ़ से घेर लिया। सूर्या अपनी गाड़ी से निकलकर मेंशन के अंदर गया। दो गार्ड्स ने उस पर अपनी गन से फ़ायर किया, लेकिन सूर्या के गुर्गों ने उन पर बुलेट से पहले ही वार कर दिया और वे वहीं ढेर हो गए।

    जैसे ही सूर्या मेंशन के अंदर पहुँचा, मेंशन में चारों तरफ़ सन्नाटा फैला हुआ था। सूर्या ने तेज आवाज़ में कहा, "रहेजा! मुझसे छुपाने का कोई फ़ायदा नहीं है, इसलिए चुपचाप बाहर आ जा!"

    लेकिन रहेजा बाहर नहीं आया। सूर्या ने अपने गुर्गों को इशारा किया। वे "जी बॉस" कहकर पूरे मेंशन में फैल गए और कुछ ही देर में अमित रहेजा को पकड़कर अपने साथ ले आए। सूर्या को देखकर अमित रहेजा डर से काँप रहा था।

    अमित रहेजा, 48 वर्षीय रहेजा कंस्ट्रक्शन का मालिक, दो साल पहले ही मुंबई शिफ़्ट हुआ था और आते ही अपने बिज़नेस को ऊपर पहुँचाना चाहता था। इसीलिए उसने सूर्या से अपनी कंपनी का कोलैबोरेशन किया था। लेकिन बढ़ती सफलता के कारण उसके मन में लालच पैदा हो गया और उसने पाँच सौ करोड़ की डील का प्रॉफ़िट अपने नाम कर लिया था। अब जब उसे सूर्या की अंडरवर्ल्ड डॉन की पहचान पता चली, तो वह घबरा गया।

    अमित रहेजा घबराते हुए सूर्या से बोला, "सूर्या, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मुझे माफ़ कर दो! मुझसे जितनी जल्दी हो सके, मैं तुम्हारे पैसे वापस कर दूँगा। प्लीज़, मुझे एक मौका दो।"

    सूर्या ने अपनी कठोर आवाज़ में उसे घूरते हुए कहा, "सूर्या की डिक्शनरी में माफ़ी शब्द नहीं है, और ना ही मैं अपने दुश्मनों को दूसरा मौका देता हूँ जो मुझे दोबारा धोखा दे सकें।"

    अमित रहेजा उसके पैरों में गिरते हुए बोला, "सूर्या, मैं तुम्हारे बाप की उम्र का हूँ। कुछ तो लिहाज़ करो! मुझे बस एक मौका दो। मेरे मरने के बाद मेरी बीवी और मेरी बेटी का क्या होगा? कुछ तो सोचो! मैं तुमसे वादा करता हूँ, एक महीने के अंदर तुम्हारे सारे पैसे चुका दूँगा।"

    सूर्या ने उसे अपनी कठोर आँखों से देखते हुए कहा, "तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारी बीवी और बच्चों का क्या होगा, यह तो तुम्हें मुझसे गद्दारी करने से पहले सोचना चाहिए था।" वह रहेजा की बातों को इग्नोर करते हुए अपने आदमियों को इशारा किया।

    उसका इशारा पाकर गुर्गों ने अमित रहेजा को पकड़ लिया, उसके सिर पर बंदूक तानी और कुछ ही देर में अमित रहेजा ढेर हो गया। वहीं सूर्या अपनी आँखों पर गॉगल्स चढ़ाते हुए मुस्कुराते हुए बोला, "सूर्यकांत सूर्यवंशी एक आग है, जिसकी ज्वाला से ही अच्छे-अच्छे झुलस जाते हैं। फिर तूने तो मेरे साथ गद्दारी की, तो तेरा हश्र यही होना था। बेमौत मारा गया! ना गद्दारी करता, ना ऐसा कुछ होता!"

    फिर उसने अपने आदमियों से कहा, "इसकी प्रॉपर्टी का 50% इसकी बीवी और बेटी के नाम कर दो, जिससे उन्हें पूरी ज़िन्दगी पैसों की कमी ना पड़े और वे अपने पहले की तरह ज़िन्दगी जी सकें।" इतना कहकर वह बाहर आकर गाड़ी में बैठकर सूर्यवंशी मेंशन की ओर निकल गया।

  • 2. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 2

    Words: 912

    Estimated Reading Time: 6 min

    मुंबई का सबसे लग्जरियस और पॉश इलाका जहां पर बड़े-बड़े अमीरों के अलावा और कोई रहना अफोर्ट नहीं नहीं कर सकता था। यहां के हर घर में या तो कोई बिजनेस टायकून था या फिर माफिया या फिर गैंगस्टर थोड़ी देर बाद ही गाड़ी एक बहुत बड़े मेन गेट से होते हुए एक बहुत ही आलीशान और बड़े से मेंशन के सामने रुकी.....!!

    सूर्या बिना देर किए जल्दी से अंदर चला गया रात हो जाने के कारण सभी लोग अपने रूम में सोए हुए थे। तो वो सीधा अपने रूम मैं जाकर बाथरूम में फ्रेश हुआ.... और अपनी फाइल्स और लैपटॉप लेकर सोफे पर बैठ कर काम करने लगा।




    दूसरी तरफ मुंबई कृष्णा चोल में



    सांझ चल उठ जा और जल्दी से घर के काम में मेरा हाथ बटा। फिर तुझे कॉलेज भी जाना है , और मुझे काम पर इसलिए जल्दी कर .... कल की तरह देर मत कर दियो।


    अपनी मां की बात सुनकर वह उठ कर बैठ गई। और अपनी उनींदी खूबसूरत गहरी नीली आंखों से बच्चों की तरह बोली- मुझे कॉलेज नहीं जाना आई, वहां पर सभी लोग मुझे मेरे रंग की वजह से चिढ़ाते है। कोई मुझसे दोस्ती भी नहीं करता ना ही अपने पास बैठाता है। हर वक्त मेरा मजाक उड़ाते हैं। इतना कहकर मुंह बना कर वहीं बैठ जाती है।


    वही उसकी मां जो दाल में छौका लगा रही थी। उनसे उसका उदास चेहरा देखा नहीं गया , तो वो उसके पास आई और उसे प्यार से पूचकारते हुए बोली - ऐसा नहीं कहते सांझ तू क्या है यह तु बहुत अच्छी तरह से जानती है। तो फिर ऐसे लोगों की बातों का क्या बुरा मानना यह तो होते ही दोगले लोग हैं। आज तेरे रंग रूप की वजह से तुझ में कमियां निकालते हैं। कल जब पढ़ लिख कर तू कुछ बन जाएगी। तो तेरे आगे पीछे कुत्तों की तरह मंडराएंगे इसीलिए ऐसे लोगों की बातों को दिल पर मत लिया कर अब चल जल्दी से तैयार हो....!!

    तो सांझ उठकर मुंह बनाते हुए तैयार होने चली गई


    सांझ दिखने में बेहद खूबसूरत , तीखे नैन नक्श , गोल चेहरा , गहरी नीली आंखें जिनमें को एक बार देख ले तो उन में डूब कर रह जाए पर कमबख्त वो हमेशा नजर के चश्मे की आड़ में छुपी रहती थी। लंबे घने काले घुंघराले बाल जो उसके कमर पर लहराने के लिए बेताब रहते पर सांझ उन्हें चोटी से बाहर नहीं आने देती। एक कमी थी उसमें वो था उसका रंग जो कि बेहद काला था। और इसी वजह से गली, मोहल्ले, चौल के बच्चे उसे काली कलूटी काली बिल्ली कहकर बुलाते थे। लेकिन सांझ तो सांझ थी.....!!

    एकदम हंसती खिलखिलाती चुलबुली मस्त मौला 19 साल की सांझ ! रंग काला होने के बावजूद भी अपनी हरकतों से सभी को एक ना एक बार अपनी ओर आकर्षित कर ही लेती थी! चाहे वो अच्छाई में हो या बुराई में लेकिन उसे किसी से कोई फर्क ही नहीं पड़ता था। वो बस अपने में मस्त रहती थी सुबह उठकर अपनी आई के साथ काम में हाथ बटाना.... उसके बाद कॉलेज....! कॉलेज के बाद घर पर पढ़ाई उसके बाद कुछ पैसे इकट्ठे करने के लिए सिलाई करना! इन्हीं सब कामों में उसे रात हो जाया करती थी जिसके बाद सुनीता उसकी आई घर आ जाती थी। तो दोनों मां बेटी साथ में खाना बनाकर कुछ समय साथ बिताती थी।


    थोड़ी देर में वह तैयार होकर बाहर हॉल में आकर वही रखी कुर्सी पर बैठ गई। उसका मुंह अभी भी फुला हुआ था। तभी सुनीता हाथ में खाना लेकर आई और उसके फूले हुए मुंह को देखकर मुस्कुरा उठी....! और प्यार से उससे बोली- वैसे आज कॉलेज जाने के नाम पर इतना नाटक क्यों किया जा रहा है? कहीं दाल में कुछ काला तो नहीं इतना कहकर शक भरी निगाहों से सांझ को घूरने लगती है!

    उनके इस तरह घूरने से सांझ हरबड़ा जाती है और हकलाते हुए उनसे बोली वो,,,वो,,आ,, आई,,,क,, कल कॉलेज,,, में,,,,

    वो इतना ही कह पाती है। कि तभी दरवाजे से अंदर आते हुए एक लड़का बोला- कल इसने एक लड़के को सबक सिखाने के लिए जो इसे हमेशा से कहता है- की काली बिल्ली ने रास्ता काट दिया उसके ऊपर स्याही (इंक) फेंकी .....!! लेकिन अब इसकी बुरी किस्मत कहे या उस लड़के की अच्छी किस्मत कि ठीक उसी वक्त वह लड़का तो उस जगह से उठ गया? और उस जगह पर हमारे प्रिंसिपल सर प्रकट हो गए और सारी इंक उनके कपड़े और उनके फेस के ऊपर गई तभी से प्रिंसिपल सर इससे खार खाए बैठे हुए हैं! और यह खबर डीन तक भी पहुंच गई है तो उन्होंने कॉलेज में आपको बुलाया है। अब वो इसे रस्टिगेट करते हैं या फिर वार्निंग देकर छोड़ते हैं यह तो वही जाने.....?!


    इतना कहकर वहीं बैठकर सुनीता जी के हाथ से प्लेट लेकर खाना खाने लगता है। साथ ही उन दोनों के चेहरे को भी देख रहा था जिस पर ना जाने कितनी भाव तेजी से आवा जाई कर रहे थे। वही सुनीता जी हैरानी से सांझ को देख रही थी। और सांझ वो तो आंखों में अंगारे लिए सामने बैठे लड़के को देख रही थी जो इत्मीनान से नाश्ता कर रहा था।



    (तो यह है , हमारी छोटी क्यूट सी थोड़ी शरारती, नटखट, चुलवुली, तो थोड़ी कांडी, और वक्त पड़ने पर सभी से प्यार जताने वाली सांझ....!! और सांझ के साथ हुई छोटी सी मुलाकात आपको कैसी लगी...? मुझे कमेंट करके जरूर बताइएगा। और हां कहानी जारी रहेगी आप सब रीडर्स अपनी रेटिंग्स कमेंट जरुर दें और मुझे फॉलो करके सपोर्ट करें)

  • 3. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 3

    Words: 918

    Estimated Reading Time: 6 min

    सूर्यवंशी फैमिली इंट्रोडक्शन

    (सूर्या की बड़ी बहन- मालती/ पति- माधव/ बच्चे - आर्यन, जिया...!!)
    (सूर्या की मंझली बहन- चैताली / पति -चैतन्य/ बच्चे - ध्रुव और वेदांत.....!!!)
    (सूर्या की सबसे छोटी और लाडली बहन- शिवांगी...!!!)
    (सूर्या की माँ - विद्या जी / सूर्या के पिता - प्रतीक जी)
    (सूर्या की दादी माँ - वैदेही जी / और दादा जी - बमन जी....!!!)
    (उमेश और उमा - सूर्या के चाचा चाची....!!!)
    (वरुण - उमेश का छोटा बेटा / सूर्या का भाई...!!)
    (तन्मय - उमेश का बड़ा बेटा / शेफाली- तन्मय की पत्नी...!!!)
    (संजय और संयोगिता / सूर्या के बड़े पिता और बड़ी माँ /और चैताली और मालती की माँ पिता....!!!)


    सूर्यवंशी मेंशन

    सुबह के 8:00 बज रहे थे। सूर्या बाहर गार्डन में बने जिम में व्यायाम कर रहा था। उसका शरीर पसीने से तर था। उसने केवल एक ट्राउजर पहना हुआ था। उसके लंबे बाल खुले हुए थे, गर्दन पर लटके हुए थे। लंबी-लंबी बूँदें उसके चेहरे पर आ रही थीं, जिनमें से पानी टपक रहा था। साथ ही, उसकी मस्कुलर बॉडी और पेट पर उभरे हुए पैक एब्स दिखाई दे रहे थे! पंचिंग करने के कारण उसके उभरे हुए बाइसेप्स और मांसपेशियाँ उसके मजबूत कंधों की गवाही दे रही थीं और उसे बेहद आकर्षक लुक दे रही थीं। कोई भी लड़का या लड़की उसे एक बार देखे तो देखता ही रह जाता। लेकिन इन सबसे बेखबर सूर्या किसी सोच में डूबा हुआ था, और जोरों से पंचिंग बैग को पंच कर रहा था।

    तभी एक नौकर वहाँ आया और अपना सिर झुकाकर सूर्या से बोला-
    "गुड मॉर्निंग सर, ब्रेकफास्ट लग चुका है। सभी लोग आपका इंतज़ार कर रहे हैं..... बड़ी मैम ने आज आपको भी साथ में ब्रेकफास्ट करने के लिए बुलाया है।"

    उसकी बात सुनकर सूर्या रुक गया और अपने हाथ के इशारे से उस नौकर को जाने को कह दिया। नौकर उसके आगे सर झुकाकर वहाँ से चला गया। वहीं उसे रुकते देख पास खड़ा नौकर, जिसके हाथ में तौलिया और प्रोटीन शेक था, आगे आया। सूर्या ने पहले उससे तौलिया लेकर अपने आपको साफ़ किया, फिर उसे नौकर को वापस देते हुए प्रोटीन शेक लेकर पीते हुए मेंशन के अंदर चला गया।

