ये कहानी है आराध्या है जोकि अपनी लाइफ में बहुत सारी मुसीबत झेली है मगर जब उसके २ डेविल हसबैंड की एंट्री उसके लाइफ में होती है तब उसकी पूरी जिंदगी बदल जाती है उसे उनसे सब कुछ मिलता है जिसकी आराध्या ने कभी उम्मीद नहीं की थी उसे एक परिवार का प्यार ओर दु... ये कहानी है आराध्या है जोकि अपनी लाइफ में बहुत सारी मुसीबत झेली है मगर जब उसके २ डेविल हसबैंड की एंट्री उसके लाइफ में होती है तब उसकी पूरी जिंदगी बदल जाती है उसे उनसे सब कुछ मिलता है जिसकी आराध्या ने कभी उम्मीद नहीं की थी उसे एक परिवार का प्यार ओर दुनिया हर वो चीज मिलती है जोकि किसी लड़की ख़ब होता है, आराध्या कबीर ओर ऋषि की जान बन जाती है जोकि उसे किसी अनमोल खजाने के तरह मानते है अगर आपको आराध्या के बारे में जाना चाहता है तो अभी इस कहानी को पढ़ें जिसका नाम है प्रोटेक्टिव हसबैंड क्यूट वाइफ़ी..!
Rishi
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Kabir
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दिल्ली के एक क्लब के अंधेरे कमरे में, एक लड़की चीख रही थी। "आह...प्लीज छोड़ो मुझे! प्लीज मुझे जाने दो..." वो लड़की सामने खड़े लड़कों से खुद को दूर करने की कोशिश कर रही थी। चार-पाँच लड़के उसे अपनी हवस भरी निगाहों से देख रहे थे। यह एक प्राइवेट रूम था, इसलिए उसकी आवाज बाहर नहीं जा पा रही थी। बाहर काफी शोर था, इसलिए किसी ने उसकी आवाज नहीं सुनी। वह लड़की जमीन पर गिरी हुई थी, और बहुत दर्द में थी। उसका चेहरा लाल हो गया था, आँखें रोने से सूज गई थीं। वह अजीब महसूस कर रही थी, फिर भी उन लोगों से खुद को छोड़ने की विनती कर रही थी। "भैया प्लीज़...प्लीज़...मुझे जाने दीजिए...!" एक लड़के ने उस लड़की, जो लगभग सत्रह साल की होगी, को देखा और हँसते हुए कहा, "डार्लिंग,,, तुम हमें भैया नहीं...बल्कि सैयाँ बोलो क्योंकि आज रात के लिए तुम सिर्फ हमारी हो..." वो लड़का आगे बढ़ा और उस लड़की का हाथ पकड़ लिया। वह लड़की हाथ छुड़ाने की कोशिश करती है, पर कामयाब नहीं होती। वह उनसे खुद को छुड़ाकर भागना चाहती थी। वह समझने की कोशिश कर रही थी कि आखिर क्यों ये लोग उसे ऐसे घूर रहे थे और क्यों उसकी बहन दिव्या उसे यहाँ लाई थी। उस लड़की ने एक काले रंग की वन-पीस ड्रेस पहनी हुई थी, जो दिव्या ने उसे जबरदस्ती पहनाई थी। उसके लंबे, रेशमी बाल खुले हुए थे, और उसका चेहरा बालों से थोड़ा ढँका हुआ था। तभी एक लड़का आगे बढ़कर बोला, "आराध्या यार, अब इंतजार नहीं होता है! प्लीज अपना नाटक बंद करो...और हम लोगों ने जिस चीज़ के लिए पैसे दिए हैं, वो हमें करने दो...!" यह सुनकर आराध्या और परेशान हो गई और रोते हुए बोली, "आप किस पैसे की बात कर रहे हो? और मुझसे क्या चाहिए आपको, करन भैया...?" करन ने अपना हाथ बढ़ाया, आराध्या के बाल पकड़ लिए और उसके चेहरे के पास लाकर कहा, "आराध्या, मैंने तुमसे कितनी बार कहा है, मैं तुम्हारा भाई नहीं हूँ...बल्कि तुम्हारी दीदी का बॉयफ्रेंड हूँ! इसका मतलब ये हुआ कि मैं तुम्हारा भी बॉयफ्रेंड हूँ! इस नाते मुझे अब खुद को तुमसे छूने दो..." वह आराध्या पर झुकने लगा, तभी किसी ने जोर से कमरे का दरवाजा एक लात मारकर खोला। सबका ध्यान उस तरफ गया। एक बहुत ही हैंडसम आदमी, जो देखने में बहुत अमीर घर का लग रहा था, काले रंग के बिज़नेस सूट में अंदर आया। उसके हाथ में एक बंदूक थी। यह देखकर वो लड़के जो कुछ बोलने वाले थे, चुप हो गए। उस आदमी के पीछे कुछ बॉडीगार्ड खड़े थे। वह आदमी बिना कुछ सोचे-समझे, खिड़की के बाहर भाग रहे एक आदमी पर गोली चला देता है। वह आदमी, जो खिड़की से कूदने वाला था, वहीं गिर जाता है। यह देखकर लड़के और आराध्या डर गए। आराध्या चिल्लाई। वह आदमी आराध्या को देखता है। एक लड़का हैरान होकर बोला, "कबीर आहूजा! ये ये क्या कर रहे हैं?" कबीर का नाम सुनकर सभी लड़के आँखें फाड़कर उसे देखने लगे। कबीर की नज़र आराध्या पर पड़ी। आराध्या डर और मासूमियत से उसे देख रही थी, अपनी आँखें खोलने की कोशिश कर रही थी। कबीर समझ गया कि उसके साथ क्या हो रहा है। उसने देखा कि कुछ लड़के आराध्या के पास खड़े थे। कबीर को पूरा मामला समझ आ गया।
आराध्या को ऐसे देख कबीर आगे बढ़ उसके पास आता है और उन लडको की तरफ देखते हुए बोलता है क्या कर रहे हो तुम लोग ?
उसकी बात सुनकर वो सभी घबरा से जाते है और एक लड़का बोलता है सर आप हमे गलत समझ रहे है ये लड़की इस क्लब मैं काम करती है और इसका काम ही यही है कि हम लोडको को खुश करें, मगर ये आज काफी नौटंकी कर रही है।
लड़के की बात को सुनकर कबीर का चहेरा सक्त हो जाता है और फिर कुछ सोचने के बाद वो आराध्य को अपनी गोद मै उठा कर बोलता है कोई नही..!
मैं इसे लेकर जा रहा हु, ये बोलते हुए कबीर अपने गोद आराध्या को लेकर चला गया वही आराध्या बस रोए जा रही थी।
वो सिसक रही थी जिसे सुनकर कबीर बोलता है सच बताओ क्या तुम सच मैं एक sl** काम करती हो।
उसके बाद को सुनकर आराध्या ना समझी मैं बोलता है कि क्या होता है उसके बाद को सुनकर कबीर उसकी तरफ देखने लगता है वह उसके चेहरे को देखते हैं जो कि उसे मासूमियत से देख रही थी उसकी आंखों में आंसू थे और वह इस वक्त इतनी मासूम लग रही थी कोई भी उसे देखकर एक बार के लिए देखते ही रह जाता वहीं आराध्या का पूरा चेहरा लाल हो गया था रोने के कारण उसकी नाक बिल्कुल लाल हो गई थी वह सब काफी क्यूट लग रही थी।
साथी जो उसने ब्लैक ड्रेस पहना था उसके रंग और भी ज्यादा निखर के आ रहा था वह किसी बार्बी डॉल टाइप दिखती थी उसका चेहरा किसी अप्सरा से काम नहीं था उसे पर उसकी मासूमियत और उसकी क्यूटनेस बाप रे कबीर उसके उसपर मार मिटना चाहता था उसे पहले ही नजर में आराध्य को देखकर सारा माजरा समझ में आ गया था।
कबीर आराध्य को लेकर अपने प्राइवेट रूम में चला जाता है जहां पर इस वक्त ऋषि भी मौजूद था।
ऋषि अपने भाई के गोद में किसी लड़की को देखकर हैरान हो जाता है क्योंकि यह पहली बार था कि उसका भाई किसी लड़की की करिए क्या वह भी इतने उसे गोद में उठाकर लवी अपने पास रहा है।
यह देखकर ऋषि तुरंत खड़ा हो जाता है और वह बोलता है भाई यह कौन है उसके बाद को सुनकर आराध्या भी उसे देखने लगती है आराध्य को देखकर ऋषि देखा ही रह जाता है।
वही आराध्या उसे डरी सहमी नजरो से देख रही थी, वह कबीर को कस के पकड़ लेती है जिससे कभी समझ जाता है क्या आराध्या डर रही है तो बोलता है तो मैं लेने की जरूरत नहीं है मेरा भाई है कुछ नहीं करेगा..!
उसकी बात सुनकर आराध्या अपना सर हा मैं हिला देती है तो कबीर बोलता है ऋषि से..!
यह जो कोई भी है अब सिर्फ हमारी है उसके बाद सुनकर ऋषि बोल रहा है क्या कहना चाहते हो भाई ,
उसके बाद को सुनकर कबीर बोलता है जैसा हमने डिसाइड किया था कि हम दोनों एक ही लड़की से शादी करेंगे तो मेरा यह फैसला है कि मैं इसे से शादी करना चाहता हूं।
कबीर की बात सुनकर ऋषि बोलता है भाई मगर यह है कौन वही उसके बाद को सुनकर कबीर उसे इग्नोर करते हुए जाकर आराध्य को सोफे पर सुला देता है।
वही अपने भाई को खुद को इग्नोर करता देखकर ऋषि बोलते हैं भाई आप बता रहे हो कि नहीं , उसके बाद को सुनकर कबीर उसे सारी बातें बता देता है जिसे सुने के बाद ऋषि गुस्से मैं बोलता है मैं उन्हें छोडूगा..!
उसकी बात को सुनकर कबीर बोलता है वो तो मैं भी करने वाला हूं मगर मुझे पहले प्रिंसेस के बारे मैं जाना पड़ेगा..इतनी बोलते हुए कबीर की नजर आराध्या पर जाती है।
और वो हैरान हो जाता है क्युकी सामने आराध्या बहुत बेचैन नजर आ रही थी।
वो काफी जायदा अजीब बिहेव कर रही थी, वह अपने होश में नहीं लग रही थी।
वही ऋषि जैसे ही आराध्या को देखता है तो वो वो कबीर से बोलता है।
भाई इसे किसी ने ड्रग्स दिया है उसकी बात सुनकर कबीर परेशान होते हुए बोलता है।
अब क्या करे उसकी बात सुनकर ऋषि बोलता है भाई आप फिकर मत करो मैं अभी प्रिंसेस के लिए डॉक्टर को कॉल करता हूं।
तब तक आप इसे गोद मै उठाओ हम ही हॉस्पिटल लेकर चलते है।
उसकी बात सुनकर कबीर तुरंत ही आराध्या को अपनी गोद मै उठा लेता है और वो आराध्या की हालत देख कर काफी परेशान हो रहा था।
कबीर और ऋषि दोनो ही आराध्य को लेकर क्लब से बाहर चले जाते है और जल्दी अपने कार मैं बैठ कर हॉस्पिटल के लिए निकल जाते है।
आगे क्या होने वाला है जाने के लिए स्टोरी के साथ बने रहे..!
ऋषि और कबीर की गाड़ी सड़क पर तेज गति से चल रही थी। ऋषि आराध्या को जल्द से जल्द अस्पताल पहुँचाने की कोशिश कर रहा था। मुगल हॉस्पिटल बहुत दूर था क्योंकि क्लब एक सुनसान जगह पर था, शहर के बाहर, जहाँ लोग केवल मौज-मस्ती करने आते थे। आराध्या की हालत बिगड़ने लगी थी। वह अपनी ड्रेस खोलने की कोशिश करने लगी। कबीर, जो उसका हाथ पकड़े बैठा था, बोला, "जान, ऐसा मत करो, नहीं तो मैं अपना कंट्रोल खो दूँगा।" आराध्या कबीर की गर्म साँसों को अपने गले पर महसूस कर उसके तरफ़ देखने लगी। वह कबीर की गोद में बैठी थी। कबीर को आराध्या इतने करीब देखकर दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं। वह आराध्या को देख रहा था। ऋषि, जो गाड़ी चला रहा था, कबीर की हालत देख समझ गया कि उसके भाई का काम बिगड़ गया था; उसे पहली नज़र का प्यार हो गया था। उसे आराध्या से पहली नज़र में ही प्यार हो गया था। वह उसकी मासूमियत पर मोहित हो गया था। यह उसके लिए बेवकूफी भरा काम था, मगर उसे भी आराध्या को देखकर कुछ अलग ही महसूस होने लगा था। आराध्या ने कबीर के चेहरे पर हाथ रखा क्योंकि कबीर का चेहरा बहुत ठंडा था। आराध्या को ड्रग्स के नशे में बहुत गर्मी लग रही थी, उसे जलन महसूस हो रही थी। वह कबीर के चेहरे से हाथ हटाकर अपना चेहरा कबीर के चेहरे पर रखते हुए बोली, "तुम कितने ठंडे हो! प्लीज, मेरी मदद करो, मुझे बहुत जलन हो रही है। मुझे बहुत गर्मी लग रही है।" यह सुनकर कबीर समझ गया। आराध्या की आँखों से आँसू गिरने लगे। उसकी आँखें सूजी हुई थीं और रोने से उसकी नाक लाल हो गई थी। ड्रग्स के नशे से उसका चेहरा हल्का लाल पड़ गया था। वह दूध जैसी गोरी थी, परन्तु बहुत कमजोर लग रही थी; शायद वह ज़्यादा नहीं खाती थी। कबीर को आराध्या का वज़न अपने ऊपर हल्का सा महसूस हो रहा था; ऐसा लग रहा था मानो उसने कोई टेडी बियर अपनी गोद में रखा हो। आराध्या परेशान होने लगी। वह कबीर की तरफ़ देखकर बोली, "मेरी मदद करो, नहीं तो मेरी जान चली जाएगी। मुझे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है।" आराध्या को खुद नहीं पता था कि वह क्या बोल रही थी। नशे में उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था। वह बच्चों जैसा व्यवहार कर रही थी, पर उसे इस बारे में कुछ पता नहीं था। मगर वह चाहती थी कि कबीर उसे छुए ताकि उसे उसके शरीर की ठंडक मिल सके। कबीर को आराध्या की हालत समझ नहीं आ रही थी। वह क्या करे? तभी उसे ऋषि के पास एक पानी की बोतल दिखी। उसने वह बोतल खोली और सारा पानी आराध्या के चेहरे पर डाल दिया। कबीर ने बिना किसी हिचकिचाहट के आराध्या के चेहरे पर पानी डाल दिया ताकि उसे ठंडक महसूस हो। मगर ऐसा करने से आराध्या की हालत और खराब हो गई। कबीर उसे ऐसे देखता ही रह गया। और वे लोग अभी भी अस्पताल नहीं पहुँचे थे। तब ऋषि बोला, "भाई, कंट्रोल मत खोओ। लड़की की हालत बहुत कमज़ोर लग रही है। मुझे लग रहा है इसे ज़्यादा डोज़ ड्रग्स दिए गए हैं, इसीलिए इतनी देर से इसका नशा उतर ही नहीं रहा है।" यह सुनकर कबीर बोला, "मगर यह गलत है। मैं ऐसा नहीं कर सकता, इसके परमिशन के बिना मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ?" यह बात सुनकर ऋषि बोला, "भाई, पता नहीं इसे कौन सा ड्रग दिया गया है। हमें कुछ नहीं मालूम है। इसकी हालत देखकर लग रहा है अगर इसे ज़्यादा देर तक ऐसे ही रखा गया तो यह मर जाएगी। और मुझे तो इस बात का डर है कि अगर हमने जल्दी से इसका नशा नहीं उतारा और इसे जो चाहिए वो नहीं दिया तो यह खुद अपनी जान दे देगी।" आगे की कहानी जानने के लिए कहानी के साथ बने रहें!
अब आगे..!
उसके बाद सुनकर कबीर के चेहरे पर बहुत ज्यादा गुस्सा नजर आने लगता है वह अपने मन में बोलता है जिसके भी पीछे इसका हाथ है ना वैसे जिंदा जला दूंगा उसे ऐसी मौत मारूंगा ना कि वह साथ पूछते तक सोचेगा कि किस पर उसने अपना हाथ डाला है।
कबीर ऋषि की तरफ देखकर बोलता है कही सुनसान जगह रास्ता पर गाड़ी रोक दो..!
