Novel Cover Image

अनोखा रिश्ता

User Avatar

Neha Jain

Comments

0

Views

24

Ratings

1

Read Now

Description

वो कहते हैं ना... जीवन एक पहेली है। यहां हमें अगले पल की भी खबर नहीं रहती... इस जीवन में हमारे साथ कभी भी, कुछ भी घटित हो सकता है... ऐसा ही कुछ हुआ वर्तिका के साथ... वर्तिका... एक सिम्पल सी ... लड़की, जो कि एक बोरिंग सी लाइफ जी रही थी। पर फिर एक दिन...

Total Chapters (2)

Page 1 of 1

  • 1. अनोखा रिश्ता - Chapter 1

    Words: 1729

    Estimated Reading Time: 11 min

    वर्तिका एक साधारण सी लड़की थी। देखने में बहुत ज्यादा सुंदर तो नहीं थी, पर ठीक-ठाक लगती थी। उसका गेहुंआ रंग उसके चेहरे पर खूब जंचता था। वह पूना में रहती थी। उसके पास कोई कमी नहीं थी; अच्छी नौकरी थी, परिवार था, लेकिन उसे अपनी ज़िंदगी बहुत बोरिंग लगती थी। रोज़ सुबह जल्दी उठना, फिर तैयार होकर नौकरी पर जाना, फिर शाम तक घर आ जाना, खाने की टेबल पर थोड़ी देर परिवार से बातें करना, और बाद में सो जाना; बस यही उसका रूटीन था। हाँ, उसे रविवार का दिन फ्री मिलता था, पर वह सिर्फ़ कहने के लिए ही छुट्टी का दिन था, क्योंकि उस दिन उसके सर पर पचास तरह के काम आ जाते थे। छुट्टी वाले दिन भी एन्जॉय करना बहुत दूर की बात थी। उसे अपनी ज़िंदगी से ज़्यादा अपनी सहेलियों की ज़िंदगी में दिलचस्पी रहती थी। उसकी सभी सहेलियाँ माडर्न टाइप की थीं, और उन सभी के बॉयफ्रेंड्स भी थे। वर्तिका जब अपने मोबाइल में अपनी सहेलियों के तरह-तरह के फैशनेबल फ़ोटोज़ देखती, तो उसका भी जी ललचा जाता। उसे भी इच्छा होती कि काश उसे नौकरी नहीं करनी पड़ती, और वह भी अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से एन्जॉय करती। दरअसल वर्तिका के परिवार में उसके अलावा दूसरा कोई कमाने वाला नहीं था; इसलिए नौकरी करना उसकी मजबूरी थी। उसके परिवार में उसकी माँ, दादी, और उससे छोटी तीन बहनें थीं। उसकी तीनों बहनें स्कूल में पढ़ रही थीं। उसके पिता भीमसेन शर्मा एक ज्वैलरी शॉप में मैनेजर थे। तीन साल पहले, एक बार भीमसेन जी शॉप पर बैठे थे। उस वक्त शॉप पर कोई ग्राहक नहीं था। शॉप के मालिक बिनोय त्रिवेदी अपने दस साल के बेटे अजित के साथ कैरम खेल रहे थे। भीमसेन जी उन दोनों को दूर से खेलते हुए देख रहे थे और गेम का आनंद ले रहे थे। तभी अजित ने जोर से स्ट्राइकर चलाया और कैरम की एक गोटी उछलकर बाहर की तरफ चली गयी। अजित उस गोटी को लेने बाहर सड़क पर आ गया। वह जमीन से गोटी उठाने लगा, तभी अचानक सामने से काफी तेज़ी से एक कार उसकी तरफ आ गयी। बिनोय त्रिवेदी यह देखकर घबरा गए। उधर भीमसेन जी बिना एक पल गँवाए उस बच्चे को बचाने भागे। अजित बच गया, पर भीमसेन जी कार के नीचे आ गए, और उन्होंने वहीं पर दम तोड़ दिया। यह सब इतनी हड़बड़ी में हुआ कि उस कार वाले को कुछ सोचने-समझने का वक्त ही नहीं मिला, और वह समय पर ब्रेक नहीं लगा पाया। बिनोय त्रिवेदी जानते थे कि भीमसेन जी के घर पर कमाने वाला और कोई नहीं है, और उनके ऊपर भीमसेन जी का एहसान भी था। इसलिए उन्होंने भीमसेन जी की सबसे बड़ी बेटी वर्तिका को उनकी जगह पर काम पर रख लिया था। उस वक्त वर्तिका ने अभी एक महीने पहले ही अपना ग्रेजुएशन पूरा किया था। उसकी ज़िंदगी तो अभी शुरू हुई थी, और उसके कंधों पर इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी आ गयी। चलिए देखते हैं कैसे वर्तिका की यह बोरिंग सी ज़िंदगी करवट बदलती है, और उसकी ज़िंदगी में ट्विस्ट आता है। "दीदी! आज मेरे जूते ले आना; पहले वाले फट गए हैं।" वर्तिका की छोटी बहन रतिका बोली। "दीदी! मुझे एनुअल फंक्शन में जो ड्रेस पहननी है, उसका मैचिंग रिबन लाना मत भूलना..." वर्तिका की उससे छोटी बहन लतिका बोली। "और दीदी! मेरे लिए नया पेंसिल बॉक्स भी..." वर्तिका की सबसे छोटी बहन कृतिका बोली। "ठीक है... ठीक है... लेती आऊँगी..." वर्तिका शॉप पर जाने की तैयारी करते हुए बोली। "अरे बिटिया... तनिक हमारा चश्मा भी सही करवा देना..." वर्तिका की दादी उसे अपना टूटा हुआ चश्मा देते हुए बोलीं। "ठीक है दादी..." कहकर उसने चश्मा ले लिया। "चल पहले नाश्ता कर ले..." वर्तिका की माँ कुसुम जी नाश्ता लगाते हुए बोलीं। "अरे नहीं माँ! अभी लेट हो रहा है; मैं रास्ते में कुछ खा लूँगी।" वर्तिका बोली। लेकिन उसकी माँ उसे जबरदस्ती नाश्ता करा देती हैं। फिर वह शॉप के लिए निकल जाती है। पैदल चलते-चलते वह बस स्टैंड तक आती है। वह बस के आने का इंतज़ार कर रही थी। बस आने में थोड़ा समय था, तो वह अपने मोबाइल में गेम खेलने लगी। "अरे वर्तिका तू..." तभी सामने से एक लड़की उसे देखकर खुशी से चौंकते हुए कहती है। वर्तिका का ध्यान उस लड़की की तरफ गया। वह भी उसे देखकर खुशी से चौंककर कहती है, "शैफाली तू... तू मुंबई से कब आयी...?" "मैं कल ही यहाँ आयी हूँ। आज कितने सालों बाद तुझे देख रही हूँ..." शैफाली बोली। "हाँ यार... लगभग छः साल तो हो ही गए होंगे..." वर्तिका बोली। "कितनी मस्ती करते थे ना हम स्कूल में... पर फिर पापा का ट्रांसफर हो गया मुंबई, तो हमें भी जाना पड़ा..." शैफाली पुराने दिनों को याद करते हुए बोली। "और बता... अंकल-आंटी कैसे हैं?" वर्तिका ने पूछा। "सब बढ़िया... हम यहाँ मेरे चाचा की बेटी की शादी में आए थे। अभी तीन दिन पहले ही शादी हुई है। कुछ दिनों के लिए हम यहीं रुके हैं। आज मैं फ्री थी, तो सोचा थोड़ा घूम लूँ..." शैफाली बोली। "अकेले ही घूमने निकल पड़ी...?" वर्तिका बोली। "मुझे या तो अकेले या फिर अपने