दुनिया के अंधेरे कोनों में, जहाँ इंसानियत दम तोड़ चुकी है और गोलियों की गूंज ही इंसाफ तय करती है, वहीं एक लड़की ने अपनी तक़दीर खुद लिखी। साहिबा, जो कभी मासूम ख्वाहिश हुआ करती थी, ज़िन्दगी के दर्द और धोखे ने उसे पत्थर बना दिया। उसने अपने आँसुओं को बार... दुनिया के अंधेरे कोनों में, जहाँ इंसानियत दम तोड़ चुकी है और गोलियों की गूंज ही इंसाफ तय करती है, वहीं एक लड़की ने अपनी तक़दीर खुद लिखी। साहिबा, जो कभी मासूम ख्वाहिश हुआ करती थी, ज़िन्दगी के दर्द और धोखे ने उसे पत्थर बना दिया। उसने अपने आँसुओं को बारूद में बदल दिया और हर उस इंसान से बदला लिया जिसने उसकी मासूमियत का सौदा किया था। आज, अंडरवर्ल्ड की साहिबा के नाम से मशहूर, वह सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक खौफ है, जिसे सुनकर दुश्मनों की रूह काँप उठती है। लेकिन उसकी बर्बादी की इस दुनिया में एक नाम ऐसा था, जो उससे भी ज़्यादा खतरनाक, लेकिन उतना ही टूटा हुआ था – मान सूर्यवंशी। अंडरवर्ल्ड का बेताज बादशाह, जो अपनों के विश्वासघात से बिखर चुका था। जिसकी आँखों में सिर्फ नफरत और हाथों में सिर्फ मौत का फरमान था। लेकिन जब उसकी मुलाक़ात साहिबा से हुई, तो कुछ बदला। वह जो पत्थर दिल था, साहिबा की नफरत में छुपी उसकी सच्चाई को देख सका। वह जो दुनिया से सिर्फ लेना जानता था, साहिबा के दर्द में खुद को खो बैठा। क्या ये दो जले हुए दिल एक-दूसरे की राख से फिर से ज़िन्दगी बना सकते हैं? क्या अंडरवर्ल्ड की दुनिया में भी प्यार पनप सकता है या फिर गोलियों और साजिशों के बीच यह कहानी भी किसी अधूरे अफसाने में बदल जाएगी? जानने के लिए पढ़ें एक रोमांचक सफर, जहाँ बदले की आग में प्यार पनपता है, और नफरत की दुनिया में मोहब्बत अपनी जगह तलाशती है...
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मुंबई,
सपनों का शहर या खौफ का...
एक बड़े से विला में,
एक अँधेरे कमरे में,
कमरे में घना अंधेरा पसरा हुआ था। बस एक बल्ब टिमटिमा रहा था, जिसकी रोशनी में चार आदमी एक घायल शख्स को घेरकर खड़े थे। उसके शरीर पर जगह-जगह गहरे जख्म थे; खून बहकर जमीन पर जमा हो चुका था। उसकी कराहें और दर्द भरी सिसकियाँ कमरे की स्याह दीवारों से टकराकर वापस लौट रही थीं।
तभी बाहर से किसी के कदमों की गूँज सुनाई दी। चारों आदमी फौरन सीधा खड़े हो गए, जैसे किसी का इंतजार कर रहे हों। दरवाजा खुला, और अंदर एक लड़की दाखिल हुई। उसकी चाल में ठहराव था, लेकिन आँखों में भयंकर तूफान।
उसकी नजर सामने पड़े उस अधमरे आदमी पर पड़ी। आदमी घबराया हुआ उसकी ओर देखने लगा; उसकी साँसें तेज हो गईं।
वह दर्द से कराहते हुए गिड़गिड़ाया, "प्लीज़… मुझे छोड़ दो। मैंने कुछ नहीं किया… मुझे जाने दो…"
लेकिन लड़की के चेहरे पर कोई भाव नहीं था। उसकी आँखों में नफरत का वो अंधेरा था, जो किसी को भी मौत से भी बदतर सजा देने के लिए काफी था। अचानक उसकी आँखों के सामने एक पुराना दृश्य कौंध गया—
एक छोटी लड़की… बेबस… बदहवास… घुटनों पर गिरी, हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रही थी।
"प्लीज़… मुझे छोड़ दीजिए… मुझे माफ कर दीजिए… मैंने आपका कुछ नहीं बिगाड़ा…"
लेकिन जवाब में वह सिर्फ दरिंदगी से हँस रहा था… वह लड़की चिल्ला रही थी… चीख रही थी… लेकिन कोई नहीं सुन रहा था…
अब उस लड़की की आँखें गुस्से से अंगार हो गईं। साँसों में खौलता हुआ जहर उतर आया। उसने एक झटके में अपने लंबे बूट से उस आदमी के चेहरे पर इतनी जोरदार लात मारी कि वह जमीन पर गिर पड़ा, मुँह से खून उगलते हुए तड़पने लगा। लेकिन वह न रुकी, न पिघली।
"तू चाहता है कि तुझे छोड़ दूँ?" उसकी आवाज बर्फ से भी ज्यादा ठंडी थी।
वह नीचे झुकी, उसकी कॉलर पकड़कर उसे अपने करीब खींचा। उसके चेहरे के जख्मों से रिसते खून पर उँगलियाँ फिराईं और धीमे से कहा, "जो तूने किया, उसकी सजा क्या इतनी मामूली हो सकती है? तुझे हर रोज मरना होगा… हर रोज तेरा खून बहेगा, जब तक तेरी रूह तेरे जिस्म से निकलकर घुट-घुटकर तड़प नहीं उठेगी तब तक तू यूँ ही यहां कैद रहेगा।"
फिर उसने अपने आदमियों की ओर देखा और आदेश दिया, "जब तक यह जिंदा है, इसे हर पल यह एहसास होना चाहिए कि इसने क्या किया। इसकी हर चीख, हर सिसकी इसे खुद से नफरत करना सिखाएगी। इसे अपने पैदा होने पर अफसोस होना चाहिए… अगर यह मरने की भीख भी माँगे, तब भी इसे मरने मत देना!"
कमरे में एक गहरा सन्नाटा पसर गया… बस उस आदमी की हिचकियाँ और घबराई हुई साँसें गूँज रही थीं…
कमरे में मौत का साया मंडरा रहा था।
अधमरा आदमी ज़मीन पर पड़ा तड़प रहा था। खून से लथपथ चेहरे से पसीना और दर्द की बूंदें टपक रही थीं। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं, डर उसकी आँखों में नाच रहा था। वह दर्द और बेबसी से रोते हुए बुदबुदाया, "क्यों कर रही हो मेरे साथ ऐसा? आखिर मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?"
लड़की, जो अब तक उसे पत्थर जैसी आँखों से घूर रही थी, हल्की सी मुस्कुराई। उसने धीरे से एक घुटने के बल बैठते हुए उसके बालों को मुट्ठी में जकड़ा और झटके से उसका मुँह ऊपर उठाया। उसकी उँगलियाँ इतनी सख्त थीं कि दर्द के मारे वह आदमी छटपटाने लगा।
"मैं तेरे बाप, उसके बाप और उसके भी बाप को जानती हूँ…"
उसकी आवाज़ में जहरीली मिठास थी, "इसीलिए तेरी सजा में इतना इजाफा किया है। जिसके बाप ने ही गंद फैला रखी हो, उसके बेटे से मैं कोई अच्छाई की उम्मीद कर ही नहीं सकती।"
यह कहकर उसने पूरे ज़ोर से उसका सिर ज़मीन पर पटक दिया। जोरदार धमाके की आवाज़ आई और आदमी की चीख पूरे कमरे में गूँज उठी। उसके माथे से खून बहने लगा, लेकिन लड़की की आँखों में ज़रा भी दया नहीं थी। वह खड़ी हुई और अपने बराबर में खड़े एक आदमी की तरफ़ देखा।
"लेकर आओ।"
उसके लहज़े में ऐसा हुक्म था कि चारों आदमी एकदम सतर्क हो गए। उनमें से एक फौरन बाहर निकला और कुछ ही पलों में लौट आया। उसके हाथ में एक बड़ा काला कंटेनर था, जिसका ऊपरी ढक्कन पूरी तरह बंद था। कंटेनर को कमरे के बीचों-बीच रख दिया गया। लड़की ने उसकी ओर देखा और फिर मुस्कुराते हुए उस आदमी को घूरा, जो अब तक रो रहा था।
"जानता है इसमें क्या है?" वह धीरे से आगे बढ़ी और कंटेनर पर हाथ फेरते हुए बोली, "इसे कहते हैं मौत का डिब्बा… इसमें दुनिया के सबसे जहरीले और खतरनाक कीड़े भरे हैं। ये तिल-तिल कर खाएंगे तुझे… पर जल्दी नहीं… बहुत धीरे-धीरे, बहुत शिद्दत से। तेरे जिस्म का हर हिस्सा गल जाएगा, पर मौत नहीं आएगी।"
आदमी की आँखें फटी की फटी रह गईं। उसका पूरा शरीर डर से काँपने लगा।
"न.. नहीं… प्लीज़… प्लीज़ नहीं…" उसने हाथ जोड़ दिए। "मैं मर जाऊँगा… मुझे छोड़ दो…"
लड़की हँसी। पर वह हँसी किसी इंसान की नहीं थी, वह मौत की परछाईं थी।
"मरना तो हैं ही!" वह झुककर उसके कान में फुसफुसाई, "पर इतनी जल्दी नहीं… पहले थोड़ा दर्द सह, थोड़ा तड़प ले। और जब तेरा वजूद घुटनों पर गिरकर खुद अपनी मौत की भीख माँगेगा, तब भी मैं तुझे इतनी आसानी से मरने नहीं दूँगी।"
वह सीधी हुई और अपने आदमियों की तरफ़ देखा।
"जब तुम्हारा काम खत्म हो जाए, इसे इनके हवाले कर देना।" वह कंटेनर की ओर इशारा करते हुए बोली, "देखती हूँ इनके साथ रहने के बाद भी ये जिंदा रहता है या नहीं। और हाँ…" उसने हल्के से गर्दन टेढ़ी कर एक खौफनाक मुस्कान दी, "अगर किसी तरह बच जाए, तो फिर से इसे तोड़ना। तब तक, जब तक यह खुद अपने हाथों से अपनी मौत की भीख नहीं माँगता। और जब मर जाए…"
उसने पलटकर दरवाजे की ओर कदम बढ़ाए और ठहरकर कहा, "तो इसकी लाश उसके बाप को पार्सल कर देना… याद दिलाने के लिए कि यह सिर्फ़ शुरुआत है!"
कमरे में एक सर्द सन्नाटा छा गया। वह लड़की दरवाजे से बाहर चली गई, लेकिन उसकी मौजूदगी का डर अभी भी चारों दीवारों में घुला हुआ था।
पीछे… वह आदमी ज़मीन पर पड़ा, रोता रहा, कांपता रहा… लेकिन अब उसके आँसू भी उसकी सजा को रोक नहीं सकते थे।
पेरिस, एक अंधेरी रात…
एक भव्य, गहरे लाल रंग के कालीन से सजे एक सीक्रेट अंडरवर्ल्ड मीटिंग हॉल में धुएँ और पैसों की गंध घुली हुई थी। काली वर्दियों में चारों ओर तैनात लोग, महँगे सूट पहने कुछ शातिर डीलर्स, और बैकग्राउंड में गूंजता धीमा जैज़ म्यूजिक— ये सब चीजें मिलकर माहौल को और भी रहस्यमयी बना रहे थे।
लेकिन उस लंबे, चमचमाते ओक की लकड़ी से बने टेबल के हेड पर बैठा शख्स… वो एकदम शांत था। उसकी खामोशी किसी तूफान से पहले की शांति जैसी थी। उसकी उँगलियाँ टेबल पर हल्की-हल्की थपथपा रही थीं, मगर उसकी ठंडी और बेरहम आँखें, वहाँ मौजूद हर इंसान को तौल रही थीं।
टेबल के दोनों ओर बैठे लोग आपस में झगड़ रहे थे—किस की बात ऊँची, किस की और ऊँची। किसी के चेहरे पर क्रोध तो किसी पर व्यंग्य भरी मुस्कान।
एक आदमी अपने सामने रखे सिगार को घुमाते हुए हँसा, "ये डील तुम्हारी सोच से भी बड़ी है, जॉन! तुम जैसे छोटे खिलाड़ी इसे समझ भी नहीं सकते।"
"और तुम जैसे लोग इसे डील समझते भी क्यों हो?" दूसरी तरफ से जवाब आया।
माहौल गरम हो रहा था, लेकिन वह शख्स अब भी खामोश था।
उसके पीछे खड़े उसके खास आदमी की हथेलियाँ पसीने से भीग रही थीं। वह जानता था कि उसका बॉस जब तक चुप रहता था, तब तक सब ठीक था… लेकिन जैसे ही वह बोलेगा, कुछ बहुत बुरा होगा।
वह थोड़ा झुका और धीमी आवाज़ में बोला, "सर, अगर आप कहें तो मैं इन लोगों को चुप करवा दूँ?"
हेड चेयर पर बैठे शख्स ने अपनी कलाई हल्के से उठाकर उसे इशारा किया। जैसे कहा हो —रहने दो… कुत्तों को भौंकने दो।
लेकिन तभी दरवाजे पर एक हलचल हुई। एक आदमी लगभग भागते हुए अंदर आया और सीधे बॉस के कान में कुछ फुसफुसाया।
सुनते ही बॉस की आँखों में एक ठंडी, मौत जैसी चमक आ गई। उसके जबड़े भींच गए। और फिर…
धड़ाम!
वह कुर्सी को पीछे धकेलकर उठा, अपने सूट के पीछे से एक सिल्वर-ब्लैक गन निकाली और एक… दो… तीन… चार…
चार गोलियाँ—सीधी चार आदमियों के माथे के बीचोंबीच।
गोली चलने की आवाज़ जैसे पूरे कमरे में गूँज गई। पूरा हॉल एक झटके में मौत की खामोशी में डूब गया। धुएँ की गंध अब बारूद की गंध में बदल गई थी। चारों लाशें टेबल पर ऐसे गिरीं जैसे कोई बेकार के पत्ते हों।
बॉस ने गन को अपनी बेल्ट में डाला और पूरी तरह शांत, बिलकुल नपे-तुले कदमों से टेबल के कोने तक गया। उसने एक ग्लास उठाया, उसमें थोड़ी व्हिस्की डाली, और धीमे से एक सिप लिया।
फिर बिना किसी हड़बड़ाहट के उसने बाकी लोगों पर एक ठंडी नजर डाली और कहा—
"अब कोई और कुछ कहना चाहता है?"
कमरे में अभी भी सन्नाटा था… लेकिन अब यह सन्नाटा सिर्फ डर का था।
बॉस धीरे-धीरे मुड़ा और उस आदमी की ओर देखा जो अभी-अभी दौड़ता हुआ आया था। उसकी लाल, खून जैसी चमकती आँखें सीधे उस आदमी की रूह में उतर गईं। कमरे में अब भी सन्नाटा था, लेकिन यह सन्नाटा अब और भारी हो गया था—जैसे मौत खुद हवा में तैर रही हो।
बॉस ने अपनी गर्दन पहले दाईं ओर घुमाई, फिर बाईं ओर। उसकी हड्डियाँ कट-कट की आवाज़ के साथ चटखने लगीं। ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने अंदर के ज्वालामुखी को फूटने से रोक रहा हो। उसके जबड़े भींचे हुए थे, उसकी साँसें भारी थीं, और उसकी उँगलियाँ धीरे-धीरे मुट्ठी में बदल रही थीं।
दूसरा आदमी, जो खबर लेकर आया था, अब पसीने-पसीने था। उसकी टाँगें काँप रही थीं, और उसकी नज़रें झुकी हुई थीं। उसने जैसे ही अपने होंठ खोले कुछ कहने के लिए, बॉस ने एक धीमी मगर ठोस चाल से आगे बढ़कर उसके कंधे पर हाथ रख दिया।
"इससे भी बुरी खबर लाओगे," बॉस की आवाज़ किसी गहरी खाई से आती लग रही थी—धीमी, ठंडी, लेकिन इतनी भयानक कि आदमी की रूह तक हिल गई।
"तब भी मुंबई में कभी नहीं जाऊँगा।"
कहते ही बॉस ने हल्के से उसके कंधे पर दो बार थपथपाया। मगर वह थपथपाहट किसी सांत्वना की तरह नहीं थी, बल्कि एक चेतावनी की तरह थी—एक ऐसी चेतावनी, जो कह रही थी कि अगर दोबारा ऐसा कुछ हुआ, तो वह हाथ थपथपाने के लिए नहीं, गला दबाने के लिए उठेगा।
बॉस ने कोई और शब्द नहीं कहे। वह बस मुड़ा और अपने भारी, मगर सधे हुए कदमों से हॉल से बाहर निकल गया। उसके जाते ही कमरे का माहौल किसी कब्रिस्तान की तरह ठंडा और डरावना हो गया।
अब सिर्फ एक सवाल हवा में तैर रहा था—मुंबई में ऐसा क्या था, जिसे खुद अंडरवर्ल्ड का बेताज बादशाह भी छूना नहीं चाहता था?
"द माफिया गैंग विला," समुद्र के किनारे बना था, जहाँ हर ईंट के पीछे कोई न कोई राज़ छुपा था। यह सिर्फ़ एक आलीशान हवेली नहीं थी; मुंबई के सबसे बड़े और ताकतवर माफिया डॉन देवा भाऊ सरकार की ताकत की पहचान थी। यहाँ बड़े-बड़े सौदे होते थे, और दुश्मनों की तक़दीर का फैसला किया जाता था। इतना ही नहीं, शहर की सियासत तक यहीं से चलती थी।
देवा भाऊ, एक ऐसा नाम जिससे कभी पूरा मुंबई काँपता था। कहते थे, अगर उन्होंने किसी को ज़िंदा रहने की इजाज़त दी, तो वह उनकी सबसे बड़ी मेहरबानी थी। लेकिन वक़्त के साथ उन्होंने धीरे-धीरे खुद को अंडरवर्ल्ड से दूर कर लिया। अब उनका ज़्यादातर वक़्त अकेले या अपने कुछ वफादार लोगों के साथ बीतता था।
लेकिन यह दुनिया इतनी आसान नहीं थी। माफिया की गद्दी कभी खाली नहीं रहती। देवा भाऊ भले ही साइड हो गए हों, लेकिन उनके बनाए हुए कुछ खास लोग अब भी इस गद्दी को संभाल रहे थे। कौन थे ये लोग? अब जल्दी ही सभी को उनके बारे में पता चलने वाला था।
वह शाम बाकी दिनों जैसी नहीं थी। ‘द माफिया गैंग’ विला की आलीशान हवेली में तनाव घुला हुआ था। मुंबई के सबसे बड़े माफिया डॉन देवा भाऊ सरकार अपने पसंदीदा सिंहासन पर बैठे थे। पचास साल की उम्र के बावजूद उनका रुतबा वैसा ही था, जैसा उनकी जवानी में हुआ करता था। उनका चेहरा आज भी सख्त था, आँखों में वही पुराना तेज़, लेकिन उनकी चुप्पी सबसे खतरनाक थी।
हॉल के बीचों-बीच एक लंबा लकड़ी का टेबल था, जिसके चारों तरफ़ मुंबई के अलग-अलग गैंग्स के बॉस बैठे थे। सभी के चेहरे पर बेचैनी थी, और वजह भी थी।
"भाऊ, हालात हाथ से निकल रहे हैं!" पहले आदमी ने कहा, उसकी आवाज़ में डर साफ झलक रहा था।
"हमारे लोगों के घरों पर अचानक हमले हो रहे हैं... उनके बच्चे, खासकर लड़के, गायब हो रहे हैं। और फिर उनकी ऐसी लाशें मिल रही हैं जिनको देखना और पहचानना दोनों मुश्किल है…ये कोई छोटा-मोटा खेल नहीं है, इसके पीछे कोई बड़ा हाथ है!"
वातावरण एकदम भारी हो चुका था। सबकी नज़रें देवा भाऊ की तरफ़ थीं, लेकिन वह अब भी ख़ामोश थे।
"भाऊ, यह सिर्फ़ बाहर के लोगों का काम नहीं हो सकता।" दूसरे आदमी ने गुस्से में कहा, "कोई अपना ही है, जो हर चीज़ की खबर बाहर दे रहा है। हमारे धंधे, हमारी मीटिंग्स... सब कुछ लीक हो रहा है!"
इस बार हल्की-सी सरसराहट हुई। हर कोई एक-दूसरे को घूरने लगा। शक की चिंगारी अब हवा पकड़ने लगी थी।
देवा भाऊ सरकार ने धीरे से अपनी कुर्सी की पीठ से सिर टिकाया; उनकी उंगलियाँ लकड़ी की आर्मरेस्ट पर हल्के से बज रही थीं। पूरे कमरे में सिर्फ़ यही आवाज़ गूंज रही थी।
और फिर, उन्होंने बहुत ठंडे लहजे में कहा, "जिसने यह खेल शुरू किया है, उसे बाहर लाने का वक़्त आ गया है। जल्दी ही सही-गलत सब खुलकर सामने होगा।"
उन्होंने अपने लोगों की तरफ़ देखा। वे न हिले, न डुले... लेकिन उनकी आँखें कह रही थीं कि अब खून बहेगा... और इस बार, दुश्मन का नहीं, बल्कि गद्दार का।
देवा भाऊ सरकार ने कुर्सी पर पीछे टेक लगाई, सिगार का लंबा कश लिया और भारी आवाज़ में बोले, "मामला गंभीर है, लेकिन यह भी सब जानते हैं कि अंडरवर्ल्ड से मैंने अपना हाथ खींच लिया है। कौन यह सब कर रहा है और इसके पीछे किसका दिमाग़ है, यह मैं पता लगवाऊँ? पर क्यों भला? मैं तो अब किसी भी काम में दखल नहीं देता। मीटिंग अटेंड करता हूँ, तुम्हारी सुनता हूँ, पर फैसला नहीं करता। अगर तुम्हें अपने फैसले करवाने हैं, अगर अपने मसले सुलझाने हैं, तो उसे बुलाना पड़ेगा।"
सरकार की बात सुनकर वहाँ बैठे सबके चेहरों का रंग उड़ गया। कमरे में एक सिहरन दौड़ गई। कोई हिम्मत नहीं कर रहा था, आगे कुछ कहने की।
तभी एक आदमी ने घबराते हुए हिम्मत जुटाई, "सरकार, आप भी जानते हैं कि उनको बुलाना नामुमकिन है…"
पूरा कमरा खामोश हो गया। सिर्फ़ सिगार के जलने की हल्की आवाज़ गूंज रही थी।
देवा भाऊ सरकार ने एक गहरी साँस ली, कुर्सी से उठे और ठहरी हुई आवाज़ में कहा, "तो अब मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता… तुम लोग भले ही आज भी मुझे अपना किंग मानते हो, लेकिन सच्चाई यह है कि अंडरवर्ल्ड का किंग अब सिर्फ़ एक ही है – मान सूर्यवंशी। अगर सच में अपनी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन चाहिए, तो तुम्हें उसे यहाँ बुलाना ही होगा।"
कमरे में सन्नाटा छा गया। सब एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे। मान सूर्यवंशी… यह नाम सुनते ही वहाँ बैठे कुछ लोगों के चेहरों पर डर साफ झलकने लगा। कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। देवा भाऊ सरकार ने अपनी सिगार बुझाई, और बिना कुछ कहे कमरे से बाहर चले गए।
पेरिस की ठंडी हवा में एक लंबा-चौड़ा, हैंडसम लड़का शर्टलेस खड़ा था। वह शटरलेस विंडो के पास खड़ा होकर सिगरेट के लंबे-लंबे कश ले रहा था। उसके सामने पूरी पेरिस सिटी की जगमगाहट थी, लेकिन उसकी आँखों में वह चमक नहीं थी, जो कभी हुआ करती थी। चेहरे पर हल्की उदासी और आँखों में अजीब सा खालीपन… ऐसा लगता था जैसे वह वहाँ होकर भी वहाँ नहीं था।
तभी फोन की घंटी बजी। उसने धीरे से सिगरेट को होंठों से हटाया और कॉल रिसीव की। दूसरी तरफ से किसी ने कुछ कहा।
एक पल के लिए मान सूर्यवंशी खामोश रहा। फिर उसके चेहरे पर एक खतरनाक स्माइल आई। उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी। उसने हल्की आवाज़ में कहा,
"Interesting… अब खेल को दूर से देखने में मज़ा नहीं आएगा… पास जाना ही पड़ेगा।"
उसने सिगरेट फेंकी, ग्लास से एक घूंट लिया और किसी को कॉल करके ठंडी आवाज़ में कहा,
"मुंबई चलने की तैयारी करो।"
इसके साथ ही वह खिड़की से हटकर कमरे के अंदर चला गया। तूफान उठ चुका था… और अब वह सीधा मुंबई की ओर बढ़ रहा था।
रात का समय था, हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। दूर कहीं गाड़ियों की हल्की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं। एक सुनसान इलाके में एक लड़की, जिसकी उम्र करीब उन्नीस साल थी, काले चमड़े की जैकेट पहने एक पुरानी इमारत की छत पर खड़ी थी। उसके कान से फोन लगा हुआ था। उसकी आँखों में एक अजीब सा संयम और बेचैनी का मेल था।
लड़की की आँखों में असीम गहराई थी, पर उसने नर्म लहजे में कहा, "बेबी, डोंट वरी… मम्मा जल्दी आ जाएँगी, ठीक है? मम्मा को भी तुम्हारी बहुत याद आती है।"
फोन के दूसरी तरफ से एक मासूम आवाज़ आई। एक नन्हा लड़का, जिसकी आवाज़ में मासूमियत के साथ हल्का-सा शिकवा छिपा था।
लड़का: "मम्मा, प्लीज जल्दी आओ ना! हमें मिले हुए बहुत टाइम हो गया। आपने कहा था हम साथ में मूवी देखने चलेंगे, मस्ती करेंगे। प्लीज़, मम्मा! इस बार तो अपना वादा नहीं तोड़ोगी ना?"
