इश्क किसी के लिए इबादत तो किसी का सुकून पर क्या हो जब इस इश्क में सब कुछ खुद ही बर्बाद कर खुद को खो दे कोई। ऐसी ही ये कहानी है अपनी मोहब्बत के गुनहगार असद अहमद खान की ..इंडिया "कृपया... आ... आ...कृपया मुझे माफ़ कर दो... मैं बहक गई थी। म... इश्क किसी के लिए इबादत तो किसी का सुकून पर क्या हो जब इस इश्क में सब कुछ खुद ही बर्बाद कर खुद को खो दे कोई। ऐसी ही ये कहानी है अपनी मोहब्बत के गुनहगार असद अहमद खान की ..इंडिया "कृपया... आ... आ...कृपया मुझे माफ़ कर दो... मैं बहक गई थी। मैं नशे में थी... मुझे अहसास ही नहीं था कि मैं क्या करने वाली थी... मुझ पर रहम करो... एक बार बख्श दो... मैं आइंदा तुम्हारे आस-पास भी नहीं आऊँगी... इंडिया में भी नहीं रहूँगी... कसम से..." टीना ज़मीन पर घुटनों के बल गिरी हुई थी। उसका चेहरा खून और आँसुओं से भीगा हुआ था। कपड़े अस्त-व्यस्त थे, और उसकी आँखों में खौफ साफ़ झलक रहा था। वह सामने खड़े आदमी की आँखों में झाँकने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रही थी। वह आदमी, जिसे देखकर मौत भी काँप जाए— असद ख़ान। पैंतीस साल का, मगर किसी भी नौजवान से ज़्यादा दमदार। चौड़ी छाती, सख़्त जबड़ा, गहरी और ख़तरनाक आँखें, जिनमें इस वक़्त सिर्फ़ नफ़रत झलक रही थी। होंठों के बीच फँसी सिगरेट जल रही थी; उसकी उंगलियों में फँसी बंदूक अब भी धुएँ से गरम थी। उसने एक लंबा कश लिया, धुआँ छोड़ते हुए बेहद ठंडे लहज़े में बोला— "होश में हो या नशे में, तूने मेरी बीवी की इज़्ज़त पर नज़र डाली? एक नापाक साज़िश रची? अगर तेरी चाल कामयाब हो जाती तो मैं अपनी बेगम को क्या मुँह दिखाता? मैंने छह सालों से किसी औरत को छूने तक का ख़्याल नहीं लाया... और तूने मेरे साथ सोने की सोच ली?"
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एक नए उपन्यास के साथ एक और नया सफ़र इंडिया "कृपया... आ... आ...कृपया मुझे माफ़ कर दो... मैं बहक गई थी। मैं नशे में थी... मुझे अहसास ही नहीं था कि मैं क्या करने वाली थी... मुझ पर रहम करो... एक बार बख्श दो... मैं आइंदा तुम्हारे आस-पास भी नहीं आऊँगी... इंडिया में भी नहीं रहूँगी... कसम से..." टीना ज़मीन पर घुटनों के बल गिरी हुई थी। उसका चेहरा खून और आँसुओं से भीगा हुआ था। कपड़े अस्त-व्यस्त थे, और उसकी आँखों में खौफ साफ़ झलक रहा था। वह सामने खड़े आदमी की आँखों में झाँकने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रही थी। वह आदमी, जिसे देखकर मौत भी काँप जाए— असद ख़ान। पैंतीस साल का, मगर किसी भी नौजवान से ज़्यादा दमदार। चौड़ी छाती, सख़्त जबड़ा, गहरी और ख़तरनाक आँखें, जिनमें इस वक़्त सिर्फ़ नफ़रत झलक रही थी। होंठों के बीच फँसी सिगरेट जल रही थी; उसकी उंगलियों में फँसी बंदूक अब भी धुएँ से गरम थी। उसने एक लंबा कश लिया, धुआँ छोड़ते हुए बेहद ठंडे लहज़े में बोला— "होश में हो या नशे में, तूने मेरी बीवी की इज़्ज़त पर नज़र डाली? एक नापाक साज़िश रची? अगर तेरी चाल कामयाब हो जाती तो मैं अपनी बेगम को क्या मुँह दिखाता? मैंने छह सालों से किसी औरत को छूने तक का ख़्याल नहीं लाया... और तूने मेरे साथ सोने की सोच ली?" असद की आवाज़ में गुस्सा नहीं, बल्कि एक अजीब-सी ठंडक थी, जो और भी ज़्यादा डरावनी लग रही थी। टीना का बदन काँप उठा, मगर अगले ही पल उसकी आँखों में एक अजीब-सा जुनून उमड़ा। वह दर्द से हँसने लगी... "जिस बीवी की बात कर रहे हो, वो तो छह साल पहले मर चुकी है!!! मर गई तुम्हारी बी...!" धम!!! एक गोली... और सब कुछ ख़ामोश। टीना की आँखें खुली की खुली रह गईं। उसके होंठ हिले, मानो कुछ कहना चाहती हो, लेकिन आवाज़ नहीं निकली। वह पीछे की ओर गिर पड़ी। असद ने अपनी बंदूक नीचे कर ली, फिर उसके करीब आकर कान टीना के मुँह के पास लगाया, जैसे कुछ सुनना चाहता हो। "बोल ना, टीना... क्या कह रही थी मेरी इनाया के बारे में?" टीना की लाश ने कोई जवाब नहीं दिया। असद ने एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कीं, फिर अचानक खड़ा होकर पूरी गन की बुलेट उसकी लाश में उतार दी। "ज़िंदा है मेरी इनाया!!! ज़िंदा है!!!" गुस्से से चिल्लाते हुए वह पास रखा सामान इधर-उधर फेंकने लगा। उसकी आँखें खून से लाल हो गई थीं, हाथ काँप रहे थे, और उसकी साँसें बेतहाशा तेज़ हो रही थीं। "वो नहीं मर सकती!!! मेरी साँसें चल रही हैं, इसका मतलब वो ज़िंदा है!!!" लोग डर से सिहर गए। आस-पास खड़े लोग असद को देखकर काँप रहे थे। जो असद इनाया के प्यार में बदल गया था, वो अब फिर से वहशी बन चुका था। वहाँ से सीधा वह अपने कमरे में पहुँचा। कमरा नहीं... मक़बरा था... चारों तरफ़ इनाया की तस्वीरें। हर दीवार पर, हर कोने में, हर सतह पर सिर्फ़ इनाया। बेड पर बिखरी तस्वीरों के बीच जाकर, पेट के बल लेटकर, असद ने उन तस्वीरों को अपने आगोश में भर लिया। एक तस्वीर को उठाकर उसने हौले से कहा— "बीबी... आज 6 साल, 1 महीना, 2 हफ़्ते, 3 दिन, 18 घंटे... और 54 मिनट हो गए हैं तुम्हें गए हुए..." उसने घड़ी की तरफ़ देखा और फिर तस्वीर पर नज़रें जमाकर फुसफुसाया— "अब 13 सेकंड भी..." उसकी आँखें भीग गईं। "आ जाओ ना... मेरे पास वापस आ जाओ। मुझे पता है, मैंने तुम्हें ग़लत समझा था। मैंने ही तुम्हें खुद से दूर जाने को कहा था... लेकिन तुम ऐसे अपने मिस्टर ख़ान को छोड़कर नहीं जा सकती। लोग कहते हैं, तुमने मुझे उम्र भर की सज़ा देकर चली गई... लेकिन मेरी मोहब्बत इतनी सस्ती नहीं थी कि तुम इसे मौत से एक्सचेंज कर जाओ।" इतना कहकर असद तस्वीर सीने से लगाकर सो गया... या शायद जागते हुए भी उसी की दुनिया में खो गया। --- अमेरिका "ओल्ड लेडी, आप बिल्कुल ठीक हैं! अब आपको किसी भी चीज़ की टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं है!" अमेरिका के एक हॉस्पिटल में, एक 25 साल की ख़ूबसूरत डॉक्टर बूढ़ी औरत को मुस्कुराते हुए कह रही थी। फिर उसने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा— "और अब अपने बेटे-बहू के पास जाने की ज़रूरत नहीं, ओके? मैंने आपके लिए ओल्ड एज होम में रहने का इंतज़ाम कर दिया है। अब बस वहाँ रहिए और अपनी हेल्थ पर ध्यान दीजिए... और हाँ, बेटे-बहू को गोली मारो!" डॉक्टर ने खिलखिलाकर हँसते हुए कहा, तो बूढ़ी औरत भी मुस्कुरा दी। "डॉ. इनायत! एक इमरजेंसी केस आया है, जल्दी चलिए!" बाहर से भागती हुई नर्स ने आकर कहा। डॉ. इनायत, जो अब तक मज़ाक कर रही थी, तुरंत प्रोफ़ेशनल मोड में आ गई। "ओके, लेट्स गो!" अब उसका चेहरा साफ़ नज़र आने लगा— ख़ूबसूरत हरी आँखें, जिनपर स्टाइलिश चश्मा था। गुलाबी होंठ, गालों पर हल्के डिम्पल। घनी पलकें और बारीक, घनी आइब्रो। खुले बाल, फुल-स्लीव्स स्काई ब्लू लॉन्ग टॉप, डार्क ब्लू जींस। गले में एक डार्क ब्लू स्कार्फ़, हाथ में वॉच, कानों में टॉप्स। एक हाथ में स्टेथोस्कोप, और दूसरे हाथ में फ़ोन और पेन। वो अपने केबिन की तरफ़ बढ़ी। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला— वहाँ एक लड़का पहले से कुर्सी पर बैठा था। --- अब सवाल ये है कि— 1. क्या असद और इनाया का रिश्ता सच में ख़त्म हो चुका है, या कोई उम्मीद बाक़ी है? 2. इनायत के अमेरिका में होने की असली वजह क्या है? 3. क्या असद को कभी सच्चाई पता चलेगी? और अगर हाँ, तो कब?
--- इनायत महिला वार्ड से बाहर निकली और इमरजेंसी रूम की ओर मुड़ी। तभी एक नर्स बोली, "डॉक्टर, वे यहाँ नहीं हैं, आपके केबिन में हैं।" इनायत यह सुनकर गुस्से से भर गई और नर्स को घूरने लगी। नर्स अपनी हँसी छिपाते हुए, मुँह झुकाकर बोली, "मैम, मैं क्या कर सकती हूँ? उनके कब्जे में मेरे बॉयफ्रेंड के चैट्स हैं।" इनायत अपना सिर पकड़कर तेज़ कदमों से अपने केबिन की ओर बढ़ गई। इनायत का केबिन जैसे ही वह अंदर पहुँची, अपनी कुर्सी पर बैठे शख्स की ओर बढ़ी और उस पर मुक्कों की बारिश करते हुए बोली, "तुम नहीं सुधरोगे ना? हर वक्त यही हरकतें करके मुझे परेशान करना ही तुम्हारा काम है!" वह लड़का, जिसकी उम्र 26-27 साल के करीब थी, दिखने में अमेरिकन और इंडियन का मिला-जुला रूप लग रहा था। वह खुद को बचाते हुए हँसा, "अरे अहहा... ओहह! सुनो तो मेरी माँ! अरे मेरी माँ, क्या कर रही है! क्या करता हूँ मैं? बताओ! तुम मिलने को तैयार ही नहीं हो रही थी! जब देखो हॉस्पिटल, मरीज... इन्हीं सब में दबी रहती हो। एक हफ्ता हो गया, लेकिन तुमने घर आकर मम्मा और पा को सूरत तक नहीं दिखाई। तुम्हें अंदाजा भी है कि वे तुम्हें कितना मिस कर रहे हैं, मिस न्यूरोलॉजिस्ट?" इनायत, जो मार-मार कर थक गई थी, सोफे पर बैठकर हाँफते हुए बोली, "आई नो कि सब मुझे बहुत मिस करते हैं और मेरी फ़िक्र भी करते हैं। लेकिन क्या करूँ? तुम जानते हो ना, अर्श? मेरे लिए मेरा अस्पताल और मेरे मरीज सबसे पहले हैं। यहाँ रहती हूँ तो मुझे सुकून मिलता है। मम्मा और पा के बाद एक यही जगह है जिसने मुझे जीने की वजह दी है।" अर्श, इनायत को पानी का गिलास पकड़ाते हुए बोला, "मुझे सब पता है, तुमको बताने की जरूरत नहीं। इतने कम वक्त में जो तुमने बुलंदी हासिल की है, वह आम बात नहीं। तुम सबकी मदद करना चाहती हो, यह अच्छी बात है। और तो और, अंकल पा ने इस हॉस्पिटल पर जितना खर्चा किया था, वह तक तुमने सब वापस कर दिया। कुछ ही सालों में क्या-क्या हासिल कर लिया तुमने, तुम्हें खुद अंदाजा नहीं।" इनायत, अर्श की बात सुनकर गहरी सोच में डूब गई। अर्श उसे हल्के से हिलाते हुए बोला, "ओ हेलो! मैं तुमसे बात कर रहा हूँ, कहाँ खो गई?" इनायत खोए हुए अंदाज़ में जवाब दिया, "ख्वाबों में जीना मेरी फितरत है, इससे हकीकत और ख्वाब में फ़र्क पता चलता है।" तभी इनायत का कॉल आया। इनायत: "Hello…? Ok… Fine, I'm coming." यह कहकर इनायत वहाँ से निकल गई। --- अगले दिन, फ़ज्र के वक्त इनाया मंज़िल एक बड़ा सा विला, जो बेहद खूबसूरत था। ख़ान विला भी इसके सामने छोटा महसूस होता। वहाँ सिवाय ख़ामोशी के कुछ नहीं था। विला के पाँचवें फ्लोर पर असद, इनाया की तस्वीरों के बीच सोया हुआ था। उसे देखकर साफ़ लग रहा था कि वह कोई हसीन सपना देख रहा है। तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुला और उसमें से इनाया मुस्कुराते हुए बाहर आई। अपने गीले बालों को पोछते हुए वह असद के पास गई और आवाज़ दी, "ओह हो, मिस्टर ख़ान! कितना सोएंगे? देखिए, नमाज़ का वक्त निकल रहा है। थक गई हूँ आपको समझाते-समझाते कि फ़ज्र की नमाज़ के लिए वक्त से पहले उठा करें।" असद, आँखें बंद किए ही इनाया का हाथ पकड़कर उसे अपनी तरफ खींच लिया। इनाया असफल होकर उसके क्लीन चेस्ट पर गिर गई। असद उसके बालों को कान के पीछे सरकाते हुए, आँखें बंद ही बोला, "अगर खुद उठ जाऊँगा तो तुम कैसे आओगी मुझे उठाने, मिस चश्मिश?" इनाया हल्के गुस्से में बोली, "क्या फ़ायदा आने का? आते हो, नज़रें उठाकर देखते भी नहीं।" असद हल्की मुस्कान के साथ, "नज़रें उठाते ही तुम नज़रों से ग़ायब हो जाती हो। इसलिए बिना नज़रों के महसूस करने दो।" इनाया, उसकी छाती पर उंगली फेरते हुए बोली, "आँखें खोलो और हक़ीक़त से मिलो, मिस्टर ख़ान। मैं तुम्हारी हक़ीक़त हूँ।" असद हँसते हुए, "तुम रोज़ यही बोलकर ग़ायब हो जाती हो।" इनाया, "तो फिर अगले दिन वापस भी तो आती हूँ ना?" असद उसकी कमर कसकर पकड़ते हुए, उसे अपने ऊपर खींचकर, "ना, आज नहीं जाने दूँगा तुम्हें!" इनाया मुस्कराते हुए, "ठीक है, नहीं जाती। पर एक बार मुझे अपनी आँखों में खुद का अक्स देखने दो।" असद अपना चेहरा ऊपर कर आँखें खोलीं और बेड पर देखा, लेकिन वहाँ इनाया की तस्वीरों के सिवा कुछ भी नहीं था। वह घबराकर उठ गया और इधर-उधर देखने लगा, लेकिन इनाया थी ही कहाँ, जो नज़र आती? असद पूरे रूम में इनाया को आवाज़ लगाता रहा, लेकिन सिवाय अपनी गूँजती हुई आवाज़ के, उसे कोई जवाब नहीं मिला। जब वह विंडो खोलकर बालकनी में जाने ही वाला था, तभी अज़ान की आवाज़ उसके कानों में पड़ी। वह आँखें बंद कर, गहरी साँस ली और बाथरूम की तरफ चल दिया। कुछ देर बाद वह वुज़ू करके बाहर आया और मुसल्ले पर खड़ा होकर नमाज़ शुरू की। --- कुछ देर बाद असद, हाथ उठाकर दुआ माँगता है— "या खुदा, कहते हैं, ढूँढने से खुदा भी मिल जाता है, दुआओं से मुकद्दर भी बन जाता है। तू मेरी दुआ में और कोशिश में इतनी मदद फरमा कि मैं अपनी इनाया को वापस ढूँढ लाऊँ। वह ज़िंदा है, वह मरी नहीं है। मेरा दिल जानता है, वह ज़िंदा है! तू मेरी दुआ सुन ले!" यह वही असद था, जो कहा करता था कि "इबादत वो करते हैं, जिनके पास किसी चीज़ की कमी हो।" और यही जवाब इनाया ने उसे एक दिन दिया था— "ख़ुदा करे, कभी आप अपने हाथों से अपनी अज़ीज़ चीज़ को जुदा कर दें... और फिर ख़ाली हाथ लेकर आएँ खुदा के पास।" शायद इनाया की बात सच हो गई थी। ---
