एक दर्दनाक रात कैसे बदल देती है पिक 18 साल की मासूम सी लड़की की जिंदगी। उसे खुद को भी पता नहीं था उसने एक रात एक गैंगस्टर के साथ बिता लिया है जो रात उसके लिए बहुत दर्दनाक था और वह रात बदल देती है ...
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"छोड़ दो मुझे, दर्द हो रहा है बहुत। ऐसा मत करो। कौन हो तुम? क्यों ऐसा कर रहे हो?" एक अठारह-उन्नीस साल की लड़की, काफी ज़्यादा दर्द से रोते हुए यह सब बोली। यह कमरा पूरी तरह अंधेरे में डूबा हुआ था। एक छोटी सी रोशनी भी नहीं दिख रही थी; और कैसे ही दिखेगा? अंधेरा जो था, हर जगह एकदम काला, गहरा अंधेरा। कुछ भी नहीं दिख रहा था, और इस अंधेरे में उस लड़की को ऐसा लग रहा था कि वह अंधी हो चुकी है। ऊपर से उसे ऐसा दर्द महसूस हो रहा था, जैसे दर्द के बारे में उसने कभी सोचा तक नहीं था; ऐसा भी दर्द होता है। वह पूरी तरह पसीने में भीग चुकी थी। उसकी हृदय की धड़कन हर मिनट इतनी ज़्यादा बढ़ रही थी, मानो उसका हृदय उछलकर बाहर आ जाएगा। और अचानक उसे अपनी ज़िंदगी का सबसे ज़्यादा दर्दनाक पल महसूस होने लगा। पर यह दर्द ही नहीं था; इसमें एक अलग ही एहसास था जो उसे सिर्फ़ दर्द नहीं, उसे सुकून भी दे रहा था। यह कैसा दर्द है जो दर्द और सुकून एक साथ दे रहा है? और यह दर्द पूरी रात उसे महसूस होता रहा। पता नहीं था कौन था वह जो उसे इतना दर्द दे रहा था। इधर बाहर बहुत तेज़ी से बारिश हो रही थी और बिजली चमक रही थी, पर हैरानी की बात यह है कि थोड़ी सी भी बिजली चमकने की रोशनी इस कमरे तक नहीं पहुँच रही थी। वही यह दर्द उस लड़की को डरा भी रहा था और सुकून भी दे रहा था। उसे अंदाज़ा भी नहीं था कि यह रात उसे कहाँ तक ले जाने वाली है, इस एक रात की वजह से उसकी ज़िंदगी कितनी ज़्यादा बदलने वाली है। और एक तेज़ दर्द के साथ वह बेहोश हो गई। अचानक वह लड़की घबराते हुए अपनी आँखें खोलकर अपने दिल पर हाथ रखती है और आस-पास देखने लगती है। तभी उसकी दोस्त, सेजल—एक डॉक्टर—उसका हाथ पकड़कर कहती है, "तुझे पता है, तू प्रेग्नेंट है, वह भी तीन महीने की। कैसे हो सकता है? तूने मुझे कुछ भी नहीं बताया। मैं तेरी बेस्ट फ्रेंड हूँ।" "क्या बोला? ऐसे कैसे हो सकता है? मैं प्रेग्नेंट हूँ? वह भी तीन महीने की? मैं अपने पापा को क्या बताऊँगी? ऐसा कैसे हो सकता है?" यह सुनकर सेजल कहती है, "पर ऐसा ही हुआ है। तू प्रेग्नेंट है। एक बार ध्यान से सोच, तेरी शादी होने वाली है दो दिन बाद, और तू अभी प्रेग्नेंट है। तू क्या जवाब देगी सूरज को? और एक मिनट, क्या यह बच्चा सूरज का है?" यह सुनकर वह घबराते हुए कहती है, "मुझे नहीं पता यह बच्चा किसका है। मुझे कुछ नहीं पता, सेजल। मैं अब क्या करूँ? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। और मैंने तुझे बताया था उस रात के बारे में; मुझे कुछ भी समझ नहीं आया, और अभी भी नहीं आ रहा है।" उसकी बातें सुनकर सेजल एक गहरी साँस लेकर उसके दोनों हाथों को पकड़ लेती है और कहती है, "यह शादी बहुत ज़्यादा ज़रूरी थी, और अगर सबको पता चल गया तो यह शादी टूट जाने वाली है! क्योंकि कौन ही एक ऐसी लड़की से शादी करने वाला है जो प्रेग्नेंट है किसी और के बच्चे से। और सबसे बड़ी बात यह है कि शादी दो दिन बाद है, और अगर दो दिन बाद शादी टूट जाती है तो बहुत बेइज़्ज़ती होने वाली है, और इसकी वजह से और प्रॉब्लम हो सकते हैं।" यह सुनकर तृषा रोते हुए कहती है, "अगर मेरे पापा को पता चला, वह तो मुझे जान से मार डालेंगे। तुम्हें पता है ना, मेरे पापा कुछ भी कर सकते हैं।" सेजल उसे गले लगा लेती है और कहती है, "घबरा मत, मैं कुछ करती हूँ। पर उससे पहले तो मुझे यह बता, क्या तुझे इस बच्चे को रखना है या नहीं? क्या तू अपना—" यह बोलकर वह चुप हो जाती है। वहीं तृषा अपने पेट पर हाथ रख लेती है और कहती है, "मुझे नहीं पता मैं क्या करूँ। मुझे कुछ नहीं पता। मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है। मैं कैसे इसे संभाल लूँगी?" यह सुनकर सेजल कहती है, "तो फिर तू इसे खत्म कर दे। और अगर तू ऐसा करेगी तो शादी भी नहीं तोड़नी पड़ेगी।" उसने इतना ही बोला था कि अचानक बहुत जोर से बिजली चमकती है, जिसकी आवाज़ सुनकर वह दोनों ही डर जाती हैं और बाहर आसमान को देखने लगती हैं। नीला आसमान, जो बहुत खूबसूरत लग रहा था, अचानक वह काले बादलों से घिरने लगता है। और यह नज़ारा कुछ ऐसा था मानो दुनिया आज खत्म हो जाएगी, और आसमान से पानी नहीं, आग गिरने वाली है। जिसे देखकर तृषा कहती है, "मुझे वैसे भी उससे शादी नहीं करनी थी, और मैं कहीं भाग जाऊँगी। पर इसे खत्म नहीं करने वाली हूँ। मैं... मैं भाग जाऊँगी, इसे लेकर। मेरी मदद करेगी ना? बता, बता, तू करेगी? तुझे करना ही होगा!" वह सेजल को झंझोरते हुए कहती है। वहीं सेजल उसका हाथ पकड़कर उसे शांत करवाने की कोशिश करते हुए कहती है, "तृषा, शांत हो जा। कुछ नहीं होने वाला है। मैं तेरी पूरी मदद करूँगी। बस तुझे आज रात भागना है। मैं तेरे लिए फ़्लाइट, सब कुछ करवा दूँगी। तू अपना ज़रूरी सामान ले ले, और हो सके तो कुछ पैसे भी रख ले। मेरे पास अभी इतने पैसे नहीं हैं, पर जितने हैं मैं तुझे दे दूँगी।" यह सुनकर तृषा उसे गले लगा लेती है, पर तभी कुछ सोचकर वह डरते हुए कहती है, "मैं अकेले कैसे रहूँगी? ऐसी जगह में मैं अकेले नहीं रह पाऊँगी। मुझे बहुत डर लग रहा है। मुझे नहीं... नहीं होने वाला है। तू भी चलना मेरे साथ।" "मैं तेरे साथ नहीं जा सकती हूँ अभी, पर बाद में मैं आ जाऊँगी। अभी मुझे यहाँ पर सब कुछ संभालना होगा, और अगर तू भाग गई तो सबका शक मुझ पर आ जाएगा, इसलिए मैं नहीं जा सकती। पर मैं वादा करती हूँ, मैं आऊँगी तेरे पास बहुत जल्दी, सब कुछ संभालने के बाद।" रात का वक़्त था। हल्की-हल्की बिजली चमक रही थी, और हरे-हरे पत्ते पेड़ से टूटकर नीचे गिर रहे थे। कुछ देर पहले ही तूफ़ान आया था और अभी शांत हुआ था। वहीं एक बड़े से हवेली में एक लड़की अपने लहँगे को संभालते हुए इधर-उधर देख रही थी कि तभी कोई उसके कंधे पर हाथ रखता है। वह डर जाती है और सामने वाले इंसान को देखकर वह एक चैन की साँस लेकर कहती है, "अरे, तू है? तूने तो मुझे डरा दिया है। मैंने सब कुछ तैयारी कर लिया है, अब चलें।" यह सुनकर सामने वाली लड़की हाँ कहती है। कि तभी अचानक एक और लड़की उनके सामने आकर चिल्लाते हुए कहती है, "दोनों यहाँ पर हो? कब से सब तुम्हें ढूँढ़ रहे हैं। तुम्हारे हल्दी का सेरेमनी शुरू होने वाला है। चलो जल्दी से!" तृषा सेजल को एक नज़र देखती है, और वह दोनों आँखों ही आँखों में कुछ इशारा करती हैं, और फिर सेजल कहती है, "तुम चलो, हम अभी आ रहे हैं। थोड़ा सा मेकअप बाकी है, वह कम्पलीट कर लें, उसके बाद हम आते हैं।" यह सुनकर वह चली जाती है। थोड़ी देर बाद पीछे वाले गार्डन के पास आ जाती हैं वह दोनों, और फिर सेजल उसे भगा देती है और अपना एक कार्ड देकर कहती है, "जल्दी चली जाओ, और अपने चेहरे को भी ढक लेना ताकि कोई तुम्हें पहचान ना पाए।" यह सुनकर वह हाँ कहती है और जल्दी से गार्डन को पार करके बाहर आ जाती है। बाहर गार्डन के पीछे के साइड से एक हाइवे जा रहा था जंगल की तरफ़। और वह उसी रास्ते को पकड़कर भागने लगती है। उसे डर तो बहुत लग रहा था; पहली बार वह कुछ ऐसा करने जा रही थी, इसलिए बहुत ज़्यादा डरी हुई है वह। वह डरते हुए जा रही थी, पर यहाँ पर कोई भी गाड़ी नहीं थी जो उसे लिफ़्ट दे, और इन्हीं सबके चक्कर में गाड़ी बुलाना भूल गई थी सेजल। इसलिए तृषा परेशानी में फँस चुकी है। तभी एक गाड़ी बहुत ही ज़्यादा रफ़्तार से उसके सामने से गुज़रती है। अगर एक इंच का भी फ़ासला नहीं रहता तो वह मर सकती थी। वह डर से अपने सीने पर हाथ रख लेती है। और गुस्से से उस गाड़ी को गाली देने लगती है, पर शायद गाड़ी वाले ने सुन लिया था, इसलिए कुछ ही दूरी पर जाकर वह गाड़ी रोक देता है। जिसे देखकर वह भागते हुए गाड़ी के पास जाती है और गुस्से से कहती है, "अभी मेरा एक्सीडेंट हो जाता! क्या देखकर गाड़ी नहीं चला सकते हो? गाड़ी चलाना नहीं आता है तो मत चलाया करो।" यह बोलकर वह गुस्से से गाड़ी को देखने लगती है। वहीं अचानक गाड़ी का विंडो खुल जाता है, और एक गहरी हरी आँखों वाला शख्स उसे सर से लेकर पैर तक देखता है। वहीं उसकी गहरी-गहरी आँखों को देखकर एक पल के लिए वह डर से पीछे हट जाती है। पर अचानक उसके कान में उसकी ठंडी, धीमी, मगर बहुत अट्रैक्टिव आवाज़ आती है, "आपको लिफ़्ट चाहिए?" यह सुनकर वह आस-पास देखती है। उसे यहाँ से निकलना था, और वह एक ऐसे इंसान के साथ कैसे जा सकती है? पर अभी से जाना तो था; इतना तो रिस्क अब उसे लेना होगा। इसलिए वह जल्दी से कहती है, "हाँ, मैं चलूँगी।" यह बोलकर वह जल्दी से जाकर गाड़ी में बैठ जाती है। वह पीछे वाले सीट पर बैठी थी, पर वह इंसान कोई रिस्पांस नहीं करता, जिसे देखकर वह गुस्से से कहती है, "रीस्टार्ट करिए।" "ड्राइवर नहीं हूँ मैं आपका।" वह बहुत ही शांत आवाज़ में ऐसा बोलता है। वहीं उसकी बातों को सुनकर समझ आता है तृषा को, इसलिए वह दरवाज़ा खोलकर सामने वाली सीट पर आकर गुस्से से बैठ जाती है, और गाड़ी बहुत ही ज़्यादा रफ़्तार से आगे बढ़ जाती है। गाड़ी में बैठा हुआ वह शख्स, बिना उसकी तरफ़ देखें, अपनी धीमी आवाज़ में पूछता है, "कहाँ जाना है आपको?" वह अपने हाथों को मलते हुए कहती है, "एयरपोर्ट जाना है मुझे।" यह सुनकर वह शख्स रिव्यू मिरर में उस हसीन लड़की को देखता है, जिसके काजल लगे आँखें उसे अपनी तरफ़ अट्रैक्ट कर रहे थे। वह लड़की बहुत खूबसूरत है, और उसने अभी पीला लहँगा पहन रखा है और एक पतला सा दुपट्टा जो उसके खूबसूरत सीने और कमर को ढकने में नाकाम हो रहा था। बालों को खुला छोड़ दिया था, और एक पीली बिंदी लगाई थी अपने माथे पर, और हल्की लिपस्टिक। हाथों में ढेर सारी पीली चूड़ियाँ, फूलों वाला ब्रेसलेट, पैरों में फूलों वाला पायल; वह बहुत हसीन है। उस लड़की को देखकर किसी भी पुरुष का नियत फिसल जाएगा, पर वह शख्स बिल्कुल भी उसकी तरफ़ कोई इंटरेस्ट दिखाए बिना पूछता है, "शादी से भाग रही हो?" "आपको क्या इससे?" "बस ऐसे ही पूछ रहा था।" "पर्सनल बातें हैं। ऐसे किसी अनजान से, ऐसे उसकी पर्सनल बातें नहीं पूछते।" अचानक गाड़ी रुक जाती है, और वह बोलते हुए चुप हो जाती है और हैरान होकर उस शख्स को देखती है। वहीं वह गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर कहता है, "बाहर निकलो!" यह सुनकर वह हैरानी से कहती है, "अगर मदद नहीं करना था तो गाड़ी में उठाया क्यों था? अभी बाहर निकलने को बोल रहे हो आप?" "मिस, एयरपोर्ट आ चुका है।" यह सुनकर वह आस-पास देखती है और उसे समझ आता है कि वह एयरपोर्ट पहुँच चुकी है। इसलिए वह अपनी बातों पर शर्मिंदा होते हुए कहती है, "सॉरी, मुझे पता नहीं था। मैं आप पर ऐसे चिल्लाना नहीं चाहती थी।" वह कुछ नहीं बोलता। जिसे देखकर वह गाड़ी से बाहर उतर जाती है और जैसे ही लगती है कि अचानक से अपने बॉडी पर कुछ गर्माहट महसूस होती है, और वह पीछे देखती है। वही शख्स खड़ा था और अपनी हरी आँखों से उसे देख रहा था। उसकी परफ़्यूम की खुशबू अब उसे अपने बदन से भी आते हुए महसूस हो रही है। उस हरी आँखों वाले शख्स ने अपना कोट उतारकर उसे पहना दिया था। उसे ठंड लग रही थी और इस कोट की वजह से अब उसे गर्माहट महसूस हो रही थी। अपनी सोच में ही डूबी हुई थी वह, शख्स अचानक उसके दोनों कंधे को कसकर पकड़कर उसे अपनी गाड़ी से लगाकर, उसके चेहरे के पास अपना चेहरा लाकर, अपनी गहरी आवाज़ में कहता है, "संभालकर रहो, वरना तुम्हें नोचकर खाने वालों लोगों की कमी नहीं है इस दुनिया में।" उसकी बातें सुनकर काफी ज़्यादा घबरा गई थी तृषा। उसे अपने पूरे बॉडी में डर का एक ख़तरनाक एहसास महसूस होता है, और उसके साथ ही साथ इस शख्स की परफ़्यूम की खुशबू उसके नाक से होते हुए उसके पूरे रोम-रोम को अपनी आगोश में कर रही थी। पहली बार उसके साथ ऐसा हो रहा है। अपनी पूरी अठारह साल की लाइफ़ में उसे ऐसा महसूस नहीं हुआ है। वहीं उस शख्स में से एक अलग ही ख़तरनाक दहशत महसूस हो रही है उसे। और उस शख्स ने अपने हाथों को उसके दोनों कंधे पर इस क़दर पकड़ बनाकर रखा था कि उसे अपना कंधा टूटा हुआ महसूस हो रहा है। क्या होने वाला है इसके बाद? कौन है वह शख्स? क्यों वह तृषा की मदद कर रहा है? और क्यों तृषा को इतना डर लग रहा है उस शख्स से? और क्या होगा जब तृषा के घर वालों को उसके प्रेगनेंसी के बारे में पता चलेगा? कौन था उस रात तृषा के साथ? और क्या वही शख्स है तृषा के साथ अभी, जिस शख्स के साथ वन नाइट स्टैंड गुज़ार लिया था तृषा ने? क्या तृषा अपने बच्चे को बचा पाएगी? या फिर एक और बार शिकार बन जाएगी किसी के हवस का? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह अनोखी, दहशतनाक प्रेम कहानी।
22 साल बाद एयरपोर्ट पर शाम का समय था। आसपास बहुत कम लोग थे। शाम 7:00 बजे की फ़्लाइट अभी-अभी लैंड हुई थी और ज़्यादातर लोग निकल चुके थे। आखिर में, तीन लोग निकले जिन पर सभी लड़कियों की नज़रें टिक गईं। लड़के, लड़कियाँ, बच्चे, सभी का ध्यान उन पर ही केंद्रित था। दो बेहद हैंडसम लड़के थे और उनके बीच में एक लड़की। एक लड़के ने ब्लैक शर्ट और ब्लैक पैंट पहनी हुई थी, जबकि दूसरे ने व्हाइट फ़ुल स्लीव्स वाली टी-शर्ट और ब्लैक पैंट पहनी हुई थी। दोनों के हाथ में ब्लैक रिस्ट वॉच थी, जो बेहद कीमती लग रही थी। दोनों लड़कों के चेहरे के भाव कठोर थे और दोनों की आँखें गहरी हरी थीं। काफ़ी ख़तरनाक, गोरा रंग, गुलाबी होंठ, हल्के सुनहरे बाल और 6 फ़ीट से ज़्यादा ऊँचाई; कोई भी लड़की उन्हें देखकर पागल हो सकती थी। दोनों के हाथ में एक-एक बैग था। उनके बीच में एक महिला थी, जिसने ब्लैक लॉन्ग ओवरकोट पहना हुआ था और उसके बाल बहुत लंबे थे, जिन्हें उसने चोटी में बांधा हुआ था। अंदर शायद उसने पिंक कलर की साड़ी पहनी हुई थी। वह महिला आसपास देखते हुए बोली, "तुम्हारी मां अभी तक क्यों नहीं आई? पता नहीं कहाँ चली गई। बोला था इतने टाइम में फ़्लाइट लैंड करेगी, पर वह कहाँ चली गई?" दूसरा लड़का धीमी आवाज़ में बोला, "शायद यहीं कहीं होगी।" यह सुनकर वह महिला गहरी साँस लेती है, तभी उसके कान में किसी की आवाज़ आती है, "तृषा!" यह सुनकर तृषा, यानी वह महिला, सामने देखती है। सामने सेजल खड़ी थी, जिसने व्हाइट कोट पहना हुआ था और उसके कंधे पर एक स्टेथोस्कोप लटका हुआ था। शायद वह अभी-अभी किसी सर्जरी से निकली होगी। उसके पीछे एक आदमी खड़ा था, जिसके चेहरे पर मुस्कान थी और उसने एक लड़के का हाथ पकड़ा हुआ था, जो 17-18 साल का लग रहा था। सेजल भागती हुई तृषा को गले लगा लेती है। तृषा भी उसे गले लगाकर कहती है, "तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी। कहाँ मर गई थी तू?" यह सुनकर सेजल हँसते हुए कहती है, "तुम आने वाली हो, इसलिए तैयारी कर रही थी। अच्छे से सब कुछ ठीक-ठाक करना था ना? और काफ़ी कुछ संभालना भी था। और ये दोनों इतने बड़े हो गए हैं! कितने छोटे-छोटे प्यारे थे, एकदम छोटे-छोटे, और अब ये दोनों इतने बड़े-बड़े हो गए हैं।" यह बोलकर वह अपना सर उठाकर उन दोनों को देखती है। वह उन दोनों के सामने काफी छोटी लग रही थी। सेजल थोड़ा पीछे हटकर तृषा के दोनों बेटों और तृषा को देखती है। तृषा इन दोनों की छोटी बहन लग रही थी, न कि माँ। उनकी हालत देखकर तृषा मुँह पर हाथ रखकर हँसते हुए कहती है, "मेरे बेटों को देखकर तेरी नियत ना फिसल जाए! मेरे बेटों को देखकर बहुत सी लड़कियों की नियत फिसल जाती है।" यह सुनकर सेजल हँसते हुए कहती है, "वो तो होना ही है। ये दोनों इतने प्यारे और हैंडसम हैं। पर मैं इन्हें अपना बच्चा मानती हूँ। और वैसे भी, मैं तुमसे बड़ी हूँ और मेरे पास अपना पति है। वो इतना हैंडसम है कि मुझे किसी की ज़रूरत ही नहीं है।" उसकी बातें सुनकर तृषा पीछे खड़े उसके पति और उसके बेटे को देखती है और कहती है, "हमारा छोटू, निखिल, तो कितना बड़ा हो चुका है! लास्ट टाइम जब देखा था, ये छोटा सा था, कितना प्यारा था वो! और अब तो और भी ज़्यादा हैंडसम हो गया है।" यह सुनकर निखिल शर्मा जाता है और कहता है, "वो तो मैं बहुत ज़्यादा हैंडसम हूँ! इतनी तारीफ़ मत करिए, मुझे शर्म आ रही है और मुझे नज़र लग जाएगी आपकी।" यह सुनकर तृषा हँसते हुए कहती है, "सच में कितना प्यारा है तुम्हारा बेटा! चलो, अब मैं थक चुकी हूँ, मुझे घर जाकर आराम करना है। मेरे बेटे भी काफी थक चुके हैं, उन्हें भी आराम करना है।" यह सुनकर सेजल कहती है, "अरे, तुम्हारे दोनों बेटे कुछ बात क्यों नहीं कर रहे हैं? क्या वो नाराज़ हैं? इतने सालों से नहीं मिली, इसलिए क्या करूँ यार? यहाँ पर भी संभालना था सब कुछ।" तृषा उसके कंधे पर हाथ रखकर कहती है, "मेरे बेटे ऐसे ही हैं। जितना ज़रूरत है, उतना ही बोलते हैं। पता नहीं किस पर गए हैं, शायद अपने अनवांटेड फादर पर गए हैं। अब क्या ही कर सकते हैं! चलो, अब घर चलते हैं।" सेजल भी हाँ कहती है और फिर वे सब गाड़ी में बैठकर वहाँ से निकल पड़ते हैं। दो गाड़ियाँ थीं। एक गाड़ी में सेजल का पति अक्षत, सेजल और तृषा जा रहे थे और दूसरी गाड़ी में निखिल और तृषा के दोनों बच्चे जा रहे थे। निखिल एक्साइटेड होकर उन दोनों को देखता है और पूछता है, "आप दोनों से ज़्यादा क्यूट मैं हूँ क्या? आप दोनों मुझे जानते हो क्या? मैं आप दोनों को जानता हूँ।" यह सुनकर वे दोनों एक-दूसरे को ख़तरनाक नज़रों से देखते हैं और फिर जिसने व्हाइट शर्ट पहनी हुई थी, वह कहता है, "नहीं, यहाँ पर मैं सबसे ज़्यादा क्यूट हूँ। मुझसे ज़्यादा क्यूट कोई कैसे हो सकता है? और तुम थोड़े-थोड़े क्यूट हो! और हम दोनों ही तुम्हें जानते हैं, तुम नहीं जानते हो हम दोनों को।" पर दूसरा वाला कुछ नहीं बोलता। निखिल उम्मीद कर रहा था कि वह भी कुछ बोलेगा, पर वह कुछ नहीं बोलता। जिसे देखकर व्हाइट शर्ट वाला कहता है, "तुम्हें तो हम दोनों का नाम भी नहीं पता है। चलो, मैं बता देता हूँ। मेरा नाम शौर्य है और उसका नाम सूर्यांश। हम दोनों ट्विन्स हैं, पर अलग-अलग हैं। और हम तुम्हें ये इसलिए बता रहे हैं क्योंकि हम दोनों तुमसे दोस्ती करना चाहते हैं।" यह सुनकर वह एक्साइटेड होकर कहता है, "सच में आप दोनों मुझसे दोस्ती करना चाहते हो? चलो, मैं इतना भी ख़ास नहीं हूँ। मैं ज़्यादा किसी को दोस्त नहीं बनाता हूँ। लिमिटेड लोगों को ही दोस्त बनाता हूँ। पर चलो, आप दोनों भी... क्या याद रखोगे? आप दोनों को भी दोस्त बना लिया।" गाड़ी एक बड़े खूबसूरत और लग्ज़रीअस कॉटेज के बाहर आकर रुकती है। आस-पास इसके अलावा कोई घर नहीं था। यही एक कॉटेज था, जो तृषा ने बनवाया था। इस कॉटेज को बनवाने में सेजल ने पूरी मदद की थी, क्योंकि तृषा यहाँ 22 सालों से नहीं आई थी। अब जब तृषा के बच्चे बड़े हो चुके हैं, उसे किसी बात का भी डर नहीं है। और उसने सोच लिया था कि अब वह अपने ही देश में रहेगी, और कहीं नहीं जाएगी। घर के अंदर आने के बाद तृषा सुकून से कहती है, "चलो, फ़ाइनली अब हम अपने खुद के घर पर हैं, मेरे बच्चों।" पीछे खड़े सूर्यांश और शौर्य बस हाँ कहते हैं और फिर दोनों सीढ़ियों के पास जाते हैं और ऊपर चले जाते हैं। तृषा कुछ नहीं कहती, वह भी अपने कमरे में चली जाती है। फिर वे सब डिनर करके आराम करने चले जाते हैं और सेजल अपनी बेटी और पति को लेकर घर चली जाती है। अगले दिन सुबह ब्रेकफ़ास्ट टेबल पर तृषा शौर्य को जूस देते हुए कहती है, "बेटा, मैं आज इंटरव्यू देने जा रही हूँ। मैंने सोच लिया है, मैं ऑफ़िस ज्वाइन कर रही हूँ। वैसे भी, बहुत बोरिंग लगता है ऐसे घर में रहना! और उससे पहले मैं तुम दोनों को कॉलेज छोड़ने जाऊँगी। कल ही एडमिशन करवा दिया है तुम दोनों का, तुम्हारी मासी ने, दिल्ली इंटरनेशनल कॉलेज में। इसलिए तुम दोनों आज से कॉलेज जाओगे। पता है, बहुत लॉन्ग जर्नी करके आए हो, पर कॉलेज में बस पढ़ना ही तो है, और क्या करना है? कौन सा तुम दोनों को बहुत सारा काम करना है?" यह सुनकर शौर्य तृषा को कुछ देर तक घूरता है और कहता है, "मम्मी, आपको ज़रूरत नहीं है ये सब करने की। हम नहीं चाहते कोई प्रॉब्लम हो आपके साथ। और आप जहाँ पर भी जाती हो, प्रॉब्लम को गले लगा लेती हो।" यह सुनकर तृषा मुँह बनाकर कहती है, "कभी ऐसा लगता है मैंने तुम दोनों को नहीं, तुम दोनों ने मुझे पैदा किया है! तुम दोनों मेरे बाप बन गए हो! मैं मम्मी हूँ तुम्हारी। मुझे पता है क्या सही है, क्या गलत है। अब चुपचाप नाश्ता करो और कॉलेज के लिए भी जाना है, और मुझे भी इंटरव्यू देने जाना है। प्रेयर करो मुझे जॉब मिल जाए।" सूर्यांश प्लेट में चम्मच घुमाते हुए, बिना सर ऊपर उठाए कहता है, "अपना ध्यान रखना, मम्मी।" तृषा मुस्कुराकर हाँ कहती है और फिर दोनों बच्चों को कॉलेज छोड़कर वह ऑफ़िस के लिए निकल जाती है। वहीं, कॉलेज पहुँचते ही सभी लड़कियाँ शौर्य और सूर्यांश के प्यार में गिर चुकी थीं। राजावत ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्री सामने बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था। इस बिल्डिंग को देखकर उसे थोड़ी घबराहट हुई। ना जाने क्यों उसका मन कह रहा था, "यहाँ मत जाओ, यहाँ ख़तरा है, और छोटा-मोटा नहीं, बड़ा सा ख़तरा है।" फिर भी, उसे जाना था। वह नहीं चाहती थी कि उसके बच्चे खेलने-कूदने की उम्र में ज़िम्मेदारियाँ उठाएँ। कम से कम वह अपना बचपन तो अच्छे से बिताएँ, जो कि वह नहीं बिता पाई थी। इसलिए वह बहुत मेहनत करेगी। यह सोचकर वह अंदर चली जाती है। आज उसने सफ़ेद पटियाला सलवार सूट पहना हुआ है और ऊपर एक ब्लैक कोट पहन लिया है। उसने अपने बालों को चोटी में बाँधकर अपने कंधे के साइड करके रखा है। उसकी चोटी उसके कमर से भी नीचे तक आ रही थीं। सर पर छोटी सी बिंदी और हल्का लिप-ग्लॉस और कोई मेकअप नहीं। इसमें ही वह बहुत प्यारी और मासूम लग रही थी। कोई बता ही नहीं सकता था कि यह लड़की दो बच्चों की माँ है, वह भी इतने बड़े-बड़े बच्चों की। जब तृषा अंदर जा रही थी, सारे वर्कर्स बस उसे ही देख रहे थे और लड़कियाँ तृषा से जल रही थीं कि तृषा इतनी खूबसूरत है। पर तृषा किसी भी चीज़ की परवाह न करते हुए अंदर जाकर वेटिंग रूम में इंतज़ार करने लगती है। वहाँ और भी बहुत सी लड़कियाँ थीं, जिन्होंने काफ़ी मेकअप किया हुआ था। देखकर ही पता चल रहा था कि वे इंटरव्यू देने आई हैं और यहाँ के बॉस को अपने जाल में फँसाने आई हैं। वे लोग बातें भी कर रही थीं, पर तृषा उनकी बातों को इग्नोर कर देती है। पर जैसे-जैसे वक़्त बीत रहा था, तृषा को डर भी लग रहा था। क्योंकि जितनी भी लड़कियाँ जा रही थीं, सब रोते हुए वापस आ रही थीं। शायद उन्हें जॉब नहीं मिला होगा। ना जाने उसके साथ क्या होगा। भले ही वह काफ़ी जॉब कर चुकी थी, पर शुरुआत में उसे बहुत डर लगता था। पर धीरे-धीरे आदत हो गई थी। पर जितनी बार भी उसने जॉब बदला था, उतनी बार ही उसे बहुत ज़्यादा घबराहट हुई थी। शुरुआत में हर बार प्रॉब्लम होता है। ऊपर से दोनों बच्चों की ज़िम्मेदारी थी उसे। पर वह अकेले बच्चों को संभालकर, जॉब करके, सारा काम करती थी। क्योंकि वह अफ़ोर्ड नहीं कर सकती थी एक बेबी-सीटर या एक मेड। इसलिए उसे ही सब करना पड़ता था। पर सेजल ने भी काफ़ी मदद की थी उसकी। तभी एक लड़की आकर अपने हाथ में रखे फ़ाइल को देखते हुए कहती है, "मिस तृषा चतुर्वेदी।" यह सुनकर तृषा उठ जाती है और कहती है, "जी, मैं हूँ।" इतनी मीठी आवाज़ सुनकर वह लड़की उसकी तरफ़ देखती है और तृषा को देखकर एक पल के लिए जलन के मारे वह अपने हाथ में पड़े फ़ाइल को कसकर मुट्ठियों में जकड़ लेती है, पर चेहरे पर स्माइल रखकर उसे अंदर आने के लिए कहती है। अंदर, पैरों पर पैर रखकर, राजाओं की तरह एक आदमी बैठा हुआ है। और उसके साथ और भी दो-तीन आदमी थे, जो बहुत ज़्यादा हँस रहे थे। अभी उन चारों के अलावा और कोई नहीं था यहाँ पर। वह आदमी जिसने ब्लैक बिज़नेस सूट पहना हुआ है, उसके बाल भी हल्के सुनहरे और आँखें गहरी हरी हैं, गोरा रंग, पर चेहरे पर एक मास्क पहना हुआ है। इसलिए उसका चेहरा नहीं दिख रहा है। उससे एक ख़तरनाक आभा निकल रही है, जो किसी को भी डराने के लिए काफी है। बाकी तीनों जैसे हँस रहे थे, वह बिल्कुल नहीं हँस रहा था। उसके चेहरे के भाव एकदम कठोर थे। यह आदमी और कोई नहीं, राजावत ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्री का CEO, मेघांश राजावत है, जो काफ़ी ख़तरनाक है और सिर्फ़ ख़तरनाक ही नहीं, वह एक गैंगस्टर भी है। पूरा एशिया काँपता है उसके नाम से, पर हज़ार क्राइम करने के बावजूद किसी के पास कोई सबूत नहीं है, इन सब क्राइम्स का। तभी मेघांश के कान में चूड़ियों की आवाज़ सुनाई देती है और वह एकदम से अपना सर उठाकर सामने दरवाज़े की तरफ़ देखता है और बस देखता ही रह जाता है। वहाँ पर एक बेहद खूबसूरत, प्यारी लड़की खड़ी थी, जो अपने दुपट्टे को ठीक कर रही थी। लड़की को देखकर लग रहा था कि लड़की 24-25 साल की होगी। मेघांश की आँखों को देखकर बाकी सब भी ध्यान से मेघांश को देख रहे हैं और उसकी आँखों का पीछा करते हुए सामने दुपट्टा ठीक कर रही लड़की को देखते हैं और अचानक उनके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। दूसरा वाला आदमी तीसरे आदमी से कहता है, "लगता है हमारा बुड्ढा शादी करने वाला है! देखो कैसे देख रहा है उसे, हसीना को! और लड़की, जो भी हो, बहुत प्यारी है, मासूम भी लग रही है और डरी हुई भी है। ये कुछ अलग है।" दूसरा आदमी कहता है, "सही बोला तूने! पर हमारा मेघांश पूरे 56 का है और ये लड़की तो छोटी लग रही है।" वही वे दोनों बात ही कर रहे थे कि अचानक वह लड़की थोड़ी घबराती हुई वहाँ पर आती है। और मेघांश आँखों से बैठने का इशारा करता है। मेघांश की आँखों को देखकर एक पल के लिए वह पूरी तरह से हैरान हो जाती है और अपने मन ही मन कहती है, "ऐसा लग रहा है इन ख़तरनाक आँखों को पहले भी देखा है मैंने, पर याद नहीं आ रहा है।" तो क्या होने वाला है इसके बाद? क्या मेघांश ही है वह इंसान जिसके साथ एक रात गुज़ारी थी तृषा ने? और क्या होगा जब शौर्य और सूर्यांश को मेघांश के बारे में पता चलेगा? और क्या करने वाला है अब मेघांश तृषा के साथ? क्या मेघांश सब कुछ जानते हुए भी अनजान बन रहा है? किस मोड़ पर ले जाएगी मेघांश और तृषा की ज़िंदगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
मेघांश अपने गहरी हरी आंखों से एक तक देख रहा था सामने खड़ी लड़की को इधर सामने खड़ी लड़की तृषा थोड़ी घबराते हुए सीट पर बैठ जाती है।
वहीं दूसरे साइड बैठा हुआ आदमी की पूछता है"यह क्या आपकी फर्स्ट जॉब है?"
यह सुनकर बहुत जल्दी-जल्दी कहती है"नहीं नहीं मैं इससे भी पहले काफी सारा जॉब कर चुकी हूं "
यह सुनकर दूसरा वाला आदमी कहता है"फिर क्या आप शादीशुदा हो?"
यह सवाल काफी ज्यादा अजीब और पर्सनल लगता है तृषा को पर उसे लगता है कि यहां पर ऐसा ही होता होगा इसलिए वह कह देतीहै"नहीं नहीं मैं शादीशुदा नहीं हूं"
यह सुनकर वह तीनों एक साथ उछल पड़ते हैं जिसे देखकर मेघांश उन्हें घूरने लगता है।
मेघांश की ठंडी आंखों को खुद पर महसूस करके वह तीनों ही शांत हो जाते हैं और
एक दूसरे के कानों में कान्हा खुशी करके कहने लगते हैं"शायद अब हमारे बुद्ध को कोई मिलने वाला है! और सबसे बड़ी बात यह सिंगल है इसकी शादी नहीं हुई है कितना अच्छा होगा"
यह बोलकर वह हंसने लगते हैं वही मेघांश उसकी फाइल को देखा है और फिर कुछ कह नहीं वाला था कि तीसरा वाला आदमी उसे रोकते हुए कहता है"बताता हूं ना आपको जॉब जॉब मिल चुका है आप कल से या फिर आज से अभी से कंटिन्यू कर सकती हो आपको as a secretary हायर किया जाता है मिस्टर मेघांश की"
यह सुनकर मेघांश ने अपनी आंखों को छोटा करके देखने लगता है पर कुछ बोलना नहीं और उसकी ख़ामोशी से पता चल रहा था कि वह खुद भी यही चाहता था पर ऐसा कैसे हो सकता है पहली बार ऐसा हुआ होगा जब मेघांश इतना शांत बैठा हुआ है और उन्होंने इतना कुछ किया इतना कुछ बोल दिया उसके डिसीजन के खिलाफ जाकर फिर भी उसने कुछ नहीं कहा यह खतरनाक शेर अभी भी शांत है।
जौब मिलने की खुशी में काफी ज्यादा खुश हो जाती है तृषा और अपना हाथ आगे करके कहती है"थैंक यू सो मच सर मैं कल से जॉइंट करूंगी"
मेघांश कुछ देर तक उसके हाथ को देखा है और फिर अपना सर हिला देता है पर उसे हाथ नहीं मिला था।
जिसे देखकर काफी बेइज्जती महसूस होता है तृषा को पर इन सब चीजों से क्या हो जाएगा उसे तो पैसे कमाने हैं यह सोचकर वह अपना हाथ पीछे कर लेती है और मुस्कुरा कर बाहर चले जाती है।
नहीं बाहर जाते हुए उसका दुपट्टा थोड़ा सरक जाता है और वह उसे ठीक करने लगती है तो दुपट्टा हवा की झोंके से उड़ते हुए मेघांश के चेहरे पर आकर गिरता है और जिसे देखकर वह तीन एक साथ कहते हैं"ओओओहोओओ"
यह सुनकर मेघांश दांत पीसकर उन्हें देखा है वह चुप हो जाते हैं वही तृषा अपना दुपट्टा ठीक करते हुए बाहर चली जाती है।
दूसरी तरफ कॉलेज
कॉलेज में काफी सन्नाटा फैला हुआ है और सारे स्टूडेंट सीनियर्स जूनियर्स डरे हुए थे बहुत ज्यादा।
वही एक लड़की येलो शर्ट और ब्लैक ट्राउजर पहन कर रखा है गले में उसका ब्लूटूथ लटक रहा है हाथ में फोन और बालों को उसने चोटी में बांद कर रखा है और फोन में कुछ देखते हुए वह क्लास के अंदर इंटर कर दिए।
फिर फोन को अपनी जेब में रखकर आसपास दिखती है और उसका ध्यान जाता है कुछ लड़कियों पर जो कुछ पढ़ रहे थे।
जिसे देखकर वह लड़की घबराते हुए उनके पास जाती है और उनके साथ बैठ जाती है और कहती है"यह सब क्या पढ़ रहे हो तुम लोग इतने सीरियस होकर?"