    थोड़ी देर में वह तैयार होकर नीचे आया और अपने परिवार वालों के साथ डाइनिंग टेबल पर नाश्ते के लिए बैठ गया। परिवार के सभी लोग उसे देखकर खुश हो गए, लेकिन कोई भी आवाज़ नहीं कर रहा था। चारों तरफ़ शांति फैली हुई थी क्योंकि यह नियम सूर्या का ही था कि नाश्ते के समय वे लोग सिर्फ़ खाने पर ध्यान देंगे और काम की कोई बात नहीं करेंगे। अब किसकी मजाल थी कि सूर्या की बात न मानकर कोई उसके गुस्से को भड़काए, इसलिए सभी लोग चुपचाप अपने नाश्ते पर ध्यान दे रहे थे। नाश्ते के बाद सूर्या उठकर अपने स्टडी रूम में चला गया।

    थोड़ी देर बाद दरवाज़े पर दस्तक हुई। सूर्या ने नज़र उठाकर सामने देखा तो सुनीता हाथ में कॉफ़ी का कप लिए खड़ी हुई थी। सूर्या ने उन्हें अंदर आने का इशारा किया और वापस अपने लैपटॉप में व्यस्त हो गया।

    सुनीता अंदर आई और कॉफ़ी को टेबल पर रखकर चुपचाप वहीं खड़ी हो गई। उसे वहाँ से नहीं जाते देख सूर्या ने लैपटॉप पर चल रहे अपने हाथ रोके और उसकी तरफ़ देखने लगा। उसके इस तरह देखने का मतलब साफ़ था कि वह जानना चाहता था कि सुनीता जी वहाँ खड़े होने की वजह बताएँ।

    उसे अपनी बात कहने के लिए शब्दों की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी। उसकी गहरी काली आँखें ही काफी होती थीं उसकी बात कहने के लिए। सामने वाला इंसान उसकी आँखों से ही समझ जाता था कि वह क्या चाहता है। अगर किसी बात को लेकर वह ज़्यादा गुस्से में होता, तो उसकी गुस्से से लाल आँखें देखकर ही सामने वाला डरकर पसीने-पसीने हो जाता था, और दुश्मनों के छक्के छूट जाते थे। वह तो भला हो कि उसके माफ़िया होने की बात उसके बिज़नेस क्लाइंट को मालूम नहीं थी, वरना वे लोग उसकी पहचान जानकर सीधे भगवान को ही प्यारे हो जाते।

    उसके इस तरह देखने का इशारा समझकर सुनीता जी अपना सिर झुकाते हुए सूर्या से बोलीं-
    "साहब, मेरी बेटी बी.एस.सी. कॉलेज में पढ़ती है। वह थोड़ी शरारती है। इसी चक्कर में कल उसने गलती से प्रिंसिपल के ऊपर इंक फेंक दी। अब कॉलेज वाले उसे कॉलेज से निकालना चाहते हैं। मैं सुबह जाकर उनसे माफ़ी मांगकर आई, लेकिन वे लोग अब ज़िद पर अड़ गए हैं। इसीलिए अगर आप कुछ मदद कर सकें तो बस उसे कॉलेज से निष्कासित होने से बचा लीजियेगा। आपकी बहुत मेहरबानी होगी।" इतना कहकर वह चुप हो गई और सूर्या को देखने लगी।

    उनकी बात सुनकर सूर्या ने टेबल से अपना फ़ोन उठाया और सुनीता से बोला-
    "नाम क्या है तुम्हारी बेटी का?"

    सुनीता सर झुकाते हुए बोली-
    "जी, सांझ।"

    सूर्या ने सिर हिलाया और सुनीता की तरफ़ देखते हुए बोला-
    "जाओ, तुम्हारा काम हो जाएगा। अपना काम करो।"

    सुनीता खुश होते हुए बोली-
    "जी साहब, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।" इतना कहकर वह खुश होते हुए वहाँ से चली गई।

    सूर्या वापस अपने लैपटॉप में व्यस्त हो गया।

  • 4. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 4

    Words: 712

    Estimated Reading Time: 5 min

    कुछ दिन यूँ ही बीत गए। सूर्या ने सांझ को सांझ को कॉलेज से रेस्टिगेट होने से बचा लिया था जिससे उसकी पढ़ाई अच्छी चल रही थी! बस उसे एक ही बात का दुख रहता था कि कोई भी उसके रंग की वजह से कॉलेज में उसका दोस्त नहीं बना था। ऊपर से उसका कॉलेज में हमेशा अजय नाम के लड़के से झगड़ा होता रहता था। क्योंकि अजय बहुत बदतमीज लड़का था और हर लड़की को उनकी खूबसूरती के आधार पर जज करता था। साथ ही हर लड़की पर गंदी नजर डालता था। उसकी कई सारी गर्लफ्रेंड भी थीं। वह हमेशा सांझ के रंग की वजह से उसे चिढ़ाता रहता था। साथ ही उसके ऊपर सीनियर होने की वजह से गंदे-गंदे कमेंट भी पास करता था और अपना आर्डर भी चलाता था। लेकिन सांझ भी सांझ थी; वह किसी का आर्डर कैसे मानती? इसीलिए हमेशा उससे भीड़ जाया करती थी। जिससे अजय को सांझ पर बहुत गुस्सा आता था और वह हमेशा से सांझ को सबक सिखाने के लिए एक मौके की तलाश में रहता था।


    वहीं आज सूर्या वापस मुंबई लौट रहा था। दरअसल, किसी बिजनेस डील के सिलसिले में सूर्या को इंडिया से बाहर जाना पड़ा था। साथ ही उसकी इंडोनेशिया के माफिया से भी एक डील थी, इसीलिए उसे इंडोनेशिया भी जाना पड़ा था।


    अभी उसकी मर्सिडीज़ मुंबई की सड़कों पर दौड़ रही थी और वह अपनी सीट पर बैठा, विंडो से बाहर देखते हुए, अपने कान में लगे ब्लूटूथ के द्वारा अपने कुछ लोगों को किसी डील की इंस्ट्रक्शन दे रहा था। तभी उसकी नजर वहीं बाहर रोड के किनारे पर खड़ी सुनीता पर गई, जो रोते हुए कुछ लोगों से मदद मांग रही थी। लेकिन कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था।


    वैसे तो उसे किसी के दुख, दर्द, तकलीफ से फर्क नहीं पड़ता था। वह एक बेरहम बादशाह की तरह था, जो अपने साथ धोखा करने वालों को उन पर बिना रहम खाए मौत के घाट उतार दिया करता था। उसके जाने से कोई मरे या जिए, उसे किसी की चिंता नहीं थी, सिवाय अपनी फैमिली के। लेकिन सुनीता सालों से उसके घर काम कर रही थी और उसकी सबसे वफादार नौकरानियों में से एक थी, जिसने एक बार उसकी बहन की जान भी बचाई थी। इसीलिए उसने अपने ड्राइवर को गाड़ी रोकने के लिए कहा। उसकी गाड़ी रुकते ही, उसके आगे और पीछे चल रही बॉडीगार्ड की गाड़ियां भी रुक गईं।


    और उसके पीछे वाली गाड़ी में बैठा उसका पर्सनल असिस्टेंट, संभव, उसके पास आया और उसने गाड़ी का दरवाजा खोलने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाए। तभी सूर्या अपनी गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए बाहर आया और संभव से सुनीता को अपने पास लाने का इशारा किया।


    संभव ने हाँ में सर हिला कर सुनीता के पास चला गया। वहीं सुनीता रोते हुए मदद मांगते-मांगते थक कर वहीं बैठ गई थी। लेकिन कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था। तभी किसी ने उसका नाम पुकारा। उसने सर उठाकर सामने देखा तो संभव खड़ा था। संभव ने उससे कुछ कहा जिसके बाद सुनीता ने उस तरफ देखा, जिधर सूर्या खड़ा था।


    वह उठकर दौड़ते हुए उसकी तरफ भागी चली आई और उसके पैरों के पास बैठकर, हाथ जोड़कर, रोते हुए सूर्या से बोली,
    "साहब, मेरी बेटी को बचा लो साहब! वो लोग उसे उठाकर लेकर गए! आप मेरी मदद करो। मेरी बच्ची बहुत मासूम है साहब! मेरी मदद करो। मैं जिंदगी भर आपकी गुलाम बनूँगी।" इतना कहकर वह रोने लगी।


    उसकी बात सुनकर सूर्या की मुट्ठी गुस्से में कस गई। वह यही सोच रहा था कि आखिर ऐसा कौन पैदा हो गया जो बिना उसे खबर लगे, उसी के इलाके में दादागिरी कर रहा है। वह कड़क आवाज में सुनीता से बोला,
    "पहले रोना बंद करो सुनीता! और उठो, बताओ कौन तुम्हारी बेटी को उठाकर ले गया?"


    उसकी बात सुनकर सुनीता उठ खड़ी हुई और अपने आँसू साफ किए। और सूर्या से बोली,
    "वो अजय और उसके दोस्त। मेरी सांझ को उठाकर लेकर गए।" इतना कहकर वह कुछ देर पहले बीती बातें बताने लगी।

  • 5. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 5

    Words: 529

    Estimated Reading Time: 4 min

    कुछ घंटे पहले

    आज रविवार था, इसलिए सांझ की छुट्टी थी। वह कई दिनों से सुनीता जी से अपने साथ समय बिताने और उसे कहीं बाहर घुमाने के लिए जिद कर रही थी। लेकिन हर बार अपने काम की वजह से सुनीता उसकी बात टाल देती थी। इस वजह से सांझ कुछ दिनों से उससे नाराज़ थी। इसीलिए सुनीता ने आज छुट्टी ले रखी थी। दोनों माँ-बेटी घर पर अच्छा-खासा समय बिता रही थीं, तभी सांझ को बाहर खाने की इच्छा हुई। उसने सुनीता से जिद की कि वह उसे बाहर खाना खिलाएँ। उसकी जिद के आगे हारकर सुनीता उसे बाहर खाना खिलाने ले आई। लेकिन अब इसे सांझ और सुनीता की बुरी किस्मत कहें या अजय और उसके दोस्तों की अच्छी किस्मत, वे लोग भी अपनी जीप लेकर बाहर घूमने निकले थे। रास्ते में अजय की नज़र सांझ पर पड़ गई। सांझ मजे से पास लगे ठेले पर सुनीता जी के साथ पाव भाजी का आनंद ले रही थी।

    एक पल के लिए अजय की नज़र सांझ पर ठहर गई। सुनीता जी के साथ किसी बात को लेकर हँसने पर उसकी खिलखिलाती हँसी, पाव भाजी का स्वाद लेते हुए उसका मंद-मंद मुस्कुराना, उसकी झील सी गहरी नीली आँखें—जिनमें इस वक्त चंचलता से भरी शरारत थी—स्ट्रीट लाइट की रोशनी में झिलमिला रही थीं। आज उसने चश्मा नहीं पहना था; शायद बाहर आने की खुशी में चश्मा घर ही भूल आई थी। उसने ढीली-ढाली चोटी बनाई हुई थी, जिसकी कुछ लटें निकल कर उसके गालों को चूम रही थीं। सुनीता जी से बात करते हुए उसके क्यूट एक्सप्रेशन किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने के लिए काफी थे। अगर सांझ के लिए "ब्लैक ब्यूटी" का टाइटल दिया जाए, तो शायद वह गलत नहीं होगा।

    एक पल के लिए अजय की नज़र सांझ पर ठहर गई। सुनीता जी के साथ किसी बात को लेकर हँसने पर उसकी खिलखिलाती हँसी, पाव भाजी का स्वाद लेते हुए उसका मंद-मंद मुस्कुराना, उसकी झील सी गहरी नीली आँखें—जिनमें इस वक्त चंचलता से भरी शरारत थी—स्ट्रीट लाइट की रोशनी में झिलमिला रही थीं। आज उसने चश्मा नहीं पहना था; शायद बाहर आने की खुशी में चश्मा घर ही भूल आई थी। उसने ढीली-ढाली चोटी बनाई हुई थी, जिसकी कुछ लटें निकल कर उसके गालों को चूम रही थीं। सुनीता जी से बात करते हुए उसके क्यूट एक्सप्रेशन किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने के लिए काफी थे। अगर सांझ के लिए "ब्लैक ब्यूटी" का टाइटल दिया जाए, तो शायद वह गलत नहीं होगा।


    चेहरे से नज़र हटी, तो उसके जिस्म पर जा ठहरी। परफेक्ट फिगर, मोटा नहीं, लेकिन उभरा हुआ शरीर; लंबी, सुराहीदार गर्दन; फ्लैट टमी; ज़्यादा पतली नहीं, लेकिन शेप्ड कमर—जो उसके फिगर को हॉट लुक दे रही थी।

  • 6. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 6

    Words: 862

    Estimated Reading Time: 6 min

    आज सांझ को देखते हुए अजय की नजरों में सांझ को पाने की हवस साफ दिखाई दे रही थी। शायद कॉलेज में और भी लड़कियों के खूबसूरत होने के कारण उसने कभी सांझ को ध्यान से देखा ही नहीं था। या उसके रंग की वजह से वो शुरुआत से ही उसे हीन भावना से देखता था, इसीलिए कभी उसने सांझ के फिगर और फेस पर ध्यान ही नहीं दिया था। अगर कभी सांझ से उसकी बात होती तो वो सिर्फ बहस ही होती थी। लेकिन आज सांझ को देखकर उसे ऐसा लग रहा था, जैसे सांझ हजारों वाइट रोजेज के बीच में एक ब्लैक रोज हो। उसे देखते हुए आज वो अलग ही महसूस कर रहा था। साथ ही सांझ को देखते हुए उसके बॉडी में गर्मी बढ़ती जा रही थी, जिसे अब सांझ ही ठंडा कर सकती थी।

    तभी उसका दोस्त रॉकी उसके पास आया। उसने देखा कि अजय एकटक सांझ को देख रहा है। तो उसने उसके कंधे पर हाथ रखा और उससे बोला, "क्या यार अजय, तेरा टेस्ट कब से इतना खराब हो गया है जो तू अब उस काली बिल्ली में भी इंटरेस्ट लेने लगा? मैं कब से देख रहा हूँ, तू उसे घूर ही जा रहा है।"

    उसकी बात सुनकर अजय उसकी तरफ देखते हुए बोला, "यार, आज यह काली बिल्ली, उप्स आई मीन सांझ, आज ये मुझे अपनी तरफ बहुत अट्रैक्ट कर रही है। मैंने कभी कॉलेज में इस पर ध्यान ही नहीं दिया, लेकिन सच कहूँ ना तो इसका सिर्फ रंग काला है। वरना यह है बहुत कमाल की चीज, लाइक ब्लैक ब्यूटी…!!"

    उसकी बात सुनकर रॉकी ने एक नजर सांझ को देखा और अजय से बोला, "हाँ वो ठीक है, लेकिन तुझे क्या करना है? तेरी इतनी अच्छी गर्लफ्रेंड है साक्षी। क्या तू इस काली बिल्ली के लिए अपनी साक्षी को छोड़ेगा?"

