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Scam marriage

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दिल्ली के सबसे ताकतवर और रहस्यमयी शख्स अर्नव अग्रवाल की जिंदगी में उस दिन भूचाल आ गया, जब एक होटल के कमरे से उसकी और एक अजनबी लड़की की तस्वीरें मीडिया में वायरल हो गईं। रिपोर्टर्स की भीड़, सनसनीखेज सवाल और धमकियों के बीच अर्नव ने सबको चुप करा दिया, ल...

Total Chapters (56)

Page 1 of 3

  • 1. Scam marriage - Chapter 1

    Words: 807

    Estimated Reading Time: 5 min

    दिल्ली के होटल मून में,

    होटल के एक कमरे के बाहर बहुत भीड़ लगी हुई थी। रिपोर्टर्स की। लग रहा था जैसे कोई बहुत बड़ी हस्ती हो अंदर। सभी दरवाज़ा खोलने की कोशिश कर रहे थे, या यूँ कहें कि दरवाज़ा तोड़ने की कोशिश चल रही थी। और यह मेहरबानी सीआईडी के दया जी की है, जो हमेशा एक लात में दरवाज़ा तोड़ देते हैं, लेकिन इन लोगों से यह महान काम नहीं हुआ।

    कोई कैमरे के सामने कुछ बोल रहा था, तो कोई दरवाज़े से लगकर दरवाज़े के अंदर घुसने की कोशिश में था। यहाँ तक कि उस होटल का मैनेजर भी उनके साथ बाहर खड़ा था। उसके चेहरे से पसीना छूट रहा था।

    "अरे मैनेजर साहब, आप देख क्या रहे हैं वहाँ? यहाँ आइए और दरवाज़ा खोलिए। आपके पास तो चाबी होगी ना, दूसरी?" उन रिपोर्टर्स में से किसी एक ने कहा। तो मैनेजर की हालत और खराब हो गई। उसके लिए ऐसा था जैसे एक तरफ खाई, एक तरफ कुआँ। अगर वो नहीं खोलता तो ये लोग उसे परेशान करते और टीवी पर उसकी न्यूज़ चला-चलाकर उसे कहीं का नहीं छोड़ते। और अगर खोल देता तो शायद वो अपनी जान से हाथ धो बैठता। इससे पहले कि मैनेजर कुछ करता, दरवाज़ा खुल गया।

    अंदर से एक लड़का बाहर आया। सभी थोड़ा पीछे हो गए। उस लड़के की हालत कुछ ठीक नहीं लग रही थी। उसके कपड़े अस्त-व्यस्त थे, बाल बिखरे हुए थे। वो अब भी गहरी नींद में लग रहा था, लेकिन उसका हैंडसम चेहरा इस हालत में भी काफी आकर्षक लग रहा था।

    उसकी नीली आँखें बेहद गहरी और राज़ से भरी लग रही थीं। कोई भी उनमें डूबना चाहे। उसकी बॉडी किसी मॉडल से कम नहीं थी। रिपोर्टर्स में जो भी लड़कियाँ थीं, वो उसके सुंदर चेहरे में खो गईं और लड़के उससे सवाल करने लगे। उनको तो मौका चाहिए होता था इस मासूम से बंदे को सताने के लिए।

    "मिस्टर अर्नव अग्रवाल, तो आप यहाँ ड्रग्स स्मगल करते हैं?"

    "तो यही है आपके अशिष्ट सेवन का अड्डा?"

    "अब तो आप रंगे हाथ पकड़े गए हो, तो क्या अब भी आप पैसे के बल पर निकल जाओगे, कोई भी बहाना देकर?"

    ऐसे ही कई सवाल अर्नव पर एक के बाद एक सारे रिपोर्टर्स फेंकने लगे, लेकिन अर्नव खामोश था। तभी उनमें से एक रिपोर्टर रूम में झाँकता है जहाँ एक लड़की बेड पर अर्नव की ही तरह अस्त-व्यस्त कपड़ों में सो रही थी। फिर वो रिपोर्टर अपने साथ आए कैमरामैन को तस्वीर लेने के लिए इशारा करता है। तस्वीर निकालने के बाद वो जोर-जोर से चिल्लाने लगा।

    "देखो, देखो! वहाँ एक लड़की है। मिस्टर अग्रवाल, कौन है वो लड़की?"

    "क्या संबंध है आपका उस लड़की से? कहीं वो आपकी माशूका तो नहीं?"

    "और कितनी लड़कियों की ज़िंदगी तबाह करोगे? शर्म नहीं आती तुम्हें ऐसे किसी पर अत्याचार करते हुए?"

    भीड़-भाड़ और शोर-शराबे के बीच अब उस लड़की की नींद टूटती है। खुद को अनजान जगह और इतने सारे लोगों को सामने देख वो बेड से नीचे उतर कर एक कोने में बैठ जाती है और आँखों पर अपने हाथ रख देती है। दिखने में वो बेहद मासूम थी। उसकी उम्र तकरीबन बीस साल होगी। उसकी खूबसूरती उसकी आँखों में दिख रही थी, साथ ही डर भी। उसके साथ जो हुआ, उसे याद कर उसकी आँखों में आँसू आ गए।

    वही सब रिपोर्टर्स कमरे के अंदर जाने की कोशिश करते हैं, तो अर्नव दरवाज़े पर हाथ रखकर सबको अपनी आँखों से ही डरा देता है।

    "खबरदार! यह पर्सनल मामला है हमारा। अगर इसमें मीडिया या फिर पुलिस ने अपनी नाक घुसाई तो बता रहे हैं, हम मानहानि का ऐसा केस ठोकेंगे ना बेटा कि तुम्हारी सात अगली पीढ़ी जेल में ही पैदा होगी। समझें?" अर्नव ने कहा तो सभी पीछे हो गए। लेकिन एक रिपोर्टर, जो कि कमरे में झाँक रहा था, वो आगे आया और अर्नव को उंगली दिखाकर बोलने लगा।

    "तुम्हें क्या लगा, तुम हमें धमकी दोगे और हम डर जाएँगे? अभी तक तुम मीडिया की पॉवर को नहीं जानते हो। हम अपनी आ गए ना!" अभी उसने इतना ही कहा था कि कुछ काले कपड़े पहने आदमी आए और उस रिपोर्टर को पकड़कर ले गए। दो लोग उनमें से। बाकी के लोग अर्नव को घेरकर खड़े हो गए।

    "अगर यह न्यूज़ बाहर गई तो समझो तुममें से कोई घर से बाहर निकलने लायक नहीं बचेगा। समझें?" अर्नव ने कहा तो सभी वहाँ से तुरंत भाग गए। अर्नव भी वहाँ से निकल गया। उसने एक बार भी उस लड़की की तरफ़ मुड़कर नहीं देखा। उसने वो लड़की बस अपनी भीगी आँखों से अर्नव को जाते हुए देख रही थी। उसने अपने आँसू पोछे और खुद को ठीक कर बाहर निकल गई।

    कौन है वो लड़की? क्या चीज़ है यह अर्नव?

    सवाल बहुत से हैं, लेकिन जवाब एक ही है। आगे पढ़ते रहिए। ❤️

    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए "सकेम मैरिज," मेरे यानी KJ के साथ... कमेंट करना ना भूलें दोस्तों...

  • 2. Scam marriage - Chapter 2

    Words: 653

    Estimated Reading Time: 4 min

    अब तक हमने देखा…


    “अगर ये न्यूज बाहर गई तो समझो तुम में से कोई घर से बाहर निकलने लायक नहीं बचेगा, समझें।” अर्नव ने कहा। तो सभी वहाँ से तुरंत भाग गए। अर्नव भी वहाँ से निकल गया। उसने एक बार भी उस लड़की की तरफ मुड़कर नहीं देखा। उसने वो लड़की बस अपनी भीगी आँखों से अर्नव को जाते हुए देख रही थी। उसने अपने आँसू पोछे और खुद को ठीक कर बाहर निकल गई।


    अब आगे…


    अर्नव और उसके आदमी गाड़ी में बैठ गए। अर्नव किसी सोच में गुम था।


    “बॉस जी, आपने उनको वहाँ ऐसे कैसे छोड़ दिया?” राजू, जो कि अर्नव का खास आदमी था, वो उस कमरे में जो लड़की थी, उसकी बात कर रहा था। साथ ही मोबाइल पर कुछ कर रहा था।


    “तुम जानते हो ना, उससे मेरा कोई रिश्ता नहीं है। ये किसी की सोची-समझी साज़िश थी। लेकिन इस बारे में दादा जी को पता नहीं चलना चाहिए, समझें।” अर्नव ने कहा, क्योंकि वो नहीं चाहता था कि उसके घर में किसी भी लड़की का नाम आए।


    “बॉस, बॉस, बॉस जी, हम नहीं बताएँगे उनको। लेकिन उनको खुद ही पता चल जाएगा।” राजू ने फोन देखते हुए कहा।


    “क्या बकैती कर रहे हो, राजू भैया? बॉस की धमकी के बाद उनको कौन पागल गधा बताएगा? बताओ जरा हमको?” चंदू ने गाड़ी ड्राइव करते हुए कहा और हँसने लगा, लेकिन उसके अलावा किसी को हँसी नहीं आई, तो वो भी बंद हो गया।


    “ये देखिए बॉस जी, आपकी और उन मोहतरमा की तस्वीर तो हर जगह वायरल हो रही है।” राजू ने अपना फोन अर्नव को दिखाया। तो कार का माहौल गरम हो गया। उसका गुस्सा सबको महसूस हो रहा था। अर्नव ने फोन पीछे फेंक दिया। राजू जल्दी से अपना फोन पकड़कर एक राहत की साँस लेता है।


    “उस लड़की को ढूँढो और उस पर नज़र रखो। क्या करती है, कहाँ जाती है, सब पता हमको लाकर दो, समझें। और हाँ, दूसरी बात, उसको पता ना चलना चाहिए कि हम उस पर नज़र रख रहे हैं। हमको लग रहा है ये किसी दुश्मन का काम है। वरना इसकी किसकी हिम्मत जो हमारी बात को काटे।” अर्नव को यकीन था, ज़रूर उस लड़की को उसके किसी दुश्मन ने जानबूझकर भेजा होगा उसके पास।


    “तो बॉस, अब कहाँ चलें?” चंदू, जो कि गाड़ी कब से इधर से उधर घुमाए जा रहा था, उसने कहा।


    “घर ले चलो।” अर्नव ने कहा और अपनी आँखें बंद कर ली। उसके सामने पता नहीं क्यों बार-बार उस लड़की की मासूम शक्ल घूम रही थी। अर्नव झट से अपनी आँखें खोल लेता है।


    “वो कहते हैं ना, हर खूबसूरत चीज़ खतरनाक ज़रूर होती है। अर्नव, तो ये भी वैसे ही तेरे लिए खतरनाक है। उसके बारे में सोचना बंद कर। वो बस एक धोखा है।” अर्नव अपने मन ही मन खुद से बातें करते हुए बोलता है।


    अर्नव का घर एक बस्ती में था, दिल्ली की एक बड़ी सी बस्ती के बीच। अर्नव का बेहद शानदार बंगला था, जिसका नाम था राजमहल। अर्नव दिल्ली शहर का जाना-माना नाम था। उससे ना ही कोई दोस्ती करना चाहता, ना ही दुश्मनी। कहा जाता कि अर्नव से कोई भी रिश्ता अच्छा नहीं है। बस्ती के लिए तो अर्नव भगवान भी था और हैवान भी। अक्सर वो बस्ती की मदद खून चूसने वाले नेताओं और पुलिस वालों से बचाता था, लेकिन हर महीने उनसे पैसे लेना नहीं भूलता था। और जो भी हफ़्ता देने से इनकार करे, उन्हें वो अगली सुबह का सूरज देखने नहीं देता था।


    “गोलू, क्या है ये सब?” बंगले में आते ही मिस्टर राजेश अग्रवाल, अर्नव के दादा जी, जो कि बड़े से हॉल में बड़े से सोफ़े के पास खड़े होकर अर्नव के सामने मोबाइल रखकर उसे देख रहे थे, उन्होंने गुस्से से कहा।


    आखिर कौन थी वो लड़की? अब क्या करेंगे अर्नव के दादा जी? आखिर अर्नव है क्या चीज़?


    आगे जानने के लिए कमेंट की बरसात कीजिए…

  • 3. Scam marriage - Chapter 3

    Words: 1576

    Estimated Reading Time: 10 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है, ठीक होंगे।

    अब तक हमने देखा…

    "घर ले चलो।" अर्नव ने कहा और अपनी आँखें बंद कर लीं। उसके सामने पता नहीं क्यों बार-बार उस लड़की की मासूम शक्ल घूम रही थी। अर्नव जट से अपनी आँखें खोल लेता है।

    “[वो कहते हैं ना हर खूबसूरत चीज खतरनाक जरूर होती है। अर्नव, ये भी वैसे ही तेरे लिए खतरनाक है। उसके बारे में सोचना बंद कर। वो बस एक धोका है।]” अर्नव अपने मन ही मन खुद से बातें करते हुए बोलता है।

    अर्नव का घर एक बस्ती में था; दिल्ली की एक बड़ी सी बस्ती के बीच अर्नव का बेहद शानदार बंगला था, जिसका नाम था राजमहल। अर्नव दिल्ली शहर का जाना-माना नाम था। उससे ना ही कोई दोस्ती करना चाहता था, ना ही दुश्मनी। कहा जाता था कि अर्नव से कोई भी रिश्ता अच्छा नहीं है। बस्ती के लिए तो अर्नव भगवान भी था और हैवान भी। अक्सर वह बस्ती की मदद खून चूसने वाले नेताओं और पुलिसवालों से बचाता था, लेकिन हर महीने उनसे पैसे लेना नहीं भूलता था। और जो भी हफ्ता देने से इनकार करे, उसे वह अगली सुबह का सूरज देखने नहीं देता था।

    "गोलू, क्या है ये सब?" बंगले में आते ही मिस्टर राजेश अग्रवाल, अर्नव के दादा जी, जो कि बड़े से हॉल में बड़े से सोफे के पास खड़े होकर अर्नव के सामने मोबाइल रखकर उसे देख रहे थे, उन्होंने गुस्से से कहा।

    अब आगे…

    "हा हा भांजे, ये सब वोट हैं? तुम हमें टेल कर देते, हम तुम्हारी खैरियत करवा देते। आफ्टर ऑल, आई एम योर गुड मामा। क्या बोलता छोटे भांजे? कैसी रही माय इंग्लिश?" बृजेश मिश्रा, अर्नव के मुँह बोले मामा, जिन्होंने अर्नव के बुरे वक्त में उसका बहुत साथ दिया था। बचपन से ही वे अर्नव के साथ रहते आए हैं और जब अर्नव अब इतना रईस बन चुका है, तो मामा अब उनके साथ ही रहेंगे। आरंभ से ऐसा अर्नव का कहना था। ये दिल के बहुत अच्छे थे, लेकिन इनकी इंग्लिश बेहद ही खराब थी, जो कि आप देख ही चुके हो।

    "इतनी अच्छी थी मामा, इतनी अच्छी थी कि मन किया कि कहीं डूब जाऊँ। और भाई, अगर आपकी जवानी इतनी उमड़ रही थी, तो हमसे बता देते। हम कौन सा बड़ी बिंदी लगाते जो विलेन बनते और कमोली की तरह आप दोनों को अलग करते?" यह है अक्षत अग्रवाल, अर्नव का छोटा और बदमाश भाई, जो कि एक जाना-माना सिंगर था, लेकिन उसकी पर्सनल लाइफ के बारे में कोई नहीं जानता था।

    "हो गया आप सब का। उस लड़की और मेरे बीच कुछ नहीं है। कल राजू की बर्थडे पार्टी में ड्रिंक ज्यादा हो गई थी, तो मैं रूम में सो गया। उसके बाद वो लड़की मेरे रूम में कहाँ से आई, कुछ नहीं पता। और आप सब यह बात यहीं भूल जाएँ तो अच्छा होगा।" अर्नव ने कहा और जाने लगा, लेकिन दादा जी की आवाज सुनकर वह वहीं रुक गया।

    "रुको अर्नव, तुम ऐसे अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ सकते। उस लड़की का सोचो। देख रहे हो कितनी बदनामी हो रही है उसकी।" राजेश जी ने कहा, लेकिन वे भूल गए थे कि अर्नव किसी और की परवाह करता ही नहीं था।

    "वो उसकी प्रॉब्लम है दादा जी, मेरी नहीं।" अर्नव ने कहा और जाने लगा। वहीं दादा जी ने अक्षत की तरफ देखा और आँख मारी। दादा जी सीधे सोफे पर गिर गए और हाथ अपनी राइट चेस्ट पर रख दिया और करहाने लगे, "आह…" सीढ़ियों पर चढ़ रहे अर्नव ने जब दादा जी की आवाज सुनी, तो वह मुड़कर वापस आने लगा। अक्षत जल्दी से दादा जी के पास गया और उनका हाथ राइट साइड से हटाकर लेफ्ट साइड कर दिया।

    "दादा जी, क्या कर रहे हो? दिल लेफ्ट साइड होता है। आपको तो एक्टिंग ही नहीं आती। अब देखो मेरी एक्टिंग।" अक्षत ने धीरे से कहा और फिर चिल्लाना शुरू किया, "भाई, भाई, जल्दी से आओ, देखो दादा जी को क्या हो गया! हार्ट अटैक आया है उनको। लगता है कैंसर हो गया है या हो सकता है बीपी बहुत बढ़ गया हो। देखिए, वो अब अपनी आखिरी साँसें ले रहे हैं।" अक्षत ने अपनी एक्टिंग स्किल्स अच्छे से दिखा दी। अब दादा जी को डर था कहीं अर्नव अक्षत की घटिया रोड छाप एक्टिंग पकड़ ना ले।

    "राजू, डॉक्टर को कॉल करो।" अर्नव ने जल्दी से दादा जी को उठाया और उनको बेडरूम की तरफ जाने लगा। अब जैसे ही राजू अपना फोन निकालता है, अक्षत उसे रोक देता है।

    "राजू, रुको। मैं कॉल करता हूँ डॉक्टर को। तू जा भाई के पास।" अक्षत ने कहा और अपना फोन निकाला।

    "अरे छोटे भांजे, काहे टाइम टेस्ट कर रहे हो? जल्दी करने दो ना उसे। कहीं ऐसा ना हो कि वो बूढ़ा गॉड के पास निकल ले।" बृजेश मामा की बात सुनकर अभी अक्षत का मन किया कि वो मामा का सर फोड़ दे। उसने फोन सीधे कान से लगा लिया।

    "डॉक्टर, दादा जी की तबीयत बहुत खराब है। जल्दी आइए।" अक्षत ने ऊपर देखते हुए कहा और फोन अपनी जेब में रखकर बाहर चला गया। वहीं मामा और राजू एक-दूसरे की तरफ देखने लगे।

    "इसने नंबर कब डायल किया?" राजू ने गेट देखते हुए कहा, जहाँ से अभी-अभी अक्षत बाहर गया था।

    "वही तो मैं थिंक कर रहा था।" मामा जी ने भी उसी ओर देखते हुए कहा।

    वहीं अक्षत बाहर जाकर डॉक्टर को मैसेज कर देता है कि उसे क्या करना है, साथ ही कुछ पैसे भी उसे ट्रांसफर कर देता है।

    वहीं दादा जी अपनी एक्टिंग की कला दिखा रहे थे।

    "बेटा, अब पता नहीं मैं और कितनी देर रहूँगा। अभी मैंने देखा ही क्या है ज़िन्दगी में, लेकिन उस ऊपर वाले के सामने किसकी चली है? जो मेरी जवानी की चलेगी, लेकिन तू मुझसे वादा कर कि तू उस लड़की से शादी करेगा।" दादा जी बस मरने की कगार पर थे।

    "आप अभी शांत हो जाइए। हम बाद में बात करते हैं।" अर्नव ने दादा जी का हाथ पकड़कर कहा।

    "नहीं बेटा… तुम मुझसे अभी वादा करो, अभी।" दादा जी ने कहा, लेकिन अर्नव भी इतनी आसानी से मानने वालों में से था। उसने कोई जवाब ही नहीं दिया। तभी अक्षत वहाँ डॉक्टर को लेकर आ गया।

    "नमस्ते भाई।" डॉक्टर ने डरते हुए अर्नव से कहा।

    "जल्दी चेक करो।" अर्नव ने कहा, तो डॉक्टर जल्दी से दादा जी के पास गया। कुछ सेकंड उनको चेक करके उनसे एक इंजेक्शन निकाला और दादा जी को इंजेक्ट करना चाहा, लेकिन दादा जी ने अपना हाथ खींच लिया।

    "नहीं, नहीं, नहीं! जब तक तुम मुझसे वादा नहीं करते, तब तक ना मैं मेडिसिन लूँगा, ना कोई इंजेक्शन। समझे तुम?" दादा जी ने फेंका अपना आखिरी पासा, जिससे अर्नव अब बच नहीं सकता था।

    "ठीक है, मैं वादा करता हूँ। जैसे ही आप ठीक हो जाओगे, मैं शादी कर लूँगा उस लड़की से।" अर्नव ने कहा, तो डॉक्टर ने दादा जी को इंजेक्शन दे दिया।

    अर्नव वहाँ से बाहर चला गया और अक्षत दादा जी के पास चला गया।

    "ये कौन सा इंजेक्शन दिया? मुझे कहीं मैं सच में बीमार ना पड़ जाऊँ।" दादा जी ने गुस्से से कहा। उन्हें डर था कहीं ये लोग सच में उन्हें उनकी जवानी में ना मार दें।

    "अरे चील दादू, ये बस प्रोटीन का इंजेक्शन था। आपको कुछ नहीं होगा इससे।" अक्षत ने कहा और दादा जी के रूम से बाहर निकलकर अर्नव के रूम में चला गया।

    "भाई, क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?" अक्षत ने कहा, तो अर्नव, जो कि अपने रूम की खिड़की से बाहर देख रहा था, उसने अपने भाई की तरफ देखा।

    "तुम और कितना अंदर आओगे?" अर्नव ने कहा क्योंकि अक्षत ऑलरेडी उसके पास पहुँच चुका था।

    "भाई, तो बताओ कब करवाऊँ शादी की तैयारी?" अक्षत ने अपनी बत्तीसी दिखाकर कहा।

    "तुम्हें बड़ी जल्दी है मेरी शादी की?" अर्नव ने अक्षत को घूरा, तो वह थोड़ा दूर हो गया। फिर वापस से पास आकर बोलने लगा।

    "जब आपका पत्ता कटेगा, तभी तो मेरा नंबर लगेगा ना? और वैसे भी आप फास्ट नाइट तो मना ही चुके होंगे, तो अब शादी भी लगे हाथ कर ही देते हैं।" अक्षत ने शर्माते हुए कहा। वहीं अर्नव हैरान था अपने भाई के इतने खुले विचारों से।

    "तुम गलत समझ रहे हो। हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हुआ था।" अर्नव की बातों पर अक्षत को भरोसा नहीं था। उसने खुद देखा था कि अर्नव वीडियो में कुछ ठीक हालत में तो नहीं था।

    "अच्छा, मतलब आपको सब याद है?" अक्षत ने अर्नव को घूरते हुए कहा।

    "हाँ, मतलब नहीं याद तो नहीं है, लेकिन कुछ हुआ नहीं है, ये मुझे पता है। अब अपने डर्टी थॉट्स को उठाओ और जाओ यहाँ से।" अर्नव ने कहा, लेकिन अक्षत ठहरा ढीठ। ऐसे कैसे जाता?

    "भाई, वैसे कहीं भाभी प्रेग्नेंट तो नहीं है ना?" अक्षत ने कहा, तो अर्नव ने पास में रखे टेबल पर रखा गिलास उठाया और फेंककर अक्षत की तरफ फेंका, लेकिन बचपन की आदत की वजह से अक्षत नीचे झुका और बच गया, लेकिन फिर वह जल्दी से भाग गया बाहर।

    अर्नव ने राजू को कॉल किया।

    "जी बॉस, बोलिए। मैं बाहर ही हूँ, अभी आता हूँ।" राजू ने कॉल पिक करते हुए सीधे कहा।

    "पहले बात तो सुन लिया करो। अंदर नहीं आना है। उस लड़की के बारे में जल्दी जानकर उसकी कुंडली लाओ हमारे पास। समझे?" अर्नव ने कहा, तो राजू थोड़ा हैरान हो गया।

    "लेकिन क्यों बॉस? आप तो ये कुंडली सब में विश्वास नहीं करते ना? तो अब का हुआ?" राजू ने कहा, तो अर्नव का मन किया कि वो राजू को अभी धो डाले।

    "अबे ओ बेवकूफ! इससे पहले कि हम तुम्हारा भेजा गोली से उड़ा दें, तुम दफ़ा हो जाओ और उस लड़की की जानकारी दो सारी हमें। समझे?" अर्नव ने कहा और कॉल काट दिया।

    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी kj के साथ…

  • 4. Scam marriage - Chapter 4

    Words: 1530

    Estimated Reading Time: 10 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है सब ठीक होंगे।

    अब तक हमने देखा...

