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रेवा सफर प्यार और तकरार की

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nishti 🎀🦋

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कहानी का प्रारंभ: एक चार महीने की मासूम बच्ची, जो एक दर्दनाक दुर्घटना में अपने असली माता-पिता से बिछड़ जाती है। उसकी तकदीर उसे नर्मदा किनारे बसे एक छोटे से गांव में ले आती है। उस समय गांव एक बड़े संकट से जूझ रहा होता है, लेकिन उस बच्ची के आग...

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Page 1 of 1

  • 1. रेवा सफर प्यार और तकरार की - Chapter 1

    Words: 5126

    Estimated Reading Time: 31 min

    कहानी मैं... ..           उत्तर ओर मध्य प्रदेश की बीच में बहती हुई मां नर्मदा नदी के तट पर बसे हुए एक, गाव जहां महादेव के भक्ति में बिलीन समस्टर भक्तबिनंदो के वास है,  वह छोटा सा गांव आज बहुत ही बड़ी संकट से गिरी हुई थी बहा आज एक आश्रम आग के लिप्टो  में लिपटी हुई थी,......       सभी गाव  के लोग महिला हो या पुरुष सभी आश्रम के बाचाब हेतु, मिल जुल कर नदी से पानी लाने जाने का काम ओर  , आग में पानी  दालने की काम पर व्यस्त थे ताकि आग को बुझा सके ।  समस्त पंडित और भक्तविंद महादेव के आगे विनती कर रहे थे ताकि पूरे गांव में यह पलायणकारी आग ना फैल जाए । इस समय सबकी आंखों में एक डर था ।          इस गांव के एक महापंडित जी आसमान  की तरफ लाचारी से देख, महादेव को स्मरण कर बोले,..... “ हे भोले भंडारी महाकाल आज तेरी भक्तविंद बहुत बड़े संकट में है आज तुझे हमारी रक्षा करनी होगी , .....यह विनती है तेरी एक निस्वार्थ भक्त की हर हर महादेव ” 🙏🙏🙏🙏🙏🙏 ...... उनकी विनती को सुन समस्त गांव वाले भी उनकी धुन में ही महादेव को स्मरण करते हुए बोले,.....“ हर हर महादेव , हर हर महादेव । ”       इस समय ,  ईस गाव लोग बहत ही चिंतात्मक स्थिति में थे क्योंकि , बहुत साल हो गए थे इस गांव में बारिश की एक बूंद की भी पानी नहीं तपकी  थी , ना जाने कितनी विधि विधान यज्ञ करने की बावजूद भी बारिश के नामोनिशान तक नहीं था , आज जो आग उसे आश्रम में लगा था वह बढ़ते वक्त की मै ,ओर भी ज्यादा बढ़ता ही जा रहा था और  लोगों की घर में भी फेले जा रहा था जिससे गांव  के लोग नदी के पानी से बुझाने की नाकाम कोशिश कर रहे थे , लेकिन उन लोगों की कोशिश नाकाम ही होने की कगार पर थी कोई लोग तो हर भी मान चुके थे । वह आग बहुत  फैल चुकी थी ।       आज इस महान संकट से बचने के लिए सिर्फ गांव के लोग महादेव की आशा में ही निर्भय कर सकते थे क्योंकि उन लोगों के पास कोई और चारा नहीं था , अगर इस आग की कोहनी पूरे गांव में फैल जाएगी तो पूरा गांव ही जलकर खाग हो सकती थी क्योंकि यह कोई छोटा-मोटा आग की लिपते नहीं थी एक प्रलयंकारी  आग की लिपते थी ।        ठीक उसी समय, ...... गांव एक वासी जो नर्मदा नदी से पानी लाने जाने का काम कर रहा था जिससे लोग आग को बुझाने की कोशिश में लगे हुए थे , उसे अपनी आंखों के सामने कुछ बहते हुए किनारे की तरफ आते दिखाई दे रहा था , उसने पहले ध्यान नही दिया,  कयोंकि उसे लगा की शयद पानी में कुछ अन्य साधारन  सामग्री बेह रही होगी,  .... ओर बेसे भी उस समय आग बुझाने का काम ज्यादा महत्वपूर्ण थी।  इसलिए उसने उसे चीज पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया ।         लेकिन कहते है ना,  मा नर्मदा जो,.... स्वयंम  महादेव की पुत्री के नाम से विराजमान है उनकी तट पर कैसे कोई साधारण सा सामग्री तेरते हुए किसी को दिखाई दे सकता है । वह आदमी पुनर अपने काम में व्यस्त होने लगा तभी,.....         उस आदमी के कान में एक छोटी सी बच्ची की रोने की आवाज़ आई, तभी उसने ध्यान देके,  उस पानी में बहते हुए टोकरी को देखा , जो मा नर्मदा की लेहरो मे ही झूलते हुए किनारे की तरफ आ राही थी  , जब उस आदमी ने देखा की टोकरी में कया हैं  , ....तह बह अंस्मभीक हो गया , उसकी आंखें हैरानी से फैल गई और हाथ में लिए हुए पानी की वाल्टी भी हाथ से सुट कर गिर गया।              जब उस आदमी को एहसास हुआ, की उस टोकरी में एक छोटी सी बच्ची है  , तह बह अपना सारा काम सोर,.... उस टोकरी के पास भागा,.... भागते हुए उसने बोला“ ओ मोरी मैया रे यह तो एक बच्ची है ,..... ”            बह जाके टोकरी को किनारे ले  आए,. ...ओर उस बच्ची को अपनी गोदी मैं ले लिया।             एक प्यारी सी नवजात बच्ची, जो शयद अभी कुछ ही महीने की होगी, उसकी चेहरे की बह रौनक ओर खिला हुआ प्यारा चेहरा , जिसे देख कोई भी मंतमुगध हो जाए, दिखने मैं  काफी ऊसी खानदान की लग रही थी।            अजीब सी बात यह थी की,... जब से उसकी अगमन इस गांव में हुआ था ,...तब से उसकी चेहरे पर एक प्यारी सी हँसी खिली हुई थी, जबकि अन्य बच्चे तो इस समय बहुत ही रोया करते हैं, उसकी प्यारी सी हंसी ,  जो किसी भी व्यक्ति के मन  को लुभा ने केलिए काफी था।        जिस अदमी के गोद मैं इस समय बह बच्ची थी , उस अदमी के चेहरे को देख पता चलता है की, उनके मन में  शयद अभी बहत सारे सवाल की उठल पूठल चल रही होगी। उसे आदमी ने अपने मन में ही सोचते हुए बच्ची को देखकर  कहा ,          .....“  यह बच्ची किसकी है  ,और नदी में यह कैसे आई , क्या यह हमारे गांव की ही किसी की संतान है ?..... जहां तक मुझे पता है अभी ,हमारे गांव में किसी की भी बच्चा पैदा नहीं हुआ है , तो फिर यह किसकी बच्ची है ? और यह दिखने में कुछ ही महिनो की लग रही हैं,  हे महादेव यह कैसी नींदृयता  है , इतनी मासूम सी बच्ची को कौन मां बाप ऐसे पानी में बहा  सकता है ।         वह आदमी बच्ची को गोदी में लिए हुए गांव की तरफ आ ही रहा था की,  पीछे से उसे एक औरत जो शायद उसकी पत्नी थी उसने उसे रोकते हुए और थोड़ी सी गुस्से में कहा ,....       “ अरे, अरे क्या कर रहे हो ?...हा, ना  जाने किसकी पाप की अंश है यह , अरे इसे  हाथ क्यों लगाया !.... इसे हाथ लगाने से  इसकी अबशगुनता हमारे माथे पर जाएगा , ( फिर अपने दांत पीसते हुए ) अरे दूर रहो ना इससे... और जहां से लाए हो वहां ही फेंक दो इसे ,  ।     वह महिला जो काफी कुऱ और निर्दय स्वभाव के दिख रही थी , उसकी ऐसी बात सुन उसका पति बहुत ही गुस्से में उसे देखते हुए बोला,....“ अरे कैसी औरत हो तुम ! तुम्हारी मन में दया और ममता पान की थोड़ी सी भी एहसास  नहीं है क्या..! जो तुम इतनी मासूम और प्यारी बच्ची को पानी में फेंकने की बात कह रही हो....?लानत है तुम्हारी जैसी औरत पर । ”        उन दोनों की झगड़े को देख पूरे,.... गांव वाले जो आग बुझाने के काम में व्यस्त थे वह सभी अब उन दोनों के पास आने लगे , सब लोगों के साथ महा पंडित जी भी उन दोनों के पास ही आ रहे थे ,...तो वह महिला जो अपने पति को कुछ बातें सुनानहीं वाली थी उसने महा पंडित जी को देख अपना मुंह बंद कर लिया , ..... और अपने पति को वह गुस्से में घुरने लगी ।         महा पंडित जी और गांव के सभी लोग जब उसे आदमी के पास पहुंचे तो उसकी गोदी में एक बच्ची को देख सभी हैरान और असंभिक हो गए , तो महा पंडित जी और गांव के लोग उन दोनों पति-पत्नी को हैरानी से देखकर पूछे ,.... “ यह बच्ची किसकी है , और तुम दोनों क्यों लड़ रहे थे एक दूसरे से !”        “ पता नहीं महां गुरुजी , यह बच्ची किसकी है मैं तो यहां से पानी ले जाने की काम में व्यस्त था ,...तभी मेरी नजर उसे टोकरी में पड़ी और उसे टोकरी में ही यह बच्ची नदी में बेकर किनारे की तरफ आ रही थी तो मैं जाकर उसे पानी से उठा लाया । „ वह आदमी महा पंडित जी की तरफ देख यह बात बता रहा था कि यह बच्ची उसे कहां मिली,....          महा पंडित जी कुछ बोलने को हो ही रहे थे कि तभी ,......बच्ची की रोने की आवाज सभीके कानों में  सुनाई दिया ,.... जो शयद इतनी लोगों की आवाज़ से दर गई थी, .... और साथ में ही आकाश में बादल गरजने लगे और देखते ही देखते बच्ची की रोने के धुन में जोर की बरसात भी बरसने लगे , जिसे देख  सभी गांव वाले  और साथ में महा पंडित जी भी  महादेव के आगे हाथ जोड़ उन्हें धन्यवाद कह के उनके नाम की स्लोगन को आसमान की तरफ हाथ फैला के गाने लगे । “  हर हर महादेव हर हर महादेव ,...धन्य हो ,धन्य हो,.... आपने हमारी भक्ति का मान रखा,..... हम आपके बहुत-बहुत आभारी है महादेव, हर हर महादेव हर हर महादेव ....„ सभी गांव वाले बहुत ही खुश नजर आ रहे थे ,            सभी ने एक साथ हाथ जोड़कर उसे बच्ची को प्रणाम किया और महा पंडित जी ने उसे आदमी के गोद से बच्ची को लेकर आसमान की तरफ करके , मां नर्मदा को स्मरण कर , सभी गांव वालों से कहा ,....“  यह बच्ची , जो अप सभी के सामने हैं,.... यह कोई साधारण कन्या नहीं है , यह मां नर्मदा की गोदी में जन्मी वह एक पुण्याता की किरण है जो हमारे इस गांव की भविष्य और  वर्तमान को रक्षा करने वाली रक्षिका है , आज से यह बच्ची इस गांव की और सभी गांव वालों की संतान के रूप में जाना जाएगा , और इस बात से किसी को कोई भी फर्क नहीं परना चाहिए कि यह किसकी संतान थी यह अब हमारे गांव की संतान है जो स्वयं मां नर्मदा की गोद ने  हमें प्रदान किया है , जिसकी आने से ही हमारे गांव के इतनी बड़ी मुसीबत टल गई और इतनी बरसों के बाद भी इस सूखी मिट्टी में बारिश की सैलाब उमर आई तो यह हमारे लिए कोई चमत्कार से काम नहीं है ।                 यह मायावी कन्या हमारे गांव के भविष्य है और इसका पालन पोषण भी हमारे गांव के लोग ही करेंगे,....”         