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Bound by contract

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She had everything — power, money, name… except love ❤️‍🩹 . He had nothing — no wealth, no luxury… just honesty and a small house. When billionaire businesswoman Mouli Kapoor offers middle-class employee Akshat Vyas one crore r...

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अक्षत व्यास

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मौली कपूर

Heroine

Total Chapters (23)

Page 1 of 2

  • 1. Bound by contract- chapter 1

    Words: 1121

    Estimated Reading Time: 7 min

    सुबह के छह बजे ही शहर जाग चुका था, लेकिन आज अलार्म या घड़ियों ने नही बल्कि न्यूज़ चैनलों की चीखती हेडलाइनों ने लोगों को जगाया था।

    हर टीवी स्क्रीन पर एक ही न्यूज चमक रही थी— “ब्रेकिंग न्यूज़: कपूर एंटरप्राइजेज की सी.ई.ओ. मौली कपूर के विवादित तस्वीरें हुई वायरल!”

    “हम आपको दिखाते हैं वो तस्वीरें जिन्होंने पूरे कॉर्पोरेट वर्ल्ड में भूचाल ला दिया है। ये देखिए—पहली तस्वीर—मौली कपूर को गोद में उठाए हुए अक्षत व्यास, जो कपूर एंटरप्राइजेज में ही काम करता है, होटल ग्रैंड सैवॉय के अंदर जाते हुए दिखाई दे रहे हैं।”

    स्क्रीन पर तस्वीर उभरती है— अक्षत के कंधे पर मौली का हाथ गिरा हुआ… अक्षत उसे संभाले हुए था।

    दूसरी तस्वीर सामने आती है— होटल के कमरे का अंदरूनी क्लिप। अक्षत, मौली पर झुका हुआ…

    “और ये दूसरी तस्वीर… जो सवालों को और गहरा कर रही है। आखिर सी.ई.ओ. मौली कपूर और उनके ही ऑफिस के कर्मचारी अक्षत व्यास के बीच ऐसा क्या रिश्ता है?” एंकर बोलता है।

    स्क्रीन पर एक-एक कर दर्जनों तस्वीरें फ्लैश होती हैं— मौली का आधा बंद पड़ा हुआ चेहरा, अक्षत का उसे पकड़ना, कमरे का दृश्य… और हर तस्वीर को मीडिया अपनी मर्जी की हेडलाइन दे रहा था।

    “लव अफेयर या पावर गेम?”
    “क्या प्रमोशन के बदले समझौता?”
    “सी.ई.ओ. की शर्मनाक हरकतें!”

    सोशल मीडिया तो मानो फट पड़ा था हर सोशल मिडिया मे बस यही न्यूज चल रही थी ।

    ***********

    शाम का समय था।

    अक्षत का छोटा-सा लिविंग रूम आज अलग ही माहौल में था—

    वो, उसकी मंगेतर रिया, और होने वाले सास-ससुर, सब एक साथ बैठकर उसी वायरल स्कैंडल पर बात कर रहे थे।

    “रिया, वो तस्वीरें गलत एंगल से ली थीं… मौली मैम होश में नहीं थीं, मैं बस—” अक्षत रिया को समझाने की कोशिश कर रहा था।

    तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। अक्षत ने जा कर दरवाज़ा खोला—
    और दरवाज़े पर जो खड़ी थी, उसे देखकर उसका चेहरा जम गया।

    मौली कपूर एकदम सीधे, confident और अपने जाने पहचाने ऑरा के साथ खड़ी थी ।

    “मैम…? आप यहाँ?” अक्षत हैरान था उसे यहा देखकर।

    मौली ने बिना पलक झपकाए उसे घूरा और बेहद ठंडी आवाज़ में बोली—

    “मिस्टर अक्षत, मुझे नहीं लगता कि आप और नए स्कैंडल झेलना चाहते हैं। अगर नहीं… तो मुझे अंदर आने दीजिए।” मौली ने अपना ब्लैक गॉगल निकाल कर अक्षत को घूर कर ठण्डी आवाज मे बोला।

    "मैम प्लीज " वह मौली को अन्दर आने की जगह देता है ।

    मौली अंदर आई और उसकी नज़र सीधी जाकर रिया और उसके माता-पिता पर पड़ी। एक सेकंड के लिए पूरी तरह साइलेंस छा गया— और फिर मौली ने हल्के व्यंग्य से कहा—

    “ओह… पूरा परिवार मौजूद है। अच्छा है।”

    “मैम, आप—” अक्षत कुछ पुछने की कोशिश की । पर मौली ने हाथ उठाकर उसे चुप करा दिया।

    “मिस्टर अक्षत, तुम्हें पता है ना… न्यूज़ में हमारे बारे में कैसी-कैसी बातें दिखाई जा रही हैं?”

    “जी… मुझे पता है, मैम।” अक्षत ने जवाब दिया, उसकी आवाज मे थोडी झिझक थी।

    मौली एक कदम आगे बढ़ी। उसकी आँखें अब और भी ठंडी हो चुकी थीं।

    “तुम्हे तो शायद फर्क नहीं पड़ा होगा। लेकिन मेरा नाम… मेरी इज़्ज़त… मेरा बिज़नेस—सब दांव पर है। मैं बात को ज्यादा नहीं खींचूँगी। सीधे मुद्दे पर आती हूँ। तुम्हे… मुझसे शादी करनी होगी।” मौली अक्षत के सामने जाकर उसके आँखो मे देखते हुए बोली।

    मौली की बात सुनकर कमरे में सन्नाटा ऐसा पसर गया मानो हवा तक रुक गई हो। सभी उसकी बात सुनकर सॉक हो गए थे किसी को कुछ समझ ही नही आया कि कैसे रिएक्ट करे।

    “ये… ये आप कैसी बात कर रही हैं, मैम? मेरी सगाई हो चुकी है… और कुछ ही दिनों में मेरी शादी होने वाली है।” अक्षत की दुनिया जैसे रूक गई थी ।

    “पहले मेरी बात सुनो, मिस्टर अक्षत।” उसकी आवाज़ सख्त थी, कोई भावना नहीं।

    “हमारी शादी कॉन्ट्रैक्ट के तहत होगी और—” वह आगे कुछ कहती इससे पहले ही रिया अचानक अपनी कुर्सी से खड़ी हो गई।

    “मैं इसकी मंगेतर हूँ… और मुझे इस बात से ऐतराज़ है।” रिया अपनी काँपती आवाज मे बोल रही थी ।

    मौली ने रिया को ऊपर से नीचे तक देखा। चेहरे पर हल्की-सी ठंडक, जैसे उसे पहले से पता था यह विरोध आएगा।

    “मिस रिया राइट… ठीक है।” वह सिर हिलाती है। और वहाँ रखे सोफे पर बैठकर बोलती है

    “मैं यहाँ तुम्हारे पति को छीनने नहीं आई हूं। मैं एक डील करने आई हूँ। तो आप सब पहले मेरी बात पूरी सुनें। मुझे अपनी इमेज और बिजनेस बचानी है। जो… सिर्फ अक्षत से शादी करने से ही पॉसिबल है।”

    रिया ने मुँह खोलना चाहा, पर मौली ने हाथ के इशारे से रोक दिया।

    “और इसके बदले में… मैं आपको एक करोड़ रुपये दूँगी।” उसकी बात सुनकर सभी की आँखे बड़ी हो गई थी सिर्फ अक्षत ही था जो स्तब्ध खड़ा था।

    मौली आगे कहती है- “शादी सिर्फ एक साल की होगी , जो कि कॉन्ट्रैक्ट मैरिज होगी । ना कोई अधिकार, ना कोई दावा—सिर्फ नाम का रिश्ता। एक साल बाद डिवोर्स, और आप सब अपनी ज़िंदगी में वापस।”

    वह अभी अपनी बात पूरी करती उससे पहले अक्षत ने तेज़ी से कहा— “मैम, मैं आपकी स्थिति समझ सकता हूँ… लेकिन इससे निकलने के और भी तरीके हो सकते हैं। हमें बस शांति से बैठकर सोचने की जरूरत है।”

    उसकी बात सुनकर मौली की भौंहें तन गईं। वह गुस्से में आगे बढ़ी और बोली —

    “तुम्हें अंदाज़ा भी है, मिस्टर अक्षत व्यास … मुझे हर घंटे, हर मिनट, हर सेकंड कितना नुकसान हो रहा है?” उसकी आवाज़ इतनी तेज़ थी कि रिया सहम गई।

    मौली ने ठंडी सांस छोड़ी और फिर रिया की ओर देखते हुए कहा— “तो मिस रिया क्योंकी आप इनकी होने वाली पत्नि है तो आप बताओ ,आपको मेरी डील मंज़ूर है या नहीं?”

    रिया ने कुछ बोलना चाहा… पर आवाज़ नहीं निकली।

    “आपके पास सिर्फ आधा घंटा है। मेरी कार नीचे खड़ी है… अगर जवाब हाँ है— तो आप सब उसमें बैठ जाइएगा।” मौली अपने कलाई मे बंधी घड़ी को देखते हुए बोली और दरवाज़े की ओर बढ़ी, लेकिन वह अचानक से रुक गई।

    उसने आधा मुड़कर अक्षत और रिया दोनो को एक-एक करके बेहद सख़्त नज़रों से देखा और बोली

    उसकी आवाज़ इस बार धीमी थी, लेकिन ज़हर से भरी—

    “और हाँ… अगर तुम्हारा जवाब ‘ना’ है……than I make sure— कि मुझे जितना नुकसान हो रहा है… मैं तुम्हें उससे ज्यादा बर्बाद करू। तुम्हारी नौकरी ,तुम्हारा करियर सब खत्म दूँगी दर दर भटकने पर मजबूर कर दूँगी तुम्हे । अब… मैं नीचे इंतज़ार कर रही हूँ। सिर्फ आधा घंटा। जवाब ‘हाँ’ हो… तो नीचे आ जाइएगा।

    ‘ना’?

    तो समझ लीजिए… फिर खेल मेरे तरीके से होगा।”

    और बिना एक शब्द और कहे, मौली बाहर निकल गई।

    ***********

    To be continue

    आगे क्या होगा जानने के लिए बने रहे 🪷

    कहानी कैसी लगी बताइएगा जरूर😊

    And don't forget to like and comment........

  • 2. Bound bycontract- Chapter 2

    Words: 1398

    Estimated Reading Time: 9 min

    पिछले अध्याय में आपने देखा कि सुबह होते ही, मौली कपूर की अक्षत व्यास के साथ वायरल हुई तस्वीरों ने शहर में हंगामा मचा दिया। खबरें हर तरफ फैली हुई थीं, जिनमें मौली और अक्षत के बीच के रिश्ते पर सवाल उठाए जा रहे थे। शाम को, अक्षत, रिया, और उसके माता-पिता इस विवाद पर बात कर रहे थे, तभी मौली कपूर उनके घर पहुंची। मौली ने अक्षत से शादी करने की बात की, जिससे उसकी छवि और व्यवसाय को बचाया जा सके। उसने एक साल के कॉन्ट्रैक्ट मैरिज का प्रस्ताव रखा और इसके बदले में एक करोड़ रुपये देने की पेशकश की। रिया की आपत्ति के बावजूद, मौली ने उन्हें आधा घंटा दिया कि वे डील स्वीकार करें या न करें, और चेतावनी दी कि इनकार करने पर, अक्षत का करियर बर्बाद हो जाएगा।

    अब आगे

    --------

    मौली के बाहर जाते ही कमरे में भारी खामोशी उतर गई।

    अक्षत ने दोनों हाथ अपने बालों पर फेर लिए और यहाँ से वहाँ से कमरे में चक्कर काटने लगा—

    “अब… अब हम क्या करें?” उसकी आवाज़ मे बेबसी और परेशानी साफ झलक रही थी।

    “बेट… हमें लगता है, तुम्हें उसकी बात मान लेनी चाहिए।” रिया की माँ ने धीरे से कहाँ।

    उनकी बात सुनकर अक्षत अचानक से रुक गया, जैसे किसी ने उसे थप्पड़ मार दिया हो।

    “ये आप कैसी बातें कर रही हैं, आंटी?” अक्षत ने अविश्वास में पूछा।

    “हाँ माँ! आप ये क्या बोल रही हैं?” रिया भी बोल पड़ी ।

    रिया की माँ ने उसकी कलाई को हल्के से पकड़ा, और लगभग फुसफुसाती आवाज़ में उससे बोली—

    “रिया बेटा… ध्यान से सोचो… एक करोड़ रुपये मिलेंगे।”

    फिर उसकी आँखें रिया को इशारा करती हैं— वही इशारा जिसे माँ-बेटी समझ सकती थीं। रिया की आँखों में अचानक चमक उभर आती है। और अभी-अभी जिस लड़की ने मौली के सामने हिम्मत दिखाई थी— अब उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी… जैसे उसके भीतर कोई गणना चल रही हो।

    रिया के पिता भी वहीं से बोले— “हाँ बेटा… तुम्हे उससे शादी कर लेनी चाहिए। वरना पता नहीं वो औरत क्या करेगी हम सबके साथ।”

    अक्षत ने अविश्वास में उनकी तरफ देखा— क्या इन्हे इस बात से इन्कार नही करना चाहिए था ,वो उनकी बेटी का होने वाला पति है वो कैसे अपने ही बेटी के होने वाले पति को किसी और से शादी करने के लिए कह सकते थे।

    “अंकल… मैं कोई बिकने की चीज़ नहीं हूँ।”अक्षत ने सख्त आवाज मे कहा।

    “और ना ही शादी मेरे लिए कोई खेल है… जो आज किसी से कर लूँ… और कल किसी और से।” उसकी बात सुनकर रिया की माँ ने होंठ भींच लिए, और रिया ने आँखें घुमा लीं,

    लेकिन अक्षत अपनी जगह खड़ा रहा— कमरा फिर से खामोश हो गया कमरे में तनाव इतना था कि साँस लेना भी मुश्किल लग रहा था।

    रिया की माँ ने चुपचाप रिया को कुछ इशारा किया— रिया भी उनका इशारा तुरंत समझ गई और -धीरे से उठकर अक्षत के सामने गई, उसकी आवाज़ में अब पहले वाली मासूमियत नहीं थी… अब उसकी स्वार्थ की झलक आ रही थी।

    “अक्षत… तुम क्या चाहते हो?” उसकी आँखें सीधी उसकी आँखों में थीं।

    “कल को तुम और हम सब दर-दर की ठोकरें खाएँ?” अक्षत कुछ बोलने ही वाला था कि रिया ने आगे कहा— “तुम जानते हो ना… उसने हमें धमकी दी है। और वो औरत ये सब कर भी सकती है।”
    उसका स्वर अब तेज़ और दबाव से भरा हुआ था।

    “इसलिए दिमाग से काम लो, अक्षत… दिल से नहीं।” अक्षत ने उसकी तरफ देखा। जैसे वह पहली बार रिया को देख रहा हो।

    “तुम्हें सिर्फ एक साल उसके साथ रहना है।” रिया उसका हाथ अपने हाथ मे लेकर बोल रही थी। उसके यह शब्द अक्षत को किसी चाकू की तरह वार कर रहे थे।

    “एक साल के बाद तुम आज़ाद हो जाओगे… और बदले में हमें एक करोड़ रुपये मिलेंगे।” अक्षत पीछे हट गया, पर रिया रुकने वाली नहीं थी।

    अब उसकी आवाज़ धीमी और बेहद प्रैक्टिकल हो गई— “अक्षत सोचो… एक करोड़ कितनी बड़ी रकम है।”

    उसके माता-पिता अब पूरा सहयोग दे रहे थे— दोनों सिर हिला रहे थे जैसे वे पहले से ही यह फैसला कर चुके हों।

    “हमारी पूरी लाइफ बदल जाएगी…” रिया अपनी बात जारी रखते हुए बोली।

    “अक्षत, सोचो… कल को हम शादी करेंगे… हमारी फैमिली बढ़ेगी…”

    वह एक पल को रुककर अक्षत के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करती है-- “तो ये पैसे कितने काम आएँगे। हम अपने बच्चों को वो ज़िंदगी दे पाएँगे… जो हम कभी जी नहीं पाए।”

    अब कमरे में सिर्फ रिया की मीठी-सी आवाज़ गूँज रही थी— जो किसी सपने की तरह लग रही थी… अक्षत वहीं खड़ा था—बेहद उलझा हुआ, टूटा हुआ, अपने प्यार और एक सौदे के बीच फँसा हुआ।

    कमरा शांत था— पर अक्षत के अंदर, दर्द और गुस्से का तूफ़ान एक साथ उमड़ रहा था। उसने रिया को देखते हुए धीमी लेकिन काँपती आवाज़ में कहा—

    “मुझे पता है रिया… तुम्हें ये गरीबी पसंद नहीं है।”

    उसकी बात सुनकर रिया अपनी पलके नीचे कर लेती है।

    अक्षत ने एक कड़वी, टूटी हुई हँसी छोड़ी—

    “लेकिन मुझे ये नहीं पता था… कि तुम पैसों के लिए अपने प्यार को बेचने के लिए तैयार हो जाओगी।” अक्षत की आवाज मे सख्ती आ गई थी

    उसकी बात सुनकर रिया की आँखें चौड़ी हो जाती है।

    “तुम सच में… मुझे किसी और औरत के साथ बाँटने को तैयार हो?” ये कहते हुए उसकी आवाज़ भारी हो गई।

    “मुझे किसी और के साथ देखने को तैयार हो?”

    एक पल के लिए रिया की साँस ही रुक गई।

    उसने जल्दी से आगे बढ़कर अक्षत का हाथ पकड़ लिया।

    “नहीं अक्षत… ऐसा मत सोचो।”

    उसकी आवाज़ अब काँप रही थी।

    “मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।”

    अक्षत उसे बिना किसी भाव के देखने लगता है ।

    रिया रोते हुए बोली— “मुझे तुम पर भरोसा है। और मुझे पता है… तुम भी मुझसे बहुत प्यार करते हो।” रिया रोते हुए बोली।

    रिया ने अक्षत के हाथ को और कसकर पकड़ लिया, जैसे वह किसी डूबते रिश्ते को बचाने की कोशिश कर रही हो।

    “और तुम उसके साथ रिश्ते में कभी आगे नहीं बढ़ोगे… तुम्हारा दिल सिर्फ मेरा है। इसीलिए तो… इसीलिए मैं तैयार हुई हूँ।”

    अक्षत के दिल में रिया के शब्द तीर की तरह चुभ रहे थे—

    “रिया… ये सब मेरे उसूल के खिलाफ है। मैं ये शादी नहीं करूँगा।” अक्षत अपना हाथ छुड़ाकर बोला।

    अक्षत की आवाज़ में ठोसपन था, लेकिन उसके चेहरे पर साफ़ झलक रहा था कि वह अंदर से टूटा हुआ है।

    रिया उसका जवाब सुनते ही एक कदम आगे बढ़ते हुए बोली।

    “अक्षत… तुम मेरी बात मान रहे हो या नहीं?”

    “नहीं।” अक्षत साफ-साफ बोल देता है।

    बस इतना ही कहा था कि अचानक पीछे से रिया की माँ की चीख गूँजती है।

    अक्षत ने मुड़कर देखा तो रिया किचन में खड़ी थी, और उसके हाथ में चाकू था, जिसकी नुकीली धार उसकी कलाई पर टीकी हुई थी।

    अक्षत घबराकर उसकी ओर दौड़ पड़ा।

    “रिया!!! क्या कर रही हो तुम??”

    रिया की आँखों में आँसू थे—आँसू नहीं, बेबसी थी।

    “अक्षत… सिर्फ एक तरीका है हमारी सारी परेशानियों का हल—तुम्हारी एक हाँ है मैं दर-दर की ठोकरें नहीं खाना चाहती। मैं थक गई हूँ… खुशियों के लिए पाई–पाई जोड़ते-जोड़ते थक गई हूँ। तुम्हें समझ नहीं आता कि मैं क्या झेल रही हूँ!”

    वह चाकू को अपनी कलाई पर और जोर से दबाने लगती है।

    “इससे अच्छा मैं मर जाऊँ! कम से कम मरने के बाद तो इस जिंदगी से छुटकारा मिलेगा… जहाँ हर छोटी सी छोटी चीज खरीदने के लिए 10 बार सोचना पडता है मर जाऊँगी तो शायद… शायद एक बार तो सकून मिल जाएगा…”

    उनकी बात सुनते ही अक्षत की साँसें अटक जाती हैं।

    “रिया… नहीं!!”

    वह झटके से आगे बढ़ता है, उसके हाथ से चाकू छीनकर दूर फेंक देता है।

    अगले ही पल वह रिया के कंधों को पकड़कर जोर से हिलाते हुए बोलता है-

    "पागल हो गई हो तुम? रिया, प्लीज ऐसा मत करो! तुम… तुम बहुत इम्पोर्टेन्ट हो मेरे लिए। तुम्हारे बिना मैं कुछ नहीं हूँ… तुम समझती क्यों नहीं?? तुम अगर चली गई… तो मैं कैसे जी पाऊँगा?” अक्षत की आँखें नम हो गई थी ।

    उसने धीरे से रिया के हाथों को थाम लिया और बोला।

    > “ठीक है… मैं तैयार हूँ। शादी करूँगा। पर तुम वादा करो—तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगी। कभी नहीं।”

    रिया की सिसकियाँ धीमी पड़ जाती हैं। वह धीरे से सिर हिलाती है।

    “वादा…”

    *************

    To be continue.....🪷

    please don't forget to like and comment your opinion ......😊

  • 3. Bound by contract - Chapter 3

    Words: 1051

    Estimated Reading Time: 7 min

    रिया की आँखों से बहते आँसू धीरे-धीरे थमने लगे।

    “मैं वादा करती हूँ… आज के बाद ऐसा कभी कुछ नहीं करूँगी। आई लव यू, अक्षत…” रिया अपनी काँपती हुई आवाज मे कहा और अक्षत के सीने पर अपना सिर रख लिया ।

    अक्षत की आँखें पल भर के लिए बंद हो गईं। उसे इस पल कुछ भी महसूस नही हो रहा था ।

    “चलो रिया… आधा घंटा पूरा होने वाला है।”

    रिया की माँ की आवाज़ में बेचैनी कम और लालच ज़्यादा था।
    अक्षत के सीने पर सिर टिकाए रिया ने जैसे ही यह आवाज़ सुनी,
    उसने जल्दी-जल्दी अपने आँसू पोंछे, खुद को सम्भाला और धीमे से बोली—

    “हाँ… चलो, अक्षत। अब देर नहीं करनी चाहिए…”

    अक्षत कुछ नहीं बोला।उसके चेहरे पर टूटे भरोसे और थक चुकी लड़ाई का बोझ साफ दिख रहा था, फिर भी वह रिया के पीछे-पीछे चलता गया। लेकिन सीढ़ियों से उतरते समय वह अचानक रुक गया ,रिया भी रुक गई।

    “रिया… एक बार और सोच लो। पैसा सबकुछ नहीं होता। हम… हम कहीं और शुरुआत कर सकते हैं। तुम—” अक्षत ने उसकी ओर देखा और धीमे स्वर मे कहा, लेकिन रिया कि कलाई पर नज़र पडते ही उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।

    **********

    रिया के पिता ने दरवाज़ा लॉक किया और मजबूर मुस्कान के साथ बोले—

    “बस एक साल की बात है। फिर जिंदगी सेट हो जाएगी… हम सबकी।”

    “हाँ, हम भी आराम की जिंदगी जिएँगे।” रिया की माँ ने तुरंत जोड़ा।

    ****************

    सब बाहर आए तो दो काली लग्ज़री कारें खड़ी थीं—

    “एक साल बाद हमारे पास भी पैसा होगा… हम भी ऐसी ही गाड़ी में घूमेंगे…” रिया की माँ अपनी चमकती आँखो से उस कार को देखते हुए फुसफुसाई। उनकी खुशी जैसे होंठों से छलक रही थी।

    सब लोग कार में बैठ गए। अक्षत खिड़की के बाहर देखता रहा। सड़कें पीछे छूटती जा रही थीं।

    ***************

    कुछ देर बाद दोनों कारें कपूर विला के सामने आकर रुक गईं।

    विला इतना बड़ा और शानदार था कि रिया की माँ- पाप की आँखों में फिर वही चमक आ गई—लालच की।