    उसकी बात सुनकर अजय हंसते हुए बोला, "तू पागल है क्या? मैं क्यों साक्षी को छोड़ूँगा? हाँ, लेकिन आज रात मजे करने के लिए यह भी बुरी नहीं है। देखना, इसे देखते ही मेरे तन-बदन में आग सी लग गई है जो इसके साथ मजे करने से ही बुझेगी। तो चल, इसे उठाकर अपने अड्डे पर ले चलते हैं!"

    उसकी बात सुनकर रॉकी हैरान रह गया। वो अजय से बोला, "तू पागल है क्या? हम उसे किडनैप करेंगे? तो वो क्या चुप बैठेगी? देख नहीं रहा, उसकी माँ उसके साथ है और यह पब्लिक प्लेस भी तो है। अगर किसी को कुछ पता चल गया तो हम लोग सीधा हवालात में नज़र आएंगे।"

    तभी उसके कुछ दोस्त भी जीप से उतर कर उसके पास आ गए। तभी अजय बेफिक्री से उससे बोला, "तुम लोग उसकी चिंता मत करो, मेरे डैड हैं ना, वो सब कुछ संभाल लेंगे। तुम बस इसे हमारे अड्डे तक ले जाने में मेरा साथ दो! और हाँ, पहले मैं मज़े करूँगा, उसके बाद तुम सब भी मज़े करना। क्यों सही कहा ना…!!"

    वही उसकी बात सुनकर उसके सभी दोस्त एक नज़र सांझ को देखते हैं और फिर शैतानी हँसी हँसते हुए अजय के साथ हो लेते हैं। वहीं अजय शैतानी मुस्कुराहट लिए सांझ की ओर बढ़ जाता है।

    वही सांझ अपनी पावभाजी की लास्ट बाइट ले रही थी कि तभी किसी ने आकर उसका हाथ पकड़ लिया। उसने सामने देखा तो अजय मुस्कुराते हुए उसे ही देख रहा था। सांझ को अजय पर बहुत गुस्सा आया और वो उससे अपना हाथ छुड़ाने लगी।

    तभी अजय सांझ को देखते हुए बोला, "और मिस ब्लैक ब्यूटी, अकेले-अकेले ही पाव भाजी खा रही हो? हमें भी अपने प्यारे-प्यारे हाथों से दो निवाले खिला देतीं, तो आत्मा तृप्त हो जाती।" इतना कहकर उसने सांझ के हाथ में पकड़ी लास्ट बाइट को अपने मुँह में खा लिया।

    वही सांझ अजय से अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, "देखो अजय सर, आप सीनियर हो, इसीलिए मैं आपसे कुछ नहीं कहती, लेकिन आप ना मुझे बात-बात पर परेशान करना छोड़ दो। और यह तो कॉलेज भी नहीं है, तो फिर यहाँ क्यों मुझे परेशान करने आए हैं? और मेरा हाथ छोड़िए, मेरा हाथ दर्द कर रहा है!"

    उसकी बात सुनकर सभी हंसने लगे। वही सुनीता, जो पास की शॉप में कुछ खरीदने गई थी, जैसे ही उसकी नज़र सांझ पर गई तो उसने सब सामान को वहीं छोड़ दिया और दौड़ते हुए सांझ के पास आने लगी।

    वही सुनीता को सांझ के पास आता देख अजय ने सांझ को गोद में उठा लिया और सांझ से बोला, "तू चिंता मत कर, आज हम तुझे आखिरी बार परेशान कर रहे हैं। आज के बाद कभी परेशान नहीं करेंगे, बस तुझे हमारा एक काम करना होगा, लेकिन वो यहाँ नहीं, हमारे अड्डे पर…!!"

    वही सांझ उसकी बाहों में झटपटाते हुए बोली, "आह नहीं! छोड़ो मुझे! कहाँ लेकर जा रहे हो आप? छोड़ो मुझे… मुझे आपके साथ कहीं नहीं जाना…!!!" वो चिल्लाती रही। वहीं अजय उसे अपनी गाड़ी में डालकर अपने दोस्तों के साथ बैठकर जीप आगे बढ़ा देता है। वही सुनीता रोते हुए जीप के पीछे भागती है और लोगों से मदद मांगती है, लेकिन कोई उसकी मदद के लिए आगे नहीं आता।

  • 7. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 7

    Words: 606

    Estimated Reading Time: 4 min

    इतना कहकर सुनीता चुप होकर रोने लगी। सूर्या गुस्से से अपनी मुट्ठियाँ कस कर संभव को इशारा किया और अपनी गाड़ी में बैठ गया। उसके बाद सभी बॉडीगार्ड्स भी एक-एक करके गाड़ी में बैठ गए। संभव ने सुनीता को अपने साथ पीछे वाली गाड़ी में बिठा लिया और गाड़ियाँ आगे बढ़ गईं।


    अनजान जगह पर, अजय ने सांझ को एक कमरे में लाकर बिस्तर पर पटक दिया और खुद कमरे का दरवाजा बंद करने लगा। सांझ उसके रवैये से बहुत घबरा गई; उसकी आँखों से बेतहाशा आँसू बहने लगे। वह उठकर दरवाजे की ओर बढ़ी और अजय को रोकते हुए दरवाजा खोलने की कोशिश करने लगी।


    तभी अजय कमरे का दरवाजा बंद कर दिया और उसकी ओर बढ़ने लगा। रोते हुए सांझ बोली, "आप मुझे यहां क्यों लाए हैं? प्लीज मुझे यहां से जाने दीजिए। मेरी माँ मुझे ढूँढ रही होगी। मैं आपसे वादा करती हूँ, आज के बाद कभी भी आपके सामने नज़र नहीं आऊँगी। प्लीज जाने दीजिए!"


    उसकी बात सुनकर अजय हैरान रह गया। फिर मुस्कुराते हुए बोला, "क्या तुम्हें सच में नहीं पता मैं तुम्हें यहां क्यों लाया हूँ? सच में तुम इतनी नासमझ हो।" फिर कुछ सोचकर मुस्कुराते हुए बोला, "इट मीन्स तुम अब तक प्योर हो। इसका मतलब तुम्हें हाथ लगाने वाला मैं पहला हूँ। फिर तो मज़ा आएगा।" इतना कहकर उसने उसे पकड़ लिया और बेड पर धकेल दिया। उसके इस हरकत से सांझ घबरा गई। अजय मुस्कुराते हुए अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा।


    उसने अपनी शर्ट उतार कर एक तरफ फेंक दी और सांझ के पैरों को पकड़कर अपनी तरफ खींच लिया। सांझ उसकी तरफ खिंची चली आई और वह सांझ के ऊपर झुकने लगा।


    तभी उसके कानों में बाहर से अपने दोस्तों के चीखने-चिल्लाने की आवाज आई। उसे सुनकर वह शॉक हो गया। अभी वह कुछ कह पाता या समझ पाता, उससे पहले ही एक धमाके की आवाज के साथ उसके कमरे का दरवाजा टूट गया।


    उसने नज़र उठाई तो सामने उसे एक लंबे-चौड़े, विशाल काया वाले शख्स दिखाई दिया। उसका चेहरा अंधेरे में दिखाई नहीं दे रहा था, पर उसने उसके दोस्त रॉकी को गले से पीछे से पकड़ा हुआ था। अभी वह कुछ कहता, कि उसने एक झटके से रॉकी को अंदर कमरे में ज़मीन पर फेंक दिया। रॉकी दर्द से आह भर उठा और दर्द से तड़पने लगा; उसके शरीर पर चोट के निशान चीख-चीख कर गवाही दे रहे थे कि अभी थोड़ी देर पहले ही उसकी बहुत पिटाई हुई है।


    अजय का ध्यान भटक जाने से सांझ ने खुद को अजय से छुड़ा लिया और जल्दी से बिस्तर से उठकर घबराई हुई, डरकर एक कोने में खड़ी हो गई।


    "अबे ओए कौन है बे तू? तेरी हिम्मत कैसे हुई हमारे अड्डे पर आने की और हमारे काम में टांग अड़ाने की? तेरी तो मैं..." कहते हुए अजय दरवाजे पर खड़े शख्स को मारने के लिए आगे बढ़ा, लेकिन तभी उस शख्स ने एक जोरदार लात अजय पर मारी। अजय एक झटके से बेड के पास आकर जमीन पर गिर गया और उसने अपने पेट को थाम लिया।

  • 8. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 8

    Words: 1058

    Estimated Reading Time: 7 min

    तभी वह शख्स अंधेरे से निकल कर आया। वह कोई और नहीं, बल्कि सूर्या था। चेहरे पर बेइंतहा गर्व, और आंखों में बेहिसाब गुस्सा था जो किसी को भी देखते ही जला सकता था। चेहरा भी गुस्से के कारण लाल हो चुका था। उसकी लाल आंखें देखकर अजय डर के मारे बिस्तर से चिपक गया।


    तभी सूर्या के कानों में किसी के सिसकने की आवाज पड़ी। सूर्या ने अपनी नजरें घुमाकर उस तरफ देखा। सांझ एक कोने में खड़ी थी, अपनी आंसू भरी मासूम आंखों से उसे देख रही थी। सूर्या एकटक सांझ को देखने लगा। काला चेहरा, जिस पर दो झील सी गहरी नीली आंखें बेहद खूबसूरत लग रही थीं। पलकों पर ठहरी आंसुओं की बूंदें मोतियों की तरह चमक रही थीं। दोनों एकटक एक-दूसरे की आंखों में देख रहे थे। सांझ की नीली आंखें रोने की वजह से लाल हो गई थीं, जबकि सूर्या की आंखें गुस्से से लाल थीं।


    तभी अजय ने अपने आप को संभाला और सूर्या से बोला,
    "कौन हो तुम? और यहां क्यों आए हो? देखो, तुम जो भी हो, चुपचाप यहां से चले जाओ। तुम जानते भी नहीं हो, तुम किससे उलझ रहे हो? मेरे डैड तुम्हें छोड़ेंगे नहीं। तुम जानते भी नहीं हो, अगर मेरे डैड को पता चला कि तुमने मुझ पर हाथ उठाया है, तो वो तुम्हारी जान ले लेंगे। इसलिए अपनी भलाई चाहते हो तो चुपचाप यहां से चले जाओ। मैं कोई आम इंसान नहीं हूं। अजय रावत हूं, रावत कंपनी के ओनर दिशांत रावत का बेटा। समझो, इसलिए निकलो यहां से!"


    उसकी बात सुनकर सूर्या गहरी नजरों से उसे देखने लगा, पर कुछ बोला नहीं और कमरे से बाहर चला गया। अजय और रॉकी उसके जाने से हैरान हुए, पर फिर खुश हो गए कि वह उनसे डरकर वहां से चला गया। वहीं, उसे जाते देख सांझ का रोना फूट पड़ा। तभी संभव और कुछ बॉडीगार्ड उस कमरे में आए और अजय और रॉकी को पकड़कर खींचते हुए बाहर गोदाम में ले आए। कुछ बॉडीगार्ड्स ने उसके बाकी दोस्तों को भी पकड़कर वहीं रखा हुआ था। सुनीता भी वहीं एक तरफ खड़ी हुई थी और सभी को देख रही थी।


    तभी सूर्या ने संभव को इशारा किया। संभव ने इशारा समझकर सुनीता से कहा,
    "सुनीता, जाओ, तुम्हारी बेटी अंदर है। उसे बाहर ले आओ!"


    सुनीता तेजी से भागते हुए अंदर बने कमरे में गई और सांझ को देखा जो वहीं खड़ी डर से कांप रही थी और लगातार रो रही थी। सुनीता ने भागकर उसे गले लगा लिया। सांझ उसके ममता भरे स्पर्श को पाकर उसके आगोश में समा गई और फूट-फूट कर रोने लगी। सुनीता प्यार से उसका सर सहलाने लगी और उसे चुप कराते हुए बोली,
    "चुप हो जा मेरी बच्ची, देख कुछ नहीं हुआ है। साहब ने तुझे बचा लिया तो अब क्यों रो रही है? अब रोएगी तो... वो लोग... साहब ना बहुत बड़े आदमी हैं। तू चिंता मत कर, वो उन्हें ऐसी सजा देंगे कि आज के बाद वो लोग तेरे करीब भी नहीं आएंगे, तुझे दिखाई भी नहीं देंगे। इसलिए अब रोना बंद कर!"


    सांझ रोते हुए हिचकी लेते हुए बोली,
    "आई, मुझे... मुझे... जल्दी से घर... घर ले चल... मुझे... यहां नहीं रहना..."


    सुनीता उसका सर सहलाते हुए उसे शांत करते हुए बोली,
    "श...श, हां, चुप हो जा। अभी चलते हैं, बस एक बार उन लोगों को सजा हो जाए।"


    और उसे समझाते हुए बाहर सभी लोगों के बीच में ले आई। सांझ अजय की तरफ देखती है जो बॉडीगार्ड से खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए उसे गुस्से में घूर रहा था। उसे देखते ही सांझ वापस सुनीता के गले लग गई और उनके सीने में अपना चेहरा छुपा लिया। वहीं सूर्या भी सांझ को आते देख एकटक उसे ही देख रहा था।


    तभी अजय सूर्या पर चिल्लाते हुए बोला,
    "कौन हो तुम लोग? छोड़ो मुझे! मैंने कहा ना, मेरे डैड तुम लोगों को छोड़ेंगे नहीं और तुझे तो जान से मार डालेंगे!"


    तभी एक बॉडीगार्ड ने कसकर उसके मुंह पर मुक्का जड़ दिया। जिससे उसकी नाक और मुंह से खून बहने लगा।


    संभव सूर्या के पास आया और उसके फोन को उसकी तरफ बढ़ा दिया।


    सूर्या ने फोन लिया और एक नजर अजय को देखा जो गुस्से से उसे घूर रहा था। फिर फोन पर बोला,
    "अभी के अभी रावत कंपनी के सभी शेयर्स खरीद लो और उन्हें सूर्यवंशी एंपायर में शामिल कर दो। मुझे अभी के अभी उसे दिवालिया होते हुए देखना है। सुबह तक मुंबई से रावत कंपनी का नामोनिशान मिट जाना चाहिए और उसके जितने भी ब्रांचेस हैं, उन सभी को अपने अंडर कर लो!"


    उसकी बात सुनकर अजय हैरान रह गया। वह हैरानी से सूर्या से बोला,
    "तुम हो कौन जो इतनी जल्दी हमारी कंपनी को दिवालिया करवा सकते हो? हमारी कंपनी कोई छोटी-मोटी नहीं है, वो मुंबई की टॉप फाइव कंपनियों में आती है। तो फिर तुम ऐसा कैसे कर सकते हो?"


