यह एक प्रेम कहानी है जो थ्रिल से भरी है।
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भाग 1: पहली मुलाकात
इस कहानी को एक बार अवश्य पढ़े यह अत्यंत ही रोचक और मजेदार है
दिल्ली की सर्द रातों में, जहाँ ठंडी हवा शहर के कोने-कोने में घूमती थी, एक छोटी सी चाय की दुकान पर दो अनजान लोग एक-दूसरे के सामने बैठे थे। यह 24 मार्च 2025 की रात थी, और वक्त रात के 11 बज चुके थे। चाय की दुकान का नाम था "रात की बातें," जो अपने नाम के मुताबिक रात भर खुली रहती थी। यहाँ आने वाले अक्सर अपनी कहानियाँ छोड़ जाते थे – कुछ दिल से दिल तक जाती थीं, और कुछ वहीं चाय के प्याले के साथ ठंडी हो जाती थीं।
आरव, एक 28 साल का लड़का, अपने लैपटॉप के साथ बैठा था। उसके चेहरे पर एक अजीब सी उदासी थी, जैसे वह किसी ऐसी चीज़ को ढूंढ रहा हो जो उसे कभी मिली ही न हो। उसके सामने एक चाय का प्याला रखा था, जो अब ठंडा हो चुका था। वह एक फ्रीलांस राइटर था, जो अक्सर रात भर जागकर अपने ख्यालों को शब्दों में पिरोता था। लेकिन आज उसका दिल शब्दों से ज़्यादा कुछ और ढूंढ रहा था।
दुकान के दूसरे कोने में बैठी थी नैना, 26 साल की एक लड़की, जिसके हाथों में एक पुरानी सी डायरी थी। उसके बाल बिखरे हुए थे, और आँखों में एक अजीब सी चमक थी – जैसे वह किसी सपने में जी रही हो। उसने अपने सामने एक अदरक वाली चाय रखी थी, और हर घूँट के साथ वह डायरी में कुछ लिखती थी। वह एक कलाकार थी, जो अपने चित्रों और शायरी से दुनिया को समझने की कोशिश करती थी।
दोनों के बीच एक खाली टेबल थी, लेकिन दोनों की नज़रें एक-दूसरे को छू रही थीं। आरव ने अपना लैपटॉप बंद किया और नैना की तरफ देखा। उसने सोचा, "ये लड़की ऐसी क्यों लग रही है जैसे मैं इसे पहले कहीं मिल चुका हूँ?" नैना ने भी आरव को देखा और एक हल्की सी मुस्कुराहट के साथ अपनी डायरी बंद कर दी।
"आप भी रात के जागे हुए लोगों में से हैं?" नैना ने पहली बार आवाज़ लगाई। उसकी आवाज़ में एक मिठास थी, जो आरव के कानों में घुल गई।
आरव ने जवाब दिया, "हाँ, शायद। रात में शांति होती है, लिखने के लिए।" उसने अपना ठंडा चाय का प्याला उठाया और एक घूँट लिया, जो अब बिल्कुल बेकार लगा।
"मैं भी रात में ही ज़िंदा होती हूँ," नैना ने कहा और अपनी डायरी को टेबल पर रखा। "दिन के शोर में मेरे ख्याल दब जाते हैं।"
दोनों के बीच बात शुरू हुई। चाय के प्याले ख़त्म होते गए, और रात गहरी होती गई। आरव ने नैना से पूछा, "आप क्या लिख रही थीं?"
नैना ने एक पल के लिए चुप्पी रखी, फिर बोली, "एक कहानी। एक ऐसी लड़की की जो हर रात चाँदनी के नीचे ख़ुद को ढूंढती है, लेकिन उसे पता नहीं कि वह ख़ुद चाँदनी है या उसका साया।"
आरव मुस्कुरा पड़ा। "ये बहुत ख़ूबसूरत ख्याल है।"
नैना ने उसकी तरफ देखा और कहा, "ख़ूबसूरत चीज़ें अक्सर समझने में मुश्किल होती हैं।" उसकी बात में एक गहराई थी, जो आरव को छू गई।
रात के 1 बज चुके थे। दुकान में अब सिर्फ़ वे दोनों ही बचे थे। दुकान का मालिक, एक बूढ़ा आदमी जिसका नाम था रमेश चाचा, काउंटर पर बैठा झपकियाँ ले रहा था। बाहर सड़कें सूनी थीं, और हल्की कोहरे की चादर ने पूरे शहर को ढक लिया था।
"आप यहाँ अक्सर आते हैं?" नैना ने पूछा।
"हाँ, जब भी कुछ लिखना होता है। यहाँ की चाय और शांति मुझे अपने ख्यालों के क़रीब लाती है," आरव ने कहा। "और आप?"
