"कुछ जाल इतने खूबसूरत होते हैं कि इंसान खुद को फँसने से रोक ही नहीं पाता..." एक खून से सना सच। एक सौदा जिससे बचना नामुमकिन। एक ऐसा रिश्ता, जहाँ नफरत और जुनून के बीच सिर्फ एक हल्की सी लकीर बाकी है। जब Ira Malhotra अपने पिता क... "कुछ जाल इतने खूबसूरत होते हैं कि इंसान खुद को फँसने से रोक ही नहीं पाता..." एक खून से सना सच। एक सौदा जिससे बचना नामुमकिन। एक ऐसा रिश्ता, जहाँ नफरत और जुनून के बीच सिर्फ एक हल्की सी लकीर बाकी है। जब Ira Malhotra अपने पिता की जगह एक बिज़नेस मीटिंग में जाती है, तो उसे नहीं पता था कि वो एक ऐसे आदमी से टकराने वाली है, जो सिर्फ अपने हक की चीज़ें लेना जानता है— Vidhan Raijayda। खतरनाक। बेरहम। बेहद जुनूनी। क्योंकि उस दुश्मनी की हदें मोहब्बत से टकराती हैं… अब Ira के पास कोई चॉइस नहीं थी, तो वो इस खेल में उसकी ……… आगे जानिए के लिए पढ़ें Twisted Desire - "A Dark and Deadly Love Story".
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मुंबई के एक आलीशान और हाई-एंड लग्ज़री होटल ‘द ग्रैंड रॉयल’ के प्राइवेट कॉन्फ्रेंस रूम में उस समय एक हाई-प्रोफाइल मीटिंग चल रही थी। कमरे की हर चीज़ — ग्लास वॉल्स, साउंडप्रूफ इंटीरियर्स, और मेज़ पर सलीके से रखे प्रीमियम डॉक्यूमेंट्स — क्लास, कंट्रोल और पावर का एहसास दिला रहे थे। टेबल के चारों ओर बैठे वेल-सूटेड मेंबर्स एक बेहद कॉन्फिडेंशियल प्रोजेक्ट पर पूरी संजीदगी से चर्चा में लगे थे।
माहौल में गहराई, फोकस और एक अनकही टेंशन साफ महसूस की जा सकती थी।
तभी, एक अधेड़ उम्र के, अनुभवी शख्स ने गहरी और असरदार आवाज़ में कहा, "Miss..., as you know, this is extremely critical for us. Every decision from here onward will define our next move."
(“मिस..., जैसा कि आप जानती हैं, यह प्रोजेक्ट हमारे लिए बेहद अहम है। यहां लिया गया हर फैसला हमारे अगले कदम की दिशा तय करेगा।”)
उसके शब्दों से केवल उनका अनुभव ही नहीं, बल्कि उस प्रोजेक्ट की गंभीरता भी साफ झलक रही थी। और ठीक उसी वक्त…
मीटिंग टेबल की हेड चेयर पर बैठी वो लड़की मुश्किल से 23 साल की रही होगी, लेकिन उसकी मौजूदगी में एक ऐसा असर और रुतबा था, जो उम्र से कहीं ज़्याद और पावर का एहसास दिला रहा था।
दूध-सा निखरा रंग, शार्प ब्लू आइज़ —जिन्हें एक बार देखो तो नज़र हटाना आसान न हो — गुलाबी होंठों पर ठहरी हुई खामोशी, परफेक्ट जॉ लाइन, और बेतरतीबी से कंधों पर बिखरे काले वेवी बाल… वो किसी फेयरीटेल से निकली किरदार जैसी लग रही थी। उसके बाएं हाथ में बंधी पुरानी लेकिन बेहद कीमती घड़ी बताना चाहिए रही थी, कि वक़्त को भी उसकी कलाई से होकर गुज़रना होगा। बिज़नेस ब्लैक सूट में वो किसी हाई-फैशन मैगज़ीन के कवर पर छपी आइकॉनिक फीमेल लीड लग रही थी, और YSL की ब्लैक हील्स उसके ओवरऑल लुक को एक परफेक्ट और पावरफुल टच दे रही थीं।
वो सिर्फ खूबसूरत नहीं थी — बल्कि कमांडिंग भी थी। उसकी नीली आंखों में एक अजीब-सा ठहराव और कशिश थी, जिसे महसूस करते ही सामने वाले को कुछ पल के लिए खुद होश में नहीं रह पाता।
ये लड़की कोई और नहीं, मल्होत्रा फैमिली की इकलौती वारिस — इरा मल्होत्रा थी। इतनी कम उम्र में उसने बिजनेस वर्ल्ड में वो मुकाम हासिल कर लिया था, जिसका कई लोग उम्र भर की मेहनत के बाद भी सिर्फ सपना ही देख पाते हैं...
इरा ने ठंडे लेकिन तीखे लहज़े में कहा,
"इट्स एल्सो इंपॉर्टेंट फॉर मी मिस्टर गोयल।"
मिस्टर गोयल हल्के से मुस्कुरा दिए, मानो उसकी गंभीरता को समझने की कोशिश कर रहे हों।
"आई नो, मिस मल्होत्रा… हम सभी को आपसे बहुत उम्मीदें हैं।"
उसी वक़्त, एक महिला मेंबर ने धीरे से पूछा, "वैसे, मिस्टर मेहरा कहाँ हैं? वो अब तक नहीं आए?"
मेहरा के मैनेजर ने तुरंत जवाब दिया, "सर को एक इमरजेंसी काम आ गया था, इसलिए उन्हें जाना पड़ा मैम ।"
मिस्टर गोयल, जो इस प्रोजेक्ट के चीफ़ डायरेक्टर थे, झुंझला गए।
“इटस टोटली डिस्गस्टिंग!” उन्होंने गुस्से में कहा।
इरा ने एक शब्द भी नहीं कहा — बस अपनी नीली आँखें सीधी मैनेजर पर टिका दी। इरा की निगाहें खुद पर महसूस करते ही मैनेजर का सिर अपने-आप झुक गया।
"मेहरा सर की तबीयत को लेकर मेरी चिंता अपनी जगह है," इरा की आवाज़ में न सख़्ती थी, न नरमी — बस एक बर्फ जैसी ठंडी क्लियरिटी, "लेकिन इस लेवल की मीटिंग में उनकी मौजूदगी नैसेसरी है। अगली बार अगर वो नज़र नहीं आए, तो इस डील से हाथ धो बैंठेंगे। एंड आई मीन इट।"
कमरे में एक भारी खामोशी पसर गई। हर चेहरा समझ गया कि उम्र चाहे कम हो, लेकिन इरा की सोच, उसका कंट्रोल और कमांड... सब कुछ बाकियों से कहीं आगे था।
उसने अपनी फाइल धीमे से टेबल पर रखी और बेहद प्रोफेशनल टोन में कहा, “अब हम डील के फाइनेंशियल्स पर फोकस करेंगे। मिस रोशनी, प्लीज़ प्रेजेंटेशन शुरू कीजिए।”
एक ग्रेसफुल महिला खड़ी हुई, और प्रोजेक्टर ऑन करते ही स्क्रीन पर बड़े-बड़े बोल्ड अक्षरों में टाइटल उभरा —
"प्रोजेक्ट स्काईलाइन – द फ्यूचर बिगिंस"
{"Project skyline – The future begins"}
इरा की नज़रें स्क्रीन पर थीं, लेकिन उसका ध्यान वहाँ नहीं था। उसके चेहरे पर गंभीरता की परत थी... और कहीं गहराई में एक थकावट, जिसे शायद सिर्फ वही समझ सकती थी.. कोई और नहीं जानता था। इस प्रोजेक्ट के अलावा भी उसके ज़हन में कुछ और चल रहा था — कुछ ऐसा जो उससे पीछा नहीं छोड़ रहा था।
मीटिंग के दौरान प्रोजेक्ट के कुछ इंपॉर्टेंट टॉपिक्स पर एक डीप डिस्कशन स्टार्ट हुआ जो ना जाने और कितनी देर तक चलता लेकिन दो घंटे बाद आखिरकार मीटिंग खत्म हो ही गई।
इरा धीरे-धीरे ठहरे कदमों से मीटिंग रूम से बाहर निकली। रात गहराने लगी थी और उसकी थकावट अब उसके चेहरे पर साफ नज़र आ रही थी।
उसने साथ चलते हुए अपने मैनेजर सिद्धांत से कहा, "सिद्धांत, इसी होटल में दो रूम बुक कर लो... आज हम यहीं रुकेंगे।"
उसने ये शब्द अभी पूरे भी नहीं किए थे कि उसके फोन की स्क्रीन पर एक अननोन नंबर फ्लैश होने लगा...
"एक्सक्यूज मी," कहकर इरा फोन उठाया।
"हेलो, इरा दिस साइड.. हू इस दिस?"
कुछ सेकंड्स तक खामोशी छाई रही... न कोई आवाज़, न कोई हलचल। और फिर —कॉल कट गया।
इरा की भौंहें तन गई उसने स्क्रीन को घूरते हुए कहा, "व्हाट द हेल ?"
अभी वो कुछ सोच ही रही थी कि फोन फिर से बजने लगा। इस बार स्क्रीन पर नाम चमका, — सिद्धांत कॉलिंग…
" मैम ," सिद्धांत की घबराई हुई आवाज़ सुनाई दी, "एक प्रॉब्लम हो गई है..."
"ओके . तुम रूम में आओ, मैं आती हूं।"
इरा ने अपनी बात कहकर कॉल कट कर दिया। कॉल कट करने के बाद उसे एहसास हुआ कि वो बात करते-करते होटल के कॉरिडोर से थोड़ी दूर निकल आई थी।
चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था... हल्की पीली रोशनी, शांत दीवारें, और गूंजती सी खामोशी।
टिंक!
और तभी उसके पैरों के पास कुछ गिरने की आवाज़ हुई। इरा ने झट से नीचे देखा तो — एक पुराना चमकता हुआ सिक्का उसके पैरों के पास लुढ़क रहा था। इरा ने धीरे से सिक्के को उठाया। वह सिक्का काफी भारी और ठंडा था। उस पर कोई अजीब सा सिंबल भी उकेरा हुआ था..
—
एक पल के लिए उसकी उंगलियां रुक गई। और फिर उसने चारों तरफ देखा और बिना एक शब्द बोले, सिक्के को अपनी कोट की जेब में डाल लिया। इरा ने तुरंत अपने कदम तेज़ी से वापस मोड़ लिये।
वो कुछ कदम और बढ़ी थी कि अचानक उसे किसी के चीखने की आवाज़ सुनाई दी। पहले तो इरा को लगा कि यह उसका वहम होगा, लेकिन उसे फिर वही दर्दनाक चीख दोबारा सुनाई दी। इस बार वो चीख और भी तेज़ और दर्दनाक थी।
"यह मेरा वहम नहीं हो सकता," इरा बड़बड़ाई।
वह आवाज़ का पीछा करते हुए गलियारे में काफ़ी आगे बढ़ गई। लेकिन उसे कोई नहीं दिखा। हर तरफ़ खामोशी छाई हुई थी। इरा थोड़ा घबरा गई, लेकिन फिर भी वह हिम्मत करके आगे बढ़ी तभी उसकी नज़र एक दरवाज़े पर पड़ी, जो आधा खुला हुआ था।
वो दरवाज़े के पास गई और उसने बिना ज़्यादा सोचे समझे दरवाजा खोलने के लिए हाथ बढ़ा दिया।
तभी अचानक से एक सवाल उसके ज़ेहन में आया, " यह अचानक मुझे इतनी बेचैनी क्यों हो रही है ? "
लेकिन उसने अपने अंदर उठती घबराहट को नज़रअंदाज़ करते हुए, दरवाज़ा खोल दिया।
दरवाज़ा खुलते ही सामने का नज़ारा देखकर इरा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। एक इंसान ज़मीन पर पड़ा था — उसके सीने में तीन गोलियाँ और कांच धंसा हुआ था। वो मंजर इतना बेरहम और खौफ़नाक था कि इरा को समझ नहीं आया कि कोई किसी को इतनी दरिंदगी से कैसे मार सकता था।
इरा डरते हुए अंदर गई और लाश को देखकर हल्के से बड़बड़ाई, " म... मैं मेहरा? "
उसके चेहरे पर डर, सदमा और बेचैनी की मिली-जुली भावनाएं साफ झलक रही थीं। वो अब भी कुछ पल के लिए वहीं ठिठकी रही — जैसे उसकी सोचने-समझने की काबिलियत कहीं गायब हो गई हो। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसने जो देखा, वो हकीकत था।
धड़ाक!
