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Dhwani Rathore

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"कुछ जाल इतने खूबसूरत होते हैं कि इंसान खुद को फँसने से रोक ही नहीं पाता..." एक खून से सना सच। एक सौदा जिससे बचना नामुमकिन। एक ऐसा रिश्ता, जहाँ नफरत और जुनून के बीच सिर्फ एक हल्की सी लकीर बाकी है।...

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🔥 Ira Malhotra – एक रहस्यमयी आग 🔥

Heroine

Total Chapters (4)

Page 1 of 1

  • 1. ⚔️Twisted Desire - ( A dark and deadly love story ) ⚔️

    Words: 1713

    Estimated Reading Time: 11 min

    CHAPTER 1:- खूनी साज़िश


    🌼🌺"झिलमिलाते तारों के साए में एक कहानी दफ़्न थी… बरसों पहले जो खत्म होनी चाहिए थी, वो बस एक खेल का विराम था। शतरंज की बिसात सजी थी, मगर इस बार खेल पहले से कहीं ज्यादा ख़ूनी होने वाला था। कितनी ज़िंदगियाँ दाँव पर लगेंगी? कितनी मौतें इस खेल की गवाही देंगी? सवाल कई थे… मगर जवाब सिर्फ़ वक्त के पास था।"



    इस बार खेल सिर्फ़ शतरंज की बिसात पर नहीं, ज़िन्दगियों पर खेला जा रहा था। कुछ मोहरे खुद को राजा समझ बैठे थे, मगर असली राजा कौन था... ये अभी भी एक राज़ था।"🌺🌼



    कहानी की शुरुआत :-



    कोलकाता—एक शहर जो जितना पुराना था, उतने ही गहरे थे उसके राज। हर गली, हर इमारत किसी न किसी कहानी को अपने भीतर समेटे हुए थी। पर एक राज ऐसा था, जो अब तक अनकहा था, एक ऐसा सच जो धुंध की तरह हर कोने में घुला हुआ था।



    रात का समय था। घड़ी में ठीक 10:30 बजे थे। हल्की-हल्की बारिश हो रही थी, जिसकी बूँदें काले चमकते रोड पर गिरते ही मोतियों की तरह बिखर रही थीं। स्ट्रीट लाइट की पीली रोशनी सड़क के किनारे बहते पानी में अजीब-सा प्रतिबिंब बना रही थी। शहर की शान कही जाने वाली महँगी गाड़ियाँ रफ्तार में दौड़ रही थीं, मगर इस दौड़ में एक गाड़ी अलग थी।



    BMW 7 Series—काली चमकती हुई, बारिश की बूँदों से भीगी हुई। उसकी बॉडी पर पड़ती पानी की बूँदें यूँ फिसल रही थीं मानो किसी रहस्य से पर्दा उठ रहा हो। इस गाड़ी के अंदर बैठी लड़की की आँखों में भी कुछ वैसा ही राज़ था।



    इरा मल्होत्रा—24 साल की, दूध जैसा गोरा रंग, तीखे नयन-नक्श और गहरी ग्रे आँखें, जो शांत होते हुए भी किसी तूफान को समेटे हुए थीं। उसके होंठ गुलाबी थे, मगर उन पर एक खामोश तल्खी थी। उसकी नाक बिल्कुल परफेक्ट शेप में थी, जैसे किसी कलाकार ने बारीकी से गढ़ी हो। उसका कद 5'7'' था—लंबा और आकर्षक। बाल ब्लैक-सिल्की, हल्की वेव्स में पीछे बंधे हुए, जो उसकी गर्दन को उभार रहे थे।



    उसने ब्लैक टेलर फिट पैंटसूट पहना था, जो उसकी पर्सनालिटी को और उभार रहा था। पैरों में YSL (वाईएसएल ) की हाई हील्स, जो हर कदम पर उसकी मौजूदगी का एहसास कराती थीं। उसकी कलाई पर Patek Philippe (पाटेक फिलिप )एक लिमिटेड एडिशन वॉच थी, जिसकी कीमत किसी के लिए सिर्फ एक सपना हो सकती थी।



    उसने कार के स्टियरिंग पर अपनी उंगलियों को हल्के से थपथपाया, जैसे किसी गहरी सोच में डूबी हो। बाहर बारिश अब भी हो रही थी। उसने एक लंबी साँस ली, फिर धीरे से कार का दरवाजा खोला।