महान पंडित जी के इस निर्णय का सभी लोगों ने समर्थन किया और उसे बच्ची को सभी ने एक बार फिर से प्रणाम किया । महान पंडित जी के एक शिष्य ने उनसे पूछा,....“ महागुरु जी आपकी निर्णय हेतु यह मायावी कन्या हमारे गांव की सबकी संतान के स्वरूप श्रीकिता है , लेकिन क्या इस शुभ घड़ी में आप इस कन्या का नामकरण भी करेंगे ,?....”          अपने शिष्य की इस सवाल को सुन महागुरु जी बच्ची को अपनी गोदी में झुलाते हुए और सभी गांव वालों की तरफ देखते हुए बोले,....“ आज इस शुभ घड़ी में मां नर्मदा के पुत्री ओर हमारे गांव की संतान स्वरूप इस मायावी कन्या का नामकरण अवश्य हम करेंगे , जैसे इस कन्या के आगमन से हमारे गांव की इतनी बड़ी मुसीबत टल गई और जैसे मां नर्मदा की गोद में न जाने कहां से यह कन्या इतनी बड़ी मुसीबत को पीछे शोर हमारे गांव तक पहुंची है ,.....और स्वयं महादेव की प्रसाद स्वरूप इस कन्या का नाम मां नर्मदा और महादेव की आशीर्वाद से ,....हम इस गांव की महागुरू के अधिकार से इस बच्ची का नाम .....“ रेवा ” रखते हैं,  जो मां नर्मदा की ही एक अन्य नाम से प्रसिद्ध है ।”        सभी गांव के लोग और भक्तजनों भी महादेव की स्लोगन को फिर से दोहराने लगे ,....“ शंकर भोले भंडारी की जय ,महाकाल महादेव की जय , बोलो महादेव की जय ...”        महागुरु जी के गोद में वह बच्ची जो रेवा थी वह इस समय सब लोगों की तरफ देख खील खिला के हंस रही थी जैसे कि उसे इस गाव के दिए हुए यह नाम बहुत ही पसंद आया हो ।        कहते हैं हिमालय के कैलाश पर्वत में महादेव की तपस्या से उत्पन्न मां नर्मदा नदी जो महादेव की पुत्री के नाम से जाने जाते हैं इस नदी के कर्ण कर्ण  मैं शंकर भोले भंडारी की अमृतप्रवाहित होते रहते हैं । इस नदी  के तट पर बसे हुए इस गांव में ही आगे जाकर रेवा की भविष्य लिखा जाएगा जो जाकर उसके जीवन की सुख दुख प्रेम और विवाहित संसार का भी उल्लेख किया जाएगा । और इस गांव का नाम भी रेवा के नाम से ही उदय क्या जाएगा । ......     9 साल वाद,.. ....                  एक प्यारी सी बच्ची जो एक घर के सामने कुछ और बच्चों के साथ गिल्ली डंडा खेल रही थी , दो छोटी वाली वह लड़की दिखने में काफी प्यारी लग रही थी लगभग 9 साल की यह बच्ची कोई और नहीं हमारी “रेवा” ही थी,...                वह बाकी बच्चों के साथ खेल ही रही थी कि तभी उसके पास  एक गांव की औरत , आके  अपने हाथों में लिए हुए हल्दी की  कटोरी को उसके सामने करते हुए बोली , ..... अरे बेटा इस हल्दी के कटोरी में भी अपना हाथ लगा दे मेरे बेटे की भाग्य खुल जाएगी ,  उसे औरत की बात सुनकर रेवा , जब हल्दी के कटोरी को हाथ लगाना चाहा उससे पहले ही उसकी मां यानी उस  आदमी जिसने रेवा को नदी में से उठाया था , उसकी पत्नी जिसका नाम कुसुम था वह झत से आके रेवा की हाथ को पकड़ लिया , और सामने कटोरी को पकड़ी हुई औरत को देखते हुए बोली  ,...... अरे बहन आजकल की इतनी महंगाई की जमाना हो गई है तो कोई काम क्या फ्री में होता है  ? यह बात बोलते हुए कुसुम उस ओरत को देख अपनी उंगलियों को पैसे  गिनने वाली तरीके से दिखाने लगी तो वह औरत समझ गई कि उसका काम फ्री से तो नहीं होने वाली यह समझ उसने एक ₹10 का नोट लाकर कुसुम के हाथ पर थमा दिया । तब जाकर कुसुम ने रेवा की हाथ  चोरी ,और तब फिर रेवा ने जाकर हल्दी के कटोरी में अपनी हाथ लगा दी , । इन 9 सालों में कुसुम ओर उसके पति को ही रेवा की देखभाल ओर पालन पोषन की जिम्मेदारी महागुरु जी ने दी थी , वैसे तो पूरे गांव की लोग ही रेवा को अपनी संतान की तरह व्यवहार करते थे , लेकिन उसे पानी से निकाल के लाने का काम कुसुम के पति ने किया था तो उन दोनों को ही माता-पिता का दर्जा दिया गया था । और इसकी फायदा उन दोनों को ही  खूब हुआ , क्योंकि दोनों पति और पत्नी बहुत ही लालची  किशम के थे ,          रेवा को गांव वाले , बहुत ही शुभ मानते थे , जिस कारण रेवा को प्रत्येक एक शुभ कार्य में , शामिल करना गांव वालो की एक परंपरा सा बन गया था , चाहे मंदिर की कोई पूजा पाठ हो या किसी घर की कोई विशेष शुभ कार्य सब में रेवा का होना विशेष था  गांव वाले उसके बिना कुछ शुभ काम करते ही नहीं थे । रेवा तो बहुत ही छोटी सी थी अभी उसके इतनी सोचने और समझने की उम्र नहीं हुई थी , लेकिन उसके सौतेली मां-बाप इतने लालची थे कि गांव वालों की भक्ति के बल पर किए जाने वाले कुछ भी कार्य के आर मैं  वह दोनों अपना लाभ ढूंढते थे ।         जब गांव वालों में से किसी के भी घर में कुछ विशेष उत्सव के शुभ महोत्सव पर रेवा की जरूरत पड़ती थी तो , गांव वाले उसे लेने उसके घर आते थे तो उसके सौतेले माता-पिता यानी कुसुम और आनंद उसे ले जाने से पहले गांव वालों से उसकी मुआवजा मांगते थे।  और कार्य हो जाने के बाद रेवा को दिए जाने वाले दान दक्षिणा भी वह दोनों उस से जब्द कर लिया करते थे ।       दरअसल रेवा के आने से पहले उन दोनों को कोई भी संतान नहीं था लेकिन रेवा के आ जाने से भी उन दोनों को कोई लेना देना नहीं था उन्हें तो सिर्फ ,  अपनी जरूरत का ख्याल था ऐसा कह सकते हैं कि रेवा के आने से उन दोनों का भी भाग्य खुल गया था।  रीवा के पालन पोषण के नाम पर दोनों ने इसका भरपूर फायदा उठाया था ।  लेकिन हमारी छोटी सी रेवा उन दोनों की चलाक्यों के बारे में कुछ ज्यादा सोच नहीं पाती थी क्योंकि वह अभी उम्र में बहुत ही छोटी थी और इस बात का वह दोनों ही फायदा भरपूर उठाते थे । ऐसे ही वक्त बीते गए और हमारी रेवा बड़ी होती गई लेकिन कुसुम और आनंद ने अपनी भाग्य के ताला तो खोल दिया लेकिन रेवा जैसी इतनी प्यारी बच्ची को अपनी संतान के रूप में अपने से वह दोनों ही कतरा गए । कुछ साल बाद, .....        नर्मदा के तट पर हमारी रेवा जो अभी 19 वर्ष की हो चुकी थी वह , बहा नदी की तट पर बेठी महादेव की , लिंग अपनी हाथो से बना रही थी,  इस समय उसके चेहरे मै एक तृप्तिमय और प्यारी सी मुस्कान खिली हुई थी , समय के साथ हमारी रेवा ओर भी ज्यादा खूबसूरत ओर समझदार बन चुकी है।              इस समय,  उसकी बाल एक जुड़े में बंधा हुआ था जिस मे बाल थोड़ी  बिखरी हुई सी थी,  हल्की बैंगनी रंग की लहंगा चोली ओर  , सफेद रंग की दुपट्टे में उसकी शरीर की गोरे रंग  और भी ज्यादा खिल रहा था।  हल्की धुप की  किरण , उसकी खूबसूरत चेहरे में आ रहे थे और हवा भी उसकी बिखरी हुई बालों को सहला रहा था। जिससे  बार-बार  बह अपने  हाथों से चेहरे पर से बाल हटाने की कोशिश कर रही थी  । उसकी प्यारी सी गोल चेहरे में बरी-बरी आंखें एक सुंदर सा छोटा सा नाक जिसके राइट साइड में एक तिल था और दिल के आकार का वह प्यारा सा होठ जो दिखने में गुलाब की पंखुड़ियां जैसी थी । जिसमें इस समय एक प्यारा सा मुस्कान खिला हुआ था जो शायद किसी को भी लुभा देने के लिए काफी था ।      वैसे तो यह बोला जाता है कि मां नर्मदा की जलधारा में महादेव की लिंग खुद व खुद  प्रस्तुत होते रहते हैं दुनिया की हर एक जगह से लोग नर्मदा नदी से ही शिवलिंग को ले जाने के लिए आते जाते हैं जो बहुत ही पवित्र माना जाता है। और माना जाता है कि नर्मदा नदी में मिलने वाले यह शिवलिंग बहुत ही अच्छी और सुंदर होते हैं ,  यह सच में एक मायावी  प्रस्तुतीकरण है जो कभी कबार लोग के विश्वास से भी पड़े हैं । शायद आज तक किसी को भी इस बात की कोई उचित सबूत नहीं मिला है जिसे यह पता लगा सके की मां नर्मदा नदी में शिवलिंग अपने आप कैसे प्रस्तुत होते हैं ।         जो भी हो लेकिन मान्यता यह है कि महादेव की पुत्री स्वरूप यह जलधारा ही महादेव के लिंग की प्रस्तुतीकरण आपने खुद की स्पर्श के रहना-साहन से ही करती है । वैसे तो शिवलिंग  को पानी से भी निकाल कर लोग उनका पूजा करते हैं लेकिन हमारी रेवा महादेव की शिवलिंग को अपने ही हाथों से बनाकर उनका साथ सिंगर कर पूजा करना उसे ज्यादा पसंद है।         रेवा जो महादेव के लिंग को अच्छे से बनेने में बहुत ही ज्यादा ध्यान लगा रही थी और लिंग बनाते समय वह अपने ही धुन में कुछ भक्ति मूलक संगीत भी गुनगुना रही थी उसे इस बात का ध्यान नहीं था कि उसकी सौतेली मां कुसुम उसे बहुत ही समय से पूरे गांव की उसे मोहल्ले में बहुत ही ज्यादा गुस्से में ढूंढ रही थी , इस समय कुसुम के एक हाथ में एक बाल्टी  थी जहां बहुत सारी कपड़े थे और दूसरी हाथ में एक छड़ी थी , वह बहुत ही जरा गुस्से में चिल्लाते हुए रेवा को ढूंढ रही थी जैसे की आज अगर रेवा उसके सामने आ गई तो वह ज्वालामुखी की तरह ही उसके ऊपर फूट जाएगी , वह गुस्से में बहुत ही ज्यादा तेज से सांस लेते हुए अपने मुंह में बारबरा ते हुए नदी की तरफ ही आ रही थी कि तभी उसे रेवा नदी के तट पर बैठे हुए दिखाई दी ।       कुसुम रेवा की तरफ बहुत ही ज्यादा गुस्से में आते हुए  रेवा की कान को बहुत ही जोर से खींचना शुरू कर देती है , जिससे रेवा तो पहले शौक जाती है फिर वह दर्द से करहाते हुए अपनी कपंती हुई आवाज से कुसुम से कहने लगती हैं,  ... आहहह,  मां हमें दर्द हो रहा है मा हमै छोरिए  हमें दर्द हो रहा है , मा हमने क्या कया हैं ? .... आहह , मा,  वह हमें यह तो बता दीजिए कि हमें क्या-क्या है ?    कुसुम जो पहले से ही इतनी गुस्से में थी वह रेवा की बातों से और ज्यादा आग बबूला होते हुए,... नश्मिति कहीं की !!आब  तुझे यह भी नहीं पता की तूने का किया है , हा? आब  मुझे,....  तुझे यह भी बताना पड़ेगा काम छोड़कहींकी कि तूने क्या किया है हां ? जब देखो तब यहां पर आकर बैठी रहती है , इतना तेरे पास समय है की घर का काम छोड़कर यहां पर मजे से बैठी है, काम कौन करेगा ? चल उठ!!! आज मैं तुझे छोडूंगी नहीं ,....  