उसके बाद सुनकर ऋषि अपना सर हमें दिला देता है और वह ऐसा ही करता है जैसा कबीर ने कहा था।
वही कबीर आराध्या के चेहरे को अपने हाथों में लेकर बोलता है मुझे माफ कर देना मैं जो करना चाह रहा हूं वह तुम्हारे लिए ही है इसलिए मेरी सिचुएशन समझना, मुझे गलत इंसान मत समझना इतना कहते हुए कबीर अपने लिप्स अराध्य के लिप्स पर रख देता है और उसे किस करने लगता है।
वही आराध्या उसका साथ देने की कोशिश कर रही थी मगर कुछ नहीं कर पा रही थी वही कबीर उसे डीपली किस करते हुए उसकी ड्रेस की जिप खोल देता है और उसके ड्रेस को उसकी बॉडी से अलग कर देता है।
और उसके गले से लेकर कंधे तक किस करतें हुए स्मूच करने कहता है वो आराध्या के नेक कंधे पर हल्का सा बाइट भी कर रहा था जिसे आराध्या गोरी त्वचा पर कबीर के दिए हुए निशान बन रहे थे।
वो उसकी बॉडी पर अपने निशान दे रहा था जोकि इस बात का सबूत था की अब से आराध्या बस उसकी है।
वही ऋषि अपने भाई को ऐसे देख मुस्कुरा देता है और वो कार से बाहर निकल जाता है क्युकी अगर वो यह रहता तो शायद वो भी अपना कंट्रोल खो देता जोकि आराध्या के किया ठीक नही था।
वो कमज़ोर थी इसलिए दोनो को हैंडल करना उसके बस मै नही था।
वही कबीर आराध्या को किस करते हुए अपने कपड़ो को अपने बॉडी से रिमूव कर रहा था।
वो आराध्या के नेक से कंधे से उसके चेस्ट तक आज्ञा था और वो आराध्या की b** को निकल कर फेक देता है और उसे अपने गोद मै से उठा कर गाड़ी के सीट पर लेता खुद उसके उपर आ जाता है।
और उसे के चेस्ट पर अपनी प्यार की निशानी छोड़ने लगता है वही आराध्या कबीर के टच को महसूस करके बस सिसकियां ले रही थी जोकि कबीर को पागल करने के लिए काफी थी।
वही कबीर आराध्या के बचे हुए कपड़ो को उसे अलग करने के बाद अपने कमर मै उसके दोनो पैरो को लपेट लेता है और खुद उसके पैरो के बीच मै रहे कर आराध्या की पूरी बॉडी पर एक नजर डालता है और वो अपना पूरा आपा खो कर आराध्या के सेंसटिव पार्ट पर अपने हाथ फेरता है जिसे आराध्या को अजीब सी फीलिंग आती है।
वो उस फीलिंग महसूस करके अपने आंखो को धीरे से खोल कर कबीर के तरफ देखती है।
तो कबीर उसकी नजरे खुद पर महसूस करके उसकी नजरो से अपने नजरे मिलते हुए उसकी तरफ झुक कर उसके माथे पर किस करके उसके गले मै अपना चहेरे डालते हुए उसके कान मै धीरे से बोलता है ।
प्रिंसेस क्या मुझे इसकी इज्जत है ? उसकी सांसे आराध्या के गले पर जा रही थी।
जिसे आराध्या के पूरे रोनते खड़े हो गए थे वो अपने हाथो को कबीर गले मै डाल देती है और कस के पकड़ अपनी आंखे बंद कर लेती है जिसे कबीर उसका जवाब को समझ कर अपने आपको उसके अंदर समा लेता है और प्यार करने लगता है ।
वही गाड़ी के बाहर ऋषि अपने जूनियर को पकड़ कर एक पेड़ से साठ कर खड़ा था वो खुद को गाड़ी के तरफ देखने से रोक रहा था।
वो अपने मन मै बोलता है जल्दी करो भाई...मुझे बाहर खड़ा करके अपने कारनामे से पूरी गाड़ी को डिस्को वाली कार बना रखा है जिसके करण मेरा जूनियर ये देख प्रिंसेस को पाना चाह रहा है।
मै कब से इसे शांत करने की कोशिश कर रहा हूं मगर ये है की माने को तैयार ही नही है।
इतना कहते हुए ऋषि अपने जूनियर को जोर जोर से अपने हाथ को रख मस्त****"" करने लगता है।
आगे इस कहानी मै क्या हुआ जाने के लिए स्टोर के साथ बने रहे
थोड़ी देर बाद कबीर आराध्या से दूर हुआ और उसे देखा तो वह काफी थकी हुई लग रही थी।
वह आँखें बंद किए, पसीने से तर-बतर, लम्बी-लम्बी साँसें ले रही थी।
कबीर ने उसे ऐसे देखकर अपने पैंट की जेब से रुमाल निकाला और आराध्या को अपनी गोद में बिठाकर उसके चेहरे पर आए सारे पसीने को पोछने लगा। वह आराध्या के चेहरे को प्यार से निहार रहा था।
तभी किसी ने दरवाज़े की खिड़की पर खटखटाया। कबीर ने आराध्या को अपनी गोद में लिए हुए अपनी शर्ट उसे ओढ़ाने लगा और उसे ओढ़ाने के बाद उसने खिड़की खोली। वहाँ ऋषि दिखाई दिया जो उसे देखकर बोला, "भाई, आपका काम हो गया? तो क्या मैं अब अंदर आ जाऊँ? हमें हॉस्पिटल भी निकलना है।"
यह सुनकर कबीर ने सिर हिलाया और उसे अंदर आने को कहा। ऋषि जल्दी से अंदर आया और अपनी ड्राइविंग सीट पर बैठकर एक नज़र पीछे मुड़कर देखा जहाँ कबीर अपनी गोद में आराध्या को सुलाए हुए था।
उसे ऐसे देखकर वह मुस्कुराया, मगर फिर कबीर ने उसे जल्दी चलने को कहा तो उसने जल्दी से अपनी गाड़ी चालू की और वे लोग वहाँ से सीधे अस्पताल के लिए निकल गए।
वहीं दूसरी तरफ, क्लब के अंदर से आराध्या को उठा ले जाने के बाद से करण बहुत परेशान था। वह दिव्या को ढूँढ़ते हुए एक कमरे में पहुँचा जहाँ दिव्या और उसकी दोस्त शराब पी रही थीं और काफी मस्ती करते हुए नाच रही थीं। उसे ऐसे देखकर करण जल्दी से दिव्या के पास गया, उसका हाथ पकड़ा और उसे अपनी ओर खींचते हुए बोला,
"दिव्या, गड़बड़ हो गई है!"
दिव्या की बात सुनकर दिव्या हैरानी से बोली, "क्या हुआ?" वह अभी भी थोड़ी नशे में थी, मगर वह सारी बातें समझ पा रही थी।
करण ने उसकी ओर देखकर बोला, "कोई कबीर आहूजा नाम का आदमी आराध्या को अपने साथ उठाकर ले गया है।"
करण ने इतना बोलते ही दिव्या का हाथ पकड़कर कमरे से बाहर निकल आया। उसकी यह बात सुनकर दिव्या हैरान होकर बोली, "कबीर आहूजा? यह तो इंडिया का, क्या पूरे एशिया का टॉप बिज़नेसमैन में आता है! और इसका और आराध्या का क्या लेना-देना है? तुम समझ रहे हो ना क्या मैं बोल रही हूँ? आराध्या अगर चली गई तो इस होटल का पेमेंट कैसे होगा?" उसके बाद शंकर बोला, "करण, मुझे कुछ नहीं पता। वह उसे लेकर चला गया। अब मुसीबत हमारे सर पर पड़ चुकी है। मेरे सारे दोस्त अपने पैसे वापस माँग रहे हैं।"
यह बात सुनकर दिव्या बोली, "मैं कहाँ से दूँगी पैसे उनको? मैंने तो दो लाख रुपये लिए थे और वो सारे के सारे पैसे खर्च हो चुके हैं। इसलिए आराध्या को बुलाया था ताकि तुम लोग उसके साथ सेटल कर सको।"
उसके बाद तभी कोई और बोला, "तो अब तुम हमें हमारे पैसे वापस करोगी?" यह बात सुनकर दिव्या पीछे मुड़कर देखती है तो वहाँ पर वे सारे लड़के खड़े थे जो आराध्या के साथ गलत करना चाहते थे।
वे सात-आठ लोग थे जो दिव्या को घूर रहे थे। दिव्या भी खूबसूरत थी, मगर आराध्या के आगे उसकी कोई औकात नहीं थी।
दिव्या उनकी बात सुनकर बोली, "मैं कैसे दूँगी पैसे? मैंने तो सारे पैसे खर्च कर दिए हैं।" यह बात सुनकर एक लड़का आगे बढ़ा और दिव्या की ओर देखकर बोला, "जो काम आराध्या हमारे लिए करने वाली थी, अब यह लड़की करेगी।"
उसकी आवाज़ सुनकर दिव्या के पसीने छूट गए क्योंकि उसने यह नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है। वह करण की ओर देखकर बोली, "ये लोग क्या बकवास कर रहे हैं? करण, कुछ करो! मैं ऐसा काम नहीं करती हूँ, तुम्हें पता है ना? तुम उनसे कुछ बोलो।" यह सुनकर करण कुछ नहीं बोला क्योंकि वे दोस्त बहुत अमीर परिवार से आते थे, जिसके कारण वे लोग उसे भी अपने साथ पार्टी में ले जाते थे जहाँ वह मौज-मस्ती करता था।
इसलिए वह उनके खिलाफ़ नहीं जाना चाहता था। इसलिए उसने दिव्या का हाथ पकड़कर उसकी ओर देखते हुए बोला, "अब जब तुमने उनसे पैसे लिए हैं तो तुम्हें चुकाना पड़ेगा। इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ।"
करण की बात सुनकर दिव्या हैरान हो गई। वह बोली, "करण, तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हो?"
उसकी बात सुनकर करण बोला, "जैसे तुमने आराध्या के साथ ये करने का सोचा, वैसे मैं तुम्हारे साथ ये करने का सोच सकता हूँ।"
इतना बोलते हुए करण दिव्या का हाथ पकड़ लिया। उसके बाकी दोस्तों ने भी दिव्या का हाथ पकड़ लिया और उसे उठाकर अपने कमरे में ले गए।
वहीं दिव्या बस चिल्लाती ही रही। वह जोर-जोर से चिल्लाते हुए बोली, "कोई मुझे बचाओ! कोई मुझे बचाओ!" मगर कोई भी उसकी बात नहीं सुन पाया। और जो सुनता भी था, वह उसकी मदद नहीं करता था। दिव्या बस रोती जा रही थी। शायद कर्म कहते हैं, जब हम किसी और के साथ गलत करने का सोचेंगे तो हमारे साथ भी गलत होगा। यह बात हमें याद रखनी चाहिए और यहाँ तो दिव्या ने जो किया था, उसका फल उसे भी गुनाहों के साथ पूरा किया गया था।
कमरे से दिव्या के रोने, चिल्लाने, माफ़ी माँगने की काफी डरावनी आवाज़ आ रही थी, मगर बेचारी दिव्या उन लोगों से बच नहीं पाई और वे लोग उसे प्रताड़ित करते रहे जिसमें उसका बॉयफ्रेंड यानी करण भी साथ में था।
करीब चार-पाँच घंटे बाद, दिव्या को उन लोगों ने छोड़ा और वे लोग बात करने लगे कि अगर आज दिव्या की जगह वो पहली वाली लड़की होती तो उनके पैसे पूरे वसूल हो जाते, मगर दिव्या उन दो लाख रुपयों के काबिल नहीं है। इसलिए उन्होंने दिव्या की ओर देखकर उसे करीब एक महीने के हर संडे को उनके फार्म आने को बोला।
दिव्या उनकी बात सुनकर और भी ज्यादा दुखी हो गई थी। वह अपने मन ही मन आराध्या से बोली, "आराध्या, तू एक बार वापस आ जाओ! मैं तेरा ऐसा हाल करूँगी कि तू कभी सोच भी नहीं पाएगी। तेरी वजह से आज मैं इस हालत में हूँ। इससे भी ज्यादा घटिया हालत में तेरी करूँगी।" इतना बोलते हुए दिव्या अपने आँसू पोछने लगी। वह इस वक़्त जमीन पर एक लाश की तरह पड़ी हुई थी।
और छत को देखते हुए यह सब अपने मन में सोच रही थी। वहीँ वे लोग जा चुके थे, बस करण वहाँ पर था।
वह जमीन से अपनी शर्ट उठाकर पहनते हुए बोला, "अब कितना नौटंकी करना है दिव्या? जल्दी उठो, चलो चलते हैं। मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूँ।"
इतना बोलते ही करण जैसे ही दिव्या को हाथ लगाने गया तो दिव्या ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर उसके हाथ को झटक दिया और बोली, "तुम मुझसे दूर रहो! तुम कैसे इंसान हो जो अपने ही गर्लफ्रेंड को किसी और को दे दिया? तुम मर्द भी हो?"
यह सुनकर करण हँसने लगा और बोला, "ये बात बोल भी कौन रही है जो अपने बर्थडे पार्टी को एन्जॉय करने के लिए अपनी ही छोटी बहन को हमारे साथ ये सब करने के लिए भेज दिया था? और मैं ये पूछना चाहता हूँ, जब तुम्हारे साथ ये सब कुछ हुआ था तब तुम हमें दोस्त समझ रही हो? क्या तुमने सोचा कि क्या तुम एक औरत भी हो या इंसान भी हो?"
उसकी बात सुनकर दिव्या चिल्लाई और बोली, "तुम्हें इसमें पड़ने की ज़रूरत नहीं है। वह मेरी छोटी बहन नहीं है। वह लड़की सिर्फ़ मेरे घर की नौकरानी है।"
उसकी यह बात सुनकर करण बोला, "बोलो मत! जिस घर में तुम रह रही हो, वह घर भी उसका है और जो पैसे पर तुम्हारे माँ-बाप ऐश कर रहे हैं वो भी उस लड़की के माँ-बाप की कमाई है।"
उसकी बात सुनकर दिव्या चुप हो गई और वह गुस्से में बस घूरती ही रही।
मगर करण को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था और वह दिव्या का हाथ पकड़कर उसे जल्दी से उठने में मदद करता है और उसे कपड़े पहनने को बोलता है।
वहीं दिव्या चुपचाप, न चाहते हुए भी, अपने कपड़े पहनने के बाद उसके साथ चली जाती है।
आगे इस कहानी में क्या हुआ, जानने के लिए आगे की स्टोरी पर बने रहें!
अस्पताल के अंदर, कबीर और ऋषि वार्ड के बाहर खड़े थे। आराध्या का चेकअप चल रहा था; डॉक्टरों की टीम उसकी जाँच कर रही थी।
थोड़ी देर बाद, डॉक्टर बाहर आए और कबीर व ऋषि को अपने केबिन में आने को कहा। केबिन में पहुँचकर, डॉक्टर बोले, "देखिए मिस्टर कबीर और ऋषि, लड़की की हालत अब ठीक है।"
"मिस्टर कबीर, आप जिस लड़की को लेकर आए हैं, उसकी हालत थोड़ी ठीक है, मगर कब तक ठीक रहेगी, यह हम नहीं बता सकते," डॉक्टर ने कहा। यह सुनकर दोनों हैरान हो गए। ऋषि ने डॉक्टर की ओर देखते हुए पूछा, "आप कहना क्या चाहते हैं?"
डॉक्टर ने उत्तर दिया, "उस लड़की पर बहुत जुल्म किया गया है। उसे बहुत टॉर्चर किया गया है। उसके शरीर पर कई निशान हैं—कटे हुए, जले हुए, नीले और लाल रंग के। ये निशान उसके शरीर को बदरंग और भयावह बना रहे हैं।"
कबीर बोला, "वह मैं जानता हूँ। मैंने भी वे निशान देखे हैं। मगर फ़िक्र मत कीजिए, निशान देने वालों को मैं ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा। आप बस सोचिए कि इन निशानों को उसके शरीर से कैसे हटाया जाए।"
डॉक्टर बोले, "ये निशान काफी पुराने हैं। घाव भरने और निशान हटाने में समय लगेगा। मैं कुछ दवाइयाँ लिख देता हूँ। मगर ब्लड रिपोर्ट आने के बाद ही मैं ज़्यादा कुछ बता पाऊँगा।" डॉक्टर के चेहरे पर एक अजीब सा भाव था। कबीर ने पूछा, "आप कहना क्या चाहते हैं, डॉक्टर?"