यह सुनकर उनमें से एक लड़की कहती है"तू तो कल कॉलेज नहीं आई थी और आज हमारा टेस्ट लेने वाले हैं और उसी के ही लिए पढ़ रहे हैं हम फेल नहीं होना है हमें।"
लड़की हैरान होकर कहती है"हां हां मुझे पता है मैं पढ़ कर आई हूं पर मैं थोड़ा भूल गई हूं मुझे दिखा दिखा जरा तुम ना मेरी थोड़ी मदद करना और मुझे जो आता है मैं वह तुम्हें बता दूंगी वह मुझे निशाने बताया है"
यह सुनकर निशा नाम की लड़की उसे देखते हैं और कहती है" गौरी उम्मीद मत रखना मेरा खुद का हालत खराब हो रहा है ऊपर से"
वह इतना ही बोली थी कि अचानक प्रोफेसर अंदर आ जाते हैं जिसे देखकर वह सब अपने-अपने सीट में जाकर बैठ जाते हैं और गौरि भी भागते हुए बीच वाली सीट पर जाकर बैठ जाती है जहां पर एक लड़का पहले से ही बैठा हुआ है।
यहां पर सब ने कॉलेज यूनिफार्म पहन कर रखा है शिवाय उसे लड़की गौरी के उसे लड़के ने भी यूनिफार्म पहन कर रखा है वह लड़का गौरी की तरफ ध्यान नहीं देता वह चुपचाप कुछ लिख रहा था।
वही गौरी का ध्यान उसे लड़के पर जाता है और वह देखने लगती है लड़का क्या लिखता है लड़के की हैंडराइटिंग बहुत ज्यादा कमाल की है वह अपने होठों को रोल करके कहती है"हमारी हैंडराइटिंग तो कितना ज्यादा सुंदर है वह भाई वह तुम न इंटेलीजेंट लग रहे हो मुझे तुम अगर आता है तो तुम मेरी ना थोड़ी मदद कर देना तुम नहीं लग रहे हो और वैसे भी तुम्हें मेरी मदद करना चाहिए सबकी मदद करना चाहिए मैं थोड़ी भूल गई हूं"
तभी प्रोफेसर उसे डांटे हुए कहते हैं"गौरी क्लास चल रहा है! तुम अपनी शैतानी से बाज नहीं आए ना और यह क्या तुमने यूनिफॉर्म क्यों नहीं पहना है"
यह सुनकर गौरी अपने चेहरे को मासूम बना कर कहती है"प्रोफेसर सो सॉरी वह क्या है ना मेरी तबीयत बहुत खराब है 10 दिन से मैं ठीक से चल तक नहीं पा रही हूं और इसलिए मैंने 2 दिन से खाना नहीं खाया और आज वह टेस्ट है ना इस वजह से जल्दी से आ गई और भूल गई यूनिफॉर्म पहनना प्लीज माफ कर दीजिए"
बोल कर वह अपना सर पकड़ के सीट पर बैठ जाती है और उसका यह ड्रामा देखकर सब गहरी सांस लेते हैं और प्रोफेसर उसे बस गुस्से से घूरते हैं और कहते हैं"यह तुम्हारी हरकतें बहुत ज्यादा खराब है एक अच्छी बच्ची की तरह क्यों नहीं तुम रहती जब देखो तब उल्टा सीधा काम करना है"
यह सुनकर वह अपने बाल को एटीट्यूड से पीछे झटकती है जैसे कि प्रोफेसर ने उसकी तारीफ किया है। वही आज सच में वह अच्छे से पढ़ कर नहीं आई थी और जितना भी पढ़ कर आई थी वह सब भूल गई थी पता नहींक्यों। और फिर प्रोफेसर पेपर देने लगते हैं और पेपर हाथ में आने के बाद उसे कुछ नहीं समझ आता वह लिखा तो क्या लिखा कुछ भी बड़ा भी नहीं आया है।
तभी उसे दिखता है की साइड वाला लड़का सब कुछ बड़ी आसानी से लिख रहा था वह जल्दी से उसके करीब खिसक जाती है और फिर उसके पेपर को अपनी तरफ खींच लेती है और लिखने लगते हैं और उसकी यह हरकत देखकर अब जाकर वह लड़का जो की और कोई नहीं शौर्य है वह उसे ध्यान से देखने लगता है।
अगले ही पल वह गुस्से से अपना पेपर दूसरी तरफ कर लेता है जिसे देखकर गौरी गुस्से से उसका पेपर लेकर कहती है"पागल लड़के मुझे देखने दो थोड़ा सा मदद कर दो की तो क्या बिगड़ जाएगा जो मुझे आता है मैं तुम्हें बता दूंगी और हेल्प करना चाहिए यह अच्छी बात है"
उसकी बातों को सुनकर शौर्य अपनी आंखों को रोल कर कर उसे देखा है और अगले ही पल उससे थोड़ा दूर खिसक कर बैठ जाता है जिसे देखकर वह गुस्से से एकदम शौर्य के करीब आकर उसके हाथ को कसकर पकड़ लेती है और अपने दूसरे पैर से उसके पैरों को पकड़ लेती है और फिर जल्दी-जल्दी लिखने लगते हैं।
वही यह महसूस करके शौर्य को पसीने छूटने लगता है वह अपने हाथों की मुट्ठी बनाकर गहरी गहरी सांस लेने लगता है जैसे वह कुछ कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा है।
वही प्रोफेसर जो यह सब देख रहे थे वह अपनी आवाज को ऊंची करके कहते हैं"और यह क्या हरकत है उसका पेपर उसे वापस दे दो और तुम क्या पढ़कर नहीं आई हो।"
यह सुनकर गोरी अपने बालों को खुजलाते हुए कहती है"प्रोफेसर क्या करूं मैं मेरी तबीयत खराब थी ना आज माफ कर दो ना वैसे भी मैं इतनी अच्छी स्टूडेंट हूं मैं फर्स्ट आती हूं और सारी पढ़ाई में इतनी अच्छी हूं आज ऐसा हो गया तो थोड़ा मैनेज कर लो आप इसको बताना मत आप इतने अच्छे प्रोफेसर हो मैं ना आपको दो-चार चॉकलेट खिला दूंगी"
प्रोफेसर उसे ऐसे घूरता है जैसे किसी पागल को देख रहे हैं।
शौर्य उसकी हरकतों को देख रहा था इधर शौर्य के लाल आंखों को देखकर एक पल के लिए प्रोफेसर भी घबरा जाते हैं।
वह शौर्य एकदम उठ जाता है और उसे उठा हुआ देखकर गोरी अपने कमर पर हाथ रखकर खुद भी उठ जाती है और फिर अपना सर उठाकर ऊपर देखी है तब जाकर उसे शौर्य का चेहरा दिखता है और वह फिर से नीचे बैठ जाती है और हैरान होकर कहती है"शायद तुम्हें भगवान जी जिराफ बनाना चाहते थे पर गलती से इंसान बना दिया है इतना लंबा कोई कैसे हो सकता है।"
यह बोलकर वह उसके कमर को पकड़ कर से नीचे बिठाने की कोशिश करती है उसकी हरकत देखकर शौर्य अब दांत पीसकर कहता है"यह क्या कर रही हो तुम"
वह भी गुस्से से कहती है"तमाशा मत बनाओ सब हमें देख रहे हैं भाई बैठ जाओ तुम"
शौर्य तब तो कुछ नहीं बोलता वह गुस्से से बस गौरी को देखता रहता है हाथों की मुट्ठी बनाकर और फिर बैठ कर लिखने लगता है वही गौरी भी उसका देखकर छापने लगती है और प्रोफेसर चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाए शौर्य की वजह से प्रोफेसर को काफी डर लग रहा था और अभी यह डर किस बात का है यह तो बस शौर्य और प्रोफेसर जाने।
उसके बाद यह क्लास खत्म होता है गोरी अपना सामान लेकर बाहर आ जाती है सिर्फ वॉशरूम जाना था उसे समान को निशा के पास देकर भागते हुए वॉशरूम चली जाती है और फिर अपना काम करके हाथ धोकर बाहर आने लगती है कि कोई अचानक उसकी कलाई को मजबूती से पकड़ के उसे दूसरी तरफ खींच लेता है
और वह डर की वजह से अपनी आंखों को बंद करके खरी थी वही उसे महसूस हो रहा था किसी ने उसके दोनों कंधों को बहुत ही ज्यादा कसकर पकड़ रखा था उसे ऐसा लग रहा है कि उसके दोनों कंधे टूट जाएंगे उसे अपने बॉडी के साथ किसी का गरम बॉडी महसूस हो रहा था वह धीरे-धीरे अपनी आंखों को खोल देती है।
और सामने खड़े लड़के को देखते हैं पर उसे उसके सीने के अलावा और कुछ नहीं दिखता जिस पर एक टैटू बना हुआ है गुलाब का और वह पसीने में भीगा हुआ था काफी पर उसकी परफ्यूम की खुशबू मदहोश कर रहा था गौरी को गोरी अब अपना सर ऊपर करके उसके चेहरे को देखते हैं यह शौर्य है ।
अब जाकर उसने शौर्य के चेहरे को ध्यान से देखा था गहरी हरि आंखें गोरा रंग गुलाबी होंठ हल्के सुनहरे बाल जो बिखरे हुए थे। और उसने अभी अपने कोर्ट को खोलकर कहीं पर रख दिया होगा अभी वह कॉलेज के व्हाइट यूनिफॉर्म में है और ग्रे पैंट में और उसनेअपने यूनिफॉर्म के दो-तीन बटन खुले रखे थे उनके कॉलेज में यूनिफार्म पहनना पड़ता है बिल्कुल स्कूल जैसा।
वह अपने होश में तब आती है जब गुस्से से शौर्य उसके कंधे को और कसकर पकड़ के उसे झटकते हुए कहता है"how dare you be so"
यह सुनकर वह होश में आती है और फिर शौर्य को देखते हैं पर उसे अपने कंधे पर बहुत दर्द महसूस होता है वह शौर्य के बड़े हाथों पर अपने छोटे-छोटे हाथों को रख देती है और दर्द से कहती है"ओके ओके मैं बताती हूं बाबा पहले तुम छोड़ो मेरे कंधों को टूट जाएगा और फिर मेरी शादी नहीं होगी तब बताओ मैं क्या करूंगी तुम करोगे मुझसे शादी?"
शौर्य गुस्से से उसे दूर धक्का देता है और पीछे हटते हुए कहता है"तुमसे शादी इतने बुरे दिन नहीं आए मेरे शकल देखी अपनी!"
यह सुनकर वह जल्दी से अपनी जेब से अपना फोन निकाल कर अपनी शक्ल को देखते हुए कहती है"यह कोई पूछने की बात है हजार बार देखा है मैंने अपनी शक्ल को क्या तुम नहीं देखते क्या अपनी शक्ल को"
उसकी यह उल्टा जवाब सुनकर शौर्य को और गुस्सा आ जाता है और इस बार शौर्य उसके कमर को पड़कर उस को अपनी तरफ खींच लेता है और एकदम से उसके होठों पर अपना होंठ रखकर उसके होठों को चूमने लगता है।
और अचानक किसी के ऐसा करने से गोरी पूरी तरीके से हैरान हो गई थी उसे बिल्कुल समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा कैसे हो गया ऐसा कैसे हो सकता है ।
शौर्य पागलों की तरह उसके होठों को चूम रहा था वह उसके होठों को चूमते हुए अपने एक हाथ को उसके पीले शर्ट के अंदर डाल देता है और उसके पेट को सहलाते हुए अपने हाथ को ऊपर लाने लगता है वहीं अब फोर्स में आती है गोरी और एकदम से उसके हाथ को पकड़ लेती है और उसे धक्का देकर उसके गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मार कर चिल्लाते हुए कहती है "यह क्या बदतमीजी है तुमने मेरी पहेली किस चुरा ली यह मैंने मेरे हस्बैंड के लिए बचा कर रखा है अगर तुमने मुझे ऐसे पहले किस कर लिया तो मेरा हस्बैंड क्या करेगा उसके लिए बचा क्या है आप?"
यह सुनकर शौर्य फिर से उसके कंधे को गुस्से से पकड़ कर कहता है"मेरा मन कर रहा है तुम्हें जान से मार डालूं और यहां पर तुम्हें दफन दूं लाइफ में पहली बार किसी ने मुझ पर हाथ उठाया है वरना अगर कोई उंगली तक उठता है मेरे सामने उसके हाथ को काट देता या उसे ही पूरा काट देता और अब तुम्हारे साथ क्या करूं मैं"
यह सुनकर गोरी उसके पेट पर मुक्का मार दिया पर उसे अपने हाथ में बहुत दर्द होता है और वह दर्द से चिल्लाते हुए कहती है"तुम इंसान हो या लोहा बाप रे मेरा हाथ टूट गया शायद"
उसे दर्द में देखकर शौर्य तिरछा मुस्कुरा कर कहता है"ठीक हुआ है तुम्हारे साथ तुम्हें और दर्द मिलना चाहिए बेवकूफ लड़की उतना तुम्हारे लिए अच्छा होने वाला है"
यह सुनकर गोरी अजीब तरीके से मुस्कुराते हुए कहती है"अब तुम्हें बिल्कुल तुमसे दूर नहीं होने वाली हूं इसके दो रीजन है एक तो तुमने मना किया है और जो चीज मुझे मना करते हैं वह मैं डेफिनेटली करती हूं और दूसरा तुम पढ़ाई में बहुत इंटेलिजेंट हो तुम्हारे साथ रहूंगी तो मेरा बहुत फायदा होगा फिर क्या मैं टॉपर बन जाऊंगी"
शौर्य ने बहुत सारी लड़की को देखी थी जब वह ऑस्ट्रेलिया रहते थे तब उसने बहुत सारी लड़कियों के साथ डेट भी किया था पर उसने ऐसी पागल बेवकूफ शैतान लड़की को नहीं देखा है यह लड़की शैतान की नानी आम्मा लग रही है और कितनी लालची है यह लड़की।
वही तभी उन दोनों के कान में एक और ठंडी आवाज आता है"यह क्या हो रहा है यहां पर?"
यह सुनकर वह दोनों सामने देखते हैं सामने हूं बहुत शौर्य जैसा दिखने वाला एक और लड़का है जिसने अपने एक हाथ को जेब में डाल कर रखा है बस उसके बाल थोड़े घुंघराले और कल थे बाकी सब कुछ एक जैसाहै।
जिसे देखकर वह काफी कन्फ्यूज हो जाती है। वही वह लड़का सूर्यांश है सूर्यांश उन दोनों के सामने आकर खड़ा हो गया था।
सूर्यांश को देखकर शौर्य गुस्से से कहता है"लड़की मुझे बहुत परेशान कर रही है इस ठिकाने लगा देते हैं आप गड्ढा खोलो मे इसे मार देता हूं और फिर दोनों मिलकर इस दफना देंगे किसी को पता भी नहीं चलेगा"
गौरी गुस्से से शौर्य को देखते हैं और कहती है"कहां तुमने मेरे ही सामने मेरे को ही मर्डर करने का प्लान बना रहे हो तुम दोनों मैं ही तुम दोनों को मार डालूंगी"
यह बोलकर वह गुस्से से उन दोनों को देखते हैं वही थोड़ी देर बाद उसे रिलाइज होता है कि यह दोनों बहुत लंबे-लंबे हैं और बहुत ज्यादा खतरनाक लग रहे हैं और इन दोनों खतरनाक लड़कों के सामने वह एक अकेली भोली भाली नई क्या करेगी। इन दोनों में सच में उसे मार डाला तो तब तो उसके टॉपर बनने का सपना तो छूट ही जाएगा।
और फिर उसका सपना है उसका हैंडसम बॉयफ्रेंड हो और फिर उसे उसके साथ ढेर सारा सेक्स करना है कितने सारे उसके सपने हैं फिर उसके साथ दुनिया घूमना है और फिर उसका बॉयफ्रेंड उसे ढेर सारा गिफ्ट खरीद के देगा और वह अपने बॉयफ्रेंड के लिए गिफ्ट खरीदेंगे और फिर सेक्स करेगी यह सोचकर वह उन दोनों भाइयों को देखकर अपने कान पर हाथ रखकर कहती है"अच्छा बाबा सॉरी सॉरी शौर्य मुझे माफ कर दो मैं और परेशान नहीं करूंगी तो मैं अगर तुम दोनों भाइयों ने मुझे मार डाला तो फिर मेरा सपना अधूरा रह जाएगा मेरा सपना है टॉपर बनने का और फिर एक हैंडसम सब बॉयफ्रेंड मुझे मिल जाए और उसके साथ में सेक्स करूंगी दिन रात और फिर घूमूंगी और भी बहुत सारे सपने हैं पर फिलहाल के लिए मुझे सेक्स करना है मरने से पहले मैं वर्जन नहीं मरना चाहती हूं। मैंने से पहले में एक बार एक बार एक्सपीरियंस करना चाहती हूं सेक्स कि सेक्स करके केसा लकता है "
वही उसकी ऐसी बात सुनकर शौर्य का मुंह खुला का खुला रह गया था वही सूर्यांश को बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता वह वहां से चला जाता है अब बस यहां पर शौर्य और गौरी ही थे।
उसकी बातों को साफ सुना था शौर्य ने इस लड़की ने सेक्स कहा है क्या यह लड़की सेक्स की भूखी है। वैसे वह खुद भी तो है।
वह कुछ देर तक गौरी को देखा है और फिर खुद को नॉर्मल करते हुए कहता है"ओके फाइन मैं तुम्हें एक कंडीशन पर नहीं मारूंगा तुम्हें जिंदा छोड़ दूंगा बोलो तुम तैयार हो मेरे साथ डील करने में"
यह सुनते हो जल्दी-जल्दी कहती है"मैं तुम्हारे साथ क्यों करूं डिल वैसे भी तुम मुझे बस डरा रहे हो मैं भाग जाऊंगी"
अगले ही पल शौर्य अपनी पीछे से एक बंदूक निकलता है जिसे देखकर वह डर से नीचे बैठ जाती है और बैठे हुए पीछे सरकते हुए कहती है"यह नकली है तुम मुझे नकली बंदूक से नहीं डरा सकते हो"
शौर्य उसके करीब आकर बैठ जाता है अपने घुटनों के बल और फिर एकदम से गोली चल देता है और जो चल भी जाता है वह डर जाती है और जल्दी-जल्दी कहती है"तुम तो एक सच में मेंटल लड़के हो पर मैं तैयार हूं बताओ क्या डील है"
शौर्य उसके गाल पर अपनी उंगली रखकर टाइप करके कहता है"good girl ज्यादा कुछ नहीं बस तुम मेरी गर्लफ्रेंड बन जाओ जब भी हम कॉलेज में रहेंगे तुम मेरी गर्लफ्रेंड रहोगी और मेरे साथ ही घूम होगी मेरी सारी बात मानोगी मैं जो बोलूं वही करोगी और मैं जहां पर बुलाओ वहां पर तुम आ जाओगी और सारी सारी बाते मानोगी"
उसकी बातें सुनकर काफी ज्यादा ही हैरान हो गई थी गौरी पर शौर्य के हैंडसम से चेहरे को उसके मस्कुलर बॉडी को और उसके सिक्स पैक आपको देखकर कुछ पल के लिए सोच कर वह हां कह देती है।
तो क्या होने वाला है इसके बाद? कैसा होगा जब तृषा को अपने बेटे की हरकतों के बारे में पता चलेगा? और क्या हो रहा है गौरी के साथ क्या गौरी एक मुश्किल में फंस गई है एक पागल इंसान के साथ एक गलत रिश्ते में बनने वाली है? वही तृषा के साथ क्या होने वाला है क्या करना चाहता है मेघांश तृषा के साथ? क्या एक नया रिश्ता जूरने वाला है तृषा और मेघांश के बीच में? जानने के लिए पढ़ते रहिए
मेरे कई रीडर पूछ रहे थे कौन सा मेन कैरेक्टर है समझ नहीं आ रहा है तो मैं बता देती हूं तृषा और मेघांश है मेन कैरेक्टर पर शौर्य और सूर्यांश भी मेन कैरेक्टर है और उनके हीरोइन तो होने वाले हैं अब आपका डाउट क्लियर हो चुका है ना और हां वेटिंग दे देना और कमेंट करके बताना आप कैसा लग रहा है और क्या रोमांस चाहिए और भी ज्यादा।
रात का वक्त
डिनर टेबल
तृषा और शौर्य और सूर्यांश तीनों ही मिलकर डिनर कर रहे थे डिनर करते हुए तृषा कहती है"आज का दिन कैसा गया तुम दोनों का?"
यह सुनकर वह दोनों एक दूसरे को देखते हैं और फिर शौर्य कहता है"भाई का पता नहीं पर मेरा काफी अच्छा गया है"
यह सुनकर तृषा कहती है"ठीक है कोई बात नहीं अच्छे से पढ़ाई करना इधर-उधर की चीजों पर ध्यान मत देना और पढ़ाई ही करना"
यह बोलकर वह उन दोनों को और खाना देने लगती है जिसे देखकर शौर्य मुंह बनाकर कहता है"मम्मी मुझे और नहीं खाना है अपने ढेर सारा खाना पहले ही दे दिया है"
यह सुनकर वह हंसते हुए कहती है"हां वह सब तो ठीक है बेटा पर मैं चाहती हूं मेरा बेटा थोड़ा हेल्दी हो जाए मुझे हेल्दी बच्चे बहुत पसंद है और तुम दोनों इतने दुबले पतले हो गए हो थोड़ा हेल्दी हो जाओ तो कितने प्यारे-प्यारे लगों के"
शौर्य अपना मसल देखते हुए कहता है"मैं लड़कियां पागल है मुझ पर मैं बहुत हैंडसम हूं और मुझे हेल्दी नहीं बनना है मैं ऐसे ही ठीक हूं"
यह सुनकर तृषा हंसती है और कहती है"मजाक कर रही थी चलो अब तुम दोनों जल्दी से अपने कमरे में जाओ और सो जाओ मुझे भी नींद आ रहा है कल ऑफिस भी जाना है"
वह दोनों हां कहते हैं और फिर कमरे में चले जाते हैं सोने के लिए तृषा भी अपने कमरे में आ जाती है बर्तन धोने के बाद और फिर बिस्तर ठीक करके बिस्तर पर लेट जाती है। और सोचने लगती है उन गहरी हरी आंखों के बारे में। तभी उसके सामने उसके दोनों बच्चों का चेहरा आ जाता है उन दोनों के आंखें भी तो बिल्कुल वैसी ही है खतरनाक कातिलाना गहरी हरि वह अपने हाथों की मुट्ठी बना लेती है और मन ही मन बोलती है"नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता है मैं ऐसा होने ही नहीं दूंगी ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता है ऐसा हो गया तो मेरा क्या होगा"
यह सोचकर वह डर से बिस्तर पर उठ कर बैठ जाती है वह सो ही नहीं पा रही थी डर की वजह से
और पूरी रात ऐसे ही जाकर बिता देता है
और अगले दिन बच्चों को नाश्ता करवा कर कॉलेज छोड़कर खुद भी ऑफिस के लिए निकल जातीहै।
ऑफिस पहुंच कर वह मिस्टर राजावत के केबिन के बाहर आकर रुक जाती है और फिर एक गहरी सांस लेकर खुद को शांत करवाने की कोशिश करते हुए धीमी आवाज में पूछता है" Sir, may I come in?"
अंदर से जवाब आता है"Yes"
वह डरते हुए अंदर आती है और अंदर जाकर वह सामने का नजारा देखकर थोड़ी घबरा जाती है और अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लेती है क्योंकि मेघवंश अपने सीट पर बैठा था और उसके गोद में एक लड़की बैठी हुई है जो मेघांश के पेंट के जीप को खोल रही है।
और वह दोनों काफी अजीब पोजीशन में बैठे हुए थे मेघांश का हाथ उस लड़की के कमर पर है।
और उन दोनों को देक कर ही ऐसा लग रहा है वह दोनों अभी फिजिकल होने वाले हैं और वह गलत टाइम पर आ गई है जिसे महसूस करके वह सॉरी बोलते हुए कहती है"माफ करना मैं जा रही हूं बाहर"
वही मेघांश एक झटके में लड़की को अपने गॉड से उठाकर नीचे पटक देता है और लड़की अपने कमर पर हाथ रखकर गुस्से से कहती है"यह तुमने सही नहीं किया और यह लड़की ऐसे वक्त पर यहां पर कैसे आ सकती है यहां पर हम दोनों अपना क्वालिटी टाइम स्पेंड कर रहे हैं कितने मुश्किल से हमें वक्त मिला है एक दूसरे के साथ वक्त बिताने का और इस लड़की ने सब बर्बाद कर दिया"
वही मेघांश बिना उसकी बातें सुन तृषा को देखते हुए अपनी ठंडी आवाज में कहता है"आज का शेड्यूल बताओ"
यह सुनकर तृषा थोड़ी नॉर्मल होती है और बिना पीछे मोर कहने लगती है पर उसकी यह हरकत देखकर मेघांश को गुस्सा आता है पर वहअपने गुस्से पर काबू करके ठंडी आवाज में बोलता है"क्या आपको मैं परमिशन दिया है ऐसे बोलने का सामने मुरी है"
यह सुनकर वह घबराते हुए सामने की तरफ मूर्ति है उसके दोनों गाल लाल हो चुके हैं उसकी आंखें भी हल्के लाल हो चुके हैं वह डरी हुई थी उसके होंठ कांप रहते वही उसके खूबसूरत प्यार से चेहरे को देखने के साथ ही साथ मेघांश का फीलिंग जागने लगता है।
मेघांश को खुद को समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा कैसे हो सकता है और ऐसा क्यों हो रहा है। क्या है इस लड़की में जो वह अट्रैक्ट हो रहा है इस लड़की की तरफ यहां तक कि कल पूरी रात वह सो नहीं पाया है इस लड़की के बारे में ही सोच रहा था यह लड़की पूरी तरीके से उसके दिमाग को कब्जे में कर रही है इसलिए मेघांश को काफी गुस्सा आ रहा था इस लड़की पर।
वहीं दूसरी वाली लड़की गुस्से से कहती है"बाहर जाओ यहां से हम दोनों अभी क्वालिटी टाइम स्पेंड कर रहे हैं"
यह सुनकर तृषा बाहर जाने लगती है जिसे देखकर मेघांश दांत पीसकर कहता है"मैंने आपको परमिशन नहीं दिया है बाहर जाने का और रेचल गेट आउट बाहर जाओ अभी"
यह सुनकर वह लड़की रेचल कुछ कहने वाली थी कि मेघांश अपने जेब से बंदूक निकलता है और गोली चल देता है जो गोली रेचल के हाथ को छूकर निकल जाता है और रेचल दर से अपनी आंखों को बंद कर लेती है। और जल्दी से अपने हाथ को पकड़ कर बाहर चली जाती है और जहां से वह गुजर रही थी वहां पर उसके हाथ से खून टपकता हुआ नीचे गिर रहा है ।
जिसे देखकर तृषा दर से पीछे हटने लगती है उसे समझ ही नहीं आए यह क्या हो गया इतनी जल्दी में यह आदमी सच में बहुत ज्यादा खतरनाक है इसलिए एक बार के लिए भी नहीं सोचा वह मर भी सकती है इसमें अंधाधुंध गोली चल दिया है ऐसा उसके साथ भी हो सकता है।
यह सोचकर ही डर से उसके हाथ पैर कांप रहते। वह पीछे हटने लगती है वही मेघांश अपने सीट से उठकर उसके करीब आने लगता है। मेघांश को अपने करीब आता देखकर वह और डर जाती है और भी ज्यादा पीछे हटने लगती है पर पीछे हटते हुए उसे महसूस होता है पीछे दीवार के अलावा और कुछ नहीं है वही मेघांश एकदम उसके सामने खड़ा है वह दूसरी साइड से जाने लगती है पर मेघांश दीवार पर हाथ रख देता है
तृषा मेघांश की दूसरी तरफ से जाने लगती हैजहां पर उसने हाथ नहीं रखा था पर मेघांश वहां पर भी अपना दूसरा हाथ रख देता है वह डर से नीचे बैठने लगते हैं मेघांश भी उसके साथ बैठने लगता है।
उधर से आंखों को बंद कर लेती है वही मेघांश अपने होठों पर अपने फिंगर को रखकर उसे चुप रहने का इशारा करके धीमी आवाज में बोलता है"शूश यहां पर जो हुआ वह पता नहीं चलना चाहिए किसी को आपसे यह तुम्हारे लिए नॉर्मल है और तुम मेरी security यह सब की आदत डालो। अभी बहुत कुछ देखना है तुम्हें आई होप तुम आदत डालोगे बहुतजल्दी"
यह बोलकर मेघांश उसकी कलाई को पकर उसे ऊपर खड़ा करता है मेघांश ने इतनी मजबूती से उसके कलाई को पकड़ा था उसे ऐसा लग रहा था उसकी कलाई टूट कर नीचे गिर जाएगा और वह मर जाएगी इतना दर्द हो रहा है वही मेघांश ने अभी तक नहीं छोड़ा था उसके कलाई को वह उसे पकड़ के अपने सीट के पास लेकर आता है और फिर अपने लाल आंखों से उसे देखकर मुस्कुराता है और फिर अपनी सीट पर जाकर बैठ जाताहै
वहीं अब तक तृषा की आंखों में आंसू आ चुके हैं बहुत दर्द से अपने हाथ को सहला रही थी उसके हाथ में पांचो उंगलियों के निशान पर चुके हैं और वह जगह लाल से काला पड़ने लगा है
पर सामने बैठे शैतान को बिल्कुल परवाह नहीं है उसकी ऐसी हालत का। तृषा को बहुत रोना आ रहा है अपनी हालत पर यह कहां फंस गई है वह वह क्यों आई है यहां पर इंटरव्यू देने की उसने इसी ऑफिस को ज्वाइन किया उसे अफसोस हो रहा है।
यह सब सोचते हुए वह अपने कलाई को सहला रही थी वही मेघांश अपनी ठंडी आवाज में फिर से कहता है"मेरे लिए कॉफी लेकर आओ"
यह सुनकर वह डरते हुए बाहर चली जाती है कॉफी लाने के लिए।
देखकर मेघांश अपना सर दूसरी तरफ कर लेता है
और उसके बाद हाथ में एक फाइल लेकर चेक करने लगता है।
वहीं कुछ देर बाद वह कॉफी लेकर अंदर आती है डरते हुए और फिर कॉफी को मेघांश के सामने रखकर धीमी आवाज में कहती है"सर आपकी कॉफी"
कहता है और फिर कॉफी के मग को उठाकर एक शिप लगाता है और अगले ही पल गुस्से से कहता है"बहुत गंदी कॉफी है क्या तुम्हें कॉफी तक बनाना नहीं आता है और इसमें शुगर भी नहीं है मुझे शुगर वाली कॉफी चाहिए"
यह सुनकर तृषा हैरान हो जाती है और कहती है"मुझे पता है सर आप शुगर वाली कॉफी पीते हो और मैं सब कुछ सही से डाला है"
यह सुनकर मेघांश खड़ा हो जाता है और कॉफी के मग को उसकी तरफ बढ़कर कहता है"खुद टेस्ट करके देख लो"
हैरान होकर कहती है"पर सर"
मेघांश बस अपनी लाल आंखों से उसे देखता है वह डर जाती है और कांपते हुए हाथों से कॉफी का मग लेकर एक्सेप्ट लगती है और डरी हुई आवाज में कहती है"सर सही है मुझे ठीक ही लग रहा है"
यह सुनकर मेघांश उसके हाथ से कॉफी लेकर जिस साइड से उसने पिया था इस साइज से पीते हुए कहता है"यह कुछ ज्यादा ही मीठा हो गया कोई बात नहीं"
यह बोलकर वह काफी को पीते हुए बैल करने की तरफ चला जाता है वही कुछ भी समझ नहीं आता तृषा को वह बस अपने बालों को खुजलाते हुए देखने लगती है
वही इन सब के बीच में कब मेघांश का मैनेजर ऋषभ अंदर आ गया था और यह सब देख रहा था यह सब देख भी रहा था वह और मन ही मन मुस्कुरा रहा है
ऋषभ मुस्कुराते हुए मेघांश ना देख ले वह जल्दी से बाहर चला जाता है और फिर किसी को कॉल करके कहता है"मालकिन मालकिन आपके लिए खुशखबरी है हमारा सर उन्होंने एक लड़की को पसंद किया है छोटी सी है पर बहुत प्यारी और खूबसूरत है और बहुत बेवकूफ है"
यह बोलकर वह सारी बातें बता देता है जो हुआ कुछ देर पहले कॉफी वाला इंसीडेंट
वही यह सब सुनकर उसे पर से कोई बहुत ही एक्साइटमेंट के साथ कहती है"तुम ना कुछ ऐसा करो जिससे वह दोनों करीब आ जाए और मस्त उन दोनों की शादी करवा दूं मैं चलो कम से कम अब पोते पोतियो का मुंह तो देखेंगे पूरे 56 का हो चुका है वह और अभी भी शादी नहीं कुछ भी नहीं भाई इतने सालों में हमें पोते पोती क्या पोते पोतियो के बच्चे भी देख लिए होते पर पोते पोते पर नहीं उसे तो इन सब में दिलचस्पी ही नहीं है पर अब लग रहा है शायद नसीब में होगा पोते पोतियो का चेहरा देखना"
वहीं दूसरी तरफ पूरा कॉफी खत्म करने के बाद मेघांश उसके करीब आता है और धीमी आवाज में पूछता है" शेड्यूल बताओ"
यह सुनकर वह अपने हाथ में पड़े फाइल को देखते हैं और बताने लगते हैं"3:00 आपका मीटिंग है मिस्टर गुप्ता के साथ और यह मीटिंग 1 घंटे का है और आज आपका बस यही एक मीटिंग है उसके बाद आप फ्री हो और दो दिन बाद USA निकालना है जहां पर टेंडर का काम हो रहा है उसे जगह को देखने के लिए और दो मीटिंग भी होने वाला है वहां पर बहुत जरूरी। "
मेघांश उसके हिलते हुए होठों को ही देख रहा था पर ऐसा नहीं कि वह उसकी बातों को नहीं सुन रहा है वह उसकी बातों को भी सुन रहा है वह जब चुप हो जाती है मेघांश कहता है"अपना भी सामान पैक कर लो तुम भी हमारे साथ जाओगी"
यह सुनकर वह घबराते हुए कहती है"सर पर मेरे बच्चे वह छोटे-छोटे हैं मैं उन्हें छोड़कर कैसे जा सकती हूं"
मेघांश कुछ देर तक उसे देखा है और फिर कहताहै"कंपनी से बेबी सीटर भेज देंगे तुम्हारे घर में और अब से मैं जहां पर भी जाऊंगा तुम्हें जाना पड़ेगा"
परेशान हो जाती है पर इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है वह शायद बहुत ही बुरी तरीके से फस गई है और इससे बचने का रास्ता बस यही है इसकी सारी बातें मानना वैसे भी उसके बच्चे समझदार है और पहले भी वह जाती थी मीटिंग्स में दो दिन के लिए 3 दिन के लिए पर एक हफ्ता कुछ ज्यादा ही हो जाएगा पर यह वक्त कभी ना कभी तो आना ही था।
इसलिए वह तैयार हो जाती है।
और उसके बाद 3:00 बजे मीटिंग अटेंड करती है मेघांश के साथ पूरा दिन मेघांश उसे बहुत परेशान करता है यहां तक की 20 बार काफी बनवाता है वह इतना थक चुकी थी इतना करने के बाद घर आकर वह बिस्तर पर लेट जाती है और सो जाती है थकान की वजह से उसने डिनर भी नहीं बनाया है।
दूसरी तरफ कॉलेज
खाली क्लासरूम
और उसी क्लास रूम के अंदर एक बेंच पर एक लड़का बैठा हुआ है और उसके गोद में एक लड़की बैठी हुई है वह दोनों एक दूसरे को किस करने में डूबे हुए थे।
वह लड़का पागलों की तरह उसे लड़की के होठों को चूम रहा था ठीक से देखने पर पता चल रहा है कि यह लड़का और कोई नहीं शौर्य है।
वही ऐसा करते हुए वह लड़की इतनी ज्यादा एक्साइटेड हो गई थी वह अपना हाथ शौर्य के लोअर बॉडी में रखता है और उसके पैंट का जीप खोलने की कोशिश करने लगती है पर शौर्य उसका हाथ पकड़ लेता है और फिर उसके हाथ को चूम कर कहता है"तुम्हारे पास प्रोटेक्शन तो है ना मेरे पास नहीं है"
वह लड़की शर्म आते हुए कहती है"नहीं मेरे पास भी नहीं है।"
यह सुनकर शौर्य मुंह बनाकर कहता है "देखो तो फिर मैं तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं ले सकता हूं। अगर तुम प्रेग्नेंट हो गई तो"
यह सुनकर वह लड़की शौर्य के होठों पर अपनी उंगली फेरते हुए कहती है"बेबी पहले हम एंजॉय कर लेते हैं ना उसके बाद बाद में कुछ सोच लेंगे एंजॉय मेन्ट बहुत ज्यादा मैटर करता है"
यह बोलकर वह शौर्य के होठों पर फिर से अपना होंठ रख देती है और उसके शर्ट के बटन खोलने लगती है वही शौर्य अभी उसके कमर को सहलाते हुए उसके स्कर्ट को ऊपरकर देता है और उसके थाई पर हाथ फेरने लगता है।
तभी वह लड़की शौर्य के होठों को छोड़कर अपने शर्ट के बटन खोलने लगती है शौर्य बस उसकी हरकतों को देख रहा था कुछ देर बाद वह लड़की पूरी तरीके से नेकड है शौर्य के सामने और शौर्य बस उसे देख रहा था।
शौर्य अपने गोद में फिर से बिठाकर उसके होठों को चूमने लगता है।
दूसरी तरफ गौरी और निशा दोनों ही कैंटीन में खाना खा रहे थे निशा कॉल पर बात करते हुए कहती है"ओके ठीक है मैं आ जाऊंगी"
यह बोलकर वह कॉल काट देती है और कहती है"गौरी क्या आज तू मेरा असाइनमेंट बना देगी मुझे एक जरूरी काम है मैं तुझे काफी सारा पानी पूरी खिला दूंगी और कल शाम को मैं तुझे डिनर पर भी लेकर जाऊंगी जो मर्जी वह कालेना"
यह सुनकर गौरी अपनी उंगली चाटते हुए कहती है"यह कोई पूछने की बात है मैं जरूर कर दूंगी तू बस मेरे को कल शाम को ले जाने के बारे में सोच कैसे ले जाएगी और जो मेरा मन करे में वह खाऊंगी नहीं रोकेगी।"
निशा हंसते हुए कहती है"अरे बाबा मैं नहीं रूकने वाली हूं अभी मैं चलती हूं और घर में ना बता देना कि मेरे को आने में लेट हो जाएगी"
बर्गर खाते हुए हां कहती है और फिर खाने लगती है।
तभी अचानक कोई उसके हाथ से बर्गर छीन कर उसके सामने ही बैठकर खाने लगता है वह हैरान होकर सामने वाले लड़के को देखते हैं यह शौर्य है।
जिसने उसका बर्गर छीन कर खा लिया था वह अपना खाना किसी और के हाथ में देखकर गुस्से से चिल्लाते हुए उसके करीब जाकर उसके गोद में बैठकर उसके कॉलर को पकड़ के झटके हुए कहती है"मेरा बर्गर बाहर निकालो तुम्हारी इतनी हिम्मत तुम मेरे बर्गर को खा लो खाना मेरे लिए बहुत इंपॉर्टेंट है मैं कुछ भी कर सकती हूं खाने के लिए तुमने मेरा खाना ले लिया है मैं तुम्हें जान से मार डालूंगी मैं तुम्हारा बर्गर बनाकर तुम्हें खा जाऊंगी"
बहुत ज्यादा प्यारी लग रही थी गुस्से में बिल्कुल पांडा जैसी उसके दोनों गाल लाल पड़ चुके थे गुस्से से वही उसका ऐसा गुस्सा देखकर शौर्य हंसते हुए उसके कमर को पकड़ लेता है और दूसरे हाथ से उसके पीठ को कमर को सहलाते हुए कहता है"calm down baby girl , मैं तो मजाक कर रहा था तुम इतनी बड़ी वाली भुक्कड़ हो मुझे पता नहीं है चलो तुम्हें जो खाना है ऑर्डर कर लो"
यह सुनकर वह गुस्से से कहती है"अगर नहीं देते तो मैं तुम्हें खा जाती बर्गर बनाकर यह बोलकर वह और भी बहुत सारा खाना ऑर्डर कर लेती है फिर कुछ सोच कर कहती है " पैसे कौन देगा"
शौर्य अपना क्रेडिट कार्ड निकलते हुए कहता है"मैं दे दूंगा बेबी गर्ल तुम बस मुझे किस करने देना खुद को "
यह सुनकर घूमने लगती है गाड़ियों से और फिर कुछ सोच कर तिरछा मुस्कुराकर कहती है"क्यों नहीं जरूर तुम एक लौटे पहले बॉयफ्रेंड हो मेरे अफ कॉर्स में तुम्हारी इच्छाओं को पूरी करूंगी राक्षस कही का"
आखरी बात को वह मन ही मन बोलती है वही उसका खाना आ जाता है और फिर वह खाने लगती है और शौर्य उसे खाते हुए देखने लगता है शौर्य को बड़ा मजा आ रहा था उसे खाते हुए देखना वही पूरा खाना खत्म करने के बाद वह पेट पर हाथ रखकर कहती है"अगली बार याद रखना ऐसा करने से पहले क्या हो सकता है तुम्हारे साथ बरा आया मुझे परेशान करने वाले"
यह बोलकर वह उठकर जाने लगती है शौर्य अभी उसके पीछे-पीछे जाने लगता है और फिर वॉशरूम के पास पहुंचकर शौर्य से पीछे से गले लगा कर कहता है"वादा किया था तुम मुझे किस करने दोगे"
यह सुनकर वह गुस्से से कहती है"हां मैंने बोला था पर अभी नहीं छुट्टी के वक्त"
शौर्य उसे दीवार से सताते हुए कहता है"बिल्कुल भी नहीं मुझे अभी चाहिए"
गोरी कुछ देर तक गुस्से से देखती है उसे और फिर उसके शर्ट के कॉलर को खींचकर उसे अपने करीब कर लेती है और शौर्य के होठों पर अपना होंठ रख देती है शौर्य भी उसके कमर को पकड़ के उसे ऊपर उठा लेता है और फिर उसे किस करने लगता है।
लेकिन अगले ही पर उसे अपने होठों पर बहुत ज्यादा दर्द महसूस होता है और नमकीन टेस्ट आने लगता है उसे और वह जल्दी से उसे खुद से अलग करके गुस्से से उसे देखा है उसके होठों पर वैंपायर की तरह खून लगा हुआ है गौरी हंसते हुए कहती है"मैंने जो किया सही किया इसी के ही लायक हो तुम"
असल में गोरी ने अपने दांतों से उसके होठों को बहुत ही बुरी तरीके से काट लिया था वही शौर्य गुस्से से अपने फोन को निकाल कर अपने होठों की हालत को देखा है और टिशू पेपर से उसे साफ करते हुए कहता है"बिलौटी कहीं की पागल जंगली बिल्ली अब मैं अपनी मम्मी को क्या जवाब दूंगा किस बिल्ली ने उसके प्यार मासूम से बेटे के होठों को खो गया! मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है तुम पर इसका बदला तो मैं लेकर रहूंगा तुमसे तुमने बस मेरे होठों को काटा है मैं तुम्हारे कहां-कहां कटुंगा यह तुम सोच भी नहीं सकते"
सुनकर गौरी स्टाइल के साथ अपने बालों को पीछे करते हुए कहती है"तुम नहीं तो कहा था कि करने को तो मैं भी अपने अकॉर्डिंग किसका किया मजा तो बहुत आया मुझे"
यह बोलकर वह जीव दिखा कर भाग जाती है और शौर्य बस उसे देखा है और वह भी उसके पीछे-पीछे भागने लगता है वह दोनों ही कुत्ते दिल्ली की तरह भाग रहे थे भागते हुए शौर्य एकदम से उसे पकड़ लेता है और उसे अपनी बाहों में उठाकर घूमते हुए कहता है"मैंने तुम्हें पकड़ लिया अब कहां भागोगी मेरी जंगली बिलौटी"
यह सुनकर गौरी हंसते हुए कहती है"अरे अरे रुको मेरा सर घूम रहा है मैं बेहोश हो जाऊंगी"
तभी आसपास के सभी स्टूडेंट एंड प्रोफेसर सब भागने लगते हैं वह सब किसी साइड जा रहे थे जिसे देखकर गौरी हैरान हो जाती है और कहती है"शौर्य शौर्य रुको रुको क्या हो रहा है सब कहां जा रहे हैं!"