अचानक से दरवाज़ा बंद हो गया। इस तेज आवाज से इरा का ध्यान टूटा।
वो चौंककर पीछे मुड़ी तो उसने देखा कि कोई इंसान दरवाज़े के पास अपनी पीठ उसकी ओर मोड़े हुए सिरहाना लगाकर खड़ा था। उसकी बॉडी लैंग्वेज में कुछ तो अजीब था — कुछ ऐसा कि इरा की नज़रें खुद-ब-खुद वहीं टिक गईं।
उसकी सिर्फ पीठ नजर आ रही थी, लेकिन फिर भी कुछ तो था उसमें — एक अजीब-सा आकर्षण, एक ख़तरनाक सुकून।
इरा के चेहरे पर एक अनजाना डर तैर गया। उसने खुद को संभालते हुए बोलने की कोशिश की,
"तुम क...?"
लेकिन जैसे ही उसकी नज़र उस इंसान के चेहरे की एक हल्की झलक पकड़ी उसके शब्द उसके गले में ही अटक गए। उसकी सांसें रुकने लगी।
सामने खड़ा इंसान ब्लैक ट्राउजर और ऑक्सफोर्ड व्हाइट शर्ट में था। शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले हुए और उसकी व्हाइट शर्ट उसके शरीर से चिपकी हुई थी, जिससे उसके परफेक्ट बॉडी स्ट्रक्चर का हर एक डिटेल साफ नजर आ रहा था। उसके बाएं हाथ में एक लिमिटेड एडिशन वॉच चमक रही थी और पैरों में क्लासिकल ब्लैक शू थे।
उसकी शार्प जॉलाइन, हंटर ग्रे आइज़, स्लिम लिप्स, हल्की बीयर्ड और हाथों में उभरी हुई वेन्स — सब कुछ बेहद अट्रैक्टिव लग रहा था। माथे पर बिखरे हुए बाल उसकी पर्सनैलिटी को और भी ज़्यादा इंटेंस बना रहे थे। ओवरऑल, वो बंदा किसी ग्रीक गॉड से कम नहीं लग रहा था।
ईरा का दिल कुछ सेकंड के लिए रुक सा गया। उसने कांपते हुए होठों से कहा , “व... वि... विधान... रायज़ादा?”
हाँ, सामने खड़ा इंसान कोई और नहीं, बल्कि विधान रायज़ादा था — वो शख्स जिसे लोग मौत और डर का दूसरा नाम कहते थे। एक बेरहम बिजनेस टायकून, जिसकी क्रुएलिटी की कहानियाँ इरा ने सिर्फ सुनी ही नहीं थीं, बल्कि उन्हें सोचकर भी काँप जाती थी। कहा जाता था कि वो बिना एक पल गवाएं , लोगों को मिटा देता था — बिना किसी पछतावे के और आज... वही इंसान उसके सामने खड़ा था।
इरा के पैरों से जैसे ज़मीन खिसक गई हो। उसकी बॉडी ने अपने आप रिएक्ट किया और उसके कदम अनजाने में पीछे हटने लगे। सालों बाद उसने दोबारा इस डर को महसूस किया, जिससे वो बरसों से भागती आ रही थी। वो डर... अब उसकी आंखों के सामने था।
विधान ने बेहद शांत और कंट्रोल्ड अंदाज़ में, दोनों हाथ पॉकेट्स में डाले और अपने कैलकुलेटिव कदम इरा की ओर बढ़ा दिए और कुछ दूरी पर रुककर, उसने ठंडी आवाज़ में कहा —
" इतने सालों बाद मिलकर बहुत बुरा लगा, मिस मल्होत्रा। "
(उसने उसका नाम कुछ इस अंदाज़ में खींचा, जैसे किसी पुराने ज़ख्म को दोबारा महसूस करना चाह रहा हो।)
इरा को घबराहट तो हो रही थी, लेकिन उसने अपने डर को होशियारी से छिपाते हुए तंज भरे लहजे में कहा,
" अफसोस की बात है, सालों पहले भी तुम्हारे हाथ खून से सने थे... और आज भी... "
उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थीकि विधान ने बात बीच में ही काटकर कहा — " जबान संभलकर , मिस मल्होत्रा..." फिर थोड़ा आगे झुककर फुसफुसाते हुए, " कहीं ऐसा न हो कि ये ज़ुबान... हमेशा के लिए बाहर आ जाए। "
इरा ने हल्की, लेकिन जानबूझकर उकसाने वाली मुस्कान के साथ नज़रें फेर लीं।
" आई थिंक ऑल दिस इज योर मैटर... तो मुझे इससे दूर ही रहना चाहिए। वैसे भी, तुम इन बकवास चीज़ों को मैनेज करने में एक्सपर्ट हो। "
ये कहते हुए वो पलटकर जाने लगी।
तभी पीछे से आवाज़ आई —
" ऐसे कैसे, मिस... "
इरा ने झट से पलटकर जवाब दिया,
"तो अब जबरदस्ती करोगे? भौंहे सिकोड़ते हुए — ओह राइट ... ये तो तुम्हारी फितरत है , है ना ?"
विधान की आँखों में चमक आई। उसने सर्कस्टिकली स्माइल की और कहा ,
" Hmm... स्मार्ट। "
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आखिर इरा और विधान एक-दूसरे को कैसे जानते थे? क्या उनके बीच कभी कोई रिश्ता रहा था? और वो कॉल — क्या वो किसी बड़ी साजिश का हिस्सा थी, या बस एक सोचा-समझा जाल, जिसमें इरा फँसती चली गई?
सवाल तो बहुत हैं... मगर जवाब एक भी नहीं। आगे जानने के लिए मिलते हैं अगले चैप्टर में!
🌼🌼 राधे राधे🌼🌼.
Recap :
" आई थिंक ऑल दिस इज योर मैटर... तो मुझे इससे दूर ही रहना चाहिए। वैसे भी, तुम इन बकवास चीज़ों को मैनेज करने में एक्सपर्ट हो। "
ये कहते हुए वो पलटकर जाने लगी।
तभी पीछे से आवाज़ आई —
" ऐसे कैसे, मिस... "
इरा ने झट से पलटकर जवाब दिया,
"तो अब जबरदस्ती करोगे? भौंहे सिकोड़ते हुए — ओह राइट ... ये तो तुम्हारी फितरत है , है ना ?"
विधान की आँखों में चमक आई। उसने सर्कस्टिकली स्माइल की और कहा ,
" Hmm... स्मार्ट। "
अब आगे :
कुछ सेकेंड चुप रहने के बाद विधान बोला,
" तुमने तो सब देख ही लिया है... राइट? "
इरा ने एकदम बेपरवाह लहज़े में कहा,
" तो क्या? मारोगे? "
विधान ने बिल्कुल ठंडे लहजे में, बिना पलक झपकाए जवाब दिया,
" हाँ। "
उसके इस जवाब ने एक पल के लिए इरा को झटका दिया, लेकिन अगले ही पल वह गुस्से से भरकर बोली —
"मैं पूछ भी किससे रही हूँ..." इरा बड़बड़ाई, "जिसे किसी के दर्द से फर्क ही नहीं पड़ता, उससे जवाब की उम्मीद भी क्या..."
वह एक कदम आगे बढ़ी और उसकी आँखों में आँखें डालते हुए बोली,
" यू नो वॉट? ये तुम्हारी गलती नहीं है... ये तो तुम्हारे खून में ही होगा — जैसे बाप..."
उसके लफ्ज़ पूरे भी नहीं हुए थे कि अचानक, विधान ने उसकी ठोड़ी कसकर पकड़ ली और उसे जोर से दीवार से टिका दिया।
इरा की पीठ दीवार से जा टकराई और उसके मुंह से हल्की, मगर दर्द भरी सिसकी निकल गई।
विधान की आँखें अब सुर्ख लाल हो चुकी थीं। वह बेहद सर्द और कंट्रोल्ड आवाज़ में बोला —
"चूस योर वर्ड्स केयरफुली, मिस मल्होत्रा... नहीं तो —"
इरा को विधान के इस एक्शन की उम्मीद नहीं थी, लेकिन अब वह भी पीछे हटने वाली नहीं थी।
गुस्से में कांपती हुई आवाज़ में इरा ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए कहा,
" दर्द हो रहा है... और जो तुमने — "
लेकिन उससे पहले कि वह अपनी बात पूरी कर पाती, विधान ने उसकी ठोड़ी को और कसकर दबा दिया। इतना जोर से कि इरा की स्किन तक लाल पड़ गई।
विधान ने सर्द और बेहद ठंडी आवाज़ में कहा —
" आई डोन्ट लाइक... जब कोई मेरी बात काटे। सो, डोन्ट डेयर डू इट अगेन। "
इरा ने झटके से अपना चेहरा छुड़ाया, लेकिन अब उसकी आँखों में डर नहीं था — अब वहां एक अलग ही तूफान उमड़ रहा था।
" अब मुकाबला बराबरी का होगा, मिस्टर रायज़ादा ," इरा ने तीखे , लेकिन शांत शब्दों में कहा। उसकी आवाज़ में एक ठहराव था ... और साथ ही एक चुनौती भी।
विधान ने एक सर्कास्टिक हंसी के साथ जवाब दिया,
" Exactly... तो ज़ख्म और दर्द भी बराबरी से मिलना चाहिए... क्यों, मिस मल्होत्रा? "
इरा कुछ पल के लिए रुकी। उसकी आँखों में उलझन थी, जैसे वह समझ नहीं पा रही थी कि विधान के शब्दों का असली मतलब क्या था। उस एक पल में, दोनों की आँखें आपस में टकराईं।
विधान की आँखों में अचानक एक दर्द झलका। और फिर, पूरी ताकत से चिल्लाते हुए वह बोला —
"GET LOST!!
इससे पहले कि मेरे हाथ... तुम्हारे गंदे खून से रंग जाएं। दफा हो जाओ!"
यह सुनते ही इरा का गुस्सा फट पड़ा। उसने दरवाज़े की ओर बढ़ते हुए पीछे पलटकर तीखी नज़र डाली और पूरे गुस्से से दरवाज़ा जोर से पटका। विधान के चिल्लाने की आवाज़ अभी भी उसके कानों में गूंज रही थी, जब वह कमरे से बाहर निकली। उसका चेहरा सख्त था, लेकिन अंदर एक तूफान मचल रहा था।
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वहीं दूसरी तरफ,
इरा के जाने के बाद, विधान ने दीवार पर जोर से मुक्का मारा। इरा ने अनजाने में ही सही , मगर विधान की सबसे कमजोर कड़ी पर वार किया था — जो शायद उसे नहीं करना चाहिए था। अभी भी गुस्से में , विधान की आँखें लावा उगल रही थीं।
"तुमने अच्छा नहीं किया, मिस मल्होत्रा,"
उसने बड़बड़ाते हुए कहा, " आई वोंट स्पेयर यू। "
कहते हुए, उसने एक नज़र पीछे फर्श पर पड़ी लाश पर डाली...
और अचानक उसके चेहरे पर एक अजीब, सुकून भरी मुस्कान आ गई।
[फ्लैशबैक ]
सामने बड़े से सोफे पर एक शख्स बैठा था। उसके हाथों में सुलगती हुई सिगरेट था। जिससे वो हर कुछ सेकेंड्स में एक लंबा कश ले रहा था। फिर उसने सिगरेट को ऐशट्रे में बुझाया।
वो शख्स कोई और नहीं , बल्कि विधान था— किसी राजा की तरह इत्मीनान से बैठा हुआ , लेकिन उसकी ग्रे आईज़ कुछ और ही बयां कर रही थीं — जैसे किसी तूफान से ठीक पहले की खामोशी।
उसके सामने खड़ा आदमी लगभग 40-45 साल का था , लेकिन देखने में वो अपनी उम्र से कम का दिखाई दे रहा था। वह शख्स कोई और नहीं मिस्टर मेहरा था। उनके चेहरे से बेचैनी साफ झलक रही थी। उनका चेहरा पसीने से भीगा हुआ था और आंखों में एक डर बैठ चुका था।
विधान ने अपनी नज़रें उठाईं और शांत आवाज़ में कहा ,
" लाइक आई शेड , आई डोनट लाइक तो रिपीट माई वर्ड्स। सो डू इट नाउ। "
मेहरा ने घबराते हुए दोनों हाथ जोड़ लिए, लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोला ,
" एम सो ... सारी , सर ... आई प्रोमिस ,ऐसा दोबारा नहीं होगा। "
तब तक विधान का गुस्सा अपनी हद पार कर चुका था। उसने अपने वेस्ट से गन निकाली और बेहद कोल्ड एक्सप्रेशन के साथ उसे लोड करने लगा।
तभी , मेहरा ने घबराए हुए स्वर में कहा,
"ये ... क्या कर रहे हो तुम ? पागल वागल तो नहीं हो गए हो।"
विधान ने एक हल्की सी नजर मेहरा पर डाली , फिर अपनी गन को हथेली में आराम से घुमाया — जैसे किसी खिलौने से खेल रहा हो।
अचानक , मेहरा ने टेबल पर रखा फ्लावर पॉट उठाया और उसे विधान की ओर फेंक मारा। लेकिन विधान की नजरें और हाथ दोनों तैयार थे — उसने झटके से मेहरा का हाथ पकड़ लिया और उसी फ्लावर पॉट को दीवार पर दे मारा। कांच बिखरा , और एक तीखा टुकड़ा उठाकर उसने सीधे मेहरा के सीने में गाड़ दिया।
मेहरा दर्द में तड़पने लगा, जैसे कोई मछली हो जो पानी से बाहर तड़प रही हो। उसकी साँसें हांफने लगीं , चेहरा सफेद पड़ गया।
कांपते हुए , मेहरा ने टूटती आवाज़ में कहा,
" तू ... तुम ये अच्छा नहीं किया रायजादा .... तुम्हे इसका हिसाब .... "
वो बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि उसी पल , विधान ने बिना एक पल गवाए — उसके सीने में तीन गोलियाँ चला दी।
धाँय! धाँय! धाँय!