    “हा, मतलब नहीं। याद तो नहीं है, लेकिन कुछ हुआ नहीं है, ये मुझे पता है। अब अपने डर्टी थॉट्स को उठाओ और जाओ यहाँ से।” अर्नव ने कहा, लेकिन अक्षत ठहरा ढीठ, चाँदी ऐसे कैसे जाता।

    “भाई, वैसे कहीं भाभी प्रेग्नेंट तो नहीं है ना?” अक्षत ने कहा। तो अर्नव ने पास में रखे टेबल पर रखा गिलास उठाया और फेंक कर अक्षत की तरफ फेंका। लेकिन बचपन की आदत की वजह से अक्षत नीचे झुका और बच गया, लेकिन फिर वह जल्दी से बाहर भाग गया।

    अर्नव ने राजू को कॉल किया।

    “जी बॉस, बोलिए। मैं बाहर ही हूँ, अभी आता हूँ।” राजू ने कॉल पिक करते हुए सीधे कहा।

    “पहले बात तो सुन लिया करो। अंदर नहीं आना है। उस लड़की के बारे में जल्दी जानकर उसकी कुंडली लाओ हमारे पास, समझे।” अर्नव ने कहा। तो राजू थोड़ा हैरान हो गया।

    “लेकिन क्यों बॉस? आप तो इस कुंडली सब में विश्वास नहीं करते ना, तो अब क्या हुआ?” राजू ने कहा। तो अर्नव का मन किया कि वह राजू को अभी धो डाले।

    “अबे ओ बेवकूफ! इससे पहले कि हम तुम्हारा भेजा गोली से उड़ा दें, तुम दफ़ा हो जाओ और उस लड़की की जानकारी दो, सारी हमको, समझे।” अर्नव ने कहा और कॉल काट दिया।

    अब आगे...

    दिल्ली की एक छोटी सी सोसाइटी, शांति नगर। जिसके एक डुप्लेक्स घर में अभी युद्ध चल रहा था।

    “तुम में शर्म है कि नहीं? अगर अभी तुम्हारी जगह कोई और होता, तो डूब के मर जाता। तुमने तो हमें कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। अरे, मैं ही पागल थी जो अपने भाई की अनाथ लड़की को अपने सर का बोझ बनाए रखा। अपने बारे में नहीं, तो कम से कम हमारे बारे में ही सोच लेती।” लता मिश्रा, जिसने अपने भाई की बेटी को 7 साल की उम्र में गोद लिया था, क्योंकि उसके माता-पिता एक एक्सीडेंट में मर गए थे, और अब उस लड़की ने 13 साल बाद उनका नाम खराब कर दिया था।

    “मेरी गलती नहीं है बुआ जी, वो तो...” माही ने कहना चाहा, लेकिन तभी उसकी बात उसकी बुआ की बेटी, रागिनी ने काट दी।

    “जस्ट शट अप! बहुत मासूम बनने का दिखावा करती थी ना तुम? अब क्या हुआ? एक पराए लड़के के साथ गुलछर्रे उड़ाते हुए तुम्हें जरा भी शर्म नहीं आई? और अब बोल रही हो कि मेरी कोई गलती नहीं है? फिर बोलोगी कि मैं तो उस लड़के को जानती भी नहीं, मुझे नहीं पता मैं उसके साथ कैसे एक ही रूम में पहुँच गई। गई तो मैं रागिनी दीदी के साथ थी, है ना? और जैसे तुम कहोगी, और हम सब मान भी लेंगे।” रागिनी बहुत ही चालक इंसान थी। उसे बचपन से ही माही की खूबसूरत शक्ल से जलन होती थी। पहले वह ऐसी खराब नहीं थी, लेकिन कब बचपन की मीठी तकरार नफरत में बढ़ गई, यह पता ही नहीं चला।

    “सही कहा, मॉम। आपने इसमें जरा भी शर्म ही नहीं है, वरना अब भी यहाँ थोड़ी खड़ी होती।” रोकी उर्फ रामचंद्र मिश्रा, जो शक्ल और नियत दोनों से ही कमीना दिख रहा था। माही बस सबकी बातें सुनकर रोए जा रही थी।

    “बस भी करो तुम लोग! उस बेचारी की हालत तो देखो।” महेश मिश्रा ने कहा, जो एक साफ़ दिल के इंसान थे, लेकिन उनकी चलती नहीं थी अपने परिवार वालों के सामने।

    वहीं मिश्रा हाउस के बाहर छिपकर सुन रहा राजू जल्दी से अर्नव को मैसेज करता है।

    “बॉस, आप जैसा सोच रहे हैं, वैसी नहीं है यह लड़की। उस लड़की की बुआ और उसकी फैमिली सभी बहुत टॉर्चर कर रहे हैं इस लड़की को। लग रहा है एक नॉर्मल लड़की है यह, बस गलती से आपके साथ रूम में फँस गई।” राजू का मैसेज पढ़कर अर्नव सोच में पड़ गया। यह पहली बार था जब उसकी गट फीलिंग गलत साबित हो रही थी।

    “उसे लेकर आओ यहाँ।” अर्नव ने राजू को मैसेज किया और अपने कमरे की एक दीवार के पास जाता है। अर्नव का पूरा कमरा काले और सफ़ेद रंग से पेंट था। उसकी दीवारों पर पेंटिंग्स, कुछ तस्वीरें, जिसमें अर्नव, अक्षत और कुछ और चार और लड़के थे। तस्वीर में तो कुछ तस्वीरें दादा जी के साथ थीं, लेकिन सभी तस्वीरों में एक बात सेम थी, वह था अर्नव का फ़ेस रिएक्शन। उसने एक भी तस्वीर में स्माइल नहीं की थी। सभी हँसते-खेलते दिख रहे थे।

    अर्नव ने अपना एक हाथ दीवार के एक कोने में रखा, तो वह दीवार खिसक गई और एक बड़ा सा कमरा खुल गया। वह कमरा साउंडप्रूफ़ के साथ-साथ स्मेलप्रूफ़ था। उस कमरे में ना ही कोई आवाज ना ही स्मेल जाती थी। यह एक सेफ़ रूम था अर्नव का। उसके सारे बुरे काम उसी में प्लान किए जाते थे। टेक्नोलॉजी से भरा एक बेहद ही मिस्टीरियस कमरा था वह, जो कि बस अर्नव के हाथ से खुलता था, क्योंकि उस रूम की सिक्योरिटी अर्नव के लिए बेहद ज़रूरी थी। वरना अगर कोई उसका दुश्मन उस रूम में चला जाता, तो अर्नव तुरंत जेल में होता।

    मिश्रा हाउस के बाहर,

    वहीं जब राजू ने मैसेज पढ़कर ऊपर देखा, तो वह डर के पीछे हो गया। उसके सामने दो औरतें और उनके बीच एक लड़की खड़ी थी। राजू दीवार से टिक कर खड़ा हो गया और उन तीनों को देखने लगा। वो तीनों भी उसे ही देख रही थीं, या यूँ कहें कि उसे घूर रही थीं।

    “कौन हो तुम? और कर क्या रहे हो यहाँ?” उनमें से एक मोटी औरत ने कहा।

    “सोनी आंटी, मुझे तो यह शक्ल से ही चोर लग रहा है।” उन दोनों औरतों के साथ खड़ी उस लड़की ने कहा, तो राजू की आँखें ही बाहर आ गईं।

    “सही कहा, गोरी। मुझे भी यह मंदिर के बाहर खड़ा रहने वाला मंगू लगता है। लेकिन अब इसने चोरी शुरू कर दी, यह नहीं पता था। वैसे यह उस लता के घर से ही तो चुरा रहा है। हमें इसकी मदद करनी चाहिए। आखिर दुश्मन का दुश्मन दोस्त ही होता है ना।” गीता आंटी ने कहा। यह सब माही की बुआ, लता मिश्रा की पड़ोसी कम, दोस्त कम, दुश्मन ज़्यादा थीं। वहीं जो लड़की गोरी थी, वह पास ही के तिवारी जी की बेटी थी। उसे इन आंटियों के साथ मिलकर गॉसिप और झगड़े बहुत पसंद थे। अभी जब उसने राजू को लता के घर झाँकते हुए देखा, तो तुरंत अपनी पलटन, सोनी आंटी और गीता आंटी को बुला लिया।

    “अंदर आओ।” राजू ने बिना उन पर ध्यान दिए अपने ब्लूटूथ से कहा, तो वो तीनों एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगीं। वहीं कुछ ही सेकंड में बहुत सारे काले कपड़े पहने और हाथ में गन लिए आदमी राजू को घेर कर खड़े हो गए। वहीं उन तीनों का तो बुरा हाल था।

    “गोरी, लगता है इस बार गलत पंगा ले लिया।” गीता आंटी ने डरते हुए कहा। वहीं सोनी आंटी और गोरी की हालत भी वैसी ही थी।

    “अंदर चलो।” राजू ने कहा और अंदर चला गया। वहीं उसके पीछे-पीछे सभी आदमी भी चले गए। तब जाकर उन तीनों झाँसी की रानियों में जान आई।

    वहीं अब दोनों आंटियाँ अपनी जान बचाकर जाने लगीं, लेकिन गोरी ऐसे कैसे यह मौका अपने हाथ से जाने देती? वह उन दोनों को पकड़ लेती है।

    “अरे आंटी, ऐसे कैसे चले जाएँ? हम आखिर हम पड़ोसी हैं उनके। उनका सुख-दुख सब पर नज़र रखने का हक बनता है हमारा, और हम इस फ़र्ज़ से मुँह नहीं मोड़ सकते ना।” गोरी उनको खींचते हुए ले गई। तीनों खिड़की से देख रही थीं कि राजू और उसके आदमी माही को जबरदस्ती उठाकर ले जा रहे थे।

    “हाय ला... यह तो किडनैपर निकले। हे राम! उठा ले मेरे को नहीं रे बाबा, इन कमीनों को।” गोरी ने कहा। और जैसे ही अंदर जाना चाहा, दोनों आंटियाँ उसे रोक लेती हैं।

    “अभी वहाँ जाना सुरक्षित नहीं है। सब्र रखो, हम पुलिस को कॉल करते हैं।” सोनी आंटी ने कहा, तो गोरी शांत हुई। वहीं माही का रो-रो कर बुरा हाल था।

    “आप सब कौन हो? जाने दो मुझे, प्लीज। छोड़ो। बुआ, बचाओ! रागिनी, फूफा जी, रामचंद्र, बचाओ! मुझे छोड़ो!” माही खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी और बचाने के लिए मदद भी मांग रही थी।

    “ओए! ऐसे कैसे मेरे घर में घुसे जा रहे हो तुम? निकलो बाहर!” रागिनी ने चिल्लाकर कहा। तो उनमें से कुछ आदमियों ने उसे पकड़ लिया। तब जाकर बुआ और रोकी रागिनी को बचाने के लिए आगे आए। उन्हें माही की कोई परवाह ही नहीं थी। यह देख माही और टूट गई।

    “छोड़ो उसे! कहाँ ले जा रहे हो माही को? कौन हो तुम सब?” फूफा जी भी आगे बढ़े, लेकिन वह उन आदमियों का सामना कर पाने की हिम्मत नहीं थी उनमें।

    अर्नव का कमरा...

    अर्नव उस रूम में अंदर गया और एक फ़ाइल निकालकर उसमें कुछ लिखने लगा। लिखने के बाद उसने अपनी गन उठाई और वापस बाहर चला गया। बाहर आकर उसने देखा तो अक्षत पहले से ही उसके रूम में चक्कर लगा रहा था।

    “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” अर्नव ने अक्षत से पूछा।

    “भाई वो, अभी, सेफ़ और डेविड आए हैं।” अक्षत के चेहरे पर टेंशन साफ़ झलक रही थी, जिसे अर्नव समझ नहीं पा रहा था।

    “तो क्या हुआ? वो तीनों तो आते ही हैं, लेकिन तुम्हारे पसीने क्यों छूट रहे हैं?” अर्नव की भौंहें तन गईं।

    “वो भाई, राजू भाभी को भी ले आया है और वो तीनों भाभी को घेर कर खड़े हैं।” जैसे ही अक्षत ने यह कहा, अर्नव कमरे से बाहर निकल गया।

    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ...

  • 5. Scam marriage - Chapter 5

    Words: 1133

    Estimated Reading Time: 7 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है, सब ठीक होंगे।

    अब तक हमने देखा...

    "आप सब कौन हो? जाने दो मुझे, प्लीज़ छोड़ो! बुआ, बचाओ! रागिनी, फूफा जी, रामचन्द्र! बचाओ मुझे, छोड़ो!" माही खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी और बचाने के लिए मदद भी मांग रही थी।

    "ओए! ऐसे कैसे मेरे घर में घुस रहे हो तुम? निकलो बाहर!" रागिनी ने चिल्लाकर कहा। उनमें से कुछ आदमियों ने उसे पकड़ लिया। तब जाकर बुआ और रोकी रागिनी को बचाने के लिए आगे आए। उन्हें माही की कोई परवाह ही नहीं थी। यह देख माही और टूट गई।

    "छोड़ो उसे! कहाँ ले जा रहे हो माही को? कौन हो तुम सब?" फूफा जी भी आगे बढ़े, लेकिन उनमें उन आदमियों का सामना करने की हिम्मत नहीं थी।

    अर्नव का कमरा...

    अर्नव उस कमरे में अंदर गया और एक फाइल निकालकर उसमें कुछ लिखने लगा। लिखने के बाद उसने अपनी गन उठाई और वापस बाहर चला गया। बाहर आकर उसने देखा तो अक्षत पहले से ही उसके कमरे में चक्कर लगा रहा था।

    "तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" अर्नव ने अक्षत से पूछा।

    "भाई वो... अभी... सेफ और डेविड आए हैं।" अक्षत के चेहरे पर टेंशन साफ झलक रही थी, जिसे अर्नव समझ नहीं पा रहा था।

    "तो क्या हुआ? वो तीनों तो आते ही हैं, लेकिन तुम्हारे पसीने क्यों छूट रहे हैं?" अर्नव की भौंहें तन गईं।

    "वो भाई, राजू भाभी को भी ले आया है और वो तीनों भाभी को घेरकर खड़े हैं।" जैसे ही अक्षत ने यह कहा, अर्नव कमरे से बाहर निकल गया।

    अब आगे...

    अर्नव और अक्षत जैसे ही नीचे पहुँचे, उन्होंने देखा कि माही सोफे पर बैठी है। उसकी एक तरफ सेफ खड़ा था और दूसरी तरफ डेविड, और उसके ठीक सामने अभी खड़ा-खड़ा उसे घूर रहा था।

    "तो आप अर्नव को नहीं जानती? हमारे भाई को नहीं जानती? जिसे पूरा शहर डरता... मतलब जानता है, उसे नहीं जानती आप?" डेविड ने माही को घूरते हुए कहा।

    "जी... जी, हम नहीं जानते आपके भाई को।" माही ने सर नीचे झुकाकर कहा। उसकी आवाज़ में डर और नमी साफ़ महसूस हो रही थी। वहीं अक्षत अर्नव को धक्का देकर आगे चलने का इशारा कर रहा था, लेकिन अर्नव वहीं सीढ़ियों पर खड़ा माही को देखने लगा।

    "ऐसे जवाब मत दो! नज़र से नज़र मिलाकर बोलो! सच बोलने वाले कभी सर नहीं झुकाते।" सेफ ने कहा। तो माही ने धीरे-धीरे करके अपना सर उठाया और फिर सोफे पर खड़ी हो गई।

    "ये क्या कर रही है आप?" अभी ने हैरानी से कहा।

    "नज़र से नज़र मिला रहे हैं। आप सब इतने लम्बे हैं, तो अब हम अपनी आँखें बाहर निकालकर तो नज़र नहीं मिला सकते ना, इसलिए खड़े हो गए।" बात भी सही थी। सभी लड़के छह फ़ुट या उससे ऊँचे थे और यह महारानी साढ़े चार फ़ुट।

    "हम्म, बात में दम तो है। क्यों अभी...?" जैसे ही डेविड ने कहते हुए अभी की तरफ़ देखा, उसकी बोलती बंद हो गई।

    "नीचे उतरिए आप।" अभी ने कहा और खुद जाकर माही के सामने वाले सोफे पर बैठ गया।

    "अभी, भाभी बहुत मासूम है। मुझे नहीं लगता ये कोई दुश्मन होगी।" सेफ ने माही को देखते हुए अभी से कहा, लेकिन अभी ने कुछ नहीं कहा।

    "वैसे भाभी, आपको खाना बनाना आता है क्या?" डेविड अब भी वहीं खड़ा था माही के पास।

    "हाँ, हाँ, आता है। गुजराती, मद्रासी, चाइनीज़, इटैलियन सब, लेकिन वेज-नॉनवेज नहीं बनाती। मेरा धर्म भ्रष्ट हो जाएगा अगर मैंने देखा या छुआ भी लिया। फिर पता है आपको कितना पाप लगता है।" माही सोफे पर आर्थली-पाथली मारकर बैठ गई और अपनी उंगलियों पर सब गिनवाने लगी। वहीं अर्नव तो उसे ही घूर रहा था।

    "अच्छा भाभी, फिर तो आप मेरे लिए मंचूरियन और स्प्रिंग रोल बनाना।" जैसे ही खाने का नाम आया, अक्षत जल्दी से माही के पास भागकर आया।

    "जी, जी, जरूर। आप जब कहो, मैं बना दूँगी। अ... लेकिन एक सवाल था। आप सब मुझे भाभी क्यों बुला रहे हो? यह आप सबका कोई ट्रेंड है क्या, किडनैप करके भाभी बोलना?" माही ने सबकी तरफ देखकर कहा।

    "लगता है भाभी बहुत भोली है।" डेविड ने अक्षत के कान में कहा, तो अक्षत ने भी हाँ में अपनी गर्दन हिला दी।

    "उम्मीद है कि मैं तुम्हें याद रहूँगा।" अर्नव ने सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए कहा। तो माही वहीं फ्रिज हो गई। जो मासूमियत अभी कुछ देर पहले दिख रही थी, अब डर में बदल गई। वह जल्दी से सोफे पर खड़ी हो गई और पीछे-पीछे हटने लगी। अर्नव आगे बढ़ रहा था और माही पीछे जा रही थी। कुछ कदम के बाद वह दूसरे सोफे से टकराकर वहीं बैठ गई।

    "भाभी, डोंट वरी। आपको डरने की ज़रूरत नहीं है। आई नो, भाई थोड़े डरावने हैं, लेकिन वो आपको कुछ नहीं करेंगे। मैं हूँ ना, डोंट वरी।" अक्षत ने बत्तीसी दिखाकर कहा।

    "चलो।" अर्नव ने कहा और माही का हाथ पकड़कर उसे खींचते हुए ले जाने लगा। माही के चेहरे पर डर साफ नज़र आ रहा था। वहीं सब लड़के एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगे।

    अर्नव माही को अपने कमरे में ले जाकर आता है और दरवाज़ा अंदर से बंद कर लेता है। माही के चेहरे से पसीना छूट रहा था। उसके गले से एक आवाज़ नहीं निकल रही थी।

    अर्नव धीरे-धीरे माही की तरफ़ बढ़ने लगा। माही दीवार से चिपककर खड़ी थी। अर्नव उसके चेहरे के एकदम करीब आ गया। दूध से गोरी उसकी कोमल त्वचा, वो काली गहरी आँखें, वो डर के मारे थरथराते हुए गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ, मोरनी जैसी गर्दन... किसी पेंटर की नायाब पेंटिंग थी माही। अर्नव उसे बड़े ही गौर से देख रहा था। माही ने अपना सर नीचे झुका लिया।

    अर्नव अपने हाथ की एक उंगली से माही का चेहरा ऊपर करता है।

    "अक्सर लोग खूबसूरती में धोखा खा जाते हैं, लेकिन हमारी फितरत और ताकत दोनों ही सबसे परे हैं। तो जब हमको पता चला कि तुम कोई दुश्मन हो, तो यहीं गाड़ देंगे, समझी?" अर्नव ने माही के चेहरे पर उंगली घुमाते हुए कहा। वहीं अर्नव को अपने इतने करीब देख माही ने अपनी आँखें बंद कर लीं।

    "ये लो और साइन करो।" अर्नव ने माही से दूर हटकर एक पेपर उसके सामने रखा। यह एक कॉन्ट्रेक्ट था कि जब तक अर्नव चाहेगा, माही उसकी वाइफ़ बनी रहेगी। जिस दिन अर्नव ने कॉन्ट्रेक्ट ख़त्म किया, माही को उसके घर और इस शहर से दूर जाना होगा।

    "ये क्या है...? और मैं... मैं क्यों साइन करूँ इसे?" माही की आवाज़ में अब भी थोड़ी ठिठिराहट थी।

    "अगर तुम चाहती हो कि तुम्हारे बुआ का परिवार सलामत रहे, तो अभी साइन करो, वरना..." अर्नव उसे एक क्लिप दिखाता है, जिसमें मिश्रा हाउस के बाहर कुछ लोग बम लगा रहे थे। माही की आँखें डर से फटी हुई थीं। केस हेवन था वो।

    अब क्या करेगी माही? क्या अर्नव कर रहा है, वो सही है?

    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ...

  • 6. Scam marriage - Chapter 6

    Words: 1513

    Estimated Reading Time: 10 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है सब ठीक होंगे।

    अब तक हमने देखा...

    अर्नव धीरे-धीरे माही की तरफ बढ़ने लगा। माही दीवार से चिपक कर खड़ी थी। अर्नव उसके चेहरे के एकदम करीब आ गया। दूध से गोरी उसकी कोमल त्वचा, वो काली गहरी आँखें, वो डर के मारे थरथराते हुए गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ, मोरनी जैसी गर्दन—माही किसी पेंटर की नायाब पेंटिंग थी। अर्नव उसे बड़े ही गौर से देख रहा था। माही ने अपना सिर नीचे झुका लिया।

    अर्नव ने अपने हाथ की एक उंगली से माही का चेहरा ऊपर किया।

    "अक्सर लोग खूबसूरती में धोखा खा जाते हैं, लेकिन हमारी फितरत और ताकत दोनों ही सबसे परे हैं। तो जब हमें पता चला कि तुम कोई दुश्मन हो, तो यही गाड़ देंगे, समझी?" अर्नव ने माही के चेहरे पर उंगली घुमाते हुए कहा। वहीं, अर्नव को अपने इतने करीब देख माही ने अपनी आँखें बंद कर लीं।

    "ये लो और साइन करो।" अर्नव ने माही से दूर हटकर एक पेपर उसके सामने रखा। यह एक कॉन्ट्रैक्ट था कि जब तक अर्नव चाहेगा, माही उसकी वाइफ बनी रहेगी। जिस दिन अर्नव ने कॉन्ट्रैक्ट खत्म किया, माही को उसके घर और इस शहर से दूर जाना होगा।

    "ये क्या है...? और मैं...मैं क्यों साइन करूँ इसे?" माही की आवाज में अब भी थोड़ी ठिठक थी।

    "अगर तुम चाहती हो कि तुम्हारे बुआ का परिवार सलामत रहे, तो अभी साइन करो, वरना..." अर्नव उसे एक क्लिप दिखाता है जिसमें मिश्रा हाउस के बाहर कुछ लोग बम लगा रहे थे। माही की आँखें डर से फैल गईं। कैसा हैवान था वो!

    अब आगे...

    माही के चेहरे पर परेशानी और डर साफ झलक रहा था। अर्नव किसी हैवान से कम नहीं था।

    "इतना क्या सोच रही हो? पढ़ो और साइन करो जल्दी।" अर्नव ने गुस्से से कहा। तो माही ने डर से अपनी आँखें बंद कर लीं।

    "ठीक है, ठीक है। हम तैयार हैं शादी के लिए।" माही ने डरते हुए कहा और साइन करने लगी, बिना पढ़े।

    "पहले पढ़ लो।" अर्नव ने कहा। तो माही ने पेपर देखा; वो कभी पेपर को देखती, तो कभी अर्नव को देखती।

    "क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रही हो?" अर्नव ने अजीब तरीके से कहा।

    "लेकिन ये समझ नहीं आ रहा, कौन सी लैंग्वेज लिखा है। जरा हमको पढ़ के बताओ तो।" माही ने पेपर अर्नव को देते हुए कहा। तो अर्नव उसे ऐसे देखने लगा जैसे कोई पागल को देख रहा हो।

    "बचपन से ही ऐसी हो या बड़े होते-होते ऐसा हो गया? या कहीं गिर गई थी?" अर्नव ने उसके हाथ से पेपर लिए और उसे सीधा करके वापिस माही के हाथ में थमा दिए, क्योंकि माही ने पेपर उलटे पकड़े हुए थे। जब अर्नव ने कहा, तो माही का चेहरा देखने लायक था।

    "ये...ये सब क्या है? ऐसे रूल कौन रखता है? मैंने तो कभी नहीं देखा ऐसा कॉन्ट्रैक्ट में।" माही ने पेपर पढ़कर अर्नव से कहा। अर्नव, जो अपने हाथ बाँधे बस उसे ही देख रहा था, उसकी भौंहें ऊपर चढ़ गईं।

    "तुमने इससे पहले कितनी बार कॉन्ट्रैक्ट मैरिज की है?" अर्नव ने कहा। तो माही की आँखें बाहर आ गईं। वो सोफे से खड़ी हो गई।

    "पागल हो गए हो क्या आप? मैंने कभी शादी नहीं की किसी से। मैं एकदम कुंवारी हूँ। यहाँ तक कि मैंने आज तक सिंदूर भी नहीं लगाया।" माही बस बोलती जा रही थी, लेकिन अर्नव का ध्यान अब कहीं और चला गया था। उसका क्या मतलब था कि "मैं एकदम कुंवारी हूँ"? ये कोई साइन था क्या अर्नव के लिए?

