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मन वैरागी है

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Siya

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एक प्रेम कहानी जो शादी के बाद शुरू होती हैं....... जहां प्यार है लेकिन शब्द नहीं,बस एहसास हैं। और एहसासों में बसा एक रिश्ता जो दो लोगों के इर्द-गिर्द शुरू होता है ।और बस जीवन भर साथ चलने के लिए , एक लंबे सफर पर निकल पड़ा है।कोई एक वादा नहीं, लफ़्ज़ न...

Total Chapters (37)

Page 1 of 2

  • 1. मन वैरागी है - Chapter 1

    Words: 1527

    Estimated Reading Time: 10 min

    तुम कपड़े बदल सकती हो..! बहुत भारी है ।परेशानी हो रही होगी ?कमरे में आकर उसने पहला जुमला यही बोला और अपने कपड़े बदलना चला गया। वह ड्रेसिंग टेबल के आगे बैठी अपने गहने उतार रही थी। जब वह सफेद पजामा कुर्ता पहनकर बाथरूम से बाहर निकला।

    उसके हाथ अपने बालों से पिन निकालने में व्यस्त थे। जो उसकी सहेलियों और भाभियों ने बेवजह लगा दी थी ।जबरदस्ती की इतनी पिन कौन लगाता है? जिनकी जरुरत भी नहीं हो।
    देखना जीजू के हाथ दर्द करने लग जाएंगे ,इनको निकालते निकालते ....ढूंढ ढूंढ कर निकालनी पड़ेगी.... कहां कहां लगाई है ...?सच में उसके हाथ दर्द करने लगे थे। बाल खींच रहे थे वह अलग। इतने जेवर, इतनी सारी चूड़ियां और पैरों में भारी सी पायल ऊपर से भारी भरकम लहंगा क्या क्या उतारे.... कैसे करें? समझ ही नहीं आया।

    उन्होंने कितने हसीन सपने दिखाए थे, इस रात के लिए ...वे सब कहां खो गए ?उसका ख्वाब महज पानी का बुलबुला साबित हुआ ,जो पल भर में फूट गया ।
    आंखों के सामने धुंध की चादर हटी तो वहां कुछ धुंधला नहीं था, सब साफ साफ नजर आ रहा था। उसकी आंखों में खारा पानी जमा हो गया, अब उसे अपना अक्स भी आईने में धुंधला दिखाई दे रहा था ।कांपते हाथों को उठाया और झटके से उन्हें पौंछ डाला। कहीं वह देख ना ले? तरह-तरह के सवालों का कैसे सामना करेगी ?क्यों रो रही थी? क्या वजह थी? पहले ही दिन उनका रिश्ता सवालों के घेरे में आ जाएगा। अपनी तरफ से शुरुआत उसे अच्छी ही करनी थी।

    उसका इतना रूखा व्यवहार देखकर मन पर बोझ आ गया। अभी थोड़ी देर पहले उसके शादी का जोड़ा जो उसे मनमोहक लग रहा था ।उसे पहनकर खुशियों से भर उठी थी ।उसका भार पहाड़ की तरह लगने लगा। उसके शरीर से लिपटे जेवर उसे सांपों की तरह लग रहे थे। मानो उसे बेवजह इनमें जकड़ा गया हो ।
    साज शृंगार का पति के प्यार बिना कोई मोल नहीं ।यह उसे समझ आ रहा था। प्रेम ही सबसे खूबसूरत गहना है ।और वही उसे नहीं मिल रहा ,शादी के पहले ही दिन।

    आधे घंटे की मशक्कत के बाद उसने इन तामझाम से खुद को आजाद किया और कपड़े बदलने के लिए उठ खड़ी हुई।

    सुनो यह चुडियां भी उतार दो ।बहुत शोर कर रही है ।उसने एक बार अपने हाथों को देखा और वापस बैठकर चूड़ियां निकालने लगी। खाली हाथ अच्छे नहीं होते ,शादीशुदा औरत के लिए वह भी जब नई-नई सुहागन है । उसने एक एक चूड़ी अपने हाथों में रहने दी। आखिर यह उसके सुहाग की निशानियां  थी ।

    अब वह कपड़े बदल देगी, उठकर जाने लगी, तो पायल ने शोर किया।

    प्लीज इन्हें भी निकाल दो। मुझे शोर-शराबे में नींद नहीं आती। सोने के लिए पिन ड्रॉप साइलेंस की जरूरत लगती है। एक बार फिर ड्रेसिंग टेबल के आगे रखें मुड्ढे पर बैठी । पैर पर पैर रखकर झुकते हुए पायल निकालने लगी ।आंखें फिर आंसुओं से भर उठी। न जाने क्यों बहुत बुरा लग रहा था। क्या क्या कह रही थी भाभियां? क्या क्या होगा ?और क्या हो रहा है? एक भी बात उनके कहे अनुसार नहीं थी ।वहां का नजारा बिल्कुल उनकी बातों के विपरीत था।

    क्यों? क्या वह मुझे पसंद नहीं करते ?शादी तो रजामंदी से हुई होगी? इतना बड़ा खानदान ,इतना बड़ा घर और इतना रुतबा है इनका? इकलौता बेटा है ,कोई क्यों उसके मर्जी के खिलाफ जाकर जबरदस्ती उसकी शादी करवाएगा ?मन में विचारों का सागर उमड़ रहा था व जवाब एक का भी नहीं ....

    पूछे भी तो आखिर किससे? जैसे तैसे सब निकाल कर खुद को उन कपड़ों से आजाद करवाया और आसमानी रंग का सूट पहने बाहर आई जो उसके गोरे गोरे मुखड़े को और निखार रहा था। आंखों में थोड़ी नमी थी और चेहरे पर थोड़ी सी मायूसी।

    कमरा फूलों से लबालब भरा हुआ था। गुलाब गेंदे की लड़ियां, व्हाइट लिली के बुके, जगह जगह पर लाल रंग और गुलाबी रंग के हर्ट शेप वाले गुब्बारे, बेड पर गुलाब की पंखुड़ियां बड़ी शान से बिखरी हुई थी ।एक बास्केट में जैस्मिन के फूल भर कर रखे हुए थे। जब उसे उसकी बहने छोड़ने आई थी, तब उसने कहते सुना था, कि यह उसके कजन का काम है। कह रहे थे कि भाभी का जो नाम है, आखिर वह फूल भी तो होने चाहिए।

    उनकी खुशबू उसकी सांसों में खुल रही थी और उनकी महक से एक मीठा मीठा सा एहसास दिल में फिर उभर आया।

    आसमानी रंग के सादे सूट में जिसके सिर्फ बॉर्डर पर धागे की कढ़ाई का काम था। वह शिफॉन की चुन्नी गले में डाले इधर उधर तक रही थी। वहां खड़ी सोच रही थी, अपने जेवर अभी संभाले या सुबह......?
    वैसे भी सवेरे जल्दी उठकर तैयार होना था ,मुंह दिखाई के लिए औरतों का हुजूम इकट्ठा होगा और उसे फिर मूर्ति की तरह सज सवांर कर बिठा दिया जाएगा ।कोई सुंदरता की तारीफ करेगा, कोई कपड़ों की ,कोई गहनों की ,कोई उसे छेड़खानिया करेगा, तो कोई उससे रात के बारे में पूछेगा ?क्या जवाब देगी वह?

    वह खुशी और रौनक जो सुबह औरतें उसमें देखना चाहेगी। वह कहां से लाएगी ?उसने एक नजाकत के साथ कुणाल की ओर देखा, जो अपना फोन चला रहा था।

    यहां आओ...; कुणाल ने कुछ देर उसे देखने के बाद कहा। आसमानी सादे सूट में वह भली सी लग रही थी। बिना मेकअप के अब उस की प्राकृतिक सुंदरता निखर कर सामने आई थी। आंखों में मासूमियत ,हल्के गुलाबी होंठ, भूरी आंखें जिनका रंग बालों के रंग से मेल खाता था, गोरी त्वचा और उस पर वह आसमानी सूट कितना खिल रहा था, लंबे बाल खुले थे ।अभी ही उन्हें जुड़े से आजाद किया था। वह उन्हें पीछे करती उसके पास आकर खड़ी हो गई। बार-बार उड़ कर आगे आती लट्टो को कानों के पीछे कर रही थी, बड़ी ही अदा से।

    यहां बैठो ,उसने अपने पास बैठने का इशारा किया ।साइड का ड्रॉवर खोला और एक डिब्बी निकालकर उसके आगे कर दी। तुम्हारी मुंह दिखाई ....

    उसने थोड़ा थरथराते हुए से हाथ आगे बढ़ाया। कुणाल का गंभीर लहजा उसे भयभीत कर रहा था ।सफेद कुर्ते पजामे में गहरी काली आंखों वाला शख्स, चेहरे से ही गंभीर था। आंखों में इतनी संजीदगी की कोई सीधा उसकी आंखों में ज्यादातर देख भी नहीं पाए ।वो काली गहरी आंखें... समुंद्र सी गहराई आंखों में समाए हुए थी। जिनमें कोई कोई ही उतरता ।इतनी गहरी आंखों में उसकी देख पाने की हिम्मत तक नहीं थी ,फिर वह उसके दिल में किस प्रकार उतरती ?चेहरे पर दाढ़ी थी और काले घनेरे बाल बिल्कुल दाढ़ी जैसे। वह एक पैर सीधा किए और एक पग मोड़े घुटने पर हाथ रखे बेड के सहारे तकिया लगा कर बैठा था। एक हाथ में अभी मोबाइल थाम उसे देख रहा था।
    बहुत ही गंभीर शख्सियत का मालिक, अब वह उसका हमसफर था। इस इंसान की आंखों में कैसे झांकेंगी ?इसके मन में कैसे उतरेगी? और उसकी ख्वाहिशों ......जो उसे दिख ही नहीं रही थी, उनको कैसे जानेंगी?

    क्या हुआ ?खोलकर नहीं देखोगी ?

    जी...मुझे ...मैं देखती हूं। कब से वह है ,उसे ताड़ रही थी। शायद पढ़ने की कोशिश कर रही थी। नजरें घुमा कर उसने डिबिया खोल दी। सुंदर नगीने की अंगूठी चमक रही थी। बहुत ही प्यारी और आकर्षक लग रही थी, चार चांद लग जाते, अगर कुणाल इसे अपने हाथों से उसे पहना देता, होठों पर मुस्कुराहट लाकर उसे देता, ना कि इस गंभीरता के साथ।

    पसंद आई?

    बहुत सुंदर है ...!

    पहनो...... साइज चेक कर लो ,छोटी बड़ी हुई तो ठीक करवा दूंगा।

    उसने उसे अनामिका उंगली में डाल दिया। अब वह और भी खूबसूरत दिख रही थी पर यह बताने वाला कोई नहीं था आसपास।

    ठीक है..? उसने फोन में देखते हुए ही एक बार नजरें उठा कर जैस्मिन के हाथों की ओर देखा।

    जी.. पूरी आई है। वह वापस निकालने लगी।

    इसे पहले रख सकती हो।

      जी ....उसे लगा बाकी सब गहनों की तरह इसे भी उतारने को  कहेगा।

      वह वहां से उठी और बेड की दूसरी साइड आकर लेट गई।
    कुणाल ने फोन साइट टेबल पर रखा और लाइट बंद करके सो गया।
    अभी कमरे में बस मोमबत्तियों की रोशनी थी और उस मध्दम उजाले में तरह तरह के फूल और उनकी खुशबू सांसों में घुल रही थी ।कमरे का दृश्य और भी मनभावन लगने लगा ।उसने एक नजर चारों और दौड़ाई कमरे का जायजा लेने के लिए और कुणाल की ओर देखा, जो बेड पर सीधा लेटा हुआ था ,अपने पैरों पर कंबल डालें ।

    बेड पर बिछी पंखुड़ियों की तरह उसने उस का ख्वाब भी रौंद डाला, प्यार का........

    उसने भी फिर आंखें बंद कर ली ,जब एक हाथ उसके ऊपर आया।।


    कुछ भ्रांतियों को छोड़कर,मन की कुंठा ओं को तोड़ कर, अनखुली गांठों को खोलकर, अपनी जिंदगी में किसी को शामिल करना था। जो उससे हो नहीं पा रहा था।इसकी गिरहें अतीत में थी। लेकिन वहां बस मन के रास्ते ही पहुंचा जा सकता था। और यही चुनौती थी उस नव विवाहिता के लिए, जहां एक नए माहौल में ढलने के लिए पहले प्यार और सहयोग की उसे दरकार थी। और यहीं से गुत्थी उलझतीं गई। कैसे सुलझाएंगे दोनों मिलकर..... और क्यूं पहेली बना हुआ है, एक शख्स जो उसकी जिंदगी में सबसे खास है।कहानी कुणाल और जैस्मिन की....... जिंदगी के उतार चढ़ाव पार करती, कुछ खट्टी कुछ मीठी।

  • 2. मन वैरागी है - Chapter 2

    Words: 3012

    Estimated Reading Time: 19 min

    सुबह अलार्म बजने से उसकी आँख खुली। रात ही उसे चेतावनी दी गई थी कि सुबह जल्दी उठना है; मुँह-दिखाई की रस्म है। गाँव में औरतें जल्दी ही आ जाती हैं, इसलिए सवेरे उठकर नहा-धोकर तैयार हो जाए। उसने देखा अलार्म की वजह से वह भी नींद से जाग रहा था। जल्दी से अलार्म बंद किया, लेकिन तब तक कुणाल उठ गया था। "सुबह हो गई...?", कुणाल ने पूछा। "जी...", उसने छोटा सा जवाब दिया और बिस्तर पर बैठ गई। "तुम्हें जल्दी नीचे जाना होगा... आज मुँह-दिखाई की रस्म है।" उसने नींद भरी आवाज़ में कहा। "जी, दादी ने बताया था। मैं बस उठ ही रही हूँ।" सुबह जल्दी उठना उसके लिए सबसे मुश्किल कामों में से एक था। पर अब उसे माँ ने भी अच्छे से समझाकर भेजा था कि ससुराल में जल्दी उठना होगा। गाँव के लोग जल्दी उठ जाया करते हैं। वहाँ जाकर शहरी तौर-तरीके उन पर थोपने की कोशिश मत करना। जितना जल्दी हो उनके जीवन में ढल जाओ, बेहतर होगा। वह नहाकर निकली। फिरोजी रंग का सूट पहना, जिस पर सिल्वर कलर की लेस थी और चुन्नी में कुंदन और मोती जड़े हुए थे। उसने दुपट्टा बेड पर ही रखा था; पहले उसे तैयार होना था। उसने अपने मेहँदी वाले हाथ देखे, जो अभी खाली थे। जल्दी ही चूड़ियाँ पहनने का ख्याल आया, पर कौन सी...? वह सोच में पड़ गई। नई बहू को नए घर में दुनिया भर की उलझन होती है, और कन्फ्यूज़न इतना कि ठीक से न पूछ पाती है और कुछ गलत करने का डर भी मन में बना रहता है। गाँव जैसे माहौल में ढलना और जॉइंट फैमिली में... उनके रहन-सहन का भी अंदाज़ा नहीं होता। वह अभी उलझन में खड़ी थी, उस सजीले सूट में, गीले बालों के साथ जिससे उसकी कमीज़ थोड़ी-थोड़ी भीग रही थी। मासूम चेहरा, सफ़ेद झक रंग, तीखे नैन-नक्श और उस पर पतले गुलाबी होंठ, नाक में वही सूट के रंग का नगीना चमक रहा था। उसने लाइट ऑन की और कुणाल ने कम्बल चेहरे पर डाल लिया। उसे बिल्कुल आदत नहीं थी, लाइट में सोने की। दिन में भी सोता तो कमरे में एकदम अंधेरा करके। उजाले में नींद ही नहीं आती थी। पर अब उसे अपनी कुछ-कुछ आदतें बदलनी होंगी। उसे तो वह क्या ही कह सकता है? जैस्मिन उसके इस तरह करने पर उसे देखती ही रह गई। एक नज़र भी उसने उसकी ओर नहीं डाली, जबकि रात वह यह फ़ासला भुला चुका था। रात को याद करके छोटी सी मुस्कान होंठों पर खिल गई। एकदम सफ़ेद जैस्मिन के फूल से मेल खाता उसका रंग अब थोड़ा-थोड़ा लाल हो रहा था। जल्द ही उसकी मुस्कान सिमट गई क्योंकि अब वह फिर से लबादा ओढ़ चुका था अपने गम्भीरतापूर्ण व्यक्तित्व का। जल्दी-जल्दी गहने पहनने लगी। रात जितने दर्द और दुख से उसने अपने जेवर उतारे थे, अब वैसा दुख और तकलीफ़ नहीं थी। उसने शादी का चूड़ा ही फिर से पहन लिया। सूट के मैचिंग चूड़ियाँ बैग में थीं और वह अलमारी में। वह फिर उठ जाएगा, हर एक कदम फूँक-फूँक कर रख रही थी ताकि वह इरिटेट ना हो। पहले उसने ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी अपने झाँझर उठाई, जो मेहँदी लगे पैरों में पहनने के बाद और भी सुन्दर लगने लगी थीं। बहुत हैवी डिज़ाइन था, पर चाँदी उसके सूट के लेस से मैच हो रही थी, जो और भी खिल रहा था। हाथों में चूड़ा पहना तो मेहँदी वाले हाथ और भी प्यारे दिखने लगे। कभी पायल की रुनझुन, कभी चूड़ियों की खनक-खनक कुणाल की नींद खराब कर रही थी, पर वह लेटा रहा। सब गहने एक-एक कर पहने तो उसे एक अलग ही खुशी महसूस हुई। श्रृंगार की शोभा और बढ़ जाती है, जब पति का प्यार हासिल हो। कुछ यादों के ज़र्रे उसकी आँखों के आगे उभर गए और वह हल्का सा मुस्कुरा दी। इतनी भी बेरंग नहीं रही, उसके नए जीवन की शुरुआत। पर यह इंसान उसे जरा समझ नहीं आया। पल में तोला, पल में माशा... क्या था? उसके एक्सप्रेशन ही इतने गहरे थे कि वह समझ नहीं पाती और समझना दूर वह उसके चेहरे की ओर देख भी नहीं पाती। शायद ना वह इसकी इंटेंशन समझ सकती है, और ना ही एक्सप्रेशन। अपनी भावनाओं को उसने एक दराज में बंद करके लॉक कर रखा था, जिसकी चाबी जैस्मिन के पास नहीं थी, और शायद उसी के पास थी, पर उसे ढूँढने में वक़्त लगेगा। तैयार होकर अपनी शॉल उठाई और उसे अपने चारों ओर लपेट लिया। ठंड का मौसम था और सुबह-सुबह ठंड और भी बढ़ जाया करती है। फिर घर भी तो ऐसी जगह था जहाँ चारों ओर बस खेत-खलियान थे। खेतों के बीच में उनकी अकेली कोठी ही थी और आस-पास दिखने वाली ज़मीन उनकी खुद की, जिस पर वे मालिकाना हक़ रखते थे। गाँव के बड़े ज़मींदार थे और यह धन-दौलत उन्हें विरासत में मिली थी; बाप-दादाओं की कमाई, जिसे अब संभालने वाला इकलौता कुणाल था। पुरखों की विरासत भी क्या कुछ नहीं दे जाती, किसी को राजा भोज की ज़िन्दगी, तो किसी को खाली हाथ। अपने हाथों को शॉल में डालते हुए वह बाहर निकलने वाली थी। धीरे से दरवाज़ा खोला, कहीं आहट से उसकी आँख ना खुल जाए। पर हल्की सी खट की आवाज़ ने उसकी आँखें खोल दीं। "जैस्मिन...", उसने पीछे से आवाज़ लगाई। वह अभी नींद में था, उसकी बोली में नींद झलक रही थी। "जी...", वह पीछे पलटी। फिरोजी रंग का सूट उस पर, शिफ़ॉन की चुन्नी गले में डाले, ऊपर मेहरून कलर का शॉल ओढ़ रखा था। वह बड़ी ही मासूमियत से उसकी ओर देख रही थी; नई-नवेली दुल्हन की तरह जिसकी नज़रें अमूमन झुकी ही रहती हैं। "सिर पर चुन्नी ले लेना, गाँव में यही रिवाज़ है।" आँखों में नींद थी, साफ़ दिख रहा था कि वह बहुत थका हुआ है। शायद कई दिनों से काम का बोझ बहुत था। "जी, मैं ले लूँगी।" उसे लगा था वह नीचे जाने तक ले लेगी। अभी उसके बाल गीले थे और वह भीगने पर इकट्ठे हो जाती थीं। पर उसने तुरंत उसकी आज्ञा का पालन करते हुए उसके सामने ही पल्ला सिर पर रख लिया और वह जो गर्दन उठाए उसे देख रहा था, अपना सिर वापस सिरहाने पर रख दिया। बहुत डिस्टर्ब हो चुका था। अब आराम से सोना चाहता था और वह नीचे जाने के लिए पलट गई। पूरे छत पर एक ही कमरा था और एक गलियारा। कमरा ही नहीं, पूरा छत ही सजा हुआ था; लड़ियों से... रंग-बिरंगी लाइट चमक रही थी और फूलों की लड़ियाँ अलग से... जगह-जगह बुके रखे हुए थे। छत को निहारती वह सीढ़ियों से नीचे उतर आई; रेलिंग पर हाथ फेरते-फेरते क्योंकि वहाँ भी फूलों की मालाएँ लटक रही थीं और हार्ट शेप बैलून दीवार पर चिपकाए हुए थे, जिनका रंग सफ़ेद और नीला था। सीढ़ियाँ और गलियारा पूरा नीले रंग की रोशनी से रोशन था। किसने सजाया है? सजाने वाले ने बहुत मेहनत की है, सच में कुछ तारीफ़ी शब्द उसके ज़हन में आए। मनचाहा एक बार उससे मिलकर उसका शुक्रिया अदा करे, जिसने उसे इतना अलहदा महसूस करवाया। उसके स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। पायलों की छनक और चूड़ियों की खनक लिए वह सीढ़ियों पर खड़ी किसी अप्सरा की तरह लग रही थी। मानो आसमान से कोई परी उनके घर-आँगन में उतर आई हो। दादी ने दूर से ही बलाइयाँ लीं। इकलौता पोता था उनका, वह चाहती थीं उसकी बहू बहुत सुन्दर हो; वह खुद ही इतना काबिल और ज़िम्मेदार था। छह फ़ुट का लम्बा नौजवान, गौर वर्ण का और हट्टा-कट्टा, मज़बूत कद-काठी का। सुंदरता में जैस्मिन भी कम नहीं थी। हाँ, हाइट कुणाल से बहुत छोटी पड़ जाती थी और पतली भी, पर दिखने में बहुत ही स्वीट और क्यूट थी। चेहरे पर अभी मैच्योरिटी नहीं, बल्कि बच्चों सी मासूमियत झलकती थी। "आजा मेरे पास बैठ।" दादी ने उसे अपने पास बुला लिया। "किसी की नज़र ना लगे। बहू पहले इसकी जगह नज़र उतार दो। अभी औरतों का आना शुरू हो जाएगा और उनके जाने के बाद भी याद से इसकी नज़र उतार देना।" "कितनी सुन्दर है...! कहीं मेरी ही नज़र ना लग जाए?" दादी ने अपनी बहुओं से मँगवाकर पहले उसके हाथ की कलाई में काला धागा बाँध दिया। वह अब उसके मेहँदी से भरे हाथों-पैरों को देख रही थीं; निखरा हुआ रंग, उस पर सुरख़ मेहँदी खिल रही थी। "बहुत गहरा रंग आया है, तुम्हारी सास और पति दोनों ही तुम्हें बहुत प्यार करेंगे। और मैं... मैं तो करती हूँ, जिस दिन तुझे देखने गई थी, पहली नज़र में ही पसंद आ गई थी।" दादी प्यार से उसके चेहरे पर हाथ फिर रही थीं और उससे मीठी-मीठी बातें कर रही थीं और वह खुशियों में सातवें आसमान पर थी। इतनी अच्छी दादी-सास मिलेगी, उसने सोचा भी नहीं था। वह तो डरती रहती थी। ना जाने उनका स्वभाव कैसा होगा? सुन रखा था, पहले के ज़माने में औरतें कड़क और खरे स्वभाव की होती थीं; मुँह पर कुछ भी बोल देना उनकी फ़ितरत में था। पर यहाँ तो मीठे और रसीले शब्दों की बौछार हो रही थी, और उसके मन को लुभा रही थी। इस प्यार की बारिश में तो वह ज़िन्दगी भर भीगने को तैयार है। दादी कई देर से अपने सामने बिठाए उसे बस निहारे जा रही थीं और जैस्मिन को बिल्कुल नई दुल्हन की तरह शर्म आ रही थी। पता नहीं दादी क्या देखना चाहती थीं? जो उसे इस तरह ताड़ रही हैं। उसको असहज होते देख दादी ने पूछा, "कुणाल सो रहा है?" "जी दादी..." "हाँ, थक भी तो गया है, इतना काम था पिछले कुछ दिनों से... फिर शादी की तैयारियाँ अलग! अकेला भी तो है। कोई हाथ बटाने वाला नहीं। अब तो फिर भी तुम्हारे बुआ के बेटे आए हुए हैं। कल को वह भी अपने-अपने घर चले जाएँगे। फिर तो एकदम अकेला हो जाता है। खेतों का, घर का, फिर ज़मींदारी का काम बहुत हो जाता है। उस बेचारे को साँस लेने की फ़ुरसत नहीं।" दादी ने अपनी हथेली पर ठुड्डी टिकाए हुए कहा। उनके जाविये में अपने लाडले पोते की फ़िक्र साफ़ दिख रही थी। "बेटा मेरे और जैस्मिन के लिए चाय लाओ। अभी नहाकर आई है, बाल भी भीगे हैं। नहीं तो ठंड लग जाएगी इसे।" उन्होंने अपनी बेटी को आवाज़ दी। घर की सब औरतें उठ गई थीं। कोई नहा रहा था, कोई तैयार हो रहा तो कोई घर का काम कर रहा था। घर की बड़ी सब सामान इधर-उधर सेट करने में व्यस्त थी। किसी ने पूरा किचन संभाल रखा था। बुआ कटोरियों में चाय लेकर आई। बड़े-बड़े प्याले थे। "गाँव में सब यही इन प्यालों में पीते हैं। तुम्हें शायद कप की आदत होगी। मैं मँगवा देती हूँ।" "नहीं दादी, मैं ठीक हूँ। पी लूँगी।" "हाँ ठीक है, जल्दी-जल्दी पी वरना ठंडी हो जाएगी और आज वैसे भी बहुत सर्दी है।" दादी कहते हुए चाय की चुस्कियाँ लेने लगी और वह उस प्याले को अपने दोनों हाथों में थामे घूँट-घूँट कर चाय पी रही थी। यह उसके लिए अलग था, पर अच्छा लग रहा था। जैस्मिन का सजा-सँवरा रूप उनके मन को भा रहा था। पोता-बहू सबसे बढ़कर लाई है। गाँव में ऐसी किसी की नहीं होगी। मन में ही सोच लिया, बार-बार कहकर नज़र नहीं लगाना चाहती थी। "देखो, कितनी प्यारी लग रही है...! एकदम सफ़ेद परी की तरह..." "नहीं, एकदम सफ़ेद गुलाब की तरह..." "नहीं, खिले हुए गुलाब की तरह..." "लगता है, देवर जी ने रात भर ज़्यादा ही प्यार बरसाया है..." "हाँ, एक ही रात में अपना जादू चला दिया..." "अरे देखो कैसे लाल हो रही है..." "हे राम... कहाँ देवर जी इतने हट्टे-कट्टे और कहाँ यह छोटी सी... जान लेने के लिए काफ़ी है... सोचकर ही दया आ रही है... बेचारी ने कैसे संभाला होगा... वैसे मेरा देवर है बड़ा शरीफ़... आज तक किसी लड़की की तरफ़ आँख उठाकर नहीं देखा... जहाँ घरवालों और दादी ने राज़ामंदी दे दी, वही शादी कर ली... ऊफ़ तक ना किया..." "क्यों नहीं करते भला... देखो कितनी सुन्दर है... जोड़ी एकदम टक्कर की है... ना कोई कम ना कोई ज़्यादा... हाँ भाई, जोड़ी तो काँटे की फ़िट की है ऊपर वाले ने..." "कभी कुछ... कभी कुछ..." उसके कानों में इस तरह की बातें पड़ते हुए इतनी देर हो गई और वह शर्माई सी, नज़रें झुकाए बैठी थी। कौन कहता है गाँव की औरतों में लाज-शर्म ज़्यादा होती है... कोई उनके झुंड में बैठकर तो देखें... बातों से ही मार दें... जैस्मिन का ज़मीन में समा जाने को मन कर रहा था। वह शर्म से किसी गड्ढे में गिरती जा रही थी, और आस-पड़ोस की भाभियाँ न जाने कब से उसे छेड़ने में ही मशगूल थीं। वह कब पीछा छोड़ेंगी उसका? बोलकर कुछ कह भी नहीं सकती थी। उससे पहले वह गाँव की बड़ी औरतों से मिलते-मिलते थक गई थी। कोई कपड़े ला रहा था, तो कोई हाथ में पैसे थमा रहा था। सब सिर पर हाथ फेरकर जा रही थीं और वह बैठी-बैठी उनके पाँव दबा रही थी। और अब जब वो गईं तो भाभियों ने डेरा जमा लिया। "मत तंग करो भई... कितने देर से उसे छेड़ रही हो। उसने भी तो बहुत सताया होगा। कम से कम तुम तो उसे चैन की साँस लेने दो।" चाची जी ने आकर उन्हें टोका, पर बातों ही बातों में वही कह गई, जो इतनी देर से सुनती आ रही थी। जैस्मिन ने शर्म के मारे सिर ही झुका लिया। "अच्छा जैस्मिन, यह हार पहनो, हमारा खानदानी है।" मम्मी ने कहा और उसका शॉल हटाने लगी। "मैं पहन लूँगी माँ..." वह स्टोर रूम में थी और सामने रखे आईने में उसे अपना अक्स दिख रहा था। उसकी सास के हाथ में सुन्दर सा हार था; रानी हार, जिसकी बनावट और डिज़ाइन बहुत ही खूबसूरत था। यह रानी हार उसका होगा...? सोचकर अच्छा लगा और उसने धीरे से हाथ आगे बढ़ाया; वह एक बार इसे अपने हाथ में लेकर देखना चाहती थी, इसे छूना चाहती थी। "हाँ हाँ, तुम ही पहनो। बस तुम्हारी मदद कर रही थी।" उसने जरा पीछे होकर सिर से चुन्नी उतारी और ज्वेलरी सेट कर इधर-उधर करने लगी, ताकि हार के लिए जगह बना सकें। अचानक उसे कुछ याद आया और उसने अपना पहलू बदला। माँ की तेज नज़रें तब तक उस पर पड़ चुकी थीं। "क्या बहुत ज़्यादा...?" वह उसके गले के निशान देखकर बोली, पर आधी बात कहकर ही चुप हो गई। उसने तो सुबह ध्यान रखा था। गहने पहनने से पहले वहाँ फाउंडेशन तक लगाया था। लगता है साफ़ हो गया। पर अब माँ को क्या जवाब दूँ? उसे बहुत अजीब लग रहा था, पर समझ गई थी तो जवाब देना बनता था। उसने यूँ ही गर्दन नीचे किए, नहीं में सिर हिला दिया; उसके कान तक लाल हो गए थे। माँ उसे उन लम्हों के एहसासों और कुछ कशमकश के साथ छोड़कर बाहर चली गई। एक चैन की साँस ली, खुद को फिर से सही कर स्टोर रूम से बाहर निकली। वह काले कुर्ते-पजामा में, गले में शॉल डाले नीचे आ रहा था। सीढ़ियों से उतरते हुए पल भर के लिए दोनों की नज़रें मिलीं और जैस्मिन का लाल चेहरा उसे देखकर और लाल पड़ गया। "लगता है खेतों की ठंडी इससे बर्दाश्त नहीं, देखो कितनी लाल पड़ गई है।" दादी ने कहते हुए उसे पास में बिठाया। "कुणाल यहाँ आओ बेटा, थोड़ी देर एक साथ दोनों मेरे सामने बैठो। जी भरकर देख तो लूँ, मेरे बच्चे कितने सुन्दर लगते हैं।" दादी की बातों में उनका लाड़ झलक रहा था। "हाँ, यहाँ बैठ इसके बराबर में... सही कपड़े पहने हैं, इसको नज़र से बचायेंगे।" दादी उसके काले पजामा-कुर्ते को देखकर बोली और वह अपने लुई ठीक करता बैठा गया। "चाय लेकर आओ भई कुणाल के लिए..." दादी ने बहू और बेटियों को आवाज़ लगाई। अपने अगल-बगल में कुणाल और जैस्मिन को बैठा रखा था; बीच में बैठी दोनों को बारी-बारी ताड़ रही थीं। "जैस्मिन के लिए भी ले आना... देखो ठंड से एकदम लाल पड़ गई है..." दादी ने उसके हाथ पकड़कर देखा तो बिल्कुल ठंडे पड़ चुके थे। "रजाई मँगवा दूँ बेटा...?" "नहीं दादी, मैं ठीक हूँ।" "ठंड बहुत है, तुम अब तक शहर में ही रही हो; खेतों की ठंड और ठंडी हवा बर्दाश्त नहीं हुई होगी। शॉल को जरा ठीक से ओढ़ और कहो तो आग मँगवा देती हूँ। एक काम करो, कुणाल बेटा हीटर ऑन कर दो इसके लिए।" "नहीं दादी, मैं वाकई ठीक हूँ।" "कल ही आई है, आज ही बीमार हो जाओगी। तुम्हें नहीं पता गाँव का मौसम बहुत सर्द है। नई-नवेली दुल्हन हो ना इसलिए शर्मा रही हो। इसमें शर्माने की कोई बात नहीं। बहुत नाज़ुक हो," दादी ने कहा। दादी बार-बार कह रही थी और जैस्मिन मना कर रही थी। क्या कहेंगे सब लोग कि वह कितनी कमज़ोर है। अभी थोड़ी देर पहले ही सब उसका कैसे मज़ाक उड़ा रहे थे और उसकी हालत का लुत्फ़ ले रहे थे। अब वह कोई और मौका नहीं देना चाहती थी। भाभियों को तो बस हँसने का मौका मिलना चाहिए। वह सिमटी सी दादी के पहलू में बैठी रही। कुणाल ने अपने हाथ से लुई निकाली और दादी को दे दी। "यह लो, इससे ठंड रुक जाएगी।" "हाँ, यह ठीक है," वह जानती थी कि जैस्मिन खुद से नहीं ओढ़ने वाली इसलिए खोलकर खुद ही ओढ़ाने लगी। जैस्मिन ने भी नखरा ना करते हुए लुई को अपने चारों ओर लपेट लिया। कुणाल के जिस्म की खुशबू उसकी साँसों में घुल-मिल रही थी। कैसे भूल सकती है इस महक को...? रात बड़े करीब से महसूस किया था...! और जैस्मिन उन लम्हों की जद में एक बार फिर से आ गई। खुद-ब-खुद हया ने उसे घेर लिया और उसकी पलकें पल भर के लिए बंद हो गईं। उसके लाल पड़ने की वजह यही सब तो था और फिर से वह उन सब में घिर गई। गुण और अवगुण जैसे समाज में स्थापित प्रतिमानों के अलावा एक बात यह भी होती है कि आदमी हो या औरत, उसके पास एक मन है जो प्रेम करने का इच्छुक है, अपनेपन के एहसास के लिए लालायित है। अगर कोई किसी से निस्वार्थ प्रेम करता है, तो वह डिज़र्व करता है कि उसे भी वह प्राप्त हो। किन्तु व्यावहारिक तौर पर ऐसा होना ज़रूरी नहीं, क्योंकि यह आदर्शात्मक स्थिति है जो कहीं-कहीं देखने को मिलती है और अक्सर नहीं मिलती। सांसारिक वस्तुएँ हासिल की जा सकती हैं, लेकिन किसी का प्रेम नहीं, वह सामने वाले के मन की भावनाओं पर है। उनकी कहानी के तार भी कुछ ऐसे ही थे, जो कुछ जुड़ गए थे, कुछ जुड़ने बाकी थे।

