ये कहानी है अभय और इशानी की। इशानी अभय को पसंद करती हैं और उसे प्रपोज भी जिसे अभय रिजेक्ट कर देता है। इशानी के डैड अपनी बेटी का बदला लेने के लिए अभय को ना सिर्फ स्कूल से निकलवा देते हैं बल्कि उसके डैड की कंपनी को भी बैंकरप्ट कर देते हैं। इशानी सपना द... ये कहानी है अभय और इशानी की। इशानी अभय को पसंद करती हैं और उसे प्रपोज भी जिसे अभय रिजेक्ट कर देता है। इशानी के डैड अपनी बेटी का बदला लेने के लिए अभय को ना सिर्फ स्कूल से निकलवा देते हैं बल्कि उसके डैड की कंपनी को भी बैंकरप्ट कर देते हैं। इशानी सपना देखती है कि अभय बदला लेने वापस आया है अभय ने उसके डैड को इतना मजबूर कर दिया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली। इशानी के भाई आरव गायब है और इशानी भी लास्ट में सुसाइड कर लेती है। इशानी सपने से जागती है तो महसूस करती है सबकुछ उस सपने की दिशा में घट रहा है। अगले ही दिन इशानी अभय से माफी मांगती है और उससे दूर रहने का वादा करती है। क्या इशानी अपनी बर्बादी को रोक पाएगी? क्या होगा जब इशानी अभय से दूर चली जाएगी लेकिन अभय को इशानी से प्यार हो जाएगा?
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"डैड!!!!!!!!!!!!!!!!!" छत से कूदते हुए अपने पिता को देखकर इशानी चीख उठी। कुछ ही पलों में, उनका बेजान, खून से लथपथ शरीर जमीन पर गिर पड़ा। इशानी की आँखें पथरा गईं। उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह एक कदम भी आगे बढ़ा पाती। "साहब! साहब!!" दीनू काका भागते हुए आए और अपने साहब के बेजान शरीर को देखकर बिलख उठे। "ये सब उस अभय की वजह से हुआ है। उसी ने साहब को इतना मजबूर कर दिया कि साहब ने आत्महत्या कर ली।" अभय नाम सुनकर इशानी सन्न रह गई। अभय, जिसे वह अपने दिमाग से भी निकाल चुकी थी। "कंपनी के शेयर गिरने लगे। एक-एक करके सभी शेयरहोल्डरों ने साहब का साथ छोड़ दिया। उन्होंने अपने पुराने दोस्तों से भी मदद माँगी, लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की।" दीनू काका रोते हुए बोले। इशानी को अब समझ आया कि क्यों अचानक उसके पिता ने उसके बैंक अकाउंट में पैसे जमा कराए थे और रात को फोन पर अजीब बातें कर रहे थे, जैसे आखिरी बार उसकी आवाज सुन रहे हों। वह उसे हमेशा खुश रहने के लिए कह रहे थे। इशानी उस समय अमेरिका में थी; नहीं तो वह देख पाती कि उसके पिता कितने अकेले और बेबस थे। उनकी दर्द भरी आवाज सुनकर इशानी से रहा नहीं गया, इसलिए वह सुबह की पहली फ्लाइट से भारत वापस आ गई, लेकिन उसे देर हो गई। शायद, शायद वह पहले आ गई होती, तो अपने पिता को जिंदा देख पाती; उन्हें मरने नहीं देती। टक-टक जूतों की आवाज के साथ कोई उसके सामने आकर रुक गया। इशानी ने अपनी सूनी नज़रें उठाईं और जिसे देखा, उसे जानकर भी नहीं पहचान पाई। वह अभय राणा था, ब्लैक बिज़नेस सूट में, एकदम सर्द निगाहों के साथ उसे देख रहा था। यह वह अभय नहीं था जिसे वह पसंद करती थी। यह तो कोई और ही था। अभय राणा, जिसने कम उम्र में बिज़नेस की दुनिया में अपना मुकाम हासिल किया था, जिसकी कंपनी वर्ल्ड की टॉप आईटी कंपनियों में से एक थी, आज बहुत सालों बाद वह बदला लेने वापस आ चुका था। "क्यों? क्यों किया ऐसा?" इशानी कांपते होठों से बोली। "इस 'क्यों' का जवाब तुमसे बेहतर कौन जान सकता है?" अभय ने सर्द आवाज़ में कहा। उसकी आँखें बर्फ की तरह ठंडी थीं। इशानी लड़खड़ाते हुए दो कदम पीछे हट गई। उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। जो यादें दफन हो चुकी थीं, वे फिर एक बार दस्तक देने लगीं। बहुत सालों पहले वह अभय को पसंद करती थी, लेकिन अभय ने उसे ठुकरा दिया था। वह बहुत दुखी हुई थी। बचपन से ही उसके पिता ने उसे माँ-बाप दोनों का प्यार दिया था और बहुत लाड़-प्यार से पाला था; उसकी हर ख्वाहिश पूरी की थी। जब उसने अपने पिता को अपने रोने की वजह बताई, तो उन्होंने गुस्से में अभय को स्कूल से निकलवा दिया था। इतना ही नहीं, उन्होंने अभय के पिता को भी दिवालिया बना दिया था, जिससे सदमा खाकर उनकी मौत हो गई थी। अभय फिर कभी नहीं दिखा। किसे पता था कि वह खुद को बदला लेने के लिए तैयार कर रहा था? इसका मतलब तो यह हुआ कि अपने पिता की मौत की ज़िम्मेदार मैं हूँ? इशानी का दिमाग सुन्न पड़ गया और उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। जब इशानी को होश आया, वह जेल में थी; सलाखों के पीछे। बोनी था, बोनी उसका सबसे अच्छा दोस्त था। अपने पिता और भाई के बाद उसकी ज़िंदगी में कोई था, तो वह बोनी था। दोनों में खून का रिश्ता न होकर भी सगे भाई-बहन जैसा प्यार था। बोनी का बिज़नेस अच्छा चल रहा था, लेकिन अब उस पर रेप और पैसों में धोखाधड़ी के केस दर्ज थे। हमेशा मुस्कुराते रहने वाला बोनी सूखकर काँटा हो गया था। अभय के अलावा और कौन यह सब कर सकता था? इशानी उस दिन को कोसने लगी जब वह अभय से मिली थी, लेकिन अभय को भी कैसे गुनहगार कहे? उसकी तरह अभय के पिता ही उसके लिए सब कुछ थे, और इशानी के कारण अभय ने उन्हें हमेशा के लिए खो दिया था। इशानी अभय की कंपनी के सामने खड़ी थी। वह अभय से भीख माँगने को तैयार थी, अपने भाई और दोस्त की जान बचाने के लिए। लेकिन इशानी को वहाँ से धक्के देकर निकाल दिया गया। वह अपने घर आई, तो उसका घर भी अपना नहीं रहा था। उसके परिवार की सारी संपत्ति अभय ने खरीद ली थी। इशानी टूट चुकी थी। वह आत्मग्लानि से भर गई थी। उसी के कारण इस तबाही की शुरुआत हुई थी, और उसी के मरने से खत्म होगी। इशानी के सामने गहरी खाई थी। इसी खाई की तरह अंधकार में डूबा उसका जीवन था, जो अब हर तरह से तबाह हो गया था। अभय ने उसके सामने मरने के सिवा कोई रास्ता नहीं छोड़ा था। वह ज़िंदगी भर इस बोझ के साथ नहीं जी पाएगी कि उसके कारण उसके पिता ने आत्महत्या कर ली थी; उसका परिवार खत्म हो गया था, उसका दोस्त बर्बाद हो गया था; सब उसकी वजह से। इशानी आँखें बंद करके खाई में कूद गई। इशानी पसीने से भीगी हुई थी। मौत का डर उसके रोम-रोम में समाया हुआ था। यह सपना था, लेकिन हकीकत का एहसास करा रहा था। इसका एक-एक पल उसने जिया था। ऐसा तो कोई सपना नहीं होता। और सबसे बड़ी बात यह थी कि वह अभय से प्यार करती है, और आज दोपहर ही उसने अभय से अपने प्यार का इज़हार किया था। इशानी जानती थी कि अभय को बास्केटबॉल खेलना बहुत पसंद है, इसलिए वह एक फेमस बास्केटबॉल प्लेयर के ऑटोग्राफ वाली बॉल अभय को गिफ्ट देना चाहती थी। किसे पता था कि जैसे ही वह क्लास में घुसेगी, सामने अभय को अनु के साथ बैठा देखेगी? दोनों सिर नीचा करके बातें कर रहे थे। अभय अनु को कोई सवाल समझा रहा था। इशानी ने अभय को कभी किसी से इतने प्यार से बात करते हुए नहीं देखा था। इशानी उन्हें देख ही रही थी कि अनु ने अपने बैग से एक क्यूट सा बॉक्स निकालकर खोला। उसमें छोटे-छोटे कुकीज़ थे। उसने अभय से शर्माकर कहा, "ये तुम्हारे लिए। टेस्ट करके बताओ कैसे बने हैं?" अभय पहले तो हिचकिचाया, फिर एक कुकी उठाकर खा लिया। इशानी को बहुत गुस्सा आया। उसने आज तक कितने कीमती गिफ्ट्स उसे दिए थे, पर अभय ने कभी नहीं लिए, और अनु के कुकीज़ खा लिए? इशानी ने अपने हाथ में पकड़ी बास्केटबॉल उस कुकी बॉक्स की तरफ फेंक दी, लेकिन तभी अनु, जिसने इशानी को देख लिया था, हड़बड़ाकर खड़ी हुई और बॉल उसके गाल को छूकर निकल गई। अनु अपने गाल पर हाथ रखे सिसकने लगी। "आर यू क्रेज़ी?" अभय इशानी पर चिल्लाते हुए अनु के सामने ढाल बनकर खड़ा हो गया। अभय के चिल्लाने से इशानी को बहुत बुरा लगा। आज तक उसके पिता ने उससे ऊँची आवाज़ में भी बात नहीं की थी। अपनी भावनाओं को काबू करते हुए उसने मुश्किल से कहा, "मुझे नहीं अच्छा लगता जब तुम किसी और लड़की से बात करते हो।" "ये मेरी लाइफ़ है, और मैं डिसाइड करूँगा मुझे किससे बात करनी है। तुम कौन होती हो मुझसे सवाल करने वाली?" "तुम अपना ड्रामा बंद क्यों नहीं कर देती?" "ड्रामा?" इशानी की आँखें लाल हो गईं। पिछले एक महीने से वह उसके लिए क्या नहीं कर रही थी? हर कोशिश कर ली थी उसका दिल जीतने की, और उसे उसका प्यार ड्रामा लगता है? "तुम समझते क्यों नहीं? मैं तुमसे प्यार करती हूँ।" "लेकिन मैं नहीं करता ना। मैं आज तुमसे प्यार करता हूँ ना कल कभी करूँगा।" अभय ने अपनी सर्द आवाज़ में कहा। फिर अनु से कहा, "चलो, दवाई लगा लेना।" अभय अनु का हाथ पकड़कर निकल गया। इशानी को सब अपने ऊपर हँसते हुए नज़र आ रहे थे। ऊपर से अभय के शूल जैसे शब्द उसके दिल में चुभ रहे थे। उसने जाते हुए अभय का हाथ पकड़ लिया, "तुम इसके साथ नहीं जाओगे।" अभय ने गुस्से में इशानी को घूरा और उसे पीछे धकेल दिया। इशानी पीछे रखी डेस्क से टकरा गई। उसकी कमर में इतनी जोर से लगी कि उसकी आँखों में आँसू आ गए और चेहरा पीला पड़ गया। अभय एक पल को रुका, लेकिन आखिर में उसे छोड़कर अनु के साथ चला गया। बचपन से आज तक इशानी ने जो चाहा उसे मिला था, लेकिन अभय ने हर बार उसे ठुकराया था। गुस्से और दर्द से भरकर इशानी ने अपने पिता को फोन कर दिया, "डैडी, अभय ने मुझे रुलाया। आज के बाद मुझे उसकी शक्ल नहीं देखनी।" इसके बाद इशानी स्कूल से छुट्टी लेकर घर चली गई। अपने कमरे में वह घंटों तक रोती रही और रोते हुए ही सो गई। तभी उसे यह सपना आया। उसने तो गुस्से में अभय की शिकायत अपने पिता से की थी। सभी स्टूडेंट्स के सामने वह अपना मज़ाक नहीं बनवाना चाहती थी। बाकी दिल से उसने कभी अभय का या किसी का भी बुरा नहीं चाहा था। इशानी जल्दी से उठी, मुँह धोया और नीचे आई। उसे अपने पिता के ऑफिस जाकर उनसे तुरंत मिलना होगा। लेकिन जब वह नीचे हॉल में आई, उसने देखा कि उसके पिता और भाई घर में ही थे। उन दोनों ने भी इशानी को देख लिया। "इशु, आओ बेटा।" शैलेंद्र जी ने अपने पास की जगह थपथपाकर इशानी को अपने पास बैठने का इशारा किया। इशानी उनके पास बैठ गई और हैरानी से बोली, "डैड, भाई, आप दोनों इस समय घर पर?" अक्सर दोनों रात को देर से ही घर आते थे। "हमारी गुड़िया रानी उदास हो, तो हमें आना ही होगा। सुना है हमारी बेटी को एक लड़के ने रिजेक्ट कर दिया?" शैलेंद्र जी ने इशानी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा। "क्या, डैडी?" इशानी शर्मा गई। वह अपने पिता को सही-सलामत देखकर इतनी खुश थी कि शब्दों में बयाँ नहीं कर सकती थी। शैलेंद्र जी खिलखिला उठे। उनकी बेटी में उनकी जान बसती थी। वह उसकी हर ख्वाहिश पूरी करते थे। कैसे उस लड़के अभय ने उनकी बेटी का दिल दुखाया, सोचकर ही उनका मन दुखी हो गया। अब जाकर उन्हें समझ आया कि क्यों उनकी बेटी ने विदेश में पढ़ने का मौका ठुकरा दिया था; वह सब भी इस लड़के के लिए। "बेटा, तुम चिंता मत करो। अभय इस दुनिया का आखिरी लड़का नहीं है। उसे मैंने स्कूल से निकलवा दिया है।" "स्कूल छोड़ो, कुछ दिनों में उसका इस शहर से ही नामोनिशान मिट जाएगा।" इशानी का भाई अर्नव ठंडे लहजे में बोला। "मतलब?" इशानी की साँसें थम गईं। "हम राणा फैमिली की कंपनी से हाथ मिलाना चाहते थे, लेकिन वो लोग मान ही नहीं रहे। अब हम पहले उनकी कंपनी को बैंकरप्ट करेंगे, फिर उसे खरीद लेंगे।" शांतनु राणा (अभय के पिता) ने एक चिप तैयार की थी जिस पर मेहरा ग्रुप की नज़र थी, इसलिए वे राणा कंपनी में इन्वेस्ट करना चाहते थे, लेकिन शांतनु बहुत जिद्दी था। वह उनके साथ हाथ मिलाने को तैयार नहीं था। इशानी स्तब्ध रह गई। "क्या ऐसा करना ज़रूरी है?" "ज़रूरी नहीं है, लेकिन हमारी बेटी को हर्ट करने की सज़ा तो उन्हें मिलेगी...इशु, तुम इन सबके बारे में मत सोचो। तुम्हारा भाई है बिज़नेस संभालने के लिए। तुम बस खुश रहो।" शैलेंद्र जी ने प्यार से कहा। इशानी की धड़कनें तेज हो गईं। यह तो बिल्कुल उस सपने जैसा हो रहा है। क्या वह सपना आने वाली मुसीबत की चेतावनी था? जो भी हो, वह सब कुछ जानते हुए अपने परिवार को तबाह नहीं होने देगी। उसने उन्हें अपने सपने के बारे में सब कुछ बता दिया। "क्या? अभय बहुत बड़ा बिज़नेस टाइकून बनेगा? यह सब इतना आसान है क्या?" अर्नव ने बेपरवाही से कहा। "लेकिन भाई, अगर एक दुश्मन कम हो, तो इसमें क्या बुराई है?" "इशु, वो सिर्फ़ एक सपना था। तुम डरी हुई हो और कुछ नहीं।" अर्नव ने अपनी बहन को समझाया। इशानी ने शैलेंद्र जी का हाथ पकड़ लिया, "डैड, अभय मेरा क्लासमेट है। आप प्रॉमिस कीजिए उसके लिए कोई मुसीबत खड़ी नहीं करेंगे, प्रॉमिस मी?" शैलेंद्र जी ने गहरी साँस ली और प्यार से इशानी का हाथ थपथपाकर कहा, "ठीक है, ठीक है। अब हमारी गुड़िया रानी को कोई पसंद आया है, तो डैडी तुम्हारी पूरी मदद करेंगे।" इशानी की बोलती बंद हो गई। क्या उसके पिता यह सोच रहे हैं कि वह अभी भी अभय को पाना चाहती है? बिल्कुल नहीं। अब तो उसे अभय नाम से ही दहशत बैठ गई है, लेकिन उसके पिता अभय के परिवार को नुकसान न पहुँचाएँ, इसके लिए यह गलतफहमी भी ठीक है। "राणा ग्रुप से कैसे डील करना है, डैड?" अर्नव बोला। "अभी के लिए उनसे दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं। उस चिप के लिए हम इशानी को उदास नहीं कर सकते।" "यस, डैड।" अर्नव के लिए भी अपनी बहन की खुशी सबसे बढ़कर थी। अगले दिन जब इशानी स्कूल पहुँची, सीढ़ियों पर अभय से टकरा गई, जो ऊपर से नीचे आ रहा था। अभय को देखते ही इशानी की धड़कनें तेज हो गईं; प्यार की वजह से नहीं, डर से।