    "साइन करो जल्दी और चलो। हमें दादा जी से भी मिलना है।" अर्नव ने कहा। तो माही ने डर के साइन कर दिया, और दोनों बाहर निकलने लगे। जैसे ही अर्नव ने गेट खोला, सबसे पहले अक्षत गिरा, उसके ऊपर डेविड, और उसके ऊपर सेफ; तीनों नीचे गिर गए। लेकिन अक्षत, सेफ और डेविड अपनी-अपनी कमर पर हाथ रखकर गिरते-पड़ते उठे। राजू आराम से खड़े रहे और एक-दूसरे को, और उन तीनों को देखने लगे।

    "क्या है ये सब? क्या कर रहे हो यहाँ? ये एक पड़ेगी ना, तो जहन्नुम नज़र आ जाएगा बेटा, समझे?" अर्नव ने कहा, तो सब वहाँ से रफूचक्कर हो गए।

    अर्नव कमरे से बाहर निकल गया। कुछ कदम चलकर उसने पीछे देखा, तो देखा कि माही दरवाजे पर ही खड़ी थी। अर्नव उसे अपने पीछे आने का इशारा करता है; माही भी उसके पीछे चलने लगती है। कुछ और कदम चलने के बाद अर्नव रुककर फिर पीछे देखता है, तो माही उससे अभी भी कुछ कदम की दूरी पर थी।

    "जल्दी चलो। नीचे आज ही पहुँचना है।" अर्नव ने माही को कहा, तो माही का मुँह बन गया।

    "खुद छह फुट है, इसलिए रौब झाड़ रहे हैं। जब इतने बड़े-बड़े कदम चलेंगे, तो कैसे हम साथ चल पाएँगे? हम खरबूजा कहाँ के?" माही बोलते-बोलते सिर नीचे झुके चल रही थी, तभी उसका सिर एक मजबूत दीवार से जा टकराया, जो कि थी अर्नव की पीठ। अर्नव ने पीछे मुड़कर देखा और माही को गुस्से से घूरने लगा। अर्नव ने माही का हाथ जोर से पकड़ा और उसे खींचते हुए नीचे ले जाने लगा। वहीं, माही के चेहरे पर दर्द और आँखों में आँसू आ चुके थे।

    अर्नव सीधे दादा जी के कमरे के बाहर आकर रुका। फिर उसने माही का हाथ छोड़ा। अब तक माही का दूधिया हाथ लाल हो चुका था। उसने अपनी आँखों की नमी पोछकर अपनी उस लाल हो चुकी कलाई पर दूसरा हाथ रखकर छिपा दिया।

    "अब कैसे हैं दादा जी?" अर्नव ने डॉक्टर से पूछा। डॉक्टर की हालत बेहद खराब लग रही थी फिलहाल।

    "जी, फिलहाल तो ठीक हैं, लेकिन अगर इन्हें कोई झटका लगा या टेंशन हुई ज़्यादा, तो खतरा हो सकता है।" डॉक्टर भी क्या करता? एक तरफ कुआँ, तो एक तरफ खाई। अर्नव और उसके दादा जी के बीच डॉक्टर फँस चुका था।

    "दादा जी से ज़्यादा तो इस डॉक्टर की हालत खराब लग रही है..." डेविड ने अक्षत के कान में कहा। तो अक्षत ने उसकी बात पुष्टि करते हुए कहा,

    "हम्म, दादा जी का पता नहीं, लेकिन अगर अभी ये यहाँ से नहीं गया, तो कल श्मशान में ज़रूर होगा।" अक्षत ने कहा। तो डेविड दूसरी तरफ देख हँसने लगा। उसके लिए बेहद मुश्किल था अपनी हँसी छिपाना।

    "बेटा, तुम आ गए! अरे, ये इतनी सुंदर-सुशील लड़की कौन है?" दादा जी ने एक्टिंग करते हुए कहा। उनकी एक्टिंग देख अक्षत और डेविड भी हैरान थे।

    "ये वही लड़की है दादा जी। और अब मैंने और इसने कोर्ट मैरिज कर ली है। तो अब आप खुश रहिए, समझे आप?" अर्नव ने कहा। तो दादा जी का फेस देखने लायक था।

    "ठीक है, लेकिन रीति-रिवाजों के साथ फेरे भी लेने होंगे। तभी असल मायनों में तुम दोनों पति-पत्नी कहलाओगे, समझे?" दादा जी की बात सुन अर्नव की अब हद से बाहर हो गया था। वहीं माही तो बस खुद ही में बड़बड़ाए जा रही थी, "शादी और का शादी? इसे अनोखी शादी हम अपनी पूरी ज़िंदगी में नहीं देखेंगे।" माही अपने ही में गुम थी।

    "बस दादा जी! मेरे से ये ड्रामा नहीं होगा। हमको माफ़ करें। आपको बहू चाहिए थी, तो लो, हमने ला दी। अब आप जानो। और ये जान लो, हमको बहुत काम है, तो हम चलते हैं। अक्षत, दादा जी का ख्याल रखना। और हाँ, एक बात ध्यान से सुनो—जो हमारे पीछे कोई कांड किए हो तुम या कोई और, तो हमसे बुरा कोई नहीं होगा, समझे?" अर्नव ने कहा और वहाँ से चला गया। राजू भी उसके पीछे निकल गया। वहीं माही बस वहाँ चुपचाप खड़ी थी।

    "उनसे बुरा कोई हो भी कैसे सकता है?" माही ने धीरे से कहा। वहीं, दादा जी माही को इशारे से अपने पास बुलाते हैं।

    "बेटा, कहीं तुम यहाँ आकर दुखी तो नहीं हो ना? देखो बेटा, हम जानते हैं कि हमारा पोता थोड़ा सख्त है, लेकिन अब तुम आ गई हो ना, तो बेटा, मेरे पोते को थोड़ा इंसान बना दो। उसे प्यार से दो-बोल बोलना सीखा दो।" दादा जी की बात माही के दिल को छू गई।

    "हम वचन देते हैं दादा जी, उनको जीना ज़रूर सिखा देंगे।" माही ने कहा। तो दादा जी की जान में जान आई। अब उनको यकीन था कि उनका पोता सही हाथों में है।

    "चलो बच्चों, अब कल महाशिवरात्रि है, तो उसकी तैयारियाँ शुरू करवाइए।" दादा जी ने कहा। तो सब हैरानी से दादा जी को देखने लगे।

    "क्या दादा जी? सच में कहीं आपका दिमाग तो नहीं खिसक गया?" अक्षत ने दादा जी की बात सुन सीधे उनके पास जाकर उनका टेंपरेचर चेक किया।

    "पागल! मुझे कुछ नहीं हुआ। दूर रह।" दादा जी ने अक्षत के हाथ पर एक जोर से हाथ मारा, तो अक्षत दूर हट गया।

    "लेकिन आप तो जानते हैं ना दादा जी, अर्नव पिछले पाँच सालों से महाशिवरात्रि पर कोई सेलिब्रेशन नहीं करता। यहाँ तक कि कभी मंदिर भी नहीं जाता। फिर इस साल क्या तैयारी करें हम?" अक्षत ने कहा। तो माही थोड़ी कंफ्यूज हो गई।

    "क्यों? वो पाँच साल से महाशिवरात्रि क्यों नहीं मनाते?" माही ने पूछा। तो सभी लड़के एक-दूसरे की तरफ देखने लगे। सब सोच रहे थे कि माही को बताकर कौन अपनी कुर्बानी देना चाहता है।

    मिलते हैं अगले एपिसोड में। आगे जानने के लिए बने रहिए मेरे, यानी KJ के साथ...

  • 7. Scam marriage - Chapter 7

    Words: 1126

    Estimated Reading Time: 7 min

    हेलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है, ठीक होंगे।

    अब तक हमने देखा...

    "बेटा, कहीं तुम यहाँ आकर दुखी तो नहीं हो ना? देखो बेटा, हम जानते हैं कि हमारा पोता थोड़ा सख्त है, लेकिन अब तुम आ गई हो ना, तो बेटा, मेरे पोते को थोड़ा इंसान बना दो। उसे प्यार से दो-बोल बोलना सीखा दो।" दादा जी की बात माही के दिल को छू गई।

    "हम वचन देते हैं दादा जी, उनको जीना ज़रूर सीखा देंगे।" माही ने कहा। तो दादा जी की जान में जान आई। अब उनको यकीन था कि उनका पोता सही हाथों में है।

    "चलो बच्चों, अब कल महाशिवरात्रि है, तो उसकी तैयारियाँ शुरू करवाइए।" दादा जी ने कहा। तो सब हैरानी से दादा जी को देखने लगे।

    "क्या दादा जी? सच में कहीं आपका दिमाग तो नहीं खिसक गया?" अक्षत ने दादा जी की बात सुनकर सीधे उनके पास जाकर उनका टेंपरेचर चेक किया।

    "पागल! मुझे कुछ नहीं हुआ। दूर रह।" दादा जी ने अक्षत के हाथ पर जोर से हाथ मारा, तो अक्षत दूर हट गया।

    "लेकिन आप तो जानते हैं ना दादा जी, अर्नव पिछले पाँच सालों से शिवरात्रि पर कोई सेलिब्रेशन नहीं करता। यहाँ तक कि कभी मंदिर भी नहीं जाता। फिर इस साल क्या तैयारी करें हम?" अभी ने कहा। तो माही थोड़ी कन्फ्यूज़ हो गई।

    "क्यों? वो पाँच साल से महाशिवरात्रि क्यों नहीं मनाते?" माही ने पूछा। तो सभी लड़के एक-दूसरे की तरफ देखने लगे। सब सोच रहे थे कि माही को बताकर कौन अपनी कुर्बानी देना चाहता है।

    अब आगे...

    "बेटा, दरअसल जिन लोगों की तरक्की बढ़ती है, साथ ही उन्हें दुश्मन भी मुफ्त में मिलते हैं। हमारे पोते के साथ भी वैसा ही हुआ। जितनी सीढ़ियाँ वो चढ़ता गया, उसके दुश्मन भी बढ़ते गए। आज से सात-आठ साल पहले शिवरात्रि के दिन अर्नव को एक लड़की मिली थी सड़क पर, बेहद खराब हालत में। अर्नव उसे घर ले आया। फिर उसने बताया कि उसका नाम मिताली है। वो एक अनाथ है और बैंक में जॉब करती है। कुछ गुंडे उसके पीछे पड़े थे। रात को अर्नव की कार जब उन गुंडों ने देखी, तो मिताली को वहीं छोड़ दिया। अर्नव ने उस लड़की की बहुत मदद की और वो लड़की भी अर्नव को एक भाई की तरह मानने लगी। उसे भले अर्नव दिखाता कि उसे मिताली से फर्क नहीं पड़ता, लेकिन मैं जानता हूँ बेटा, अपने पोते को। वो बाहर से कुछ और, अंदर से कुछ और है। बाहर से एक सख्त इंसान, लेकिन अंदर से एकदम नरम नारियल की तरह है वो।" कहते-कहते दादा जी की आवाज़ में नमी आ गई। माही उनके हाथ पर अपना हाथ रखती है।

    "पाँच साल पहले शिवरात्रि के ही दिन, जब अर्नव, मिताली और हम सब जब मंदिर जा रहे थे, तो कुछ दुश्मनों ने हम पर हमला कर दिया। हम सब तो बच गए, लेकिन मिताली... तब से अर्नव शिवरात्रि नहीं मनाता और वो नहीं मनाता, तो कोई नहीं मनाता।" दादा जी ने कहा। तो माही ने बाकी सब की तरफ देखा। सब उसे ही देख रहे थे, लेकिन उसे अभी का चेहरा कुछ अजीब लगा। खैर, उसे तो पहले से ही अभी कुछ अजीब लग रहा था।

    "हम बात करते हैं उनसे कल की पूजा के लिए।" माही ने कहा और बाहर चली गई।

    "दादू, भाभी को रोकिए, वरना शादी के दिन ही तलाक हो जाएगा।" अक्षत ने कहा, लेकिन दादा जी एकदम शांत लग रहे थे।

    "अरे दादा जी, बोलेंगे कुछ या ऐसे ही मुँह बंद रखेंगे?" डेविड ने कहा।

    "चिंता मत करो, अब उसे सीधा करने वाली आ गई है। मैंने माही की आँखों में देखा, उसकी आँखें साफ़ थीं और जो लोग आँखों से साफ़ होते हैं ना बेटा, वो किसी को भी झुका सकते हैं।" दादा जी ने कहा, तो अब कोई कुछ सवाल नहीं करता।

    "ठीक है, आप कहते हैं तो हम तैयारी करते हैं।" सेफ़ ने कहा और सेफ़, अभी और डेविड वहाँ से चले गए।

    "वैसे दादू, कल रात ना एक लड़की का मैसेज आया था। वो 8th वाली डेटिंग ऐप है ना, उस पर। सुबह बताना था, लेकिन ये सब हो गया, तो सोचा अभी बता दूँ।" अक्षत ने अपना फ़ोन दादू को दिखाते हुए कहा, जिसमें एक लड़की की प्रोफ़ाइल थी।

    "अरे, तो तब ही रात को बोलना चाहिए था ना! आ, इधर आ जल्दी और बता, कब मिलने को बुलाया है?" दादा जी ने अक्षत की बात सुनकर जल्दी से अपनी चादर हटाकर अक्षत को बैठने के लिए अपने पास बुलाया। वहीं अक्षत भी जल्दी से दादा जी के पास बैठ गया।

    वहीं दूसरी तरफ, माही कब से घर में इधर-उधर अर्नव को ढूँढ़ रही थी, लेकिन वो उसे मिल ही नहीं रहा था। तभी उसे राजू दिखा, जो शायद बाहर जा रहा था। माही दौड़ते हुए उस तरफ जाती है और राजू को आवाज़ देती है।

    "ओ किडनैपर भैया, रुको... ओ सुनो तो किडनैपर वाले भाई, सुनो।" राजू ने माही की आवाज़ सुनी, तो उस दिशा में देखने लगा। माही दौड़ते हुए आ रही थी। जमीन पर फिसलन के कारण वो सीधा जाकर नीचे फर्श पर गिरती है।

    "हे राम! हाय रे मेरी कमर टूट गई! ये सीन जिसने भी बनाया है ना, कि हीरोइन जब गिरती है तो हीरो उसे बचा लेता है। ये सब झूठ है। हम कैसे करेंगे उन पर? देख लेना ठाकुर जी।" माही खुद को संभालते हुए खड़ी हुई। वहीं राजू अब तक शॉक में बस आँखें फाड़े माही को घूर रहा था।

    "आप क्या देख रहे हो किडनैपर भैया? आप मदद नहीं कर सकते थे हमारी?" माही ने गुस्से से कहा, लेकिन वो गुस्से में भी बड़ी क्यूट लग रही थी।

    "कैसे बचाता? फिर सीन गलत हो जाता ना? क्योंकि आपका हीरो तो हमारा खून चूसने में है और भैया को सैया थोड़ी बनेगी। आप सही कहा ना?" राजू की बात सुन माही भी सोचने लगी, उसे भी ये ठीक लगा।

    "हाँ, बात में दम तो है। आप शक्ल से इंटेलिजेंट लगते नहीं हो, लेकिन मेरी तरह स्मार्ट हो।" माही ने कहा।

    "जी।" राजू ने कहा और जाने लगा।

    "लेकिन वो है कहाँ? हमें उनसे बात करनी है।" माही ने कहा, तो राजू पूछताछ करते हुए उसे देखने लगा।

    "भाभी जी, आप अभी अपने कमरे में जाइए। बॉस जैसे ही फ्री होते हैं, मैं उन्हें आपके पास भेजता हूँ।" राजू ने कहा और चला गया। वहीं माही भी पैर पटकते हुए वहाँ से चली गई।

    वहीं दादा जी का कमरा...

    "राज बीच रेस्टोरेंट बुलाया है, परसों सुबह 10 बजे।" अक्षत ने दादा जी को उस लड़की का मैसेज दिखाते हुए कहा।

    "हे... बीच? हमारे दिल्ली में बीच कहाँ से आ गया?" दादा जी ने सोचते हुए कहा।

    "अरे दादू, वो रेस्टोरेंट एक बीच के लुक की तरह होगा, इसलिए ऐसा नाम है। आप भी ना! यहीं बैठो, मैं जा रहा हूँ। भूख लगी है। देखता हूँ कुछ लंच बना भी है कि नहीं।" अक्षत ने कहा और वहाँ से चला गया। वहीं दादा जी आराम से लेट गए।

    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ........

  • 8. Scam marriage - Chapter 8

    Words: 1333

    Estimated Reading Time: 8 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है, सब ठीक होंगे।


    अब तक हमने देखा...


    "आप क्या देख रहे हो किडनैपर भैया? आप मदद नहीं कर सकते थे हमारी?" माही ने गुस्से से कहा, लेकिन वह गुस्से में भी बड़ी क्यूट लग रही थी।


    "कैसे बचाता? फिर सीन गलत हो जाता ना? क्योंकि आपका हीरो तो हमारा खून चूसने में है और भैया को सैया थोड़ी बनेगी। आप सही कहा ना?" राजू की बात सुन माही भी सोचने लगी। उसे भी यह ठीक लगा।


    "हाँ, बात में दम तो है। आप शक्ल से इंटेलिजेंट लगते नहीं हो, लेकिन मेरी तरह स्मार्ट हो।" माही ने कहा।


    "जी।" राजू ने कहा और जाने लगा।


    "लेकिन वो है कहाँ? हमें उनसे बात करनी है।" माही ने कहा तो राजू, मूड खराब देख उसे देखने लगा।


    "भाभी जी, आप अभी अपने कमरे में जाइए। बॉस जैसे ही फ़्री होते हैं, मैं उन्हें आपके पास भेजता हूँ।" राजू ने कहा और चला गया। वहीं माही भी पैर पटकते हुए वहाँ से चली गई।


    वहीं दादा जी का कमरा,


    "राज बीच रेस्टोरेंट बुलाया है, परसों सुबह 10 बजे।" अक्षत ने दादा जी को उस लड़की का मैसेज दिखाते हुए कहा।


    "हे... बीच? हमारे दिल्ली में बीच कहाँ से आ गया?" दादा जी ने सोचते हुए कहा।


    "अरे दादू, वो रेस्टोरेंट एक बीच के लुक की तरह होगा, इसलिए ऐसा नाम है। आप भी ना! यहीं बैठो, मैं जा रहा हूँ। भूख लगी है। देखता हूँ कुछ लंच बना भी है कि नहीं।" अक्षत ने कहा और वहाँ से चला गया। वहीं दादा जी आराम से लेट गए।


    अब आगे...


    अक्षत किचन में गया तो देखा कि माही किचन में खाना बना रही थी। अक्षत भी उसके पास जाकर किचन में स्टैंड पर बैठ गया।


    "क्या भाभी? आपने आते ही मेरे लिए खाना बनाना शुरू कर दिया?" अक्षत की बात सुनकर माही उसकी तरफ़ गुस्से से देखती है।


    "जब भी मुझे गुस्सा आता है, मैं खाना बनाने लग जाती हूँ।" माही कभी इधर तो कभी उधर भाग रही थी।


    "हे... ये कैसा गुस्सा है? खैर, भाभी आप ये बताओ कि खाने में क्या बनाया है आपने?" अक्षत ने खुशबू सूंघते हुए कहा।


    "आपको खाने की पड़ी है देवर जी? आपको पता भी है मैं कितने गुस्से में हूँ, हाँ?" माही ने अपनी करछी दिखाते हुए कहा तो अक्षत थोड़ा पीछे हो गया।


    "शांत शांत भाभी! आप बताइए, आपको गुस्सा किसने दिलाया? मैं उसे छोड़ूँगा नहीं।" अक्षत ने स्टैंड से नीचे उतरते हुए कहा।


    "तुम्हारे भैया ने दिलाया। जाओ अब जाकर पकड़ो उसे, फिर छोड़ने की बातें करना।" माही ने गुस्से से कहा। माही की बात सुनकर अक्षत की हवा तुरंत फूँस हो गई। अक्षत के गले से आवाज ही नहीं निकल रही थी।


    "क्या हुआ? बोलिए ना! अब क्या हुआ? बोलती बंद हो गई? अरे ऐसा भी क्या काम करते हैं आपके भैया जो जब चाहा घर आए, जब चाहा चले गए? ना ही उनका कोई ठिकाना है और ना ही कोई ऑफिस पता! तो करते हैं तो करते क्या हैं?" माही ने कहा, लेकिन अक्षत के मुँह से एक चूँ तक नहीं निकली और वह धीरे-धीरे अपनी बत्तीसी दिखाकर वहाँ से खिसकने लगा। वहीं माही उसे जाते हुए देख और गुस्सा हो गई।


    दोपहर को माही ने लंच दादा जी के कमरे में भिजवा दिया। सभी सर्वेंट को अब पता था कि माही इस घर की अब मालकिन है, इसलिए सब उसकी बात अच्छे से मान रहे थे। वहीं माही भी खुशी-खुशी दादा जी का ख्याल रख रही थी।


    बाकी सभी डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाने का इंतज़ार कर रहे थे, क्योंकि आज खाना उनकी भाभी ने बनाया था। वरना रोज़-रोज़ गिरजू काका के हाथ का खाना खाते-खाते सब बेहद बोर हो चुके थे, इसीलिए सभी एक्साइटेड थे खाना खाने के लिए।


    "भाभी, लाइए जल्दी खाना लाइए।" डेविड ने चिल्लाते हुए कहा, लेकिन अभी अक्षत बड़ा चुप सा था।


    "ओए, तुझे क्या हुआ? ऐसे चुप कैसे है तू? सुबह तो बड़ा उछल रहा था कि भाभी के हाथों का खाना खाना है। अब क्या हुआ? ऐसे भीगी बिल्ली क्यों बना हुआ है?" डेविड ने अक्षत को चुप देखकर कहा।


    "चुप रह भाई! मैंने सुना है गुस्से से बना हुआ खाना कभी अच्छा नहीं बनता और भाभी तो भाई से भयंकर गुस्सा थी। तो बताओ कैसे खाऊँ ये टेस्टी दिखने वाला खतरनाक खाना? अपनी ज़िंदगी में रिस्क उठाकर।" अक्षत ने कहा तो डेविड के चेहरे पर भी बारह बज गए।


    "लीजिए, अब सब खाना शुरू कीजिए।" माही ने सबको खाना परोसने के बाद कहा, लेकिन डेविड और अक्षत नहीं खाते। सेफ़ और अभी ने खाना शुरू कर दिया। अर्नव और राजू भी तक घर नहीं आए थे और चंदू भी उनके साथ ही गया था, तो बस साथ खाने वाले ये चार लोग ही थे।


    "अरे देवर जी, आप दोनों क्यों नहीं खा रहे?" माही ने अक्षत की तरफ़ देखकर पूछा।


    "अरे भाभी, आप खड़ी हो तो हम कैसे खा सकते हैं? आप भी बैठकर खाइए।" अक्षत ने मुस्कुराकर कहा। वहीं सेफ़ और अभी एक-दूसरे की तरफ़ देखते हैं कि आखिर उन दोनों को क्या हुआ।


    "मुझे तो लग रही है भूख में चला ये पनीर मसाला खाने।" सेफ़ ने कहा और खाना शुरू किया। अभी भी चुपचाप बस खाए जा रहा था।


    उन दोनों को खाते देख पहले डेविड और अक्षत एक-दूसरे की तरफ़ देखते हैं, फिर दोनों जल्दी से खाने लगते हैं। उनको ऐसे जानवरों की तरह खाते देख माही हैरान हो जाती है।


    "क्या हुआ देवर जी? आप तो बड़े जल्दी पलट गए। अभी तो बोल रहे थे कि भाभी आपने नहीं खाया तो मैं कैसे खाऊँ? अब क्या हुआ?" माही ने कहा, लेकिन वहाँ अब उसकी कौन सुनने वाला था? सभी खाने में लगे थे।


    कुछ देर बाद सब खाना खाकर अपनी-अपनी जगह से उठने लगते हैं।


    "वाह... भाभी क्या खाना बनाया है! इससे अच्छा खाना मैंने कभी नहीं खाया। क्या टेस्ट है खाने का, बढ़िया।" सेफ़ ने आराम से सोफ़े पर बैठते हुए कहा।


    "अरे हाँ भाई! मेरी उंगलियों से तो अभी तक खाने की खुशबू आ रही है।" डेविड ने सोफ़े पर गिरते हुए कहा।


    "अरे भाभी, आप क्या देख रही हो? आप भी खा लो खाना।" अक्षत ने अंगड़ाई लेते हुए कहा।


    माही ने एक नज़र डाइनिंग टेबल पर डाली। सारे के सारे बर्तन खाली थे। किसी भी बर्तन में एक भी दाना बचा हुआ नहीं था। सब का सब चारों मिलकर खा गए। माही का चेहरा अभी देखने लायक था। उसके चेहरे पर जो गुस्सा था उसे बयान कर पाना बेहद मुश्किल था।


    माही ने डाइनिंग टेबल पर रखे बर्तन उठाए और जो हाथ में आता उसे फेंकने लगी। कभी इधर तो कभी उधर बर्तन उड़ रहे थे। वहीं अभी चुपके से हॉल से बाहर चला जाता है। वहीं सेफ़, डेविड और अक्षत एक-दूसरे को आगे कर रहे थे और खुद को बचाने की कोशिश में थे।


    "क्या है इसमें जो मैं खाऊँ? बेशर्म! सब राक्षस हो राक्षस! सब खा गए! कितने जन्म के भूखे हो? खाना नहीं खाया था क्या कभी?" माही ने गुस्से से कहा। वहीं सेफ़, डेविड और अक्षत एक-दूसरे को आगे कर रहे थे और खुद को बचाने की कोशिश कर रहे थे।


    "अरे भाभी, रुको! बच्चों की जान लोगी क्या? छोड़ दो भाभी..." अक्षत चिल्लाकर बेचारा अपनी जान की भीख माँग रहा था, लेकिन माही तब तक उन पर जानलेवा हमला करती रही जब तक कि डाइनिंग टेबल पर रखे सारे बर्तन खत्म नहीं हो गए। अब माही को खाना बनाने का बिल्कुल मन नहीं था, इसलिए वह वहाँ से चली जाती है और जिस कमरे में अर्नव उसे लाया था उस कमरे में जाकर सो जाती है।


    "थैंक गॉड! आज तो बाल-बाल बचे।" डेविड ने आराम से सोफ़े पर पसरते हुए कहा।


    "हाँ भाई, सही कहा! लेकिन यार अब भाभी क्या खाएगी?" अक्षत ने भी सोफ़े पर गिरते हुए कहा।


    "अरे यार, जब भाभी इतना खाना बना सकती है तो खुद के लिए कुछ तो बना ही सकती है। अभी गुस्से में है, जब बाद में शांत हो जाएगी तो खुद ही बनाकर खा लेगी। डोंट वरी।" सेफ़ ने भी आराम से बैठते हुए कहा।


    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ...

