यह कहानी राजकुमारी कुंद्रा की जिनकी हरकते मर्दों को भी मात देती है लेकिन एक श्राप के चलते उन्हें नपुंसक पुरुष से विवाह करना पड़ता है आखिरकार क्या वो नपुसंक पुरुष को मर्द बना पाएगी और वह कैसे केशवापुर की रानी बनेगी जानने के लिए पढ़िए "रानी कुंद्रा"
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यह कहानी वर्षों पहले की है, जब केशवापुर में रानी शुभांगी दर्द से बिलख-बिलख कर चिल्ला रही थी क्योंकि वह केशवापुर को राजकुमार या राजकुमारी देने वाली थी। इधर, रानी शुभांगी के कक्ष के बाहर केशवापुर के महाराज राजा सत्यम सिंह राठौड़ रानी शुभांगी की दर्द भरी चीखों से काफी सहमे हुए थे। वे देवी मां से यही प्रार्थना कर रहे थे कि होने वाले नवजात शिशु और रानी को कुछ भी न हो। विवाह के बारह साल बाद रानी शुभांगी गर्भवती हुई थी। इधर, रानी शुभांगी दर्द से बिलख-बिलख कर दर्द भरी आवाज में कहती है, "कुछ करिए देवी मां, मेरे प्राण हर लीजिए, पर जो इस दुनिया में आने वाला है, उसको बचा लीजिए। और इस महल पर उस डायन औरत का श्राप हटा लीजिए। कृपा करो मां, कृपा करो मां।" और इतना कहते ही रानी शुभांगी दर्द से चिल्लाने लगी। तभी दाई मां ने रानी को औषधि वाला काढ़ा पिलाया, और रानी शुभांगी दर्द से चिल्लाती रही। कुछ समय के पश्चात्, महल में किलकारियों की आवाज गूंजने लगी। तभी दाई मां कक्ष से बाहर आकर खुशी से राजा से कहा, "बधाई हो महाराज, बधाई हो! महल में त्रिदेवियों ने जन्म लिया है। अब तो आपको मुझे तीन गुना इनाम देना पड़ेगा, और वह भी अभी।" राजा सत्यम कुछ नहीं समझे और न समझते हुए, हाव-भाव में कहा, "दाई मां, आप क्या कहना चाहती हो? साफ-साफ कहिए। त्रिदेवियों से आपका मतलब क्या है? आखिर रानी और बच्चा सब ठीक तो हैं।" दाई मां हँसते हुए बोली, "आपके इस श्रापित महल से श्राप का साया हट गया है, और महल में एक नहीं, दो नहीं, बल्कि तीन कन्याओं के कदम पड़े हैं। मेरा मतलब है, रानी ने तीन कन्याओं को जन्म दिया है, और रानी भी सुरक्षित है।" राजा सत्यम कुछ कहते, तभी सत्यम की दूसरी पत्नी रानी कला आई, जो सात माह गर्भवती थी। तब वह चतुराई भरी आवाज में राजा सत्यम से कहती है, "महाराज, जब तक इस महल में कोई वारिस, मेरा मतलब कोई राजकुमार नहीं आ जाता, तब तक इस महल का श्राप कैसे दूर हो सकता है? और वैसे भी महाराज, जुड़वाँ बच्चे सुने हैं, लेकिन जब महल में तीन बच्चे आए हैं, तो यह अपशकुन होता है।" राजा सत्यम कड़क भरी आवाज में बोले, "आपके कुटिल मन में क्या चल रहा है, कला रानी? जो बोलना है, साफ बोलिए।" रानी कला अपनी आँखों में नकली आँसू लाते हुए बोली, "महाराज, हम आपको कुटिल लगते हैं? हमने खुद महामाया जी से पूछा है। उन्होंने स्वयं भविष्यवाणी की है कि जो जन्म लेने वाली हैं, वे इस महल की इज्जत, मान-सम्मान और प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाएँगी।" तभी वहाँ महान ऋषिका सुमन्या आईं और राजा सत्यम से बोलीं, "रानी कला सही बोल रही है। लेकिन इनमें एक पुत्री आपका नाम रोशन करेगी, और एक पुत्री आपका नाम डुबाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। क्योंकि श्राप के कारण आपकी पुत्रियों के हाथ कोई, किसी प्रकार की भाग्य रेखा नहीं है। और एक पुत्री आपकी केवल इस महल में वह करेगी जो कोई नहीं कर सकता, वह कर दिखाएगी। वह आपका मान-सम्मान वापस लाएगी, तो आपका मान-सम्मान भी उसके कारण खोना पड़ेगा। इन तीन राजकुमारियों की कहानी दुनिया की सबसे अनोखी होगी। जिनके अंदाज को जो भी देखेगा, वह पागल हो जाएगा। यह एक नया इतिहास रचेगी। इनके कारण महान इतिहास लिखा जाएगा।" तभी काली विद्याओं में पारंगत काल ऋषिका महामाया आई और रानी कला की तरफ कुटिलता भरा इशारा करते हुए, राजा सत्यम और ऋषिका सुमन्या से कुटिलता भरे शब्दों में बोली, "पहले तीन नन्हीं राजकुमारियों के दर्शन तो कर लो। मेरा मतलब है, माँ का प्यार तो इन्होंने ले लिया, अब इन्हें पिता का प्यार तो मिलना चाहिए।" राजा सत्यम दाई मां को अपने गले में पड़ा पीत स्वर्ण कमल हार देते हैं और रानी शुभांगी के कक्ष में प्रवेश करते हैं। राजा सत्यम हर्षित होते हुए बारी-बारी से तीनों राजकुमारियों को अपनी गोद में लेते हैं और महान ऋषिका सुमन्या से बोलते हैं, "अब आप इनका नामकरण अभी कर दीजिए, जिससे इनको इनके नाम से पुकारा जाए।" तभी ऋषिका सुमन्या बोलीं, "तीनों राजकुमारियों का जन्म तीन नए नक्षत्रों में हुआ है, और ये नक्षत्र बहुत ही जल्दी-जल्दी परिवर्तित हुए। जिससे इनके नाम होंगे- आज से बड़ी राजकुमारी का नाम मुंद्रा, बीच वाली राजकुमारी का नाम कुंद्रा और छोटी राजकुमारी का नाम सुंदरा होगा।" नामकरण होते ही केशवापुर राज्य में बारिश होने लगी, जो कि राज्य में दस वर्षों से श्राप के कारण सूखा पड़ा हुआ था। आज तीनों राजकुमारियों के जन्म से राज्य में बारिश हुई, जिससे राजा सत्यम काफी खुश हुए और उन्हें लगा कि श्राप खत्म हो गया है, लेकिन अभी श्राप बाकी था। समय का पहिया घूमता गया, और कब समय के पहिए की रफ्तार इतनी तेज हो गई कि तीनों राजकुमारियाँ समय के चक्र के साथ खेलते-खेलते बड़ी हो गईं। वहीं रानी कला ने भी एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम अंकन था। तो मिलते हैं इन नए किरदारों से। एक राजकुमारी, नीलकमल के पुष्प लेने के लिए रेतीली पहाड़ियों में चढ़ते हुए, एक दासी से बोलती है, "आज हम समय की सीमाओं को पार करते हुए उस नीलकमल को तोड़कर लाएँगे, और अपने इस जन्मदिन को हम इतना खास बनाएँगे कि यह जन्मदिन हमारा बहुत ही रोमांचक होगा, कि इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा।" दासी भगवान से प्रार्थना करती है और बोलती है, "हे भगवान, राजकुमारी मुंद्रा की रक्षा करना।" वैसे, राजकुमारी मुंद्रा दिखने में आकर्षक और घुड़सवारी और तीरंदाजी में माहिर थी। आस-पास के राज्यों में राजकुमारी मुंद्रा की सुंदरता के चर्चे थे। आखिरकार, राजकुमारी मुंद्रा इतनी सुंदर थी कि दिन में उनका रूप सूर्य की रोशनी के समान चमकता था। उनके चेहरे पर एक विशेष प्रकार का तेज था। वैसे, राजकुमारी मुंद्रा को अपनी सुंदरता का थोड़ा भी घमंड नहीं था, और उन्हें हमेशा से कुछ विशेष कार्य करना अच्छा लगता था। तो वहीं एक राजकुमारी, सैनिक भेष में जंगल में प्रवेश करती है और जंगल में एक शेर की गुफा में प्रवेश करती है और अपने मित्र के साथ एक कोने में छिप जाती है। तभी उसका मित्र बोलता है, "कुंद्रा, अगर शेर ने हमें ही अपना शिकार बना लिया, तो हम जिस कार्य के लिए आए हैं, वह असफल न हो जाए।" तभी राजकुमारी बोलती है, "हम जिस कार्य के लिए आए हैं, वह कार्य अवश्य सफल होगा।" वैसे, राजकुमारी कुंद्रा शेर की पूँछ का बाल लेने आई है, और वह इस कार्य में सफल भी हो जाती है। वैसे, राजकुमारी कुंद्रा में राजकुमारियों वाली, अर्थात् उनमें कोई लड़कियों वाली बात नहीं है। बस उनमें मर्दों वाली बात है, और उन्हें मर्दों की तरह शिकार करना, तलवारबाजी, घुड़सवारी आदि पसंद है। उन्हें लड़कियों की तरह सजना-संवरना बिल्कुल भी पसंद नहीं है, बस उन्हें मर्दों की तरह रहना पसंद है। तो वहीं दिखने में सुंदर और शांत हृदय और कोमल, आकर्षक राजकुमारी सुंदरा गाय को चारा खिला रही थी। तभी केशवापुर का नालायक राजकुमार अंकन पीछे से आकर राजकुमारी सुंदरा को डरा देता है, जिससे राजकुमारी सुंदरा काफी डर जाती है। क्योंकि राजकुमारी सुंदरा काफी मासूम थी, और राजकुमार अंकन एक बिगड़ा हुआ राजकुमार था। साथ ही वह काला जादू करना काल ऋषिका महामाया से सीख रहा था, और वह तीनों राजकुमारियों से नफरत करता था। आखिर क्यों? तभी राजकुमार अंकन के दोनों कंधों पर कोई तलवार रख देता है, जिससे राजकुमार अंकन काफी डर जाता है। और वह कोई और नहीं, एक तरफ राजकुमारी मुंद्रा और दूसरी तरफ राजकुमारी कुंद्रा थीं। तभी राजकुमारी कुंद्रा अंकन से बोलती है, "अगर तुमने सुंदरा से कुछ कहा, तो तुम्हारी गर्दन और हमारी तलवारें तुम्हारा सर कलम कर देंगी।" राजकुमार हँसते हुए बोलता है, "अगर आप दोनों मेरा सर कलम करेंगी, तो आपका सर कलम मेरे पिता श्री कर देंगे। इसलिए संभलकर रहिए राजकुमारियाँ, वरना वह दिन शेष नहीं जब आप तीनों ही नहीं बचोगी, समझी।" राजकुमारी कुंद्रा गुस्से में कुछ कहने ही वाली थी कि राजकुमारी मुंद्रा उसे रोक लेती है, और राजकुमारी मुंद्रा बोलती है, "अब हमें महल चलना चाहिए, वरना पिता श्री ने जो हमारे लिए विशेष आयोजन करवाया है, हमें उसमें पहुँचना होगा। और कुंद्रा, तुम महल के पीछे से आना, जिससे किसी को शक न हो। समझी? चलो, पहले तुम निकलो।" यह सब बातें राजकुमार अंकन सुन रहा था, और मन ही मन में उसने कहा, "इस बार कुंद्रा इस बार महल नहीं पहुँच पाएगी, क्योंकि हम उसे पहुँचने भी नहीं देंगे।" आखिरकार, महल का श्राप क्या है? क्या राजकुमार अपने मकसद में कामयाब हो पाएगा?
राजकुमारी कुंद्रा गुस्से में कुछ कहने ही वाली थी, किन्तु राजकुमारी मुंद्रा ने उन्हें रोक लिया। राजकुमारी मुंद्रा बोली, "अब हमें महल चलना चाहिए। वरना पिता श्री ने जो हमारे लिए विशेष आयोजन करवाया है, हमें उसमें पहुँचना होगा। और कुंद्रा, तुम महल के पीछे से आना, जिससे किसी को शक न हो। समझी? चलो, पहले तुम निकलो।" यह सब बातें राजकुमार अंकन सुन रहा था। मन ही मन में उसने कहा, "इस बार कुंद्रा इस बार महल नहीं पहुँच पाएगी, क्योंकि हम उसे पहुँचने भी नहीं देंगे।" इतना सुनकर राजकुमार अंकन भी वहाँ से चला गया, और राजकुमारियाँ भी वहाँ से चली गईं। इधर, राजकुमारी कुंद्रा महल के पीछे के मुख्य द्वार से प्रवेश करने ही वाली थी, तभी रानी कला आ गई। रानी कला ने राजकुमारी कुंद्रा को रोकते हुए, कुटिलता भरे शब्दों में बोली, "वैसे कुंद्रा, तुम आज बच नहीं पाओगी। क्योंकि महाराज तुम्हारे कक्ष में हैं, और आज तुम्हारी महानता को कोई नहीं सुनेगा। आज तुम्हें अपने पिता से कैसे बचोगी?" कुंद्रा घबराहट से बोली, "क्या आज तो पिता श्री हम को पकड़ लेंगे? और हमारे जन्मदिन के अवसर पर हमें सजा मिलेगी?" इधर, राजकुमारी कुंद्रा के कक्ष में, राजकुमार अंकन, राजा सत्यम और रानी शुभांगी के कान भरते हुए बोलता है, "देख लीजिए, हमने आपसे सत्य कहा था। कि स्वयं अपनी आँखों से देखा है कि राजकुमारी कुंद्रा मर्दाने सैनिक के भेष में घूम रही थी। पिता श्री और बड़ी माँ, वो आपका नाम डुबो देंगी।" रानी शुभांगी गुस्से में राजकुमार अंकन से बोलीं, "जब सहारा देने वाली छड़ी टूट जाए, तो उससे सहारा नहीं लिया जाता, राजा बेटा। और आपको कोई गलतफहमी हुई है। राजकुमारी मुंद्रा अपने कक्ष में होगी। इसलिए बोलने और आरोप लगाने से पहले थोड़ा सोच समझ लीजिए। वरना अच्छा नहीं होगा।" यह सब बातें रानी कला, रानी शुभांगी के पीछे खड़े होकर सुन रही थी। पीछे से आते हुए, गुस्से में बोली, "क्या अच्छा नहीं होगा, बड़ी रानी जी? और वैसे भी, आपको तो मेरे पुत्र का एक-एक शब्द बुरा लगता है। क्योंकि आप महाराज को इस महल और राज्य का राजकुमार नहीं दे पाईं। आप भूलिए मत, आपकी एक प्यारी बेटी ही आपके मान-सम्मान को मिट्टी में मिलाएगी।" तभी राजा सत्यम दोनों रानियों से तेज स्वर में कहे, "क्या आप कलह करना बंद करेंगी? और हमारे सामने राजकुमारी मुंद्रा को पेश कीजिए। वो भी जल्द से जल्द। समझीं आप?" इतना कहकर राजा सत्यम वहाँ से चले गए। राजा सत्यम के जाते ही रानी कला हँसते हुए, रानी शुभांगी से कहती हैं, "अब आप क्या करेंगी, बड़ी रानी जी? कैसे दस एकड़ बने इस महल में कैसे ढूँढेंगी कुंद्रा राजकुमारी को?" इतना कहकर रानी कला, राजकुमार अंकन के साथ वहाँ से चली गई। किन्तु रानी शुभांगी के चेहरे पर चिंताओं के बादल साफ-साफ दिख रहे थे। इधर, रानी कला अपने कक्ष में राजकुमार अंकन के साथ आई। सुकून की साँस लेकर, राजकुमार अंकन से बोली, "बेटा, अब कुछ ही देर में सभी मेहमानों और प्रजा के सामने राजकुमारी कुंद्रा अपने पिता श्री के मान-सम्मान को इतनी ठेस पहुँचाएगी कि अब हमारे पतिदेव, यानि तुम्हारे पिता श्री को सभी के सामने अपना मुकुट और मान-सम्मान, इज्जत-दौलत, सभी के सामने अपने प्यारे हाथों से मिट्टी में मिलानी होगी। और जब मेरा बदला पूरा होगा, और जब तुम केशवापुर के महान से भी महान महाराज बनोगे, जब मेरे पिता श्री का बदला पूरा होगा।" फिर राजकुमार अंकन कुटिलता भरी मुस्कराहट के साथ हँसते हुए रानी से कहता है, "यह सब तो ठीक है, पर आपने कुंद्रा के साथ क्या किया?" रानी कला चतुराई भरे शब्दों में बोली, "हमने राजकुमारी कुंद्रा को सम्मोहित कर दिया है। और अब वो वही करेंगी जो हमने उनसे कहा है। आज जश्न के दौरान शास्त्रार्थ होगा, और उसमें होगा एक बड़ा धमाका।" तभी रानी कला के कक्ष में काल ऋषिका महामाया आती है और बोलती है, "रानी कला, पर आपने जो कुंद्रा पर सम्मोहन किया है, वो ज्यादा समय तक टिकेगा नहीं। क्योंकि घोषणा के उपरांत ढोल-नगाड़ों से कुंद्रा का सम्मोहन टूट जाएगा। और फिर आपकी फैलाई विषाद उल्टी पड़ जाएगी, रानी कला जी।" रानी कला हँसते हुए बोली, "चिंता मत कीजिए, काल ऋषिका महामाया जी। अब कुछ उल्टा नहीं होगा। अब सब हमारी योजना के अनुसार होगा। और हमारी योजना का जाल कभी नहीं टूटेगा, क्योंकि हमने जाल ही ऐसा बिछाया है।" इतना कहकर रानी कला जोर-जोर से कुटिलता के साथ हँसने लगती है। इधर, रानी शुभांगी और उनकी गुप्तचर दासी कृतिका के साथ पूरे महल का एक-एक कोना देखती हैं। किन्तु राजकुमारी का कुछ अता-पता नहीं मिलता। जिससे भयभीत होकर रानी शुभांगी, कृतिका से कहती हैं, "महल मुख्य प्रांगण में सभी मेहमानों का आगमन हो रहा होगा, और कुंद्रा के बारे में हमें कुछ पता नहीं चल रहा। अब हम क्या करें?" कृतिका, रानी शुभांगी से बोलती है, "रानी साहिबा, थोड़ा धैर्य रखिए। अब आपको मेहमानों के स्वागत के लिए जाना चाहिए। और हम हर हालत में राजकुमारी कुंद्रा जी को ढूँढने की कोशिश करेंगे।" रानी शुभांगी कड़क स्वर में दासी कृतिका से बोलती हैं, "हमें कोशिश नहीं, बल्कि परिणाम चाहिए। समझी तुम?" महल का मुख्य प्रांगण, जो कि काफी भव्य सजावट के साथ सजा हुआ था, पूरा प्रांगण लाल-पीले कमल के फूलों से सजा हुआ था। महल के मुख्य द्वार पर दोनों तरफ चार-चार हाथी स्वागत के लिए खड़े थे। पूरे प्रांगण में जगह-जगह भिन्न-भिन्न फूलों से बने इत्रों की खुशबू से महक रहा था। और महल में प्रत्येक मेहमान के लिए चाँदी के आसन थे, जिस पर मखमल के गुदगुदे आसन पड़े हुए थे। जिन पर मेहमान, ऋषि और ऋषिकाएँ, विभिन्न राज्यों से आए राजकुमार आए थे, जो शास्त्रार्थ और अन्य प्रतियोगिताओं में भाग लेने आए थे। जब सभी मेहमान आदि आ गए, तब राजा सत्यम सिंह राठौड़ और उनकी दोनों पत्नियाँ, रानी शुभांगी और रानी कला आए। उनके आने से मेहमान आदि खड़े होकर उनका स्वागत करते हैं। फिर राजा सत्यम सिंह राठौड़ और उनकी रानियाँ स्वर्ण आसन पर बैठते हैं। थोड़ी देर बाद राजा सत्यम सिंह घोषणा करते हुए बोलते हैं, "सभी मेहमानों, रिश्तेदारों, सभी राजाओं, महान ऋषि और ऋषिकाओं, राजकुमारों को इस भव्य समारोह में सभी का अभिनंदन है। अब कुछ ही देर में तीनों राजकुमारियाँ एवं इस महल का होने वाला उत्तराधिकारी, राजकुमार अंकन पधारेंगे। फिर शुरू होंगी इस राज्य की सबसे उत्कृष्ट प्रतियोगिताएँ और शास्त्रार्थ। इसमें से जो विजयी होगा, उसे हमारी तरफ़ से सात गाँव भेंट किए जाएँगे। और इन प्रतियोगिताओं का अंतिम फैसला महान ऋषि कांकन और महान ऋषिका सुमन्या और कालदर्शी ऋषिका महामाया करेंगी। पहली प्रतियोगिता का शुभारंभ किया जाए।" राजा सत्यम के कहते ही ढोल-नगाड़ों और बिगुल के साथ प्रतियोगी प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए मैदान में उतरे। और राजकुमारी मुंद्रा एवं सुंदरा और राजकुमार अंकन भव्य समारोह में आए। किन्तु राजकुमारी कुंद्रा की अनुपस्थिति को देखकर राजा सत्यम को काफी गुस्सा आया। किन्तु राजा सत्यम ने सभी आगंतुकों से कहा, "हमारी मझली बेटी, यानि आप सबकी राजकुमारी कुंद्रा बीमार होने के कारण अपने ही जन्मदिन के उपलक्ष्य में आ न सकी।" थोड़ी ही देर बाद घोषणा करने वाले दास ने घोषणा करते हुए कहा, "जो जो इस तीरंदाजी की प्रतियोगिता में भाग लेना चाहता है, वो बारी-बारी से मैदान में आए। यह प्रतियोगिता केवल राजकुमारों के लिए ही है।" दास के इतना कहते ही सभी राजकुमार उत्साहित होते हुए प्रतियोगिता में पहुँचे। तभी राजा सत्यम ने प्रतियोगिता के बारे में समझाते हुए कहा, "इस जल के अंदर तीन चक्र हैं। प्रत्येक चक्र में एक-एक मछली है, जो पानी के बहाव के कारण घूम रही है। आप सभी को धनुष में तीन तीर चलाकर एक साथ इन मछलियों की आँखों को भेदना है। जो इस प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन करेगा, वही इस प्रतियोगिता को जीतेगा। और हमारी तरफ़ से यह सप्तांगी धनुष दिया जाएगा।" प्रतियोगिता आरम्भ होती है, और सभी राजकुमार एक-एक करके प्रतियोगिता में अपना बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करते हैं। किन्तु कोई भी राजकुमार मछली की आँख को भेद नहीं पाता है। तब गुस्से में राजा सत्यम अपने सिंहासन से उठते हैं और बोलते हैं, "क्या कोई ऐसा राजकुमार शेष नहीं बचा, जो इन मछलियों की आँखों को एक बार में भेद सके? क्या कोई ऐसा राजकुमार, जो सप्तांगी धनुष, जो एक बार में सात तीर छोड़ता है, उसको पाने में सभी असमर्थ हैं?" तभी पीछे से एक बाण हवा को चीरते हुए सीधे राजा सत्यम के पैरों के पास आकर लगता है, जिसे सभी देखकर हैरान हो जाते हैं। तभी राजा सत्यम गुस्से में चीखकर बोलते हैं, "किसका इतना दुस्साहस है? हमारे ही महल में आकर हमारा ही अनादर करे? किसकी इतनी हिम्मत?" तभी महल के प्रांगण के मुख्य द्वार से एक युवक आता है। और वो कोई और नहीं, राजकुमारी कुंद्रा थीं, जिन्होंने भेष बदलकर प्रतियोगिता में आई थीं। वे अपने घोड़े से उतरकर, मर्दाने आवाज में बोलती हैं, "महाराज, हमने आपका कोई अनादर नहीं किया, बल्कि हमने आपको प्रणाम किया है, और इस प्रतियोगिता में भाग लेने आए हैं।" राजा सत्यम बोलते हैं, "पर तुम हो कौन?" राजकुमारी कुंद्रा थोड़े हकलाते हुए, मर्दाने स्वर में बोलती हैं, "जी, हम्मम... वोह राजकुमार कुंदन हैं।" राजा सत्यम बोलते हैं, "राजकुमार, आप आए कहाँ से हो? हमारा मतलब, आप किस राज्य से हैं?" राजकुमारी कुंद्रा थोड़ी डर जाती हैं, और थोड़े हकलाते हुए मर्दाने स्वर में बोलती हैं, "वोह... हम्मम... केशजपुर से आए हैं। जो यहाँ से मीलों दूर है। जिसका निमंत्रण हमें नहीं दिया गया, लेकिन हमारा आने का विशेष मन था, इसलिए हम यहाँ आए हैं।" केशजपुर का नाम सुनकर राजा सत्यम थोड़े अचंभित होते हुए बोलते हैं, "हमने तो ऐसा कोई राज्य का नाम नहीं सुना।" बाकी अन्य मेहमान भी एक स्वर में बोलते हैं, "ऐसा कोई राज्य नहीं है। ये कोई बहुरूपिया है।" राजकुमारी कुंद्रा घबरा जाती हैं। तभी रानी कला कुटिलता भरा काल ऋषिका महामाया की ओर इशारा करती है। तभी महामाया सभी को शांत करते हुए बोलती हैं, "आप सभी शांत हो जाइए। यह युवक झूठ नहीं बोल रहा है। यहाँ से उत्तर दिशा की दो हजार मील दूर एक जंगल है, और उस जंगलों में एक छोटा सा राज्य है, जिसका नाम केशजपुर है। पर यह युवक वहाँ से है, हम कह नहीं सकते।" राजा सत्यम कुछ सोचकर बोलते हैं, "ठीक है। इस राजकुमार को प्रतियोगिता में हिस्सा ले सकता है, केवल एक शर्त में। इसको हमारे द्वारा दी प्रतियोगिता को पूर्ण करना होगा, और जीतना होगा। तभी यह राजकुमार अन्य प्रतियोगिताओं में भाग ले सकता है।" सबकी नजरों में राजकुमार कुंदन बनी राजकुमारी कुंद्रा बोलती हैं, "जैसी आपकी मर्जी और आज्ञा महाराज।" फिर राजकुमारी कुंद्रा अपने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाती है, और धनुष से टंकार करती है। जल में तीन चक्र, जिसमें मछलियाँ घूम रही थीं, उनको निशाना बनाकर अपने धनुष से एक प्रयास से तीन बाणों को छोड़ती है। और निशाना बिल्कुल सटीक बैठता है। यह सब देखकर सभी राजकुमार, बाकी अन्य सभी, बल्कि राजा सत्यम भी हैरान हो जाते हैं। क्योंकि राजकुमार कुंदन उर्फ राजकुमारी कुंद्रा ने इस प्रतियोगिता में जीत हासिल कर ली थी। थोड़ी ही देर में पूरा प्रांगण तालियों की आवाजों से गूँज उठता है। फिर राजा सत्यम ने राजकुमार कुंदन उर्फ राजकुमारी कुंद्रा को सप्तांगी धनुष दिया और कहा, "राजकुमार कुंदन, तुम अन्य प्रतियोगिताओं में भाग ले सकते हो।" इधर, राजकुमार अंकन सबकी नजरों से छिप-छिपकर मदिरा के घूँट-घूँट पी रहा था। यह बात उसकी माँ रानी कला को भी नहीं पता थी कि राजकुमार अंकन शराब के शौकीन थे। वह सभी से छिप-छिपकर शराब पीते थे। राजा सत्यम ने घोषणा करते हुए कहा, "सभी राजकुमार तैयार हो जाएँ, क्योंकि अब दूसरी प्रतियोगिता की तैयारी है। और दूसरी प्रतियोगिता घुड़सवारी की होगी। और जो इस प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन करेगा, उसको हमारी तरफ़ से हमारा एक एकड़ में फैला केसर का उद्यान उसे उपहारस्वरूप भेंट किया जाएगा।" कुछ ही देर में प्रतियोगिता शुरू होती है, और इस प्रतियोगिता में राजकुमार कुंदन उर्फ राजकुमारी कुंद्रा ही विजयी होती हैं। राजकुमार कुंदन उर्फ राजकुमारी कुंद्रा के लिए सभी तालियों से उनका स्वागत करते हैं। और इसके बाद राजा सत्यम तीसरी घोषणा करते हुए बोलते हैं, "जैसा कि आप सभी ने देखा कि राजकुमार कुंदन ने दो प्रतियोगिताओं को जीतकर अपने राज्य केशजपुर का नाम रोशन किया है। अब तीसरी और आखिरी प्रतियोगिता होगी, जिसमें तलवारबाजी की प्रतियोगिता होगी। और जो इस प्रतियोगिता को जीतकर स्वर्णिम जीत हासिल करेगा, उसे सात गाँव भेंट किए जाएँगे। तो शुरू करते हैं तीसरी प्रतियोगिता का शुभारंभ।" तलवारबाजी की प्रतियोगिता शुरू होती है, और देखते ही देखते अंत में दो राजकुमार बचते हैं। जिसमें से एक राजकुमार रूहेंद्र और राजकुमार कुंदन बचते हैं। और फिर क्या था? अंतिम युद्ध राजकुमार कुंदन और राजकुमार रूहेंद्र में शुरू होता है। और युद्ध करते समय ऐसा कुछ होता है, जिससे महल में उपस्थित सभी जन हैरान और अचंभित हो जाते हैं। आखिर ऐसा क्या हुआ महल में, जिससे सभी लोग अचंभित हो गए? क्या होगा? राजकुमार कुंदन का राज खुलेगा? आखिर ऐसा क्या किया रानी कला ने, जिससे राजकुमारी कुंद्रा को यह करना पड़ा?