लड़की की आँखें हल्की सी भीग गईं, पर उसकी आवाज़ में अभी भी ठहराव था। उसने अपनी भावनाओं को दबाकर हल्की मुस्कान के साथ कहा, “आपकी मम्मा कभी अपना वादा नहीं तोड़ती, है ना? तो फिर चिंता मत करो। मैं हमेशा की तरह तुम्हारे पास जल्द आ जाऊंगी।”
लड़का खुश होकर हँस पड़ा, और फोन कट गया।
जैसे ही लड़की ने फोन जेब में डाला, उसके चेहरे की नरमी गायब हो गई। उसकी आँखों में अब एक सख्त चमक आ चुकी थी। तभी पीछे से एक काले सूट में आदमी, जिसके चेहरे पर हल्की सी दाढ़ी और आँखों में गहरा संजीदापन था, उसकी तरफ़ बढ़ा।
आदमी ने गंभीर लहजे में कहा, "साहिबा, सारी तैयारी पूरी हो चुकी है। सब कुछ आपके इशारे का इंतज़ार कर रहा है।"
लड़की धीरे-धीरे मुड़ी। उसकी चाल में अजीब सा आत्मविश्वास और सख्ती थी। उसने एक पल के लिए आदमी को घूरा, फिर अपने दस्ताने पहनते हुए हल्की सी मुस्कुरा दी।
लड़की ने धीमे लेकिन तीखे अंदाज़ में कहा, "इंटरेस्टिंग… तो अब वक़्त आ गया है, उन पत्तों को खोलने का जो अब तक छुपे हुए थे।"
रात के घने अंधेरे में एक काला साया, बड़े ही सुकून और बेआवाज़ कदमों के साथ, एक शानदार हवेली में दाखिल हुआ। उसकी चाल में एक अजीब-सा ठहराव और बेखौफी थी। हल्की चांदनी की धुंधली रोशनी में उसका जिस्म तो नज़र आ रहा था, मगर चेहरा घने अंधेरे में छुपा हुआ था। उसकी चाल से साफ था कि वह कोई नौजवान लड़की थी।
वह साया सावधानी से आगे बढ़ता हुआ सीढ़ियों तक पहुँचा ही था कि अचानक पूरे घर की लाइट्स जल उठीं। तेज रोशनी से उसकी आँखें चौंधिया गईं, और उसने घबराकर कसकर अपनी पलकों को भींच लिया।
तभी एक भारी मगर बेहद ठहरी हुई आवाज़ हवेली के सन्नाटे को चीरती हुई गूंजी,
"आज फिर खुद से जंग लड़कर आ रही हो? जब इतनी बड़ी जंग छेड़ ही रखी है तो अपने इस मुँहबोले बाप को भी इसमें शामिल कर लिया करो।"
साया धीरे-धीरे मुड़ा। रोशनी में उसका चेहरा साफ नज़र आने लगा। वह कोई और नहीं, बल्कि साहिबा थी। उसने कुछ पल ठहरकर उस आदमी की ओर देखा जो हवेली के बीचों-बीच खड़ा था। वह कोई मामूली शख्स नहीं, बल्कि देवा भाऊ सरकार थे—अंडरवर्ल्ड का वो नाम, जिससे बड़े-बड़े लोग भी थरथर कांपते थे।
साहिबा उनके पास जाकर रुक गई, हल्की मगर ठहरी हुई आवाज़ में बोली,
"बाबा साहेब, आपसे जंग करके मेरा ही नुकसान है। लेकिन जो जंग मैं लड़ रही हूँ, उसमें मैं आपको शामिल नहीं करना चाहती… क्योंकि ये जंग साहिबा ने शुरू की है और इसे खत्म भी साहिबा ही करेगी।"
देवा भाऊ सरकार ने आगे बढ़कर उसके सिर पर हाथ रखा; उनकी गहरी आँखों में फ़िक्र झलक रही थी।
"तुम्हारी जंग, तुम्हारा बदला… सब ही तुम्हारा है… पर इस सब में कभी खुद को अकेला मत समझना… तुम्हारा ये बाप हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा।"
साहिबा के होंठों पर हल्की मुस्कान आ गई, मगर आँखों में वही पुराना दर्द चमक उठा।
"आपके होते हुए मैं अकेली हो भी नहीं सकती, बाबा साहेब।"
देवा भाऊ सरकार ने एक गहरी सांस ली, फिर गंभीर आवाज़ में कहा,
"अब चेहरे से ये मासूमियत का नकाब हटा दो, साहिबा। अंडरवर्ल्ड में तहलका मच चुका है… हर कोई उस साये के बारे में जानना चाहता है, जो उनके घरों में घुसकर खून बहा रहा है, उनके बेटों को मौत के घाट उतार रहा है।"
साहिबा की आँखों में एक सख्त चमक उभर आई। उसने धीरे से अपना सिर झुका लिया, मानो यह बात वह पहले से जानती हो। हवेली के चारों ओर फिर से सन्नाटा पसर गया… लेकिन इस सन्नाटे में भी एक अजीब-सी खलबली थी—तूफान के आने से पहले की खामोशी।
साहिबा ने धीरे-धीरे अपना चेहरा ऊपर उठाया। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, कुछ ऐसा जो देवा भाऊ ने पहले कभी नहीं देखा था। हल्की मुस्कान उसके होठों पर खेल रही थी, मगर उसमें मासूमियत नहीं, बल्कि एक ठंडी, खतरनाक चुनौती थी।
वह एक कदम आगे बढ़ी और देवा भाऊ की आँखों में गहराई से झाँकते हुए बोली,
"अब वक्त आ गया है, बाबा साहेब, कि साहिबा का चेहरा सारा अंडरवर्ल्ड पहचाने। अब सबको पता चलेगा कि असली खेल कौन खेलता है!"
कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया। देवा भाऊ ने साहिबा को गौर से देखा, जैसे पहली बार उसकी असली शक्ल देख रहे हों। उसके इस ऐलान के साथ ही हवा में एक नया तूफान उठने वाला था—एक ऐसा तूफान, जो पूरे अंडरवर्ल्ड को हिला कर रख देगा।
दूसरी तरफ, रात का गहरा अंधेरा पसरा हुआ था। समुद्र के किनारे बने एक पुराने गोदाम में चारों तरफ कंटेनर्स रखे हुए थे। तेज़ लहरों की आवाज़ के बीच दूर एक जहाज की धीमी रौशनी दिख रही थी, जो इस गुप्त तस्करी के सौदे का हिस्सा था। गोदाम के बाहर कुछ आदमी बंदूकें लिए पहरा दे रहे थे, जबकि अंदर मजदूरों की एक टोली तेज़ी से बड़े-बड़े बॉक्स कंटेनरों को ट्रकों से निकालकर जहाज की ओर भेज रही थी।
चारों ओर सिर्फ़ पैसों की गूँज थी; तस्करी का यह धंधा बिना किसी रोक-टोक के चल रहा था। ड्रग्स, गांजा, हेरोइन, और वहशी लोगों की भूख मिटाने के लिए मजबूर लड़कियाँ… सब कुछ इस अंधेरे में छिपा हुआ था। गोदाम में चारों ओर तेज रोशनी वाले बल्ब लटके हुए थे, लेकिन उनकी रोशनी भी उस अंधेरे दुनिया की सच्चाई को नहीं छिपा पा रही थी।
इसी माहौल में एक लंबा-चौड़ा आदमी, जिसकी आँखों में लालच और चेहरे पर घमंड था, तेज़ आवाज़ में अपने लोगों को आदेश दे रहा था।
"जल्दी करो! कल सुबह से पहले यह सारा माल निकल जाना चाहिए! मुझे कोई रुकावट नहीं चाहिए!"
उसकी आवाज़ में गुस्सा था, जैसे अगर किसी ने उसकी बात ना मानी तो वह उसे वहीं ढेर कर देगा। उसकी नज़रें लगातार घड़ी पर थीं। उसके लिए गुजरता हुआ हर एक सेकंड बहुत कीमती था।
और तभी अचानक अंधेरे के कोने से हल्की चिंगारी चमकी। सिगरेट का लाल सुराख़ धुएँ के साथ हल्की रोशनी पैदा कर रहा था। वह आदमी धीरे-धीरे आगे बढ़ा; उसकी चाल में एक अजीब सा आत्मविश्वास था, जैसे इस जगह का मालिक वही हो।
"तुम कौन हो?" तस्करी का सरगना चौकते हुए बोला। उसकी आँखें संदेह से सिकुड़ गईं।
सिगरेट पीने वाले आदमी ने एक लंबा कश लिया और धुआँ हवा में उड़ाते हुए धीमी लेकिन खतरनाक मुस्कान के साथ जवाब दिया,
"बस समझ लो तुम्हारा बहुत करीबी हूँ… वैसे यह जो सामान तुम तस्करी कर रहे हो, यह अंडरवर्ल्ड का नहीं है ना?"
सरगना थोड़ा हैरान हुआ, और कंफ्यूज होते हुए बोला,
"म… मतलब?"
सिगरेट पीने वाला आदमी सिगरेट के लंबे कश लेकर धुआँ हवा में छोड़ते हुए बोला,
"हाँ… अंडरवर्ल्ड में इस तरह का कोई धंधा नहीं होगा। यह कानून किंग ने बनाया था।"
सिगरेट पीने वाले आदमी ने यह कह कर एक और लंबा कश भरा और धुआँ हवा में छोड़ा।
पहले आदमी ने ठहाका लगाया; उसकी आँखों में एक अजीब चमक थी।
"कौन सा किंग? काहे का किंग? पिछले दो सालों से हम यह कारोबार कर रहे हैं, लेकिन उस किंग को भनक तक नहीं लगी। तुम कहते हो कि उसने इस पर रोक लगाई है? देखो, दो साल से हम सीना ठोककर यह धंधा कर रहे हैं और अब तक तुम्हारा वह किंग और कानून कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाया।"
सिगरेट पीने वाले आदमी ने अब धीरे-धीरे कदम आगे बढ़ाने शुरू कर दिए। उसका एक हाथ जेब में था, जैसे वहाँ कुछ छुपा हो। उसके चेहरे पर एक रहस्यमय शांति थी, लेकिन उसकी आँखें कुछ और ही बयां कर रही थीं… जैसे कोई भेड़िया शिकार की तलाश में निकला हो।
सरगना अब पूरी तरह सतर्क हो चुका था। उसने धीरे से अपने पीछे खड़े आदमी की ओर इशारा किया, जो उसकी सुरक्षा के लिए तैनात था। लेकिन तभी…
धड़ाम!
गोदाम के एक कोने में जोरदार धमाका हुआ। चारों तरफ अफरा-तफरी मच गई। बंदूकें तन गईं। लेकिन सिगरेट पीने वाला आदमी वहीं खड़ा मुस्कुराता रहा, जैसे यह सब पहले से तय था।
"खेल खत्म हो चुका है…" उसने धीमे से कहा, और सिगरेट का आखिरी कश लेते हुए उसे नीचे फेंक दिया।
गोदाम में अब बस एक ही सवाल गूंज रहा था…
"यह आदमी आखिर है कौन?"
अंधेरे में सरगना बेचैनी से सामने खड़े आदमी को देख रहा था। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं। उसके हाथों की उंगलियाँ घबराहट में आपस में उलझ रही थीं। तभी…
"टिक-टिक-टिक…"
मेटल की टिप वाले जूतों की आवाज़ गूँजने लगी। काले अंधेरे से वह परछाईं धीरे-धीरे नज़दीक आ रही थी। हल्की रोशनी में चमकते हुए उन जूतों ने जैसे ही ज़मीन छुई, आदमी का गला सूखने लगा।
वह आदमी अब बिल्कुल करीब आ चुका था। उसने अपनी जेब से एक सिगरेट निकाली, होंठों में दबाई और हल्के हाथ से लाइटर जलाया। जैसे ही "टक" की आवाज़ के साथ लाइटर की लौ जली, वहाँ मौजूद हर किसी की साँसें रुक गईं।
वह चेहरा, जो सालों तक अंडरवर्ल्ड की दुनिया में एक नाम नहीं, बल्कि एक खौफ था। वह चेहरा, जो कई सालों से गायब था, लेकिन फिर भी उसकी कहानियाँ गूंजती रहती थीं। वह चेहरा… उसे देखकर सामने खड़ा आदमी घबराहट में एक कदम पीछे हट गया; उसके पैरों में जैसे जान ही नहीं बची थी।
उसके होंठ काँपे, आवाज़ लड़खड़ा गई,
"क… क… किंग…"
सिगरेट पीने वाले आदमी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई, लेकिन यह कोई आम मुस्कान नहीं थी। इसमें एक ख़तरनाक चेतावनी छिपी थी, एक ऐसा संदेश जो खामोशी में भी किसी की चीखों से ज़्यादा डरावना था।
वह धीरे-धीरे आगे बढ़ा, अपनी सिगरेट का लंबा कश लिया और धुआँ उस आदमी के चेहरे पर छोड़ दिया।
"किंग चाहे जहाँ भी रहे… खबर वह अपने पूरे जंगल की रखता है।"
उसकी आवाज़ में गूंज थी, जिसमें अंधेरे की गहराई और जलते हुए अंगारों की तपिश थी।
"यह अंडरवर्ल्ड मेरा जंगल है… और इस जंगल का मैं किंग हूँ।"
फिर उसने ज़ोर से हँसना शुरू कर दिया।
"हा-हा-हा-हा!"
उसकी हँसी गोदाम की दीवारों से टकरा रही थी। हर गूँज के साथ वहाँ मौजूद लोगों की रूह कांप रही थी। वहाँ खड़े गुर्गे, जो अब तक खुद को अंडरवर्ल्ड का नया बादशाह समझ रहे थे, उनके माथे से पसीने की बूंदें टपकने लगीं।
क्योंकि किंग अब लौट आया था।
Chapter 4
अभी तक जो आदमी किंग से बेखौफ होकर बात कर रहा था, अब उसकी रूह कांप रही थी। उसकी हिम्मत जवाब दे चुकी थी। वह घुटनों के बल गिर पड़ा, कांपते हाथों से किंग के पैरों को पकड़ लिया और गिड़गिड़ाने लगा।
"किंग… किंग… मुझे माफ कर दीजिए… प्लीज, मुझे माफ कर दीजिए… गलती हो गई, मैं लालच में आ गया था… पर अब… अब नहीं… किंग, आप जो कहें, मैं करूंगा… बस… बस मुझे मार दीजिए… मेरी सजा मुझे दे दीजिए, किंग… मुझे मौत दे दीजिए…"
किंग ने हल्की सी मुस्कान के साथ अपना पैर बढ़ाया, और अपने चमकते हुए जूते की नोक से उस आदमी की ठुड्डी को ऊपर किया। उसकी लाल सुर्ख आँखें सीधे उस कांपते हुए चेहरे में उतर गईं।
"कितनी गलत बात है…" किंग की आवाज़ में एक अजीब सा ठंडापन था, जो किसी की रगों में बर्फ जमा सकता था। "मैं तुम्हारी जिंदगी बख्शने की सोच रहा था… और तुम मौत मांग रहे हो?"
उस आदमी की आँखें भय से चौड़ी हो गईं। उसका शरीर सुन्न पड़ गया। उसकी साँसें रुकने लगीं।
क्योंकि किंग की बख्शी हुई ज़िंदगी, मौत से भी ज़्यादा खौफनाक होती थी। मौत आसान थी। पर किंग जिसे जिंदा छोड़ता था, उसकी जिंदगी ही सबसे बड़ी सजा होती थी।
अब वह आदमी किंग के पैरों में पड़ा कांप रहा था, पर अब वह माफी नहीं, मौत भीख में मांग रहा था। लेकिन किंग बस मुस्कुरा दिया… वह खतरनाक मुस्कान, जो मौत का फरमान होती थी। उसने अपना चमचमाता जूता उसके चेहरे से दूर किया और सिर थोड़ा झुकाकर उसे गौर से देखा।
फिर धीरे से फुसफुसाया, "अब तो मेरा दिल आ गया यार… तुम पर तो इश्क़ हो गया।"
उस आदमी की साँसें गले में ही अटक गईं। उसकी आँखों में डर के साए और गहरे हो गए।
"और जिससे इश्क़ हो जाए ना…" किंग ने अपनी सिगरेट को होंठों से लगाते हुए एक लंबा कश लिया और धुआं उस आदमी के चेहरे पर उड़ा दिया। "उसे मारा नहीं जाता… उसे ज़िंदा रखा जाता है… अपने क़रीब, अपनी कैद में…"
किंग की आँखों में जलती हुई चिंगारियाँ थीं, और उसकी आवाज़ में वह वहशीपन, जो सामने वाले की रूह तक हिला दे।
उस आदमी की रूह काँप गई। उसे समझ आ गया था कि वह अब मौत से भी बुरी सजा पाने वाला था।
किंग जोर से हँसा… एक ऐसी हँसी, जो सुनने वालों के शरीर में झुर्रियां दौड़ा दे। उसने अपने गले की चेन ठीक की, जैकेट झटकी, और सिगरेट पीते हुए चलता बना… जैसे कुछ हुआ ही ना हो।
पीछे उसके खड़े आदमी तुरंत ही झपट पड़े। कुछ ने उस कांपते आदमी को उठाया और घसीटते हुए ले जाने लगे, जबकि बाकी ने अपने गन का ट्रिगर दबाया।
"धायं! धायं! धायं!"
गोलियों की गूंज से पूरा इलाका थर्रा उठा। वहाँ मौजूद हर शख्स को किंग की सल्तनत का आखिरी सलाम दिया गया… सीधी मौत।
खून की बूँदें ज़मीन पर बिखर गईं। सन्नाटा फैल गया।
अगले दिन शहर में एक ही बात गूंज रही थी…
"किंग वापस आ चुका है।"
कई लोग डर से कांपने लगे। कईयों ने अपनी दुकानों के शटर गिरा दिए। नेताओं ने फोन पर फोन घुमा दिए। पुलिस स्टेशन के अंदर अफसरों की पेशानी पर पसीना छलक आया।
क्योंकि "किंग की वापसी" का मतलब होता था… शहर में अब से उसका हुक्म चलेगा। बंदूकें गरजेंगी। लोग चीखेंगे। सड़कों पर लाशें बिछेंगी।
और एक नए युग की शुरुआत होगी…"किंग के युग" की।
मुंबई का अंडरवर्ल्ड भी थर्रा उठा था। किंग की वापसी की खबर सिर्फ मुंबई की गलियों में नहीं, बल्कि हर उस कोने में आग की तरह फैल चुकी थी, जहाँ उसका नाम ही कानून था। उसके दुश्मनों की रूह कांप उठी, तो उसके चाहने वालों की आँखों में फिर से एक नई चमक आ गई।
पर सच यह था कि किंग अच्छा था, लेकिन सिर्फ कुछ लोगों के लिए।
बाकियों के लिए?
वह एक खौफनाक जलजला था। किंग का न्याय किसी अदालत के फैसले का मोहताज नहीं था। वह अपना इंसाफ खुद करता था और वह इंसाफ ऐसा होता था कि लोग मौत की भीख मांगते थे। इसीलिए वह सिर्फ मुंबई का नहीं, बल्कि इंटरनेशनल किंग था।
खबर सुनते ही देवा भाऊ ने तुरंत अपने सबसे खास आदमियों को बुलवा लिया।
बड़ी गोल मेज पर अंडरवर्ल्ड के दिग्गज बैठे थे। कोई कोकीन का किंग था, कोई हथियारों का सौदागर, कोई मुंबई की सड़कों का बेताज बादशाह। हर चेहरा गंभीर था, हर आँख सतर्क।
"किंग वापस आ चुका है।" देवा भाऊ ने सिगार जलाते हुए कहा। उसके चेहरे पर हल्की शिकन थी, पर आवाज़ में अभी भी ठहराव था।
"अब क्या करेंगे भाऊ, किंग वापस आ गया?" एक आदमी ने दबे सुर में पूछा।
देवा भाऊ ने धुआँ उड़ाया और मेज पर रखी गन को उंगलियों से थपथपाते हुए कहा, "कुछ नहीं। बस इंतज़ार करेंगे।"
कमरे में सन्नाटा छा गया। सब समझ गए थे कि किंग जहाँ भी होगा, वह यहाँ जरूर आएगा। उसे किसी बुलावे की ज़रूरत नहीं थी। किंग अपनी एंट्री खुद तय करता था, और जब वह आता था, तो उसकी एंट्री गूंजती थी… गोलियों की आवाज़ से, चीखों से, और लहू से।
"अपने लोग तैयार रखो… हर वक्त अलर्ट पर होने चाहिए।" देवा भाऊ ने आदेश दिया।
कमरा एकाएक गर्म हो गया। टेबल पर हथियार चमक उठे। दरवाजों के बाहर गार्ड्स की संख्या दोगुनी कर दी गई।
हर कोई अब सिर्फ "उसके" आने का इंतज़ार कर रहा था।
उधर, मुंबई की सड़कों पर… एक लंबी काली गाड़ी शहर की तंग गलियों से गुज़र रही थी। अंदर धुआँ था, अंधेरा था, और एक चेहरा था…
किंग।
उसकी आँखों में वह सूनापन था, जो मौत के सौदागरों में ही होता है।
उसने हल्की मुस्कान के साथ सिगरेट जलाई, एक लंबा कश लिया, और सामने के शीशे से मुंबई की जगमगाती रात को देखा।
"खेल अब शुरू होगा…" उसने बुदबुदाते हुए सिगरेट का धुआँ बाहर छोड़ा।
और कार देवा भाऊ सरकार के अड्डे की तरफ बढ़ने लगी…
देवा भाऊ अपनी गद्दी पर बैठे इंतज़ार कर रहे थे। माहौल काफी तनाव भरा था। हर कोई जानता था कि अगर किंग मुंबई लौटा था, तो कुछ बहुत भयानक होने वाला होगा।
मुंबई… वह शहर जिससे किंग की दुश्मनी थी। वह शहर जिसने उसे एक बार धोखा दिया था। फिर भी अगर किंग यहाँ आया था, तो इसका मतलब था कोई बहुत बड़ा खेल शुरू होने वाला था।
पर देवा भाऊ… जानते थे कि किंग को मुंबई लाना खुद में एक आफ़त था, लेकिन यही आफ़त वह खुद चाहते थे। उनका भी कोई मकसद था।
"धायं! धायं! धायं!"
अचानक दरवाजे पर खड़े पहरेदारों की छाती छलनी हो गई। गोलियों की आवाज़ ने हवाओं को हिला दिया।
अंदर मीटिंग में बैठे सारे लोग, जो पहले से घबराए हुए थे, एकदम से खड़े हो गए। कमरे में अब सिर्फ़ दहशत थी।
और फिर… एक परछाईं दरवाजे पर उभरी। धुएं के बीच से… एक शेर अपनी मांद में लौट रहा था।
किंग।
वह अपने पूरे रौब के साथ अंदर आया। चेहरे पर वही हल्की मुस्कान, जिसे देखकर लोग समझ जाते थे कि आज खून बहेगा।
उसके लोग उसके पीछे कतार में चल रहे थे, हाथों में गन्स, और नज़रों में सिर्फ़ एक चीज़… मौत।
किंग ने पूरे हॉल को देखा। हर चेहरा डर से सफ़ेद पड़ा था।
फिर उसने अपनी बाहें फैलाईं और मुस्कुराकर कहा, "ओह गाइज़, स्वागत नहीं करोगे हमारा? आखिरकार, मैं अपनी जन्मभूमि पर वापस आया हूँ।"
वह एक सेकंड रुका, फिर एक जहरीली हँसी के साथ बोला, "प्लीज क्लैप फ़ॉर मी… तालियाँ बजाओ मेरे लिए।"
और फिर…
"धायं! धायं! धायं!"
जितनी तालियाँ किंग बजा रहा था, उतनी गोलियाँ उसके आदमी बरसा रहे थे। लाशें गिरती गईं। चीखें घुटती गईं।
कुछ ही सेकंड्स में, जहाँ सौ से ज़्यादा लोग थे, वहाँ अब सिर्फ़ बीस लोग बचे थे।
किंग और देवा भाऊ आमने-सामने थे। किंग अब सीधा देवा भाऊ के पास पहुँचा। कमरे में अब बस धुआँ था… और मौत की गंध।
वह उनकी गद्दी के पास खड़ा हुआ। देवा भाऊ थोड़ी देर के लिए सकपका गए, पर फिर वही पुरानी मुस्कान ओढ़ ली।
किंग ने उनकी आँखों में देखा और हल्की आवाज़ में कहा, "आपको नहीं लगता कि जब मुंबई का किंग वापस आ गया है, तो उसे उसकी गद्दी दे देनी चाहिए?"
देवा भाऊ मुस्कुराए और खड़े होने लगे…
लेकिन तभी किंग ने उनके कंधे पर हाथ रख दिया। और धीरे से उन्हें फिर से उनकी गद्दी पर बैठा दिया।
कमरे में सन्नाटा था।
फिर किंग झुका, उनके कान के पास जाकर फुसफुसाया, "लेकिन मुझे दूसरे की गद्दी पर बैठना पसंद नहीं है… मैं अपनी खुद बनाता हूँ। यू नो ना मुझे झूठा पसंद नहीं!!"
फिर सीधा खड़ा होकर अपनी जैकेट झटकी, सिगरेट जलाई, और धुआँ उड़ाते हुए एक ज़हरीली हँसी हँसने लगा।
देवा भाऊ ने पहली बार अपने अंदर डर को महसूस किया। क्योंकि अब असली खेल शुरू हो चुका था।
किंग के इतना कहते ही, उसके साथ आए सारे गार्ड हरकत में आ गए। वह किसी मशीन की तरह खुद को एडजस्ट करने लगे। कोई झुक गया, कोई घुटनों पर बैठ गया, किसी ने अपने कंधे का सहारा दिया, तो किसी ने सीट बनने के लिए कमर मोड़ ली।
कुछ ही सेकंड में, उनके शरीरों से एक "इंसानी सिंहासन" तैयार हो चुका था।
लेकिन यह कोई मामूली तख्त नहीं था। यह इतना ऊँचा था कि किंग को दो लोगों की पीठ पर चढ़कर ऊपर बैठना पड़ा, जैसे किसी राजा को अपने सिंहासन तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं।
किंग सधे हुए कदमों से अपने ही बनाए इस "ज़िंदा सिंहासन" पर चढ़ा, फिर सिंहासन के हत्थे बने गार्ड के कंधे पर हाथ टिका दिया, पैर पर पैर रखा और पूरे रौब से बैठ गया।
कमरे में अब भी खामोशी थी। सभी की नज़रें किंग पर टिकी थीं।
किंग और देवा भाऊ सरकार आमने-सामने एक दूसरे के बिल्कुल सामने थे। किंग ने सिगरेट निकाली, होंठों में दबाई और फिर हल्की मुस्कान के साथ देवा भाऊ सरकार को देखा।
फिर उसने ठहरी हुई आवाज़ में कहा, "देवा भाऊ सरकार, मैं बाहर था… इसका मतलब यह तो नहीं कि मुझे मुंबई के बारे में कुछ नहीं पता।"
उसने एक लंबा कश लिया, फिर धुआँ उड़ाते हुए आगे कहा, "आप समझते होंगे ना कि यह सब क्या हो रहा है… और क्यों हो रहा है?"
देवा भाऊ की आँखों में हल्का सा डर झलकने लगा था, लेकिन वह खुद को सँभालते हुए मुस्कुराए।
किंग ने हल्का सिर झटकते हुए कहा, "मैं मुंबई आया हूँ… या मुझे बुलाया गया है? यह सब बातें मुझसे ज़्यादा बेहतर आप जानते हैं ना?"