  • 3. मन वैरागी है - Chapter 3

    Words: 2840

    Estimated Reading Time: 18 min

    दादी के छह बच्चे थे; तीन लड़कियाँ और तीन लड़के। सबसे बड़े उसके ताया ससुर थे, जिनके बच्चे नहीं थे। पहली पत्नी के बच्चे न होने पर दूसरी शादी करवाई गई थी, पर किसी कारणवश शादी के कुछ महीनों बाद ही नई दुल्हन की मृत्यु हो गई थी। उसके बाद फिर शादी के लिए कहा गया, पर ताऊजी नहीं माने। उन्होंने स्वीकार कर लिया था कि उनके भाग्य में बच्चों का सुख लिखा ही नहीं है। उनके खुद के ससुर जिनकी इकलौती औलाद सिर्फ़ कुणाल ही था, और कोई बहन या भाई नहीं। फिर उसके चाचा ससुर आते थे, जिनकी दो लड़कियाँ ही थीं—कल्पना और काजल, जो कुणाल से छोटी थीं। चाचा जी के बारे में घर में कोई बात नहीं करता था, पर याद सब करते थे। कोई ऐसा राज था, जिसके बारे में जैस्मिन को अभी पूरी तरह मालूम नहीं था। बस कुछ उड़ती-उड़ती खबरें उसके कानों तक पहुँची थीं। माँ-बाप ने कोई एतराज नहीं किया था, तो उसे भला क्या एतराज होगा? रिश्ता सब जानते-बूझते ही किया गया था। कुणाल और उनके परिवार का रुतबा ही काफी था। तीनों बुआ सास अपने-अपने घर में सुखी थीं। उनके बच्चे और वे सब अब शादी में ही आए हुए थे। बड़ी बुआ के दो लड़के थे—अभिषेक और आदित्य। मंझली बुआ के एक लड़का और एक लड़की—अर्नव और अनिका। छोटी बुआ के भी एक लड़का और एक लड़की थे—अर्थ और अहाना। कल से जब वह इस घर में आई थी, सबसे मिल चुकी थी, और सच पूछो तो उसका मायका इतना छोटा सा था कि वह इतने सारे लोगों से मिल-मिलकर अब थक गई थी। घर क्या कहें? पूरा कुँबा था, जिसमें बुआ और उनके बच्चों के जाने के बाद भी दस-बारह लोग रहेंगे, और उसके ऊपर उनके काम करने वाले भी। कोठी बहुत बड़ी थी। इतनी बड़ी उसने सिर्फ़ सुन रखी थी, या फिर फिल्मों में देखी थी। पूरी कोठी कई हिस्सों में बँटी हुई थी, जिसमें वह घर ही दो हिस्सों में बँटा हुआ था। एक तरफ जहाँ अब के नए मकान बनाए हुए थे, जिसमें सात कमरे नीचे और एक इकलौता कमरा ऊपर कुणाल के लिए बना था। बाकी पूरा छत खुला ही छोड़ा हुआ था। शायद कुणाल को शांति पसंद थी और एकांत भी। इसलिए वह सिर्फ़ कुणाल की पसंदगी को देखते हुए बना था। नीचे बड़ा हॉल और उसके पास ही बड़ा सा किचन था। बाहर गैलरी से जाते ही बड़ा खुला आँगन आता है। बाहर का किचन अलग है, जहाँ मिट्टी का चूल्हा, तंदूर और बाकी की चीजें भी हैं, जो पुराने जमाने की याद दिलाती हैं। एकदम ग्रामीण परिवेश। उससे आगे निकलकर पुराने जमाने के बने हुए मकान हैं, जिसमें पाँच कमरे हैं, और कमरे क्या, उन्हें होल कहना ठीक होगा। पहले के जमाने में बहुत बड़े-बड़े मकान बनते थे; आधे कच्चे आधे पक्के। शायद समय-समय पर उनमें बदलाव किया गया था; इसीलिए वे ऐसे थे। कुछ कमरे तो ऐसे थे जिनकी छत भी बलियों की थी और आँगन कच्चा। वह घर में जब आई थी, तो शाम का समय था। आते हुए बस उसने एक बार ही उन पर नज़र दौड़ाई थी। अब वह उन सब को देखकर हतप्रभ सी रह गई। कितना अच्छा और अलग था यह! उसका ससुराल ऐसा होगा उसने कभी सोचा भी नहीं था। सुबह-सुबह औरतों के मुँह से बातें सुनती आई थीं कि वह इस कोठी की मालकिन है; आगे जाकर उसे ही सब संभालना है। अब तो ताई, चाची, मम्मी और दादी सास तक उसकी मदद के लिए हैं। तीन बुआ सास और दो ननद, जो चाचा जी की बेटियाँ थीं; उन सब का लेनदेन और उनके साथ बर्ताव उसे ही रखना था। "छोटी सी तो है... बेचारी...! कैसे कर पाएगी सब?" उनकी बातें ही उसे चिंता में डाल रही थीं। ऊपर से यह ज़मींदारी... मम्मी-पापा ने क्या सिर्फ़ जायदाद देखकर रिश्ता कर दिया था? वह तो घर में सिर्फ़ पाँच ही लोग थे—माँ, पापा और दो बड़े भाई-बहन। वह सबसे छोटी थी; अब तक ज़िम्मेदारियों से बची रही थी। घर के किसी मसले में उसकी इजाज़त, यहाँ तक कि पूछताछ भी ज़रूरी नहीं थी। जहाँ जिसने जो बोला, वह सब मानती और करती आई थी। जबकि अब उसे रोज़ ऐसे हुक्म देने और मानने होंगे जिनके लिए वह परिपक्व नहीं थी। सोचते हुए ही अपनी ननद के साथ घर देख रही थी। दादी ने उसके मन बहलाने के लिए ननदों से कहा था कि भाभी को घर दिखा दें; कल उसे चल जाना था, पग-फेरों की रस्म जो थी। यह बस उनका रहवास था। इसके अलावा पशुओं का बाड़ा अलग था और मशीनरी का अलग, जिसमें खेतों में काम आने वाले संज रखे जाते थे। सुबह औरतें इस बारे में बातें कर रही थीं कि यह घर उसका है और उसे संभालना है। कैसे कर पाएगी, वह देखकर ही हैरान रह गई थी। दोनों तरफ़ बाड़ों से लगते ही खेत शुरू हो जाते थे, जहाँ पानी के लिए नाली बनी हुई थी। उस पर कई सारे दरख़्तों का झुरमुट था। वह पूरी कोठी की अलग सी जगह थी, जो बेहद सुकून और आराम महसूस करवाती थी। पूरा घर देखकर जब वे लोग लौट रहे थे, तो कुणाल उसे उस ओर आता दिखा। एक बार उसे देखा, फिर पलकों की झालर गिरा दी। वह उसे बिना देखे ही आगे निकल गया। उसके साथ काम करने वाले आदमी थे, जिनके हाथ में पौधे, कस्सी और फावड़ा थे, और उनके पीछे ही उसकी बुआ के लड़के आ रहे थे, जिन्होंने बहुत सारे और भी पौधे पकड़ रखे थे। सब जैस्मिन के... इतने सारे प्लांट एक ही फूल के, एक ही वैरायटी के, किस लिए...? उसे समझ नहीं आया। यह सब भाइयों ने गिफ़्ट किए थे—जैस्मिन के पौधे, जैस्मिन के नाम से। यह बस कुणाल को चिढ़ाने के लिए था, और अब जब घर पर लाकर रख ही दिए थे, तो कुणाल को ही उन्हें जगह देखकर लगवाना था। वह बस उन्हें पेड़ों के झुरमुट के पास उन सब को लेकर आ रहा था, ताकि नौकरों से कहकर लगवा सके। वह आगे-आगे बस उन्हें जगह बताने आया था और उनके पास रहकर उन्हें लगवाना था। कोई भी काम होता, कुणाल अपने देखरेख में ही करवाता था। उसे टालना या कोताही बिल्कुल पसंद नहीं थी। काम का पाबंद और परफ़ेक्ट होना ही उसके लिए मायने रखता था। पानी की नाली जहाँ और पेड़-पौधों का घना बसेरा था, उन्हीं के पास एक सीधी पंक्ति में उन्हें लगवाने का विचार था, जो शायद बड़े होकर फलते-फूलते इस जगह की शोभा और बढ़ा देते। रात की चाँदनी में, जैस्मिन के फूल और यहाँ के शांत माहौल में उनकी सुंदरता बढ़ जाने वाली थी। कुछ पौधों पर अभी भी फूल उगे हुए थे, जबकि कुछ खाली थे, पर कल्पना करके ही देखो तो वे लगे हुए बहुत खूबसूरत दिखने वाले थे। इसका अंदाज़ा इसी से लग सकता था कि आँख बंद कर यहाँ बैठने से जैस्मिन के फूलों की महक साँसों में घुलती हुई भीतर तक जाएगी, तो किसी भी इंसान की ज़िंदगी महकाने के लिए काफी होगी। कोई एकांत पसंद इंसान इन्हें और भी पसंद करेगा, जब इतनी आरामदायक और खुली जगह नीले आसमान के तले बिताने को मिल जाए...वाह..! क्या मंज़र होगा...? उन पाँचों भाइयों का आपसी मज़ाक अब भी उरूज पर था। "तुम लोगों को शादी के गिफ़्ट में फूल के पौधे ही देने थे, तो कोई और भी दे देते...? सब एक ही तरह लाने की क्या ज़रूरत थी...?" कुणाल कल से उन्हें यह बात दो-तीन बार बोल चुका था, और वे बार-बार बस जैस्मिन के ही नाम दुहाई दे रहे थे। "शादी हो गई है अब आपकी...! और फूलों की तरफ़ देखना छोड़ दीजिए। अब जो खुशबू ढूँढनी है, जैस्मिन में ही ढूँढिए।" अर्थ ने मज़ाक में कहा, और कुणाल जो पौधे चेक कर रहा था, कौन सा कहाँ लगवाए, उसने रखा और अर्थ की तरफ़ डपटती नज़रों से देखा। "सही तो कह रहा है भाई... अब क्या करोगे और फूलों का... ज़िंदगी जीने के लिए एक फूल बहुत है, कहाँ-कहाँ मँडराएँगे भँवरा बनकर, भटकते फिरोगे इधर-उधर... इस लिए लाए हैं, ताकि आपका सारा ध्यान अब जैस्मिन पर ही रहे।" यह अर्नव था। "तुम लोग नहीं सुधरोगे...? तुम्हारे लिए भी लगता है अब कोई फूल देखना पड़ेगा?" "सच में... अबकी बार कोई ट्यूलिप, गुलाब, लिली, या दूसरा कोई फूल देखेंगे। जैस्मिन के सारे फूलों पर सिर्फ़ भाई आपका ही अधिकार है। आपके हक़ पर डाका थोड़ी ना मारेंगे।" "तुम भी इनके साथ मिल गए...?" आदित्य की बात सुनकर कुणाल ने कहा। "हाँ, बस मैं नहीं हूँ, भाई, मैंने कुछ नहीं कहा।" "लेकिन जैस्मिन के फूल के पौधे लाने का आईडिया अभिषेक भाई का था।" वे तीनों फ़टाक से बोले; अब जब उन्हें कुछ न कुछ सुनने को मिल रहा था, तो फिर उसे कैसे छोड़ देते? "नहीं... भाई, वह बस... ऐसे ही..." "ठीक है, जानता हूँ मैं... तुम कितने पानी में हो।" कुछ न कुछ... कुछ न कुछ बातें जारी थीं। वे हँसते-बात करते पौधे लगवा रहे थे। बीच-बीच में कहकहों का शोर जैस्मिन के कानों में पड़ रहा था, और वह सब सुनते-समझते वापस घर के अंदर दाखिल हो गई। खेतों में सूरज अपनी किरणें छोड़ता-छोड़ता आखिर अस्त हो ही गया। सूरज की रवानगी से मौसम में ठंड का एहसास फिर से होने लगा था, और अब शॉल या स्वेटर कुछ पहनने लायक ठंड बैठ गई थी। उसने तो पूरे दिन में शॉल उतारा ही नहीं। जब भी कोशिश करती, दादी उसे ठंड का बोल लेने को कहतीं। फिर पूरे दिन कोई न कोई आ रहा था मिलने के लिए; कल वह चली जाएगी और उसके आने के बाद नॉर्मल ज़िंदगी शुरू होगी। अब तो वह सिर्फ़ नई-नवेली दुल्हन बनकर आई थी, जिसे सब लोग देखने आ जा रहे थे। "कैसा लगा घर? पसंद आया?" दादी ने बड़े ही स्नेह से पूछा। जैस्मिन उनके सामने बैठी थी, और वह उसके चेहरे पर हाथ फेरते हुए उसे निहार रही थीं। "जी, दादी।" "और जगह..." "जगह भी बहुत अच्छी है।" "अब यही तुम्हारा घर है; जितना जल्दी से अपना मानकर रहने लगोगी, उतना ही तुम्हारे और इस घर के लिए अच्छा है। अब तो बस यही दुनिया है।" दादी ने थोड़ी समझाइश की, और जैस्मिन ने सिर हिलाकर उनकी बात को स्वीकार किया। "यही तो है दुनिया, सच कह रही है दादी। लड़कियों की ज़िंदगी पल भर में कैसे बदल जाती है...? शादी से पहले कुछ और... और शादी के बाद कुछ और... भले ही उसे एक महल की रानी का ख़िताब हासिल हुआ था, पर वह शहर से गाँव में आ गई थी। अपने काम खुद करने वाली, अब उसे यहाँ से जाने के लिए किसी का साथ चाहिए होगा, पहले किसी से पूछना होगा, तब भी वह अकेले नहीं जा सकती। पर यह दुनिया उसके माँ-बाप ने उसके लिए चुनी थी, और माँ-बाप खुशियाँ ही चाहते हैं। उनके प्यार और ईमान में कोई शुबहा नहीं। दुनिया एक तरफ़ और माँ-बाप एक तरफ़... तब भी उनका पलड़ा भारी रहता है।" जैस्मिन ने भी माँ-बाप के प्यार और आशीर्वाद के साथ यह दुनिया अपनी मान ली थी। "मम्मा, कल हम लोग चलें..." अब शादी हुए दो दिन हो गए थे, तो बुआ और उनके बच्चों को भी अपने-अपने घर जाना था। "कल मैं रुक रही हूँ; अब तीनों एक साथ तो क्या जाएँ। माँ कह रही है, कोई तो रुको। फिर तुम्हारी दोनों बुआओं का जाना ज़रूरी है।" "अच्छा, तो फिर हम परसों सुबह निकलते हैं।" "परसों नहीं, कुणाल के साथ बहू को लेने कौन जाएगा? कम से कम दो भाई तो साथ जाओ।" "पर नानी, मैं नहीं रुक सकता।" "तो अभिषेक तुम रुको। अर्नव, अर्थ, कोई नहीं रुक सकते क्या?" आदित्य ने बात को टाला तो दादी ने उन तीनों की तरफ़ देखा। "हाँ, नानी, मैं रुक रहा हूँ।" अभिषेक ने कहा। "अपनी मम्मी को तुम बाद में अपने साथ ही ले जाना। अभी इनको जाने दो।" अर्नव और अर्थ को भी जाना था; नहीं रुक पा रहे थे। "फिर क्या एक ही जाएगा साथ में? एक को तो और रुकना चाहिए।" "नहीं, नानी, भाई के मित्र भी तो जाएँगे।" अभिषेक ने मज़ाक में कहा। "हाँ, उसे तो मैं भूल ही गई।" "क्या दादी, उसे आप कैसे भूल गईं? वह तो भाई का दोस्त कम आपका पोता ज़्यादा बना हुआ है। मुझे तो डर है कहीं प्रॉपर्टी में आधा हिस्सा ना माँग ले।" आदित्य ने दादी से कहा। "तुम तो चुप ही रहो; कुछ न कुछ उल्टा-सीधा बोलना ही होता है। जब तुम लोग नहीं होते हो तो एक वही है जिसके साथ कुणाल रहना पसंद करता है; हँस-बोल लेता है। जब आते हो तुम सब तो घर में रौनक रहती है, तब की तो बात ही अलग है। और उसे भी देखो जैसे कोई साथी मिल गया हो।" "क्या नानी, अभी हम में ही साथ ही ढूँढेगा तो कैसे काम चलेगा? अब तो उसके लिए अपनी साथिन ले आए हैं।" "लेकिन उस शख़्त मिजाज़ आदमी को झेलना भी तो मुश्किल है।" "झेलना ही पड़ेगा; अब भाभी की भाई के बिना यहाँ कहाँ बसर होगी। अब तो संगी-साथी सब वही हैं जो हैं।" "लेकिन तुम लोगों को यकीन है ना, वह जाएगा।" "वह सबसे पहले पहुँचेगा। आप बेफ़िक्र रहिए, भाई की बात हो गई है।" "अच्छा, उसने बात कर ली और मैं यहाँ यूँ ही उसके लिए संगी-साथी ढूँढती फिर रही हूँ; तुम लोगों के आगे मिन्नतें कर रही हूँ।" "नानी, आपको पता तो है, जो काम होना है वह होना है। भाई ऑलरेडी उसमें बहुत परफ़ेक्ट है। आप टेंशन ना लिया कीजिए। हम अभी बीस-पच्चीस साल आपको इस घर में और देखना चाहते हैं।" "तुम तो लगता है आज छड़ी खाओगे मेरी?" दादी धमकाते हुए बोलीं, और वे सब उनको घेरकर बैठ गए। अनिका और आहना भी वहीं आ गए। कल्पना और काजल भी। "कुणाल भाई कहाँ रह गए?" सब आस-पास थे; कोई अपनी दादी के गले लग रहा था, तो कोई नानी के! कुणाल की याद लाज़मी थी; एक वही थे जो पीछे छूट रहे थे। "यही है, आने वाला होगा।" "गया कहाँ है?" "बताया तो अपने जिगरी यार से मिलने गए हैं।" "क्यों वह घर के अंदर नहीं आ सकता था?" "नहीं, उनको बाड़े में बैठकर बातें करना ज़्यादा अच्छा लगता है। वैसे वह कोई काम से आए थे। आप चिंता मत करिए। आपका पोता अब आपकी बहू का ही है; वह कहीं नहीं ले जाएगा उसे।" "तुम नहीं मानोगे, चलो उठो यहाँ से! मेरी बहू कहाँ है? थोड़ी देर उससे बात कर लूँ; कल तो वह चली जाएगी।" "जा तो हम भी रहे हैं, और पता नहीं वापस कब आना होगा? जबकि बहू कल गई, परसों आ जाएगी।" "चलो खाना खा लो सब लोग, और कुणाल को भी बुला लो। उसे कहो कि रेहान को कह दे; पूरी शादी में उसके साथ भागा-भागा रहा है।" माँ ने आकर उन सब से कहा, और वे भी उठ खड़े हुए। खाना खाकर सब साथ बैठे थे। कल तितर-बितर हो जाना था; सब वापस जाने वाले थे, तो महफ़िल साथ में ही जमाई ताकि थोड़ी देर गपशप कर ली जाए। जैस्मिन सबकी भाभी लगती थी, क्योंकि कुणाल सब में बड़ा था, और सबको नई-नवेली भाभी के साथ बातचीत करने का शौक चढ़ा था। वे सब जैस्मिन को अपने साथ बीच में लेकर बैठे थे। जैस्मिन के लिए यह एहसास बड़ा नया था। सब कुछ इतनी इज़्ज़त और तवज्जो दे रहे थे। उसका पोर-पोर खिल उठा। घर में वह सबसे छोटी थी, लेकिन अब यहाँ वह कद और रुतबे दोनों में बड़ी थी; नई-नवेली दुल्हन थी, इसलिए ज़्यादा बोल नहीं सकती थी, पर फिर भी उनकी बातों का मुस्कुराकर या हाँ-ना में जवाब बखूबी दे रही थी। किन अच्छे कर्मों का परिणाम होगा कि उसे बदले में इन खूबसूरत रिश्तों से नवाज़ा गया है, और यह सब खुशियाँ, यह रौनकें कुणाल के दम से थीं, जो उसका नाम भर उसके साथ जुड़ने से उसकी झोली में आ गिरे थे। "भाभी, आपका नाम जैस्मिन किसने रखा? मतलब डिफ़रेंट सा है, फूल का... बिल्कुल जैस्मिन के फूल की तरह सॉफ्ट एंड प्योर; आपके नेचर को बहुत सूट करता है।" अनिका ने पूछा। "हाँ, भाभी, बताइए ना, जैस्मिन नाम ही क्यों रखा? मतलब हम सबके नाम एक जैसे हैं, हम जितने बहन-भाई हैं; उनमें दादी के पोते-पोतियों के नाम 'क' से शुरू होते हैं, और नाती-नातिनों के नाम 'अ' अल्फ़ाबेट से शुरू होते हैं। और पता है आपको, यह सारे नाम भानी मामा ने रखे हैं। कह रहे थे एक जैसे नाम रखूँगा, और मज़े की बात क्या है, भानी मामा ना..." अहाना कहते-कहते चुप हो गई थी। चाचा जी का नाम आ गया था तो माहौल में सन्नाटा सा छा गया। बड़ों ने बात इधर-उधर कर दी। शायद उसके सामने ज़िक्र नहीं करना चाहते थे; इसलिए मामला रफ़ा-दफ़ा किया गया। "चलो सो जाओ, बहुत रात हो गई है। कब से बैठे हो? सुबह जाना भी है? और जैस्मिन के पग-फेरों की रस्म के लिए उसके भाई को आना है..." तुम लोगों की पैकिंग हो गई क्या...? सवालों की बौछार सी हो गई, और बच्चे भी शायद समझते थे कि जैस्मिन के आगे एक बार ज़िक्र नहीं करना। उठकर सोने चले गए; कोई फ़ोन में देखने लगा, तो कोई अपना सामान इधर-उधर ढूँढने लगा। "बहुत रात हो गई है बच्चे, तुम भी सो जाओ।" दादी ने कहा। "कल्पना, जैस्मिन को ऊपर उसके कमरे तक छोड़ आओ।" "जी, दादी..." कल्पना जैस्मिन को साथ लेकर उसके कमरे की ओर चल पड़ी। जैस्मिन के पायलों की रुन-झुन घर में फैले सन्नाटे को तोड़ रही थी।

  • 4. मन वैरागी है - Chapter 4

    Words: 2203

    Estimated Reading Time: 14 min

    भाभी आप रह जाएंगे ना अकेले.... या मैं रुकूं ,अगर डर लग रहा है तो .....

    नहीं ..वह ...

    वैसे मैंने सारी लाइट जला दी है , एक्चुअली घर खेतों में है ना तो आसपास ना कोई घर है ना कुछ और आप ऐसे माहौल के आदी नहीं होंगी ।

    ये कहां पर है? ऊपर उनका एक अकेला ही कमरा था और रात का वक्त चारों ओर सन्नाटा फैला था ।रात में बोलने वाले झींगुरों की आवाज साफ सुनाई दे रही थी ।उसे अकेले में थोड़ा अजीब लग रहा था और कुणाल वह तो खाना खाने के बाद से ही नहीं दिखा। रेहान के साथ आया था और उसी के साथ वापस भी चला गया ।
    शायद कोई काम था वैसे भी शादी के काफी काम बचे हुए थे। जिसे सिर्फ रेहान या कुणाल ही कर सकते थे ।इसलिए वह निपटाने का कहकर गया था और अब तक लौटकर ही नहीं आया।

    दरअसल कुणाल भाई ,रेहान भाई के पास हैं। उनके साथ होते हैं, तब वह अक्सर लेट ही आया करते हैं। अगर आपको डर लग रहा है ,तो मैं रुक जाती हूं ।

    नहीं आप भी थक गई होंगी ?सोना चाहती हैं तो ,जा सकती हैं। मैं तब तक चेंज कर लेती हूं ।कहकर  जैस्मिन ने चूड़ियां निकालनी शुरू की।

    अरे भाभी, यह मत उतारिए ।दादी मां कहती है नई-नई सुहागन को यह रखनी चाहिए।

    हां पर सब नहीं उतार रही । बहुत सारी है ना तो फिर खनकती है।

    हां लेकिन इनकी खनक कितनी अच्छी लगती है ...? नई नवेली दुल्हन होने का अहसास देती है।

    किसी किसी को नहीं भी लगती, शोर लगता है। जैस्मिन ने अपने खोए हुए अंदाज में ही कहा।

    नहीं समझने वालों को लगता है। किसी औरत से पूछे इनका क्या मोल है ।

    जैस्मिन बस मुस्कुरा दी। उनके लिए तो यह अनमोल है।

    अच्छा मैं चलती हूं, सच में बहुत नींद आ रही है। सब लाइट जल रही है। अगर फिर भी आप को अकेले डर लगे तो भाई को फोन कर बुला लीजिएगा ।वैसे भी अब उन्हें अपनी आदतें बदलनी होंगी ।

    नहीं कोई बात नहीं एडजस्ट कर लूंगी। कल्पना, जैस्मिन को छोड़ कर चली गई ।जैस्मिन ने एक बार अपने हाथों को देखा और फिर सारी चूड़ियों पर उंगली फेराते हुए उन्हें छनकाया वाकई उनकी खनक अच्छी लग रही थी। मानो कोई संगीत हो, पर यह उसके कानों को मधुर लगने वाला संगीत कुणाल को शोर लगता था। मायूस होकर अपने हाथों से एक-एक कर चूड़ियां उतारनी शुरू की। बस एक एक ही बची रही। फिर सारे जेवर जो आज सुबह से ही उसने पहन रखे थे और रानी हार..... उसे हाथ में लेकर देखने लगी।

    कितना सुंदर डिजाइन था ।कितना प्यारा.... उसने भी तो अपनी मां के सामने ख्वाहिश रखी थी, पर पूरी नहीं हुई। दो बेटियों की शादी करनी थी और सोना इतना महंगा.... रानी हार पर उसे हार ही जाना पड़ा। पर कहां पता था कि उसे तो खानदानी रानी हार मिलने वाला है। अपने पुरखों की धरोहर कितना वजनी था, कम से कम 15 तोले का होगा ।होठों पर मंद मंद मुस्कुराहट लिए अभी वह रानी हार में ही खोई थी ।जब उसे कुणाल की आमद का एहसास हुआ। पलट कर देखा वह उसे हार को निहारते हुए देख रहा था। मानो आंखों में सवाल हो कि इतना घूर कर देखने की क्या बात है।

    उसने जल्दी से हार साइड में रखा और खुद को ठीक करने लगी ।जो गहने उतारने के लिए उसने अपनी चुन्नी हटाकर साइड रख दी थी और ना ही शोल था पास में....!

    मैं बस चेंज ही कर रही थी ,इससे पहले कि कुणाल कुछ कहे उसके आगामी प्रश्नों का उत्तर खुद से ही दे दिया। कुणाल ने भी बस गर्दन हिला दी ।उसने तो हिसाब किताब नहीं मांगा था ,कि वह क्या कर रही थी और क्या करने जा रही थी? बस उसके हाथों में उस कीमती चीज को देख रहा था, जो कुणाल की नजर में बस गहना भर था, लेकिन जैस्मिन के लिए सबसे अनमोल तोहफा।

    वह उठ कर खड़ी हुई तो पायल ने शोर मचा दिया। इन्हें तो वह निकालना ही भूल गई ।फिर से ड्रेसिंग टेबल के आगे बैठकर एक पैर पर पैर चढ़ाएं उन्हें पांवों से उतारने लगी और कुणाल वह अपने कपड़े लेकर बाथरूम में जा चुका था ,शायद बदलने थे।

    कुणाल के कपड़े चेंज करने के बाद वह भी अपना सूट लेकर बदलने के लिए चली गई। जब वापस बाहर आई, तो देखा वह आज भी कल की तरह फोन चला रहा था। एक तो इस फोन ने जान खा रखी है ।लोगों ने आसपास के लम्हों को बटोरना ही छोड़ दिया। बस खुद कैद हो रखे हैं ,इस फोन की गिरफ्त में ।


    बेड के पास आकर बैठ गई और अपनी चुन्नी साइड में रख दी। आज सुबह कुणाल के टोकने के बाद वह उसके सामने भी दुपट्टा लेकर घूम रही थी। शायद उसे वह दुपट्टे से बेनियाज पसंद नहीं ।

    और वह जो दिनभर उसके प्यार की नजर को तरसती रही थी कि वह एक झलक बस उसे देख ले। अब अपनी कुर्बत के पल जैस्मिन की झोली में डाल रहा था । उसका दिल प्यार से भरा था, वह बस इस प्यार को समेट लेना चाहती थी, अपने भीतर कहीं बसा लेना चाहती थी। जैस्मिन ने अपने आप को कुणाल के सुपुर्द कर दिया।


    जैस्मिन इस घर में दो दिन और दो रातें रुकी थी । इस बीच में उसने चार अलग-अलग तरह के कुणाल को देखा। एक जो बहुत सख्त था। गंभीरता का आवरण खुद पर ओढ़े रखता था। एक जो बहुत जिम्मेदार था। अपने जिम्में आए काम को बिना कोई मामूली सा फ़र्क आए ही पूरा करता था । एक जो बहुत आज्ञाकारी था। बड़ों का कहना मानता था ,और एक जो उसे बेहद प्यार करता था। अपने होने का एहसास देता था और यह बस उसके सामने था। उसके लिए था ।

    लेकिन फिर भी वो उस इंसान के व्यक्तित्व की गहराई को नहीं नाप सकती थी। यह बेहद मुश्किल था ।इस इंसान की तह तक जाना वाकई मुश्किल है ।जिंदगी भर कैसे निबाह होगी ।पता नहीं......? कुणाल तो जैस्मिन के लिए कोई कठिन सब्जेक्ट बन गया था। जिसे वह सॉल्व करना तो चाहती थी ।पढ़ना भी चाहती थी। रुचि लेना भी चाहती थी ।पर कुणाल उसे इन सब की इजाजत नहीं देता था।

    वह बस अपना एक हिस्सा उसके साथ बांट रहा था और एक रूप जो कुछ खास पलों में ही जैस्मिन को दिखाता था ।बाकी वह जैसा था, उसके साथ भी वैसा ही था ।या शायद उससे भी ज्यादा कठोर...!


    सुबह भी उसे जल्दी उठना था और वह उठी भी ।सब कुछ बहुत एहतियात से कर रही थी। ताकि कुणाल के नींद डिस्टर्ब ना हो। पर वह हो रहा था ।मुंह पर कंबल डालें लेटा रहा। अब आदत डालनी ही थी। बार-बार उसे टोकने रोकने का कोई फायदा नहीं। वह नहा कर पीले रंग का सूट पहन कर आई और कल की तरह ही एक-एक कर सब गहने खुद पर सजाती रही ।आईने में अपना अक्स देख रही थी ।जो खिला-खिला सा था। यह सब साज शृंगार का कमाल था या कुणाल के प्यार का। उसे नहीं पता पर सब कुछ अच्छा लगने लगा था।

    एक बार खुद को अच्छे से चेक किया ।कुछ भूल तो नहीं गई है। ड्रेसिंग टेबल पर पायल दिखी। इन्हें तो वह भूल ही गई थी। हाथों में अभी शादी का चूड़ा था ।इस बार वही जाकर बदल कर आएगी। तब तक रहने देती है। सुंदर लग रहा था ।

    मेहंदी से भरे हाथ पीले रंग का सूट ,नाक में लॉन्ग ,आंखों में काजल और होठों पर सुर्खी उसे और खूबसूरत बना रही थी। हल्की मुस्कान के साथ उसने सिंदूर की डिबिया उठाई और माथे पर सजा लिया। बिंदिया लगा कर, उसने लंबे बालों को चोटी में बांध लिया। बाल लंबे थे जो पूरी कमर को ढकते थे सिर पर पल्ला लिया और शोल ओढ़ते हुए उठ खड़ी हुई।

    धीरे से बाहर निकली तो कुणाल ने गर्दन उठाकर देखा ।शायद वह देखना चाहता था कि सिर पर दुपट्टा है या नहीं ।उसे देखकर कुणाल को इत्मीनान हुआ । जल्द ही यहां के तौर-तरीकों के अनुसार ढल जाएगी। अब उसे ज्यादा मेहनत ना करने पड़े। कुणाल ने सुकून से आंखें बंद कर ली। दरवाजा खोलकर बाहर आई, तो खेतों में लहलहा रही सरसों बिल्कुल उसके सूट के रंग से मैच कर रही थी। जो एक और के खेतों में पूरी फैली हुई थी। फरवरी के महीने में धानी और पीली चुनर ओढ़े यह धरती बहुत हसीन लगती है ।उतनी ही हसीन जैस्मिन लग रही थी।

    जैस्मीन ने एक बार मुस्कुरा कर खेतों को देखा ।सुबह-सुबह पंछियों को चहचहाहट सुनी। वह जो अपने घरोंदो से निकलकर अपनी उड़ान भरने को लालायित थे। दाना पानी चुगने के लिए अपने घोंसलों को छोड़कर दूर तलक घूम रहे थे। सूरज निकलने का आभास था इसलिए आसमान में हल्की लालिमा छाई थी। मौसम ठंडा था लेकिन अब धुंध नहीं आती। इसलिए आज दूर तक साफ दिख रहा था। कितना खूबसूरत और मनभावन दृश्य था। एक अलग ही सुकून और अपनापन था ,इस नई दुनिया में।

    जैस्मिन के लिए यह बिल्कुल अलग था ।खुशी खुशी नीचे की ओर बढ़ गई। आज कम लोगों का आना जाना था। दादी और बाकी सब औरतों के पास बैठे चाय पी रही थी और उनकी कुछ-कुछ बातें जारी थी ।आज भी दादी ने प्यार भरी नजर से जैस्मिन को निहारा। वह उनके घर की शोभा थी। जो दादी को भरपूर खुशी दे रही थी। जैस्मिन के चेहरे की चमक से उनका घर रोशन था और उनके घर को चिराग देने वाली उनके लाडले पोते की अर्धांगिनी थी। कुणाल अभी उठ कर नीचे नहीं आया था। रात भी काफी देर तक बाहर ही था ।इसलिए किसी ने उठाया भी नहीं।


    हम कुणाल को कल ही भेज देंगे ,जैस्मिन को वापस लिवाने के लिए। आप सिर्फ अपनी बहन को नहीं लेकर जा रहे। हमारे घर की रौनक लेकर जा रहे हैं ।जिसके जाने से घर सुना सुना सा हो जाएगा। दादी ने जैस्मिन के भाई जय से कहा ।

    जी दादी, आप कल वापस ला सकते हैं। उन्होंने आदर के साथ जबाव दिया।

    अभी वह सब लोग बाहर खड़े थे ।जैस्मिन का भाई जय उसे लेने के लिए आया था। जैस्मिन अपने ताया ससुर बलदेव जी और उसके ससुर भूपेंद्र जी के पांव छूकर आशीर्वाद ले रही थी। दादी ,मम्मी, ताई चाची ,बुआ सब के पहले पांव छू चुकी थी।

    तभी कुत्ते भौंकने की आवाज आई ।इन्हें किस ने खोल दिया..? दादी ने सवाल किया।

    मैंने खोला है। भाई, भाभी से इनका परिचय तो करवाया ही नहीं। यह भी तो फैमिली मेंबर है ।और फिर जय जी से भी तो इंट्रोडक्शन करवाओ ।अब अपनी बहन से मिलने ,लेने आते ही रहेंगे ।अनजान थोड़ी ना है।

    हां भाभी , इनसे मिलिए..... यह है रॉकी और यह है रोनी। भाई के बॉडीगार्ड। और भई रोकी ,रोनी यह भाभी के भाई हैं। इन्हें कुछ नहीं कहना, अगर अपनी बहन के पास आए ।बाकी भाभी से तो अब रोज ही मिलना होगा। अर्थ ने उन दोनों को सहलाते हुए कहा और मानों वह सब समझ रहे हो।

    दोनों ही जर्मन शेफर्ड नस्ल के थे।जैस्मिन ने देखा बड़े ही खूंखार और डरावने से कुत्ते थे। जो उसे घूर रहे थे। जय और जैस्मिन सब लोगों के बीच में उनके साथ खड़े थे। इसलिए बस उन्हें देख रहे थे। अगर शायद अकेले होते तो काट भी लेते। वह घर की सेफ्टी के लिए जरूरी था। जय बस मुस्कुरा दिया और वह सब से विदा लेकर जाने के लिए बढ़ गया।

    पीले रंग का सूट पहने जैस्मिन ने झुकी झुकी नज़रों से एक बार कुणाल की ओर देखा ।जो उसके भाई से मुखातिब हो रहा था। उसी पल कुणाल ने अपनी नजरों का पहलू बदला और उसकी नजर लम्हे भर के लिए जैस्मिन की नजरों से जा टकराई ।सबके आसपास होने का भान होते ही जैस्मिन ने अपने नजरों का जाविया बदल लिया। जबकि कुणाल को अपना सुकून दूर जाता महसूस हो रहा था। एक ही दिन की तो बात है कल उसे लाने जाना ही था ।फिर उसे अजीब क्यों लग रहा था ।अब तक तो अकेला ही रहा है वह ।क्या आदतें इतनी जल्दी बदल जाती है ?कुणाल ने खुद की सोचो पर लगाम लगाई और अपने आप को पाबंद किया।

    जितना कुणाल को अपनी जमीन से लगाव था। वह जैस्मिन को वैसा ही देख रहा था। अब तो वह उसे बिल्कुल सरसों के फूलों की तरह लग रही थी ।यह क्या पहना है इसने ?क्या कोई और रंग नहीं था? सब उसे भटकाने के लिए ही है .......शायद?

    गाड़ी के पास खड़ा कुणाल ,जय के साथ बहुत शिष्टाचार से मिल रहा था। जैस्मिन गाड़ी में बैठ गई और वह दोनों भाई बहन वहां से रवाना हो गए। अब बुआ और उनके बाकी बच्चों को भी जाना था ।वह बस जैस्मिन के लिए रुके थे, कि उसकी विदाई के बाद ही घर से निकलेंगे।

    एक बार फिर सब अंदर आ गए। अपना सामान लेने के लिए। सब के जाने के बाद घर सच में सुना हो गया था। अब सिर्फ बड़ी बुआ और अभिषेक ही बचे थे ।जो एक-दो दिन में चले जाएंगे। अहाना और अनिका रुकना चाहती थी। पर पढ़ाई की वजह से नहीं रुक पाई ।आदित्य ,अरनव और अर्थ को काम था इसलिए जाना पड़ा ।दोनों छोटी बुआ घर में किसी के ना होने की वजह से ज्यादा दिन नहीं रुक पाई ।सब अपने-अपने काम लग में गए।

  • 5. मन वैरागी है - Chapter 5

    Words: 2049

    Estimated Reading Time: 13 min

    वाह.... कितना सुंदर है ..!किसका है यह?

    मेरा है ।

    सच में..! किसने दिया?

    सास ने,पहले दादी सास का था, फिर मां का और अब यह मेरा है ।बता रहे थे खानदानी है।

    वाओ जैस्मिन तुम्हारे तो वारे न्यारे हो गए ।कितना दुखी हुई थी तुम जब मम्मी ने रानी हार के लिए मना कर दिया था ।पर देखो किस्मत में लिखा था मिलना ,तो मिल ही गया ।

    जैस्मिन अपने घर आ चुकी थी ।अपनी भाभी और बहन को जेवर दिखा रही थी ।जो जो उसे मुंह दिखाई में मिले थे और उसमें एक रानी हार भी था ।जो उसके लिए सबसे ऊपर था। शायद कुणाल की दी हुई अंगूठी से भी अधिक आनंदित कर रहा था। जब जब उसे देखती तो मन हरा हो जाता।

    लेकिन उसकी उंगली में चमचमाती हीरे की अंगूठी, उस पर भला कैसे ना नजर पड़ती।

    यह बहनोई ने दी है मुंह दिखाई में..? भाभी ने उसका हाथ पकड़ते हुए पूछा।

    जी भाभी।

    देखो डायमंड की है, भाभी ने अपनी बड़ी ननंद बानी दिखाते हुए कहा ।

    हां भाभी ,सच में और जैस्मिन के हाथ में तो और भी प्यारी लग रही है ।गोरे गोरे हाथों में वह हीरा खिल रहा था ।हीरे की चमक जैस्मिन के हाथों की शोभा बढ़ा रही थी या जैस्मिन के हाथों ने उस अंगूठी की सुंदरता में बढ़ोतरी की थी ।कहा नहीं जा सकता।

    पर भाभी और बहन की बातें करते सुन जैस्मिन खुशी से गदगद हो रही थी।

    बानी तुम्हें क्या मिला? बानी ने अपनी अंगूठी दिखाई और वह सामान जो उसे मुंह दिखाई में मिला था ।कीमत में भले ही कम था। पर बनी के चेहरे की खुशी बयान कर रही थी, कि वह सब पाकर कितनी खुश है ?आंतरिक प्रसंन्नता ही सब कुछ होती है। फिर चीजों का मूल्य नहीं मोल देखा जाता है ।बानी के लिए तो वह सर्वोपरि था, अमूल्य था। जो इस जग में उसे मिला था ।

    अपने दोनों ननद का खिला हुआ चेहरा देखकर भाभी को संतुष्टि हुई। उसे इस घर में आए 2 साल हो गए और इन 2 सालों में उनका रवैया एक दूसरे के प्रति अच्छा ही रहा ।आपस में सहेलियां अधिक थी ,इसलिए बनती भी अच्छी थी ।

    अच्छा बताओ ना अपने अपने पति का स्वभाव कैसा है? उनकी खुशी से वह अंदाजा लगा सकती थी कि सब कुछ अच्छा ही था। बानी बस मुस्कुरा दी ।पर जैस्मिन की मुस्कुराहट फीकी पड़ गई ।

    कुणाल.... क्या कहें उसके बारे में .?वह खुद ही अभी नहीं जान पाई ।वह सागर है, जिसमें उसने अभी चुल्लू भर पानी को देखा है। उसकी विशालता में उतरना आसान नहीं था। उसे खुद के डूब जाने का अंदेशा था।


    क्या हुआ जब से आए हैं। थोड़े परेशान से दिख रहे हैं ?भाविका ने जय से पूछा ।

    नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं ।

    मुझे नहीं बताएंगे ।क्यों मूड खराब है आपका ?

    मूड खराब नहीं है ।बस मैं कुछ सोच रहा था ।

    अच्छा और क्या सोच रहे थे? अब बता भी दीजिए और कितना सस्पेंस रखेंगे?

    भाविका मुझे लगता है ।जैस्मिन की शादी हमने जल्दबाजी में कर दी ।

    और ऐसा भला क्यों लगता है आपको ?

    नहीं कोई वजह तो नहीं पर पर....

    क्या उसका ससुराल अच्छा नहीं लगा ?

    नहीं वह बात नहीं है ।

    तो जैस्मिन को देखकर अंदाजा लगाया आपने?

    भाविका मुझे ऐसा लग रहा है जैस्मिन को एडजस्ट करने में बहुत दिक्कत होगी। उनका रहन-सहन ,वहां का माहौल बिल्कुल अलग है ।जैस्मिन की अभी उम्र ही कितनी है। अभी तो ग्रेजुएशन कंप्लीट किया है और इस कच्ची उम्र में उसे इतने सख्त लोगों का सामना करना पड़ेगा ।कैसे करेगी वह?

    वह सब आप जैस्मिन पर छोड़ दीजिए। वह सब कुछ कर लेगी और आप जिस की इतनी फिक्र कर रहे हैं ना। वह तो अभी रानी हार मिलने की खुशी में डूबी हुई है। उसके चेहरे की चमक देखने लायक थी ।जब वह सब गहने और तोहफ़े दिखा रही थी। आप पर बेवजह फिक्रमंद हो रहे हैं।

    भगवान करे ऐसा ही हो? जय ने लंबी सी सांस छोड़ते हुए कहा।

    कुछ कहा उसने? बताया अपने ससुराल के बारे में ?

    सब बहुत अच्छे हैं, और दादी ...उनकी तो तारीफों के पुल बांधते नहीं थक रही थी वह ।आप ऐसी वैसी कोई भी बात अपने दिमाग में ना रखें ।वरना यूं ही दुविधा में रहेंगे, फिर मम्मी पापा को और चिंता हो जाएगी।

    वह बात नहीं है भाविका बस मुझे लगता है ।पापा ने सिर्फ उनकी जायदाद और रुतबा ही देखा। तुम ठीक कह रही हो। शायद यह सब मेरा वहम ही है।

    जय कहा ना अपनी सोचो पर पहरा लगाइए। वरना नया नया रिश्ता जो अभी ठीक तरह से बना भी नहीं है ।बिगड़ते देर नहीं लगेगी।

    नहीं मैं बस तुम्हारे सामने ही जिक्र कर रहा हूं। तुम मम्मी या किसी और से इस बारे में कुछ मत कहना।

    बिल्कुल भरोसा है ना मुझ पर ...?

    तभी तो अपने मन की कह पाया हूं। तुम्हारी बात भी सही है शायद मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा हूं ।हो सकता है मेरा वहम ही हो ।

    बिल्कुल चलिए ,मम्मी खाने के लिए बुला रही है ।आज तो दो-तीन दिन बाद पूरा परिवार फिर से इकट्ठा हुआ है।

    हां भाई सही बात है ।चलो चलते हैं ।वैसे भी कल दोनों फिर से जाने वाली है।

    हां और एक बार घर फिर सूना हो जाएगा।

    सूना कैसे हो जाएगा? तुम लोग पोता पोती का मुंह नहीं दिखाने वाले हो क्या हमें ?उन दोनों के बीच में आते हुए मां ने कहा ।

    ओ मां आप फिर शुरू हो गई। चलो खाना खाते हैं ।मुझे बहुत भूख लगी है। कहकर जय बाहर आ गया।

    देखा यह फिर मेरी बात टाल गया। तुम क्यों नहीं कहती कुछ उसे ?

    मां मैं अब क्या ही कहूं?

    तो और कौन कहेगा?

    वह आपकी ही नहीं सुनते मेरी कहां से सुनेंगे ?

    औरतों की सुनता ही कौन है.....

    ओ मेरी प्यारी मां चलिए। आप फिर से अपने दुखों की दुनिया में ना पहुंच जाना ।भाविका अपनी सास का हाथ पकड़कर बाहर ले आई ।जहां सब लोग उनका पहले से इंतजार कर रहे थे।



    अच्छा बता ना जैस्मिन जीजु का स्वभाव कैसा है ?जैस्मिन अपनी दोस्त के साथ बातें कर रही थी ,साथ में अपनी पैकिंग भी ।सुबह सुबह का वक्त था। थोड़ी देर बाद कुणाल ने उसे लेने आ जाना था ।इसलिए वह उससे मिलने आ गई ।जैस्मिन के हाथ रुक गए। यह सबसे कठिन सवालों में से एक था ।जिसका जवाब उसे खुद ही नहीं मालूम ।

    अच्छा है, उसने दो टूक उत्तर दिया। शायद बात टल जाए ।उसे वह बुरा नहीं कह सकती थी ।उसके साथ वह जेंटल ही रहा था। बस थोड़ा सख्त था। थोड़ा ज्यादा ही, इतना भी इंसान को कठोर नहीं होना चाहिए ।वह जरूरत से ज्यादा सख्त था ।

    अच्छा, मतलब कैसा? हंस मुख ,गंभीर या मिलाजुला, या फिर ज्यादा सीरियस या बहुत जोली नेचर ......किस टाइप का ?वह उसे प्रकार गिनवा रही थी।

    पता नहीं यार.... मुंह पर हमेशा एक जैसे एक्सप्रेशन ही रहते हैं। सुख और दुख में समान रहने वाला..... गीता में क्या कहते हैं उसे ..? हां,स्थितप्रज्ञ.... जैस्मीन ने याद करते हुए कहा और दोनों हंस दी ।

    अच्छा और तुम्हारे साथ कैसा है ?ज्यादा रूढ़ तो नहीं?

    हां भी और नहीं भी .....

    मतलब ?

    मतलब.... मतलब मैं नहीं जानती हूं ।अभी मेरा दिमाग मत खा। दो दिन तो रह कर आई हूं ।कितना जान पाऊंगी। दो दिनों में फिर हम साथ होते ही कब थे ,सिर्फ रात को ।दिन भर दो परिवार के साथ ही रहना होता है।

    ओहो ....!सिर्फ रात को ....और रात को तो तुम लोग....

    चुप हो जाओ। कुछ भी बोलती हो ।

    अच्छा मैं अब उस बारे में बात भी ना करूं, तुम कर मजे से...

    जैस्मिन ने पिलो उठाकर उसे मारा ।सब बाहर है ।तुम्हें बोलते हुए बिल्कुल शर्म नहीं आती ।

    अच्छा सॉरी ,फिर भी बताओ ना कैसे कैसे हैं जीजू ?रोमांटिक.. बुरे ..चिड़चिड़े.. या फिर सुपर रोमांटिक... वह फिर शुरू हो गई थी। पर उसने अपना लहजा धीमा जरूर कर दिया था।

    जिम्मेदार, आज्ञाकारी, जवाबदेह ,कर्तव्यनिष्ठ ....जैस्मिन ने भारी-भरकम शब्दों से कुणाल के कैरेक्टर को नवाजा ।

    कहां पंछी बेचारी पर्सनल बातें पूछना चाह रही थी और जैस्मिन उसे अलग ही ट्रैक पर ले गई।

    मतलब तुम अपनी पर्सनल बातें शेयर नहीं करना चाहती ।जीजू ने मना किया है क्या?

