"अनचाहे बंधन में बंधी दो जिंदगियाँ... रिद्धिमा भारद्वाज.... मुंबई की फेमस फैशन डिज़ाइनर ....... एक स्वतंत्र विचारों वाली स्वाभिमानी लड़की, शादी को एक बोझ मानती है। वो अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहती है जबकि श्रेयस ओब... "अनचाहे बंधन में बंधी दो जिंदगियाँ... रिद्धिमा भारद्वाज.... मुंबई की फेमस फैशन डिज़ाइनर ....... एक स्वतंत्र विचारों वाली स्वाभिमानी लड़की, शादी को एक बोझ मानती है। वो अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहती है जबकि श्रेयस ओबेरॉय oberoi industries का ceo और करोडो दिलों की धड़कन जिसका दिल किसी और के लिए धड़कता है। क्या होगा जब दो अलग-अलग दुनियाओं के लोग एक साथ रहने को मजबूर हों ? क्या नफरत प्यार में बदल जाएगा ? या फिर ये अनचाही शादी दोनों की जिंदगी को बर्बाद कर देगी? इस रोमांचक कहानी में प्यार, नफरत, धोखे और विश्वास के उतार-चढ़ाव हैं। रिद्धिमा और श्रेयस की ये अनचाही शादी क्या मोड़ लेती है, ये जानने के लिए आपको ये दिलचस्प कहानी जरूर पढ़े।
श्रेयस ओबेरॉय
Hero
रिद्धिमा भारद्वाज
Heroine
Page 1 of 5
पालमपुर, हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा ज़िले में स्थित एक नगर है।
इस नगर में बनी सबसे बड़ी और पुरानी हवेली, जिसके आगे पूरा गाँव इज़्ज़त से सर झुकाता था, आज दुल्हन जैसी सजी हुई थी।
रात के पहर में वह हवेली सुनहरी रोशनी से जगमगा रही थी।
अंदर आँगन में मंडप लगा था, जहाँ उस वक़्त एक लड़की दुल्हन के लिबास में चेहरे को घूँघट से ढँककर एकदम ख़ामोश बैठी हुई थी।
उसके बगल में सफ़ेद शर्ट और गहरे नीले रंग की पैंट पहने एक लड़का बैठा हुआ था।
जिसका दूध सा गोरा चेहरा गुस्से से काला पड़ गया था, ख़ूनी रंग में रंगी आँखें लगातार उस अग्नि कुंड को घूर रही थीं।
जिसमें क्रोध, विवशता, बेबसी, लाचारी, नाराज़गी, चिढ़ जैसे कई मिले-जुले भाव झलक रहे थे।
उसे देखकर साफ़ ज़ाहिर था कि वह इस शादी के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था, फिर भी जाने किस मजबूरी के तहत वह वहाँ बैठा हुआ था। और उस दुल्हन बनी बैठी लड़की को देखकर तो लग रहा था जैसे उसका बस शरीर ही यहाँ मौजूद था, वह ऐसे सुन्न बैठी हुई थी जैसे निष्प्राण देह, किसी यंत्र-चालित गुड़िया जैसे। वह सब रस्मों को ख़ामोशी से पूरी करती जा रही थी और वेदी के पास बैठे पंडित जी भी जल्दी-जल्दी मंत्र पढ़ रहे थे; शायद उन्हें भी यहाँ से जाने की जल्दी थी।
चारों तरफ़ तनाव का माहौल था।
वहाँ मौजूद हर शख़्स के चेहरे पर अजीब से भाव मौजूद थे।
कहीं डर, कहीं दुख, कहीं बेबसी, कहीं लाचारी, कहीं गुस्सा, कहीं इत्मीनान, कहीं सुकून, कहीं मुस्कान।
"कन्या की मांग में सिंदूर भरें।"
पंडित की सहमी हुई सी आवाज़ उस लड़के के कानों से टकराई। तो उसकी क्रोध से धधकती आँखें उनकी ओर घूम गईं। जिसे देखकर बेचारे पंडित जी घबरा गए और भय से ज़रा पीछे हट गए।
उस लड़के ने अब उनके हाथ में मौजूद थाली को देखा और सिंदूर को अपनी मुट्ठी में भर लिया।
यह देखकर सबकी आँखें फैल गईं।
इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, उस लड़के ने अपने बगल में बैठी लड़की का घूँघट एक झटके में उसके सर से हटा दिया और मुट्ठी भर सिंदूर उसके सर पर फेंक दिया।
उसने उसका माँगटीका तक हटाने की ज़हमत ना उठाई और सिंदूर उस लड़की के बाल, माथे और चेहरे पर बिखर गया; बिल्कुल वैसे जैसे लम्हें भर में उसकी ज़िंदगी और सपने बिखर गए थे।
वह अब भी एकदम ख़ामोश बैठी हुई थी, न चेहरे पर कोई भाव और न ही शरीर में कोई हलचल।
उसका पूरा चेहरा सिंदूरी रंग में रंग गया और पलकें झुक गईं।
अगले ही पल उस लड़के ने थाली में मौजूद मंगलसूत्र उठाया और उस लड़की के गले में पहनाते हुए वेदी से उठ खड़ा हुआ।
जाने कितनी जल्दी थी उसे कि उसने ठीक से उसे मंगलसूत्र तक नहीं पहनाया।
यहाँ लड़के ने मंडप से बाहर क़दम रखा और उस लड़की के गले में मौजूद मंगलसूत्र उसके गोद में गिर गया।
इसके साथ ही उन झुकी पलकों के नीचे से आँसुओं की कुछ बूँदें निकलीं और उसके गाल पर से फिसलते हुए उस मंगलसूत्र को भीगो गईं।
पर वह लड़का नहीं रुका।
गुस्से में फ़र्श को अपने पैरों तले रौंदते हुए वह आगे बढ़ता चला गया।
अचानक ही कुछ लोग उसके सामने आ गए।
पर उनकी परवाह न करते हुए उसने उन्हें धधकती आँखों से घूरा और वहाँ से तेज़ी से निकल गया।
पीछे मौजूद लोग परेशान से बस उसे देखते ही रह गए।
सबका ध्यान दूल्हे पर था, किसी ने भी यह नहीं देखा कि जो लड़की अब तक मंडप में बैठी हुई थी, अब वह भी वहाँ नहीं थी।
"रिद्धिम......आँ....."
एक औरत के चीखने की आवाज़ उस सन्नाटे में गूँजी, जिसने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। तब तक वह औरत आँगन के साइड में बनी सीढ़ियों की ओर दौड़ गई।
जहाँ उसका दुपट्टा पड़ा था जो कुछ देर पहले तक उस दुल्हन के सर पर सजा हुआ था।
बाकी सब भी बदहवास से उस ओर दौड़ गए।
To be continued…
रिद्धिम ने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर रखा था। "रिद्धिम… दरवाज़ा खोल, बेटा।" कालिंदी जी, रिद्धिमा की माँ और उस हवेली की बड़ी बहू, रोते हुए दरवाज़ा पीट रही थीं। "रिद्धि बेटा, अंदर बंद होकर क्या कर रही है तू? गुड़िया, अपनी माँ की बात सुन, दरवाज़ा खोल… देख मेरा मन बहुत घबरा रहा है, बेटा दरवाज़ा खोल दे… लाडो, कोई गलत कदम न उठाना। अगर तुझे कुछ हो गया तो तेरी माँ जीते जी मर जाएगी।"
उनकी बिगड़ती हालत देखकर एक लड़के ने उन्हें पीछे किया और खुद दरवाज़ा खटखटाने लगा। "रिद्धि, दरवाज़ा खोल, देख सब कितने परेशान हो गए हैं। तेरा जो भी गुस्सा, नाराज़गी है… मुझ पर निकाल ले, बस दरवाज़ा खोल दे।"
"रितेश, तू जा यहाँ से और बाकी सबको भी कह दे कि जाकर आराम करें। मेरी चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है उन्हें, नहीं मरूँगी मैं इतनी जल्दी। बस अभी मैं कुछ देर अकेले रहना चाहती हूँ… उम्मीद करती हूँ कि इस घर में मेरा, मुझ पर इतना हक़ तो होगा कि कुछ देर अकेले अपने साथ रह सकूँ। फिर तो चली ही जाऊँगी मैं यहाँ से।"
इस आवाज़ में अजीब सा गुस्सा, दर्द, नाराज़गी झलक रही थी। जिसने कईयों की आँखों को नम कर दिया था। कालिंदी जी अपने आँचल में अपना मुँह छुपाए सिसक-सिसक कर रो पड़ीं।
उन लोगों की भीड़ में सबसे पीछे खड़े जितेंद्र जी, जो अब तक चेहरे पर कठोर भाव लिए, खामोशी से सब देख रहे थे, उनकी आँखें क्रोध से भर गईं। सबको हटाते हुए वे सबसे आगे चले आए।
"ये सब आपके लाड़-प्यार का नतीजा है। आपने तो कभी इनके मामले में हमारी कोई बात सुनी नहीं। आपके कारण आज ये इतनी बदतमीज़ और ज़िद्दी हो गई है कि इनें न अपने माता-पिता की इज़्ज़त का ख्याल है, न खानदान के मान-सम्मान की परवाह है। घर मेहमानों से भरा है और ऐसी हरकतें कर रही है आपकी बेटी… कि कल को हम शर्मिंदगी से किसी के आगे सर नहीं उठा सकेंगे। कितनी इज़्ज़त करते हैं ये गाँव वाले हमारे, कल को अगर ये बातें हवेली से बाहर चली गईं तो क्या कहेंगे वो… कि मुखिया जी सारे गाँव को संभालने का दावा करते हैं पर उनसे उनकी अपनी बेटी और परिवार नहीं संभाला गया। हमारी सालों की बनाई इज़्ज़त, ये लड़की अपनी ज़िद से मिट्टी में मिलाने पर तुली है।"
कालिंदी जी सजल नेत्रों से बस उन्हें देखती ही रह गईं। उन आँखों में ढेरों शिकायतें झलक रही थीं। पर लब मौन थे। हर बात का दोषी उन्हें ठहराने के बाद, उन्होंने गुस्से में उस कमरे के दरवाज़े पर हाथ मारा और उनकी गुस्से से भरी बुलंद आवाज़ वहाँ गूंज उठी।
"रिद्धिमा, ये तमाशा बंद करो। अभी और इसी वक़्त दरवाज़ा खोलो। हमारे घर के मान-सम्मान और इज़्ज़त की तो आपको कभी परवाह रही ही नहीं, कम से कम उस खानदान के आगे हमें शर्मिंदा मत करो… जिनसे अभी-अभी तुम्हारा रिश्ता जुड़ा है।"
वे अभी गुस्से में शायद और भी बोलने वाले थे, पर उससे पहले ही उस भीड़ से एक औरत ने सामने आते हुए उन्हें रोक दिया।
"रहने दीजिये भाई साहब। गुस्से से बात नहीं बनेगी। उन्हें कुछ देर अकेले रहने दीजिये। बच्ची है… इतना सब अचानक हुआ है, सोचने-समझने और अपनाने के लिए उन्हें वक़्त की ज़रूरत होगी।"
"हाँ, जीतू, रहने दे। बच्ची है, गलती उसकी भी नहीं है। इस वक़्त हमें गुस्से से नहीं, शांति और धैर्य से काम लेना चाहिए। किसी भी लड़की के साथ अगर ऐसा होता तो वो ऐसा ही व्यवहार करती। हमें उन्हें कुछ देर अकेला छोड़ देना चाहिए। संभल जाएंगी तो खुद बाहर आ जाएंगी।"
उस औरत के साथ खड़े आदमी ने जितेंद्र जी के कंधे पर हाथ रखते हुए उन्हें शांत स्वर में समझाया। उनका चेहरा अब भी गुस्से से भरा था, पर अब उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा। इतने में अचानक ही रूम का दरवाज़ा खुल गया और सबका ध्यान उस ओर चला गया।
सामने रिद्धिमा खड़ी थी। शादी का लाल जोड़ा पहने, सोने के गहनों से लदी। सिंदूर अब भी उसके पूरे चेहरे पर बिखरा हुआ था, मंगलसूत्र को उसने अपनी मुट्ठी में बंधा हुआ था और सुरख रंग में रंगी आँखों से वो जितेंद्र जी को घूर रही थी। उसने आगे बढ़कर अपनी माँ को उठाया और जितेंद्र जी के ठीक सामने खड़ी हो गई।
"आज कह दिया, दोबारा कभी मेरी माँ को मेरे वजह से कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं है आपको। शिकायत आपको मुझसे है, परेशानी मुझसे है तो सामने से मुझसे बात कीजिये, क्योंकि अब मैं कोई छोटी बच्ची नहीं रह गई हूँ, जो किसी और के कहने पर चलूँगी। बड़ी हो गई मैं, इनकी भी नहीं सुनती, अपने मन की करती हूँ इसलिए जितना सुनाना है मुझे सुनाइये, मुझे दोष दीजिये।"
जिस तरह उसने उनकी निगाहों से निगाहें मिलाते हुए ये बातें कही थीं, उनके अहंकार पर गहरी चोट लगी थी और क्रोध से उनका चेहरा सख्त हो गया था।
रिद्धिमा ने अब अपनी माँ को देखा जो रो रही थी।
"आप क्यों रो रही है? आप जो चाहती थी वो तो कर दिया मैंने। कर ली मैंने शादी, फिर अब ये आँसू क्यों? जाइये, जाकर मेरी विदाई की तैयारी कीजिये।"
इसके बाद एक बार फिर उसने जितेंद्र जी की ओर अपनी निगाहें घुमाईं।
"पापा, आप इतने गुस्से में क्यों लग रहे हैं? अब तो मैंने आपकी बात मान ली… देखिये… न चाहते हुए भी दुल्हन बनकर आपके सामने खड़ी हूँ… खुश हो जाइये आप, शादी हो गई मेरी… मुबारक हो आपके सर का ये बोझ, आज आपके सर से उतर गया। अब आपको अपनी इस बदतमीज़, मुँहफ़ट और ज़िद्दी बेटी को और नहीं झेलना पड़ेगा। खैर, जिससे आप चाहते थे उससे नहीं हुई शादी, इसका दुःख तो होगा आपको… पर चिंता मत कीजिये, जिससे हुई है वो भी आपकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा। देखा न आपने कैसे मंडप में ही छोड़कर भाग गया मुझे… मेरी आगे की ज़िंदगी आपके आशीर्वाद से बहुत अच्छे से बीतेगी, जिसके लिए मैं हमेशा आपकी शुक्रगुज़ार रहूँगी। पिता होने का फ़र्ज़ बहुत अच्छे से निभाया है आपने। अपनी बेटी की शादी कर दी, उसके कन्यादान का पुण्य मिल गया आपको। अब मुझे इज़्ज़त से इस घर से विदा कर दीजिये और बचा लीजिये अपने घर-परिवार की इज़्ज़त, मान-सम्मान, झूठी प्रतिष्ठा… जो आपके लिए आपकी जीती-जागती बेटी से ज़्यादा ज़रूरी है। कर लीजिये अपने अहम को संतुष्ट।… मनाइये जश्न… अब रिद्धिमा नाम की मुसीबत आपकी ज़िंदगी और आपके घर से चली जाएगी… हमेशा-हमेशा के लिए।"
उसका कहा एक-एक शब्द जैसे जितेंद्र जी के मुँह पर करारा तमाचा सा पड़ा था। अपने मन का सारा गुस्सा, फ़्रस्ट्रेशन और भड़ास वो उन पर निकाल चुकी थी… या शायद और भी बहुत कुछ था, पर उसने अब खामोशी अख़्तियार कर ली। जितेंद्र जी गुस्से से तिलमिला उठे, पर इतने लोगों के बीच कुछ कह और कर न सके।
रिद्धिमा ने कालिंदी जी को रितेश के हवाले कर दिया। अब तक जिस चेहरे पर कठोर भाव मौजूद थे, अब कोमल भाव उभर आए थे।
"जाते-जाते एक चीज़ मांग रही हूँ तुमसे, विदाई के समय से पहले कोई मुझे डिस्टर्ब न करे… इतना तो कर सकते हो न मेरे लिए?"
रिद्धिमा ने जैसे विनती की थी जिसे रितेश ने सर झुकाकर स्वीकार किया था। दरवाज़ा वापिस बंद हो चुका था और बाकी सब मौन दर्शक बने बस देखते ही रह गए थे।
रिद्धिमा की विदाई हो चुकी थी। पर जैसे उसकी शादी निराली थी, वैसे ही विदाई भी अनोखी थी। उस घर से निकलते हुए उसने पलटकर दोबारा नहीं देखा था। किसी से नहीं मिली थी, आँखों से एक आँसू तक नहीं निकलने दिया था उसने, चेहरा भावहीन था। दिल में बेइंतेहा दर्द, नाराज़गी और गुस्से छुपाए वो चुपचाप उस घर से निकल गई थी… जहाँ उसका जन्म हुआ था, जहाँ उसका पूरा परिवार था।
रिश्तेदार तरह-तरह की बातें बनाते रहे, रिद्धिमा को ही भला-बुरा सुनाते रहे… पर उसने न तो किसी की बात पर ध्यान दिया और न ही पलटकर जवाब दिया। हाँ, उस हवेली की दहलीज़ पार करते हुए, उसने अपनी माँ के सूने आँचल को खील-बताशे से ज़रूर भर दिया था और अब एकदम गुमसुम उदास सी कार की पिछली सीट पर बैठी हुई थी। उसके बगल में वो औरत बैठी थी, जिन्होंने वहाँ भी उसका साथ दिया था।
वेशभूषा से संपन्न परिवार से लग रही थी। चेहरे पर सौम्यता और व्यवहार में ममता झलक रही थी। ये हैं नीलिमा ओबरॉय… जो अब रिश्ते में रिद्धिमा की सास थीं, पर वो उन्हें जानती तक नहीं थीं। आज पहली बार वो उनसे मिली थी और अपना सब कुछ पीछे छोड़कर उनके साथ जा रही थी।
नीलिमा जी ने अपना ममता भरा हाथ उसके सर पर फेरा तो रिद्धिमा की पलकें झपकीं और सुनी निगाहें उनकी ओर उठ गईं।
"बाहर आ जाओ बेटा, होटल आ गया है। यहाँ कुछ देर आप आराम करेंगी, फिर हम आपको आपके घर लेकर चलेंगे।"
उनकी बात सुनकर रिद्धिमा के लबों पर व्यंग्य भरी मुस्कान उभरी, जिसमें घुला था उसका दर्द। उसने सर हिलाया और उनके साथ कार से बाहर निकल गई। प्राइवेट लिफ्ट से वो लोग ऊपर आए। एक कमरे में नीलिमा जी रिद्धिमा को लेकर आईं तो बाकी दोनों आदमी दूसरे कमरे में चले गए।
"कैसी फूल सी बच्ची है, चाँद सा मुखड़ा है। कैसा निर्दयी था जो इस हीरे को ठुकराकर चला गया।"
नीलिमा जी ने प्यार से उसके गाल को छुआ। उसके चेहरे और बालों पर बिखरे सिंदूर को उन्होंने ठीक से साफ कर दिया था और उस दूध से सफ़ेद चेहरे पर बिखरी सुरखी उसकी खूबसूरती को निखार रही थी। इतना प्यारा और दिलकश चेहरा था उसका कि एक बार देखने पर किसी का भी दिल उस पर आ जाए।
रिद्धिमा ने उनकी बात सुनकर निगाहें उनकी ओर उठाईं और मुँह बनाते हुए बोली, "आपका ही बेटा था।"
"जानते हैं… पर अभी उन्हें एहसास नहीं कि किसे ठुकराया है उन्होंने? आपको देखा तक तो नहीं है उन्होंने। जब आपसे मिलेंगे, आपको देखेंगे, आपको जानेंगे, तब उन्हें एहसास होगा कि उन्होंने अपनी बेवकूफी, गुस्से और गुरुर में अपनी किस्मत को ठुकराया है और हम तब उनके कान पकड़वाकर आपसे माफ़ी मँगवाएँगे। हिम्मत कैसे हुई उनकी हमारी इतनी प्यारी बहू का दिल दुखाने की।"
उन्होंने जिस तरह से अपने बेटे के खिलाफ़ जाकर उसका साथ दिया, रिद्धिमा के लबों पर हल्की मुस्कान उभर आई।
"आंटी, आपने अपने बेटे की शादी मुझसे क्यों करवा दी, मैं तो उन्हें या आप सबको जानती तक नहीं।"
रिद्धिमा आँखें बड़ी-बड़ी करके उन्हें देखने लगी। उसका सवाल सुनकर नीलिमा जी सौम्यता से मुस्कुरा दीं।
"आप हमें नहीं जानती, पर हम आपको बहुत अच्छे से जानते हैं। डैडी से आपके बारे में बहुत सुना है। उनकी इच्छा थी श्रेयस की शादी आपसे हो, पर आपका रिश्ता कहीं और हो गया था, पर देखिये किस्मत ने कैसा खेल रचा? आप बहू बनकर हमारे घर आ गईं, डैडी की इच्छा पूरी हो गई। अब से आप हमारी बहू नहीं, बेटी हैं, आप भी हमें आंटी नहीं, मॉम कहियेगा। हमारे तीनों बच्चे हमें मॉम ही कहते हैं… चलिए अब आप कुछ देर आराम कर लीजिये, हम आपके डैड से कहकर आपके खाने के लिए कुछ मँगवाते हैं।"
उन्होंने प्यार से उसके गाल को सहलाया और कमरे से बाहर चली गईं।
"अब से आप हमारी बहू नहीं, बेटी हैं। आप भी हमें आंटी नहीं, मॉम कहिएगा। हमारे तीनों बच्चे हमें मॉम ही कहते हैं। चलिए, अब आप कुछ देर आराम कर लीजिए, हम आपके डैड से कहकर आपके खाने के लिए कुछ मँगवाते हैं।"
उन्होंने प्यार से उसके गाल को सहलाया और कमरे से बाहर चली गईं। उनके जाते ही रिद्धिमा के मुस्कुराते लब सिमट गए। उनके स्पर्श में उसने वह ममता, स्नेह महसूस किया था, जो उसकी अपनी माँ के स्पर्श में महसूस होता था। अब उन्हें याद करते हुए उसकी आँखें भीग गई थीं।
कमरे में वह अकेली ही थी। अचानक वहाँ गाने के बोल गूंज उठे-
"हमें तुमसे प्यार कितना ये हम नहीं जानते,
मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना।"
रिद्धिमा ने अपनी हथेली से अपने आँसू पोंछते हुए अपनी निगाहें घुमाईं। नज़र सामने टेबल पर रखे पर्स पर पड़ी। रिद्धिमा ने जाकर उसमें से अपना फ़ोन निकाला और स्क्रीन पर झलकते नाम को देखकर उसकी आँखें एक बार फिर भीग गईं। उसने अपनी भावनाओं को संयमित करते हुए कॉल रिसीव किया।
"हैलो।"
"हैलो रिद्धि, तू ठीक है ना?" दूसरे तरफ़ से किसी की बेचैनी भरी आवाज़ आई और रिद्धिमा के लबों पर हल्की मुस्कान उभर आई।
"मैं बिल्कुल ठीक हूँ, और मुझे क्या होना है? चिंता करनी है तो उस फ़ैमिली की कर, जिसमें अब मैं जाने वाली हूँ। उस लड़के की ख़ैर मना, जिसने मुझसे शादी करके, ख़ुद ही रिद्धिमा नाम की मुसीबत से रिश्ता जोड़कर, अपने ही हाथों अपनी ज़िंदगी तबाह करने का इंतज़ाम कर लिया है।"
इतने बिंदास तरीक़े से रिद्धिमा ने जवाब दिया कि फ़ोन के दूसरे तरफ़ मौजूद रितेश न चाहते हुए भी मुस्कुरा दिया।
"हाँ हाँ..... मैं जानता हूँ कि अब उस बेचारे की ज़िंदगी जहन्नुम बनने वाली है, इसलिए तो मुझे उस पर बड़ा तरस आ रहा है। भगवान् उसे तुझे झेलने की हिम्मत दे और उस परिवार पर भी अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखे, जहाँ यह चलता फिरता तूफ़ान और आफ़त की पुड़िया जाने वाली है।"
"देख, अब ज़्यादा हो रहा है तेरा।" रिद्धिमा अपनी बेइज़्ज़ती होते देखकर उस पर गुस्से से भड़की। पर अबकी बार रितेश मुस्कुरा न सका। उसकी आँखें भीग गईं।
"रिद्धि, तू चिंता मत करना, मैंने सब पता कर लिया है। दादू बता रहे थे कि बहुत अच्छे लोग हैं। लड़के के दादा-दादी उनके बचपन के दोस्त हैं। तू तो हमारे साथ रही है, इसलिए तू उन्हें नहीं जानती, पर तेरा पूरा परिवार उन्हें जानता है और वो लोग भी तुझे और इस फ़ैमिली को बहुत अच्छे से जानते हैं। मुंबई में ही रहते हैं, बहुत नाम है उनका। ओबेरॉय ख़ानदान के बारे में सुना है ना तूने? यही हैं दी ओबेरॉयज़......।"
"जिससे तेरी शादी हुई है वो उस फ़ैमिली का सबसे बड़ा बेटा है—श्रेयस ओबेरॉय। बिज़नेस में बहुत कम वक़्त में उसने बहुत नाम कमाया है और अपने फ़ैमिली बिज़नेस को नई ऊँचाइयों तक ले गया है। उसकी पर्सनल लाइफ़ के बारे में भी मैं जल्दी ही पता करवा लूँगा।"
"तू घबराना मत, अपना ख़्याल रखना। कोई भी प्रॉब्लम हो तो मुझे बताना। ये लोग वैसे तो तेरा बहुत अच्छे से ख़्याल रखेंगे। फिर भी अगर कुछ हो तो मैं हूँ तेरे साथ। तू बिल्कुल परेशान मत होना, मुंबई आते ही मैं और पापा आएंगे तुमसे मिलने।"
रितेश की बातों में रिद्धिमा के लिए उसका प्यार और परवाह झलक रही थी। जिसे महसूस करते हुए पल भर को रिद्धिमा भी भावुक हो गई, पर जल्दी ही उसने ख़ुद को संभाला और भौंह उठाते हुए शरारती अंदाज़ में बोली-
"ओहहो, आज तो तुझे बड़ी चिंता हो रही है मेरी, कहीं तेरे अंदर का बड़ा भाई तो नहीं जाग गया आज?"