अभय को देखते ही इशानी बर्फ की तरह जम गई। अभय उम्र में छोटा था, बहुत बड़ा बिजनेस टाइकून नहीं बना था, लेकिन वो ओरा उसमें हमेशा से था। इशानी बिल्कुल दीवार से चिपक गई, ताकि अभय से जरा भी टच ना हो जाए। "ये लड़की डर रही है, रियली?" अभय ने मन में सोचा। अभय इशानी के सामने आकर उसे अपनी सर्द नजरों से देखते हुए बोला, "इशानी।" उसका नाम भी अभय ने ऐसे पुकारा था जैसे वो उसकी बरसों पुरानी दुश्मन हो। इशानी और ज्यादा कांप गई। "मुझे नहीं पता तुम्हारे दिमाग में अब क्या खिचड़ी पक रही है, बट लेट मी टेल यू, मुझे स्कूल से ना निकालकर तुमने कोई एहसान नहीं किया। तुम्हारे अच्छे बनने का नाटक मेरे सामने नहीं चलेगा।" इशानी ने हिम्मत करके अभय की आंखों में देखा, "आई एम सॉरी अभय, जो भी मैंने किया, मैं दिल से माफी चाहती हूं। आज के बाद मैं तुम्हें कभी परेशान नहीं करूंगी।" अभय हैरान रह गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि ये इशानी ही है। लेकिन उसकी आंखों में दृढ़ता देखकर लग रहा था कि वो झूठ नहीं बोल रही। "अच्छा, यहीं होगा।" इशानी जल्दी से चली गई। अभय की नजरों से दूर आकर उसे लगा जैसे वो फाइनली खुलकर सांस ले सकती है। उसके सीने में दर्द भी था। अभय कभी नहीं जान पाएगा कि वो उससे कितना प्यार करती है। क्यों करती है, इस सवाल का जवाब तो उसे भी नहीं पता था। उस दिन उसका अठारहवाँ जन्मदिन था। उसके डैड ने सेवन स्टार होटल में उसके लिए पार्टी रखी थी। पार्टी में बोर होने की वजह से वो बोनी को लेकर लॉन्ग ड्राइव पर निकल गई। एक जगह रेड लाइट पर कार रुकी। उसने खिड़की से बाहर देखा तो देखती रह गई। बस स्टैंड पर अकेला एक लड़का बैठा था, वाइट शर्ट, ब्लैक ट्राउज़र्स में। उसके बाल हल्के घुंघराले थे, और चेहरा एकदम सर्द। इशानी को लग रहा था जैसे इस दुनिया में वो दोनों ही बचे हैं। वो बिना पलकें झपकाए उसे देखे जा रही थी। ग्रीन लाइट होने पर कार स्टार्ट हो गई। उस समय लड़के ने एक नज़र इशानी की तरफ़ देखा, बिना किसी भाव के। इशानी को पहली नज़र का प्यार हो गया। उसने उसकी शर्ट पर स्कूल का नाम पढ़ लिया था। अगले ही दिन उसने लंदन ना जाकर उसी स्कूल में एडमिशन ले लिया जिसमें अभय पढ़ता था। एक महीने से अभय का दिल जीतने की हर कोशिश की, लेकिन अब वो समझ चुकी थी, प्यार तो दूर की बात है, अभय उससे नफ़रत करता है। उसकी शक्ल देखना भी उसे पसंद नहीं। अच्छा हुआ जो वो सपना उसे चेतावनी दे गया, नहीं तो जाने कब तक वो अपने एकतरफ़ा प्यार में तड़पती रहती और उसके साथ उसके परिवार को भी सज़ा मिलती। अब समय था अभय को भूलकर अपनी ज़िंदगी में वापस लौट जाने का। क्लास में आकर इशानी अपनी सीट पर नहीं बैठी, बल्कि बोनी के पास बैठ गई। बोनी चौंक गया, "इशानी, तू मेरे साथ बैठेगी?" अभय के करीब रहने के लिए वो उसके साथ बैठती थी, लेकिन अब इसका कोई मतलब नहीं था। अभय अगर आसपास भी होता है, उसे वही डरावना सपना याद आ जाता है। ये सिर्फ़ वही जानती है कि उसने वो सपना जिया है, उसका एक-एक पल असलियत से भरा था और तो और, सपने की हर बात अब तक सच हो रही थी। बोनी हैरान रह गया। इशानी की वजह से उसने भी लंदन ना जाकर इसी स्कूल में एडमिशन लिया था। दोनों बचपन के दोस्त थे। बोनी का दिल इशानी के बिना नहीं लगता था। स्कूल में आकर अभय के चक्कर में इशानी बोनी को छोड़कर अभय के पास बैठने लगी। फिर आज अचानक क्या हो गया जो इशानी अभय की सीट छोड़कर उसके पास आ गई? "मैंने बहुत सोचा और फाइनली इस नतीजे पर पहुँची कि जब अभय मुझसे प्यार नहीं करता, तो मैं क्यों अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट खोकर उसके पीछे भागूँ?" इशानी की बात सुनकर बोनी खुशी से उछल पड़ा, "फाइनली तुझे अक्ल आ गई! मैं तो कब से कह रहा था, ये अभय तेरे लायक नहीं है!"
"मैंने बहुत सोचा और आखिरकार इस नतीजे पर पहुँची कि जब अभय मुझसे प्यार नहीं करता, तो मैं क्यों अपनी आत्मसम्मान खोकर उसके पीछे भागूँ?" इशानी की बात सुनकर बोनी खुशी से उछल पड़ा। "फाइनली तुझे अक्ल आ गई! मैं तो कब से कह रहा था, यह अभय तेरे लायक नहीं है।" बोनी ने इशानी को बचपन से देखा था। इशानी को बहुत लड़कों ने प्रपोज किया था, लेकिन इशानी ने उनकी तरफ देखा भी नहीं। और यह अभय? खुद को क्या समझता है? एक लुक्स के अलावा उसके पास कुछ भी तो नहीं है। ना कभी किसी की मदद करता है, हमेशा सड़ा हुआ मुँह लेकर घूमता रहता है। पता नहीं क्या देखकर इशानी का उस पर दिल आ गया? इशानी की नज़र जब अनु के गाल पर लगी बैंडेज पर गई, उसे अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ। लंच टाइम में छुट्टी लेकर वह बोनी के साथ शॉपिंग मॉल गई। वहाँ उसने गोल्ड कार्विंग वाले पेन खरीदे, कोल्डड्रिंक्स खरीदीं और महंगे ब्लूटूथ ईयरफ़ोन्स भी खरीदे। जब वे वापस स्कूल आए, मौसम बदल चुका था। आसमान में बिजली चमक रही थी; लग रहा था जोरदार बारिश होने वाली है। "इशानी, यह सब किसलिए?" बोनी को समझ नहीं आ रहा था कि इशानी के दिमाग में आखिर चल क्या रहा है? "अभी पता चल जाएगा।" क्लास में जाकर इशानी और बोनी ने हर क्लासमेट की डेस्क पर कोल्डड्रिंक और पेन रख दिए। अनु की मेज़ पर इन्हीं के साथ ईयरफ़ोन्स भी रखे थे। सभी हैरान थे। बोनी ने सबसे कहा, "ये सारे गिफ्ट्स इशानी की तरफ से हैं। उसने आज तक जिसको भी परेशान किया है, वह सभी से माफ़ी मांगती है और एडवांस में सभी को कॉलेज एंट्रेंस एग्ज़ाम के लिए ऑल द बेस्ट।" सबके मुँह खुले के खुले रह गए। "और हाँ, कल इशानी ने अभय को प्रपोज किया था; वह सिर्फ़ मज़ाक था। कोई इसे सीरियसली नहीं लेगा।" यह कहते हुए बोनी ने अभय की ओर देखा, जो उस पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहा था, बल्कि पढ़ाई कर रहा था। बोनी का मन किया उसका मुँह तोड़ दे। "आज के लिए इतना ही; हम फिर कभी नहीं मिलेंगे।" कहकर बोनी चला गया। सभी स्टूडेंट्स बोनी के लाए स्नैक्स और कोल्डड्रिंक्स पर टूट पड़े। वंश, जो अभय का अच्छा दोस्त था, उसके पास आया। "यह बोनी का क्या मतलब था—कभी नहीं मिलेंगे? कहीं यह दोनों स्कूल छोड़कर तो नहीं जा रहे?" "आई डोंट नो।" अभय को किसी के आने-जाने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। प्रिंसिपल के ऑफिस में— "तुम दोनों सच में ट्रांसफ़र कराना चाहते हो?" सर ने हैरानी से कहा। "यस सर।" इशानी यहाँ सिर्फ़ अभय के लिए आई थी। जब अभय ही उसे नहीं देखना चाहता, तो उसके यहाँ रहने का भी कोई मतलब नहीं था। प्रिंसिपल ने ट्रांसफ़र की प्रक्रिया शुरू कर दी। "फाइनली हम जा रहे हैं?" ऑफिस से निकलकर बोनी बोला। वह बहुत खुश था। वह तो लंदन में ही पढ़ना चाहता था; सिर्फ़ इशानी की वजह से यहाँ रुका था। छुट्टी का समय हो गया था और बाहर झमाझम बारिश हो रही थी। उसी समय अनु जल्दबाज़ी में बाहर निकली। इशानी ने उसका हाथ पकड़कर वापस खींच लिया। "इतनी बारिश में बिना छाते के कहाँ जा रही हो?" अनु इशानी को देखकर घबरा गई। "कुछ ज़रूरी काम था।" "तुम्हारी चोट कैसी है अब?" "अब ठीक है।" बोलकर अनु फिर जाने लगी। इशानी ने अपना छाता उसके आगे कर दिया। "लो, इसे ले जाओ। बारिश में भीगकर बीमार हो जाओगी।" "नहीं, मैं ठीक हूँ।" अनु सकुचाती सी बोली। बोनी उसकी ना से खीझ उठा और उसकी कलाई पकड़कर छाता उसके हाथ में थमा दिया। "जब इशानी कह रही है रख लो, तो रख लो ना, सिंपल।" उसी समय अभय वहाँ आ गया। अनु ने छाता पकड़ लिया, तो बोनी ने भी उसका हाथ छोड़ दिया, जो अभय ने देख लिया। उसने अनु की लाल कलाई देखी। "तुम ठीक हो?" यह पूछते हुए उसने शक भरी, सर्द निगाहों से इशानी को देखा। इशानी काँप उठी। कहीं अभय को यह तो नहीं लग रहा कि हम दोनों अनु को बुलि कर रहे हैं?
अभय को यह तो नहीं लग रहा था कि हम दोनों अनु को परेशान कर रहे हैं? इशानी अभय को देखते ही डर गई थी।
अनु ने ना में सिर हिला दिया। "मैं ठीक हूँ। पापा का फ़ोन आया था।"
"चलो, मैं तुम्हारे साथ हॉस्पिटल चलता हूँ।" अभय ने कहा।
अनु ने इशानी की तरफ़ डरते हुए देखा। कल ही इशानी ने उस पर बॉल फेंककर मारी थी; कहीं इशानी फिर से न भड़क जाए।
"क्या? ऐसे क्या देख रही हो? इशानी को अब तुम दोनों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। तुम दोनों अगर रिलेशनशिप में भी हो, तब भी इशानी को तुमसे कोई मतलब नहीं है।" बोनी ने उन दोनों को आँखें दिखाईं। जबसे इशानी ने अभय का पीछा छोड़ा था, बोनी आत्मविश्वास से भर गया था।
बोनी की बात सुनकर अनु का चेहरा शर्म से लाल हो गया।
अभय ने अनु के हाथ से छाता लिया और दोनों बारिश से बचते हुए चले गए।
साफ़ था, इशानी ने जितना सोचा था, अभय और अनु का रिश्ता उससे ज़्यादा मज़बूत था। उन दोनों को साथ जाता देख इशानी को कुछ खोने का दर्द हुआ, पर उसने खुद को समझा लिया कि उसकी किस्मत में अधूरी मोहब्बत ही लिखी है।
"इशानी, तुझे क्या हुआ है? मतलब सीरियसली, तू उन दोनों के सामने कब से झुकने लगी?"
"हालात देखकर बदलना पड़ता है।"
"ओ कमोन, हमें अभय से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है।"
इशानी जानती थी कि बोनी को अपने सपने के बारे में बताना बेकार है; वह उस पर विश्वास नहीं करेगा।
"तुम अभय से दूर रहना; बस उससे कोई पंगा मत लेना।" इशानी को डर था कि अभय पॉवरफुल बनकर सबसे बदला लेगा।
"मैं क्यों उसके मुँह लगूँगा? यू नो, उस अभय की शक्ल देखते ही मेरा मन करता है उसका मुँह तोड़ दूँ। समझता क्या खुद को? जब देखो ऐसे एक्सप्रेशन लिए घूमता है, जैसे हमने उसका करोड़ों का कर्ज़ा खाया हो।"
बारिश और तेज हो गई थी। इशानी बारिश में भीगने लगी। आँखें बंद करके जब उसने ठंडी बारिश की बुँदों को महसूस किया, उसे बहुत सुकून मिला।
बोनी पहले तो इशानी को भीगने से बचाना चाहता था, लेकिन बेचारा खुद भी भीग गया। दोनों बारिश में खेलने लगे।
दोनों मज़े कर रहे थे कि इशानी को अभय वापस आता हुआ दिखा। 'ये वापस क्यों आ गया?'
