Novel Cover Image

इश्क़ : एक सज़ा

User Avatar

Aarya Rai

Comments

3

Views

196

Ratings

2

Read Now

Description

"इश्क़: एक सज़ा" – Love. Betrayal. Revenge. College romance से शुरू हुई आकर्ष और साक्षी की मोहब्बत, एक प्लान्ड साज़िश का शिकार हो गई। दोस्ती के नाम पर Viraaj ने नफरत का ऐसा खेल खेला कि प्यार एक दर्दनाक सज़ा बन गया। False आरोपों में फँसा...

Total Chapters (1)

Page 1 of 1

  • 1. इश्क़ : एक सज़ा - Chapter 1

    Words: 1298

    Estimated Reading Time: 8 min

    "कम ऑन, स्वीटहार्ट... आज तुम मुझसे बचकर कहीं नहीं जा सकती। तुम्हारे पास मेरी बात मानने के अलावा और कोई रास्ता नहीं।" आकर्ष की गहरी आवाज़ उस शांत कमरे में गूंज उठी, जहाँ हल्की लाल रोशनी फैली हुई थी। यह एक सेवन-स्टार होटल का हनीमून सुइट था, लेकिन इस वक्त यहाँ जो कुछ भी हो रहा था, उसमें रोमांस नहीं, बल्कि जुनून, नफरत और बदले की आग थी। साक्षी सहमी हुई कमरे के कोने में खड़ी थी। उसकी आँखों में खौफ था, साँसें तेज़ चल रही थीं, और हल्के-हल्के आँसू उसके गालों पर बह रहे थे। आकर्ष ने ठंडी हँसी के साथ आगे कदम बढ़ाया। "मेरे पास आओ, बस एक रात की बात है..." वह उसके और करीब आया। "आज की रात मुझे खुश कर दो, मेरी डिज़ायर्स पूरी कर दो, फिर मैं तुम्हें इस कैद से आज़ाद कर दूँगा। और हाँ, मैं वादा करता हूँ, इस एक रात की इतनी बड़ी कीमत दूँगा कि तुम्हारी आगे की पूरी ज़िंदगी आराम से गुज़रेगी। दोबारा तुम्हें ये सब करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।" उसके लहजे में शैतानी थी। साक्षी ने काँपते हुए उसकी तरफ देखा। "आकर्ष... प्लीज़, मत करो ऐसा!" उसकी आवाज़ रुँधी हुई थी। आकर्ष ने अपनी उँगलियों से उसकी ठुड्डी को ऊपर उठाया और उसके चेहरे को अपने करीब खींच लिया। "क्यों? अब डर लग रहा है?" उसकी मुस्कान ज़हरीली थी। "तुमने जब मेरी ज़िंदगी तबाह की थी, जब मुझे बर्बाद किया था, तब क्या तुम्हें ज़रा भी दया आई थी? तब तुमने नहीं सोचा था कि मैं कितना तड़पूँगा, कितना रोऊँगा?" साक्षी की साँसें तेज़ हो गईं। "मैंने कुछ नहीं किया, आकर्ष! मैं बेगुनाह हूँ!" आकर्ष के चेहरे की कठोरता और बढ़ गई। उसकी गहरी, स्याह आँखों में नफरत के शोले भड़क उठे। "झूठ!" एक झटके में उसने साक्षी के बालों को मुट्ठी में भींच लिया और उसे अपने चेहरे के करीब खींचा। "मतलब, अब तुम मासूम बन रही हो? तुम्हें नहीं पता कि तुमने क्या किया? तीन साल... पूरे तीन साल मैं इस दिन के लिए तड़पता रहा। हर रात तुम्हारी यादों में जलता रहा, हर रोज़ खुद से नफ़रत करता रहा। और आज, फाइनली, मेरे इंतज़ार का अंत हुआ है!" साक्षी की आँखों से आँसू बह निकले। "प्लीज़, मुझे