तलवारबाजी की प्रतियोगिता शुरू हुई और अंत में दो राजकुमार, रूहेंद्र और कुंदन, बचे। अंतिम युद्ध इन दोनों के बीच शुरू हुआ। यह घमासान युद्ध था; दोनों ही एक-दूसरे पर भारी पड़ रहे थे। मुकाबला जारी था कि अचानक राजकुमार रूहेंद्र की तलवार राजकुमार कुंदन उर्फ राजकुमारी कुंद्रा की नकली दाढ़ी पर लग गई। राजकुमारी कुंद्रा की नकली दाढ़ी नीचे गिर गई। महल के प्रांगण में उपस्थित सभी लोग हैरान और अचंभित हो गए। राजकुमार कुंदन का सच सभी के सामने आ गया; सबको पता चल गया कि राजकुमार कुंदन ही राजकुमारी कुंद्रा थी। तभी महान ऋषि कांकन, राजा सत्यम से क्रोध भरे शब्दों में बोले, "वाह महाराज! वाह! आपने क्या स्वांग रचा है! खुद के द्वारा रचित प्रतियोगिता में खुद की ही बेटी विजयी और बाकी सभी राजकुमारों का अपमान किया है।" राजा सत्यम की आँखें शर्म से झुक गईं। उनके पास कोई शब्द नहीं बचा था। तभी राजकुमार रूहेंद्र क्रोध से उच्च स्वर में बोले, "सच में, सत्यम सिंह राठौड़! आपने क्या स्वांग रचा है! चौसर भी आपके, पासे भी आपके! आप तो महाभारत के शकुनि से भी ज़्यादा छलिया निकले, महाराज सत्यम सिंह राठौड़!" तभी राजकुमारी कुंद्रा गुस्से में उठकर आई और राजकुमार रूहेंद्र के गाल पर, सभी के सामने, एक थप्पड़ मारा। "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई अपनी कड़वी ज़ुबान से हमारे पिता श्री का नाम लेने की? अगर हमारे हाथ में इसी वक्त आरा होता, तो हम तुम्हारी जुबान काट लेते, समझे राजकुमार के नाम पर कलंक रूहेंद्र!" यह सब देखकर राजकुमारी सुंदरा डर गई और सहम गई। रानी कला मन ही मन खुश थी कि उसकी योजना सफल हो रही थी। तभी एक और राजकुमार, राजकुमारी कुंद्रा से बोला, "आप कितनों का मुँह बंद करवाएँगी मुंद्रा जी? इस छलावे में आप सब मिले हुए हो।" फिर राजा सत्यम गुस्से में राजकुमारी कुंद्रा से चिल्लाकर बोले, "आपकी इतनी हिम्मत कैसे हुई कि आपने बिना पूछे, समझे, बिना यह घटिया फैसला लिया? बोलिए! हमने कहा, बोलिए!" राजा सत्यम के चीखने से राजकुमारी कुंद्रा सहम गई और डरते हुए, हिचकिचाते हुए बोली, "हमने सोचा कि आपका नाम रोशन होगा, इसलिए हमने यह फैसला लिया।" राजा सत्यम चीखते हुए बोले, "किसी से इस फैसले के लिए इजाज़त ली या किसी से सलाह-मशवरा किया? बस फैसला ले लिया!" तभी एक ऋषि गुस्से में चीखते हुए स्वर में राजा सत्यम से बोला, "आप तो इस प्रांगण में शास्त्रार्थ करवाने वाले थे या अपनी बेटी को मोहरा बनाकर हम सभी ऋषि और ऋषिकाओं का अपमान करवाना चाहते थे? आज आपके कारण ही हमारा इतना अपमान हुआ! और आपने दिव्य पूजनीय शास्त्रार्थ का अपमान किया है और अपने वेदों का अपमान किया है, राजा जी!" तभी रानी शुभांगी आई और राजकुमारी कुंद्रा को खींचकर एक जोरदार थप्पड़ मारा। "तुमने जो किया है, तुम्हें इन सब से अभी के अभी हाथ जोड़कर माफी मांगनी चाहिए।" मदिरा के नशे में चूर राजकुमार अंकन, राजकुमारी कुंद्रा को थप्पड़ पड़ते देख नशे में नाचने लगा और हँसते हुए लड़खड़ा गया और एक ऋषिका पर जा गिरा। इससे उस ऋषिका का धर्म भ्रष्ट हो गया और उसने तुरंत राजकुमार अंकन को श्राप दिया, "तू जिस जवानी और मर्दानगी की अकड़ में रह रहा है, वो मिट जाएगी और तू नपुंसक हो जाएगा।" यह सुनकर रानी कला की आँखों में आँसू आ गए। वह रोते हुए उस ऋषिका के पास आई और रोते हुए बोली, "कृपया मेरे पुत्र का श्राप वापस ले लीजिए। उसने जो गलती की है, उसका श्राप आप मुझे दे दीजिए। कृपया उसे माफ़ कर दीजिए। मैं आपसे विनती करती हूँ। कृपया अंकन को माफ़ कर दीजिए।" राजकुमार अंकन नशे में चूर था ही और अपनी माँ को उस ऋषिका के पैरों में गिरा देख, गुस्से में आ गया और उसने उस ऋषिका का सिर काट दिया। इससे सभी ऋषि और ऋषिकाओं का गुस्सा और बढ़ गया। ऋषि कांकन गुस्से में बोले, "राजकुमार अंकन! तुमने एक ऋषिका की हत्या की और यह एक ब्रह्महत्या का पाप लगेगा तुम पर।" तभी एक ऋषि गुस्से में बोला, "यह सब राजा सत्यम का प्रपंच है और उन्होंने हम सभी को अपमान करने के लिए बुलाया है। यह अपमान इनको बहुत भारी पड़ने वाला है। जिस प्रकार इस पूरे परिवार ने हम सभी का अपमान किया है, उसी प्रकार हम सब मिलकर इनको श्राप देंगे।" श्राप की बात सुनकर रानी शुभांगी और राजा सत्यम ऋषि और ऋषिकाओं के पैरों में गिरकर माफी माँगने लगे, लेकिन क्रोध से भरे सभी ऋषि और ऋषिकाएँ एक स्वर में राजा सत्यम को श्राप देते हुए बोले, "राजा सत्यम! तुमने जो प्रपंच किया, हम तुम्हें उसका श्राप देते हैं कि राजकुमारी कुंद्रा को एक नपुंसक पुरुष से शादी करनी पड़ेगी और वही नपुंसक पुरुष इस केशवापुर का राजा बनेगा। और राजकुमारी मुंद्रा तुम्हारा नाम डुबा देंगी, तुम्हारे मान-सम्मान को ठेस पहुँचा देंगी।" इतना कहकर सभी ऋषि, ऋषिकाएँ और राजकुमार, बाकी अन्य लोग महल को छोड़कर जाने लगे। राजा सत्यम और रानी शुभांगी ने बार-बार क्षमा माँगी, लेकिन ऋषि और ऋषिकाओं के क्रोध की अग्नि शांत नहीं हुई। तभी राजकुमारी सुंदरा आईं, जिनकी हिरणी जैसी आँखों में आँसू भरे हुए थे। इन्हें देखकर सभी ऋषि और ऋषिकाओं का हृदय थोड़ा शांत हुआ। राजकुमारी सुंदरा ने रोते हुए, चंचल शब्दों में कहा, "ऋषि एवं ऋषिकाएँ! इन सब में पिता श्री का कोई दोष नहीं। कृपया करके इन श्रापों का कोई निदान बताएँ जिससे इन पापों को मिटाया जा सके।" ऋषि कांकन ने सभी ऋषि और ऋषिकाओं की ओर देखा और कहा, "ठीक है। इस श्राप में जिस-जिस की गलती है, उसे इस श्राप का फल मिलेगा।" तभी राजकुमारी कुंद्रा, ऋषियों और ऋषिकाओं से रोते हुए बोली, "कृपया करके मुझे मेरे श्राप का निदान बताएँ। इसमें पिता श्री का कोई प्रपंच नहीं है। जो भी किया है, मैंने किया है। इन सब में मैंने ही गलती की है। मैंने तो प्रतियोगिताओं में भाग इसीलिए लिया था जिससे कि पिता श्री का मान बढ़े, पर इसमें तो पिता श्री ही फँस गए। कृपया करके मुझे इस श्राप का निदान बताइए।" तभी ऋषिका सुमन्या बोली, "इस श्राप का एक ही निदान है: तुम्हें एक हज़ार परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना होगा। तभी तुम्हारा विवाह जिस नपुंसक पुरुष से होगा, वह एक मर्द पुरुष बन पाएगा। और अगर इन परीक्षाओं में तुम असफल हुईं, तो समझो कि तुम्हें कभी भी इस श्राप से मुक्ति नहीं मिलेगी।" राजकुमारी कुंद्रा बोली, "मुझे इन परीक्षाओं के बारे में कैसे पता चलेगा?" तभी ऋषि कांकन बोले, "जिस दिन तुम्हारा विवाह हो जाएगा, उसी दिन से हममें से एक ऋषि या ऋषिका तुम्हें परीक्षाएँ देते जाएँगे, जो तुम्हें उत्तीर्ण करनी होंगी।" इतना कहकर ऋषि और ऋषिकाएँ जाने लगे। राजकुमारी मुंद्रा ने राजकुमार रूहेंद्र से माफ़ी माँगी, लेकिन राजकुमार रूहेंद्र बिना कुछ कहे वहाँ से चले गए। जब प्रांगण से सभी मेहमान और अन्य लोग चले गए, तो रानी कला ज़बरदस्ती नशे में धुत राजकुमार अंकन को ले गई। राजा सत्यम गुस्से में राजकुमारी कुंद्रा पर चिल्लाकर बोले, "आज तुम्हारी वजह से हमारा मान-सम्मान मिट्टी में मिल गया, कुंद्रा! यह सब तुम्हारे कारण हुआ है। आखिर तुमने ऐसा क्यों किया, हम यह नहीं पूछेंगे, पर हम यह अवश्य पूछेंगे: ऐसा करके तुम्हें मिला क्या? वह महान श्राप जिसकी वजह से तुम्हारी ज़िन्दगी और संघर्ष भरी हो गई, कुंद्रा! बोलो! बोलो, कुंद्रा! यह सब करके तुम्हें मिला क्या?" इतना कहकर राजा सत्यम वहाँ से चले गए और रानी शुभांगी भी उनके साथ चली गईं। राजा सत्यम के जाते ही राजकुमारी मुंद्रा, राजकुमारी कुंद्रा से बोली, "हमें सब सच जानना है। आखिर तुम तो शेर का बाल लेकर महल के पीछे वाले दरवाज़े से लौट रही थीं, लेकिन तुमने प्रतियोगिताओं में आने का मन क्यों बनाया? हमें सब सच जानना है। बोलो, अब बुत बनने से कुछ नहीं होगा। हमें सब सच-सच बताओ। हम पर विश्वास करो, हम तुम्हारा सच किसी को नहीं बताएँगी।" राजकुमारी कुंद्रा की आँखों में आँसू थे। वह बोली, "यह सब रानी कला की बातों में आकर हुआ। उन्होंने हमें बहकाया। उन्होंने अपनी बातों की चाशनी इस तरीके से डाली कि हम भी उसमें डूब गए और हमने यह फैसला किया कि हम प्रतियोगिताओं में भाग लेंगे और पिता श्री का नाम रोशन करेंगे, लेकिन सब उल्टा हो गया।" तभी दासी कृतिका आई और तीनों राजकुमारियों को कुछ ऐसा बताया जिससे तीनों राजकुमारियाँ हैरान और भयभीत हो गईं। क्या राजकुमारी कुंद्रा उत्तीर्ण कर पाएगी एक हज़ार परीक्षाएँ?
राजकुमारी कुंद्रा की आँखों में आँसू थे। उसने कहा, "यह सब रानी कला की बातों में आने से हुआ। उन्होंने हमें बहकाया, जिससे हम भी बहक गए। उन्होंने अपनी बातों की चाशनी में इस तरह डुबोया कि हम भी उसमें डूब गए और हमने यह फैसला किया कि हम प्रतियोगिताओं में भाग लेंगे और पिता श्री का नाम रोशन करेंगे, लेकिन सब उल्टा हो गया।"
तभी दासी कृतिका ने तीनों राजकुमारियों से कहा, "इसमें आपकी कोई गलती नहीं है, राजकुमारी कुंद्रा। यह सब तो पहले से महल के भाग्य में लिखा है।"
तभी राजकुमारी सुंदरा बोली, "महल के भाग्य में श्राप? आपका कहने का अर्थ क्या है? जो भी बोलना है, तो उसमें डरने की कोई बात नहीं है।"
क्योंकि दासी कृतिका काफी डरी हुई थी, उसके चेहरे पर पसीने की बूँदें साफ-साफ झलक रही थीं। वह डरते हुए बोली, "यह जगह सुरक्षित नहीं है। आप हमारे साथ चलिए।"
इतना कहकर दासी कृतिका तीनों राजकुमारियों को महल से दूर एक जंगल में बनी एक कुटिया में ले गई। उसने पत्थरों को घिसकर आग का निर्माण किया और उस आग से कुटिया में रखी मशाल जलाई, अंधेरी कुटिया में रोशनी फैलाते हुए।
तब राजकुमारी मुंद्रा बोली, "आप जो बताना चाहती हैं, बताइए।"
दासी कृतिका ने तीनों राजकुमारियों से कहा, "मैं आपको महल के श्राप के बारे में अवगत कराना चाहती हूँ।"
राजकुमारी सुंदरा बोली, "कैसा श्राप?"
फिर दासी कृतिका बोली, "आज से लगभग अट्ठाइस साल पहले, जब राजा सत्यम सिंह राठौड़ जी को विवाह के दो साल बाद भी कोई संतान प्राप्त नहीं हुई थी, तो ऋषिका सुमन्या जी ने राजा को सलाह दी कि वे पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएँ। ऋषिका सुमन्या की सलाह से राजा सत्यम जी ने एक महान यज्ञ और समारोह का आयोजन किया। पूरे केशवापुर की प्रजा को खाने का निमंत्रण दिया गया, लेकिन राजा सत्यम ने निम्न जातियों के लिए अलग और उच्च जातियों के लिए अलग-अलग खाने की व्यवस्था की थी। समारोह में सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन केशवापुर की प्रजा को यह व्यवस्था पसंद नहीं आई क्योंकि केशवापुर में लोग भेदभाव नहीं करते थे; प्रजा में जाति-धर्म का कोई विचार या भेदभाव नहीं था। इस बात को देखकर गाँव के पुजारियों को गुस्सा आ गया और उन्होंने राजा सत्यम सिंह राठौड़ को श्राप दिया कि राजा सत्यम सिंह राठौड़ की संतान ही उनका नाम डुबाएगी; उनके बच्चों में भेदभाव की स्थिति बन जाएगी और जिस पुत्र के लिए यह यज्ञ किया गया है, वह नपुंसक बन जाएगा; उनके बीच जो प्यार है, वह सब मिट जाएगा; इस राज्य में खुशियाँ कभी नहीं मनाई जाएँगी। लेकिन रानी शुभांगी के मनाने और क्षमा माँगने पर पुजारियों का क्रोध थोड़ा शांत हुआ और उन पुजारियों ने कहा, "श्राप को हम वापस नहीं ले सकते, लेकिन इसे कम कर सकते हैं। तुम्हारे बच्चों में फूट तो अवश्य पड़ेगी, लेकिन सुलह भी हो जाएगी और जो संतान तुम्हारा नाम डुबाएगी, वही संतान तुम्हारी खोई हुई इज़्ज़त को वापस लाएगी।" यही था राजा सत्यम सिंह राठौड़ पर लगा श्राप का कलंक।"
कृतिका द्वारा बताए गए महल के श्राप के अतीत के बारे में जानकर तीनों राजकुमारियाँ हैरान और परेशान हो गईं।
थोड़ी देर बाद राजकुमारियाँ और दासी कृतिका उस कुटिया से निकलकर महल की ओर चल दिए।
इधर महल में रानी कला अपने पुत्र को कक्ष में लाई और उसका, यानी राजकुमार अंकन का, सिर दीवार में मारा। तब कहीं जाकर राजकुमार मदिरा के नशे से थोड़े बाहर आए।
रानी कला गुस्से में राजकुमार अंकन पर चिल्लाकर बोली, "मूर्ख! तूने यह क्या किया? हमारे बदले की आग में तूने हमारे आँसुओं की चिता क्यों जलाई? आज तेरी वजह से सब कुछ बर्बाद हो गया, सब कुछ तूने अपने हाथों से बर्बाद कर दिया। आज तेरी वजह से तू एक नपुंसक हो गया और अब तू राजा बनने के सपने को छोड़ दे। मन तो करता है तुझे तेरी प्यारी मदिरा में डुबोकर तुझ में आग लगा दूँ, लेकिन हमने तुम्हें जन्म दिया। तो एक पुत्र कुपुत्र हो सकता है, लेकिन एक माता कुमाता नहीं होती। और तेरी वजह से आज हमारे सपनों की चिता जल गई, हमारे राज-रानी बनने के सपने की गर्दन काट दी।"
तभी कक्ष में कालदर्शी ऋषिका महामाया आई और रानी कला से बोली, "माफ़ करना, रानी जी। हम समझते हैं कि इस समय आप पर क्या बीत रही है, लेकिन अगर अभी भी उन सब ऋषियों से राजकुमार अंकन स्वयं माफ़ी माँग ले, तो शायद हमें राजकुमार अंकन के श्राप को कम करने का कुछ उपाय मिल जाए।"
तभी रानी कला बोली, "शायद मिल जाए, लेकिन अंकन ने ब्रह्महत्या की और अपमान अलग से। जिस ऋषिका ने इन्हें श्राप दिया, उसी ऋषिका का खून कर दिया इस नालायक पुत्र ने। अब हमारे पास कोई चारा नहीं है, अब हम कुछ नहीं कर सकते।"
तभी काल ऋषिका महामाया कुटिलता भरे शब्दों में बोली, "एक उपाय है। अगर हम अपने काले जादू से या फिर हथियारों से तीनों राजकुमारियों को मृत्यु के घाट उतार दें, तो हमारे राजकुमार अंकन ही सिंहासन के अधिकारी होंगे।"
राजकुमार अंकन गुस्से में बोले, "फिर यह शुभ कार्य तो मैं ही करूँगा, और वह भी आज रात्रि को।"
राजकुमार अंकन की बात सुनकर रानी कला को गुस्सा आ गया और उसने गुस्से में राजकुमार अंकन के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मारा और चीखकर बोली, "तुम यह कार्य नहीं करोगे, क्योंकि हम अच्छे से जानते हैं कि तुम यह कार्य करने में असमर्थ हो और तुम पर भरोसा करना हमारी सबसे बड़ी बेवकूफी होगी। इसलिए यह कार्य अब हम करेंगे, और यह कार्य कैसे किया जाएगा, इसके बारे में भी अब हम तय करेंगे, समझे तुम?"
इधर राजा सत्यम सिंह राठौड़ अपने कक्ष में रो रहे थे और रोते हुए स्वर में बोले, "यह सब हमारी गलती। अगर हम उस समय उच्च जाति और निम्न जाति में अंतर न किया होता, तो आज हमें यह सब भुगतना नहीं पड़ रहा होता।"
रानी शुभांगी ने राजा सत्यम से कहा, "नहीं, महाराज। शायद यह हमारे इसी जन्म या पिछले जन्म के पापों का घड़ा है जो समय के साथ भरता जाता है और साथ ही साथ फूटता जाता है। इसमें किसी की गलती नहीं है, महाराज। इसमें हमारे भाग्य की कमी है।"
इधर तीनों राजकुमारियाँ और दासी कृतिका जंगल के रास्ते से आ रही थीं कि तभी रास्ते में सभी ने ऐसा कुछ देखा कि सभी हैरान और परेशान हो गए।
आखिरकार क्या चाल चलेगी रानी कला?
तीनों राजकुमारियाँ और दासी कृतिका जंगल के रास्ते से आ रही थीं कि रास्ते में उन्होंने ऐसा कुछ देखा कि वे सभी हैरान और परेशान हो गईं।
तीनों राजकुमारियाँ और दासी कृतिका ने एक किन्नर की शव यात्रा देखी, जिससे तीनों राजकुमारियाँ घबरा गईं। तभी दासी कृतिका बोली, "यह क्या देख लिया हमने? यह तो बहुत बड़ा अपशकुन है।"
राजकुमारी सुंदरा ने ऐसा खौफनाक मंजर पहली बार देखा था, जिससे वह रोने लगी।
दासी कृतिका बोली, "चलिए, हमें यहां से तुरंत चलना चाहिए।"
तीनों राजकुमारियाँ और दासी कृतिका महल की ओर चलने लगीं।
इधर, रानी कला ने अपने दो प्रिय कबूतरों के पैरों में चिट्ठी बाँधी और दोनों कबूतरों को आकाश की ओर उड़ा दिया। एक कबूतर उत्तर दिशा में और एक कबूतर पूर्व दिशा में उड़ गया।
जब कबूतर उड़ गए, तब काल ऋषिका महामाया, रानी कला और अंकन से बोली, "अब हमें अपना पहला षड्यंत्र चलना चाहिए, जिसकी वजह से हमारे योजनाओं के अनुसार बनाए मकसदों में कोई भी बाधा न आए।"
इधर, महल में ही रानी शुभांगी और राजा सत्यम के पास महान ऋषिका सुमन्या आईं और राजा और रानी से बोलीं, "महाराज और महारानी, हमारी गणनाओं के अनुसार तीनों राजकुमारियों पर बहुत बड़ी विपदा आने वाली है। षड्यंत्रों का तूफान तीनों राजकुमारियों की ज़िंदगी पर छा जाएगा। इसलिए अब हमें शीघ्र अतिशीघ्र राजकुमारी मुंद्रा और राजकुमारी सुंदरा का विवाह कर देना चाहिए। और राजकुमारी कुंद्रा के लिए हमें उसे बुलाना ही पड़ेगा, वरना जो राजकुमारी कुंद्रा की कुंडली पर लिखा है, वह बेहद ही खतरनाक होगा। क्योंकि तीनों राजकुमारियों के हाथों में भविष्य रेखाएँ नहीं हैं, महाराज, आपको फ़ैसला जल्द से जल्द लेना होगा।"
तभी रानी शुभांगी बोली, "जब इस श्राप की चर्चा सभी राज्यों में फैलेगी, तो कोई यह जानकर हम पर हमला न करे कि केशवापुर में तो कोई सिंहासन पर बैठने वाला बचा ही नहीं है।"
तभी राजा सत्यम बोले, "इसकी चिंता मत कीजिए, रानी साहिबा। हमारे होते हुए कोई हम पर आँख उठाकर नहीं देख सकता। और रही बात उसे बुलाने की, तो वह कल तक इस महल में आ जाएँगे।"
अचानक एक दास एक संदेश पत्र लेकर आया और राजा सत्यम को पत्र देते हुए बोला, "महाराज, हमें यह संदेश पत्र बाज़ के ज़रिए प्राप्त हुआ है।"
पत्र लेकर राजा सत्यम ने उस दास को बाहर जाने का इशारा किया।
फिर राजा सत्यम ने पत्र पढ़ा और हैरान हो गए। राजा सत्यम की हैरानी को देखकर रानी शुभांगी बोली, "क्या हुआ महाराज? आप इस पत्र को पढ़कर इतने हैरान और परेशान क्यों हैं? आखिर क्या लिखा है इस पत्र में?"