    उसके सामने एक लक्ज़री होटल—'द ग्रैंड रॉयली' (The Grand Royale) । ऊँची, काँच से बनी इमारत, जिसके ऊपर गोल्डन लाइट्स चमक रही थीं। होटल के दरवाजे के पास कुछ गार्ड खड़े थे, जो अंदर-बाहर आते-जाते लोगों पर पैनी नजर रखे हुए थे।



    इरा ने गाड़ी से कदम बाहर रखा, और उसके हाई हील्स की 'टक-टक' की आवाज़ भीगी हुई सड़क पर गूंज गई। हल्की बारिश की बूंदें उसकी स्किन को छू रही थीं, मगर उसे इसकी कोई परवाह नहीं थी। उसने हल्का सिर उठाकर होटल की ऊँचाई को देखा, फिर बेपरवाही से आगे बढ़ी।



    गेट के पास खड़ा एक गार्ड सिगरेट पीने के लिए लाइटर जलाने वाला था, लेकिन इरा के वहाँ पहुँचते ही उसने तुरंत सिगरेट बुझा दी और दरवाज़ा खोल दिया।



    अंदर दाखिल होते ही एक अलग ही दुनिया नज़र आई। सुनहरी लाइट्स, मार्बल फ्लोर, चारों तरफ कीमती पेंटिंग्स, और एक अलग-सी महक—महंगी सिगार, लैवेंडर परफ्यूम और ताज़े फूलों की मिली-जुली खुशबू।



    एक मैनेजर उसके पास आया, हल्का झुककर बोला," वेलकम मिस मल्होत्रा द बोर्ड मेंबर्स आर वेटिंग फॉर यू"



    ("Welcome, Ms. Malhotra. The board members are waiting for you" )



    यह मीटिंग असल में उसके पिता, मिस्टर अभिनव मल्होत्रा, को अटेंड करनी थी, लेकिन ऐन वक्त पर एक हाई-प्रोफाइल बिजनेस डील में उनकी मौजूदगी जरूरी हो गई। इस मीटिंग को टालना मुमकिन नहीं था, और किसी और पर भरोसा करना भी आसान नहीं था। इरा को ही भेजना सबसे सही लगा, क्योंकि वह पहले भी कई बिजनेस मीटिंग्स संभाल चुकी थी। वैसे भी, वह मल्होत्रा ग्रुप की वारिस थी—कभी न कभी उसे इन हालातों से निपटना ही था।"



    इरा ने हल्की सी मुस्कान दी, मगर उसके चेहरे पर एक सख्त परछाई बनी रही। मैनेजर उसे मीटिंग रूम की ओर ले गया। दरवाज़ा खुलते ही भीतर बैठे सभी लोगों की नज़रें उसी पर टिक गईं। उसकी एंट्री में एक ऐसा आकर्षण था कि कमरे की हर हलचल जैसे थम गई।



    "लेट'एस स्टार्ट द मीटिंग" (Let's start the meeting,") उसने ठंडी आवाज़ में कहा, और सभी लोग तुरंत सतर्क हो गए।



    मीटिंग शुरू हुई...



    कमरे में बिज़नेस टाइकून, कुछ इन्वेस्टर्स और कुछ पॉलिटिकल फिगर्स बैठे थे। डिस्कशन इरा के एक नए प्रोजेक्ट को लेकर था, जिसमें करोड़ों का इन्वेस्टमेंट होने वाला था। इरा के हर शब्द में एक ठहराव था, मगर उसके लहजे में एक ऐसी दृढ़ता थी, जिससे किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि उससे कोई सवाल कर सके।



    मीटिंग खत्म हुई, सभी ने सहमति जताई, और जैसे ही इरा बाहर निकली, उसकी फोन की स्क्रीन पर एक अनजान नंबर से कॉल आया।



    उसने हल्के से फोन उठाया, "हु इस दिस" ( "Who is this?" )



    उधर से एक गहरी, रहस्यमयी आवाज़ आई, "इतना समय लग गया, मिस मल्होत्रा? मैंने सोचा था कि तुम जल्दी बाहर आ जाओगी।"



    इरा के कदम थम गए। उसकी आँखों में एक पल के लिए हल्की शिकन उभरी, मगर उसने तुरंत खुद को संभाल लिया।



    "तुम कौन हो?" उसने धीरे से कहा, मगर आवाज़ में वही ठहराव था।



    फोन के दूसरी तरफ से हल्की हँसी की आवाज़ आई, "तुम्हें तो अंदाज़ा होगा... काश तुम समझ पाती कि यह खेल अब तुम्हारे हाथ से निकल रहा है।"



    इरा की उंगलियाँ मोबाइल पर कस गईं। उसने गहरी साँस ली और अपने चेहरे को नॉर्मल रखा। लेकिन तभी...



    'टिक-टक'



    पीछे से एक अजीब-सी 'सिक्के गिरने' की आवाज़ आई।



    इरा ने तुरंत पलटकर देखा—लेकिन वहाँ कोई नहीं था। बस एक कोने में पड़ा एक चमकता हुआ सिक्का।



    फोन की आवाज़ फिर आई, "अब बस, शतरंज की अगली चाल तुम्हारी है... चलो, देखते हैं तुम क्या करती हो।"



    और फिर कॉल कट हो गया।



    इरा ने फोन को देखा, फिर सिक्के की ओर देखा। उसकी ग्रे आँखों में अब एक नया इंटरेस्ट था। उसने सिक्के को उठाया, हल्का सा घुमाया और धीमे से फुसफुसाई—"खेल तो अब शुरू हुआ है।"



    इरा के हाथ में अब भी वह सिक्का था। उसकी आँखें फोन स्क्रीन पर टिकी थीं, जहाँ कॉल डिस्कनेक्ट हो चुका था। उसने सिक्के को उंगलियों में घुमाया और गहरी साँस ली।



    अचानक उसे एहसास हुआ कि वह कहाँ खड़ी है। उसने खुद से बड़बड़ाया, "मैं कहाँ आ गई?"



    वह जैसे ही वहाँ से जाने को मुड़ी, एक दर्दनाक कराह उसके कानों में पड़ी। उसकी रीढ़ की हड्डी में एक सिहरन दौड़ गई। उसने तुरंत पीछे देखा—कोई नहीं था। उसके दिल की धड़कन तेज हो गई। "क्या यह मेरी वहम था ?" वह फुसफुसाई।



    फिर एक और दर्दनाक आवाज गूँजी। इस बार वह और स्पष्ट थी। इरा का डर अब जिज्ञासा में बदल चुका था।



    वह धीरे-धीरे गैलरी की ओर बढ़ी। गैलरी में घुसते ही माहौल और डरावना लगने लगा। वहाँ दीवारों पर लगी पुरानी तस्वीरें उसे अजीब और भयानक महसूस हो रही थीं। उसकी हर कदम की आहट वहाँ गूँज रही थी।



    आगे बढ़ते ही उसे एक दरवाजा दिखा, जो हल्का-सा खुला हुआ था। दरवाजे की लकड़ी पुरानी और जर्जर थी, लेकिन उस पर सोने की नक्काशी थी, मानो किसी राजा का कमरा हो। इरा कुछ सेकंड तक वही खड़ी रही, सोचते हुए कि उसे अंदर जाना चाहिए या नहीं।



    फिर उसने हल्के हाथों से दरवाजे को और खोला।



    अंदर का दृश्य देखते ही उसके कदम ठिठक गए। जमीन पर एक आदमी पड़ा था—उसका सीना खून से लथपथ था, दो गोलियाँ उसके शरीर से निकल चुकी थीं। इरा का दिमाग सुन्न हो गया। यही दृश्य उसने सपनों में देखा था, कहानियों में पढ़ा था, लेकिन अब यह हकीकत थी।



    अचानक, दोबारा गोली चली। इरा का शरीर झनझना गया। उसने तेजी से सिर घुमाया और जिस इंसान ने गोली चलाई थी, उसकी ओर देखा।



    सामने एक लंबा, गठीला आदमी खड़ा था। सफेद बॉक्सर शर्ट, ब्लैक पैंट, हाथ में महंगी घड़ी जिसकी कीमत किसी भी इंसान को हिला सकती थी। उसकी आँखें काली, गहरी और ठंडी थीं, जैसे वे किसी भी भावना से परे थीं। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, जो उसकी बेरहमी को और खतरनाक बना रही थी। उसकी बाजुएँ मज़बूत थीं, नसें उभरी हुई थीं, और हाथ में बंदूक थी, जिससे अभी-अभी धुआँ निकल रहा था।