"बकवास मत कर रिद्धु, मैं बहुत सीरियस हूँ।"
"ना हो ना, कहीं ICU में एडमिट हो गया तो मैं देखने भी नहीं आ सकूँगी तुझे।"
रिद्धिमा ने मज़ाकिया अंदाज़ में उसे छेड़ा, जिससे रितेश खीझ उठा।
"रिद्धिमा....."
रितेश ने गुस्से से उसे पुकारा और रिद्धिमा तुरंत ही शरारत छोड़कर लाइन पर आ गई।
"अच्छा... अच्छा... नहीं करती और मज़ाक... पर तू चिंता मत कर। मैं बिल्कुल ठीक हूँ, अपना ख़्याल रखूँगी मैं। तू बस माँ का ध्यान रखना, कहीं मेरे जाने की ख़ुशी में रो रोकर अपनी तबियत ना बिगाड़ ले वो, और मामू का भी ध्यान रखना। मैं आते हुए उनसे मिली भी नहीं, नाराज़ होंगे वो मुझसे।"
"नाराज़ तो इसके लिए मैं भी बहुत हूँ तुझसे। बाकी सब से नाराज़ थी, पर कम से कम मुझसे, पापा और बुआ से तो मिलकर जाती।"
"सॉरी ना, तब मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था, तू जानता है गुस्से में मैं ऐसी ही उल्टी-सीधी हरकत करती हूँ और तब मैं कमज़ोर नहीं पड़ना चाहती थी, इसलिए किसी से भी नहीं मिली।"
"हाँ, पता है मुझे, तू बिल्कुल पागल है।... चल अब बुआ और पापा से भी बात कर ले, दोनों बहुत परेशान हैं तेरे लिए।"
रिद्धिमा कुछ कहती, उससे पहले ही रितेश ने फ़ोन कालिंदी जी को पकड़ा दिया।
"रिद्धु बेटा, आप ठीक हैं?"
अपनी माँ की भारी और गमगीन आवाज़ सुनकर रिद्धिमा भी भावुक हो गई। जानती थी, उनसे बिना मिले चली आई थी तो बहुत दुख हुआ होगा उन्हें।
"सॉरी माँ, मैं आपसे बिना मिले ही वहाँ से चली गई, पर मैं आपकी फ़ीलिंग्स को हर्ट नहीं करना चाहती थी। बस तब मैं किसी से भी नहीं मिलना चाहती थी, रोना नहीं चाहती थी मैं, और अगर आपके पास जाती तो कमज़ोर पड़ जाती, इसलिए मैं आपसे बिना मिले ही चली आई, पर आप दुखी मत होना। मैं ठीक हूँ, खुश हूँ और मैं अपना ख़्याल रखूँगी।"
"आप मेरी चिंता में परेशान मत होना। मैंने सिर्फ़ आपके लिए यह शादी की है, तो अपना ख़्याल रखना। मैं फ़ोन पर बात करती रहूँगी आपसे।"
"बेटा, हम अपना ख़्याल रखेंगे, आप भी अपना ध्यान रखना। आपकी ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है। अगर बच्चा दुखी होता है तो उसका दुख उसकी माँ भी महसूस करती है। हम बस इतना कहना चाहते थे कि भले ही शादी ख़राब हालातों में हुई है, पर वह परिवार बहुत अच्छा है, आप उन्हें और इस रिश्ते को दिल से अपनाकर इसे निभाने की कोशिश कीजिएगा। आप वहाँ खुश रहेंगी तो यहाँ आपकी माँ भी सुकून से रहेगी।"
कालिंदी जी की यह बात सुनकर, रिद्धिमा के चेहरे पर कुछ अजीब से भाव उभरे, जिसे छुपाते हुए वह फीका सा मुस्कुरा दी।
"हम्म...... मैं कोशिश करूँगी कि किसी को शिकायत का मौक़ा न दूँ और कोई मेरी माँ और मामू के दिए संस्कारों पर सवाल ना उठा सके।......"
इसके बाद पल भर ठहरते हुए उसने आगे कहा, "माँ, मामू से बात करवा दो।"
उसके कहने की देर थी कि कालिंदी जी ने उसे ढेरों आशीर्वाद देते हुए फ़ोन उसके मामू किशोर जी को दे दिया।
"कैसा है मेरा बेटा, अपने मामू से नाराज़ तो नहीं?" मामू जी की करुणा भरी प्यारी सी आवाज़ आई, जिसे सुनकर रिद्धिमा मुस्कुरा उठी।
"नहीं मामू, मैं जानती हूँ कि यह सब आपके कंट्रोल में नहीं था। भले ही मेरी ज़िंदगी में पिता का हर फ़र्ज़ आपने निभाया हो, पर मेरी ज़िंदगी की डोर तो मेरे पापा के ही हाथ में थी और मेरी शादी कहाँ, कब और किससे करवानी है, यह फ़ैसला भी वही ले सकते थे।"
"उन्होंने करवा दी मेरी शादी और मैं आ गई वहाँ से। शिकायत तो मैंने कभी उनसे भी नहीं की, फिर आपसे कैसे नाराज़ हो जाऊँगी? पर आप मुझसे ज़रूर नाराज़ होंगे, मैं आने से पहले आपसे मिली भी नहीं।"
रिद्धिमा के मुस्कुराते लब सिमट गए। आँखों में अजीब सी उदासी और सुनापन झलकने लगा। चेहरे पर मायूसी और दुख के भाव उभर आए। उसकी बातें सुनकर किशोर जी भी कुछ भावुक हो गए।
"नहीं बेटे, हम आपसे नाराज़ नहीं। हमें तो आपकी चिंता है, बस आप अपना ख़्याल रखिए, खुश रहिए। यही चाहते हैं हम और आप ख़ुद को अकेला मत समझिएगा, मुंबई आएंगे तो हम आपसे मिलने भी आएंगे। ठीक बेटा....."
"जी मामू, मैं इंतज़ार करूँगी आपका। आप भी अपना ख़्याल रखिएगा। मैं बाद में बात करूँगी आपसे।"
ढेरों समझाइशों और आशीर्वाद के बाद उन्होंने फ़ोन रख दिया। रिद्धिमा की आँखें एक बार फिर से नम हो गईं। एक तो अपने परिवार और घर से दूर जाने का दुख, सब कुछ छूटने की तकलीफ़, उस पर अपनों का दिल दुखाने वाला व्यवहार, एक अनचाहे शादी...वो भी ऐसे। दुख था कि कम होने में ही नहीं आ रहा था।
रिद्धिमा सर झुकाए आँसू बहा रही थी, जब एक ममता भरा हाथ उसके सर पर ठहरा। रिद्धिमा ने तुरंत ही अपने आँसुओं को पोंछ लिया।
"रो लीजिए बेटा। अपना घर परिवार छूटने का दुख समझते हैं हम। रोकर अपना मन हल्का कर लीजिए, पर यह सोचकर घबराएँ मत कि आप एक अनजान जगह अनजान लोगों के बीच जा रही हैं। जैसे वह आपका घर था, वहाँ रहने वाले लोग आपका परिवार थे..... वैसे ही जहाँ आपको हम लेकर जाने वाले हैं, वह भी आपका अपना घर होगा। दिल से अगर अपनाएँगी तो वह परिवार भी आपको अपना लगने लगेगा।"
"हाँ, अभी श्रेयस की ओर से शायद आपको वह प्यार, लगाव और अपनेपन का एहसास न मिले, जो एक पत्नी अपने पति से चाहती है। पर अगर आप अपनी ओर से कोशिश करेंगी, उन्हें थोड़ा वक़्त देंगी तो हमें पूरा विश्वास है कि वह भी आपको निराश नहीं करेंगे। आपको इतना प्यार देंगे कि इस शादी को लेकर आपको जितनी नाराज़गी और शिकायत है, सब मिट जाएगा और उस दिन आपको एहसास होगा कि आपके अपनों ने आपके लिए गलत फ़ैसला नहीं लिया था। वह दुश्मन नहीं हैं आपके, बुरा नहीं चाहते वो। अभी आप ये बातें नहीं समझ पाएँगी, पर भविष्य में आपको एहसास होगा कि आपके बड़ों ने जो किया, आपकी भलाई के लिए ही किया था।"
रिद्धिमा पलटकर कुछ कह न सकी। शायद उसका दिमाग इस वक़्त कुछ भी सोचने-समझने की स्थिति में नहीं था। ज़हन थक गया था और नाराज़गी इस क़दर उसके दिलों-दिमाग़ पर हावी थी कि वह और कुछ समझना ही नहीं चाह रही थी। शायद वक़्त की ज़रूरत थी उसे। इसलिए निलिमा जी ने भी आगे कुछ नहीं कहा। प्यार से उसे कुछ बातें समझाईं, सर पर स्नेह भरा हाथ फेरा और उसके माथे को चूम लिया।
कुछ देर में खाना आ गया और उसके साथ ही वह दोनों आदमी भी वहाँ आ गए जिन्हें रिद्धिमा नहीं जानती थी, पर कुछ-कुछ अंदाज़ा था उसे कि वह दोनों कौन हैं और उसका उनसे क्या रिश्ता है?
"बेटा, हम अखिलेश ओबेरॉय हैं, आपके दादू के बचपन के दोस्त।"
"और हम हैं इनके बेटे और आपके ससुर, संकल्प ओबेरॉय।"
दोनों ने अपना संक्षिप्त परिचय दिया तो रिद्धिमा ने आदर सहित झुककर दोनों के पैर छू लिए। उन्होंने भी खुले मन से उसके सर पर हाथ रखकर उसे ढेरों आशीर्वाद दे डाले। स्थिति थोड़ी अजीब थी, लोग अनजान थे, पर अब जो था उसे अपनाकर आगे बढ़ने के अलावा, उसके पास और कोई रास्ता नहीं था।
"बेटा, हम जानते हैं आपके लिए सब कुछ बहुत अचानक हुआ, आपको सब समझने में और अपनाने में वक़्त लगेगा। हम सब आपके साथ हैं, हमें अब अपना ही परिवार समझिए। किसी बात की ज़्यादा चिंता-फ़िक्र मत कीजिए, ख़ुद पर किसी बात का दबाव भी मत डालिए। आपको अपनी बेटी बनाकर ले जा रहे हैं तो बेटी के हक़ से हमारे साथ रहिए और बस कोशिश कीजिए इन नए रिश्तों और इस नए परिवार को अपनाने की।"
"आपके ससुर बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। हमारी तो दिली इच्छा थी कि हमारे श्रेय की शादी आपसे हो, हालाँकि शादी उस तरह से नहीं हुई जैसा ख़्वाहिश हमें थी, फिर भी हम तो अपने यार की पोती को अपने घर की बहू बनाकर बहुत प्रसन्न हैं। इस परिवार में खुले दिल से आपका स्वागत किया जाएगा, हम सब आपके अपने हैं और श्रेय अभी नाराज़ है, कुछ वक़्त में उसका गुस्सा भी उतर जाएगा। तब तक डटकर उसका सामना कीजिएगा आप। आपके इन दादू का पूरा सपोर्ट मिलेगा आपको।"
"वो क्या है ना, हमारा पोता गलती से थोड़ा हम पर ही चला गया है तो गुस्से में ज़रा तेज़ है, भाई-बहनों में सबसे बड़ा है तो थोड़ा ज़िद्दी भी है, पर हमें पूरा भरोसा है कि आप उसे संभाल भी लेंगी और सुधार भी देंगी। आपके बारे में जितना सुना है, उससे हमें तो पूरा विश्वास हो गया है कि श्रेय के लिए आपसे बेहतर जीवनसाथी और कोई हो ही नहीं सकता था। बस अब आप हमें निराश मत कीजिएगा।"
रिद्धिमा चाहकर भी यहाँ कुछ न कह सकी, बस आँखों की पुतलियाँ फैलाए हैरान-परेशान सी उन्हें देखते हुए मन ही मन सोचने लगी-
"बड़े अजीब दादा हैं ये। ख़ुद अपने पोते की बुराई कर रहे हैं, मुझे उसे सुधारने कह रहे हैं, जबकि मुझे जानते तक नहीं हैं और मैं ख़ुद उसे कहाँ जानती हूँ? देखा तक तो नहीं था मैंने उसे और नाम तक नहीं जानती थी।"
रिद्धिमा अलग ही उलझन में उलझी थी। यूँ ही कुछ बातों के बीच सबने नाश्ता किया। उसने रात भर के जागने के बाद सब आराम करने लगे। निलिमा जी और रिद्धिमा दोनों की ही नींद नहीं आ रही थी। रिद्धिमा उनकी गोद में सर रखकर लेटी हुई थी और वह उसे अपनी फ़ैमिली और श्रेयस के बारे में कुछ-कुछ बातें बता रही थीं।
(श्रेणी जारी रहेगी...)
कहानी के तीन पार्ट आ गए हैं। इसके आधार पर बताइए कि रिद्धिमा का किरदार आपको कैसा लग रहा है? किस तरह की लड़की है वह?
लगभग 11 बजे उन्होंने होटल से चेक आउट किया। प्राइवेट जेट से दो घंटे में मुंबई पहुँच गए। रिद्धिमा के लिए यह एक बिल्कुल नया अनुभव था। थोड़ा रोमांचक भी था और आगे की सोचकर कुछ घबराहट भी हो रही थी। खैर, दोपहर तक वे ओबेरॉय मेंशन पहुँच चुके थे। कार उस बड़े से काले गेट से अंदर दाखिल हुई तो रिद्धिमा ने एक बार नज़रें घुमाकर आस-पास देखा। कार पोर्च में आकर रुकी जिसके एक तरफ उस बड़े से सफेद संगमरमर के बने महल जैसे मेंशन में जाने के लिए गेट था, और दूसरी तरफ खूबसूरत सा फाउंटेन। वह भी सफेद संगमरमर का बना हुआ था। दूर तक फैला गार्डन जिसमें बैठने का इंतज़ाम हो रखा था।
कार रुकी तो गार्ड ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला और बारी-बारी करके चारों लोग कार से नीचे उतर गए।
"बेटा, यह है आपका घर।" दादा जी ने प्यार से रिद्धिमा के सर पर हाथ फेरा और अनायास ही उसे अपने दादू की याद आ गई। उसने बस सर हिला दिया। गार्ड सामान लेकर अंदर चले गए। दोनों आदमी भी उनके साथ ही चल पड़े और निलिमा जी रिद्धिमा के साथ आने लगीं।
"ले आए आप हमारी बहू को?" दादू और संकल्प जी ने अभी दहलीज़ पार भी नहीं की थी कि एक उत्सुकता भरी हल्की कमज़ोर आवाज़ ने उनका ध्यान अपनी ओर खींचा। इसके साथ ही एक 70 के आसपास की वृद्ध महिला उनके सामने आकर खड़ी हो गई। शरीर थोड़ा कमज़ोर था पर व्यक्तित्व प्रभावशाली था उनका; बुढ़ापे में भी चेहरे पर नूर बिखरा हुआ था और रेशमी साड़ी में बड़ी प्यारी लग रही थीं वे।
यह हैं अहिल्या जी…… श्रेयस की दादी और हमारे प्यारे दादू की जीवनसंगिनी, उनकी जीवन ऊर्जा।
"ले आए भाग्यवान, आपकी बहू को ले आए हैं।"
"तो दिखाइए न, हम कब से इंतज़ार कर रहे हैं अपनी बहू को देखने का। देखे तो सही कैसी बहू लाए हैं आप।"
दादी तो कुछ ज़्यादा ही उत्सुक और उतावली लग रही थीं। सुबह से इंतज़ार में बैठी थीं, शायद इसलिए अब उनसे ज़रा भी सब्र नहीं किया जा रहा था। दादू कुछ कहते उससे पहले ही रिद्धिमा के साथ निलिमा जी वहाँ पहुँच गईं और दादी की बेताबी देखकर मुस्कुराए बिना न रह सकीं।
"माँ, यह रही आपकी बहू, अच्छे से देख लीजिए और बताइए आपको आपकी पोतबहू पसंद आई कि नहीं?"
दादी की नज़र अब निलिमा जी के साथ खड़ी रिद्धिमा पर गई और वे मंत्रमुग्ध सी उसे देखती ही रह गईं। बाकी सब उनके जवाब के इंतज़ार में खड़े थे और रिद्धिमा अब कुछ नर्वस होने लगी थी। उसे कुछ समझ नहीं आया तो उसने झुककर उनके पैर छू लिए।
"सौभाग्यवती भवः…… सदा सुहागन रहो…… दूधो नहाओ, पुत्रो फलौ……" दादी ने खुशी-खुशी में जाने उसे और कितने ही आशीर्वाद दे दिए थे, जिन्हें सुनकर रिद्धिमा कुछ असहज सी हो गई। अचानक से ज़िंदगी में आया यह बदलाव एक्सेप्ट करना इतना भी आसान नहीं था। वह भी रिद्धिमा जैसी मॉडर्न, खुले विचारों वाली, आत्मनिर्भर, बोल्ड लड़की के लिए, जो शादी के नाम से भी दूर भागती थी।
अचकचाते हुए वह उठकर वापस खड़ी हो गई। दादी ने उसकी बंगड़ियाँ लेते हुए उसकी नज़र उतारी, फिर उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में भरते हुए उसके माथे को प्यार व स्नेह से चूम लिया।
"बड़ी सुंदर, सुशील और संस्कारी बहू लाए हैं आप। पहले तो हम बहुत नाराज़ थे कि हमारे बिना ही हमारे पोते की शादी करवा दी, हमारे सारे अरमान अधूरे ही रह गए पर बहू को देखकर हमारी सारी शिकायत दूर हो गई।"
बाकी सब जहाँ उनकी बात सुनकर मुस्कुरा उठे, वहीं बेचारी रिद्धिमा तो मुस्कुरा तक न सकी। इतने में दादी को जैसे कुछ ख्याल आया और उनकी व्याकुल निगाहें आस-पास भटकने लगीं।
"श्रेय कहाँ है, बहू के साथ नहीं आया क्या?"
दादी की यह बात सुनकर सबके मुस्कुराते लब सिमट गए और वे परेशान से एक-दूसरे की शक्लें देखने लगे। उन तीनों के विचलित चेहरों को देखकर दादी का मन शंका से भर गया।
"आप तीनों इतने परेशान क्यों हो गए और जवाब क्यों नहीं दे रहे हमारे सवाल का?…… श्रेय आप सबके साथ गया था न, बहू के साथ उसकी भी आरती उतारी जाएगी पर वह तो हमें कहीं नज़र ही नहीं आ रहे, कहाँ है वह?…….."
अब दादी भी कुछ परेशान हो गईं। जहाँ निलिमा जी और संकल्प जी परेशान से एक-दूसरे को देखने लगे, वहीं गुस्से से दादा जी की मूँछें तन गईं।
"आपका लाडला पोता, शादी पूरी होते ही मंडप से उठकर भाग गया। न बच्ची को ठीक से मंगलसूत्र पहनाया, न ही सिंदूर भरा। आप उस वक़्त उन्हें देखतीं तो खींचकर थप्पड़ लगातीं। अपना गुस्सा…… और शादी से अपना विरोध जताते हुए जल्दबाज़ी में आधी-अधूरी शादी करके भाग गया और उसके बाद से गायब है, फ़ोन बंद है, होटल से सामान गायब था। अब तो भगवान ही जाने कि कहाँ है।"
दादा जी का जवाब सुनकर दादी कुछ चिंतित नज़र आने लगीं, जबकि कूल डूड दादा जी श्रेयस से खासे नाराज़ और गुस्सा लग रहे थे। आखिर उसकी शादी वाली हरकतें उन्हें पसंद जो नहीं आई थीं।
दादी कुछ पल गहरी चिंता में लीन रहीं, फिर सर झटकते हुए बोलीं-
"कोई बात नहीं। श्रेय नहीं है तो क्या हुआ, घर की लक्ष्मी पहली बार घर में प्रवेश कर रही है तो उनका स्वागत तो करना ही होगा।"
"बिल्कुल माँ, बहू का स्वागत भी करना होगा, भगवान से आशीर्वाद भी दिलाना होगा।" निलिमा जी ने उनकी बात पर सहमति जताई और रिद्धिमा को वहीं रुकने को कहकर खुद सर्वेंट को आवाज़ लगाते हुए अंदर चली आईं।
कुछ ही मिनट बाद आरती उतारकर और गृह प्रवेश की रस्मों को पूरा करवाते हुए रिद्धिमा का बड़ी ही खुशदिली और गर्मजोशी से ओबेरॉय मेंशन में स्वागत किया गया। मंदिर में जाकर उसने माथा टेककर भगवान का आशीर्वाद भी लिया।
सब लिविंग रूम में आकर अभी चैन से बैठे ही थे कि आँधी-तूफ़ान जैसे दो लोग तेज़ी से दौड़ते हुए अंदर आए और लिविंग रूम में उन सबके सामने आकर रुके।
"ओफ़्फ़ो…… इतनी जल्दी-जल्दी करके भी हमें आने में देर हो गई, भाभी का गृह प्रवेश मिस हो गया……."