यह सुनकर शौर्य उसे छोड़ देता है और फिर दोनों भी इस साइड चलने लगते हैं वहीं आसपास काफी सारे पुलिस थे और उसे जगह को पूरी तरीके से भर दिया गया था सुनने में आ रहा है कि एक लड़की का किसी ने मर्डर कर दिया है जो इसी कॉलेज की स्टूडेंट है यहां तक की उसके बदन पर एक भी कपड़ा तक नहीं था बहुत ही बुरी तरीके से उसे मारा गया है।
यह सब सुनने के बाद गौरी का सर घूमने लगता है और गौरी बेहोश हो जाती है हालांकि उसने कुछ देखा नहीं था यह सब सुनने के साथ ही साथ ऐसा हो गया था वही शौर्य उसके पीछे खड़ा था उसे बाहों में थाम लेता है और अब सबका ध्यान गौरी पर चला गया हैसारे प्रोफेस अभी वहां पर आ जाते हैं।
कुछ घंटे बाद गौरी धीरे-धीरे आंखें खोलता है उसे अपने हाथों पर किसी का हाथ महसूस होता है वह देखती है तो उसके बगल में शौर्य बैठा हुआ है उसका हाथ पकड़ के।
तभी मिस मोनालिसा जो की इसी कॉलेज की एक प्रोफेसर है वह गौरी के पास आकर कहती है"तुम ठीक तो होना अभी तुम्हारी तबीयत कैसा है"
गौरी डरते हुए कहती है"कैसे हो सकता है मुझे बहुत डर लग रहा है"
यह सुनकर मिस मोनालिसा कहती है"शौर्य क्या तुम गौरी को उसके घर छोड़ सकते हो आज निशा भी नहीं है असल में गोरी काफी ज्यादा डर जाती है यह सब सुनकर वह यह सब हैंडल नहीं कर पाती है अभी सब चेक किया जा रहा है कि ऐसा कैसे हो गया पर तुम गौरी के सेफ्टी के लिए उसे घर छोड़ दो"
यह सुनकर शौर्य हां कहता है।
उसके बाद वह गौरी को लेकर बाहर आ जाता है वही गौरी काफी डरी हुई थी उसने काफी कस कर शौर्य का हाथ पकड़ के रखा है जैसे की शौर्य के हाथ छोड़ने के साथ ही साथ कोई उसे भी आकर मार डालेगा।
वही शौर्य उसे डरा हुआ देखकर अजीब तरीके से मुस्कुराता है फिर उसे अपनी गोद में उठाकर अपने बाइक पर बिठाते हैं और खुद हेलमेट पहन कर बाइक में बैठ जाता है और उसके हाथों को अपने सीने पर रखकर कहता है"थोड़ा संभल कर बैठना क्योंकि मुझे स्लो ड्राइविंग करने की आदत नहीं है"
गौरी गुस्से से कहती है"में बहुत ज्यादा डरी हुई हूं ऊपर से तुम ऐसे बोल रहे हो कितना ज्यादा डरावना इंसिडेंट हुआ है आज मुझे बहुत डर लग रहा है और तुम्हें बिल्कुल डर नहीं लग रहा है पता नहीं किसने उसे बेचारी के साथ ऐसा किया होगा अगर उसका अगला टारगेट मैं हो गई तो मैं क्या करूंगी? बहुत सारी कहानियां पड़ा है ऐसे बहुत सारे साइकोपैथ लोग होते हैं जो ऐसा कर देते हैं लड़कियों के साथ"
शौर्य अजीब तरीके से अपने गर्दन पर हाथ फेर कर कहता है"क्या पता वह पागल तुम्हें मारने आए और तुम्हें देखकर तुम्हारे प्यार में पागल हो जाए और तुम्हें मारने के अलावा सब कुछ कर डाले तुम्हारे साथ"
यह सुनकर वह गुस्से से कहती है"ऐसी कैसी बात कर रहे हो पागल कहीं कि मुझे तुम पर बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा है तुमने ऐसी बात करना बंदकरो! बहुत डर लग रहा है मुझे"
यह बोलकर वह शौर्य की पीठ पर अपना सर छुपा लेती है और उसे कसकर पकड़ लेती है वही शौर्य यह महसूस करके गहरी सांस छोड़कर कहता है"थोड़ा आराम से अगर तुम ऐसे ही मुझे पकड़ के रखोगी तो फिर 9 महीने के लिए तुम चलने की हालत में नहीं रहोगी"
शौर्य की ऐसी बातें सुनकर वह गुस्से से कहती है"पागल लड़का कैसे-कैसे बात कर रहे हो चलो जल्दी से घर चलो मुझे घर जाना है मैं 10 दिन तक कॉलेज नहीं आऊंगी!तव तक जिसने मर्डर किया है उसे पकड़ नहीं लेते"
यह सुनकर शौर्य हैरान होकर कहता है"नहीं आओगे तो मेरा क्या होगा मैं किसके साथ टाइम पास करूंगा?"
उसकी बातें सुनकर गोरी थोड़ी नॉर्मल होती है और मजाक करते हुए कहती है"मेरे घर के दीवार को फान कर किसी हीरो की तरह मेरे कमरे में आ जाना और वहां पर हम दोनों टाइम पास करेंगे"
यहबोलकर हंसने लगती है वही शौर्य उसके हंसी में ही खो गया था। और अजीब तरीके से उसे देख रहा था
क्या होने वाला है इसके बाद? किसने किया है उस लड़की का मर्डर? और जो लड़की शौर्य के साथ में थी वह लड़की कौन है? क्या कनेक्शन है शौर्य का और इन सब का? क्या होगा जब तृषा को यह सब पता चलेगी? और क्यों मेघांश तृषा को देखकर इतना अट्रैक्ट हो गया है? क्या कवि मेघांश और तृषा एक हो पाएंगे? क्या होगा जब तृषा की सच्चाई मेघांश को पता चलेगा? और क्या उसे खूनी का अगला शिकार गोरी होने वाली है? जानने के लिए पढ़ते रहिए
घर से कुछ ही दूरी पर आकर गौरी ने शौर्य से गाड़ी रोकने को कहा। शौर्य हैरान होकर गाड़ी रोका और गौरी उतरते हुए बोली, "इसके आगे तक मैं खुद ही चली जाऊँगी।"
शौर्य ने उसका हाथ पकड़कर कहा, "मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ।"
पर गौरी ने उसे जाने का इशारा करते हुए कहा, "नहीं, सब गलत समझेंगे, जो मैं बिल्कुल नहीं चाहती हूँ। इसलिए तुम अभी यहाँ से जाओ!"
यह सुनकर शौर्य ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा, उसके पतले से कमर को पकड़ लिया और कहा, "ठीक है, चली जाना, पर उससे पहले एक किस चाहिए मुझे। उसके बाद ही मैं तुम्हें जाने दूँगा।"
शौर्य की बातें सुनकर गौरी ने एक गहरी साँस लेकर कहा, "ठीक है, पर जल्दी करना।"
यह सुनकर शौर्य जल्दी से उसके होठों पर अपने होठ रखकर उसे चूमने लगा। गौरी बस वैसे ही खड़ी रही। काफी देर बाद शौर्य उसके होठों को छोड़कर उससे दूर हुआ और कहा, "कल कॉलेज टाइम से आ जाना, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होने वाला है।"
यह सुनकर गौरी परेशान होकर बोली, "मैं नहीं आ सकती हूँ। तुम कैसी बात कर रहे हो? मैं दस दिन तक कॉलेज नहीं आऊँगी। प्लीज़, दस दिन तक मैनेज कर लो और मेरी हालत को समझने की कोशिश करो।"
उसकी बातें सुनकर शौर्य गुस्से से बोला, "मैं सब कुछ समझता हूँ और सब कुछ समझने की कोशिश भी कर रहा हूँ। बस तुम नहीं समझ रही हो। चाहे कुछ भी हो जाए, तुम्हें आना होगा। अब मुझे नहीं पता तुम आओगी या नहीं आओगी, पर तुम्हें आना होगा, वरना मैं तुम्हारे घर में आ जाऊँगा।"
गौरी गुस्से से बोली, "मैं कॉलेज नहीं जाऊँगी। तुम आ जाना मेरे घर में।"
यह बोलकर गौरी वहाँ से भाग गई और शौर्य मुस्कुराते हुए गाड़ी को देखने लगा। फिर बाइक लेकर घर की ओर निकल पड़ा।
कुछ देर बाद वह घर पहुँचा। वहीं, तृषा तक यह खबर पहुँच चुकी थी। उन दोनों को घर में देखकर तृषा हैरान होकर बोली, "तुम्हारे कॉलेज में मर्डर हुआ है और अब तो मुझे डर लग रहा है। तुम दोनों को छोड़कर मैं कैसे जाऊँ? मैं तुम दोनों को छोड़कर नहीं जा सकती हूँ! पता नहीं कैसा होगा सब कुछ, क्या पता मेरे छोड़कर जाने के बाद कुछ हो जाए, इसलिए मैं नहीं जाने वाली हूँ।"
उसकी बातें सुनकर शौर्य पीछे से उसे गले लगाकर बोला, "माँ, क्यों फ़िक्र करती हो? कुछ नहीं होने वाला है। हम दोनों बड़े हो चुके हैं, हम बच्चे नहीं हैं। आप बस हमें बच्चे समझती हो। आप आराम से इन्जॉय करो, घूमो-फिरो और हमारे लिए प्यारा सा पापा ढूँढो, आपकी तरह। और हम आपके लिए बहुत ढूँढेंगे, बहुत ही प्यारी सी।"
की बातें सुनकर तृषा बिना हँसे रह नहीं पाई। वह हँसकर बोली, "पागल कहीं के तुम दोनों! सच में अपना ख्याल रखोगे ना?"
शौर्य ने उसके हाथ को पकड़कर कहा, "मम्मी, यकीन करो, हम रख लेंगे अपना ख्याल। आप बिल्कुल फ़िक्र मत करो। आप क्यों इतना फ़िक्र करती हो?"
यह बोलकर वह मुस्कुराने लगा। वहीं, तृषा सामान्य हुई और उसके बाद जाकर अपना सामान पैक करने लगी। घबराहट तो उसे काफी हो रहा था क्योंकि सुबह जो मेघांश ने उसके साथ किया था, वह उसे अभी भी याद था। क्या वह सुरक्षित रहेगी उसके साथ जाकर?
यह सोच-सोच कर उसका दिमाग खराब हो रहा था, पर जाना तो था। और अगर उसके बच्चों को यह सब पता चल गया तो फिर पता नहीं क्या ही हो जाएगा।
यह सोचते-सोचते वह सारा सामान पैक कर लेती है, क्योंकि अगले दिन उसे निकलना भी तो था। और यही सोचते-सोचते पूरी रात वह सो नहीं पाई। और सुबह जल्दी उठकर फ्रेश होकर तैयार हो गई। अब तक शौर्य और सूर्यांश भी उठकर तैयार हो गए थे।
तृषा टैक्सी में बैठते हुए बोली, "सच में तुम दोनों अपना ख्याल रख लोगे ना, अच्छे से?"
शौर्य बोला, "मम्मी, क्यों फ़िक्र करती हो? हम रख लेंगे। डोंट वरी।"
यह सुनकर तृषा कुछ सोचकर बोली, "केयरटेकर आने वाला है, तुम दोनों का ख्याल रखने के लिए और खाना बनाने के लिए। इसलिए उसे ज़्यादा परेशान मत करना। बस अपने काम से काम रखना। मुझे पता है तुम लोगों को पसंद नहीं है कोई बाहर वाला, पर क्या कर सकते हैं?"
यह सुनकर शौर्य मुँह बनाकर बोला, "अच्छा, ठीक है। फ़िक्र मत करो, हम सब कुछ संभाल लेंगे। आप ज़्यादा ही फ़िक्र करती हो, मम्मी। इतना फ़िक्र करना बंद करो, सब कुछ ठीक है। अभी आप जाओ, वरना और लेट हो जाओगे। और लेट हो जाओगे तो बहुत परेशानी हो जाएगी।"
यह सुनकर तृषा हाँ कहती है और फिर ड्राइवर टैक्सी शुरू करता है और वहाँ से चला जाता है। वहीं, दोनों ही जाते हुए टैक्सी को देख रहे थे। उसके बाद दोनों घर में आ जाते हैं और कल मर्डर की वजह से एक हफ़्ते के लिए कॉलेज बंद है, तो वे दोनों कॉलेज जा भी नहीं सकते हैं।
वे दोनों बस अंदर आए ही थे कि अचानक कोई दरवाज़ा खटखटाने लगा। वे दोनों ही हैरान हो जाते हैं कि इस वक्त कौन आया है। फिर शौर्य जाकर दरवाज़ा खोलता है और कुछ कहने वाला ही था कि सामने का नज़ारा देखकर उसका मुँह खुला का खुला रह जाता है।
सामने एक लड़की खड़ी थी, जिसने व्हाइट शर्ट और ब्लैक हॉट पैंट पहन रखा था और अपने बालों को पोनीटेल में बाँध रखा था। उसके खूबसूरत सफ़ेद टाँग चमक रहे थे और उसने ब्लैक बूट पहन रखे थे। उसके बाल सुनहरे थे, उसकी आँखें गहरी काली, होठों पर लिपस्टिक और हाथों में एक खूबसूरत सा पर्स था।
उसे देखकर शौर्य हैरान होकर पूछता है, "आप कौन हैं?"
लड़की शौर्य को सर से लेकर पैर तक देखकर, खुद की ओर अपने हाथों से ही हवा करते हुए कहती है, "अरे, तुम तो बहुत हॉट हो! और मैं तो बेबीसीटर हूँ। मुझे बॉस ने भेजा है बेबीसिटिंग करने के लिए। बेबीज़ कहाँ पर हैं?"
यह बोलकर वह इधर-उधर देखने लगती है। तभी उसे अंदर सूर्यांश दिखता है। वहीं शौर्य अपना सिर पकड़ लेता है। उसे समझ आ जाता है शायद उसकी माँ ने कुछ ऐसे बोला होगा कि सच में उन्हें वह दोनों भाई बच्चे लगने लगे थे। इसलिए शौर्य बेबीसीटर की गलतफहमी दूर करते हुए कहता है, "देखिए, गलतफहमी हुई होगी। मम्मी तो ऐसा ही करती हैं। उनके लिए हम बच्चे हैं, हालाँकि हम बच्चे नहीं हैं, हम बड़े हैं और बेबीज़ भी हम ही हैं।"
यह सुनकर वह अंदर आते हुए कहती है, "तुम दोनों तो हॉट बेबी हो!"
यह बोलकर वह इधर-उधर देखते हुए कहती है, "किचन कहाँ पर है?"
यह सुनकर शौर्य उसकी ओर बढ़ते हुए कहता है, "उधर है।"
यह सुनकर वह उसकी ओर चली जाती है और शौर्य मुस्कुराते हुए इसके पीछे-पीछे चला जाता है। वहीं सूर्यांश को बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं है इन सब में। वह अपने कमरे में चला जाता है। कमरे में जाकर किताब लेकर बैठ जाता है।
वहीं इधर शौर्य किचन में आकर दरवाज़ा बंद कर देता है और पीछे से उसको पकड़ लेता है। और वह लड़की भी उसके हाथ पर हाथ रखकर मुस्कुराकर कहती है, "लगता है बेबीज़ को बहुत सारा प्यार चाहिए।"
यह सुनकर वह उसके गले पर अपने होठों को फेरते हुए कहता है, "हाँ, मुझे बहुत सारा प्यार चाहिए। वैसे अच्छा किया बेबीसीटर भेजकर। एक हफ़्ते तक बेबीसीटर हमारा काफी अच्छे से ख्याल रखेगी, हर तरीके से, है ना?"
यह सुनकर वह लड़की शौर्य को खुद से थोड़ा दूर करते हुए कहती है, "देखो बेबी, ख्याल तो अपना तेरा रखेगी, पर हर तरीके से नहीं। और अगर अपना को लगा कि ज़रूरत है हर तरीके से लगने की, तो फिर अपना ज़रूर करेंगे।"
यह बोलकर वह अजीब तरीके से अपने होठों को दांतों से वाइट करती है। असल में शौर्य को पहली नज़र में ही देखते ही साथ ही साथ बेबीसीटर को शौर्य पसंद आ गया था।
वहीं शौर्य को भी एक नया खिलौना मिल चुका है खेलने के लिए। हाँ, उसे खिलौना चाहिए होता है जो इंडिया में आने की वजह से नहीं मिल रहा था उसे, और अब हाथ में एक खिलौना आ गया है।
वह बेबीसीटर उन दोनों भाइयों के लिए नाश्ता बनाती है। नाश्ता बनाने के बाद वह नाश्ता लगाती है और दोनों ही भाई नाश्ता कर लेते हैं। सूर्यांश नाश्ता करके अपने कमरे में चला जाता है, जिसे देखकर वह बेबीसीटर हैरान होकर शौर्य से पूछती है, "तेरा भाई क्या बोल नहीं सकता है? इतना अजीब क्यों है? अपना को लगा हम तीनों एक साथ एन्जॉय करेंगे, एक ही बेड पर। पर तेरे भाई को देखकर लगता नहीं है कि वह करेगा।"
यह सुनकर शौर्य हँसते हुए कहता है, "हाँ, वह ऐसे ही है। वह ज़्यादा किसी से बात नहीं करता। पर वह बोल सकता है। उन्हें पसंद नहीं है बात करना और उन्हें इन सब चीज़ों में दिलचस्पी नहीं है। पर मुझे है। हम दोनों एन्जॉय कर लेंगे, क्या हो जाएगा? वैसे भी तुम मेरे को अकेले हैंडल कर ही नहीं पाओगी। अगर मेरा भाई आ गया तो तुम तो मर जाओगी।"
यह सुनकर वह हँसते हुए शौर्य की गोद में आकर बैठ जाती है और फिर शौर्य के हाथ को अपने सीने पर रखकर मुस्कुराकर कहती है, "चलो, पूरा दिन प्यार करते हैं। बेड से नहीं उठाएंगे, पूरा दिन। पूरा दिन हम प्यार करेंगे, थोड़ा सा भी नहीं उठाएंगे। इतना सारा प्यार करेंगे कि..."
शौर्य उसकी बातें सुनकर हँसते हुए कहता है, "हाँ, वह तो हम ज़रूर करेंगे, ढेर सारा प्यार।"
यह बोलकर शौर्य उसे बाहों में उठाकर अपने कमरे में ले जाता है।
उधर, सूर्यांश सीढ़ियों के पास खड़ा अपनी आवाज़ को थोड़ा भारी करके कहता है, "क्या कर रहे हो?"
शौर्य के कदम रुक जाते हैं और वह एक गहरी साँस लेकर कहता है, "भाई, आप भी जॉइन हो सकते हो हमारे साथ। कोई वो नहीं है। पर मेरे रोमांस में खलल मत डाला करो। हर बार आपका यही होता है। इसे नहीं, इसे छोड़ दो।"
सूर्यांश उसके करीब जाकर उसकी आँखों में देखता है और अजीब तरीके से अपने माथे पर दो उंगलियों से मसलते हुए कहता है, "नहीं, अब नहीं।"
शौर्य परेशान होकर कहता है, "ठीक है भाई, पहले मैं थोड़ी एन्जॉय तो कर लेता हूँ। उसके बाद बात करेंगे। शक हो जाएगा सबको। आप क्यों ऐसा करते हो?"
कुछ घंटे बाद शौर्य बाथटब के पास बैठा हुआ था, अपने घुटनों में सिर छुपाकर। और पूरे बाथटब का पानी लाल हो चुका था। नीचे भी लाल रंग का तरल पदार्थ गिरा हुआ था।
शौर्य बस चुपचाप बैठा हुआ था। तभी अपने हाथ को साफ़ करते हुए सूर्यांश उसके पास आता है और अपनी ठंडी आवाज़ में कहता है, "दस मिनट हैं। दस मिनट में सब क्लीन हो जाना चाहिए।"
शौर्य गुस्से से कहता है, "आप क्यों ऐसा कर रहे हो? खुद तो सब कुछ बर्बाद कर रहे हो, अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर रहे हो, मेरी भी ज़िंदगी बर्बाद करने में तुले हुए हो। कभी ना कभी मैं मम्मी को सब बता दूँगा। आप बहुत गलत कर रहे हो भाई।"
सूर्यांश अपनी ठंडी आँखों से कुछ देर तक उसे देखता है और फिर एक-एक करके कदम बढ़ाकर उसके पास आता है। शौर्य पीछे हटने लगता है। अगले ही पल वह शौर्य का गला पकड़ लेता है और उसे ऊपर उठा देता है। अपने एक हाथ से ही उसका गला पकड़कर। शौर्य दर्द से उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर, दाँत पीसकर कहता है, "अभी भी आपकी भूख नहीं मीठी है ना?"
सूर्यांश अपनी ठंडी आवाज़ में कहता है, "अपना मुँह बंद रखो और जो बोला है वह करो।"
यह बोलकर वह शौर्य को छोड़ देता है और वॉशरूम से बाहर चला जाता है। वहीं शौर्य बस गुस्से से उसे देखता है और फिर पूरा वॉशरूम क्लीन करने लगता है। वह शॉवर ऑन करता है और फिर उसे नीचे की ओर ले जाकर वह सारा लाल तरल पदार्थ धोने लगता है।
कुछ ही देर में वह पूरा वॉशरूम क्लीन कर लेता है और फिर अपना शर्ट उतारकर साइड में फेंक देता है और शॉवर ऑन करके उसके नीचे खड़ा हो जाता है, अपने दोनों हाथ दीवार पर रखकर।
वहीं दूसरी ओर गौरी जो अपने कमरे में बैठी गेम खेल रही थी, उसने एक सफ़ेद कुर्ती और सफ़ेद स्कर्ट पहन रखा था, जिस पर गुलाबी फूल बने हुए थे। अपने बालों को उसने खुला छोड़ दिया है। उसके बाल गीले थे। वह बिल्कुल ताज़ा गुलाब की तरह लग रही है।
पूरे कमरे में भीनी-भीनी खुशबू छाया हुआ है, जो गौरी से ही आ रहा है। वह गेम खेलने में बिजी थी अपने मोबाइल में। तभी एक मैसेज आता है जिसमें लिखा है, "मैं तुम्हारे घर के सामने हूँ। मिलने आओ मुझसे!"
मैसेज को देखकर वह बहुत घबरा जाती है और आस-पास देखने लगती है। फिर वह फ़ोन को साइड में फेंककर खिड़की खोलकर रास्ते को देखती है, जो उसके घर के पीछे वाला रास्ता है। वहाँ पर बाइक लेकर कोई खड़ा है, जिसका चेहरा नहीं दिख रहा है क्योंकि उसने ब्लैक हेलमेट पहन रखा है।
इतना तो उसे समझ आ गया था कि यह और कोई नहीं, शौर्य ही है। वह जल्दी से अपना फ़ोन हाथ में लेती है और मैसेज करती है, "पागल कहीं के! मैं कैसे आ सकती हूँ? पापा घर में हैं, मम्मी घर में हैं, सब घर में हैं, पूरा खानदान मेरे घर में आया है। मैं कैसे जा सकती हूँ तुमसे मिलने? तुम आज चले जाओ, कल आना।"
उसका मैसेज पढ़कर शौर्य कुछ देर तक उसके वाली खिड़की को देखता है और फिर बाइक लेकर चला जाता है। जिसे देखकर एक चैन की साँस लेती है गौरी। उसे ऐसा लग रहा था अब बला टल गया। पर तभी उसे महसूस होता है कि वह हवा में उड़ रही है। वह डर से पीछे की ओर सिर घुमाकर देखती है तो शौर्य ने उसे अपनी बाहों में उठा लिया है। यह इतनी जल्दी यहाँ पर कैसे आ गया और कहाँ से आया?
यह सोचकर वह हैरान होकर पूछती है, "तुम यहाँ पर कैसे आ गए हो? पागल कहीं के! तुम्हें डर नहीं लग रहा है क्या? मेरे पूरे खानदान मेरे घर में हैं। वे सब तुम्हारी जान ले लेंगे। यहाँ से चले जाओ, वरना मैं तुम्हारी जान ले लूँगी और कोई कुछ सबूत भी नहीं ढूँढ पाएगा।"
की बातें सुनकर शौर्य उसके कान में धीरे से कहता है, "दरवाज़े से अंदर आया हूँ मैं। तुम्हारे घर में कोई है ही नहीं। तुम मुझसे झूठ बोलना बंद करो। तुम्हें लगता है तुम्हारा झूठ सुनकर मैं डर जाऊँगा? मैं सब कुछ पता करवा लिया है। तुम्हारे मम्मी-पापा, तुम्हारा पूरा खानदान, तुम्हारे किसी कज़िन की शादी में गया है।"
अपना चोरी पकड़े जाने के साथ ही साथ वह गुस्से से कहती है, "तुम्हें ऐसी-वैसी लड़की थोड़ी हूँ जो अपने कमरे में किसी लड़के को बुला लूँगी? मेरे घर में कोई नहीं है इसलिए। पागल कहीं के! जाओ यहाँ से। अगर किसी ने हमें देख लिया तो मैं तुम्हें मार डालूँगी उनके सामने ही।"
उसकी बातें सुनकर शौर्य उसे गाल चूमकर कहता है, "नहीं, तुम मेरे साथ कुछ नहीं कर सकती हो। अभी तुम्हें मेरी बात मानना होगी। चलो मेरे साथ अभी।"
यह बोलकर शौर्य उसे बिस्तर पर फेंक देता है और फिर लाइट ऑफ़ करके उसके ऊपर आकर लेट जाता है और उसे गले लगा लेता है और उसके सीने पर सिर रखकर अपनी आँखें बंद कर लेता है। इसे महसूस करके वह हैरान हो जाती है।
वहीं शौर्य सुकून के साथ अपनी आँखें बंद करके लेटा हुआ था, जैसे उसे दुनियाँ-जहाँ का सुकून मिल गया है।
उसे काफी अच्छा लग रहा है उसके सीने पर सिर रखकर सोना। यह कितना ज़्यादा सुकून देने वाला है! इतना सुकून उसे और कहाँ मिलेगा?
यह सोचकर वह बस उसके सीने पर सिर रखकर लेटी रही। और न जाने क्यों गौरी को भी बुरा नहीं लग रहा था। उसे भी अच्छा लग रहा है शौर्य का ऐसा उससे मिलने आना, उसके ऊपर ऐसे लेट जाना। उसका मन कर रहा था शौर्य को पकड़कर उसके होठों को चूमने लगे, पर वह अपने डिजायर पर काबू करके अपने मन में कहती है, "नहीं-नहीं, मैं एक प्यारी लड़की हूँ। मैं ऐसे गंदे-गंदे काम नहीं करती हूँ। यह सब गंदा-गंदा काम मुझ पर सूट नहीं करता है। यह सब गंदा-गंदा काम मेरे लिए नहीं बना है। मैं यह सब बिल्कुल नहीं करने वाली हूँ।"
यह सोचते हुए वह शौर्य को अपने ऊपर से हटाने की कोशिश करती है। वहीं शौर्य यह महसूस करके गुस्से से कहता है, "अगर तुमने थोड़ा और ऐसा किया ना, मैं तुम्हें जान से मार डालूँगा।"
सुनकर वह घबरा जाती है। भला, भरी जवानी में कौन ही मरना चाहेगा? इसलिए वह शांत हो जाती है।
वहीं दूसरी ओर सूर्यांश लकड़ी के कुर्सी पर बैठा हुआ है, अपने सिर पर कलाई रखकर। उसकी आँखें बंद हैं और उसके सामने टेबल पर एक किताब है।
तभी हवा का झोंका आता है और किताब के पन्ने उड़ने लगते हैं। वह अपनी आँखें खोल देता है और फिर किताब को देखता है। उसके बाद पन्नों को समेटकर पेपरवेट से ढककर रख देता है और इधर-उधर देखता है, पर उसे शौर्य कहीं नहीं मिलता है।
वह अपना फ़ोन निकालता है और शौर्य की लोकेशन को देखता है।
पता चल जाता है शौर्य कहाँ पर है। वह बाहर आ जाता है और अपनी बाइक लेकर निकल पड़ता है शौर्य की तलाश में।
वहीं दूसरी ओर शौर्य पूरी तरीके से गहरी नींद में डूब चुका है गौरी की बाहों में। और गौरी गेम खेलते हुए दूसरे हाथ से उसके बालों को सहला रही थी।
शौर्य सोते हुए किसी मासूम बच्चे से कम नहीं लग रहा है। उसे शौर्य पर काफी ज़्यादा प्यार आ रहा है।
पर वह खुद को कंट्रोल करने के लिए गेम खेल रही है। तभी कुछ टूटने की आवाज़ होती है और वह बालकनी की ओर देखती है। वहाँ पर कोई खड़ा था। वह डर जाती है और शौर्य को दूर धक्का देकर कहती है, "कोई आया है यहाँ पर।"
यह सुनकर शौर्य उठ जाता है और फिर उसकी ओर देखता है और तुरंत वह समझ जाता है कि कौन आया है। वह गौरी को अपने पीछे करके कहता है, "मैं अभी घर जा रहा हूँ। तुम आराम करो।"
क्या होने वाला है इसके बाद? क्या हो रहा है शौर्य के साथ यह सब? और क्या करना चाहता है सूर्यांश शौर्य को टॉर्चर करके? कैसा होगा जब तृषा को पता चलेगा अपने दोनों बच्चों के बारे में? या फिर तृषा को पहले से ही सब कुछ पता है अपने बच्चों के बारे में? और क्या शौर्य का दूसरा शिकार गौरी बन जाएगी? या फिर शौर्य और गौरी एक-दूसरे के प्यार में गिर जाएँगे? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
शौर्य गुस्से में सूर्यांश का कॉलर पकड़ लिया और झटके से उसे परे धकेलते हुए कहा, "उससे दूर रहो! अगर तुम्हें शिकार करना है, तो खुद ढूंढो। क्यों मेरे शिकार के पीछे पड़े रहते हो? भाई, मम्मी की वजह से वैसे ही मुश्किल से मौका मिलता है, और जब मिलता है, तो तुम बीच में आ जाते हो। खुद तो कुछ करते नहीं, बस दूसरों के रास्ते में आते हो—आलसी कहीं के!" सूर्यांश ने उसके दोनों हाथ कसकर पकड़ लिए और उसे अचानक ही एक पेड़ से सटाकर, उसकी गर्दन के पास अपना चेहरा लाकर गुस्से में कहा, "मैं तुमसे बड़ा हूँ, तमीज से बात करो! क्या पता, मम्मी का बस एक ही बेटा बचा रहे। वैसे भी, अगर एक बेटे को कुछ हो जाता है, तो मम्मी को इतना फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि दूसरा तो रहेगा ही।" सूर्यांश की यह बात सुनकर शौर्य का गुस्सा और बढ़ गया। उसने पूरी ताकत लगाकर उसे धक्का दिया, फिर खुद उसका गला पकड़कर कहा, "बिल्कुल सही कहा तुमने! पहली बार तुमने सच बोला। मम्मी को सच में कोई फर्क नहीं पड़ेगा अगर एक बेटा खत्म हो जाए… तो अब तैयार हो जाओ!" यह कहते ही शौर्य ने गुस्से में सूर्यांश के गाल पर जोरदार मुक्का जड़ दिया। सूर्यांश ने भी तुरंत उसके सीने पर घूंसा मारा। शौर्य दर्द से कराहते हुए अपने सीने पर हाथ रखा; उसके मुँह से खून टपकने लगा। यह देखकर उसका गुस्सा और भड़क गया। उसने तेजी से अपना पैर उठाकर सूर्यांश के पेट में जोरदार लात मारी, जिससे सूर्यांश नीचे गिर गया। लेकिन वह भी तुरंत उठकर शौर्य की पीठ पर लात जड़ दी। दोनों भाई बुरी तरह एक-दूसरे से लड़ रहे थे। तभी अचानक एक लड़की की कड़क आवाज गूंजती है, "क्या कर रहे हो तुम दोनों? शौर्य, तुम्हारे मुँह से खून निकल रहा है!" वह घबराकर अपने स्कर्ट को दोनों हाथों से पकड़ती हुई तेजी से दौड़ती हुई शौर्य के पास आई। फिर सूर्यांश के सामने खड़ी होकर अपने दोनों हाथ फैलाकर गुस्से में बोली, "अपने ही भाई को क्यों मार रहे हो? देखो, कितना घायल कर दिया है उसे! तुम कितने बुरे भाई हो! क्या तुम्हें बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ेगा अगर तुम्हारे भाई को कुछ हो जाए? पागल हो तुम दोनों!" इतना कहकर वह तुरंत शौर्य की तरफ मुड़ी और उसे कसकर गले लगा लिया। शौर्य ने भी उसे अपने सीने से लगा लिया। यह सब देखकर सूर्यांश को यह सारा ड्रामा बकवास लगने लगा, और उसका चेहरा चिढ़ से बिगड़ गया। कुछ देर बाद, गौरी अपने दुपट्टे से शौर्य के मुँह से निकल रहे खून को धीरे-धीरे साफ करने लगी। शौर्य बस चुपचाप उसके गुलाबी होठों को देखता रहा। गौरी गुस्से से बोली, "क्यों लड़ते रहते हो अपने भाई से, पागल कहीं के! वो कितना खतरनाक है, अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो? तब मैं एग्जाम में पास कैसे करती? तुमसे नोट्स कौन मांगता? इतनी इंटेलिजेंट हो, तुम्हारी कॉपी करके शायद मैं प्रधानमंत्री भी बन सकती हूँ! और अगर तुम ही नहीं रहोगे, तो मेरा क्या होगा? मैं फेल हो जाऊँगी! सोचो, अगर मैं फेल हो गई तो? पता नहीं मेरे घरवाले क्या करेंगे—हो सकता है जबरदस्ती किसी पागल से शादी करवा दें, जो मुझे नौकरानी बनाकर रखे! यह सोचकर ही डर लग रहा है। शुक्र है, सही वक्त पर मैं आ गई!" गौरी की यह बातें सुनकर शौर्य ने उसकी कमर पकड़कर उसे अपनी गोद में बिठा लिया और मुस्कराते हुए कहा, "मुझे एक किस चाहिए! कर दो ना, प्लीज़… बहुत मन कर रहा है!" यह सुनकर गौरी तुरंत उसकी गोद से उठकर खड़ी हो गई और गुस्से में बोली, "मैं तुम्हें झाड़ू और डंडे से पिटूँगी! यहां मेरी जान निकली जा रही है, और तुम्हें सिर्फ किस की पड़ी है! भगवान ने तुम्हें इतना अच्छा दिमाग दिया है, तो पढ़ाई करो, कुछ बनो, देश का नाम रोशन करो! लेकिन नहीं… तुम्हें तो सिर्फ भाई से लड़ना है!" गौरी गुस्से में उसकी चोट को ध्यान से साफ करती है, फिर उसके गाल पर पट्टी लगाकर उसे पानी पकड़ाते हुए बोली, "जल्दी से पानी पी लो और चुपचाप घर चले जाओ! और हाँ, भाई से फिर कभी मत लड़ना। कुछ ही देर में मेरे मम्मी-पापा आने वाले हैं, मैं तुम्हें ज्यादा देर यहां नहीं रोक सकती। मेरी मजबूरी को भी समझो!" दूसरी ओर, पूरे दिन की यात्रा के बाद तृषा आखिरकार अपने कमरे में पहुँची। वह बेहद थक चुकी थी और उसे अब सिर्फ एक अच्छी नींद की जरूरत थी। उसे आराम करना था, क्योंकि अगली सुबह उसे टेंडर के लिए निकलना था। यही सोचकर वह जल्दी सो गई। अगली सुबह तृषा जल्दी उठकर तैयार हो चुकी थी। उसे पहले एक मीटिंग के लिए निकलना था और उसके बाद टेंडर की साइट देखने जाना था। पूरी तरह तैयार होकर वह मेघांश के असिस्टेंट के साथ उसके कमरे के सामने खड़ी हो गई और उसका इंतजार करने लगी। इसी बीच, मेघांश अपनी शर्ट की बाजू को कोहनी तक मोड़ते हुए दरवाजा खोलकर बाहर आया। तृषा ने अपना सिर उठाकर उसे देखा। मेघांश ने अभी भी अपने चेहरे पर मास्क लगा रखा था, जिसे देखकर तृषा नाक-भौं चढ़ाते हुए असिस्टेंट के कान में धीरे से कहा, "इसे इतनी एलर्जी है क्या कि दिनभर मास्क पहनकर रखना है?" यह सुनकर असिस्टेंट हँसते हुए कहा, "यह बहुत जरूरी है! जब हम बाहर जाएँगे, तब मैं भी मास्क पहन लूँगा। तुम भी पहन लेना, क्योंकि यह सुरक्षा के लिए है। तुम्हें समझ नहीं आएगा!" तभी मेघांश आगे बढ़ते हुए गंभीर स्वर में कहा, "क्या तुम दोनों को अपनी जगह का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं है?" यह सुनते ही तृषा और असिस्टेंट घबरा गए और चुपचाप उसके पीछे-पीछे चलने लगे। मीटिंग हॉल में पहुँचते ही तृषा ने अपना प्रेजेंटेशन देना शुरू कर दिया। वह पूरे आत्मविश्वास के साथ प्रोजेक्ट के बारे में विस्तार से समझाती रही। सभी लोग प्रोजेक्ट की योजना और टेंडर की बारीकियों को देखकर प्रभावित हो रहे थे। स्क्रीन पर प्रोजेक्ट की डिटेल्स दिखाई जा रही थीं, जिसमें यह भी बताया जा रहा था कि टेंडर पूरा होने के बाद यह कैसा दिखेगा। अंत में, तृषा आत्मविश्वास से बोली, "आप सबका निवेश यहाँ बिल्कुल व्यर्थ नहीं जाएगा!" यह सुनकर सभी लोग ताली बजाने लगे। सभी को पूरा यकीन था कि यह प्रोजेक्ट सफल होगा, और क्यों न हो? आखिर, मेघांश राजावत इस टेंडर के मालिक थे, और मेघांश राजावत जिस प्रोजेक्ट को हाथ लगाते थे, वह सफलता की ऊँचाइयों तक जरूर पहुँचता था। यहाँ मौजूद लोग खुद को भाग्यशाली मान रहे थे कि वे इस टेंडर का हिस्सा थे। साइट विजिट मीटिंग खत्म होने के बाद, सभी पार्टनर्स और मेघांश तृषा के साथ साइट पर जाने के लिए निकले। करीब एक घंटे की यात्रा के बाद वे वहाँ पहुँचे और देखा कि टेंडर का काम बहुत ही व्यवस्थित तरीके से हो रहा था। इसी दौरान, एक इन्वेस्टर, जो इस टेंडर में निवेश कर रहा था, कब से तृषा को देख रहा था। उसे तृषा बहुत पसंद आ गई थी। वह धीरे-धीरे तृषा के पास आया, अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए मुस्कुराकर कहा, "Hello!" तृषा ने भी हल्के से मुस्कुराते हुए अपना हाथ आगे बढ़ाकर उससे हाथ मिला लिया। वह आदमी तृषा की ओर देखते हुए बोला, "You are so beautiful!" यह सुनकर तृषा हल्का सा शरमा गई और धीमे स्वर में बोली, "Thank you!" अचानक, वह इन्वेस्टर तृषा का हाथ पकड़कर उसे हल्के से चूम लिया और मुस्कुराते हुए पूछा, "क्या आज रात आप फ्री हैं? क्या हम साथ में डिनर कर सकते हैं?" तृषा थोड़ी झिझकते हुए जवाब दिया, "Yes, sure!" यह तृषा के लिए कोई नई बात नहीं थी। वह पहले भी कई लोगों के साथ डिनर पर जा चुकी थी, लेकिन इन मौकों पर वह हमेशा अनकंफर्टेबल महसूस करती थी। उसने कई बार यह कोशिश भी की कि उसे कोई ऐसा इंसान मिले जो उसकी जिंदगी का सच्चा साथी बन सके, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। फिर भी, जब भी ऐसे मौके आते थे, वह उन्हें ठुकराती नहीं थी, इसलिए उसने इस बार भी हाँ कह दिया। दूसरी तरफ… थोड़ी ही दूरी पर मेघांश खड़ा था। उसके हाथ में एक वाइन का गिलास था, जो अचानक से उसके हाथों से गिरकर चकनाचूर हो गया। उसकी आँखें गुस्से से लाल हो चुकी थीं, और उसकी मुट्ठियाँ इतनी कसकर भींची हुई थीं कि उसकी हथेलियों से खून बहने लगा। गिलास टूटने की तेज़ आवाज़ सुनकर तृषा तुरंत पीछे मुड़ी। जब उसने मेघांश के खून से सने हाथों को देखा, तो उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। वह घबराते हुए उसकी ओर भागी, उसका हाथ पकड़ा और बेचैनी से उसके चेहरे की ओर देखने लगी। धीमी और चिंतित आवाज़ में वह पूछी, "यह कैसे हुआ? कितना खून बह रहा है…!" यह सुनकर वह अचानक झिझकते हुए अपने हाथ पीछे कर लिया और बिना उसकी तरफ देखे वहाँ से चला गया। तृषा को यह देखकर अजीब सा डर महसूस हुआ। उसे समझ नहीं आता था कि उसने ऐसी कौन सी गलती कर दी कि वह आदमी इस तरह चला गया। क्या फिर से कुछ अनहोनी होने वाली है? यह सोचकर ही उसके दिल में एक अनजाना डर बैठ गया। उसे इतना तो समझ आ चुका था कि अब कुछ न कुछ जरूर होने वाला है, और वह भी काफी ज्यादा खतरनाक। पूरा दिन किसी अनजाने डर में बीत गया। अब तो उसे रात में विवान के साथ जाने का भी मन नहीं था। इतनी जल्दी में उसने उसका नाम पूछना तक भूल गई थी, यहाँ तक कि अपना नाम भी नहीं बताया था। लेकिन अब, जब एक बार हाँ कह दिया है, तो जाना तो पड़ेगा। शाम का समय तृषा होटल लौटी और सीधे अपने कमरे में चली गई। वहाँ पहुँचते ही वह शॉवर लेने चली गई। शॉवर लेने के बाद, वह अपने बालों को सुखाते हुए बाहर आई और फिर अलमारी से कपड़े निकालने लगी। जब उसने देखा, तो पाया कि उसने ज्यादा अच्छे कपड़े लाए ही नहीं हैं। बस दो जोड़ी सलवार सूट—एक आसमानी रंग का, एक पीले रंग का—और एक लाल रंग की साड़ी थी। इसके अलावा, दो ब्लेज़र भी थे। कुछ सोचकर उसने तय किया कि आज लाल रंग की साड़ी पहनेगी। साड़ी निकालकर रख देने के बाद, उसने कुछ स्नैक्स ऑर्डर किए और लैपटॉप लेकर काम करने लगी। काम करते-करते 8:30 बज गए। जब उसने घड़ी देखी, तो जल्दी से तैयार होने लगी। वह जल्दी-जल्दी साड़ी पहनी, फिर अपने बालों को हल्के से कर्ल कर नीचे छोड़ दिया। वह अभी मेकअप करने ही वाली थी कि अचानक अंधेरा हो गया। बिजली चली गई थी। "इतना बड़ा और महंगा होटल... यहाँ बिजली कैसे जा सकती है?" तृषा मन ही मन सोचती रही। तभी दरवाजे के खुलने की आवाज आई। दरवाजा थोड़ा सा खुला... और फिर अचानक से बंद हो गया। तृषा डर से अपने आप में सिमटने लगी। वह धीमी आवाज में पूछी— "कौन है? कौन आया है?" पर कोई जवाब नहीं आया। अचानक, किसी ने उसकी कलाई पकड़ ली और उसे ड्रेसिंग टेबल की तरफ घुमा दिया। फिर, पीछे से उसकी कमर से होते हुए, किसी ने उसके पेट को पकड़ लिया। उसके गर्दन पर किसी ने अपना सिर टिका दिया और उसकी गरम-गरम साँसें उसकी गर्दन पर महसूस होने लगीं। इस परफ्यूम की खुशबू तृषा के लिए अजनबी नहीं थी। वह बहुत अच्छे से जानती थी कि यह खुशबू किसकी है। उसके मुँह से बस एक ही नाम निकला— "मेघांश सर... आप?" "हाँ, मैं।" यह कठोर आवाज सुनते ही, उसका शक पूरी तरह से सच साबित हो गया। तृषा धीरे-धीरे अपने छोटे हाथों को उसके बड़े हाथों पर रखा और डरते हुए बोली— "यह आप क्या कर रहे हैं? छोड़िए मुझे... जाने दीजिए। मेरे साथ ऐसा मत कीजिए।" मेघांश गुस्से से उसके बालों को मुट्ठी में पकड़ लिया और एक झटके से उसे अपनी तरफ घुमा दिया। उसका चेहरा तृषा के चेहरे के बेहद करीब आ गया। "तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई उसे 'हाँ' कहने की?" "क्या तुम सच में उसके साथ डिनर डेट पर जाने वाली थीं?" तृषा डरते हुए बोली, "हाँ, मैं जाने वाली हूँ। मैंने उनसे वादा किया है। अब छोड़िए मुझे! आप मुझे रोकने वाले कौन होते हैं? आप मुझे ऐसे रोक नहीं सकते!" यह सुनकर मेघांश को जैसे और गुस्सा आ गया। वह एकदम से उसे अपनी बाहों में उठा लिया और बेड पर ले जाकर पटक दिया। तृषा डर गई और डरते हुए पीछे हटने लगी। तभी अचानक लाइट आ गई। इसे देखकर, मेघांश निराश होकर लाइट बंद कर दी और ब्लू नाइट लाइट ऑन कर दी। ब्लू लाइट की हल्की रोशनी में वह देख पा रही थी कि मेघांश अजीब तरीके से अपने बालों को पीछे कर रहा था। "अब क्या? क्या यह आदमी मुझे मारने वाला है?" तृषा के मन में ख्याल आया, "यह होता कौन है मेरे साथ यह सब करने वाला? मेरा इससे कोई रिश्ता नहीं है!" यह सोचकर वह गुस्से से चिल्लाते हुए बोली, "आपका और मेरा कोई रिश्ता नहीं है! आप मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते! आप क्यों मेरे साथ ऐसा कर रहे हैं? प्लीज़, मुझे जाने दीजिए! मैं लेट हो रही हूँ!" यह सुनकर, मेघांश बेल्ट को अपने हाथ में अजीब तरीके से घुमाने लगा। फिर उसने अपने घुटने को बेड पर रखा... फिर दूसरा घुटना भी। फिर घुटनों के बल चलते हुए उसके करीब आया। तृषा डर से पीछे हटने लगी, लेकिन अब पीछे कुछ नहीं था। तभी, मेघांश ने अचानक अपने बेल्ट को ज़ोर से हवा में लहराया। डर से तृषा ने अपने कानों पर हाथ रख लिए और कांप गई। इसे देखकर, मेघांश हल्का सा मुस्कुराया। फिर, उसने उसके दोनों पैरों को पकड़कर उसे ज़बरदस्ती बेड पर लिटा दिया। तृषा घबराते हुए सहारा लेने के लिए ब्लैंकेट को कसकर पकड़ लिया। वहीं, मेघांश उसके ऊपर बैठ गया। फिर, गुस्से से उसका जबड़ा पकड़कर बोला, "तुम उसके साथ नहीं जा सकती! समझ गई? या तुम्हें अच्छे से समझाऊँ?" यह सुनकर, तृषा रोते हुए बोली, "आप मुझे रोकने वाले कौन होते हैं? किस हक़ से मुझे रोक रहे हैं? और क्यों मेरे साथ इतनी गंदी हरकत कर रहे हैं?" "मैं आपकी वाइफ नहीं हूँ जो आप मेरे साथ यह सब कर रहे हैं!" "मैं रिज़ाइन करना चाहती हूँ! मुझे यह जॉब नहीं चाहिए!" "मुझे जाने दीजिए! छोड़ दीजिए!" यह कहते हुए, वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। यह देखकर, मेघांश गुस्से में आ गया। वह एक झटके से तृषा के गाल पर ज़ोरदार थप्पड़ मार दिया। फिर, उसके बालों को और कसकर पकड़कर बोला, "अगर इसी तरह रोती रही, तो मैं तुम्हें इसी तरीके से चुप कराऊँगा! अब चुप रहो... चुपचाप!" थप्पड़ इतना दर्दनाक था कि तृषा का सिर एक पल के लिए घूम गया। वह आधी बेहोशी की हालत में चली गई। तभी, उसका फोन बजने लगा। फोन की आवाज़ सुनकर, वह होश में आई और अपने फोन को ढूंढने के लिए हाथ बढ़ाने लगी। यह देखकर, मेघांश ने तुरंत उसका फोन उठा लिया। फिर, उसने फोन को साइलेंट पर डालकर गुस्से से उसके कान में फुसफुसाया, "जो मैं बोलूँगा, वही तुम बोलोगी... और अगर तुमने वैसा नहीं कहा..." इतना कहकर, उसने अपनी पीठ के पीछे से बंदूक निकाल ली। फिर, उसने बंदूक को तृषा के होंठों के बीच रखते हुए कहा, "तो फिर मैं तुम्हें अभी गोली मार दूँगा!" तृषा को समझ नहीं आ रहा था कि यह आदमी उसके साथ ऐसा क्यों कर रहा है। पर वह बहुत बड़ी मुसीबत में फंस चुकी थी। इससे बचने का एक ही तरीका था— "जो यह चाहता है, वह कर दो!" "ठीक है! मैं मना कर दूँगी डिनर डेट के लिए!" यह सोचकर, उसने हल्के से सिर हिला दिया। मेघांश ने कॉल रिसीव किया और स्पीकर ऑन कर दिया। फोन से विवान की आवाज़ आई, "स्वीटहार्ट, तुम कहाँ हो? मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ!" यह सुनकर, मेघांश ने अपने हाथ की मुट्ठी कस ली। पर खुद के गुस्से को काबू करते हुए, उसने कॉल को म्यूट कर दिया। फिर, गुस्से से तृषा को देखते हुए बोला, "इससे बोलो... मैं अपने हसबैंड के साथ हूँ और मैं तुम्हारे साथ डेट पर नहीं जा सकती! मुझे भूल जाओ!" यह सुनकर, तृषा हैरान रह गई। पर जैसा मेघांश ने कहा था, वह वैसा ही कहने लगी, "सॉरी विवान, मैं आपके साथ डेट पर नहीं जा सकती... मैं अपने हसबैंड के साथ हूँ। आप मुझे भूल जाइए।" विवान फोन के दूसरी तरफ चौंक गया। वह कुछ देर के लिए अपना फोन देखता रहा। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था कि उसने जो सुना, वह सच है। "क्या सच में यह लड़की शादीशुदा है?" "लेकिन... इसे देखकर तो ऐसा नहीं लग रहा था!" फिर, वह दोबारा पूछता है, "क्या तुम सच बोल रही हो? तुम शादीशुदा हो?" मेघांश ने फिर से कॉल म्यूट किया और गुस्से से कहा, "इससे बोलो कि मैं अपने हसबैंड के साथ हूँ और मैं उसके साथ इंटीमेट हो रही हूँ। मुझे डिस्टर्ब मत करो!" यह सुनकर तृषा ने अपने मुँह पर हाथ रख लिए और गुस्से से बोली, "यह कैसी बातें कर रहे हो? इतनी गंदी-गंदी बातें आप कैसे कह सकते हैं? मैं ऐसा नहीं बोलने वाली हूँ...!" यह कहते-कहते, वह रुक गई। क्योंकि मेघांश ने फिर से अपनी बंदूक निकाल ली थी। अभी फिलहाल के लिए, उसे अपनी जान प्यारी थी। इसलिए, वह जल्दी से बोली, "देखो, मैं अभी अपने हसबैंड के साथ इंटीमेट हो रही हूँ। डिस्टर्ब मत करो।" यह कहते ही, उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। फोन के दूसरी तरफ, गुस्से से विवान ने कॉल काट दिया। फिर, गुस्से में फोन ज़मीन पर पटककर तोड़ दिया। इधर, मेघांश ने तृषा का फोन साइड में फेंक दिया और फिर उसके करीब आकर, उसके चेहरे के बिल्कुल करीब अपना चेहरा ले आया। उसने उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में भर लिया। फिर उसकी उँगलियों में अपनी उँगलियाँ उलझाकर, धीरे-धीरे उसके होंठों को अपने होंठों में भरकर चूमने लगा। तो अब क्या होने वाला है इसके बाद? मेघांश तृषा के साथ ऐसा क्यों कर रहा है? क्या मेघांश तृषा से प्यार करने लगा है? क्या तृषा के किसी और के करीब जाने से उसे जलन होती है? क्या होगा जब शौर्य और सूर्यांश को यह सब पता चलेगा? और क्यों मेघांश हमेशा अपना चेहरा ढककर रखता है? क्या आज रात वह सारी मर्यादाएँ पार कर देगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए...