    ऐसा कुछ नहीं है ।वह खुद ही नहीं करते ऐसी बातें।

    तो फिर कैसी बातें करते हैं?

    वह बातें ही नहीं करते।

    अच्छा सीधे ही पॉइंट पर आते हैं।

    तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता। जब शादी हो जाएगी ।तब मैं पूछूंगी तुमसे।

    हां और मैं तुम्हारी तरह भाव नहीं खाऊंगी ।सब साफ-साफ बता दूंगी ।

    उसके लिए आदमी भी वैसा ही होना चाहिए। कुणाल एक बंद किताब है ,उसे मैं इतना जल्दी नहीं पढ़ सकती। अगर मुझे समझ आ गया तो तुम्हें भी बता दूंगी। तब तक के लिए मेरी मां मुझे बक्श दे ।

    अच्छा ठीक है। तेरा ससुराल कैसा है?

    अच्छा है, वहां का माहौल यहां से एकदम अलग है ।पूरा दिन परिवार वालों का मजमा लगा ही रहता है। ताई, मम्मी, चाची, दादी सबके साथ वक्त का पता ही नहीं चलता ।नंददें भी है और अभी तो बुआ और उनके बच्चे भी आए हुए थे। सच में यह 2 दिन बहुत अच्छे बीते । जैस्मिन ने याद करते हुए कहा और चेहरा एक बार फिर से खिल गया ।

    अच्छा और रातें ...वह कैसी बीती?

    वह भी अच्छी थी। जैस्मिन ने खोए खोए ही मुस्कुरा कर कहा। बात पर गौर करते ही एक बार फिर उसे आंखें दिखाई ।

    क्यों ...आंखें तरेर कर क्यों देख रही हो ?मैंने क्या गलत पूछा?

    चलो बाहर चलते हैं। मम्मी की खाने में हेल्प करवा दें।मेरी पैकिंग हो गई ।

    पर तुम्हें तैयार भी तो होना है ।

    हां लेकिन अभी आए कहां है ?खाना वगैरह होगा तब तक मैं तैयार हो जाऊंगी ।

    हां चलो थोड़ी देर भाभी और दीदी के साथ बैठते हैं ।वह दोनों बाहर आ गई ।


    कुणाल ,अभिषेक , रेहान तीनों ही आए हुए थे। खाना-पीना बातें शाते सब हो गई थी । अब उन्हें निकलना था। लगभग 2 घंटे का वक्त लगना था और शाम होने को आई थी।  गांव का माहौल और फिर जैस्मिन के जेवरात भी उसके साथ थे। रात गए नहीं जा सकते थे।

    अभिषेक गाड़ी ड्राइव कर रहा था। जबकि रेहान फ्रंट सीट पर उसके बराबर बैठा था ।कुणाल और जैस्मिन बैक सीट पर बैठे थे। जैस्मिन की आंखों में अभी भी आंसू थे। दूसरी बार घर से विदाई हो रही थी ।और उसे बेहद रोना आ रहा था। नारंगी रंग के सूट में उसका चेहरा भी रो-रोकर हल्का गुलाबी हो गया था। कुणाल ने एक नजर उसको देखा ।

    जैस्मिन सिर झुकाए अपने आंसू पोंछ रही थी ।गाड़ी में लो म्यूजिक बज रहा था ।रेहान और अभिषेक आपस में बात कर रहे थे और बीच-बीच में कुणाल से भी बात शुरू कर देते। कुणाल अपनी बैक कार की सीट से लगाए हुए आराम से बैठा था। वह कम शब्दों में लेकिन उनकी बातों का उत्तर बड़ी शालीनता से दे रहा था। सब उसके गंभीर स्वभाव के आदी थे।

    जैस्मीन ही पास बैठी डर रही थी। कि वह उसे रोने की वजह से डांट ना दें। इसलिए खुद को जल्दी संयत कर लिया ।कितना विचित्र ऑरा था इस इंसान का ,जिसके बराबर बैठते हुए भी उसे डर लग रहा था।

    और वह उसके जीवन का हमसफर, हमराह और हमसाया था। क्या हाथ पकड़ कर साथ चलने की इजाजत देगा? या फिर उसे उसके पीछे-पीछे चलना होगा?


    ढलता हुआ सूरज आसमान में अपनी लालिमा छोड़कर जा चुका था ।जैस्मिन गाड़ी से उतरी तो उसका नारंगी सूट आसमान के भगवे से मेल खा रहा था। कुणाल उसे लाख इग्नोर करने की कोशिश करता ।पर वह उसे प्रकृति के किसी ने किसी रंग में दिख जाती। मानो पूरी सृष्टि जैस्मिन में आ बसी हो।

    प्रकृति उसमें ढल रही है या जैस्मिन प्रकृति में .....उसे समझ ही नहीं आ रहा था। कितने रूप दिखाएगी यह अपने? गाड़ी से उतरते ही रोकी रोमी दौड़कर कुणाल के पास आ गए। जैस्मिन थोड़ा डर से पीछे हो गई ।उसे अभी भी उनसे डर लग रहा था। कितने खतरनाक थे ।

    कुणाल झट से उसके आगे आ गया और जैस्मिन को अपने पीछे ले लिया। वह उसके सामने ढाल बनकर खड़ा था ।तब तक कल्पना और काजल जैसमिन को लेने बाहर आ चुके थे और फिर एक बार वह दादी के सामने बैठी थी ।दादी की आंखों का नूर बन कर.....!

  • 6. मन वैरागी है - Chapter 6

    Words: 2252

    Estimated Reading Time: 14 min

    पहुंचे जब तक शाम हो चुकी थी और दिन लगभग ढल ही गया था ।अंधेरे ने दस्तक दी । कुछ देर दादी ने उसे अपने पास बिठाए रखा। अब खाने का टाइम हो गया था ।इसलिए सबने उसे खाना खाने के बाद ही जाकर चेंज करने को कहा। ताकि फिर वह आराम से सो जाएं।  इतने गहनों से लदी हुई थक भी गई होगी। ऊपर से भारी भरकम सूट।

    कुणाल बेटा, जैस्मिन का सूट केस ऊपर ले जाओ उसे जरूरी सामान चाहिए होगा । वह पहली बार आई थी तब तो कितना ही सामान ले पाई थी। साथ में बस एक सूटकेस था इस लिए बचा हुआ अबकी बार लाई थी । फिर न जाने कब जाना होगा।


    कुणाल जो रेहान और अभिषेक के साथ बैठकर खाना खा कर उठा ही था। उसे मां ने कहा। वह अभी थोड़ी देर उनके पास बैठना चाहता था। इसलिए  सूटकेस उठाया और ऊपर की ओर चला गया ।वह रखकर वापस आएगा।

    तुम भी जाओ, बेटा कपड़े बदल लो और फिर आराम करना। जैस्मिन पीछे पीछे चल दी ।जैसे-जैसे वह चलती चूड़ियां और पायल छन छना उठती ।यह एक अलग ही विशेषता थी जैस्मिन की ।क्योंकि उसके अलावा घर में और कोई नहीं पहनता था। उसके आने जाने का दूर से ही पता चल जाता ।कुणाल जानता था ।वह उसके पीछे आ रही है।

    जैस्मिन ने छत पर कदम रखा तो देखते ही हैरान रह गई ।पूरी छत जो अब तक सिर्फ सफेद मार्बल से चमक रही थी। अब उस पर जगह-जगह प्लांट्स रखे हुए थे और सब के सब जैस्मिन के...... हे भगवान !सारे एक ही तरह के ...सफेद मार्बल पर सफेद जैस्मिन के फूल और हरे पत्ते...... बस यही एक कंबीनेशन था। सब एक ही तरह के पौधे क्यों लाए? कितनी अच्छी लगती यह छत अगर यहां रंग बिरंगे फूल खिले होते...!

    वह तो सूट भी अलग-अलग रंगों के पहनती है। उसे विविधता पसंद थी। चीजों में वैरायटी होनी चाहिए और यहां सिर्फ जैस्मिन..... जिंदगी कितनी बोरिंग हो जाती है, एक ही तरह के रंग में ।जिंदगी में सब रंग होने चाहिए ,जो खुशियां दे।

    यह सब उन्होंने दिए थे गिफ्ट में। बहुत सारे थे, उन्हें एक जगह नीचे नहीं लगवा सकता था और वैसे भी छत पूरी खाली पड़ी थी। इसलिए गमलों में लगवा दिए।

    कितने दे दिए थे लगभग 50........?...!

    बीस पच्चीस गमलों में छत पर ही लगे हुए थे और फिर नाली के पास भी लगभग इतने ही थे।हद करते हैं... ऐसे क्या देवर मिले हैं ? उन्हें कुछ कह भी नहीं सकती। लड़के भी आपस में  कैसे कैसे मजाक करते हैं ?और उनके मजाक के चक्कर में वह सिर्फ एक ही तरह के फूल समेटे बैठी थी।

    उनका किया हुआ मजाक, जैस्मिन पर भारी पड़ रहा था।

    लेकिन इतनी बड़ी छत है वह बीच में और गमले मंगवा कर दूसरे प्रकार के पौधे लगवा सकती है। फिर छत ज्यादा सुंदर दिखेगी ..!जब सफेद फूलों के बीच में अलग-अलग तरह के रंगों का मेल दिखेगा..... जैस्मिन ने मन में ही इमेजिन कर लिया था और वह मुस्कुरा दी ।

    कुणाल सूटकेस रखकर वापस जा रहा था और उसे प्लांट देखते हुए देख कर रुक गया ।बिना पूछे ही उसकी बात का जवाब दे डाला और अब चेहरे पर उसके हाव भाव देख रहा था। वह देख रही थी, हंस रही थी , कुछ सोच रही थी,लेकिन बोल कुछ भी नहीं रही थी।

    पागल हो गई है क्या ?कुणाल में सिर झटका और नीचे चला गया ।

    जैस्मिन कमरे में आई तो इस बार कमरा बिल्कुल साफ था। गुब्बारे ,फूल ,लड़ियां सब हटवा दी थी। क्या यह सिर्फ कुणाल ने किया है? या किसी को साथ लिया होगा? नहीं इस काम में तो किस को साथ लेगा। सब खुद ही किया होगा।

    जैस्मिन ने सबसे पहले अपने गले का भार हल्का किया। सिर से चुन्नी उतारी और फटाफट गहने निकालने लगी।फिर उस भारी-भरकम सूट को ,बाल जो सुबह से कसकर बंधे हुए थे उनको खुला छोड़ा और कपड़े उठाकर बदलने के लिए चली गई। आईने में देखा काजल रोने की वजह से फैल गया था। अब उसकी बड़ी आंखें कजरारी दिख रही थी। चेहरा धोकर साफ किया, कुछ कुछ काजल अभी आंखों में ठहरा हुआ था। कपड़े बदल कर बाहर आई और बालों की ढीली सी चोटी बना ली। लंबे बाल खोलकर नहीं सो सकती थी। वरना उलझ जाते थे और सुलझाने में सो दिक्कतें होती।

    उसने एक बार दरवाजा खोलकर बाहर देखा। क्या पता कुणाल आ गया हो? पर उसका तो कोई अता पता नहीं था। अड़ियल चौधरी..... कुणाल चौधरी। था तो वह थोड़ा अलग ही...! उसे उसका एक अंश मात्र भी समझ ना आया था।अड़ब आदमी.... कुणाल को देने के लिए उसके मन में ढेरों नाम थे ।पर वह उसके मन तक ही सीमित थे ।उसके मुंह पर वह उसे कुछ नहीं कह सकती थी ।इतना रौबदार आदमी था।

    जैस्मिन को पंछी की बात याद आ गई। आज भी जब वह उसे लाने गया था ,तो पजामे कुर्ते में था। क्या और ढंग के कपड़े नहीं पहन के आ सकता ।पर नहीं उसे भी पूरा जमीदार लगना था और पंछी ने उसे देखते ही कहा था। कि आपके चौधरी साहब आ गए हैं, आपको लेने..... पूरे दिन भर वह उसे उस नाम से चिड़ाती रही ।जीजू तो शायद कहना छोड़ ही चुकी थी। जैस्मिन ने दरवाजा बंद किया और वह सोने चली गई। शायद आज वह देर से आएगा। कल अभिषेक को भी चले जाना था।


    जैस्मिन अब खुद को रिलैक्स फील कर रही थी। कुणाल भी नहीं था कमरे, तो उसे गंभीरता का एहसास भी नहीं हो रहा था। वरना वह कमरे में घुटा घुटा सा महसूस करती थी ।कुणाल के होने से उसे ऐसे लगता मानो किसी ने जकड़ रखा हो। दम गोटू सा माहौल होता ।हर काम सोच समझकर, संभलकर करना पड़ता ।शोर शराबा बिल्कुल पसंद नहीं था। जब भी उसे खटपट की आवाज आती तो वह फोन देखता देखता नजरें उठाकर उसकी तरफ यों देखता मानो उसे खा जाएगा ।और वह काली बड़ी आंखें उसे डराने के लिए काफी थी। बाकी वह शांति रहता। उसे कोई मतलब नहीं था वह क्या कर रही है? और क्या नहीं ?

    जैस्मिन बिस्तर पर आकर लेट गई ।कुणाल कब आया उसे पता भी नहीं चला ।वह गहरी नींद में सोई थी। कुणाल अपने कपड़े पहले ही बदल चुका था ।उसने आकर धीरे से साइड टेबल पर फोन रखा और लोई हटाकर पास में ही पड़ी कुर्सी पर रख दी। कमरे में लाइट जल रही थी। शायद जैस्मिन को अकेले डर लग रहा था। कुणाल ने गहरी नजरों से उसे देखा ।सादे से सूट में वह कंबल छाती तक उठकर सोई थी। मेकअप के नाम पर अब कुछ नहीं था ।बस हाथों में एक एक चूड़ियां और मांग में हल्का सा सिंदूर, आंखों में हल्का-हल्का काजल था ।जो आसपास भी थोड़ा-थोड़ा फेल रखा था। यहां तक कानों के झुमके भी उसने निकाल दिए थे। काफी बड़े और हैवी थे ।

    जो जैस्मिन गहनों और मेकअप से ढक जाती थी। उन सब के बिना और अधिक निखर कर दिख रही थी। कुणाल कुछ देर तक उसे यूं ही देखता रहा। जैस्मिन काफी थकी हुई थी। उन्हें इन सब का आभास नहीं हुआ। बिल्कुल वैसे ही पिल्लो के सहारे सोई रही ।

    कुणाल ने लाइट बंद की । डिम लाइट जला दी।जैस्मिन के पास से पिलो हटाया और खुद उसके पास लेट गया ।एक हाथ उसने उसके सिर के ऊपर से लेते हुए दोनों के बीच में कुछ नजदीकी बढ़ाई। पर यह पर्याप्त नहीं था। कुणाल को तड़प महसूस हो रही थी। कल उसके बिना उसे नींद भी ठीक से नहीं आई और वह जो 2 दिनों से शोर मत करो ,शोर मत करो, कहता रहा था। उसे उस शोर की आदत हो गई थी।

    क्या 2 दिन में ही ऐसी आदत संभव है ? क्या है यार..? उसने कोफ्त में खींच कर उसे अपने करीब कर लिया। वह कुंभकरण की बहन थी ।इस तरह खींचने पर भी नहीं उठी।बल्कि कुणाल की प्रजेंस उसे सुकून दे रही थी ।वह अब ज्यादा आराम से सोई।

    कुणाल उसे उठाना चाहता था ।पर इस तरह की बस वह जाग जाए। यह ना लगे कि उसने उसे जानबूझकर उठाया है । जैस्मिन कुणाल की करीबी महसूस कर उसे पकड़ कर आराम से सो गई ।उसकी पनाह में उसे अच्छा लग रहा था और कुणाल जो बाहर ठंड से आया था जैस्मिन का गर्म लम्स उसे सुकून दे रहा था।

    यह क्या बिना उठाए सच में नहीं उठेगी? देखो ...कितना आराम से सो रही है!

    कुणाल थोड़ा ऐसा ही था। वह खुद को जाहिर नहीं कर पाता था। बस खुदी में रहता था।

    अपनी बेचैनियों की वजह से वह बार-बार हरकत में था। जिससे  जैस्मिन की नींद खुल गई ।अपने पास कुणाल को देख कर वह थोड़ा चौंक गई।

    अ.. आप कब आए ?

    अभी-अभी आया हूं ।तुम सो जाओ ,अगर नींद आ रही है ।

    जैस्मिन कुणाल के बहुत ज्यादा नजदीक थी। वह थोड़ा पीछे हट कर फिर से सो गई।

    वाकई सो गई ...!इसे मेरा जरा ख्याल नहीं है ...कुणाल को हैरत हुई ।उसने तो बस फोर्मल्टी के लिए कहा था। उसे क्या पता था यह सच में सो जाएगी ?

    वह कुछ देर नींद से बेअसर रहा और कब जैस्मिन को देखते देखते उसकी पलकें बंद हो गई। खुद ही पता नहीं चला। सुबह 5:00 बजे जब अलार्म बजने से जैस्मिन नींद में ही कसमसाई। इतनी जल्दी सुबह हो गई ।उठना पड़ेगा। यहां सब इतना जल्दी क्यों उठते हैं ?अभी तो आधी रात पड़ी है।

      सुबह सुबह उठना वाकई जैस्मिन के लिए टेढ़ी खीर था। उसकी नींद जा ही नहीं रही थी। वह अलार्म बंद कर थोड़ा कुनमुना कर फिर से सो गई ।

    कुणाल कई देर से उसकी हरकतें नोट कर रहा था।

    जैस्मिन.... उसने उसका नाम पुकारा।

    जैस्मिन ..... वह थोड़ा तेज बोला।

    हां जी ..जी... जैस्मिन थोड़ा घबरा गई। चौंक कर उठ बैठी।

    सुबह हो गई है।

    हां मैं बस उठी रही हूं।

    क्या हुआ? नींद नहीं खुल रही ।

    नहीं, मैं उठ जाऊंगी। बस थोड़ी सी....

    कुणाल ने जैस्मिन को अपने ऊपर खींच लिया। अगर उठ नहीं पा रही हो तो मेरे पास एक सॉल्यूशन है। कोई एक्टिविटी करें जिससे तुम्हारी नींद भाग जाए ।

    जी,

    मतलब रात जो अधूरा रह गया था, उसे पूरा कर ले।

    मैं ....मुझे देर हो जाएगी ..सबने जल्दी उठने के लिए कहा था। जैस्मिन को डर था ।दादी जो इतना प्यार से बात करती है। कहीं उनके अंदर की सास ना जाग जाए ?वह किसी की भी नजरों में अपना प्यार खोना नहीं चाहती थी ।इसलिए तपाक से उठ गई।

    कुणाल बस उसे जगाना चाहता था और अब वह आराम से सो गया।

    वह नहा कर आई। फटाफट तैयार होने लगी। एक तो अब यह उसके रोज का काम हो गया था ।नई-नई शादी हुई थी। ऊपर से यहां का माहौल ऐसा था, कि उसे सज संवर कर रहना पड़ता। और अखीर की बात तो यह थी ,कि कुणाल को शोर शराबा बिल्कुल पसंद नहीं था। इसलिए रोज रात को उसे सोने से पहले इसे उतारना पड़ता। बस यही उसे उजलत में डाल रहा था।।

    वह तैयार होकर आईने के सामने खड़ी थी। एक नजर खुद पर डाली और अच्छे से चेक किया। कहीं कुछ रह तो नहीं गया। उसे कोई कमी नहीं दिखी, तो वह बाहर निकल गई ।

    जैस्मिन.... कुणाल ने आवाज दी।

    एक तो यह जगे ही रहते हैं ।पता नहीं नींद आती है या नहीं? कब सोते हैं ?मैं तो उठे हुए ही देखती हूं । जैस्मिन संभल संभल कर काम करते थक गई थी ।फिर भी रोज बाहर निकलते कुणाल उसे आवाज दे देता और वह डर जाती ।कि कहीं शोर मचाने के लिए डांट ना दें।

    नई नई बहू के मन में सौ तरह के डर होते हैं ।ससुराल में वह किसी का स्वभाव भी नहीं जानती ।इसलिए फूंक-फूंक कर कदम रखना मजबूरी थी।

    जी.... उसने मुड़कर कुणाल की तरफ पलटते हुए पूछा।

    मेरे लिए चाय ऊपर ही ले आना।

    मैं.... जैस्मिन ने कुछ उलझन में पूछा।

    हां और कौन ?

    अच्छा .... जैस्मिन ने गर्दन हिलाई।

    अब तुम्हें काम शुरु कर देना चाहिए ।वह पिछली बार तक के लिए ही था। नई दुल्हन का रिवायत।

    जी ..मैं ला दूंगी।

    कुणाल बातों ही बातों में उसे कुछ समझाना चाहता था। मतलब आज से उसे घर के कामों में हाथ बटाना शुरू कर देना था ।वह नीचे आई तो देखा दादी बैठे चाय पी रहे थे। मम्मी, ताई चाची सब पास ही थे ।

    दादी ने उसे देखा गुलाबी सूट में वह फब रही थी। जैस्मिन उनके सामने खड़ी थीं ।

    यहां आओ बेटा ।वह चलकर उनके पास आई ।दादी को कुछ अजीब लगा ।

    तुम्हारी पायल कहां है?

    वह.. दादी वह मैं पहनना भूल गई। जैस्मिन ने अपने पैरों की ओर देखा ।इसीलिए उसे चलने में इतना कंफर्टेबल लग रहा था। वरना दो दिनों से मोटी भारी-भरकम पाजेब पहने घूम रही थी। और आज पहनना ही भूल गई।

    निकाली क्यों थी ?

    भारी होगी मां ...बेटा तुम पतली जोड़ी पहन लो। जो निकालनी ना पड़े।

    नहीं मां ,इन्होंने निकलवाई ।कहा कि बहुत शोर करती है।

    जैस्मिन की बात पर दादी मुस्कुरा दी।ताई, चाची और मम्मी भी नजरें घुमा कर हंस दी और जैस्मिन को समझ नहीं आया कि ऐसा तो उसने क्या ही कहा ।जो इस तरह मुस्कुरा रही है।

    कुणाल उठ गया?

    जी, वो चाय ऊपर ही मंगा रहे थे ।

    अच्छा ठीक है। उसके लिए चाय ले जाओ और अपने लिए भी वही ले जाना। अब आओ तो पायल पहन कर आना। नई बहू के सूने पैर अच्छे नहीं लगते ।

    जी दादी ,उसने चाय कप में डाली और लेकर सीढ़ियां चढ़ गई। ऊपर गई तो वह सब ठहाका लगाकर हंस दी।जैस्मिन को बस उनके हंसने का शोर सुनाई दे रहा था ।वजह नहीं पता थी।

  • 7. मन वैरागी है - Chapter 7

    Words: 2410

    Estimated Reading Time: 15 min

    जैस्मिन चाय का कप उठाए ऊपर आई ।देखा... कुणाल बाहर ही खड़ा , अपने हाथों को मोड़ कर अंगड़ाई ले रहा था। मजबूत कद काठी का वह आदमी इस ठंड में भी सिर्फ सादे कपड़ों में खड़ा था। जबकि वह शोल ओढ़े घूम रही थी।

    क्या इन्हें ठंड नहीं लगती ?सुबह-सुबह तो फरवरी में अच्छी खासी ठंड होती है ...किस मिट्टी का बना है ये इंसान? यूं ही घूमता रहता है, शेर की तरह......

    6 फुट का आदमी और उसकी हाइट शायद पांच फुट एक या दो इंच होगी। ऊपर से पतली सी और वह लंबा चौड़ा तगड़ा बिल्कुल हरियाणवी था । यह ठेठ देसी आदमी उसका पति था। और दादी उनकी बलाईया लेती नहीं थकती थी।

    दादी पता नहीं क्यों कहती रहती है ...?चांद सूरज सी जोड़ी है दोनों की ।उसे तो वह उसके पास खड़ी खुद कुछ लगती ही नहीं थी ।मानो उसका कोई वजूद ही ना हो। जैस्मिन के लिए उनकी जोड़ी शेर और हिरनी जैसी थी ।जिससे वह डरती भी थी और छोटी भी, बल्कि बहुत छोटी ।लोगों को भी तो अजीब लगती होगी फिर क्यों सब तारीफ करते हैं?

    उगता सूरज हरे भरे खेतों पर अपनी स्वर्ण आभा बिखेर रहा था। हल्की-हल्की ठंड और फसलों पर पड़ी ओस की बूंदे मोतियों के समान चमक रही थी ।जैस्मिन के लिए यह नजारा वाकई नया और अलग सा था ।उसे बेहद पसंद आया। मन खुश हुआ और उसे अच्छा सा लगा है ।दीवार पर ही ट्रे रखकर उसके पास खड़ी हो गई ।

    और कुछ चाहिए आपको?

    नहीं ,

    कुणाल ने अपने बराबर खड़े देखा और फिर दीवार पर रखी ट्रै की ओर जिसमें चाय के दो कप रखे थे।

    वो दादी ने कहा कि मैं चाय ऊपर ही ले आऊं।

    कुणाल ने बस गर्दन हिला दी और कप उठाकर अपने होठों से लगा लिया। जैस्मिन उसे देखते ही रह गई। ना उसने कुछ कहा और ना ही जैस्मिन के कुछ कहने की जुर्रत थी।

    जैस्मीन ने भी देखा देखी कप उठाया और चाय पीने लगी ।उसे तो यह प्रकृति ही अद्भुत लग रही थी ।शहरी दुनिया में उसने यह सब नहीं देखा। गांव, खेत खलियानों की तो बात ही अलग है। सब बहुत सुंदर था। खेतों के बीच में अपना घर उसे महल जैसा लगता था ।उसने आसपास देखना शुरू किया। घर से थोड़ी दूर एक रोड था, जिस पर कुछ साधन आते जाते रहते हैं। और उस उस रोड से लगते ही कोठी तक पहुंचने का रास्ता पक्का बना हुआ था।

    ईंटो से बना मार्ग जो उनके घर तक पहुंचने का एकमात्र रास्ता था। बाकी सब ओर खेत थे, या फिर पानी की नालियां ।हां पगडंडी की तरह उनका उपयोग किया जा सकता था ।उस मार्ग के दोनों तरफ अशोका के पेड़ और बीच में कुछ फलदार पेड़ लगे थे । दो बार वह इसी राह से गुजरी थी। तब इतना ध्यान नहीं दिया ,पर छत से अब सब सामने साफ दिख रहा था।अगर कोई देखे तो देखने वाला चकित रह जाए ।

    कुणाल ने पूरे घर को अच्छे से मेंटेन करवाया हुआ था ।वह खुद भी इन कामों में लगा रहता ।कभी कुछ तो कभी कुछ। इसीलिए उसने सुबह काम का बोला था । मतलब वह काम करना पसंद करता था ।कमाऊ पति मिला है। जैस्मिन ने मन में दोहराया।

    कुणाल की बात याद आते ही उसे सुबह घर के काम करने को लेकर दी हिदायत याद आ गई और फिर उससे पहले जो कहा था ।क्या अधूरा रह गया था ?कुणाल ने सुबह-सुबह क्या कहा? चाय पीते पीते उसने अपना एक हाथ सिर के पीछे ले जाकर  बाल खुजाने लगी। दिमाग पर जोर डाल रही थी। कि क्या था? रात को उसने नहीं किया और कुणाल उसे सुबह-सुबह इस बात को लेकर शिकायत कर रहा था ।

    सबसे पहले उसे अपनी ही चीजें याद आई। कहीं उसने उसकी नींद तो डिस्टर्ब नहीं कर दी।चूड़ियां ,पायल ,झुमके सब तो निकाल कर सोई थी। वह तो नींद में खराटे भी नहीं लेती तो फिर ........ आगे कुछ और सोच पाती, लेकिन पायल से याद आया। कि उसे अभी पायल भी पहननी है ।भागी भागी अंदर गई और पाजेब उठा ली ।यह जरूरी थी, वरना दादी फिर टोक देती ।

    कुणाल जो अब तक चाय पीते हुए उसका जायजा ले रहा था। भाग कर जाते हुए देखता ही रह गया। इसे क्या हुआ? अब उसके सहर से निकलकर एक बार फिर आसपास खेतों का मुआयना करने लग गया।

    रात भली ही गुजरी। सब ठीक है ।उसने चारों तरफ घूम कर देखा। छत पर खड़े खड़े ही वो एक बार निगाह मार लेता था। वरना रात को जानवर भी आ जाया करते थे। यूं ध्यान रखने वाले लोग थे, पर वह सब कुछ अपनी आंखों के सामने देखना चाहता था। उसकी तसल्ली के लिए यह जरूरी था।

    यही वजह थी कि उसका कमरा सबसे ऊपर की मंजिल पर बना था। ताकि वह रात को घर का ध्यान रख सके ।जहां चारों तरफ टॉर्च के जरिए वह देख सकता था और रात को कई बार उठकर संभालने की आदत भी थी।


    जैस्मिन के चलने पर जब पाजेब के घुंघरू बजे तो कुणाल को ध्यान आया। शायद इतनी देर वहां इनकी खामोशी थी। कुणाल को सादगी पसंद थी ।बहुत सारा बनाव श्रृंगार उसे आकर्षित नहीं करता था। या शायद करता भी था, वही नजरअंदाज कर रहा था ।

    जैस्मिन ने एक बार खुद को आईने में गौर से देखा। इस बार कुछ ना छूट जाए। वरना उसे फिर चौबारे में आना पड़ेगा। दादी तो इतना ध्यान से देखती है । छोटी-छोटी बातें भी ढूंढ निकलती है ।

    कुणाल उसे देखता ही रह गया ।हर एक छोटी बात पर कितना ध्यान दे रही थी ।क्या जरूरत थी इन सब की ।इतना ताम-झाम क्यों? काम पर ध्यान क्यों नहीं लगाती ?

    पर जैस्मिन की मजबूरी थी ।वह अगर सादा सी बनकर जाएगी तो घर में इतनी औरतें थी ,जो उसे टिकने नहीं देती ।उसने सामान समेटा और कमरा ठीक करने लगी ।अब कुणाल उठ गया था और वापस नहीं सोने वाला था। कंबल उठाया और बिस्तर ठीक किया। फिर कमरे में रखी चीजों को देखा जो सब अपनी जगह थी। और कुछ भी उसे कमी बेसी दिखी। उसे तुरंत ठीक किया।

    कुणाल अब तक नीचे जा चुका था। हां ठीक है, ऐसे ही रहता है.... अब शायद इन्हें कोई प्रॉब्लम ना हो ...और तो क्या ही काम करूं.... वह सोचते हुए नीचे चली गई। मम्मी दादी से पूछेगी ,जो भी वह कर सकती है ।किचन के अलावा और कोई काम यहां ऐसा नहीं था। जो वह संभाल सकती हो। बाहर की दुनिया तो अलग ही थी। पशुओं की तरफ तो उसने आज तक देखा भी नहीं ,उनके बाड़े में तो वह कोई काम नहीं कर सकती।

    क्या वह भी करना पड़ेगा है ?यह कुणाल कैसे हैं? किचन सही रहेगा, उस काम से बचने का यही एक तरीका था ....कि वह किचन खुद से ही संभाल ले। वह उसके बस का था ,वरना कहीं खाली बैठे देख कुणाल उसे टोक ना दे।


    जैस्मिन बेटा यह कुणाल के कपड़े हैं ।ऊपर रख आओ।

    जी , मैं ... मेरा..

    हां बेटा और कौन ?अब से उसके सारे काम तुम्हें ही करने हैं। परेस मैंने कर दिए हैं ।बस चौबारे में उसकी अलमारी में रख आना ।

    मुझे.. मैं ...

    बेटा हमें सीढ़ियां चढ़ने का आलस है ।अब तक हम उसकी चीजे संभालते थे ।कल्पना या काजल उसके कमरे में रख आते थे ।अब तुम आ गई हो तो यह जिम्मेदारी तुम्हारी है। दादी से सीढ़ियां चढ़ा नहीं जाता ।मैं और तेरी चाची घर के बाकी काम देखते हैं। ताई जी से भी सीढ़ियां नहीं चढ़ती,उनके घुटनों में दर्द रहता है ना ।

    मां ने जैस्मिन को कंफ्यूज होते देख कहा। न जाने क्यों वह इतनी कंफ्यूज हो गई थी। तुम जवान हो, कर सकती हो और वैसे भी अब से उसके सारे काम तुम्हें ही देखने हैं। मां ने उसे एक जिम्मेदारी भी सौंप दी। कुणाल अभी उसे सारे हक दे नहीं पाया था ।उससे बात करने में भी कतराती थी ।और यहां उसकी हर एक चीज पर उसका अधिकार अपने आप हो गया ।यह क्या बात हुई?

    दो चक्कर तो लगा चुकी है ।अभी उसे फिर इतनी सीढ़ियां चढ़कर तीसरी मंजिल पर जाना होगा और फिर वह लंबा सा गलियारा उसे भी पार करना होगा ।

    हाय जैस्मिन ....यह कोठी जो तुझे महल जैसी लगती है, तुम्हारे तो पैर ही टूट जाएंगे ..इसमें घूम घूम कर..! अभी से ही पैर दर्द होने शुरू हो गए। इतना बड़ा घर बनाने की क्या जरूरत आन पड़ी थी। जो सिर्फ दिखने में सुंदर लगते हैं। काम करो तब पता चलता है ।यह तो शुक्र है, साफ सफाई वाली इन्होंने रख रखी है। वरना उसका क्या होता? वह तो सफाई वाली बन कर रह जाती ।जैस्मिन ने एक बार घर की ओर नजर घुमाई।

    उसने मां के हाथ से कपड़े लिए और ऊपर की ओर चल दी। बचने का कोई रास्ता नहीं था। अगर कुणाल ने देख लिया तो फिर उसे वेली समझेगा। कुछ कह और ना दे। ऊपर से उसे कामचोर अलग समझेगा।इससे अच्छा है जो बताएं, वही काम धाम कर ले।


    जैस्मिन आ मेरे पास बैठ ... दादी ने उसे अपने पास बुलाया। जैस्मिन आकर थोड़ी सी दूरी पर उनके बगल में बैठ गई ।

    आ जा सुबह से काम करती घूम रही है। नई नई है। अभी कितना काम करेगी, थक जाएगी ।

    दो बार को छत पर जाकर आई है, या फिर एक दो बार चाय बनाई है ।इतना क्या काम कर लिया उसने?

    दादी उसे इतनी नर्म और नाजुक समझती है क्या ?यह तो वह आराम से कर सकती हैं। हां बार बार चक्कर काटने में उसे परेशानियां थी ,पर उसने उस काम को अपना लिया था ।वह उसी के हिस्से में आया था। अब जब कुणाल उसके हिस्से में आ गया है ,तो उससे जुड़ा काम क्यों नहीं....!

    नहीं दादी ठीक हूं मैं।

    कोई नहीं थोड़ी देर मेरे पास बैठ कर बातें कर । जैस्मिन उनके बगल में बैठी थी, सरक कर आगे हो गई। दादी बिल्कुल उसे अपने नजदीक चाहती थी।

    मन लगा...?

    जी दादी ....

    तुम्हारे लिए सब अलग और नया नया है। तुम इस माहौल की आदि नहीं हो, और फिर ससुराल में लड़की का सबसे पहला सहारा पति ही होता है।
    जानती हूं ,कुणाल के व्यवहार को लेकर तुम्हें दिक्कतें होंगी और शुरू शुरू में तो यह और भी ज्यादा। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। आहिस्ता आहिस्ता उसके दिल में जगह बनाने की कोशिश करो ।उसे समझो ,थोड़ा वक्त दो और फिर देखना वह तुम्हारा होगा।

    दाती उसे बड़ी सरलता से कुणाल के बारे में बता रही थी और जैस्मिन बस उनके मुंह की ओर देखते जा रही थी।

    एक मौका दे कर देखो ,उसके स्वभाव को देखकर कोई धारणा मत बना लेना ।वह थोड़ा ऐसा ही है ।सख्त मिजाज का ,अपने दादाजी पर गया है ।स्वभाव का रोबीला है, पर गुस्सा नहीं करता। बात मानता है ,और हर किसी की देखरेख भी करता है।

    जैस्मिन बस ताके जा रही थी उनको।

    बस अपने मन तक किसी को नहीं पहुंचने देता। ऐसा ही है शुरुआत से ,तुम उसकी सख्ती को लेकर उससे दूर मत चली जाना ।तुम्हें वह दीवार तोड़नी है, जो उसने अपने मन के चारों ओर बना रखी है।

    दादी की बातों में कितनी स्पष्टता थी।

    मैं सिर्फ तुम्हारी सुंदरता पर मोहित होकर तुम्हें इस घर में नहीं लाई थी। बल्कि तुम्हारा यह मासूम चेहरा और नरम मिजाज मेरे मन को भाया था। तुमने जब्त कूट कूट कर भरा है। तुम उसे बर्दाश्त कर लोगी। औरतें जहां बर्दाश्त करती है ,वहां घर बसते हैं ।दादी उसे प्यार से समझा रही थी और भी न जाने क्या-क्या बातें बताई होंगी ...?

    हर वह बात जो उसके मन में गांठ की तरह बंध गई थी। दादी एक-एक करके सब खोल रही थी ।उसने क्या-क्या सोच लिया था। शायद दादी उसके मन को उसकी आंखों के जरिए पढ़ पा रही थी।

    पता है ,जब पहली बार तुझे देखा था तो मुझे तुझ में अपना आप दिखा ।जब इस घर में मैं आई थी ,तो इस घर के अलग ही रंग ढंग थे ।ऊपर से तुम्हारे दादाजी का कड़ा स्वभाव ।एक बार के लिए डर ही गई थी ।कभी तुम्हें विस्तार में समझाऊंगी, अभी के लिए बस इतना जान लो कि इस घर का दारोमदार तुम्हारे कंधों पर है ।कुणाल अब तक अकेले ही सब कुछ संभालते आया है ,अब तुम्हें उसका साथ देना है ,उसकी जीवनसंगिनी बनकर।

    दादी की बात सुनकर जैस्मिन के मन में दादी की इज्जत और बढ़ गई। वह उनका कद बहुत ऊंचा महसूस कर रही थी।

    शिकवे शिकायतें सब अपनी जगह होते रहेंगे ।पर कभी भी उसका साथ नहीं छोड़ना । अब जो हाथ पकड़ लिया है , तो जिंदगी का सफर ऐसे ही पूरा करना है ,एक दूसरे के साथ में। रूठना, मनाना, गुस्सा करना, नाराज होना ,यह सब चलता रहना है ।पर कभी भी इस घर को और कुणाल को पराया मत समझना ।अब यही है ,जो तुम्हारा अपना है और तुम्हारी प्राथमिकता होनी चाहिए ।बाकी सब दूसरी बातें हैं।

    आज दादी की बातों से वह थोड़ा-थोड़ा कुणाल को भी जान रही थी।

    वह दादी की बातों को समझ रही थी ।उनके समझाइश में कुछ तो ऐसा था ,जो उसे सामान्य नहीं लग रहा था। दादी एक अनुभवी महिला थी , उम्र का एक लंबा दौर देखा था, बल्कि उसे जिया था।उनके चुनाव को गलत साबित नहीं कर सकती थी ।उसे सब संभालना ही था और अपने ऊपर पूरा भरोसा भी। अब जब सब उसका है ,उसके पति के नाम का है। तो वह इनसे अलग क्यों हो? वह यह जिम्मेदारी राजी खुशी ले लेगी। और दादी की उम्मीद पर पूरी तरह खरा उतरेगी।


    एक नवविवाहिता जिसको सबसे ज्यादा पति की ज़रूरत है। अभी और हमेशा जब वह नवविवाहित नहीं रहेंगे तब भी । लेकिन वो अपने से पहले अपने परिवार को रख रहा है क्योंकि उसे वो प्रिय है। क्या वो भी उतनी ही प्रिय बन पाएगी।या बन चुकी है बस वो ही स्वीकार नहीं कर रहा। कारण....कि वो भटक नहीं जाएं। उसके जीवन का ध्येय स्पष्ट है। एक लक्ष्य निर्धारित कर चुका है वो, उसे बदल नहीं सकता। क्योंकि बदलाव चाहता नहीं।
    अपने तो सबको अज़ीज़ होते हैं, उन्हें भी जो अपना घर और मां बाप छोड़ कर आती है। और एक दूसरे घर को अपना बनाती हैं,दिल से अपना कर...... वह भी अपना रहा था उसे,डोर की तरह खींचता जा रहा था उसकी ओर। और इसी ने उसका द्वंद अधिक बढ़ा दिया।

    उसके लिए विचित्र और अनोखी स्थिति थी। जिसमें वह घिरा भी अनूठी तरह था। उपर से सामान्य और सख्त दिखने वाला यह शख्स क्या भीतर से भी वैसा था जैसा सबको दिख रहा है।या जैस्मिन वो देख पाएगी जो छिपा हुआ है अब तक अनदेखा रह गया।

  • 8. मन वैरागी है - Chapter 8

    Words: 1530

    Estimated Reading Time: 10 min

    दादी ने आज ढके छुपे लहजे में उससे एक वादा ले लिया था। कि वह हर हाल में इस रिश्ते को निभाएंगी ।कुणाल को समझेगी, और हर कदम पर उसका साथ देगी ।

    जैस्मिन को यूं लगा मानो उसे किसी पहाड़ के तले रख दिया हो। अचानक एक भारी बोझ उसके कंधों पर आ गिरा। जिसकी जिम्मेदारी का उसे एहसास था ।वाकई मुश्किल था, पर था तो उसके लिए ही। जिम्मेदारियों से बचकर भागना अच्छी बात नहीं, उन्हें समझना ,निभाना यह चुनाव इंसान को बेहतर बनाता है ।

    जैस्मिन दादी को बस अपने शब्दों से ढांढस बंधा सकती थी। कि वह हर कदम पर कुणाल के साथ है ।उसका हर एक काम इस परिवार की भलाई के लिए होगा ।अपनी तरफ से वह इसमें गलती की गुंजाइश नहीं होने देगी। दादी फिलहाल के लिए बस जैस्मिन के कानों में यह बात डाल देना चाहती थी ,उसे आने वाली परिस्थितियों से डराने के लिए कुछ भी नहीं था। बस सचेत करना उनका काम था। समय के साथ साथ वह सब सीख और समझ जाएगी ।न केवल इस घर के हालात बल्कि कुणाल को भी ।वह ऐसा क्यों है ?


