शादी को लेकर सभी के कई सारी सपने होते है पर आपके अनजाने में ही अगर आपकी शादी किसी पराए धर्म के अंजान इंसान से हो जय तब क्या होगा ? अवनी के शादी की दिन उसकी शादी जबरदस्ती किसी ओर से करवाई जाती है, किसी ऐसे से जिसे ना तो कभी अवनी जानती थी न ही पहचानती... शादी को लेकर सभी के कई सारी सपने होते है पर आपके अनजाने में ही अगर आपकी शादी किसी पराए धर्म के अंजान इंसान से हो जय तब क्या होगा ? अवनी के शादी की दिन उसकी शादी जबरदस्ती किसी ओर से करवाई जाती है, किसी ऐसे से जिसे ना तो कभी अवनी जानती थी न ही पहचानती थी। पर क्यूँ करा दी गई थी उसकी शादी किसी अलग धर्म के एक अंजान से ? क्या ये कोई मज़बूरी थी, या थी किसी की साजिश ? कैसी होगी उसकी ये नया सफर ? या दो धर्मो के बीच के आग में झुलस के रह जायेंगी ये दोनों जिन्दगीयाँ ? क्या कभी वो इस शादी को मान पाएगी या इस अनचाही पवित्र बंधन से खुदको छुड़ाएगी ?
Ibrahim Ali
Villain
Avni Ibrahim Ali
Heroine
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मुंबई, शाम का समय वैदि भवन… "अवनी, तू तैयार हुई कि नहीं? एक बार फिर देख ले, तेरी ड्रेस, मेकअप, सब कुछ ठीक है ना? और गहने पहन लिए हैं ना?" श्वेता जी कमरे के अंदर आते हुए अपनी बेटी अवनी से पूछीं। वहीं चार-पाँच लड़कियों से घिरी हुई अवनी, आईने के सामने एक लाल रंग के खूबसूरत शादी के जोड़े में बैठी हुई थी। और शादी के जोड़े में अवनी बहुत सुंदर लग रही थी। वो अपनी माँ श्वेता को जवाब देते हुए धीरे आवाज़ में बोली, "हाँ माँ, मैं पूरी तैयार हूँ। आप इतना परेशान क्यों हो रही हैं? सब ठीक है।" "परेशान नहीं हूँ? आज मेरी बेटी का ज़िंदगी का इतना बड़ा दिन है, तेरी शादी है, और मैं नहीं चाहती तेरी शादी में कोई भी भूल-चूक हो, कुछ भी छूट जाए। और तुझे तो अपने पापा को पता ही है ना…" श्वेता जी बोलीं। अवनी अपनी माँ की बात सुनकर बस हँस दी। तभी दरवाज़े पर कोई नॉक करता है, और बाहर से आवाज़ आई, "अरे श्वेता, अब तो अपनी बेटी को छोड़िए, अब तो वो हमारे घर जा रही है हमेशा के लिए।" "आपके घर में जा रही है, इसीलिए तो नहीं छोड़ रही हूँ।" अवनी की माँ श्वेता जी बोलीं। और दोनों हँस दीं। कुछ देर बाद वो दोनों अवनी को वहाँ छोड़कर चली गईं। कुछ देर बाद, मंडप में… "यजमान, शादी का समय निकल जा रहा है, दूल्हा कहाँ है? ऐसे तो…" पंडित जी अवनी के पापा से बोले। अनिल जी, अवनी के पापा ने कहा, "पंडित जी, बस-बस, कुछ देर और। वो दूल्हा आता ही होगा।" अनिल जी ने कहा ही था कि तभी उसी वक़्त बाहर एक कार के रुकने की आवाज़ आई। गाड़ी रुकने की आवाज़ सुनकर दूल्हे की बुआ, दिव्या जी बोलीं, "अरे लीजिए भाई साहब, रणवीर आ गया है, पंडित जी लीजिए, आ गया है अपना दूल्हा।" मंडप में मौजूद सभी मेहमानों की नज़र एंट्री पर थी। कब से सभी दूल्हे को देखने के लिए बेसब्र हो रहे थे। आखिर अब जाकर उनका सब्र का फल मिलने वाला था! इसीलिए सभी अपनी नज़र एंट्री पर गड़ा लेते हैं! तभी हीरो जैसे एंट्री लेते हुए एक इंसान अंदर आया। काले रंग के बेहतरीन कपड़ों में वो इंसान बहुत ही आकर्षक नज़र आ रहा था! ब्लैक कलर के बिज़नेस सूट उसके मस्कुलर बॉडी को और भी अच्छे से दर्शा रहा था! जेल से सेट किए हुए बाल, हाथों में ब्रांडेड घड़ी, आँखों में नज़र का चश्मा, पैरों में लेदर के जूते पहना हुआ वो लड़का बहुत ही हैंडसम और अट्रैक्टिव नज़र आ रहा था। वो लड़का बिना किसी को ध्यान दिए सीधा दिव्या जी के सामने आकर रुका और अपने चश्मे को बहुत ही स्टाइल से उतारा। और एकदम से दिव्या जी को हग कर लिया। वो दिव्या से अलग होते हुए कहा, "कैसे हैं आप? शादी हो गई क्या? क्या मैंने देर कर दी आने में?" उसने बहुत ही कैज़ुअली पूछा, जैसे उसे बाकी सब से कुछ ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ता हो। वहीं वहाँ मौजूद सभी बस बिना अपनी पलकें झपकाए उसको ही एकटक निहारे जा रहे थे। स्नेही की नज़र बस उस पर ही थी, जिससे वो अनजान तो नहीं था, मगर उसने इस पर ज़्यादा भाव नहीं दिया, वो इन सब से बहुत अच्छे से वाकिफ़ था। खैर, अब गलती उनका भी कहाँ थी? उन्हें निहारना तो बनता है यार! अरे मैंने तो इनका इंट्रोडक्शन दिया ही नहीं! चलो कोई नहीं, अब ले लो! ये है… जो भी है, बाद में जान लेंगे। दिव्या जी परेशान सी बोलीं, "नहीं बेटा, तुमने आने में देर नहीं की, बल्कि अभी तक शादी हुई ही नहीं है। पता नहीं रणवीर कहाँ रह गया। इतनी इर्रेस्पॉन्सिबिलिटी! अपनी शादी के दिन कौन ऐसे देर करता है?" उनकी शिकायत सुनकर उस लड़के ने कुछ नहीं कहा। वो वहाँ पर रखे हुए सोफ़े पर बैठ गया और अपने फ़ोन स्क्रॉल करने लगा। पंडित जी ने एक बार फिर बोला, "यजमान, कृपया करके दूल्हे को ले कर आइए! मुहूर्त ख़त्म होने में समय नहीं है, अब भी अगर ये शादी नहीं हुई तो लड़की लग्न-भ्रष्ट हो जाएगी! और…" पंडित जी के कहने के बीच में ही अवनी वहाँ आ जाती है और बोली, "पापा…" अवनी इतना ही कह पाई थी कि अनिल जी एकदम से अवनी के पास जाकर थोड़े गुस्से में उससे बोले, "बस अब बहुत हो चुका अवनी! बहुत बना ली तुमने खुद की और हमारी तमाशा! मैंने तुम्हारी खुशी के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ तुमने कहा था इसलिए उस लड़के से तुम्हारी रिश्ता की मंज़ूरी दी थी। पर अब हमें लग रहा है, मैंने अपने ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती करी थी जो तुम्हें ये शादी की मंज़ूरी दी। तुमने उस लड़के के लिए हम सब से लड़ लिया, मुझे तक मन लिया, पर उस लड़के ने क्या किया? अपनी शादी के दिन ऐसे तुमको छोड़कर भाग गया?" वहीं अवनी जो खुद ही इस बात से परेशान थी, वो घबरा रही थी। अनिल जी की बात सुनकर वो उन्हें समझाने की कोशिश करने लगी। वो उन्हें समझाने के लिए बोली, "नहीं पापा, ऐसा बात नहीं है। आप गलत समझ रहे हैं, रणवीर भाग नहीं गया है, वो आता ही होगा। वो ऐसा मेरे साथ नहीं कर सकता! वो मुझसे प्यार करता है, वो यूँ मुझे शादी के मंडप पर कैसे छोड़कर जाएगा? नहीं पापा, वो आएगा। वो शायद ट्रैफ़िक में फँस गए होंगे। वो आता ही होगा, आप परेशान मत हो और ना ही उसे गलत समझे।" अवनी ने अपनी बात कही ही थी कि तभी उसे किसी ने टोका। "बस कर दो अवनी।" वंश, उसके भाई ने एकदम से उसे