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तलब तेरे प्यार की

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Aarya Rai

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तड़प है, प्यार है… तेरे इश्क़ की तलाश है। "Ms. कंचन राणा, कब तक मुझसे दूर भागती रहोगी? तुम्हारी ज़िंदगी के सभी रास्ते अब तुम्हें मेरे पास लेकर आएंगे। बहुत बड़ी गलती कर दी तुमने... जो मुझे, वीर प्रताप सिंह की म...

Total Chapters (441)

Page 1 of 23

  • 1. तलब तेरे प्यार की - Chapter 1

    Words: 2375

    Estimated Reading Time: 15 min

    महाराष्ट्र, लोनावाला

    लोनावला की वादियों में बसा वो luxury villa किसी ड्रीम पैलेस से कम नहीं था। बाहर वेल- मेंटेंड गार्डेन में कलरफुल फूल और टॉल ट्रीज, और सामने शायनिंग ब्लू वॉटर वाला स्विमिंग पूल—सब कुछ बेहद पीसफुल और क्लासी लग रहा था।

    लेकिन इस रॉयल ब्यूटी के बीच, एक रूम ऐसा था जो बाकी सब से बिल्कुल अलग था। वो रूम अंधेरे मे डुबा था। वहाँ अजीब सी खामोशी छाई थी और उस खामोशी को भंग करते हुए कुछ धुन बज रही थी।

    हम बेवफा हरगिज़ ना थे, पर हम वफ़ा कर न सके
    हमको मिली उसकी सज़ा, हम जो खता कर न सके

    हल्की-हल्की आवाज़ में वहाँ यही गाना बज रहा था और कमरे की बड़ी सी खिड़की के पास लगे सोफे पर एक लड़की बैठी हुई थी। उसने एक सिंपल सी वाइन कलर की साड़ी पहनी हुई थी, मांग में सिंदूर चमक रहा था और गले में मंगलसूत्र भी पहना हुआ था; एकदम सिंपल थी वो, फिर भी बहुत सुंदर लग रही थी। सूनी आँखों से वो बाहर देख रही थी, आँखों में आँसू कैद थे और चेहरा दर्द से सना था।

    अचानक ही उस अंधेरे में रोशनी फैल गई। इसके साथ ही एक आवाज़ आई "कब तक खुद को अंधेरों में कैद रखोगी? एक बार इस अंधेरे से बाहर निकलकर तो देखो, बाहर एक खूबसूरत दुनिया तुम्हारा इंतज़ार कर रही है।"

    आवाज़ सुनकर वो लड़की चौंक गयी, उसने तुरंत दरवाज़े की तरफ़ नज़र घुमाई तो वहाँ 27-28 साल का एक लड़का खड़ा था; गोरा रंग, अच्छी खासी हाइट, अच्छी बॉडी और काफी हैंडसम भी।

    उसे देखकर लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा "जब ज़िन्दगी में अंधेरा ही है तो उस रोशनी को देखकर भी क्या करूँगी? मैं अंधेरों में ही खुश हूँ।"

    अब उस लड़के ने अंदर आते हुए कहा "जब उसे इतना याद करती हो तो चली क्यों नहीं जाती उसके पास? या तो उसके पास लौट जाओ या फिर खुद को ऐसे टॉर्चर करना छोड़ दो, भूल जाओ उसे। क्यों आज भी उसके नाम का सिंदूर अपनी मांग में भरती हो? क्यों आज तक अपने गले से उसका पहनाया मंगलसूत्र पहनकर घूमती हो? या तो आज़ाद कर दो खुद को उससे, उसकी यादों से, या फिर लौट जाओ वापिस उसकी ज़िन्दगी में।"

    "मज़ाक उड़ा रहे हो मेरा? सब तो जानते हो तुम, कुछ भी तो नहीं छुपा है तुमसे। रोज़ तो नई-नई लड़कियों के साथ ख़बरें आती हैं उनकी, नफ़रत करते है मुझसे, अब अगर चाहूँ भी तो उनके पास नहीं जा सकती।

    एक वक़्त था जब वो बेपनाह प्यार करते थे मुझसे, पर अब उससे भी ज़्यादा शिद्दत से बेइंतेहा नफ़रत करते है मुझसे। उनकी मोहब्बत के बदले मैंने उन्हे धोखा दिया, जब फरेब किया है तो दर्द भी मुझे ही मिलेगा ना? और इस दर्द को मैंने अपने हाथों से, अपनी किस्मत मे लिखा है; जीते जी तो इससे पीछा छूटना मुमकिन नहीं, मरने के बाद अगर राहत मिल सके तो भी मेहरबानी ही होगी भगवान की।

    उन्हे छोड़कर मैंने खुद उनके पास लौटने के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं, वो भी हमेशा-हमेशा के लिए। अब वो, वो इंसान रहा ही नहीं जो मुझसे प्यार करते थे। बदल गये है, अब न तो उनकी ज़िन्दगी में मेरे लिए कोई जगह है और न ही दिल में।

    समझौता कर लिया है मैंने अपनी किस्मत से, इसमें सिर्फ़ दर्द ही लिखा है और वही भुगत रही हूँ। नहीं देखने मुझे ऐसे कोई सपने जो कभी सच हो नहीं सकते, इसलिए हर बार एक ही बात मत कहा करो। अच्छा नहीं लगता मुझे बार-बार एक ही बात सुनना। मैंने उनसे खुद को दूर किया है और अब फ़ासले इतने बढ़ गए हैं कि उन्हें कभी मिटाया नहीं जा सकता। मैं जैसी भी हूँ अपनी ज़िन्दगी में खुश हूँ, वो न सही, उनकी यादों के सहारे ही मैं अपनी ज़िन्दगी काट लूँगी। उन्हें भूलना मुमकिन नहीं मेरे लिए, वो सिर्फ़ मेरी यादों में नहीं बल्कि मेरी रूह में बसे है। मैं चाहूँ भी तो उन्हे भूल नहीं सकती।

    ना उन्हे अपनी ज़िन्दगी से दूर कर सकती हूँ, ना ही उनकी ज़िन्दगी में वापिस शामिल हो सकती हूँ। अब यही मेरी नियति है; उनसे बेइंतेहा मोहब्बत होकर भी उनसे दूर हूँ। जिनके लिए आज भी मेरा प्यार सच्चा है, उसमें कोई मिलावट नहीं। उनकी नज़रों में धोखेबाज़ हूँ और यही पहचान है अब मेरी।"

    उसके चेहरे पर अजीब सा दर्द नज़र आने लगा था। लड़के का चेहरा भी दर्द से सराबोर था, जैसे इसके दर्द को वो भी महसूस कर रहा हो। कुछ पल लड़की खामोश रही; खुद को संभालने के बाद उसने दर्द भरी मुस्कान के साथ आगे कहा

    "ये सब छोड़ो इन बातों को करने का कोई भी फ़ायदा नहीं है, तुम तो मुझे ये बताओ कि मेरी जान को कहाँ छोड़ आए? मेरी जीने की वजह नहीं आई तुम्हारे साथ?"

    उसकी बात ख़त्म हुई, उसके साथ ही एक मीठी सी खनकती आवाज़ उनके कानों में पड़ी "मम्मा..."

    यही वो शब्द था जिसे सुनकर उस लड़की के लब मुस्कुरा उठे। वो लड़का अब साइड हो गया तो उसके पीछे से एक छोटी सी, चार-पाँच साल की क्यूट सी लड़की निकलकर बाहर आई; बिल्कुल बड़ी लड़की जैसा रूप, बस रंग थोड़ा साफ़ था, एकदम दूध की तरह सफ़ेद थी वो। उसने प्यारी सी स्कर्ट-टॉप पहनी हुई थी, सुनहरे बालों को पोनीटेल में बाँधा हुआ था, जिससे निकलते छोटे-छोटे बाल उसके चेहरे और गर्दन पर फैले हुए थे।

    वो देखने में बहुत ही सुंदर और क्यूट थी, गोल-गोल लाल गाल देखकर किसी का भी मन उन्हें खींचने को कर जाए। उस बच्ची को देखकर बड़ी लड़की ने अपनी बाहों को फैला दिया तो वो सुपर क्यूट बच्ची अपनी कमर मटकाते हुए अपने नन्हे-नन्हे पैरों से उसके तरफ़ दौड़ पड़ी और सीधे उसके सीने से लग गयी।

    "मम्मा, पता है वहाँ बहुत मज़ा आया, बिग डी ने बेबी को इतनी सारी जगह पर घुमाया, पता है वहाँ बहुत सारे एनिमल्स भी थे, बेबी ने उनकी फ़ोटो भी ली, बहुत मज़ा आया। अगर आप चलतीं तो और भी मज़ा आता।"

    बच्ची चहकते हुए सब बताने लगी। उसकी बात सुनकर लड़की ने उसे खुद से अलग किया और प्यार से उसके माथे को चूमकर मुस्कुराकर बोली

    "मम्मा बिज़ी थी ना बेटा इसलिए आपके साथ नहीं जा पाई, पर आपने अच्छे से एन्जॉय किया ना? मम्मा के वजह से सैड तो नहीं हुई थी हमारी वीरा?"

    "नो मम्मा, बेबी बिल्कुल भी सैड नहीं हुई। बिग डी ने कहा अगर बेबी सैड होगी तो मम्मा भी सैड हो जाएगी इसलिए बेबी बिल्कुल सैड नहीं हुई, आप नहीं थीं ना तो बिग डी ने सो मेनी पिच्स ली हैं, आप उन्हें देखेंगी तो आपको भी अच्छा लगेगा। बेबी को आज बहुत मज़ा आया, वहाँ बहुत सारे बेबी थे और वीरा ने उनके साथ प्ले भी किया।"

    लड़की उसकी बात सुनकर मुस्कुराती रही, फिर उसने उसको एक बार फिर अपने सीने से लगा लिया "मम्मा की सारी खुशियाँ तो आपसे जुड़ी हैं, आप खुश है तो मम्मा भी खुश है।"

    अब उसने उसके माथे को चूम लिया और फिर उसके हाथ को पकड़कर बोली "चलिए अब बहुत घूम-घूम हो गई, अब चलकर चेंज करिए, आज मम्मा ने वीरा के लिए ख़ास डिनर बनाया है, बिल्कुल वीरा की पसंद का।"

    उसकी बात सुनकर वीरा ने उस लड़के की तरफ़ देखा, फिर लड़की को देखकर उदास होकर बोली "आपने सिर्फ़ वीरा के लिए बनाया है? बिग डी के लिए नहीं बनाया?"

    उसकी मासूमियत भरी बात सुनकर उस लड़की ने उसके गाल को प्यार से छूकर मुस्कुराकर कहा "उनके लिए भी बनाया है, पर पहले आप मम्मा को ये बताइए कि आप उन्हें बिग डी क्यों कहती हैं? अंकल कहिए।"

    उसकी बात सुनकर लड़की ने अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा "ओफ्फो, मम्मा आपको तो इतना भी नहीं पता, बिग डी मेरे अंकल थोड़े ना हैं, वो तो बिग डैडू हैं ना, इसलिए वीरा उन्हें बिग डी कहती है।"

    "अच्छा और आपको ये किसने कहा कि वो आपके बिग डैडू हैं? और ये बिग डैडू होता क्या है, पहले ये तो बताइए।" बच्ची की बात सुनकर लड़की ने मुस्कुराकर सवाल किया तो उसने बड़ी सी मुस्कान के साथ कहा

    "बिग डी ने बताया, वो वीरा के बिग डैडू हैं, डैडू काम करते रहते हैं, वो हमारे लिए बहुत मेहनत करते हैं ताकि हम अच्छे से रह सकें, इसलिए वो हमारे साथ नहीं रहते, तो उन्होंने बिग डैडू को हमारे पास भेज दिया है ताकि वो आपका और वीरा का ध्यान रख सकें, पर मम्मा आप डैडू को कहिए ना कि वापिस आ जाए, वीरा गुड गर्ल बन जाएगी, कोई टॉय भी नहीं माँगेगी, हमें नहीं चाहिए मनी, वीरा को बस डैडू चाहिए।"

    पहले तो वो खुश थी, पर अब वो एकदम उदास हो गई थी। उसकी बात सुनकर लड़की की आँखें नम हो गईं, उसने उसके चेहरे को अपनी हथेली में भरकर बड़े प्यार से कहा "डैडू जल्दी वापिस आएंगे बेटा, चलिए आप जल्दी से अपने रूम में जाइए, मम्मा बस दो मिनट में आती है।"

    उसने प्यार से उसके माथे को चूम लिया तो बच्ची ने सुबकते हुए कहा "आप डैडू को जल्दी आने के लिए कहेंगी ना?"

    "हाँ बेटा, मम्मा डैडू को जल्दी वापिस आने के लिए ज़रूर कहेंगी, हमारी डॉल कुछ माँगे और हम उन्हें न दें, ये कैसे हो सकता है, पर उसके लिए वीरा को गुड गर्ल बनना होगा और मम्मा की सारी बात माननी होगी, वरना डैडू कहेंगे कि वीरा गंदी बच्ची है इसलिए वो वीरा के पास नहीं आएंगे।"

    उसके इतना कहते ही वीरा झट से वहाँ से भाग गई । लड़की खड़ी होकर वहाँ से जाने लगी, "कब तक झूठ कहोगी उससे? तुम जानती हो वो अपने पापा पर गई है, जो उसे चाहिए होता है उसे लिए बिना कभी नहीं मानती, ज़्यादा वक़्त तक तुम उसे टाल नहीं पाओगी। अभी वो छोटी है तो बहला लोगी उसे, पर वो थोड़ी और बड़ी हो जाएगी और सवाल करेगी तुमसे कि कहाँ है उसके डैडू ? कहाँ है वो इंसान जिसके नाम का सिंदूर तुम आज भी अपनी मांग में बहुत हक़ से सजाती हो? अगर नहीं है तो क्यों लगाती हो सिंदूर और अगर है तो क्यों नहीं रहते वो तुम्हारे साथ ? क्यों नहीं आते अपनी बच्ची से मिलने? तब क्या जवाब दोगी उसे?

    कंचन, एक गलती तुमने सालों पहले की थी और दूसरी गलती अब कर रही हो, वजह चाहे कुछ भी हो पर एक बेटी को उसके बाप से और एक बाप को उसकी औलाद से दूर रखने का पाप किया है तुमने। वीर का तो फिर भी ठीक है, वो तो अब तक वीरा के होने से भी अनजान है, पर वीरा को किस गलती की सज़ा दे रही हो तुम?"

    पीछे खड़े लड़के के सवाल सुनकर कंचन के कदम जहाँ थे वही रुक गए, आँखों में आँसू की बुँदे झिलमिलाने लगीं। उसने किसी तरह खुद को संभाला और अपने आँसुओं को पीते हुए बोली

    "शान, तुम बहुत अच्छे से जानते हो कि मैं क्या और क्यों कर रही हूँ? रही बात वीरा की तो वो अगर उनकी बेटी है तो उसे जन्म मैंने दिया है, सब दर्द-तकलीफ़ मैंने अकेले सही है, उसको कैसे संभालना है मैं बहुत अच्छे से जानती हूँ। सही कहा, तुमने अपने पापा की परछाई है वो, पर उसमें अपनी माँ के गुण भी मौजूद हैं। वो बहुत समझदार है, समझ जाएगी मेरी बातों को और तुम भी वीर के बारे में सोचना बंद कर दो, वो मेरा ऐसा अतीत है जो अब कभी वर्तमान नहीं बन सकता।"

    इतना कहकर वो वहाँ से निकल गई, उसके जाते ही शान ने खुद से कहा "तुम्हारे इस अतीत को तुम्हारे वर्तमान में लाना मेरी ज़िम्मेदारी है, जो हुआ उसके वजह से मैं वीरा को सफ़र करने नहीं दे सकता, उसे उसके डैडू का प्यार ज़रूर मिलेगा। अब बस तुम देखती जाओ कैसे तुम्हारे अतीत को तुम्हारे सामने लाकर खड़ा करता हूँ, फिर देखूँगा कि कैसे मुँह मोड़ पाती हो अपने प्यार से? कैसे दूर रह पाती हो अपने वीर से? और कैसे दूर रख पाती हो वीरा को उससे? "

    उसकी आँखों में एक जुनून नज़र आ रहा था। वो भी वहाँ से चला गया। वही दूसरी तरफ़...


    साउथ दिल्ली, ग्रेटर कैलाश, पॉश एरिया

    इस पॉश एरिया में कई खूबसूरत विला थे, लेकिन उन सबमें सबसे खास था "आराधना निवास"—एक ऐसा विला जो चाँद की तरह बाकी सबके बीच अलग और चमकदार था। बाहर से जितना शानदार, अंदर से उतना ही शानदार और एंटीक चीज़ों से सजा हुआ। गेट पर एक खूबसूरत नेम प्लेट लगी थी जिस पर लिखा था—"आराधना निवास"।

    बड़े गेट के सामने एक सुंदर सा फाउंटेन था, चारों ओर हरियाली फैली थी, और विला रोशनी से जगमगा रहा था। लेकिन इस रौशनी के बीच एक कमरा ऐसा भी था जहाँ घना अंधेरा था। उसी अंधेरे में लाल-लाल डरावनी आँखें चमक रही थीं। वहाँ एक शख़्स पंचिंग बैग पर ज़ोर-ज़ोर से मुक्के मार रहा था।

    कुछ देर की खामोशी के बाद उसकी गुस्से से भरी आवाज़ गूंजी—

    "नहीं करता अब मैं तुम्हें प्यार, नहीं है तुम्हारे लिए मेरी ज़िन्दगी में कोई जगह। बेवकूफ़ था मैं जो तुम जैसी लड़की से दिल लगाया। तुम्हें इतना प्यार दिया, तुम्हारी हर इच्छा पूरी की, अपने सर-आँखों पर बिठाकर रखा तुम्हें ...... पर बदले मे तुमने मुझे क्या दिया? धोखा, दगाबाज़ी, फरेब!

    तुमने खुद मेरे प्यार को नफ़रत में बदल दिया, अब तुम्हारे लिए न तो मेरी ज़िन्दगी में कोई जगह है और न ही मेरे दिल में। करता था मैं तुमसे बेपनाह मोहब्बत, पर अब नफ़रत करता हूँ तुमसे, बेइंतेहा नफ़रत और अब तुम्हें बस मेरी नफ़रत ही मिलेगी। जितनी शिद्दत से पहले तुम्हारी चाहत थी, अब उतनी ही शिद्दत से नफ़रत करता हूँ मैं तुमसे।

    एक बार बेवकूफ़ बना गई, पर अब नहीं। वीर प्रताप सिंह ने अब दिल की सुनना छोड़ दिया है, अगर कभी गलती से तुम मेरे सामने आई तो बदला लूँगा तुमसे हर धोखे का। जितना दर्द तुमने मुझे दिया, उससे करोड़ों गुना दर्द दूँगा तुम्हें। Ms. कंचन राणा, बहुत खुशकिस्मत हो तुम जो अभी तक मुझसे बची हुई हो, पर जिस दिन तुम मुझसे टकराई, उस दिन से तुम्हारी बर्बादी का वक़्त शुरू हो जाएगा और तुम्हें बर्बाद करूँगा मैं"

    उस लड़के ने एक ज़ोरदार पंच पंचिंग बैग पर दे मारा, और गुस्से से लाल आँखों से सामने लगी तस्वीर को घूरने लगा; अगले ही पल उसने वहाँ रखा हुआ गिलास उस फ़ोटो पर दे मारा, इसके साथ ही वहाँ लगा काँच टूटकर बिखर गया और लड़के ने अपनी मुट्ठियाँ कस लीं। वहाँ कोई तस्वीर थी ही नहीं, वो तो एक ग्लास वॉल थी जो अब चकनाचूर हो गई थी।


    Coming soon......

  • 2. तलब तेरे प्यार की - Chapter 2

    Words: 1894

    Estimated Reading Time: 12 min

    दिल्ली, द्वारका सेक्टर 7, जे.जे. कॉलोनी

    एक लगभग 25 गज में बना छोटा-सा दो मंजिला मकान था। नीचे के फ्लोर पर एक बड़ा कमरा, दूसरी तरफ किचन, एक बाथरूम और बीच में एक छोटा सा हॉल था जहाँ एक पुराना सोफा सेट और एक काँच का टेबल रखा हुआ था। घर छोटा और पुराना था, लेकिन उसे बहुत अच्छे से सजाया गया था और साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखा गया था। ऊपर के फ्लोर पर तीन कमरे बने हुए थे।

    उनमें से एक कमरे में, सात-आठ साल की लग रही एक बच्ची बिलख-बिलख कर रो रही थी। उसने एक हाथ से अपना मुँह ढँक रखा था और दूसरे हाथ में एक तस्वीर को सीने से लगाए रो रही थी।

    उसने रोते हुए खुद से कहा, "मम्मी-पापा, मुझे भी अपने पास बुला लीजिये। मुझे यहाँ नहीं रहना। यहाँ कोई मुझे प्यार नहीं करता। आप मुझे अकेला छोड़कर क्यों चले गए? मुझे भी अपने साथ ले जाइये। मुझे यहाँ नहीं रहना। मुझे आप दोनों की बहुत याद आती है। क्यों छोड़ गए आप मुझे? मुझे यहाँ नहीं रहना। मुझे भी अपने पास बुला लीजिये।

    आप तो भगवान के पास हैं ना, उनसे कहिये कि जैसे आपको अपने पास बुला लिया, वैसे मुझे भी बुला लें। मैं एकदम अच्छी बच्ची बन जाऊँगी, कोई शैतानी भी नहीं करूँगी। बस मुझे अपने पास बुला लीजिये। यहाँ कोई मुझसे प्यार नहीं करता। चाची मुझे बहुत मारती है, मुझसे घर का सारा काम करवाती है। आशा कुछ भी करती है तो उसे कुछ नहीं कहती, पर मुझे बहुत मारती है। अनिल और अंशु भी गलती करके मेरा नाम लगा देते हैं और चाची फिर मुझे मारती है। मुझे नहीं जीना, प्लीज़ मुझे भी अपने पास बुला लीजिये ना, आप मुझे छोड़कर क्यों चले गए?"

    वो साँवली सी छोटी बच्ची, भले ही गोरी नहीं थी, पर उसके नयन-नक्ष बहुत तीखे थे, फेस कट भी कमाल था और चेहरे पर अलग ही कशिश थी। मासूमियत से लबरेज़ मोहिनी सूरत थी उसकी, जो देखे उसे उस पर प्यार आ जाए। बस एक ही कमी थी उसमें, उसका रंग दूध सा सफ़ेद नहीं था, हल्की सी साँवली सूरत थी उसकी, पर ज़्यादा साँवली भी नहीं थी। वो अपने माँ-पापा की तस्वीर को अपने सीने से लगाए रो रही थी। वो एक कोने में ज़मीन पर दुबक कर बैठी हुई थी और बुरी तरह रो रही थी।

    अचानक ही किसी ने उसकी बाँह पकड़ी और वो बच्ची कुछ समझ पाती, उससे पहले ही उसे खींचकर खड़ा करते हुए एक ज़ोरदार तमाचा उसके छोटे से गाल पर दे मारा, जिससे उसके चेहरे पर उंगलियों के लाल निशान उभर आए। वो दूसरी तरफ लुढ़कने को हुई, पर सामने खड़ी औरत ने उसकी बाँह खींचते हुए उसे सीधा खड़ा किया और गुस्से से गरजी, "हिम्मत कैसे हुई तेरी मेरी बेटी के कमरे में आने की? क्या करने आई थी यहाँ?"

    "माँ, ये मेरे खिलौने चुराने आई थी। मैं नहीं कहती थी, ये मुझसे जलती है क्योंकि इसके पास नए-नए खिलौने नहीं हैं ना, इसलिए ये मेरे खिलौनों को चुराने यहाँ आई थी।" एक बच्ची, जो उस बच्ची की उम्र की ही लग रही थी और सामने खड़ी थी, उसने उस औरत को देखकर शिकायत लगाई।

    तो औरत ने फिर से चिल्लाते हुए कहा, "क्यों री तेरी इतनी हिम्मत की तू अब मेरी बेटी की चीज़ों पर नज़र मारने लगी है? रुक, आज तुझे अच्छे से सबक सिखाती हूँ। आज तेरा वो हाल करूँगी कि दोबारा कभी यहाँ कदम रखने या मेरी बेटी की चीज़ों को हाथ लगाने की हिम्मत नही करेगी तू। तेरे चाचा ने तुझे सर पर चढ़ाया हुआ है, तभी इतना बिगड़ गई है। देख, आज कैसे तेरी सारी अक्ल ठिकाने लगाती हूँ।"

    वो औरत उसे घसीटने को हुई, तो बच्ची गिड़गिड़ाते हुए बोली, "मैंने कुछ नहीं किया चाची, मैं तो बस यहाँ मम्मी-पापा की फो…"

    "अब तू मुझसे ज़ुबान भी लड़ाने लगी है। अब तो तुझे सबक सिखाना और भी ज़रूरी हो गया है। रुक, अभी बताती हूँ तुझे। बहुत ज़ुबान चलने लगी है ना? चल, आज तुझे बाथरूम में बंद करती हूँ। जब सारे दिन और सारी रात खाना नहीं मिलेगा, तब देखती हूँ कैसे खुलती है तेरी ज़ुबान।" उस औरत ने उसकी बात बीच में ही काट दी और उस पर चिल्लाने लगी।

    वो बच्ची रोती रही, बिलखती रही, गिड़गिड़ाती रही, कहती रही कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया, पर उस औरत ने उसकी एक नहीं सुनी। उसे घसीटते हुए नीचे एक तरफ बने छोटे से स्टोर रूम में ले गई, जिसे देखकर ही लग रहा था जैसे वहाँ कोई रहता हो, पर वो जगह रहने लायक नहीं थी। पूरी तरह से सामान से भरा हुआ था, बस बीच में ज़मीन पर ही बिस्तर किया हुआ था।

    एक तरफ टूटी-फूटी सी अलमारी थी, जिसमें कुछ कपड़े रखे हुए थे। वहीं बाएँ ओर छोटा सा बाथरूम था। वो औरत उस बच्ची को घसीटते हुए उस बाथरूम में ले गई और उसे अंदर धक्का देकर बाहर से दरवाज़ा बंद कर दिया। वो बच्ची बुरी तरह रो रही थी। उसने गेट खटखटाते हुए रोते हुए कहा,

    "चाची, मैंने कुछ नहीं किया। मुझे यहाँ बंद मत करो, यहाँ चूहे आते हैं। मैं दोबारा कभी आशा के कमरे में नहीं जाऊँगी। मुझे माफ़ कर दो।"

    वो रोती रही, बाहर निकालने को कहती रही, पर वो औरत वहाँ से चली गई। आशा ने मुड़कर पीछे देखा तो उसके लबों पर एक शातिर मुस्कान फैल गई।

    "अब देख, बेटा मेरे कमरे में गई थी ना, अब बंद रह चूहों के साथ।" वो मुस्कुराकर वहाँ से चली गई। जब वो अंदर बंद बच्ची बोलते-बोलते थक गई, पर किसी ने उसकी नहीं सुनी, तो वो एक कोने में दुबककर बैठ गई और अपने मम्मी-पापा की तस्वीर को देखकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। उसकी सिसकियों की आवाज़ उस सन्नाटे में गूंजने लगी थी। घंटों रोती रही, फिर उस तस्वीर को सीने से लगाए अपने चेहरे को अपने घुटनों के बीच छुपा लिया और सिसकती रही।

    करीब रात के नौ बज रहे थे। बाहर उस औरत ने अपने तीनों बच्चों को अच्छे से खाना खिलाया और दो रोटियाँ, जो देखने में ही बासी लग रही थीं, उसे एक प्लेट में निकालकर रख दिया। वो बाहर हॉल में आई, तभी दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी। तो आंटी ने जाकर दरवाज़ा खोला। सामने साधारण शर्ट-पैंट पहने एक आदमी खड़े थे, जिनकी उम्र यही कुछ 30-35 होगी। उन्हें देखकर आंटी ने मुस्कुराकर कहा,

    "आप आ गए, चलिए मुँह-हाथ धोकर आइये, मैं खाना लगा देती हूँ आपके लिए।"

    "तुम खाना लगाओगी?" अंकल ने बड़ी हैरानी से कहा, जैसे ये कोई अजूबा हो गया हो। उनकी बात सुनकर आंटी ने उन्हें घूरा, "तुम्हारी लाडली काम ही कहाँ करती है? सब मुझे ही करना पड़ता है। वो तो बस बैठे-बैठे मुफ्त की रोटियाँ तोड़ती रहती है। पता है आज उसने क्या किया है?"

    "क्या किया है कंचन ने?" अंकल ने ऐसे पूछा, जैसे ये रोज़ की बात हो और उन्हें इसमें कोई दिलचस्पी ही न हो। आंटी उनका रवैया देखकर चिढ़ उठी और गुस्से से गरजते हुए बोली, "तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे वो कुछ करती ही नहीं है और मैं ही बेवजह बात का बतंगड़ बनाती रहती हूँ।"

    "ये तो तुम भी बहुत अच्छे से जानती हो कि वो बच्ची चाहे कुछ करे या न करे, तुम्हें उसमें हमेशा गलती ही नज़र आती है। सिर्फ़ सात साल की है, फिर भी तुम उससे घर का सारा काम करवाती हो। उसी की उम्र की है आशा, जो खुद से एक चीज़ तक नहीं उठाती। अब से नहीं, जब से वो खुद को संभालना भी नहीं जानती थी, तब से तुम्हारी गृहस्थी, तुम्हारे बच्चों, सबको संभालती आ रही है। बिन माँ-बाप की बच्ची है, तुम्हारे हर अत्याचार को मुस्कुराकर सह जाती है, उफ़ तक नहीं करती।

    क्यों? सिर्फ़ इस उम्मीद में कि शायद कभी तुमसे उसे भी वही प्यार मिले जो तुम अपने तीनों बच्चों को देती हो। पर तुम्हें कभी उस मासूम बच्ची पर प्यार तो क्या, दया तक नहीं आती। मैं तो उसे यहाँ लाया था ताकि उसे भी माँ का प्यार मिल सके, पर मुझे नहीं पता था कि तुम्हारे दिल में उसके लिए इस क़दर नफ़रत भर जाएगी कि तुम उस मासूम सी बच्ची का जीना मुश्किल कर दोगी।

    बहुत गलत कर रही हो तुम उसके साथ और एक न एक दिन इसका एहसास तुम्हें ज़रूर होगा। कहना नहीं चाहता, पर भगवान करे कि तुम्हारे हर किये की सज़ा मिले तुम्हें, जितना दुख तुम उस बच्ची को दे रही हो, उससे कहीं गुना ज़्यादा तुम खुद भुगतो।

    फिर से किसी बात पर तुमने उसे बाथरूम में बंद कर दिया ना, कोई बात नहीं, तुम्हें उससे प्यार न सही, पर मेरी जान बसती है उसमें। अब से वो हर वक़्त मेरे साथ रहेगी। उसे तुम्हारे हवाले करने की गलती जो मैंने सालों पहले की थी, अब उसे सुधारकर ही रहूँगा।"

    वो गुस्से से उन्हें घूरते हुए जाने लगे, तो आंटी पीछे से चीखी, "जाइये, मैं भी देखती हूँ कैसे जाती है वो आपके साथ? इतने सालों से मुफ्त की रोटी तोड़ रही है, तो क्या अब घर के कामों में मेरा हाथ नहीं बँटा सकती? वो कहीं नहीं जाएगी, देख लीजियेगा आप। हर बार आपकी नहीं चलेगी। एक तो इस बोझ को मेरे सर पर लाकर बिठा दिया है और चाहते हैं कि वो महारानियों जैसे आराम फ़रमाए और मैं सारा दिन नौकरों के तरह खटुँ, मैं ऐसा कभी नहीं होने दूँगी।"

    वो गुस्से में पीछे से चिल्लाती रही, पर अंकल न तो रुके, ना ही उन्होंने पलटकर कुछ जवाब दिया। वे सीधे उस कमरे में चले गए, तो आंटी गुस्से में दनदनाते हुए नीचे बने बड़े से कमरे में चली गई। अंकल ने जाकर दरवाज़ा खोला, तो अंदर बैठी कंचन, जो चूहे के डर से बाल्टी को उल्टी करके उसके ऊपर चढ़कर दुबककर बैठी रो रही थी, उसने आवाज़ सुनकर सर उठाकर देखा।

    अंकल ने जब उस बच्ची का आँसुओं से भीगा चेहरा, लाल आँखें, काँपते लबों को देखा, तो उनकी आँखें नम हो गईं। वो बच्ची आँखों में ढेरों आँसू कैद किए, कतराई नज़रों से उन्हें देखने लगी। अंकल का सब्र अब जवाब दे गया। वे भागकर उसके पास पहुँचे और उसे अपने सीने से लगा लिया, तो कंचन उनके सीने से लगकर रोते हुए बोली,

    "मैंने कुछ नहीं किया चाचा जी, आशा मम्मी-पापा की फ़ोटो ले गई थी, मैं वही लेने गई थी। मैंने उसके कोई खिलौने नहीं चुराए। मैं सच कह रही हूँ।"

    वो बिलखकर रोने लगी और बस यही कहती रही। अंकल ने उसे खुद से अलग करके उसके आँसुओं को साफ़ करते हुए बड़े प्यार से कहा, "हमें पता है बेटा, हमारी कंचन कभी कोई गलत काम नहीं करती। चलिए, रोना बंद कीजिए, अब हम आ गए हैं ना, अब कोई आपको कुछ नहीं कहेगा।"

    उन्होंने किसी तरह कंचन को चुप करवाया, उसका मुँह-धुलवाया, उसके कपड़े बदले जो पसीने से पूरे भीग गए थे और फिर उसे अपने साथ बाहर हॉल में ले गए। सुलोचना जी (कंचन की चाची) और जगदीश जी (कंचन के चाचा) की बीवी अपने तीनों बच्चों को लेकर जा चुकी थी। जगदीश जी कंचन को लेकर किचन में गए, फिर खाना देखते हुए बोले, "हमारी गुड़िया को भूख लगी है?"

    "सुबह से कुछ नहीं खाया।" कंचन ने उदासी भरी आवाज़ में कहा। उसकी बात सुनकर जगदीश जी की आँखें भर आईं। उन्होंने प्यार से उसके बालों को सहलाते हुए कहा, "चलिए, आज हम अपनी बच्ची को अपने हाथों से खाना खिलाएँगे।"

    वो खाना निकाल ही रहे थे कि पीछे से एक कठोर आवाज़ आई, "हम भी देखते हैं कि कैसे खिलाते है आप उसे।"

    जगदीश जी और कंचन दोनों ही आवाज़ सुनकर चौंक गए।

    coming soon.......