--- कुछ देर बाद... एक सुनसान रास्ते के बीचों-बीच एक बड़ी काली गाड़ी खड़ी थी। उसके बोनट पर असद अपनी गन लिए लेटा हुआ था। उसने उस वक्त ब्लैक कुर्ता और ब्लू जींस पहनी हुई थी। कुर्ते के ऊपर के तीनों बटन खुले थे, जिससे उसकी क्लीन चेस्ट साफ़ नज़र आ रही थी। उसकी दाढ़ी पहले से कुछ ज़्यादा घनी हो गई थी और बाल भी बढ़ गए थे। पहले जो बाल सेट रहा करते थे, अब वे हवाओं के सहारे सँवरते थे। कुछ देर बाद वहाँ एक और गाड़ी आई। गाड़ी के रुकते ही उसमें से दो लोग बाहर निकले—एक साइड से एक लड़की और दूसरी साइड से एक बूढ़ा आदमी, जो देखने से ही अय्याश लग रहा था। वह बूढ़ा अपने साथ लाई लड़की की कमर पर हाथ रखे आगे बढ़ा और असद के पास आया। असद बिना किसी भाव के वैसे ही लेटा रहा। वह बूढ़ा (सलमान, उम्र- 67) असद के सामने आकर खड़ा हुआ और कहा— सलमान: "कैसे हो असद बेटे?" असद, जो अपने एक पैर को फैलाकर और दूसरे को मोड़कर लेटा था, ऐसा दिख रहा था जैसे उसने कुछ सुना ही न हो। सलमान को बहुत गुस्सा आया जब असद कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन उसने खुद को समझाया और फिर से कहा— सलमान: "मिस्टर असद अहमद खान, कैसे हैं आप?" आगे सलमान कुछ और कह पाता, उससे पहले ही असद अपना मोड़ा हुआ पैर सीधा कर दिया, जो सीधे सलमान के सीने पर लगा। जिससे वह बूढ़ा और उसके साथ आई लड़की ज़मीन पर गिर गए। उनके गिरते ही असद उठकर बैठ गया और नीचे देखते हुए कहा— असद: "AAK... बस यही हूँ मैं! तुम जैसे कमीनों के लिए मेरा नाम अपनी पाक ज़ुबान से मत लो, खामखा गुनाह बढ़ जाएँगे।" --- इंडिया दिल्ली, खान विला काइनात जी (असद की माँ) व्हीलचेयर पर बैठीं कामरान जी (असद के पिता) को नाश्ता करा रही थीं। कामरान जी पैरालिसिस का शिकार हो गए थे। पिछले तीन सालों से वे व्हीलचेयर पर थे। उनकी लोअर बॉडी पूरी तरह पैरालाइज़ हो चुकी थी। अहद (असद का छोटा भाई) अपनी वाइफ किंजा और तीन साल के बेटे हम्द के साथ बैठकर नाश्ता कर रहा था। अब खान विला पहले जैसा चहल-पहल वाला विला नहीं रहा था। वहाँ सन्नाटे ने कब्ज़ा कर लिया था। अहद का बेटा हम्द दिनभर बस अपने टॉयज़ से खेलता था। अब ना असद की कोई बहन वहाँ आती, ना काइनात जी और कामरान जी कहीं आते-जाते थे। किंजा, अहद को नाश्ता सर्व करते हुए उसे कुछ इशारा किया। जिसके बाद अहद ने कहा— अहद: "अम्मी, मैं सोच रहा था कि किंजा की अभी कॉलेज की छुट्टियाँ हैं और हम्द भी अभी स्कूल नहीं जाता, तो क्यों ना हम सब बाहर कहीं घूमने चलें?" काइनात जी, जो कामरान जी को नाश्ता करा रही थीं, बिना अहद को देखे जवाब दिया— काइनात: "तू चला जा, हमारी फ़िक्र मत कर। और हमसे कुछ छुपाने की ज़रूरत नहीं। हमें पता है किंजा का अमेरिका की यूनिवर्सिटी में एडमिशन हो चुका है। तू जा, जाकर जाने की तैयारी कर। हम यहाँ हैं, हमें किसी की ज़रूरत नहीं।" अहद कुछ बोलने ही वाला था कि किंजा ने उसे आँखों से खामोश रहने का इशारा कर दिया। --- दूसरी तरफ असद गाड़ी में बैठे अपनी गर्दन टेढ़ी करके नीचे पड़े सलमान और उसकी मिस्ट्रेस को देखा और कहा— असद: "वैसे जोड़ी कमाल है तुम दोनों की... दोनों ही गिरे हुए हो!" सलमान और उसकी महबूबा (सीमा शेख) उठकर खड़े हुए। गुस्से में सलमान ने कहा— सलमान: "AAK, ये क्या बदतमीज़ी है?" असद: "अ-अ... अभी भी गलत! AAK पूरा नाम बोल!" सलमान: "मैं यहाँ अपनी बेइज़्ज़ती करवाने नहीं आया हूँ, AK... मेरा मतलब, AAK!" असद गाड़ी से जंप करके नीचे उतरा और सलमान को देखते हुए कहा— असद: "तो बेसिकली तूने कोई स्पेशल रिज़ॉर्ट खुलवाया है अपनी बेइज़्ज़ती करवाने के लिए? ठीक है, एड्रेस दे देना, वहीं आ जाऊँगा!" सलमान गुस्से में दाँत पीसते हुए कहा— सलमान: "मुझे सिर्फ़ इतना बताओ, मेरे आदमी को मारने की वजह क्या थी? और मेरी कंपनी के सारे प्रोजेक्ट तुमने क्यों बंद करवाए?" असद, सलमान और सीमा के चारों तरफ घूमते हुए कहा— असद: "तू नहीं जानता क्या किया तेरे आदमी ने? चल, मैं बता देता हूँ! तेरे आदमी की गलती की वजह से एक एक्सीडेंट हुआ, जिसमें दस लोग, जो एक बस में सवार थे, मारे गए! चौदह ज़िंदगियाँ मौत और जिंदगी के बीच लड़ रही हैं!" सलमान: "ओह्ह छोड़ो भी यार... इतना बड़ा भी मामला नहीं था!" असद तुरंत सलमान का गला दबा दिया— असद: "बड़ा मामला??? सही कहा! बड़ा मामला कैसे हो सकता है? उसमें सिर्फ़ कुछ परिवारों की खुशियाँ ही तो गईं! सिर्फ़ कुछ बीवियों ने अपने शौहर और कुछ शौहरों ने अपनी बीवियाँ खोई... बस!!!" यह कहते हुए असद का चेहरा एकदम खौफ़नाक हो गया था। सलमान का हाल अब बिना पानी की मछली की तरह हो चुका था। ना उसमें असद से लड़ने की ताकत थी, ना बचने की हिम्मत। तभी सीमा, असद का हाथ पकड़कर कही— सीमा: "रुक जाओ, AAK! मुझे पता है, ऐसे ही एक एक्सीडेंट में तुम्हारी बीवी भी..." सीमा एक दुखी चेहरा बनाकर आगे कही— सीमा: "लेकिन आप चाहो तो मैं आपकी बीवी की कमी पूरी कर सकती हूँ! यकीन मानिए, आपको पूरी तरह से सेटिस्फाई करूँगी!" असद की नज़र सीमा के उस हाथ पर थी, जो उसने असद का हाथ पकड़ने के लिए इस्तेमाल किया था... --- कुछ देर बाद... असद एक कुर्सी पर बैठा ब्लेड से अपने हाथ के उस हिस्से को ऐसे छील रहा था, जैसे वह लौकी-तुरई या खीरा हो। वहीं उसके सामने सीमा दर्द से तड़पती हुई, बिना एक हाथ के पड़ी हुई थी। असद, हाथ की खाल को उतारते हुए अपनी सामने लगी बड़ी-सी इनाया की तस्वीर को देखता रहा और कहा— असद: "सॉरी जान... जिस चीज़ पर सिर्फ़ तुम्हारा हक़ था, वह किसी और ने लेने की बात की... मुझसे मेरा हाथ भी पकड़ा! लेकिन देखो, मैंने उसकी नापाक छुअन को खुद से दूर कर दिया..." पास में ज़ख़्मी हालत में पड़ी सीमा, असद का पागलपन देखकर सदमे में थी। ---
कुछ देर बाद, असद का फ़ोन बजता है। उसने स्क्रीन पर दिख रहे नाम को देखकर कॉल रिसीव की और सीधा कहा— "बोल, क्या कहा?" दूसरी तरफ़ से अहद की आवाज़ आई— "भाई, अम्मी नहीं मानीं। उन्होंने कहा कि उन्हें किसी की ज़रूरत नहीं। आपके कहे मुताबिक, मैंने किंजा के एडमिशन की खबर पहले ही पहुँचा दी, लेकिन उसका भी उन पर कोई असर नहीं हुआ। मुझे नहीं लगता कि पापा और अम्मी अमेरिका जाने के लिए राज़ी होंगे। और वहाँ जाए बिना पापा का इलाज कैसे मुमकिन होगा? डॉ. I A खान इंडिया आने को किसी भी हाल में तैयार नहीं और डैड वहाँ जाने को तैयार नहीं हैं।" असद थोड़ा सोचता हुआ बोला— "ये डॉक्टर... क्या नाम बताया उसका?" "I A खान।" "हाँ, वही! इसका कॉन्टेक्ट नंबर दे।" "वह खुद बात नहीं करती। उसका असिस्टेंट बात करता है।" "जो भी करता है, नंबर दे उसका!" "ओके।" कुछ देर बाद, असद, अपने खून से लथपथ हाथ से, डॉ. खान के असिस्टेंट को कॉल लगाता है— "हेलो! डॉ. I A खान से बात करनी है, बात करवाओ!" दूसरी तरफ़ से एक लड़की, जिसका नाम मोनालिसा था, जवाब देती है— "सॉरी सर, लेकिन हमें ऐसे कॉल्स डॉक्टर मैम को देने की इजाज़त नहीं है। आप मुझे बताइए, मैं मैम से आपकी प्रॉब्लम शेयर कर दूँगी।" असद गुस्से में भड़क जाता है— "मुझे बात तुम्हारी डॉक्टर से करनी है! कोई तबर्रुक नहीं बाँटना कि तुम शेयर करोगी! बात कराओ, वरना—" तभी वहाँ एक लड़का आता है और मोना के हाथ से फ़ोन लेकर कहता है— "लिसन सर, प्लीज़, बिहेव योरसेल्फ! ऐसे बात करने से आपकी डॉक्टर से बात नहीं करवाई जाएगी, उल्टा आपको लाइफटाइम के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा उनकी लिस्ट से। इसलिए थोड़ा आराम से बात करें।" असद, जो गुस्से में जानलेवा होने ही वाला था, कुछ कहने ही वाला था कि तभी उसके कानों में किसी लड़की की आवाज़ आती है— "मोना, पेशेंट 5492 को शिफ्ट कर दो और उसे ओल्ड एज होम भिजवा दो। और प्लीज़, मेरे लिए एक चाय बनवा दो, मेरे सर की बुरी तरह से वॉट लग रही है!" ये आवाज़ इनायत की थी! आवाज़ सुनते ही असद एकदम से होश खो बैठता है। वह तुरंत फ़ोन पर चिल्लाता है— "इना!! इनाया!! इनाया!!! कहाँ हो तुम? मुझसे बात करो, इनाया!" लेकिन दूसरी तरफ़ से अर्श ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया था। जाफर का गुस्सा जाफर, जो वहाँ खड़ा सब कुछ देख रहा था, असद से फ़ोन छीनते हुए गुस्से में बोला— "क्या चाहता है तू, हाँ?! क्या चाहता है??" असद, जाफर का हाथ पकड़कर पागलों की तरह कहता है— "मैंने अभी इनाया की आवाज़ सुनी! सच में!!" जाफर, असद से खुद को छुड़ाकर झल्ला जाता है— "बस कर दे! बख्श दे अब उनको! क्यों उनकी रूह को तकलीफ पहुँचाने में लगा है तू? अगर अभी भी नहीं समझा, तो तू अंकल को भी खो देगा!" यह कहते हुए जाफर, कॉल को दोबारा लगाता है और स्पीकर ऑन कर देता है। "हेलो?" दूसरी तरफ़ से मोनालिसा की आवाज़ आती है— "यस, सर?" "देखिए, हमारी डॉ. खान से बात करना बहुत ज़रूरी है। मेरी पहले भी उनसे बात हुई थी इंडिया से एक पैरालिसिस केस को लेकर।" "ओके सर, वेट करें। मैम अभी रेस्ट पीरियड में हैं, लेकिन वह आपसे बात कर लेंगी।" "थैंक यू सो मच!" मोना, इनायत के पास जाती है, जो इस वक्त सोफ़े पर रेस्ट कर रही थी। "मैम, इंडिया वाले केस के सिलसिले में कॉल आया है।" इनायत तुरंत उठकर बैठ जाती है और बड़ी मुश्किल से फ़ोन हाथ में पकड़कर बात करती है— "हेलो?" इनायत की आवाज़ सुनते ही असद बेचैन हो जाता है! "हेलो मैम, मैं जाफर सिद्दीकी बात कर रहा हूँ इंडिया से। एक पैरालिसिस केस के सिलसिले में हमारी पहले भी बात हुई थी।" "यस, मैंने पेशेंट को अमेरिका लाने के लिए कहा था।" "मैम, कुछ इशूज़ की वजह से वह नहीं आ पा रहे। अगर आप हमारी कुछ मदद कर सकें और इंडिया आ जाएँ तो बहुत मेहरबानी होगी।" "सॉरी, लेकिन मैं इंडिया नहीं आ सकती!" "मैम, मैं आपको दस गुना एक्स्ट्रा पे करने के लिए तैयार हूँ!" "आप लाइफटाइम भी अगर पे करेंगे मुझे, तब भी मैं नहीं आउँगी!" यह कहकर इनायत ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया।
असद अपने दोनों हाथों को सोफे पर रखे किसी राजा की तरह बैठा था। उसके सामने Dr. I. A. Khan यानी Dr. इनायत खान की सारी जानकारी थी।
इसमें साफ लिखा था कि इनायत एक पाकिस्तानी महिला और अमेरिकन आदमी की बेटी थी। वह महिला अमेरिका में रहने वाले एक डॉक्टर से शादी कर वहीं सेटल हो गई थी।
इनायत कभी इंडिया नहीं आई थी, यह भी उसमें मेंशन किया गया था। उसकी एजुकेशन से लेकर सब चीजें उसमें लिखी थीं।
वहाँ इनायत की एक फोटो भी थी, जिसमें वह डॉक्टर कोट पहने किसी मीटिंग को जॉइन किए हुई थी।
असद इनायत का फोटो देखकर बोला, "चेहरा नहीं है मेरी इनाया का, पर यह आँखें... यह वही हैं। इन आँखों को मैं मरते दम तक नहीं भूल सकता। आवाज़ भी इनाया की ही थी। क्या मुमकिन है यह कि यही मेरी इनाया...?"
जाफर, जो कब से असद की बातें सुन रहा था, गुस्से में असद से बोला, "इनफ असद! हद होती है पागलपन की! पहले जब भाभी थीं तो तूने उन पर इल्ज़ाम लगाकर जाने बोल दिया अपनी जिंदगी से, और जब वह तेरी और खुद की जिंदगी से दूर जा चुकी हैं, तो तू क्यों हर जगह उनको बदनाम कर रहा है? अगर वह ज़िंदा होतीं तो अपनों के पास होतीं! और तूने ढूँढा था ना सब जगह? वह जली हुई लाश भाभी की ही..."
"बस्स्स्सस्स्स्सस्स्स्स!"
यह कहते हुए असद ने जाफर की गर्दन को कस कर पकड़ लिया था। उसकी आँखें इस वक़्त अंगारे बन चुकी थीं। उसके हाथों की नसें उभर आई थीं। अपने जिस हाथ का उसने सत्यानाश किया था, उससे खून निकलना जो बंद हुआ था, वह वापस रिसने लगा था।
असद अपनी पकड़ जाफर के गले पर मजबूत करते हुए बोला, "बस जाफर! बस एक लफ्ज़ भी अगर मेरी इनाया के खिलाफ कहा, तो मैं भूल जाऊँगा कि तू मेरा दोस्त है! पिछले 6 सालों से मैं तुझे एक ही बात कह रहा हूँ— वह लाश मेरी इनाया की नहीं थी! मेरी इनाया मुझे छोड़कर नहीं जा सकती, और उसके जिंदा होने का सबूत मैं खुद हूँ! उसने मुझे एक बार कहा था, 'अगर सच्चे दिल से खुदा से कुछ माँगा जाता है, तो वह रब हमारी तक़दीर में उसे लिख ही देता है।'"
जाफर अपने गले को छुड़ाते हुए बोला, "तक़दीर बदली नहीं जाती, असद!"
असद मुस्कुराते हुए गर्दन टेढ़ी कर बोला, "जानता हूँ! उसने यह भी कहा था, 'खुदा से उसकी दुआ माँगते रहो जो चाहिए, क्या पता तक़दीर में यही लिखा हो कि दुआओं से ही वह मिलेगा।' और मेरी दुआओं के मुकम्मल होने का वक़्त आ गया!"
तभी वहाँ अज़ान की आवाज़ आती है। यह ज़ोहर का वक़्त था।
असद, जाफर को धक्का देकर बोला, "Now you can go! अब मेरे और मेरे रब के दरमियान बातों का सिलसिला जारी करने का वक़्त आ चुका है।"
असद यह बोलकर मुस्कुराते हुए अपने रूम की तरफ चल देता है।
जाफर, असद को जाता देख, आँखों में आँसू लिए बोला, "या खुदा, यह क्या बन गया मेरा दोस्त?"
फिर हाथों को फैला कर ऊपर देख बोला, "जानता हूँ गलती इसकी थी, लेकिन इतनी बड़ी सज़ा इनाया भाभी को? इसकी दुनिया और जिंदगी से सबसे ही दूर कर दिया? मेरे दोस्त पर अपना करम कर दे, मेरे मौला। अगर इसे लग रहा है कि इनाया भाभी ज़िंदा हैं, तो ऐसा ही हो!"
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अमेरिका
रात का वक़्त
Dr. इनायत तहज्जुद के वक़्त नमाज़ पढ़कर दुआ करते हुए बोली, "या मेरे मौला, जहाँ से निकल कर आई हूँ, वहाँ वापस नहीं जाना! खुद की पहचान को फ़ना कर यहाँ पहुँची हूँ। अब कुछ ऐसा ना करना कि मैं टूट जाऊँ। बड़ी मुश्किल से संभाला है मैंने खुद को, अब नहीं सहा जाएगा कुछ भी!"
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इंडिया
दोपहर
जोहर के वक़्त
असद, दुआ के वक़्त बोला, "या खुदा, जो मुझे महसूस हो रहा है, वह सच हो! वह मेरी इनाया ही हो! मैं उसे हर हाल में वापस लाऊँगा, चाहे जो हो जाए! तूने मेरी दुआओं को सुना है, मैं तेरा शुक्रगुज़ार हूँ!"
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2 दिन बाद
इनाया विला
एक लड़की बहुत देर से दरवाज़ा खटखटा रही थी। वह लगभग चीखकर रोते हुए बोली, "कोई है? खोलो! कौन हो तुम लोग? मुझे कहाँ लाए हो? मैंने आखिर क्या बिगाड़ा है तुम लोगों का?"