    उसकी बात सुनकर सभी बॉडीगार्ड हंसने लगे, संभव भी। वहीं सूर्या सांझ को देख रहा था जो सुनीता से लिपटी हुई थी और उसे किसी की बातों का कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।


    तभी संभव अजय से हंसते हुए बोला,
    "तुम जानते भी नहीं हो बच्चे, तुमने किससे पंगा लिया है? पहले सर तुम्हें उस लड़की की वजह से सिर्फ जेल भेजते और तुम्हें छोड़ देते, लेकिन तुमने सर को उल्टा-सीधा बोलकर उनके गुस्से को भड़का दिया और उनको ललकारा है अपने बाप के पैसे के दम पर! जिसका जवाब सर ने तुझे और तेरे बाप को रोड पर लाकर दिया है। और हां, जिसके सामने तू इस वक्त खड़ा होकर बात कर रहा है, वह कोई और नहीं, बल्कि सूर्यकांत सूर्यवंशी है, जो कि वर्ल्ड की नंबर वन कंपनी सूर्यवंशी एंपायर के मालिक हैं। और सर चाहे तो तेरे जैसे हजारों को और उनके बाप को यूं ही एक रात में सड़क पर लाकर खड़ा कर सकते हैं। इसलिए आगे से कभी सर से उलझने की गलती मत करना!"


    उसकी बात सुनकर अजय हक्का-बक्का रह गया।

  • 9. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 9

    Words: 599

    Estimated Reading Time: 4 min

    संभव ने अजय से हँसते हुए कहा, "तुम जानते भी नहीं हो बच्चे, तुमने किससे पंगा लिया है? पहले सर तुम्हें उस लड़की की वजह से सिर्फ़ जेल भेजते और छोड़ देते... लेकिन तुमने सर को उल्टा-सीधा बोलकर उनके गुस्से को भड़का दिया... और उनको ललकारा है... अपने बाप के पैसे के दम पर! जिसका जवाब सर ने तुम्हें और तुम्हारे बाप को रोड पर लाकर दिया है। और हाँ, जिसके सामने तुम इस वक्त खड़े होकर बात कर रहे हो... वो कोई और नहीं, बल्कि सूर्यकांत सूर्यवंशी हैं। जो कि वर्ल्ड की नंबर वन कंपनी सूर्यवंशी एंपायर के मालिक हैं। और सर चाहे तो तुम्हारे जैसे हज़ारों को और उनके बाप को यूँ ही एक रात में सड़क पर लाकर खड़ा कर सकते हैं। इसीलिए आगे से कभी सर से उलझने की गलती मत करना!"

    उसकी बात सुनकर अजय हक्का-बक्का रह गया।

    तभी सूर्या, जो साँझ को देख रहा था, अजय की तरफ देखते हुए अपनी कड़क आवाज़ में बोला, "तुमने जो किया उसकी सज़ा तुम्हें मिल चुकी है... अब जाओ और अपनी आँखों से अपने बाप की बर्बादी देखो... बहुत गुरूर था, ना तुम्हें अपने बाप की दौलत पर? तो आइंदा सूर्या से उलझने से पहले याद रखना, सूर्या वो आग है... जो अच्छे-अच्छों के गुरूर को भी उनके साथ जलाकर राख कर देता है! और हाँ, आज के बाद अगर उस लड़की की तरफ देखने की भी हिम्मत की तो जान से भी जाओगे... इसीलिए ध्यान रहे, गलती से भी उसकी नज़रों के सामने मत आ जाना!"

    और फिर संभव की तरफ देखते हुए, सुनीता की ओर इशारा करते हुए बोला, "और तुम सुनीता को उसके घर छोड़कर आओ!"

    इतना कहकर एक नज़र सुनीता से लिपटी साँझ को देखकर, अपनी गाड़ी की ओर बढ़ने लगा।

    वहीं संभव ने उसकी बात सुनकर हाँ में सर हिला दिया और सुनीता के पास आकर, सुनीता को लेकर अपनी गाड़ी की ओर जाने लगा।

    उसके बॉडीगार्ड्स भी अजय और उसके सभी दोस्तों को छोड़कर सूर्या के साथ चलने लगे।

    वहीं अजय अभी भी गुस्से से सूर्या को घूर रहा था क्योंकि उसने पल भर में ही उसके बाप और उसे रोड पर लाकर खड़ा कर दिया था। वह गुस्से में वापस उसी कमरे में चला गया और बेड के पास वाले ड्रॉअर में से गन निकालकर वापस सूर्या के पास जाने लगा। उसके सभी दोस्त उसके इस एक्शन से हैरान रह गए।

    उन्होंने उसे रोकने की बहुत कोशिश की। तो अजय गुस्से में उनसे बोला, "इसने मुझे और मेरे पापा को रोड पर लाकर खड़ा कर दिया... और मुझे कहीं का नहीं छोड़ा इसलिए... रोड पर दर-दर की ठोकरें खाते हुए ज़िल्लत की ज़िंदगी जीने से बेहतर है। या तो इसे मार दूँ या फिर इसके हाथों खुद मर जाऊँ... और अगर अब तुम लोगों ने मुझे रोकने की कोशिश की तो याद रखो, इसके साथ तुम भी मरोगे!" इतना कहकर उसने अपने ही दोस्त पर गन तान दी जिससे डरकर उसके सभी दोस्त पीछे हो गए।

    वहीं अजय सूर्या से कुछ दूरी पर से ही उसकी तरफ गन पॉइंट करते हुए जोर से चिल्लाते हुए बोला, "मिस्टर सूर्यकांत सूर्यवंशी, भले ही तुमने मुझे बर्बाद कर दिया, लेकिन मेरी जान बख्श कर तुमने सबसे बड़ी गलती की... और यही गलती अब तुमसे तुम्हारी जान लेगी। तुम भले ही कितने बड़े आदमी क्यों ना हो... लेकिन आज तुम्हारी मौत मेरे हाथों लिखी है!" इतना कहकर उसने सूर्या पर गोली चला दी।

  • 10. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 10

    Words: 852

    Estimated Reading Time: 6 min

    अजय सूर्या से कुछ दूरी पर से ही उसकी तरफ गन पॉइंट करते हुए जोर से चिल्लाया, "मिस्टर सूर्यकांत सूर्यवंशी! भले ही तुमने मुझे बर्बाद कर दिया, लेकिन मेरी जान बख्श कर तुमने सबसे बड़ी गलती की... और यही गलती अब तुमसे तुम्हारी जान लेगी। तुम भले ही कितने बड़े आदमी क्यों ना हो..... लेकिन आज तुम्हारी मौत मेरे हाथों लिखी है...." इतना कहकर अजय ने सूर्या पर गोली चलाई।


    वही उसकी आवाज सुनकर सूर्या पलटकर उसकी तरफ देखा। संभव, सुनीता और सूर्या के बॉडीगार्ड सभी पलटकर देखे। उसके हाथ में गन देख सभी एक पल को घबरा गए। बॉडीगार्ड अजय के ऊपर अपनी गन पॉइंट कर दिए। लेकिन तब तक अजय गोली चला चुका था।


    वही उसे गोली चलाते देख, पास वाली गाड़ी के पास सांझ को पकड़कर खड़ी सुनीता ने जल्दी से सांझ को खुद से दूर धकेल दिया। वह भागकर सूर्या को धक्का देते हुए उस गोली के सामने आ गई। अजय द्वारा चलाई गई गोली सुनीता के पेट में लग गई, और वह वहीं अपना पेट पकड़कर गिर गई।


    सांझ हैरानी से जमीन पर गिरी सुनीता को देखती रही, जो दर्द से कराह रही थी।


    अपने ऊपर चली गोली को सुनीता को लगते देख, सूर्या की आंखें गुस्से से लाल हो गईं। वह अपनी लाल आंखों से अजय की ओर देखते हुए चिल्लाया, "शूट हिम!"


    उसका आदेश मिलते ही सभी बॉडीगार्ड्स ने अपनी गन से अजय के ऊपर फायर कर दिया। पल भर में अजय का पूरा शरीर गोलियों से भर गया, और वह खून से लथपथ जमीन पर गिर गया। उसके सभी दोस्त उसे मरते देख वहां से भाग गए।


    सांझ, जो बुत बनी खड़ी हुई थी, गोलियों की आवाज से होश में आई। वह दौड़ते हुए सुनीता के पास आई और उसका सर अपनी गोद में रखकर उसके गाल थपथपाते हुए रोते हुए बोली, "आई! आई! उठना, तुझे कुछ नहीं होगा आई! हम अभी हॉस्पिटल चलेंगे। बस तू अपनी आंखें बंद मत करना... आई! मुझे छोड़कर मत जाना, मैं तेरे बिना कैसे जिऊंगी... प्लीज आई!"


    फिर संभव की तरफ देखकर हाथ जोड़ते हुए बोली, "भाऊ! मेरी मदद करो... मेरी आई को बचा लो... इसे हॉस्पिटल पहुंचा दो!!"


    सूर्या भी सुनीता को बेहोश होते देख उसके पास आया और संभव से बोला, "इसे उठाकर हॉस्पिटल लेकर चलो!!"


    संभव ने जल्दी से हां में सर हिलाकर सुनीता को गोद में उठाकर अपनी गाड़ी में लिटा दिया। सांझ भी जल्दी से सुनीता के साथ वाली सीट पर बैठकर उसके सर को अपनी गोद में रख लिया। संभव फ्रंट सीट पर बैठकर ड्राइवर को गाड़ी स्टार्ट करने को बोला। सूर्या भी अपनी गाड़ी में बैठ गया, और सभी लोग हॉस्पिटल के लिए निकल गए।


    घंटे भर बाद हॉस्पिटल में, सूर्या की मौजूदगी में संभव ने पूरे हॉस्पिटल को खाली करवा दिया था। सूर्या की जान पर हर वक्त खतरा बना रहता था। पूरा हॉस्पिटल इस वक्त बॉडीगार्ड से घिरा हुआ था। हॉस्पिटल में मौजूद सारे पेशेंट को दूसरे हॉस्पिटल में शिफ्ट करवा दिया गया था। हॉस्पिटल के अंदर डॉक्टरों की लाइन लगी हुई थी, जो सुनीता के चेकअप के लिए बुलाए गए थे। और बुलाए भी क्यों ना, सूर्या का सख्त ऑर्डर था क्योंकि सुनीता ने सूर्या पर चली गोली अपने ऊपर खाई थी। अगर सुनीता सूर्या के आगे नहीं आती तो आज सुनीता की जगह सूर्या हॉस्पिटल में एडमिट होता। इसीलिए सूर्या ने सुनीता को ठीक कराने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी, और यही वजह थी कि इस वक्त सुनीता को वीआईपी ट्रीटमेंट मिल रहा था। उसके एडमिट होने से लेकर मेडिकल दवाइयों तक का खर्चा सूर्या ही उठा रहा था। डॉक्टरों को भी सख्त हिदायत दी गई थी कि अगर सुनीता ठीक नहीं हुई, तो वो लोग भी जिंदा बचकर वहां से नहीं जा पाएंगे।


    अंदर ऑपरेशन थिएटर में सुनीता का ऑपरेशन चल रहा था। सूर्या भी संभव के साथ वहीं मौजूद था।


    सूर्या वहीं खड़ा एकटक सांझ को निहार रहा था, जिसने रो-रोकर अपना बुरा हाल कर लिया था। चेहरे पर आंसुओं की लकीरें बन गई थीं, आंखें रोने की वजह से सूज गई थीं, बाल बिखरे हुए थे। वह वहीं एक कोने में खुद में सिमटी हुई खड़ी हुई थी, आंखों में से रह-रहकर आंसू की बूंदे छलक रही थीं। बदन घबराहट और डर के मारे कांप रहा था। हाथों की उंगलियों को आपस में उलझा कर अपनी घबराहट को कम करने की नाकाम कोशिश कर रही थी। तभी ऑपरेशन थिएटर की लाइट बंद हो गई, और डॉक्टर निकल कर बाहर आए। सांझ डरते हुए उनके पास आई और उत्सुकता से अपने आंसू भरी आंखों से उन्हें देखने लगी, उनके बोलने का इंतज़ार करती हुई।

    कहानी जारी है।

  • 11. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 11

    Words: 724

    Estimated Reading Time: 5 min

    सूर्या वहीं खड़ा एकटक सांझ को निहार रहा था। जिसने रो रो कर अपना बुरा हाल कर लिया था। चेहरे पर आंसुओं की लकीरे बन गई थीं, आंखें रोने की वजह से सूज गई थीं। बाल बिखरे हुए थे। वह वहीं एक कोने में खुद में सिमटी हुई खड़ी हुई थी। साथ ही आंखों में से रह-रहकर आंसू की बूंदें छलक कर बाहर आ रही थीं। बदन घबराहट और डर के मारे कांप रहा था। हाथों की उंगलियों को आपस में उलझा कर अपनी घबराहट को कम करने की नाकाम कोशिश कर रही थी। तभी ऑपरेशन थिएटर की लाइट बंद हो गई, और डॉक्टर निकल कर बाहर आए। सांझ डरते हुए उनके पास आई और उत्सुकता से अपने आंसू भरी आंखों से उन्हें देखने लगी। और उनके बोलने का इंतजार करने लगी।

    तभी डॉक्टर डरते हुए सूर्या से बोले, "वह अब खतरे से बाहर है मिस्टर सूर्यवंशी। लेकिन गोली किडनी के बहुत पास लगने की वजह से उनकी किडनी डैमेज हो चुकी है। जिसका हमने ऑपरेशन कर दिया है। लेकिन उन्हें ठीक होने में एक महीने से ज्यादा का वक्त लग जाएगा। तब तक उन्हें फुल बेड रेस्ट की जरूरत है। इसलिए आप जितना हो सकते हो उनका ध्यान रखें।"

    सूर्या बस हाँ में सर हिला दिया। वही उनकी बात सुनकर सांझ के दिल को थोड़ा सुकून आया, और उसके होठों पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई।

    तभी संभव सूर्या के पास आया और थोड़ा डरते हुए उससे बोला, "सर, आई थिंक अब आपको वापस मेंशन चले जाना चाहिए। वैसे भी लास्ट टू डेज से आपने बिल्कुल भी रेस्ट नहीं किया है। एंड अब सुनीता ठीक है। और फिर भी अगर उसे या इस लड़की को कुछ प्रॉब्लम हुई, तो मैं हूँ यहां पर।"