देवा भाऊ सरकार जानते थे कि अगर उन्होंने किंग को मुंबई बुलाने की गलती कर ही दी थी, तो अब किंग हर राज़ खोदकर निकाल लेगा।
लेकिन साहिबा को अंडरवर्ल्ड में एंट्री दिलाने के लिए किंग का मुंबई आना ज़रूरी था। इसीलिए देवा भाऊ ने किंग को यहाँ बुलाने का रिस्क लिया था।
पर अब… शायद यह रिस्क उन्हीं पर भारी पड़ने वाला था। अगर किंग को ज़रा भी अंदाज़ा हो गया कि इस पूरे खेल में देवा भाऊ के ही किसी आदमी का हाथ था…
तो अगली लाश शायद खुद देवा भाऊ की होगी… क्योंकि गद्दारी किंग अपने बाप की भी बर्दाश्त नहीं करता…
देवा भाऊ जो अब तक खामोश थे, उन्होंने मुस्कुराते हुए किंग को देखकर कहा, "मान बेटा, तुम कितने भी बड़े हो जाओ, मेरे सामने वही पंद्रह साल के छोटे से बच्चे रहोगे।"
मान की आँखों में गुस्सा दिखाई दिया। उसने देवा भाऊ को घूरते हुए कहा, "बच्चा नहीं था, देवा भाऊ।"
देवा भाऊ ने मुस्कुराकर कहा, "पता है, बच्चे नहीं थे तुम उस वक्त और ना अब हो।"
Ep 5
देवा भाऊ अपने सामने बैठे किंग, मान सूर्यवंशी को देखकर मुस्कुरा रहे थे, पर किंग को उनकी यह मुस्कान बिल्कुल रास नहीं आ रही थी। वह गुस्से में अपनी जगह से उठा और तेज़ कदमों से देवा भाऊ के सामने आकर खड़ा हो गया।
किंग ने गुस्से से तेज आवाज में कहा, "मुझे सब पता है! आप अपनी बातों और इस झूठी मुस्कान से मुझे गुमराह नहीं कर सकते। जो कुछ भी हो रहा है, उसके पीछे आपके ही किसी आदमी का हाथ है। तो बेहतर होगा कि आप खुद ही मुझे उसका नाम बता दें और उसे मेरे हवाले कर दें। वरना याद रखिए, मैं उसे तो पकड़ूँगा ही, लेकिन आपके लिए भी मामला आसान नहीं रहेगा।"
देवा भाऊ अब भी शांत थे; उनकी मुस्कान जरा भी फीकी नहीं पड़ी। उन्होंने किंग को देखते हुए कहा, “मैं जानता हूँ कि तुम सब कुछ जानते हो, लेकिन तुम अभी तक उस आदमी के बारे में नहीं जान पाए, हैरानी की बात है।…..कोशिश कर लो, उसके बारे में भी पता कर लोगे।”
मान ने मुस्कुराते हुए देवा भाऊ को देखकर कहा, “आपको क्या लगता है? क्या मैं उसे ढूँढ नहीं सकता? मैं बहुत आराम से ढूँढ लूँगा, लेकिन मैं आपके मुँह से जानना चाहता हूँ कि आपका ऐसा कौन सा अजीज है जिसे आप मेरी नज़रों से छुपा रहे हैं?”
देवा भाऊ ने धीमी लेकिन ठहराव भरी आवाज़ में कहा, "तुम सही कह रहे हो, किंग। मैं जानता हूँ कि तुम सब समझते हो। यह भी जानते हो कि इन हमलों के पीछे मेरा एक आदमी है। लेकिन तुम एक बड़ी गलती कर गए... तुम यह नहीं जान पाए कि मैंने उसका साथ क्यों दिया।"
अब किंग के चेहरे पर फिर एक हल्की मुस्कान आ गई। उसने धीरे से सिर हिलाया और आगे बढ़कर देवा भाऊ की आँखों में देखा, "I know, I know... सब समझता हूँ मैं। जिन लोगों को मारा गया, जिनके घरों पर हमले हुए, वो सब घटिया और गंदे लोग थे। औरतों की इज्जत से खेलते थे, उनके बदन का सौदा करते थे। और किंग के राज में औरत की इज्जत सबसे ऊपर है। मैं कभी भी किसी को औरतों की तस्करी करने या उनके बदन से खेलने की इजाजत नहीं देता।"
किंग ने अब देवा भाऊ की तरफ झुककर गंभीर स्वर में कहा, "यही वजह है कि आप अभी तक मेरे सामने सही-सलामत खड़े हैं। जिसने भी यह किया, उसने गलत के साथ सही किया। लेकिन बिना मेरी इजाजत! और आप जानते हो, मेरी मर्जी के बिना अगर कोई अंडरवर्ल्ड में उँगली भी उठाता है, तो मुझे वह बात पसंद नहीं आती।"
अब किंग सीधा खड़ा हुआ और आँखें घुमाकर चारों तरफ देखा और फिर धीमे लेकिन धमकी भरे लहजे में कहा, "अब बेहतर यही होगा कि आप मुझे उस आदमी का नाम बता दें... तो शायद मैं आपको माफ़ कर दूँ।"
कमरा एक पल के लिए खामोश हो गया। देवा भाऊ अब भी मुस्कुरा रहे थे, लेकिन उनकी आँखों में अब हल्की सी गंभीरता झलक रही थी।
किंग अब गुस्से से देवा भाऊ की आँखों में देख रहा था। कमरे में सिगार का हल्का धुआँ था; माहौल में सिर्फ़ मान की भारी आवाज़ गूँज रही थी,
"आपकी यह खामोशी मेरे सवालों को बंद नहीं कर सकती, आपको मेरे सवालों के जवाब देना होगा, वरना आप समझ सकते हो कि मैं क्या कर सकता हूँ।"
किंग ने अपने आदमी को इशारा किया और देखते ही देखते चार-पाँच बंदूकें देवा भाऊ की तरफ तान दी गईं। लेकिन देवा भाऊ ने कोई हरकत नहीं की। उनके चेहरे पर न कोई डर था, न कोई बेचैनी। वे बस मान को ठंडी नज़रों से देख रहे थे।
किंग एक कदम आगे बढ़ा और दबे लहजे में बोला, "मैं उस आदमी को ढूँढ लूँगा जिसकी मदद आप कर रहे हो। लेकिन अगर अपनी जान प्यारी है तो…"
धड़ा-धड़!
अचानक दरवाजे से गोली चलने की आवाज़ गूँजी और देखते ही देखते किंग के आदमियों की बंदूकें हाथों से छूट गईं; कमरे में हलचल मच गई। सबका ध्यान एकदम से दरवाजे की तरफ गया।
किंग के बाकी आदमी अब एलर्ट मोड पर दरवाज़े की तरफ गन तान कर खड़े हो गए। उनको बस इंतज़ार था, किंग के एक इशारे का…
किंग ने हल्की सी गर्दन घुमाकर तिरछी नज़रों से दरवाज़े से आ रहे शख्स को देखा तो उसकी आइब्रो ऊपर उठ गई…
साहिबा…
वह धीमे कदमों से अंदर आ रही थी, उसके दोनों हाथों में पिस्तौलें थीं, जिनसे अभी भी धुआँ उठ रहा था। उसकी चाल में वह ठहराव था जो तूफान से पहले आता है। उसकी आँखें आग की तरह जल रही थीं और होंठों पर एक शैतानी मुस्कराहट थी।
वह सीधे देवा भाऊ के सामने पहुँची, उनके कंधे को हाथ से झाड़ा और झुककर उनके पैर छूते हुए बोली, "सॉरी बाबा साहेब, थोड़ी सी लेट हो गई।"
देवा भाऊ मुस्कुराए और उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोले, "नहीं मेरी बच्ची, तू बिल्कुल सही वक्त पर आई है।"
किंग के चेहरे पर सवालों की झड़ी लग गई थी। लेकिन साथ ही वह इस लड़की के ऐटिट्यूड और हिम्मत का फैन भी हो चुका था।
साहिबा ने मुड़कर किंग से कहा, "आपको मिलना था ना उस आदमी से जो देवा भाऊ की मदद से तुम्हारे अंडरवर्ल्ड में आतंक मचा रहा था? देख लीजिए, मैं ही हूँ।"
कमरे में सन्नाटा छा गया। किंग की आँखों में पहली बार हल्की बेचैनी दिखी। यह लड़की… यह लड़की एक तूफान थी… एक ऐसा तूफान जिसे रोक पाना नामुमकिन था।
साहिबा चलते हुए किंग के सामने आकर खड़ी हो गई और बोली, "बताएँ क्या करना चाहते हैं आप मेरे साथ? मैं आपके सामने हूँ। क्या सज़ा होगी मेरे लिए? लेकिन एक बात मैं आपको बता दूँ, मैं किसी से नहीं डरती। जो गलत है वह गलत है। मैंने जितनों को मारा है ना, वे सब गुनाहगार थे और साहिबा की डिक्शनरी में गुनाहगार के लिए माफ़ी नहीं, मौत है।"
साहिबा की आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जो किंग को आकर्षित कर रही थी। मान साहिबा को देखकर मुस्कुरा दिया और बोला, "तुम बहुत हिम्मत वाली लड़की हो, लेकिन तुम्हें यह नहीं पता कि तुमने किससे लड़ाई मोल ली है। मैं तुम्हें बता दूँ, मैं इस अंडरवर्ल्ड का राजा हूँ और तुमने मेरे सामने मेरे ही आदमियों पर हमला किया है।"
साहिबा को मान की बातें सुनकर हँसी आ गई और उसने कहा, "आपकी बेहतरी के लिए बता दूँ, अंडरवर्ल्ड में कब से मैं एंट्री कर चुकी हूँ। बेहतर होगा कि आप मेरे काम में टांग ना अड़ाएँ, क्योंकि गुनाहगारों को जड़ से मिटाने ही मैं अंडरवर्ल्ड में आई हूँ।”
किंग ने हँसते हुए कहा, "तुम्हें पता है तुम इस वक्त मेरे आदमियों की गन पॉइंट पर हो? तुम्हें जरा सा भी अंदाज़ा है कि मेरे एक इशारे पर यह सारी गोलियाँ तुम्हारे शरीर के आर-पार होंगी?"
साहिबा हँसते हुए अपने हाथ में मौजूद गन को किंग के सीने पर रख दिया और कहा, "पहली बात, अगर ये सब मुझ पर गन ताने खड़े हैं तो इनके किंग पर मैं गन ताने खड़ी हूँ। साहिबा ने अपने जीवन में कभी भी डर को नहीं जाना है, और ना ही मैं कभी भी किसी से डरने वाली हूँ।"
"एक बात जो मैं आपको क्लियर करना चाहती हूँ, ना आप मेरे रास्ते आइए, ना मैं आपके रास्ते आऊँगी… मुझसे दूरी बनाए रखने में ही आपकी बेहतरी है वरना मैं आपके साथ क्या कर जाऊँगी, यह मुझे भी नहीं पता। और रही बात मुझे मारने की, तो जिस दिन मैंने अंडरवर्ल्ड में आने की सोची थी ना, अपने नाम का डेथ सर्टिफिकेट उसी दिन बनवा लिया था। सिर्फ़ डेट डालनी बाकी है। तो मौत का खौफ़ आप मुझे ना ही दिखाएँ तो बेहतर होगा।”
फिर साहिबा वहाँ पर मौजूद लोगों को देखते हुए कहा, “आप सब से भी मैं यही कहना चाहूँगी जितना हो सके मुझसे और मेरे काम से दूर ही रहें, मेरे काम में टांग ना अड़ाना वरना…”
साहिबा की आँखों में एक अलग ही जूनून था जो किंग के जुनून को टक्कर देता नज़र आ रहा था। साहिबा की आँखों को देख वहाँ मौजूद सभी लोग एक पल के लिए काँप गए।
वहीं दूसरी तरफ़ किंग को साहिबा की आँखों में एक अजीब सी चमक नज़र आ रही थी, जो किंग को आकर्षित कर रही थी। मान साहिबा को देखकर मुस्कुरा दिया और मन ही मन बोला, "तुम बहुत हिम्मत वाली लड़की हो, आई लाइक इट।”
---chapter-6---
साहिबा और मान की आँखें एक-दूसरे से टकराईं। साहिबा की आँखें बेखौफ थीं; उनमें एक उच्च स्तरीय आत्मविश्वास था, मानो उसे किसी की परवाह नहीं। वहीं, मान की आँखों में एक अजीब-सा उत्सुकता थी, जैसे वह इस लड़की के अंदाज़, उसकी बेरुखी, उसके बग़ावती तेवर से खेलना चाहता था।
वह हल्की-सी मुस्कराहट के साथ अपनी जगह से ज़रा-सा आगे झुका और अपने एक आदमी को इशारा किया। वह आदमी फौरन आगे बढ़ा और एक मोटी फाइल उसके हाथ में थमा दी। मान ने फाइल खोली, उसके भीतर से एक फोटो निकाली और उसे साहिबा के सामने किया।
"ये फोटो देख रही हो?" उसकी आवाज़ में एक अजीब-सा ठहराव था, बोलने में गहरा, मगर हल्का-सा चुनौतीपूर्ण स्वर था।
साहिबा ने फोटो की ओर नज़रें घुमाईं। उसकी आँखें एक पल के लिए तस्वीर पर टिकीं, लेकिन उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं आया। न हैरानी, न गुस्सा, न ही कोई डर।
मान ने सिर थोड़ा तिरछा किया, जैसे उसके इस बेरुखी भरे रिएक्शन को पढ़ने की कोशिश कर रहा था।
"कुछ तो महसूस हुआ होगा...?" उसने धीमे से कहा, उसकी आवाज़ में हल्की-सी शरारत थी, जैसे वह साहिबा को तोड़ने की कोशिश कर रहा हो।
लेकिन साहिबा ने एक ठंडी साँस ली और होंठों को हल्के से चटकाया। फिर, बिना किसी जल्दबाज़ी के, अपनी तीखी नज़रों से मान की आँखों में झाँका।
"फीलिंग्स कमजोर लोगों के लिए होती हैं, मिस्टर सूर्यवंशी।"
उसकी आवाज़ एकदम शांत थी, मगर उसमें छुपी हुई धार किसी भी तेज तलवार से कम नहीं थी।
मान हल्के से मुस्कराया। खेल और दिलचस्प हो गया था।
कमरे में सन्नाटा था। मान ने फोटो को मेज़ पर रख दिया और साहिबा की आँखों में झाँका। उसकी आँखों में एक सवाल नहीं, बल्कि एक चुनौती थी।
उसने तस्वीर पर उंगली घुमाते हुए कहा, "इस फोटो में मेरे इंसान की हालत देख रही हो? ऐसा नज़ारा देखने के लिए जिगर चाहिए। ऐसी लाशें मिली हैं इनकी, और तुम कहती हो कि तुमने इन्हें मारा?"
फिर वह थोड़ा झुका; उसकी काली आँखों में एक जूनून दिखाई दिया और उसने कहा, "कोई सबूत है तुम्हारे पास?"
साहिबा उसकी बात सुनकर हल्के से मुस्कराई। लेकिन यह कोई आम मुस्कराहट नहीं थी। यह वह मुस्कान थी, जो किसी शिकारी के चेहरे पर शिकार करने से पहले आती थी।
वह अपनी जगह से ज़रा-सा आगे झुकी, उसकी आँखों में एक अजीब-सी ठंडक थी। फिर बहुत आराम से बोली, "अंडरवर्ल्ड का किंग हो, लेकिन सोच एक बच्चे जैसी है। सबूत मांग रहे हो? सब अपनी आँखों से देख कर भी??? सीरियसली?"
वह पीछे हटी और अपनी हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए हल्के से सिर झुका लिया, जैसे कुछ सोच रही थी। फिर एक झटके में उसने अपनी उंगलियाँ चटकाईं और ताली बजा दी।
"रॉकी!"
अगले ही पल दरवाजा खुला। एक लंबे-चौड़े कद का आदमी अंदर आया। उसकी चाल में एक अजीब-सा ठहराव था, जैसे किसी शिकारी की होती थी। उसके हाथ में एक छोटी सी पेन ड्राइव चमक रही थी।
साहिबा ने कोई जल्दबाज़ी नहीं की। वह अपनी जगह से धीरे-धीरे चलते हुए रॉकी के पास पहुँची, और उसकी हथेली से वह पेन ड्राइव उठाई।
फिर उसने वह ड्राइव मान के सबसे भरोसेमंद आदमी की ओर बढ़ाई। उसके चेहरे पर वही खतरनाक मुस्कान खेल रही थी।
"जरा इसको चला कर अपने किंग को दिखा दो।" उसकी आवाज़ में आत्मविश्वास झलक रहा था, मानो उसने पहले ही बाज़ी जीत ली हो।
"मुझे लगता है कि इसे देखने के बाद इनके मन में कोई संदेह नहीं रहेगा।"
कमरे में हल्की सरसराहट हुई। मान ने पहले साहिबा को देखा, फिर उस पेन ड्राइव को। उसकी आँखों में दिलचस्पी अब और गहरी हो गई थी।
"Let’s see, साहिबा…" उसने अपनी जीभ से होंठ गीले करते हुए धीरे से कहा, "अब ये खेल और मज़ेदार होने वाला है।"
कमरे में घना सन्नाटा था, जैसे हर कोई आने वाले तूफ़ान का इंतज़ार कर रहा हो। मान ने हल्की सी ठोड़ी ऊपर उठाई और अपने सबसे भरोसेमंद आदमी शमशेर को इशारा किया।
शमशेर ने बिना कोई सवाल किए पेन ड्राइव ली और लैपटॉप से कनेक्ट कर दी। फिर उसने लैपटॉप को सामने लगी बड़ी स्क्रीन से लिंक कर दिया।
प्ले बटन दबते ही स्क्रीन पर कुछ ऐसा चला जिसने वहाँ बैठे हर शख्स की रूह कंपा दी।
वीडियो में एक अंधेरा कमरा दिखा। ज़मीन पर खून बिखरा था।
फिर कैमरा ज़ूम हुआ।
चार लड़के लोहे की चेन से बंधे हुए थे, उनके चेहरे सूजे हुए थे, शरीर से खून टपक रहा था। उनके मुँह से कराहटें और दर्द भरी चीखें निकल रही थीं।
तभी स्क्रीन पर एक साया उभरा।
एक शख्स चमचमाती ब्लेड लिए आगे बढ़ा और उनमें से एक लड़के की गर्दन पर ब्लेड रखकर धीरे-धीरे उसकी त्वचा काटनी शुरू कर दी।
चीखों से कमरा गूंज उठा।
वीडियो में जलते हुए लोहे की रॉड से किसी के शरीर पर कुछ लिखा जा रहा था। कोई बर्फ की ठंडी बाल्टियाँ किसी के सिर पर डाल रहा था, तो किसी के नाखूनों को एक-एक कर के उखाड़ा जा रहा था।
वहाँ बैठे कई लोग अब चेहरा फेर चुके थे। कुछ की आँखें डर से चौड़ी हो गई थीं।
लेकिन साहिबा?
वह बिल्कुल शांत बैठी थी, उसकी आँखों में न तो कोई दया थी, न कोई पछतावा।
वह वीडियो को ऐसे देख रही थी जैसे कोई हल्की-फुल्की कॉमेडी फिल्म चल रही हो।
उसकी उंगलियाँ मेज़ पर टहल रही थीं, होंठों पर वही हल्की-सी जानलेवा मुस्कान थी।
मान ने अपनी नज़रों को स्क्रीन से हटाकर साहिबा की तरफ़ मोड़ा।
वह उसे एकटक, बिना पलक झपकाए देखता रहा।
जिस बर्बरता को देखकर एक आम इंसान की धड़कनें तेज़ हो जाएँ, जिससे देखने मात्र से रूह काँप जाए...वो सब करने वाली लड़की इतने सुकून और ठंडेपन के साथ बैठी थी, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
एक पल के लिए मान को भी भरोसा नहीं हुआ कि क्या वाकई यह लड़की यह सब कर सकती है?
लेकिन वीडियो की क्रूरता और साहिबा की शांत आँखें कह रही थीं..
"हाँ, कर सकती हूँ... और इससे भी ज़्यादा कर सकती हूँ।"
शमशेर के हाथ हल्के-से काँपे, लेकिन उसने वीडियो बंद नहीं किया।
मान ने गहरी साँस ली।
फिर वह हल्के से मुस्कराया लेकिन इस बार उसकी मुस्कान में हैरानी थी... और एक अजीब-सा नया जुनून।
"Interesting…" उसने धीरे से कहा। "बहुत ही ज्यादा Interesting…"
कमरे में एक अजीब-सी गूँज थी। वीडियो की खौफनाक चीखें अभी भी कुछ लोगों के कानों में गूँज रही थीं। लेकिन मान?
वह एक अलग ही दुनिया में था।
उसकी नज़रें साहिबा पर टिकी थीं, बिलकुल जमी हुई।
साहिबा का बेबाक अंदाज़, उसकी बिलकुल ठंडी नज़रें, और उसके चेहरे पर वह बर्बर मुस्कान, सब कुछ मान के लिए नशे जैसा हो चुका था।
वह पहली बार किसी लड़की को इतनी शिद्दत से देख रहा था।
कमरे में बहुत लोग थे, लेकिन इस वक्त उसके लिए बस एक ही इंसान मौजूद था, साहिबा।
वहीं दूसरी ओर, साहिबा भी पीछे हटने वालों में से नहीं थी।
उसकी आँखों में एक ऐलान था, "मुझे कम आँक मतना, वरना सब कुछ तबाह कर दूँगी।"
उन दोनों के बीच एक अलग ही जंग चल रही थी।
एक-दूसरे को तौलती, परखती नज़रें।
इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, एक आदमी जो साहिबा की वीडियो देखकर बुरी तरह तिलमिला चुका था, गुस्से में अपनी जगह से उठा।
उसकी आँखों में सिर्फ और सिर्फ नफरत थी।
उसने कमर से तेज धार वाला छुरा निकाला और पूरी ताकत से साहिबा की पीठ पर वार करने को लपका!
लेकिन…
‘स्विश्श’
सब कुछ सेकंडों में हुआ।
साहिबा ने एक पल भी बर्बाद किए बिना बिजली की तेज़ी से पीछे हाथ बढ़ाया, हमलावर की कलाई जकड़ ली।
और फिर…
बस एक झटका, एक कर्रर्रर की आवाज़…
“चटाक!!”
हड्डी टूटने की इतनी भयानक आवाज़ आई कि वहाँ बैठे लोग दहशत से सिहर गए।
वह आदमी चीखता हुआ नीचे गिर पड़ा, उसका हाथ अब एक अजीब कोण पर टूटा हुआ, लटक रहा था।
मान, जो अब तक साहिबा में खोया हुआ था, इस हमले का अंदाज़ा तो लगा चुका था, लेकिन कुछ करने से पहले ही साहिबा ने अपना काम कर दिया था।
वह हल्के से मुस्कराया, जैसे खुद से कह रहा हो, "यह लड़की हर बार चौंका देती है।"
अब बारी थी वार करने की… लेकिन शब्दों से।
साहिबा अब उस ज़मीन पर गिरे हुए आदमी के सामने घुटने टेक कर बैठी।
उसका नाम तिवारी था।
साहिबा ने गहरी साँस ली और उसके चेहरे पर एक खतरनाक मुस्कान आ गई और उसने कहा, "मिस्टर तिवारी, लगता है, आपको बेटे का बहुत बड़ा सदमा लगा है।"
वह हल्का-सा हँसी, लेकिन उसकी हँसी में एक ज़हर घुला हुआ था।
फिर, जैसे किसी को उसके सबसे गहरे ज़ख्म पर नमक छिड़क कर दर्द देना हो, उसने और कड़वी आवाज़ में कहा, "अगर यह गुस्सा, अगर ये भावनाएँ अपने बेटे के साथ नियंत्रित की होतीं… तो शायद तुम्हारा बेटा ज़िंदा होता।"
तिवारी का चेहरा गुस्से और दर्द से लाल हो गया।
साहिबा ने कोई जल्दी नहीं की।
उसने हल्के से तिवारी के चेहरे पर एक तमाचा मारा।
बहुत जोर से नहीं, लेकिन जितना ज़रूरी था उतना।
तिवारी के चेहरे पर बेइज़्ज़ती की लकीर खिंच गई।
अब वह धीरे से उठी।
उसकी नज़रें सीधे मान से टकराईं।
"आई होप… आपको अब आपके सारे सवालों का जवाब मिल गया होगा।" उसने सधी हुई आवाज़ में कहा।
फिर उसकी आँखें और तेज हो गईं, और एक सख्त आवाज़ में बोली, "और आप मेरे रास्ते में नहीं आएँगे।"
कमरे में सन्नाटा छा गया।
कोई भी इस लड़की से अब भिड़ना नहीं चाहता था।
साहिबा ने अब मान से नज़रें हटा लीं और पीछे मुड़ी।
उसकी चाल में वही शिकारी का आत्मविश्वास था।
अब वह बाबा साहेब के पास पहुँच कर खड़ी हुई, फिर झुक कर उनके पैर छुए।
"बाबा साहेब, अब मैं चलती हूँ। बहुत काम बाकी है अंजाम देने के लिए।"
बाबा साहेब ने एक गहरी नज़र उससे मिलाई।
फिर वह सिर हिलाकर बोले, "बिलकुल मेरी बच्चे।"
उनकी आँखों में एक इशारा था, "अब तूफ़ान आने वाला है।"
साहिबा बिना पलटे, बिना रुके दरवाजे की ओर बढ़ गई।
और पीछे खड़ा अंडरवर्ल्ड का किंग, मान सूर्यवंशी… अब भी उसे देखे जा रहा था।
"Interesting… बहुत ज्यादा Interesting…" उसने खुद से फुसफुसाया।
खेल अब सच में शुरू हो चुका था।
अध्याय -7
साहिबा के जाने के बाद मान की निगाहें उसी दरवाज़े पर अटकी रहीं जहाँ से वो गई थी। उसके कदमों की हल्की सी आहट अभी भी मान के कानों में गूंज रही थी। जिस अंदाज़ में वो आई थी, जिस बेरुखी से बातें की थीं, जिस बेपरवाही से उसकी आँखों में आँखें डालकर उसे चुनौती दी थी, मान को सब कुछ उसी पल से मदहोश कर रहा था। एक अजीब सा खुमार उसकी रगों में दौड़ने लगा था।
"साहिबा…"
उसने धीमे से उसका नाम लिया, जैसे पहली बार कोई चीज़ दिल से महसूस की हो। उसके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान उभरी, मगर आँखों में एक अजीब सी कशिश थी; ख़तरनाक, जुनूनी, और अडिग।
मान सूर्यवंशी ने अपनी ज़िंदगी में बहुत कुछ हासिल किया था। हर चीज़, हर इंसान उसके सामने झुक जाता था। मगर ये लड़की… ये लड़की तो जैसे उसके वजूद को चुनौती देकर चली गई थी। वो जो एक इशारे पर किसी की भी दुनिया हिला सकता था, आज पहली बार किसी की बेरुखी में ऐसा उलझा कि उसकी धड़कनों ने भी अपनी रफ्तार बदल ली।
"तुम्हें पाना है, साहिबा…" मान ने गहरी सांस लेते हुए खुद से कहा, "किसी भी कीमत पर।"
उसकी उंगलियाँ धीमे-धीमे मेज़ पर पड़े ग्लास के किनारों को छूने लगीं, जैसे कोई शिकारी अपने शिकार की छुअन को महसूस कर रहा हो। उसने अपनी आँखें बंद कीं, और साहिबा की तस्वीर उसके जहन में उभर आई—उसकी तीखी आँखें, नर्म होंठों पर वो कड़वा सा एहसास, और उसकी बेपरवाह हंसी। मान की साँसें भारी होने लगीं।
ये लव एट फर्स्ट साइट नहीं था… ये जुनून था, वो जुनून जो हर सरहद पार कर जाता है। वो जुनून जो सिर्फ प्यार नहीं, बल्कि हक़ जताता है; वो जुनून जो तोड़ता नहीं, बल्कि झुकने पर मजबूर कर देता है। और मान सूर्यवंशी झुकता नहीं था…
वो आगे बढ़ा, अपनी जैकेट पहनी, और एक नज़र उसी दरवाज़े पर डाली, जहाँ से साहिबा गई थी। अब ये खेल शुरू हो चुका था, और मान को अपनी जीत से कम कुछ भी मंज़ूर नहीं था।
"देखते हैं, साहिबा… कब तक मुझसे बचकर रह पाती हो।" उसकी आवाज़ में गहराई थी, एक ठहराव… मगर उसकी आँखों में तूफान उमड़ रहा था।
देवा भाऊ वहीं पर खड़े, जलते हुए सिगार से उठते धुएं को हवा में उड़ते हुए देख रहे थे। उन्होंने मान को गौर से देखा; उसकी आँखों में एक अलग सी चमक थी, एक ख़तरनाक जुनून, जो किसी भी हद को पार कर सकता था।
वो धीमे कदमों से आगे बढ़े, मान के कंधे पर हाथ रखा और गहरी आवाज़ में बोले, "किंग, तुम गलत दिशा में जा रहे हो। ये आग है… जलाकर राख कर देगी। इसमें वही जुनून, वही आग है, जो मैंने पंद्रह साल के एक लड़के में देखी थी, तुममें। गौर से सुन लो, ये लड़की भी उसी आग में जल रही है… तुम इसे काबू में लाने चले हो, लेकिन कहीं ऐसा न हो कि ये तुम्हें ही जला कर भस्म कर दे।"
मान ने धीरे से सिर घुमाया, हल्की मुस्कान उसके होंठों पर खेल गई। उसकी उंगलियाँ टेबल पर पड़े ग्लास के किनारे पर चल रही थीं, जैसे किसी शिकार की नब्ज़ टटोल रहा हो। उसने एक लंबी सांस ली और बेहद शांत लेकिन खतरनाक लहजे में बोला, "क्या आप मुझे समझाने की कोशिश कर रहे हो, देवा भाऊ?"