राजा सत्यम बोले, "कल हमारे बड़े भाई श्री और भाभी श्री आने वाले हैं, साथ अपने छोटे पुत्र और पुत्री को लाने वाले हैं।"
इतना सुनकर ऋषिका सुमन्या बोली, "महाराज, आपके बड़े भाई श्री का आना बड़े षड्यंत्र का आगाज़ होने वाला है। क्योंकि जिस भाई ने आपको कभी याद नहीं किया, आज उसे आपसे क्या काम? महाराज, आपको काफ़ी सतर्क रहना होगा। हमें शीघ्र अतिशीघ्र उसे यहाँ बुलाना होगा।"
इतना कहकर ऋषिका सुमन्या वहाँ से चली गईं और राजा सत्यम के चेहरे पर चिंता के घोर बादल छाए हुए थे।
थोड़ी देर बाद रानी कला और काल ऋषिका महामाया, राजा सत्यम के कक्ष में आए।
रानी कला, राजा सत्यम से बोली, "महाराज, आज जो हुआ उसके लिए हम अंकन की तरफ़ से माफ़ी माँगते हैं।"
राजा सत्यम गुस्से में रानी कला पर चिल्लाकर बोले, "क्या आपको अपने ऊपर शर्म का थोड़ा भी अहसास नहीं है? आपके अंदर क्या, एक माँ की ममता है? आपको भी पता है कि आपके पुत्र ने क्या किया है—एक ब्रह्महत्या! और तो और, आपको ज्ञात भी था कि आपका पुत्र मदिरा का आदी हो गया है और आपको इसकी थोड़ी सी भी भनक नहीं थी? सच में, आप पर तो माँ बनने के गुण भी नहीं हैं।"
रानी कला को गुस्सा आ रहा था और वह भी महाराज पर चिल्लाकर बोली, "आप हमसे नफ़रत करते हैं इसलिए तो आपने सारा क़सूर हमारा ठहरा दिया। लेकिन जो कुंद्रा ने किया है, उसका क़सूरवार बड़ी रानी आपकी प्रिय पत्नी है। कुछ कहा? नहीं कहा होगा। कहते भी तो कैसे कहते? क्योंकि आपकी प्रिय जो और हम अप्रिय, इसलिए सारा क़सूर और सारी गलती बस हमारी है और किसी की नहीं। क्यों महाराज? बोलिए, अब क्या आपके मुँह में दही जम गया? बोलिए महाराज, है कोई जवाब आपके पास?"
इतना कहकर गुस्से में रानी कला, राजा सत्यम के कक्ष से चली गई।
रानी कला के जाने के बाद ही काल ऋषिका महामाया, राजा सत्यम से बोली, "महाराज, आपने रानी कला से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी। वह आपसे माफ़ी माँगने आई थी। वह भी क्या करे? उनके पुत्र भी एक नपुंसक बन गए हैं। जब एक माँ के सामने एक पुत्र को ऐसा श्राप मिलता है, तो उस माँ पर क्या बीतेगी? यह तो आप भली-भाँति परिचित हैं। फिर भी आपने ऐसा कहा? लगता है महाराज, आपको अभी थोड़ा आराम करना चाहिए।"
इतना कहकर काल ऋषिका महामाया भी राजा सत्यम के कक्ष से चली गई।
इधर, महल में तीनों राजकुमारियाँ और दासी कृतिका आईं। महल में आते ही तीनों राजकुमारियाँ अपने-अपने कक्ष में चली गईं।
सुबह होने के बाद,
जैसे ही सुबह हुई, राजा सत्यम, राजकुमारी कुंद्रा के कक्ष में आए और बोले, "हमें केवल सच सुनना है, इसलिए हमें सच बताओ कि तुम्हारा प्रतियोगिता में आने का क्या अर्थ था? क्या तुम्हें किसी ने उकसाया था? या किसी ने तुम्हें मीठा पानी पिलाया और तुमने उसे मीठा पानी समझकर पी लिया? हमें केवल सच सुनना है, कुंद्रा।"
राजकुमारी कुंद्रा थोड़ा सा हिचकिचाते हुए बोली, "नहीं पिता श्री, वह हमें किसी ने नहीं उकसाया और हम तो आपका मान ऊँचा करने गए थे, लेकिन सब कुछ गलत हो गया हमारी वजह से।"
राजा सत्यम बोले, "नहीं, इसमें तुम्हारी गलती तो है, लेकिन सबसे ज़्यादा गलती अंकन की है। और तुम्हें अपने श्राप का पश्चाताप भी करना होगा।"
इतना कहकर राजा सत्यम, राजकुमारी कुंद्रा के कक्ष से चले गए।
इधर, रानी कला, अंकन से बोली, "अब हम इस महल में षड्यंत्रों का तूफ़ान लाने वाले हैं और तुम्हें इसमें कोई भी, किसी भी प्रकार की हरकत नहीं करनी है। अब हम जो भी करेंगे, तुम्हारे भले के लिए करेंगे।"
इतना कहकर रानी कला महल की मुख्य छत पर चली गई।
इधर, महल में राजकुमारी मुंद्रा के कक्ष में ऋषिका सुमन्या आईं, और राजकुमारी मुंद्रा से बोलीं, "अब आपको अधिक से अधिक सतर्क रहना होगा, क्योंकि अब इस महल में षड्यंत्रों का तूफ़ान आने वाला है। और तो और, तुम्हारे ताऊ श्री इस महल में पधारेंगे, इसलिए सतर्क रहना उनसे।" इतना कहते ही ऋषिका सुमन्या, राजकुमारी कुंद्रा के कक्ष से चली गईं।
इधर, कृतिका गुप्त तरीके से काले कौवे के ज़रिए एक चिट्ठी भेजती है। आखिर किसको चिट्ठी भेजती है कृतिका?
तभी महल में ढोल-नगाड़ों के साथ राजा सत्यम के बड़े भाई राजा भूरान और रानी किरन, साथ ही उनके छोटे बेटे राजकुमार बृजेश और राजकुमारी ब्रजा का आगमन हुआ।
वैसे राजा भूरान एक बेहद ही छोटे से राज्य के राजा रह गए हैं और राजा सत्यम को राजा भूरान के इरादों से अवगत है। और रानी किरन तंत्र-टोटकों के लिए प्रसिद्ध है, इसलिए रानी शुभांगी को डर है कि वह राजकुमारियों को हानि न पहुँचाएँ।
तभी रानी शुभांगी स्वागत के लिए हाथ में पूजा का बड़ा सा थाल लेकर आई, लेकिन राजा सत्यम नहीं आए। रानी शुभांगी ने अपने जेठ और जेठानी का स्वागत किया।
तभी रानी किरन कुटिलता भरे शब्दों में कही, "हमारे आने से क्या देवर श्री डर गए? कहीं हम यादव-पास के सत्तर राज्यों में सबसे बड़ा केशवापुर न हथिया लें? वैसे मुझे सच बोलने की आदत है।"
रानी शुभांगी हल्का सा हिचकिचाते हुए बोली, "ऐसा कुछ नहीं है। बस महाराज का कुछ विशेष कार्य था, इसलिए वह नहीं आ पाए।"
रानी किरन, रानी शुभांगी को ताना मारते हुए बोली, "विशेष कार्य कितना भी विशेष हो, लेकिन हमारे लिए आ तो सकते थे। वैसे मुझे सच बोलने की आदत है।"
इतना कहकर सभी महल में प्रवेश करते हैं, तभी पीछे से एक आवाज़ आई, "क्या आप हमारा स्वागत नहीं करोगी रानी जी?"
जैसे ही रानी शुभांगी पीछे मुड़कर देखती है, वह उन्हें देखकर हैरान हो जाती है और उनके हाथ से स्वागत का थाल गिर जाता है और वह काफ़ी परेशान हो जाती है।
आखिर किसके आने से रानी शुभांगी हो गई भयभीत?
आखिर दासी कृतिका क्या योजना बना रही है?
आखिर रानी कला कैसा षड्यंत्रों का तूफ़ान लाने वाली है?
जैसे ही रानी शुभांगी पीछे मुड़कर देखी, वह उनको देखकर हैरान हो गई और उनके हाथ से स्वागत का थाल गिर गया। वह काफी परेशान हो गई।
रानी शुभांगी कुछ कहती, कि रानी कला उनके लिए स्वागत का थाल लेकर आ गई और कहती है, "आइए आइए आप ही तो स्वागत करती हूँ।"
रानी शुभांगी किसी और नहीं, बल्कि रानी कला द्वारा बुलाए गए मेहमानों को देखकर हैरान हुईं। वे थीं ज्वाला और कंकाली, जो काला जादू करने में माहिर थीं। यह बात शुभांगी भी जानती थी कि कंकाली और ज्वाला के काले जादू का तोड़ किसी के पास नहीं है। जिसकी वजह से रानी शुभांगी काफी डरी और सहमी हुई थी।
तभी रानी कला हँसते हुए बोली, "आइए आइए ज्वाला और कंकाली, हमने ही आपको निमंत्रण पहुँचाया था। अब आप इस महल में ही रहेंगी।"
रानी शुभांगी वहाँ से जा रही थी कि रानी किरन, रानी शुभांगी को ताना मारते हुए बोली, "क्या हुआ देवरानी जी? आप इतना डर क्यों गईं? जैसे कोई भूत देख लिया हो। वैसे मुझे सच बोलने की आदत है।"
रानी कला भी बोली, "क्या हुआ बड़ी रानी? आप इतनी सहमी हुई क्यों हैं? आपकी तबीयत तो ठीक है? और आप इतनी जल्दी में क्यों थीं? कुछ हुआ है क्या?"
तभी कोई ताली बजाते हुए आया और कहता है, "आए हाय हाय! क्या तुम दोनों मेरा स्वागत करे बिना ही लौट जाओगी? वरना मेरी हाय पाओगी।"
रानी शुभांगी और रानी कला जैसे ही पीछे मुड़कर देखीं, तो दोनों हैरान हो गईं। रानी कला के हाथ से स्वागत का थाल गिर गया और रानी कला के माथे पर पसीने की बूँदें आ गईं।
तभी रानी किरन बोली, "अरे! अब तो दोनों रानियों के चेहरे बिन बरसात के भीग रहे हैं। वैसे मुझे सच बोलने की आदत है।"
आपको बता दें, रानी कला और रानी शुभांगी, केजला के आने से भयभीत थीं। क्योंकि केजला एक किन्नर ऋषिका थी, जो काले जादू में विश्व में सबसे माहिर थी। जो कि दासी कृतिका के बुलाने पर यहाँ आई थी और उसका क्या मकसद था, वह आपको आगे पता चलेगा।
तभी केजला बोली, "आए हाय हाय! क्या हुआ? स्वागत करने का मन नहीं है क्या? वैसे भी स्वागत की थाल तो गिर गई। चलो रानी किरन, हमारे स्वागत के लिए थाल सजाकर लाओ।"
रानी किरन दासी को आदेश देते हुए बोली, "महान ऋषिका केजला जी के स्वागत के लिए एक थाल सजाकर लाओ।"
रानी किरन के आदेशानुसार दासी एक थाल सजाकर लाई और रानी किरन ने ही केजला का स्वागत किया। केजला महल में प्रवेश कर गई। केजला के आने से दोनों रानियाँ काफी सहमी और डर गईं। खासतौर पर रानी शुभांगी, क्योंकि एक तरफ केजला और दूसरी तरफ ज्वाला और कंकाली। इस वजह से रानी शुभांगी के लिए आपत्ति और भी बढ़ने वाली थी।
और इधर महल में राजा भूरान, राजा सत्यम से मिलने आए और बोले, "क्यों मेरे प्रिय भ्राता? हमसे मिलने में तुम्हें आपत्ति क्यों हो रही है? हम तो तुमसे मिलने आए हैं। कई वर्षों से मिले नहीं थे। हमें तो तुम्हारा कोई समाचार पत्र भी नहीं मिला, इसलिए हम तुमसे मिलने आ गए। हमसे मिलकर खुशी नहीं हुई क्या?"
राजा सत्यम गुस्से में बोले, "नहीं! ही खुशी आपसे मिलकर। और क्यों भी हो? जो भाई हमारे दुख और खुशी में शामिल न हो सका, वह भाई पर हम विश्वास कैसे करें? आप हमारे सगे भाई जो हमारे पराए की तरह रहते हैं। और अब आप किस मकसद से आए हैं यहाँ?"
राजा भूरान हँसते हुए बोले, "मकसद... हम तो यह ऐश्वर्य की ज़िंदगी बिताने आए हैं, समझे? अब तुम हमें यहाँ से निकाल नहीं सकते। वरना हम तुम्हें ऐसा श्राप देंगे कि तुम कुत्ते की मौत मरोगे, तुम सड़ जाओगे, समझे? इसलिए तुम्हारी भलाई इसी में है कि हमें यहाँ चैन से रहने दो।" इतना कहकर राजा भूरान राजा सत्यम के कक्ष से चले गए।
इधर, रानी कला, ज्वाला और कंकाली को उनका कक्ष दिखाते हुए बोली, "यह रहा तुम्हारा भव्य कक्ष। और इस कक्ष से राजकुमारियों के कक्ष बहुत ही नज़दीक हैं। अब तुम्हारे पास मौका है उन्हें मारने का और हमारे वादे का। अगर तुमने यह कार्य कर दिया, तो हम आपके लिए वो करेंगे जो किसी ने नहीं सोचा होगा।"
तभी ज्वाला कहती है, "आप चिंता छोड़िए, रानी कला। अब इस महल में वो होगा जिसने कभी कुछ सोचा ही नहीं होगा। और अब हम करेंगे विनाश केशवपुर... मतलब उन तीनों राजकुमारियों का विनाश।"
फिर कंकाली कहती है, "पर हमें तीनों राजकुमारियों से तो मिलवाओ।"
रानी कला कुटिलता भरे शब्दों में कहती है, "सब्र रखिए थोड़ा। हमने इसके लिए एक खास इंतज़ाम किया है।"
इधर राजकुमार अंकन महल की छत पर बैठकर मदिरा पी रहे थे। तभी राजकुमार बृजेश आए और राजकुमार अंकन से बोले, "हमें पहचाना राजकुमार अंकन?"
राजकुमार अंकन अपनी आँखें मलते हैं। तभी राजकुमार बृजेश बोले, "पहचानेंगे भी कैसे? हम आपसे थोड़े ही मिले हैं। वैसे हमारा परिचय है कि हम हैं राजकुमार बृजेश और हम हैं आपके ताऊ श्री के सबसे छोटे बेटे। वैसे आप हमारा स्वागत नहीं करेंगे?"
राजकुमार अंकन मदिरा के नशे में बोले, "कैसा स्वागत? और न तुमसे हमारी जान पहचान तो तुम्हें कैसे अपनाएँ?"
राजकुमार बृजेश बोले, "पर मदिरा से संबंध बनाए जा सकते हैं। वैसे हम आपके लिए खास लाल अंगूरों से बनी मदिरा लाए हैं। और क्या आप हमारे साथ दो-दो घूँट लगाएँगे?"
राजकुमार अंकन मदिरा का लालच देखकर पिघल गए और बोले, "क्यों नहीं? हम आपके साथ मदिरा के दो घूँट? क्या चार-चार घूँट लगाएँगे मेरे छोटे से प्यारे भाई।"
और इस तरह लालच की बेला पर दो कपटी भाइयों में दोस्ती हो गई।
इधर तीनों राजकुमारियाँ दस फुट गहरे जलकुंड के पास बैठकर मछलियों को दाना खिला रही थीं। तभी राजकुमारी ब्रजा, राजकुमारी सुंदरा के पीछे से आकर सुंदरा को डरा देती है जिससे सुंदरा डर के कारण उस जलकुंड में गिर जाती है। जिससे राजकुमारी मुंद्रा थोड़ी सी डर जाती है, लेकिन राजकुमारी कुंद्रा जलकुंड में कूद जाती है और राजकुमारी सुंदरा को बचा लेती है। तभी रानी शुभांगी और रानी किरन भी आ जाती हैं।
जब राजकुमारी सुंदरा को होश आता है, तो राजकुमारी मुंद्रा, राजकुमारी ब्रजा पर चिल्लाकर बोलती है, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आकर हमारी बहन को डराने की और उसे जल में धक्का देने की? आखिर तुम हो कौन?"
राजकुमारी ब्रजा लोमड़ी के आँसू निकालकर रोने लगती है। जिसे देखकर रानी किरन बोलती है, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी बेटी को डाँटने की? आखिर तुम्हारी छोटी बहन है। वैसे मुझे सच बोलने की आदत है।"
राजकुमारी कुंद्रा गुस्से में बोलती है, "कौन सी और कैसी छोटी बहन?"
तब रानी शुभांगी बोलती है, "आप सब शांत हो जाओ। यह है रानी किरन, तुम्हारी ताई श्री और उनकी बेटी ब्रजा हैं।"
इतना कहकर रानी शुभांगी गुस्से में ब्रजा को एक थप्पड़ मारती है और बोलती है, "तुम्हारी माँ ने तुम्हें यही संस्कार दिए हैं।"
यह देखकर रानी किरन को गुस्सा आ जाता है और शुभांगी को गाल पर एक थप्पड़ मारकर बोलती है, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारी परवरिश को थप्पड़ मारने की? क्या तुमने अपनी बेटियों को बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं? जिसकी वजह से कल पूरे समाज एवं प्रजा के सामने अपने माता-पिता की इज़्ज़त को मिट्टी में मिलाने और मेरी बेटी को हाथ लगाने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? मेरी बेटी मेरा गुरूर है और तुम्हारी बेटियाँ तुम्हारे माथे का कलंक, समझी? वैसे मुझे बोलने की आदत नहीं है।" इतना कहकर रानी किरन, ब्रजा को अपने साथ लेकर वहाँ से चली गईं।
रानी शुभांगी गुस्से में अपनी तीनों बेटियों को डाँटती हुई बोलती है, "आज तुम तीनों की वजह से आज हमारी परवरिश पर आरोप लगा है और इसकी ज़िम्मेदार तुम हो कुंद्रा। आज तुम्हारी वजह से हम माँ होकर बिन माँ हो गए, समझी तुम?" इतना कहकर रानी शुभांगी भी वहाँ से चली गईं।
इधर ऋषिका सुमन्या, राजा सत्यम के पास आती है और बोलती है, "वह कल सुबह तक आ जाएगा और आप उसकी चिंता मत कीजिए। हमने संदेश देकर उसे सब कुछ समझा दिया है। अब बस आपको राजकुमारी मुंद्रा और सुंदरा के बारे में सोचना है।" इतना कहकर ऋषिका सुमन्या वहाँ से चली गई।
समय बीता, दिन ढलता गया और शाम आ गई।
शाम के समय रानी कला सभी को खाने के लिए इकट्ठा करती है और सभी खाना खाने के लिए आ भी जाते हैं। खाने में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बने हुए थे। सभी के लिए बैठने की व्यवस्था थी। सभी एक-एक करके आते हैं। रानी कला ने स्वयं अपने हाथों से खाना बनाया था और सभी अपने-अपने आसन पर विराजमान होते हैं। उन्हीं के बीच राजा-रानी के मुख्य आसन पर राजा सत्यम बैठने वाले थे कि राजा भूरान बैठ जाते हैं। यह बात रानी कला और उनमें से कुछ लोगों को बुरी लगती है। तभी रानी कला गुस्से में बोलती है, "जेठ श्री! आप जानबूझकर इस आसन पर तो विराजमान नहीं हुए? क्या आपको ज्ञात नहीं है कि मुख्य आसन राज्य के राजा और रानी का होता है?"
राजा भूरान हँसते हुए बोलते हैं, "अब जिस राज्य का भावी राजा नपुंसक हो, तो वहाँ क्या उम्मीद की जा सकती है? और रही बात मैं तो देखना चाहता था कि सत्यम क्या कहेगा। वैसे मुझे लगता है सत्यम को अपना सिंहासन छोड़ देना चाहिए।"
तभी काल ऋषिका महामाया बोलती है, "कौन किसको त्यागेगा, वह तो वक्त ही बताएगा। और रही बात सिंहासन की, तो हमारी गणनाओं के अनुसार आप एक छोटे से राज्य को नहीं संभाल पाए, तो इतने बड़े राज्य को कैसे संभालेंगे? इससे बेहतर यही होगा कि हम शांति से भोजन करने आए हैं, तो भोजन ही करें।"
जब यह वार्तालाप चल रहा था, उसी बीच ज्वाला, राजकुमार बृजेश को सम्मोहित कर देती है। और सम्मोहित राजकुमार बृजेश, राजा भूरान को एक थप्पड़ मारता है और बोलता है, "नालायक राजा! तू ज़िंदगी में कुछ नहीं कर सकता। चल, ठूस खाना और यहाँ से चलता बन।"
जैसे ही राजा भूरान को थप्पड़ पड़ा, वैसे ही वहाँ उपस्थित कुछ लोगों की हँसी छूट जाती है। जिसे देखकर राजा भूरान को बहुत बुरा लगता है और वे गुस्से में वहाँ से चले जाते हैं।
तभी रानी किरन, बृजेश को थप्पड़ मारती है जिससे राजकुमार का सम्मोहन टूट जाता है। जिससे वे होश में आते हैं। और रानी किरन कहती है, "नालायक तो तू है। वैसे मुझे झूठ बोलने की आदत नहीं है।"
इतना कहकर रानी किरन बेफ़िक्र होकर खाना खाने के लिए बैठ जाती है। जिसे देखकर सभी हैरान हो जाते हैं और राजा सत्यम भी खाने के लिए सभी को बैठने के लिए कहते हैं।
कुछ ही देर में, सभी लोग खाना खाना शुरू करते हैं। जैसे ही राजकुमारी मुंद्रा खाना खाती है, अचानक ही मूर्छित हो जाती है और उनका शरीर पूरा नीला पड़ जाता है। रानी कला, कुटिलता के साथ मुस्कुरा रही है।
जिसे देखकर सभी हैरान और परेशान हो जाते हैं।
आखिरकार किसका षड्यंत्र था राजकुमारी मुंद्रा को हानि पहुँचाने में?
कुछ ही देर में, सभी लोग खाना खाना शुरू कर दिए। जैसे ही राजकुमारी मुंद्रा खाना खा रही थी, अचानक ही वह मूर्छित हो गई और उनका शरीर पूरा नीला पड़ गया। रानी कला, कुटिलता के साथ मुस्कुरा रही थी।
सभी हैरान और परेशान हो गए। ऋषिका सुमन्या, राजकुमारी मुंद्रा की नब्ज़ पकड़कर बोलीं, "महाराज, राजकुमारी मुंद्रा को कालविष दिया गया है। अब इनका बच पाना मुश्किल है। अब तो हम भगवान से प्रार्थना के अलावा कुछ नहीं कर सकते।"
रानी शुभांगी रोते हुए बोलीं, "कुछ तो उपाय होगा जिससे हमारी बेटी को बचाया जा सकता है। सुमन्या जी, आप तो महान हैं। अब आपको हमारी बेटी को बचाना ही होगा।"
ऋषिका सुमन्या कुछ बोलतीं, इससे पहले राजा भूरान बोले, "एक जड़ी-बूटी है, जिसका नाम हमें याद नहीं, लेकिन उसको लाने का मार्ग हम बता सकते हैं।"
तभी केजला बोली, "हाय हाय! तो मार्ग बताइए, पर जड़ी-बूटी की पहचान कैसे की जाएगी? हमने तो पहली बार ऐसे देखा है जब एक ऋषिका ही बैद्यनाथ बन रही हो।"
ऋषिका सुमन्या बोलीं, "हम जानते हैं उस दिव्य जड़ी-बूटी तक पहुँचना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि वहाँ डायनों का निवास है। इसलिए वहाँ जाना अर्थात् मौत को बुलावा देना है।"
तभी राजकुमारी कुंद्रा जोशीली आवाज में बोली, "चाहे हमें मृत्यु के मार्ग पर ही क्यों न चलना पड़े, हम अवश्य चलेंगे और अपनी बहन मुंद्रा जीजी को काल का निवाला नहीं बनने देंगे। चाहे इसके लिए हमें काल से ही क्यों न लड़ना पड़े, हम उस जड़ी-बूटी को लेने अवश्य जाएँगे।"
राजा सत्यम बोले, "केवल राजकुमारी कुंद्रा ही जाएगी इस दिव्य जड़ी-बूटी को लेने। यह हमारा अंतिम फैसला और आदेश दोनों है।"
रानी शुभांगी बोलीं, "महाराज, ये आपका कैसा फैसला है? आज इतनी रात को कुंद्रा को अकेले भेजेंगे? और आप जानकर भी अज्ञानी क्यों बन रहे हैं? कि कुंद्रा एक लड़की है और आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? आप कुंद्रा की गलतियों की सज़ा क्यों कुंद्रा के भविष्य को दे रहे हैं? बोलिए महाराज।"
तभी रानी किरन, रानी शुभांगी को ताना मारते हुए बोलीं, "महाराज क्या बोलेंगे? आपको खुद समझ नहीं आ रहा कि कल जो हुआ, कुंद्रा के कारण हुआ और महाराज भी यही चाहते हैं कि कुंद्रा काल के गाल में समा जाए। वैसे मुझे सच बोलने की आदत है।"
यह सब सुनकर रानी शुभांगी गुस्से से बाहर चली गईं।
रानी शुभांगी के जाने के बाद, ऋषिका सुमन्या, राजकुमारी कुंद्रा के कंधे पर हाथ रखकर बोलीं, "जाओ कुंद्रा, जाओ। हम तुम्हें उस सुनहरी नागफणी पाने का मार्ग और उसकी पहचान बताते हैं।"
इतना कहकर ऋषिका एक चर्मपत्र पर एक नक्शा बनाती हैं और बोलती हैं, "वह मार्ग बहुत ही दुर्गम है और वहाँ डायन रहती हैं। वे मनमाने यानी राह चलते मार्ग के मुसाफिरों को अपना निवाला बनाती हैं। इसलिए तुम्हें बहुत ही सावधानी के साथ जाना होगा, वरना वह डायन तुम्हें भी अपना निवाला न बना ले। ध्यान रहे, सुनहरी नागफणी, हरि दिखने वाली नागफणी की तरह होती है, लेकिन उसका अर्क सुनहरा होता है। समझी? अब संभल के जाना।"
राजकुमारी कुंद्रा सभी का आशीर्वाद लेकर कक्ष से बाहर जाने वाली ही थी कि सुंदरा, कुंद्रा को रोकते हुए बोली, "जीजी, हम आपके साथ चलेंगे। हम आपको अकेला नहीं जाने देंगे, समझी आप?"