    "व्यांश रायजादा..." इरा के मुँह से अनायास ही निकल गया।



    वह और कोई नहीं, उसका सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी था। एक बेरहम बिजनेस टाइकून, जिसकी क्रूरता की कहानियाँ इरा ने बहुत सुनी थीं। उसने सुना था कि वह बिना किसी पछतावे के लोगों को खत्म कर सकता है। और अब, वह अपनी आँखों से उसे देख रही थी।



    इरा ने पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन तभी दरवाजा ज़ोर से बंद हो गया। उसकी साँसें तेज हो गईं।



    व्यांश ने अपनी ठंडी नज़रों से उसे देखा और हल्की मुस्कान के साथ कहा, "कंपीटीटर्स भागते हुए अच्छे नहीं लगते, मिस मल्होत्रा।"



    इरा ने खुद को सँभालने की कोशिश की, लेकिन उसकी आवाज में हल्की घबराहट थी। "तुमने उसे मार डाला?"



    व्यांश ने सिर हल्का झुकाया और एक नज़र नीचे पड़े शरीर पर डाली। फिर उसने इरा की ओर देखते हुए कहा, "अगर तुमने देख लिया, तो अब तुम्हें भी जाना होगा।"



    इरा की आँखें फैल गईं। "तुम... मुझे मारोगे?"



    व्यांश ने धीरे से बंदूक घुमाई और एक कदम आगे बढ़ाया। "बात मरने-मारने की नहीं है, मल्होत्रा... बात बस यह है कि यहाँ से अब कोई नहीं जाएगा।"



    दोनों के बीच एक अजीब सन्नाटा था। एक ऐसा खेल शुरू हो चुका था, जिसमें कोई भी मासूम नहीं था



    --------



    कौन था वह शक्स जिसने आयरा को कॉल किया ? कौन से खेल की बात कर रही थी आयरा उस फोन वाले शख्स से? दोनों ने मिलकर किस खेल को खेला था? क्या आयरा का उसे रूम में जाना सिर्फ एक कोइंसिडेंस था या किसी के प्लान का हिस्सा? कैसे जानती है आयरा व्यांश राय ज्यादा को ? कैसा रिश्ता है आया काव्यांश से ? सवाल इतने मगर जवाब एक नहीं



    आगे जाने के लिए पढ़िए twisted Desire - "A dark and deadly love story" सिर्फ Story mania पर । मिलते हैं नेक्स्ट चैप्टर में.....🙏🏻🙏🏻🙏🏻



    🌼🌼 राधे राधे🌼🌼.

  • 2. ⚔️Twisted Desire - ( A dark and deadly love story ) ⚔️ CHAPTER 2 :-भूले बिसरे रहस्याओं की सरगोशियां.....

    Words: 1642

    Estimated Reading Time: 10 min

    हेलो रीडरस 👋🏻👋🏻 आई होप आपको मेरी कहानी पसंद आए । तो चलो शुरू करते हैं ।

    ---

    अब आगे :-

    "शतरंज में सबसे खतरनाक खिलाड़ी वह होता है, जो अपने मोहरों को खुद नहीं, हालात के हिसाब से चलाता है।"

    अंधेरी रात में, The Grand Royale—एक लग्ज़री होटल—की ऊँचाइयों से झांकने पर शहर की बत्तियाँ किसी अनजाने रहस्य की तरह टिमटिमा रही थीं। बारिश की हल्की बूँदों ने खिड़की के शीशे पर एक अनगढ़ सा नक्शा बना दिया था, मानो कोई भूली-बिसरी याद फिर से उभर आई हो।

    The Grand Royale हमेशा अपनी शाही सजावट के लिए मशहूर था—दीवारों पर सजी एंटीक पेंटिंग्स, छत से झूलते महंगे क्रिस्टल झूमर, और इटालियन मार्बल से दमकता फर्श, जो इसकी भव्यता में चार चाँद लगाते थे।

    लेकिन इस वक़्त, उस भव्यता पर खौफ और रहस्य की स्याह परत चढ़ चुकी थी।

    बिखरी हुई कुर्सियाँ... जमीन पर पड़े टूटे हुए काँच के टुकड़े, जिन पर खून की लकीरें फैली थीं… और उस क्लास का अस्तित्व, जिसे व्यांश रायजादा ने खत्म कर दिया था।

    कमरे में पसरे सन्नाटे को सिर्फ घड़ी की टिक-टिक और किसी की भारी साँसों की आवाज़ तोड़ रही थी। हवा तक ठहरी हुई थी—एक अजीब-सी बेचैनी लिए।