देवा भाऊ की आँखों में एक पल के लिए चिंता की परछाई लहराई, लेकिन वो स्थिर खड़े रहे। "हाँ, समझा रहा हूँ, किंग। मैंने इस आग को बहुत करीब से देखा है… और इसमें जलने वाले सिर्फ बर्बाद होते हैं। तुम्हारी मोहब्बत का अंजाम तुम्हें पता है? ये तुम्हें भी जला डालेगी, तुम्हारी सल्तनत, तुम्हारी हुकूमत, तुम्हारी वो पहचान… सब राख हो जाएगा!"
मान हंस पड़ा, लेकिन उसकी हंसी में दीवानगी की गूंज थी। उसने अपनी आँखें बंद कीं, और सामने साहिबा की तस्वीर उभर आई—वो तीखी निगाहें, वो बेपरवाह अंदाज़, वो जंगली आग जो उसकी रगों में बहने लगी थी।
उसने एक कदम आगे बढ़ाया, देवा भाऊ के बेहद करीब जाकर, उनकी आँखों में आँखें डालकर कहा, "आपने तो खुद कहा था, भाऊ.. कि मैं हमेशा अपनी शर्तों पर जीता हूँ। फिर अब क्यों रोक रहे हो? मैं जानता हूँ कि मैं क्या कर रहा हूँ। मेरी मोहब्बत किसी आम इंसान की मोहब्बत नहीं है… ये जुनून है, और जब जुनून अपनी हदें पार करता है तो कोई भी उसे रोक नहीं सकता।"
देवा भाऊ गहरी सांस लेकर पीछे हटे, मगर उनकी आँखों में अब भी चेतावनी थी। "मोहब्बत जब जुनून बन जाए, तो वो इबादत नहीं, बर्बादी होती है, किंग। सोच लो, कहीं ये इश्क़ तुम्हारी तबाही न लिख दे।"
मान ने एक बार फिर वही रहस्यमयी मुस्कान दी, उसकी आँखों में तूफान था। उसने सिगार उठाया, जलाया और एक लंबा कश लेकर धुएं को हवा में छोड़ते हुए कहा, "तबाही? मैं तो खुद तबाही का दूसरा नाम हूँ, देवा भाऊ। अब देखने वाली बात ये होगी… कि कौन पहले जलकर राख होता है, साहिबा या मैं।"
वहाँ खड़े-खड़े, देवा भाऊ ने पहली बार महसूस किया कि शायद किंग का ये जुनून इस बार सच में उसे खत्म कर सकता था।
देवा भाऊ वहीं खड़े रहे; उनकी उंगलियाँ धीरे-धीरे मुट्ठी में कसने लगीं, जैसे कोई बीती हुई याद उनकी रगों में सुलगने लगी हो। उनकी आँखें धीरे-धीरे बंद हुईं, और उनके मन में एक ही ख्याल दौड़ा…
"किंग, अभी तुम उसके अतीत से वाकिफ नहीं हो। जिस दिन तुम्हें उसकी हकीकत पता चलेगी, तुम्हारी ये मोहब्बत, ये जुनून सब राख हो जाएगा। क्योंकि आज के ज़माने में कोई भी आदमी झूठी थाली में खाना पसंद नहीं करता और वो तो…"
एक लंबी सांस खींचकर उन्होंने खुद को संभाला, लेकिन उनका चेहरा अब भी तनाव से भरा हुआ था। उनके ज़हन में कुछ ऐसे राज़ थे, जो वो ज़ुबान पर लाना नहीं चाहते थे। उनकी आँखें गहरी, मगर बुझी-बुझी सी लग रही थीं, जैसे कोई ऐसा दर्द हो, जो कहने से भी भारी पड़ जाए।
तभी मान ने अपने खास अंदाज़ में उनकी ओर देखा, हल्का सा सिर झुका कर मुस्कुराया और गहरी आवाज़ में कहा, "आप चाहे जितना सोच लो, देवा भाऊ… जितनी कोशिश कर लो, लेकिन अब आप इस किंग को रोक नहीं सकते। हाँ, मेरी मदद ज़रूर कर सकते हैं। अगर आप मुझे उसके अतीत के बारे में बता दें, तो…"
देवा भाऊ ने एक हल्की मुस्कान दी, मगर उसमें चुभन थी, एक तीखा व्यंग्य। वो कुछ कदम आगे बढ़े, मान के बेहद करीब जाकर उसकी आँखों में झांकते हुए बोले, "जब इतना सब कुछ कर रहे हो, तो ये पता भी तुम खुद ही लगा लो।"
मान को उनका जवाब सुनकर हंसी आ गई। उसने हाथों को जेब में डाला, फिर सिर उठाकर ऊपर की तरफ देखा, जैसे वहाँ से कोई जवाब ढूंढना चाहता हो। फिर उसने धीमे से कहा, "हाँ, पता तो लगाना ही पड़ेगा… और मुझे खुद ही लगाना पड़ेगा।"
फिर उसने देवा भाऊ की ओर देखा, और अपनी आँखों में वही पुराना, जानलेवा ठहराव लाकर कहा, "क्योंकि अगर इसकी सच्चाई इतनी आसान होती, तो अब तक मेरे पास वो जानकारी होती। लेकिन वाह, भाऊ! आपने तो बहुत अच्छे से साहिबा की सारी हिस्ट्री को दफन कर दिया है… वेरी गुड!"
देवा भाऊ ने बिना कुछ कहे मान की ओर देखा, लेकिन उनके भीतर कहीं एक बेचैनी हिलोरें मार रही थी। उन्हें पता था कि किंग एक बार किसी चीज़ को पकड़ ले, तो उसे छोड़ता नहीं। और अगर उसने साहिबा के अतीत को जानने की ठान ली है, तो अब वो सच ज़्यादा दिनों तक छुपा नहीं रह सकता।
Chapter - 8
रात की काली चादर के नीचे, अंडरवर्ल्ड का बेताज बादशाह, मान सूर्यवंशी ने अपने खास आदमी शमशेर को इशारे से अपने करीब बुलाया। उसके चेहरे पर वही ठंडा, मगर दबदबे वाला भाव था। आँखों में एक रहस्यमयी चमक थी, मानो किसी बड़े खेल की शुरुआत होने जा रही हो।
उसने धीरे से शमशेर को इशारा किया और ठहरी हुई आवाज़ में कहा, “मेरे शेर, तुझे एक बहुत बड़ा और खास काम सौंप रहा हूँ। तुझे अपने किंग की क्वीन की सारी जन्म कुंडली निकालनी है... ए टू ज़ेड! एक भी सिरा बाकी नहीं रहना चाहिए।”
“हो जाएगा किंग!” शमशेर ने अपना सर झुकाते हुए कहा।
तभी किंग को हंसी आ गई। “हा हा हा, तुम्हें यह आसान लग रहा है पर है नहीं। इस सच्चाई को एक खास तहखाने में छुपाया गया है… जो हमारे बाबा साहब के सीने में दफन है।”
शमशेर एकदम से किंग की तरफ देखने लगा जिसके चेहरे पर कुछ अलग ही भाव थे।
किंग अपने आपसे बड़बड़ाते हुए बोला, “मान… काम बहुत मुश्किल है। बात तेरी रानी की है, जैसे तुझसे देर करने के लिए उसके बीते हुए कल को बड़ी सफाई से छुपाया गया है। मगर अब वक्त आ गया है कि उस छुपी हुई हकीकत को मैं खुद सामने लाऊँ।”
शमशेर हैरान-परेशान नजरों से किंग को देख रहा था। यह पहली बार था जब किंग किसी लड़की को लेकर इस हद तक जुनूनी हो गया था।
किंग ने सख्त आवाज़ में कहा, “शमशेर, इस काम में चूक नहीं होनी चाहिए। अगर भूल भी हुई तो अंजाम तुझे भी पता है।”
शमशेर, जो मान का सबसे वफादार आदमी था, उसकी बात सुनते ही सुन्न पड़ गया। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं। उसकी आँखें एक पल के लिए फैल गईं, फिर झुक गईं।
उसके मन में खयालों का तूफान उठने लगा। “हे भगवान! ये क्या काम पकड़ा दिया है बॉस ने? सरकार की छुपाई हुई खबर, वो भी बाबा साहब के सीने में दफन? अरे, सरकार से तो खुद हमने कभी नहीं पूछी ये बात… फिर बॉस ने कैसे सोच लिया कि ये मुझसे होगा? ये तो जैसे गढ़े मुर्दे उखाड़ने को कह रहे हैं। जिन मुर्दों की पहचान मिटा दी गई थी, वो सब अब मुझे खोजने को कह रहे हैं? ये तो भगवान के खिलाफ जाना हो गया! ये काम तो नामुमकिन जैसा है। बॉस को क्या हो गया है? ये पागल हो गए हैं क्या? अब ये मुझे भी पागल बना देंगे।”
शमशेर की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। वह गहरी सोच में डूबा था कि अचानक मान की कड़कती हुई आवाज़ ने उसे जैसे नींद से जगा दिया।
मान ने उसके कंधे पर मजबूत हाथ रखा और ठंडी, मगर भारी आवाज़ में कहा, “अगर मन ही मन गाली-गलौच कर चुका हो तो अब जाकर काम पर लग जा। ज्यादा सोच मत, क्योंकि सोचने वाले पीछे रह जाते हैं। और मैं अपने साथ किसी कमजोर आदमी को नहीं रखता। अब जाओ, बहुत काम करना है अभी।”
“य.. ये सब… ये सब मैं समझ गया, बॉस! मैं… मैं अभी जाता हूँ।” शमशेर ने एक झटके में सिर हिलाया, उसकी आवाज़ काँप रही थी।
इतना कहकर शमशेर वहाँ से गायब हो गया।
उसी पल, कमरे में एक और शख्स दाखिल हुआ। देवा भाऊ सरकार! उनकी चाल धीमी थी, लेकिन उनकी आँखों में एक अलग ही किस्म की चिंता थी।
वह मान के करीब आए और गहरी आवाज़ में बोले, “किंग… मेरी बच्ची पहले ही बहुत मुश्किलों से जूझी है। अब उसे तुम्हारे जुनून, तुम्हारे प्यार और मोहब्बत की इस आग में मत झोंको। तुम समझ नहीं रहे हो, तुम्हारी दीवानगी उसके लिए और भी मुश्किलें खड़ी कर सकती है। उसका मकसद इस जुनून से बहुत बड़ा है, बहुत ऊँचा है।”
देवा भाऊ की आवाज़ में कड़वाहट भी थी और एक बाप की चिंता भी। लेकिन मान… वो तो जैसे इस पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठी में रखने वाला शख्स था। उसने धीरे से सिर उठाया, उसकी आँखों में एक शैतानी चमक थी। होंठों पर हल्की सी खतरनाक मुस्कान उभर आई।
“देवा भाऊ सरकार… आप फिर वही गलती कर रहे हैं। आप जानते हैं ना कि अब मुझे समझाने से कोई फायदा नहीं? ये मत भूलिए कि अब मैं अंडरवर्ल्ड का किंग हूँ… और किंग की रानी को छुपाने का ख्वाब कोई भी देखे, तो वो सिर्फ ख्वाब ही रहेगा।”
देवा भाऊ सरकार ने गहरी साँस ली, उन्होंने मान की आँखों में झाँका, मगर वहाँ सिर्फ एक ही चीज़ थी, जुनून… जो किसी भी हद तक जाने को तैयार था।
रात गहरी हो चली थी, आसमान में बादल छाए थे, मानो कोई अनहोनी दस्तक दे रही हो। देवा भाऊ के अड्डे से निकलते हुए साहिबा की आँखों में एक ठहरी हुई बेचैनी थी। गाड़ी के भीतर हल्की रोशनी थी, और बाहर शहर की बत्तियाँ भागती हुई नज़र आ रही थीं।
रॉकी ड्राइविंग सीट पर था। उसकी पकड़ स्टीयरिंग पर मजबूत थी, मगर दिमाग में उलझनें चल रही थीं। वह जानता था कि इस वक्त साहिबा के भीतर एक तूफान उमड़ रहा था, जिसे बाहर आने में देर नहीं लगती।
फिर भी उसने हिम्मत जुटाकर पूछा, “मैम, अभी हमें कहाँ चलना है?”
“अभी मुझे बच्चों से मिलना है। तुम उनको फोन करके बोलो कि बच्चों को लेकर अड्डे पर आ जाएँ।” साहिबा ने अपनी आँखें बंद रखते हुए ठंडी आवाज़ में कहा।
“ओके मैम।” रॉकी ने हल्का सिर हिलाया।
उसने तुरंत फोन निकाला और एक मैसेज टाइप करने लगा। लेकिन उसका ध्यान साहिबा पर ही था।
साहिबा वैसे ही आँखें बंद किए बैठी रही, लेकिन उसके भीतर हलचल जारी थी। उसका मन किसी तूफान की तरह बेचैन था। कुछ ही देर में उसने अपनी आँखें खोलीं और सीधे रॉकी को देखा। उसकी नज़रें ऐसी थीं, जैसे वे आर-पार देख सकती थीं।
रॉकी को देखते ही उसने धीरे से मगर गंभीर आवाज़ में पूछा, “रॉकी, दुबई से वो आ गया?”
रॉकी के शरीर में हल्की सिहरन दौड़ गई। उसका गला सूख गया। वह जानता था कि जिसके बारे में साहिबा बात कर रही थी, वो कोई आम इंसान नहीं था। वह नाम ही काफी था लोगों को थरथराने के लिए।
“मैम, मुझे… मुझे अभी तक कोई खबर नहीं मिली। लेकिन मैं पता करके बताता हूँ। फिलहाल तो उनके आने की कोई सूचना नहीं है, लेकिन अगर उनका इरादा हुआ या वो आया, तो सबसे पहले आपको ही बताऊँगा।” रॉकी ने काँपती आवाज़ में जवाब दिया।
साहिबा ने कुछ देर तक उसकी आँखों में झाँका, फिर बिना कुछ कहे वापस सिर पीछे टिकाकर बैठ गई। गाड़ी की खिड़की से बाहर देखा, रात और भी ज्यादा रहस्यमयी लग रही थी। हवाएँ तेज़ हो चुकी थीं, और साहिबा के मन में कोई अनकही आंधी चल रही थी।
रात के सन्नाटे में हल्की-हल्की हवाएँ चल रही थीं। देवा भाऊ के अड्डे से बाहर निकलते ही मान सूर्यवंशी के चेहरे पर एक अलग ही तरह की ठंडक थी, खतरनाक और बेखौफ। लेकिन उसकी आँखों में जो ज्वाला थी, जो उसकी अंदरूनी उथल-पुथल को बयां कर रही थी। जैसे ही उसने बाहर कदम रखा, उसके पीछे कुछ बॉडीगार्ड्स भी साथ निकले।
तभी उसके एक बॉडीगार्ड के फोन पर एक कॉल आई। बॉडीगार्ड ने स्क्रीन पर देखा, फिर झिझकते हुए मान की तरफ बढ़ा दिया। मान ने उस फोन को रिसीव किया, और दूसरी तरफ से एक चिंतित आवाज़ आई, “बॉस, आपके घर से फोन आ रहे हैं। क्या करना है?”
यह सुनते ही मान का पूरा चेहरा बदल गया था। उसकी आँखों में एक अजीब सी आग जल उठी थी, जैसे किसी ने उसके अतीत की गहरी कब्रें खोल दी हों। उसकी साँसें भारी हो गई थीं, और उसके जबड़े सख्त हो गए थे। एक पल के लिए उसकी आँखों के सामने पुरानी यादों के टुकड़े चमकने लगे थे, कुछ ऐसे चेहरे, जो अब शायद उसकी ज़िन्दगी से मिट चुके थे, लेकिन उनका असर अभी भी बाकी था।
उसने गुस्से में अपनी मुट्ठी कस ली थी, लेकिन अगले ही पल एक गहरी साँस लेते हुए खुद को काबू में कर लिया।
उसकी आवाज़ ठंडी, मगर सख्त थी, “अभी नहीं! उन्हें जब पता लगना होगा, तब लग जाएगा। फिलहाल मैंने तुम्हें जो काम दिया है, तुम सिर्फ उसी पर फोकस करो। किसी और चीज़ पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं। समझे?”
“जी बॉस।” बॉडीगार्ड ने हल्के स्वर में कहा और सिर झुका लिया।
मान ने फोन वापस बॉडीगार्ड की ओर बढ़ा दिया और फिर एक लंबी साँस ली। उसने आसमान की तरफ देखा।
अंधेरी रात, जैसे उसके अंदर के अंधेरे का अक्स हो। कुछ ही पलों में उसके चेहरे पर फिर वही ठंडा, निर्दयी भाव लौट आया था। उसकी चाल में वही पुराना आत्मविश्वास था, जो उसके हर कदम को और भी भयानक बना देता था।
उसने गाड़ी की तरफ बढ़ते हुए कहा, “अब वक्त आ गया है। शिकार अपने पिंजरे से बाहर निकलने ही वाला है… और जब वो निकलेगा, तो शिकारी तैयार होगा।”
इसके बाद उसने गाड़ी का दरवाज़ा खोला और अंदर बैठते ही इंजन गरज उठा। गाड़ी अंधेरे में कहीं गुम हो गई, लेकिन उस रात की हवाओं में अब भी मान सूर्यवंशी के इरादों की सर्द लपटें तैर रही थीं।
Chapter-9
सूर्यवंशी हॉउस,
सुबह की धूप एक आलीशान विला की खिड़कियों से छनकर ड्राइंग रूम में आ रही थी। ड्राइंग रूम में पुरानी लकड़ी की खुशबू और चाय की महक तैर रही थी। उस कमरे के एक कोने में, एक नक्काशीदार सोफ़े पर, सत्तर साल के पाटिल भाऊ अपना चश्मा चढ़ाए हुए अखबार पढ़ रहे थे। उनकी आँखों में उम्र का ठहराव था, पर भीतर कहीं एक तूफ़ान पल रहा था।
उनके पास ही बैठी थीं, उनकी पत्नी- शांति जी, जिनकी उम्र करीब साठ साल की थी। वे बड़े सलीके से फलों को काट रही थीं।
पाटिल भाऊ ने अखबार से नज़रें हटाईं और गहरी साँस लेते हुए कहा, "क्या हो गया है आजकल? मतलब… मैं अंडरवर्ल्ड से क्या निकला.. इन लोगों ने तो पूरे खेल के नए उसूल बना लिए?"
उन्होंने अखबार मोड़कर शांति जी की तरफ बढ़ा दिया।
"देखो, ये सारे चेहरे… ये सब माफिया थे। कभी नाम से कांपा करते थे लोग। अय्याश, रेपिस्ट, और भी ना जाने क्या क्या पाप किए हैं इन्होंने। और अब? इनके जिस्म के टुकड़े भी पूरे नहीं मिले। कोई ऐसा है जो इनका हिसाब कर रहा है… पर कौन? और अंडरवर्ल्ड का किंग इन सब बातों से बेखबर ना जाने कहाँ है?"
पाटिल भाऊ ने अखबार एक तरफ रखा, चश्मा उतारकर धीरे से पास रखे तार के डिब्बे पर रखा, और नज़रें झुका लीं। उनकी आवाज़ में थकान थी, सिर्फ उम्र की नहीं, जमाने से हारे हुए आदमी की।
शांति जी ने फल काटना रोक दिया। उन्होंने ध्यान से पाटिल भाऊ की तरफ देखा और धीरे से कहा, "ये सब आपसे छुपा थोड़े हैं। आप जानते हैं ना, अंडरवर्ल्ड का असली किंग कहाँ है?"
पाटिल भाऊ ने गहरी साँस ली, जैसे सीने में दबा कोई बोझ अचानक बाहर आ गया हो।
"काश जान पाता… मेरा ही खून… मेरी ही गद्दी संभाल रहा है। पर अफसोस, अब वही मेरा सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है।
काश… मरने से पहले एक बार उसे देख पाता…"
शांति जी ने धीरे से पाटिल भाऊ के पैर पर हाथ रखा, उनकी आँखों में नमी उतर आई।
"घबराइए मत। वो हमारा पोता है। एक दिन ज़रूर आएगा। खून का रिश्ता कभी खत्म नहीं होता।"
पाटिल भाऊ की आँखें छत की तरफ उठ गईं। एक दर्द था, जो शब्दों से नहीं, सन्नाटे से बोल रहा था।
"आना तो चाहिए…" उन्होंने रुककर कहा, "लेकिन तुम जानती हो ना… उसके रहते हुए, वो कभी यहां कदम नहीं रखेगा।"
ये सुनकर शांति जी का चेहरा उतर गया। उनकी आँखों में उम्मीद की लौ थोड़ी मंद पड़ गई थी, लेकिन बुझी नहीं। हवेली के उस कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया था… जैसे वक़्त भी कुछ पल के लिए ठहर गया हो।
पाटिल भाऊ और शांति जी की बातचीत अभी अधूरी ही थी। कमरे में एक अजीब सी चुप्पी छाई हुई थी, जैसे हर शब्द वक़्त के किसी पुराने ज़ख्म को कुरेद रहा हो। तभी बाहर से किसी के तेज़ क़दमों की आवाज़ गूंजने लगी। एक नौजवान आदमी, सफेद कुर्ते में, हल्के पसीने से भीगा हुआ, हड़बड़ाते हुए कमरे में दाखिल हुआ।
"सर… सर!" वो बेताबी से बोला।
पाटिल भाऊ ने एकदम से सिर उठाया। आवाज़ में अचानक कठोरता आ गई।
"क्या हुआ? क्या खबर है?"
वो आदमी हाँफ रहा था। जैसे एक लंबी दौड़ के बाद रुका हो। साँसें काबू में लाते हुए उसने काँपती आवाज़ में कहा, "सर… किंग… किंग इंडिया में है।"
ये सुनते ही जैसे कमरे की हवा बदल गई।
शांति जी, जो अभी तक सोफे पर बैठी थीं, चौंक कर खड़ी हो गईं। उनके चेहरे से जैसे सारे जहाँ की खुशी आ गई हो।
"क्या?" उनकी आवाज़ खुशी के साथ हल्की काँप उठी, "क्या कह रहे हो? किंग इंडिया में है?"
कमरे में सन्नाटा पसर गया। घड़ी की टिक-टिक भी अब तेज़ लगने लगी थी।
पाटिल भाऊ की आँखों में पहले हैरानी, फिर खुशी और आखिर में एक पुराना दर्द उभरा। वे उठे नहीं, बस कुर्सी पर और गहरा टिक गए… जैसे सालों से किसी एक पल का इंतज़ार कर रहे हों, और अब वो पल सामने आकर खड़ा हो गया हो। उनकी मुट्ठियाँ भींच गईं, और नज़रें दूर किसी अधूरी कहानी के पन्नों में खो गईं।
सुबह का वक़्त था। फायर हाउस, नाम सुनते ही आग, सनक और खौफ का एहसास होता था। यह कोई मामूली बंगला नहीं था, बल्कि यह हवेली एक बादशाहत का प्रतीक थी। यह घर था मान सूर्यवंशी का—उस शख्स का, जिसकी खामोशी भी लोगों की धड़कनों को तेज़ कर देती थी।
इस हवेली का हर पत्थर जैसे इतिहास से लिपटा हुआ था। और यह नाम, ‘फायर हाउस’, सिर्फ नाम नहीं था—यह एक ब्रांड था, एक वजूद, जो मान ने खुद बनाया था। क्यों रखा गया यह नाम? यह सवाल वक़्त के साथ धीरे-धीरे जवाब देगा।
हवेली की ऊपरी मंज़िल पर, अंधेरे से घिरे एक कमरे में मान अपने बिस्तर पर पेट के बल लेटा हुआ था। उसके बदन पर सिर्फ एक काली बॉक्सर थी। हल्की रोशनी खिड़की से छनकर उसकी बॉडी पर पड़ रही थी, लेकिन उसकी आत्मा उस वक़्त कहीं और भटक रही थी—एक खौफनाक ख्वाब में।
एक सुनसान जगह थी। चारों तरफ धुंध फैली हुई थी। वहाँ एक औरत खड़ी थी—बेहद खूबसूरत, पर बेहद डरी हुई। उसकी साड़ी बिखरी हुई थी, आँखों में आँसू थे और चेहरा दहशत से सफेद पड़ चुका था।
चार-छह मर्द उसके इर्द-गिर्द घूम रहे थे—दरिंदों की तरह।
"हँस ना बे…" एक बोला और उसकी तरफ हाथ बढ़ाया।
किसी ने उसका पल्लू खींचा, किसी ने उसका चेहरा पकड़ने की कोशिश की।
औरत चीखी, "छोड़ दो मुझे… प्लीज़…" उसकी आवाज़ दूर तक गूंजी, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था।
हर झपट्टा, हर चीख… मान के सीने को चीर रही थी। वह खुद कुछ नहीं कर पा रहा था… बस देख रहा था। उसकी साँसें तेज़ हो गईं। माथा पसीने से भीग गया।
अचानक मान की नींद खुल गई। उसने झटके से खुद को उठाया और बैठ गया। वह पूरी तरह पसीने में तरबतर था। कुछ पल तक वह चुपचाप बैठा रहा, फिर दोनों हाथों से सिर पकड़ लिया। उसकी आँखों में कोई डर नहीं था, बल्कि एक ज्वाला थी, एक राक्षसी गुस्सा जो किसी को निगलने को तैयार था।
वह उस सपने में दिखी औरत को पहचानता था। वह अजनबी नहीं थी। वह उस आग की वजह थी जिसने मान को फायर बनने पर मजबूर किया था।
काफी देर तक वह यूँ ही बैठा रहा, जैसे कोई फैसला ले रहा हो, फिर अचानक उसके दिमाग़ में साहिबा का ख्याल आया। उसने धीरे से मोबाइल उठाया और शमशेर को कॉल मिलाया।
"हैलो, शमशेर…" मान की आवाज़ भारी थी, पर शांत।
"यस सर…"
"कुछ काम दिया था मैंने तुम्हें… हुआ?"
शमशेर की साँसें तेज़ थीं। "मैं उसी में लगा हूँ सर, लेकिन जैसा कि आप जानते हैं, वो काम बहुत मुश्किल है…"
मान की आवाज़ ठंडी, पर खतरनाक हो गई।
"पता है मुझे काम मुश्किल है… लेकिन अगर ज़िंदा रहना है, तो उसे पूरा करना ही पड़ेगा… जल्दी।"
शमशेर थोड़ी देर चुप रहा, फिर काँपते हुए बोला, "यस सर… मैं पूरी कोशिश कर रहा हूँ। वैसे एक बात थी… आपके घरवालों को शायद पता लग गया है आपके आने के बारे में।"
वह एक गहरी साँस लेकर बोला, "I know."