राजकुमारी कुंद्रा कुछ कह पाती, इससे पहले राजा सत्यम बोले, "सुंदरा, अगर आप जाना चाहती है तो जा सकती है। हम तुम्हें रोकेंगे नहीं।"
इतना कहकर राजा सत्यम, मूर्छित राजकुमारी मुंद्रा के पास बैठ जाते हैं और दोनों राजकुमारियाँ दिव्य जड़ी-बूटी लेने के लिए ऋषिका सुमन्या द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करते हुए जंगल की ओर प्रस्थान करती हैं।
राजकुमारियों के जाने के पश्चात् रानी कला अपने कक्ष में, जहाँ ज्वाला, कंकाली और काल ऋषिका महामाया भी थीं।
रानी कला इन तीनों से बोली, "हमें कैसे भी करके राजकुमारी मुंद्रा को मारना होगा और राजकुमारी कुंद्रा और सुंदरा को वह दिव्य जड़ी-बूटी लाने से रोकना होगा।"
तभी ज्वाला बोली, "आप चिंता मत कीजिए रानी कला। हम अभी ऐसा बवंडर उत्पन्न करते हैं जिससे दोनों राजकुमारियाँ, उस बवंडर में ऐसे फँसेंगी जैसे बाज़ मुँह में मछली फँसती है। अब देखिए हम दोनों का कमाल। अब हम अपने काले जादू से ऐसा खूनी बवंडर उत्पन्न करेंगे, जिसे देखकर रूह की रूह भी काँप जाए।"
इधर राजकुमारियाँ जंगल के मध्य में पहुँची थीं कि एक दुर्गम पथरीला पहाड़ सामने आ गया, जिस पर चढ़ना नामुमकिन था। उस पहाड़ को देखकर राजकुमारी कुंद्रा बोली, "सुंदरा, तुम्हें अब लौट जाना चाहिए। तुम्हें किसी पहाड़ पर चढ़ने का अभ्यास नहीं है। इसलिए हमारी बात मानो, अपनी जान जोखिम में मत डालो।"
सुंदरा बोली, "जीजी, आपने सुना तो होगा ही, एक से भले दो। इसलिए हम कहीं जाने वाले नहीं हैं। हम आपके साथ ही रहेंगे और इस पथरीले पहाड़ पर भी चढ़ेंगे।"
"ठीक है। अगर तुम हमारे साथ आना चाहती हो तो आओ। अब हम इस पहाड़ पर चढ़ते हैं।" ऐसा राजकुमारी कुंद्रा ने सुंदरा से कहा।
दोनों राजकुमारियाँ अपने-अपने घोड़ों को पेड़ से बाँध देती हैं और उनके लिए चारा एकत्रित करके घोड़ों के पास रख देती हैं और उस पथरीले पहाड़ पर चढ़ना शुरू करती हैं।
इधर ज्वाला और कंकाली महल के गुप्त स्थान पर एक कालचक्र बनाती हैं और उस कालचक्र में अग्नि उत्पन्न करती हैं और कुछ जादुई काले मंत्र बोलती हैं। जिससे पूरे कालचक्र में नीली अग्नि जलती है और ज्वाला उस नीली अग्नि से कहती है, "धूल के कणों से कह दो, कर दे उत्पन्न करे ऐसा बवंडर जिसमें अति चंचल राजकुमारियाँ कुंद्रा और सुंदरा फँस जाएँ और दम घुट-घुट कर मर जाएँ। जाओ, जाओ, पहुँचाओ संदेश हमारा। करो एक बवंडर अति दहशीला, जिसे देखकर काँप जाए रूह सबकी।"
ज्वाला के कहने पर वह अग्नि नीली से लाल हो जाती है। जिसे देखकर कंकाली और ज्वाला कुटिलता भरे स्वर में जोर-जोर से हँसने लगती हैं।
इधर जैसे ही सुंदरा और कुंद्रा पथरीले पहाड़ पर चढ़कर आगे की ओर बढ़ती हैं, वैसे ही एक भयंकर बवंडर उनके करीब आने लगता है और दोनों राजकुमारियाँ उस भयंकर बवंडर में फँस जाती हैं और वह भयंकर बवंडर उनको उस पहाड़ के नीचे फेंक देता है।
इधर ज्वाला और कंकाली ने कालचक्र में जो नीली अग्नि प्रकट की थी, वह अचानक हल्के हरे रंग की हो जाती है। जिसे देखकर ज्वाला को गुस्सा आता है। वह कहती है, "दोनों राजकुमारियों में से एक राजकुमारी बच गई। आखिरकार कैसे? लेकिन मैं हार नहीं मानूँगी। मैं उस राजकुमारी को भी मार दूँगी।"
तभी कंकाली हड्डियों से एक कालचक्र बनाती है और उस कालचक्र में अग्नि प्रकट करती है। जब अग्नि प्रकट हो जाती है तो कंकाली कुछ जादुई मंत्र बोलती है और फिर उस अग्नि में से हजारों की संख्या में कौए आ जाते हैं, जिन्हें देखकर किसी की रूह काँप जाए। फिर कंकाली उन कौओं से कहती है, "जाओ और नोच-नोच कर मार दो उस राजकुमारी को और बना लो अपने भोजन का आहार। एक-एक मांस का टुकड़ा बचना नहीं चाहिए। जाओ।"
इतना कहकर कंकाली और ज्वाला जोर-जोर से हँसने लगती हैं। फिर ज्वाला कहती है, "एक बार में एक और दूसरे बार में दूसरी।"
तभी कंकाली कहती है, "लेकिन राजकुमारी मुंद्रा को काल विष दिया किसने होगा? आखिर हमारे अलावा कौन दुश्मन हो सकता है?"
तभी ज्वाला बोलती है, "हमें सतर्क रहना होगा जिससे कि हमारा कोई भेद न जान पाए।"
इधर जंगल में राजकुमारी कुंद्रा की जान बच जाती है क्योंकि वह पहाड़ से गिरकर एक पेड़ में अटक जाती है और बच जाती है। लेकिन राजकुमारी सुंदरा का कुछ पता नहीं चलता। राजकुमारी कुंद्रा जितना संभव प्रयास हो सकता था, वह सभी संभव जगहों पर ढूँढती है, लेकिन राजकुमारी सुंदरा का कुछ पता नहीं चलता। तब हारकर राजकुमारी कुंद्रा एक जगह पर शांत बैठकर रोने लगती है। थोड़ी देर रोने के बाद राजकुमारी कुंद्रा को राजकुमारी मुंद्रा की याद आती है और वह मन ही मन में अपने आप से कहती है, "एक बहन तो शायद हमने खो दिया, लेकिन अब दूसरी बहन को हम अपने से दूर नहीं जाने देंगे। हम पूरा प्रयास करेंगे मुंद्रा जीजी को बचाने का।" इतना सोचकर वह फिर से उसी पहाड़ पर चढ़ जाती है।
कुछ समय पश्चात् जब राजकुमारी पथरीले पहाड़ पर चढ़ जाती है। जैसे ही पथरीले पहाड़ के ऊपर पहुँचकर कुंद्रा एक जगह थोड़े से विश्राम के लिए बैठ जाती है कि जैसे ही हजारों की संख्या में काले कौए कुंद्रा पर हमला कर देते हैं। कुंद्रा अपनी तलवार निकालकर उन कौवों का सामना करती है, लेकिन वे कौवे कुंद्रा पर अपनी चोंच से प्रहार करते हैं, जिससे कुंद्रा घायल हो जाती है। और उन कौवों से लड़ते-लड़ते घायल कुंद्रा उस पथरीले पहाड़ के ऊपर बनी गुफा में छिप जाती है। लेकिन कौवे तो उस गुफा में आ जाते हैं। लेकिन कुंद्रा बिना डरे अपनी सूझ-बूझ से काम लेकर पत्थरों से अग्नि उत्पन्न करती है और अपनी मशाल में आग लगाकर उन कौवों पर हमला करती है। अग्नि के प्रभाव से सभी कौए काले धुएँ में परिवर्तित होते चले जाते हैं, जिससे राजकुमारी कुंद्रा सभी मायावी कौवों का खात्मा कर देती है।
इधर महल के गुप्त स्थान जहाँ कंकाली और ज्वालाएँ काला जादू कर रही थीं और कंकाली ने जो हड्डियों पर जो अग्नि जलाई थी, वह अचानक बुझ जाती है। जिसकी वजह से कंकाली को बहुत गुस्सा आता है और वह बोलती है, "मेरे कौवों को कोई नहीं मार सकता, लेकिन यह किया किसने? किसकी इतनी हिम्मत?"
ज्वाला, कंकाली से बोलती है, "ऐसा नहीं हो सकता है, पर ऐसा हुआ है। कोई बात नहीं। अब हम दोनों मिलकर उसको बुलाएँगे जिससे राजकुमारी कुंद्रा कभी नहीं बच पाएगी।"
आखिर किसने विष दिया होगा राजकुमारी मुंद्रा को?
अब किसे बुलाने वाली है ज्वाला और कंकाली?
क्या डायन का सामना कर पाएगी राजकुमारी कुंद्रा?
क्या राजकुमारी कुंद्रा दिव्य जड़ी-बूटी सुनहरे नागफणी को खोज पाएगी?
जानने के लिए पढ़िए "रानी कुंद्रा" Storymania app पर।
ज्वाला ने कंकाली से कहा, "ऐसा नहीं हो सकता है, पर ऐसा हुआ है। कोई बात नहीं, अब हम दोनों मिलकर उसे बुलाएँगी जिससे राजकुमारी कुंद्रा कभी नहीं बच पाएगी।"
ज्वाला और कंकाली ने मिलकर हड्डियों से एक हवन कुंड बनाया और उसमें अग्नि प्रज्ज्वलित की। फिर वे जादुई काली विद्या के मंत्रों का उच्चारण करने लगीं।
इधर, घायल राजकुमारी कुंद्रा आगे बढ़ी। थोड़ी दूर चलने पर उसे एक ऋषि मिले। राजकुमारी कुंद्रा की घायल अवस्था देखकर ऋषि बोले, "पुत्री, तुम्हारी यह घायल अवस्था कैसे हुई? और तुम इस मार्ग पर क्यों जा रही हो जहाँ शिकार के लिए तैयार बैठी वह डायन है?"
कुंद्रा ने लड़खड़ाती आवाज़ में कहा, "हमें सुनहरे नागफणी का अर्क चाहिए। हमें उसकी विशेष आवश्यकता है और हमें उसके लिए जाना होगा।"
ऋषि ने कुंद्रा के ज़ख्मों पर औषधि लगाई और बोले, "पुत्री, ये जख्म बहुत जल्दी ठीक हो जाएँगे। और यह लो दिव्य जल, इसे अपने साथ रख लो जिससे तुम उस डायन का सामना कर पाओगी।"
इतना कहकर ऋषि चले गए और राजकुमारी कुंद्रा आगे चलने लगी।
इधर, ज्वाला और कंकाली ने अपनी काली शक्तियों से एक शैतान का निर्माण किया। फिर ज्वाला ने काले शैतान से कहा, "अब तुम्हें हमारा एक-एक कार्य करना होगा। तुम्हें जो राजकुमारी बच गई है, उसे मृत्यु के घाट उतारना होगा। समझे? जाओ जल्द से जल्द जाओ और उस राजकुमारी को काल के दर्शन करवाओ। हमारा कार्य शीघ्र अतिशीघ्र करो।"
इतना सुनते ही वह काला शैतान गायब हो गया।
इधर, महल में केजला गुप्त तरीके से दासी कृतिका से मिली। कृतिका ने केजला से कहा, "अब हमारे मकसद की शुरुआत होगी। कल तुम्हें भरी सभा में वह करना है जो शायद कोई सोच भी नहीं सकता। उसके बाद हमें सबसे भयंकर कृत्य करना होगा, जिसका अंदाज किसी के सपने में भी नहीं आया होगा।"
केजला ने कहा, "हाय हाय! सब कुछ होगा जैसा किसी ने सोचा भी नहीं होगा। अब बस हम कुछ ऐसा करेंगे जिसकी गूंज चारों ओर होगी।"
इतना कहकर केजला और कृतिका जोर-जोर से हँसने लगीं।
इधर, महल में ही रानी शुभांगी भगवान श्री हरि की पूजा कर रही थीं और उनसे कह रही थीं, "हे भगवान, हम जानते हैं कि हमारी बेटियों को कुछ नहीं होगा, लेकिन हमारा दिल नहीं मान रहा है। अब आपसे ही एक आस लगाकर बैठे हैं। कृपया करके हमारी बेटी को ठीक कर दीजिए।"
इधर, जंगल में राजकुमारी कुंद्रा जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थी, वैसे-वैसे उनके जख्म ठीक होते जा रहे थे। जैसे ही वह एक तालाब के पास पहुँची, वहाँ ज्वाला और कंकाली द्वारा भेजा गया काला शैतान आ गया। वह देखने में अति भयानक लग रहा था। उसके मुँह, आँखों, कानों और नाक से काला-काला अजीब सा धुआँ निकल रहा था। उसका पूरा शरीर काला था, मानो वह अंधेरे को धोखा दे रहा हो। उसने कुंद्रा को उठाकर जल में फेंक दिया। फिर जल के अंदर कूदकर राजकुमारी कुंद्रा को ढूँढ़ने लगा। पर कुंद्रा ने उसे आँखों का धोखा देकर तालाब से बाहर आ गई और भागने लगी। लेकिन वह काला शैतान राजकुमारी कुंद्रा को भागते हुए देख लिया। इससे कुंद्रा और तेज दौड़ी। लेकिन मायावी काला शैतान गायब होकर अचानक कुंद्रा के सामने आ गया। कुंद्रा ने बिना डरे उस पर तलवार से वार किया, लेकिन मायावी काले शैतान पर इसका कोई असर नहीं हुआ। तभी, जब काला शैतान कुंद्रा को उठाकर ले जा रहा था, कुंद्रा की कमर पर बंधी डोरी से दिव्य जल की शीशी खुल गई और शीशी का जल मायावी काले शैतान के ऊपर गिर गया। वह भस्म हो गया और राजकुमारी कुंद्रा की जान बच गई। लेकिन दिव्य जल की शीशी पूरी तरह से खाली हो गई; उसमें एक बूँद जल शेष रह गया।
इधर, महल के गुप्त स्थान पर ज्वाला और कंकाली बैठी हुई थीं कि अचानक, जो हड्डियों का हवन कुंड बनाया था, वह एक जोरदार धमाके के साथ टूट गया। ज्वाला और कंकाली हैरान हो गईं।
तभी ज्वाला गुस्से में बोली, "वह राजकुमारी हमारे कुटिल इरादों से तो बच गई, लेकिन उस डायन के वार से कैसे बचेगी?"
इधर, महल में राजकुमार अंकन और राजकुमार बृजेश मदिरा के नशे में डूबे हुए थे। तभी वहाँ रानी कला आ गई और राजकुमार बृजेश को एक जोरदार थप्पड़ मारते हुए गुस्से में तेज स्वर में बोली, "आज तुम्हारी वजह से हमारा बेटा हमसे दूर जा रहा है और तुम मौके का फायदा उठा रहे हो।"
तभी काल ऋषिका महामाया बोली, "थोड़ा धीरज से कार्य लीजिए रानी, वरना हम जो चाहते हैं वह हो नहीं पाएगा। अब देखिए मेरा कमाल।"
इतना कहकर ऋषिका महामाया राजकुमार बृजेश को सम्मोहित करने लगी और बोली, "क्या तुम मेरी बात मानोगे...?"
इधर, राजकुमारी कुंद्रा के पास जो दिव्य जल की शीशी थी उसमें मात्र एक बूँद शेष रह गई थी। कुंद्रा ने सूझबूझ से काम लिया और उस शीशी में और जल भर लिया। फिर वह आगे बढ़ने लगी।
थोड़ी देर बाद राजकुमारी कुंद्रा डायन की गुफा के पास पहुँची। गुफा को पार करके ही सुनहरे नागफणी की घाटी थी। जैसे ही राजकुमारी कुंद्रा गुफा में पहला कदम रखा, बहुत सारी चमगादड़ एकदम गुफा से बाहर निकल गईं। जैसे ही राजकुमारी कुंद्रा गुफा के मध्य पहुँची, उसका सामना उस डायन से हुआ। डायन ने काले कपड़े पहने हुए थे और उसकी चोटी जमीन तक छू रही थी। उसके पैर उल्टे थे और वह हवा में उड़ रही थी। डायन डरावनी आवाज़ में बोली, "तो आज एक नया शिकार आया है, और इस शिकार को मालूम है कि मैं ही इसका शिकार करने वाली हूँ। सच में कितने बेवकूफ होते हैं इंसान!"
राजकुमारी कुंद्रा ने बिना डरे, डटकर उस डायन से कहा, "हाँ, सच में कितने बेवकूफ होते हैं इंसान, इसलिए तुम जैसे डायनों का शिकार बन जाते हैं।"
इतना कहकर कुंद्रा ने डायन पर दिव्य जल की कुछ बूँदें डालीं और वह डायन कुछ देर के लिए अंधी हो गई। इतने में राजकुमारी कुंद्रा भागकर सुनहरे नागफणी का अर्क शीशी में एकत्रित करके वापस लौट रही थी कि अचानक डायन उसके सामने आ गई। फिर कुंद्रा ने उस पर दिव्य जल की बूँदें डालीं जिससे डायन फिर से अंधी हो गई। जब तक डायन अपनी आँखें मलती, तब तक राजकुमारी कुंद्रा उस गुफा को पार कर महल की ओर आगे बढ़ने लगी।
सुबह होते-होते राजकुमारी कुंद्रा महल पहुँची और राजकुमारी मुंद्रा के कक्ष में गई। उसने ऋषिका सुमन्या को सुनहरे नागफणी का अर्क दिया। जैसे ही ऋषिका सुमन्या ने अर्क राजकुमारी मुंद्रा के होठों से पिलाया, कुछ ही देर बाद राजकुमारी मुंद्रा का नीला शरीर सामान्य हो गया और देर के बाद उसे होश आ गया। जैसे ही राजकुमारी मुंद्रा को होश आया, सभी के चेहरे पर खुशियाँ लौट आईं।
राजकुमारी मुंद्रा के कक्ष में खड़ी रानी किरन अपने मन ही मन में बोली, "काल विष का असर खत्म क्यों न हो गया हो, लेकिन राजकुमारी मुंद्रा के रक्त में जो हमारा दिया हुआ कुटिलता का विष है, उसको कोई दूर नहीं कर सकता।"
रानी शुभांगी राजकुमारी मुंद्रा के कक्ष में आईं और खुशी के आँसुओं के साथ अपनी दोनों बेटियों को बारी-बारी से गले लगाया। जैसे ही वे सुंदरा को गले लगाने वाली थीं, सुंदरा की गैरहाजिरी का कारण पूछते हुए बोलीं, "कुंद्रा, सुंदरा कहाँ है?"
राजकुमारी कुंद्रा ने अपने साथ घटित पूरी घटना क्रमानुसार बताई। इसे सुनकर कक्ष में उपस्थित कुछ सदस्य हैरान हो गए। तब राजा सत्यम ने कहा, "आप सभी चिंता मत कीजिए। राजकुमारी सुंदरा को कुछ नहीं होगा। हम अभी एक सैनिकों की टुकड़ी भेजकर सुंदरा को अवश्य ढूँढवाएँगे।"
तभी महल के मुख्य द्वार पर किसी की दस्तक हुई, जिससे महल के सभी सदस्य हैरान हो गए।
आखिरकार, रानी किरन ने राजकुमारी मुंद्रा के शरीर में कौन सा कुटिलता का विष घोला था?
काल ऋषिका महामाया ने राजकुमार बृजेश को क्यों सम्मोहित किया और उनसे क्या करने को कहा?
ऋषिका केजला अब क्या करने वाली है?
ज्वाला और कंकाली की अगली चाल क्या होगी?
राजकुमारी कुंद्रा ने अपने साथ घटित घटना का क्रमवार वर्णन किया। कक्ष में उपस्थित कुछ सदस्य हैरान हो गए। तब राजा सत्यम ने कहा, "आप सभी चिंता मत कीजिए। राजकुमारी सुंदरा को कुछ नहीं होगा। हम अभी सैनिकों की एक टुकड़ी भेजकर सुंदरा को ढूँढवाएँगे।"
तभी, महल के मुख्य द्वार पर किसी अत्यंत सुंदर नारी की दस्तक हुई। उसके पीछे केशवापुर राज्य के सभी बुज़ुर्ग और युवक चल रहे थे। उसकी बलखाती कमर और चलने का अंदाज़ सभी पुरुषों का मन मोह लेता था। महल के मुख्य द्वार पर पहुँचते-पहुँचते सारे सैनिक और दासी उसकी अदाओं और रूप पर मुग्ध हो चुके थे।
राजा सत्यम ने यह दृश्य देखा तो वे और अन्य सदस्य भी मुख्य द्वार पर आ गए। उन्होंने देखा कि वह स्त्री कोई और नहीं, स्वयं राजा सत्यम सिंह राठौड़ की सबसे छोटी पुत्री सुंदरा थी। उसके पीछे पूरा राज्य और महल के सैनिक आदि पागल हो गए थे। राजकुमारी सुंदरा ने काले वस्त्र पहने हुए थे और अपने घने केश खुले हुए थे। वह इतनी खूबसूरत लग रही थी कि कोई भी उन पर मोहित हो सकता था। उनके रूप को पहचान पाना मुश्किल था।
यह सब देखकर राजा सत्यम क्रोधित हो गए और चीखकर बोले, "यह क्या हो रहा है, सुंदरा? और आप सब भी जाइए! सुंदरा, तुम अभी के अभी अपने कक्ष में जाओ, वरना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।"
राजा सत्यम का यह रूप देखकर प्रजा अपने घरों को लौट गई और सैनिक अपने-अपने कार्यों में लग गए। परंतु राजकुमारी सुंदरा पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। निडर होकर वह राजा सत्यम के सामने आई और बोली, "जीजी ने हमें जंगल में अकेला छोड़ दिया था। जंगल के जानवरों ने हमारी रक्षा की और कुछ ग्रामीणों ने भी हमारी मदद की। पिता श्री, यदि हम पर कोई गलती हुई है तो हम क्षमा नहीं माँगेंगे। इसमें सारी गलती जीजी कुंद्रा की है जिन्होंने हमें जानबूझकर जंगल में अकेला छोड़ दिया। वह राजकुमारी मुंद्रा, यानी हमारी बड़ी जीजी को बचाना चाहती थीं।" इतना कहकर राजकुमारी सुंदरा अपने कक्ष की ओर चली गई।
सत्यम और उनके परिवार को राजकुमारी सुंदरा का व्यवहार अजीब लगा, परंतु किसी ने कुछ नहीं कहा।
सुबह काफी देर बाद राजा सत्यम दरबार में आए और सभा का शुभारंभ किया। तभी दासी कृतिका ने केजला की ओर कुटिलता भरा इशारा किया। केजला ने दरबार में कहा, "राजा सत्यम, आप प्रजा के साथ अन्याय कर रहे हैं। यह छोटा अन्याय नहीं, अपितु घोर अन्याय है। राजकुमार अंकन नपुंसक हैं और वे राज्य के राजा नहीं बन सकते। राज्य का अगला उत्तराधिकारी कौन होगा? इसका हमें उत्तर चाहिए। और यदि राजा और राजकुमार अंकन नपुंसक हैं तो उनका स्थान क्या होगा?"
राजा सत्यम बोले, "आप क्या कहना चाहती हैं, महान ऋषिका? साफ-साफ कहिए।"
केजला ने तेज स्वर में कहा, "हाय हाय महाराज! हमने सब कुछ कह दिया, फिर भी आप इसका मतलब नहीं समझ रहे हैं। एक नपुंसक राजकुमार कभी राजा नहीं बन सकता, और राजकुमार अंकन अब हमारे समुदाय में आते हैं।"
यह सुनकर राजा सत्यम को बहुत क्रोध आया। वे केजला पर चीखे, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे बेटे के बारे में ऐसा बोलने की? आखिर हमारे बेटे को नपुंसक होने का श्राप मिला है, तो वह आपके समुदाय में कैसे आएगा?"
केजला ने भी चीखकर कहा, "हाय हाय महाराज! अगर आपका बेटा नपुंसक है, तो वह क्या करेगा? इससे बेहतर होगा कि वह हमारे समुदाय में आए, घर-घर जाकर भीख माँगे।"
इससे रानी कला को बहुत क्रोध आया और उन्होंने केजला से तेज स्वर में कहा, "तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई हमारी बेटी के बारे में ऐसा बोलने की? आखिर इस प्रजा और समाज में तुम्हारा क्या अधिकार है? जो काम तुम गली-मोहल्लों और सड़कों पर करती हो, वह तुम हमारी बेटी से करवाना चाहती हो? आखिर तुम हमसे किस चीज़ का बदला लेना चाहती हो?"
राजा सत्यम बोले, "हमने आज तक किन्नरों का अपमान नहीं किया, फिर भी तुम हमारे बेटे के लिए ऐसे शब्द बोल रही हो? आखिर तुम हमसे किस चीज़ का बदला ले रही हो?"