उस लड़की के हाथ अब तक दरवाजा पीट-पीट कर सुर्ख हो गए थे। उसकी आँखें रो-रो कर लाल हो गई थीं। उसकी आवाज़ अब बैठने को थी।
समझने वाले समझ गए होंगे कि यह कौन है...?
यह डॉक्टर इनायत है, जिसे किडनैप कर इंडिया लाया गया था! और यह काम किसका था, यह भी जान गए होंगे...!
इनायत जब थक जाती है, तो साइड में दीवार से जाकर लग जाती है। उस कमरे में अभी अंधेरा था। इनायत नहीं जान पा रही थी कि वह किधर है और क्यों है।
तभी कमरे का गेट खुलता है।
इनायत दरवाज़े के करीब खड़ी हो जाती है और डरकर छुपने की कोशिश करते हुए बोली, "क-कौन? कौन हो तुम? तुम क्यों लाए हो यहाँ मुझे?"
असद अंदर खाने की ट्रे लाते हुए बोला, "Miss चश्मिश, इतनी जल्दी भूल गई मुझे तुम?"
इनायत उस आवाज़ को सुन काँप जाती है। वह काँपते हुए बोली, "क-कौन हो तुम?"
असद खाने को टेबल पर रखकर कमरे की लाइट ऑन कर देता है, जिसकी चमक की वजह से इनायत की आँखें बंद हो जाती हैं। वह अपने एक हाथ से चेहरे को छुपा लेती है।
अपने हाथ को आँखों पर से हल्का हटाकर सामने देखती है।
सामने असद को देख इनायत कुछ घबरा जाती है और फिर हाथ को अपनी आँखों से हटाकर कहती है, "कौन हो तुम? और मुझे यूँ किडनैप करने का क्या मकसद है तुम्हारा? तुम्हें पैसे चाहिए? कितने चाहिए, बताओ! मैं तुम्हें मुँह मांगी रकम देने को तैयार हूँ, लेकिन मुझे यहाँ से जाने दो!"
इनायत की बातें सुनकर असद के हाथों की मुट्ठियाँ कस जाती हैं।
वह आगे बढ़कर कुछ ऐसा कहता है, जिसे सुनकर इनायत हैरान हो जाती है...!
असद, इनाया की बातें सुनकर एकदम हाइपर हो चुका था। उसका दिमाग खराब हो रहा था। वह गुस्से में इनाया के पास जाता है और अपने दोनों हाथों से उसके कंधों को पकड़कर जोर से हिलाते हुए कहता है—
"हाउ डेयर यू, मिस चश्मिश! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे न पहचानने की? मैं तुम्हारे बदले चेहरे के बाद भी तुम्हें पहचान गया, लेकिन तुम... तुम मुझे देखकर भी अनजान बन रही हो!"
इनायत, असद के लहजे से बहुत ज्यादा घबरा गई थी और चिल्लाते हुए कहती है—
"देखिए, मिस्टर! आप जो भी हैं, मैं सच में आपको नहीं पहचानती। आप कौन हैं? आपने मुझे क्यों यहां बंद कर रखा है? प्लीज़, मुझे जाने दीजिए! मेरे घरवाले परेशान हो रहे होंगे। प्लीज़, प्लीज़, मुझे जाने दीजिए!"
असद, दांत पीसकर इनायत की पकड़ मजबूत करते हुए कहता है—
"कौन-कौन से घर वाले? कैसे घरवाले? तुम्हारे मां-बाप यहां हैं, इंडिया में? तुम्हारा पति यहां, तुम्हारे सामने है! तुम्हें कौन से घरवालों की याद आ रही है? कौन से घरवाले तुम्हारे लिए परेशान हो रहे होंगे? बताओ तो मुझे ज़रा!"
इनायत, कंफ्यूज होकर असद को जोर से धक्का देती है, लेकिन असद की पकड़ टस से मस नहीं होती।
इनाया, बराबर उसे धक्का देते हुए गुस्से में कहती है—
"बस! बहुत बकवास कर लिया आपने, और बहुत सुन लिया मैंने! अगर अब आपने मुझे नहीं छोड़ा, तो जो होगा, उसकी जिम्मेदार आप होंगे! आपको अंदाज़ा भी है कि आप क्या बोले जा रहे हैं? आप एक कुंवारी लड़की को शादीशुदा होने का टैग दे रहे हैं! जो इंसान कभी इंडिया आया ही नहीं, उसके मां-बाप इंडिया में क्या करेंगे? आपको समझ भी है आपकी बातों की, जो आप बोल रहे हैं?"
और लास्ट में... "शौहर??? आप??? और मेरे???? अरे! जिस बंदे को मैंने आज तक देखा नहीं, आज पहली बार मैं उसकी सूरत देख रही हूं, वह मेरा शौहर कैसे हो सकता है?"
असद, इनाया की आंखों में आंखें डालकर एकदम करीब जाकर कहता है—
"तुम कितनी भी कोशिश कर लो, मिस चश्मिश, खुद को छुपाने की! लेकिन ये आंखें... ये आंखें मुझे धोखा नहीं दे सकतीं! ये वही आंखें हैं, जो मैंने पहली बार देखी थीं! ये वही आंखें हैं, जिन्हें देखकर मैं तुम्हारा दीवाना हुआ था!"
इनाया, अपनी आवाज़ में थोड़ी सख्ती लाकर कहती है—
"क्या दुनिया में एक तरह की कई आंखें नहीं होतीं?"
असद—
"होती हैं, बेशक होती हैं! लेकिन जज़्बात हर आंख के एक से नहीं होते! इन आंखों में वही जज़्बात, वही जुनून, वही गुस्सा है, जो मैंने आज से पहले कई बार देखा था! मैं जानता हूं, तुम मुझसे नाराज़ हो। मैंने तुम पर यकीन नहीं किया। लेकिन उस वक्त हालात ऐसे थे कि मुझे कुछ समझ में नहीं आया, और तुम भी मुझे ऐसे छोड़कर चली गईं! एक बार मुझे समझाने की, या मुझे समझने की, तुमने कोशिश ही नहीं की!"
इनायत भी असद की आंखों में देखते हुए कहती है—
"अगर आप इंसान से माफी मांग रहे हैं, तो मैं आपकी बीवी इनाया नहीं, बल्कि इनायत हूं!"
असद—
"सिर्फ आंखें ही नहीं, तुम्हारी आवाज़ भी मैं बहुत अच्छे से पहचानता हूं! जब मैंने फोन पर तुम्हारी आवाज़ सुनी थी, मैं तभी समझ गया था कि यह मेरी इनाया है!"
इनायत, तुरंत गुस्से में चिल्लाकर कहती है—
"इनाया नहीं! इनायत! इनायत हूं मैं! आपके बार-बार मुझे इनाया बोलने से सच नहीं बदल जाएगा!"
असद भी उसी लहजे में तेज़ी से कहता है—
"और बार-बार सच छुपाने से सच नहीं छुप जाएगा!"
असद, इनायत को छोड़कर दूर खड़ा होता है और हंसते हुए कहता है—
"टेंशन नहीं है मुझे! अभी कुछ देर में मुझे पता चल जाएगा कि तुम इनाया हो या इनायत!"
यह बोलकर असद अपना मोबाइल फोन निकालता है और कहता है—
"जाफर, उन दोनों को ऊपर लेकर आओ!"
इनायत, कंफ्यूज होकर असद को देखती है, जो मुस्कुराते हुए उसी को देख रहा था।
कुछ देर बाद, उस कमरे में जाफर, इनाया की अम्मी सलमा बेगम और अब्बू तौसीफ आलम को लेकर अंदर आता है।
सलमा बेगम, अंदर जाते ही असद को देखकर कहती हैं—
"हमें बताया जाएगा कि हमें यहां क्यों लाया गया? हमारी बेटी को तो आप संभाल नहीं पाए, तो यहां हमें बुलाने का क्या मतलब है?"
असद, सलमा बेगम को देखकर बड़े अदब के साथ कहता है—
"मैंने यहां आपको आपकी बेटी के लिए ही बुलाया है। मैंने आपसे कहा था ना कि वह लाश आपकी बेटी की नहीं थी? मैं आपको आपकी बेटी लाकर दूंगा! और देखिए, मैं ले आया!"
यह कहते हुए असद साइड में हटकर अपने हाथ से इनायत की तरफ इशारा करता है।
सलमा बेगम और तौसीफ आलम पहले तो असद की बातों का मतलब समझ नहीं पाए, लेकिन जब उन्होंने इनायत को देखा, तो बड़ी गौर से देखने लगे।
सलमा बेगम, इनायत को बड़ी अजीब निगाहों से देखती हैं, वहीं तौसीफ आलम उसे बड़े गौर और ध्यान से देख रहे थे।
काफी देर देखने के बाद, सलमा बेगम असद को देखकर कहती हैं—
"यह सब क्या है? कैसा बेहूदा मजाक है यह? आपको यह किस सूरत से मेरी बेटी नजर आती है?"
असद—
"आप मानें या ना मानें, यही आपकी बेटी इनाया है!"
इनायत, तुरंत—
"कितनी बार कहूं मैं कि मैं इनाया नहीं, इनायत हूं! डॉ. इनायत खान! आप बहरे हो या पागल? समझ नहीं आ रहा आपको?"
असद, हल्के-हल्के इनायत की तरफ आते हुए—
"ओके! मान लूंगा... एक छोटा सा टेस्ट करा लो!"
इनायत—
"कैसा टेस्ट?"
असद—
"DNA टेस्ट!"
इनायत, हक्की-बक्की असद को देखने लगती है और तुरंत कहती है—
"मैं कोई टेस्ट नहीं करा रही!"
असद—
"तो इसका मतलब यही होगा कि तुम इनाया हो!"
इनायत, कानों पर हाथ रखकर चिल्लाती है—
"मैं इनाया नहीं हूं! नहीं हूं! नहीं हूं!"
असद—
"ओके फाइन! टेस्ट करा लो! अगर टेस्ट पॉजिटिव आया, तो तुम इनाया हो, और नहीं आया, तो नहीं हो... बस सिंपल!"
तभी पीछे से तौसीफ जी की आवाज़ आती है—
"इस टेस्ट से भी तुम सच नहीं जान पाओगे! यह अगर इनाया है भी, तब भी टेस्ट पॉजिटिव नहीं आएगा!"
तौसीफ जी की बातें सुनकर सलमा जी, असद और जाफर, तीनों हैरानी से तौसीफ जी को देखने लगते हैं।
उन सबका वही रिएक्शन था, जो अभी हमारे रीडर्स का है...
असद और सलमा जी, तोसीफ जी को हैरान नज़रों से देखने लगते हैं। वहीं, इनायत की नज़रें भी अब तोसीफ जी पर थीं, जो उसे ही देख रहे थे।
सलमा जी (गुस्से में, तोसीफ जी से) – "क्या बकवास किए जा रहे हैं आप! आपको अंदाज़ा भी है?"
तोसीफ जी (सलमा जी की तरफ घूमकर) – "तुम्हें हमेशा से इनाया की हरी आँखें खलती थीं, ना? कि उसकी आँखें किसी की भी आँखों से मेल नहीं खातीं।"
सलमा जी – "हाँ, तो! आपने कहा था कि तीन पीढ़ी पहले आपके ख़ानदान में हरी आँखें थीं, किसी की!"
तोसीफ जी – "झूठ कहा था मैंने!"
"तुम्हारी पहली डिलीवरी के वक़्त, तुमने जिस बच्ची को जन्म दिया था, वह मरा हुआ पैदा हुआ था। तुम बेहोश थीं और मैं यह बात तुम्हें बताना नहीं चाहता था।
उसी वक़्त, उसी अस्पताल में एक विधवा औरत की डिलीवरी हुई, जो अपनी बच्ची की पैदाइश के बाद मर गई। उस बच्ची का कोई सरपरस्त नहीं था, इसलिए मैंने डॉक्टर से बात करके उसे गोद ले लिया और उसे तुम्हारी बच्ची की जगह रख दिया।
अपनी बच्ची को मैं दफन कर चुका हूँ, सलमा बेगम।"
(यह सब कहते हुए, तोसीफ जी की आँखें बंद हो जाती हैं और उनकी मुट्ठियाँ भींच जाती हैं। ऐसा लग रहा था, जैसे उन्होंने अपनी बच्ची को उस दिन नहीं, बल्कि आज दफन किया हो।)
सलमा जी यह सुनकर लड़खड़ा जाती हैं और कुछ दूरी पर जाकर गिर पड़ती हैं।
तोसीफ जी अभी भी अपनी आँखें बंद किए खड़े थे, और असद बड़े ध्यान से उन्हें देख रहा था।
(असद, तोसीफ जी के एकदम सामने जाकर खड़ा हो जाता है।)
असद – "और मैं कैसे मान लूँ कि आपकी यह बात सच है?"
(तोसीफ जी आँखें खोलकर असद को देखते हैं।)
तोसीफ जी – "तुम्हारी मर्ज़ी है! मानना है, मानो! नहीं मानना है, तो मत मानो! हमारी बेटी वैसे भी बरसों पहले मर चुकी है!
जिसे हम पाल-पोस कर बड़ा कर रहे थे, वह बस मेरी बीवी की तसल्ली के लिए थी। उसका ज़िंदा होना या न होना अब हमारे लिए कोई मायने नहीं रखता!"
(यह कहकर, तोसीफ जी सलमा बेगम के पास जाते हैं, उन्हें उठाते हैं और बाहर की तरफ निकल जाते हैं। इनायत खाली आँखों से उन दोनों को जाते हुए देखती रहती है।)
(असद गुस्से में तोसीफ जी को जाते हुए देख रहा था। तोसीफ जी दरवाजे पर पहुँचे भी नहीं थे कि असद ने एक ज़ोरदार लात टेबल पर मारी। टेबल पर रखा हुआ काँच का सारा सामान ज़मीन पर गिरकर बिखर गया। आवाज़ इतनी तेज़ थी कि सलमा बेगम और तोसीफ जी के क़दम वहीं रुक गए। इनायत घबरा गई और अपनी आँखें बंद कर लीं।
कुछ देर बाद, जब इनायत ने आँखें खोलीं, तो वहाँ ना तो तोसीफ जी थे, ना सलमा बेगम, और ना ही असद!
तभी, उसे अपनी गर्दन पर किसी की गर्म साँसें महसूस होती हैं। वह नज़र घुमा कर देखती है, तो असद उसके बिल्कुल पीछे, बहुत क़रीब खड़ा था।
असद को इतने क़रीब देखकर इनायत डर के मारे अपने क़दम पीछे करती है। लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कर पाती, असद उसकी कमर से पकड़कर उसे अपने करीब कर लेता है।
असद (इनायत के कान में फुसफुसाकर) – "यह मत समझो कि तुम्हारे बाप की कन्फेशन के बाद मैं तुम्हें इनाया मानना बंद कर दूँगा। मेरा दिल कभी ग़लत नहीं कहता, और मेरे दिल ने तुम्हें इनाया माना है! तुम मेरी इनाया हो, और यह बात मैं प्रूफ करके रहूँगा!"
(यह कहकर, असद इनायत की गर्दन पर अपने होंठ रख देता है और उसे हल्के-हल्के, सॉफ्ट किस करने लगता है।)
(इनायत असद की इस हरकत से काँप जाती है। उसकी साँसें तेज़ हो जाती हैं। असद जानता था कि अगर यह सच में इनाया है, तो असद के एहसास में खो जाएगी। इसी वजह से उसने यह हरकत की थी।
लेकिन तभी, इनायत अचानक से असद को धक्का देकर पीछे हटती है और झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर जड़ देती है!)
(असद को इनायत के इस रिएक्शन की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। उसका चेहरा एक तरफ झुक गया। वहीं, इनायत गुस्से से काँप रही थी, उसकी आँखें ग़ुस्से और आँसुओं से भरी हुई थीं।)
इनायत (ग़ुस्से में, काँपते हुए) – "आई डोंट नो कि तुम्हारे और तुम्हारी बीवी के बीच क्या हुआ और वह तुम्हें क्यों छोड़कर चली गई! लेकिन मैं खुदा का शुक्र अदा करती हूँ कि वह तुम्हें छोड़कर चली गई! तुम्हारी इन्हीं हरकतों की वजह से तुमसे परेशान होकर गई होगी वो!
तुम जैसे घटिया इंसान को मैंने आज तक नहीं देखा! मैं तुम्हें चिल्ला-चिल्ला कर कह रही हूँ कि मैं तुम्हारी बीवी नहीं हूँ! लेकिन फिर भी, तुम मेरी ज़िंदगी जहन्नुम बनाने पर तुले हुए हो!"
(असद इनायत की सारी बातों को इग्नोर कर देता है।)
असद (धीमी आवाज़ में) – "इनाया, अगर यही थप्पड़ तुमने उस वक़्त लगाया होता, जब मैंने तुम पर इल्ज़ाम लगाए थे, तो मुझे तसल्ली होती। मैं यही थप्पड़ डिज़र्व करता था... अभी भी करता हूँ... और पहले भी करता था।
तुम मुझे उस वक़्त मार लेती, पीट लेती, गाली दे लेती! लेकिन मुझे छोड़कर जाने के बारे में क्यों सोचा तुमने?
तुम मुझे जान से मार देती, लेकिन अपनी जुदाई देकर मुझे मौत से भी बदतर ज़िंदगी क्यों दी?"
"तुम मानो या ना मानो, मैं तुम्हारा शौहर हूँ और तुम मेरी बीवी हो। और यह हकीकत ता-क़यामत नहीं बदलेगी!"
(इनायत अपना सिर पकड़ लेती है।)
इनायत – "या खुदा! या खुदा! सीरियसली?! आर यू आउट ऑफ़ माइंड?!
मैंने अभी तुम्हें इतना लंबा-चौड़ा लेक्चर देकर समझाया कि मैं वह नहीं हूँ, जो तुम समझ रहे हो! तुम जिसे अपनी बीवी कह रहे हो, वह एक कुंवारी लड़की है, जिसकी शादी फिक्स हो चुकी है! और बहुत जल्द उसका निकाह होने वाला है!"
(इनायत की बात सुनते ही, असद उसके बालों को मुट्ठी में भरकर उसे अपने क़रीब कर लेता है। इनायत की चीख निकल जाती है, लेकिन उसकी आँखों में ग़ुस्सा और नफ़रत कम नहीं होती।)
असद (सख्त लहजे में) – "अब दोबारा यह बात अपनी ज़ुबान पर भी मत लाना!