अभय सीधा इशानी के सामने आकर रुका। वह बहुत गुस्से में उसे घूर रहा था, जिससे इशानी इतनी घबरा गई कि उसका मन किया यहाँ से भाग जाए, लेकिन उसने अपने चेहरे पर डर नहीं आने दिया।
"तेरी प्रॉब्लम क्या है? इशानी तुझे भूलकर आगे बढ़ चुकी है; अब क्यों परेशान कर रहा है उसे?" बोनी सीना तानकर अभय के सामने खड़ा हो गया।
अभय ने बोनी को नज़रअंदाज़ कर दिया। उसकी नज़र सिर्फ़ इशानी पर थी।
"मुझे नहीं पता तुम्हारा परिवार क्या करना चाहता है, लेकिन अगर कोई दुश्मनी है तो मुझसे उलझो; मेरे डैड या शर्मा फैमिली को हाथ लगाने की ज़ुर्रत मत करना; अंजाम अच्छा नहीं होगा।" लास्ट के शब्द अभय ने जोर देकर कहे।
अभी अभय बहुत पॉवरफुल नहीं बना था, लेकिन उसकी नज़रें एकदम सर्द और खतरनाक थीं, जो सामने वाले के अंदर खौफ़ पैदा करने के लिए काफी थीं।
इशानी काँप उठी। उसने खुद को शांत करते हुए कहा, "मुझे नहीं समझ आ रहा तुम किस बारे में बात कर रहे हो।"
इशानी को अपने डैडी पर पूरा भरोसा था; वे उससे किया वादा कभी नहीं तोड़ सकते थे।
"डोंट प्ले डम्ब। तुम बहुत अच्छे से जानती हो मैं क्या कह रहा हूँ? और अनु के सामने इनोसेंट बनने का तुम्हारा यह नाटक नहीं चलने वाला।"
बस बोनी की सहनशक्ति जवाब दे गई। उसने सीधा अभय का कॉलर पकड़ लिया। "हाऊ डेयर यू? तेरी हिम्मत कैसे हुई इशानी से ऐसे बात करने की?"
"बोनी, छोड़ो उसे।" इशानी का चेहरा पीला पड़ गया था।
"लेकिन यह तुझे उल्टा-सीधा बोल रहा है?" बोनी अभय को घूरते हुए बोला, जो भावशून्य नज़रों से उसे देख रहा था।
"मैंने कहा छोड़ो उसे; जस्ट लेट गो।" इस बार इशानी ने तेज आवाज़ में कहा, तो बोनी ने अभय का कॉलर छोड़ दिया, लेकिन उसका घूरना अभी भी जारी था।
"मुझे नहीं पता मेरी फैमिली ने क्या किया है जो तुम इतने गुस्से में हो... पर मैंने अपनी ट्रांसफ़र एप्लीकेशन आलरेडी प्रिंसिपल को दे दी है। भविष्य में कोई इशानी तुम्हें परेशान नहीं करेगी और रही बात मेरी फैमिली की तो तुम निश्चिंत रहो; वे तुम्हारी फैमिली से दूर रहेंगे।"
"अपना वादा याद रखना।" अभय ने उसे घूरते हुए कहा, फिर बोला, "अपना हाथ आगे करो।"
इससे पहले इशानी कुछ समझ पाती, उसने आलरेडी अपना हाथ आगे बढ़ा दिया था। "क्या... क्यों?"
अभय ने छाता इशानी को थमाया और तेज कदमों से चला गया।
अब इशानी खेलने के मूड में बिलकुल नहीं थी। उसे जानना था आखिर उसकी फैमिली ने क्या किया था जो अभय इतना भड़का हुआ था।
"इशानी, तुझे क्या हो गया है? तू उस अभय के सामने झुक कैसे सकती है?" बोनी अभी भी गुस्से में फूला हुआ था।
"अगर मैं कहूँ अभय हमारी जान का दुश्मन बन सकता है, तो तू यकीन करेगा?"
"नहीं।"
"बस तो फिर चुप रह और यह बात अपने दिमाग में बिठा ले; अभय से हमें दुश्मनी नहीं करनी; उससे जितना दूर रहेंगे, उतना ही सेफ़ रहेंगे।" इशानी किसी भी कीमत पर वह सपना सच नहीं होने देगी।
बोनी को घर छोड़कर वह सीधे अपने डैड के ऑफिस गई।
बोनी को घर छोड़कर इशानी सीधे अपने पिता के ऑफिस गई।
मेहरा ग्रुप
"क्या चल रहा है? तुम तो राणा ग्रुप के साथ कोलैबोरेशन की बात रखने गए थे?" शैलेंद्र जी ने अर्नव से कहा।
"वो लोग अपनी औकात से बाहर निकल रहे हैं।" अर्नव क्रोध में भरकर बोला।
"आप देखते आज कितना एटिट्यूड दिखा रहे थे हमें? हमारी मेहरा फैमिली को बिल्कुल सीरियसली नहीं ले रहे।"
आज अर्नव अपनी टीम के साथ राणा ग्रुप से साझेदारी की बात करने गया था। शांतनु राणा, जो कंपनी के प्रेसिडेंट थे, वहाँ नहीं थे। इसलिए मीटिंग वाइस प्रेसिडेंट संजय शर्मा के साथ हुई। संजय शर्मा शांतनु जी के परम मित्र भी थे।
लेकिन संजय का एटिट्यूड बहुत बुरा था। उन्होंने अर्नव के मुँह पर कह दिया कि वे किसी के साथ भी काम कर लेंगे, लेकिन मेहरा ग्रुप के साथ कभी काम नहीं करेंगे।
इतना ही नहीं, उन्होंने ओबरोय ग्रुप को अर्नव के सामने ही कांटेक्ट करके उनसे मीटिंग भी फिक्स कर ली।
यह कोई सीक्रेट नहीं था कि मेहरा ग्रुप और ओबरोय ग्रुप बिज़नेस राइवल्स थे।
इसी को लेकर अर्नव और संजय जी में बहसबाजी और फिर धक्का-मुक्की हो गई जिसमें संजय जी के सिर पर चोट आई। किस्मत से उनकी जान खतरे में नहीं थी।
यह सब सुन रही इशानी स्तब्ध थी। उसे लगा था कि जब तक वह अभय से दूर रहेगी, आने वाली तबाही को रोक सकेगी। पर अब लग रहा था जैसे वह जितना पीछे हटने की कोशिश कर रही है, किस्मत उतना ही उसे अनहोनी की ओर धकेल रही है।
संजय शर्मा... हो सकता है वह अनु के पिता हों। तभी तो अभय और अनु इतनी जल्दबाजी में हॉस्पिटल भागे थे।
"डैड, आप जानते हैं अगर राणा ग्रुप ने ओबरोय के साथ हाथ मिला लिया, हमारे लिए बहुत नुकसान होगा। मैं जानता हूँ आपको इशू की फिक्र है, लेकिन अब ये लोग हद से आगे बढ़ रहे हैं। इन्हें सबक सिखाना ज़रूरी है। हमें राणा ग्रुप को खरीद लेना चाहिए।" अर्नव गुस्से में बोला।
शैलेंद्र जी के चेहरे पर गंभीर भाव आ गए। इतने सालों से बिज़नेसमैन होने के नाते वे जानते थे कि अगर सच में वह चिप उनके राइवल्स ओबरोय को हाथ लग गई, तो उनकी कंपनी को भारी नुकसान होगा।
उन्होंने इशानी की ओर देखा। अभी जब वह आई थी, उनकी बेटी ने कहा था कि उसका अब अभय से कोई वास्ता नहीं है। वह लंदन जाकर पढ़ाई करना चाहती है।
लेकिन शैलेंद्र जी सब समझ गए थे। उनकी बेटी इंडिया छोड़कर इसलिए नहीं जाना चाहती थी क्योंकि वह अब अभय से प्यार नहीं करती, बल्कि इसलिए क्योंकि वह अपने जख्म किसी को नहीं दिखाना चाहती। अपनी प्रिंसेस की ऐसी हालत देखकर उनका दिल बहुत दुखी था।
शैलेंद्र जी ने गहरी साँस लेकर कहा, "आज रात मैं खुद शांतनु से मिलता हूँ। उसके बाद देखते हैं क्या होता है।"
"व्हाट? नो डैड! उन लोगों की औकात नहीं है आपसे मिलने की, और आप खुद जाएँगे उनके पास?" अर्नव हैरान होकर बोला।
शैलेंद्र जी टॉप बिज़नेसमैन में से एक थे, जबकि राणा ग्रुप बीस से तीस लोगों की छोटी कंपनी थी; जैसे हाथी के सामने चींटी।
"ऐसा नहीं कहते अर्नव। शांतनु, अगर वह चिप डेवलप कर सकता है, इसका मतलब वह बहुत टैलेंटेड है।" शैलेंद्र जी बिज़नेस के पक्के खिलाड़ी थे और अर्नव उनकी बात कभी नहीं टाल सकता था।
तीनों कार में थे। शैलेंद्र जी ने ड्राइवर से कहा, "पहले इशानी को घर छोड़ देना।"
"नहीं डैड, मैं भी आपके साथ चलूँगी, प्लीज़? मैं आपको बिलकुल परेशान नहीं करूँगी, बाहर बैठी रहूँगी, ओके?" इशानी ने मासूमियत से कहा।
अब शैलेंद्र जी अपनी बेटी को ना कैसे कह सकते थे? वे मान गए, "ठीक है, चलो तुम भी।"
"थैंक्यू डैडी।" इशानी उनके गले लग गई।
शैलेंद्र जी ने उसका सर थपथपाया और मन में सोचने लगे, 'मेरी पागल बेटी उस लड़के से कितना प्यार करती है! उसने मेरी बेटी को ठुकरा दिया, फिर भी उस लड़के को तकलीफ में नहीं देखना चाहती।'
शैलेंद्र जी समझ रहे थे इशानी इसलिए उनके साथ जाने की जिद कर रही है क्योंकि उसे डर है कि वे अभय या उसके पिता को परेशान ना करें।
वहीं इशानी को यह डर था कि कहीं दोनों परिवारों में लड़ाई ना हो जाए और वह सुबह उठे तो पता चले कि उसके पिता ने राणा ग्रुप को बैंकरप्ट कर दिया।
वह साथ होगी तो अगर बात बिगड़ी, वह कैसे भी करके अपने परिवार को बचा लेगी।
लेकिन हॉस्पिटल पहुँचकर इशानी अपने निर्णय पर पछता रही थी। उसके पिता और भाई तो शांतनु और संजय से मिलने वार्ड के अंदर चले गए थे और वह बाहर कॉरिडोर में बेंच पर बैठी थी। पर समस्या यह थी कि जिन दो लोगों को वह बिल्कुल नहीं देखना चाहती थी, वे दोनों उसके सामने थे।
अभय और अनु सामने वाली बेंच पर बैठे थे।
इससे भी बड़ी मुसीबत थी उसकी ड्रेस। उसकी स्कूल की ड्रेस भीग गई थी। इसलिए उसने कंपनी में से एक सेक्रेटरी के हाथों ड्रेस खरीद लाने को कहा था और वह एक प्रिंसेस ड्रेस ले आया था, पिंक कलर की।
इशानी को बहुत शर्म आ रही थी इस बच्चों जैसी ड्रेस में। वह अभय और अनु के सामने थी। ऊपर से स्लीवलेस और घुटनों से ऊपर होने की वजह से उसे ठंड लग रही थी, लेकिन खिड़की बंद करने की उसकी हिम्मत नहीं थी क्योंकि खिड़की अभय की तरफ थी।
सामने खिड़की में से जोरदार ठंडी हवा का झोंका आया और इशानी को छींक आ गई।
अभय ने उठकर खिड़की बंद कर दी और अपनी जैकेट उतार दी।
इशानी की धड़कनें तेज हो गईं, लेकिन अगले ही पल उसे लगा जैसे किसी ने उस पर ठंडा पानी डाल दिया हो। अभय ने जैकेट अनु को पकड़ा दी।
इशानी का वहाँ बैठना मुश्किल हो गया। इससे अच्छा वह बाहर कार में ही रुक जाती।
इशानी वहाँ से जाने ही वाली थी कि दरवाज़ा खुला और अर्नव बाहर निकला। "इशानी, अभय, अंदर आओ।"
इशानी हैरान रह गई। अभय के चेहरे पर भी नासमझी के भाव थे। उन दोनों का अंदर क्या काम?
खैर, दोनों अर्नव के साथ अंदर आ गए। देखा तो कोई बहसबाजी नहीं हो रही थी, बल्कि शैलेंद्र जी और शांतनु जी हँसते-मुस्कुराते बात कर रहे थे। यहाँ तक कि संजय जी, जो बेड पर थे, वे भी खुश नज़र आ रहे थे।
"मिस्टर मेहरा, आप वाकई बहुत सुलझे हुए इंसान हैं।"
"आप भी बहुत टैलेंटेड हैं, मिस्टर राणा। मुझे पूरा यकीन है आपकी कंपनी बहुत आगे जाएगी।"
"मैंने आज तक सिर्फ़ सुना था, आज देख भी लिया। आप सच में इस जनरेशन के रोल मॉडल हैं।"
"आपको कोई भी ज़रूरत हो, हमारी मेहरा फैमिली हमेशा आपके लिए हाजिर है। आप भले ही कोलैबोरेशन नहीं करना चाहते, फिर भी आप मेरे दोस्त हमेशा रहेंगे।" शैलेंद्र जी ने मुस्कुराकर कहा।
इशानी हैरानी से उन सभी को देख रही थी। डील पक्की नहीं हुई, फिर भी सब इतने खुश क्यों हैं?
मिस्टर राणा अभय को देखते हुए बोले, "अभय, खुशखबरी है। मिस्टर मेहरा तुम्हारी माँ के इलाज में हमारी मदद करेंगे।"
अभय की माँ का हार्ट ट्रांसप्लांट होना था। वे सालों से बेड रेस्ट पर थीं, पर कोई भी डॉक्टर उन्हें सही नहीं कर पाया था। शैलेंद्र जी की पहुँच बहुत ऊँची थी और वे बड़े-बड़े डॉक्टरों को जानते थे, तो ज़्यादा चांस थे कि अभय की माँ ठीक हो जाएँ।
यह बात अभय के दिल को छू गई।
"थैंक्यू, मिस्टर मेहरा।" अभय ने अपनी गहरी आवाज़ में कहा।
शैलेंद्र जी ने ध्यान से अभय को देखा और उन्हें अब समझ आया कि क्यों उनकी बेटी अभय से इतना प्यार करती है। इस लड़के में कुछ तो बात है।
"डोंट वरी, बेटा। हम तुम्हारी माँ को ठीक करने के लिए पूरी ताकत लगा देंगे। वे ज़रूर ठीक हो जाएँगी।" फिर रुककर आगे बोले, "लेकिन मेरी एक शर्त है।"
"शर्त?" अभय की नज़र इशानी पर चली गई, लेकिन इशानी तो खुद कन्फ़्यूज़ थी।
"दो साल पहले एक लड़के ने मैथ्स ओलंपियाड में फर्स्ट और फिजिक्स ओलंपियाड में सेकेंड पोजीशन हासिल की थी। उसे फ़ौरन ही बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटीज़ में पढ़ने के ऑफ़र मिले थे, जिस वजह से मुझे लगा वो टैलेंटेड बच्चा विदेश में पढ़ रहा है।"
"आज अगर तुम्हारे डैड नहीं बताते, मुझे पता ही नहीं चलता वो टैलेंट तुम हो। अपनी माँ की देखभाल के लिए तुमने इतना बड़ा मौका छोड़ दिया... मैं चाहता हूँ तुम लंदन जाकर अपनी आगे की पढ़ाई करो।"
अभय हैरान रह गया। "आप हमारी इतनी मदद क्यों कर रहे हैं?"