    इसी कमरे में कुछ मिनट पहले ही एक खौफनाक मर्डर हुआ था।

    कातिल?—व्यांश रायजादा।

    उसने धीरे-से अपने हाथों की तरफ देखा—उन हाथों की, जिनसे कुछ मिनट पहले बंदूक चलाई गई थी। फर्श पर पड़ी लाश, जिसका शरीर अभी भी जख्मों से रिस रहा था, ठंडा हो रहा था… लेकिन कमरे की फिज़ा अब भी तप रही थी।

    व्यांश ने गहरी सांस ली।

    उसकी आँखों में ठंडा सन्नाटा था, लेकिन चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान खेल रही थी—एक ऐसी मुस्कान, जिसने न जाने कितनी लड़कियों को दीवाना बनाया था… और न जाने कितनों को तबाह।

    उसने अपनी उँगलियों से गर्दन पर जमे खून के छींटे पोंछे और फिर नज़रें इरा पर टिका दीं।

    इरा मल्होत्रा।

    वो अब भी बिना पलक झपकाए उसे घूर रही थी। साँसें अनियमित हो रही थीं, लेकिन हाव-भाव स्थिर।

    और व्यांश…

    वो बाज़ की तरह उसकी हर हलचल पर नज़र गड़ाए खड़ा था।


    व्यांश की आवाज़ में हल्की थकान थी, मगर तीखापन बरकरार था। उसने व्यंग्य भरे लहजे में, शब्दों को नफरत से खींचते हुए कहा—

    "इतने सालों बाद मिलकर बहुत बुरा लगा, मिस इरा मल्होत्रा।"

    इरा की आँखें ठंडी थीं, मगर उसके होंठों पर हल्की-सी तिरस्कार भरी मुस्कान थी।

    व्यांश ने उसे इस तरह देखा जैसे उसकी हर हरकत को पढ़ने की कोशिश कर रहा हो। फिर उसने अपने दोनों हाथ जेब में डाले और कैलकुलेटिव कदमों से उसकी ओर बढ़ने लगा।

    इरा को अहसास हुआ कि उसके कदम अनजाने में पीछे हटने लगे हैं। उसकी पीठ दीवार से जा टकराई।

    व्यांश ने अब अपने चेहरे को झुकाकर कुछ इंच की दूरी पर खड़े होकर सपाट लहजे में कहा—

    "तुमने तो सब देख लिया, ना?"

    इरा ने उसकी आँखों में झाँका। हल्की फुसफुसाहट में, मगर छिपी हुई चुनौती के साथ बोली—

    "तो?... तो अब क्या?"

    व्यांश ने कुछ देर उसे देखा, फिर उसके बेहद करीब आकर मुस्कुराया। उसकी आँखों में कुछ ऐसा था, जिसने इरा को बेचैन कर दिया।

    "अगर तुमने देख लिया, तो अब तुम्हें भी जाना होगा, मल्होत्रा।"

    इरा ने एक पल को अपनी साँस रोकी। उसकी आँखों में अनकही बेचैनी तैर रही थी।

    "तो क्या तुम... तुम मुझे मारोगे?"

    व्यांश की आँखों में कोई भाव नहीं आया। उसने बस एक सपाट लहजे में कहा—

    "हाँ।"

    इरा ने हल्की सांस छोड़ी, मगर उसका चेहरा अब भी शांत था।

    व्यांश ने इरा के बनते-बिगड़ते भावों को गौर से देखा, जैसे उसकी हर प्रतिक्रिया को परख रहा हो।

    "बात मरने-मारने की नहीं है, मल्होत्रा..."

    "बात बस इतनी है कि अब यहाँ से कोई नहीं जाएगा।"

    इरा ने गहरी साँस ली। अंदर कुछ था—एक अजीब-सी घुटन, जैसे हवा में कुछ अनकहा तैर रहा हो। लेकिन उसने अपनी घबराहट को चेहरे पर आने नहीं दिया।

    "तुम मुझे रोक नहीं सकते, मिस्टर रायजादा," उसकी आवाज़ ठंडी थी, बिना किसी झिझक के। उसने आगे कदम बढ़ाया ही था कि…

    पल भर में व्यांश की उंगलियाँ उसकी कलाई पर कसीं, और अगले ही क्षण इरा उसके मजबूत सीने से आ टकराई। पकड़ इतनी सख्त थी कि उसकी कोमल त्वचा सुर्ख पड़ गई।