रोकते हुए बोला। वंश ने आगे अपने कठोर आवाज़ में बोला, "तुम हमें बता रही हो या खुद को दिलासा दे रही हो? ट्रैफ़िक में फँस चुका होगा रणवीर? पिछले ढाई घंटे से क्या वो ट्रैफ़िक में फँसा हुआ है? बहुत सुन लिया हम सबने तुम्हारी, बहुत कर ली तुमने अपनी मन की, देख लिया अपने मन की करने का नतीजा? और अब तुम बिल्कुल चुप रहोगी और जो हम आपके लिए फ़ैसला लेंगे, आपको वो ही करना भी और मानना भी पड़ेगा।" वंश अनिल जी के पास जाकर उनसे कहा, "पापा, मैं अपनी बहन की ज़िंदगी का सबसे बड़ा फ़ैसला लेने जा रहा हूँ और मुझे आपकी मंज़ूरी चाहिए, ट्रस्ट मी पापा, मैं जो भी फ़ैसला लूँगा अवनी के लिए बेस्ट होगा।" अनिल जी थोड़ा परेशान होते हुए बोले, "बट वंश, तुम करना क्या चाहते हो?" इस पर वंश ने एकदम से कहा, "अवनी की शादी।" उसके बात को सुन सब उसे ही देखने लगे। सभी के मन में बस एक ही सवाल था, और वो ये: 'जब दूल्हा ही नहीं है तो शादी कैसे होगी? दूल्हा कहाँ है?' वंश उन सभी की नज़रों को भाँप लिए था। वो एकदम से दिव्या जी के पास जाने लगा और वहीं पास में काउच पर बैठे इंसान से बोला, "क्या तू मेरी एक बात मानेगा? क्या तू उसे अपनी बीवी होने का हक़ देगा? क्या तू मेरी बहन से शादी करेगा?" वंश की बात सुनकर अवनी एकदम से हैरान हो गई, उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था। वो एकदम से वंश के पास गई और उसे टोकते हुए बोली, "भाई ये आप क्या…" अवनी इससे आगे अपनी बात ख़त्म कर पाती, उससे पहले ही उसके कहने के बीच में ही उस लड़के ने कहा, "ठीक है! मैं करूँगा तेरी बहन अवनी से शादी अवनी।" उसने ये बात बहुत ही कैज़ुअली कही थी, यहाँ तक उसने एक पल सोचने के लिए भी नहीं लिया। उसके हाँ करते ही वंश ने पंडित जी से कहा, "पंडित जी, आप शादी के रस्मों को शुरू कीजिए! अवनी, जाकर मंडप पर बैठो।" वंश अवनी के पास आकर उससे थोड़ा कठोर भाव से कहा, "तुमने सुना नहीं अवनी, मैंने क्या कहा? जाकर मंडप पर बैठो।" "नहीं भाई, आप मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते, मैं रणवीर से शादी करने वाली थी, न कि किसी अंजान से। मैं ये शादी नहीं करूँगी, हरगिज नहीं करूँगी।" अवनी ने उसकी बात ना मानते हुए बोली। अवनी ये बोलकर अपनी लहंगे को थोड़ा ऊपर उठाया और वहाँ से जाने लगी। तभी वंश ने उसे रोक लिया। "ये शादी करोगी तुम, तुम्हें मेरी बात माननी ही पड़ेगी अवनी। और तुम अब रणवीर को भूल जाओ और अपने लाइफ़ में रणवीर के बिना किसी और के संग आगे बढ़ना है ये भी मान लो।" वंश ने कहा। फिर वंश उसकी कलाई को पकड़े उसके पास जाकर उससे कुछ कहा, जिसके बाद अवनी एकदम से अपनी जगह पर रुक गई। तभी पंडित जी ने फिर से कहा, "यजमान, लड़की को ले के आइए।" वंश ने अवनी को ले कर मंडप में बिठाया। धीरे-धीरे शादी के सभी रस्म होते जा रहे थे, पर रणवीर अभी तक नहीं आया था। वहीं अवनी अपने मन में बोली, "रणवीर, तुम कहाँ हो? तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते।" ऐसे ही समय बीतता गया, पर रणवीर नहीं आया। पंडित जी दूल्हे के हाथों में सिंदूर देकर बोले, "यजमान, अब आप कन्या की माँग भरिए।" पंडित जी के कहने के अनुसार उसने अवनी की माँग भरी, तो अपने आप ही अवनी अपनी आँखों को बंद कर लेती है। पंडित जी ने आगे कहा, "यजमान, कन्या को मंगलसूत्र पहनाइए!" और कुछ ही पल में पंडित जी ने कहा, "शादी संपन्न हुई! अब से आप दोनों पति-पत्नी हुए! आप अब दोनों भगवान और अपने बड़ों का आशीर्वाद लीजिए!" ना चाहते हुए भी अवनी एक-एक कर भगवान, अपने पेरेंट्स और बाकी सभी का आशीर्वाद लिया। वंश अवनी को अपने सीने से लगाकर थोड़ा भावुक होकर उससे कहा, "मैं जानता हूँ आज मैंने जो किया इसलिए तुम अभी नाराज़ हो, पर यकीन करो, हमने जो भी किया है तुम्हारे भले के लिए ही किया है। और अब आपकी शादी हो चुकी है और अब तुम्हें अपने पास्ट, रणवीर को भूलकर अपनी वर्तमान और भविष्य अपने पति के संग ही बिताना है। अग्नि के फेरे लिए तुमने वचन ले लिया है और मुझे पता है तुम्हारे लिए शादी की क्या अहमियत है!" अवनी अपनी आँसू भरी आँखों से अपने भाई वंश को देख रही थी। वो बोली, "भाई, आप चिंता मत करिए, मैंने अपनी पास्ट को तब ही छोड़ दिया था जब आपने हमें मंडप पर बिठाया था। हम आपसे वादा करते हैं, हम अपनी पत्नी होने का, बहू होने का सभी फ़र्ज़ दिल से निभाएँगे। शिकायत करने का मौका नहीं देंगे। और अब से हमारी ज़िंदगी में सिर्फ़ हमारे पति ही हैं और कोई नहीं!" वंश उसकी आँसुओं को पोंछते हुए दूल्हे से कहा, "तू सुन, मैंने तुझे अपनी बहन को सौंपा है, तू उसकी आँखों से कभी आँसू नहीं आने देगा, समझा।" "चाहे कुछ हो जाए पर मैं उसे कुछ नहीं होने दूँगा, मैं ये वादा तुझसे नहीं बल्कि खुद से कर रहा हूँ।" उसने अवनी की तरफ़ इंटेंसिटी से देखते हुए कहा। वंश ने आगे कहा, "तू उसे हमेशा खुश रखेगा, तू उसकी साथ कभी नहीं छोड़ेगा। शादी का हर कसम, वादों को निभाएगा, वादा कर मुझसे, तू उससे बहुत प्यार करेगा, उसे। हमने उसे बहुत प्यार से पाला है, कभी उस पर गुस्सा नहीं करेगा, चिल्लाएगा भी नहीं, वादा कर मुझसे।" इस पर वो वंश के गले लगते हुए उसके कानों में धीरे से बोला, "बस कर अब! बहुत ज़्यादा हो गया है, ओवर एक्टिंग लग रहा है। अब जाने भी दे हमें।" वंश उससे अलग होते हुए अवनी से कहा, "अपना ख्याल रखना!" वहीं दिव्या जी, श्वेता जी और अनिल जी से बोलीं, "अब हमें इजाज़त दीजिए, घर में भी नई बहू का स्वागत का इंतज़ाम करना होगा। और श्वेता जी, आप परेशान मत होइए! अवनी अपनी एक माँ से दूर हुई है, पर हम हैं ना, हम उसे कभी भी आपकी कमी को महसूस नहीं होने देंगे। आपकी जगह तो नहीं ले सकते, पर हाँ, उसे अपनी बहू नहीं, बेटी तो मान ही सकती हूँ ना।" श्वेता जी उनसे रोती हुई रिक्वेस्ट करते हुए बोलीं, "दिव्या जी, आप हमारी बच्ची को सब कुछ सिखा लीजिएगा। और अगर हमसे कुछ गलती हो गई तो माफ़ कर दीजिएगा।" तो दिव्या जी बोलीं, "अरे-अरे श्वेता जी, आप क्या कह रही हैं? वो अब हमारी बेटी है, और अब हमें इजाज़त दीजिए।" और वो भी दूसरी कार में बैठकर चली गईं। क्या रणवीर सच में ही भाग गया था या ये था किसी का षड्यंत्र? आखिर कोई अपनी ही शादी से कैसे भाग सकता है? कैसी होगी इन दोनों की मैरिज लाइफ़?