केजला क्रोध से चीखी, "अपमान? आपने हमारा घोर अपमान किया है! याद कीजिए, 28 साल पहले आपने एक पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया था, और उस यज्ञ में हमें किन्नरों को स्थान नहीं दिया गया था। बल्कि हमें केशवापुर से भी निकाल दिया गया था, महाराज! हमने आपको कोई श्राप नहीं दिया था, फिर भी आपने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? अन्याय आपने किया है, हमने नहीं! इसलिए आज हम आपके बेटे को अपने साथ ले जाएँगे, या आपके बेटे को हम श्राप देंगे कि वह किन्नर बन जाए।"
यह सुनकर रानी कला जैसे बिजली से झुलस गईं। वे रोते हुए केजला के पैरों में गिर गईं और बोलीं, "मेरे पति की गलतियों की सजा मेरे पुत्र को मत दीजिए। कृपया करके मेरे पति और पुत्र दोनों को माफ़ कर दीजिए।"
केजला ने रानी कला को अपने पैर से धक्का दे दिया और बोली, "महाराज सत्यम, या तो आप अपनी पुत्री का विवाह एक नपुंसक से करवाइए, या अपने बेटे को किन्नर बनता हुआ देखिए। आपका नपुंसक दामाद इस राज्य का राजा होगा, और हम इस राज्य की रानी होंगी।"
राजा सत्यम ने अपने बेटे को किन्नर बनने का हुक्म दे दिया और केजला से कहा, "आप हमारे बेटे को किन्नर बनने का श्राप दे सकती हैं और उसे अपने साथ ले जा सकती हैं।"
यह सुनकर केजला बहुत खुश हुई और बोली, "मैं किन्नरों की ईष्ट देवी को साक्षी मानकर राजा सत्यम के छोटे बेटे, राजकुमार अंकन को श्राप देती हूँ कि वह इसी वक्त किन्नर में परिवर्तित हो जाए।" राजकुमार अंकन उस वक्त किन्नर बन गए।
रानी कला को बहुत क्रोध आ रहा था, परंतु अपने क्रोध को दबाकर वे अपने कक्ष में चली गईं। उसी समय राजा सत्यम भी भावुक होकर सभा छोड़कर चले गए।
रानी कला ने राजा सत्यम को अपने कक्ष में बुलाया और क्रोध से चीखी, "आपने क्या सोचकर हमारे इकलौते बेटे को श्राप दिलवाया? हमें इसका जवाब चाहिए, महाराज! आज आप एक बाप होने के नाम पर कलंक हो गए हैं। पुत्र, कुपुत्र हो सकता है, परंतु एक पिता कभी कुपिता नहीं होता, और आज आपने वही किया है।"
राजा सत्यम बोले, "हम मजबूर थे, इसलिए हमें जो सही लगा हमने वही किया।" इतना कहकर राजा सत्यम रानी कला के कक्ष से चले गए।
इधर, राजकुमारी सुंदरा महल की छत पर नृत्य कर रही थी। प्रत्येक सैनिक उससे मोहित हो रहा था। तभी राजकुमारी ब्रजा आई और राजकुमारी सुंदरा की सुंदरता देखकर मन ही मन जलने लगी। ब्रजा ने कुछ ऐसा किया कि कुछ देर बाद महल में ब्रजा की चीखें गूँजीं।
आखिरकार राजकुमारी के साथ क्या हुआ? इतनी क्यों बदल गई भोली-भाली राजकुमारी सुंदरा? अब क्या करेंगी रानी कला?
राजकुमारी सुंदरा महल की छत पर नृत्य कर रही थी। प्रत्येक सैनिक उसका मन मोहित हो रहा था। तभी राजकुमारी ब्रजा आई और राजकुमारी सुंदरा की सुंदरता देखकर जल गई। जलते हुए मन से, राजकुमारी ब्रजा ने राजकुमारी सुंदरा को ताना मारा, "कौआ कितना भी काऊ-काऊ क्यों न कर ले, आखिर रहता ही है काला कौआ ही।"
यह बात सुनकर राजकुमारी सुंदरा को गुस्सा आ गया। उसने कहा, "माना हम कौआ और तुम हंसिनी। तो हंसिनी चुगेगी दाना-पानी और कौआ मोती खाएगा। तो आज मैं तुमको खाऊँगी।"
इतना कहकर राजकुमारी सुंदरा ने राजकुमारी ब्रजा का गला पकड़कर उन्हें एक हाथ से उठा दिया। ब्रजा के पैर हवा में तैरने लगे। राजकुमारी सुंदरा बोली, "अब हम तुम्हें अपना निवाला बनाएँगी।"
इतना कहकर उसने ब्रजा को छत से गिरा दिया। ब्रजा की चीख से पूरे महल की दीवारें गूंज उठीं। सभी महल के उस स्थान पर पहुँचे जहाँ ब्रजा जख्मी हालत में पड़ी हुई थी। सब नीचे पहुँच गए, और राजकुमारी सुंदरा ऊपर थी। महल के सभी सदस्य नीचे से ऊपर की ओर देख रहे थे। उन्हें ब्रजा दिखाई दी। रानी किरण रोते हुए बोली, "अरे सुंदरा ने मेरी बेटी को मार दिया! वो मेरी बेटी से जलती थी क्योंकि मेरी बेटी अधिक सुंदर थी। वैसे, मुझे सच बोलने की आदत है।"
रानी शुभांगी गुस्से में बोली, "आप क्या बोल रही हैं? आपको थोड़ा भी आभास है? आज तक मेरी बेटी ने एक चींटी भी गलती से नहीं मारी और वह आपकी बेटी को धक्का देगी? थोड़ा सोच-समझकर तो बोल लीजिए, वरना आपके लिए अच्छा नहीं होगा।"
तभी वहाँ राजकुमारी मुंद्रा आई और उसने अपनी माँ, रानी शुभांगी पर ताना मारा, "आपको अपनी बेटियों के अलावा किसी और की बेटी की तकलीफ क्यों नहीं दिखाई या सुनाई देती है, माँ श्री?"
रानी शुभांगी और राजकुमारी कुंद्रा को मुंद्रा और सुंदरा का व्यवहार थोड़ा अजीब लगा।
राजकुमारी ब्रजा को उनके कक्ष में ले जाया गया। राज्यवैद्य को बुलाया गया और उनका उपचार शुरू किया गया।
इधर, रानी कला अपनी प्रतिशोध की अग्नि में जल रही थी। तभी उनके पास महान ऋषिका महामाया आई और बोली, "मैं समझती हूँ कि आप पर इस समय क्या बीत रही होगी, लेकिन राजकुमार अंकन कल यहाँ से चले जाएँगे। हमें उन्हें जाने से रोकना होगा और हमें केजला से अपना प्रतिशोध लेना होगा।"
रानी कला बोली, "हम केजला से अपना बदला पूरा लेंगे। और ऐसा बदला लेंगे कि उसकी रूह की रूह भी काँपेगी। और हम अपना इंतज़ाम कभी नहीं भूलेंगे। आज जो उसने किया है हमारे साथ, हम उसके साथ ऐसी हैवानियत करेंगे जिससे हमारी प्रतिशोध की ज्वाला और भी भड़केगी। फिर हम उसके बाद अपने पुत्र के एक-एक ताले का बदला उसकी खून की एक-एक बूँद से लेंगे।"
तभी रानी कला के कक्ष में ज्वाला और कंकाली आए। रानी कला उन पर गुस्सा करते हुए बोली, "हमने आपको एक कार्य सौंपा था कि तीनों राजकुमारियों को मारना होगा, लेकिन आप तो एक भी राजकुमारी का बाल भी नहीं उखाड़ पाईं। आप पर काला जादू आता है या फिर आप भी एक ढोंगनी हैं? हम आपको पाँच दिन का समय देते हैं तीनों राजकुमारियों को मारने का। अगर यह काम आपका असफल हुआ तो आप यहाँ से चली जाएँगी।"
इतना सुनकर ज्वाला और कंकाली वहाँ से बिना कुछ कहे चली गईं।
ज्वाला और कंकाली के जाने के बाद, ऋषिका महामाया, रानी कला से बोली, "अब समय आ गया है राजकुमार बृजेश को अपनी नींद से उठाने का और वह कार्य करवाने का जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता।"
इधर, रानी किरण, राजा भूरान से बोली, "अब हमें वह कार्य करने का वक्त आ गया है जिसके होने से हमारा कार्य और भी आसान हो जाएगा।"
तभी राजकुमार बृजेश महल की छत पर जोर-जोर से चिल्लाकर बोल रहे थे, "सुनो सभी जो महल में निवास करने वाले! आज मैं आपको दिखाने वाला हूँ जिसे देखकर सभी हैरान हो जाएँगे!"
और तभी राजा सत्यम और बाकी सब महल के नीचे आ गए। राजा भूरान तेज स्वर में राजकुमार बृजेश से बोले, "पुत्र! ये क्या तमाशा कर रहे हो? चलो नीचे आ जाओ।"
लेकिन राजकुमार बृजेश काफी गहरे सम्मोहन में अटके हुए थे। उन्हें कुछ होश नहीं था और वे सबके सामने अपने आप को नपुंसक बना लेते हैं। इसे देखकर राजा भूरान हैरान हो गए और रानी किरण मूर्छित हो गईं।
राजकुमार बृजेश जब सबके सामने अपने आप को नपुंसक बना लेते हैं, तो उनका सम्मोहन टूट जाता है। जब उन्हें असलियत का होश आता है, तो अपनी हालत देखकर वे दर्द से कराह उठते हैं और मूर्छित हो जाते हैं।
राजा सत्यम के आदेश से सभी को उनके कक्ष में ले जाया जाता है और सभी का उपचार किया जाता है।
इधर, राजकुमारी सुंदरा महल के मध्य में बने जल कुंड में नहा रही थी। महल के सैनिक उन्हें देख-देखकर आकर्षित हो रहे थे। तभी वहाँ पर राजा सत्यम आए और देखा कि राजकुमारी सुंदरा क्या कर रही है। उनके इस कार्य को देखते हुए वे राजकुमारी पर गुस्सा करते हुए चिल्लाकर बोले, "तुम्हारा दिमाग क्या तेल लेने गया है, सुंदरा? तुम्हें हो क्या गया है? तुम ऐसी हरकत कर सकती हो? हमने कभी सपने में नहीं सोचा था। लेकिन तुम पहले वाली सुंदरा नहीं रही हो। चलो अभी की अभी अपने कक्ष में जाओ।"
इधर, ज्वाला और कंकाली राजकुमारी कुंद्रा को मारने का षड्यंत्र रच रही थीं। ज्वाला बोली, "हमें इस बार इस महल में काल की दावत करवानी होगी। जब महल में काल खुद दावत करेगा, तो उसका पेट भरेगा। और ऐसा पेट भरेगा कि हमें दोबारा कोई षड्यंत्र नहीं रचना पड़ेगा। इस बार एक बार में तीन-तीन शिकार होंगे।"
जैसे ही रानी किरण और राजा भूरान मूर्छित अवस्था से बाहर आए, वे दोनों एकांत कमरे में वार्तालाप करने लगे। राजा भूरान बोले, "हमारे बेटे पर किसी ने काला जादू किया है, जिसकी वजह से हमारे बेटे ने यह किया है। हमें शीघ्र अतिशीघ्र अपने बेटे के दोषी को पकड़ना होगा जिससे हम उससे अपना बदला ले सकें।"
रानी किरण बोली, "हम जिस मकसद से यहाँ आए थे, वह मकसद तो पूरा नहीं हुआ, लेकिन अब हम सब कुछ बर्बाद करके जाएँगे। इस बार हम अपना बदला ऐसे लेंगे जिससे कि सभी अपनी मौत के आँसू रोएँगे, लेकिन मौत नहीं आएगी। हम सभी को ऐसा तड़पाएँगे कि इन सब की रूह की रूह भी काँपेगी।"
रानी कला अपने कक्ष में काल ऋषिका के साथ जश्न मना रही थी और बोली, "अब हम उस केजला को सबक सिखाएँगे। ऐसा सबक कि उसे अपने किन्नर होने पर बहुत गुरूर है, वो उसका टूटकर चकनाचूर हो जाएगा।"
ऋषिका महामाया बोली, "वैसे, हम जो देख रहे हैं, रानी कला, वो सही नहीं है।"
रानी कला बोली, "आप ऐसा क्या देख रही हैं जो हमारे लिए सही नहीं है?"
ऋषिका महामाया बोली, "अगर केजला को मारकर राजकुमार अंकन को केजला की जगह बिठा दिया जाए, तो राजकुमार अंकन महान ऋषि बन सकते हैं।"
तभी केजला महल में ढोल-नगाड़े बजवाता है। जब सभी वहाँ पहुँचे, तो सभी हैरान हो गए।
केजला का अगला दाव-पेच, षड्यंत्र कौन सजाएगा?
ज्वाला और कंकाली की अगली चाल क्या होगी?
राजकुमारी सुंदरा को आखिरकार क्या हुआ है?
ऋषिका महामाया बोली, "अगर केजला को मारकर राजकुमार अंकन को केजला की जगह बैठा दिया जाए तो राजकुमार अंकन महान ऋषिका बन सकते हैं।"
तभी केजला ने महल में ढोल-नगाड़े बजवाए। महल के सभी सदस्य महल के मुख्य प्रांगण में पहुँचे और एक हैरान कर देने वाला दृश्य देखा। रानी कला की रूह काँप गई। रानी शुभांगी भी डर गई। किन्नर केजला का विकराल रूप देखकर वे भयभीत हो गईं। केजला इतनी भयानक लग रही थी मानो कोई काली डायन खड़ी हो। महल के प्रांगण में संघ के किन्नर भी थे। इस कारण रानी कला भड़क गई और बोली, "आपने हमारे पुत्र को श्राप तो दिया ही, लेकिन अब उसका अपमान भी कर रही हैं, केजला जी। आज आपकी वजह से हमारा पुत्र किन्नर बन गया और ऊपर से आप अपने अभिमान की ज्वाला में इतनी जल रही हैं कि आप सब कुछ जलाकर खाक कर देंगी और आपको कुछ दिखाई नहीं देगा। अगर आपने यह अभी नहीं रोका तो एक माँ की ऐसी हाँय लगेगी कि आपको मरते वक्त पानी भी नसीब नहीं होगा। इसलिए कृपया करके हमारे पुत्र के साथ यह सब न करें, वही आपके लिए बेहतर होगा।"
केजला ने रानी कला से कहा, "यह तो अभी शुरुआत है हमारे अभिमान के प्रतिरोध की। जो हमारे साथ अन्याय हुआ है, उसका प्रतिशोध की ज्वाला जब भड़केगी तो पूरा महल और पूरा केशवापुर जलकर भस्म हो जाएगा और आप अपनी हाथ पर हाथ रखते ही रह जाएँगी। अगर हम चाहें तो पूरे केशवापुर को ऐसी दुआएँ देंगी जिससे पूरा केशवापुर कुत्ते की मौत मरेगा।"
महान ऋषिका सुमन्या ने केजला को शांत करते हुए कहा, "कृपया करके आप शांत हो जाइए। जो आपके अंदर अभिमान का प्रतिशोध भड़क रहा है, उसको अभी शांत कीजिए और संयम से काम लीजिए। वरना आपके साथ भी अन्याय हो सकता है केजला जी, वरना हमारा श्राप भी पूरे किन्नर समाज को गायब या उसको जलाकर भस्म कर देगा।"
केजला गुस्से में बोली, "हाय हाय! अगर आप महान ऋषिका हैं तो हम भी महान गुरु किन्नर गुरु केजला हैं। अभी अगर हमने श्राप दे दिया तो पूरा राठौर वंश इस पृथ्वी से गायब हो जाएगा।"
यह बात सुनकर काल ऋषिका महामाया को भी गुस्सा आ गया और वह गुस्से में बोली, "केजला, अगर चाहे तो तुम्हारे पूरे राठौड़ वंश को समाप्त कर सकती है, तो हम पूरे किन्नर वंश को ऐसा श्राप देंगे कि उसकी रूह की भी रूह काँपेगी और वह कुत्ते से बदतर मौत मरेगा।"
राजा सत्यम ने यह अन्याय देखा और बीच में आकर बोले, "कृपया करके मेरे पुत्र को क्षमा कर दें, महान ऋषिका केजला जी। मैंने जो आपके साथ किया है, वह मेरे पुत्र के साथ कदापि न करें, उसकी सजा मुझे दें।"
केजला गुस्से में बोली, "जो आपने हमको, इस राज्य से किन्नर समाज को हटा दिया था, उसका बदला केवल आपके पुत्र से? केवल आपसे नहीं, महाराज? क्यों? क्यों किया था आपने हमारे साथ अन्याय? निम्न और उच्च जाति को बाँटा था आपने? क्या? क्यों? इसका जवाब है आपके पास? आप ही सबसे बड़े कारण हैं इस राज्य के बंटवारे का। इसलिए आपको अपने शरीर के अंदर इतने कीड़े डालने होंगे जिससे कि आपकी मृत्यु ना हो जाए।"
राजा सत्यम रोते हुए बोले, "कृपया करके मुझे क्षमा करें केजला जी। हमने जो अन्याय किया है, उसे समझो। हम उसकी माफी मांगते हैं। आप जो कहेंगी हम वही करेंगे।"
केजला अपनी बात कहने ही वाली थी कि तभी रानी कला बोली, "महाराज, यह गलती ना कीजिए। क्योंकि यह केजला का कोई और षड्यंत्र है। इसके कारण यह आपसे अपना राजसिंहासन माँगेगी और केशवापुर राज्य के साथ-साथ आसपास के 81 गाँव भी माँगेगी और पूरे राठौर वंश को यहाँ से निकाल देगी जिससे पूरे राठौर वंश को भीख माँगकर अपना जीवन यापन करना पड़े।"
राजा सत्यम की आँखों में आँसू थे और वह रो-रो कर बोल रहे थे, "हमने बहुत बड़ा पाप किया है और इस पाप की सजा हमें ही नहीं, बल्कि पूरे राठौर परिवार को भुगतनी होगी। जैसे कि एक किन्नर की गलती की सजा हमने पूरे किन्नर समाज को भुगतवाई थी।"
केजला राजा सत्यम से बोली, "बोलिए, कैसे एक किन्नर की गलती की सजा अपने सभी किन्नरों को, महाराज? क्यों दी थी? इसलिए आपकी गलती की सजा आपके पुत्र-पुत्री और पूरे राठौर वंश को भुगतनी पड़ेगी। यहाँ तक कि पूरे केशवापुर राज्य को भी।"
राजा सत्यम अपनी आँखों में आँसू लिए महल के प्रांगण से बाहर चले गए और रानी कला वहीं पर रह गई। फिर केजला चीख-चीखकर बोली, "देखो, देखो! एक ऐसा तमाशा! आज राजकुमार अंकन बनेंगे अंकना, एक किन्नर! देखो, देखो! एक तमाशा ऐसा भी!"
तभी काल ऋषिका महामाया को गुस्सा आ गया और उसी वक्त केजला को चेतावनी देते हुए बोली, "आज जो तुम यह कर रही हो, इसके पश्चात अब तुम्हें बहुत जल्द भुगतना होगा केजला।"
क्योंकि केजला राजकुमार अंकन का मुंडन करके उन्हें एक किन्नर, अंकना में परिवर्तित कर रही थी, इसलिए वहाँ पर राजकुमार अंकन का किन्नर अभिषेक हो रहा था।
तभी राजकुमारी सुंदरा बलखाते हुए, सभी सैनिकों को मोहित करते हुए, अपने मनमोहिनी रूप में महल के प्रांगण में पहुँची और हँसते हुए बोली, "अरे अरे अरे! किन्नरों का मांस चखने लायक नहीं होता। सच में, किन्नर का मांस बहुत ही सही नहीं होता। और तो और, अगर एक बार किन्नर का रक्त पी लिया जाए तो सच में हमारी जीभ का स्वाद खराब हो जाता है।" इतना कहकर राजकुमारी सुंदरा वहाँ से चली गई।
इतना कहकर राजकुमारी सुंदरा के जाने के बाद महाराज सत्यम फिर से आए और अपनी तलवार और एक हाथ में विष का कटोरा लेकर आए, जिसमें विष भरा हुआ था, और केजला को देते हुए बोले, "यह लो विष और तलवार। या तो हमें विष पिला दो या तलवार से मार दो। अब यह अंतिम फैसला तुम्हारा होगा, केजला जी।"
केजला गुस्से में बोली, "अभी-अभी राजकुमारी सुंदरा भी हम किन्नरों का बहुत घटिया अपमान करके गई है, और इस अपमान का बदला हम अवश्य लेंगे। अरे सत्यम सिंह राठौड़! आपका तो खून में ही किन्नरों का अपमान करना लिखा है। हम यह अपमान कभी नहीं सहेंगे! पर महाराज सत्यम, आपकी बात अधूरी रह गई थी। आपने एक किन्नर की गलती सभी किन्नरों को क्यों दी और हमें समाज से क्यों हटाया? हमें इसका जवाब चाहिए और महाराज, हमें जवाब अभी के अभी चाहिए।"
राजा सत्यम बोले, "आज से 28 वर्ष पूर्व एक किन्नर ने हमारा भोजन झूठा कर दिया था और हमारा अपमान भी किया। इसलिए हमने उसे, उस किन्नर को राज्य से निकलवा दिया। साथ ही साथ हमने सभी किन्नरों को भी राज्य से निकलवा दिया। यह हमारी सबसे बड़ी गलती थी।"
केजला बोली, "महाराज, आपने निम्न और उच्च जाति को क्यों अलग किया? आखिर उनकी भी क्या गलती थी?"
महाराज सत्यम रोते हुए बोले, "हमने बचपन से निम्न और उच्च जाति में भेद सीखा और उसी का यह परिणाम है। जो इसका कारण बना, निम्न जाति और उच्च जाति का भोजन अलग करवाने का। इसलिए यह गलती हमारी थी कि हमने कभी निम्न जाति और उच्च जाति को मिलना नहीं, बल्कि अलग रहना सिखाया था। हमें नहीं पता था कि निम्न जाति और उच्च जाति के लोग मिल-जुलकर आपस में खुशियाँ मनाते हैं और हम उनकी खुशियों को बिखेरने वाले राक्षस बन गए।"
केजला गुस्से में चीखकर बोली, "महाराज जी, किन्नर ने आपको झूठा भोजन खिलाया था। वह किन्नर हमारी सगी बहन थी और वह भोजन झूठा नहीं था। बल्कि जिस प्रकार श्री राम को शबरी ने झूठे बेर खिलाए थे, उसी प्रकार हमारी बहन ने आपको झूठा भोजन खिलाया था। क्या वह झूठा भोजन खाने में अच्छा है या बुरा? और उसने आपका अपमान नहीं किया था महाराज। आपने जब उस किन्नर को राज्य से निकलवा दिया तो हमारी सगी बहन ने भी आत्मदाह कर लिया और इसका मुख्य कारण आप हैं, महाराज। आज आपकी वजह से हमारी बहन ने अपमान के घूंट को पीकर अपना आत्मदाह किया था और उसका मुख्य कारण आप हैं, महाराज। आज आपकी वजह से हमने अपनी सगी बहन का त्याग करना पड़ा, महाराज। इसलिए हम आपसे इस महल का, इस राज्य का राजसिंहासन माँगते हैं। क्या आप देने में समर्थ हैं महाराज? क्या आप हमको केशवापुर राज्य का राजसिंहासन देंगे? बोलिए महाराज, हमें आपके जवाब का बेसब्री से इंतजार है।"
राजा सत्यम रोते हुए स्वर में बोले, "आपको तो पता है कि हमारी बेटी राजकुमारी कुंद्रा को श्राप मिला हुआ है कि उनकी शादी एक नपुंसक पुरुष से होगी और वही इस राज्य का राजा होगा। फिर भी आप यह सब माँगती हैं।"
केजला तेज स्वर में बोली, "महाराज, इसीलिए तो हम यह राजसिंहासन माँग रहे हैं कि राजकुमारी कुंद्रा की शादी एक नपुंसक से करवा सकें। यह सब विधि का विधान है महाराज। यह हम नहीं कर रहे, बल्कि भगवान हमसे करवा रहे हैं। हमारे ईष्ट देवी बहूचरा एवं ईष्टदेव भगवान शिव हमसे यह करवा रहे हैं।"
राजा सत्यम रोते हुए बोले, "ठीक है। अगर आप राजसिंहासन चाहती हैं तो केशवापुर का राज्यसिंहासन आपको दिया।"
केजला हँसते हुए बोली, "हाय हाय! राजा सत्यम ने हमारे प्रतिशोध की ज्वाला को शांत कर दिया। आज से हम इस राज्य की महारानी हुईं और आप चिंता मत कीजिए, राजकुमारी कुंद्रा का विवाह एक नपुंसक से ही होगा। मर्द से तो हर कोई विवाह करना चाहता है, पर यह अनोखा इतिहास होगा जब एक रानी एक नपुंसक से विवाह करेगी।"
तभी रानी कला बोली, "अब तो हमारी बेटे को बख्श दीजिए केजला जी।"
केजला बोली, "अपने राजकुमार अंकन को किन्नर बनने का श्राप तो दे ही दिया है, तो अब इनको किन्नर बन जाने दीजिए। अभी आज से इनका नाम अंकन नहीं, बल्कि अंकना होगा और आज से हम इनको अपनी राज्य में विशेष स्थान देते हैं। आज से यह हमारे बड़े दरबार में नौकरी किया करेंगे और सबका मन मोह लेंगे।"
तभी राजकुमारी कुंद्रा बोली, "केजला जी, क्या हमको भी एक नपुंसक से शादी करनी पड़ेगी?"
केजला हँसते हुए बोली, "वह तो समय ही बताएगा कि तुम्हारी शादी एक नपुंसक से होगी या एक वीर पुरुष से।"
तभी राजा सत्यम बोले, "कि आप अपनी-अपनी अब अपनी-अपनी कक्ष में जाएँ। जो होना था वह हो गया और कल रानी केजला का राज्याभिषेक होगा।"
केजला हँसते हुए अपने महल में बलखाते हुए, ताली बजाते हुए अपने कक्ष में चली गई और बाकी किन्नर महल से बाहर अपने घरों में चली गईं।
दोपहर के समय राजकुमारी कुंद्रा अपने कक्ष से अचानक गायब हो गई। जब रानी शुभांगी राजकुमारी कुंद्रा के कक्ष में आईं तो देखा कि राजकुमारी कुंद्रा कहीं पर नहीं है। जैसे ही उन्हें उनके बिस्तर पर पड़ा हुआ एक पत्र मिला और रानी शुभांगी उसे पत्र पढ़ती हैं तो पत्र को पढ़कर हैरान हो जाती हैं और पत्र पढ़कर थोड़ी ही देर में बेहोश हो जाती हैं।
क्या केजला अपना राज्य अभिषेक होने के बाद महाराज सत्यम एवं उनके परिवार को महल से निकाल देगी?