"और उनका अच्छे से वेलकम भी नहीं कर सके।"
दोनों की साँसें भी अभी स्थिर नहीं हुई थीं, दौड़कर आए थे, सो हाँफ रहे थे पर फिर भी अफ़सोस ज़ाहिर करने से पीछे नहीं रहे थे। रिद्धिमा तो आँखें बड़ी-बड़ी किए हैरान-परेशान सी उन दोनों को देख रही थी।
"मॉम, आप थोड़ी देर हमारा इंतज़ार नहीं कर सकती थीं?" साँसें सामान्य हुईं तो लड़के ने निलिमा जी पर नाराज़गी ज़ाहिर कर दी। लड़की भी उस शिकायत में शामिल हो गई।
"मॉम, डैड…… यह आप दोनों ने बहुत नाइंसाफी की है हमारे साथ। एक तो पहले हमें कुछ बताया नहीं, हमें अपने साथ भी नहीं लेकर गए, वहाँ हमारे बिना ही चुपके से भैया की शादी करवा दी, हमें भाभी को लेकर घर आने की खबर भी देर से दी और अब हमारा इंतज़ार किए बिना ही भाभी को अंदर भी ले आए…… भैया की शादी के लिए कितनी प्लानिंग कर रखी थी हमने, कितने स्पेशल तरीके सोचे थे भाभी के वेलकम के लिए…… पर आप सबने हमें कुछ करने का मौका ही नहीं दिया…… That's not fair।"
उस क्यूट सी दिखने वाली लड़की ने बारी-बारी निलिमा और संकल्प जी को देखा और बच्चों जैसे नाराज़गी से पैर पटकने लगी। रिद्धिमा को अब कुछ-कुछ माजरा समझ आने लगा था पर अब भी उसे ताज्जुब ही हो रहा था उन दोनों को देखकर।
"आप दोनों की नाराज़गी अपनी जगह ठीक है बेटा पर शादी जल्दबाज़ी में करनी पड़ी तो आप लोगों को पहले से कैसे बताते?…… और कितने देर तक रिद्धिमा को दरवाज़े पर खड़ा रखते? घर की बहू चौखट पर खड़ी होकर इंतज़ार करे, अच्छा तो नहीं लगता। फिर तुम्हारे भैया भी कहाँ साथ में हैं?"
श्रेयस का ज़िक्र आते ही रिद्धिमा के चेहरे पर कुछ अजीब से भाव उभरे। उसकी सिंदूर को लगभग फेंकना और आधा-अधूरा मंगलसूत्र पहनाने के बाद मंडप से उठकर जाना याद आ गया और मन कड़वाहट से भर गया।…… मतलब…… सही है कि शादी से खुश नहीं था पर इतना गुरूर किस बात का? और उस पर किस बात का गुस्सा निकालकर गया था?
रिद्धिमा ने सोचते हुए अजीब सा मुँह बना लिया। जबकि श्रेयस के न होने की बात सुनकर वह लड़का और लड़की दोनों ही चौंक गए।
"भैया भाभी के साथ नहीं आए?" दोनों ने एक साथ ही हैरानी से सवाल किया जिस पर चारों बड़ों ने इंकार में सर हिला दिया। अब उस लड़की के क्यूट से चेहरे पर परेशानी के बादल छा गए, वहीं वह लड़का भी कुछ गंभीर हो गया।
"लगता है एंग्री बर्ड अपनी शादी से खुश नहीं है।"
इसके बाद उसने पल भर ठहरते हुए दिलकश मुस्कान लबों पर बिखेरते हुए निगाहें रिद्धिमा की ओर घुमाईं।
"क्या फ़र्क पड़ता है? नहीं है खुश तो हो जाएँगे। इतनी प्यारी और सुंदर बीवी से भला कोई इंसान कब तक मुँह फेर सकता है? कभी तो वह निर्मोही भी पत्नी नाम के मोह जाल में फँसेंगे ही…… क्यों डैड, ठीक कहा न मैंने?"
आँखों से ही उसने उन्हें कुछ इशारा किया था, जिसे समझते हुए उन्होंने एक नज़र निलिमा जी को देखा और मुस्कुरा दिए।
"इस मोह से दुनिया का कोई शादीशुदा मर्द नहीं बच सका।"
उनका जवाब सुनकर जहाँ निलिमा जी ने उन्हें नाराज़गी से घूरा था, वहीं वह लड़का शरारत से खिलखिलाकर हँस पड़ा। हल्की मुस्कान तो रिद्धिमा के लबों पर भी उभर आई थी।
"मम्मा, हमारा भाभी से इंट्रो तो करवा दे।" उस लड़की ने क्यूट सी शक्ल बनाकर निलिमा जी से गुज़ारिश की। जिस पर वे हल्के से मुस्कुरा दीं।
"रिद्धिमा बेटा, यह है हमारा छोटा बेटा और आपका देवर इवान और यह तो हमारी एकलौती बेटी और आपकी ननद मानवी।"
उन्होंने बारी-बारी दोनों का इंट्रो दिया। दोनों ने पहले तो उसके आगे हाथ जोड़े फिर एकाएक उसके पैर छूने को झुके; यह देखकर रिद्धिमा ने घबराकर अपने पैरों को ऊपर सोफ़े पर चढ़ा दिया। अगले ही पल वहाँ उन दोनों शैतानों की हँसी-ठहाकों की आवाज़ गूंज उठी।
रिद्धिमा आँखों की पुतलियाँ फैलाए अब भी उन्हें देखते हुए, यही समझने की कोशिश कर रही थी कि आखिर यहाँ हो क्या रहा है? पर बाकी चारों सब समझ गए थे। उन्हें यूँ हँसते देखकर दादी अपनी जगह से उठकर खड़ी हुईं और एक-एक हाथ से दोनों के कान पकड़कर ऐंठ दिया।
"बहुत शरारत सूझ रही है तुम दोनों को, बहू घर आई नहीं और उसे सताना पहले शुरू कर दिया तुम दोनों ने।"
लो भई, कान खिंचाई भी हो गई और साथ ही दादी से बढ़िया डाँट भी पड़ गए। दोनों दर्द से बिलबिला उठे।
"आह्ह दादी…… अब नहीं करेंगे ना…… दादी कान तो छोड़ो यार दर्द हो रहा है…… दादू अब क्या उखाड़कर ही मानोगी?…… दादी इतनी निर्दयी न बनो, मासूम बच्चों पर इतने अत्याचार करोगी तो भगवान कभी माफ़ नहीं करेंगे…… नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी दादी…… आह…… आह दादी कितनी ज़ोर की पकड़ रही हो…… दादी भाभी के साथ इतनी मस्ती करने का तो हक़ है हमारा…… अच्छा अब से नहीं करेंगे उन्हें परेशान, अब कान छोड़ भी दो……."
दोनों दर्द से छटपटाते हुए मुर्गा डांस कर रहे थे और दादी से कान छोड़ने की मिन्नतें भी कर रहे थे पर दादी आज उन्हें अच्छे से सबक सिखाने के मूड में थीं तो अच्छे से कान मरोड़ डाले। रिद्धिमा पहले तो हैरान-परेशान सी उन्हें देखती ही रह गई, फिर अचानक ही उन्हें देखकर उसकी हँसी छूट गई। उसकी खनकती हँसी की आवाज़ मधुर संगीत जैसे फ़िज़ाओं में घुल गई और सबकी निगाहें उसकी ओर घूम गईं। उसे यूँ खुलकर हँसते देखकर बाकियों के लब भी मुस्कुरा उठे।
दोपहर और शाम के बीच का समय था। एक काली, नई चमचमाती रेंज रोवर ओबेरॉय मेंशन में दाखिल हुई और अंदर वाले गेट के ठीक सामने आकर रुकी। कार के पोर्च में खड़े होने के साथ ही गार्ड ने आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया और अगले ही पल श्रेयस के कदम बाहर आ पड़े।
पूरे रुआब के साथ श्रेयस कार से बाहर निकला। सफ़ेद शर्ट, काला थ्री पीस सूट; उसका मॉडल जैसा फिगर साफ़ झलक रहा था। उसने हाथ घुमाते हुए अपने बिखरे बालों को सँवारा, अपनी आँखों पर चढ़े शेड्स को उतारकर बड़े ही स्टाइल के साथ अपनी ब्लेज़र के पॉकेट में लगाया।
उसकी हेज़ल रंग की पुतलियाँ चारों तरफ घूमीं। हल्दी रंग की दाढ़ी के पीछे छुपे पत्थर जैसे सख्त, कठोर और भावहीन चेहरे पर कुछ अजीब से भाव उभरे। उसकी दमदार पर्सनैलिटी और रौबदार व्यक्तित्व किसी को भी अपना तलबगार बना सकता था; यूँ ही नहीं लड़कियाँ दीवानी बन उसके आगे पीछे घूमती थीं। कुछ तो कमाल था उसमें कि निगाहें सीधे दिल में उतर जाती थीं।
श्रेयस ने कार की चाबी उछाली और अंदर की ओर बढ़ गया, जबकि गार्ड चाबी पकड़ने के बाद कार लेकर गैराज की ओर चला गया। गेट से अंदर कदम रखते ही श्रेयस की नज़रें सामने ड्राइंग रूम में बैठे अपने परिवार पर पड़ीं और उसकी आँखों में अजीब सा गुस्सा और नाराज़गी उभर आई। उसने उन पर से निगाहें फेर लीं, जैसे उन्हें जानता तक नहीं और लंबे-लंबे क़दम भरते हुए सीढ़ियों की ओर बढ़ा ही था कि दादी की मायूसी भरी कमज़ोर आवाज़ उसके कानों तक पहुँची और उसके आगे बढ़ते क़दम ठिठक गए।
"अपनी दादी से भी नाराज़ हो कि अब हमसे बिना मिले ही मुँह फेरकर जा रहे हो?"
पल भर के लिए श्रेयस के चेहरे के कठोर भाव कुछ कोमल हुए। उसने अपने कदमों की दिशा मोड़ी और जाकर दादी के पैर छू लिए। दादी ने उसके सर पर हाथ रखकर ढेरों आशीर्वाद दिए।
"अब तक कहाँ थे बेटा?"
"काम से कहीं गया था दादी, बाद में बात करता हूँ आपसे, अभी फ्रेश होकर वापिस निकलना है।"
भावहीन चेहरे के साथ उसने जवाब दिया और आगे के उनके सवालों से बचने के लिए, उन्हें मौका न देते हुए तेज़ी से वहाँ से निकल गया। पीछे बैठे लोग परेशान से एक-दूसरे की शक्लें देखने लगे। श्रेयस के आते ही वहाँ मौत सा सन्नाटा छा गया था। शायद यह तूफान के आने से पहले की शांति थी और अब सब अपने दिल को थामे टकटकी लगाए श्रेयस को ही देख रहे थे, जो तेज़ी से दूसरे फ्लोर पर बने अपने कमरे की ओर बढ़ रहा था।
"मॉम अब क्या होगा?....भाभी तो ब्रो के रूम में है। अगर ब्रो से उनका आमना-सामना हो गया तो ब्रो तो गुस्से में जाने क्या करेंगे उनके साथ, वो कैसे सामना करेंगी ब्रो के भयंकर गुस्से का?"
इवान ने रिद्धिमा की चिंता जताई। अपने भाई के गुस्से से बहुत अच्छे से वाकिफ़ था वह, इसलिए शायद डर रहा था। मानवी को भी श्रेयस का कठोर चेहरा देखकर घबराहट होने लगी।
"मॉम मुझे तो भाभी के लिए बहुत डर लग रहा है। गुस्से में तो भैया कुछ भी नहीं देखते, किसी की नहीं सुनते। उस वक़्त उन्हें काबू करना नामुमकिन होता है। हम तो बचपन से उनके साथ रहकर भी उनके गुस्से को नहीं झेल पाते, फिर हमारी स्वीट सी भाभी कैसे हैंडल करेंगी?"
"चिंता तो हमें भी है उनकी, पर यही उनकी असली परीक्षा है। शादी तो उनकी श्रेय से हो गई है। अब उन्हें यह साबित करना होगा कि वो सच में श्रेयस की वाइफ और इस घर की बहू बनने के लायक है। अगर आज उन्होंने श्रेय को बिना किसी की मदद के संभाल लिया तो उनके साथ आराम से ज़िंदगी बिता लेंगी और अगर वो इसमें चूक गई तो उन्हें थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी खुद को श्रेय के काबिल बनाने में।"
"बात तो ठीक कह रही है पर अभी तो बच्ची घर आई ही है। सब समझने के लिए उसे थोड़ा वक़्त तो लगेगा, उसके बाद ही संभालना सीख पाएंगी।"
"आप लोग हमारी बेटी की चिंता करने के बजाय अपने बेटे की चिंता कीजिए क्योंकि हमें अपनी पसंद पर पूरा विश्वास है। रिद्धिमा हर तरह से श्रेयस के काबिल है, यह अच्छे से जाँच-परखने के बाद ही हमने श्रेय से उनकी शादी करवाई है। उनसे ज़्यादा अच्छे से श्रेय और उसके गुस्से को कोई हैंडल नहीं कर सकता और कुछ देर में यह साबित भी हो जाएगा।"
दादा जी का विश्वास देखकर सब उनकी ओर देखने लगे, पर वह तो कुछ सोचते हुए रहस्यमयी अंदाज़ में मुस्कुरा रहे थे।
रिद्धिमा, जिसे कुछ देर पहले ही मानवी श्रेयस के रूम में छोड़कर गई थी, उसने अब तक पूरा रूम देख लिया था। उस फ्लोर पर दो ही रूम थे, जिसमें कोने में बना यह सबसे बड़ा रूम था। इसका इंटीरियर कमाल का था। कलर कॉम्बिनेशन काफी आकर्षक था, सहूलियत के हिसाब से हर चीज़ यहाँ मौजूद थी। रूम को महंगी इम्पोर्टेड चीज़ों और पेंटिंग्स से बड़ी ही खूबसूरती से सजाया गया था। हर चीज़ नई-सी चमक रही थी और अपनी जगह पर व्यवस्थित थी।
होटल के वीआईपी रूम जैसा था यहाँ सब कुछ। एक किंग साइज़ बेड, बेड के सामने काँच का खूबसूरत सा टेबल, रूम की बड़ी-सी खिड़की के पास लगा सोफ़ा, बुक शेल्फ़, स्टडी एरिया, स्लाइडिंग ग्लास वॉल जिसके दूसरी तरफ़ पूल एरिया था। बेड के सामने की दीवार पर बड़ी-सी एलसीडी लगी थी। बड़ा सा, साफ़-सुथरा चमचमाता बाथरूम, वॉक-इन क्लोजेट जहाँ श्रेयस का सामान करीने से अलमारियों और दराजों में सजा था।
सब कुछ अच्छे से देखने-परखने के बाद रिद्धिमा को अपने अनचाहे पति के ठाठ-बाट का अंदाज़ा तो हो गया था और अब वह अपना बैग खोलने ही जा रही थी कि रूम का दरवाज़ा एकाएक खुल गया। आवाज़ ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा और वह झटके से दरवाज़े की ओर मुड़ गई। इस दौरान उसके हाथों में मौजूद चूड़ियों और पैरों में मौजूद पायलों ने मधुर धुन छेड़ी, जिसकी कोमल आवाज़ उस कमरे में बिखरते हुए श्रेयस के कानों तक पहुँची और उसकी नज़र आवाज़ की दिशा में घूम गई।
रिद्धिमा की नज़र गेट के पास खड़े श्रेयस पर पड़ी और लम्हे भर में उसने उसे सर से पैर तक निहारा। पहचानती तो नहीं थी, पर कमरे में लगी फ़ोटोज़ और जिस तरह वह रूम में घुसा, समझ गई थी कि यही उसका अनवांटेड हस्बैंड है। सोचते हुए रिद्धिमा का मन अजीब सा हो गया।
दूसरे तरफ़, श्रेयस की नज़र जब रिद्धिमा पर पड़ी तो अपने सामने सुर्ख जोड़े में खड़ी इस हसीन दुल्हन के दिलकश चेहरे पर पल भर के लिए उसकी निगाहें ठहर गईं। उसकी काजल आईलाइनर से सजी बड़ी-बड़ी नरगिज़ी आँखें सम्मोहित करने लगी थीं उसे। देखा तो उसने भी नहीं था अपनी जबरदस्ती की पत्नी को, पर इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं थी कि उसके सामने खड़ी यह लड़की उसकी अनवांटेड वाइफ है। यह ख़्याल मन में आते ही श्रेयस का मन गुस्से और कड़वाहट से भर गया। उसने आव देखा न ताव और गुस्से से भड़के ज्वालामुखी की तरह रिद्धिमा पर फट पड़ा।
"क्या कर रही हो तुम यहाँ?.....किसने आने दिया तुम्हें यहाँ?.....हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी मेरे रूम में कदम रखने की?"
अचानक श्रेयस के यूँ चिल्लाने पर नीचे मौजूद सभी लोग घबरा गए, जबकि रिद्धिमा एकदम शांत खड़ी अजीब निगाहों से उसे घूरने लगी थी।
"ये आँखें फाड़-फाड़कर घूर क्या रही हो मुझे? सुनाई नहीं दे रहा या बहरी हो?"
रिद्धिमा अब भी खामोश रही, जिससे श्रेयस का खून खौल उठा। बुरी तरह खीझते हुए वह गुस्से से उसकी ओर बढ़ा और उसकी बाँह को अपनी सख्त हथेली में दबोचते हुए धधकती निगाहों से उसे घूरने लगा।
"मुझे बार-बार अपनी बात दोहराने की आदत नहीं है इसलिए एक बार में कान खोलकर मेरी बात सुनकर उसे अच्छे से अपने दिलो-दिमाग़ में बैठा लो कि तुम इस घर में तो आ गई हो पर मेरी ज़िंदगी और रूम में मैं कभी तुम्हें घुसने नहीं दूँगा।…… मैं तुम जैसी गाँव की अनपढ़ गँवार लड़की को कभी अपनी वाइफ नहीं मानूँगा। तुम्हारी शादी तो हो गई मुझसे पर यह याद रखना कि यह शादी मेरी मर्ज़ी नहीं…मजबूरी थी।…… जबरदस्ती मुझे इस अनचाहे बंधन में बंधने के लिए मजबूर किया गया और यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है तो तुम्हें इसकी सज़ा भी ज़रूर मिलेगी।……बस कुछ दिन ऐश कर लो, उसके बाद मैं तुम्हें अपने घर और अपनी ज़िंदगी से धक्के मारकर बाहर निकालूँगा।"
श्रेयस ने गुस्से में जबड़े भींचे और अपना सारा गुस्सा उस पर निकालने के बाद उसे खुद से दूर धकेल दिया। रिद्धिमा के कदम लड़खड़ाए, पर जल्दी ही उसने खुद को संभाल लिया। नज़र अपनी बाँह पर डाली, जहाँ श्रेयस की हथेली और उंगलियों के निशान छप चुके थे। एकाएक उसकी आँखों में आग उतर आई।
"ओह मिस्टर एरोगेंट एनाकोंडा……मैं कुछ बोल नहीं रही तो मुझे कमज़ोर और बेचारी अबला नारी समझने की भूल न कर लेना।……मैंने ज़रा शराफ़त क्या दिखाई तुम तो वायलेंस पर उतर आए……बहुत बोल लिया तुमने, अब ज़रा मेरी बात सुनो और अपने दिलो-दिमाग़ में अच्छे से बिठा लो कि मैं भी कोई तुमसे शादी करने के लिए मरी नहीं जा रही थी।……मुझे तो मालूम ही नहीं था कि मेरी शादी तुम जैसे अकड़ू, बदतमीज़ और घमंडी आदमी से हो रही है। अगर मालूम होता तो मैं खुद यह शादी नहीं करती……पर तुम तो सब जानते थे फिर भी तुमने मुझसे शादी की तो अपना यह जो गुस्सा और अकड़ तुम मुझे दिखा रहे हो न, उसे मुझ पर नहीं खुद पर उतारो……क्योंकि तुम अपनी मर्ज़ी से इस अनचाहे बंधन में बंधे हो जबकि मुझे धोखे में रखकर यह शादी करवाई गई है।
और यह जो तुम बकवास कर रहे हो न कि कभी मुझे अपनी वाइफ़ नहीं मानोगे तो कान खोलकर सुन लो कि तुम क्या……मैं तुम जैसे एरोगेंट और घमंडी आदमी को कभी अपना पति नहीं मानूँगी क्योंकि तुम इस लायक नहीं कि मैं तुमसे कोई भी रिश्ता जोड़ूँ।
तुम मुझे घर से निकालने की धमकी दे रहे हो……तो मिस्टर श्रेयस ओबेरॉय ध्यान रहे कि शादी चाहे जैसे हुई हो पर अब वाइफ़ हूँ मैं तुम्हारी।……तुम पर, तुम्हारे घर पर, तुम्हारे परिवार पर और तुम्हारी हर चीज़ पर मेरा भी उतना ही हक़ है जितना तुम्हारा और अगर मैं चाहूँ तो जबरदस्ती अपना हक़ तुमसे छीन भी सकती हूँ पर मुझे तुम में या तुम्हारी किसी चीज़ में कोई दिलचस्पी नहीं है और न ही मैं इस घर में रहने के लिए उतावली हूँ।
तुम क्या मुझे अपनी ज़िंदगी और घर से निकालोगे? मैं खुद बहुत जल्द तुम्हें और तुम्हारे घर को छोड़कर चली जाऊँगी……ठोकर मारती हूँ मैं ऐसे रिश्ते को, जहाँ मेरे आत्मसम्मान को चोट पहुँचाई जाए।……तुम्हारे लिए यह शादी बोझ है और मेरे लिए मेरे पैरों की बेड़ियाँ, जिसे बहुत जल्दी मैं अपने पैरों से निकालकर फेंक दूँगी और तुमसे, तुम्हारे घर, तुम्हारे परिवार से इतनी दूर चली जाऊँगी कि कोई चाहकर भी मुझ तक नहीं पहुँच पाएगा।"
गुस्से में भड़की रिद्धिमा चंडी का रूप धारण कर चुकी थी। उसने श्रेयस को आड़े हाथों लिया था, उसके गुस्से और अकड़ को अपनी सेल्फ़ रिस्पेक्ट तले रौंदकर रख दिया था, ईंट का जवाब पत्थर से दिया था। गुस्से में इतना चिल्लाने के कारण उसकी साँसें तेज़ चलने लगी थीं और दूध सा गोरा चेहरा सुर्ख रंग में रंग गया था, कान और नाक टमाटर जैसे लाल हो गए थे और आँखें श्रेयस को यूँ घूर रही थीं जैसे अभी उसे कच्चा ही निगल जाएंगी।
पल भर ठहरते हुए रिद्धिमा ने सख्त लहज़े में आगे कहा,
"और एक बात……आज छू लिया, दोबारा कभी हाथ लगाने की कोशिश भी की तो हाथ तोड़कर मुँह में दे दूँगी……समझ गए? बेहतर समझ गए।"
पूरे एटीट्यूड के साथ उसने श्रेयस को झाड़ दिया था। फिर अपनी बाँह को दूसरी हथेली से सहलाते हुए तिरछी निगाहों से उसे घूरा और अपना लहंगा संभालते हुए पूल साइड चली गई। श्रेयस बस देखता ही रह गया। ज़िंदगी में पहली बार किसी लड़की ने इस तरह उससे बात की थी। क्या तीखे तेवर थे उसके और क्या जानलेवा अंदाज़! उसी के जैसे गुस्से की तेज़ थी……और शब्द तो ऐसे कि किसी का सीना चीर जाएँ। बिलकुल उसके टक्कर की थी वह और यही बात अब श्रेयस से बर्दाश्त नहीं हो रही थी।
रिद्धिमा का यह गुस्से भरा तेवर, बात करने का अंदाज़, उस पर चिल्लाना, श्रेयस को नागवार गुज़रा। उसका चेहरा गुस्से से जल उठा। वह दनदनाते हुए पूल साइड आ गया, पर कुछ क़दम चलकर उसके क़दम ठिठक गए। रिद्धिमा भारी-भरकम शादी का जोड़ा और सब गहने पहने पूल में उतर चुकी थी। वह लगातार नीचे जाती जा रही थी, पर तैरने की या ऊपर आने की कोशिश नहीं कर रही थी। यह देखकर पल भर के लिए श्रेयस शॉक्ड रह गया। अगले ही पल वह तेज़ी से उसकी ओर दौड़ा।
रिद्धिमा ने पानी में अपना शरीर ढीला छोड़ दिया था, पूरी तरह से पानी में समा गई थी। यह देखकर श्रेयस घबरा गया। उसने बिना कुछ सोचे-समझे अपना फोन और वॉलेट रखा और तुरंत पूल में छलांग लगा दी। कुछ सेकंड में ही वह रिद्धिमा के पास पहुँच गया और उसकी कमर पर अपनी बाँह लपेटते हुए उसे अपने पास खींच लिया। रिद्धिमा लगातार छूटने के लिए छटपटा रही थी, पर श्रेयस की पकड़ बहुत सख्त थी। वह उसे अपने साथ किनारे तक ले आया।
रिद्धिमा की मर्ज़ी के खिलाफ उसने उसे पूल से उठाकर बाहर किया और खुद भी ऊपर आ गया। रिद्धिमा पूल के पास फर्श पर बैठी थी। श्रेयस उसकी ओर पीठ किए खड़ा था। उसका चेहरा गुस्से से लाल था, आँखें खतरनाक अंदाज़ में सिकुड़ी हुई थीं, साँसें तेज़ चल रही थीं और दिल ज़ोरों से धड़क रहा था।
श्रेयस ने अपने माथे पर बिखरे गीले बालों को उंगलियों से ऊपर किया, गहरी साँस ली और रिद्धिमा की ओर मुड़ते हुए गुस्से से चीखा,
"पागल हो तुम! दिमाग विमान है या ऊपर का माला बिल्कुल ही खाली पड़ा है? मरने का बहुत शौक चढ़ा है तुम्हें? बेवकूफी की भी कोई हद होती है। जब तैरना नहीं आता तो अंदर क्यों गई? अब जवाब क्यों नहीं देती? अंदर तो बहुत ज़ुबान चल रही थी। अब मुँह क्यों नहीं खोलती? बोलती क्यों नहीं कि जब तैरना नहीं आता था तो पूल में क्यों उतरी?"