तुम्हें मुझसे दूर रहना है, रह लो! लेकिन एक दिन मैं तुम्हें अपना बनाकर रहूँगा!
और अगर तुमने किसी और के बारे में सोचा भी... तो जो काम मैं प्यार से कर सकता हूँ, वह ज़बरदस्ती से भी कर सकता हूँ! और उस दिन, तुम्हारे उस 'ना होने वाले शौहर' का जनाज़ा भी मैं ही पढ़ाऊँगा!"
(यह कहकर, असद इनायत को झटके से छोड़ देता है और ज़ोर से चिल्लाता है...)
असद – "जाफ़र!!"
(जाफ़र दौड़ता हुआ अंदर आता है।)
असद – "पता करो, कौन है वो जो मेरी बीवी से निकाह कर, अपनी मौत को दावत देना चाहता है!"
असद हाल में सोफे पर किसी राजा की तरह बैठा हुआ था। उसके ठीक सामने जाफर, अपने हाथ में एक फाइल लिए, गुस्से में उसे देख रहा था और असद से जाकर कहता है—
"डॉक्टर इनायत बिल्कुल ठीक कह रही हैं। उनका और इनाया का सिर्फ आंखों का रंग मेल खाता है, और तुझे लगता है कि उनकी आवाज़ भी एक जैसी है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। दोनों की आवाज़ अलग-अलग है। डॉक्टर इनायत तो कभी इंडिया आई ही नहीं, और वह इनाया नहीं है!"
असद— "मैंने तुझे यह सब जानने के लिए नहीं कहा। मैंने सिर्फ इतना पूछने को कहा है कि इनाया की लाइफ में कोई लड़का है या नहीं!"
जाफर— "इनाया नहीं, इनायत है!"
असद— "अच्छा, तुम्हारा जो दिल चाहे, वह कह सकते हो। लेकिन मेरे लिए वह इनाया ही है। तुम बस यह बताओ कि उसकी लाइफ में कोई लड़का है जिससे वह शादी करने वाली है?"
जाफर, फाइल देते हुए— "शादी का तो पता नहीं, लेकिन एक लड़का है—अर्श बख्तावर। यह डॉक्टर इनायत के कॉन्टैक्ट में है, बहुत अच्छी दोस्ती भी है। हो सकता है कि इसी से उनकी शादी का भी जिक्र चल रहा हो, लेकिन ऐसा कुछ मुझे पता नहीं चला है।"
असद जैसे ही यह सुनता है कि इनायत की दोस्ती अर्श से है, उसकी आंखें गुस्से से और ज्यादा लाल हो जाती हैं, लेकिन फिर कुछ सोचकर मुस्कुराते हुए वह कहता है—
"अच्छा, ठीक है। फिर इस अर्श को अपने अर्श से उठाकर यहां इंडिया के फर्श पर पटक दो। और साथ में वे दोनों मां-बाप भी, जिन्होंने मेरी इनाया को इनायत बनाकर छह सालों से अमेरिका में छुपा रखा था।"
जाफर गुस्से में— "तू गलत कर रहा है! तू फिर गलती कर रहा है! तूने पहले भी इनाया भाभी को गलत समझा था और अब तू इस इनायत को भी गलत समझ रहा है!"
असद— "पहले मैंने अपने दिमाग की सुनी थी, इसलिए मैं गलत था। लेकिन अब मैं अपने दिल की सुन रहा हूं और मेरा दिल चीख-चीखकर कह रहा है कि यही मेरी इनाया है! इनायत नहीं, तो सिर्फ मुझसे बचने के लिए झूठ बोल रही है। वह मुझसे दूर रहना चाहती है, मुझे सज़ा देना चाहती है, तड़पाना चाहती है। कोई बात नहीं, मैं तड़पने और सज़ा पाने के लिए तैयार हूं, लेकिन मुझे यह सब चीज़ अपनी इनाया से चाहिए, न कि किसी इनायत से! उसे लगता है कि वह अपना चेहरा बदलकर मुझसे बच जाएगी? या मैं उसे भूल जाऊंगा? छोड़ दूंगा? तो यह उसकी बहुत बड़ी गलती है!"
असद अभी बोल ही रहा था कि अज़ान की आवाज़ उसके कानों में आती है। यह रात की ईशा की अज़ान थी। असद खड़ा होकर ऊपर जाते हुए—
"अब तू जाकर अपना काम कर, मुझे मेरे खुदा का शुक्र अदा करने दे।"
असद जाने लगता है कि तभी जाफर उसे रोककर कहता है—
"अगर तेरी सच्चाई सही है और वह इनाया ही है, तो अलीज़ा के बारे में क्या कहेगा? और मुर्ताज़िम? उसे उसके बारे में पता लग गया तो?"
यह बात सुनकर असद रुक जाता है और फिर गहरी सांस लेकर कहता है—
"मैंने उसे मिलकर एक लेटर में लिखकर सब बता दिया था शादी से पहले।"
(असद ने अपनी शादी पक्की होने के बाद इनाया से शादी से एक दिन पहले मिलकर एक लेटर दिया था, जिसमें उसने अपने पास्ट का एक राज़ उसे बताया था। लेकिन असद की मां ने पहले ही वह लेटर बदल दिया था क्योंकि वह जानती थीं कि असद के पास्ट का यह ऐसा राज़ है, जिसे जानने के बाद शायद ही कोई लड़की उससे शादी करेगी। और उनकी इनाया के लिए मोहब्बत इतनी गहरी थी कि वह अपने बेटे की मोहब्बत को कुर्बान होते नहीं देखना चाहती थीं। तो जिस राज़ की बात जाफर कर रहा था, असद को लगता था कि इनाया को पता है, लेकिन हकीकत में इनाया उस राज़ से बेखबर थी। और वह लेटर वाला राज़ भी जल्द ही आप लोगों के सामने होगा!)
इधर...
ऊपर रूम में इनायत गुस्से में इधर-उधर टहल रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। वह यहां से निकलने का रास्ता खोज रही थी, लेकिन उसे अंदाजा नहीं था कि वह कहां है। इनायत खुद से कहती है—
"मुझे कैसे भी करके यहां से जाना होगा, वरना यह ब्लडी ओल्ड सिटिजन पता नहीं क्या करेगा! मुझे इससे अच्छी वाइब बिल्कुल भी नहीं आ रही है!"
फिर असद की बातों को सोचकर इनायत का गुस्सा और ज्यादा बढ़ जाता है और वह वापस जाकर दरवाज़ा पीटने लगती है—
"ओ हेलो! खोलो… मुझे यहां से निकालो… जल्दी निकालो… यहां से मेरा दम घुट रहा है! अगर मैं थोड़ी देर और यहां रही तो सच्ची कह रही हूं, मैं खुद का कुछ कर लूंगी!"
असद, जो इनायत के रूम के बाहर से ही निकलकर दूसरे रूम में नमाज़ के लिए जा रहा था, इनायत की बात सुनकर गुस्से में अपनी मुट्ठी कसकर बंद कर लेता है। और एक झटके से दरवाज़ा खोलकर अंदर आता है।
वह इनाया के बालों को पकड़कर उसे अपने करीब खींचता है और दांत पीसते हुए कहता है—
"और कितना मेरे सब्र का इम्तिहान लोगी तुम, मिस चश्मिश? मेरी बर्दाश्त तब तक थी जब तक तुम मेरे सामने नहीं आई थी, लेकिन अब मैं अपनी बर्दाश्त की हद पार कर सकता हूं! इसके कुछ करने से पहले और कुछ बोलने से पहले लाख मर्तबा सोच लेना!"
इनायत, दर्द और गुस्से भरी आवाज़ में असद की आंखों में आंखें डालकर—
"अपनी यह खोखली धमकी अपनी उस बीवी के लिए रखो, जिसके लिए तुम पागल हुए हो! मैं इनायत खान हूं, कोई राह चलती लड़की नहीं, जो तुम्हारी इन धमकियों से डर जाएगी!"
असद इनाया की बातें सुनकर हल्का मुस्कुराता है और कहता है—
"एटीट्यूड तुममें आज भी वही है, बस उसका लेवल बढ़ा लिया है तुमने। ग्रेट, that's great! लेकिन कोई फायदा नहीं तुम्हारे इस एटीट्यूड का मेरे सामने, क्योंकि इससे मैं तुम्हें जाने नहीं देने वाला! और वैसे भी, तुम पर तो मैं पहले से ही फिदा हूं, और अब यह बड़ा हुआ लेवल मुझे तुम पर और ज्यादा फिदा होने के लिए मजबूर कर रहा है!"
रात के अंधेरे में
असद एक बंद कमरे में अपनी मूविंग चेयर पर बैठा कुछ सोच रहा था। वह क्या सोच रहा है, यह जल्द ही पता लग जाएगा। पूरी रात असद यूँ ही विचारों में डूबा रहा। वह इनायत के मुँह से यह कबूल करवाना चाहता था कि वही इनाया है, लेकिन कैसे? यही सोच रहा था। इनायत की फैमिली को टॉर्चर करके यह काम आसानी से किया जा सकता था, लेकिन उसे ऐसा नहीं करना था। वह कुछ अलग करने की सोच रहा था।
सुबह होने को थी कि अचानक असद के दिमाग में एक आइडिया आया और वह मुस्कुराते हुए नमाज़ के लिए जाने की तैयारी करने लगा।
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अगली सुबह – हाल में
इनायत, असद, जाफर, अर्श और इनायत के माता-पिता—जेस्मीन जी और क़ासिम जी—मौजूद थे। असद अपनी कुर्सी पर बड़े आराम से बैठा उन सबकी दलीलें सुन रहा था, जो इनायत के इनायत होने के सबूत दे रहे थे। लेकिन असद की नज़र सिर्फ इनायत पर थी। वह कुछ ढूँढ रहा था—और शायद जो वह ढूँढ रहा था, वह उसे मिल भी गया।
अचानक असद ने अपनी जांघ पर हाथ मारते हुए खड़े होकर कहा,
"ओके, फाइन! मान गया मैं कि यह आपकी बेटी इनायत है, मेरी इनाया नहीं। मुझसे गलती हो गई, मुझे माफ़ कर दीजिए।"
यह कहते हुए असद ने हाथ जोड़ लिए।
जाफर और इनायत, असद की इस हरकत पर हैरान थे। जब से वे उसे समझा रहे थे, तब से वह मानने को तैयार नहीं था, और अब अचानक इतनी आसानी से मान गया? यह बहुत अजीब था।
असद, अर्श के पास जाकर बोला,
"मैंने सुना है कि तुम्हारी और इनायत की शादी फिक्स हो गई है?"
अर्श यह सुनते ही हैरानी से इनायत की ओर देखने लगा। इनायत ने आँखों से कुछ इशारा किया, जो असद से छुपा नहीं, लेकिन उसने अनदेखा कर दिया और फिर कहा,
"बताओ, सही कहा मैंने?"
अर्श हकलाते हुए बोला,
"जी… जी हाँ! सही… सही सुना आपने। ह-हम दोनों प-प्यार करते हैं एक-दूसरे से और श-शादी भी करेंगे… जल्द ही।"
असद ने अर्श के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,
"अरे, जब शादी करनी ही है तो इंडिया में करो ना! अमेरिका में वेस्टर्न कल्चर है, वहाँ वो मज़ा नहीं आएगा जो यहाँ भारतीय शादियों में आता है। हम भी शामिल हो जाएँगे। आप कहें तो हम सारा इंतज़ाम भी करवा देंगे।"
इनायत तुरंत अर्श के पास आकर बोली,
"नहीं! कोई ज़रूरत नहीं! हमें सिंपल वेडिंग चाहिए, जो हम अमेरिका में ही कर लेंगे। आपको हमारे लिए इतना परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। वैसे भी, आप पहले ही हमारे लिए बहुत कर चुके हैं।"
इनायत के चेहरे पर एक तरह की झुंझलाहट थी।
असद ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"अच्छा, ठीक है। जैसा आपको सही लगे। मैं तो सिर्फ़ अपनी गलती के हर्जाने के लिए यह करने की सोच रहा था। खैर, जैसा सही लगे… वैसे, आपने मुझे माफ़ तो कर दिया, ना?"
इनायत ने तुरंत जवाब दिया,
"लेकिन मैंने तो सुना था कि वह मर गई थी। और मरे हुए लोग कभी वापस नहीं आते।"
असद मुस्कुराकर इनायत की ओर देखते हुए बोला,
"वह सिर्फ मुझसे छुपकर मेरी गलती की सज़ा दे रही है… मेरे यकीन न करने की सज़ा। अगर मेरा प्यार सच्चा है, तो देखना… मेरी इनाया वापस ज़रूर आएगी।"
उसी वक्त दोपहर की जोहर की अज़ान की आवाज़ आने लगी। असद ने ऊपर मुँह कर कहा,
"चल, मेरे रब के घर से बुलावा आ गया। मैं चाहता हूँ कि उसके पास अपनी बीवी के लिए दुआ करूँ। आप जा सकती हैं।"
यह कहकर असद ऊपर की सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ने लगा, लेकिन फिर अचानक रुककर मुड़ा और इनायत से कहा,
"वैसे, बुरा ना मानें तो जब आप यहाँ आ ही गई हैं, तो मेरे अब्बू का इलाज कर दें। पिछले 3 सालों से वह पैरालाइज़्ड हैं। इंडिया के हर डॉक्टर को दिखा चुके हैं, लेकिन सबने आपका ही नाम रिकमेंड किया था। पर मेरे अब्बू बाहर जाना नहीं चाहते। अगर आप कुछ दिन यहाँ रहकर उनका इलाज कर देंगी, तो आपकी बहुत मेहरबानी होगी।"
इनायत असद की बात सुनकर कुछ देर सोच में पड़ गई। असद उसे सोचते हुए देखकर बोला,
"देखिए, हमारे बीच जो भी हुआ, उसका मेरे अब्बू से कोई लेना-देना नहीं है। तो कृपया नाराज़गी को साइड में रखकर सोचिएगा।"
यह कहकर असद ऊपर की तरफ़ चल दिया।
इनायत ने असद की ओर देखते हुए कहा,
"ठीक है। आज रात आपके अब्बू का एग्ज़ामिनेशन करने के बाद मैं कल सुबह निकल जाऊँगी।"
असद, जो अभी इनायत की ओर पीठ किए खड़ा था, हल्का सा मुस्कुराया—जैसे उसे वही मिला हो, जो वह चाहता था। फिर वह नॉर्मल होते हुए बोला,
"जाफर, मेहमानों के रहने का इंतज़ाम करो। और अम्मी-अब्बू को इतिला दो।"
जाफर तो जैसे पागल होने को था! असद का यह खेल उसकी समझ में नहीं आ रहा था। लेकिन उसने सिर्फ़ "यस बॉस" कहा और सबको गेस्ट रूम में ले गया।
असद ने नमाज़ पढ़ी और फिर किसी को कॉल लगाया।
"काम हो गया?"
दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई,
"यस बॉस, हो गया। एक हफ़्ते के लिए सब बंद करा दिया है।"
असद ने कॉल काटकर एक ठंडी हंसी हंसते हुए कहा,
"हाहाहा… मिस चश्मिश! सालों पहले का गेम फिर से खेलना पड़ रहा है तुम्हें अपने पास रोकने के लिए। बस, अब देखती जाओ! जितने सबूत तुमने मेरे सामने इनायत होने के पेश किए हैं, उसके सामने मैं अपना एक ऐसा सबूत डालूँगा कि तुम मुझसे कुछ छुपा नहीं पाओगी!"
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इनायत का रूम
इनायत बेड पर सिर पकड़े लेटी थी। उसके बराबर में अर्श गुस्से में बैठा था।
"इनायत, तूने ये क्या किया है? तू जानती है, मैं मोनालिसा से प्यार करता हूँ! फिर भी तूने मेरी बलि चढ़ा दी!"
इनायत कुछ नहीं बोली। उसके दिमाग़ में कुछ और ही चल रहा था। उसने फोन उठाया और किसी को कॉल लगाया।
"हैलो… मुझे आपसे शाम में मिलना है।"
कुछ देर रुकने के बाद उसने कहा,
"ओके… मैं पहुँच जाऊँगी।"
इनायत और असद – इनाया विला का सन्नाटा
इनायत इस वक्त इनाया विला का मुआयना कर रही थी। वह अंदर के हर कोने को गौर से देख रही थी। दीवारों पर लगी तस्वीरों ने उसका ध्यान खींच लिया—हर ओर सिर्फ इनाया की तस्वीरें थीं। किसी में वह हंस रही थी, किसी में मुस्कुरा रही थी, किसी में गुस्से में नजर आ रही थी, तो किसी में पढ़ाई कर रही थी। कुछ तस्वीरों में वह नमाज अदा कर रही थी। पूरे विला में इनाया की मौजूदगी का एहसास हो रहा था, जैसे वह अभी भी यहीं कहीं थी।
इनायत को इन तस्वीरों को देखकर एक अजीब-सी फीलिंग आ रही थी। उसके दिल में हलचल होने लगी, लेकिन उसने इस अहसास को झटक दिया। वह टहलते हुए विला के बाहर निकल आई।
दोपहर ढल रही थी, शाम अपनी हल्की ठंडक के साथ दस्तक दे चुकी थी। ठंडी हवा में हल्की-हल्की ठिठुरन घुलने लगी थी। इनायत जब गार्डन में आई, तो उसने देखा कि असद एक चेयर पर बैठा था। वह काले रंग के कुर्ते-पायजामे में था, और उसके कंधों पर एक शॉल पड़ा हुआ था। हल्की हवा में उसके बाल लहराए, और उसके चेहरे पर एक अनकहा दर्द झलकने लगा। उसकी आंखों में कुछ ऐसे आंसू कैद थे, जो गिरने की इजाजत मांग रहे थे, मगर वह उन्हें रोक रहा था।
असद के हाथ में एक फोटो एल्बम था, जिसे वह गहरी नजरों से देख रहा था। वह इस कदर उसमें डूबा हुआ था कि उसे एहसास भी नहीं हुआ कि उसका फोन लगातार बज रहा था। इनायत धीरे-धीरे उसके पीछे आकर खड़ी हो गई। जब उसने झुककर एल्बम के पन्नों पर नजर डाली, तो उसकी आंखें चौड़ी हो गईं। उसमें उसी लड़की की तस्वीरें थीं, जिसकी तस्वीरें पूरे विला में लगी थीं—इनाया।
इनायत ने एक लंबी सांस ली। अब उसे समझ आ गया कि इनाया सिर्फ इस विला की मालकिन नहीं थी, बल्कि असद की बीवी भी थी। असद की हालत देखकर इनायत के दिल में हलचल हुई, मगर उसने उसे नजरअंदाज कर दिया।
"सुनिए..." इनायत ने हल्की आवाज में कहा।
असद ने कोई जवाब नहीं दिया। वह अब भी तस्वीरों में खोया हुआ था।
"सुनिए, मिस्टर, हेलो?" इनायत ने फिर से पुकारा, मगर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
अंत में, इनायत ने असद के कंधे पर हल्के से हाथ रखा और उसे हिलाया, "अरे सुनिए!"