ऐसा कह कर बह रेवा को कान से पकड़े हुए ही उसे उस  जगह से उठने लगी और बेचारी रेवा जो पहले से ही इतनी दर्द में थी वह फिर से दर्द में करहाके कुसुम से बोली ,.... मा,  , हा,  हा, हमने तो पहले ही घर का सारा काम पूरा कर दिया था , ओर,, ओर तो कुछ भी नहीं बाचा था,  ...आप,, आप किछ काम की बात कर रही हो..?        इस बार कुसुम रेवा को उसे छड़ी से, गुस्से में भरकते हुए यहां वहां पीटने लगी और उसके कान को छोड़ दोनों हाथों को सामने लाते हुए वहां पर बहुत ही जोर-जोर से मरने लगे जिससे रेवा को बहुत ही ज्यादा दर्द हो रहा था और वह अपने सौतेली मां को रोकने की पूरी कोशिश कर रही थी लेकिन कुसुम इतनी मतलबी औरत थी कि उसे उस मासूम की वह सारे दर्द दिखाई ही नहीं दे रहा था और वह उसे लगातार पीटने में लगी हुई थी और उसे पीते हुए वह बोले , ..... साली तेरी जुबान कुछ ज्यादा ही लंबी हो गई है आजकल तु  मुझे कुछ ज्यादा ही जुबान लड़ने लग गई है , लगता है तेरी इस जुबान में ताला लगाना पड़ेगा , तू क्या कह रही थी कि तूने घर की सारी काम करके पूरा कर दिया है ना तो,,, तो यह क्या है इतना सारा कपड़ा कैसे रह गया घर में जो तू महारानी यहां पर जाकर आराम से बैठी हुई है , .... आगर महारानी साहिबा, तुझे तेरी आरम फारमाकर हो गई हो तो,  यह ले बाल्टी , ओर ईसमे जितने भी कपरे हैं, सारी की सारी आछे से धोकर ला, ...सारे कपरे बिलकुल साफ और सकाशक होने चाहिए !!! अगर थोड़ी सी भी गंदेगी इन कपड़ो में रही तो तेरी खैर नहीं । यह वोल कूसूम रेवा की सामने बह कपरो की बाल्टी को फेक उसे गुस्से मे बराबराती हुई वहां से चली जाती है ।       ओर ईस तरफ रेवा जो,  काफी दर्द में थी वह अपनी उन हाथों को देखने लगी जहां कुछ समय पहले उसकी सौतेली मां ने बहुत ही ज्यादा मारा था जिस कारण उसकी दोनों ही हाथ बुरी तरह से जख्मी हो चुके थे । और उसकी आंखों से मोती की तरह आंसू उन दोनों हाथों में गिरने लगे । इस समय सिर्फ उसके हाथों में ही नहीं उसकी आंखों में भी बहुत ही दर्द दिखाई दे रहा था । वह अपनी सौतेली मां की व्यवहार से बहुत ही ज्यादा दुखी थी,  ओर बह उसी तरफ दुख से देखने लगी,  जीस तरफ अभी उसकी सौतेली मां गई थी ।        मन में इतना दुख होने की बावजूद भी  वह खुद को ही संताना देते हुए बोली ,..... कोई बात नहीं रेवा,  बो मा हैं तुम्हारी , यह उनका हाक हैं  । बो तुम्हारे आछे केलिए ही तो करती हैं ,यह सब, गलती सब हमारी ही है कयोंकि हमने हीतो अधुरा चोर दिया था ना काम को। ....इतना कहके बह उस बाल्टी को उठा के उन सभी कपरे को धोने की कोशिश कर ने लगी,  हालांकि उसकी कोशिश नाकामयाबी की कागार पर थी,  कयोंकि उस के  हाथ पर काफी खारोचे आई थी, लेकिन फिर भी बह पुरा कोशिश कर रही थी,  कयो की अगर उसने इस काम को अधूरा सोर दिया तो,  बह आछे से जानती थी की क्या होगा। उसकी माँ उसके उपर फिर से बारसेगी। ओर बह बेचारी पहले से ही इतने दर्द मैं थी।            बेचारी रेवा की जीवन एसे ही काट रही थी,  उसे तो यह भी नहीं पता की यह दोनों, कुसुम ओर आनंद  उसके सागे माँ , बाप नहीं है। ना जाने किस मिट्टी से बनी थी यह लड़की जो इतनी दर्द में होने के बावजूद भी इतनी सहते रहती है साधारण लोग तो थोड़ी सी भी दुख सह नहीं सकते बह सब हर वक्त जाके भगवान के समने अपनी दुखों की किताबों को खोलते रहते हैं लेकिन हमारी रेवा एसी नहीं थी। वह तो हंस के ही दुखो का घोट पी लेती है । बेचारी के हाथ में इतनी सारी छोटे होने के बावजूद वह सारी की सारी कपड़े धोके धूप में वहां ही नदी के किनारे सूखने के रस्सी में टांग आती है । उसकी नजर अपनी दोनों ही हाथों में जाती है जहां वह छोटे और भी ज्यादा हरे हो चुके थे वहां से अब थोड़ी-थोड़ी खून भी आ रही थी ,, फिर भी रेवा अपनी होठों पर एक मुस्कान लिए उसे तरफ देखने लगी जहां पहले वह बैठ के महादेव की शिवलिंग बना रही थी और उसे तरफ ही वह अपने कदम बढ़ाते हुए चली गई ।      वहां पहुंच के वह फिर से , अपने आधे बनाई हुई शिवलिंग को देखकर मुस्कुराते हुए बोली ,, ...“बाबा आप चिंता मत करिए आपकी बिटिया को जैसे भी चोट लगी हो !! लेकिन आपकी बिटिया को यह बात अच्छे से पता है कि इन चोटों की दवाई भी आप ही हमें दोगे , और रही मां की गुस्से की तो वह भी थोड़ी समय बाद ऐसे ही सांत हो जाएगी चाहे वह मेरी ऊपर कितना भी गुस्सा कर ले लेकिन प्यार भी तो बहुत करती है ना हमसे । चलिए छोरी इन सब बातों को हम आपका काम पूरा करते हैं हमें माफ कीजिएगा हमें आपको अधूरा बनकर ही छोड़ कर जाना पड़ा ,, लेकिन कोई नहीं हम आ गए हैं ना फिर से चलिए अभी आपकी सजावट की काम को पूरा करते हैं ,, ।      इतना कहकर रेवा शिवलिंग बनाने की काम में व्यस्त हो गई । यहां पर आप सभी को यह बात समझ में नहीं आ रहा होगा कि रेवा किस दवाई की बात महादेव से कर रही थी ,, ओर  वह अपनी छोटों से भरी हुई हाथों से कैसे महादेव की लिंग को बन पा रही थी ,, दरअसल बह जिस दवाई के बारे में बोल रही थी वह दवाई कुछ और नहीं बलकी लिंग बनाने में इस्तेमाल होने वाली वह मिट्टी थी जिससे , उसकी चोट भर जाएगी , और आप सबको यह बात पता है कि हमारे प्रकृति में पाए जाने वाले सभी एक पदार्थ इंसानी शरीर के लिए कितनी लाभदायक होती है ।  चाहे यह बात लोग विज्ञान की दृष्टि से भी देख तो भी सही है और अगर रेवा की तरह  भक्ति की दृष्टि से भी देखें  तभी भी यह बात सही है  ।          कुछ समय बाद जब शिवलिंग की तैयारी पूरी हो गई थी ,, तब रेवा शिवलिंग को अपने हाथों में लिए हुए मंदिर की तरह चल दिए  ,.... मंदिर में आकर वह महा गुरु  जी को पिछे से आवाज़ लगाई , जो इस समय मंदिर में कुछ पूजा पाठ के तैयारी मे लगे हुए थे,....  रेवा की आवाज को सुन महागुरू जी पलत कर उसके तरफ देख एक मुस्कान के साथ बोले,... “ अरे रेवा बिटिया,, तुम आआ गई,  ...रेवा भी उनसे मुस्कराते हुए बोली,... “ जी महागुरू जी,, हमे आने मैं ज्यादा देर तो नहीं होई ना ? ..” महागुरू जी,... “  अरे नहीं नहीं बिटिया, एसा कुछ भी नहीं है,  हमम तो अभी भी पूजा के लिए तैयारीया ही कर रहे है। तुम ना बिटिया एकदम सही समय पे यहा आई हो।   महागुरू जी के बात को सून रेवा अपनी सर हा में हिला देती हैं। ओर फिर अपने हाथों में लिए हुए महादेव की शिवलिंग को महागुरु जी के सामने आगे बढ़ाते हुए,,... “ महागुरु जी यह शिवलिंग, आज इस महीने की पहली सोमवार है ना,  इसलिए मैं अपनी हाथोंसे इनहे बानाके लाई हुँ। इनहे भी पुजा स्थल पर रख दीजिए। ”  उसकी बात सुन पहले तो महागुरु जी मुस्कराते हुए अपने सर को निछे ओर हाथ को जोर कर शिवलिंग को प्रणाम करते है ,, फिर रेवा की हाथ से जेसे ही बह लिंग को लेते है, तब उनकी आंख रेवा की हाथ पर चले जाते है। ,,..... जिसे देख  महागुरु जी थोड़ी सी घबराई हुई आवाज मैं रेवा को देखकर बोले , ....“ अरे रेवा बिटिया यह तुम्हारे हाथ को क्या हुआ ? इसमें इतनी सारी छोटे कहां से लगी चलो दिखाओ दिखाओ मुझे , इतना कह बह शिवलिंग को वहां पूजा के स्थल में रखते हुए फिर मोड़ के रेवा की दोनों हाथ को आछे से देख ने लगे,...  रेवा की दोनों हाथों को देखकर उन्हें पता चला कि यह चोट किसी छड़ी से मारने के कारण लगी है , और उन्हें यह चीज समझने में ज्यादा देर नहीं लगी की रेवा  को किसने मारा होगा !!....                 तह क्या महागुरु जी को पता है कि रेवा को किसने मारा हैं । अगर पता है तो तब वह क्या करेंगे ?               आनंद और कुसुम अपनी बेटी को क्यों पसंद नहीं करते हैं ? क्या कभी रेवा को अपनी मां-बाप का प्यार मिल सकेगा ।              क्या कभी रेवा को पता चल पाएगा की कुसुम और आनंद उसके असली माता-पिता नहीं है ?  अब आगे क्या होगा कैसी होगी पहली मुलाकात रेवा की उसे इंसान से जिससे पहले ही मुलाकात में ही उसे उससे नफरत होने लगेगी !!!!!!!  जानने के लिए आगे पढ़ते रहिए मेरी यह कहानी “ रेवा सफर प्यार तकरार और आत्मविश्वास  ”........... Note,..... Hello दोस्तो👋👋👋👋👋👋👋👋👋👋👋👋,  मैं निशिता इस कहानी की लेखक😊😊 , में novel मैं  नई हु ओर , यह कहानी भी मेरी पहली कोशिश है । हो सकता है कि इस कहानी में बहुत सारी गलतियां भी हो ,,मुझे अभी कहानी लिखने की कुछ विशेष तजुर्बा नहीं है , लेकिन मैं कोशिश करूंगी की मैं इस कहानी को अच्छे से अच्छा लिख पाओ और🤗🤗🤗 कहानी में इंटरेस्टिंग टॉपिक्स भी ला पाऊं जिसके लिए मुझे आप लोगों की बहुत ही सारी हेल्प की जरूरत होगी । तो दोस्तों आप इस कहानी को प्यार दीजिए और मुझे मोटिवेट करिए तो मैं इस कहानी को और ज्यादा अच्छा और इंटरेस्टिंग बना सकूंगी आप लोगों की प्यार से ही मैं इस कहानी को आगे तक ले जा सकूंगी , सो 🙏🙏🙏🙏🙏 प्लीज दोस्तों सपोर्ट मी,  आप लोगों की एक-एक सपोर्ट से ही मुझे बहुत मोटिवेशन मिलेगा और मैं इसे आगे तक ले जा पाऊंगी👍👍👍👍 ।           जिन लोगों ने मेरी कहानी का फर्स्ट चैप्टर पढ़ा उन लोगों को मेरी तरफ से बहुत-बहुत शुक्रिया🙏🙏🙏🙏 ऐसे ही मेरी नवल को पढ़ते  जाइए और मैं हमेशा ही आपकी शुक्रगुजार रहूंगी तो मैं नई राइटर हूं तो इसलिए इस कहानी में बहुत सारी गलतियां भी होगी सो प्लीज दोस्तों आप लोग उसे गलतियों को मुझे कमेंट करके बता दीजिएगा ।  बहुत-बहुत शुक्रिया प्लीज, ❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤like, comment, or share karna 😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘💓💓💓💓💓 मुझे बहुत ही खुशी होगी अगर मैं इस कहानी को आप लोगों के लिए डेली बेसिस पर अपलोड कर सकूं और आप लोगों के लिए प्यारा प्यारा टॉपिक भी ला सकूं ।  love you alll my dearest friends, ❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤            