गुस्से से पागल श्रेयस उस पर चिल्ला रहा था और उसकी चुप्पी उसके गुस्से को और बढ़ा रही थी। रिद्धिमा, जो सर झुकाए बैठी थी, अब उसने सर उठाया और तीखी निगाहों से श्रेयस को घूरने लगी।
"तुमसे मतलब..." रिद्धिमा के तेवर देखकर श्रेयस का खून खौल उठा। रिद्धिमा अपने भीगे लहंगे को संभालते हुए किसी तरह उठकर खड़ी हुई और मुँह ऐंठते हुए जाने को पलटी ही थी कि गुस्से से भड़के श्रेयस ने उसकी बाँह पकड़कर उसे अपने करीब कर लिया और दांत पीसते हुए बोला,
"हाँ, है मतलब! क्योंकि यह मेरे रूम से अटैच पूल है। अगर यहाँ कुछ होता है तो उसका इल्ज़ाम मेरे सर आएगा और तुम्हारे वजह से मैं और किसी मुश्किल में नहीं पड़ना चाहता। इसलिए मतलब है... तो अब चुपचाप मेरे सवाल का जवाब दो कि जब तैरना नहीं आता तो पूल में उतरी ही क्यों? वो भी इतना भारी-भरकम लहंगा पहनकर। अगर डूब जाती तो क्या होता, अंदाज़ा भी है तुम्हें?"
एक बार फिर उसके बाँह पकड़ने से दर्द की एक लहर उसके चेहरे को छूकर गुज़र गई, पर वह कमज़ोर नहीं थी। श्रेयस के सामने डटकर खड़ी हो गई और उसकी निगाहों से निगाहें मिलाते हुए उसी के अंदाज़ में जवाब दिया,
"बिल्कुल है। अगर डूब जाती तो मर जाती और तुम्हें बड़ी ही आसानी से मुझसे और इस अनचाहे बंधन के बोझ से छुटकारा मिल जाता। इस हिसाब से तो तुम्हें खुश होना चाहिए था, फिर तुम इतने परेशान क्यों लग रहे हो? अच्छा-खासा मौका था तुम्हारे पास, क्यों बचाया मुझे? मर जाने देते..."
रिद्धिमा ने एक भौंह उठाते हुए सवाल किया। यह सुनकर श्रेयस खीझ उठा।
"बकवास बंद करो अपनी और चुपचाप बताओ कि क्या सोचकर पूल में उतरी?"
"कुछ नहीं सोचा। बस मुझे गुस्सा आ रहा था, पानी दिखा तो छलांग लगा दी... ताकि गुस्सा कुछ शांत हो जाए।"
रिद्धिमा ने अबकी बार चेहरा फेरते हुए अजीब सा मुँह बनाया। बेपरवाही भरे अंदाज़ में दिए इस जवाब को सुनकर श्रेयस बुरी तरह से चौंक गया।
"What...?"
"इसमें इतना हैरान होने वाली कौन सी बात है? ठंडे पानी से दिमाग की गर्मी उतरती है, गुस्सा शांत होता है... क्या इतना भी नहीं पता तुम्हें?"
रिद्धिमा ने बेफिक्री भरे अंदाज़ में कहा, फिर आँखें बड़ी-बड़ी करके कुछ इस तरह उसे देखा, जैसे उसका मज़ाक उड़ा रही हो।
श्रेयस जो अब तक हैरान-परेशान सा उसे देख रहा था, उसके चेहरे के भाव कुछ बिगड़ गए।
"पता तो बहुत कुछ है, पर कोई इतना बड़ा बेवकूफ भी हो सकता है, यह नहीं पता था... पर अब देख लिया... खैर, गाँव की गँवार से और उम्मीद ही क्या की जा सकती है?"
श्रेयस ने हिकारत भरी नज़रों से उसे देखते हुए अजीब सा मुँह बनाया, फिर उसकी बाँह छोड़ते हुए दो कदम पीछे हट गया।
"तुम्हारी ज़िंदगी है... जो करना है करो, बस इतना याद रखना कि मुझसे और मेरी चीजों से दूर रहना और मेरे सामने निगाहें झुकाकर नीची आवाज़ में बात करना।"
रिद्धिमा, जो पहले से गुस्से भरी निगाहों से उसे घूर रही थी, अब तो हत्ते से ही उखड़ गई और सीना ताने कमर पर हाथ रखे, उसके सामने खड़ी हो गई।
"क्यों? तुम क्या कहे हो राष्ट्रपति लगे हो? किसी मुग़ल रियासत के बादशाह हो? सुल्तान-ए-हिंद हो? या मेरे मालिक हो जो मैं तुम्हारे सामने निगाहें झुकाकर, धीमी आवाज़ में बात करूँ?"
रिद्धिमा भारद्वाज थी, वह अच्छे-अच्छे को नाकों चने चबाने के लिए मशहूर थी। इतना भी आसान नहीं था उससे पार पाना। श्रेयस ने अपनी मुट्ठी कस ली। जबकि रिद्धिमा खुद में बड़बड़ाते हुए वहाँ से जाने लगी।
"बड़ा आया मुझ पर रौब जमाने वाला... मुझे गाँव की गँवार कह रहा है, तेरा तो मैं वो हाल करूँगी कि तेरी सात पुश्तें भी याद रखेंगी कि तूने रिद्धिमा भारद्वाज से पंगे लेने की जुर्रत करी थी... कैसे ऑर्डर दे रहा था मुझे कि मेरे सामने नज़रें झुकाकर धीमी आवाज़ में बात करना... अबे जा... तुझ जैसे अकड़ू से बात करने से अच्छा मैं ज़हर खाकर मर ही ना जाऊँ... और धीमी आवाज़ में बात करे मेरी सैंडल! मैं तो गला फाड़कर चिल्लाऊँगी, जो उखाड़ना है उखाड़ ले।
मैंने अपने आगे कभी अपने बाप की नहीं चलने दी... और इन जनाब को देखो, मुझ पर हुकुम चलाने की कोशिश कर रहे हैं। अभी तक असली रिद्धिमा से सामना नहीं हुआ तुम्हारा, तभी इतना उछल रहे हो। तुम्हारे गुरूर को तो अगर मैंने अपने कदमों तले रौंदकर तुम्हें अच्छे से सबक नहीं सिखाया तो मेरा नाम भी रिद्धिमा भारद्वाज नहीं।"
रिद्धिमा फुंफकारते हुए वहाँ से चली गई और पीछे खड़ा श्रेयस शॉक सा खड़ा ही रह गया।
वह कमरे में पहुँचा, तब तक रिद्धिमा बाथरूम में जा चुकी थी। श्रेयस की नज़र अब फर्श पर खुले पड़े उसके बैग, आस-पास बिखरे कपड़ों और कमरे में फैले पानी पर पड़ी। अपने साथ सुथरे कमरे का यह हाल देखकर श्रेयस की त्योरियाँ चढ़ गईं।
कुछ देर बाद रिद्धिमा कपड़े बदलकर अपने भीगे बालों को तौलिये में लपेटते हुए बाहर आई तो पैर पानी पर पड़ा और एकदम से उसकी चीख निकल गई।
"माआआ..."
श्रेयस जो गुस्से में बौखलाया हुआ सा यहाँ से वहाँ चहलकदमी कर रहा था, उसकी चीख सुनकर हड़बड़ाते हुए उसकी ओर दौड़ा... पर उसकी खराब किस्मत कि उसका पैर भी पानी पर पड़ गया, पैर फिसला और उसे बचाने की कोशिश में उसे थामे हुए ही फर्श पर जा गिरा। मुँह से हल्की चीख निकली और आँखें कसके भींचते हुए, उसने अपने जबड़ों को कस लिया।
रिद्धिमा जिसने गिरने के डर से अपनी आँखें भींच ली थीं, किसी के बदन से स्पर्श पर उसने अब डरते हुए धीरे से अपनी एक आँख खोली, सामने सफ़ेद रंग था। उसने हड़बड़ाते हुए अपनी दोनों आँखें खोलते हुए, सर उठाकर देखा तो नज़र श्रेयस के चेहरे पर पड़ी, जिस पर दर्द साफ़ झलक रहा था।
"ए मिस्टर एरोगेंट... ठीक हो? कहीं हड्डी-पसली तो नहीं टूट गई तुम्हारी? ज़िंदा तो हो ना? कहीं नर्क में प्रस्थान तो नहीं कर गए?"
रिद्धिमा की आवाज़ श्रेयस के कानों में पड़ी और उसकी उल्टी-सीधी बातें सुनकर उसने चौंकते हुए अपनी आँखें खोल दीं।
"What...?" श्रेयस ने अपनी बिल्ली जैसी आँखों से उसे हैरानी से देखा। रिद्धिमा जो उसे आँखें मूँदे पड़े देखकर ज़रा घबरा गई थी, अब उसने राहत की साँस अपने सिकुड़ते फेफड़ों में भरी।
"ओह, ज़िंदा हो... फिर ठीक है।"
श्रेयस अब और ज़्यादा हैरान हो गया और आँखें फाड़े अचरज से उसे देखने लगा। जबकि रिद्धिमा झट से उसके ऊपर से हटते हुए उठकर खड़ी हो गई। अपने भीगे बिखरे बालों को झटकते हुए एक बार फिर तौलिये में लपेटने लगी। उसके बालों से आज़ाद हुई बूँदें श्रेयस के चेहरे पर जाकर बिखर गईं और अनायास ही उसकी पलकें झुक गईं।
कुछ देर बाद उसने अपनी आँखें खोली तो नज़र रिद्धिमा पर पड़ी, जो अब जाने के लिए कदम बढ़ा चुकी थी। श्रेयस ने तुरंत ही उसे टोका।
"एये, तुम ऐसे कहाँ चली? मुझे कौन उठाएगा?"
रिद्धिमा के आगे बढ़ते कदम ये सुनकर ठहर गए। उसने बड़ी ही अदा से पलटकर उसे देखा और कुटिलता से मुस्कुरा दी।
"खुद उठो, गिरे भी तो खुद ही हो।"
"तुम्हें बचाने के चक्कर में गिरा हूँ मैं।" श्रेयस ने आँखें छोटी-छोटी करके नाराज़गी से उसे घूरा। रिद्धिमा के चेहरे के भाव अब कुछ बदल गए।
"अच्छा, ऐसा क्या...? तो चलो उठने में थोड़ी मदद कर देती हूँ... पर पहले politely हेल्प माँगो मुझसे..." आँखें मटकाते हुए वह खुद पर इतराने लगी। उसकी चालाकी देखकर श्रेयस खीझ उठा।
"Disgusting!"
"You!"
रिद्धिमा उसे देखकर मुस्कुराई और इठलाते हुए वहाँ से चल दी। श्रेयस कुछ पल उसे घूरता रहा, फिर खुद से किसी तरह उठकर खड़ा हो गया। रिद्धिमा ने अपना बैग बंद किया, गीले बालों को तौलिये से पोंछने के बाद ड्रायर से सुखाया, ना चाहते हुए भी हल्का सा सिंदूर अपनी मांग में भर लिया। इस दौरान ध्यान भले उसका अपने काम पर था, पर तिरछी नज़रों से वह दूसरी तरफ खड़े श्रेयस को भी देख रही थी, जिसको शायद ज्यादा लग गया था, चेहरे पर दर्द झलक रहा था और अपने हाथ से वह अपने बैक को दबा रहा था।
रिद्धिमा ने अपने बाल सुखा लिए और श्रेयस को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ करते हुए कमरे से बाहर जाने लगी कि श्रेयस ने एक बार फिर उसे टोका।
"हेय, कहाँ चली? यह सब जो गंदगी फैलाई है तुमने, इसे साफ कौन करेगा?"
रिद्धिमा उसकी ओर पलटी और तुनकते हुए बोली,
"इतना बड़ा महल जैसा घर है। दो-चार नौकर-चाकर भी होंगे ही, बुला लो किसी को... कहो शहंशाह का कमरा गंदा हो गया है, आकर सफ़ाई कर दें।"
"कोई और क्यों करेगा? जब गंदा तुमने किया है तो साफ़ भी तुम ही करोगी।"
"सपने में... वैसे अगर किसी और से करवाने में आपको इतनी ही परेशानी है तो खुद से कर लीजिए। दो हाथ और दो पैर तो आपके भी सही-सलामत ही हैं। वैसे भी अगर मेरे भीगे कपड़ों के वजह से आपका रूम गीला हुआ है तो आपके कपड़ों से भी अमृत तो नहीं टपक रहा है... और न ही जादुई पानी है, फर्श पर पड़ने से पहले ही सुख जाता है जो गंदगी सिर्फ़ मेरे वजह से हुई है।"
रिद्धिमा ने अकड़ते हुए कहा और मुँह बनाती हुई वहाँ से चली गई। श्रेयस खीझकर रह गया, खुद पर ही झल्ला उठा। रिद्धिमा अभी सीढ़ियों से उतर ही रही थी कि श्रेयस की गुस्से भरी रौबदार आवाज़ सुनकर एकदम से काँप उठी।
"श्यामा..."
रिद्धिमा ने चौंकते हुए आवाज़ की दिशा में देखा तो श्रेयस कॉरिडोर में रेलिंग के पास खड़ा था।
"ज... जी भैया..." एक सहमी हुई लड़की दौड़ते हुए किचन से लिविंग रूम में पहुँची।
"आकर मेरा रूम साफ़ करो।"
"जी भैया।" उस लड़की ने हड़बड़ाते हुए तुरंत ही हामी भर दी और जल्दी-जल्दी सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगी। रिद्धिमा जो खड़ी-खड़ी खामोशी से सब देख रही थी, श्रेयस ने तीखी निगाहों से उसे घूरा तो उसने बुरा सा मुँह बना लिया।
"अकड़ू कहीं का?"
भुनभुनाते हुए वह नीचे चली आई, जबकि श्रेयस अपने कपड़े लेकर बाथरूम में घुस गया।
भाभी, ये भाई साहब को अचानक क्या हो गया? इतने गुस्से में क्यों थे वो? गीले भी लग रहे थे और आपको घूर भी रहे थे। कुछ हुआ है क्या आप दोनों के बीच?
रिद्धिमा नीचे ही आई थी कि इवान उसके पास पहुँच गया और फुसफुसाते हुए बड़ी दिलचस्पी से उससे सवाल करने लगा। रिद्धिमा ने एक नज़र श्रेयस के कमरे की ओर देखा, फिर उससे हुई बहस याद करते हुए खीझते हुए अजीब सा मुँह बना लिया।
"आपके भाई साहब का दिमाग खराब है, आते ही ज्वालामुखी जैसे मुझ पर फट पड़े, तो मैंने भी उन्हें अच्छे से सुना दिया... बस उसी पर भड़के हुए हैं।"
"भाभी, आपने भैया को सुनाया और उन्होंने आपको बिना कुछ कहे नीचे आने दिया?" मानवी फटी आँखों से उसे देखने लगी, जैसे उसने कोई असंभव बात कह दी हो। रिद्धिमा ने नासमझी से उसे देखा और लापरवाही से कंधे उचका दिए।
"हाँ तो... और क्या करते?"
इवान और मानवी हैरान-परेशान से सर घुमाकर एक-दूसरे को देखने लगे। तभी दादा जी की प्रसन्नता भरी आवाज़ ने उन तीनों का ध्यान अपनी ओर खींचा।
"हमने तो पहले ही कहा था कि हमारे गुस्सैल और अड़कू पोते को हमारी बहु ही सीधा कर सकती है। देख लीजिये... आते ही इन्होंने श्रेय को अपने काबू में करना भी शुरू कर दिया है।"
दादा जी खुश थे, बाकी सब भी मुस्कुरा रहे थे, पर रिद्धिमा को इन सब बातों में ज़्यादा कुछ दिलचस्पी नहीं थी। उसे तो बस भूख लगी थी और खाने से मतलब था, पर यहाँ बेचारी यह कह भी नहीं सकती थी।
कुछ देर बाद सब खाने बैठे, पर श्रेयस नहीं आया। वह फ्रेश होकर सीधे घर से निकल गया। रिद्धिमा खाने के बाद कुछ देर उनके साथ रही, फिर नीलिमा जी के कहने पर अपने कमरे में चली गई।
रात के करीब बारह बजे श्रेयस घर लौटा था। रिद्धिमा शाम को ही सो गई थी, तो अब आराम से बेड पर टाँगें फैलाए बैठी फ़ोन चला रही थी। बाकी सब खा-पीकर सो चुके थे, बस नीलिमा जी जागकर श्रेयस के आने की राह देख रही थीं।
श्रेयस लिविंग रूम में पहुँचा तो नज़र सोफ़े पर बैठी नीलिमा जी पर पड़ी। पल भर को उसके कदम ठहरे, फिर नाराज़गी सर पर हावी होने लगी और वह उनको नज़रअंदाज़ करते हुए आगे बढ़ने लगा।
"श्रेय, रुको, हमें कुछ बताना है आपसे।"
"पर मुझे अब आप लोगों से कोई बात नहीं करनी। वैसे भी मेरी शादी ही करवानी थी ना आपको, तो करवा ली। अब मुझे मेरे हाल पर अकेला छोड़ दीजिये।"
उसके शब्दों में नाराज़गी के साथ हल्की लड़खड़ाहट भी थी। शायद ड्रिंक कर रखी थी उसने। उसने पलटकर उन्हें देखा तक नहीं था, पर नीलिमा जी अब उसके पास आ चुकी थीं।
"श्रेय, इतनी नाराज़गी क्यों बेटा? हम दुश्मन तो नहीं हैं आपके... माँ-बाप हैं आपके, अगर आपकी ज़िंदगी से जुड़ा कोई फैसला हमने लिया है तो आपकी भलाई के लिए ही लिया होगा... और रिद्धिमा अच्छी लड़की है बेटा, आप उन्हें और इस रिश्ते को एक मौका तो देकर देखिये।"
माँ थी वो और उसे प्यार से समझाने की कोशिश कर रही थी। पर उनकी बातें सुनकर श्रेयस का चेहरा नाराज़गी से भर गया। आँखों में हल्की लाली उभर आई।
"आप जानती थी मॉम कि मैं किसी और को पसंद करता हूँ, फिर भी आपने सब होने दिया... और अब आप चाहती हैं कि मैं अपनी मोहब्बत को भुलाकर, आपकी पसंद को अपना लूँ... अपने सालों पुराने रिश्ते को तोड़कर, इस जबरदस्ती की अनचाहे शादी को एक्सेप्ट कर लूँ... ये कहते हुए आपने एक बार भी मेरे बारे में नहीं सोचा कि मेरे दिल पर क्या गुज़रेगी?
माँ तो अपने बच्चे को देखकर उसके दिल का हाल जान जाती है, फिर आपको मेरी तकलीफ नज़र क्यों नहीं आ रही? क्यों आप लोगों को ये एहसास नहीं कि आप सबने अपनी ज़िद में मेरे साथ कितना गलत किया है? ...