  • 3. तलब तेरे प्यार की - Chapter 3

    Words: 2597

    Estimated Reading Time: 16 min

    सुबह से कुछ नहीं खाया था।" कंचन ने उदासी भरी आवाज़ में कहा। उसकी बात सुनकर जगदीश जी की आँखें भर आईं। उन्होंने प्यार से उसके बालों को सहलाते हुए कहा, "चलिए, आज हम अपनी बच्ची को अपने हाथों से खाना खिलाएँगे।"

    कंचन ने सर उठाकर उन्हें उदास नज़रों से देखा। उन्होंने बड़े प्यार से कहा, "सॉरी बच्चे, गलती आपकी नहीं, हमारी है। हमने आपकी ज़िम्मेदारी ले तो ली कि आपको माँ-बाप का प्यार देकर नाज़ों से पालेंगे, पर हम अपने दोस्त को दिया वचन निभा नहीं पा रहे। हमें लगा था सुलोचना आपको भी अपने बच्चों के तरह ही पालेंगी, आपको माँ का प्यार देंगी, पर हम गलत थे।

    नहीं जानते थे कि ये औरत इतनी संगदिल है कि एक छोटी सी बच्ची से उसका बचपन छीन लेगी। हम भी मजबूर हैं; आपको कहीं और भेज नहीं सकते और अगर उन्हें कुछ कहते हैं तो वो घर छोड़कर जाने की धमकी देती हैं। माँ-पापा को क्या कहेंगे, ये सोचकर हम उनके हर अत्याचार को देखकर भी चुप रह जाते हैं। आपको जो प्यार देने का वादा किया था हमने, वो आपको नहीं दे पा रहे। माफ़ कर दीजियेगा अपने चाचा को, वो आपको वो खुशी नहीं दे पा रहे जिन पर आपका हक़ है।

    पर चाहे कुछ भी क्यों न करना पड़े, हम आपको खूब पढ़ाएँगे ताकि आप आगे बढ़ सकें और इस नर्क से आपको छुटकारा मिल सके। जैसे भी कर लें, बस आप अपने पैरों पर खड़ी हो जाइये, उसके बाद हम आपको यहाँ से दूर भेज देंगे। आपको सारी ज़िंदगी इन अंधेरों में नहीं काटने देंगे। कल से हम आपको इनके अत्याचारों को सहने के लिए यहाँ रहने ही नहीं देंगे। हमारी गुड़िया हर वक़्त हमारे साथ रहेगी; हमारी आँखों के सामने अब कभी कोई आपको परेशान नहीं करेगा। बस थोड़ी सी हिम्मत रखिये; भले ही आपकी चाची आपको प्यार न करती हो, पर आपके चाचा की जान है आप, वो अब आपको और इन तकलीफों को नहीं सहने देंगे।

    अब से आप हर वक़्त हमारे साथ रहेंगी, हमारे साथ दुकान चलेंगी, मन लगाकर पढ़ाई करेंगी। आपको अपने पापा जैसा बनना है, किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना। हम जो भी कर रहे हैं, बस आपके लिए ही कर रहे हैं ताकि आपको बेहतर भविष्य दे सकें; दिन-रात मेहनत करते हैं सिर्फ़ आपके लिए और अब आपको खुशियाँ ज़रूर मिलेगी। यहाँ कोई आपसे प्यार नहीं करता, तो अब से आप अपने चाचा के साथ रहेंगी।"

    "नहीं चाचा जी, मैं आपके साथ नहीं जा सकती; अगर मैं घर पर नहीं रहूँगी तो सारा काम चाची को करना पड़ेगा, फिर वो आप पर गुस्सा करेंगी और मैं नहीं चाहती कि आपकी उनसे लड़ाई हो। चाची मुझसे प्यार नहीं करती, तो कोई बात नहीं, आप तो मुझसे प्यार करते हैं, मैं उसी के सहारे रह लूँगी। मैं आपसे वादा करती हूँ, मैं खूब मन लगाकर पढ़ाई करूँगी, अपने पैरों पर खड़ी होऊँगी और फिर आपकी मदद भी करूँगी। आपको इतना काम नहीं करना पड़ेगा।" उस छोटी सी बच्ची की समझदारी भरी बातें सुनकर जगदीश जी के होंठों पर गर्व भरी मुस्कान फैल गई।

    "बहुत समझदार है हमारी गुड़िया तो, हम बहुत खुशनसीब हैं जो आप हमें मिलीं; हम इतनी प्यारी और समझदार बेटी पाकर धन्य हो गए। आपकी चाची मूर्ख है; उन्हें अभी समझ नहीं आ रहा कि किस हीरे को ठुकरा रही है वे, पर एक दिन उन्हें आपकी अहमियत का पता ज़रूर चलेगा, देखियेगा फिर वो भी आपको ऐसे ही प्यार करेंगी जैसे आपके चाचा जी करते हैं।"

    उनकी बात सुनकर कंचन फ़ीका सा मुस्कुरा दी। सिर्फ़ दो साल की ही थी जब इस रोती-बिलखती बच्ची को सड़क से उठाकर जगदीश जी घर लाए थे, इस उम्मीद के साथ कि शायद सुलोचना जी की ममता का कुछ हिस्सा इसे भी मिल जाए और वो उसे भी अपनी बच्ची की तरह ही नाज़ों से पालें, पर जब उसे लेकर उन्होंने घर में कदम रखा तो उनका रिएक्शन तो बिल्कुल उलट निकला। उन्होंने उस मासूम सी दो साल की बच्ची को घर से निकालने को कह दिया, यहाँ तक कह दिया कि अगर उन्होंने उस बच्ची को घर में रखा तो वो घर छोड़कर चली जाएँगी।

    जगदीश जी तो बुरा फँसे थे। जिस बच्ची को अपनी ज़िम्मेदारी बनाकर अपने जिगरी यार को उसको नाज़ों से पालने का वादा करके अपने साथ लेकर आए थे, उसी बच्ची को दर-बदर की ठोकरें खाने के लिए दुनिया की भीड़ में अकेला कैसे छोड़ सकते थे? पर तब सुलोचना जी दूसरी बार माँ बनने वाली थीं; ऐसे में उन्हें भी घर से जाने को कैसे कहें, ये भी एक बहुत बड़ी समस्या थी, पर उन्होंने बिना पल गँवाए कंचन को चुना था, जिसका नतीजा ये हुआ कि सुलोचना जी अपनी बेटी को लेकर घर से चली गईं।

    अगले नौ महीनों तक उन्होंने न तो जगदीश जी से बात की और न ही वापिस लौटीं। जगदीश जी कंचन को संभालते, काम भी करते और घर भी संभालते। उस दो साल की बच्ची को कुछ समझ नहीं थी, पर इतना पता था कि बस उसके चाचा ही उससे प्यार करते हैं और वो बच्ची छोटी सी उम्र में ही काफ़ी समझदार हो गई थी।

    कंचन तीन साल की हो गई थी जब जगदीश जी के पेरेंट्स सुलोचना जी को वापिस घर लाए थे। परिवार में बहुत झगड़े हुए; तब कहीं जाकर सुलोचना जी ने कंचन को घर में रखने के लिए स्वीकृति दी, पर सिर्फ़ मजबूरी में, दिल से तो वो उससे खूब नफ़रत करती थीं। उन्होंने जगदीश जी के मम्मी-पापा के ज़रिये उन्हें मजबूर किया कि वो कंचन के मामले में उनसे कभी कोई बहस नहीं करेंगे; जो वो करेंगी, करने देंगी। वो भी क्या करें, उन्हें सब मानना ही पड़ा। धीरे-धीरे वक़्त बीतने लगा।

    कंचन बड़ी होने लगी, पर उसे कभी सुलोचना जी का प्यार नहीं मिला; वो सब करती, उनकी हर बात मानती, बस एक उम्मीद से कि कभी वो प्यार से उसके सर पर भी अपना हाथ फेर देंगी, पर वो हाथ उठाती तो सही, लेकिन उसे मारने के लिए। पहले उसे उन्होंने अपने बच्चों की आया बनाया, जो दिन-भर उन्हें संभालती, घर का सब काम करती, जबकि उसकी खुद की उम्र ज़्यादा नहीं थी। दिन-भर सबके अत्याचार सहती, पर कभी कुछ नहीं कहती थी; बस जब जगदीश जी घर आते, तभी उसे प्यार भरे दो बोल सुनने का मौक़ा मिलता और वो उसी से खुश भी हो जाती।

    जगदीश जी कभी उसके लिए कुछ खाने को लाते, तो चाची के कहने पर कंचन खुशी-खुशी उसे उन तीनों को दे देती। उसके लिए खिलौने आते, तो भी तीनों उससे छीन लेते और वो कुछ नहीं कहती। आशा के पुराने कपड़ों को पहनकर भी वो संतुष्ट रहती, कभी कोई शिकायत नहीं करती थी। छोटी सी उम्र में वो ये बात समझ गई थी कि ये उसका घर नहीं, यहाँ किसी को उससे प्यार नहीं।

    अगर चाचा जी उससे इतना प्यार नहीं करते, तो शायद या तो वो अब तक मर गई होती या इन्होंने उसे घर से निकाल फेंका दिया होता। वो चुपचाप सब करती, बदले में कुछ माँगती भी नहीं, जो मिलता उसी में खुश हो जाती। जगदीश जी सारे दिन का प्यार बस कुछ ही घंटों में उस पर लुटा देते थे। जब से घर में कदम रखते, बस उसके साथ रहते, इसलिए उनके खुद के तीनों बच्चों को कंचन से जलन होती और उसी का बदला लेने के लिए वो हमेशा उसे फँसा देते और वो बेचारी कोई गलती होते हुए भी हमेशा सज़ा भुगतती और आखिर में जगदीश जी ही उसे बचाते, फिर उसे खूब लाड़ करते और वो भी उनके प्यार के आगे सभी कड़वी बातों, दुख-दर्द को भुला देती।

    इतनी सी उम्र में वो काफ़ी समझदार हो गई थी; आखिर ज़िंदगी की ठोकरों को खाकर उसने संभलना सीख लिया था, बस अभी बच्ची थी तो आँसू बाहर आ ही जाया करते थे, बस किसी से कोई शिकायत नहीं करती थी, कोई उसे कितना ही दर्द दे, वो बस उसे प्यार लौटाती थी, उन्हें खुश रखने की हर मुमकिन कोशिश करती थी। पर उसके खुद के हिस्से में हमेशा दर्द ही आता था और उस छोटी सी बच्ची ने दर्द से नाता जोड़ लिया था।

    जगदीश जी ने जब खाना देखा, तो उस बासी बची हुई रोटी वाली प्लेट देख उनका चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। उन्होंने उसे डस्टबिन में डाल दिया और बाकी खाना देखा तो बस चार रोटियाँ रखी थीं। उन्होंने थाली में खाना निकाला और उसे लेकर बाहर हॉल में चले गए। उसे सोफ़े पर बिठाकर बड़े प्यार से उसे खाना खिलाने लगे। वो भी चुपचाप खाती रही। दो रोटियाँ उन्होंने उसे खिलाईं और दो खुद ने खाईं, फिर दूध देखा तो बस एक ही ग्लास दूध बचा था, उन्होंने वो भी उसे पिलाया।

    कंचन उनके साथ ही किचन में चली गई, पर उन्होंने उसे एक काम छूने नहीं दिया। बर्तन धोने के बाद वो उसे लेकर छत पर चले गए। ज़मीन पर ही चटाई बिछाकर बिस्तर किया और उसके सर को अपनी गोद में रखकर बैठ गए। कंचन उनके गोद में सर रखे सिकुड़कर लेट गई। जगदीश जी उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे परियों की कहानी सुनाने लगे। कंचन को ऐसे ही सोने की आदत थी; जब से वो इस घर में आई थी, उसकी रात ऐसे ही हुआ करती थी। तो वो जल्दी ही गहरी नींद में सो गई। जगदीश जी भी उसके पास ही लेट गए।

    अगले दिन उनकी नींद जल्दी खुल गई। उन्होंने उसके माथे को प्यार से चूम लिया, फिर फ़्रेश होने नीचे चले गए। उनके वहाँ से जाते ही सुलोचना जी दरवाज़े के ओट से निकलकर बाहर आ गईं, जैसे वो इसी पल का इंतज़ार कर रही हों। वो अब छत पर आ गईं और कंचन को देखा जो सुकून से सोने में लगी थी। वो शैतानी ढंग से मुस्कुराने लगीं और अगले ही पल बाल्टी भर पानी उसके ऊपर फेंक दिया; तो कंचन हड़बड़ाहट में उठकर बैठी।

    "बहुत आराम कर लिया, चल अब चलकर काम कर; अगर तू ऐसे ही बिस्तर पर पड़ी रहेगी तो घर का काम क्या तेरा बाप करेगा? चल अब जल्दी उठकर नीचे आ, बहुत काम पड़ा है करने को। जब देखो महारानी के तरह पड़ी रहती है यह, नहीं कभी हाथ-पैर भी चला ले, बस मुफ़्त की रोटियाँ तोड़नी हैं इन महारानी को तो। अब उठती है या आरती उतारू अभी तेरी?" कंचन को अब भी बैठा देख उन्होंने धमकी भरे लहज़े में चिल्लाकर कहा; तो कंचन डर कर जल्दी से खड़े होते हुए बोली,

    "बस पाँच मिनट में आई चाची, मैं सब कर लूँगी, बस कपड़े बदल लूँ।"

    सुलोचना जी ने उसे गुस्से से घूरा और उसको कोसते हुए वहाँ से चली गईं। कंचन ने गीला बिस्तर देखा, फिर सबको समेटकर टब में डाल दिया ताकि बाद में धो ले और खुद स्टोर रूम में चली गई। कुछ ही देर में वो किचन में खाना बना रही थी। वो सात साल की बच्ची गैस के आगे खड़ी ऐसे खाना बना रही थी जैसे सालों का एक्सपीरियंस हो, चेहरे पर कोई रोष भाव नहीं, एकदम शांत मासूम सा चेहरा। उसने पुराने से कपड़े पहने हुए थे और रोटियाँ बना रही थी, पर मन शायद कहीं और ही खोया हुआ था।

    जगदीश जी नहा-धोकर ऊपर गए तो वहाँ बिखरा पानी देखकर ही समझ गए कि आखिर यहाँ हुआ क्या होगा, क्योंकि ये तो उनके लिए रोज़ का नाटक बन गया था। जब कभी कंचन जल्दी नहीं उठ पाती तो सर्दी हो या गर्मी, उसे ऐसे ही उठाया जाता था और उसे घर से न निकाल दे इस डर से वो सब चुपचाप सहते रहते थे। आज भी वो चुप रहे। सब बिस्तर धोकर उन्हें सूखने को डाल दिया, फिर नीचे पहुँचे और उसे किचन में देख नाराज़गी से बोले, "आप यहाँ क्या कर रही हैं? स्कूल नहीं जाना आपको?"

    उनकी बात सुनकर कंचन ने उदास नज़रों से उन्हें देखा; तभी वहाँ एक कड़क आवाज़ गूंज उठी, "नहीं, अब से ये कहीं नहीं जाएगी, घर में रहकर मेरा हाथ बटाएगी।"

    उनकी बात सुनकर कंचन की आँखों में आँसू भर गए। उसने अपना सर झुका लिया और अपने चाचा से धीरे से बोली, "चाचा जी, मुझे भी स्कूल जाना है।"

    "उनसे क्या कहती है? तुझे क्या लगता है उनसे जो चाहेगी वो तुझे मिल जाएगा? नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं होगा, तू अब से यहीं घर में रहकर काम करेगी।"

    "क्यों बच्ची के पीछे पड़ी हो? सब तो तुम्हारी ही मर्ज़ी से होता है। अगर बच्ची पढ़ना चाहती है तो इसमें दिक्कत क्या है?"

    "दिक्कत बस इतनी है कि अगर ये भी स्कूल जाएगी तो काम कौन करेगा, इसलिए अब से ये स्कूल नहीं जाएगी और ये मेरा आखिरी फ़ैसला है।"

    "अगर तुम्हारी यही ज़िद है तो तुम भी कान खोलकर सुन लो; अगर कंचन स्कूल नहीं जाएगी तो तुम्हारे बाकी बच्चों को भी स्कूल जाने का कोई हक़ नहीं है और अगर वो स्कूल जाएँगे तो कंचन भी स्कूल ज़रूर जाएगी। तुम्हारी सारी ज़ादती मैं चुपचाप सहता हूँ, पर इस बार मैं चुप नहीं रहूँगा।" जगदीश जी ने बेहद गुस्से में कहा।

    दोनों को लड़ता देख अब कंचन बीच में आ गई, "चाची जी, मैं सुबह जल्दी उठकर सब काम कर दूँगी, बाकी काम स्कूल से आकर कर लूँगी। आपकी सब बात मानूँगी, बस मुझे स्कूल जाने दीजिये।"

    उसकी बात सुनकर सुलोचना जी दनदनाते हुए वहाँ से चली गईं। अब जगदीश जी ने उसके तरफ़ कदम बढ़ाया; तभी सुलोचना जी की आवाज़ उनके कानों में पड़ी, "अगर वक़्त पर काम ख़त्म किया, तभी स्कूल जाने को मिलेगा और अगर आपने बीच में कुछ कहा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा और एक बात, आप इसका साथ नहीं देंगे, उसे पढ़ना है तो वो खुद सब करेगी।"

    उन्होंने जगदीश जी को घूरते हुए, जिनके भावों में कुछ ख़ास नहीं बदला था, वहाँ से चली गईं। जगदीश जी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "जाइये, जाकर तैयार हो जाइये, हम आपको छोड़ने चलेंगे।"

    "हम चले जाएँगे चाचा जी, चाची जी फिर गुस्सा करेंगी। बस थोड़ी सी रोटियाँ बची हैं, बना लूँ फिर चली जाऊँगी।" जगदीश जी अपनी बेबसी देख बेहद दुखी थे। वो मायूस होकर लौट गए। कंचन रोटियाँ बना रही थी; तभी वहाँ एक लड़का आया जो कोई पाँच साल का था, उसके पीछे एक और लड़का था जो पहले वाले लड़के जितना ही बड़ा लग रहा था। दोनों ने एक-दूसरे को देखा और उनके चेहरों पर शैतानी मुस्कान फैल गई। अब बड़ा वाला लड़का आगे आ गया; उसने कंचन के पास आकर बेरुखी से ऑर्डर देते हुए कहा, "रोटी दे।"

    आवाज़ सुनकर कंचन ने पीछे मुड़कर देखा, फिर हल्की मुस्कान के साथ दो रोटियाँ उसकी प्लेट में डाल दीं। इसके साथ ही लड़के ने प्लेट छोड़ दी और चिल्लाने लगा, "माँ, माँ देखो, इस कंचन की बच्ची ने मेरा हाथ जला दिया।"

    वो ऐसे रोने लगा जैसे सच में उसका हाथ जाने कितना ही जल गया हो और साथ में चिल्लाता रहा। उसके चिल्लाने में उसका भाई अंशु भी शामिल हो गया। उनकी आवाज़ सुनकर सुलोचना जी भी वहाँ आ गईं।

    कंचन तो कुछ समझ तक नहीं सकी और माँ-बेटों ने सब जानकर ही किया था। दोनों ने एक-की-चार लगाकर कंचन की शिकायत की; तो उन्होंने उसकी कलाई पकड़कर उसे गरम तवो से चिपका दिया और गुस्से से बोलीं, "हिम्मत कैसे हुई तेरी? तूने मेरे बेटे का हाथ जलाया, अब खुद ये दर्द भुगत।"

    जैसे ही उसके नाज़ुक से हाथ तवो से टच हुए, कंचन की आँखों से आँसू बहने लगे और उसकी दर्द भरी चीख वहाँ गूंज उठी।

    इसके साथ ही बिस्तर पर लेटी कंचन की आँखें खुल गईं। आँखों से अश्रुधारा बहने लगी, पसीने से भीगा चेहरा जिसका रंग उड़ा हुआ था। दर्द से सराबोर चेहरा, जो जाने कितने ही दर्द को खुद में समाये बैठा था। कंचन घबराकर उठकर बैठ गई और उसने नज़रें घुमाईं तो अपने बगल में सुकून से सोती वीरा को देख, उसने अपने पसीने को पोछा, फिर पानी पीने के बाद प्यार से उसके चेहरे पर हाथ फेरा।

    आगे…

  • 4. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 4

    Words: 2265

    Estimated Reading Time: 14 min

    कंचन अपनी बीती दर्द भरी ज़िंदगी को अपने सपने के रूप में एक और बार जीते हुए घबराकर उठकर बैठ गई। उसने अपने पसीने को पोछा। फिर थोड़ा पानी पीने के बाद नज़रें घुमाईं। अपनी ही दुनिया में मस्त सोती वीरा को देख उसने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा,

    "आपकी मम्मा बहुत बदनसीब है बेटा। बचपन में उनके सर से उनके माँ-बाप का साया उठ गया। जिस घर में बचपन बीता, उन्होंने चंद पैसों के लिए, अपने फ़ायदे के लिए मुझे किसी निर्जीव समान के तरह बेच दिया उस विकास के हाथ। पर किस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। उसके लिए दुल्हन के तरह सजी, पर उसकी हो न सकी। और जिसने मुझे अपने रंग में रंग दिया, उससे भी मुझे मेरी किस्मत ने इतना दूर कर दिया कि अब वापिस कभी उनके पास नहीं जा सकती। जब आपके आने की खबर मिली, तब तक सब ख़त्म हो गया था।"

    शायद मैं भी ख़त्म हो चुकी होती, पर आप आईं मेरी ज़िंदगी में उजला सवेरा बनकर। आप मेरी ज़िंदगी का वो सूरज हैं जिससे मेरा जहाँ रोशन है। मैं जानती हूँ आप अपने पिता को बहुत मिस करती हैं, पर बेटा अब आपको भी उनके बिना ही जीना सीखना होगा, जैसे आपकी मम्मा ने सीख लिया था। मेरे पास तो माँ-बाप दोनों ही नहीं थे, पर आपके पास तो आपकी मम्मा है। और ये आपकी मम्मा का आपसे वादा है कि वो कभी किसी दर्द को आप तक पहुँचने नहीं देगी। मेरी बदकिस्मती को मैं आपको नुकसान नहीं पहुँचाने दूँगी। किस्मत ने मुझसे हर कदम पर मेरे अपनों को छीना है, पर मैं आपको नहीं खो सकती।

    आप मेरी जीने की वजह हैं। अगर उन्हें गलती से भी पता चल गया कि आप उनकी बेटी हैं तो वो आपको मुझसे छीन लेंगे। इसलिए मैं उन्हें ये बात कभी नहीं बताऊँगी, कभी भी नहीं। आपकी बस मम्मा है और मम्मा हमेशा आपके साथ रहेंगी, आपको दुनिया की हर खुशी देंगी, बस आपके पिता को आपको नहीं दे सकती। उनके पास जाने के सभी रास्ते मैंने खुद अपने हाथों से बंद कर दिए हैं। अब वापसी की कोई संभावना ही नहीं।

    नफ़रत करते हैं वो मुझसे और ये नफ़रत अब कभी ख़त्म नहीं होगी। सही ही है उनकी नफ़रत, मैंने काम ही ऐसे किए हैं, मैं उनके प्यार के लायक थी ही नहीं, तभी तो मुझसे उनका प्यार, उनका साथ, सब छिन गया। आज भी वो दिन याद है मुझे जब आपसे, आपके पिता से मेरी पहली मुलाक़ात हुई थी। बहुत गुस्सा आया था तब मुझे उन पर, नफ़रत करने लगी थी उनसे कि कैसे वो बिना मुझे जाने-पहचाने मेरे इतने करीब आ गए थे। बहुत कोशिश की थी उन्होंने मुझे बताने की कि वो मुझसे प्यार करते हैं, पर कैसे विश्वास करती मैं उन पर? जब जिनके बीच सालों से रह रही थी, कभी उन्होंने ही मुझे प्यार करना तो दूर, मेरी इज़्ज़त तक नहीं की, तो उस अजनबी से क्या उम्मीद रखती मैं?

    प्यार शब्द से भरोसा उठ चुका था मेरा, दिल में डर था कि अगर कोई मेरे करीब आया तो वो बीच सफ़र में मुझे छोड़कर चला जाएगा और मैं तड़पती रह जाऊँगी....... और देखो, सच ही सोचा था मैंने, तड़प ही तो रही हूँ उनसे दिल लगाकर।

    मेरा बस एक ही सपना था जो बचपन से मेरी आँखों ने देखा था: अपने पैरों पर खड़ा होना और चाचा जी की मदद करना। पर अब तो सब बहुत पीछे छूट गया है। जाने वो कैसे होंगे? मैं तो सबसे बहुत दूर निकल आई। क्या करती जब उस दर से ठुकराई गई जहाँ मुझे ज़िंदगी में पहली बार प्यार नसीब हुआ था, तो और कोई ठिकाना ही नहीं बचा था मेरे पास। उस घर वापिस जाती भी तो कैसे, जो कभी मेरा था ही नहीं, जहाँ के लोगों के लिए मैं बस एक समान थी, जिसका इस्तेमाल वो अपनी सहूलियत के हिसाब से करते, दो वक़्त की रोटी के लिए मुझे धुतकारते, मारते-पीटते, जाने कैसी-कैसी बातें सुनाते। उस घर में वापिस जाने की हिम्मत नहीं कर सकी। दोबारा उन पर बोझ नहीं बनना चाहती थी, या शायद डर था कि वहाँ से भी मुझे ठोकर ही मिलेगी, इसलिए वहाँ गई ही नहीं…

    खैर, वो तो अतीत है, उसके बारे में क्या सोचना। मेरा आज तो आप हैं, आप ही मेरी ज़िंदगी हैं और आप ही मेरी दुनिया हैं। बस आप कभी मम्मा को अकेला छोड़कर मत जाना, मम्मा आपसे बहुत प्यार करती है। सबके बिना तो ज़िंदा रह गई, पर अगर आप भी मुझसे दूर चली गई तो मैं मर जाऊँगी। आपको पता है आप बिल्कुल अपने पापा की कॉपी हैं, बस आपका चुलबुला नेचर शायद शान पर चला गया है। हमेशा उसी के साथ तो रहती हो, वरना आपके पापा तो बहुत सीरियस रहा करते थे, पर आपका गुस्सा, आपकी पसंद-नापसंद, आपकी ज़िद करने की आदत, सब उनके तरह ही तो है।

    जब आप पास होती हैं तो लगता ही नहीं कि वो मुझसे कहीं दूर हैं। आपका होना उनकी मौजूदगी का एहसास करवाता है। लगता है जैसे यही हैं वो भी मेरे पास, मेरे साथ। पता नहीं कैसे संभाल पाऊँगी मैं आपको, डरती हूँ कहीं आपको भी खो न दूँ, इसलिए सबकी नज़रों से बचाकर रखती हूँ आपको। बस आप हमेशा यूँ ही मेरे साथ रहिएगा तो आपकी मम्मा भी साँस ले पाएंगी।"

    उसने झुककर उसके माथे को चूमा। उसकी आँखों में आँसू कैद थे जो अब उसके गालों को भीगा रहे थे।


    वहीं दूसरी तरफ, दिल्ली के उस बड़े से पैलेस में मौजूद वो आदमी अपने कमरे में बैठा था। हर तरफ बस अंधेरा ही अंधेरा था। वो बेड से सर टिकाए बैठा अपने अतीत के पलों में खो गया था।


    दिल्ली सनशाइन होटल

    ये दिल्ली का जाना-माना (काल्पनिक) पाँच सितारा होटल है, जिसमें अमीर लोग एंट्री ले पाते हैं। इसी होटल के एक आलीशान प्रेसिडेंशियल स्वीट के बाहर एक लड़का, लगभग 5.9 फुट ऊँचा, गोरा रंग, हैंडसम चेहरा, आकर्षक काँचे जैसी आँखें, पतले गुलाबी होंठ, पर चेहरे पर मुस्कान नहीं थी। चेहरे पर सख्ती, रौब और आँखों में दहकते लावा लिए वो उस कमरे को ऐसे घूर रहा था जैसे अपनी आँखों से ही उसे जलाकर भस्म कर देगा।

    ब्रांडेड, काले रंग का थ्री पीस सूट पहने, एकदम दमदार पर्सनालिटी और रौब जो उस पर जचता था, वो इस वक़्त बहुत ही कमाल का लग रहा था। हाथों में ब्रांडेड घड़ी और कपड़े ये बताने के लिए काफ़ी थे कि वो काफ़ी अमीर था और साथ ही गुस्सैल भी। वो लगभग 10 मिनट तक उस कमरे के बंद गेट को घूरता रहा। फिर उसने अपनी आँखें बंद करके खुद को शांत किया और कमरे का दरवाज़ा खोलकर कमरे में कदम रखा, तो पूरे कमरे में बस अंधेरा ही अंधेरा था।

    कोई भी चीज़ ढंग से नज़र नहीं आ रही थी। उस लड़के ने अब आगे बढ़ते हुए कहा, "Ms माया, आप यहीं हैं?"

    यही दोहराते हुए वो आगे बढ़ने लगा। वो पाँच कदम आगे आया ही था कि किसी ने पीछे से उसके सीने पर अपनी बाहों को लपेट दिया और उसके चौड़े कंधों पर अपना चेहरा टिका दिया। उसके ऐसा करते ही लड़के के एक्सप्रेशन बदल गए, गुस्से और नफ़रत से उसने अपनी मुट्ठियाँ कस लीं। फिर उसने एक झटके में ही हाथों को हटाकर उसको घुमाकर अपने सामने खड़ा कर दिया और गुस्से को दबाते हुए आराम से बोला, "What's this nonsense?"

    उसकी बात सुनकर वो लड़की, जिसका चेहरा काफ़ी खूबसूरत था, एकदम गोरी-चीटी, काली-काली झील सी आँखें, जिसमें कुछ अलग सा नज़र आ रहा था, और सिडक्टिव स्माइल जिसके साथ वो उस लड़के को देख रही थी, उसने स्ट्रिप वाली काली वन पीस घुटनों से ऊपर तक की ड्रेस पहनी हुई थी, जो काफ़ी रिवीलिंग थी। गला भी काफ़ी डीप था। चेहरे पर मेकअप थोड़ा और अपने दोनों टांगों को क्रॉस किए हुए वो उस लड़के को अपनी प्यासी नज़रों से देख रही थी। वहीं लड़के का चेहरा गुस्से से जल रहा था, फिर भी वो किलिंग लग रहा था।

    कोई भी लड़की उसको देखकर उस पर मर मिटे। लड़के का सवाल सुनकर लड़की ने स्टाइल से उसकी तरफ़ कदम बढ़ाया और उसकी गर्दन में अपनी बाहों को लपेटकर बड़ी ही अदा से बोली, "बेबी, पिछले कुछ दिनों से तुम कितने बिजी हो, हमें बात तक करने का वक़्त नहीं मिलता, इसलिए मैंने तुम्हें आज यहाँ बुलाया है ताकि हम साथ में कुछ अच्छा वक़्त बिता सकें।"

    ये कहते हुए वो उसके तरफ़ झुकने लगी, तो लड़के ने उसके हाथ को अपनी गर्दन पर से हटाकर उसको खुद से दूर करते हुए सख्ती से कहा, "बॉस, बॉस हूँ तुम्हारा, तो अपनी औक़ात भूलने की कोशिश मत करो। और ये जो तुमने मुझे झूठ बोलकर यहाँ बुलाया है और जैसी हरकतें तुम कर रही हो, तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है कि इसका अंजाम क्या हो सकता है।"

    उसकी बात सुनकर लड़की मुस्कुराई। फिर उसने अपनी ड्रेस की स्ट्रिप को कंधे से नीचे करते हुए कहा, "Ohh come on baby, वो बॉस-वॉस तो ऑफ़िस में है और अभी हम वहाँ नहीं हैं, एक फ़ाइव स्टार होटल के प्रेसिडेंशियल सुइट में हैं, तो हम क्लोज़ आ सकते हैं, तुम भी जवान हो और मैं भी हसीन हूँ, तो हम कुछ इंटरेस्टिंग तो कर ही सकते हैं, वैसे भी मैंने तुम्हें यहाँ बात करने के लिए बुलाया है, तो हम ड्रिंक करते हुए कुछ बातें तो कर ही सकते हैं।"

    ये कहते हुए उसने अपनी ड्रेस की स्ट्रिप को नीचे कर दिया था, जिससे ड्रेस हल्की सी और नीचे हो गई। अब वो और भी ज़्यादा रिवीलिंग हो गई थी, जिसे देखकर लड़के ने अपना चेहरा घुमा लिया था। माया उसके पास आ रही थी, तो उसने अपना हाथ आगे करके कहा, "बहुत बोल ली तुम, अब अपना मुँह बंद करो, वरना वो हाल करूँगा कि मौत भी तुम्हें देखकर थर-थर काँपेगी। ये जो चीप हरकतें करके तुम मुझे सिड्यूस करने की कोशिश तुम कर रही हो ना, वो बेकार है। वीर प्रताप सिंह नाम है मेरा, आज तक ऐसी कोई लड़की बनी ही नहीं जो मुझे झुकने पर मजबूर कर सके। मेरे तरफ़ आने का कोई रास्ता है ही नहीं, मैं वो लावा हूँ जिसके करीब जो भी आएगा वो जलकर राख हो जाएगा।"

    उसकी बात सुनकर माया ने मुस्कुराकर कहा, "तो मुझे जलना मंज़ूर है। ये सब छोड़ो, चलो ड्रिंक के साथ कुछ बातें करते हैं।"

    उसने उसका हाथ पकड़कर उसे सोफ़े पर बिठाया। अब वीर ने भी कुछ नहीं कहा, बस गहरी नज़रों से उसे देखता रहा। माया ने ब्रांडेड विस्की की बोतल उठाई और उसके सामने ज़रूरत से ज़्यादा झुकते हुए उसकी ड्रिंक बनाने लगी। वीर ने अपना चेहरा घुमा लिया क्योंकि झुकने से उसकी कंधे के नीचे का हिस्सा भी नज़र आने लगा था। माया ने दो ड्रिंक बनाए, फिर एक को अपने होंठों से लगाकर वीर के होंठों से छुवाने की कोशिश की, तो वीर ने नीचे रखा ग्लास उठाकर झट से उसे अपने लबों से लगा लिया।

    ये देखकर माया मुस्कुराई, फिर जाकर उसके सामने बैठ गई। उसने अपने बालों को पीछे की तरफ़ झटका और अपनी ड्रेस को ठीक करने के बहाने, उसको हल्का सा और नीचे कर लिया। फिर उसके सामने अपने एक पैर पर दूसरा पैर चढ़ाकर बैठ गई, जिससे उसकी गोरी-गोरी लंबी टांग खुलकर नज़र आ रही थी। इसमें कोई शक की बात नहीं थी कि उसका चेहरा और जिस्म दोनों ही भगवान ने बड़ी ही फ़ुरसत से बनाकर भेजा था। इस ड्रेस में वो काफ़ी सिडक्टिव लग रही थी।

    पर वीर को उसमें रत्ती भर इंटरेस्ट नहीं आ रहा था। वो उसे रिझाने की कोशिश करते हुए बार-बार अपने पोज़ेज़ बदल रही थी और हर बार अपने जिस्म की नुमाइश करते हुए उसे बड़ी ही अदा से देखते हुए ड्रिंक कर रही थी। वीर ने अपनी ड्रिंक ख़त्म की और ग्लास छोड़कर सीधे बोतल को ही अपने लबों से लगा लिया। ये देखकर माया की आँखें चमक उठीं, होंठों पर शैतानी मुस्कान खेल गई।

    कुछ ही मिनटों में वीर ने पूरी बोतल खाली कर दी, तो माया उठकर उसके तरफ़ बढ़ गई। वीर काफ़ी हद तक नशे में था। माया जाकर उसकी गोद में बैठ गई, उसने प्यार से उसके गाल को चूमा। इस बार वीर ने विरोध नहीं किया, बस अपनी नशीली आँखों से उसे देखता रहा। माया ने उसके कोट को उतार दिया, फिर उसकी शर्ट के बटनों को खोल दिया, जिससे उसकी मैस्क्युलर बॉडी और सिक्स पैक ऐब्स नज़र आने लगे। अब वो और भी ज़्यादा मैग्निफ़िशिएंट लग रहा था। माया ने उसकी ठुड्डी से होते हुए उसकी नाभि तक के हिस्से को अपनी उंगलियों से छूते हुए सिडक्टिव आवाज़ में कहा, "बेबी, लेट्स एन्जॉय टुनाइट, हैव सम फ़न।"

    इतना कहकर वो उसकी गोद में दोनों घुटने टिकाकर उसकी तरफ़ मुड़कर खड़ी हो गई, फिर उसकी गर्दन में अपनी बाहों को लपेटकर उसके तरफ़ झुकते हुए बोली, "You are looking so hot, I can't control myself, let's do that."

    इतना कहकर उसने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसे पैशनेटली किस करने लगी। उसका एक हाथ वीर के बालों और पीछे से उसकी गर्दन और पीठ पर घूम रहा था और दूसरे हाथ से वो उसकी शर्ट उतार रही थी। वीर एकदम शांत बैठा था, भावहीन सा, बस उसे देख रहा था। कुछ देर उसके लबों का रस चूसने के बाद माया ने नीचे बढ़ना शुरू किया, तो वीर ने उसे अपनी बाहों में उठा लिया और उठकर बेड की तरफ़ बढ़ गया। ये देखकर माया की खुशी का तो जैसे कोई ठिकाना ही नहीं रहा था। उसने खुशी-खुशी उसकी गर्दन में अपनी बाहों का घेरा बना दिया और उसे, होंठों पर मुस्कान सजाए देखने लगी।

    वीर उसे बेड के पास ले गया, फिर उसने उसे बेड पर लिटाया और जैसे ही वो उठने को हुआ, माया ने उसकी गर्दन में फँसी अपनी बाहों का इस्तेमाल करके उसे अपनी तरफ़ खींच लिया। वीर सीधे उसके ऊपर जा गिरा।


    क्रमशः…

  • 5. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 5

    Words: 2326

    Estimated Reading Time: 14 min

    वीर ने उसे बेड के पास ले जाकर बेड पर लिटाया। जैसे ही वह उठने को हुआ, माया ने अपनी बाहें उसकी गर्दन में डालकर उसे अपनी ओर खींच लिया। वीर सीधे उसके ऊपर गिर गया। एक बार फिर माया उसे किस करना चाहती थी, पर इस बार वीर की आँखों में आग धधक रही थी। उसने उसका हाथ झटक दिया और झट से खड़ा होकर गुस्से से चिल्लाया,

    "You are fired Ms माया, और मुझे अपना गंदा चेहरा दोबारा मत दिखाना, नहीं तो मैं तुझे मार डालूँगा, बदमाश!"