गोलियों की गूंज कमरे की दीवारों से टकरा कर लौट रही थी , और माहौल में एक डरवाना सन्नाटा भर गया।
अब मेहरा निढाल हो चुका था। उसकी आँखें खुली थीं , लेकिन उनमें ज़िंदगी बाकी नहीं थी।
विधान मेहरा की लाश के पास धीरे से झुक गया।
उसने ठंडे हाथों से मेहरा के सीने में धंसे कांच के टुकड़े को पकड़ा और उसे धीरे-धीरे घुमाते हुए , कहा —
" कौन किसका हिसाब करेगा ... यह तो वक्त हे बताएगा। "
[फ्लैशबैक एंड ]
उस लाश को एकटक घूरते हुए, विधान कुछ देर के लिए खामोश हो गया। उसकी आँखों में कोई पछतावा नहीं था, बस एक गहरी सोच... जैसे वो किसी पुराने दर्द या अधूरी कहानी में खो गया हो।
मगर अगले ही पल , उसका चेहरा सख्त हो गया। बिना एक शब्द बोले , वो तेजी से मुड़ा और होटल के बाहर निकल गया।
अपनी गाड़ी के पास पहुंचते ही , उसने दरवाज़ा खोला , ड्राइविंग सीट पर बैठा , और बिना वक्त गंवाए इंजन स्टार्ट कर दिया।
और फिर... टायरों की चीख के साथ, गाड़ी तेज़ रफ्तार से अंधेरे रास्ते पर दौड़ पड़ी — जैसे उसका अगला शिकार इंतज़ार कर रहा हो।
गहरी रात की ख़ामोशी को चीरती हुई, विधान की गाड़ी तेज़ी से सड़क पर दौड़ रही थी। अंदर बैठे इंसान का चेहरा बिल्कुल इमोशनलेस था। वह बेहद रैश ड्राइविंग कर रहा था — अगर गलती से कोई उसकी गाड़ी के सामने आ जाता , तो आज उसका ऊपर जाना तय था।
तेज़ रफ्तार में गाड़ी दौड़ाते हुए , विधान ने किसी को कॉल किया। एक रिंग के बाद कॉल कनेक्ट हुआ , और दूसरी तरफ से एक आवाज़ आई ,
"यस , प्रेसिडेंट ?"
"जॉन , डिटेल्स मैंने तुम्हें भेज दी हैं। और मैस भी क्लियर करवा देना ," विधान ने कहा। इतना कहकर उसने फोन काट दिया।
वहीं दूसरी तरफ , जॉन के चेहरे पर एक खतरनाक मुस्कान उभरी। उसने धीमी आवाज़ में बड़बड़ाया ,
"प्रेसिडेंट को क्या हुआ ? इतने दिनों बाद किसकी शामत आई थी आज ?"
खुद को ही जवाब देते हुए वह फिर बोला ,
"ये तो वहाँ जाकर ही पता चलेगा , जॉन।"
उसके चेहरे पर एक मिस्टीरियस मुस्कान आ गई और फिर वह अपने काम पर निकल पड़ा।
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विधान की चिल्लाती हुई आवाज़ अब भी इरा के कानों में गूंज रही थी , जब वो कमरे से बाहर निकली। उसका चेहरा भले ही एक्सप्रेशन लेस था , लेकिन अंदर जैसे एक तूफान मच रहा था।
वो सीधे अपने रूम में गई और दरवाज़ा बंद कर लिया। बिना कुछ सोचे-समझे , उसके कदम बाथरूम की ओर बढ़ गए। उसने शॉवर ऑन किया और ठीक पानी के नीचे खड़ी हो गई।
पानी की बूँदें उसके चेहरे पर गिरती जा रही थीं... और उन बूँदों के साथ बह रहे थे वो आँसू, जिन्हें उसने जबरदस्ती अब तक रोके रखा था।
कुछ ही देर में इरा टूटकर ज़मीन पर बैठ गई। उसने खुद को अपनी बाँहों में समेट लिया, जैसे खुद को ही किसी तरह दिलासा दे रही हो। इस वक्त वो बिल्कुल किसी छोटी सी बच्ची की तरह लग रही थी।
"क्यों..." उसकी आवाज़ बमुश्किल निकली।
"क्यों आए हो तुम वापस? इतना सब कुछ करने के बाद भी... सुकून नहीं मिला? जो अब यहाँ भी चले आए..."
कहते-कहते इरा का रोना फूट पड़ा।
कुछ मिनट पहले की इरा और इस टूट चुकी इरा में जमीन-आसमान का फर्क था।
वह देर तक वहीं बैठी रही , अपने दर्द को सीने से लगाए हुए।
करीब दो घंटे बाद , जब उसका शरीर ठंड से काँपने लगा और आँसू सूख गए थे, तब वो उठी। उसे अब कुछ हल्का महसूस हुआ।
क्लोसेट में जाकर उसने कपड़े बदले। लेकिन पानी में भीगे रहने की वजह से उसे ज़ुकाम हो गया था। और रोने की वजह से सिर में भी बुरी तरह दर्द हो रहा था।
पेन किलर लेने के बावजूद , उसकी नींद जैसे कहीं खो सी गई थी। वो चाहकर भी विधान से हुई आज की मुलाकात को भुला नहीं पा रही थी। रातभर वो करवटें बदलती रही...
भगवान जाने , रात के किस पहर उसे नींद आई... या शायद आई भी नहीं। ये तो बस इरा ही जानती थी।
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वहीं दूसरी तरफ, सामने एक बड़ा सा मेंशन था — रॉयल ब्लू और एमराल्ड ग्रीन रंगों में रंगा हुआ। मेंशन के ठीक बीचों-बीच एक फाउंटेन था, जिसके चारों ओर हरियाली बिछी थी।
यह मेंशन मॉडर्न और क्लासी का एक खूबसूरत मेल था — हर कोना किसी खूबसूरत ख्वाब जैसा लग रहा था । अंदर की खूबसूरती और शांति को शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल था। लेकिन उसकी खूबसूरती में कुछ ऐसा था जो खामोश होकर भी बहुत कुछ कह रहा था।
गेट की नेम प्लेट पर बड़े अक्षरों में लिखा था — "V. R. Mansion"।
तभी एक कार, जो विधान की थी, हवेली के अंदर दाखिल हुई।
विधान सीधे अपने कमरे में गया। कमरे में दाखिल होते ही उसने शर्ट उतारी, घड़ी मेज़ पर रखी और शॉवर के नीचे खड़ा हो गया।
शॉवर की हर बूँद उसके गर्म जिस्म से टकरा रही थी , मगर उसे ठंडा करने की हिम्मत उनमें भी नहीं थी। शॉवर लेने के बाद वह क्लोसेट में गया और एक ब्लैक लूज़ लोअर पहन लिया।
फिर वह वार्डरोब के पास गया और एक तस्वीर निकाली। कुछ पल के लिए उसकी आँखों में अजीब सा बदलाव आया — जैसे वह कहीं खो गया हो। लेकिन उसके चेहरे के इस बदलते भाव को समझ पाना किसी के लिए भी आसान नहीं था। कोई यह नहीं जान सकता था कि वह क्या सोच रहा था या क्या महसूस कर रहा था।
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क्रमशः
हेलो रीडरस 👋🏻👋🏻 आई होप आपको मेरी कहानी पसंद आए । प्लीज कमेंट करके बताएं की आप सबको कैसी लगी।
आगे जाने के लिए मिलते हैं नेक्स्ट चैप्टर में.....🙏🏻🙏🏻🙏🏻
🌼🌼 राधे राधे🌼🌼
Precap :-
तस्वीर को वापस रखने के बाद वह बालकनी की ओर बढ़ा और बाहर रखे काउच पर बैठ गया। चाँद की रोशनी और तेज ठंडी हवाएँ उसके शर्टलेस बदन से टकरा रही थीं। चाँदनी में उसका शरीर किसी हीरे की तरह चमक रहा था।
विधान काउच पर लेट कर किसी गहरी सोच में डूब गया था , जब अचानक उसका चेहरा सख्त हो गया। मिस्टर मेहरा की कही हुई बातें अब भी उसके कानों में गूँज रही थीं ...
अब आगे :-
[फ्लैशबैक]
विधान अपने रूम में लैपटॉप पर काम कर रहा था , चेहरा पूरी तरह सर्द और भावहीन।
तभी दरवाज़ा खुला , और सामने से मिस्टर मेहरा आते हुए दिखाई दिए।
"हैलो मिस्टर रायज़ादा , आपने बुलाया था? कोई काम था ?" मेहरा ने पूछा।
"काम था," विधान ने लैपटॉप से नज़र हटाए बिना कहा। "वैसे , उस प्रोजेक्ट का क्या हुआ ?"
"अरे सर , सब हमारे कंट्रोल में है। एवरीथिंग वोज गुड ," मेहरा ने पूरे कॉन्फिडेंस से जवाब दिया।
"ओह ..." विधान ने सिर हल्का सा झुकाया , "शायद अब नहीं।"
"मतलब ?" मेहरा ने कंफ्यूज होते हुए पूछा।
"मतलब ," विधान अब मेहरा के चारों ओर घूमते हुए बोला ,
"जब कंट्रोल करने वाला ही ना रहे ... तो कंट्रोल कैसा ?"
मेहरा की साँसें जैसे थम गईं।
वो कुछ बोलने ही वाला था कि तभी ...
"एज यू नो आई डोनट लाइक तो रिपीट माई वर्ड्स" , विधान ने तेज़ आवाज़ में कहा।
[फ्लैशबैक एंड]
( जर्मनी , बर्लिन )
एक आलीशान विला ... बाहर से जितना रॉयल , अंदर से उतना ही गहरा सन्नाटा। और उसी सन्नाटे में एक कमरा था , जो किसी म्यूज़ियम से कम नहीं लगता था। दीवारें तस्वीरों से ढकी हुई थीं , हर शेल्फ पर कोई न कोई याद बसी हुई थी , जैसे वक्त को थाम कर रखा गया हो। कमरे में एक शख़्स दाखिल होता है , और उसके कदम बिल्कुल धीमे होते हैं , जैसे वो हर चीज़ से डरते हुए चल रहा हो। उसकी आँखें एक पुराना स्कार्फ देखती हैं , जो धीरे से उठाकर , वो उसे अपनी नाक के पास लाकर सूंघता है।
"आज भी वही खुशबू ..." वो धीरे से बड़बड़ाता है , मानो एक लंबी यादों में खो गया हो।
वो स्कार्फ को इस तरह रखता है , जैसे कोई शीशे की नाज़ुक चीज़ हो। फिर उसकी नज़र एक कोने में रखी नई तस्वीर पर रुकती है — शायद हाल ही में खींची गई हो। बाकी तस्वीरों से अलग , यह कुछ ज़्यादा ही संभाल कर रखी गई थी। उसने तस्वीर को धीरे से छुआ और फिर वो बड़बड़ाता है:
"अजीब जुल्म करती हैं तेरी यादें ..."
कभी ये मेरे ज़ख़्मों पर मरहम सी लगती हैं ,
तो कभी मेरे दर्द की सबसे बड़ी वजह बन जाती हैं।
कभी ये मेरी मुस्कान का सबब होती हैं ,
तो कभी इन अश्कों का कारण बन जाती हैं।
अजीब जुल्म करती हैं तेरी यादें ..."