    इतना कहकर वह चुप हो गया और सूर्या के बोलने का इंतजार करने लगा।

    वहीं सूर्या एक नजर सांझ को देखा, जो बाहर लगे मिरर के जरिए अंदर लेटी सुनीता को देख रही थी। और संभव से अपनी कड़क आवाज में बोला, "ठीक है, लेकिन उस लड़की को और सुनीता को किसी भी चीज की जरूरत हो, तो उन्हें तुरंत लाकर देना। और उस लड़की के लिए कुछ कपड़े मंगाओ और उसे बदलने को बोल देना। और कुछ खिला देना।"

    सूर्या का सांझ के लिए इतना सॉफ्ट बिहेवियर देखकर एक पल को संभव हैरान रह गया। लेकिन जब उसकी नजर सांझ के कपड़ों पर गई, तो उसे सारा माजरा समझ आ गया। इसीलिए उसने सूर्या की बात मानकर चुपचाप से हाँ में सर हिला दिया। वहीं सूर्या एक नजर सांझ पर डालकर वहाँ से चला गया।

    वहीं संभव ने अपने आदमियों से सांझ के लिए कपड़े और खाना मंगवा लिया। कुछ देर में ही उसके आदमी सारा सामान ले आए। तो संभव सांझ के पास आया और उससे बोला, "ए लड़की, क्या नाम है तेरा? ये ले, ये कपड़े ले और जाकर सामने वाले रूम में चेंज कर आ।"

    तो सांझ ने उसके हाथ में पकड़े कपड़ों को देखा और फिर धीमी आवाज में संभव से बोली, "मैं ऐसे ही ठीक हूँ भाऊ, मुझे इन सब की जरूरत नहीं है।"

    तो संभव ने कपड़ों का पैकेट उसकी गोद में रखा और उस पर से अपनी नजरें फेरते हुए बोला, "तुझे जरूरत है या नहीं यह तो तेरे कपड़ों की हालत देखकर ही पता चल रहा है। तू पराए मर्दों के सामने ऐसे फटे कपड़ों में कब तक घूमेगी? वैसे भी यह मेरा नहीं सर का आर्डर है। और उनकी बात को टालना तेरे क्या मेरे बस में भी नहीं है। इसीलिए चुपचाप जा और जैसा कहा है वैसा कर।"

    इतना कहकर वह वहाँ से बाहर की तरफ चला गया। वहीं उसकी बात सुनकर सांझ उस कमरे में गई और आईने के सामने खड़ी होकर अपने कपड़ों को गौर से देखने लगी। तो देखती है उसका कुर्ता कंधे पर से फट गया था जहाँ से उसकी ब्रा की स्ट्रिप दिख रही थी। उसे याद आया अजय के खींचने और जोर जबरदस्ती करने के वक्त ही उसके कपड़े फटे होंगे। फिर से उन सब बातों को याद करने से उसकी आंखें नम हो गईं। वह जल्दी से अपने कपड़े चेंज कर लेती है और बाहर आकर बैठ जाती है।

  • 12. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 12

    Words: 502

    Estimated Reading Time: 4 min

    तभी संभव उसके पास आया। उसने खाने का एक पैकेट उसकी तरफ बढ़ा दिया। जिसे सांझ ने बिना ना-नुकुर किए चुपचाप ले लिया। क्योंकि उसे किसी से ज़्यादा बात करने की आदत नहीं थी, वह अपनी ही में मस्त रहने वाली लड़की थी।


    वहीं संभव भी उसी के पास तीन-चार सीट छोड़कर बैठ गया। उसने अपने लिए भी खाना मँगाया था, तो उसने अपना पैकेट खोला और खाने लगा। तभी उसने देखा सांझ सिर्फ़ खाना पकड़े बैठी थी। उसने अभी खाना शुरू नहीं किया था।


    तो वह खाते हुए उससे बोला, "क्या हुआ? तू खाना नहीं खा रही? खा ना, खाना अच्छा है। अगर आई की चिंता हो रही है तो वह बिल्कुल ठीक है। इसीलिए तू परेशानी में बार-बार अपना खून मत जला, वरना कहीं ऐसा ना हो कि वह ठीक हो जाए और तू बिस्तर पकड़ ले।"


    उसकी बात सुनकर सांझ कुछ नहीं कहती और चुपचाप खाना निकालकर खाने लगती है।


    तभी संभव फिर से बोला, "वैसे तू ना बहुत किस्मत वाली है। सर को मैंने आज तक किसी के लिए इतना कुछ करते नहीं देखा। वह कभी किसी के पचड़े में नहीं पड़ते; उनकी बला से कोई मरे या जिए, उन्हें किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता। पता नहीं आज कैसे उन्होंने खुद ही सुनीता की मदद करने को कहा और इतना ही नहीं अब तेरे लिए भी कपड़े और खाने की वह बोलकर गए थे और तेरी माँ का इलाज भी खुद करा रहे हैं। तू पहली है जिसके लिए सर ने इतना कुछ किया है।"


    थोड़ी देर बाद संभव अपना खाना खाकर बाहर चला गया। वहीं सुनीता को रूम में शिफ़्ट कर दिया गया था, तो सांझ भी उसी के पास अंदर बैठी हुई थी।


    धीरे-धीरे एक हफ़्ता गुज़र गया। इन दिनों संभव सूर्या के कहे अनुसार सुनीता और सांझ का पूरा ध्यान रख रहा था। हाँ, लेकिन इस एक हफ़्ते में सूर्या एक बार भी हॉस्पिटल नहीं आया था। वह बस घर से ही संभव को सुनीता और सांझ का ध्यान रखने के लिए बोल दिया करता था। इस एक हफ़्ते में सांझ और संभव के बीच अच्छी बॉन्डिंग हो गई थी। दोनों भाई-बहन की तरह एक-दूसरे से बात करने लगे थे। यूँ तो सांझ कभी किसी के साथ कम्फ़र्ट फ़ील नहीं करती थी, लेकिन संभव के अच्छे व्यवहार के कारण वह संभव के साथ खुलने लगी थी। वहीं संभव पहले तो सूर्या की वजह से उसके साथ अच्छे से पेश आता था, लेकिन धीरे-धीरे सांझ को समझने के बाद और उसकी प्यारी-प्यारी बातें सुनने के बाद वह खुद ही उसके साथ अच्छे से व्यवहार करने लगा था। वहीं सुनीता की हालत में पहले से सुधार था, इसीलिए डॉक्टर ने उसे डिस्चार्ज करने का फ़ैसला ले लिया था। हाँ, लेकिन एक महीने का बेड रेस्ट उसे अभी भी करना था। आज उसकी छुट्टी का दिन था, इसीलिए सांझ उसका सारा सामान पैक करने में लगी हुई थी।

  • 13. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 13

    Words: 640

    Estimated Reading Time: 4 min

    धीरे-धीरे एक हफ़्ता गुज़र गया। इन दिनों, संभव सूर्या के कहे अनुसार सुनीता और सांझ का पूरा ध्यान रख रहा था। हाँ, लेकिन इस एक हफ़्ते में सूर्या एक बार भी हॉस्पिटल नहीं आया था। वह बस घर से ही संभव को सुनीता और सांझ का ध्यान रखने के लिए बोल दिया करता था। इस एक हफ़्ते में सांझ और संभव के बीच अच्छी बॉन्डिंग हो गई थी। दोनों भाई-बहन की तरह एक-दूसरे से बात करने लगे थे। यूँ तो सांझ कभी किसी के साथ कम्फ़र्ट फील नहीं करती थी, लेकिन संभव के अच्छे व्यवहार के कारण वह संभव के साथ खुलने लगी थी। वहीं संभव पहले तो सूर्या की वजह से उसके साथ अच्छे से पेश आता था। लेकिन धीरे-धीरे सांझ को समझने के बाद और उसकी प्यारी-प्यारी बातें सुनने के बाद वह खुद ही उसके साथ अच्छे से व्यवहार करने लगा था। वहीं सुनीता की हालत में पहले से सुधार था। इसीलिए डॉक्टर ने उसे डिस्चार्ज करने का फैसला ले लिया था। हाँ, लेकिन एक महीने का बेड रेस्ट उसे अभी भी करना था। आज उसकी छुट्टी का दिन था। इसीलिए सांझ उसका सारा सामान पैक करने में लगी हुई थी।

    तभी संभव वहाँ पर आया और सांझ से बोला,
    "सांझ, सारा सामान पैक हो गया ना? कुछ रह तो नहीं गया?"

    उसकी बात पर सांझ ने मुस्कुराते हुए ना में सर हिला दिया।

    तो संभव अपने एक आदमी से बोला,
    "जाओ, सामान को गाड़ी में रखो। मैं सुनीता और सांझ को लेकर आता हूँ।"

    उसकी बात पर सांझ संभव से बोली,
    "अरे नहीं भाऊ, अब रहने दो। आपने पहले ही हमारे लिए बहुत किया है। मैंने अमन भाई को बुला लिया है, वह बस आते ही होंगे। हम उसी के साथ चले जाएँगे, वह हमें चौल तक छोड़ देंगे।"

    तो संभव मना करते हुए बोला,
    "नहीं सांझ, तुम यहाँ से चौल नहीं, बल्कि सूर्यवंशी मेंशन जा रही हो। सर का सख्त आर्डर है, जब तक सुनीता पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाती, वह सूर्यवंशी मेंशन में ही रहेगी। और सर की बात टालना तुम्हारे तो क्या मेरे बस में भी नहीं। इसीलिए चुपचाप मेरी बात मानकर सूर्यवंशी मेंशन चलो। वहाँ तुम दोनों के रहने का इंतज़ाम हो चुका है।"

    तभी सुनीता धीमी आवाज़ में बोली,
    "अरे संभव साहब, आप साहब से कहिए, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। हम दोनों अपने घर ही चले जाएँगे। आप जानते हैं मैं अब पहले से ठीक हूँ। इसीलिए आप लोगों को परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।"

    तो संभव उससे बोला,
    "बेहक तुम ठीक हो, लेकिन तुमने गोली भी सर की वजह से ही खाई थी। इसी वजह से सर ने तुम्हारी रिस्पॉन्सिबिलिटी अपने ऊपर ली है। इसीलिए जब तक तुम पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाती, तुम चाहो या ना चाहो, तुम्हें सूर्यवंशी मेंशन में ही रहना पड़ेगा। इसीलिए सर की बात ना मानकर उनके गुस्से को मत बढ़ाओ। तुम सालों से जानती हो सर का गुस्सा कैसा है? ऐसे में अगर कोई उनकी बात नहीं मानता तो वह कुछ भी कर जाते हैं... इस बात से तुम भली-भांति वाकिफ़ हो।"

    उसकी बात सुनकर सुनीता शांत हो जाती है। तभी सांझ परेशानी में बोली,
    "पर आई, मेरा कॉलेज? मैं इतनी दूर से कॉलेज कैसे आऊँगी?"

    तो संभव सांझ की तरफ़ देखकर बोला,
    "तुम उसकी चिंता मत करो। जब सर ने कोई फैसला लिया है तो सोच-समझकर ही लिया होगा। इसीलिए तुम्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। अब टाइम वेस्ट मत करो, मुझे तुम लोगों को मेंशन में छोड़कर एक मीटिंग में भी जाना है।"

    थोड़ी देर में ही सभी लोग हॉस्पिटल से सूर्यवंशी मेंशन की ओर निकल गए।

  • 14. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 14

    Words: 910

    Estimated Reading Time: 6 min

    सूर्यवंशी मेंशन में सभी लोग बाहर के हॉल में बैठे हुए थे। वैदेही जी, उमा, और संयोगिता हॉल में लगे सोफे पर बैठी अपनी चाय का आनंद ले रही थीं। संजय और उमेश जी किसी मीटिंग के कारण भारत से बाहर गए हुए थे। दादा जी अपने कमरे में बिस्तर पर आराम कर रहे थे। तभी बाहर गाड़ी रुकी और सभी लोग दरवाजे की ओर देखने लगे। सूर्या आँखों पर गॉगल्स चढ़ाए हुए, एक हाथ अपने पेंट में लिए, एटीट्यूड से चलकर आया। उसके बालों की पोनीटेल बंधी हुई थी।

    उसे देखते ही घर के नौकर एक तरफ लाइन लगाकर खड़े हो गए। सूर्या ने सभी को एक नज़र देखा और सबसे पुराने नौकर दीपेश से अपनी कड़क आवाज़ में कहा, "क्या सारी व्यवस्था हो गई?"

    दीपेश ने सर झुकाकर कहा, "जी सर, जैसा आपने आदेश दिया था, हमने उसी हिसाब से उस कमरे को तैयार करवा दिया है। उसमें दो बेड और सारी ज़रूरत का सामान भी रखवा दिया है... साथ ही एक नर्स नियुक्त कर ली गई है... जो समय पर सुनीता का ध्यान रखेगी।"

    सूर्या ने सिर हिलाया और सीढ़ियों से ऊपर जाने लगा। तभी वैदेही जी आगे आईं और बोलीं, "लेकिन सूर्या, सुनीता यहाँ क्यों आ रही है? उसे यहाँ लाने का क्या मतलब? यह हमारा सूर्यवंशी मेंशन है, कोई धर्मशाला नहीं। अगर उसकी तबीयत ठीक नहीं है, तो वह अपने घर पर आराम करे... हम कोई दूसरी नौकरानी नियुक्त कर लेंगे।"

    उनकी बात सुनकर सूर्या के आगे बढ़े कदम रुक गए। वह उन्हें गहरी नज़रों से देखने लगा और बोला, "आप हमारी दादी हैं, इसीलिए हम आपकी इज़्ज़त करते हैं। लेकिन ध्यान रहे, आगे से आपको भी हमारी बात काटने का हक़ नहीं। इस घर में किसे रहना चाहिए और किसे नहीं, यह फैसला हम करेंगे, आप नहीं। और रही सुनीता के यहाँ रहने की बात, तो उसने हम पर चली गोली अपने ऊपर खाई है। अगर वह हमारे सामने नहीं आती, तो आज हम आपके सामने क्यों सही-सलामत खड़े होते? इसीलिए जब तक वह ठीक नहीं हो जाती, तब तक उसकी सारी ज़िम्मेदारी हमने ली है। और यह बात आप भी जानती हैं कि सूर्य एक बार किसी काम को अपने हाथ में ले लेता है, तो उसे कभी अधूरा नहीं छोड़ता।"

    इतना कहकर वह ऊपर अपने कमरे में चला गया। वैदेही जी उसके इस तरह जवाब देने से चिढ़ गईं और अपने कमरे में चली गईं। थोड़ी देर में संभव की कार सूर्यवंशी मेन गेट में दाखिल हुई और गार्डन एरिया से होते हुए सूर्यवंशी मेंशन की ओर जाने लगी। सांझ का मुँह खुला का खुला रह गया। इतने बड़े मेंशन, जो किसी महल से कम नहीं था, और पूरा बगीचा, वह हैरानी से सब कुछ देख रही थी। उसने सपने में भी इतना सुंदर महल जैसा घर नहीं देखा था। संभव आईने में उसके चेहरे पर आए भाव देखकर मुस्कुरा रहा था।

    थोड़ी देर बाद कार रुकी और सभी लोग बाहर निकले। सांझ अभी भी मुँह खोले सब कुछ देख रही थी। संभव ने सभी को अंदर चलने का इशारा किया और खुद आगे चल दिया। सांझ और सुनीता उसके पीछे-पीछे चल दीं।

    सभी लोग गाड़ी की आवाज़ सुनकर हॉल में आ चुके थे। सभी की नज़र सुनीता के पीछे आ रही सांझ पर पड़ी। सभी उसे हैरानी से देखने लगे। जहाँ सुनीता का गोरा रंग था, वहीं सांझ का रंग कोयले से भी काला था। उस पर मोटे-मोटे ग्लासेस वाला चश्मा था। सांझ उन सबकी नज़रों से असहज हो रही थी।

    तभी संयोगिता आगे आते हुए बोलीं, "सुनीता, तुम्हारे साथ यह कोयले की खान कौन है?"