    "छोड़ो!" इरा लगभग चीख पड़ी, लेकिन उसके शब्द किसी भी असर से खाली थे।

    उसने झटके से अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश की, मगर जितना उसने खींचा, उतनी ही उसकी पकड़ मजबूत होती गई। उसकी कलाई के पास की नसें जलने लगीं, आँखों में हल्की नमी झलकने लगी।

    व्यांश ने उसकी आँखों में झाँका—वो आँखें जो हमेशा तेज़ और बेजान रहती थीं, अब उनमें एक हल्का कम्पन था।

    "Don't cry, Ira." उसकी आवाज़ सख्त थी, चेतावनी से भरी। "I don't like when somebody cries in front of me. So just stop it… and listen—" उसकी पकड़ हल्की हुई, लेकिन नज़रों की जकड़न अब भी वहीं थी। "You can't go there without my permission."

    इरा ने एक पल को उसकी ओर देखा, फिर हल्के से हँसी—एक ऐसी हँसी जिसमें या तो हिकारत थी या कोई अनजाना दर्द।

    मगर जैसे ही उसकी नज़रें व्यांश की लाल, गहरी आँखों से टकराईं… वह धीरे से सिर झुका गई।

    लेकिन…

    उसके होंठों पर खेलती मुस्कान अब भी वैसी ही थी।


    ---

    इरा (धीमे, मगर बहुत स्पष्ट लहजे में)—"तुम… अब भी वैसे ही हो। उतने ही हर्टलेस।"

    व्यांश की उँगलियाँ हल्के से मुट्ठी में कस गईं, मगर चेहरा अब भी उतना ही ठंडा था। उसकी आँखें एक पल को झपकीं, फिर वापस ठंडी और स्थिर हो गईं।

    व्यांश (एक अनजानी नफरत से, तीखे स्वर में)—"और तुम… अब भी वैसी ही हो। उतनी ही घमंडी।"

    इरा (सख्ती से, बिना पलक झपकाए)—"घमंड? यह तुम कह रहे हो?"

    (व्यांश झुका। उसके साँसों की गर्माहट इरा की त्वचा से टकराई। वह पीछे हट सकती थी… लेकिन उसने नहीं किया।)

    इरा (धीमे, मगर बेखौफ)—"तुम्हें हमेशा लगता है कि तुम मुझसे एक क़दम आगे हो, है ना?"

    व्यांश हँसा—एक ऐसी हँसी जिसमें नश्तर जैसा दर्द छिपा था। उसने इरा को झटके से खींचा, इतना करीब कि उनके होंठों के बीच सिर्फ कुछ इंच का फासला रह गया।

    व्यांश ने गन की नोक ज़मीन पर टिका दी। अब वह इरा के बेहद करीब था।

    उसकी गहरी काली आँखें इरा की ग्रे आँखों से टकराईं। जैसे किसी ठंडी चट्टान और जलते अंगारों का मिलन हुआ हो।

    फिर वह थोड़ा और झुका… जैसे उसे और करीब से देखना चाहता हो।


    ---

    व्यांश (आहिस्ता, मगर आवाज़ में एक ठंडा खतरा लिए)—"तो तुम्हें डर नहीं लग रहा?"

    इरा (हल्की हँसी के साथ, आँखों में वही पुरानी बर्फ़ीली ठंडक)—"डर? तुम जानते हो, डर और मैं कभी एक ही कमरे में नहीं टिकते।"

    व्यांश (उसकी बालों की लट पकड़कर, बेहद धीमे स्वर में)—"लेकिन मौत और तुम?"

    इरा (साँस रोककर, मगर आँखों की जमी हुई सतह नहीं टूटी)—"मौत और मैं… एक-दूसरे को बहुत अच्छे से जानते हैं।"

    व्यांश (गहरी नज़रों से, लगभग उसके होंठों के करीब)—"फिर भी… तुम यहाँ खड़ी हो, मेरे सामने… बिना काँपे।"

    इरा (स्मिरक के साथ, तीखी आवाज़ में)—"काँपना तो तब चाहिए जब सामने वाला कुछ कर भी सके।"

    व्यांश (उसकी ठुड्डी को हल्के से छूते हुए, धीमे स्वर में)—"तुम चाहती हो कि मैं कुछ करूँ?"