"पहला तो मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे जैसा टैलेंट वेस्ट हो और दूसरा..." शैलेंद्र जी ने इशानी की ओर देखा, "...मेरी बेटी इशानी को मैंने बहुत लाड़-प्यार से पाला है। मुझे हमेशा इसकी चिंता लगी रहती है। मैं चाहता हूँ तुम लंदन में इशानी का ध्यान रखो।"
अभय इस बार ज़्यादा सरप्राइज़ नहीं हुआ। वह समझ गया था बात इशानी से जुड़ी हुई ही होगी। "आप हमारे लिए इतना सब कर रहे हैं, मैं इतनी छोटी सी रिक्वेस्ट के लिए कैसे मना कर सकता हूँ? मुझे मंज़ूर है।"
"लेकिन मुझे मंज़ूर नहीं है।" इशानी ने कहा और अपने डैडी के पास आ गई। उसने नहीं सोचा था डैड उसे अभय से मिलवाने के लिए इतना सब करेंगे।
"लेकिन मुझे मंजूर नहीं है," इशानी ने कहा और अपने डैडी के पास आ गई। उसने नहीं सोचा था कि डैड उसे अभय से मिलवाने के लिए इतना सब करेंगे।
"डैड, अब मैं बड़ी हो गई हूँ, अपना ध्यान खुद रख सकती हूँ। मुझे किसी की कोई ज़रूरत नहीं है। और फिर बोनी तो जा ही रहा है मेरे साथ?"
शैलेंद्र जी को लगा उनकी बेटी शर्मा रही है। "तो क्या हुआ? एक और दोस्त तुम्हारे साथ होगा तो मुझे तसल्ली रहेगी। अभय बहुत होशियार और समझदार है।"
इशानी का मुँह फूल गया। "डैड, आप सबके बच्चों की तारीफ़ करते हैं, मेरी नहीं! मैं क्या, बुद्धू हूँ?"
शैलेंद्र जी ने ठहाका लगाया और इशानी के सर थपथपाया। "नहीं, मेरी बेटी तो दुनिया की बेस्ट बेटी है।"
हॉस्पिटल से निकलकर शैलेंद्र जी अच्छे मूड में थे। उन्होंने बहुत बड़े सर्जन से संपर्क भी कर लिया था।
"डैड, मिस्टर राणा हमारे साथ कोलैबोरेशन क्यों नहीं करना चाहते?" इशानी ने कहा।
"शांतनु बहुत महत्वाकांक्षी हैं। वो किसी की इन्वेस्टमेंट नहीं लेना चाहता, ओबरोय ग्रुप की भी नहीं। संजय तो तुम्हारे भाई को गुस्सा दिलाने के लिए वो सब कह रहा था।"
"लेकिन क्यों?"
"संजय और शांतनु बहुत पक्के दोस्त हैं। हमारी फैमिली ने अभय को स्कूल से निकलवा दिया था। इसी का बदला ले रहा था वो अर्नव से।"
इशानी को अब समझ आया। अनु के डैड अभय के लिए बदला ले रहे थे।
तीन दिन के अंदर ही दस डॉक्टरों की टीम ने अभय की माँ का इलाज शुरू कर दिया। शैलेंद्र जी के कनेक्शन से समय पर सेम ब्लड ग्रुप का हार्ट भी मिल गया और हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी सफल रही।
अभय के डैड, शांतनु जी खुद शैलेंद्र जी को धन्यवाद करने गए थे।
"इशु, आज मिस्टर राणा मुझसे तुम्हारी यूनिवर्सिटी का नाम पूछ रहे थे। कह रहे थे अभय भी उसी यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेगा और तुम्हारा ध्यान रखेगा।" घर आते ही शैलेंद्र जी ने खुशखबरी इशानी को सुनाई जो लिविंग रूम में सोफ़े पर बैठी आइसक्रीम खाते हुए फिल्म देख रही थी।
अपने डैड की बात सुनकर इशानी को झटका लगा। वो जोर-जोर से खांसने लगी।
शैलेंद्र जी ने इशानी को पानी पिलाया और उसकी पीठ थपथपाई। तब जाकर इशानी ठीक हुई।
"मिस्टर राणा ये भी कह रहे थे कि तुम दोनों साथ ही चले जाना।"
"डैड!!! मुझे ना अभय के साथ एक यूनिवर्सिटी में पढ़ना है, ना ही उसके साथ जाना है।"
"ऐसा नहीं कहते बेटा। मैं जानता हूँ अभय के रिजेक्ट करने से तुम गुस्सा हो, पर ऐसे छोटी-छोटी बातों को दिल पर नहीं लगाते। जब तुम दोनों एक-दूसरे के साथ टाइम स्पेंड करोगे, तभी तो अभय को तुमसे प्यार होगा।"
"मुझे अभय के साथ टाइम स्पेंड नहीं करना, डैड! मैं अब उससे प्यार नहीं करती।"
शैलेंद्र जी को लगा इशानी गुस्से में है। वो बच्चों की तरह उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए बोले, "हमारी प्रिंसेस अभय से प्यार नहीं करती। भविष्य में जब अभय तुम्हें प्रपोज करेगा, तुम आसानी से उसे माफ़ मत करना, ओके?"
इशानी की बोलती बंद हो गई। मतलब वो कुछ भी कह लें, उसके डैड यही समझेंगे कि वो अभय से अभी भी प्यार करती है। माना ये सच था, लेकिन वो अभय से दूर रहना चाहती है। वो इससे भी बड़ा सच था।
इशानी कल रात मयंक की बर्थडे पार्टी में जाएगी ना?" बोनी ने पूछा।
मयंक ओबरोय, जगत ओबरोय का बेटा था। वैसे तो ओबरोय ग्रुप उनके बिज़नेस राइवल थे, लेकिन मयंक, बोनी और इशानी पहले एक ही स्कूल में पढ़ते थे और तीनों में अच्छी दोस्ती थी। मयंक ने इशानी को प्रपोज भी किया था, जिसे इशानी ने रिजेक्ट कर दिया था। फिर भी दोनों में दोस्ती कायम थी।
क्योंकि एक हफ़्ते में वो लंदन जाने वाले थे, इशानी मयंक की बर्थडे पार्टी में जाने को मान गई।
पार्टी की शाम ओबरोय मेंशन के गार्डन में शानदार थी। मयंक दोस्तों से घिरा हुआ गपशप कर रहा था। जैसे ही इशानी और बोनी आते हुए दिखे, वो तुरंत उठकर उनके पास आ गया।
"तुम दोनों बहुत बुरे हो! मुझे अकेला छोड़कर स्कूल चेंज कर लिया।"
"तेरी खबर आउटडेटेड है। आज की ताज़ा खबर है कि आगे की स्टडीज़ के लिए हम दोनों लंदन जा रहे हैं।" बोनी बड़े एटीट्यूड में बोला।
"क्या? लंदन?" मयंक बुरी तरह चौंक गया।
"टिकट्स भी बुक हो चुके हैं। एक हफ़्ते में हमें निकलना है।"
"एक हफ़्ते में?" मयंक ने इशानी को देखा। "सच में इशानी? तुमने मुझे बताया भी नहीं?"
"हर खबर तुम्हें बताना ज़रूरी है क्या?" इशानी ने होंठ सिकोड़कर कहा।
"नहीं, लेकिन तुम बोनी को हर जगह अपने साथ लेकर जाती हो, मुझे नहीं..." लास्ट तक आते-आते मयंक बुदबुदाने लगा, लेकिन बोनी ने सुन लिया।
"इशानी मेरी बहन है, तेरी क्या है जो तुझे साथ लेकर जाएगी?" उसने जले पर नमक छिड़कते हुए कहा।
"पिटने को मांग रहा है तू!" कहते हुए मयंक बोनी पर झपटा।
"बस करो तुम दोनों!" इशानी को उन दोनों की नौटंकी की आदत थी।
मयंक को एक कॉल आया और वो चला गया।
पार्टी में ज़्यादातर मयंक के स्कूल के दोस्त थे, जिन्हें इशानी नहीं जानती थी। इसलिए वो एक तरफ़ सोफ़े पर बैठ गई। बोनी भी उसके साथ बैठकर जूस पीने लगा।
अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि जोर-जोर से आवाज़ें आने लगीं, जैसे झगड़ा हो रहा है। बोनी सोफ़े पर चढ़ा और देखने लगा।
"ये अनु यहां क्या कर रही है? लगता है इसका तान्या से पंगा हो गया। अब आएगा मज़ा!" बोनी उत्साहित होकर बोला।
इशानी हैरान रह गई। अनु यहां? तान्या भी उनके पहले वाले स्कूल में पढ़ती थी और इशानी जानती थी तान्या बड़ी ही चालाक और शातिर है। अनु की तो वो बैंड बजा देगी।
इशानी बोनी को लेकर उस जगह गई।
अनु ने व्हाइट ड्रेस पहनी थी, जो अब कॉफ़ी के दागों से खराब हो गई थी। उसके बाल भी चिपक गए थे।
"ये तो बहुत छोटा सा सबक था। आगे से अपनी औकात याद रखना और मेरे मयंक से दूर रहना, समझी?" तान्या कमर पर हाथ रखकर अनु को घूरते हुए बोली।
अनु डर के मारे कांप रही थी, लेकिन उसके मुँह से कोई आवाज़ नहीं निकली।
इशानी ने अनु को अपने पास खींच लिया और बोनी से कहा, "अपनी जैकेट दो।"
"मैं नहीं दूँगा।" बोनी जानता था इशानी क्यों उसकी जैकेट मांग रही है।
"जल्दी नहीं तो मैं किसी और से मांग लूँगी।" इशानी ने उसे आँखें दिखाईं। तब जाकर बोनी ने जैकेट दी।
इशानी ने अनु को जैकेट पहना दी। अनु अपने आँसू पोंछकर धीरे से थैंक्यू बोली।
"इशानी, तू जानती है इसे?" तान्या हैरानी से बोली। इशानी के पॉवरफुल बैकग्राउंड के कारण वो इशानी से कोई पंगा नहीं लेना चाहती थी।
"बहुत अच्छे से। माफ़ी मांगो मेरी दोस्त से।" इशानी ने तान्या को सर्द नज़रों से देखा।
"माफ़ी? और इससे? इम्पॉसिबल! ग़लती इसकी है। मेरे बॉयफ्रेंड को सेड्यूस कर रही थी।" तान्या अकड़ कर बोली।
"नहीं... मयंक और मेरे बीच ऐसा कुछ नहीं है। मैं उसकी रिलेटिव हूँ, बस।" अनु ने घबराकर कहा।
"रिलेटिव? तुम और मयंक? आर यू क्रेज़ी?" तान्या आँखें गोल करके बोली। "और तुझे क्या? मैं अंधी नज़र आती हूँ? मैंने अपनी आँखों से देखा था कैसे छिपकली की तरह चिपकी हुई थी मयंक से।"
अब इशानी भी हैरान रह गई। 'अनु और मयंक?'
"इशानी, हमें चलना चाहिए। लगता है इन दोनों का पहले से ही चक्कर है।" बोनी व्यंग्यात्मक लहजे में बोला।
"तुम चुप रहो।" इशानी ने बोनी को डाँट लगाई और मयंक को फोन किया। "मयंक, जल्दी यहां आओ।"
तान्या को नहीं पता था इशानी ने क्यों मयंक को बुलाया, पर वो कॉन्फिडेंट थी। आख़िर कुछ ही दिन पहले मयंक ने उसे प्रपोज किया था।
पाँच मिनट में ही मयंक वहाँ आ गया और भीड़ इकट्ठी हुई देख चौंककर बोला, "ये हो क्या रहा है?"
"तुम्हारी गर्लफ्रेंड का कहना है अनु ने तुम्हें सेड्यूस किया और इसलिए उसने अनु पर कॉफ़ी डाल दी।" इशानी ने कहा।
"क्या???" मयंक ने गुस्से में तान्या को देखा। "क्या बदतमीज़ी है ये? अनु मेरी रिलेटिव है। उसका पैर फिसल गया था, तो मैं सिर्फ़ उसकी मदद कर रहा था और तुम?"
तान्या को लगा था अनु वेट्रेस होगी, पर वो तो सच में मयंक की रिलेटिव निकली। तान्या चुप हो गई।
"इशानी ने तुझे रिजेक्ट कर दिया तो तूने किसी को भी अपनी गर्लफ्रेंड बना लिया।" बोनी ने मयंक का मज़ाक उड़ाया।
"ये मेरी गर्लफ्रेंड नहीं है।" मयंक मुँह बनाकर बोला।
"लेकिन इसने सबके सामने कहा ये तेरी गर्लफ्रेंड है?"
"अब नहीं है।" मयंक ने तान्या को दरवाज़ा दिखा दिया। "तुम निकलो मेरे घर से।"
तान्या का चेहरा पीला पड़ गया। उसने मयंक को उंगली दिखाई। "ठीक है, पछताना मत।" और चली गई।
"तान्या की तरफ़ से मैं तुमसे माफ़ी मांगता हूँ।" मयंक ने अनु से कहा।
"इट्स ओके।" अनु ने ना में सिर हिला दिया।
"तुम्हारे कपड़े खराब हो गए हैं। जाकर चेंज कर लो।" मयंक ने एक वेट्रेस को बुलाकर अनु को उसके साथ भेज दिया।
सबके जाने के बाद बोनी बोला, "ये तान्या क्या कह रही थी? तू अनु के साथ क्या कर रहा था?"
"कुछ नहीं... सीढ़ियों पर उसका पैर फिसल गया था। मैंने उसे बचाया था।" मयंक के चेहरे पर हिचकिचाहट थी।
"तब तो तेरे साथ ठीक ही हुआ। तेरी गर्लफ्रेंड थी फिर भी दूसरी लड़की पर लाइन मार रहा था।"
"नहीं... वो तो डैड ने कहा था अनु को घर दिखा लाओ, तो क्या करता?"
"तुम दोनों सच में रिलेटिव हो?"
"बहुत दूर के। आई डोंट नो डैड इस बार क्यों उन्हें बुलाने की ज़िद कर रहे थे।"
"फिर तेरे और तान्या के बीच क्या चल रहा था?"
"ग़लती थी वो... किसे पता था वो इतना सीरियस हो जाएगी?"