    उनकी बात सुनकर सांझ उदास हो गई और अपनी नज़र नीचे झुका ली ताकि कोई उसके चेहरे पर आई उदासी न देख सके। संभव और सुनीता को भी बुरा लगा। सुनीता हल्के से मुस्कुराते हुए बोली, "मैडम, यह मेरी बेटी है... सांझ।"

    "लेकिन सूर्या ने तो सिर्फ़ तुम्हें बुलाया था... और तुम्हारी ज़िम्मेदारी ली थी, तो फिर तुम अपनी बेटी को क्यों ले आई?" वैदेही जी आगे आईं।

    तभी एक जोरदार आवाज़ गूँजी, जो सूर्या की थी। वह सीढ़ियों से उतरते हुए नीचे आ रहा था।

    "बस बहुत बोल लिया सबने! मैंने ही सुनीता और उसकी बेटी को यहाँ रहने की इजाज़त दी है। इसीलिए किसी को जो भी सवाल करने हैं, वह मुझसे करें। अगर उसमें मुझसे सवाल करने की हिम्मत नहीं है, तो फिर मेरे किसी भी फ़ैसले पर उसे उंगली उठाने का भी हक़ नहीं।" फिर संभव की ओर देखते हुए बोला, "तुम इन दोनों का कमरा दिखा दो... और बाहर आकर मिलो, मैं गाड़ी में हूँ।" इतना कहकर वह वहाँ से निकल गया।

    उसके जाने के बाद सुनीता वैदेही जी से बोली, "आप फ़िक्र मत कीजिए, मेम साहिबा। जब तक मैं यहाँ हूँ, तब तक मेरे हिस्से का काम सांझ करेगी। इसीलिए आपको उसके यहाँ रहने से कोई परेशानी नहीं होगी... और मेरे ठीक होते ही हम दोनों यहाँ से चले जाएँगे।" इतना कहकर वह संभव के साथ अपने कमरे की ओर बढ़ गई।

  • 15. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 15

    Words: 918

    Estimated Reading Time: 6 min

    वहीं उसके जाने के बाद सुनीता वैदेही जी से बोली, "आप फिकर मत कीजिए मेम साहब। जब तक मैं यहां हूँ, तब तक मेरे हिस्से का काम सांझ करेगी। इसीलिए आप को उसके यहां रहने से कोई परेशानी नहीं होगी। और मेरे ठीक होते ही हम दोनों यहां से चले जाएँगी।" इतना कहकर, वह संभव के साथ अपने कमरे की ओर बढ़ गई।


    थोड़ी देर में ही संभव ने उन्हें उनके कमरे में छोड़ कर एक नौकरानी से उनकी जरूरतों का सामान देने को कहा और सूर्या के साथ मीटिंग के लिए निकल गया। वहीं अपने कमरे में आकर, इतने सुंदर कमरे को देखकर सांझ की सारी उदासी दूर हो गई और उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गई।


    वह खुशी से उस कमरे में झूमते हुए बोली, "अरे वाह! यह कमरा तो हमारे चौल वाले घर से भी बड़ा है! उस छोटे से घर में तो किचन, बाथरूम, लिविंग रूम, और दो कमरे भी थे, लेकिन यह तो सभी के बराबर एक ही है! इसमें तो हमारी चौली के पचास लोग आराम से रह लेंगे।"


    सुनीता, जो बिस्तर पर लेटी हुई थी, उसके चेहरे पर आई खुशी और मासूमियत देखकर खुश हो गई और प्यार से बोली, "हाँ मेरी लाडो, क्योंकि यह सूर्यवंशी मेंशन का कमरा है, और यहाँ पर जितने भी कमरे हैं, वो इससे भी बड़े हैं।"


    सांझ खुशी से उसके पास बैठते हुए बोली, "फिर तो आई, ये लोग राजा महाराजाओं की तरह रहते होंगे! और इनका घर भी तो बिल्कुल उन्हीं के महल जैसा है! इन्हें तो किसी काम के लिए बाहर जाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती होगी। अगर ये चाहें तो अपने कमरे में ही सब कुछ बनवा सकते हैं, जैसे कि किचन, लिविंग रूम, बाथरूम और भी बहुत कुछ!!"


    सुनीता प्यार से बोली, "सब का तो पता नहीं, हाँ लेकिन साहब के कमरे में यह सब कुछ है, बल्कि इससे भी ज़्यादा। तुझे पता है, साहब का कमरा तो इतना बड़ा है कि हमारी आधी से ज़्यादा चौली के लोग उसमें रह लेंगे, फिर भी जगह बचेगी। उनके कमरे में लिविंग रूम, ड्रेसिंग रूम, बाथरूम, स्विमिंग पूल, सब कुछ है। इतना ही नहीं, उनके कमरे में ही एक अलग से छोटा सा गार्डन भी बनाया गया है, और उनका स्टडी रूम भी उनके रूम से कनेक्ट है जिसमें एक छोटा सा किचन भी है। अगर साहब चाहें तो अपने कमरे से बाहर ना निकलें, तो भी आराम से उस कमरे में अपनी ज़िंदगी गुज़ार लेंगे।"


    सांझ अपनी नीली मासूम आँखों में उमंग भरते हुए खुशी से बोली, "तुझे पता है आई, जब मैं बड़ी हो जाऊँगी और पढ़-लिखकर कुछ बन जाऊँगी, तो तेरे लिए भी मैं ऐसा ही एक घर लूँगी, जहाँ हम दोनों माँ-बेटी मिलकर खूब मस्ती करेंगी, एक-दूसरे के साथ समय बिताएँगी।" यह कहते हुए उसकी आँखों में अनेकों जज़्बात उमड़ रहे थे।


    सुनीता उसके गाल पर हल्की सी थपकी देते हुए बोली, "चल पागल, जब तू बड़ी हो जाएगी तो क्या सदा ज़िंदगी मेरे साथ बनी रहेगी? अरे, शादी करके अपने घर नहीं जाएगी क्या? अपना घर नहीं संभालेगी?"


    सांझ उदास होते हुए बोली, "नहीं आई, मुझे शादी नहीं करनी। मुझे हमेशा तेरे पास ही रहना है, और तेरा प्यार पाना है। मैं तुझसे बहुत प्यार करती हूँ, इसीलिए तुझे छोड़कर कभी नहीं जाऊँगी।"


    सुनीता हल्की सी उसके गाल पर चपत लगाते हुए बोली, "चल पागल, ऐसा नहीं कहते। एक ना एक दिन सभी लड़कियों को शादी करके अपने घर जाना होता है। मैं भी तो तुझसे बहुत प्यार करती हूँ, इसका मतलब यह नहीं कि मैं हमेशा के लिए तुझे अपने से बाँध कर रख लूँ। और देखना, एक दिन तुझे ऐसा जीवन साथी मिलेगा जो तुझे मुझसे भी ज़्यादा प्यार करेगा, फिर तुझे अपनी आई की याद भी नहीं आएगी।"


    उनकी बात सुनकर सांझ ज़्यादा कुछ नहीं कहती, मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिला देती है। फिर बात बदलने के लिए सुनीता से बोली, "वैसे आई, तू यहाँ पर क्या काम करती थी? अगर मुझे कुछ पता ही नहीं होगा तो फिर मैं काम कैसे करूँगी?"


    सुनीता मुस्कुराते हुए बोली, "मैं यहाँ साहब और संभव साहब के लिए अलग से खाना बनाती हूँ। उनके ऑफिस जाने से पहले चाय-नाश्ते से लेकर शाम को ऑफिस से आने के बाद उनकी कॉफी, उसके बाद खाना, सब मेरी ही ज़िम्मेदारी है। और बाकी खाली टाइम में घर के थोड़े छोटे-मोटे काम, जैसे साफ-सफाई, गार्डन में पौधों को पानी देना, बस इतना ही काम है मेरा। वैसे तो बहुत सारे नौकर हैं घर में जो सभी के लिए खाना बनाते हैं, लेकिन साहब की जान को हर वक्त खतरा बना रहता है। अपने घर में भी उनका कौन दुश्मन निकल आए, इसका पता भी नहीं। इसीलिए उनकी माँ ने, यानी छोटी मेम साहब ने, मुझे उनकी सभी ज़िम्मेदारी निभाने को दी थी। वो मुझे तो नौकर की तरह समझती ही नहीं, अपने दोस्त की तरह मानती हैं। अभी शायद घर में नहीं है, वरना अब तक तो मुझसे मिलने आ जाती।"


    सांझ मुस्कुराते हुए बोली, "अब बस, बस बहुत हुआ आई। चल अब तू अपना आराम कर, मैं सारा काम संभाल लूँगी।" सुनीता मुस्कुराते हुए आँखें बंद कर लेती है। वहीं सांझ अपने सामान को कबर्ड में जमाने लगती है।

  • 16. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 16

    Words: 1037

    Estimated Reading Time: 7 min

    सुबह से शाम कब हुई पता ही नहीं चला। सांझ घर के नौकरों से पूछकर किचन में गई। वहाँ पहले से ही कुछ नौकर काम कर रहे थे। जैसे ही उनकी नज़र सांझ पर पड़ी, उनमें से एक नौकर आगे आकर बोला,
    "क्या हुआ मैडम? आपको कुछ चाहिए?"

    सांझ ने ना में सर हिलाया और बोली,
    "नहीं भाऊ, मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं तो बस साहब के लिए खाना बनाने आई थी। और प्लीज आप लोग मुझे मैडम मत बोलिए। मैं भी आप लोगों की तरह यहाँ अपनी माँ के हिस्से का काम करूँगी। बस आप लोग मुझे सामान के बारे में बताकर मेरी मदद कर दीजिएगा।"

    सभी नौकरों ने हाँ में सर हिला दिया।

    सांझ फिर उनकी मदद से खाना बनाने लगी। थोड़ी देर में बाहर सूर्या की गाड़ी रुकने की आवाज आई। यह सुनकर सांझ ने जल्दी से कॉफी बनाने के लिए गैस पर पानी चढ़ा दिया। कॉफी बन जाने के बाद उसने कॉफी को कप में डालकर एक नौकर को दी। इसे समझते ही नौकर ने अपने कदम पीछे ले लिए और सांझ से बोला,
    "माफ करो, लेकिन सर के सभी काम सुनीता ही करती है। हम तो सर के आसपास भी नहीं भटक सकते। इसीलिए यह काम भी अब तुम्हें ही करना होगा।"

    तो सांझ उन लोगों से सूर्या के कमरे का पता पूछकर, हिम्मत करते हुए उसके कमरे की ओर चल दी।

    स्टडी रूम में सूर्या सोफे पर बैठा था। उसने अपना कोट निकालकर सोफे पर रखा हुआ था। अपने दाहिने हाथ को मोड़कर आँखों पर रखा हुआ था। आजकल उसका मूड कुछ ठीक नहीं चल रहा था। कुछ अपनों की वजह से, तो कुछ अपने बिज़नेस पार्टनर्स के धोखे की वजह से, जिन्हें ना चाहते हुए भी बाद में उसे अपने उसूलों की वजह से मौत के घाट उतारना पड़ता था।

    तभी बाहर दरवाजे पर दस्तक हुई। उसने हाथ उठाकर दरवाजे की ओर देखा तो हाथ में कॉफी लिए सांझ खड़ी थी। फुल आस्तीन का ऑरेंज सूट, गले में दुपट्टा, बालों की ढीली-ढाली चोटी, और आँखों पर मोटे ग्लास वाला चश्मा, फिर भी नज़रें नीचे झुकी हुई थीं। सूर्या ने उसे एक नज़र देखा, लेकिन उसके हाथ में कॉफी देख वह असमंजस में था। फिर उसने उसे अंदर आने को कहा।

    उसकी कड़क आवाज सुनकर सांझ हल्की सी घबरा गई। क्योंकि सूर्या की आवाज सामान्य लोगों से भारी थी। अगर वह प्यार से भी बात करता, तो सभी को यह लगता कि वह गुस्से में है और उन्हें डाँट रहा है। वह धीमी कदमों से अंदर आई और अपने काँपते हाथों से कॉफी सूर्या की तरफ बढ़ा दी और हकलाते हुए बोली,
    "स-स-साहब, आपकी कॉफी।"

    सूर्या ने एक नज़र उसे देखा और फिर उसके हाथों में कॉफी और कप ले लिया। सांझ वापस जाने के लिए पलटी और जाने लगी, तभी सूर्या की आवाज उसके कानों में पड़ी।

    सूर्या ने कॉफी का एक घूँट लिया और सांझ से बोला,
    "रुको। यह कॉफी किसने बनाई है?"

    असल में उसे कॉफी पसंद आई थी, इसीलिए वह जानना चाह रहा था कि वह कॉफी किसने बनाई है।

    उसकी कड़क आवाज सुनकर सांझ डर गई। उसे लगा कि सूर्या को कॉफी पसंद नहीं आई। वह उसकी तरफ पलटते हुए, नज़रें नीचे किए हुए, धीमी आवाज में बोली,
    "मैंने बनाई है साहब। अगर आपको अच्छी नहीं लगी तो मैं दूसरी बना देती हूँ।"

    सूर्या अपनी गहरी नज़रों से उसे देखते हुए बोला,
    "लेकिन तुझसे किसने कहा यह सब काम करने के लिए? और तुझे कैसे पता कि मुझे इस वक्त कॉफी चाहिए?"