  • 9. Scam marriage - Chapter 9

    Words: 1209

    Estimated Reading Time: 8 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है सब ठीक होंगे।

    अब तक हमने देखा...

    “क्या है इसमें जो मैं खाऊँ? बेशर्म! सब राक्षस हो, राक्षस! सब खा गए। कितने जन्म के भूखे हो? खाना नहीं खाया था क्या कभी?” माही ने गुस्से से कहा। वहीं सेफ, डेविड और अक्षत एक-दूसरे को आगे कर रहे थे और खुद को बचाने की कोशिश कर रहे थे।

    “अरे भाभी, रुको! बच्चे की जान लोगी क्या? छोड़ दो भाभी…” अक्षत चिल्लाकर बेचारा अपनी जान की भीख मांग रहा था। लेकिन माही तब तक उन पर जानलेवा हमला करती रही जब तक कि डाइनिंग टेबल पर रखे सारे बर्तन खत्म नहीं हो गए। अब माही को खाना बनाने का बिल्कुल मन नहीं था, इसलिए वह वहाँ से चली गई और जिस कमरे में अर्नव उसे लाया था, उस कमरे में जाकर सो गई।

    “थैंक गॉड! आज तो बाल-बाल बचे।” डेविड ने आराम से सोफ़े पर पसरते हुए कहा।

    “हाँ भाई, सही कहा। लेकिन यार, अब भाभी क्या खाएगी?” अक्षत ने भी सोफ़े पर गिरते हुए कहा।

    “अरे यार, जब भाभी इतना खाना बना सकती है तो खुद के लिए कुछ तो बना ही सकती है। अभी गुस्से में है, जब बाद में शांत हो जाएगी तो खुद ही बनाकर खा लेगी। डोंट वरी।” सेफ ने भी आराम से बैठते हुए कहा।

    अब आगे…

    श्याम का वक्त था।

    अर्नव जब घर आया तो देखा कि घर सजा हुआ था। अर्नव को समझ नहीं आया कि यह सब सजावट किस खुशी में की गई है। अर्नव अपने कमरे की तरफ गया और जाकर सीधे अपना ब्लेज़र उतारने लगा। वहीं माही, जो कि बेड पर लेटी हुई थी, वह यह देखकर बेड पर बैठ गई। तभी अर्नव, बिना माही की तरफ देखे, अपना शर्ट भी निकालने लगा। तभी माही की चीख निकल गई।

    “नहीं…!”

    माही की चीख सुनकर अर्नव भी डर गया कि यह उसके कमरे में कोई लड़की कहाँ से आ गई, जबकि वह यह भूल चुका था कि उसने आज ही माही से शादी की है।

    “तुम… तुम चिल्ला क्यों रही हो? पागल हो गई हो क्या?” अर्नव ने गुस्से से कहा।

    “तो चिल्लाऊँ नहीं? तो क्या आरती उतारू आपकी? आप और आपके भाई, दोस्त सब एक जैसे हैं। एक सोने नहीं देते शांति से और दूसरे खाने नहीं देते।” यह माही का गुस्सा नहीं, माही की भूख बोल रही थी।

    “क्या मतलब? खाने नहीं देते? सोने नहीं देते?” अर्नव ने अपनी आइब्रो चढ़ा ली।

    “मुझे कुछ नहीं कहना। खाने के टाइम खुद ही देख लेना। जा रही हूँ मैं खाना बनाने।” माही ने कहा और ब्लेन्केट हटाकर जाने लगी। तभी उसे याद आया कि उसे अर्नव से ही बात करनी थी।

    “वो… मुझे आपसे बात करनी है।” माही ने पलटकर कहा।

    “बोलो।” अर्नव ने बिना उसकी तरफ देखे कहा।

    “कल हम महाशिवरात्रि के लिए मंदिर जा सकते हैं।” जैसे ही माही के मुँह से यह बात निकली, अर्नव का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने तुरंत माही की तरफ अपनी जलती निगाहों से देखा।

    “तुम एक कॉन्ट्रैक्टेड वाइफ हो, रियल की पत्नी बनने की ज़्यादा कोशिश ना करो, समझी?” अर्नव ने गुस्से से माही का हाथ पकड़कर कहा। उसके हाथों की पकड़ माही के हाथ पर कसी हुई थी। माही की आँखों में दर्द की वजह से आँसू आ गए।

    “आज यह बात बोल दी, लेकिन ज़िंदगी में दोबारा कभी यह गलती मत करना, वरना कहीं बोलने लायक नहीं बचोगी, समझी?” अर्नव ने कहा और माही का हाथ झटककर बाहर चला गया। वहीं माही ने कल से कुछ नहीं खाया था। ऊपर से आज का हंगामा सब हो गया, मिक्स एंड मैच, और माही वहीं नीचे गिरकर बेहोश हो गई।

    ऐसे ही रात हो गई। रात को जब माही नीचे खाना बनाने नहीं आई तो गिरजू काका ने रोज़ की तरह खाना बना दिया। वहीं सेफ, डेविड और अक्षत तो फुल मस्ती के साथ महाशिवरात्रि की तैयारी में लगे थे, बाहर पीछे वाले गार्डन में।

    अर्नव नीचे के स्टडी रूम में गया। वहाँ उसे अभी भी दिखा…

    “तुमने कुछ ज़्यादा ही जल्दबाज़ी कर दी उस लड़की को लाने में। दादा जी की धमकी नहीं सुननी चाहिए थी तुझे।” अभी ने बिना अर्नव की तरफ देखे कहा।

    “तू भूल रहा है अभी! अर्नव कोई भी चीज़ बिना सोचे समझे नहीं करता। तुझे क्या लगा कि मैं दादा जी की झूठी बीमारी के ड्रामे को पकड़ नहीं पाऊँगा? अर्नव जो उड़ते हुए बाज़ से उसका शिकार तक छीन ले, फिर यह तो दादा जी हैं। वो तो मैं जानना चाह रहा हूँ, वो लड़की का मकसद आखिर क्या है? क्योंकि ऐसे ही अचानक यह सब होना कोई मामूली बात नहीं थी, समझा?” अर्नव ने कहा तो अभी बिना कुछ बोले वहाँ से चला गया।

    कुछ देर बाद सभी डाइनिंग टेबल पर इकट्ठे हो गए। अभी दादा जी भी मौजूद थे, लेकिन माही और अर्नव नहीं दिख रहे थे।

    “अक्षत, माही बेटी और अर्नव कहाँ हैं?” दादा जी ने अपनी चेयर पर बैठते हुए कहा।

    “पता नहीं दादू, रुको मैं देखकर आता हूँ।” अभी अक्षत ने कहा ही था कि अर्नव अपने स्टडी रूम से निकला और अपनी चेयर पर दादा जी के सामने बैठ गया।

    “अर्नव, माही कहाँ है?” दादा जी का सवाल सुनकर अब सब अर्नव की तरफ देखने लगे।

    “मुझे क्या पता? मैं उसके पीछे थोड़ी घूमता हूँ। होगी यहीं कहीं।” अर्नव ने कहा तो दादा जी का चेहरा सख्त हो गया।

    “भूलो मत अर्नव कि माही अब तुम्हारी पत्नी है, तुम ऐसे कैसे बोल सकते हो?” दादा जी ने कहा।

    “जाओ अक्षत, तुम देखो कहाँ है माही?” दादा जी ने कहा तो अक्षत सबसे पहले अर्नव के रूम की तरफ गया। उसकी नज़र सीधे बेहोश माही पर गई। वह माही को उठाकर बेड पर लेटाता है और सबको आवाज़ लगाता है।

    “दादू, भाई, सब आओ जल्दी ऊपर! भाभी बेहोश हो गई है…” अक्षत ने चिल्लाकर कहा तो सेफ, डेविड और दादा जी टूट सीढ़ियों की तरफ दौड़े। अभी भी खड़ा हो जाता है, लेकिन अर्नव को ऐसे सोया देख उसे भी चलने का इशारा करता है।

    “नहीं, तुम ही जाओ। हमको ऐसे नाटक में कोई रुचि नहीं है।” अर्नव ने कहा और अपनी थाली में खाना लेने लगा।

    “चलो कम से कम दादा जी के लिए ही सही।” अभी ने कहा तो अर्नव खड़ा हुआ। तब तक डेविड डॉक्टर को बुला चुका था।

    कुछ देर बाद डॉक्टर आए और माही को चेक किया।

    “लग रहा है, इनको दो-तीन दिन से कुछ खाया नहीं है और इनकी बॉडी पर ज़ख्म भी हैं, जगह-जगह पर। यह मारपीट का मामला है और टेंशन, कमज़ोरी की वजह से बेहोश हो गई हैं। इनका ख्याल रखिएगा। आप खाना और दवाई टाइम पर दीजिए, ये वरना आगे चलकर प्रॉब्लम हो सकती है।” डॉक्टर ने कहा तो अर्नव ने माही की तरफ देखा। उसे पता था यह डॉक्टर झूठा नहीं हो सकता, क्योंकि यह उनका फ़ैमिली डॉक्टर था। तो क्या माही सच में एक बेचारी, भोली-भाली लड़की है या फिर जो अर्नव सोच रहा था वही सही है? अर्नव सोच में पड़ गया।

    “अर्नव, तूने बहु से कुछ कहा था?” दादा जी ने पूछा।

    “वो मुझसे शिवरात्रि के बारे में पूछने आई थी, तो मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया।” अर्नव ने कहा तो दादा जी समझ गए कि आखिर क्या हुआ होगा।

    “हमें शर्म आती है तुम्हें अपना पोता कहते हुए। आखिर तुम एक लड़की के साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर सकते हो?” दादा जी ने कहा और चले गए वहाँ से।

    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी kj के साथ…

  • 10. Scam marriage - Chapter 10

    Words: 1081

    Estimated Reading Time: 7 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है सब ठीक होंगे।

    अब तक हमने देखा...

    "चलो कम से कम दादा जी के लिए ही सही।" अभी ने कहा। अर्नव खड़ा हुआ। तब तक डेविड डॉक्टर को बुला चुका था।

    कुछ देर बाद डॉक्टर आए और माही को चेक किया।

    "लग रहा है, इनको दो-तीन दिन से कुछ खाया नहीं है। और इनकी बॉडी पर जख्म भी हैं, जगह-जगह पर। ये मारपीट का मामला है और टेंशन, कमजोरी की वजह से बेहोश हो गई हैं। इनका ख्याल रखिएगा। आप खाना और दवाई टाइम पर दीजिए, वरना आगे चलकर प्रॉब्लम हो सकती है।" डॉक्टर ने कहा। अर्नव ने माही की तरफ देखा। उसे पता था, ये डॉक्टर झूठा नहीं हो सकता, क्योंकि ये उनका फ़ैमिली डॉक्टर था। तो क्या माही सच में एक बेचारी, भोली-भाली लड़की है? या फिर जो अर्नव सोच रहा था, वही सही है? अर्नव सोच में पड़ गया।

    "अर्नव, तूने बहू से कुछ कहा था?" दादा जी ने पूछा।

    "वो मुझसे शिवरात्रि के बारे में पूछने आई थी, तो मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया।" अर्नव ने कहा। तो दादा जी समझ गए कि आखिर क्या हुआ होगा।

    "हमें शर्म आती है तुम्हारे लिए। तुम एक लड़की के साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर सकते हो?" दादा जी ने कहा और वहाँ से चले गए।

    अब आगे...

    "आज खाना नहीं बना क्या घर में?" अर्नव ने सभी लड़कों की तरफ देखकर कहा।

    "बना तो था, लेकिन हम सब खा गए।" डेविड ने पीछे जाते हुए कहा।

    "क्या? मतलब तुम लोग सारा खाना खा गए? अबे! कभी पहले खाना खिलाया नहीं था हमने तुमको, जो हमारी नाक कटवा दी, बुड़बक!" अर्नव ने गुस्से से कहा। तो सभी वहाँ से भाग गए।

    "सॉरी भाई, लेकिन आगे से मैं वादा करता हूँ, पक्का भाभी का ख्याल रखूँगा।" अक्षत ने सर झुकाकर कहा और चला गया। वहीं अर्नव बेड पर सोई माही को देखता है। फिर नीचे चला जाता है। रात का खाना कोई नहीं खाता, यहाँ तक कि दादा जी भी नहीं। सभी अपने-अपने कमरे में सोने चले जाते हैं, क्योंकि माही के बेहोश होने की वजह सभी खुद को ही समझ रहे थे।

    "गिरजू काका, एक प्लेट में खाना डालिए।" अर्नव की बात सुन गिरजू काका को थोड़ा अजीब लगा, लेकिन वह फिर भी एक प्लेट में चावल, सब्जी और रोटी रख देता है।

    अर्नव खाना लेकर ऊपर जाता है। अपने कमरे में आकर वो देखता है, माही बैठी हुई कहीं और ही गुम थी।

    "इसे इतनी जल्दी होश आ गया? लगता है, वो डॉक्टर सही कह रहा था। या ये भी हो सकता है, ऐसे लोगों पर जल्दी असर होता होगा।" अर्नव खुद से बातें करते हुए माही के पास पहुँच गया, लेकिन माही का ध्यान उस पर नहीं था, वो कहीं और ही देख रही थी।

    "क्या हुआ? ऐसे पंखे को क्या घूर रही हो?" अर्नव ने उसी दिशा में देखा, जिस दिशा में माही देख रही थी।

    "ह... कुछ नहीं। आप यहाँ क्या कर रहे हो?" माही ऐसे अचानक अर्नव के बोलने से डरकर थोड़ा पीछे हो गई।

    "चलो, ये खाना खा लो। डॉक्टर ने कहा है कि तुमको दवाई भी लेनी है।" अर्नव ने कहा, लेकिन माही बिना खाना देखे ही वापस बेड पर लेट गई।

    "क्या बहरी हो तुम? जो मेरी बात एक बार में सुनाई नहीं देती है। खा लो खाना चुपचाप।" अर्नव ने गुस्से से कहा।

    "हम तब तक नहीं खाएँगे, जब तक आप हमें महाशिवरात्रि की पूजा के लिए परमिशन नहीं देते।" माही ने जिद करते हुए कहा। और वो नहीं चाहता था कि माही की तबियत खराब हो और दादा जी उस पर और नाराज़ हो जाएँ, इसलिए अर्नव माही की बात मान लेता है।

    "ठीक है, मैं तैयार हूँ। कल पूजा के लिए हम सब महाकाल के मंदिर जाएँगे। अब खा लो खाना।" अर्नव ने जैसे ही कहा, माही तुरंत खड़ी हो गई और प्लेट अर्नव के हाथ से छीन ली। वहीं अर्नव बस हैरानी से माही को देख रहा था। कैसी लड़की है ये!

    "आपने कुछ खाया?" माही ने खाते हुए अर्नव को देखकर कहा।

    "नहीं, भूख नहीं है मुझे।" अर्नव ने कहा और सोने के लिए सोफ़े पर जाने लगा, लेकिन माही ने उसका हाथ पकड़ लिया। तो अर्नव उसे गुस्से से देखने लगा।

    "हाथ छोड़ो मेरा।" अर्नव की गुस्से भरी आवाज सुन माही ने तुरंत अर्नव का हाथ छोड़ दिया।

    "बिना खाना खाये नहीं सोते। थोड़ा सा खा लीजिए।" माही ने जितने प्यार और मासूमियत से कहा था, अर्नव मना नहीं कर पाया और प्लेट में से एक बाइट लेने के लिए जैसे ही हाथ आगे बढ़ाया, माही अपनी प्लेट को खिसका लेती है। तो अर्नव उसे घूर के देखता है।

    "आप दूसरी प्लेट से लीजिए ना, मेरी प्लेट से क्यों?" माही ने कहा, तो अर्नव उसे और गौर से घूरने लगा।

    "अरे, मतलब ये झूठा है मेरा, इसलिए कहा।" माही से तंग आकर अब अर्नव सोने सोफ़े पर चला जाता है। उसे ऐसे जाता देख अब माही को अच्छा नहीं लगता।

    जैसे ही अर्नव अपना सोफ़ा सेट करके जैसे ही पलटकर देखा, उसने तुरंत माही का गला पकड़ लिया। जैसे ही उसने देखा कि ये माही है, उसने तुरंत माही को छोड़ दिया।

    "ये ये ये ये ये...ये क्या कर रहे थे आप?" माही ने प्लेट सोफ़े के पास रखे टेबल पर रखकर कहा।

    "तो तुमको कौन बोले थे हमारे पीछे आकर खड़ी हो गई? तुमको दूर रहना चाहिए ना। अब हमारे पीछे ऐसे आओगी तो क्या हम तुम्हारी आरती उतारेंगे? नहीं ना।" अर्नव ने गुस्से से कहा, तो माही डरकर सोफ़े पर बैठ गई।

    "हाँ, ठीक है, आरती मत उतारिए, लेकिन गला कौन पकड़ता है ऐसे?" माही ने कहा, लेकिन अर्नव बस माही को घूर रहा था।

    "हटो, निकलो यहाँ से। हमें सोने दो।" अर्नव ने कहा, तो माही जल्दी से प्लेट उठा लेती है और अपने हाथों से एक निवाला अर्नव के आगे कर देती है। अर्नव एक पल के लिए तो बस माही को देखता ही रह जाता है।

    "खा लीजिए।" माही ने कहा, तो अर्नव एक बाइट खाता है। ये एहसास कुछ अलग था, मानो आज चाँद सितारे सब आज एक हो गए हों। आज तक अर्नव ने कभी ऐसा नहीं सोचा था कि कभी उसकी ज़िंदगी में कोई ऐसी लड़की आएगी जो उसका ऐसे ख्याल रखेगी।

    मानो माही और अर्नव के दिल में एक मीठी धुन सी बज रही थी।

    "तेरी नज़र ने ये क्या कर दिया मुझसे ही मुझको जुड़ा कर दिया,
    मैं रहता हूँ तेरे पास कहीं, हाँ मुझको मेरा एहसास नहीं,
    हाँ कहता हूँ कैसे कि थोड़ा-थोड़ा प्यार हुआ तुमसे,
    कि थोड़ा इकरार हुआ तुमसे, कि ज़्यादा भी होगा तुमसे ही,
    कि थोड़ा-थोड़ा प्यार हुआ..."

    आगे जानने के लिए बने रहिए मेरे यानी kj के साथ...

  • 11. Scam marriage - Chapter 11

    Words: 1435

    Estimated Reading Time: 9 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है सब ठीक होंगे।

    अब तक हमने देखा…

    "खा लीजिए।" माही ने कहा। अर्नव ने एक बाइट खाया। यह एहसास कुछ अलग था, मानो आज चाँद-सितारे सब एक हो गए हों। आज तक अर्नव ने कभी ऐसा नहीं सोचा था कि उसकी ज़िंदगी में कोई ऐसी लड़की आएगी जो उसका ऐसे ख्याल रखेगी।

    मानो माही और अर्नव के दिल में एक मीठी धुन सी बज रही थी।

    "तेरी नज़र ने ये क्या कर दिया मुझसे ही मुझको जुड़ा कर दिया,
    मे रहता हूँ तेरे पास कहीं, हा मुझको मेरा एहसास नहीं,
    हा कहता हूँ कैसे कि थोड़ा-थोड़ा प्यार हुआ तुमसे,
    कि थोड़ा इकरार हुआ तुमसे, कि ज़्यादा भी होगा तुम ही से,
    कि थोड़ा-थोड़ा प्यार हुआ…"

    आगे जानने के लिए बने रहिए मेरे यानी KJ के साथ…

    अब आगे…

    अर्नव एक बाइट लेने के बाद वॉशरूम चला गया। वहीं माही अपना खाना खत्म कर बिस्तर पर आराम से लेट गई। अर्नव जब वॉशरूम से बाहर आया, माही कुछ सोच रही थी। अर्नव जाकर सोफ़े पर बैठकर ब्लेन्केट और पिलो ठीक करने लगा।

    "सुनिए, एक सवाल करूँ आपसे?" माही ने डरते हुए कहा क्योंकि अर्नव को छेड़ना अभी रात के वक्त उसे सही नहीं लग रहा था।

    "हाँ, पूछो। हमारी फ़र्स्ट नाइट है ना, तो इसे अपना गिफ़्ट समझ लेना।" अर्नव ने कहा। तो माही का मुँह बिगड़ गया।

    "ये आपने अपना बंगला इस बस्ती के बीच क्यों बनाया है? यहाँ तो सब ग़रीब लोग रहते हैं, झोपड़ी वाले?" माही के मन में जो सवाल था, वो तो आधी दुनिया के मन में था।

    "क्या तुम चाहती हो कि मेरी नींद उड़ जाए और फिर मैं फ़र्स्ट नाइट सेलिब्रेट करूँ?" अर्नव के इशारे को समझकर माही जल्दी से सो गई। कुछ ही देर में माही सो चुकी थी, लेकिन अर्नव को कहीं नींद नहीं आ रही थी।

    "वैसे तो बड़ी पतिव्रता पत्नी बनती फिरती है, लेकिन ये नहीं सोचा कि मैं इस सोफ़े पर कैसे सो पाऊँगा।" अर्नव चिढ़ रहा था क्योंकि सोफ़ा उसकी हाइट के हिसाब से छोटा था। अब अर्नव बाबू को अपनी हीरोगिरी पर गुस्सा आ रहा था कि आखिर क्यों वह सोफ़े पर सोने आया? रूम तो उसका है ना, लेकिन आराम से माही सो रही है। क्या ज़ुल्म है ये!