"मैं पहली बार आई हूँ," नैना ने जवाब दिया। "आज कुछ अलग ढूंढ रही थी, और शायद वो मुझे मिल गया।"
आरव ने उसकी बात को गौर से सुना। "क्या ढूंढ रही थीं आप?"
नैना ने एक गहरी साँस ली और कहा, "एक वजह। एक ऐसी वजह जो मुझे हर सुबह उठने का मक़सद दे।" उसकी आँखों में एक सवाल था, जो शब्दों से ज़्यादा उसकी नज़रों में झलक रहा था।
आरव को लगा कि नैना की बातें उसके अपने सवालों से मिलती-जुलती थीं। वह भी तो अपनी ज़िंदगी में कुछ ढूंढ रहा था – एक मक़सद, एक राह, या शायद एक इंसान।
"शायद हम दोनों एक ही चीज़ ढूंढ रहे हैं," आरव ने धीरे से कहा।
नैना ने उसकी तरफ देखा और हल्के से हँस दी। "शायद। लेकिन क्या आपको लगता है कि जो चीज़ हम ढूंढ रहे हैं, वो सच में कहीं है?"
इस सवाल ने आरव को सोच में डाल दिया। वह कुछ जवाब देता, इससे पहले ही बाहर सड़क पर एक तेज़ आवाज़ गूँजी। एक मोटरसाइकिल तेज़ी से दुकान के सामने से गुज़री, और उसके पीछे एक कार तेज़ी से भागी। दोनों की आवाज़ ने रात की ख़ामोशी को तोड़ दिया।
"लगता है कोई जल्दी में है," नैना ने कहा और खिड़की की तरफ देखा।
"या शायद कोई किसी से भाग रहा है," आरव ने मज़ाक में कहा।
लेकिन नैना की मुस्कुराहट अचानक गायब हो गई। उसने अपनी डायरी उठाई और जल्दी से कहा, "मुझे जाना चाहिए।"
आरव हैरान रह गया। "अभी? इतनी रात को?"
"हाँ, कुछ ज़रूरी काम याद आ गया," नैना ने कहा और अपनी कुर्सी से उठ खड़ी हुई। उसने अपने बैग में डायरी डाली और रमेश चाचा को चाय के पैसे दिए।
"फिर मिलेंगे?" आरव ने पूछा, उसकी आवाज़ में एक उम्मीद थी।
नैना ने पलटकर उसकी तरफ देखा और कहा, "अगर चाँदनी ने चाहा।" फिर वह तेज़ कदमों से दुकान से बाहर निकल गई।
आरव उसे जाते हुए देखता रहा। उसके मन में सवाल उठ रहे थे – नैना कौन थी? वह इतनी जल्दी क्यों चली गई? और उसकी आँखों में वो अजीब सी बेचैनी क्या थी? उसे लगा कि यह मुलाकात बस एक शुरुआत थी।
दुकान में अब सिर्फ़ वह अकेला था। उसने अपनी नज़र टेबल पर घुमाई, जहाँ नैना बैठी थी। वहाँ एक छोटा सा कागज़ का टुकड़ा पड़ा था, जो शायद उसकी डायरी से गिर गया था। आरव ने उसे उठाया और पढ़ा। उस पर लिखा था:
"चाँदनी को ढूंढने वाले अक्सर अंधेरे में खो जाते हैं। क्या तुम तैयार हो?"