राजकुमारी कुंद्रा कहाँ गायब हो गई?
दोपहर के समय, राजकुमारी मुंद्रा अपने कक्ष से गायब हो गई। जब रानी शुभांगी राजकुमारी मुंद्रा के कक्ष में गईं, तो उन्होंने देखा कि राजकुमारी कहीं नहीं थी। उनके बिस्तर पर एक पत्र पड़ा था। रानी शुभांगी ने उसे पढ़ा और हैरान होकर बेहोश हो गईं।
राजकुमारी कुंद्रा राजकुमारी मुंद्रा के कक्ष में आईं और रानी शुभांगी को मूर्छित अवस्था में, हाथ में एक पत्र लिए पाया। राजकुमारी कुंद्रा ने रानी शुभांगी को उठाकर बिस्तर पर लिटाया और उनके चेहरे पर पानी के कुछ बूंदे छिड़कीं। इससे रानी शुभांगी को होश आया। होश में आते ही रानी शुभांगी बोलीं, "राजकुमारी मुंद्रा को वापस लाओ! राजकुमारी मुंद्रा को वापस लाओ!"
रानी शुभांगी की हालत देखकर राजकुमारी कुंद्रा घबरा गईं, पर उन्होंने धैर्य से कहा, "माता श्री, आप शांत हो जाओ। जीजी यहीं पर, इसी महल में है।"
यह सुनकर रानी शुभांगी को गुस्सा आया। उन्होंने राजकुमारी कुंद्रा को एक पत्र दिखाते हुए कहा, "पहले पुत्री, इस पत्र को पढ़ो।" यह पत्र राजकुमारी मुंद्रा ने लिखा था। राजकुमारी कुंद्रा ने पत्र पढ़ा और वह भी हैरान हो गई।
राजकुमारी कुंद्रा ने रानी शुभांगी से कहा, "माता श्री, आप चिंता न कीजिए। हम राजकुमारी मुंद्रा को ढूंढ कर लाएँगे। जब तक इस बात का पता किसी को नहीं चलना चाहिए कि राजकुमारी मुंद्रा इस महल से गायब है।"
यह बात कोई चुपके से सुन रहा था।
इधर, रानी किरन अपनी तंत्र विद्या से यह पता लगाने की कोशिश कर रही थीं कि राजकुमार बृजेश को किसने सम्मोहित किया था। रानी किरन को पता चल गया था कि राजकुमार बृजेश पर सम्मोहन हुआ था, पर सम्मोहन करने वाले का पता अभी तक नहीं चल पाया था।
इधर, राजा भूरान केजला से मिले और कहा, "अगर आप हमारा एक काम करती हैं, तो हम आपके लिए ऐसा काम करेंगे, जिसके बारे में आपने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा।"
"आय हाय हाय! आप तो अपने बेटे, राजकुमार बृजेश को यहां का राजा बनाने आए थे, लेकिन वह नपुंसक हो गया। अब आपको हमसे क्या काम है? बोलिए महाराज भूरान," केजला बोलीं।
"मैं आपसे एक महत्वपूर्ण काम चाहता हूँ। अपनी योग विद्या से हमारे नपुंसक पुत्र को फिर से मर्द बना दीजिए," राजा भूरान बोले।
"आय हाय हाय! अगर हम आपका यह काम करती हैं, तो आप हमारी क्या मदद करेंगे? इसके लिए हम यह काम अवश्य करेंगी," केजला बोलीं।
"हमारे पास नागों की दी हुई एक पीत मणि है। जिसके पास यह होगी, वह कुछ भी कर सकता है, संसार की सभी शक्तियाँ हासिल कर सकता है," राजा भूरान बोले।
"अगर वह पीत मणि कुछ भी कर सकती है, तो हमारे नपुंसक पुत्र को मर्द भी बना सकती होगी। आप ऐसा क्यों नहीं करते?" केजला बोलीं।
राजा भूरान कुटिलता से बोले, "अगर आप चाहें तो वह पीत मणि हासिल करके अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त कर सकती हैं। अष्ट सिद्धियों का प्रयोग आप किसी को सम्मोहित करने या किसी से कुछ भी करवाने में कर सकती हैं। पर अष्ट सिद्धियाँ हासिल करने के लिए एक अघोर साधना करनी होती है। उसके फलस्वरूप आप इस पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली किन्नर बन जाओगी।"
केजला हँसते हुए कुटिलता से बोलीं, "अगर वह पीत मणि इतनी शक्तिशाली है, तो आप ही क्यों नहीं बने सबसे शक्तिशाली? मुझे अपनी बातों में मत फँसाओ। मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि आपके दिमाग में क्या षड्यंत्र चल रहा है।"
राजा भूरान कुटिलता से बोले, "पीत मणि की पूजा केवल वही इंसान कर सकता है जो पहले से ही शक्तिशाली हो, जिसके अंदर तामसिक प्रवृत्ति न हो, जो ऊपर से नीचे पूजनीय हो, जिसने हमेशा ब्रह्मचर्य का पालन किया हो।"
तभी केजला गुस्से में राजा भूरान के गाल पर थप्पड़ मारते हुए बोलीं, "फूटी किस्मत तेरी! आप हमारे साथ षड्यंत्र रच रहे हैं और हमें उल्लू बनाने की कोशिश कर रहे हैं! इस संसार में किन्नरों का कितना अपमान होता है, यह तुम्हें पता है? फिर भी, अगर हमारे अंदर इतनी शक्ति होती, तो हम खुद मर्द या औरत में तब्दील नहीं हो जाते।"
राजा भूरान लज्जित हुए और अपमान का घूंट पीकर वहाँ से चले गए।
इधर, राजकुमारी सुंदरा महल की मुख्य छत पर नृत्य कर रही थी और अपनी मनमोहिनी अदाओं से सैनिकों को बहका रही थी। एक सैनिक इतना बहक गया कि वह अपना आपा खो बैठा और राजकुमारी सुंदरा के बहुत करीब आ गया। राजकुमारी सुंदरा ने उसे आँखों ही आँखों में सम्मोहित कर दिया।
इधर, ज्वाला और कंकाली ने राजकुमारी मुंद्रा को सम्मोहित कर दिया था, जिससे वह गायब हो गई थी।
इधर, राजकुमारी मुंद्रा एक जंगल में पहुँच गई, जहाँ एक राजकुमार, विराम नाम का, था। उसका शरीर बहुत आकर्षक था। उसकी आकर्षक काया देखकर राजकुमारी मुंद्रा उस पर फिदा हो गई और उसके होठों पर एक चुंबन दे दिया। राजकुमार विराम भी राजकुमारी मुंद्रा पर मोहित हो गए और उसके होठों से होठ मिलाकर चुंबन करने लगे। चुंबन के बाद, राजकुमार विराम ने राजकुमारी मुंद्रा की कमर पर हाथ फेरा। राजकुमारी मुंद्रा सिहर गई। राजकुमार विराम ने मुंद्रा को जकड़ लिया। दोनों के वक्ष स्थल आपस में टकरा गए। फिर से राजकुमारी मुंद्रा विराम के होठों पर चुंबन करने लगी। दोनों चुंबन करते हुए इतने मग्न हो गए कि उन्हें लाज़, लज्जा और समाज का कोई ख्याल नहीं रहा। राजकुमार विराम ने राजकुमारी मुंद्रा की चोली खोल दी। दोनों एक दूसरे से लिपटे हुए थे और होठों पर चुंबन कर रहे थे। फिर राजकुमार विराम ने राजकुमारी मुंद्रा के वक्षों को चूमा और उसके घाघरा उठा दिया। थोड़ी देर बाद, राजकुमार विराम ने राजकुमारी मुंद्रा को अपने आगोश में ले लिया और लगभग पूरी रात उसे आगोश में रखा।
सुबह जब राजकुमार विराम और राजकुमारी मुंद्रा की आँखें खुलीं, तो वे एक दूसरे से नग्न अवस्था में लिपटे हुए थे। आसपास देखकर वे हैरान हो गए।
आखिरकार, राजकुमारी मुंद्रा और राजकुमार विराम ने ऐसा क्या देखा कि वे चकित हो गए?
जब सुबह हुई तो राजकुमार विराम और राजकुमारी मुंद्रा नग्न अवस्था में एक-दूसरे से लिपटे सो रहे थे। जब राजकुमारी मुंद्रा और राजकुमार विराम की आँख खुली, तो वे एक-दूसरे को देखकर हैरान और परेशान हो गए। वे दोनों नग्न अवस्था में पड़े हुए थे और उनके आस-पास प्रजा की भीड़ एकत्रित थी। इससे वे शर्मसार हो रहे थे। तभी एक औरत ने दोनों को कपड़े उठाते हुए कहा,
"देखो, महल की राजकुमारी ने केशवापुर राज्य का नाम बदनाम कर दिया! कहाँ राजा सत्यम अपनी बेटियों के लिए एक शब्द भी नहीं सुन सकते, और आज राजकुमारी मुंद्रा ने यह पाप करके राजा सत्यम के माथे पर कलंक जड़ दिया। श्राप का फल तो मिलना ही था कि एक राजकुमारी राजा सत्यम की इज्जत को मिट्टी में मिलाएगी, और देखिए आज ही बड़ी राजकुमारी ने राजा सत्यम की इज्जत को मिट्टी में मिला दिया, राजा सत्यम की इज्जत को सड़े आम की तरह नीलाम कर दिया।"
तभी राजकुमारी कुंद्रा, राजकुमारी मुंद्रा को ढूँढते हुए वहाँ पहुँची। यह सब देखकर वह भी हैरान और परेशान हो गई। उसे भी राजकुमारी मुंद्रा पर थोड़ा गुस्सा आया, पर वह क्या करती? प्रजा ने उन्हें उस अवस्था में उठाकर राजा सत्यम के भरे दरबार में ले आया। राजा सत्यम अपनी बेटी को एक पराए पुरुष के साथ देखकर हैरान और गुस्से से भर गए। गुस्से में उन्होंने कहा,
"यह क्या किया, राजकुमारी मुंद्रा? आप इतनी समझदार होते हुए भी आप हमारी नाक इस तरह कटवाएँगी पूरे भरे समाज में?"
क्योंकि प्रजा के आने से पहले ही गुप्तचर ने राजा को राजकुमारी मुंद्रा के साथ घटित घटना का हाल सुना दिया था।
तभी प्रजा के सामने से एक औरत बोली,
"महाराज, जो श्राप था उसका परिणाम महाराज जी को मिल गया है। आपकी ही एक बेटी ने आपकी इज्जत को मिट्टी में मिला दिया। आपको इस राज्य का राजा तो क्या, एक दास भी नहीं होना चाहिए। और महाराज, आपको अभी इसी वक्त राजकुमारी मुंद्रा को पूरी प्रजा, पूरे केशवापुर राज्य के सामने फाँसी पर लटकाना होगा क्योंकि राजकुमारी मुंद्रा ने केशवापुर राज्य की इज्जत को नीलाम किया है।"
तभी राजकुमार विराम हाथ जोड़ते हुए राजा सत्यम से बोले,
"महाराज, मुझे माफ कर दीजिए। जो भी हुआ, जवानी के जोश में हुआ। मैं राजकुमारी मुंद्रा को अपनाने के लिए तैयार हूँ, लेकिन मेरे पिता श्री इस बात को नहीं मानेंगे। इसलिए मैं यहाँ का घरजमाई बनकर रहना चाहता हूँ, लेकिन राजकुमारी मुंद्रा को मृत्युदंड न दीजिए।"
तभी राजकुमार विराम के पिता, राजा भूरमल वहाँ आ गए। राजकुमार विराम के गाल पर एक थप्पड़ मारते हुए उन्होंने कहा,
"दुष्ट! तुझे शर्म नहीं आती? जो कार्य तुझे महल में करना था, वही कार्य तूने खुले आसमान के नीचे, वो भी सभी के सामने किया। अगर तुझमें यौवन का ज़्यादा जोश फूट रहा था, तो यह कार्य तू राजकुमारी मुंद्रा के साथ विवाह करके भी कर सकता था। आज तूने हमारी नाक कटवाई है, इसलिए हम अभी इसी वक्त तुम्हें अपने महल से निकालते हैं।"
इतना कहकर राजा भूरमल वहाँ से चले गए। ना चाहते हुए भी राजा सत्यम को यह घोषणा करनी पड़ी कि राजकुमारी मुंद्रा का विवाह राजकुमार विराम से होगा, वह भी आज रात्रि को। "हमारा आदेश ही हमारा शासन है।"
तभी केजला गुस्से में बोली,
"हाय! हाय! महाराज! आपको थोड़ा सा भी ज्ञान है कि आप क्या कर रहे हैं? इस राज्य की रानी हम हैं, और फैसला भी हम लेंगी कि राजकुमारी मुंद्रा को क्या सज़ा मिलेगी। इसका मतलब यह नहीं कि आप इसी वक्त अपना फैसला बदल दें। और आप इस समय इस राज्य के राजा नहीं हैं, बल्कि हम इस राज्य की महारानी हैं।"
राजा सत्यम बोले,
"अभी आपका राज्याभिषेक नहीं हुआ है। तब तक हम इस राज्य के राजा हैं। और आज दोपहर को, जब आपका राज्याभिषेक होगा, तब आप इस राज्य की महारानी होंगी।"
केजला उच्च स्वर में बोली,
"शादी तो रात को होगी, और हम रात्रि को कुछ ऐसा करेंगे कि आपकी बेटी को सभी के सामने पैरों की झूठी धोबिन को पीना पड़ेगा।"
रानी शुभांगी केजला के सामने हाथ जोड़ते हुए बोलीं,
"कृपया करके यह शादी होने दीजिए। इसने जो करना था, वह तो स्वयं हो गया, और श्राप के अनुसार इसने हमारे पति, यानी राजा सत्यम की इज्जत को मिट्टी में मिला दिया। शादी के बाद इसको इसी राज्य में रहने दीजिए।"
रानी शुभांगी की बात सुनकर केजला कुटिलता भरी मुस्कान के साथ मुस्कुराई और वहाँ से चली गई।
दोपहर के समय, ढोल-नगाड़ों के साथ केजला का राज्याभिषेक राजा सत्यम ने करवाया। जैसे ही राज्याभिषेक हुआ और केजला केशवापुर की महारानी बन गई, उसने ऐलान करते हुए कहा,
"आज से राजा सत्यम, रानी शुभांगी और रानी कला इस महल के दास-दासियों का कार्य करेंगे। यह हमारा ऐलान ही हमारा अंतिम वचन है। राजकुमारी मुंद्रा की शादी राजकुमार विराम से तो होगी ही, लेकिन वे भी हमारी दास-दासियाँ होंगे।"
यह सब सुनकर महामाया का क्रोध और भी बढ़ गया। वह गुस्से में केजला से बोली,
"अभी भी तुम्हारा अपमान का घूँट पूरा नहीं हुआ है जिसकी वजह से तुम सभी से बदला लेती जा रही हो। राजा सत्यम का पूरा राज्य हड़प लिया और उसके बाद भी तुम्हें थोड़ी सी भी शर्म और लज्जा नहीं है! जिसके वजह से तुम्हें यह पूरा राज्य मिला, और तुम उसी को दास बना रही हो। थोड़ी तो शर्म करो, केजला! इन पापों को लेकर तुम कहाँ जाओगी?"
केजला चीख-चीखकर बोली,
"ऋषिका महामाया! वह तो खैर मानिए कि हमने आपको कोई कार्य नहीं सौंपा, वरना हम आपको ऐसा कार्य सौंपतीं जिससे आपकी रूह भी काँप जाती। आप अपने आप को बड़ी कालदर्शी महामाया मानती हैं, तो आप चाहती तो श्राप के प्रभाव को कम कर सकती थीं, लेकिन आपने राजा सत्यम के श्राप के प्रभाव को कम नहीं किया। क्यों? क्योंकि आप पहले राजा सत्यम से बदला लेना चाहती थीं, और इसी वजह से राजा सत्यम..."
राजा सत्यम यह सब सुनकर होश-बेहोश हो गए और केजला से पूछते हुए बोले,
"आगे क्यों नहीं बोला? बोलिए, आप क्या कहना चाहती हैं? महामाया हमसे किस चीज़ का बदला लेना चाहती है?"
केजला बोली,
"राजा सत्यम महाराज, बचपन में तो कोयल और कौवे के बच्चे भी एक जैसे लगते हैं, उनमें भेद करना मुश्किल होता है, लेकिन हम आवाज़ से ही कोयल और कौवे का भेद कर पाती हैं। उसी प्रकार आपने कभी महामाया की सच्चाई जानने की कोशिश ही नहीं की कि आखिर आपकी महल में क्यों आई? क्यों रानी कला ने आपसे दूसरा विवाह किया, जबकि आपको इस केशवापुर राज्य में श्राप का कारण भी पता था?"
केजला की बात सुनकर राजा सत्यम भी सोच में पड़ गए। आखिर रानी कला ने उनसे विवाह क्यों किया? वे रानी कला से तेज स्वर में बोले,
"बोलिए, रानी कला! क्यों किया था आपने विवाह, जबकि आपको पता था कि हम पर श्राप का साया है?"
रानी शुभांगी भी बोलीं,
"कि हमें तो उस डायन औरत ने भी श्राप दिया था, फिर भी उसके बाद भी आपने राजा सत्यम से विवाह क्यों किया, कला? क्यों किया? हमें भी इसका जवाब चाहिए। आखिर कौन हैं आप, और आप किस चीज़ का बदला लेना चाहती हैं?"
रानी कला बातों को घुमाते हुए, कुटिलता भरे शब्दों में कहती है,
"महाराज, आपको कोई गलतफहमी हुई है। हमने आपसे विवाह इसलिए किया क्योंकि हम आपसे प्रेम करती थीं। और जब प्रेम किसी से हो जाए, तो ना तो वह अच्छाई देखता है और ना बुराई। और महाराज, हमने आप में केवल अच्छाइयों को ही चुना, इसलिए हमने आपसे विवाह किया। हमने कभी भी आपके साथ कुछ गलत नहीं किया, और ना ही हमारा कोई मकसद है।"
महारानी केजला बोली,
"अभी-अभी हम इस राज्य की महारानी बनी हैं, और हमारी महल में इस अपने गृह-क्लेश को बंद कीजिए। अब हम सब आपको रात्रि विवाह में मिलेंगे।"
रात्रि में विवाह के समय कुछ ऐसा होगा जिससे सभी की रूह काँप जाएगी।
आखिर क्या मकसद है रानी कला और महामाया का?
केजला के कहने अनुसार, महल के मुख्य प्रांगण में विवाह की भव्य तैयारी शुरू हुई। केजला ने राजकुमारी मुंद्रा के विवाह मंडप को बहुत अच्छे से सजाया था। आखिर केजला के दिमाग में क्या षड्यंत्र था? कौन सा विषाद चल रहा था? आखिर वह क्या करने वाली थी?
जब राजकुमारी मुंद्रा दुल्हन के रूप में सजी, तो वह अत्यंत सुंदर लग रही थी; मानो कोई स्वर्ग से उतरी अप्सरा हो। मंडप में पहुँचते ही राजकुमार विराम उनकी ओर देखते ही रह गए। राजकुमारी सुंदरा की नज़र सीधे राजकुमारी मुंद्रा के सुंदर रूप पर पड़ी, जिसे देखकर उसे अत्यधिक गुस्सा आया और उसका चेहरा लाल हो गया; वह और भी बदसूरत लगने लगी।
इधर, रानी किरण, कुटिलता के विष से भरी हुई थी। अब उसे कुटिलता के विष का कमाल दिखाने का समय आ गया था। राजकुमारी मुंद्रा को काल विष में कुटिलता का विष मिलाकर पिलाया गया था।
तभी राजकुमारी सुंदरा ने दोपहर को जिस सैनिक को सम्मोहित किया था, उसे बुलाया, तलवार ली और राजकुमारी मुंद्रा को मारने के लिए बढ़ी। लेकिन राजकुमार विराम सामने आ गए और राजकुमार विराम का सिर धड़ से अलग हो गया; उनकी मृत्यु हो गई। यह देखकर सभी चकित हो गए। यह सब देखकर प्रजा भी राजकुमारी सुंदरा के रूप को देखकर चकित हो गई, क्योंकि आज तक उन्होंने राजकुमारी सुंदरा का सौम्य रूप ही देखा था। पर आज उनके खूंखार रूप ने सभी की रूह काँप उठाई।
यह सब देखकर राजकुमारी मुंद्रा मूर्छित हो गई। रानी शुभांगी ने राजकुमारी सुंदरा के गाल पर थप्पड़ मारते हुए कहा,
"यह तुमने क्या किया? आज तक तुमने एक चींटी को भी नहीं मारा और आज तुमने ब्रह्महत्या कर दी, और वह भी तलवार से! तुम्हें तो तलवार चलाना भी नहीं आता।"
इतने में राजकुमारी सुंदरा को इतना गुस्सा आया कि उसने रानी शुभांगी को पलटकर थप्पड़ मारा और उनके पेट पर जोरदार पैर से प्रहार किया जिससे रानी शुभांगी मूर्छित हो गई।
यह सब देखकर राजकुमारी मुंद्रा को गुस्सा आया। वह चीखते हुए बोली,
"सुंदरा, तुम यह क्या कर रही हो? तुम्हें क्या हो गया है? तुम चाँद की तरह कोमल थीं, और आज दहकते हुए अग्नि गोले की तरह क्यों बन गई हो? इसका जवाब दो।"
राजकुमारी सुंदरा बोली,
"आप शांत होंगी क्या? क्या आपको भी विराम की तरह शांत कर दें?"
यह सब देखकर राजा सत्यम की आत्मा भी काँप उठी, पर उसने धैर्य से काम लिया और राजकुमारी सुंदरा को सैनिकों से पकड़वाने का आदेश दिया। लेकिन सभी सैनिक राजकुमारी सुंदरा को पकड़ना नहीं चाहते थे, क्योंकि वे उसकी मनमोहक अदाओं पर मोहित थे।
राजा सत्यम बार-बार कहने पर भी सैनिक उसकी बात नहीं सुन रहे थे। तब राजा सत्यम को समझ आया कि केजला ने उनसे कुछ कहा होगा। उसने केजला से विनती करते हुए कहा,
"महारानी, कृपा करके राजकुमारी सुंदरा को अभी बंदीगृह में डालवा दीजिए।"
केजला कुछ सोचने के बाद बोली,
"ठीक है सत्यम दास, हम तुम्हारी बात मानेंगे। तुम्हारी दासी पुत्री को अभी बंदीगृह में डालवाते हैं।"
महारानी केजला ने सभी सैनिकों को आदेश दिया,
"इसी वक्त दासी सुंदरा को बंदीगृह में डाला जाए।"
लेकिन सभी सैनिक राजकुमारी सुंदरा की मनमोहक अदाओं से मोहित थे। उनमें से एक सैनिक बोला,
"अगर आपने राजकुमारी सुंदरा को हाथ लगाया, तो हम सभी सैनिक आपके सिर धड़ से अलग कर देंगे। हम आपको मौत के घाट उतार देंगे। इसलिए आपके लिए बेहतर होगा कि आप पीछे हट जाएँ।"
यह सुनकर केजला को बहुत गुस्सा आया। वह चीखकर बोली,
"अगर तुमने हमारा आदेश नहीं माना, तो हम तुम्हारे साथ वो सब करेंगे जो तुमने सपने में भी नहीं सोचा होगा।"
इतना कहकर महारानी केजला ने सभी सैनिकों को अपने जादू-विद्या से सम्मोहित करके स्थिर कर दिया।
महारानी केजला जैसे ही राजकुमारी सुंदरा को स्थिर करने वाली थी, तभी वह उसे स्थिर नहीं कर पाई, क्योंकि राजकुमारी सुंदरा अब डायन के रूप में आ चुकी थी। उसका डायन रूप इतना भयानक था कि सबका दिल दहल गया। यह सब देखकर रानी शुभांगी बोली,
"तुम हमारी बेटी नहीं हो सकती। हमें पहले से ही तुम पर शक था, पर आज हमारा यह शक यकीन में बदल गया कि तुम हमारी बेटी नहीं, बल्कि कोई शैतानी शक्ति हो।"
राजकुमारी सुंदरा बनी डायन बोली,
"मैं हूँ डायन! मैं वह डायन हूँ जिसे तुम्हारी पुत्री कुंद्रा ने अपने दिव्य जल की शक्ति से कुछ समय के लिए अंधा कर दिया था, लेकिन अब मैं अपना बदला लेने आई हूँ। मैं राजकुमारी कुंद्रा से नहीं, बल्कि पूरे केशवापुर से बदला लेने आई हूँ।"
यह सुनकर महारानी केजला चीखकर बोली,
"हमारे होते हुए तुम एक इंसान को नहीं मार सकती। समझी? हम तुम्हें अभी भस्म कर देंगे।"
इससे पहले कि केजला कुछ करती, राजकुमारी सुंदरा बनी डायन हँसते हुए अपनी चोटी के बालों को बढ़ाती है और केजला को अपने बालों से जकड़ लेती है। जकड़ने के बाद डायन बोली,
"तुम मुझे बंदी बनाओगी? मैंने तुम्हें ही बंदी बना लिया है। अब तुम कुछ नहीं कर सकती। मैं एक डायन हूँ!" राजकुमारी सुंदरा बनी डायन सभी सैनिकों की प्राण शक्ति हरने लगी, जिससे वे बूढ़े होते गए।
तभी महान ऋषिका सुमन्या आईं और पीछे से वार करके राजकुमारी सुंदरा बनी डायन की चोटी काट दी। इससे राजकुमारी सुंदरा बनी डायन मूर्छित हो गई और महान ऋषिका सुमन्या ने उस डायन की आत्मा को एक बड़े पात्र में कैद कर लिया।
इस प्रकार राजकुमारी सुंदरा डायन के रूप से मुक्त हो गई।
लेकिन राजकुमारी मुंद्रा टूट गई थी, क्योंकि उसकी एक आस, राजकुमार विराम, डायन ने मार डाला था। वह बहुत घबरा गई और अपनी बहन की हालत देखकर रोने लगी।
तभी केजला ने राजा सत्यम से कहा,
"दास सत्यम, आपकी दोनों बेटियाँ बच गईं, लेकिन आपकी बड़ी बेटी, दासी मुंद्रा को कौन बचा पाएगा? इसे देखते हुए, कल दोपहर सभी प्रजा के सामने उसे फाँसी दी जाएगी।"
यह सुनकर रानी शुभांगी फिर मूर्छित हो गई। राजकुमारी कुंद्रा गहन सोच में पड़ गई कि उसे कुछ करना होगा, नहीं तो वह अपनी बहन को हमेशा के लिए खो देगी।
क्या राजकुमारी कुंद्रा राजकुमारी मुंद्रा को बचा पाएगी?