डॉक्टर ने कहा, "मुझे लग रहा है कि उसके साथ कुछ और भी है। जो ड्रग्स दिया गया था, वह भी बहुत ज़्यादा था। वह फिर से उस हालत में जाने वाली थी, मगर मैंने उसे ज़्यादा नींद की गोलियाँ दे दीं। इसलिए वह सो रही है। नहीं तो शायद उसे फिर से वही सब सहना पड़ता। एंटीडोट तो मैंने लगा दिया है, फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है। मगर ब्लड रिपोर्ट आने पर सब साफ़ हो जाएगा।"
ऋषि ने पूछा, "आप कहना क्या चाहते हैं?" डॉक्टर ने कहा, "थोड़ा इंतज़ार कीजिए। तब तक आप उसके परिवार के बारे में या उसके बारे में और कुछ पता लगाइए। फिर मैं आपको बताता हूँ।"
यह कहकर डॉक्टर वहाँ से चले गए। डॉक्टर इतना कुछ इसलिए बता पाए क्योंकि कबीर और ऋषि के दादाजी के दोस्त के बेटे थे। उन्होंने उनसे संपर्क इसलिए किया क्योंकि अगर वे अपने अस्पताल में जाते, तो यह बात दादाजी तक पहुँच सकती थी। इसलिए उन्होंने यह रास्ता चुना था।
डॉक्टर के जाने के बाद, ऋषि और कबीर एक-दूसरे को देखने लगे। कबीर बोला, "जिसने भी ऐसा किया है, उसको मैं ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा। और अगर इसमें उसके घरवालों का भी हाथ है, तो फिर तो मैं उसे बख्शूँगा नहीं।" ऋषि बोला, "आपको फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है, भैया। मैंने अपने आदमी को आराध्या के बारे में सब कुछ पता करने को कहा है। थोड़ी देर में हमें उसकी जानकारी मिल जाएगी।"
कबीर ने सिर हिलाया। दोनों केबिन से बाहर आकर आराध्या के बेड के पास आ गए और उसके पास बैठ गए। कबीर आराध्या के चेहरे को देख रहा था जो सोते हुए बहुत प्यारा और मासूम लग रहा था। ऋषि भी वही कर रहा था। ऋषि मन ही मन बोला, "तुम जो भी हो, मैं नहीं जानता, मगर अब से तुम हमारी हो। हमारी दुनिया में, तुम अपनी मर्ज़ी से काम नहीं चला पाओगी। चाहे तुम हमारे साथ रहो या ना रहो, अब तुम्हें पूरी ज़िंदगी हमारी बनाकर गुज़ारनी होगी... प्रिंसेस।" ऋषि के चेहरे पर एक अलग सी मुस्कान आ गई।
उस मुस्कान से समझना मुश्किल था कि वह आराध्या को अपना जुनून बनाना चाहता है या ज़िद। मगर इससे भी बड़ा सवाल था—क्या आराध्या इन दोनों के साथ रहना चाहेगी? आराध्या कौन है? यह आपको आगे पता चलेगा।
लगभग एक घंटे बाद, डॉक्टर रिपोर्ट लेकर कबीर और ऋषि को अपने केबिन में बुलाया। कबीर और ऋषि चुपचाप वहाँ गए। डॉक्टर ने कहा, "जैसा मैंने सोचा था, वैसा ही हुआ है।" उन्होंने रिपोर्ट कबीर और ऋषि को दी।
"मैंने पहले ही सोचा था कि उसे कम मात्रा में ज़हर दिया जा रहा है, और वैसा ही हो रहा था। मगर पिछले तीन-चार दिनों से उसने ज़हर नहीं खाया या पिया है। इसका मतलब है कि वह तीन-चार दिनों से भूखी है। उसके खाने में शायद धोखे से ज़हर मिलाया जा रहा था।"
यह सुनकर कबीर और ऋषि हैरान हो गए। उन्होंने रिपोर्ट पढ़नी शुरू कर दी। फिर उन्होंने डॉक्टर से पूछा, "अब क्या होगा?"
डॉक्टर बोले, "फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है। मैंने उसका ब्लड टेस्ट करवाया है ताकि पता चल सके कि उसे किस तरह का ज़हर दिया जा रहा है। एंटीडोट देते रहेंगे, मगर उसे पूरी तरह से ठीक होने में समय लगेगा। शायद हमें उसे कम मात्रा में एंटीडोट देना पड़ेगा।"
ऋषि ने हाथ मेज़ पर मारते हुए कहा, "इतने कमीने लोग कौन हैं जो उसे मारना चाहते हैं? वह तो मासूम सी बच्ची है।"
कबीर बोला, "ऋषि, यह दुनिया बहुत खतरनाक है। यहाँ लोग पैसों के लिए कुछ भी कर सकते हैं।" कबीर रुक गया और ऋषि की ओर देखा। ऋषि समझ गया और उसने अपना फ़ोन निकालकर अपने आदमी को कॉल किया। "तुमने अभी तक जानकारी मेरे तक क्यों नहीं पहुँचाई? क्या तुम्हें अपनी जान प्यारी नहीं है?"
आदमी बोला, "सर, गुस्सा मत होइए। मैं अभी जानकारी भेजने वाला था।"
ऋषि ने कहा, "जल्दी से भेज, नहीं तो मैं वहाँ जाकर जानकारी लेने लगूँगा, तो तुम वहीं मर जाओगे!" आदमी के पसीने छूट गए।
कबीर ने डॉक्टर से पूछा, "और कोई ड्रग्स से संबंधित समस्या तो नहीं होगी?" डॉक्टर बोले, "कुछ दिन तक वह चल नहीं पाएगी। उसके शरीर का कुछ हिस्सा पैरालाइज़ हो जाएगा। यही ड्रग्स का साइड इफ़ेक्ट है।"
कबीर ने पूछा, "और वह ठीक हो जाएगी ना?"
डॉक्टर बोले, "आप फ़िक्र मत कीजिए। वह ठीक हो जाएगी। हम उसे ठीक करके ही रहेंगे। वह लड़की बहुत मासूम लग रही है। रिपोर्ट में लिखा है कि उसे शायद 14 या 15 साल की उम्र से ही ज़हर दिया जा रहा है।"
"क्या तुम्हें उसके व्यवहार में कुछ अजीब सा लगा?"
कबीर को आराध्या की कुछ अजीब हरकतें याद आने लगीं—वह बच्चों जैसा व्यवहार कर रही थी। उसने कहा, "वह बच्चों जैसी हरकतें कर रही थी।"
डॉक्टर समझ गए। "यह उस ज़हर का साइड इफ़ेक्ट है, कबीर। अच्छा हुआ कि वह तुम्हें मिल गई। नहीं तो वह और दिनों तक ज़हर झेलती रहती, तो मर जाती।"
कबीर के मुट्ठी कस गई। उसने मन ही मन सोचा कि जिनका भी इसमें हाथ होगा, वह उन्हें नहीं छोड़ेगा।
तभी ऋषि ने अपने फ़ोन में कुछ देखते हुए कहा, "भाई..." ऋषि का फ़ोन उसके हाथ से छूटने ही वाला था, तभी कबीर ने उसे पकड़ लिया और स्क्रीन खोली। रिपोर्ट में लिखा हुआ देखकर वह भी हैरान हो गया। "यह कैसे हो सकता है?"
आखिर क्या हुआ? कबीर क्यों हैरान हुआ? जानने के लिए कहानी के साथ बने रहिए!
ऋषि के हाथ से फ़ोन लेकर कबीर ने रिपोर्ट पढ़ी। रिपोर्ट में आरोही के माता-पिता का नाम देखकर वह हैरान रह गया।
वह कैसे भूल सकता था कि उसकी माँ कितने दिनों से इन लोगों को ढूँढ़ रही थी?
आरोही की माँ का नाम अंजलि देशमुख और पिता का नाम अमर देशमुख था। दोनों ने प्रेम विवाह किया था, अपने पूरे परिवार के विरोध के बावजूद। इस कारण उनका अपने परिवार से कोई सम्पर्क नहीं था। अंजलि जी ने अपना परिवार छोड़कर अपने पति के साथ मुम्बई आ गई थीं।
यह बात कबीर की माँ को नहीं पता थी। वह अपने बच्चों और पति के जीवन में इतनी व्यस्त थी कि उसे अपनी सहेली के जीवन में क्या चल रहा है, इसका पता ही नहीं चला। अंजलि जी और अमर जी शादी के बाद बहुत खुश थे। उन्होंने अपने जीवन में बहुत कुछ हासिल किया। दोनों ही बहुत प्रतिभाशाली थे।
इसी प्रतिभा के कारण उन्होंने देशमुख इंडस्ट्रीज़ नामक एक फैशनेबल ब्रांड स्थापित किया जहाँ उच्च कोटि के वस्त्र बनाए जाते थे। उनके जीवन में सब कुछ सही चल रहा था। आरोही के जन्म से उनके परिवार में और ख़ुशी आ गई। पर ख़ुशियाँ ज्यादा देर नहीं टिकतीं। उनके व्यवसाय में गिरावट आई और कई दुश्मन बन गए। वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि कौन दुश्मन है और कौन अपना। एक दुश्मन ने उन पर हमला करवाया, जिसमे अंजलि और अमर जी दोनों ही मारे गए।
उनकी मृत्यु के बाद उनका सारा व्यवसाय और सम्पत्ति आरोही के नाम हो गई।
उस समय आरोही सिर्फ़ चार साल की थी, वह यह सब कैसे संभाल सकती थी?
पर अमर का एक भाई था, जो लालची किस्म का व्यक्ति था। जब उसे यह बात पता चली तो उसने आरोही की जिम्मेदारी ले ली और अपनी पत्नी और परिवार के साथ आरोही के घर में रहने लगा। उसने आरोही की जिम्मेदारी तो ले ली, पर निभाई नहीं। उसने आरोही के पिता का पूरा व्यवसाय अपने हाथ में ले लिया और उसकी पत्नी ने पूरे घर पर अपना कब्ज़ा कर लिया। उसने आरोही को नौकरानी की तरह पालना शुरू कर दिया।
वे आरोही को घर से बाहर निकालने की भी सोच रहे थे, पर जब उन्हें पता चला कि अमर और अंजलि ने एक वसीयत भी बनाई है, जिसमें लिखा था कि आरोही को यह सारी सम्पत्ति 19 या 20 साल की होने पर मिलेगी, तब उन्हें गुस्सा आया, पर वे कुछ नहीं कर सकते थे।
वसीयत में यह भी लिखा था कि अगर आरोही को कुछ भी होता है तो सारी सम्पत्ति ट्रस्ट को चली जाएगी और दान कर दी जाएगी। इसीलिए वे आरोही को इस तरह रखते थे कि उसे कोई चोट भी लगे तो बाहर वालों को पता न चले। वे घर में ही सारी बातें करते थे और घर में बाहरी व्यक्ति को नहीं रखते थे।
रिपोर्ट में ये बातें पढ़कर कबीर बहुत गुस्से में आ गया। फिर उसने आरोही के नाम के आगे लिखे नाम पढ़े:
अरविंद देशमुख
कामिनी देशमुख
और दिया देशमुख..
ये तीनों ही आरोही के दुख के ज़िम्मेदार थे। रिपोर्ट पढ़ने के बाद कबीर बेहद क्रोधित हो गया।
डॉक्टर से उसने कहा, "जब तक हम लोग नहीं आ जाते, तब तक आप आरोही का ख्याल रखेंगे। उसे कुछ नहीं होना चाहिए। वह हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है।"
डॉक्टर ने उसकी बात सुनकर सिर हिलाया।
वहीं कबीर ऋषि की ओर देखकर कुछ इशारा किया। यह बात समझकर ऋषि भी उसके साथ चल दिया। दोनों डॉक्टर के केबिन से बाहर आने के बाद कबीर ऋषि की ओर देखकर बोला,
"यह लड़की कोई और नहीं, बल्कि मॉम की बेस्ट फ्रेंड की बेटी है।"
ऋषि बोला, "हाँ, मैंने नाम पढ़कर ही समझ लिया था।"
उसके बाद कबीर बोला, "मगर उसके सौतेले पिता ने उसके साथ बहुत बुरा किया है। इसलिए जल्दी से देशमुख इंडस्ट्रीज़ के सारे शेयर खरीद लो और उन्हें देशमुख इंडस्ट्रीज़ में हमारी फैशन इंडस्ट्रीज़ के साथ जोड़कर कंपनी को और बड़ा करने की तैयारी करो। जल्दी ही जो हमारे प्रिंस से छिन गया है, उसे वापस, उसे दुगुना करके, हमारी प्रिंसेस को देना होगा। वह जब तक ठीक होगी, तब तक हम लोगों को उसकी कंपनी संभालनी होगी और जो चीज उसकी है, उसे उसे दिलाना होगा और जिसने यह किया है, उसे सज़ा देनी होगी।"
ऋषि ने कबीर की बात सुनकर कहा, "आपने बिल्कुल सही कहा, भाई। हमें हमारी प्रिंसेस को वह सब वापस करना पड़ेगा जो कुछ उससे छिन गया है और उसके दोषियों को हम ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे, बल्कि उन्हें तड़प-तड़प कर मारेंगे।"
कबीर के चेहरे पर ऋषि की बात सुनकर एक शैतानी मुस्कान आ गई।
वह बोला, "तो जल्दी काम में लग जाओ अपने आदमियों को। मैं तब तक के लिए मॉम के पास जा रहा हूँ। मुझे उनसे कुछ बात करनी है।"
कबीर की बात सुनकर ऋषि ने पूछा, "मगर भाई, आप कहाँ जा रहे हो? इतना तो बता दो।"
कबीर ने कहा, "मुझे मॉम से बात करनी पड़ेगी क्योंकि हमें शादी भी तो करनी है हमारी प्रिंसेस से।"
यह सुनकर ऋषि मुस्कुरा दिया और बोला, "लगता है भाई, आपको इंतज़ार नहीं हो रहा है। मगर सच कहूँ तो मुझे भी इंतज़ार नहीं हो रहा है हमारी प्रिंसेस को हमारी बनाने का..."
यह सुनकर कबीर मुस्कुराया और वहाँ से सीधा बाहर चला गया।
वहीं ऋषि ने अपना फ़ोन निकालकर कबीर ने जो बोला था, वही काम शुरू कर दिया। अब तक सुबह हो चुकी थी।
सुबह के दस बजे थे।
कबीर अपनी कार ड्राइव करते हुए सीधे आहूजा मेंशन आया, जो कि उसके दादाजी का मेंशन था जहाँ पर उसकी सारी फैमिली साथ में रहती थी।
कबीर बहुत तेज़ ड्राइविंग कर रहा था। इसे देखकर गेट पर खड़े बॉडीगार्ड ने जल्दी से गेट खोला और कबीर की गाड़ी आहूजा मेंशन के अंदर आ गई।
वहीं गार्डन में बैठे उसके दादाजी चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे।
उसे ऐसे देखकर उन्होंने अपना चाय का कप टेबल पर रखते हुए अपने बाजू में बैठे अपने बेटे से पूछा, "आज तुम्हारे बेटे को क्या हुआ है? इतना पागल होकर क्यों ड्राइविंग कर रहा है?"
दादाजी की बात सुनकर उनके बेटे, यानी कबीर के पिता ने कहा, "मुझे नहीं पता पापा..."
तभी कार की चाबी बॉडीगार्ड को देते हुए कबीर जल्दी से चलते हुए अपने दादाजी और अपनी माँ के पास आया।
और अपने चेहरे पर एक मुस्कान लिए बोला, "मॉम, हमें वो मिल गई है।"
उसकी मॉम, जो अभी चाय पी रही थी, उसने तुरंत अपना कप टेबल पर रखकर खड़ा हो गई और हैरानी से पूछा, "क्या सच में? वो मिल गई? कहाँ पर है वो?"
कबीर ने अपना सिर नीचे झुकाते हुए कहा, "माँ, मूंग की डेथ बहुत पहले ही हो चुकी है, बट उनकी एक बेटी है जिसकी हालत बहुत खराब है।"
यह बात सुनकर उसकी मॉम, जो दिखने में सिर्फ़ 35 या 30 की लग रही थी (उनकी असली उम्र नहीं पता चल रही थी), वह काफी खूबसूरत थी, उसने अपने बेटे कबीर की ओर देखकर कहा, "कहाँ पर है वो?"