उसकी आवाज़ में न कोई हड़बड़ाहट थी, न कोई हैरानी—बल्कि एक जानबूझी गई योजना की तसल्ली।
"मैंने खुद ही वहाँ तक यह खबर पहुँचाई है।"
शमशेर कुछ समझ नहीं पाया। उसकी आवाज़ में झिझक थी, "लेकिन सर... वो लोग आपको बुला रहे हैं… उन्हें आपसे मिलना है…"
इतना सुनते ही मान का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने फोन को थोड़ी ज़ोर से पकड़ते हुए कहा, "मैंने तुमसे जितना कहा, तुम उतना करो। मेरे मामलों में टांग ना ही अड़ाओ तो बेहतर है।"
उसकी आवाज़ में अब तल्ख़ी और सत्ता दोनों साफ़ झलक रहे थे।
"मुझे वहाँ तक अपने आने की खबर पहुँचानी थी, सो पहुँचा दी। मुझे कहाँ कब जाना है, कैसे जाना है, वह मैं डिसाइड करता हूँ। तुम नहीं।"
अब मान की आवाज़ में वह आग थी, जो सामने वाले को राख कर सकती थी।
"मेरे आदमी हो, मेरे आदमी बनकर रहो। मेरी जोरू बनने की ज़रूरत नहीं है। अंडरस्टैंड?"
फोन की दूसरी तरफ सन्नाटा छा गया। शमशेर काँपते स्वर में बोला, "जी-जी सर… मैं समझ गया…"
मान ने बिना कुछ और कहे कॉल काट दिया। कुछ पल वह वहीं बैठा रहा, फोन को देखता हुआ, जैसे अपनी ही बनाई हुई चाल के अगले मोहरे सोच रहा हो।
कमरे में अब भी वही सन्नाटा था… लेकिन हवा में एक बात साफ़ महसूस की जा सकती थी—तूफ़ान अब दूर नहीं।
Chapter - 10
देव भूमि विला, देवा भाऊ का बंगला जितना आलीशान था, उतना ही सुरक्षित भी। सुबह का समय था। डाइनिंग टेबल पर देवा भाऊ नाश्ते में मग्न थे। उनका चेहरा शांत था, किन्तु आँखों में वही पुरानी आदत झलक रही थी; हर चेहरे को पढ़ने, हर खबर को तौलने की। उनके पास खड़े दो खास आदमी फुसफुसाती आवाज़ में सुबह की ताज़ा जानकारी दे रहे थे—कौन आया, कौन गया, कौन अब ज़िंदा नहीं।
इसी बीच, घर की सीढ़ियों पर हल्की आवाज़ गूँजी।
"साहिबा…"
धीमे कदमों से वह नीचे उतर रही थी। हर कदम नपा-तुला और संयमित। उसकी चाल में न कोमलता थी, न जल्दबाज़ी। उसने काले रंग का, परफेक्ट फिटिंग बिजनेस सूट पहन रखा था; एकदम औपचारिक, एकदम बंद। उसकी पूरी बॉडी ढँकी हुई थी; कंधों से लेकर पंजों तक।
साहिबा की यही पहचान थी। न कोई आकर्षण, न दिखावा। ग्लैमरस कपड़ों की तो बात ही दूर, उसे कभी किसी ने साधारण जींस-टॉप में भी नहीं देखा था। उसके पहनावे के पीछे एक रहस्य था… एक जख्म, जिसके पीछे छिपे राज का राज रहना ही बेहतर था। क्योंकि उसके खुलने पर एक खतरनाक तबाही आ सकती थी।
उसका चेहरा, हमेशा की तरह, भावहीन था। कोई मुस्कान नहीं, कोई शिकन नहीं… जैसे हर भावना उसके भीतर गहरे दफ़न कर दी गई हो।
वह सीधे आकर देवा भाऊ के पास रुकी, झुककर उनके पैर छुए और हल्की आवाज़ में बोली, "गुड मॉर्निंग, बाबा साहेब।"
देवा भाऊ ने उसके सिर पर हाथ रखा, "सदा खुश रहो, बेटा।"
साहिबा के होठों पर एक फीकी मुस्कान दिखाई दी, जो तंज़ सी लग रही थी।
"आप हमेशा यही आशीर्वाद देते हैं… जानते हैं ना, यह आशीर्वाद सरासर झूठा है। अगर आपको मुझे कुछ देना ही हो, तो यह दिया कीजिए कि मैं दूसरों की खुशी छीन लूँ।"
देवा भाऊ कुछ पल खामोश रहे। उनके चेहरे से भाव मिट चुके थे, बस एक अनुभवी बाप की झलक बाकी थी।
उन्होंने दुबारा मुस्कुराते हुए कहा, "जिस-जिसने मेरी बच्ची को सताया है, उसकी खुशियाँ तो मेरी बच्ची ही वापस छीन ही लेगी। उसका क्या ही आशीर्वाद दूँ। उसके लिए तो मुझे कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं।"
साहिबा चुपचाप सामने की कुर्सी पर बैठ गई और चाय की प्याली उठाकर घूंट लेने लगी। उसके होंठ चाय को छूते वक्त भी उसी नियंत्रण में थे, जैसे कोई फौजी सिपाही।
देवा भाऊ ने उसे देखते हुए कहा, "वैसे… रात बच्चों का फ़ोन आया था।"
साहिबा चाय पीना रोक गई। उसकी आँखें बिना पलक झपकाए देवा भाऊ के चेहरे पर टिक गईं।
"आपके पास?" उसकी आवाज़ धीमी थी, पर उसमें एक अलग भाव था।
देवा भाऊ ने सिर हिलाया, "हाँ, मेरे पास। तुमने उन्हें मिलने बुलाया… लेकिन खुद मिलने नहीं गईं। यह गलत बात है। बच्चे शिकायत कर रहे थे।"
साहिबा ने गहरी साँस ली, फिर स्वर को संयम में रखते हुए बोली, "जानती हूँ, बाबा साहेब। पर एक वजह थी, जिसकी वजह से नहीं जा सकी… लेकिन आप फ़िक्र न करें। आज मैंने उन्हें शॉपिंग पर बुलाया है। उनकी सारी नाराज़गी दूर कर दूँगी।"
देवा भाऊ ने कुछ सेकंड उसे देखा, फिर हल्की मुस्कान लाकर बोले, "I hope so… कम से कम एक तो मान जाए।"
साहिबा की आँखों में हल्की चमक आई। वह मुस्कुराई, "डॉन्ट वरी। थोड़े से नखरे हैं, लेकिन मान जाएँगे।"
मुंबई की सुबहें हमेशा व्यस्त रहती थीं, लेकिन आज की सुबह कुछ ज़्यादा ही ख़ास थी। मान सूर्यवंशी के शेड्यूल में आज एक मीटिंग थी; एक ऐसी मुलाक़ात जो सिर्फ़ व्यापार नहीं, शक्ति और प्रभाव का सीधा प्रदर्शन भी थी।
मीटिंग का स्थान था एक हाई-प्रोफ़ाइल मॉल, जो बाहर से जितना चमकदार दिखता था, अंदर से उतना ही अँधेरा। उस मॉल का मालिक था शहर का एक जाना-पहचाना नाम—एक बड़ा माफ़िया। लेकिन अब जब मान शहर में लौट आया था, तो हर छोटा-बड़ा माफ़िया अपनी औक़ात पहचान चुका था।
अब ताज उसी के सिर था।
सुबह लगभग 11 बजे, मान का काफ़िला फ़ायर हाउस से निकला। चार SUVs, एक बुलेटप्रूफ़ गाड़ी और चारों ओर Z+ सुरक्षा की सख़्ती। काले सूट पहने बॉडीगार्ड्स और हर मोड़ पर उसकी मौजूदगी का एलान करती तेज रफ़्तार। मुंबई की सड़कों ने एक बार फिर राजा के लौट आने की गवाही दी।
कार के अंदर, मान पूरी तरह शांत था। उसके चेहरे पर कोई घबराहट नहीं थी, बस एक ठंडी गंभीरता जो अक्सर शिकारियों में होती है—जो हर चीज़ को दो कदम आगे से देखता है।
मॉल तक पहुँचने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगा। जैसे ही गाड़ियाँ रुकीं, पूरा मॉल का एंट्रेंस खाली करा दिया गया। स्टाफ़ लाइन में खड़ा हो गया और मॉल के मालिक ने खुद बाहर आकर मान का स्वागत किया।
मान सूर्यवंशी ने सफ़ेद रंग का बिजनेस सूट पहन रखा था, जिस पर हल्के सुनहरे बटन थे; ऊपर से उसने एक डार्क ग्रे ओवरकोट डाला हुआ था। उसका पहनावा उसकी उपस्थिति को और भी ज़्यादा ख़तरनाक बना रहा था। उसकी आँखों पर काले रंग का चश्मा था, जो उसके भावों को छुपा रहा था—लेकिन उसके रौब को नहीं।
वह जब चलता, तो लगता जैसे कोई तूफ़ान धीरे-धीरे ज़मीन पर अपने कदम रख रहा हो।
जब उसने कार से पहला कदम बाहर निकाला, मॉल की हवा एक पल के लिए थम सी गई थी।
आज का दिन अलग था। यह ख़बर फैल चुकी थी कि राजा आज मॉल में एक मीटिंग के लिए आ रहा था। सब हैरान थे, क्योंकि राजा जैसा आदमी किसी और के अड्डे पर कदम नहीं रखता था।
"जिसकी अपनी दुनिया हो, वह दूसरों के दरवाज़े नहीं खटखटाता।" मान का यह उसूल था। और आज उसका इसे तोड़ना… सबके लिए एक अबूझ पहेली था।
पर किसी को नहीं पता था कि मीटिंग बस एक बहाना थी।
असल वजह… साहिबा थी।
उसे अपने एक ख़ास आदमी से खबर मिली थी कि आज साहिबा इसी मॉल में आने वाली है। साहिबा—जिसका नाम ही उसके दिल में कुछ ऐसा उबाल ला देता था, जिसे न निगल पाता था न उगल पाता था।
इसलिए उसने फ़ैसला किया कि आज वह उसी मॉल में कदम रखेगा। लेकिन उसके आने की असली वजह किसी को भनक तक नहीं लगने दी।
उसने पूरे रास्ते अपने चेहरे पर वही पुराना अकड़ भरा भाव रखा। उसकी सुरक्षा टीम को लगा आज सिर्फ़ एक पावर मीटिंग है—एक और डील, एक और खेल। लेकिन अंदर ही अंदर मान कुछ और महसूस कर रहा था।
जैसे कोई अनदेखा तूफ़ान पास आ रहा हो।
मॉल में कदम रखते ही उसका फ़ोन वाइब्रेट हुआ। एक मेसेज था—“वह निकल गई है।”
मान की आँखों के पीछे हलचल हुई, लेकिन चेहरे पर कोई फ़र्क नहीं पड़ा। उसने अपना चश्मा ठीक किया और उसी रफ़्तार से आगे बढ़ गया।
लेकिन जो मान नहीं जानता था, वह यह कि आज उसे सिर्फ़ साहिबा ही नहीं दिखेगी।
आज उसे एक ऐसा सच मिलेगा जो उसकी दुनिया की नींव हिला देगा। एक ऐसा राज़ जिसके सामने आने से मान पूरी तरह से हिलने वाला था।
मान सूर्यवंशी ने जब मॉल की वीआईपी एंट्री के सामने अपनी काली, बुलेटप्रूफ एसयूवी से कदम रखा, तो पूरा मॉल जैसे एक पल के लिए थम गया।
गेट से लेकर अंदर तक का वीआईपी कॉरिडोर विशेष स्टाफ से भरा हुआ था। सभी यूनिफॉर्म में कतारबद्ध थे। हर एक की निगाहें झुकी हुई थीं, जैसे किसी बादशाह के स्वागत में झुकी हों। पीछे उसके निजी सुरक्षाकर्मी और वफादार कमांडोज की टुकड़ी थी, जो मान के हर कदम के साथ साये की तरह चल रही थी।
मान का चेहरा बिलकुल शांत था—बिना किसी मुस्कान, बिना किसी गुस्से के। उसकी चाल में एक ऐसा ठहराव था, जो किसी शिकारी की तरह था—धीमा, लेकिन जानलेवा। कंधों पर ओवरकोट झूल रहा था और आँखों पर वही काले चश्मे, जो उसकी आँखों की भाषा को दुनिया से छुपा रहे थे।
तभी उसके फ़ोन की कंपन ने उस खामोशी को तोड़ा।
मान ने चलते-चलते एक इशारा किया— "स्टॉप"—और उसकी पूरी टीम वहीं रुक गई, जैसे किसी ने स्टॉप का बटन दबा दिया हो।
उसने फ़ोन रिसीव किया और एक कोने की तरफ मुड़ गया। कॉल अंतर्राष्ट्रीय थी।
"ओइ, जे लैकूट..."
उसकी आवाज़ में वही लहजा था—सख्त, सटीक, और ठंडा। वह फ़्रांस के एक क्लाइंट से बात कर रहा था।
बात करते-करते वह कुछ कदम आगे बढ़ गया। उसकी आँखें मोबाइल पर और ध्यान पूरी तरह कॉल पर था। और यहीं पर हुआ एक ऐसा टकराव, जिसे न उसने चाहा था और न सोचा था।
दो छोटे बच्चे, एक लड़का और एक लड़की, अपने माता-पिता से दूर आइसक्रीम लिए इधर-उधर भागते हुए आ रहे थे। उनमें से एक बच्चा—जिसके हाथ में वेनिला आइसक्रीम थी—सीधे मान से टकरा गया। बच्चा जमीन पर गिर पड़ा और उसकी आइसक्रीम, मान के सफ़ेद सूट पर बुरी तरह फैल गई।
मान वहीं ठहर गया।
उसने अपनी कॉल एक झटके में काट दी और नीचे गिरे बच्चे की तरफ देखा।
उसके चेहरे पर पहली बार कोई भाव उभरा, लेकिन वह था सिर्फ़ और सिर्फ़ गुस्सा।
उसके जबड़े कस गए। उसकी आँखों की पुतलियाँ सिकुड़ गईं।
और फिर…
वो कड़क और भारी आवाज़ निकली, "ये क्या बेहूदगी है..."
मान को सबसे ज़्यादा नफ़रत अगर किसी से थी तो वह बच्चों से थी। वह कभी बच्चों से जुड़ाव नहीं रखता था, न प्यार, न दया... उसे बच्चों की मासूमियत से नफ़रत थी।
बच्चा अब भी डरा-सहमा जमीन पर बैठा था, और आस-पास के लोग सन्न थे। सबने देखा, लेकिन कोई कुछ बोल नहीं सका।
सुरक्षाकर्मी अलर्ट में थे।
फ्लोर मैनेजर भागता हुआ आया।
लेकिन मान की निगाहें उस बच्चे पर टिकी थीं—जैसे वह कोई गलती नहीं, कोई गुनाह देख रहा हो।
बच्चों की उम्र कुछ खास नहीं थी—लड़की मुश्किल से दस साल की और लड़का कोई बारह का। पर जिस तीखे और डरावने अंदाज़ में मान ने उन्हें डाँटा था, वे दोनों ऐसे काँपने लगे, जैसे तेज आँधी में कोई सूखी टहनी हो। उनकी आँखों में आँसू थे, होंठ काँप रहे थे। उनके पैरों से मानो जान ही निकल गई हो।
मान ने जमीन पर गिरे बच्चे की तरफ देखा और कड़कती आवाज़ में गरजा,
"तुम इडियट हो... बच्चों! तुमने देखा नहीं? आँखें नहीं हैं क्या? यूँ मॉल में दौड़ते फिरते हो, और तुम्हें खुला किसने छोड़ा? तुम्हारे माता-पिता कहाँ हैं? और इस मॉल का मैनेजर? कहाँ है वो?"
उसकी आँखों में गुस्सा नहीं, खौफ़ था। वह बच्चों को नहीं, किसी दुश्मन से बात कर रहा था। एक पल के लिए माहौल में ऐसा सन्नाटा छा गया जैसे पूरा मॉल थम गया हो।
"मैंने अभी इस मॉल के मैनेजर को याद किया है..."
वह दहाड़ा।
मॉल मैनेजर दौड़ता हुआ आया, उसके चेहरे पर घबराहट साफ़ झलक रही थी।
मान उसकी ओर मुड़ा और उसी ठंडी आवाज़ में बोला, "तुझे नहीं पता था कि मैं आने वाला हूँ? वीआईपी मूवमेंट के वक़्त लोकल एंट्री कैसे हुई? तुझे अंदाज़ा भी है कि इस लापरवाही का अंजाम क्या हो सकता है?"
मैनेजर की ज़ुबान सूख चुकी थी, पसीना उसके कॉलर से रिसकर गर्दन तक पहुँच रहा था। वह कुछ कहने ही वाला था कि इतने में उन बच्चों के माता-पिता वहाँ पहुँच गए।
वे जानते थे गलती उनके बच्चों की नहीं थी, लेकिन जिस तरह मान गरज रहा था और उसकी सुरक्षा टीम खड़ी थी, उन्हें खुद अपनी जगह खड़े रहना मुश्किल हो रहा था। वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे, उनके चेहरों पर पछतावा था और दिल में डर।
तभी... एक और क़दमों की आहट ने इस सन्नाटे को तोड़ा।
एक छह साल का छोटा बच्चा, हल्के क्रीम कलर के डैंगरी सूट में, गुस्से से मान की तरफ़ चला आ रहा था। उसकी चाल में ग़ज़ब का आत्मविश्वास था, और चेहरा, मानो किसी फैसले के लिए तैयार हो।
वह सीधे मान के सामने आकर खड़ा हो गया, अपने नन्हे हाथ कमर पर रखे, और गुस्से से उसकी आँखों में आँखें डालते हुए बोला, "एक्सक्यूज़ मी, अंकल! गलती आपकी थी! आप फ़ोन में खोए हुए थे, आप बच्चों को डाँट नहीं सकते। आपने देखा नहीं, और फिर अब सबको डाँट रहे हैं?"
एक पल के लिए जैसे समय रुक गया।
मान ने धीरे से सर घुमा कर नीचे देखा... और उसकी नज़र उस बच्चे से टकराई।
छह साल का नन्हा चेहरा, लेकिन नज़रों में वही आग... जो कभी उसके अंदर थी।
यह वही मान था जिसके सामने बड़े-बड़े माफ़िया काँपते थे, पुलिस जिसके नाम से बचती थी, और जिसके एक इशारे पर शहर के कई दरवाज़े बंद हो जाते थे। लेकिन आज…
एक छह साल का बच्चा उसके सामने खड़ा था, डरने की बजाय उसे ललकार रहा था।
मान के चेहरे की मांसपेशियाँ तन गईं। उसने आँखें छोटी कीं और कड़क आवाज़ में कहा, "यहाँ तुमसे बात नहीं हो रही है, बच्चे... तो बेहतर ये होगा कि अपने माँ-बाप के पास जाओ। वरना इन दोनों की तरह तुम भी फेंक दिए जाओगे।"
बच्चे की आँखें थोड़ी देर काँपीं, लेकिन तभी... एक और क़दम बगल में आ खड़ा हुआ।
वह बच्चा अकेला नहीं था। उसका जुड़वाँ भाई—बिल्कुल उसी की तरह दिखने वाला, उतनी ही उम्र, उतना ही आत्मविश्वास, उतनी ही आग—उसके बराबर में आ खड़ा हुआ।
दोनों भाई अब मान की आँखों में सीधे देख रहे थे।
उनके चेहरों पर ना डर था, ना दया, बस एक ही बात थी—"सच के लिए खड़े रहना!"
Chapter-12
मान अब एकदम सामने खड़ा था। दो जुड़वा बच्चे उसके सामने अडिग खड़े थे। उनकी आँखों में वह बात थी जो बड़े-बड़े गैंगस्टर्स की आँखों में भी कभी नहीं झलकती, सच की आग और हक की ठोकर।
दूसरे बच्चे ने कमर सीधी करके, हाथ बाँधकर, बिना डरे मान की आँखों में देखा और बोला, "ख़बरदार अंकल, अगर आपने मेरे भाई को हाथ भी लगाया।"
उसने कठोर मगर मीठी आवाज़ में कहा,
"जब गलती करते हो, तो उसे एक्सेप्ट करना चाहिए। हमारी मॉम कहती हैं कि जो इंसान गलती करने के बाद भी सीख नहीं लेता, वह आगे जाकर क्रिमिनल बनता है। और क्राइम करने वाला गुनहगार होता है... जिसे सज़ा मिलनी ही चाहिए।"
छोटे-से बच्चे की वह बातें मान के अंदर कहीं जाकर चुभ गईं। लेकिन उसका चेहरा वही पत्थर सा ठंडा रहा। एक धीमी सी मुस्कान उसके होठों पर खिंच गई—तंज से भरी हुई।
"ओह रियली?" मान ने आँखें सिकोड़कर कहा,
"तो तुम्हारी मॉम तुम्हें यह सब सिखाती है? और क्या-क्या ज्ञान देती हैं तुम्हारी यह 'महान' मॉम? ज़रा और भी बताओ, सुनने में दिलचस्प लग रहा है।"
पहला बच्चा, जो पहले गिरे हुए बच्चे को उठाकर खड़ा कर चुका था, तुरंत बोला,
"हमारी मॉम कहती हैं कि माफ़ी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता। अगर किसी के माफ़ी मांगने से किसी को खुशी मिलती है, तो मांग लेनी चाहिए। लेकिन अगर गलती नहीं है, तो झुकने की ज़रूरत नहीं!"
दूसरे बच्चे ने जोड़ा, "और वह यह भी कहती हैं कि ताक़तवर बनो, पर ज़ालिम मत बनो। किसी को डराने में मज़ा नहीं, किसी के आँसू पोंछने में असली ताक़त होती है।"
"वाह..." मान ने हल्के से ताली बजाई,
"तुम दोनों तो छोटे पैकेट में बड़ा धमाका लग रहे हो, पर तुम्हारी मॉम का असली चेहरा भी जानने का मन कर रहा है अब। ऐसी बातें सिखाने वाली औरत... क्या खुद भी इतनी ही बहादुर है?"
बच्चे ने बिना झिझक जवाब दिया,
"आप कभी सामने आएँगे तो खुद देख लीजिए। और हाँ, अगर आप डरते नहीं हैं, तो अभी इन बच्चों से माफ़ी माँगिए। वरना हम अपनी मॉम को बुलाएँगे... और तब आपसे आपकी बहादुरी का टेस्ट लिया जाएगा।"
मान अब पूरी तरह बच्चों की आँखों में देख रहा था—ना डर, ना झिझक, बस भरोसा और सच्चाई। एक पल के लिए मान को ऐसा लगा जैसे वह खुद अपने अतीत को देख रहा हो—वह भी कभी ऐसा ही था, निडर, बेबाक, और हक के लिए लड़ने वाला... जब तक दुनिया ने उसकी मासूमियत छीन नहीं ली थी।
पर फिर उसने फौरन खुद को संभाल लिया।
"तुम दोनों अपनी उम्र के हिसाब से बहुत स्मार्ट हो। लेकिन दुनिया तुम्हारी तरह मासूम नहीं होती। अगली बार किसी अनजान से ऐसे टकराने से पहले दस बार सोचना। मैं कोई लोकल अंकल नहीं हूँ, बच्चे... मैं मान सूर्यवंशी हूँ।"
बच्चों ने एक-दूसरे की तरफ देखा, फिर बड़े वाले ने कहा, "हमें फर्क नहीं पड़ता आप कौन हैं। हमें सिर्फ इतना पता है कि आप गलत थे। और हम सही के लिए हमेशा खड़े रहेंगे—चाहे सामने कोई भी हो, मान सूर्यवंशी ही क्यों ना हो!"
सब वहीं हक्के-बक्के रह गए।
पास खड़े गार्ड्स और स्टाफ अब बच्चों को नहीं, मान को देख रहे थे। पहली बार किसी ने सबसे खतरनाक आदमी से ऐसे बात की थी—और वह भी छह साल के दो मासूम से दिखने वाले, पर ज़हन से तेज़ बच्चों ने।
मान ने उन दोनों निडर जुड़वा बच्चों की तरफ देखा, जो अब भी अपने उसी अंदाज़ में सामने खड़े थे। उसने अपने दोनों हाथ आपस में बाँध लिए और शांत लेकिन तीखे लहजे में बोला, "मेरी गलती नहीं है। ये बच्चे दौड़ते हुए आए थे, यह टकराए मुझसे… और माफ़ी इन्हें मुझसे नहीं, मुझे इनसे मिलनी चाहिए।"
लेकिन जैसे ही मान ने यह कहा, उन दोनों ट्विंस ने भी अपने-अपने पोज़ ले लिए—एक ने कमर पर हाथ रखा, दूसरा हाथ बाँधकर खड़ा हो गया। उनमें से एक बोला, "बिलकुल नहीं। हमने अपनी आँखों से देखा है। आप फोन पर थे, ध्यान कहीं और था, और अचानक आप मुड़े… बच्चे तो सीधे जा रहे थे। अगर आप नहीं मुड़ते, तो ये दोनों उन्हें क्रॉस कर चुके होते।"
मान ने अपनी आँखें थोड़ी संकरी करते हुए, उन दोनों को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, "जिन्हें तुम बच्चे कह रहे हो ना, वो तुमसे दुगनी उम्र के हैं… और तुम लोग तो उनके आधे भी नहीं लगते पिद्दी कही के।"
अब बारी ट्विंस की थी। दोनों एक साथ बोले, "हम पिद्दी नहीं हैं। हम अपनी मॉम के बॉडीगार्ड्स हैं! और जो बॉडीगार्ड्स होते हैं, वो मैच्योर होते हैं। हम मैच्योर हैं। खबरदार अगर आपने हमें पिद्दी कहा तो!"
मान को अब उन बच्चों में दिलचस्पी आने लगी थी। वह हल्के से मुस्कुराया—एक ऐसी मुस्कान जो उसके चेहरे पर बहुत कम नज़र आती थी। वह पहली बार किसी बच्चे के सामने अपने घुटनों पर बैठा, और दोनों की नाक पकड़कर हल्के से खींचते हुए बोला,
"तुम पिद्दी हो… पिद्दी थे… और पिद्दी ही रहोगे, समझे?"
इतना कहकर मान उठ खड़ा हुआ और मुड़कर चलने लगा, लेकिन कहानी वहीं खत्म नहीं हुई।
अब वह दोनों ट्विंस और भी ज़्यादा गुस्से में आ गए। वे भागते हुए मान के सामने आकर खड़े हो गए, और एक ने गुस्से में हाथ हिलाते हुए कहा, "खबरदार! अगर आपने हमें दोबारा पिद्दी कहा, तो हम आपको बहुत मारेंगे!"
मान ने मज़ाक उड़ाते हुए eyebrow उठाई, "ओह? तो अब यह पिद्दी मुझे मारेंगे?"