    बॉडीगार्ड ने दरवाज़ा खोला और सबको अंदर ले गया।

    लिविंग रूम में, मौली कपूर शान से सोफे पर बैठी थी। उसके चेहरे पर कोई इमोशन नही था। उनके अंदर आते ही उसने ठंडी, सीधी आवाज़ में कहा—

    “तो… तुम्हारा जवाब हाँ है। मुझे पता था।” वह उठी भी नहीं। बस हाथ से सोफे की तरफ इशारा किया—

    “बैठो। कुछ जरूरी बातें हैं जो तुम्हे जान लेनी चाहिए। ”

    सब बैठ गए। मौली ने एक फोल्डर खोलते हुए कहा—

    “कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक… तुम्हें मुझसे शादी करनी होगी। शादी एक साल की होगी। दुनिया के लिए हम एक ‘परफेक्ट कपल’ होंगे…

    अक्षत की उंगलियाँ कस गईं, पर उसने कुछ नहीं कहा।

    मौली आगे बोली— “तुम्हे मेरी हर बात माननी होगी। और ध्यान रहे— मेरी प्रॉपर्टी, मेरे बिजनेस और मेरे पैसे पर तुम्हारा कोई हक नहीं होगा।”

    उसने कड़क नज़र रिया पर डाली, फिर अक्षत पर—

    “एक साल बाद… डिवोर्स होगा। तुम्हें कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक पूरा पैसा मिल जाएगा। अभी साइन करने पर सिर्फ 10% मिलेगा… बाकी डिवोर्स के दिन।”

    पैसे की बात रिया की माँ उत्साह छुपा नहीं सकी— उसे तो ऐसा लग रहा था जैसे उसके हाथ कोई लौटरी लग गई हो। उसके होंठ अपने आप मुस्कुरा उठे।

    " याद रहे दुनिया के नजर मे तुम मेरे पति होगे तो कोई एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर की खबर नही आनी चाहिए " मौली की ये बात अक्षत अच्छे से समझ गया वह क्या कहना चाह रही थी।

    मौली फोल्डर बंद करती है—

    “और हाँ अगर तुमने कॉन्ट्रैक्ट तोड़ा— तो तुम्हें मुझे डबल पैसे देने होंगे।

    मौली ने सामने कॉन्ट्रैक्ट पेपर सरकाए, और लगभग आदेश देते हुए बोली-

    “साइन करो, मिस्टर अक्षत।”

    कमरा बिल्कुल शांत हो गया अक्षत ने अपने काँपते हाथ से पेपर उठाए , और कॉन्ट्रैक्ट को पढ़ने लगा

    हर पंक्ति पर वही शर्तें लिखी थी जो अभी अभी मौली ने उन्हे बताई थी —

    एक साल की शादी… मौली की हर बात मानना… किसी चीज़ पर हक नहीं… और कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने पर डबल रकम चुकाना। एक-एक शब्द जैसे उसके सीने में धँसता जा रहा था।

    अक्षत को अपनी लाचारी का बोझ महसूस हुआ— इतना भारी कि उसकी सांस भी लड़खड़ा गई। उसने पेन उठाया। उसका हाथ काँपा… पर फिर भी साइन कर दिया।

    पहला… दूसरा… तीसरा साइन। हर साइन के साथ उसे लगा जैसे अपनी जिंदगी के पन्नों को खुद ही काला कर रहा हो। आखिर उसने कॉन्ट्रैक्ट मौली की ओर बढ़ा दिया।

    मौली ने पेपर उठाए, उसके साइन को बारीकी से देखा, और बिना किसी इमोशन के बोली— “गुड.” उसके होंठों पर एक टेढी सी मुस्कान उभरती है।

    उसने अपने पर्स से एक चेक निकाला— और उसे अक्षत की ओर बढ़ा दिया।

    लेकिन अक्षत ने उस चेक को देखा भी नही। उसके सीने मे अजीब सी जलन उठ रही थी ,जैसे शर्म, गुस्सा और बेमानी का तूफ़ान एक साथ उठ रहा हो।

    लेकिन तभी— रिया झट से चेक खींच लिया। उसके चेहरे पर डर, लोभ और खुशी—तीनों का अजीब सा मिश्रण था। रिया की माँ-पापा तुरंत उसके पास आ गए। वे चेक को ऐसे पकड़ते हैं जैसे किसी खजाने को हाथ लगा हो।

    “थैंक्यू सो मच मैम… वी विल नेवर फॉरगेट दिस।” रिया की माँ खुशी के मारे बोल पड़ती है।

    “डोंट वरी… मै आपको भूलने भी नही दूँगी। ” मौली ने हल्की हँसी के साथ कहा ।

    उसके टोन में कुछ ऐसा था जिसे रिया और उसके पैरेंट्स समझ ही नहीं पाए। वो खुशियों में डूबे थे, इसलिए मौली की बात को इग्नोर कर गए।

    पर अक्षत… उसे साफ महसूस हुआ— मौली का मतलब कुछ और था, कुछ ऐसा… जो आने वाले समय में उनकी जिन्दगी मे कुछ तो बदलाव लाएगी।

    “अभी 7 बजे हैं। 8 बजे का मुहूर्त है। तो थोडी देर रूस्ट कर के तैयार हो जाना , कपड़े तुम्हारे रूम मे पहुँच जाऐंगे। ” मौली की आवाज से अक्षत अपनी सोच से बाहर आया ।

    मौली ने बिना समय गँवाए अपनी एक स्टाफ को आवाज दिया।

    “नेहा… अक्षत को उसका रूम दिखाओ। और रिया और उसके परिवार को भी उनके कमरे दिखा देना।”

    "जी मैम," स्टाफ तुरंत बोली।

    मौली फिर उसी रॉयल अंदाज़ में बैठ गई— जैसे अभी-अभी उसने कोई सौदा नहीं, बल्कि किसी की पूरी ज़िंदगी खरीद ली हो।

    स्टाफ आगे बढ़ी— “इधर चलिए, सर…” अक्षत खड़ा हुआ। उसकी चाल भारी थी, और दिल उससे भी भारी।

    *********

    To be continue 🪷

    Do not forget to like and comment 😉

  • 4. Bound by contract - Chapter 4

    Words: 1265

    Estimated Reading Time: 8 min

    अक्षत कमरे में अकेला खड़ा था। बाहर अँधेरा गहराता जा रहा था… और उसके भीतर उससे भी ज्यादा अँधेरा था।

    तभी दरवाज़े पर नॉक हुआ। अक्षत ने जाकर दरवाज़ा खोला—

    सामने एक सर्वेंट कुछ बैग लिए खड़ा था।

    “सर, ये आपके कपड़े हैं। मैम ने आपको तैयार होने को कहा है।” वह बैग बेड पर रखकर जाने लगता है, पर अक्षत तुरंत उसे रोकता है।

    “रुको… मैम का रूम कहाँ है?” अक्षत ने पूछा। सर्वेंट एकदम सामान्य आवाज़ में बता दिया और वहाँ से चला गया।

    अक्षत वहीं खड़ा रह गया जैसे खुद से लड़ रहा हो कि जाए या नहीं। पर उसे इस नाम भर की शादी को रोकना था जिसके लिए वह एक आख़िरी कोशिश करना चाहता था ।

    ************

    उधर

    रिया और उसके पैरेंट्स अपने रूम में थे। वो चेक को बार-बार पलट-पलटकर देख रहे थे।

    रिया की आँखों में पहली बार चमक थी— क्या खरीदेंगे… कहाँ खर्च करेंगे… कौन सा घर लेंगे… कौन से ज्वेलरी सेट… चारों तरफ बस पैसों की बातें गूँज रही थीं।

    अक्षत का नाम तक किसी की ज़बान पर नहीं था।

    **************

    कुछ देर बाद

    अक्षत मौली के रूम के बाहर खड़ा था उसने हल्के से नॉक किया। कुछ पल बाद अंदर से मौली की स्थिर, पर authority से भरी आवाज़ आई—

    “Come in.”

    अक्षत ने धीरे से दरवाज़ा खोला। कमरे में एक सन्नाटा था। मौली सोफे पर बैठी थी, किसी गहरी सोच में डूबी हुई। उसका चेहरा बिना किसी भाव के था ।

    “मैम…” अक्षत ने धीमी मे उसे पुकारा। उसकी आवाज सुनकर मौली ने धीरे से नजर उठाई। अक्षत सामने आकर खड़ा हो गया ।

    “मैम… प्लीज एक बार फिर से सोचिए। हम कोई और हल निकाल सकते हैं। इस तरह नाम मात्र की शादी—ये कोई समाधान नहीं है। रिया को मैं अभी नहीं समझा सकता… वो इस वक्त सिर्फ पैसों को देख रही है, शादी को नहीं… परिणामों को नहीं… प्लीज मैम… मैं भी इंसान हूँ… मेरी भी feelings हैं। और मैं रिया से प्यार करता हूँ। मैं ये शादी नहीं कर सकता। प्लीज… इस contract को cancel कर दीजिए। प्लीज…”

    मौली उसे ऐसे देख रही थी जैसे उसकी हर गिरती परत को पढ़ रही हो। वह धीरे से अपनी जगह से उठी और सीधा उसके सामने खड़ी हुई। और उसकी आँखों में सीधा देखते हुए बोली—

    “हाँ… मैं जानती हूँ कि तुम इंसान हो।” उसकी आवाज़ धीमी, मगर गहरी थी।

    “और तुम्हारी भी feelings हैं… जिनकी तुम्हारी fian—”

    वह अचानक रुक गई, फिर अपने मुँह पर हाथ रखकर हल्की सी हँसी हँसी—

    “Oops… sorry. Ex-fiancée कहूँ? उस लड़की ने तुम्हें पैसों के लिए बेच दिया। और मैंने… तुम्हें खरीद लिया।” उसकी आवाज़ में कोई शर्म नहीं थी ।

    “मैं एक businesswoman हूँ, अक्षत। जहाँ फायदा दिखता है, वहाँ invest करती हूँ। और तुम— तुम मेरी नज़र में एक asset हो… तुम्हारी value है।”

    अक्षत की आँखें भर आईं—पर वह कुछ बोल न सका।

    “अगर रिया को तुम्हारी value होती… तो वो तुम्हें यूँ बेचकर कीमत न लगाती।”

    एक पल रुककर, उसने ठंडी, साफ आवाज़ में कहा—

    “अब मुझे नहीं लगता कि बात करने के लिए कुछ बचा है।”

    फिर हाथ उठाकर हल्का-सा इशारा करती है—दरवाज़े की ओर।

    “अब जाओ जाकर तैयार हो जाओ , कुछ ही देर में… हमारी शादी है।” उसके शब्द सीधे अक्षत के दिल में उतर गए ।

    अक्षत की आँखे लाल हो गई, पलके नम , और भीतर ऐसा गुस्सा था जो उबाल मार रहा था बाहर आने को।

    “I hate you…”

    वह लगभग फुसफुसाया, पर हर शब्द में ज़हर भरा था। मौली ने धीरे से उसका चेहरा देखा— बिल्कुल बिना किसी expression के। अक्षत ने एक कदम आगे बढ़कर कहा—

    “मुझे इतनी नफरत आज तक कभी किसी से नहीं हुई… जितनी आपसे हो रही है।”

    उसकी आँखें भर गईं, गला भारी था, पर वह बोलता रहा—

    “आप एक selfish औरत हैं… जो सिर्फ अपने बारे में सोचती है।

    दूसरों की feelings की आपके लिए कोई कीमत नहीं। आपके पास दिल नहीं है, मैम…” दिल की जगह सिर्फ पत्थर है।”

    कमरा कुछ पल के लिए बिल्कुल खामोश हो गया। मौली बस उसे देखती रही— जैसे उसकी नफरत भी उसे छू नहीं पा रही हो अक्षत ने एक आखिरी बार उसे देखा— फिर बिना एक शब्द और कहे कमरे से बाहर चला गया।

    दरवाज़ा उसके पीछे धीरे से बंद हुआ… और इस बार मौली की आँखों में हल्की-सी हरकत आई— एक पल की ठहराव… जिसे कोई समझ नहीं सकता लेकिन फिर उसकी आँखों में एक रहस्यमयी चमक उभरी…

    *************

    कुछ देर बाद

    अक्षत तैयार खड़ा था— क्रीम कलर की शेरवानी में, चेहरे पर मजबूरी की एक परत, और आँखों में ऐसे सवाल… जिनका जवाब उसके पास खुद भी नहीं था। वह धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरता है।

    कुछ सेकंड बाद रिया और उसके माता-पिता भी नीचे आई।

    रिया की नज़र जैसे ही अक्षत पर पड़ी… उसकी आँखें भर आने लगी। वह अपना निचला होंठ दबा लेती है—ताकि कोई आवाज बाहर न निकले।

    तभी…

    चूड़ियों की हल्की खनक। पायल की नरम झंकार। से सबका ध्यान एक ही दिशा में मुड़ जाता है। सीढ़ियों पर मौली थी— धीरे-धीरे, बिल्कुल शाही अंदाज़ में उतरती हुई।

    लाल रंग की साड़ी… हाथों में काँच की चुड़ियाँ… बाल खुले… गले में बस एक पतली चेन… कानों में सादे झुमके… माथे पर एक छोटी-सी बिंदी… सिंपल पर इतनी खूबसूरत कि हॉल की सारी रोशनी भी उसके सामने फीकी लग रही थी।

    इतनी साधारण दुल्हन शायद किसी ने देखी होगी— पर मौली की मौजूदगी में वो सादगी भी राजसी लग रही थी।

    अक्षत ने बस एक पल उसे देखा… फिर तुरंत नज़र हटा ली। जैसे कुछ चुभ गया हो।

    “चलो। मुहूर्त का टाइम हो रहा है।” मौली नज़दीक आकर बिना किसी इमोशन के बोली और आगे बढ़ गई।

    अक्षत कुछ सेकंड जड़ खड़ा रहा… फिर भारी कदमों से उसके पीछे चला गया। पीछे रिया एक झटके से टूट गई। आँसू रुक ही नहीं रहे थे।

    “रिया, क्या हुआ बेटा? क्यों रो रही हो?” उसकी माँ ने घबराकर पूछा।

    रिया फूट कर रो पड़ी और अपनी माँ से लिपट गई —

    “माँ… मुझे नहीं चाहिए कोई पैसे… मुझे अक्षत चाहिए। मैं उसे नहीं खो सकती माँ… मैं उससे बहुत प्यार करती हूँ।” उसकी आवाज़ काँप रही थी।

    उसके पिता और माँ एक-दूसरे को देखते हैं— पिता अपनी पत्नी को आँखों से एक इशारा करते हैं— माँ रिया का चेहरा पकड़कर गंभीर आवाज़ में कहती है—

    “रिया, अक्षत कॉन्ट्रैक्ट साइन कर चुका है। अब देर हो चुकी है।
    और याद है ना… कॉन्ट्रैक्ट तोड़ा तो हमें डबल पैसे देने होंगे। वो कहाँ से लाओगी?” रिया रुक-रुक कर सांस लेने लगी।

    उसके पिता आगे बोले— “अक्षत की नौकरी जाएगी अलग… हम सड़क पर आ जाएँगे। सोचा है तुमने? और मौली ने धमकी दी है— सब सुन चुकी हो तुम।”

    वे थोड़ा झुककर, सख्त आवाज़ में फुसफुसाते हैं—

    “एक बेवकूफ की तरह व्यवहार मत करो। प्रैक्टिकल बनो। सिर्फ एक साल की बात है। एक साल बाद अक्षत भी तुम्हारा… और एक करोड़ रुपये भी।”

    उनकी बात सुनकर रिया एक गहरी साँस लेकर अपने आँसू पोछती है और एक नकली-सा हिम्मत वाला चेहरा बनाती है—

    “हाँ… आप सही कह रहे हैं। हम बर्बाद हो जाएँगे अगर हमने कॉन्ट्रैक्ट तोड़ दिया। और… मुझे अपने अक्षत पर पूरा भरोसा है।
    वो मुझसे बहुत प्यार करता है। वो उस मौली की सुंदरता से कभी attract नहीं होगा।”

    वह खुद को ही समझाती है—

    “ये मुश्किल है… बहुत मुश्किल… पर ये सब हमारे better future के लिए है। मै कर लूँगी।”

    उसकी माँ गर्व से मुस्कुराती है— उसके पिता चैन की सांस लेते हैं। पर अब रिया की आँखों में डर था। गहरा डर— कि शायद…
    ये एक साल उसकी पूरी ज़िंदगी बदल दे।

    ************

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  • 5. Bound by contract - Chapter 5

    Words: 1200

    Estimated Reading Time: 8 min

    कार के अंदर मौत जैसी खामोशी थी। अक्षत खिड़की के बाहर अंधेरे में खोया हुआ था । मौली भी दूसरी तरफ बैठी थी, बिल्कुल नि:शब्द।

    दो लोग… जो शादी करने जा रहे थे, पर दिल दो अलग दिशाओं में भाग रहा था।

    कुछ ही देर में कार एक पुराने मंदिर के सामने रुकती है। रात का सन्नाटा इतना गहरा था । मौली के लिए एक बॉडीगार्ड तुरंत दरवाज़ा खोलता है। अक्षत खुद ही दरवाज़ा खोलकर बाहर उतर जाता है,उसी समय एक और कार रुकती है। उसमें से रिया और उसके माता-पिता उतरते हैं।

    अक्षत ने एक सेकंड के लिए भी उनकी तरफ़ नहीं देखा— जैसे वह उन्हें पहचानता ही न हो। वह बस मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा।

    मौली ने रिया और उसके माता पिता को एक पल देखा और वह भी चुपचाप सीढ़ियाँ चढ़ गई।

    ***************

    अंदर पंडित जी सारी तैयारी कर चुके थे।

    “मुहूर्त का समय हो गया है। दूल्हा-दुल्हन अपना स्थान ग्रहण करें।” पंडित जी की आवाज गूंजी। अक्षत बेजान शरीर की तरह जाकर बैठ गया— जैसे उसे यह पता ही नहीं कि उसके साथ क्या हो रहा है। मौली भी बिना कुछ बोले उसके बगल में बैठ गई।

    “वधू ने सिर पर चुनरी नहीं ओढ़ी है। आप यह चुनरी ओढ़ा दीजिए।” पंडित जी ने एक लाल चुनरी अक्षत की ओर बढ़ाई। अक्षत के हाथ काँप रहे थे… पर उसने चुनरी ली और मौली के सिर पर रख दी।

    फिर पंडित जी मंत्र पढ़ने लगे। दोनों बिना किसी भाव के सब करते जा रहे थे जो पंडित जी उन्हे करने को कह रहे थे। बिल्कुल किसी रोबोट की तरह जिन्हे जो कमान्ड दिया जा रहा था और वे उन्हे फॉलो कर रहे थे।

    *************

    “वर और वधू का गठबंधन करने के लिए कोई आगे आए।” पंडित जी ने कहा।

    “मेरी तो कोई फैमिली नहीं है…” मौली पंडित जी को देख के बोली ।

    “रिया… क्या तुम हमारा गठबंधन करोगी? Please?” मौली ने ये शब्द इतने मीठे तरह से बोला जैसे उसे शहर मे डूबो कर बोला गया हो।

    रिया कुछ बोल पाती उससे पहले, उसकी माँ जल्दी से बोली—

    “हाँ-हाँ, क्यों नहीं!”

    फिर रिया के कान में फुसफुसाकर— “बेटा, उसे नाराज़ मत करना। अपने और अक्षत के फ्यूचर के लिए कर दो।”

    रिया की आँखें भर आईं… दिल टूट चुका था… पर फिर भी उसने चुपचाप सिर झुका दिया।

    वह दोनों के पास आई। उसके हाथ काँप रहे थे। उसने अपनी पूरी कोशिश की कि आँसू न गिरें… उसने दोनों का गठबंधन कर दिया। पर अक्षत— उसने एक बार भी रिया की तरफ़ नहीं देखा। और यह सबसे बड़ा दर्द था। रिया अपनी जगह पर जाकर खड़ी हो गई— उसने अपनी आँखों को जल्दी से पोंछा।

    पंडित जी ने मंत्रों के बीच शांत स्वर में कहा— “दूल्हा-दुल्हन फेरे के लिए खड़े हों।”

    अक्षत और मौली धीरे-धीरे उठे। सबकी नज़रें उन पर थीं, अग्नि के चारों तरफ, पंडित जी के इशारे पर दोनों ने फेरे शुरू किए—

    फेरे पूरे होते ही पंडित जी ने अक्षत की ओर सिन्दूर की छोटी डिबिया बढ़ाई।

    “दूल्हा, दुल्हन की माँग में सात बार सिन्दूर भरें।”

    अक्षत ने काँपती उँगलियों से डिबिया उठाई। अक्षत ने पहली बार में ही उसकी माँग में सिन्दूर भरा… फिर दूसरी बार… तीसरी… हर बार उसके हाथों की कंपन बढ़ती गई, जैसे हर रेखा में वो अपना नाम, अपना वचन लिख रहा हो। सातवीं बार सिन्दूर भरते समय मौली की पलकें भीग गईं।

    फिर पंडित जी ने मंगलसूत्र बढ़ाया—

    “अब दूल्हा दुल्हन को मंगलसूत्र पहनाए।”

    अक्षत ने मंगलसूत्र सावधानी से उसे पहनाया… जैसे उसे छूने से भी डर रहा हो।

    पंडित जी ने हाथ जोड़कर कहा—

    “अब से आप दोनों पति-पत्नी हुए।”

    ************

    कुछ देर बाद

    कपूर विला के सामने कार रुकते ही अक्षत बिना कोई देरी किए बाहर निकला। वह तेज़ कदमों से विला के अंदर जाने ही वाला था कि किसी के नर्म हाथ ने उसकी कलाई पकड़ ली।

    अक्षत रूका उसकी नज़रें नीचे गईं—उसके हाथ पर, और फिर उस हाथ पर..... जो किसी और का नहीं, उसकी पत्नी मौली का था।

    “हमारी अभी-अभी शादी हुई है… और कुछ रस्मे है जो हमे करनी होगी, जिनमे से एक गृह-प्रवेश की रस्म है, अंदर जाने से पहले हमे ये रस्म करनी होगी।”

    अक्षत की आँखों में irritation चमक उठा।

    वह उसकी पतली कलाई पकड़कर एक झटके में अपना हाथ उससे छुड़ाता है।

    “इसकी कोई ज़रूरत नहीं है,” अक्षत ने ठंडे स्वर में कहा।

    “आपके कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक ये शादी बस नाम की है। मुझे नही लगता इन रस्मों का कोई मतलब है।”

    उसी समय पीछे से रिया की आवाज़ आई, जो तंज से भरी थी —

    “अक्षत सही कह रहा है। ये शादी असली थोड़ी है। और वैसे भी अक्षत की फैमिली में है ही कौन जो ये रस्में करे?”