अचानक स्पर्श से असद चौंक गया। उसने झटके से सिर उठाया और पीछे मुड़कर देखा। सामने इनायत खड़ी थी।
"आपका फोन बज रहा था, काफी देर से," इनायत ने सीधा कहा।
असद ने झटपट नीचे देखा। फोन अब खामोश था। उसने जल्दी से एल्बम बंद करके टेबल पर रखा और फोन उठाया। उसके हाथ कांप रहे थे।
इनायत को असद की बेचैनी अजीब लगी। वह अब तक जितनी बार भी असद से मिली थी, उसने उसे कभी इतना अस्थिर नहीं देखा था। असद के भीतर कोई तूफान चल रहा था, और वह इस तूफान से अकेले ही जूझ रहा था।
असद ने फोन ऑन करने की कोशिश की, मगर बैटरी खत्म हो चुकी थी। उसने पास खड़े एक बॉडीगार्ड को बुलाकर फोन चार्जिंग पर लगाने के लिए दे दिया।
इस बीच उसने न इनायत की तरफ देखा, न ही उससे कोई बात की, जैसे उसके लिए इस वक्त दुनिया का कोई वजूद ही नहीं था। वह बस जल्द से जल्द एल्बम वापस उठाना चाहता था।
इनायत ने उसकी हर हरकत को गौर से देखा। जब असद दोबारा एल्बम खोलने लगा, तो उसने हल्की-सी गर्दन घुमाकर इनायत की तरफ देखा और कहा, "अरे, आप अभी भी यहीं हैं?"
फिर बिना इंतजार किए उसने खुद ही बात पूरी कर दी, "सॉरी, लेकिन मैं आपसे कोई बात नहीं करना चाहता। वैसे भी, मैं अपनी गलतफहमियों के कारण आपको पहले ही काफी परेशान कर चुका हूं, और आगे नहीं करना चाहता।"
इनायत ने उसकी बात बिना किसी गुस्से या तंज के सुनी और हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "बात करने जैसा कुछ है भी नहीं हमारे बीच। मैं बस यहाँ से गुजर रही थी और आपका फोन बजते सुना, तो बताने आ गई। आप तो जैसे होश में ही नहीं थे।"
असद ने इनाया की तस्वीर पर नजरें टिकाते हुए गहरी सांस ली, "जिसके लिए होश में रहना था, वो होश उड़ाकर चली गई। अब होश में रहकर भी क्या करना?"
इनायत पास की कुर्सी पर बैठते हुए हौले से मुस्कुराई, "होश में रहें, वरना ऐसे ही हरी आंखों वाली सारी लड़कियों को उठवाते रहेंगे उम्रभर।"
असद हल्के से हंसा, मगर उस हंसी में दर्द छुपा था। "अब ऐसा हर बार मुमकिन तो नहीं कि मेरी चश्मिश की तरह आंखें और आवाज हर किसी की हो। आप तो अनोखी निकलीं। खैर, जो भी हुआ, उसके लिए दिल से माफी चाहता हूं।"
इनायत ने असद की आंखों में झांकते हुए कहा, "माफी देने लायक तो काम नहीं किया आपने। जिस जगह से मुझे सांस लेने की फुर्सत नहीं मिलती थी, वहाँ से मैं दो दिन से फरार हूं, आपकी बदौलत। लेकिन आपकी हालत देखकर आप पर तरस आ गया, इसलिए माफी देने पर मजबूर हो गई।"
असद हल्के से मुस्कुराया, मगर उसकी आंखों में वही पुराना दर्द था, "काश, ये मजबूरी की माफी मुझे मेरी इनाया ने भी दी होती... तो आज ये सब ना होता।"
इनायत ने हल्की भौंहें उठाईं, "वैसे, ऐसा क्या कर दिया था आपने कि आपकी बीवी आपको छोड़कर चली गई? मेरा मतलब, छोड़ गई?"
असद ने एल्बम के पन्नों पर उंगलियां फेरते हुए गहरी आवाज में कहा, "अपनी मोहब्बत पर यकीन नहीं किया... ऐतबार नहीं किया... भरोसा नहीं किया। उसे जलील किया, उसे खुद की नजर में गिरा दिया। मैं खुदगर्ज बन गया था। मैंने कह दिया कि कभी अपनी शक्ल मत दिखाना... और वो ऐसे गायब हुई, जैसे इस दुनिया में थी ही नहीं।"
अभी असद अपनी बात पूरी कर ही रहा था कि उसका दोस्त जाफर तेज कदमों से उसके पास आया, "तुम्हारा फोन कहां है, असद?"
असद ने माथे पर शिकन डालकर कहा, "डेड हो गया था, चार्जिंग पर लगाया है। क्यों, क्या हुआ?"
जाफर ने थोड़ा हांफते हुए कहा, "रूस से कॉल आया है। हमारे आदमी ने तुम्हें ढूंढने के लिए कहा है।"
असद चौकन्ना हो गया। उसने जाफर के हाथ से फोन लेकर जल्दी से कॉल रिसीव किया, "हाँ, कहो, क्या खबर है?"
दूसरी तरफ से आवाज आई, "सर, इनाया मैम यहाँ रूस में हैं। मैंने उन्हें मॉल में शॉपिंग करते हुए देखा है।"
असद की सांसें थम गईं। उसकी आंखें एक पल के लिए चमकीं, फिर उसने हड़बड़ाकर सवाल किया, "क्या? कहाँ पर? किस जगह?"
आदमी ने जवाब दिया, "सर, यही रूस में, एक बड़े मॉल में। मैंने उन्हें शॉपिंग करते हुए देखा है। अगर आप कहें तो उन्हें उठा लें?"
असद लगभग चीख पड़ा, "नहीं! नहीं! उठा कर नहीं लाना! मैं नहीं चाहता कि जो गलती एक बार हुई, वो बार-बार हो। मैं खुद आ रहा हूँ! तुम बस उस पर नजर बनाए रखो!"
असद, इनायत और रहस्यमयी मुलाकात
असद की बातें सुनकर जफर और इनायत दोनों उलझन और हैरानी में पड़ गए। इतना तो वे समझ गए थे कि बात इनाया से जुड़ी है, लेकिन क्या, यह समझ नहीं आ रहा था।
फ़ोन काटते ही असद जल्दी से जफर से बोला, "जफर, जल्दी से जेट तैयार करो। हमें अभी के अभी रूस के लिए निकलना है।"
जफर ने हैरानी से पूछा, "लेकिन इनाया वहां कैसे पहुंची?"
असद ने झुंझलाते हुए कहा, "अभी 'लेकिन-वेकिन' का वक्त नहीं है, जफर! जल्दी जेट तैयार करने को कहो।"
जफर ने सिर हिलाते हुए जवाब दिया, "लेकिन असद, जेट में प्रॉब्लम है। तुम्हें बताया था न? उसे ठीक होने में कम से कम पांच दिन लगेंगे। ज़रूरी पार्ट्स बाहर से आने में समय लगेगा।"
असद ने गुस्से में अपने बालों को पकड़ लिया, "ओह गॉड! कुछ और करो! कोई फ्लाइट बुक करो, कुछ भी करो!"
जफर ने निराशा से कहा, "सॉरी, लेकिन अभी न्यूज़ में आया है कि भारत से चलने वाली हर फ्लाइट बंद कर दी गई है। किसी समस्या के चलते न कोई फ्लाइट यहां से जा सकती है, न आ सकती है।"
गुस्से में असद ने पास रखी टेबल पर जोरदार लात मारी और गरजा, "व्हाट द हेल! मतलब कोई भी तरीका नहीं जिससे मैं इनाया से मिल सकूं?"
जफर ने असद के कंधे पर हाथ रखा, लेकिन असद ने झटके से उसे हटा दिया और गुस्से में बोला, "मुझे इस वक्त कोई बात नहीं करनी। मैं अपने रूम में जा रहा हूं, और खुदा के वास्ते कोई मुझे डिस्टर्ब न करे!"
इतना कहकर उसने एक और कुर्सी पर लात मारी और तेज़ी से कमरे की ओर बढ़ गया।
जफर ने अपना सिर पकड़ते हुए कुर्सी पर बैठते हुए बुदबुदाया, "कैसे बताऊं इस लड़के को कि इनाया अब इस दुनिया में नहीं है... वह मर चुकी है। तो वह उससे कैसे मिलेगा?"
इनायत ने असद को जाते हुए देखा। तभी अर्श वहां आया और उससे कहा, "ओ हेलो इनायत! यहां क्या कर रही हो? मैंने तुम्हें पूरे घर में ढूंढ लिया था, तुमसे इंपॉर्टेंट बात करनी थी।"
इनायत ने ठंडे स्वर में कहा, "यही कि कोई फ्लाइट बुक नहीं हो रही है।"
अर्श ने हैरानी से पूछा, "तुम्हें यह कैसे पता?"
इनायत ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "अभी-अभी पता चला।"
अर्श ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, "तो चलो, जब हम यहां फंस ही गए हैं, तो क्यों न शॉपिंग कर लें? सुना है, यहां इंडियन स्टफ बहुत अच्छा मिलता है। इसी बहाने तुम्हारा मूड भी सही हो जाएगा और शादी के लिए कुछ सामान भी ले लेंगे।"
लेकिन इनायत का ध्यान सामने जा रहे असद पर था। वह गौर से उसे जाते हुए देख रही थी, जैसे उसकी पूरी दुनिया वहीं अटकी हो। उसने अर्श की कोई बात नहीं सुनी।
अर्श ने इनायत के कंधे पर हाथ रखकर उसे झिंझोड़ा, "ओ हेलो! कहां खो गई? मैं कुछ कह रहा हूं!"
इनायत जैसे होश में आई, "हां... हां... सुन रही हूं, चलो चलते हैं।"
वह अर्श के साथ जाने लगी, लेकिन बार-बार पीछे मुड़कर उस जगह को देख रही थी, जहां असद गया था। फिर अचानक वह रुक गई और बोली, "मैं अपना फ़ोन कमरे में भूल आई, लेकर आती हूं।"
इसके बाद वह जल्दी से अपने रूम में गई, फ़ोन उठाया और बाहर निकलते हुए कॉल पर किसी से कहा, "मैं DM मॉल में मिलूंगी। ओके?"
फिर उसने एक कैब बुक की और अर्श के साथ उसमें बैठ गई। उसने जानबूझकर असद की किसी भी गाड़ी को लेने से मना कर दिया था।
अपने कमरे की खिड़की से असद ने उन दोनों को जाते हुए देखा और उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान आई।
DM मॉल
इनायत मॉल में टहल रही थी, लेकिन कुछ खरीद नहीं रही थी। बार-बार अपने फ़ोन की स्क्रीन देख रही थी, जैसे किसी कॉल का इंतजार कर रही हो।
अचानक फ़ोन बजा। उसने झट से कॉल रिसीव किया, "हेलो, आप आ गए? ओके... वेट, मैं अभी आई।"
इसके बाद उसने अर्श से कहा, "मैं अभी आती हूं, तुम सेलेक्ट करो जब तक।"
अर्श ने सिर हिलाया, "ओके।"
इनायत जल्दी-जल्दी चेंजिंग रूम में गई। उसने अपनी ड्रेस बदल ली और चेहरे को हल्का सा कवर कर लिया। फिर वह मॉल के एक प्राइवेट एरिया में गई, जहां एक आदमी पहले से उसका इंतजार कर रहा था।
जैसे ही उसने कमरे में कदम रखा, उसकी आंखें नम हो गईं। वह दौड़कर उस आदमी के गले लग गई और रोते हुए बोली, "अब्बू!"
मॉल के प्राइवेट रूम में एक डाइनिंग टेबल पर इनायत और उसके साथ एक शख्स बैठे थे। यह वही शख्स था जिससे आते ही इनायत गले मिली थी।
अब तक तो आप लोग जान ही गए होंगे कि यह इंसान और कोई नहीं, बल्कि इनायत के अब्बू तोसीफ जी थे।
तोसीफ जी इनायत से बोले –
"अब मुझे कुछ बताएगी इनाया? यह सब क्या है? तेरा अचानक गायब हो जाना, फिर तेरी मौत की खबर, उसके बाद तेरा मुझे कॉन्टेक्ट करना और यह कहना कि तू ठीक है, लेकिन मैं किसी को तेरे बारे में ना बताऊँ—ना अम्मी को, ना असद साहब को। ऐसा क्यों किया? वजह तो बता!"
इनायत, जो असल में इनाया ही थी, तोसीफ जी का हाथ पकड़कर बोली –
"अब्बू, अब्बू, आराम से! सब बताती हूँ। पहले आप यह बताइए, अम्मी कैसी हैं?"
तोसीफ जी –
"और कैसी होंगी? जिस माँ को अपनी औलाद के बारे में इतनी बड़ी बात बताई जाए—वो भी झूठ—वो कैसी होगी?"
इनायत –
"सॉरी अब्बू, मेरी वजह से आपको और अम्मी को कितना सफर करना पड़ा, आपको झूठ बोलना पड़ा कि अम्मी की पहली औलाद मरी हुई पैदा हुई थी।"
तोसीफ जी –
"बस! अब यह बात रिपीट मत कर। तूने कसम ली थी कि असद साहब को किसी भी हाल में तेरे जिंदा होने की खबर न मिले। और जब उन्होंने तेरा डीएनए टेस्ट करवाने की कोशिश की, जिससे तेरा सच सामने आ जाता, तो मुझे जो समझ आया, वह बोल दिया। अब तू बता, असल में क्या हुआ?"
इनायत –
"अब्बू, बात बहुत सिंपल है। मुझे बदचलन कहकर, मेरी औकात दिखाकर मिस्टर असद अहमद साहब ने अपनी नज़रों से दूर जाने को कह दिया।"
(इनायत पास्ट में चली जाती है...)
फ्लैशबैक (6 साल पहले)
असद, इनाया को कमरे में लाकर बेड पर पटक देता है। फिर अपने कोट को उतारकर, अपनी शर्ट के ऊपर के बटन खोलकर इनाया के ऊपर झुक जाता है। उसके चेहरे को अपने हाथ में कसकर पकड़कर गुस्से में कहता है –
"इतनी आग थी तुम्हारे अंदर? मुझसे कह देती, कब का शांत कर देता। लेकिन यूं बाहर मुंह मारने की जरूरत नहीं थी! तुम भी बाकी लड़कियों की तरह निकली। क्या कमी रह गई थी मेरे प्यार में? जी-जान से चाहता था तुम्हें, सिर्फ तुम्हारी वजह से तुमसे दूर था। तुम्हारी 'हाँ' का इंतजार कर रहा था, लेकिन तुम्हें तो इज़्ज़त का पाक रिश्ता नहीं, बल्कि हराम का नापाक रिश्ता पसंद आया!"
असद का एक-एक शब्द इनाया के दिल को चीर रहा था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि असद उसके कैरेक्टर पर ऐसे सवाल उठा रहा है। इनाया की आँखों से आँसू बहने लगते हैं और वह कांपती आवाज़ में कहती है –
"कैसी बातें कर रहे हैं आप, मिस्टर खान? मैं ऐसा कभी ख्वाब में भी नहीं सोच सकती!"
असद उसे बेड पर धक्का देकर खड़ा हो जाता है –
"ओह, रियली? और क्या नहीं सोच सकती तुम? पिछले 1 महीने से रोज़ एक लड़के से फोन पर बातें कर रही थी, उसके गले लग रही थी, उसके हाथ पकड़े जा रही थी... और उसे सबके सामने क..."
आगे की बात असद के मुँह में ही रह जाती है। वह गुस्से में इनाया से पीठ मोड़कर खड़ा हो जाता है।
इनाया के तो जैसे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई थी।
वह बेड से उठकर असद से रोते हुए कहती है –
"कैसी बातें कर रहे हैं आप? मुझ पर ऐसे घिनौने इल्ज़ाम लगा रहे हैं? जैसा आप समझ रहे हैं, वैसा कुछ नहीं है!"
असद मुड़कर इनाया के कंधों को झिंझोड़ते हुए चिल्ला उठता है –
"ऐसा कुछ नहीं है? सीरियसली? तो बताओ, जो मैंने आज देखा, वो क्या था? क्या वह लड़का तुम्हारा हाथ नहीं पकड़े था? क्या तुम दोनों बेहद करीब नहीं थे? क्या तुम उसके कंधे पर सिर रखकर नहीं लेटी थी?"
इनाया असद के हाथों को झटककर चिल्ला उठती है –
"बस, मिस्टर खान! बस!"
असद –
"अभी तो मैंने बोलना शुरू किया है! तुमने आज मुझे दिखा दिया कि तुम एक मिडिल क्लास, गिरी हुई लड़की हो! तुम्हारी औकात तुमने मुझे आज दिखा दी। मैंने ही तुम्हें पहचानने में देर कर दी। गलत लड़की से इश्क कर बैठा मैं!"
फिर असद इनाया के बेहद करीब आकर उंगली दिखाते हुए कहता है –
"आज के बाद मुझे अपनी यह बदकार शक्ल दिखाने की गलती मत करना। आई हेट यू!"