  • 2. रेवा सफर प्यार और तकरार की - Chapter 2

    Words: 2613

    Estimated Reading Time: 16 min

    अब तक,  कुछ समय बाद जब शिवलिंग की तैयारी पूरी हो गई थी ,, तब रेवा शिवलिंग को अपने हाथों में लिए हुए मंदिर की तरह चल दिए  ,.... मंदिर में आकर वह महा गुरु  जी को पिछे से आवाज़ लगाई , जो इस समय मंदिर में कुछ पूजा पाठ के तैयारी मे लगे हुए थे,....  रेवा की आवाज को सुन महागुरू जी पलत कर उसके तरफ देख एक मुस्कान के साथ बोले,... “ अरे रेवा बिटिया,, तुम आआ गई,  ...रेवा भी उनसे मुस्कराते हुए बोली,... “ जी महागुरू जी,, हमे आने मैं ज्यादा देर तो नहीं होई ना ? ..” महागुरू जी,... “  अरे नहीं नहीं बिटिया, एसा कुछ भी नहीं है,  हमम तो अभी भी पूजा के लिए तैयारीया ही कर रहे है। तुम ना बिटिया एकदम सही समय पे यहा आई हो।   महागुरू जी के बात को सून रेवा अपनी सर हा में हिला देती हैं। ओर फिर अपने हाथों में लिए हुए महादेव की शिवलिंग को महागुरु जी के सामने आगे बढ़ाते हुए,,... “ महागुरु जी यह शिवलिंग, आज इस महीने की पहली सोमवार है ना,  इसलिए मैं अपनी हाथोंसे इनहे बानाके लाई हुँ। इनहे भी पुजा स्थल पर रख दीजिए। ”  उसकी बात सुन पहले तो महागुरु जी मुस्कराते हुए अपने सर को निछे ओर हाथ को जोर कर शिवलिंग को प्रणाम करते है ,, फिर रेवा की हाथ से जेसे ही बह लिंग को लेते है, तब उनकी आंख रेवा की हाथ पर चले जाते है। ,,..... जिसे देख  महागुरु जी थोड़ी सी घबराई हुई आवाज मैं रेवा को देखकर बोले , ....“ अरे रेवा बिटिया यह तुम्हारे हाथ को क्या हुआ ? इसमें इतनी सारी छोटे कहां से लगी चलो दिखाओ दिखाओ मुझे , इतना कह बह शिवलिंग को वहां पूजा के स्थल में रखते हुए फिर मोड़ के रेवा की दोनों हाथ को आछे से देख ने लगे,...  रेवा की दोनों हाथों को देखकर उन्हें पता चला कि यह चोट किसी छड़ी से मारने के कारण लगी है , और उन्हें यह चीज समझने में ज्यादा देर नहीं लगी की रेवा  को किसने मारा होगा !!....   अब आगे,.....               वह थोड़े से गुस्से में बोले,... “ लगता है उन दोनों के अकल ठिकाने पे नहीं है , मुझे उनसे बात करनी होगी , उनकी हिम्मत भी कैसे हुई हमारी प्यारी बच्ची के ऊपर हाथ उठाने की ?  उनकी बातें सुन रेवा उन्हें रोकते हुए बोली,... “ अरे ,अरे ,महागुरु जी आप गलत समझ रहे हैं ऐसा कुछ नहीं वह तो हमारी ही गलती थी इसलिए  माँ ने हमें यह दंड दी है ।  महागुरु जी जो बहुत ही क्रोधित होकर वहां से जाने को हुए थे वह रेवा की बात सुन फिर से उसकी तरफ देखते हुए बोले,...“ हमें पता है रेवा बिटिया की तुम्हारी कभी भी कोई गलती नहीं होती है , गलती तो बोलोग निकाल लेते हैं, तुम्हें परेशान करने के लिए ,  इस समय रेवा की आंखों में हल्की नमी थी सिर्फ वही जानती थी कि उसके दिल में इस वक्त क्या बीत रही है लेकिन फिर भी वह अपनी आंसू छुपाए हुए सामने महागुरु जी को देखकर हल्की सी मुस्कुराहत लाते हुए बोली ,.... गुरुजी ऐसा कुछ नहीं है , ईस बार  सच में हमारी ही गलती थी हम नहीं घर का काम नहीं किया था इसलिए तो मां गुस्सा हो गई और वैसे भी अप ही  तो कहते हैं ना !!  की मां-बाप हमेशा ही अपनी  संतान के लिए जो भी करते हैं सब सही होता है , सब उनकी अच्छी भविष्य के लिए ही करते हैं । हमने गलती की थी इसलिए तो उन्होंने हमें दंड दिया है और वैसे भी यह उनकी हक है क्योंकि वह हमारे माता-पिता है ।  इस बार तह  महागुरु जी रेवा की बात सून बिल्कुल ही चुप रह गए और रेवा की तरफ देखते हुए अपने मन में ही सोते हुए,..“ बेटे तुझे हम यह कैसे समझाएं कि जिन्हें तु भगवान की तरह मानती है जिसकी एक हर गलती को तो छुपाती है , जिसकी दिए गए हर एक घाव को तो हंसी-खुशी अपने उपर ले लेती है , बोलोग , कितने लालची है और तेरे सगे मां-बाप नहीं है , पता नहीं किस मनहूस घड़ी में हमने तुझे उन दोनों के हाथ में छोपा था , हमारे इस एक लापरवाही की सजा तुझे भुगत ना पर रही है । हो सके तो हमें माफ कर देना बच्चे लेकिन हम तुझे यह सच्चाई नहीं बता सकते हैं अगर बाता भी दिया तो तुझे बहुत ही दुख होगा और हम तुझे इतनी दुख में नहीं देख सकते । महागुरु जी जो अपने ही ख्यालों में गुम थे , बह रेवा की आवाज को सुन होश में आए रेवा जो बोल रही थी , ...“ महागुरु जी आप कहां खोए हुए थे ? हम कब से आपको आवाज लगा रहे हैं , चलिए जो भी हो आप यह सब छोड़िए और चल के पूजा की तैयारीया कीजिए और हम भी आपकी मदद करते हैं , चलिए चलिए जल्दी कीजिए समय निकलते जा रहा है पूजा की ।  उसकी बात को सुन महागुरु जी और कुछ ना बोल सीधे पूजा की तैयारी यो में जुत गए और रेवा भी उनकी मदद में लग गई । प्रत्येक सोमवार मे रेबा ,ऐसे ही अपने हाथों से एक शिवलिंग बनती है और मंदिर में उसकी पूजा करती है । हर एक सोमवार को पहली आरती महागुरु जी रेवा को ही करने के लिए देते हैं , बचपन से ही रेवा यह पूजा करते आ रही है । रेवा की आवाज बहुत ही सुरीली थी जिस कारण उसकी आरती के वक्त सारे गांव के लोग मंदिर में इकट्ठे होकर उसकी आरती में भाग लेते हैं , और जब-जब रेवा भजन गाती है तभी सारे लोग जो शायद उसे गांव के भी ना हो वह भी वहां इकट्ठे होकर उसकी सुरीली आवाज कि वह मिठासी सुर को अनुभव करते हैं, जिससे लोग भक्ति मैं सदा विलन हो जाते हैं ।            वैसे तो रेवा गांव की लाडली बिटिया है , लेकिन उसकी सुंदरता, सहनशीलता ,समझदारी और भक्ति में अपनी आत्म समर्पण के प्रसार उसे गांव के बाहर में भी है जिससे उसे पहचानने वाले लोग भी काफी ज्यादा है वह एक ऐसी लड़की है जो हमेशा ही लोगों से बहुत ही सम्मान और प्यार से पेश आती थी । और लोगों को अगर किसी मदद की जरूरत हो तो वह अपने बारे में बिना सोचे ही उनकी मदद करने के लिए भी तैयार हो जाती है जिस कारण उसकी लोकोक्तियांता और भी ज्यादा बढ़ती ही जा रही थी ।      रेवा भी महादेव को और मां नर्मदा को बहुत ही ज्यादा मानती थी और उन दोनों को ही माता-पिता की सम्मान देती थी और अगर कुछ समस्या हो तो वह सीधे जाकर उन दोनों के सामने ही मां की बात वैया करती थी । वैसे हमारी रेवा बहुत ही ज्यादा सुंदर थी , 19 साल की हमारे रेवा जो हमेशा ही लहंगा पहनती थी उसके साथ उसके लंबे बाल जो कभी खुले हुए तो कभी जुड़े में और कभी छोटी में बांधकर रखती थी । उसकी गोरी और मखमली पच्चा जो अक्सर धुप में चमकते थे , चेहरे में वो अक्सर रहने वाली एक प्यारी सी मुस्कुराहट और नाक के वह कला तिल जो बहुत ही दिलकश और आकर्षक दिखते थे आंखें जो गहरी नशीली बड़ी-बड़ी जिसमें न जाने आज तक कितने डूब चुके हैं लेकिन किसी की इतनी जरूरत कि उन आंखों को भी ना देखने की दावा कर सके ।             उसके शरीर से वह फैलती हुई सुगंध जो शायद किसी को भी मंत्र मुक्त कर दे ना चाहते हुए भी कोई लोग उसकी तरह भी खिछे चले जाए ,, वह लड़की जब भी अपनी कदम बढ़ती है तो ऐसा लगता है कि साक्षात देवी का रूप हो उसके चेहरे की वो रौनक होठों पर खिले हुए वह मुस्कान और आंखों में एक तेज जिस देख कोई भी उसे ना देखने की खुद को मनाई फिर भी उसे आकर्षक से न बच पाए ।    फिर भी इस बात से सबको यह असंभिकता  है कि ,, इस स्वर्ण कन्या के खुद के मां-बाप ही इसके ऊपर ऐसे कैसे इतनी नींदआयाता चला सकते हैं , रेवा जो हमेशा ही अपने मां-बाप की हर एक  कहीं गई वह बात और उसे दिए गए कष्ट को आसानी से सह लेती और लोगों के सामने अपने मां-बाप की कभी सम्मान को ठेस नहीं पहुंचने देती,, अपने अंदर की वह दर्द भी अच्छे से छुपा लेती है वह कभी भी महादेव के सामने या किसी के भी सामने यह बात जाहिर नहीं होने देती कि उसकी मां-बाप उसके साथ क्यों ऐसा व्यवहार करते हैं ,,कभी भी यह प्रश्न ना अपने दोस्तों से कभी पूछा और ना ही अपने महादेव से, कि उसके मां-बाप कयो  उसके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं उसका क्या ही गलती है वह हर एक काम, हर एक काम, करती है जिससे उसकी मां-बाप को खुशी हो और  उन लोगों की खुशी के विरोध कभी कुछ नहीं करती फिर भी न जाने वह मां-बाप इतने पत्थर दिल कैसे हो सकते हैं की , जो उसे प्यार ही नहीं करते । रेवा इन सब बातों को कभी कबार अगर सोच भी लेती है तो अपने आप को ही यह संताना देती है कि महादेव उसकी परीक्षा ले रहे हैं और  अपने मां-बाप की वह सब दुखदायक बातें भी अपने अच्छे के लिए ही कहे जाने के भाव से सह लेती है ।  इस समय वह आरती के थाल को सजा रही थी , जिसके कारण उसे थोड़ी सी दिक्कत भी हो रही थी क्योंकि उसके हाथों में इतनी सारी खरोसे जो थी ।लेकिन ,फिर भी वह अपना काम पूरे लगन से और अच्छे मन से कर रही थी क्योंकि उसका मानना था कि पूजा के समय मन में अशुद्धता लाना नहीं चाहिए , तथा पूजा में अपशगुन होने की संभावना होते है ।  दूसरी तरफ ,..... चार रोयेल कार्स , जो मंदिर के सामने आकर रुके , वहां तीन कर से ब्लैक सूट वेयर किए हुए बॉडीगार्ड बाहर निकले और सब दो लाइन के पोजीशन में खड़े हो गए ।एक  बीएमडब्ल्यू कर के पैसेंजर सीट से एक  लड़का बाहर आया जिसने   ब्लू कलर का सूट बियर क्या हुआ था और बहुत ही ज्यादा हैंडसम लग रहा था , उसकी फेस की कट बहुत ही ज्यादा अच्छा था और यह बंदा लगभग 6.1 इंच के हाइट का था।              यह बंदा कोई और नहीं हमारे हीरो का असिस्टेंट था जिसका नाम कबीर था, उसे देखकर ही पता चल रहा था कि वह इस समय काफी जल्दी-जल्दी में था , वह सीधे कर से बाहर निकाल के कार की  पीछे की डोर को ओपन करते हुए अपने बॉस को देखते हुए बोला ," बस हम पहुंच गए हैं मंदिर " .... कबीर की बात सुन , वह लड़का  जो कार के अंदर था उसने उसे देखे बिना ही अपनी रौबदार आवाज में उससे कहा , " हां हम आते हैं थोड़ी देर में " .... उसे आदमी की  बात को सुन कर कबीर दरवाजे को फिर से बंद कर देता है , उसने उसे आदमी को फिर से कुछ नहीं कहा क्योंकि उसे पता है कि उसके बस इस समय कुछ इंपॉर्टेंट काम कर रहे हैं और उसे यह भी पता है कि अगर उसने अपने बॉस से कुछ बात और बोला होता तो उन्हें गुस्सा आ जाता और कबीर को यह बात बहुत ही अच्छे से पता था कि उसकी बॉस के गुस्सा बहत ही खतरनाक है ।  कुछ 10 मिनट बाद कार के दरवाजा ओपन करते हुए एक हैंडसम 27 साल का नौजवान जिसने ग्रे कलर का सूट बियर क्या हुआ था , जिसके बाल जेल से परफेक्ट ली सेट था, उसका फेस का कट और जो लाइन बहुत ही परफेक्टली  शॉप था , शॉप नोज उईथ डेविल आईस एंड परफेक्ट पिंक लीप्स ,  हाइट लगभग 6.3 इंस का यह बांदा कोई और नहीं हमारे कहानी  का हीरो viansh रघुवंशी ,, था ।           viansh रघुवंशी ,, भोपाल का एक जानी मानी और बहुत ही बड़ा बिजनेसमैन था, जिसने अपनी 27 साल की उम्र में ही बहुत सारी कामयाबी हासिल कर ली थी, रूड ,एरोगेंट ,हार्टलेस और इमोशनलेस नाम से प्रसिद्ध viansh रघुवंशी ,, जिसके नाम से ही पूरा भोपाल काप उठता था , उसकी वजह भी खुद viansh ही थे , ना तो उसका हाथ अंडरवर्ल्ड के किसी  माफिया से जुड़े हुए थे ना हीं किसी गुंडे मवाली के गैंग से बह खुद एक डेविल था जो तो एक बिजनेस मेन की नाम से जाना जाता था लेकिन काम माफिया से भी खतरनाक करता था । viansh ,,,द रॉयल रघुवंशी फैमिली , का लोटा वारिश था , जो पूरे भोपाल के सबसे अमीर फैमिली में से एक है ।             लेकिन उसे अपनी रॉयल फैमिली के प्रॉपर्टी से ज्यादा अपनी खुद की बिजनेस में ध्यान देना ज्यादा पसंद था। द viansh रघुवंशी ,, जो एक बहुत ही खतरनाक डेविल था उसे अपने बिजनेस में गद्दारी और धोखा बिल्कुल भी पसंद नहीं था चाहे धोखा जिसने भी दिया हो वह से अपने हाथ से खत्म करता है उसे इंसान को दूसरे सांस देना पसंद नहीं। उसे हंसना और लोगों से ज्यादा बात करना और उसके पास किसी का आना पसंद नहीं है..... पूरी दुनिया में सिर्फ अपनी दादी से ही बह क्लोज था बाकी लोगों से उसे कोई लेना देना नहीं था उसे सिर्फ दो चीजों से ही मतलब था एक उसकी दादी और दूसरा उसका बिज़नेस । बह बहुत ही ज्यादा रूड था।               लेकिन अपनी हैंडसम नेश की वजह से वह लोगों में बहुत ही ज्यादा फेमस था सबसे ज्यादा लड़कियों के बीच में लेकिन किसी की इतनी हिम्मत नहीं थी की द viansh रघुवंशी के पास भी आए और अपना जान गवा दे क्योंकि सबको यह बात अच्छे से पता था कि viansh को यह बात हर गिज ,  पसंद नहीं की कोई लड़की उसके पास भी मंदराए ।         बेचारी लड़कियां तो उसे देखकर दूर से ही आहे भरती थी । लेकिन  viansh जो उन लड़कियों को थोड़ी सी भी भाव नहीं देता था और उनकी साइड से ही उन्हें इग्नोर करके चला जाता था। उसे प्यार मोहब्बत इन चीजों पे कुछ खास इंटरेस्ट नहीं था लेकिन वह अपनी दादी मां का एक भी बात नहीं तालता था इसी वजह से ही आज वह नर्मदा के किनारे बसे हुए इस गांव के मंदिर में भी आया था महादेव की पूजा करने और नदी में स्नान करने के लिए क्योंकि उसकी दादी मां की यह एक ईच्छा थी ।     viansh जो की कर से उतर चुका था वह अपनी आंख से सनग्लासेस  हटा के उसे जगह के चारो तरफ देखने लगा  , बहुत सारा तरह इसलिए देख रहा था क्योंकि उसे ज्यादा भिरभार वाले जगह पसंद नहीं था । इस समय उसकी फेस की एक्सप्रेशन थोड़ी सी कोल्द थी जिसे समझते हुए कबीर बॉडीगार्ड्स को अलर्ट होने के लिए कह देता है क्योंकि वहां पर थोड़ी सी फिर भिरभार थी जो मंदिर में आने वाले भक्तों के थे ।               बॉडीगार्ड्स जो पहले से ही दो लाइन में थे वह इस बार थोड़ी सी और सतर्क होते हुए उन दोनों के आजू-बाजू में चलने लगे, बॉडीगार्ड के बीच में viansh चल रहा था और उसके पीछे कबीर था जिसके हाथ में एक बैग था । viansh बरे ही एटीट्यूड में सनग्लासेस लगाई हुए ,अपने पेंट की पॉकेट में हाथ डालते हुए एरोगेंट तरीके से एक मंदिर के तरह बढं रहा था की तभी उसके कान में दूसरे सबसे बड़े शिव मंदिर से एक बहुत ही ज्यादा सुरीली और मीठी सी आवाज आके उसके कान में लगी .....     आखिर  viansh मंदिर में क्यों आया था ...?  और आखिर वह सुरीली आवाज किसकी थी जो viansh के कान मै आ लगी थी ....?       और अब आगे क्या होगा यह जाने के लिए बने रहे है हमारे इस कहानी में , "reva ....सफर , प्यार और तकरार की".... आज के लिए बस इतना ही मिलते हैं नेक्स्ट चैप्टर में और प्लीज like, and comment करना मत भूलिएगा  । आज  केलिए byyy sweeties 🥰😍😍😍😍😍😍😍😍😘😘😘😘😘😘😘😘😘।।।।।।।।।    