इस वक्त अवनी के सामने एक बड़ा सा घर था, जो किसी हवेली की तरह लग रहा था। अवनी चुप थी। उसने अभी तक एक शब्द भी नहीं बोला था। उसने नज़र भर अपने सामने की हवेली को भी नहीं देखा था। दिव्या जी आकर अवनी के माथे पर प्यार से हाथ फेरते हुए चहकती हुई बोलीं, "तुम दोनों यहीं रुको, मैं अंदर जाकर तुम्हारे ग्रहप्रवेश की तैयारी करती हूँ! और सभी को बताना भी तो है कि मेरे बेटे ने इतनी प्यारी बहू मुझे दी है।" ये बोलकर वे वहाँ से चली गईं। अवनी वहीं चोखट पर खड़ी होकर इंतज़ार करने लगी। वहीं अंदर दिव्या जी आकर किसी को आवाज़ देते हुए बोलीं, "जन्नत, जल्दी नीचे आओ, देखो तेरा भाई आया है और साथ में तेरे लिए कुछ लेकर आया है, जल्दी आ।" ये बोलकर वे दूसरी तरफ जाने लगीं। कुछ देर बाद... दिव्या जी अपने हाथों में आरती की थाल लेकर आईं और एंट्रेंस पर खड़ी उन दोनों की आरती करने लगीं। कुछ पल में ही ग्रहप्रवेश की सारी विधि पूरी करके अवनी को घर के अंदर प्रवेश करने के लिए बोला। दिव्या जी बहुत खुश लग रही थीं; उनके चेहरे से ही उनकी खुशी झलक रही थी। अवनी लिविंग एरिया में आई ही थी कि तभी एक उन्नीस-बीस साल की लड़की सीढ़ियों से दौड़ते हुए नीचे उतर रही थी। वह आकर सबसे पहले अवनी के पास खड़े उसके पति को गले लगाया और उससे बोली, "भाईजान! आप आ गए। आपको पता है हमने आपको बहुत याद किया है। अब लाओ, हमारे गिफ्ट दीजिए! माँ ने कहा कि आप मेरे लिए गिफ्ट लाए हैं!" ये बोलकर वह इधर-उधर नज़र दौड़ाने लगी; तभी उसकी नज़र अवनी पर जाकर रुकी। अवनी को देखकर जन्नत थोड़ी हैरानी से सवाल किया, "जी, आप कौन? हमने तो पहचाना नहीं।" इस पर उसका भाई बोला, "यही तो है आपकी गिफ्ट, आपकी भाभी जान!" जन्नत पहले तो अपने भाई की बात सुनकर शॉक्ड हो गई, पर अगले ही पल खुशी से झूमती हुई पूरे लिविंग रूम में नाचने लगी। वह लिविंग रूम के काउच पर कूदते हुए बोली, "सच्ची! भाई ने शादी कर ली! येह्ह! आप हमारे लिए भाभी जान लाए हैं, और वो भी इतनी खूबसूरत और प्यारी! हमें तो यकीन ही नहीं हो रहा है! येह्ह! हमारे भाई ने शादी कर ली...!" अवनी जो सिर्फ़ जन्नत की हरकतों को देख रही थी, जन्नत को ऐसे उछल-कूद करते हुए देखकर उसके उदासी भरे चेहरे पर भी छोटी सी मुस्कान आ गई। उसने उसे रोकते हुए कहा, "जन्नत, शांत हो जाइए! आपकी हरकतों को देखकर आपकी भाभी जान डर जाएंगी। यहाँ सब इंसान रहते हैं; आपकी हरकतों से कोई भी स्वाभाविक इंसान नहीं लग रहा है।" पर जन्नत को कोई फ़र्क नहीं पड़ा; वह अपनी सेलिब्रेशन में बिजी थी। तभी वहाँ पर किसी की आवाज़ आई, जो अपनी कठोर आवाज़ में बोला, "ये क्या हरकतें हैं, जन्नत? शांत हो जाइए।" उस आवाज़ को सुनते ही जन्नत जहाँ थी वहीं रुक गई। और अगले ही पल अपनी माँ के पास जाकर धीरे से उनसे शिकायत करते हुए बोली, "माँ, आपने बताया क्यों नहीं कि घर पे हिटलर है? तो मैं अपनी खुशी बयाँ ही नहीं कर पाती।" दिव्या जी उसे इग्नोर करते हुए उस इंसान के पास जाकर उसे समझाते हुए बोलीं, "अरे, वो तो बच्ची है! उसे जाने दीजिए।" तो वह शख्स अपने भारी भरकम आवाज़ में बोला, "उसे तो हम जाने देंगे, पर आपको नहीं। आपने हमें कुछ बताने के बारे में एक बार सोचा तक नहीं और घर में बहू लाकर हमसे मिला रही हैं?" "शादी हमने की है, अब्बू, तो जो भी कहना है आपको, वो आप हमसे कहें, नहीं माँ से।" अवनी के साथ खड़े इंसान ने एकदम से कहा। तो वह इंसान उसे अपने गुस्से भरी आँखों से देखने लगा। वह गुस्से से उसे कुछ बोलने ही जा रहा था कि उससे पहले ही उसकी नज़र पास में झाड़ू लगा रही अवनी पर पड़ी, तो वह एकदम से चुप हो गया। वहीं दिव्या जी ने अवनी को कुछ इशारा किया, तो अवनी धीरे से उनके पास जाकर उनके पैर छूने लगी। वहीं वह शख्स अवनी को बहुत अच्छे से देखने लगा। उसने बस अवनी के माथे पर हाथ रखकर उसे खुश रहने के लिए कहा। फिर वह आगे बोला, "हम इस शादी को नहीं मानते।" इस पर इब्राहिम ने अपनी भारी आवाज़ में उन्हें उल्टा जवाब देते हुए कहा, "आपके मानने या ना मानने से मेरी शादी झूठी नहीं हो जाएगी, अब्बू।" उसके अब्बू ने उसकी बातों को नज़रअंदाज़ किया और अपनी बीबी दिव्या जी से बोले, "दिव्या, हम इस शादी को नहीं मानते हैं। काजी साहब को बुलाओ। इनका कल शाम को निकाह होगा, और तभी हम इस शादी को मंज़ूरी देंगे। और आज ही पूरी तैयारी कर लीजिए। और आप, इब्राहिम, अपनी ये बिहेवियर बदलिये।" फिर वह अवनी की तरफ़ मुड़कर आगे बोले, "आपका क्या नाम है, बेटा?" अवनी को कुछ समझ में नहीं आया। वह अपने मन में सोची, "अब्बू, इब्राहिम..!" फिर वह अपने ख्याल से बाहर आकर उन्हें जवाब दिया, "जी, अ... अवनी।" इस पर इब्राहिम के अब्बू ने कहा, "बहुत सुंदर नाम है।" वहीं अब इब्राहिम ने अपनी बहन से आदेश देते हुए बोला, "जन्नत, जाओ अपनी भाभी जान को मेरे रूम में ले जाओ।" जन्नत ने उसकी बातों को मानते हुए अपनी भाभी को अपने साथ ऊपर ले गई। ऊपर कॉरिडोर में आकर अवनी ने थोड़ी हिचकिचाते हुए जन्नत से बोला, "एक सवाल कर सकती हूँ क्या?" इस पर जन्नत ने हाँ में अपना सर हिलाया। "देखो, मुझे गलत मत समझना, पर... बस हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा है, तो इसीलिए हम तुमसे पूछ रहे हैं, ये... ये इब्राहिम कौन है?" अवनी ने बहुत सोच-समझकर अपने हर एक शब्द को चुनते हुए बोला। उसके सवाल को सुनकर जन्नत हँसकर बोली, "भाभी जान, पहले तो आप हमसे कुछ भी पूछ सकते हैं, इतना हिचकिचाने की ज़रूरत नहीं। हमें पता है आप हिटलर की बेटी हैं, पर उनकी तरह तो नहीं। और रही बात इब्राहिम कौन है, ये तो मेरे भाई जान का नाम है, मतलब आपके पति का। आपको नहीं पता क्या?" इस पर अवनी ने ना में अपना सर हिला दिया। इस पर जन्नत अपनी सर पर टोपी मारते हुए बोली, "समझ गई!" फिर कुछ सोचकर आगे बोली, "अब ज़रूर आपका अगला सवाल होगा, भाई जान अब्बू क्यों बोल रहे थे? तो वो इसलिए क्योंकि हमारी माँ हिन्दू धर्म से हैं और अब्बू इस्लामी धर्म से। इसीलिए। वैसे उनका कहानी कभी और बताऊँगा।" वे दोनों बातें करते करते एक कमरे के सामने आकर रुके। जन्नत दरवाज़ा खोलते हुए अंदर जाते हुए बोली, "लीजिए, आपका और आपके सोहर का कमरा आ गया।" यह कमरा बहुत बड़ा था और साथ ही बहुत सुंदर भी। कमरे में एक गोल बिस्तर था, जिस पर सफ़ेद चादर बिछी हुई थी। कमरे की एक बालकनी थी, जिस पर बड़े से स्लाइडिंग ग्लास के दरवाज़े थे। कमरे का फ़र्नीचर और इंटीरियर की थीम वुडन थी, जो एक एस्थेटिक वाइब्स दे रही थी। जन्नत ने अवनी को फ़्रेश होने के लिए बोला। स्टडी रूम... इब्राहिम और उसके अब्बू शौकत जी सोफ़े पर बैठे एक-दूसरे को देख रहे थे। इब्राहिम ने कहा, "जो कहना है, कह दीजिए। हम बहुत थके हुए हैं।" "आपको पता भी है आपने जो रायता फैलाया है, उसे हमने कैसे संभाला है? और तब भी आपको रत्ती भर फ़र्क नहीं पड़ रहा है।" शौकत जी इब्राहिम पर गुस्सा करते हुए बोले। इब्राहिम उन्हें उल्टा जवाब देते हुए बोला, "हमने जो रायता फैलाया है, उसे हम ही साफ़ करेंगे। आपको संभालने की कोई ज़रूरत नहीं है।" और वह इतना कहकर वहाँ से चला गया। वहीं शौकत जी उसे जाते हुए देखने लगे। दूसरी तरफ़ रूम में... अवनी जन्नत को रोकते हुए बोली, "वो सब तो ठीक है, पर जल्दबाज़ी में हमने हमारा सामान लाना ही भूल गए हैं, तो अब हम फ़्रेश कैसे होंगे?" इस पर जन्नत ने थोड़ी सोचकर बोली, "भाभी, रुकिए। अगर आपको कोई प्रॉब्लम नहीं होगी तो, मैं अपने कुछ नए कपड़े आपके लिए लेकर आती हूँ। आपको जो पसंद आए, आप पहन लीजिए, बस आज रात की ही तो बात है। कल सुबह भाई जान आपको शॉपिंग करा देंगे।" अवनी भी उसकी बात मान गई। कुछ देर बाद जन्नत वापस आई और उसके हाथ में कुछ कपड़े थे। वह अवनी को कपड़े थमाते हुए बोली, "लीजिए भाभी, आप फ़्रेश हो जाइए। हम किसी से कहकर आपके लिए खाना भेजते हैं।" ये बोलकर वह वहाँ से चली गई और अवनी फ़्रेश होने चली गई। इब्राहिम जब कमरे में आया तो कमरे में कोई नहीं था। तभी उसे किसी का कॉल आया, तो वह बालकनी चला गया। इधर अवनी भी वॉशरूम से फ़्रेश होकर बाहर आई और आईने के सामने जाकर अपने बालों को ठीक करने लगी। कॉल अटेंड करके इब्राहिम जब कमरे में वापस आया तो सामने अवनी को अपने बालों में उलझी हुई दिखाई दी। वह बहुत देर तक अवनी को ही देखता रहा। वहीं जब अवनी को अपने ऊपर किसी की नज़र महसूस हुई, तो उसने एकदम से पीछे घुमाया, तो अपने सामने इब्राहिम को खड़ा पाया जो उसे ही देख रहा था। एक पल के लिए इब्राहिम को खुद को घूरते देख अवनी डर गई। क्यों डर गई अवनी? क्या करेगा इब्राहिम अवनी के साथ?