कबीर ने कहा, "वह अस्पताल में एडमिट है, मगर फ़िक्र मत कीजिए, वह ठीक है। मगर एक बात पता चली है, उसे चार सालों से ज़हर दिया जा रहा है, वह भी कम मात्रा में।"
उसकी मॉम, मलिश्का आहूजा, जो एक वकील थीं, जिनके सामने बड़े-बड़े वकील भी घुटने टेक देते थे, वह गुस्से में बोलीं, "किसने किया उसके साथ ऐसा?"
उनकी बात सुनकर कबीर बोला, "उसके सौतेले पिता ने, जो शायद उनके दूर के रिश्तेदार हैं।" इतना कहकर कबीर ने रिपोर्ट निकालकर अपनी मॉम की ओर बढ़ा दी।
मलिश्का जी कबीर का फ़ोन लेकर सारी जानकारी पढ़ने लगीं और सारी जानकारी पढ़ने के बाद बोलीं, "उस पर ऐसे-ऐसे केस ठोकूंगी ना कि वो पूरी ज़िंदगी जेल में बैठकर चक्की पीसेगा।"
यह सुनकर कबीर बोला, "मगर मैं तो इससे भी बुरा कुछ करना चाहता हूँ।"
कबीर की बात सुनकर उसकी मॉम हैरानी से देखने लगीं। वही हाल दादाजी और कबीर के पिता का भी था।
मलिश्का जी ने हैरानी से पूछा, "क्या तुम उस लड़की में इंटरेस्टेड हो?"
उनकी बात सुनकर कबीर बिना कोई बात घुमाए बोला, "मैं उससे शादी करना चाहता हूँ। मतलब कि हम उससे शादी करना चाहते हैं।"
कबीर की मॉम ने हैरानी से कबीर की तरफ़ देखते हुए कहा, "तुम कहना क्या चाहते हो? हम, यानी कौन? मैं और ऋषि, दोनों इस लड़की से शादी करना चाहते हैं?"
यह बात सुनकर कबीर के पिता, जो अभी चाय की चुस्की ले रहे थे, उन्होंने सारा चाय बाहर थूक दिया और खांसते हुए बोले, "यह क्या बकवास कर रहे हो?"
उनकी बात सुनकर कबीर बोला, "आप लोगों ने इतने सालों में समझ लिया। अब शादी कर लो। शादी कर लो और हमने यही जवाब दिया था। साथ में ही शादी करेंगे और एक ही लड़की से शादी करेंगे। मेरा और ऋषि का, दोनों का ही आपको मालूम था।"
कबीर और आगे कुछ बोल पाता, कि मलिश्का बोलीं, "मगर इसमें उस लड़की की भी मंज़ूरी होनी चाहिए। अगर वो लड़की, यानी आरोही, इस बात से सहमत होगी कि उसे कोई दिक्क़त नहीं है तुम दोनों के साथ रहने में, तो मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है।"
कबीर ने उनकी बात सुनकर सिर हिलाया और वहाँ से अपना फ़ोन लेकर जाने लगा। तो उसके दादाजी बोले, "अब कहाँ जा रहे हो?"
वह बोला, "हॉस्पिटल जा रहा हूँ। ऋषि वहीं पर है और मुझे जल्दी से हॉस्पिटल भी जाना है। मैं नहीं चाहता कि मेरी प्रिंसेस मुझे वहाँ न देखकर परेशान हो।"
माही दादाजी अपने पोते की बात सुनकर अपने मन में बोले, "यह पत्थरदिल वाला मेरा पोता आज एक लड़की के लिए इतना ज़्यादा केयर और अपना प्यार दिखा रहा है।"
दादाजी ने उसकी तरफ़ देखकर कहा, "हम भी चलते हैं। हम भी देखना चाहते हैं वह कैसी है।"
दादाजी की बात सुनने के बाद कबीर ने सिर हिलाया।
वहीं मलिश्का जी और उनके पति, रणविजय आहूजा (कबीर और ऋषि के पिता और दो और बच्चों के पिता), वह भी जल्दी से खड़े हो गए।
क्योंकि उन्हें डर था कहीं उनका बेटा और उनकी बहू दोनों उन्हें छोड़कर हॉस्पिटल ना चले जाएँ, इसलिए वे भी जल्दी से खड़े हो गए और उन लोगों के साथ निकल पड़े।
आगे क्या होगा, यह जानने के लिए कहानी के साथ बने रहें!
कबीर उन लोगों के साथ फिर से अस्पताल के लिए निकल गया। उसकी माँ ने उसे फ्रेश होने को कहा, मगर उसने नहीं सुना।
जिसके कारण वह कुछ नहीं कर सकी और वह सब कबीर के साथ अस्पताल के लिए निकल गए।
वहीं दूसरी तरफ, देशमुख निवास के अंदर का माहौल काफी खराब था। अरविंद देशमुख घर में चिल्ला रहे थे और अपनी पत्नी को डाँट रहे थे। बार-बार उन्होंने आराध्या के बारे में पूछा।
कामिनी देशमुख आराध्या के बारे में कुछ नहीं जानती थी। "वह कहाँ गई? मुझे नहीं पता। अगर वह घर से भाग गई है तो मैं इसमें क्या करूँ? मैं उसकी नौकरानी थोड़ी ना हूँ जो उसकी हर बात पर नज़र रखूँ?"
उनके जवाब को सुनकर अरविंद भड़क गए और बोले, "तुम्हारा दिमाग खराब है! अगर वह लड़की यहाँ से भाग गई तो तुम्हें पता है क्या होगा? उसकी सारी प्रॉपर्टी हमारे हाथ से निकल जाएगी! हमें कैसे भी करके, जब तक वह 19 साल की नहीं हो जाती, उसे पाल-पोसकर अपने पास रखना होगा ताकि उसके हाथ से हम प्रॉपर्टी के पेपर साइन करवा सकें और सारे की सारे प्रॉपर्टी अपने नाम कर सकें।"
उनकी बात सुनकर कामिनी बोली, "मगर मैं क्या करूँ? मैंने कुछ नहीं किया। मुझे नहीं पता वह लड़की कहाँ है। मैंने तो उसे रात का सारा काम करने को और सो जाने को बोला था, और वह लड़की हर बार की तरह वहीं जाकर सो गई थी।"
"मैं आखिरी बार उसे वहीं देखा था, मगर फिर उसके बाद कहाँ गई, मुझे नहीं पता।" इतना बोलते हुए उनकी नज़र दरवाजे के पास गई जहाँ दिव्या थी। दिव्या धीरे-धीरे चलते हुए घर के अंदर आ रही थी। उसे देखकर कामिनी तुरंत उसके पास गई और बोली,
"दिव्या बच्चा, क्या हो गया? तुझे तो ठीक तो है ना? तो ऐसे क्यों चलकर आ रही है?"
दिव्या उनकी बात सुनकर अपने पिता की तरफ देखती है, जो गुस्से में थे। जिसे देखकर वह बोली, "मैं कल पार्टी में गई थी।"
अरविंद ने सुनकर कहा, "दिव्या, तुम्हारे साथ वह लड़की भी गई थी क्या?"
दिव्या उनकी बात सुनकर चुप हो गई और अपने मन में सोची, अगर इनको पता चल गया कि उसके कारण वह लड़की भाग गई है तो उसे ज़रूर सज़ा मिलेगी। इसलिए वह बोली, "नहीं पापा, मुझे क्या पता उस लड़की के बारे में? वह तो घर में ही रहती है। मैं तो रात को पार्टी करने गई थी और रास्ते में हमारी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया था।"
"इसी वजह से मैं ऐसे चलते हुए आ रही हूँ।" उसके बाद सुनकर कामिनी अरविंद की तरफ देखकर बोली, "पहले यह सब बात खत्म कीजिए। हमें अपनी बेटी पर ध्यान दीजिए। कैसे चलकर आ रही है! मुझे लगता है हमें डॉक्टर के पास जाना चाहिए। मुझे सही नहीं लग रहा है। मुझे लग रहा है कुछ ज़्यादा तो नहीं लग गया इसे।" छोटी सी बात सुनकर दिव्या घबरा गई और बोली, "नहीं माँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। बस थोड़ी चोट लगी है। आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। आप पहले उस लड़की को ढूँढिए। अगर वह भाग गई तो बहुत सारी दिक्कत हो जाएगी।" उनकी यह बात सुनकर अरविंद जी बोले, "हाँ, मैं अपने आदमी को कॉल करता हूँ। उसे उस लड़की के बारे में पता करने को बोलता हूँ।"
तो कामिनी जी बोली, "मुझे लगता है ना यह लड़की किसी के साथ भाग गई है।"
उनकी बात सुनकर अरविंद जी चिल्लाते हुए बोले, "क्या बकवास कर रही हो? वह किसी लड़के को जानती भी नहीं थी।"
"और ना ही वह बाहर जाती थी। किसके साथ भागेगी? फोन से भगाकर ले जाएगा उसके जैसी पागल को!"
कामिनी जी उनकी बात सुनकर बोली, "हो सकता है शायद कोई तो होगा। कोई इसका आशिक। ज़ोर से उठाकर लेकर गया होगा। वैसे भी बहुत सुन्दर है वह। दिखने में हीरोइन लगती है। किसी का भी इसके ऊपर दिल आ गया होगा। हमें क्या पता?"
तो अरविंद जी बोले, "अगर तुम्हें नहीं पता होगा तो किसको पता होगा? तुम्हें उसकी ज़िम्मेदारी दी थी ना कि तुम उसे संभालकर घर में रखोगी और तुम वही नहीं कर पाई हो। अगर तुम्हारे वजह से अगर वह भागी हुई है ना तो मैं बता रहा हूँ कामिनी, मैं तुम्हें तलाक दे दूँगा।" उनकी बात सुनकर कामिनी रोते हुए बोली, "अब ये कैसी बातें कर रहे हो...?"
इतना बोलकर वह रोने लगी और रोते हुए आराध्या को कोसने लगी।
वहीं तभी अरविंद जी का फ़ोन बजा। उन्होंने फ़ोन उठाकर देखा तो उनकी कंपनी, यानी कि आराध्या के पिता की कंपनी से फ़ोन आ रहा था। उन्होंने कॉल उठाया तो उधर से आवाज़ आई,
"सर, एक बहुत बड़ी दिक्कत हो गई है। हमारी कंपनी के शेयर्स गिरते जा रहे हैं और जो भी हमारे प्रोजेक्ट्स थे, उन्हें वापस माँगे जा रहे हैं और कम्पेनसेशन माँगा जा रहा है।"
अरविंद उनकी बात सुनकर चिल्लाते हुए बोले, "क्या बकवास कर रहे हो? ऐसा कैसे हो सकता है? प्रोडक्ट में कोई गड़बड़ी गई है क्या?"
तो वह आदमी बोला, "सर, नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है। अचानक ही ऐसा होना स्टार्ट हुआ है। क्या आपने किसी बड़े आदमी से पंगा ले लिया है जो ऐसा हो रहा है?"
उस आदमी की बात सुनकर वह बोला, "कौन से बड़े आदमी से मैं पंगा लूँगा? इतनी मेरी हिम्मत नहीं है। और जो भी हो रहा है पता लगाओ। मैं अभी कंपनी आ रहा हूँ।"
उनकी परेशान आवाज़ सुनकर कामिनी उनकी तरफ देखकर बोली, "क्या हुआ?" तो वह गुस्से में कामिनी का हाथ झटकते हुए बोले, "दूर रहो तुम! मुझे तुम्हारे कारण नहीं हो रहा है। वह लड़की भाग गई, अब कंपनी में लॉस होना स्टार्ट हो गया है। सारे के सारे कंपनी के प्रोजेक्ट जो हमें मिले थे, सब वापस लिए जा रहे हैं। हमारे शेयर्स इतने गिर रहे हैं, ऐसा रहा तो हम लोग जल्दी ही सड़क पर आ जाएँगे।"
उनकी बात सुनकर दिव्या हैरान हो गई और वह अपने मन में सोची, यह ज़रूर कबीर आहूजा का काम है। मगर उस लड़की के अंदर इतनी हिम्मत कैसे हुई जो कबीर जैसे बड़े आदमी पर अपना जादू चला दिया।
वह मन ही मन आराध्या को गालियाँ दे रही थी।
वहीं अरविंद जी अब तक घर से जा चुके थे। वहीं कामिनी सोफ़े पर बैठकर आराध्या को गालियाँ दे रही थी। तभी उसकी नज़र दिव्या पर पड़ी जो काफी परेशान थी। जिसे देखकर वह शक भरी नज़रों से बोली, "कहीं तुम्हारा तो हाथ नहीं है ना दिव्या, जो तुम इतनी ज़्यादा घबराई हुई हो? कहीं तुमने ही तो आराध्या को घर से नहीं भगाया?"
दिव्या उनकी बात सुनकर परेशान हो गई और बोली, "ऐसा कोई बात नहीं है माँ, मगर मुझसे गलती हो गई है।" कामिनी जी तुरंत उसकी बात सुनकर खड़ी हो गई।
और उसके पास आकर पूछा, "कैसे गलती हो गई है?"
तो दिव्या उनको सारी बातें बता देती है। सारी बातें सुनकर कामिनी गुस्से में दिव्या के चेहरे पर एक थप्पड़ मारते हुए बोली, "तुम्हारा दिमाग खराब है जो उस लड़की को अपने साथ लेकर गई थी वहाँ पर! और तुम्हें पैसों की ज़रूरत थी तो मुझसे बोलती! मैं पैसे दे देती।"
तो उसकी बात सुनकर दिव्या बोली, "मुझे नहीं पता था माँ। मुझे पैसे चाहिए थे, करीबन दो से ढाई लाख रुपए। और मैंने पहले ही आपसे एक लाख रुपए ले लिया था, जिसके कारण मैंने सोचा कि मैं आराध्या को ही यूज़ कर लेती हूँ।"
दिव्या की बात सुनकर कामिनी बोली, "वह लड़की कोई आम लड़की नहीं है! इस पूरे जायदाद की मालकिन है वह! और यह सारा जायदाद पाने के लिए हम लोग उसे इतने दिनों से छीन रहे हैं और उसे पागल करके रखा है हम लोगों ने। मगर आज तेरी करतूत के कारण वह भाग गई है! और वह लड़का कौन लेकर गया उसको? अब तू कुछ भी करके उसका पता लगा। क्योंकि अगर वह चली गई ना और किसी ऐसे के हाथ लग गई जो हमारे जैसा ही उसकी प्रॉपर्टी में इंटरेस्टेड हुआ तो बहुत ज़्यादा दिक्कत हो जाएगी।"
"हो सकता है कि हम लोगों को कल के दिन सड़क पर अपनी ज़िंदगी बितानी पड़े!"
कामिनी की बात सुनकर दिव्या परेशान हो जाती है।
और वह मन ही मन आराध्या से और भी जलन महसूस करने लगती है।
और वह उसे बस कोसने के अलावा कुछ नहीं कर पा रही थी।
वहीं कामिनी अपने मन में आराध्या को कैसे वापस लाए यह सोच रही थी और अपनी बेटी को अरविंद के गुस्से से कैसे बचाए यह सोच रही थी।
आगे इस कहानी में क्या हुआ, जानने के लिए कहानी में बने रहें!
कबीर अपनी फैमिली को लेकर जब अस्पताल पहुँचा, तो वहाँ रिसेप्शन पर ऋषि दिखाई दिया जो वेटिंग एरिया में खड़ा था। कबीर उसके पास गया और पूछा, "आराध्या कैसी है?"
ऋषि ने कबीर के भाव सुनकर बताया, "अभी तक उसे होश नहीं आया है। डॉक्टर उसे स्लीपिंग पिल्स दे रहे हैं ताकि वह होश में न आए।"
यह बात सुनकर कबीर की पूरी फैमिली चिंतित हो गई। कबीर ने पूछा, "मगर इतनी स्लीपिंग पिल्स क्यों? और आखिर उसे हुआ क्या है?"
कबीर की माँ ने अपनी बात बताई। कबीर और ऋषि एक-दूसरे को देखे और फिर कल रात की सारी घटना उन्हें बता दी। यह सुनकर कबीर की माँ भी गुस्से में आ गईं। दादाजी और रणविजय जी भी आराध्या के साथ हुए गलत व्यवहार को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे।
कबीर ने अपनी माँ और पिता को आराध्या को देखने वार्ड में भेज दिया और खुद ऋषि के साथ डॉक्टर से मिलने चला गया।
डॉक्टर किसी मरीज़ की फ़ाइल पढ़ रहे थे। ऋषि और कबीर को देखकर उन्होंने पूछा, "क्या हुआ, मिस्टर कबीर?"