खैर, अब कुछ भी कहने का कोई फ़ायदा नहीं। आपको उस लड़की से मेरी शादी करवानी थी, सो आपने करवा ली। मैंने तभी साफ़-साफ़ शब्दों में कह दिया था कि वो लड़की आपकी बहु ज़रूर बनेगी, पर मैं कभी उसे अपनी वाइफ़ के रूप में एक्सेप्ट नहीं करूँगा, तो अब मुझसे ऐसी कोई उम्मीद भी मत रखिये।"
श्रेयस ने दृढ़ स्वर में अपना फैसला सुनाया और वहाँ से जाने के लिए कदम बढ़ाया ही था कि नीलिमा जी की ममता भरी कोमल, मायूसी भरी आवाज़ उसके कानों से टकराई।
"बेटा, खाना तो खा लो।"
"भूख नहीं है मुझे।" इतना कहकर वह वहाँ से चला गया, जबकि नीलिमा जी परेशान सी उसे देखती ही रह गईं।
श्रेयस ने एक झटके में अपने कमरे का दरवाज़ा खोल दिया, तो रिद्धिमा चौंकते हुए आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी। नीलिमा जी की बातों के कारण वह पहले ही डिस्टर्ब था, जैसे ही नज़र बेड पर बैठी रिद्धिमा पर पड़ी, कठोर चेहरे पर गुस्से के भाव उभर आए।
"मना किया था मैंने तुम्हें यहाँ आने से... एक बार में तुम्हें बात समझ नहीं आती?... ये मेरा रूम है, मुझे बिल्कुल पसंद नहीं कि मेरी इज़ाज़त के बिना कोई यहाँ कदम भी रखे... अभी और इसी वक़्त यहाँ से निकलो और दोबारा गलती से भी यहाँ नज़र मत आना मुझे।"
आते ही वह उस पर भड़क उठा था। रिद्धिमा जो पहले हैरान थी, उसके यूँ चीखने से बुरी तरह चिढ़ गई।
"दिमाग खराब है क्या तुम्हारा?... चिल्लाने की बीमारी है?... मूड क्या हमेशा ऐसे ही सड़ा रहता है?...
और किस बात का गुस्सा निकाल रहे हो मुझ पर?... क्या मतलब है कि मैं इस कमरे से निकल जाऊँ?... मैं यहाँ से कहीं नहीं जाने वाली, यहीं रहूँगी मैं... और तुम्हें मैं ये पहली और आख़िरी बार प्यार से समझा रही हूँ। मैं न तुम्हारा ये गुस्सा और अड़क बर्दाश्त नहीं करूँगी।
मैं जानती हूँ कि तुम इस रिश्ते से खुश नहीं हो, मैं भी नहीं हूँ, पर मैं तो ऐसे बिहेव नहीं कर रही।... तुम चाहो या न चाहो, पर शादी तो तुम्हारी मुझसे हो गई है, जिसे न मैं झुठला सकती हूँ और न तुम। तुम कितना ही नकारने की कोशिश करो, पर अब ये सच नहीं बदलने वाला कि मैं तुम्हारी वाइफ़ हूँ... तुम जितना चाहे गुस्सा करो, पर रहूँगी मैं यहीं। अगर तुम चाहते हो कि जब तक मैं यहाँ हूँ तुम्हारी ज़िंदगी आराम और सुकून से कटे, तो मुझसे ज़रा तमीज़ से पेश आना... याद रहे, बीवी हूँ तुम्हारी, इस सब की आधी हकदार... इसलिए तुम मुझे यहाँ से नहीं निकाल सकते और न मैं यहाँ से कहीं जाने वाली हूँ, तो चिल्ला-चिल्लाकर अपना गला और मेरे दिमाग के साथ बाकी की नींद ख़राब करने से अच्छा है कि शांति से मेरे साथ समझौता कर लो, खुद भी आराम से रहो और मुझे भी चैन से रहने दो।"
पहले तो रिद्धिमा ने सुर बिगड़े हुए थे और वह कुछ गुस्सा लग रही थी, पर धीरे-धीरे गंभीर हो गई। बार-बार की बहस से बचने के लिए उसने एक बार शांति से बात करना ही ठीक समझा। श्रेयस कुछ पल खामोशी से उसे घूरता रहा, फिर वॉक इन क्लोज़ेट की ओर चला गया। जब कपड़े बदलकर फ्रेश होकर बाहर आया तो रिद्धिमा बेड के एक कोने में ब्लैंकेट को खुद पर लपेटे गहरी नींद में सो रही थी... कम से कम देखने में तो ऐसा ही लग रहा था।
श्रेयस ने बेबसी से सर हिलाया और ड्रेसिंग टेबल की ओर बढ़ने लगा। रिद्धिमा के शरीर में ज़रा हलचल हुई। उसने हौले से सर घुमाकर कनखियों से उसे देखा, शायद कुछ कहना चाहती थी, पर फिर वह वापिस उसकी ओर से मुँह फेरकर लेट गई और मन ही मन कहने लगी-
"रहने दे रिद्धि, उस खड़ूस को कुछ भी कहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अभी शांति से तो बैठा है, पता चले तेरी आवाज़ सुनते ही भड़क उठे और इतनी रात वो फिर से चिल्लाना शुरू कर दे... फिर से तेरी उससे बहस हो जाएगी और कहीं उसने तुझे सच में रूम से बाहर निकाल दिया, तब क्या करेगी तू?... अभी अच्छी खासी बिस्तर पर लेटी है, फिर इतनी रात गए इस महल जैसे घर में भूतनी बनकर मंडराती फिरेगी और सारी अच्छाई का फितूर उतर जाएगा तेरे सर से।"
रिद्धिमा ने खुद को ही समझाया और आँखें मूँदकर लेट गई। अभी वह सो भी नहीं पाई थी कि श्रेयस की कड़क आवाज़ उसके कानों से टकराई-
"बहुत कर लिया सोने का नाटक, अब चुपचाप मेरा बेड छोड़ो और जाकर काउच पर सोओ।"
रिद्धिमा जो सोने का नाटक कर रही थी, यह सुनते ही झटके से उठकर बैठ गई और तुनकते हुए बोली-
"मैं क्यों सोऊँगी काउच पर? मैं पहले यहाँ लेटी थी, तो अब मैं यहाँ सोऊँगी और तुम अब इस बात पर बहस तो करना मत कि ये तुम्हारा रूम है, तुम्हारा बेड है... क्योंकि अब तुम्हारी हर चीज़ पर मेरा भी बराबर अधिकार है। इसलिए मेरी मानो तो हर बात पर मुझसे बहस करने और लड़ने से अच्छा है कि शांति का समझौता कर लो। थोड़ा एडजस्ट ही करना है... जैसे ये इतना बड़ा बेड है। मैं एक तरफ़ सो रही हूँ, तुम दूसरी तरफ़ सो जाओ... चिंता मत करो, मुझे तुममें कोई दिलचस्पी नहीं है, तो तुम मेरे साथ बिल्कुल सेफ़ हो और मैं तो तुम्हें पसंद ही नहीं, तो तुम भी मेरे साथ कुछ नहीं करोगे, तो मैं भी सुरक्षित हूँ।"
रिद्धिमा शुरू हुई तो एक साँस में सब बोलती ही चली गई। श्रेयस पहले तो तीखी निगाहों से उसे घूरता रहा, फिर उसने टाइम देखा और दो पिलो लेकर बेड के बीचों-बीच दीवार खड़ी कर दी।
"अपने बेड पर सोने दे रहा हूँ, पर इंसानों जैसे सोना। अगर इस लाइन को पार करके मेरे तरफ़ आई तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा तुम्हारे लिए। उठाकर सीधे इस घर से बाहर फेकूँगा और साथ में मुँह पर मारूँगा... डिवोर्स पेपर्स।"
श्रेयस की धमकी सुनकर रिद्धिमा ने मुँह ऐंठते हुए चेहरा घुमा लिया और वापिस लेट गई। श्रेयस ने गहरी साँस छोड़ी और दूसरा ब्लैंकेट लेकर अपनी तरफ़ लेट गया।
रिद्धिमा घोड़े बेचकर गहरी नींद सो रही थी। सुबह के आठ बजने को थे, पर उठने का उसका कोई इरादा नहीं था। रात को देर से सोने के कारण श्रेयस भी सो रहा था।
दरवाज़े पर लगातार दस्तक से दोनों की नींद टूटी। रिद्धिमा उनींदी सी उठी और आलस से अंगड़ाइयाँ लेते हुए गेट की ओर बढ़ी। उसने दरवाज़ा खोला तो सामने निलिमा जी खड़ी थीं, जो नहा धोकर तैयार थीं।
"रिद्धिमा बेटा, आप अब तक सो रही थी?" निलिमा जी ने हैरानी से पूछा। रिद्धिमा की हालत साफ़ बता रही थी कि वह सो रही थी। रिद्धिमा की आधी नींद उन्हे देखकर उड़ गई थी, बाकी की आधी नींद उनका सवाल सुनकर उड़ गई। उसने हड़बड़ाते हुए अपने बालों को संवारा और डरते हुए बोली,
"नहीं मॉम… मैं वो बस…" आगे उसे शब्द नहीं मिले, तो वह बेचैनी से नज़रें घुमाने लगी। इतने में निलिमा जी ने अपना हाथ उसके सर पर रख दिया।
"कोई बात नहीं बेटा। रात को देर से सोई होगी आप, तो नींद नहीं पूरी हुई होगी।"
"हाँ, रात को देर से सोई थी, इसलिए पता ही नहीं चला कि कब सुबह हो गई।" रिद्धिमा ने सहमति ज़ाहिर की। उसके अंदाज़ से निलिमा जी मुस्कुरा उठीं।
"हम बस आपको ये बताने आए थे कि माँ चाहती हैं कि आज पूजा आपके हाथों हो, तो जल्दी से नहाकर तैयार होकर नीचे आ जाइए… और साड़ी पहनकर अच्छे से तैयार होइएगा, लगना चाहिए कि आज हमारी बहु का घर में पहला दिन है। पहले पूजा होगी, उसके बाद सब साथ बैठकर नाश्ता करेंगे।"
"जी मॉम।" रिद्धिमा ने आज्ञाकारी बहु की तरह सिर हिलाया। निलिमा जी की नज़र अब श्रेयस की तलाश में यहाँ-वहाँ भटकने लगी। बेड खाली था, पर उनकी नज़र काउच पर पड़ी, जहाँ श्रेयस सो रहा था। उनके मुखमंडल पर कुछ अजीब भाव उभर आए।
रिद्धिमा ने उन्हें एक ही दिशा में देखते हुए उनकी निगाहों का पीछा किया। जैसे ही उनकी नज़र काउच पर सोए श्रेयस पर पड़ी, वह बुरी तरह चौंक गई।
"मॉम, मैंने उन्हें वहाँ सोने के लिए मजबूर नहीं किया है, वे रात को मेरे साथ बेड पर ही सोए थे… पता नहीं काउच पर कब और कैसे पहुँच गए।"
रिद्धिमा ने हड़बड़ाते हुए अपने बचाव में सफ़ाई पेश की। वह सब उसे प्यार दे रहे थे, पर श्रेयस उस घर का बेटा था। उसे तकलीफ़ होगी तो शायद कोई भी बर्दाश्त नहीं करेगा। उसके मन में यही डर था कि कहीं निलिमा जी उस पर नाराज़ ना हो जाएँ।
निलिमा जी, जिनकी नज़र श्रेयस पर ठहरी थी, अब उन्होंने नज़रें रिद्धिमा की ओर घुमाईं। उसके घबराए हुए चेहरे को देखकर प्यार से उसके गाल को छूते हुए बोलीं,
"जानते हैं बेटा कि हमारी प्यारी सी बच्ची ऐसा कुछ नहीं करेंगी, और अपने बेटे को भी बहुत अच्छे से जानते हैं। आदत नहीं है उन्हें अपना बेड और कमरा शेयर करने की। अपने भाई-बहन को भी वे जल्दी से कमरे में नहीं आने देते। श्यामा ही सब सफ़ाई करती है, उनके अलावा कोई इस रूम में कदम नहीं रखता… अब आप उनके साथ हैं, तो अचानक ज़िंदगी में आए इस बदलाव को स्वीकार करने में वक़्त तो लगेगा… पर हमें विश्वास है कि जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा।
अब आप नहा धोकर तैयार हो जाइए, इन्हें भी उठा दीजिएगा। हम नीचे जाकर पूजा की तैयारी करवाते हैं।"
उन्होंने प्यार से उसके गाल को थपथपाया और मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गईं। रिद्धिमा ने अजीब सा मुँह बनाया और दरवाज़ा बंद करके पलटी ही थी कि श्रेयस को उठकर बैठते देखकर चौंक गई।
"तुम जाग रहे थे?" रिद्धिमा ने आँखें बड़ी-बड़ी करते हुए हैरानी से पूछा। श्रेयस ने एक नज़र उसे अजीब तरह से देखा, फिर उसे नज़रअंदाज़ करते हुए काउच से नीचे उतर गया। खुद को यूँ इग्नोर होते देखकर रिद्धिमा ने नाक सिकोड़ते हुए मुँह बिचकाया और मन ही मन बड़बड़ाया,
"अकडू कहीं का… मुझे इग्नोर तो ऐसे कर रहा है जैसे मैं इससे बात करने को मरी ही जा रही हूँ… हुह्।"
रिद्धिमा खुद में बड़बड़ाते हुए उसे कोस ही रही थी कि उसकी नज़र श्रेयस पर पड़ी, जो बाथरूम की ओर जा रहा था। कानों में निलिमा जी के कहे शब्द गूंज उठे और हड़बड़ाते हुए वह उसके पीछे दौड़ गई।
"ए अकडू, उधर कहाँ जा रहे हो? मैं पहले नहाऊँगा…"
चिल्लाती हुई रिद्धिमा, उसके सामने अपने दोनों हाथ फैलाए दीवार बनकर खड़ी हो गई।
"तुम इससे आगे नहीं जा सकते। मैं पहले बाथरूम यूज़ करूँगी।"
श्रेयस की त्योरियाँ चढ़ गईं। उसने आँखें छोटी-छोटी कीं और गुस्से में दाँत किटकिटाते हुए बोला,
"ये मेरा रूम है, मेरा बाथरूम है, इसलिए पहले इसे यूज़ भी मैं करूँगा। वैसे भी… मेरे पास न तो तुमसे फ़ालतू की बहस करने के लिए टाइम है और न ही तुम्हारे तरह घर में पड़े रहना है… मुझे ऑफ़िस जाना है, इसलिए पहले मैं नहाऊँगा।"
श्रेयस ने उस पर तंज कसते हुए उसकी बाँह को पकड़कर उसे साइड किया और आगे बढ़ने ही लगा था कि रिद्धिमा ने अपनी दोनों हथेलियों में उसकी बाँह को दबोच लिया।
"इतनी ही जल्दी है तो गार्डन में जाकर बैठ जाओ, माली काका पेड़-पौधों के साथ, तुम्हें भी अच्छे से नहला देंगे, क्योंकि यहाँ तो पहले मैं ही नहाऊँगी। मुझे मॉम ने जल्दी नीचे आने को कहा है।"
"मेरी मॉम है वो!" श्रेयस गुस्से से चिल्लाया और उसका हाथ झटक दिया। उसका गुस्सा देखकर रिद्धिमा ने तुरंत सिर हिला दिया।
"अरे यार, तुम तो बच्चों जैसे लड़ने लगे। मैं कौन सा तुम्हारी मॉम को तुमसे छीन रही हूँ… जाओ रखो तुम अपनी मॉम को अपने पास। बस मुझे नहाने दो, मेरा जल्दी नीचे पहुँचना बहुत ज़रूरी है।"
"क्यों? तुम्हारी कोई बिज़नेस मीटिंग छूट रही है?" श्रेयस ने तीखी निगाहों से उसे घूरते हुए जबड़े भींचे। उसका ये ताना सुनकर रिद्धिमा भड़क उठी।
"हाँ है, तो क्या करोगे तुम?"
श्रेयस ने व्यंग्य भरी नज़रों से उसे देखा और मुस्कुराया जैसे उसका मज़ाक उड़ा रहा हो।
"कभी ज़िंदगी में बिज़नेस मीटिंग देखी भी है… देखी क्या, सुनी भी है कि क्या होती है?"
अपनी इतनी भयंकर इंसल्ट होते देखकर गुस्से से तिलमिलाई रिद्धिमा कुछ कहने को हुई, पर फिर कुछ सोचते हुए उसने अपना मुँह बंद कर लिया।
"अभी जीतने दे रही हूँ, क्योंकि मेरे पास तुमसे फ़िज़ूल की बहस में उलझने के लिए फ़ालतू टाइम नहीं है। जाओ घुस जाओ बाथरूम में, पर मेरे कपड़े निकालने से पहले बाहर निकल आना। अगर मैं तुम्हारे वजह से नीचे जाने में देर हुई और मुझे किसी की बात सुननी पड़ी, तो छोड़ूंगी नहीं मैं तुम्हें।"
श्रेयस को धमकाते हुए रिद्धिमा साइड में रखे अपने बैग्स की ओर बढ़ गई। पल भर को श्रेयस उसके तीखे तेवरों और जानलेवा अंदाज़ में खो सा गया, फिर खीझते हुए बाथरूम में चला गया।
करीब आधे घंटे बाद वह शॉवर लेकर बाहर निकला, तो अपने रूम का हाल देखकर सुन्न रह गया। अगले ही पल उसकी नज़र रिद्धिमा पर पड़ी, जो बेड के पास खड़ी अपने बैग से समान निकालकर यहाँ-वहाँ फैला रही थी। उसकी भौंहें सिकुड़ गईं।
"ये क्या हाल बनाया हुआ है तुमने मेरे रूम का?" श्रेयस गुस्से में दहाड़ा, पर रिद्धिमा ने उस पर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगी रही। चिढ़े हुए अंदाज़ में जवाब देकर उसे टाल दिया।
"अभी तुम मुझसे बेवजह बहस मत करो, मैं पहले ही बहुत परेशान हूँ।"
"तो तुम्हारी परेशानी का मैं क्या करूँ?… मुझे सिर्फ़ मेरे रूम से मतलब है। अभी इसी वक़्त, अपना समान समेटो।" श्रेयस ने भी गुस्से में हुक्म सुनाया। अबकी बार रिद्धिमा खीझते हुए उसकी ओर पलटी।
"हटा दूँगी सब, ज़रा सब्र नहीं रख सकते तुम… एक तो तुम्हारी अम्मा ने मुझे साड़ी पहनकर आने का हुक्म सुना दिया है, उस पर मुझे पूरे समान में एक भी साड़ी नहीं मिल रही। दर्जन भर तो साड़ी रखी थी माँ ने, पता नहीं कहाँ चली गई?… यहाँ मैं पहले ही इतनी परेशान हूँ, उस पर तुम और चले आए यमराज बनकर मेरे सर पर तांडव करने।"
खीझी हुई रिद्धिमा उस पर बरस पड़ी। अपना सारा फ़्रस्ट्रेशन उसने श्रेयस पर उतारा और वापिस परेशान सी, अपने बैग को खंगालने लगी।
श्रेयस कुछ पल गुस्से से उबलता हुआ, जलती निगाहों से उसे घूरता रहा। फिर चेंजिंग रूम में चला गया। जब वह कपड़े पहनकर बाहर आया, तो रिद्धिमा उल्टे-सीधे तरीके से सब समान वापिस अपने बैग में भरने में लगी थी। यह देखकर श्रेयस ने अजीब सा मुँह बनाया और उसे लगभग इग्नोर करते हुए काउच की ओर बढ़ गया।
"मुझे मेरे कपड़े और समान सेट करना है। कब तक बैग में रखकर रखूँगी।" रिद्धिमा की थकान से भरी आवाज़ सुनकर, श्रेयस उसकी ओर पलट गया और तीखी निगाहों से उसे घूरते हुए बेरुखी से बोला।
"तो मैं क्या करूँ?… अब क्या तुम्हारा समान भी मैं सेट करूँ?"
"नहीं, बस मेरे समान को रखने के लिए जगह दे दो मुझे।" रिद्धिमा ने तपाक से जवाब दिया। पर श्रेयस का वही अकड़ से भरा सख्त लहज़ा था।
"मेरे पास कोई फ़ालतू जगह नहीं। जो तुम्हें इस घर में लाए हैं, जाकर उनसे कहो ये बात… और हो सके तो अपने लिए दूसरा रूम भी माँग लेना, ताकि मुझे तुमसे छुटकारा मिल जाए।"
"इतनी जल्दी और इतनी आसानी से तो अब मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाली मिस्टर इरोगेंट ओबरॉय।" रिद्धिमा भी अबकी बार खीझ उठी और उसे घूरते हुए बाथरूम में चली गई।
जब तक वह नहाकर आई, श्रेयस वहाँ से जा चुका था। रिद्धिमा ने गहरी साँस छोड़ी और तैयार होने लगी। डार्क पर्पल कलर का खूबसूरत सा सूट। खुले बाल, माथे पर छोटी सी बिंदी, माँग में सिंदूर, काजल से सजी सुनहरी आँखें, न्यूड रंग में रंगे कोमल लब, कानों में गोल्ड के झुमके, गले में मंगलसूत्र, मेहँदी रची कलाइयों में चूड़ा, पैरों में पायल। निलिमा जी के कहे अनुसार बिल्कुल नई-नवेली दुल्हन जैसे सोलह श्रृंगार करके तैयार हुई थी वह और बेहद खूबसूरत लग रही थी।
नीचे आई तो हर कोई उसकी तारीफ़ ही कर रहा था। दादी ने तो प्यार से उसकी नज़र भी उतारी थी।
"मॉम, वो मुझे लगता है कि साड़ी वाला बैग पालमपुर में ही रह गया है। मैंने बहुत ढूँढा पर मुझे एक भी साड़ी नहीं मिली, तो मैंने सूट पहन लिया।" रिद्धिमा ने निगाहें झुकाते हुए इतनी मासूमियत से निलिमा जी को सारी बात बताई कि वे मुस्कुराए बिना ना रह सकीं।
"कोई बात नहीं बेटा, आप इसमें भी बहुत अच्छी लग रही हैं… गलती आपकी नहीं है… शादी और विदाई इतनी हड़बड़ी में हुई, फिर हम भी आपको कुछ नहीं दे सके। इसलिए हमने आज ज्वैलर और शुक्ला जी को घर पर बुलाया है। आप जितनी चाहे साड़ियाँ और गहने ले लीजिएगा।"
"मॉम, इसकी ज़रूरत नहीं है।" रिद्धिमा ने कुछ कहना चाहा, पर निलिमा जी ने उसे रोक दिया।
"हमें ज़रूरत है बेटा, और ये हमारा प्यार है आपके लिए, उम्मीद करते हैं कि अब आप इंकार नहीं करेंगी।"
सही ही कहा था उन्होंने, अब वह चाहकर भी कुछ ना कह सकी। पर मानवी ज़रूर खुशी से उछलते हुए उनके पास पहुँच गई।
"मॉम, मैं भी रुक जाऊँ, भाभी की हेल्प कर दूँगी और अपने लिए भी कुछ ले लूँगी।"
"तू साड़ी कब से पहनने लगी, मनु की बच्ची?" इवान ने पीछे से आकर उसकी गर्दन दबोच ली और मानवी छटपटा उठी।
"मैं अपने लिए न्यू डिज़ाइन के ज्वैलरी देखूँगी, तुझे क्या है?"