  • 3. रेवा सफर प्यार और तकरार की - Chapter 3

    Words: 1950

    Estimated Reading Time: 12 min

    अब तक,....            viansh जो की कर से उतर चुका था वह अपनी आंख से सनग्लासेस  हटा के उसे जगह के चारो तरफ देखने लगा  , बह इसलिए देख रहा था क्योंकि उसे ज्यादा भिरभार वाले जगह पसंद नहीं था । चारों तरफ देखने के बाद उस की एक्सप्रेशन थोड़ी सी कोल्द हो गई,,            जिसे समझते हुए कबीर बॉडीगार्ड्स को अलर्ट होने के लिए कह देता है क्योंकि वहां पर थोड़ी सी  भिरभार थी जो मंदिर में आने वाले भक्तों के थे । बॉडीगार्ड्स जो पहले से ही दो लाइन में थे वह इस बार थोड़ी सी और सतर्क होते हुए उन दोनों के आजू-बाजू में चलने लगे, बॉडीगार्ड के बीच में viansh चल रहा था और उसके पीछे कबीर चल रहा था जिसके हाथ में एक बैग था । viansh बरे ही एटीट्यूड में सनग्लासेस लगाई हुए ,अपने पेंट की पॉकेट में हाथ डालते हुए एरोगेंट तरीके से एक मंदिर के तरह बढंने लगा ,            की तभी उसके कान में, दूसरे सबसे बड़े शिव मंदिर से एक बहुत ही ज्यादा सुरीली और मीठी सी आवाज आके  कान में लगी ..... अब आगे ,......                      संगीत,.......                      ईश्वर सत्य है,,......                        सत्य ही शिव है ,,......  (  यह आवाज सुनते ही उसकी कदम उसी जगह पर ही अपने अप रुक गए  ,.... उसे रूकते देख कबीर और बॉडीगार्ड्स भी रुक गए) ....( दूसरी तरफ , यह संगीत कोई और नहीं बल्कि हमारी रेवा ही गा रही थी , जो इस समय महादेव के विशाल मूर्ति के सामने बने हुए शिवलिंग में दूध विसर्जित कर रही थी और साथ में ही हाथ जोड़ते हुए इस संगीत को गाते हुए शिवलिंग की चारों तरफ घूम रही थी और शिवलिंग के ऊपर फूल और पानी भी डाल रही थी )                        शिव ही सुंदर है,....                           जागो उठकर देखो,......                  जीवन ज्योति उजागर है ,,....... ( वह आवाज इतनी सुरीली थी कि , viansh की रुकी कदम अपने आप ही उसे मंदिर के तरफ बढ़ने लगे , हमारी रेवा जो शिवलिंग की परिक्रमा सात बार करने के बाद अब आरती के लिए सजे हुए थल को अपने हाथ में लिए हुए )......                    ..... सत्यम शिवम सुंदरम......               ......... सत्यम शिवम सुंदरम...........             ............ सत्यम शिवम सुंदरम...........                         सुंदरम ,,,........                          आआआआआआआ,,........                 ....... सत्यम शिवम सुंदरम........             ......... सत्यम शिवम सुंदरम..........   ( रेवा की संगीत की धुन को सुन, मंदिर के आसपास के सभी लोग, मंदिर में एक-एक कर प्रवेश करने लगे और रेवा की धुंन में ही धुन मिलते हुए उसके संगीत में साथ देने लगे , ) ।                       ईश्वर ही सत्य है ,,......                         सुंदरम,,.....                   सत्य ही शिव है,,.......                           सुंदरम ,, .....                     शिव ही सुंदर है ,,......                           आआआआआआआआ......                 ........ सत्यम शिवम सुंदरम........                            Music,,,.....                           राम अवध में,,....                              काशी में शिव,,.....                    कान्हा वृंदावन में,,.....                                       दया करो प्रभु देखो इनको ,,.....2                                  हर घर के आंगन में ,,......                          राधा मोहन शरणम ,,......                ......... सत्यम शिवम सुंदरम.........            .......... सत्यम शिवम सुंदरम ............ (सभी लोग एक साथ ) ।                      आआआआआआआआआआ.......                            Music ,,,.....                                                  एक सूर्य है,,.....                               एक गगन है ,,.....                        एक ही धरती है,,.....                    दया करो प्रभु एक बने सब ,,.....2                          सबका एक से नाता ,,......                    राधा मोहन शरणम,,.......                ......... सत्यम शिवम सुंदरम.......                          आआआआआआआआआ.......               .......... सत्यम शिवम सुंदरम........ ( इस तरफ, viansh,, खाली मंदिर की तरफ सीधा चलता ही जा रहा था इस समय उसकी फेस एकदम एक्सप्रेशन लेस था , क्योंकि यह उसकी खासियत थी कि कभी भी वह अपनी इमोशंस अपनी फेस पर नहीं आने देता था वह अपने फेस की रिएक्शंस को बाखूबी अच्छे से कंट्रोल कर सकता था , लेकिन अपनी बढ़ी हुई दिल की धड़कन और मंदिर की तरफ चलते हुए पेरो पर बह चाहकर भी अपने काबू में नहीं रख पा रहा था  ,, उसकी दो कदम अपने आप ही मंदिर की तरफ न जाने किस आकार सन से खींची चली जा रही थी और उसे इस बात की खबर ही नहीं थी कि उसके पीछे खड़े हुए कबीर और उसकी बॉडीगार्ड्स उसे बड़े ही हैरानी से घुर रहे थे ,,          वह सभी लोग बहुत ही हैरान थे अपने बॉस को देखकर ,, क्योंकि ऐसा कभी नहीं हुआ था कि viansh को कोई चीज इतना आकर्षण करे और वह खुद व खुद उसे तरफ खिंचा चला जाए , viansh जो की बहुत ही ज्यादा अखरोट था वह हमेशा से ही अपने रास्ते में आए हुए चीजों को इग्नोर कर दिया करता था और उसे कोई भी फर्क नहीं पड़ता था कि रास्ते में क्या कुछ हो रहा है या कुछ नही,, उसे तो बस अपने ही कम से मतलब था । वह जिस रास्ते में चलता था उसे रास्ते में अगर कोई सामने भी आ जाता तो उसे बहुत ही गुस्सा आ जाता था उसे यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं था कि उसकी रास्ते में कोई भी आए ।          उन सब बॉडीगार्ड से भी अधिक कबीर ज्यादा हैरान था , क्योंकि पिछले 10 सालों से वह viansh के साथ काम करता आया है लेकिन इतने सालों में ऐसा पहली बार हुआ था कि उसकी बॉस किसी चीज से इतना आकर्षक हुआ है,, और जिंदगी में पहली बार यह अपनी रास्ते से हटकर किसी और ही दिशा में बढ़ रहे हैं ।                लेकिन अभी उन सब को हम क्या ही समझाएं कि viansh का हालत इस समय क्या है ,, उसे तो खुद ही नहीं पता कि वह जा कहां रहा है उसे सिर्फ एक ही बात पता था कि यह जो आवाज है उसका आरंभ और अंत कहा है उसे बस उसे ढूंढना है जो इस आवाज का असली पहचान है ,, उसे बेचारे को तो यह भी नहीं पता कि वह सोच क्या रहा है आखिरकार वह बस मंदिर की तरह चलता ही जा रहा था जहां पर बहुत सारी भिर थी ,, उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था वह बस कुछ देखना चाह रहा था जिस वजह से मंद मंद उसके दिल मैं थोड़ी-थोड़ी गुस्सा भी उभर रहा था , वह जितना ही मंदिर की और आगे बढ़ रहा था उसकी दिल की रफ्तार और भी ज्यादा तेजी से धड़कता जा रहा था ,, उसे पूरी दुनिया का कुछ भी ख्याल नहीं था इस समय उसके ध्यान में सिर्फ बह , वह आवाज ,अपने दिल की तेज धड़कते हुए धड़कने महसूस हो रहा था , वह धीरे-धीरे मंदिर की तरफ कदम बढ़ाते हुए जा रहा था)             ( दूसरी तरफ हमारी रेवा जो आंखें बंद करते हुए महादेव की आरती गा रही थी उसे तो ध्यान भी नहीं है कि कोई है जो , उसकी आवाज से इतना आकर्षित हुआ है कि, उसे बेताबी से देखने की इच्छा मैं मंदिर की तरफ बढ़ रहा था, वह तो सिर्फ अपने ही धुन में आरती की धुन मिलाते हुए संगीत गा रही थी और महादेव को स्मरण कर रही थी ,, उसके साथ सारे गांव वाले भी )                    ..... सत्यम शिवम सुंदरम ....                         ईश्वर सत्य है ,,......                 ...... सत्यम शिवम सुंदरम.....                          सत्य ही शिव है,,....                     शिव ही सुंदर है,,.......                         आआआआआआआआआआआ,,......             ........ सत्यम शिवम सुंदरम........         .......... सत्यम शिवम सुंदरम .........                      सत्यम शिवम सुंदरम,,.....                    आआआआआआआआआआआआआ,,.....                         Oh, oh, oh, oh, oh, oh, oh, oh, oh, oh,             हर हर महादेव,, हर हर महादेव,,..... ( आरती खत्म होने को आई अब तक तो,viansh की भी कदम मंदिर के चौखट के अंदर आ गई और उसकी नजर बार-बार उसे आवाज को खोज रहा था जो कुछ देर पहले उसकी कानों में हलचल मछा रहा था ,,               आरती खत्म होने के बाद , रेवा पूजा की थाली महागुरु जी के हाथ में थमा देती है और उसे थाली के आगे हाथ जोड़ के प्रणाम करती है, उसके बाद महागुरु जी मंदिर के अंदर जितने भी लोग थे सभी को आरती देने के लिए चले गए दूसरे तरफ रेवा से कुछ ही दूरी में viansh खरा था , वह बस पूरे मंदिर में अपनी नजरे दोरा रहा था ,,             उसकी सनग्लासेस आब उसकी एक हाथ में था और वह एक ही जगह पर ठहरे हुए घूम घूम कर पूरे मंदिर के अंदर अपनी  नजरों से किसी को ढूंढ रहा था उसे तो पता भी नहीं कि वह किस को ढूंढ रहा है लेकिन उसे यह बात अच्छे से पता है कि उसे उस आवाज की असली पहचान को ढूंढना है ।        पूजा खत्म होने के बाद अब रेवा का मंदिर में कोई और काम नहीं बचा था। इसलिए वह अपने घर जाने के लिए मंदिर सेनिकलने को हुई  ,           की तभी उसे महसूस हुआ की उसके लहंगे का दुपट्टा जाकर किसी से उलझ गई ,, तो वह उसे जगह ही ठहर गई दरअसल उसके दुपट्टा जिस से उलझी हुई थी बह कोई और नहीं , बल्कि viansh के हाथ का घड़ी था , viansh भी जो दूसरी तरफ जाने लगा ही था की तभी उसे भी एहसास हुआ कि उसके हाथ में कुछ लगा हुआ है तो वह भी उसी जगह रुक गया । और वह मुर् के रेवा की तरफ देखने लगा , रेवा जो की इस समय , viansh की तरफ पिठ करे हुए खरी थी , उसने एक हाथ से अपने दुपट्टे को पकड़ा हुआ था ,,         जब viansh ने मुड़कर देखा तो उसे रेवा की सिर्फ , पीठ में फैली हुई उसके लंबे बाल , और उसकी बैंगनी रंग का लहंगा है दिखाएं दे रहा था ,,         न जाने viansh के मन में क्या चल रहा था वह एकदम से रेवा की तरफ उसकी दुपट्टे को अपने हाथ से पकड़ते हुए उसके तरफ कदम बढ़ने लगा , वह लगभग रेवा  के पास पहुंची गया था की तभी मंदिर के अंदर एक हवा का झोंका आके रेवा की बालों को उसके चेहरे में फैला के चली गई और उसी के साथ रेवा का बो मनमोहक खुशबू जाकर viansh के नाक में लगा और एक पल के लिए viansh रेवा की बिल्कुल पास ही ठहर सा गया ,,            रेवा जो अभी तक उसी जगह वैसे ही खरी थी , उसे जब एहसास हुआ कि उसकी बिल्कुल करें कोई आदमी खड़ा है तो तभी उसके दिल की धड़कन 100 की रफ्तार से दौड़ने लगी और वह उसी जगह ऐसे ही जाम सी गई उसे भी इस समय कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि उसके साथ हो क्या रहा है, अभी तक उसकी बाल उसके चेहरे में ही लिखते हुए थे , लेकिन viansh जो कि अभी तक रीवा की खुशबू में ही कहीं डूबा हुआ था उसे यह एहसास ही नहीं है कि वह भी क्या कर रहा है ।          वह एक ऐसा इंसान था जिसे अपने पास लड़कियां ज्यादा समय तक बर्दाश्त नहीं होता था । लेकिन आज न जाने क्यों रेवा की एहसास से उसे कुछ भी खामियां नहीं था उसे तो बहुत ही अच्छा लग रहा था की उसके पास बह खड़ी थी । आज जो उन दोनों के ही दिल में उमर रहे ये एहसास है,, उन दोनों को ही पता नहीं था कि यह एहसास है क्या ,लेकिन यह बहुत ही खास है क्योंकि जिंदगी में पहली बार ही इन दोनों को अपने दिल में कुछ ऐसे गुदगुदी सी महसूस हुई है ।          viansh जो अभी तक रेबा की एहसास से ही इतना ज्यादा उत्साहित हो चुका था ,,उसे अब रेवा की शक्ल को देखना था , उसके दिल में एक ईच्चा जगने लगा कि वह एक बार उसके सामने खड़ी रहने वाली उस लड़की का चेहरा देखे । ,, वह रेवा को कधें से पकरते हुए, उसे अपनी तरफ घूमने लगा कि, तभी  इस एहसास से ही रेवा पूरी तरीके से ऊपर से नीचे तक कंप उठी ।             वही viansh जो रेवा की चेहरे को अब देखने ही वाला था कि तभी उसे उसके पिछे से किसी की आवाज आई, तो वह पीछे मुड़ के देखने लगा। ,,.......।।।।।।।       तो किसने आवाज लगाई थी,viansh को पीछे से?       तो क्या viansh देख पाएगा रेबा की चेहरे को ?        क्या यह मुलाकात ऐसे ही रह जाएगी अधूरी या होगी पूरी ? क्या viansh की मुलाकात हो पाएगी  उसे आवाज की असली पहचान से ?  आज के लिए बस इतना ही । 🥰🤗🤗 मिलते हैं अगली चैप्टर में,            हर हर महादेव,,......🙏🙏🙏🙏    Please 🙏 comment 🥺🥺🥺🥺❤️❤️❤️❤️❤️ ।।।।।