जाने दो, आकर्ष... मैंने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा!" आकर्ष ने गुस्से में उसकी कलाई को इतनी जोर से पकड़ा कि साक्षी दर्द से तड़प उठी। "क्या कहा? तुमने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा?" वह ठहाका मारकर हँस पड़ा। "साक्षी, तुम भूल गई हो, लेकिन मैं नहीं भूला! मैं वो रात नहीं भूला जब तुमने मुझे सबसे बड़ा धोखा दिया था। मैं वो लम्हा नहीं भूला जब तुमने मेरी दुनिया उजाड़ दी थी। और अब मैं तुम्हें भी नहीं भूलने दूँगा कि तुमने मेरे साथ क्या किया।" साक्षी ने अपनी सिसकियों को रोकने की कोशिश की। "आकर्ष, मैं सच कह रही हूँ, मैं नहीं जानती कि तुम किस बारे में बात कर रहे हो।" आकर्ष के चेहरे की कठोरता और बढ़ गई। "अच्छा? तो अब तुम अनजान बन रही हो?" वह उसके और करीब आया। अब उनके बीच सिर्फ़ कुछ इंच का फासला था। "साक्षी, अब इस खेल का समय ख़त्म हो चुका है। अब सिर्फ़ सजा देने का समय है।" उसकी उँगलियाँ धीरे-धीरे उसके चेहरे से फिसलती हुई उसकी गर्दन तक पहुँचीं। "अब तुम्हारी हर चीख, हर आँसू, हर दर्द मुझे सुकून देगा। मैं तुम्हें एहसास दिलाऊँगा कि मैंने कितनी तकलीफ सही है। तुम सोच भी नहीं सकती कि मैं तुम्हें कितना तड़पाने वाला हूँ। तुम रोओगी, गिड़गिड़ाओगी, लेकिन तुम्हें मुझसे रहम नहीं मिलेगा।" साक्षी की आँखें और फैल गईं। "नहीं, प्लीज़... ऐसा मत करो...!" आकर्ष की मुस्कान और गहरी हो गई। "अब बहुत हो गया, साक्षी। अब वक़्त आ गया है कि तुम भी वही दर्द महसूस करो, जो मैंने किया था।" उसने एक झटके में साक्षी को अपनी बाहों में उठा लिया और king-size bed की तरफ बढ़ने लगा। "नहीं, आकर्ष... छोड़ दो मुझे!" साक्षी चीखी, लेकिन उसकी आवाज़ चार दीवारों के अंदर घुटकर रह गई। आकर्ष ने उसे धीरे से बिस्तर पर लिटाया। "डरो मत, मेरी जान… तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा।" उसने उसकी नाजुक कलाई को ज़ोर से पकड़ लिया और उसके ऊपर झुकते हुए फुसफुसाया— "तुमने कभी सोचा भी नहीं होगा कि मैं तुम्हारे साथ ऐसा करूँगा... लेकिन ये तो सिर्फ़ शुरुआत है। अभी तो बहुत कुछ बाकी है।" उसकी गहरी, नफरत से भरी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। आकर्ष की निगाहें साक्षी के चेहरे पर आकर ठहरीं। आँसुओं से धुला उसका छोटा सा गोल चेहरा इतना प्यारा लग रहा था कि किसी की भी निगाहें उस पर ठहर जाएँ। रोने के कारण उसके दूध से गोरे मुखड़े पर हल्की लालिमा बिखरी थी। पलकें झुकी हुई थीं और उसकी आँखों से बहते आँसू उसकी कनपट्टी को भिगो रहे थे। उसके चेहरे पर मासूमियत, बेबसी, दुख जैसे कई भाव मौजूद थे। साक्षी के मासूमियत भरे चेहरे और उसके आँखों से बहते आँसू देखकर पल