इब्राहिम एकटक अवनी को देख रहा था। अचानक उनकी नजरें मिलीं।
इब्राहिम अपने होश में आया और अवनी को ऊपर से नीचे तक देखा। अवनी ने नीले रंग की टॉप और सफ़ेद रंग की ट्राउज़र पहनी हुई थी। अवनी की टॉप पर टॉम एंड जेरी की तस्वीर थी। उसने अपने बाल खुले रखे थे। इब्राहिम को अवनी इस ड्रेस में बहुत प्यारी लगी।
एक पल के लिए इब्राहिम का मन किया कि वह अवनी को कसकर बाहों में भर ले और उसे प्यार करे, पर कुछ सोचकर उसने यह ख्याल निकाल दिया।
फिर उसने अवनी की ओर कदम बढ़ाए।
इब्राहिम को अपने पास आता देख अवनी को डर लगा, क्योंकि वह अपने और इब्राहिम के रिश्ते को लेकर अभी तैयार नहीं थी। उसके लिए यह सब बहुत नया और अचानक था।
इब्राहिम ने अवनी के चेहरे के बदलते भाव देखे और समझ गया कि अवनी के मन में क्या चल रहा है। वह उसे देखकर ही समझ पा रहा था कि अवनी उससे डर रही है।
इब्राहिम अवनी से ठीक दो कदम की दूरी पर रुका और धीरे से अवनी के बालों को छुआ।
इब्राहिम ने अवनी के बालों को उसके कानों के पीछे करते हुए अपनी कर्कश आवाज़ में कहा, "रात बहुत हो चुकी है बीबी, शादी के भागदौड़ में इतने दिनों से तुम ठीक से सोई नहीं होगी, थक चुकी होगी, और कल का दिन भी बहुत थकान भरा होगा, इसलिए जल्दी सो जाओ हम्म।"
अवनी, इब्राहिम के इतने करीब होने पर डर के मारे अपनी आँखें बंद कर चुकी थी। उसने इब्राहिम की बातें सुनीं और धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं। जैसे ही उसकी नज़र इब्राहिम की भूरी आँखों से मिली, उसके दिल की धड़कन तेज हो गई। इब्राहिम के इतने करीब होने पर वह साँस लेना भूल गई थी।
अवनी को खुद से डरता देख इब्राहिम को अच्छा लग रहा था। वह उसे थोड़ा और परेशान करना चाहता था, मगर कुछ सोचकर उसने अपना इरादा बदल दिया और बेड की ओर जाने लगा।
इब्राहिम को खुद से दूर जाता देख अवनी ने राहत की साँस ली। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कुछ पल पहले इब्राहिम उसके कितने करीब था। उसे अभी भी इब्राहिम का उसके पास होना महसूस हो रहा था।
फिर अचानक उसके दिमाग में कुछ आया और वह बहुत हिचकिचाते हुए बोली, "वो...वो...दरअसल हमारी शादी इतनी जल्दी में हुई कि मैं...कि मैंने अपना सामान लाना भूल गई थी। उन्हें अपने कमरे में छोड़ आई हूँ और...और मेरे पास कल पहनने के लिए कुछ..."
अवनी अपनी बातें पूरी कर पाती इससे पहले ही इब्राहिम ने सामान्य स्वर में कहा, "हाँ मुझे पता है, इसलिए हम कल सुबह शॉपिंग पर जा रहे हैं। तुम्हें जो जो सामान चाहिए, वो सब ले लेना।"
अवनी ने बस सिर हिलाया। उसने आगे कुछ नहीं कहा।
इब्राहिम बेसब्री से बोला, "बस इतना? और कुछ?" वह अवनी के चेहरे की ओर देखने लगा।
जवाब में अवनी ने सिर ना में हिलाया।
अवनी के कुछ न कहने पर इब्राहिम थोड़ा निराश होकर बोला, "अच्छा फिर ठीक है, अब इधर आओ और सो जाओ।"
जैसे ही अवनी ने सोने की बात सुनी और इब्राहिम को बेड पर सोने के लिए तैयार देखकर वह घबरा गई।
उसने बिना सोचे-समझे कहा, "क्या हमें बेड पर सोना होगा?" उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह यह सवाल इब्राहिम से नहीं, खुद से पूछ रही हो।
इब्राहिम ने जवाब दिया, "इंसान तो बेड पर ही सोते हैं, मुझे तो यही पता था।"
इब्राहिम के जवाब से अवनी को अपनी बेवकूफी पर शर्मिंदगी हुई।
फिर इब्राहिम को बेड पर देखकर अवनी ने मन ही मन खुद से सवाल किया, "क्या मुझे उनके साथ बेड में सोना पड़ेगा? पर कैसे? क्या मैं काउच पर नहीं सो सकती?"
अवनी को अपनी जगह ज्यों की त्यों खड़ा देख इब्राहिम समझ गया कि अवनी के मन में फिर से कोई नई परेशानी है।
वह अपना सिर बेडरेस्ट पर टिकाकर आँखें बंद कर दोनों हाथों को सिर के पीछे रखते हुए बोला, "बेकार की तुम सोचती बहुत हो बीबी, अब आकर सो भी जाओ। और अगर नींद नहीं आ रही है तो जाकर बाहर गार्ड के साथ खड़ा रहने का इरादा है क्या?"
इस पर अवनी ने सिर ना में हिलाया और धीमे कदमों से आगे बढ़कर बेड के एक कोने में लेट गई। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, मगर अंदर ही अंदर वह घबरा रही थी।
अवनी के बेड पर लेटते ही इब्राहिम ने कमरे की लाइट्स बंद कर दीं। लाइट्स बंद होते ही अवनी एकदम से इब्राहिम की ओर पलटते हुए चौंकती हुई आवाज़ में बोली, "लाइट्स क्यों बंद की आपने?"
उसे इस तरह घबराया देख इब्राहिम ने सामान्य आवाज़ में कहा, "मेरे ख्याल से इंसान रात को जब सोते हैं तो लाइट्स बंद करके ही सोते हैं।"
फिर कुछ सोचकर अवनी को डराने के लिए कहा, "और वैसे भी यहाँ बहुत सारे चूहे हैं जो अक्सर रात को निकलते हैं, और वो भी तब जब कमरे में लाइट्स ऑन हो।"
चूहों के बारे में सुनते ही अवनी और ज़्यादा घबरा गई और बेड पर उठकर बैठ गई।
वह खुद को बेड के पीछे ले जाते हुए डरी हुई आवाज़ में बोली, "चू...चू...चूहा, यहाँ..." बोलते हुए वह अपनी थूक निगलने लगी।
अवनी को इस तरह डरी हुई देख इब्राहिम को बहुत मज़ा आ रहा था। अगले पल उसने उसे शांत करने के लिए कहा, "डरो मत, डरो मत। मैं हूँ यहाँ, सो जाओ अब।"
फिर एक झटके से अवनी को अपने करीब खींचते हुए उससे बोला, "यहाँ मेरे पास सो जाओ, कुछ नहीं होगा।"
अवनी जो कि चूहे के नाम से बहुत डरी हुई थी, उसने ज़्यादा गौर नहीं किया कि वह इस वक्त इब्राहिम के कितनी करीब है। वह अपने डर में पूरी तरह खो गई थी। इब्राहिम उसके बालों पर प्यार से हाथ फेरने लगा और कुछ ही पल में अवनी नींद के आगोश में चली गई।
सुबह का वक्त...