दो दिन पहले मयंक अपने दोस्तों के साथ नाईट क्लब में पार्टी कर रहा था। उसने ज़्यादा पी ली थी और नशे में तान्या को प्रपोज कर दिया था। अगले दिन उसे पछतावा होने लगा, लेकिन तान्या आलरेडी सबको बता चुकी थी और उसका प्रपोज करते हुए विडियो भी बना लिया था।
"मैं तुझे अच्छे से जानता हूँ। ग़लती का क्या मतलब? ज़रूर नशे में तू होश खो बैठा होगा।"
"ज़्यादा बकवास मत कर। मैं ऐसा-वैसा लड़का नहीं हूँ। मेरे भी अपने रूल्स हैं।" मयंक का चेहरा शर्म से लाल हो गया।
शराब पीकर वो बहक जरूर गया था, लेकिन उन दोनों ने सिर्फ़ किस किया था।
इशानी उन दोनों को छोड़कर वाशरूम गई। जब वह वापस आ रही थी, एक कमरे से आवाजें आ रही थीं और मेहरा फैमिली का नाम लिया जा रहा था। यह सुनकर इशानी उत्सुकतावश रुक गई। वह खिड़की के पास आई और हल्का सा पर्दा हटाकर देखा। अंदर मयंक के पिता जगत ओबरोय और अनु के पिता संजय शर्मा बैठे थे।
"मिस्टर ओबरोय, माफ़ी चाहता हूँ, लेकिन शांतनु ओबरोय ग्रुप की इन्वेस्टमेंट एक्सेप्ट नहीं कर रहा। मैंने बहुत समझाया उसे, वो नहीं माना। पर आप चिंता मत करिए, अगर वो ओबरोय ग्रुप की इन्वेस्टमेंट नहीं ले रहा, तो मेहरा ग्रुप की भी नहीं लेगा।"
"लेकिन मैंने सुना है शैलेंद्र ने शांतनु की पत्नी का इलाज करवाया है। क्या गारंटी है शांतनु अपना इरादा नहीं बदलेगा?" जगत ओबरोय ने तिरछी मुस्कान दी। जगत बहुत ही कुटिल व्यक्ति था; जो उसे चाहिए होता था, उसे किसी भी कीमत पर पा लेता था, चाहे उसे गलत रास्ता अपनाना पड़े या किसी को मारना पड़े।
"शांतनु अपने इरादों का पक्का है। वो अपना खुद का मोबाइल ब्रांड बनाना चाहता है। वो किसी की इन्वेस्टमेंट नहीं लेगा। आप निश्चिंत रहिए।"
"यही अच्छा होगा।" जगत ओबरोय ने खतरनाक लहजे में कहा।
इशानी वहाँ से चली गई। उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। उसे याद आया कैसे संजय ने उसके भाई के सामने ओबरोय ग्रुप से कोलैबोरेशन की बात की थी। हो सकता है वो उस समय सीरियस हो?
जब वह वापस आई, अनु भी कपड़े चेंज करके आ गई थी।
"मैं जा रही हूँ।" अनु बोली।
"ओके। तुम्हारे डैड को बता दूँ?" मयंक ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की।
"नहीं, मैं उन्हें मैसेज कर दूँगी।" अनु को याद था उसके डैड ने कहा था कि वो मिस्टर ओबरोय के साथ ज़रूरी मीटिंग करेंगे।
मयंक अपने ड्राइवर को बुलाने वाला था कि अनु को घर छोड़ दें, तभी इशानी बोली, "मैं भी घर जा रही हूँ।"
"नहीं।"
"नहीं।"
मयंक और बोनी साथ में बोले। उन्होंने इशानी को रोकने की कोशिश की, लेकिन इशानी ने कहा कि उसकी तबीयत थोड़ी ठीक नहीं है, इसलिए उन्हें मानना पड़ा।
इशानी ने अनु को अपने साथ चलने को कहा। अनु मान गई।
रास्ते भर दोनों में कोई बात नहीं हुई। कार रुकते ही अनु जल्दी से दरवाजा खोलकर निकल गई।
इशानी को हँसी आ गई। "ये लड़की मुझसे इतना डरती क्यों है?" तभी उसकी नज़र अनु के फ़ोन पर गई जो वो कार में ही भूल गई थी।
इशानी फ़ोन लेकर उसके पीछे भागी।
लेकिन अनु उसे कहीं नहीं दिखी। "इतनी जल्दी कहाँ गायब हो गई?" इशानी इधर-उधर देख रही थी, तभी झाड़ियों के पीछे से कुछ आवाजें आईं।
इशानी ने जाकर देखा तो उसका खून सूख गया। एक आदमी ने अनु को दबोच रखा था और अनु झटपटा रही थी। इशानी ने बिना सोचे-समझे अपने हाथ में पकड़ा फ़ोन आदमी के सिर पर जोर से दे मारा, जिससे उसकी पकड़ अनु से छूट गई।
इशानी ने अनु को खड़ा किया। "जल्दी भागो यहाँ से।"
दोनों भागने लगीं। वो आदमी शराबी लग रहा था। गाली देता हुआ वो भी उनके पीछे लपका।
अनु कुछ ज़्यादा ही घबराई हुई थी कि लड़खड़ाकर गिर गई। इशानी उसे उठाने लगी, जब तक उस शराबी ने उन्हें पकड़ लिया। वो फिर अनु पर झपटा। अनु चिल्लाने लगी। इशानी ने फ़ोन अबकी बार उस शराबी की आँख पर दे मारा, जिससे उसकी चीख निकल गई। अब उसने अनु को एक तरफ़ धकेला और इशानी पर झपटा। इशानी अचानक हुए हमले से संभल नहीं पाई और जमीन पर गिर पड़ी। उसका सिर किसी पत्थर से टकरा गया और उसकी हथेली में कुछ जोर से चुभा।
अनु ने जैसे-तैसे खुद को संभालकर फ़ोन पकड़ा और अभय को कॉल लगा दी। किस्मत से अभय ने पहली ही रिंग में फ़ोन उठा लिया।
"अ...अभय, मैं इशानी के साथ नीचे हूँ। जल्दी आओ...हमें एक शराबी ने घेर लिया है..."
"मुझ पर हाथ उठाया? जान से मार दूँगा तुझे!" शराबी गुस्से में पागल हो गया। लेकिन जैसे ही उसने इशानी को देखा, उसकी आँखें हवस से चमकने लगीं। उसने इशानी के कपड़े फाड़ने को हाथ बढ़ाए, लेकिन इशानी ने पूरी ताकत लगा दी और खुद को छूने नहीं दिया। इससे बौखलाकर शराबी ने इशानी का गला दबोच लिया।
इशानी का दम घुटने लगा। उसका चेहरा लाल पड़ गया। जब उसे लगने लगा था कि वो मरने वाली है, अचानक वो आज़ाद हो गई और एक जोरदार चीख गूंज उठी।
इशानी ने देखा तो हैरान रह गई। 'अभय? मतलब अनु और अभय एक ही मोहल्ले में रहते हैं?'
अभय ने उस शराबी की जमकर धुलाई करी और अपनी बेल्ट निकालकर उसे बाँध दिया।
अनु ने पुलिस को फ़ोन कर दिया था और अभय को सब कुछ बता दिया।
पहले इशानी नहीं समझती थी क्यों अनु उसे देखकर घबराती है, लेकिन अब समझ गई। वो भी अभय को देखकर ऐसे ही घबराने लगती है।
"मैं चलती हूँ।" इशानी जाने लगी।
"नहीं, पुलिस आने वाली है। हमें बयान देना होगा।" अनु बोली। वहीं अभय का ध्यान इशानी की हथेली से टपकते खून पर था। "तुम्हें चोट लगी है?" उसने अपनी सर्द आवाज में कहा।
इशानी ने अपना हाथ पीछे कर लिया। "नहीं, छोटी सी खरोंच है।"
"अपना हाथ दिखाओ।" अभय ने लगभग ऑर्डर दिया।
इशानी का दिल जोरों से धड़कने लगा।
"दिखाओ अपना हाथ," अभय ने अपनी गहरी आवाज़ में कहा। इशानी घबरा गई, पर अपना हाथ नहीं दिखाया।
अभय ने उसकी कलाई पकड़ ली, पर इशानी ने मुट्ठी कस रखी थी। "मैं ठीक हूँ, सच में," अभय के छूने से इशानी बर्फ की तरह जम गई थी।
"खोलो," अभय ने सर्द आवाज़ में कहा। इशानी ने मुट्ठी खोली। इशानी की नाजुक हथेली के बीचोंबीच बड़ा सा कट लगा था। उसकी उंगलियों के बीच से खून टपक रहा था। अभय की आँखें छोटी हो गईं। वहीं अनु ने डरकर मुँह घुमा लिया।
"मेमसाब, आपको चोट कैसे लगी?" ड्राइवर भागता हुआ आया। इशानी को गए हुए बहुत देर हो गई थी, इसलिए उसे चिंता होने लगी थी।
"जल्दी चलिए, मैं आपको हॉस्पिटल ले चलता हूँ।"
"नहीं, कोई ज़रूरत नहीं है। बैंडेज करके ठीक हो जाएगा।"
"अनु के घर में मेडिकल किट है। बैंडेज करवा लो," अभय ने भावशून्य आवाज़ में कहा।
इससे पहले कि इशानी मना करती, ड्राइवर अभय का धन्यवाद करने लगा। "थैंक्यू, मेमसाब। जाइये, कम से कम खून बहना तो रुक जाएगा।"
इशानी के पास और कोई विकल्प नहीं था। वह अनु के साथ उसके घर चली गई, पर अभय को पीछे-पीछे आता देख हैरान रह गई। 'ये क्यों साथ में आ रहा है? इसे ये तो डर नहीं कि मैं अकेले में अनु को परेशान करूँगी?'
इशानी सोफ़े पर बैठ गई। अनु ने मेडिकल किट निकाली, जो अभय ने उसके हाथों से ले ली। कैसे अभय खुद उसके बैंडेज करने वाला है, यह देखकर इशानी बुरी तरह चौंक गई। "तुम रहने दो, अनु कर देगी।"
"उसे खून से डर लगता है," अभय ने सर्द आवाज़ में कहा।
अनु को फ़ोन आया। कुछ बात करके फ़ोन काटकर वह अभय से बोली, "पुलिस आ गई है। मैं जाकर बात कर लेती हूँ।"
"हम्म।"
अनु के जाते ही घर में एकदम शांति छा गई। जैसे ही अभय ने चोट पर दवाई लगाई, इशानी दर्द से कांप उठी। चोट पर बहुत जलन हो रही थी।
"बस हो गया," अभय ने ठंडी आवाज़ में कहा, लेकिन अब वह और हल्के हाथों से दवाई लगा रहा था। इशानी पत्थर की मूर्ति की तरह बैठी रही।
जैसे ही बैंडेज हुई, इशानी को लगा उसकी जान छूटी और वह उठ खड़ी हुई।
"रुको।"
इशानी ने कन्फ़्यूज़ होकर उसे देखा।
"तुम्हारे माथे पर भी चोट है।"
इशानी ने अपना माथा छूकर देखा। वहाँ घुमाड़ पड़ गया था। उसे फिर बैठना पड़ा।
अभय जब उसके माथे पर दवाई लगा रहा था, वे दोनों बहुत करीब थे। इशानी को एक-एक पल एक सदी के समान लग रहा था। वह अपनी साँसें रोके बैठी थी।
"हो गया।" यह सुनते ही इशानी झट से उठकर जाने लगी कि मेज़ से टकरा गई। इससे पहले कि वह गिरती, अभय ने अपनी मज़बूत बाहों में उसे थाम लिया। दोनों की नज़रें मिलीं। अभय की गहरी आँखें देखकर इशानी और घबरा गई और झट से दूर हो गई।
जिससे मेज़ पर रखी मेडिकल किट गिर गई और उसका सामान बिखर गया। इशानी हड़बड़ाकर सामान समेटने लगी।
"क्या हुआ?"
"कुछ...न...नहीं।" इशानी अभय को देख भी नहीं रही थी।
अभय को समझ नहीं आ रहा था वह क्यों इतना घबरा रही है। तभी उसे अनु का कॉल आया।
"मैं ड्राइवर अंकल के साथ पुलिस स्टेशन में हूँ। तुम दोनों डायरेक्ट यहाँ आ जाना।"
"ओके।"
घर से पुलिस स्टेशन सात-आठ मिनट की पैदल दूरी पर था। अभय आगे-आगे चल रहा था और इशानी उससे दूरी बनाकर पीछे-पीछे चल रही थी। अभय बहुत तेज चल रहा था और इशानी कमजोरी महसूस कर रही थी। दोनों में अजीब सी शांति थी।
बहुत देर तक कोई आवाज नहीं आई। अभय रुककर पीछे मुड़ा। चांद की रोशनी में इशानी की ड्रेस तारों की तरह झिलमिला रही थी। उसकी नजरें झुकी हुई थीं और चेहरा चांद से भी खूबसूरत लग रहा था। कुछ एहसास होकर इशानी ने भी ऊपर देखा और अभय को अपनी ओर देखता पाकर घबरा गई।
"क्यों?" अभय ने गहरी आवाज़ में कहा।
"क्या क्यों?" इशानी डर गई। पता नहीं अभय को किसी बात का बुरा लग जाए और वह उनके परिवार से बदला लेने लगे।
"तुम्हें अनु को बचाने के लिए खुद को खतरे में नहीं डालना चाहिए था।"
"उस वक्त मुझे जो समझ आया, मैंने वही किया।" इशानी सच कह रही थी। अगर अनु की जगह कोई और होता, तब भी वह यही करती।
अभय उसे अपनी गहरी नज़रों से देखता रहा जिससे इशानी को गुज़बंप आ गए।
खैर, अभय ने आगे कुछ नहीं पूछा और चलने लगा। इशानी ने राहत की साँस ली। इस बार अभय धीरे चल रहा था।
"मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ। मेरा कन्फेशन तुम सीरियसली मत लेना। बचपन से डैड मेरी हर ख्वाहिश पूरी करते आए हैं, इसलिए मैं थोड़ी जिद्दी बन गई थी। तुम्हारा इंकार मुझे हर्ट कर गया था। मैं खुद को हारा हुआ महसूस कर रही थी, लेकिन अब मुझे समझ आ गया है— तुम मेरा जूनून थे, प्यार नहीं।"
इशानी अपने दिल की बात कहना चाहती थी। वह जानती थी अभय को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन फिर भी वह उसे बताना चाहती थी कि उसने उसका पीछा छोड़ दिया है।
उसकी उम्मीद के विपरीत, अभय रुककर उसे देखने लगा।
"मेरे डैड ने तुम्हारे डैड की मदद इसलिए की क्योंकि वह सच में उनके टैलेंट से इम्प्रेस थे और उनसे दोस्ती करना चाहते थे। हमारी फैमिली के लिए यह छोटी सी मदद थी, इसलिए तुम इसे एहसान मत समझना। तुम्हें मेरे साथ एक ही यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने की ज़रूरत नहीं है।"
इशानी डॉक्टर बनना चाहती थी। जिस यूनिवर्सिटी में उसने एडमिशन लिया था, वह मेडिसिन में मेजर थी, जबकि अभय उससे भी कहीं ज़्यादा टैलेंटेड था और उसे वर्ल्ड की टॉप यूनिवर्सिटी में आराम से एडमिशन मिल सकता था।
"मैं किसी का एहसान चुकाने के लिए अपना भविष्य खराब नहीं करूँगा।" अभय ने आराम से कहा।
"थैंक गॉड! मैं तो डर ही गई थी। मुझे लगा तुम मेरे डैड की बातों में आकर सेम यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लोगे।"
इशानी की आँखें खुशी से टिमटिमा रही थीं। साफ़ था कि अभय से अलग पढ़ने में वह बहुत खुश थी। अभय ने नज़रें फेर लीं।
जब वे दोनों पुलिस स्टेशन पहुँचे, दोनों का अलग-अलग बयान लिया गया। जब तक वे बाहर निकले, संजय और शांतनु भी आ गए थे।
संजय ने ऊपर से नीचे तक अनु को देखा। जब उन्होंने देखा कि वह सही-सलामत है, तब जाकर उन्हें तसल्ली हुई। "अनु मेरी बच्ची, तू ठीक है? मेरी तो जान ही निकल गई थी।"
अनु संजय के गले लगकर रोने लगी।
शांतनु ने इशानी को देखा तो हैरान हो गए। "इशानी तुम यहां?"