कबीर ने कहा, "आप लोग आराध्या को इतनी ज़्यादा स्लीपिंग पिल्स क्यों दे रहे हैं?"
डॉक्टर बोले, "यह ज़रूरी है। अगर वह होश में आई, तो उसे तकलीफ़ होगी। शायद उसके शरीर से अभी भी ड्रग्स का असर कम नहीं हुआ है। अगर हम उसे होश में आने देंगे, तो उसकी मुसीबत बढ़ सकती है। ड्रग्स का साइड इफ़ेक्ट भी हो सकता है। इसलिए हम उसे चार-पाँच दिन तक ऐसे ही रखेंगे। उसे ग्लूकोज़ देते रहेंगे ताकि वह कमज़ोर न हो।"
कबीर ने सिर हिलाया। वह सोच रहा था कि डॉक्टर सही कर रहे हैं। अगर आराध्या को होश आया और उसने इतने सारे अनजान लोगों को अपने पास देखा, तो शायद वह डर जाएगी। और कबीर को यह भी नहीं पता था कि आराध्या को कुछ याद है या नहीं।
थोड़ी देर बाद कबीर और ऋषि ने डॉक्टर से कुछ और सवाल किए और जवाब पाने के बाद दोनों डॉक्टर के वार्ड से बाहर निकल आए।
आराध्या के वार्ड की तरफ़ जाते हुए कबीर ने ऋषि से पूछा, "वैसे, मैंने जो तुम्हें काम दिया था, तुमने पूरा किया कि नहीं?"
ऋषि ने कहा, "ब्रो, आपने जो-जो कहा था, मैंने सब कर दिया है। अब जल्दी ही वह कंपनी हमारी हो जाएगी।"
यह सुनकर कबीर मुस्कुराया। उसके चेहरे पर एक डेविल स्माइल आ गई। वह मन ही मन सोचने लगा, "अरविंद देशमुख, तुमने जो किया है, उसकी सज़ा तुम्हें ज़रूर मिलेगी। बहुत दर्दनाक मौत मरोगे तुम और तुम्हारी पूरी फैमिली। तुमने मेरी आराध्या, मेरी प्रिंसेस को पागल करके रखा था, ना? अब देखो, मैं क्या करता हूँ। तुम इतने पागल हो जाओगे कि सड़क पर आकर भीख माँगोगे!"
"तुम बस मेरा इंतज़ार करो।"
यह सुनकर ऋषि भी समझ गया था। वह भी एक्साइटेड हो रहा था कि फिर से वे मिलकर किसी को तबाह करने वाले थे, और यह तो उनकी प्रिंसेस की बात थी। इसका मतलब साफ़ था, इस बार जो सज़ा देने वाले थे, वह काफी ज़्यादा खतरनाक होने वाली थी।
अरविंद देशमुख और उसके पूरे परिवार के लिए बस यही सोच रहा था, "जितने मज़े करना है, कर लो। अब जो होगा, तुम्हारे सारे मज़े एक-एक करके ख़त्म होने वाले हैं।"
जब दोनों आराध्या के वार्ड में गए, तो देखा कि मलाइका जी और आराध्या की माँ शैलजा उसके पास बैठी थीं और उसे देख रही थीं। रघुवीर जी भी आराध्या के पास बैठे अपनी पत्नी और बहू के साथ उसे देख रहे थे।
कबीर और ऋषि अपनी माँ के पास गए। मलाइका ने कहा, "इसके साथ जिसने भी गलत किया है, उसे तुम दोनों ज़िंदा नहीं छोड़ोगे। तुम दोनों उनकी रूह तक काँप जाओगे!"
कबीर और ऋषि ने कहा, "आप फ़िक्र मत कीजिए, मॉम। हमारी प्रिंसेस को जिसने हर्ट किया है, उसकी सज़ा बहुत जल्द मिलने वाली है। उन लोगों को ऐसी मौत नहीं, ऐसी ज़िंदगी दूँगा कि वह खुद मरने की भीख माँगेंगे, पर मर नहीं पाएँगे।"
यह सुनकर मलाइका थोड़ी डर भी गई थीं क्योंकि वे जानती थीं कि उनके दोनों बेटे बहुत खतरनाक हैं। कबीर एक बिज़नेसमैन होने के साथ बिज़नेस का बहुत ज्ञान रखता था और ऋषि एक हैकर होने के साथ-साथ गैंगस्टर भी था।
दोनों बहुत टैलेंटेड थे, पर बहुत खतरनाक और खूंखार भी। पूरे एशिया में इन दोनों से लोग दूर रहना पसंद करते थे। आज तक जिन-जिन लोगों ने इनसे पंगा लिया था, वे दूसरी बार कभी नज़र नहीं आए थे। इसीलिए इनका खौफ़ लोगों में बहुत था। इन दोनों का नाम सुनकर ही लोग डर जाते थे।
आगे इस कहानी में क्या हुआ, जानने के लिए कहानी के साथ बने रहें!
अरविंद जी अपने व्यापार को लेकर चिंतित हो गए थे क्योंकि उनके शेयर लगातार गिर रहे थे। ऐसे ही तीन-चार दिन बीत गए।
अस्पताल में ऋषि, कबीर और मलिश्का जी, दादाजी और रणविजय, आराध्या के होश में आने का इंतज़ार कर रहे थे। आखिरकार, आराध्या को होश आया। उसने इधर-उधर देखा तो उसे अनजान लोग दिखाई दिए।
यह देखकर वह हैरान हो गई और भ्रमित होकर देखने लगी। उसकी यह हरकत देखकर कबीर और ऋषि समझ गए कि वह क्या सोच रही है। कबीर धीरे से आराध्या के पास गया, उसे उठने में मदद की और उसे अपनी गोद में बिठा दिया। यह देखकर उसके घरवाले हैरान हो गए, मगर ऋषि बिल्कुल सामान्य था।
उसे देखकर लग रहा था जैसे उसे पहले ही पता था कि कबीर ऐसा करेगा। मलिश्का सामान्य भाव से दोनों को देख रही थी, जबकि कबीर का परिवार उसे हैरानी से देख रहा था। तभी उनके कानों में आराध्या की आवाज़ आई।
"आप लोग कौन हैं? अंकल और आंटी?"
अपने लिए 'अंकल' सुनकर ऋषि और कबीर भी हैरान हुए, मगर उसकी मीठी आवाज़ सुनकर मदहोश भी हो गए।
आराध्या की बात सुनकर मलिश्का जी आगे बढ़ीं, उसके चेहरे को अपने हाथ में लेकर बोलीं, "कैसी हो बेटा तुम?"
आराध्या ने कहा, "मैं बिल्कुल ठीक हूँ आंटी।" उसने इतनी मासूमियत और प्यार से यह बात कही कि वहाँ खड़े सभी लोग उसकी मासूमियत देखकर मुस्कुरा दिए।
मलिश्का जी ने आराध्या के सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "तुम्हें कहीं दर्द तो नहीं हो रहा है ना?"
आराध्या ने कहा, "नहीं आंटी, मुझे कहीं दर्द नहीं हो रहा है।"
वह फिर से मासूमियत से बोली। कबीर ने उसका चेहरा अपनी ओर करते हुए कहा, "प्रिंस, सच में तुम्हें कहीं दर्द नहीं हो रहा है? अगर हो रहा है तो मुझे बता दो, मैं अभी डॉक्टर को बुलाकर आता हूँ।"
आराध्या ने कबीर को कसकर पकड़ लिया और बोली, "नहीं-नहीं, डॉक्टर नहीं! डॉक्टर अंकल मुझे सुई लगाएँगे, मुझे सुई से डर लगता है।"
इतना बोलते हुए उसने कबीर को और भी कसकर पकड़ लिया।
कबीर ने अपना एक हाथ उसकी कमर में रखते हुए दूसरे हाथ से उसके सर को सहलाते हुए कहा, "प्रिंसेस, तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं है। मैं डॉक्टर को तुम्हें इंजेक्शन नहीं लगने दूँगा।"
आराध्या उसकी बात सुनकर थोड़ी शांत हुई और उससे अलग होकर मासूमियत से उसकी ओर देखते हुए बोली, "सच में ना?"
कबीर ने कहा, "हाँ सच में… प्रिंसेस, मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा और तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा।" इतना बोलते हुए कबीर ने आराध्या को गले लगा लिया।
अब ऋषि भी आराध्या के पास आया और बोला, "तुम्हें किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है। जब तक हम तुम्हारे साथ हैं, तुम्हें कुछ नहीं होने देंगे।" इतना बोलते हुए ऋषि ने आराध्या की ओर देखा, और आराध्या भी उसकी ओर देख रही थी।
उन दोनों की बातें सुनकर आराध्या खुश हो गई और ताली बजाते हुए बोली, "आप दोनों भगवान के भेजे हुए मेरे रक्षक हैं! मैंने भगवान से बहुत-बहुत प्रार्थना की थी कि कोई मेरी रक्षा करे और आप लोग आ गए!" इतना बोलते हुए आराध्या ने उन दोनों को गले लगा लिया।
मलिश्का जी, रणविजय जी और रघुवीर जी उन तीनों को देख रहे थे।
वे मन ही मन सोच रहे थे कि आराध्या कितनी मासूम है और उसे दुनियादारी की समझ नहीं है। उसकी यह हालत देखकर उन तीनों को लगा कि अगर आराध्या उनके बेटों के जीवन में आ गई तो उनके बेटे पहले जैसे हो सकते हैं और उनके अंदर भी थोड़ा प्यार और इंसानियत जाग सकती है।
मलिश्का जी जहाँ अपने बेटों के लिए खुश थीं, वहीं रघुवीर जी के मन में एक सवाल था कि क्या आराध्या उनके वंश को आगे बढ़ा पाएगी?
और कहीं उनके पोते उसके जैसे हुए तो क्या होगा?
वह यही सब सोच रहे थे। रणविजय जी अपने बेटों के लिए खुश थे, और सबसे ज़्यादा वे खुद खुश थे क्योंकि उन्हें जैसी बेटी चाहिए थी, उन्हें आराध्या मिल गई थी। आराध्या जितनी मासूम और प्यारी थी, वैसी उनकी बेटी बिल्कुल नहीं थी।
आगे की कहानी में हम उनके बेटों से मिलेंगे। तब तक के लिए अलविदा। कल के एपिसोड में मिलेंगे।
ऋषि और कबीर आराध्या से बात कर रहे थे। उनके घर वाले उन्हें देख रहे थे। दादाजी मलिश्का जी की ओर देखे। मलिश्का जी ने उनकी नज़रें खुद पर महसूस कीं और रघुवीर जी की ओर देखा। रघुवीर जी ने बाहर की ओर इशारा किया। मलिश्का जी बाहर चली गईं।
रघुवीर जी मनीष जी के पास आकर बोले, "मैं जानता हूँ कि हमारे पोते उस लड़की को पसंद करते हैं। मैं यह भी जानता हूँ कि वह लड़की आपके दोस्त की बेटी है। मगर मुझे उसके इस घर की बहू बनने से परेशानी है। अगर वह हमारे घर की बहू बनी, तो पता चला कि वह हमारे घर के वंश को आगे नहीं बढ़ा पाएगी। और क्या गारंटी है कि उसका बच्चा भी उसकी तरह पागल नहीं होगा?"
उनकी आवाज सुनकर मलिश्का जी हैरान हो गईं। उन्होंने रघुवीर जी की ओर देखना शुरू कर दिया। उन्हें रघुवीर जी से ऐसी कोई उम्मीद नहीं थी। वह कुछ बोल पातीं, इससे पहले ही पीछे से ऋषि की आवाज दादाजी और मलिश्का जी के कानों तक पहुँची।
"दादा जी, आपको फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है। आराध्या बिल्कुल ठीक है और वह जल्दी ही ठीक हो जाएगी। यह सब जो उसके साथ हो रहा है, उसका कारण उसके बड़े पापा और उसके रिश्तेदार हैं। जिसके कारण वह यह सब झेल रही है। और रही बात पागल होने की, वह पागल नहीं है। वह हमारी होने वाली बीवी है। कृपा करके ऐसे मत बोलिए। मैं आपसे इतनी उम्मीद करता हूँ, दादाजी।"
ऋषि की बात सुनकर दादाजी बोले, "अगर वह ऐसी नहीं है, तो वह ऐसे कैसे हो गई है?"
"आपको कबीर भाई ने बताया था ना कि आराध्या के घर वाले जो ज़हर दे रहे थे, उस ज़हर के कारण आराध्या के दिमाग में साइड इफ़ेक्ट हुआ है। जो कि कुछ सालों में ठीक हो जाएगा।"
"मगर कितने साल लगेंगे? और कितने साल तक हम अपने पोते या पोती का इंतज़ार करेंगे..?"
ऋषि ने उनकी ओर और मलिश्का जी की ओर देखा। मलिश्का जी रघुवीर जी की बातों को सुनकर परेशान हो गई थीं। तभी आराध्या के डॉक्टर वहाँ आये।
उन्होंने दादाजी की बात सुनी और उनकी ओर देखकर बोले, "ज़्यादा साल नहीं लगेंगे। सिर्फ़ डेढ़ साल लगेगा। और डेढ़ साल उस लड़की के लिए भी काफ़ी होंगे। वह भी काफ़ी छोटी है। और जो आप माँग रहे हैं, वह कोई ऐसी-वैसी चीज़ नहीं है। आपके ज़ोर करने के कारण यह भी हो सकता है कि आप अपनी इज़्ज़त अपने बच्चों की नज़रों में गिरा रहे हों।"
डॉक्टर की बात सुनकर दादाजी चुप हो गए। उन्होंने डॉक्टर को देखना शुरू कर दिया। अब उन्हें एहसास हुआ कि वे क्या बोल रहे थे। उन्हें अपने किए का पछतावा होने लगा। उन्हें गिल्ट होने लगा।
ऋषि बोला, "दादा जी, आपको बिल्कुल भी फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है। आराध्या बिल्कुल ठीक है और हम उसका इलाज कर रहे हैं। वह बहुत जल्द ठीक हो जाएगी। मगर उससे पहले हम उससे शादी कर लेंगे। क्योंकि भाई चाहते हैं कि उनकी प्रिंसेस यानी हमारी प्रिंसेस जल्द से जल्द हमारी हो सके।"
मलिश्का जी बोलीं, "क्या तुम भी आराध्या को पसंद करते हो?"
ऋषि बोला, "आप जानती हैं, हमेशा से भाई की जो पसंद रही है, वही मेरी पसंद रही है। और आराध्या को तो मैं पहली बार देखकर उस पर फ़िदा हो गया था। और मैंने अब डिसाइड कर लिया है। अब मैं पूरी ज़िन्दगी आराध्या के साथ बिताना चाहता हूँ। और मुझे जो चाहिए था, और जिस लड़की की मैं तलाश में था, वह लड़की मुझे मिल चुकी है। अब वही मेरी और भाई की प्रिंसेस यानी हमारी वाइफ़ बनेगी। उसके अलावा कोई नहीं..."
दादाजी, मलिश्का जी और डॉक्टर तीनों ही उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिए।
डॉक्टर आराध्या के लिए खुश हो रहे थे। वह अपने मन में ही बोले, "अच्छा हुआ है कि आराध्या को सही समय पर सही लोग मिल गए थे। नहीं तो उसके साथ क्या होता, वह तो उन लोगों को भी नहीं पता था।"
दादाजी बोले, "मुझे माफ़ कर देना, ऋषि। मैं बस तुम लोगों के लिए परेशान था। तुम पिछले पाँच सालों से हर एक रिश्ते को ठुकरा रहे हो... और तुम दोनों की ही अब उम्र हो गई है शादी की। इसलिए मैं परेशान था। और जब मैंने आराध्या को देखा तो मैं खुश था। मगर जब मुझे पता चला कि उसकी हालत ऐसी है, तो मुझे डर लगने लगा... मैं पता नहीं यह सब कहाँ से सोचने लगा..."
तभी कमरे का दरवाज़ा खुल गया और रणविजय जी बाहर आये। उन्होंने उनकी ओर देखकर बोला, "मैं तो पहले ही बोला था, वह वाला सीरियल देखना आप बंद कर दीजिए। आप भी ना, उस सीरियल को देख-देखकर उसमें की जो सास अपनी बहू को परेशान करने के मौके ढूँढती है ना, वैसे टाइप के विलेन आप बन लग गए हैं।"
दादाजी ने रणविजय जी की ओर देखा और बोले, "चुप हो जा, नहीं तो यह छड़ी देख रहा है ना..."