    अगली सुबह 4 बजे,

    माही की नींद सुबह 4 बजे खुल गई। घड़ी में देखा कि 4 बज रहे हैं। तो वह उठकर सबसे पहले अपने गले में पहने लॉकेट को माथे से लगाया और उठकर अर्नव को देखा जिसके पैर सोफ़े से बाहर निकल रहे थे, हाथ नीचे फर्श को छू रहे थे और ब्लेन्केट उसका कहीं और ही झूल रहा था।

    "हाय… सोते हुए कितने प्यारे लग रहे हैं, लेकिन जैसे ही उठेंगे वैसे ही इनकी खटर-पटर शुरू।" माही ने अर्नव को देखा जो सोते हुए सच में बहुत प्यारा लग रहा था। माही ने अर्नव का ब्लेन्केट उठाने की कोशिश की, लेकिन वह ब्लेन्केट अर्नव के नीचे दबा हुआ था। इसलिए माही ने अपना ब्लेन्केट उठाया और अर्नव को ओढ़ा दिया।

    माही अब नहाने चली गई। लेकिन नहाने के बाद उसके पास पहनने के लिए कुछ नहीं था, तो वह वही कपड़े वापस पहन लेती है। फिर बाहर आकर उसने अपने बाल सुखाए और अर्नव को जगाने के लिए सोफ़े के पास गई।

    "सुनिए, सुनिए ना! अब उठ जाइए, सुबह हो गई।" माही ने अर्नव को उठाया। तो अर्नव अपनी नींद भरी नज़रों से माही को देखने लगा। खुले भीगे बालों के साथ वह प्यारी सी मुस्कान बेहद प्यारी लग रही थी। अर्नव एक पल के लिए माही के चेहरे में ही खो गया।

    "कितने बज रहे हैं जो अभी तुम मुझे जगा रही हो? मंदिर तो हमें 9 बजे जाना है ना।" अर्नव ने बाहर खिड़की से अंधेरा देखकर कहा। फिर उसने घड़ी में देखा तो अभी बस साढ़े पाँच बज रहे थे।

    "अरे तो नहाने में वक़्त तो लगेगा ना सबको, इसलिए अभी ही आप भी उठ जाइए और नहा लीजिए।" माही ने कहा। वहीं अर्नव को समझ ही नहीं आ रहा था कि यह कौन सी मुसीबत आ गई है उस पर माही नाम की जो उसके ऊपर से उतरने का नाम ही नहीं ले रही थी।

    "तो तुम तो नहा लो, हमें क्यों परेशान कर रही हो?" अर्नव ने गुस्से से कहा और माही का ओढ़ाया ब्लेन्केट नीचे फेंक दिया। माही को यह बात बहुत बुरी लगी।

    "नहा लिया मैंने, उसके बाद ही आपको उठा रही हूँ।" माही ने उदास मन से कहा।

    "तो ये कपड़े क्यों पहन रखे हैं?" अर्नव को हैरानी थी इस बात से कि आखिर नहाने के बाद भी माही ने उसके पुराने कपड़े क्यों पहने हैं।

    "आपके स्टाफ़ ने मुझे पैकिंग का मौका नहीं दिया, इसलिए ऐसे कपड़े शौक से पहन रही हूँ।" माही का ताना अर्नव को समझ तो आ रहा था, लेकिन उसका चेहरा गुस्से से लाल था।

    "एक बार अपनी जुबान चलाना बंद करो और अलमारी खोलो जाओ।" अर्नव ने गुस्से से कहा। तो माही जल्दी से अलमारी खोलती है तो उनकी आँखें हैरानी से बाहर निकल आती हैं। अलमारी में बहुत सारी साड़ी, सलवार, इंडियन, वेस्टर्न हर तरीके के कपड़े थे, साथ ही उनसे मैचिंग शूज़ और सैंडल के साथ पर्स भी रखे थे। ये सब देख मानो माही अभी बेहोश ही होने वाली थी।

    "अब देखती रहोगी या फिर तैयार भी होने जाओगी? और खबरदार जो मुझे उठाने की कोशिश की! " अर्नव ने कहा और सोने चला गया। कुछ देर बाद माही तैयार होकर आई और फिर से बेड के पास गई। अब अर्नव बेड पर सो चुका था।

    "सुनिए ना, अर्नव जी सुनिए तो।" माही ने फिर से सोते हुए शेर को जगाने की कोशिश की। वहीं अब अर्नव का गुस्सा आगे बढ़ रहा था। तभी उसकी नज़र माही पर पड़ी, वह खामोश हो गया।

    "वो ये दरवाज़ा नहीं खुल रहा, खोल दीजिए ना।" माही ने कहा। तो अर्नव ने उससे अपनी नज़रें फेर लीं और माही को दरवाज़ा खोल दिया। जैसे ही माही कमरे के बाहर निकली, अर्नव ने दरवाज़ा इतने जोर से बंद किया कि बाहर कॉरिडोर में जा रही माही डर गई।

    माही पूरे घर में अपनी नज़र घुमाती है और फिर किचन में चली जाती है। कुछ भोग और व्रत का खाना बनाने के बाद प्रसाद बनाती है। अभी सब आराम से सो रहे थे क्योंकि इस घर में कभी कोई 8 बजे से पहले नहीं जगता था जब तक कोई काम ना हो। अक्षत भी अपने कमरे में आराम से सो रहा था, तभी उसके दरवाज़े पर किसी ने जोर-जोर से खटखटाया। दरवाज़े के ऐसे अचानक खटखटाने से अक्षत बेड से गिर गया।

    "किसकी शामत आई है?" अक्षत अपनी आँखें मसलते हुए कहा और आस-पास देखने लगा।

    "कहीं कोई दुश्मन…?" अक्षत ने खुद ही सोचकर ड्रॉअर से अपनी गन निकाली और दरवाज़े की तरफ़ जाने लगा। धीरे-धीरे करके उसने दरवाज़ा खोला और गन तान दी, बिना ये देखे कि दरवाज़े के सामने खड़ा कौन है?

    "ये…ये…ये…ये…ये…ये क्या कर रहे हो देवर जी? आप दोनों भाई मिलकर मेरी जान लोगे क्या?" सामने माही खड़ी थी, पीले रंग की सिल्क की साड़ी में, हल्के मेकअप के साथ इतनी खूबसूरत दिख रही थी कि एक पल के लिए तो अक्षत उसे पहचान ही नहीं पाया कि वह यही है उसकी भाभी जो कल तक भयानक दिख रही थी।

    "भाभी आप यहाँ ऐसे कैसे? मतलब ऐसे तैयार होकर क्या कर रही हैं? वो भी इतनी सुबह-सुबह! किसी ड्रामा कॉम्पिटिशन में जा रही हो क्या?" अक्षत को खुद ही नहीं पता था कि वह क्या बोल रहा है।

    "वो सब छोड़िए, लेकिन ये गन आपके पास क्या कर रही है?" माही ने अक्षत को घूरते हुए कहा।

    "अरे ये…ये तो बस…अरे ये तो बस वो खिलौना है, हाँ खिलौना है, आपको डराने के लिए।" बोलने के बाद अक्षत की जान में जान आई। वो नहीं चाहता था कि माही को पता चले कि अर्नव एक बेहद खतरनाक गैंगस्टर है जिस पर कब हमला हो किसी को नहीं पता होता था, इसलिए सिक्योरिटी के लिए ये ज़रूरी था।

    "ओह…ये खिलौना है? फ़िर ठीक है। अब आप सुनिए, तैयार हो जाइए, 6 बज रहे हैं और आप में से कोई अब तक रेडी नहीं हुआ। आप तैयार होइए, तब तक हम बाकी सबको भी उठा देते हैं।" माही ने कहा और जैसे ही जाने के लिए मुड़ी, अक्षत उसे रोक लेता है।

    "अरे रुकिए भाभी! इसका मतलब भाई मान गए? कैसे? कब? और आपने मुझे तब बताया क्यों नहीं?" अक्षत के जानने का बुखार चढ़ता ही जा रहा था।

    "वो सब बाद में। अभी आप तैयार होइए। आपके भैया भी तैयार होकर हमारे साथ ही चलेंगे।" माही ने कहा और चली गई। अक्षत भी खुशी-खुशी तैयार होने चला गया। वहीं माही अब सभी को उठा देती है और आखिर में दादा जी के कमरे में जाती है।

    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ…

  • 12. Scam marriage - Chapter 12

    Words: 1232

    Estimated Reading Time: 8 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है सब ठीक होंगे।


    अब तक हमने देखा…


    "वो सब छोड़िए, लेकिन ये गन आपके पास क्या कर रही है?" माही ने अक्षत को घूरते हुए कहा।

    "अरे ये, ये तो बस… अरे ये तो बस वो खिलौना है, हाँ खिलौना है, आपको डराने के लिए।" बोलने के बाद अक्षत की जान में जान आई। वो नहीं चाहता था कि माही को पता चले कि अर्नव एक बेहद खतरनाक गैंगस्टर है, जिस पर कब हमला हो, किसी को नहीं पता होता था। इसलिए सिक्योरिटी के लिए ये जरूरी था।

    "ओह… ये खिलौना है? फिर ठीक है। अब आप सुनिए, तैयार हो जाइए। छह बज रहे हैं और आप में से कोई अब तक रेडी नहीं हुआ। आप तैयार होइए, तब तक हम बाकी सबको भी उठा देते हैं।" माही ने कहा और जैसे ही जाने के लिए मुड़ी, अक्षत उसे रोक लेता है।

    "अरे रुकिए भाभी, इसका मतलब भाई मान गए? कैसे? कब? और आपने मुझे तब बताया क्यों नहीं?" अक्षत के जानने का बुखार चढ़ता ही जा रहा था।

    "वो सब बाद में। अभी आप तैयार होइए। आपके भैया भी तैयार होकर हमारे साथ ही चलेंगे।" माही ने कहा और चली गई। अक्षत भी खुशी-खुशी तैयार होने चला गया। वहीं माही अब सभी को उठा देती है और आखिर में दादा जी के कमरे में जाती है।


    अब तक हमने देखा…


    दादा जी के कमरे में जैसे ही माही पहुँची, तो उसने देखा दादा जी के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और दादा जी एकदम तैयार थे मंदिर जाने के लिए।

    "अरे क्या बात है दादा जी? आप तरोताज़ा लग रहे हो।" माही ने कमरे में आते हुए कहा।

    "बिल्कुल माही बिटिया। हम तुम्हें किचन में देखकर ही समझ गए कि हमारे अड़ियल घोड़े से आखिरकार तुमने अपनी बात मनवा ही ली।" दादा जी समझ ही गए थे कि दाल अब गल चुकी है।

    "ठीक है। आप अब सबको नीचे आने के लिए कहिए। मैं उनको लेकर आती हूँ।" माही मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गई।

    "भगवान बस ऐसे ही हँसते-खेलते इन दोनों की ग्रहस्थी भी खुशहाल कर देना।" दादा जी ऊपर देखते हुए भगवान से प्रार्थना की। वो बस इतना चाहते थे कि उनका पोता और पोती कभी दूर न हों।


    माही अपने कमरे में जाती है तो देखती है अर्नव कब से तैयार था। माही उसे देख एकदम हैरान हो जाती है। आखिर अर्नव, जो की सोने के लिए बेताब था, अब तैयार होकर कैसे खड़ा था? गोल्डन कलर के कुर्ते, जिसकी बॉर्डर ग्रीन कलर की थी, पजामा भी गोल्डन कलर का था। उसका मफलर ग्रीन कलर का, जिसे उसने बेहद ही खूबसूरत तरीके से गले में लिपटाया हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे स्वयं महादेव का अंश खड़ा हो माही के सामने।

    "कितने प्यारे…" इससे पहले कि माही अपने दिल की बात बोलती, उसे होश आ जाता है कि ये हीवान है, हीरो नहीं, और वो चुप होकर दूसरी तरफ देखने लगती है।

    "अपना वाक्य पूरा करो।" अर्नव ने माही की तरफ आते हुए कहा तो माही तुरंत पीछे हो गई।

    "क…कौन-सा वाक्य?" माही की बात सुन अर्नव उसे घूरने लगा।

    "अपना सेंटेंस पूरा करो, वरना हम तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ेंगे, समझी?" अर्नव ने कहा तो माही के तो पसीने ही छूट गए।

    "वो… वो आज मैं कितनी प्यारी लग रही हूँ, ये बोल रही थी।" माही ने एक लंबी साँस छोड़ी।

    "अब दफा हो जाओ यहाँ से।" अर्नव ने कहा तो माही ने तुरंत कमरे का गेट खोल दिया और जाने से पहले एक बार अर्नव की तरफ मुड़कर कहा, "आप जल्दी आइएगा नीचे, क्योंकि मंदिर पहुँचने में वक्त लगेगा और आठ तो बज गए हैं इसलिए।" माही तुरंत वहाँ से चली गई। वहीं अर्नव अभी को मैसेज करता है।

    "इंतज़ाम हो गया सब, जो हम कहे थे।" अर्नव का मैसेज देख अभी ने उसे बस थम्स अप का इमोजी भेज दिया।


    वहीं जब अर्नव कमरे से बाहर ही निकल रहा था, उसका फ़ोन रिंग हुआ। स्क्रीन पर बस नंबर था, कोई नाम शो नहीं हो रहा था। अर्नव एक सेकंड का पॉज़ लेकर कॉल पिक करके कान से लगाता है, लेकिन कुछ बोलता नहीं है। उसे इंतज़ार था सामने वाले की आवाज़ का।

    "आज महाशिवरात्रि पर हम तुम्हें एक तोहफ़ा भिजवा रहे हैं अर्नव बाबू। उम्मीद है तुम्हें पसंद आएगा हमारा ये ख़ास तोहफ़ा।" सामने से एक आदमी की आवाज़ आई, जिसे सुन अर्नव ने मुट्ठी बँचा ली। उसके हाथों की नसें साफ़-साफ़ दिख रही थीं।

    "उम्मीद है कि ये तोहफ़ा तुम्हें महँगा न पड़े नंदन। तुम भी यही प्रार्थना करना, शायद आज बच जाओ।" अर्नव ने कहा और कॉल काट दिया।


    दिल्ली के एक पॉश इलाके में…


    एक बंगला था, बेहद खूबसूरत, लेकिन लग रहा था संभालने के लिए किसी में ताकत नहीं है। अंदर काफ़ी अँधेरा था। एक आदमी रिवॉल्विंग चेयर पर बैठा था और कुछ आदमी उसके आसपास सर्कल बनाकर खड़े थे।

    "उस अर्नव की इतनी हिम्मत? मुझे धमकी देता है। आज हासिल ले अर्नव, फिर तो कभी हँसने लायक नहीं बचेगा।" नंदन वर्मा दिल्ली शहर ही नहीं, बल्कि पूरे इंडिया में अपना कारोबार फैला हुआ था। ये एक बड़े गैंग, रोवेल माफ़िया का हिस्सा था, जो नेशनल ही नहीं, इंटरनेशनल स्तर पर भी काम कर रहे थे। उस गैंग का एक हिस्सा नंदन वर्मा भी था।


    रोवेल गैंग, जो हर तरीके के बुरे काम में अव्वल दर्जे पर था, चाहे वो किडनैपिंग हो, ह्यूमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग हो, या चाइल्ड ट्रैफिकिंग हो, या फिर लड़कियों की तस्करी हो, गुनाह चाहे कुछ भी क्यों न हो, उनकी गैंग सबसे आगे थी। सब धंधों के लिए अलग-अलग डिवाइड करके लोग रखे थे। कौन धंधा कौन सा आदमी संभालेगा, ये सब तय था और नंदन वर्मा यहाँ ड्रग्स डीलिंग संभालता था, जिसके रास्ते में अर्नव आ रहा था। अर्नव का कहना था नंदन को कि वो बस्ती के लोगों को ड्रग्स की लत लगाने की कोशिश न करे, क्योंकि अगर वो ड्रग्स के शिकार हो गए तो ठीक से कमा नहीं पाएँगे और कमाएँगे नहीं तो अर्नव को हस्तक्षेप कैसे देंगे।


    लेकिन नंदन वर्मा ने अर्नव का कहना नहीं माना और बस्ती में जाकर जबरदस्ती सबको ड्रग्स देने की कोशिश की। कभी अर्नव के लोगों ने उन्हें मार-मार कर भगा दिया था, जिसका बदला अब नंदन लेने वाला था। कैसे? ये तो आगे ही पता चलेगा।


    वहीं राजमहल में…


    अर्नव और बाकी सब शिवमंदिर के लिए निकलने लगते हैं।

    "भाई और भाभी आप दोनों वो वाली कार में आओगे, और मैं, दादू और डेविड इस कार में, और शेफ और अभी उस कार में।" अक्षत ने सब कार की तरफ़ इशारा किया और सबको बता दिया कि किसको किस कार में जाना चाहिए।

    "आप लोग इतना ख़र्च क्यों कर रहे हो? हम सब एक बस में चलते हैं ना, बड़ा मज़ा आएगा।" माही ने तो खुशी से कहा, क्योंकि ऐसे में पेट्रोल-डीज़ल की बर्बादी के साथ-साथ प्रदूषण भी होता है। लेकिन माही का आइडिया किसी को पसंद नहीं आया।

    "एक काम करो, तुम चलकर आओ। सभी के लिए यही ठीक रहेगा।" अर्नव ने अपनी कार का डोर खोला और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। वहीं माही ने जब ये सुना तो उसका तो मुँह ही बिगड़ गया।

    "अरे भाभी आप बैठो। ऐसे जाना ना, हमारे लिए सेफ़ है।" अक्षत ने कहा और जल्दी से माही को अर्नव की पास वाली सीट पर बिठा देता है और अर्नव को गाड़ी आगे बढ़ाने का इशारा करता है।


    गाड़ी में अर्नव और माही दोनों ही शांत बैठे हुए थे। तभी अर्नव का कॉल रिंग हुआ। वो अपना ब्लूटूथ कान में लगाकर कॉल पिक करता है।


    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी kj के साथ… ❤️

  • 13. Scam marriage - Chapter 13

    Words: 1338

    Estimated Reading Time: 9 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है, सब ठीक होंगे।


    अब तक हमने देखा...


    “भाई और भाभी, आप दोनों वो वाली कार में आओगे, और मैं, दादू और डेविड इस कार में, और शेफ और अभी उस कार में।” अक्षत ने सब कारों की तरफ इशारा किया और सबको बताया कि किसको किस कार में जाना चाहिए।


    “आप लोग इतना खर्च क्यों कर रहे हो? हम सब एक बस में चलते हैं ना, बड़ा मज़ा आएगा।” माही ने खुशी से कहा क्योंकि ऐसे में पेट्रोल-डीज़ल की बर्बादी के साथ-साथ प्रदूषण भी होता है। लेकिन माही का यह आइडिया किसी को पसंद नहीं आया।


    “एक काम करो, तुम चल कर आओ। सभी के लिए यही ठीक रहेगा।” अर्नव ने अपनी कार का दरवाज़ा खोला और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। वहीँ, माही ने यह सुनते ही उसका मुँह बिगड़ गया।


    “अरे भाभी, आप बैठो। ऐसे जाना हमारे लिए सेफ है।” अक्षत ने कहा और जल्दी से माही को अर्नव की पास वाली सीट पर बैठा दिया और अर्नव को गाड़ी आगे बढ़ाने का इशारा किया।


    गाड़ी में अर्नव और माही दोनों ही शांत बैठे हुए थे। तभी अर्नव का कॉल रिंग हुआ। उसने अपना ब्लूटूथ कान में लगाकर कॉल पिक की।


    अब तक हमने देखा...


    “बात तो ऐसे कर रहे हैं जैसे अगर मैं इनका कॉल पिक कर लेती तो इनका लखपति का घाटा हो जाएगा। आधा रास्ता बीत गया, लेकिन इनके मुँह से चूँ तक नहीं निकली और अब देखो कैसे बातें करेंगे।” माही ने धीरे से कहा, जिसे अर्नव नहीं सुन पाया।


    “हम्म, बोलो।” अर्नव ने ब्लूटूथ से कहा।


    “पता चला है कि राजमहल की तरफ कुछ अनजान लोग गए हैं।” अभी ने फ़ोन पर कहा। वह सेफ़ गाड़ी चलाते हुए उसकी बात सुन रहा था।


    “चिंता मत करो, हमारे काम से सब खुश ही रहेंगे।” अर्नव ने कहा और कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।


    मंदिर पहुँचकर अर्नव और माही दादा जी के कहने पर पूजा करते हैं। पूजा में तकरीबन दो घंटे लग जाते हैं।


    माही और अर्नव पंडित जी का आशीर्वाद लेते हैं। पंडित जी उन्हें आशीर्वाद देते हैं, “सदा सुखी और साथ रहो। महाकाल तुम्हारी जोड़ी सदा ऐसे ही रखे।” पंडित जी की बात सुनकर माही अर्नव की तरफ देखती है, लेकिन अर्नव बिना माही की तरफ देखे मंदिर की सीढ़ियों से नीचे जाने लगता है। बाकी सब भी पंडित जी का आशीर्वाद ले कर और महाकाल के दर्शन कर सीढ़ियों से नीचे जाने लगते हैं।


    “भाभी, चलिए अब हम चलते हैं।” अक्षत ने थोड़ा नाटक करते हुए कहा।


    “बोल तो आप ऐसे रहे हो जैसे अब कभी मिलोगे ही नहीं। घर ही जा रहे हैं, दूसरे ग्रह नहीं। लेकिन ये बताइए, आपने ये अपना बदसूरत चेहरा क्यों ऐसे नई-नवेली दुल्हन की तरह छिपा रखा है?” माही ने देखा कि जब से वो लोग यहाँ बाहर निकले हैं, अर्नव अपना चेहरा एक मास्क से छिपा रहा है, इसलिए माही ने उसे पूछा।


    “भाभी, ये एक सिंगर है ना, तो इसके फ़ैंस कहीं इसे नया मिल जाए, इसलिए ये ऐसे रहता है बाहर।” डेविड ने माही के सवाल का जवाब दिया।


    “लेकिन मैंने तो कभी इसका नाम नहीं सुना?” माही ने सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए कहा। उसकी बात सुनकर अक्षत, जो डेविड के मुँह से खुद को बड़ा सिंगर सुनकर अभी माही से तरफ की उम्मीद में था, उसका चेहरा अब कड़वे करेले की तरह दिख रहा था।


    “भाभी, आप सोशल मीडिया से कोसों दूर हो लगता है। कॉन्से ग्रह से हो आप जो मुझे नहीं जानती, द ग्रेट ट्रिपल-A-स्टार को नहीं जानती आप?” अक्षत को मानो यकीन ही नहीं था कि उसकी भाभी उसे नहीं जानती।


    “नहीं, तो मैंने कभी ऐसा अतरंगी नाम नहीं सुना। वैसे भी मैं तो कोई गाना सुनती ही नहीं हूँ। अच्छा, ठीक है, मैं मानती हूँ कि आप बहुत बड़े गाना बजाने वाले होंगे।” माही की बात सुनकर सभी लोग मानो हँस-हँस कर पागल हो गए, लेकिन अक्षत तो बस बेहोश होने की कगार पर था।


    “बहू, चलो अब घर चलते हैं।” दादा जी ने कहा और कार में बैठ गए। वहीँ, अब जैसे सब आए थे, वैसे ही चल दिए।


    अर्नव की कार में शांति थी। जैसे जाते वक्त थी, वैसी ही आते वक्त भी थी। लेकिन अब माही चुप नहीं रह पाई।


    “अ... सुनिए, क्या मैं कुछ पूछ सकती हूँ?” माही के सवाल पर अर्नव ने कुछ रिएक्ट नहीं किया, तो माही का मुँह बन गया।


    “क्या मैं कुछ पूछ सकती हूँ?” माही ने ज़ोर से कहा। माही ने इस बार इतनी ज़ोर से कहा था कि अब अर्नव को उसकी तरफ देखना ही पड़ा।


    “हाँ, तो इसमें इतना चिल्ला क्यों रही हो? बहरा दिख रहा हूँ मैं तुम्हें?” अर्नव की बात सुन माही का मुँह खुला का खुला रह गया। कैसा इंसान था यह!