जिसे सुनकर रानी शुभांगी फिर से मूर्छित हो गईं। राजकुमारी कुंद्रा गहन सोच में पड़ गई कि हमें कुछ करना होगा। अगर हमने कुछ नहीं किया, तो जीजी को हम हमेशा के लिए खो देंगे।
रात्रि का समय चल रहा था। तब कहीं जाकर राजकुमारी सुंदरा को होश आया। होश आने के बाद राजकुमारी सुंदरा बोलीं, "हम तो उस जंगल में थे और वो बवंडर भी आया। उसके बाद हम महल में कैसे आए, ये सब... कुछ हमको याद क्यों नहीं आ रहा है? और दास के कमरे में क्या कर रहे थे? हमारा कक्ष कहाँ है? हमें कुछ याद क्यों नहीं आ रहा है?"
रानी शुभांगी बोलीं, "थोड़ा धीरज रखिए। हम सब कुछ आपको विस्तार पूर्वक समझा देंगे। अभी आप आराम कीजिए।"
तभी राजकुमारी मुंद्रा, जिनके शरीर में अभी भी कुटिलता का विष था, और उस विष के प्रभाव के कारण वह राजकुमारी सुंदरा से बोलीं, "इस सब का कारण तुम हो, सुंदरा। आज तुम्हारी वजह से हम हमारे होने वाले पति की जान गई। तुमने अपने हाथों से हमारे होने वाले पति का खून कर दिया। और ऊपर से यह कह रही हो कि हम कहाँ हैं और हमको क्या हुआ है? इन सब का कारण तुम हो। अगर हम चाहें तो तुम्हें अभी अपने हाथों से मार दें। तुम हमारी बहन हो, इसलिए हम तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकतीं। आज तुम्हारी वजह से तुम्हारी बड़ी बहन मृत्यु को स्वीकार करेगी। कल पूरी प्रजा के सामने हमको मृत्युदंड दिया जाएगा। इन सब का कारण तुम हो।"
इतना सुनते ही राजकुमारी सुंदरा रोने लगीं और रोते हुए स्वर में बोलीं, "जीजी आप यह क्या कह रही हो हमारे बारे में? हमने आपके होने वाले पति का खून कर दिया और हमको यह आभास भी नहीं है कि हमने खून किया है और उसका कारण भी हम हैं। हमें समझ नहीं आ रहा कि हमारे साथ क्या हुआ था।"
रानी शुभांगी, राजकुमारी मुंद्रा को आँख दिखाते हुए शांत रहने का इशारा किया और फिर राजकुमारी सुंदरा से बोलीं, "बेटी, तुम आराम करो और दिमाग पर ज़्यादा ज़ोर मत डालो।"
रानी शुभांगी इतना ही कह पाई थीं कि तभी वहाँ पर केजला आ गई और कुटिलता भरे शब्दों में हुक्म देते हुए बोली, "आय हाय हाय! देखो तो माँ बेटी का भरत मिलाप चल रहा है! अरे ओह दासी शुभांगी! चल, भोजन पका! जल्दी कर! पूरे पाँच सौ किन्नरों का भोजन पकाना है तुझे! और अपनी सौतन और अपनी बेटियों को भी लगा काम पर! समझी? जल, जल्दी कर!"
केजला की बात सुनकर, राजकुमारी सुंदरा, रानी शुभांगी से कुछ पूछ पाती, उससे पहले ही रानी शुभांगी वहाँ से चली गईं और साथ में राजकुमारी कुंद्रा और मुंद्रा भी चली गईं।
केजला अपने कक्ष की ओर जा रही थी, तभी ज्वाला और कंकाली, महारानी केजला को रोककर बोलीं, "कृपया करके हमें अपनी दासी न बनाएँ। अगर आप हमें दासी नहीं बनाएँगी, तो हम आपकी किन्नरों की सोलह सिद्धियों को प्राप्त करने में मदद करेंगी, लेकिन हमें दासी न बनाएँ।"
केजला हँसते हुए बोली, "आय हाय हाय! तुम दोनों स्त्रियाँ ही हो ना या कुछ और हो? खैर छोड़ो। वैसे भी हम तुम्हें अपनी दासी ही बनाएँगी, लेकिन अभी आप अपने मेहमान कक्ष में आराम करें।"
इधर राजा भूरान, रानी किरन से बोले, "अब हमें अपने महल चल जाना चाहिए। अब यहाँ हम कुछ नहीं कर सकते।"
रानी किरन गुस्से में बोलीं, "महाराज! आपकी बुद्धि स्थिर तो है ना? न तो आप एक अच्छे राजा ही बन पाए, और न ही एक अच्छे पति, और न ही एक अच्छे पिता। और तो और, हमारे पुत्र नपुंसक हो गए हैं। और उनको किसने इस महल में नपुंसक बनाया है, वो हम जानकर ही रहेंगी। इसके लिए हमें किसी भी हद तक क्यों न जाना पड़े, हम सारी हदें पार कर देंगी इस बार।"
राजा भूरान बोले, "पर हम करें तो क्या करें? बदला लेने के बाद क्या नपुंसक पुरुष को प्रजा अपनाएगी?"
रानी किरन बोलीं, "अवश्य अपनाएगी! आपको ज्ञात नहीं, श्राप के अनुसार कुंद्रा का विवाह नपुंसक पुरुष के साथ होगा और वही इस राज्य का राजा होगा। लेकिन जब श्राप के अनुसार कुंद्रा का नपुंसक पति राजसिंहासन पर बैठ सकता है, तो हमारा पुत्र क्यों नहीं?" इतना कहकर रानी किरन कुटिलता भरी मुस्कान से मुस्कुराईं।
इधर रानी कला और रानी शुभांगी खाना बना रही थीं। तभी रानी कला, रानी शुभांगी से बोली, "आज तक हमने कभी खाना नहीं बनाया और आज रानी होकर भी एक दासी की भाँति कार्य कर रहे हैं। सच में केजला का मकसद पूरा हो गया और उसे जो चाहिए था, वह उसने पूरा कर लिया। मन तो करता है कि उसको इस खोलते तेल में तल दें।"
रानी शुभांगी बोलीं, "हमें कुछ करना होगा, वरना केजला हमसे अपना बदला लेती रहेगी और हम कुछ नहीं कर पाएँगी। अभी हमें इस बात का डर है कि उस डायन औरत की बात सत्य न हो जाए। हमें हर हालत में उसका श्राप विफल करना होगा।"
रानी कला बोली, "आखिर उस श्राप के कारण आपके चार बच्चे होंगे, लेकिन हुए तीन। आपका चौथा पुत्र या पुत्री अभी भी नहीं हुआ। आखिर उस श्राप का अर्थ क्या था?"
रानी शुभांगी कुछ बोलने ही वाली थीं, तभी एक किन्नर आई और ताली पर ताली बजाकर बोली, "अरे अरे! यहाँ खाना बनाने आई हो तो खाना बनाओ, न कि चुगली करो! समझी? जल्दी से खाना बनाओ, समझी? वरना तुम्हें ही कच्चा न चबाना पड़े!"
किन्नर के जाते ही रानी कला गुस्से से तिलमिला गई और बोली, "आज यह केजला का अंतिम भोजन होगा," और कुटिलता भरी मुस्कान के साथ मुस्कुराई।
इधर राजकुमारी मुंद्रा महल के एक कोने में रो रही थी क्योंकि उन्हें पता था कि सभी के सामने उन्हें मृत्युदंड दिया जाएगा। और इसी बात को लेकर वह काफी ज़्यादा चिंतित थी। तभी राजा सत्यम आए और राजकुमारी मुंद्रा के कंधे पर हाथ रखते हुए, और राजकुमारी मुंद्रा को समझाते हुए बोले, "हम जानते हैं कि आप बहुत दुखी हैं, और हो भी। लेकिन हम आपसे वादा करते हैं, हम आपको कुछ नहीं होने देंगे। कृपया करके हमें एक मौका दें। हम आपको साबित करके दिखा देंगे कि हम एक अच्छे पिता हैं।"
राजा सत्यम की बातों पर यकीन करते हुए राजकुमारी मुंद्रा बोलीं, "हमें पूरा यकीन है कि आप हमको बचा लेंगे। लेकिन इस दिल को कैसे यकीन दिलाएँ कि हम... हम बहुत बड़ी दुविधा में हैं, पिताश्री। अगर हम बच जाते हैं, तो दुनिया के तानों से कैसे बचेंगे? कृपया करके हमारी मदद कीजिए।" इतना कहकर राजकुमारी मुंद्रा की आँखों से आँसू बहने लगे।
राजा सत्यम कुछ बोलते, कि पीछे से छड़ी मारती हुई केजला आ गई और बोली, "आय हाय हाय! क्यों दास सत्यम! यहाँ बैठकर शोक मना रहा है कि कल तेरी एक बेटी कम हो जाएगी और तो और, तू एक नकारा पिता होगा जो अपनी बेटी को जल्लाद बनाकर फाँसी देगा।"
यह बात सुनकर राजा सत्यम हैरान और चकित हो गए और आँखों में आँसू भरते हुए बोले, "कृपया करके थोड़ा तो रहम कीजिए महारानी। मैं आपके पैर पड़ता हूँ। कृपया ऐसा कुछ न करें। आप चाहें तो यह सब रोक सकती हैं। तो आपसे अतिविनती है कि आप मेरी बेटी को माफ़ कर दीजिए। आप कहें तो हम देश निकाला दे दीजिए, पर हम सबको मेरी गलतियों की सज़ा इस तरह न दें।"
रानी केजला बोली, "अरे दुष्ट दास! तुझे शर्म आनी चाहिए! तूने अपनी इस दुष्ट बेटी को कुछ अच्छे संस्कार दिए होते, तो तुझे पता चलता कि आज इस पर जो सत्य आरोप है, वो नहीं होता। और कल दुष्ट सत्यम दास, तू जल्लाद बनकर तू अपनी बेटी को स्वयं अपने हाथों से फाँसी देगा, समझा?" इतना सुनकर राजकुमारी मुंद्रा वहाँ से रोते हुए चली गई और राजा सत्यम भी केजला के सामने हाथ जोड़ते हुए रह गए।
इधर राजकुमारी कुंद्रा, राजकुमारी मुंद्रा के बारे में सोच रही थी क्योंकि वह भी नहीं चाहती थी कि राजकुमारी मुंद्रा को कुछ हो। इसलिए वह एक योजना बनाने लगी।
इधर जब केजला खाने के लिए आई और खाना खाने बैठ गई और जैसे ही केजला खाना आरम्भ करती है और पहला निवाला खाती है, तो वह...
आखिरकार क्या किया रानी कला ने केजला के साथ?
आखिरकार किस डायन औरत के श्राप की बात कर रही थी रानी शुभांगी?
क्या योजना बनाएंगी राजकुमारी कुंद्रा?
क्या राजकुमारी मुंद्रा फाँसी के मृत्युदंड से बच पाएँगी?
जब केजला भोजन करने आई और भोजन करने बैठी, जैसे ही उसने पहला निवाला खाया, वह प्यास से चीख उठी। पानी माँगने पर रानी शुभांगी ने उसे पानी दिया। पानी पीने के बाद केजला ने उल्टी कर दी। उल्टी करने के बाद उसने मीठी खीर पी, और फिर भी उल्टी करती रही।
तभी रानी कला ने केजला का उपहास उड़ाते हुए कहा, "एक कौड़ी दाम के संस्कार नहीं और सौ मन सोने के सिंहासन पर बैठने चली।" इतना कहकर रानी कला जोर-जोर से हँसने लगी।
केजला गुस्से में जाते हुए बोली, "दासी कला, हमने तुम्हारा मुँह काला ना किया तो हमारा नाम भी महारानी केजला नहीं।"
केजला के जाते ही रानी शुभांगी ने रानी कला से कहा, "यह तुमने क्या किया? केजला तुमसे अवश्य बदला लेगी।"
रानी कला हँसते हुए बोली, "हमने तो वही किया जो हमें उचित लगा। हमने खाने में थोड़ी सी मिर्च ज़्यादा, पानी में थोड़ा सा नमक ज़्यादा और मिष्ठान में थोड़ी हींग ज़्यादा मिला दी थी, जिसकी वजह से उस केजला का बुरा हाल हो गया।" इतना कहकर रानी कला वहाँ से चली गई।
इधर राजकुमारी कुंद्रा, राजकुमारी मुंद्रा के पास आई और बोली, "जीजी, हम जानते हैं कि आप पर क्या बीत रही होगी। आप हमारी बात मानें तो हम आपको एक सुरक्षित जगह पर पहुँचा सकते हैं। कृपया करके हमारी बात मान जाइए।"
इस समय राजकुमारी मुंद्रा के अंदर कुटिलता का विष उनके खून में तैर रहा था; अर्थात कुटिलता का विष अपनी चरम सीमा पर था। इसलिए गुस्से में राजकुमारी मुंद्रा बोली, "इन सब का कारण आप हैं, कुंद्रा। तो कृपया करके इसी वक्त हमारी आँखों के सामने से दूर हो जाइए।" इतना सुनकर राजकुमारी कुंद्रा चुपचाप वहाँ से चली गई।
रात्रि के मध्य पहर के बाद, रानी कला गुप्त तरीके से कंकाली और ज्वाला से मिलने उनके कक्ष में गई और ज्वाला और कंकाली से बोली, "हमें कैसे भी करके इस बार केजला से बदला लेना होगा।"
कंकाली बोली, "पर रानी जी, तीनों राजकुमारियों का क्या करना होगा? आप तो यह भी चाहती थीं कि तीनों राजकुमारियों को मारना आपका मकसद है।"
रानी कला बोली, "हमको दोनों कार्य एक साथ करने हैं, जैसे कि एक तीर से चार निशाने। समझी कुछ… अच्छा अब हम चलते हैं, वरना कोई आ जाएगा।"
अगली सुबह होने के पश्चात्, जैसे-जैसे सुबह नज़दीक आई, राजकुमारी मुंद्रा की धड़कन तेज होती जा रही थी। और धीरे-धीरे दोपहर का समय आ गया।
केशवापुर के मध्य में एक मैदान था जहाँ अक्सर अपराधियों को फाँसी दी जाती थी। आज तक केशवापुर राज्य में दूसरी बार फाँसी लगाई जा रही थी, राजकुमारी मुंद्रा को।
मैदान में केजला बैठी हुई थी और राजा सत्यम ने जल्लाद की तरह काले वस्त्र पहने हुए थे। राजकुमारी मुंद्रा के चेहरे पर काले रंग के कपड़े से ढका हुआ था। थोड़ी देर बाद, जैसे ही फाँसी का फंदा राजकुमारी मुंद्रा को पहनाया गया, तभी राजा भूरमल, जो कि राजकुमार विराम के पिता थे, पहुँच गए और फाँसी रोकते हुए केजला से कहा, "रुक जाइए! रुक जाइए! यह अनर्थ होने से रोकिए! यह अनर्थ होने से रोकिए!"
महारानी केजला गुस्से में अपने सिंहासन से उठकर बोली, "भूरमल, अब क्यों बचाना चाहते हो इसको? जिसका संबंध तुम्हारे पुत्र से हुआ ही नहीं। अब क्यों? और तो और, तुम्हारे पुत्र को भी मार दिया गया इस राज्य में हमारी आँखों के सामने।"
राजा भूरमल ने कहा, "हमें सब ज्ञात है। अगर आज हम अपने पुत्र को अपना लेते तो सब कुछ ठीक होता, लेकिन भाग्य के लिखे को कोई नहीं बदल सकता। इसलिए हम अपने पुत्र को रोग नहीं बचा सके, लेकिन उसके आने वाले अंश को तो बचा सकते हैं।"
केजला बोली, "जो बोलना है, साफ़-साफ़ बोलिए।"
राजा भूरमल बोले, "हमारे पुत्र का अंश पल रहा है इस राजकुमारी मुंद्रा के अंदर, इसलिए हम इस फाँसी को रोकने आए हैं।"
रानी केजला ने कहा, "यह आप क्या कह रहे हैं? आप इतने यकीन के साथ कैसे कह सकते हैं कि दासी मुंद्रा गर्भवती है?"
राजा भूरमल बोले, "हम इतने यकीन से इसलिए कह सकते हैं, महारानी केजला, क्योंकि हमारे पुत्र ने राजा सत्यम की पुत्री के साथ एक रात गुज़ारी है। इसलिए हमें यकीन है, और अपनी पुत्र की मर्दानगी पर भी यकीन है।"
रानी केजला बोली, "आपके इस यकीन का अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।"
महारानी केजला ने एक दाई को बुलाया और उसने राजकुमारी मुंद्रा का निरीक्षण किया और बोली, "राजकुमारी मुंद्रा गर्भवती है।"
रानी केजला गुस्से में बोली, "यह प्रजा के साथ अन्याय होगा अगर हमने यह फाँसी रोक दी। तो प्रजा इसका विरोध करेगी, और प्रजा के विरोध को कैसे रोकेंगे, बताइए राजा भूरमल?"
राजा भूरमल बोले, "तो इसका क्या उपाय होगा? आप ही बताइए।"
रानी केजला बोली, "इसका मात्र एक उपाय है कि आप स्वयं शादी करके उस दासी मुंद्रा से।"
राजा भूरमल अपने मंत्री के साथ थोड़ी देर के लिए गुप्त वार्तालाप करते हैं। उसके पश्चात् वे केजला के पास आकर बोले, "ठीक है। अगर आपको यह ठीक लगता है तो हमें भी इसमें कोई आपत्ति नहीं है। हम मुंद्रा से विवाह के लिए तैयार हैं।"
रानी केजला पूरी प्रजा के सामने आई और घोषणा करते हुए बोली, "हम केशवापुर की महारानी केजला यह निर्णय लेती हूँ कि दासी मुंद्रा की शादी राजा भूरमल से कर दी जाए।"
यह बात सुनकर सभी हैरान हो गए और राजा सत्यम ने केजला से कहा, "यह आप क्या कर रही हैं, महारानी? थोड़ी तो दया करो।"
केजला गुस्से में बोली, "तुम एक दास हो और दास की सीमा में रहो, समझे? एक तो हम तुम्हारी पुत्री का भला कर रहे हैं, ऊपर से तुम हमको गलत ठहरा रहे हो। चलो, जाओ यहाँ से।"
राजकुमारी मुंद्रा के न चाहने पर भी केजला ने राजकुमारी मुंद्रा का विवाह राजा भूरमल से करवा दिया और राजा भूरमल अपने साथ राजकुमारी मुंद्रा को ले गए।
राजकुमारी मुंद्रा के केशवापुर राज्य से विदा होते ही रानी केजला के साथ कुछ ऐसा हुआ जिससे पूरी प्रजा हैरान हो गई।
आखिरकार विवाह के बंधनों में बंधकर राजकुमारी मुंद्रा के शरीर से कुटिलता का विष समाप्त होगा?
आखिरकार क्या षड्यंत्र रच रही हैं ज्वाला, कंकाली और रानी कला उस केजला के खिलाफ?
राजकुमारी मुंद्रा के न चाहने पर भी, केजला ने राजकुमारी मुंद्रा का विवाह राजा भूरमल से करवा दिया। राजा भूरमल राजकुमारी मुंद्रा को अपने साथ ले गए।
राजकुमारी मुंद्रा के केशवापुर राज्य से विदा होते ही, रानी केजला सभी प्रजा को जाने के लिए कहने ही वाली थी कि उनके पूरे वस्त्र फट गए। पूरी प्रजा के सामने वह अचानक नग्न अवस्था में आ गई। तभी सभी किन्नर रानी केजला के चारों ओर इकट्ठे हो गए। सभी किन्नरों ने रानी केजला को अपने-अपने वस्त्र पहनाए। इस अवस्था को देखकर रानी कला जोर-जोर से हँसने लगी। इसे देखकर केजला को गुस्सा आ गया। गुस्से में उसने कहा, "अरे ओह कला रानी, यह मत भूलो तुम्हारा पुत्र भी एक किन्नर है। तुम एक किन्नर की माँ हो और एक किन्नर की ऐसी अवस्था में हँसी उड़ाते हुए तुम्हें थोड़ी लज्जा आनी चाहिए।"
रानी केजला की बातें सुनकर रानी कला को भी बहुत गुस्सा आ गया। रानी कला ने सभी प्रजा के सामने चीख-चीखकर सवाल किया, "आप लोग शांत क्यों हो? क्या आपको केजला, जो कि एक किन्नर है, स्वीकार्य है? क्या आपने इतिहास में किसी किन्नर को राजा बनते हुए देखा है? तो फिर यह कैसे? बोलिए, क्या आपके पास जवाब है? जो अपने वस्त्रों की रक्षा नहीं कर सकती, वह हमारी रक्षा क्या खाक करेगी? बोलिए, क्या आपको ऐसी महारानी स्वीकार्य है? बोलिए, इसका हमें जवाब दीजिए।"
तभी उस प्रजा में से कुछ लोगों ने कहा, "हाँ, हमें ऐसी महारानी नहीं चाहिए। हमें ऐसी महारानी नहीं चाहिए।"
केजला ने उन लोगों को शांत करते हुए कहा, "आप सभी पहले शांत हो जाइए। आज जो भी हमारे साथ हुआ, वह एक षड्यंत्र था। लेकिन हम अपनी प्रजा का ख्याल बड़ी ही ईमानदारी से रखेंगे। यह हमारा वादा है, और हमारा वादा ही हमारा शासन है।"
तभी कला गुस्से में सभी प्रजा से बोली, "जो रानी अभी अपने षड्यंत्र को नहीं पहचान पाई, वह कल हमारी रक्षा कैसे बाहरी दुश्मनों से करेगी? बोलिए, क्या जवाब है आपके पास? बोलिए, हम किस सुरक्षा के आधार पर इनको महारानी बना सकते हैं?"
तभी प्रजा में से एक बूढ़े आदमी ने कहा, "रानी कला सत्य कह रही है। वैसे भी केशवापुर राज्य के भाग्य में एक नपुंसक महाराजा है, और यह तो एक किन्नर है। इससे बढ़िया होगा कि राजकुमारी कुंद्रा का विवाह करा दिया जाए, और राजा सत्यम को उनका राज्य वापस कर दिया जाए। क्या कहते हो, प्रजा लोग?"
इतना सुनकर प्रजा ने एक स्वर में कहा, "राजकुमारी कुंद्रा का विवाह उस नपुंसक पुरुष से करा दिया जाए। और वह नपुंसक पुरुष एक हजार परीक्षाओं के बाद राजकुमारी कुंद्रा को परीक्षाएं देगी, जो उसे मर्द बनाएगी।"
केजला का पक्ष कमजोर पड़ता देख, रानी केजला सभी को शांत करते हुए बोली, "ठीक है, अगर आप चाहते हैं तो हम राजकुमारी कुंद्रा का विवाह अवश्य करवाएँगे, और उस नपुंसक पुरुष को ही राजसिंहासन पर खुद अपने हाथों से बिठाएँगे। और जब तक हम राजा सत्यम को राजसिंहासन सौंप देंगे।"
रानी कला बोली, "जब तक क्या? अभी इसी वक्त आपको राजसिंहासन छोड़ना होगा। और अभी इसी तीनेगाटी मैदान में, सभी प्रजा के सामने, इसी वक्त राजा सत्यम का राज्याभिषेक कराइए। और हमें हमारा राज्य वापस दीजिए।"
रानी केजला को गुस्सा आ रहा था, लेकिन अपने गुस्से को शांत करते हुए, उसने कहा, "ठीक है, हम इसी वक्त राजा सत्यम का राज्याभिषेक करते हैं।"
इतना सुनकर राजा सत्यम और उनके परिवार के चेहरे पर खुशी के भाव थे। रानी कला खुश भी थी और नहीं भी।
कुछ ही देर में तीनेगाटी मैदान में राजा का राज्याभिषेक होता देख, रानी किरण ने राजा भूरान से शांत स्वर में कहा, "देख लो, तुम्हारे छोटे भाई का नसीब लोहे और स्वर्ण दोनों प्रकार की स्याही से लिखा गया है; तभी तो कभी राजा, तो कभी रंक।" इतना कहकर रानी किरण ईष्र्या से जल उठी।
राज्याभिषेक के बाद केजला ने राजा सत्यम से माफी मांगते हुए कहा, "महाराज, मुझे माफ कर दीजिए। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। लेकिन मुझे सजा मत दीजिए। मैं अपनी इस गलती को सुधारूँगी।"
रानी कला ने बड़े अभिमान और गुस्से में केजला से कहा, "कैसे सुधारेंगी आप अपनी गलती? अरे, यह तो वही बात हो गई, थोथा चना बने घना।"
केजला रोते हुए स्वर में सभी प्रजा के सामने बोली, "मैं करवाऊँगी राजकुमारी कुंद्रा का विवाह, वह भी एक नपुंसक मर्द से; ऐसा नपुंसक मर्द जिसमें राजा बनने के सभी गुण होंगे।" इतना कहकर केजला वहाँ से चली गई।
रानी कला मन ही मन में कहती है, "ऐसा मैं होने नहीं दूँगी। मैं हर हालत में कुंद्रा को काल के दर्शन अवश्य कराऊँगी।"
थोड़ी ही देर में सभी महल पहुँचे। महल के मुख्य दरवाजे पर, एक सैनिक ने राजा सत्यम को गुप्त सूचना दी। राजा सत्यम घबराते हुए महल के अंदर आए और देखते हैं तो वे हैरान और चकित हो जाते हैं। राजकुमार अंकन, जो किन्नर अंकना बन चुके थे, जोर-जोर से नृत्य कर रहे थे। इसे देखकर राजा सत्यम हैरान होकर बोले, "पुत्र, रुक जाओ। इतना घोर नृत्य क्यों कर रहे हो?"