बॉयफ्रेंड के साथ ही घूमना पसंद है..." शैफाली मस्ती में बोली। "तेरा बॉयफ्रेंड भी है..." वर्तिका हैरान होकर बोली। "हाँ... वहाँ मुंबई में मेरे साथ कॉलेज में पढ़ता था... बस तभी हमारी दोस्ती हो गयी..." शैफाली बोली। "ओह अच्छा..." वर्तिका बोली। तभी बस आ जाती है और दोनों बस में चढ़ जाती हैं। दोनों बीच की एक खाली सीट पर बैठ जाती हैं। "और तू बता... क्या हालचाल हैं...?" शैफाली ने पूछा। "बस यार! वही रोज़ का... घर से ऑफिस... ऑफिस से घर..." वर्तिका बोली। "क्या...? स्कूल के टाइम में तो तू कितनी बिंदास रहती थी... अब क्या हो गया...?" शैफाली बोली। फिर वर्तिका उसे अपने पापा के साथ हुए हादसे के बारे में बताती है। यह सुनकर शैफाली सहानुभूति जताते हुए कहती है, "ओह! आई एम सॉरी..." "इट्स ओके यार! बट अब मैं खुद भी यह बोरिंग लाइफ़ जीते-जीते थक गयी हूँ।" वर्तिका बोली। "चल एक काम करते हैं... तू कुछ दिनों के लिए अपने काम से छुट्टी ले ले... फिर हम सब फ्रेंड्स कहीं बाहर चलते हैं..." शैफाली बोली। "नहीं यार! शॉप के जो ओनर हैं ना... वो सिर्फ़ संडे को या फिर कोई खास त्यौहार होता है, तभी छुट्टी देते हैं..." वर्तिका बोली। "ओह! अच्छा तू मुझे अपना नंबर दे दे..." शैफाली बोली। फिर दोनों ने एक-दूसरे के नंबर एक्सचेंज कर लिए। थोड़ी देर बाद वर्तिका का ऑफिस आ जाता है और वह बस से उतर जाती है। फिर शैफाली आगे निकल जाती है। रात का समय था। वर्तिका अपने कमरे में लेटी हुई थी। उसे नींद नहीं आ रही थी, तो वह अपने मोबाइल में अपनी फ्रेंड्स के द्वारा डाले गए स्टेटस देखने लगी; उनमें से कोई सहेली अपने बॉयफ्रेंड के साथ रोमांटिक पोज़ में थी, तो कोई हीरोइनों जैसे पोज़ दे रही थी। "काश! मेरी लाइफ़ में भी कोई चेंज होता..." वर्तिका के मुँह से धीरे से निकला। कहते हैं ना... कभी-कभी बोला हुआ सच हो जाता है... इसलिए बहुत ही सोच-समझकर और हमेशा अच्छा बोलना चाहिए... खैर... अभी देखते हैं आगे क्या हुआ... वर्तिका मोबाइल में स्टेटस देख ही रही थी, तभी उसके मोबाइल पर शैफाली का फ़ोन आया। उसने फ़ोन रिसीव करके कहा, "हैलो!" "हैलो वर्तिका!" उधर से शैफाली की आवाज़ आयी। "हाँ बोल! कैसी है...?" वर्तिका बोली। "मैं बढ़िया हूँ... अच्छा मेरी बात सुन..." शैफाली बोली। "हाँ बोल!" वर्तिका बोली। "तुझे स्वर्गलोक देखना है...?" शैफाली एक्साइटेड होकर बोली। "क्या......?" वर्तिका ने हैरानी से भरकर पूछा। "मुझे पता था... यह सुनकर तू ऐसे ही रिएक्ट करेगी..." शैफाली हँसते हुए बोली। "प्लीज़ साफ़-साफ़ बता, तू कहना क्या चाहती है...?" वर्तिका ने उत्सुकतावश पूछा। "मुझे मेरी फ्रेंड के ज़रिए आज ही पता चला कि कल से नासिक में तीन दिन के लिए एक कैंप लग रहा है। उस कैंप का नाम