मेघांश अभी भी उसके ऊपर झुका हुआ था, और तृषा डरते हुए उसे देख रही थी।
कुछ देर बाद, मेघांश उसके ऊपर से हट गया और पास रखी कुर्सी को घसीटकर बेड के करीब ले आया। वह कुर्सी पर बैठ गया, अपने दोनों पैर बेड पर रखे, और फिर अपनी जेब से सिगार का पैकेट निकालकर उसमें से एक सिगार निकाला। उसने उसे सुलगाया और धुआं छोड़ने लगा। वह धुआं तृषा की ओर उड़ाने लगा, जिससे तृषा खांसते हुए दूर हटने लगी।
उसे इस तरह सहमे हुए देखकर मेघांश ने दांत पीसते हुए कहा, "चुपचाप वैसे ही बैठी रहो!"
इसके बाद, वह लगातार धुआं उड़ाता रहा। कुछ ही देर में उसने पूरा सिगार खत्म कर दिया, और अब पूरे कमरे में धुआं भर चुका था। तृषा को सांस लेने में तकलीफ होने लगी।
कुछ देर बाद, तृषा का फोन, जो फर्श पर गिरा हुआ था, अचानक बजने लगा। उसे देखकर तृषा धीरे-धीरे उठने की कोशिश करने लगी, तभी गुस्से से भरी मेघांश की आवाज उसके कानों में गूंजी—
"चुपचाप बैठी रहो! मैंने तुम्हें उठने की इजाजत नहीं दी!"
फोन अब भी बज रहा था। मेघांश ने गुस्से में उसे घूरा। कुछ देर बाद, फोन अपने आप बंद हो गया, लेकिन फिर दोबारा बजने लगा। करीब पाँच बार बजने के बाद आखिरकार कॉल कट गई।
मेघांश ने गुस्से में फोन उठा लिया। जैसे ही उसने फोन कान से लगाया, उधर से किसी की आवाज आई—
"आप कहां हैं? मैं कब से कॉल कर रहा हूं! आप तो वहां जाकर हमें बिल्कुल भूल ही गए!"
वह आवाज गहरी, आकर्षक और आत्मविश्वास से भरी थी। इसे सुनकर मेघांश की उंगलियां कस गईं। उधर, तृषा घबराते हुए उसे देख रही थी। वह जल्दी से उठी और झपटकर उसके हाथ से फोन ले लिया।
जल्दी से फोन कान से लगाकर उसने कहा—
"मैं तुमसे बाद में बात करूंगी, अभी बहुत काम है, बिजी हूं। कल कॉल करना!"
यह कहकर उसने फोन काट दिया और उसे साइलेंट पर डाल दिया।
तृषा का ऐसा करना देखकर मेघांश की भौंहें तन गईं। वह तुरंत उसकी ओर झुका और उसका जबड़ा पकड़कर दांत पीसते हुए बोला—
"कितने आशिक हैं तुम्हारे? कौन था वह, जिसने तुम्हें कॉल किया था? आवाज से तो कोई लड़का लग रहा था!"
तृषा डर के मारे कुछ कहने की कोशिश करने लगी, लेकिन उसके मुंह से कोई आवाज नहीं निकली। वह बताना चाहती थी कि वह उसका बेटा है, लेकिन इतना डर चुकी थी कि कुछ भी बोल नहीं पा रही थी।
तृषा की चुप्पी ने मेघांश को और भड़का दिया। गुस्से से उसने अपने शर्ट के बटन खोलते हुए कहा—
"बहुत शौक है ना तुम्हें नए-नए मर्दों के पास जाने का? आज तुम्हारी ये प्यास मैं बुझाता हूं! वैसे भी, मैं जानता हूं, तुम जैसी औरतों को क्या चाहिए!"
अब तृषा भी गुस्से में आ गई। उसने तमतमाते हुए कहा—
"आप कैसी बातें कर रहे हैं? मैं कुछ नहीं बोल रही हूं, इसका मतलब यह नहीं कि आप मेरे बारे में जो चाहें, वह कह सकते हैं!"
उसे इस तरह गुस्से में देखकर मेघांश ने झटके से उसके बाल पकड़ लिए और दहाड़ते हुए कहा—
"चुप करो! अगर दोबारा मेरे सामने ऐसी बातें कीं, तो मैं तुम्हें जान से मार डालूंगा!"
इतना कहकर उसने तृषा की साड़ी का पल्लू खींचकर उसके सीने से हटा दिया और उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए।
तृषा छटपटाने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, कैसे बचे।
वह इस स्थिति से निकलने की कोशिश कर ही रही थी कि अचानक उसके दिमाग में 22 साल पुरानी एक याद कौंध गई। वह रात, वह खौफ, वही परफ्यूम की खुशबू, सबकुछ वैसा ही था—बिल्कुल वैसा ही।
वह मेघांश के सीने पर हाथ रखकर उसे दूर हटाने की कोशिश करती है पर मेघांश उसके ऐसे खुद को दूर हटता पाकर और भी गुस्से में आ जाता है और उसके कमर को पकड़ के और खींच लेता है उसे अपने करीब और फिर उसके गर्दन को चूमते हुए और नीचे आने लगता है।
वही उसे ऐसा करता पाकर तृषा जैसे थक चुकी थी अब उसे ऑन नहीं हो रहा है उसे अपने पूरे बदन में इतना दर्द महसूस हो रहा है एक तो वह छोटी सी थी इस भारी आदमी के सामने ऊपर से वह काफी कमजोर भी है यहां तक की ठीक से उसे आज खाना खाने का मौका भी नहीं मिला था।
उसकी हालत अब काफी खराब हो चुका है वही मेघांश सिर्फ उसे चूम रहा था उसे व्हाइट भी कर रहा है उसके पूरे गर्दन पर लव बाइट के निशान पर चुके थे।
उसकी गोरी सफेद बर्फ जैसी स्किन अब लाल पड़ चुकी है। वही मेघांश उसके पूरे गर्दन पर लव वाइट देने के बाद नीचे उसके कमर के पास झुकता है और उसकी गोरी पतली सी कमर को देखा है फिर अपने हाथ को उसके कमर पर फेरने लगता है।
तृषा बस वेशूद होकर लेटी हुई थी उसे समझ आ गया था अब बचने का कोई रास्ता नहीं है यह आदमी जो चाहता है वह करके ही रहेगा अब वह बिल्कुल बच नहीं पाएगी शायद आज वह इस आदमी का शिकार बन जाएगी।
वही मेघांश काफी देर तक उसके पेट पर अपनी उंगलियों से हाथ फेरने के बाद एकदम से उसके पेट को अपने ही गर्म हो तो उसे चूमने लगता है। वही तृषा अपनी आंखों को बंद कर लेती है और कंबल को मुट्ठियों में भेज लेती है और गहरी गहरी सांस लेने लगती है और उसके ऐसा करने से उसका सीना ऊपर नीचे हो रहा है।
तृषा की धड़कनों को और उसकी हर बार आहट को महसूस करते हुए मेघांश अपने सर को उठाकर उसके सीने को देखता है फिर धीरे-धीरे अपने होठों को और ऊपर ले जाने लगता है और ऐसा करते हुए वह उसके सीने तक पहुंच नहीं वाला था कि वह उसके चेहरे पर हाथ रखकर उसके चेहरे को दूर हटाने की कोशिश करते हुए कहती है"प्लीज ऐसा मत करिए मेरे दो बच्चे हैं आप मेरे साथ गलत कर रहे हो मेरे साथ ऐसा मत करो मैं वैसे औरत नहीं हूं जैसा आप समझ रहे हैं अगर आपको यह सब करना है तो आप वैसी औरत के पास चली जाओ जो पूरा करेगा आपका हवस एस पर मेरे साथ ऐसा मत करिए"
उस की ऐसी बातें सुनकर मेघांश एक पल के लिए शांत हो जाता है और अगले ही पल वह उसके साड़ी को खींचकर उतार कर फेंक देता है और उसके पेटीकोट को ऊपर करके उसके थाई पर हाथ फेरते हुए कहता है"नहीं बिल्कुल नहीं आज मैं तुम्हारा हवस मिटा कर ही रहूंगा उसके बाद तुम्हें दूसरे मर्दों के पास जाने की जरूरत नहीं है"
यह बोलकर वह उसके थाई पर हाथ फेरते हुए अपने हाथ को ऊपर लाने लगता है।
उसके ऐसा करने से अब वह लाचारी से अपनी आंखों को बंद कर लेती है वह बेहोश होना चाहती है अगले पल जो होने वाला है वह नहीं देखना चाहती है ऐसा तो वह कभी चाहती ही नहीं थी उसे भी तो प्यार चाहिए था सच्चा प्यार जो उसका ख्याल रखें अपना ख्याल रखें ना कि उसके साथ जबरदस्ती करें बिना उसके मर्जी के यह बहुत ज्यादा नीचे गिरा हुआ हरकत है उसने सपनों में भी नहीं सोचा था कि उसका बॉस उसके साथ ऐसा कुछ करेगा आज के बाद शायद वह किसी को मुंह दिखाने की हालत में नहीं रहेगी। लास्ट टाइम फिर भी जो हुआ था वह हल्के नशे में थी कहीं ना कहीं वह भी चाहती थी पर इस बार वह नहीं चाहती है ऐसे तो बिल्कुल भी नहीं।
सामने वाले आदमी को कहां परवाह है वह काफी देर तक उसके थाई को चूमने के बाद एकदम से अपने शर्ट को खोलने लगता है फिर अपने शर्ट को खोलने के बाद वह उसके ऊपर आ जाता है ।
और उसके बाद उसके दोनों छोटे-छोटे हाथों को अपने बड़े-बड़े हाथों में भर लेता है और फिर उसके उंगलियों के साथ अपने उंगलियो को उलझा कर उसके होठों के करीब आने लगता है।
और फिर उसके होठों के करीब आकर बिना वह देर किए उसके होठों के ऊपर अपने होठों को रखकर उसके होठों को धीरे-धीरे चूमने लगता है और धीरे धीरे से कब वह वाइल्ड हो गया वाइल्ड किस करने लगा उसे खुद को भी पता नहीं चला।
वह ऐसे चूम रहा था तृषा को जैसे वह आज खा ही जाएगा तृषा को। वही तृषा उसकी एक्साइटमेंट पूरा फील कर पा रही थी।
उसे घबराहट से सांस भी नहीं आ रहा है और ऊपर से इसका वाइल्ड किस्स वह शायद बिना सांस लेने के वजह से आज मर ही जाएगी वह काफी कोशिश करती है पर अब वह थक चुकी थी वह एकदम से बेहोश हो जाती है।
तो क्या होने वाला है इसके बाद? क्या मेघांश जो चाहता है वह करके ही रहेगा? तृषा खुद को बचा पाएगी या फिर आज रात मेघांश सारी हदें पार कर देगा?
मेघांश अभी भी तृषा के ऊपर झुका हुआ था और उसे चूम रहा था, लेकिन कुछ देर बाद उसने ध्यान दिया कि उसके नीचे दबी हुई लड़की कोई हरकत नहीं कर रही थी। वह झटके से उसके ऊपर से हट गया और देखा कि तृषा बेहोश हो चुकी थी। इस लड़की ने उसका पूरा मूड खराब कर दिया था। न जाने कितने सालों बाद उसे फिर से वही एहसास हुआ था, जो इतने वर्षों में कभी नहीं हुआ था। आज वह सच में इस लड़की को अपना बनाना चाहता था, लेकिन तृषा ने बेहोश होकर सब कुछ बर्बाद कर दिया।
उसे तृषा पर गुस्सा भी आ रहा था, लेकिन उसे यह भी एहसास हुआ कि गलती उसकी भी थी। उसे इतना ज्यादा उग्र नहीं होना चाहिए था। तृषा के होंठों से खून निकल रहा था, वह वाकई बहुत ज्यादा वहशी हो गया था। खैर, कोई बात नहीं। वह फिर कभी इसे पूरा कर लेगा, क्योंकि अब उसका मन नहीं था। तृषा के बेहोश होने से उसका पूरा मूड खराब हो चुका था।
यह सोचकर उसने गुस्से में अपना कोट और बेल्ट उठाया, बेल्ट पहन लिया और कोट को कंधे पर डालकर कमरे से बाहर निकल गया। लेकिन कुछ सोचकर वह वापस कमरे में आ गया, दरवाजा अंदर से बंद किया और कोट को एक ओर फेंककर तृषा को गले लगाकर उसके साथ सो गया।
दूसरी ओर
शौर्य गुस्से से फोन को घूरते हुए बोला, "माँ सच में पागल हो गई हैं! शायद उन्हें यह भी याद नहीं कि उनके दो छोटे-छोटे बच्चे हैं, जो यहाँ अकेले हैं और आपस में झगड़ रहे हैं। उन्हें तो हमारी कोई परवाह ही नहीं है! शायद उन्हें कोई बॉयफ्रेंड मिल गया होगा, लेकिन कम से कम एक बार अपने बच्चों के बारे में तो सोचना चाहिए! मैंने कितने प्यार से कॉल किया था, लेकिन उन्हें मेरी तकलीफ महसूस ही नहीं होती!"
यह कहते हुए उसने अपने गाल पर बह आए आँसू पोंछे, एक गहरी साँस ली, और टेबल पर रखे पिज़्ज़ा का एक टुकड़ा उठाकर खाने लगा।
तभी सूर्यांश गुस्से से कमरे में आया और उसके सामने बैठकर पिज़्ज़ा का दूसरा टुकड़ा उठाकर खाने लगा। यह देखकर शौर्य गुस्से में बोला, "एक्सक्यूज़ मी! यह मेरा पिज़्ज़ा है, मैंने ऑर्डर किया था। अपना खुद का ऑर्डर करो, मैं तुम्हें अपना पिज़्ज़ा खाने नहीं दूँगा!"
लेकिन सूर्यांश उसकी बातों को नज़रअंदाज़ करता हुआ पिज़्ज़ा खाता रहा और दूसरा टुकड़ा भी उठा लिया। यह देखकर शौर्य और गुस्से में आ गया और उसने सूर्यांश का कॉलर पकड़ लिया। इस पर सूर्यांश ने भी उसकी शर्ट पकड़कर दाँत भींचते हुए कहा, "मुझसे दूर रहो, वरना जान से मार दूँगा तुम्हें!"
शौर्य गुस्से में उसका हाथ झटककर छोड़ देता है और पूरे पिज़्ज़ा के डिब्बे को उठाकर वहाँ से भाग जाता है। सूर्यांश गुस्से में अपने हाथ में रखे पिज़्ज़ा का टुकड़ा खा लेता है और फिर अपना फोन निकालकर अपने लिए नया खाना ऑर्डर करता है।
तभी अचानक
डोरबेल बजती है। सूर्यांश अपना गुस्सा काबू करके दरवाजा खोलता है और आसपास देखने लगता है, लेकिन वहाँ कोई नहीं दिखता। तभी उसके कानों में एक मीठी सी आवाज़ आती है, "क्या आप हमारे नए पड़ोसी हैं?"
सूर्यांश आवाज़ के मालिक को ढूँढने लगता है, लेकिन कोई नजर नहीं आता। तभी वही आवाज़ फिर से गुस्से में बोलती है, "ज़रा अपना सिर नीचे झुकाने की मेहरबानी करेंगे?"
सूर्यांश चौंककर सिर नीचे झुकाता है, तो उसके सामने एक नन्ही-सी लड़की खड़ी होती है। वह काफी छोटी कद की थी—या यूँ कहें कि सूर्यांश खुद ही बहुत लंबा था।
लड़की के हाथ में एक बॉक्स था। वह इतनी खूबसूरत थी कि जो भी उसे देखे, उसका दीवाना हो जाए। उसने सफेद रंग का शरारा पहना था, और उसके कंधे पर एक तरफ से दुपट्टा लटका हुआ था। उसके लंबे बाल कमर से भी नीचे तक जा रहे थे, और कुछ लटें उसके चेहरे पर गिरी हुई थीं, जो उसे परेशान कर रही थीं। वह बार-बार हल्की-सी फूँक मारकर उन्हें हटाने की कोशिश कर रही थी। उसके गाल टमाटर जैसे लाल हो चुके थे, जैसे वह अपनी शर्म छिपाने की कोशिश कर रही हो।
एक पल के लिए सूर्यांश उसे बस देखता ही रह जाता है, लेकिन अगले ही पल वह थोड़े गुस्से में पूछता है, "क्या चाहिए?"
लड़की ने अपने हाथ में पकड़ा हुआ बॉक्स उसकी ओर बढ़ाया और कहा, "दरअसल, आप हमारे पड़ोसी हैं। सामने वाला घर हमारा है। दो दिन पहले आंटी से मुलाकात हुई थी। उन्होंने मेरी मम्मी को बताया था कि आप दोनों यहाँ अकेले रहते हैं और खाना बनाना नहीं जानते। इसलिए मेरी मम्मी ने आप दोनों के लिए खाना भेजा है। मैं कुछ लेने नहीं आई हूँ, बस देने आई हूँ।"
यह कहते हुए वह और ज्यादा शर्माने लगी। कुछ देर तक बॉक्स को देखती रही, फिर उसने धीरे-धीरे उसे उसके हाथों में थमा दिया। लड़का बॉक्स लेते हुए सख्त लहज़े में बोला, "अगली बार से ऐसी कोई ज़रूरत नहीं है।"
यह कहते ही उसने उसके सामने दरवाजा बंद कर दिया। लड़की गुस्से से पैर पटकते हुए बड़बड़ाने लगी, "ये कितना बद्तमीज़ लड़का है! हमने इतनी शालीनता से उनकी मदद की, प्यार से खाना देने आए और इसने तो ‘थैंक यू’ तक नहीं कहा! कितना घमंडी इंसान है! पहले तो पहली ही नज़र में मुझे यह अच्छा लगने लगा था, लेकिन अब तो बिल्कुल पसंद नहीं!"
वह गुस्से में वहाँ से जाने लगी, लेकिन तभी उसे अहसास हुआ कि उसका दुपट्टा कहीं अटक गया है। घबराकर उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसका आधा दुपट्टा घर के अंदर था और आधा बाहर। उसने उसे खींचने की कोशिश की, लेकिन यह उसका पसंदीदा दुपट्टा था, अगर फट जाता तो बहुत मुश्किल हो जाती। इसलिए उसने झिझकते हुए दोबारा दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया।
अंदर से कोई दरवाजा नहीं खोल रहा था, जिससे वह परेशान हो गई। उसने दुपट्टे को ज़ोर से खींचने की कोशिश की, और तभी दरवाजा अचानक खुल गया। संतुलन बिगड़ने के कारण वह गिरने लगी, लेकिन गिरते समय उसने सामने वाले लड़के का हाथ पकड़ लिया। परिणामस्वरूप, लड़का भी संतुलन खो बैठा और उसके ऊपर गिर गया।
और इस गिरने के कारण उनके होंठ एक-दूसरे से टकरा गए।
लड़की को इस बात का अहसास नहीं हुआ, क्योंकि उसके सिर पर जोर से चोट लगी थी। लगभग बेहोशी की हालत में पहुँच चुकी थी। वहीं, सूर्यांश बस उसके चेहरे को निहारने लगा था। उसके होंठ इतने मीठे लगे कि उसका मन कर रहा था, एक बार फिर से उन्हें चखने का।
पर लड़की दर्द से रोने लगी। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। यह देखकर सूर्यांश झटके से उसके ऊपर से हट गया और उसे अपनी बाहों में उठाकर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए चिंतित स्वर में पूछा, "Hey, are you fine?"
यह कहते हुए उसने उसे गोद में उठाया, अंदर लाया और दरवाजा बंद कर दिया। फिर उसे अपने कमरे में ले जाकर बेड पर लिटा दिया। वह इधर-उधर कुछ ढूंढने लगा, क्योंकि लड़की के सिर से खून बह रहा था। जल्दी से फर्स्ट-एड बॉक्स लेकर आया, उसे बिस्तर पर बैठाया और उसके घाव को साफ कर मरहम पट्टी कर दी।
लड़की दर्द और गुस्से से भरकर बोली, "सब कुछ आपकी वजह से हुआ है! कितना दर्द हो रहा है मुझे! अगर आप ध्यान से दरवाजा बंद करते तो मेरा दुपट्टा फंसता ही नहीं और यह सब होता ही नहीं!"
उसे सूर्यांश पर बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन दिल के किसी कोने में अच्छा भी लग रहा था कि वह उसकी इतनी परवाह कर रहा था। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह सूर्यांश के इतने करीब आ जाएगी। जब पहली बार उसने देखा था कि सफेद गाड़ी से ये दोनों हैंडसम लड़के और वह खूबसूरत औरत उतर रहे थे, तभी से सूर्यांश ने उसे अपनी ओर आकर्षित कर लिया था। वह उससे बात करना और उसे जानना चाहती थी।
और यह अनुभव बुरा नहीं था, बल्कि बहुत अच्छा था। यह लड़का जैसा भी हो, पर अंदर से बहुत नरम दिल था—बिल्कुल नारियल जैसा, बाहर से कठोर और अंदर से नरम।
वह इन्हीं ख्यालों में खोई हुई थी, जब सूर्यांश गुस्से से बोला, "गलती तुम्हारी है! अब तुम्हें यहाँ से चले जाना चाहिए। क्या तुम्हें नहीं पता कि यहाँ दो लड़के रहते हैं और तुम एक अकेली लड़की हो? तुम्हें डर नहीं लग रहा कि अगर मैंने तुम्हारे साथ कुछ कर दिया तो? फिर शायद तुम किसी को मुँह दिखाने लायक भी नहीं रहोगी!"
सूर्यांश की बात सुनकर वह घबरा गई। बात तो सही थी, चाहे कोई लड़का कितना भी अच्छा क्यों न हो, अकेली लड़की के साथ कभी भी कुछ भी हो सकता था। यह सोचकर वह घबराई हुई जल्दी से उठी और भाग गई। इस सब में वह अपना दुपट्टा लेना ही भूल गई।
सूर्यांश ने उसे भागते हुए देखा, फिर एक गहरी साँस ली और बिस्तर पर लेट गया। तभी उसे कुछ नरम महसूस हुआ। उसने देखा कि उसके बिस्तर पर वही सफेद दुपट्टा पड़ा हुआ था। वह बेहद खूबसूरत था और उसमें से लड़की की मीठी खुशबू आ रही थी।
उसने दुपट्टे को चेहरे के पास लाया, एक बार उसकी खुशबू को महसूस किया और फिर उसे अपने हाथ में लपेटकर अपनी नाक के पास रखकर आँखें बंद कर लीं।
वहीं, लड़की भागते हुए जा रही थी कि अचानक किसी से टकरा गई।
वह फिर से गिरने वाली थी, लेकिन सामने वाले व्यक्ति ने उसे अपनी बाहों में थाम लिया।
फिर उसके कानों में एक गहरी, आकर्षक आवाज़ आई, "Hey, cute baby girl! तुम हमारे घर में क्या कर रही हो? और कहां से आई हो? मैंने तुम्हें पहले कभी नहीं देखा। और तुम मेरे भाई के कमरे से निकल रही हो? कहीं तुम उसकी गर्लफ्रेंड तो नहीं हो? या फिर... कहीं उसने तुम्हारे साथ कुछ कर तो नहीं दिया? तुम... प्रेग्नेंट तो नहीं हो गई हो?"
यह सुनकर लड़की हक्का-बक्का रह गई। उसके चेहरे पर झुंझलाहट और शर्मिंदगी दोनों के भाव आ गए। उसने सामने वाले को ज़ोर से धक्का देते हुए गुस्से में कहा, "छी! कैसी गंदी-गंदी बातें कर रहे हो आप? आप तो आपके भाई से भी ज़्यादा गंदे हो!"
यह कहते हुए उसने उसे फिर से धक्का दिया और वहाँ से जाने की कोशिश की, लेकिन सामने खड़े शौर्य ने उसकी कमर को कसकर पकड़ लिया था।
सीढ़ियों से उतरता हुआ सूर्यांश यह सब देख रहा था। उसने नीचे से आवाज़ सुनी थी, इसलिए वह वहाँ आ गया था। उसे पहले से ही अंदाजा था कि ऐसा कुछ होने वाला है। वह अपनी ठंडी, भावशून्य आँखों से शौर्य को घूरते हुए आगे बढ़ा।
फिर एक झटके में लड़की को अपनी ओर खींचकर उसके पीछे कर दिया और गहरी आवाज़ में बोला, "क्या कर रहे हो? इसे जाने दो।"
शौर्य ने हंसते हुए मज़ाकिया लहज़े में कहा, "ओ भाई! यह कुछ ज़्यादा ही हो रहा है। मतलब... तुम्हारा मेरी बंदी के साथ मज़े लेना ठीक है, और मैं तुम्हारी बंदी के साथ थोड़ा फ्लर्ट भी न करूँ? यह तो बदला लेने का बहुत अच्छा मौका है!"
शौर्य की बातें सुनकर लड़की डर से कांपने लगी। उसकी बातों ने उसे झकझोर कर रख दिया था। अभी-अभी जो भावनाएँ उसके दिल में जन्मी थीं, जो फूल खिले थे, वे सब मुरझा गए, टूटकर बिखर गए।
कुछ भी सही नहीं लग रहा था। हर चीज़ गलत और डरावनी महसूस हो रही थी। वह तुरंत सूर्यांश का हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी, लेकिन तभी अचानक किसी और ने उसका दूसरा हाथ भी पकड़ लिया।
अब वह दोनों भाइयों के बीच फँस चुकी थी—एक भाई ने उसकी कमर को मजबूती से पकड़ रखा था, जबकि दूसरे ने उसके दोनों हाथों को जकड़ लिया था।
अब उसके साथ क्या होने वाला था?
आखिर दोनों भाई इस लड़की के साथ क्या करने वाले थे?
क्या उसे इन दोनों भाइयों की असली सच्चाई का पता चलेगा?
क्या आज फिर से एक मासूम लड़की इनके शिकंजे में फँस जाएगी?
और जब तृषा को इस सबके बारे में पता चलेगा, तो क्या होगा?
मेघांश तृषा से क्या कहने वाला है?
यह सब जानने के लिए पढ़ते रहिए…
वह लड़की दोनों भाइयों के बीच फँसी हुई थी। वह डरी हुई खड़ी थी; उसके हाथ-पैर कांप रहे थे।
अगले ही पल, वह दोनों भाइयों के बीच से निकलकर दरवाज़ा खोलने की कोशिश करने लगी। यह देखकर शौर्य हँसते हुए बोला, "देखो, कितनी डर गई है यह! लगता नहीं है कि अब यह दूसरी बार आपके पास आएगी।"
सूर्यांश जाकर दरवाज़ा खोल दिया, और वह लड़की भागते हुए वहाँ से चली गई।
इसके बाद, सूर्यांश ने गहरी साँस ली और फिर टिफिन ढूँढने लगा, जो इस समय शौर्य के हाथ में था। टिफिन में बिरयानी थी, और शौर्य को बिरयानी खाना बहुत पसंद था। वह बिरयानी देखकर उत्साहित होकर बोला, "बिरयानी है, भाई! कितना टेस्टी है! और गुलाब जामुन भी है... आज तो मज़ा ही आ जाएगा!"
यह कहकर उसने अपनी प्लेट निकाली, उसमें बिरयानी परोसी और खाने लगा। बिरयानी इतनी स्वादिष्ट थी कि सूर्यांश भी खुद को रोक नहीं पाया। उसने भी अपनी प्लेट निकाली, उसमें बिरयानी परोसी और खाने लगा।
दोनों भाई पेट भरकर बिरयानी खाने के बाद गुलाब जामुन भी निकाले और खाने लगे। गुलाब जामुन अभी गरम था, यानी कुछ देर पहले ही बनाया गया था और बहुत स्वादिष्ट भी था।
खाने के बाद थोड़ी सी बिरयानी और गुलाब जामुन बच गए, जिन्हें शौर्य संभालकर रखते हुए बोला, "यह मैं कल सुबह खाऊँगा, यह बहुत टेस्टी है!"
लेकिन सूर्यांश ने उसके हाथ से बॉक्स छीनते हुए कहा, "यह मुझे मिला था, इसलिए मैं खाऊँगा, वो भी कल सुबह!"
यह सुनकर शौर्य मुँह बनाकर बोला, "आपको तो बचा हुआ खाना बिल्कुल पसंद नहीं है, फिर आप इसे क्यों खाएँगे?"
उसने बिल्कुल सही जगह वार किया था। सूर्यांश कुछ नहीं बोला, बॉक्स छोड़ दिया। उसका अहंकार आड़े आ रहा था, इसलिए बिना कुछ बोले वह अपने कमरे में चला गया और सो गया।
वहाँ से कुछ दूरी पर एक खूबसूरत सफेद बंगला था। उसके अंदर एक औरत चिल्लाते हुए बोली, "सुरभि बेटा, इतना टाइम कैसे लग गया?"
घर के अंदर घुस रही लड़की थोड़ा डरते हुए बोली, "सॉरी मम्मी, दरवाज़ा नहीं खुल रहा था, इसलिए थोड़ा टाइम लग गया, इसीलिए लेट हो गई।"
यह कहकर वह जल्दी से अपने कमरे में भाग गई और अपनी चोट को देखने लगी। उसे डर लग रहा था कि मम्मी को क्या बताए।
इसलिए उसने जल्दी से नहा-धोकर खुद को साफ-सुथरा कर लिया और कोई बहाना सोच लिया – "भागते हुए आ रही थी, गिर गई थी, इसलिए चोट लग गई!"
इसके बाद, डिनर करके वह सो गई।
अगली सुबह...
तृषा धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलने लगी और महसूस किया कि किसी की मजबूत पकड़ उसकी कमर पर है। तभी उसकी नाक से धुआँ टकराया, जिससे वह खांसने लगी।
जब उसने ठीक से देखा, तो पाया कि एक शख्स उसके ऊपर लेटा हुआ है। उसका एक हाथ उसकी कमर पर था और दूसरे हाथ से वह सिगार का कश ले रहा था... सुबह-सुबह!
वह घबरा गई और उसके सीने पर हाथ रखकर उसे दूर हटाने की कोशिश करने लगी, लेकिन वह उसे अपनी गिरफ्त में और कस लेता गया।
तृषा का दिल तेजी से धड़कने लगा। "यह सुबह-सुबह क्या कर रहा है? क्या यह अब भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आएगा?"
जल्दी-जल्दी उसने कहा, "आप यह सब क्या कर रहे हैं? ये सब करना बंद कीजिए! छोड़िए मुझे, जाने दीजिए! आप गलत कर रहे हैं मेरे साथ! मैं कह रही हूँ, इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा!"
मेघांश सिगार को होठों से निकालकर उसके चेहरे पर धुआँ उड़ाते हुए बोला, "मैं कहीं नहीं जाने वाला हूँ। वैसे भी तुम्हारी ज़रूरतें पूरी करने आया हूँ, और अब तुम्हें ही दिक्कत हो रही है? यही तो चाहती थी ना? इसके लिए ही तो उसके साथ डेट पर जा रही थी! वैसे भी हम दोनों ही मर्द हैं, तो मुझे जो चाहिए, वह मैं पूरा कर सकता हूँ।"
यह सुनकर तृषा गुस्से में उसे धक्का दे दिया और जोर से उसके गाल पर थप्पड़ मार दिया।
इसके लिए मेघांश तैयार नहीं था। उसकी आँखों में गुस्सा चमक उठा। अगले ही पल उसने तृषा के गाल पर भी एक जोरदार थप्पड़ मार दिया।
तृषा खुद को संभाल नहीं पाई और रोने लगी।
मेघांश उसके करीब आकर उसके दोनों गाल पकड़ लिए और उसकी आँखों में गुस्से से देखते हुए बोला, "तेरे लिए ही तो कर रहा हूँ, डार्लिंग!"
यह कहकर वह गुस्से से तृषा के ऊपर से हट गया और वॉशरूम की ओर बढ़ते हुए बोला, "उससे दूर रहना... और सबसे दूर रहना!"
तृषा गुस्से से खुद को संभालते हुए बोली, "मैं क्यों आपकी बात मानूँ? आप होते कौन हैं मुझे ये सब कहने वाले? मुझे आपकी कोई भी बात मानने की ज़रूरत नहीं है! आप मेरे लिए कोई नहीं हैं! किस हक से आप मुझसे ऐसी बातें कर रहे हैं?"
मेघांश कुछ देर तक उसे घूरता रहा और फिर गुस्से में उसके बाल पकड़कर खींचते हुए बोला, "हक चाहिए ना? हक देता हूँ!"