    कहां है दादी आपका वह फरमाबदार पोता ....?रेहान ने अंदर दाखिल होते हुए कहा। हालांकि उसके पांव जैस्मिन को देखते ही ठिठक गए।

    अरे आ जाओ बेटा, रुक क्यों गए? खाना खा कर जाना ,आज खाना मेरी बहू ने बनाया है। कुणाल भी बस अभी आता ही होगा।

    जी दादी , रेहान आकर उनके पास बैठ गया। अभी जैस्मिन और उसका रिश्ता नया नया था।  वह थोड़ा उसके साथ असहज था। जैस्मिन ने भी भांप लिया उसके कदम क्यों रुके। अभी को खुद ही इन रिश्तों अच्छी तरह घुल मिल नहीं पाई थी। कुणाल का साथ होता तो वह जल्दी ढल जाती। सबको समझ पाती पर यहां तो कुणाल ही जैस्मिन के लिए अबूझ पहेली बना हुआ था ।
    उससे तो उम्मीद करना ,दीवार में सिर मारने के बराबर था। उसे खुद ही धीरे-धीरे इनमें ढल जाना होगा। यह रिश्ते दूध की तरह थे ,जिनमें शक्कर की तरह उसे घुल जाना होगा। तभी मिठास बढ़ेगी।

    जैस्मिन उठकर खाने की तैयारियां करने लगी। कुणाल आ जाए बस उन दोनों को परोसना था।

    वाह दादी...!आपकी बहू तो मिट्टी के चूल्हे पर भी रोटियां बना लेती है? रेहान ने रोटियां देखकर कहा, जो देखने से ही पता चल रहा था कि चूल्हे की बनी और लकड़ियों की आंच पर सिकी हुई रोटियां थी। बिल्कुल गोल और गरमा गरम ।

    जैस्मिन के ऊपर तो मानो बिजली आ गिरी हो ।यह क्या शब्द चौधरी साहब के कान में डालकर जा रहा है ?कहीं कल ही उसे चूल्हे के सामने बिठा दे ...!उसने यह कभी नहीं किया था। हे भगवान !यह दोस्त भले क्यों नहीं होते..? थोड़ी देर पहले वह उसके बारे में कितना अच्छा सोच रही थी और उसने बदले में क्या किया?

    कुणाल और रेहान दोनों खाना खा रहे थे और दादी उनके पास ही बैठी थी ।

    नहीं, वह उसने नहीं बनाई। सब्जी और खीर जैस्मिन ने बनाई है। उसने कभी यह देखा ही नहीं तो कैसे कर लेगी बेचारी ?

    ओह दादी! मुझे पता नहीं था ।कोई नहीं दादी ...आप धीरे-धीरे सिखा ही दोगे ..! रेहान ने खाना खाते हुए आगे का जुमला पूरा किया।

    दादी बस मुस्कुरा दी ।जैसमिन की जान सूख गई। क्या यह सब भी उसे सीखना पड़ेगा? सीखना ही पड़ेगा ,जिस हिसाब से कुणाल उसे काम में लगा रहा है ....लगता है हर तरह से उसे पारंगत कर देगा।

    हे भगवान यह चुल्हा चौका तो उससे बिल्कुल नहीं होगा। भगवान करे इस इंसान की मति फिर जाए , और यह बात यहीं के यहीं भूल जाए,ऐसी बात तो बिल्कुल दिमाग में ना हो ।जैस्मिन मन ही मन प्रार्थना कर रही थी।


    बेटा तुम इन्हें कुछ चाहिए हो तो और दे देना ।बल्ली आया है, मैं थोड़ी देर उसके पास बैठती हूं। दादी अपने बड़े बेटे बलदेव ताऊ जी के पास चली गई। जो बाहर धूप में बैठे थे। खाना खाने के लिए आए थे। वरना अक्सर वे घर के बाहर की साइड बने कमरे में ही रहते। वही उनका बसेरा था ।कोई भी आता तो सबसे पहले उन्हीं से मुलाकात होती ।घर के बड़े थे तो यह उनका जिम्मा था। काफी उम्र हो चुकी थी ,इसलिए ज्यादा काम नहीं होता ।पर घर की रखवाली और मेहमानों की मेहमान नवाजी वह शिद्दत से निभाते।

    पापा अभी खेतों की तरफ गए थे ।अब तक लौटे नहीं ।कुणाल ही था ,जो अक्सर सबसे आखिर में आता। पर आज वह घर पर ही था ।दादी भी अपनी पोतियों को खाने का बोल बलदेव ताऊजी के पास चली गई और पीछे जैस्मिन बच गई ,कुणाल और रेहान की खातिरदारी के लिए।

    गुलाब भाभी जरा खीर और देना ..!रेहान ने कहा।
    मेरा मतलब है.. जैस्मिन भाभी..! वह आपको देख कर मुंह से निकल गया ,पूरी गुलाबी गुलाबी हो रखी है ना !और कुणाल को ध्यान आया, यह सुबह से गुलाबो बने घूम रही है! क्या जरूरत है? इतने चटक रंग पहनकर घूमने की , और इतना सज संवरकर क्यों घूम रही है? घर पर ही तो रहना है..! क्या सिंपल नहीं रह सकती?

    कुणाल ने एक नजर जैस्मिन को देखा और जैस्मिन कुणाल की आंखें देख कर ही डर गई। वह बोलती हुई आंखें उससे कुछ कह रही थी ।पर क्या? उसे नहीं पता !बोलकर क्यों नहीं बताता कि, मन में क्या है? हर किसी को आंखों की भाषा समझ नहीं आती।

    रेहान तो आज पूरे देवर वाले काम करके गया था। भाभी के साथ हंसी मजाक और कुणाल को सुलगा कर ,लगता है इस आग से आज जैस्मिन के हाथ जलने वाले थे।

    मां आप खाना नहीं खाएंगे? जैस्मिन ने अपनी सास से पूछा ।जो किसी काम में व्यस्त थी। एक वहीं बची थी, जिन्होंने खाना नहीं खाया या फिर पापा ।
    जैस्मिन भी कल्पना और काजल के साथ अब तक खाना खा चुकी थी।

    खाऊंगी बेटा, अभी तुम्हारे पापा आए नहीं हैं ।उनके खाने के बाद ही खाती हूं।

    ऐसा क्यों मां ? जैस्मिन को हैरत हुई।

    कुछ नहीं ,घर का रिवाज है। पहले दादी ऐसा करती थी ।फिर तुम्हारे ताई जी ,मैं और चाची जी भी ऐसा करने लगे। उससे पहले भी ऐसा ही होता था।मां ने हंसकर जवाब दिया, साथ में अपना काम करती रही ।

    पर वह तो दो दिन से खाना खा लेती थी, जब भी उसे दिया जाता था। वह तो कुणाल का इंतजार नहीं करती । शायद नई नई थी।अब से उसे भी इंतजार करना पड़ेगा ।अगर घर की यही रीत है ,तो फिर उसे आगे लेकर चलना होगा। अब वही है इसे निभाने वाली। जैस्मिन ने मन में सोचा।


    पूरा दिन ऐसे ही बीत गया ।शाम की हल्की हल्की धूप शरीर को सुहा रही थी ।मौसम भी सुहावना हो रखा था और धीरे-धीरे ठंड बढ़ती जा रही थी ।जैसे जैसे दिन रात के आगोश में जा रहा था। वैसे ही ठंड ने अपने पैर जमाने शुरू कर दिए थे।

    बेटा यह रोटियां ले जाओ, कुणाल होगा बाहर उसे दे देना रॉकी रोनी के लिए। मां ने जैस्मिन को देकर भेजा ।

    पहले तो कुत्तों को याद कर ही जैस्मिन डर गई। कितने डरावने थे। उस दिन उन्हें नजदीक से देखा था। पर जैसे ही कुणाल का जिक्र आया ,तो जैस्मिन को तसल्ली हुई।

    वह बाहर चल पड़ी ।अभी बाहर कदम रखा ही था ,कि दोनों कुत्ते उसकी ओर बढ़ चले ।जैस्मिन अचानक से डर गई ।कुणाल भी आसपास नहीं दिखा ।चिल्लाने के सिवा और कोई चारा नहीं था। पर उसके ऐसा करने से पहले ही कुणाल वहां गया।

    क्या हुआ? तुम बाहर क्या कर रही हो?

    वो ...मां ने खाना दिया था कुत्तों के लिए.. जैस्मिन ने बर्तन आगे कर दिया।

    सिर्फ कुत्ते नहीं नाम है ,इनका यह रॉकी ,रॉनी है।

    हां लेकिन, है तो कुत्ते ही । जैस्मिन को कुणाल की यह बात थोड़ी अजीब सी लगी ,इसलिए उसके मुंह से निकल गया।

    तुम लड़की हो ।अगर तुम्हें सिर्फ ए लड़की... कह कर बुलाया जाए तो कैसा लगेगा?

    पर मैं इंसान हूं ।

    तो क्या... यह भी जीव है ,जिंदा है, सांस लेते हैं, पाल रखे हैं हमने ।।हमारे घर के मेंबर हैं, तब भी क्या सिर्फ हमें इन्हें कुत्ते बुलाएंगे । जबकि इनका नाम रख रखा है। बेगाने नहीं बल्कि परिवार के सदस्य जैसे हैं ।पूरी कोठी की सुरक्षा इनके हवाले हैं। जब इनका किरदार इतना महत्वपूर्ण है, तो यह भी रिस्पेक्ट डिजर्व करते हैं ।और नहीं है तब भी अगर पाले हुए हैं और इनका बाकायदा नाम रख रखा है तो उन्हें वैसे ही बुलाया जाए तो बेहतर होगा । आइंदा ध्यान रखना।

    जी... सॉरी ,मैं आगे से ध्यान रखूंगी ।पर यह मुझे एक जैसे से लगते हैं। पता नहीं कौन सा क्या है ?

    यह रॉकी है और यह रोनी कुणाल ने इशारा कर बताते हुए कहा। अभी नई-नई हो धीरे धीरे समझने लगोगी ।बिल्कुल एक जैसे नहीं है ,इनमें भी डिफरेंस है। अंतर तुम्हें जल्द समझ आने लगेगा ।

    जैस्मिन ने हां में सिर हिला दिया और अंदर की ओर मुड़ चली।

    चौधरी साहब को कुत्तों की भावनाओं का ख्याल है ,पर मेरी भावनाओं की कोई कदर नहीं। मैं तो इंसान हूं, ऊपर से इस आदमी की बीवी ।तब भी यह भावनाओं को बार-बार आहत कर देता है, और इन्हें ...कुत्ते क्या कह दिया। सिर पर चढ़कर नाचने को तैयार हो गए ।जैस्मिन की तो हैरत का कोई ठिकाना ही नहीं रहा।

  • 9. मन वैरागी है - Chapter 9

    Words: 2683

    Estimated Reading Time: 17 min

    काजल क्या इन...... इनके भी नाम रख रखे हैं? जैस्मिन कल्पना और काजल तीनों छत पर बैठे थे ।जब जैस्मिन ने मुंडेर के पास खड़े होकर काजल से पूछा ।

    नीचे पशुओं के बाड़े की ओर हाथ करते हुए, जहां बहुत सारी गाय, भैंस और बछड़े थे ।जैस्मिन का इशारा बछिया की ओर था। कल्पना और काजल दोनों ही हंस पड़ी।

    भाभी आपको क्या हुआ है ?उनके नाम कौन रखेगावह भी इतने सारे ......जैस्मिन थोड़ा सकपका गई। उसने कुछ गलत तो नहीं पूछ लिया ।कुणाल को देखकर तो लगता है, हर पालने वाले जानवर का नाम वह रखता होगा।

    हां छोटे-छोटे जब होते हैं ,तब इनको हम किसी प्यारे  से नाम से पुकारते हैं ।फिर इतने रखे भी नहीं जाते । बेचने पड़ते हैं, बहुत ज्यादा अटैचमेंट होना बड़ा घातक है ।जैसा कुणाल भाई को है अपने रॉकी और रोनी से ।वह तो इन बछियों के नाम भी रख देते हैं। पर वह बस भाई तक सीमित है।

    उन्होंने हंसते हुए बताया। अंदाजा था उसे .....!वह इंसान हर किसी का नाम रखे बैठा होगा !सब की फीलिंग का उसे खयाल जो रखना होता है। सिवाय उसे छोड़कर ।चलो वह यहां तो पूरी तरह गलत साबित नहीं हुई ।जैस्मिन को खुशी हुई कि उसने कुणाल के मिजाज का थोड़ा बहुत ही सही अंदाजा लगाना शुरू कर दिया ।और वह ठीक ही बैठ रहा था ।शायद दादी सही कहती है ।वह जल्द ही सब सीख समझ जाएगी और इस इंसान को भी..... जो उसके लिए फिलहाल गणित बना हुआ था।

    वैसे आप क्यों पूछ रही है ?

    बस यूं ही ....आपके भाई पशु प्रेमी है ना ...!इसलिए ख्याल आया ।

    सही ख्याल आया ।भाई के सामने रॉकी रोनी से तो बिल्कुल बदतमीजी मत करना और यह जो छोटे-छोटे जानवर है ना इनके भी नाम है ।आपको बताती हूं। काजल ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा ।

    जैस्मिन उनको कैसे बताएं कि वह कर चुकी है। कुत्तों को कुत्ता ही तो कहा था।बदले में क्या मिला..? एक लंबा चौड़ा भाषण, और साथ में एक सीख ।यह सबक वह कभी नहीं भूलेगी, खास कर कुणाल के सामने ।

    पर जिस तरह कल्पना और काजल उसे आगे कुछ कुछ बताते जा रही थी।जैस्मिन को तो लगा था ।उसे पशुओं के बड़े का काम तो नहीं करना पड़ेगा ।पर जिस हिसाब से बात आगे जा रही थी ।उसे जल्द ही यह सब कुछ सीखना पड़ सकता है। यह कैसे मुमकिन होगा ?घर में इतने सारे लोग हैं ,नौकर चाकर है, क्या यह काम भी उससे करवाएंगे ...?जैस्मिन को अपने आने वाले कल को लेकर संदेह था, वहीं डर भी था ।

    लगता है उसका भविष्य संदेहास्पद स्थितियों से घिरा हुआ था। न जाने कैसी कैसी घटनाओं का सामना करना पड़ेगा। और ना जाने क्या-क्या घटित होगा? पापा ने क्या घर देखा है,उसके लिए और लड़का .......वह कैसा देखा है? वह तो कह रहे थे सिर्फ लड़का ही देखा है। थोड़ा उसका मिजाज भी देख लेते, तो शायद जैस्मिन के हक में बेहतर फैसला होता।

    उसका मन रोने का हुआ, पर इतनी सी बात पर आंसू नहीं बहा सकती थी। हो सकता है यह केवल उसके विचार हो। मन में प्रार्थना कर रही थी। कि भगवान उसे ऐसी किसी भी परिस्थिति से बचा कर रखें। पर क्या यह संभव था ?एक इंसान जिसे सिर्फ काम और अपनी जिम्मेदारियां निभाना अच्छा लगता हो। वह अपने जीवनसाथी का लापरवाह और नाकारा होना पसंद नहीं करेगा। पर वह ऐसी बिल्कुल नहीं थी।

    वह जिम्मेदार थी ,अपने कर्तव्य को निभाना जानती थी ।निभाती थी। पर हर वक्त संजीदगी का लबादा ओढ़े नहीं रह सकती थी। उसके भी कुछ इच्छाएं ,कुछ अरमान थे ।जो उस इंसान से पूरे होने थे। जो उसका पति था और वह इतना गंभीर ......उससे उम्मीद लगाना वाकई निराशाजनक था।

    उसका पति कितना खतरनाक इंसान था? कैसे कहे वह किसी को? कभी-कभी वह उसे अपना गुरु या इंस्ट्रक्टर लगता जो उसके काम में मीन मेख निकलता, उसे समझाना, बताता और उससे हर कोई काम करवाता ।जो जैस्मिन के लिए या तो मुश्किल था ,या वह करना नहीं चाहती थी। कभी किया भी तो नहीं था। पर यहां उसे इन सब की जरूरत मालूम नहीं होती। इतने सारे लोगों के बीच भी कुछ खास काम उसके हिस्से में ही आए थे।

    यह कुणाल का कैसा सोचना था कि वह बस उसे ही लगाए ही रखता।कामों में उलझाए ही रखना, बात-बात पर उसे अपनी जिम्मेदारियां का अहसास करवाता, नई-नई शादी हुई थी उनकी और उनकी पर्सनल मैरिड लाइफ कोई थी ही नहीं ।बस कुछ एक खास पलों को छोड़कर ....जैस्मिन फिर अपने निजी क्षणों में चली गई ।वह लम्हे कैसे भूल सकती थी ।एक मधुर सी मुस्कान होठों पर उभर आई ।पर जल्द ही अपनी स्थिति का भान हुआ। वह कहां खड़ी थी और किन के सामने खड़ी थी।

    औरों के सामने उसे अपनी हरकतों पर लगाम लगानी होगी ।यह तो उसका अलग पर्सनल टाइम होगा ।वह बस उन कुर्बत के पलों के सहारे ही अपनी जिंदगी काट लेगी ।आखिर कुणाल जैसा भी हो ।अब उसका हमसफर था। उसे उसके संग संग चलना है। ताउम्र ....उसका हाथ थाम कर ...कभी उसकी परछाई बनकर ...कभी उसके लिए रोशनी लेकर... उसके आगे आगे... उसके पीछे पीछे ...परिस्थितियों के अनुसार संभलना है, संभालना है, पर अब वक्त साथ गुजारना है ।

    वह बस मन ही मन मुस्कुरा दी ।न जाने कैसे एहसासात थे, कैसे ख्यालात थे ,जो उसे कुणाल के सहर से दूर नहीं जाने देते थे। उसके होशो हवास पर वही छाया रहता था। अनजानी सी फीलिंग थी ।जिससे जैस्मिन अब तक अनजान ही रही। शायद इसी का नाम प्यार है ...?इसे ही मोहब्बत कहते हैं ...!पर उसे तो कुणाल से इश्क हो गया था....; सब खूबियों खामियों के साथ.... वह उसे कुबूल था ....दिल से...।

    अब तो उसका ज़र्रा ज़र्रा ... क़तरा क़तरा जैस्मिन के मन की गहराइयों में उतर चुका था.... और वह खो रही थी ,डूब रही थी... उन गहराइयों में। कुणाल की अदृश्य पकड़ में गिरफ्त हो रही थी .....मोह पाश या प्रेम पाश ...!किसने जकड़ा हुआ था जैस्मिन को? नहीं मालूम.... पर अब कुणाल के साए से भी दूर रहना ।जैस्मिन को ना गवारा था ।

    वह बस उसकी... सिर्फ उसकी होकर रहना चाहती थी। जी लेगी वह यह जिंदगी जैसा भी कुणाल हो। पर दूरियां बर्दाश्त नहीं थी ।कुणाल का नाम ही उसे मुकम्मल होने का एहसास देता था ।उसके बिना अधूरा रह कर ,जीने से बेहतर है कि उसके साथ उसे समझते हुए जिए। कम से कम एक मुकम्मल जिंदगी तो होगी।



    खाने के वक्त पर भी सबको खाना दे रही थी ।पर आज खुद नहीं खाया।

    क्या हुआ ? तुम खाना क्यों नहीं खा रही है ?

    दादी ...मां ..मैं सोच रही थी कि उनके बाद ही खाऊं ।कुणाल के बारे में जिक्र था ।उसे अपनी सास का कहा याद आया कि इस घर की रिवाज थी ।अक्सर औरतें पति के खाना खाने के बाद ही खाती थी ।

    वह पहले की बात है बेटा। तब यह रिवाज बनी थी, और हमने निभा ली। अब वक्त बदल गया है और लोग भी। तुम्हें भूखा रहने की जरूरत नहीं। कुणाल भी कुछ नहीं कहेगा। बल्कि उसका खुद का कोई नियत समय नहीं है। कब आकर खाना खाएगा ?कोई कुछ नहीं कह सकता ?तुम निश्चित होकर खा लो।

    दादी ने उसे बड़े प्यार से समझाया ,पर अपने पोते के लिए जैस्मिन का अनकहा प्रेम देखकर वह दिल से मुस्कुराई ।यह लड़की जरूर उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेगी ।जैस्मिन धीरे-धीरे अपनी जगह दादी के दिल में बना रही थी। सिर्फ खूबसूरती से नहीं बल्कि अपने आचरण से।

    नहीं दादी मां मैं वेट कर लूंगी ।

    ज्यादा दादी मां ने भी जोर नहीं दिया और फिर ताई, चाची और मां ने भी कुछ नहीं बोला ।उसका मन था तो मन रखने दिया। सब खाना खाकर सो चुके थे ।जबकि जैस्मिन कुणाल का इंतजार कर रही थी। फोन भी नहीं कर सकती थी। क्या पता उस सडू और अड़ियल इंसान का....? बेवजह गुस्सा हो जाए उस पर..?

    रात के 10:00 बज गए थे और जैस्मिन को नींद आ रही थी। दिन में भी सोने को वक्त नहीं मिलता ।जॉइंट फैमिली ऊपर से उनके घर का सिस्टम ऐसा था ।दिन भर कोई ना कोई आता रहता, खातिरदारी होती रहती ,कभी रिश्तेदार ,कभी पड़ोसी, कभी गांव वाले ,कभी कोई और लोग ......यह सब मेल जोल और उनका रहन-सहन जैस्मिन को काफी हद तक प्रभावित कर रहा था। उसकी जिंदगी का पूरा शेड्यूल ही बदल गया था।

    कहां से कहां आ गई और क्या से क्या हो गई ।समझने की कोशिश करती ,पर सब कुछ उलझा उलझा सा लगता । न जाने यह कैसी रिवायतें थी।जैस्मिन तो निभा निभा कर थक चुकी थी। पर यह तो शुरुआत थी ,अब तो सबका साथ मिल रहा है। आगे चलकर तो शायद उसे अकेले ही सब संभालना था ।इतनी जल्दी हार कैसे मान लें? सब कुछ अलग अलग ,नया नया उसे अच्छा भी लग रहा था।

    वह अभी लॉबी में सोफे पर बैठी थी। फोन चला रही थी। ऊपर जाकर सो नहीं सकती थी। क्योंकि कुणाल के आने पर उसे खाना गरम करके देना था, फिर खुद भी खाना था। यह सब जिम्मेदारियां अब घर की औरतों ने उस पर डाल दी थी। यूं तो कुणाल किसी को परेशान ना करता। ज्यादा देर होती तो वह खुद ही लेकर खा लिया करता था। पर घर में इकलौता बेटा था, सबका लाड़ला भी ।

    मां ,ताई, चाची ,दादी जिससे जो बन पड़ता ।उसे अपने पास बैठकर ही खिलाया करती ।कुणाल को भी उनके प्रेम और स्नेह की आदत थी। पर आज घर में जब दाखिल हुआ, तो घुप अंधेरा और सन्नाटा था। सिर्फ लॉबी की डिम लाइट जल रही थी और जैस्मिन फोन अपनी छाती पर रखें। वैसे ही सो गई थी ।

    इतनी ठंड में एक पतला सोल ओढ़े आसपास की स्थिति से अनजान होकर वह नींद की वादियों में बेखबर खोई हुई थी। कुणाल को उस अंधेरे में एक छोटा, पतला और कमजोर सा वजूद नजर आया ।जो सोफे पर सिकुड़ कर लेटा हुआ था।

    यह यहां क्या कर रही है ...?और इस तरह सोने का क्या मतलब ...?कुणाल को पहचानते जरा भी देर नहीं लगी, वह कौन थी ?

    उसने अपना हाथ आगे बढ़ाकर उसे उठाना चाहा पर ना जाने क्यों हाथ खुद-ब-खुद रुक गए ।उसके होंठों से बरबस एक शब्द निकला, और फिर कुछ इसी तरह के शब्द आगे जुड़ते गए। अद्भुत... सुंदर ...बेमिसाल.. लाजवाब ..हल्की हल्की रोशनी में जैस्मिन का चेहरा सोने की तरह चमक रहा था। कुणाल ने एक बार बल्ब की ओर देखा जो अपनी पीली चमक बिखेर रहा था, फिर जैस्मिन के चेहरे की ओर जो स्वर्ण आभा लिए हुए था।

    वह घुटनों के बल ठंडी जमीन पर ही बैठ गया। सुंदर तो तुम हो...! चाहे कोई कुछ भी कहे ?मुझे अपनी ओर खींचती हो! लाख कोशिश कर लूं, तुम्हें ना देखूं ...पर तुम से मुंह नहीं मोड़ सकता.... मुझे तो तुम प्रकृति के हर रंग में दिखने लगी हो.... कुणाल के होंठ खुद-ब-खुद हिल रहे थे। लफ्ज़ बेहद धीमे ही सही पर उसके दिल से निकल रहे थे ।

    जैस्मिन के कान कब से तरस रहे थे, यह सब अल्फाज सुनने को ....पर वह सख्त आदमी इन सब का एहसास उसे कब करवाता था.... काश !आज इस वक्त वह नींद में ना होती, तो जैस्मिन की सारी तड़प मिट जाती ।वह कहीं तो कामयाब हुई, अपने पति का मन जीतने में.... पर यह जैस्मिन का सपना था, और सपना ही बनकर रह गया ।क्योंकि वह नींद में थी, अपने ख्वाबों की दुनिया में हकीकत से भला कब रूबरू हो सकती थी ।

    कभी-कभी हकीकत ख्वाबों से भी हसीन और सुंदर होती है। यह नींद जैस्मिन के ख्वाबों पर भारी पड़ रही थी। जहां उसके ख्वाब हकीकत में तब्दील हो रहे थे। पर वह इन सब से अनजान थी। बेखबर सपनों की दुनिया में भी कुणाल के साथ की चाह थी। असल में उसका साथ पाना चाहती थी ।उसके प्यार भरे बोल से अपनी तड़प मिटाना चाहती थी। जो उसके मन की सूखी जमीन को तरबतर कर देते।

    अगले ही पल कुणाल एक झटके से अपनी सोच से बाहर आया। क्या चल रहा था उसके दिमाग में ?क्या हो गया था पल भर को? वह अपने आप पर ही नहीं था। आज उसने अपने व्यवहार से उलट कुछ किया था। वह कैसे किसी की खूबसूरती में खो सकता है? जो सिर्फ बहरी हो.... अभी तो कुणाल के लिए यह सब दिखावा मात्र था।

    उसे उसकी आंतरिक सुंदरता से रूबरू होना था ।पर अब तक दोनों के मध्य वह कनेक्शन बन ही नहीं पाया था, कि वह इतना आगे बढ़ जाते ।कुणाल ने अपनी सोच पर विराम लगाया और जल्द ही जैस्मिन को उठाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया ।

    जैस्मिन जो नींद में अपने आसपास किसी के होने का एहसास पिछले कई देर से महसूस कर रही थी। पर नींद ना चाहते हुए भी उसे पर हावी हो रही थी ।आंखें दिन भर की थकान की वजह से बोझिल थी ।मानो आंखें खोलने में उसे तमाम हिम्मत बटोर कर कोशिश करनी होगी ।आखिरकार अपनी आंखें खोल ही दी। जो वह कई देर से कोशिश कर रही थी।

    कुणाल अब तक खड़ा हो गया था। वह उसके पास झुका हुआ था ,उसे उठाने की कोशिश कर रहा था। और वह घबराते हुए उठ बैठी ।

    क्या हुआ? इस तरह चौक क्यों गई? शायद डर गई होगी?

    तुम यहां क्यों सो रही हो? ऊपर की मंजिल पर शायद उसे डर लग रहा होगा ।एक अकेला चौबारा था उनका, डरना लाजमी था।

    जी ... मैं खाने के लिए आपका वेट कर रही थी ।जैस्मिन ने जल्दबाजी में कुणाल की बात का उत्तर दिया, और उठ कर जल्दी से अपना शॉल और चुन्नी ठीक करने लगी ।

    तुम्हें यह करने की कोई जरूरत नहीं है, मैं खुद से खा लूंगा। तुम जाकर सो जाओ ।कुणाल ने उसकी हालत देखी ।आंखों में लाल डोरे तैर रहे थे ।नींद से भरी हुई आंखें थी ।चेहरा देखकर ही बता सकता था ,कि वह कितना थक गई थी ।

    हां .....पर मुझे भूख भी लगी है।

    अब चौंकने की बारी कुणाल की थी।

    तुमने खाना नहीं खाया अब तक ....!क्यों..?

    मैं आपका इंतजार कर रही थी।

    इंतजार ही करना था ,तो खाकर कर लेती ।कुणाल को जैसमिन का लॉजिक बिल्कुल समझ नहीं आया।

    हां पर खाना तो खा लेती ।

    मैं आपके बिना कैसे खा सकती थी ? जैस्मिन ने कुणाल के सामने खड़े हुए ही उत्तर दिया ।

    खाने के बहाने ही सही आज उनके बीच में कुछ बातें तो हो रही थी। जिसमें वह बराबर शामिल थी। वरना सिर्फ एक तरफा इंस्ट्रक्शन और ऑर्डर ही मिलते थे, उसे कुणाल की ओर से।

    कुणाल को हैरत हुई ।यह आज इस तरह के जवाब क्यों दे रही है? पर फिर उसे याद आया, घर की औरतें अक्सर बाद में ही खाती थी ।

    ठीक है, गर्म कर लो और सुनो ......

    जैस्मिन पलट कर जाने लगी तो कुणाल ने आवाज दी ।

    आज के बाद कभी भूखे मत रहना। मेरा कोई टाइम निश्चित नहीं है ।अगर देर हो भी जाया करेगी, तब भी मैं खुद से लेकर खा लिया करूंगा। तुम्हें इंतजार करने की जरूरत नहीं और मेरे लिए भूखी मत रहा करो ।जरूरी नहीं हर पुराने रीति रिवाज निभाए जाएं। वह किसी वक्त में बने होंगे, उनका कोई मतलब रहा होगा। अब यह सब बातें बेमतलब है। आइंदा से खाना वक्त पर खा लेना ।

    कुणाल की बातों में हिदायत थी ,थोड़ी समझाइश भी ।लहजा थोड़ा नरम ,थोड़ा कड़क ....थोड़ी फ़िक्र ..थोड़ा आर्डर... जैस्मिन ने तुरंत हामी भर दी।

    वह बात बढ़ाना नहीं चाहती थी। कुणाल का जो भी मकसद रहा हो । जैस्मिन ने इसे पॉजिटिव तरीके से लिया। वह किचन में गई और खाना गर्म करने लगी। जबकि कुणाल हाथ धोकर वही लगे तख्त पर बैठ गया।

    मन तो हुआ कि टीवी ऑन कर ले। पर सब सो चुके थे ।किसी को डिस्टर्ब करना अच्छा नहीं लगा। यूं ही वह जैस्मिन से धीरे-धीरे बात कर रहा था ।ताकि कोई उठ न जाए ।जैस्मिन भी किचन में बहुत एतिहात से काम कर रही थी।

    जबकि हाथ चलाने से उसकी चूड़ियों की खनक और खुद के चलने से पायलों की रुनझुन एक रिदम में बजती हुई सुन रही थी। पर इसके अलावा और कोई शोर नहीं था । फिलहाल वह बिल्कुल एक परिपक्व ग्रहणी की तरह काम कर रही थी ।कुणाल ने पलट कर जैस्मिन की ओर देखा ,जो थाली में उसके लिए खाना परोस रही थी।

  • 10. मन वैरागी है - Chapter 10

    Words: 1946

    Estimated Reading Time: 12 min

    कुणाल, जैस्मिन को बड़े क्लोजली ऑब्जर्व कर रहा था। उसका काम करना ,उसके लिए खाना लेकर आना, उसको परोसना, उसके चेहरे के हाव-भाव ,मानो उसके हर एक रंग ढंग को देखना चाहता हो। उसे अपने दिल में उतरना चाहता हो ।यूं भी थोड़ी देर पहले यह मासूम और नाजुक सी लड़की दुनिया जहां की उलझन से दूर सोते हुए उसे बेहद भली सी लगी ।

    एक तो यह कुणाल चौधरी की धड़कने बढ़ने को मजबूर कर देती थी । ऊपर से यूं मासूमियत से बनी घूमती मानो उसने कुछ किया भी ना हो। उसे अपने गुनाहों का अंदाजा नहीं था,कि वह कुणाल को किस तरह अपनी और आकर्षित करती है।वह तो उसे कुदरत के हर रंग में दिखती थी। यहां तक की उसके कपड़ों का रंग भी वह प्रकृति में देखने लगा था।

    जब आसमानी रंग उस आकाश से मेल खाता है,जैसे यह धरती धानी चुनर ओढ़ती है, वैसे धानी रंग उस पर ख़ूब फबता है ,सफेद रंग में वह बिल्कुल उसे खिलखिलाते जैस्मिन के फूल की तरह लगती है ,गुलाबी गुलाबी सा वजूद गुलाब के रंग से मेल खाता है ,बिल्कुल खिले हुए गुलाब की तरह , होंठ कमल की पंखुड़ियां से लगते थे, जो खुलते बंद होते उसके दिल को मचल जाने पर मजबूर कर देते हैं।

    कुणाल का दिल बेतहाशा धड़क रहा था ।थोड़ी देर पहले नींद से भरी हुई आंखें बोझिल लग रही थी, उन झील सी गहरी आंखों में नींद भरी हुई थी। वह उसे परेशान नहीं करना चाहता था ,जबकि अब वह उसे सोने नहीं देना चाहता था। खाना खत्म हुआ और जैस्मिन सब रख कर कुणाल के साथ ऊपर आ गई।

    यूं भी इस सुनसान जगह पर जैस्मिन को डर लगता था ।वह कुणाल की तरह एकांत की आदि नहीं थी ।जबकि कुणाल को तो छोटी से छोटी आहट से भी तकलीफ होती थी। क्यों था वह ऐसा गुमसुम और सख्त ?ऐसी भी दिल में क्या खला होगी जो कुणाल को इस तरह साल रही थी? पर अभी उनका रिश्ता इस मुकाम पर नहीं पहुंचा था ,कि वह खुलकर बात कर सके ।

    यूं भी कुणाल का मिजाज उसे खुलकर बात करने की इजाजत नहीं देता था ।अजीब शख्सियत का मालिक था उसका पति। कैसे निभा होगा उन दोनों का ?कभी-कभी सोचो में गुम हो जाती ..!फिर अपने प्यार के ढंग पर खुद ही मुस्कुरा देती !क्यों नहीं होगा ?वह तो उसकी जान उसकी जिंदगी है। आज ही तो उसने सब कबूल किया था अपने मन में। पर जैस्मिन इन सबसे अनजान थी कि कबूल तो कहीं ना कहीं कुणाल भी कर चुका है। बस जता नहीं रहा ,जैसे वह उसे बात नहीं रही ।

    ऊपर आते ही जैस्मिन को इस बात की खुशी होती थी, कि वह इस भारी भरकम पहनावे से आजाद हो जाएगी। इतना हैवी सूट फिर सर पर दुपट्टा लिए दिन भर घूमना ,हल्की ठंडक थी तो शोल या स्वेटर का भार अलग, ऊपर से यह ज्वेलरी ... ओह!चलो तब भी ठीक है पर पायल , बेड़ियों का एहसास कराती थी , इतनी भारी भरकम ,यह अच्छा हुआ कि उसे पतली पाजेब की जोड़ी पहनने की छूट मिल चुकी थी ।चूड़ियों से भरे हाथ और कानों में बड़े झुमके मजीद उसे उलझाते थे, पर क्या करें? यह सब तो अब सांस लेने जीतना जरूरी हो गया था ।

    जैस्मिन को इन सब से उलझन थी ,वही कुणाल को इन सब से उल्फत। उसे तो यह महज़ दिखावा भर लगता था। सादगी में रहने वाला बंदा ,उसे सादगी ही पसंद थी। जैस्मिन उसे कभी-कभी दिखावटी बनावटी लगती, पर वह उसके वशवशो  से दूर इन सब बातों से अनजान था।सादगी में ना रहना जैस्मिन की मजबूरी थी ,जबकि कुणाल के लिए वह उसका शौक था।

    यही वक्त होता था ,जब उसे असली जैस्मिन दिखती जो जैसी है ।बिना कोई रंग पोते एक दम नेचुरल। मन में एहसास जाग जाते इसका नाम जैस्मिन क्यों रखा होगा? बिल्कुल उस छोटे सफेद फूल की तरह कोमल और प्यारी थी। जिसे देखकर कुणाल के जज्बात हिलोरे लेने लगते और उसकी मोहब्बत उरूज पर होती ।वह चाह कर भी खुद को नहीं रोक पाता। जैस्मिन को अपने नजदीक लाने से ।और यही वह पल होते जब जैस्मिन पर अपने प्यार की शिद्दत बिखरता ,जो जैस्मिन को एहसासों से तर बतर कर जाती ।

    होते-होते कब प्यार हो गया ?उसे पता ही नहीं चला! और यह सख्त मिजाज आदमी उसका रहबर बन चुका था। वह बस मुस्कुरा दी ।जबकि कुणाल कपड़े बदल कर आया तो देखा गहनों से आजाद करती ,वह अकेले ही मंद मंद मुस्कुरा रही थी। कुणाल ने सिर हिला दिया ।यह लड़की तो सच में पागल है। कोई इतना कैसे खुद पसंद हो सकता है ,कि किसी और के आने का इल्म भी ना हो।।

    जैस्मिन को पहले देखकर सोचा तो था, कि वह उसे परेशान नहीं करेगा। पर नीचे ही खाना खाते वक्त उसके जज्बात उससे कई बार बगावत कर चुके थे ।वह उसे जाने भी नहीं देगा ।रोज ही वह इतने सस्ते में नहीं छोड़ सकता ।उसकी बीवी थी और उन दोनों का पर्सनल स्पेस भी कायम रहना चाहिए।आज उसे सोने नहीं देगा । जैस्मिन ने अभी सिर्फ अपनी ज्वेलरी उतारी थी। उसे कपड़े बदलने थे, कुणाल का इंतजार कर रही थी ,जो अब तक बाथरुम में घुसा हुआ था ।

    अपने ख्यालों में खोई हुई इस बात से अनजान की कुणाल के मन में उसके नाम के ख्वाब सज रहे हैं ।उसने देखा कुणाल वापस आ गया है। जल्दी से अपना सूट उठाया और एक कदम आगे बढ़ाया ही था। कि कुणाल ने रोक दिया । जैस्मिन ने ना समझी में अपने हाथ को देखा, जो कुणाल ने पकड़ रखा था। कुणाल ने झटके से उसे अपनी ओर खींचा।

    वह उसके सीने से जा लगी ।अपने हाथों में कपड़ों को वैसे ही समेट हुआ था। नादानी में कुणाल को देख रही थी ।अब उसने क्या गलत कर दिया जो वह इस तरह सख्ती से पेश आ रहा है। कुणाल ने उसके हाथ से कपड़े लेकर सोफे पर डाल दिए। जबकि जैस्मिन अब दुपट्टे से बेनियाज खड़ी उसकी आंखों में ताके जा रही थी। कुणाल की नजदीकी से जैस्मिन की धड़कने अक्सर बढ़ जाया करती थी ।जबकि अब तो वह कुणाल के इस तरह खींचने से डरी हुई थी। जैस्मिन के उठते गिरते वजूद पर कुणाल की गहरी नजरें जमी हुई थी। पल भर में जैस्मिन को एहसास हुआ कि कुणाल की निगाहें कहां है। और झटके से जैस्मिन ने कुणाल से दूर होने की कोशिश की ।उसे बेहद शर्म आ रही थी ,पर कुणाल की मजबूत पकड़ ने ऐसा करने की इजाजत नहीं दी ।वह अब पल भर दूरी बर्दाश्त नहीं कर सकता था।

    कुणाल ने जैस्मिन को आराम देते हुए बड़े प्यार से अपने नजदीक किया। वह उसे अनकंफरटेबल फील नहीं करवाना चाहता था। जबकि वह एहसास जो जैस्मिन के लिए महसूस करता है ,चाहता था कि जैस्मिन भी वही सब उसके लिए फील करें ।इसके लिए जैस्मिन का सहज होना जरूरी था और कुणाल का नरम ।

    जैस्मिन के तासुर्रात देखकर कुणाल ने कमरे में रोशनी कम की । वह उस मध्दम सी रोशनी में उसे चमकती हुई पीले सोने जैसी लग रही थी। जिसने कुणाल के अंधेरे में डूबे दिल के अंदर रोशनी की लौ जलाई थी । जो दिल कभी खाली और अंधेरे से भरा हुआ था ।अब वहां जैस्मिन के प्यार का दिया जल रहा था। जिसका रति भर भी इल्म जैस्मिन को नहीं था ।कुणाल ने कभी जानने ही नहीं दिया।

    जो गली कुणाल के दिल तक जाती है, उसे गली को जैस्मिन अभी तक खोज नहीं पाई थी ।जिस दिन ढूंढ लेगी, तब जान पाएगी कि वहां जैस्मिन के अलावा और कोई नहीं रहता था। जैस्मिन ही वह लड़की थी , जिसने कुणाल के मन के बंद दरवाजों को खोल दिया था ।पर खुद ही इन सब से अनजान थी।

    कुणाल के लिए तो वह लड़की दुनिया से बिल्कुल अल्हदा थी। जिसने उसकी सोच को पलट दिया था ।वरना वह तो यही मानता आया था ,कि कोई लड़की उस पर इस कदर हावी कभी नहीं हो सकेगी। कि वह खुद के उसूलों से ही बगावत कर बैठेगा। पर यह हो रहा था। धीरे-धीरे ही सही उसके मन पर जमी रेत की परत साफ हो रही थी। और अब वहां जैस्मिन का अक्स झिलमिलाने लगा था ।अब तक धुंधला है, पर जल्द ही सब कुछ साफ-साफ नजर आएगा।

    जैस्मिन को तो कुणाल के इस रुखे सुखे व्यवहार की आदत हो गई थी। जितनी शिद्दत से अपनी चाहत का एहसास कराता। सुबह उठते ही वापस वहीं सख्ती का लबादा ओढ़ लेता। वही कठोर और बेहिस , बेदर्द, गर्म मिजाज कुणाल नजर आता जो रात को मोम की तरह उसकी बाहों में पिघल जाता था।

    आज भी वही हो रहा था। वह इस वक्त कुणाल की बाहों में थी। दुनिया को भूले बिसरे बस उसकी पनाहों में सिमटे हुए खुद को वहां खो देना चाहती थी ।कुणाल ने भी उसे अपना बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हर तरह से वह उसे अपने प्यार का एहसास कर रहा था ।और जैस्मिन मानो किसी जादू के तहत चल रही हो। कुणाल को उसकी मनमानियां करने दे रही थी। बल्कि खुद उसका साथ दे रही थी ।कुणाल उसे चुंबक की तरह लगता, जिसकी तरफ वह न चाहते हुए भी खींची चली आती ।कुणाल ने जैस्मिन की आंखों में झांका ।जहां हर तरह से उसे अपना बना लेने की रजामंदी थी ।बस यही कुणाल के बर्दाश्त की इंतिहा थी।

    वह जल्द ही उसे लेकर प्यार की दुनिया में उतर गया। जहां अब बस वह दोनों ही थे और उनके एहसास ,जज्बात... जो एक दूसरे से उलझने की कोशिश कर रहे थे। एक दूसरे पर हावी हो रहे थे और दोनों को सुखद एहसास दे रहे थे।

    रात ऐसे ही प्यार के समंदर में गोते लगाते बीती। रात का घनघोर अंधेरा और प्यार में समुद्र सी गहराई ।जिसे कोई नाप ना सके ,पर महसूस कर सके ।वह प्यार ,अपनापन ,लगाव, फिक्र ,ख्याल ,परवाह ,अपना बनाने की कोशिशें सब कुछ था उन लम्हों में ......जब भावनाओं का संगम होता है ,अलग-अलग उमड़ती भावनाएं धारा के रूप में बहकर नदी के पानी के बहाव के साथ एक जगह जाकर इकट्ठी हो जाए और फिर उन पर कोई बस ना हो ,ना ही कोई नियंत्रण जो किनारों को तोड़कर सब कुछ मिटाने को आतुर हो, जिनका मिटना तय हो पर जीने की जिजीविषा रखती हो, कुछ ऐसी ही मदहोशी के आलम में रात कटी और सुबह चिड़िया की चहचहाहट ने आंखें खोलने को मजबूर कर दिया।

    आज तो उसे अलार्म का भी पता नहीं चला। नींद में कब बंद करके वापस सो गई । जैस्मिन को हैरानी हुई थोड़ी घबराहट भी। यह उसके बराबर में सोया शख्स अब उसे हिकारत भरी नजरों से देखेगा और हिदायतें फिर से शुरू। कहीं सुबह-सुबह डांट ना दे। रात जो उसने उसके साथ मिलकर अपने सपनों का महल बनाया था ,वह बस शीश महल ही ना निकले ।अगर टूट कर बिखर गया तो पल भर में चकनाचूर हो जाएगा ।

    जैस्मिन बिस्तर से जल्दी से निकली। इससे पहले कि कुणाल उठ जाए ।वह तो उसके पास से निकलने पर ही उठ गया था। गनीमत यह थी कि आज वह खुद भरपूर सोया ।उसे भी एहसास नहीं था। रात कब बीती और सुबह ने दस्तक कब दे दी।
    कुछ सोचती सी नजरों से जैस्मिन की ओर देख रहा था। एक टक ... जैस्मिन ने घबराहट के मारे अपना सर झुका लिया। आंखें बंद कर ली और खुद को तैयार करने लगी कुणाल जो कुछ भी कहने वाला था।।


    जिंदगी के उतार-चढ़ाव के साथ कभी-कभी रिश्तो में भी अप्स एंड डाउन आते रहते हैं।उन्हें उनसे जूझते हुए एक दूसरे के साथ चलना था, उम्र भर....... इसलिए एक दूसरे को समझना जरूरी था। एक ने पहल कर दी थी, दूसरे को शायद थोड़ा वक्त लग रहा था ।या वह अपने ही जीवन की कुछ पेचीदा लेकिन अनदेखी उलझनों में उलझा था। सुलझाने का प्रयास कर रहा था।

  • 11. मन वैरागी है - Chapter 11

    Words: 2020

    Estimated Reading Time: 13 min

    कुणाल का मन किया कि वह उसे खींचकर अपने पास वापस ले आए। जैस्मिन के उठने से उसे अपने पास खालीपन का एहसास हुआ। एक चीज की कमी शिद्दत से महसूस की और वह जैस्मिन थी ।कब उसके लिए इतनी नायाब बन गई, कि अब उसके बिना पल भर भी रहना दूबर था। कुणाल खुद कभी इस तरह नहीं सोया जैसे आज सोया।जितनी बेफिक्री से वह आज सोया था , जैस्मिन को भला क्या कहता? वह तो खुद ही थकी हुई थी।एक अच्छा वक्त उसके साथ बिताने के बाद भी वह खुद से बेखुद हो रहा था ।गुस्सा, झुंझलाहट या सच्चाई से मुंह मोड़ने की जद्दोजेहद , कुणाल ने कुछ शिकायती नजरों से जैस्मिन को देखा।

    जैस्मिन को कुछ सूझ नहीं रहा था ।लेट उठी, इसका मलाल था। कुणाल कुछ कह ना दे, इस बात का खौफ ।जल्दी तैयार होने की हड़बड़ाहट, नीचे जाने पर उसे कोई रोक-टोक ना दे। इस बात का ख्याल ।पशोपेश में वह उकताई सी बैठी थी। शायद कुणाल के बोलने का इंतजार था। जो भी कहेगा, सुन लेगी ।बात और काम टालना ना उसे पसंद था ना कुणाल को। फिर उसका गंभीर रवैया जो उसने इख्तेहार कर रखा था। जैस्मिन का दिल हौलफौल हो रहा था।

    कुणाल को वह सफेद सलवार कमीज पहने बैठी किसी परी जैसी लग रही थी ।वह जो आसमान से उतर आती है। ऐसा उसने बचपन में दादी की कहानियों में सुना था। मासूम और प्यारी ...दिखने में नाजुक, लेकिन किसी वरदान से कम नहीं। वह भी तो उसकी जिंदगी में आई खूबसूरत और कोमल परी थी। जो उसे प्यार की भाषा पढ़ा रही थी और वह है कि अब तक उनसे बचता रहा है,लेकिन ज्यादा दिन तक वह जैस्मिन के सहर से बच नहीं पाएगा। इस बात का एहसास कुणाल को बखूबी हो चुका था। एहसास ए कबूल उसे गवारा नहीं था और सच्चाई से मुंह मोड़ना तो कभी आया ही नहीं।

    वह कुणाल जो बड़ी से बड़ी परिस्थितियों का सामना करने से घबराता नहीं ।कट मरने को तैयार रहता है। यह छोटी सी बात उसके जीवन की सदा बना रही थी। उसे तो लगा था यकीनन शादी के बाद कुछ नहीं बदलेगा। वह जैसा है, वैसा बना रहेगा जल्द ही उसकी पत्नी उसके इस रूप को एक्सेप्ट कर लेगी ।पर यहां तो बाजी उल्टी पड़ रही थी। वह लड़की कुणाल पर हावी हो रही थी और कुणाल जज्बातों से बचकर भागता भागता जज्बातों के पीछे भाग पड़ता ।रात भी यही हुआ ।अब भी यही हो रहा था । उसके सामने बैठी यह लड़की उसे चुनौती दे रही थी।।

    तुम्हें नीचे नहीं जाना.....