अभय ने उन्हें सब कुछ बता दिया। सब सुनने के बाद शांतनु ने इशानी का आभार व्यक्त किया। "इशानी, बहुत-बहुत धन्यवाद तुम्हारा। तुमने हिम्मत दिखाकर अनु को बचा लिया। मैं खुद तुम्हारे डैड के पास धन्यवाद करने आऊँगा।"
फिर उन्होंने अभय की ओर देखा। "अभय, इशानी को घर छोड़ दो। शैलेंद्र परेशान हो जाएगा।"
"नहीं, इट्स ओके। ड्राइवर अंकल है बाहर।" इशानी एकदम से बोली। उसे अभय के साथ नहीं जाना था।
फिर भी अभय इशानी को कार तक छोड़ने आया।
"कल ध्यान से डॉक्टर को दिखा लेना। चोट गहरी है।" अभय ने हमेशा की तरह अपनी सर्द आवाज़ में कहा, लेकिन इशानी हैरान रह गई। फिर धीरे से थैंक्यू कहकर चली गई।
अभय जब अंदर आया, संजय शांतनु से कह रहा था, "मुझे अस्सी परसेंट यकीन है कि आज जो कुछ अनु के साथ हुआ, वह मेहरा फैमिली ने करवाया है।"
मुझे पूरा यकीन है यह काम मेहरा फैमिली का है, संजय ने शांतनु से कहा।
"तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?"
"कल जगत ओबरोय ने मुझे और अनु को अपने बेटे की बर्थडे पार्टी में बुलाया था और उसी शाम मुझे शैलेंद्र के बेटे अर्नव का फ़ोन आया। पूछ रहा था मैं कहाँ हूँ, ठीक हूँ कि नहीं। मुझे थोड़ा अजीब लगा, लेकिन अब सब समझ आ रहा है। ज़रूर उसे खबर मिल गई होगी मैं मिस्टर ओबरोय से मिला हूँ, तभी उसने अनु के साथ यह सब करवाया। हमें डराने के लिए।"
"तुम गलत सोच रहे हो। यह सब अर्नव नहीं करवा सकता," शांतनु ने साफ़ मना कर दिया।
"अगर सच में वह अनु को नुकसान पहुँचाना चाहते तो इशानी को खतरे में नहीं डालते। और तुम अच्छे से जानते हो इशानी में शैलेंद्र और अर्नव की जान बसती है।"
"इशानी खतरे में?" संजय हैरानी से बोला। अभी जब वह आया, उसकी नज़र सिर्फ़ अनु पर थी। उसने चिंता में कुछ और देखा ही नहीं।
"उस बच्ची के माथे पर चोट है, हथेली पर गहरी चोट है... संजय, तुम इस तरह किसी पर भी बेबुनियाद इल्ज़ाम नहीं लगा सकते।"
"डैड, अंकल सही कह रहे हैं। इशानी ने अपनी जान पर खेलकर मुझे बचाया। उस गुंडे ने तो इशानी का गला दबा दिया था। वह तो अभय ने समय पर आकर उसे बचा लिया," अनु ने भी कहा।
"घबराहट में मैं कुछ भी सोचने लगा। अर्नव का उस समय कॉल आना, फिर अनु के साथ यह सब... मुझे जो लगा, मैंने कह दिया।"
"यह सिर्फ़ एक संयोग हो सकता है," शांतनु ने कहा।
कुछ समय में पुलिस की पूछताछ भी पूरी हो गई। पता चला वह एक सड़कछाप गुंडा, शराबी था, जिसके खिलाफ़ पहले भी कई केस दर्ज थे। साफ़ था मेहरा फैमिली का इसमें कोई हाथ नहीं था।
अगले दिन इशानी हॉस्पिटल गई। चोट वाकई में गहरी थी। डॉक्टर ने उसे इंजेक्शन दे दिया।
दो दिन बाद शांतनु जी और संजय को अभय और अनु के साथ घर में देखकर इशानी चौंक गई। उसे लगा था वह ऐसे ही कह रहे थे।
शांतनु जी के बताने पर इशानी का छोटा सा सीक्रेट शैलेंद्र जी के सामने खुल गया।
"तभी दो दिन से तुम खाना खाने नीचे नहीं आ रही? इतनी बड़ी बात हो गई और तुमने मुझे बताया भी नहीं?" शैलेंद्र जी ने भारी आवाज़ में कहा। वह गुस्सा दिखाना चाहते थे, पर साफ़ पता चल रहा था वह गुस्सा नहीं, बल्कि इशानी के लिए फिक्रमंद थे।
"सॉरी डैड, मैं आपको और भाई को परेशान नहीं करना चाहती थी और फिर मैं अब ठीक हूँ," इशानी उंगलियाँ उलझाते हुए बोली।
"तुमने नहीं बताया, इससे मुझे ज़्यादा दुःख हुआ।"
"सॉरी डैड, आगे से मैं आपको बताऊँगी।"
"मतलब आगे भी ऐसे खुद को खतरे में डालोगी?"
"नहीं, मतलब जो भी होगा आगे से मैं आपको बताऊँगी।"
"हम्म।"
"इशानी बहुत प्यारी बच्ची है और बहादुर भी। आप बहुत किस्मत वाले हैं," शांतनु जी उन दोनों को देखकर मुस्कुराते हुए बोले।
शैलेंद्र जी को भी इशानी पर फ़क्र था।
इसके बाद शैलेंद्र जी और शांतनु में बिज़नेस की बातें होने लगीं, जिससे इशानी पक गई। उसने अनु का हाथ पकड़ा, "अनु, चल ना बाहर खेलते हैं।"
शैलेंद्र जी और शांतनु के बीच व्यावसायिक चर्चाएँ शुरू हुईं, जिससे इशानी ऊब गई। उसने अनु का हाथ पकड़ा, "अनु, चल ना, बाहर खेलते हैं।"
अनु इशानी के साथ बगीचे में आ गई।
"अंकल कह रहे थे तुम और अभय साथ में लंदन जा रहे हो," अनु बोली, फिर एक अजीब भाव से, "और वो भी एक ही यूनिवर्सिटी में?"
"अभय अभय है, मैं मैं हूँ। मैं ना उसके साथ जा रही हूँ, ना हम दोनों एक यूनिवर्सिटी में जा रहे हैं।"
"लेकिन... लेकिन तुम तो अभय से प्यार करती हो?" आखिरकार हिम्मत करके अनु ने जो पूछना चाहती थी, वह पूछ ही लिया।
"अब नहीं करती।"
"सच में?" अनु ने शक भरी नजरों से इशानी को देखा।
"मैं तुमसे झूठ क्यों बोलूँगी?" इशानी ने कहा। वह आज भी अभय से प्यार करती थी, पर जानती थी कि वे दोनों कभी एक नहीं हो सकते। शायद वक़्त के साथ वह उसे भूल भी जाएगी।
"सॉरी, पहले मुझे तुम्हारे और अभय के रिश्ते का नहीं पता था। आई होप यू डोंट माइंड।" इशानी ने मुस्कुराकर अनु को देखा। "वैसे मुझे भी लगता है तुम अभय के लिए ज़्यादा परफेक्ट हो। दोनों बचपन से साथ हो।"
इशानी अनु को देखते ही समझ चुकी थी कि वह अभय को पसंद करती है। जैसे अनु अभय को देखती थी, वैसे कोई अंधा भी बता सकता था।
अनु शर्मा गई, "नहीं... मैं कैसे?"
"एनीवेज, मुझे इससे कोई मतलब नहीं है। मैं तो कुछ दिनों में चली जाऊँगी।" कहते हुए इशानी बगीचे में बरगद के पेड़ पर लगे झूले पर चढ़ गई। उसे खड़े होकर झूलना, एडवेंचर बहुत पसंद था।
वहीं अनु को ऊँचाई से डर लगता था।
जब अभय वहाँ आया, उसने इशानी को झूलते हुए देखा और वह एक पल के लिए वहीं रुक गया। इशानी खिलखिला रही थी। उसकी खनखनाती हँसी के सामने सब कुछ फीका लग रहा था।
इशानी जब उसके पीछे पड़ी रहती थी, अभय उससे बहुत चिढ़ता था; इतना कि कभी उससे सीधे मुँह बात नहीं की, ना उसे ध्यान से देखा। लेकिन आज जब उसके मन से वह चिढ़ निकल गई, तब अभय को भी मानना पड़ा कि इशानी बहुत खूबसूरत है; संगमरमर सा तराशा हुआ बदन, रेशमी लम्बे बाल, तीखे नैन-नक्श, जो देखे, देखता ही रह जाए।
शैलेंद्र जी और इशानी उन्हें दरवाज़े तक छोड़ने आए। शांतनु और संजय को एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस की तैयारी करनी थी।
"मिस्टर मेहरा, आपने अच्छा किया। अभय और अनु भी इशानी के साथ कैलोनिया आईलैंड घूम आएंगे। साथ में बच्चों का मन भी लग जाएगा।" शांतनु ने जैसे ही कहा, इशानी की आँखें बड़ी हो गईं।
कैलोनिया आईलैंड मेहरा ग्रुप का रियल इस्टेट प्रोजेक्ट था, जिस पर उसके भाई लगातार मेहनत कर रहे थे, क्योंकि दो दिन बाद उसकी ओपनिंग सेरेमनी थी।
लंदन जाने से पहले इशानी बोनी के साथ वहाँ घूमने जाने वाली थी, लेकिन उसके डैडी ने बिना उससे पूछे अनु और अभय को भी इनवाइट कर लिया। अब तो गया उसका घूमने का प्लान, पानी में।
"मैं नहीं आ पाऊँगा। मुझे हॉस्पिटल जाना है।" अभय बोला। उसकी माँ की हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी सफल हुई थी, पर अभी एक महीने तक उन्हें ऑब्ज़र्वेशन में रखा गया था। अभय ज्यादातर समय उनकी सेवा में ही लगा रहता था।
इशानी बहुत खुश हुई। पहली बार अभय ने कुछ ऐसा कहा था, जिसे सुनकर इशानी झूम ही उठी थी।
"अभय, तुम जाओगे। इट्स फाइनल। तुम्हारी माँ की देखभाल के लिए मैं हूँ, डॉक्टर और नर्स हैं।" शांतनु जी ने कहा। उन्हें अभय के लिए तकलीफ़ हो रही थी। इतनी कम उम्र में वह कितना परिपक्व और समझदार हो गया था।
अभय ने आगे कुछ नहीं कहा।
इशानी का मुँह लटक गया। उसे लग रहा था कि वह किसी रोलर कोस्टर राइड की सवारी कर रही है।
अब तो जाना होगा। अभय और अनु के साथ कैलोनिया आईलैंड जाने पर क्या होगा?
कैलोनिया आईलैंड बहुत ही खूबसूरत समुद्र के बीचों-बीच एक आईलैंड था। बिज़ी होने के बावजूद अर्नव अपनी याच से उन्हें लेने आया था।
जैसे ही अर्नव ने अभय और अनु को साथ देखा, उसके माथे पर बल पड़ गए। लेकिन उसने जल्द ही खुद को सामान्य कर लिया। जबकि बोनी ने जैसे ही उन्हें देखा, उसके चेहरे के भाव ऐसे हो गए जैसे सामने दुश्मन खड़े हों।
याच समुद्र की लहरों से होती हुई जल्द ही आईलैंड पर पहुँच गई। पूरे रास्ते बोनी ने अभय और अनु की शक्ल नहीं देखी।
अर्नव उनके साथ लंच करके चला गया। वह बहुत बिजी था; आईलैंड की ओपनिंग सेरेमनी की तैयारी चल रही थी। उसने दो स्टाफ मेंबर उनके साथ आईलैंड घुमाने के लिए छोड़ दिए।
होस्ट तो बहुत उत्साहित होकर इस जगह के बारे में बता रहा था, लेकिन सुनने वाले अतरंगी थे। अभय ज़्यादा बोलता नहीं था, अनु ज़्यादा ही शर्मीली थी, बोनी तो अभय के कारण चिढ़ा हुआ था और इशानी, वह चुलबुली थी लेकिन अभय के सामने असहज महसूस कर रही थी।
होस्ट भी समझ गया कि इन सभी में कुछ अनबन चल रही है, लेकिन फिर भी वह सब जगह के बारे में बता रहा था।
"ये हैं नंदनवन पर्वत। इस पर्वत की बहुत मान्यता है। कहते हैं यहाँ एक राजा-रानी रहते थे जो आज भी इस क्षेत्र की रक्षा करते हैं।" होस्ट ने राजा-रानी की एक ऐतिहासिक कहानी सुनाई।
इशानी का मन था पर्वत पर चढ़ाई करके ऊपर जाने का, लेकिन बोनी ने मना कर दिया। वह अभय और अनु के आने से गुस्से में था। अनु को ऊँचाई से डर लगता था और अभय... उससे पूछना तो नामुमकिन था।
शाम को अर्नव ने बीच पर बारबेक्यू पार्टी रखवाई, साथ में म्यूज़िक, जिससे वे सभी बोर न हों।
बोनी पार्टी छोड़कर सर्फिंग के लिए चला गया। अनु बीच के किनारे खेलने चली गई। अभय का पता नहीं कहाँ था। म्यूज़िक सुनने के लिए बिचारी इशानी अकेले रह गई। कुछ पलों बाद अकेले बोर होकर वह उठकर चली गई।
इशानी अर्नव के कमरे में आई। तब अर्नव बालकनी में खड़ा फोन पर बात कर रहा था।
"मैंने कल शाम फोन किया था उसे, लेकिन उसके भेजे में मेरी बात घुस नहीं रही। वह अभी भी ओबरोय के कांटेक्ट में है।"
"कल स्टारलाइट इन में उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस है ना? बिल्डिंग मैनेजमेंट से बात करो। उन्हें सबक सिखाना है। उन्हें उनकी औकात दिखानी ज़रूरी है।" अर्नव ने सर्द आवाज़ में कहा।
जब कॉल एंड हो गई, इशानी आगे आई।
"भाई, आप किसे सबक सिखाने की बात कर रहे थे?"