    मौली ने धीरे से अपनी साड़ी संभाली, और फिर रिया की ओर देखते हुए एक शब्द भी बिना खोए बोली—

    “ हर रस्म जो हमने की थी सब असली था चाहे एक साल के लिए ही क्यो ना हो। पर हमारी शादी असली है ।"

    “और रही बात अक्षत की फैमिली की… तो अब मैं ही इसकी फैमिली हूँ। आखिर मैं इसकी पत्नी हूँ… और पत्नी भी परिवार ही होती है।” वह अक्षत के करीब खड़ी होकर बोली।

    उसके इन शब्दों पर अक्षत की नज़र मौली पर टिक गई।

    मौली को देखते हुए उसकी आँखों में कुछ अनकहा सा भाव आया— गुस्सा नहीं, नफरत नहीं… कुछ दूसरा… कुछ जिसे वह खुद भी पहचान नहीं पाया।

    तभी उसने पीछे की ओर देखकर हल्के से आवाज़ लगाई।

    सेर्वेन्ट पूजा की थाली और कलश लेकर आई।

    “रिया, जब तुमने हमारा गठबंधन कर ही दिया है… तो हमारा गृह-प्रवेश भी करा दो।” मौली रिया से बोली, और उसने अपने बॉडीगार्ड को इशारा किया।

    बॉडीगार्ड आगे बढ़ा और मौली का पर्स लाकर उसके हाथ में रखा।

    मौली ने थाली में शगुन का रखा। रिया की माँ की आँखें तुरंत चमक उठीं। नोटों की हल्की झलक से ही उनका लालच साफ दिख रहा था। उन्होंने रिया को कोहनी मारी और धीमे से कहा—

    “कर दे न रस्म… इतना भी क्या सोच रही है।”

    रिया ने बिना इच्छा के, पर माँ की बात सुनकर, सिर हिलाया।

    “ठीक है… मैं गृह-प्रवेश करा देती हूँ।”

    रिया आगे आई और सबसे पहले उसने पूजा की थाली उठाई।

    उसने बड़ी ही नर्म हरकतों से अक्षत और मौली की आरती उतारी, लेकिन उसके चेहरे पर मुस्कान बिल्कुल नहीं थी।

    फिर वह बारी-बारी से दोनों के माथे पर तिलक लगाती है।

    मौली ने हल्के से अपनी साड़ी संभाली और दरवाजे के सामने रखा चावल से भरा कलश देखा।

    उसने बड़ी शालीनता से कलश को पैरों से छूकर आगे बढ़ाया और घर में पहला कदम रखा।

    सभी अंदर आए, और उसी पल रिया की माँ ने बिजली की तरह झपटकर थाली में रखा शगुन का लिफाफा उठा लिया।

    उनकी आँखों की चमक साफ बता रही थी कि उन्हें पैसे ही दिखते हैं… बाकी कुछ नहीं।

    मौली ने अंदर कदम रखते ही थकान से भरी आवाज में कहा—

    “चलो अक्षत… मैं बहुत थक गई हूँ। चलकर रूम में आराम करते हैं।”

    उसने अक्षत का हाथ थाम लिया और उसे साथ खींचने लगी।

    पर तभी रिया की आवाज गूँजी—

    “एक मिनट! तुमने तो कहा था यह शादी बस नाम की है…

    तो तुम दोनों एक कमरे में कैसे रह सकते हो?”

    **************

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  • 6. Bound by contract - Chapter 6

    Words: 1190

    Estimated Reading Time: 8 min

    “एक मिनट! तुमने तो कहा था यह शादी बस नाम की है… तो तुम दोनों एक कमरे में कैसे रह सकते हो?”

    अक्षत रिया की बात से सहमत होते हुए उसकी ओर देखने लगा,

    लेकिन उससे पहले ही मौली ने अक्षत का हाथ छोड़ दिया। मौली रिया के सामने आई और अपने हाथ आपस मे बाँध लिए।

    “मिस रिया, कॉन्ट्रैक्ट में कहीं भी नहीं लिखा है कि हम अलग कमरे में रहेंगे। सो प्लीज अपना दिमाग चलाना बंद करो… और आज के लिए, तुम मेरी मेहमान हो— तो मेहमान की तरह रहो, वर्ना दरवाज़ा वहाँ है तुम जा सकती हो।” मौली के कहे शब्द रिया को भीतर तक चुभे थे।

    उसकी आँखों का दर्द उसके माँ-बाप से छुप नहीं पाया। और वे मौली को घूरने लगे।

    मौली फिर अक्षत की ओर मुड़ी और उसका हाथ पकड़कर बोली— “चलें?”

    अक्षत कुछ कह पाता, उससे पहले ही सर्वेंट आगे आई और सिर झुका कर बोली — “सॉरी मैडम… लेकिन एक रस्म और बाकी है। इसमें पति अपनी पत्नी को गोद में उठाकर कमरे में लेकर जाता है।”

    उसकी बात सुनकर रिया गुस्से से उस सर्वेन्ट को घुरने लगी। जैसे आँखो से ही उसे राख कर देगी।

    “नेहा, इस रस्म को रहने दो। क्या पता… ये मेरा भार संभाल न पाए और मुझे गिरा ही दे।” मौली होठो पर हल्की हँसी के साथ बोली।

    पर उसकी ये बात अक्षत के इगो पर लगी उसके जबड़े कस गए और अगले ही पल— वह तेज़ी से आगे बढ़ा और बिना चेतावनी के मौली को अपनी बाहों में उठा लिया।

    ये सब इतने अचानक से हुआ कि मौली की साँस अटक सी गई और उसके हाथ अपने आप अक्षत के कंधों पर कसकर लिपट गए।

    उन्हे ऐसे देखकर रिया की आँखें हैरानी से फैल गईं—

    “तुम ये क्या कर रहे हो!” मौली अपने शब्दो कठोरता लिए बोली।

    “नीचे उतारो मुझे… तुम मुझे गिरा दोगे!”

    उसकी बात सुनकर अक्षत ने उसकी कत्थई आँखों में देखा।

    “फिक्र मत कीजिए… मैं चाह कर भी आपको नहीं गिरा सकता।” अक्षत ने धीमे स्वर मे बोला। " मौली उसकी आँखो मे देखने लगी।

    अक्षत उसे उठाए हुए सीढ़ियाँ चढ़ने लगा— और नीचे खड़ी रिया बस उनके दूर जाते पीठों को देखती रह गई—

    उसकी आँखें भर आईं,

    और उसका दिल पहली बार सच में टूट गया।

    ************

    इधर जैसे ही अक्षत मौली के कमरे में घुसता है, वह गुस्से से भरा हुआ उसे धीरे लेकिन झटके से नरम मैट्रेस पर फेंक देता है।

    मौली एकदम से बोल उठती है—

    “What the hell !" उसकी आँखों में आग थी।

    “अब तो ठंडक मिल गई होगी, है ना?

    मेरी पूरी लाइफ बर्बाद करके…

    अब तो आपका पत्थर जैसा दिल खुश होगा!” वह गुस्से से मौली को देखकर बोला ।

    मौली उसे एक सेकंड को घूरती है, लेकिन फिर बिना कोई जवाब दिए शांत भाव से उठकर ड्रेसिंग टेबल के सामने जाकर खड़ी हो जाती है। वह धीरे से अपने इयररिंग्स उतारने लगती है और बेहद शांत आवाज में कहती है—

    “कल प्रेस कॉन्फ्रेंस है। हम अपनी शादी की बात सबके सामने रखेंगे… और मैं अपना नाम उस स्कैंडल से क्लीयर करूँगी। तुम्हें बस मेरे साथ बैठना है। बाकी सब मैं संभाल लूँगी।”

    लेकिन जैसे ही वह इयररिंग्स खींचने की कोशिश करती है,

    उसके होंठों से हल्की सी — “आह…” निकल जाता है।

    इयररिंग्स उसके बालों में उलझ गए थे और हल्का-सा खिंचाव उसके कान को लाल कर चुका था। अक्षत यह सब देख रहा था। वह पहले तो गुस्से में अपना सिर एक तरफ़ घुमाता है— पर फिर एक लंबी साँस लेकर वह उसके पीछे आकर खड़ा हो जाता है।

    मौली अपने पीछे उसकी मौजूदगी महसूस करती है वह अपनी पलके उठाकर मिरर मे अक्षत को देखती है।

    अक्षत धीरे से उसके बाल एक तरफ करता है, उसका स्पर्श हल्का लेकिन बेहद सटीक। मौली की सांसें हल्की सी थम जाती हैं। वह उसके कान के पास झुकते हुए, सावधानी से उलझा हुआ इयररिंग खोलता है— उंगली का हल्का-सा स्पर्श मौली के कान की त्वचा को छू जाता है और उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

    मौली मिरर में उसे में देखती है— उसके चेहरे पर गुस्सा और नाराज़गी साफ झलक रही थो।

    खैर अक्षत, मौली की मदद करने के बाद एक शब्द तक नहीं बोलता। और वह बस अपने बैग से कपड़े उठाता है और वॉशरूम में चला जाता है।

    कुछ ही मिनटों में वह बाहर आता है— और देखता है कि मौली भी चेंज कर चुकी थी। उनके बीच फिर वही चुप्पी। दबी हुई नफ़रत। अक्षत बिना उसे देखे बेड के पास जाता है, वहाँ से एक कंबल और तकिया उठाता है और चुपचाप सोफ़े पर लेट जाता है। उसका चेहरा थका हुआ… इन कुछ ही घण्टे मे उसके जीवन की पूरी दशा ही बदल गई थी। मौली उसे कुछ सेकंड देखती है।

    और बिना कुछ बोले वह भी अपने बेड पर चली जाती है,

    लाइट ऑफ करती है और सिलिंग को देखते हुए किसी गहरी सोच मे खो जाती है—

    जब तक नींद धीरे-धीरे उसे अपनी बाहों में न ले ले।

    **********

    अगली सुबह

    कमरे में लगातार फोन की रिंग गूंज रही थी। मौली झल्लाते हुए उठती है—

    “कौन है सुबह-सुबह…” लेकिन फोन उसका नहीं था। उसकी नजर टेबल पर रखे अक्षत के फोन पर जाती है जो लगातार बज रहा था। उसके चेहरे पर चिढ़ बढ़ जाती है। वह गुस्से में उठती है,
    फोन उठाती है, और पूरे वेग से जमीन पर पटक देने ही वाली होती है— तभी पीछे से एक मजबूत हाथ उसकी कलाई पकड़ लेता है। अक्षत जो अभी-अभी बाथरूम से बाहर आया था। वह झुंझलाए स्वर में कहता है—

    “ये आप क्या कर रही थीं? दिमाग ठीक है आपका?”

    मौली झटके से अपना हाथ छुड़ाती है, उसकी आँखों में चुनौती की ज्वाला थी। वह उंगली उठाकर उसके चेहरे के बिल्कुल पास लाती है—

    “अपनी हद में रहो, अक्षत! और ये याद रखो— मैंने तुम्हें खरीदा है। यू आर माय परचेस्ड हसबेन्ड सो नेवर क्वेश्चन मी अगेन....
    अन्डरस्टैन्ड? यू बैटर अन्डरस्टैन्ड। " इतना कहकर वह ठंडे गुस्से के साथ फिर से बेड पर जाकर लेट जाती है— जैसे कुछ हुआ ही न हो। अक्षत कुछ सेकंड उसे बस यूँ ही देखता रहा— और फिर उसके भीतर जैसे एक भारी, कड़वा सा सवाल उठ खड़ा हुआ।

    “तो अब मैं सच में…किसी चीज़ जैसा बन गया हूँ? क्या मेरी कोई feelings नहीं है? क्या मैं इंसान नहीं हूँ? मेरे अंदर दर्द नहीं होता? या अब मुझे बोलने का हक ही नहीं है…?” उसके दिल में एक कसक उठती है।

    “माँ… पापा… काश आप होते तो बताता मैं कितना टूट गया हूँ…”

    उसकी सांस थोड़ी भारी हो जाती है।

    “जिसे अपना परिवार समझा… जिनके लिए दिन-रात मेहनत की… उन्हीं ने सबसे पहले मुझे बेचा। जैसे मैं कोई इंसान नहीं,
    बस एक सौदा हूँ… एक रकम के बदले मिल जाने वाली वस्तु…
    और मौली… उसकी नज़रों में तो मैं सिर्फ एक कॉन्ट्रैक्ट, एक खरीदा हुआ इंसान हूँ।”

    छत देखते हुए उसकी आँखें लाल होने लगती हैं।

    “क्या मेरी कोई अहमियत नहीं? प्यार तो दूर… इज़्ज़त तक नहीं?” वह धीरे से आँखें बंद करता है,

    “शायद गलती मेरी है… जो मैंने हमेशा दिल से जिया। और इस दुनिया ने मुझे याद दिला दिया… दिल वाले हमेशा हारते हैं।”

    ***************

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  • 7. Bound by contract - Chapter 7

    Words: 1186

    Estimated Reading Time: 8 min

    नीचे डाइनिंग हॉल में पहुँचते ही मौली और अक्षत देखते हैं कि रिया और उसके माता-पिता पहले से ही टेबल पर बैठे नाश्ता कर रहे हैं।

    सबकी नज़र कुछ पल के लिए उन दोनों पर टिकती है—खासकर रिया की, जिसकी आँखों में जिज्ञासा और हल्की ईर्ष्या दोनों थीं।

    मौली सहजता से चेयर खींचकर बैठ गई। अक्षत चुपचाप उसके बगल में बैठा—न नज़र उठाई, न किसी से कुछ कहा। पूरा नाश्ता मौन में बीता, सिर्फ बर्तनों की आवाज़ और रिया के माँ-पिता की हल्की बातें सुनाई देती रहीं। नाश्ता खत्म होते ही मौली खड़ी हुई और सीधे अक्षत से बोली—

    “Let’s go. हमें देर हो जाएगी।” अक्षत बस सिर हिलाकर उठ गया। दोनों बाहर आए जहाँ मौली की कार पहले से तैयार खड़ी थी। बॉडीगार्ड फुर्ती से आगे बढ़ा और उनके लिए दरवाजा खोल दिया।

    मौली अंदर बैठी, अक्षत उसके बाद—लेकिन दोनों के बीच एक अदृश्य दूरी साफ महसूस हो रही थी।

    ---

    ✨ प्रेस कॉन्फ्रेंस वेन्यू

    कुछ देर बाद कार वेन्यू पर रुकी।

    बाहर पहले से ही भीड़ इकट्ठी थी—कैमरे, फ्लैश, रिपोर्टर्स की आवाज़ें… सब कुछ किसी बड़े स्कैंडल का सिग्नल दे रहा था।

    जैसे ही वे दोनों अंदर पहुँचे, माहौल अचानक शांत हो गया।कुछ के चेहरे पर उत्सुकता, कुछ पर शक… पर हर नज़र उन्हीं पर टिकी थी।

    स्टेज पर दो कुर्सियाँ रखी थीं और सामने टेबल पर हर न्यूज़ चैनल के माइक्स सजाए हुए थे।

    दोनों स्टेज पर जाकर बैठ गए। मौली ने माइक पकड़ा और मुस्कुराते हुए सबको संबोधित किया—

    “Good morning, everyone.”

    पहला सवाल एक वरिष्ठ रिपोर्टर ने पूछा— “Miss Mouli, आपने रातों-रात अक्षत व्यास से शादी कर ली।

    इसके बारे में आप क्या कहना चाहेंगी?”

    मौली ने हल्की, संयमित मुस्कान दी। फिर बड़े आत्मविश्वास से बोली—

    “सबसे पहले, इसे ‘Miss Mouli’ नहीं कहा जाएगा… It’s Mrs. Mouli Akshat Vyas now.” कमरा हल्का सा शोर से भर उठा। अक्षत ने उसे बस एक पल के लिए देखा—जैसे उसने खुद इसकी उम्मीद न की हो।

    मौली आगे बोली— “और दूसरी बात… ये सब आप सब की मेहरबानी से ही हुई है ना आप सब हमारी फोटो वाइरल करते और ना ही हमे ऐसे जल्दबाजी मे शादी करनी होती ,अक्षत और मैं काफी समय से एक-दूसरे को डेट कर रहे थे। हम जल्द ही अपना रिश्ता दुनिया के सामने लाने वाले थे। लेकिन उससे पहले ही… कुछ private moments की तस्वीरें वायरल कर दी गईं।इसलिए हमें यह कदम लेना पड़ा।” मौली ने बिना किसी हिचक के साफ झूठ बोला था,इतनी सफाई से , इतनी सहजता से ..... कि किसी को शक करने की गुंजाइश ही नही बची।

    रिपोर्टर्स के हाथ हवा में उठने लगे।

    हर सवाल पर मौली उतने ही कॉन्फिडेंस, उतनी ही शांति से जवाब देती रही— जैसे वह यही सब सालों से प्लान कर रही हो।

    उधर अक्षत… हमेशा की तरह शांत। कभी उसकी ओर देखता, कभी नीचे। जैसे यह दुनिया उसके लिए अनजान हो। मौली के हर झूठ को वह सुन रहा था।

    तभी एक रिपोर्टर सीधा सवाल दागता है—

    “Mr. Akshat Vyas, would you like to say something about your relationship with Mrs. Mouli?”

    अक्षत कुछ पल के लिए ठिठक जाता है। उसकी उँगलियाँ आपस में ट्विच करने लगती हैं।

    वह धीरे से मौली की ओर देखता है और फिर हल्के से अपना गला साफ करता है। माइक उसके सामने था… पर शब्द नहीं थे।

    “मु… मुझे और मौ… मौली को…” वह रुक गया।

    कुछ सेकंड बाद उसने खुद को संभाला—

    “मुझे और मौली को डेट करते हुए बहुत ज़्यादा समय नहीं हुआ था।”

    थोड़ी देर की खामोशी… मीडिया का हर कैमरा उसकी ओर टिक गया था।

    फिर अक्षत ने गहरी साँस ली और आगे कहा—

    “और जब आप सबने… हमारी तस्वीरें दुनिया के सामने रखी … तो सवाल सिर्फ हमारे रिश्ते पर नहीं, बल्कि मौली के चरित्र पर सवाल उठने लगे।” उसकी आवाज़ बहुत धीमी थी,

    “उसकी कम्पनी को भी भारी लॉस झेलना पड़ा। ऐसे में हमारे पास… शादी करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था।”

    “So… yes, thank you all for this ” अक्षत ने हल्की , कड़वी मुस्कान के साथ यह कहा, जो की मिडीया के लिए एक तंज था।

    **********

    प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म होते ही दोनों बिना एक-दूसरे से कुछ कहे कार में बैठे।

    सफर भर खामोशी थी—

    विला पहुँचते ही मौली सीधे अपने कमरे में चली गई।

    अक्षत पीछे-पीछे आया, लेकिन बिना कुछ बोले कमरे के सोफे पर बैठ गया। मौली वॉशरूम में चली गई। कुछ देर बाद जब वह चेंज होकर बाहर आई, उसके कदम रुक गए।

    अक्षत सोफे पर था— थकान उसके पूरे शरीर से झर रही थी।

    उसका सिर पीछे टिक हुआ था, आँखें बंद… शायद साँस को भी आराम चाहिए था। उसके दोनों हाथ सोफे की बैक पर फैले हुए थे, टाई ढीली… और शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले हुए।

    मौली कुछ सेकंड तक उसे बस देखती रह गई। तभी दरवाज़े पर हल्की-सी टक-टक हुई। जिससे मौली का ध्यान टूटा ।

    “मैडम, खाना तैयार है,” सर्वेन्ट ने धीरे से कहा।

    मौली ने एक नज़र सोफे पर सोते अक्षत पर डाली—

    “ठीक है, हम आते हैं। तुम जाओ,” मौली ने धीमे स्वर में कहा। तो सर्वेन्ट चली गई। कमरे में फिर वही खामोशी आ गई।

    मौली धीरे-धीरे अक्षत के पास गई, और उसके कंधे पर हल्के टैप करते हुए उसे पुकारा।

    “अक्षत…”

    अक्षत की आँखें धीरे-धीरे खुलीं।

    कुछ क्षण के लिए वह समझ ही नहीं पाया कि कहाँ है।

    फिर नज़रें स्थिर हुईं—और वह सीधा बैठ गया।

    “नीचे खाना लग गया है, चलो ” मौली ने अपनी स्थिर आवाज़ में कहा।

    अक्षत ने बस सिर हिलाया, कोई जवाब नहीं… दिया। और उठकर वॉशरूम की ओर चला गया। दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ कमरे में गूँज गई।

    कुछ देर बाद वह लोअर और टी-शर्ट पहने हुए बाहर आया चेहरा धोने की वजह से थोड़ा तरोताज़ा लग रहा था। उसने एक नज़र भी मौली की तरफ नहीं उठाई।

    “चलें?” मौली ने पूछा।

    अक्षत ने बस छोटा-सा—

    “हूँ।”

    कहा और आगे बढ़ गया।

    ***********

    नीचे पहुँचते ही मौली की नज़र डाइनिंग टेबल पर गई।

    रिया और उसके माता-पिता पहले से ही बैठे थे।

    “तुम सब अभी तक यहीं हो? गए नहीं वापस?” मौली अपने जगह पर बैठते हुए बोली।

    रिया की माँ ने एक बनावटी मुस्कान ओढ़ी और बोली—

    “वो क्या है न मौली… रिया के पापा की तबियत कई सालों ठीक नहीं रहती। वो काम नहीं कर पाते… और इन सालों में पूरा खर्च अक्षत ही उठाता आया है। अब जब अक्षत यहीं रहेगा तो हमारा भी ध्यान रख लेगा।”

    फिर चारों तरफ देखकर धीमे से जोड़ दिया—

    “वैसे भी… आपका घर इतना बड़ा है। हम तीन लोग क्या ही जगह घेरेंगे, यहीं रह जाएंगे ।" अपने सारे शब्द को रिया कि माँ ने शहद मे डूबा कर मौली के सामने रखा था।

    मौली ने बिना एक सेकंड गँवाए अपनी ठंडी, धारदार आवाज़ में कहा—

    “पहली बात—मैं तुम्हारी कोई रिश्तेदार नहीं हूँ ,जो तुम मुझे मौली बोल रही हो। नाम से बुलाने का हक मैंने दिया नहीं है।”

    उसकी बात सुनकर तीनों की मुस्कान जम गई।

    मौली आगे झुकी, और मेज़ पर अपनी उंगलियाँ हल्के से थपथपाते हुए बोली — “और दूसरी बात— मेरा घर कोई धर्मशाला नहीं है जहाँ मैं किसी को भी आकर रहने दूँ।”

    **************

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  • 8. Bound by contract - Chapter 8

    Words: 1067

    Estimated Reading Time: 7 min

    पिछले अध्याय में, आपने देखा कि मौली और अक्षत रिया और उसके माता-पिता के साथ नाश्ते पर मिलते हैं। मौली और अक्षत प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए रवाना होते हैं, जहाँ मौली मीडिया के सामने झूठ बोलती है और शादी के कारणों के बारे में अपनी कहानी गढ़ती है, अक्षत शांत रहता है और केवल कुछ शब्द बोलता है। प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद, वे घर लौटते हैं। बाद में, मौली रिया और उसके माता-पिता के साथ डिनर पर मिलती है, जो मौली के घर में रहने का अनुरोध करते हैं। मौली उन्हें जाने के लिए कहती है।

    अब आगे

    -

    रिया और उसके माता-पिता मौली के तानों से अंदर ही अंदर जल चुके थे।

    किसी को भी अपना अपमान पसंद नहीं आता, और यह तो सीधा-सीधा नीचा दिखाना था।

    तभी अक्षत ने गहरी साँस लेते हुए कहा--

    “आंटी… आप लोग वापस जाइए। चिंता मत कीजिए। मैं हर महीने पैसे भेजता रहूँगा। जैसे आज तक आपका ध्यान रखा है, वैसे ही आगे भी रखूँगा। ये मेरा वादा है।”

    रिया की माँ ने जबरदस्ती मुस्कुराकर “हाँ… ठीक है” कहा, लेकिन उसके चेहरे पर अंदरूनी कड़वाहट साफ दिख रही थी। लक्सरी लाइफ के सपने तो उन्होंने यहाँ आने से पहले ही बुन लिए थे,

    लेकिन मौली ने दो सेकंड में ही उन सपनों पर पानी फेर दिया था।

    “क्यों… तुम क्यों इनके खर्चे उठाओगे?” मौली अपना चम्मच नीचे रखकर अक्षत की ओर देखते हुए बोली।

    “क्या ये तुम्हारा परिवार है? क्या खून का रिश्ता है तुम्हारा इनके साथ? क्यों उठाओगे तुम इनका पूरा बोझ?” उसके सवाल पर सब हक्के-बक्के रह गए।

    किसी को समझ नहीं आ रहा था अचानक से मौली के ऐसे बर्ताव के पीछे का कारण क्या है।

    “कुछ रिश्ते खून के रिश्ते से भी बड़े होते है मैम ! जो आप जैसे अमीर लोग नही समझ सकते, जिन्हे सिर्फ फायदे और नुकसान के अलावा कुछ नजर नही आता है। पर आपके जानकारी के लिए बता दू ,ये मेरे पापा के दोस्त हैं… और मेरे मम्मा-पापा के जाने के बाद इन्हीं लोगों ने मेरी परवरिश की है। तो हाँ—मेरी भी इनके प्रति कुछ जिम्मेदारी बनती है।” उसकी आवाज दर्द से भरी थी,जैसे अपनी बात को सही ठहराने के लिए तर्क नहीं… बल्कि यादें बोल रही हों।

    मौली और अक्षत के बीच का यह बहस देख रिया और उसके माता-पिता अंदर ही अंदर खुश हो रहे थे उनकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी— वही चमक जो दूसरों की बर्बादी में मज़ा लेने वालों की होती है।

    मौली अक्षत की आँखों में देखते हुए धीमे लेकिन बेहद सख्त लहज़े में कहती है—

    “ तुम्हारी सिर्फ एक के प्रति जिम्मेदारी है… और वो मैं हूँ तुम्हारी पत्नि, समझे?” अक्षत की आँखें सिकुड़ती हैं।

    “शायद आप हमारे रिश्ते की असलियत भूल रही हैं, मैम।” अक्षत भी बराबर उसकी आँखो मे देखते हुए बोला।

    “असलियत सिर्फ इतनी है कि तुम मेरे पति हो। और इस नाते… तुम्हारे समय पर, तुम्हारी जिंदगी पर… और तुम्हारे पैसों पर मेरा पूरा अधिकार है। और मैं अपने पैसे किसी भी ‘ऐरे-गैरे’ पर बर्बाद नहीं होने दूँगी।” इतना बोलकर वह खड़ी होकर जाने को मुड़ती है। पर अक्षत भी गुस्से से अपनी जगह से खड़े हुआ और मौली की कलाई पकड़कर बोला —

    “ये लोग ऐरे-गैरे नहीं हैं। बार-बार इनकी बेइज़्ज़ती करके आप हद पार कर रही हैं।”

    मौली ठहरती है। धीरे से पीछे मुड़ती है। उसकी आँखों में अजीब सी भावनाए उभर आई थी … दर्द, चोट और गुस्से का मिश्रण।

    “बेइज़्ज़ती उनकी होती है जिनकी कोई इज़्ज़त हो। और मेरे नज़र में उन सैल्फिश लोगों की कोई इज़्ज़त नहीं, जो पैसों के लिए किसी मासूम की भावनाएँ रौंद देते हैं।”

    उसकी आवाज़ आखिरी लाइन में काँपती गई थी और ये सब बोलते हुए उसकी आँखो मे अजीब से भावनाए उभर आये थे जैसे कोई पुराना जख्म फिर से खुल गया हो, और जिन्हे वह किसी को नही दिखाना चाहती थी

    शायद यही वजह थी कि मौली जल्दी से नज़र चुरा कर वहाँ से तेज कदमो से वहाँ से चली जाती है।

    अक्षत बस मौली की पीठ को दूर जाते हुए देखता रह गया ।उसकी आँखों से हटती वह हल्की-सी चमक… वो नमी… उसके मन में बार-बार घूमने लगी।

    "क्या… मैंने उसकी आँखों में जो देखा जो महसूस किया वह सच था? या फिर ये सिर्फ मेरा वहम था?"