इतना कहकर वो मुस्कुराता है — पर वो मुस्कान ... किसी टूटे हुए दिल की नहीं , बल्कि किसी जुनूनी की लगती है। उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक आ जाती है , जैसे दर्द ने मोहब्बत को पागलपन में बदल दिया हो। तभी अचानक उसका चेहरा एकदम कठोर हो जाता है। उसकी नज़रें दीवार पर लगी एक लड़की की तस्वीर पर ठहर जाती हैं — उस तस्वीर में एक बेहद खूबसूरत चेहरा था , मासूम सी मुस्कान के साथ। और फिर , उसकी नज़रें जैसे तस्वीर को चीर कर दिल तक उतरने लगी हों।
"वो दिन दूर नहीं... जब तुम मेरी बाहों में होगी, मेरी जान..." वो धीमे से, जैसे खुद से बात करता हुआ फुसफुसाता है।
🌼🌼 राधे राधे🌼🌼
Chapter 1 – मंजर ए हकीकत
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मुंबई के एक आलीशान और हाई-एंड लग्ज़री होटल ‘द ग्रैंड रॉयल’ के प्राइवेट कॉन्फ्रेंस रूम में उस समय एक हाई-प्रोफाइल मीटिंग चल रही थी। कमरे की हर चीज़—ग्लास वॉल्स, साउंडप्रूफ इंटीरियर्स, और मेज़ पर सलीके से रखे प्रीमियम डॉक्यूमेंट्स—क्लास, कंट्रोल और पावर का एहसास दिला रहे थे। टेबल के चारों ओर बैठे वेल-सूटेड मेंबर्स एक बेहद कॉन्फिडेंशियल प्रोजेक्ट पर पूरी संजीदगी से चर्चा में लगे थे।
माहौल में गहराई, फोकस और एक अनकही टेंशन साफ महसूस की जा सकती थी।
तभी, एक अधेड़ उम्र के, अनुभवी शख्स ने गहरी और असरदार आवाज़ में कहा, "Miss..., as you know, this is extremely critical for us. Every decision from here onward will define our next move."
(“मिस..., जैसा कि आप जानती हैं, यह प्रोजेक्ट हमारे लिए बेहद अहम है। यहां लिया गया हर फैसला हमारे अगले कदम की दिशा तय करेगा।”)
उसके शब्दों से केवल उनका अनुभव ही नहीं, बल्कि उस प्रोजेक्ट की गंभीरता भी साफ झलक रही थी। और ठीक उसी वक्त…
मीटिंग टेबल की हेड चेयर पर बैठी वो लड़की मुश्किल से 23 साल की रही होगी, लेकिन उसकी मौजूदगी में एक ऐसा असर और रुतबा था, जो उम्र से कहीं ज़्याद और पावर का एहसास दिला रहा था।
दूध-सा निखरा रंग, शार्प ब्लू आइज़—जिन्हें एक बार देखो तो नज़र हटाना आसान न हो—गुलाबी होंठों पर ठहरी हुई खामोशी, परफेक्ट जॉ लाइन, और बेतरतीबी से कंधों पर बिखरे काले वेवी बाल… वो किसी फेयरीटेल से निकली किरदार जैसी लग रही थी। उसके बाएं हाथ में बंधी पुरानी लेकिन बेहद कीमती घड़ी बताना चाहिए रही थी, कि वक़्त को भी उसकी कलाई से होकर गुज़रना होगा। बिज़नेस ब्लैक सूट में वो किसी हाई-फैशन मैगज़ीन के कवर पर छपी आइकॉनिक फीमेल लीड लग रही थी, और YSL की ब्लैक हील्स उसके ओवरऑल लुक को एक परफेक्ट और पावरफुल टच दे रही थीं।
वो सिर्फ खूबसूरत नहीं थी — बल्कि कमांडिंग भी थी। उसकी नीली आंखों में एक अजीब-सा ठहराव और धार थी, जिसे महसूस करते ही सामने वाले को कुछ पल के लिए खुद होश में नहीं रह पाता।
ये लड़की कोई और नहीं, मल्होत्रा फैमिली की इकलौती वारिस — इरा मल्होत्रा थी। इतनी कम उम्र में उसने बिजनेस वर्ल्ड में वो मुकाम हासिल कर लिया था, जिसका कई लोग उम्र भर की मेहनत के बाद भी सिर्फ सपना ही देख पाते हैं...
इरा ने ठंडे लेकिन तीखे लहज़े में कहा,
"इट्स एल्सो इंपॉर्टेंट फॉर मी मिस्टर गोयल।"
मिस्टर गोयल हल्के से मुस्कुरा दिए, मानो उसकी गंभीरता को समझने की कोशिश कर रहे हों।
"आई नो, मिस मल्होत्रा… हम सभी को आपसे बहुत उम्मीदें हैं।"
उसी वक़्त, एक महिला मेंबर ने धीरे से पूछा, "वैसे, मिस्टर मेहरा कहाँ हैं? वो अब तक नहीं आए?"
मेहरा के मैनेजर ने तुरंत जवाब दिया, "सर को एक इमरजेंसी काम आ गया था, इसलिए उन्हें जाना पड़ा।"
मिस्टर गोयल, जो इस प्रोजेक्ट के चीफ़ डायरेक्टर थे, झुंझला गए।
“इटस टोटली डिस्गस्टिंग!” उन्होंने गुस्से में कहा।
इरा ने एक शब्द भी नहीं कहा — बस अपनी नीली आँखें सीधी मैनेजर पर टिका दी। इरा की निगाहें खुद पर महसूस करते ही मैनेजर का सिर अपने-आप झुक गया।
"मेहरा सर की तबीयत को लेकर मेरी चिंता अपनी जगह है," इरा की आवाज़ में न सख़्ती थी, न नरमी — बस एक बर्फ जैसी ठंडी क्लियरिटी, "लेकिन इस लेवल की मीटिंग में उनकी मौजूदगी नैसेसरी है। अगली बार अगर वो नज़र नहीं आए, तो इस डील से हाथ धो बैंठेंगे। एंड आई मीन इट।"
कमरे में एक भारी खामोशी पसर गई। हर चेहरा समझ गया कि उम्र चाहे कम हो, लेकिन इरा की सोच, उसका कंट्रोल और कमांड... सब कुछ बाकियों से कहीं आगे था।
उसने अपनी फाइल धीमे से टेबल पर रखी और बेहद प्रोफेशनल टोन में कहा, “अब हम डील के फाइनेंशियल्स पर फोकस करेंगे। मिस रोशनी, प्लीज़ प्रेजेंटेशन शुरू कीजिए।”
एक ग्रेसफुल महिला खड़ी हुई, और प्रोजेक्टर ऑन करते ही स्क्रीन पर बड़े-बड़े बोल्ड अक्षरों में टाइटल उभरा—
"प्रोजेक्ट स्काईलाइन – द फ्यूचर बिगिंस"
इरा की नज़रें स्क्रीन पर थीं, लेकिन उसका ध्यान वहाँ नहीं था। उसके चेहरे पर गंभीरता की परत थी... और कहीं गहराई में एक थकावट, जिसे शायद सिर्फ वही समझ सकती थी.. कोई और नहीं जानता था। इस प्रोजेक्ट के अलावा भी उसके ज़हन में कुछ और चल रहा था — कुछ ऐसा जो उससे पीछा नहीं छोड़ रहा था।
मीटिंग के दौरान प्रोजेक्ट के कुछ इंपॉर्टेंट टॉपिक्स पर एक डीप डिस्कशन स्टार्ट हुआ जो ना जाने और कितनी देर तक चलता लेकिन दो घंटे बाद आखिरकार मीटिंग खत्म हो ही गई।
इरा धीरे-धीरे ठहरे कदमों से मीटिंग रूम से बाहर निकली। रात गहराने लगी थी और उसकी थकावट अब उसके चेहरे पर साफ नज़र आ रही थी।
उसने साथ चलते हुए अपने मैनेजर सिद्धांत से कहा, "सिद्धांत, इसी होटल में दो रूम बुक कर लो... आज हम यहीं रुकेंगे।"
उसने ये शब्द अभी पूरे भी नहीं किए थे कि उसके फोन की स्क्रीन पर एक अननोन नंबर फ्लैश होने लगा...
"एक्सक्यूज मी," कहकर इरा फोन उठाया।
"हेलो, इरा दिस साइड.. हू इस दिस?"
कुछ सेकंड्स तक खामोशी छाई रही... न कोई आवाज़, न कोई हलचल। और फिर—कॉल कट गया।
इरा की भौंहें तन गई उसने स्क्रीन को घूरते हुए कहा, "व्हाट द हेल?"
अभी वो कुछ सोच ही रही थी कि फोन फिर से बजने लगा। इस बार स्क्रीन पर नाम चमका, — सिद्धांत कॉलिंग…
" मैम ," सिद्धांत की घबराई हुई आवाज़ सुनाई दी, "एक प्रॉब्लम हो गई है..."
"ओके . तुम रूम में आओ, मैं आती हूं,"
इरा ने अपनी बात कहकर कॉल कट कर दिया। फोन खत्म करने के बाद उसे एहसास हुआ कि वो बात करते-करते होटल के कॉरिडोर से थोड़ी दूर निकल आई थी।
चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था... हल्की पीली रोशनी, शांत दीवारें, और गूंजती सी खामोशी।
टिंक!
और तभी उसके पैरों के पास कुछ गिरने की आवाज़ हुई। इरा ने झट से नीचे देखा तो — एक पुराना चमकता हुआ सिक्का उसके पैरों के पास लुढ़क रहा था। इरा ने धीरे से सिक्के को उठाया। वह सिक्का काफी भारी और ठंडा था। उस पर कोई अजीब सा सिंबल भी उकेरा हुआ था..
—
एक पल के लिए उसकी उंगलियां रुक गई। और फिर उसने चारों तरफ देखा और बिना एक शब्द बोले, सिक्के को अपनी कोट की जेब में डाल लिया। इरा ने तुरंत अपने कदम तेज़ी से वापस मोड़ लिये।
वो कुछ कदम और बढ़ी थी कि अचानक उसे किसी के चीखने की आवाज़ सुनाई दी। पहले तो इरा को लगा कि यह उसका वहम होगा, लेकिन उसे फिर वही दर्दनाक चीख दोबारा सुनाई दी। इस बार वो चीख और भी तेज़ और दर्दनाक थी।
"यह मेरा वहम नहीं हो सकता," इरा बड़बड़ाई।
वह आवाज़ का पीछा करते हुए गलियारे में काफ़ी आगे बढ़ गई। लेकिन उसे कोई नहीं दिखा। हर तरफ़ खामोशी छाई हुई थी। इरा थोड़ा घबरा गई, लेकिन फिर भी वह हिम्मत करके आगे बढ़ी तभी उसकी नज़र एक दरवाज़े पर पड़ी, जो आधा खुला हुआ था।
वो दरवाज़े के पास गई और उसने बिना ज़्यादा सोचे समझे दरवाजा खोलने के लिए हाथ बढ़ा दिया।
तभी अचानक से एक सवाल उसके ज़ेहन में आया, "यह अचानक मुझे इतनी बेचैनी क्यों हो रही है?"
लेकिन उसने अपने अंदर उठती घबराहट को नज़रअंदाज़ करते हुए, दरवाज़ा खोल दिया।
दरवाज़ा खुलते ही सामने का नज़ारा देखकर इरा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। एक इंसान ज़मीन पर पड़ा था —उसके सीने में तीन गोलियाँ और कांच धंसा हुआ था। वो मंजर इतना बेरहम और खौफ़नाक था कि इरा को समझ नहीं आया कि कोई किसी को इतनी दरिंदगी से कैसे मार सकता था।
इरा डरते हुए अंदर गई और लाश को देखकर हल्के से बड़बड़ाई, "म... मैं मेहरा?"
उसके चेहरे पर डर, सदमा और बेचैनी की मिली-जुली भावनाएं साफ झलक रही थीं। वो अब भी कुछ पल के लिए वहीं ठिठकी रही—जैसे उसकी सोचने-समझने की काबिलियत कहीं गायब हो गई हो। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसने जो देखा, वो हकीकत था।
धड़ाक!
अचानक से दरवाज़ा बंद हो गया। इस तेज आवाज से इरा का ध्यान टूटा।
वो चौंककर पीछे मुड़ी तो उसने देखा कि कोई इंसान दरवाज़े के पास अपनी पीठ उसकी ओर मोड़े हुए सिरहाना लगाकर खड़ा था। उसकी बॉडी लैंग्वेज में कुछ तो अजीब था— कुछ ऐसा कि इरा की नज़रें खुद-ब-खुद वहीं टिक गईं।
उसकी सिर्फ पीठ नजर आ रही थी, लेकिन फिर भी कुछ तो था उसमें —एक अजीब-सा आकर्षण, एक ख़तरनाक सुकून।
इरा के चेहरे पर एक अनजाना डर तैर गया। उसने खुद को संभालते हुए बोलने की कोशिश की,
"तुम क...?"
लेकिन जैसे ही उसकी नज़र उस इंसान के चेहरे की एक हल्की झलक पकड़ी उसके शब्द उसके गले में ही अटक गए। उसकी सांसें रुकने लगी।
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क्रमशः
Recap :-
इरा के चेहरे पर एक अनजाना डर तैर गया। उसने खुद को संभालते हुए बोलने की कोशिश की, "तुम क...?"