सूरज की रोशनी से इब्राहिम की आँखें खुलीं और उसने सबसे पहले अवनी को देखा।
उसके सीने पर सिर रखे सुकून से सो रही अवनी पूरी तरह उससे लिपटी हुई थी। उसका एक हाथ इब्राहिम की छाती पर था, तो दूसरा उसके गाल पर।
सोती हुई अवनी इब्राहिम को बहुत प्यारी और मासूम लग रही थी। सोते वक्त अवनी के कुछ बाल उसके चेहरे के आगे आ गए थे, जो उसे अवनी का चेहरा देखने में मुश्किल कर रहे थे।
उसने अवनी के बालों को उसके कान के पीछे किया। तभी उसकी नज़र अवनी के होंठों पर पड़ी। उसने अपने आप को नियंत्रित किया और बस एक लम्हे के लिए अपने होंठ अवनी के मुलायम गुलाबी होंठों पर रखे और अगले ही पल खुद को अलग कर अवनी को खुद से दूर किया।
वह यह सब बहुत ही धीरे और ध्यान से कर रहा था। वह नहीं चाहता था कि अवनी की नींद खुले। अवनी को खुद से अलग करने के बाद कुछ पल वो अवनी को देखता रहा, फिर वहाँ से उठ गया।
कुछ देर बाद अवनी की नींद खुली और उसने खुद को कमरे में अकेला पाया।
अपने आसपास को देखकर वह थोड़ी परेशानी से खुद को डांटते हुए बोली, "हे राम! इतनी देर हो गई और हम अभी तक सो रहे थे?! मम्मी ने हमें उठाया भी नहीं? मुझे कॉलेज भी तो जाना है।"
वह अपने आप से कह ही रही थी कि तभी दिव्या जी कमरे में आते हुए बोलीं, "अरे बेटा, तुम उठ भी गईं।"
"हाँ...", अवनी ने हैरानी से कहा और उसे याद आया कि वह अपने घर में नहीं, अपनी ससुराल में है।
"हाँ वो माँ...", वह कहते-कहते रुक गई।
उसे रुका हुआ देख दिव्या जी बोलीं, "अवनी, तुम मुझे माँ कह सकती हो। मैं जन्नत और इब्राहिम की तरह तुम्हारी भी माँ हूँ।"
इस पर अवनी ने सिर हां में हिलाया।
दिव्या जी ने प्यार से कहा, "और हाँ, सबसे जरूरी बात, तुम ये कभी मत सोचना कि अब तुम्हारी शादी हो गई है तो तुम्हें हमारे हिसाब से चलना पड़ेगा, ऐसा बिल्कुल भी नहीं। तुम अपने मायके में जैसे रही हो, यहाँ भी वैसे ही रहना, बच्चा। तुम हमारी बहू नहीं, बेटी हो!"
फिर अवनी के माथे पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोलीं, "अब ज़्यादा मत सोचो और जल्दी नहाकर नीचे आ जाओ बेटा, हम किचन में तुम्हारा इंतज़ार करते हैं। वैसे भी आज पहली रसोई भी तो है।" यह बोलकर वह वहाँ से उठने लगीं।
तभी अवनी ने उन्हें टोका, "पर माँ, हमारे पास तो पहनने के लिए कुछ नहीं है और कल रात तो जन्नत ने अपने कपड़े दिए थे। अभी हम क्या पहनेंगे?" बोलते हुए उसने अपना सिर नीचे झुका लिया।
अवनी के उदास चेहरे को देख दिव्या जी हँसते हुए उसके सिर पर हल्का सा चांटा लगाते हुए बोलीं, "पागल लड़की, पहले वाशरूम में तो जा, कपड़े हमने पहले ही तैयार कर लिए हैं। अब जा भी।" और वह वहाँ से हँसते हुए चली गईं।
वहीं अवनी भी फ्रेश होने के लिए वाशरूम में चली गई।
तभी इब्राहिम कमरे में वापस आया। वह अपने फोन में किसी से बात कर रहा था। उसने फोन में अपनी कठोर आवाज़ में कहा, "सब ठीक है ना? जब तक मैं ना चाहूँ वो वहाँ से निकल ना चाहिए। पहले ये सब अच्छे से निपट जाए, फिर तो मैं खुद वहाँ आकर सब देख लूँगा।"
दूसरी तरफ से भी कुछ कहा गया। कुछ पल बात करने के बाद इब्राहिम ने कॉल काट दी और तब...
इब्राहिम किससे बात कर रहा था और किस बारे में?
इब्राहिम ने कॉल कट किया था कि तभी वॉशरूम का दरवाजा खुला और अवनी बाहर आई। वह सिर्फ बाथरॉब में थी। बाहर आकर उसने अपने आस-पास ध्यान नहीं दिया; उसे नहीं पता था कि कमरे में उसके अलावा भी कोई मौजूद है।
वह सीधा बेड के पास गई जहाँ उसके पहनने के लिए सारा सामान पहले से ही मौजूद था। कपड़े ले कर जैसे ही वह पलटी, अपने सामने इब्राहिम को देखकर वह एकदम घबरा गई।
वही इब्राहिम जो अभी तक सिर्फ पीछे से अवनी को बाथरॉब में देख रहा था, अब उसे अवनी का चमकता हुआ चेहरा, जिस पर ओस की बूंदों की तरह जगह-जगह पानी ठहरा हुआ था, उसके भीगे हुए बाल, जो खुले थे और जिनमें से अभी भी पानी की बूँदें टपक रही थीं, देख रहा था।
अवनी उसे किसी खिली हुई गुलाब की तरह लग रही थी; वह चाहकर भी उससे अपनी नज़रें हटाना नहीं चाहता था।
वहीं अवनी ने जैसे ही अपने सामने इब्राहिम को देखा, तो एकदम डर गई और घबराती हुई अपना बाथरोब नीचे की तरफ खींचने लगी। उसने उसे खींचकर अपने गोरे पैरों को ढकने की नाकाम कोशिश की।
वही इब्राहिम की नज़र अब अवनी के निचले होंठों पर पड़ी जहाँ अभी भी पानी की बूँद ठहरी हुई थी। उसे देखकर फिर से उसके मन में अवनी को किस करने का मन हुआ और उसने अवनी की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए।
इब्राहिम को ऐसे खुद को देखते देख अवनी को अब बहुत शर्म आने लगी। यह पहली दफा था जब कोई लड़का उसे ऐसे नहाने के तुरंत बाद, वह भी बाथरॉब में, देख रहा हो।
उसका मन कर रहा था कि वह यहाँ से कहीं भाग जाए, अपने आप को कहीं पर छिपा ले। पर बदकिस्मती से वह ऐसा नहीं कर पाई, बस सोचती रही।
इब्राहिम ने अवनी को अपने सामने असहज महसूस करते देख अपने कदम वहीं रोक लिए और मन ही मन खुद को समझाया, "नहीं अभी नहीं, गलती से भी कुछ भी गलती मत कर इब्राहिम जिससे तेरी सारी मेहनत पानी हो जाए।"
फिर खुद को नॉर्मल करते हुए अवनी से कहा, "बीबी तुम तैयार होकर नीचे जाओ, माँ तुम्हारी इंतज़ार कर रही है।"
"जी," जिसके जवाब में अवनी हैरान होते हुए बोली। वह अपनी आँखों में हैरानी लिए इब्राहिम को ही देखे जा रही थी।
अवनी के ऐसे देखने से इब्राहिम के अंदर कुछ होने लगा; उसे खुद पर काबू रखने में मुश्किल हो रहा था। उसने एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं और अगले ही पल अपनी आँखें खोलकर अवनी से अपनी कर्कश आवाज में बोला, "बीबी ऐसे देखो मत, मेरा खुद पर काबू कर पाना मुश्किल हो रहा है।"
अवनी नादानी से उसे देख रही थी। फिर जैसे ही उसे इब्राहिम के बातों का मतलब समझ में आया, वह जल्दी से वहाँ से क्लोसेट की तरफ भाग गई। उसे इस तरह भागता हुआ देख इब्राहिम ने हल्का मुस्कुरा दिया और खुद भी फ्रेश होने के लिए वॉशरूम में चला गया।
अवनी तैयार होकर नीचे आ गई थी। अवनी ने इस वक्त एक लाल कलर की साड़ी पहनी थी जिसका ब्लाउज़ डार्क ग्रीन कलर का था, और अपने बालों को उसने खुला ही छोड़ दिया था।
उसे साड़ी में देखकर दिव्या जी, जो पहले से ही किचन में काम कर रही थीं, वह खुश होते हुए बोलीं, "अरे वाह अवनी! तूने तो बहुत अच्छे से साड़ी पहनी है, वाओ!"