    यह कहते हुए वह थोड़ा गुस्से में लग रहा था। उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं था कि कोई भी लड़की उसके करीब आए या उसके काम करे।

    सांझ डरते हुए धीमी आवाज में बोली,
    "वो माँ ने कहा कि वह यहाँ आप और संभव दादा के लिए खाना बनाती थी। और अब जब उनकी तबीयत ठीक नहीं है, तो उनके हिस्से का काम मैं करूँ। इसीलिए उसने ही बताया कि साहब को आने के बाद सबसे पहले कॉफी चाहिए होती है।"

    सांझ ने मासूमियत से सारी बातें सच-सच बता दीं। जिन्हें सुनकर सूर्या का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ।

    फिर वह सांझ की तरफ देखते हुए बोला,
    "हम्म, ठीक है। लेकिन आगे से तुझे यह सब करने की कोई ज़रूरत नहीं है। तू बस यहाँ अपनी माँ का ख्याल रख और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे।"

    सांझ ने चुपचाप हाँ में सर हिलाया और वहाँ से चली गई। वहीं सूर्या कॉफी पीकर फ्रेश होने चला गया।

    थोड़ी देर बाद सूर्या फ्रेश होकर आया तो देखा संभव उसके और अपने लिए खाना लेकर आ रहा था।

    उसने खाना टेबल पर रखा और सूर्या से बोला,
    "भाऊ, आ जाओ खाना खा लो। और हाँ, पाटिल की चिंता मत करो, उसको ठिकाने लगा दिया है। कल सुबह जब सभी को पाटिल की खबर मिलेगी, तो सबको यही लगेगा कि उसका एक्सीडेंट हुआ है।"

    उसकी बात सुनकर सूर्या ने एक नज़र खाने को देखा और संभव से बोला,
    "यह खाना भी क्या उसी लड़की ने बनाया है? मैंने उससे मना किया था कि ऐसे फालतू के काम ना करे।"

    संभव उसे समझाते हुए बोला,
    "हाँ भाऊ, यह खाना सांझ ने बनाया है, लेकिन उसने यह आपके मना करने से पहले ही बना लिया था। इसीलिए प्लीज आप आज एडजेस्ट कर लो। कल मैं कोई और कामवाली ले आऊँगा।"

    सूर्या ज़्यादा कुछ नहीं कहता और चुपचाप सोफे पर बैठकर खाना खाने लगता है। जैसे ही पहला निवाला खाता है, तो उसे बहुत अच्छा महसूस होता है। सच में उसे खाना बेहद पसंद आया था।

    खाना खाने के बाद सूर्या संभव के साथ काम को लेकर कुछ ज़रूरी बातें करता है। जिसके बाद संभव वहाँ से चला जाता है, और सूर्या वापस से अपने काम में बिज़ी हो जाता है।

  • 17. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 17

    Words: 744

    Estimated Reading Time: 5 min

    खाना खाने के बाद सूर्य ने संभव के साथ काम को लेकर कुछ जरूरी बातें कीं। जिसके बाद संभव वहाँ से चला गया, और सूर्या वापस अपने काम में व्यस्त हो गया।


    अगली सुबह सूर्या बाहर गार्डन में पुशअप्स कर रहा था। उसका पूरा बदन पसीने से तर था; शरीर की मांसपेशियाँ उभरी हुई थीं। बदन पर कपड़े के नाम पर सिर्फ़ एक लोअर पहना हुआ था। बाल खुले हुए थे, जो गाल पर से होते हुए आगे आ रहे थे, और जिनसे पसीना जमीन पर गिर रहा था।


    तभी उसकी नज़र गार्डन की दूसरी तरफ चली गई जहाँ सुनीता का कमरा था! और उसकी नज़र बालकनी में खड़ी सांझ पर जाकर ठहर गई। जो शायद कुछ समय पहले नहाई होगी; वह अपने गीले बालों को तौलिए से झटक रही थी। उसके लंबे, काले, खुले, रेशमी बाल उसके कमर से नीचे लहरा रहे थे। आँखों पर चश्मा नहीं था, इस वजह से उसकी नीली आँखें और उन पर घनी, बड़ी-बड़ी पलकें नज़र आ रही थीं। वह मुस्कुराते हुए शायद कोई गाना गुनगुना रही थी, जो सूर्या को ठीक से सुनाई नहीं दे रहा था, लेकिन इतना ज़रूर समझ गया था कि सांझ आज बेहद खुश है।


    तभी एक कबूतर उड़ते हुए उसके पास आकर रेलिंग पर बैठ गया। सांझ मुस्कुराते हुए उसके पास आने लगी। तभी उसे कुछ याद आया, तो वह दौड़ते हुए अंदर कमरे में चली गई। सूर्या उसकी हर एक हरकत को नोटिस कर रहा था। तभी सांझ अपने हाथ में एक बिस्कुट लेकर आई, जिसको उसने हाथों से छोटा-छोटा तोड़ लिया था। और धीरे-धीरे चलकर उस कबूतर के पास आ गई और अपने हाथों में ही उस बिस्कुट को आगे कर दिया। जिससे वह कबूतर बड़े प्यार से उसके हाथों से खाने लगा। उसे खाते देख सांझ के होठों पर प्यारी सी मुस्कुराहट आ गई। थोड़े समय बाद पेट भरकर वह कबूतर उड़ गया और सांझ मुस्कुराते हुए अंदर कमरे में चली गई। उसे अंदर जाते देख सूर्या ने वापस से अपना ध्यान पुशअप्स में लगा लिया।


    तभी एक उम्रदराज़ औरत, जिसने लाइट पिंक कलर की सिल्क की साड़ी पहनी हुई थी, साधारण रंग, पर चेहरे पर बेइंतहा गुरूर, गले में डायमंड के छोटे स्टोन वाला नेकलेस, दुकानों में मिलने वाले छोटे-छोटे डायमंड स्टोन की बालियाँ, हाथों में एक-एक डायमंड का कंगन, सुडौल शरीर वाली औरत चलते हुए सूर्य के पास आई।


    जैसे ही सूर्या की नज़र उन पर पड़ी, तो वह रुक गया और खड़े होते हुए पास खड़े नौकर से तौलिया लेकर अपना शरीर पोछने लगा। और उनके पास जाकर, उनके पैर छूते हुए, अपनी भारी आवाज़ में बोला- "गुड मॉर्निंग माँ। आपकी लंदन वाली मीटिंग कैसी रही?"


    उस औरत ने सूर्या के सर पर अपना हाथ रखकर उसे आशीर्वाद दिया और अपनी कड़क आवाज़ में सूर्या से बोली- "गुड मॉर्निंग टू यू सूर्या। क्या आज आपके पास हमारे लिए थोड़ा समय होगा? हमें आपसे बात करनी है।"


    सूर्या ने पास खड़े नौकरों को हाथ से वहाँ से जाने का इशारा किया, जिसे समझकर तुरंत वे लोग चले गए। उसके बाद सूर्या अपनी माँ की तरफ़ पलटते हुए, गार्डन की तरफ़ जहाँ पर चेयर और टेबल लगी हुई थी, उधर इशारा करते हुए बोला- "चलिए वहाँ बैठकर बातें करते हैं!"


    इतना कहकर वह वहाँ से आगे बढ़ गया और उसकी माँ भी उसके पीछे चली गई। दोनों वहीं लगी हुई चेयर्स पर बैठ गए।


    दोनों के बीच में माहौल बेहद सीरियस लग रहा था। ना ही दोनों में से कोई कुछ बोल रहा था। दोनों के बीच एक शांति पसरी हुई थी, जिसे भंग करते हुए सूर्या ने अपनी कड़क आवाज़ में उनसे बोला- "आप कुछ बात करना चाहती थीं? अब नहीं करनी क्या?"


    उसकी माँ पहले तो उसे देखने लगी, फिर ठंडी साँस भरते हुए बोली- "करनी तो है, लेकिन समझ नहीं आ रहा कहाँ से शुरू करें। और अगर हम अपनी बात आपके सामने रखते भी हैं, तो इसका कोई भरोसा नहीं कि आप हमारी बात मानेंगे या फिर हमारी बात सुनकर आपके मिजाज नहीं बिगड़ेंगे। इसीलिए पहले हमसे वादा कीजिए कि जब तक हमारी बात ध्यान से नहीं सुन लेते और उसके बारे में सोच नहीं लेते, तब तक आप गुस्से में आकर ना तो कोई फैसला लेंगे और ना ही हमारी आधी बात से बीच में उठकर जाएँगे।"

  • 18. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 18

    Words: 1013

    Estimated Reading Time: 7 min

    उसकी माँ पहले तो उसे देखने लगी, फिर ठंडी आह भरते हुए बोली, "करनी तो है लेकिन समझ नहीं आ रहा कहाँ से शुरू करें। और अगर हम अपनी बात आपके सामने रखते भी हैं तो इसका कोई भरोसा नहीं कि आप हमारी बात मानेंगे, या फिर हमारी बात सुनकर आपके मिजाज नहीं बिगड़ेंगे। इसीलिए पहले हमसे वादा कीजिए। जब तक हमारी बात ध्यान से नहीं सुन लेते और उसके बारे में सोच नहीं लेते, तब तक आप गुस्से में आकर ना तो कोई फैसला लेंगे और ना ही हमारी आधी बात से बीच में उठकर जाएँगे।"


    सूर्या अगर किसी से सबसे ज़्यादा प्यार करता था, तो इस वक्त वह उसकी माँ ही थी। वही थी जो उसकी ना को हाँ में और हाँ को ना में बदल सकती थी। एक वही थी जिनके आगे सूर्या झुक जाता था या फिर वह सूर्या के आगे थोड़ी बहुत अपनी चला लेती थी। वजह सूर्या का अपनी माँ के लिए प्यार। वैसे भी माँ और बच्चे का प्यार एक अटूट अंदरूनी डोर से बँधा होता है जिसे समझ पाना शायद किसी के बस में नहीं।


    सूर्या ने दो पल उन्हें देखा, फिर हल्के से अपने हाथ को उनके आगे बढ़ाए हुए हाथ पर रख दिया और विद्या जी (अपनी माँ) से बोला, "अगर आपकी बात मानना हमारे बस में हुआ और वह हमारे ज़ख्मों को कुरेद कर हमें एक नया दर्द ना दे, तो हम ज़रूर आपकी बात मानेंगे। लेकिन अगर आपकी बात सुनना हमारी बर्दाश्त से बाहर हुआ, तो हम अपने इस वचन को उसी वक्त तोड़कर यहाँ से चले जाएँगे।"


    तो विद्या जी कुछ पल उसे शांति से देखती रहीं, फिर हिम्मत करके उससे बोल ही पड़ीं, "आप शादी क्यों नहीं कर लेते सूर्या?"


    (उनकी इतनी ही बात सुनकर सूर्या ने अपना हाथ पीछे खींचना चाहा, वहीँ तो विद्या जी ने जल्दी से हरकत करते हुए उसके हाथ पर अपनी पकड़ कस ली) और उसे देखते हुए बोलीं, "उम्र हो चुकी है आपकी। तीस के हो चुके हैं आप। आप को लेकर, आपकी शादी को लेकर इस घर में सभी के कुछ सपने हैं, हमारे भी कुछ अरमान हैं। हम भी अपने बेटे को ज़िन्दगी में आगे बढ़ते देखना चाहते हैं। नहीं चाहते हमारा बेटा अभी भी अतीत के साये में घुट-घुट कर जिए। ज़िन्दगी में हर किसी को एक ना एक दिन आगे बढ़ना होता है। तो फिर क्यों आप अपने आप को उसी जगह रोके हुए हैं जहाँ आप सालों पहले थे? और घर में और भी बच्चे हैं जो आपके इंतज़ार में अभी तक कुंवारे बैठे हैं। उनका भी सोचिए। सब तन्मय में जैसे नहीं हैं जो शादी करके आ गए हैं।"


    वह आगे कुछ कहतीं कि उनकी नज़र सूर्या पर पड़ी जो बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से को दबाए हुए उनकी बातें सुन रहा था। लेकिन तन्मय की शादी की बात आते ही अचानक ही उठकर खड़ा हो गया।


    और गुस्से में विद्या जी से बोला, "आपकी इच्छाओं का मान रखते हैं हम माँ, लेकिन हमारी शादी का सपना देखना छोड़ दीजिए। हमसे उन उम्मीदों को रखना छोड़ दीजिए जिन्हें हम पूरी नहीं कर सकते। और रही इस घर के लोगों की बात तो ये लोग कभी हमारे बारे में अच्छा नहीं सोच सकते। अगर ऐसा होता तो इन्हीं के बीच कोई हमारी जान का दुश्मन नहीं होता। और रही इस घर के बच्चों की बात तो मैंने कभी किसी से नहीं कहा कि वो मेरी वजह से अपनी लाइफ में आगे ना बढ़े। सभी को अपनी ज़िन्दगी जीने का हक़ है। किसी को शादी करनी है या नहीं करनी है यह उनका फैसला है, मेरा नहीं। इसीलिए आज के बाद आप हमसे इस टॉपिक पर बात नहीं करेंगे।"


    इतना कहकर जाने लगता है कि तभी उसके कानों में विद्या जी की आवाज़ पड़ी जो उसे जाते हुए देखकर उसके पीछे आते हुए बोलीं, "ठीक है अगर आपको इन लोगों से कोई मतलब नहीं तो हमसे तो है ना। क्या आप अपनी माँ की इतनी सी ख्वाहिश पूरी नहीं कर सकते? हम भी अपने बेटे के सर पर सेहरा सजते हुए देखना चाहते हैं, अपनी आँखों के आगे ही अपने बेटे का घर बस्ते और पोते-पोतियों को देखना चाहते हैं। तो क्यों आप हमारी इच्छा पूरी नहीं कर सकते? अतीत किसका नहीं होता, तो क्या सभी लोग जीना छोड़ देते हैं? और चलिए हमारी छोड़िए, अपने पापा की सोचिए। कैसा लगेगा उन्हें जब उन्हें पता चलेगा कि उनका बेटा अपने अतीत की कुछ कड़वी यादों की वजह से उनकी आखिरी इच्छा भी पूरी नहीं कर सका? भूल गए आपके पापा ने आखिरी बार आपसे क्या कहा था!"