    जी, मैं बस जा ही रही थी.... जैस्मिन ने कहा और जल्दी से बिस्तर से निकल गई ।शुक्र का सांस लिया ।भगवान की रहमत है कि इस इंसान ने उसे सुबह-सुबह कुछ नहीं कहा ।सच में ईश्वर रहम दिल है ।जैस्मिन ने मन ही मन प्रार्थना की और ईश्वर जिनसे  हम कुछ ना कुछ मांगते रहते हैं। उन्हें ही दुआ दे डाली। कुणाल का भय उसके भीतर कुछ इस तरह समाया था। नई-नई शादी में वह झुंझलाहट का रिश्ता नहीं चाहती थी। अभी तो उसे कुणाल नाम की यह पहेली सुलझानी थी। बस वह हमेशा ऐसे ही रहे , इतना सीधा जैसे अब था। भगवान से प्रार्थना की।

    कुणाल पलट कर फिर सो गया और जैस्मिन फटाफट तैयार होकर नीचे चली आई ।उसे जाकर चाय भी बनानी है ,और फिर इनके लिए लेकर भी आनी हैं। वरना शायद सोते ही रहेंगे।
    अभी वह कुणाल के लिए चाय लेकर ही आई थी ।जब उसे कुणाल छत पर टहलते हुए दिखा ।शायद, फोन पर किसी से बात कर रहा था ।कहीं जाने की बात हो रही थी। रेहान होगा, अक्सर ही वह रेहान के साथ ही बाहर जाया करता था।

    उसकी चाय मुंडेर पर रखकर मुड़ी ही थी ।जब कुणाल ने आवाज लगाई ।
    सुनो..... मेरे लिए कपड़े निकाल दो ।

    जी ,जैस्मिन पलट गई ।

    कौन से...... जैसे ही याद आया उसने पूछने के लिए वापस पलटी मारी। थोड़ी कंफ्यूज थी।

    कोई भी .....एक कम करो तुम रहने दो ।मैं निकाल लूंगा। तुम पहले चाय पी लो । कुणाल ने उसके हाथ में थमा अपना कप देखा तो उससे इसरार किया।जैस्मिन को खुशी हुई ।वह उसका ख्याल रखता है।

    फिर ब्रेकफास्ट तैयार कर देना ..... कुणाल ने चाय का घूंट भरते हुए कहा।

    जी ठीक है, जैस्मिन ने भी उसके कहने से कप थाम लिया। कुणाल चाय खत्म कर नहाने चला गया था। जबकि जैस्मिन नीचे आकर नाश्ते की तैयारी करने लगी। रोज का यही मामूल था ।सबके लिए नाश्ता साथ बनता । ज्यादा नहीं पर वह थोड़ी बहुत मदद करवा दिया करती ।वैसे भी काम करने वाली वह इतनी सारी औरतें थी। जिन्हें बस खाने पीने का काम करना होता था ।और उस के हिस्से कुणाल के सारे काम आए थे ।

    बेटा ,तुम ऐसे करो कुणाल के कपड़े प्रेस कर दो। उसे कहीं जाना होगा, तो फिर ढूंढेगा। वे कुणाल की आदतों से अच्छी तरह वाकिफ थी।चाची ने उसे वहां से भेज दिया ।जबकि वह खुद रसोई में लगी हुई थी।

    जैस्मिन भी चुपचाप अपने काम में जुट गई। कपड़े तह कर वह ऊपर आई ।तब कुणाल अलमारी खोले खड़ा था। उसे जो कपड़े चाहिए थे, वह नहीं मिल रहे थे।

    कुछ ढूंढ रहे हैं आप? जैस्मिन ने उसे उलझन में देखा तो पूछ लिया।

    हां यार कपड़े नहीं मिल रहे मेरे ..... कुणाल थोड़ा झुंझलाया हुआ था वैसे ही झुंझलाहट में कहा और फिर मुड़कर जैस्मिन की ओर देखा ताकि उसे कह सके कि वह निकाल दे।

    ओह तुम्हारे हाथ में तो है। कुणाल ने कहा और जल्दी से उसके हाथों से ले लिए। जबकि अभी वह टॉवल में ही खड़ा था। जैस्मिन वापस जाने लगी तो कुणाल ने नाश्ते का पूछ लिया।

    जी, लगभग बन ही गया है ।आप आएंगे तब तक तैयार हो जाएगा ।

    ठीक है ,तुम नाश्ता लगाओ। फिर मुझे निकलना है। कुणाल ने अपनी शर्ट की बांह की बटन बंद करते हुए कहा।

    जी ठीक है।

    इन छोटी बातों के अलावा कुणाल और जैस्मिन के बीच और कोई बात नहीं होती थी ।जैस्मिन को घुटन हो रही थी। रात जो प्यार का दरिया उसने देखा था। क्या महज छलावा था? यह इंसान तो बिल्कुल उल्टे बात कर रहा है ।उसे लगता था हर दिन के साथ की आज सब ठीक होगा। जबकि वह उसका शीश महल तोड़ देता ।यह ख्वाब महज ख्वाब थे , जिनकी धरातल पर कोई हकीकत नहीं थी। जैस्मिन खुली और बंद दोनों आंखों से ऐसे ख्वाब देखती जो कभी पूरे नहीं होने थे ।

    वह दिल में उठी एक टीस के साथ ही अपने आंखों में आए पानी और दिल में उमड़ते जज्बातों को जब्त कर नीचे की ओर चल दी।
    कुणाल का यह लिया दिया सा व्यवहार जैस्मिन को हर रोज मार रहा था। क्या उसकी जिंदगी में उसकी जगह बस वही तक है? उसके अलावा वह क्या कर रहा है? कहां जा रहा है ?कब आ रहा है ?वह कैसी है ? कैसा महसूस करती है ?यहां आकर कैसा लगा ?क्या नई जगह मन लग गया? क्या उसे अपनों की याद नहीं आती? क्या मायके जाने का मन नहीं करता ?क्या वह नए माहौल में एडजस्ट हो पाई है? क्या उसकी पीहर बालों से बात हुई ?क्या सहेलियों से मिलने का मन करता है? उसके फ्रेंड्स कौन-कौन है ?क्या ससुराल में सब उसके साथ रवैया ठीक है? क्या वह ऑकवर्ड तो नहीं फील कर रही ?कितने सारे सवाल थे.... कब, क्यों, कैसे ,जैस्मिन चाहती थी ।इन सवालों के उत्तर कुणाल को दे। कुणाल से अपने प्रश्नों के उत्तर ले।

    वह तो हर दिन का हिसाब किताब अपने पति को देने को तैयार थी। उससे लेना भी चाहती थी ।सुख-दुख, खुशियां गम ,अच्छा बुरा हर एक एहसास, हर एक पल की बात ।पर कैसे? बिना बातचीत के तो यह संभव नहीं था।

    क्यों ऐसा है वह ?यह तो कठोर दीवार थी ,शायद जिसको ढहने में जिंदगी निकल जाए ।दादी ने भी ढके छुपे शब्दों में उससे एक वादा लिया था। हर मुश्किल परिस्थिति में कुणाल के साथ रहने का। शायद उसकी उम्र भले ही कम हो जाए। उसकी जिंदगी ही शायद छोटी हो जाएगी। एक लंबी उम्र और जीवन भर की तो उसे आस नहीं थी।

    कब तक? कब तक वह झूठी उम्मीद पर खुद को खड़ा रखेगी। यह तो मिट्टी की दीवार है ,जो भरभरा कर कभी भी गिर सकती है और कुणाल वह लोहे का स्तभं जिस पर ठंडे गरम का एहसास तो होता है पर भावनाओं कि झलकियां कभी नहीं देखी जा सकती।

    जैस्मिन तुम्हारे पैर सुने हैं क्या आज ?दादी को जैस्मिन के चलने से पायल की रुनझुन सुनाई नहीं दी थी ।

    जैस्मिन को भी ख्याल आया कैसे वह आसानी से चल पा रही है? वैसे भी सुबह से कुणाल ने बहुत भाग दौड़ करवाई ।उसने नीचे अपने पैरों की ओर देखा ।

    हां दादी, वह मैं फिर से पहनना भूल गई ।अभी पहन कर आती हूं । जैस्मिन को अपनी गलती का एहसास था और मलाल भी। इतने दिनों में ही उसने दूसरी बार भूल की है। यह तो भला हो कि इस घर की औरतें खडूस नहीं है ।वरना उस पर कयामत आ जाती ।औरतें साज श्रृंगार के मामले में कोई कोताही नहीं बरतती। खास कर बात जब अपने बेटों और पोतों से जुड़ी हो। यह सब सुहाग की निशानियां है। जिन्हें आज के जमाने में भले कोई माने या ना माने पर कहीं-कहीं अब भी इनका महत्व जरा कम नहीं हुआ है।
    दूसरी बात जो थी, वह यह है कि उसकी गलतियों के बारे में अगर कुणाल को पता चल गया। तो उस पर कहर ही टूट जाएगा।

    क्या तुम्हें पाजेब पसंद नहीं ? दादी ने बस यूं ही पूछा।

    नहीं दादी ऐसी बात नहीं है।

    तो...

    वह बस.... इन्हें शोर पसंद नहीं ।

    दादी बस मुस्कुरा दी ।जल्द ही मुझे खुशखबरी दोगी। पर पोता या परपोती मेरी गोद में खेलेगा।

    यह भला बात अब यहां कहां से आ गई। दादी को क्या हो गया? जैस्मिन बस यह सोच कर मुड़ी।ताकि ऊपर जाकर पायल पहन सके ।

    अच्छा मेरे पास बैठो। दादी ने उसे वापस बुलाया ।

    जी दादी, जैस्मिन ने उनके पास बैठते हुए अपनी रजामंदी दी।

    सच-सच बताओ। किसी-किसी को पायल बेड़िया लगती है ।तुम भी पढ़ी-लिखी, शहर की लड़की हो ।क्या तुम्हें भी ऐसा लगता है ?

    नहीं दादी मुझे तो इनकी खनक बहुत पसंद है पर इन्हें नहीं पसंद। कहते हैं शोर में नींद नहीं आती ।दादी जैस्मिन की ना समझी पर हंस दी।

    मेरे पास रमझोल है। सोच रही हूं तुम्हें ही दूंगी ।अभी तो मैंने अपनी तीनों बहूओं को भी नहीं दी। कहीं आपस में लड़ ना पड़े पर तुम तो एक ही पोता बहू हो। तुम्हें देने में कोई मसला नहीं। मेरा सारा सोना भी तुम्हारा है। दादी ने जैस्मिन पर प्यार और भरोसा दोनों जताते हुए कहा।

    जैस्मिन रमझोल के नाम से ही खुश हो गई।उसे तो बड़ी-बड़ी मोटी पाजेब छनकती हुई बहुत पसंद थी ।उनका बजना अच्छा लगता था ।जबकि रमझोल तो और बड़ी होंगी ।उसने बस सुना था ।पुराने जमाने में यह कितने चाव से औरतें पहनती थी। ढेर सारे घुंघरू से बनी हुई चांदी की, हां डिजाइन थोड़ा पाजेब से भारी होता है ।

    पर क्या हुआ एंटीक चीज भी एंटीक होती है ।जैस्मिन के मन में गुड़गुड़ाहट हुई ।जब दादी उसे रमझोल देगी। और वह अपने पैरों में डालेंगी, बिल्कुल रानी हार की तरह जो उसने कितने शिद्दत से चाहा था और आखिर उसे मिल गया। वह भी पुरखों की निशानी ।

    हम अपनी विरासत को संभाल कर नहीं रखेंगे। तो भला कौन रखेगा? उन्हें सहेजना हमारा कर्तव्य है। फिर वह घर हो, महल हो ,हवेली हो या पुराने जेवरात। पुरखों का प्यार और आशीर्वाद उनकी लगन छुपी रहती है इन सब में ।

    जैस्मिन का ध्यान कुणाल की बेरुखी से हट गया ।यही वह चीज थी जो उसे सुकून देती थी ।दादी ने भी शायद उसकी आंखों में खालीपन देख लिया था। तभी उसे किसी दूसरी तरफ उलझा दिया और जैस्मिन वाकई उलझ गई। अब उसके दिल में कोई खालिश नहीं थी। कम से कम तब तक के लिए जब तक कुणाल उसके सामने नहीं है।

    "औरतों की दुनिया बहुत छोटी होती है।अक्सर अपने जीवन का खालीपन को भरने के लिए वे नये कपड़ों और ढेर सारे गहनों में खुशियां तलाश करती है। ताकि उनके जीवन में कुछ तो नयापन हो,कुछ तो बेशुमार हो।"

  • 12. मन वैरागी है - Chapter 12

    Words: 1618

    Estimated Reading Time: 10 min

    दादी यह तो कोई बात नहीं हुई ?वह तो मैंने मांग रखी है ना.... आपसे ..?

    हां, लेकिन मैंने दे कहां रखी है तुम्हें...! मना कर दिया था ।इस घर के जेवर इस घर की बहू के हैं ।तुम्हें तुम्हारी दादी सास देंगी मेरी बला से ...!

    दादी अब आप पलटी मार रही हैं।

    बेवजह मुझे बातों में मत लो ।मैंने कभी नहीं कहा था कि रमझोल तुम्हारी है ।

    पर भाभी को तो आपने रानी हार दे दिया और बाकी जेवर भी है। एक चीज तो कम से कम मुझे मिलनी चाहिए ।

    यह बात अपनी दादी सास से कहना।

    अब आप बात को घुमाइए मत....

    भई मेरे लिए तो ऐसा घर ढूंढना, जिसमें दादी हो ही नहीं। स्वर्ग सिधार चुकी हो। दादी सास वाला झंझट ही खत्म ।

    कल्पना अपनी दादी से रमझोल की बात पर उलझ रही थी। जब उसने दादी को कहते सुना कि वह भी जैस्मिन को मिलने वाली है। अभी दादी पोती की बहस जारी ही थी। जब काजल ने अपना मुंह खोला ।वह अपना ही राग अलाप रही थी। जब भी जबान खोलती थी ,कुछ उल्टा सीधा ही बोलती ।

    जैस्मिन को हंसी आई। दादी सास के सामने हंस भी नहीं सकती थी। इसलिए मुंह दबाकर बस मुस्कुरा कर रह गई ।जबकि कल्पना ठहाका लगाकर हंस पड़ी ।जैस्मिन ने मुंह घुमा लिया। कहीं दादी देख ना ले ।
    शादी से पहले वैसे उसके भी कुछ ऐसे ही ख्याल थे। यह तो किस्मत से उसकी दादी सास अच्छी निकली। वरना उसने तो कुछ बुरा ही सुन रखा था। ऊपर से गांव की औरतें ,उसे लगता था उनके साथ तो वह अपना तालमेल बिठा ही नहीं पाएगी। जबकि पूरे घर में वह अच्छी तरह रम गई और यहां के लोगों के दिलों में भी अपनी जगह बना ली बस एक कुणाल को छोड़कर...... ओह !वक्त बेवक्त बस वही याद आ जाता था। जैस्मिन ने अपना ख्याल झटका और रुख वापस दादी और काजल की ओर किया। थोड़ी देर पहले दादी जहां कल्पना से उलझ रही थी। अब दादी के सामने काजल थी और दोनों बहने किच-किच पर उतारू।

    एक को रमझोल चाहिए थी, जबकि दूसरी को दादी सास ही नहीं चाहिए थी ।

    ऐसा क्या कर दिया बुढ़ियो ने....? जो तुम उन्हें मारने पर तुली हो ?दादी को अपनी हम उम्र औरतों के बारे में ऐसा सुनना अच्छा नहीं लगा।

    इतना बुरा क्यों आंकते हैं लोग उन्हें ?एक सदी का अनुभव होता है उनके पास .....एक दौर को देखा होता है अपने बुढ़ी आंखों से ....एक जमाना जी कर वह यहां तक आते हैं.... तब भी अपनी नकारात्मक छवि को अपने अनुभवों और सोच समझ से दूर नहीं कर पाए। यह आजकल के बच्चे कहां जा रहे हैं ?उनका भविष्य कहां है ?जो बड़ों को यूं दरकिनार कर देते हैं मानो वह कोई तुच्छ वस्तु हो ।भले ही आज की चीजों में वह उनके जितने अच्छे ना हो, टेक्नोलॉजी उन्हें ना आती हो, पर यह वही लोग हैं जो आज के जमाने में एडजस्ट कर रहे हैं ।अगर इसके रिवर्स प्रक्रिया हो और बच्चों को बोल दें कि तुम्हें पुराने वाले माहौल में ढलना है तो वह शायद मर जाएं ?

    फिर भी उनके इस सहज स्वीकार्य गुण को पता नहीं लोग क्यों स्वीकार नहीं कर पाते? दादी को कोफ्त हुई और उन्होंने अपनी नादान और ना समझ पोती को डांटा ।जबकि उसे डांट में भी प्यार और दुलार छुपा था।।

    और क्या कहें दादी ?आप तो खुद ही खड़ूस बनी हुई है, जबकि मेरी दादी है। फिर दादी सास तो कितनी ही खड़ूस होंगी ?क्या ही कहने उनके...? इससे अच्छा है हो ही ना !
    दादी ने अपनी छड़ी दिखाई ।किसी दिन इससे पिटाई होगी तुम्हारी.... तब जानोगी दादी और क्या-क्या कर सकती हैं ।अभी तुम सिर्फ दादी को बातों का भूत समझती हो।

    नहीं दादी हम तो आपको लातों का भूत भी समझते हैं।

    तुम बाज आ जाओ अपनी हरकतों से ।वरना मैं चप्पल दे मारूंगी। दादी ने कहा। काजल जरा उनसे दूर बैठी थी। इसलिए अपनी खिलखिलाहटों पर जरा लगाम नहीं लगाई ।इतनी दूर बैठे दादी उनका क्या ही कर लेंगी ।अब वह उसे मारने पीटने उठकर तो आने से रही। वैसे भी दादी को तंग करने में ज्यादा ही मजा आ रहा था ।

    जैस्मिन उसके लिए तो सब कुछ नया-नया अलग-अलग था ।कभी दो-चार लोगों के परिवार में रही ।अब इस बड़े से कुनबे में रहती थी और यही इस घर की खूबसूरती थी। कि यहां हंसी की गूंज कम नहीं होती। कोई परेशान भी होता तब भी एक दूसरे का मूड बेहतर करने के लिए नुस्खे ढूंढ लाया करते थे। अपना काम छोड़ पहले उसका मूड दुरुस्त करना ज्यादा जरूरी था। कल्पना से बात अब काजल की ओर मुड़ गई थी और काजल और दादी की खट्टी मीठी नोक झोंक जारी थी ।जबकि जैस्मिन और कल्पना इन चटपटी खबरों का मजा ले रही थी ।अंदर से आती शोर शराबें और खिलखिलाहटों की आवाज ने कुणाल के होठों पर भी मुस्कुराहट ला दी ।

    यह उसकी छोटी बहन थी ।जो बेहद नटखट और नादान थी। छोटी-छोटी बातों पर अक्सर दादी से उलझ जाया करती ,बल्कि सबसे ही।

    क्या हुआ आज दादी और काजल के बीच फिर बहस बाजी हुई क्या? बाहर से अंदर की ओर आते हुए कुणाल ने अपने ताई से पूछा जो बाहर चूल्हे में ही कम कर रही थी ।

    हां अंदर जाकर देखो, तुम्हारी बहू के गहनों पर डाका डाला जा रहा है। दादी बेचारी अकेली कब तक मोर्चा संभालेगी ।ताई जी ने हंस कर कहा। बात अब जेवरों की नहीं थी बात तो अब हक पर आ गई थी।

    फिर तो तूफान आने वाला होगा?

    आने वाला होगा नहीं, अंदर आया हुआ बैठा है ।जाओगे तब पता चलेगा और अपनी उस नकचढ़ी बहन के नखरे भी उठाओ। दादी ने अगर गहनों की हां नहीं भरी तो वह खर्चा भी तुम्हारे हिस्से ही आएगा ।बनवा कर दो उसके मनपसंद जेवरात।

      कोई नहीं ताई, यह कौन सी बड़ी बात है ।बनवा देंगे ।पर एंटीक चीज कहां से लाएंगे ?वह तो अब दादी ही दे सकती है।

    हां और वह हां नहीं भरती। बस हर बार का यही है।

    कोई बात नहीं, जाने दीजिए ।बच्ची है अभी ।समझ जाएगी।

    कब तक रहेगा यह बचपना ?उसकी उम्र की तुम्हारी बहू है। अब उसे भी क्या बच्ची कहोगे?
    सर चढ़ा रहे हो तुम उसे ।फिर कहोगे कि नखरे करती है। तुम्हारा क्या है? तुम तो उसे विदा कर दोगे।अगले का भी तो सोचो। कैसे झेलेगा वो यह बचकानी हरकतें,और एक जैस्मिन को देखो कितनी समझदार है।

    कुणाल को अचानक से सुबह जैस्मिन के साथ किया हुआ बिहेवियर याद आया ।सच में वह उसे सुबह पूरी तरह नजर अंदाज करके चला गया था। उसकी ही हाय होगी ,जो शायद अब वह एक निराशा के साथ घर वापस लौटा है। क्या वाकई वह उसके साथ गलत कर रहा है ?

    कुणाल का जहन बुरी तरह उलझ गया। अक्सर यही होता दिल और दिमाग की गुफ्तगू में अक्सर वह दिल के हाथों हार जाया करता, पर फिर संभल भी जाया करता ।और जीत दिमाग की होती। एक इंसान के एहसास ,उसकी भावनाओं को वह हर बार कुचल जाता । कुछ बहुत खूबसूरत लम्हों के बाद वह उस इंसान के झोली में बेरुखी डालकर चला जाता। बिल्कुल दबे कुचले हुए फूलों की तरह......

    कुणाल को कुछ घुटन सी हुई और विचारों की आंधी ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया। जबकि ताई जी की अगली बात ने उसे वर्तमान क्षणों में ला पटका।

    तुम्हारा काम हो गया? जिस काम से गए थे? ताई ने थोड़ा फिक्रमंदी से पूछा।
    कुणाल ने ना में गर्दन हिला दी ।चेहरे पर चिंता की लकीरें ऊभर आई। ताई जी के चेहरे पर भी परेशानी की झलकियां देखी जा सकती थी। पर ज्यादा उलझना ठीक नहीं था ।अभी अभी बेटा ख्वार होकर आया है।

    रेहान ...वह कहां रह गया ?

    उसे कोई काम था तो वहीं से सीधा चला गया।

    अच्छा ठीक है, तुम बैठो दादी के पास ।मैं चाय लेकर आती हूं। ताई ने थोड़ा एहतराम जताते हुए कहा। उनका बेटा थककर घर आया था ।कुणाल को भी जरूरत थी। यही वह शय थी, जहां वह सुकून पाता था ।आगे बढ़कर दादी के पास चला गया ।जहां अभी भी महासंग्राम जारी था ।

    तुम चिंता क्यों करती हो? जो तुम्हें चाहिए ,वह तुम्हें सब कुछ मिलेगा। तुम्हारा भाई है ना ....बनवा कर देने के लिए! कुणाल ने छोटी बहन को पुचकारते हुए कहा।

    पर भाई ,मुझे वह दादी वाली चाहिए।

    कोई बात नहीं ,दादी से मैं कह दूंगा ।

    पर वह तो उन्होंने भाभी को दे दी ।

    फिर तो और भी अच्छा है, भाभी से लेकर मैं तुम्हें दे दूंगा। दादी से पूछने की जरूरत ही नहीं ।

    क्या सच में? भाई ऐसा हो सकता है?

    क्यों नहीं हो सकता। तुम्हें अपने भाई पर विश्वास नहीं।

    भाई पर तो है ,लेकिन भाभी पर नहीं। गहनों के मामले में औरतें बड़ी पजेसिव होती है। आपको नहीं मालूम भाई कि....

    मुझे भला कैसे मालूम नहीं होगा। बचपन से तो देखते आ रहा हूं ,अपनी छोटी बहनों को। जो गहनों को लेकर दादी से लड़ती आई है ।कुणाल ने हंस कर कहा ।

    क्या भाई? आप भी मुझे तंग करने लगे !

    अच्छा और तुम यह जो मेरी प्यारी सी दादी को तंग कर रही हो। उसका क्या ?

    हां सबको दादी की साइड लेनी होती है। मेरी साइड कोई नहीं ।

    तुम्हारी ही साइड हूं, गहने तुम्हें मिल जाएंगे। फिक्र मत करो ।कुणाल ने प्यार से कहा और दादी के पास आकर बैठ गया। खुद को नॉर्मल बनाए रखना चाहता था। पर दादी की अनुभवी आंखें सब पहचान जाती थी। चेहरे पर परेशानी की लकीरें दिख रही थी । जिन्हें कुणाल ने छुपाने की बखूबी कोशिश की या ऐसा कहें कि नाकाम कोशिश की । क्योंकि सफल नहीं हुआ।
    दादी ने जैस्मिन को चाय लिवाने के लिए भेज दिया। जबकि कल्पना और काजल उठकर अंदर चली गई थी।

  • 13. मन वैरागी है - Chapter 13

    Words: 1817

    Estimated Reading Time: 11 min

    जैस्मीन, कुणाल के लिए चाय ले आई थी। जैस्मिन अब भी कुनाल के पास ही खड़ी थी ।क्या पता उसे कुछ और चाहिए हो? दादी ने एक बार कुणाल को देखा, एक बार जैस्मिन को। जैस्मिन की नजरों में प्यार था, उम्मीद थी। जबकि कुणाल ने अपनी चाय ली और ऐसे रिएक्ट किया। मानो उसे जैस्मिन के यहां होने से फर्क ही नहीं पड़ रहा । जैस्मिन गर्दन झुकाए वहां से चली गई ।आज कुणाल परेशान था। तो दादी ने भी कुछ कहना ठीक नहीं समझा। वरना वह किसी दिन जरूर बात करेंगी।

    वह अभी छोटी है। दोनों के बीच उम्र का भी फर्क है। उसके कुछ अलग सपने होंगे। अलग-अलग ख्वाहिशें, ख्वाब होंगे। दोनों के मिजाज में अंतर है ।ख्याल भी एक दूसरे से भिन्न होंगे। पर यहां कुणाल को समझदारी दिखाते हुए जैस्मिन की इच्छाओं को ध्यान में रखना होगा ।वह भी तो इस तरह बैठकर उससे बातों की उम्मीद करती होगी। दुख सुख सांझा करना चाहती होगी ।और भी मियां बीवी के बीच में जो बातें होती है। वो सब पल जीना चाहती होंगी।

    पर यह बात इन आदमियों को समझ नहीं आती ।और वैसे भी यह तो सारे एक जैसे हैं। लगता है, खानदान का असर है ।दादी ने मन में सोचा। वो कुणाल को चाय पीते हुए देख रही थी ।
    कब तक जैस्मिन को ही समझाती रहेगी ।एक पाए पर तो रिश्ता नहीं टिका रहता । इस बारे में थोड़ी तो बात इससे भी करनी पड़ेगी।

    कुणाल ने आसपास देखा ।सब अपने काम में मशगूल थे ।उसने दादी को आज के मामले के बारे में बताना शुरू किया। वह उन्हें हर एक पहलू से अवगत करा रहा था। दादी के चेहरे पर चिंता की लकीरें आई और गई। जैसे इन सब से अब फर्क पड़ना बंद हो गया हो ।कुछ भी तो इंसान के हाथ में नहीं होता। इंसान के कर्म और उसकी करनी उसे वहां खींच लाती हैं ।जहां शायद उसे लगता हो कि उसकी जरूरत नहीं ।पर फिर भी यह तो नियति में लिखा है ।अतीत में गलती किसकी थी ?किसकी नहीं? वह आज भी नहीं समझ पा रही ।पर उन्होंने अपना बहुत कुछ खो दिया था। अब वह कुणाल की खुशियों पर कोई ग्रहण नहीं लगने देना चाहती थी ।जिस तरह कुणाल ने पूरे घर की जिम्मेदारी संभाल रखी है। अब तो जैस्मिन की जिम्मेदारी भी उसके कंधों पर है।

    कहीं यह बाकी सब जिम्मेदारियों के चलते जैस्मिन को नजर अंदाज ना करता चले। आखिर जो कुछ भी अतीत में हुआ या कुणाल का जैसा स्वभाव है ....उसमें जैस्मिन की तो कोई गलती नहीं !
    वह उसकी मासूमियत को नहीं कुचलने देना चाहती थी ।जैस्मिन के फूल की तरह जितनी पवित्र और मुलायम थी ।जिंदगी भर वह मासूमियत बनी रहे। वह नरम लहजा ,पवित्रता ,शुद्ध मन,एक प्यार करने वाला दिल। जो सबको मान सम्मान देता है, सब की कदर करता है। इतने बड़े परिवार में आकर खुद को सौभाग्यशावली समझती है ।जिम्मेदारियां का रती भर भी रोना नहीं ।वरना आजकल के वक्त में लोग जिम्मेदारियों से भागते नजर आते हैं। और वो है जो उन्हें स्वीकार करना चाहती है। अभी ना सही पर आने वाले वक्त के लिए वह खुद को तैयार कर रही है ।

    कुणाल के लिए इससे बढ़कर जोड़ और क्या होगा ?कि वह भी कुणाल की तरह है ।सबको दिल से प्यार करने वाली, सबको अपनाने वाली....!

    जैस्मिन आजकल कुणाल के कामों को देखते-देखते खुद को भूल सी गई थी। घर पर वह तैयार होकर रहती । घर का माहौल और कुणाल के स्वभाव को देखते हुए खुद को मेंटेन करना भी एक बड़ा काम था। गांव के तौर तरीकों में रहना भी सहज नहीं होता ।बहुत सारी बंदिशें होती है ।बहुत सारी तैयारी करनी पड़ती है। जो जो चीज जरूरी थी ।गिन-गिन कर सबको अपने शरीर पर साज सिंगार की तरह सजाना। चाहे उसे पसंद हो या ना हो ।
    बहुत ज्यादा मेकअप में उसे भारीपन का एहसास होता था। लेकिन फिर भी उसे करना था ।गांव की रिवायतों को देखते हुए, इस घर की परंपरा को देखते हुए, और सबसे जरूरी कुणाल के लिए। क्योंकि कुणाल को पुराने रीति रिवाज पसंद थे। जो प्रथा सदियों से चली आ रही थी। वह किसी न किसी सूरत में निभाई जानी थी ।बस उन सबको छोड़कर जिनका कोई तुक ना हो। पर जैस्मिन इन बातों से अनजान थी कि कुणाल को तो वह सादा से लिबास में भी पसंद थी ।और जैस्मिन को लगता था कि वह उसे इतना तैयार होने के बाद भी पसंद नहीं करता।

    अपने कमरे में आई तो देखा। उसका फोन बज रहा था ।चेक किया जो उसकी सहेली का था। और भी कॉल थी ।जो उसने मिस्ड कर दी ।सबसे पहले उसने शोल को उतार कर साइड रखा और फिर सर से चुन्नी उतार कर एक तरफ की। धीरे-धीरे कर सब गहने जेवर उतारे और खुद को हल्का महसूस कराया। अभी उसने कपड़े बदले नहीं थे ।ऐसे ही फोन लेकर बैठ गई । सबसे पहले घर पर बात की ।पूरा दिन तो उसे वक्त नहीं मिलता था । वक्त होता तब भी वो बहू होने के नाते फोन लेकर नहीं बैठ सकती थी।शायद किसी को अच्छा ना लगे, या कोई टॉक दे।

    घर पर बात करते ही उसने अपनी सहेली को फोन किया ।बहुत दिन हो गए थे ,उससे भी बात नहीं हो पाई थी ।फोन के दूसरे तरफ एक चहकती हुई सी आवाज आई। शादी से पहले वह भी ऐसे ही चहका करती थी ।अब ससुराल में तेज बोलना अलाउड नहीं था और फिर वह तो थी ही नई-नई। मन में एक डर भी था और कुछ आशंकाएं भी ।

    कैसी हो तुम ?

    मैं ठीक हूं, तुम बताओ ?

    मैं भी अच्छी हूं। वैसे तुम बड़ा ससुराल के रंग में रंग गई हो। कितना आराम आराम से बातें कर रही हो।

    हां, तेरी शादी होने दे ।फिर तुम भी रंग जाओगी । जैस्मिन ने उसका मखौल उड़ाते हुए कहा ।

    जरूरी नहीं सबका ससुराल एक जैसा हो। हो सकता है मैं वहां भी ऐसे ही चहकती रहूं।

    देखते हैं ,अभी से क्या ही कहें? जैस्मिन की जिंदगी में कुणाल के आने का एक असर यह हुआ कि अब वह बेवजह बातों पर उलझती नहीं थी ।जरूरत होती उतना ही बोलती ।फिजूल की बातें कुणाल को पसंद नहीं थी और अब वह भी धीरे-धीरे वैसे ही होने लगी।
    फिर उसे डर भी था कि कुणाल के आने का वक्त हो गया । वो कब ऊपर आ जाए और उसे यूं खिलखिलाते हुए देख कर गुस्सा ही ना कर दे।

    हां भई.... बिल्कुल देख लेना !वैसे यार तू तो बड़ी जल्दी पराई हो गई ।शादी के बाद हम सबको भूल भी गई ।इतने पसंद आ गए क्या जीजू ? जो हमसे बात करना भी जरूरी नहीं समझती ।

    ऐसी बात नहीं है ।बस वक्त ही नहीं मिलता ,या यूं कह लो वक्त तो है, पर यहां जॉइंट फैमिली है। फिर उन सबको नजर अंदाज कर फोन लेकर बैठना अच्छा नहीं लगता ।सब बड़े हैं ना ।

    जीजू की समझदारी का असर हो रहा है मोहतरमा पर....! काफी गंभीर बातें करने लगी हो...! वैसे... वह हैंडसम हंक है कहां ?

    वो अभी नीचे हैं ,सबके साथ बैठे हैं ।

    और तुम .....

    मैं बस आ गई ।
    उसे क्या बताती सबके बीच में कुणाल के साथ बैठना उसे बड़ा ऑकवर्ड फील कराता था ।वह कोई बात भी ठीक से नहीं कर पाती ।इससे अच्छा यह लगता कि वह बहाना बनाकर कमरे में आ जाया करती ।जल्दी कपड़े बदलने का बहाना भी होता।उसे थोड़ा खुद को रिलैक्स फील भी करना होता था ।

    क्या हुआ ?तुम इतनी बुझी बुझी सी क्यों हो ?जैस्मिन के सोचों के दौर खत्म ही नहीं हो रहे थे, तो उसने प्रश्न किया।

    कुछ नहीं, बस यूं ही ...... जैस्मिन ने बात बदल दी।उसे कुणाल के स्वभाव से कैफियत थी । आखिर वह अपने दिल का हाल किसे कहें? ले देकर यह एक सहेली थी। मन हुआ कि इसे सब कुछ बता दे ।पर कुणाल के आने का डर भी था और आधी अधूरी बात बता कर उसे परेशान नहीं करना चाहती थी ।

    अच्छा मैं तुझे कल दिन में फोन करूं फ्री होकर.....?

    अभी कहां बिजी है? तू तो कह रही थी जीजू सबके साथ बैठे हैं। वह जैस्मिन को कुणाल के नाम से चिढ़ा रही थी।

    दरअसल मुझे चेंज करना था और यह भी आने वाले होंगे।

    ओह भई कितना ख्याल है उनका....? और मेरा ....!जरा भी नहीं ....;

    ऐसा नहीं है नौटंकी ....बस तुझसे दिल खोल कर बात करनी थी। तू कहे तो कल कर लूं ?

    जी जी मैडम अब तो आप हमारे रोकने से भी नहीं रुकेंगी। अब कल ही कर लेना ।

    ठीक है, ध्यान रखना अपना ....

    और तुम भी....

    चल रखती हूं ।बाय ...

    बाय ...