मानवी ने गुस्से में उसका हाथ झटक दिया और बस इतने पर ही दोनों भाई-बहन की बहस छिड़ गई। बाकी सब ने अपना सर पकड़ लिया। जबकि रिद्धिमा की आँखों के आगे रितेश का चेहरा उभर आया और लबों पर भीनी सी मुस्कान बिखर गई।
दोपहर तक रिद्धिमा और मानवी की खरीदारी हो गई थी। काफी सारी साड़ियाँ और गहने दिलाए गए थे उसे; मना तो उसने बहुत किया, पर किसी ने सुनी ही नहीं। हाँ, मानवी ने ज़रूर सब कुछ बेहतरीन पसंद किया था उसके लिए, न ज्यादा हैवी, न लाइट। अपने लिए भी उसने कुछ इयरिंग्स, एंकलेट, ब्रेस्लेट, पेंडेंट लिए थे।
"रिद्धिमा, लो बेटा ये सब अपने कमरे में ले जाओ और संभालकर रख लो। साड़ी के ब्लाउज़ भी चार-पांच दिन में आ जाएँगे।"
रिद्धिमा ने साड़ियों और गहनों के ढेर को देखा, फिर परेशान निगाहों से निलिमा जी को देखने लगी।
"मॉम, मैं ये सब कहाँ रखूँगी? मेरे पास तो रखने की जगह ही नहीं है।"
"क्यों बेटा? इतना बड़ा रूम है, आपको उसमें इतनी चीजें रखने की जगह नहीं मिलेगी?" निलिमा जी उसकी बात सुनकर चौंक गईं। रिद्धिमा ने अब मुँह बिचका लिया और मायूसी भरे स्वर में अपनी दुखद कहानी उन्हें सुनाने लगी।
"आज सुबह मैंने उनसे कहा कि मुझे अपना सामान सेट करना है, तो उन्होंने कहा कि उनके रूम में मेरे और मेरे सामान के लिए कोई जगह नहीं है। मेरा सारा सामान अब भी बैग में रखा हुआ है; उनका क्लोज़ेट तो पहले से भरा हुआ है। मैं ये सब अब कहाँ रखूँगी?"
रिद्धिमा की बात सुनकर सब परेशान निगाहों से एक-दूसरे को देखने लगे। निलिमा जी ने उसके गाल को प्यार से छुआ और कोमल स्वर में उसे समझाने लगीं।
"बेटा, अभी वो नाराज हैं, उनकी बातों का बुरा नहीं मानना। कितना भी रूड बिहेव करें, उसे दिल से नहीं लगाना। फिर उनके कहने से क्या होता है? अब आप उनकी पत्नी हैं, उस कमरे और वहाँ की हर चीज़ पर आपका भी बराबर हक है। हम आपको इस घर में लाए हैं, अब जगह तो आपको अपने लिए खुद बनानी है; उनके रूम में, उनके कबर्ड में, उनकी ज़िंदगी में... और उनके दिल में भी। चलिए, अपना मन छोटा मत कीजिये, जाकर अपना सामान सेट कीजिये और अगर बाद में श्रेयस आपसे कुछ कहे तो कहिएगा कि हमसे आकर बात करें।"
निलिमा जी की बात सुनकर रिद्धिमा की आँखें चमक उठीं, लबों पर कुटिल मुस्कान उभरी। जिसे उसने जल्दी ही छुपा लिया और मासूम सी सूरत बनाकर सहमति में सर हिला दिया।
"भाभी, चलिए मैं आपका सामान सेट करवाती हूँ, पर आप ना भैया के सामने मेरा नाम मत लीजिएगा, वरना वो छोड़ेंगे नहीं मुझे।" मानवी ने चहकते हुए हेल्प ऑफर की, पर श्रेयस के गुस्से से घबरा गई। रिद्धिमा ने हामी भरी तो वो खुशी से चहकते हुए उसके साथ चली गई।
"भाभी, आपने सामान को कैसे भर रखा है, भैया देखते न तो पक्का आपको डाँट लगाते। उन्हें सब चीजें तरीके से सजी हुई पसंद हैं।" रिद्धिमा के बेहाल सामान को देखकर मानवी का सर चकरा गया। बैग में सामान रखने के बजाय उसे उल्टे-सीधे तरीके से भर रखा था। सारे कपड़ों की तह तक खराब हो गई थी।
"आपके भैया को न मेरा कोई ढंग पसंद है और न ही मैं।" एक ठंडी आह भरते हुए वो फीका सा मुस्कुरा दी। उसकी आवाज़ में झलकती उदासी को महसूस करते हुए, मानवी सौम्य सी मुस्कान लबों पर बिखेरते हुए आकर उससे लिपट गई।
"पर मुझे तो आप बहुत पसंद हैं और इवान को भी।"
"अच्छा?" रिद्धिमा ने ताज्जुब से आँखें बड़ी-बड़ी करते हुए उसे देखा। मानवी ने झट से सर हिला दिया।
"Hmm... आप बहुत कूल हैं और स्वीट भी। इतनी प्यारी बातें करती हो, भैया का गुस्सा भी हैंडल कर लेती हो। भैया के साथ आपकी खूब जमेगी।"
रिद्धिमा उसकी मुस्कान और खुशी से खिला चेहरा देखकर, अपनी सारी नाराज़गी भूल गई और दोनों बातों में मग्न होकर, हँसी-मज़ाक के बीच सब सामान सेट करने लगे।
रात को आज फिर श्रेयस देर से लौटा। निलिमा जी को इग्नोर करते हुए वो बिना खाए ही कमरे में चला आया। रिद्धिमा बेड पर उलटी पड़ी हुई थी और फ़ोन चला रही थी। श्रेयस ने उड़ती नज़र उस पर डाली, फिर बेबसी से सर हिलाते हुए चेंजिंग रूम की ओर बढ़ गया।
रिद्धिमा ने कनखियों से उसे देखा, फिर मन ही मन गिनती करने लगी।
"1...2...3...4..." अभी वो 5 बोलने ही वाली थी कि गुस्से में बौखलाया श्रेयस, लंबे-लंबे डग भरते हुए ठीक उसके सामने आ खड़ा हुआ।
"ये क्या कर रखा है तुमने? किसने इज़ाज़त दी तुम्हें मेरे क्लोज़ेट में अपना सामान रखने की? हिम्मत कैसे ह..."
"एक मिनट...एक मिनट..." रिद्धिमा ने बीच में ही उसे टोक दिया और उठकर बैठ गई। श्रेयस गुस्से भरी निगाहों से उसे घूर रहा था। रिद्धिमा ने गहरी साँस छोड़ी और शांत स्वर में कहना शुरू किया।
"तुम बोलने में अपनी एनर्जी बर्बाद मत करो। मैं समझ गई कि तुम कहना क्या चाहते हो। तुम वही घिसे-पिटे पुराने डायलॉग मारोगे कि... मेरी हिम्मत कैसे हुई तुम्हारे सामान को छूने की, वहाँ से तुम्हारा सामान हटाकर अपना सामान लगाने की। तुम्हें पसंद नहीं कि कोई तुम्हारी चीज़ों को तुम्हारी इज़ाज़त के बिना हाथ भी लगाए। इसके बाद तुम कहोगे कि अब मेरी छुई चीज़ों को तुम इस्तेमाल नहीं करोगे। उन्हें मेरे सामने जलाकर, मुझे मेरी औकात दिखाकर डराने की कोशिश करोगे... कि अगर मैंने दोबारा तुम्हारी किसी चीज़ को छुआ तो तुम उसे भी ऐसे ही आग लगा दोगे। फिर मैं हीरोइन जैसे बलखाते हुए आऊँगी और तुम्हें छूकर कहूँगी कि अब तो मैंने तुम्हें भी छू दिया, अब क्या करोगे? खुद को भी आग लगाओगे क्या?"
रिद्धिमा पल भर ठहरी और अजीब से मुँह बनाते हुए आगे कहने लगी।
"ये सब डायलॉग बहुत सुने हैं मैंने... और ऐसे सीन देख-देखकर बोर हो चुकी हूँ मैं, इसलिए इसे यहीं रहने दो और शांति से मेरी बात सुनो। सुबह तुम ही ने मुझे कहा था कि तुम्हारे पास मेरे लिए कोई जगह नहीं, तो जो मुझे इस घर में लाया है उनसे जाकर बात करूँ... तो मैंने मॉम से पूछा और उन्होंने मुझे ये इज़ाज़त दी कि मैं तुम्हारे सामान को साइड करके, अपने सामान की जगह बना लूँ... तो मैंने उनकी बात मानते हुए, तुम्हारे सामान को थोड़ा इधर-उधर सरकाया और अपना सामान सेट कर लिया। अब मुझे मेरी चीज़ें ढूँढने में दिक्कत नहीं होगी, मैं तुम्हारे रूम में सामान नहीं फैलाऊँगी तो तुम्हारा उतना खून भी जलने से बच जाएगा, सुबह-सुबह मेरी तुमसे बहस नहीं होगी तो मेरा मूड भी खराब नहीं होगा... हुआ न दोनों के लिए फ़ायदे का सौदा?"
रिद्धिमा ने खुद पर इतराते हुए अपनी आँखें मटकाई और मुस्कुराते हुए आगे कहने लगी।
"अब तुम्हें तुम्हारी बातों के जवाब मिल गए तो अपना गुस्सा शांत करो। आधी रात को लौटे हो और आते ही चिल्लाना शुरू कर दिया, तुम्हारे घरवालों को कितनी परेशानी होती होगी ऐसे सोने में। चलो अब तुम भी सो जाओ और मुझे भी सोने दो, आज इतना काम किया मैंने, इतनी थक गई हूँ मैं। इतनी ज़ोर की नींद आ रही है मुझे..."
रिद्धिमा ने पूरा मुँह खोलते हुए उबासी ली, फिर बेफ़िक्री से मुस्कुराते हुए ब्लैंकेट लेकर लेट गई और श्रेयस बस उसे घूरता ही रह गया। रिद्धिमा ने उसे कुछ बोलने का मौका ही नहीं दिया, जिससे वो बुरी तरह झल्ला उठा।
गुस्से में पैर पटकते हुए वो वापिस जाने ही लगा था कि रिद्धिमा की आवाज़ उसके कानों से टकराई।
"और एक बात, मेरे सामान को हाथ लगाने की सोचना भी मत, वरना मैं मॉम को तुम्हारी शिकायत लगा दूँगी। उन्होंने मुझे इज़ाज़त दी थी और कहा था कि अगर तुम ज़रा भी बदतमीज़ी करो या मेरे सामान को हटाओ तो मैं उन्हें बता दूँ, वो तुमसे अच्छे से निपट लेंगी।"
"मॉम!" श्रेयस ने खीझते हुए अपने जबड़े भींच लिए। गुस्सा तो इतना आया कि अभी इसी वक्त इस लड़की को इसके सामान समेत इस कमरे से ही, इस घर से ही बाहर फेंक दे। खून खौल उठा था उसकी इस हरकत पर, लेकिन वो ज़हर के कड़वे घूँट पीकर भी शांत रह गया।
रिद्धिमा अपनी जीत पर इतराते हुए बेड पर फैल कर लेट गई। कुछ देर बाद श्रेयस की कठोर आवाज़ उसके कानों से टकराई।
"अपनी साइड जाओ।"
रिद्धिमा ने चौंकते हुए अपनी आँखें खोलीं। अपनी तितली के पंखों जैसे घनी पलकों को झपकाते हुए आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी।
"अब आँखें फाड़कर मुझे क्या देख रही हो, सुनाई नहीं देता, साइड होने कह रहा हूँ?" श्रेयस एक बार फिर उस पर भड़क उठा, पर रिद्धिमा अब भी उलझन में उलझी आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देख रही थी।
"पर सुबह तो तुम काउच पर सोए थे न।" श्रेयस ने ये सुनकर आँखें छोटी-छोटी करके खतरनाक अंदाज़ में उसे घूरा तो रिद्धिमा तुरंत ही अपने हाथ-पैर समेटते हुए दूसरे तरफ खिसक गई। श्रेयस अपनी साइड पर लेट गया और चेतावनी भरी नज़रों से उसे घूरते हुए, कठोर स्वर में बोला।
"अपनी साइड ही रहना, अगर कल रात जैसे गलती से मेरे साइड आई तो तुम्हारे हाथ-पैर बाँधकर पूल में फेंक आऊँगा, फिर सोती रहना आराम से फैलकर।"
श्रेयस की ये धमकी सुनकर पल भर को रिद्धिमा घबरा गई और सहमते हुए उसने अपने हाथ-पैर समेट लिए। ये देखकर श्रेयस के लबों पर तीखी मुस्कान फैल गई। अगले ही पल रिद्धिमा ने तुनकते हुए कहा।
"तुम ऐसा नहीं कर सकते समझे... मैं कोई जानबूझकर थोड़े न तुम्हारे साइड आई थी। नींद में अनजाने में थोड़ा इधर-उधर हो जाता है, नहीं ध्यान रहता... इतना तो इंसान एडजस्ट कर ही लेता है।"
"मैं नहीं करता... क्योंकि मुझे ये सब पसंद नहीं है और कल रात को तुम अपने हाथ-पैर लेकर मुझ पर चढ़ी हुई थी। हटने तक को तैयार नहीं थी, चिपके ही जा रही थी मुझसे। वो तो मेरी शराफ़त थी कि मैंने तुम्हें कुछ नहीं किया और खुद चुपचाप उठकर काउच पर चला गया, पर रोज़-रोज़ मैं ये टोलेरेट नहीं कर सकता... इसलिए आज पहली और आखिरी बार वॉर्न कर रहा हूँ तुम्हें। अगर यहाँ मेरे साथ सोना है तो तमीज़ से सोना होगा, मैं ये सब हरकतें टोलेरेट नहीं करूँगा... याद रहे..."
श्रेयस की धमकी सुनकर रिद्धिमा खीझते हुए उस पर भड़क उठी।
"धमकी क्या दे रहे हो तुम मुझे? मुझे भी कोई शौक नहीं है तुम्हारे साथ सोने का, वो तो मेरी मजबूरी है... और इतना भड़कने की ज़रूरत नहीं है तुम्हें मुझ पर। इतनी भी कोई बड़ी बात नहीं है। जानबूझकर थोड़े न तुम्हारे पास आई थी मैं, हो गया नींद में तो क्या करूँ? वैसे भी हर कोई तुम्हारे तरह नहीं होता कि फुट्टे जैसे सीधा होकर सोए। पता नहीं तुम इंसान हो कि नहीं... मतलब एक पोज़िशन में सोए-सोए मेरा तो शरीर ही अकड़ जाए। मुझे ऐसे ही सोने की आदत है, एकदम फ़्रीली तो मैं ऐसे ही सोऊँगी और मुझे इससे कोई भी परेशानी नहीं, तुम्हें है तो तुम अपना कोई दूसरा इंतज़ाम कर लो।"
एक तो चोरी उस पर सीनाजोरी... यही अंदाज़ था रिद्धिमा का। पर गलती तो उसकी भी नहीं थी। दोनों कुछ देर तक एक-दूसरे को घूरते रहे, फिर चेहरा फेरकर लेट गए।
भाभी दोस्ती करेंगी मुझसे? इवान सीढ़ियों की रेलिंग पकड़े लटका हुआ था। रिद्धिमा वहीं हाथ बाँधकर खड़ी हो गई और भौंहें चढ़ाते हुए बोली,
"तुम दोस्ती करोगे मुझसे... पर क्यों?"
"क्योंकि आपका चरित्र मुझे काफी दिलचस्प लग रहा है, हमारी आयु भी लगभग समान है और देवर-भाभी का खट्टा-मीठा रिश्ता भी है हमारे बीच, तो दोस्ती की जा सकती है।"
इवान ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। उसका स्वभाव ही ऐसा था, वह हँसता-मुस्कुराता रहता था; हँसी-मजाक और शैतानियाँ उसके व्यक्तित्व का अहम हिस्सा थीं और पिछले एक हफ़्ते में रिद्धिमा से उसकी बॉन्डिंग भी काफी मज़बूत हो गई थी और मानवी तो बिल्कुल बहन जैसी बन गई थी।
रिद्धिमा ने उसकी पूरी बात सुनी, फिर आँखें छोटी-छोटी करके तीखी निगाहों से उसे घूरने लगी।
"मैं दिलचस्प लगी तुम्हें... क्यों?... मेरी शक्ल क्या जोकर जैसी है?"
रिद्धिमा की यह बात सुनकर और उसके चेहरे के भाव देखकर इवान के लब बेसाख़्ता ही मुस्कुरा उठे।
"अरे भाभी, कैसी बात कर रही हैं आप तो इतनी सुंदर हैं।"
रिद्धिमा ने अब आँखें चढ़ाते हुए हैरानी और नाराज़गी ज़ाहिर की।
"ओह! तो फ़्लर्ट कर रहे हो मेरे साथ... पर बच्चू, शादी हो चुकी है मेरी, तुम्हारे उस सड़ियल भाई के साथ। जो सौ किलो के घमंड का भार चौबीसों घंटे अपने कंधों पर लेकर घूमता है, घर में तो ऐसे रहता है जैसे प्रधानमंत्री हो... अजगर जैसा शरीर और चिम्पैंज़ी जैसी शक्ल पर इतना गुरूर है... मुझे तो शक्ल देखकर ही उबकाई आती है। न शक्ल, न सूरत और खुद को समझता है अजंता की मूर्ति। मतलब इतना घमंड कि अपने सामने किसी को कुछ समझता ही नहीं। मुझे तो लगता है कि नाश्ते में खाने की जगह घमंड और जलते लावा ही खाता है, तभी हमेशा सुलगता रहता है। बात तो ऐसे करता है जैसे मुँह से शब्द नहीं, तीखे शूल फेंक रहा है जो सामने वाले का जिस्म छलनी कर जाए। इतना अभिमानी है कि जब मौका मिलता है, अपनी एटीट्यूड की दुकान खोलकर बैठ जाता है। जाने किस बात का इतना घमंड है। वनमानुष जैसी सड़ी हुई शक्ल है। उससे ज़्यादा हैंडसम तो मेरी गली के कुत्ते थे, फिर भी बेचारे कभी इतना इतराते नहीं थे। जैसी उसकी बॉडी है, उससे बेहतर तो मेरी ही है, पर देखो मैं कितनी विनम्र और प्यारी हूँ।"
रिद्धिमा अपने इतने दिनों की सारी भड़ास उस पर निकाल रही थी। एक बार शुरू हुई तो खुद में मग्न, नॉनस्टॉप बोलती ही चली गई। इतने दिनों से श्रेयस का यही रूड़नेस भरा व्यवहार झेल रही थी और किसी को कुछ कह भी नहीं पा रही थी। इसलिए आज जब मौका मिला और मुँह खोला तो बिना सोचे-समझे जो मुँह में आया बोलती ही चली गई। पहले तो इवान आँखें चौड़ी किए हैरान-परेशान सा उसे देखता ही रह गया। फिर जब उसने उसकी आखिरी बातें सुनीं तो अपने भाई की इतनी बेइज़्ज़ती और रिद्धिमा का इतना फेंकना, उससे बर्दाश्त न हुआ।
"भाभी, अब ज़्यादा हो रहा है।"
रिद्धिमा यह सुनकर कुछ झेंप सी गई। एहसास हो गया था कि बोलते-बोलते कुछ ज़्यादा ही फेंक गई थी, इसलिए उसने तुरंत ही अपनी गलती सुधार ली।
"अच्छा ठीक है। मेरी न सही, पर तुम्हारी तो है... लेकिन तुम तो अपनी ज़ुबान से आग नहीं उगलते। इतनी प्यार से बात करते हो... और एक तुम्हारा वो सड़ियल अभिमानी भाई है... नहीं... चलता-फिरता ज्वालामुखी है... क्या पता कब फट पड़े। मैं तो अब उनसे बहस करके तंग आ चुकी हूँ। वो बंदा जब मेरे आस-पास होता है तो मुझे एक पल सुकून से बैठने नहीं देता, बिल्कुल ही जीना हराम कर रखा है उसने मेरा।"
रिद्धिमा ने नाक सिकोड़ते हुए बुरा सा मुँह बना लिया। उसकी बात सुनकर इवान मुस्कुरा दिया।
"भाई की तो बहुत तारीफ़ कर ली, अब ज़रा अपना भी बताइए कि आप भी एक मौका नहीं छोड़ती उनसे लड़ने का। बराबर टक्कर लेती हैं उनसे।"
"अरे तो क्या उन्हें खुद पर हावी होने दूँ? अगर ऐसा हुआ तो वो मुझे अपने गुरूर तले दबाकर ही मार देंगे? खुद को बचाने के लिए गलत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी ही पड़ती है। वरना मेरे कोई सींग थोड़े न निकले हैं कि जाकर उनसे बेवजह भिड़ती रहूँ। शुरुआत वो करते हैं तो मजबूरी में मुझे भी अपनी सुरक्षा के लिए मैदान-ए-जंग में उतरना ही पड़ता है।" रिद्धिमा ने अपने समर्थन में दलील दी और मुँह फुलाए उसे देखने लगी। इवान ने भी गंभीरता से सोचते हुए उसकी बात पर सहमति में सिर हिला दिया।
"हम्म, बात तो आपकी ठीक है। जब जान की बात आती है तो छोटी सी चींटी भी हाथी की नाक में दम कर देती है... पर आप न शेरनी हैं, बिल्कुल भाई की टक्कर की। आप दोनों की जोड़ी इतनी जबरदस्त होगी कि देखने वाले बस देखते ही रह जाएँगे।"
इवान ने उत्सुकता से कहा और मुस्कुरा दिया, जबकि उसकी यह बात सुनकर रिद्धिमा के चेहरे के भाव ज़रा बदले, पर उसने पलटकर कुछ कहा नहीं। कुछ पल बाद इवान ने ही आगे कहा,
"भाभी, अब तो बताइए दोस्ती करेंगी मुझसे?"