यह कहकर उसने अपने कोट को साइड से उठाया, तृषा की चुनरी पीछे से खींची और उसे घसीटते हुए बाहर ले जाने लगा।
तृषा उसकी हरकतों से हैरान रह गई। उसने खुद को छुड़ाने की पूरी कोशिश की, लेकिन वह उसे एक इंच भी हिलने नहीं देता था।
मेघांश उसे जबरन बाहर लाकर अपनी गाड़ी में बिठा दिया और तेज़ी से कहीं ले जाने लगा। तृषा को समझ नहीं आ रहा था कि यह उसे कहाँ ले जा रहा है।
कई मिनटों बाद गाड़ी एक मंदिर के बाहर रुक गई।
वहीं, उसका असिस्टेंट भी पहले से खड़ा था, जो कुछ कागज़ात दिखाते हुए बोला, "जैसा आपने कहा था, शादी के पेपर तैयार हैं, और पंडित जी भी आ चुके हैं।"
तृषा स्तब्ध रह गई। उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। "यह क्या कर रहा है? क्या यह सच में मुझसे शादी करने वाला है? ऐसे कैसे? यह नहीं हो सकता!"
उसके दिल में डर बैठ गया... आखिर वह अब क्या करेगी?
"दुनिया थूकेगी उन पर, इस उम्र में आकर शादी!"
मेघांश जबरदस्ती तृषा का हाथ पकड़कर पेपर ले लिया और उसके हाथ में पेन पकड़कर जबरदस्ती साइन करवा दिया। तृषा कुछ समझ ही नहीं पा रही थी। सारे पेपर पर साइन करवाने के बाद मेघांश गुस्से से बोला, "अब इस हफ्ते में सब कुछ कर सकता हूँ, पति हूँ मैं तुम्हारा। तुम मेरी लीगल वाइफ बन चुकी हो!"
अगले ही पल तृषा गुस्से से उसे धक्का देकर उसके गाल पर थप्पड़ मार दिया और चिल्लाते हुए बोली, "किसलिए मेरी ज़िंदगी बर्बाद की? मैं नहीं करना चाहती थी आपसे शादी! क्यों जबरदस्ती की? मैं नफ़रत करती हूँ आपसे! आप जैसे घटिया इंसान के साथ मैं अपनी ज़िंदगी का एक मिनट भी नहीं बिता सकती!"
पर मेघांश उसकी बातों को अनसुना कर उसे खींचते हुए मंदिर ले गया। वहाँ उसने सिंदूर की थाली से एक मुट्ठी सिंदूर उठाकर उसकी माँग भर दी और मंगलसूत्र पहना दिया। फिर गुस्से से पंडितजी को देखकर बोला, "शादी करवाओ हमारी!"
पंडितजी डरते हुए उनकी शादी करवा दी। जब फेरे लेने की बारी आई, तो तृषा उठने के लिए तैयार नहीं हुई। लेकिन मेघांश उसे अपनी बाहों में उठाकर जबरदस्ती फेरे पूरे करवा दिए और उनकी शादी हो गई।
तृषा सदमे में थी। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके साथ ऐसा हो जाएगा। एक पागल आदमी से उसकी शादी हो जाएगी!
अब तृषा बस रो रही थी, क्योंकि उसके पास रोने के अलावा कोई और चारा नहीं था। वह पुतले की तरह सुन्न हो चुकी थी।
वहीं, शादी के बाद मेघांश उसे लेकर होटल आ गया। होटल पहुँचकर वह तृषा को अपने कमरे में ले गया। तृषा चुपचाप उसके साथ आ गई थी। उसे बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे। उसकी शादी हो चुकी थी, लेकिन उसे इस पर यकीन नहीं हो रहा था। उसके बच्चों का क्या होगा? अगर उन्हें पता चला तो वे क्या सोचेंगे? वे अब छोटे नहीं थे, समझदार हो चुके थे। उन्हें इन सब मामलों की समझ थी।
तृषा इन्हीं सब बातों में उलझी हुई थी, वहीं मेघांश वॉशरूम चला गया। जब वह फ्रेश होकर बाहर आया, तो उसने सिर्फ़ कमर पर तौलिया लपेट रखा था। वह बेहद आकर्षक लग रहा था। कोई देखकर यह अंदाज़ा नहीं लगा सकता था कि वह 54 साल का है, बल्कि ऐसा लगता था जैसे 34 का हो।
वहीं, तृषा बैठी हुई थी। मेघांश उसकी ओर बढ़ते हुए बोला, "फ्रेश हो लो, उसके बाद हमें निकलना है। हमें अपनी शादी की अनाउंसमेंट करनी है, ताकि दुनिया को इसके बारे में पता चले!"
यह सुनकर तृषा गुस्से से उठकर उसके पास गई और उसकी छाती पर हाथ रखकर उसे धक्का देते हुए बोली, "मैं इस शादी को नहीं मानती! मेरे दो बच्चे हैं, और मैं 40 साल की हूँ! इस उम्र में शादी... वह भी ऐसे? लोग क्या कहेंगे? मेरे बच्चों को कितना कुछ सहना पड़ेगा! और सबसे बड़ी बात, आप अच्छे इंसान तो हैं ही नहीं! घटिया इंसान हैं, हैवान हैं!"
उसकी बातें सुनकर मेघांश पीछे से उसके बाल कसकर पकड़ लिया और उसे अपनी तरफ खींचते हुए चेहरे के करीब लाकर धीरे से बोला, "प्रॉब्लम क्या है? मैं 54 का और तुम 40 की। सब सही चल रहा है। मुझे तुम्हारे बच्चों से कोई मतलब नहीं है।"
यह कहकर मेघांश एक झटके में उसे खुद से दूर कर दिया और फिर कपड़े बदलने चला गया।
तृषा बस गुस्से से उसे देख रही थी। उसे इस बात से डर लग रहा था कि वह अपने बच्चों को क्या जवाब देगी? क्या बोलेगी?
यह सोचते हुए वह रोने लगी।
शौर्य अपनी शर्ट के बटन लगाते हुए आईने में खुद को देखकर बोला, "इतना ज़्यादा हैंडसम हूँ मैं! कहीं मुझे खुद की ही नज़र ना लग जाए! बताने में इतना हैंडसम क्यों हूँ? मम्मी के जैसा तो नहीं दिखता, अगर दिखता तो सुंदर होता, हैंडसम नहीं! इतना ज़्यादा! मुझे तो खुद की ही नज़र लग जाएगी!"
वह खुद की तारीफ़ों के पुल बाँधते हुए यह सब बोल रहा था। उसे अपनी तारीफ़ करना और सुनना दोनों ही बहुत पसंद था।
इसके बाद वह तैयार होकर नीचे आया, और सामने का नज़ारा देखकर हैरान रह गया। कल रात जो बिरयानी बनी थी, वह सूर्यांश ने पूरी खा ली थी! वह गुस्से से बोला, "आप बहुत ज़्यादा बुरे हो! इसका बदला मैं आपसे लेकर ही रहूँगा! मुझे आप पर बहुत गुस्सा आ रहा है!"
यह कहकर वह बिना नाश्ता किए गुस्से में बाहर चला गया। लेकिन सूर्यांश को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ा और वह भी कॉलेज के लिए निकल पड़ा।
गौरी आराम से टीवी देख रही थी, तभी उसका फ़ोन बज गया। उसने देखा कि शौर्य का कॉल है। जैसे ही उसने कॉल उठाया, शौर्य गुस्से से बोला, "फ़्लावर पार्क आकर मुझसे मिलो! मुझे तुमसे मिलना है!"
यह सुनकर गौरी हैरान होकर बोली, "पर मैं कैसे मिल सकती हूँ? मम्मी-पापा घर में हैं, मैं नहीं जा सकती! पागल कहीं के! जब देखो तब पागलपन!"
यह सुनकर शौर्य गुस्से से फ़ोन काट दिया।
एक घंटे बाद...
गौरी अपने कमरे से पानी लेने के लिए बाहर आई थी, तभी अचानक उसे किसी के हँसने की आवाज़ सुनाई दी।
वह हैरान होकर जल्दी से नीचे आकर देखने लगी और चौंक गई। शौर्य वहीं बैठा चाय पी रहा था! उसकी मम्मी शौर्य के लिए कुकीज़ बनाकर ला रही थीं, और उसके पापा हँसते हुए शौर्य से बातें कर रहे थे। शौर्य किसी मासूम बच्चे की तरह सिर हिलाकर जवाब दे रहा था।
वह इतना मासूम लग रहा था कि कोई भी उसकी मासूमियत पर पिघल जाए!
तभी गौरी की मम्मी, गौरी को देखकर हँसते हुए बोलीं, "तुमने अपने दोस्त से हमें क्यों नहीं मिलवाया? हम तो इससे मिलकर बहुत खुश हुए! हमें तो यकीन नहीं हो रहा कि हमारी बेटी का दोस्त एक टॉपर है! हम बहुत खुश हैं! अब तो तुम दोनों साथ में पढ़ाई करोगे! और ऊपर से इसकी मम्मी घर से बाहर गई हैं काम के लिए, और यह घर पर अकेला रहता है। तुमने कभी इसे अपने घर नहीं बुलाया? कम से कम अच्छे से खाना तो खिला देते! बच्चा कितना दुबला-पतला हो गया है!"
गौरी की मम्मी ऐसे बात कर रही थीं, जैसे शौर्य उनका अपना ही बेटा हो!
गौरी गुस्से और जलन में बोली, "मम्मी-पापा, कभी मेरी तो ऐसी खातिरदारी नहीं की, जैसी इसकी कर रहे हो! यह बस एक साधारण दोस्त है और कुछ नहीं! थोड़ा टॉपर क्या बन गया, आपने तो इसे सर पर ही बिठा लिया है!"
यह सुनकर उसके पापा थोड़े गुस्से में बोले, "यह सिर्फ़ टॉपर नहीं है, पागल लड़की! यह एक बिज़नेसमैन भी है! तुझे पता है, वो नई कंपनी जो आई है और आते ही आसमान की ऊँचाइयों तक पहुँच गई, वो इसकी ही है!"
फिर वे गौरी के पास जाकर धीरे से उसके कान के पास फुसफुसाए, "अच्छा-खासा लड़का है, इसे तो हमारा दामाद होना चाहिए! इसकी मम्मी को अपने घर बुलाओ, तेरे और इसके रिश्ते की बात करेंगे।"
उसकी मम्मी भी पास आकर थोड़ी गुस्से में बोलीं, "इतना अमीर, इतना सुंदर, इतना इंटेलिजेंट और इतने पैसे वाला लड़का... और तुझे इसे पटाना भी नहीं आया? बेकार लड़की कहीं की! इसे हाथ से मत जाने देना! तेरे पापा और मैं इसकी मम्मी से बात करके तेरी शादी इससे करवा देंगे, फिर तू करोड़पति की पत्नी बन जाएगी!"
गौरी को अच्छे से पता था कि उसके मम्मी-पापा कितने लालची हैं। वे शौर्य जैसे अमीर लड़के को अपने हाथ से जाने नहीं देंगे। पर उसे खुद भी यकीन नहीं हो रहा था कि शौर्य इतना अमीर है! यह जानकर उसे हैरानी तो हुई, लेकिन साथ ही गुस्सा भी आ रहा था कि उसने आते ही उसके मम्मी-पापा को अपने पक्ष में कर लिया था।
गौरी की चाची आशा, शौर्य को अकेले हलवा खाते हुए देखकर बोली, "बेटा, यह हलवा मैंने बनाया है। और तुम कभी अपने भाई को भी लेकर आना, अकेले क्यों आए? तुम्हारे भाई से भी मिलते, और हाँ, तुम्हारा भाई क्या करता है, ज़रा अच्छे से बताना!"
यह सुनकर शौर्य हलवा खाते हुए बोला, "मेरा भाई? उनका तो अलग बिज़नेस है। उन्होंने बहुत पहले से अपना काम शुरू किया, इसलिए वे मुझसे काफ़ी आगे निकल चुके हैं। लेकिन अब मैं भी उनके बराबर पहुँच गया हूँ।"
यह सुनकर आशा उसकी नज़र उतारते हुए बोली, "प्लीज़, कभी अपने भाई को भी लेकर आना। बेचारा शायद तुम्हारी तरह दुबला-पतला हो गया होगा! ठीक से खाना भी नहीं खाता होगा! और तुम्हारी मम्मी... कितनी संस्कारी, कितनी अच्छी हैं! कितना प्यार और संस्कार दिया है उन्होंने!"
यह सुनकर शौर्य गर्व से बोला, "वो दुनिया की सबसे बेस्ट मम्मी हैं! बहुत सुंदर और बहुत अच्छी हैं! उनके जैसा कोई हो ही नहीं सकता!"
यह सुनकर आशा मुस्कुराई और फिर धीरे से गौरी के पास जाकर उसके कान में कहा, "तू ना, इसके भाई से अपनी बहन को मिलवा देना! तेरे साथ-साथ तेरी बहन की भी ज़िंदगी बन जाएगी! तुम दोनों बहनें राज करोगी! मेरे नालायक बेटे से तो कुछ होने वाला नहीं है, तू ही कुछ मदद कर अपनी बहन की!"
गौरी अपना सिर पकड़ ली। उसके परिवारवाले पूरी तरह पागल हो चुके थे! उसे गुस्सा भी आ रहा था, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकती थी।
कुछ देर बाद...
तृषा गुस्से से शौर्य को धक्का देते हुए बोली, "पागल लड़के! क्यों आए हो यहाँ? आते ही मेरे मम्मी-पापा को पटा लिया, निकम्मे कहीं के! तुम्हें पता भी है, मेरे मम्मी-पापा तुम्हें अपना दामाद बनाने के सपने देख रहे हैं?"
यह सुनकर शौर्य मुस्कुराकर बोला, "मैं क्या करूँ? वे लोग सपने देख रहे हैं, तो... वैसे भी, सपना ही तो है! मुझे तो बस भूख लगी थी, इसलिए मैं तुम्हारे घर नाश्ता करने आ गया! और हाँ, यह सच है कि मैं बिज़नेसमैन हूँ और मेरा भाई भी। हम काफ़ी अमीर हैं... और हैंडसम भी! हर वह चीज़ है हमारे पास, लेकिन तुम तो बस मेरी एक गुलाम हो। और एक गुलाम सपने तो देख ही सकता है!"
यह सुनकर गौरी गुस्से से उसके सीने पर मुक्का मार दिया और बोली, "शौर्य! मैं तुझे जान से मार डालूँगी, पागल कहीं का! मेरा खून पीने आ गया! बड़ा आया मुझे गुलाम बनाने वाला! तू होगा गुलाम मेरा! अब खाना खा लिया है, ना? निकल यहाँ से!"
यह सुनकर शौर्य अचानक उसे अपनी ओर खींच लिया और उसके कान में धीरे से कहा, "अट्रैक्ट हो रही हो ना मेरी तरफ... धीरे-धीरे! और अपनी फीलिंग्स को संभालने के लिए गुस्सा दिखा रही हो, मुझे मार रही हो!"
वह अपनी गरम साँसों को उस पर छोड़ते हुए यह कह रहा था, वहीं उसकी बातें सुनकर वह घबराकर अपनी आँखें बंद कर ली और घबराई हुई आवाज़ में बोली, "कैसे पागल हो! कैसी बातें कर रहे हो? छोड़ो मुझे, जाने दो! पागल कहीं के! जब देखो तब पागलपन दिखाना ज़रूरी है क्या?"
यह कहते ही वह पीछे हटने लगी, लेकिन शौर्य उसकी ओर बढ़ने लगा।
अब आगे क्या होगा? क्या सच में शौर्य और गौरी एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं? और जब शौर्य और सूर्यांश को पता चलेगा कि उनकी मम्मी की शादी हो चुकी है, तो उनकी प्रतिक्रिया कैसी होगी? जब दिशा को यह सच्चाई पता चलेगी कि जिससे उसकी शादी हुई है, वह असल में एक गैंगस्टर है, तो वह क्या करेगी? और मेघांश, तृषा के साथ क्या करने वाला है?
यह जानने के लिए पढ़ते रहिए...
मेघांश राजा की तरह अपने सोफे पर पैर ऊपर रखकर बैठा था, सिगार के कश भरते हुए। सामने तृषा खड़ी थी, उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। उसने खुद को शांत करने की बहुत कोशिश की, परन्तु यह संभव नहीं हो सका। अगले ही पल, वह मेघांश के सामने जाकर गुस्से से बोली—
"क्यों किया मेरे साथ ऐसा? क्या बिगाड़ा था मैंने तुम्हारा? क्यों मेरी ज़िंदगी से खेला?"
उसकी आवाज़ में दर्द और क्रोध साफ झलक रहा था।
मेघांश ने उसकी बातों को जैसे सुना ही नहीं। उसने पास रखे वाइन के गिलास को उठाया, एक नज़र तृषा पर डाली और फिर अचानक हाथ बढ़ाकर वाइन ज़मीन पर गिरा दी। उसकी आँखों में एक अजीब-सा सूनापन था। फिर ठंडी आवाज़ में बोला—
"साफ करो इसे।"
तृषा स्तब्ध रह गई। उसे यकीन नहीं हुआ कि मेघांश ने उससे यह कहा। उसने विरोध करने के लिए मुंह खोला, लेकिन मेघांश की आँखें सख्त थीं।
"मैंने कहा, साफ करो!"
तृषा के दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। उसने इधर-उधर देखा, लेकिन उसे साफ करने के लिए कुछ भी नहीं मिला। उसने मेघांश की ओर देखा, उसकी आँखों में सवाल थे।
मेघांश ने अपनी कलाई घड़ी देखी, फिर धीरे से मुस्कराया। "पाँच मिनट हो चुके हैं, और तुमने अभी तक इसे साफ नहीं किया। अब तुम्हें इसकी सज़ा मिलेगी।"
तृषा को समझ नहीं आया कि वह क्या कहना चाहता था। अगले ही पल, मेघांश ने उसे पकड़कर अपनी गोद में बिठा लिया। तृषा चौंक गई, उसने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन मेघांश की पकड़ मज़बूत थी।
"तुम हमेशा मुझसे बचने की कोशिश करती हो, तृषा," उसने धीमे लेकिन गंभीर लहजे में कहा। "पर क्या तुम सच में खुद से भाग सकती हो?"
तृषा की आँखों में आंसू आ गए। उसने गुस्से और बेबसी में कहा—
"मुझे जाने दो, मेघांश! मैं तुमसे नफरत करती हूँ।"
मेघांश ने उसकी बात सुनी, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब-सी उदासी छा गई। उसने धीरे से कहा—
"नफरत? शायद… लेकिन तुम मुझे समझने की कोशिश क्यों नहीं करती?"
तृषा ने उसकी आँखों में देखा, जहाँ कुछ ऐसा था जो उसने पहले कभी नहीं देखा था— एक गहरा दर्द, एक छुपी हुई तकलीफ।
क्या तृषा सच में मेघांश से नफरत करती थी? या फिर इसके पीछे कुछ और सच था, जिसे वह समझने को तैयार नहीं थी?
तृषा ने अभी कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि अचानक मेघांश ने उसकी कलाई पकड़ ली। उसका स्पर्श ठंडा था, लेकिन उसमें एक अजीब-सी कठोरता थी। तृषा ने झटके से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की।
"छोड़ो मुझे, मेघांश!" उसने गुस्से से कहा, उसकी आँखों में आक्रोश था।
मेघांश ने उसकी आँखों में देखा, लेकिन उसके चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था। उसने धीरे से कहा—
"तुम मुझसे भाग नहीं सकती, तृषा। तुम जितना विरोध करोगी, यह खेल उतना ही दिलचस्प होगा।"
तृषा को उसका लहजा अजीब लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि मेघांश वास्तव में क्या चाहता था।
"यह कोई खेल नहीं है, मेघांश! यह मेरी ज़िंदगी है, मेरी मर्ज़ी!" तृषा ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की।
मेघांश के चेहरे की कठोरता अचानक ढीली पड़ गई। उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी और एक कदम पीछे हट गया।
"तुम सच में मुझसे इतनी नफरत करती हो?" उसकी आवाज़ में पहली बार कोई भावनात्मक झलक थी।
तृषा ने हाँ में सिर हिलाया, उसकी आँखों में आँसू थे।
कुछ पल के लिए कमरे में खामोशी छा गई। मेघांश ने गहरी साँस ली, फिर धीरे से कहा—
"ठीक है, तृषा। मैं तुम्हें जाने दूँगा। लेकिन याद रखना, हर कहानी में एक सच छुपा होता है, जिसे देखने के लिए धैर्य चाहिए।"
तृषा स्तब्ध रह गई। यह वही मेघांश था जो कुछ पल पहले उसे अपनी जिद में कैद करना चाहता था, और अब वह उसे आज़ाद कर रहा था?
लेकिन क्यों?
यह सब सोते हुए वह मेघांश को देख रही थी।
तभी अचानक मेघांश उसे सोफे पर लेटा देता है और अपने हाथ में पड़े वाइन को उसके सीने पर धीरे-धीरे गिराने लगता है।
तृषा घबरा जाती है और मेघांश सारा वाइन उसके ऊपर गिराने के बाद एकदम से उसके ब्लाउज़ को खींचकर खोल देता है।
तृषा एकदम हैरान रह गई थी। यह अचानक कैसे बदल रहा था? कभी छोड़ रहा था, कभी पकड़ रहा था और अब यह क्या कर रहा है?
क्या होने वाला है इसके बाद? क्या करेगा मेघांश तृषा के साथ? तृषा खुद को बचा पाएगी या आज रात मेघांश का शिकार बन जाएगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
"शौर्य और गौरी – एक अधूरा एहसास"
गौरी ने गुस्से में शौर्य को जोर से धक्का दिया और कहा, "तुम पागल हो क्या? जब देखो तब करीब आने की कोशिश करते रहते हो! अगर यह सब एक नाटक ही है, तो तुम्हें मेरी इतनी नज़दीकी क्यों चाहिए? भूल मत, हम दोनों बस एक दिखावे के रिश्ते में हैं।"
शौर्य ने हल्की मुस्कान के साथ उसके बालों को पीछे किया और बोला, "तो क्या हुआ? नाटक ही सही, पर इस वक्त तुम मेरी गर्लफ्रेंड हो, और मैं तुम्हारा बॉयफ्रेंड। और गर्लफ्रेंड को अपने बॉयफ्रेंड की छोटी-छोटी बातें माननी चाहिए, है ना? अभी मुझे एक पैशनेट किस चाहिए।"
गौरी ने घबराकर चारों तरफ देखा और सख्त लहजे में कहा, "यह मेरा घर है, शौर्य। हम यहाँ ऐसे नहीं कर सकते। मुझे यह सब अभी नहीं चाहिए, और मैं कोई खिलौना नहीं हूँ, जिसे जब चाहे इस्तेमाल किया जा सके!"
शौर्य के चेहरे की मुस्कान धीमी पड़ गई। उसने कुछ देर गौरी को देखा, फिर गहरी साँस लेकर बोला, "तुम मुझसे दूर क्यों भागती हो, गौरी? क्या सच में यह सब सिर्फ एक नाटक है तुम्हारे लिए?"
गौरी ने उसकी आँखों में देखा, लेकिन कुछ नहीं बोली। वह खुद इस रिश्ते को समझ नहीं पा रही थी।
शौर्य ने अचानक अपनी जेब से बंदूक निकाली। गौरी चौंक गई और घबराकर बोली, "तुम... क्या करने वाले हो?"
शौर्य ने बंदूक उसकी ओर बढ़ाई और हल्की हँसी के साथ कहा, "डर क्यों गई? इसे रख लो। ताकि तुम्हें यकीन हो जाए कि मैं तुम्हें मजबूर नहीं कर रहा। जो भी होगा, तुम्हारी मर्ज़ी से होगा।"
गौरी कुछ पल उसे देखती रही, फिर नज़रें फेरकर बोली, "तुम हमेशा चीज़ों को अपने तरीके से क्यों देखना चाहते हो, शौर्य?"
शौर्य ने एक कदम पीछे लिया और मुस्कुराते हुए कहा, "क्योंकि तुम मुझे सच में पसंद हो, गौरी। यह नाटक मेरे लिए सिर्फ नाटक नहीं है। और मैं चाहता हूँ कि यह तुम्हारे लिए भी सिर्फ एक खेल न हो।"
गौरी ने गहरी साँस ली और उसकी तरफ देखा। कुछ तो था शौर्य की आँखों में, जो उसे रोक रहा था। लेकिन वह इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थी।
वह थोड़ा और पास आई, उसकी कॉलर पकड़ी और गंभीर लहजे में बोली, "अगर तुमने दोबारा जबरदस्ती करने की कोशिश की, तो मैं तुम्हारी इसी बंदूक से तुम्हारा ही राम नाम सत्य कर दूँगी। समझे?"
शौर्य ने हँसते हुए हाथ ऊपर कर दिए, "ठीक है, ठीक है! पर मुझे खुशी है कि तुमने कम से कम एक बार तो मुझे गौर से देखा। शायद किसी दिन, यह नाटक हकीकत बन जाए।"
गौरी ने सिर हिलाया और पलटकर जाने लगी। लेकिन उसके कदम भारी हो गए थे। क्या यह सच में सिर्फ नाटक था? या कुछ और...
वही उसे ज्यादा देखकर शौर्य मुस्कुरा कर कहता है, "क्यों जा रही हो दूर?"
शौर्य की बात सुनकर गौरी गुस्से से उसकी तरफ देखती है और सख्त लहजे में कहती है, "अगर तुमने फिर से ऐसी बात की, तो मैं सच में तुम्हें मार डालूंगी! कब से कह रही हूँ, मुझे परेशान करना बंद करो! यह मेरा घर है, और अगर कोई आ गया, तो बहुत बुरा होगा तुम्हारे लिए। अभी के अभी यहाँ से चले जाओ!"
शौर्य उसे ध्यान से देखता है, फिर हल्की मुस्कान के साथ एक कदम पीछे हटता है। कुछ देर सोचने के बाद वह चौंकाने वाली बात कहता है, "तो एक काम करते हैं… हम दोनों सच में गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड बन जाते हैं। तब तो तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी, है ना?"
गौरी उसकी बात सुनकर चौंक गई। कुछ पल के लिए उसे समझ ही नहीं आया कि वह क्या जवाब दे। उसकी आँखों में झिझक और उलझन थी, लेकिन फिर वह हल्की शर्म के साथ बोली, "ऐसी बात नहीं है… तब भी मैं अपनी हदें बनाए रखूंगी। और अभी तो मुझे अपना करियर बनाना है। तुम्हें भी अपने करियर पर फोकस करना चाहिए। वरना भविष्य में तुम्हारा कुछ नहीं होने वाला!"
वह और भी कुछ कहना चाहती थी, लेकिन अचानक रुक गई। मानो कोई दबी हुई बात जुबान तक आकर ठहर गई हो।
शौर्य उसकी बातें सुनकर हल्के से हँस पड़ा। उसकी आँखों में एक रहस्यमयी चमक थी। वह मज़ाकिया लहजे में बोला, "अरे, तुम मेरी फ़िक्र क्यों कर रही हो? मेरा अपना बिज़नेस है, जिसके बारे में किसी को पता नहीं… सिर्फ़ तुम्हारे परिवार को। यहाँ तक कि मेरी मम्मी को भी इसकी खबर नहीं।"
शौर्य इतनी आसानी से यह बात कह गया, जैसे यह कोई बड़ी बात ही न हो। लेकिन गौरी तो पूरी तरह से हैरान रह गई।
"यह लड़का आखिर क्या बोल रहा है…?" उसके मन में यही सवाल गूंज रहा था।
उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि शौर्य इतने हल्के अंदाज़ में इतनी गंभीर बातें कह सकता है।
आगे क्या होगा?
क्या शौर्य सच बोल रहा है?
क्या कभी गौरी शौर्य से प्यार कर पाएगी?
और जब शौर्य को अपनी माँ के बारे में सच्चाई पता चलेगी, तो क्या होगा?
गौरी ध्यान से शौर्य को देख रही थी। वहीं शौर्य उठकर उसके पास आया और उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे अपनी ओर खींचते हुए मुस्कराकर बोला, "चलो, तुम जैसी छिपकली को कौन अपनी गर्लफ्रेंड बनाना चाहेगा? मरना थोड़ी है! मैं तो बस मज़ाक कर रहा था, बेबी!"
यह सुनते ही गौरी का खून खौल उठा। उसने गुस्से में आकर शौर्य के सीने पर जोर से मुक्का मारा और तीखी आवाज़ में बोली, "अगर दोबारा ऐसा बेहूदा मज़ाक किया तो जान ले लूंगी!"
शौर्य झटके से उसे और करीब खींचते हुए गहरी नज़रों से उसकी आँखों में देखता हुआ बोला, "सच में तुम्हें ये मज़ाक लगता है?"
गौरी का दिल जोर से धड़कने लगा। उसकी सांसें कुछ पल के लिए थम-सी गईं। लेकिन अगले ही पल शौर्य अचानक खिलखिलाकर हँस पड़ा और बोला, "बेवकूफ छिपकली! ऐसे किसी के बहकावे में मत आना, हर राह चलता कोई अगर तुम्हें ऐसे ही प्रपोज़ करने लगे, तो तुम्हारे तो सौ बॉयफ्रेंड हो जाएँगे!"
गौरी का गुस्सा सातवें आसमान पर था, लेकिन इस इंसान के हर पल बदलते स्वभाव से अब उसे चिढ़ होने लगी थी। अगर यह ऐसे ही दो मिनट और उसे परेशान करता रहता, तो वह इसे जहर देकर मार डालती!
यह सोचते ही उसने झटके से शौर्य को पीछे धकेलते हुए कहा, "बाहर जाओ यहाँ से, पागल कहीं के! जब देखो तब मुझे परेशान करते रहते हो!"
शौर्य मुस्कराया, फिर अपनी जैकेट की जेब से एक छोटा-सा सुंदर गुलाब निकाला और उसे गौरी के होंठों से हल्के-से छुआते हुए उसके घने बालों में लगा दिया। फिर उसके गाल को हल्का-सा चूमकर बोला, "मज़ाक नहीं कर रहा हूँ, सच में चाहता हूँ कि तुम मेरी गर्लफ्रेंड बन जाओ… और फिर फ्यूचर में मुझसे शादी कर लो। उसके बाद हम ढेर सारे बच्चे करेंगे!"
गौरी ने झटके से गुलाब निकालकर अपने हाथ में पकड़ लिया और जब तक वह कुछ कह पाती, शौर्य वहाँ से जा चुका था।
उसके गाल शर्म से लाल हो गए थे। दिल अजीब-सी खुशी और गुस्से के मिले-जुले भावों से धड़क रहा था। उसने एक्साइटमेंट में गुलाब को चूमा और बिस्तर पर गिरकर खुद को गले लगाते हुए हँसने लगी।
कुछ देर बाद वह बालकनी में आई, तो उसकी नज़र अपने गुलाब के पौधे पर पड़ी। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं— गुलाब का इकलौता खिला फूल… गायब था!
उसने अपने हाथ में पकड़े गुलाब की तरफ देखा और फिर जैसे ही सच्चाई समझ में आई, वह जोर से चिल्लाई, "कमीनें! तुझे छोड़ूँगी नहीं! मेरा गुलाब… सिर्फ़ एक ही खिला था, और उसे भी तोड़ लिया! पागल कहीं के, जानवर! श्राप है तुझ पर! देखना, तेरी शादी कभी नहीं होगी! अगर हुई भी, तो तेरी बीवी तुझे छोड़कर भाग जाएगी, या फिर शादी से पहले ही मर जाएगी! कुंवारे मरेगा तू, शौर्य!"
इतना कहकर गौरी फफककर रोने लगी। उसके आँसू गुलाब की पंखुड़ियों पर टपकने लगे। यह गुलाब उसके लिए बहुत ख़ास था—पहली बार किसी ने उसे कोई गिफ्ट दिया था। यह पौधा उसके लिए बहुत प्यारा था, जो किसी ने खासतौर पर उसे दिया था। पूरे दो साल बाद इसमें फूल खिला था, और इस पागल इंसान ने उसे बेरहमी से तोड़ लिया था। गौरी का दिल सच में टूट गया था।
उधर, गौरी को जी-भरकर परेशान करने के बाद शौर्य ने अपना हेलमेट पहना, बाइक स्टार्ट की और मुस्कराते हुए वहाँ से निकल पड़ा।
लेकिन कुछ दूर जाते ही अचानक उसे कुछ याद आया।
"ओह, मम्मी से तो बात ही नहीं की!"
यह सोचकर उसने जल्दी से फोन निकाला और नंबर डायल कर दिया।
तृषा ज़मीन पर गिरी हुई थी, और मेघांश उसके ऊपर झुका हुआ था। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन मेघांश पर कोई असर नहीं था।
तभी अचानक तृषा का फोन बज उठा।
फोन की स्क्रीन पर एक बेहद हैंडसम लड़की की तस्वीर फ्लैश हो रही थी, और नाम लिखा था— "My Baby"
यह देखते ही मेघांश का दिमाग़ घूम गया। उसकी आँखों में अजीब-सी वहशियत चमकी। उसने झपटकर फोन उठाया और तृषा की ओर घूरते हुए गुस्से से उसके बाल पकड़ लिए।
"तो यही है तेरा नया आशिक?" वह दाँत पीसते हुए बोला।
तृषा दर्द से चीख पड़ी। उसने अपने नाज़ुक हाथों से मेघांश की मज़बूत पकड़ को हटाने की कोशिश की, लेकिन वह एक चट्टान की तरह अडिग था।
अगले ही पल, मेघांश ने पूरा ज़ोर लगाकर फोन को दीवार पर दे मारा—"धड़ाम!"
फोन चकनाचूर हो गया।
"नहीं!!!" तृषा चिल्लाई, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
"क्या कर रहे हो? यह सब क्यों कर रहे हो?" उसने रोते हुए कहा।
मेघांश ने अपनी बेल्ट खोलते हुए ठंडी आवाज़ में कहा, "मुझे पहले से ही शक था कि तेरे कई आशिक होंगे… लेकिन अब ये गंदे खेल ख़त्म। अब तू सिर्फ मेरी है, मेरी बीवी। जो मैं कहूँगा, वही होगा। और जहां तक तेरी हवस की बात है, अब मैं तुझे इतना थका दूँगा कि तेरा ये नशा हमेशा के लिए उतर जाएगा।"
तृषा का खून खौल उठा!
वह चीखकर कहना चाहती थी—"अरे, पागल इंसान! वह मेरा बेटा है!"
लेकिन उसके गुस्से और दर्द से भरे मन की कोई आहट भी मेघांश तक नहीं पहुँची।
उसने तृषा की साड़ी को ज़बरदस्ती ऊपर सरका दिया। उसकी कमर और जांघों पर अपने ठंडे, मगर क्रूर हाथ फेरते हुए हँसकर बोला, "कितने मर्दों के साथ सो चुकी है तू? हज़ार? शायद उससे भी ज़्यादा?"
तृषा को लगा, जैसे किसी ने उसकी आत्मा को कुचल दिया हो।
उसकी आँखों में क्रोध उबल रहा था। उसका मन कर रहा था कि अभी इसी पल मेघांश को मार डाले!
लेकिन मेघांश को उसकी इस सोच की भनक तक नहीं थी।
उसकी बेल्ट ज़मीन पर गिर चुकी थी। उसकी आँखों में अजीब-सी पागल चमक थी। वह तृषा के ऊपर झुक गया और अपनी मज़बूत पकड़ में जकड़कर उसके होंठों को चूमने लगा।
तृषा घुटन महसूस करने लगी। उसे लगने लगा कि उसकी साँसें भी रुक जाएँगी। उसकी हालत बद से बदतर होती जा रही थी।
यह आदमी पूरी तरह से पागल हो चुका था।
आगे क्या होगा?
क्या होगा जब मेघांश को तृषा के बच्चों के बारे में पता चलेगा?
क्या वह कभी तृषा के अतीत को स्वीकार कर पाएगा?
और क्या तृषा कभी अपनी सच्चाई बताने की हिम्मत जुटा पाएगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए…
शौर्य गुस्से से अपने फोन की स्क्रीन पर नज़रें गड़ाए बैठा था। उसकी मुट्ठियाँ कसकर भींच गईं। उसने गहरी साँस लेते हुए दबी आवाज़ में कहा,
"माँ कहाँ चली गईं? क्या वहाँ जाकर उन्होंने हमें भूल दिया? क्या उन्हें याद नहीं कि उनके दो बच्चे भी हैं? माँ इतनी बेरहम कैसे हो सकती हैं! ऐसी तो नहीं थीं वो! मैंने साफ़ मना किया था, फिर भी उन्होंने मेरी बात अनसुनी कर दी। गुस्सा आ रहा है! अगर शाम तक उन्होंने कॉल नहीं किया, तो मैं खुद निकलूँगा बेंगलुरु के लिए!"
यह कहकर, वह गुस्से में अपनी बाइक स्टार्ट कर वहाँ से तेज़ रफ़्तार में निकल गया।
दूसरी तरफ, एक सुनसान सड़क पर तेज़ रफ़्तार बाइकें दौड़ रही थीं। हर दिशा से बाइकों की गड़गड़ाहट गूंज रही थी। वहाँ एक अवैध बाइक रेस हो रही थी, जिसमें देशभर के नामी राइडर्स हिस्सा ले रहे थे। भीड़ की चीख-पुकार और इंजनों की गूंज माहौल को और रोमांचक बना रही थी।
एक राइडर, जो अब तक सबसे पीछे था, अचानक अपनी स्पीड बढ़ा दी। जैसे ही फ़िनिश लाइन करीब आई, उसने बाकी सभी को पीछे छोड़ते हुए सबसे आगे आकर जीत हासिल कर ली। उसकी जीत पर लड़कियाँ उत्साह में चीखने लगीं और उसे घेर लिया, लेकिन वह किसी को नज़रअंदाज़ करते हुए सीधा दूसरी दिशा में बढ़ गया। लड़कियाँ मायूस हो गईं।
"SR, कृपया मंच पर आएँ और अपनी इनाम राशि लें!"
मंच से आवाज़ गूँजी, लेकिन वह राइडर शांत खड़ा रहा। उसकी आँखें ठंडी और भावशून्य थीं। फिर वह धीरे से मुड़ा, एक नज़र मंच की ओर डाली, और बिना कुछ कहे बाइक की ओर बढ़ गया। उसे न इनाम राशि की परवाह थी, न ही वाहवाही की।
उसका एटीट्यूड देखकर बाकी राइडर्स के चेहरे गुस्से से भर गए, लेकिन कोई भी उसके सामने कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पाया। उसने अपनी बाइक स्टार्ट कर पूरी रफ़्तार से वहाँ से निकल गया।
कुछ देर बाद, एक आलीशान होटल के सामने उसकी बाइक रुकी। वहीं पास में एक शानदार मॉल भी था, जहाँ से एक खूबसूरत लड़की बाहर निकल रही थी।
वह अपने सामान को सम्भालते हुए आगे बढ़ ही रही थी कि अचानक किसी से टकरा गई। उसका दिल जोर से धड़क उठा। घबराहट में उसने जल्दी-जल्दी अपना सामान समेटना शुरू कर दिया।
जैसे ही उसने सिर उठाया, उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। उसके सामने वही खड़ा था... सूर्यांश।
वही लड़का, जिसका नाम सुनते ही लोग काँप उठते थे। वही लड़का, जो अंधेरे का साया था। सुंदरता के मुखौटे के पीछे छिपा एक राक्षस।
उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। वह तेज़ी से मुड़ी और जाने लगी, लेकिन पीछे से एक ठंडी आवाज़ आई।
"तुम्हारा सामान..."
उसकी साँसें रुक गईं।
सूर्यांश नीचे झुका, उसका सामान उठाया और धीरे-धीरे उसके पीछे बढ़ने लगा।
लड़की की आँखों में गुस्सा और डर एक साथ झलक रहा था। वह काँपती आवाज़ में चीख पड़ी,
"मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?"
सूर्यांश कुछ कहने को हुआ, लेकिन उसने उसकी बात सुने बिना ही तड़पती आवाज़ में कहा,
"तुम्हें तो भूखा ही रहना चाहिए था! तुम लायक नहीं हो कि कोई तुम्हारी परवाह करे! मुझे आज भी गुस्सा आता है कि मैंने माँ की बात मानकर तुम्हारे लिए खाना लेकर आई थी! तुम जैसे घटिया लड़के लड़कियों के साथ गलत करते हैं, और अब मुझे स्टॉक कर रहे हो? अगर एक कदम भी आगे बढ़ाया, तो मैं पुलिस को बुला लूँगी!"
वह पीछे हटी, लेकिन सूर्यांश ने एक धीमी, सर्द मुस्कान के साथ कदम आगे बढ़ा दिया। उसकी आँखों में अजीब-सी चमक थी।
रात घनी होती जा रही थी, और लड़की का दिल तेज़ धड़कने लगा।
लड़की के शब्द सूर्यांश के कानों में जहर की तरह घुल गए। उसकी आँखों में एक पल के लिए ठंडक छा गई, और अगले ही पल, वह गुस्से से तमतमा उठा। उसने झटके से उसकी कलाई पकड़ ली और लगभग घसीटते हुए उसे एक संकरी, अंधेरी गली में ले गया। वहाँ कोई नहीं था—बस सन्नाटा और गहरा अंधकार।
लड़की की साँसें तेज़ हो गईं। अंधेरे की वजह से ठीक से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, लेकिन वह महसूस कर सकती थी कि सूर्यांश की पकड़ और भी मज़बूत होती जा रही है। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। वह हड़बड़ाते हुए खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगी और काँपती आवाज़ में बोली,
"छोड़ो मुझे! यह क्या कर रहे हो? बदतमीज़ी की हद पार कर रहे हो! मुझे जाने दो... इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा!"
सूर्यांश के चेहरे पर एक ठंडी, खौफ़नाक मुस्कान फैल गई। उसकी आँखों में वह अंधेरा था जो किसी की भी रूह कंपा सकता था। उसने दाँत भींचते हुए बर्फीले लहजे में कहा,
"बदतमीज़ी? तुमने अभी तक कुछ देखा ही नहीं... अगर मैं तुम्हें अपनी हदें दिखा दूँ, तो तुम सोच भी नहीं सकती कि तुम्हारी हालत क्या होगी!"
लड़की के पूरे शरीर में जैसे बिजली दौड़ गई। डर उसकी आँखों से झलक रहा था, लेकिन उसने अपने डर को गुस्से में बदलते हुए चीखकर कहा,
"सीधा बोलो ना! तुम मुझे जबरदस्ती प्रेग्नेंट करना चाहते हो, है ना? तुम जैसे घटिया लड़के..."
उसकी बात अधूरी ही रह गई, क्योंकि अगले ही पल सूर्यांश एकदम खामोश हो गया। उसके चेहरे पर ऐसा कुछ था, जिसे देखकर लड़की को और भी ज़्यादा डर लगने लगा। अचानक, उसने गहरी साँस ली और अपनी मर्दानी आवाज़ में दाँत पीसते हुए कहा,
"प्रेग्नेंट करना? दिलचस्प ख्याल है... लेकिन मैंने ऐसा कुछ सोचा नहीं था। मैं तो बस तुम्हें मारने की सोच रहा था। लेकिन अगर तुम चाहती हो, तो मैं तुम्हारी ये ख्वाहिश भी पूरी कर सकता हूँ... इसमें मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं है। वैसे भी, तुम मुझसे ज़्यादा बदतमीज़ लग रही हो… एक घटिया सोच रखने वाली लड़की!"