लेकिन जैसे ही उसकी नज़र ने उस इंसान के चेहरे की एक हल्की झलक पकड़ी उसके शब्द उसके गले में ही अटक गए। उसकी सांसें रुकने लगी।
अब आगे :
सामने खड़ा इंसान ब्लैक ट्राउजर और ऑक्सफोर्ड व्हाइट शर्ट में था। शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले हुए और उसकी व्हाइट शर्ट उसके शरीर से चिपकी हुई थी, जिससे उसके परफेक्ट
बॉडी स्ट्रक्चर की हर एक डिटेल साफ नजर आ रही थी। उसके बाएं हाथ में एक लिमिटेड एडिशन वॉच चमक रही थी और पैरों में क्लासिक ब्लैक शू थे।
उसकी शार्प जॉलाइन, हंटर ग्रे आइज़, स्लिम लिप्स, हल्की बीयर्ड और हाथों में उभरी हुई वेन्स — सब कुछ बेहद अट्रैक्टिव लग रहा था। माथे पर बिखरे हुए बाल उसकी पर्सनैलिटी को और भी ज़्यादा इंटेंस बना रहे थे। ओवरऑल, वो बंदा किसी ग्रीक गॉड से कम नहीं लग रहा था।
ईरा का दिल कुछ सेकंड के लिए रुक सा गया। उसने कांपते हुए होठों से कहा , “व... वि... विधान... रायज़ादा?”
हाँ, सामने खड़ा इंसान कोई और नहीं, बल्कि विधान रायज़ादा था — वो शख्स जिसे लोग मौत और डर का दूसरा नाम कहते थे। एक बेरहम बिजनेस टायकून, जिसकी क्रुएलिटी की कहानियाँ इरा ने सिर्फ सुनी ही नहीं थीं, बल्कि उनके बारे में सोचकर ही काँप जाती थी। कहा जाता था कि वो बिना एक पल गवाएं , लोगों को मिटा देता था — बिना किसी पछतावे के और आज... वही इंसान उसके सामने खड़ा था।
इरा के पैरों के नीचे से जैसे ज़मीन खिसक गई हो। उसकी बॉडी ने अपने आप रिएक्ट किया और उसके कदम अनजाने में पीछे हटने लगे। सालों बाद उसने दोबारा इस डर को महसूस किया, जिससे वो बरसों से भागती आ रही थी। वो डर... अब उसकी आंखों के सामने था।
विधान ने बेहद शांत और कंट्रोल्ड अंदाज़ में, दोनों हाथ पॉकेट्स में डाले और अपने कैलकुलेटिव कदम इरा की ओर बढ़ा दिए और कुछ दूरी पर रुककर, उसने ठंडी आवाज़ में कहा, "इतने सालों बाद मिलकर बहुत बुरा लगा, मिस मल्होत्रा।"
उसने उसका नाम कुछ इस अंदाज़ में खींचा, जैसे किसी पुराने ज़ख्म को दोबारा महसूस करना चाह रहा हो।
इरा को घबराहट तो हो रही थी, लेकिन उसने अपने डर को होशियारी से छिपाते हुए तंज भरे लहजे में कहा, "अफसोस की बात है, सालों पहले भी तुम्हारे हाथ खून से सने थे... और आज भी... "
उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि विधान ने बात बीच में ही काटकर कहा, "जबान संभालकर, मिस मल्होत्रा..." फिर थोड़ा आगे झुककर फुसफुसाते हुए, कहीं ऐसा न हो कि ये ज़ुबान... हमेशा के लिए बाहर आ जाए। "
इरा ने हल्की, लेकिन जानबूझकर उकसाने वाली मुस्कान के साथ नज़रें फेर लीं।
" आई थिंक ऑल दिस इज योर मैटर... तो मुझे इससे दूर ही रहना चाहिए। वैसे भी, तुम इन बकवास चीज़ों को मैनेज करने में एक्सपर्ट हो। "
ये कहते हुए वो पलटकर जाने लगी।
तभी पीछे से आवाज़ आई, "ऐसे कैसे, मिस... "
इरा ने झट से पलटकर जवाब दिया, "तो अब जबरदस्ती करोगे? भौंहे सिकोड़ते हुए कहा, “ओह राइट ... ये तो तुम्हारी फितरत है , है ना?"
विधान की आँखों में चमक आ गई। उसने सर्कस्टिकली स्माइल की और कहा , " Hmm... स्मार्ट। "
कुछ सेकेंड चुप रहने के बाद विधान बोला, "तुमने तो सब देख ही लिया है... राइट? "
इरा ने एकदम बेपरवाह लहज़े में कहा,
"सो व्हाट? मारोगे? "
विधान ने बिल्कुल ठंडे लहजे में, बिना पलक झपकाए जवाब दिया, "हाँ। "
उसके इस जवाब ने एक पल के लिए इरा को झटका दिया, लेकिन अगले ही पल वह गुस्से से भरकर बोली, "मैं पूछ भी किससे रही हूँ..." इरा बड़बड़ाई, "जिसे किसी के दर्द से फर्क ही नहीं पड़ता, उससे जवाब की उम्मीद भी क्या..."
वह एक कदम आगे बढ़ी और उसकी आँखों में आँखें डालते हुए बोली, "यू नो वॉट? ये तुम्हारी गलती नहीं है... ये तो तुम्हारे खून में ही होगा — जैसा बाप..."
उसके लफ्ज़ पूरे भी नहीं हुए थे कि अचानक, विधान ने उसकी ठोड़ी कसकर पकड़ ली और उसे जोर से दीवार से सटा दिया।
इरा की पीठ दीवार से जा टकराई और उसके मुंह से हल्की, मगर दर्द भरी सिसकी निकल गई।
विधान की आँखें अब सुर्ख लाल हो चुकी थीं। वह बेहद सर्द और कंट्रोल्ड आवाज़ में बोला, "चूस योर वर्ड्स केयरफुली, मिस मल्होत्रा... नहीं तो —"
इरा को विधान के इस एक्शन की उम्मीद नहीं थी, लेकिन अब वह भी पीछे हटने वाली नहीं थी।
गुस्से में कांपती हुई आवाज़ में इरा ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए कहा,
" दर्द हो रहा है... और जो तुमने — "
लेकिन उससे पहले कि वह अपनी बात पूरी कर पाती, विधान ने उसकी ठोड़ी को और कसकर दबा दिया। इतना जोर से कि इरा की स्किन तक लाल पड़ गई।
विधान ने सर्द और बेहद ठंडी आवाज़ में कहा, "आई डोन्ट लाइक... जब कोई मेरी बात काटे। सो, डोन्ट डेयर डू इट अगेन। "
इरा ने झटके से अपना चेहरा छुड़ाया, लेकिन अब उसकी आँखों में डर नहीं था — अब वहां एक अलग ही तूफान उमड़ रहा था।
" अब मुकाबला बराबरी का होगा, मिस्टर रायज़ादा ," इरा ने तीखे , लेकिन शांत शब्दों में कहा। उसकी आवाज़ में एक ठहराव था ... और साथ ही एक चुनौती भी।
विधान ने एक सर्कास्टिक हंसी के साथ जवाब दिया, " Exactly... तो ज़ख्म और दर्द भी बराबरी से मिलना चाहिए... क्यों, मिस मल्होत्रा? "
इरा कुछ पल के लिए रुकी। उसकी आँखों में उलझन थी, जैसे वह समझ नहीं पा रही थी कि विधान के शब्दों का असली मतलब क्या था। उस एक पल में, दोनों की आँखें आपस में टकराईं।
विधान की आँखों में अचानक एक दर्द झलका। और फिर, पूरी ताकत से चिल्लाते हुए वह बोला, "GET LOST!!
इससे पहले कि मेरे हाथ... तुम्हारे गंदे खून से रंग जाएं। दफा हो जाओ!"
यह सुनते ही इरा का गुस्सा फट पड़ा। उसने दरवाज़े की ओर बढ़ते हुए पीछे पलटकर तीखी नज़र डाली और पूरे गुस्से से दरवाज़ा जोर से पटका। विधान के चिल्लाने की आवाज़ अभी भी उसके कानों में गूंज रही थी, जब वह कमरे से बाहर निकली। उसका चेहरा सख्त था, लेकिन अंदर एक तूफान मचल रहा था।
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वहीं दूसरी तरफ,
इरा के जाने के बाद, विधान ने दीवार पर जोर से मुक्का मारा। इरा ने अनजाने में ही सही , मगर विधान की सबसे कमजोर कड़ी पर वार किया था — जो शायद उसे नहीं करना चाहिए था। अभी भी गुस्से में , विधान की आँखें लावा उगल रही थीं।
"तुमने अच्छा नहीं किया, मिस मल्होत्रा,"
उसने बड़बड़ाते हुए कहा, " आई वोंट स्पेयर यू। "
कहते हुए, उसने एक नज़र पीछे फर्श पर पड़ी लाश पर डाली...
और अचानक उसके चेहरे पर एक अजीब, सुकून भरी मुस्कान आ गई।
[फ्लैशबैक ]
सामने बड़े से सोफे पर एक शख्स बैठा था। उसके हाथों में सुलगती हुई सिगरेट थी। जिससे वो हर कुछ सेकेंड्स में एक लंबा कश ले रहा था। फिर उसने सिगरेट को ऐशट्रे में बुझाया।
वो शख्स कोई और नहीं , बल्कि विधान था— किसी राजा की तरह इत्मीनान से बैठा हुआ , लेकिन उसकी ग्रे आईज़ कुछ और ही बयां कर रही थीं — जैसे किसी तूफान से ठीक पहले की खामोशी।
उसके सामने खड़ा आदमी लगभग 40-45 साल का था , लेकिन देखने में वो अपनी उम्र से कम का दिखाई दे रहा था। वह शख्स कोई और नहीं मिस्टर मेहरा थे। उनके चेहरे से बेचैनी साफ झलक रही थी। उनका चेहरा भी पसीने से भीगा हुआ था और आंखों में एक अनकहा डर बैठ चुका था।
विधान ने अपनी नज़रें उठाईं और शांत आवाज़ में कहा , " लाइक आई सैड , आई डोनट लाइक तो रिपीट माई वर्ड्स। सो डू इट नाउ। "
मेहरा ने घबराते हुए दोनों हाथ जोड़ लिए, लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोला , "एम सो ... सारी , सर ... आई प्रोमिस , ऐसा दोबारा नहीं होगा। "
तब तक विधान का गुस्सा अपनी हद पार कर चुका था। उसने अपने वेस्ट से गन निकाली और बेहद कोल्ड एक्सप्रेशन के साथ उसे लोड करने लगा।
तभी मेहरा ने घबराए हुए स्वर में कहा, "ये ... क्या कर रहे हो तुम ? पागल वागल तो नहीं हो गए हो।"
विधान ने एक हल्की सी नजर मेहरा पर डाली , फिर अपनी गन को हथेली में आराम से घुमाया — जैसे किसी खिलौने से खेल रहा हो।
अचानक मेहरा ने टेबल पर रखा फ्लावर पॉट उठाया और उसे विधान की ओर फेंक मारा। लेकिन विधान की नजरें और हाथ दोनों तैयार थे — उसने झटके से मेहरा का हाथ पकड़ लिया और उसी फ्लावर पॉट को दीवार पर दे मारा। कांच बिखरा और एक तीखा टुकड़ा उठाकर उसने सीधे मेहरा के सीने में गाड़ दिया।
मेहरा दर्द में तड़पने लगा, जैसे कोई मछली हो जो पानी से बाहर तड़प रही हो। उसकी साँसें हांफने लगीं चेहरा सफेद पड़ गया।
कांपते हुए , मेहरा ने टूटती आवाज़ में कहा, " तू ... तुम ये अच्छा नहीं किया रायजादा .... तुम्हे इसका हिसाब .... "
वो बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि उसी पल विधान ने बिना एक पल गंवाए — उसके सीने में तीन गोलियाँ चला दी।
धाँय! धाँय! धाँय!