    मौली के तेवर हमेशा तल्ख़ थे, तेज़ थे… लेकिन आज— उस तेज़ाब में कुछ और मिला था, कुछ ऐसा… जिसे वह समझ नहीं पा रहा था।

    "आख़िर क्या छुपा रही है वो …?" अक्षर अपने मन मे सवाल करता है।

    अक्षत की तरफ देखती रिया अचानक उसकी ओर भागकर आई और उसका हाथ पकड़ लिया।

    “अक्षत… देखा ना तुमने? उसने कितनी बेज्जती की हमारी। हमें तो यहाँ रुकने भी नहीं दे रही है…मै कैसे तुमसे दूर रहूँगी प्लीज तुम कुछ करो ना” उसकी आवाज़ काँप रही थी, मानो अभी फूट पड़ेगी।

    अक्षत ने रिया को एक ठंडी और कड़वी नजर से देखा और बोला —

    “रिया, ये घर उनका है।”

    उसकी आवाज़ धीमी थी लेकिन ज़हर से भरी हुई।

    “ये उनका फैसला है कि वो तुम्हें रखना चाहें या नहीं। और जहाँ तक मेरी बात है… मैं इस घर का मालिक नहीं हूँ जो कोई फैसला ले— इनफैक्ट मै तो इंसान ही नही नही हुँ मै बस एक चीज हूँ जिसे उन्होने… तुमसे खरीदा है।”

    उसने शब्दों को जानबूझकर धीरे, चोट पहुँचाने वाले तरीके से बोला था , उसके शब्द रिया के दिल पर किसी किल की तरह चुभे। रिया की पकड़ धीरे-धीरे अक्षत के हाथ पर ढीला पड़ने लगा। अगले ही पल अक्षत ने अपना हाथ उससे झटका देकर छुड़ा लिया और बिना पीछे देखे वहाँ से चला गया।

    रिया वहीं खड़ी रह गई… जैसे किसी ने उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खींच ली हो। उसकी आँखों में आँसू भर आए, एक पल में उसके सारे सपने धुंधले हो गए।

    “अक्षत… ऐसे कैसे…” उसकी आवाज़ टूट गई और वह वहीं बैठकर रो पड़ी।

    कुछ ही पल बाद उसकी माँ तेज़ी से उसके पास आई और उसे गले लगा लिया।

    “रो मत, रिया… बस मत रो।” माँ की हथेली उसकी पीठ पर चलती रही।

    “वह अभी गुस्से में है, बेटा। जब उसका गुस्सा उतर जाएगा, तो वो तुझे माफ भी कर देगा और पहले की तरह प्यार भी करेगा।”

    पर रिया के दिल में एक ही सवाल धड़धड़ा रहा था—

    क्या वाकई?

    क्या अक्षत अब भी उसे पहले की तरह देख पाएगा?

    या मौली के आने के बाद सब कुछ बदल चुका था?

    **************

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  • 9. Bound by contract - Chapter 9

    Words: 1114

    Estimated Reading Time: 7 min

    पिछले अध्याय में, आपने देखा कि मौली और अक्षत प्रेस कॉन्फ्रेंस से घर लौटते हैं, और मौली रिया और उसके माता-पिता को जाने के लिए कहती है।

    अब आगे

    अक्षत तेज़ कदमों से सीढ़ियाँ चढ़कर छत पर आ गया।

    दोपहर की हल्की हवा चेहरे से टकरा रही थी,

    पर उसके भीतर का तूफ़ान किसी हवा से शांत होने वाला नहीं था।

    उसने जेब से सिगरेट निकाली लाइटर जलाया… और सिगरेट को अपने होंठों पर टिकाकर एक गहरी कस ली।

    धुंआ उसके फेफड़ों में उतरते ही कुछ सेकंड के लिए उसका दिमाग सन्न हो गया— बस यही एक बुरी आदत थी उसकी

    जो वह छोड़ना भी चाहता था। वो चेन-स्मोकर नहीं था…बस तब पीता था जब दिल और दिमाग दोनों का बोझ उसके कंधों को चीरने लगता था।

    वह छत की रेलिंग से टेक लगाकर खड़ा हो गया। आसमान की ओर उठता धुआँ उसे किसी अनकहे सच जैसा लग रहा था धुंधला… लेकिन भारी।

    “कुछ तो गड़बड़ है…” उसने खुद से बुदबुदाया।

    “मैम… आप हम सबसे कुछ छुपा रही हैं। वर्ना एक फोटो वायरल होना इतना बड़ा मामला नहीं था कि आपकी जैसी औरत उसे संभाल नहीं पाती।”

    वह फिर एक कस लेता है। इस बार धुआँ उसके होंठों से वो बेचैनी लेकर बाहर निकल रहा था जो उसके दिल में जम गई थी।

    “लेकिन आपने शादी करना चुना”

    “क्यों?”

    उसे फ्लैशबैक सा आता है— कुछ देर पहले मौली की आँखें… उन आँखों में जो उसने देखा जो महसूस किया ,जैसे किसी ने सालों से कुछ गहरा अपने दिल में छुपा कर रखी हो।

    "पर कुछ भी हो एक बात तो साफ है…” उसने खुद से कहा,

    “मैम दुनिया के सामने जितनी कठोर और टेढ़ी दिखती है…

    वह असल में उससे भी ज्यादा टेढ़ी है। वो कुछ तो छुपा रही है, कुछ बहुत गहरा ”

    उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई—

    कड़वाहट और समझदारी का अजीब-सा मिश्रण।

    “वो कोई सीधी किताब नहीं है… वह वो ताला है… जिसकी चाबी शायद आज तक बनी ही नही।”

    उसने आकाश की ओर देखा,

    मानो उसका जवाब वहीं छुपा था।

    ***************

    मौली के इतनी बेज्जती करने के बाद रिया और उसके पैरेंट्स वापस चले गए थे ।

    अगली सुबह—

    अक्षत अपनी आदत अनुसार जल्दी उठ गया था। एक हल्की-सी रनिंग, कुछ बेसिक एक्सरसाइज़ करने के बाद वह गार्डन से लौटकर जब कमरे में आया तो उसने देखा मौली अब भी नींद के आगोश में थी— सोते हुए उसखे बिखरे बाल, धीमी साँसें… बिल्कुल वैसी लग रही थी जैसे दुनिया की सबसे नाज़ुक चीज़ हो लेकिन उठने के बाद बिल्कुल इसके उलट थी।

    अक्षत ने एक नज़र देखा और बिना आवाज़ किए बाथरूम में जाकर नहा कर बाहर आया फिर शांत होकर ऑफिस के लिए तैयार होने लगा।

    कुछ देर बाद मौली भी उठी। एक लंबी अंगड़ाई… और फिर उसकी नज़र गई अक्षत पर— जो सोफे पर बैठा लैपटॉप में काम कर रहा था।

    मौली कुछ कहे बिना बाथरूम में चली गई। और जब तैयार होकर बाहर आई तो अक्षत की नज़र उसके गले और माँग पर अनायास फिसल गई—

    न सिंदूर। न मंगलसूत्र।

    मौली ने उसकी तरफ देखा

    और हल्के से पूछा—

    "तुम नाश्ता करने नहीं गए?"

    अक्षत ने तुरंत लैपटॉप बंद किया

    और बिना उसकी आँखों में देखे शांत आवाज़ में बोला—

    "मैं आपका वेट कर रहा था, मैम।"

    मौली ने भौंहें उठाईं— जैसे उसकी बात में कोई छुपा अर्थ ढूँढ रही हो।

    अक्षत ने धीमी, मगर साफ आवाज़ में आगे कहा—

    "अब आप मेरी ओनर हैं…

    तो आपसे पहले मैं कैसे खा सकता हूँ?"

    वह पल भर को रुक गई। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था ,बस एक ठंडी चुप्पी थी।

    "चलो," वह बस इतना कहकर आगे बढ़ गई। अक्षत भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा—

    *********

    दोनों नाश्ते की टेबल पर बैठे थे।

    अक्षत जल्दी जल्दी अपना नाश्ता खाने लगा । वह बीच बीच मे घड़ी पर भी नज़र डालता जा रहा था।

    मौली ने उसे ऐसे खाते देखा तो भौंहें 🤨 सिकोड़कर बोली—

    "अक्षत, आराम से खाओ। कोई ट्रेन 🚆 नही छूटी जा रही है तुम्हारी।"

    अक्षत ने एक सेकंड रुककर उसकी तरफ देखा, फिर सीधी आवाज़ में बोला—

    "लेट हो गया हूँ, मैम।"

    जो सच भी था, मौली का वेट करने के कारण उसे ऑफिस के लिए लेट हो रहा था।

    "ठीक है, तुम टेंशन मत लो… मैं छोड़ दूँगी तुम्हें ऑफिस।" उसने अपनी कोल्ड आवाज मे कहा।

    अक्षत ने तुरंत ना मे सिर हिलाया।

    "इसकी ज़रूरत नहीं है, मैम। ये हमारे डील में नहीं था। मैं अपनी बाइक से चला जाऊँगा।" उसने आख़िरी निवाला खाया,

    बिना एक पल रुके कुर्सी खिसकाकर खड़ा हुआ और सीधा कमरे में गया, अपना बैग उठाया और नीचे पार्किंग की तरफ बढ़ गया।

    मौली बस उसे देखती रह गई— टेबिल पर हाथ टिकाए,

    जैसे उसका जवाब उसके सीने में कहीं चुभ गया हो।

    नीचे, पार्किंग में—

    अक्षत ने अपनी बाइक के पास जाकर हेलमेट उठाया,बाइक स्टार्ट की और अगले ही पल वह गेट से बाहर निकल चुका था।

    *************

    अक्षत जैसे ही ऑफिस के फ्लोर पर पहुँचा, पूरा माहौल एक पल को ठहर-सा गया। लोगों की फुसफुसाहट थम गई, निगाहे उसी पर टिक गई- जैसे अचानक वह किसी और ही दुनिया का इंसान बन गया हो।

    उसने अपने कदम तेज़ किए, पर आसपास उठती नज़रों की गर्माहट उसे चुभ रही थी।

    वह अपने डेस्क तक पहुँच भी नहीं पाया था कि लोग एक-एक कर उसके पास आने लगे।

    वही लोग जो उसे अब तक नज़रअंदाज़ करते थे, या सिर्फ़ काम निकलवाने के लिए बोलते थे— आज हाथ बढ़ाकर मुस्कुरा रहे थे।

    “Congrats, अक्षत!”

    “तुम तो बड़े छुपे रूस्तम निकले ”

    “भाग्य खुल गए भाई के!”

    " भाई सीधा बॉस से शादी कर ली बधाई हो "

    हर शब्द उसके भीतर और गहराई तक उतरता जा रहा था। उसका पोजीशन नही बदला था — बस उसकी कीमत बढ़ गई थी।

    So this is what money does… buys attention,
    Even the respect of people who never looked at me twice." वह अपने मन सोच कर हँसा।

    अंत में मिस्टर मेहरा उसके सामने आए।

    “Congratulations, अक्षत।”

    अक्षत ने बस सिर झुकाकर कहा—

    “Sorry सर, आज थोड़ा लेट…”

    मेहरा हँस दिए— एक ऐसी हँसी जो बयान से ज्यादा इशारा करती थी।

    “ कोई बात नही ,नई-नई शादी हुई है तुम्हारी, मै समझ सकता हूँ, हो जाता है लेट …”

    अक्षत के जबड़े कस गए। वह समझ रहा था उनके कहने का सही मतलब क्या था—

    “ठीक है, अब काम पर लगो।

    Once again, congratulations.”

    अक्षत चुप रहा। वह अपनी डेस्क पर जाकर बैठा और जैसे ही उसकी नज़र उठी, उसे फिर वही निगाहें मिलीं— जिज्ञासा, जलन, और कुछ लोगों की आँखों में एक अजीब-सा सम्मान

    जो उसने कभी चाहा ही नहीं था। उसने गहरी साँस ली,

    अपनी कुर्सी सीधी की और लैपटॉप खोलकर काम करने लगा।

    ***********

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  • 10. Bound by contract - Chapter 10

    Words: 1290

    Estimated Reading Time: 8 min

    ---

    अक्षत अपनी स्क्रीन पर झुका काम में डूबा हुआ था कि अचानक पीछे से एक जानी-पहचानी, मगर खीझ से भरी आवाज़ उसके कानों में पड़ी।

    “Congrats, buddy.”

    टोन ऐसा था जैसे किसी ने मिठाई में नींबू निचोड़ दिया हो। अक्षत ने मुड़कर देखा—करन खड़ा था। जो अपने होंठो पर नकली मुस्कान लिए खड़ा था।

    “क्या हुआ करन? तुम… गुस्से में लग रहे हो?” अक्षत ने भौंहे सिकोड़ते हुए धीरे से पूछा।

    करन एक कड़वी हंसी हंसा।

    “तो क्या मुझे नहीं होना चाहिए?”

    वो फुसफुसा रहा था ताकि और कोई और उनकी बात न सुने।

    “पहली बात—मुझे ये भी नहीं पता कि तेरा और रिया का ब्रेकअप कब और क्यों हुआ…” उसने लगभग आँखें तरेर कर बोला, जिस पर अक्षत नज़र चुलाने की कोशिश करने लगा।

    “और फिर तूने अचानक डेट करना शुरू किया… वो भी हमारी बॉस को? And bro, you even got married! And guess what— मुझे ये सब न्यूज से पता चला.”

    उसकी आवाज़ धीमी थी,

    “Seriously, Akshat… do you even consider me your friend? या हम बस नाम के दोस्त है?”

    अक्षत एक पल को चुप हो गया। वो जानता था करन गलत नहीं था, उसका गुस्सा होना जायज था अगर करन की जगह वह होता और उसे उसके दोस्त के बारे मे कही बाहर से पता चलता है वो भी शायद ऐसे ही रिएक्ट करता जैसे इस समय करन कर रहा था। पर वह सच बता भी नहीं सकता था।

    उसने लंबी साँस छोड़कर कहा,

    “यार… तुम मैम के नेचर के बारे में जानते हो ना। उन्होंने कहा था कि हमारी डेट को secret रखना है.”

    अक्षत एक लम्बी सांस छोड़कर बोला ,वो झूठ बोल रहा था, पर ये उसकी मजबूरी थी।

    “बस इसलिए मैंने तुझे नहीं बताया। और शादी… वो क्यों हुई, ये तो तुझे न्यूज में पता चल ही गया होगा।”

    “Hmm… ये बात तो मैं समझ सकता हूँ।” उसने बहुत धीमे से सिर हिलाते हुए कहा ।

    “वैसे भी… जो किस्मत में होता है न, वो किसी न किसी तरह से मिल ही जाते हैं।”

    करन की बात सुनकर अक्षत बस चुप उसे देखता रह गया। दोनों फिर अपने-अपने सिस्टम की ओर झुक गए, और अपना काम करने लगे। तभी उनके कान मे एक जानी पहचानी आवाज आती है। जो किसी और कि नही उसके कलीग की थी।

    “यू आर सो लकी, ब्रो!” ये आवाज रोहन की थी। जिसके चेहरे पर वही घटिया-सी मुस्कान थी।

    उसके बगल में खड़ा उसका दोस्त तुरंत बोला—

    “ एक्जेक्टली ! भाई को तो सीधा जैकपॉट मिला है …”

    “तुम लोग ये क्या बोल रहे हो? कहना क्या चाहते हो साफ साफ बोलो ।” उनकी बात सुनकर अक्षत ने अपनी भौंहे चढ़ाकर पुछा।

    “ओ कम ऑन, अक्षत … इतना इनोसेन्ट मत बनो. तुम्हें भी पता है तुम्हारे हाथ क्या लगा है.” रोहन ने आँखे घुमाई और हाथ हवा मे हिलाते हुए बोला।

    उसके दोस्त ने जोड़ दिया,

    “मौली कपूर … मोस्ट पावरफुल वुमन ऑफ द कंपनी. जैकपॉट ही तो है।”

    उनकी बात सुनकर अक्षत का जबड़ा कस गया। वह गुस्से मे अपनी जगह से खड़ा हुआ ,और रोहन की आँखो मे देखते हुए बोला।

    “शी इज नोट ए जैकपॉट. शी इज माइ वाइफ.”

    ये शायद पहली बार था जब इतने सालो मे अक्षत ने उनकी किसी बात ( जो की ज्यादातर टॉन्ट ही होता है। ) का जवाब दिया हो ।

    यह सब इसलिए नही था कि अब उसके पास पावर आ गई थी क्योंकि अब वह मौली कपूर का पति था जो शायद आधे से ज्यादा लोग यही मान रहे थे पर ये इसलिए था क्योंकि कोई उसकी पत्नी के बारे में गंदा बोल रहा था।

    “कूल डाउन, ब्रो. वाइ सो सिरीयश ?” रोहन अपने दोनो हाथ ऊपर उठाए बोला।

    इससे पहले कि अक्षत कुछ बोले, करन ने बीच में कहा—

    “यू आर टॉकिंग trash अबॉट हिस वाइफ, और तुम चाहते हो ये शांत रहे? कोई sense है इस बात का ?”

    "रहने दो करन, इनसे बहस मत करो ,वैसे भी यहाँ बहुत काम है ।" अक्षत रोहन को इग्नोर करके करन की ओर देखकर उससे बोलता है। वह बात और नही बढ़ाना चाहता था।

    “ओह, ओह… लगता है किसी में बहुत attitude आ गया है शादी के बाद…” रोहन ने अक्षत को आँखे तरेर कर देखते हुए बोला। रोहन कुछ और बोलने ही वाला था कि अचानक— एक ठंडी, सख्त, सटीक आवाज़ कमरे में गूँजी—

    “What’s going on here?”

    मौली की आवाज़ ने जैसे पूरे एयर-कंडीशंड फ़्लोर का तापमान गिरा दिया था।

    सब लोग अपनी कुर्सियाँ ऐसे सीधी कर लेते हैं जैसे किसी ने अचानक इंस्पेक्शन बुला लिया हो।

    रोहन और उसका दोस्त तो सीधा स्क्रीन पर नजरें गड़ाकर ऐसे बैठ गए मानो हमेशा से काम में डूबे रहे हों।

    मौली आगे बढ़ती है… धीरे, मगर हर कदम में पावर साफ झलक रहा था। जैसे जैसे वह आगे बढ़ रही थी सभी अपनी जगह पर खड़े होकर उसे ग्रीट कर रहे थे।

    वह उस हॉल के सेन्टर मे रूकी और फिल सभी स्टाफ की ओर मुड़ती है—

    "मेरी कम्पनी कोई टी स्टॉल नही है यहाँ मैने आप सबको काम करने के लिए रखा है ना की गॉसिप करने के लिए ।" सभी सिर झुकाए खड़े थे, किसी की हिम्मत नहीं थी ऊपर देखने की।

    “If you want gossip …”

    “ collect your resignation from HR and gossip outside the company.”

    “And one more thing…” वह अपनी बात जारी रखती है।

    उसकी नजरें धीरे-धीरे सभी चेहरों पर घूमती हैं। वह किसी का नाम नहीं लेती— पर जिसकी गलती होती है, उसे लगता है कि सीधा उसी पर बात हो रही है।

    “I don’t tolerate disrespect.
    Not for me.
    Not for anyone associated with me.

    आइ होप सबको मेरे बात समझ आ गई होगी ।" इतना बोलकर वह अपनी केबिन की ओर बढ़ जाती है।

    ****************

    शाम के सात बजे

    अक्षत की बाइक की आवाज धीरे-धीरे विला के गेट में घुसी और कुछ देर बाद वह थका हुआ अंदर आया। मौली अभी तक नहीं लौटी थी। रूम में जाकर उसने जल्दी से शॉवर लिया, टी-शर्ट पहनकर नीचे आया तो किचन में सर्वेन्ट्स रात के खाने की तैयारी कर रहे थे।

    “सर, आपको कुछ चाहिए?” सभी ने एक साथ सिर झुकाकर पूछा।

    “बस… एक चाय ,” अक्षत हल्की मुस्कान के साथ बोला।

    “ठीक है सर, आप बैठिए हम—”

    “नहीं, मै खुद से बना लुँगा आप सब प्लीज अपना काम करिए।” सर्वेन्ट्स को अक्षत की सिंपल और विनम्र नेचर बहुत अच्छा लगा था। वह चाय बनाते-बनाते उनसे हल्की-फुल्की बातें करता रहा, और जिनके चेहरे पर पूरे दिन की थकान थी, वहाँ अब थोड़ी लाइटनेस आ गई थी।

    चाय बनकर तैयार हुई तो वह कप लेकर लिविंग रूम में गया। सोफे पर बैठकर टीवी ऑन किया और एक लंबी सांस लेकर चाय का पहला घूँट लिया— मानों पूरे दिन की थकान उसी एक घूँट में घुल रही हो।

    तभी—

    मौली तेज़ कदमों से, किसी कॉल पर किसी बात को लेकर नाराज़ सी आवाज़ में बोलती अंदर आई।

    “मैंने कहा है… send me the documents tonight. No excuses.”