राजा सत्यम के पीछे रानी शुभांगी और बाकी अन्य सब भी आ गए। रानी कला के रोकने पर भी, राजकुमार अंकन नृत्य करते ही जा रहे थे।
यह सब देखकर रानी कला को बहुत ज्यादा गुस्सा आ गया। वह गुस्से में चीखकर बोली, "रुक जाओ पुत्र, रुक जाओ! तुम क्यों नृत्य कर रहे हो? बोलो, क्यों तुम नहीं रुक रहे हो? अपने आप को शांत करो पुत्र।"
तभी केजला आई और गुस्से में चीखकर बोली, "खबरदार! अगर किसी ने हमारी शिष्या अंकना को रोका, तो हम भूल जाएँगे आप यहाँ के राजा-रानी हैं। हमसे राजसिंहासन छीनकर तो बहुत खुशी मिली होगी कला रानी, लेकिन यह मत भूलिए हम अपने अपमान का घूँट पीकर रह गए। और इस बार हम आपसे ऐसा बदला लेंगे, जिसके बारे में पूरा इतिहास काँप उठेगा।"
रानी शुभांगी ने केजला को शांत करते हुए कहा, "शांत हो जाइए। अभी भी आप प्रतिशोध की ज्वाला में जल रही हैं। आप के साथ जो हुआ, वह अगर हमारे साथ होता, तो हम नदी में कूदकर अपनी जान दे देते। और आपने अभी भी कितनी हिम्मत है! आप सच में महान केजला जी हैं। कृपया करके आप हमारी बेटी के बारे में सोचिए, उसका क्या होगा?"
केजला अपने गुस्से को शांत करते हुए बोली, "मैंने जो वादा किया है, वह मैं पूरा करके ही दिखाऊँगी। आप चिंता मत कीजिए। मैंने हर कोने पर अपने गुप्तचर रखे हैं, जो हवा से बातें करते हुए आज रात्रि तक मुझ पर संदेशा भेज देंगे।"
तभी रानी कला कुछ ऐसा करती है जिससे केजला घबरा जाती है।
आखिर क्या चाहती है रानी केजला पूरी?
क्या राजकुमारी मुंद्रा के साथ सही हुआ?
केजला ने अपने गुस्से को शांत करते हुए कहा, "मैंने जो वादा किया है, वह मैं पूरा करके ही दिखाऊँगी। आप चिंता मत कीजिए। मैंने हर कोने पर अपने गुप्तचर बिठाए हैं जो हवा से बातें करते हुए आज रात्रि तक मुझ पर संदेश भेज देंगे।"
तभी रानी कला, गुस्से में केजला की गर्दन पर तलवार रखते हुए बोली, "दुष्ट किन्नर! हमारे पुत्र को रुकने को कहा। वरना हम तुम्हारी गर्दन तुम्हारे शरीर से अलग कर देंगे।"
गर्दन पर तलवार देखकर केजला घबरा गई। घबराते हुए उसने राजकुमार अंकन से कहा, "ठहर जाओ, पुत्री अंकना। तुम्हारी सजा माफ की गई। अब तुम अपने कक्ष में जाओ और आराम करो।"
राजा सत्यम के कहने पर रानी कला ने केजला की गर्दन से तलवार हटा ली।
तभी ऋषिका सुमन्या वहाँ पहुँची और बोली, "महाराज, हमको आपसे एक विशेष गुप्त वार्तालाप करनी है।"
यह सुनकर महाराज सत्यम चले गए।
फिर रानी शुभांगी और रानी कला अपने कक्ष में जा रही थीं, तभी केजला पीछे से बोली, "मैं महान ऋषिका केजला, अवश्य राजकुमारी कुंद्रा का विवाह कराऊँगी।"
यह बात सुनकर एक तरफ रानी शुभांगी खुश हो गई, वहीं दूसरी तरफ रानी कला गुस्से में लाल हो गई।
इधर, राजा भूरान और रानी किरन बात कर रहे थे। राजा भूरान गुस्से में लाल होकर रानी किरन से बोले, "सत्यम की किस्मत सोने की स्याही से लिखी गई है। तभी तो सुनहरे अक्षरों से उसके साथ हमेशा अच्छा होता है। तभी तो वह फिर से राजा बन गया और हम वही के वही हैं।"
रानी किरन ने राजा भूरान को ताना मारते हुए कहा, "अरे अरे राजा भूरान! आप हाथ पर हाथ रखकर बैठिए। अब हमें ही कुछ करना होगा। और हमें यह भी नहीं पता कि राजकुमारी कुंद्रा के अंदर कुटिलता विष कारगर है या नहीं।"
अगली सुबह, एक कबूतर केजला की खिड़की पर आया और बैठ गया। केजला उसके पास गई और उस कबूतर के पंख में से एक चिट्ठी निकाली। चिट्ठी पढ़कर केजला काफी खुश हो गई। वह सीधे राजा सत्यम के पास गई और बोली, "राजा सत्यम, अब आप हमारा मुख मीठा करवाइए। क्योंकि राजकुमारी कुंद्रा के लिए राजकुमार मिल गया है। बस अब आप विवाह की तैयारी कीजिए, जिससे जल्द से जल्द इस केशवापुर को एक नपुंसक राजा मिल सके।"
तभी रानी शुभांगी भी आईं। यह खुशी सुनकर वे थोड़ी खुश हुईं, लेकिन थोड़ी दुखी भी, क्योंकि उन्हें यह विवाह थोड़ा सही नहीं लग रहा था, क्योंकि एक नपुंसक पुरुष से कुंद्रा का विवाह होगा।
तभी केजला ने रानी शुभांगी के चेहरे पर मायूसी के बादल देखे और बोली, "रानी शुभांगी, अरे राजकुमार का नाम आपके नाम से मिलता है! नाम है राजकुमार शुभांग। आप चिंता मत कीजिए, सब कुछ अच्छा ही होगा।"
रानी शुभांगी बोलीं, "राजकुमार शुभांग कहाँ के राजकुमार हैं? और आपको कैसे पता वो नपुंसक है?"
केजला आँख चढ़ाते हुए बोली, "महारानी शुभांगी, राजकुमार शुभांग तिनकपुर से हैं। और हमारी गणनाएँ बता रही हैं कि वह नपुंसक है। यह बात उनके पिता श्री या महल में से किसी को भी पता है। और वह दिखने में काफी आकर्षक है और उनका शरीर ढील-ढोल वाला, मजबूत शरीर है।"
तभी रानी कला आ गई और बोली, "शरीर मजबूत हो या कमजोर, अगर इसमें मर्दों वाली बात ही नहीं है, तो वह मर्द कैसा? और आखिर उसमें राजाओं वाले गुण हैं? आखिर वह इतने बड़े साम्राज्य का राजा कैसे बनेगा?"
केजला बोली, "हाय हाय हाय रानी कला! आप हमसे ईर्ष्या करती हैं, इसका मतलब यह नहीं कि आप राजकुमार शुभांग के बारे में बिना जाने ही कुछ भी ऐसा-वैसा बोल दें। आपको पता है, उनका सबसे अनोखा, भव्य स्वयंवर होने वाला है। और राजकुमारी कुंद्रा को यह हर हाल में जीतना होगा। तभी राजकुमार शुभांग और राजकुमारी कुंद्रा का विवाह होगा।"
तभी राजकुमारी कुंद्रा आई और बोली, "पिता श्री, आपने हमें क्यों बुलाया?"
क्योंकि राजा सत्यम ने ही राजकुमारी कुंद्रा को दासी द्वारा संदेश भिजवाया था कि वह राजा सत्यम से मिलें।
राजा सत्यम कुछ बोलते, इससे पहले केजला बोली, "बधाई हो राजकुमारी! बधाई हो! आपके लिए एक राजकुमार का रिश्ता मिल गया है। और वही होगा इस राज्य का भावी सम्राट।"
राजा सत्यम बोले, "पुत्री, अगर तुम यह विवाह करना चाहती हो, तो कर सकती हो। अगर नहीं, तो तुम्हारी मर्ज़ी।"
राजकुमारी कुंद्रा इस समय केशवापुर के भविष्य के बारे में सोच रही थी और इसलिए उसने सिर झुकाकर हामी भर दी।
केजला बोली, "राजकुमारी कुंद्रा, हमें अभी निकलना होगा, और वह भी अभी। क्योंकि तिनकपुर पहुँचने में हमें पूरे अठारह घंटे लगेंगे। आप तैयारियाँ कीजिए, हम अभी आते हैं।"
राजकुमारी कुंद्रा वहाँ से जाने वाली थी कि राजा सत्यम रोकते हुए बोले, "रुक जाओ, पुत्री! तुम वहाँ ऐसे नहीं जा सकती हो। क्योंकि हमारे यहाँ तिनकपुर के राजा का संदेश नहीं आया है। शायद वह भी जानते होंगे कि केशवापुर राज्य पर श्राप का साया मँडरा रहा है। इसलिए तुम्हें भेष बदलकर वहाँ जाना होगा, तभी शायद तुम्हारा विवाह राजकुमार शुभांग से होगा।"
रानी कला ताना मारते हुए बोली, "अगर राजकुमार शुभांग मर्द हुए तो!"
तभी केजला बोली, "अगर राजकुमार शुभांग मर्द हुए, तो राजकुमारी कुंद्रा की भी शादी राजकुमार शुभांग से नहीं होगी। बात बहुत सरल है।"
यह सुनकर राजकुमारी कुंद्रा तिनकपुर राज्य की ओर जाने के लिए तैयारी करने चली गई।
रानी कला अपने कक्ष में न जाकर ज्वाला और कंकाली के कक्ष में गई और ज्वाला और कंकाली से बोली, "हमें कैसे भी करके यह साबित होने से रोकना होगा। हमें कुंद्रा और नपुंसक राजकुमार शुभांग का विवाह किसी भी हालत में रोकना होगा। तभी हम अपने मकसद में कामयाब हो पाएँगी।"
ज्वाला बोली, "अब आप चिंता मत कीजिए। राजकुमारी कुंद्रा इस महल से जाएंगी तो सही, लेकिन आएंगी नहीं।"
आखिरकार क्या षड्यंत्र रचाएंगी, जिससे राजकुमारी कुंद्रा अपने उद्देश्य से भटक जाए?
रानी कला अपने कक्ष में न जाकर ज्वाला और कंकाली के कक्ष में गई और बोली, "हमें कैसे भी करके यह साबित होने से रोकना होगा। हमें कुंद्रा और नपुंसक राजकुमार शुभांग का विवाह किसी भी हालत में रोकना होगा; तभी हम अपने मकसद में कामयाब हो पाएँगी।"
ज्वाला बोली, "अब आप चिंता मत कीजिए। राजकुमारी कुंद्रा इस महल से जाएँगी तो सही, लेकिन वापस नहीं आएंगी।"
तभी कंकाली बोली, "हमें इस बार बहुत अच्छे से चाल चलनी होगी क्योंकि इस बार ऋषिका केजला भी जा रही है और हमें बेहद सावधानी से कार्य करना होगा।"
तभी रानी कला बोली, "मर्द अगर नपुंसक हो तो वह किसी से नहीं कहता और अगर राजकुमार शुभांग नपुंसक है तो यह राज कोई नहीं जानता। महल में आने से पहले कुंद्रा को तय करना होगा कि राजकुमार शुभांग नपुंसक है या नहीं।"
फिर ज्वाला बोली, "अगर राजकुमार शुभांग नपुंसक है या नहीं, आप को इससे क्या मतलब? आपको तो राजकुमारी कुंद्रा को मारना है।"
रानी कला बोली, "तो मारिए कुंद्रा को। आपको हमने हुक्म दिया है। और अगर रानी कुंद्रा नहीं मारी गई, तो उसके बाद का हमको सोचने दो।"
इधर केजला और राजकुमारी कुंद्रा, राजा सत्यम और रानी शुभांगी से विदा लेकर तिनकपुर की ओर निकल पड़े।
राजकुमारी कुंद्रा के महल से निकलते ही रानी किरन राजकुमारी कुंद्रा के कक्ष में आई और उनके प्रिय कपड़े का एक टुकड़ा काटकर ले गई।
और रानी किरन के जाते ही थोड़ी देर बाद कंकाली चुपके से राजकुमारी कुंद्रा के कक्ष में आई और आइने के सामने रखी कंघी से उनका एक बाल ले गई।
इधर केजला और राजकुमारी कुंद्रा ने थोड़ी दूरी तय की थी कि उनका पीने का जल अचानक गायब हो गया। इसे देखकर केजला और राजकुमारी कुंद्रा हैरान हो गए। तभी केजला, राजकुमारी कुंद्रा से बोली, "हाय हाय! यह पानी किसने पिया रे? अभी तो बोतल पूरी भरी हुई थी रे! अब कैसे पानी कम हो गया रे?"
राजकुमारी कुंद्रा बोली, "पहले हमें जलाशय की खोज करनी होगी जिससे हम पानी का बंदोबस्त कर सकें।"
राजकुमारी कुंद्रा जलाशय खोजने गई और थोड़ी देर बाद जल लेकर वापस आ गई। तभी राजकुमारी कुंद्रा को अपने शरीर में चुभन महसूस हुई और थोड़ी देर बाद उनके शरीर से खून निकलने लगा। इसे देखकर केजला समझ गई और बोली, "राजकुमारी, आप पर किसी ने तंत्र बांधा है, और यह तंत्र किसी दो व्यक्तियों ने बांधा है। इसे तोड़ना हमारे लिए थोड़ा मुश्किल होगा, लेकिन हम इसे बहुत जल्दी तोड़ देंगे।"
राजकुमारी कुंद्रा दर्द भरी आवाज में बोली, "आप कैसे भी करिए, लेकिन इस तंत्र को तोड़ दीजिए क्योंकि हमारा तिनकपुर पहुँचना बहुत जरूरी है।"
तभी केजला अपनी तंत्र साधना से काफी समय में राजकुमारी कुंद्रा का तंत्र तोड़ देती है और कहती है, "राजकुमारी, मैंने आपके तंत्र को तोड़ दिया है, लेकिन मैं आपका दर्द कम नहीं कर सकती। वहाँ जाने के लिए मैं आपका रूप अवश्य बदल सकती हूँ।"
राजकुमारी कुंद्रा बोली, "ठीक है, जैसा आपको उचित लगे वैसा आप करिए।"
इतना कहते ही केजला, राजकुमारी कुंद्रा का रूप बदल देती है और कहती है, "अभी से आप राजकुमारी केसर होंगी, आप हिरणपुर से होंगी।"
इतना कहते ही केजला और राजकुमारी कुंद्रा अपने उद्देश्य के लिए आगे चल पड़ीं।
इधर, ज्वाला और कंकाली का तंत्र असफल होने के कारण वे एक-दूसरे को गुस्से भरी नज़रों से देखती हैं। ज्वाला बोली, "अब हम कुछ नहीं कर सकते। जो होगा वह कल देखा जाएगा।"
फिर कंकाली बोली, "अगर यह बात रानी कला को पता चल गई तो क्या होगा?"
ज्वाला बोली, "हम कह देंगे कि इसके साथ केजला थी, तो उसका बुरा कौन कर सकता है?"
अगली सुबह, राजकुमारी कुंद्रा और केजला तिनकपुर साम्राज्य पहुँचीं। वहाँ राजकुमारी केसर का रूप देखकर सभी मोहित हो गए और सब सैनिक उनके मनमोहिनी अदाओं पर फ़िदा हो गए। राजकुमारी केसर और केजला का तिनकपुर साम्राज्य में सम्मान किया गया।
थोड़ी देर बाद राजकुमार शुभांग एवं राजा महाराजा पाल आए।
राजकुमार शुभांग की खूबसूरती देखकर राजकुमारियाँ उन पर मोहित हो गईं क्योंकि राजकुमार शुभांग बेहद खूबसूरत थे और उनका गठीला, आकर्षक शरीर सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। राजकुमारी कुंद्रा बनी केसर भी उन पर मोहित हो गई। यह सब देखकर केजला समझ गई और राजकुमारी कुंद्रा से बोली, "हाय हाय! आज पहली बार आपको शर्माते हुए देखा है, राजकुमारी! आपके मन में लड़ू फूट रहे हैं राजकुमार शुभांग के लिए।" राजकुमारी कुंद्रा फिर से शर्मा गई।
तभी राजा पाल घोषणा करते हुए बोले, "कि जो इस प्रतियोगिता को जीतेगा वही राजकुमार शुभांग से विवाह करेगा। और प्रतियोगिता यह है कि आपको एक तीर से आकाश में घूम रही इस चिड़िया की आँख को भेदना है, लेकिन उसमें एक शर्त है कि आपको तीर को अपने हाथों से फेंकना है, ना कि धनुष द्वारा चलाना है।"
और एक दास बिगुल बजाते हुए प्रतियोगिता का शुभारंभ करता है।
बहुत सी राजकुमारियाँ कोशिश करती हैं, लेकिन सब अपने उद्देश्य से चूक जाती हैं। फिर राजकुमारी कुंद्रा बनी केसर इस प्रतियोगिता में भाग लेती हुई, तीर को अपने हाथों से फेंकती है और चिड़िया की आँख को भेद देती है।
इसे देखकर राजकुमार शुभांग भी राजकुमारी कुंद्रा बनी केसर की ओर आकर्षित होते हैं और कहते हैं, "हमें राजकुमारी केसर पसंद है और हम उन्हीं से विवाह करेंगे।"
तभी केजला बोली, "हाय हाय! राजा पाल, आपको बधाई हो! जिस प्रकार राजकुमारी केसर ने इस प्रतियोगिता को जीतकर यह स्वयंवर जीता है, इस प्रकार आपको भी राजकुमारी केसर की एक शर्त माननी होगी।"
राजा पाल बोले, "कैसी शर्त?"
आखिरकार क्या शर्त होगी राजकुमारी कुंद्रा बनी केसर की?
अब आगे क्या षड्यंत्र रचाएंगी रानी कला और रानी किरन?
क्या राजकुमार शुभांग मानेंगे राजकुमारी कुंद्रा बनी केसर की शर्त?
तभी केजला बोली, "आय हाय हाय राजा पाल! आपको बधाई हो। जिस प्रकार राजकुमारी केसर ने इस प्रतियोगिता को जीतकर इस स्वयंवर को जीता है, उसी प्रकार आपको भी राजकुमारी केसर की एक शर्त माननी होगी।"
राजा पाल बोले, "कैसी शर्त?"
केजला बोली, "आपको राजकुमारी की शर्त स्वीकार करनी होगी।"
राजा पाल बोले, "अगर शर्त स्वीकार करने योग्य होगी तो हम अवश्य स्वीकार करेंगे।"
राजकुमारी कुंद्रा बनी केसर बोली, "राजकुमार शुभांग को हमारे घर का जमाई बनना होगा, उम्र भर। क्या आपको यह शर्त स्वीकार है?"
राजा पाल अपनी सिंहासन से गुस्से में उठे और गुस्से में बोले, "यह शर्त! यह तो हमारा उपहास है!"
राजकुमारी कुंद्रा बनी केसर बोली, "हमने आपका कोई उपहास नहीं किया महाराज। अगर आप इस शर्त को स्वीकार करेंगे, तभी हम राजकुमार शुभांग से विवाह करेंगी।"
राजा पाल कुछ बोलते, इससे पहले राजकुमार शुभांग बोले, "हम आपको वचन देते हैं कि हम उम्र भर आपके हिरनपुर राज्य में घर जमाई बनकर रहेंगे, लेकिन हम आपके वंश को आगे नहीं बढ़ाएँगे और न ही हमारे बीच पति-पत्नी का कोई रिश्ता होगा। अगर यह आपको स्वीकार्य है, तो ही हम विवाह करेंगे।"
केजला, जो पहले से ही जानती थी कि राजकुमार शुभांग नपुंसक हैं, गुस्से में चीखी, "आय हाय हाय! विवाह करेंगे, लेकिन विवाह का रिश्ता नहीं अपनाएँगे? यह कैसे हो सकता है? और अपना वंश भी आगे नहीं बढ़ाएँगे? क्यों? पूछिए महाराज पाल, पूछिए! आखिर क्यों यह ऐसा कर रहे हैं? बोलिए! क्या यह एक नपुंसक मर्द है?"
इतना सुनकर राजा पाल को गुस्सा आ गया। वे अपनी सिंहासन से खड़े होकर गुस्से में बोले, "तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई? तुम एक किन्नर हो और हर किसी को नपुंसक बोलना तुम्हारा सही नहीं है! और आज तुम राजकुमार शुभांग की मर्दानगी पर सवाल उठा रही हो! अगर हम चाहें, तो तुम्हारा सर धड़ से अलग कर देंगे!"
केजला भी चीखकर बोली, "अगर राजकुमार शुभांग एक मर्द है, तो इसका क्या प्रमाण है आपके पास? अभी आप अपने राज्य वैद्य को बुलाइए और पता कीजिए कि राजकुमार शुभांग एक मर्द है या नहीं।"
राजा पाल गुस्से में बोले, "हमें किसी राज्य वैद्य को बुलाने की ज़रूरत नहीं! और एक बात कान खोलकर सुन लो, हमें कोई ऐसा विवाह नहीं करवाना है जिसमें हमारे पुत्र को खुद प्रमाण देना पड़े।"
केजला सभी राजकुमारियों से बोली, "कोई भी राजकुमारी राजकुमार शुभांग की खूबसूरती पर मोहित न हो। क्योंकि राजकुमार शुभांग एक नपुंसक हैं। इसे कोई विवाह नहीं कर सकता। और जो भी इसे विवाह करेगा, वह इसे छोड़कर चली जाएगी।"
राजा पाल की इतनी बेइज़्ज़ती देखकर स्वयं राजा पाल बोले, "ठीक है! अगर आप सभी को प्रमाण चाहिए, तो अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। राज्य वैद्य को बुलाया जाए।"
राज्य वैद्य आए और राजकुमार शुभांग का निरीक्षण किया। राज्य वैद्य बोले, "राजकुमार शुभांग एक नपुंसक हैं महाराज।"
राजा पाल को यह सुनकर बुरा लगा। तभी राजकुमार शुभांग भी बाहर आए और बोले, "पिताश्री, हमें क्षमा कर दीजिए। हम आपकी कसौटी पर खरे नहीं उतर पाए, इसलिए हमने यह शर्त रखी थी।"
पूरे स्वयंवर में यह बात हवा की तरह फैल गई। सब लोग महाराज पाल और राजकुमार शुभांग पर हँस रहे थे। लेकिन तभी केजला बोली, "आप सभी शांत हो जाइए! जिस प्रकार राजकुमार शुभांग ने एक सच छुपाया, उसी प्रकार राजकुमारी केसर ने भी एक सच छुपाया है। सच्चाई यह है कि राजकुमारी केसर असल में राजकुमारी कुंद्रा है।"
यह सुनकर राजा पाल को गुस्सा आ गया और वे गुस्से में बोले, "यह हमारे साथ छलावा है!"
तभी राजकुमार शुभांग बोले, "पिताश्री, मैं भी आपसे परसों से यह सच छुपाए रखा था। इसलिए मैं राजकुमारी कुंद्रा से विवाह करने के लिए तैयार हूँ।"
राजा पाल को समझ में आ गया था कि उनका पुत्र नपुंसक है और उससे कोई विवाह नहीं करेगा। और वे यह भी जानते थे कि राजकुमारी कुंद्रा पर श्राप का साया है और इसी कारण उनका विवाह एक नपुंसक पुरुष से होगा। लेकिन वही राजकुमारी कुंद्रा ही नपुंसक पुरुष को मर्द बनाएंगी। इसलिए राजा पाल इस स्वयंवर में जीतने वाली राजकुमारी कुंद्रा को अपना लेते हैं।
केजला भी बोली, "आय हाय हाय! सबकी नज़रों से बचा के रखना!"
और जब राजकुमारी कुंद्रा अपने असली रूप में आई, तो उसे देखकर राजकुमार शुभांग को थोड़ा गुस्सा आया। आखिर राजकुमारी कुंद्रा उतनी खूबसूरत नहीं थी जितनी राजकुमारी केसर थी।
राजकुमार शुभांग को राजकुमारी कुंद्रा ज़्यादा मनमोहित नहीं कर पाई। और उनकी मर्दानी चाल देखकर सभी हैरान हो गए। राजकुमारी कुंद्रा की चाल देखकर सभी उन पर हँसे और कुछ लोग यह कहने लगे, "नपुंसक राजकुमार को मर्दानी रानी मिल गई!"
यह सुनकर केजला बोली, "आय हाय हाय! आपको तो उपहास उड़ाने के अलावा कुछ नहीं आता!"
और राजकुमार शुभांग को, न चाहते हुए भी, राजकुमारी कुंद्रा से विवाह करना पड़ा। और जब विवाह सम्पन्न हो गया, तो उसी समय राजकुमार शुभांग, राजकुमारी कुंद्रा और केजला केशवापुर राज्य के लिए निकल पड़े।
इधर, रानी किरण को अपना षड्यंत्र विफल होते नज़र आया। जिसके फलस्वरूप वह गुस्से में एक और काला तंत्र करती है, लेकिन वह भी अचानक विफल हो जाता है। तो वह समझ जाती है कि राजकुमारी कुंद्रा सुरक्षित है।
इधर, रास्ते में राजकुमारी कुंद्रा, राजकुमार शुभांग और केजला एक जगह पर रुके। केजला पानी लेने दूर चली गई। तो राजकुमार शुभांग राजकुमारी कुंद्रा के पास आए और गुस्से में बोले, "मुझे तुमसे विवाह मजबूरी में करना पड़ा। आज तुम्हारी वजह से मेरी मर्दानगी पर सवाल उठे और तुमने जो रूप बदलकर छल किया है, वह बहुत ही गलत किया है। क्योंकि मुझे राजकुमारी केसर पसंद थी, न तुम कुंद्रा! तुम दिखने में तो ठीक हो, लेकिन तुममें औरतों वाली कोई बात नहीं। तुम सच में एक मर्द राजकुमारी हो। भगवान ने तुम्हें औरत बनकर गलती की है। तुम सच में मेरे साथ धोखा किया है। इसलिए मैं तुमसे नफ़रत करता हूँ, नफ़रत!"
क्या राजकुमार शुभांग अपनाएँगे राजकुमारी कुंद्रा को?