यह कहकर असद गुस्से में अपना कोट उठाता है और घर से बाहर निकल जाता है।
इनाया सदमे में फर्श पर गिरकर फूट-फूट कर रोने लगती है।
प्रेजेंट टाइम
इनायत रोते हुए –
"मैं टूट गई थी, अब्बू... बहुत ज्यादा। इसीलिए मैं सब कुछ छोड़कर वापस आपके पास आना चाहती थी। घर आने के लिए मैं एक बस में बैठी। लेकिन थोड़ी दूर जाकर बस का बैलेंस बिगड़ गया और वह एक कार से टकरा गई। अचानक उसमें आग लग गई। मैं वहाँ से निकलने की कोशिश करने लगी और किसी तरह सफल भी हो गई। लेकिन तब तक मैं काफी हद तक जल चुकी थी। जैसे-तैसे मैं आगे बढ़ी, लेकिन तभी एक कार से टकराकर नदी में गिर गई।"
"सबका ध्यान उस वक्त बस एक्सीडेंट पर था, किसी का मुझ पर ध्यान ही नहीं गया। मेरी सांसें चल रही थीं। मैं जैसे-तैसे तैरकर किनारे तक आई। वहाँ हाईवे था, जहाँ से एक अमेरिकन कपल एयरपोर्ट के लिए निकल रहा था। उनकी कार के आगे मैं आ गई। वो डर गए कि कहीं सब उन्हें ब्लेम न कर दें, इसलिए वे लोग मुझे अपने साथ ले गए। उन्होंने अपने प्राइवेट जेट में एक पर्सनल डॉक्टर अरेंज किया और अमेरिका पहुंचने तक मेरी ज़िंदगी बचा ली।"
"लेकिन मसला मेरे चेहरे का था, जो पूरी तरह बर्बाद हो चुका था। उसकी सर्जरी जल्दी करनी थी, और उसके लिए मेरी तस्वीर की जरूरत थी। मैं कोमा में थी, इसलिए उन अमेरिकन्स ने अपनी बेटी, जिसका नाम इनायत था, उसका चेहरा मुझे दे दिया। वो 1 साल पहले ही फौत हो चुकी थी। उन्हें लगा, जैसे उन्हें अपनी बेटी को दोबारा पाने का मौका मिल गया हो।"
"करीब 2 महीने बाद जब मुझे होश आया, तो उन्होंने मुझे सब बताया। फिर मैंने उनसे इंडिया में हुए उस हादसे और अपने बारे में पता करवाया। तब मुझे पता चला कि मैं तो वहीं उसी दिन मर चुकी थी। इसलिए मैंने अपनी मौत को सच मानकर इनाया को फना कर दिया और इनायत का चोला पहन लिया।"
तोसीफ जी, जो गुस्से में रो रहे थे, इनायत के पास आकर बोले –
"तुम्हारे पास खुला का हक था! तुमने उसे क्यों नहीं इस्तेमाल किया? इस तरह छुपने से क्या फायदा?"
इनायत –
"सच तो सामने आना ही था, अब्बू... उन्हें अपनी गलती का एहसास भी हुआ होगा। लेकिन मैं उस इंसान की जिंदगी में कभी वापस नहीं जाना चाहती!"
तोसीफ जी –
"और अगर फिर भी वो नहीं माना? तुम्हें इनाया मानने पर अड़ा रहा तो?"
इनायत सोचकर मुस्कुराई –
"तो फिर वो इनाया के उस रूप से मिलेंगे, जिसे उन्होंने ख्वाबों में भी नहीं सोचा होगा..."
दोनों इस बात से अनजान थे कि कोई उनकी बातें गुस्से और खुशी के मिले-जुले भाव से सुन रहा था...
"Mr. खान की खता सिर्फ इतनी नहीं कि उन्होंने मुझ पर शक किया और मुझ पर यकीन नहीं किया, बल्कि उनकी खता इस हद तक है कि उनकी वजह से आज मेरी हकीकत, मेरा वजूद सब खत्म हो चुका है। 'इनाया' नाम की लड़की इस दुनिया में थी…" इनाया 'ना' शब्द पर ज्यादा जोर देती है।
"ना वह मुझ पर इतना घिनौना इल्जाम लगाकर मुझे जाने को कहते, ना मैं उस दिन उस बस में बैठती, ना एक्सीडेंट होता, और ना मेरे साथ इतना सब कुछ होता। ना मैं अपनी पहचान खोती! आज मैं एक नई पहचान के साथ जीने को मजबूर हूं, और इसकी वजह सिर्फ Mr. खान हैं। यह बात मैं मरते दम तक नहीं भूल सकती। उन्होंने मेरे साथ बहुत बुरा किया है—बहुत बुरा! और इसकी सजा मैं उन्हें इनाया से उम्रभर के लिए दूर करके दूंगी।"
अपने घर में बैठा असद यह सब लाइव देख रहा था। स्क्रीन पर इनाया को देखते हुए वह मुस्कुराया और बुदबुदाया—
"हकीकत तो मैं पहले ही जानता था, मिस चश्मिश, कि तुम ही मेरी इनाया हो। लेकिन कोई बात नहीं! अब तो तुम्हारी नाराज़गी की वजह भी पता चल गई है। देखना, मैं तुम्हें पूरी दुनिया के सामने वापस जिंदा करके रहूंगा। और यह तुम्हारे Mr. अमीरज़ादे का तुमसे वादा है।"
असद कुर्सी पर पीछे टेक लगाकर बैठा, हाथों को सिर के पीछे टिकाया और मुस्कुराने लगा। उसके दिमाग में कोई नया फितूर चल रहा था, जो क्या था, यह तो आगे ही पता चलेगा।
इधर, इनाया अपने अब्बू से मिलकर अर्श के पास लौटी। थोड़ी बहुत शॉपिंग के बाद जब वह विला में वापस आई, तो अंदर का नज़ारा देखकर हैरान रह गई।
विला में पूरा शादी वाला माहौल बना हुआ था! हॉल के बीच में दो स्टेज थे, जिनके बीच एक पर्दा टंगा था। इनायत के अमेरिकी माता-पिता एक कोने में खड़े सब कुछ हैरानी से देख रहे थे—उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था।
अर्श ने अंदर आते ही कहा, "क्या बात है! यहां तो किसी की शादी लग रही है! इतनी जल्दी...? हम सिर्फ 10-12 घंटे के लिए शॉपिंग करने गए थे, और इस बीच इतना सब कुछ हो गया? वैसे, यहां शादी किसकी हो रही है? हमें तो बताया भी नहीं गया!"
तभी ऊपर से सीढ़ियों से असद नीचे आता है। उसने सफेद कुर्ता-पायजामा पहना था, जिस पर सफेद शॉल डली थी। उसके सिल्की बाल माथे पर आ रहे थे, और हल्की बढ़ी हुई दाढ़ी उसके killer एटिट्यूड को और निखार रही थी। वह आज भी किसी हैंडसम यंग बॉय से कम नहीं लग रहा था।
असद ने नीचे आते ही कहा, "Mr. अर्श, आप असद अहमद खान के सामने हो! इस सबको करने में 10-12 घंटे नहीं लगे। मेरे लिए यह मामूली सा एक घंटे का काम था। और हां, यह शादी का इंतज़ाम मैंने तुम्हारे और तुम्हारी मंगेतर के लिए किया है!"
इनायत की आंखें हैरानी से बड़ी हो गईं। सुबह तक तो उसे लग रहा था कि असद उसे छोड़ देगा, लेकिन अब... यह क्या हो गया? यह सब उसकी कोई चाल थी, यह समझने में इनायत को देर नहीं लगी।
वह असद की आंखों में देखकर बोली, "यह सब क्या है, Mr. खान? मैंने आपसे कहा था कि हम अपनी शादी अपने देश जाकर करेंगे, तो आपने यह ड्रामा यहां क्यों किया? आपको मज़ा आता है क्या यह सब करके?"
असद मुस्कुराया, "नहीं, नहीं, नहीं! मुझे सिर्फ अपनी इनाया को परेशान करने में मज़ा आता है, और किसी को नहीं। तुमने सिंपल वेडिंग की बात की थी, तो मैंने तुम्हारी पसंद की बिल्कुल सिंपल वेडिंग डिजाइन की है। काज़ी साहब हैं, निकाह पढ़ाएंगे। तुम्हें बस 'क़बूल है, क़बूल है, क़बूल है' कहना है, और कोई काम नहीं!"
इनायत गुस्से में अपना सिर पकड़कर बोली, "Oh God! मैं कैसे यकीन दिलाऊं आपको? आप पागल इंसान हैं क्या? एक ही बात पकड़कर बैठे हैं! दोपहर में हमारी बात फाइनल हो गई थी कि मैं इनायत हूं, इनाया नहीं! सारे सबूत आपके सामने पेश किए गए! आपने खुद पता किया कि इनाया रूस में है, फिर भी आप वही बात दोहरा रहे हैं!"
असद ने उसकी बात अनसुनी कर दी और अपने एक आदमी को इशारा किया।
अगले ही पल, असद के आदमी ने अर्श को पकड़कर दूल्हे वाली साइड बिठाया और सेहरा पहना दिया। असद ने इनायत का हाथ पकड़कर उसे दुल्हन वाली साइड खींचकर बैठा दिया और उसके सिर पर लाल चुनरी डाल दी। फिर वह उसके सामने घुटने के बल बैठा और बोला—
"मुझे किसी सबूत या गवाह की जरूरत नहीं! बस निकाह कर लो। फिर ना कोई DNA टेस्ट, ना कुछ और..."
इनायत गुस्से में उठी, "बकवास बंद कीजिए! मुझे किससे शादी करनी है और कब करनी है, यह मैं खुद तय करूंगी! आप होते कौन हैं मुझ पर अपना हुक्म चलाने वाले? अगर आपने अपनी बदतमीज़ी बंद नहीं की, तो समझ लीजिए कि मैं आपका क्या हाल करूंगी!"
असद ने उसे वापस बैठाया और ठंडे लहजे में कहा, "जो करना है, कर लेना। लेकिन पहले यह निकाह करो। वरना मैं तुम्हारे दूल्हे को गोली मार दूंगा!"
इनायत की सांस अटक गई। उसने झांककर देखा—अर्श के पीछे दो गार्ड्स गन लोड किए खड़े थे, बस असद के इशारे के इंतजार में।
इनायत को यकीन हो गया कि असद इस बार सच में बहुत आगे जा चुका है।
काज़ी साहब निकाह की तैयारी पूरी कर चुके थे। वह इनायत की तरफ बढ़े और पूछा, "क्या आपको यह निकाह क़बूल है?"
इनायत कुछ नहीं बोली। वह खाली आंखों से बस सामने बैठे अर्श को देखती रही।
तभी, अचानक...
चारों ओर से काले कपड़ों में कई गार्ड्स अंदर घुसे और ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी!
असद के गार्ड्स कुछ समझ पाते, उससे पहले ही वे ढेर हो चुके थे।
एक गोली असद के सीने में भी लगी।
सब कुछ
असद ने उसे वापस बैठाया और ठंडे लहजे में कहा, "जो करना है, कर लेना। लेकिन पहले यह निकाह करो। वरना मैं तुम्हारे दूल्हे को गोली मार दूंगा!"
इनायत की सांस अटक गई। उसने झांककर देखा—अर्श के पीछे दो गार्ड्स गन लोड किए खड़े थे, बस असद के इशारे के इंतजार में।
इनायत को यकीन हो गया कि असद इस बार सच में बहुत आगे जा चुका है।
असद ने क़ाज़ी साहब से कहा, "आप निकाह पढ़ना शुरू कीजिए।"
क़ाज़ी साहब निकाह की सारी जानकारी नोट करने लगे। उनकी नज़र बार-बार इनायत पर जा रही थी, जो इस वक्त खाली आंखों से सामने बैठे हर्ष को देख रही थी।
इनायत (मन ही मन) – "बहुत अच्छी चाल चली आपने, मिस्टर खान… बहुत ही अच्छी चाल! आप बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि अगर मैं इनाया हूं, तो कभी निकाह नहीं करूंगी, और आपका शक यकीन में बदल जाएगा।"
इनाया का गुस्सा हद से ज्यादा बढ़ रहा था। वहीं, असद अपने मन में मुस्कुराते हुए सोच रहा था – "नहीं, नहीं, नहीं… जो तुम सोच रही हो, वैसा कुछ भी नहीं है, मिस चश्मिश। बल्कि, मैं तो कुछ नया करने की सोच रहा हूं।"
क़ाज़ी साहब ने जब निकाह की सारी तैयारियां पूरी कर लीं, तो वे इनाया के सामने आए और उससे निकाह की इजाजत लेते हुए पूछा, "क्या आपको निकाह क़बूल है?"
इनाया ने कुछ भी नहीं कहा। वह खाली आंखों से बस सामने देखती रही। वह असद से कितनी भी नफरत करती हो, कितना भी गुस्सा हो, लेकिन अपने शौहर के ज़िंदा रहते किसी और से निकाह करने का गुनाह कभी नहीं कर सकती थी।
क़ाज़ी साहब अभी इनायत से इजाजत लेने ही वाले थे कि अचानक वहाँ बहुत सारे काले कपड़ों में गार्ड्स बंदूकें लिए अंदर घुस आए और उन्होंने असद के गार्ड्स पर फायरिंग शुरू कर दी।
सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि किसी को कुछ समझने का मौका ही नहीं मिला। जब तक असद संभलकर कुछ कर पाता, 1 गोली आकर उसके सीने में लग गई।
1 ही मिनट के अंदर वहां असद और उसके सारे आदमी ज़मीन पर ढेर पड़े थे।
इनाया जैसे ही ये मंजर अपनी आंखों से देखती है, वह तुरंत रोते हुए दौड़कर असद के पास आती है। कांपते हाथों से उसे छूने की कोशिश करती है और फिर उसका चेहरा हल्के से थपथपाते हुए कहती है—
"मिस्टर खान, उठिए… मिस्टर खान, आप मुझे इस तरह परेशान नहीं कर सकते! जो भी बात करनी है, आमने-सामने कीजिए! देखिए, मैं मान गई… हाँ, मैं इनाया हूं… आपकी मिस चश्मिश! प्लीज़, अब ये सब बंद कीजिए… प्लीज़ उठ जाइए, मिस्टर खान! आप मुझे इस तरह बीच रास्ते में छोड़कर नहीं जा सकते… अभी तो मुझे आपसे अपना बदला लेना है! ऐसे आसानी से मुझे छोड़कर नहीं जा सकते… उठिए, मिस्टर खान! उठिए!"
यह कहकर इनाया असद को झकझोरने लगी और फिर उसके ऊपर सिर रखकर फूट-फूटकर रोने लगी।
इनायत चीख चीख कर असद को आवाज़ देकर यकीन दिला रही थी की वही इनाया है लेकिन शायद अब देर हो चुकी थी...
या फिर एक नई चाल।
इनायत, असद के ऊपर सिर रखे लगातार रोए जा रही थी कि तभी अचानक उसे अपनी पीठ पर दो हाथ महसूस होते हैं। जब वह सिर उठाकर देखती है, तो उसे असद मुस्कुराता हुआ नजर आता है, जो उसे बाहों में भरे मुस्कुरा रहा होता है। इनायत यह देखकर हैरान हो जाती है। इस वक्त वह बहुत ज्यादा डरी हुई थी, इसलिए उसे याद ही नहीं रहता कि उसे क्या करना था। वह कसकर असद के गले लगाकर कहती है—
"आप… आप ठीक हैं ना, मिस्टर खान? आप ठीक हैं ना? आपको कुछ हुआ तो नहीं?"
असद, वैसे ही लेटे-लेटे इनायत को अपनी बाहों में भरकर मुस्कुराते हुए कहता है—
"मुझे क्या हो सकता है, मिस चश्मिश? मैं तो तब तक जिंदा रहूंगा जब तक मेरी इनाया मेरे साथ रहेगी। मेरी सांसें मुझसे बेवफाई तब तक नहीं कर सकतीं, जब तक मेरी इनाया मेरे साथ रहेगी।"
"इनाया" नाम सुनते ही इनायत को अपने साथ हुई हर एक बात याद आने लगती है। फिर उसे एहसास होता है कि अभी-अभी असद ने उसके साथ कितना बड़ा खेल खेला है। वह तुरंत उठकर खड़ी हो जाती है। उसकी आंखें गुस्से से लाल हो जाती हैं। उसके जो आंसू बह रहे थे, वे अचानक थम जाते हैं।
असद भी मुस्कुराता हुआ खड़ा होता है और अपनी शॉल को सही से कंधों पर डालकर कहता है—
"और बताइए, मिस ड्रामा, कैसा लगा आपको मेरा ड्रामा? मजा आया ना? अब खुद तो सामने से इस बात को कबूल कर नहीं रही थीं, तो मुझे ही कोई खेल खेलना पड़ा। तभी त—"
चटाक!
एक जोरदार तमाचा असद के गाल पर पड़ता है और उसका चेहरा एक तरफ झुक जाता है। लेकिन उसके चेहरे से मुस्कान नहीं जाती।
इनायत गुस्से में चिल्लाकर कहती है—
"आपसे ज्यादा बदतमीज और गिरा हुआ इंसान मैंने आज तक नहीं देखा! आप हमेशा मेरी फीलिंग्स के साथ खेलते हैं, हमेशा मेरे प्यार का मजाक बनाते हैं! हमेशा से आपने यही किया है! मेरे जज्बात, मेरे एहसास— सब खेल थे आपके लिए? मेरी फीलिंग्स आपके लिए कोई मायने ही नहीं रखतीं?"
फिर अकड़कर कहती है—
"हाँ, मैं मानती हूँ! मैं ही इनाया हूँ! लेकिन आपकी इनाया नहीं! मैं इनाया फातिमा हूँ, जिसको आपने… आपने मिस्टर खान…!"
यह कहते हुए इनायत अपनी उंगली असद के सीने पर रखती है।
"आपने इस इनाया को मार दिया! आपकी वजह से मैंने अपनी पहचान, अपना वजूद खो दिया!"
इसके बाद इनायत दोनों हाथों से असद के कुर्ते का गिरेबान पकड़कर उसे झंझोड़ते हुए कहती है—
"आखिर आप क्या चाहते हैं? आप चाहते क्या हैं? हर बार मेरे प्यार, मेरी मोहब्बत, मेरी फीलिंग्स का तमाशा बना कर क्या हासिल करना चाहते हैं?"
"भूल गए क्या? आप वही थे जिसने मुझे बदकार साबित किया था! जो मेरी शक्ल नहीं देखना चाहता था! ध्यान से देखिए, आपको मेरी शक्ल मेरे मरने के बाद और जीते जी भी देखना नसीब नहीं होगी! आपकी बद्दुआ लग गई मेरी शक्ल को! मेरी शक्ल अब मैं खुद नहीं देख सकती!"
"क्या कहा था आपने? मैं मिडिल क्लास, गिरी हुई, घटिया लड़की हूँ? तो फिर क्यों इस घटिया लड़की के पीछे पड़े हैं? बख्श क्यों नहीं देते मुझे? क्यों मेरी ज़िंदगी में एक नासूर की तरह रुके हुए हैं? चले क्यों नहीं जाते मेरी लाइफ से?"