    इतना कहकर वह गुस्से में सोफ़े के पास गया, कोट पहना, बटन लगाए और दनदनाते हुए कमरे से बाहर निकल गया। माया कुछ समझ नहीं पाई। वह कन्फ़्यूज़ सी गेट की ओर देखते हुए बोली,

    "What's that? मुझे लगा था मैं तुम्हें अपने प्लान में सफलतापूर्वक फँसा चुकी हूँ।"

    वह कन्फ़्यूज़ सी उठकर बैठ गई।

    वहीं दूसरी ओर, वीर बहुत गुस्से में था। इतना कि अगर कोई उसके सामने आता, तो वह उसे बिना सोचे समझे मार डालता। वह गुस्से में होटल के एंट्रेंस तक पहुँचा और होटल से बाहर कदम बढ़ाया ही था कि उसकी किसी से टक्कर हो गई। वह काफी स्पीड में चल रहा था और सामने वाली शायद भाग रही थी, इसलिए उनकी टक्कर इतनी ज़ोरदार हुई कि लड़की के हाथ में पकड़ा गिफ़्ट नीचे गिर गया। लड़की भी गिरने लगी, पर वीर ने उसकी कमर पर हाथ रखकर उसे अपने करीब खींच लिया।

    उसकी सख़्त आँखें एक जोड़ी घबराई हुई आँखों से टकरा गईं, जो घबराई हुई सी उसकी आँखों में झाँक रही थीं। वे भूरी आँखें, जिनमें जादू सा था, देखकर वीर का सारा गुस्सा उतर गया और वह उनकी गहराइयों में डूबने लगा। लड़की की हाइट लगभग पाँच फुट दो इंच लग रही थी। वह वीर से छोटी थी, इसलिए वह अपना सिर उठाकर उसे देख रही थी। गेहुँआ रंग, भूरी नशीली आँखें और आकर्षक चेहरा। पतले-पतले गुलाबी होंठ, दूध सी गोरी ना होते हुए भी बेहद हसीन और दिलकश लग रही थी।

    उसके चेहरे में लोगों को अपनी ओर खींचने का जादू था, आँखों में अलग ही चमक थी, कुछ कर गुज़रने का जुनून था, पर अभी वह घबराई हुई लग रही थी। खूबसूरत तो थी ही, मासूम भी बहुत लग रही थी। शॉर्ट सिंपल कुर्ता और जीन्स पहने, वह काफी आकर्षक लग रही थी। जो काम माया की खूबसूरती नहीं कर पाई थी, वह इस लड़की की मासूमियत कर गई थी।

    वीर उसकी आँखों में डूबते हुए उसके चेहरे की ओर झुकने लगा, तो लड़की घबराकर अपना सिर पीछे करने लगी। वीर ने उसके सिर के पीछे हाथ रखा, उसकी कमर को मज़बूती से पकड़कर उसे हल्का ऊपर किया और उसके गुलाबी कोमल होंठों को अपने रफ़ होंठों से ढँककर उसे जोश से किस करने लगा। लड़की छूटने के लिए छटपटाती रही, पर सब बेकार। उसकी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि वह चाहकर भी खुद को आज़ाद नहीं कर पा रही थी।

    वीर नशे में था, शायद वह इस लड़की को छोड़ना ही नहीं चाहता था। आस-पास से गुज़रते लोग उन्हें देख रहे थे और कुछ तो फ़ोटो भी खींच रहे थे। पास ही कुछ पाँच-छः काले यूनिफ़ॉर्म पहने गार्ड्स खड़े थे, जो आँखें फाड़े हैरानी से वीर को देख रहे थे। वीर का किस इतना गहरा था कि लड़की साँस भी नहीं ले पा रही थी, पर वीर उसे छोड़ने को राज़ी नहीं था।

    लड़की की साँसें फूलने लगीं, तो उसने वीर के कॉलर को अपनी मुट्ठियों में जकड़ लिया। इसके साथ ही वीर ने उसे आज़ाद कर दिया। लड़की उससे दूर हटी और लंबी-लंबी साँसें लेने लगी। वीर ने उसकी ओर कदम बढ़ाया, तो लड़की पीछे हटते हुए गुस्से से बोली,

    "दूर-दूर रहो मुझसे! तुम अमीर हो, हर जगह तुम्हारी मर्ज़ी चलती होगी, पर मैं तुम्हारी गुलाम नहीं हूँ। जो जब जो मर्ज़ी आया, कर लिया। हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी मुझे छूने और किस करने की? चाहूँ तो अभी पुलिस को फ़ोन करके तुम्हें हवालात की हवा खिला दूँ, पर मेरे पास तुम जैसे लड़कों के मुँह लगने का वक़्त नहीं है। आइंदा अगर मेरे सामने भी आए तो तुम्हारी जान ले लूँगी, you bastard!"

    इतना कहकर वह गुस्से में जाने लगी, तो वीर ने आराम से कहा,

    "अब तो तुम्हारी ज़िंदगी के सभी रास्ते तुम्हें मुझ तक ही पहुँचाएँगे। भाग सको तो भाग लो, पर याद रखना, वीर प्रताप सिंह की नज़रों से बचकर निकलना किसी की बस की बात नहीं है।"

    उसकी बात सुनकर लड़की का खून खौल उठा। वह उसकी ओर मुड़ी और गुस्से से चिल्लाई,

    "पागल हो क्या? जाकर अपने दिमाग का इलाज करवाओ! तुम्हारे जैसे बदतमीज़ और सरफ़िरे आदमी तक पहुँचने का मुझे कोई शौक़ नहीं है और छिपना मैंने कभी नहीं सीखा। हिम्मत से मुश्किलों का सामना करना सीखा है मैंने और तुम्हें वार्निंग दे रही हूँ, अगर दोबारा मेरे आस-पास भी भटके तो अच्छा नहीं होगा तुम्हारे लिए।"

    इतना कहकर उसने गिफ़्ट उठाया और अंदर भाग गई। रिसेप्शन पर उसने गिफ़्ट दिया और बाहर आई तो वीर आस-पास कहीं नहीं था। यह देखकर लड़की ने एक गहरी साँस छोड़ी और आँसुओं को पोछते हुए वहाँ से भाग गई। उसके जाते ही पेड़ के पीछे से वीर बाहर आया। उसने उसे एक नज़र देखा, फिर अपने आदमियों की ओर मुड़कर उसे फॉलो करने का इशारा किया। इसके साथ ही वह गाड़ी लेकर उस लड़की के पीछे लग गया।

    वीर ने फ़ोन निकाला और किसी को कॉल लगाया। अगले दो मिनट में उसके सामने एक गाड़ी आकर रुकी। ड्राइवर ने बाहर निकलकर गेट खोला तो वीर पीछे बैठ गया और उसने अपने सेक्रेटरी को फ़ोन लगाया। दूसरी तरफ़ उसका सेक्रेटरी रितेश अपने घर में डिनर तैयार कर रहा था, तभी उसका फ़ोन बजा। वीर का नाम देखते ही उसने फ़ोन उठाकर कहा,

    "हैलो सर, आपकी मिस माया से बात हुई?"

    उसकी बात सुनकर वीर का चेहरा भावहीन हो गया। उसने सपाट लहज़े में कहा,

    "Ms माया अब हमारे साथ कभी काम नहीं करेंगी। मैंने उसका कॉन्ट्रैक्ट कैंसिल कर दिया है।"

    उसकी बात सुनकर रितेश के हाथ से कड़छी छूट गई, उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया। उसने घबराकर कहा,

    "सर, ये आप क्या कह रहे हैं? और आपने मिस माया का कॉन्ट्रैक्ट कैंसिल क्यों किया? आप जानते हैं ना, पिछले तीन सालों से वही हमारी मेन मॉडल रही है। एक महीने में हमें हमारा न्यू ब्राइडल कलेक्शन लॉन्च करना है, इस वक़्त उन्हें फ़ायर करना हमारी कंपनी के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है।"

    उसकी बात सुनकर वीर ने कड़क आवाज़ में कहा,

    "वह हमारे लिए काम करती थी, हम उसके गुलाम नहीं थे। जिस हिसाब से पिछले एक महीने से उनके नख़रे चल रहे हैं, अब वह हमारे लिए नुकसानदायक ही बन गई थी। एग्ज़िबिशन में अभी भी एक महीना बाकी है, कोई फ़्रेश चेहरा ढूँढ़ो, एकदम नेचुरल ब्यूटी जिसके हमारी ड्रेसेस पहनने से उनकी खूबसूरती बढ़ जाए और ये काम अगले एक हफ़्ते के अंदर हो जाना चाहिए। स्टूडियो का काम भी चेक कर लेना, कल आ रहा हूँ देखने कि क्या चल रहा है वहाँ।"

    उसकी बात सुनकर रितेश बहुत परेशान हो गया, लेकिन उसने आराम से जवाब दिया,

    "ओके सर, मैं कल से ही काम शुरू कर देता हूँ।"

    उसके इतना कहते ही वीर ने फ़ोन रख दिया, फिर सीट पर सिर टिकाकर अपनी आँखें बंद कर लीं। तभी एक कोमल सी आवाज़ उसके कानों में पड़ी,

    "वीर बाबा,"

    ये उसके ड्राइवर की आवाज़ थी। उनकी आवाज़ सुनते ही वीर के एक्सप्रेशन सॉफ़्ट हो गए। उसने अपनी आँखें बंद किए हुए ही अपनी मुस्कान के साथ कहा,

    "जी काका।"

    एक बार फिर आगे बैठे 40-45 साल के आदमी ने मिरर में उसके चेहरे को देखते हुए कहा,

    "बाबा, ये माया मेमसाहब तो वही हैं ना जिनके साथ आप परसों डिनर पर गए थे?"

    उनकी बात सुनकर वीर ने धीरे से कहा,

    "जी काका।"

    "फिर आपने उन्हें काम से क्यों निकाल दिया? क्या उनसे कोई गलती हो गई थी?" उसकी बात सुनकर वीर ने माया की हरकतें याद करते हुए नफ़रत से कहा,

    "काका, ये लड़कियाँ बहुत शातिर होती हैं, अमीर और हैंडसम लड़का दिखा ना कि उसे अपने जिस्म की नुमाइश करके अपने जाल में फँसाने की कोशिश शुरू कर देती हैं। उन्हें लगता है उनकी खूबसूरती और जिस्म किसी को भी उनमें खोने पर मजबूर कर सकता है, पर उन्हें ये नहीं पता कि कोई भी नशा तभी चढ़ता है जब उसको पिया जाए और जो बोतल खुद ही छलक रही हो, उसको होंठों से लगाकर कोई भी अपने कपड़े गंदे नहीं करना चाहेगा।

    चंद पैसों और फेम के लिए वो खुद को किसी के बिस्तर पर बिछाने तक के लिए तैयार हो जाती हैं, ख़ुद्दारी नाम की चीज़ का उनसे दूर-दूर तक कोई सरोकार ही नहीं है। जो मिले उसी में मुँह मार लो, ये एतबार करने लायक होती ही नहीं, औरत हर रूप में सिर्फ़ और सिर्फ़ मर्दों को धोखा देकर उनका इस्तेमाल करती है। उनसे जितना दूर रहो उतना ही अच्छा होता है, वरना वो एक न एक दिन आपको बर्बाद कर ही देती हैं। वैसे भी मेरे ऑफ़िस में कोई अपनी दादागिरी दिखाए, ये मुझे बर्दाश्त नहीं। ऐसे लोगों के लिए मेरी कंपनी में कोई जगह ही नहीं है।"

    उसके चेहरे पर अजीब सी घिन और नफ़रत झलक रही थी। उसकी बात सुनकर काका ने आगे कुछ नहीं कहा। वीर ने दोबारा अपनी आँखें बंद कीं, तो अब उसकी आँखों के सामने उस लड़की का चेहरा और उसकी भूरी आँखें आ गईं। उसके बाद उसे यूँ किस करना याद करते हुए उसके होंठ हल्के से खिंच गए, पर अगले ही पल उसको रोते हुए वहाँ से भागना याद आते ही उसने घबराकर अपनी आँखें खोलीं और खुद से ही बोला,

    "तुम्हारी आँखों में आए आँसुओं की वजह मैं हूँ। ज़िंदगी में पहली बार किसी के आँसुओं को देखकर इतना फ़र्क़ पड़ रहा है। कुछ तो था तुम्हारी उन भूरी आँखों में, उनमें डूबकर मैंने वो किया जिसको करने के बारे में मैं सोच भी नहीं सकता था, पर जो भी हो, अब तो तुम इन आँखों में आ गई हो, तो चाहे कितना ही दूर भाग लो, तुम्हारी ज़िंदगी के हर रास्ते को मैं ऐसे मोड़ूँगा कि वो मुझ पर आकर ही रुकेंगे। तुम्हारी ये आँखें, इनमें बस मैं ही मैं नज़र आऊँगा।

    आज तुम्हारे होंठों की तलब ने मुझसे वो करवा दिया जो आज तक सुंदर से सुंदर लड़कियों के जिस्म की नुमाइश करने के बावजूद भी वो मुझसे नहीं करवा पाई। तलब है मुझे तुम्हारी और तुम्हें तो मैं हासिल करके ही रहूँगा। वीर प्रताप सिंह के दिल में आग लगाने का काम तुमने किया है, तो अब इस आग में मेरे साथ-साथ तुम भी जलोगी। रंग तो साफ़ नहीं है, पर तुम्हारी आँखें बता रही थीं, दिल गंगाजल के तरह स्वच्छ और निर्मल है तुम्हारा।

    तुम्हारे जगह अगर कोई और होती तो शायद मेरे किस करने पर खुशी से पागल हो जाती, पर तुम उन सबसे अलग हो, तुमने बिना इस बात की परवाह किए कि मैं कौन हूँ, मुझे धमकी दे दी। गट्स है तुममें, और स्वाभिमान भी है, तभी शायद तुम्हारी एक झलक ने ही मेरे दिल में हलचल मचा दी है। देखते हैं कहाँ तक भागती हो तुम मुझसे और कब मेरी तलब का अंत होता है।"

    उसके चेहरे पर इस वक़्त कातिल मुस्कान फैली हुई थी। वह घर गया और कपड़े बदलकर नीचे आया, तब तक नौकरों ने डिनर टेबल सेट कर दिया था। उन्होंने उसकी प्लेट लगाई और एक तरफ़ को खड़े हो गए। उसका घर महल था, जिसमें इतने नौकर थे कि उनकी गिनती करना मुश्किल था। वीर ने डिनर किया और अपने स्टडी रूम में जाकर काम करने लगा। अगले दिन सुबह उठते ही उसने किसी को कॉल लगा दिया। दो रिंग जाते ही दूसरी तरफ़ से फ़ोन उठाकर कहा गया,

    "येस बॉस।"

    वीर ने सख़्त आवाज़ में कहा,

    "उस लड़की के बारे में कुछ पता चला?"

    उसका सवाल सुनकर सामने वाले आदमी ने झट से कहा,

    "जी सर, वह सेक्टर 7 में जे जे कॉलोनी में एक 25 गज के दो मंजिला घर में रहती है। कंचन राणा नाम है उसका, कॉलेज कर रही है। आस-पास से पता चला कि उसके माँ-बाप नहीं हैं, अपने चाचा-चाची के साथ रहती है। चाचा की गिफ़्ट्स का शोरूम है, वह भी उनकी मदद करने वहाँ अक्सर ही जाती है। उसके चाचा तो अच्छे हैं, पर चाची एकदम खच्चर है।

    बहुत अत्याचार करती है बेचारी पर, उनके दो बेटे और एक बेटी भी हैं, सारा काम वह अपनी भांजी से करवाती है, सारा दिन गधे के तरह खटवाती है और साथ ही शॉप में भी उसी से काम करवाती है। लड़की बहुत सीधी है, उनके हर अत्याचार सहकर भी कभी कुछ नहीं कहती। उसकी चाची इतनी लालची है कि उसका बस चले तो अपनी भांजी को बेचकर खूब पैसा कमाए, पर उसके चाचा जी के आगे उनकी भी नहीं चलती। इसके अलावा अभी कुछ पता नहीं चला है, पर हम कोशिश कर रहे हैं।"

    उसकी बात सुनकर वीर ने "ओके" कहा और फ़ोन काट दिया, फिर उसने खुद से ही कहा,

    "लालच, hmm…"

    उसने मन ही मन कुछ सोच लिया और टेढ़ी मुस्कान के साथ बोला,

    "Ms कंचन राणा, नाम तो काफी अच्छा है। अब बस तुम्हें अपने पास लाना है। मेरे दिल में अपनी तलब की आग जलाकर तुम सुकून से कैसे रह सकती हो? मेरे साथ तुम भी इस आग में जलोगी। अब तैयार हो जाओ मुझ तक पहुँचने के लिए।"

    वह उसके बारे में सोचता रहा और अपने किंग साइज़ बेड पर से उठा और रूम से कनेक्टेड दूसरे रूम में बने जिम में घुसकर व्यायाम करने लगा।


    आगे क्या होने वाला है वीर के साथ?

  • 6. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 6

    Words: 2092

    Estimated Reading Time: 13 min

    कंचन की तस्वीर वीर की आँखों में छप गई थी और अब वह उसे पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार था।

    दूसरे तरफ, कंचन ने वहाँ से भागते हुए एक ऑटो लिया और कुछ देर बाद ऑटो एक घर के आगे जाकर रुकी। कंचन ने घर को देखकर अपने आँसुओं को साफ किया और ऑटो वाले को पैसे देकर नीचे उतर गई। फिर उसने अपनी आँखें बंद कीं तो उसके आगे वीर का हैंडसम सा चेहरा आ गया। उसने गुस्से में अपनी आँखें खोल लीं और अपने होंठों को रगड़ते हुए बोली,

    "इतना बदतमीज़ आदमी मैंने आज तक नहीं देखा। जान-पहचान आकर सीधे किस कर ली, कितनी बदबू आ रही थी उसके मुँह से। मेरा बस चले तो मैं उस सरफिरे आदमी को दोबारा कभी देखूँ ही न, कमीना।"

    उसने अपना हुलिया ठीक किया, फिर डोर खटखटा दी। एक औरत ने दरवाज़ा खोला।

    "करमजली, कलमुही, कहाँ मर गई थी? ये वक़्त है घर आने का, बता मुझे किसके साथ अय्याशी कर रही थी, कहाँ मुँह काला करके आ रही है? बोलती है या नहीं?"

    सामने खड़ी औरत, उसकी चाची, उसे देखते ही उस पर बरस पड़ी। कंचन उनकी बातों को सुनकर सदमे में चली गई थी कि उसने आखिर ऐसा क्या गलत किया जो चाची उससे इतनी घटिया बातें कर रही है। जब कंचन ने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया, तो उन्होंने उसके बालों को खींचते हुए उसे अंदर कर लिया और सीधा ज़मीन पर धक्का देते हुए बोली,

    "अब बोलती है या जान से मार दूँ तुझे? किसके साथ घूम रही थी जो इस वक़्त घर आ रही है? अपने किस यार के साथ रंगरलियाँ मना रही थी जो घर आना भी याद नहीं रहा?"

    अब कंचन ने आँसुओं भरी निगाहों से उन्हें देखा और भारी गले से बोली,
    "चाची, आप जैसा सोच रही है वैसा कुछ नहीं है। मैं तो चाचा जी के काम से गई थी, वहीं से आने में वक़्त लग गया। भगवान की सौगंध, मैं किसी लड़के के साथ नहीं थी।"

    "झूठ बोलती है कमीनी! रुक, अभी बताती हूँ तुझे।" वह गुस्से में गरजी और झाड़ू उठाकर उस पर बरसते हुए बोली,

    "भगवान की झूठी कसम खाती है! तुझे क्या लगता है तू झूठ कहेगी और मैं मान लूँगी? मैं तेरे चाचा के तरह बेवकूफ नहीं हूँ! तेरी रग-रग से वाक़िफ़ हूँ कि काम के बहाने कहाँ-कहाँ और किस-किस के साथ मुँह काला किए फिरती रहती है, सब पता है मुझे! जानती हूँ सब, यहाँ-वहाँ गलियों में घूम रही होगी अपने यार के साथ ताकि काम न करना पड़े!"

    वह लगातार उसे झाड़ू से मार रही थी और कंचन रोते हुए बस इतना कह रही थी,
    "चाची माँ कसम, मैंने कभी किसी लड़के के तरफ़ देखा तक नहीं है। मैं तो चाचा जी का गिफ़्ट पहुँचाने गई थी, उसी में देर हो गई। मेरा किसी लड़के के साथ कोई चक्कर नहीं चल रहा है, आपको मुझ पर विश्वास न हो तो चाचा जी से पूछ लीजिए, मैंने जानबूझकर देर नहीं की है। मैं अभी काम कर देती हूँ, बस मुझे मारिए मत, बहुत दर्द होता है!"

    वह बुरी तरह रोते हुए उनके आगे गिड़गिड़ा रही थी, पर चाची तो ठहरी जल्लाद, उन पर भला उसकी बातों का क्या ही असर होता। वह लगातार उसे मार रही थी। जब उनका मन भर गया, तो वह कमरे में गई और कपड़ों का ढेर लाकर उसके मुँह पर फेंकते हुए बोली,

    "अगर अगले पन्द्रह मिनट में मुझे ये कपड़े धुले हुए नहीं मिले, तो आज तुझे खाना नहीं मिलेगा।"

    उनके पास ही दो लड़के और एक लड़की भी खड़ी थीं। लड़की का नाम आशा था और लड़के थे अंशु और अनिल। तीनों सुलोचना जी और जगदीश जी के बच्चे थे और तीनों अपनी माँ पर गए थे। सुलोचना जी के कहने पर कंचन ने अपने आँसुओं को साफ किया, फिर कपड़े उठाने लगी। तभी आशा ने कुछ कपड़े उसके ऊपर फेंकते हुए कहा,

    "इसे सिल देना, कल सुबह मुझे सारे कपड़े तैयार चाहिए। कल कॉलेज पहनकर जाना है, अगर नहीं सिल पाए तो सोच लेना कि तू दोबारा कभी कॉलेज की शक्ल तक नहीं देख पाएगी।"

    यहाँ यह चुप हुई। वही दोनों लड़कों ने सुलोचना जी को देखकर कहा,
    "मम्मी, भूख लगी है।"

    उनकी बात सुनकर सुलोचना जी ने कंचन को नफ़रत से देखते हुए कहा,
    "पहले खाना बना, मेरे बच्चे कब से भूखे हैं। उसके बाद बाकी दोनों काम हो जाने चाहिए।"

    बेचारी कंचन ने अपने आँसुओं को पी लिया और "जी हाँ चाची" कहकर सब कपड़े लेकर वहाँ से चली गई। इतनी पीटी थी कि शरीर दर्द से टूट रहा था, पर उसे देखने वाला था ही कौन? उसने जैसे-तैसे सब्ज़ी काटकर उसे बनाया, फिर आटा लगाकर रोटी बनाने लगी। हड़बड़ी में जाने कितनी ही बार उसका हाथ जल गया, मुँह से आह निकलती और आँखों से आँसुओं की बूँदें बह जातीं, फिर भी वह चुपचाप खाना बनाती रही। यहाँ का काम करके उसने दोनों का खाना निकालकर दिया, फिर कपड़े लेकर छत पर चली गई। पानी भरकर सब कपड़े धोने लगी।

    करीब एक घंटे बाद वह सब कपड़े धोकर सुखाकर अपनी चुनरी से अपने मुँह को पोंछते हुए नीचे आई। ठीक इसी वक़्त दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी, तो उसने टाइम देखा, आठ बज गए थे। उसके लबों पर मुस्कान खिल गई, इतनी देर में पहली बार वह मुस्कुराई थी, कितनी प्यारी मुस्कान थी उसकी। उसने जाकर दरवाज़ा खोला तो उसे सामने देख जगदीश जी भी मुस्कुरा उठे। उन्होंने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा,

    "कैसी है हमारी बच्ची?"

    "बिल्कुल ठीक," कंचन ने मुस्कुराकर कहा। जगदीश जी की नज़रें उसके कंधे और बाँह पर लगी चोटों पर गईं तो उनकी मुस्कान फीकी पड़ गई। उन्होंने दर्द भरी आवाज़ में कहा,

    "कैसे सब सहकर भी मुस्कुरा लेती है आप, आज फिर आपकी चाची ने आप पर हाथ उठाया ना?"

    "मुस्कुरा लेती हूँ क्योंकि जानती हूँ कि भले ही कोई मुझे प्यार न करे, पर मेरे चाचा जी की जान बसी है मुझमें। खुद दुखी होकर आपको दुखी नहीं कर सकती और फिर मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं। बड़ों की मार और डाँट में भी उनका प्यार छुपा होता है, इसलिए मुझे चाची की किसी बात का बुरा नहीं लगता है। आप भी दुखी मत होइए, हाथ-मुँह धो लीजिए, मैं खाना लगा देती हूँ," कंचन ने अपनी मीठी-मीठी आवाज़ में कहा, तो चाचा जी उसके सर पर हाथ फेरते हुए वहाँ से चले गए।

    कंचन ने अपनी आँखों में कैद आँसुओं को निकलने से पहले ही साफ किया और किचन में जाकर खाना निकालने लगी। उसने हॉल में लगे टेबल पर खाना और पानी लाकर रखा। कुछ देर में चाचा जी वहाँ आ गए। कंचन ने उन्हें खाना खाने को दिया, तो उन्होंने उसे भी खाने को कहा, पर तभी वहाँ चाची जी आ गईं। उन्होंने गुस्से से कंचन को देखा, तो कंचन ने मुस्कुराते हुए कहा,

    "नहीं, चाचा जी, अभी मुझे भूख नहीं है, मैं बाद में खा लूँगी, आप खाइए ना।"

    ऐसा नहीं था कि चाचा जी कुछ समझते नहीं थे, पर वे इससे ज़्यादा कुछ कर भी नहीं सकते थे। उन्होंने बेमन से एक रोटी खाई और उठकर चले गए। कंचन ने किचन का काम ख़त्म किया और रूम में चली गई। वह स्टोर रूम जैसा छोटा सा कमरा था, वहीं एक तरफ़ एक बल्ब लगा हुआ था, उसके नीचे ही एक सिलाई मशीन लगी हुई थी। कंचन ने अपने पेट पर हाथ फेरा, भूख तो लगी थी, पर वह जानती थी कि जब तक काम पूरा नहीं हो जाता उसे खाना नहीं मिलेगा, तो वह कपड़े काटकर उन्हें सिलने लगी।

    आधी रात बीत गई, नींद से बोझिल आँखों को खोलते हुए वह सिलाई करती रही, तभी वहाँ चाचा जी आ गए। उनके हाथ में खाने की प्लेट थी। उन्हें देखकर कंचन मुस्कुराकर बोली,

    "आप क्यों आए? इतनी रात हो गई है, सो जाइए, मैं काम ख़त्म करके खुद से खा लेती हूँ।"

    "सब जानते हैं हम कि कब आपका काम ख़त्म होता है और कब आप खाती हैं, इसलिए अब बिना कोई बहाना बनाए इधर आकर खाना खाइए। जब तक आप खाना नहीं खा लेती हमें सुकून नहीं मिलता, फिर नींद भला कैसे आती है? आइए, हम अपने हाथों से अपनी लाड़ो को खाना खिलाएँगे।"

    उनकी प्यार भरी बातें सुनकर कंचन की आँखें भर आईं, पर उसने कुछ कहा नहीं, वहाँ से उठकर बिस्तर पर बैठ गई। ज़मीन पर ही दरी बिछाई हुई थी, वहीं वह सोती थी। जगदीश जी भी उसके पास बैठ गए और बड़े प्यार से एक निवाला उसके तरफ़ बढ़ा दिया। कंचन ने नम आँखों से उन्हें देखा, तो उन्होंने उसके आँसुओं को साफ़ करते हुए कहा,

    "हमारी लाड़ो तो बहुत बहादुर है ना, फिर ये आँसू क्यों?"

    "कभी-कभी सोचती हूँ अगर आप नहीं होते तो मुझ अनाथ का क्या होता?" कंचन ने भारी गले से कहा और उसकी आँखों से आँसुओं की कुछ बूँदें निकलकर उसके गालों को भीगाने लगीं। जगदीश जी ने खाना साइड किया और उसके आँसुओं को साफ़ करते हुए बोले,

    "अगर हम नहीं होते तो भगवान हमारी लाड़ो का इंतज़ाम कहीं और कर देते, शायद वहाँ आपकी ये दुर्गति नहीं होती। कभी-कभी हम सोचते हैं कि आपको इस घर में लाकर हमने बहुत बड़ी गलती कर दी है। हम तो आपको एक बेहतर ज़िंदगी देना चाहते थे, पर यहाँ तो आप नर्क से बदतर ज़िंदगी जी रही है, और आपकी इस दुर्दशा के ज़िम्मेदार हम हैं।

    आपकी ज़िम्मेदारी हमने ली थी, पर हम आपको वो खुशियाँ दे ही नहीं पाए जिसके ख़्वाब हमने देखे थे। अब तो बस एक ही आस है कि जल्दी से आपका कॉलेज पूरा हो, आपकी किसी अच्छी सी कंपनी में डिज़ाइनर की जॉब मिल जाए और आप इस नर्क से दूर चली जाए, एक अच्छी ज़िंदगी बिताए। फिर हम अच्छा सा लड़का देखकर आपकी शादी कर देंगे और आप अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी ज़िंदगी बसर करे।

    इन बूढ़ी आँखों में बस यही एक ख़्वाब है कि हमारी बच्ची पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो जाए, उसे अच्छा घर-परिवार मिले और आप हमेशा के लिए इस घर से और यहाँ के संगदिल लोगों से दूर चली जाए। तब उन्हें आपकी क़दर होगी, तब एहसास होगा कि किस हीरे को भगवान ने उनकी झोली में डाला था जिसकी एक पैसे की क़दर नहीं की उन्होंने। कहते हैं सबको अपने कर्मों का फल इसी जन्म में भुगतना पड़ता है। हम भी चाहते हैं कि जितने ज़ुल्म इन लोगों ने आप पर ढाए हैं, भगवान उनसे उन सबका हिसाब ले। हमारी बच्ची के हर आँसुओं का कर्ज़ चुकाना पड़े उन्हें।"

    ये कहते हुए उनकी खुद की आँखें नम हो उठीं। कंचन रोते हुए उनके सीने से लग गई और भारी गले से बोली,

    "मैं आपको या किसी को अपनी हालत का ज़िम्मेदार नहीं समझती। मैं तो खुद को खुशनसीब समझती हूँ जो भगवान ने मुझे आप जैसे चाचा जी दिए हैं। पता है जब आप एक बार प्यार से मेरे सर पर हाथ फेर देते हैं ना, तो मेरी सब दुख-तकलीफ़ ख़त्म हो जाती है। मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं। मैं आपके सपने को ज़रूर पूरा करूँगी और देखिएगा मुझे अच्छी सी जॉब मिल जाएगी, फिर मैं आपको भी अपने साथ ले जाऊँगी। जहाँ मैं रहूँगी वहीं आप रहेंगे। मैं शादी नहीं करूँगी चाचू, मुझे हमेशा ऐसे ही आपके साथ रहना है।"

    "ठीक है बेटा, आप हमेशा हमारे पास रहिएगा। चलिए अब खाना खा लीजिए, इतनी देर हो गई है, आपको भूख लगी होगी।" उन्होंने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा, तो वह मुस्कुराकर उनसे अलग हो गई और आकर बैठ गई। उन्होंने भी बड़े प्यार से उसके मुँह में निवाला डाला, तो कंचन ने उसे खाते हुए ही एक निवाला तोड़कर उनके तरफ़ बढ़ाते हुए कहा,

    "आपने भी भरपेट खाना नहीं खाया, चलिए अब मेरे साथ आप भी खा लीजिए।"

    वह कहते हुए मुस्कुराई, तो जगदीश जी ने भी मुस्कुराकर निवाला खा लिया। कुछ देर में दोनों ने खाना ख़त्म किया, फिर चाचू ने वहाँ से उठते हुए कहा,

    "चलिए अब आप जल्दी काम ख़त्म करके सो जाइएगा, सारी रात जागती मत रहिएगा।"

    कंचन ने मुस्कुराकर हाँ में सर हिला दिया, तो वे वहाँ से चले गए। कंचन ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा,

    "आज रात तो जागरण करना ही पड़ेगा।"

    वह फिर से काम में लग गई। लगभग सुबह के चार बज गए थे, तब जाकर कंचन चेयर पर से उठी। उसने एक उड़ती हुई नज़र वहीं दीवार पर टंगी पुरानी सी घड़ी पर डाली, इसके साथ ही उसके लबों पर बेबसी भरी मुस्कान फैल गई। उसने अपने हाथ-पाँव स्ट्रेच किए और फिर कमर सीधी करने के लिए बिस्तर पर लेट गई। अभी उसे लेटे हुए बस पाँच ही मिनट हुए थे कि उसके दिमाग में कुछ आया और उसने एकदम से अपनी आँखें खोल दीं।


    क्रमशः…

  • 7. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 7

    Words: 2136

    Estimated Reading Time: 13 min

    कंचन उठकर साइड में रखी पुरानी, टूटी-फूटी अलमारी की ओर बढ़ गई। उसने उसमें से एक कपड़ा निकाला; वह एक पुराना सूट था। उसे कुछ देर देखने के बाद उसने कैंची उठाई। आधे घंटे बाद उसने उसे फिर से उठाकर देखा; अब वह एकदम नए लुक वाला डिज़ाइनर कुर्ता लग रहा था। उसे देखकर कंचन के लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैल गई।

    "अब सही लग रहा है," उसने मुस्कुराकर कहा, "आज मैं इसे ही पहनकर कॉलेज जाऊँगी।"

    उसने उसे एकदम बदल दिया था। कोई कह ही नहीं सकता था कि वह कुर्ता वही कुछ देर पहले वाला कुर्ता था जो बेकार सी कंडीशन में था। अब वह बहुत प्यारा लग रहा था। उसने घड़ी देखी; पाँच बजने ही वाले थे। उसने कुर्ता रखा और अपने बालों का जूड़ा बनाते हुए कमरे से बाहर निकल गई। किचन में जाकर वह फिर काम में लग गई।

    आखिर ऐसे ही तो उसके दिन की शुरुआत होती थी। अगर घर का काम न ख़त्म हो तो बेचारी को कॉलेज ही नहीं जाने दिया जाता था; सो वह सुबह सबसे पहले उठकर काम करने में लग जाती थी। आज भी वही हुआ। उसने खाना बनाया, फिर सबके टिफ़िन पैक किए। किचन से बाहर निकल ही रही थी कि जगदीश जी ने वहाँ क़दम रखा।

    उन्हें देखते ही कंचन ने मुस्कुराकर उन्हें गुड मॉर्निंग कहा, फिर अपने हाथ में पकड़ी ट्रे उनकी ओर बढ़ाते हुए बोली, "चाय।"

    उन्होंने भी उसे गुड मॉर्निंग विश किया, फिर मुस्कुराकर एक कप उठा लिया।

    "आप चाय पीजिए," कंचन ने बाहर जाते हुए कहा, "तब तक मैं सबको चाय दे आती हूँ, फिर आपके कपड़े प्रेस कर दूँगी।"

    "हमारे ही क्यों?" उनके चेहरे पर नाराज़गी और बातों में तंज नज़र आ रहा था। "आपको तो अभी सारे घर के कपड़े प्रेस करने होंगे ना? बाकियों के तो हाथ ही नहीं हैं, इसलिए आप सारा वक़्त नौकर के तरह उनके सब छोटे-बड़े काम करती रहती हैं।"

    कंचन ने मुस्कुराकर कहा, "मुझे अच्छा लगता है सबके काम करना। आप बेवजह ही नाराज़ हो रहे हैं। मुझे किसी का काम करने में कोई परेशानी नहीं होती।"

    जगदीश जी ने नाराज़गी से उसे देखा, फिर वहाँ से जाते हुए बोले, "तो आप उन्हीं का काम कीजिए, हम अपना काम खुद कर सकते हैं। और अभी जो आप सबकी नौकर बनी रहती हैं ना, हम भी देखते हैं कि आपके जाने के बाद कैसे गुज़ारा होता है उन सबका, तब तो अपना काम खुद ही करेंगे ना, तब मालूम पड़ेगा उन्हें कि आपके साथ कितना गलत किया है उन्होंने। सबका वक़्त बदलता है और अब तो बस एक साल की बात है, उसके बाद हम आपको कभी भी यहाँ रहने नहीं देंगे।"

    वह नाराज़गी से वहाँ से चले गए। कंचन ने अपनी नम आँखों को पोछा, फिर आगे बढ़ गई। बाकी सब अपने-अपने कमरों में सो रहे थे। कंचन ने चाची को चाय और बाकियों को कॉफ़ी दी, फिर छत पर जाकर रात को सुखाए कपड़े उतारे। फिर हॉल के दूसरे तरफ़ रखी चौकी की ओर चली गई जहाँ इस्त्री रखी हुई थी और ढेर सारे कपड़ों का ढेर लगा हुआ था। उसने सबको प्रेस करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे सब उठकर वहाँ आने लगे और अपने-अपने कपड़े लेने लगे।

    जगदीश जी अपने कपड़े खुद प्रेस कर चुके थे और दूर खड़े उसे काम करते हुए देख रहे थे। कुछ देर में आशा वहाँ आई और कंचन को देखकर मुँह बनाते हुए बोली, "ओए महारानी! कल कुछ सिलने को दिया था तुझे, कहाँ है वो?"