    कॉल कटते ही उसने सर्वेन्ट को आदेश दिया—

    “Black coffee. Room में भेजो।” और बिना अक्षत को नोटिस किए ऊपर चली गई।

    कुछ ही मिनट बाद सर्वेन्ट उसके रूम में ट्रे रखकर नीचे लौट आया। मौली हाथ में कॉफी लेकर वापस नीचे आई,

    वह सोफे पर अक्षत के पास आकर बैठ गई और फोन स्क्रोल करने लगी।

    लेकिन अक्षत की आँखें उस पर टिक गईं। कुछ देर बाद उसने शांत, लेकिन अडिग आवाज़ में कहा—

    “आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था, मैम।”

    "क्या? ...... क्या नही करना चाहिए था " मौली ने फोन नीचे किया और उसकी ओर घुम गई।

    “आपको मेरे favor में कुछ नहीं बोलना चाहिए था… ऑफिस में। मैं मेरा मामला खुद संभाल सकता हूँ। और इससे भी बड़ी बात लोगो को लगेगा मै आपका फायदा ले रहा हूँ ।”अक्षत उसकक आँखो मे देखते हुए बोला।

    ***********

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  • 11. Bound by contract - Chapter 11

    Words: 1150

    Estimated Reading Time: 7 min

    आपको मेरे favor में कुछ नहीं बोलना चाहिए था… ऑफिस में। मैं मेरा मामला खुद संभाल सकता हूँ। और इससे भी बड़ी बात लोगो को लगेगा मै आपका फायदा ले रहा हूँ ।”अक्षत उसकी आँखो मे देखते हुए बोला।

    अक्षत की बात सुनकर मौली कुछ सेकंड तक उसे खामोशी से देखती रही… जैसे उसकी हर लाइन को अच्छे से absorb कर रही हो। फिर बहुत शांत आवाज़ में उसने कहा—

    “So that’s what you think?” वह धीरे से अपनी कॉफी कप को टेबल पर रखती है।

    “कि लोग क्या सोचेंगे…?” उसने हल्की सी ठंडी हँसी छोड़ी।

    “अगर मैं हर फैसले से पहले दुनिया की राय सोचूँ… तो, अक्षत, मैं आज वहाँ नहीं होती जहाँ हूँ। इसलिए तुम भी लोगो की फिक्र करना छोड़कर अपनी लाइफ अपने तरीके से जियो ”

    “और जहां तक बात तुम्हारी है…” वह कुछ पल ठहरती है और उसकी आँखो मे रखकर बोलती है

    “ मैने तुम्हारे favor मे कुछ नही कहा। मैंने बस अपनी workspace में rule remind कराया— Respect isn’t optional.” उसका टोन अब और भी सख्त हो गया।

    मौली के शब्द अभी भी कमरे की हवा में जैसे ठहरे ही हुए थे।

    अक्षत बस उसे देखता रह गया…

    तभी उसके फोन की तेज रिंग ने उस भारी-सी खामोशी को चीर दिया। अक्षत की नजर अपने फोन पर गई। … और स्क्रीन पर "Riya Calling…" लिखा हुआ था।

    मौली की नजर भी फोन की स्क्रीन पर गईं।

    “Excuse me, Ma’am.” अक्षत उसे देखते हुए हल्के से कहा और अपना फोन उठाकर वहाँ से चला गया।

    मौली कुछ सेकंड तक उसे जाता हुआ देखती रही…

    ************

    अक्षत छत पर पहुँचा और गहरी एक साँस लेकर कॉल रिसीव किया । फोन लगते ही रिया की घबराई हुई आवाज सुनाई देती है

    “हैलो अक्षत… प्लीज फोन मत काटना। मुझे पता है तुम मुझसे नाराज़ हो… पर प्लीज, एक बार मेरी बात सुन लो। आई एम सॉरी… सच में सॉरी। मैंने जो भी किया… हम दोनों के फ्यूचर के लिए किया। प्लीज अक्षत, मुझे माफ़ कर दो। तुम जानते हो… मैं तुमसे बात किए बिना नहीं रह सकती। प्लीज, एक बार मुझसे बात तो करो।”

    अक्षत कुछ सेकंड शांत रहता है… फिर धीरे से बोला —

    “ठीक है… मैंने तुम्हें माफ किया।”

    उधर से रिया की साँसें हल्की-सी थमती हैं—

    “क्या… सच में?”

    अक्षत शांत आवाज में जवाब देता है—

    “हाँ, सच में।”

    फोन के दूसरी तरफ रिया खुशी से भरकर बोलती है—

    “थैंक्यू अक्षत… थैंक्यू सो मच। तुम देखना, ये एक साल कैसे निकल जाएगा, तुम्हें पता भी नहीं लगेगा। फिर सब… पहले की तरह सब ठीक हो जाएगा।” कुछ देर और बात करने के बाद कॉल कट चुका था।

    अक्षत कुछ सेकंड तक मोबाइल स्क्रीन को घूरता रहा।

    हवा हल्की थी, पर उसके अंदर अजीब-सी भारीपन उतर आया था।

    इतनी देर बात हुई…

    पर रिया ने एक बार भी नहीं पूछा “तुम कैसे हो?”

    न उसने पूछा कि वो सब कुछ कैसे संभाल रहा है,

    बस सॉरी… और अपने सफाई मे अपना पक्ष रखना।

    अक्षत ने फोन की स्क्रीन बंद कर दी, पर मन में उठ रहे सवाल बंद नहीं हुए।

    रीया मनुहार कर रही थी, सब ठीक होने की बातें कह रही थी… फिर भी अक्षत के दिल में कुछ वैसा एहसास नहीं था जैसा पहले हुआ करता था। वह तब तक छत पर रहा जब तक एक सर्वेंट उसे खाना खाने के लिए बुलाने नही आया। रात का खाना शांति से हुआ।

    *************

    कुछ दिन बीत गए थे और अब दोनो के बीच कुछ कुछ बातचीत होने लगी थी । अब जाहिर सी बात है अगर दो लोग एक ही घर मे रह रहे है तो ऐसा तो नही है की उनके बीच कोई बात ही ना हो। ऐसे ही एक दिन---

    रात काफ़ी हो चुकी थी। हवेली के बड़े से लिविंग रूम में सिर्फ़ घड़ी की “टिक-टिक” सुनाई दे रही थी। अक्षत अभी तक घर नहीं लौटा था। सर्वेंट अपने-अपने क्वार्टर में जा चुके थे।

    मौली अकेली… लिविंग रूम मे टहल रही थी। क्योंकि उसे निंद नही आ रही थी।

    उसी समय— पूरी हवेली की लाइट्स अचानक एक झटके में बंद हो गईं। पूरा घर गहरे अँधेरे में डूब गया।

    मौली का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसे अपनी सांसें भारी होती महसूस होने लगी ।

    “ no... no …” वह घबराते हुए मोबाइल ढूँढने लगी।

    अंधेरे में चलने की कोशिश में उसका पैर किसी वस्तु से जोर से टकराया— और वह सीधे फर्श पर गिर पड़ी।

    गिरने के साथ ही उसके अंदर दबा हुआ पुराना डर हावि होने लगा।

    बंद कमरा , गुप अंधेरा , चुहे सारी यादें बिजली की तरह वापिस आने लगीं।

    वह फर्श पर बैठी, घुटने सीने से लगाकर खुद को पकड़ लिया।

    उसका पूरा शरीर काँप रहा था।

    अँधेरे में हल्की-सी सिसकी गुँज रही थी वह खुद मे ही बडबडाए जा रही थी

    “मम्मा… प्लीज़ मुझे बाहर निकालो…

    बहुत अँधेरा है…

    प्लीज… कोई तो खोलो दरवाज़ा…

    मुझे यहा डर लग रहा है।”

    वह अब अपने होश में भी नहीं थी, बस वही पुराने शब्द दोहरा रही थी। आँसू लगातार उसके गालों से उतर रहे थे।

    *********

    ऑफिस से निकलते समय फिर रिया का कॉल आया था—

    "अक्षत… पापा की तबियत ठीक नहीं है। प्लीज़… अगर हो सके तो एक बार आ जाओ…"

    "ठीक है अभी अभी आता हूँ " इतना बोलकर अक्षत अपनी बाइक से सीधा उनके घर पहुँचा। वहाँ उसे पता चला रिया के पापा की बीपी बढ़ गई थी। वह कुछ देर उनके पास रहा कुछ बाते की और कुछ देर बाद जब वह जाने लगा तब रिया की माँ उससे बोली

    "बेटा खाना तैयार है , आज हमारे साथ ही डीनर कर लो ।" उनकी बात ऐसी थी जिसे मना करना मुश्किल था। सभी ने साथ मे खाना खाया वक़्त पता ही नहीं चला… और रात काफी हो चुकी थी।

    “अक्षत, पापा खुश हो गए तुम्हें देखकर… Thanks,” रिया जो कि अक्षत को नीचे तक छोड़ने आई थी उससे बोली।

    अक्षत बस हम्म कहता है और बाइक स्टार्ट कर वहाँ से चला जाता है

    कुछ देर बाद जैसे ही हवेली के गेट पर पहुँचा… कुछ अजीब-सा अहसास हुआ। बाहर की लाइट्स ऑफ थीं।

    "अंधेरा क्यों है?

    सब ठीक तो है…?"

    उसने अपने मोबाइल का टॉर्च ऑन किया और अंदर जाने गया। और तभी… अंदर से एक टूटी हुई, हल्की-सी सिसकी सुनाई दी।

    उसके कदम वहीं थम गए, उसने आस पास देखते हुए आगे बढ़ा तभी उसे टॉर्च के लाइट की हल्की पड़छाइयों में उसने उसे देखा…

    मौली… फर्श पर सिकुड़ी हुई थी।

    घुटनों को सीने से लगाकर, सिर झुकाए, पूरे शरीर में कंपकंपी लिए।

    उसके होंठ काँप रहे थे—

    “मम्मा… प्लीज… अंधेरा… मुझे मत छोड़ो… प्लीज…” वह बुदबुदा रही थी।

    उसे एसे देख कर, अक्षत का दिल वहीं ठहर गया।

    उसने मौली को ऐसी हालत में पहले कभी नहीं देखा था।

    वो मौली, जो किसी आग की तरह थी… जिसका ऑरा ही काफी था लोगों को चुप करने के लिए , आज उसी में एक डरी हुई छोटी बच्ची थी।

    ****************

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  • 12. Bound by contract - Chapter 12

    Words: 1037

    Estimated Reading Time: 7 min

    मौली की हालत देखकर अक्षत झटके से उसके पास घुटनों के बल बैठ गया।

    मौली कोने में सिमटी हुई थी, पूरा शरीर काँप रहा था… साँसें तेज़, चेहरा पूरा पसीने से भीगा हुआ था।

    “मैम ,,,, मैम आप ठीक तो है ? क्या हुआ है आपको ।” अक्षत ने बहुत धीरे से उसका कंधा पकड़ा।

    लेकिन जैसे ही उसका हाथ मौली के कंधे पर आया, मौली ऐसे झटकी जैसे किसी ने उसे जला दिया हो।

    “डोन्ट टच मी… नो—नो— लेट मी आउट… मम्मा—” वह बुरी तरह हाँफने लगी अपने हाथ पैर चलाने लगी।

    अक्षत का दिल एकदम कस गया। वह एक पल को रुक गया… उसे समझ नही आया वह क्या करे , फिर कुछ सोचकर वह मौली को अपने सीने से लगा लेता है और उसे अपने बाँहो के घेरे मे ले लेता है

    “मैम… प्लीज़… शांत हो जाईए, देखिए मैं हूँ। अक्षत। कुछ नहीं होगा आपको। मैं हूँ यहाँ।”

    लेकिन वह उसे सुन ही नहीं पा रही थी। वह पूरी ताकत से खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी—

    “नो… नो… मुझे जाने दो… प्ली—” पर अक्षत उसके पीठ को सहलाते हुए उसके कान के पास फुसफुसाया—

    “श्श्श… I got you, कुछ नहीं होगा। आप शेफ हो… बस आप साँस लो ओके …… धीरे धीरे साँस लो…” उसकी आवाज बेहद धीमी, बेहद स्थिर थी।

    एक–दो मिनट तक मौली छूटने के लिए झटपटा रही थी… फिर उसका शरीर अक्षत की पकड़ में ढीला पड़ने लगा। उसकी टूटती साँसें धीरे-धीरे सामान्य होने लगीं।

    “ वैरी गुड ऐसे ही साँस लिजिए, सब ठीक है यहाँ आपको कोई कुछ नही कर रहा । यहाँ सब ठीक है ” वह उसका सिर सहलाते हुए बोल रहा था

    मौली ने अक्षत के कॉलर को कसकर पकड़ रखा था… उसका काँपना कम हो गया था। और पहली बार… अक्षत को महसूस हुआ— इस औरत के अंदर कितनी गहरी चोट है… जिसे वह दिखाती नहीं… जिसे कोई जानता नहीं…

    कुछ देर ऐसे ही रहने के बाद मौली धीरे से अपना सिर अक्षत के सीने से निकालती है और अपनी घनी पहले उठाकर अक्षत को देखती है उसकी आँखें लाल थीं… आँसुओं से भरी हुई…

    अक्षत को देखते ही वह हल्का-सा हिचकी लेकर बोली—

    “ मुझे… अंधेरा नहीं चाहिए… प्लीज कुछ करो”

    अक्षत ने उसका कोमल सा चेहरा अपने हाथ मे लिया।

    “आप चिन्ता मत किजिए … लाइट अभी आ जाएगी… ओके?” उसकी बात सुनकर मौली ने किसी छोटी बच्ची की तरह अपना सिर हाँ मे हिलाया। उसकी आँखे अभी भी डर से भरी थी

    अक्षत ने धीरे से उसके गाल से अपना हाथ हटाया…

    और उठने ही लगा— तभी मौली ने अचानक उसकी कलाई कसकर पकड़ ली।

    “तुम… कहाँ जा रहे हो?” उसने डर से कांपते स्वर में पूछा।

    “मैं बस चेक करके आता हूँ कि प्रॉब्लम क्या है—” लेकिन वह बात पूरी भी नहीं कर पाया।

    “न-नहीं… प्लीज…” मौली ने लगभग विनती करते हुए कहा,

    उसकी पकड़ और भी कस गई।

    “मुझे… मुझे छोड़कर मत जाओ।” उसकी आँखें भीगी थीं।

    आवाज़ काँप रही थी। और उसमें छुपा डर… अक्षत के सीने में कहीं गहरे उतर गया।

    अक्षत उसके पास घुटनों के बल बैठ गया। उसकी कलाई पर मौली की पकड़ अभी भी टाइट थी।

    “ठीक है…” उसने बेहद कोमलता से कहा।

    “मैं कहीं नहीं जा रहा।

    मैं यहीं हूँ… आपके साथ।”

    मौली अब भी काँप रही थी, पर अक्षत की मौजूदगी जैसे उसके डर पर धीरे-धीरे मरहम रख रही हो।

    कुछ ही मिनटों बाद, उसका सिर धीरे से अक्षत के कंधे पर टिक गया…

    और उसकी साँसें हल्की-हल्की नियमित होने लगीं।

    अक्षत बिल्कुल चुप बैठा रहा—

    डरता था कि कहीं ज़रा-सी हरकत से वह फिर घबरा न जाए।

    कुछ ही देर में मौली उसी पोज़िशन में…

    उसकी कंधे पर सिर रखे नींद में चली गई।

    उसकी पकड़ अभी भी अक्षत की कलाई पर वैसे ही टिकी थी।

    जैसे उसने छोड़ना ही भूल गई हो।

    थोड़ी देर बाद अचानक घर की सारी लाइट्स वापस आ गईं।

    चमक से अक्षत ने पलकें झपकाईं, पर मौली ज़रा भी हिली नहीं।

    तभी एक गार्ड अंदर आया।

    “सर… सोरी… थोड़ी टेक्निकल प्रॉब्लम थी।

    अब सब ठीक कर दिया है।” गार्ड ने सिर झुकाकर कहा।

    अक्षत ने उँगली होंठों पर रखते हुए धीमे से कहा,

    “ठीक है… जाओ। और ध्यान रखना, दोबारा ऐसा न हो।”

    गार्ड सिर झुकाकर चला गया।

    अब अक्षत ने बहुत धीरे से मौली की पकड से अपनी कलाई छुड़ाने की कोशिश की— पर उसकी पकड़ अभी भी उतनी ही टाइट थी। जैसे वह बेहोशी में भी जानती हो कि उसे किससे डर नहीं है।

    “मैम…” अक्षत ने फुसफुसाकर उसे जगाने की कोशिश की।

    “रूम में चलते हैं… उठिए…”

    लेकिन मौली गहरी नींद में थी, अक्षत कुछ क्षण उसे यूँ ही देखता रहा। फिर एक हल्की सांस लेकर उसने बहुत सावधानी से उसे अपनी बाँहों में उठा लिया।

    मौली का चेहरा उसके सीने पर ढुलक गया।

    उसका एक हाथ अक्षत के कंधे पर था और दूसरे हाथ से अक्षत की शर्ट पकड़े थीं।

    अक्षत धीमे, नपे कदमों से सीढ़ियाँ चढ़ा, कमरे का दरवाज़ा खोला और उसे बेड पर बहुत सॉफ्टली मौली को लिटा दिया।

    जैसे ही वह उठकर पीछे होने लगा, उसकी नजर मौली के पैर पर गई—

    उसके पैर मे हल्की-सी स्वेलिंग थी… और कुछ खरोंच भी थी।

    जो शायद अंधेरे में गिरते वक्त लगी होगी। अक्षत के माथे पर चिंता उतर आई। उसने फस्ट एड बॉक्स से एक क्रिम निकाला और बेड मे उसके पैर के पास बैठ कर बहुत ही कोमलता से मौली के पैर को अपने हाथ में लिया।

    उसका स्पर्श इतना हल्का था जैसे डरता हो कि कहीं उसकी नींद टूट न जाए।

    धीरे-धीरे वह क्रिम लगाने लगा— उंगलियों की नर्मी में एक अजीब-सी सावधानी थी, एक अनकहा ख्याल… जिसे शायद खुद अक्षत भी शब्द नहीं दे पा रहा था।

    एक-दो बार मौली हल्की-सी हिली, तो वह तुरंत रुक गया— पर वह फिर शांत हो गई।

    अक्षत ने क्रिम लगाते हुए हल्की हल्की मालिश की और बहुत नरमी से उसके पैर को वापस बेड पर टिकाया।

    फिर वह सोफे पर आया और लेट गया , वह मौली के चेहरे को देख रहा था। जिसकी लंबी पलकें अब सुकून से ढकी थी । वह जाने कब तक उसे ऐसे ही देखते रहता मगर नींद ने उसे अपने आगोश मे ले लिया।

    ***************

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  • 13. Bound by contract - Chapter 13

    Words: 1182

    Estimated Reading Time: 8 min

    अगली सुबह…

    मौली की आँखें धीरे से खुलीं। कुछ सेकंड तक उसे समझ ही नहीं आया कि वह कहाँ है… वह धीरे से उठने के लिए चादर हटाती है, लेकिन जैसे ही उसने अपने पैर को मुव किया—

    “आह…” उसके होंठों से दर्द की हल्की सी आवाज निकल गई।

    पैर में तेज़ दर्द की लहर उठी, और वह वहीं थम गई। अक्षत, जो बालकनी मे फोन कॉल पर था, तुरंत उसकी ओर मुड़ा।

    “मैम… आप ठीक हैं?” उसने जल्दी से अंदर आते हुए पूछा, चेहरे पर साफ़ चिंता झलक रही थी।

    अक्षत को देखकर रात की सारी बातें… उसका डर… उसका पकड़े रखना…… सब कुछ एक-एक करके याद आने लगा।

    वह थोड़ा असहज हो गई।

    “हाँ… मैं ठीक हूँ,” उसने धीमे से नजरे चुराते हुए कहा और दर्द छुपाने की कोशिश में अपने पैर को देखने लगी।

    “शायद आपके पैर में मोच आ गई है,” उसने शांत, प्रोफेशनल टोन में कहा।

    “आपको चलने में परेशानी होगी। आप बैठे रहिए, मैं अभी किसी मेड को भेजता हूँ जो आपको फ्रेश होने में मदद कर दे। और डॉक्टर को भी बुला लेता हूँ। ” मौली कुछ बोल नहीं पाई…वह चुपचाप अक्षत के चेहरे को देखती रही ।

    ***************

    कुछ ही देर मे एक मेड आतो है जो मौली को सहारा देकर चलाने की कोशिश कर रही थी पर मौली कुछ कदम भी नहीं चली थी कि उसके चेहरे पर दर्द की तीखी शिकन उभर आई। उसके पैर में फिर से दर्द चुभा और वह हल्का-सा लड़खड़ा गई। यह देखकर अक्षत झट से आगे आया।

    “रुकिए… ऐसे नहीं,” वह धीमी लेकिन सख़्त आवाज़ में बोला मौली कुछ समझ पाती उससे पहले ही अक्षत ने उसे अपनी बाँहों में उठा लिया।

    “अक्षत! ये… तुम क्या कर रहे हो?” मौली की आवाज़ हड़बड़ाई हुई थी।

    “आपके पैर में दर्द है, मै आपकी मदद कर देता हूँ।” वह बस इतना बोला और सीधा उसे बाथरूम तक ले गया।

    वहाँ पहुँचकर वह बहुत सावधानी से उसे नीचे उतारता है और मेड को आवाज़ देता है—

    “इनकी मदद करना। और हो जाए तो मुझे बुला लेना।” इतना कहकर वह बाहर चला जाता है।

    कुछ देर बाद मेड की मदद से मौली तैयार हो पाती है। बाथरूम के बाहर खड़ा अक्षत तुरंत फिर उसे उसी तरह गोद में उठा लेता है जैसे ले गया था।

    “अक्षत, रहने दो… मैं खुद—”

    “नहीं,” उसने हल्की लेकिन साफ़ आवाज़ में कहा।

    वह उसे धीरे से उठाकर कमरे तक लाता है और बेड पर लेटा देता है। उसी समय डॉक्टर भी आ चुके थे।

    कुछ ही मिनटों में डॉक्टर ने चेकअप किया।

    थोड़ा दबाया, थोड़ा घुमाया— मौली दर्द से हल्का सा सिहर गई।

    “मोच है। ज्यादा बड़ी बात नहीं,” डॉक्टर बोला।

    “पर एक–दो दिन पैर पर जोर मत डालिएगा। सूजन उतर जाएगी। ज्यादा दर्द होने पर ये दवाई ले लिजिएगा दर्द कम हो जाएगा और ये क्रीम है जिसे दो से तीन बार लागा कर हल्के हाथ से मालिश करना है।”

    *****

    डॉक्टर के जाने के बाद मेड नाश्ता लेकर आई जिसे मौली खाने लगी। अक्षत अपना ऑफिस बैग तैयार कर रहा था, लेकिन उसकी नज़र बार-बार मौली पर जा रही थी।

    कुछ पल सोचने के बाद वह धीरे से बोला—

    “मैम… अगर आप बुरा न माने तो एक सवाल पूछूँ?”

    मौली बस उसे देखकर रुक जाती है, जवाब नहीं देती—शायद उसे पता था वह क्या पूछने वाला है।

    अक्षत उसके पास आकर खड़ा हो गया।

    “कल रात… आप इतना पैनिक क्यों हो गई थी ? आप… इतनी डर गई थीं कि खुद को संभाल नहीं पा रहीं थीं। कोई वजह है?”

    मौली की पलकें झटके से नीचे गिर गईं। वह कुछ सेकेंड तक चुप रही… फिर बहुत धीमी आवाज़ में बोली—

    “कुछ नहीं। बचपन से ही अंधेरे से… बहुत ज़्यादा डर लगता है। बस… वही।”

    अक्षत को उसके जवाब पर यकीन नहीं हुआ। पर वह कर भी क्या सकता था।

    “ठीक है,” उसने धीरे से कहा। “आप आराम कीजिए।” इतना कहकर वह हल्के कदमों से कमरे से निकल गया,

    **********

    लंच टाइम

    कैफ़ेटेरिया में करन और अक्षत दोनो साथ मै लंच कर रहे थे। दोनों कुछ देर तक चुपचाप खाना खाते रहे, फिर करन ने हल्के-से पूछा—

    “ वैसै , आज मैम क्यूँ नहीं आई? सब ठीक तो है ना ?”

    अक्षत ने उसकी ओर देखा और शांत स्वर में बोला—

    “हम्म सब ठीक है … बस उनके पैर में मोच आ गई है। डॉक्टर ने कहा है दो-तीन दिन आराम करना पड़ेगा।”

    “ओह … बहुत बुरा हुआ यार। दो दिन बाद न्यू इयर है और ऐसे टाइम पर चोट लग गई…” करन दुख जताते हुए बोला ।

    ---

    शाम — घर पर

    शाम करीब 7 बजे अक्षत घर पहुँचा। हवेली के अंदर । हमेशा की तरह हल्की-सी शांति थी, वह सीधा अपने कमरे में गया, क्लोज़ेट खोला… और एक पल के लिए रुक गया। अंदर उसके कपड़े थे ही नहीं।

    अक्षत ने भौंहें सिकुड़ते हुए खुद से ही सवाल किया —

    “मेरे कपड़े कहाँ गए?”