"इस तरह की हरकतें करके आप क्या साबित करना चाह रहे हैं? कि मैंने एक कमीने इंसान से मोहब्बत की थी, जिसकी मुझे सजा इस सूरत में मिल रही है?"
असद, मुस्कुराते हुए इनाया के चेहरे पर आ रहे बालों को पीछे करता है और प्यार से कहता है—
"तुम्हें पता है, मैंने पहले तुम्हारी शादी का प्लान बनाया ताकि तुम्हें यह लगे कि मैं तुम्हारे मुँह से यह कबूल करवाना चाह रहा हूँ कि मैं यह शादी नहीं कर सकती, क्योंकि मैं ऑलरेडी शादीशुदा हूँ। क्योंकि इस्लाम में एक औरत दो निकाह नहीं कर सकती।"
"मैं चाहता था कि तुम मेरे इस प्लान में उलझ जाओ और जब मैं इन नकली शूटर से खुद पर हमला करवाऊँ, तो तुम मुझ पर बिल्कुल शक न कर पाओ। तुम्हें यह सब हकीकत लगे। और देखो, तुम्हें हकीकत लगी! तुम मुझसे मोहब्बत करती थी, इसलिए मेरे मरने के ख्याल से ही खौफ में आ गईं। तुम्हारी आँखों से निकलने वाला हर एक आँसू इस बात की गवाही दे रहा था कि तुम मुझसे आज भी बेपनाह मोहब्बत करती हो।"
"तुम मुझे माफ कर सकती हो, इनाया। क्योंकि तुम प्यार करती हो मुझसे।"
इनायत, असद को धक्का देकर चिल्लाती है—
"इट्स इनफ! बहुत बकवास कर लिया आपने! मैं आपसे क्या कह रही हूँ और आप मेरी बातों को इग्नोर कर अपने ड्रामों के बारे में बता रहे हैं?"
"क्या कहना चाहते हैं आप? कि मैं आपसे मोहब्बत करती हूँ? बिल्कुल नहीं! नफरत करती हूँ मैं आपसे! बेपनाह नफरत!"
"मेरे किरदार पर उंगली उठाई है आपने! मेरे आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचाई है! एक औरत हर दर्द बर्दाश्त कर सकती है, लेकिन जब उसकी इज्जत पर दाग लगाया जाता है, तो वह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकती! और आपने तो मुझसे मेरी असली पहचान तक छीन ली! तो बताइए, मैं आपसे कैसे मोहब्बत कर सकती हूँ?"
असद, मुस्कुराते हुए इनाया के पास आता है—
"मोहब्बत न करो, कोई बात नहीं। हमारे रिश्ते के लिए मेरी मोहब्बत ही काफी है। अबकी बार मैं तुम्हारी मोहब्बत का इंतजार नहीं करूँगा। क्योंकि मुझे पता है, तुम मुझसे मोहब्बत करती हो। मेरी गलती है, तो तुम मुझे सजा दे लो। तुम मुझे मारो, तुम मेरा कत्ल कर दो।"
"लेकिन मेरी जिंदगी से अब तुम्हें दोबारा जाने का हक नहीं दूंगा। पहले तुम्हें रब से नहीं माँगा था, इसलिए तुम खो गई थी। लेकिन अब मैंने तुम्हें अपने रब से माँगा है, और जो चीज रब देता है, वह कभी नहीं छीनता।"
इनाया—
"गलतफहमी है आपकी, मिस्टर खान। हमारे रिश्ते का कोई वजूद नहीं है। आपने जिससे शादी की थी, वह इनाया फातिमा थी। लेकिन मैं इनाया नहीं हूँ। मेरा नाम इनायत है। इनायत खान।"
असद—
"निकाह सिर्फ चेहरे और नाम से नहीं होता। निकाह रूह से रूह का रिश्ता होता है। चेहरा बदल लेने से, नाम बदल लेने से निकाह नहीं टूटता, मेरी जान। तुम आज भी मेरी बेगम, इनाया असद अहमद खान हो।"
"और रही तुम्हारे चेहरे की बात, तो यकीन मानो, जिस तरह इनाया को इनायत मैंने बनाया है, वैसे ही इनायत को इनाया बनाना मेरा काम है।"
इनाया, असद के पकड़ से दूर जाकर—
"हाथ मत लगाइए मुझे! घिन आती है आपसे!"
असद, इनाया की आँखों में देखते हुए—
"ओके फाइन! अब आगे जो होगा, उसके लिए मुझे ब्लेम मत करना।"
इतना कहकर असद, इनायत को अपने कंधे पर उठाकर ऊपर कमरे की ओर चल देता है…
इनायत के अमेरिकन पेरेंट्स और अर्श उसके पास जाने को होते हैं, लेकिन तभी असद के गार्ड, जो अभी कुछ देर पहले तक ड्रामा कर रहे थे, उठकर खड़े हो जाते हैं और उन लोगों को पकड़कर रोक लेते हैं।
असद, इनाया को अपने कंधे पर उठाकर सीढ़ियों पर चढ़ने लगता है। इनाया, असद की पीठ पर लगातार घूँसे बरसाती रहती है, लेकिन असद पर न तो किसी वार का कोई असर होता है और न ही उसे कोई चोट लगती है।
असद, इनाया को ऊपर ले जाकर अपने दूसरे कमरे में खड़ा कर देता है। इनाया कुछ कहने ही वाली थी, लेकिन उसकी नजर पूरे कमरे पर जाती है, जो एक दुल्हन की तरह सजा हुआ था। बेड पर एक सुहाग सेज सजाई गई थी, और पूरे कमरे में इनाया और असद की शादी के बेहद प्यारे-प्यारे फोटोग्राफ्स लगे हुए थे।
इनाया उस कमरे को बड़े गौर से देख रही थी। इस कमरे को देखकर उसे अंदाजा हो गया था कि असद अब पुख्ता यकीन कर चुका था कि वह इनाया की सच्चाई सामने लाकर रहेगा—और वह उसे सामने ले भी आया।
इनाया हर चीज़ को, हर तस्वीर को बड़े ध्यान से देख रही थी। उसकी कोई भी तस्वीर रिपीट नहीं की गई थी। हर तस्वीर में उसका एक अलग पोज़ था, और जहाँ तक इनाया को याद था, उसने कभी इतनी तस्वीरें नहीं ली थीं। इसका मतलब यह हुआ कि असद ने उस पर नज़र रखवाई थी।
इनाया यही सब सोच रही थी कि पीछे से असद आकर उसे अपनी बाहों में भरते हुए बोला, "कैसा लगा मेरा सरप्राइज़? पसंद आया?"
इनाया असद की बाहों से निकलकर उसकी आँखों में देखते हुए बोली, "बिल्कुल ज़हर लग रहा है यह सब—बल्कि ज़हर से भी बदतर। ज़हर तो पल भर में खत्म कर देता है, लेकिन ये हर तस्वीर..." (इनाया ने कमरे में लगी तस्वीरों की ओर इशारा किया) "...मुझे आपसे मिले दर्द, ज़ख्म, और मुझ पर आपके खोखले भरोसे और खोखले वादों को बार-बार ताज़ा कर रही हैं। यह मुझे तिल-तिल तड़पा रहा है—मौत से भी बदतर सज़ा दे रहा है!"
असद ने इनाया के हाथ पकड़कर घुटनों के बल बैठते हुए उसकी आँखों में देखा और कहा, "तुम चाहो तो मेरी जान ले लो, मुझे फाँसी चढ़ा दो, अपनी सारी भड़ास निकाल लो, लेकिन मौत की बात मत करो। पूरी दुनिया ने तुम्हें मर चुका साबित कर दिया था, लेकिन एक मैं था, और मेरा दिल था, जो कभी मानने को तैयार नहीं हुआ। मुझे अपनी मोहब्बत पर यकीन था, इनाया! इतनी आसानी से तुम मुझसे जुदा नहीं हो सकतीं।"
फिर असद खड़ा होकर बोला, "तुम बस एक मौका दे दो, हम आज से अपनी ज़िंदगी की नई शुरुआत करेंगे। हम अपनी मोहब्बत को, अपने रिश्ते को मुकम्मल करेंगे—इसके बाद हमें कोई अलग नहीं कर पाएगा, कोई भी नहीं!"
इनाया ताली बजाकर व्यंग्य से हँसते हुए बोली, "ओह, वाह! मज़ा आ गया, सच में, मिस्टर खान! असली बात अब कही आपने—रिश्ते को मुकम्मल करेंगे, आज..."
फिर उसने अपने गले में डाला हुआ दुपट्टा निकालकर फेंक दिया और आगे बढ़ते हुए बोली, "तो लीजिए, कर लीजिए अपने रिश्ते को मुकम्मल! पूरी कर लीजिए अपनी ख्वाहिश, अपने सपने। आखिर मसला तो यही है, न—नफ़्स की तलब? जिसके लिए आपने मुझसे शादी की थी, और जिसके लिए आप मुझे पागलों की तरह ढूँढ रहे थे?"
इसके बाद इनाया असद के करीब जाकर उसके गले में एक हाथ डालते हुए, दूसरे हाथ से असद का हाथ पकड़कर अपनी कमर पर रखते हुए बोली, "लीजिए, आ गई मैं करीब... बेहद करीब। अब कीजिए अपनी मोहब्बत मुकम्मल।"
इनाया के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन अगले ही पल उसने गुस्से में कहा, "लेकिन याद रखिएगा, आप सिर्फ़ मेरे जिस्म को हासिल कर सकते हैं, मेरी रूह, मेरी मोहब्बत—उसे आप कभी हासिल नहीं कर पाएंगे। कभी भी नहीं!"
असद ने गुस्से में इनाया के बाल कसकर पकड़ लिए और उसका मुँह ऊपर उठाकर अपनी लाल आँखों से घूरते हुए कहा, "मेरी मोहब्बत को गाली दे रही हो, तुम?"
इनाया मुस्कुराई, "मोहब्बत को गाली देना मैंने आपसे ही सीखा है, मिस्टर खान।"
असद गहरी सांस लेते हुए बोला, "एक बार सच्चे दिल से माफ़ी माँगने से हज़ारों गलतियाँ तो खुदा भी माफ कर देता है, लेकिन तुम मेरी एक गलती माफ नहीं कर सकतीं?"
इनाया ने ठंडी आवाज़ में कहा, "अब खुदा के नाम पर माफ़ी की भीख माँग रहे हो? खुदा के लिए तो मैं जान भी दे दूँ, फिर माफ़ी क्या चीज़ है? लेकिन किसी का दिल दुखाने पर उसे माफ़ करना या न करना—ये खुदा ने इंसान के हाथ में रखा है। मैं खुदा की रज़ा के लिए आपको माफ़ भी कर दूँ, लेकिन मेरा दिल इसके लिए राज़ी नहीं है।"
इसके बाद इनाया ने अपना हाथ असद के उस हाथ पर रखा, जिससे उसने उसके बाल पकड़े थे, और धीरे से उसे हटा दिया। फिर कुछ कदम पीछे हटकर बोली, "जाइए, खुदा के लिए, मैंने आपको माफ कर दिया। लेकिन इसके बदले आप मुझे क्या देंगे?"
असद गहरी आवाज़ में बोला, "जान माँग लो, मैं उफ़ तक नहीं करूँगा। तुम्हारी माफ़ी के बदले तो मैं अपनी साँसें भी कुर्बान कर दूँगा।"
इनाया ने बिना रुके कहा, "मैं दिल से माफ़ करने के लिए तैयार हूँ, लेकिन उसके बदले आप मुझे इस जबरदस्ती के रिश्ते से आज़ाद कर दीजिए। दे दीजिए मुझे तलाक़!"
असद का गुस्सा फूट पड़ा। उसने गुस्से में हाथ उठाया और चिल्लाया, "इनायाआआआआआआ!!!"
लेकिन उसका हाथ हवा में ही रह गया। वह चाहकर भी इनाया पर हाथ नहीं उठा सकता था।
इनाया मुस्कुराते हुए पहले असद को, फिर उसके अधूरे उठे हाथ को देखने लगी और बोली, "क्या बात है? आप तो नाराज़ हो गए। ऐसी क्या चीज़ माँग ली मैंने? जान तो नहीं माँगी ना?"
असद ने अपना हाथ झटके से नीचे किया और दाँत भींचते हुए उसकी आँखों में देखा, "इससे बेहतर होता कि तुम मेरी जान ही माँग लेतीं!"
फिर उसने एक लंबी साँस ली और मुस्कराते हुए कहा, "ठीक है, कोई बात नहीं। अगर तुम मुझे माफ़ नहीं करना चाहतीं, तो मत करो। लेकिन मैं तुम्हें मरते दम तक खुद से अलग नहीं होने दूँगा—चाहे इसके लिए मुझे तुम्हें जबरदस्ती यहाँ कैद करके ही क्यों न रखना पड़े!"
इनाया ने एक लंबी नज़र असद पर डाली और ठंडे लहज़े में बोली, "कैद करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आपको मुझे अपने साथ रखना है ना? बेशक रखिए, लेकिन अगर मैंने आपकी ज़िंदगी जहन्नुम न बना दी और आपसे तलाक़ के कागज़ पर साइन न करवा लिए, तो मेरा नाम इनाया फातिमा नहीं!"
असद गहरी आवाज़ में बोला, "इनाया फातिमा नहीं—इनाया असद अहमद खान नाम है तुम्हारा! और रही आज़ादी की बात, तो मुझसे तुम्हें आज़ादी तभी मिल सकती है जब मेरा जनाज़ा तुम्हारी आँखों के सामने से निकलेगा। जीते-जी मैं तुम्हें खुद से दूर नहीं होने दूँगा!"
इनाया ने गुस्से से कहा, "मैं यहाँ से जाकर दिखाऊँगी!"
असद हँसकर बोला, "बहुत से चाहने वाले हैं तुम्हारे, जो तुम्हें जान से ज्यादा प्यार करते हैं। अगर तुमने जाने की कोशिश की, तो मैं सबसे पहले उन्हीं को इस दुनिया से जुदा कर दूँगा!"
यह सुनकर इनाया की आँखें हैरत से फैल गईं। यह असद का असली रूप था—जो पागलपन की हद तक उससे मोहब्बत करता था...
असद के सामने जो खड़ा है, वो एक पागल आशिक है, जो अपनी लैला की तड़प में सालों तड़पा है।
"अगर अब इस लैला ने मुझे छोड़कर जाने की सोची, तो मैं सबसे पहले उसके अपनों को इस दुनिया से जुदा कर दूंगा।"
असद की बात सुनकर इनाया की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। उसे असद से ऐसी उम्मीद कभी नहीं थी। उसने हमेशा असद को एक सॉफ्ट और केयरिंग इंसान के रूप में देखा था। जब वह आखिरी बार उसे छोड़कर गई थी, तब उसने उसका गुस्सा देखा था, लेकिन यह पागलपन... यह जुनून... यह धमकी... यह सब इनाया के लिए नया था।
असल में, असद हमेशा से ऐसा ही था, लेकिन इनाया के जाने के बाद उसका पागलपन हद से ज्यादा बढ़ गया था। पहले वह इनाया के लिए सॉफ्ट था, लेकिन आज... आज उसके सामने उसका असली रूप था।
असद धीरे-धीरे कदम बढ़ाकर इनाया के करीब आया और उसकी कमर पर हाथ रखते ही उसे अपनी ओर खींच लिया। इनाया के दोनों हाथ असद के सीने पर आ टिके, और वह लोहे जैसे मजबूत सीने से टकरा गई।
असद ने गहरी नज़रें उसमें उतारते हुए कहा,
"तुम्हारी मर्ज़ी, तुम्हारी ज़िद... सब मंज़ूर है तुम्हारे मिस्टर खान को, लेकिन एक और जुदाई का एपिसोड मैं अपनी कहानी में नहीं आने दूंगा। अब आएंगे तो सिर्फ़ प्यार और तकरार के एपिसोड।"
इतना कहकर असद ने अपना एक हाथ उसकी गर्दन पर रखा और उंगलियां उसके बालों में उलझा दीं। फिर धीरे-धीरे उसने इनाया का चेहरा अपने करीब कर लिया और उसके होंठों की तरफ झुकने लगा।
इनाया का जिस्म कांप उठा। मोहब्बत तो उसे भी थी असद से, लेकिन शिकायतें भी कम नहीं थीं। वह गुस्से में थी, नाराज़ थी, लेकिन असद के करीब आते ही जैसे उसकी सारी शिकायतें धुंधली पड़ने लगीं।
वह चाहकर भी असद को रोक नहीं पा रही थी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके जिस्म से जान ही निकल गई हो। असद ने धीरे-धीरे उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और बेहद सॉफ्ट तरीके से उन्हें चूमने लगा। इनाया असद की सांसों की गर्मी को महसूस कर सकती थी। उसकी नज़दीकी, उसका एहसास, सबकुछ उसे जकड़ रहा था।
असद बड़े ही स्मूथ तरीके से उसके होंठों को चूम रहा था, और इनाया इस एहसास में खोकर अपनी आँखें बंद कर चुकी थी। उसने असद के सीने पर रखे अपने हाथों की मुट्ठी भींच ली।
इनाया का यह रिस्पॉन्स देखकर असद अनजाने में मुस्कुरा दिया। उसने उसे और कसकर अपनी बाहों में ले लिया और उसके होंठों को और गहराई से चूमना शुरू कर दिया।
इनाया जानती थी कि असद की मोहब्बत में हवस नहीं थी। लेकिन कहते हैं ना, जब इंसान गुस्से में होता है तो उसके लफ्ज़ों का सही मतलब समझ पाना मुश्किल हो जाता है। इनाया महसूस कर सकती थी कि असद की किस में सिर्फ और सिर्फ प्यार था, हवस का कोई नामोनिशान नहीं था।
धीरे-धीरे असद इनाया के होठों पर पूरी तरह हावी होने लगा, और इनाया भी इस एहसास में खुद को भूल चुकी थी।
अपने साथ हुए हादसे के बाद उसे बहुत से सहारे मिले थे, लेकिन जिस सहारे की उसे असल में ज़रूरत थी, वह सहारा आज उसके सामने था। शायद इसी वजह से उसके दिल को सुकून मिल रहा था, लेकिन कहते हैं ना, कभी-कभी दिमाग दिल पर हावी हो जाता है।
इनाया भी इसी जंग से गुजर रही थी। वह असद की मोहब्बत को अंदर ही अंदर महसूस कर रही थी, लेकिन उसके द्वारा की गई बेइज़्ज़ती को भी याद रखे हुए थी। पर इस वक्त, वह सब कुछ भूल चुकी थी।
असद ने धीरे-धीरे इनाया के हाथों को अपने सीने से हटाकर अपने बालों तक ले गया। इनाया भी उस एहसास में पूरी तरह खो गई और उसने असद के बालों को अपनी उंगलियों में भर लिया।
बस, यहीं से सब बदल गया...