लड़की की आँखें फटी की फटी रह गईं। उसे पहली बार एहसास हुआ कि वह किसके सामने खड़ी थी—कोई इंसान नहीं, एक जलता हुआ तूफ़ान, जो कभी भी उसे तबाह कर सकता था।
सूर्यांश ने एक झटके में उसकी कलाई छोड़ दी। लड़की काँपते हुए पीछे हटी, लेकिन अगले ही पल गुस्से में फट पड़ी।
वह तेज़ी से उसके सामने आई, उसके सीने पर जोर से हाथ रखकर उसे पीछे धकेलने की कोशिश करने लगी। उसकी आँखों में गुस्से और आँसुओं का संगम था।
"तुम मुझसे डर रहे हो, है ना? इसलिए अब भाग रहे हो! ताकि मैं पुलिस को न बुलाऊँ और तुम्हें जेल में न डलवा दूँ! सच में, आंटी कितनी स्वीट और खूबसूरत हैं, लेकिन तुम... तुम उन पर गए ही नहीं। शायद तुम अपने बिगड़े हुए बाप पर गए हो—बिगड़े हुए बाप की बिगड़ी हुई औलाद!"
उसकी बात सुनकर पहली बार सूर्यांश बिल्कुल शांत हो गया। उसकी आँखों में एक गहरी परछाईं लहराई। लड़की को समझ भी नहीं आया कि उसने क्या कह दिया।
और फिर...
सूर्यांश का चेहरा अचानक खतरनाक रूप से बदल गया। उसकी साँसें भारी हो गईं, और अगले ही पल उसने लड़की के बालों को पकड़ लिया। वह दर्द से चीख पड़ी, लेकिन उसकी चीख उसी गली के अंधेरे में घुट कर रह गई।
सूर्यांश ने उसे दीवार से जोर से सटा दिया। उसके चेहरे के करीब अपना चेहरा लाकर फुसफुसाया, "जो अभी कहा... वो दोबारा कभी मत कहना। वरना ज़िंदा नहीं बचोगी। मैं जो कहता हूँ, वो करता हूँ। तुम सोच भी नहीं सकती कि तुम्हारे साथ क्या हो सकता है..." उसकी आवाज़ बर्फ जैसी ठंडी थी।
लड़की की आँखों से आँसू बहने लगे। उसके शरीर ने काँपना शुरू कर दिया। उसने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन सूर्यांश की पकड़ इतनी मज़बूत थी कि वह हिल भी नहीं पा रही थी।
उसकी आँखों में अब सिर्फ़ डर था। यह डर किसी साधारण इंसान से नहीं था—यह डर था एक ऐसे शख्स से, जो अपनी ही तबाही से जूझ रहा था। जो खुद से नफ़रत करता था। जो खुद को मिटाने पर तुला था।
लेकिन क्यों? क्यों वह खुद से इतनी नफ़रत करता था? और क्यों किस्मत बार-बार इन्हें आमने-सामने ला रही थी? यह सिर्फ़ एक मुलाक़ात नहीं थी... यह एक तबाही की शुरुआत थी।
पढ़ते रहिए, क्योंकि यह कहानी सिर्फ़ अंधेरे की नहीं... बल्कि उस आग की है, जो सबकुछ भस्म कर सकती है।
सिद्धि पूरी ताकत लगा रही थी खुद को छुड़ाने के लिए, मगर सूर्यांश की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह हिल भी नहीं पा रही थी। खुद को छुड़ाना तो बहुत दूर की बात थी।
अब उसका गुस्सा भड़क उठा। उसकी आंखों में आग थी।
"यह बहुत ज्यादा बदतमीजी हो रही है! छोड़ो मेरा हाथ! दर्द हो रहा है... क्या मार डालना चाहते हो?"
उसकी बातें सुनकर सूर्यांश की आंखों में अजीब-सी चमक आ गई। उसने कुछ पल उसे वैसे ही देखा, जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को परखता हो, फिर बेहद ठंडे लहजे में बोला—
"तंग करना पहले तुमने शुरू किया था। मैं तो बस ये देने आया था।"
उसने सिद्धि का सामान उसकी तरफ बढ़ा दिया। पर उसे देखते ही सिद्धि का चेहरा फीका पड़ गया। उसकी सांसें तेज हो गईं। घबराहट से हाथ कांपने लगे। उसने झट से सामान पकड़ा और हड़बड़ी में बोली—
"ठीक है, सॉरी! अब जाने दो मुझे!"
मगर यह सुनते ही सूर्यांश के चेहरे पर एक भयानक अंधेरा छा गया। उसने झटके से सिद्धि के बालों को मुट्ठी में जकड़ लिया, उसका चेहरा अपने करीब खींचा, और दांत पीसते हुए फुसफुसाया—
"मेरे सामने फिर कभी मत आना!"
सिद्धि के रोंगटे खड़े हो गए। उसकी धड़कन जैसे रुक सी गई थी।
और फिर सूर्यांश उसे वहीं छोड़कर, गुस्से से वहां से चला गया।
सिद्धि कुछ पल वैसे ही खड़ी रही। उसकी कलाई जल रही थी, लाल पड़ चुकी थी। आंखों में आंसू छलक आए। लेकिन उसने तेजी से उन्हें पोंछ दिया। अब उसकी आंखों में डर की जगह गुस्सा था।
"पागल आदमी! मन कर रहा है दस-बारह थप्पड़ जड़ दूं!"
गुस्से से बड़बड़ाते हुए उसने अपना सामान उठाया और वहां से चली गई।
दूसरी तरफ…
बालकनी में मेघांश खड़ा था। अंधेरे में उसकी काली आंखें बुझती सिगार की लौ की तरह चमक रही थीं। वह ठंडे लहजे में फोन पर किसी से बात कर रहा था।
नीचे, फर्श पर एक टूटा हुआ फोन पड़ा था। उसके ठीक बगल में तृषा घुटनों में सिर छुपाए बैठी थी। वह कांप रही थी।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।
मेघांश ने धीमे से तृषा की तरफ देखा और अपनी भयानक, ठंडी आंखों से इशारा किया। तृषा ने कांपते हुए दरवाजा खोला। बाहर एक आदमी खड़ा था—चुप, निर्विकार। उसने हाथ में रखा खाना और एक बैग भीतर रखा और बिना कुछ कहे चला गया।
तृषा ने हल्की सांस ली, लेकिन उसकी राहत कुछ ही पलों की थी।
"तैयार हो जाओ।"
मेघांश की आवाज में एक अजीब-सा ठहराव था, जैसे कोई तूफान के आने से पहले की शांति।
"हमें अभी निकलना है, टेंडर के लिए।"
लेकिन तृषा ने तुरंत सिर उठाया। उसकी आंखों में गुस्सा था, डर के पीछे छुपा हुआ गुस्सा।
"मैं कहीं नहीं जाऊंगी! तुम्हारे साथ तो बिल्कुल नहीं! मैं यह सब छोड़ना चाहती हूँ! ना तुम्हारे साथ काम करना है, और ना ही ये शादी स्वीकार है! तुम मुझे जबरदस्ती नहीं कर सकते!"
कमरे में जैसे सन्नाटा छा गया।
मेघांश ने बहुत धीरे से सिर झुकाकर उसे देखा। उसके होंठों पर एक पतली मुस्कान आई। और फिर…
एक झटके में वह उसके करीब आ गया।
तृषा का दिल जोर से धड़क उठा।
मेघांश ने उसकी कलाई को पकड़ लिया, इतनी जोर से कि उसकी उंगलियां सफेद पड़ गईं। वह एकदम उसके चेहरे के करीब झुका और बर्फ जैसे ठंडे स्वर में फुसफुसाया—
"ठीक है, नहीं मानती ना?"
उसकी सांसें तृषा के गालों पर जलती-सी महसूस हो रही थीं।
"तो फिर… जो कुछ देर पहले अधूरा छूट गया था… उसे पूरा कर दूं?"
तृषा की आंखें डर से बड़ी हो गईं। उसकी सांसें रुक गईं।
कमरे का माहौल भारी हो गया था। दीवारें जैसे सिकुड़ रही थीं। उसकी धड़कनें कानों में गूंज रही थीं।
नहीं…!
तृषा की सांसें उखड़ने लगीं। उसके हाथों में ठंडापन उतर आया था। मेघांश की उंगलियां उसकी कलाई पर कसती जा रही थीं।
"छोड़ो मुझे..." उसकी आवाज कांप रही थी।
लेकिन मेघांश के चेहरे पर एक साया सा उतर आया था—कुछ अंधेरा, कुछ बेहद खतरनाक। उसकी काली आंखें तृषा के डरे हुए चेहरे को टटोल रही थीं, जैसे उसकी हर घबराहट को पी जाना चाहता हो।
"तुम्हें लगता है कि तुम भाग सकती हो?" उसकी आवाज में हल्का उपहास था। "या शायद तुम अब भी यह मानती हो कि तुम्हारी मर्जी चलने वाली है?"
उसने तृषा को एक झटके से अपनी ओर खींचा।
"मैं... मैं ऐसा कुछ नहीं कह रही..." तृषा हकलाते हुए बोली, उसकी आंखों में भय था।
"तो फिर ये नखरे क्यों?"
और इससे पहले कि तृषा कुछ कह पाती, एक जोरदार थप्पड़ उसकी गाल पर पड़ा।
"मैं तुम्हें जितना सहता हूँ, उतना किसी और को सहन नहीं करता," मेघांश फुफकारा। "अब कपड़े बदलो। अभी।"
उसकी उंगलियां तृषा की कलाई को इतनी मजबूती से जकड़े थीं कि वह छूटने के लिए छटपटा उठी।
"मैं... मैं खुद पहन लूंगी..." उसकी आवाज टूट रही थी, आंखों से आंसू गिरने लगे थे।
"नहीं, तुम मेरी मर्जी से पहनोगी।"
और फिर, बिना किसी चेतावनी के, उसने अलमारी से एक ड्रेस निकाली और तृषा की ओर उछाल दी।
तृषा कांप रही थी। उसके हाथ कांपते हुए कपड़े पकड़ रहे थे।
"मेरे सामने बदलो।"
उसकी रीढ़ में ठंडी लहर दौड़ गई। "नहीं!"
लेकिन यह "नहीं" बहुत कमजोर था। मेघांश की आंखें अब उसे पूरी तरह से घेर चुकी थीं, जैसे उसकी आत्मा को जकड़ लिया हो।
"अगर ज्यादा तमाशा किया तो मैं खुद—"
वह आगे बढ़ा, उसकी शर्ट की कॉलर पकड़ ली, जैसे एक झटके में उसे चीर ही देगा।
तृषा की सांस अटक गई। उसकी आंखों में खौफ की साया गहरी होती जा रही थी।
कमरे में सिर्फ उसकी तेज धड़कनों की आवाज गूंज रही थी…
तो क्या होने वाला है इसके बाद? क्यों मेघांश तृषा से इतना नफरत करता है? क्या मेघांश जो चाहता है तृषा करेगी वह? क्या कोई तृषा को बचाने आएगा? कैसा होगा जब सूर्यांश और शौर्य को पता चलेगा तृषा की इस हालात के बारे में? जानने के लिए पढ़ते रहिए
शौर्य तेज कदमों से घर लौटा। उसकी आँखों में गुस्से की लपटें जल रही थीं। वह सीधा अपने कमरे में गया, दरवाजा धड़ाम से बंद किया और फोन निकालकर किसी को कॉल किया। उसकी आवाज़ में उग्रता थी, आदेश देने का रौब था—
"मीटिंग की तैयारी करो! मैं अटेंड करूँगा, समझे? मैं आ रहा हूँ!"
फोन के दूसरी तरफ एक आदमी था, जो शौर्य की बात सुनकर सन्न रह गया। यह तो असंभव था! उसने हड़बड़ाते हुए कहा—
"क्या... क्या आप सच में मीटिंग अटेंड करने वाले हैं, बॉस? लेकिन... लेकिन आप तो कभी दुनिया के सामने नहीं आते! और अगर बड़े बॉस को पता चला, तो क्या होगा? क्या आपने उनसे बात की?"
शौर्य की आँखों में गहरा अंधेरा छा गया, जैसे बिजली चमकने से पहले का सन्नाटा हो। उसने ठंडी लेकिन क्रूर आवाज़ में कहा—
"जरूरी नहीं कि हर बात की इजाज़त उसी से लूँ। उसका काम अलग है, मेरा अलग। मुझे नहीं लगता कि मुझे उसे बताना चाहिए। तुम चुपचाप अपना काम करो। जो कहा गया है, वही करो!"
उसके हाथ अपने आप मुट्ठी में बदल गए, जैसे किसी अदृश्य दुश्मन को कुचल देना चाहता हो। उसने गहरी साँस ली, गुस्से को काबू में किया और फिर क्लोजेट की ओर बढ़ा।
क्लोजेट खोलते ही काले और सफेद रंग के कपड़े उसकी आँखों के सामने थे। वह केवल इन्हीं रंगों में जीता था—और तीसरा जो इकलौता रंग उसे पसंद था, वह था नेवी ब्लू। कुछ ऐसा ही उसका भाई सूर्यांश भी था—न सजीव रंग, न हल्की छायाएँ—बस ठंडा अंधेरा।
शौर्य ने एक काले ब्लेज़र के साथ अपनी पसंदीदा सफेद शर्ट और ब्लैक पैंट निकाली और तैयार होने लगा। तभी कमरे में सूर्यांश दाखिल हुआ। उसकी चाल हमेशा की तरह धीमी और निगाहें शांत, लेकिन भीतर एक गहरी रहस्यमयता थी। उसने एक आईब्रो ऊपर उठाई और शौर्य को देखते हुए कहा—
"कहाँ जा रहे हो, तैयार होकर?"
शौर्य ने आईने में खुद को देखा, फिर पीछे मुड़कर गुस्से से कहा—
"अब मैं बच्चा नहीं रहा। अब मैं अपना बिजनेस संभाल सकता हूँ और संभालूँगा। मैं मीटिंग के लिए जा रहा हूँ!"
सूर्यांश कुछ देर उसे गहरी निगाहों से देखता रहा। उसकी आँखों में एक ठंडक थी, जैसे बर्फ की सिल्ली पर आग रख दी गई हो। उसे पता था कि शौर्य कितना गुस्सैल था—एक ज्वालामुखी, जो कभी भी फट सकता था। अगर उसे ज़रा भी उकसाया जाए, तो वह सब कुछ तहस-नहस कर सकता था। जबकि सूर्यांश खुद अपने गुस्से को नियंत्रित करना जानता था, शौर्य नहीं कर सकता था। और यही एक बड़ी समस्या थी।
शांत लेकिन सख्त लहज़े में सूर्यांश ने कहा—
"नहीं। तुम नहीं जाओगे।"
शौर्य की नसें तन गईं, उसका गुस्सा फिर से उबलने लगा।
"क्यों? मैं क्यों नहीं जा सकता? क्यों आपको लगता है कि मैं कुछ नहीं कर सकता? क्यों आप हमेशा मुझे रोकते हैं? मैं सब कुछ कर सकता हूँ! मुझे गुस्सा आ रहा है मम्मी पर! मम्मी हमें भूल गई हैं!"
सूर्यांश की निगाहें और ठंडी हो गईं। उसने धीरे से कहा—
"मम्मी की अपनी ज़िंदगी है, शौर्य। उन्होंने हमारे लिए बहुत कुछ किया है। खुद को बर्बाद कर दिया, हमारी खातिर। उन्हें भी हक़ है खुश रहने का। और अगर वो वहाँ खुश हैं, तो हमें उनकी खुशियों में दखल नहीं देना चाहिए।"
शौर्य की आँखों में दर्द छलक आया, लेकिन उसने उसे गुस्से की परतों के नीचे दबा दिया।
"पर हम मम्मी के बच्चे हैं! क्या उन्हें हमारी याद नहीं आती? क्या वो हमें ऐसे ही भूल सकती हैं?"
गुस्से और दर्द से भरा शौर्य सोफे पर गिर गया और मुँह फुलाकर बैठ गया। पर तभी उसका फोन बजा।
उसने स्क्रीन देखी—गौरी।
जैसे ही उसने फोन उठाया, उसका चेहरा अचानक बदल गया। उसकी आँखों में जो अंधेरा था, वह पलभर में किसी बच्चे की मासूम खुशी में बदल गया।
दूसरी तरफ गौरी चूड़ियाँ पहनते हुए हँसकर कह रही थी—
"मम्मी-पापा बाहर गए हैं, और तुम मुझे लेने आ जाओ! हम दोनों बाहर घूमने चलते हैं!"
शौर्य की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
"क्या सच में? तुम मेरे साथ घूमने चलना चाहती हो?"
गौरी खिलखिलाकर हँसी—
"हाँ! अब जल्दी से आओ!"
सूर्यांश, जो यह सब देख रहा था, हल्की मुस्कान के साथ मुँह फेरते हुए बुदबुदाया—
"कुछ नहीं हो सकता इस लड़के का!"
शौर्य तुरंत अपने कमरे से निकला, उसकी गुस्से और घुटन से भरी दुनिया कुछ देर के लिए गौरी के हँसते चेहरे के आगे फीकी पड़ गई। पर क्या यह खुशी टिक पाएगी? या फिर उसके अंदर का अंधेरा लौटकर उसे निगल जाएगा?
शौर्य काले रंग की जैकेट और बूट्स पहने, ठंडे मगर गहरे नज़रिए से सब कुछ देखता हुआ, गौरी को लेने आया। जैसे ही गौरी दरवाजे के पीछे से तेज़ी से निकली और उसके सामने आकर खड़ी हुई, शौर्य का वक्त जैसे ठहर गया। उसकी कलाई में बंधी चूड़ियों की खनक शौर्य के कानों में किसी रहस्यमयी धुन की तरह गूंजने लगी। वह बस उसे देखता ही रह गया।
गौरी आज बेहद ख़ूबसूरत लग रही थी—गुलाबी रंग के लहराते लॉन्ग शरारा में, साइड से टिकाए दुपट्टे के साथ। उसकी आँखों में गहरा काजल था, और लंबे घने बालों को खुला छोड़ दिया था। होठों पर बस हल्की सी लिपस्टिक थी, मगर इस हल्के रंग में भी वह किसी मंत्रमुग्ध कर देने वाली परी से कम नहीं लग रही थी। मगर परी जैसी मासूमियत की परछाई में छिपा था डर... एक अजीब सा डर, जिसे वह खुद समझ नहीं पा रही थी।
शौर्य भी किसी कम आकर्षक नहीं लग रहा था। हर जगह जहाँ से वह गुज़रता, लड़कियाँ उसे घूरने लगतीं। मगर मज़ेदार बात यह थी कि किसी ने भी उसका चेहरा ठीक से नहीं देखा था। वह ज्यादातर वक्त अपने हेलमेट के पीछे छिपा रहता था। और जब वह बाइक पर सवार होता, तो उसकी दुनिया में बस वह, उसकी रफ्तार, और उसकी अंधेरी खामोशी होती।
शौर्य को सामने देख, गौरी के होंठों पर हल्की मुस्कान आई, मगर उसके दिल में अनजाना भय भी जागा। उसने तेज़ी से जाकर बाइक के पीछे बैठने की कोशिश की, मगर शौर्य ने उसकी कलाई पकड़ ली—मजबूती से, ठंडे मगर अधिकारपूर्ण स्पर्श के साथ।
"जल्दी किस बात की?" उसकी भारी, गूंजती आवाज़ में एक अजीब सी खौफनाक मिठास थी।
गौरी ने पलकें झपकाईं। "शौर्य...?" उसकी आवाज़ काँप गई।
शौर्य की उंगलियाँ धीरे-धीरे उसकी कलाई से उसकी हथेली तक फिसलीं। उसकी पकड़ किसी शिकंजे की तरह कसती जा रही थी, मगर उसके होंठों पर मुस्कान थी—एक अजीब, पागलपन भरी मुस्कान।
"डर रही हो?" उसने झुककर फुसफुसाया।
गौरी ने सिर झुका लिया, लेकिन उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। शौर्य का पागलपन उसे हमेशा अजीब लगता था—कभी मोहक, कभी डरावना।
उसने धीरे से बाइक के पीछे बैठने की कोशिश की, मगर जैसे ही उसने शौर्य के कंधे पर हाथ रखा, उसने बाइक स्टार्ट करने के बजाय, अपनी गर्दन घुमाकर उसे देखा।
"जब तक मैं चाहूँगा, तुम बस मेरे साथ रहोगी। भागने की कोशिश मत करना, गौरी..."
गौरी ने उसकी आँखों में झाँका—वहाँ कुछ था। कुछ बहुत गहरा।
प्यार?
या पागलपन?
या फिर दोनों?
तृषा अचानक होश में आई और मेघांश से खुद को दूर हटाकर अपने शरीर को घृणा से देखते हुए कहा, "मुझे इससे घृणा होती है... मैं इसे कभी नहीं भूलूँगी!"
यह सुनकर मेघांश हल्की मुस्कान के साथ उसके पूरे शरीर पर नज़र डालते हुए कहा, "अब यह हो चुका है... अब क्या करोगी? मुझसे बचोगी? मैंने तुम्हारे और मेरे बीच की यह दीवार तोड़ दी है।"
तृषा गुस्से से चिल्लाई, "तुम्हें बिल्कुल भी शर्म नहीं आई? तुमने मेरे साथ ऐसा कैसे कर दिया? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?"
मेघांश उसके करीब आकर अपने बड़े हाथ से उसके नाजुक कंधे को पकड़ लिया। उसकी आँखों में गहराई से देखते हुए वह ठंडे स्वर में बोला, "मैं तुम्हारे सवालों के जवाब देने के मूड में नहीं हूँ।"
यह कहकर वह वॉशरूम में चला गया। तृषा वहीं खड़ी रह गई और रोने लगी।
दूसरी ओर, शौर्य गौरी का हाथ पकड़कर उसे चूमा और मुस्कुराते हुए कहा, "यहाँ आकर तुम्हें अच्छा लग रहा है, ना? मुझे तो यहाँ घूमना बहुत पसंद है!"
गौरी भी मुस्कुराकर बोली, "मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा है, लेकिन मुझे तुमसे कुछ पूछना है। और सही-सही जवाब देना!"
शौर्य उसके गाल को चूमकर बोला, "हाँ, पूछो ना!"
गौरी शरमाते हुए बोली, "जो तुमने उस दिन कहा था... क्या वह सच था? क्या तुम सच में इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते हो? क्या तुम मुझसे प्यार करने लगे हो?"
शौर्य का चेहरा अचानक गंभीर हो गया। उसने गौरी का जबड़ा पकड़कर उसका चेहरा अपने करीब लाया और ठंडी आवाज़ में कहा, "तुम्हें लगता है कि मैं मज़ाक कर रहा था? मुझे मज़ाक बिल्कुल पसंद नहीं है, और मैं कभी मज़ाक करता भी नहीं। मैं तुम्हें लेकर पूरी तरह गंभीर हूँ।"
गौरी शरमा गई और उसे गले लगा लिया। "तुम बाद में मुझे धोखा तो नहीं दोगे, ना?" वह धीमी आवाज़ में पूछी।
शौर्य उसकी पतली कमर को पकड़कर बोला, "कभी नहीं दूँगा!"
यह कहते हुए वह बेहद प्यार से उसके गाल को चूमने लगा।
गौरी यह महसूस करके थोड़ा पीछे हटी और बोली, "आसपास के लोग हमें देख रहे हैं... और मुझे आइसक्रीम खानी है! तुम मेरे लिए आइसक्रीम लेकर आओ।"
शौर्य मुस्कुराते हुए आइसक्रीम लेने चला गया।
तभी कुछ लड़के गौरी को घेर लिया। उनमें से एक, गौरी की सुंदरता को देखकर बोला, "यह लड़की कितनी खूबसूरत है! और यह हमारे इलाके में घूम रही है, इसका मतलब कि अब यह हमारी हुई!"
यह कहकर वह लड़का अचानक गौरी का नाजुक हाथ पकड़ लिया। गौरी दर्द से चीख पड़ी, "यह क्या बदतमीज़ी है?"
लड़का दाँत पीसकर बोला, "हम यहाँ के डॉन के आदमी हैं, और तुम हमारे इलाके में हो। इसलिए, अब तुम्हें हमारे साथ चलना होगा!"
गौरी गुस्से में उसका हाथ झटककर उसके गाल पर जोरदार थप्पड़ मारा और चिल्लाई, "मैं पुलिस को बुलाऊँगी!"
लड़का गुस्से से हँसते हुए बोला, "तूने मुझे थप्पड़ मारा? इसका जवाब तुझे मेरे बिस्तर पर देना होगा! भरी दोपहर में कौन तुझे बचाने आएगा?"
जैसे ही उसने यह कहा, अचानक तेज़ धमाके की आवाज़ हुई। लड़के की पीठ पर भयानक दर्द उठा और वह तड़पते हुए ज़मीन पर गिर पड़ा।
गौरी डर से अपने मुँह पर हाथ रख लिया और सामने देखा—वहाँ शौर्य खड़ा था।
उसकी एक जेब में हाथ था और दूसरी में बंदूक!
शौर्य की ठंडी नज़रों से बचते हुए बाकी लड़के घबरा गए। शौर्य ने अपनी ठंडी आवाज़ में कहा, "इसे उठाओ... और यहाँ से निकल जाओ!"
लड़के डरकर तुरंत घायल साथी को उठाकर भाग गए।
गौरी अब भी समझ नहीं पा रही थी कि शौर्य की बात उन्होंने इतनी आसानी से क्यों मान ली।
गौरी की साँसें तेज़ हो रही थीं। उसका दिल अभी भी डर और अविश्वास से धड़क रहा था। उसने अपनी आँखें शौर्य पर टिका दीं—उसकी सख्त, ठंडी आँखें, जिनमें अब भी एक अजीब सी शांति थी। जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
गौरी ने हिम्मत जुटाकर धीरे से कहा, "शौर्य... तुमने उन्हें गोली मार दी..."
शौर्य ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में कोई पछतावा नहीं था। वह बेहद सहजता से बोला, "और अगर ज़रूरत पड़ी, तो फिर करूँगा। जो भी तुम्हें छूने की हिम्मत करेगा, उसकी यही सज़ा होगी।"
गौरी का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। शौर्य के भीतर यह कैसी दुनिया थी? इतनी ठंडक, इतनी दृढ़ता...
वह धीरे-धीरे पीछे हटने लगी। लेकिन शौर्य ने फौरन उसकी पतली कलाई पकड़ ली। उसकी पकड़ मजबूत थी, लेकिन उसमें कोई हिंसा नहीं थी।
"तुम मुझसे डर रही हो?" शौर्य की आवाज़ गहरी और गंभीर थी।
गौरी ने उसकी आँखों में देखा—वे अब भी वैसी ही थीं, ठंडी, लेकिन उसमें एक अजीब सा जुनून था।
गौरी ने सिर झुका लिया। उसने अपनी आवाज़ को संतुलित करने की कोशिश की। "मैं... मैं समझ नहीं पा रही... तुम कौन हो, शौर्य? तुम इतने खतरनाक क्यों हो?"
शौर्य उसकी कलाई छोड़कर हल्का सा हँसा। "अगर खतरनाक ना होता, तो आज तुम ज़िंदा ना होतीं।"
गौरी का पूरा शरीर सिहर उठा।
शौर्य ने उसकी ठुड्डी को अपनी उंगलियों से ऊपर किया और धीरे से बोला, "तुम सोच रही हो कि मैं किसी को मारने से डरता नहीं? तुम सही सोच रही हो। मैं नहीं डरता। लेकिन तुम ये भूल रही हो कि मैं तुम्हारे लिए खतरनाक नहीं हूँ, गौरी... मैं तुम्हारे लिए सुरक्षित हूँ।"
गौरी की आँखों में अनजाना सा डर था, लेकिन उसके भीतर कहीं शौर्य की बातों ने एक अलग एहसास भी जगा दिया था।
शौर्य ने अपनी हथेली से उसके गाल को छुआ, उसकी उंगलियाँ उसकी ठंडी त्वचा पर एक हल्का कंपन छोड़ रही थीं। "अब भी तुम्हें आइसक्रीम चाहिए?"
गौरी को समझ नहीं आया कि वह इस सवाल का क्या जवाब दे।
"मुझे बस तुम्हारी बाहों में पनाह चाहिए, शौर्य..." उसने बेहद धीमे स्वर में कहा, जिसे सुनकर शौर्य की आँखों में हल्की चमक आ गई।
शौर्य ने उसे अपनी बाहों में कसकर भर लिया। और तभी, उसके चेहरे पर वही पुरानी मुस्कान लौटी—जो बाकी दुनिया के लिए नहीं थी, सिर्फ गौरी के लिए थी।
गौरी की साँसें अब भी तेज़ थीं, लेकिन शौर्य की बाँहों में आते ही जैसे सारा डर पिघलने लगा। उसकी गर्म हथेलियाँ उसकी कमर पर टिकी थीं, और उसके दिल की धड़कनें इतनी पास से महसूस हो रही थीं कि गौरी को लगा, वह उसमें समा जाएगी।
शौर्य ने हल्के से उसके बालों को पीछे किया, उसकी कोमल गर्दन पर उंगलियाँ फिराईं और धीमे स्वर में बोला, "डर अभी भी है?"
गौरी ने अपनी आँखें बंद कर लीं और धीमे से सिर हिलाया। "तुम्हारे पास रहकर कैसा अजीब सा एहसास होता है... डर भी लगता है, लेकिन तुम्हारे बिना रहूँ तो लगता है, कुछ अधूरा है..."
शौर्य हल्का सा मुस्कुराया। उसने अपनी उंगलियों से गौरी की ठोड़ी को ऊपर किया, ताकि वह उसकी आँखों में देख सके। "अब भी लगता है कि मैं तुम्हारे लिए खतरनाक हूँ?"
गौरी ने कुछ नहीं कहा, बस उसकी आँखों में देखती रही।
शौर्य ने अपना चेहरा धीरे-धीरे उसके करीब किया। उसकी साँसों की गर्माहट अब गौरी की त्वचा को छू रही थी।
"अगर मैं सच में तुम्हारे लिए खतरनाक होता, तो क्या यह सब महसूस कर पाती?" शौर्य ने बेहद नरम आवाज़ में कहा।
गौरी का चेहरा तपने लगा। उसकी साँसें तेज़ हो गईं। शौर्य ने उसकी कमर को हल्का सा कसकर पकड़ लिया और अपनी उंगलियों से उसके गालों को छूते हुए, बेहद नर्मी से उसके माथे पर एक लंबा, गहरा चुंबन दे दिया।
गौरी की आँखें अपने आप बंद हो गईं। उसकी पूरी दुनिया जैसे थम गई थी।
शौर्य ने फिर उसके गाल पर अपने होंठ रखे, और फिर धीरे से उसके कान के पास फुसफुसाया, "तुम मेरी हो, गौरी... और मैं तुम्हें कभी किसी के हवाले नहीं करूँगा।"
गौरी का दिल इस कदर धड़क रहा था कि उसे लगा, शौर्य उसे सुन सकता है। उसने हल्के से अपना सिर शौर्य की छाती पर टिका दिया।
शौर्य ने उसे अपनी बाहों में भर लिया, जैसे उसे पूरी दुनिया से छुपा लेना चाहता हो।
उसने धीरे से कहा, "आइसक्रीम तो रह गई...?"
गौरी हँस पड़ी। उसने शौर्य को हल्का सा मुक्का मारा। "तुम भी ना..."
शौर्य ने उसकी हँसी को देखते हुए कहा, "तुम्हारी हँसी ही मेरी दुनिया है, गौरी... इसे हमेशा ऐसे ही बनाए रखना।"
उसने फिर से उसके गाल को चूमा, और गौरी ने अपनी आँखें मूँद लीं, खुद को पूरी तरह शौर्य की बाहों में छोड़ दिया।
शौर्य उसके लिए आइसक्रीम लेकर आया, और गौरी खुशी-खुशी उसका हाथ पकड़कर घूमते हुए अपनी आइसक्रीम खत्म कर ली। उसे खुश देखकर शौर्य मुस्कुराया और पास की नर्सरी से एक बेहद खूबसूरत लाल गुलाब का पौधा खरीद लाया। वह उसे देते हुए हल्की सी झिझलाहट से बोला,
"यह लो, तुम्हारे टूटे हुए गुलाब की भरपाई। मुझे पता है, मैंने अच्छा नहीं किया था।"
गौरी पौधा देखकर और भी खुश हो गई। उसने शौर्य को बिना किसी झिझक के गले लगा लिया। शौर्य उसकी इस मासूमियत पर गहरी साँस लेते हुए हल्के से हँसा और धीरे से बोला,
"अगर तुम ऐसे ही मुझे कसकर गले लगाती रहीं, तो पढ़ाई करने की उम्र में हाथ में एक प्यारा सा बेबी लेकर घूम रही होगी।"
गौरी झट से पीछे हटी और उसे घूरकर देखती हुई बोली, "कैसी बातें कर रहे हो! पागल हो क्या?"
शौर्य उसकी नाराजगी पर हल्के से मुस्कुराया, जबकि गौरी खुद ही बात को हल्का करते हुए शरारती अंदाज में बोली,
"वैसे भी, मेरे होने वाले पति का इतना अच्छा बिज़नेस है, पढ़ाई में भी टॉप करता है, तो कोई दिक्कत नहीं होने वाली।"
शौर्य उसकी इस बेबाकी पर हल्का सा सिर हिलाया और उसके खूबसूरत चेहरे पर उंगलियाँ फिराते हुए बोला,
"तो तुम चाहती हो?"
गौरी भी उसकी तरफ देखती हुई नटखट अंदाज में बोली, "हाँ, मैं चाहती हूँ।"
शौर्य अचानक उसके घने बालों को हल्के से मुट्ठी में पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा और धीमी आवाज़ में गंभीर लहजे में बोला,
"इतनी जल्दी किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए, गौरी। हालांकि, मुझ पर तुम कर सकती हो। मैं दूसरों की बात कर रहा हूँ।"
गौरी उसकी गहरी आँखों में देखती हुई, फिर हल्की मुस्कान के साथ सिर झुका लिया।
शौर्य बाइक पर बैठा और उसकी कलाई पकड़कर उसे भी बैठने का इशारा किया। गौरी पीछे बैठकर शौर्य को कसकर पकड़ लिया।
शौर्य सिर झुकाकर हल्के से फुसफुसाया, "अगर तुमने ऐसे ही मुझे पकड़े रखा, तो मेरे स्मॉल ब्रदर को जगा दोगी, फिर उसे शांत करवाना मुश्किल होगा।"
गौरी उसका मतलब समझकर शर्मा गई और धीरे से उसके पीठ पर थप्पड़ मारते हुए बोली, "तुम कैसी बातें करते हो! बस, अब घर चलो। मम्मी-पापा आ जाएंगे, मुझे जल्दी घर छोड़ो।"
शौर्य हल्का सा हँसा और बाइक स्टार्ट कर दी, लेकिन उसकी आँखों में अब भी शरारत की वही चमक थी।
तृषा ने एक बेहद सुंदर आसमानी रंग की साड़ी पहनी हुई थी, जिसके साथ उसने सफेद ब्लाउज और हाथों में खूबसूरत हीरे के कंगन पहन रखे थे। उसके खुले बाल उसकी खूबसूरती को और निखार रहे थे। मांग में सिंदूर, गले में हीरे का नेकलेस और मंगलसूत्र... वह इस रूप में बेहद आकर्षक लग रही थी।
मेघांश ने उसका हाथ पकड़कर उसे कार में बिठाया और खुद भी उसकी बगल वाली सीट पर बैठ गया। उसने तृषा को अपनी ओर खींचते हुए कहा,
"दो कल हमें यहाँ से निकलना है, याद है न?"
तृषा कुछ नहीं बोली। वह बस चुपचाप सोचती रही कि वह अपने बच्चों को क्या जवाब देगी। क्या वे इस रिश्ते को स्वीकार कर पाएँगे? उसकी बदली हुई हालत को देखकर मेघांश ने उसे अपनी गोद में बिठा लिया और उसके पेट पर हाथ फेरते हुए पूछा,
"क्या हुआ? क्या सोच रही हो?"
अनजाने में ही तृषा के होंठों से निकल गया,
"अपने दोनों बेटों के बारे में सोच रही हूँ... मैं उन्हें क्या बताऊँगी? क्या वे इस रिश्ते को अपना पाएँगे? आपकी गलती की सज़ा मुझे मिलने वाली है। पता नहीं मैं क्या करूँ, कैसे अपने बच्चों का सामना करूँ? समाज क्या सोचेगा? आपने मेरी ज़िंदगी क्यों बर्बाद कर दी?"
मेघांश ने उसकी बातों को अनसुना करते हुए कहा,
"मेरी भी एक बेटी है।"
यह सुनकर तृषा एकदम हैरान रह गई। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मेघांश सच बोल रहा है।
वह पूरी तरह से स्तब्ध थी।
लेकिन तभी मेघांश ने उसकी ओर देखते हुए ठहराव भरी आवाज़ में कहा,
"मैं सिंगल फादर हूँ... और वह मेरी अपनी बेटी नहीं है, मैंने उसे गोद लिया है।"
यह कहकर वह चुप हो गया।
तभी कार एक शानदार, आलीशान घर के सामने आकर रुक गई।
घर को देखते ही तृषा ने हैरानी से पूछा, "यहाँ क्यों रुके हैं?"
मेघांश ने सहजता से जवाब दिया, "मैं अपनी बेटी को लेने आया हूँ।"
यह सुनकर तृषा कुछ नहीं बोली। दोनों घर के अंदर चले गए।
अंदर पहुँचते ही तृषा की नज़र एक बेहद खूबसूरत बच्ची पर पड़ी। वह सचमुच किसी परी जैसी लग रही थी। उसने आसमानी रंग की लॉन्ग फ्रॉक पहनी हुई थी, उसके घने बाल कंधों तक लहरा रहे थे, गोरा रंग, मासूम चेहरा और नन्हें हाथों में एक खिलौना था।
जैसे ही बच्ची ने तृषा को देखा, वह खुशी-खुशी उसकी ओर भागी और उसे कसकर गले लगा लिया।
"पापा, आप मेरे लिए मम्मी लाए हो?"
तृषा देर तक उस बच्ची को देखती रही। वह बच्ची इतने प्यार से उससे लिपटी हुई थी, जैसे सच में तृषा ही उसकी माँ हो। उसकी आँखें भर आईं। उसने बच्ची को गोद में उठा लिया और प्यार से सीने से लगा लिया।
वह खुद एक सिंगल माँ थी, उसके बेटों के पास फिर भी वह थी, लेकिन इस बच्ची के पास तो कोई नहीं था। अगर मेघांश ने उसे गोद न लिया होता, तो शायद न जाने उसका क्या होता।
अब जो भी हो, वह इस रिश्ते से भाग नहीं सकती थी। उसे इसे स्वीकार करना ही था। लेकिन सबसे मुश्किल बात यह थी कि वह अपने बेटों को कैसे समझाएगी?
ऊपर से, उनकी ज़िंदगी में एक और नन्ही परी की एंट्री हो चुकी थी, जिसे अब वह खुद से अलग नहीं कर सकती थी।
पहली ही मुलाकात में बच्ची से ऐसा खिंचाव महसूस हुआ कि वह उससे दूर जाने की सोच भी नहीं सकती थी।
वहीं, मेघांश बिना किसी भाव के उन दोनों को देख रहा था।
बच्ची ने मासूमियत से कहा, "आप हमारे साथ रहोगी न?"
तृषा ने प्यार से जवाब दिया, "हाँ, हम एक साथ रहेंगे।"
उसने तो यह कह दिया था, लेकिन उसके मन में एक ही सवाल घूम रहा था – क्या मेघांश उसके बेटों को भी अपना पाएगा?
कल का दिन तृषा के लिए बेहद मुश्किल होने वाला था, क्योंकि उसे अपने बेटों को मेघांश से मिलवाना था... और उन्हें इस सच से परिचित कराना था।
सूर्यांश और शौर्य एक-दूसरे को गहरी, ठंडी निगाहों से घूर रहे थे, जैसे यह टकराव उनकी दुनिया को हिला देने वाला हो। दोनों के चेहरे पर कठोरता और गंभीरता स्पष्ट झलक रही थी।
कुछ देर तक बिना शब्दों के टकराव के बाद, शौर्य धीमी मगर सख्त आवाज़ में बोला,
"आज वे आने वाले हैं, और हमें नाटक करना होगा। तुम्हें यह काम ठीक से आता नहीं, है न?"
सूर्यांश ने दाँत भींचकर जवाब दिया,
"तुमसे बेहतर आता है मुझे!"
फिर उसने मेज़ से जूस का गिलास उठाया, उसमें जूस डाला और घूँट-घूँट कर पीने लगा।
जूस पीते हुए उसने अपने फोन को निकाला और देखने लगा। तभी शौर्य ने हल्के से मुस्कुराते हुए पूछा,
"भाई, आपकी वो गर्लफ्रेंड का क्या हुआ?"
सवाल सुनते ही सूर्यांश ने अपनी ठंडी, भावशून्य आँखों से शौर्य को देखा और दाँत भींचते हुए कहा,
"वह मेरी गर्लफ्रेंड नहीं है। वह कोई भी नहीं है। वह बस एक आम, बेकार लड़की है, और मुझे ऐसी गिरी हुई लड़कियों से सख्त नफरत है। मैं चाहता हूँ कि वह मुझसे सौ कदम की दूरी बनाए रखे!"
शौर्य ने ठहाका लगाते हुए चिढ़ाया,
"सौ नहीं, हज़ार कदम, वरना आप तो जान ही ले लोगे!"