    "कमरे में है, सिल दिया है मैंने," कंचन ने तुरंत ही उसे देखकर जवाब दिया।

    "कमरे में क्या अंडे दे रहे हैं?" आशा ने तुनकते हुए कहा, "प्रेस क्या तेरा भूत करेगा? कभी तक प्रेस नहीं किया है तो अब मैं पहनूँ क्या तेरा सर?"

    "बस दो मिनट रुको," कंचन ने झट से कहा, "मैं अभी कर देती हूँ।"

    वह प्रेस का स्विच बंद करते हुए अपने कमरे की ओर दौड़ पड़ी। यह देखकर जगदीश जी ने नाराज़गी से उसकी ओर देखा और अपने कमरे में जाते हुए बोले, "अपने कुछ काम खुद भी कर लिया करो। अगर हाथ-पाँव थोड़ा चला लोगे तो तुम्हारा शरीर नहीं घिस जाएगी। बेचारी एक बच्ची को एक टांग पर अपने इशारों पर नचाते रहते हो, एक दिन वो चली जाएगी इस घर से, तब क्या नौकर आएगा तुम्हारे काम करने?"

    आशा ने उसे इग्नोर कर दिया, खड़े-खड़े मुँह बनाती रही, और जगदीश जी वहाँ से चले गए। कुछ देर में कंचन वापस वहाँ आई। आशा ने उसके हाथ से कपड़े छीनते हुए बोली, "रुक, पहले मैं देख तो लूँ कहीं पिछली बार की तरह मेरा कपड़ा ख़राब तो नहीं कर दिया?"

    उसने कपड़ा देखा; वह फुल लेंथ का सुंदर सा वन पीस ड्रेस था, देखने में सबसे अलग और बहुत ही प्यारा लग रहा था। आशा ने उसे ड्रेस वापस पकड़ाते हुए कहा, "अच्छा तो नहीं है, पर मैं काम चला लूँगी।"

    उसने ऐसे दिखाया जैसे मजबूरी में काम चलाने वाली हो, जबकि वह बहुत ही सुंदर ड्रेस थी; लग ही नहीं रहा था कि घर में सिला हुआ है। कंचन उसकी बात सुनकर मुस्कुराई, फिर ड्रेस प्रेस करने लगी। अपनी ड्रेस लेकर आशा वहाँ से चली गई। कंचन ने सब कपड़े प्रेस किए, फिर उन्हें तह करके सबके कमरों में जाकर अलमारियों में रखने के बाद वह अपने कमरे में चली गई। जो ड्रेस सुबह तैयार की थी उसे लेकर बाथरूम में घुस गई। कुछ देर में नहाकर बाहर आई। वहीं अलमारी के पास एक टूटा-फूटा सा ड्रेसिंग टेबल रखा था; वह जाकर उसके सामने खड़ी हो गई।

    कंचन ने जल्दी से अपने लंबे बालों को एक गुथकर चोटी में बाँधा, फिर झुमके लेकर उन्हें कानों में पहन लिया। बस उसके बाद उसने खुद को शीशे में देखा और मुस्कुरा उठी। उसने कुछ भी नहीं किया था, फिर भी बहुत प्यारी लग रही थी। उसने बैग उठाया और बाहर निकल गई।

    किचन में पहुँचकर स्लैब पर बैग रखा, फिर थाली में खाना निकालने लगी। उसने बाहर टेबल पर सबकी थालियाँ रखीं। पहले जगदीश जी आकर बैठे, फिर सुलोचना जी, उसके बाद अनिल और अंशु और सबसे आखिरी में आई आशा।

    नई-नई ड्रेस, कंधे से कुछ नीचे तक के खुले बाल, जिस पर सुंदर सी क्लिप्स लगाकर स्टाइल बनाया हुआ था, आगे से जुल्फ़ें निकाली हुई थीं जो उसके गाल पर झूल रही थीं, आँखों में काजल और लाइनर, नाक में नोज़ पिन, गुलाबी रंग में रंगे लब, चेहरे को देखकर ही पता चल रहा था कि खूब मेकअप किया हुआ था, फाउंडेशन तो जैसे टपक रहा था, कानों में बड़े-बड़े इयरिंग्स, पैरों में हील्स जिनकी टक-टक की आवाज़ सबको उसके आने की चुगली कर रही थीं; लबों पर मुस्कान सजाए उसने वहाँ क़दम रखा और एक चेयर खींचते हुए उस पर बैठ गई।

    कंचन ने उसके सामने प्लेट रख दी। आशा ने उसे देखा तो उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। वह झटके से खड़ी हो गई और उसे देखकर हैरानी से बोली, "इतने अच्छे कपड़े तुझे कहाँ से मिले?"

    उसकी बात सुनकर अब सबकी नज़रें कंचन के कपड़ों की ओर चली गईं। सुलोचना जी ने तुरंत ही भड़कते हुए कहा, "बता! बताती क्यों नहीं कहाँ से लाई ये कपड़े, किस यार से माँगे ये कपड़े? मैं कहती हूँ तो कोई मानता नहीं है, पढ़ने के बहाने घर के बाहर जाकर जाने क्या-क्या करती है! देखो तो सही कितना बन-सवर कर जा रही है, जैसे बाहर उसका यार बैठा है उसे देखने के लिए।"

    उनकी बातें सुनकर कंचन की आँखें नम हो गईं। उसने भारी गले से कहा, "नहीं, चाची, ये कपड़े तो आशा के ही हैं जो फ़ट गए थे, तो उसने मुझे दे दिए थे, मैंने बस उसमें ही कुछ बदलाव किए हैं ताकि उन्हें पहन सकूँ। और मेरा विश्वास कीजिए मैंने कुछ भी नहीं किया है, बस झुमके ही पहने हैं, उसके अलावा कुछ नहीं किया है और मैं बाहर जाकर कुछ गलत काम नहीं करती हूँ, बस कॉलेज जाती हूँ, फिर आकर घर में काम करती हूँ, उसके बाद दुकान जाकर चाचा जी की मदद करती हूँ। मेरा विश्वास कीजिए, इसके अलावा मैं और कहीं नहीं जाती, किसी से नहीं मिलती, कॉलेज में भी किसी लड़के से बात तक नहीं करती।"

    वह रुआँसी हो उठी। सुलोचना जी कुछ कहने जा ही रही थीं कि जगदीश जी ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा, "आपको सफ़ाई देने की ज़रूरत नहीं है बेटा, हमें अपनी लाड़ो पर पूरा विश्वास है, हम जानते हैं हमारी बेटी कभी ऐसा कुछ काम नहीं करेंगी जिससे उनके चाचा का सर किसी के सामने झुके, तो आप इन बातों पर ध्यान मत दीजिए। चलिए हमारे साथ नाश्ता कीजिए, आज हम आपको कॉलेज छोड़ने चलेंगे।"

    उन्होंने हल्की मुस्कान के साथ कहा। उनकी बात सुनकर सुलोचना जी बड़बड़ाते हुए गुस्से में वहाँ से चली गईं, दोनों लड़के अपनी थाली लेकर मुँह बनाते हुए चले गए। आशा ने कंचन को घुरा और दाँत पीसते हुए वहाँ से उसे कोसते हुए चली गई। कंचन ने नम आँखों से उन्हें देखा, तो उन्होंने मुस्कुराकर हाँ में सर हिला दिया। उसे अपने साथ बिठाकर खाना खिलाया, फिर अपने साथ ही लेकर चले गए।

    कॉलेज गेट पर बाइक के रुकते ही एक कंचन की उम्र की ही लड़की उसके पास आ गई। उसने जगदीश जी को देखकर मुस्कुराकर उन्हें नमस्ते किया, तो उन्होंने भी मुस्कुराकर जवाब दिया, फिर वहाँ से चले गए। अब उस लड़की ने कंचन को ऊपर से नीचे तक देखा, फिर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए मुस्कुराकर बोली, "वाह जी वाह! क्या बात है? आज तो किसी ने नए-नए कपड़े पहने हैं और तैयार भी होकर आई है!"

    उसकी बात सुनकर कंचन ने उसके हाथ को झटक दिया और चिढ़कर बोली, "बकवास मत कर, एक तो पुरानी सी ड्रेस पहनी है, इतनी मेहनत की उसे ठीक करने में, कुछ किया भी नहीं है, फिर भी बेवजह सुबह-सुबह इतनी गालियाँ सुनकर आ रही हूँ, वो भी सब इस ड्रेस के वजह से।"

    "ओफ़्फ़ो! मतलब फिर तेरी उस चुड़ैल चाची और उनकी डायन बेटी ने तुझे कुछ कहा है?" लड़की बेहद गुस्से में लग रही थी। "मेरा तो मन करता है कि दोनों के बाल पकड़कर उन्हें दीवार से जी भरकर टक्कर मारूँ, उसके बाद दोनों को ज़िंदा जला दूँ, जब देखो तुझसे जलती रहती है, इतना ही नहीं मुझे तो उनके मुँह में जलता कोयला ठूँसने का भी मन करता है, जब देखो तेरे लिए ज़हर उगलती रहती है!"

    कंचन ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "शांत हो जा जानवी, अब इतने सालों से मुझे सह रही है, रहने के लिए छत दे रहे हैं तो इतना तो सहना ही पड़ेगा ना।"

    "रहने दे," जानवी बोली, "तुझे घर में रखकर वो तुझ पर कोई एहसान नहीं करते हैं। जितने का तू खाती नहीं है, उससे सौ गुना ज़्यादा का काम करती है उनके लिए। सुबह से लेकर आधी-आधी रात तक एक टांग पर यहाँ से वहाँ दौड़ती रहती है, उनके उठने से पहले उठती है, सब काम करती है और उनके सोने के बाद सोती है। एक मिनट का भी आराम नहीं करती है, जितना तू करती है अगर उतना काम ये किसी नौकरानी से करवाते ना तो लुट जाते या वो नौकरानी उनके पैसे उनके मुँह पर मारकर वहाँ से चली जाती। इतना रौब जमाते हैं तुझ पर, कोई इतना बर्दाश्त न करे जितना तू सहती है। तो मुझे तो उनकी महानता की गाथा सुना मत, कोई महान नहीं है वो, एक नंबर के ख़ुदगर्ज़ लोग हैं, फ़्री की नौकर मिली है तो कैसे निकाल देंगे घर से? एक नौकर कहीं मिलेगी उन्हें जो सारा दिन गधे के तरह काम भी करे और उनकी जली-कटी और गालियाँ भी ख़ामोशी से सुने।"

    कंचन सब शांति से सुनती रही, फिर आराम से बोली, "छोड़ ना यार, तू भी ना कौन सी बात लेकर बैठ गई, मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं।"

    जानवी ने उसे नाराज़गी से देखते हुए कहा, "पता नहीं तू किस मिट्टी की बनी है जो उनकी सारी ज़्यादतियाँ चुपचाप सह जाती है, उनके लिए इतना कुछ करती है जबकि वो तेरे लिए कुछ नहीं कर सकते। तेरी जगह मैं होती ना तो उनका जीना हराम कर देती।"

    "तभी तो तू नहीं है!" कंचन के चेहरे पर मुस्कान थी, आँखों में अलग ही चमक थी। "फिर अब तो मुझे आदत हो गई है, अब किसी की किसी बात का बुरा नहीं लगता, फिर चाचा जी तो होते हैं, वो कभी मेरा साथ नहीं छोड़ते। वही मेरे लिए मेरे सब कुछ हैं।"

    "बात तो सही है," जानवी ने मुस्कुराकर कहा, "तेरे चाचा बहुत अच्छे हैं।"

    "Hmm," कंचन ने आगे बढ़ते हुए कहा, "अब चल अंदर, वरना मैम आ जाएंगी और लेट हुई तो खूब डाँट भी पड़ेगी।" उसने जानवी का हाथ पकड़कर उसे भी अपने साथ ही खींच लिया।

    पर दूर कोई खड़ा था जिसकी नज़रें कंचन पर ही टिकी थीं।

  • 8. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 8

    Words: 1601

    Estimated Reading Time: 10 min

    कंचन अपने बड़े से बेड पर बैठी, अपनी अतीत की कड़वी और दर्द भरी यादों में खोई हुई थी। तभी उसके कानों में एक मीठी सी आवाज़ पड़ी, "मम्मा!"

    यह वही आवाज़ थी जिसे सुनते ही कंचन अपनी यादों से बाहर आ गई। उसने पलटकर देखा; उसके बगल में वीरा बैठी हुई थी, अपनी छोटी-छोटी आँखें मसलते हुए उसे देख रही थी। वह बहुत प्यारी लग रही थी। उसकी प्यारी शक्ल देखकर कंचन अपने सभी दर्द भूल गई। जो चेहरा कुछ क्षण पहले दर्द से लबरेज़ था, अब वहाँ सुकून नज़र आने लगा था। उसने वीरा को उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया और उसके गाल को चूमते हुए मुस्कुराकर बोली,

    "तो हमारा बच्चा जाग गया! पर आज तुम इतनी सुबह-सुबह कैसे उठ गई?"

    उसकी बात सुनकर वीरा ने भी मुस्कुराकर उसे देखा, फिर उसके गाल पर किस करते हुए बोली, "आज वीरा को बिग डी के साथ मॉर्निंग वॉक पर जाना है ना, इसलिए वीरा जल्दी उठ गई है। वीरा को भी बिग डी के जैसे स्ट्रांग बनना है, इसलिए अब से वीरा उनके साथ वॉक पर जाएगी, एक्सरसाइज़ भी करेगी।"

    वीरा ने अपनी छोटी-छोटी आँखें टिमटिमाते हुए उसे देखा और बड़ी मासूमियत से बोली। उसकी बात सुनकर कंचन की हँसी छूट गई। वह वीरा को लेकर बेड से उठते हुए मुस्कुराकर बोली, "एक्सरसाइज़ कहते हैं उसे।"

    "ओफ़्फ़ो, मम्मा! बेबी ने भी तो same to same ही कहा है।" वीरा ने नाराज़गी से मुँह फुलाया। कंचन मुस्कुराकर उसे देखती रही और उसके कपड़े बदलने लगी। उसने उसे ब्रश करवाया, फिर उसे ट्रैक सूट और शूज़ पहनाकर कमरे से बाहर निकल गई। लिविंग रूम में शान पहले ही ट्रैक सूट पहने तैयार बैठा था। वीरा को देखते ही वह उसके तरफ़ बढ़ गया। छोटी सी वीरा, कंचन की उंगली थामे, अपने छोटे-छोटे कदमों से उसके तरफ़ बढ़ रही थी।

    शान उसके पास आकर घुटनों के बल बैठ गया और अपना गाल आगे कर दिया। वीरा ने झट से उसके गाल पर किस कर दिया और अपने लबों पर मुस्कान फैलाते हुए बोली, "गुड मॉर्निंग, बिग डी। देखिए आज बेबी जल्दी उठ गई है!"

    उसकी बात सुनकर शान मुस्कुराया, फिर प्यार से उसके गाल को चूमते हुए बोला, "गुड मॉर्निंग, माई जान! आज तो तुम सच में जल्दी जाग गई हो, हमें तो लगा था आज फिर मुझे अकेले ही जाना पड़ेगा।"

    "नहीं, बिग डी! आज वीरा भी आपके साथ चलेगी। वीरा को भी बिग गर्ल बनना है ना और आपके जैसे स्ट्रांग भी बनना है।" वीरा ने मुस्कुराते हुए कहा, फिर कंचन का हाथ खींचते हुए बोली, "मम्मा, कम डाउन!"

    उसकी बात सुनकर कंचन नीचे झुकी, तो वीरा ने झट से उसके गाल पर किस करते हुए कहा, "मम्मा, वीरा जल्दी से वापस आ जाएगी, आप अपना ध्यान रखना और सैड मत होना।"

    उसकी बात सुनकर कंचन के लब भी मुस्कुरा उठे। एक चार साल की बच्ची की समझदारी देखकर वह हैरान थी, वहीं अपनी बेटी के प्यार ने उसका दिल भर दिया। उसने उसे गले से लगा लिया। कुछ देर बाद उसे खुद से अलग किया और मुस्कुराकर उसे अलविदा कह दिया। वीरा शान का हाथ थामकर चली गई। कंचन ने अपने लम्बे बालों को जूड़े में बाँधते हुए किचन की तरफ़ कदम बढ़ा दिया और काम में लग गई।

    कुछ देर बाद वहाँ एक जवान लड़की आई और कंचन को देखकर मुस्कुराकर बोली, "गुड मॉर्निंग, मैम!" कंचन ने मुस्कुराकर ही उत्तर दिया और वापस काम करने लगी। तब उस लड़की ने नाराज़गी से कहा, "मैम, ये मेरा काम है। आप रोज़ मेरा काम कर देती हैं, सर को पता चला तो गुस्सा करेंगे।"

    उसकी शिकायत सुनकर कंचन ने फिर से उसकी तरफ़ देखा और मुस्कुराकर बोली, "मारिया, तुम्हें लगता है कि शान ये सब नहीं जानते?"

    उसकी बात सुनकर मारिया के लबों पर हल्की सी मुस्कान फैल गई। उसने फल काटते हुए कहा, "मैम, आप क्यों सुबह-सुबह ये सब करके थकती हैं? उसके बाद आप वीरा बेबी को भी संभालती हैं, खाना भी बनाती हैं, घर का काम करके ऑफ़िस जाती हैं और फिर सारा दिन वहाँ काम करती हैं, फिर रात को फिर से यहाँ काम में लग जाती हैं। मैं हूँ ना, मैं कर लूँगी। आप बेवजह खुद को परेशान करती हैं, थकती नहीं इतना काम करके?"

    उसकी बात सुनकर कंचन ने नाश्ता बनाते हुए कहा, "इसमें परेशानी वाली क्या बात है? मुझे शुरू से आदत है सब काम करने की, मुझे अच्छा लगता है ये सब करना, एक सुकून सा मिलता है जब मैं वीरा के लिए, शान के लिए सब करती हूँ।"

    "आप बहुत ही सरल स्वभाव की हैं। आपको देखकर लगता नहीं कि आप मुंबई की इतनी बड़ी डिज़ाइनर हैं। आपके अंदर तो बिल्कुल भी घमंड नहीं है, एकदम एक आम लड़की के तरह रहती हैं आप।" मारिया फिर बोली। कंचन के चेहरे पर कुछ अजीब से भाव आकर चले गए। उसने दूध को गर्म करने के लिए रखा और चाय बनाते हुए बोली,

    "सही ही तो लगता है, मैं एक आम लड़की ही हूँ, फिर घमंड किस बात का? वैसे भी मैं जन्म से अमीर नहीं हूँ जो मेरे अंदर उनके तौर-तरीक़े हों। मैं एक गरीब फैमिली की मामूली सी लड़की थी जिसने छोटी-छोटी चीज़ों में खुशियाँ ढूँढना सीखा है और मैं ऐसे ही खुश हूँ।"

    "मैडम, आपसे कुछ पूछूँ अगर इज़ाज़त हो तो?" मारिया हिचकिचाते हुए बोली। कंचन, जो अपने अतीत की गहराइयों में उतरती जा रही थी, उसकी आवाज़ सुनकर अचानक वर्तमान में लौट आई। उसकी आवाज़ में झलकती झिझक और सकुचाहट उससे छुप नहीं सकी। उसने उसे देखकर हल्की मुस्कान के साथ कहा,

    "तुम तो मुझसे भी पहले से यहाँ काम कर रही हो, आज तक मैंने तुम्हें कुछ कहने या पूछने से पहले इतना सोचते नहीं देखा। कहो, क्या पूछना है तुम्हें?"

    "वो मैम, आप जैसे रहती हैं, आपको देखकर लगता है कि आप मैरिड हैं, आप सिंदूर भी लगाती हैं, गले में मंगलसूत्र भी पहनती हैं। इसका मतलब तो यही हुआ कि आप शादीशुदा हैं, तो आपके पति कहाँ हैं? वीरा के जन्म से पहले से देख रही हूँ, आप अकेली रहती हैं, गुमसुम सी, वीरा पर जान छिड़कती हैं। फिर अगर वीरा आप और आपके पति की बेटी है, तो वो कभी आपसे या वीरा से मिलने क्यों नहीं आते? मुझे नहीं लगता कि वीरा उनकी नहीं, किसी और की बेटी हो सकती है क्योंकि आप ऐसी नहीं हैं, तो फिर क्या वजह है कि आप कभी उनका ज़िक्र तक नहीं करतीं? वो भी नहीं आते, एक बार भी वीरा को देखने नहीं आते हैं। जिसकी इतनी प्यारी बच्ची हो, उसका पिता उससे इतने सालों तक दूर रह जाए, ये मुमकिन नहीं। शान सर के साथ भी आपका रिश्ता दोस्त जैसा है, आप सालों से उनके साथ इसी घर में रह रही हैं। क्या आपके पति ये जानते हैं? मतलब उन्हें आपका किसी आदमी के साथ रहने से कोई प्रॉब्लम नहीं है। नॉर्मल आदमी तो ये कभी बर्दाश्त न करे।"

    उसने अपनी सारी उलझन उसके सामने बयाँ कर दी, जिसे वह जाने कब से पूछना चाह रही थी। उसकी बातें और सवाल सुनकर कंचन के चेहरे पर दर्द की लहर सी दौड़ गई, वह ख़ामोशी से सब सुनती रही।

    जब मारिया चुप हो गई, तो कंचन कुछ पल खाली आँखों से ज़मीन देखती रही, फिर उसने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा, "सही कहा तुमने, मैं ऐसी लड़की नहीं जो शादीशुदा होकर भी दूसरे मर्दों के साथ नाजायज़ संबंध रखूँ। मैंने अपने पति को ही अपना सब कुछ माना था, आज भी मेरे दिल में वही बसे हुए हैं और मैं हमेशा उन्हीं की रहूँगी। वीरा मेरा उनके प्रति समर्पण की पवित्र निशानी है। बस मैं उन्हें इस बारे में कुछ बता पाती, उससे पहले ही किस्मत ने मुझे उनसे दूर कर दिया और मेरी बेबसी देखो, उनसे बेइंतेहा प्यार करने के बावजूद सालों से उनके बिना ज़िंदगी काट रही हूँ। मैं चाहूँ भी तो उनकी ज़िंदगी में लौट नहीं सकती। वीरा ही मेरी ज़िंदगी है और मैं उनकी इस निशानी के साथ ही अपनी ज़िंदगी काट लूँगी। रही बात शान की तो वो बहुत अच्छे इंसान हैं, उन्होंने मुझे तब सहारा दिया जब दुनिया के हर दरवाज़े मेरे लिए बंद हो गए थे। वो मेरे दोस्त हैं और हमेशा रहेंगे। हमारा रिश्ता उतना ही पवित्र है जितना कि एक माँ का उसके शिशु से होता है। उन्होंने मेरी जान बचाकर मुझे एक नई ज़िंदगी, नई पहचान दी है। उनके वजह से मैं हूँ, वीरा मेरी ज़िंदगी में आई है। मैं उनका बहुत सम्मान करती हूँ। अगर कभी मेरे पति को मेरे उनके साथ रहने की बात पता भी चली, तो मुझे पूरा विश्वास है कि वो अपनी पत्नी पर शक नहीं करेंगे। वैसे भी अब उनका न मुझसे कोई वास्ता है, न ही उन्हें मेरे कहीं भी रहने से कोई फर्क पड़ता होगा। इससे ज़्यादा मैं तुम्हें कुछ नहीं बता सकती, बस इतना समझ लो कि किस्मत का खेल है और मैं उनका एक मोहरा। जब तक भगवान मेरी आज़माइश लेना चाहते हैं, मैं खुशी-खुशी उनकी हर परीक्षा देती रहूँगी।"

    इसके बाद दोनों के बीच ख़ामोशी पसरी रही। कुछ देर में बाहर से "मम्मा! मम्मा!" की आवाज़ आने लगी। यह हमारी छोटी सी वीरा थी जो अपनी मीठी आवाज़ में कंचन को पुकार रही थी। उसकी एक आवाज़ सुनकर ही कंचन की सारी उदासी पल में गायब हो गई, लबों पर सुकून भरी मुस्कान खेल गई।

    उसने एक ग्लास में जूस निकाला, दूसरे में दूध डाला और दोनों ग्लास एक ट्रे में रखते हुए बाहर निकल गई। पर वहाँ का नज़ारा देखकर उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।


    क्रमशः...

  • 9. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 9

    Words: 2419

    Estimated Reading Time: 15 min

    कुछ देर बाद बाहर से "मम्मा! मम्मा!" की आवाज़ आई। यह हमारी छोटी सी वीरा थी जो अपनी मीठी आवाज़ में कंचन को पुकार रही थी। उसकी आवाज़ सुनते ही कंचन की सारी उदासी गायब हो गई, लबों पर सुकून भरी मुस्कान खेल गई। उसने एक ग्लास में जूस निकाला, दूसरे में दूध डाला और दोनों ग्लास एक ट्रे में रखकर बाहर निकल गई। हॉल में पहुँचते ही उसकी नज़रें वीरा पर गईं जो शान की पीठ पर लटकी हुई थी और लगातार उसे पुकार रही थी।


    शान लबों पर मुस्कान सजाए, उसे अपनी पीठ पर लादे आगे बढ़ रहा था। कंचन दोनों को देखते हुए उनके तरफ़ बढ़ गई और बड़ी सी मुस्कान के साथ बोली,
    "तो यह है आपकी जॉगिंग? आप जॉगिंग करने गई थीं या अंकल का काम बढ़ाने? कैसे उनके ऊपर लटककर आ रही है वो, थक गए होंगे ना!"


    कंचन ने ट्रे टेबल पर रखी और उसे शान की पीठ से उतारते हुए शिकायत की। वीरा ने झट से कहा,
    "नहीं, मम्मा! वीरा ने बहुत सारी जॉगिंग की, तो वो थक गई इसलिए बिग डी ने उसे अपनी पीठ पर उठा लिया। और बिग डी ना बहुत स्ट्रांग हैं, तो आप चिंता मत कीजिए, वो थकेंगे नहीं।"


    उसका जवाब सुनकर कंचन ने उसे सोफ़े पर बिठाया, फिर ट्रे शान की तरफ़ बढ़ाते हुए बोली,
    "इतना परेशान करती है तुम्हें, तुम उसे कुछ कहते क्यों नहीं? उसकी सारी ज़िद मानना ज़रूरी तो नहीं है।"


    शान ने ट्रे में से जूस का ग्लास उठाते हुए मुस्कुराकर कहा,
    "पहली बात तो यह कि वीरा की किसी बात से मुझे कभी कोई परेशानी नहीं हो सकती और फिर यह हमारे बीच की बात है और तुम्हें हमारे बीच आने का कोई हक़ नहीं है। तुम वीरा के साथ कुछ भी करती हो तो मैं तुम्हें कुछ नहीं कहता, तो मैं भी जैसे चाहूँ उसके साथ रहूँ, तुम मुझे रोक नहीं सकती। वैसे मेरी छोड़ो और अपनी कहो, इतनी बार मना किया है, फिर क्यों रोज़-रोज़ परेशान होती हो?"


    उसने भी नाराज़गी ज़ाहिर की। कंचन ने उसी अंदाज़ में जवाब दिया,
    "मेरी मर्ज़ी, जो चाहे करूँ, तुम्हें भी मुझे रोकने-टोकने का कोई हक़ नहीं। वैसे भी मुझे कोई परेशानी नहीं होती। अब बातें छोड़ो और जूस ख़त्म करो।"


    कंचन ने ट्रे से दूध का ग्लास लिया और वीरा के पास बैठकर उसके लबों से ग्लास लगा दिया। वीरा ने अपनी हथेली से ग्लास को दूर करते हुए कहा,
    "नहीं, मम्मा! बेबी को दूध नहीं पीना, बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। वीरा को उल्टी आती है ये पीकर।"


    उसने बेकार सा चेहरा बनाया। उसकी बात सुनकर कंचन के कानों में कुछ शब्द गूँजे, साथ ही उसकी आँखों के आगे कुछ सीन घूमने लगे।


    "कंचन, यार! दूध नहीं, प्लीज़! मुझे दूध बिल्कुल पसंद नहीं, उल्टी आती है मुझे दूध देखकर। मैं बचपन में भी दूध नहीं पीता था और तुम अब दूध का ग्लास लेकर मेरे पीछे पड़ी हुई हो!" कंचन हाथ में दूध का ग्लास लिए खड़ी थी। उसके सामने बेड पर बैठे लड़के ने दूध को देखकर अतरंगी मुँह बनाया, पर उसकी बात सुनकर कंचन ने उसे घूरा, फिर सख्ती से बोली,
    "आपको इतनी चोट लगी है तो दूध पीओगे, तभी तो ज़ख़्म जल्दी ठीक होगा। अब यह मुँह बनाना छोड़ो और चुपचाप दूध ख़त्म करो!"


    "कंचन, आजकल तुम मुझ पर कुछ ज़्यादा ही हुक्म नहीं चलाने लगी हो।" सामने बैठे लड़के की रौबदार आवाज़ उसके कानों में पड़ी। वो लड़का उसे अब घूरने लगा था। कंचन के लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैल गई। उसने फिर से मीठी सी आवाज़ में कहा,
    "तो आपने खुद मुझे यह हक़ दिया है।"


    "अच्छा!" ये कहते हुए उस शख़्स ने उसके हाथ से ग्लास लेकर उसे टेबल पर रखा और उसकी बाँह पकड़कर उसको अपनी गोद में बिठा लिया। कंचन मुस्कुराई, फिर उसकी आँखों में देखते हुए बोली,
    "Hmm!"


    उसके जवाब को सुनकर उस लड़के ने उसे अपनी बाहों में भरते हुए मुस्कुराकर कहा,
    "Hmm! सच ही कहा है तुमने, तुम मेरे दिल की मल्लिका हो। इस दुनिया में एक तुम ही हो जिसे मुझ पर अपना हक़ जमाने का, मुझसे अपनी बात मनवाने का हक़ है, हक़ है तुम्हें मुझ पर अपना हुक्म चलाने का, जैसे तुम्हारी हुकूमत मेरे दिल पर चलती है। वरना किसी की इतनी हिम्मत नहीं कि वीर प्रताप सिंह से ऊँची आवाज़ में बात भी कर सके या उसकी मर्ज़ी के बिना उससे कुछ करवा सके!"


    कंचन ने मुस्कुराकर कहा,
    "जानती हूँ। अब अगर आपके दिल पर सच में मेरी हुकूमत है और सच में मुझे हक़ है आप पर, तो चुपचाप यह दूध ख़त्म कीजिए, मेरे लिए।"


    कंचन ने बड़े प्यार से कहा। दूध का ग्लास उसके लबों से लगा दिया। वीर मुस्कुराया और ग्लास थोड़ा दूर हटाते हुए बोला,
    "अगर मैंने दूध पिया तो मुझे क्या मिलेगा?"


    "जो आप चाहें।" कंचन ने मोहिनी मुस्कान के साथ उसे देखा, तो वीर ने उसके चेहरे के तरफ़ झुकते हुए कहा,
    "मुझे तो तुम चाहिए, बोलो मिलेगा?"


    उसने अर्थपूर्ण नज़रों से उसे देखा। कंचन की नज़रें झुक गईं, चेहरे पर सिंदूरी आभा उभर आई। उसने शर्माते हुए धीमी आवाज़ में कहा,
    "मैं तो आपकी ही हूँ।"


    वीर ने अब उसकी हथेली को थाम लिया जिससे उसने ग्लास पकड़ा हुआ था। कंचन ने घबराकर निगाहें उठाईं, तो वीर ने उसकी आँखों में झाँकते हुए ही दूध का ग्लास अपने लबों से लगा लिया। अब भी उसने उसके हाथ को पकड़ा हुआ था और आँखों में शरारत और लबों पर मुस्कान लिए उसे देखते हुए दूध पी रहा था। कंचन की पलकें झुक गईं, लबों पर शर्मीली सी मुस्कान बरक़रार थी। वीर उसके चेहरे को निहारते हुए उसके तरफ़ झुकने लगा।


    "कंचन!" यह आवाज़ जैसे ही कंचन के कानों में पड़ी, वो अपने ख़यालों की हसीन दुनिया से बाहर आ गई। नज़रें घुमाईं तो देखा दोनों उसे ही देख रहे थे।


    शान ने उसे खोया देखकर उसे आवाज़ दी थी। जब कंचन कुछ नहीं बोली तो उसने फिर से कहा,
    "तुम ठीक हो?"


    उसकी आवाज़ सुनकर अब कंचन हल्का सा मुस्कुराई और हाँ में सर हिला दिया, पर उसके चेहरे के भाव देखकर ही शान सब समझ गया। उसने मुस्कुराते हुए उसे देखा और मन में बोला,
    "फिर से वीर की किसी याद में खो गई थी, पर अब जल्दी ही मैं उसे हक़ीकत में तुम्हारे सामने लाकर खड़ा कर दूँगा, बस एक बार सोच लूँ कि कैसे तुम दोनों को आमने-सामने लाया जाए कि तुम्हें शक न हो कि मैं उसके पीछे हूँ।"


    वो यही सोचने लगा। कंचन एक बार फिर वीरा की तरफ़ घूम गई और मुस्कुराकर बोली,
    "वीरा को तो स्ट्रांग गर्ल बनना है ना, तो अगर आप मिल्क नहीं पिएँगी तो आप तो वीक रह जाएँगी, फिर अपने बिग डी जैसे स्ट्रांग कैसे बन पाएँगी?"


    उसका इतना कहना था कि वीरा ने झट से उसके हाथों से ग्लास लेते हुए कहा,
    "वीरा पूरा मिल्क फ़िनिश करेगी और बिग डी जैसे स्ट्रांग बन जाएगी।"


    उसने झट से ग्लास अपने लबों से लगा लिया, तो कंचन मुस्कुरा उठी और मन ही मन बोली,
    "बिल्कुल अपने पापा पर गई हो!"


    वो यह सोच ही रही थी कि मारिया वहाँ आ गई। उसने उसके तरफ़ चाय बढ़ाई, तो कंचन कप लेकर दूसरे तरफ़ चली गई। वहीं वीरा और शान अपना-अपना मिल्क/जूस ख़त्म करके मस्ती करने में लग गए। कुछ देर बाद वो वापस लौटी, तो शान वीरा को गुदगुदी कर रहा था और वीरा सोफ़े पर लोट-पोट हुई जा रही थी। उसकी खिलखिलाकर की आवाज़ मधुर संगीत के तरह उस बड़े से घर में गूँज रही थी जो उस निर्जीव घर में प्राण डालने का काम कर रही थी। हँसते-हँसते वीरा की साँसें फूलने लगीं, तो उसने गहरी साँस लेते हुए कहा,
    "बस...बिग...डी...बेबी...और...नहीं...हँस...सकती..."