    जैस्मिन ने अभी फोन कट किया ही था और फोन का स्क्रीन देखे जा रही थी ।जब कुणाल ने कमरे का दरवाजा खोला । हल्की ठंडक में कमरे को बंद करके ही रखती। ऊपर का कमरा यूं ही ज्यादा ठंडा हो जाता था ।फिर खेतों के बीच में घर चारों तरफ से हवा लगती रहती थी ।

    अब तक वह बंद कमरे में बैठी नवास महसूस कर रही थी। पर कुणाल के साथ ही एक ठंडी हवा का झोंका आया और उसके बदन को छूकर गुजर गया।शरीर में सिहरन सी दौड़ गई ।बिना शोल दुपट्टे के, बिना किसी जेवर के ,आंखों में काजल और होठों पर हल्की सी लिपस्टिक जो अब काफी हद तक मिट चुकी थी ।बालों की चोटी बनाई बैठी थी, जिसकी कुछ लटें चेहरे पर झूल रही थी। हवा से बाल हल्के हल्के उड़ रहे थे ,जो उसकी चोटी से निकल गए थे।
    कुणाल को वह एक सुंदर मूर्त की तरह लगी। कोई कलाकृति जिस पर देख नैन नक्श उभरे हुए थे ।अगर कोई कारिगर उसे बनाता तो वह उसकी दिल खोलकर तारीफ करता। पर यह तो ऊपर वाले की कारीगरी थी ।इसमें कुछ कहने सुनने का मतलब ही नहीं रहता। वह तो आला दर्जे का कारीगर है। तारीफ करो या ना करो । वह जो चाहता है ,वह करता है और जैसे चाहता है वैसे ही करता है। न तारिफ का भूखा है, ना ही अगर कोई बिसरा दे तो बुरा मानता है।

    जैस्मिन ,कुणाल को देख रही थी । जो अभी भी दरवाजा खोले खड़ा था। वह शायद पलटना भूल गया और पलक झपकना भी।

    कुणाल का ठंडा सा रवैया देखकर जैस्मिन को इस ठंडे मौसम में और ज्यादा सर्दी लग रही थी ।कुणाल का गर्म मिजाज और उसके प्रति ठंडा सा लेहजा उसे बिल्कुल समझ नहीं आता था। फिर भी अब वह जैसा था ,वैसा ही रहने वाला था। दादी बातों ही बातों में जैस्मिन को इस बारे में कई बार आगाह कर चुकी थी।

    जैस्मिन को समझ नहीं आया ।अब वह क्या करें ?उठाकर शोल ओढ़ ले या फिर कपड़े बदलने चली जाए ।वह कुणाल को नजर अंदाज नहीं कर सकती थी। जैसे अक्सर उसे कुणाल कर जाया करता था ।अभी भी फोन हाथ में था। उसने उसे और मजबूती से जकड़ लिया। वो जस की तस खड़ी थी । अब कुणाल के कदम उसकी ओर बढ़े।

  • 14. मन वैरागी है - Chapter 14

    Words: 1663

    Estimated Reading Time: 10 min

    जैस्मिन नज़रें उठा रही थी । पलकें झुका रही थी। अब वो जाए भी तो कैसे? शायद कुणाल को चेंज करना हो? उसे इंतजार ही करना होगा और कुणाल उसे एकटक देख रहा था। उसने वैसे ही बिना पलटे दरवाजा बंद किया और अपने कदम जैस्मिन की ओर बढ़ा लिए।
    जैस्मिन को यूं देखना उसे अनकंफरटेबल फील करवा रहा था। एक तो वह डरती बहुत थी। फिर कुणाल का मूड भी बदलते मौसम की तरह था ।ठीक रहता रहता कब गर्म हो जाए, पता ही नहीं चलता था? वह कितना ही बचना चाहे कुणाल को मौके मिल ही जाते थे।
    कुणाल उसे निहारता उसके करीब आ गया। वह बालों की चोटी आगे किए बिना दुपट्टे के थी ।कुणाल के करीब खड़ा होने से उसे गर्माहट महसूस हो रही थी ।अब तक ठंडी हवा के झोंकों ने उसकी ठिठुरन बढ़ा रखी थी ।अब कुणाल के शरीर का नवास उसे अच्छा लग रहा था। उसने अभी तक अपना फोन नहीं छोड़ा ।कुणाल ने हाथ आगे बढ़कर उसके हाथों के बीच से फोन निकाल लिया।

    क्या अब वह चेक करेगा कि वह किस से बात कर रही थी?
    पर कुणाल को कोई फर्क नहीं पड़ा। उसने फोन लेकर सोफे पर डाल दिया और जैस्मिन बस से देखते ही रह गई।

    आप.. आप कपड़े बदल लें पहले, मैं बाद में चेंज कर लूंगी.... जैस्मिन ने कुछ अटक कर कुछ डरते हुए कुणाल को यह थोड़े से अल्फाज अदा किये ।

    कुणाल कुछ देर से यूं ही ताकता रहा।
    अब तक क्यों नहीं बदले?

    वो ....फोन आ गया था घर से ...इसलिए नहीं चेंज कर पाई।

    कोई बात नहीं, मैं हेल्प कर देता हूं। कुणाल ने कहा और उसे एकदम अपने करीब कर लिया।

    जी.. वह.. वह... आप.. कुणाल का एक हाथ उसकी कमर पर और एक हाथ उसके सर के पीछे था।

    कुछ कहना चाहती हो? कुणाल की कुरबत जैस्मिन को कुछ बोलने नहीं दे रही थी ।

    मुझे...न .. जैस्मिन ने बस होले से ना में सिर हिला दिया। कुणाल ने लाइट बंद की और जैस्मिन को अपने नजदीक ले आया ।जैस्मिन तो कुणाल के सहर में डूबती-उतरती जा रही थी। जबकि कुणाल बेखुद सा हो गया था।
    यह जैस्मिन का जादू था, कि वह उसे देख कर खुद से बेगाना हो जाता था। वह जो खुद पर सख्ती का लबादा ओढ़े रहता था। जैस्मिन के पास आने के बाद खुद ब खुद उतर जाता। कभी-कभी उसे वह बहुत खोखला लगता ।

    जैस्मिन थी जो कुणाल की सख्तियां झेलती थी ।पर वह जैस्मीन  ही थी ,जिसने कुणाल की मोहब्बत को इस हद तक महसूस किया था ।गिले शिकवे जो कभी उसके मन में उठे ,वह होठों तक कभी आए ही नहीं। उसने खुद में ही समेट लिए थे। या यूं कह दें कि कुणाल ने उसे मौका ही नहीं दिया। वह अगर उसे सख्त होकर कुछ कहता ,तो यह वह कुछ खास लम्हें थे। जहां वह बेहद नरमी और अपनेपन से उसके साथ पेश आता और जैस्मिन की सारी शंकाएं और शुबहा खुद-ब-खुद मिट जाता।

    वह कुणाल की जिंदगी में अहम थी ।खास मुकाम रखती थी। उसकी अहमियत बाकी लोगों से जरा भी कम नहीं थी। बस रिश्ता कुछ ऐसा था कि गांव के माहौल को देखते हुए सिमटा सिमटा रहता ।

    जैस्मिन को उसके प्यार भरे अल्फाजों को सुनने की चाहत थी। जो कुणाल ने अब तक नहीं कहे, पर उसे महसूस करवाता था। हां कभी जताया नहीं, कि वह उसे कितना प्यार करता है ।लेकिन जैस्मिन उन एहसासों को जीती तो पूरी तरह डूब कर और यह कुणाल के प्यार की गहराई थी ।जिसमें वह ना चाहते हुए भी उतर जाती ,कुणाल का साथ पाकर कि यह जो हाथ अब उसने थाम लिया है। तो जिंदगी भर एक दूसरे को साथ चलना है ।एक दूसरे की परछाई बनकर और कुणाल उसे एक ऐसे सफर तक ले जाता ,जिसकी मंजिल ही एक दूसरे की मोहब्बत थी ।

    जैस्मिन को तो कुणाल की हर चीज से इश्क हो गया था। यहां तक की अब उसका यह स्वभाव भी। उसे भाने लगा था ।कितना अनप्रिडिक्टेबल इंसान था वह?! पल में तोला ...पल में माशा.... शायद उसे खुद ही नहीं पता होगा, कि उसका अगला कदम क्या होगा और इसी तरह उसने जैस्मिन को अपना दीवाना बना लिया था। ना चाहते हुए भी उसके पास डोर की तरह खींची चली जाती। और कल रात भी यही हुआ,जब वह उसके प्यार की हदों में सिमट गई थी।

    सुबह एक प्यारी सी मुस्कुराहट के साथ वह उठी । देखा कि उसके कपड़ों की जगह उसने कुणाल का कुर्ता पहन रखा है। जैस्मिन कुछ सोच में पड़ गई ।उसे याद आया कि रात को उसे ठंड लग रही थी। जबकि कुणाल अभी इन सब से बेखबर नींद में सोया था । जैस्मिन ने आसपास देखा और धीरे से बिस्तर से उठने लगी। ताकि कुणाल की नींद ना डिस्टर्ब हो ।फिर भी कुणाल की आंख खुल गई और कुणाल ने उसे कुछ ना समझी में देखा।

    वो ....रात को मुझे ठंड लग रही थी। जैस्मिन को लगा शायद  अपने कुर्त्ते को देखकर इस तरह रिएक्ट कर रहा है।

    ह्म्म ..... कुणाल ने धीरे से कहा और सिर वापस तकिये पर टिका लिया।

    अच्छा लग रहा है कुर्ता तुम पर.... और भी रखे हैं अलमारी में, पहन सकती हो ;लेकिन सिर्फ इस कमरे में। कुणाल ने लेटे हुए आंखें बंद किए हुए ही कहा ।

    जैस्मिन को कुणाल के कहे थोड़े से शब्द बड़े भले से लगे और सुबह खुद को उन कपड़ों में देखकर जो छोटी सी मुस्कुराहट उसके होठों पर उभरी थी। अब वह और गहरी हो गई ।वह बड़ी खुशी के साथ उठी और नीचे जाने के लिए तैयार होने लगी ।कुणाल उसकी एक्टिविटी नोट कर रहा था।

    एक-एक गहना वह अपने जिस्म पर फूलों की तरह सजा रही थी। बड़ा आहिस्ता और सॉफ्ट से.... अपने नाजुक नाजुक हाथों को गहनों की दिशा में मोड़ रही थी, हिला रही थी।उसकी नज़रें भी उन पर थी, मानो वह उसके लिए कितने कीमती हो।

    कभी-कभी उसे वह बहुत प्यारी लगती और मन करता कि उसे कह दे पर फिर खुद को रोक लेता। अगले ही पल नजरे हटा लिया करता कि कहीं उसे उसकी ही नजर ना लग जाए। जैस्मिन ने शॉल उठाया और बाहर निकल गई।

    कुणाल आराम से वापस नींद की वादियों में उतर गया ।कमरे में बेशक अकेला था, पर नींद में जैस्मिन उसके साथ थी। वैसी ही एक मुस्कुराहट उसके होठों पर उभर आई,जैसी जैस्मीन के होंठों पर थी, वह थोड़ी देर पहले का लम्हा याद कर रहा था।


    दादी ने जैस्मिन को देखा। जिसका चेहरा आज खिला-खिला सा था। आंखों में चमक और चेहरे पर खुशी ।उसका रंग रूप निखर कर आ रहा था और दिनों के मुकाबले वह दमक रही थी ।जबकि कल उसकी बुझी बुझी सी आंखें और मायूस चेहरे ने दादी को सोचने पर मजबूर कर दिया था । उन्होंने ठान लिया था कि वह इस बारे में कुणाल से बात करेगी । आज जैस्मिन पर अलग ही असर था।

    लगता है इस पर भी कुणाल की सोहबत का असर हो रहा है। दादी ने बस अपनी गर्दन अफसोस से हिला दी ।धीरे-धीरे मिजाज मिल जाएंगे ,पर किसके और किसके साथ ।यह अभी वक्त ही बताने वाला था । दादी जिस उम्मीद के साथ जैस्मिन को इस घर में लाई थी। वह उम्मीद हकीकत तो बनने वाली थी। पर शायद विपरीत होगी।

    जैस्मिन, कुणाल के लिए चाय लेकर आई थी ।आज वह वापस सोने के मूड में था। इसलिए वो देर से आई ।शायद अब तक उठ गए होंगे..? जैस्मिन जब छत पर आई तो कुणाल मुंडेर के सहारे खड़ा फोन पर बात कर रहा था।

    हां ठीक है ,मैं जल्दी आता हूं।
    हां..... हां बस निकल जाऊंगा थोड़ी देर में .... जैस्मिन ने चाय रखी और कुणाल को देखने लगी ।जो अभी-अभी बस नींद से जागा था।

    उठते ही उसकी आदत बाहर आने की थी। एक बार वह छत पर खड़े होकर चारों तरफ फैलें अपने खेतों को जब तक देखा नहीं लेता ।उसे चैन नहीं मिलता और फिर खुले आसमान के नीचे खड़ा रहना उसे पसंद था। चाहे ठंड हो या गर्मी वह आदी था इन सब चीजों का।
    जैस्मिन ने देखा कि कुणाल ने अपना कुर्ता पहन लिया है और बस वह इतनी ठंड में भी कुर्त्ते पजामे में ही था। जैस्मिन थी जो स्वेटर पहनकर ऊपर शॉल भी ओढ़े हुए थी।

    इस इंसान को ठंड नहीं लगती? कितना बेहिस है! ना सर्दी गर्मी का एहसास है, ना किसी के जज्बातों का ।

    आप नहाए नहीं अब तक...?

    हां बस जा ही रहा था। रेहान का फोन आ गया ।मुझे जल्दी निकलना है ,तुम मेरे कपड़े तैयार कर दो ।

    जी....

    मैं एक बार नीचे जाकर आता हूं। कुणाल को कुछ काम याद आया। वह चाय पीकर पलटा ही था। कि जैस्मिन ने उसका हाथ पकड़ लिया।

    वो ...वह आप नहा कर चले जाइएगा।

    हां बस 2 मिनट में आया। ताऊजी से कुछ बात करनी है। फिर उन्हें भी निकालना है ।कहीं चले ना जाए ... कुणाल थोड़ा जल्दी में था।
    बलराज जी को किसी काम से बाहर जाना था और कुणाल उनके साथ कुछ डिस्कस करना चाहता था ।

    जैस्मिन ने अभी हाथ नहीं छोड़ा। कुणाल ने कुछ सवालिया नजरों से जैस्मिन को देखा और जैस्मिन ने उसकी गर्दन की ओर इशारा किया। जैसे उसे कुछ जताना चाहती हो कुणाल चुपचाप कमरे में चला गया। अब वो नहा कर ही नीचे जा सकता था। एक बार खुद को मिरर में देखा ।अपनी गर्दन को देखकर मुस्कुरा दिया ।जहां सिंदूर की लाली फैली हुई थी।

    और बाहर जैस्मिन अभी उन पलों की कैद में खड़ी थी । इंतजार कर रही थी कि कब कुणाल नहाने के लिए बाथरुम में घुसे और वह अंदर जाकर कमरा समेट सके। उसके कपड़े निकाल सके और कुणाल नहा कर आए उससे पहले बस किसी तरह नीचे चली जाए।

    वो उसकी नजरों से भी बचना चाहती थी। इसीलिए उसके सामने शर्माईं सी सकुचाईं सी खड़ी थी। और उसकी इस हालत का मजा अभी थोड़ी देर पहले कुणाल लेकर गया था ।
    कुणाल को भी जैस्मिन की वह उठती गिरती पलकों की झालर याद आ रही थी।। जिसमें हया थी, अपनापन था ,प्यार था और हक भी।

  • 15. मन वैरागी है - Chapter 15

    Words: 2906

    Estimated Reading Time: 18 min

    जैस्मिन सुबह की बात याद करते हुए कुणाल के कपड़े तह कर रही थी। अब तो कुणाल ,जैस्मिन को अपनी चीजों पर शायद हक देने लगा था। तभी उसने सुबह वह सब कहा ।जैस्मिन के होठों के मुस्कुराहट तो आज जा ही नहीं रही थी। वह नीचे काम करते हुए भी मुस्कुरा रही थी। फिर आसपास के जनों का ख्याल कर अपनी मुस्कान को रोक लेती ।किसी ने देख लिया तो क्या सोचेगा ?अकेले-अकेले क्यों मुस्कुरा रही है?

    सुबह कुणाल के नहाने से पहले जल्दी कपड़े निकाल कर वह नीचे भाग गई थी । उसमें हिम्मत ही नहीं थी। कुणाल का सामना करने की। अब नीचे से उसके कपड़े प्रेस कर लाई थी। ताकि अलमारी में लगा सके। फिर उसे अपना कमरा भी सेट करना था। कुणाल को चीज़ें इधर-उधर बिल्कुल पसंद नहीं थी। उसे सब कुछ परफेक्ट चाहिए होता था ,जैसे वह था। हर काम में पाबंद और ईमानदार।
    इन सब में वह भूल ही गई ।उसे अपनी सहेली को फोन करना था ।कल रात उसी ने तो कहा था ।कि दिन में फ्री होकर फोन करेगी। पर यह कुणाल का कमाल था, कि आज तो वह उसके मीठी यादों के सहारे ही तन्हाई में भी खुश थी ।उसे तो अकेलापन चाहिए था, ताकि वह घंटे-दो बैठकर बस उन लम्हों के बारे में सोचती रहे। जो उसने और कुणाल ने साथ जिए थे।

    कुणाल मुश्किल से एक दो बातें बोलता था और वही बातें जैस्मिन के कानों में शहद की तरह घुलती थी। एक मीठा सा एहसास बनकर ,उसके दिल में उतरती थी ।दोपहर में भी जैस्मिन को जब वक्त मिला। वह अकेले बैठे कुणाल के बारे में सोचती रही। उसे इस हद तक कुणाल से मोहब्बत हो गई थी।  उसका नाम, उसकी चीजें यहां तक उसकी यादों में खोए रहना और जीना ही उसे सब कुछ लगने लगा था ।मानो जिंदगी में और कोई कुछ भी नहीं ।

    क्या यह नई-नई शादी का असर था या फिर मोहब्बत का खुमार....? पर जो भी था, जैस्मिन के लिए अच्छा था । शादी के बाद कुणाल ने जैस्मिन को इतना लाड लडाया भी नहीं ।वह तो हमेशा कठोर और मेच्योर सा आदमी बनकर उसके सामने आया। फिर भी जैस्मिन ने उसमें अपना प्यार ढूंढ लिया था। जैस्मिन जानती थी ।कुछ बातें जो कुणाल को बिल्कुल पसंद नहीं। वह उसके सामने करने से भी बचती। शायद धीरे-धीरे ही सही कुणाल एक दिन यह सख्ती का खोल उतार दे और उसे भी  वैसे ही मोहब्बत करे ,जैसे वह करती है ।

    वह सब कुछ जो कुणाल के दिल में है, और वह उसकी आंखों में झांक कर समझ नहीं पाती। वह शायद जुबान से बोलकर उसे कह दे ।जैस्मिन को एक बार फिर उसकी काली गहरी आंखें याद आ गई ।जो कितनी राजदार है !मानो कुछ पलों तक अगर किसी ने उसकी आंखों में झांक लिया ,तो दिल तक जाने का रास्ता मिल जाए .....पर कुणाल का औरां ही ऐसा था।  कोई भी शख्स ऐसा करने से परहेज़ करें।

    जैस्मिन को यह बात समझ आ गई थी। यही रास्ता है, जो उसे तय करना है। वक्त तो लगेगा । लेकिन हर अच्छे और मुश्किल काम में लगता है ।कोई बात नहीं ,इंतजार करेगी और कोशिश करती रहेगी ।वह एक बार फिर मुस्कुरा दी।
    आज पूरा दिन उसने अपने ख्यालों में ही निकाल दिया। कितनी बातें जो उसके और कुणाल के बीच में हुई थी .....और कितनी बातें जो अभी होनी थी ....और कितनी ही बातें ऐसी थी जो शायद कुणाल का स्वभाव देखते हुए उन दोनों के साथ कभी नहीं होनी थी ।फिर भी जैस्मिन के सोचों का दरिया बहता ही जा रहा था।

    जब इंसान खुद से सोचने समझने की शक्ति को दें। तो उसे बाहर से आकर ब्रेक लगता है। जैस्मिन के साथ यही हुआ। उसकी इस सोचों में गुम दुनिया के बीच में भी कोई आ गया था। और यह वही रिश्ता था, जिसे दुनिया भला बुरा कहती है। नंनद भाभी का रिश्ता ।

    लेकिन जैस्मिन के लिए अब तक सारे रिश्ते अच्छे ही रहे। यह भी उनमें से एक था ।सहेली जैसा...! सहेली से याद आया, उसने आज फिर उसे कॉल नहीं की। कल पक्का करेंगी ।वरना वह तो उसे जान से ही मार देगी ।
    जैस्मिन अब कल्पना और काजल से मुखातिब हो गई।

    चलिए भाभी ,आपको आज पूरी कोठी दिखा कर लाते हैं। कल्पना ने आकर कहा तो जैस्मिन की तंद्रा टूटी ।

    पर...वह तो मैं देख चुकी हूं । जैस्मिन पूरा घर देख चुकी थी। कल्पना और काजल को इस वक्त कैसे याद आया? थोड़ी देर में तो रात होने वाली है।

    हां... लेकिन वह जो नए पौधे लगाए थे। आपकी शादी के गिफ्ट.... जैस्मिन के पौधे !याद आए.... आप को?

    हां..... लेकिन..

    चलिए देख कर आते हैं।वह पानी के हौज के उस साइड है। वह जगह बहुत सुंदर हो गई है भाभी।आपको अच्छा लगेगा देखकर... और कुछ में तो फूल भी आ रहे हैं।

    जैस्मिन भी देखना चाहती थी ।उस दिन जब सुना था, तो उसे बड़ी खुशी सी हुई थी।

    हां.... पर मैं एक बार मां या दादी से पूछ लूं ?

    दादी से पूछ लिया है हमने ।आप चाहो तो बता भी दो।
    वैसे शाम का वक्त है, उधर कोई नहीं होगा ।इसलिए दादी कुछ नहीं कहेंगी ।

    दिनभर उस तरफ काम करने वाले होते थे और वह इलाका थोड़ा घर से बाहर निकल कर भी था ।इसलिए उधर जाना मना था। यह कुणाल के ऑर्डर थे ।कल्पना और काजल भी उधर नहीं जाते थे। तो फिर जैस्मिन का सवाल ही नहीं था ।एक तो वह घर की बहु थी ,वह भी नई नवेली। यूं भी चारदीवारी से बाहर निकलना काम होता था। फिर गांव में अकेले आना जाना होता भी नहीं ।किसी के साथ या ग्रुप में ही आ जा सकते हैं ।खेतों का इलाका था और काम करने वालों का बसर भी उस ओर था। इसलिए कुणाल ऐतिहात ही रखता।

    हां मैं एक बार बता कर आती हूं । जैस्मिन गलती से भी गलती करने से बचती । जिसका बाद में कुणाल को बुरा लगे। इसलिए वह हर काम दादी ,मां, चाची ,ताई इनमें से किसी से पूछ कर ही करती थी।


    वह तीनों अभी नाली के इस तरफ आ गई थी। पास में ही पानी का बड़ा सा हौज था । जिसमें सीढ़ियां बनी हुई थी और नीचे की तरफ जाती थी , अभी आधा था।पूरा भरा हुआ नहीं था। इसलिए सीढ़ियां दिख रही थी। उसके समीप एक छोटा पानी का हौज था ।उसी से नाली निकाली हुई थी। जिससे पानी खेतों तक जाता था । इसी नाली और छोटे हौज से होते हुए पानी बड़े हौज तक जाता था। जब उसमें पानी भरना होता था और अभी पानी बह रहा था। शायद यह डायरेक्ट नहर से आता था। और फसलों में पानी देना होता था ।तो हौज और नाली से होते हुए दिया जाता था।

    जैस्मिन को इन चीजों का नॉलेज नहीं था। वह तो यह सारा बंदोबस्त पहली बार देख रही थी। काजल और कल्पना बारी-बारी उसे कुछ ना कुछ बताते जा रही थी ।

    आपको पता है भाभी ,हमारी लैंग्वेज में इसे डिग्गी या पानी का कुंड कहते हैं ।कल्पना ने उस ओर इशारा करते हुए कहा। जहां जल भराव ज्यादा था और उसे ईंटों से पक्का बनाया हुआ था।

    अच्छा..... जैस्मिन भी उत्सुकता से सब कुछ देखे जा रही थी। मानो उसमें यह सब जानने की कितनी ही जिज्ञासा हो।

    नाली के दोनों तरफ जैस्मिन के पौधे लाइन से लगे हुए थे। पौधों का वह झुरमुट बड़ा प्यारा लग रहा था। इसी तरह लाइन से बड़े पेड़ भी लगे थे जो पहले के थे।शीशम, पीपल, जामुन ,अमरूद अनार और भी फल फूल वाले पौधे और पेड़ थे।
    उस दिन वह इतना ध्यान से नहीं देख पाई थी। आज उसे देखकर बड़ा अच्छा लग रहा था ।अभी दिन था। सूरज पूरा छिपा नहीं था।सूरज की लालिमा अपनी खूबसूरत लाल किरने चारों ओर बिखेरती हुई जमीन में कहीं खो रही थी और उसी तरह सूरज भी धीरे-धीरे नीचे जाता अस्त होने के समीप था। पेड़ों की पतियों पर गिरती सूरज की सुनहरी किरणें सोने सी चमक रही थी।

    प्रकृति, वाकई बहुत खूबसूरत है। शहरी जीवन में वह कभी इतना करीब से इसे महसूस नहीं कर पाई थी । यहां कितना सुकून और आनंद है । यह असल सुंदरता थी।कुदरत की सुंदरता। जिसे फील किया जा सकता था। जैस्मिन भी यह मनोरम दृश्य अपने अंदर मानो हुबहू उतार रही हो।
    मौसम ठंडा था। लेकिन सुहावना लग रहा था। ठंडी बहती बयार  अलग सा असर छोड़ रही थी ।जैस्मिन यह सब देखने में इतना खो गई ।कि उसे पता ही नहीं चला वह कहां खड़ी है? क्या कर रही है?

    काजल ने पानी नाले के उस साइड जंप मार कर कहा।

    भाभी, आप इधर से... ऐसे आ सकती है या फिर उस पुल से आ जाइए ..... उसने नाली के ऊपर बने पुल की ओर इशारा करते हुए कहा। जो आर पार बना था।

    तभी जैस्मिन को रॉकी और रोनी के भोंकने की आवाज आई।जैस्मिन का ध्यान नहीं था। वह चौंक गई और अचानक से उसका पैर फिसल गया। वो नाली के पास खड़ी थी। उसमें गिर गई ।
    बहते पानी से होते हुए छोटे हौज तक पहुंच गई ।कल्पना ने मुंह पर हाथ रख लिया ।वहीं काजल की तो सिटी पिटी गुम हो गई। क्योंकि पीछे कुणाल खड़ा था।

    चलो....... काजल ने कल्पना का हाथ पकड़ते हुए कहा। वह लगभग उसे खींच रही थी ।

    लेकिन भाभी..... काजल भाभी ..... बाहर निकालो उन्हें....कुछ करो....क्या करें... किसी को बुलाओ ...आवाज दो... मां... दादी ...कोई है ?
    कल्पना हड़बड़ा गई ।उसे घबराहट हो रही थी।
    कल्पना को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। वह लगातार चिल्लाए जा रही थी।
    उन्हें कौन बचाएगा.....हे भगवान!

    उन्हें भाई बचा लेंगे, लेकिन हमें कुणाल भैया से कौन बचाएगा? काजल ने पूरी स्थिति से अवगत कराते हुए कुणाल के ओर इशारा किया। और कल्पना को लेकर अंदर भाग गई ।

    बलदेव ताऊ जी ,भी नहीं है आज यहां। अब तो ईश्वर ही रक्षा करेंगे ...!

    दादी को तो अपना पोता ही लाडला है। तो उनकी बहू कितनी ही लाडली होगी?
    बलदेव ताऊजी ही थे ,जो काजल को सबसे ज्यादा लाड लड़ाते थे। उन्हीं का आसरा था ,पर मौके पर वह भी आज यहां नहीं थे। डर से दोनों की हालत खराब हो रही थी।

    कुणाल का ध्यान तो उन दोनों की तरफ था ही नहीं ।रॉकी और रोनी हौज के पास खड़े लगातार भौंक रहे थे। कुणाल ने जैस्मिन को पानी से बाहर निकाला और जल्दी से अपनी लौई में लपेटा।
    जैस्मिन ठंड से कांप रही थी और कुणाल को देखकर डर से भी उसकी थरथराहट ज्यादा बढ़ गई ।कुणाल उसे अंदर लाया और सीधा ऊपर ले गया। ठंडी हवा से बचाना जरूरी था। ठंडा पानी ,ऊपर से रात का मौसम, फिर हवा पर तेज थी ।

    जैस्मिन बाथरूम में चली गई ।जबकि कुणाल ने खुद को ठीक किया। वह भी पूरा गीला हो गया था ।हाथ मुंह धो कर कपड़े बदले और नीचे की तरफ आया।



    ताई जी ,पति का फ़र्ज़ पत्नी को निभाना चाहिए ना ...?अगर पति घर पर ना हो ?
    काजल ने ताई जी के पास आकर कहा। उसकी परेशानी दिख रही थी और घबराहट भी।

    बिल्कुल निभाना चाहिए ,क्या काम पड़ गया तुम दोनों को? ताई जी समझ गई थी। जरूर कोई शरारत करके आई है और अब छुपाने के लिए उनकी आड़ ले रही है।
    छोटी-मोटी बातें तो वह बच्चियों की यूं ही माफ कर देती थी। इस भ्रम में उन्होंने हंस कर पूछा।

    वह सब छोड़िए ताई जी ,बस आप ना अपनी खडूस सास और अपने जल्लाद बेटे से बचा लेना। काजल ने दादी जी की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा।
    जिनकी नजरे बराबर उन सब पर बनी हुई थी।

    मेरी चुगली कर रही हो...! कर लो ,कर लो....तुम भी खुश हो लो। दादी ने बैठे-बैठे कहा ।

    पागल हो गई हो क्या ?क्या अनाप शनाप बोले जा रही हो? मां ने कहा।

    ऐसा क्या कांड कर दिया ?ताई जी ने फिर पूछा।

    तुम्हें बोलने की तमीज नहीं है ,कुछ भी बकोगी। चाची ने  लताड़ा ।

    आप तो बीच में बोलिए ही मत ।आपसे हमें वैसे भी कोई उम्मीद नहीं है।

    ताई जी प्लीज आप हमें बचा लेना....

    बताओ तो सही आखिर बात क्या है ?

    काजल और कल्पना ने सारा किस्सा कह सुनाया ।

    हे भगवान ! जैस्मिन .......ताई जी आगे दौड़ी। उनके पीछे चाची थी ।दादी से तो पल भर भी तख्त पर बैठा ना गया ।जो अब तक उनकी बातें कान लगाकर सुन रही थी। मां जो रसोई में कुछ काम कर रही थी उनके पतीला ही हाथ से गिर गया।

    तुमने निकाला क्यों नहीं?

    कहां है जैस्मिन ?कहती हुई जा रही थी। कि कुणाल ऊपर सीढीयो से आता दिखा ।

    कुणाल ,जैस्मिन ......

    वह ऊपर है, कपड़े बदल रही है ।

    चारों की सांस में सांस आई ।वरना उन्होंने तो कुणाल के आने की बात काजल और कल्पना के मुंह से सुनी ही नहीं।
    जैस्मिन पानी में गिर गई..... यही सुनकर वह बाहर की ओर भाग खड़ी हुई ।

    धेले भर की कल नहीं है तुम में ...?और कल्पना तुम तो समझदार हो.... इसकी बातों में क्यों आ जाती हो.... चाचीजी ने तेज डांट लगाई ।

    ऊपर से मेरा आसरा और लिए बैठी थी कि मैं बचाऊंगी ।अब की ताई ने डांटा।

    हद करती हो काजल.... क्या बचपना है? जरा समझ नहीं है तुम्हारे अंदर .....

    इन्हें तो मैं डंडे से बनाऊंगी अच्छी तरह...... दादी ने कहा।

    वह सब सुन रही थी । दोनों की आंखों में आंसू बहने शुरू हो गए ।सबकी आवाज तेज थी और अभी तो कुणाल ने कुछ भी नहीं कहा था।


    आज कोई घर पर था ही नहीं, वैसे अच्छा हुआ यहां का माहौल देखकर लग रहा था कि और लोग होते तब भी उनके हिस्से में गालियां ही आनी थी ।

    कुणाल उन सब को हटाता कल्पना और काजल के पास गया। जो नीचे गर्दन किये रो रही थी। ज्यादा तेज ना रोए बस ये नाकाम सी कोशिशें जारी थी। उनकी गलती भी बड़ी थी। पर वो कुणाल को देख कर भाग गई थी। जानते थी कि कुणाल निकाल लेगा। वरना वह जैस्मिन को इस तरह थोड़ी ना छोड़ कर भागती। औरतें यह बात समझ ही नहीं रही थी।

    इतनी बड़ी बात नहीं है ।कुछ नहीं हुआ ।चुप हो जाओ। कुणाल ने दोनों को अपने सीने से लगाते हुए कहा।

    कल्पना और काजल दोनों हैरान थी ।जबकि उन्हें तो लगा था कि आज उनकी खैर नहीं।

    कैसा भाई था उनका....! उन से इतना प्यार करता है और वह बेवजह डर रही थी ।
    इससे तो अच्छा होता औरतों को कुछ बताती ही ना ।कुणाल तो वैसे भी बताने वाला नहीं था। उन्हें पता ही नहीं चलता और ना ही इतना बवाल होता।

    वह भाई जानबूझ कर नहीं किया। आपको तो पता है ,भाभी रॉकी और रोनी से डर जाती है। और बस इसी में उनका पैर स्लिप हो गया।

    कोई बात नहीं काजल .....वह ठीक है ।तुम रोओ नहीं। काजल का सर सहलाते हुए कहा।

    चाची ,आप प्लीज चाय बना दीजिएगा।

    हां बिल्कुल ,चाय बना और जैस्मिन से कहना नीचे ना आए। हवा ठंडी चल रही है। कहीं बाहर की हवा लग गई तो बीमार पड़ जाएगी ।कुणाल तुम कमरे में हीटर चलाओ और उसका ध्यान रखो। दादी ने कहा।

    जी, मैं बस चाय लेने आया था ।

    इतने लंबे बाल हैं उसके ....उसे कहना हेयर ड्रायर से सुखा ले। वरना रात भर नहीं सूखेंगे इतनी ठंड है और बताओ ठंडे पानी से भीग गई। दादी हिदायत दे रही थी।।

    बिल्कुल, ध्यान रखना उसका।चाची ने चाय बनाते हुए कहा ।

    और तुम ध्यान रखना उसका नीचे नहीं आए।
    खाना मैं कल्पना काजल के हाथों ऊपर ही भिजवा दूंगी। ताई जी ने कहा।

    अभी कसर है क्या इनकी उसके पास जाने की? दादी ने तख्त पर बैठे-बैठे छड़ी दिखाते हुए कहा।

    बिल्कुल माफी भी तो मंगानी है ।खाना तुम दोनों लेकर जाओगी और सॉरी बोल कर आना ।तुम्हारी वजह से आज हमारी बहू को कुछ हो जाता। मां ने उंगली दिखाते हुए कहा।

    जबकि कुणाल चाय लेकर ऊपर चला गया। रोज जैस्मिन कुणाल के लिए लेकर जाया करती थी। आज कुणाल का दिन था ।वैसे भी वह आते ही सीधा रॉकी रोनी को खोलने के लिए चला गया था ।उसने भी चाय नहीं पी अब तक ।इन सब में ही गड़बड़ हो गई।

    अब तक तो वह नहा कर बाहर निकल गई होगी? कुणाल सोचता हुआ ऊपर आया ।जैस्मिन अपने लंबे गीले बालों को खोलें बैठी थी। वह कंपकंपा रही थी। गर्म पानी से नहाने के बाद भी उसकी ठंडक कम नहीं हुई । उसने एक बार फिर बाल अच्छी तरह पोंछे और पास में पड़ा दूसरा शॉल उठा लिया।

    वो ये कर रही थी और कुणाल कमरे में दाखिल हुआ।
    कुणाल ने उसे कुछ ऐसी निगाहों से देखा, कि जैस्मिन के अंदर कुछ बाकी ना रहा।।
    उसे कुछ कह ना दे? वो तो रो ही देगी। जैस्मिन को अपनी बेज्जती भी फील हो रही थी।

    कुणाल ने चाय का कप जैस्मिन के हाथ में दिया। उसके हाथ कांप रहे थे। फिर भी जैस्मिन ने जैसे तैसे कप संभाला और कुणाल ने दूसरा कप उठा लिया ।

    जैस्मिन को माहौल संगीन लग रहा था ।कि वह कुछ बोले? बोले क्या शायद उस पर बरस ही पड़ेगा? जबकि कुणाल उसे अपनी मौजूदगी भर से ही डरा रहा था ।अभी तक उसने एक लफ्ज़ भी नहीं कहा।।


    एक इंसान जो परिवार की सेवा में खुद को समर्पित कर देना चाहता था। उसे यह आभास हो रहा था, कि वह इस परिवार का हिस्सा है ।इसके साथ-साथ वह उसका भी अभिन्न अंग बन चुकी है। अब तक वह भटकने नहीं देना चाहता था। किसी और राह पर खुद को नहीं देखना चाहता था ।लेकिन जिस राह पर वह चल रहा था, वह भी इस पथ की पंथी थी।

  • 16. मन वैरागी है - Chapter 16

    Words: 2065

    Estimated Reading Time: 13 min

    जैस्मिन कंपकंपाते हाथों से ही चाय पीने की कोशिश कर रही थी। एक तो सर्दी का असर था ।ऊपर से कुणाल की मौजूदगी। उसका खौफ भी कुछ कम नहीं था। आज काम भी वह किया जिसके लिए कुणाल मना करता था ।कल्पना और काजल ने बताया, उधर जाने के लिए कुणाल ने उन पर भी पाबंदी लगा रखी थी। एक तो डिग्गी पूरी खुली थी। ऊपर से चारों ओर बाड़ बंदी भी नहीं थी। पानी स्टोर करने के लिए जगह-जगह कुंड बने हुए थे। जब नहर नहीं चल रही होती, तो खेतों में पानी इनके द्वारा लगाया जाता। फिर वह जगह भी काम करने वाले मजदूरों की थी। उनका आना जाना बना रहता।

    कुणाल आज के वक्त का सही ,लेकिन था उसी माहौल का आदमी ।यह कुछ छोटी-छोटी पाबंदियां गांव में अक्सर देखी जाती है ।खासकर बड़े घरों में और वह थी। उन्हें मानना लाजमी था ।

    तुम्हारे हाथ क्यों कांप रहे हैं ?

    ठंड लग रही है ..... जैस्मिन ने शॉल में लिपटे हुए ही कहा।
    चाची ने अदरक, काली मिर्च, लौंग डालकर चाय बनाई थी ।ताकि सर्दी का असर कम हो सके। उसे पीकर राहत मिल रही थी ।पर डर भी बराबर बना हुआ था ।कुणाल ने अपना कप टेबल पर रखा और उठकर हीटर चालू किया। दादी ने पहले ही कहा था ।उसे यह चलाकर नीचे जाना चाहिए था। अब तक तो कमरा गर्म हो जाता। ऊपर के कमरे यों भी जल्दी ठंडे और गर्म होते हैं ।और वाकई उनका कमरा दिन में गर्म और रात को ठंडा रहता था ।

    थोड़ी देर में रूम का टेंपरेचर ठीक हो जाएगा। कुणाल ने हीटर चला कर कहा।

    जी ...... जैस्मिन ने वैसे ही चाय पीते हुए कहा। कुणाल एक बार और बैठने से पहले बेड की तरफ गया और कंबल उठा लाया ।जैस्मिन सोफे पर सिमटी हुई सी बैठी थी ।उसके पैरों पर कंबल डालते हुए कहा,,,,, इसे अच्छी तरह लपेट लो और यह बाल ज्यादा देर गीले मत रखना। बेहतर होगा, हेयर ड्रायर से सुखा लो ।

    जी ......अब तो वह ध्यान रख रहा था । शायद उसे उसके बीमार होने का डर था ।लेकिन कभी भी उसके कारनामे के लिए उसे डांट मिल सकती थी ।जैस्मिन को जरा ऐतबार नहीं था। कि वह आगे भी उसके साथ ऐसे प्यार से पेश आएगा ।आज तो मन कर रहा था ।दादी के पास नीचे ही सो जाए ।अकेले में तो शायद और खतरा था।
    कुणाल ने चाय पीकर कप टेबल पर रखा। जैस्मिन ने भी अब तक चाय खत्म कर दी थी ।
    अब कुछ राहत महसूस हुई ?हीटर चलते हुए काफी देर हो गई थी ।शायद जैस्मिन को बेहतर लग रहा हो। पर वह तो थरथरा रही थी ,कुणाल की हर एक आवाज पर।

    क्या हुआ ?अभी सर्दी लग रही है ? कुणाल ने नरमी से पूछा।

    जैस्मिन ने सर को एक बार आगे, एक बार पीछे किया। इशारा साफ था कि हां उसे सर्दी लग रही है ।यह सर्दी का असर नहीं था , कुणाल के सर्द रवैये का असर था। और कुछ उससे बचने के लिए यह बहाना भी ठीक लग रहा था।

    कुणाल बस अफसोस में गरदन हिला कर रह गया।इसकी इम्यूनिटी तो बहुत वीक है ।यह यहां सरवाइव कैसे कर पाएगी? लगता है,इसे फूलों की तरह सहेज कर रखना होगा और कहां हम सोचे बैठे हैं कि पूरे घर की जिम्मेदारी संभालेगी....! अब तो कुछ कहने का फायदा भी नहीं ।कुणाल अपना फोन लिए वहीं बैठ रहा और जैस्मीन उसके नीचे जाने का इंतजार कर रही थी।



    दिमाग खराब है तुम दोनों का? तुम इस घर की बेटी हो और जैस्मिन बहू..... एक तो छिपते दिन के वक्त तुम उसे बाहर ले गई ।

    आया कैसे ये ख्याल तुम्हारे मन में....?

    आया तो आया दादी ने कैसे इजाजत दे दी?

    बड़ी हो जाओ काजल .....और कल्पना तुम भी...! तुम्हारी उम्र की है जैस्मीन और इस घर में ब्याह कर आ गई और देखा आते ही जिम्मेदारी संभाल ली ।कुणाल के काम कितने अच्छे से करती है। पूरी लगन के साथ और तुम क्या करने की कोशिश कर रही थी?
    जरा शर्म नहीं आई। थोड़े दिन हुए हैं उसे इस घर में आए हुए.... अगर उसे कुछ हो जाता तो..? इकलौती इकलौती बहू है घर की।

    कुणाल नहीं आता तो कुछ भी हो सकता था?

    वह बहकर बड़े कुंड तक पहुंच जाती तो...?

    मान लो कि तुम उसे बचाने की कोशिश भी करते पर तब क्या उसे निकाल पाते? और अब तो कोई था भी नहीं? यह तो अच्छा हुआ जो कुणाल वक्त पर आ गया.....! ईश्वर का उपकार है !वरना तुम दोनों के भरोसे तो आज इस घर की बहू का कल्याण ही हो जाता ...... वो भी नई नवेली दुल्हन......