    “वो क्या, आज हम बस्ती वालों को खाना खिला सकते हैं?” माही शिवरात्रि के इस पावन अवसर पर सब गरीबों को खाना खिलाना चाहती थी।


    “क्यों? तुम्हारे बाप ने यहाँ पैसों का पेड़ खोल रखा है जो मैं पैसे लुटाऊँ? चुपचाप बैठो, वर्ना उनका पता नहीं तुम्हें नहीं मिलेगा खाना, समझी?” अर्नव ने गुस्से से कहा, तो माही चुपचाप बैठ गई। वैसे तो वह अर्नव की किसी भी बात का बुरा नहीं मानती थी, लेकिन अभी उसने माही के पिता जी तक बात पहुँचाई, इसलिए उसे यह नागवार था।


    घर पहुँचकर माही चुपचाप, बिना किसी से बात किए, लंच डाइनिंग टेबल पर रखने लगती है। उसकी चुप्पी देख हर कोई समझ चुका था कि ज़रूर अर्नव और माही के बीच कुछ हुआ है।


    “भाई, क्या हुआ? भाभी का चेहरा ऐसे सड़े हुए फूल की तरह क्यों लग रहा है?” अक्षत ने देखा कि उसकी भाभी उससे भी बात नहीं कर रही, तो वह पहुँच गया अपने भाई से भाभी का हाल पूछने।


    “उसे बस्ती वालों को खाना खिलाना था, तो मैंने झाड़ दिया, तो बैठ गई शांत।” अर्नव ने कहा, तो अक्षत उसे घूरने लगा।


    “निर्दयी, बेशर्म, बेहया, कमज़रफ़! आपको शर्म नहीं आती ऐसी अच्छी बातों के लिए डाँटते हुए? मेरी भोली-भाली, फूल जैसी भाभी के तो भाग ही उड़ गए।” अक्षत की नौटंकी देखने लायक थी।


    “तू ने सिंगिंग छोड़ एक्टिंग क्लासेस कब से जॉइन कर ली? और कौन है ऐसा जो तुझे ऐसी घटिया एक्टिंग सिखा रहा है?” अर्नव की यह एक बात ही काफी थी अक्षत को वहाँ से हटाने के लिए।


    “चलिए, सब खाना तैयार है।” माही ने कहा, तो सभी खाना खाने चले गए। वहीँ, अर्नव अपनी जगह सोफ़े पर बैठा रहा।


    “चलो अर्नव, खाना नहीं खाना क्या?” दादा जी ने अर्नव को उठता ना देख कहा।


    “आप जाइए, मैं बस एक कॉल करके आता हूँ।” अर्नव ने कहा, तो दादा जी वहाँ से चले गए। हाल और डाइनिंग हाल ऐसे बनाए गए थे कि बीच में बस दो पिलर आते थे, बाकी तो हाल को आराम से डाइनिंग एरिया से देखा जा सकता था।


    “कैसे हो नंदन? उम्मीद है तुम्हें मेरा रिटर्न गिफ्ट पसंद आएगा?” अर्नव की बात सुन नंदन शॉक हो गया। आखिर अर्नव को उसका यह नंबर कहाँ से मिला? यह उसका प्राइवेट नंबर था जो केवल उसकी फैमिली के पास होता था।


    “तुझे मेरा नंबर कहाँ से मिला?” नंदन अपने बंगले में था। हाल में एसी चल रहा था, लेकिन नंदन के चेहरे पर पसीना साफ़ झलक रहा था।


    “इंतज़ार करो नंदन, मेरा तोहफ़ा मिलते ही तुम सारे सवाल भूल जाओगे। तुम्हारा वार तो मेरा बाल तक हिला नहीं पाया, लेकिन अर्नव का पलटवार तुम्हें हिला देगा, समझा?” अर्नव ने अभी कहा ही था कि नंदन के घर पुलिस का छापा पड़ा। पुलिस और अर्नव की बातें सुन अब नंदन को सारा मामला समझ आ चुका था। उसके ही आदमियों ने उसे धोखा दिया है। उसकी चाल उसी पर ही भारी पड़ गई है।


    वहीं, अर्नव ने एक कातिलाना मुस्कान लिए कॉल काट दी और अपने फ़ोन से नया सिम निकालकर तोड़ दिया और वापस अपना पुराना सिम लगा लिया।


    आखिर क्या होगा? अर्नव ने नंदन के खिलाफ़ क्या किया? और क्या जैसा अर्नव दिखता है, असल में वैसा ही है वह? हैवान या कोई और सच है उसके पीछे? क्या माही और अर्नव कभी एक हो पाएँगे?


    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी kj के साथ…

  • 14. Scam marriage - Chapter 14

    Words: 1522

    Estimated Reading Time: 10 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है सब ठीक होंगे।


    अब तक हमने देखा…


    “आप जाइए, मैं बस एक कॉल करके आता हूँ।” अर्नव ने कहा। तो दादा जी वहाँ से चले गए। हॉल और डाइनिंग हॉल ऐसे बनाए गए थे कि बीच में बस दो पिलर आते थे; बाकी तो हो को आराम से डाइनिंग एरिया से देखा जा सकता था।


    “कैसे हो नंदन? उम्मीद है तुम्हें मेरा रिटर्न गिफ्ट पसंद आएगा?” अर्नव की बात सुन नंदन शौक हो गया। आखिर अर्नव को उसका यह नंबर कहाँ से मिला? यह उसका प्राइवेट नंबर था जो केवल उसकी फैमिली के पास होता था।


    “तुझे मेरा नंबर कहाँ से मिला?” नंदन अपने बंगले में था। हॉल में एसी चल रहा था, लेकिन नंदन के चेहरे पर पसीना साफ झलक रहा था।


    “इंतजार करो नंदन, मेरा तोहफा मिलते ही तुम सारे सवाल भूल जाओगे। तुम्हारा वार तो मेरा बाल तक नहीं हिला पाया, लेकिन अर्नव का पलटवार तुम्हें हिला देगा, समझें?” अर्नव ने अभी कहा ही था कि नंदन के घर पुलिस का छापा पड़ा। पुलिस और अर्नव की बातें सुन अब नंदन को सारा मामला समझ आ चुका था। उसके ही आदमी ने उसे धोखा दिया था; उसकी चाल उसी पर ही भारी पड़ गई थी।


    वहीं अर्नव ने एक कातिलाना मुस्कान लिए कॉल काट दी और अपने फ़ोन से नया सिम निकालकर तोड़ दिया और वापिस अपना पुराना सिम लगा लिया।


    आखिर क्या होगा? अर्नव ने नंदन के खिलाफ क्या किया? और क्या जैसा अर्नव दिखता है, असल में वैसा ही है? वह हैवान है या कोई और सच है उसके पीछे? क्या माही और अर्नव कभी एक हो पाएँगे?


    अब तक हमने देखा…


    “ये कहाँ रह गए? खाना नहीं खाना क्या उनको?” माही ने अक्षत को न देखकर कहा।


    “मैं देखकर आता हूँ भाभी।” अक्षत ने कहा और जैसे ही खड़ा हुआ, वैसे ही उसकी नज़र आते हुए अक्षत पर पड़ी।


    “लो आ गए भाई।” अक्षत ने कहा और फिर से अपनी जगह पर बैठ गया।


    “भाई कहाँ थे आप? पता है भाभी आपको कितना मिस कर रही थी। ऐसे भाभी को छोड़ जाया मत करो आप, क्यों भाभी?” अक्षत फुल मूड में था, वहीं माही का गुस्सा और बढ़ गया।


    “मैंने पूछा क्योंकि अगर खाना वेस्ट होता तो मुझे अच्छा नहीं लगता; बाकी मुझे क्या, ये खाएँ न खाएँ? मेरे पापा ने थोड़ी इनके घर अनाज डलवाया है।” माही का गुस्सा ऐसे ही शांत नहीं होने वाला था।


    “क्या हुआ भाभी? आप इतनी गुस्से में क्यों हो?” डेविड ने माही की बात में गुस्सा भापते हुए कहा।


    “मैं कहाँ गुस्से में हूँ देवर जी? देखिए, हँस तो रही हूँ।” माही ने अपनी बत्तीसी दिखाते हुए कहा।


    “नहीं माही बेटा, कुछ तो हुआ है। बताओ क्या बात है?” दादा जी ने कहा। तो माही ने उन्हें अर्नव और उसके बीच कार में हुई बात बता दी। दादा जी ने अर्नव को देखा तो अर्नव चुपचाप सर नीचे झुकाए अपना लंच करने लगा।


    “बेटा, अब यह घर तुम्हारा भी है, तो तुम्हें यहाँ कुछ भी करने से पहले किसी की परमिशन की ज़रूरत नहीं है; मेरी भी नहीं। समझी ना बेटा?” दादा जी की बात सुन अर्नव ने गुस्से से माही की तरफ देखा।


    “थैंक्यू दादा जी, लेकिन अब मैंने सोच लिया है। जब तक मैं खुद नहीं कमाऊँगी, मैं किसी के पैसों से अच्छा काम नहीं करूँगी।” माही ने कहा और अपने कमरे की तरफ जाने लगी तो अक्षत उसे रोक लेता है।


    “भाभी आप कहाँ जा रही हो? खाना नहीं खाना क्या?” अक्षत के सवाल पर माही ने बिना पलटे ही कहा, “नहीं, मेरा व्रत है तो सीधे रात को ही खाऊँगी।” माही ने कहा और वहाँ से चली गई।


    “अर्नव, वो बीवी है तुम्हारी। अब तुम्हें ही उसकी सारी ज़िम्मेदारी उठानी है। लेकिन अगर तुम ही ऐसे बचकाने की तरह लड़ोगे तो कैसे चलेगा?” दादा जी को माही और अर्नव के इस उलझे रिश्ते की बहुत फ़िक्र थी।


    “आपने कहा तो मैंने शादी तो कर ली, लेकिन अब मुझसे यह अच्छे पत्नी-व्रत-पति का दिखावा नहीं होगा। यह बात आप समझ जाओ तो अच्छा होगा। और मामा कहाँ हैं? दिख नहीं रहे हैं दो दिन से?” अर्नव का मतलब साफ़ था; उसके और माही के बीच ऐसा कोई रिश्ता कभी नहीं बनेगा जो एक पति और पत्नी के बीच होना चाहिए।


    “भाई, वो मामा तो बनारस गए हैं। एक साधु बाबा ने कहा था अगर वो बनारस के सभी घाटों में एक-सौ एक नारियल फोड़ेंगे तो उनकी शादी हो जाएगी।” अक्षत की बात सुन अर्नव उसे घूरने लगा।


    “मुझे क्या देख रहे हो आप? उन्हें ही शादी का शौक चढ़ा है तो इसमें मैं क्या करूँ?” अक्षत ने डेविड को देख कंधे उचकते हुए कहा।


    “लेकिन उनका पता नहीं भाई, कि शादी ज़रूर हो गई।” डेविड ने कहा तो वह और अक्षत हँसते हुए एक-दूसरे को हाई-फ़ाइव देने लगे।


    “ठीक है, ठीक है। अब चुपचाप खाना खाओ सब। लेकिन एक बात तो है, तुम्हारा वो मामा गलती से भी अगर शादी करने घोड़ी चढ़ेगा तो कैसा दिखेगा? नई घोड़ी चढ़ते हुए।” दादा जी की बात पर सभी हँसने लगे, सिवाय अर्नव के। यहाँ तक कि अभी भी हँस रहा था वहीं अक्षत, दादा जी और डेविड एक-दूसरे को हाई-फ़ाइव देते हैं; अर्नव बस उन्हें घूर रहा था।


    खाना खाने के बाद सभी अपने-अपने काम पर लग गए। वहीं अक्षत, दादा जी और डेविड दादा जी के कमरे की तरफ चले गए।


    कमरे में आकर तीनों बेड पर बैठकर अक्षत की कल ही बनी गर्लफ्रेंड के बारे में बात करने लगे।


    “तो कल फिर से आप दोनों जाओगे?” डेविड ने उन दोनों को देख कहा।


    “हाँ, और नहीं तो क्या? कभी ऐसा हुआ है कि इसकी डेट प्लान की हो और मैं ना जाऊँ बोल?” दादा जी अपनी मूँछों पर ताव देते हुए कहा।


    “हाँ, यह भी है। लेकिन एक सच यह भी है दादू कि आज तक जिस भी लड़की के साथ हम डेट पर गए हैं, वो दूसरी बार दिखती कहाँ है?” अक्षत ने अपना रोना रोया।


    “वो तो तुझे ही लड़कियाँ पटाना नहीं आता मर्दानी, वरना मैं तो तेरी सारी सेटिंग करा देता हूँ।” दादा जी ने खुद की तारीफ शुरू कर दी थी।


    “मुझे पटाने की ज़रूरत क्या है? इस शहर की ही नहीं, पूरे वर्ल्ड की आधी से ज़्यादा लड़कियाँ मरती हैं मुझ पर।” अब अक्षत भी कहाँ कम था? आखिर था तो वो अपने दादा का पोता ही ना। दादा जी एक फेकते तो अक्षत सामने दस फेक कर मारता।


    “अरे शुक्र माना कि तुझे मेरे जैसे स्मार्ट एंड हैंडसम दादा मिला है, वरना पता नहीं तेरा क्या होता।” दादा जी भी ऐसे कैसे हार मान लेते…


    “हाँ, तो आप हो तो क्या उखाड़ लिया आपने?” अक्षत भी आज जंग के मूड में था।


    “बस बस कीजिए आप लोग, जरा शांति रखिए। और अभी ही बात कर लीजिए ना कि आखिर कल डेट पर बोलना क्या है, करना क्या है।” डेविड ने उनको सुझाव दिया और दादू-अक्षत को भी यह बात सही लगी। इसलिए अब दोनों शांत हो गए। तभी दादू के कमरे में अर्नव आ टपका।


    “डेविड, लगता है आजकल तुम बहुत फ़्री हो। तुम्हारा काम बढ़ाना होगा, क्यों?” अर्नव ने जब देखा कि सब अपने-अपने काम में व्यस्त थे और डेविड मस्ती में तो उसने डेविड को डराते हुए कहा।


    “नहीं-नहीं, मैं जा रहा हूँ भाई।” डेविड ने कहा और मुँह बनाते हुए वहाँ से चला गया।


    “दादू, ये भाई ना जलते हैं मुझसे। मेरी एक लोती सहेली को भी भगा दिया हूँ… हूँ…” अक्षत अपनी आदत से मजबूर; प्राण जाए लेकिन एक्टिंग ना जाए।


    “मैंने कितनी बार कहा है तुझसे अपनी यह घटिया एक्टिंग क्लास छोड़ दे।” अर्नव का ताना अक्षत को साफ़-साफ़ समझ आ रहा था, इसलिए वह मुँह बनाकर बैठ जाता है।


    वहीं अर्नव जब अपने कमरे में पहुँचा, उसने देखा कि माही रूम के लैंडलाइन फ़ोन से किसी से बात कर रही थी। अर्नव जल्दी से छिपकर उसकी बातें सुनने लगा।


    “हाँ-हाँ, सब हो गया है जैसे तुमने कहा था, सब वैसा ही किया है मैंने।” माही ने फ़ोन पर कहा। फिर थोड़ी देर खामोश हो गई; लग रहा था जैसे कोई सामने से कुछ बोल रहा होगा।


    “कल पक्का आऊँगी, सच में।” माही ने कहा और कॉल काट दिया, और खुद जाकर बेड पर लेट गई।


    “एक बात तो है, जब व्रत होता है ना, तब बहुत भूख लगती है; वरना तो पता ही नहीं चलता टाइम कब गया।” माही ने खुद से बातें करते हुए कहा।


    वहीं अर्नव अब जल्दी से अपने स्टडी रूम में जाता है जहाँ पहले से ही अभी मौजूद था।


    “मेरे रूम के लैंडलाइन की लास्ट कॉल की रिकॉर्डिंग निकालो।” अर्नव ने अंदर आते ही अभी से कहा।


    “तो मतलब हमारा प्लान वर्क हो गया। मैंने कहा था ना यह प्लान वर्क करेगा। उसने ज़रूर अपने साथियों से बात की होगी।” अभी के चेहरे पर एक जीत की खुशी थी।


    दरअसल यह अभी और अर्नव ने किया था। अर्नव के कमरे में एक ऐसा लैंडलाइन फ़िट करवाया जिससे कि हर कॉल रिकॉर्ड हो और माही जिससे भी जो भी बात करे, वह उन दोनों को पता चल जाए।


    “अब बातें मत बनाओ, जल्दी रिकॉर्डिंग निकालो।” अर्नव ने अभी से कहा।


    आखिर किससे बात की होगी माही ने? क्या अर्नव का शक सही है? माही एक दुश्मन है?


    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी kj के साथ…

  • 15. Scam marriage - Chapter 15

    Words: 1133

    Estimated Reading Time: 7 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है सब ठीक होंगे।


    अब तक हमने देखा…


    "हा हा, सब हो गया है जैसे तुमने कहा था। सब वैसा ही किया है मैंने।" माही ने फ़ोन पर कहा। फिर थोड़ी देर खामोश हो गई। लग रहा था जैसे कोई सामने से कुछ बोल रहा होगा।

    "कल पक्का आऊँगी, सच में।" माही ने कहा और कॉल काट दिया। और खुद जाकर बेड पर लेट गई।

    "एक बात तो है, जब व्रत होता है ना, तब बहुत भूख लगती है। वरना तो पता ही नहीं चलता टाइम कब गया।" माही ने खुद से बातें करते हुए कहा।


    वहीं अर्नव अब जल्दी से अपने स्टडी रूम में गया जहाँ पहले से ही अभी मौजूद था।

    "मेरे रूम के लैंडलाइन की लास्ट कॉल की रिकॉर्डिंग निकालो।" अर्नव ने अंदर आते ही अभी से कहा।

    "तो मतलब हमारा प्लान वर्क हो गया। मैंने कहा था ना, ये प्लान वर्क करेगा। उसने ज़रूर अपने साथियों से बात की होगी।" अभी के चेहरे पर एक जीत की खुशी थी।


    दरअसल, यह अभी और अर्नव ने किया था। अर्नव के कमरे में एक ऐसा लैंडलाइन फ़िट करवाया था जिससे हर कॉल रिकॉर्ड हो और माही जिससे भी जो भी बात करे, वह उन दोनों को पता चल जाए।

    "अब बातें मत बनाओ, जल्दी रिकॉर्डिंग निकालो।" अर्नव ने अभी से कहा।


    अब आगे…


    अभी कुछ ही देर में रिकॉर्डिंग स्टार्ट करता है।

    "हैलो, कौन?" सामने से किसी लड़की की आवाज़ आई।

    "अरे आँचल मैं, माही। भूल गई क्या तू मुझे?" माही ने उस लड़की आँचल से कहा।

    "अबे लैंडलाइन नंबर आएंगे तो कैसे पता चलेगा कि तू माही है, क्या… माही कहाँ हो तुम? कैसी हो? तुम्हें उस भालू ने कुछ किया तो नहीं ना? मैंने बहुत कोशिश की तुम्हें ढूँढने की, लेकिन तुम्हारा पता मुझे कहीं नहीं मिला। तुम्हारे फ़ूफ़ा जी ने बताया कि तुम्हें कुछ लोग उठाकर ले गए हैं। तभी मैं समझ गई थी कि वो न्यूज़ वाला ही कमीना होगा। तू बता कहाँ है? मैं तुझे अभी लेने आती हूँ।" वो लड़की नॉनस्टॉप बस बोल ही जा रही थी। वही अपने बारे में इतना अच्छा सुन अर्नव का चेहरा देखने लायक था और अभी को तो समझ ही नहीं आ रहा था वो हँसे या रोए।

    "अरे रुक जा। राजधानी एक्सप्रेस में मेरी बात तो सुन। मेरी और उनकी शादी हो चुकी है, तो ऐसे मत बोल उन्हें। और हाँ, दूसरी बात, यहाँ मैं बिल्कुल ठीक हूँ और सभी लोग बहुत अच्छे हैं मेरे ससुराल में।" ये सब बोलते वक्त अर्नव को माही की आवाज़ में वो शर्म-हया महसूस हो रही थी। वो इमेजिन कर रहा था कि माही शर्माते हुए कैसी दिख रही होगी।

    "पागल है तू! उस गुंडे से शादी कर ली तूने? तुझे पता भी कौन है वो?" आँचल को पता था कि अर्नव एक बहुत बड़ा डॉन है, लेकिन वो ये भी जानती थी कि माही को ये बात पता नहीं होगी।

    "मुझे नहीं जानना कुछ। तू बस इतना याद रख कि अब वो मेरे पति हैं और मैं नहीं चाहती कि मेरे पति को कोई भी बुरा कहे, तू भी नहीं।" माही की बात सुन आँचल सोच में पड़ गई।

    "ठीक है, लेकिन मैंने तुझसे जो नोट्स बनाने के लिए कहा था वो हुआ कि नहीं?" आँचल ने बात पलटते हुए कहा।

    "हा हा, सब हो गया है जैसे तुमने कहा था। सब वैसा ही किया है मैंने।" माही ने जवाब दिया। अब अर्नव और अभी को समझ आया कि वो दोनों जैसा सोच रहे थे वैसा कुछ नहीं था।

    "ठीक है, लेकिन कॉलेज कब आएगी अब तू? साल खत्म होने के बाद?" आँचल ने ताना मारा।

    "कल पक्का आऊँगी, सच में।" माही ने कहा और कॉल काट दिया। रिकॉर्डिंग सुनने के बाद अभी और अर्नव दोनों के मन में जो माही को लेकर शक था वो अब दूर हो चुका था।

    "अच्छा अर्नव, ये बता नंदन का क्या चक्कर था?" अभी जानना चाहता था कि आखिर अर्नव ने नंदन के साथ क्या किया।

    "कुछ नहीं। उसने मेरे घर पर ड्रग रखवा कर पुलिस को भेजना चाहा। मैंने ये दाँव उस पर ही खेल दिया। उसके जो आदमी यहाँ आए थे ड्रग्स रखने, राजू ने उन्हें पैसे देकर खरीद लिया और वही ड्रग्स वो लोग नंदन के घर में रख आए। फिर पुलिस पहुँची उसके घर। अब जाएगा वो जेल। लेकिन एक छोटा सा ट्विस्ट होगा। ड्रग्स के साथ-साथ पुलिस को वहाँ लाश भी मिलेगी।" अर्नव ने कहा तो अभी उसे देखने लगा।

    "किसकी लाश?" अभी बिना सवाल किए रह नहीं पाया।

    "वही लोग जो हमारे घर ड्रग्स रखने आए थे। जो लोग अपने बॉस के सगे ना हुए। वो मेरे हाथे होते तो उड़ा दिया सालों को। समझा?" अर्नव ने कहा और वहाँ से चला गया।


    अपने कमरे में आकर उसने देखा माही इधर-उधर घूम रही थी।

    "क्या हुआ? घेस हो गई कि जो इधर-उधर फिर रही हो?" अर्नव की बात सुन माही का मुँह बन गया।

    "वो मैं कल से कॉलेज जाना चाहती हूँ।" माही ने कहा। जो कि ये बात अर्नव को पहले से ही पता थी कि माही उससे यही पूछेगी। लेकिन वो इतनी आसानी से कैसे मान जाता? अक्षत का भाई जो ठहरा।

    "नहीं, कहीं भी जाने की ज़रूरत नहीं है। चुपचाप घर संभालो।" अक्षत ने अलमारी से अपने कपड़े निकालते हुए कहा।

    "सोच लीजिए। फिर मैं दादा जी के पास गई ना तो…" कहते हुए माही उछल-उछल कर अर्नव के आगे-पीछे घूम रही थी। लेकिन जैसे ही अर्नव ने उसकी तरफ देखा उसकी बोलती बंद हो गई।

    "तो क्या? गई ना तो क्या? बोलो?" अर्नव ने माही के करीब जाते हुए पूछा। तो माही अपने कदम पीछे लेने लगी। दोनों की आँखें एक-दूसरे में गुम थीं।

    "बोलो।" अर्नव ने एक झटके से माही की कमर में हाथ डाल उसे अपने करीब खींच लिया। दोनों की धड़कन का शोर उनके कानों तक पहुँच रहा था। ये एहसास ही कुछ खास था जिसे महसूस कर वो दोनों ही किसी और दुनिया में गुम थे। बस धीरे-धीरे प्यार का एहसास हो रहा था। ये शुरुआत थी एक मोहब्बत की जंग की जिसमें फ़ना होना भी एक आशिक के लिए गर्व की बात होती है।

    "बातें ये तेरी जैसे दुआएँ, मैं इनमें शामिल हो ही गया।
    दिल में तुम्हारे थोड़ा सा हिस्सा, हाँ मुझको हासिल हो ही गया।
    ये दिल भी तुम्हारा, तुम्हारी तरह है, जो खुशियाँ मुझे दे रहा।
    हो तुम जिस भी जगह पे, वहीं पे हो रौनक।
    बहुत खूबसूरत हो, बहुत खूबसूरत हो आप सर से पाँव तक।
    दिल झूम झूम, दिल झूम झूम, दिल झूम जाए…"


    ऐसे दोनों एक मीठी सी धुन में खोए हुए थे, तभी वहाँ अक्षत आ टपका।

    "सॉरी, सॉरी, सॉरी। मैंने कुछ नहीं देखा। आप दोनों कंटिन्यू करो।" अक्षत की आवाज़ सुन दोनों जल्दी से अलग हो गए। वहीं अर्नव अपने मन ही मन बोल रहा था, जब देखा नहीं कुछ तो चुपचाप चला ही जाता। इस में इतना बोलने की क्या ज़रूरत थी?