    उनकी बात सुनकर सूर्या के आगे बढ़ते हुए कदम रुक गए और उसके कानों में अपने पापा प्रतीक के शब्द गूंजने लगे।


    "सूर्या बेटा, इस पूरे सूर्यवंशी एम्पायर के मालिक आप हैं। अगर हमें कुछ हो जाए तो इस सूर्यवंशी एम्पायर को डूबने से आपको ही बचाना होगा। आपको ही इसकी बागडोर अपने हाथ में लेनी होगी। इसलिए हम चाहते हैं कि आप जल्दी से जल्दी शादी कर लें। क्योंकि 35 की उम्र से पहले अगर आपकी कोई संतान नहीं हुई तो आपसे सूर्यवंशी एम्पायर की सारी बागडोर छीन ली जाएगी। पर इतना हम यकीन से कह सकते हैं कि हमारे एम्पायर को सिर्फ आप ही संभाल सकते हैं और कोई नहीं। इसीलिए आपको जल्दी से जल्दी हमारी इस इच्छा को पूरी करना होगा। चाहे आप इसे हमारी आखिरी इच्छा क्यों ना समझें!"


    सूर्या इन्हीं बातों को सोच रहा होता है कि तभी विद्या जी उसके पास आती हैं और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोलीं, "अब फैसला आपके हाथ में है सूर्या। अपने पापा की इच्छा को पूरी करके इस एम्पायर को बचाना है या फिर अपनी ज़िद में बने रहकर उनकी वर्षों की कमाई, ज़िन्दगी भर की मेहनत को पल भर में खत्म करना है। अब यह आपके ऊपर है। हम अब आपसे कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि बहुत ज़िद्दी हो चुके हैं आप। आपके पापा ने आपको इतनी छूट दे दी है कि अपनी माँ की भी आपकी नज़रों में कोई वैल्यू नहीं रही।" इतना कहकर वहाँ से चली जाती हैं।

  • 19. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 19

    Words: 1079

    Estimated Reading Time: 7 min

    वही सुनीता के कमरे में साँझ सुनीता को दवाई दे रही थी। उसने सुनीता को दवाई देकर लेटाया ही था कि तभी विद्या जी अंदर आते हुए बोलीं— "अब कैसी तबीयत है आपकी, सुनीता?"


    उनकी आवाज सुनकर सुनीता के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। और वह उठकर बैठते हुए बोली— "अरे मेम साहिबा, आपने क्यों तकलीफ की...यहाँ आने की? मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ।"


    तो विद्या जी वापस उसे लेटाते हुए बोलीं— "हाँ, हाँ, हम देख रहे हैं कि आप कितनी ठीक हैं। इसीलिए चुपचाप लेटी रहिए। रही बात तकलीफ उठाने की तो इसमें तकलीफ की क्या बात है? आपने हमारे बेटे की जान बचाने के लिए अपनी जान को खतरे में डाल दिया। तो क्या हम आपकी खैरियत के बारे में पूछने भी नहीं आ सकते?"


    तो सुनीता हल्की सी मुस्कुराते हुए उनसे बोली— "अरे नहीं मेम साहिबा, ऐसी कोई बात नहीं है, मैं तो बस यूँ ही कह रही थी!"


    तभी विद्या जी उसके पास बैठते हुए उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर बोलीं— "थैंक यू, सुनीता। आपका शुक्रिया अदा करने के लिए हमारे पास लफ्ज़ नहीं हैं। सूर्या हमारी ज़िंदगी में क्या मायने रखते हैं, यह बात कुछ चुनिंदा लोग ही जानते हैं, जिनमें से एक आप हैं। अगर आप सूर्या को बचाने के लिए आगे नहीं आतीं, तो शायद आज हमसे हमारा आखिरी सहारा भी छिन जाता। इसीलिए इस बात के लिए हम आपका जितना भी शुक्रिया अदा करें, उतना कम है।"


    तो सुनीता उनके हाथ को पकड़कर बोली— "नहीं मेम साहिबा, शुक्रिया तो मुझे साहब और आपका करना चाहिए। अगर साहब मेरी बेटी को नहीं बचाते, तो पता नहीं उस दिन क्या होता। और अब इस मुश्किल घड़ी में भी, जब हमारा कोई नहीं है, तब साहब ही हमें यहाँ लाकर अपने साथ रख रहे हैं और मेरी दवाइयों का खर्चा भी उठा रहे हैं। और यह आपके ही दिए हुए संस्कार हैं जो साहब ने हमसे मुँह नहीं मोड़ा। वरना मुश्किल घड़ी में तो अपने भी साथ छोड़कर चले जाते हैं।"


    तो विद्या जी बात बदलते हुए बोलीं— "चलिए, वो तो ठीक है, लेकिन हमें अपनी बेटी से मिलवाओगी।"


    तो सुनीता ने साँझ को अपने पास बुलाया और विद्या जी से बोली— "यह है मेम साहिबा, मेरी बेटी साँझ। बी.ए. सेकंड ईयर में है!"


    वहीँ साँझ ने झुककर विद्या जी के पैर छू लिए। तो विद्या जी कुछ पल साँझ को देखती रहीं। फिर प्यार से उसके चेहरे को छूते हुए बोलीं— "बहुत प्यारी है और अपने नाम के अनुरूप भी।"


    फिर साँझ से बोलीं— "और बेटा, तुम अच्छे से पढ़ाई करना और इस घर में किसी चीज़ की भी कमी लगे या ज़रूरत हो तो मुझे बताना, ठीक है?" तो साँझ ने हाँ में सर हिला दिया।


    थोड़ी देर ऐसे ही बात करने के बाद वे वहाँ से चली गईं। उनके जाने के बाद साँझ सुनीता से बोली— "माँ, यह कितनी प्यारी हैं ना! मुझे तो लगा था यह भी बाकी लोगों की तरह घमंडी होंगी, जैसे वो दादी की थी!"


    तो सुनीता साँझ से बोली— "नहीं साँझ, मेम साहिबा घर के बाकी लोगों की तरह नहीं हैं। बल्कि बहुत प्यारी हैं। नौकरों के साथ प्यार से पेश आती हैं, बिल्कुल घरवालों की तरह। अगर कभी तुझसे इस घर में कोई गलती हो जाए, तो सबसे पहले इन्हीं के पास जाना। यह तुझे सभी से बचा लेंगी, चाहे वो साहब ही क्यों ना हों!"


    तो साँझ हाँ में सर हिलाकर अपने काम में लग गई। सुबह से शाम कब हुई पता ही नहीं चला। सूर्या अपने ऑफिस से वापस लौट आया और स्टडी रूम में चला गया।


    वहीँ विद्या जी ने सूर्या के लिए कॉफी बनाई और वह उसे देने जाने लगीं कि तभी उनका फोन बज उठा। उन्हें हॉल में गुज़रते हुए साँझ दिख गई, तो उन्होंने उसे आवाज़ दी।


    सांझ उनकी तरफ चली गई तो वे कॉफी साँझ को देते हुए बोलीं— "बेटा, इस कॉफी को स्टडी रूम में सूर्या को दे आओ। मुझे यह कॉल अटेंड करना है। बहुत ज़रूरी है, नहीं तो मैं ही दे आती।" तो साँझ ने हाँ में सर हिलाते हुए उनसे कप ले लिया और सूर्या के स्टडी रूम की ओर चल पड़ी।


    वहीं सूर्या स्टडी रूम में बने बाथरूम में से शॉवर लेकर आया। उसने अपनी कमर पर सिर्फ़ टॉवल लपेट रखा था। वह वहीं रखे कबर्ड में से अपने लिए शर्ट निकालने लगा कि तभी उसे अपनी पीठ पर किसी के सॉफ्ट हाथों की छुअन महसूस हुई, जिसे पहचानते ही उसने गुस्से में अपनी आँखें बंद कर लीं और वह गुस्से भरी आवाज़ में, लेकिन धीरे से बोला— "शेफाली! बी इन योर लिमिट्स एंड स्टे अवे फ्रॉम मी! वरना मुझे भी नहीं पता मैं तुम्हारे साथ क्या करूँगा?"


    तो शेफाली सूर्या के सीने पर अपने हाथ कसते हुए, उसकी पीठ से लिपटते हुए बोली— "हाँ, तो करो ना! मैं भी तो यही चाहती हूँ कि तुम मेरे साथ कुछ करो, लेकिन तुम हो कि मेरे पास ही नहीं आते!"


    तो सूर्या ने उसका हाथ, जो उसके सीने पर रखा हुआ था, खींचकर पहले अपने आगे कर दिया, फिर खुद से दूर धकेलते हुए बोला— "कहा ना, मुझसे दूर रहो! तुम्हें एक बार में समझ नहीं आती मेरी बात और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई बिना मेरी इजाज़त के यहाँ आने की?"


    तो शेफाली फिर से उसके करीब आते हुए बोली— "मैं तो तुम्हारी बिना इजाज़त के तुम्हारे दिल में भी आ गई, तो यहाँ आना कौन सी बड़ी बात है? रही तुमसे दूर रहने की बात, तो कैसे रहूँ तुझसे दूर? तुम्हारे लिए तो कितना तड़पती हूँ मैं! जब तुम यहाँ नहीं थे, तो एक-एक दिन यहाँ रहना मुश्किल हो गया था। तुम्हारे बिना यह घर काटने को दौड़ता है मुझे। इसीलिए अपनी मम्मी के घर चली गई। और देखो, जैसे ही तुम्हारे आने की खबर मिली तो मैं भागी चली आई तुम्हारे पास और तुम मुझे दूर जाने को कह रहे हो। प्लीज़ सूर्या, मुझे खुद से दूर मत करो। तुमसे दूर रहकर मेरी जान निकलती है!"


    इतना कहकर उसके सीने पर हाथ चलाते हुए उसके बेहद करीब आ गई और उसे किस करने के लिए अपने चेहरे को उसके चेहरे के करीब ले जाने लगी। वहीँ सूर्या गुस्से में उसे थप्पड़ मारने ही वाला था कि तभी कुछ गिरने की आवाज़ आई।

  • 20. लागी लगन तेरे इश्क की.....❣️❣️🌹🔥 - Chapter 20

    Words: 686

    Estimated Reading Time: 5 min

    इतना कह कर उसके सीने पर हाथ चलाते हुए वह उसके बेहद करीब आ गई। और उसे किस करने के लिए अपने चेहरे को उसके चेहरे के करीब ले जाने लगी। वही सूर्या गुस्से में उसे थप्पड़ मारने ही वाला था कि तभी कुछ गिरने की आवाज आई।


    सूर्या और शेफाली दोनों ने नजरें उठाकर दरवाजे की ओर देखा। सांझ घबराई हुई सी दरवाजे पर खड़ी थी, और नीचे जमीन पर पड़ी कॉफी को देख रही थी जो उसके हाथ से गिर गई थी। दरअसल, सांझ विद्या जी के कहने पर सूर्या को कॉफी देने आई थी। वह दरवाजा खुला देख उस पर नॉक करने ही वाली थी कि उसकी नजर सूर्या और शेफाली पर पड़ गई। उन दोनों की नजदीकियों को देखकर वह हड़बड़ा गई और उसके हाथ से कॉफी छूट गई।


    वही सांझ को दरवाजे पर देखकर शेफाली घबराकर जल्दी से सूर्या से दूर हो गई। और गुस्से में सांझ की तरफ देखकर बोली, "हे कौन हो तुम? और यहां क्या कर रही हो? क्या तुम्हें इतनी भी अक्ल नहीं है कि किसी भी कमरे में जाने से पहले नॉक किया जाता है? अब यहां खड़ी-खड़ी मेरा मुँह क्या देख रही हो? इसे साफ करो और जाओ यहां से!!"


    उसके इस तरह डाँटने और गुस्सा करने से सांझ घबरा गई क्योंकि आज तक सुनीता ने उससे ऊँची आवाज में बात तक नहीं की थी। और यहाँ उसे डाँट पड़ रही थी। वह शेफाली से डरकर हकलाते हुए बोली, "वो... वो दर... दरवाजा... खुला था। मैं नॉक ही वाली थी... पर वो... सॉरी। मैं अभी दूसरी कॉफी लाती हूँ और इसे साफ भी कर दूँगी।"


    इतना कहकर वह जाने लगी। सूर्या उसे रोकते हुए बोला, "ये रुक। मुझे कॉफी नहीं चाहिए। पहले इसे साफ कर... और फिर..." उसने शेफाली की ओर इशारा करते हुए कहा, "...इन मैडम के लिए इनके कमरे में दो ग्लास ठंडे जूस ले जाना। वो क्या है ना... मैडम के अंदर बहुत गर्मी भरी हुई है, तो उस जूस से इनकी गर्मी शांत हो जाएगी।"


    सांझ उसकी बात बिना समझे ही हाँ में सर हिला देती है। शेफाली सूर्या की बात सुनकर गुस्से में उसे देखने लगी। फिर सांझ को घूरते हुए वहाँ से चली गई।


    वही उसकी गुस्से भरी नजरों से सहम कर सांझ नज़रें नीचे कर लेती है और नीचे गिरी कॉफी को साफ करने लगी। वही सूर्या शर्ट पहनते हुए उसे ही देख रहा था। फिर उसने उससे बोला, "सुन, ये कॉफी क्या तूने बनाई थी?"


    सांझ चौंक कर उसकी तरफ देखती है। उसे लगता है कहीं सूर्या कल की तरह गुस्सा ना करें। इसलिए वह जल्दी से उससे बोली, "नहीं, मैंने नहीं। मेमसाहब ने बनाई थी।"


    उसकी बात सुनकर सूर्या असमंजस से उसे देखने लगा। सांझ अपनी बात संभालते हुए बोली, "वो आपकी माँ ने..."


    सूर्या फिर से बोला, "और खाना...?"


    "वो भी शांता ताई ने बनाया है।" इतना कहकर वह जल्दी से वहाँ से चली गई। वही सूर्या उसे देखता रह गया जब तक वह आँखों से ओझल ना हो गई। फिर सोफे पर बैठकर अपना काम करने लगा।


    थोड़ी देर बाद संभव एक प्लेट में उसके लिए खाना ले आया और लाकर उसके सामने टेबल पर रख दिया। सूर्या ने एक प्लेट में खाना देखकर संभव को देखा। फिर उससे बोला, "एक प्लेट में खाना? क्या तू नहीं खाएगा आज?"


    संभव सूर्या से बोला, "नहीं भाऊ, आप खाओ। मैं बाद में खा लूँगा। वैसे भी मुझे अभी भूख नहीं लगी है।"


    सूर्या अपना खाना खाने लगा। लेकिन जैसे ही उसने एक निवाला तोड़कर मुँह में रखा, तो उसे खाना पसंद नहीं आया। उसे कल के सांझ के हाथों के खाने की याद आई। फिर उसने जैसे-तैसे करके अपना खाना खत्म किया। संभव प्लेट लेकर चला गया।


    उसके जाने के बाद सूर्या अपना काम करने लगा। साथ ही वह सुबह विद्या जी के साथ हुई बहस के बारे में भी सोच रहा था।