    मौली, जो बेड पर चादर ओढ़कर बैठी थी, शांत आवाज में बोली— “मैंने तुम्हारा पूरा सामान पास वाले कमरे में शिफ्ट करवा दिया है।

    अक्षत कुछ नही कहता वह बोल भी क्या सकता था उसे बोलने का हक ही नही था । और एक तरह से दोनो का अलग अलग रूम मे रहना सही भी था ।

    “ठीक है।” वह बिना कुछ कहे पास वाले कमरे में चला गया।

    कपड़े बदले… और अकेले कमरे की खामोशी में लेटते हुए यही सोचता रहा-

    "कब से मैं उसके इतने करीब आ गया… कि दूर किया जाना अजीब लगने लगा है?"

    ************

    •• दो दिन बाद — ••

    पिछले दो दिनों में मौली का पैर लगभग ठीक हो चुका था। वह अब बिना सहारे के धीरे-धीरे चल भी पा रही थी। क्योंकिआज न्यू इयर के पहले की शाम थी, इसलिए आज सबको थोड़ी जल्दी छुट्टी मिली थी , तो सब जल्दी निकल रहे थे। अक्षत भी निकल रहा था तभी अक्षत के फोन पर कॉल आया— जो कि रिया का था ।

    अक्षत ने फोन उठाया।

    “हेलो अक्षत… आज रात घर आ जाना ।हर साल की तरह हम सब मिलकर न्यू ईयर सेलिब्रेट करेंगे।” रिया की आवाज हमेशा की तरह नॉर्मल थी।

    अक्षत कुछ सेकंड तक चुप रहा। सच कहें तो वह नहीं जाना चाहता था। ना उसके अंदर उतनी खुशी थी, ना उस रिश्ते में अब पहले जैसी गर्माहट।

    फिर भी वह मना करने ही वाला था कि उसकी नज़र ऑफिस से बाहर जाती मौली पर पड़ी। उसे याद आता है दो दिनों से मौली उसे इग्नोर कर रही थी।

    अक्षत समझ नहीं पा रहा था— हुआ क्या है ?

    “अक्षत? सुन रहे हो?” कॉल की दूसरी ओर से रिया बोल रही थी।

    अक्षत ने गहरी सांस ली, और कुछ सोचकर कहा—

    “ठीक है… आज आ जाऊँगा।”

    रिया खुश हो गई, पर अक्षत खुद नहीं जानता था कि उसने हाँ क्यों बोली।

    शायद इसलिए…

    क्योंकि मौली का इग्नोर करना कहीं ज़्यादा चुभ रहा था।

    वह फोन कट करते हुए सिर्फ इतना सोच रहा था—

    “मैंने आखिर किया क्या है जो मैम मुझे इग्नोर कर रही है?”

    लेकिन उसके पास इन सवालों के जवाब नहीं थे… फिलहाल, के लिए उसे बस रिया के घर जाना था।

    ***********

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  • 14. Bound by contract - Chapter 14

    Words: 1138

    Estimated Reading Time: 7 min

    ---

    अक्षत बाइक स्टार्ट करने ही वाला था पर उसके मन मे सवाल उठा -

    क्या उन्हे बिना बताए जाना ठीक होगा?

    फिर कुछ सोचकर उसने फोन निकाला और एक छोटा-सा मैसेज टाइप कर दिया—

    “मैं अपने पुराने घर जा रहा हूँ… न्यू ईयर सेलिब्रेट करने। रात तक नहीं आ पाऊँगा।”

    सेंड बटन दबाते ही उसने फोन वापस जेब में डाला, हेलमेट पहना और बाइक सड़क पर दौड़ा दी।

    कुछ ही देर बाद वह एक छोटी-सी गिफ्ट शॉप के सामने रुका।

    नया साल था… और अब वह मौली के साथ रहता था, इसलिए उसके खर्चों में फर्क आ गया था। कुछ पैसे बचने लगे थे—खाने-पीने, रहन-सहन का आधा खर्च अब नहीं था। इसी वजह से वह सबके लिए कुछ छोटा-सा गिफ्ट लेना चाहता था।

    अंदर जाकर वह शेल्फ़ पर नजरें दौड़ाने लगा।

    रिया के लिए उसने एक खूबसूरत सा ब्रेसलेट चुना।

    महंगा नहीं था… लेकिन नाजुक, सुंदर और उसके taste के हिसाब से बिल्कुल परफेक्ट।

    फिर वह रिया के पापा के लिए एक क्लासिक-सी वॉच ली।

    अब बारी आती थी रिया की माँ की।

    कुछ देर देखने के बाद उसे एक हल्के क्रीम रंग की सुंदर साड़ी पसंद आई । वह बिलिंग काउंटर पर गया … तभी उसकी नजर एक ओर टंगी नीली रंग की शिफ़ॉन साड़ी पर अटक गई।

    बरबस ही उसके मन में एक चेहरा उभरता है— जो किसी और का नही बल्की मौली का था ।

    वह खुद भी नहीं समझ पाया कि क्यों।

    शायद… क्योंकि वह रंग मौली पर बहुत सुंदर लगता।

    हाँ शायद… यही वजह थी।

    “ एक्सक्युज मी , प्लीज वो साड़ी भी पैक कर दीजिए,” उसने बिना सोचे समझे सेल्स गर्ल से कहा।

    गिफ्ट्स के पैक होने के बाद उसने बैग संभाला और शॉप से बाहर निकल आया। नीली साड़ी अलग पैक थी… ।

    बाइक स्टार्ट करते हुए उसके चेहरे पर एक हल्की, अनकही-सी मुस्कान थी। वह चॉल की तरफ अपनी बाइक मोड़ देता है

    ********

    चॉल पहुँचकर अक्षत ने अपनी बाइक एक कोने में खड़ी की। ठंडी हवा चल रही थी, लेकिन उसके मन में अजीब-सी बेचैनी थी। उसने शॉपिंग बैग्स उठाए और धीरे-धीरे रिया के घर की ओर बढ़ गया।

    उसने बैल बजाया और कुछ ही देर मे दरवाज़ा खुला गया ।

    “अरे अक्षत ! तुम आ गए बेटा !” रिया की माँ ने बनावटी मुस्कान के साथ कहा।

    अक्षत ने हल्की-सी स्माइल दी और अंदर आया।

    “जी आँटी… कैसी है आप।”

    उसने एक-एक करके सभी को उनके गिफ्ट्स दे दिए,सभी ने जल्दी से अपना अपना गिफ्ट खोला।

    रिया के लिए सुंदर ब्रेसलेट,

    उसके पापा के लिए वॉच,

    और रिया की माँ के लिए साड़ी।

    सबने गिफ्ट हाथ में लिया…

    पर उनके चेहरों पर वह चमक नहीं थी जो पहले हुआ करती थी। गिफ्ट मिलने पर।

    उनके चेहरे पर ना ही कोई एक्साइटमेंट थी , ना कोई खुश होने का रिएक्शन। बस थी तो एक फोर्स्ड स्माइल।

    क्योंकि अब तो उन्हें मौली से मिले पैसों से “ब्रांडेड” लाइफ की आदत लग रही थी। उनके लिए अब ये सब सामान्य, सस्ता और फीका लगने लगा था।

    “बहुत सुंदर है बेटा…”

    रिया की माँ ने कहा, लेकिन उनकी आवाज़ में वह खुशी नहीं थी—बस एक बनावटी मिठास थी। अक्षत बस मुस्करा कर चुप रहा।

    "चलिए आंटी मै भी किचन मे आपकी कुछ हैल्प करा देता हूँ ।" कुछ देर बाद अक्षत कहता है क्योंकि हर साल वह रिया और उसकी माँ कि खाना बनाने मे होल्प करता था।

    रिया ने सोफे पर बैठते हुए कहा,

    “ इसकी जरूरत नही है अक्षत इस बार मम्मी ने बाहर से ही खाना ऑर्डर किया है, तो इस बार खाना बनाने की जरूरत नहक है।”

    उसकी बात सुनकर अक्षत ने बस सिर हिलाया। उसे अब यहाँ पहले जैसा कुछ नही लग रहा था सब कुछ बदल गया था।

    आदतें बदल चुकी थीं… और शायद लोग भी। वह चुपचाप बैठा सब देखता रहा…

    *******

    कार में बैठी मौली ने खिड़की के बाहर नज़र टिकाए रखीं, जब उसके फोन पर अक्षत का मैसेज आया—

    “मैं पुराने घर जा रहा हूँ न्यू ईयर सेलिब्रेट करने।”

    मौली ने स्क्रीन कुछ सेकंड तक देखी… पर कोई रिप्लाई नहीं किया। बस फोन साइलेंट कर दिया और अपनी नज़रें फिर बाहर के अँधेरे आसमान पर टिका दी।

    कुछ ही देर बाद ड्राइवर ने गाड़ी हवेली के गेट पर रोकी। मौली धीरे-से उतरी, ऊपर अपने कमरे मे गई और फ्रेश होकर नीचे लौटी। उसने गहरी साँस लेकर सभी स्टाफ को हॉल में बुलाने को कहा।

    क्योंकि कल न्यू ईयर था, इसलिए मौली ने सबको मीठे का डिब्बा और कुछ पैसे दिए।

    “आप सब घर जाइए… कल छुट्टी है। अपने परिवार के साथ समय बिताइए।”

    सभी ने खुशी से धन्यवाद कहा और थोड़ी ही देर में पूरा घर खाली हो गया।

    अब हवेली में बस मौन था… और मौली थी ।

    वह काउच पर बैठी ही थी कि उसका फोन बज उठा।

    स्क्रीन पर एक परिचित नम्बर चमक रहा था।

    मौली ने कॉल उठाई सामने से कुछ कहाँ गया, आवाज़ को सामान्य रखने की कोशिश करते हुए बोली—

    “हाँ, मैं ठीक हूँ… और आप? तबियत कैसी है?”

    सामने से किसी ने, थके हुए मगर प्रेम भरे स्वर में कुछ कहा ।

    मौली की आँखें हल्का-सा नम हो गईं, पर उसने मुस्कुराने की कोशिश की—

    “आप फिक्र मत कीजिए… यहाँ सब सही है। आप बस दवाइयाँ लेते रहें।”

    सामने वाले ने शायद फिर कुछ पूछा—

    मौली ने फिर वही शांत, संभली हुई आवाज़ में कहा—

    “हाँ… मैं ठीक हूँ। बिलकुल ठीक।"

    दोनों कुछ देर तक ऐसे ही धीरे-धीरे बात करते रहे।

    आखिर में मौली ने हल्के से मुस्कुराकर कहा—

    “हैप्पी न्यू ईयर…”

    और कॉल कट होते ही कमरा फिर से उसी खामोशी से भर गया, जैसे कभी कोई आवाज़ आई ही न हो।

    **********

    कुछ देर बाद

    मौली लिविंग रूम के सोफे से टेक लगाकर ज़मीन पर बैठी थी ।

    उसके सामने ही रेड वाइन की बोतल रखी थी, और उसके हाथ में आधा भरा हुआ ग्लास था।

    गिलास की सतह पर उंगलियाँ फेरते हुए वह सोच रही थी…

    अक्षत क्यो इनता ध्यान रख रहे हो मेरा? मुझे इसकी आदत नहीं है। किसी के केयर की भी नहीं… और शायद यही वजह है कि उसके हर छोटे ध्यान से दिल पर जैसे हल्की-सी चुभन होती है।
    जैसे मैं उस देखभाल की हक़दार ही नहीं हूँ। प्लीज मुझे माफ़ कर देना अक्षत। मै तुम्हे इन सब मे खिचना नही चाहती थी। पर मुझे ये करना पड़ा।

    उसने वाइन की ग्लास फिर से अपने होंठो से लगाया वाइन का कड़वा स्वाद गले में उतरते ही मन में वही बात घूमने लगी और वह धीरे से खुद मे ही बोल पडी—

    “अक्षत, तुम जितना दूर रहो… उतना ही तुम्हारे और मेरे दोनो के लिए अच्छा होगा।”

    ***********

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    जितने भी पाठक मेरी इस कहानी को पढ़ रहे है प्लीज कुछ तो कमेंट करे , मुझे बताए आपको ये कहानी पसंद आ रही है या नही , मुझे मेरी गलतियाँ बताए जहाँ मै सुधार कर सकू।

  • 15. Bound by contract - Chapter 15

    Words: 1411

    Estimated Reading Time: 9 min

    ---

    इधर रिया के घर मे-

    रेस्टोरेंट से आया हुआ खाना टेबल पर रखा था—गरम, महकदार और सबके पसंद का।

    सब खाने शुरू ही वाले थे कि अचानक पूरे चॉल की लाइट चली गई।

    रिया झुँझलाई—

    “ये चॉल वाले भी ना! पता नहीं कब सुधरेंगे! हर दो दिन में लाइट चली जाती है!”

    उसकी माँ भी समर्थन में बोली—

    “हाँ बेटा, जैसे ही बाकी पैसे मिलेंगे ना… सबसे पहले हम एक अच्छा-सा बंगला लेंगे। और यहाँ से सिफ्ट हो जाएंगे, और फिर कार भी। ये सब चॉल-फॉल की झंझट नहीं रहेगी।”

    रिया, अक्षत की तरफ देखते हुए बोली—

    “हाँ अक्षत? बस थोड़ा-सा टाइम और… फिर हमें ये सब झंझट नहीं सहना पड़ेगा।”

    उनकी बात सुनकर अक्षत खामोश था। उसने कुछ जवाब नहीं दिया।

    “तुम सुन भी रहे हो?” रिया ने भौंहे सिकोड़कर उसे देखा और कहाँ। अक्षत फिर भी चुप रहा। फिर अचानक उसने अपनी कुर्सी खिसकाई और जल्दी से उठ खड़ा हुआ। और दरवाजे की ओर चल पड़ा।

    “अरे! अक्षत… कहाँ जा रहे हो?” रिया ने पीछे से आवाज लगाई। लेकिन अक्षत ने एक शब्द भी नहीं कहा।

    वह तेज कदमों से सीढ़ियाँ उतरता हुआ बाहर पहुँचा… अपने चेहरे पर हल्की-सी घबराहट, उतावली, और अजीब-सी बेचैनी लिये हुए।

    वह बाइक तक पहुँचा, हेलमेट लगाया, और बिना एक सेकंड गँवाए इंजन स्टार्ट किया। और उसकी बाइक हवा की तरह सडको पर दौड़ पड़ी।

    उसकी साँसें तेज थीं… दिल धड़क रहा था।

    क्यों?

    क्योंकि जैसे ही चॉल में लाइट गई, उसका दिमाग बस एक चेहरे पर अटक गया था— वह था मौली का।

    उसे याद आया… उसकी वो घबराहट, वो कांपना,

    बस एक ही ख्याल बार-बार उसके दिमाग में गूँज रहा था—

    “ लाइट चली गई ? वो ठीक तो होगी ना …” यही सब सोचते हुए बाइक कपूर विला के गेट पर आकर रुकी।

    अक्षत लगभग कूदकर उतरा और भागता हुआ अंदर घुसा।

    अंदर आते ही उसकी आँखें रोशनी से मिलीं पूरा घर जगमगा रहा था। अक्षत ने गहरा साँस छोड़ा… उसके चेहरे पर राहत की हल्की-सी मुस्कान आई।उसे तभी एहसास हुआ— वह चॉल में था जहाँ लाइट जाना आम बात है। फिर इतना घबराया क्यों? लेकिन दिल से जो निकला था…

    वो सच था। वह डर गया था। वह सच में डर गया था… मौली के लिए।

    वह आगे बढ़ा इस वक्त वहाँ शांति थी जिसे कुछ हल्की सी आवाज तोड़ रही थी अक्षत आवाज की दिशा मे गया। वहाँ मौली जमीन पर बैठी थी सामने टी.वी पर कोई मूवी चल रही थी और वह मूवी देखते हुए हाथ मे रखे ग्लास से घुट भर रही थी।

    "मैम " अक्षत ने धीरे से उसे आवाज लगाया ।

    मौली ने आवाज़ की दिशा में देखा—अक्षत वहाँ खड़ा था। हाँ अक्षत ही था और ना जाने क्यो पर उसे इस वक़्त यहाँ देखकर उसके दिल में एक अजीब-सा सुकून उतर आया।

    उसने जल्दी से उठने की कोशिश करी, जिस वजह से वह हल्का-सा लड़खड़ा गई थी।

    अक्षत एक झटके में आगे बढ़ा और उसकी बाँहों ने उसे थाम लिया ।

    “सम्हाल कर…” अक्षत धीमे से कहता है।

    मौली उसकी तरफ देखती है, होंठों पर हल्की मुस्कान,

    “फिक्र मत करो… I’m totally sober…”

    पर उसकी आवाज़ धीमी और थोड़ी काँपती थी।

    अक्षत को पता था—वह जितना कह रही है उतना सोबर नहीं है…

    उसने मौली को सही से खड़ा किया।

    “वैसे… तुम तो न्यू ईयर सेलिब्रेट करने गए थे, न?” मौली ने धीरे से पूछा।

    अक्षत ने नज़रें चुरा लीं,

    “हाँ… गया था।”

    “फिर? वापस क्यों आ गए?” उसके शब्दों में तंज़ नहीं था… बस एक जिज्ञासा थी।

    अक्षत ने हल्की सांस ली,

    “आपकी बात याद आ गई थी… कि जब तक हम शादी-शुदा है तब तक मेरे कोई भी ऐसा न्यूज बाहर ना आए जो हमारे शादी पर सवाल उठाए। बस इसलिए… वापस आ गया।” उसने सच का सिर्फ आधा हिस्सा कहा था।

    बाकी आधा उसके दिल में था— अब अक्षत उसे यह तो नही बता सकता था ना, कि लाइट तो चॉल की गई थी लेकिन वह हवा की रफ्तार से अपनी बाइक चलाते हुए किसी बेवकूफ़ की तरह यहाँ आ गया , कि कहीं वह फिर से अंधेरे में अकेली न हों।”

    उसके मन के शब्द बाहर नहीं आए…

    मौली उसे कुछ सेकंड देखती रही।

    “अच्छा किया…” मौली ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा। और चुप हो गई।

    दोनों सोफे पर बैठे थे। उनके बीच सिर्फ टीवी की आवाज थी… और कोई कुछ नही बोला रहा था।

    थोड़ी देर बाद—

    “आपने खाना खा लिया?” अक्षत ने गला साफ करते हुए बात शुरू की।

    “अभी नहीं। सबको छुट्टी दे दी थी… और मुझे कुछ खास बनाना आता नहीं।” मौली ने कंधे उचका कर बेफिक्रि से कहा ।

    “आप बैठिए। मैं कुछ बना देता हूँ।” अक्षत ने तुरंत उठकर कहा।

    “तुम्हें खाना बनाना आता है?” मौली ने अपनी भौंहे उठाकर पुछा।

    “हाँ। बिल्कुल, आप बस मुझे ये बताए आपको खाना क्या है।”

    “ मुझे चाहिए—सुखी आलू-गोभी की सब्जी, पूरी… और…”

    वह हल्की-सी मुस्कान के साथ अपने हाथ रगड़ते हुए बोली—

    “ इस ठंडे ठंडे मौसम में गर्म-गर्म गाजर का हलवा।”

    “अभी रात के ग्यारह बजने वाले हैं। आप इतना सब खा लोगी?” अक्षत अपनी घड़ी मे समय देखते हुए पुछा।

    “सच बोलो… तुम्हें बनाना नहीं आता ना। ऐसे बहाने मत करो।” मौली अपनी कमर पर हाथ रखकर उसे देखते हुए बोली।

    अक्षत ने उसके सामने आकर अपनी शर्ट की बाजू कोहनी तक मोड़ी, और एक हल्की, शांत लेकिन भरोसेभरी आवाज में बोला—

    “आप बस थोड़ी देर वेट कीजिए, मैम… सब बना कर लाता हूँ।”

    " मै भी तुम्हारी हैल्प करती हूँ ।" वह बोली।

    "आपको आता भी है कुछ " अक्षत ने बहुत ही धीरे से कहा लेकिन मौली ने उसकी बात सुन ली थी। मौली ने उसे घूरकर देखा।

    "सॉरी मैम" अक्षत ने कहा।

    "तुम बस मुझे बताओ करना क्या है" इतना बोलकर वह अपना चीन ऊपर कर आगे बढ़ गई।

    दोनो किचन मे आए अक्षत ने फ्रिज से सब्जी निकाल ली और मौली के सामने गाजर रखते हुए बोला-

    " आप बस ये गाजर कद्दुकस कर दीजिए ।"

    "ओके बट ये करते कैसे है ?" मौली ने अपनी हुडी की स्लीव ऊपर करते हुए पूछा। और उसनै कुछ ऐसे पूछा की वह बहुत क्यूट लग रही थी ऊपर से उसके गाल जिन पर हल्की गुलाबी रंगत थी अब इसकी वजह ठंड थी, वाइन थी या कुछ और ये तो पता नही।

    अक्षत उसे देखते रह गया।

    "ओ हैलो देख क्या रहे हो? डेमो दो ये कैसे करना है फिर मै कर लूँगी " मौली उसके सामने चुटकी बजाते हुए बोली । अक्षत ने उससे नज़र हटाया और एक गाजर को कद्दुकस करके दिखाया।जिसके बाद मौली लग गई काम पर।
    और अक्षत अपने काम पर , उसने सबसे पहले पूरी के लिए आटा गुथकर साइड रखा फिर सब्जी बनाने लगा । कुछ ही देर मे सब्जी बन गई थी और अब बारी थी पूरीयो की । गाजर भी कद्दुकस हो गया था ।


    “वाओ… कितनी अच्छी खुशबू आ रही है।” मौली ने कहा।
    उसके सामने कढ़ाई में सुनहरी, फूली हुई पूरी तल रही थी और दूसरी तरफ़ पतीले में ताज़ा बना गाजर का हलवा धीमी आग पर पक रहा था। घी की महक, गाजर की मिठास और इलायची की खुशबू हवा में घुल रही थी।


    मौली स्लैब पर बैठी पैर हल्के-से झुला रही थी। उसकी निगाहें कड़ाही में पकते हलवे पर टिकी थीं।

    “मुझे टेस्ट करना है हलवा…” उसने बच्चे जैसी मासूम आवाज़ में कहा।

    “मैम, अभी थोड़ी देर और लगेगी बनने में।” अक्षत हल्वे मे चम्मच चलाते हुए बोला।

    “पर कितनी अच्छी खुशबू आ रही है… प्लीज़, बस थोड़ा-सा।”
    वह अपनी दो उँगलियाँ पास लाते हुए ‘थोड़ा-सा’ दिखाती है।

    अक्षत ने कोई बहस नहीं की। वह चम्मच उठाता है, कड़ाही से हलवा निकालता है, और उस पर हल्की-सी फूंक मारने लगता है और चम्मच मौली के सामने कर दिया

    चम्मच जब मौली के होंठों के सामने आया, मौली ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें उठा कर अक्षत को देखा।


    इसी बीच बाहर एक साथ बहुत सारे पटाखों की आवाज़ें गूंजीं—
    मानो पूरा शहर न्यू ईयर का जश्न मना रहा हो।

    अक्षत ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा,
    “हैप्पी न्यू ईयर, मैम।”

    और उसी पल मौली ने चम्मच को होंठों से छूकर
    गरम-गरम हलवा चखा…

    उसके चेहरे पर अनजानी-सी गर्म मुस्कान फैल गई—
    जैसे उसे पता ही न चला हो कि कौन-सा स्वाद ज्यादा मीठा था—
    हलवे का… या वो पल…

    *********

    हम लिख तो रहे है पर हमे पता ही नही है आप सबको ये स्टोरी कैसी लग रही है प्लीज अपनी इस लेखिका पर थोड़ा सा प्यार दिखाओ और बताओ की ये स्टोरी अच्छी है या नही।

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  • 16. Bound by contract - Chapter 16

    Words: 1556

    Estimated Reading Time: 10 min

    अगली सुबह…

    मौली की आँख तब खुली जब बाहर धूप काफी देर से फैल चुकी थी। सिर थोड़ा भारी था, शायद रात की नींद कम होने की वजह से। फ्रेश होकर उसने एक ओवरसाइज़्ड हुडी और शॉर्ट्स पहने, बालों को हल्का-सा बाँधा और नीचे उतरने लगी।