    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी kj के साथ…

  • 16. Scam marriage - Chapter 16

    Words: 1275

    Estimated Reading Time: 8 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है सब ठीक होंगे।

    अब तक हमने देखा…

    "बातें ये तेरी जैसे दुआएँ, मैं इनमें शामिल हो ही गया,
    दिल में तुम्हारे थोड़ा सा हिस्सा, हाँ मुझको हासिल हो ही गया,
    ये दिल भी तुम्हारा, तुम्हारी तरह है, जो खुशियाँ मुझे दे रहा,
    हो तुम जिस भी जगह पे, वहीं पे हो रौनक,
    बहुत खूबसूरत हो, बहुत खूबसूरत हो आप सर से पाँव तक,
    दिल झूम झूम, दिल झूम झूम, दिल झूम जाए…"

    ऐसे दोनों एक मीठी सी धुन में खोए हुए थे, तभी वहाँ अक्षत आ टपका।

    "सॉरी, सॉरी, सॉरी! मैंने कुछ नहीं देखा। आप दोनों कंटिन्यू करो।"

    अक्षत की आवाज सुन दोनों जल्दी से अलग हो गए। वहीं अर्नव अपने मन ही मन बोल रहा था, "जब देखा नहीं कुछ, तो चुपचाप चला ही जाता। इसमें इतना बोलने की क्या ज़रूरत थी?"

    अब आगे…

    "अरे नहीं देवर जी! ऐसा कुछ नहीं है जैसा आप सोच रहे हो। वो तो इनकी आँख में कुछ चला गया था, तो मैं बस आँख देख रही थी।"

    माही ने बात को संभालने की कोशिश की, लेकिन हमारा अक्षत ऐसे कैसे मान जाता?

    "तो कैसी लगी?" अक्षत ने अपनी ठुड्डी पर हाथ फिराते हुए कहा।

    "क्या?" माही ने सवालिया अंदाज़ में कहा।

    "भाई की आँख और क्या?" अक्षत ने कहा और हँसने लगा। अर्नव वहाँ से नहाने चला गया और भाभी-देवर दोनों बातें करने लगे।

    श्याम को खाने की तैयारी के लिए माही किचन में जाती है तो देखती है कि सभी भाई वहाँ कुंडली जमाए बैठे थे।

    "आप सब यहाँ क्या कर रहे हैं? कुछ चाहिए तो हमसे बोलिए।" माही ने किचन में आते हुए कहा।

    "नो, नो, नो भाभी! आज भाई का आदेश है कि खाना हम बनाएँगे।" अक्षत ने माही को दोनों कंधों से पकड़ कर बाहर ले जाते हुए कहा।

    "अच्छा? और कहाँ हैं आपके भाई साहब? जो खुद ऑर्डर देकर निकल गए हैं।" माही की नज़रें अक्षत को ढूँढ़ रही थीं।

    "ओए होए! भाई के बिना रहा नहीं जाता हाँ।" डेविड ने माही को चिढ़ाते हुए कहा।

    "धत, बेशर्म! मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी।" माही ने वहाँ से जाते हुए कहा। वहीं अर्नव किचन में एक साइड में खड़ा होकर यह सब देख और सुन रहा था। उसे अच्छा लग रहा था कि अब कोई है जो उसे भी ढूँढ़ती है।

    "चलो भाई, अब शुरू करते हैं खाना बनाना।" अक्षत ने कहा और बाकी सब अर्नव के इंटरैक्शन को फॉलो करने लगे। अर्नव जो-जो कहता, सब करने लगे। आज का मेनू था: पनीर बटर मसाला, नान, दाल फ्राई, जीरा राइस, वेज मंचूरियन और लास्ट में थी अर्नव स्पेशल खीर, जो वह बेहद टेस्टी बनाता था।

    "हाह… मैं तो थक गया भाई साहब।" अक्षत की नोटंकी शुरू हो चुकी थी। ऐसा लग रहा था जैसे सारा खाना उसने ही बनाया हो, लेकिन कोई उस पर ध्यान नहीं देता।

    "लेकिन भाई, आपने आज कोई नॉनवेज डिश नहीं बनाई।" शेफ ने किचन में रखी सारी डिश पर अपनी नज़र फिराते हुए कहा।

    "पागल! आज महाशिवरात्रि है और वैसे भी भाभी प्योर वेज हैं, तो हम अब से घर में नॉनवेज नहीं बनाएँगे। क्या सही कहा ना भाई?" अक्षत ने मुस्कुरा कर कहा और लास्ट में अर्नव की तरफ देखकर हँसने लगा।

    "चलो अब सारी डिश डाइनिंग टेबल पर रखो।" अर्नव ने कहा और अपना एप्रन ठीक से रखने लगा।

    "क्या बात है अर्नव? लग रहा है अब जो कॉन्ट्रैक्ट मैरिज थी, अब रियल होने वाली है।" अभि ने अर्नव से धीरे से कहा।

    "ऐसा कुछ नहीं है। आज नहीं तो कल उसे यहाँ से जाना ही होगा, और ये बात तुम भी अच्छे से जानते हो।" अर्नव ने कहा और बाहर चला गया।

    "मैं सब जानता भी हूँ और पहचानता भी हूँ अर्नव। तभी बोल रहा हूँ। अभी संभल जाओगे तो बेहतर होगा। आगे बहुत तकलीफ़ होगी।" अभि ने खुद से ही कहा और किचन से बाहर चला गया।

    जब माही और दादा जी डाइनिंग टेबल पर आते हैं, वैसे ही दोनों हैरान हो जाते हैं। अभि, शेफ, डेविड, अक्षत चारों का हाल ही ऐसा था क्योंकि किसी ने एप्रन नहीं पहना हुआ था, तो सबके कपड़ों पर कोई ना कोई दाग था। किसी के बाल बिखरे हुए थे तो किसी के चेहरे पर आटा लगा हुआ था, लेकिन अर्नव, जिसने आधे से ज़्यादा खाना खुद ही बनाया था, वो एकदम साफ़-सुथरा दिख रहा था।

    "ये सब क्या है? कॉन्सेप्शन शो में जा रहे हो आप सब, जो ऐसे अतरंगी बने हो?" माही ने हैरानी से कहा। जब माही ने कहा, तब जाकर उन चारों को ध्यान आया कि वो कैसे दिख रहे थे। कुछ ही देर में सब के सब वहाँ से गायब हो गए तैयार होने। आखिर उनका पहला डिनर था जो उन्होंने अपनी भाभी के लिए बनाया था, ऐसे ही तो नहीं खा सकते थे ना?

    कुछ देर में सभी खाना खाने आते हैं। आज माही भी सब के साथ बैठ गई और गिरजू काका ने सबको खाना परोसा।

    "कैसा है खाना भाभी?" अक्षत से रहा नहीं गया। जैसे ही माही ने एक बाइट नान तोड़कर सब्जी की कटोरी में घुमाया, वैसे ही अक्षत ने उससे पूछ लिया। तो माही उसे घूरने लगी।

    "देवर जी, मैं मास्टर शेफ नहीं हूँ जो खुशबू से जान लूँ कैसा बना है। कहूँगी तभी पता चलेगा ना।" माही का कहना सही था, लेकिन सभी लोग जो टेबल पर बैठे हुए थे, उनका ध्यान बस माही के ऊपर ही था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई कॉम्पिटिशन चल रहा हो और माही उसकी जज हो।

    "वाह! कितना टेस्टी खाना बनाया है आप सबने! सच में सभी लड़कों को आपसे कुछ सीखना चाहिए।" माही ने सबकी तारीफ़ करते हुए कहा। बात भी सच थी, खाना सच में लाजवाब था।

    "थैंक्यू भाभी! मुझे तो पता ही था मैं खाना बनाऊँ और वो किसी को पसंद ना आए, वैसा कभी हो सकता है क्या?" अक्षत अपनी आदत से मजबूर खुद की तारीफ़ किए बिना नहीं रह पाया।

    "तुमने अकेले ने खाना बनाया है हाँ? तो हम सब क्या? किचन में आचार तल रहे थे?" डेविड की बात ही कुछ इस तरीके की थी कि सभी का चेहरा अपने आप उसकी तरफ़ घूम गया।

    "चुप करो तुम दोनों! सबने बेहद अच्छा काम किया है, उसके लिए मेरी तरफ़ से बहुत बड़ा थैंक्यू। चलो अब सब खाना खाओ।" माही ने कहा तो सभी खुशी-खुशी खाना खाने लगे।

    "अरे काका, आप क्यों खड़े हैं? बैठिए, खाना खाइए। और राजू भैया और चंदू भैया अभी तक नहीं आए खाना खाने?" माही ने कहा तो सभी अर्नव की तरफ़ देखने लगे। अर्नव को बिल्कुल पसंद नहीं था फैमिली के साथ कोई और खाना खाए, लेकिन अब जब माही ने गिरजू काका को खाने के लिए बोला था, तो अब कोई क्या ही बोले? किसी को समझ नहीं आ रहा था।

    माही देखती है कि सबका ध्यान अर्नव की तरफ़ है और अर्नव का माही की तरफ़।

    "क्या हुआ?" माही ने अर्नव और बाकी सब की तरफ़ देखकर कहा।

    "बैठिए काका, खाना खाइए।" अब जब अर्नव ने बोल दिया तो किसी की क्या चलती? गिरजू काका की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। वो जानते थे कि अर्नव, जिसने आज तक उन्हें काका तक नहीं बुलाया और उसकी तरफ़ देखा भी नहीं इतने सालों में कभी, आज उसने खुद कहा उसके साथ खाने के लिए। ये उनके लिए बहुत खुशी की बात थी।

    "अरे ये दाल में नमक कम है।" माही ने एक चम्मच दाल और चावल का लिया और कहा।

    "बेटा, हम आते हैं, रुको।" गिरजू काका ने कहा और जैसे ही जाने को हुए, माही ने उन्हें रोक दिया।

    "अरे काका, नहीं रुकिए! मैं लेकर आती हूँ।" माही ने कहा और किचन की तरफ़ बढ़ गई। जैसे ही माही किचन के पास पहुँची, उसकी चीख निकल गई।

    "आआआ…!"

    माही की चीख सुन सभी खड़े हो गए और अर्नव तुरंत दौड़कर किचन में पहुँचा।

    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ…

  • 17. Scam marriage - Chapter 17

    Words: 1264

    Estimated Reading Time: 8 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है, सब ठीक होंगे।

    अब तक हमने देखा...

    "बैठिए काका, खाना खाइए।" अर्नव के कहने पर गिरजू काका की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। वे जानते थे कि अर्नव, जिसने आज तक उन्हें काका तक नहीं बुलाया और उनकी तरफ देखा भी नहीं, इतने सालों में आज खुद उन्हें खाने के लिए बुलाया है। यह उनके लिए बहुत खुशी की बात थी।

    "अरे, इस दाल में नमक कम है।" माही ने एक चम्मच दाल और चावल लेकर कहा।

    "बेटा, हम आते हैं, रुको।" गिरजू काका ने कहा। किन्तु जैसे ही वे जाने को हुए, माही ने उन्हें रोक दिया।

    "अरे काका, नहीं रुकिए, मैं ले कर आती हूँ।" माही ने कहा और किचन की तरफ बढ़ गई। जैसे ही माही किचन के पास पहुँची, उसकी चीख निकल गई।

    "आआ..........।"

    माही की चीख सुनकर सभी खड़े हो गए और अर्नव तुरंत दौड़कर किचन में पहुँचा।

    अब आगे......

    "क्या हुआ? क्या हुआ? बताओ, ठीक तो हो तुम?" अर्नव ने माही को ऊपर से नीचे देखते हुए कहा। उसकी आवाज़ में पहली बार माही को अपनी चिंता दिखाई दे रही थी। अर्नव बहुत कम ही किसी की इतनी चिंता करता था। वहीं, जब दादा जी के साथ हमारे बाकी लड़के अंदर आकर अर्नव को ऐसे देखते हैं, तो उनकी तो आँखें ही बाहर आ गईं। यह उनका ही भाई था क्या?

    "लगता है भाई तो घबरा गया।" अक्षत ने कहा तो डेविड ने भी हाँ में गर्दन हिलाई।

    "क्या हुआ, आप मुझसे पूछ रहे हैं? क्या हुआ? यह क्या हाल है किचन का? आप लोग यहाँ खाना बना रहे थे? यह कोई जंग लड़ने गए थे? देखिए दादा जी, किचन का हाल! कहीं सब्जियाँ उड़ रही हैं, तो कहीं मसाले, और बर्तन! तो देखिए, इतने बर्तन खराब किए हैं कि लग रहा है पूरी बारात के लिए खाना बनाया हो। अभी मेरी बुआ जी होतीं ना, तो आप सबके कान खिंच-खिंच कर ये सारे बर्तन धुलवातीं।" कहते-कहते माही खामोश हो गई। वह अपनी बुआ के घर को कभी याद नहीं करना चाहती थी क्योंकि जो कुछ भी उस घर में हुआ था, माही के साथ, वह अब याद भी नहीं रखना चाहती थी।

    "अरे डोंट वरी भाभी, हम सब ठीक कर देंगे बाद में।" अक्षत ने सोचा, अभी काम करने के लिए हाँ बोलने में ही उनकी भलाई है। तभी राजू और चंदू भी आ जाते हैं और सब मिलकर खाना खाते हैं।

    खाना खाकर अक्षत, सेफ़, डेविड और अक्षत अपने-अपने कमरों में चले गए। दादा जी को गिरजू काका उनके कमरे में ले जाते हैं और अर्नव भी अब सोने अपने कमरे की तरफ जाने लगता है, तो माही उसे रोक लेती है।

    "पति जी, ये खाना तो आपने बना दिया, अब किचन की सफाई का क्या? बर्तन का क्या?" माही ने कहा। राजू और चंदू, जो अभी खाना खा रहे थे, की जान हलक में आ गई। उनके बॉस से आज तक किसी ने एक गिलास तक नहीं उठवाया और उनकी लेडी बॉस उनसे खाना बनवा रही हैं, ऊपर से सफाई भी करवा रही हैं।

    "खाना हमने बनाया ना, तो अब बाकी का काम चंदू और राजू करेंगे, समझ गए?" अर्नव ने कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। वहीं, जब यह राजू और चंदू ने सुना, तो उन्होंने खाना एक तरफ़ छोड़कर तुरंत किचन की तरफ़ भागे, यह देखने कि आखिर उनका काम कितना है।

    माही भी उन्हें किचन में जाते देख उनके पीछे जाती है।

    "आप दोनों जाइए भैया, मैं कर लूँगी।" माही ने उन दोनों की शक्ल देखी, जिनके अभी-अभी बारह बजे थे।

    "अरे नहीं-नहीं भाभी जी, आप जाइए, हम कर लेंगे।" राजू ने कहा। अब मरता क्या न करता? अगर उसके बॉस ने उन्हें ऑर्डर दिया था, तो उनका करना तो बनता था, वरना गोली चलना तय थी।

    "हाँ-हाँ भाभी जी, आप जाइए, वरना बॉस हमारी गेम बजा देंगे।" चंदू ने कहा तो माही वहाँ से चली गई। वह नहीं चाहती थी कि माही की वजह से अर्नव उन दोनों पर गुस्सा करे।

    "अबे यार, इससे अच्छा हम किसी की खोपड़ी खोल दें।" राजू ने बर्तन धोते हुए अपना दुखड़ा सुनाया। वही हाल चंदू का भी था।

    माही जब अपने कमरे में गई तो देखा अर्नव अपने बेड पर लेटा हुआ था। यह देख माही थोड़ी चौंक गई।

    "अरे-अरे-अरे, आप ऐसे कैसे मेरे बेड पर सो सकते हैं? चलिए उठिए! देखिए, हमने शादी की है, इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि आप जब चाहो मेरे करीब आ जाओ, ना बाबा ना।" माही बिना रुके बोलने लगी, लेकिन जब उसने अर्नव की गुस्से से भरी आँखें देखीं, उसकी बोलती बंद हो गई।

    "किसने कहा कि हम दोनों साथ में सोएंगे?" अर्नव ने माही को घूरते हुए कहा तो माही का मुँह बन गया।

    "इसमें किसी के कहने वाली क्या बात थी? आप मेरे बेड पर सोए हो तो क्या ही समझे कोई।" माही ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा।

    "यही समझेगा कोई कि तुम सोओगी सोफ़े पर, हम सोएंगे यहाँ। कहेगा कि हमको पड़ रहा है सोफ़ा छोटा। और एक बात कान खोल के सुन लो, तुम इस घर में हो हमारी और यह बेड भी हमारा, तो अब कट लो यहाँ से, समझ गई?" अर्नव ने कहा और चादर तानकर सो गया।

    वहीं माही अपने हाथों से ही उसका गला दबाने की कोशिश कर रही थी।

    "सो जाओ चुपचाप, हमको सपने में मारना, समझ गई?" अर्नव ने कहा तो माही थोड़ी डर गई। इनकी पीछे भी आँखें थीं।

    "सुनिए, मुझे कल कॉलेज जाना है, तो जाऊँ ना मैं।" माही कॉलेज जाना चाहती थी, लेकिन वह बिना अर्नव की परमिशन के नहीं जा सकती थी।

    "देखो, तुमको हमसे पूछने की ज़रूरत नहीं है, बस जहाँ जाया करो, हमको बता दिया करो। और हाँ, दूसरी बात, कहीं अकेले नहीं जाओगी तुम। और हाँ, याद रहे, जाओगी ऐसे कि सबको मालूम हो जाए कि बीवी हो तुम हमारी, समझ गई? अब जाओ सो जाओ, दिमाग खराब ना करो हमारा।" माही को समझ नहीं आ रहा था, अर्नव उसके लिए अच्छा है या बुरा। कभी उसकी बातें माही के दिल को छू जाती थीं, तो कभी उसके दिल को ठेस पहुँचा देती थीं।

    "मैं पानी का जग ले आती हूँ।" माही ने कहा और नीचे चली गई पानी लेने। वहीं अर्नव को भी यह समझ नहीं आता था कभी-कभी कि वह माही के लिए कुछ ज़्यादा ही नरम हो गया है। अगर ऐसा ही रहा, तो वह समय दूर नहीं जब अर्नव माही से खुद को कभी दूर नहीं कर पाएगा।

    माही नीचे जाती है तो देखती है राजू और चंदू बर्तन धोकर डाइनिंग टेबल पर ही सो गए थे और गिरजू काका किचन की सफाई कर रहे थे।

    "अरे काका, रहने दीजिए, सुबह कर लेंगे हम दोनों साथ में।" माही ने फ्रिज से पानी की बोतल निकालते हुए कहा।

    "नहीं बिटिया, हमारे लिए तो इतना ही काफी है कि हमारे अर्नव ने हमको काका बुलाया, खुद के साथ खाने का एक मौका दिया। सच में बिटिया, तुम्हारा यह एहसान हम कभी ना भूलेंगे।" कहते-कहते गिरजू काका की आँखों में आँसू आ गए। माही को यह बात बहुत ही अजीब लगी।

    "अरे काका, इसमें रोने वाली कौन सी बात है? अब से आप रोज़ ही हमारे साथ खाना खाएँगे।" माही ने कहा और पानी के जग में बोतल का पानी डालने लगी।

    "बिटिया, अर्नव भले बाहर से कठोर लगे, लेकिन हम जानते हैं, उसे बचपन से लेकर अब तक बहुत सारे दौर से गुज़रा है। उसका कभी साथ मत छोड़ना बेटा।" गिरजू काका ने हाथ जोड़कर कहा तो माही मुस्कुराकर गिरजू काका के हाथ को नीचे कर देती है।

    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी KJ के साथ........

  • 18. Scam marriage - Chapter 18

    Words: 1336

    Estimated Reading Time: 9 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है, सब ठीक होंगे।

    अब तक हमने देखा…

    "हम पानी का जग ले आते हैं।" माही ने कहा और नीचे पानी लेने चली गई। वहीं अर्नव को भी यह समझ नहीं आता था कि वह माही के लिए कुछ ज़्यादा ही नरम हो गया है। अगर ऐसा ही रहा, तो वह समय दूर नहीं जब अर्नव माही से खुद को कभी दूर नहीं कर पाएगा।

    माही नीचे गई तो देखा कि राजू और चंदू बर्तन धोकर डाइनिंग टेबल पर ही सो गए थे और गिरजू काका किचन की सफाई कर रहे थे।

    "अरे काका, रहने दीजिए, सुबह कर लेंगे हम दोनों साथ में।" माही ने फ्रिज से पानी की बोतल निकालते हुए कहा।

    "नहीं बिटिया, हमारे लिए तो इतना ही काफी है कि हमारे अर्नव ने हमको काका बुलाया और खाने का मौका दिया। सच में बिटिया, तुम्हारा यह एहसान हम कभी नहीं भूलेंगे।" कहते-कहते गिरजू काका की आँखों में आँसू आ गए। माही को यह बात बहुत ही अजीब लगी।

    "अरे काका, इसमें रोने वाली कौन सी बात है? अब से आप रोज़ ही हमारे साथ खाना खाएँगे।" माही ने कहा और पानी के जग में बोतल का पानी डालने लगी।

    "बिटिया, अर्नव भले बाहर से कठोर लगे, लेकिन हम जानते हैं, उसे बचपन से लेकर अब तक बहुत से दौर से गुज़रा है। उसका कभी साथ मत छोड़ना बेटा।" गिरजू काका ने हाथ जोड़कर कहा। तो माही मुस्कुराकर गिरजू काका के हाथ को नीचे कर दिया।


    अब आगे…

    गिरजू काका राजू और चंदू को उठाकर उनके कमरे में सोने के लिए भेज देते हैं। वहीं माही भी अपने कमरे में चली जाती है और सोफ़े पर लेटकर अर्नव के बारे में सोचने लगती है। आज जो कुछ भी अर्नव ने उसके लिए किया, वह उसका सपना था – एक अच्छा पति, एक बड़ा, पूरा, खुशहाल परिवार। और क्या चाहिए था उसे? लेकिन जो डर था गिरजू काका के मन में अर्नव के लिए, और जो नफ़रत और नाराज़गी दिखी माही को गिरजू काका के लिए, वह उसके लिए एक सवाल था जिसे वह सुलझाना चाहती थी, लेकिन कैसे?