स्वर्गलोक रखा गया है। दरअसल वहाँ पर जाकर ऐसा फील होता है जैसे हम किसी अलग ही दुनिया में आ गए हों। यह कैंप हर बीस साल में एक बार ही लगता है। आई थिंक हमें भी वहाँ जाना चाहिए।" शैफाली बोली। "तू पहले कभी गयी है क्या वहाँ पर...?" वर्तिका ने पूछा। "नहीं... कभी गयी तो नहीं... पर बहुत सुना है इस स्वर्गलोक के बारे में... जो भी एक बार वहाँ चला जाता है, फिर वह इसके गुणगान करते-करते नहीं थकता... मैंने तो यहाँ तक लोगों को कहते सुना है कि भले ही कुछ मत देखना... पर जीवन में एक बार नासिक का स्वर्गलोक ज़रूर देखना..." शैफाली ने बताया। यह सुनकर अब वर्तिका के मन में भी स्वर्गलोक देखने की इच्छा जगी, पर तभी अगले ही पल वह कुछ सोचकर बोली, "लेकिन मुझे छुट्टी नहीं मिलेगी..." "तू उसकी टेंशन मत ले... उसके बारे में भी मैंने सोच लिया है..." शैफाली बिंदास होकर बोली। "क्या...?" वर्तिका ने पूछा। "अगर तू बीमार हो जाए, तब तो तेरी शॉप के ओनर तुझे छुट्टी देंगे ना...?" शैफाली बोली। "मतलब...?" वर्तिका ने हैरान होकर पूछा। "मतलब यह... कि तू अभी अपनी शॉप के ओनर को कॉल कर... और उनसे बोल कि तुझे फीवर आ रहा है... तो डॉक्टर ने तुझे तीन दिन का रेस्ट करने के लिए कहा है।" शैफाली बोली। "पर अगर उन्होंने मुझसे मेडिकल माँगा तो...?" वर्तिका ने अपनी परेशानी जताई। "मैंने उसका भी इंतज़ाम कर लिया है... मेरा कज़िन एक हॉस्पिटल में वर्क करता है। तो वह तेरा नकली मेडिकल बनवा देगा।" शैफाली बोली। यह सुनकर तो वर्तिका की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा, लेकिन अगले ही पल वह कुछ सोचते हुए कहती है, "लेकिन इस वक्त घर पर तो कोई है ही नहीं..." "कहाँ गए सब...?" शैफाली ने पूछा। "वो दरअसल मेरे नाना जी एक्सपायर हो गए हैं... तो सब एक हफ़्ते के लिए नागपुर गए हैं।" वर्तिका ने बताया। "ओह! वैसे... तू चाहे तो चल सकती है..." शैफाली बोली। "यार लेकिन... ऐसे में वहाँ माँ से फ़ोन पर घूमने जाने के लिए कहना सही लगेगा...?" वर्तिका बोली। "तो उन्हें बताने की ज़रूरत क्या है? वो तो वैसे भी एक हफ़्ते बाद आयेंगे... और हम तो तीन दिन में ही वापस आ जाएँगे।" शैफाली बोली। यह सुनकर अब वर्तिका सोच में पड़ जाती है। तभी शैफाली कहती है, "सोच ले... शायद ही दोबारा ऐसा मौका मिले..." "डन... हम कल चल रहे हैं... स्वर्गलोक की यात्रा करने..." वर्तिका सारी परेशानियों को साइड में रख खुश होकर बोली। "ये हुई ना बात... चल कल मिलते हैं... बाय..." कहकर शैफाली फ़ोन रख देती है, और सो जाती है। उधर वर्तिका भी अपनी शॉप के ओनर से तीन दिन की लीव लेकर अपने हसीन सपनों में खो जाती है।

  • 2. अनोखा रिश्ता - Chapter 2

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min