शौर्य की हँसी देखकर सूर्यांश का खून खौल उठा, लेकिन उसने अपने गुस्से को काबू में रखा और नाश्ते की ओर ध्यान दिया। आज का नाश्ता शौर्य ने नहीं बनाया था, इसलिए ज़्यादा अच्छा बना था।
तभी अचानक दरवाज़े की घंटी बजी।
दरवाज़ा खोलते ही सामने गौरी खड़ी थी, हाथ में एक बैग थामे। उसे देखते ही शौर्य का चेहरा खिल उठा। बिना एक पल गँवाए, उसने गौरी को बाँहों में भर लिया और हवा में उठा लिया।
गौरी शरमाते हुए फुसफुसाई,
"क्या कर रहे हो? कोई देख लेगा! मैं तो बस तुम्हारे लिए नाश्ता लाई थी। यह मम्मी ने भेजा है... अपने होने वाले दामाद के लिए।"
कहते-कहते वह शौर्य के सीने में अपना सिर छुपा लेती है।
शौर्य ने बिना रुके उसके होंठों पर अपना अधिकार जताना शुरू कर दिया। वह उसे लगातार चूमता रहा, जैसे कोई प्यासा बरसों बाद पानी से मिला हो।
यह सब देखकर सूर्यांश का चेहरा सख्त हो गया। उसे गुस्सा आ रहा था—इन दोनों पर, उनके खुलेपन पर, और शायद अपने अंदर किसी अनजाने अहसास पर भी।
चुम्बन खत्म करने के बाद, शौर्य ने गौरी को अपनी गोद में बैठा लिया और बैग को एक तरफ रखते हुए, उसका नाजुक हाथ अपने मजबूत हाथ में ले लिया। उसकी उंगलियों को अपनी उंगलियों में उलझाते हुए, उसने हल्की मगर गहरी आवाज़ में कहा,
"तुम्हें पता है, सुबह से तुम्हें देखने के लिए कितना बेचैन था मैं? अब तुम्हें देखकर दिल को सुकून मिला है। मन कर रहा है कि बस तुम्हें देखता ही रहूँ... मेरी जान!"
गौरी शरमाते हुए हँस पड़ी और बोली,
"तुम मुझ पर नजर लगा दोगे, और कभी ऐसा होगा कि तुम मुझे जिंदगी भर के लिए देख ही ना पाओ..."
अचानक, शौर्य के चेहरे का रंग बदल गया। उसकी आँखों में कुछ काला और गहरा सा तैरने लगा। उसने झटके से गौरी के बालों को पकड़ लिया, इतनी जोर से कि गौरी दर्द से कराह उठी। उसकी आँखों में आँसू आ गए।
शौर्य की आवाज़ अब गहरी और सख्त थी—
"अगर तुमने दोबारा ऐसा कहा, तो मैं खुद अपने हाथों से तुम्हारी जान ले लूंगा। और तुम्हारी चिता मेरे कमरे के अंदर जलेगी। तुम्हारी राख मेरे बिस्तर के नीचे दफन होगी!"
गौरी सिहर उठी। उसकी साँसें तेज हो गईं, लेकिन उसकी आँखों में डर के साथ कुछ और भी था—शायद वही जुनून, जो शौर्य की आँखों में चमक रहा था।
शौर्य की खतरनाक बातों से घबराकर गौरी तुरंत माफी माँगने लगी। वह उसकी बाँह को पकड़कर बोली,
"सॉरी बाबा, इतनी नाराज़गी क्यों? मैं तो मज़ाक कर रही थी! चलो, अब खाना खा लो। मम्मी ने बहुत कुछ भेजा है तुम दोनों के लिए, और उन्होंने यह भी कहा है कि तुम अपने भाई को लेकर घर आओ।"
शौर्य ने सूर्यांश की ओर देखा, जो पहले ही बैग खोलकर उसमें से खाना निकाल चुका था और मज़े से खा रहा था। बैग में आलू के पराठे, पनीर की सब्जी, चावल, मूंग दाल का हलवा और भी कई पकवान थे।
शौर्य ने हैरानी से कहा,
"सुबह-सुबह कोई इतना भारी खाना खाता है क्या?"
गौरी मुस्कुराई और बोली,
"हमारे यहाँ तो यही परंपरा है! सुबह-सुबह पूरा भोजन किया जाता है, और साथ में चाय भी पी जाती है।"
यह सुनकर शौर्य हैरान रह गया। उसे यह सब पता नहीं था। वह अमेरिका में पला-बढ़ा था, जहाँ का रहन-सहन, खान-पान भारतीय संस्कृति से बिल्कुल अलग था। पहले तो उसे हिंदी बोलने में दिक्कत होती थी, लेकिन अपनी बुद्धिमत्ता के चलते उसने न सिर्फ हिंदी बल्कि कई भाषाएँ सीख ली थीं।
सूर्यांश को खाते हुए देखकर गौरी ने जल्दी से एक और प्लेट निकाली और शौर्य के लिए खाना परोस दिया। फिर वह अपने हाथों से उसे खिलाने लगी। शौर्य भी बदले में उसे अपने हाथों से खिलाने लगा। गौरी उसकी गोद में बैठी थी, और वे दोनों प्यार से एक-दूसरे को खिला रहे थे।
यह सब देखकर सूर्यांश के चेहरे पर खीज उतर आई। वह अपनी प्लेट उठाकर वहाँ से चला गया, लेकिन कुछ देर बाद लौटा और बिना कुछ कहे पूरा बचा हुआ खाना समेटकर ले गया।
गौरी ने आश्चर्य से कहा,
"अरे! वह तो सारा खाना ही उठा ले गया!"
शौर्य ने उसकी ठुड्डी पकड़कर उसकी ओर घुमाया और मुस्कुराते हुए बोला,
"कोई बात नहीं, हम प्यार से ही पेट भर लेंगे। तुम बस मुझे प्यार करो, मेरा पेट खुद-ब-खुद भर जाएगा।"
गौरी ने भौंहें चढ़ाते हुए कहा,
"लगता है तुम कुछ ज़्यादा ही रिल्स देखने लगे हो!"
शौर्य हल्का-सा शरमा गया, लेकिन गौरी के तानों से बचने के लिए उसने बहस छेड़ दी।
"तो क्या हुआ अगर मैं रिल्स देखता हूँ? मुझे अच्छे लगते हैं, इसमें तुम्हें क्या परेशानी है?" उसने थोड़ा गुस्से में कहा।
गौरी उसकी गोद से उठते हुए तड़पकर बोली,
"ओह, तो अब तुम मुझसे इस तरह बात करोगे?"
शौर्य ने दाँत भींचकर कहा,
"तुम खुद भी देखती हो और अब मुझे ताने मार रही हो? पहले खुद को देखो!"
सूर्यांश कब से उन्हें देख रहा था। ये दोनों ऐसे लड़ रहे थे जैसे बरसों के शादीशुदा जोड़े हों। उनका यह ड्रामा देखकर उसे गहरी झुंझलाहट होने लगी। उसका मन कर रहा था कि अपनी बंदूक निकालकर इन दोनों को यहीं खत्म कर दे।
तभी अचानक, शौर्य ने झटके से गौरी को अपनी ओर खींचा, और वह सीधे उसकी छाती से आ लगी। शौर्य ने उसकी जुल्फों में उंगलियाँ उलझाते हुए फुसफुसाया,
"तुम्हारी ये जुल्फें मुझे पागल कर देती हैं।"
गौरी शरमाकर बोली,
"झूठे!"
तभी अचानक, उनके पास रखी काँच की प्लेट ज़मीन पर गिरकर चकनाचूर हो गई। दोनों ने चौककर सिर घुमाया।
सामने सीढ़ियों के पास खड़ा सूर्यांश गुस्से से उबल रहा था। उसकी आँखें लाल थीं, हाथ अब भी ऊपर उठा हुआ था, जैसे उसने जानबूझकर प्लेट फेंकी हो।
गौरी ने जलते हुए स्वर में कहा,
"तुम्हें हमारे प्यार से जलन हो रही है, है ना? तुम जैसे दुनिया वाले हमें अलग करना चाहते हैं! लेकिन हम दोनों बहुत प्यार करते हैं, और कोई हमें अलग नहीं कर सकता।"
सूर्यांश की मुट्ठियाँ भिंच गईं। अब तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर था। वह कुछ कहने ही वाला था कि शौर्य बीच में बोल पड़ा,
"भैया, आप हमारे रोमांस के बीच में क्यों अड़चन डाल रहे हो? खुद तो किसी के पास जाते नहीं, किसी को अपना नहीं बना सकते, और हमें परेशान कर रहे हो!"
फिर शौर्य ने गौरी के गाल पर हल्का-सा चुम्बन दिया और चिढ़ाते हुए कहा,
"चलो बेबी, नदी के किनारे चलते हैं। वहाँ कोई दुनिया वाला हमें तंग करने नहीं आएगा!"
सूर्यांश की आँखें गुस्से से और भी लाल हो गईं।
"दुनिया वाला?!" उसने मन ही मन कहा, "क्या अब मैं इन लोगों के लिए सिर्फ एक बाहरी दुनिया वाला रह गया हूँ? मैं इनका भाई नहीं हूँ?"
शौर्य ने गौरी का हाथ पकड़ा और मुस्कुराते हुए वहाँ से निकल गया। वहीं, सूर्यांश अब भी खड़ा था, गुस्से में उबलता हुआ।
तेज़, डरावनी आवाज़ के साथ प्राइवेट जेट लैंड करता है। कुछ ही पलों में उसमें से तीन शख्स नीचे उतरते हैं—मेघांश, तृषा और उनके साथ मासूम परी। तीनों ही अपनी शख्सियत से बेहद आकर्षक लग रहे थे।
लेकिन, एक पल...! (मेरे प्यारे श्रोताओं, यहाँ एक गलती हो गई थी—तृषा 42 साल की है, 40 की नहीं।)
तेरह साल की मासूम परी अपनी बड़ी-बड़ी, चमकती आँखों से चारों तरफ के नज़ारे देख रही थी। सबकुछ कितना खूबसूरत और भव्य लग रहा था! उसकी मासूमियत में गूँजती उत्तेजना ने तृषा का हाथ और कसकर पकड़ लिया।
"मम्मी! मम्मी! ये सब कितना सुंदर है! मुझे घूमना है!" परी खुशी से उछलते हुए बोली।
तृषा हल्की-सी मुस्कराई और प्यार से बोली,
"हाँ बच्चा, हम घूमेंगे।"
फिर उसकी नज़र मेघांश पर गई—एकदम शांत। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था, जैसे वह इस दुनिया से बिल्कुल अलग किसी और ही रहस्य में डूबा हुआ हो।
तृषा की नज़र तब सामने खड़ी उन काली, चमचमाती गाड़ियों पर पड़ी, जो बहुत ही शाही लग रही थीं। मेघांश आगे बढ़कर उन गाड़ियों के पास पहुँचे, फिर सावधानी से उन्हें बैठाया और खुद भी गाड़ी में बैठ गए।
गाड़ी में तृषा की गोद में बैठी परी, बाहर के दृश्यों को बड़े कौतूहल से निहार रही थी। पर तृषा का ध्यान कहीं और था। एक भारी चिंता उसके मन को जकड़ रही थी—वह अपने बच्चों को क्या जवाब देगी?
उसके दोनों बेटे बहुत मासूम हैं, बहुत प्यारे। वे इस सब को कैसे समझेंगे? क्या वे उसे स्वीकार कर पाएंगे? तृषा की आँखों में बेचैनी थी। उसने क्या कर दिया है? यह सवाल उसे अंदर तक तोड़ रहा था।
गहरी सोच में डूबी तृषा तभी चौंकी जब गाड़ी एक भव्य हवेली के सामने रुकी।
"मुझे मेरे घर जाना है! वहाँ मेरे बच्चे मेरा इंतज़ार कर रहे हैं!" तृषा अचानक बोल उठी।
मेघांश ने अपनी शांत, मगर डरावनी आवाज़ में कहा,
"हमें थोड़ा आराम करना चाहिए...शाम को चलेंगे।"
उसका लहज़ा ऐसा था, जैसे वह तृषा के बेटों को तृषा से भी बेहतर जानता हो। जैसे वह ख़ुद ही उनका पिता हो!
पर सच्चाई... सच्चाई का बम तृषा पर फटने ही वाला था।
तृषा को आभास भी नहीं था कि उसकी दुनिया कुछ ही घंटों में उलटने वाली है।
गहरी सोच में डूबी तृषा परी का हाथ पकड़कर अंदर आ गई। हवेली का अंदरूनी भाग भव्य था, लेकिन उसके दिल में बेचैनी बढ़ रही थी। जैसे कोई बड़ा तूफ़ान आने वाला हो।
जैसे ही वह अपने कमरे की ओर बढ़ी, उसकी नज़र अचानक दो कमरों पर पड़ी। उन्हें देखकर अजीब-सा एहसास हुआ।
क्यों?
उन्हें देखते ही उसे अपने बेटों की शरारतें, उनकी हरकतें याद आने लगीं।
लेकिन... यह क्या?
उसके अंदर कोई अनजाना डर जाग उठा।
थोड़ी देर बाद, वह मेघांश के कमरे में पहुँची। उसे यहीं ठहरने को कहा गया था।
मेघांश का कमरा भी उसकी तरह ही था—शांत, मगर डरावना। पर साथ ही, बेहद आकर्षक।
कमरे में कोई लाइट नहीं थी। बस चारों तरफ मोमबत्तियाँ जल रही थीं, जिनकी धीमी-धीमी लौ कमरे को एक रहस्यमयी आभा दे रही थी। वहाँ एक अजीब-सी खुशबू फैली थी—मन को सुकून देने वाली, मगर साथ ही दिल को किसी अनजाने डर से भर देने वाली।
इधर मासूम परी हवेली को देखते हुए घूम रही थी।
"यह राजावत भवन कितना बड़ा और सुंदर है!" उसने मन ही मन सोचा।
यह सचमुच एक महल की तरह था—शाही, भव्य, विशाल।
लेकिन अचानक, उसकी नज़र एक खास कमरे पर जा टिकी।
यह कमरा...
यह कोई आम कमरा नहीं लग रहा था।
क्या यहाँ कोई रहता है?
परी की मासूम आँखों में सवाल तैरने लगे।
परी को वह कमरा बहुत पसंद आया। उत्सुकता से उसने खिड़की खोली और अंदर दाखिल हो गई। चारों तरफ उसकी जिज्ञासु नज़रें घूमने लगीं। हर चीज़ उसे बेहद आकर्षक लग रही थी।
जैसे ही वह अंदर आई, उसकी नाक में एक तेज़, मगर मनमोहक परफ्यूम की खुशबू आई। उसे यह खुशबू बेहद अच्छी लगी।
तभी उसकी नज़र बेड पर पड़ी—वहाँ एक काली शर्ट रखी थी। परी ने उसे उठाया, सूंघा और मुस्कुरा दी। उसे यह शर्ट बहुत पसंद आई।
फिर अचानक, उसकी नज़र तकिए के पास रखे ढेर सारे चॉकलेट्स पर पड़ी। उसकी आँखों में चमक आ गई। बिना देर किए, उसने वे सभी चॉकलेट्स उठा लिए और भागते हुए मेघांश के कमरे की ओर दौड़ पड़ी।
जैसे ही परी कमरे में पहुँची, उसने तृषा को देखा और खिलखिलाते हुए उसकी गोद में बैठ गई। फिर जल्दी-जल्दी चॉकलेट खाने लगी।
तृषा हैरानी से बोली,
"ये चॉकलेट्स तुम्हें कहाँ से मिले?"
परी ने मासूमियत से जवाब दिया,
"पता नहीं... बस अच्छे लगे, तो ले लिए!"
तृषा ने उसे प्यार से देखा, पर उसका मन अब भी भारी था। वह अंदर ही अंदर खुद को तैयार कर रही थी—आज उसे अपने बच्चों के सामने पूरी सच्चाई रखनी थी।
क्या होगा? क्या वे उसे स्वीकार करेंगे?
यही सब सोचते-सोचते कब वह नींद के आगोश में चली गई, उसे खुद भी पता नहीं चला।
अब तक रात हो चुकी थी। तृषा की आँखें धीरे-धीरे खुलीं।
उसने देखा कि परी अब भी उसके पास सो रही थी, और उसके मासूम चेहरे पर चॉकलेट लगा हुआ था। तृषा हल्के से मुस्कुराई और टिशू पेपर से उसका चेहरा साफ करने लगी।
इसके बाद, वह वॉशरूम में गई, खुद को फ्रेश किया और एक नई साड़ी पहनने का फैसला किया।
मेघांश पहले ही उसके लिए ढेर सारे कपड़े भिजवा चुका था। अब उसे किसी चीज़ की कमी नहीं थी।
तृषा ने गहरे शाही नीले रंग की बनारसी साड़ी पहनी, जो उस पर बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसने अपने बालों का एक सुंदर-सा जूड़ा बना लिया और फिर कमरे से बाहर निकल आई।
वह इधर-उधर टहलने लगी। हवेली वाकई बहुत सुंदर थी—शाही, भव्य, शानदार।
पर जितनी यह जगह सुंदर थी, उतनी ही डरावनी भी।
तृषा के मन में एक अजीब-सा एहसास था... जैसे कुछ बहुत बड़ा होने वाला है।
हवेली में रात पूरी तरह उतर चुकी थी। बाहर हल्की ठंडी हवा बह रही थी, और दूर कहीं उल्लू की आवाज़ गूँज रही थी। तृषा धीरे-धीरे हवेली के गलियारों में चल रही थी, उसकी साड़ी का पल्लू फर्श पर हल्की सरसराहट कर रहा था। मन में हलचल थी—बच्चों से मुलाकात का तनाव, पुरानी यादों का बोझ और मेघांश की रहस्यमयी मौजूदगी।
तभी...
"तृषा।"
एक भारी, गहरी आवाज़ अंधेरे से उभरी।
वह चौंककर पीछे मुड़ी।
मेघांश वहीं खड़ा था, हल्की रोशनी में उसका कद और भी डरावना लग रहा था। उसकी आँखों में वही स्याही जैसी गहराई थी, जिसमें डूबकर इंसान खुद को ही भूल सकता था।
"कहाँ जा रही हो?" उसकी आवाज़ में आदेश था, सवाल नहीं।
तृषा ने खुद को संयत किया और बोली,
"बस... कुछ देर अकेले रहना चाहती थी। बहुत कुछ सोच रही हूँ।"
मेघांश ने एक कदम आगे बढ़ाया।
"सोचना छोड़ दो, तृषा। कुछ भी बदलने वाला नहीं है।"
उसके शब्दों में एक अजीब-सा वादा था—या शायद एक चेतावनी।
तृषा ने उसकी आँखों में देखने की कोशिश की, लेकिन वह ज्यादा देर टिक नहीं पाई। उसकी निगाहें झुक गईं।
"तुम मुझसे कुछ छिपा रहे हो," तृषा ने धीरे से कहा।
मेघांश के होंठों पर एक हल्की मुस्कान आई, लेकिन उसकी आँखें अब भी ठंडी थीं।
"जो बातें छिपाई जाती हैं, वो इसलिए नहीं कि वे झूठ हैं, बल्कि इसलिए कि वे सच से ज्यादा खतरनाक होती हैं।"
तृषा की साँस अटक गई। उसके होंठ सूखने लगे।
"मेघांश, क्या तुम कुछ जानते हो... बच्चों के बारे में?" उसने घबराकर पूछा।
इस बार मेघांश ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने बस एक कदम और आगे बढ़ाया, और जब तक तृषा पीछे हटती, तब तक वह उसके बेहद करीब आ चुका था।
"अगर मैं सच बताऊँ, तो क्या तुम उसे सह पाओगी?" उसकी आवाज़ में एक काला साया था।
तृषा की धड़कनें तेज़ हो गईं।
"सच... कैसा सच?"
मेघांश ने गहरी साँस ली, जैसे कोई बड़ा फैसला लेने जा रहा हो।
"चलो मेरे साथ।"
उसका हाथ तृषा की कलाई पर कस गया। तृषा को डर तो लग रहा था, लेकिन वह मेघांश के साथ चली जाती है। मेघांश बाहर आकर उसे गाड़ी में बैठाता है और खुद भी बैठ जाता है। कुछ ही देर में वे तृषा के घर के बाहर आकर रुकते हैं, जहाँ दो महंगी केटीएम बाइक खड़ी होती हैं।
तृषा समझ जाती है कि उसके दोनों बच्चे घर में ही हैं। वह डरते हुए मेघांश के साथ अंदर जाती है, लेकिन यह सोचकर हैरान रह जाती है कि उसे उसके घर के बारे में कैसे पता चला।
उधर, मेघांश ऐसे चल रहा था जैसे वह यहां हजारों बार आ चुका हो।
कुछ ही देर में वे दोनों अंदर पहुँच जाते हैं। अंदर से दोनों भाइयों के झगड़ने की आवाजें आ रही थीं।
तृषा समझ जाती है कि वे अभी भी झगड़ रहे हैं। उसकी गैर-मौजूदगी में न जाने उन्होंने कितना झगड़ा किया होगा।
वह धीरे से कमरे का दरवाजा खोलकर अंदर झांकती है। अंदर का माहौल बेहद डरावना था। सूर्यांश का हाथ ऊपर उठा हुआ था, और शौर्य के माथे के किनारे से खून बह रहा था। सूर्यांश ने अपने दूसरे हाथ से शौर्य का गला पकड़ रखा था, और शौर्य का एक पैर सूर्यांश के पेट पर था।
यह सब देखकर मेघांश अपनी शांत आवाज में कहता है,
"शांत हो जाओ, दोनों।"
मेघांश को देखकर दोनों थोड़े घबरा जाते हैं और एक-दूसरे से दूर हट जाते हैं, लेकिन सूर्यांश के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था।
सूर्यांश को यूँ चुप होते देखकर तृषा हैरान रह जाती है। उसके बच्चे मेघांश की बात क्यों मान रहे हैं? और सबसे अजीब बात यह थी कि उनके चेहरे पर कोई हैरानी के भाव नहीं थे।
तृषा कुछ कहने ही वाली थी कि मेघांश बोल पड़ा,
"इन्हें कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है। जहाँ तुम्हारी सोच खत्म होती है, वहाँ से इनकी सोच शुरू होती है।"
फिर वह सूर्यांश और शौर्य की ओर देखकर बोला,
"मैंने तुम दोनों से क्या कहा था?"
मेघांश की बात सुनकर शौर्य गुस्से में कहता है,
"पहले अपने बड़े बेटे को समझाओ, फिर मुझे। और क्या आपने मम्मी को सब कुछ बता दिया है? बाद में बता देना, पहले इसे मुझसे दूर रहने को कहो!"
तृषा अपने बेटों का व्यवहार देखकर पूरी तरह से हैरान रह जाती है। वे ऐसे बिहेव कर रहे थे जैसे मेघांश उनके पिता हों। यह सब उसकी समझ से परे था।
वह घबराकर पूछती है,
"क्या तुम सब एक-दूसरे को जानते हो?"
यह सुनकर सूर्यांश शांत आवाज में कहता है,
"भला कोई पिता अपने बच्चों को कैसे नहीं जान सकता?"
तृषा का दिमाग सुन्न पड़ जाता है। उसे चक्कर आने लगता है, और वह गिरने ही वाली होती है कि सूर्यांश और शौर्य उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ते हैं। लेकिन इससे पहले कि वे उसे पकड़ पाते, मेघांश उसे संभाल लेता है।
कुछ देर बाद तृषा घबराई हुई अपने बिस्तर पर बैठी होती है। शौर्य और सूर्यांश उसके दोनों हाथ पकड़कर उसके पास बैठे होते हैं, जबकि मेघांश सामने सोफे पर पैर पर पैर रखकर बैठा होता है। उसके होंठों के बीच एक सिगार फंसा होता है।
तृषा भारी स्वर में पूछती है,
"क्यों मुझसे यह सच छुपाया? पहले क्यों नहीं बताया?"
मेघांश शांत आवाज में कहता है,
"तुम्हें मेरी पहचान के बारे में पता है। अगर मैं अपनी फैमिली को दुनिया के सामने रखता, तो मेरे बच्चे इतने बड़े हो ही नहीं पाते। मुझे एक बच्चा चाहिए था, किसी भी कीमत पर।"
इतना सुनते ही तृषा सब कुछ समझ जाती है—उसके छोटे-छोटे बच्चों में मेघांश का भी अंश था। और उस रात जो हुआ था, वह सब मेघांश की ही एक सोची-समझी साजिश थी।
यह सोचकर तृषा रोते हुए कहती है,
"क्यों मेरे साथ ऐसा खेल खेला? अगर तुम्हें सिर्फ बच्चे ही चाहिए थे, तो जब वे इस दुनिया में आए, तब उन्हें अपने साथ क्यों नहीं ले गए? और मेरे साथ ऐसा क्यों किया?"
मेघांश शांत आवाज में जवाब देता है,
"बच्चे मेरी कमजोरी बन जाते, और उस वक्त वे बहुत छोटे थे। वे दुश्मनों से लड़ने लायक नहीं थे। लेकिन अब वे हर चीज के लिए तैयार हैं।"
तृषा गुस्से में आकर फिर सवाल करती है,
"तो फिर मुझसे इस उम्र में शादी क्यों की? मुझे हटा क्यों नहीं दिया? मार क्यों नहीं डाला? वैसे भी, तुम्हें तो सिर्फ बच्चों के लिए मेरी जरूरत थी, है ना?"
मेघांश शौर्य की ओर देखकर कहता है,
"क्योंकि मेरा छोटा बेटा चाहता था कि मैं तुमसे शादी करूँ।"
यह सुनते ही तृषा झटके से उठ जाती है और अपने दोनों बेटों की ओर देखती है। शौर्य ने सिर झुका रखा था।
अगले ही पल, तृषा गुस्से में शौर्य के गाल पर जोर से थप्पड़ मार देती है और चिल्लाते हुए कहती है,
"जिस माँ ने तुम्हें जन्म दिया, इस दुनिया में लाया, तुम्हें बड़ा किया, उसी को धोखा दिया? क्यों? क्यों इतना बड़ा सच मुझसे छुपाया? तुम तीनों ने मिलकर मुझे धोखा दिया, मेरी पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी! मुझे उसी वक्त सेजल की बात मान लेनी चाहिए थी, तो यह सब नहीं होता!"
शौर्य कुछ कहने ही वाला था कि मेघांश अपना हाथ उठाकर उसे चुप करवा देता है। यह देखकर तृषा हैरान रह जाती है कि उसके बच्चे इस आदमी की बात बिना किसी सवाल के मान रहे थे, जबकि उन्होंने कभी उसकी बात इस तरह नहीं मानी थी। यह सोचकर उसका दिल और ज्यादा दर्द से भर जाता है।
बिना कुछ कहे, वह मेघांश को जोर से धक्का देती है और उठकर बाहर चली जाती है। शौर्य तुरंत उसके पीछे जाने की कोशिश करता है, लेकिन मेघांश उसे रोक लेता है और खुद तृषा के पीछे-पीछे चला जाता है।
तृषा रोती हुई, भागती हुई घर से निकल गई और जंगल में बनी सुनसान सड़क से भागती हुई कहीं जाने लगी। वहाँ बहुत तेज़ी से बिजली चमक रही थी और तूफ़ान भी उठ चुका था।
रो-रोकर उसने अपनी हालत खराब कर ली थी। आज उसे दुनिया का सबसे खतरनाक सच पता चल गया था। खुद को लेकर अब तक उसका बहुत बुरी तरह से इस्तेमाल किया गया था। यहाँ तक कि जिन बच्चों की वजह से उसने खुद को कुर्बान कर दिया था, अपनी खुशियों को विसर्जित कर दिया था, सब कुछ खत्म कर दिया था, वही बच्चों ने उसे धोखा दिया था।
यह सोचकर उसका दिल और भी ज्यादा टूट रहा था। वह ज़िंदा नहीं रहना चाहती थी। उसने फैसला कर लिया था कि वह खुद को खत्म कर लेगी।
उम्र के इस पड़ाव पर आकर उसे यह सब पता चल रहा था। इससे बड़ा और क्या हो सकता है? यही सोचते हुए वह जा रही थी कि अचानक एक गाड़ी उसके सामने आकर रुकी और तभी बहुत जोर से गाड़ी के पीछे बिजली चमकी और गाड़ी का दरवाज़ा खुला। मेघांश उतरा।
इसे देखकर वह पीछे मुड़ने लगी, पर मेघांश ने उसकी कलाई पकड़कर अपनी ओर खींच लिया और एकदम से उसे गाड़ी के बोनट पर लिटाकर उसके जबड़े को पकड़कर धीमी आवाज़ में कहा, "घर चलो।"
तभी बारिश शुरू हो गई। बहुत तेज़ी से बारिश हो रही थी जो उन दोनों को भीग रहा था।
वहीं तृषा अचानक मेघांश को अपने सामने ऐसे देखकर डर गई थी। उसके मुँह से आवाज़ नहीं निकल रही थी, पर तभी सब याद आया। वह गुस्से से उसके हाथ को झटककर बैठते हुए बोली, "दूर रहो! मेरे करीब मत आना। या तुम खुद मेरी जान ले लो या मैं अपनी जान ले लूँगी। मुझे नहीं जीना है।"
यह बोलकर वह रोने लगी। जिसे देखकर मेघांश ने उसे कमर से पकड़कर अपनी ओर खींच लिया और उसके गाल को अपने गाल से रगड़कर धीमे मगर कठोर आवाज़ में कहा, "जो मैं नहीं करना चाहता था, किसी की इतनी हिम्मत नहीं है कि मुझसे वो करवाया जाए। तुमसे शादी मैं अपनी मर्ज़ी से करना चाहता था। बहुत पहले से ही, बच्चों के होने से पहले ही, पर मैं सामने नहीं लाना चाहता था इसलिए मैंने इतना सब कुछ किया।"
तृषा गुस्से से बोली, "मुझे कुछ भी नहीं सुनना है! मुझे नफ़रत है तुमसे, तुम्हारे बच्चों से, सब से! दूर रहो! मुझे सब धोखेबाज़ लगते हैं। सपने भी धोखा दे गए।"
अगले ही पल एक जोर का थप्पड़ उसकी गाल पर पड़ा और उसके होठों के किनारे से खून निकलने लगा। उसे ऐसा लगा कि वह बेहोश हो जाएगी। मेघांश ने थप्पड़ मारा था, बहुत जोर से। फिर उसने उसके बाल कसकर पकड़कर उसे खड़ा किया और उसे अपने करीब करके कहा, "सोचना अभी मत, मुझसे दूर जाने के बारे में। मौत भी हम दोनों को अलग नहीं कर सकती है।"
मेघांश की बातें सुनकर तृषा बस हैरान होकर उसे देख रही थी। वहीं मेघांश उसे अपने करीब खींचकर उसकी आँखों में देखते हुए बोला, "जितनी जल्दी हो सके हमारे रिश्ते को एक्सेप्ट कर लो। और वैसे भी, वे हमारे ही बच्चे हैं, और उन्हें मैंने नहीं छोड़ा है। और मुझे नहीं लगता कि कभी तुम्हें कोई परेशानी हुई होगी, दूर से मैंने हर चीज का ख्याल रखा, तुम्हारा।"
तृषा अपना सर झुका ली। उसे एक्सेप्ट करने में बहुत वक़्त लगेगा, पर उसे बहुत गुस्सा भी आ रहा था। वहीं बारिश की बूँदें बहुत ज़्यादा रफ़्तार से उनके ऊपर गिर रही थीं और मेघांश के बालों से होते हुए पानी तृषा के होठों पर आकर गिर रहा था। तृषा मेघांश को देख रही थी।
तभी मेघांश धीरे-धीरे उसके होठों के करीब आने लगा। तृषा अपने चेहरे को दूर करने लगी, पर मेघांश ने उसके जबड़े को पकड़कर उसके होठों पर अपने होठ रख दिए और उसे चूमने लगा। उसे चूमते हुए वह उसके पूरे बदन को छू रहा था। थोड़ी देर बाद वह उसके होठों को छोड़कर उसे देखने लगा। बिजली की रोशनी में वह तृषा को देख पा रहा था। उसकी साड़ी उसके बदन से चिपक चुकी थी; उसका बदन काफी हद तक दिख रहा था।
जिसे देखकर मेघांश के अंदर का रक्षक जाग रहा था। वह इस लड़की को पूरी तरह से निगल जाना चाहता था। एकदम से उसने तृषा की साड़ी का पल्लू उसके सीने से अलग करके उसके उभार पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। तृषा घबराकर उसका हाथ पकड़ ली और गुस्से से बोली, "आपको शर्म नहीं आता है, इस उम्र में यह सब करते हुए?"
मेघांश ने अपनी उंगली उसके होठों के बीच में डालकर कहा, "इंजॉय करने की कोई उम्र नहीं होती है, और तुम तो मेरी बीवी हो। तुम्हें इतना घबराने और शर्माने की ज़रूरत नहीं। पहली बार नहीं है, बहुत बार हो चुका है हमारे बीच में।"
तृषा गुस्से से उसे धक्का देने की कोशिश की, पर मेघांश ने उसे एकदम गाड़ी के बोनट पर लिटा दिया और उसके ब्लाउज़ के हुक खोलने लगा। तृषा घबरा गई। सड़क के बीचों-बीच, ऐसे खुले में... उसका हवस जाग गया था और अब यह क्या करने वाला था?
वह घबराते हुए उसके हाथ को दूर हटाने की कोशिश करने लगी, पर मेघांश बहुत ताकतवर था। वह कुछ नहीं कर सकती थी। मेघांश एकदम से अपना सर उसके सीने पर रखकर चूमने लगा, उसके उभार को।
तृषा दर्द और उत्तेजना से उसके सीने पर मार रही थी।
एकदम से मेघांश ने उसकी साड़ी को नीचे से ऊपर कर दिया और उसके जांघों पर हाथ फेरते हुए गहरी-गहरी साँस लेने लगा और उसके सीने से हटकर अपना बेल्ट खोलने लगा।
जिसे देखकर तृषा घबराकर मौका पाकर उठ गई और उसे ऐसे अचानक छोड़कर भाग गई। मेघांश को काफी गुस्सा आया। और वह तृषा के करीब आने लगा। गाड़ी का दरवाज़ा जहाँ खुला था, तृषा एकदम से गाड़ी के अंदर फिर गई।
जिसे देखकर मेघांश एक्साइटेड होकर अपनी शर्ट के बटन खोलते हुए बोला, "बैक सीट में चलो, जल्दी!" तृषा भागने लगी, पर मेघांश ने उसकी कलाई पकड़कर जबरदस्ती उसे खींचकर निकाला और बैक सीट पर फेंक दिया और खुद भी बैक सीट पर आ गया और दरवाज़ा बंद कर दिया।
तृषा नाराज़ होकर यहाँ आई थी, गुस्से में अपनी जान लेने के लिए, और यहाँ क्या हो रहा है? यह आदमी पागल है! यह किसी भी पल, किसी भी मोमेंट कुछ भी कर सकता है।
यह सब सोचते हुए वह मेघांश को देख रही थी। वहीं मेघांश अपनी शर्ट के बटन खोलने के बाद आस-पास देखा और फिर ड्राइविंग सीट के पास जाकर एक छोटा सा बॉक्स खोलकर उसमें से एक शीथ निकाला और फिर उसे पहनते हुए तृषा के करीब आकर उसे कमर से पकड़कर अपने गोद में बिठा लिया।
तृषा घबराकर उससे दूर हटाने की कोशिश की, पर वह मेघांश के सामने छोटी सी थी, कुछ भी नहीं कर पा रही थी। वहीं मेघांश उसके गाल को चूमते हुए धीमी आवाज़ में बोला, "तुम मेरी हो। तुम मेरे होने में तुम्हें क्या प्रॉब्लम हो रहा है? तुम्हें छटपटाना बंद करो और मेरी हो जाओ।"
उसकी आवाज़ में न जाने क्या था, तृषा एकदम शांत हो गई और फिर अपनी आँखें बंद कर ली और उसके बाद खुद को ढीला छोड़ दिया। मेघांश ने उसके कुछ कपड़े उतारकर उसे बैक सीट पर लिटा दिया और खुद उसके ऊपर जाकर उसके पैरों को अलग करके धीरे से उसमें समा गया और फिर उसके होठों को चूमते हुए मूवमेंट करने लगा।
तृषा की हालत तो पहले से ही खराब थी और मेघांश के ऐसा करने से उसे महसूस हो रहा था कि उसकी आत्मा उसके शरीर से निकल जाएगी। इस आदमी ने उसे खुद को संभालने तक का वक़्त नहीं दिया था।
एक तो उसे इतनी बड़ी बात पता चली, ऊपर से यह आदमी ऐसा कर रहा है। यह सोच-सोचकर उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे, जिसका नमकीन स्वाद मेघांश को भी आ रहा था, पर इस वक़्त वह एक अलग ही दुनिया में था। वह तृषा के साथ इंजॉय कर रहा था।
कितने सालों से छिपी हुई उसकी प्यास बाहर आ रही थी, जो तृषा को पागल कर रही थी, उसे दर्द भी दे रही थी।
तो क्या होने वाला है इसके बाद? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
बारिश बाहर तेज़ी से हो रही थी, और अंदर का माहौल गर्म और भारी था। तृषा अपने बदन को ढकने की कोशिश कर रही थी, जबकि उसके बगल में बैठा मेघांश अपने होठों के बीच सिगार दबाए हुए था। पूरी कार में धुएँ का घना बादल छाया हुआ था।
मेघांश ने अभी तक शर्ट नहीं पहनी थी। वह सिर्फ़ अपने काले ट्राउज़र्स में था, और उसका पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था। दूसरी ओर, तृषा की धीमी-धीमी सिसकियाँ कार में गूँज रही थीं। यह सुनकर मेघांश गुस्से में उसकी कलाई पकड़कर अपनी ओर खींचा और दाँत पीसते हुए कहा,
"चुप हो जाओ!"
मेघांश की कड़क आवाज़ सुनकर तृषा डर के मारे सहम गई और भयभीत नज़रों से मेघांश की ओर देखने लगी। मेघांश गुस्से में उसके बालों को पकड़ा और दाँत भींचकर कहा,
"मुझे तुम्हारे ये नखरे बिल्कुल पसंद नहीं हैं। चुपचाप स्वीकार कर लो जो हुआ है। यह कभी न कभी होना ही था, क्योंकि तुम मेरी हो!"
मेघांश के इस पागलपन को देखकर तृषा गुस्से में चिल्लाकर बोली,
"आप कैसी बातें कर रहे हैं? छोड़िए मुझे! मैं किसी की नहीं हूँ। मैं कोई निजी संपत्ति नहीं हूँ, न ही कोई चीज़ हूँ, जिसे आप जब चाहें अपने क़ब्ज़े में ले लें। छोड़िए मुझे!"
वह कुछ और कहने ही वाली थी कि मेघांश ने उसे अपनी गोद में खींच लिया और उसके होंठों पर जबरन अपने होंठ रख दिए। मेघांश की यह हरकत देखकर तृषा का गुस्सा और भड़क गया। उसने झटके से खुद को मेघांश से अलग किया और गुस्से में मेघांश के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मारा। फिर तेज़ आवाज़ में बोली,
"यह क्या बदतमीज़ी है? आपकी यह हरकत करने की उम्र नहीं है!"
"उम्र" का ताना सुनकर मेघांश के भीतर और गुस्सा भर गया। मेघांश ने बिना कुछ सोचे तृषा को एक थप्पड़ मारा। उसकी कलाई पकड़ते हुए दाँत पीसकर बोला,
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझ पर हाथ उठाने की? ज़िंदगी में पहली बार किसी ने मुझ पर हाथ उठाया है। अगर तुम्हारी जगह कोई और होता, तो मैं उसका हाथ काटकर अपने पास रख लेता!"
मेघांश की बात सुनकर तृषा कुछ क्षण के लिए डर गई। मेघांश ने अब भी उसकी वही कलाई जकड़े हुए थी, जिससे उसने मेघांश को थप्पड़ मारा था। तृषा को ऐसा लगने लगा कि उसका हाथ टूट जाएगा, लेकिन मेघांश के चेहरे पर कोई दया नहीं थी।
दर्द से बिलखते हुए तृषा बोली,
"मुझे दर्द हो रहा है... बहुत ज़्यादा दर्द हो रहा है! मेरा हाथ छोड़ो... तुम मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हो? कृपया मेरे साथ ऐसा करना बंद करो... मुझे बहुत डर लग रहा है!"
यह सुनकर मेघांश पास से एक बड़ा लंबा ओवरकोट उठाकर तृषा के शरीर को ढक दिया और फिर उसके गाल को जोर से चूमते हुए कहा,
"चलो, तुम्हें कुछ दिखाता हूँ।"
थोड़ी देर बाद गाड़ी एक विशाल, अंधकारमय महल के सामने आकर रुकी। उसका इंटीरियर ग्रे रंग का था, जो पहले से भी अधिक रहस्यमय और खूबसूरत लग रहा था। तृषा अभी भी बिना कपड़ों के थी, और मेघांश उसे वैसे ही अपनी बाहों में उठाकर गाड़ी से बाहर आ गया। तृषा को बेहद शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। उसका मन कर रहा था कि कोई गड्ढा खुद ही खोद ले और उसमें समा जाए।
आसपास बहुत से लोग मौजूद थे, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं थी कि वे सिर उठाकर उन्हें देख सकें। मेघांश तृषा को लेकर अंदर चला गया और फिर एक कमरे में पहुँचकर, वहाँ से एक सीढ़ी के ज़रिए उसे नीचे, एक अंडरग्राउंड जगह पर ले गया। वहाँ पहुँचकर वह एक कमरे में दाखिल हुआ और तृषा को बिस्तर पर लिटा दिया। इसके बाद, वह अपनी ठंडी आँखों से पूरे कमरे का निरीक्षण करने लगा। तृषा भी चारों ओर देखने लगी। कमरे में एक बड़े बिस्तर के अलावा चारों तरफ पर्दे लगे हुए थे। दीवारों पर लाल रंग की आकृतियाँ बनी हुई थीं, जिनका रहस्य उसे समझ नहीं आ रहा था।
तभी, मेघांश एक पर्दे की रस्सी खींची, जिससे सारे पर्दे हट गए—और तृषा जो देखती है, उससे उसका दिमाग सुन्न पड़ गया। वहाँ, पूरे कमरे में काटे हुए हाथों का एक संग्रह रखा हुआ था!
डर के मारे तृषा की आँखों के आगे अंधेरा छा गया, उसका सिर घूमने लगा और वह बेहोश हो गई। यह देखकर मेघांश के चेहरे पर एक खतरनाक मुस्कान आ गई।
कई घंटे बाद, तृषा की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। उसे अपने निचले हिस्से पर कुछ गर्माहट महसूस हुई। यह अजीब-सा लग रहा था। धीरे से उसने अपनी आँखें खोलीं—वह अभी भी कंबल के नीचे थी, और उसके पूरे शरीर पर मेघांश के दिए हुए निशान मौजूद थे।
अचानक, उसे कुछ महसूस हुआ। उसने धीरे-से कंबल हटाया और नीचे देखा। अगले ही पल उसने झटके से अपनी आँखें बंद कर लीं।
"यह बुड्ढा और इसकी हरकतें…!"