    जैस्मिन के घरवाले कैस और कर देते कि उनकी बेटी को मार दिया...... मां ,ताई और चाची किचन में खाना बनाते हुए उन दोनों को कुछ ना कुछ सुना रही थी ।वह दोनों दादी के पास बैठी सुन भी रही थी। फिलहाल दादी को कुछ बोलने की जरूरत नहीं थी। इसलिए चुपचाप तमाशा एंजॉय कर रही थी ।

    इससे अच्छा तो इन्हें हम कुछ बताते ही नहीं ......इन्हें क्या पता चलना था? कुणाल भैया तो वैसे भी कुछ नहीं बताने वाले थे।
    हमारी हिम्मत ही मारी गई थी, जो साहूकार बनने चले थे ।अब देखो.....! कितने ड्रामा कर रही है? हम कौन सा भाभी के दुश्मन है ।उनका जी बदलने के लिए ही ले गए थे ।

    सोचा घुल मिल जाएगी। जल्दी इस माहौल में ढल जाएगी। यूं तो जरा जरा सी बात पर दादी कहती है..... शहर की है, शहर की है, गांव के माहौल को जब तक देखेगी नहीं..... कैसे सीखेगी ?और जब हम कोशिश कर रहे हैं ।तो आप लोगों को प्रॉब्लम हो रही है ।

    सोचा था,जब तक हम हैं..... तब तक उनको एडजस्ट करके जाएंगे इस घर में .....पर नहीं !भलाई का तो जमाना ही नहीं..... काजल कुछ ना कुछ बोल रही थी। जब चाची जी ने पलट कर जवाब मांगा।

    और तुम कहां जा रही हो?

    क्यों हमारी उम्र की है ना जैस्मिन भाभी, जो ब्याह कर इस घर में आई है।तो हमें नहीं जाना बिहा कर किसी के घर में .....

    काजल बेशर्मी की हद होती है ।शर्म करो ।अपनी शादी की बात कर रही हो ?

    हां तो करनी पड़ेगी। अब आप लोगों ने ताने देने भी शुरू कर दिए ।
    हमें नहीं रहना इस घर में..... हम भी अपना घर संभाल लेंगे। बताओ भाभी बस अपनी हो गई और हम गैर हो गए।

    हद होती है मां..... यह लड़की तो दिन-ब-दिन बेशर्म होती जा रही है। चुप करो .....धीरे बोलो ....तुम्हारे ताऊजी और आने वाले होंगे और कुणाल तो घर पर ही है। यूं भी ज्यादा देर अपने कमरे में नहीं रहता, ऊपर है ।आता ही होगा।

    हां तो क्या गलत है ?यह उम्र का ताना किसने दिया था पहले.... और इस घर का ताना ....यह किसने कहा था ?अब जब बराबर की टक्कर मिल रही है ,तो आपके पास कहने को कुछ है नहीं। इसलिए मुझे चुप कराने के लिए उलजलूल बातें कर रही है ।

    मैं हार गई। तुम मुंह बंद करो अपना। खाना बन रहा है ।जैस्मिन के लिए ले जाओ। और खबरदार जो उसे कुछ उल्टा सीधा कहा तो......

    अरे समझती नहीं हो मां आप..... हम भाभी के दुश्मन नहीं है, आपसे ज्यादा प्यारी है भाभी हमें ।हम सच में उनका जी लगाने के लिए वहां लेकर गए थे। हमें क्या पता था यह सब कुछ हो जाएगा ।
    आपको तो समझाने का कोई फायदा ही नहीं ....आपने तो यूं ही अत कर दी.... ये आज कुणाल भैया नहीं होते, तो आप हमें सूली पर ही टंगा देती।
      राम जैसा भाई है मेरा। काजल ने भाई पर अभिमान करते हुए कहा।

    ये राम जैसे भाई के हिस्से में कभी तुम दोनों की वजह से वनवास आएगा। मैं कह रही हूं मां..... यह ना कभी जरूर सीता विछोह का कारण बनेंगी !मेरे कुणाल की जिंदगी में खुशियों पर ग्रहण ना लगा दें कहीं?
    उल्टे सीधे सब तरह के आईडिया इसके ही दिमाग में आते हैं। मंथरा कहीं की?

    हे भगवान !इतना बड़ा इल्जाम .....एक और इल्जाम.... हद होती है। आज तो सच में फील हो रहा है। यह घर अपना है ही नहीं ।मेरा तो अगर रिश्ता भी हुआ रहता तो मैं यह घर आज ही छोड़ कर चली जाती ।

    मां ...यह बेशर्म लड़की पीटेगी आज मेरे हाथों.....

    अब चुप करो तुम मां बेटी। दादी ने अब बीच में बोलना ठीक समझा।वह इतनी देर की किचकिच से परेशान हो गई थी।

    वह तुम्हें समझा रही है। डांट वाली डांट नहीं है। समझाइश वाली डांट है। वो क्या कहते हो तुम लोग आजकल इसे...... हां प्यार वाली डांट ...! दादी ने काजल के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा। वह खुश थी कि दोनों बहने जैस्मिन के साथ जल्दी घुल मिल गई। जैस्मिन उनके साथ खुलने लगी है।और वह उसका मन लगाने के लिए जी तोड़ कोशिश करती। भले ही आज उनसे गलती हुई। पर वह जानबूझकर की हुई गलती नहीं थी ।गलती से गलती होना और बात है ।उसके लिए उनके इरादों पर शक करना सही नहीं।

    किस हरामखोर ने डांट का क्लासिफिकेशन इस तरह किया है ? डांट तो डांट होती है ना दादी ?यह सब तो फुसलाने की बातें हैं।

    देख लीजिए मां ....इसकी जुबान किस तरह चलती है?
    चाचीजी को सच में बहुत गुस्सा आ रहा था। काजल को वह लाख समझाने की कोशिश करती ।वह चुप नहीं होती ।कल्पना थी ।जिसने दो चार बातें अपनी सफाई में बोलकर चुप्पी साध ली ।

    अच्छा ठीक है ।अब इतना भी मत सुनाओ।  यह भी उसके अच्छे के लिए ही लेकर गई थी। चुप हो जाओ। दादी ने अपनी बहू को चुप कराया और तुम फ़िक्र मत करो तुम्हारे लिए भी रिश्ता ढूंढते हैं। दादी के बातचीत काजल से जारी थी।

    हां दादी, जल्दी से खोजिए ,लेकिन मेरी एक बात याद रखना। आपकी ज्वेलरी सारी मेरी है ।काजल कभी नहीं भूलती थी ।

    तुम छड़ी खाओगी .....दादी ने छड़ी उठाकर जमीन पटकी और वह किचन की तरफ भाग गई । अब उन्हें जैस्मिन के लिए खाना भी लेकर जाना था।।

    कुणाल ने फोन चलाते-चलाते एक बार जैस्मिन की ओर देखा। जो कुछ अचंभित सी नजरों से कुणाल को देख रही थी। कुणाल ने अपनी भौंहें उचकाई। जैस्मिन ने ना में गर्दन हिला कर नज़रें फेर ली।

    अब कुछ ठीक लग रहा है तुम्हें?

    जैस्मिन ने गोलमोल सा सिर हिलाया। ठीक तो उसे लग रहा था। पर वह कुणाल के सामने मानना नहीं चाहती थी ।क्या पता वह इस इंतजार में बैठा हो? कि कब वो कहे कि वह ठीक है ,और वह उस पर दाना पानी लेकर चढ़ जाए ।

    ठंड तो लग रही है .... उसने दबे दबे लहजे में कहा। शायद उसे उसकी बात का पूर्ण विश्वास आ जाए।

    अभी वक्त नहीं है ,वरना तुम्हारी सर्दी मैं अच्छे से दूर करता। कुणाल ने कहा और उठ खड़ा हुआ।

    बाहर कल्पना और काजल की आवाज आ रही थी ।

    मतलब.....?

    मतलब ये वक्त नहीं है, ठंड दूर करने का ।वरना ठंड तो तुम्हारे आसपास भी नहीं आती। कुणाल उसे कुछ और समझाना चाहता था। ढंके छुपे लफ्जों में अपनी ख्वाहिश बता रहा था। जबकि जैस्मिन को लग रहा था, कि वह अगर ठीक होती, तो वह अभी ही उसे सुनाने की कसर पूरी कर लेता।

    ह्म्म ..... जी..... जैस्मिन को जरा मतलब समझ नहीं आया।

    कुछ नहीं, तुम्हारे लिए खाना आ रहा है। यहीं खा लेना। दादी ने मना किया है नीचे आने से और कमरे से बाहर मत निकलना। हवा तेज चल रही है ।

    आम्म....बाकी रात पड़ी है ,सुबह तक मतलब मैं तुम्हें अच्छे से समझा दूंगा ।ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं। कुणाल उससे फिर दो मायनी बातें करके जा रहा था ।जो जैस्मिन के सिर के ऊपर से चली गई।

    कुणाल जाने लगा ,फिर पलटा ।और हां.... एक बात और... इन दोनों के सामने कुछ भी बकवास करने की जरूरत नहीं है । कुणाल ने जैस्मिन को कंफ्यूज देखा।तो उसे आगाह करना ही ठीक समझा।कहीं वो उन दोनों के बीच की बातें उनके सामने लेकर बैठ जाए ।और अभी उसके पास समझाने का वक्त नहीं था। जैस्मिन अभी कुणाल की बातों का मतलब नहीं समझ पाई थी। हैरान परेशान सी उसे देख रही थी।

    जी.... जैस्मीन ने नासमझी में कुणाल को देखा लेकिन उसकी बात की हामी भर ली। वह भला उन्हें क्या कहेगी ?यह क्या बोल गया था कुणाल? जैस्मिन के बातें सर के ऊपर से ही चली गई। कुणाल की कुछ बातें उसके ऊपर ऊपर से गुजर जाती थी। शुरू शुरू में वह पलट कर पूछती भी नहीं थी ।पर आजकल वह गौर करने लगी थी।

  • 17. मन वैरागी है - Chapter 17

    Words: 2670

    Estimated Reading Time: 17 min

    ओह भाई! हम तो आपके लिए खाना लाए ही नहीं। सिर्फ हमारा और भाभी का है ।काजल ने कुणाल को बाहर निकलते हुए देख कर कहा।

    नहीं, मैं नीचे जा रहा हूं ।तुम लोग खाओ और दरवाजा बंद कर लेना ।बाहर ठंड ज्यादा है। कुणाल उन्हें हिदायत देकर नीचे चला गया ।जबकि जैस्मिन ,कल्पना और काजल को देख कर थोड़ा साइड हुई उन्हें जगह देने के लिए।

    भाभी, आप ठीक है ?कल्पना ने पूछा।

    हां जी, मैं ठीक हूं।

    आपके बाल सुखा दूं अभी भी गीले लग रहे हैं ।

    नहीं, कोई बात नहीं।हीटर चल रहा है, सूख जाएंगे।

    कोई नहीं ,थोड़ा सिर भी गर्म हो जाएगा।आपकी सर्दी जल्दी चली जाएगी।कल्पना ने हेयर ड्रायर उठा लिया।

    काजल ने वहां खाना रखा और इंतजार करने लगी।

    भाभी, एम सॉरी...... हमें वहां से इस तरह भागना नहीं चाहिए था। पर यकीन मानिए, हम आपको इसलिए वहां नहीं लेकर गए थे। हम तो चाहते थे कि आप हमारे साथ कुछ वक्त बीताए और घर की जगहों से अच्छी तरह परिचित हो जाए।

    जैस्मिन जब पानी में गिरी और उसे कुणाल ने बाहर निकाला। इस बीच और इसके बाद क्या हुआ? उसे तो इल्हम ही नहीं था।

    क्या तुम दोनों वहां से भाग गई थी ?

    काजल ने अपनी आंखें बंद कर ली। क्या जरूरत है उसे बार-बार हरिश्चंद्र बनने की ?जब भाभी को कुछ पता ही नहीं था।

    हां, वह..... कुणाल भैया को देखकर डर गई थी ।सोचा आपको तो वह निकल ही लेंगे। हमारे शामत ना आ जाए ।वह डरी हुई सी बोल रही थी ।
    वैसे भी वह नहीं बताती तो नीचे दादी मां बता देती ।पता तो लग ही जाना था ।

    जैस्मिन को हंसी आ गई। तुम भी अपने भाई से इतना डरती हो?

    उनसे कौन नहीं डरता। उनसे तो पूरा गांव डरता होगा...!
    हमें लगा ,आपके आने के बाद थोड़ी राहत मिलेगी ।पर क्या भाभी आप भी हमारी कैटेगरी में शामिल हो गई?

    इतने डरावने शख्स को देखकर कैसे डर नहीं लगेगा? जैस्मीन ने हंस कर कहा।

    धीरे बोलिए ,दादी ने सुन लिया तो आज आपकी खैर नहीं ।अब तक जो आप पर प्यार बरसाया जा रहा है। फिर ओले बरसेंगे। वह भी तेज गरज और कड़कती बिजलियों के साथ।
    तीन बिजलियां तो अभी-अभी हम दोनों पर गिरी है ,और फिर काजल ने वह सारा किस्सा बताना शुरू किया ।जो जो खातिरदारी उनकी नीचे हुई थी।

    और पता है भाभी ....उनको लग रहा है कि आपके पीहर वाले हम पर केस और कर देंगे ?

    जैस्मिन की तो हंसी ही नहीं रुक रही थी ।थोड़ी देर पहले जितनी चिंतित और दुखियारी बनकर बैठी थी ।कल्पना और काजल ने आकर सारा मूड ठीक कर दिया।

    भाभी आप हमसे नाराज नहीं है ना... एम सॉरी.... इन फैक्ट वी आर सॉरी ....कल्पना ने जैस्मिन के पास बैठते हुए कहा। जैस्मिन ने दोनों के हाथों पर अपने हाथ रख दिए।

    यह बहुत छोटी सी बात है। मेरा ही पैर स्लिप हो गया और फिर कुणाल थे वहां ...इतनी कोई बड़ी बात नहीं ।तुम परेशान नहीं हो ।

    चलिए भाभी, खाना खाते हैं और आपकी सास को पता है क्या लगता है? काजल को रह-रह कर जुमले याद आ रहे थे। वह बताते जा रही थी।

    कह रही थी ,किसी दिन मैं भाई का सीता विछोह कराऊंगी। आप सोचिए ,आपकी बिरहा में भाई का क्या हाल होगा? इमेजिन करो.... भाई देवदास बन बैठे हैं! कहकर काजल ने ठहाका लगाया ।तीनों को हंसी आ रही थी और तरह-तरह के मजाकिया किस्सों की लहर शुरू हो गई। हंसते-हंसते खाना पीना खत्म हुआ।


    कुणाल ये दूध ले जाना और अब तुम ऊपर जाओ। जब तक जाओगे नहीं, वो नीचे नहीं आने वाली ।2 घंटे हो गए। बताओ खाना ना हुआ.... महाभारत हो गई ।जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही । चाची आज चिड़ी चिड़ी सी थी। हर बात का जवाब तानों से दे रही थी ।

    कोई बात नहीं चाची ,आ जाएगी ।वैसे भी मैं भी आप सबके पास बैठा हूं ।कुणाल ने वहीं बैठे-बैठे कहा ।

    चाची ने भी दूध टेबल पर रख दिया और पास में बैठ गई ।वह सब बैठे बातें कर रहे थे ।कुणाल का यह वक्त होता था। जब वह मां , चाची ,ताई, दादी सबके साथ बैठता था। दिन भर में वक्त होता या नहीं । दादी से बातें फिर भी हो जाती पर उन्हें वक्त नहीं होता ।इसलिए यह वक्त उसने उनके लिए फिक्स कर रखा था।

    सच में 2 घंटे हो गए थे और अब नींद भी आ रही थी ।कुणाल था ,जो ऊपर जाने का नाम नहीं ले रहा था।

    चले जाओ बेटा दूध ठंडा हो जाएगा। दादी ने कहा।

    पूरे दिन बाहर था और अब उबासियों पर उबासियां आ रही थी। और तुम लोग भी सो जाओ ।दादी जानती थी। जब तक वह सब नहीं सोएंगे ।कुणाल नहीं जाने वाला और जब तक कुणाल  नहीं जाएगा। वो बेवकूफ लड़कियां बैठी ही रहेंगी ।भले सारी रात निकल जाए।

    भाभी बहुत देर हो गई। अब चलना चाहिए। सब लोग तो सो भी गए होंगे ।

    नहीं थोड़ी देर और बैठे रहो ।अभी आपके भाई भी नहीं आए हैं। जैस्मिन ने हाथ पकड़ लिया। जब कल्पना ने उठाना चाहा।

    हां थोड़ी देर और बैठे हैं ।वैसे भी बात करने में मजा आ रहा है। काजल ने उत्सुकता दिखाते हुए कहा।
    नींद तो जैस्मिन को भी आ रही थी और कल्पना को भी। जैस्मिन इसलिए बैठी थी ,ताकि वह कुणाल का डर भूल सके और कल्पना बेचारी गिल्ट में थी ।आज वैसे भी उन्होंने जैस्मिन के साथ बहुत बुरा कर दिया था। कम से कम अब उनकी बात मानकर इसकी थोड़ी बहुत भर पाई तो कर ही सकती थी।और काजल.... उसकी तो बातें कभी खत्म होती ही नहीं थी ।

    पैरों की आहट हुई और जैस्मिन के कान खड़े हो गए ।कल्पना भी चौकन्नी हो गई ।शायद, भाई आ रहे हैं ।चल काजल, अब नीचे चलते हैं। कल्पना ने झटपट खड़े होते हुए कहा।


    वह अभी उठ ही रही थी। जब कुणाल आया ।

    अरे बैठे रहो, मैं अभी आया और तुम लोग चल दी। बैठो थोड़ी देर मेरे साथ बातें करो।

    पर भाई बहुत देर हो गई। मम्मी डांटेगी ।

    वह डांट कर सो चुकी ।तुम फिकर मत करो ।बैठ जाओ।

    भाई ,नींद भी आ रही है।

    अच्छा ठीक है, फिर जाओ। कुणाल ने भी ज्यादा ज़िद नहीं की। पहले उसे लगा शायद वो उसके आने की वजह से जा रही है। अब अगर वह जाना चाहती है, तो फिर क्या रोकना?


    जैस्मिन, दूध का पीला रंग देखकर हैरान थी ।उसने पहले अपने गिलास ,फिर कुणाल के गिलास की ओर देखा ।दोनों का सेम कलर था ।

    हल्दी है ।

    जी..... हल्दी उसे दिख रही थी।पर चाचीजी ने शायद गलती से डाल दी सब्जी समझकर।

    दूध का रंग देख रही हो ना, कि पीला कैसे हैं ।हल्दी डाली है चाची ने ।इससे सर्दी का असर कम हो जाएगा। एक तो मौसम इतना ठंडा, ऊपर से ठंडे पानी में और गिर पड़ी ।उनकी चिंता लाजमी है ।बेहतर होगा ,गरम-गरम पी लो। तुम्हें आराम मिलेगा। कुणाल ने समझाइश करते हुए कहा।

    फिर आपके दूध में हल्दी क्यों डाली ? गिरी तो मैं थी ना ...? जैस्मिन कुछ भूल रही थी।

    मैं तुम्हारे पीछे पानी में नहीं कूदा....? सिर्फ तुम ही हो उनकी लाडली ...मैं उनका कुछ नहीं ?

    नहीं मेरा वह मतलब नहीं था। बातें बंद.... दूध पियो। कुणाल ने अपना फोन चार्जिंग पर लगाते हुए कहा। वह उसे कितनी देर से देख रहा था। दूध को अजीब अजीब तरीके से देख रही थी। कुणाल ने अपना ग्लास उठा लिया।

    वो तो सच में भूल गई ।कुणाल भी तो ठंडे पानी में उसके पीछे कूद पड़ा था और वह तब से यूं ही घूम रहा है ।कभी चाय लाने नीचे गया ,कभी खाना खाने ,क्या उस पर ठंड वगैरह का असर नहीं होता । लेकिन उससे तो क्या ही पूछे ?यूं भी जैस्मिन के दिन मान अच्छे नहीं चल रहे थे।

    टेस्ट तो अच्छा था। वह पी सकती है ।जैस्मिन घूंट घूंट कर दूध का भर रही थी। जबकि कुणाल की नजरे बराबर उस पर जमी हुई थी।

    कुणाल....

    ह्म्म .....कुणाल ने लेटे हुए ही बस हूंम में जवाब दिया। जैस्मिन उसके बाजू पर सर रख सो रही थी ।कुछ कहना चाहती थी। कुछ पूछना चाहती थी ।डर था, पर हिम्मत करनी पड़ी ।क्योंकि कुणाल ने उसे कुछ भी नहीं कहा ।

    एम सॉरी.......

    किस लिए ....?

    आपको पसंद नहीं है ना, उस तरफ जाना ।और मैं चली गई । जैस्मिन अफसोस से कहा ।

    उसे बुरा लग रहा था। कुणाल की बातें वह दिल से मानती थी। पहले दिन से ही रिश्ता कुछ ऐसा था ।कि वह कुणाल के बहुत इज्जत करती थी ।उसकी बातें टालना उसे गवारा नहीं। कभी-कभी उसकी छोटी बातें पसंद भी नहीं आती ।तब भी वह उन्हें नजर अंदाज नहीं करती थी।

    एक तो उम्र का फर्क था। दूसरा उनका रिश्ता भी पति पत्नी के मान सम्मान का था ।इसीलिए कुणाल उसे छोटी-छोटी बातों को समझाया करता ।कि वह किसी और के सामने ऑकवर्ड मोमेंट का शिकार ना हो। गांव के माहौल में एडजस्ट हो सके ।एक तरह से आज तक उसने उसकी मदद ही की थी। वह नहीं चाहता ,कि वह सबके सामने हंसी का पात्र बने ।

    जो भी था, दोनों का रिश्ता दिल से था ।और यह बातें दिल से दिल तक जानी ही थी ।बस ....जैस्मिन अब तक नहीं समझ पाई थी ।तो कुणाल की बेवजह सख्ती....! क्यों था वह ऐसा? कभी उसकी गहरी ,काली ,राजदार आंखों की सच्चाई जान ही नहीं पाई ।
    इस दिल को उस दिल तक जाने में अभी वक्त लगना था। फिर भी गलती तो उससे हुई थी। इसलिए माफी मांगनी भी बनती थी। जैस्मिन ने थोड़ी झिझक के साथ अपने मन की बात कह दी ।जो उसे शाम से खल रही थी।

    ऐसी भी कोई बात नहीं है ।मैं बस तब मना करता हूं। जब वहां बहुत लोग हो। वह हमारे घर का हिस्सा है। उधर जाने में कोई मनाही नहीं ।तुम जा सकती हो। बस वक्त का ख्याल रखा करो, और खुद का भी । कुणाल ने उसके मन से शंका और डर की वह परत उठा दी थी।

    वह .....मेरा पैर स्लिप हो गया था....

    जानता हूं ,और यह रॉकी ,रोनी से इतना डरने की जरूरत नहीं है ।वह फैमिली मेंबर को कुछ नहीं कहते। कुणाल उसे अपने आगोश में भरे यूं ही लेटे-लेटे समझा रहा था।आज पहली बार शायद दोनों के बीच में इतनी लंबी बात शुरू हुई थी और अभी तो यह दूर तक जानी थी। शायद ....दिल से दिल तक ...या आंखों से आंखों तक...!

    हां लेकिन, अभी मेरी उनसे दोस्ती नहीं हुई है।

    हो जाएगी धीरे-धीरे .....अब सो जाओ ।कुणाल ने कंबल सही करते हुए कहा ।

    एक बात पूछूं आपसे ....?

    हम्म....पूछो .....

    अगर मैं पानी की बड़े वाली डिग्गी में गिर गई होती? तब भी आप मेरे पीछे कूद जाते हैं ?

    हां......

    हां ....!सच में ...!जैस्मिन को बिल्कुल अंदाजा नहीं था। कि कुणाल का रिप्लाई हां में आएगा ।

    इसमें इतनी हैरान होने वाली क्या बात है ?स्विमिंग आती है मुझे।

    ओह ..अच्छा... अगर आपको स्विमिंग नहीं आती होती तो....?

    तो क्या ? कुणाल ने अपनी एक आईब्रो उठाते हुए पूछा।

    तब भी क्या आप मुझे बचाने के लिए कूद जाते?

    तुम बेवकूफ हो ,लेकिन मुझसे इतनी बड़ी बेवकूफी की उम्मीद कैसे कर सकती हो ?

    हैं ..... जैस्मिन को कुणाल के उत्तर पर ताजुब हुआ।

    हैं क्या....? तब मैं कोई और रास्ता ढूंढता तुम्हें बचाने का ।पीछे कूद कर क्या औरों की मुसीबत बढ़ानी थी। इस घर में मेरे सिवा और किसी को स्विमिंग नहीं आती ।

    अच्छा.....पर आपने कहां सीखी ?

    बचपन में नहर में नहाया करते थे ।

    अच्छा.... लेकिन क्या आप मुझे बचा लेते हैं?

    तुम्हें कोई शक है ?

    नहीं ,मैं बस ऐसे ही ......

    मुझे मेरी जिम्मेदारियों का बखूबी एहसास है ।कोई ना कोई जरिया ढूंढ लेता तुम्हें बचाने का। ज्यादा दिमाग मत दौड़ाओ। सो जाओ। कुणाल ने एक बार और कंबल दुरुस्त किया। वह जैस्मिन के बार-बार हिलने और बात करने से इधर-उधर हो रहा था ।

    लेकिन मैं आपसे ..... जैस्मिन ने फिर कुछ कहना शुरू किया।

    तुम क्या चाहती हो कि मैं तुम्हें पूरी रात ना सोने दूं ?

    मुझे ...मैं ..वह मैं ....

    वह क्या ?यह आखरी मौका है, तुम्हारे पास सोने का ।अगर एक हरकत और की तो ....ना मैं सोऊंगा ,ना तुम्हें सोने दूंगा। कुणाल उसे परेशान नहीं करना चाहता था। यूं ही वह शाम के बाद वह उसे उलझी उलझी सी लग रही थी ।अब तो उसने उसकी सारी शंकाएं भी दूर कर दी।पर उसे चैन नहीं था ।

    वह ..मैं...

    कुणाल झटके से उठ खड़ा हुआ और जैस्मिन के ऊपर आ गया।

    यह आप क्या कर रहे हैं ?

    पुश अप करूंगा ।यह पोजीशन तो पुश अप करने की ही है ना?

    पोजीशन तो वाकई वह थी। लेकिन रात में.... वह भी बेड पर.... उसके ऊपर..?

    इस वक्त... वह भी ऐसे ...बेड पर.... जैस्मिन ने हैरान नजरों से देखते हुए कन्फ़्यूज़ होकर कहा।

    बिल्कुल.... इस वक्त... इस तरह ....कुणाल ने कहा और उस पर झुकता चला गया।

    जैस्मिन ने उसके इरादे भांपते हुए जल्दी से कंबल मुंह पर डाल लिया। पर वह कुणाल को नाराज करना अफोर्ड नहीं कर सकती थी ।जल्दी ही खुद हटा भी लिया।
    कुणाल वापस साइड में आकर लेट गया और जैस्मिन एक बार फिर हैरान होकर उसे तकती रही ।
    यह क्या था ?पल-पल बदलता इंसान ...... अभी क्या कह रहा था? और अभी क्या कर रहा है?

    वह आप .....

    कुणाल ने जैस्मिन को अपनी ओर खींच लिया। वह अपना सिर उसके सीने पर रख कर लेटी थी।

    जैस्मिन ......

    जी...... जैस्मिन को अंदेशा था। कहीं कुणाल नाराज ना हो जाए।

    तुम बहुत अच्छी हो । ऐसी ही रहना। इतनी ही प्यारी और मासूम..... कुणाल उसका सिर सहलाते हुए कह रहा था।

    यह क्या था? कुणाल तो आज उसे शॉक पर शॉक दिए जा रहा था ।इतना खुश क्यों था वह आज?इससे पहले कुणाल ने कभी उसकी तारीफ नहीं की।

    वह.. जैस्मिन हैंडल ही नहीं कर पा रही थी। ना कुणाल की नजदीकी और ना कुणाल का इतना नरम रवैया। ये कुणाल की सॉफ्ट साइड थी ।जो आज वह उसे दिखा रहा था ।कुणाल के मन में जैस्मिन के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर बन गया था। जिसमें जैस्मिन की वही मासूम और प्यारी ,भोली भाली सी छवि अंकित थी।

    क्या हुआ ?क्यों परेशान हो?

    जैस्मिन ने बस ना में गर्दन हिला दी ।और कुछ पूछना बाकी नहीं था.... मन में ढेरों सवाल थे। पर वह होठों तक लाए कैसे ?क्या बहाना बनाकर कुणाल से पूछे कि आज वह उस पर इतना प्यार क्यों लूटा रहा है?

    कुणाल ने जैस्मिन के दिल की बातों को जैसे पढ़ लिया हो।

    जैस्मिन, मुझे अच्छा लगा कि तुमने कल्पना और काजल की गलती नहीं, बल्कि उनकी नीयत देखी।

    शाम को जब वह छत पर आया ।तो वह उनके साथ किस तरह हंस बोल कर बातें कर रही थी ।खिलखिला रही थी। कुणाल से छिपा नहीं था ।वह खुश था, कि उसने उन दोनों को लेकर कोई गलत धारणा नहीं बनाई ।उनके इरादों पर संदेह नहीं जताया ।इंसान से गलतियां होना आम बात है। और उन्हें गलतियां मानकर माफ कर देना, अच्छे इंसान की निशानी ।और जैस्मिन वाकई खूबसूरत दिल की मलिका थी।

    जैस्मिन की आंखों में कुणाल के नाम की यह जो चमक थी। उसकी खूबसूरती बढ़ा रही थी। मानो वह जिंदगी की चमक हो। सीधा दिल में उतरती है। उन भूरी आंखों ने, काली आंखों को देखा। जिसमें उसके लिए मान था।इज्जत थी। भरोसा,एतबार प्यार , और कुछ ख्वाहिशें।

    दोनों आंखों में बसे अरमानों का मिलन हो रहा था। कुणाल के मन में एक जल तरंग सा बज उठा। वह जो शाम से उसे परेशान नहीं करना चाहता था । अब खुद को रोक नहीं पाया और जैस्मिन का तो अगली करवाई का सोच लेने भर से ही चेहरा दमक उठा ।आखिर उन काली गहरी राजदार आंखों ने, मासूम भूरी साफ आंखों को बंद होने पर मजबूर कर दिया ।

    जैस्मिन एक बार फिर कुणाल के सहर में डूब गई थी ।कुणाल वह बहुत पहले ही जैस्मिन में खो गया था। बस अब अपने आप को टटोल रहा था। वह दोनों करीब आकर एक दूसरे में अपना आप तक भूल जाते। कि यह उन दोनों का निजी पल था।यहां कभी कोई तीसरा बीच में नहीं होता था।

  • 18. मन वैरागी है - Chapter 18

    Words: 1741

    Estimated Reading Time: 11 min

    सुबह अलार्म बजने से जैस्मिन की नींद टूटी। उसने बैड के कप बोर्ड की ओर हाथ बढ़ाकर फोन उठाया। अलार्म बंद किया और खुद उठने के लिए हरकत में आई ।कुणाल ने उसे वापस अपने ऊपर दबा लिया ।

    सुबह हो गई है । जैस्मिन ने उनींदी से आवाज में कहा। वह रोज सुबह 5:00 बजे उठ जाया करती थी। फिर उसे नहा धोकर तैयार होकर नीचे भी जाना होता था।

    मालूम है ,तुम थोड़ी देर और सो जाओ ।बाहर बहुत ठंड होगी। कुणाल ने वैसे ही आंखें बंद किए हुए कहा ।

    लेकिन.....

    कोई बात नहीं, कभी-कभी लेट चलता है ।6:00 बजे उठ जाना ।

    मैं अलार्म सेट कर देती हूं।

    मैं उठा दूंगा। सो जाओ ।कुणाल ने दोनों हाथों से जकड़े हुए ही कहा ।जैस्मिन तो यूं भी आधी नींद में थी ।वापस कुणाल के सीने पर सिर टिका लिया और एक बार फिर कुणाल के साथ नींद की वादियों में उतर गई।


    जैस्मिन की नींद तब खुली ,जब उसे अपने चेहरे और गर्दन पर कुछ चुभता हुआ सा महसूस हुआ। उसने आंखें खोली तो कुणाल को अपने बहुत नजदीक पाया। वह कभी उसके गालों पर कभी गर्दन पर कभी अपने गाल कभी नाक से सहला रहा था ।

    कुणाल..... मुझे आपकी दाढ़ी चुभ रही है। जैस्मिन ने उसके कंधों पर हाथ रखते हुए आधी नींद में ही कहा। वो उसे दूर करना चाहती थी ।जबकि कुणाल पर अपनी ही मनमानी की धुन सवार थी ।

    इसीलिए तो कर रहा हूं । कुणाल ने अपना काम जारी रखते हुए कहा।

    पर रगड़ लग जाएगी..... जैस्मिन ने अपने गालों और गर्दन को सहलाते हुए कहा।

    कुणाल ने चेहरा उठाकर जैस्मिन की ओर देखा ।जो अभी अपने गालों और गर्दन पर हाथ फेर रही थी। कुणाल ने देखा वहां थोड़ा-थोड़ा लाल हो गया था। वह खुद में मग्न था ।ध्यान ही नहीं दिया कि उसे वाकई रगड़ लग सकती है ।अब वहां हल्की रेडनेस दिख रही थी और जैस्मिन को थोड़ी जलन भी हो रही थी। वह लगातार अपने हाथों से सहलाए जा रही थी। उसका पूरा ध्यान उस ओर ही चला गया।
    जबकि कुणाल को अपने किए पर मलाल हुआ। उसने जल्दी अपने होंठ वहां रख दिए । वो जो थोड़ी देर पहले जानबूझकर दाढ़ी चुभाने के लिए छेड़छाड़ कर रहा था। अब अपने गीले और नरम होठों से उसे आराम पहुंच रहा था।

    जैस्मिन को गुदगुदी हो रही थी ।आज वैसे भी वह लेट थी। और यह क्या तरीका ढूंढा कुणाल ने उसे उठाने का?इससे अच्छा तो वह तभी उठ जाती । उसने देखा 6:00 बज गए थे।अपने दोनों हाथ कुणाल की चौड़ी छाती पर रखे और हल्का सा पुश किया।

    क्या ....?कुणाल ने थोड़ा सा कठोर हो कर कहा। जो वह करना चाह रहा था ,जैस्मिन करने नहीं दे रही थी। इसलिए थोड़ा   चिड़चिड़ा गया ।

    देर हो गई है कुणाल, नीचे जाना है। और अभी तो मैं नहाई भी नहीं । जैस्मिन को बुरा सा लग रहा था। कुणाल को आखिर उसकी हालत पर तरस आ गया।कुणाल ने उसे छोड़ और वापस अपनी जगह पर लेट गया ।जबकि जैस्मिन उसके बाजू से सरकते हुए कंबल से बाहर निकल कर बैड से उतर गई। अब उसका रुख वॉशरूम की ओर था ।और थोड़ा हड़बड़ी भी थी। जल्दी-जल्दी नहा धोकर तैयार होने लगी ।इस जल्द बाजी और हड़बड़ाहट की कश्मकश में आज फिर वह पायल पहनना भूल गई ।

    जैस्मिन..... जैस्मिन ने अभी दरवाजा खोलने के लिए हाथ रखा ही था ।जब कुणाल की आवाज आई ।

    तुम चाय लेकर ऊपर मत आना। मैं नीचे ही आ रहा हूं।

    जी.... जैस्मिन को लगा वो लेट है ।इसलिए कह रहा है। जबकि कुणाल नहीं चाहता था ।कि वह बार-बार खुले छत पर आए। सुबह का ठंडा मौसम ,धूप भी पूरी तरह निकली नहीं थी । कल वैसे भी वो ठंडे पानी में भीग गई। सर्दी होने का यूं भी डर था।जाती हुई ठंड जल्दी पकड़ लेती है।इससे अच्छा है, घर में ही रहे ।कम से कम अंदर का तापमान तो ठीक है।

    जैस्मिन, किचन की तरफ जा रही थी या तो चाय बनी हुई थी या उसे बनानी थी। नॉर्मली वो जब तक आती थी। तब तक चाय बन चुकी होती थी। शायद आज वो लेट है। खत्म हो गई हो ?वैसे भी कुणाल ने नीचे आने के लिए कहा था ।अपने लिए ना सही कुणाल के लिए तो उसे चाय बनानी थी। दादी को कुछ अटपटा लगा ।

    जैस्मिन ....

    जी दादी ....

    यहां आओ .....

    वो दादी के पास आकर खड़ी हो गई ।दादी ने बस अभी-अभी चाय पी थी ।मम्मी, ताई, चाची सब उनके पास बैठे चाय पी रहे थे ।जबकि कल्पना और काजल अभी तक उठी नहीं।


    जैस्मिन को लगा आज देर से उठने के लिए उसे कुछ कहेंगे? जो भी हो.... कितना भी प्यार करते हो.... था तो उसका ससुराल ही.... और फिर इस घर के भी कुछ नियम कायदे थे। लगभग सभी जल्दी उठ जाया करते थे। और यहां के माहौल को देखते हुए कुणाल ने उसे यह हिदायत भी दी थी । कि यह सब रूल उसे फॉलो करने होंगे।पर आज वह उसी की वजह से लेट थी।

    हे भगवान! क्या करूं मैं इस आदमी का...? एक तो यह समझ नहीं आता, फिर कभी समझने लगो तो इसी में उलझ कर रह जाती हूं ।अजीब दुविधा थी ।खैर ,जो भी हो। वह जो भी कहें ....घर की बड़ी थी। उसे सर झुका कर चुपचाप सुनना था। उनकी बात माननी थी ।वह अभी उनके कुछ बोलने का इंतजार कर रही थी। जबकि दादी किसी और ही फिराक में थी।

    उन्होंने उसके पैर की तरफ देखा। जो सुन्ने थे। जैस्मिन के चलने से ही उन्होंने पहचान लिया। आज उन्हें वह छनक सुनाई नहीं दे रही थी जिसे सुनकर वह खुश होती थी। कि इस घर में एक बहू है नई नवेली.... उसके कुणाल की दुल्हन ....जिसे वह दिलो जान से प्यार करती है। उस पर अपनी जान लुटाती है।

    तुम्हारी पाजेब कहां है ?

    वो दादी मैं... मैं आज फिर पहनना भूल गई। जैस्मिन पहले थोड़ा अटकी ,फिर तुरंत बोल गई।उसने हाथों से अपने सर पर रख चुन्नी को ठीक किया ,तो चूड़ियां बोल उठी ।यह खनक ही इस घर की रौनक थी ,और दादी के चेहरे की दमक ।मां, ताई, चाची सबके चेहरे चमक उठे और होठों पर हंसी फैल गई। वो जानती थी, दादी क्या सोच रही है।

    यह कुणाल तुम्हारी पायल रोज निकलवा देता है ,और खुशखबरी अभी तक तुम दोनों ने मुझे कोई दी नहीं...... दादी ने अट्ठाहास करते हुए कहा।

    जैस्मिन को अब जाकर समझ आया कि वह सब लोग उसके पायल ना पहनने की वजह क्या निकालते थे? और रोज उस पर क्यों हंसते थे ? जब जब वह पाजेब पहनना भूल जाती थी।जैस्मिन का वहां खड़ा रहना दुभर हो गया।
    क्या करें दो पीढ़ी का गैप था दादी और उसमें ।ऊपर से घर की सब औरतें वहीं बैठी थी ।

    मां ,आप भी क्यों बेचारी को परेशान कर रही हैं ।अभी तो महीना भर ही हुआ है शादी को।

    हद करती हैं आप भी....अभी ही इसे बांध कर बिठा देंगी ।पहले ताई जी ने फिर मां ने कहा ।

    जैस्मिन को तो कुछ कहना सुनना समझ ही नहीं आया। उससे वहां खड़ा भी नहीं रहा जा रहा था। वह चाय का बहाना करके रसोई में आ गई। जबकि चाची उसके साथ ही आई।

    अरे तो क्या गलत कह रही हूं ?रोज रोज इसकी पायल गायब मिलती है। अब मेरा क्या भरोसा ...भगवान कब उठा लें । पड़ पोते की आस तो करूंगी ना इससे.....

    मां ,कुणाल आता ही होगा। ताई जी ने ध्यान दिलाना चाहा। क्योंकि सुबह-सुबह जैस्मिन की टांग खिंचाई शुरू हो गई थी।

    हां तो उसे भी बोल दूंगी। मैं क्या डरती हूं उससे....

    मां अपना सपना संजोए रहिए।कहते हुए ताई और मां भी उठ खड़े हुए । कुणाल सीढ़ियों से आता दिखा, तो वह बोलते बोलते चुप हो गई। दादी का कोई भरोसा नहीं ।वह उसे कह भी सकती थी ।न जाने क्या-क्या ख्वाब वाले बैठी थी? जबकि उन्हें लगता था, जैस्मिन की अभी ज्यादा उम्र नहीं है।

    इकलौता पोता था उनका । उनकी उम्मीद भी अपनी जगह सही थी। पर वह कोई बंधन इतनी जल्दी अपने बेटे के गले में नहीं डालना चाहती थी। यह उन दोनों की मर्जी होनी चाहिए ।ऐसी बातें अक्सर बच्चों पर दबाव बना जाती है ,और फिर वह सोच समझ कर डिसीजन नहीं ले पाते ।जो भी हो उनकी तरफ से यह छूट उन्हें मिलनी चाहिए कि वह अपनी मर्जी से बेबी प्लान करें।

    जैस्मिन बेटा ,कुणाल के लिए चाय ले जाओ। मां ने अंदर आकर कहा ।

    कैसे सामना करेगी वह? अभी-अभी दादी ने उसे क्या कह कर भेजा था? कोई और दे आता तो क्या हो जाता?

    चाचा जी ने जैस्मिन की मनोदशा समझ ली। लाओ मैं दे आती हूं। तुम खुद के लिए ले लो । चाची ने कुणाल के लिए कप लिया और जैस्मिन को कहते बाहर निकल गई।

    मां, कल्पना और काजल नहीं उठी?

    अभी नहीं, वह रात देर से सोई ना.... उठ जाएंगी ... तुम्हारे साथ ही तो बातें....