गोलियों की गूंज कमरे की दीवारों से टकरा कर लौट रही थी और माहौल में एक डरवाना सन्नाटा भर गया।
अब मेहरा निढाल हो चुका था। उसकी आँखें खुली थीं लेकिन उनमें ज़िंदगी बाकी नहीं थी।
विधान मेहरा की लाश के पास धीरे से झुक गया।
उसने ठंडे हाथों से मेहरा के सीने में धंसे कांच के टुकड़े को पकड़ा और उसे धीरे-धीरे घुमाते हुए कहा, "कौन किसका हिसाब करेगा ... यह तो वक्त ही बताएगा। "
[फ्लैशबैक एंड ]
उस लाश को एकटक घूरते हुए, विधान कुछ देर के लिए खामोश हो गया। उसकी आँखों में कोई पछतावा नहीं था, बस एक गहरी सोच... जैसे वो किसी पुराने दर्द या अधूरी कहानी में खो गया हो।
मगर अगले ही पल , उसका चेहरा सख्त हो गया। बिना एक शब्द बोले वो तेजी से मुड़ा और होटल के बाहर निकल गया।
अपनी गाड़ी के पास पहुंचते ही उसने दरवाज़ा खोला, ड्राइविंग सीट पर बैठा और बिना वक्त गंवाए इंजन स्टार्ट कर दिया।
और फिर... टायरों की चीख के साथ, गाड़ी तेज़ रफ्तार से अंधेरे रास्ते पर दौड़ पड़ी — जैसे उसका अगला शिकार इंतज़ार कर रहा हो।
Chapter:- 3
Recap :-
मगर अगले ही पल , उसका चेहरा सख्त हो गया। बिना एक शब्द बोले वो तेजी से मुड़ा और होटल के बाहर निकल गया।
अपनी गाड़ी के पास पहुंचते ही उसने दरवाज़ा खोला, ड्राइविंग सीट पर बैठा और बिना वक्त गंवाए इंजन स्टार्ट कर दिया।
और फिर... टायरों की चीख के साथ, गाड़ी तेज़ रफ्तार से अंधेरे रास्ते पर दौड़ पड़ी — जैसे उसका अगला शिकार इंतज़ार कर रहा हो।
अब आगे:
गहरी रात की ख़ामोशी को चीरती हुई, विधान की गाड़ी तेज़ी से सड़क पर दौड़ रही थी। अंदर बैठे इंसान का चेहरा बिल्कुल इमोशनलेस था। वह बेहद रैश ड्राइविंग कर रहा था — अगर गलती से कोई उसकी गाड़ी के सामने आ जाए, तो आज उसका ऊपर जाना तय था।
तेज़ रफ्तार में गाड़ी दौड़ाते हुए, विधान ने किसी को कॉल किया। एक रिंग के बाद कॉल कनेक्ट हुआ, और दूसरी तरफ से एक आवाज़ आई,
"यस, प्रेसिडेंट?"
विधान ने बिना किसी भाव के कोल्ड आवाज़ में, "जॉन, डिटेल्स मैंने तुम्हें भेज दी और हाँ, मैस भी क्लियर करवा देना," इतना कहकर उसने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
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वही दूसरी तरफ,
"जॉन के चेहरे पर एक खतरनाक मुस्कान उभरी। उसने धीमी आवाज़ में बड़बड़ाया,
"किसकी शामत आई होगी आज?" फिर वो हल्के से हंसा — जैसे जवाब पहले से ही जानता हो।
"यह तो वहाँ जाकर ही पता चलेगा, जॉन। बेचारे के पास तो अफ़सोस करने का टाइम भी नहीं बचा होगा।"
उसके चेहरे पर एक मिस्टीरियस मुस्कान आ गई और फिर वह अपने काम पर निकल पड़ा।
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विधान की चिल्लाती हुई आवाज़ अब भी इरा के कानों में गूंज रही थी , जब वो कमरे से बाहर निकली। उसका चेहरा भले ही एक्सप्रेशन लेस था, लेकिन अंदर जैसे एक तूफान मच रहा था।
वो सीधे अपने रूम में गई और दरवाज़ा बंद कर लिया। बिना कुछ सोचे-समझे, उसके कदम बाथरूम की ओर बढ़ गए। उसने शॉवर ऑन किया और ठीक पानी के नीचे खड़ी हो गई।
पानी की बूँदें उसके चेहरे पर गिरती जा रही थीं... और उन्हीं बूँदों के साथ बह रहे थे वो आँसू, जो उसने अंदर ही अंदर रोक रखे थे।
कुछ ही देर में इरा टूटकर ज़मीन पर बैठ गई। उसने खुद को अपनी बाँहों में समेट लिया, जैसे अपनी ही तसल्ली से खुद को संभालने की कोशिश कर रही हो। उस वक़्त वो बिल्कुल एक छोटे बच्चे जैसी लग रही थी... मासूम, डरी हुई, और बिलकुल अकेली।
"क...क... क्यों..." उसकी आवाज़ बमुश्किल बाहर निकली।
"क्यों वापस आए हो तुम? जो किया था... उस सबको फिर... क्यों.. क्यों आए हो वापस?"
उसके होंठ कँपकँपा रहे थे। इतना कहते ही उसका रोना फूट पड़ा।
कुछ मिनट पहले वाली इरा और अब जो पूरी तरह टूट चुकी थी, उनमें ज़मीन-आसमान का फर्क था। जैसे वक़्त ने उसे किसी और इंसान में बदल दिया हो। वो काफी देर तक वहीं बैठी रही... अपने दर्द को सीने से लगाए हुए, जैसे अब वही उसकी सच्चाई हो।
करीब दो घंटे बाद, जब ठंड से उसका शरीर काँपने लगा और आँसू भी पूरी तरह सूख गए, तब कहीं जाकर वो धीरे-धीरे उठी। अब उसे थोड़ा बेहतर तो लग रहा था, लेकिन अंदर एक अजीब सा खालीपन था... जैसे सब कुछ होते हुए भी कुछ मिसिंग हो।
वो सीधा क्लोसेट तक गई और चुपचाप कपड़े चेंज कर लिए। पानी में इतना टाइम बैठने की वजह से उसे ठंड लग गई थी, और ऊपर से इतना रोने की वजह से सिर में भी तेज़ दर्द हो रहा था।
उसने पेन किलर तो ले लिया था, लेकिन नींद जैसे कहीं खो सी गई थी। जितनी बार वो आंखें बंद करती, बस वही सीन रिपीट होता — वो और विधान... आज जो हुआ, वो दिल-दिमाग से हट ही नहीं रहा था।
रातभर वो बस करवटें बदलती रही। एक वक्त ऐसा भी आया जब उसने खुद से पूछा — “क्या मैं ठीक कर रही हूँ?” लेकिन जवाब देने वाला कोई था ही नहीं।
कब नींद आई... या आई भी नहीं, ये तो बस इरा ही जानती
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वहीं दूसरी तरफ,
सामने एक शानदार मेंशन था — रॉयल ब्लू और एमराल्ड ग्रीन रंगों में रंगा हुआ, जैसे कोई जादुई महल हो। मेंशन के बीचो-बीच एक खूबसूरत फाउंटेन था, जिसके चारों ओर घनी हरियाली फैली हुई थी, जैसे पूरी जगह में शांति का वातावरण पसरा हो।
यह मेंशन मॉडर्न और क्लासी का एक बेहतरीन संगम था — हर कोना, हर दीवार, जैसे किसी ख्वाब की तरह सजा हुआ था। अंदर की खूबसूरती और शांति को शब्दों में बयां करना मुश्किल था।
लेकिन जैसे ही आप अंदर कदम रखते, उसकी खूबसूरती में एक अजीब सा आकर्षण और खामोशी थी, जो दिल को छू जाती थी। ऐसा लगता था जैसे इस जगह में हर चीज़ अपने आप में एक कहानी बयां करती हो, जो सिर्फ समझने वालों के लिए होती है।
गेट के पास लगी नेम प्लेट पर बड़े और स्टाइलिश अक्षरों में लिखा था — "V. R. Mansion"।
तभी एक कार, जो विधान की थी, हवेली के अंदर दाखिल हुई।
विधान सीधे अपने कमरे की ओर बढ़ा। कमरे में कदम रखते ही, उसने शर्ट उतारी, घड़ी को मेज़ पर रखा और फिर बिना देर किए शॉवर के नीचे खड़ा हो गया।
बाथरूम की दीवारों से टकराता पानी का शोर बाथरूम में गूंज रहा था। शॉवर का ठंडा पानी उसके गरम जिस्म पर लगातार गिर रहा था, लेकिन अंदर का ताप मानो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था। उसकी आंखें बंद थीं, जबड़े भींचे हुए, जैसे वो अपने अंदर उठते तूफान को ज़बर्दस्ती रोकने की कोशिश कर रहा हो।
उसके माथे से पानी की बूंदें बहती हुई उसकी गर्दन और सीने से फिसल रही थीं, लेकिन उसके भीतर का गुस्सा, बेचैनी और वो अजीब सी बेचैन खामोशी अब भी ज़िंदा थी। कुछ मिनटों तक बस पानी गिरता रहा — और वो उसी तरह खड़ा रहा, जैसे खुद से लड़ रहा हो।
काफ़ी देर बाद उसने शॉवर बंद किया। आईने में खुद को देखा, उसकी आंखों में वही कशमकश थी — ठंडी, मगर चुभती हुई।
वो बाथरूम से बाहर आया, और सीधा क्लोसेट की तरफ गया। बिना ज़्यादा सोचे उसने एक ब्लैक लूज़ लोअर निकाला और पहन लिया। बालों से अब भी पानी टपक रहा था, लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
उसके लूज़ ब्लैक लोअर और गीले बालों ने उसकी पर्सनालिटी में एक अजीब सी रॉ अट्रैक्शन जोड़ दी थी — कोई देखता तो शायद नज़रें हटा ही नहीं पाता।
कमरे में हल्की सी मंद रोशनी थी — सब कुछ शांत था, लेकिन उस शांति में भी एक गहराई थी... जैसे तूफ़ान बस आने वाला हो।
उसने धीमे क़दमों से वार्डरोब खोला और अंदर से एक छोटी सी तस्वीर निकाली। एक पल को उसकी आंखें उस तस्वीर पर टिक गईं — और जैसे ही उसने उसे छुआ, उसकी ठंडी आंखों में हल्का-सा कंपन आ गया। एक अजीब-सी चुप्पी उसके चेहरे पर उतर आई थी, मानो उस एक तस्वीर ने उसके अंदर दबी हर याद को झकझोर दिया हो।
उसकी उंगलियां तस्वीर के कोनों को छू रही थीं, बहुत धीमे से — जैसे वो उस पल को दोबारा महसूस कर रहा हो, जो कभी उसके लिए सब कुछ था। लेकिन फिर, अगले ही पल... उसकी आंखों में वापस वही ठंडापन लौट आया। चेहरा फिर से पत्थर-सा हो गया — ऐसा चेहरा, जिसमें न कोई इमोशन था, न कोई जुड़ाव।
उसने तस्वीर को देखा, एक आख़िरी बार — और फिर वार्डरोब के सबसे अंदर के हिस्से में वापस रख दिया।
तस्वीर को वापस वार्डरोब में रखते ही वो बालकनी की तरफ बढ़ा। बाहर रखे काउच पर जाकर वो शर्टलेस ही लेट गया। चांद की हल्की सी रोशनी और तेज़ ठंडी हवा उसके बदन से टकरा रही थी — जैसे रात भी उसकी बेचैनी को महसूस कर रही हो।
उसका बदन चांदनी में किसी हीरे की तरह चमक रहा था, लेकिन उसकी आँखें... वो तो बस आसमान में कहीं खोई हुई थीं।
विधान चुपचाप लेटा था, एकटक उस काले आसमान को घूरते हुए। तभी उसके चेहरे के एक्सप्रेशंस धीरे-धीरे सख्त होने लगे। मिस्टर मेहरा की कही बातें अब भी उसके कानों में गूंज रही थीं... एक-एक लफ्ज़ जैसे आज भी ज़ख्म दे रहा हो।
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[फ्लैशबैक]
विधान अपने रूम में लैपटॉप पर काम कर रहा था। चेहरा एकदम शांत और हमेशा के तरह एक्सप्रेशन लेस था। तभी दरवाज़ा खुला और मिस्टर मेहरा अंदर आए।
"हेलो, मिस्टर रायज़ादा... आपने बुलाया था? कुछ काम था क्या?" मेहरा ने पूछा।
"हां, था," विधान ने बिना ऊपर देखे कहा। "वैसे, उस प्रोजेक्ट का क्या अपडेट है?"
"सर, सब कुछ कंट्रोल में है। एवरीथिंग इस गोइंग स्मूद," मेहरा ने कॉन्फिडेंस से कहा।
"Hmm..." विधान ने हल्का सा सिर हिलाया, फिर थोड़ा रुक कर बोला —
"शायद अब नहीं..."
"मतलब?" मेहरा ने थोड़ा घबराकर पूछा।
"मतलब..." विधान अब धीरे-धीरे उसके चारों तरफ चक्कर काटते हुए बोला,
"जब कंट्रोल करने वाला ही ना रहे... तो कंट्रोल कैसा?"
मेहरा की साँसें जैसे अटक सी गईं। वो कुछ बोलने ही वाला था कि तभी—
विधान ने अपनी बंदूक उसकी कनपटी पर टिका दी।
"अब सीधे-सीधे बता..." उसकी आवाज़ एकदम ठंडी हो चुकी थी,
"कौन था जिसके कहने पे तूने ये किया?"