इस पर अवनी ने उन्हें छोटी सी मुस्कान देते हुए धीमे से बोली, "बस यूट्यूब देखकर थोड़ी बहुत कोशिश करी है।"
"कोई नहीं, धीरे-धीरे सीख जाएगी।" दिव्या जी उसे हौसला देते हुए बोलीं।
फिर आगे बोलीं, "वैसे तो तेरी इब्बू के बाबा ने आज तुम दोनों की निकाह रखी है, पर फिर भी आज तेरी शादी का पहला दिन है और पहली रसोई भी तो। क्या बनाने का सोचा है? तू बना पाएगी ना? अगर तुझे नहीं आता तो मुझे बता दे, कोई बड़ी बात नहीं है।" उन्होंने उससे प्यार से पूछा।
जिसके जवाब में अवनी बोली, "नहीं माँ, मुझे थोड़े बहुत खाने बनाना आता है, आप चिंता मत कीजिए, मैं बना लूँगी।"
"अच्छा, फिर ठीक है। तू बस एक काम कर, ज़्यादा कुछ नहीं, बस एक मीठा बना दे और कुछ नहीं।" दिव्या जी कुछ सोचकर बोलीं।
अवनी, दिव्या जी के साथ हँसते-मुस्कुराते हुए खाना बना रही थी। उसे उनकी संगत बहुत अच्छी लग रही थी; उसे असहज महसूस ही नहीं हो रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे सब कुछ अपना ही है।
वे दोनों बात करते हुए डाइनिंग टेबल पर खाना लगा रहे थे कि तभी उन्हें एक शिकायत भरी आवाज आई...
"हा हा! अब तो आपकी बस एक ही बच्ची है, हमें तो पहले सिर्फ लगता था कि हम पराई हैं और अब तो हमें यकीन हो गया है कि आप हमें बिलकुल भी प्यार नहीं करतीं। तब आप सिर्फ भाईजान को प्यार करती थीं और अब भाभी को, मेरी तो इस घर में कोई जगह ही नहीं है।" जन्नत नाराज़ होने की एक्टिंग करते हुए बोली।
तभी इब्राहिम भी वहाँ पर आ गया और उसके माथे पर चपेट मारते हुए बोला, "तुझे नहीं पता, चल मैं ही तुझे बता देता हूँ, वो अब्बू ने तुझे ना कूड़ेदान से उठाकर लाया है। इसीलिए ही तो अम्मी मुझसे प्यार करती है, तुझसे नहीं।"
इब्राहिम की बातें सुनकर जन्नत गुस्से से चिल्लाती हुई बोली, "अब्बू! अब्बू! देखो ना भाई जान क्या कह रहे हैं, अब्बू! अब्बू!"
शौकत जी नीचे उतरते हुए जन्नत को हल्की डाँटते हुए बोले, "क्या हुआ है? इतना शोर क्यों कर रही है आप? ये घर है या चिड़ियाघर?"
इस पर जन्नत जल्दी से उनके पास जाकर उनके गले से लग गई और रोते हुए बोली, "...हिटलर... मतलब अब्बू! अब्बू!"
शौकत जी ना समझते हुए बोले, "क्या हुआ है मेरी शहजादी को? किसने रुलाया है मेरी बच्ची को?"
"अम्मी के लाडले ने।" जन्नत ने एकदम से बोला।
"इब्राहिम ने?" शौकत जी ने पूछा और इब्राहिम की ओर देखा।
फिर अपनी बेटी को शांत करते हुए बोले, "रोइए मत आप। और शांत होकर हमें बताइए क्या बात हुई है?"
"अब्बू, भैया बोल रहे थे कि आपने हमें किसी कूड़ेदान से उठाकर लाया है, अम्मी मेरी माँ नहीं है इसलिए वो मुझसे प्यार नहीं करती है, बस उनसे करती है।" बोलती हुई उसने अपना मुँह पाउट कर लिया।
वही शौकत जी उसकी आँखों से आँसू साफ करते हुए प्यार से बोले, "आपके प्यारे भाईजान आपको छेड़ रहे थे और अपने आपको उनका फ़ायदा उठाने दिया। उधर देखिए।"
जन्नत इब्राहिम की तरफ देखी तो इब्राहिम उसे देखकर बस हँस रहा था।
फिर शौकत जी ने आगे कहा, "नए कपड़े चाहिए हैं ना?"
इस पर जन्नत ने जल्दी से अपना सिर हिला दिया।
"अब बस करें आपकी नौटंकी। और ज़रूरत नहीं है, हम बेवकूफ़ नहीं हैं, आपके अब्बू हैं जन्नत।" शौकत जी बोले।
"ऐसा कुछ नहीं है।" जन्नत उनसे अलग होते हुए बोली।
तो सब उस पर हँसने लगे, अवनी भी खुद को हँसने से रोक नहीं पाई।
फिर अवनी ने सभी को खाना परोसा और सबके खाने का इंतज़ार किया। लेकिन जब इब्राहिम ने उसे खड़ा हुआ देखा तो अपने गहरे आवाज में बोला, "तुम खड़ी क्यों हो? भूख नहीं लगी?"
अवनी उसके जवाब में कुछ बोलने को हुई कि इब्राहिम ने उसे टोकते हुए कहा, "चुपचाप बैठो और खाना खाओ।"
और सभी ने खाना शुरू कर दिया।
खाना खाने के बाद शौकत जी ने अवनी को शगुन के तौर पर एक लिफ़ाफ़ा दिया और उसे थमाते हुए बोला, "हमें पता है आपके पति के पास बहुत पैसे हैं, पर ये आपको लेना पड़ेगा, ये आपकी पहली रसोई की नेक है।"
अनजाने में ही अवनी ने इब्राहिम की तरफ देखा तो इब्राहिम ने उसे हाँ में इशारा किया, तो अवनी ने शौकत जी से वो लिफ़ाफ़ा ले लिया। दिव्या जी ने भी उसे कुछ गहनों का बॉक्स गिफ्ट के तौर पर दिया।
सभी ने अवनी को गिफ्ट दिया और उसके खाने की तारीफ़ भी की, लेकिन इब्राहिम ने कुछ नहीं कहा। वह अपना खाना खत्म कर वहाँ से उठने लगा तो जन्नत उसे रोकते हुए बोली, "भाईजान! आप भाभी को कुछ नहीं देंगे? यहाँ बैठकर तो आधे से ज़्यादा खीर अपने ही गटक ली। तारीफ़ छोड़िए, भाभी को उनका गिफ्ट भी नहीं दिया?" बोलते हुए वह अपना खाना खा रही थी।
इब्राहिम जन्नत को घूरते हुए बोला, "मेरे ख्याल से अगले हफ्ते से आपकी एग्ज़ाम है, उस बात का ध्यान है आपको?"