आरव के हाथ काँपने लगे। यह क्या था? एक संदेश? एक पहेली? या बस एक ख्याल? उसने कागज़ को अपनी जेब में रख लिया और सोच में डूब गया। उसे नहीं पता था कि यह रात उसकी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदलने वाली थी।
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आरव उस छोटे से कागज़ के टुकड़े को अपनी जेब में डालकर चाय की दुकान में बैठा रहा। रमेश चाचा अब काउंटर पर पूरी तरह सो चुके थे, और उनकी हल्की खर्राटों की आवाज़ दुकान में गूँज रही थी। बाहर कोहरा और गहरा हो गया था, और सड़क पर अब कोई आवाज़ नहीं थी। आरव का मन बेचैन था। उसने अपनी जेब से वह कागज़ निकाला और फिर से पढ़ा – "चाँदनी को ढूंढने वाले अक्सर अंधेरे में खो जाते हैं। क्या तुम तैयार हो?" यह शब्द उसके दिमाग में बार-बार गूँज रहे थे।
उसने अपने लैपटॉप को फिर से खोला और एक नया पेज शुरू किया। उसका इरादा था कि वह नैना के बारे में कुछ लिखे – उसकी आँखों की चमक, उसकी बातों की गहराई, और उस अजीब से रहस्य को, जो उसे घेरे हुए था। लेकिन जैसे ही उसने टाइप करना शुरू किया, उसके हाथ रुक गए। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या लिखे। नैना कोई साधारण लड़की नहीं थी – यह बात उसे अब तक साफ हो चुकी थी।
तभी दुकान का दरवाज़ा फिर से खुला। आरव ने सोचा शायद कोई नया ग्राहक आया हो, लेकिन उसकी नज़रें चौड़ी हो गईं जब उसने देखा कि नैना वापस लौट आई थी। उसके चेहरे पर अब वो मुस्कुराहट नहीं थी, बल्कि एक हल्की सी घबराहट थी। वह सीधे आरव की टेबल की ओर बढ़ी और उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई।
"मैं कुछ भूल गई थी," नैना ने कहा, उसकी साँसें थोड़ी तेज़ थीं, जैसे वह भागकर आई हो।
"क्या?" आरव ने हैरानी से पूछा।
नैना ने अपने बैग से एक छोटा सा लॉकेट निकाला। यह चाँदी का बना था, और उसमें एक छोटा सा चाँद का आकार उकेरा हुआ था। उसने उसे टेबल पर रखा और कहा, "ये मेरा है। मुझे लगा था कि इसे यहाँ छोड़ दूँ, लेकिन फिर सोचा कि शायद ये तुम्हारे पास होना चाहिए।"
आरव ने उस लॉकेट को हाथ में लिया। यह ठंडा था, लेकिन उसमें एक अजीब सी गर्मी भी महसूस हुई। "मेरे पास क्यों?" उसने पूछा।
"क्योंकि तुमने मुझसे पूछा कि क्या हम फिर मिलेंगे," नैना ने कहा। "ये लॉकेट उस सवाल का जवाब है। अगर तुम इसे रखोगे, तो शायद हमारी राहें फिर से मिलेंगी।"
आरव के लिए यह सब एक सपने जैसा लग रहा था। उसने लॉकेट को अपनी हथेली में बंद किया और कहा, "तुम सच में बहुत अजीब हो, नैना।"
नैना हल्के से हँसी। "अजीब होना बुरा नहीं है। ये दुनिया इतनी साधारण है कि थोड़ा अजीब होना ही इसे ख़ास बनाता है।"
"तुम सच में कल जा रही हो?" आरव ने पूछा, उसकी आवाज़ में एक हल्की सी मायूसी थी।
"हाँ," नैना ने कहा। "लेकिन जाने से पहले मुझे लगा कि तुमसे एक बार और मिलना चाहिए। शायद इसलिए कि तुम वो पहले इंसान हो जिसने मेरी बातों को इतने गौर से सुना।"
आरव का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे। वह बस नैना की आँखों में देखता रहा, जहाँ एक अजीब सा समंदर लहरा रहा था – शांत, लेकिन गहरा।
"तुम्हारी डायरी में क्या है?" आरव ने फिर से पूछा, इस बार थोड़ा हिम्मत जुटाकर।
नैना ने एक पल के लिए उसकी तरफ देखा, फिर अपने बैग से डायरी निकाली और टेबल पर रख दी। उसने कहा, "ये मेरी ज़िंदगी का एक हिस्सा है। हर पन्ने में एक कहानी है, एक याद है, और एक सवाल है। लेकिन इसे अभी मत खोलना। जब मैं चली जाऊँ, तब देखना।"
"क्यों?" आरव ने हैरानी से पूछा।
"क्योंकि अभी मैं यहाँ हूँ," नैना ने कहा। "और जो चीज़ सामने हो, उसे पहले जी लेना चाहिए, न कि उसके बारे में पढ़ लेना चाहिए।"
आरव के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था। वह बस नैना को देखता रहा, जो अब अपनी चाय का आखिरी घूँट ले रही थी। रात के 2 बज चुके थे, और दुकान के बाहर कोहरा इतना घना हो गया था कि कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
"अब मुझे सच में जाना होगा," नैना ने कहा और उठ खड़ी हुई। "लेकिन ये लॉकेट रखना, आरव। ये तुम्हें मेरे करीब रखेगा।"
उसके जाने के बाद आरव वहीँ बैठा रहा। उसने लॉकेट को अपनी जेब में डाला और सोच में डूब गया। उसे नहीं पता था कि यह मुलाकात उसकी ज़िंदगी में एक तूफान लाने वाली थी।
इसके दूसरे पार्ट के लिए बस थोड़ा सा इंतजार कीजिए बड़ी जल्द हम इसका दूसरा संस्करण जारी करेंगें धन्यवाद