अभी उसका लहजा खत्म भी नहीं हुआ था कि दोनों बच्चों ने मान के पैरों पर अपने छोटे-छोटे मुक्के बरसाना शुरू कर दिए—एक साथ, दोनों तरफ से।
उनके मुक्के वैसे तो मान को कोई नुकसान नहीं पहुँचा रहे थे, लेकिन उनकी हरकतें उसे इम्प्रेस से ज़्यादा इरिटेट कर रही थीं। उसकी सिक्योरिटी फ़ोर्स उस हरकत पर आगे बढ़ने ही वाली थी कि मान ने हाथ उठाकर उन्हें रोक दिया।
फिर उसने दोनों बच्चों को उनके टी-शर्ट के कॉलर से पकड़कर हवा में उठा लिया—जैसे कोई शरारती बिल्ली के बच्चे हों।
अब वे दोनों हवा में झूल रहे थे, उनके पैर जमीन से कुछ इंच ऊपर थे, और चेहरे पर अब भी वह गुस्सा साफ़ था, लेकिन आँखों में हल्का डर भी।
"अब बताओ…" मान ने एक eyebrow उठाकर पूछा, "पिद्दी हो या नहीं?"
उन दोनों की आँखों में अब आँसू थे—बिलकुल पलकों के किनारे पर। लेकिन उनके होंठ अभी भी सख्त थे। उनमें से एक ने थोड़ा कांपते हुए भी जवाब दिया, "आप हमें डराना चाहते हैं तो शौक से डराइये… लेकिन सच बोलना छोड़ देंगे, यह नहीं होगा!"
दूसरे ने फुसफुसाते हुए जोड़ा, "हम पिद्दी नहीं हैं… आप चाहे जितना उठा लो। हम अपनी बात पर कायम रहेंगे!"
उस जवाब ने मान को कुछ सेकंड के लिए रोक दिया। उसके चेहरे की मुस्कान गायब हो गई। अब वह सोच में पड़ गया था—क्या इन बच्चों में वही आग है जो कभी उसमें थी?
वे दोनों अब भी हवा में थे… लेकिन लगता था, आज मान के दिल में कुछ हलचल ज़रूर हुई थी।
Chapter -13
मान ने उन दोनों जुड़वा बच्चों को हवा में पकड़ रखा था। उनके छोटे-छोटे हाथ उसकी कलाई पर वार कर रहे थे। उसकी आँखों में हल्की चिढ़ और हैरानी थी, लेकिन अगले ही पल उसकी दुनिया हिल गई।
एक लड़की तेज़ी से, गुस्से में वहाँ आई। वह और कोई नहीं, साहिबा थी।
उसने दोनों बच्चों को मान के हाथों से झपट लिया और सीने से लगा लिया। वे दोनों बच्चे फौरन उसकी गोद में समा गए, जैसे किसी तूफान में पनाह मिल गई हो। साहिबा ने एक-एक को अपने सीने से चिपकाया और बच्चों के सिर सहलाते हुए मान को घूर कर देखा।
"रूह, हान तुम दोनों ठीक हो ना? कुछ हुआ तो नहीं ना मेरे बच्चों को?"
बच्चों ने अपनी मीठी आवाज़ में कहा,
"मम्मा… देखो ना, ये अंकल बहुत बदतमीज़ हैं। हमें पिद्दी कहा और तो और इन्होंने एक बच्चे को और उसकी आइसक्रीम भी गिरा दी।"
साहिबा का चेहरा अब ममता से नहीं, आग से भर चुका था। उसकी आँखों में वह सन्नाटा था, जो किसी तूफान से पहले आता है। उसने बच्चों को सीने से लगाया और बिना पलक झपकाए, ठंडी आग से जलती नज़रों से मान की तरफ देखा।
मान सन्न था। वह लड़की, जिससे उसे मिलना था, जिसकी मौजूदगी ही उसे यहाँ खींच कर लाई थी, अब उसके सामने खड़ी थी। लेकिन सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उसने उन बच्चों को साहिबा से कहते सुना—
"मम्मा!"
वह शब्द नहीं, एक ज़लज़ला था। मान की आँखें चौड़ी हो गईं, उसका चेहरा सन्न पड़ गया। उसके होंठों से अनजाने में फिसला—
"ये… साहिबा के बच्चे…?"
उसकी आवाज़ फटी हुई साँसों में डूब गई थी।
गुस्से में तमतमाता मान साहिबा की तरफ बढ़ा और उन बच्चों को खींचते हुए गरजा,
"तुम लोगों की हिम्मत कैसे हुई मेरी साहिबा को मम्मा कहने की! मेरी साहिबा सिर्फ मेरे बच्चों की माँ होगी और किसी की नहीं!"
लेकिन मान का हाथ बच्चों की तरफ बढ़ा ही था कि साहिबा ने बिजली जैसी फुर्ती से उन दोनों को पीछे खींच लिया, नीचे खड़ा कर दिया, और उसी गति में उसका हाथ पकड़कर एक ज़ोरदार तमाचा उसके गाल पर मार दिया। पूरा मॉल उस थप्पड़ की गूंज से सिहर उठा।
मान कुछ पल के लिए वहीं ठिठक गया।
लेकिन साहिबा नहीं रुकी। उसने गुस्से में मान का कॉलर पकड़ लिया और आग उगलती हुई चीखी,
"तुमसे कहा था मैंने, मेरे रास्ते में मत आना! मेरे ही सामने मेरे ही बच्चों को छूने की हिम्मत कैसे हुई? और क्या कहा… मैं… और तुम्हारे… बच्चों की माँ, इतनी औक़ात कब हो गई तुम्हारी?"
मान को उस थप्पड़ का दर्द नहीं हुआ, पर साहिबा के मुँह से निकला, "मेरे बच्चों"—वह शब्द… उसने मान की रूह तक हिला दी। उसकी आँखों की दुनिया एक पल में उलट गई थी। एक तूफान, जो उसके सीने में बरसों से पनप रहा था, वह अब भड़क उठा था।
मान ने गहरी साँस ली, साहिबा की पकड़ से खुद को छुड़ाया, और अपनी बाँह उसकी कमर में लपेट ली। एक झटके में उसे अपने करीब खींचकर उसका चेहरा अपने हाथों में भर लिया और उसकी आँखों में आँखें डालते हुए तीखे लहजे में बोला,
"साहिबा… बोलने से पहले सोच लिया करो। कहीं ऐसा ना हो कि तुझे मेरे गुस्से का अंजाम भुगतना पड़े…"
साहिबा, जो कभी किसी के सामने नहीं झुकी थी, अब भी नहीं झुकी। वह उसकी आँखों में देख रही थी, लेकिन यह मान, यह उसकी पहली मुलाक़ात वाला मान नहीं था। यह कोई और था… कोई ज़िद्दी, घायल शेर… जिसके अंदर नफ़रत और मोहब्बत दोनों भड़क रहे थे। दोनों की साँसें टकरा रही थीं।
साहिबा की साँसें तेज़ थीं, लेकिन उसका शरीर जैसे वहीं जम गया था। मान की आँखों में जो पागलपन था, वह कोई आम गुस्सा नहीं था… वह तड़पती मोहब्बत थी, घायल आत्मा का विद्रोह, और साहिबा उसे देखकर एक पल को मानो थम गई थी।
मान ने उसकी कमर थामी थी, पर पकड़ में ज़ोर नहीं… जुनून था। उसकी आँखें साहिबा की आँखों से मिल चुकी थीं और वहीं ठहर गई थीं।
"एक बार कह दे साहिबा… बस एक बार कह दे, कि ये बच्चे तेरे नहीं हैं…"
उसकी आवाज़ में पिघलती हुई आग थी—जो जला भी रही थी और खींच भी रही थी।
साहिबा जैसे उसकी आँखों के उस समंदर में डूबती जा रही थी। दिल की धड़कनें लड़खड़ा गईं। उसका चेहरा पसीने से नम हो गया, लेकिन होंठों पर हल्की थरथराहट थी। हिम्मत बटोरकर उसने मान को धक्का देने की कोशिश की—
"किंग!… मैं कह रही हूँ… मुझे छोड़ दो… वरना अंजाम बहुत बुरा होगा… यह बदतमीज़ी माफ़ करने लायक नहीं है…"
लेकिन मान का चेहरा अब और करीब था। उसकी मुस्कान हल्की और अजीब थी, जैसे किसी टूटे हुए काँच के टुकड़े पर चला जा रहा हो और दर्द का भी मज़ा ले रहा हो।
"बदतमीज़ी?" मान फुसफुसाया, उसकी आवाज़ अब और धीमी… पर असरदार हो गई थी, "असली बदतमीज़ी कैसी होती है, यह पता भी है?"
तभी पीछे से वे दोनों जुड़वा बच्चे रूहान (रूह) और रेहान (हान) दौड़ते हुए आए। उनके नन्हें-नन्हें हाथ मान की टांगों पर बरसने लगे।
"गंदे अंकल! छोड़ दो हमारी मम्मी को! गंदे अंकल हो तुम! छोड़ दो!"
लेकिन मान का चेहरा ज़रा भी नहीं बदला। उसकी नज़रें अब भी साहिबा के चेहरे पर थीं। उसकी आँखों में जैसे पूरी दुनिया को भुला दिया गया था। वह बच्चों को नहीं देख रहा था, ना ही उनकी आवाज़ें सुन रहा था।
"ज़रूर छोड़ दूँगा," मान ने तीव्र आवाज़ में कहा, "लेकिन पहले तुम्हारी मम्मी को यह बता दूँ… कि बदतमीज़ी असल में होती क्या है…"
और उसी पल, उसने अपनी पकड़ मज़बूत की, साहिबा को अपनी बाहों में खींचा, उसका चेहरा अपने चेहरे के बेहद करीब लाया और…
अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए।
यह कोई मुलायम, धीमा या डरपोक किस नहीं था…
यह तूफान था। एक जंग। एक बदला। एक कबूलनामा।
साहिबा की आँखें एक पल के लिए खुली रह गईं। उसका शरीर एक पल को कांप गया।
वह मान को जितना धकेलती थी, वह उतना ही उसके करीब आता।
मान का गुस्सा अब जुनून में तब्दील हो चुका था। उसकी आँखों में कोई होश नहीं था, कोई हिसाब नहीं था, सिर्फ़ एक एहसास था, जो उसे बेकाबू कर रहा था। उसने साहिबा को और कसकर अपनी बाँहों में भर लिया था और बहुत गहरा किस कर रहा था।
यह इश्क़ का इज़हार भी था, हक़ भी, ज़बरदस्ती भी और साथ में एक सज़ा भी थी, सज़ा किसी और के बच्चों की माँ होने की।
साहिबा छटपटा रही थी, हाथों से मान को पीछे धकेल रही थी, लेकिन मान की पकड़ वैसी ही जकड़ी रही। वह रुकने को तैयार नहीं था। हर पल उसके होंठों पर भारी पड़ रहा था, हर सेकंड उसकी साँसों की लड़ाई बन चुका था।
चारों ओर सन्नाटा था। वहाँ खड़े तमाम लोग अपनी जगह पर ठिठके हुए थे। मान की सिक्योरिटी, मॉल स्टाफ़, सब की नज़रें इस दृश्य पर जमी थीं। कोई कुछ कह नहीं पा रहा था। वह ‘किंग’ था और वह पहली बार किसी के सामने खुद को इस तरह खो रहा था।
वे दोनों जुड़वा बच्चे रूहान (रूह) और रेहान (हान) अपनी नन्हीं-नन्हीं मुट्ठियों से मान की पीठ और पैरों पर लगातार वार कर रहे थे।
"गंदे अंकल, छोड़ो हमारी मम्मी को!"
उनकी मासूम आवाज़ें गुस्से में थर्रा गई थीं, लेकिन मान जैसे कुछ सुन ही नहीं रहा था। उसे बस एक बात याद थी कि साहिबा ने इन बच्चों को अपना कहा था।
पंद्रह मिनट… हाँ, पूरे पंद्रह मिनट तक मान ने साहिबा को अपनी बाँहों में कसे रखा। वह सख़्त था, पागल था… और शायद टूटा हुआ भी। लेकिन फिर अचानक…
साहिबा की साँसें बेतरतीब होने लगीं। उसकी कसमसाहट अब पहले जैसी नहीं थी। उसका पूरा शरीर हल्के-हल्के कांप रहा था। वह अब सिर्फ़ विरोध नहीं कर रही थी, वह लड़खड़ा रही थी। उसकी उंगलियाँ, जो अब तक मान को पीछे धकेलने की कोशिश कर रही थीं, अब लड़खड़ाने लगीं।
और तभी… उसकी आँखों में एक अजीब-सा डर उभरा।
एक भयानक मंज़र… एक पुरानी याद… कोई दर्दनाक फ़्लैशबैक उसकी आँखों के सामने चमका। उसकी पुतलियाँ फैल गईं, उसके होंठ सूख गए। उसकी रग-रग से पसीना फूटने लगा और चेहरा बर्फ-सा सफ़ेद पड़ गया।
मान ने जैसे ही उसके शरीर की कंपन को महसूस किया, वह सहम गया। वह तुरंत पीछे हटा और उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर नीचे झुक गया।
"साहिबा… साहिबा! तु ठीक है?… देख मेरी तरफ़, क्या हुआ? बोल ना!"
लेकिन साहिबा कुछ सुन नहीं पा रही थी। उसका शरीर अब कांप रहा था, जैसे उसमें जान ही न बची हो। उसकी साँसें तेज़ थीं, लेकिन आवाज़ बंद। उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे—बिना किसी सिसकी, बिना किसी आवाज़ के।
उसे पैनिक अटैक आ रहा था।
मान ने साहिबा को अपनी बाँहों में संभाला, लेकिन अब उसमें कोई ज़ोर नहीं था। वह सिर्फ़ डरा हुआ था… हैरान था।
यह वही साहिबा थी जिसने कभी आँसू नहीं बहाए थे, जिसने कभी किसी को खुद से ज़्यादा करीब नहीं आने दिया था। और आज वह उसकी बाँहों में टूटी हुई थी।
वह पैनिक अटैक, जिससे पिछले दो सालों से साहिबा ने जंग लड़ी थी… आज फिर लौट आया था।
और इस बार उसकी वजह कोई और नहीं—बल्कि खुद मान था।
Chapter-14
साहिबा की साँसें बेहद असंतुलित हो गई थीं। उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया था, होंठ नीले पड़ने लगे थे और उसकी पलकों में कंपन था। मान उसे कसकर थामे हुए था, लेकिन उसके हाथों की जकड़ अब हिफ़ाज़त सी लग रही थी, हक़ की नहीं।
"साहिबा… साहिबा, देख... प्लीज़… डरा मत….ओपन योर आइज़...प्लीज़!"
मान की आवाज़ में अब पहले जैसा हुक्म नहीं था; उसमें घबराहट साफ़ झलक रही थी।
साहिबा की पलकों ने आख़िरी बार फड़फड़ाने की कोशिश की, फिर उसका शरीर ढीला पड़ गया।
वह बेहोश हो गई थी।
मान उसे गोद में लेकर फर्श पर बैठ गया। उसके चेहरे पर हज़ार जज़्बात दौड़ रहे थे—गुस्सा, पछतावा, डर और एक अजीब-सी बेचैनी।
तभी, रूहान और रेहान दौड़ते हुए साहिबा के पास आए।
"मम्मा! मम्मा!"
दोनों छोटे बच्चे अब अपने आँसू रोक नहीं पा रहे थे।
रूहान ने साहिबा के चेहरे को अपने छोटे-छोटे हाथों से थपथपाया, "मम्मा… उठो ना प्लीज़ मम्मा… हमें डर लग रहा है… मम्मा… उठो ना…"
उसकी सिसकियाँ रुक नहीं रही थीं।
रेहान भी घुटनों के बल बैठकर मान को गुस्से से देख रहा था। वह अचानक मान की ओर मुड़ा; उसकी आँखों में नफ़रत थी।
"तुमने हमारी मम्मा को क्या कर दिया? गंदे अंकल… गंदे गंदे गंदे!!!"
उसने मान के चेहरे और सीने पर अपने नन्हे हाथों से मारना शुरू कर दिया, जितनी ताक़त उसके भीतर थी।
लेकिन मान… वह अब सुन्न हो चुका था। उसे किसी चोट का अहसास नहीं था। उसके कानों में बस साहिबा की तेज़ साँसों की गूंज थी—जो अब ख़ामोश हो चुकी थी।
मान ने थरथराते हुए उसे अपने सीने से लगाया, और पहली बार उसके अंदर एक डर जन्म ले रहा था।
"उठ जा साहिबा… मुझे डरा मत… देख मैं नहीं जानता कि तुझे क्या हुआ… लेकिन अगर तू अभी नहीं उठी ना… तो मैं इस पूरे मॉल को जला दूँगा… सबको मिटा दूँगा… तेरे इन बच्चों को भी… बस तू उठ जा यार…"
लेकिन साहिबा… वह सुन नहीं रही थी।
उसी वक़्त एक जाना-पहचाना चेहरा मॉल के दूसरी ओर से तेज़ी से भागते हुए आया।
रॉकी, साहिबा का सबसे भरोसेमंद आदमी।
जैसे ही उसने साहिबा को मान की गोद में बेहोश देखा, उसका दिल धक से रह गया।
"मैम! मैम! आपको क्या हुआ मैम!"
रॉकी जैसे ही साहिबा को छूने झुका, मान ने गुस्से से उसकी गर्दन पकड़कर धक्का दे दिया।
"उसे छूने के लिए नहीं कहा… उसका इलाज कर… बोल, क्या हुआ है इसे?"
रॉकी अब डरा हुआ था। वह समझ ही नहीं पाया कि यह अंडरवर्ल्ड का सबसे खतरनाक इंसान किसी और की माँ को इस तरह पकड़कर बैठा था—जैसे उसकी अपनी दुनिया टूट रही हो।
"सर… लगता है इन्हें पैनिक अटैक आया है… ये… ये पहले भी हो चुके होंगे शायद… हमें इन्हें प्राइवेट रूम में ले चलना होगा… जल्दी…"
मान ने बिना कुछ कहे साहिबा को अपनी गोद में उठाया, जैसे कोई अपनी रूह को उठाता है।
रॉकी ने रूहान का हाथ थामा, "बच्चों, चलो मम्मा को ठीक करना है…"
बच्चे रुआंसे होकर साहिबा के साथ चल पड़े, बार-बार उसकी तरफ़ देखते हुए।
और मान… वह चल रहा था… साहिबा को गोद में लेकर… लेकिन उसके अंदर का सब कुछ टूट चुका था।
वह किंग था, जिसने दुश्मनों को जला डाला था। लेकिन आज…
एक लड़की की ख़ामोशी ने उसके सीने में आग लगा दी थी।
मान ने तेज़ कदमों से साहिबा को गोद में उठाए उस प्राइवेट रूम की ओर बढ़ना शुरू कर दिया। उसकी चाल में वही रौब था, वही तेज़ी… लेकिन उसकी आँखों में पहली बार डर था — एक ऐसा डर, जो ज़ुबान से नहीं, सिर्फ धड़कनों से महसूस किया जा सकता था।
पीछे-पीछे रॉकी चल रहा था, और उसके साथ रूहान और रेहान, जिनकी छोटी-छोटी टाँगें तेज़ कदमों से आगे बढ़ रही थीं।
जैसे ही कमरे का दरवाज़ा खुला, वहाँ की रौशनी एकदम बदल गई—हल्की नीली लाइट, सफ़ेद पर्दे, और एक सन्नाटा जो सबकी साँसों को थामे हुए था।
मान ने बिना कुछ बोले साहिबा को सीधे बेड पर लिटाया और खुद उसी बेड पर बैठ गया। उसने साहिबा का सिर अपने घुटनों पर रख लिया; उस किंग ने पहली बार किसी के सिर के लिए अपना घुटना झुकाया था।
"बस... अब कुछ नहीं होगा तुझे... बस अब तू ठीक हो जा..."
उसका हाथ साहिबा की उलझी ज़ुल्फ़ों को सुलझा रहा था — मानो कोई अधूरी मोहब्बत को थपकियों में ढाल रहा हो।
रॉकी दौड़ते हुए पास आया और साहिबा की जैकेट की जेब से एक छोटी-सी टेबलेट निकाली।
(ये टेबलेट वह हमेशा अपने पास रखती थीं… पैनिक अटैक्स के लिए…)
उसने जल्दी से गोली साहिबा के होंठों के नीचे रखनी चाही, लेकिन रॉकी के हाथ साहिबा के होठों को छू पाते उससे पहले ही मान ने उसका हाथ पकड़ लिया और गुस्से में उसके हाथ से वह टेबलेट लेकर खुद साहिबा के मुँह में, होठों के नीचे रख दी।
जैसे ही रॉकी ने उसका हाथ सहलाने के लिए बढ़ाया, मान की आँखें चमकीं।
"हाथ हटाओ…"
उसने रॉकी का हाथ झटक दिया और खुद उसके नर्म, ठंडे हाथों को अपने हाथों से रगड़ने लगा — जैसे उसमें फिर से जान भर देना चाहता हो।
हर रगड़ में, हर साँस में, हर स्पर्श में… एक सवाल था।
"तू इस हाल में कैसे आई, साहिबा?"
धीरे-धीरे साहिबा की साँसें स्थिर होने लगीं। गोली अपना असर दिखा रही थी। उसकी पलकों में हल्की हरकत हुई, होंठों की सख़्ती ढीली पड़ने लगी। वह पूरी तरह होश में नहीं थी, लेकिन अब उतनी तकलीफ में भी नहीं थी।
मान की साँसें भी अब थोड़ा शांत होने लगी थीं।
लेकिन वहाँ अगर कोई अब भी सबसे ज़्यादा बेचैन था, तो वह थे दो छोटे दिल—रूहान और रेहान।
वह दोनों पास आकर बेड के किनारे पर चढ़े और साहिबा के गालों को अपने छोटे-छोटे हाथों से थपथपाने लगे।
"मम्मा... मम्मा आप ठीक हो जाओ ना प्लीज़… हमें डर लग रहा है मम्मा…"
रेहान बस चुपचाप अपनी माँ का हाथ थामे बैठा रहा, उसकी आँखों से बहते आँसू साफ़ बता रहे थे कि वह भी अंदर ही अंदर टूट रहा था।
रूहान ने एक बार फिर मान की तरफ़ देखा, उसकी आँखों में अब भी वह मासूम गुस्सा था, "तुम गंदे हो… पर अगर मम्मा ठीक हो गई ना… तो मैं तुम्हें माफ़ कर दूँगा…"
मान ने पहली बार उस बच्चे की आँखों में देखा—वहाँ कोई डर नहीं था, बस एक मोहब्बत को खोने का डर था।
Chapter-15
मान उन नन्हे बच्चों को बुरी तरह रोते, अपनी माँ को हिलाते हुए देखता रहा। रूहान और रेहान की मासूम पुकारें जैसे उसकी रूह को चीर रही थीं। वो सिर्फ उन्हें देख ही नहीं रहा था बल्कि वो उनमे खुद को देख रहा था, बरसों पहले का वो बच्चा, जो रो-रोकर किसी से अपनी माँ की जान के लिए भीख माँग रहा था।
मान को सारा कमरा जैसे धुँधला सा नज़र आने लगा, आँखों में धुँध और दिल में पुरानी टीस उठ गई।
अचानक मान ने साहिबा का सिर अपनी गोद से हटाया और धीरे से तकिए पर रखा। उसका चेहरा अब सख्त था, लेकिन आँखें डरी हुईं। वो तेजी से कमरे से बाहर निकलने को मुड़ा, जैसे खुद से दूर भागना चाहता हो।
उसी पल दरवाजा खुला और एक साड़ी में लिपटी, करीब चालीस साल की औरत कमरे में दाखिल हुई..! उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें, मगर आँखों में ममता का भाव था..!
मान उसी वक्त दरवाज़े से बाहर निकल रहा था। दोनों आपस मे टकरा गए।
मान उस औरत को अनदेखा कर आगे बढ़ने ही वाला था कि उसकी नज़र उनके चेहरे पर ठहर गई।
पलभर को उसकी साँस अटक गई, "माँ साहेब..." उसके होठों से धीमी सी फुसफुसाहट निकली।
लेकिन वो महिला नहीं रुकी। जैसे उसके लिए दुनिया में इस वक्त सिर्फ एक ही इंसान मायने रखती थी, साहिबा।
वो तेज़ी से आगे बढ़ीं और रोते-बिलखते रूहान और रेहान को अपनी बाहों में समेट लिया, "मेरे बच्चों, घबराओ मत। मम्मा ठीक है, बस थोड़ी थक गई है। सब ठीक हो जाएगा, मम्मा उठेंगी अभी।"
उनकी आवाज़ में माँ वाली ताक़त थी, वो ताक़त जो खून से नहीं, रिश्ते से नहीं, परवरिश और प्यार से बनती है।
रूहान ने उनकी साड़ी पकड़कर कहा, "पूजा माँ... देखिए ना... मम्मा उठ नहीं रही... ये गंदे अंकल... उन्होंने कुछ कर दिया। प्लीज़ मम्मा को ठीक कर दो ना..."
पूजा देवी, जिनको बच्चे प्यार से पूजा माँ कह कर पुकारते थे, अब बेहोश पड़ी साहिबा की ओर मुड़ीं। उनके चेहरे पर दर्द था, आँसू थे… लेकिन उससे कहीं ज़्यादा था ग़ुस्सा, ऐसा ग़ुस्सा जो सिर्फ एक माँ के अंदर उठता है, जब उसकी बच्ची को कोई तकलीफ़ दे।
उनकी नज़र धीरे-धीरे दरवाज़े की तरफ गई और वहाँ खड़ा था, 'किंग'… वही इंसान जिसने उनकी दुनिया को झकझोर दिया था।
पूजा देवी बच्चों को धीरे से बेड के पास छोड़ीं और ग़ुस्से से मान की तरफ बढ़ीं। उनकी नज़र में अब सवाल नहीं, सीधा इल्ज़ाम था।
"कौन हो तुम?" वो दहाड़ीं, "क्या किया है मेरी बच्ची के साथ? आखिर हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी उसे तकलीफ़ देने की?"