इनाया का साथ मिलते ही असद जैसे पागल हो गया। जिस आग को वह अब तक बुझाने की कोशिश कर रहा था, वह आग पूरी तरह भड़क गई।
अब असद और ज्यादा पैशन के साथ उसे चूमने लगा। उसके होंठ सिर्फ इनाया के होंठों तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि वह उसकी जुबां को भी महसूस करने लगा।
दोनों मदहोशी में एक-दूसरे को किस किए जा रहे थे।
असद ने इनाया को कमर से पकड़कर ऊपर उठाया और धीरे-धीरे बेड तक ले गया। इस दौरान उनकी किस एक पल के लिए भी नहीं टूटी थी...
असद इनाया को तब तक चूमता रहता है जब तक उसकी साँसें भारी नहीं होने लगतीं। जब उसे महसूस होता है कि इनाया को साँस लेने में तकलीफ हो रही है, तो वह उसे छोड़कर उसके माथे से माथा जोड़ लेता है और गहरी-गहरी साँसें लेने लगता है। इनाया भी गहरी साँसें लेने लगती है, जिससे उसकी अपर बॉडी ऊपर-नीचे होने लगती है।
असद इनाया के माथे से माथा जोड़े अपनी निगाहें नीचे किए हुए था, लेकिन जैसे ही उसकी नजर इनाया की अपर बॉडी की मूवमेंट पर पड़ती है, उसके भीतर एक अलग सी गर्मी पैदा होने लगती है।
उधर, इनाया जैसे-तैसे अपनी साँसों को काबू में करने की कोशिश कर रही थी। उसे इस वक्त कुछ भी होश नहीं था। वह खुद को संभाल पाती, इससे पहले ही असद उसकी कॉलर बोन पर हमला कर देता है और सॉफ्टली उसे चूमने लगता है। इनाया असद की इस हरकत से तड़प उठती है और बेचैनी से मचलने लगती है।
असद इनाया की कॉलर बोन पर दोनों तरफ अपने प्यार की निशानी छोड़ रहा था और इनाया इसी अहसास में खो गई थी, तभी उसके कानों में असद की बातें गूँजने लगती हैं—
"इतनी आग थी तुम्हारे अंदर? मुझसे कह देती, कब का शांत कर देता। लेकिन यूँ बाहर मुँह मारने की जरूरत नहीं थी। तुम भी बाकी लड़कियों की तरह निकली। अरे, क्या कमी रह गई थी मेरे प्यार में? जी-जान से चाहता था तुम्हें, सिर्फ तुम्हारी वजह से तुमसे दूर था। तुम्हारी 'हाँ' का इंतजार कर रहा था, लेकिन तुम्हें तो इज्जत का पाक रिश्ता नहीं, बल्कि हराम का नापाक रिश्ता पसंद आया!"
इनाया की आँखों में वह पूरी रात घूमने लगती है जब असद ने उसे गलत समझा था।
"ऐसा कुछ नहीं है, सीरियसली! ऐसा कुछ भी नहीं है!"
"ओके, तो बताओ! जो मैंने आज देखा, वह क्या था? क्या वह लड़का तुम्हारा हाथ नहीं पकड़ रहा था? क्या तुम दोनों बेहद करीब नहीं थे? क्या तुमने उसके कंधे पर सिर नहीं रखा था? क्या तुमने उसे क—"
"अभी तो मैंने बोलना शुरू किया है! यू नो, आज तुमने मुझे दिखा दिया कि तुम एक मिडिल क्लास, घटिया और गिरी हुई लड़की हो! तुम्हारी औकात आज तुमने मुझे दिखा दी। मैंने ही तुम्हें पहचानने में देर कर दी! गलत लड़की से इश्क कर बैठा मैं!"
"आज के बाद मुझे अपनी यह बदकार शक्ल दिखाने की गलती मत करना! I hate you!"
यह सब याद आते ही इनाया की आँखें खुल जाती हैं और वह एकदम से असद को धक्का देकर खुद से दूर कर देती है। असद इस चीज़ के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था, इसलिए वह थोड़ी दूर जाकर गिर जाता है।
इनाया तुरंत उठकर खड़ी होती है और गुस्से में कहती है—
"जब मैंने हवस का नाम दिया था तब बहुत मिर्ची लगी थी आपको! तो फिर अभी क्या था? बिना मेरी मर्जी के मेरे साथ यह सब करने का क्या मतलब?"
असद गुस्से में उठकर खड़ा होता है और इनाया के कंधों को पकड़कर लाल आँखों से घूरते हुए कहता है—
"तुम्हारी मर्जी के बगैर? सीरियसली? तुम्हें लगता है कि अभी तक जो भी हुआ, वह तुम्हारी मर्जी के बगैर था? जितना मैं तुम्हें पाने के लिए बेचैन हूँ, उतनी ही तुम भी मेरे करीब आने के लिए बेचैन हो! जितनी बेचैनी, जितनी तड़प मैंने पिछले 6 सालों में सही है, उतनी ही तुमने भी सही है! तुम्हारा गुस्सा, तुम्हारा अहंकार, तुम्हारा बदला लेने की जिद—इन सबसे आगे तुम्हें मेरा प्यार दिखाई नहीं दे रहा है?"
"ध्यान से देखो मेरी आँखों में! क्या तुम्हें इसमें हवस नजर आ रही है? क्या तुम्हें लगता है कि मैं वो इंसान हूँ जो अपनी नफ्स की ख्वाहिशात के लिए तुम्हारी मर्जी के बिना तुम्हारे करीब आ जाऊँगा?"
"जब मैंने बस से बाहर निकली उस जली हुई लाश को देखा, जिसे सब तुम्हारा नाम दे रहे थे, तब मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई थी! बिना मौत के ही मेरी रूह फना हो गई थी! मैं इतना सदमे में था कि कब नदी में कूद गया, मुझे खुद नहीं पता!"
"तुम्हारे बिना जीने का मैं सोच भी नहीं सकता था! लेकिन हमारी जिंदगी में शायद दूसरा मौका लिखा था, इसलिए मेरे रब ने मेरी जान बख्श दी! और देखो, आज मेरा इंतजार पूरा हो गया!"
यह कहते हुए असद की आँखों से आँसू गिरने लगते हैं। इनाया उसकी बातें सुनकर पिघलने लगती है। इतनी पत्थर दिल नहीं थी कि अपनी मोहब्बत को इस तरह रोते हुए देखती।
वह असद के आँसू पोंछते हुए कहती है—
"तकलीफ हुई न, मिस्टर खान? अपनी मोहब्बत के हाथों रुस्वा होकर? पता चला जब हमारी मोहब्बत हमारी नहीं सुनती और हम पर सिर्फ अपना फैसला सुना देती है? यही होती है वह तकलीफ!"
"छह सालों से जो दर्द आपने सहा, वह सिर्फ जुदाई थी! लेकिन अब जो आपने सहा, वह बदला था! एक बार आपने मेरी मोहब्बत को गाली दी, एक बार मैंने! और जहाँ मोहब्बत को गालियाँ दी जाने लगे, वहाँ उस रिश्ते को खत्म कर देना चाहिए!"
"मैंने निकाह के वक्त जो खुला की शर्त रखी थी, आज मैं उसका इस्तेमाल करना चाहती हूँ! हमारे रिश्ते का कोई किनारा नहीं, और न ही कोई मंज़िल!"
असद अपनी आँसू भरी आँखों से इनाया को देखता है। फिर अचानक उसके पैरों में गिर जाता है—
"मैं मर जाऊँगा इनाया! तुम चाहे मेरी जान ले लो, लेकिन मुझे छोड़कर जाने का फैसला मत लो, प्लीज़!"
इनाया अपनी आँखें बंद करके अपनी मुट्ठी कस लेती है। यही वजह थी कि वह असद के सामने नहीं आना चाहती थी! क्योंकि औरत कितनी भी मज़बूत क्यों न हो, अपनी मोहब्बत के आगे हार ही जाती है।
तभी वह झट से अपनी आँखें खोलती है, असद को खड़ा करती है और खुद को उसके सीने में छुपा लेती है। वह फूट-फूट कर रोने लगती है। ये आँसू वही थे जो छह साल पहले सूख चुके थे।
असद इनाया को अपनी बाहों में भर लेता है। उसकी आँखों से भी आँसू जारी रहते हैं।
इनाया रोते हुए कहती है—
"मैंने माफ नहीं किया आपको! आप बहुत बुरे हो! मुझे ढूँढने में इतना टाइम लगा दिया! I hate you!"
असद इनाया को और कसकर अपनी बाहों में भर लेता है—
"Sorry, जान! मैंने देर की, लेकिन अब कभी तुम्हें खुद से दूर नहीं जाने दूँगा! I love you too!"
इनाया गुस्से में असद के सीने पर मुक्का मारती है—
"I hate you so much!"
असद मुस्कुराकर कहता है—
"I love you more than you!"
इनाया ने असद के सीने पर मुक्का मारा—
"I hate you so much!"
असद मुस्कुराते हुए बोला—
"I love you more than you."
इनाया गुस्से में उसके सीने पर मुक्के बरसाती रही, लेकिन असद ने उसकी हरकतों पर सिर्फ प्यार भरी मुस्कान दी। फिर, अचानक, उसने इनाया को अपनी बाहों में उठा लिया—ब्राइडल स्टाइल में।
इनाया हैरानी से चौंक गई—
"असद, नीचे उतारो मुझे!"
लेकिन असद ने बिना कुछ कहे, गहरी नजरों से उसे देखते हुए, उसे बेड पर लिटा दिया। वह धीरे-धीरे उसके चेहरे के करीब आया और फुसफुसाया—
"आज मैं तुम्हें बहुत सारा प्यार देना चाहता हूँ, इनाया। तुम्हें पूरी तरह से महसूस करना चाहता हूँ। 6 साल तक तुम्हारी जुदाई में मैंने जो तड़प सही है, अब मैं हर दूरी मिटाना चाहता हूँ। मैं हमारे सारे जख्मों को प्यार से भर देना चाहता हूँ… तुम्हारी इजाज़त का इंतजार कर रहा हूँ।"
इनाया का चेहरा शर्म से लाल हो गया। उसने नजरें झुका लीं।
असद ने अपनी उंगली से उसका चेहरा ऊपर किया—
"Look at me, Miss Chashmish!"
इनाया ने हल्का सा सिर हिलाकर मना कर दिया। असद ने प्यार से उसकी आँखों को चूमा और कहा—
"बस एक बार मेरी आँखों में देखो और कह दो कि मुझे इजाज़त है या नहीं।"
इनाया ने धीरे-धीरे नजरें उठाईं। जब उसकी आँखें असद की आँखों से मिलीं, तो उसे उनमें प्यार, तड़प, और बेचैनी साफ दिखी। उसके होंठ हल्के से कांपे, फिर उसने असद को कसकर गले लगा लिया।
असद ने उसे अपनी बाहों में भर लिया। दोनों की धड़कनें बेतहाशा शोर कर रही थीं।
असद ने इनाया की गर्दन पर होंठ रख दिए। उसके गर्म होंठ जब इनाया की ठंडी त्वचा से मिले, तो वह एक हल्की सिहरन से कांप गई। असद उसकी गर्दन पर हल्की हल्की हरकत करने लगा—पहले अपनी जीभ से छुआ, फिर प्यार से चूमा, फिर हल्का सा काट लिया। इनाया सिसक उठी।
असद ने उसे धीरे से बेड पर लिटाया और खुद अलग होकर अपना कुर्ता हटा दिया। उसकी मांसपेशियां उभरकर सामने आईं। इनाया की नजरें अनजाने में उसकी एब्स पर टिक गईं। वह अपनी उंगलियों से उन्हें छूने लगी, हल्का सा स्पर्श करते हुए, जैसे महसूस कर रही हो।
असद ने आँखें बंद कर लीं, इस अहसास में डूब गया। फिर उसने धीरे से इनाया के हाथ को पकड़कर और मजबूती से अपनी बॉडी पर घुमाया।
तभी इनाया को होश आया कि वह क्या कर रही थी। उसने झटके से अपना हाथ खींच लिया और तेजी से दूसरी ओर करवट लेकर लेट गई। अब उसे शर्म आ रही थी।
असद मुस्कुरा दिया। वह उसके कान के पास आया और फुसफुसाया—
"एक भूखे शेर के हाथ चढ़ी हो, जान। मुझसे नरमी की उम्मीद मत करना।"
इसके बाद, उसने धीरे से उसके कान को हल्का सा काट लिया। इनाया की हल्की सी चीख निकल गई।
असद ने अपना हाथ उसके टॉप के अंदर सरकाया और उसकी नर्म त्वचा को महसूस किया। इससे न सिर्फ इनाया, बल्कि वह खुद भी बेचैन हो उठा। उसने इनाया को अपनी ओर घुमाया और उसके होंठों को अपने कब्जे में ले लिया।
फिर…
एक चरर्र की आवाज़ आई!
असद ने इनाया की कुर्ती फाड़ दी।
इनाया हैरान रह गई।
लेकिन अब कुछ भी रोकना नामुमकिन था...
असद जब इनाया की हरकत देखता है तो मुस्कुरा देता है और इनाया के कान के पास जाकर बोला, "एक भूखे शेर के हाथ चढ़ी हो जान मुझसे नरमी की उम्मीद मत करना।" यह बोल असद इनाया के कान पर काट लेता है। इनाया की एक सिसकी निकल जाती है। असद इनाया की टॉप में अपना हाथ इंटर कर उसकी बॉडी को एक्सप्लोर करने लगता है और ऐसा करने से इनाया के साथ-साथ वो खुद भी बेचैन हो आता है। वो तुरंत इनाया को अपनी तरफ घुमा कर उसके होठों को अपने कब्जे में कर लेता है। असद का एक हाथ इनाया के सर के नीचे था और एक हाथ इनाया के टॉप के अंदर। वो इनाया को डीप किस करता रहता है और फिर एक चर की आवाज़ के साथ इनाया की कुर्ती को फाड़ देता है। इनाया को किश करते हुए ही असद इनाया को बेलिबास कर देता है। उसके बाद वो अपने होठों को इनाया के बदन के हर हिस्से पर ले जाकर उसे महसूस करने लगता है। इनाया को बेलिबास करते ही असद ने दोनों को कंबल से ढक लिया था।
असद इनाया के बदन के हर हिस्से को छू कर जब वापस उसके चेहरे के करीब आता है तो वो इनाया को देख कर बोला, "अब मेरी बर्दाश्त खत्म हो रही है जान, मुझे आगे बढ़ने की इजाज़त दो वरना मैं इस बेचैनी से तड़प-तड़प कर मर जाऊंगा।"
इनाया असद के होठों पर हाथ रख देती है और नज़रों को झुका लेती है।
असद उसका इक़रार समझ चुका था। वो इनाया के माथे पर किस कर बोला, "जब दर्द हो मुझे रोक देना।" उसके बाद वो इनाया के होठों को अपने कब्जे में लेकर उसमें इंटर कर जाता है। इनाया की एक चीख निकल जाती है जो उसके मुँह में ही दब जाती है। असद रुक जाता है और इनाया की आँखों में देखता है जिसमे आंसू थे। असद आगे बढ़ इनाया के आंसू पी लेता है और इनाया को देख बोला, "clam down जान कुछ नहीं हुआ।"
इनाया जो की दर्द से काँप गई थी असद की बात सुन आप नज़र उठा कर असद को देखती है। उसके बाद वो रूआँसी आवाज़ में बोली, "ब बहुत बहुत दर्द हो रहा है।"
असद ने पूछा, "बहुत ज्यादा हो रहा है?"
इनाया असद के चेहरे को बड़े ध्यान से देखती है जिस पर उसका खुद को कंट्रोल करना साफ नज़र आ रहा था। इनाया असद के गले लग जाती है और असद के कंधे पर अपने दांत गड़ा देती है। इनाया का इशारा मिलते ही असद अपनी हरकत स्टार्ट कर देता है। शुरू में जब इनाया को दर्द होता है तो वो काट लेती है और अपने नाखूनों से उसकी पीठ पर नोंचने लगती है लेकिन फिर बाद में उसका दर्द कम hone लगता है और वो असद के अहसासों में खो जाती है। आधी रात तक यही सिलसिला चलता रहा। जब इनाया की हिम्मत जवाब दे गई तो असद उससे अलग होकर उसे अपनी बाहों में भर लेता है। इनाया दर्द और थकान के कारण इतनी बेजान हो गई कि उसे अहसास ही नहीं हुआ की कब असद use बाथरूम में ले जाकर उसका और खुदका गुज़ल करा कर वापस आगया था। वो इनाया को व्हाइट बाथरूब में लपेट कर वापस लाता है तो उसकी नज़र बेडशीट पर लगे ब्लड स्टैन पर जाती है जिसे देख use ख़ुशी होती है की इनाया हमेशा उसकी थी और आज फाइनली उसकी ही हो गई। असद इनाया को पहले पास के काउच पर लेटाता है फिर बेडशीट चेंज कर बड़े आराम से इनाया को बेड पर लेता देता है। फिर ड्रार मे से ओइंटमेंट निकलकर इनाया की बॉडी पर apply करने लगता है। इनाया हर चीज़ मेहसूस कर रही थी लेकिन उसका शरीर उसके साथ आज धोखा कर रहा था। असद इनाया के बाथरोब को सही से बांध कर खुद उसके बराबर मे आकर use अपनी बाहो मे भर कर लेट जाता है। नींद उसकी आँखो से कोसो दूर थी। उसकी नज़रे इनाया के चहेरे पर बनी हुई थी। उसके dimag मे कुछ चल रहा था। वो इनाया को निहारता रहता है। कुछ ढेर मे इनाया खुद को असद के सीने मे छुपाने लगती है। असद तुरंत इनाया को अपनी बाहो मे भर कर गले से लगा लेता है और कुछ सोचता रहता है।