एग्ज़ाम की बात सुनते ही जन्नत ने अपना मुँह बंद कर लिया और चुपचाप अपना खाना खाने लगी, ऐसा बर्ताव करने लगी जैसे उसने कुछ सुना ही नहीं, जैसे वह तो वहाँ है ही नहीं।
उसे ऐसे देखकर इब्राहिम ने बस एक टेढ़ा स्माइल किया, और फिर ऊपर जाते हुए अपने गहरे आवाज में कहा, "जल्दी तैयार हो लेना जिन जिन को शॉपिंग में जाना है।" और वह वहाँ से चला गया।
वहीं अवनी अपना मुँह उतारे बस खाने की प्लेट को ही निहार रही थी। उसे ऐसा उतरा हुआ मुँह बनाते हुए देखकर जन्नत उसे चीयर अप करते हुए बोली, "अरे भाभी! आप अपना मूड मत ख़राब कीजिए, भाई तो ऐसे ही है, बहुत कंजूस है, किसी की तारीफ़ नहीं होती उनसे।"
जन्नत की बात पर अवनी के चेहरे पर छोटी सी मुस्कान आ गई।
अवनी जब कमरे में गई, तब इब्राहिम किसी से बात कर रहा था। उसने एक नज़र इब्राहिम पर डाली; वह पहले से ही बाहर जाने के लिए तैयार था। इब्राहिम ने एक नीले रंग की थ्री-पीस पहनी हुई थी। उसे एक नज़र देखकर अवनी सीधा वॉशरूम में चली गई और कुछ ही पल में वापस आ गई। जब वह वापस आई, तब तक इब्राहिम की बात हो चुकी थी। और अब जाकर इब्राहिम की नज़रें अवनी पर पड़ीं, तो वह बस उसे देखता ही रह गया। सुबह के बाद अब जाकर वह अवनी को अपने इतने पास से देख रहा था। ब्रेकफास्ट के समय भी उसने उसे देखा था, मगर उसकी खूबसूरती पर वह तब भी खो चुका था और अब भी वही हुआ। अवनी उसे हर वक्त खूबसूरत लगती है। चाहे वह तैयार हुई हो या ना हुई हो, अवनी उसे हर वक्त दुनिया की सबसे सुंदर लड़की लगती है। वह अवनी को बहुत अच्छे से देख रहा था, तभी उसकी आँखों में कुछ अटका, और उसके चेहरे के भाव अचानक से बदल गए। उसने एकदम से अवनी को अपने पास आने का इशारा किया। तो अवनी हिचकिचाते हुए उसके पास गई। अवनी इब्राहिम से कुछ कदम की दूरी पर उसके सामने आकर रुकी और अपनी नज़रें इधर-उधर करने लगी। उसे ऐसा करता हुआ इब्राहिम ने देखा, पर कुछ कहा नहीं। उसने सामान्य रूप से उससे सवाल किया, "बीबी, तैयार हो गई हो?" जिस पर अवनी ने बस अपना सिर हाँ में हिला दिया। उसने इब्राहिम की तरफ देखने की कोशिश भी नहीं की। अवनी उसके सवाल का जवाब देकर वहाँ से जाने ही वाली थी कि इब्राहिम ने अचानक से अपने सवाल से उसे रोक लिया। इब्राहिम ने उससे अपनी गहरे आवाज़ में पूछा, "बीबी, क्या तुमने इस शादी को दिल से नहीं माना है?" उसके सवाल को सुन अवनी अपनी जगह पर रुक गई और हैरानी भरी नज़रों से इब्राहिम को देखने लगी। उसे समझ में नहीं आया कि अचानक से इब्राहिम ने उससे यह सवाल क्यों किया? अवनी उसके सवाल को ना समझते हुए उससे उल्टा सवाल किया, "मतलब?" इस पर इब्राहिम ने बिना बात को घुमाए सीधा-सीधा उससे बोला, "मुझे घुमा-फिरा कर बातें करना पसंद नहीं, इसलिए तुमसे सीधा-सीधा पूछ रहा हूँ। क्या तुम इस शादी को दिल से अपनाई हो या फिर यह सब परिवारवालों के लिए एक दिखावा है?" "क्या? दिखावा? आप कहना क्या चाहते हैं? मैं समझी नहीं?" अवनी नासमझी से बोली। "सिंदूर तुम्हारे धर्म में शादीशुदा औरतें पहनती हैं, है ना बीबी?" इब्राहिम ने एकदम से पूछा। फिर आगे कहा, "पर शायद तुमने मुझे अपने पति के तौर पर नहीं माना, इसलिए अपनी मांग को खाली छोड़ दिया, है ना बीबी?" उसके बातों को सुनते ही अवनी ने एकदम से अपनी मांग को छुआ और देखा; सच में उसकी मांग खाली थी। उसे अब जाकर इब्राहिम की बातें समझ में आईं। वो इब्राहिम को समझाते हुए बोली, "नहीं, ऐसी बात नहीं है। आप गलत सोच रहे हैं।" इस पर इब्राहिम ने बड़े ही शांति से कहा, "फिर सच क्या है बीबी? तुम ही बता दो।" तो अवनी थोड़ी हिचकिचाती हुई बोली, "वो, नहाते वक्त धुल गया था, और मेरे पास सिंदूर नहीं है। इसलिए मैं नहीं पहन पाई।" बोलते हुए वह अपनी साड़ी के आँचल से खेल रही थी। इब्राहिम को जब असली बात पता चली, तो उसे बुरा लगा कि उसने अवनी को गलत समझा, पर उसने अवनी से कुछ कहा नहीं। बस अपना सिर समझते हुए हाँ में हिला दिया और अवनी को आगे बढ़ने के लिए इशारा किया। वह खुद भी आगे बढ़ने लगा, मगर पीछे से अवनी की आवाज़ ने उसे अपनी जगह रोक लिया। "किसी को गलत ठहराना बहुत आसान होता है, मगर अपनी गलती मानना नहीं।" इतना बोलकर वह चुप हो गई। वहीँ इब्राहिम ने उसे एक नज़र देखा और फिर आगे निकल गया। कुछ पल में ही इब्राहिम अपनी कार में बैठ गया था। वह ड्राइविंग सीट पर बैठा था; उसे ज्यादातर खुद ड्राइविंग करना पसंद है। इससे भी ज़्यादा वह अवनी के साथ अकेले में वक्त बिताना चाहता था। कार में बैठे इब्राहिम ने जब बाहर देखा, तो उसे अवनी अपनी तरफ आती हुई दिखी। अवनी जो अभी भी सुबह की लाल साड़ी में ही थी; धूप में सूरज की किरणों में लाल रंग और ज़्यादा चमक रहा था। साथ ही हल्की हवा उसके पल्लू को बार-बार परेशान कर रही थी, जिससे अवनी की कमर लुका-छिपी खेल रही थी इब्राहिम के साथ। अवनी की खूबसूरती में पूरी तरह से खोया हुआ इब्राहिम बोला, "कौन कहता है किसी को मारने के लिए ज़हर की ज़रूरत होती है? क्या किसी ने उन्हें तुम्हारे बारे में ज़हर नहीं दिया बीबी? तुम्हारी खूबसूरती भी क्या किसी जानलेवा ज़हर से कम है? बिना कुछ किए ही बीबी, तुम बस अपनी निगाहों से ही हमारा कत्ल कर देती हो।" कार के पास पहुँच कर अवनी बैक सीट का दरवाज़ा खोलने लगी। और इब्राहिम ने जब यह देखा, तो वह अपने रूखे आवाज़ में बोला, "बीबी, ड्राइवर नहीं हूँ मैं तुम्हारा।" तो अवनी ने अपना बैग पीछे की सीट पर पटकते हुए कार का दरवाज़ा बंद किया और अगले ही पल इब्राहिम के पास वाली सीट पर जाकर बैठ गई। अवनी के आते ही इब्राहिम ने बिना कुछ बोले कार स्टार्ट कर दी। अवनी ने एक नज़र उसे घूरते हुए धीरे से बड़बड़ाया, "सारू इंसान!" कुछ देर बाद उनकी गाड़ी एक बड़े शॉपिंग मॉल के सामने आकर रुकी। इब्राहिम ने एक जेंटलमैन की तरह पहले उतर कर अवनी के लिए दरवाज़ा खोला, और फिर वे दोनों ही मॉल के अंदर चले गए। इब्राहिम उसे अपना कार्ड थमाते हुए बोला, "तुम्हें जो चाहिए, जो भी पसंद हो, वह सब ले लेना बीबी, जिसमें भी तुम कम्फ़र्टेबल हो, वह ले लेना।" अवनी अपनी गर्दन हाँ में हिलाते हुए उससे बोली, "थैंक्यू, पर मुझे कुछ नहीं खरीदना।" "व्हाट?" इब्राहिम ने चौंकते हुए कहा। फिर उसने आगे कहा, "ओह! कहीं तुम अपनी पति के पैसे बचाना तो नहीं चाहती?" इस पर अवनी ने उससे बोला, "आपको खयाली पुलाव अगर इतना ही पसंद है तो फिर आज पहली रसोई में खुद क्यों नहीं बनाएँ?" इब्राहिम उसके जवाब से थोड़ा सा भी हैरान नहीं हुआ; उल्टा उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। वहीं अवनी उसे एक नज़र घूर कर बोली, "मेरी आपसे शादी घरवालों की मंज़ूरी से हुई है, ना तो मैं आपसे भाग कर आई थी और ना ही आपने मुझे जबरदस्ती मंडप से उठाकर लाया था, इसलिए मेरे घरवाले मुझे मेरा सामान देंगे।" "खयाल बुरा नहीं है, हमें तुम्हें किडनैप करके शादी करनी चाहिए थी, क्या कहती हो?" इब्राहिम उससे परेशान करते हुए बोला। अवनी ने अपना सिर हिला दिया और खुद से बड़बड़ाते हुए बोली, "अजीब पागल इंसान है।" फिर इब्राहिम की तरफ मुड़कर बोली, "आपको पता है आपके साथ ना एक पल भी बिताना बहुत मुश्किल है। आप रहिए यहाँ अकेले