    उसकी साँस फूलने के कारण उसने टूटते-फूटते शब्दों में उसे रुकने को कहा, तो शान ने भौंह चढ़ाते हुए सवाल किया,
    "दोबारा आप बिग डी का मज़ाक उड़ाएँगी?"


    बेचारी हमारी छोटी सी वीरा कुछ बोल तक न सकी, उसने हाँ में ज़ोर-ज़ोर से सर हिला दिया, तो शान पीछे हट गया और वीरा को बिठाते हुए उसे पानी पिलाया। वीरा लम्बी-लम्बी साँसें लेकर खुद को सामान्य करने की कोशिश कर रही थी और कंचन कुछ दूरी पर खड़ी सब देख रही थी। वीरा की नज़र जैसे ही उस पर गई, वो सोफ़े से नीचे कूद गई। कुछ दूर जाकर उसने शान को देखते हुए कहा,
    "मैं तो मम्मा को भी बताऊँगी और अब आप वीरा को पकड़ भी नहीं पाएँगे!"


    उसने जीभ बाहर निकालकर उसे चिढ़ाया, तो शान गुस्से में उसके तरफ़ बढ़ा, पर वीरा भी कुछ कम नहीं थी। उसने अपने नन्हे-नन्हे कदमों से कंचन की तरफ़ दौड़ लगा दी और दोनों बाहों को फैलाते हुए चिल्लाई,
    "मम्मा! बेबी को बचाओ!"


    कंचन नीचे बैठ गई, तो वीरा भागते हुए जाकर उसके सीने से लग गई और उसकी गर्दन में अपना सर छुपा दिया। कंचन ने भी उसे अपनी बाहों में भरते हुए अपने आँचल में छुपा लिया। यह देखकर शान कुछ दूरी पर ही रुक गया और उसके होंठों से धीरे से निकला,
    "शैतान की अम्मा है, देखो कैसे अपनी मम्मा की आँचल में समा गई है ताकि मैं कुछ कर न सकूँ!"


    कंचन ने उसकी बात सुनी, तो नज़रें उसके तरफ़ उठाते हुए बोली,
    "क्या बात है? आज किस बात पर कुश्ती शुरू हो गई है?"


    उसका सवाल सुनकर शान हड़बड़ा गया। वहीं वीरा ने झट से सर उठाकर शान को देखकर इशारे किए कि अब वो बता देगी। शान ने उसे घूरते हुए न बताने का इशारा कर दिया, पर वीरा तो वीरा थी और उसे सबको परेशान करने में बड़ा मज़ा आता था और अभी तो वो शान की खूब सताने के फ़िराक़ में थी। उसने शरारती मुस्कान के साथ कहा,
    "मम्मा! बेबी बताती है आज पार्क में क्या हुआ?"


    उसके इतना कहते ही कंचन ने उसे देखा, वहीं शान हड़बड़ाहट में बोला,
    "प्रिंसेस! नहीं! अगर आपने ये बात मम्मा को बताई तो बिग डी आपको टॉयज़ नहीं लाकर देंगे!"


    "बेबी के पास बहुत सारे टॉयज़ हैं।" वीरा ने मोहिनी मुस्कान के साथ जवाब दिया, जिसे सुनकर शान फिर से बोला,
    "अगर अभी आपने अपना मुँह खोला तो बिग डी आपको स्कूल छोड़ने नहीं जाएँगे!"


    "वीरा मम्मा के साथ चली जाएँगी।" वीरा की शरारत चालू थी। शान ने परेशान होकर कहा,
    "अच्छा! अगर अभी आप बिग डी की बात मानती हैं और इस बात को अपने और उनके बीच सीक्रेट रखती हैं तो बिग डी आपको खूब सारे चॉकलेट्स और आइसक्रीम खिलाएँगे और मम्मा आपको रोकेंगी भी नहीं।"


    उसकी बात सुनकर वीरा की आँखें चमक उठीं, मुँह में पानी आने लगा क्योंकि उसे यह दोनों चीज़ें बहुत पसंद थीं, पर कंचन उसे खाने नहीं देती थी। कहती थी दाँत खराब हो जाएँगे, ज़ुकाम हो जाएगा, तबियत बिगड़ जाएगी, जैसे हर माँ कहती है वही कहकर वो उसे यह चीज़ें ज़्यादा खाने नहीं देती थी, तो यह मौका उसके लिए दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मिलने जैसा था। उसने अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए कहा,
    "पक्का प्रोमिस? अगर बेबी मम्मा को कुछ नहीं बताएगी और इस बात को सीक्रेट रखेगी तो आप बेबी को ढेर सारे चॉकलेट्स और आइसक्रीम खिलाएँगे?"


    शान के लबों पर विजयी मुस्कान फैल गई। उसने झट से कहा,
    "पक्का प्रोमिस! पर अब आप मम्मा को कुछ नहीं बताएँगी, यह बात आपके और बिग डी के बीच ही रहेगी, डील?"


    शान ने उसके तरफ़ हाथ बढ़ाते हुए कहा, तो वीरा ने झट से उसकी हथेली पर अपनी नन्ही हथेली रखते हुए प्रॉमिस कर दिया। शान ने उसे रोल करते हुए घुमाया और खुशी से उसके गाल को चूम लिया, पर उसकी खुशी ज़्यादा देर टिक नहीं सकी। कंचन जो इतनी देर से सब नाटक शांति से देख रही थी, वो खड़ी हुई और अपने हाथ बाँधे उन्हें घूरते हुए बोली,
    "चल क्या रहा है यहाँ? कौन सी बात है जो मुझसे छुपाई जा रही है?"


    उसका सवाल सुनकर दोनों ने उसके तरफ़ देखा, फिर एक-दूसरे को देखा और दोबारा उसे देखने लगे। वीरा ने उसे देखकर मुस्कुराकर कहा,
    "ये बिग डी और बेबी का सीक्रेट है, तो आपको नहीं बता सकते।"


    शान एक बार फिर मुस्कुराने लगा। कंचन ने निगाहें उसके तरफ़ घुमाते हुए उसे घूरते हुए कहा,
    "अब तुम चुपचाप मुझे सब बताते हो या मुझे अपने पर आना ही पड़ेगा?"


    "कोई ख़ास बात नहीं है, तुम्हें नहीं बता सकते, इसलिए नहीं बता रहे। (अब उसने वीरा को देखकर कहा) चलिए आज बिग डी आपको रेडी करते हैं।" वीरा ने मुस्कुराकर हामी भर दी, तो शान ने कंचन को इग्नोर करते हुए रूम की तरफ़ कदम बढ़ा दिए, तो पीछे से कंचन ने उसे घूरते हुए ही कहा,
    "तुम्हारे कपड़े रूम में बेड पर रखे हुए हैं, जाकर रेडी हो जाओ, वीरा को मैं तैयार कर दूँगी।"


    शान के कदम रुक गए। उसने पीछे मुड़कर उसे देखते हुए कहा,
    "क्यों करती हो तुम यह सब? राजू है तो सही, वो कर देता।"


    "मैं अपने और वीरा के कपड़े प्रेस कर तो रही थी, तो साथ में तुम्हारे भी कर दिए, इसमें कौन सी बड़ी बात है?" कंचन ने बिना किसी भाव के ही जवाब दिया। अब वीरा बोल पड़ी,
    "मम्मा! बेबी बिग डी के साथ जाएँगी, बेबी को उनके साथ मस्ती करनी है।"


    उसने बड़ी मासूमियत से कहा और अपनी प्यारी-प्यारी आँखों को टिमटिमाते हुए उसे देखने लगी, तो कंचन ने उसके तरफ़ बढ़ते हुए कहा,
    "और कितनी मस्ती करनी है आपको? चलो आप मम्मा के साथ चलो, स्कूल के लिए देर हो जाएगी। (फिर उसने शान को देखते हुए कहा) और आप जाकर तैयार हो जाइए। वरना आप हॉस्पिटल के लिए लेट हो जाएँगे।"


    कंचन ने वीरा को लेते हुए शान को देखकर कहा, तो वीरा ने मुँह फुला लिया, वहीं शान मुस्कुरा दिया। कंचन उसे लेकर कमरे में आई, उसे नहलाकर स्कूल यूनिफ़ॉर्म पहनाई, फिर उसके लम्बे, कमर तक लहराते घने बालों को दो फ्रेंच चोटी में बाँध दिया। उसके बाद उसे सॉक्स और शूज़ पहनाने के बाद उसे ऊपर से नीचे तक देखा। वो इस स्कूल यूनिफ़ॉर्म में और भी प्यारी लग रही थी।


    कंचन ने अपनी आँखों से काजल निकालकर उसके कान के पीछे लगाते हुए उसके गाल को प्यार से छुआ, फिर मुस्कुराकर बोली,
    "अब आप बिग डी के पास जाइए, उन्हें अपने साथ ब्रेकफ़ास्ट के लिए लेकर आइए, तब तक मम्मा भी रेडी हो जाती है और आपका बैग भी पैक कर देती हूँ।"


    उसने बड़े प्यार से कहा। वीरा ने मुस्कुराकर हाँ में सर हिला दिया, फिर मटकते हुए वहाँ से भाग गई, पर पीछे छोड़ गई कंचन के चेहरे पर छाई प्यारी सी मुस्कान, जिसकी वजह वो और उसकी शरारतें थीं।

  • 10. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 10

    Words: 1796

    Estimated Reading Time: 11 min

    कंचन ने वीरा को तैयार करके शान को बुलाने उसके कमरे में भेज दिया। कुछ देर मुस्कुराकर उसे जाते हुए देखती रही, फिर अलमारी से कपड़े लेकर बाथरूम में चली गई। जब तक वह तैयार होकर बाहर आई, मारिया डाइनिंग टेबल पर सारा खाना लगा चुकी थी। कंचन को देखकर वह मुस्कुराई। कंचन ने भी मुस्कुराते हुए सवाल किया, "अभी तक वीरा और शान आए नहीं?"

    "नहीं, अभी तक तो नहीं आए हैं," उसने प्लेट्स लगाते हुए जवाब दिया। यह सुनकर कंचन उस तरफ, जहाँ शान गया था, बढ़ती हुई खुद से बोली,

    "ज़रूर फिर से दोनों शुरू हो गए होंगे। इनका भी कुछ नहीं हो सकता, एक तो वीरा इतनी शैतान है, उस पर शान है कि उसकी हर बात मान लेता है। उसे इतना प्यार करेगा तो कहीं बिगड़ न जाए, वैसे ही अपने पापा के तरह गुस्सैल और ज़िद्दी है।

    अगर और ज़िद्दी और मनमौजी बन गई तो मेरे लिए उसे संभालना मुश्किल हो जाएगा। पर शान है कि कुछ समझता ही नहीं है, इतना प्यार करता है उससे कि उसकी उदासी एक मिनट बर्दाश्त नहीं कर पाता और वीरा तो है ही एक नंबर की शैतान और नौटंकी, हमेशा उसे अपने नाटक में फँसाकर अपनी हर बात मनवा लेती है।"

    वह यही सब बड़बड़ाते हुए उस दिशा में बढ़ती रही। वहीं दूसरी तरफ वीरा भागते हुए शान के कमरे में पहुँची। तब शान नहाकर बाहर ही निकला था। उसने वाइट शर्ट के साथ ब्लैक फॉर्मल पैंट पहनी हुई थी और गीले बालों को तौलिये से पोंछते हुए ड्रेसिंग टेबल की तरफ बढ़ रहा था।

    वीरा ने उसे देखा तो उसके कदम दरवाजे पर ही ठिठक गए। उसने अपने दोनों हाथों को अपनी कमर पर रख लिया और उसे घूरते हुए बोली, "आप अभी तक रेडी नहीं हुए और बेबी रेडी भी हो गई। मम्मा ने वीरा को आपको ब्रेकफास्त के लिए बुलाने के लिए भेजा है, पर आप तो बच्चों से भी ज़्यादा टाइम लगाते हैं।"

    उसकी आवाज़ सुनकर शान, जो कि अब ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा था और अपने बालों को ड्रायर से सुखाने जा ही रहा था, उसके हाथ हवा में ही रुक गए। उसकी मीठी सी आवाज़ उसके कानों में मिश्री की तरह घुलने लगी और उसके लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैल गई। वह उसकी तरफ़ पलट गया और उसे देखकर मुस्कुराकर बोला, "बेबी के पास तो उनकी मम्मा थी, इसलिए बेबी जल्दी रेडी हो गई, पर हमें तो सब खुद करना पड़ता है, तो टाइम तो लगेगा ही।"

    उसका जवाब सुनकर वीरा ने भौंहें चढ़ाते हुए कहा, "आपकी मम्मा नहीं है?"

    "है, पर वह यहाँ नहीं है, तो मुझे खुद ही तैयार होना पड़ता है। कोई है ही नहीं जो मुझे तैयार करे। जब छोटा था तो मेरी मम्मा भी मुझे तैयार करती थी, पर अब मैं बड़ा हो गया हूँ, इसलिए मेरी मम्मा अब मुझे तैयार नहीं करती।" शान ने यह कहते हुए मुँह लटकाया, जैसे कितना उदास हो। उसका उदास, उतरा हुआ चेहरा देखकर वीरा ने अपनी कमर पर से अपना हाथ हटाया, फिर उसकी तरफ़ बढ़ते हुए बोली,

    "कोई बात नहीं, बेबी है न, बेबी बिग डी को रेडी कर देगी। बेबी बिग डी से बहुत सारा लव करती है न, जैसे मम्मा बेबी से करती है, इसलिए जैसे मम्मा ने बेबी को जल्दी से रेडी कर दिया, बेबी भी बिग डी को जल्दी से रेडी कर देगी।"

    उसकी मासूमियत से भरी बात सुनकर शान की मुस्कान गहरी हो गई। वह बड़े प्यार से उसे देखने लगा। वीरा उसके पास आई, फिर उसका हाथ पकड़कर ड्रेसिंग टेबल के सामने रखे टेबल पर खड़ी हो गई। फिर उसने तौलिया लिया और उसे झुकने का इशारा कर दिया।

    शान घुटने नीचे टिकाते हुए वहीं बैठ गया, तो वीरा बड़े प्यार से उसके बालों को तौलिये से पोंछते हुए सुखाने लगी। उसने उसके बाल सुखाए, फिर उसके बालों में कंघी करने लगी और शान बस लबों पर मुस्कान सजाए उसे देखे जा रहा था। वीरा का सारा ध्यान उसकी कंघी करने पर था। उसके कुछ देर की मेहनत के बाद उसके बालों को सेट कर दिया, फिर उसे देखकर मुस्कुराकर बोली,

    "हो गई! कितने हैंडसम लग रहे हैं आप! देखिए, वीरा ने कितनी अच्छी कंघी की है।"

    उसने अपनी ही तारीफ़ की तो शान हँस पड़ा। उसने खड़े होकर खुद को शीशे में देखा तो सच में वीरा ने बाल बड़े अच्छे से सेट किए थे। कोई कह नहीं सकता था कि यह काम एक चार से पाँच साल की बच्ची का है। शान ने खुद को देखते हुए मुस्कुराकर कहा, "आपने तो सच में बहुत अच्छे से कंघी की है। आप बिल्कुल अपनी मम्मा जैसी हैं, सब काम इतने अच्छे से कर लेती हैं।"

    उसकी बात सुनकर वीरा इतराने लगी। शान ने ड्रेसिंग टेबल पर से घड़ी उठाकर उसके आगे हाथ बढ़ाते हुए कहा, "इतना किया है तो अब घड़ी भी पहना दीजिए, हमें नहीं आता।"

    उसकी बात सुनकर वीरा ने उसके हाथ से घड़ी ली और इतराते हुए बोली, "हाँ, बेबी पहना देगी। बेबी को न सब आता है। बेबी बहुत स्मार्ट है न, बिल्कुल अपनी मम्मा के तरह।"

    उसकी बात सुनकर शान मुस्कुराए बिना रह न सका। कुछ देर वीरा बस कोशिश करती रही, पर आखिर में उसने जैसे-तैसे उसे घड़ी पहना ही दी। अब शान के दिमाग में शरारत आई। उसने बिस्तर पर से टाई उठाई और उसकी तरफ़ बढ़ा दी। वीरा ने टाई देखी तो उसका मुँह छोटा सा हो गया। उसने मुँह लटकाते हुए मासूमियत से कहा, "बेबी को टाई पहनना तो आता ही नहीं है।"

    "कोई बात नहीं, बिग डी खुद टाई बाँध लेंगे।" शान ने उसकी उदासी देखकर मुस्कुराकर कहा। ठीक इसी वक़्त कंचन ने बोलते हुए कमरे में कदम रखा, "मैं तैयार होकर भी आ गई और आप दोनों अब तक यहाँ हैं। अब कौन सी नई शरारत चल रही है यहाँ?"

    कंचन ने यह कहते हुए सामने देखा, उन दोनों ने भी उसकी तरफ़ निगाहें घुमाईं। कंचन कुछ कहती या समझ पाती, उससे पहले ही वीरा ने खुशी से चहकते हुए कहा, "मम्मा, आप बिल्कुल टाइम पर आई हैं। बेबी न बिग डी को रेडी कर रही थी, पर वीरा को टाई बाँधनी नहीं आती है। आप बिग डी को टाई बाँध दीजिए।"

    उसने आशा भरी निगाहों से उसे देखा। उसकी प्यार से कही बात को कंचन टाल न सकी। उसने शान को देखा, जो उसे ही देख रहा था, फिर आगे बढ़ गई, तो शान ने उसे रोकते हुए कहा, "रहने दो, मैं खुद बाँध लूँगा। तुम्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।"

    उसकी बात सुनकर कंचन कुछ पल ठहरी, तो वीरा ने झट से कहा, "नहीं, मम्मा, आप बिग डी को टाई बाँधिए। बेबी चाहती है आप उन्हें टाई बाँधें।"

    उसकी बात सुनकर अब कंचन ने पहले उसे देखा, फिर शान की तरफ़ बढ़ते हुए मुस्कुराकर बोली, "मुझे कोई परेशानी नहीं होगी, वीरा इतना कह रही है तो मैं बाँध देती हूँ टाई।"

    अब कंचन उसके सामने खड़ी थी। उसने मुस्कुराकर वीरा के हाथों से टाई ली और उसके गले में डालते हुए टाई बाँधने लगी। वह इस वक़्त शान के बेहद पास खड़ी थी। उसका चेहरा झुका हुआ था और बालों की कुछ लटें उसके गालों पर अटखेलियाँ दिखा रही थीं। उसकी करीबी शान को कुछ अलग ही एहसास करवा रही थी।

    कंचन के बदन से आती भीनी-भीनी सी खुशबू उसे मदहोश कर रही थी। उसने कंचन पर से निगाहें हटा लीं और चेहरा ऊपर करते हुए गहरी साँसें लेकर खुद को सामान्य करते हुए बोला,

    "नहीं, शान, अगर तू ऐसे उसे देखेगा तो उसे सब पता चल जाएगा। अगर उसे अंदाज़ा भी हुआ कि उसके लिए तेरे दिल में क्या है, तो वह उसी पल यह घर छोड़कर चली जाएगी। वैसे भी उस पर तेरा कोई हक़ नहीं है, वह अपने वीर की है और तुझे बस उसे उसके वीर से मिलवाना है। इन एहसासों को तू खुद पर हावी नहीं होने दे सकता। उसके दिल में तेरे दिल में जो भी है, वह तुझे अपने दिल में छिपाकर रखना होगा, यही तेरे और उसके लिए बेहतर है।"

    वह यही सब सोचने में खोया हुआ था। कंचन ने टाई बाँध दी और उसकी तरफ़ निगाह उठाते हुए बोली, "हो गया।"

    उसकी आवाज़ जैसे ही शान के कानों में पड़ी, वह अपनी सोच से बाहर आया और उसने निगाहें नीचे झुकाईं, तो दोनों की निगाहें टकरा गईं। अब कंचन को एहसास हुआ कि वह उसके कितने नज़दीक थी। कंचन हड़बड़ाहट में उससे दूर हट गई, "मैं बाहर देखती हूँ खाना लगा या नहीं, तुम वीरा को लेकर आ जाओ।"

    उसने भागने के लिए कदम उठाए, क्योंकि अब उसके लिए शान का सामना करना संभव नहीं था। दिल में तो वीर बसा था, उसकी हर धड़कन बस वीर के लिए धड़कती थी और आज अनजाने में पहली बार वह वीर के अलावा किसी के इतने करीब चली गई थी, जिससे अब उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि क्यों उसने ध्यान नहीं दिया? वो ऐसा कर कैसे सकती है?

    उसके चेहरे के भाव देखकर शान झट से समझ गया कि उसके दिल में क्या चल रहा है। तो कंचन वहाँ से भाग पाती, उससे पहले ही उसने उसकी कलाई पकड़ते हुए शांत स्वर में कहा, "कुछ गलत नहीं किया है तुमने, हम दोस्त हैं, तो कुछ भी गलत सोचकर तुम्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।"

    उसकी बात सुनकर कंचन ने अपनी आँखें बंद कर लीं और धीमी आवाज़ में बोली, "सॉरी, मुझे तुम्हारे इतने पास नहीं आना चाहिए था। मेरा ऐसा कोई इरादा भी नहीं था, पता नहीं कैसे?"

    कहते हुए वह चुप हो गई, तो शान ने आगे कहा, "ऐसा भी कुछ नहीं हुआ जिसके लिए तुम्हें शर्मिंदा होना पड़े। तुम बस मेरी मदद कर रही थी और कुछ भी नहीं। डोंट वरी, मैं तुम्हारे बारे में कभी कुछ गलत नहीं सोचूँगा। हम दोस्त थे, दोस्त हैं और हमेशा अच्छे दोस्त रहेंगे। और मैं यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करूँगा कि मेरी एकलौती दोस्त भी मुझसे भागे या कटी-कटी रहे। तो जो हुआ उसे भूल जाओ।"

    कंचन ने उसकी बात सुनी, तो कृतज्ञता से उसे देखा। तो शान मुस्कुरा दिया और वीरा का हाथ थाम लिया, "चले, वीरा, देखें ज़रा आज आपकी मम्मा ने हमारे लिए क्या बनाया है।"

    उसकी बात सुनकर वीरा खुशी से स्टूल पर से कूद गई, तो कंचन घबराकर उसका नाम लेकर चिल्लाई, पर वीरा ने मोहक मुस्कान लबों पर सजाए उसे देखा और बेफ़िक्री से बोली, "इट्स ओके, मम्मा, वीरा स्ट्रांग गर्ल है, उसे चोट नहीं लगती।"

    उसकी बात सुनकर कंचन परेशान सी उसे देखती रह गई। वीरा ने दूसरे हाथ से उसकी हथेली थामी और दोनों के साथ वहाँ से बाहर निकल गई।

    कुछ ही देर में तीनों डाइनिंग टेबल पर मौजूद थे। कंचन ने खुद तीनों के लिए खाना लगाया, फिर वीरा की पास वाली कुर्सी पर बैठ गई। उसने एक निवाला उसकी तरफ़ बढ़ाया, तो वीरा को अचानक ही कुछ याद आया। उसने अपने हाथ से उसके हाथ को हटाया और झट से बोली, "ओफ़्फ़ो, बेबी तो भूल गई।"

  • 11. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 11

    Words: 2193

    Estimated Reading Time: 14 min

    "ओफ़्फ़ो, बेबी तो भूल गई।"

    उसके अचानक ऐसे बोलने से शान, जो कि निवाला मुँह में डालने ही वाला था, उसने हैरानी से उसे देखा, वहीं कंचन भी उसे हैरानी से देख रही थी। शान ने अब वीरा को देखते हुए सवाल किया "क्या हुआ, प्रिंसेस? आप क्या भूल गई?"

    उसका सवाल सुनकर वीरा ने पहले उसे देखा, फिर कंचन को देखते हुए मुस्कुराकर बोली "मम्मा, आज न बिग डी को वीरा ने रेडी किया है, जैसे आप बेबी को रोज़ रेडी करती हैं, बिल्कुल वैसे ही। देखिए, बिग डी आज कितने हैंडसम लग रहे हैं न?"

    उसने आँखों में चमक लिए उसे देखा और उसके कुछ कहने का बड़ी सी बेसब्री से इंतज़ार करने लगी। उसकी बात सुनकर कंचन ने आँखें बड़ी-बड़ी करके पहले हैरानी से उसे देखा, फिर शान को देखा, जो बस लबों पर मुस्कान सजाए उन्हें देख रहा था।

    अब उसने गौर से शान को देखते हुए कहा "हम्म, तभी आज तुम इतने अलग से लग रहे हो। वैसे तुम पर यह लुक काफ़ी सूट कर रहा है। इसमें तुम डॉक्टर नहीं, बल्कि कॉलेज गोइंग बॉय लग रहे हो, क्यूट एंड हैंडसम।"

    उसकी बात सुनकर शान की मुस्कान गहरी हो गई, वहीं वीरा की आँखों की चमक बढ़ गई और लबों पर बड़ी सी मुस्कान फैल गई, खुशी से चेहरा खिल उठा। अब कंचन ने उसे देखा और मुस्कुराकर बोली "मुझे नहीं पता था मेरी शैतान गुड़िया इतनी बड़ी हो गई है। आपने तो सच में अपने बिग डी को बहुत अच्छे से रेडी किया है, पर आपने मम्मा को यह तो बताया ही नहीं कि आज आपने इतना काम क्यों किया?"

    उसने मुस्कुराकर सवाल किया, जिसे सुनकर वीरा ने पहले शान को देखा, फिर मुस्कुराकर जवाब दिया "उनकी मम्मा नहीं है न उनको तैयार करने के लिए, तो वह सैड हो गए थे, इसलिए बेबी ने बिग डी को रेडी कर दिया।"

    उसकी मासूमियत भरी बात सुनकर कंचन मुस्कुराने लगी, वहीं शान भी मुस्कुराकर बड़े प्यार से उसे देख रहा था। कंचन ने अब दोबारा वीरा की तरफ़ निवाला बढ़ाते हुए कहा "हमारी वीरा तो बहुत समझदार हो गई है। चलिए अब जल्दी से खाना खाइए, वरना आप स्कूल के लिए लेट हो जाएँगी।"

    उसकी बात सुनकर वीरा ने झट से मुँह खोल दिया। कंचन ने उसे खाना खिलाया, फिर जूस पिलाया। उसके बाद उसने खुद ब्रेकफास्ट किया और तीनों घर से निकल गए। शान ड्राइविंग कर रहा था और कंचन वीरा के साथ पीछे बैठी हुई थी। हमारी चुलबुली वीरा एक बार फिर शरारत करने लगी थी और दोनों की खिलखिलाहट की आवाज़ सुनकर शान मुस्कुराते हुए ड्राइविंग कर रहा था।

    कुछ 15 मिनट बाद गाड़ी एक बड़े से स्कूल के आगे रुकी। लोनावाला का बेस्ट स्कूल था, वह देखने में ही काफ़ी हाई-फ़ाई लग रहा था। वहाँ गाड़ियों की भीड़ थी। सुबह का वक़्त था, तो सभी पेरेंट्स अपने बच्चों को छोड़ने आए हुए थे। वीरा को लेकर कंचन बाहर निकली, साथ ही शान भी बाहर निकला, तो वीरा ने दोनों के गाल पर किस किया, तो बदले में उन दोनों ने भी उसके गाल को बड़े प्यार से चूमा। फिर कंचन उसे सब समझाने लगी और वीरा लबों पर शैतानी मुस्कान सजाए उसे देख रही थी।

    आखिर में कंचन ने परेशान होकर कहा "वीरा, मैं आपको आखिरी बार कह रही हूँ, दोबारा अगर मेरे पास तुम्हारी कोई शिकायत आई, तो मम्मा आपसे गुस्सा हो जाएँगी। कितनी शैतानी करती है! बाकी बच्चे भी तो हैं, किसी की शिकायत नहीं जाती, पर आपकी शिकायत रोज़ आती है।

    कभी किसी से लड़ाई कर लेती है, तो कभी किसी को पीट देती है। मम्मा ने आपको इतना समझाया है कि इतना गुस्सा मत किया कीजिए, शैतानी मत किया कीजिए, टीचर की बात माना कीजिए, पर आप अपनी शरारतों से बच्चों के साथ-साथ टीचर को भी परेशान कर देती हैं। मत किया कीजिए न इतनी शरारत! यहाँ पढ़ने आती है तो आराम से गुड गर्ल के तरह रहा कीजिए।"

    उसकी बात सुनकर और परेशानी से भरा उसका चेहरा देखकर वीरा की मुस्कान गायब हो गई। उसने बड़ी मासूमियत से कहा "मम्मा, वीरा कुछ नहीं करती है। वह राहुल ही वीरा को तंग कर रहा था, तो बस वीरा ने उसे धक्का दिया था। फिर उसने मैम से झूठी शिकायत लगा दी और रोने भी लगा। उसने भी तो बेबी को धक्का दिया था।

    आपने देखा था न बेबी को कितनी चोट लगी थी, पर बेबी तो नहीं रोई थी। वीरा किसी को तंग नहीं करती है। सब वीरा को चिढ़ाते हैं कि वह बैड गर्ल है, इसलिए उसके डैडी उसके साथ नहीं रहते। वह आपको भी गन्दा-गन्दा बोलते हैं, तो अगर कोई बेबी की मम्मा को बैड कहेगा, तो बेबी चुप कैसे रह सकती है? बेबी बस उनको वह बोलने से रोकती है, फिर वह बेबी से लड़ाई करने लगते हैं और टीचर से शिकायत भी लगा देते हैं और फिर टीचर बेबी को पनिश करती है और मम्मा से भी शिकायत कर देती है।"

    उसने इतनी मासूमियत से पूरी बात कही और बोलते हुए ही उसकी प्यारी-प्यारी आँखों से छोटी-छोटी सुंदर मोतियों जैसी आँसुओं की बूँदें उसके गोल-गोल लाल गालों पर गिरने लगीं। उसकी बात सुनकर कंचन स्तब्ध थी। आँखों में अपनी छोटी सी बेटी का दर्द देख नमी तैर गई थी। उसने उसे सीधे अपने सीने से लगा लिया और उसकी पीठ सहलाते हुए बोली: "रोते नहीं, बच्चे। मम्मा आपकी टीचर से बात करेंगी, फिर कोई आपको तंग नहीं करेगा।"

    उसने अपने आँसुओं को पोंछा, फिर उसे खुद से अलग किया, तो वीरा ने नम आँखों से उसे देखते हुए पूछा "मम्मा, डैडी हमारे साथ क्यों नहीं रहते? वह कभी बेबी से मिलने भी नहीं आते, वीरा के साथ खेलते भी नहीं हैं। सबके डैडी उनके साथ रहते हैं, बस वीरा के डैडी उससे मिलने भी नहीं आते। क्या बेबी बैड गर्ल है? बेबी शैतानी करती है, इसलिए डैडी बेबी के पास नहीं आते न? वह बेबी से प्यार भी नहीं करते?"

    यह कहते हुए वह एक बार फिर सुबकने लगी। उसके सवालों से कंचन सुन्न रह गई थी। क्या जवाब दे? उस नन्ही सी बच्ची का यह उसकी सोच से परे था। उसको चुप देख अब शान नीचे बैठ गया। उसने वीरा को अपनी तरफ़ घुमाया और उसके आँसुओं को पोंछते हुए बड़े प्यार से बोला

    "नहीं, बेटा, हमारी प्रिंसेस तो गुड गर्ल है और डैडी भी वीरा से बहुत प्यार करते हैं, बिल्कुल आपके बिग डी जैसे। वह यहाँ नहीं है न, बहुत दूर है, उन्हें काम है, इसलिए वह आपके और मम्मा के साथ नहीं रह सकते। इसलिए तो उन्होंने बिग डी को आपके और मम्मा के पास भेज दिया, ताकि उनकी जगह वह आपका और आपकी मम्मा का ध्यान रख सके। आपके डैडी जल्दी ही आएंगे आपसे मिलने, फिर आप भी अपनी मम्मा और डैडी के साथ रहिएगा, जैसे बाकी सब बच्चे रहते हैं।

    अगर आगे से कोई आपको चिढ़ाते या गंदी बात कहे, तो आप सीधा टीचर से शिकायत कर दीजिए और बिग डी भी आज आपकी टीचर से बात कर लेंगे। अब से कोई आपको कुछ नहीं कहेगा। और आप रो क्यों रही है? आप तो बहुत स्पेशल हैं। सबके पास एक डैडी होते हैं, पर आपके पास तो डैडी भी हैं और बिग डी भी हैं। चलिए अब मुस्कुराकर दिखाइए, वरना आपके बिग डी और डैडी दोनों सैड हो जाएँगे।"

    उसने बड़े प्यार से उसे समझाया और मुँह फुलाकर उदास सा चेहरा बनाकर उसे देखने लगा, तो हमारी वीरा एक बार फिर खिलखिला उठी। उसने झट से उसके गाल पर किस किया और मुस्कुराकर बोली "येस, अब बेबी सबको बताएगी कि बेबी गुड गर्ल है, तभी तो उसके पास बिग डी भी है और डैडी भी हैं। उनके पास तो बिग डी नहीं है।"

    अब उसके चेहरे की खुशी और आँखों की चमक दोनों लौट आई थीं। शान ने उसे बाय किया, फिर कंचन को कोहनी मारी। कंचन ने उसकी तरफ़ निगाहें उठाईं, तो उसने मुस्कुराने का इशारा कर दिया और अपनी पलकें झपका दीं। तो कंचन ने वीरा को अपने सीने से लगा दिया, फिर प्यार से उसके माथे को चूमते हुए उसे बाय किया, तो वीरा हाथ हिलाते हुए दोनों को बाय करते हुए अंदर जाने लगी। वह तो अंदर चली गई, पर कंचन अब भी खाली आँखों से गेट की तरफ़ देखे जा रही थी।

    शान ने यह देखा कि वीरा तो जा चुकी थी, पर कंचन अब भी वहीं बैठे सामने देखे जा रही थी, तो उसने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा "रिलेक्स, मैं उसकी टीचर से बात कर लूँगा। बच्चे हैं, टीचर उन्हें समझाएँगी, तो वह समझ जाएँगे और फिर दोबारा वीरा को कभी नहीं चिढ़ाएँगे। तुम्हें इतनी सी बात के लिए परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।"

    उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कंचन उसे देखने लगी थी। वह खाली आँखों से उसे देखते हुए उसकी बात सुन रही थी। दिल में तूफ़ान उठा हुआ था, जिसे शांत करने का उसे कोई रास्ता ही नहीं दिख रहा था। वीरा तो चली गई, पर उसके सवालों ने कंचन को अंदर तक हिला दिया था। अजीब सी बेचैनी, दर्द और तड़प उसे महसूस हो रही थी।

    शायद जो उसने सुना, उसने उसकी कल्पना भी नहीं की थी, इसलिए वह शॉक में थी। ऊपर से वीरा का वह उदास चेहरा, आँसुओं से भीगी आँखें बार-बार उसकी आँखों के सामने आ रही थीं। जिस बेटी को उसने इतने नाज़ों से पाला था, जिसकी आँखों में उसने कभी आँसू का एक कतरा भी नहीं आने दिया था, जिसकी एक खुशी पर वह अपनी जान कुर्बान कर दिया करती थी, जो उसकी ज़िंदगी थी, जिसकी खुशी के सिवा उसने भगवान से कभी कुछ नहीं माँगा था, आज वही बच्ची उदास थी, दुखी थी और कहीं न कहीं उसके आँसुओं की वजह वह खुद थी।

    उसे पिता के प्यार के लिए तरसते आज पहली बार देखा था उसने। उसने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वीरा अपने डैडी को मिस भी करती होगी, वह भी इस हद तक। यही सब सोचते हुए उसकी आँखें भर आईं, पर उसने उन आँसुओं को बाहर नहीं आने दिया। उठकर खड़ी हुई और कार की तरफ़ बढ़ गई। शान वहीं खड़ा उसके उदास चेहरे को देखता रहा। फिर जाकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गई।

    कंचन पहले ही उसके बगल वाली सीट पर बैठी हुई थी। शान ने गाड़ी स्टार्ट कर दी। दोनों के बीच गहरी खामोशी पसरी हुई थी। शान बार-बार उसे देख रहा था, पर कंचन खाली आँखों से खिड़की के बाहर देखे जा रही थी।

    कुछ देर शान उसे देखता रहा, फिर उसने माहौल बदलने के लिए मुस्कुराकर कहा "मुझे ना आज तक यह बात समझ नहीं आई कि जब तुम्हें ड्राइविंग आती है, तो तुम खुद से ड्राइव क्यों नहीं करती? लगता है मुझे ड्राइवर बनाने में तुम्हें कुछ ज़्यादा ही मज़ा आता है।"

    उसने बात कही तो थी ताकि कंचन का मूड बदले और वह सामान्य हो जाए, पर उसकी बात का असर कुछ उल्टा हो गया। उसकी बात सुनकर कंचन की आँखों से कुछ बूँद आँसू निकलकर उसके गालों पर लुढ़क गए और कानों में कुछ आवाज़ें गूँजने लगीं

    "फाइनली तुम्हें कार ड्राइव करनी आ ही गई, बड़ी मेहनत करवाई तुमने मुझसे, पर अब मैं खुश हूँ, कम से कम अब ज़रूरत पड़ने पर तुम खुद से ड्राइव करके कहीं भी आ जा सकोगी। तुम्हें ड्राइवर या मेरा इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा।"

    "जी नहीं, मैंने कार चलानी सीखी है क्योंकि आप ज़िद कर रहे थे कि मुझे कार ड्राइव करना सिखाकर ही रहेंगे, पर इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि अब आपको मुझसे छुटकारा मिल जाएगा। आगे भी, जब भी मुझे कहीं जाना होगा, तो मैं आपको ही तंग करूँगी और अगर मैंने कभी ड्राइव की भी, तो वह तभी होगा जब आप मेरे बगल में मौजूद होंगे।

    अगर मुझसे कोई गड़बड़ हो गई, तो आप होंगे मुझे संभालने के लिए और मुझे आप पर खुद से भी ज़्यादा विश्वास है कि आप मुझे हर मुसीबत से बचा लेंगे। तब मैं निडर होकर ड्राइव कर सकूँगी। इसलिए आज मैं आपसे वादा करती हूँ कि मैं जब भी ड्राइव करूँगी, तो आप मेरे पास होंगे।

    अगर ऐसा नहीं हुआ, तो कितना ही इम्पॉर्टेन्ट हो, पर मैं स्टीयरिंग को हाथ भी नहीं लगाऊँगी और एक बात, मैं सारी ज़िंदगी आपको यूँ ही परेशान करूँगी, तो आप यह तो बिल्कुल मत सोचिएगा कि मुझे ड्राइविंग सिखाकर आप मुझसे पीछा छुड़वा लेंगे। मैं आपकी ज़िम्मेदारी हूँ और आपको इस ज़िम्मेदारी को सारी उम्र प्यार से निभाना होगा।"

    "अगर ज़िम्मेदारी इतनी खूबसूरत हो, तो बंदा हँसते-हँसते इस ज़िम्मेदारी पर अपनी सारी उम्र वार दे। वैसे तुमने सब ठीक कहा, बस एक गलती कर दी।"

    "अच्छा, और वो क्या?"