रणविजय जी चुप हो गए। उन लोगों की बातें सुनकर सभी लोग हँस पड़े।
वे लोग वार्ड के अंदर आ रहे थे कि तभी उन्हें आराध्या का एक सवाल सुनाई दिया।
"हब्बी, मुझे नीचे कुछ चुभ रहा है!"
आगे इस कहानी में क्या हुआ, जानने के लिए कहानी के साथ बने रहें।
जब ऋषि, कबीर के परिवार और डॉक्टर आराध्या की बातें सुनते हैं, तो वे हैरान हो जाते हैं। कबीर की हालत भी कुछ ऐसी ही थी; वह मौसम की तरह आराध्या को देख रहा था, जो उस समय उसकी गोद में बैठी हुई थी।
जिसके कारण वह उसके जूनियर होने का एहसास कर रही थी।
आराध्या के सवाल को सुनकर वह शर्मा गया था। तभी उसे किसी की नज़र अपने ऊपर महसूस हुई। उसका ध्यान अपने दादा जी, डॉक्टर और पूरे परिवार पर गया, जो उसे देख रहे थे।
यह देखकर कबीर का चेहरा ऐसा हो गया मानो काटो तो खून न निकले। उसकी ऐसी हालत देख आराध्या, जो अपने सवाल का जवाब का इंतज़ार कर रही थी, बोली,
"हब्बी, बोलो ना..." इतना बोलकर वह कबीर की तरफ़ देखती है, जो अपनी फैमिली को देखकर एक मूर्ति की तरह खड़ा हो गया था। यह देख आराध्या अपना सिर उसके सामने ले आई और बोली,
"हब्बी, क्या आप स्टेच्यू-स्टेच्यू खेल रहे हो?"
उसकी यह बात सुनकर भी कबीर ने उसे कोई जवाब नहीं दिया। आराध्या का मुँह बन गया और वह उदास होने लगी।
तभी डॉक्टर, जो अपना डॉक्टर वाला कोट नहीं पहने हुए थे (क्योंकि ऋषि ने उन्हें बताया था कि आराध्या को उनसे डर लगता है), इसलिए वे एक सामान्य व्यक्ति की तरह वहाँ आए थे।
वे जल्दी से आराध्या के सामने आए और बोले, "मिस आराध्या, आपके हब्बी इस वक़्त गेम खेल रहे हैं। तब तक आप इस सोफ़े पर आइए, मैं आपको कुछ देखता हूँ।"
उसकी बात सुनकर आराध्या ने अपना सिर हिलाया और कबीर की गोद से उतर गई। वह एकदम आराम से चलकर डॉक्टर के पास चली गई। मिस्टर राहुल महेश्वरी, जो आराध्या का इलाज कर रहे थे और एक काबिल ब्रेन स्पेशलिस्ट डॉक्टर थे, उसे देख रहे थे।
वह आराध्या को इसलिए चलने के लिए कह रहे थे क्योंकि वह पता करना चाहते थे कि आराध्या ठीक से चल पा रही है या नहीं। आराध्या के उनके पास चले जाने के बाद कबीर भी उस तरफ़ देखता है जहाँ आराध्या डॉक्टर राहुल के पास गई थी।
राहुल आराध्या से बात करने लगा और उससे कई सारे सवाल पूछे। इससे उसे पता चला कि आराध्या का मानसिक स्तर कैसा है। वहीं ऋषि भी उनके पास आ गया था।
वह भी आराध्या की बात सुनकर समझ गया कि वह किसी सात साल की बच्ची की तरह बात कर रही थी।
तभी राहुल जी उससे पूछते हैं, "वैसे आराध्या, आपके घर में कौन-कौन है? आपकी मम्मी-पापा का नाम क्या है?"
उनकी यह बात सुनकर आराध्या एकदम शांत हो गई। वह शांति से बैठ गई और उसकी आँखों से आँसू गिरने लगे। यह देख ऋषि ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, उसके आँसुओं को साफ़ करते हुए बोला, "क्या हो गया प्रिंसेस? आप रो क्यों रही हो?"
आराध्या उसकी बात सुनकर बोली, "मेरे मम्मी-पापा..." इतना बोलते हुए वह सिसकती है और फिर बोली, "मेरे मम्मी-पापा भगवान जी के पास चले गए हैं।"
"वह मुझे अकेला छोड़कर चले गए..." इतना बोलते हुए वह रोने लगी। कबीर, जो अभी तक काफी असहज महसूस कर रहा था, वह भी आराध्या का रोना सुनकर उसकी तरफ़ आ गया। वह तुरंत उसके पास आ गया और उसे अपनी गोद में उठाकर बैठा लिया।
और आराध्या के आँसू साफ़ करते हुए बोला, "यह कौन बकवास कर रहा है? अगर तुम्हारे मम्मी-पापा चले गए तो कोई बात नहीं। मैं और देखो..." इतना बोलते हुए ऋषि की तरफ़ इशारा करके बोला, "मैं और यह, हम दोनों ही तुम्हारे साथ रहेंगे। तुम्हारे साथ खेलेंगे, तुम्हें खिलाएँगे और तुम्हें जो चाहिए, वह देंगे। तुम्हें सबसे बचाकर रखेंगे। इसलिए तो तुम्हारे मम्मी-पापा ने हमें यहाँ भेजा है, और तुम यहाँ रो रही हो?" यह सुनकर आराध्या मुस्कुरा दी और बोली, "तुम्हें मम्मी-पापा ने भेजा है?"
कबीर ने उसके बात को सुनकर अपना सिर हाँ में हिला दिया। तो आराध्या ने उसे मासूमियत से पूछा, "तुम मेरे मम्मी-पापा से एक सवाल पूछोगे क्या?"
मुझे तो... कबीर और ऋषि दोनों एक-दूसरे को देखने के बाद बोले, "हाँ। क्या सवाल पूछना है? बताओ प्रिंसेस।" तो आराध्या बोली,
"वो लोग मुझे छोड़कर क्यों चले गए...? क्या मैं अच्छी बच्ची नहीं हूँ...? इसलिए क्या वो मुझे छोड़कर चले गए हैं?"
यह सुनकर वहाँ पर सभी लोगों की आँखें नम हो गईं और वे आराध्या की तरफ़ देखने लगे। उन्हें आराध्या का दर्द दिख रहा था।
वहीं मालिशिका जी, यह सुनकर आगे बढ़ी और आराध्या के चेहरे को अपने हाथ में लेकर बोली, "ऐसी कोई बात नहीं है बेटा। तुम्हें रोने की कोई ज़रूरत नहीं है। देखो, मैं आ चुकी हूँ। मैं तुम्हारी माँ हूँ। तुम मेरे साथ हमेशा रहोगी। अब तुम्हारी मॉम है ना, तो तुम्हें कोई भी परेशान नहीं करेगा। इसलिए डरने की ज़रूरत नहीं है बेटा..." इतना बोलते हुए वह आराध्या के आँसू साफ़ करने लगी।
वहीं आराध्या मासूमियत से उनकी तरफ़ देखकर बोली, "क्या आप मेरी माँ हैं?" मालिशिका जी ने अपना सिर हाँ में हिला दिया।
तो आराध्या तुरंत ही उनके गले लग गई और बोली, "प्लीज़ मम्मा, मुझे छोड़कर मत जाना। वो लोग बहुत गंदे हैं। वो मुझे परेशान करते हैं और बहुत मारते हैं और वो...वो..." इतना बोलते हुए आराध्या डर से काँपने लगी और रोते-रोते बेहोश हो गई।
उसे ऐसे देख कबीर और ऋषि दोनों पैनिक हो गए और राहुल की तरफ़ देखे। राहुल तुरंत ही आराध्या को चेक करने लगा। वहीं कबीर आराध्या को गोद में उठाकर उसके बिस्तर पर लिटा दिया और राहुल से चेक करते हुए बोला, "शायद उसे कोई ऐसी बात याद आ रही है, जिससे उसे बहुत डर लग रहा है और इस तरह के पैनिक अटैक आ रहे हैं।"
उनकी बात सुनकर ऋषि और कबीर यह सोचने लगे कि आखिर कौन सी बात है जिससे उनकी प्रिंसेस इतना डर गई कि उसे पैनिक अटैक भी आ रहा था।
वहीं मालिशिका जी शायद आराध्या की बात समझ चुकी थीं और वह बिल्कुल चुप थीं। यह देखकर रणविजय जी बोले, "क्या हुआ मालिशिका?" उनकी आँखों से आँसू गिर गया। रणविजय तुरंत ही उनके पास आ गए।
तो वह बोली, "शायद इस बच्ची के साथ किसी ने बहुत गलत करने की कोशिश की है।"
उनकी बात सुनकर सभी लोग हैरान हो गए और अपनी दया भरी निगाहों से आराध्या की तरफ़ देखने लगे।
आगे इस कहानी में क्या हुआ, जानने के लिए कहानी के साथ बने रहें और अपनी प्रतिक्रियाएँ और रेटिंग देना मत भूलें।
आराध्या को बेड पर देख सभी लोग दया भरी नज़रों से देख रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आराध्या के साथ ऐसा क्या हुआ है जो वह इतनी डरी हुई है। मगर उन्होंने इतना समझ लिया था कि आराध्या ने काफी कुछ झेला है। ऋषि और कभी बस यह सोच रहे थे कि आखिर कौन ऐसा शख्स है जिससे आराध्या इतनी डरती है?
कौन है जो उनकी प्रिंसेस को इतना डराता है कि उसे पैनिक अटैक तक आने लगते हैं?
वे लोग बस इतना सोच रहे थे कि एक बार वह आदमी उनके हाथ लग जाए तो वे उसके साथ क्या करेंगे। वे लोग खुद भी नहीं जानते थे कि उस आदमी को वे कितनी तकलीफ देने वाले थे। इसका कोई अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता था, वे खुद भी नहीं!
वहीं दूसरी ओर, अरविंद जी अपनी कंपनी में काफी परेशान थे। वह लगातार गिरते शेयरों को देखकर बहुत परेशान हो गए थे। इसलिए उन्होंने एक कॉल किया और दूसरी ओर से फोन उठते ही बोला गया, "हेलो सर, कैसे हैं आप?" इतना बोलते हुए वह उनसे काफी बटरिंग करते हुए बोला, "सर, एक मुसीबत आ गई है हमारी कंपनी पर।"
उसके बाद की बात सुनकर दूसरी ओर से एक आवाज़ बोली, "कौन सी दिक्कत आ गई है अरविंद? और यह भी बताओ, मेरी प्यारी बिल्ली कैसी है? और तुम लोग उसे ठीक से तो रख रहे हो ना?" वह आवाज़ काफी शरारती, काफी डरावनी थी।
जिसे सुनकर कोई भी डर जाए, वही हाल इस वक्त अरविंद का भी था। उसके पसीने छूट रहे थे। वह बोला, "आपकी बिल्ली बहुत अच्छे से है हमारे पास। आप प्लीज मेरी कंपनी में मदद कर दीजिए।" उसकी आवाज़ सुनकर वह आदमी बोला, "अरविंद, तुमने मुझे क्या पागल समझा हुआ है क्या? मुझे नहीं पता है कि मेरी प्यारी बिल्ली तुम्हारे घर से भाग गई है और तुम्हारी बेटी उसे अपने साथ क्लब ले गई थी? तुमने क्या मुझे उल्लू समझा हुआ है या पागल? जो वह पहले ही भाग चुकी है, तो तुम मुझसे मदद की उम्मीद क्यों कर रहे हो? तुमने मुझे धोखा दिया है।"
"इसलिए तुम्हें इस गलती की सजा मिलेगी, अरविंद, मिलेगी ही। और जहाँ तक बात मेरी प्यारी बिल्ली की है, तो मैं उसे ढूँढ नहीं रहा हूँ।" उस आदमी की आवाज़ काफी डरावनी और दिल दहला देने वाली थी। वह आदमी की बातें सुनकर अरविंद के सीने में काफी दर्द होने लगा था। उसे बहुत डर लग रहा था क्योंकि वह आदमी कोई आम इंसान नहीं था।
अरविंद समझ गया था कि अब उसका खेल खत्म। यह आदमी उसे जिंदा या मुर्दा, कुछ भी नहीं छोड़ेगा। जो उसके साथ होने वाला था, यह सोच-सोच कर अरविंद के पसीने छूट गए थे। वह इतना डर गया था कि उसे पता ही नहीं चला कि वह कब अपनी पैंट में ही पेशाब कर चुका था।
उसके पैर काँपने लगे थे। उसने वह आदमी की बातें सुनीं जो बोल रहा था, "अरविंद, यह दुश्मनी तुम्हें बहुत भारी पड़ने वाली है। अभी तो सिर्फ़ तुम्हारी कंपनी के शेयर्स गिर रहे हैं, अभी बहुत कुछ तुम्हारे साथ होना बाकी है। तुमने जो मुझे धोखा दिया है ना, उसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। और रही बात उस बिल्ली की, तो वह बिल्ली बड़ी शैतान है, मेरी प्यारी बिल्ली बहुत शैतान हो गई है। एक बार मेरे हाथ आ जाए, फिर उसे वही सज़ा दूँगा... और उससे भी ज़्यादा भयानक सज़ा दूँगा कि अगली बार मुझसे दूर जाने से पहले सौ बार क्या, हज़ार बार सोचेगी। और तुम अपनी उल्टी गिनती शुरू कर दो, बहुत जल्द तुम्हारे साथ वह होगा जिसकी तुमने उम्मीद भी नहीं की थी, अरविंद…" इतना बोलते हुए वह आदमी फोन काट देता है।
वह आदमी की बातें सुनकर अरविंद के पैर काँपने लगे थे। वह डर के मारे जहाँ था वहीं बैठ गया। तभी उसके सीने में एक दर्द हुआ और वह अपने दिल पर हाथ रख देता है। वह उस दर्द को बर्दाश्त नहीं कर पाया और सीधे ज़मीन पर गिर गया।
वह गिरने की आवाज़ सुनकर बाहर खड़ा उसका असिस्टेंट अंदर आया और अरविंद को उस हालत में देखकर हैरान हो गया। उसने जल्दी से कुछ लोगों को बुलाया और अरविंद को लेकर अस्पताल चला गया।
उसकी हालत काफी नाज़ुक लग रही थी। उसकी साँसें बहुत धीमी चल रही थीं।
उसका असिस्टेंट बस यही सोच रहा था कि अगर अरविंद मर गया तो उसकी कंपनी, जो बैंक से कर्ज़ा लेकर चल रही थी, वह कर्ज़ा कौन चुकाएगा? वह परेशान हो रहा था क्योंकि वह कामिनी का भाई था।
और अगर अरविंद को कुछ हो गया और वह पैसे नहीं भर पाया, तो उसे ही यह पैसे भरने पड़ेंगे। इसलिए वह परेशान था कि अरविंद मरे ना, क्योंकि वह यह पैसे बैंक को नहीं लौटा पाएगा। उसके पास खुद इतने पैसे नहीं थे जितना बैंक का कर्ज़ था।
वे लोग पाँच करोड़ कहाँ से लाएँगे, यह सोच-सोच कर अरविंद के असिस्टेंट के पसीने छूट रहे थे।
वह लोग जल्दी से अरविंद को लेकर अस्पताल पहुँचे और उसे एडमिट करा दिया। अरविंद का असिस्टेंट, रमेश, कामिनी को कॉल करके सारी बात बताई। कामिनी किचन में खाना बना रही थी और उसका हाथ जल गया था। उसने कई सालों से खाना नहीं बनाया था, इसलिए उसे खाना बनाने का तरीका नहीं आता था। इस कारण उसका हाथ जल गया था। यह सुनकर कि अरविंद हॉस्पिटल में एडमिट है, वह भी परेशान हो गई और दिव्या को लेकर जल्दी से अस्पताल के लिए निकल गई।
डॉक्टर राहुल ने सब से कहा, "उसके सामने उस बात का जिक्र मत कीजिएगा। उसे खुश रखने की कोशिश कीजिए।" उन्होंने कबीर और ऋषि की तरफ़ देखते हुए कहा, "आप दोनों मेरे केबिन में आइए। मुझे आपसे कुछ बात करनी है।" दादाजी की तरफ़ देखकर बोले, "आप और मलिश्का दोनों घर चले जाइए। मैं यहाँ हूँ। मैं आराध्या का अच्छे से ख्याल रखूँगा।"
मलिश्का ने कहा, "आप और पापा घर चले जाइए। आपको कंपनी भी जानी है।"
कबीर ने कहा, "और यहाँ पर देखिए, कबीर और ऋषि के कंपनी में न रहने से रयान काम पर ध्यान नहीं दे पाएगा। इसलिए आप लोगों को जाना चाहिए। मैं यहाँ हूँ; मैं आराध्या का अच्छे से ख्याल रखूँगी और आपको फोन करके सारी बातें बताती रहूँगी।" यह सुनकर वह दोनों मान गए और वहाँ से चले गए।