    जैस्मिन यह तुम्हारे गले पर क्या हुआ? रगड़ और लालिमा देखकर ताई जी ने पूछा। गाल भी कुछ लाल-लाल थे ।

    वह ...जैस्मिन से तो कुछ कहते ना बना ...जबकि कुणाल जो चाय का आखिरी घूंट भर रहा था। उसकी चाय मानो गले में ही अटक गई ।
    क्या बताए ...यह उसकी करामात थी ।कुणाल को अपनी ज्यादती का सिरे से एहसास हुआ। सच में उसे उसकी स्किन टाइप का ख्याल रखना चाहिए था और वह सुबह अपनी दाढ़ी कितनी बेरहमी से जैस्मिन की स्किन से रगड़ रहा था। वो बस नींद से जगाने के लिए चुभा रहा था। लेकिन उसमें कितना आगे बढ़ गया ,उसे ख्याल ही नहीं रहा।

    वह... मां शायद.... हां ..शायद कल ठंडे पानी की वजह से स्कीन फट गई है ।

    पर बेटा यह तो रगड़ लग रही है.... उन्होंने फिक्रमंदी से कहा।

    वो ऐसे हो जाता है ,हवा भी ठंडी थी ना तो.... जैस्मिन ने जैसे तैसे बहाना बनाया ।जबकि कुणाल का बाहर बैठे रहना मुश्किल हो गया। गलती उसकी ही है, वह उसमें कुछ ज्यादा ही खो गया था और जब तक जैस्मिन ने उसे यह एहसास दिलाया तब तक वह अपनी मनमानी कर चुका था।
    दादी मैं ताऊ जी के पास जा रहा हूं। कुछ जरूरी बात करनी है उनसे।
    कुणाल उठा और जल्दी से बाहर चला गया। जबकि जैस्मिन कल्पना और काजल को उठाने का बहाना करके वहां से नौ-दो ग्यारह हो गई ।
    घर की चारों औरतों ने आज सुबह सुबह दोनों की क्लास लगा डाली थी। जिसमें अल्टीमेटली बेचारी जैस्मिन ही फंस कर रह गई और दोनों बार उसे ही जवाब देना पड़ा।

  • 19. मन वैरागी है - Chapter 19

    Words: 2486

    Estimated Reading Time: 15 min

    वह अभी छत पर खड़ी थी। दोपहर का वक्त था ।दिन अब खुलने लगे थे ।आजकल धूप काफी तेज होती ।फरवरी के आखिरी दिन चल रहे थे ।अब तक जो चारों ओर सरसों ने अपनी पीली आभा बिखेर रखी थी। वह सिमटनी शुरू हो गई थी । जैस्मिन इस वक्त छत पर खड़े होकर खेतों को ही निहार रही थी ।
    उसे भी कुणाल वाली लत लग गई थी। जब भी छत पर आती एक बार चारों ओर फैले खेतों को जरूर देखती। कुणाल के लिए वह उसका अभिमान था। किसानों के उनके अपने खेत ,उनकी जमीन, उनकी मां होती है ।जबकि जैस्मिन के लिए वह प्रकृति का बेहद प्यारा और खूबसूरत तोहफा था। जिसमें वह अक्सर डूब ही जाती थी।

    कितना कुछ बदलता है प्रकृति में...! हर दिन, हर क्षण .....जब वह यहां आई थी, तो इन्होंने धानी चुनर ओढ़ रखी थी ।फिर सरसों में फूल खिले और यह धानी रंग पीले रंग में तब्दील हो गया ।अब जैसे-जैसे फूल सिमट रहे थे और सरसों की बालियां निकल आई थी। यह एक बार फिर अपना हरा रंग दिखाने लगी है ।जैस्मिन इन चीजों को कितना इंजॉय करती ,यह वही जानती थी।प्रकृति ने उसका मन मोह लिया था। यह सब कुणाल के पीछे अच्छा लगने लगा था, या अपना घर होने का गुरुर .....जैस्मिन को नहीं पता ?पर वह नीले आकाश के नीचे खड़ी अब धरा की कहीं पीली ...कहीं हरी.... तो कहीं जमीन की रंग-बिरंगी चादर को देख रही थी। कितना हसीन और अनुपम दृश्य था यह । जैस्मिन मानो इसमें कैद होकर रह गई।


    भाभी मां आपको नीचे बुला रही है .....

    जैस्मिन दोपहर के वक्त कुणाल और खुद के कपड़े ऊपर रखने आई थी। फिर उसे कंबल वगैरा भी धूप लगाने थे ।घंटा हो गया उसे आए ।कमरे की साफ सफाई और चीजें सेट करने में वक्त का पता ही नहीं चला और अब जब नीचे जाने लगी ।तो इस कुदरत नजारे को देखकर बरबस ही उसकी आंखें इस पर ठहर गई। वह तो कहीं खो सी गई। जैस्मिन ने वहां जमी अपनी नज़रें खींच कर हटाई और कल्पना के साथ नीचे चल दी।

    3:00 बज गए थे और यह रोज चाय का वक्त होता था ।सर्दी हो या गर्मी शाम की चाय सब लोग इस वक्त ही पीते थे ।जैस्मिन काम पूछ कर किचन में घुस गई और कल्पना उसका हाथ बंटाने लगी ।काजल बस बातों की ही हुकुमदार थी ।सो इसी मकसद से उन दोनों के पीछे ही आ गई।

    आइए भाभी ,आज आपकी रोकी और रोनी से दोस्ती कर देती हूं ।वह भी अच्छी और पक्के वाली.... फिर आपको इनसे डर नहीं लगेगा ।काजल ने जैस्मिन का हाथ पकड़ते हुए कहा। जो किचन में काम कर रही थी ।कल्पना भी जैस्मिन का हाथ बटा रही थी ।
    जबकि दादी और सब औरतें बाहर बैठी थी। जैस्मिन चाय बना रही थी और वह चाय का इंतजार कर रही थी। दोपहर का वक्त था। धूप भी अच्छी थी ।घर पर कोई नहीं था ,बस औरतें थी।

    चाय पीकर चलते हैं भाभी बाहर ...वैसे भी आप घर के आगे की तरफ कम ही जा पाते हो ... ...
    वो ठिकाना घर के आदमियों का था। बलराज जी तो वहीं रहते। फिर पापा भी अक्सर घर होते तो उन्हीं के पास रहते ।
    चलोगे ना भाभी.....काजल ने उछल कूद करते हुए कहा। वह जैस्मिन को पक्का कर रही थी।जबकि जैस्मिन ने अब तक कोई जवाब नहीं दिया। वह बस उसकी बातें मुस्कुरा कर सुन रही थी।

    कोई जरूरत नहीं है तुम्हें उसके लिए संजीवनी बूटी ढूंढने की..
    ... रॉकी रोनी से दोस्ती अपने आप हो जाएगी। तुम उसके लिए कुछ ना ही करो तो बेहतर है ।पिछले दिनों का अपना कारनामा याद नहीं तुम्हें ....ऊपर से भाग और खड़े हुए ....उस दिन तो कुणाल आ गया था वक्त पर .....आज तो कोई घर पर ही नहीं है ।अगर उन्होंने काट लिया तो इंजेक्शन जैस्मिन को लगाने पड़ेंगे...... तुम्हारा क्या जाता है ? चाची बाहर बैठे ही तुनक कर बोली।

    सब भूल जाए पर वह अपनी बेटी की गलती कैसे भूल सकती थी ? एक तो यह मम्मी कभी शुभ-शुभ नहीं बोल सकती। काजल बड़बड़ाई और बाहर निकली।

    मंथरा मुझे कह रही थी, और काम करते हैं खुद भिड़ाने वाले....
    सारा घर भूल गया उस बात को, पर नहीं आप भूलेंगे ना किसी को भूलने देंगे ।
    मां, चोट लगी हो तो मरहम पट्टी कर उसका इलाज किया जाता है ।बार-बार घाव को कुरेदा नहीं जाता। दादी आप समझाइए ना मम्मी को...... काजल बाहर आकर बोली ।

    काजल के बड़ी-बड़ी बातें सुनकर ताई और मां की तो हंसी छूट गई और दादी बेचारी उसे देखते ही रह गई।
    यह मां बेटी आज फिर उन्हें बीच में ले लेंगे ।घर का बड़ा बुजुर्ग होना भी कोई आसान काम नहीं। हर मामले में बीच में बोलना पड़ता है। अपनी राय, सलाह मशवरा देना पड़ता है। और ऐसे दो जनों में तनातनी हो तो बिचौलिया और बनना पड़ता है। ताकि उनमें सुलह हो जाए।

    जाने दो ना बहू ,अच्छे काम ही तो कर रही है। तुम जाओ बेटा चाय पीकर थोड़ी देर बाहर जाओ।धूप भी अच्छी है, फिर थोड़ा जैस्मिन घर भी अच्छे से देख लेगी। यूं ही घर की बहू का बाहर कम निकालना हो पाता है । दादी काजल की बातों से सहमत थी।

    मां आप फिर इसकी बातों में आ रही है.......

    तुम बहुत डरने लगी हो !इतनी भी शरारती नहीं है। तुम खामखां बेचारी को सुनाती रहती हो ।

    अब वह क्या ही बोलती ।जब दादी ने इजाजत दे दी थी।

    थोड़ी देर बाद वह तीनों घर के बाहर बैठी थी। रॉकी और रॉनी घर के आगे ही रहते हैं। जैस्मिन उन्हें देखकर ही डर जाती थी। हालांकि अब महीना हो गया था और उनसे उनकी जान पहचान भी हो गई थी । वो डरती तो ,वह ज्यादा डरा देते ।वरना कभी उन्होंने उसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं की। काजल उनके साथ खेल रही थी ।कल्पना भी खड़ी खड़ी उन्हें दुलार रही थी ,पुचकार रही थी ।

    जैस्मिन घर की यह साइड आज गौर से देख रही थी ।घर से बाहर जाते और इसमें इंटर होते वक्त ही वह ज्यादातर यहां आई थी ।या कभी ताऊजी और पापा को चाय या कुछ सामान देने के लिए।
    वरना गांव का कोई आदमी या कोई मेहमान आया हुआ ही रहता ।औरतों का यहां कोई काम नहीं था। जैस्मिन ने घर के आगे बराबर की साइड देखा ।जहां बड़ा सा गेराज था और पास में काफी सारी जगह खाली पड़ी थी। खुला मैदान, कुछ पेड़ थे। और ट्रैक्टर वहां थामे हुए थे। कुणाल और ताऊजी आज गाड़ी लेकर गए थे ।इसलिए कुणाल की जीप यही खड़ी थी। कुणाल ज्यादातर जीप का यूज करता। पास में ही कुणाल की बुलेट खड़ी थी ।रेहान और कुणाल अक्सर दोनों बुलेट पर ही घूमते थे।

    और उससे आगे की साइड जो पीछे बाड़े से जुड़ी हुई थी। वहां सब मशीनरी थी ।जो खेतों में काम आती है। जैस्मिन देखते देखते थोड़ा आगे बढ़ गई ।कितना बड़ा घर था उसका ..
    और अब यह उसका था ।जब भी वह इस बारे में सोचती तो फूल कर कूपा हो जाती थी ।यह सब कुणाल की वजह से उसे मिला था।
    इतने सारे रिश्ते.... इतना बड़ा परिवार.... इतना बड़ा घर... यह जमीन जायदाद ....जो सब उसके हिस्से में आई थी। यह सब बस उस एक इंसान की वजह से थी ।जो अब उसका था। जैस्मिन को अपनी किस्मत पर नाज़ हुआ और साथ ही साथ कुणाल पर भी ।

    आज क्या कुछ नहीं था उसकी जिंदगी में ,उसके नाम भर होने से उसकी जिंदगी आबाद थी, रोशन थी।

    भाभी ,आपको कभी-कभी वह आदमी बोर नहीं लगता? काजल ने उन दोनों के साथ खेलते हुए कहा ।

    जैस्मिन अचरज में पड़ गई ।कौन.... किसकी बात कर रही थी वह ?

    भाभी वह कुणाल भैया की बात कर रही है ।आप बिल्कुल ध्यान नहीं देना उस पर। उस दिन तो वह आदमी राम जैसा था। आज इसे बोर लगने लगा ।

    वह बिल्कुल मचलते समुद्र सी थी। जिसमें भांति भांति की लहरें उठती रहती थी ।कभी एक बात पर टिकती ही नहीं। कहां जैस्मिन मन ही मन कुणाल को दुआओं में याद कर रही थी और कहां काजल ने उसे यह कह दिया था ।
    वह भला कहां से बोर है ?हालांकि शुरू-शुरू में उसके विचार भी वही थे ।पर उन लम्हों को सिर्फ जैस्मिन ने ही जिया था ।जो प्यार भरे पल कुणाल ने उसकी झोली में डाले थे ।अब यह साइड तो उनके भाई की वह बहनों को नहीं बता सकती थी। कि वह सच में बोर था या नहीं।

    जैस्मिन बस उसकी इस बचकानी सी बात पर मुस्कुरा दी। यह मुस्कुराहट और फैल गई जब गाड़ी आती दिखी । कुणाल घर आ गया था। उसे कुणाल की याद आ रही थी।अभी तो यह सब बातें हैं उसके जहन में आई और वह बस उसे एक झलक देखना चाहती थी। अरेंज मैरिज में, नई-नई शादी में यह सब एहसास अक्सर ऊभर आते हैं। और अगर संयुक्त परिवार हो तो बस अपने सोलमेट को एक बार देख लेने की चाहत अक्सर सिर उठाती रहती है और वह नए शादीशुदा जोड़े उसमें संतुष्ट भी हो जाते हैं।

    जैस्मिन भी ऐसे ही सिलसिले से गुजर रही थी।कार जल्द ही आकर घर के आगे थम गई ।कुणाल ड्राइविंग सीट से उतरा । जैस्मिन की आंखों को मानो ठंडक सी मिल गई हो और दिल को राहत पहुंची। बाकी कुछ उसने नोटिस किया ही नहीं ।कुणाल को नजर भर देखा और उसकी सूरत को ज्यों का त्यों दिल में बसा लिया ।कुणाल ने बस एक नजर उसे देखकर नजरें घुमा ली। जैस्मिन भी जगह और स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ थी ।इसलिए वह जल्दी हालात की जद से बाहर आई।

    आगे की सीट से ही ताऊजी बाहर निकले ।पापा आंखें बंद किए पीछे की सीट पर बैठे थे। तीनों के चेहरे के हाव-भाव कुछ बिगड़े हुए थे ।थोड़ी मायूसी ,थोड़ी खामोशी दरमियां थी ।किसी बात की टेंशन या कोई परेशानी में थे शायद.....! जैस्मिन अंदर आ गई। जबकि कल्पना और काजल उनके लिए पानी लेकर गई । कुणाल बाहर ही रखे मोढे पर बैठ गया और ताऊजी चारपाई पर ,पापा ने चेयर उठाई और बैठते हुए पानी का गिलास थाम लिया। किसी के गले से नहीं उतर रहा था पानी का एक घूंट भी ।

    कल्पना और काजल ने कुछ नहीं कहा। वह अंदर चाय लेने चली आई, तब तक जैस्मिन ने चाय बनाकर कप में भर दी थी। दादी भी उनके पीछे-पीछे बाहर चली गई।

    क्या हुआ होगा? हमेशा 10 -15 दिन में एक बार यह साथ में कहीं जाते और फिर मुंह लटका कर वापस आ जाते। कुणाल के साथ उसका रिश्ता अब खुलने लगा था। पर इतना भी नहीं कि वह उससे खुलकर कुछ पूछ पाती या बातें कर पाती ।अंडरस्टैंडिंग बन रही थी, धीरे-धीरे आगे भी बढ़ रही थी। पर फिर भी एक लेवल जो दोनों के बीच में बना हुआ था, वह कायम था ।

    वह जान पहचान कम होने का हो, या उम्र का ,सोच का फर्क हो या आदमी और औरत का ।उसे नहीं मालूम पर कुछ ऐसा था। जो चाहकर भी जैस्मिन उससे पूछ नहीं पाती ।कुणाल के सख्त रवैया ने उसे थोड़ा लिमिट में रहने पर मजबूर कर दिया। था । वह अक्सर नए-नए लोगों से कम ही खुल पाती थी। ऊपर से कुणाल की सख्ती ने दोनों के बीच में एक अनदेखी दीवार भी खड़ी कर रखी थी। वो भी इस लिमिट को क्रॉस नहीं कर पाई। कुणाल थोड़ा था ही अंतर्मुखी ।वह आगे बढ़कर पहले उसे कुछ नहीं बताता था ।जैस्मिन बस सोच कर ही रह गई।


    जैस्मिन बेटा, तुम तैयार हो जाओ। कुणाल तुम्हें मंदिर ले जाएगा। बहू ,तुम पूजा का सामान तैयार करो। दादी ने अंदर आकर कहा। वह अभी रसोई के दरवाजे पर खड़ी थी। चाची और जैस्मिन किचन संभाल रहे थे ।शाम के खाने की तैयारी में व्यस्त थे ।जबकि मां और ताई जी बाहर का काम देख रही थी।

    जी मां , चाची जी को सब मालूम था ।इसलिए उन्होंने आगे कोई सवाल जवाब नहीं किया। जबकि जैस्मिन बस सोचती ही रह गई। इस तरह अचानक मंदिर क्यों? क्या पूछे? जरूरी ही होगा।

    दादी अपने तीनों बच्चों को बाहर देख कर आई थी। जो परेशान बैठे थे। जमीन को लेकर कोई विवाद था। जो कोर्ट में चल रहा था। अदालत की तरफ से मिलती तारीख पर तारीख और मसले का कोई हल न मिल पाने की वजह से हर बार यही होता। उनके चेहरे उतर जाते ।अपनी ही जमीन उन्हें हाथ से जाती दिख रही थी।

    यह नहीं था कि उनके पास इसके इसे साबित करने के प्रूफ नहीं थे। बल्कि सामने जो पक्ष था। वह निर्दई और निर्मम किस्म का था ।वह जमीन के लिए किसी भी हद तक जा सकता था। और कुणाल को इसी बात की टेंशन थी। अपनों की परवाह थी। कि कहीं कुछ गलत ना हो जाए। जितना जल्दी और शांति से यह मसला हल हो जाए ।बेहतर था। पर हर बार उन्हें मायूसी  ही हाथ आती ।कभी तारीखों में केस उलझ जाता ,तो कभी उस इंसान की कुटिल नीतियों की वजह से कुणाल परेशान हो जाता।

    जैस्मिन तैयार होकर आई। दादी ने पूजा का सामान थमाते हुए कहा ,,,,,,हमारी जमीन हमारी मां है। मातृभूमि....है जैस्मीन।इसे यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता ।कैस कुछ उलझ कर रह गया है। तुम दिल से मन्नत करना, कि यह परेशानी जल्दी दूर हो। ताकि तुम्हारे पति को भी संतोष मिले ।वरना वह यूं ही इसके पीछे ख्वार होता रहेगा ।दादी ने जैस्मिन को समझाते हुए कहा। जैस्मिन में हां में गर्दन हिलाई और बाहर चली आई।

    दादी ने कुणाल को बाहर ही रुकने के लिए कहा था। जो अभी भी बाहर मुढे पर बैठा उसका इंतजार कर रहा था ।

    काजल, बाईक की चाबी लेकर आना। कुणाल ने मोढ़े पर बैठे हुए ही गाड़ी की चाबियां हाथ में उछालते हुए कहा ।काजल और कल्पना ,दादी ,जैस्मिन सब साथ ही बाहर आ रहे थे। काजल चाबी के लिए मुड़ी और जैस्मिन की सांस अटक गई।

    क्या वह उसे बाइक पर लेकर जाएगा? यह गाड़ी किस लिए है..... इससे अच्छा तो जीप में ही ले जाता! कैसे संभालेगी वह सब.... यह पूजा का सामान.... हाथ में टोकरी देखते हुए सोचा। ऊपर से यह सलवार कमीज और सर पर दुपट्टा हवा से उड़ नहीं जाएगा । उफ़....!जैस्मिन ने कंफ्यूज सी नजरों से कुणाल को देखा। जबकि कुणाल बेपरवाह बैठा था। मानो उसे कुछ समझ आया ही नहीं। जैस्मिन अभी इल्तजाई नजरों से देख रही थी। दादी ,ताऊजी ,पापा कोई तो कुछ बोले। क्या वह अपनी नई नवेली दुल्हन को बुलेट पर लेकर जाएगा?

    मुझे नहीं यह फटफटिया पसंद..... जैस्मिन ने मन ही मन झल्ला कर कहा ।पर सुनने वाला कोई नहीं था। और वह मन मसोस कर रह गई ।जैस्मिन के चेहरे पर आते जाते भाव को कुणाल ने बखूबी गौर किया था ।काजल ने चाबी लाकर कुणाल के हाथों में थमा दी । कुणाल ने गाड़ी की चाबियां काजल के हाथों में दे दी।ताकि वह जाते वक्त अंदर ले जाए ।सब इधर-उधर हो गए। बस जैस्मिन थी ।जो अब तक उलझे हुए सी ही बुलेट पास खड़ी थी ।

    बैठो, क्या कोई मुहूर्त निकलवाना पड़ेगा ?कुणाल ने उसे न बैठते देखकर कहा।

  • 20. मन वैरागी है - Chapter 20

    Words: 2838

    Estimated Reading Time: 18 min

    कुणाल और जैस्मिन मंदिर में हाथ जोड़े भगवान की मूर्ति के आगे खड़े थे। कुणाल ने अपनी आंखें खोली तो जैस्मिन को अभी मन्नत में मग्न देखा ।वह हाथ जोड़े ,आंखें बंद किए, सिर को झुकाए, ऐसी मुद्रा में खड़ी थी। कुणाल को वह खुद एक देवी सी प्रतीत हो रही थी। मानो कोई हसीन मूरत हो ।
    कुणाल ने खुद को बहुत रोकना चाहा। लेकिन वह बेखुद हो रहा था। जैस्मिन पहले दिन से उसके बंजर सी जमीन पर बारिश की बूंदों सी बरसी थी।

    जैस्मिन ,कुणाल की सब परेशानियां दूर होने की कामना कर रही थी । कुणाल ने उसे प्रार्थना में लीन देखा तो उसके मन में दबे जज्बे ने हाथ पैर मारना शुरू कर दिया। बचपन में उसने दादी से किस्सों कहानियों में सुना था कि औरत के कई रूप होते हैं। वह लक्ष्मी, सरस्वती, सीता, पार्वती, अन्नपूर्णा , दुर्गा, काली कई रूपों में विद्यमान रहती है।कहते हैं कि औरत गृह लक्ष्मी होती है। वाकई वो लक्ष्मी का रूप होती है। जब वह एक घर को अपना घर मानकर, सब कुछ उस घर और घर में रहने वाले व्यक्तियों के नाम न्योछावर कर देती है।

    जब वह किसी मुद्दे पर राय देती है ।तो ज्ञान की देवी सरस्वती कहलाती है। कुणाल ने यह कई बार महसूस किया था। जब भी वह दादी से किसी बात पर मशवरा करता। वह हमेशा उसे प्यार और अपनेपन से सही राय बताती। उसे समझाने का प्रयास करती।उसके क्रोध को शांत करती । आदमी एक बार सब्र छोड़कर अपना आपा खो भी बैठे।तब भी औरत धीरज से काम लेती है।कितनी भी मुश्किल आए ,वह धैर्य का सिरा थामें रहती है ।और अपनी दादी की पूरी जिंदगी कुणाल के लिए इसका एक जीता जागता उदाहरण था। कि उन्होंने कभी भी सब्र का आंचल नहीं छोड़ा।
    घर संभालने में औरतों का कोई सानी नहीं। बल्कि घर ही उनकी मौजूदगी में बनते हैं। नहीं तो मकान ही कहलाते हैं।

    उसने मां , चाची ,ताई को अन्नपूर्णा के रूप में देखा। जब वह उसकी भूख का ख्याल करती ।उसे खाना ड्यूटी समझ कर नहीं बल्कि प्रेम से खिलानेवाली, चाहे वह दोपहर में आए या आधी रात को। हमेशा उन्हें इस बात का ख्याल रहता कि वह कुणाल को गरमा गरम खाना परोसना है। वो खुद भूखा रह लेगी, लेकिन घर के हर सदस्य की भूख का ख्याल पहले करती है।

    और यह गुण अब जैस्मिन में दिखने शुरू हो गए थे। जब वह उसके लिए आधी रात तक भी इंतजार कर लेती थी। वाकई उसने एक औरत में कई कई रूप देखे हैं ।नवदुर्गा यूं ही नहीं कहलाती। वह इनकी हकदार है। वह काबिलियत और सलाहियत रखती हैं इस उपनाम की ,इस पदवी को उनसे बेहतर और कोई सुशोभित नहीं कर सकता। वह जमीन पर शक्ति का प्रतिरूप होती है।

    यह घर परिवार से मिले संस्कार होते हैं। जब लड़के उनकी इज्जत करना सीखते हैं ।उन्हें वह मान सम्मान और स्थान देते हैं। जिसका वो अधिकार रखती है ।और जैसे-जैसे वह जैस्मिन को जान रहा था। वह उसे हर पायदान पर खरी उतरती नजर आई । जैस्मिन पूरी तरह कुणाल के मयार पर फिट बैठती थी। कुछ बातें जिनसे वह अब भी अनजान थी। पर वह धीरे-धीरे रूबरू हो रही थी ।

    एक गृहिणी का कार्य कितना दुष्कर होता है। वह कितने सारे काम एक साथ कर लेती। एक यह भी वजह है कि उसका वेतन तय नहीं किया जा सकता। यदि दे तो भी किस किस कार्य के लिए दे। और उस प्रेम का क्या जो सब पर न्योछावर करती है।यह सब निस्वार्थ होता है। बदले में खुशियों की चाहत होती है वह भी सबके लिए।
    जैस्मिन ने भी घर बसाने में सुकून चाहा था। एक भरा पूरा परिवार और उसके मन को समझने वाला उसका हमकदम,हमराह, हमसफर। जो भी नाम दें दुनिया। लेकिन उसी की तरह उसके प्रति वफादार.....बस ये ही चाहत थी।

    भले ही कुणाल ने कठोरता का आवरण ओढ़ कर जैस्मिन को एक हद तक ही अपने नजदीक आने दिया। लेकिन जैस्मिन का कभी अपमान नहीं किया। वह उसकी सहायता ही करता था। और जो पर्दे अब तक उन दोनों के बीच में थे। वह आवरण भी धीरे-धीरे हटते जा रहे थे। एक दिन आएगा ,जब वह अपने मन के सब परते उसके सामने खोल सकेगा। वो द्वंद, वो पीड़ा जिससे वह अब तक अकेले जूझता आया है। उनकी अगर कोई दवा थी ,तो वह जैस्मीन ही थी। कुणाल को भी अपना दुख दर्द बांटने वाला मिल गया था। वह उसके साथ सुख-दुख सांझा कर सकता था।यह साझेदारी ही इस रिश्ते को अहम बनाती है।

    कुणाल ने अब इन बातों को समझना शुरू कर दिया था। वह बस अपनी किस्मत पर निहाल हो सकता था ।जो उसे देखकर हो भी रहा था।वह कितना तल्लीन थी, ईश्वर की भक्ति में ।मानो वो ही एकमात्र सहारा हो ।अपना सब कुछ उन्हें सौंप रही थी ।उस समर्पण , प्रेम , विश्वास और समर्पित मुद्रा ने कुणाल का मन मोह लिया।

    जब हम ईश्वर के आगे आंखें बंद कर हाथ जोड़ खड़े होते हैं। वह एक पवित्रता दिखलाता है ।केवल मन को शांत नहीं करते बल्कि यह भी बतलाते है। कि हम चाहे जितने ही बड़े हो जाएं। ऊपर उठ जाए। हमसे भी ऊपर कोई बैठा है ।जिसके हाथों में हम सब की बागडोर हैं ।अहंकार को अगर खत्म करना है। तो हर इंसान को दिन में एक बार कम से कम अपने ईष्ट को जरूर याद करना चाहिए। तब हमें समझ आता है। कि हम कहां हैं? क्या कर रहे हैं ?और कितना कर सकते हैं? और कितना नहीं?

    पुजारी जी ने पूजा का सामान रख बास्केट वापस ला दी। जैस्मिन ने भी हाथ जोड़ते हुए एक बार और ईश्वर को नमन कर आंखें खोल ली ।मंदिर से लौटते वक्त उन्होंने पुजारी जी के पांव छुए । वो सीढ़ियों पर आकर एक बार और मुड़ी । झुक कर प्रणाम किया । सीढ़ियां उतरने लगी। कुणाल ने यह सब ध्यान से देखा ।वह आया, उसने हाथ जोड़ पंडित जी को प्रणाम किया और ईश्वर की वंदना की। वापस मुड़ते वक्त सीढ़ियों पर एक बार झुका और बाहर निकल आया ।जबकि जैस्मिन ने कितनी देर खुद को पूजा में डुबाए रखा। दादी की पसंद वाकई अच्छी थी।वह अपने संस्कार नहीं भूली।

    आज एक मलाल जागा वो अपने आप में खोकर,जैस्मिन के साथ अन्याय कर गया था।उसे नए वातावरण में ढलने के लिए कुणाल की ज़रूरत थी।पर वह अभी कैसे कहता कुणाल को जैस्मिन की ज्यादा जरूरत है। कुछ पनप चुका था, कुछ पनप रहा था। प्यार और विश्वास दोनों ही इस रिश्ते की नींव है।समय तो लगना था।

    मंदिर थोड़ा ऊंचाई पर बना था। कम से कम 30-40 सीढ़ियां होगी। जैस्मिन उतरते हुए आसपास फैलें गांव को देख रही थी। कुछ घर पास में थे। कहीं किसी के खेत थे। कहीं किसी के पशु बंधे हुए थे ।शाम की गोधूलि बेला थी। फरवरी के दिन खुलने लगते हैं ।हालांकि सुबह सवेरे ठंड रहती है, और गांव की ठंडक भी अच्छी खासी थी। पर फिर भी यह दृश्य मनमोहक था। वह सब कुछ पहली बार देख रही थी ।शादी के बाद एक बार पहले भी आई थी। पर तब सब साथ में थे और सुबह का वक्त था ।इस वक्त तो यह सब और भी सुहावना लग रहा था।

    अचानक से उसका पैर एक सीढ़ी छोड़ कर रखा गया। वह गड़बड़ा गई ।कुणाल ने आगे हाथ बढ़ाकर उसकी बांह थाम ली ।और जल्दी उसे दूसरे हाथ से सहारा दिया। यह स्पर्श भी अद्भुत था । जैस्मिन ने जल्दी खुद को संभाल कि वह अभी घर से बाहर है ।और फिर मंदिर में ऊंचाई पर खड़े हैं।

    तुम ठीक हो?

    जी ....

    आराम से सामने देख कर उतरो ।कुणाल ने कहा और आगे बढ़ चला ।जैस्मिन भी एहतियात बरतती सीढ़ियां उतर आई।

    बुलेट के पास आकर उसका फिर दिमाग खराब हो गया। कितनी मुश्किल से आई थी वह? आते वक्त कभी बास्केट संभालती ,कभी सिर पर रखे अपने दुपट्टे को, फिर बाइक पर ठंड भी लगनी थी। इसलिए शोल लेकर आई थी और कुणाल था ।जैसे इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ा । वो तो उसके हालात के मजे लिए जा रहा था ।

    कैसे बैठेगी वो?हल्का-हल्का अंधेरा भी होने को आया था ।आते वक्त तो राम राम करके पहुंच गई ।जाते वक्त मन में फिर वही खटका ।एक बार मन में ईश्वर की विनती की। जैसे आई, वैसे डोलते डोलते सही सलामत पहुंच भी जाएगी ।

    क्या हुआ? डर लग रहा है ?

    नहीं तो,

    तो फिर बैठ क्यों नहीं रही? आते वक्त कंफरटेबली आई थी ना?

    जैस्मिन को कुणाल पर गुस्सा आ रहा था। उनके रिश्ते में वह अभी इतनी ओपन नहीं हुई कि खुलकर उससे नाराजगी जता सके ।लेकिन वह भला कहां कंफर्टेबल थी ?बार-बार सर पर रख चुन्नी संभाल रही थी । अगर यह सिर पर से उड़ गई तो गांव घर में बातें होंगी कि फालना की बहू ने सिर पर दुपट्टा भी नहीं रखा हुआ था।
    अब कुणाल उससे पूछ रहा है, कि वह आराम से है? यह तो उसका खुलेआम मजाक उड़ाया जा रहा था।

    अच्छी तरह पकड़ कर बैठो ।कुणाल ने कहा और मुस्कुरा दिया। वो जानबूझकर जैस्मिन को तंग कर रहा था ।आज दिन में जो भी हुआ ,उससे उसका मूड खराब था ।एक जैस्मिन थी जिस पर वह अपनी थोड़ी बहुत मनमानी कर सुकून पा जाता था।  उसे उलझन में डालना पसंद था।

    एक बात कहूं आपसे?

    हां कहो .....

    आप गाड़ी भी तो लेकर आ सकते थे?

    क्यों बाइक में क्या प्रॉब्लम है?

    नहीं, प्रॉब्लम कोई नहीं है। मैं साथ में थी तो .....

    तुम्हें बाइक पर बैठना नहीं आता?

    आता है, पर गांव में ...मुझे तो बार-बार दुपट्टा सही करना पड़ रहा है।

    गांव की औरतों से सीखो कुछ.... वह कैसे मैनेज करती है! यहां तो यह हर घर की कहानी है।
    कुणाल बोल रहा था। एक बाइक पास से गुजरी। जिस पर पीछे औरत बैठी हुई थी और दुपट्टा इस तरह सेट किया हुआ था कि औरत को मानो कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा। जबकि जैस्मिन संभाल संभाल कर थक गई थी।

    देखो...इसे ,सीखो कुछ .... कितना आराम से बैठी है !आखिर तुम्हें भी तो इन सब की आदत होनी चाहिए। कभी ना कभी तो सीखना पड़ेगा। बेहतर होगा अभी से शुरुआत करो। कुणाल उसे जानबूझकर बाइक पर लाया था ।ताकि वह इन चीजों को फेस करें।

    यह आदमी समझता सब है ,पर दिखाता ऐसे है ।जैसे इसे कुछ मालूम ही नहीं ।

    यह सफर तो कुणाल के लिए बहुत रोमांचित था ।

    इसलिए आप जानबूझकर मुझे ऐसे लाए। आप जीप भी तो ला सकते थे ?

    क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा ....एक्चुअली मैं चाहता था कि तुम गांव को अच्छे से देखो। गाड़ी या जीप में वह मजा कहां जो बाइक पर बैठने में आता है।

    यह तो सही बात थी। गांव तो वह पूरा देखते हुए आई थी और फिर खेत खलियानों का रास्ता भी उसे आनंदित कर रहा था।

    डर लग रहा है ? स्पीड धीरे करुं ?

    नहीं, मैं ठीक हूं ।

    तो फिर कसकर पकड़ो.. कहीं गिर गई तो चोट लग जाएगी।
    जैस्मिन ने कुणाल को अच्छे से थाम लिया।

    आपको ठंड नहीं लग रही?

    नहीं,  तुम्हें लग रही है क्या?

    थोड़ी-थोड़ी..... जैस्मिन पूरी तरह कुणाल के पीछे बैठी थी। ताकि उसे हवा कम लगे। जबकि कुणाल तो आगे बैठा था।
    सामने आते जाते हवा के झोंके बर्दाश्त कर रहा था।

    यह आदमी किस मिट्टी का बना था ?इसे कुछ एहसास ही नहीं होता !

    अच्छी बात है, लगनी चाहिए।

    पर अगर ठंड लग गई तो....

    मैं तो चाहता हूं। तुम्हें ठंड लगे और मुझे दूर करने का मौका मिले ।कुणाल ने मुस्कुरा कर कहा ।

    जैस्मिन कुणाल की दो मायनी बातें समझ गई। वह भी बस होले से हंस दी ।


    मैं जो पिछले दिनां तो तक रह्या,
    ऐ चेहरा खोरे किसका है,
    जो मैनु होर किते लभया ना,
    तेरे नैना विचौं दिसदा है,
    नदी झील या पर्वत है ,
    या कोई खजाना ख्वाबां दा,
    तेरे नैना विचौं झलक रह्या ,
    रंग सुनहरे बागां दा,
    तू चुटकी मारी उंगला दी,
    मैं झल मारू पखियां नाल,
    मैं चन्न सितारे की करने ,
    मेनू इश्क हो गया अखियां नाल......

    जैस्मिन जो दुपट्टा कसकर पकड़े थी।उसका आधा चेहरा कुणाल के कंधे से ढक रहा था। जबकि आंखें और माथा कुणाल बाइक के शीशे में देखते हुए गाना गुनगुना रहा था । जैस्मिन को तो ताज्जुब हुआ ।कुणाल से वह ऐसा भी कुछ कभी सुनेंगी ?उसे लगा ऐसी ख्वाहिशें, ख्वाहिश ही रहने वाली है। पर कुणाल तो बना ही उसे हैरान करने के लिए था ।और कदम कदम पर उसे हैरत में डाल देता।
    कुणाल अभी गुनगुनाए जा रहा था, वो मुस्कुराए जा रही थी।

    आपको गाने भी आते हैं ?

    ऐसा कोई काम नहीं है ,जो कुणाल चौधरी नहीं कर सकता। अभी तो तुमने इस समुद्र से चुल्लू भर उठाया है ।अभी पूरा समुद्र बाकी पड़ा है जैस्मीन और जिंदगी भी।
    मैं तुम्हें हैरान परेशान करता रहूंगा। कुणाल, जैस्मिन के साथ वक्त बिता कर अपनी परेशानी काफी हद तक भूल जाता था। और आज तो वह बिल्कुल ही भूल गया। पूरा दिन कश्मकश और दुविधा में गुजरा। पर अब यह जिंदगी नया राग गा रही थी।

    बसंत का मौसम, शाम का वक्त ,हरे पीले फसलों से लहराते  खेत और साथ में हमसफर .....एक सुकून भरी जिंदगी के लिए भला और क्या तवक्को की जा सकती है। कुणाल के मुंह से एक ही नाम निकला ....परफेक्ट ...!वाकई यह अब सुकून में था।

    अच्छा मतलब समझाइए गाने का..... जैस्मिन बहुत देर बाद बोली।

    तुमने नहीं सुना पहले कभी..? कुणाल को हैरानी हुई ।काजल की संगति में रहकर उसने पंजाबी हरियाणवी गाने नहीं सुने। वो तो दिनभर नाचती फिरती है।

    नहीं ,मुझे हरियाणवी समझ नहीं आती।

    कुणाल ने बाइक रोकी और पीछे पलट कर जैस्मिन को देखा।

    क्या हुआ? आप इस तरह मुझे क्यों देख रहे हैं? जैस्मिन को लगा उससे कोई गलती हो गई। शायद वह कुछ ज्यादा ही फ्रेंक हो रही है कुणाल के साथ। वह भी ना छलकती गगरिया है। जल्दी ही छलक जाती है।

    अम्म ...कुछ नहीं, सोच रहा हूं लैंग्वेज पर तुम्हारी पकड़ कितनी कमजोर है।
    वैसे यह हरियाणवी नहीं, पंजाबी थी। कुणाल ने जैस्मिन से कहा।

    जैस्मिन ने दांतों तले जीभ दबा ली ।क्या जरूरत है? ज्यादा बोलने की..... वह तो बस कुणाल के मुंह से सुनना चाहती थी । अब गलती में आकर चुप होकर बैठ गई।


    कुणाल आखिर जैस्मिन को कंपकंपाते हुए घर वापस ले ही आया था। जैस्मिन तो जैसे तैसे सोल में सिमटी जा रही थी। बाकी उसे ठंड कुछ ज्यादा ही लगती थी। एक तो वह ऐसे खुले खुले माहौल में कभी रही नहीं। फिर शाम के वक्त बाइक का सफर वह धूजते हुए सी नीचे उतरी ।

    क्या हुआ ठंड लग रही है?

    हां, मैंने कहा था ना आपकी वजह से मुझे सर्दी लग जाएगी।

    कोई बात नहीं ,मेरी वजह से लगी है। तो बचाऊंगा भी मैं ही। तुम चिंता मत करो। कुणाल ने जैस्मिन के करीब आकर कहा।
    जैस्मिन उसकी आंखों में झांक रही थी। जहां ढेरों अरमान आकार ले रहे थे। जैस्मिन के मन में भी कई ख्वाइशों ने अंगड़ाइयां ली। गैराज में कोई नहीं था और वह ट्रैक्टर के एक साइड बाइक थाम कर उसी के पास खड़ा था ।जैस्मिन ट्रैक्टर के पिछले टायर से लगकर खड़ी थी, और कुणाल ने उसे खुद से ढक रखा था। वह उतर कर संभल ही रही थी कि रॉकी, रोनी दौड़ते हुए उनके पास आए  ।जैस्मिन ने कुणाल की बाजू पकड़ ली।

    आज दोपहर में ही तो तुम उनके साथ खेल रही थी ।मुझे लगा दोस्ती हो गई होगी?तुम तो अब भी डर रही हो.....

      वो भाग कर आते हैं ना , तो मैं डर जाती हूं ।आदत नहीं है ना.... जैस्मिन ने अपनी घबराहट समेटकर कहा। उनके आ जाने से दोनों एक दूसरे के जादू ए सहर से दूर हुए। वह दोनों कुणाल से चिपक रहे थे और सामने खड़ी जैस्मिन भी ।
    उसके बाजू होते उस में सिमट रही थी। कुणाल ने एक हाथ बढ़ाकर जैस्मिन को अपने और नजदीक कर लिया ।कुणाल उनके सामने चुटकी बजा रहा था । वह बस कुणाल से दुलार चाहते थे। जैस्मिन कभी उन्हें, तो कभी कुणाल को देखती ।इंसान और जानवर की बॉन्डिंग अगर हो तो बहुत बेहतर होती है। इसका जीता जागता उदाहरण उसके सामने था। वह तो कुणाल की एक छोटी सी आहट तक पहचान जाते थे ।

    आपने इन्हें खेतों की रखवाली के लिए रखा है ...? जैस्मिन ने कुणाल में सिमटे हुए ही पूछा।

      कुणाल ने जैस्मिन को अपनी एक बाजू के घेरे में बंद कर रखा था और कुणाल उन्हें पुचकार रहा था। वैसे ही उनके साथ खेलते हुए जवाब दिया,,,,, नहीं... घर वालों की और हां थोड़ी-थोड़ी खेतों की भी।

    भला घरवालो को क्या खतरा? वह अभी आगे कुछ पूछती उससे पहले ही कानों में आवाज पड़ी ।

    अरे भई ,कमरा दे रखा है एक अलग से ।वह भी ऊपर ,सबसे अलग ...एकांत में ...फिर भी खोपचे में घुस रखे हो ।
    यह रेहान था ,जो कुणाल का इंतजार कर रहा था। कुणाल मंदिर गया था । इसलिए वह दादी के पास ही बैठ गया।

    जैस्मिन ने कुछ उलझे हुए से कुणाल की ओर देखा ।

    कोना ....

    जी....

    खोपचा मतलब कोना होता है।

    ओह अच्छा,

    जैस्मिन ,कुणाल की बाहों से निकल गई ।क्योंकि रेहान इधर ही आ रहा था ।

    चलो अंदर, कुणाल, रेहान के साथ आगे बढ़ गया और जैस्मिन उनके पीछे।।