    "तुम मेरी ज़िम्मेदारी नहीं, मेरी मोहब्बत हो और जब तक मेरी साँसें चल रही हैं, मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा और जब-जब तुम्हें ज़रूरत पड़ेगी, मैं तुम्हें अपनी पनाह में ले लूँगा, बड़े प्यार से तुम्हें संभाल लूँगा और जब तक मैं हूँ, मैं तुम्हें कभी कुछ नहीं होने दूँगा। तुम्हें खुश रखना मेरी ज़िंदगी का मकसद है।"

    यह सब सोचते हुए कंचन के लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैल गई। वो उन हँसी यादों में खो गई थी, तभी उसे आभास हुआ कि यह सब तो वह अतीत है, जो बीत चुका है। अब इनमें से कुछ भी सच नहीं है। इस कड़वी सच्चाई से जैसे ही उसका सामना हुआ, उसकी आँखों में एक बार फिर आँसू भर आए और चेहरे पर मायूसी और दर्द ने जगह बना ली।


    Coming soon...........

  • 12. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 12

    Words: 1394

    Estimated Reading Time: 9 min

    "तुम मेरी ज़िम्मेदारी नहीं, मेरी मोहब्बत हो, और जब तक मेरी साँसें चल रही हैं, मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा। और जब-जब तुम्हें ज़रूरत पड़ेगी, मैं तुम्हें अपनी पनाह में ले लूँगा, बड़े प्यार से तुम्हें संभाल लूँगा, और जब तक मैं हूँ, मैं तुम्हें कभी कुछ नहीं होने दूँगा। तुम्हें खुश रखना मेरी ज़िंदगी का मक़सद है।"

    यह सब सोचते हुए कंचन के लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैल गई। वह उन हँसी यादों में खो गई थी। तभी उसे आभास हुआ कि यह सब तो अतीत है, जो बीत चुका है। अब इनमें से कुछ भी सच नहीं है। इस कड़वी सच्चाई से जैसे ही उसका सामना हुआ, उसकी आँखों में एक बार फिर आँसू भर आए और चेहरे पर मायूसी और दर्द ने जगह बना ली।

    शान, जो उसी को देख रहा था, उसने उसकी उदासी देखी। उसने कंधे पर हाथ रखते हुए बोला, "आरे यू फाइन?"

    उसका सवाल जैसे ही कंचन के कानों तक पहुँचा, वह अपने ख़्यालों की दुनिया से एक झटके में बाहर आ गई। उसने अपने आँसुओं को पोंछ लिया, फिर झूठी मुस्कान अपने लबों पर बिखेरते हुए उसे देखते हुए बोली, "हम्म, मैं बिल्कुल ठीक हूँ, मुझे क्या होना है? मैं तो बस तुम्हारे सवाल का जवाब सोच रही थी। पता है मैं खुद से ड्राइव क्यों नहीं करती?"

    शान गहरी निगाहों से उसे देख रहा था। उसे कंचन की झूठी मुस्कान को पहचानने में एक सेकंड का भी वक़्त नहीं लगा, पर उसने भी उसकी तरफ़ मुस्कुराकर ही सवाल किया, "मुझे तो नहीं पता, तुम ही बता दो क्यों नहीं करती?"

    उसके सवाल करने पर कंचन ने मुस्कुराकर ही कहा, "क्योंकि जब मुझे तुम जैसा हैंडसम ड्राइवर फ़्री में मिल रहा है, तो कौन कमबख़्त इस मौके को अपने हाथों से जाने देगा?"

    "ओओओ, तो तुम मेरे साथ फ़्लर्ट करने की कोशिश कर रही हो?" शान ने शरारती मुस्कान के साथ उसे देखा, पर कंचन के भाव ज़रा भी नहीं बदले। उसने उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा,

    "जी नहीं, मैं फ़्लर्ट नहीं करती, पर लगता है आज पार्क में फिर से कोई लड़की मिल गई थी तुम्हें। हमारे हैंडसम मुंडे पर फिर से कोई लड़की मर मिटी है क्या? अगर है तो मुझे भी बता दो। और अगर मेरी मानो तो इतनी लड़कियाँ तुम्हारे पीछे पागल हैं, कितनी तो तुम्हारे हॉस्पिटल बेवजह के चक्कर काटती रहती हैं, सिर्फ़ इसलिए ताकि इतने हैंडसम डॉक्टर से इलाज कराने के बहाने उसे जी भरकर ताड़ लें। कितनी ही डॉक्टर ही तुम पर फ़िदा हो रखी हैं। उनमें से किसी ढंग की लड़की को चुनकर उससे शादी कर लो, पेशेंट से बेहतर तो होगा कि तुम किसी डॉक्टर के साथ ही सेट हो जाओ, दोनों मिलकर एक-दूसरे का इलाज करते रहना।"

    इतना कहकर वह हँस पड़ी। उसकी वह निष्छल सी हँसी देखकर शान के बेचैन दिल को जैसे सुकून मिल गया था। वह बस लबों पर सौम्य सी मुस्कान लिए उसे देख रहा था। कुछ देर हँसने के बाद कंचन ने मुस्कुराकर आगे कहा, "अब बताओ भी, अब किसने तुम्हें प्रपोज़ कर दिया, जिसे मुझसे छुपाने के लिए तुम वीरा को इतना लालच देकर चुप रहने के लिए इन्सिस्ट कर रहे थे?"

    उसकी बात सुनकर शान ने मुस्कुराकर कहा, "तुम्हें हर बार समझ आ जाता है न? कैसे जान जाती हो? हर बार मेरी सारी कोशिशें बेकार हो जाती हैं। कहाँ से पता चल जाता है तुम्हें सब?"

    "बस पता चल जाता है। तुम्हें शायद पता नहीं है मेरी ऑब्ज़र्विंग पावर कितनी कमाल की है। तुम्हारा चेहरा देखते ही मुझे समझ आ जाता है कि आज फिर कोई लड़की तुम पर फ़िदा हो गई है और ज़रूर उसने कुछ ऐसा कहा है जो तुम मुझे नहीं बताना चाहते।" कंचन ने एक बार फिर शरारती मुस्कान के साथ उसे देखा। कंचन को वापस खुश देखकर शान के लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैल गई थी, पर उसके सवाल को सुनकर उसने उदास होने का नाटक करते हुए कहा,

    "क्या करूँ यार, कितना भी इन लड़कियों से दूर रहूँ, आख़िर कहीं न कहीं से कोई न कोई आ ही जाती है। अब मैं कैसे उन्हें समझाऊँ कि मुझे उनमें रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं है और कभी हो भी नहीं सकता। जो दिल पहले ही किसी और का हो गया हो, उसे अब किसी दूसरे के नाम तो नहीं किया जा सकता न।"

    उसकी बात सुनकर कंचन की मुस्कान गायब हो गई। वह आँखें फाड़े उसे देखते हुए हैरानी से बोली, "दिल पहले ही किसी और का हो गया है? इसका क्या मतलब हुआ? क्या तुम्हें पहले से कोई पसंद है? अगर ऐसा है तो तुमने आज तक मुझे कुछ क्यों नहीं बताया? और अगर तुम किसी से प्यार करते हो तो तुम उससे शादी क्यों नहीं कर रहे? कौन है वह खुशनसीब लड़की जिसे तुमने मुझसे भी छुपाया हुआ है?"

    अब कंचन उसे गुस्से में घूरने लगी। उसका गुस्सा देखकर शान के लबों पर बड़ी सी मुस्कान फैल गई। उसने उसके फूले हुए गालों को खींचते हुए कहा, "तुम उसे पहले से जानती हो, वह भी बहुत अच्छे से।"

    उसकी बात सुनकर कंचन की आँखें एक बार फिर बड़ी-बड़ी हो गईं। वह उसे हैरानी से देखने लगी, तो शान ने आगे कहा, "वो लड़की बहुत क्यूट है, बहुत सुंदर भी है, बिल्कुल किसी प्रिंसेस जैसी है, और मैं उससे बहुत-बहुत-बहुत प्यार करता हूँ, और वो लड़की मेरी 4 साल की प्रिंसेस और तुम्हारी एकलौती बेटी वीरा है, जिसमें सिर्फ़ तुम्हारी ही नहीं, बल्कि मेरी भी जान बसती है।"

    उसने मुस्कुराकर अपनी बात ख़त्म की। वहीं उसकी बात सुनकर कंचन के भाव एकदम से बदल गए। पहले तो वो असमझ सी उसे देखती रही, फिर जैसे ही उसे उसकी बात समझ आई, उसने उसके हाथ को झटक दिया और चिढ़कर बोली, "हटो, मुझे लगा तुम्हें सच में कोई लड़की पसंद है पर तुम तो मेरे मज़े ले रहे थे।"

    उसके फूले हुए गाल और गुस्से भरा चेहरा देखकर शान हँस पड़ा और हँसते हुए बोला, "गलती तुम्हारी है। मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूँ कि मुझे शादी नहीं करनी, मुझे किसी लड़की में कोई दिलचस्पी नहीं है। मेरे लिए वीरा ही मेरी दुनिया है। फिर भी तुमने मुझसे वह बकवास सवाल किया, तो जवाब तो ऐसा ही मिलना था न।"

    "आज तो तुम मुझे एक बात सच-सच बता दो, तुम स्ट्रेट तो हो न?" कंचन ने भौंहें चढ़ाकर सवाल किया, तो शान की मुस्कान गायब हो गई। उसने उसके सर पर हल्के से मारते हुए कहा, "जाकर अपने दिमाग का इलाज करवाओ, ख़राब हो गया है। क्योंकि मैं बिल्कुल स्ट्रेट हूँ। अगर मुझे कोई लड़की पसंद नहीं आती, इसका मतलब यह नहीं कि तुम कुछ भी बकवास सोचने और बोलने लगोगी।"

    उसका चेहरा अभी देखने लायक था। कंचन ने उसका चेहरा देखा तो खिलखिलाकर हँस पड़ी, जिससे शान और भी ज़्यादा चिढ़ गया। उसने नाराज़गी से मुँह घुमा लिया और अपना सारा ध्यान ड्राइविंग पर लगा दिया। कंचन कुछ देर उसका चेहरा देखकर हँसती रही, फिर चुप हुई और उसे देखकर मुस्कुराकर बोली, "अच्छा, अब मुँह मत फुलाओ। तुमने बात ही ऐसी कही कि मेरे मुँह से वो निकल गया, पर आई स्वीयर मैं तुम्हारे बारे में ऐसा कुछ भी नहीं सोचती हूँ।"

    कंचन ने मासूम सी शक्ल बनाई और अपने गले पर छूते हुए कहा। शान ने उसे देखा और उसकी मासूम सी शक्ल देखकर वह हौले से मुस्कुरा दिया। उसे मुस्कुराता देख कंचन भी मुस्कुरा उठी, और दोनों के बीच बातें शुरू हो गईं। कुछ देर में गाड़ी एक ऑफ़िस के आगे रुकी, जिस पर "V&K Fashions" लिखा हुआ था। यह वही जगह थी जहाँ कंचन काम करती थी। वह इस फ़ैशन हाउस की ओनर थी और उसकी सालों की मेहनत का ही नतीजा था कि V&K Fashions की मुंबई में अलग ही पहचान थी।

    कंचन नीचे उतरी, तो शान उसे बाय कहकर वहाँ से निकल गया। कंचन भी अंदर की तरफ़ बढ़ गई और इस वक़्त उसके लबों पर सुकून भरी मुस्कान फैली हुई थी। वहीं यहाँ से कुछ 15 मिनट की दूरी पर ही शान का खुद का हॉस्पिटल था, जहाँ वह काम भी करता था। वह भी मुंबई का जाना-माना डॉक्टर था और उसके हॉस्पिटल का भी वहाँ अलग नाम था। शान भी हॉस्पिटल पहुँचा और अपने काम में लग गया।


    "वो शायद वीर प्रताप सिंह को जानती नहीं है। आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुई मुझे ना कहने की, उसकी इतनी ज़ुर्रत कि उसने मुझे इंकार किया। लगता है अब उसे मुझे अपने तरीके से ही हैंडल करना होगा।" वीर का चेहरा गुस्से से लाल था।

    आगे जारी...

  • 13. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 13

    Words: 1803

    Estimated Reading Time: 11 min

    साउथ दिल्ली के ग्रेटर कैलाश इलाके में बने उस बड़े आलीशान विला में, एक बड़े कमरे में जहाँ सभी सुविधाएँ मौजूद थीं, वहाँ कमरे के बड़े किंग साइज़ बेड पर एक आदमी बैठा हुआ था, शायद किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था। तभी उसका फ़ोन बजने लगा। स्क्रीन पर "नीरज" नाम दिख रहा था। नाम देखकर उसने बिना किसी भाव के फ़ोन उठाया और सख़्त आवाज़ में कहा, "कहो।"

    "गुड मॉर्निंग सर, वो सर, मैंने आपको यह बताने के लिए फ़ोन किया है कि मिस जैनिला ने हमारे प्रपोजल को रिजेक्ट कर दिया है।"

    दूसरे सिरे से यह सुनते ही उसकी भौंहें सिकुड़ गईं। चेहरे पर गुस्सा, रोष साफ़ दिखने लगा। उसके कोल्ड लुक्स को देखकर किसी को भी हार्ट अटैक आ सकता था। उसने गुस्से में कहा,

    "वो शायद वीर प्रताप सिंह को जानती नहीं है। आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुई मुझे ना कहने की, उसकी इतनी ज़ुर्रत कि उसने मुझे इंकार किया। लगता है अब उसे मुझे अपने तरीक़े से ही हैंडल करना होगा।"

    "नहीं सर, मेरे ख्याल से हमें उससे कोई कॉन्टैक्ट नहीं करना चाहिए। पिछले कुछ वक़्त से उनके मिस माया के साथ काफ़ी उठना-बैठना हो रहा है, दोनों की दोस्ती के चर्चे हर जगह फैले हुए हैं। जहाँ तक मुझे हमारे सोर्सेज़ से पता चला है, तो मिस जैनिला के इंकार के पीछे मिस माया का हाथ है। जब से आपने उनसे किया हमारा कॉन्ट्रैक्ट बीच में तोड़ा है, तभी से वह आपसे बदला लेने का मौक़ा ढूँढ रही है और अब वह आपको उकसाने के लिए ही सब करवा रही है।

    अगर इस वक़्त आपने कुछ किया, तो आपकी और हमारी कंपनी की इमेज बिगड़ सकती है। इस महीने ही हमें हमारे नए ब्रैंड को लॉन्च करना है। अगर इस वक़्त कुछ भी गड़बड़ हुई, तो उसका सीधा असर हमारे एग्ज़िबिशन पर पड़ेगा। इसलिए इस वक़्त हमें शांत रहना चाहिए। वैसे भी मिस जैनिला से बेहतर मॉडल्स हैं हमारे पास। हमें या हमारी कंपनी को उनकी कोई ज़रूरत नहीं है।"

    उसके गुस्से से घबराते हुए नीरज, जो वीर का असिस्टेंट था, ने एक ही साँस में सब कह दिया और फिर भगवान को याद करने लगा, क्योंकि वह वीर के गुस्से से बहुत अच्छे से वाकिफ़ था। वीर उसकी बात सुनकर कुछ देर शांत रहा और गहराई से उसकी बात के बारे में सोचने लगा।

    आखिर उसकी बात उसे सही लगी। पूरे इंडिया में उसके कई सारे शोरूम थे, जहाँ उनकी कंपनी में डिज़ाइन हुए ड्रेसेज़, कॉस्ट्यूम्स वग़ैरह की सेलिंग होती थी और इंडिया में आराध्या फ़ैशन का खूब नाम था। सिर्फ़ बड़े-बड़े लोग ही नहीं, वहाँ शॉपिंग करने आते थे, बल्कि फ़िल्मों के लिए भी कॉस्ट्यूम्स का ऑर्डर भी उनकी कंपनी को ही मिलते थे। उनके डिज़ाइनर्स काफ़ी फ़ेमस थे और उससे भी फ़ेमस थे उनके डिज़ाइन्स। और अब वो अपने काम को बढ़ाने वाला था और ज्वैलरी की दुनिया में अपना क़दम रखने वाला था। अगले महीने ही उनके ज्वैलरी शोरूम की ओपनिंग सेरेमनी थी, एक साथ देश के अलग-अलग कोनों में उनके शोरूम खोले जाने वाले थे, जिनकी सारी तैयारी हो चुकी थी।

    बस शूटिंग का काम रहता था, ताकि एडवरटाइज़मेंट का काम शुरू हो सके। उसी के लिए उन्हें नए चेहरे की तलाश थी और इस वक़्त अगर कुछ गड़बड़ होती है, तो ज़ाहिर सी बात थी कि इसका असर उनके काम पर भी पड़ेगा ही। यही सोचकर वीर ने अपने गुस्से को शांत करते हुए रौबदार आवाज़ में कहा, "ठीक है, मैं ऑफ़िस आकर तुमसे इस बारे में बात करता हूँ।"

    इतना कहकर उसने फ़ोन काट दिया और गुस्से से दाँत पीसते हुए बोला, "माया!"

    उसकी आँखें गुस्से से लाल थीं। तभी उसके शैतानी दिमाग में कुछ आया और उसके लबों पर टेढ़ी मुस्कान फैल गई। उसने खुद से ही कहा, "तुमने मुझसे टकराने की ज़ुर्रत की, अब देखो मैं तुम्हारे साथ क्या करता हूँ।"

    उसने फ़ोन में कुछ किया, फिर शैतानी मुस्कान के साथ फ़ोन टेबल पर रखकर कपड़े लेकर बाथरूम में चला गया। कुछ देर में वह रेडी होकर घर से निकल गया। उसकी बड़ी ब्लैक कार, जो देखने में ही बहुत महँगी लग रही थी, सड़कों पर तेज़ रफ़्तार से दौड़ती हुई आगे बढ़ रही थी। सुबह का वक़्त था, तो ज़्यादा ट्रैफ़िक भी नहीं था। कुछ आधे घंटे बाद उसकी गाड़ी एक बड़े गेट के आगे जाकर रुकी, जिस पर "आराध्या फ़ैशन्स" का बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ था।

    अंदर पाँच मंज़िला खूबसूरत इमारत थी। ग्लास वॉल्स से बना वह ऑफ़िस बेहद अलग और खूबसूरत लग रहा था। वीर ने बाहर वाले गेट पर गाड़ी रोकी, क्योंकि वह गेट बंद था। गाड़ी को देखते ही वॉचमैन ने हाथ उठाकर "सैल्यूट सर" कहा, पर वीर ने बस उसकी तरफ़ निगाह ही उठाई, कोई जवाब नहीं दिया। उसका कोल्ड औरा किसी की भी जान सुखाने को काफ़ी था।

    इतना सख़्त चेहरा किसी इंसान का कैसे हो सकता था, पर जो भी कहो, वह हद से ज़्यादा हैंडसम था। उस पर यह घमंड सूट करता था। क्या रौबदार पर्सनैलिटी थी उसकी! गठीला बदन, गहरी काली बड़ी आँखें, लम्बी पलकें, पतली नाक जो गुस्से से फूली हुई थी, गुलाबी पतले होंठ, दूध सा गोरा रंग, जो उसे एक बार देख ले, बस उस पर ही मर मिटे। तभी तो करोड़ों लड़कियाँ उसकी दीवानी थीं। उन गहरी काली आँखों में सिर्फ़ गुस्सा झलक रहा था। उसके देखने भर से वह वॉचमैन डर गया। उसने झट से दरवाज़ा खोला, तो वीर की कार तेज़ी से अंदर चली गई।

    पार्किंग में जाकर गाड़ी रोकी और गाड़ी से बाहर कदम रखते हुए उसने अपने कोट को ठीक किया, फिर ब्लैक शेड्स निकालकर अपनी आँखों पर चढ़ाते हुए कदम अंदर की तरफ़ बढ़ा दिया। अब उसकी पर्सनैलिटी और भी जानलेवा लग रही थी। गुस्से से भरा चेहरा और भी आकर्षक लग रहा था। बालों को जेल लगाकर बेहद खूबसूरती से सेट किया था। फ़िटिंग के उन काले कपड़ों में उसका गठीला बदन का उभार नज़र आ रहे थे। उसका कोल्ड औरा उसे सबसे अलग बना रहा था। आँखों पर काले चश्मे लगाए वह और भी ज़्यादा अट्रैक्टिव लग रहा था। वह लम्बे कदम भरते हुए गेट से अंदर घुसा, तो रिसेप्शनिस्ट ने उसे देखते ही खड़े होकर झुकते हुए उसे गुड मॉर्निंग विश किया।

    वीर ने बस एक नज़र उसे देखा, फिर आगे बढ़ गया। पीछे से रिसेप्शनिस्ट उसे जाते देख मुँह बनाते हुए बोली,

    "पता नहीं आखिर सर की प्रॉब्लम क्या है? हर वक़्त इतने गुस्से में रहते हैं, जैसे किसी ने उनसे उनकी गर्लफ़्रेंड छीन ली हो या उनकी सारी दौलत उड़ा ले गया हो। एक तो खुद हँसते-मुस्कुराते नहीं हैं, यहाँ तो ज़ुबान से चिल्लाने के अलावा कभी खुलती ही नहीं है। हर वक़्त गुस्सा नाक पर बिठाए रखते हैं। तभी इनकी कोई गर्लफ़्रेंड नहीं है।

    ज़रूर उनके साथ एक रात बिताकर ही लड़कियाँ समझ जाती होंगी कि इन्हें झेलना आसान नहीं है और इसलिए सर रोज़ एक नई लड़की के साथ नज़र आते हैं। जाने वो कौन लड़की होगी जिसकी किस्मत फूटेगी और इस चलते-फिरते ऐटिट्यूड की दुकान से शादी करेगी। बेचारी सारी ज़िंदगी अपना सर फोड़ाती रहेगी कि कहाँ से उसे ऐसा अड़ियल पति मिल गया है।"

    रिसेप्शनिस्ट वापस काम में लग गई। वहीं वीर लिफ़्ट में पहुँचा और 10वें फ़्लोर का बटन दबा दिया। इस वक़्त लिफ़्ट में वह अकेला ही था। कुछ देर में लिफ़्ट 7वें फ़्लोर पर रुकी, तो वो लिफ़्ट से बाहर निकलकर अंदर की तरफ़ बढ़ गया। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ने लगा, सभी एम्प्लॉई खड़े होकर उसे ग्रीट करने लगे, पर उसने किसी एक को भी रिप्लाई नहीं किया, बस उन्हें देखा और आगे बढ़ गया। एक केबिन के सामने जाकर वह रुका, जिस पर "CEO's Cabin Office" लिखा हुआ था। उसने दरवाज़ा खोला और अंदर चला गया।

    वीर अपने केबिन में जाकर जैसे ही बैठा, उसके केबिन का गेट नॉक हो गया। वीर ने अपने सामने रखे लैपटॉप को ऑन करते हुए "कम इन" कहा। इसके साथ ही दरवाज़ा खुला और नीरज ने अंदर कदम रखा। वीर ने भी उसकी तरफ़ निगाह उठाई, तो नीरज ने झट से उसकी तरफ़ एक फ़ाइल बढ़ाते हुए कहा,

    "सर, इनमें कुछ न्यू मॉडल्स की पिक्चर्स हैं, जिन्हें हमारी मार्केटिंग टीम ने शॉर्टलिस्ट किया है। उनके हिसाब से इन मॉडल्स में से आप जिसे फ़ाइनल करेंगे, वही हमारे प्रमोशन प्रोग्राम का हिस्सा बनने को तैयार हो जाएगी और ये सभी हमारे प्रोडक्ट के लिए सूटेबल हैं, तो आप एक बार देखकर चेक कर लीजिए। अगर आपको कोई पसंद आए तो।"

    बेचारे नीरज ने डरते-डरते अपनी बात कही, फिर घबराई निगाहों से उसे देखने लगा, पर वीर के चेहरे के भाव ज़रा भी नहीं बदले। वही कोल्ड, डरावना लुक, वही घूरती हुई आँखें, भींचे हुए होंठ और फूली हुई नाक। पर वीर खामोशी से उसकी बात सुन रहा था। नीरज चुप हुआ, तो वीर ने उसके हाथ से फ़ाइल ली और देखते हुए बोला, "मैं देख लेता हूँ, पर उससे पहले तुम्हें मेरा एक काम करना होगा।"

    "जी सर, कहिए।"

    वीर ने निगाहें उसकी तरफ़ उठाईं और कुछ देर बिना किसी भाव के उसे कुछ बताता और समझाता रहा। वीर के चेहरे पर तो कोई भाव नहीं था, पर जैसे-जैसे नीरज उसकी बात सुनता जा रहा था, उसके चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे। उसे इंतज़ार था वीर के चुप होने का, क्योंकि वह जानता था कि वीर को बीच में टोकने वाले लोग ज़रा भी पसंद नहीं।

    कुछ देर बाद जैसे ही वीर चुप हुआ, नीरज ने घबराकर कहा, "सर, वह सब तो ठीक है, पर इन सब की क्या ज़रूरत है? मेरा मतलब, जैसा आपने कहा, अगर हम वैसा करते हैं, तो मार्केट में आपका नाम खराब हो सकता है और इसका इफ़ेक्ट बिज़नेस पर भी पड़ सकता है।"

    "इन सब की तुम्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। मैंने सब सोच लिया है। आज मैं जो भी करने वाला हूँ, अगर इससे किसी का नाम मार्केट में खराब होगा, तो वह मिस माया होंगी। अगर किसी की इज़्ज़त की धज्जियाँ मीडिया और सारी दुनिया के सामने उड़ेंगी, तो वह माया होगी। उसने हिम्मत भी कैसे की मुझसे टकराने की? जब इतना बड़ा गुनाह कर ही दिया है, तो अब सज़ा भी भुगतनी होगी उसे।

    आज उसे पता चलेगा कि वीर प्रताप सिंह से टकराने का क्या अंजाम होता है। तुम बस वह करो जो मैंने कहा है, सब मेरे प्लान के हिसाब से ही होना चाहिए। आज जो मैं करने वाला हूँ, उसके बाद दोबारा कोई मुझसे टकराने की ज़ुर्रत नहीं करेगा। उसने गलती की है, तो अब भरपाई भी करनी होगी।"

    बेचारा नीरज क्या ही कहता और कहने का फ़ायदा होना था। वीर तो ठहरा ज़िद्दी, अकड़ू, घमंडी। उसने करना तो वही था जो उसका दिल करे, तो बेचारा हाँ में सर हिलाते हुए वहाँ से चला गया। वीर ने अपना ध्यान उस फ़ाइल में लगा दिया।

  • 14. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 14

    Words: 1451

    Estimated Reading Time: 9 min

    कंचन अपने फैशन हाउस पहुँची। उसके तीसरे तल पर उसका कार्यालय था। वह अपना सारा काम वहीं देखती थी। नीचे के दोनों तल पर ड्रेस बनाने का काम होता था—पहले तल पर कटिंग और दूसरे पर सिलाई। चौथे तल पर कंचन स्वयं काम देखती थी; वहाँ ड्रेस को अंतिम रूप दिया जाता था। यद्यपि कंचन स्वयं यह काम देखती थी, पर वहाँ अन्य डिजाइनर भी काम करते थे।

    एक तरफ़ एक रैक में अनेक प्रकार की महिलाओं की ड्रेस हैंगर में लगी हुई थीं, तो कुछ ड्रेस डिस्प्ले स्टैंड पर लटककर अपनी सुंदरता का प्रदर्शन कर रही थीं। वहाँ अनेक ड्रेस मौजूद थीं, कई डमी अलग-अलग प्रकार की सुंदर ड्रेस पहने हुए थे।

    एक तरफ़ महिलाओं की ड्रेस थीं, तो दूसरी तरफ़ पुरुषों की। वह जगह देखने में बेहद खूबसूरत लग रही थी। जहाँ नज़र जाती, अलग-अलग अनोखे स्टाइल की ड्रेस ही नज़र आती थीं, जो मन को मोहने को तैयार थीं। उन्हें देखकर किसी का भी उन्हें लेने का मन करना स्वाभाविक था। कंचन तीसरे तल पर अपने केबिन में जाकर बैठ गई, जिसे बड़ी खूबसूरती से सजाया गया था। काँच की दीवार के पास ही हैंगर का स्टैंड रखा था।

    करीब पाँच-छह स्टैंड थे, जिन पर अलग-अलग तरह की ड्रेस लटक रही थीं। दाहिनी ओर फाइलों का रैक लगा हुआ था, जिसके साथ ही एक दरवाज़ा था। उसके दूसरी ओर के कमरे में कंचन अपने डिज़ाइन को हकीकत में बदलने का काम करती थी। काँच की दीवार के सामने एक कुर्सी रखी थी, उसके सामने टेबल, जिस पर लैपटॉप और कुछ फाइलें रखी थीं। एक सुंदर सा फ्लावर पॉट रखा था, उसके एक तरफ़ एक फ्रेम रखा था, जिसमें वीर दिखाई दे रहा था।

    कंचन अपनी कुर्सी पर बैठी। उसने वीर की फोटो उठाई और उसे अपने होंठों से छूते हुए मुस्कुराकर बोली, "गुड मॉर्निंग। जानती हूँ कि आप मुझसे बहुत नफ़रत करते हैं, पर मैं आपसे दीवानों की तरह मोहब्बत करती थी। देखिए, आपने मुझे सब करना सिखाया था, क्योंकि आप चाहते थे कि मैं अपना सपना पूरा करूँ और अब मैं मुंबई की बेस्ट डिज़ाइनर्स में से एक हूँ। यह हिम्मत आपकी देन है। साथ नहीं होकर भी आपने मेरा हर पल साथ दिया है।

    पता है, बस एक महीना, उसके बाद इंडिया का बेस्ट फ़ैशन शो आयोजित होने वाला है और मैं उसमें जीतना चाहती हूँ। जो उस फ़ैशन शो में जीतेगा, उसे इंडिया के अलग-अलग हिस्सों में अपना शोरूम खोलने का मौका मिलेगा। अगर मैं इसमें जीत गई, तो सिर्फ़ मुंबई नहीं, पूरी इंडिया में मेरा नाम होगा। आखिरकार, जो सपना मैंने देखा था, वह पूरा होने वाला है। जैसे आज तक आपने मेरा साथ दिया है, ऐसे ही आगे भी मेरा साथ दीजिएगा।"

    उसने फोटो को अपने होंठों से छुआ, फिर उसे वापस टेबल पर रखा। उसके बाद उसने दराज से पेपर निकाले और पेंसिल उंगलियों में थामे कुछ ड्रॉ करने लगी। तभी उसके केबिन का दरवाज़ा नॉक हुआ, तो उसने निगाहें सामने उठाते हुए "कम इन" कहा। अगले ही पल एक बाईस-तेईस साल की लड़की उसके केबिन में आई। उसने जीन्स और शॉर्ट कुर्ती पहनी हुई थी। कंधे से कुछ नीचे तक लहराते खुले बाल, आँखों में काजल, होंठों पर लिपस्टिक, और उसके साथ प्यारी सी मुस्कान। वह सुंदर लग रही थी।

    उसने कंचन को देखा, फिर मुस्कुराकर बोली, "मैम, वो डिज़ाइन रेडी हैं, आपको दिखाने थे। उसके बाद आगे का काम शुरू होगा।"

    "तो वहाँ क्यों खड़ी हो? अंदर आओ और यह बताओ कि जो हमारी थीम की मेन ड्रेस हैं, उनका काम कैसा चल रहा है?" कंचन ने भी मुस्कुराकर उसे पास आने का इशारा किया। वर्षा, जो उसकी असिस्टेंट थी, ने फाइल उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, "उन पर काम चल रहा है, पर मैम, आपने अभी तक फ़ैशन शो के लिए मेन ड्रेस तो सिलेक्ट ही नहीं किए हैं। अब तो बस एक महीना ही बचा है।"

    वर्षा कुछ परेशान लग रही थी। कंचन ने अपने सामने रखे पेपर को देखा, फिर मुस्कुराकर बोली, "उसकी चिंता तुम मत करो। वह ड्रेस मैं खुद डिज़ाइन करूँगी और अपनी इमेजिनेशन को हकीकत में उतारने का काम भी मैं खुद करूँगी। तुम बस बाकी की ड्रेस का ध्यान रखना। हम ज़रा भी गड़बड़ होना बर्दाश्त नहीं कर सकते।

    पिछले तीन सालों से मैं इस फ़ैशन शो को जीतने के लिए मेहनत कर रही हूँ और अब मुझे किसी भी हाल में यह फ़ैशन शो जीतना है। तो सारे ड्रेस वैसे ही बनने चाहिए जैसे मैंने कहे थे और अगले पन्द्रह दिन के अंदर मुझे सभी ड्रेस तैयार चाहिए। साथ ही हमारी मॉडल्स से भी संपर्क करो। एक वक़्त पर कुछ भी गड़बड़ नहीं होनी चाहिए।"

    कंचन काफ़ी सीरियस लग रही थी। उसकी बात सुनकर वर्षा ने मुस्कुराकर कहा, "मैम, इस बार जीत हमारी कंपनी की ही होगी। आप चिंता मत कीजिए। मैं सारी तैयारी देख रही हूँ। सब वैसा ही होगा जैसा आप चाहती हैं। और इस बार हमें जीतने से खुद भगवान भी नहीं रोक सकते। पहली बार आप खुद हमारी मेन आउटफिट को तैयार करने वाली हैं और आपसे बेहतर डिज़ाइन तो कोई बना ही नहीं सकता।"

    उसकी बात सुनकर कंचन के होंठों पर हल्की सी मुस्कान फैल गई। जब से वीर से दूर हुई थी, उसने ड्रेस डिज़ाइनिंग का काम छोड़ दिया था। फैशन हाउस भी वीर के जन्म के बाद शुरू किया था, पर उसके बाद भी उसका दिल कभी इस काम में नहीं लगा। हाथ डिज़ाइन बनाने के लिए उठते ही नहीं थे। दिन-रात मेहनत करके उसने अपने फैशन हाउस को यहाँ तक पहुँचाया।

    कहाँ-कहाँ से डिज़ाइनर्स ढूँढे, उन्हें प्रशिक्षित किया, पर खुद कभी किसी डिज़ाइन को पूरा नहीं कर सकी। दिमाग ही नहीं चलता था, पर पिछले कुछ वक़्त से उसने फिर से डिज़ाइनिंग का काम शुरू कर दिया था और पहली बार वह स्टेज पर अपने बनाए डिज़ाइन्स को उतारने वाली थी। दोनों ने कुछ देर और काम की बात की। इस दौरान कंचन रह-रहकर उसके चेहरे को देखने लगती थी। आखिर में उसने सवाल कर ही लिया, "आज तुम काफ़ी खुश लग रही हो। कोई ख़ास बात?"