  • 4. रेवा सफर प्यार और तकरार की - Chapter 4

    Words: 1539

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब तक,......
               viansh जो अभी तक रेबा की एहसास से ही इतना ज्यादा उत्साहित हो चुका था ,,उसे अब रेवा की शक्ल को देखना था , उसके दिल में एक ईच्चा जगने लगा कि वह एक बार उसके सामने खड़ी रहने वाली उस लड़की का चेहरा देखे । ,, वह रेवा को कधें से पकरते हुए, उसे अपनी तरफ घूमने लगा कि, तभी  इस एहसास से ही रेवा पूरी तरीके से ऊपर से नीचे तक कंप उठी । 
               वही viansh जो रेवा की चेहरे को अब देखने ही वाला था कि तभी उसे उसके पिछे से किसी की आवाज आई, तो वह पीछे मुड़ के देखने लगा। ,,.......।।।।।।।
    अब आगे,,......
              जब , viansh ने पीछे मुड़कर देखा तो , पाया कि कबीर उसे बुला रहा था ,, कबीर की आवाज लगाने पर उसे होश आया तो उसने खुद से ही पूछा कि वह यहां क्या कर रहा था ,, उसने ना समझी में ही अपना सर झतक दिया , फिर उसे याद आया कि वह, अभी कुछ समय पहले किसी के साथ था , 
             उसने फिर अपने सामने पलतकार देखा तो , अभी वह जगह बिल्कुल ही खाली था वहां पर कोई भी नहीं था , तह बह फिर से हैरान हौ गया , अपने आसपास के जगह को वह अपनी पेनी नजर से घूर-घूर कर देखने लगा ,, जैसे कि गुस्से से किसी को वह ढूंढ रहा हो ,, 
               उसके पास जो खरी थी वह लड़की , अब तक बाहा से जा चुकी थी , लेकिन उसकी वह मनमोहक खुशबू अभी भी viansh की आसपास फैली हुई थी और viansh उस खुशबू को अपने एहसासों मै लेकर अपनी आंखें बंद कर लेता है । 
            थोड़ी देर बाद जब वह अपनी आंखें खोलता है तो इस बार उसकी आंखों में घुसा था और वह गुस्से में ही अपने हाथों की मुट्ठी को कस लेता है । उसे शायद उसे लड़की का उसके पास से ऐसे अचानक बिना बताए जाना बिल्कुल भी  अच्छा नही लगा था । 
                 कबीर जो , इतनी टाइम से अपने बॉस को ही कन्फ्यूजन से देख रहा था उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसके बॉस को हुआ क्या है वह क्यों ऐसे आंखें बंद करके अपने मुट्ठियों को काश रहा है और क्यों इतने गुस्से में लग रहा है । 
              बस सोच ही रहा था कि उसे एहसास हुआ ,, viansh उसे बहुत ही गुस्से से घुर रहा है और उसके घुर ने से कबीर को और भी ज्यादा दर लगने लगता है , और इधर से ही वह अपना सिलाईबा गटक ने लगता है । बो दर से ही ,अपने मन मैं सोच ने लगा , ....." हे भगवान,, अब इस सोए हुए डेविल को किसने जगा दिया । अब मुझे यह ऐसे घुर क्यों रहा है ? ऐसा लग रहा है कि मुझे, यह अपने आंखों से ही निगल कर खा जाएगा । 
              वह यह सब सोच ही रहा था कि तभी आचानक से ,,viansh उसके सामने आकर, आंख में आंखें डालकर, दांत पीसते हुए, बहुत ही गुस्से से उसे कहने लगा ,, " नेक्स्ट टाइम अगर तुमने हमै  कुछ भी इंपॉर्टेंट काम के बीच में डिस्टर्ब किया तो , सिर्फ इस नौकरी से ही नहीं इस दुनिया से भी बाहर निकलवा दूंगा,,.. समझे तुम !!! " 
               अपने डेविल बस की इतनी डरावनी गुस्से भरी आवाज को सुन बह बेचारा ऊपर से नीचे तक सिर्फ कांप ने ही लगा और कंपते हुए ही वह ,, उसे देखने की हिम्मत करे बिना ही बोलने लगा ,,.... " सॉरी बॉस मैं , मैं ,बो  बस मै आपसे यह बोलने आया था कि आप गलत साइड में आ रहे हो यह वह मंदिर नहीं है जहां पर हमारी पूजा की तैयारी की हुई थी । बेचारी कबीर की तो दर से सिटी बीती ही गुल हो गई थी । 
     
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    दुसरी तरफ: रेबा की उलझन और दिल की धड़कन
    रेबा, मंदिर से बाहर निकलकर दौड़ते-दौड़ते नदी के किनारे तक आ पहुँची थी। उसका मन बिल्कुल शांति में नहीं था। वह यह नहीं समझ पा रही थी कि उसके साथ क्या हो रहा था, और क्यों वह इतनी घबराई हुई महसूस कर रही थी। उसका दिल अपनी सामान्य गति से बिल्कुल अलग हो रहा था।
    रेबा ने एक हाथ अपने दिल पर रखा हुआ था, जैसे वह अपनी बढ़ती धड़कनों को किसी तरह शांत करने की कोशिश कर रही हो। उसका शरीर कांप रहा था, उसकी नसों में एक अजीब सा गर्माहट महसूस हो रही थी। नदी का ठंडा पानी, उसकी पाँवों के नीचे बह रहा था, लेकिन वह अभी भी खुद को उस अजनबी एहसास से नहीं उबार पा रही थी। उसका मन उन सवालों से भरा हुआ था जो लगातार उसके दिमाग में गूंज रहे थे, जैसे कोई गहरा सा तूफान उसकी सोचों को घेरता जा रहा हो।
    उसने गहरी साँस ली, और फिर एक कदम और बढ़ाया। नदी के किनारे खड़े होकर, उसने अपने बालों को हवा में लहराते हुए महसूस किया। हर एक लहर के साथ उसकी उलझन बढ़ती जा रही थी। जैसे वह अपने अंदर की बेचैनी को बाहर आने का रास्ता ढूँढ रही हो। "क्या हो रहा है मुझे?" यह सवाल बार-बार उसके दिमाग में घूम रहा था, और उसकी धड़कनें जैसे और भी तेज हो जाती थीं।
    वह बार-बार खुद से पूछ रही थी, "आज मेरे दिल ने ऐसा क्यों महसूस किया?" वह आदमी कौन था, जिससे उसकी धड़कनें अचानक इतनी तेज हो गई थीं? वह महसूस कर रही थी कि यह सब कुछ बहुत ही अजीब था, बहुत ही नया। वह पहले कभी ऐसा नहीं महसूस की थी, और अब तक उसकी ज़िंदगी बहुत ही सामान्य थी। उसे न कभी किसी के पास जाने का मन किया, न किसी को इतने करीब महसूस किया था। लेकिन आज? आज कुछ अलग था, कुछ नया था, कुछ जो वह समझ नहीं पा रही थी।
    वहीं, जब उसकी आँखें नदी की लहरों पर ठहरीं, तो उसकी साँसें थम सी गईं। उसकी आँखों में एक गहरी उदासी थी, एक खालीपन। "क्या वह उसका एहसास कर पा रही थी?" उसने खुद से सवाल किया, और अपने दिल की धड़कनों को महसूस किया। क्या वह वाकई कुछ महसूस कर रही थी?
    उसके बाल हवा में उड़ रहे थे, जैसे उसकी भावनाएँ बेतहाशा बह रही हों। उसकी आँखें बंद हो गईं, और जैसे ही उसने गहरी साँस ली, उसे वह दिन याद आया, जब वह पहली बार मंदिर में वियांश से मिली थी। वह चेहरा, वह सख्त नज़रें, वह घबराहट, सब कुछ जैसे उसके दिमाग में उभर आया था।
    वह सोचने लगी, "क्या यह सिर्फ आकर्षण था?" क्या वह सिर्फ उसकी करीबियाँ महसूस कर रही थी या फिर कुछ और था? उसकी आँखें फिर से खुली, और उसने नदी की लहरों को देखा। "क्या वह सच में उससे जुड़ी थी?" यह सवाल उसके दिल में था, लेकिन वह फिर भी जवाब नहीं पा रही थी। उसके पास जो था, वह सिर्फ उस पल की एक अनकही फीलिंग थी, जो उसके अंदर रह गई थी, और वह उसे समझ नहीं पा रही थी।
    नदी की लहरों की आवाज़ में उसकी साँसें घुल गईं। वह सोचने लगी, "क्यों मुझे इतनी बेचैनी महसूस हो रही है?" उसकी धड़कनें तेज हो गईं, और उसका दिल उसी घबराहट के साथ धड़क रहा था, जैसे किसी ने उसे घेर लिया हो। लेकिन फिर भी, वह उसे पहचान नहीं पा रही थी, और यह एहसास उसके अंदर एक सैलाब की तरह बढ़ रहा था।
    "क्या वह उसके बिना बताए उसकी ज़िंदगी में दाखिल हो चुका था?" यह सवाल भी उसके मन में लगातार गूंज रहा था, और अब उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान उभरने लगी थी। लेकिन वह मुस्कान असहज भी थी, जैसे उसे खुद से डर हो, जैसे उसे खुद के एहसासों पर शक हो।
    रेबा ने अपने दिल पर हाथ रखा और खुद से कहा, "क्यों मैं इतने घबराई हुई महसूस कर रही हूँ?" उसके सवालों का कोई उत्तर नहीं था, बस अनकही बेचैनी थी। उसका मन और भी उलझन में था, और हर लहर, हर हवा का झोंका जैसे उसकी सोच को और भी अधिक जटिल बना रहा था।
    लेकिन फिर भी, वह शांत होने की कोशिश करती है। उसने अपने गहरी सांस ली, और हवा को अपने चेहरे पर महसूस किया। उसके बाल अब पूरी तरह से हवा में लहराते हुए, उसके चेहरे को और भी नाज़ुक बना रहे थे। वह नदी के किनारे खड़ी थी, लेकिन उसकी पूरी दुनिया असमंजस में डूब गई थी। वह खुद से सवाल करती रही, "क्या मैं अब भी उस आदमी के बारे में सोचने में लगी हूँ?"
    आखिरकार, वह जान नहीं पाई कि उसके दिल की धड़कनें क्या सच्चाई बताती हैं, लेकिन उस पल में, उसकी ज़िंदगी का एक नया मोड़ था, जो बहुत ही गहरे भावनात्मक एहसास से भरा हुआ था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह आकर्षण था, या फिर कुछ और था...।।।।।।।
              क्या कभी भी वियांश को यह पता चलेगा कि वह लड़की कौन थी ? 
              इस पहली मुलाकात की वह पहले एहसास को क्या दोनों ही समझ पाएंगे या ऐसे ही गुजर जाएंगे उनके दिल के वह सभी एहसास ?
              क्या यह मुलाकात ही उन दोनों की आखिरी मुलाकात है या उनकी तकदीर में कुछ और ही लिखा है ? यह जानने के लिए आगे पढ़ते रहिए हमारी कहानी ।।
             आज केलिए बस इतना ही ,,..... मिलते हैं अगले चैप्टर में तब तक के लिए बाय-बाय 🤗👋👋👋 ।।।।।
           