तृषा को घबराहट होने लगी। चाहे इसकी उम्र कितनी भी हो गई हो, लेकिन इसकी हरकतें अब भी वैसी ही थीं। क्योंकि अभी कुछ देर पहले ही वह उसे बुरी तरह से चूम रहा था—वो भी ऐसी जगह पर, जो सोचने के साथ ही उसे शर्म से आँखों में आँसू आ गए।
तृषा को घबराहट महसूस हो रही थी। भले ही मेघांश की उम्र बढ़ चुकी थी, लेकिन उसकी हरकतें अब भी वैसी ही थीं। क्योंकि अभी-अभी वह उसे बुरी तरह से चूम रहा था—वो भी ऐसी जगह पर, जो सोचने के साथ ही उसे शर्म से आँखों में आँसू आ गए।
मेघांश ने उसके आँसू देखकर अपना चेहरा उठाया और मुस्कुराते हुए कहा,
"you are so delicious like mango 🥭"
यह सुनकर तृषा घबराकर अपने पैरों को समेट लिया और अपने हाथ से उसे दूर हटाने की कोशिश करते हुए गुस्से में बोली,
"घटिया आदमी!"
यह सुनते ही मेघांश ने जबरदस्ती उसके पैरों को अलग किया और गुस्से से कहा,
"चुपचाप वैसे ही रहो, वरना वहाँ बाकी जो कटे हुए हाथों का कलेक्शन रखा है, उसमें तुम्हारे हाथ भी जोड़ दूँगा, क्योंकि ये बार-बार मुझे डिस्टर्ब कर रहे हैं।"
तृषा गुस्से से बोली,
"शर्म करो, बुड्ढे आदमी! तुम्हारे दो बेटे हैं। दो साल बाद उनकी शादी होगी, उनके बच्चे होंगे, और तुम्हें अभी भी ऐसी हरकतें करनी हैं?"
यह सुनकर मेघांश हल्की सी मुस्कान के साथ बोला,
"तो इसमें क्या हुआ? मेरी ज़िंदगी मेरी मर्ज़ी। और जहाँ तक मेरे बच्चों की बात है, उनकी ज़िंदगी उनकी मर्ज़ी। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। और अगर इस वक्त तुम प्रेग्नेंट भी हो गई, तो भी मेरे पास इतना पैसा है कि सौ बच्चों को भी पाल सकता हूँ।"
तृषा गुस्से से बोली,
"जब मैं प्रेग्नेंट हुई थी, तब कहाँ थे तुम? तब कहाँ था तुम्हारा ये जुनून? तब क्यों नहीं सामने आए?"
मेघांश कुछ देर तक खामोश रहा, फिर धीरे-से उठकर उसके चेहरे के करीब आया और धीमी आवाज़ में बोला,
"तब एक पत्थर को रास्ते से हटाना था… और उसके बाद तुम्हारी और हमारे बच्चे की ही फ़िक्र थी। और मैं अपनी कमज़ोरी को कभी किसी के सामने ज़ाहिर नहीं करता।"
तृषा के दिल की धड़कन तेज़ हो गई। मेघांश की आँखों में जो आग थी, वह अब और भी खतरनाक रूप ले चुकी थी। उसकी पकड़ अब भी वैसी ही मज़बूत थी, जैसे किसी शिकारी ने अपने शिकार को जकड़ रखा हो।
तृषा ने खुद को छुड़ाने की नाकाम कोशिश की, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कहती, मेघांश ने उसके बालों को मुट्ठी में भींचते हुए उसे पीछे की ओर झुका दिया। उसका चेहरा तृषा के ठीक सामने था—इतना क़रीब कि उसकी साँसों की गर्मी तृषा की त्वचा को झुलसाने लगी।
"तुम बार-बार मुझे इस उम्र की याद क्यों दिला रही हो?" मेघांश की आवाज़ इतनी ठंडी थी कि तृषा को उसमें किसी तूफान की आहट महसूस हुई। "क्या मैं बूढ़ा लग रहा हूँ? क्या तुम्हें मेरी बाहों में होने पर कोई कमी महसूस होती है?"
तृषा ने उसकी आँखों में झाँका—वहाँ कुछ ऐसा था, जिससे वह भाग नहीं सकती थी। जुनून। पागलपन। अधिकार।
उसने कांपती आवाज़ में कहा,
"मुझे जाने दो…"
"जाने दूँ?" मेघांश के होठों पर एक खतरनाक मुस्कान आई। उसने अपनी उंगलियों से तृषा की गर्दन को हल्के से सहलाया, फिर एक झटके में उसकी नब्ज़ पर दबाव बढ़ा दिया। "तुम्हें लगता है कि तुम मेरी दुनिया से भाग सकती हो? तुम अब मेरी हो, तृषा… मेरी रूह, मेरा जिस्म, मेरी धड़कन… और मेरी भूख!"
तृषा की आँखों में आँसू आ गए। वह खुद को छुड़ाने के लिए संघर्ष करने लगी, लेकिन उसकी हर कोशिश बेकार थी।
मेघांश ने उसकी ठोड़ी को पकड़कर ऊपर उठाया और गहरी आवाज़ में फुसफुसाया,
"मैंने तुम्हें खोने के डर से छुपकर तुम्हारी हिफ़ाज़त की, लेकिन अब…" वह थोड़ी देर के लिए रुका, फिर उसकी कनपटी पर अपने होंठ टिकाकर बोला, "अब मैं तुम्हें अपने से दूर नहीं जाने दूँगा। मैं तुम्हें तोड़ दूँगा, तुम्हें अपने वश में कर लूँगा, जब तक कि तुम्हारी आत्मा भी मेरी न हो जाए।"
तृषा ने अपनी आँखें बंद कर लीं। उसकी साँसें उखड़ने लगी थीं।
मेघांश ने उसे बिस्तर पर धकेला और उसके ऊपर झुकते हुए बुदबुदाया,
"तुम्हें पता है, मैं कैसा इंसान हूँ, तृषा?"
तृषा ने धीरे से सिर हिलाया, उसकी आँखों में अब भी डर झलक रहा था।
"मैं वो आदमी हूँ जो चीज़ें हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। मैंने तुम्हें पाने के लिए ख़ून बहाया, मैंने तुम्हारे लिए अँधेरे से लड़ाई लड़ी, और अगर ज़रूरत पड़ी तो…"
वह थोड़ा रुका, फिर उसकी कलाई को अपनी पकड़ में कसते हुए फुसफुसाया,
"…तो मैं पूरी दुनिया को जला सकता हूँ।"
उसका गुस्सा अब उसकी आँखों में लपटों की तरह जलने लगा था।
"तुम मेरे पास हो, तृषा। और मैं तुम्हें तब तक छोड़ने वाला नहीं जब तक कि तुम्हें इस बात का एहसास न हो जाए कि तुम्हारा हर हिस्सा सिर्फ और सिर्फ मेरा है!"
तृषा ने काँपते हुए सिर हिलाया, उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। लेकिन मेघांश के चेहरे पर कोई दया नहीं थी—बस एक अजीब-सा सुकून था, जैसे उसने अपनी सबसे बड़ी जंग जीत ली हो।
"अब यह तय हो चुका है…" मेघांश ने उसकी पलकों पर एक हल्का चुंबन दिया और धीरे से फुसफुसाया, "अब तुम सिर्फ़ मेरी हो, और मैं तुम्हें कभी भी खुद से अलग नहीं होने दूँगा… मरते दम तक!"
तृषा को यह सब बेहद अजीब लग रहा था। इस उम्र में मेघांश के मुँह से ऐसी बातें सुनना उसके लिए अप्रत्याशित था। वह सोचने लगी कि यह सब बातें सुनने और अनुभव करने का समय तो कब का बीत चुका था, जब वह युवा थी, जब उसमें उमंग और जोश था। लेकिन अब? अब तो वे दोनों उम्र के उस पड़ाव पर थे, जहाँ इन सबका कोई स्थान नहीं होना चाहिए था।
पर सच, सच ही होता है। इस विचार के आते ही तृषा का चेहरा तपने लगा। उम्र के इस मोड़ पर आकर भी उसे यह सब सुनना पड़ रहा है कि कोई उसके लिए पूरी दुनिया जला सकता है!
तृषा ने एक गहरी साँस ली और खुद को ढीला छोड़ दिया। लेकिन वह पूरी रात सो नहीं पाई—या यूँ कहें कि मेघांश ने उसे सोने ही नहीं दिया। वह खुद भी नहीं सोया। कमरे में चारों तरफ प्रोटेक्शन के फटे पैकेट बिखरे पड़े थे, जो बीती रात की गवाही दे रहे थे।
अगली सुबह, तृषा ने धीरे-धीरे बिस्तर से उठने की कोशिश की। लेकिन तभी उसे अपने शरीर के निचले हिस्से में अजीब सा अहसास हुआ—हल्का-सा दर्द, भारीपन। उसने ध्यान से देखा तो पाया कि मेघांश अब भी उससे जुड़ा हुआ था। उसकी आँखें लाल थीं, जैसे वह पूरी रात जागता रहा हो।
तृषा का मन घबराने लगा। आखिर यह चाहता क्या है? वह मन ही मन सोचने लगी, इस उम्र में भी इतनी वासना? जाने कितनी लड़कियों के साथ सो चुका होगा! और जो भी इसके साथ रही होगी, शायद वह बची ही नहीं होगी। पता नहीं, मैं कैसे ज़िंदा हूँ!
उसे विचारों में खोया देख, मेघांश ने अचानक उसके कानों में फुसफुसाकर कहा,
"तुम मेरी पहली और आखिरी औरत हो, जिसके साथ मैं सोया हूँ। और यह मेरी ज़िंदगी का सिर्फ़ तीसरा संबंध है—तुम्हारे साथ!"
तृषा का दिल जोर से धड़क उठा। वह चौंक गई। यह कैसी बात कर रहा है? यह झूठ बोल रहा है, है न?
वह घबराकर बोली,
"क्या बकवास कर रहे हो? मुझे जाने दो!"
लेकिन जो सच उसने अभी-अभी सुना था, वह उसके दिमाग में गूंज रहा था। जो आदमी एक ही रात में न जाने कितनी बार मुझसे प्यार कर चुका है, वह कह रहा है कि यह उसकी ज़िंदगी का बस तीसरा अनुभव है? यह असंभव है!
तृषा ने अविश्वास से उसकी ओर देखा और दृढ़ स्वर में कहा,
"मैं तुम पर यकीन क्यों करूँ?"
मेघांश ने हल्की मुस्कान के साथ उसकी कमर को और कसकर पकड़ लिया, उसकी नज़दीकियाँ बढ़ाते हुए धीमे स्वर में कहा,
"यकीन नहीं है तो क्या हुआ? यकीन कर लो…"
फिर एक पल रुककर उसने आँखों में अजीब-सी तपिश के साथ कहा,
"इतने साल तुम्हारे करीब नहीं आया, अब उन बीते हुए सालों का हिसाब लेकर ही रहूँगा।"
जैसे ही उसने यह कहा, वह उसके सीने से लगकर अपना सिर छुपा लेता है। तभी तृषा का फ़ोन बजने लगा। वह फ़ोन स्क्रीन पर देखती है तो "बच्चा" नाम फ्लैश हो रहा होता है। वह मेघांश को खुद से दूर करने की कोशिश करते हुए फ़ोन उठाती है। फ़ोन के दूसरी ओर से शौर्य की उदास आवाज़ आती है,
"मम्मी, मुझे माफ़ कर दो। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। मुझे तभी आपको सब कुछ बता देना चाहिए था, लेकिन हम भी मजबूर थे…"
शौर्य गौरी की गोद में सिर रखकर लेटा हुआ था, और गौरी उसे अंगूर खिला रही थी। हालाँकि उसकी बातों में दुःख झलक रहा था, लेकिन उसके चेहरे से ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे कोई पछतावा हो। वह तो खुश लग रहा था, जैसे वह सिर्फ़ नाटक कर रहा हो।
अपने बेटे की ये बातें सुनकर तृषा का दिल दुख से भर उठा। उसने अपने बच्चों को बहुत कुछ कह दिया, लेकिन उनकी क्या गलती थी? वे तो सिर्फ़ अपने पिता की बात मान रहे थे। यही सब सोचते हुए वह खोई हुई थी कि तभी मेघांश उसे और करीब खींचने लगा, जिससे तृषा को दर्द होने लगा। वह मुश्किल से फ़ोन म्यूट करके गुस्से से बोली,
"शांत रहो ना! मैं बच्चों से बात कर रही हूँ!"
यह सुनकर मेघांश दाँत पीसते हुए कहा,
"तुम्हें इस वक़्त बात करने की ज़रूरत नहीं है। इस समय मैं सिर्फ़ तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ। इसलिए चुपचाप बर्दाश्त करो और बाद में बात करना।"
यह सुनकर तृषा का गुस्सा और बढ़ गया। वह फ़ोन काटकर साइड में फेंक देती है और चुपचाप गुस्से से लेटी रहती है। उधर, मेघांश अपनी मनमानी करता रहता है। जब उसका मन भरता है, तब वह उठकर वॉशरूम चला जाता है।
अच्छी तरह नहाकर और फ़्रेश होकर वह कपड़े पहनकर बाहर आता है। अपने शर्ट के बटन लगाते हुए वह कहता है,
"तैयार हो जाओ, हमें घर के लिए निकलना है।"
गुस्से में तृषा कहती है,
"मुझे नहीं जाना। मुझे बहुत दर्द हो रहा है।"
यह सुनकर मेघांश उसे अपनी बाहों में उठा लेता है और वॉशरूम की तरफ़ बढ़ते हुए कहता है,
"कोई बात नहीं, मैं तुम्हें खुद साफ़ कर दूँगा।"
उसकी बात सुनकर तृषा गुस्से से चिल्लाते हुए कहती है,
"बिल्कुल नहीं! तुम्हें कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है! मुझे छोड़ो! तुम पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं किया जा सकता, तुम कुछ भी कर सकते हो!"
तृषा ने जैसा सोचा था, वही हुआ। मेघांश वहाँ भी उसे नहीं छोड़ता। वह खुद फिर से नहा लेता है, लेकिन तृषा को भी नहीं छोड़ता। काफ़ी समय बाद जब वे दोनों बाहर आते हैं, तब तक तृषा की हालत और बिगड़ चुकी थी। उसका पूरा बदन हल्के गुलाबी निशानों से भर चुका था।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि इतना सब होने के बाद वह अपने बच्चों के सामने कैसे जाएगी। अच्छा होता, अगर वह कल रात आई ही नहीं होती। अगर मेघांश पर गुस्सा करती, तो उसे अकेले में यह करने का मौका ही नहीं मिलता।
इन्हीं ख़यालों में डूबी तृषा चुपचाप बैठी थी। उसके बाद मेघांश उसके लिए कपड़ों का इंतज़ाम करता है।
तृषा एक आसमानी रंग की हल्की साड़ी पहनती है, जिसे मेघांश ने उसके लिए लाया था। उसके साथ वह सफ़ेद सिल्की कपड़े का फ़ुल-स्लीव ब्लाउज़ पहनती है, जो बेहद ख़ूबसूरत था। वह अपने बालों को साधारण तरीके से बाँध लेती है, माँग में सिंदूर भरती है और मंगलसूत्र पहनती है।
उसका चेहरा हल्की गुलाबी रंगत लिए चमक रहा था। उसकी उम्र के बावजूद वह बेहद सुंदर लग रही थी। मेघांश के प्यार और जुनून ने उसकी ख़ूबसूरती को और निखार दिया था।
उसे इस तरह तैयार देखकर, दीवार से टेक लगाए खड़ा मेघांश अपनी भावनाओं को दबाने की कोशिश करता है। लेकिन उसे फिर से कुछ महसूस होने लगता है। वह खुद को नियंत्रित करता है और फिर तृषा की कमर पकड़कर उसे बाहर ले आता है।
दोनों साथ में बेहद ख़ूबसूरत लग रहे थे—जैसे एक-दूसरे के लिए ही बने हों। वे किसी माफ़िया कपल की तरह लग रहे थे, जो अपनी अलग ही दुनिया में रहते हैं।
मेघांश ने लंबा ओवरकोट, काली शर्ट, काली पैंट, काली टोपी और काले दस्ताने पहने हुए थे, जिससे उसका व्यक्तित्व और भी रहस्यमयी और प्रभावशाली लग रहा था। वहीं, तृषा ने हल्की आसमानी रंग की शिफ़ॉन साड़ी पहनी हुई थी, जिसमें वह बेहद ख़ूबसूरत लग रही थी।
दोनों कार में बैठते हैं, और जैसे ही गाड़ी चलती है, मेघांश उसे अपनी ओर खींचकर बेरहमी से चूम लेता है। उसकी तेज़ और गहरी किस की वजह से तृषा की लिपस्टिक की ज़रूरत ही नहीं पड़ती—उसके होंठ पूरी तरह लाल हो चुके थे। वहीं, मेघांश के भी होंठ तृषा के रंग में रंग गए थे।
थोड़ी देर बाद, गाड़ी तृषा के घर के सामने की गली में आकर रुकती है। दोनों घर के अंदर आते हैं। इस बीच, गौरी वहाँ से जा चुकी थी—वह शौर्य के लिए खाना लेकर आई थी।
दोनों बेटे, शौर्य और सूर्यांश अपनी माँ को देखकर चुपचाप खड़े हो जाते हैं। तृषा गहरी साँस लेकर उन दोनों को लाचारी से देखती है और वहाँ से जाने लगती है। तभी मेघांश उसका पल्लू पकड़कर उसे अपनी ओर खींचता है और बच्चों के सामने ही पहले उसके गाल पर, फिर होठों पर एक लंबी, गहरी किस करता है।
फिर वह कहता है,
"अब हम सब अपने घर चलेंगे।"
तृषा उसकी इस हरकत से हैरान रह जाती है। शर्म और गुस्से से भरी वह उसे जोर से धक्का देती है और गुस्से से कहती है,
"बच्चे यहाँ हैं, और यह मेरा घर है! मैं अपना घर छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी!"
उसकी गुस्से भरी बातों को सुनकर मेघांश अपने बच्चों की ओर देखता है और शांत लेकिन गंभीर आवाज़ में कहता है,
"तुम दोनों यहाँ से जाओ।"
शौर्य और सूर्यांश कुछ देर तक एक-दूसरे को देखते हैं, फिर गुस्से से मेघांश को घूरते हुए बाहर चले जाते हैं।
उनके जाते ही, मेघांश तृषा की दोनों कलाई पकड़ लेता है और ठंडे, मगर सख्त लहज़े में कहता है,
"तुम अपने पति के घर चलोगी। तुम्हारा पति तुम्हें जहाँ ले जाएगा, तुम्हें बिना किसी सवाल के वहाँ जाना होगा। न कोई शिकायत चलेगी, न तुम्हारा यह नाटक।"
तृषा को बेहद गुस्सा आ रहा था, लेकिन मजबूरी में उसे मेघांश के साथ जाना पड़ा।
जैसे ही वे वहाँ पहुँचे, परी दौड़कर आई और तृषा से लिपट गई। वह भावुक होकर बोली, "मम्मी, मम्मी! आप मुझे छोड़कर कहाँ चली गई थीं? प्लीज, अब मुझे छोड़कर मत जाना!"
यह कहते ही वह रोने लगी। उसे रोता देख तृषा ने प्यार से उसके गालों को चूमा और कोमल स्वर में कहा, "भला मम्मी अपने बच्चों को छोड़कर कहीं जा सकती हैं? तुम बिल्कुल मत डरो, मैं आ गई हूँ ना? अब से मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगी।"
यह सुनकर परी बेहद खुश हो गई।
लेकिन तभी उसने तृषा के पीछे खड़े दो हैंडसम लड़कों को देखा और हैरानी से अपने पापा से पूछा, "पापा, ये दोनों कौन हैं?"
शौर्य मुस्कुराते हुए परी की तरफ देखता है और प्यार से कहता है, "बेबी एंजल," फिर उसका हाथ पकड़कर उस पर एक हल्की-सी किस करता है और अंदर चला जाता है।
परी बहुत खुश हो जाती है और मुस्कुरा देती है।
उधर, सूर्यांश जाते-जाते दाँत पीसते हुए कहता है, "पता नहीं इस लड़की को सड़क से उठाकर तुम्हारे घर में क्यों लाया गया? बाहर का कचरा बाहर ही रहना चाहिए!"
उसकी बात सुनकर मेघांश उसे घूरता है और ठंडी आवाज़ में कहता है, "शायद तुम भूल गए हो कि पापा की बात ना मानने पर वे कैसी सज़ा दिया करते थे... अब भी बड़े नहीं हुए हो?"
सूर्यांश गुस्से से मेघांश को घूरता है और अंदर चला जाता है।
"कचरा" शब्द सुनकर 13 साल की परी का दिल टूट जाता है। वह इतनी भी छोटी नहीं थी कि इन बातों को न समझ सके। उसकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं। यह देखकर मेघांश बेहद प्यार से उसके गाल पर हाथ फेरते हुए कहता है, "वे दोनों तुम्हारे भाई हैं। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। तुम्हें उनकी बातों का बुरा मानने की ज़रूरत नहीं है।"
यह सुनकर परी सिर हिला देती है, लेकिन उसका रोना बंद नहीं होता।
मेघांश उसे प्यार से अपनी गोद में उठा लेता है।
उसे इस तरह कोमल होते देख तृषा हैरान रह जाती है। कुछ देर पहले का वही कठोर आदमी अब ऐसा व्यवहार कर रहा था, जैसे कोई प्यारा और दयालु पिता हो।
उसके दोनों बेटे भी उसकी बात नहीं मानते थे और बहुत शरारती थे, लेकिन मेघांश ने उन्हें इतने गहरे स्तर पर नियंत्रित कर रखा था कि वे उसकी बात मानने के साथ-साथ उससे थोड़ा डरते भी थे।
तृषा को यह अच्छा लगा कि मेघांश ने बेटों पर नियंत्रण रखा है, क्योंकि सही दिशा ना मिले तो भटकने में देर नहीं लगती।
लेकिन उसे अपने बेटे की बात बहुत बुरी लगी कि उसने परी को "कचरा" कहा। यह बिल्कुल भी सही नहीं था।
वह प्यार से परी की ओर देखती है और कहती है, "उन दोनों की बात का बुरा मत मानो। असली कचरा तो वे खुद हैं, जिन्हें हम उठा लाए। तुम तो हमारी प्यारी बेटी हो!"
यह सुनकर परी बहुत खुश हो जाती है और चहककर कहती है, "सच में? तो वे दोनों बाहर से आए हैं?"
तृषा हँसते हुए कहती है, "नहीं बेटा, वे दोनों नहीं, दूसरा वाला भैया बाहर से आया है।"
फिर तृषा प्यार से पूछती है, "आज मम्मी तुम्हारे लिए खाना बनाएगी। बताओ, तुम्हें क्या पसंद है?"
मेघांश बस उन दोनों को देख रहा था, फिर वह परी को गोद से उतारकर वहाँ से चला जाता है। परी तृषा के साथ रसोई में आ जाती है, जहाँ तृषा उसके पसंद का खाना बनाती है।
खाना बनाने के बाद, तृषा और परी दोनों ही तरोताज़ा होने के लिए अपने कमरे की ओर बढ़ती हैं। रास्ते में बटलर उन्हें पूरा घर दिखाता है, यहाँ तक कि यह भी बताता है कि कौन सा कमरा शौर्य का है और कौन सा सूर्यांश का।
शौर्य और सूर्यांश के कमरे देखकर तृषा हैरान रह जाती है। उसे लग रहा था कि यहाँ कोई ऐसा रहता है जिसे वह जानती है। ये सारी हरकतें उसके बेटों के अलावा और कौन कर सकता था? ऊपर से दोनों ही कमरों में उसके बेटों के परफ्यूम की खुशबू फैली हुई थी, जिसे वह अच्छी तरह पहचानती थी। वही आकर्षक खुशबू, वही हरकतें—मतलब, उसके बेटे यहाँ आकर रहते भी थे! पता नहीं यह सब कैसे हुआ। शायद जब वह काम में व्यस्त रहती थी और बच्चों को छोड़कर जाती थी, तब मेघांश बच्चों का ध्यान रखता था। वह कितना चालाक आदमी है!
इन्हीं विचारों में खोई हुई तृषा परी को लेकर कमरे में आ जाती है। परी का कमरा बहुत ही सुंदर और गुलाबी रंग का था, जैसा उसे पसंद था। कमरे में एक छोटा सा, खूबसूरत डॉलहाउस भी था, जिसमें वह खुद भी जा सकती थी। वहाँ बहुत सारी पिंक लाइटें जल रही थीं, जो कमरे को और मनमोहक बना रही थीं। परी अपने नए कमरे को देखकर बहुत खुश हो जाती है। इसके बाद वह नहाने चली जाती है। नहा कर वह गुलाबी स्कर्ट और सफेद टॉप पहनकर बाहर आती है।
बाहर, जब वह खाने के लिए आती है, तो मेघांश और तृषा दोनों मौजूद होते हैं। शौर्य भी वहाँ आ गया था, बस सूर्यांश अभी तक नहीं आया था।
इसी दौरान तृषा, शौर्य को खाना परोसते हुए परी से कहती है, "बेटा, जरा अपने बड़े भाई को बुला लाओ।"
यह सुनकर परी को थोड़ा डर लगता है, लेकिन बिना कुछ कहे वह जल्दी से सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर चली जाती है। आसपास देखते हुए उसकी नजर एक आकर्षक कमरे पर पड़ती है, जो उसे काफी पसंद आता है। वह धीरे-धीरे अंदर चली जाती है और चीजों को देखने लगती है। कमरे की सारी चीजें उसे बहुत अच्छी लग रही थीं।
तभी उसकी नजर एक बड़े से गिटार पर पड़ती है। वह जाकर उसे पकड़ने ही वाली थी कि अचानक किसी ने उसकी नाजुक कलाई पकड़कर उसे गिटार से दूर खींच लिया। गुस्से से चीखते हुए वह व्यक्ति बोला, "तू कचरा! मेरे कमरे में क्या कर रही है?"
परी डर के मारे कांपने लगी। वह कुछ कहने ही वाली थी कि सूर्यांश ने अचानक उसके गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया।
गुस्से में भरा सूर्यांश उसे नीचे धक्का दे देता है और गले से पकड़कर दहाड़ता है, "तेरी इतनी हिम्मत! तूने मेरे गिटार को हाथ लगाया?!" यह कहते हुए वह उसे दो-चार और थप्पड़ मार देता है।
परी के नाजुक और खूबसूरत गाल लाल हो चुके थे। उसके नाजुक गाल पर पांचो उंगली की निशान बन चुके थे।जब सूर्यांश का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ, तो उसने परी को छोड़ दिया। परी फूट-फूटकर रोते हुए नीचे भाग जाती है।
नीचे आकर वह सीधे मेघांश के पास जाकर उससे लिपट जाती है और रोते हुए चिल्लाने लगती है, "भाई ने... भाई ने... मुझे बहुत मारा!"
वह रोती जा रही थी।
मेघांश उसकी बातें शांत होकर सुन रहा था, लेकिन कुछ ही क्षणों में वह अपना बेल्ट उतारते हुए गुस्से से उठकर आगे बढ़ने लगा। तृषा समझ नहीं पा रही थी कि हो क्या रहा है। उसे अपने बेटे पर बहुत गुस्सा आ रहा था—एक छोटी-सी मासूम बच्ची को कोई इस तरह कैसे मार सकता है?
तृषा अब परी को सच में अपनी बेटी मानने लगी थी। वह परी को बहुत प्यार करने लगी थी, क्योंकि परी सच में बहुत प्यारी थी। इस समय परी तृषा की गोद में थी, और तृषा उसकी पीठ सहला रही थी।
उधर, मेघांश का गुस्सा देखकर तृषा को भी डर लगने लगा था। शौर्य भी घबराया हुआ था। उसे पता था कि उसके पापा अब क्या करने वाले हैं। बचपन में, जब उनकी माँ काम पर जाती थी, तो उनके पापा उनसे मिलने आते थे। जब पहली बार उन्होंने अपने पापा को देखा था, तो दोनों भाई बहुत खुश हुए थे। लेकिन वे बहुत शरारती भी थे, इसलिए जब वे गलती करते थे, तो सजा के तौर पर मेघांश उन्हें मारता था।
यह बहुत सामान्य था, जैसे हर माँ-बाप बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए करते हैं... लेकिन अब जो हुआ था, वह क्या सामान्य था?
तृषा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। वह बहुत घबराई हुई थी और मेघांश के पीछे-पीछे चल रही थी। उधर, सूर्यांश अपने कमरे में था। उसे अच्छी तरह पता था कि अब उसके साथ क्या होने वाला है।
कुछ देर बाद, तृषा अपनी आँखों के सामने जो देख रही थी, उस पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था। मेघांश बहुत ही बेरहमी से सूर्यांश को बेल्ट से पीट रहा था, लेकिन सूर्यांश चुपचाप खड़ा था, जैसे उसे ज़रा भी दर्द नहीं हो रहा हो। यहाँ तक कि उसकी नाक से खून बह रहा था।
उसी दिन परी और सूर्यांश, दोनों को बहुत मार पड़ी थी। हालाँकि सूर्यांश ने परी को मारा था, लेकिन अब मेघांश सूर्यांश को सज़ा दे रहा था।
रात का समय
रात में तृषा खाना लेकर धीरे-धीरे सूर्यांश के कमरे में आती है। अंदर जाकर देखती है कि सूर्यांश लैपटॉप पर गेम खेल रहा था। उसकी नाक से अब भी खून टपक रहा था, जिससे उसकी सफेद टी-शर्ट लाल हो चुकी थी। लेकिन उसे इसकी ज़रा भी परवाह नहीं थी।
तृषा धीरे से उसके पास जाकर खाने की प्लेट साइड में रखती है और उसका हाथ पकड़कर कहती है, "बच्चा..."
सूर्यांश गुस्से से अपना हाथ झटक कर कहता है, "अपने पति के पास जाओ!"
उसका इतना ज़ोर से चिल्लाना देखकर तृषा घबरा जाती है। हालाँकि, वह अपने बेटे को जानती थी। वह हमेशा से ऐसा ही था। फिर भी, वह उसके गाल को सहलाते हुए प्यार से कहती है, "तूने ऐसा क्यों किया? वह तेरी बहन है। तू क्यों उसे अपनाने से इंकार कर रहा है? देख, मेरे साथ कितना बड़ा धोखा हुआ, लेकिन मैंने सबकुछ स्वीकार कर लिया। फिर तू क्यों नहीं कर सकता? क्या मैंने तुझे ऐसी परवरिश दी है?"
सूर्यांश गुस्से में कहता है, "मैं जो चाहूँगा, वही करूँगा! आप दोनों को मुझे रोकने का कोई हक़ नहीं है!"
तृषा की आँखों में आँसू आ जाते हैं। वह गुस्से में कहती है, "शायद मेरी परवरिश में ही कमी रह गई थी। मुझे क्या पता था कि मेरे पीछे ये सब हो रहा था!"
सूर्यांश गुस्से से जवाब देता है, "मुझे किसी भी चीज़ की परवाह नहीं है। और हाँ, आप अपनी प्यारी बेटी के पास जाओ! हम तो कचरे से हैं, ना?"
यह सुनकर तृषा हल्के से उसके सिर पर मारती है और फिर फर्स्ट-एड बॉक्स लाकर उसके घावों की सफाई करने लगती है। कॉटन से उसके खून को साफ़ करते हुए वह प्यार से कहती है, "बेटा, तुझे उस बच्ची के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था। तूने गलत किया है, इसलिए तुझे सज़ा भी मिली। तुझे पता है, उसकी हालत कितनी खराब है? डॉक्टर भी उसे देखकर गए हैं। तूने यह सब बिल्कुल नहीं करना चाहिए था!"
यह सुनकर सूर्यांश फिर गुस्से से बोलता है, "मुझे वह बिल्कुल पसंद नहीं है! वह यहाँ क्यों आई? सब कुछ तो पहले ही ठीक चल रहा था, फिर वह यहाँ क्यों आ गई? मुझे वह लड़की पसंद नहीं है! और वह मेरे कमरे के पास क्यों घूम रही थी? उसे दूर रहने के लिए कहिए!"
तृषा को समझ नहीं आ रहा था कि अगर पहले ही दिन ऐसा हो रहा है, तो आगे क्या होगा? उसके बेटे बड़े तो हो रहे थे, लेकिन हरकतें अब भी बच्चों जैसी थीं। उसका छोटा बेटा फिर भी ठीक था, लेकिन बड़ा बेटा... वह तो और ज्यादा ज़िद्दी और गुस्सैल होता जा रहा था, ठीक अपने पिता की तरह।
अब तृषा को एहसास हो रहा था कि उसे मेघांश के साथ क्यों ऐसा लगता था कि उसने यह सब पहले भी देखा है। यही ज़िद, यही गुस्सा, यही सब कुछ—उसे अपने बड़े बेटे में भी दिख रहा था।
गहरी सांस लेते हुए, तृषा ने सूर्यांश का खून साफ़ किया और जबरदस्ती उसे खाना खिलाने लगी। वह प्यार से कहती है, "तू खाना खा ले, वरना मैं भी नहीं खाऊँगी।"
यह सुनकर सूर्यांश को भी खाना पड़ता है। वह अपनी माँ से बहुत प्यार करता था। लेकिन उसे परी से बहुत जलन होती थी। उसे लगता था कि उसके मम्मी-पापा उसे छोड़कर परी को ज्यादा प्यार करने लगे थे।
जब पहली बार उसके पापा ने परी को गोद लिया था, तभी से सूर्यांश को उससे नफ़रत थी।
उधर, परी चुपचाप उनके कमरे के बाहर खड़ी थी और सबकुछ देख रही थी। उसके नाजुक गाल अभी भी लाल थे और सूर्यांश केथप्पड़ के निशान अभी भी उसके गालों पर मौजूदहै।सूर्यांश को पहले ही उसके आने का एहसास हो गया था। गुस्से में उसने उसकी तरफ़ देखा, जिससे परी डर गई और फिसलकर गिर पड़ी। उसे चोट लग गई, और वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।
यह देखकर तृषा तुरंत खाने की प्लेट रखकर दौड़ती हुई उसके पास जाती है और उसे गोद में उठाकर चुप कराने लगती है।
यह सब देखकर सूर्यांश को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। उसकी माँ उसे प्यार करने आई थी, और अब यह लड़की फिर से बीच में आ गई थी! "बिरयानी में इलायची बनकर!"
इसके बाद, तृषा परी को लेकर वहाँ से चली जाती है और वापस नहीं आती। यह देखकर सूर्यांश का गुस्सा और बढ़ जाता है। गुस्से में वह खाना भी नहीं खाता और ऐसे ही सो जाता है।
दूसरी तरफ, मेघांश अपने कमरे में तृषा का इंतजार कर रहा था, लेकिन तृषा नहीं आई। इससे उसे बहुत गुस्सा आया।
वह कब से तृषा को अपने पास बुलाना चाहता था। वह उसे प्यार करना चाहता था। लेकिन यह लड़की अभी तक उसके पास नहीं आई!
"बच्चे तो बड़े हो चुके हैं, उनके पास रहने की क्या जरूरत है?"
उसे अच्छी तरह पता था कि उसके बेटों की हरकतें क्या हैं, लेकिन अब उसे तृषा की बेरुख़ी से और ज्यादा गुस्सा आ रहा था...
यह सोचकर मेघांश का गुस्सा और बढ़ने लगा। थोड़ी देर बाद, वह बाहर निकल आया। बाहर आकर वह तीसरी मंज़िल से दूसरी मंज़िल की ओर बढ़ा, जहाँ उसके तीनों बच्चों के कमरे थे।
वह शौर्य के कमरे के पास से गुज़रा। शौर्य अपने लैपटॉप पर कुछ कर रहा था, और मेघांश अच्छी तरह जानता था कि उसका बेटा क्या कर रहा है।
इसके बाद, वह सूर्यांश के कमरे के पास पहुँचा। उसने देखा कि सूर्यांश गुस्से में बैठा था। उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं, जैसे वह अपने अंदर का गुस्सा निकालने के लिए तैयार बैठा हो।
मेघांश ने इसे नज़रअंदाज़ किया और आगे बढ़कर परी के कमरे के बाहर आ गया। उसने धीरे से दरवाज़ा खोला और अंदर झाँका। तृषा और परी गहरी नींद में सो रही थीं। परी, तृषा के सीने से लिपटकर सोई हुई थी।
मेघांश धीरे से परी को तृषा से अलग करता है और फिर तृषा को अपने कंधे पर उठाकर अपने कमरे में ले आता है। गुस्से में, वह तृषा को बेड पर पटक देता है।
तृषा की नींद खुल जाती है। एक ही दिन में इतना कुछ हो चुका था कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या हो रहा है।
अब उसे मेघांश पर गुस्सा और चिढ़ दोनों होने लगी थी। "यह आदमी आखिर चाहता क्या है? सुबह से लेकर अब तक इतना परेशान कर दिया, अब और क्या करना बाकी है?"
तृषा के दिमाग में अब तक हुए सारे घटनाक्रम घूमने लगे। परी का मासूम चेहरा, उसका रोना, फिर मेघांश का सूर्यांश को बेरहमी से पीटना, और अब अचानक उसे इस तरह अपने कमरे में खींच लाना—सबकुछ बहुत ज्यादा हो चुका था।
"अब और क्या करना बाकी है?" उसकी खुद से की गई यह सोच अब सवाल बनकर हवा में गूंजने लगी थी।
तृषा ने गुस्से से खुद को संभालते हुए उठने की कोशिश की, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कर पाती, मेघांश ने उसके दोनों हाथ कसकर पकड़ लिए। उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि तृषा को हल्का-सा दर्द महसूस हुआ।
"अब ये सब क्या है, मेघांश? अब तुम क्या चाहते हो?" तृषा ने गुस्से और झुंझलाहट भरी आवाज़ में कहा।
मेघांश ने धीरे से उसकी कलाई को और कस दिया और बेहद ठंडी आवाज़ में बोला, "क्या तुम सच में यह नहीं समझ पा रही हो, तृषा?"
तृषा ने उसकी आँखों में देखने की कोशिश की, लेकिन वह हमेशा की तरह अपनी काली पट्टी से ढकी हुई थीं। फिर भी, उसके चेहरे पर फैली गंभीरता, उसका ठंडा लहजा और हाथों की कठोर पकड़ बता रही थी कि वह इस समय गहरे गुस्से में था।
"क्या तुम सच में मुझे इतना कमजोर समझती हो कि मैं अपने ही घर में अपनी पत्नी को न पा सकूँ?"
तृषा का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसकी आवाज़ अब कुछ नरम पड़ गई, लेकिन वह अभी भी गुस्से में थी।
"प्लीज़, मेघांश, मुझे आराम करने दो। पूरा दिन बहुत थका देने वाला था। परी भी डरी हुई थी, और..."
"और तुम उसके पास ही रहना चाहती थी, है ना?" मेघांश ने उसकी बात काटते हुए कहा।
"तो क्या गलत किया मैंने? वह मेरी बेटी है!" तृषा ने पलटकर जवाब दिया।
यह सुनते ही मेघांश की पकड़ थोड़ी ढीली पड़ गई। उसने गहरी साँस ली, फिर हल्के से मुस्कुराया, लेकिन उसकी मुस्कान में एक रहस्यमयी सिहरन थी।
"बेटी? तुम इतनी जल्दी उसे अपनी बेटी मान बैठी?"
तृषा को यह सुनकर अजीब-सा महसूस हुआ। उसने खुद भी यही सोचा था—कि वह परी से इस कदर जुड़ गई थी, मानो वह सच में उसकी बेटी हो। लेकिन मेघांश का यह लहजा...
"हाँ," तृषा ने मजबूती से कहा। "अगर तुम उसे अपनी बेटी मान सकते हो, तो मैं क्यों नहीं?"
मेघांश की मुस्कुराहट और गहरी हो गई। फिर उसने अचानक तृषा को अपनी ओर खींच लिया। अब वे दोनों एक-दूसरे के बेहद करीब थे।
"अगर मैं कहूँ कि परी हमारी बेटी नहीं है?"
तृषा का दिल जोर से धड़क उठा।
"तुम... तुम क्या कहना चाहते हो?" उसने कांपती आवाज़ में पूछा।
मेघांश ने उसकी ठोड़ी को हल्के से ऊपर उठाया और उसकी आँखों में सीधे देखते हुए फुसफुसाया, "अगर मैं कहूँ कि यह सिर्फ तुम्हें इस घर में बाँधने के लिए किया गया था... तब?"
तृषा को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके नीचे से ज़मीन खींच ली हो।
"तुम... झूठ बोल रहे हो," उसने मुश्किल से कहा।
"क्या सच है और क्या झूठ, यह तुम धीरे-धीरे खुद समझ जाओगी। लेकिन फिलहाल," मेघांश ने हल्के से उसके चेहरे पर उंगलियाँ फेरते हुए कहा, "तुम्हें मेरे साथ रहना होगा, जैसे एक पत्नी अपने पति के साथ रहती है। तुम्हारी नफरत, तुम्हारा गुस्सा, सब कुछ मुझे मंजूर है, लेकिन तुम्हारी बेरुख़ी नहीं।"
तृषा का गला सूखने लगा।
"तुम मुझे मजबूर नहीं कर सकते, मेघांश।"
मेघांश ने हल्की हँसी के साथ कहा, "मजबूर? तुम्हें क्या लगता है, मैंने अब तक तुम्हें मजबूर किया है?"
"तुम्हारे सारे काम मुझे जबरदस्ती करने के लिए मजबूर करते हैं!" तृषा ने गुस्से से कहा।
"तुम सोचती हो कि तुम्हें कोई और रास्ता नहीं मिला, इसलिए तुम मजबूर हुई। लेकिन सच्चाई यह है कि तुमने खुद वही रास्ता चुना जो मैंने तुम्हारे लिए खोला। तुम्हारा दिमाग मुझसे लड़ सकता है, तृषा, लेकिन तुम्हारा दिल? वह तो कब का हार चुका है।"
तृषा को उसकी बातें सुनकर गुस्सा भी आ रहा था और डर भी। क्या सच में वह धीरे-धीरे उसके इशारों पर चलने लगी थी?
"अब बहुत हो गया, मेघांश। मैं तुम्हारी कठपुतली नहीं हूँ," उसने पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन मेघांश ने उसे और कसकर पकड़ लिया।
"तुम हो, तृषा," उसकी आवाज़ अब पहले से ज्यादा ठंडी थी। "और यह तुम्हें बहुत जल्द समझ आ जाएगा।"
इसके बाद, उसने धीरे से उसके बालों को सहलाया, मानो वह उसे शांत करना चाहता हो। लेकिन उसके इस कोमल स्पर्श के पीछे भी एक अजीब-सा भय समाया हुआ था।
"अब सो जाओ," उसने धीरे से कहा। "तुम्हें इसकी जरूरत है।"
और फिर वह अचानक उसे छोड़कर पीछे हट गया।
तृषा को समझ नहीं आया कि वह क्या सोच रही थी। उसका मन भटक रहा था।
क्या वह सच में धीरे-धीरे मेघांश की दुनिया में घिरती जा रही थी?