"बस कुछ ऐसे लोग हैं जो हमारी मेहरा फैमिली को हल्के में ले रहे हैं, इशु। तुम इन सब बातों पर ध्यान मत दो। बिज़नेस की चिंता मुझ पर छोड़ दो।"
"भाई, आप किसी को नुकसान मत पहुँचाना। हो सकता है आगे जाकर ये दुश्मनी हमें भारी पड़ जाए।" इशानी चिंतित होकर बोली।
"मैं जानता हूँ। डोंट वरी।"
"तुम पार्टी में क्यों नहीं जा रही? कहीं उस अभय ने फिर से तुम्हें हर्ट तो नहीं किया? उसकी तो अभी खबर लेता हूँ।" अर्नव गुस्से में फुफकारा।
इशानी ने उसका हाथ पकड़ लिया।
"नहीं, मुझे किसी ने कुछ नहीं कहा। मैं आपसे मिलना चाहती थी।"
"अच्छा, ठीक है। फिर हम दोनों भाई-बहन साथ में डिनर करते हैं।" अर्नव ने प्यार से इशानी के सिर पर हाथ रखा और स्टाफ से कहकर खाना लगवा दिया।
"कुछ दिनों से मैं ज़्यादा ही बिजी हूँ। बस ये ओपनिंग सेरेमनी सही से हो जाए, फिर भाई तुम्हारे साथ बहुत सारा टाइम स्पेंड करेंगे।" अर्नव ने मुस्कुराकर कहा। उसने इशानी के लिए आइसक्रीम भी मँगवा ली।
इशानी को ज़्यादा भूख नहीं थी, इसलिए उसने सिर्फ़ आइसक्रीम खाई, साथ में अर्नव की आइसक्रीम भी खा ली। उसे आइसक्रीम बहुत पसंद थी।
"ठीक है भाई, आप काम कीजिए। मैं चलती हूँ।" इशानी जानती थी अर्नव अभी व्यस्त हैं, इसलिए वह अकेले ही घूमने चली गई।
पगडंडी पर चलते-चलते वे नंदनवन पर्वत के पास पहुँचीं। उन्होंने अपने मन की सुनी और पहाड़ पर चढ़ना शुरू किया। वह ज़्यादा ऊँचा पहाड़ नहीं था। आधे घंटे की चढ़ाई के बाद वे ऊपर पहुँच गईं। वहाँ एक बड़ा सा हॉल बना हुआ था जिसमें लाइटें जली हुई थीं। हॉल के अंदर कदम रखते ही इशानी ठिठक गईं, क्योंकि सामने अभय खड़ा था।
हॉल में राजा-रानी की खूबसूरत प्रतिमा थी जो बिल्कुल वास्तविक लग रही थी। अभय उन्हीं को निहार रहा था; उसकी पीठ इशानी की ओर थी।
इशानी अब आगे नहीं बढ़ना चाहती थीं। "अभय ज़रूर यहीं सोचेगा कि मैं उसका पीछा कर रही हूँ। इससे अच्छा मैं चली जाती हूँ," इशानी वापस जाने को मुड़ने ही वाली थीं कि अभय पलट गया और दोनों की नज़रें मिल गईं।
इशानी बहुत असहज महसूस करने लगीं। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें—वापस जाएँ या अंदर आएँ?
"मैं क्यूरियस थी इस जगह को देखने के लिए। मुझे नहीं पता था तुम यहाँ हो," इशानी ने उंगलियाँ उलझाते हुए कहा।
"हम्म।"
"अनु नहीं आई?"
"उसे ऊँचाई से डर लगता है।"
इशानी चुप हो गईं। अभय बाहर निकलने लगा तो इशानी झट से बोलीं, "मैं अंदर घूम लेती हूँ।"
अंदर दीवारों पर राजा के युद्ध के समय की पेंटिंग्स बनी हुई थीं। राजा-रानी की पेंटिंग्स भी थीं। वहाँ बहुत शांति थी। इशानी जानबूझकर ज़्यादा देर तक अंदर रूकी रहीं, जिससे जब वे बाहर निकलें तो वापस अभय से न टकराएँ।
"अब तक तो वह चला गया होगा?" इशानी ने पहले इधर-उधर देखा। जब उसे अभय नहीं दिखा, उसने राहत की साँस ली और बाहर निकल गईं।
"चलो," पीछे से अभय की सर्द आवाज़ आई और इशानी उछल पड़ी। उसने पीछे देखा; अभय रेलिंग से टिककर खड़ा था। अंधेरे के कारण वे उसे नहीं देख पाई थीं।
'तो क्या यह मेरा इंतज़ार कर रहा था?' इशानी को अभय की यह बात दिल को छू गई, लेकिन फिर भी वे अब अभय से दूर ही रहना चाहती थीं।
अभय आगे-आगे चल रहा था और इशानी उसके पीछे।
कुछ सोचकर अभय अचानक रुककर पलट गया। "अनु कह रही थी..." उसके अचानक रुकने से इशानी अभय के सीने से टकरा गईं।
जैसे ही इशानी को उन दोनों की करीबी का एहसास हुआ, वे स्प्रिंग की तरह पीछे उछल गईं।
अभय की भौंहें तन गईं। यह पहली बार नहीं था; वह हर बार उसे देखकर ऐसे डरती थी जैसे वह राक्षस हो।
पहले तो ऐसा नहीं था। इशानी कितनी बिंदास थी! वह कितना ही मना कर लें, फिर भी पीछे नहीं हटती थीं। फिर अचानक इतना डर क्यों?
"क्या मैं इतना डरावना हूँ?" अभय ने अपनी गहरी आवाज़ में कहा।
इशानी ने हाँ में सिर हिला दिया, लेकिन जल्द ही उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वह ना में सिर हिलाने लगीं। "नहीं... बिल्कुल डरावने नहीं हो।"
"तुम कुछ कह रहे थे?" उसने बात बदलने की कोशिश की।
"कुछ नहीं।" अभय फिर आगे-आगे चलने लगा।
दो ही कदम बाद इशानी के पेट में अकड़न होने लगी; धीरे-धीरे दर्द बढ़ने लगा, लेकिन वे बिना शिकायत के हिम्मत करके चलती रहीं।
जब दर्द सहनशक्ति से बाहर हो गया, इशानी की आँखों के सामने अंधेरा छा गया। वे पेड़ का सहारा लेकर खड़ी हो गईं।
कराहने की आवाज़ सुनकर अभय पलटा। जैसे ही उसने इशानी का सफ़ेद चेहरा देखा, उसने इशानी का हाथ पकड़ लिया। "क्या हुआ तुम्हें?"
"मेरे पेट में... दर्द..." इशानी से बोला भी नहीं जा रहा था।
वे पहाड़ से नीचे आ ही चुके थे। अभय ने अपनी तरफ़ पीठ कर ली। "आ जाओ।"
इशानी के पास उस समय सोचने का समय नहीं था। वे उसकी पीठ पर चढ़ गईं। अभय भागता हुआ उन्हें बस तक ले गया। हास्पिटल और बस की सुविधा यहीं थी। स्टाफ़ ने इशानी को बस में बिठाया और हास्पिटल की ओर बस दौड़ पड़ी।
बस रुकते ही अभय ने इशानी को कंधे पर उठाया और भागकर अंदर ले गया। डॉक्टर उसे तुरंत चेकअप के लिए ले गए।
जल्द ही अर्नव और बोनी को भी खबर मिल गई। वे दोनों जितना जल्दी हो सके, उतना जल्दी पहुँच गए।
बोनी ने सीधे अभय का कॉलर पकड़ लिया और गुर्राया, "क्या किया तूने इशानी के साथ?"
"जाकर इशानी से पूछो," अभय ने एक झटके में ही उसे दूर धकेल दिया।
बोनी उसे घूरता रहा। वहीं अर्नव, भले ही कुछ बोला नहीं, उसने सोच लिया कि अगर सच में अभय की वजह से उसकी बहन को कुछ हुआ, तो अभय के खानदान की सात पुश्तें भी इसका हिसाब नहीं चुका सकेंगी।
कुछ समय बाद डॉक्टर बाहर निकले।
"डोंट वरी, इशानी अब ठीक है।"
सबने राहत की साँस ली।
"डॉक्टर, उसे हुआ क्या था?" अर्नव ने कहा।
"खाली पेट ज़्यादा ठंडा खाने से नसों में सूजन आ गई थी। उन्हें आराम की ज़रूरत है और कोशिश करें कि वे कुछ दिनों तक ठंडा न खाएँ।"
"ओके, डॉक्टर।" अर्नव पछता रहा था कि क्यों इशानी के लिए आइसक्रीम मँगवाई और अपनी भी उसे दे दी। वह सच में बहुत लापरवाह भाई है।
जैसे ही अंदर आकर अर्नव ने इशानी का पीला चेहरा देखा, उसे बहुत दुख हुआ।
बोनी बेड पर कूद पड़ा।
"इशानी, तुझे पता है तूने हमें कितना डरा दिया था! मेरी तो जान ही निकल गई थी! मुझे लगा राक्षस अभय ने तुझे फिर परेशान किया।"
इशानी ने ड्रामेबाज़ बोनी को धकेल दिया।
"उसने कुछ नहीं किया। तुमने उसके साथ पंगा तो नहीं लिया?" इशानी ने उसे घूरा।
बोनी सिर खुजलाते हुए बोला, "नहीं, मैंने उससे बात भी नहीं की। वैसे ये गया कहाँ? अभी तक तो यहीं था?" बोनी इधर-उधर देखकर बोला। अभय ने जब सुना कि इशानी ठीक है, वह चला गया था।
"इशु, ये तुम और अभय साथ में क्या कर रहे थे?" अर्नव ने पूछा।
"मैं पहाड़ के ऊपर गई थी। वहाँ अभय मिल गया। फिर आते हुए मुझे बहुत दर्द होने लगा, तो उसने मेरी मदद की।"
अर्नव इशानी को उसके कमरे में ले आया।
"अब आराम करो। उछल-कूद बंद। सुबह को तुम्हें घर भेज दूँगा।"
"हम्म।" अर्नव के जाने के बाद इशानी ने कुछ सोचकर अभय को फोन किया।
उधर से अभय की गहरी आवाज़ आई।
"हैलो?"
"आज के लिए थैंक्यू।"
"इट्स ओके।"
"मैं सुबह को वापस जा रही हूँ। तुम दोनों दोपहर को जाओगे ना?"
"हाँ।"
अभय का हर जवाब हाँ-हम्म में सुनकर इशानी को समझ नहीं आ रहा था आगे क्या कहें। जैसे ही वह बाय कहकर कॉल कट करने वाली थी, अभय बोला, "अनु कह रही थी तुम लंदन जा रही हो? कब?"
"परसों।"
अभय कुछ देर को चुप हो गया। फिर बोला, "हेव अ सेफ जर्नी।"
"थैंक्यू।"
फोन रखने के बाद इशानी ने सोचा कि जबसे उसने अनु को बचाया है, उसके और अभय के बीच सब नॉर्मल हो गया है। आज उसने बात भी ठीक से की। इसका मतलब वह सपना अब सच नहीं होगा, है ना? अब उसका परिवार सुरक्षित है।
उस रात इशानी बहुत सुकून से सोई थी, इस बात से अन्जान कि यह तूफ़ान से पहले की शांति है, कि कल का सूरज उसकी ज़िंदगी में तूफ़ान लाने वाला है।
इशानी आराम से सो रही थी कि आधी रात को किसी ने जोर-जोर से दरवाजा खटखटाया। लेकिन खटखटाया इशानी के कमरे का नहीं, अनु और अभय के कमरों का।
इशानी आँखें मलते हुए बाहर आई। देखा तो अर्नव, अभय और अनु को बाहर ले जा रहा था। अभय के चेहरे पर तनाव था, वहीं अनु की आँखों में आँसू थे।
"भाई, इतनी रात को आप सभी कहाँ जा रहे हो?"
"संजय और शांतनु जी का एक्सीडेंट हो गया है। मुझे अभय और अनु को तुरंत हॉस्पिटल पहुँचना होगा।" अर्नव के चेहरे पर भी तनाव साफ़ दिख रहा था।
"एक्सीडेंट? कैसे?" इशानी की नींद ही नहीं, होश भी उड़ गए।
"उनकी कार पुल की रेलिंग से टकराकर पलट गई और ब्लास्ट हो गई।"
"इशू, तुम जाकर सो जाओ। रात में यहाँ बहुत ठंड होती है।" अर्नव इशानी को कमरे में वापस धकेलते हुए बोला।
इशानी कमरे में से जैकेट उठाकर बाहर आ गई। "मैं भी आपके साथ चलूँगी।"
"बिल्कुल नहीं। डॉक्टर ने तुम्हें रेस्ट करने को कहा है।"
"भाई, प्लीज़। आप सुबह वैसे भी मुझे छोड़ने जाने वाले थे ना, आपको दो-दो चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे।"
"ठीक है, चलो फिर।" अर्नव उन सबको साथ ले गया।
याच से उतरकर सब कार में बैठ गए। अर्नव ने इशानी को अच्छे से स्कार्फ़ से लपेट दिया। "मैंने ड्राइवर से कह दिया है, उन्हें हॉस्पिटल छोड़कर तुम्हें घर छोड़ दें। घर जाकर आराम करना, ज़्यादा टेंशन मत लेना, ओके?"
"हाँ, भाई।"
इशानी ने भले ही हाँ कह दिया हो, लेकिन वह घर नहीं, बल्कि अभय और अनु के साथ ही हॉस्पिटल में आ गई। उसका दिल बहुत बेचैन हो रहा था।
इमरजेंसी रूम के बाहर कुछ लोग खड़े थे। वे सभी राणा ग्रुप के मैनेजर्स थे, जो खबर मिलते ही यहाँ आ पहुँचे थे।
कुछ समय बाद आख़िरकार इमरजेंसी रूम का दरवाज़ा खुला। सबकी निगाहें डॉक्टर पर थीं। डॉक्टर ने मास्क उतारा और ना में सर हिलाया। "हमने अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश की, लेकिन हम एक ही पेशेंट को बचा सके।"
जो नहीं बचे थे, वे अनु के पिता संजय थे।
अनु बिलखकर रोने लगी। इशानी को भी बहुत दुःख हुआ। वह यह तकलीफ़ समझ सकती थी। सपना ही सही, उसने जो महसूस किया था, वो भावनाएँ तो सच्ची थीं।
इशानी ने अनु को गले लगा लिया।
शांतनु जी बच गए थे। उन्हें इमरजेंसी रूम से आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया था।
शीशे के उस पार इशानी साफ़ देख सकती थी, शांतनु जी का चेहरा ख़राब हो गया था। उस पर जलने के निशान थे। घुटनों से नीचे कुछ नहीं था। सफ़ेद चादर पर खून दिल दहला रहा था। एक्सीडेंट में उन्होंने अपने दोनों पैर भी खो दिए थे।
इशानी ने अभय की ओर देखा। अभय शून्य भाव से अपने पिता को देख रहा था। उसकी आँखें इतनी खाली थीं कि वे बेहद डरावनी लग रही थीं।
ना चाहते हुए भी इशानी के दिमाग में सपने में घटित घटनाएँ घूमने लगीं।
"सर का एक्सीडेंट हो गया। अब कल की प्रेस कॉन्फ़्रेंस का क्या होगा?"
"क्या कर सकते हैं? अब तो कैंसिल करनी होगी।"
"यह प्रेस कॉन्फ़्रेंस शांतनु सर की सालों की मेहनत है। हम इसे किसी भी कीमत पर कैंसिल नहीं कर सकते।" यह राणा ग्रुप के प्रोडक्ट डिपार्टमेंट का हेड मैनेजर संजीव था।
"लेकिन इस कॉन्फ़्रेंस को होस्ट कौन करेगा? संजय सर रहे नहीं, शांतनु सर की हालत आप भी जानते हैं।"
"अगर कोई रास्ता नहीं निकला तो... मैं होस्टिंग करूँगा।" संजीव मुश्किल से बोला क्योंकि उसे खुद पर जरा भी विश्वास नहीं था।
"लेकिन आपको चिप के बारे में नहीं पता। आप कैसे?"