     
     
     
     
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  • 5. रेवा सफर प्यार और तकरार की - Chapter 5

    Words: 1657

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब तक,,...
            रेबा ने अपने दिल पर हाथ रखा और खुद से कहा, "क्यों हम इतने घबराई हुए महसूस कर रहे हैँ?" उसके सवालों का कोई उत्तर नहीं था, बस अनकही बेचैनी थी। उसका मन और भी उलझन में था, और हर लहर, हर हवा का झोंका जैसे उसकी सोच को और भी अधिक जटिल बना रहा था।
    लेकिन फिर भी, वह शांत होने की कोशिश करती है। उसने अपने गहरी सांस ली, और हवा को अपने चेहरे पर महसूस किया। उसके बाल अब पूरी तरह से हवा में लहराते हुए, उसके चेहरे को और भी नाज़ुक बना रहे थे। वह नदी के किनारे खड़ी थी, लेकिन उसकी पूरी दुनिया असमंजस में डूब गई थी। वह खुद से सवाल करती रही, "क्या मैं अब भी उस आदमी के बारे में सोचने में लगी हूँ?"
    आखिरकार, वह जान नहीं पाई कि उसके दिल की धड़कनें क्या सच्चाई बताती हैं, लेकिन उस पल में, उसकी ज़िंदगी का एक नया मोड़ था, जो बहुत ही गहरे भावनात्मक एहसास से भरा हुआ था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह आकर्षण था, या फिर कुछ और था...।।।।।।
        अब आग,,...
                   
    💫🤍अनचाही सी बातों का साया बना,,..
    अनसुने जज़्बातों का दरिया बना तू ,,
    पास नहीं, फिर भी महसूस होता,
    एहसास का हर पल नया ख्वाब बना।नाम अधूरा, पर दिल से जुड़ा,रेवा और वियांश का अनकहा रिश्ता बना।,,....
    🥺💫🤍 प्यार की इस दो पल की एहसास के साथ कितना बड़ा तूफान आने वाला है यह बात तो रेवा को पता ही नहीं था,,.....
            ( यह कुछ लाइन उसे पहली मुलाकात केलिए,,जो मुलाकात उन दोनों  के ही दिल को इतना भा गया एक ऐसा एहसास दोनों के ही दिल में पन गया कि दोनों को ही समझ में नहीं आ रहा है कि आखिरकार हो क्या रहा है ) 
           
    अब आगे ,,...
           रेवा नदी किनारे बैठे बहते पानी को एकटक देख रही थी। उसकी आंखों में अनगिनत सवाल थे, और दिल में एक ऐसा तूफान था जिसे वह खुद से भी छिपाने की कोशिश कर रही थी। मंदिर में वियांश के साथ हुई मुलाकात के बाद उसका मन जैसे एक गहरे दलदल में फंस गया था। लेकिन वह इस बारे में किसी से बात नहीं करना चाहती थी। आप सोच रहे होंगे कि रेवा इतनी देर तक क्यों इस बात पर ही आरी हुई है इसका कारण यह है कि इससे पहले उसके साथ कभी ऐसा नहीं हुआ था ना कभी वह किसी आदमी की इतनी करीब थी और ना ही उसके दिल में ऐसे हलचल हुई थी । जितना समय उसे हवा के साथ ही रेवा की भावनाओ की लहर बढ़ती जा रही थी ,,....
    नदी का शीतल पानी, हवा की हल्की सरसराहट और पक्षियों की आवाजें, सब मिलकर माहौल को शांत बनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन रेवा का दिल अशांत था। की तभी अचानक, किसी ने पीछे से उसकी आंखों पर हाथ रख दिया।
    "धप्पा!"
    रेवा चौंकते हुए घबराकर उठ खड़ी हुई। ऐसे अचानक से धप्पा सुनने से उसकी सांसें ङर से तेज हो गईं। उसे लगा कि वह आदमी फिर से आ गया उसके पास तो उसने पलटकर देखा, और वहां अपनी दोस्त साक्षी को खड़ा पाया।
    साक्षी रेवा की बचपन की दोस्त है यह दोनों दोस्त काम बहन ज्यादा लगती है बचपन से ही दोनों एक साथ बड़े हुए हैं एक ही गांव में एक ही साथ खेलकूद कर और एक ही स्कूल में दोनों एक साथ पढ़ते थे साक्षी एक बहुत ही प्यारी लड़की थी वह रेवा से बहुत ही प्यार करती है , रेवा  की  हमेशा साथ देने वाली हमारी साक्षी दिखाने में काफी सुंदर थी उसकी उम्र लगभग रेवा की ही जितनी थी 19 साल । देखने में गोरे रंग की बड़े-बड़े आंखों के साथ हमेशा ही अपनी चेहरे में एक शरारती भरी मुस्कान लिए हमारे रेवा को चिढ़ाने वाली साक्षी एक जिंदा दिल लड़की थी ।।।
          साक्षी खिलखिलाकर हंस  उठी। "अरे रेवा! इतनी डरपोक कब से हो गई तु? मैं हूं, तेरी साक्षी!"
    रेवा ने एक लंबी सांस ली और झुंझलाते हुए बोली, "साक्षी! तूमने तो हमै डरा ही दिया था। तुम्हे पता है, हम कितना गहरी सोच में थे । और हम कितना डर गए" दिल में हाथ रखते हुए ही रेवा के मुंह से अचानक से यह बात निकल गई ।
    ...गहरी सोच में थी का मतलब ,, ?साक्षी ने अपने बड़े-बड़े गोल आंखों से हैरान भरी नजरें से रेवा को देखने लगी।फिर साक्षी ने हंसते हुए कहा, "तो अब तू यहां बैठकर इतनी गहरी सोच में क्यों खोई थी? क्या चल रहा है? ऐसी कौन सी बड़ी बात आ गई कि मुझे नहीं पता, hmmm , hmm"
    साक्षी की बात से रेवा को अचानक से याद आया कि उसके मुंह से यह क्या निकल गया  । फिर बात को संभालने के लिए उसने बात को बदलना ही सही समझा उसने  हिचकिचाते हुए कहा, "कुछ नहीं, बस ऐसे ही।"
      लेकिन साक्षी है कि उसकी बात मानना ही नहीं चाहती थी इसलिए वह रेवा की चेहरे को गौर से देखने लगी थोड़ी देर देखने के बाद उसे कुछ बात समझ में आया तो ,,
    उसने रेवा की बांह पकड़कर उसे पास बिठा लिया। फिर बोली "देख रेवा, मुझसे कुछ छिपाने की कोशिश मत कर। तुझे पता है, मैं तुझे बचपन से जानती हूं। जो तेरे दिल में है, वो मुझसे मत छिपा। बता ना, क्या हुआ?"
    रेवा नहीं चाहती थी कि मंदिर में जो कुछ भी हो उसके बारे में साक्षी को पता चले अगर साक्षी को पता चल जाएगा तो वह बिना बजे ही उसे चिढ़ाने लगेगी ऊपर से वह खुद ही परेशान है कि उसके दिल में इतनी हलचल है यह बात उसे भी पता था कि अगर उसने एक बार साक्षी को उसे मंदिर वाली हादसे के बारे में बता दिया तो वह उसके पीछे हाथ धोकर पर जाएगी और वैसे भी मंदिर में मिले हुए वह इंसान जिसे वह कभी जानती ही नहीं थी उसके बारे में आखिरकार वह साक्षी से क्या ही कह इसलिए वह बात को बदलते हुए,,
    रेवा ने एक क्षण के लिए चुप्पी साधी, फिर मुस्कुराने की कोशिश करते हुए बोली, "अरे, सच में कुछ नहीं। बस ऐसे ही यहां बैठकर सोच रही थी कि आगे क्या करना है।" उसकी यह बात सुनकर
           साक्षी ने अपनी बड़ी-बड़ी आंखें घुमाईं। "आगे क्या करना है? मतलब तूने कोई योजना नहीं बनाई? रेवा, अब तो हम 12वीं पास कर चुके हैं। मुझे सच-सच बता, तूने आगे क्या सोचा है? पढ़ाई करेगी, या ऐसे ही छोड़ देगी?"

    रेवा की आंखें हल्की नम हो गईं। उसने कहा, "साक्षी, तुम्हें तो पता है कि 12वीं तक की पढ़ाई के लिए ही हमें कितनी मुश्किलें झेलनी पड़ीं। मां और बाबा ने जैसे-तैसे ही माने थे। हमै नहीं लगता कि वे आगे पढ़ने की इजाजत देंगे।"
    साक्षी ने गंभीर होकर पूछा, "तूने उनसे बात की?"
    "नहीं," रेवा ने सिर झुकाकर कहा। "लेकिन मैं बात करूंगी। एक दफा शायद... शायद वे मान जाएं।
    " रेवा की बात को सुनकर साक्षी भी मन में सोचने लगी की ,, शायद रेवा तुझे पता नहीं तेरी मां बाबा कैसे लोग हैं उनको ज्यादा वक्त नहीं लगेगा तेरे दिल को तोड़ने में काश में तेरे लिए कुछ कर पाती हे महादेव प्लीज प्लीज इस बार उसके ऊपर आप थोड़ी सी कृपा बरसा दो ना बो लोग प्लीज उसके बात मान जाए । ,,  फिर रेवा को उत्साहित करने की लहजे में , 
    साक्षी ने रेवा का हाथ थामते हुए कहा, "देख रेवा, अगर तू अपने दिल की बात नहीं बताएगी, तो कोई तेरा सपना पूरा करने नहीं आएगा, तुझे आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा, ।
    मैं तो आगे पढ़ाई करूंगी। मुझे लगता है कि यह गांव हमें हमारे सपने पूरे करने का मौका नहीं देगा।"
    रेवा ने चौंककर साक्षी की ओर देखा। "मतलब? तूम यहां से बाहर जाऔगी?"
    साक्षी ने एक लंबी सांस ली। "हां, मुझे जाना होगा। मेरी बुआ भोपाल में रहती हैं। उन्होंने कहा है कि मैं वहां आकर अपनी पढ़ाई पूरी कर सकती हूं।"
    रेवा की आंखों में उदासी झलकने लगी। "तूम मुझे छोड़कर चली जाओगी?"
    साक्षी ने तुरंत रेवा के गाल पर हाथ रखकर उसे प्यार से समझाया। "अरे, मैं तुझे छोड़कर नहीं जा रही। मैं तो पढ़ाई के लिए जा रही हूं। और हां, अगर तू चाहे, तो हम दोनों साथ में चल सकते हैं। बस तू अपने मां-बाबा को मना ले।"
    रेवा ने थोड़ा मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उसकी आंखों में भावनाओं का सागर उमड़ रहा था। "साक्षी, तूम सही कह रही हो। हमें कुछ करना होगा। हम हमेशा यहां नहीं रह सकते। लेकिन हमै नहीं पता कि मां और बाबा मानेंगे या नहीं।"
    साक्षी ने उसे हौसला देते हुए कहा, "तू कोशिश तो कर। देख रेवा, महादेव हमारे साथ हैं। उन्होंने हमेशा हमारी मदद की है। तू उनसे प्रार्थना कर, और हिम्मत जुटा। मैं तुझसे वादा करती हूं, हम दोनों मिलकर अपना भविष्य बनाएंगे।"
    रेवा ने साक्षी का हाथ पकड़ लिया। "साक्षी, तूम हमेशा हमारे साथ रही हो। हम भी तुम्हे निराश नहीं करेंगे।"
    दोनों सहेलियां अब एक नई उम्मीद और योजना के साथ नदी किनारे से उठ खड़ी हुईं। रेवा के दिल में एक नई रोशनी जागी थी। उसे लगा कि अगर साक्षी उसके साथ है, तो वह किसी भी मुश्किल का सामना कर सकती है।
           इस वक्त तक  रेवा का दिल काफी हल्का हो चुका था जब से उसने साक्षी से बात करना शुरू किया था उसके बाद ही वह वियांश के बारे में सोचना भूल गई थी और उसकी वह दिल की तूफान भी थम सी गई थी शायद दोस्ती ऐसे ही होती है आपकी हर एक मुसीबत की समय में आपका साथ देते हैं ।। इन दोनों सहेली का ही बहुत ही बड़े-बड़े सपने थे पढ़ लिखकर एक-एक अच्छी-अच्छी नौकरी करना ।।
     लेकिन यहां पर रेवा की भाग्य में कुछ और ही लिखा हुआ था ,, रेवा को पता नहीं था कि आने वाले कुछ समय में उसके दिल बहुत ही बुरी तरीके से टूटने वाले थे ,, ....
    आज केलिए done,,......
     pls. guys apna opinions dena or rating bhi 🥺
    tabhi tuh mujhe pata salega ki apko novel pasand arha he ya nhi ,, tabhi tuh me next episode ke liye motivat ho paongi nahh 🙏🥺🤍💫