"पहले तुम बताओ, तुम मुझसे दोस्ती क्यों करना चाहते हो?... अच्छी खासी बॉन्डिंग तो हमारी पहले ही हो चुकी है।"
रिद्धिमा हाथ बाँधे और आँखें चढ़ाए उसे देखने लगी थी। उसका सवाल सुनकर इवान के चेहरे पर पल भर को संजीदगी के भाव उभरे, पर अगले ही पल वह एक बार फिर सौम्यता से मुस्कुरा दिया।
"यही तो वजह है भाभी। आपसे मेरी इतनी अच्छी बॉन्डिंग हो गई है, पर अभी हमारा रिश्ता भाई से आपके रिश्ते पर टिका है। देवर-भाभी का खट्टे-मीठे नोक-झोंक और शरारत वाला रिश्ता तो बढ़िया चल रहा है, पर मैं चाहता हूँ कि आप मेरी दोस्त भी बन जाएँ। फिर आपके और भैया के रिश्ते का असर हमारे रिश्ते पर नहीं पड़ेगा और हमारी बॉन्डिंग और तालमेल और ज़्यादा मज़बूत हो जाएगी।"
रिद्धिमा उसे देखते हुए पल भर सोचती रही, फिर उसने मुस्कुराते हुए हामी भर दी।
"चलो, कर ली मैंने तुमसे दोस्ती, पर अब याद रहे कि तुम मेरे देवर से पहले दोस्त हो तो तुम्हें मेरा साथ भी देना होगा। मैं अगर तुम्हारे उस ख़डूस भाई की बुराई भी करूँ तो तुम मेरी बात सुनोगे और साथ भी मेरा ही दोगे।"
"बिल्कुल।" इवान ने झट से हामी भरी और दोनों एक-दूसरे को देखकर हँस पड़े। उनकी हँसी की आवाज़ सुनकर मानवी भी वहाँ चली आई और मुँह फुलाते हुए बोली,
"आप दोनों यहाँ अकेले-अकेले क्या बातें कर रहे हैं? और मेरे बिना हँस भी रहे हैं।"
"अच्छा मैडम, तो क्या अब हँसने से पहले तुमसे इजाज़त लेनी होगी हमें?" इवान ने मज़ाकिया अंदाज़ में उसे छेड़ा और उसकी शक्ल देखकर एक बार फिर बेफ़िक्री से हँस पड़ा। मानवी ने निचले होंठ को बाहर निकालते हुए रूठू सी शक्ल बना ली और गुस्से में पैर पटकते हुए बोली,
"मैं तुमसे बात नहीं कर रही, समझे? मैं अपनी भाभी से बात कर रही हूँ।"
"तेरी भाभी अब मेरी दोस्त है, मतलब मेरा उनसे डबल रिश्ता हो गया, तो अब तू पूँछ बनकर उनके आगे-पीछे घूमना बंद कर दे, वो तेरा नहीं मेरा साथ देंगी।" इवान ने एक बार फिर उसे चिढ़ाया।
"भा...भी..." मानवी ने मुँह बिचकाते हुए नाराज़गी से उसे पुकारा तो रिद्धिमा ने तुरंत ही इवान के कान पकड़कर ऐंठ दिए।
"तुम ऐसे बाज़ नहीं आओगे न, फिर मानवी को छेड़ने लगे... इतनी प्यारी बहन है मेरी... क्यों इतना सताते हो तुम उसे? अभी माफ़ी माँगो इससे, वरना दोस्ती-वोस्ती सब ख़त्म..."
डांटने के साथ रिद्धिमा ने उसे धमकी भी दे दी, जिसे सुनकर जहाँ मानवी कुटिलता से मुस्कुराते हुए जीभ निकालकर उसे चिढ़ाने लगी, वहीं इवान भौंहें सिकोड़ते हुए उसे घूरने लगा।
"अब घूर क्या रहे हो उसे? जल्दी से माफ़ी माँगो, वरना भूल जाओ मुझसे दोस्ती।" रिद्धिमा ने एक बार फिर तबीयत से उसे फटकार लगा दी। मरता क्या न करता?... तो खीझते हुए इवान ने मजबूरी में उससे माफ़ी भी माँग ली। जहाँ इवान की शक्ल बिगड़ी थी, वहीं मानवी खुशी से चहकते हुए रिद्धिमा के गले से लग गई थी।
"लव यू भाभी... यू आर द बेस्ट भाभी इन द वर्ल्ड..."
रिद्धिमा उसके बचपने पर मुस्कुरा दी, जबकि इवान चिढ़ते हुए वहाँ से जा चुका था।
"भाभी, चलिए मॉम आपको नाश्ते पर बुला रही हैं।" मानवी की बात सुनकर रिद्धिमा ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया और उसके साथ आगे बढ़ गई।
ऊपर कॉरिडोर में खड़ा श्रेयस जलती निगाहों से उन्हें घूर रहा था और उसके चेहरे पर गुस्सा, निराशा, चिढ़ साफ़ झलक रही थी।
"मेरी पूरी फैमिली पर कब्ज़ा जमाकर बैठी है, पता नहीं कौन-सा काला जादू जानती है कि सब इसी के आगे-पीछे घूमते हैं। चंद दिनों में सबको अपने वश में कर लिया है इस लड़की ने।" जबड़े भींचते हुए वह मन ही मन बड़बड़ाया और चिढ़ते हुए तेज कदमों से घर से बाहर निकल गया। जाती हुई रिद्धिमा ने पलटकर एक बार देखा ज़रूर था और नज़र घर से बाहर जाते श्रेयस पर पड़ी, इसके साथ ही उसके चेहरे पर अजीब सी उदासी छा गई।
एक हफ़्ता हो गया था उसे वहाँ आए हुए। घर में सबसे उसकी बढ़िया बॉन्डिंग हो गई थी, सब थे भी बहुत अच्छे, बहुत ख़्याल रखते थे उसका, प्यार देते थे... बस श्रेयस से उसकी जितनी बार भी मुलाक़ात हुई, लड़ाई या बहस ही हुई। श्रेयस सुबह जल्दी निकल जाता था और रात को देर से आता था। न घर में किसी से बात करता, न खाना खाता। रात को भी ड्रिंक करके आता था और जाने क्यों रिद्धिमा को उसे देखकर बहुत बुरा लगता था। हालाँकि जब लड़ने की बात आती तो पीछे वह भी नहीं रहती थी। जैसे को तैसा ही देती थी और बराबर लड़ती थी।
ख़ैर, रिद्धिमा ने अपना सर झटका और आगे बढ़ गई। हमेशा की तरह हँसी-मजाक और बातों के बीच सबने नाश्ता किया।
"मॉम, मैंने आपसे बाहर जाने की बात की थी।" रिद्धिमा ने ज़रा झिझकते हुए निलिमा जी को कल की बात याद दिलाई। वह सर्वेंट से टेबल साफ़ करवा रही थीं, उन्होंने तुरंत ही हामी भर दी।
"हाँ हाँ बेटा, हमें याद है। आपको अपनी फ्रेंड से मिलने जाना है, बिल्कुल जाइए। हम अभी इवान को कहते हैं। आज छुट्टी है उनकी तो आपको ड्रॉप कर देंगे और ले भी आएंगे।"
"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है मॉम, मैं खुद से चली जाऊँगी और शाम से पहले वापिस भी आ जाऊँगी।"
"नहीं बेटा, अभी आपकी शादी को एक हफ़्ता ही हुआ है, शादी के बाद आप पहली बार घर से बाहर जा रही हैं। हम ऐसे आपको अकेले तो नहीं जाने दे सकते। अगर आपको इवान के साथ नहीं जाना तो हम ड्राइवर के साथ आपको भेज देते हैं। वो आपको छोड़ भी आएंगे और ले भी आएंगे तो हमें भी चिंता नहीं रहेगी।"
अभी उन्होंने अपनी बात ख़त्म ही की थी कि कहीं से भटकते-भटकते इवान वहाँ पहुँच गया।
"कौन कहाँ जा रहा है?"
"बेटा, रिद्धिमा को जाना है अपनी किसी फ्रेंड से मिलने और अकेले जाने की बात कर रही है। हम उन्हें ही समझा रहे हैं कि उनका अकेले जाना ठीक नहीं है, हमें चिंता लगी रहेगी उनकी।"
रिद्धिमा के कुछ बोलने से पहले ही निलिमा जी ने चिंतित स्वर में संक्षेप में सारी बात उसे कह सुनाई। उसने भी बिना एक पल गँवाए बेफ़िक्री से मुस्कुराते हुए कह दिया,
"तो इसमें इतना परेशान होने वाली कौन सी बात है मॉम? मैं अपने फ्रेंड से मिलने जा रहा हूँ, भाभी को ड्रॉप कर दूँगा और जब आना हो तो एक फोन कर देंगी तो उन्हें सही-सलामत घर भी ले आऊँगा।"
"हम तो यही कह रहे थे पर..." निलिमा जी आगे कुछ कहने को हुईं कि रिद्धिमा ने उनकी बात काटते हुए हामी भर दी।
"मैं चली जाती हूँ इवान के साथ ही।"
उसका यह फैसला सुनकर दोनों मुस्कुरा दिए।
रिद्धिमा ने उनकी बात काटते हुए हामी भर दी।
"मैं इवान के साथ ही चली जाती हूँ।"
यह फैसला सुनकर दोनों मुस्कुरा दिए। कुछ देर बाद रिद्धिमा इवान के साथ उसकी स्पोर्ट बाइक के पास खड़ी थी। उसने पहले अजीब निगाहों से बाइक को देखा, फिर सिर बगल में खड़े इवान की ओर घुमाया और आँखें छोटी-छोटी करके नाराज़गी से उसे घूरने लगी।
"इस बाइक पर तुम मुझे लेकर जाने वाले हो?"
"येस भाभी... मुझे कार से ज़्यादा मज़ा बाइक पर आता है और ये तो मेरी फेवरेट बाइक है, जिस पर मैंने आज तक किसी को भी नहीं बैठने दिया। पर क्योंकि आप मेरी स्वीट सी भाभी हैं और फ्रेंड भी, इसलिए आज मैं आपको ये स्पेशल ऑफर दे रहा हूँ।"
खुद पर इतराते हुए वह बेपरवाही से मुस्कुरा दिया। जबकि उसकी बातें सुनकर रिद्धिमा एकाएक उस पर भड़क उठी।
"मुझे क्या तुम अपनी गर्लफ्रेंड समझ रहे हो जो मैं तुम्हारे साथ इस बाइक पर बैठकर बाहर जाऊँगी? सीट देखी है इसकी? कितनी टेढ़ी है! इस पर बैठी तो एक जिस्म दो जान बन जाएँगे और मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है... इसलिए इस बाइक के ऑफर को तुम अपनी गर्लफ्रेंड के लिए बचाकर रखो, उसके साथ अच्छे से चिपककर बैठकर रोमांस करना। अगर मुझे साथ लेकर चलना है तो कार निकालो, वरना मैं कैब बुक करके खुद ही चली जाऊँगी।"
वह ज़रा भी नहीं हिचकिचाती थी, जो दिल में आता बेपरवाही और बेबाकी से बोल जाती और उसकी यही ख़ासियत इवान को सबसे ज़्यादा पसंद थी। अभी भी उसकी बातें सुनकर वह बेतहाशा हँस पड़ा था।
"क्या यार भाभी... कुछ भी बोल देती हैं आप... एक जिस्म दो जान... Oh my god... मेरी तो हँसी ही नहीं रुक रही..."
वह बोलते-बोलते भी रुक-रुककर हँसे ही जा रहा था जिससे रिद्धिमा खीझ उठी। उसने भौंह सिकोड़ते हुए तीखी निगाहों से उसे घूरा।
"बहुत हँसी आ रही है ना तुम्हें, तो अच्छे से दाँत फाड़कर हँसते रहो। अब मुझे तुम्हारे साथ कहीं जाना ही नहीं है। भाड़ में जाओ तुम और भाड़ में जाए तुम्हारी ये खटारा बाइक... मैं खुद कैब लेकर चली जाऊँगी।"
रिद्धिमा ने मुँह ऐंठा, फिर गुस्से में पैर पटकते हुए जाने को पलटी ही थी कि इवान ने उसकी कलाई थामते हुए उसे रोक दिया। रिद्धिमा ने सिर घुमाकर पहले अपने हाथ को देखा जिसे इवान ने पकड़ा था और आँखें छोटी-छोटी करके जलती निगाहों से उसे घूरा। तो इवान ने उसकी कलाई छोड़ दी और संजीदगी से बोला,
"नहीं हँस रहा अब, कहाँ जा रही है ऐसे? मॉम ने मुझे आपको छोड़ने और वापिस लाने की ज़िम्मेदारी दी है तो मैं ही आपको छोड़ने चलूँगा, बस एक मिनट रुकिए, मैं कार निकलवाता हूँ आपके लिए।"
रिद्धिमा ने नाराज़गी दिखाते हुए मुँह ऐंठा तो इवान उसकी शक्ल देखकर मुस्कुरा दिया। कुछ मिनट बाद रेड कलर की स्पोर्ट कार उसके सामने खड़ी थी। इवान ने बटन प्रेस करके कार अनलॉक की, फिर पैसेंजर सीट का दरवाज़ा खोलते हुए हल्का सा झुककर हाथ से रिद्धिमा को बैठने का इशारा किया।
रिद्धिमा ने एक नज़र कार को देखा, न्यू मॉडल था और चमचमा रहा था जैसे अभी-अभी शोरूम से निकलकर आई हो। फिर मुँह ऐंठते हुए अंदर बैठ गई। इवान भी ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।
"देखो इंसानों जैसे आराम से कार चलाना। स्पोर्ट कार ले ली है इसका मतलब ये नहीं है कि हवा से ही बातें करने लगो... मुझे इतनी जल्दी मरना नहीं है..."
इवान कार स्टार्ट करने ही वाला था, जब रिद्धिमा के शब्द उसके कानों में पड़े। उसने सिर घुमाकर देखा तो वह आँखों की पुतलियाँ फैलाए, कुछ घबराई हुई सी उसे देख रही थी।
"Don't worry भाभी, आप मेरे ब्रो की अमानत हैं। आपको लेकर मैं खुद कोई रिस्क नहीं लूँगा तो रिलेक्स होकर बैठिए, मैं आपको सही-सलामत आपकी डेस्टिनेशन पर पहुँचा दूँगा।"
इवान मुस्कुराया और उसने कार स्टार्ट कर दी। रिद्धिमा ने अजीब सा मुँह बनाया, फिर उसके फ़ोन में मैसेज की नोटिफिकेशन आई तो फ़ोन निकालकर देखने लगी।
"वैसे भाभी... वो बाइक पिछले मंथ ही शोरूम से आई है, अभी तक मैंने भी उसे तीन-चार बार से ज़्यादा नहीं चलाई और आपने उसे खटारा कह दिया... बेचारे को बहुत बुरा लगा होगा।"
इवान ने ऐसा चेहरा बनाया जैसे बहुत दुखी हो। रिद्धिमा ने उसकी बात सुनकर तिरछी निगाहों से उसे देखा और मुँह बनाते हुए बोली,
"उसे तो नहीं पर लगता है तुम्हें बहुत बुरा लग गया कि मैंने तुम्हारी फेवरेट बाइक की इतनी इंसल्ट कर दी... पर गलती तो तुम्हारी है। जब जानते थे कि मैं तुम्हारे साथ जाने वाली हूँ तो उस बाइक पर चलने के बारे में सोचा ही कैसे तुमने? उस पर पीछे बैठने वाला इंसान आगे वाले के ऊपर ही गिरा रहता है, गर्लफ्रेंड के साथ कहीं जाना हो तो ठीक है पर मैं भाभी हूँ तुम्हारी, इतना तो ख्याल रखना चाहिए था तुम्हें।"
इवान बेपरवाही से मुस्कुरा दिया।
"मैं तो बस आपका रिएक्शन देखना चाहता था और सच में बड़ा मज़ा आया, आज मुझे आपको ऐसे टीज़ करने में।"
"सामने देखकर कार चलाओ, वरना अभी सारा मज़ा निकाल दूँगी तुम्हारा।" रिद्धिमा ने गुस्से भरी निगाहों से उसे घूरते हुए मुक्का दिखाया, जैसे अभी उसके मुँह पर ही मुक्का दे मारेगी। इवान ने डरने का नाटक किया तो रिद्धिमा ने खीझते हुए हाथ पीछे खींच लिया। इवान उसकी शक्ल देखकर एक बार फिर हँस पड़ा। यूँ ही हँसी-मज़ाक, छेड़छाड़ के बीच कार एक अपार्टमेंट के बाहर रुकी। इवान ने उस बिल्डिंग को देखा, फिर निगाहें रिद्धिमा की ओर घुमाते हुए सवाल किया,
"अपनी फ्रेंड से यहाँ मिलने वाली है आप? मतलब आमतौर पर लोग होटल, रेस्टोरेंट, कॉफी शॉप या पार्क वगैरह में मिलते हैं।"
"यहीं रहती है वो।" रिद्धिमा ने छोटा सा जवाब दिया और जैसे ही अपना पर्स लेकर उतरने लगी, इवान फट से बोल पड़ा,
"अकेले-अकेले जा रही है भाभी, मुझे साथ चलने को नहीं कहेंगी? इतनी दूर आया हूँ मैं आपको ड्रॉप करने, और कुछ नहीं तो अपनी उस स्पेशल फ्रेंड से ही मिलवा दीजिए, जिससे मिलने आप यहाँ इतनी दूर आई हैं।"
इवान की बात सुनकर हैंडल को थामते रिद्धिमा के हाथ हवा में ही ठहर गए। उसने सिर घुमाया और भौंह सिकोड़ते हुए तीखी निगाहों से उसे घूरने लगी।
"तुम बड़े उतावले हो मेरी फ्रेंड से मिलने के लिए, क्या बात है?"
"बात तो कुछ नहीं, बस सोचा मिल लिया जाए अपनी फ्रेंड की फ्रेंड से।" इवान ने बेफ़िक्री से मुस्कुराते हुए जवाब दिया और बड़े ही स्टाइल से बालों में हाथ घुमाया। यह देखकर रिद्धिमा खीझ उठी क्योंकि उसे सीधे श्रेयस की याद आ गई।
"मेरी फ्रेंड में ज़्यादा दिलचस्पी लेने की कोई ज़रूरत नहीं है तुम्हें, अपनी गर्लफ्रेंड पर ध्यान दो।"
"है ही नहीं तो किस पर ध्यान दूँ?" इवान ने तपाक से कहा और बेचारों जैसी शक्ल बनाई। अबकी बार रिद्धिमा चौंक गई और आँखों की पुतलियाँ फैलाए, बेचैनी से उसे देखने लगी।
"सच बोल रहे हो, तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है?"
"नहीं।"
इवान का इंकार सुनकर पहले तो कुछ पल रिद्धिमा अविश्वास से उसे देखती रही, फिर अचानक ही उसके दिमाग में कुछ आया और उसकी आँखों की पुतलियाँ फैल गईं, उसने अजीब नज़रों से उसे देखा।
"तुम स्ट्रेट तो हो ना, कोई डिफेक्ट तो नहीं तुममें?"
इवान रिद्धिमा का सवाल सुनकर बुरी तरह चौंक गया।
"कैसी बातें कर रही हैं आप भाभी?... आप अपने देवर की मैस्कुलिनिटी पर शक कर रही हैं?... मैं बिल्कुल स्ट्रेट मैन हूँ और कोई मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट भी नहीं मुझमें।"
"अच्छा, अगर ऐसा है तो तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड क्यों नहीं? दिखते तो ठीक ही हो, बॉडी-सॉडी भी बढ़िया बनाई हुई है, जवान हो... फिर अभी तक सिंगल कैसे हो?"
रिद्धिमा ने एक आँख चढ़ाते हुए सवाल किया। अब भी उसके लहज़े में शक ज़ाहिर हो रहा था, जिससे इवान खीझ उठा।
"बिल्कुल सही कहा आपने... मैं हैंडसम हूँ, हीरो जैसी बॉडी है मेरी, यंग हूँ और अपने कॉलेज में अपने लुक्स और पर्सनैलिटी के लिए पॉपुलर भी हूँ। लड़कियों की लाइन लगी रहती है मेरे पीछे, एक साथ एक क्या, दस-दस को घुमा सकता हूँ... पर मुझे जैसी लड़की चाहिए, अब तक मुझे एक भी वैसी लड़की नहीं मिली। उन लड़कियों में वो बात ही नहीं है... इवान ओबेराय की निगाहें उन पर ठहरे और डेटिंग-सेटिंग में मुझे इतनी ख़ास दिलचस्पी भी नहीं है। आज इसके साथ है, कल उसके साथ... ऐसे अपनी फीलिंग और टाइम बर्बाद करना मुझे पसंद ही नहीं। मुझे तो उस एक लड़की की तलाश है जो आम सी होगी फिर भी बेहद ख़ास होगी, जिसे देखकर दिल से आवाज़ आएगी कि यही है वो जिसकी उसे तलाश थी। जिसके साथ मैं सिर्फ़ टाइम पास नहीं करूँगा, बल्कि सच्ची मोहब्बत के साथ उसे हमेशा के लिए अपनी लाइफ में शामिल कर लूँगा।"
इवान तो जैसे अपनी ड्रीम गर्ल के ख़यालों में खोने लगा था पर रिद्धिमा के सवाल से होश में लौटा।
"अच्छा और कैसी लड़की की तलाश है तुम्हें?... ज़रा हमें भी पता चले कि हमारे देवर की सपनों की रानी है कैसी?... जो अब तक उन्हें मिली ही नहीं।"
"बिल्कुल आपके जैसी। जो सिंपल और सोबर रहे, एलिगेंट और ग्रेसफुल हो, रिश्तों की अहमियत समझे, उसे दिल से निभाए। जिसके लिए प्यार ज़िंदगी भर का कमिटमेंट हो, बस कुछ दिन का टाइम पास या मन बहलाने का ज़रिया नहीं। जो आपके जैसे समझदार भी हो और शरारती भी, जिसके साथ ज़िंदगी एक्साइटमेंट और थ्रिल से भर जाए... और सबसे ज़रूरी बात जो मेरे लुक्स या सरनेम से नहीं, मुझसे प्यार करे... इवान को चाहे और हर सिचुएशन में मेरे साथ खड़ी रहने की हिम्मत रखे।"
इवान संजीदा भी था और मुस्कुरा भी रहा था। उसका जवाब सुनकर रिद्धिमा भी मुस्कुरा उठी।
"वो लड़की बहुत लकी होगी, जिसे तुम्हारी मोहब्बत मिलेगी।"
"मैं तो आपको ही वो लकी लड़की बना देता पर अफ़सोस, मेरी नज़र आप पर पड़ती, उससे पहले ही आपकी ब्रो से शादी हो गई और अब आप मेरी भाभी बन गई हैं।"
इवान को यूँ अफ़सोस ज़ाहिर करते देखकर, रिद्धिमा की मुस्कान गहरा गई।
"Hmm... अब मैं तो तुम्हारी भाभी बन गई पर तुम चिंता मत करो, तुम्हें मुझसे भी अच्छी लड़की मिलेगी। तुम्हारे लिए भगवान ने जिसे बनाया होगा वो कोई स्पेशल ही होगी।"
इवान मुस्कुराया तो रिद्धिमा भी मुस्कुरा दी।
"एक बात कहूँ भाभी?"