मगर मेहरा ने कुछ नहीं बोला। विधान ने एक कदम पीछे लिया और सोफे पर जाकर बैठ गया।
"चल, छोड़ दिया मैने तुझे," विधान ने कहा, उसकी आवाज़ में कोई हलचल नहीं थी।
मेहरा के चेहरे पर शोक और खुशी दोनों के भाव थे, लेकिन सिर्फ कुछ सेकंड्स के लिए।
फिर, अचानक विधान ने कहा, "तेरी मर्जी है, या तो खुद को मार, या फिर मेरे हाथों मर, जो अच्छा तो बिल्कुल नहीं होगा।" ये कहते हुए उसने बंदूक मेहरा की तरफ फेंकी।
मगर मेहरा वैसे ही खड़ा रहा, उसने कोई जवाब नहीं दिया।
तभी विधान ने उसकी ओर नज़रे उठाते हुए कहा,
"लाइक आई सैड, आई डोन्ट लाइक तो रिपीट माय वर्ड्स... सो इट नाउ!"
[फ्लैशबैक एंड]
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क्रमशः
Chapter:- 4
Precap:-
मगर मेहरा वैसे ही खड़ा रहा, उसने कोई जवाब नहीं दिया।
तभी विधान ने उसकी ओर नज़रे उठाते हुए कहा,
"लाइक आई सैड, आई डोन्ट लाइक तो रिपीट माय वर्ड्स... सो इट नाउ!"
[फ्लैशबैक एंड]
अब आगे:
वो सब याद करते हुए उसके अंदर गुस्सा धीरे-धीरे खौलने लगा। इतना सब होने के बाद भी उसे अब तक ये नहीं पता चल पाया था कि मेहरा ने ये सब किसके कहने पर किया था। यही अधूरापन उसे सबसे ज़्यादा परेशान कर रहा था और शायद कुछ और भी।
जब कुछ देर ठंडी हवा में बैठने के बावजूद भी नींद नहीं आई, तो वो उठकर वापस कमरे में चला गया। उसने लैपटॉप को खोला और काम में खुद को बिज़ी करने की कोशिश करने लगा — जैसे वो अपने अंदर के तूफ़ान को साइलेंस मोड पर डालना चाहता हो।
काम खत्म करने के बाद उसने एक नींद की गोली ली और बेड पर जाकर लेट गया। अंधेरे कमरे में बस एक हल्की नीली लाइट जल रही थी... और उसके चेहरे पर अब भी वो बेचैनी तैर रही थी।
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(जर्मनी, बर्लिन)
एक आलीशान विला... बाहर से जितना रॉयल और परफेक्ट, अंदर उतना ही शांत, ठहरा हुआ सन्नाटा। ऐसा सन्नाटा जो कुछ कहता नहीं, लेकिन हर चीज़ को महसूस करवा जाता था।
उस खामोशी के बीच था एक कमरा — ऐसा जैसे किसी पुराने म्यूज़ियम का हिस्सा हो। दीवारें यादों से भरी तस्वीरों से ढकी हुई थीं। हर शेल्फ पर कोई न कोई कहानी सजी थी, जैसे वक्त को वहीं थामकर रख दिया गया हो।
दरवाज़ा धीरे से खुला।
एक शख़्स अंदर दाखिल हुआ — चाल में ठहराव था, और आँखों में एक अजीब सी गहराई। वो इंसान दिखने में किसी कयामत से कम नहीं लग रहा था। उसकी नज़रें कमरे में रखी हर चीज़ पर जा रही थीं, जैसे वो हर चीज़ को पहचानने की कोशिश कर रहा हो, किसी भूली हुई कहानी को फिर से जोड़ रहा हो।
वो एक जगह रुक गया। सामने एक पुराना स्कार्फ रखा था। उसने धीरे से उसे उठाया, नाक के पास लाया... एक लंबी साँस ली, और आँखें बंद कर लीं।
“आज भी... वही खुशबू,” वह धीमे से बुदबुदाया।
कुछ सेकंड तक वो बस यूँ ही खामोश रहा, जैसे उस खुशबू ने उसे कहीं बहुत पीछे, किसी अधूरी याद में लौटा दिया हो।
उसने स्कार्फ को इस तरह रखा, जैसे कोई शीशे की नाज़ुक चीज़ हो। फिर उसकी नज़र एक कोने में रखी नई तस्वीर पर रुकी — शायद हाल ही में खींची गई थी। बाकी तस्वीरों से अलग, यह कुछ ज़्यादा ही संभाल कर रखी गई थी। उसने तस्वीर को धीरे से छुआ और फिर दिलकश मुस्कान के साथ बुदबुदाया ....
"अब तो फूलों में भी वो ख़ुशबू कहा... जो तेरे होने पर थी। तू चली गई, पर सज़ा यहीं छोड़ गई। तुझे क्या लगा? तू तस्वीर बन जाएगी और मैं भूल जाऊँगा?
फिर एक पल रुककर एक डरावनी हसी हंसते हुए , "नहीं… मैं तुझे उसी दिन से क़ैद कर चुका था, जिस दिन तूने मुस्कुराकर मेरी दुनिया तबाह की थी। अब ये मोहब्बत नहीं… ये वो आग होगी, जिसमें या तो तू जलेगी — या मैं।"
इतना कहकर वो मुस्कुराया — पर वो मुस्कान... किसी टूटे हुए दिल की नहीं, बल्कि किसी जुनूनी की थी। उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक आ गई, जैसे दर्द ने मोहब्बत को पागलपन में बदल दिया हो। तभी अचानक उसका चेहरा एकदम कठोर हो गया। उसकी नज़रें दीवार पर लगी एक लड़की की तस्वीर पर ठहर गई— उस तस्वीर में एक बेहद खूबसूरत चेहरा था, मासूम सी मुस्कान के साथ। और फिर, उसकी नज़रें जैसे तस्वीर को चीर कर दिल तक उतरने लगी हों।
"वो दिन दूर नहीं... जब तुम मेरी बाहों में होगी, मेरी जान..." वो धीमे से, जैसे खुद से बात करता हुआ बड़बड़ाया।
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{V.R Mansion}
सुबह की पहली किरण अब कमरे में दस्तक दे चुकी थी, लेकिन विधान के कमरे में अब भी सिर्फ हल्की सी रोशनी थी। लेकिन वह पहले से ही उठ चुका था, जैसा कि वह हमेशा करता था। बिना किसी हड़बड़ी के उसने अपने रोज़ के रूटीन को फॉलो किया और फिर बाथ लेने चला गया। शॉवर के बाद, वह क्लोसेट में गया, जहाँ उसने एक ब्लैक कलर का टैक्सिडो सूट और हाथ में एक लिमिटेड एडिशन वॉच पहन ली।
आज वह पहले से कहीं ज्यादा शार्प लग रहा था, लेकिन उसकी आँखों में जो ठंडक थी, जो कुछ अलग थी। जैसे वह किसी खतरनाक खेल का हिस्सा बनने जा रहा हो। उसका अगला कदम क्या होगा ये किसी को नहीं पता था।उसकी मुस्कान गायब थी, और चेहरे पर सिर्फ एक सख्त और कोल्ड एक्सप्रेशन था।
विधान ब्रेकफास्ट के लिए नीचे जाने ही वाला था, तभी उसके फोन पर जॉन का कॉल आया।
विधान ने बिना किसी एक्सप्रेशन के कॉल पिक किया।
"प्रेज़िडेंट, इट्स अर्जेंट," जॉन की आवाज़ सुनाई दी।
इस वक्त विधान का चेहरा एकदम ब्लैंक था । कुछ ही सेकंड में बिना उसने कुछ कहे फोन काट दिया।
जॉन उसका सबसे भरोसेमंद आदमी था, और विधान जानता था कि अगर जॉन ने ऐसा कहा, तो सिचुएशन सच में क्रिटिकल होगी।
और असल बात क्या थी, ये भी विधान समझ चुका था। बिना वक्त गवाए, वह मुंबई एयरपोर्ट से अपने प्राइवेट जेट के ज़रिए कैलिफोर्निया के लिए रवाना हो गया।
जेट के अंदर, वह अपनी सीट पर बैठा, और उसकी उंगलियाँ लैपटॉप पर लगातार चल रही थीं — जैसे कोई ज़रूरी और डिटेल्ड काम कर रहा हो। कई घंटों की मेहनत के बाद, उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान उभरी। पास खड़े उसके बॉडीगार्ड्स ने वो मुस्कान देखी, और बिना एक शब्द बोले एक-दूसरे की ओर देखा।
विधान ने कुछ मिनट और काम किया, फिर लैपटॉप बंद किया और सीट के हेडरेस्ट पर सिर टिका कर आंखें बंद कर लीं। वह क्या सोच रहा था, ये तो सिर्फ वही जानता था।
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वहीं दूसरी तरफ , नींद की गोलियां ज़्यादा लेने की वजह से इरा की आंखें देर से खुलीं। जैसे ही वह उठी, उसके सिर में तेज़ दर्द हो रहा था — जैसे कुछ अंदर से फटने वाला हो।
"ओह गॉड, मेरा सिर आज फटेगा क्या?" उसने कराहते हुए कहा और दोनों हाथों से सिर थाम लिया।
टाइम देखने के लिए उसने फोन उठाया, लेकिन फोन स्विच ऑफ था। इरा ने चिढ़ कर बड़बड़ाया, "डैम इट… अब ही बंद होना था? हाऊ केयरलेस आर यू, इरा?"
इतना कहकर इरा फ्रेश होने चली गई। करीब आधे घंटे बाद वो तैयार होकर बाहर आई — हमेशा की तरह खूबसूरत और एलिगेंट।
उसने फोन उठाया और पार्किंग एरिया की तरफ बढ़ गई। कार में बैठी और ड्राइव शुरू की। उसका प्लान ऑफिस जाने का था, लेकिन रास्ते में उसने अचानक गाड़ी मल्होत्रा मेंशन की तरफ मोड़ ली।
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एक बड़े से हाल में करीब 60 साल की एक लेडी सोफे पर बैठी थी। उन्होंने सिंपल सूट और प्लाज़ो पहना हुआ था। देखने में वो अपनी उम्र से काफी कम की लग रही थीं — और उतनी ही खूबसूरत भी।
वो कोई और नहीं, इरावती मल्होत्रा थीं — इरा की दादी। उन्होंने खुद को इतने अच्छे से मेंटेन कर रखा था कि पहली नज़र में लोग उन्हें इरा की मां समझ बैठते थे, दादी नहीं।
इरावती सामने बैठे शख्स को देखते हुए तेज़ आवाज़ में बोलीं,
"तुझे कितनी बार समझाया… मेरी बच्ची को अपने कामों से दूर रखा कर। पर तुझमें अक़्ल होनी चाहिए ना, तब ही तो समझ आए।"
सामने बैठा शख्स अभिनव मल्होत्रा था — करीब 45 साल का। देखने में वो अपनी उम्र से थोड़े कम के लग रहे थे।
उसके चेहरे पर थोड़ी टेंशन की लकीर साफ़ दिखाई दे रही थी, लेकिन कैजुअल टी-शर्ट और लोअर में भी वो अब भी उतने ही हैंडसम लग रहे थे। शायद अपने टाइम में एक क्लासिक हैंडसम हंक रहे होंगे।
थोड़ा झिझकते हुए उन्होंने कहा,
"मां…, मुझे भी उसकी टेंशन रहती है। अगर लास्ट मिनट पर मुझे जाना न पड़ता, तो मीटिंग मैं खुद अटेंड करता।"
इरावती ने बिना देर किए टोन स्ट्रिक्ट करते हुए कहा,
"बस, चुप कर। मेरी बच्ची को कुछ हुआ न... तो सीधा तू जिम्मेदार होगा।"
मिस्टर मल्होत्रा ने कहा,
"मां… बच्ची नहीं है अपनी अरु। बहुत समझदार है वो। ज़रूर कोई काम आ गया होगा, तभी लेट हो गई होगी।"
बोलते वक्त उसने इरावती को तो जैसे समझा लिया था,
मगर अंदर ही अंदर उसे खुद भी अजीब सी बेचैनी हो रही थी — एक अनकहा सा डर।
तभी मल्होत्रा मेंशन के गेट से एक कार अंदर दाखिल हुई — इरा की कार।
इरा जैसे ही गाड़ी से उतरी, सामने का नज़ारा कुछ पल के लिए थमा सा लगा।
उसके सामने एक भव्य मेंशन था — कुछ ऐसा जैसा पुराने ज़माने में राजाओं के महल हुआ करते थे। सफ़ेद और गोल्डन कलर में नहाया हुआ, एकदम रॉयल लुक।
एक पल को लगा जैसे ये कोई रॉयल पैलेस हो।
इरा ने अंदर की ओर कदम बढ़ाए। जैसे-जैसे वो आगे बढ़ रही थी, अंदर का हर कोना बाहर से भी ज़्यादा एलिगेंट और ग्रेसफुल लग रहा था।
अभिनव की नज़र जैसे ही बाहर की तरफ पड़ी, उन्होंने हल्के से मुस्कुरा कर कहा,
"लो, आ गई आपकी बच्ची।"
वो उठे और इरा की तरफ बढ़ते हुए मज़ाकिया लहजे में बोले,
"बेटा, आज तुम्हारी दादी ने तो मुझे फुल सूली पे लटकाने का प्लान बना रखा था। अच्छा हुआ टाइम पर आ गई, बचा लिया तूने।"
इरावती ने बिना देर किए, उसी टोन में पलटकर कहा,
"मैं अब भी वो प्लान कैंसिल नहीं कर रही, समझा?"