    सीढ़ियों से नीचे आते ही एक गरम, सुकूनभरी खुशबू ने उसे रुकने पर मजबूर कर दिया। वह अनायास मुस्कुराते हुए किचन की ओर बढ़ी। जैसे ही उसने किचन में झाँका अक्षत वहाँ था।

    टी-शर्ट और लोवर मे, और सामने तवा जिस पर पराठे फूल रहे थे। अक्षत पूरी तरह काम में डूबा हुआ था, जैसे घर का खाना बनाना उसका रोज़ का काम हो।

    अक्षत को जब किसी के होने का अहसास हुआ वह मुड़ा और उसे देख लिया।

    “गुड मॉर्निंग, मैम। आप उठ गईं?” उसकी आवाज़ हमेशा की तरह नरम थी।

    मौली किचन में पूरी तरह दाखिल हुई और स्लैब के पास जाकर खड़ी हो गई।

    “ये सब क्या कर रहे हो ? हर रोज तुम्हे ये करने की जरूरत नही है।” उसने हल्की हैरानी से पूछा।

    “ आज सब सर्वेंट की छूट्टी थी तो मैने सोचा नास्ता बना दूँ।”

    अक्षत पराठा पलटते हुए बोला।

    "नास्ता बस तैयार है आप बाहर चलिए मै लेकर आता हूँ।" अक्षत ने कहा।

    *********

    कुछ देर बाद दोनो नास्ता कर रहे थे

    "वैसे तुम सच मे बहुत अच्छा खाना बनाते हो।" मौली ने कहा।

    "थैंक्यू मैम " उसने धीरे से कहाँ।

    "वैसे तुमने इतना टेस्टी खाना बनाना कहाँ से सीखा।" मौली ने सवाल किया।

    "मै कॉलेज के साथ साथ पार्ट टाइम जॉब करता था एक रेस्टोरेंट मे, बस वही से सीखा है।" अक्षत ने बिना सिर उठाए जवाब दिया।

    “ पर तुमने कहा था कि रिया के पैरेंट्स ने तुम्हारी देखभाल की… तो फिर पार्ट-टाइम नौकरी करने की ज़रूरत क्यों पड़ी?” मौली ने भौंहे उठाकर फिर पूछा।

    अक्षत कुछ सेकंड चुप रहा… मौली का सवाल बिल्कुल सीधा था, लेकिन उसका जवाब—काफी उलझा हुआ।

    "मैम अगर हम एक दूसरे के पर्सनल मैटर पर ध्यान ना दे वही बेहतर होगा।" अक्षत ने कहा और धीरे से कुर्सी से उठकर वहाँ से चला गया।

    ************

    “अक्षत के माँ-पापा के जाने के बाद… शुरू में सब ठीक था।

    कॉलेज में एडमिशन मिला, हॉस्टल मिला।

    ज़रूरत पड़ती अक्षत उनसे पैसे माँग लेता था… और वे दे भी देते थे। लेकिन फिर धीरे धीरे उनके व्यवहार मे बदलाव आने लगा हर बार—हर बार— उसे इनडायरेक्टली ये एहसास दिलाया जाता था कि मैं उन पर बोझ हूँ। और इसी सब वजह से उसने पार्ट-टाइम जॉब करना शुरू किया। और अपना खर्च खुद उठाया और फिर जब उसकी जॉब लगी और वह कुछ पैसे उन्हे देने लगा तब उसे वो प्यार और सम्मान मिला जो अब तक मिल रहा था। और आज तक वह उनकी जिम्मेदारी इसलिए उठा रहा था क्योंकि जब उसके पास कोई नहीं था… तब उन्होंने अक्षत को छत दी थी। भले जैसे भी सही।”

    अक्षत अपने ख्याल मे खोया हुआ था ।

    *********

    अगली सुबह

    मौली अपने केबिन में बैठी थी। सामने उसकी असिस्टेंट खड़ी थी, हाथ में टैबलेट लिए।

    "सब कुछ रेडी है?" मौली ने बिना ऊपर देखे पूछा।

    "जी मैम, जैसा आपने कहा था वैसी सारी फाइलें तैयार कर ली हैं," असिस्टेंट ने जवाब दिया।

    मौली ने सिर हिलाया।

    "अच्छा। और… फ्लाइट बुक हो गई?"

    "जी मैम।"

    "परफेक्ट। अब सबको कॉन्फ्रेंस रूम में बुलाओ।"

    "ओके मैम," कहकर असिस्टेंट बाहर चली गई।

    कुछ ही देर में पूरा स्टाफ कॉन्फ्रेंस रूम में इकट्ठा था। सामने स्क्रीन पर प्रेज़ेंटेशन चल रही थी। मौली की असिस्टेंट सभी को डिटेल में प्लान समझा रही थी।

    अक्षत भी वहीं बैठा था, पूरी ध्यान से सुनता हुआ।

    एक-दो मिनट बाद जैसे ही प्रेज़ेंटेशन खत्म हुआ, लाइट्स ऑन हुईं और मौली अपनी कुर्सी से उठ खड़ी हुई।

    वह टेबल के आगे आकर बोली—

    "सबने वाकई बहुत मेहनत की है। इस बार का प्रोजेक्ट भी हम ही जीतेंगे—मुझे पूरा यकीन है।"

    उसकी आवाज़ में आत्मविश्वास था… और थोड़ा-सा गर्व भी।

    स्टाफ के चेहरे खिल उठे। कुछ लोग मुस्कुराए, कुछ ने हल्की-सी ताली बजाई। फिर एक-एक कर सब बाहर चले गए।

    **********

    अक्षत अपनी फाइल्स समेट ही रहा था कि तभी प्यून आकर बोला—

    “सर, मैम ने आपको केबिन में बुलाया है।”

    करन ने तुरंत मुस्कुराकर उसका मज़ाक उड़ाया—

    “ ओह .... हो लगता है ऑफिस धीरे-धीरे ऑफिस-रोमांस में बदलने वाला है…।”

    अक्षत ने उसे घूरकर देखा—

    “शट अप करन।”

    और बिना कुछ और सुने वह सीधा मौली के केबिन की ओर चल पड़ा।

    उसके कदम केबिन के बाहर आकर धीमे पड़ गए… वह दरवाज़े पर एक पल रुका… फिर नॉक किया।

    अंदर से मौली की शांत, पर बेहद कमांडिंग आवाज आई—

    “Come in.”

    अक्षत अंदर गया। मौली बैठी थी, हाथ में एक फाइल था जिसे वह चेक कर रही थी।

    मौली ने सिर उठाकर उसे देखा।

    “आपने बुलाया, मैम?” अक्षत ने धीमे से पूछा।

    मौली ने बिना घुमाए-फिराए बात की—

    “हाँ। मुझे तुमसे कुछ इम्पॉर्टेन्ट डिस्कस करना है… प्रोजेक्ट से जुड़ा हुआ।”

    वह थोड़ा सख्त होकर बोला— “जी, कहिए।”

    मौली ने फाइल बंद कर दी, और उसे अक्षत की ओर बढ़ा दिया अक्षत ने वह फाइल ले लिया।

    “ शाम की फ्लाइट है। हम दोनों को मुंबई आउटलेट विज़िट पर जाना है। फाइल में सारे डिटेल्स हैं।”

    अक्षत चौंका।

    “शाम की फ्लाइट? मुझसे पहले क्यों नहीं बताया?”

    “अभी कन्फर्म हुआ है।” मौली बोली,

    “तुम पैकिंग कर लेना। सात दिन का ट्रिप है।”

    अक्षत ने फाइल हाथ में मजबूती से पकड़ी और सिर हिलाया।

    “ओके, मैम… ”कहा और मुड़कर चले गया।

    *************

    शाम को ऑफिस से लौटते ही दोनों अपने-अपने कमरों में चले गए।

    मौली ने अपना सूटकेस बेड पर रखा और ज़रूरी चीजें रखने लगी।

    दूसरी तरफ अक्षत भी अपने कमरे में सामान पैक कर रहा था।

    दोनों अपनी-अपनी पैकिंग खत्म करते हैं। लगभग 7 बजे मौली ने नीचे से आवाज लगाई—

    "अक्षत, चलें?"

    "हाँ मैम…।"

    दोनों कार की ओर बढ़ते हैं। ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट कर दी। मौली और अक्षत दोनो पीछे की सीट पर बैठे थे। कार एयरपोर्ट की ओर निकल पड़ती है।

    रात की हल्की ठंडी हवा, सड़कों की पीली स्ट्रीट लाइट्स लेकिन कार के अंदर के माहौल में एक हल्की अजीब सी खामोशी थी।

    ---

    एयरपोर्ट

    कार जैसे ही एयरपोर्ट के ड्रॉप-ऑफ पॉइंट पर रुकी, वहाँ पहले से ही हलचल थी।

    कई रिपोर्टर कैमरों के साथ खड़े थे—

    फ्लैश… फ्लैश… फ्लैश…

    जैसे ही मौली बाहर उतरी, कैमरों की चमक और बढ़ गई।

    मौली ने जीन्स, व्हाइट टॉप और उसके ऊपर लंबा बेज कोट पहना था।

    एकदम क्लासी… एलिगेंट… हर किसी की नज़र वहीँ अटक रही थी।

    अक्षत भी साइड से उतरता है—सफेद शर्ट और नीली जीन्स, सिम्पल मगर स्मार्ट।

    बॉडीगार्ड्स तुरंत दोनों के आसपास आ जाते हैं—

    “मैम, this way please।”

    दोनों साथ-साथ टर्मिनल के दरवाज़े की ओर बढ़ते हैं जबकि पीछे मीडिया चिल्लाती है—

    “Ma’am, business trip or honeymoon ?”

    मौली आँखों पर चश्मा ठीक करती है और बिना कुछ कहे अंदर चली जाती है। अक्षत बस हल्की सी झेंप के साथ पीछे-पीछे।

    ---

    एयरपोर्ट अंदर –

    चेक-इन और सिक्योरिटी क्लीयर होने के बाद वे गेट की ओर बढ़े।

    पहले मौली बैठी, फिर अक्षत उसके बगल की सीट पर।

    कुछ मिनट बाद फ्लाइट में अनाउंसमेंट हुआ—

    “All passengers, please board the aircraft…”

    दोनों अपनी सीटों पर बैठते हैं।

    मौली विंडो सीट पर, अक्षत aisle सीट पर।

    **********

    फ्लाइट शांत लैंडिंग के साथ मुंबई एयरपोर्ट पर उतरती है।

    मौली आगे थी और अक्षत उसके पीछे-पीछे चलता हुआ फ्लाइट से बाहर आने लगा। एयरपोर्ट के गेट पर ही सामने एक काली चमचमाती कार उनका इंतजार कर रही थी जो मौली के लिए पहले से अरेंज की गई।

    बॉडीगार्ड्स आते ही उनके चारों ओर घेरा बना लेते हैं। रिपोर्टर्स भी थे, कैमरे चमक रहे थे।

    कार चलते ही मुंबई की भीड़-भाड़ वाली रात की सड़कों पर हल्की-हल्की नियोन लाइट्स चमकने लगीं। कुछ देर में कार एक भव्य होटल के सामने रुकी

    "मैम, आपका सुईट तैयार है," मैनेजर ने झुककर कहा ।

    मौली ने सिर हिलाया और अक्षत के साथ लिफ्ट में चली गई।

    डिंग—

    लिफ्ट का दरवाजा खुला और दोनों अपने सुईट की ओर बढ़ गए।

    सुईट का दरवाज़ा खुलते ही सामने एक बड़ा सा लिविंग एरिया, साइड में ग्लास-फ्रेम बलकनी, और अंदर दो अलग-अलग रूम थे।

    "वो रूम तुम्हारा है जा कर आराम कर लो , फिर कल हमे साइट विज़िट पर भी जाना है।" मौली ने एक रूम के ओर इशारा करते हुए अक्षत सै कहाँ। अक्षत रूम मै चले गया और फ्रेस होने के बाद सो गया।

    *********

    इधर मौली चुपचाप खड़ी खिड़की से नीचे चमकते हुए मुंबई शहर को देख रही थी…

    एक हाथ में मोबाइल, दूसरे हाथ से खिड़की के ठंडे शीशे को हल्का-सा छूते हुए।

    उसका चेहरा शांत था… वह फोन अनलॉक करती है। किसी का पहले से सेव नंबर डायल करती है।

    कॉल मिलते ही—

    "हाँ, मैम?"

    सामने से नम्र, मगर घबराया हुआ स्वर आया।

    मौली बिना किसी झिझक, एकदम साफ़ और आदेश देने वाले लहज़े में कहा—

    "काम शुरू कर दो।" कुछ पल रुककर… उसकी आवाज़ और गहरी हो गई —

    "ध्यान रहे… जैसा मैंने कहा है, सब वैसा ही होना चाहिए। एक भी गलती… मैं बर्दाश्त नहीं करूँगी।"

    सामने वाला जल्दी-जल्दी ‘जी मैम’ कहता है। मौली कॉल काट देती है। कमरे में अब सिर्फ एसी की हल्की सी आवाज़ थी। वह दोबारा शहर की तरफ़ देखती है… लाइट्स दूर-दूर तक फैल रही थीं— लेकिन मौली की आँखों में उससे भी ज़्यादा तेज़ रोशनी थी… एक खतरनाक मुस्कान धीरे से उसके होंठों पर उभरती है—

    धीमी… नियंत्रित… और बेहद रहस्यमयी।

    ***********

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  • 17. Bound by contract - Chapter 17

    Words: 1009

    Estimated Reading Time: 7 min

    अगली सुबह दोनों अपने-अपने कमरे से तैयार होकर बाहर निकलते हैं। सुबह की हल्की धूप खिड़कियों से अंदर आ रही थी। मौली ने नेवी ब्लू फॉर्मल पैंट, वाइट शर्ट और ब्लेज़र पहना हुआ था। उसके बाल एक स्लीक हाई पोनीटेल में बंधे थे। दूसरी तरफ अक्षत ने ब्लैक फॉर्मल पैंट और पेस्टल ब्लू शर्ट पहनी थी।

    दोनों ने रूम मे ही नाश्ता कर लिया था और अब वे साइट विज़िट के लिए जा रहे थे।

    उनकी कार पहले से बाहर थी। ड्राइवर दरवाज़ा खोलता है और दोनों अंदर बैठ जाते हैं। और उनकी कार लोकेशन की ओर बढ़ जाती है।

    ---

    साइट

    लोकेशन पर गाड़ी रुकती है। सुरक्षा कर्मियों और इंजीनियरों का पूरा स्टाफ पहले से वहाँ मौजूद था। हेलमेट और जैकेट्स दोनों को दिए जाते हैं। मौली का हेलमेट थोड़ा ढीला था—वह ठीक करने की कोशिश कर रही थी, पर स्ट्रैप फंस गया।

    अक्षत आगे आया,

    "मैं कर दूँ?"

    मौली ने बिना कुछ बोले हल्का सा सिर झुका दिया।

    अक्षत ने उसके चेहरे के करीब आकर स्ट्रैप को एडजस्ट किया… उसकी उंगलियाँ हल्के से उसके गाल को स्पर्श करती हैं।

    "Done," अक्षत बोला।

    "Thanks," मौली ने धीमे से कहा।

    ---

    साइट के अंदर

    दोनों अंदर जाते हैं। सामने विशाल कंस्ट्रक्शन साइट, मशीनें, क्रेन, बड़े-बड़े बीम और कामगारों की आवाज़ें गूंज रही थीं। इंजीनियर साइट मैप दिखा रहा था और मौली उसके हर पॉइंट पर एक एक सवाल पूछ रही थी। तेज़ धूप, हवा में उड़ती धूल और मशीनों की गूंज—साइट पूरी तरह एक्टिव थी। हेलमेट पहने अक्षत एक तरफ खड़ा था, अपनी फाइल और मोबाइल में प्रोजेक्ट मैप्स को चेक करते हुए। उसका पूरा ध्यान स्क्रीन पर था। तभी एकदम से कोई उसके पीछे से टकराया। अक्षत तो संभल गया, लेकिन उसका मोबाइल ऊँचाई से सीधे एक बड़े से पत्थर पर जा गिरता है।

    "ओह… सॉरी अक्षत! मेरे पैर के नीचे ये बड़ा पत्थर आ गया था, इसलिए बैलेंस बिगड़ गया। तुम ठीक तो हो ना?" मौली ने आगे आकर अक्षत से पूछा।

    "हाँ मैम, मैं ठीक हूँ… बस फोन…" अक्षत अपना फोन उठाकर उलट-पलट कर देखते हुए बोला ।

    मौली ने तुरंत उसके हाथ से फोन लिया।

    "कोई बात नहीं। ये मेरी गलती थी। तुम अपना फोन मुझे दो। मैं अपने ड्राइवर को बोलकर इसे अभी ठीक करवाने के लिए दे देती हूँ । तुम फिक्र मत करो । लेकिन अभी काम पर फोकस करते हैं, ओके?" अक्षत ने सिर हिलाया।

    "जी मैम।" वह आगे बढ़ गया, टीम के साथ बाकी डॉक्यूमेंट्स देखने।

    मौली कुछ सेकंड वहीं खड़ी रही… उसकी नज़र पहले अक्षत पर गई—जो अब भी अपने काम में डूबा था। फिर उसके हाथ में पकड़े अक्षत के फोन पर और फिर… उसके चेहरे पर एक धीमी, जहरीली मुस्कान फैल गई।

    ***********

    शाम

    दोनों वापस होटल पहुँचे। मौली का सिर हल्का दर्द कर रहा था—बहुत ज़्यादा धूप और आवाज़ों की वजह से। वह अंदर जाते ही सोफे पर अपना सिर पकड़कर बैठ जाती है।

    "आपका सिर दर्द कर रहा है?" अक्षत ने तुरंत नोटिस किया।

    "थोड़ा…"

    "मैं दर्द की दवा ले आता हूँ," वह तुरंत मुड़ गया।

    "नही इसकी जरूरत नही सोने के बाद सब ठीक हो जायेगा ।" मौली ने कहा।

    दोनो अपने अपने रूम मे आराम करने चले गए। मौली अपने कमरे मे थी जब उसका फोन बजा । उसने फोन उठाया समाने उसै ग्रीट किया गया, मौली ने हम्म कहाँ ।

    "मैम आपने जो काम कहा था वह हो गया।" समाने से कहाँ गया।

    "ओके! सब वैसा ही होना चाहिए जैसा मैने कहा था ।" मौली बोली ।

    "आप बेफिक्र रहे मैम ।" सामने वाले बंदे ने कहा जिसके बाद मौली ने फोन काट दिया।

    *********

    दिन बीत रहे थे और दोनो की ट्रिप आज खत्म हो गई। मौली और अक्षत एयरपोर्ट के बाहर खड़ी कार में बैठे और विला की ओर निकल पड़े।

    कुछ देर बाद उनकी कार विला पहुँची । अक्षत अपने कमरे की ओर मुड़ा, तभी पीछे से उसकी कलाई किसी ने पकड़ी जो की थी मौली। उसकी पकड़ मजबूत थी।

    “चलो… मेरे साथ।”

    उसने बिना कोई एक्सप्लनेशन दिए कहा और आगे बढ़ गई अक्षत समझ नहीं पाया, लेकिन बिना कुछ बोले उसके पीछे चला गया। रूम में पहुँचकर मौली ने उसकी कलाई छोड़ दि।

    “क्या हुआ मैम? आप मुझे ऐसे यहाँ क्यों लेकर आईं?” अक्षत ने उलझे हुए स्वर मे पुछा।

    मौली उसकी ओर सीधी नज़रें टिकाकर धीमे लेकिन साफ शब्दों में बोली—

    “आज से तुम यहीं… मेरे रूम में रहोगे। पहले की तरह।”

    अक्षत हैरान रह गया। “मैम… आप ये—”

    पर मौली ने उसकी बात बीच में ही काट दी।

    “यह मेरा ऑर्डर है, अक्षत।”

    उसने ठंडे, आदेशात्मक टोन में कहा, और बिना एक सेकंड रुके बाथरूम की तरफ चल दी। दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ रूम में गूंजती है।

    अक्षत वहीं खड़ा रह जाता है—एकदम जड़ होकर।

    उसे मौली का नेचर समझ नहीं आ रहा था।

    कभी वह उसे अपने करीब रखती …

    कभी उसे दूसरे कमरे में भेज देती …

    और अब फिर—उसे अपने साथ रहने का आदेश दे दिया।

    उसकी आँखों में एक ही बात घूम रही थी—

    आखिर मौली चाहती क्या है?

    **************

    कुछ देर बाद दोनों नीचे आ गए।

    मौली लिविंग रूम में रखे बड़े, नीले सोफे पर बैठी और अपने बालों को एक तरफ हटाते हुए हल्की-सी ऊँची आवाज़ में बोली—

    “कॉफी… और साथ में कुछ स्नैक्स ले आओ।”

    उसका टोन आदेश वाला था, बिल्कुल वैसे ही जैसे हमेशा होता था—पर आज उसमें पहले से ज़्यादा अधिकार था।

    मौली ने टीवी रिमोट उठाकर स्क्रीन ऑन कर दी, वह सोफे की पुश्त पर थोड़ा पीछे झुककर बैठ गई।

    अक्षत दूसरी तरफ रखे सिंगल-सीटर सोफे पर जाकर बैठ गया मौली का अचानक से व्यवहार बदल जाना, फिर एक ही आदेश में उसे वापस अपने कमरे में बुला लेना… उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मौली चाहती क्या है।

    कुछ देर बाद कॉफ़ी आ गई थी कॉफी की ट्रे सामने आते ही अक्षत ने आदतन “थैंक्यू” कहा और सिर उठाकर सर्वेंट को देखने लगा… और उसका पूरा शरीर जैसे एक पल के लिए सुन्न पड़ गया। वह जल्दी से अपनी जगह से खड़े हुआ।

    “ आप …?”

    *************

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  • 18. Bound by contract - Chapter 18

    Words: 1078

    Estimated Reading Time: 7 min

    कॉफी की ट्रे सामने आते ही अक्षत ने आदतन “थैंक्यू” कहा और सिर उठाकर सर्वेंट को देखने लगा…

    और उसका पूरा शरीर जैसे एक पल के लिए सुन्न पड़ गया।

    वह रिया की माँ थी। अक्षत के दिमाग ने जैसे झटका खाया।

    “आंटी…?” उसने एक झटके से ट्रे उनके हाथ से लेकर टेबल पर रख दी और दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ लिया।

    “आंटी आप ये क्या कर रही हैं? आपकी तबियत… आपकी ये हालत क्यों?”

    अक्षत के स्वर में दर्द, गुस्सा और हैरानी सब एक साथ था।

    आंटी कुछ बोल पाती, उससे पहले पीछे से आहट हुई। वह रिया थी। उसके हाथ में स्नैक्स की प्लेट थी— लेकिन जैसे ही उसने अक्षत को देखा, उसकी आँखें भर आईं। प्लेट मेज़ पर पटकने जैसी जल्दी में उसने उसे रखी और सीधे अक्षत की तरफ भागी।

    और अगले ही पल वह अक्षत से लिपटकर फूट-फूट कर रो पड़ी।

    “अक्षत…!”