मान उस पल बिल्कुल चुप था। उसकी आँखें पूजा देवी के चेहरे पर अटकी थी, जैसे वो किसी अपने को देख रहा हो।
"माँ... साहेब..." ये शब्द उसके काँपते होठों से निकले।
जैसे ही पूजा देवी ने “ माँ साहेब” सुना, उनका चेहरा पत्थर सा हो गया। उनकी आँखें चौड़ी हुईं, साँसें थम सी गईं।
वो एकटक मान को देखने लगीं, जैसे किसी अनजाने सच से अचानक सामना हो गया हो। उनकी आँखों में एक पल को ठहराव आ गया। उनके चेहरे पर हैरानी की एक लहर दौड़ी, जैसे कोई भूला हुआ चेहरा अचानक सामने आ खड़ा हुआ हो। उनकी उंगलियाँ धीरे-धीरे मान के चेहरे की तरफ बढ़ीं, लेकिन ठीक उसी क्षण, जैसे कोई दर्दनाक हादसा ज़हन में कौंध गया। उन्होंने खुद को झटका, और अपनी आँखों में फिर वही सख्ती भर ली।
"कौन माँ साहेब?" उनकी आवाज़ सख़्त थी, लेकिन उसमें एक अजीब सी कंपकंपी थी। "मैं किसी माँ साहेब को नहीं जानती। और तुम जो कोई भी हो, आइंदा मेरी बच्ची के आसपास नज़र मत आना। चले जाओ यहाँ से।"
इतना कहकर वो पलटीं और साहिबा की तरफ तेज़ी से बढ़ने लगीं। मगर मान अब चुप रहने के मूड में नहीं था। उसका चेहरा गुस्से और जिज्ञासा के बीच कहीं झूल रहा था। उसने झटके से पूजा देवी का हाथ पकड़ लिया और बिना कुछ कहे उन्हें अपने साथ बाहर की ओर खींच लाया।
कॉरिडोर
पूजा देवी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं कर रही थीं, लेकिन उनका चेहरा तनाव से भरा था।
"छोड़ो मुझे," उन्होंने धीमे स्वर में कहा, "तुम जो समझ रहे हो, वो मैं नहीं हूँ… प्लीज़, मुझे जाने दो।"
मान ने नज़र घुमा कर पूजा देवी की आँखो मे देखा, जैसे वो सालों से बंद कोई दरवाज़ा खोलने की ज़िद पर अड़ा हो।
प्राइवेट रूम
रॉकी, रुहान और रेहान स्तब्ध खड़े थे। पहले मान और साहिबा का टकराव, और अब पूजा देवी को इस तरह से ले जाया जाना, उनकी मासूम समझ के परे था।
"पूजा माँ…" रूहान की आँखें नम थीं, "गंदे अंकल पूजा माँ को भी ले गए।" यह कह कर वो दरवाज़े की तरफ जाता उससे पहले ही बेड पर लेटी साहिबा की पलकें धीरे-धीरे हिलने लगीं। उसके होठों पर थरथराहट थी, साँसें अब सामान्य हो रही थीं। रूहान और रेहान पूजा को भूल, तुरंत दौड़कर साहिबा के पास जा बैठे।
"मम्मा… मम्मा आप ठीक हो न?" रूहान ने उसके माथे पर हाथ रखा।
साहिबा ने धीरे-धीरे आँखें खोलीं। हलकी सी मुस्कान उसके चेहरे पर आई, लेकिन उन आँखों में अब अलग ही इमोशन थे जो वो नन्हे बच्चे नहीं देख पाए।
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कॉरिडोर
मान ने पूजा देवी को तेज़ी से बाहर लाकर उनके हाथ को छोड़ दिया। लेकिन उसके चेहरे पर अब भी बेचैनी थी… और आँखों में एक ऐसा दर्द, जो सालों से दबा हुआ था। वह एक कदम उनके और करीब गया, उनकी आँखों में सीधे झाँकते हुए एक सख्त आवाज़ में कहा, "माँ साहेब… आप दुनिया को झूठ बोल सकती हैं… सबको बहला सकती हैं… लेकिन मुझे नहीं। मैं वो बच्चा हूँ जिसे आपने अपने आँचल में छुपाकर ज़िन्दगी की धूप से बचाया था। आपने ही तो कहा था, ‘मान एक दिन तू किंग बनेगा… लेकिन इंसानियत मत खोना।’ मैं दो माँओं को कभी नहीं भूल सकता—एक जिसने मान को जन्म दिया… और एक वो जिसने किंग को वजूद दिया।"
पूजा देवी की आँखें छलक पड़ीं। उनके होंठ कांपे, और फिर एक थकी हुई हँसी उनके चेहरे पर उभरी। वो हँसी जो दर्द से निकली थी, जिसमें कई बरसों का छुपा हुआ सच था। वो मान के करीब आईं, उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में भर लिया और डबडबाई आँखों से बोलीं, "देखो मान… सब कुछ बदल गया है। वक़्त, लोग… और मैं भी। वो 'माँ साहेब' जिसे तुम जानते थे, वो इस दुनिया की नज़रों में मर चुकी है। अब जो तुम्हारे सामने खड़ी है, वो 'पूजा माँ' है—ख्वाहिश की माँ, रूह और हान की पूजा माँ।"
मान ठिठक गया, वो खुद से बड़बड़ाया, “ख्वाहिश?”
रूह और हान का नाम उसने साहिबा के मुँह से सुन लिया था लेकिन ख्वाहिश यह नाम उसके लिए नया था।
पूजा देवी ने गहरी साँस ली और मान का हाथ अपने हाथ में लिया। उनकी आवाज़ अब दृढ़ थी, लेकिन आँखों में एक अजीब डर झलक रहा था।
"ये सब जानना तुम्हारे लिए ज़रूरी नहीं है, मान। जो ज़रूरी है, वो ये कि… मैं जिंदा हूँ। और तुम मुझसे मिल चुके हो। बस यही सच है और यह सच हमारे बीच रहना चाहिए।"
वो थोड़ा झुकीं, मान की आँखों में झाँकते हुए धीरे से फुसफुसाईं, "तुम समझ रहे हो ना, मैं किसकी बात कर रही हूँ? उसे ये खबर नहीं लगनी चाहिए… कभी नहीं।"
मान ने एक गहरी साँस भरी। उसकी आँखें अब भी पूजा देवी के चेहरे पर अटकी थीं—कई सवालों से भरी हुई।
अध्याय-16
मान अब खुद को रोक नहीं पा रहा था। उसकी आँखों में तूफ़ान और सीने में लावा भरा हुआ था। उसने पूजा देवी की कलाई कसकर पकड़ी और गुस्से से बोला, "क्यों किया आपने ऐसा? क्यों सबको अपनी मौत की खबर देकर दुनिया को धोखे में रखा? मैं सालों से उस दिन को कोस रहा हूँ जब मैंने सुना था कि माँ साहेब अब नहीं रहीं… और आप? आप यहाँ जिंदा बैठी हैं, जैसे कुछ हुआ ही नहीं!"
पूजा देवी ने उसकी पकड़ से खुद को छुड़ाने की कोशिश नहीं की, लेकिन उनके चेहरे पर एक गहरी लाचारी छाई हुई थी। उनकी आँखें भीग चुकी थीं। वो बस धीमे से बोलीं, "मत पूछो, बेटा… मत कुरेदो वो जख्म… अगर मैं ज़िंदा रही भी, तो भी हर रोज़ मरी हूँ। मत जानो वो सच, जो तेरी, मेरी दुनिया को और तोड़ देगा। बस… मेरी कसम है तुझे … कुछ मत पूछ।"
उनकी आवाज़ टूट गई थी। उन्होंने कांपते हाथों से मान का चेहरा छूने की कोशिश की, लेकिन मान ने गुस्से से उनका हाथ झटक दिया। मान की आँखों में बेचैनी थी, सवालों की आग धधक रही थी। "कसमें देकर कब तक भागोगी माँ साहेब? पहले एक बच्चे को अकेला छोड़ दिया और अब उसके सवालों से भी मुँह मोड़ रही हो!"
पूजा जी लाचारी से बोलीं, "बस करो मान… मेरी कसम है… मत पूछो मुझसे कुछ भी…"
वो लगभग चीख पड़ा था। उसने पूजा देवी की कलाई कसकर पकड़ी हुई थी। और तभी…
रूम का दरवाज़ा एक झटके से खुल गया।
टक-टक-टक…
और तभी हाई हील्स की आवाज़ गूँज उठी… और सामने से साहिबा एक रॉयल ब्लैक बिज़नेस सूट पहने आई। उसके चेहरे पर गुस्से की आग थी और चाल में गज़ब का आत्मविश्वास… उसकी आँखों से चिंगारियाँ निकलती महसूस हो रही थीं, जो देखने वाले को अपनी गर्दन झुकाने पर मजबूर कर रही थीं।
साहिबा की नजर सीधी मान के हाथ पर पड़ी, जो पूजा देवी की कलाई पकड़े हुए था। "तुम होते कौन हो मेरी माँ को हाथ लगाने वाले?"
साहिबा पास आई, पूजा जी का हाथ मान के हाथ से छुड़ाया और बिना एक पल गंवाए, तेज़ किक सीधा मान की छाती पर मारी।
मान गिरा नहीं, लेकिन लड़खड़ाया ज़रूर और दो कदम पीछे हुआ। उसकी आँखों में अब गुस्से से ज़्यादा जूनून नज़र आ रहा था, जो साहिबा को देखकर आया था।
साहिबा गुस्से में बोली, "मैंने बहुत से लोगों को देखा है जो अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करते हैं, पर तुम जैसे आदमी को पहली बार देखा है जो खुद को किंग कहलवाता है और औरतों से हाथापाई करता है! ये मेरी माँ हैं! और जिस दिन किसी ने इनकी तरफ उंगली भी उठाई ना… उस दिन साहिबा अपना असली रूप दिखा देगी।"
पूजा देवी कुछ कहने को बढ़ीं, लेकिन साहिबा ने उन्हें हाथ के इशारे से रोका। "आप मत बोलिए माँ। आप बच्चों को लेकर घर जाइए, मैंने दोनों को समझा दिया है, मैं बाद में मिलने आऊंगी, अभी आप जाएँ प्लीज़।"
पूजा देवी चुपचाप रूम के गेट पर खड़े रूहान और रेहान को लेकर बाहर की तरफ चल दीं। रॉकी उन लोगों के पीछे-पीछे उन्हें बाहर गाड़ी तक छोड़ने चला गया।
साहिबा की किक से लड़खड़ाया हुआ मान संभल गया, लेकिन उसके चेहरे पर दर्द की बजाय एक अजीब सा सुकून था। जैसे किसी ज़िद्दी दीवाने को अपनी मोहब्बत की मौजूदगी का सबूत मिल गया हो।
वो धीरे-धीरे अपने सीने को सहलाते हुए उसकी तरफ बढ़ा। उसकी आँखों में जुनून का समंदर नज़र आ रहा था, जो बेहद गहरा, खतरनाक था।
मान अपनी आँखों में आग लिए खतरनाक मुस्कान के साथ बोला, "लगता है दवाई ने असर कुछ ज़्यादा ही दमदार छोड़ा है, लेकिन कुछ भी कहो, तूने होश में आते ही किया वही जो मैं चाहता था, मुझे छूकर याद दिला दिया कि तू मेरी है… सिर्फ मेरी।"
साहिबा की आँखों में भी आग कम नहीं थी। वह तीखे तेवर में, घूरते हुए बोली, "मैं किसी की जागीर नहीं, और तेरी तो बिलकुल भी नहीं! जिस्म छू लेने से कोई अपना नहीं हो जाता, और रूह से रिश्ता बनाने की औकात तुझमें नहीं है!"
मान अब पागलपन की हद पर था। वह खतरनाक मुस्कान के साथ एक कदम और आगे बढ़ा। "औकात...? पता है मेरी औकात कितनी है? मेरी औकात इतनी है कि जिस आग से सब डर कर अपने बिल में छुप जाते हैं, उस आग से इश्क़ हो गया है मुझे। जिस दिन मैंने तुझे देखा था ना, उसी दिन से मेरा दिल तेरे नाम का गुलाम बन गया था। अब चाहे तू माने या ना माने... तुझे मेरा होना ही पड़ेगा।"
साहिबा गुस्से में बोली, "मैं कोई गुलाम नहीं, जिसे तू क़ैद कर लेगा और मैं ख़ामोशी से तेरी क़ैद में रह लूंगी। तू जो चाह रहा है ना, वो प्यार नहीं… वो एक बीमारी है, पागलपन है! और साहिबा किसी की बीमार सोच का हिस्सा नहीं बनती।"
मान अब साहिबा के बेहद करीब आ गया, उसकी साँसे साहिबा के चेहरे से टकराईं। उसने उसका हाथ पकड़कर उसे खींच कर खुद के करीब किया।
साहिबा ने मान को धक्का देते हुए अपनी कड़क आवाज़ में कहा, "मुझे बार-बार छूने की गलती मत करो किंग, कहीं ऐसा ना हो तेरे हाथ तोड़कर तेरे जुनून की चिता जला दूँ।”
मान साहिबा की आँखों में देखता रहा, उसके चेहरे पर एक खामोशी छा गई, फिर वह हँसा, मगर वो हँसी मोहब्बत की नहीं... दीवानगी की थी, एक पागलपन की।
मान धीरे से बोला, "तू जितना मना करेगी, मेरा जुनून उतना ही बढ़ेगा और जिस दिन तू थक जाएगी ना… उस दिन तुझे भी समझ आ जाएगा, कि 'किंग' से टकराना सिर्फ ख्वाब नहीं… एक खतरनाक खेल है।"
साहिबा ने आँखों में आँखें डालकर कहा, "तू खेल समझ के आया है… पर याद रख, ये 'साहिबा' खेल नहीं… अंजाम है।"
मान की आँखें लाल थीं, पर गुस्से से नहीं… अपमान और बेइंतिहा दर्द से।
वो साहिबा की आँखों में देखकर तीखे लहजे में बोला, "देख साहिबा, तुझसे प्यार मोहब्बत करने के लिए और लड़ने के लिए पूरी ज़िंदगी बाकी है, लेकिन इस वक़्त… इस पल… मुझे सिर्फ़ एक सवाल का जवाब चाहिए… वो दोनों बच्चे किसके बच्चे हैं? उनका बाप कौन है? और वो तुझे अपनी माँ क्यों कह रहे हैं?"
मान ने साहिबा के कंधों पर हाथ रखकर, आँखों में पागलपन लिए कहा, "छुपाने से कुछ नहीं होगा, साहिबा। तू मेरे दिल की धड़कन है, और धड़कन से झूठ नहीं बोला जाता। और माँ साहेब से तेरा क्या रिश्ता है? यह ख्वाहिश कौन है? सच बता… वरना मैं अपने तरीके से पता कर लूँगा।"
साहिबा ने उसकी पकड़ छुड़ाने की कोशिश की लेकिन मान की पकड़ और कस गई। उसकी आँखें आग उगल रही थीं।
साहिबा ने धक्का देते हुए चीखकर कहा, "वो मेरे बच्चे हैं! मेरे! और खबरदार… अगर फिर से उन्हें छछूंदर कहा तो तुम्हारी ज़ुबान खींच लूंगी।" फिर आवाज़ को हल्का कर गुस्से में बोली, “और मैं तेरे सवालों का जवाब देने में बिलकुल इंट्रेस्टेड नहीं हूँ।”
मान एक झटके में पास आकर, गुस्से भरी मुस्कान के साथ बोला, "ओह… तो उन बच्चों के लिए इतनी मोहब्बत, और मेरे लिए सिर्फ़ नफ़रत? कोई बात नहीं… तू जवाब नहीं देगी, मत दे। पर एक बात कान खोल कर सुन ले साहिबा… तेरा अतीत मैं खुद अपने हाथों से खोदकर निकालूँगा। और उस व्यक्ति को भी ढूँढ़ निकालूँगा जो इन बच्चों का बाप है।”
साहिबा की साँसे तेज़ हो गई थीं… उसकी मुट्ठियाँ भींची हुई थीं… लेकिन उससे पहले कि वो कुछ कहती,
मान ने एक झटके में उसका चेहरा अपने पास खींचा और उसके माथे पर एक ज़बरदस्ती किस करते हुए धीरे से कहा, "तू सिर्फ मेरी बनेगी। मेरे बच्चों की माँ… और किसी की नहीं। अब चाहें तेरी रगों में आग बहे या नफ़रत… पर जिस्म और रूह, अब दोनों मेरी हैं।"
मान उसे छोड़कर वहाँ से चला गया।
साहिबा एक कदम भी पीछे नहीं हटी, पर उसकी आँखों में एक अजीब सी बेचैनी और सवाल तैर रहे थे।
"ये सब क्या था...? ये आदमी क्यों उसके पीछे पड़ गया है? जिस अतीत से वो लड़कर यहाँ तक पहुँची थी, उस अतीत को मान उसके सामने लाने की तैयारी कर रहा था।
वो वहीं खड़ी रही, तेज हवाओं के बीच… एक तूफ़ान दिल में और दूसरा मान की शक्ल में उसकी ज़िंदगी में आ चुका था।
दूसरी तरफ मान वहाँ से निकलने के बाद फ़ोन पर बात करते हुए आगे बढ़ रहा था, “जो दो बच्चे मॉल में मिले हैं, रूहान और रेहान, उनकी जन्म कुंडली निकालो। पता करो किस व्यक्ति का खून है और यह भी पता करो यह ख्वाहिश कौन है? पूजा माँ से इसका क्या रिश्ता है? और सबसे बड़ी बात इन सबका मेरी साहिबा से क्या लेना-देना है…”
Chapter -17
मान अपने स्टडी रूम में गुस्से से बैठा था। उसके सामने खड़ा शमशेर, जो उसका सबसे वफादार आदमी माना जाता था, इस वक्त उसका सिर झुका हुआ था और वह किंग के खौफ से पसीने में भीगा हुआ था। उसकी नज़रें ज़मीन पर टिकी हुई थीं।
"बस इतनी ही जानकारी मिल पाई सर… दोनों बच्चे ईस्ट मुंबई के एक मिडिल क्लास परिवार में पैदा हुए हैं। उनकी माँ मर चुकी है और बाप विनोद एक प्राइवेट कंपनी में क्लर्क है। दोनों बच्चे हॉस्टल में रहते थे क्योंकि घर में उनकी देखभाल के लिए कोई नहीं था, सिवाय विनोद की माँ के… जो बीमार रहती थी, लेकिन… लेकिन…"
शमशेर की आवाज़ काँप रही थी। "उनका साहिबा मैम या ख्वाहिश नाम की लड़की से कोई भी कनेक्शन नहीं मिला है, और पूजा मैम के बारे में भी कुछ नहीं पता चल रहा है।"
मान की आँखों में आग उतर आई। वह अपनी कुर्सी से एक झटके में उठा और एक ज़ोरदार लात सामने रखी टेबल पर मार दी।
मोटी काँच की बनी टेबल एक झटके में गिरकर चकनाचूर हो गई।
"नालायक!" मान दहाड़ा। "मैंने तुझसे आधी-अधूरी कहानी नहीं माँगी थी… मुझे पूरी सच्चाई चाहिए थी! और तू क्या लेकर आया है? दो नाम, एक कागज़ का टुकड़ा और हज़ार सवाल?"
उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं। आँखों की पुतलियाँ जंगली शेर की तरह फैल चुकी थीं।
"मैं अंडरवर्ल्ड का 'किंग' हूँ… और मेरा आदमी इतना छोटा काम नहीं कर पाया, दो बच्चों की जानकारी ही तो चाहिए थी बस… वह भी तुमसे नहीं हुआ।"
शमशेर ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला, लेकिन मान ने एक हाथ हवा में उठाकर उसे चुप करा दिया। "साहिबा…"
उसने बुदबुदाते हुए कहा, "अब मेरी ज़िंदगी बन चुकी है। उसकी हर साँस की खबर चाहिए मुझे। वो कौन है, क्या है, किससे भाग रही है, और सबसे बड़ी बात—क्या छुपा रही है मुझसे।"
उसकी आवाज़ अब धीमी हो गई थी, लेकिन वो धीमापन आँधी से पहले की ख़ामोशी जैसा था। "साहिबा खुद को मेरी पहुँच से दूर समझती है, पर वो जानती नहीं… उसके हर राज़ अब मेरी साँसों की गिरफ्त में होंगे। चाहे मुझे इस शहर की मिट्टी छाननी पड़े, पर साहिबा का अतीत अब मुझसे नहीं बचेगा।"
वह फिर से शमशेर की ओर पलटा। उसकी आँखें इस बार ज़्यादा खामोश मगर ज़्यादा खतरनाक थीं। "जा… और तब तक मत लौटना जब तक उस रहस्य की आखिरी परत भी फाड़ न लाए… वरना अगली बार ये टेबल नहीं टूटेगी… इसकी जगह तेरा सर होगा।"
शमशेर बिना कुछ बोले, सिर झुकाए वहाँ से निकल गया। मान अकेला खड़ा रहा, चारों ओर काँच की किरचें बिखरी थीं, पर सबसे ज़्यादा टूटी हुई चीज़ थी, उसके अंदर की बेचैनी… और उसकी मोहब्बत की भूख, जो अब जुनून का चेहरा पहन चुकी थी।
दूसरी तरफ, ‘साहिबा एम्पायर’ की 17वीं मंज़िल पर बने उस आलीशान कॉर्पोरेट ऑफिस में सन्नाटा पसरा हुआ था। भीतर, ग्लास केबिन में बैठी साहिबा ख़ामोशी से लैपटॉप पर काम कर रही थी। उसकी उंगलियाँ कीबोर्ड पर इतनी तेज़ी से चल रही थीं मानो कोई ट्रेन्ड हैकर किसी खुफिया सिस्टम को डिकोड कर रहा हो। उसके चेहरे पर वही शांत, नियंत्रित गंभीरता थी—जो कामयाब लोगों का गहना होती है।
तभी उसके मोबाइल की स्क्रीन पर ‘रॉकी’ का नाम चमका।
उसने कॉल रिसीव करते ही सीधे कहा, "रॉकी?"
दूसरी तरफ से रॉकी की घबराई मगर प्रोफेशनल आवाज़ आई। "मैम, 'किंग' आपके और रूहान-रेहान के रिलेशन को लेकर जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहा है। उसने पूजा मैम के नाम को भी ट्रेस करने की कोशिश की है।"
इतना सुनते ही साहिबा के चेहरे पर गुस्सा उतर आया। उसकी उंगलियाँ अब फोन को कसकर पकड़ चुकी थीं, और आँखें कुछ पल के लिए बंद हो गईं। "तो तुमने क्या किया, रॉकी?"
उसकी आवाज़ में अब एक सख्ती थी, जिसमें चिंता छिपी नहीं, दबा दी गई थी।
"मैम, डोंट वरी," रॉकी ने आत्मविश्वास से कहा। "हमने अपने हाई लेवल सोर्सेस से पहले ही उस डेटा को हाइड करवा दिया है। उसके पास कुछ नहीं जाएगा, ना आपके बच्चों के साथ रिलेशन का कोई सबूत, ना पूजा माँ का कोई लिंक। सब कवर हो गया है।"
साहिबा की आँखों में अब एक खतरनाक-सी मुस्कान उभरी। वो मुस्कान जो किसी की हार और अपनी चालाकी पर संतोष जताती है।
"वेल डन, रॉकी…" उसने धीरे से कहा।
लेकिन रॉकी की बात अब तक खत्म नहीं हुई थी। "मैम, एक और बात—जो हमारी अमेरिका वाली कंपनी है, वहाँ कुछ मेजर प्रॉब्लम चल रही है। फैक्ट्री साइट में हालात खराब हैं। लोकल टीम अब कंट्रोल नहीं कर पा रही… वहाँ अब सिर्फ आप ही कुछ कर सकती हैं।"
साहिबा ने एक गहरी साँस ली और धीमे स्वर में बोली, "ओके… तुम जेट तैयार करवाओ। मैं बाबा साहेब से मिलकर बात डिस्कस करती हूँ।"
"यस मैम," रॉकी ने तुरंत जवाब दिया।
साहिबा ने कहा, "हम आज रात ही निकलेंगे… किसी को इस बात की भनक नहीं लगनी चाहिए।"
"यस मैम, अंडरस्टूड।" कहकर रॉकी ने कॉल काट दिया।
कमरे में फिर वही सन्नाटा लौट आया था। पर अब साहिबा की आँखों में एक और परछाईं थी—जैसे वो अपने अतीत के पन्नों को फूंककर राख कर देना चाहती हो, इससे पहले कि कोई उन पर नज़र डाल सके।
देवा भाऊ के कमरे में, साहिबा देवा भाऊ के सामने सोफे पर बैठी थी। उसका चेहरा गंभीर था और आँखों में ज़िम्मेदारियों का भार साफ झलक रहा था।
उसने धीमी, मगर ठोस आवाज़ में कहा, "जैसा कि आपको खबर मिल चुकी होगी, बाबा साहेब… मुझे अमेरिका के लिए रवाना होना है। वहाँ हमारी कंपनी में कुछ बड़ी प्रॉब्लम्स हुई हैं, जिसे अब सिर्फ मैं ही संभाल सकती हूँ।"
वो थोड़ी रुकी, फिर सीधी देवा भाऊ की तरफ देखते हुए बोली, "आई होप… आप यहाँ सब कुछ मैनेज कर लेंगे। आप समझ रहे हैं ना मैं किस ओर इशारा कर रही हूँ?"
देवा भाऊ ने गहरी साँस ली। उनके चेहरे पर चिंता की एक हल्की रेखा उभर आई। "मैं समझ रहा हूँ, बेटी…" उन्होंने धीरे से कहा। "लेकिन… हमने यहाँ 'किंग' को जिस मकसद से बुलाया था, वो मकसद तो अब रास्ता बदलता दिख रहा है। उसके इरादे अब कुछ और ही हो चले हैं। क्या तुम ये समझ पा रही हो?"
साहिबा कुछ पल चुप रही। फिर वो धीरे से उठ खड़ी हुई और देवा भाऊ की ओर पीठ करके खिड़की की तरफ देखने लगी। बाहर डूबते सूरज की किरणें शीशे पर पड़ रही थीं।
"जानती हूँ, बाबा साहेब…" उसने एक पल ठहरकर कहा। "सब जानती हूँ। इश्क का फितूर चढ़ा है किंग के सर पर। लेकिन वो अभी सच से नावाक़िफ़ है। जिस दिन हकीकत उसके सामने आएगी… उस दिन ये मोहब्बत का भूत अपने आप उतर जाएगा।"
उसने एक हल्की हँसी में दर्द छिपाते हुए आगे कहा, "और वैसे भी… चाहे वो किंग हो या किसी गली का भिखारी, पूरी मर्द जात एक ही मिट्टी की बनी होती है। आप उसकी फिक्र मत करिए। झूठन कोई नहीं खाता।"
साहिबा ने फिर से देवा भाऊ की ओर देखा। इस बार आँखों में माँ जैसा स्नेह और ज़िम्मेदारी थी।
"आप बस रूहान और रेहान का ध्यान रखिएगा। उन्हें मैंने कुछ दिन के लिए यहीं बुलवा लिया है। वहाँ के हालात देखते हुए मैं उन्हें वहाँ नहीं रहने दे सकती। आप समझ सकते हैं, मेरे लिए वो सिर्फ बच्चे नहीं हैं—मेरी दुनिया हैं।"
देवा भाऊ ने मुस्कुरा कर सिर हिलाया। "डोंट वरी, बेटा… मैं उनका ध्यान रखूँगा। जैसे अभी तक रखा है, वैसे ही रखूँगा।"
कमरे में फिर कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया। लेकिन उस सन्नाटे में भी एक गूंज थी—जिम्मेदारियों की, और एक तूफान की जो आने वाला था।
Chapter - 18
उस दिन किंग के ऑफिस की इमारत के बाहर हलचल कुछ ज़्यादा ही थी। सिक्योरिटी स्टाफ अपने रूटीन में थे, किन्तु तभी एक सफेद धोती-कुर्ता पहने, साधारण मगर दबदबे वाले व्यक्तित्व के बुज़ुर्ग दरवाज़े की ओर आते दिखाई दिए। उनके चेहरे पर अनुभव की गहराई थी और चाल में ऐसा ठहराव था कि गार्ड खुद-ब-खुद दो क़दम पीछे हट गए।
पर तभी एक गार्ड ने उन्हें रोका।
"रुकिए सर, बिना अपॉइंटमेंट अंदर जाना मना है…"
एक गार्ड ने हिम्मत जुटाकर कहा, मगर उसकी आवाज़ डगमगा रही थी।
बुज़ुर्ग ने एक नज़र उसकी आँखों में झाँका… और बिना कुछ कहे, आगे बढ़ गए। ऐसा लगा जैसे उनकी मौजूदगी ही जवाब थी।
कुछ ही पलों में वे दरवाज़े से होते हुए सीधा किंग के शानदार ऑफिस के अंदर दाखिल हो गए। किंग अपनी कुर्सी पर बैठा था, और सामने अपने दादा पाटिल भाऊ को देखकर उसकी भौंहें तन गईं।
उसके होठों पर तंज भरी मुस्कान आ गई।
"दूसरों की ज़िंदगियों में दख़ल देने की आदत तो थी ही आपकी, अब दूसरों के ऑफिस में भी घुसपैठ शुरू कर दी आपने?"