{क्रमशः}
CHAPTER 5
Precap:
वो उठे और इरा की तरफ बढ़ते हुए मज़ाकिया लहजे में बोले,
"बेटा, आज तुम्हारी दादी ने तो मुझे फुल सूली पे लटकाने का प्लान बना रखा था। अच्छा हुआ टाइम पर आ गई, बचा लिया तूने।"
इरावती ने बिना देर किए, उसी टोन में पलटकर कहा,
"मैं अब भी वो प्लान कैंसिल नहीं कर रही, समझा?"
अब आगे :
वो कुछ कहने ही वाली थीं कि तभी उनकी नज़र इरा के चेहरे पर पड़ी जहां थकावट उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी। जैसे रातभर की नींद कहीं पीछे छूट गई हो। उन्होंने एक पल खुद को रोका और बस हल्के से सिर हिला दिया।
वो चुपचाप मुड़ने लगी थीं कि तभी इरा पीछे से आई और उन्हें बच्चों की तरह हल्के से गले लगा लिया।
"सॉरी दादी माँ..." इरा की आवाज़ धीमी थी। "पक्का इस बार ऐसा नहीं होगा।"
उसने उनका चेहरा अपने हाथों में लिया और मासूमियत से कहा,
"काफ़ी लेट हो गया था... होटल में रुकना पड़ा। फिर फोन भी स्विच ऑफ था। ना अलार्म बजा... ना आपसे बात कर पाई।"
इतना सब कुछ एक ही सांस में बोलते हुए, इरा ने हल्के से कान पकड़ लिए।
इरावती का चेहरा अब भी थोड़ा सख्त था, लेकिन उनकी आँखों में नर्मी लौट आई थी। उन्होंने बस इरा के माथे पर हाथ फेरा और कहा,
"चल, अब अंदर चल... पहले कुछ खा ले। डांटना बाद में भी हो जाएगा।"
इरा ने पप्पी फेस बनाते हुए कहा, "सॉरी दादी माँ।"
वहीं मिस्टर मल्होत्रा के चेहरे से जैसे सारी चिंता और परेशानी उड़ गई हो। इरावती जी के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आ गई थी, लेकिन अगले ही पल उन्होंने झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाते हुए कहा,
"बस अरु, ये तेरा हमेशा का है... लेकिन अब मैं तेरे मीठे-मीठे शब्दों में नहीं आने वाली।"
इरा ने एक नजर अभिनव जी की तरफ डाली, जैसे नज़रों ही नज़रों में कह रही हो—“कुछ तो कीजिए डैड, प्लीज़!”
मगर मिस्टर मल्होत्रा ने सिर्फ कंधे उचका दिए, जैसे कह रहे हों—“अब खुद ही संभालो।”
इरा ने उन्हें कुछ सेकंड घूरा, फिर धीरे से दादी माँ को सोफे पर बिठाया और खुद उनके पास बैठते हुए बोली,
" भला हम दोनों क्यों लड़ रहे हैं, दादी माँ? असली गुनहगार तो आपका बेटा हैं... इन्होंने ही मुझे वहाँ भेजा था। और अब..."
वो अचानक चुप हो गई, जैसे कुछ और कहने जा रही थी लेकिन रुक गई। तभी अभिनव जी ने हल्की हँसी में कहा,
"वाह बेटा, अब मेरी माँ को ही मेरे खिलाफ भड़काया जा रहा है?"
इरावती ने झट से अभिनव जी के कंधे पर हल्का सा थप्पड़ मारते हुए कहा,
"ओए खोटिया, चुप कर। मेरी अरु एकदम सही कह रही है। सारी मुसीबत दी जड़ तू ही है।"
इरा भी मस्ती में बोली,
"हाँ दादी माँ, बिल्कुल सही फरमाया आपने।"
अभिनव जी थोड़ा नाराज़ होकर कुर्सी पर जा बैठे। इरा उनके पास आई, फिर दादी की ओर देखकर बोल पड़ी,
"दादी, आज आपको कुछ मिसिंग नहीं लग रहा?"
फिर खुद ही एक्टिंग करते हुए कहा,
"हम्म... कुछ याद आ रहा है... ओह हाँ! पनीर के पराठे।"
दादी भी हँस पड़ीं,
"हाँ हाँ, पनीर के पराठे!"
इरा मुस्कुराई,
"दादी माँ, ज़्यादा मत बनाना। हम दोनों ही हैं खाने वाले। बाकियों से तो नाराज़गी चल रही है... वो लोग अपना खुद बना लें।"
तभी मिस्टर मल्होत्रा ने तुरंत टोका,
"ये क्या बात हुई, अरु? मैंने भी तो अभी तक कुछ नहीं खाया है। जो तुम खाओगी, वही मैं भी खाऊँगा।"
इरा ने भौंहें उचकाईं,
"मगर कोई तो डाइट पर था... याद है न?"
मिस्टर मल्होत्रा ने शरारत से मुस्कराते हुए कहा,
"अरे, वो डाइट वाला तो आज छुट्टी पर है।"
इतना कहते ही दोनों ज़ोर से हँस पड़े, और इरावती जी के चेहरे पर भी एक सुकून भरी मुस्कान आ गई।
कुछ ही देर में इरा ने सबको फ्रेश होने को कहा और खुद भी अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।
फ्रेश होकर जब इरा डाइनिंग एरिया में पहुँची, तो देखा कि मिस्टर मल्होत्रा और दादी माँ पहले से वहाँ मौजूद थे — बस अब उसी का इंतज़ार हो रहा था।
इरा ने मुस्कुराते हुए टेबल पर दोनों को जॉइन किया। जैसे ही तीनों ने खाना शुरू किया, वहाँ एकदम शांति छा गई।
इरावती जी भले ही हमेशा हँसी-मज़ाक के मूड में रहती थी, लेकिन जब बात नियमों की आती, तो किसी समझौते की गुंजाइश नहीं छोड़ती थीं। उनका एक खास नियम था — "खाते वक़्त कोई बात नही करेगा।"
और इस नियम को घर में हर कोई बिना कोई बहस किए मानता आया था।
नाश्ता चुपचाप हो गया। इसके बाद मिस्टर मल्होत्रा ऑफिस के लिए निकल गए।
इरावती जी तैयार होने लगीं — उन्हें अपनी किसी पुरानी दोस्त के फंक्शन में जाना था। जाते-जाते उन्होंने इरा से पूछा,
"अरु, तू भी चल न। घर पर रहेगी तो फिर लैपटॉप खोले बैठी रहेगी।"
इरा ने हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया,
"सॉरी दादी मा, आज नहीं आ पाऊँगी। लेकिन आई प्रोमिस, आज ज्यादा काम नहीं करूँगी।"
इरावती जी ने ज्यादा ज़िद नहीं की, सिर हिलाया और प्यार से इरा के बालों पर हाथ फेरते हुए बाहर निकल गईं।
अब इरा घर पर अकेली थी।
वो सीधा अपने कमरे में गई, थोड़ी देर लैपटॉप पर काम किया — कुछ मेल्स चेक कीं, प्रेजेंटेशन के कुछ पॉइंट्स एडिट किए, और फिर थककर बेड पर लेट गई।
कहने को तो दिन अभी शुरू ही हुआ था, लेकिन इरा के लिए यह एक लंबी रात और भारी सुबह साबित हुई थी।
उसकी आँखें धीरे-धीरे बंद होने लगीं और कुछ ही पलों में...वो नींद की आगोश में चली गई।
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{कैलिफ़ोर्निया, लॉस एंजेलिस}
रात की रौशनी धुंधली पड़ चुकी थी। कैलिफ़ोर्निया की सड़कों पर ठंडी हवाओं की सरसराहट थी, लेकिन लॉस एंजेलिस एयरपोर्ट के एक प्राइवेट रनवे पर माहौल कुछ और ही कह रहा था।
एक काले रंग का प्राइवेट जेट धीरे-धीरे रनवे पर उतरा। उसकी बॉडी पर लगी हल्की गोल्डन लाइन उसकी शानो-शौकत की गवाही दे रही थी।
विधान रायजादा — अपने ठहराव भरे अंदाज़ में जेट से नीचे उतरा। काले ट्रेंच कोट के नीचे ब्लैक शर्ट और मैचिंग स्लैक्स में उसका रौब और भी अट्रैक्टिव लग रहा था। आँखों में वही पुरानी ठंडक और चेहरे पर वही बेजान-सी गंभीरता।
जैसे ही उसने रनवे पर कदम रखा, उसके इर्द-गिर्द चार गाड़ियाँ आगे, चार पीछे और बीच में उसकी ब्लैक बुलेटप्रूफ Maybach — पूरी एक काफ़िला उसकी सुरक्षा के लिए तैयार खड़ा था।
विधान कार में बैठते ही लैपटॉप ऑन करता है। उंगलियाँ कीबोर्ड पर किसी ट्रेंड शूटर जैसी चल रही थी।
उसकी नज़रें स्क्रीन पर टिक थीं, जैसे दुनिया का हर अगला कदम वो यहीं से कंट्रोल करता हो।
शहर की चमकती रौशनी से दूर, उसका काफ़िला तेज़ी से उसके प्राइवेट विला की ओर बढ़ रहा था।
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मुंबई, इंडिया [ मल्होत्रा मेंशन ]
इरा प्रोजेक्ट से रिलेटिड कुछ काम करने के बाद सोने के लिए चली गई थी। अचानक इरा एक डरावने सपने से उठ गई। उसका सिर बहुत तेज़ दर्द कर रहा था।
वैसे तो उसे ऐसे नाइटमेयर्स अक्सर आते थे, लेकिन ज़्यादातर रात में ही। और इसी वजह से इरा ने रात में सोना भी कम कर दिया था।
मगर अब तो शाम के वक़्त भी यह डर पीछा नहीं छोड़ रहा था।
उसने धीरे से आँखें खोली, लेकिन नींद अब भी पूरी तरह से टूटी नहीं थी। शरीर थका हुआ सा लग रहा था, लेकिन वो किसी तरह उठी, फ्रेश हुई और नीचे जाने लगी। तब उसे एहसास हुआ कि सोते-सोते शाम हो चुकी थी। नीचे पूरे मेंशन में एकदम शांति थी—कहीं कोई नहीं दिख रहा था।
उसका शरीर बहुत थका हुआ था और इस वक्त उसे कॉफी की बहुत जरूरत महसूस हों रही थी और इसलिए वो किचन की तरफ बढ़ गई।
तभी सामने से इरावती जी आती दिखीं, उनके हाथ में दो कॉफी मग थे।
उन्हें देखते ही इरा खुश हो गई और हल्की सी स्माइल के साथ बोली —
"थैंक यू, दादी मा।"
इरावती जी बस हल्के से मुस्कुरा दीं।
उन्होंने कॉफी मग टेबल पर रखे और इरा से कहा, “आ जा, बैठ मेरे पास।”
इरा उनके पास बैठ गई और कॉफी का एक सिप लेकर बोली,
"इट्स ओसम, दादी मा… यू आर फेबल्स"
इरावती जी ने भी एक सिप लिया, लेकिन उनकी आँखों में सीरियसनेस उतर आई।
वो थोड़ा रुककर बोलीं,
"कल कहाँ थी तुम, इरा?"
इरा, जो अब तक कॉफी में मग्न थी, एक पल के लिए रुक गई।
उसने उनकी तरफ देखा और फिर नॉर्मल लेकिन शांत शब्दों में कहा,
"बताया तो था दादी मा…"
लेकिन इस बार इरावती जी की टोन सख़्त की और कहा,
"मुझे सच सुनना है, अरु।"
इरा ने बिना किसी भाव के कहा, "यही सच है दादी मा, जो मैंने आपको बताया।"
इरावती जी को एहसास हुआ कि शायद वो थोड़ा सख़्त हो गई थीं। उन्होंने इरा के हाथ को हल्के से सहलाते हुए कहा, "मेरा बच्ची, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। बस मैं ये जानना चाहती हु कि कोई प्रॉब्लम तो नहीं है, न? मैं जानती हूं, मेरा बच्ची सब संभाल लेगी लेकिन..."
तभी इरा ने बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "यही सच है दादी मा, आपको ट्रस्ट नहीं क्या अपने अरु पर?"
इरावती जी थोड़ी देर के लिए मुस्कुराईं, लेकिन उनकी आँखों में अभी भी कुछ सवाल थे, वो पूरी तरह से सेटिस्फाई नहीं हुईं थीं।
फिर दोनों के बीच हल्की-फुल्की बातें होती रही और इसी तरह से शाम भी धीरे-धीरे कट गई।
(क्रमशः)