    उसकी आवाज़ काँप रही थी, जैसे अंदर का सारा डर और दर्द बाहर निकल आया हो।

    अक्षत ने रिया को खुद से थोड़ा दूर किया, उसके कंधों पर हाथ रखते हुए पूछा—

    "रिया… आंटी… आप सब यहाँ कैसे? और ये… ये सब आप क्या कर रहे हैं?" उसकी आवाज में हैरानी साफ झलक रही थी।

    तभी सामने से एक बेहद शांत, बेहद कंट्रोल्ड मगर खतरनाक आवाज आई।

    मौली ने टेबल से कॉफी उठाई… एक sip लिया… और बहुत ही एलीगेंट लहजे में बोली—

    "वही कर रहे हैं, अक्षत, जो एक सर्वेंट करता है।"

    "आप… क्या बोल रही हैं? "अक्षत की आवाज अब सख्त थी।

    मौली ने एक सेकंड भी बर्बाद नहीं किया। वह उठी, पूरी शान से,

    "अगर मेरी बात पर विश्वास नहीं है, तो खुद इनसे पूछ लो। लेकिन मेरा वक़्त बर्बाद मत करो, अक्षत।"

    फिर मौली ने अपना कॉफी मग उठाया… एक आखिरी नज़र अक्षत पर डाली और मुड़कर अपने कमरे की तरफ चल दी।

    “आंटी… ये मैम क्या बोल रही हैं? और आप सब यहाँ कैसे?… अंकल कहाँ है?” मौली के जाने के बाद अक्षत ने स्वागत किया।

    वह रिया की माँ के दोनों हाथ थामे खड़ा था।

    रिया की माँ की आँखें भर आईं और उसने बताना चालू किया।

    “बेटा… कुछ दिन पहले हमारे घर में चोरी हो गई थी। सब कुछ—खाना, पैसे, राशन—सब ले गए। चोरों ने कुछ भी नहीं छोड़ा ।”

    “क्या…? मगर आपने मुझे फोन क्यों नहीं किया?” अक्षत ने बोला।

    “किया था, बेटा… कई बार किया। लेकिन तुम्हारा फोन बंद आ रहा था।” रिया की माँ की आवाज टूटी हुई थी।

    अक्षत को तभी याद आया उसका फोन तो साइट विज़िट में टूट गया था। उसने खुद को भीतर ही भीतर कोसा।

    रिया की माँ ने आगे कहा—

    “हमने पुलिस में शिकायत की… पर कोई सुनवाई नहीं हुई । हमने कई लोगो से मदद मांगी पर किसी ने हमारी मदद नही कि।”

    रिया भी सुबकते हुए बोली—

    “हम सच में भूखे थे, अक्षत… दो दिन से एक दाना भी नहीं खाया था।”

    “फिर… तुम यहाँ कैसे पहुँचे?” अक्षत ने पुछा।

    रिया की माँ ने रिया का आँसू भरा चेहरा देखते हुए कहा—

    “जब कोई रास्ता नहीं बचा… तो हम कपूर विला आए। गार्ड ने कहा कि तुम आउट ऑफ टाउन हो, तो उसने हमारा मैसेज मैम तक पहुँचा दिया।”

    “फिर?”

    " उसने हमसे बात की और बोली- अगर तुम लोगों को काम चाहिए, खाना चाहिए, रहने की जगह चाहिए… तो मेरे विला में काम करना होगा।

    बेटा, हम मजबूर थे। भूख हमारी जान ले रही थी , इसलिए हमने हाँ कर दी।”

    “आंटी, अब मैं हूँ न। आप फिक्रमत कीजिए, अब आपको ये सब करने की जरूरत नही है ।” अक्षत ने रिया की माँ का चेहरा अपने हाथ मे भरकर बोला।

    अक्षत गुस्से की आग में फटने ही वाला था। वह तेज़ी से कदम बढ़ाता हुआ मौली के रूम में घुसा, दरवाज़ा पीछे से धड़ाम से बंद हो गया। मौली आईने के सामने खड़ी अपने बाल सुलझा रही थी, लेकिन अक्षत की मौजूदगी ने उसे रुकने पर मजबूर कर दिया।

    अक्षत सीधे उसके सामने आकर खड़ा हो गया, आँखों में तूफ़ान भरा था।

    "आखिर आप चाहती क्या हैं, मौली मैम? क्यों खेल बना रखा है आप ने सबके साथ? मुझे जितना कंट्रोल करना था… कर लिया। लेकिन अब आपने आंटी, अंकल और रिया को भी इसमें घसीट लिया? क्यों?"

    मौली धीरे-धीरे मुड़ी। उसके चेहरे पर न एक शिकन, न कोई ग्लानि—बस वही शार्प, खतरनाक शांति।

    उसने एक-एक शब्द चबाकर कहा—

    "मेरे सामने इस टोन में बात मत करना… अक्षत।"

    उसकी आवाज में ऐसा ज़हर था कि कुछ पल को पूरा कमरा सन्न पड़ गया।

    मौली ने आगे कदम बढ़ाया, उसके बेहद करीब आकर बोली—

    "और रही बात तुम्हारे सो-कॉल्ड अंकल आंटी की… तो उन्होंने खुद मुझसे मदद माँगी। पैसा माँगा। मैंने उनकी मदद की—उन्हें काम देकर। बात खत्म।"

    अक्षत का गुस्सा फिर उबल पड़ा,

    "वे यहाँ काम नहीं करेंगे! बिल्कुल नहीं!"

    वह मुड़कर बाहर जाने लगा था कि तभी मौली की ठंडी आवाज़ ने उसके कदम रोक दिए—

    "वे यहीं काम करेंगे, अक्षत। अगर तुम्हें एतराज़ है… तो पहले मुझे पैसे देकर उन्हें यहाँ से ले जाओ। कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से।"

    अक्षत पलटकर उसकी ओर देखता है, हैरानी और गुस्से के बीच झूलता हुआ।

    "कॉन्ट्रैक्ट? वो हमारी शादी का कॉन्ट्रैक्ट? मैंने उसमें कोई टर्म नहीं तोड़ा। तो मैं पैसे क्यों दूँ?"

    मौली के होंठों पर धीमी, जहरीली मुस्कान आ गई।

    वह अपने ड्रॉअर से एक फाइल निकालती है और उसके हाथ में दे देती है।

    "ये तुम्हारे और मेरे बीच वाला कॉन्ट्रैक्ट नहीं है। ये है रिया और उसके परिवार द्वारा साइन किया गया नया कॉन्ट्रैक्ट। जिसमें साफ लिखा है— उन्हें यहाँ एक साल तक काम करना होगा।
    वरना मुझे पाँच करोड़ रुपए देने होंगे।"

    अक्षत का चेहरा जैसे जम गया हो।

    उसने तुरंत फाइल खोली—पन्नों पर रिया और उसके माता-पिता के साइन साफ दिखाई दे रहे थे। तारीखें, क्लॉज़… सब बिल्कुल वैध।

    उसकी उँगलियाँ काँपने लगीं।

    "ये… सब कब हुआ?" उसकी आवाज़ धीमी पड़ गई।

    मौली सोफे पर बैठ गई, पैर क्रॉस करते हुए बोली—

    "जब तुम्हारा फोन स्विच-ऑफ था… और उन्हें तुम्हारी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। तुम नहीं आए… मैं आई। और मैंने वही किया जो उन्हें उस वक़्त चाहिए था। डील।"

    अक्षत के अंदर सैकड़ों सवाल, गुस्सा और ग्लानि टकराने लगे।

    मौली ने कप उठाया, घूंट लिया, फिर उसकी ओर देखते हुए बोली—

    "अब फैसला तुम्हारा है, अक्षत। या तो पाँच करोड़ लाकर उन्हें छुड़ा लो… या फिर चुपचाप जो हो रहा है उसे होने दो ।" कमरे में सन्नाटा पसर गया था।

    मौली की आँखों मे एक अलग ही चमक थी ।

    ***********

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  • 19. Bound by contract - Chapter 19

    Words: 1070

    Estimated Reading Time: 7 min

    अक्षत उसे घूर रहा था—

    ऐसे जैसे हर साँस के साथ वह उसी पल को कोस रहा हो, जब यह औरत उसकी ज़िंदगी में दाख़िल हुई थी।

    उसकी आँखों में एक थका हुआ, दबा हुआ सा गुस्सा था… जिसे मौली बेहद शांति से एंजॉय कर रही थी।

    “कोस लो अक्षत… जितना कोसना है कोस लो । लेकिन याद रखना… अब तुम सब के जीवन का कन्ट्रोल मेरे हाथ मे है।” मौली उसकी आँखो मे देखते हुए बोली । उसकी आवाज धीमी, ठंडी और धारदार थी।

    अक्षत की मुट्ठियाँ बंध गईं, पर उसने कोई जवाब नहीं दिया।

    मौली ने मुस्कुराकर उसकी चुप्पी को पढ़ लिया।

    "और अगर घूर-घूर कर मुझे कोसना खत्म हो गई हो… तो थोड़ा सा वक्त काम पर भी लगा लो। क्योंकि मुझे घूरते रहने से… तुम्हारी किस्मत थोड़ी भी बदलने वाली नहीं है।"

    उसकी बातों का ज़हर अक्षत की नसों में चढ़ गया था।

    वह जबड़े भिंचते हुए वहाँ से निकल गया—उसके भारी कदमों की आवाज़ पूरे रूम में गूँज गई।

    और मौली… वह उसकी जाती हुई पीठ को देखती रही—आँखों में एक पल को कुछ उभरा। ना दया… ना प्यार… बस एक हल्की-सी, मुश्किल से दिखने वाली कोई कसक ,

    लेकिन अगले ही सेकंड उसने पलकें झपकीं—और वो भाव कभी गायब हो गया।

    ************

    सुबह का समय था।

    मौली पहले से रेडी होकर डाइनिंग टेबल के हेड चेयर पर बैठी थी और कुछ ही देर में अक्षत भी नीचे आ गया ।

    ना चाहते हुए भी उसकी नज़र कुछ सेकेंड मौली पर रुकी—और फिर उसने अपनी नजर फेर ली ।

    रिया और उसकी माँ, आशा, नाश्ता और कॉफी सर्व करने लगीं।

    मौली ने कॉफी का कप उठाया, होंठों से लगाया… और अगले ही पल— कप ज़ोर से फर्श पर गिरने की आवाज़ पूरे डाइनिंग हॉल में गूँज गई। कॉफी चारों तरफ फैल गई थी।

    “एक महीना होने को आया है… और तुम दोनों से अभी तक एक ढंग की कॉफी नहीं बनती? ” मौली ऊँची आवाज मे बोली।

    अक्षत की आँखें अपने आप बंद हो गईं। ये रोज़ का तमाशा बन गया था। मौली ने घर के सभी नौकरो को भी निकाल दिया था, सभी काम ये दोनो ही करने थे और गाड़ी धोना, गार्डन और बाहरी अन्य काम रिया के पापा करते थे।

    अक्षत के अंदर का धैर्य अब टूटने लगा था। और वह अचानक खड़ा हुआ।

    “बस कीजिए, मैम… अब ये बहुत ज़्यादा हो रहा है।

    जबसे ये यहाँ आए है, आप हर छोटी-छोटी बात के लिए इन्हें अपमानित करती रहती हैं। ये दोनों आप की तरह… कोई मशीन नहीं हैं। इनके सीने मे भी दिल है जो दुखता है। ” अक्षत ने गुस्से से कहा।

    मौली ने धीरे से अपने नाखूनों को देखा, फिर नज़र उठाई—

    उसकी आँखों में ठंडा, खतरनाक रुतबा था।

    “अक्षत। बैठ जाओ। और चुपचाप अपना नाश्ता करो।” मौली ने सख़्त आवाज मे बोला।

    अक्षत ने सिर उठाया।

    “लेकिन—”

    “मैंने कहा… बैठ जाओ अक्षत। वर्ना कॉन्ट्रैक्ट के रूल्स तो तुम्हे पता ही है ?” मौली ने टेबल पर अपना दोनो हाथ की कोहनी टिकाई और अक्षत को देखकर चेतावनी भरी आवाज मे बोली।

    बस इसी एक लाइन ने अक्षत की रीढ़ में ठंड भर दी। वह हारकर बैठ गया। उसकी मुट्ठियाँ टेबल के नीचे कस गईं।

    “और तुम दोनों… ऐसे खड़े क्या हो? इसे कौन साफ करेगा?” वह रिया और उसकी माँ को देखकर बोली।

    रिया की आँखों में आँसू भर आए। उसकी माँ आगे आई और झुककर जमीन से तड़ककर फेंकी कॉफी साफ करने लगी।

    अक्षत ने अपनी आँखें बेबसी से बंद कर लीं। और उधर… मौली?

    वह नाश्ता बड़े आराम से कर रही थी। उसके चेहरे पर एक अजीब सा सुकून, एक अजीब सी संतुष्टि थी…

    ***********

    मौली अपना नाश्ता खत्म कर वहा से चली जाती है और मौली के जाते ही वहाँ फैली खामोशी किसी भारी बोझ की तरह लग रही थी। अक्षत ने नाश्ते की प्लेट को छुआ तक नहीं था।

    वह धीरे से उठकर रिया के पास आया। उसकी आवाज़ गहरी और थकी हुई थी—
    “रिया… तुम ठीक हो?”

    रिया की आँखें लाल थीं। वह मजबूरी में एक हल्की मुस्कान लाई, पर उससे पहले ही आँसू छलक पड़े।
    उसने अगले ही पल अक्षत को गले लगा लिया और टूटते हुए बोली—

    “अक्षत… I’m sorry. सब मेरी वजह से हो रहा है। मेरी एक स्टूपिड सी डिसीजन ने… हम सबकी लाइफ बर्बाद कर दी।”

    अक्षत की आँखें सख्त थीं।
    उसने धीरे लेकिन साफ़ इशारे में रिया को खुद से अलग कर दिया। क्योंकि अब उसे ये सब सही नही लगता था शुरू से ही अक्षत के लिए रिश्ते सबसे बढकर थे चाहे रिश्ते जैसे भी जुड़े हो या कितने ही समय के लिए जुड़े हो।


    “रिया… मैंने तुम्हें पहले ही मना किया था। लेकिन अब जो हो चुका है… उसे हम चाहकर भी बदल नहीं सकते।” अक्षत धीमे आवाज मे सच्चाई बोली।

    उसकी बात सुनकर रिया के दिल पर जैसे लाखो तीर चुभे थे अक्षत की आवाज़ में पहला-सा अपनापन नहीं था। उसके चेहरे पर बस एक खालीपन था— वह खालीपन जो मजबूरी से पैदा नहीं होता, बल्कि उम्मीदें खत्म होने से होता है।


    *************

    शाम का समय


    ऐसे कुछ दिनो बाद एक शाम एक घाटी व्यू-प्वाइंट पर, अक्षत अपनी बाइक से टेक लगाए खड़ा था। ठंडी हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी, लेकिन उसके अंदर मचा तूफान किसी भी हवा से शांत होने वाला नहीं था।
    उसकी उँगलियों के बीच सिगरेट आधी जल चुकी थी, और हर कुछ सेकंड में वह एक कश लेता… धुआँ बाहर छोड़ते ही जैसे उसकी भरी हुई छाती थोड़ी हल्की होती, लेकिन दिमाग फिर उसी अंधेरे गर्त में डूब जाता।

    घाटी की खामोशी, दूर पहाड़ों पर जमती धुंध, और आसमान में मंडराते काले बादल— सब मिलकर उसके अंदर की बेचैनी को और बढ़ा रहे थे।

    और उसकी इस बेचैनी की वजह थी मौली । मौली उसके समझ से परे लग रही थी जब से रिया और उसखे माता पिता कपूर विला आए थे तब से मौली ने उनकि जीना हराम कर रखा था । पहले तो उसने नौकरो को निकाल दिया जिसके बार सारा काम वे सब ही करते थे और उस पर भी हर छोटीछोटी बार पर बेवजह उन्हे डाटती रहती थी ।

    अक्षत अपनी सोच में गुम था… कितना कुछ बदल गया था, वह खुद भी नहीं जानता था। तभी किसी ने उसका नाम पुकारा।
    पहले तो उसने सुना ही नहीं, पर जब आवाज दूसरी बार आई, तो उसने मुड़कर देखा । और सामने खड़े इंसान को देखकर अक्षत हैरान हो गया।

    **********

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  • 20. Bound by contract - Chapter 20

    Words: 1126

    Estimated Reading Time: 7 min

    अक्षत अपनी सोच में गुम था… कितना कुछ बदल गया था, वह खुद भी नहीं जानता था। तभी किसी ने उसका नाम पुकारा।

    पहले तो उसने सुना ही नहीं, पर जब आवाज दूसरी बार आई, तो उसने मुड़कर देखा सामने अमित खड़ा था। एक पल के लिए जैसे सब कुछ रुक गया। कॉलेज के बाद पहली बार अपने सबसे करीबी दोस्त को देख रहा था।

    अक्षत ने तुरंत हाथ में पकड़ी सिगरेट को जूते तले कुचल दिया और आगे बढ़कर अमित को कसकर गले लगा लिया।

    “अमित? तू यहाँ?” अक्षत की आवाज़ से उसकी खुशी साफ झलक रही थी।

    “यार… कितना कुछ है कहने को , कहीं बैठकर बात करते हैं।” अमित ने हँसते हुए कहा।

    “हाँ, चल।” अक्षत ने बोला।

    ***********

    कुछ देर बाद – बार के अंदर

    हल्की रोशनी, धीमा म्यूज़िक… दोनों सामने बैठ गए।

    काफी देर तक सिर्फ पुरानी यादें, कॉलेज की मस्ती, बेफिक्र दिनों की बातें होती रहीं।

    “अब बता, तेरी लाइफ कैसी चल रही है?” अमित ने अपनी ड्रिंक का एक सीप लेते हुए पूछा।

    “सब… ठीक ही चल रहा है।” अक्षत ने मुस्कुराकर बोला।

    (वह नहीं चाहता था कि अमित को उसकी निजी ज़िन्दगी मे जो मौली नाम रायता फैला है उसका पता चले ।)

    अमित को भी लगा कि अक्षत अच्छा है—उसके चेहरे पर थकान तो थी, पर दर्द नहीं दिख रहा था… क्योंकि अक्षत ने दिखने ही नहीं दिया।

    *************

    “अमित… मुझे तुझसे एक मदद चाहिए थी।” काफी देर सोचने के बाद उसने हिचकिचाते हुए बोला।

    “अरे, बोल ना। क्या हुआ?” अमित ने तुरंत जवाब मे कहा।

    अक्षत ने गहरी साँस ली। अब वो बात जिसे वह कई दिनों से किसी को कहना चाहता था—

    “यार… मेरे पास एक स्टार्ट-अप का आइडिया है। एकदम नया कॉन्सेप्ट। पर उसके लिए मुझे इन्वेस्टर या पार्टनर चाहिए… ”

    वह अमित की तरफ देखता है, उम्मीद से, लेकिन जताए बिना।

    “…और तू तो अच्छे लोगों से कनेक्टेड रहता है। अगर तू किसी को जानता हो… या किसी का रेफरेंस दे सके… तो बड़ी मदद हो जाएगी।”

    अमित चौंका नहीं बल्कि उसने अपने मन मे सोचा अक्षत आज भी नही बदला है , उसने मुस्कुराकर कहा—

    “अरे, बिल्कुल। इसमें हिचकिचाने वाली क्या बात है? तू अपना प्लान बता—देखता हूँ किससे बात कर सकता हूँ।”

    उसकी बात सुनकर अक्षत की आँखों में थोड़ी राहत दिखी। बरसों बाद किसी ने उसकी बात बिना जज किए, बस सुनी थी।

    अक्षत ने अपना आइडिया अमित को धीरे-धीरे समझाया। हर शब्द बोलते वक्त उसके गले में हल्की घबराहट थी—उसे डर लग रहा था कि कहीं अमित को ये बेकार न लगे। वह अपनी बात खत्म कर खामोशी से अमित की तरफ देखने लगा। उसकी आँखों में एक अनजानी उम्मीद… और डर थी ।

    अमित कुछ सेकंड चुप रहा, फिर मुस्कुराकर बोला-

    "आइडिया तो कमाल का है, सच में बहुत अच्छा।"

    अक्षत के दिल को थोडा सुकून मिला। लेकिन अगले ही पल वह खुद ही सिर झुकाकर बोला—

    "पर यार… कोई ऐसा इन्वेस्टर कहाँ मिलेगा, जो 95% पैसा डाले? मेरे पास तो बहुत कम सेविंग्स हैं…"

    "अरे ढूँढने की क्या जरूरत? मैं हूँ ना!" अमित ने हल्की हंसी के साथ कहाँ।

    "क्या? नहीं यार… तू सिर्फ हमारी दोस्ती की वजह से ऐसा कर रहा है तो मत कर। ऐसे में बिज़नेस नहीं करते…" उसकी बात सुनकर अक्षत ने तुरंत अपना सिर उठाकर कहाँ।

    अमित ने उसके हाथ पर हल्का मारा और बोला—

    "तू सच में पागल है क्या? मैं बिज़नेस मैन हूँ, यार। मै अपनी पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ दोनो को अलग रखता हूँ। और कभी भी घाटे का सौदा नहीं करता।"

    वह आगे झुककर बोला—

    "देख, तेरे पास आइडिया है… और मेरे पास पैसा। और मुझे इसमें साफ-साफ फायदा दिख रहा है। इसलिए मैं तेरा पार्टनर बनना चाहता हूँ। किसी एहसान में नहीं—सिर्फ बिज़नेस में।"

    फिर उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया।

    "तो बोल… पार्टनर्स?"

    अक्षत कुछ पल उसे देखता रहा। इतने दिनों बाद किसी ने बिना मतलब उसके शब्दों पर भरोसा किया था।

    धीरे से उसके चेहरे पर हल्की, थकी-सी मुस्कान उभरी।

    उसने अमित का हाथ थाम लिया।

    "पार्टनर्स…"

    उनके हाथों की पकड़ मजबूत थी—लेकिन अक्षत के अंदर एक अजीब-सी बेचैनी भी थी। बेचैनी कही अमित का लगाया पैसा और उसकी अक्षत पर भरोसा दोनो डूब ना जाए।

    *********

    अक्षत जब कपूर विला पहुँचा तो रात के लगभग 11 बज रहे थे। बाहर की हल्की ठंडी हवा और गाड़ी का लंबा सफ़र उसके सिर पर चढ़ गई थी। उसने बहुत नहीं पी थी, पर उतना ज़रूर था कि उसका नशा हल्का सा उसके सिर पर चढ़ गया था।

    अक्षत कमरे में दाख़िल हुआ। हल्की लड़खड़ाहट, आँखों में नशे की परत और साँसों में शराब की महक…

    मौली बिस्तर पर बैठी थी, पैरों को क्रॉस करके, गोद में लैपटॉप, चेहरे पर वही ठंडी सी शांति थी मौली ने एक नज़र अक्षत पर डाली और उसे एक सेकंड नही लगा ये समझने मे की वह नशे मे है।

    उसकी आँखें एक क्षण के लिए हल्के से फैल गईं— बहुत ही हल्का-सा डर, जैसे किसी ने उसके भीतर छिपे किसी पुराने घाव को खरोंच दिया हो।

    मौली तुरंत अपनी जगह से उठी और बैड के दूसरी तरफ जाकर खड़ी हो गई। जैसे दूरी बनाना ही उसकी सुरक्षा हो।

    “तुम… तुमने पी रखी है?” उसने आवाज़ सख्त रखने की कोशिश की, मगर हल्की सी थरथराहट को वह छूपा नही सकी।

    “तुम ऐसे शराब पीकर घर नहीं आ सकते अक्षत।”

    अक्षत उसे चुपचाप देखता रहा। और उसी पल उसके दिमाग में एक शरारती, अजीब सी सोच आई—जो शायद वह होश में होता तो कभी नहीं करता।

    “हाँ… पी रखी है मैंने।” वह हल्की मुस्कान के साथ बोला। और धीरे-धीरे मौली की ओर कदम बढ़ाने लगा।

    मौली पीछे हटने लगी, उसकी साँसें तेज हो गईं थी।

    “देखो… वही रुक जाओ। मेरे पास मत आओ।” वह बोल तो सख्ती से रही थी, पर डर उसकी आवाज़ को तोड़ रहा था।

    अक्षत उसकी बातो पर ध्यान ना देते हुए आराम से अपने कदम आगे बढ़ता जा रहा था।

    और मौली अपने कदम पीछे लेती जा रही थी। उसके कदम जितने पीछे जा सकते थे, उतने चले गए। लेकिन आख़िरकार उसकी पीठ दीवार से जा लगी। अब भागने की कोई जगह नहीं थी।

    अक्षत उसके बिल्कुल सामने आकर रुक गया। उसने अपने दोनो हाथ उसके दोनो साइड के दीवार पर रखा और उसे कैद कर लिया। उसने हल्का सा अपना सिर झुकाया, ताकि उसका चेहरा मौली की चेहरे के बराबर आ जाए।

    मौली के शरीर में एक झटका सा दौड़ गया। उसने तुरंत अपनी पलकों को कसकर बंद कर लिया। उसके करीब आने से उससे आती हल्की शराब की गंध उसकी साँसों में घुलने लगी। उसकी सांसे गहरी हो गई।

    “प्लीज… मुझ पर हाथ मत उठाना।” उसकी आवाज़ टूट गई।

    “मुझे मारना मत… प्लीज।” उसके आँखे बंद किए हुए ही कहाँ।

    कुछ पल के लिए कमरा बिल्कुल शांत हो गया।

    **********

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