खड़े, मैं तो चली।" बोलकर वह वहाँ से चली गई। वहीं इब्राहिम उसके पीछे जाते हुए हँसते हुए बोला, "अरे धीरे चलो बीबी, मेरे साथ ही अब तुम्हें अपनी पूरी ज़िंदगी बितानी है। भागो मत, गिर जायेगी तो फिर गोद में लेकर घूमना पड़ेगा मुझे।" वहीं अवनी ने मुड़कर अपनी गुस्से भरी नज़रों से उसे एक पल देखा, तो अगले ही पल इब्राहिम एकदम से चुप हो गया। कुछ पल बाद उनकी शॉपिंग हो गई थी, या यह कहा जाए इब्राहिम ने अवनी के लिए सारी शॉपिंग कर ली थी, क्योंकि अवनी ने सच में ज़्यादा कुछ नहीं खरीदा था। वह बस अपनी ज़रूरत का ही कुछ सामान खरीदी थी, इससे ज़्यादा नहीं। मगर इब्राहिम था इब्राहिम; एक बार जो ठान लिया, तो ठान ही लिया। इसलिए उसने अकेले ही अवनी के लिए शॉपिंग की, और वह भी अवनी को बिना पता लगे। वे दोनों अभी पार्किंग में थे। किसी वजह से अवनी पीछे पलटी, और तभी इब्राहिम की नज़र अवनी की पीठ पर गई और एकदम से उसके पीठ के बाएँ साइड की तिल पर ठहर गई। अवनी का ब्लाउज़ बैकलेस था, जिससे इब्राहिम को अवनी की गोरी पीठ बहुत अच्छे से दिखाई दे रही थी। और उसमें से अवनी की पीठ का वह तिल, जो अवनी के चलने की वजह से कभी आँचल के पीछे छुप जाता, तो कभी इब्राहिम की नज़रों के सामने आ जाता, उसकी वह इब्राहिम को अपनी तरफ़ और खींच रहा था। "बीबी, अपने पति के साथ ऐसे छुप्पन-छुपाई खेलना सही नहीं है।" इब्राहिम उसकी तिल को देखते हुए मन में बड़बड़ाया। फिर आगे बोला, "बीबी, तुम्हें पता भी नहीं है, तुम मेरे साथ क्या-क्या कर रही हो, मुझे पागल कर रही हो तुम।" "चलें?" अवनी की आवाज़ सुनकर इब्राहिम अपने होश में आया। उसने कुछ कहा नहीं, बस अपना सिर हिलाकर उसे आगे जाने के लिए इशारा किया और फिर वह खुद उसके पीछे जाने लगा। सीट बेल्ट लगाते हुए अवनी की नज़र पीछे बैक सीट पर गई, और वहाँ का नज़ारा देखकर वह हैरान हो जाती है। वह हैरानी से इब्राहिम से पूछी, "ये-ये सब क्या है?" "शॉपिंग।" इब्राहिम ने बड़े ही सिंपली जवाब दिया। "ओह! मुझे तो दिखाई नहीं दिया। भगवान ने आँखें दी हैं, पर फिर भी अंधी हूँ।" अवनी ने उल्टा कहा। "बिल्कुल सही बीबी! तभी तो तुम्हें मैं नज़र नहीं आता।" इब्राहिम ने धीरे से बड़बड़ाया। जिस पर अवनी बोली, "कुछ कहा आपने?" "कुछ सुना आपने?" वह उसकी तरफ देखते हुए बोला। पर अवनी ने उसे कुछ रिप्लाई नहीं दिया, वहीं इब्राहिम ने कार स्टार्ट कर दी। मिरर में बैक सीट पर रखे सामानों को देखते हुए अवनी अपने मन में सोची, "क्या यह इंसान पागल है? इतना सारा शॉपिंग? इतना सारा कौन खरीदता है यार, वह भी एक ही दिन में? ऐसा लग रहा है जैसे शॉपिंग नहीं किया है, पूरा शॉपिंग मॉल ही अपने साथ उठाकर ले जा रहे हैं। चोर बाजार में से भी कोई इतना शॉपिंग नहीं करता। जो भी हो, तुझे क्या अवनी, इनके पैसे इनकी मर्जी, खुद खर्च करें या ना करें, इनकी बात।" "बिल्कुल सही बीबी, मेरा पैसा, मेरी बीबी और मेरी मर्जी।" इब्राहिम ड्राइव करते हुए बिना अवनी की तरफ देखे ही बोला। अवनी ने एक पल हैरानी से इब्राहिम को देखा, पर कुछ कहा नहीं। लेकिन तभी उनकी कार अचानक से किसी से टकरा गई, और... इब्राहिम और अवनी की कहानी किस तरफ मुड़ेगी? क्या उनके बीच कुछ ठीक होगा कभी? या फिर कुछ ठीक होने से पहले ही सब कुछ तबाह हो जाएगा?
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इब्राहिम का घर आज बहुत सुंदर से सजाया गया था, बिल्कुल किसी नई दुल्हन की तरह, हर तरफ रौशनाई ही रौशनाई। सभी मेहमान भी आ गए थे, मेहमान के नाम पर सिर्फ फैमिली के लोग ही थे।
कुछ ही पल में इब्राहिम ओर अवनी की निकाह होने वाली थी, ओर निकाह के लिए काजी साहब भी आ चुके थे।
ये देख कर कि काजी साहब भी आ गए है शौकत जी ने दिव्या जी से कहा, " अव्या काजी साहब आ चुके है अपने बेटे ओर बहु को बुला लो, निकाह का वक्त हो चुका है। "
वहीं दिव्या जी भी उनकी बात को मानते हुए अपनी बेटी जन्नत को आवाज लगाई, " जन्नत जा, जाकर अवनी को देखो वो तैयार हुई कि नहीं, भाभी को अपने साथ लेकर लाओ जल्दी। ध्यान से आना। "
ओर जन्नत अवनी को लेने के लिए चली गई।
शौकत जी ने अपनी पत्नी दिव्या जी से पूछा, " इब्राहिम कहां है अव्या ? आज उनका निकाह है उन्हें पता है ना ? फिर वो यहां क्यों मौजूद नहीं है ? कम से कम आज तो घर पर रह लेते, हमारे लिए ना सही अपनी बीबी अवनी के लिए ही सही। पर नहीं काजी साहेब भी आ गए है, पर आपके बेटा का कोई खबर नहीं, अब वक़्त भी निकल रहा है जल्दी बुलाएँ अपने बेटे को। "
इसपर दिव्या जी उन्हें चिढ़ते हुए बोली, " जी आप ज़रा चुप रहियेंगे ? बस हर वक्त मेरे बेटे के पीछे पड़े रहना है आपको। सही कहती है जान आप हिटलर ही है। जाइए काजी साहब के पास जाएं हमें परेशान करना बंद करे, पहले से ही बहुत काम है। "
ओर वो वहां से चली गई।
वहीं शौकत जी जो हर किसी पर कही भी कभी भी बरस पड़ते है, सब उनके आगे चुप रहा करते है, वो अपनी बीबी दिव्या के आगे बेबस ओर लाचार हो जाता था, हर वक्त।
उनकी एक बस नहीं चलता है दिव्या जी के आगे, आखिर चलेगा भी कैसे अपने वक्त में दिव्या जी के लिए वो पागल थे ओर आज भी उतना ही पागल है।
वेल हम ये जरूर कह सकते है इब्राहिम शादी ओर प्यार के मामले में अपने बाप शौकत जी जैसा है।ओर। कुछ ही पल में इब्राहिम वहां आ गया, वो किसी से फोन पर बात कर रहा था।
वहीं निकाह लीविंग रूम में होने वाले थे, इब्राहिम जाकर सीधा अपनी जगह पर बैठ गया। ओर अगले ही पल अवनी जन्नत के साथ नीचे से उतार रही थी।
जैसे ही इब्राहिम की नजर अवनी पर परी तो वो बस एकटक अवनी को ही देखने लगा।
अवनी ने एक barely पिंक कलर की घरारा पहनी थी, जिसकी दुप्पटा पिसता ग्रीन कलर का था। खुले बाल, हल्के चेरी रेड शेड के लिपस्टिक। ओर इब्राहिम ने भी उससे मैच किया हुआ बीज कलर का ट्रेडीशनल आउटफिट पहना हुआ था।
अवनी सच में इतनी खूबसूरत लग रही थी, कि इब्राहिम अपना सांस लेना भूल गया था। अवनी की खूबसूरती में वो इतना खो गया था कि, उसे अपने आस पास का भी ख्याल ना रहा। इब्राहिम अवनी की खूबसूरती को अपने आखों में बस लेना चाह रहा था।
वही अवनी हल्की अपनी सर झुकाए सामने से चली आ रही थी, उसे देखते हुए वो कहा, " माशाल्लाह! जन्नत से उतरी हुई परी! इतनी खूबसूरत कोई कैसे हो सकती है ? "
तुमने खाना खाया ? इब्राहिम के कहने पार अवनी ने ना में अपना सर हिला देती है तो इब्राहिम उसे ले कर खाना खाने चलें जाते है ।। जन्नत अवनी को उसके कमरे के पास ले जाते हुए,....... चलिए भाभी आपकी सोहर आपकी इंतेजार कर रहे है ! " सोहर कौन ? अवनी कि ये बात पूछने पार जन्नत हँसने लगती है और कहती है सोहर यानि कि आपकी पति ! जाइये अब ........।। और वो कहते हुए अवनी को कमरे के अंदर ढकाल कर दरवाजा बंद कर देती है।। अचानक अंदर धकेल देने पार वो गिर जाने वाली थी पर किसी का मजबूत हाथों ने उसे संभाल लिया था ।। अवनी अपने आपको गिरते हुए पा कर जैसे हि शहर मिला वो भी उन मजबूत बाहों मे अपने आप को छोड़ देती है और उन मजबूत बाहों के कंधे पर अपना हाथों से कास कर पकड़ लेती है ।।
कौन था इब्राहिम के कमरे में अवनी के संग ? आगे क्या होगा जानने के लिए पढ़ते रहिये।
धन्यवाद, प्रणाम ♥️🙏🏻