    "सुबह दादा जी से बात करेंगे। शायद वही हमारी कोई मदद कर पाएँ।" माही ने मन ही मन खुद से कहा और फिर से अर्नव के बारे में सोचने लगी। सोचते-सोचते ना जाने कब उसे नींद आ गई, पता ही नहीं चला। उसके सोने के बाद अर्नव ने अपनी आँखें खोलीं और बाहर चला गया। बाहर जाकर वह अभी के कमरे की तरफ़ बढ़ गया।

    अर्नव ने अभी के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। अभी शायद जानता ही था कि अर्नव ज़रूर आएगा, इसलिए उसने जल्दी से दरवाज़ा खोला और अर्नव अभी के कमरे में आ गया।

    "हमारा पहला निशाना एकदम सटीक था। अब दूसरे की बारी है। डेविड से कहो कि पता करे कि राकेश बंसल कहाँ है, क्या कर रहा है। उसकी कुंडली निकलवाओ जल्द से जल्द।" अर्नव ने अभी से कहा, तो अभी ने बस हाँ में अपनी गर्दन हिलाई।

    "तुमने कहा था कि भाभी के कॉलेज को खरीदो, लेकिन उसका मालिक उसे बेचने को तैयार नहीं है।" अभी ने थोड़ा रुककर कहा। तो अर्नव की आँखें छोटी हो गईं।

    "अभी, अब से हमें तुमको सीखना होगा कि हम कैसे काम करते हैं। अगर कोई बात नहीं मान रहा, तो थोड़ी लात खिलाओ।" अर्नव को यकीन नहीं हो रहा था कि उसने कोई काम दिया और वह नहीं हो रहा था। यह बहुत ही कम होता था।

    "मालिक का नाम तो सुन लो पहले – विराट वालिया, भाभी के कॉलेज का मालिक।" अभी ने कहा, तो अब अर्नव को समझ आया कि क्यों अभी वह कॉलेज नहीं खरीद सका।

    "अच्छा, फिर तो और मज़ा आएगा। दुश्मन से उसकी चीज़ छीनते हुए।" अर्नव ने कहा और वहाँ से चला गया। उसके जाने के बाद अभी डेविड के रूम की तरफ़ बढ़ जाता है। अभी दरवाज़ा खटखटाता है, लेकिन डेविड दरवाज़ा नहीं खोलता। तो अभी डेविड के रूम की डुप्लीकेट चाबी निकालता है, जो कि हमेशा उसके पास रहती थी।

    "उठ बे! कब से दरवाज़ा पीट रहा हूँ, सुनाई नहीं देता क्या? कुंभकर्ण कहिं का! पता नहीं अर्नव को तुझ में ऐसा क्या दिखा जो तुझे यह डिटेक्टिव का काम सौंप दिया। हमको तो तू महा आलसी लगता है।" अभी ने डेविड को एक जोरदार लात मारी। तो डेविड सीधा बेड से नीचे गिर गया। गिरते ही उसने अपनी आँखें मसलीं और घड़ी में टाइम देखा। अगर इस टाइम कोई नॉर्मल इंसान ऐसे गिरता होता, तो अभी चिल्ला-चिल्लाकर अभी को मारता, लेकिन अब तो डेविड को आदत हो चुकी थी अभी के पैर से लात खाने की।

    "क्या यार अभी! रात के 1 बजे तुम्हें शांति नहीं है? और क्या बकवास कर रहा है कि अर्नव को मुझ में क्या दिखा? वैसे सच कहूँ तो अर्नव को मुझ में एक खूबसूरत लड़की दिखी, इसलिए उसने मुझे काम पर रख लिया। यह बात मैं तुझे कितनी बार बता चुका हूँ, तो बार-बार क्यों पूछता है?" डेविड ने खड़े होते हुए अंगड़ाई ली और कहा। तो अभी उसे घूरने लगा।

    "क्योंकि अब तक तूने मुझे यह नहीं बताया कि अर्नव को तुझ में लड़की कहाँ से दिखी, वह भी खूबसूरत?" अभी ने डेविड को देखते हुए कहा। डेविड एक गोरा-चिट्टा लड़का था, जो दिखने में क्यूट मगर नाज़ुक दिखता था, लेकिन उसका जासूसी में दिमाग बड़ा तेज चलता था।

    "वह सब ठीक है, लेकिन मेरी नींद में अभी खलनायक क्यों बन रहे हो?" डेविड ने वह सवाल किया जो कि अभी मायने रखता था।

    "राकेश बंसल की पूरी जन्म कुंडली निकलवाओ, भाई ने कहा है।" अभी ने कहा और चला गया खुद आराम से सोने। और यहाँ डेविड की नींद उड़ गई।

    "भाई! और एक यह कमीना! जब देखो ऑर्डर मार जाता है। मेरी नींद हराम कर खुद सोएगा। अब गधे बेच के हे माँ उठा ले मेरे को नहीं रे बाबा, उस कमीने अभी को।" डेविड ने अपनी दुख भरी दास्ताँ ऊपर वाले को सुनाई और खड़ा होकर फ़्रेश होने चला गया।

    अगली सुबह…

    माही ने सबके लिए नाश्ता बना दिया था। आज उसने एक काले रंग की साड़ी पहनी हुई थी और उससे मैच होते झुमके और घड़ी। बस बालों की पोनीटेल बनाकर माँग में सिंदूर लगाया हुआ था हल्के से। अर्नव ने अब तक रीति-रिवाजों के अनुसार उससे शादी नहीं की थी, लेकिन थी तो वह अर्नव की पत्नी ही। मंगलसूत्र ना सही, लेकिन सिंदूर लगाना बनता था।

    "राजू भैया, जाइए सबको नाश्ते के लिए बुला लीजिए। हमें फिर जाना भी है, देर हो रही है।" माही ने कहा क्योंकि अभी घड़ी में 7 बज रहे थे और 8 बजे उसके क्लास स्टार्ट हो जाते थे। तो कॉलेज जल्दी पहुँचना ज़रूरी था।

    "अरे बेटा, तुम यह सब क्यों कर रही हो? गिरजू संभाल लेगा, तुम जाओ कॉलेज, वरना लेट हो जाएगा।" दादा जी ने नीचे आकर जब देखा कि माही अभी तक घर में ही कामों में उलझी हुई है, तो उन्होंने उसे जाने के लिए कहा।

    "अरे नहीं दादा जी, आप बैठिए। मेरे जाने में अभी वक्त है। यहाँ से कॉलेज बस आधे घंटे में पहुँच जाऊँगी। आप नाश्ता कीजिए।" माही ने दादा जी को एक कुर्सी पर बिठाया और उन्हें नाश्ता परोसने लगी।

    "गुड मॉर्निंग भाभी! क्या बात है? खुशबू तो पराठे की मेरे रूम तक आ रही है।" अक्षत ने कहा। तभी सेफ भी आ गया। "गुड मॉर्निंग भाभी।" ऐसे ही अभी और अर्नव भी आ गए। चंदू काम से बाहर गया था और डेविड भी। तो उन दोनों के अलावा बाकी सब मौजूद थे।

    "डेविड भाई और चंदू भाई कहाँ हैं?" माही ने उन दोनों को न देखकर पूछा।

    "दोनों काम से बाहर गए हैं भाभी। आकर खा लेंगे। आप बैठिए, नाश्ता कीजिए।" सेफ ने कहा तो माही भी नाश्ता करने बैठ गई।

    नाश्ता करने के बाद राजू माही को कॉलेज छोड़ने जाता है। वहीं अर्नव, सेफ और अभी अपने मीटिंग रूम में चले जाते हैं। और दादा जी, अक्षत अपनी डेट पर जाने की तैयारी करने लगते हैं।

    आखिर अर्नव है कौन? और किन लोगों को निशाना बना रहा है? अतीत में आखिर क्या राज़ छिपे हैं?

    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी kj के साथ…

  • 19. Scam marriage - Chapter 19

    Words: 1378

    Estimated Reading Time: 9 min

    हेलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है, ठीक होंगे। एक शिकायत ज़रूर है: आप सब कहानी पढ़ते तो हो, लेकिन कमेंट या रेटिंग नहीं देते। इस बात का दुख है हमें, लेकिन फिर भी हम यह कहानी पूरे दिल से लिखते हैं।


    अब तक हमने देखा…


    "अरे नहीं, दादा जी! आप बैठिए। मेरे जाने में अभी वक्त है। यहाँ से कॉलेज बस आधे घंटे में पहुँच जाऊँगी। आप नाश्ता कीजिए।" माही ने दादा जी को एक कुर्सी पर बिठाया और उन्हें नाश्ता परोसने लगी।


    "गुड मॉर्निंग, भाभी! क्या बात है? खुशबू तो पराठे की मेरे रूम तक आ रही है।" अक्षत ने कहा। तभी सेफ भी आ गया, "गुड मॉर्निंग, भाभी।" ऐसे ही अभी और अर्नव भी आ गए। चंदू काम से बाहर गया था और डेविड भी। उन दोनों के अलावा बाकी सब मौजूद थे।


    "डेविड भाई और चंदू भाई कहाँ हैं?" माही ने उन दोनों को न देखकर पूछा।


    "दोनों काम से बाहर गए हैं, भाभी। आकर खा लेंगे। आप बैठिए, नाश्ता कीजिए।" सेफ ने कहा तो माही भी नाश्ता करने बैठ गई।


    नाश्ता करने के बाद, राजू माही को कॉलेज छोड़ने गया। वहीं अर्नव, सेफ और अभी अपने मीटिंग रूम में चले गए। और दादा जी, अक्षत अपनी डेट पर जाने की तैयारी करने लगे।


    आखिर अर्नव कौन है? और किन लोगों को निशाना बना रहा है? अतीत में आखिर क्या राज़ छिपे हैं?


    अब आगे…


    अर्नव के रूम में जो सीक्रेट रूम था, वहीं तीनों जमा हुए थे।


    "डेविड जैसे ही उसकी कुंडली निकालकर आता है, वैसे ही हम हमारा प्लान बनाएँगे।" अभी ने कहा तो अर्नव ने अपनी गर्दन हाँ में हिलाई।


    "लेकिन मुझे नहीं लगता कि इन कीड़ों-मकोड़ों के लिए वह वापस इंडिया आएगा।" सेफ का कहना अभी को सही लगा।


    "आएगा। आज नहीं तो कल। उसे उसकी मौत खींच लाएगी जो महाकाल ने सत्रह साल पहले मेरे हाथों में लिखी थी। जैसे-जैसे उसके एक-एक कर सारे प्यादे खत्म होते जाएँगे, उसे पता चल जाएगा कि उसकी मौत उसके करीब आ रही है। समझें?" अर्नव की आँखें गुस्से से लाल थीं। जो कुछ भी सत्रह साल पहले हुआ था, उसे याद करना उसके लिए आसान बात नहीं थी। तभी सीक्रेट रूम के दरवाजे पर दस्तक हुई। अर्नव ने कैमरे में देखा, जो उसके रूम में छिपकर लगा हुआ था। यह डेविड था। उसे देख अर्नव दरवाजा खोल देता है।


    "बताओ, क्या पता चला?" अभी ने डेविड के आते ही सवाल किया।


    "इस फ़ाइल में उसकी सारी इनफ़ॉर्मेशन है। वह कब उठता है, कहाँ जाता है, कब क्या करता है, क्या खाता है, सब खबर है। लेकिन एक बात खास है: वह कभी खुद किसी काम में हाथ नहीं डालता। जो भी काम करता है, वह अपने आदमियों से करवाता है। इसलिए वह दुनिया की नज़र में एक आम बिज़नेसमैन है, जो कि स्टील की चीज़ें बेचता है। लेकिन यह तो सब दिखावा है। उसका असली धंधा तो किडनैपिंग और बच्चों को खरीदना और बेचना है।" डेविड ने फ़ाइल अर्नव को दी। अर्नव एक-एक कर के राकेश की सारी खबर पढ़ने लगा।


    "कोई खास बात? क्या हम उसे पकड़ सकते हैं?" अभी ने डेविड की तरफ देखकर पूछा।


    "एक बात पता चली है कि वह हर महीने की पंद्रह तारीख को एक बार चेक करने ज़रूर जाता है कि वह बच्चे, जिन्हें उन्होंने किडनैप कर रखा है, वह बराबर हैं ना। हमारे पास वह एक मौका है कि हम उसे रंगे हाथ पुलिस को सौंप सकें।" डेविड ने कहा तो अर्नव सोच में पड़ गया।


    "तो अब तक पुलिस उसे क्यों नहीं पकड़ पाई?" सेफ ने सवाल किया जो उसके मन में खटक रहा था।


    "राकेश पर किसी का शक ही नहीं जाता, तो कैसे कोई उसे पकड़ेगा? लेकिन मैं हूँ डेविड, जिसके पीछे पड़ जाऊँ, उसका ले लेता हूँ सुख और चैन।" डेविड और अक्षत बिना खुद की तारीफ़ किए नहीं रह पाते।


    "ठीक है, अपनी तारीफ़ छोड़ और काम पर लग जा।" अभी ने कहा तो डेविड ने अपना मुँह बना लिया।


    वहीं दूसरी तरफ, एमके कॉलेज में…


    माही राजू को कॉलेज से थोड़ी दूरी पर कार रोकने के लिए कहती है ताकि कोई उसे इतनी बड़ी कार, बी.एम.डब्ल्यू में आते हुए न देखे। लेकिन जैसे कि अर्नव के ऑर्डर थे कि राजू माही को उसके कॉलेज के अंदर तक छोड़ आए, राजू ने वैसा ही किया।


    "भैया, देख लीजिएगा! एक दिन आपकी पत्नी आएगी और आपसे घर का सारा काम करवाएगी। तब याद करना मुझे, कि था वो एक मनहूस दिन जब आपने मेरे जैसे भोली-भाली, मासूम लड़की के साथ अन्याय किया था।" माही ने कार से नीचे उतरने से पहले यह कहा और फिर जल्दी उतरकर चली गई। अभी उसने कुछ कदम चले ही थे कि उसके सामने एक लड़की आकर खड़ी हो गई।


    "ये क्या है हाँ? मुझे कहाँ था कि मैं कल आती हूँ। तू ऐसे आएगी, इसकी उम्मीद नहीं थी मुझे। मुझे लगा ये शादी वाली बात मज़ाक होगी, लेकिन सच में तूने शादी कर ली क्या? ठीक है, कर भी ली तो कोई बात नहीं, लेकिन मुझे कैसे नहीं बुलाया शादी में? ठीक है, नहीं बुलाया तो लेकिन कम से कम इस गेटअप में तो ना आती कॉलेज।" आंचल ने सवालों की लाइन लगा दी और माही का ऐसे साड़ी और सिंदूर में आना उसे बेहद ही अजीब लग रहा था।


    "चुप कर! बताती हूँ सब, कि इन दो दिनों में क्या-क्या हुआ। चल, चलते-चलते बात करते हैं।" माही ने आंचल का हाथ पकड़ा और अपने क्लासरूम की तरफ बढ़ गई।


    माही क्लासरूम तक पहुँचने से पहले, इन दो दिनों में उसके साथ जो कुछ भी हुआ था, वह सब आंचल को बता दिया। आंचल काफी हैरान थी कि माही इस शादी से नाराज़ होने की जगह पर खुश थी।


    "पागल है तू! उसने तुझसे तेरी ख़ुशी से शादी नहीं की, धमकी देकर शादी की है, बे!" आंचल ने ज़ोर से कहा तो सब आस-पास के लोग उसे देखने लगे। माही ने चारों तरफ़ नज़र घुमाई और लास्ट बेंच पर जाकर बैठ गई।


    "धीरे बोल, पागल! और सुन ध्यान से मेरी बात। प्यार का पता नहीं, लेकिन मुझे वहाँ सुकून और खुशी दोनों मिलती है जो कभी बुआ के घर में नहीं मिली। हर लड़की का सपना होता है ना कि उसका एक खुशहाल परिवार हो, उसका ख्याल रखने वाला एक पति हो, तो मेरे पास है ना वो सब जो मैं चाहती थी। तो और क्या चाहिए मुझे? और तुझे पता है, मैं उनकी लीगली वाइफ हूँ। फिर भी उन्होंने कभी मुझे छूना तो दूर, कभी गलत नज़र से देखा भी नहीं है। तेरी कहानियों में अक्सर तू लिखती है ना कि हीरोइन पर जो लड़का रेप जैसे घटिया काम करता है, उसे तू हीरो बना देती है और उससे उस लड़की को प्यार भी हो जाता है। बताओ अब तो मैं कैसे उनके साथ ना रहने का सोचूँ, जबकि उनका परिवार और वो दोनों ही इतने अच्छे हैं।" माही मानो अर्नव को याद कर किसी सपने में खो चुकी थी।


    "वो अलग बात है, माही। वो कहानी होती है जिसमें सब काल्पनिक है, लेकिन यह तेरी ज़िंदगी का सवाल है। अगर उसने तुझे कुछ टाइम बाद तलाक़ दे दिया तो क्या फिर तू उससे दूर रह पाएगी? क्योंकि मुझे तो साफ़ दिख रहा है कि तुझे उससे इन दो दिनों में ही बहुत लगाव हो गया है, या यह कहूँ कि प्यार हो गया है, तो वो भी गलत नहीं होगा।" आंचल जो कि समझ पा रही थी और देख भी पा रही थी काफ़ी अच्छे से कि माही के मन में अर्नव के लिए जगह बन गई है।


    "चुप कर! ऐसा कुछ नहीं है। मैं बस उनकी इज़्ज़त करती हूँ। वैसे, पलक और फलक नहीं दिख रही। आज आई नहीं हैं क्या?" माही ने अपनी नज़र क्लास में घुमाई और कहा। तभी क्लास में प्रोफ़ेसर आ गए तो सब खड़े हो गए।


    "तुझे तो पता है, दोनों वाधवानी सर के लेक्चर के बाद आएंगी।" आंचल ने वही टोन में कहा, लेकिन अब जब सारी क्लास शांत थी तो उसकी आवाज़ पूरे क्लास में गूंज उठी। आंचल की यह बहुत ही ख़राब आदत थी कि उसे धीरे बोलना नहीं आता था। उसे ऐसा लगता था कि वह धीरे बोल रही है, लेकिन होता ज़ोर से था।


    "आंचल और माही, गेट आउट फ़्रॉम द क्लास।" वाधवानी सर ने कहा तो माही ने जोर से आंचल का हाथ पकड़ा और बाहर चली गई।


    आखिर अर्नव का मक़सद क्या है? वह किसी को वापस इंडिया लाना चाहता है?


    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे यानी केजे के साथ…

  • 20. Scam marriage - Chapter 20

    Words: 1225

    Estimated Reading Time: 8 min

    हैलो दोस्तों, कैसे हो आप सब? उम्मीद है, सब ठीक होंगे।

    अब तक हमने देखा...

    "वो अलग बात है माही, वो कहानी होती है जिसमें सब काल्पनिक है, लेकिन ये तेरी ज़िंदगी का सवाल है। अगर उसने तुझे कुछ टाइम बाद तलाक़ दे दिया, तो क्या फिर तू उससे दूर रह पाएगी? क्योंकि मुझे तो साफ़ दिख रहा है कि तुझे उससे इन दोनों दिनों में ही बहुत लगाव हो गया है, या ये कहूँ कि प्यार हो गया है, तो वो भी गलत नहीं होगा।" आचल, जो समझ पा रही थी और देख भी पा रही थी काफ़ी अच्छे से कि माही के मन में अर्नव के लिए जगह बन गई है।

    "चुप कर, ऐसा कुछ नहीं है। मैं बस उनकी इज़्ज़त करती हूँ। वैसे, पलक और फलक नहीं दिख रही हैं। आज आई नहीं हैं क्या?" माही ने अपनी नज़र क्लास में घुमाई और कहा। तभी क्लास में प्रोफ़ेसर आ गए, तो सब खड़े हो गए।

    "तुझे तो पता है, दोनों वाधानी सर के लेक्चर के बाद आएंगी।" आचल ने उसी टोन में कहा, लेकिन अब जब सारी क्लास शांत थी, तो उसकी आवाज़ पूरे क्लास में गूंज उठी। आचल की ये बहुत ही ख़राब आदत थी कि उसे धीरे बोलना नहीं आता था। उसे ऐसा लगता था कि वो धीरे बोल रही है, लेकिन होता ज़ोर से था।

    "आचल और माही, गेट आउट फ़्रॉम द क्लास।" वाधानी सर ने कहा। तो माही ने जोर से आचल का हाथ पकड़ा और बाहर चली गई।

    अब आगे...

    "देखा, हर बार तेरी ये ज़ोर से बोलने की आदत के चलते हमें आज भी बाहर निकाल दिया।" माही कैंटीन की तरफ़ बढ़ गई।

    "अरे, मैं कहाँ ज़ोर से बोलती हूँ? और एक बात तो सुन, तूने मुझसे कहा था नोट्स तैयार हैं, उसका क्या?" आचल ने अपनी नोट्स को याद करते हुए कहा।

    "अरे हाँ, वो तो मैं भूल ही गई। उसे लेने तो बुआ जी के घर जाना होगा। मेरी भी नोट्स वहीं हैं। ये तो राजू भैया ने बस कुछ किताबें खरीद दी हैं।" माही ने सोचते हुए कहा।

    "अरे, ये दोनों तो यहाँ हैं।" आचल ने कैंटीन में एक टेबल पर पलक और फलक बैठे देख कहा। माही और आचल भी उसी टेबल की तरफ़ बढ़ गईं।

    "ले, ये माही रानी जी कब आई हमारे ग़रीब कॉलेज में?" पलक ने माही के गले लगते हुए कहा। पलक की ज़ुबान बहुत मीठी और दिमाग एकदम ज़हर के माफ़िक।

    "मैं और आचल अभी तुम दोनों को ही याद कर रही थीं, तभी तुम दोनों यहाँ मिल गईं।" माही ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।

    "अरे, रहने दे, रहने दे। ऐसा होता तो बस आचल को कॉल नहीं आता, तुम्हारा हमें भी आता कि कहाँ हो, कैसी हो, कब शादी हुई, किस्से हुए, कुछ तो बताती।" फलक जितनी ज़ुबान से तेज थी, उतनी ही हाथ-पैर चलने में भी माहिर थी। फलक और पलक जुड़वा बहनें थीं।

    "ऐसी बात नहीं है। दरअसल, मैंने अपने घर के लैंडलाइन से कॉल किया था। अभी शादी हुई है, तो मैं किसी से ज़्यादा बात कर भी तो नहीं सकती ना।" माही ने मासूम चेहरा बनाकर कहा।

    "अबे जा, जा। सच तो ये है कि तुझे आचल के सिवा किसी के नंबर याद ही नहीं, तो कॉल कैसे करती?" फलक ने कहा। तो माही ने बस बत्तीसी दिखा दी, क्योंकि यही बात सच थी। बुआ जी के घर तो वो फ़ूफ़ा जी के फ़ोन से सबसे बात कर लेती थी, लेकिन उसको नंबर बस आचल के याद थे, क्योंकि वो आसान थे।

    "अरे, बस कर फलक। माही की क्या गलती है इसमें? आचल ने तो तुझे सारी बात बता दी ना, तो अब क्या है गुस्सा?" फलक को बस एक ही इंसान सुना सकता था, वो थी पलक, वरना वो किसी की सुनती नहीं थी।

    "मेरे तो हाथ-पैर फट गए हैं।" फलक ने थोड़ी नोटंकी की।

    "हाँ हाँ, फट गए, फट ही गए। अब चुप कर तू। और तू बता माही, आखिर क्या चल रहा है लाइफ में?" पलक ने कहा, क्योंकि अभी तक पलक और फलक को पूरी बात नहीं पता थी। आचल उनको सारी बात बताती है जो बात माही ने उसे बताई थी।

    "गज़ब हो बे! ख़ैर, जाने दो। अब जब तुमको प्यार का बुख़ार ही लगा है, तो कोई क्या कर सकता है? मिलवाओ फिर जीजा जी से।" फलक ने कहा, तो बाक़ी तीनों उसे घूरने लगे।

    "ख़बरदार! जो मेरे पति पर डोरे डाले या मेरे देवरों में से किसी को डोंगी बनाया, तो समझी तू।" सभी फलक की आदतों से वाक़िफ़ थे। उसके बॉयफ़्रेंड चप्पल की तरह बदलते रहते थे, इसलिए माही नहीं चाहती थी कि फलक उसके घर में कुछ बवाल करे।

    "पागल गई हो क्या? मेरा टेस्ट अभी इतना भी ख़राब नहीं हुआ कि मैं गुंडों से चक्कर चलाऊँ। वो तो बस जीजा हैं, तो सोचा जान-पहचान बढ़ाऊँ।" फलक ने अपनी बेगुनाही दिखानी चाही।

    "माही, ये सब क्या है? और तुम सब यहाँ क्या कर रही हो? क्लास नहीं है क्या?" विराट को देख सभी खड़े हो गए। कैंटीन में तो विराट सबको बैठने का इशारा करता है, लेकिन माही का ग्रुप खड़ा ही रहा।

    "जी सर, क्लास तो है, लेकिन वाधानी सर ने बाहर निकाल दिया, क्योंकि आचल थोड़ा ज़ोर से बोल गई।" माही ने कहा, तो आचल उसे घूरने लगी।

    "हरीश चंद्र बनने की क्या ज़रूरत थी? हम जानते हैं ये तेरा क्रश है, लेकिन दोस्ती भी तो कुछ होती है।" आचल ने धीरे से माही के कान में कहा। ये पहली बार था जब उसने सच में धीरे बोला था। ऐसा कभी-कभी हो जाता था।

    "मैं बात करता हूँ मिस्टर वाधानी से, और तुम्हें माही, कॉलेज के मीटिंग रूम में बुलाया गया है।" विराट ने कहा और वहाँ से चला गया। कॉलेज में लगभग सभी को मालूम था कि माही एक स्कैम में फँस गई थी और उसकी शादी शहर के सबसे मशहूर डॉन से हुई है, इसलिए इतने बड़े कांड के बाद भी किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो माही के ख़िलाफ़ कुछ कहे।

    "चल, मैं भी साथ चलती हूँ।" आचल ने इतनी ज़ोर से कहा था कि सभी कैंटीन में बैठे लोग उनकी तरफ़ देखने लगे, तो माही ने आचल के हाथ पर एक चुटकी काट ली।

    "आह! क्या कर रही है?" आचल ने अपना हाथ सहलाते हुए कहा।

    "धीरे बोलना तो लाउडस्पीकर कहीं की।" फलक ने कहा, तो आचल का मुँह बन गया।

    "चलो, हम भी साथ चलते हैं।" पलक ने कहा, तो चारों कॉलेज के मीटिंग रूम की तरफ़ बढ़ गईं।

    वहीं दूसरी तरफ़, दादा जी के कमरे में, राजमहल मेंशन, अर्नव की लंका में...

    "दादा जी, आप तैयार हुए कि नहीं? वो लड़की इंतज़ार कर रही होगी।" अक्षत तैयार होकर दादा जी के कमरे में आकर बोलता है। तभी उसकी नज़र दादा जी पर जाती है। जीन्स, टी-शर्ट, और बालों और मूँछों को काला कर दादा जी 70 से सीधे हो गए थे 40 स्टाइल में। तो वो अक्षत को भी फ़ेल कर रहे थे।

    "दादू, हम मेरे लिए लड़की पसंद करने जा रहे हैं, आपके लिए दादी नहीं।" अक्षत ने कहा, तो दादा जी का मुँह बन गया।

    "चल, चल। अब लेट हो रहा है। जल मत मेरी ख़ूबसूरती से।" दादा जी ने कमरे से बाहर जाते हुए कहा। वहीं अक्षत की तो आँखें ही हैरानी से बाहर आ गईं।

    क्या सच में माही करती है विराट को पसंद? क्या होगा जब ये बात पता चलेगी अर्नव को? क्या ख़त्म हो जाएगी आरवाही की ये कहानी शुरू होने से पहले ही?

    जानने के लिए अभी पढ़ें मेरे यानी KJ के साथ…