उसके लहजे के पीछे कई सालों की शिकायतें और घाव छिपे महसूस हो रहे थे।
पाटिल भाऊ कुछ पल खामोश रहे। उनकी आँखों में वो खामोशी छाई थी जो बहुत कुछ कह जाती है। किन्तु उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं आई। वे धीमे से मुस्कुराए और बोले,
"अगर एक दादा को अपने पोते से मिलने के लिए यमलोक का भी सफ़र करना पड़े, तो वह भी कर लेगा। यह तो फिर सिर्फ एक ऑफिस है, बेटा।"
उनकी आवाज़ धीमी थी, मगर शब्दों का तीर सीधा दिल पर चोट करता था। किंग कुछ पल के लिए चुप रह गया। कमरे में एक भारी सन्नाटा फैल गया—जिसमें सिर्फ़ दो पीढ़ियों के बीच का टूटा हुआ रिश्ता साँसें ले रहा था।
किंग अपने पाटिल भाऊ को देखते हुए कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। उसकी आँखों में गुस्से की लपटें साफ़ झलक रही थीं। वह धीरे-धीरे उनकी तरफ़ बढ़ा और सख़्त लहजे में बोला,
"अगर इतना ही प्यार है इस पोते से, तो एक बार यमनगरी हो ही आना पड़ेगा। कम से कम मेरे कारण इस दुनिया से एक पापी तो जाएगा… साथ मेरे।"
पाटिल भाऊ के चेहरे पर एक पल को उदासी छा गई, लेकिन वे खुद को संभालते हुए बोले,
"इतनी बड़ी गलतियाँ नहीं थीं मेरी, जितना बड़ा पापी बना दिया तूने मुझे।"
किंग की आँखों में अब आग उतर चुकी थी। वह गुस्से से लगभग चीख पड़ा,
"बहुत बड़ा पाप किया है आपने! एक लड़की को जान बूझकर नर्क में लाए थे… जहाँ उसने अपनी आखिरी साँसें ली थीं! वो दर्द भरी साँसें आज भी मेरे कानों में चीख-चीख कर आपकी शिकायत करती हैं! उस लड़की के सबसे बड़े गुनहगार आप हैं… आप ही हैं!"
किंग के शब्दों की तलवार सीधी पाटिल भाऊ के सीने में उतरी। पाटिल भाऊ ने अपनी आँखें बंद कीं, एक गहरी साँस ली, और फिर टूटे स्वर में बोले,
"तुझे जो लगना है, लगने दे। लेकिन… तेरी दादी सालों से तेरे इंतज़ार में है। एक बार मिल ले आकर उससे। तूने तो इंडिया आकर कोई खबर ही नहीं भेजी हमें… वह तो हमारे आदमी ने तेरी—"
किंग ने हाथ उठाकर उनकी बात बीच में ही रोक दी। उसकी आँखों में अब ताना नहीं, धमकी थी।
"आपको लगता है कि किंग की खबर… कोई भी यूँ ही निकाल कर आपको दे देगा? अगर किंग नहीं चाहेगा तो उसके पास से गुज़रने वाली हवा भी किसी और के पास नहीं जाएगी। फिर उसकी खबर कैसे जाएगी?"
पाटिल भाऊ एक पल को चौंक गए। उनके चेहरे पर हैरानी सी छा गई थी।
"मतलब… अपने आने की खबर तूने खुद हमें पहुँचाई?"
किंग हल्की हँसी के साथ एक लंबा साँस लेकर बोला,
"हाँ…"
पाटिल भाऊ ने बेबसी से कहा,
"तो सीधा मिलने ही आ जाता… यह खेल कैसा?"
किंग ने बेरूखी से जवाब दिया,
"क्योंकि किसी की बद्दुआ का जवाब देने का वक़्त आ गया है और इसके लिए एक खेल तो बनता है ना…"
पाटिल भाऊ किंग की आँखों में झाँक रहे थे, लेकिन वहाँ उन्हें कुछ और ही नज़र आया। वह कोई पुरानी मासूमियत नहीं थी, ना ही किसी पोते की मोहब्बत, वहाँ एक आग थी—बदले की आग।
उस नज़र को देखकर दादा जी का चेहरा पल भर के लिए सख़्त हो गया, उनके अंदर एक घबराहट सी दौड़ गई।
किंग ने उनके चेहरे का डर पढ़ लिया और एक फीकी सी मुस्कान के साथ कहा,
"आप परेशान मत हो। जो घटिया हरकत आप लोगों ने मुझसे कसम दिलवाकर करवाई थी ना… वह आज भी निभा रहा हूँ। और निभाऊँगा भी। लेकिन इसका यह मतलब हरगिज़ नहीं कि जवाब नहीं है मेरे पास।"
किंग की आवाज़ में कोई ऊँचाई नहीं थी, पर उसमें ऐसी थर्राहट थी जो सामने वाले की रीढ़ तक उतर जाए।
दादा जी ने अपनी आवाज़ को संभालते हुए कहा,
"मतलब… तू घर आएगा?"
किंग हल्के से मुस्कुराया, लेकिन उसकी आँखों में सॉफ्टनेस की एक झलक उभर आई।
"हाँ… पर अकेला नहीं।"
उसने जैसे ही यह कहा, उसकी नज़रें कहीं दूर खो गईं… और उस धुँधलाते फ़्रेम में सिर्फ़ एक चेहरा उभरा, साहिबा का। वह चेहरा जो दर्द भी था, मोहब्बत भी… और शायद उसका सबसे बड़ा जवाब भी।
अमेरिका – एक स्काई-हाई बिज़नेस टावर की टॉप फ़्लोर कॉन्फ़्रेंस रूम
कमरे के चारों तरफ़ कांच की दीवारें थीं, जिनसे न्यू यॉर्क के बिजलियों जैसे चमकते स्काईलाइन का नज़ारा दिख रहा था। कमरे के बीच में एक लंबा ओवल-शेप्ड टेबल था, जिसके चारों ओर कई विदेशी कॉर्पोरेट प्रोफेशनल्स बैठे थे—सब मर्द। लेकिन उस कमरे की सबसे ताक़तवर मौजूदगी, हेड चेयर पर बैठी एक औरत की थी—साहिबा।
साहिबा ने ब्लैक फॉर्मल सूट पहना था, बाल टाइट पोनी में बंधे हुए थे और उसकी आँखों में वही तेज़ था जो किसी जनरल की होती है, जब वह अपनी फ़ौज को फटकार लगाता है।
साहिबा ने लैपटॉप बंद करते हुए कहा,
"This isn’t just negligence, it’s borderline sabotage.
(ये सिर्फ़ लापरवाही नहीं है, यह तो साज़िश की हद तक है।)
And let me remind you, gentlemen, we don’t run a playground here—this is a multi-billion dollar export-import corporation dealing in high-value logistics and clean tech energy solutions."
(और याद रखिए जनाब, हम यहाँ कोई खेल का मैदान नहीं चला रहे—यह अरबों की एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट कंपनी है जो हाई-वैल्यू लॉजिस्टिक्स और क्लीन टेक एनर्जी सॉल्यूशन्स से जुड़ी है।)
"Mistakes like this don’t ‘just happen’—they are allowed to happen."
(ऐसी गलतियाँ खुद नहीं होतीं—उन्हें होने दिया जाता है।)
कमरे में एक पल को सन्नाटा छा गया। कुछ मर्दों की पेशानी पर पसीने की बूंदें साफ़ नज़र आने लगीं।
एक अमेरिकन बोर्ड मेंबर ने धीमी आवाज़ में सफ़ाई देने की कोशिश की,
"Mam, we thought the overseas vendor had the proper certifications—"
(मैम हमें लगा था कि ओवरसीज़ वेंडर के पास सारे सही सर्टिफिकेट्स हैं—)
साहिबा ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया,
"You ‘thought’? That's the problem. I don’t pay this team to ‘think’, I pay you to know."
(तुमने ‘सोचा’? यही तो दिक्कत है। मैं तुम्हें सोचने के लिए पैसे नहीं देती, मैं तुम्हें जानने के लिए पैसे देती हूँ।)
"हमारे पास हर शिपमेंट की ट्रैकिंग और हर डॉक्यूमेंटेशन का क्रॉस वेरिफिकेशन सिस्टम है। फिर भी साउथ ईस्ट एशिया की फैक्ट्री में एक छोटा डीलर बिना क्लीन प्रॉडक्ट अप्रूवल के अंदर कैसे आ गया?"
साहिबा ने सामने रखी एक फ़ाइल उठाई और जोर से टेबल पर फेंकी,
"The company may be in my name... but the defamation will be yours and not mine…"
(कंपनी भले ही मेरे नाम पर हो… लेकिन बदनामी आपकी होगी, मेरी नहीं।)
"And in my company, the biggest crime is to stain my reputation."
(और मेरी कंपनी में सबसे बड़ा जुर्म है मेरी रेपुटेशन पर दाग लगाना।)
साहिबा ने अपनी टीम की ओर देखकर कहा,
"Cancel this deal right now. Get the legal team to draft a new contract with double verification…"
(यह डील अभी के अभी रद्द करो। लीगल टीम से एक नया कॉन्ट्रैक्ट ड्राफ्ट करवाओ जिसमें डबल वेरिफिकेशन हो।)
"I want a full audit report of all deep supply chains on my desk within the next seven days—including our South America and Gulf routes."
(और अगले सात दिनों में, हमारी हर डीप सप्लाई चैन की ऑडिट रिपोर्ट मेरी टेबल पर होनी चाहिए—साउथ अमेरिका और गल्फ रूट्स समेत।)
एक और सीनियर मेंबर बोला,
"Ma'am, would you like to personally handle the Gulf tie-up?"
(मैम, क्या आप चाहेंगी कि गल्फ वाला टाई-अप आप खुद हैंडल करें?)
साहिबा उठ खड़ी हुई, कुर्सी को पीछे करते हुए बोली,
"No. Gulf is clean. But now, I want the board to know—this company doesn’t just run on profit. It runs on fear. The fear of disappointing me."
(नहीं, गल्फ साफ़ है। लेकिन अब मैं चाहती हूँ कि बोर्ड को यह बात साफ़ समझ आ जाए—यह कंपनी सिर्फ मुनाफे से नहीं चलती। यह डर से चलती है। वह डर कि कहीं मुझे निराश न कर दें।)
उसके शब्द पूरे कमरे में गूंजे और टीम के हर मेंबर की रीढ़ में एक सिहरन दौड़ गई। मीटिंग खत्म हो चुकी थी, लेकिन साहिबा की मौजूदगी वहाँ से किसी की यादों से जाने वाली नहीं थी।
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मीटिंग रूम खाली हो चुका था। साहिबा अब खिड़की के पास खड़ी थी, जहाँ से पूरे शहर की रोशनी उसके सामने बिछी लग रही थी। उसके चेहरे से सख्ती अब धीरे-धीरे उतर रही थी, और उसकी आँखों में हल्की थकान और कहीं गहराई में छुपा अकेलापन छलक आया था।
उसने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और एक खास कॉन्टैक्ट पर कॉल मिलाई—रूह & हान (Rooh & Haan)।
फ़ोन की दूसरी तरफ कुछ सेकंड की घंटी के बाद दो मासूम आवाज़ें एक साथ आईं—
"ममा!"
(माँ!)
साहिबा की आँखों में नमी उतर आई, पर उसकी आवाज़ अब भी मजबूत थी।
"कैसे हो मेरे शेरों?"
रूह: "मैं अच्छा हूँ ममा, हान ने आज फिर से ब्रोकली नहीं खाई!"
हान (थोड़ी मासूमियत से): "ममा, वो अच्छी नहीं लगती!"
साहिबा हँस दी—वो हँसी जो सिर्फ एक माँ ही अपने बच्चों के लिए हँसती है।
साहिबा:
"Next time ममा आएगी ना तो अपने हाथ से ब्रोकली बना के खिलाएगी, ठीक है?"
रूह: "आप कब आओगी ममा? हमारा दिल ने कहा ममा के बिना खाली लगता है..."
साहिबा की आँखों से एक आँसू गिरा जिसे उसने तुरंत पोंछ दिया।
साहिबा:
"बस थोड़ा सा काम रह गया है बेटा। फिर ममा हमेशा के लिए तुम्हारे पास होगी। तब तक तुम लोग बाबा साहेब की बात मानना, और हान—ब्रोकली खाना।"
(बस थोड़ा सा काम रह गया है बेटा। फिर ममा हमेशा के लिए तुम्हारे पास होगी…)
हान: "Promise?"
साहिबा (हल्की सी मुस्कान और आँखों में वादा):
"पinky promise."
फ़ोन कटते ही वो एक पल के लिए चुप हो गई। उसकी उँगलियाँ फोन की स्क्रीन पर रुकी रहीं, जैसे कुछ और कहने का मन था... लेकिन वक्त नहीं था।
वो धीमे कदमों से मुड़ी और वापस उस कॉन्फ्रेंस रूम की ओर देखती रही... जहाँ उसने सबको झुका दिया था, लेकिन अब भी एक जंग बाकी थी—जिसमें उसे किसी को झुकाना नहीं, सिर्फ अपना वादा निभाना था।
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इधर इंडिया में मान को पता चल चुका था कि साहिबा इंडिया में नहीं है वह किसी काम से इंडिया के बाहर गई है और उसे यह सही मौका मिला बाबा साहब से सवाल करने का..
ऊँची बिल्डिंग की टॉप फ्लोर, फ्रॉस्टेड ग्लास की दीवारें, अंदर एयर-फिल्टर्ड सन्नाटा। sleek wooden टेबल के पीछे बैठा था देवा भाऊ, सिल्वर ग्रे सूट में, सामने टचस्क्रीन कॉन्फ्रेंस मॉनिटर और एक डायमंड-कट ग्लास में half-filled black coffee।
जैसे ही दरवाज़ा खुला, फिंगरप्रिंट लॉक की हल्की-सी बीप के साथ अंदर दाख़िल हुआ मान सूर्यवंशी – ब्लैक टी-शर्ट, लूज़ जैकेट, आँखों में गुस्सा और माथे पर सवालों का तूफ़ान।
देवा भाऊ ने बिना सिर उठाए कहा, "मान... तुम?"
मान, अपनी चिरपरिचित बेज़ार और ठंडी आवाज़ में बोला,
"मैं सिर्फ कुछ जवाब लेने आया हूँ... या तो खुद बताओ, या मुझे अपने तरीके से जानने दो कि साहिबा कौन है, और ये दोनों बच्चे... रूहान और रेहान... किसके हैं?"
देवा भाऊ ने गहरी साँस ली, अपनी कुर्सी पीछे सरकाई और खिड़की से बाहर नज़र डालते हुए बोले,
"मान, तुम जिस सच की तलाश में हो... वो इतना सीधा नहीं है जितना तुम सोचते हो।"
मान उनकी बात बीच में काटते हुए आगे बढ़ आया, अब चेहरा टेबल से कुछ ही इंच दूर,
"पूजा माँ... पता है वो कहाँ हैं?"
देवा भाऊ के चेहरे पर एकदम से बदलाव आया — उनकी आँखों की पुतलियाँ फैल गईं, चेहरा ज़रा पल में सख्त हुआ और फिर वो उठकर मान के करीब आ गए।
"क्या कहा तुमने...? पूजा...? पूजा कहाँ है?"
मान, होंठों पर हल्की मुस्कान के साथ बोला,
"बेचैनी हो रही है ना...? अपनी बीवी के बारे में जानने की।
सेम बेचैनी मुझे हो रही है साहिबा को लेकर।
तो चलिए... डील करते हैं –
आप मुझे साहिबा का पास्ट बताइए, मैं आपको पूजा माँ का लोकेशन बताता हूँ।"
देवा भाऊ वहीं खड़े रह गए — उनका चेहरा अब टेंशन और यादों की गहराई में डूब चुका था। ऑफिस की रौशनी अब और ज्यादा सफेद लग रही थी... और कमरे में एक भारी ख़ामोशी फैल गई थी।
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कमरे में हल्की पीली रौशनी फैली थी। बाहर का सूरज ढल रहा था और खिड़की से आती रौशनी अब धीमी पड़ चुकी थी। देवा भाऊ अब अपनी सीट पर बैठ चुके थे लेकिन उनकी पीठ अब भी मान की तरफ थी, जैसे अतीत का कोई दरवाज़ा खुलने वाला हो।
मान, अब भी टेबल के सामने खड़ा था, लेकिन उसके चेहरे पर अब गुस्से की जगह जिज्ञासा और बेचैनी दोनों थी।
देवा भाऊ धीरे-धीरे बोले –
"साहिबा पहले कैसी थी, कैसी नहीं थी... ये मैं भी नहीं जानता।
मैंने उसे तब जाना जब वो अपने अतीत से लड़ते हुए, खून से सने हाथों से अपने आज की नींव रख रही थी।
लेकिन... सुना बहुत कुछ है उसके बारे में।
उसका अतीत... खौफनाक था।"
वो थोड़ी देर चुप हुए, मान की आँखें अब और भी ज़्यादा ध्यान से उन्हें पढ़ने लगी थीं।
देवा भाऊ ने गहरी साँस लेकर आगे कहा –
"उसके माँ-बाप नहीं थे।
उसके चाचा-चाची ने... पैसों के लिए उसे बेच दिया था — मुंबई के एक अय्याश आदमी को।
वो आदमी... एक नंबर का दरिंदा था।
उसने साहिबा को अपने घर में बंद कर रखा...
उसे अपनी हवस मिटाने का खिलौना बना दिया।
सोचो, मान... उस वक़्त साहिबा सिर्फ सोलह साल की थी।
बस सोलह।"
देवा भाऊ की आवाज़ अब भारी हो चली थी, जैसे वो उस दर्द को खुद महसूस कर रहे हों।
फिर उन्होंने रुककर कहा –
"और वो दो बच्चे... जिनसे तू सवाल करता है —
वो साहिबा के नहीं हैं।
वो... उस आदमी के घर के बाहर, सड़क पर पड़े हुए दो मासूम बच्चे थे।
किसी ने फेंक दिए थे उन्हें, जैसे कचरा फेंका जाता है।
चार साल के थे दोनों।
साहिबा ने देखा, उठा लिया।
दिल में ममता थी या शायद... अपना टूटा बचपन... जो इन बच्चों में देख लिया था उसने।"
देवा भाऊ अब मान की तरफ मुड़े और बेहद दर्द में बोले –
"उस आदमी ने बच्चों को रखने से मना कर दिया था।
लेकिन साहिबा ने उससे कहा —
कि वो उसकी हर बात मानेगी, हर सेवा करेगी...
बस वो बच्चे रह जाएँ।
और उसने इजाज़त दी।
लेकिन वो इजाज़त भी एक सौदे की तरह थी... और साहिबा ने वो सौदा भी माँ बनकर निभाया।"
मान अब कुछ नहीं कह पाया। उसकी आँखों में हल्की नमी थी, और दिल किसी अनकही सच्चाई से हिल चुका था।
देवा भाऊ ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा –
"साहिबा ने उन बच्चों को अपने से भी ज़्यादा संभाला।
उन्हें वो बचपन दिया, जो उसे कभी मिला ही नहीं।
उनके लिए उसने ज़हर पी लिया... और मुस्कुरा कर जिया।
अब तू बता... अगर ये औरत पापी है, तो इस दुनिया में कौन नेक है?"
उसका दर्द यही खत्म नहीं हुआ एक दिन......
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देवा भाऊ का ऑफिस – धीमी रोशनी में
देवा भाऊ की आँखें अब थोड़ा कांपने लगी हैं। उनकी आवाज़ भारी हो गई है। मान अब बिल्कुल खामोश है। उसने जितना सुना, उससे ज्यादा महसूस किया।
देवा भाऊ (गहरी साँस लेते हुए):
"जो तूने अब तक सुना... वो बस एक हिस्सा था साहिबा की ज़िंदगी का।
असली जहन्नुम... तो उसके बाद शुरू हुआ।
वो आदमी... जिसने साहिबा को पाला नहीं, पिंजरे में बंद किया,जो खुद को साहिबा का पति कहता था
वो एक रोज़... साहिबा के सामने एक और शर्त लेकर आया।"
मान (धीरे से): "और क्या बचा था शर्तों में?"
देवा भाऊ की आँखें नीचे झुक जाती हैं। उनके होंठ कांपते हैं, जैसे ज़ुबान पर दर्द बोझ बन गया हो।
देवा भाऊ:
"उसने कहा — ‘इन बच्चों को रख, लेकिन आज रात तुझे मेरे कुछ खास मेहमानों की ‘मेजबानी’ करनी होगी।’
साहिबा के पास ना हाँ का हौसला था, ना ना की आज़ादी।
और उस रात... उसकी आबरू, उसकी इंसानियत, सब कुछ रौंद डाला गया।"
साहिबा ने खुद का सौदा कर डाला एक बार फिर लेकिन यह सौदा एक दिन का नहीं था रोज़ का धंधा हो गया था.. उसे अलग अलग जगह ले जाकर उसे उन 6 दरिंदो के हवाले कर दिआ जाता जो कभी साहिबा के बदन से अपने बदन की आग को ठंडा करते तो कभो साहिबा के बदन से हथियारों से..
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फ्लैशबैक सीन – अंधेरा कमरा, मुंबई की एक पुरानी कोठी का तहखाना
कमरा नुकीले औजारों, लोहे की जंजीरों और पुराने खून के धब्बों से भरा हुआ था। दीवारों पर प्लास्टर उखड़ा हुआ, पसीने और सिगरेट की बदबू से भरा दमघोंटू माहौल। एक कोने में जंग लगे टॉर्च की रौशनी काँप रही थी, जैसे कमरे की दीवारें भी डर से थरथरा रही हों।
एक पुरानी कुर्सी के पास ज़मीन पर जंजीरें पड़ी थीं, जिनमें पहले से चमड़ी के कुछ टुकड़े और खून के निशान जमे हुए थे।
साहिबा को धक्का देकर अंदर फेंका गया।
वो लड़खड़ाई और सीधे ज़मीन पर गिरी। उसके घुटनों से खून बह निकला।
पीछे से आवाज़ आई —
"तुमने बच्चों की ज़िद की थी ना... अब कीमत भी खुद ही चुकाओगी।"
कमरे का दरवाज़ा बंद हुआ। एक लंबा सन्नाटा। फिर एक धातु के डंडे को घसीटने की आवाज़ आई।
साहिबा ने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा, एक आदमी ने उसके बाल पकड़कर उसे खींच लिया। उसे एक कोने की कुर्सी पर बाँध दिया गया।
कलाईयों में लोहे की जंजीरें कसीं गईं, इतनी ताक़त से कि उसकी नसें नीली पड़ने लगीं।
दीवार पर लगे एक पुराने स्पीकर से तेज़ आवाज़ में क्लासिकल म्यूज़िक बजाया गया — ताकि उसकी चीखें बाहर ना जाएं।
एक दराज खोली गई — उसमें से निकाले गए थे बर्फ के टुकड़े, गरम सलाखें, बेल्ट और एक टेप का रोल।
साहिबा का पसीने से भीगा चेहरा।
उसकी आँखों में डर नहीं था, सिर्फ डर से लड़ने की ज़िद थी।
होंठ फटे हुए थे, लेकिन उसने कुछ कहा —
"बच्चों को हाथ लगाया तो ज़िंदा नहीं रहोगे..."
और उसके बाद —
शरीर पर जलती सलाखों के निशान।
ठंडी बर्फ से तड़पता शरीर।
एक आदमी उसकी आँखों में धुआँ फूंक रहा था।
एक और ने उसकी आवाज़ को दबाने के लिए टेप से मुँह बंद किया।
साहिबा के सिर के पास की दीवार पर, उसके खून की छींटें उड़ चुकी थीं।
सिर्फ उसकी साँसों की टूटती आवाज़ सुनाई देती है।
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वर्तमान में – देवा भाऊ का ऑफिस
देवा भाऊ की आँखें नम हैं। वो धीमे स्वर में कहता है —
"हर रात उस कमरे में वो सिर्फ खुद को नहीं बचा रही थी... वो दो मासूम जिंदगियों की ढाल बन रही थी।
और जब वो कमरे से बाहर आती थी, तो उन बच्चों को हँसते हुए गले लगाती थी...
क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उनके बचपन पर भी उसकी तकलीफ़ों की परछाईं पड़े।"
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देवा भाऊ चुप होते हैं। कमरे में एक भारी खामोशी पसरी है। मान, जो अब तक खुद के गुस्से को शांत कर खड़ा था, अचानक बोल पड़ता है –
मान (गहरी आवाज़ में):
"फिर निकली कैसे वो वहाँ से? इतना सब झेलने के बाद... कैसे बच पाई?"
देवा भाऊ कुछ सेकंड के लिए आँखे बंद करता है, मानो खुद को उस बीते वक्त में ले जा रहा हो। फिर बोलता है —
देवा भाऊ (धीमी, भारी आवाज़ में):
"उन छह दरिंदों में से एक आदमी था... शायद इंसानियत की थोड़ी सी रूह बाकी थी उसमें।
उसने एक दिन साहिबा की हालत देखी, उसके जख्म, उसकी आँखें... और सबसे ज्यादा — उसके उन बच्चों के लिए लड़ने का जज्बा।
उसे साहिबा पर तरस आ गया।"
(देवा भाऊ की आवाज़ में करुणा घुल जाती है)
"वो आदमी एक रात आया, दरवाज़ा खोला... और बोला — 'भाग जा। बच्चों को ले जा, यहाँ से बहुत दूर निकल जा।'
लेकिन इतना आसान नहीं था। साहिबा उस घर की चीज़ थी... उस आदमी की जिसे वो खुद को साहिबा का पति कहता था।"
मान की आँखों में आग सी जलती है।
देवा भाऊ (आगे बताता है):
"तो उस आदमी ने, जिसने मदद की, साहिबा को उसी से खरीद लिया। कीमत नहीं बताई, बस बोला — 'अब यह मेरी नहीं, अपनी है। आज़ाद है।'
और उसके बाद, उसने साहिबा के दोनों बच्चों को शहर के सबसे अच्छे हॉस्टल में भर्ती करवाया, ताकि उन्हें वो न देखना पड़े जो साहिबा ने देखा था।"
मान थोड़ा झुककर बोलता है —
"फिर क्या हुआ उसके बाद?"
देवा भाऊ थोड़ी देर चुप रहता है, फिर धीरे से कहता है —
"फिर क्या हुआ, ये मुझे नहीं पता। उसने कभी नहीं बताया।
इस हादसे के ठीक एक साल बाद, पहली बार वो मुझे मिली —
मेरी जान बचाई थी उसने। मेरे हिस्से की गोली खुद खा कर।
अस्पताल में जब होश में आई, तो मैंने पूछा — 'क्या चाहिए तुम्हें?'
तो उसने एक शब्द कहा — 'बदला।' "
(देवा भाऊ की आँखें साहिबा की ताक़त और दर्द को याद करते हुए भीग जाती हैं)
"उस दिन मैंने उसकी आँखों में देखा... कोई लड़की नहीं थी वहाँ, सिर्फ आग थी।
उसने कहा — 'मैं माफिया गैंग में आना चाहती हूँ... ताक़त चाहिए मुझे, ताक़त।’
मैंने उसकी बात मानी...
उसे ट्रेन किया, अपने सबसे भरोसेमंद लोगों से भी ज़्यादा सीखा दिया।
और आज... जो साहिबा तुम्हारे सामने है,
वो उस लड़की की राख से बनी एक लौ है... जो सिर्फ जलती नहीं, जलाती भी है।"
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