    उसकी बात सुनकर वर्षा ने उसे देखा, फिर मुस्कुराकर बोली, "हाँ, मैम। आप तो जानती हैं मेरी फैमिली ने मुझसे सारे रिश्ते तोड़ लिए थे। जब मुझे कहीं कोई रास्ता नहीं दिख रहा था, तब आपने मुझे ना सिर्फ़ सहारा दिया, बल्कि मुझे अपने ऑफिस में काम देकर मेरी भटकती ज़िंदगी को एक दिशा दे दी। तीन साल से यहाँ काम कर रही हूँ और अब मुझे बीती बातें दुख नहीं देतीं।

    मैं अपनी ज़िंदगी से खुश हूँ, पर फिर भी एक कमी थी—कि कोई अपना नहीं, कोई नहीं जो मेरा ख़्याल रखे, मुझसे बिना किसी मतलब के प्यार करे, जिसे मेरे दुखी होने से दर्द महसूस हो और जो मेरे चेहरे पर एक मुस्कान लाने को कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाए। पर मैंने कभी सोचा नहीं था कि ऐसा कोई मेरी ज़िंदगी में भी आएगा, पर कुछ दो महीने पहले मैं एक लड़के से मिली।

    पहली मुलाकात से ही वह मेरे पीछे-पीछे घूम रहा है। कहता है कि मुझसे प्यार हो गया है उसे। पहले मुझे लगा कि सड़क छाप और रोमियो है, पर नहीं, वह एक अच्छे घर का लड़का है, अच्छी-खासी नौकरी करता है। मैंने उसे बहुत इग्नोर किया, पर उसने हार नहीं मानी। कहीं से भी प्रकट हो जाता है। जब भी मैं उदास होती हूँ, जाने कैसे वह मेरे सामने आकर खड़ा हो जाता है।

    मुझे हँसाने के लिए उल्टी-सीधी हरकतें करता है। धीरे-धीरे मुझे उसका परवाह करना अच्छा लगने लगा। अब मेरी निगाहें उसे ढूँढती हैं। अच्छा लगता है उसके साथ वक़्त बिताना। कितना ही परेशान रहूँ, कितनी ही थकी रहूँ, पर बस उसे देखने भर से मेरी सारी थकान, सारी उदासी दूर हो जाती है। जब मुझे लगा कि उसके लिए मेरे दिल में भी एहसास जागने लगे हैं, तो मैंने उसे अपने बारे में सब बता दिया, ताकि वह मुझसे दूर चला जाए, पर पता है मैम, सब जानने के बाद भी वह नहीं बदला। कहता है मुझसे प्यार करता है और मेरे अतीत से उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

    आज भी मेरा वैसे ही ख़्याल रखता है। यहाँ अकेला रहता है, मेरे फ़्लैट के सामने वाले फ़्लैट में रहता है। उसका जब दिल करता है तो मुझे तंग करने के लिए आ जाता है, पर मुझे बुरा नहीं लगता। आज पहली बार उसने मुझे अपने फ़्लैट पर डिनर के लिए आमंत्रित किया है और मुझे लगता है कि वह मुझे आधिकारिक रूप से प्रपोज़ करने वाला है। इसलिए मैं बहुत खुश हूँ।"

    वर्षा खुशी-खुशी उसे सब बता रही थी। कंचन के होंठों पर भी मुस्कान सजी थी। वर्षा ने उत्साह के साथ ऐसा सवाल किया कि कंचन के मुस्कुराते लब सिमट गए।

  • 15. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 15

    Words: 1352

    Estimated Reading Time: 9 min

    कंचन ने वर्षा से कहा, "मैम, आप इतनी सुंदर हैं, क्या आपको किसी ने कभी प्रपोज़ नहीं किया? कैसा लगता है जब कोई आपका दीवाना बने, आपके आगे-पीछे घूमे? सच में मुझे तो बहुत मज़ा आता है जब वह मेरी केयर करता है। मैं नाटक में भी रूठ जाऊँ, तो मुझे मनाने के लिए कितनी कोशिशें करता है! बहुत स्पेशल फ़ील करवाता है वह मुझे। मैम, आपकी तो शादी हो गई है न? सर भी आपकी केयर करते होंगे न? आपके सब नख़रे भी उठाते होंगे। आप तो मुझसे भी ज़्यादा ख़ूबसूरत हैं।"

    "वो आपको बहुत प्यार करते होंगे न? सच कहूँ तो मैं ना एक बार सर को देखना चाहती हूँ कि कौन इतना खुशनसीब है जिसे आप जैसे नेकदिल, परियों जैसी लड़की मिली है। पर मैम, आपने तो कभी सर का ज़िक्र ही नहीं किया, न ही मैंने कभी उन्हें देखा है। शान सर से भी मैं मिली हूँ। क्या सर यहाँ नहीं रहते?"

    वह खुशी में नॉन-स्टॉप बोली जा रही थी। उसने कंचन से सवाल किया और जवाब का इंतज़ार करने लगी। उसके सवाल पर कंचन, जो वीर के ख़्यालों में खोई हुई थी, उसके चेहरे पर छाई मुस्कान फ़ीकी पड़ गई। एक अनकहा सा दर्द उभर आया उसके चेहरे पर, पर उसने मुस्कुराकर ही जवाब दिया।

    "नहीं, वो यहाँ नहीं रहते। सही कहा तुमने, बहुत प्यार करते थे वह मुझे। अपनी पलकों पर बिठाकर रखते थे। मेरी हर इच्छा को बिना कोई शिकायत किए पूरा कर देते थे। मेरे लबों पर मुस्कान लाने के लिए वह कर जाते जो मेरी इमेजिनेशन से भी परे होता था। मेरे सारे नख़रे उठाते थे, पर कभी ऊफ़्फ़ तक नहीं करते थे। बहुत तड़पाया था मैंने उन्हें, बस अपनी एक हाँ के लिए। अपने पीछे-पीछे घुमाया था, क्योंकि मुझे प्यार पर विश्वास नहीं था, पर वो मुझसे इतनी मोहब्बत करते थे कि उन्होंने मुझे अपना बना लिया। जगा दिए मेरे दिल में भी प्यार के एहसास, पर मैंने उनकी क़द्र नहीं की। अब हम साथ नहीं हैं। किसी पर्सनल वजह से मुझे उनसे दूर जाना पड़ा। अब तो वो मुझसे नफ़रत करते होंगे।"

    उसकी आँखों में आँसुओं की बूँदें झिलमिलाने लगीं। उसकी बातों में दर्द झलक रहा था, जिसे सुनकर वर्षा की मुस्कान भी फ़ीकी पड़ गई। उसने उदास होकर कहा, "सॉरी, मैम।"

    "इट्स ओके। तुम्हें सॉरी कहने की ज़रूरत नहीं है। तुमने कुछ गलत नहीं किया है। गलती मुझसे हुई है और उसी की सज़ा भुगत रही हूँ मैं। तुम्हें मेरे लिए बुरा फ़ील करने की ज़रूरत नहीं है। मैं अपनी ज़िंदगी में खुश हूँ। अगर तुम मुझे हक़ दो, तो मैं तुम्हें कुछ कहना चाहूँगी।" कंचन ने मुस्कुराकर कहा। उसकी बात सुनकर वर्षा ने भी मुस्कुराकर कहा,

    "मैम, आप मेरे लिए मेरी बड़ी बहन के तरह हैं। आप बिना मुझसे इज़ाज़त मांगे मुझे कुछ भी पूरे हक़ से कह सकती हैं।"

    "अगर कोई सच्चा प्यार करे, तो उसे ज़्यादा तड़पाना नहीं चाहिए, वरना एक वक़्त आता है जब हमें भी उनकी तरह प्यार के लिए तरसना पड़ता है। इसलिए अगर वो तुमसे सच्चा प्यार करता है, तो शादी कर लो उससे। और मेरी जैसी कोई गलती तुम मत करना। अगर वो तुमसे सच्चा प्यार करता है, तो उसे कभी छोड़ना मत, हमेशा उसका साथ देना। चाहे कुछ भी हो, पर अपने प्यार पर आँच मत आने देना। सच्चा प्यार बहुत नसीब वालों को बड़ी मुश्किल से मिलता है, उसकी क़द्र करनी चाहिए। मैं नहीं चाहूँगी कि कल को तुम्हें मेरी तरह पछताना पड़े, इसलिए कह रही हूँ। शादी कर लो उससे और उसके बाद ज़िंदगी के हर मोड़ पर उसका साथ देना।"

    "प्यार में बहुत ताक़त होती है, उसके सहारे बड़े से बड़े तूफ़ान को पार करके आगे बढ़ा जा सकता है, पर प्यार के बिना एक पल जीना भी बहुत मुश्किल होती है। तो अगर आज वह तुम्हें प्रपोज़ करे, तो हाँ कर देना और थाम लेना उसका हाथ, फिर चाहे जो हो जाए, पर कभी उसका साथ मत छोड़ना।" कंचन के चेहरे पर अजीब सा सुनपन झलक रहा था, जैसे सालों पहले उसने जो गलती की थी, उसे आज उस पर पछतावा हो रहा हो।

    उसके दर्द को समझते हुए वर्षा ने एकदम सीरियस होकर कहा, "मैं आपकी बात हमेशा याद रखूँगी और अब उसे और नहीं तड़पाऊँगी।"

    वर्षा ने आगे कहा, "और एक बात कहनी है मुझे। जहाँ तक इतने सालों में मैंने आपको जाना है, मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि अगर पास्ट में आपने कुछ गलत भी किया था और अपने रिश्ते को खुद तोड़ा था, तब भी उसमें आपकी मर्ज़ी शामिल नहीं रही होगी। ज़रूर कोई वजह होगी, कोई मजबूरी, जिसके वजह से आपको वो क़दम उठाना पड़ा होगा, क्योंकि आप एक साफ़ दिल की सीधी सी लड़की हैं।"

    "आपके चेहरे पर जो दर्द झलक रहा है, वह चीख-चीखकर बता रहा है कि आप भले ही सर से दूर हैं, पर आज भी आपका दिल उन्हीं के लिए धड़कता है और आपकी बातों से तो मुझे लगता है कि सर भी आपसे बहुत प्यार करते थे। मैं प्यार के बारे में ज़्यादा कुछ तो नहीं जानती, पर इतना ज़रूर कह सकती हूँ कि प्यार वक़्त की मार सहकर भी कभी ख़त्म नहीं होता। चाहे नफ़रत कितनी ही गहरी हो, पर प्यार उसे हरा ही देता है। जैसा कि आपने कहा कि अब सर आपसे नफ़रत करते हैं, मुझे नहीं लगता कि आप सही हैं, क्योंकि जिससे हम बेहद मोहब्बत करें, उससे चाहें तो भी नफ़रत कर पाना हमारे लिए पॉसिबल नहीं होता है।"

    "हो सकता है सर आपसे नाराज़ हों, पर उस नाराज़गी को प्यार से दूर किया जा सकता है। अभी आपने ही कहा कि अगर कोई तुम्हें सच्चा प्यार करे तो हमें उसका हाथ थाम लेना चाहिए। प्यार हर मुश्किल से लड़ने की शक्ति खुद दे देता है। मुझे नहीं पता आपकी क्या मजबूरी थी, पर मैं इतना कह सकती हूँ कि सर आपसे सच्चा प्यार करते हैं। एक बार उन पर विश्वास करके उन्हें अपनी मजबूरी बताकर देखिए। शायद आपके और उनके बीच सब ठीक हो जाए।"

    "ऐसा कभी नहीं हो सकता। कुछ चीज़ों को भूल जाना ही बेहतर है। क्योंकि अगर उन्हें याद किया जाए, तो सिवाए दर्द के वो हमें कुछ नहीं देतीं। मैंने जो किया, उसके बाद कभी कुछ ठीक नहीं हो सकता, तो खुद को झूठी उम्मीद देकर मैं खुद को और दर्द नहीं दे सकती। वो अपनी ज़िंदगी में बहुत आगे निकल चुके हैं। अब उनका मेरे पास लौटना संभव नहीं है और न ही मैं उनके लायक हूँ। उनके और मेरे लिए यही बेहतर है कि वो मुझसे और मैं उनसे दूर ही रहूँ। इसलिए मेरे बारे में सोचकर परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। जैसी भी हूँ, पर मैं अपनी ज़िंदगी से खुश हूँ। और अब तुम्हारी खुशी में तो मैं और भी ज़्यादा खुश हूँ। तुम बस अपना अतीत भूलकर एक ख़ूबसूरत ज़िंदगी की शुरुआत करो।" कंचन ने मुस्कुराकर अपनी बात पूरी की।

    उसकी बात सुनकर वर्षा ने मुस्कुराकर कहा, "मैम, दो प्यार करने वालों को किस्मत जुदा ज़रूर कर सकती है, पर उससे उनका रिश्ता नहीं टूट जाता। उनकी मोहब्बत की शक्ति उनकी किस्मत को झुकने पर मजबूर कर ही देती है। चाहे उनको फिर से मिलने में वक़्त लगे, पर उनका मिलन होकर ही रहता है। भले ही आप न चाहें, पर अगर किस्मत ने चाहा और सर की और आपकी मोहब्बत सच्ची हुई, तो आप दोनों का दोबारा मिलन ज़रूर होगा और मैं दिल से कामना करूँगी कि जैसे भगवान ने मुझे मेरा प्यार दे दिया, वैसे ही आपको भी आपके प्यार से मिला दे और आप खुलकर मुस्कुराना फिर से सीख जाएँ। इंतज़ार रहेगा मुझे उस दिन का जब मैं आपके चेहरे पर सच्ची मुस्कान देखूँगी और सर को देखने की ख़्वाहिश तो है ही। अब मैं चलती हूँ। बहुत काम करने हैं और आज घर भी जल्दी जाना है, तो उससे पहले सब काम निपटाने हैं।"

    वह मुस्कुराकर वहाँ से चली गई।

    कंचन की आँखों में नमी तैर गई थी, चेहरे पर मायूसी और दर्द पसरा हुआ था। उसने कुर्सी से अपना सर टिका दिया और अपनी आँखें बंद कर लीं। उसकी आँखों से कुछ आँसुओं की बूँदें निकलकर उसके गालों पर लुढ़क गईं। बंद आँखों के सामने एक बार फिर उसका अतीत घूमने लगा।

  • 16. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 16

    Words: 1680

    Estimated Reading Time: 11 min

    कंचन सारा दिन कॉलेज में व्यस्त रही। उसका अंतिम वर्ष था, इसलिए व्यावहारिक कार्य अधिक था। पूरे वर्ष में जितने भी डिज़ाइन बनाने थे, साल के अंत में उनका प्रदर्शनी होना था। शीर्ष छात्राओं को इसमें भाग लेने का अवसर मिलने वाला था, और उस सूची में सबसे ऊपर कंचन का ही नाम था। शिक्षक तो यहाँ तक कहते थे कि उसके हाथों में जादू है; कुछ भी बना ले, जब पोशाक बनकर सामने आती है तो लोग बस देखते ही रह जाते हैं, जैसे उसका जन्म ही डिज़ाइनर बनने के लिए हुआ हो।

    कंचन काम भी लगन से करती थी; आखिर उसे कॉलेज से किसी अच्छी कंपनी में नियुक्ति लेनी थी, जो उसके काम को देखकर ही उसे चुनेगी या अस्वीकार करेगी। इसलिए वह अपनी जान लगा देती थी, और यह काम उसका मनपसंद था, इसलिए वह कॉलेज में कितनी देर भी होती और पोशाक डिज़ाइनिंग या सिलाई का काम करती, वह दिल से मुस्कुराती, खुश होती।

    आज उसने एक नई पोशाक डिज़ाइन की थी और शिक्षकों को दिखाया था, तो उन्होंने उसकी खूब प्रशंसा भी की थी, इसलिए भी आज उसका मन बहुत अच्छा था। जानवी भी उसके साथ ही थी; दोनों हँसते-मुस्कुराते बातें करते हुए कॉलेज के गेट से बाहर निकलीं। जैसे ही वे सड़क के पास पहुँचीं, सड़क पार करने के लिए अपने कदम बढ़ाए, एक तेज रफ्तार कार सीधे उनके सामने आकर रुकी, तो दोनों घबराकर पीछे हट गईं।

    बस एक सेकंड का अंतर था; वे लगभग बाल-बाल बच गई थीं, तो दोनों के चेहरे का रंग उड़ गया था, घबराया हुआ चेहरा। वे इतना डर गई थीं कि माथे पर पसीने की बूँदें छूटने लगी थीं। बेचारी कंचन की तो धड़कनें बुलेट ट्रेन को पीछे छोड़ चुकी थीं; ऐसे धड़क रही थीं जैसे उछलकर बाहर ही आ जाएँगी। उसने अपने सीने पर हाथ रख लिया और आँखें बंद करके खुद को शांत करने लगी, पर जानवी का चेहरा अब गुस्से से तमतमाने लगा था। वह दौड़ते हुए गाड़ी की तरफ़ बढ़ गई।

    जैसे ही वह गाड़ी के पास पहुँची, गाड़ी का पिछला दरवाजा खुला, और काले सूट पहने, एक लंबा-चौड़ा, बिल्कुल हीरो जैसी काया, डोले-शोले, उसके फिटिंग शर्ट में उसकी मज़बूत मांसपेशियाँ उभरकर नज़र आ रही थीं; इतना आकर्षक चेहरा, उस पर कातिलाना लुक, आँखों पर काले चश्मे चढ़ाए वह शख्स जानवी को अनदेखा करते हुए कंचन की तरफ़ बढ़ गया। बेचारी जानवी तो अपने सामने इतने सुंदर लड़के को देखकर उसमें खो सी गई और मुँह खोले, आँखें फाड़े उसे देखने लगी; सारा गुस्सा तो जैसे एक पल में गायब हो गया था।

    वहीं कंचन अब भी आँखें बंद किए खड़ी थी, हाथ अब भी सीने पर थे; आस-पास मौजूद लड़कियाँ भी अपने सामने इतने सुंदर लड़के को देखकर उसे निहारने लगी थीं, हालाँकि कोई उसे जानता नहीं था। यह कोई और नहीं, वीर प्रताप सिंह था, देश की जानी-मानी पोशाक डिज़ाइनिंग कंपनी का स्वामी, जिसकी शाखाएँ देश के कोने-कोने में खुली थीं और पूरे देश में उसके डिज़ाइनों का तहलका मचा रहता था।

    सिर्फ़ भारत नहीं, विदेशों में भी उसका व्यवसाय बहुत फैला था और उसकी कंपनी की एक अलग ही पहचान थी, पर मजे की बात यह थी कि वह आज तक एक बार भी मीडिया के सामने नहीं आया था, इसलिए लोग बस उसके नाम को जानते थे, चेहरा किसी ने आज तक नहीं देखा था, और जब आज देखा तो बस देखते ही रह गए, पर उसे पहचान नहीं सके।

    वीर की नज़रें सिर्फ़ कंचन पर टिकी हुई थीं; उसका साँवला-सा घबराया हुआ चेहरा कितना सुंदर और मासूम लग रहा था। वीर आज फिर उसकी ओर खिंचा चला जा रहा था; वहीं आस-पास खड़ी लड़कियों ने जब उसे कंचन की तरफ़ बढ़ते देखा तो उनकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं; शायद उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि कंचन से मिलने कोई इतना सुंदर और इतना धनी व्यक्ति आ सकता है।

    ख़ासकर कंचन की सहपाठियों के लिए यह बात चौंकाने वाली थी, और उससे भी ज़्यादा इस वक़्त उन्हें कंचन से ईर्ष्या हो रही थी। वहाँ कानाफूसी शुरू हो चुकी थी, पर वीर को किसी से क्या फ़र्क पड़ना था, वह तो सीधे कंचन के सामने जाकर रुका और बड़े ही कोमलता से बोला,
    "मुझे तुमसे अकेले में कुछ बात करनी है।"

    उसकी आवाज़ जैसे ही कंचन के कानों में पहुँची, उसने झटके से अपनी आँखें खोल दीं और सामने वीर को देख उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं; उसके मुँह से शब्द ही नहीं निकले; शब्द तो तब निकलते जब उसे कुछ समझ आता, वह तो खाली खड़ी, आँखें फाड़े वीर को देखे जा रही थी।

    जब उसने कोई जवाब नहीं दिया तो वीर ने अपने चश्मे उतारकर उसे गहरी नज़रों से देखते हुए कहा,
    "शायद आपने सुना नहीं, मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है, अभी इसी वक़्त, और उसके लिए आपको मेरे साथ चलना होगा।"

    उसकी आवाज़ में सख़्ती थी, जैसे आदेश दे रहा हो। उसकी बात सुनकर पहले तो कंचन का मुँह हैरानी से खुल गया, अगले ही पल वह एकदम से गुस्से में भड़क पड़ी,
    "क्यों? क्यों जाऊँ मैं आपके साथ? है कौन आप? एक बार टक्कर क्या गए आप तो मेरे पीछे ही पड़ गए। मेरा पीछा करते-करते यहाँ मेरे कॉलेज तक पहुँच गए। पर मिस्टर, मैं आपको एक बात साफ़-साफ़ बता रही हूँ, आपने उस दिन मेरे साथ जो बदतमीज़ी की थी, मैं उसे भूली तो बिल्कुल भी नहीं हूँ।

    उस दिन तो मैंने आपको छोड़ दिया था, पर इसका मतलब यह नहीं कि आप जो मर्ज़ी चाहे करें और मैं कुछ नहीं कहूँगी। चुपचाप निकलिए यहाँ से, वरना अभी पुलिस को फ़ोन करके छेड़छाड़ के केस में अंदर करवा दूँगी। फिर जितनी बातें करनी हो करते रहना, पर मुझसे नहीं, जेल की दीवारों से, क्योंकि तुम उसी लायक हो। पता नहीं कहाँ-कहाँ से उठकर आ जाते हैं, लड़की देखी नहीं कि बस पड़ गए, नहा-धोकर उसके पीछे, यह नहीं अपने काम से काम रखें।"

    कंचन काफ़ी गुस्से में थी और उसकी बातें सुनकर वीर की भौंहें तन गई थीं; वह आँखें छोटी करके उसे घूरने लगा, तो कंचन ने फिर से चिल्लाना शुरू कर दिया,
    "क्या है अब? ऐसे घूर क्या रहे हो? कच्चा निगलना चाहते हो क्या मुझे? अगर तुम्हें लगता है कि ऐसे घूरकर तुम मुझे डरा दोगे तो बहुत ही गलत ख़्याल है... छोड़ दो, क्योंकि मुझे आपकी इन काली-काली भूतों जैसी आँखों से कोई डर नहीं लगता। अभी तो बस बोल रही हूँ, अगर आप सीधे से नहीं मानें तो फिर मैं सच में आपको पुलिस से पकड़वा दूँगी।"

    उसने इतना कहा ही था कि जानवी उसके बगल में खड़ी हो गई और उसे कोहनी मारते हुए बोली,
    "ओये, तू इस सुंदर को कैसे जानती है? तू इनसे पहले मिली है और तूने मुझे बताया भी नहीं? क्या चल रहा है तुम दोनों के बीच, जो यह तेरे पीछे-पीछे यहाँ तक आ गए? वैसे देखने में तो काफ़ी अमीर लग रहे हैं, कहाँ से पटाना तूने इन्हें?"

    उसने एक के बाद एक सवाल किए; कंचन उसे गुस्से से घूर रही थी। उसने अपनी बात पूरी की और शरारत से मुस्कुराते हुए अपनी दाईं आँख दबा दी, तो कंचन गुस्से में उस पर ही भड़क गई,

    "चुप कर जा कमीनी, वरना तेरा सर फोड़ दूँगी आज। कुछ भी अनाप-शनाप बक रही है, मैंने किसी को पटाया-वटाया नहीं है, और न ही इस नमूने को पहले से जानती हूँ। कल गलती से टक्कर हो गई थी और यह महाशय मेरे पीछे-पीछे यहाँ तक पहुँच गए। और जो तू इसे सुंदर कह रही है, तो सुंदर नहीं है, बदतमीज़ है एक नंबर का, अव्वल दर्जे का बेकार है। मेरा बस चले तो ऐसे लड़कों को धरती पर से गायब ही कर दूँ।"

    उसकी बातें सुनकर अब वीर का सब्र जाता रहा; उसने गुस्से में कंचन की कलाई पकड़ ली, तो कंचन ने चौंककर पहले अपनी कलाई को देखा, फिर गुस्से से उसे देखा, पर वह कुछ कह पाती, उससे पहले ही वीर ने कड़क आवाज़ में कहा,

    "अपनी बकवास बंद करो, जानती ही क्या हो तुम मेरे बारे में? चुपचाप मेरे साथ चलो, वरना उठाकर ले जाऊँगा, और जो पुलिस की धमकी दे रही हो ना मुझे, तो एक बात कान खोलकर सुन लो, पुलिस बल को मैं अपनी जेब में लेकर घूमता हूँ, कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, तो तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम बिना कोई नाटक किए चुपचाप मेरी बात मानो।"

    "क्यों मानूँ आपकी बात? और होते कौन हैं आप, मेरा हाथ पकड़ने वाले? भले ही आप किसी अमीर खानदान की बिगड़ी हुई औलाद हो और पुलिस आपका कुछ न बिगाड़ सके, तब भी मुझे छूने का हक़ नहीं आपको, क्योंकि मैं आपकी जायदाद नहीं हूँ। हाथ छोड़िए मेरा, वरना मुँह तोड़ दूँगी आपका, और उसके लिए मुझे किसी पुलिस की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।"

    कंचन गुस्से में उससे अपनी कलाई छुड़ाने लगी, पर वीर की पकड़ बहुत मज़बूत थी। उसके चुप होते ही वीर ने एक बार फिर आदेश देते हुए बड़े अकड़ में कहा,
    "मैंने कहा मुझे तुमसे कुछ बहुत ज़रूरी बात करनी है, तो बिना कोई तमाशा बनाए चुपचाप मेरे साथ चलो, वरना तुम्हें ज़बरदस्ती उठाकर ले जाऊँगा।"

    "ऐसे कैसे ज़बरदस्ती उठाकर ले जाएँगे? हाथ छोड़िए मेरी दोस्त का, सुना नहीं आपने, उसे आपसे कोई बात नहीं करनी।" अब जानवी भी भड़क पड़ी। उसने वीर के हाथ को जैसे ही छुआ, वीर ने जलती निगाहों से उसे घूरते हुए कहा,
    "तुमसे बात नहीं कर रहा तो दूर रहो हमारे मामले से, वरना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।"

    वीर का सुंदर चेहरा अभी किसी राक्षस जैसा क्रूर लग रहा था, जिसे देखकर जानवी भी डर गई, पर वह दोस्त को ऐसे अकेला नहीं छोड़ सकती थी; वह अब भी वहीं उसके साथ खड़ी थी। बात बढ़ते देख, आस-पास खड़े सभी उन्हीं को देखने लगे थे। कंचन ने उनकी बातें भी सुनीं; अपने बारे में घटिया टिप्पणी सुनकर उसकी आँखें भर आईं। उसने खुद को मज़बूत करते हुए कड़क पर धीमी आवाज़ में कहा,

    "चाहते क्या हो आप मुझसे? क्यों मेरा तमाशा बना रहे हैं? जाइए यहाँ से, मैंने कहा ना मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी, चले जाइए जहाँ से।"

    वीर ने जो जवाब दिया उसे सुनकर कंचन के साथ-साथ जानवी और वहाँ मौजूद बाकी लड़कियाँ भी चौंक गईं।


    आगे आने वाला है.......

  • 17. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 17

    Words: 1577

    Estimated Reading Time: 10 min

    वीर ने बेहद आराम से अपनी बात कंचन के सामने रखी। "मुझे तुमसे बात करनी है और तुम्हें लिए बिना मैं कहीं नहीं जाने वाला। अगर तुम चाहती हो कि तुम्हारे कॉलेज के बाहर तुम्हारा तमाशा ना बने, तो चुपचाप मेरे साथ चलो। विश्वास करो, कुछ नहीं करूँगा तुम्हारे साथ, बस बात करनी है तुमसे; उसके बाद खुद तुम्हें हिफ़ाज़त के साथ तुम्हारे चाचा की शॉप छोड़ दूँगा, यहाँ से वहीं जाती हो न तुम। अगर फिर भी तुम्हें डर है, तो अपनी दोस्त को भी साथ ले चलो, मुझे कोई issue नहीं है।"

    उसके मुँह से अपने चाचा का ज़िक्र सुनकर कंचन घबराकर उसे देखने लगी। उसने उसके बारे में सब पता करवा लिया है, ये सोचकर उसे वीर से डर लगने लगा था।

    उसने जानवी को देखा। जानवी ने बात की गंभीरता और आस-पास फैलती बातों को ध्यान में रखते हुए कंचन के दूसरे हाथ को थामते हुए आराम से कहा, "मैं चलती हूँ तेरे साथ, बात करके घर चलेंगे।"

    कंचन तो बुरी तरह फँसी हुई थी। अगर मना करती तो यह सनकी इंसान क्या करता, यही सोचकर उसने वीर को देखकर आराम से कहा, "ठीक है, पर बस पाँच मिनट, और तुम हमें कहीं अकेली जगह पर नहीं ले जाओगे।"

    वीर ने हामी भरी और गाड़ी की तरफ़ बढ़कर पीछे का गेट खोल दिया। जानवी उसे घूरते हुए अंदर जा बैठी, तो कंचन भी डरते हुए अंदर बैठ गई। वीर ने एक नज़र वहाँ खड़े लड़के-लड़कियों पर डाली। उसकी डरावनी आँखें देखकर सबने अपना रास्ता बदल लिया। वीर ने ड्राइविंग सीट के तरफ़ का गेट खोला और अंदर जा बैठा। उसने मिरर सेट किया। अब उसमें कंचन का घबराया हुआ चेहरा रियर व्यू मिरर में नज़र आने लगा, जो जानवी का हाथ थामे बैठी थी। जानवी की नज़रें शीशे पर गईं। उसने वीर को घूरते हुए कहा, "जल्दी चलो, हमें घर भी जाना है।"

    उसकी बेरुखी भरी बात सुनकर वीर को गुस्सा आया, पर वह चुप रहा। उसने एक नज़र कंचन को देखा, फिर गाड़ी स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी। कुछ आधे घंटे बाद गाड़ी एक आलीशान 50 मंजिले बिल्डिंग के सामने रुकी। वह दिल्ली का फेमस होटल था, जो हाल ही में बना था। बहुत बड़े एरिये में फैला वह होटल बहुत ही सुंदर और एक्सपेंसिव था। वहाँ सिर्फ़ अमीर लोग ही आ सकते थे।

    जैसे ही गाड़ी उसके बड़े से गेट को क्रॉस करके पार्किंग में रुकी, जानवी आँखें फाड़े सामने की बिल्डिंग को देखने लगी। पर कंचन किसी और ही सोच में गुम थी; परेशान चेहरा और बेचैन हिरनी जैसी आँखें; कुछ तो था जो उसे परेशान कर रहा था। उसे तो होश ही नहीं था कि गाड़ी अब रुक चुकी है।

    जानवी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "ओये, देख कितना बड़ा होटल है और महँगा भी लग रहा है। मैंने इसकी फ़ोटो देखी थी न्यूज़पेपर में, कितने आलीशान तरीके से बनाया गया है न इसे; ऐसा लग रहा है किसी राजा का महल है।"

    उसकी आवाज़ सुनकर कंचन होश में आई। उसने नज़रें घुमाकर सामने देखा। इतनी ऊँची और सुंदर बिल्डिंग देखकर उसकी आँखें फैल गईं। उसने खिड़की से सर बाहर निकालते हुए बिल्डिंग को देखा। हैरानी से उसका मुँह खुल गया, पर वह कुछ कहती, उससे पहले ही वीर की सख़्त आवाज़ उसके कानों में पड़ी, "बाहर निकलो, वहीं जाना है, आराम से देख लेना।"

    उसकी आवाज़ सुनकर कंचन ने नज़रें घुमाईं। गेट के बगल में वीर खड़ा था और उसे देख रहा था। उसकी बात सुनकर कंचन ने मुँह बनाते हुए कहा, "मुझे कोई शौक नहीं बिल्डिंग देखने का। इतनी ऊँची है, अगर गलती से कोई गिर गया तो बेचारे की हड्डी-पसली टूट जाएगी और वह सीधे भगवान के दरबार में पहुँच जाएगा हाज़िरी लगाने।"

    "ठीक है, पर तुम्हें कोई ऊपर से नहीं फेंकने वाला, तो तुम्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। अब बाहर निकलो।" वीर ने थोड़ा सॉफ्टली कहा। तब तक जानवी दूसरी तरफ़ से बाहर निकल चुकी थी। कंचन ने पहले वीर को घूरा, फिर मुँह बनाकर बाहर निकल गई।

    "पीछे आओ।" इतना कहकर वीर आगे बढ़ गया। जानवी अब तक कंचन के पास पहुँच चुकी थी। उसने वीर की बात सुनी, तो कंचन की हथेली थामकर वीर के पीछे चलने लगी। वह काफ़ी एक्साइटेड थी; आखिर आज पहली बार इतने बड़े होटल में जाने वाली थी। उसने चमकती आँखों से कंचन को देखते हुए धीरे से कहा,

    "कंचन, सच-सच बता, ये लड़का तेरा बॉयफ्रेंड है न? यार, कितना हैंडसम दिखता है; मैं तो एक नज़र में ही उस पर अपना दिल हार गई, और तो और अमीर भी बहुत लग रहा है; पर्सनैलिटी देख उसकी, इतना रॉबदार चेहरा है; मुझे तो बड़ा पसंद आया; तेरे वजह से मुझे आज पहली बार इतने बड़े होटल में जाने का मौका मिलने वाला है; मैं तो बहुत एक्साइटेड हूँ और खुश भी बहुत हूँ।

    मुझे तो लगता है कि ये लड़का तुझ पर लट्टू हो चुका है; अगर ये तेरा बॉयफ्रेंड नहीं है, तब भी मैं यही कहूँगी कि अगर ये तुझे ऐसा कोई प्रपोज़ल दे, तो झट से हाँ कर देना। देख तो कितना अडोरेबल लगता है; जैसे ये तुझे देख रहा था; मुझे तो पूरा यकीन है कि वो तुझ पर अपना दिल हार चुका है। ज़रूर ये आज तुझे प्रपोज़ करने वाला है।"

    वह एक्साइटमेंट में बोले जा रही थी, और कंचन उसे गुस्से से घूर रही थी। जब जानवी चुप नहीं हुई और कंचन से उसकी बातें सहन नहीं हुईं, तो उसने गुस्से से उसके सर पर चपत लगाते हुए कहा, "पागल हो गई है क्या? जो मुँह में आ रहा है, बक रही है; चुप कर जा, वरना उसका गुस्सा भी तुझ पर ही उतार दूँगी। एक तो वो साइको आदमी है जो मेरे पीछे पड़ा हुआ है, और एक मेरी पागल दोस्त है जो जाने कौन सी कहानी बुने जा रही है।

    जैसा तू सोच रही है, वैसा कुछ भी नहीं है और न ही कभी होगा; भले ही वो हैंडसम और अमीर है, पर मुझे उसमें रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं है। वैसे तो जैसा तूने कहा वैसा हो नहीं सकता, क्योंकि कहाँ वो महलों का राजकुमार और कहाँ मैं सड़क की भिखारी। वो इतना हैंडसम है, फिर मुझे जैसी लड़की को क्यों चुनेगा? और अगर गलती से ऐसा हो भी गया, तब भी हमारे बीच कभी कुछ नहीं हो सकता। इस प्यार-व्यापार जैसी बकवास बातों के लिए न मेरे पास वक़्त है, न ही मुझे अपनी ज़िंदगी में प्यार नाम का भूचाल लाने की कोई इच्छा है। वैसे ही ज़िंदगी में कम श्यापे हैं क्या, जो एक और मुसीबत अपने सर पर बिठा लूँ ?