  • 6. रेवा सफर प्यार और तकरार की - Chapter 6

    Words: 1714

    Estimated Reading Time: 11 min

    साक्षी और रेवा के घर जाने के बाद, जब वह मंदिर से वापस लौटने लगीं ,बही दूसरी तरफ,,
    वियांश जो कि ,, पूजा समाप्त कर नदी में स्नान के कार्य कर रहा था ,, महादेव के आशीर्वाद से नर्मदा नदी में स्नान करने के बाद भी , वियांश की स्थिति एकदम अलग थी।
    उसकी नज़रें जैसे किसी को अभी भी ढूंढ रही थीं। नदी के किनारे, जब उसका स्नान समाप्त हुआ, तो वह शांतिपूर्वक नदी से बाहर निकला।
    उसकी सफेद धोती में उसकी शरीर की परिभाषा और भी निखर आई थी। एक शक्तिशाली रूप में वह नदी के पानी में लहरों से खेलता हुआ बाहर आया था, और उसकी रुद्राक्ष की माला जैसे उसकी भक्ति का प्रतीक बनकर उसकी गर्दन में चमक रही थी।
    उसके गले में हमेशा से ही रुद्राक्ष की माला होती ही है आज जो पूजा इस मंदिर में उसने समाप्त की है वह भी रुद्राक्ष की साथ ही जुड़ी हुई थी ,,
    बात ऐसी नहीं है कि वह महादेव की बहुत ही बड़ा भक्त हैं लेकिन उसके गले में यह रुद्राक्ष की माला का होना,,बह भी एक अलग ही कारण है

    हमारा रॉयल प्रिंस वियांश जो काफी जिद्दी और एकरू किस्म की इंसान है वह कभी किसी की भी बात नहीं मानता लेकिन एक इंसान है जिसके बात वह कभी नहीं ताल सकता ,,
    जान से भी प्यारी दादी मां जिनके कहने पर ही वह हमेशा से ही महादेव की रुद्राक्ष की माला को अपने गले में पहन कर घूमता है ।
    आज के पूजा के लिए भी बह खुद की मर्जी से नहीं आया था बल्कि अपनी दादी मां की मर्जी से आया था क्योंकि वह कभी अपनी दादी मां की बात को टाल नहीं सकता ।।

    हालांकि हर साल ही उसके दादी मां यह पूजा खुद यहां पर आकर करवाती थी । इस पूजा में विशेष कार्य यह है कि रुद्राक्ष माला का बदलाव करना ,,
    हर साल एक नई रुद्राक्ष माला वियांश के लिए बनाया जाता था और पुराने वाले को इस नीति नियम के द्वारा गले से निकाल कर नदी के पानी में उसे पूजा स्थल में विसर्जित कर दिया जाता था ।
    हर साल की तरह इस साल भी यह पूछा करवाई गई थी लेकिन इस साल वियांश घर पर था इसलिए उसकी दादी ने खुद से आने की जगह उसे भिजवाना ही सही समझा क्योंकि यह पूजा उसके नाम की है तो वह खुद के हाथों से करेंगे तो बेहतर होगा ।।

    उसका हर कदम, उसकी छवि और उसकी आभा में एक रहस्यमय आकर्षण था। उसकी बॉडी देखकर वहाँ स्नान कर रही कुछ लड़कियों का ध्यान उस पर चला गया। उन लड़कियों ने उसकी ओर आकर्षण महसूस किया और उनके बीच गपशप चलना शुरू हो गया ।

    और उनकी नजरें बस वियांश पर ही टिकी हुई थीं। उनकी आंखों में वही आकर्षण था, जिसे वे किसी राजा के सामने महसूस करती हैं। वे एक-दूसरे से धीमे-धीमे बात कर रही थीं।
    एक लड़की ने देखा और धीरे से बोला, "तू देख रही है ना, यह बंदा कितना हैंडसम है यारररर,, जैसे कोई देवता हो।" ( लेकिन इन्हें कौन बतायाए कि जिसे वह देवता कह रही है वह कितना बड़ा डेविल है 🤭)

    इस समय उन लड़कियों की हालत ऐसी थी कि दूर से ही उसे देखकर , बो आहे भर रही थी ,,क्योंकि वियांश के आसपास कोई भी नहीं था जो भी लोग नदी में स्नान कर रहे थे वह सभी उसे काफी दूर थे क्योंकि इसकी वजह वियांश खुद था उसकी बॉडीगार्ड्स उसे सावधानी से प्रोटेक्शन दे रहे थे इसलिए उसके करीब कोई भी नहीं आ सकता था ।।

    दूसरी लड़की ने उसे घूरते हुए कहा, "हां, यार! यह सच में कितना ज्यादा होता है"( फिर आहे भरते हुए ) काश ईसे में पता पाती बस एक बार ,, ...बस एक बार ....

    तभी तीसरी लड़की, जो पहले से ही थोड़ा गंभीर थी, बोली, "तुम लोग इसे देखते रहो। पर तुम जानते हो यह कौन है? मैं भी कुछ दिन पहले तक उस के बारे में नहीं जानती थी, लेकिन जब मुझे इसके बारे में पता चला, तो मैं डर गई। यह वही है जो भोपाल के रघुवंशी परिवार का इकलौता वारिस है। वियांश रघुवंशी जो तह दिखने में काफी हैंडसम है लेकिन अगर तुम लोगों को इसके कारनामे के बारे में पता चलेगा ना तो यहां पर ही बेहोश होकर गिर जाओगे"

    "क्या?" पहली लड़की ने चौंकते हुए कहा। " क्या यह क्या कह रहे हो तुम भला इतनी हैंडसम बंदा कैसे खतरनाक हो सकता है!"

    ," तीसरी लड़की ने गंभीर होकर कहा, "अगर तुमने इसे ज्यादा घूरे तो तुम जानती हो क्या होगा। यह तुम्हारी आंखें निकलवा देगा ।"

    पहली लड़की ने उसके शब्दों को नजरअंदाज करते हुए कहा, "क्या यार! इतनी हैंडसम पर तो मैं कैसे रोक सकती हूँ खुद को!"

    दूसरी लड़की ने फिर कहा, "बिलकुल, ऐसा तो फिर कभी नहीं मिलेगा।"

    तीसरी लड़की ने उन्हें चेतावनी दी, "देखो, देखो, अच्छे से देख लो क्योंकि अगर एक बार उसकी आंखें तुम दोनों पर पड़ गई ना तो मुझे मत बताइयो बाद में कि मैं ने तुम्हें चेतावनी नहीं दिया था ।।
    उसकी बातों को सुन वह दोनों लड़कियां है थोड़ी सी घबरा गई और घबराहट में ही दोनों ने एक साथ बोला "नहीं रे नहीं बाबा ,,...हमें इस जबानी में ही अपनी आंखें नहीं गबाना चल चल यहां से चलते हैं यहां छोड़ो नहीं देखी में चलो चलो ।।।।

    लड़कियाँ झिझकते हुए, धीरे-धीरे वहाँ से चली गईं। वे वियांश को देखना छोड़ नहीं पाई थीं, लेकिन डर के मारे उनका आत्मविश्वास थोड़ा टूट चुका था।

    वहीं दूसरी ओर, वियांश स्नान करने के बाद नदी से बाहर आ गया। उसकी चाल, उसकी मुद्रा, और उसका हर कदम उसकी शाही पहचान को और भी उजागर कर रहा था। वह पूजा स्थल की ओर बढ़ा और वहां उसने रुद्राक्ष की माला को बदला। यह एक पुरानी रिवाज थी, ।।।

    उसने पूजा स्थल में कदम रखते हुए पंडित जी से कहा, जल्दी खत्म करिए यह काम ,, हमारे पास और पूजा समाप्त करने का समय नहीं है।"

    पंडित जी ने उसकी बातों का आदर किया और रुद्राक्ष की माला उसके गले में पहनाई। ( पंडित जी उसके बाद को इतनी आसानी से इसलिए मान गए थे क्योंकि वियांश का औरा ही ऐसा था कि कोई भी उसकी मुंह से निकली गई दो शब्द से ही कप उथे )।।

    "तुम्हारा ध्यान और समर्पण अद्वितीय है, बेटे," पंडित जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा। "जैसे तुम रुद्राक्ष को अपने गले में पहनते हो, वैसे ही तुम्हारा जीवन भी सशक्त और पवित्र हो।"

    वियांश ने बिना कोई भाव दिखाए सिर झुका लिया और कहा, " शुक्रिया।" फिर वह पूजा स्थल से बाहर निकल आया।

    कुछ समय बाद वह एक रॉयल ब्लू कलर सूट वेयर किया हुआ जिसमें वह काफी हैंडसम लग रहा था । और अपने कार की तरफ आ रहा था ,, इस समय तक उसने अपने सारे कपड़े बदल दिए थे।।

    कविर ने कर की गेट ओपन क्या ही था कि तभी ,,गाड़ी में बैठने से पहले, वियांश का फोन वाइब्रेट करने लगा। बिना स्क्रीन देखे ही, उसने कॉल उठा लिया।

    "दादी मां," वियांश ने कहा, "चिंता मत करिए, सब कुछ अच्छे से हो गया है। हम मंदिर की पूजा पूरी कर चुके हैं, अब हम ऑफिस जा रहे हैं।"

    दूसरी तरफ, उसकी दादी मां की आवाज आई, "बेटा, आप ने पूजा अच्छे से की ना? क्या सब ठीक है?"

    वियांश ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "जी दादी, सब ठीक है। अब मुझे मीटिंग्स अटेंड करनी हैं, इसलिए ऑफिस जा रहा हूँ। रात को मिलते हैं " बस इतना ही का के उसने कॉल को कट कर दिया ।।

    वियांश की दादी मां, शीतला देवी,वियांश उनका बहुत ही आदर करता था। वह भी उसे बहुत प्यार करती थीं। लेकिन जैसे ही वियांश ने कॉल खत्म किया, तो शीतला देवी ने अपने फोन के स्क्रीन को देख कर बरबराते हुए बोली ,,... "इनका कुछ नहीं हो सकता पता नहीं किस बात की जल्दी में रहते हैं हमेशा ,,
    तभी पिसे से वियांश की माँ, गंगा जी की आवाज आई, "क्या हुआ माझी, सब ठीक तह है ना ? पूजा की सारी विधियाँ सही तरीके से पूरी हो गईं?"

    अपनी बहू के आवाज को सुनकर शीतल जी ने कहा " हां बहू सब कुछ ठीक ही है ,,बस अभी कॉल किया था उन्हें तो उन्होंने कहा कि सब कुछ अच्छे से हो गया अब सीधा अपने ऑफिस जा रहे हैं रात को आकर मिलेगा ,,

    गंगा जी और शीतला देवी दोनों ही वियांश के परिवार के सबसे मजबूत स्तंभ थे। वे दोनौ बेहद संपन्न सुशील संस्कारी और संत स्वभाव के महिला थी ।।
    उनके परिवार में कुल मिलाकर पास ही सदस्य रहते थे इनमें से शीतल जी और उनके पति गिरधर रघुवंशी ,, घर के बरे थे । और उनके बेटे बहु गंगा जी और देवेंद्र नाथ रघुवंशी जी जो वियांश के माता-पिता थे ,,
    अब तक तो आप सभी लोग जानते हैं कि यह भोपाल के राज परिवार है ,, इनके पास हजारों करोड़ों का संपत्ति है लेकिन इसके बावजूद यह लोग कभी भी घमंड नहीं करते थे। वे अपने दिल से सच्चे और ईमानदार थे, और डॉउन तु अर्थ लोग थे जो हमेशा ही अपनी इंसानियत को आगे रखकर ही सब काम करना पसंद करते थे ,,

    यह लोग बहुत ही दयालु लोग थे जो बहुत सारी औरफिनिशेज और अनाथ आश्रम भी चलाते थे और गरीबों को डोनेशन भी देना अपना कर्तव्य समझते थे ।।

    लेकिन हमारा हीरो अपने परिवार के जैसा बिल्कुल भी नहीं था वह बहुत ही ज्यादा क्रुएल हार्टेड और डेविल किस्म का आदमी था जिसे किसी के ऊपर भी दया दिखना पसंद नहीं था ।।
    उसे बस धोखा देने वाले लोगों को कैसे सजा देना है बहुत अच्छे से आता था ,, और ज्यादा तर धोखेबाज को तो वह अपने हाथों से ही मार डालता था चाहे जैसे भी सिचुएशन हो वह किसी को भी नहीं छोड़ता था वह एक क्रुएल माफिया से भी ज्यादा खतरनाक था ।।
    लेकिन उसकी इन सब काली दुनिया की राज किसी किसी को ही पता था लेकिन उसकी फैमिली मेंबर को यह बात कभी पता नहीं चली थी क्योंकि वह कभी भी अपनी फैमिली मेंबर्स के कानों तक इन सब बातों को पहुंच नहीं नहीं देता था ।।

    कॉल को कट करने के बाद अब वियांश और उसके बॉडीगार्ड्स के कार अपनी मंजिल की दिशा में सल परे ...।।।। आज के लिए बस इतना ही मिलते हैं अगले चैप्टर में ,,....it ,s done 👍