मलिश्का आराध्या के पास आकर बैठी और उसके माथे पर हाथ फेरा।
आराध्या को नींद की इंजेक्शन लगा दिया गया था, इसलिए वह सो रही थी।
डॉक्टर के केबिन में कबीर और ऋषि के अंदर आते ही डॉक्टर ने उनकी तरफ़ देखते हुए कहा, "ऋषि और कबीर, आपको आराध्या का ज़्यादा ख्याल रखने की कोशिश करनी होगी। मैं उसके इलाज का जल्दी से जल्दी तरीक़ा ढूँढूँगा। मगर बात यह है कि मैं उसका इलाज तो कर दूँगा, मगर उसके अंदर के घाव को ठीक करने के लिए आप दोनों का प्यार और साथ ज़रूरी है।"
डॉक्टर की बात सुनकर ऋषि और कबीर एक-दूसरे को देखने लगे। डॉक्टर बोले, "आराध्या को शुरू से ही प्यार नहीं मिला है, और उसके साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया गया है। इसलिए वह ऐसी हो गई है। दूसरा कारण यह है कि उसकी यादें काफ़ी डरावनी हैं, जिन्हें याद करके वह काफ़ी डर जाती है। अगर ऐसा ही चला, तो आराध्या की मानसिक स्थिति और भी बिगड़ सकती है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप जल्दी से जल्दी आराध्या को यहाँ से ले जाइए। उसे उसकी दुनिया दिखाइए और उसे ज़्यादा से ज़्यादा खुश रखने की कोशिश कीजिए। उसे जो करना है, करने दीजिए। उसके मन की ख्वाहिशों को पूरी कीजिए ताकि वह और भी ज़्यादा आप लोगों के साथ घुल-मिल सके और आप लोगों के साथ अपना दुःख बाँट सके। तब जाकर उसके अंदर का दुःख, उसकी तकलीफ बाहर आएगी और उसके घाव ठीक हो सकेंगे।"
डॉक्टर की बात सुनकर ऋषि और कबीर समझ गए कि क्या करना है। उन्होंने डॉक्टर की तरफ़ देखते हुए कहा, "राहुल, आप फ़िक्र मत कीजिए। मैं और ऋषि, हम दोनों आराध्या का बहुत अच्छे से ख्याल रखेंगे। क्योंकि वह हमारी प्रिंसेस है, आहूजा ब्रदर्स की प्रिंसेस है। उसकी हर तकलीफ़, हर घाव, हर ज़ख़्म को हम दोनों अपने प्यार से भर देंगे और उसे एक ऐसी लड़की बनाएँगे जिसकी ज़िन्दगी में न दुःख का नाम होगा, न ही दुःख का कोई निशान होगा..." इतना बोलते हुए ऋषि और कबीर के चेहरे पर एक अलग ही भाव था। उन दोनों के आराध्या के लिए पजेसिव और केयरिंग नेचर को देखकर राहुल को समझ में आ गया कि यही दोनों आराध्या को पहले जैसा नॉर्मल और अच्छी ज़िन्दगी दे सकते हैं।
राहुल भी आराध्या को अपनी छोटी बहन की तरह देखने लगा था। उसके अंदर भी आराध्या के साथ जो हुआ था, उसे जानने के बाद, उसके दर्द और दुःख को देखने के बाद, उसके लिए एक अलग ही फीलिंग आने लगी थी। वह भी आराध्या को अपनी छोटी बहन मानने लगा था और उसने यह तय कर लिया था कि जो अब तक आराध्या के साथ हुआ है, वह आगे कभी नहीं होगा। वह अपनी छोटी बहन को कभी किसी दुःख, मुसीबत, परेशानी को नहीं झेलने देगा और उसे जल्द से जल्द ठीक करने की कोशिश करेगा।
राहुल के चेहरे के भाव देखकर कबीर और ऋषि बोले, "आप उसके मन में ऐसी कोई भी फीलिंग मत लीजिएगा, मिस्टर राहुल, जिसके कारण आपको तकलीफ़ हो।"
ऋषि की बात सुनकर राहुल ने उसकी तरफ़ देखते हुए कहा, "मैं बस उसे अपनी बहन की नज़र से देख रहा हूँ। इसलिए गलत मत समझिएगा। स्पेशली, मैं उसे आज से अपनी छोटी बहन मानता हूँ। और आराध्या, आप मेरी छोटी बहन हैं, तो आप मेरे खानदान की हिस्सा हैं। आज से आराध्या माशेश्वरी बन चुकी है और उसके हर दुःख और तकलीफ़ में उसका भाई खड़ा रहेगा।"
राहुल की बात सुनकर कबीर और ऋषि एक-दूसरे को देखते हैं और फिर मुस्कुरा देते हैं। वे बोले, "इसका मतलब है कि आप हमारे साले साहब हैं।"
ऋषि की बात सुनकर राहुल बोला, "हाँ, अब से तुम दोनों मेरे जीजा हो। इसलिए मैं पहले ही बता रहा हूँ, मेरी बहन को कोई तकलीफ़ मत होने देना। और तुम दोनों को मैं उसे अपनी ज़िन्दगी में इसलिए आने दे रहा हूँ क्योंकि तुम दोनों ही उसे संभाल सकते हो।"
राहुल की बात सुनकर कबीर मुस्कुराते हुए बोला, "हम आराध्या का पूरा ख्याल रखेंगे। उसे कोई तकलीफ़ नहीं होने देंगे। इसलिए राहुल, तुम फ़िक्र करना बंद करो। आज से तुम हमारे साले साहब हुए, मगर तुम हमसे बड़े हो, तो बड़े साले साहब हो तुम! इसका मतलब है शादी की सारी तैयारी तुम्हारे घर में होगी।"
यह सुनकर राहुल मुस्कुरा दिया और बोला, "क्यों नहीं? मैं करने के लिए तैयार हूँ। मैं अपनी बहन आराध्या की शादी तुम दोनों से करने को तैयार हूँ।"
यह सुनकर ऋषि और कबीर मुस्कुरा दिए।
आराध्य को थोड़ी देर में होश आया। जब वह उठी, तब तक दोपहर हो चुकी थी। आराध्या ने देखा तो उसके सामने मलिश्का जी बैठी हुई थीं।
जिसे देखकर आराध्या मुस्कुराई और बोली, "मामा, आप अभी तक यहाँ मेरे पास बैठे हो?" उसे सुनकर मलिश्का जी, जो अपने फ़ोन में कुछ मेल चेक कर रही थीं, उसकी ओर देखने लगीं। आराध्या को उठते देख उन्होंने उसकी बैठने में मदद की।
वहीं, ऋषि अपने ऑफ़िस चला गया था। उसे ज़रूरी काम था। विशेष बाथरूम गया हुआ था।
वह जब बाहर आया, तो आराध्या को जागी देखकर उसके पास आकर बोला,
"बच्चा, अब तुम्हारी तबीयत कैसी है?"
उसे सुनकर आराध्या उसकी ओर देखने लगी और उससे पूछा, "वैसे आप कौन हो?"
उसे सुनकर ऋषि उसके पास गया और उसके बाजू में बैठ गया। वह बोला, "मैं तुम्हारा पति हूँ।" उसे सुनकर आराध्या कुछ सोचते हुए बोली, "और जो आपके साथ रहते थे, वह अंकल, उनका नाम क्या है?"
आराध्या के मुँह से कबीर के लिए 'अंकल' सुनकर मलिश्का जी और ऋषि दोनों ही हँस पड़े। क्योंकि आज तक किसी ने कबीर को 'अंकल' नहीं कहा था। सब उसे 'हैंडसम' या 'मिस्टर आहूजा' बोलते थे। मगर इस तरह 'अंकल', कोई नहीं बोलता था। मगर आज आराध्या ने यह भी कर दिया था जो आज तक कोई नहीं कर पाया था। आराध्या ने पहले तो ऋषि और कबीर के दिल में जगह बना ली थी, और अब वह डेयरिंग भी हो गई थी। तभी तो वह कबीर को 'अंकल' बोल रही थी।
आराध्या को दोनों को हँसते देखकर उसने पूछा, "आप दोनों हँस क्यों रहे हो?" वह यह सब बातें बहुत मासूमियत और क्यूटनेस के साथ बोल रही थी। उसके बाल खुले हुए थे और उसके चाँद जैसे चेहरे पर, कुछ घंटे पहले रोने के कारण, आँखों में जो सूजन आ चुकी थी, वह अभी भी हल्की सी थी। उसकी नाक भी थोड़ी लाल थी।
वह इस वक्त काफ़ी ज़्यादा क्यूट लग रही थी। साथ ही, मुस्कुराते हुए उसके चेहरे पर दिख रहे डिम्पल्स उसे और भी ज़्यादा क्यूट बना रहे थे। ऋषि का मन उसके गालों को पकड़कर खींचने का कर रहा था।
मगर वह ऐसा नहीं कर सकता था। क्योंकि अगर वह ऐसा करता, तो आराध्या रोने लगती, क्योंकि उसे काफ़ी दर्द होता। यह सोचकर वह उससे दूरी बनाए हुए था।
वहीं, मलिश्का जी ऋषि की तरफ़ देखकर बोलीं, "मुझे तुम्हारे पापा से कॉल पर बात करना है। इसलिए मैं बाहर जा रही हूँ। और अभी किसी से कहकर आराध्या के लिए खाने के लिए मँगवा लो। उसे भूख लगी होगी। काफ़ी टाइम हो गया है।"
मलिश्का जी की बात सुनकर आराध्या ने उनसे पूछा, "मगर माँ, आप कहाँ जा रही हो?"
आराध्या उनको 'मामा', 'मॉम' और 'माँ' ये तीनों शब्द बोलकर मलिश्का जी को और प्यार लुटाने के लिए मजबूर कर रही थी।
उन्हें आराध्या का ऐसे खुद को बुलाना काफ़ी अच्छा लग रहा था। क्योंकि उनके बच्चे तो ऐसे कभी नहीं बोलते थे।
आराध्या के माथे पर हाथ फेरते हुए मलिश्का जी बोलीं,
"बच्चा, आप अपने पति के साथ रहो। मैं अभी बाहर जा रही हूँ। आपके पापा का कॉल आ रहा है ना, उसे अटेंड करके आती हूँ। फिर उसके बाद हम दोनों मिलकर खाना खाएँगे।" उनकी बात सुनकर आराध्या किसी अच्छे बच्चे की तरह अपना सिर हाँ में हिला देती है।
वहीं मलिश्का जी उसके बाद वहाँ से चली गईं।
अब सिर्फ़ आराध्या और ऋषि उस लग्ज़ीरियस कमरे में थे। आराध्या ऋषि की तरफ़ ही देख रही थी। जिसे देखकर वह बोला, "क्या हुआ बच्चा...?" उसकी बात सुनकर आराध्या उसकी ओर देखती है और फिर उसके पास आकर बोली,
"आप इतने सुंदर कैसे हो?"
उसकी यह बात सुनकर ऋषि हैरान हो गया। आराध्या फिर से मासूमियत से अपनी दोनों उंगलियाँ आपस में उलझाते हुए बोली, "मैंने यह पूछा कि आप इतने सुंदर कैसे हो!"
उसे सुनकर ऋषि मुस्कुराया और बोला, "जैसे तुम खूबसूरत हो, वैसे ही मैं सुंदर हूँ।!"
उसे सुनकर आराध्या बोली, "मैं सुंदर हूँ?" वह अपनी ओर इशारा करते हुए बोली। तो ऋषि बोला, "हाँ, तुम बहुत ही ज़्यादा सुंदर हो।" उसकी बात सुनकर आराध्या बोली, "मगर दिव्या दीदी बोलती है कि मैं तो मनहूस हूँ, सुंदर नहीं..!"
"वह मुझे बोलती है कि मैं एक चुड़ैल जैसी दिखती हूँ। इसलिए मुझे घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं है। क्योंकि लोग अगर मुझे देख लेंगे, तो वह डर के भाग जाएँगे।" वह ऐसा बड़े मासूमियत के साथ बोली। वहीं उसकी बात सुनकर ऋषि के हाथ की मुट्ठी कस गई। और वह अपने मन में सोचता है कि उसकी यह प्रिंसेस कितनी ज़्यादा मासूम और कितनी ज़्यादा साफ़ दिल की इंसान है, जिसको लोगों की नियत, उनके लालच और ना ही इस दुनिया के दस्तूरों के बारे में पता था।
ऋषि प्यार से आराध्या को अपनी गोद में बैठा लेता है और उसके माथे को अपने हाथों से सहलाते हुए बड़े ही प्यार से बोला, "तुम दिव्या दीदी की बातों को मत सुनो। वह झूठ भी बोलती है, पता है? उन्होंने मुझे भी एक झूठ बोला था।" उसे सुनकर आराध्या मासूमियत से पूछती है, "क्या झूठ क्या होता है?"
उसके इस बात को सुनकर ऋषि स्पीचलेस हो गया। मतलब आराध्या को इन सब चीज़ों का मतलब भी नहीं पता था। यह सोचकर ऋषि को आराध्या के लिए और भी ज़्यादा बुरा लग रहा था। मतलब आराध्या को गुड टच, बैड टच या किसी भी बातों के बारे में सही से कुछ नहीं पता था। वह बस बोल पा रही थी, बस उसे वही पता था।
ऋषि को अपने माता-पिता की क़ीमत समझ में आ रही थी। वह आराध्या की हालत को देखकर समझ रहा था कि अगर उसके मम्मी-पापा भी नहीं होते और शायद दादाजी भी नहीं होते, तो शायद उसकी भी हालत ऐसी होती। यह सब सोचते हुए ऋषि आराध्या को बड़े प्यार से निहार रहा था।
जिसे देखकर आराध्या बोली, "क्या आप मेरी एक विश पूरी करोगे?" उसकी बात को सुनकर ऋषि बोला, "क्या तुम्हारी विश है, प्रिंसेस? बोली, मैं तुम्हारी हर विश को पूरा करूँगा।" उसके बाद सुनकर आराध्या मासूमियत से बोली,
"मुझे ना टॉम एंड जेरी देखना है। मैंने काफ़ी सालों से नहीं देखा है।" उसे सुनकर ऋषि उसकी ओर देखता है और वह अपनी गोद से आराध्या को उतार देता है और उस वार्ड में रखे टीवी को ऑन करता है और अपने फ़ोन कनेक्ट करके टॉम एंड जेरी कार्टून लगा देता है।
जिसे देखकर आराध्या के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ जाती है और वह खुशी से ताली बजाते हुए बोली, "आप मेरे बहुत अच्छे पति हो..!"
इतना बोलते हुए वह ऋषि के ऊपर ही कूद जाती है। वहीं ऋषि उसे संभाल लेता है। मगर आराध्या उसे बिना कुछ समझने का मौका दिए उसके गालों पर किस कर देती है। वहीं ऋषि भुत बना खड़ा ही रह जाता है।
ऋषि भूत की तरह वहीं खड़ा रहा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। आराध्या अलग होकर वार्ड में रखे सोफे पर जा बैठी।
वह अपना प्रिय कार्टून देखने लगी। ऋषि होश में आते ही आराध्या की ओर देखा, जो अपने पसंदीदा कार्टून में मग्न थी।
उसने अपने फ़ोन से किसी को कॉल किया और आराध्या और अपने लिए खाना मँगवाया। आराध्या का ध्यान कार्टून में था, इसलिए उसने उसे परेशान नहीं किया।
उसने अपने फ़ोन में कबीर को मैसेज कर दिया कि आराध्या जाग चुकी है और पहले जैसी ही व्यवहार कर रही है। उसने यह भी लिखा, "आप भी जल्दी मीटिंग खत्म करके आ जाइए।" साथ ही उसने आराध्या की एक तस्वीर कबीर को भेजी।
कबीर ऑफिस में था। उसने अपना फ़ोन उठाया और देखा कि उसके भाई का मैसेज है। उसने झटपट मैसेज पढ़ा।
मैसेज पढ़कर उसे राहत मिली। उसने ऋषि से आराध्या का ध्यान रखने को कहा।
तब तक ऋषि और आराध्या का खाना आ गया था। ऋषि खाना लेकर आराध्या के पास गया और उसके बाजू में सोफे पर बैठ गया। सोफे के सामने एक छोटी सी कॉफ़ी टेबल रखी हुई थी।
ऋषि ने आराध्या और अपने लिए खाना निकाला। आराध्या के लिए खिचड़ी थी और उसने खुद के लिए भी खिचड़ी ही मँगवाई थी।
डॉक्टर ने उसे हल्का खाना खाने को कहा था। आराध्या की ओर देखकर ऋषि बोला, "प्रिंसेस, पहले खाना खा लो, फिर तुम्हें दवाई भी खानी है।"
आराध्या ने उसकी ओर देखा और बोली, "मगर आराध्या ने तो अभी कुछ नहीं बनाया है, तो खाएंगे क्या?"