    मैं यहाँ बस इसलिए आई हूँ ताकि उससे सब क्लियर करके उसे बता सकूँ कि दूर रहे मुझसे; वहाँ तमाशा न हो इसलिए अकेले में मिलने के लिए हाँ बोल दिया। एक तो मैं पहले ही परेशान हूँ; बैठे-बिठाए भगवान ने एक नई मुसीबत मेरे सर पर मढ़ दिया है; जाने इस आफ़त से कैसे पीछा छूटेगा; ये पागल आदमी तो साइको की तरह मेरे पीछे ही पड़ गया है; ऊपर से तू अपनी बकवास से मेरा दिमाग खराब करने में लगी है।

    पता भी है, अगर चाची को भनक भी लग गई कि मैं ऐसे किसी लड़के से मिलने आई हूँ, तो वो क्या हाल करेंगी मेरा? वैसे ही उनको मुझमें खोट नज़र आती रहती है; पढ़ने आने के नाम पर ही मुझ पर सौ इल्ज़ाम लगा देती है; अगर उन्हें गलती से भी ये पता चल गया, तो वह तो मेरा कॉलेज जाना ही बंद करवा देंगी। यहाँ ये सब सोचकर मेरी जान निकली जा रही है, और तुझे उसका हैंडसम चेहरा और बड़ा होटल नज़र आ रहा है।"

    कंचन ने नाराज़गी से उसे देखा। जानवी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए हल्की मुस्कान के साथ कहा, "मेरे लिए तुझसे ज़्यादा ज़रूरी और कोई नहीं है। चिंता मत कर, घर पर किसी को कुछ पता नहीं चलेगा, और मैं हूँ न तेरे साथ; जो भी होगा, हम मिलकर संभाल लेंगे।"

    उसने उसे विश्वास दिलाया, तो कंचन कुछ रिलैक्स हो गई। अब कंचन की नज़रें आस-पास घूमीं। आस-पास मौजूद लोग उन्हें कुछ अजीब नज़रों से देख रहे थे। कंचन ने जानवी को कोहनी मारी, तो उसने चौंककर उसे देखा। कंचन ने आँखों से ही उसे आस-पास देखने को कहा। अब भी सब उन्हें अजीब नज़रों से घूर रहे थे। जानवी ने गुस्से में उन्हें आँखें दिखाईं, फिर कंचन को धीरे से कहा,

    "ओये, यार, एक काम करते हैं, अपना चेहरा ढक लेते हैं, फिर कोई हमें पहचान नहीं पाएगा और हम जल्दी से यहाँ से निकल जाएँगे; देख तो यहाँ लोग कैसे हमें घूरने में लगे हैं।"

    उसकी बात से कंचन सहमत हो गई। दोनों ने अपने स्टॉल से अपना चेहरा ढक लिया और वीर के पीछे-पीछे चल दीं।

    वे वीर के साथ लिफ़्ट में चले गए। वहाँ उन तीनों के अलावा कोई नहीं था। शायद वह प्राइवेट एरिया था, जहाँ कुछ चुनिंदा लोगों को ही जाने की इज़ाज़त थी। कंचन और जानवी लिफ़्ट से नीचे झाँक रही थीं, और लिफ़्ट लगातार अपनी रफ़्तार से ऊपर की दिशा में बढ़ती जा रही थी। एक जगह जाकर लिफ़्ट रुकी, तो वीर के पीछे ही दोनों लिफ़्ट से बाहर निकल गए। यह 50वाँ फ़्लोर था, जो कि पूरा खाली था। कंचन और जानवी दोनों ही यह देखकर घबरा गईं। दोनों ने घबराकर एक-दूसरे को देखा। फिर कंचन ने हिम्मत करते हुए सवाल किया,

    "आपने कहा था कि आप हमें कहीं अकेली-सुनसान जगह नहीं ले जाएँगे, फिर यहाँ लाने का क्या मतलब?"

  • 18. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 18

    Words: 1087

    Estimated Reading Time: 7 min

    "आपने कहा था कि आप हमें कहीं अकेली-सुनसान जगह नहीं ले जाएँगे, फिर यहाँ लाने का क्या मतलब?"

    उसकी आवाज़ में हल्की नाराज़गी और गुस्सा झलक रहा था। उसकी आवाज़ जैसे ही वीर के कानों में पड़ी, उसके आगे बढ़ते कदम रुक गए। उसने मुड़कर उसे देखा, पर कंचन नहीं घबराई; डटकर उसकी आँखों में देखती रही। वीर ने एक नज़र दोनों को देखा, फिर वापस लिफ़्ट की तरफ़ बढ़ते हुए बोला,

    "ठीक है, चलो नीचे रेस्टोरेंट एरिये में जाकर सबके सामने ही बात करते हैं; मुझे तो कोई प्रॉब्लम नहीं, पर शायद तुम्हें अजीब लगे। पर जब तुम्हें ही कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा उनके सामने बात करने में, तो मुझे भी कोई प्रॉब्लम नहीं है।"

    उसकी बात सुनकर कंचन की साँसें अटक गईं; वह मुँह खोले उसे देखने लगी, पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया; उसका हाथ थामे जानवी भी वहीं खड़ी हैरानी से वीर को जाते देख रही थी। जब वीर को एहसास हुआ कि वह अकेला ही आगे जा रहा है, तो उसने मुड़कर पीछे देखा, फिर कंचन को देखकर भौंह उठाते हुए बोला, "क्या हुआ? चलो, सबके सामने बात करते हैं।"

    उसकी बात सुनकर कंचन ने अपनी मुट्ठियाँ कस लीं; गुस्से से उसका चेहरा लाल हो उठा। उसने मन में कहा, "जी कर रहा है तुम्हारे सारे बाल नोच लूँ, तबला बजाऊँ तुम्हारे टकले पर, और इन मोटी-मोटी डरावनी आँखों को तो बाहर निकालकर गोटियाँ खेलूँ। बदतमीज़ आदमी, कैसे ढोंस जमा रहा है मुझ पर। लेकिन मेरी मजबूरी है कि मैं अभी कुछ कर नहीं सकती।"

    सारी भड़ास मन में निकालने के बाद कंचन ने अपने गुस्से को काबू किया, फिर दाँत पीसते हुए बोली, "यही कर लो, जो बात करनी है; नीचे सबके सामने तुम मेरा तमाशा बना दोगे; वैसे भी मुझे तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाना। किसी की नज़र में नहीं आना चाहती मैं, वरना तुम्हारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, पर मेरी इज़्ज़त पर कीचड़ उछलने लगेगा, और मैं ऐसा नहीं होने देना चाहती।"

    वीर उसकी बात सुनकर टेढ़ा मुस्कुराया, फिर वापस उस फ़्लोर पर बने उस बड़े से रूम के गेट की तरफ़ बढ़ गया।

    वह एक रूम नहीं था; पूरे फ़्लोर पर एक बड़ा सा डिज़ाइनर रूम बनाया गया था, जो खुद में किसी शाही महल से कम नहीं लग रहा था। तीन कमरे थे; बीच में बड़ा सा लिविंग रूम था; वेल-फ़र्निश्ड VIP लॉन्ज था; काले और सफ़ेद रंग में सराबोर वह फ़्लोर बहुत ही एंटीक चीज़ों से सजाया गया था; देखने में ही वह फ़्लोर सबसे अलग और सबसे ख़ास लग रहा था। और उसे देखकर ही अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि उसे बनाने में करोड़ों रुपयों को पानी की तरह बहाया गया है; हर चीज़ बहुत सुंदर और ख़ास लग रही थी, जैसे उन्हें उसी जगह के लिए स्पेशली बनाया गया हो।

    कंचन और जानवी आँखें फाड़े सब देख रही थीं। वीर रूम के बड़े से गेट के बाहर जाकर रुका; उसने अपनी पॉकेट से रूम कार्ड निकालकर वहाँ लगाया, तो वह ऑटोमैटिक डोर झट से खुल गया। वीर ने अब पीछे मुड़कर देखा, तो वे दोनों ही आस-पास नज़रें घुमाते हुए सब बहुत हैरानी से देख रही थीं। वीर के चेहरे पर कुछ भाव आकर गुज़र गए; उसने दोनों को देखते हुए कहा, "अंदर आओ।"

    उसकी आवाज़ सुनकर दोनों ने चौंककर उसे देखा, तो वीर ने आँखों से ही अंदर जाने का इशारा कर दिया। दोनों ने पहले उसे देखा, फिर एक-दूसरे को देखा और आँखों से ही कुछ इशारा करते हुए अंदर की तरफ़ बढ़ गए। वीर भी अंदर आया और दरवाज़ा बंद कर दिया, तो कंचन ने घबराकर कहा, "अरे, दरवाज़ा क्यों बंद कर दिया?"

    वीर ने मुड़कर पीछे देखा, तो दोनों गेट से तीन कदम की दूरी पर ही खड़ी थीं और हैरानी से, घबराई नज़रों से उसे देख रही थीं। वीर ने उसके सवाल पर बिना किसी भाव के ही जवाब दिया, "अपना रूम खोलकर तो मैं तुमसे बात नहीं करूँगा। मैं नहीं चाहता कि मैं जो तुमसे बात करने वाला हूँ, उसमें कोई भी इंटरफ़ेयर करे। चिंता मत करो, बस बात ही करनी है तुमसे; तुम यहाँ सेफ़ हो, और तुम्हारी फ़्रेंड में तो मुझे वैसे भी कोई इंटरेस्ट नहीं है, तो उसे तो घबराने की ज़रूरत ही नहीं है।"

    उसकी बात सुनकर जानवी आँखें फाड़े उसे देखने लगी; वहीं कंचन भी हैरानी से मुँह खोले उसे देख रही थी। वीर ने दोनों पर ध्यान नहीं दिया और अपनी बात कहकर अंदर की तरफ़ जाते हुए बोला, "मेरे पीछे आओ।"

    उसकी रोबदार आवाज़ जब दोनों दोस्तों के कानों में पड़ी, तब कहीं जाकर वे होश में लौटीं; कंचन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया कि वह कैसे उसे ऑर्डर दे सकता है, पर अभी बेचारी के पास उसकी बात मानने के अलावा चारा ही क्या था? जानवी ने उसके कंधे पर हाथ रखा, तो कंचन ने उसकी तरफ़ निगाहें घुमाईं।

    जानवी ने उसे रिलैक्स रहने का इशारा किया और उसकी हथेली थामकर वीर के पीछे चल पड़ी, तो कंचन भी मन ही मन उस घड़ी को कोसते हुए उसके साथ चलने लगी, जब वह वीर से गलती से टकरा गई थी और अब वह पागलों की तरह उसके पीछे ही पड़ गया था।

    वीर उस बड़े से एक्ज़ीक्यूटिव लॉन्ज के सबसे बड़े रूम में जाकर रुका, जहाँ हर तरफ़ बस ग्रे रंग ही नज़र आ रहा था; वह ग्रे कलर में सराबोर कमरा बहुत ही आलीशान था; किंग साइज़ बेड, जिस पर ग्रे चादर बिछी हुई थी; पर्दों से लेकर वॉल पेंट तक सब ग्रे ही था, फिर भी वह रूम बेहद सुंदर लग रहा था।

    वीर ने अब पलटकर दोनों को देखा, फिर जानवी को देखकर बोलना शुरू किया, "तुम दूसरे रूम में जाकर इंतज़ार करो; मुझे कंचन से अकेले में कुछ बात करनी है।"
    उसकी रोबदार आवाज़ सुनकर एक बार फिर दोनों लड़कियों ने चौंककर उसे देखा। उसकी बात सुनकर दोनों कुछ परेशान हो गईं और एक-दूसरे को देखने लगीं। वीर ने उनके घबराए हुए चेहरे को देखा, तो थोड़ा आराम से बोला, "डोंट वरी, तुम्हारी दोस्त को सही-सलामत, एक पीस में ही तुम्हें वापिस कर दूँगा; बस पाँच मिनट चाहिए मुझे, वह भी अकेले में।"

    कंचन अब भी परेशान सी उसे देख रही थी।

    जानवी ने उसकी बात सुनकर पहले उसे, फिर कंचन को देखा। उसे परेशान देखकर जानवी ने कंचन को शांत रहने का इशारा किया, फिर उससे अपना हाथ छुड़ाकर रूम से बाहर निकल गई। कंचन कातर नज़रों से उसे देखती रही।

  • 19. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 19

    Words: 1489

    Estimated Reading Time: 9 min

    वीर कंचन को लेकर उस होटल आया था। कंचन के साथ जानवी भी थी, पर वीर के कहने पर वह दूसरे कमरे में चली गई थी, और कंचन घबराई नज़रों से उसे जाते हुए देखती रही थी। वीर ने कंचन को देखा, फिर आगे बढ़कर दरवाज़ा लॉक कर लिया। अब घबराहट से कंचन का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा।

    "ये...ये...आप...क्या..."

    कंचन के मुँह से शब्द तक नहीं निकल रहे थे; बड़ी मुश्किल से उसने इतना ही कहा था कि वीर उसकी ओर घूम गया, और बिना कोई जवाब दिए ख़ामोशी से उसकी ओर बढ़ने लगा। कंचन की जान अब हलक में अटक गई; दिल घबराने लगा; एक लड़के के साथ इस कमरे में खुद को अकेला सोचकर ही वह डरने लगी थी; ऊपर से जिस तरह से वीर उसे देख रहा था, उससे उसको और भी ज़्यादा घबराहट होने लगी थी; वह उसके पास आता जा रहा था।

    कंचन घबराई नज़रों से उसे देखते हुए पीछे कदम हटाने लगी।
    "आप...मेरे...पास क्यों...मैं बता...रही हूँ...अगर आपने...मेरे साथ...कुछ गलत करने की कोशिश की तो मैं...तो मैं..."

    "तो तुम क्या?" कंचन की बात को काटते हुए वीर ने अपनी रौबदार आवाज़ में सवाल किया और भौंह उठाकर उसे देखने लगा। कंचन पूरी कोशिश कर रही थी कि अपनी घबराहट उससे छुपा सके।

    वीर अब भी उसकी ओर बढ़ रहा था, तो कंचन ने अब थोड़ी हिम्मत करते हुए कहा,
    "तो मैं क्या करूँगी, ये आपको खुद पता चल जाएगा। ये मत सोचिएगा कि मैं अकेली हूँ, तो आप मेरे साथ जो चाहे वो कर सकते हैं; मुझे अपनी रक्षा करना बहुत अच्छे से आता है, समझे आप? तो बेहतर होगा कि आप मुझसे दूर ही रहें।"

    अब कंचन की घबराहट कहीं गायब हो गई थी; बहुत कॉन्फिडेंट लग रही थी वह, और अपनी जगह पर खड़ी गुस्से से वीर को घूर रही थी। उसका एटीट्यूड देखकर वीर के लबों पर तिरछी मुस्कान फैल गई। वह कंचन के एकदम सामने आकर खड़ा हो गया और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला,

    "Good, तुम्हारा यही गुमान मुझे तुमसे प्यार करने पर मजबूर कर देता है। You are perfect for me, I really like you, actually I think I am in love with you."

    उसने यह बात इतने कैज़ुअली कह दी; वह उसके कहे इन शब्दों को सुनकर कंचन की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। उसने हैरानी से उसे देखा, जैसे उसको विश्वास नहीं हो रहा हो कि अभी उसने जो सुना, वीर ने वह कहा भी था या उसने ही कुछ गलत सुन लिया है।

    वीर ने कंचन की बड़ी-बड़ी आँखें, हैरानी से खुला मुँह देखा, तो उसने हल्की मुस्कान के साथ उसके तरफ़ कदम बढ़ाते हुए उसकी हथेली को अपनी हथेली में थाम लिया।

    जैसे ही वीर ने उसकी हथेली को स्पर्श किया, कंचन ने चौंककर अपनी हथेली की ओर देखा, फिर आँखें फाड़े घबराई नज़रों से वीर को देखने लगी। वीर ने उसकी आँखों में झाँकते हुए थोड़ा सॉफ्टली कहा,

    "तुम्हें मुझसे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। यकीन मानो, तुम्हें तकलीफ़ देने का ख्याल भी मेरे ज़हन में कभी नहीं आ सकता। मैं उन लोगों में से हूँ जो हमेशा लड़कियों से एक दूरी बनाकर चलते हैं... मगर तुमसे दूर रह पाना अब मेरे बस में नहीं रहा।

    उस पहली मुलाक़ात में ही तुमने अपनी निगाहों से कुछ ऐसा कह दिया था कि मेरे दिल पर हमेशा के लिए अपनी मौजूदगी दर्ज कर दी। अब हालात ऐसे हैं कि यह दिल तुम्हारे बिना चैन नहीं पाता। फिर भी, मैं वादा करता हूँ—तुम्हारी मर्ज़ी के बिना कभी तुम्हारे करीब आने की कोशिश भी नहीं करूँगा।

    क्योंकि अगर कभी गलती से भी मैंने तुम्हें तकलीफ़ दी... और तुम्हारी इन मासूम आँखों में आँसू आ गए... तो शायद मैं खुद को कभी माफ़ न कर पाऊँ। तुम्हारी आँखों में बहता एक आँसू मेरे सीने को चीर देता है, और मैं वह दर्द दोबारा नहीं झेल सकता।

    तुम बस रिलेक्स होकर आराम से बैठो, घबराओ मत। मुझे तुमसे सिर्फ बात करनी है।"

    उसने कंचन को पीछे लगे बड़े से सोफ़े पर बिठा दिया। कंचन अब घबराई हुई नहीं लग रही थी; वीर की आँखों में अपने लिए फ़िक्र देखकर वह बस एकटक उसके आँखों में देखे जा रही थी। वीर उसके बगल में बैठ गया; कंचन की हथेली अब भी उसके कब्ज़े में थी, और कंचन एकटक उसे ही देख रही थी।

    वीर ने हल्की मुस्कान के साथ एक बार फिर कहना शुरू किया,
    "मुझे तुम्हें बताना है कि जो कुछ देर पहले मैंने कहा था, वह सच था। जब से मैंने तुम्हें देखा है, तब से मैं तुम्हारा ख़्याल अपने दिल से निकाल नहीं पा रहा हूँ। तुम मेरे दिल की गहराइयों तक समा गई हो, जहाँ आज से पहले कभी कोई लड़की नहीं पहुँच सकी; मैंने कभी किसी को अपने दिल तक पहुँचने का मौका ही नहीं दिया, पर फिर तुम आई मेरी ज़िंदगी में, और पहली मुलाक़ात में ही मुझे तुमसे मोहब्बत हो गई। अब तुमसे दूर रहना मेरे लिए पॉसिबल नहीं।

    तुम्हें शायद विश्वास न हो, पर आज से पहले कई बार कई लड़कियाँ मेरे पास आईं, मुझे रिझाने की कोशिश भी की, पर उनकी करीबी से मुझे कभी वैसा फ़ील नहीं हुआ जैसा उस पल तुम्हारे करीबी से फ़ील हुआ। वे एहसास बहुत ख़ास थे मेरे लिए; इतने स्पेशल थे कि मैं उन्हें शब्दों में बयाँ नहीं कर सकता, पर मैं उन्हें कभी भुला भी नहीं सकता।

    उस रात भी मैं बहुत गुस्से में था, क्योंकि कुछ देर पहले ही एक लड़की ने मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ मेरे करीब आने की कोशिश की थी; ड्रंक होने के बाद भी मैं उसके साथ आगे नहीं बढ़ सका, और गुस्से में बाहर आ गया, पर फिर तुमसे मेरी टक्कर हो गई; जो उसकी अदाएँ नहीं कर सकीं, वह असर तुम्हारी करीबी ने किया, और उन एहसासों में खोकर मैंने तुम्हें किस कर दिया।"

    कंचन अब तक ख़ामोशी से एकटक उसे देख रही थी; चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, पर जैसे ही वीर ने उस रात का ज़िक्र किया, कंचन के भाव बदल गए; चेहरे पर घिन और नाराज़गी भरे भाव उभर आए। उसने वीर की हथेली से अपना हाथ खींच लिया और बिना कुछ कहे उठने लगी, पर वीर ने उसकी कलाई पकड़कर उसको रोक लिया।

    कंचन उसके हाथ से अपनी हथेली छुड़ाने की कोशिश करने लगी, तो वीर ने उसे वापस बिठाते हुए कहा,
    "Please, मेरी पूरी बात सुन लो, please."

    उसने इतना सॉफ्टली कहा कि कंचन इंकार न कर सकी; फिर वीर की बात मानने के अलावा कोई और ऑप्शन भी नहीं था, क्योंकि उसकी पकड़ से खुद को आज़ाद करवाना उसके लिए काफ़ी मुश्किल साबित हो रहा था। तो वह वापस बैठ गई, पर अब उसने वीर की तरफ़ नहीं देखा; उसके सामने मुँह फेरे बैठते हुए बोली,

    "नहीं जा रही, पर आप मेरा हाथ छोड़ दीजिए; सुन रही हूँ आपकी बात, पर आप मुझसे दूर से बात कीजिए।"

    "मेरी तरफ़ देखो कंचन। मैं जानता हूँ, मुझे तुम्हारी मर्ज़ी के बिना तुम्हारे करीब नहीं आना चाहिए था। मैंने तुम्हें किस किया, यह गलत था, यह भी जानता हूँ मैं; आज से पहले कभी किसी को यह शब्द नहीं कहा, पर आज तुम्हें कहता हूँ। मैंने जो किया, उसके लिए मुझे माफ़ कर दो। I am really very very sorry. शायद अगर तुम्हारे जगह कोई और लड़की होती, तो मुझसे वह गलती कभी नहीं होती, पर तुम्हें देखते ही पता नहीं मुझे क्या हो गया था। रोक नहीं सका तुम्हारे करीब आने से खुद को; पता नहीं यह शराब का नशा था या तुम्हारी नशीली आँखों का जादू था कि मैं तुम्हारी करीबी में खोता चला गया।

    तुम्हारी जगह अगर कोई और लड़की होती और मैंने उसे किस किया होता, तो शायद वह खुशी से पागल हो जाती कि वीर प्रताप सिंह ने उसे चूमा, पर तुम्हें, इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ा कि तुम्हारे सामने कौन है। तुम खुश होने की जगह रोने लगीं। जब मैंने तुम्हारी आँखों से बहते आँसुओं को देखा, तब मुझे एहसास हुआ कि मैंने जाने-अनजाने तुम्हें हर्ट कर दिया है। तुम्हारे आँसुओं को देखकर एक दर्द सा उठा दिल में, और उससे भी ज़्यादा बुरा यह सोचकर लग रहा था कि वह उन आँसुओं की वजह मैं हूँ।

    पर मैं ऐसा कुछ नहीं चाहता था; पहले कभी मैंने कभी किसी लड़की की तरफ़ कदम नहीं बढ़ाए; किस करना तो बहुत दूर की बात है, पर तुम्हें देखकर तुमसे दूर नहीं रह सका। लेकिन गलती है मेरी, तो माफ़ी माँगता हूँ तुमसे। भूल जाओ उस बात को; तुम मुझे जितना बुरा समझती हो, मैं उतना बुरा नहीं हूँ। बहुत चाहने लगा हूँ मैं तुम्हें, और अब मैं तुम्हें हमेशा के लिए अपने साथ रखना चाहता हूँ। आज मैं तुम्हें यही बताने के लिए यहाँ लाया हूँ कि मुझे तुमसे मोहब्बत हो गई है; क्या उस एक गलती को भुलाकर तुम मुझे एक मौका दे सकती हो?"

    अब जाकर वीर चुप हुआ। कंचन ने उसके हाथ से अपनी हथेली खींच ली; वीर उसे ही देख रहा था, पर कंचन का चेहरा एक्सप्रेशनलेस था।


    क्या करेगी अब कंचन? वीर के कंफेशन पर कैसे रिएक्ट करेगी?

  • 20. "तलब तेरे प्यार की" - Chapter 20

    Words: 1469

    Estimated Reading Time: 9 min

    अब जाकर वीर चुप हुआ। कंचन ने उसके हाथ से अपनी हथेली खींच ली। वीर उसे ही देख रहा था, पर कंचन के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। वह उठकर खड़ी हो गई और खुद को शांत करते हुए आराम से बोली,

    "आपको जो भी कहना था, शायद आपने कह दिया, और मैंने शांति से आपकी सब बातें सुन भी ली। अब मुझे यहाँ से चलना चाहिए।"

    उसने अपनी बात पूरी की और जाने के लिए मुड़ गई। पर वह एक कदम भी आगे बढ़ती, उससे पहले ही उसके कदम रुक गए; उसकी कलाई एक बार फिर वीर के गिरफ़्त में थी। जैसे ही वीर ने उसे जाते देखा था, उसने उसे रोकने के लिए उसकी कलाई पकड़ ली थी। उसके छूते ही कंचन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने एक बार फिर खुद को शांत करते हुए आराम से कहा,

    "हाथ छोड़िए मेरा; मैंने आपकी बात सुन ली, अब मुझे यहाँ से जाना है।"

    "मैंने तुम्हें अपने दिल की बात बताई, और तुम मुझे कोई जवाब दिए बिना ही जा रही हो। तुम यहाँ से तब तक नहीं जा सकती जब तक मैं नहीं चाहता; इसलिए चुपचाप पहले जवाब दो, उसके बाद अगर मैंने चाहा तो तुम यहाँ से जा सकती हो।" इस बार उसकी आवाज़ में सॉफ्टनेस नहीं थी; एक गर्व से भरी रौबदार आवाज़ इस बार कंचन के कानों में पड़ी, जिससे उसका गुस्सा बढ़ गया। जिस गुस्से को वह अब तक दबाने की कोशिश कर रही थी, अब वह बाहर आ गया। वह उसके तरफ़ मुड़ी और भड़कते हुए बोली,

    "क्यों नहीं जा सकती मैं यहाँ से? और आप होते कौन हैं मुझ पर हुक्म चलाने वाले? क्यों सुनूँ मैं आपकी बात? मैं आपकी गुलाम नहीं हूँ, जो आप कहेंगे उठने को तो उठूँगी, आप कहेंगे बैठने तो बैठूँगी। मैं वही करूँगी जो मेरा दिल करेगा, और मुझे अभी के अभी यहाँ से और आपसे दूर जाना है, और मैं यहाँ से जाकर ही रहूँगी; आप मुझे ज़बरदस्ती यहाँ रोक नहीं सकते।"

    "मैं क्या कर सकता हूँ, इसका अंदाज़ा नहीं है अभी तुम्हें; तभी ये सब बोल रही हो। मैं चाहूँ तो कुछ भी कर सकता हूँ; तुम्हें हमेशा के लिए अपने पास भी रख सकता हूँ, और तुम्हें मुझे रोक भी नहीं पाओगी। पर मैं तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती नहीं करना चाहता, इसलिए बहुत ही प्यार से मैंने तुम्हें बताया कि मुझे तुमसे मोहब्बत हो गई है, पर शायद मेरे प्यार को तुम मेरी कमज़ोरी समझ बैठी हो और मुझे हल्के में लेने लगी हो।

    तुम अभी तक जानती ही नहीं हो मुझे; वीर प्रताप सिंह नाम है मेरा; सिंह मतलब शेर, और मैंने कभी किसी के आगे झुकना नहीं सीखा; फिर भी अपनी मोहब्बत के लिए मैं तुम्हारे सामने झुका। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुम मुझे इतने हल्के में लेने लगो। एक बात कान खोलकर सुन लो; तुम तब तक यहाँ से हिल भी नहीं सकती जब तक मैं नहीं चाहता; जाना तो बहुत दूर की बात है, और जब तक तुम मुझे हाँ नहीं कर देती, मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा; तो शांति से जवाब दो मुझे।"

    वीर अब वापस अपने कोल्ड बिज़नेस मैन वाले रूप में वापस आ चुका था; उसका कोल्ड ऑरा यह बताने को काफ़ी था कि कितनी बड़ी शख्सियत है उसकी, और वह अपनी बात मनवाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

    कंचन को उससे रत्ती भर फ़र्क नहीं पड़ा। उसने गुस्से से उसका हाथ झटकते हुए अपनी हथेली को उसकी पकड़ से आज़ाद किया और चिल्लाकर बोली,

    "आप कौन हैं और कौन नहीं, उससे मुझे क्या मतलब नहीं। अगर मैं चाहूँ तो आपके सामने से यहाँ से बाहर जाऊँगी, और आप मुझे रोक भी नहीं सकेंगे, पर मैं ऐसा नहीं करूँगी। आपको जवाब चाहिए न, तो सुनिए। क्या कहा था आपने कि आपको पहली नज़र में ही मुझसे प्यार हो गया, पर मुझे आपसे कोई मोहब्बत नहीं हुई। इंफ़ैक्ट, आपकी उस हरकत के बाद से अगर मुझे इस दुनिया में किसी से सबसे ज़्यादा नफ़रत है, तो वह कोई और नहीं, बल्कि आप हैं। सुना आपने? नफ़रत है मुझे आपसे; आपके ख़्याल से ही मुझे गुस्सा आने लगता है। अगर किसी के छुअन से मुझे घिन होती है, तो वह शख्स आप हैं।

    न मुझे आपसे कोई प्यार है, न ही कभी ऐसा हो सकता है। आपके जैसे घटिया इंसान से प्यार करने से अच्छा होगा कि मैं खुदकुशी कर लूँ। सुना आपने? नहीं है मुझे आपसे मोहब्बत। मिल गया न आपको अपना जवाब; अब दोबारा कभी मेरा पीछा करने की हिम्मत मत कीजिएगा। नफ़रत करती हूँ मैं आपसे, इतनी कि आपका चेहरा भी नहीं देखना चाहती। आइन्दा अगर आपने मेरा पीछा किया या कोई उल्टी-सीधी हरकत करने की कोशिश की या फिर अपनी ताक़त मुझ पर आज़माने की कोशिश की, तो मैं पुलिस में आपकी कंप्लेंट कर दूँगी कि आप मुझे परेशान कर रहे हैं, और अगर आपको लगता है कि पुलिस आपकी पावर के सामने कुछ नहीं करेगी और आप मुझे हासिल कर लेंगे, तो भी आप बिल्कुल गलत सोच रहे हैं, क्योंकि अगर पुलिस आपके सामने झुक भी गई, तब भी मैं आपके सामने घुटने नहीं टेकने वाली।

    अगर आपने मेरे साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश भी की, तो मैं खुद को ख़त्म कर लूँगी, और मेरी मौत के ज़िम्मेदार आप होंगे। क्या कहा था आपने कि आपको मेरी आँखों में आँसू का एक कतरा तक बर्दाश्त नहीं? तो सोच लीजिए, अपनी ही आँखों के सामने मुझे दम तोड़ते देख पाएँगे?

    मिस्टर वीर प्रताप सिंह, अब एक बात आप अपने कानों को खोलकर सुन लीजिए; कंचन राणा कोई बिकाऊ चीज़ नहीं है और न ही कोई समान है जिस पर आपका दिल आ गया और आप उसे हासिल करने के सपने देखने लगे। मैं एक जीती-जागती इंसान हूँ, और अपने शर्तों पर अपनी ज़िंदगी जीना पसंद करती हूँ; एक मामूली सी लड़की हूँ, जिसे सुकून से अपनी ज़िंदगी बितानी है और जिसके लिए मैं दिन-रात मेहनत करती हूँ; मेरी ज़िंदगी में प्यार-मोहब्बत जैसे शब्दों के लिए कोई जगह नहीं है; मैं आपसे तो क्या, कभी किसी से भी प्यार नहीं कर सकती, और आपकी उस हरकत के बाद तो मुझे आपके ख़्याल से भी नफ़रत हो गई है।

    नहीं माफ़ कर सकती मैं उस इंसान को जिसने बिना मेरी मर्ज़ी के मुझे किस किया; नहीं कर सकती मैं आप पर भरोसा, और न ही मुझे आप में कोई दिलचस्पी है। मैं आपसे प्यार नहीं करती, और आपको भी मुझसे प्यार नहीं होगा, यह बात मैं दावे से कह सकती हूँ। अच्छी-खासी शक्ल-सूरत है, पैसे वाले भी लगते हैं; आपके लिए लड़कियों की कोई कमी तो नहीं जो आप मुझ जैसी आम लड़की से प्यार करें; हाँ, मैंने कल आपको इतना सुनाया था तो शायद आपका ईगो हर्ट हो गया होगा कि कैसे एक मामूली सी, एवरेज लुकिंग लड़की ने आपकी इंसल्ट कर दी, इसलिए चले आए यह प्यार का नाटक करके मुझे अपने जाल में फँसाने, ताकि मुझसे बदला ले सकें।

    पर मिस्टर वीर प्रताप सिंह, आपका प्लान फ़ेल हो गया, क्योंकि मैं आपके जाल में नहीं फँसी। आपको मुझसे प्यार है या नहीं, यह आपकी प्रॉब्लम है; मेरा इससे और आपसे कोई वास्ता नहीं, तो मुझसे और मेरी ज़िंदगी से दूर रहिए।"

    उसने गुस्से में सब कह दिया, फिर दौड़ते हुए वहाँ से जाने लगी। पर दूसरी तरफ़ मुड़ते ही उसने अपनी आँखें बंद करते हुए मन में कहा, "भगवान जी, please मुझे यहाँ से निकल जाने दीजिए; अगर इसने मुझे जाने नहीं दिया तो मैं क्या करूँगी? कह तो दिया, पर सच तो यही है कि इसके सामने तो मेरी कोई औक़ात ही नहीं है; यह कुछ भी कर सकता है और मैं कुछ नहीं कर सकूँगी। बस मुझे यहाँ से निकल जाने दीजिए; उसके बाद मैं आपसे कुछ नहीं माँगूँगी।"

    वह मन ही मन भगवान से प्रार्थना करते हुए आगे बढ़ने लगी, पर दिल घबरा रहा था कि कहीं वीर फिर से उसे रोक न ले। पर वीर तो ख़ामोशी से खड़ा उसे जाते हुए देख रहा था; लबों पर रहस्यमयी, शैतानी मुस्कान फैली हुई थी। कंचन झट से रूम से बाहर निकली, तो हॉल में ही जानवी बैठी हुई थी। कंचन को देखते ही वह उसके पास आ गई। पर वह कुछ कहती, उससे पहले ही कंचन ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, "अभी कुछ मत पूछियो; पहले यहाँ से निकल, उसके बाद सब बता दूँगी तुझे।"

    उसके कहने पर जानवी ने उससे कोई सवाल नहीं किया; दोनों जल्दी से वहाँ से निकल गए; उनके जाते ही वीर भी वहाँ से चला गया। उसके कुछ न कहने पर कंचन को लगा कि अब उसका पीछा वीर से छूट गया है, पर उसके दिमाग में अब कौन सा प्लान बन रहा था, यह सिर्फ़ वही जानता था, और उसे देखकर लग नहीं रहा था कि वह कंचन को इतनी आसानी से छोड़ने वाला है। उसकी आँखों में कंचन को हासिल करने का जुनून नज़र आ रहा था; ज़ाहिर सी बात थी, वह कुछ तो करने वाला था, पर क्या, यह आगे पता चलेगा।