"और अगर मान भी लिया होस्टिंग आप कर लेंगे, लेकिन स्टारलाइट इन ने अभी भी हमें जवाब नहीं दिया।"
"यह सब स्टारलाइट इन के मैनेजमेंट की ग़लती है। उन्होंने आख़िरी समय पर समस्या खड़ी कर दी।" दूसरा मैनेजर बोला।
"पहले हम इंस्पेक्शन के लिए गए थे तो सब कुछ ठीक था। कल शाम सात बजे अचानक उनका फ़ोन आया कि फ़ायर सेफ़्टी में गड़बड़ है।"
"सही कहा ना, उनका कॉल आता ना, शांतनु सर और संजय सर को लास्ट मोमेंट पर वहाँ जाना पड़ता, और ना यह एक्सीडेंट होता।"
"हमने सब कुछ ठीक कर दिया। उनके कहने पर सब दोबारा चेक भी कर लिया, लेकिन उनकी तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया। मुझे तो डर है, कहीं कल की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में वो कोई मुसीबत ना खड़ी कर दें।"
पास खड़ी इशानी सब सुन रही थी। जब उसने 'स्टारलाइट इन' सुना, उसकी साँसें अटक गईं। यह तो वही जगह है जिसका नाम भाई फ़ोन पर ले रहे थे? और शाम सात बजे वो सबक सिखाने की बात कर रहे थे और उसी के बाद एक्सीडेंट? कहीं भाई जिसे सबक सिखाना चाहते थे, वो शांतनु और संजय अंकल तो नहीं? अगर ऐसा हुआ तो... इससे आगे इशानी में सोचने की भी हिम्मत नहीं थी।
पास खड़ी इशानी सब सुन रही थी। जब उसने ‘स्टारलाइट इन’ सुना, उसकी साँसें अटक गईं। यह तो वही जगह है जिसका नाम भाई फ़ोन पर ले रहे थे? और शाम सात बजे वो सबक सिखाने की बात कर रहे थे और उसी के बाद एक्सीडेंट? कहीं भाई जिसे सबक सिखाना चाहते थे, वो शांतनु और संजय अंकल तो नहीं? अगर ऐसा हुआ तो... इससे आगे इशानी में सोचने की भी हिम्मत नहीं थी।
वह उन मैनेजर्स के पास गई।
"क्या आप सभी को वेन्यू की प्रॉब्लम है?"
इशानी कहना चाहती थी कि वह उनकी मदद कर सकती है; उनके लिए जगह ढूँढना मुश्किल काम हो सकता है, पर उसके डैडी के एक शब्द पर यह इशू सॉल्व हो जाएगा।
संजीव इशानी को नहीं जानता था। उसे नहीं पता था वह शैलेंद्र मेहरा की बेटी है। उसे लगा वह अभय की दोस्त हैं। उसने हाँ में सर हिलाया।
"हाँ, अभी तक प्रेस कॉन्फ़्रेंस करने के लिए जगह फ़िक्स नहीं हुई। हमने अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश की, लेकिन स्टारलाइट इन का कोई जवाब नहीं आया।"
"मिस, आप ठीक हैं?" संजीव घबराकर बोला जब उसने इशानी का पीला चेहरा देखा।
इशानी की पहले से तबियत खराब थी, उस पर अब यह डर कि कहीं उसके भाई ने कुछ ना कर दिया हो।
"मैं ठीक हूँ।"
"आर यू श्योर?"
"हम्म।"
अभय ने संजीव की तरफ़ देखा।
"कितने बजे हैं कॉन्फ़्रेंस?"
"सुबह नौ बजे।"
"अभी सुबह के तीन बजे हैं। मुझे पाँच बजे से पहले नए सेल फ़ोन की सारी डीटेल इंफ़ॉर्मेशन चाहिए और वेन्यू की प्रॉब्लम कॉन्फ़्रेंस शुरू होने से पहले तुम्हें सॉल्व करनी है।"
"लेकिन होस्टिंग कौन करेगा?" संजीव हैरान होकर बोला।
"मैं करूँगा होस्टिंग।"
सभी मैनेजर्स के मुँह खुले के खुले रह गए।
अभय शांतनु का इकलौता बेटा था। वह जीनियस था। उसने कम उम्र में ही मैथ्स और फ़िज़िक्स में इंटरनेशनल अवॉर्ड्स जीते थे, तो किसी ने उसे कम नहीं आँका था।
संजीव अभय का कोल्ड ओरा देखकर सहम गया। इतना तो वह कभी शांतनु सर के सामने भी नर्वस नहीं हुआ था।
उसने अपने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा,
"इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में सिर्फ़ नए फ़ोन का नहीं, बल्कि चिप टेक्नोलॉजी का भी इंट्रोडक्शन होना है। शांतनु सर को चार साल लग गए इसे बनाने में। यहाँ तक हममें से भी कोई उसके बारे में नहीं जानता। इसमें बहुत सारी टेक्निकल टर्म होंगी। आप कैसे?"
"मैंने डैड के साथ सब कुछ देखा है। तुम्हें चिप की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। वो सब मैं संभाल लूँगा। तुम बस वेन्यू का इंतज़ाम करो। अगर नहीं कर सकते तो मैं किसी और को ढूँढ लूँगा।" अभय ने सर्द आवाज़ में कहा।
"नहीं... मैं जाता हूँ अभी।" संजीव बाकी मैनेजर्स को लेकर चला गया।
"मैं डैडी से बात करूँ वेन्यू के लिए?" इशानी ने धीरे से कहा।
"कोई ज़रूरत नहीं है। अगर वह इतना इज़ी टास्क भी नहीं कर सकता तो राणा ग्रुप में ऐसे लोगों की कोई ज़रूरत नहीं।"
अभय ने सूनी आँखों से शांतनु जी को देखा, फिर अनु के पास आकर बोला,
"चलो, तुम्हें घर छोड़ देता हूँ।"
घर सुनकर अनु की आँखों में फिर आँसू आ गए।
"मेरे डैड नहीं रहे। अब उस घर में कौन है? मैं कैसे रहूँगी अकेले?"
अभय एक पल को चुप हो गया, फिर बोला,
"मेरे घर चलो। मेरे डैड तुम्हारे डैड जैसे ही हैं।"
अनु ने अपने आँसू पोंछे और उठते हुए कहा,
"तुम अंकल के पास रुको, मैं चली जाऊँगी।"
"चिप की सारी इंफ़ॉर्मेशन घर पर हैं। तुम्हें घर छोड़ दूँगा और अपना लैपटॉप और डॉक्यूमेंट भी ले लूँगा। चलो।"
अनु ने हाँ में सर हिलाया और उसके साथ चल दी।
कोरिडोर के अंत तक जब अभय ने इशानी को अकेले वहीं खड़ा देखा तो वह बोला,
"तुम क्यों खड़ी हो? चलो।"
इशानी का ड्राइवर जा चुका था। अभय ने एक टैक्सी रोकी और इशानी के घर का पता बताया।
पर इशानी ने अभय के घर का पता बताया।
अभय ने उसकी ओर देखा। इशानी बोली, "पहले अनु को घर छोड़ देते हैं। उसे आराम की ज़रूरत है।"
अंततः वे सभी अभय के घर के सामने रुके। अनु और अभय उतर गए। इशानी टैक्सी में ही बैठी रही। अभय ने पीछे मुड़कर उसे देखा। "रुकी रहना, मैं सामान लेकर अभी आता हूँ।"
अनु हैरान रह गई और इशानी भी।
"मैं नहीं चाहता तुम्हें कुछ हो और तुम्हारे डैड हमारी फैमिली को दोष दें," अभय ने सख़्त आवाज़ में कहा और अंदर चला गया।
जल्द ही वह लैपटॉप और ढेर सारी फाइलों के साथ बाहर आया।
"इतनी सारी फाइलें पढ़नी हैं?" इशानी हैरान होकर बोली।
"हम्म।"
ये चिप उसके डैड की चार सालों की मेहनत थी। जब भी वह उन्हें परेशान देखता था, वह उसमें मदद कर देता था, कोडिंग करता था। पर वह सिर्फ़ डैड की मदद के लिए। अब जब उसे प्रेजेंटेशन देनी थी, एक बार सब कुछ शुरू से देखना होगा।
"पर इतना सारा काम इतने कम समय में कैसे करोगे?" इशानी परेशान होकर बोली। अभी अभय को नए फ़ोन प्रोटेक्ट की भी जानकारी देखनी थी और प्रेजेंटेशन भी तो तैयार करनी थी।
"इट्स ओके।" अभय बिल्कुल शांत था।
इशानी को घर छोड़कर वह चला गया। उसे जाता देखकर इशानी के मन में उथल-पुथल मच गई। उसे लग रहा था अगर आज रात उसने अभय की मदद नहीं की तो उसका परिवार मुसीबत में पड़ जाएगा।
इशानी अपने कमरे में गई, लैपटॉप लिया और बिना किसी को घर पर बताए टैक्सी से वापस हॉस्पिटल आ गई।
उसने देखा अभय बहुत ध्यान से फाइलें पढ़ रहा है और लैपटॉप पर टाइप कर रहा है। इशानी जाकर उसके पास बैठ गई। अभय ने चौंककर उसे देखा। "तुम वापस क्यों आ गई?"
इशानी ने अपना लैपटॉप खोला। "मैं तुम्हारी मदद करने आई हूँ। तुम मुझे जानकारी बताना, मैं प्रेजेंटेशन बना दूँगी।"
अभय की भौंहें तन गईं।
इशानी ने जल्दी से अपना लैपटॉप उसके आगे किया। "अपने पहले वाले स्कूल में मैं पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन की चैंपियन थी।"
लैपटॉप में उसकी वही प्रेजेंटेशन थी जिसके लिए उसे अवार्ड मिला था। लेकिन अभय ने उसे देखा भी नहीं। उसने जोर से अपना लैपटॉप बंद किया और उठ खड़ा हुआ। "जाओ तुम।"
इशानी कांप गई, लेकिन मुट्ठी बँधी वहीं बैठी रही।
अभय ने उसकी कलाई पकड़कर उसे खड़ा कर दिया। "सुना नहीं तुमने? जाओ यहाँ से, मुझे तुम्हारी कोई मदद नहीं चाहिए।"
अभय ने इतनी जोर से उसकी कलाई पकड़ी थी कि इशानी का चेहरा पीला पड़ गया।
अभय ने उसका हाथ छोड़ दिया।
"मैं तुम्हारे लिए कुछ करना चाहती थी। अगर तुम्हें मेरी मदद नहीं चाहिए तो मैं चली जाती हूँ," इशानी ने अपने आँसुओं को रोकते हुए कहा और जाने लगी।
अभय ने इशानी की आँसुओं से भरी आँखें देखीं। उसकी पलकों पर आँसुओं की बूँदें ठहरी हुई थीं।
"तुम सच में मेरी मदद करना चाहती हो? ठीक है, मैं भी देखना चाहता हूँ तुममें चैंपियन बनने की काबिलियत है या नहीं?"
दोनों काम करने लगे। इशानी को आज समझ आया क्यों उसके डैडी, शांतनु राणा की इतनी तारीफ करते हैं।
उनकी जगह कोई और होता, तो शायद अब तक अपनी चिप टेक्नोलॉजी बेचकर करोड़ों रुपए कमा लेता; लेकिन शांतनु ने ऐसा नहीं किया। वे अपना खुद का मोबाइल ब्रांड बनाना चाहते थे।
शांतनु का सबसे बड़ा धन था अभय। वह भी उन्हीं की तरह स्वाभिमानी और होशियार था। चार साल पहले अभय पंद्रह साल का था। इतनी कम उम्र में उसने पहले ही अपने डैड की रिसर्च में और कोडिंग में मदद की थी; और कोडिंग भी ऐसी कि प्रोफेशनल भी झुक जाते।
इशानी ने एक नज़र आईसीयू में शांतनु जी को देखा और फिर अभय को, जो पूरी तल्लीनता से काम कर रहा था। इशानी के मन में प्रेरणा आ गई।
उसने प्रेजेंटेशन का थीम नए सिरे से तैयार किया: "प्रॉमिसिंग ब्रेकिंग वेव्स"।
जब अभय ने प्रेजेंटेशन देखी, बहुत देर तक वह कुछ नहीं बोल सका। वह तो तैयार था, अगर उसे प्रेजेंटेशन अच्छी नहीं लगी, तो वह बिना प्रेजेंटेशन के ही होस्टिंग करेगा; लेकिन यह तो उसकी कल्पना से भी बहुत अच्छा था। आज अगर उसके डैड इस प्रेजेंटेशन को देखते, तो वे भी बहुत खुश होते।
संजीव खुश होता हुआ आया। उसने वेन्यू पक्का कर लिया था। जब उसे पता चला कि अभय इशानी की तैयार की हुई प्रेजेंटेशन यूज़ करने वाला है, वह पैनिक हो गया।
"ऐसा नहीं कर सकते! वहाँ मीडिया होगी, हज़ारों लोग होंगे। यह लाइव कॉन्फ़्रेंस है, कोई मज़ाक नहीं।"
ऐसा नहीं था कि संजीव इशानी की काबिलियत पर शक कर रहा था; लेकिन इतनी कमज़ोर सी, नाज़ों से पली-बढ़ी लड़की इतनी इम्पॉर्टेन्ट प्रेजेंटेशन तैयार कर पाएगी, वह भी इतने कम समय में—यह बात उसे हज़म नहीं हो रही थी।
अभय ने अपने लैपटॉप की तरफ़ इशारा किया। संजीव ने जैसे ही उसे पढ़ा, उसकी आँखें हैरानी से फैल गईं। पूरी प्रेजेंटेशन देखने के बाद वह खुशी से झूम उठा।
"गुड! वैरी गुड! मिस् इशानी, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा आपने यह प्रेजेंटेशन बनाई है। यह किसी प्रोफ़ेशनल से भी अच्छी है।"
अभय संजीव के साथ चला गया। इशानी वहीं रुक गई। शांतनु जी के साथ भी तो कोई होना चाहिए था।
प्रेस कॉन्फ़्रेंस खचाखच लोगों से भरी हुई थी। अभय ब्लैक थ्री-पीस सूट में बहुत हैंडसम लग रहा था। रातों-रात उसका ओरा और भी कोल्ड और गंभीर हो गया था।
सब कुछ अच्छे से हो गया। कुछ ही मिनटों में इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस पर सौ मिलियन से ज़्यादा व्यूज़ आ गए।
इशानी भी लाइव कॉन्फ़्रेंस देख रही थी। सब सही से हो गया, यह देखकर उसने राहत की साँस ली। बस अब उसके भाई के एक्सीडेंट में कोई हाथ ना निकले।
अभय जब आया, उसने देखा इशानी बेंच पर ही सो गई थी। उसका फ़ोन अभी भी ऑन था। अभय ने उठाकर देखा, तो उसी की प्रेस कॉन्फ़्रेंस वाली वीडियो चल रही थी।
उसे लगा था इशानी चली गई होगी और उसके डैड अकेले होंगे; इसलिए वह जल्दी-जल्दी आया। उसे उम्मीद नहीं थी इशानी अभी तक यहाँ होगी।
इशानी चुलबुली थी और उसकी आँखों में हमेशा चमक रहती थी। सोते हुए वह बेहद शांत और मासूम लग रही थी।
सूरज की किरणें जब इशानी के चेहरे पर पड़ीं, वह कुन्मुनाई। अभय जल्दी से सूरज की किरणों को रोककर खड़ा हो गया। तभी पीछे से अनु की आवाज़ आई,
"अभय, मैं तुम्हारे लिए लंच लाई हूँ।"