भर को आकर्ष के चेहरे के भाव कुछ कोमल हुए, पर अगले ही पल उसकी आँखें गुस्से से, नफरत से भर उठीं और उसने बड़ी ही बेदर्दी से उसकी कलाइयों को जकड़ते हुए पलंग पर दबा दिया और साक्षी के गुलाब के पंखुड़ियों से कोमल लबों को अपने रूखे लबों से दबाते हुए उसके लबों को चूमने लगा। वह उसे बहुत रूडली किस कर रहा था जिसमें उसका गुस्सा, अग्रेशन और नफरत झलक रही थी। साक्षी ने अपनी आँखों को कसके भींच लिया। धीरे-धीरे आकर्ष की किस और ज़्यादा डीप होने लगी और वह गुस्से में उसके लबों को बड़ी ही बेदर्दी से काटने लगा। दर्द से साक्षी की सिसकियाँ निकलने लगीं जो उसके गले में घुटकर रह गईं। आकर्ष इस वक्त एक दानव बन गया था और क्रूरता से उसके होंठों से निकलते खून को चाटने लगा। करीब दस मिनट बाद आकर्ष ने उसके लबों को आज़ाद किया जो सूजकर मोटे हो गए थे। शैतानी मुस्कान लबों पर सजाते हुए आकर्ष ने साक्षी के वजूद को अजीब तरह से देखा और अगले ही पल उसकी नाइटि के श्रग् को उसके बदन से खींचकर अलग कर दिया। उसके लब साक्षी के कंधे और गर्दन पर अपने निशान छोड़ने लगे। साक्षी के मुँह से दर्द भरी सिसकी निकल गई और वह उसकी बाहों में कसमसा उठी। आकर्ष जैसे ही उसके कंधों से नीचे की ओर बढ़ने लगा, साक्षी ने उसके कंधों को थामते हुए उसे रोक दिया। "आकर्ष मत करो ऐसा........" साक्षी की दर्द भरी रुँधी आवाज़ उसके कानों से टकराई, गिड़गिड़ा रही थी वह और उसे ऐसे रोते-बिलखते दया की भीख मांगते देखकर आकर्ष को अजीब सी खुशी हो रही थी। साक्षी को दर्द देकर मज़ा आ रहा था उसे, उसके आँसू आकर्ष के नफरत से जलते दिल को ठंडक पहुँचा रहे थे। साक्षी उससे रहम की भीख मांग रही थी पर आकर्ष पर आज जुनून सवार था। ज़हरीली मुस्कान बिखर गई और अगले ही पल उस कमरे में साक्षी की दर्द भरी सिसकियों की आवाज़ गूंज उठी। उसके जिस्म का ऐसा कोई हिस्सा नहीं बचा था जहाँ आकर्ष ने अपनी नफरत के निशान नहीं छोड़े थे, उसके गुस्से और नफरत की आग में साक्षी का कोमल वजूद झुलस गया था, उसके आँसू थम चुके थे पर दर्द हर बीतते पल के साथ ही बढ़ रहा था जिसका अब कोई अंत नहीं था। आकर्ष ने उस पर ज़रा भी रहम नहीं खाया था, वह किसी भूखे शेर जैसे उस पर टूट पड़ा था और बड़ी ही बेदर्दी से उसके वजूद को अपने गुस्से तले रौंदता रहा। उसे दर्द देता रहा तब तक जब तक साक्षी उस दर्द से तड़पते हुए बेहोश नहीं हो गई, पर आकर्ष का गुस्सा अब भी शांत नहीं हुआ था। क्या था वह अतीत, जिसने आकर्ष को इतना निर्दयी बना दिया? क्या सच में साक्षी गुनहगार थी, या कोई और था जिसने यह साजिश रची? क्या आकर्ष की नफरत उसे उसकी सबसे बड़ी भूल करने पर मजबूर कर देगी? प्यार, नफरत, जुनून और बदले की इस आग में कौन जलेगा और कौन बचेगा?