ऋषि बोला, "आराध्या, मैंने तुम्हारे लिए और अपने लिए खिचड़ी मँगवाई है। चलो खाते हैं।"
आराध्या बोली, "वैसे खिचड़ी क्या होती है?"
ऋषि उसकी ओर देखकर बोला, "ये खाने से तुम जल्दी ठीक हो जाओगी और ज़्यादा स्ट्राँग बन जाओगी।"
आराध्या खुश हो गई और ऋषि की ओर देखकर बोली, "मुझे दो, मुझे खानी है! मुझे सबसे ज़्यादा स्ट्राँग बनना है!"
ऋषि के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने आराध्या का टिफ़िन बॉक्स खोला, उसमें चम्मच दिया और उसे हाथ से खिलाने लगा। आराध्या उसकी हरकत देखती रही।
ऋषि प्यार से उसे खिला रहा था।
ऋषि मुस्कुराते हुए आराध्या को खाना खिला रहा था। आराध्या ने भी जल्दी से दूसरा चम्मच लेकर ऋषि को खाना खिलाया।
ऋषि कुछ नहीं बोला और चुपचाप खाना खाने लगा।
मलिश्का जी वार्ड में आईं। उन्होंने दोनों को ऐसे देखकर मुस्कराया।
उन्होंने मन ही मन सोचा, "ये उनका बिगड़ा हुआ नवाब, जो हमेशा लड़कियों को अपने बिस्तर तक सिमटा रखने वाला ऋषि, आज किसी लड़की की इतनी फ़िक्र कर रहा था! वो बस अपनी माँ और अपनी बहन से ही बात किया करता था।"
और किसी से नहीं, मगर वो आराध्या के लिए इतना कुछ कर रहा था।
इसका मतलब था कि ऋषि ने आराध्या को अपना मान लिया था।
ऋषि ने आराध्य को खाना खिलाने के बाद उसे टीवी देखते पाया। वह एकदम शांति से बैठी टीवी देख रही थी और आनंद ले रही थी। ऋषि उसे परेशान नहीं करना चाहता था, इसलिए वह अपने फ़ोन में कुछ काम करने लगा।
वहीं दूसरी ओर, कामिनी और दिव्या अरविंद जी को देखने अस्पताल आ चुकी थीं। जब वे उनके वार्ड के बाहर पहुँचीं, तो रमेश पहले से ही वहाँ था। रमेश ने उन्हें देखकर कहा,
"दीदी, दीदी! आप आ गईं। देखिए ना जीजा जी को क्या हो गया है! वह भी अंदर हैं। डॉक्टर उनका इलाज कर रहे हैं।"
कामिनी ने पूछा, "आखिर उनको हुआ क्या है?"
रमेश ने बताया, "उनका हार्ट अटैक आया है।"
यह बात सुनकर कामिनी हैरान हो गई। "यह कैसे हुआ? यह सब कैसे?"
रमेश ने कहा, "पता नहीं। कंपनी के शेयर अचानक गिरने लगे... और जिसके कारण वे काफ़ी परेशान हो गए थे। शायद इसी वजह से उनको हार्ट अटैक आया है।"
कामिनी गुस्से में बोली, "यह सब कुछ आराध्या की वजह से हुआ है! वह भारती नहीं, उसके जाने के बाद ही ऐसा हुआ है। एक बार वह लड़की मिल जाए, तो मैं उसकी टाँगें तोड़ दूँगी..." इतना बोलते हुए वह रोने लगी।
दिव्या भी यह सोचकर परेशान हो रही थी कि अगर उसके पिता को कुछ हो गया, तो आगे क्या होगा? उनके पास अब संपत्ति भी नहीं है। वे कहाँ जाएँगे? यही सोच-सोचकर वह परेशान हो रही थी। तभी एक डॉक्टर रमेश के पास आकर बोला,
"मिस्टर, जो भी हैं, आपके साथ आए हुए मरीज़ का ऑपरेशन करना है। इसके लिए हमें आपके हस्ताक्षर और ऑपरेशन के पैसे जल्दी से जल्दी भरने होंगे!"
यह सुनकर रमेश के माथे पर पसीना आ गया। उसने डॉक्टर की ओर देखकर कहा, "वहाँ जो महिला खड़ी हैं ना, उनसे पैसे माँग लीजिए। वह उनके पति हैं। मैं तो उनका बस सहायक हूँ। अब मैं जा रहा हूँ।" इतना कहकर वह वहाँ से भाग गया।
रमेश के चले जाने के बाद डॉक्टर ने कामिनी को सारी बात बताई। यह सुनकर कामिनी ने दिव्या से कहा, "पैसे जुटा दे।" लेकिन दिव्या के पास भी पैसे नहीं थे।
कामिनी ने अपने फ़ोन में बैंक अकाउंट में पैसे चेक किए, लेकिन वहाँ भी पैसे नहीं थे। वह परेशान हो गईं और जल्दी से अपना मंगलसूत्र और पहनी हुई ज्वेलरी दिव्या को देकर बोलीं, "इसे पास के ज्वेलरी की दुकान पर जाकर बेच दे और जितने भी पैसे मिलें, लेकर जल्दी से आ जा।"
दिव्या तुरंत पास के ज्वेलरी शॉप पर गई और सारे गहने, और अपने पास जो भी गहने थे, बेच दिए। वह जल्दी से अस्पताल की सारी फ़ीस और डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाइयाँ लेकर आ गई।
वहीं दूसरी ओर, आराध्या सोफ़े पर ही सो गई थी, टीवी देखते हुए। ऋषि ने उसे अपनी गोद में उठाया और बेड पर सुला दिया। उसने उसे कंबल ओढ़ाया और कमरे का तापमान थोड़ा बढ़ाया क्योंकि कमरा काफ़ी ठंडा हो गया था और आराध्या को शायद ठंड लग रही थी। ऋषि उसके मासूम चेहरे को देखते हुए अपना हाथ आगे बढ़ाया और उसके माथे को सहलाते हुए बोला, "तुम हमारी प्रिंसेस हो। जल्दी से ठीक हो जाओ ताकि हम तुम्हें अपने साथ घर लेकर चल सकें।"
इतना बोलते हुए ऋषि नीचे झुककर उसके माथे पर किस कर लिया और राहुल के केबिन में चला गया।
ऋषि राहुल के केबिन में गया। ऋषि को वहाँ देखकर राहुल ने कहा, "मैं जानता हूँ तुम किस लिए आए हो। मैं भी अभी वहाँ आने वाला था और तुम्हें बताने वाला था कि कल सुबह तुम लोग आराध्य को यहाँ से ले जा सकते हो।"
ऋषि ने उनकी बात सुनकर कहा, "वैसे, मैं एक और काम के लिए यहाँ आया था।" राहुल उसकी तरफ़ देखने लगा।
ऋषि ने कहा, "एक्चुअली, मैं जानना चाहता था कि क्या तुम सच में मेरी बहन से शादी करने वाले हो?" राहुल ने कहा,
"हाँ तो... सच में ही शादी करूँगा ना! झूठ में भी शादी होती है क्या?"
यह बात सुनकर ऋषि बोला, "पता नहीं... मैं जानना चाहता था। तुम जानते हो मेरी बहन कितनी डेंजर है। वह हमसे बड़ी है और हमसे ज़्यादा गुस्से वाली है।"
"इसलिए मैं पूछना चाहता था कहीं तुम अपना डिसीज़न बदल ना दो... इसलिए मैं पहले ही बता देता हूँ कि तुम मुझसे शादी करनी पड़ेगी क्योंकि तुम पहले लड़के हो जिसे उसने पसंद किया है।"
यह सुनकर राहुल ने कहा, "तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे मुझे पता ही नहीं है। तुम्हारी बहन को मैं बचपन से जानता हूँ... और यह भी जानता हूँ कि अनुष्का कितनी गुस्से वाली है, मगर मैं यह भी जानता हूँ कि वह कितनी अच्छी है।"
"अगर वह मुझे प्रपोज नहीं करती तो मैं उसे प्रपोज करने वाला था। मगर तुम जानते हो, वह हर काम ऐसा करती है जो लोगों को चौंकाने वाला होता है।"
यह सुनकर ऋषि के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वह बोला, "वैसे, अनुष्का दीदी ने उस दिन ऐसा कुछ भी किया, वो तो हमने भी नहीं सोचा था।"
इतना कहकर वे दोनों उस दिन को याद करने लगे।
फ्लैशबैक
कुछ दिन पहले, ऋषि के दादाजी के बर्थडे वाले दिन आहूजा हाउस में बहुत बड़ी ग्रैंड पार्टी रखी गई थी। मुंबई के सारे बिज़नेसमैन और रिच फैमिली के लोग आए हुए थे।
जब पार्टी अपने चरम पर थी, तभी सबके सामने एक खूबसूरत लड़की, जो दिखने में मॉडल जैसी थी, एक लड़के के सामने घुटनों के बल बैठ गई।
उसके सामने राहुल खड़ा था। लड़की ने कहा, "मिस्टर राहुल महेश्वरी, क्या आप मुझसे शादी करना पसंद करेंगे...?" यह लड़की कोई और नहीं, बल्कि ऋषि, कबीर और रिहान की बड़ी बहन अनुष्का थी।
वह तीनों से बड़ी थी और उसकी उम्र 28 साल थी। उसके सामने राहुल खड़ा था, आराध्या का डॉक्टर और आराध्या को अपनी बहन मान चुका था। अनुष्का उसे बचपन से पसंद करती थी, इसलिए उसने आज राहुल को सबके सामने प्रपोज कर दिया था।
राहुल हैरानी से अनुष्का को देख रहा था। उसे इस बात की बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी कि अनुष्का ऐसा कुछ करेगी। वह सदमे में चला गया था।
वह मूर्ति की तरह खड़ा था। उसे ऐसे देखकर सभी लोग हूटिंग करने लगे। सब राहुल से कहने लगे, "हाँ बोल दो राहुल..." उनकी बातें सुनकर राहुल अपने होश में आया।
फिर उसने अपना हाथ आगे किया। अनुष्का ने रिंग पहनाई और सबके सामने, बिना किसी शर्म और परवाह के, उसे किस कर लिया।
वहाँ राहुल की फैमिली भी मौजूद थी, और दूसरे बड़े लोग भी। उन दोनों को देखकर कुछ लोगों को शर्म आई।
मगर बाकी लोग तालियाँ बजा रहे थे।
फ्लैशबैक एंड
उस दिन को याद करके राहुल ने अपने चेहरे पर दोनों हाथ रख लिए। उसे आज भी शर्म आ रही थी। यह सोचकर ऋषि को हँसी आ रही थी और वह हँस भी दिया।
राहुल ने कहा, "ज़्यादा हँसने की ज़रूरत नहीं है। अगर तुम्हारी फैमिली भी होती और तुम ऐसे करते, तो तुम्हें भी शर्म नहीं आती? कितना ऑकवर्ड सिचुएशन था वह मेरे लिए, तुम जानते भी हो।"
ऋषि हँसने लगा और बोला, "हाँ तो क्या हो गया? मुझे तो हँसी आ रही है। आप 31 साल के हो और अभी तक आपको किस करना भी नहीं आता! अनुष्का दीदी मुझे बोल रही थीं।"
यह सुनकर राहुल का चेहरा लाल हो गया। उसने कहा, "तो क्या करता? वह मेरी पहली किस थी।"
ऋषि और भी तेज हँसने लगा और बोला, "सच में, दीदी ने अच्छे इंसान को चुना है।"
"चलो अच्छा है, अब मुझे कोई टेंशन नहीं है कि आप उनको चीट करोगे।" इतना बोलकर वह हँसते हुए बाहर चला गया।
राहुल ने अपने चेहरे पर दोनों हाथ रखकर अपना चेहरा छुपा लिया।
शाम को जब कबीर ऑफिस से जल्दी हॉस्पिटल आया, उसने कुछ देर आराध्या के साथ मस्ती की। फिर उसने आराध्या को डिनर कराकर सुला दिया।
अगले दिन आराध्या को अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी। इसलिए मलिश्का जी और रणविजय जी, साथ में, आ चुके थे।
वे लोग आराध्या से मिलने आए। आराध्या अब उनसे थोड़ा-थोड़ा घुलने-मिलने लगी थी।
मलिश्का जी और रणविजय जी उसे मिलकर बहुत खुश थे क्योंकि आराध्या वैसी ही बेटी थी जैसी उन्हें चाहिए थी।
वह लोग आराध्या को लेकर हॉस्पिटल के पार्किंग एरिया में आ गए।
वे लोग कार में बैठे ही थे कि पीछे से एक आवाज़ आई, "आराध्या! आराध्या! तुम यहाँ हो ना? तुम ही हो ना? रुक जाओ!"
उस शख्स की बातें सुनकर आराध्या, जो अभी तक खुशी-खुशी बातें कर रही थी और बैठने ही वाली थी, डर के मारे कबीर के पीछे छिप गई।
वह उसे देखकर कबीर और ऋषि पीछे मुड़े। रणविजय जी और मलिश्का जी भी पीछे मुड़े। सामने कामिनी और दिव्या खड़ी थीं। वे दोनों आराध्या को घूर रही थीं।
आराध्या ने डरकर कबीर की शर्ट पीछे से जोर से पकड़ ली थी। कबीर समझ गया कि आराध्या डर और काँप रही है।
उसकी हालत देखकर कबीर को कामिनी और दिव्या पर बहुत गुस्सा आया। वह उनकी तरफ देख ही रहा था कि कामिनी आराध्या के पास आने लगी। तभी मलिश्का आगे बढ़कर बोली, "तुम कौन हो? और हमारी बेटी को ऐसे क्यों बोल रही हो?"
कामिनी मलिश्का को देखकर हैरान हो गई। मलिश्का एक जाने-माने परिवार की बहू और एक अच्छी वकील थी, जो अक्सर टीवी या ख़बरों में दिखती थी। कामिनी चुप हो गई। दिव्या, जो मलिश्का को नहीं जानती थी, आगे बढ़कर बोली, "यह जो आपकी साथ लड़की है ना, यह फ्रॉड है। यह पागल होने का नाटक करके आप लोगों से संपत्ति ले रही है। यह हमारी घर की नौकरानी है और कुछ दिनों से हमारे पैसे चुराकर भागी हुई है। हमें मिल गई है, तो प्लीज़ इसे हमें दे दीजिये। हमें इसे सबक सिखाना है।"
दिव्या की बातें सुनकर ऋषि और कबीर का गुस्सा बढ़ गया। रणविजय जी गुस्से में बोले, "क्या बकवास कर रही हो तुम? जानती भी हो यह कौन है? यह हमारी होने वाली बहू है! यह आहूजा की बहू बनने वाली है।"
रणविजय जी की बातें सुनकर दिव्या और कामिनी दोनों हैरान हो गईं।
वे दोनों एक-दूसरे को देखने लगीं, मगर फिर अपनी जलन और नफरत से आराध्या की तरफ देखने लगीं। आराध्या ने अपना सिर नीचे कर लिया।
ऋषि आगे आया और बोला, "ज़्यादा दिमाग खराब करने की ज़रूरत नहीं है, नहीं तो जो हालात पहले थे ना, उससे भी बदतर कर दूँगा।" इतना बोलते हुए उसने दोनों को घूरा। दोनों डर गए और उनके पसीने छूट गए।
कबीर आराध्या को अपनी कार में बिठा लिया।
रणविजय जी और मलिश्का जी अपनी कार में बैठ गए। ऋषि भी कबीर की कार में बैठ गया।
वे लोग वहाँ से चले गए। दिव्या और कामिनी उन्हें जाते ही देखती रहीं।
आगे क्या हुआ, जानने के लिए कहानी के साथ बने रहें!