    इरा (उसके हाथ को झटकते हुए, मगर आँखों से हटे बिना)—"तुम चाहोगे, लेकिन करोगे नहीं।"

    व्यांश (एक कदम और करीब आते हुए, उसकी कमर के बेहद पास)—"और अगर कर दिया?"

    इरा (उसकी आँखों में ठहरते हुए, एक घातक मुस्कान के साथ)—"तो वही करोगे जो तुम हमेशा करते हो—सबकुछ तबाह।"

    व्यांश (धीमे से मुस्कुराते हुए, आँखों में अंधेरा लिए)—"और तुम वही करोगी जो तुम हमेशा करती हो—बचकर निकल जाओगी।"
    इरा (हल्की हँसी, मगर आँखों में बर्फीली धार): "इस बार खेल अलग है, रायजादा… इस बार मैं भागने नहीं आई।"

    व्यांश ने कोई जवाब नहीं दिया। बस, धीरे-धीरे उसके करीब झुक आया।

    इरा का गुस्सा भड़क उठा। "तुम खुद को समझते क्या हो? एक राजा जो अपनी रियासत में मुझे क़ैद रखेगा?" उसकी आँखों में जलती चिंगारियाँ साफ़ दिख रही थीं।

    व्यांश की मुस्कान गहरी हो गई। "रियासत नहीं, मिस मल्होत्रा... खेल। और तुम—इस खेल की सबसे ख़तरनाक बिसात हो।"

    इरा की साँसें तेज़ हो गईं। दिल की धड़कनों ने जैसे बगावत कर दी हो। वह जितना खुद को उससे दूर रखना चाहती थी, उतना ही उसकी मौजूदगी उसे जकड़ रही थी।

    "Shut up, Raijayda!" उसने झटके से अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन व्यांश ने उसकी कमर के पास पकड़ बना ली।

    अब वो हिल भी नहीं सकती थी।

    "इतनी आसानी से छोड़ दूँ?" उसका स्वर धीमा था, मगर शब्दों में जहर घुला था। "वैसे ही, जैसे 15 साल पहले कुछ लोगों ने किसी को नहीं छोड़ा था?"

    इरा का दिल एक पल को रुक गया। उसकी आँखों में हल्का-सा डर झलका, मगर अगले ही क्षण उसने खुद को संभाल लिया। "क्या बकवास कर रहे हो?"

    व्यांश की उँगलियाँ उसकी कमर से धीरे-धीरे हटीं, मगर उसकी आँखों में वही अंधेरा जिंदा था।

    "कुछ नहीं... बस तुम्हारी याददाश्त ताज़ा कर रहा हूँ।"

    इरा का गला सूख गया।

    बाहर आसमान फटा—बिजली गिरी, और उसकी सफ़ेद चमक ने पूरे कमरे को रोशनी से भर दिया।

    और तभी...

    व्यांश मुस्कुराया।

    उसने जैकेट की जेब में हाथ डाला और एक मुड़ा-तुड़ा कागज़ निकाला।

    उसे इरा के सामने लहराया।

    इरा की मुस्कान एक पल को ठिठक गई। उसकी आँखें कागज़ पर टिक गईं, और जैसे ही उसने उस पर लिखा पढ़ा—

    उसके चेहरे से रंग उड़ गया।

    माथे पर हल्की-सी पसीने की बूंद झलक पड़ी।

    कुछ था उस कागज़ पर… कुछ ऐसा जो बीते 15 सालों की राख में दबी एक सुलगती चिंगारी था।



    ------


    इरा और व्यांश—एक-दूसरे के लिए प्यार या नफरत?हर मुलाकात जंग क्यों बन जाती है?क्या यह खेल उनके हाथ में है, या कोई और उनकी चालें लिख रहा है?15 साल पहले... ऐसा क्या हुआ जो इरा की रूह तक हिला देता है?वो कागज़... बस एक याद, या किसी दफन सच की दस्तक?
    सवाल कई हैं, लेकिन जवाब अब भी अंधेरे में हैं...


    आगे जाने के लिए पढ़िए twisted Desire - "A dark and deadly love story" सिर्फ Story mania पर ।मिलते हैं नेक्स्ट चैप्टर में.....🙏🏻🙏🏻🙏🏻



    🌼🌼 राधे राधे🌼🌼

  • 3. Twisted Desire - ( A dark and deadly love story ) - Chapter 3

    Words: 0

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  • 4. Twisted Desire - ( A dark and deadly love story ) - Chapter 4

    Words: 0

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