"हाँ, कहो ना।"
रिद्धिमा ने तुरंत ही इजाज़त दे दी। इवान के लबों पर मुस्कान थी पर चेहरे पर संजीदगी के भाव उभर आए थे।
"ब्रो बहुत लकी है कि उन्हें वाइफ के रूप में आप मिली हैं, बस अभी उन्हें इसका एहसास नहीं है। वो अभी सबसे नाराज़ है और सबकी नाराज़गी और गुस्सा आप पर निकाल देते हैं पर इस वक़्त एक आप ही हैं जिससे लड़ते हुए ही सही पर वो बात करते हैं, बाकी सबसे तो उन्होंने बोलना तक बंद कर दिया है। ब्रो थोड़े गुस्से वाले हैं पर दिल के बुरे नहीं हैं। आप उन्हें मौका देंगी, उन्हें समझने की कोशिश करेंगी तो आपको एहसास होगा कि आपके लिए भी भगवान ने स्पेशल पर्सन को ही चुना था। एक बार ब्रो को आपकी अहमियत का एहसास हो गया ना और वो आपको समझने लगेंगे तो दुनिया के बेस्ट हस्बैंड बनेंगे वो... क्योंकि अपने रिश्तों पर वो अपनी जान कुर्बान करते हैं, उनके लिए कुछ भी कर गुज़रने को तैयार रहते हैं। हाँ, मेरे जैसे चुलबुले नहीं हैं पर एक बेहतरीन इंसान है और साथ ही मेरे रोल मॉडल भी... तो मेरे लिए ही सही, कोशिश कीजिएगा उन्हें समझने की।"
रिद्धिमा एकटक उसे देखती ही रह गई।
"बहुत प्यार करते हो ना तुम अपने भाई से?" जवाब में इवान बस मुस्कुराकर रह गया पर रिद्धिमा के चेहरे पर अजीब सी उदासी छा गई।
"मेरे साथ इतने अच्छे से बिहेव कैसे कर लेते हो तुम? मेरे वजह से तुम्हारे भैया ने तुमसे बात करना छोड़ दिया है, तुम्हें तो नाराज़ होना चाहिए मुझसे।"
"नाराज़गी कैसी भाभी? आपने इंटेंशनली थोड़े ना कुछ भी किया है। वो सिचुएशन ही ऐसी थी, जिसमें आप दोनों की किस्मत उलझ गई, एक ऐसे रिश्ते में बंध गए जो आप दोनों ही नहीं चाहते थे। बस फ़र्क इतना है कि आप अब अपनी ज़िंदगी में आए इस बदलाव को अपनाने की कोशिश कर रही हैं पर ब्रो अभी चाहे भी तो ये सब एक्सेप्ट नहीं कर सकते। उन्हें वक़्त की ज़रूरत है, अभी वो गुस्से में है, धीरे-धीरे उनका गुस्सा शांत होगा तो सब अपने आप ठीक होता चला जाएगा। बस तब तक हमें पेशेंस के साथ इंतज़ार करना है। अच्छा अब आप जाइए, आपकी फ्रेंड इंतज़ार कर रही होगी। जब वापिस जाना हो तो मुझे कॉल कर दीजिएगा, मैं आ जाऊँगा।"
रिद्धिमा ने हामी भरी और बाय बोलकर कार से बाहर निकल गई। इवान ने हाथ हिलाकर उसे बाय किया और कार टर्न करते हुए वहाँ से चला गया।
"हे रिद्धि...ये हैंडसम लड़का कौन था यार, जिसके साथ तू बातें कर रही थी?" एक लड़की ने पीछे से आकर रिद्धिमा की गर्दन पर अपनी बाहें लपेट दीं और जाती हुई कार को देखते हुए मुस्कुराकर सवाल किया। रिद्धिमा, इवान की कही बातों के बारे में सोच रही थी। उस आवाज़ को सुनकर वह अपने ख्यालों से बाहर आई और साथ ही उसके चेहरे पर चिढ़ व नाराज़गी के भाव उभर आए।
"मतलब अपनी फ़्रेंड से कोई मतलब नहीं तुझे? आते ही सीधे लड़के के बारे में पूछ रही है...ये नहीं कि झूठे मुँह ही सही, पर फ़ॉर्मेलिटी दिखाते हुए अपनी फ़्रेंड का हाल-चाल ही पूछ ले।"
रिद्धिमा ने खफ़ा अंदाज़ में कहा और तिरछी निगाहों से उसे घूरते हुए अपनी गर्दन पर लिपटी उसकी बाँह को झटक दिया और उस अपार्टमेंट की ओर बढ़ गई। वो लड़की भी दौड़कर उसके पीछे आई।
"अरे यार, तू तो इतनी सी बात पर नाराज़ हो गई। तेरी खैरियत तो मैं डिटेल में बाद में पूछने वाली थी न। वो तो जब मैं आई, तो तुझे उस न्यू स्पोर्ट कार में किसी लड़के के साथ बैठकर बातें करते देखकर क्यूरियोसिटी जाग गई मेरी, बस इसलिए पूछ लिया।"
रिद्धिमा ने उसके ये बहाने सुनकर कनखियों से उसे घूरा तो उसने क्यूट सी शक्ल बनाते हुए अपनी बत्तीसी चमका दीं। रिद्धिमा ने बेबसी से सिर हिलाया।
"गुड मॉर्निंग अंकल।" रिद्धिमा ने वहाँ खड़े गार्ड को ग्रीट किया तो उन्होंने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"गुड मॉर्निंग बेटा, आज बड़े दिनों बाद आई आप।"
"बस अंकल, किसी मुसीबत में फंस गई थी।...अच्छा, मेरा अपार्टमेंट साफ़ करवा दिया न आपने?"
"जी बेटा जी, सब करवा दिया है।"
रिद्धिमा ने कुछ देर उन अंकल से बातें कीं, फिर लिफ़्ट की ओर बढ़ गई तो उसकी फ़्रेंड भी उसके साथ-साथ चलने लगी।
"यार रिद्धि, एक बात तो बता, तू यहाँ रहती तो है नहीं, फिर हर हफ़्ते इस अपार्टमेंट की सफ़ाई करवाने में बेवजह अपने पैसे क्यों बर्बाद करती है?"
"ताकि जब कभी मेरा मन करे, तो मैं यहाँ आकर कुछ पल सुकून से, अपने साथ अकेले में बिता सकूँ।"
"अच्छा, अब तो बता दे यार...वो हैंडसम मुंडा कौन था? बड़ा डैशिंग लग रहा था और अमीर भी।"
"सौम्या!" रिद्धिमा ने नाराज़गी भरे स्वर में उसे पुकारा तो सौम्या ने मासूम सी सूरत बना ली।
"देवर है मेरा और तेरी पहुँच से बाहर है, इसलिए उसके बारे में ऐसा-वैसा कुछ भी सोचने की ज़रूरत नहीं है।"
रिद्धिमा ने गंभीर निगाहों से उसे घूरते हुए चेतावनी दी और लिफ़्ट के अंदर चली गई। 'देवर' शब्द सुनकर सौम्या शॉक्ड सी वहीं खड़ी की खड़ी रह गई। ये देखकर रिद्धिमा ने खीझते हुए उसे पुकारा।
"अब तू वहीं स्टैचू बनी खड़ी रहेगी...या अंदर भी आएगी?"
रिद्धिमा की आवाज़ सौम्या के कानों में पड़ी तो वह चौंकते हुए होश में लौटी। हड़बड़ाते हुए उसने सिर हिलाया और दौड़ते हुए लिफ़्ट में घुस गई।
"यार रिद्धि, वो स्मार्ट लड़का सच में तेरा देवर है क्या?"
सौम्या ने हैरानगी से सवाल किया। शायद अब भी उसे उसकी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था। लिफ़्ट खुल चुकी थी। रिद्धिमा हामी भरते हुए बाहर निकल गई।
"हाँ।"
सौम्या भी उसके पीछे दौड़ी। "यार तेरा देवर तो बड़ा हैंडसम था, ऐसा लग रहा था जैसे कोई सेलेब्रिटी हो। जब देवर इतना हैंडसम, गुड लुकिंग और स्मार्ट है तो हसबैंड तो और भी कमाल होगा तेरा।"
अब वह हैरान नहीं, एक्साइटेड नज़र आ रही थी। उसके सवाल सुनकर रिद्धिमा की आँखों के आगे श्रेयस का चेहरा उभर गया।
"हम्म, है तो वो भी हैंडसम। असल में उनकी फैमिली में सबसे फ़ेशियल फ़ीचर कमाल के हैं। दादा-दादी इतनी उम्र होने के बाद भी फ़िट और खूबसूरत दिखते हैं। डैड तो पुराने ज़माने के हीरो को टक्कर दे दें और मॉम मधुबाला जैसी हैं। बहन भी क्यूट है, मॉम पर गई है और दोनों भाई भी हैंडसम हैं।"
सबके बारे में सोचते हुए रिद्धिमा के लबों पर मुस्कान थी और सौम्या हैरान थी।
"मतलब ये गुड लुक्स, स्मार्टनेस उनके जीन्स में शामिल है।"
"हम्म।"
रिद्धिमा ने हामी भरी और फ़्लैट का दरवाज़ा खोलकर अंदर चली आई।
"एक बात तो बता, तूने मुझे ऐसा क्यों कहा कि तेरा देवर मेरी पहुँच से बाहर है? वो रिच फैमिली से बिलॉन्ग करता है इसलिए...?"
रिद्धिमा लिविंग रूम में लगे सोफ़े की बैक से टेक लगाए बैठी थी। सौम्या भी उसके बगल में आकर बैठ गई। उसके सवाल सुनकर रिद्धिमा ने आँखें मूंदे हुए ही जवाब दिया।
"नहीं... बात रिच या मिडिल क्लास फैमिली की नहीं है। अगर ऐसा होता तो मैं उस घर में नहीं होती।"
"रहने दे तू तो...तू भी कुछ कम नहीं है। तेरे पापा इतने बड़े ज़मींदार हैं। इतना पैसा है तुम्हारे पास कि सात पुश्तें बैठकर ऐश की ज़िंदगी जी सकती हैं। तेरा खुद का पैकेज लाखों में है। बस तू दिखाती नहीं, वरना अमीर तो तू भी कुछ कम नहीं।"
सौम्या की बात सुनकर रिद्धिमा के लबों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई।
"तेरे मॉम-डैड की गिनती भी अमीरों में ही होती है, वो तो तू उनके साथ नहीं रहती। लाखों का पैकेज तो तेरा भी है। तुझमें और मुझमें कोई फ़र्क तो नहीं।"
रिद्धिमा की बात सुनकर सौम्या के चेहरे पर कुछ अजीब से भाव उभर आए।
"उनकी बात मत किया कर मेरे सामने।"
सौम्या के शब्द रिद्धिमा के कानों में पड़े और उसने एकाएक अपनी आँखें खोल दीं।
"सॉरी यार, इंटेंशनली नहीं कहा था, फ़्लो-फ़्लो में निकल गया।"
रिद्धिमा कुछ टेंशन में लगने लगी थी। शायद उसने कुछ ऐसा कह दिया था, जो उसे नहीं कहना था। उसे यूँ परेशान देखकर सौम्या फीका सा मुस्कुरा दी।
"इट्स ओके...तु उनकी बात छोड़ और मुझे ये बता कि तूने ऐसा क्यों कहा कि वो मेरी पहुँच से बाहर है? अगर वो हैंडसम और गुड लुकिंग है तो खूबसूरत तो मैं भी कुछ कम नहीं हूँ। जानती नहीं है कितने दीवानें हैं मेरे...जो मेरे पीछे लाइन लगाए खड़े अपनी टर्न का इंतज़ार कर रहे हैं, बस एक इशारा और वो अपना सब कुछ मुझ पर कुर्बान करने को तैयार हो जाएँगे।"
सौम्या ने बड़ी ही अदा से अपनी खूबसूरती का प्रदर्शन किया और खुद पर इतराने लगी। यकीनन खूबसूरत तो थी वो और साथ ही बहुत प्यारी भी लग रही थी।
सौम्या की ये बात सुनकर रिद्धिमा मुस्कुरा दी। "जानती हूँ मैडम, कि आपके चाहने वालों की लम्बी कतार लगी है और अपनी खूबसूरती के लिए बहुत फ़ेमस हैं आप। आपके दीवानों की लिस्ट तो इतनी लम्बी है कि मुझे ये तक याद नहीं रहता कि कल आप किसके साथ थी और आज किसके साथ है।...तेरे बारे में सब जानती हूँ, तभी तो कह रही हूँ कि मेरा देवर तेरी पहुँच से बाहर है। तुम दोनों दो ओपोजिट पोल्स हो, जिनका मिलना नामुमकिन है, इसलिए उसका ख्याल भी अपने मन में मत लाओ।"
अभी भी रिद्धिमा उसे चेतावनी ही दे रही थी और यही सौम्या को बर्दाश्त नहीं हो रहा था।
"क्यों भई...तू ऐसे क्यों कह रही है? आखिर कमी क्या है मुझमें जो तू अपने देवर से दूर रहने कह रही है?"
"तुम दोनों बिल्कुल अलग हो। तू लड़कों को कपड़ों जैसे बदलती है। एक हफ़्ते से ज़्यादा किसी एक लड़के के साथ नहीं रह सकती। तेरे लिए फ़्लर्टिंग, डेटिंग फ़न है।...प्यार, मोहब्बत, लाइफ़ टाइम कमिटमेंट जैसे शब्दों पर तुझे विश्वास ही नहीं है।...तू एन्जॉय करती है और जब तेरा मन भर जाता है तो पुराने वाले को छोड़कर किसी नए के साथ इन्वॉल्व हो जाती है।...हालाँकि मैं जानती हूँ कि इतने लड़कों को डेट करने के बाद भी तूने कभी किसी के साथ अपनी लिमिट्स क्रॉस नहीं की है और बहुत बार यही तेरे ब्रेकअप की वजह भी बनी है। तुझे लड़के भी ऐसे ही मिले हैं जिनके साथ सिर्फ़ टाइम पास किया जा सकता है, ज़िंदगी नहीं बिताई जा सकती।
पर इवान तुझसे बिल्कुल अलग है। वो डेटिंग-सेटिंग, टाइम पास से दूर रहता है। वो ट्रू लव और लाइफ़ टाइम वाले कमिटमेंट पर विश्वास रखता है और एक ऐसी स्पेशल लड़की के इंतज़ार में है, जिसके साथ वो अपनी पूरी लाइफ़ बिता सके।"
रिद्धिमा इस वक़्त काफी संजीदा लग रही थी, जबकि सौम्या हैरान थी और फटी आँखों से बेयकिनी से उसे देख रही थी।
"मतलब तू कहना चाहती है कि तेरे उस हैंडसम देवर की कोई गर्लफ़्रेंड नहीं है, वो किसी लड़की के साथ रिलेशनशिप में नहीं रहा। इतने कमाल के लुक्स और पर्सनैलिटी के बावजूद, अब तक सिंगल है।"
"हम्म...यही कह रही हूँ मैं।"
"और तू ये बात इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकती है? जबकि तू कुछ दिन पहले ही उससे मिली है।"
सौम्या ने भौंह उठाते हुए सवाल किया। उसके लिए इस बात पर विश्वास करना नामुमकिन सा लग रहा था। रिद्धिमा ने सौम्यता से मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"विश्वास कर ले और अब उसमें दिलचस्पी लेना बंद कर।"
"दिलचस्पी का तो पता नहीं, पर अब मैं तेरे इस देवर के बारे में जानने के लिए क्यूरियस बहुत हूँ। मैंने आज तक ऐसा लड़का नहीं देखा जो आज के टाइम में इतने गुड लुकिंग और अमीर होने के बावजूद लड़कियों से दूर रहे और अखंड सिंगल हो। अब तो मुझे तेरे इस देवर से मिलना ही पड़ेगा। देखूँ तो सही कि आखिर चीज़ क्या है...?"
सौम्या मन ही मन इवान के बारे में सोचते हुए रहस्यमयी अंदाज़ में मुस्कुराई। उसके चेहरे के एक्सप्रेशन देखकर रिद्धिमा के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं।
"सोमु, क्या चल रहा है तेरे शैतानी दिमाग में...?"
"कुछ नहीं चल रहा यार, मैं बस सोच रही थी कि तेरी बातों से तेरा ये देवर बड़ा इंटरेस्टिंग लग रहा है।"
"मैंने कहा न तुझे, इतना इंटरेस्ट मत ले उसमें। वो उन लड़कों जैसा नहीं है जिनके साथ तू अब तक रिलेशनशिप में रही है।"
"अरे तो मैं कौन सा उसके साथ कुछ करने जा रही हूँ, मैं तो बस सोच रही हूँ कि क्या आज के टाइम में भी ऐसे लड़के होते हैं?"
"ऑफ़कोर्स होते हैं।"
"पर ऐसा भी तो हो सकता है कि वो जैसा दिखता और दिखाता है वैसा हो न, बस तुझ पर अच्छा इम्प्रेशन डालने की कोशिश में तुम्हें ऐसी बात कह दी हो और तुमने आँख बंद करके उस पर विश्वास कर लिया।"
"अगर ऐसा है भी तो इससे तेरा और मेरा तो कुछ नहीं जाता है, इसलिए अपने दिमाग से उसका ख्याल निकाल दे।"
रिद्धिमा ने संजीदगी से उसे समझाना चाहा और सौम्या मुस्कुराकर बात टाल गई। कुछ तो चल रहा था उसके दिमाग में और इवान अब उसका टारगेट बन चुका था।
"अच्छा, तू ये सब छोड़ और मुझे ज़रा ये बता कि तेरी शादी तो किसी शिखर शेखर से होने वाली थी न, फिर अचानक ये क्या हो गया?...और तूने तो कहा था कि तू किसी कीमत पर शादी नहीं करेगी। भागने की प्लानिंग भी कर ली थी तूने, तभी तो मुझे भी वहाँ नहीं आने दिया था...फिर अब अचानक क्या हो गया?...किसके साथ फेरे ले आई तू...?"
कौन है ये शिखर? और क्या लगता है आपको सौम्या के दिमाग में क्या चल रहा है और क्या करने वाली है वो इवान के साथ? क्यों है सौम्या ऐसी? यहाँ भी कुछ राज़ छुपे हैं जिन पर से पर्दा वक़्त के साथ उठाया जाएगा।
"अच्छा, तू ये सब छोड़ और मुझे ज़रा ये बता कि तेरी शादी तो किसी शिखर शेखर से होने वाली थी न? फिर अचानक ये क्या हो गया? और तूने तो कहा था कि तू किसी कीमत पर शादी नहीं करेगी। भागने की प्लानिंग भी कर ली थी तूने, तभी तो मुझे भी वहाँ नहीं आने दिया था... फिर अब अचानक क्या हो गया? किसके साथ फेरे ले आई तू?"
सौम्या ने बड़ी ही चालाकी से बात का रुख मोड़ते हुए रिद्धिमा का ध्यान भटका दिया। उसके सवाल सुनकर रिद्धिमा ने फ्रस्ट्रेशन और दुख भरे निराश स्वर में जवाब दिया।
"बस पूछ मत यार... मेरी किस्मत ही धोखेबाज़ निकली। सब सेट था पर एन वक़्त पर सब गड़बड़ हो गया। मुझे खुद समझ नहीं आया कि आखिर मेरे साथ हुआ क्या? और क्यों? जब तक कुछ समझ पाती मेरी शादी हो चुकी थी। उस इंसान से जिसे मैं जानती तक नहीं थी, जिसे मैंने पहले कभी देखा तक नहीं था... उस शिखर के बच्चे से तो मेरी जान छूट गयी, पर इस चलती फिरते ज्वालामुखी के चंगुल में फँस गयी मैं, जो ड्रैकुला जैसे बिना स्ट्रॉ लगाए ही मेरा खून पीता रहता है, बात-बात पर ऐसे भड़क जाता है जैसे मैंने उसकी भैंस चुरा ली हो।"
"मुझे कहता है कि वो मुझे अपनी वाइफ नहीं मानता... तो मैं कौन सी उसकी वाइफ बनने को मरी जा रही थी, जो मुझ पर रौब जमाएगा और मैं खामोशी से सुनती जाऊँगी? मैं भी डँट कर उसके सामने खड़ी हो जाती हूँ। उसके शब्दों के तीखे बाणों का बराबर जवाब देती हूँ। आखिर उसे भी तो पता चले कि उसका पाला किसी ऐरी-गैरी कमज़ोर लड़की से नहीं... बल्कि रिद्धिमा भारद्वाज से पड़ा है।"
गर्व से सीना चौड़ा करते हुए वो खुद पर इतराई। श्रेयस से हुई बहस याद करते हुए उसका मन कड़वाहट से भर गया था। पर खुद पर गर्व था उसे। सौम्या पहले तो उसकी बात सुनकर चौंक गयी, फिर गहराई से उसकी कही बात के बारे में सोचते हुए सवाल किया।
"तेरे कहने का मतलब हुआ कि जैसे तू इस रिश्ते से खुश नहीं है, ये रिश्ता तेरी मर्ज़ी से नहीं हुआ। वैसे ही इस रिश्ते में तेरे पति की भी मर्ज़ी शामिल नहीं थी, इसलिए वो तुझे अपनी वाइफ के रूप में एक्सेप्ट नहीं कर रहा।"
"हाँ, ऐसा ही कुछ है... तुझे पता है इतना बेकार आदमी है न वो? हमेशा ऐसी सड़ी हुई, मनहूसों जैसी शक्ल बनाकर घूमता रहता है कि देखकर ही मन करता है कि उसके मुँह पर ही वोमिट कर दूँ। इतना गुस्सा करता है, चिल्लाता है कि सर फटने लगता है मेरा। अपने घर में किसी से भी बात नहीं कर रहा। शायद नाराज़ है..."
"अगर वो शादी नहीं करना चाहते थे तो की क्यों? तूने कभी ये नहीं पूछा उनसे?"
"कहाँ से पूछूँगी? वो सारा दिन तो घर से बाहर रहता है और जितनी देर रूम में रहता है, ऐसा मुँह सड़ाकर रहता है कि देखना का भी मन न करे। गुस्सा तो चौबीसों घंटे उसकी नाक पर रहता है। जब मिलता है, किसी न किसी बात पर भड़क ही जाता है, फिर हमारी लड़ाई हो जाती है। इंसानों जैसे बैठकर शांति से बात तो कभी हुई ही नहीं हमारी अब तक।"
"और फिर अब इस बात का मतलब ही कहाँ रह गया है? किसी भी वजह या मजबूरी में की हो पर शादी तो अब हो गयी हमारी... लेकिन ये बात है, वो चिढ़ता बहुत है मुझसे। उसे लगता है कि मैं गाँव की गँवार हूँ, जिसे उसकी फैमिली ने जबर्दस्ती उसके सर पर सवार कर दिया है। मुझे देखना भी पसंद नहीं करता।"
"इसका मतलब हुआ कि उन्हें तेरे बारे में बहुत बड़ी गलतफहमी हो गयी है कि तू गाँव की लड़की है। वो जानते ही नहीं कि असल में तू क्या है?"
सौम्या ने आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखा तो रिद्धिमा ने सर हिलाते हुए हामी भर दी।
"Hmm"
"मतलब तू ये जानती है, फिर तूने अब तक जीजू की गलतफहमी दूर करने और उन्हें अपने बारे में बताने की कोशिश क्यों नहीं की?"
सौम्या ने चौंकते हुए सवाल किया, जिसे सुनकर रिद्धिमा एकाएक उस पर भड़क उठी।
"वो राक्षस जीजू नहीं है तेरा... और मैं क्यों बताने लगी उसे कुछ भी? उसने मुझे अनपढ़ गँवार कहकर मेरी इंसल्ट की। क्या मैं अनपढ़ गँवारों जैसी दिखती हूँ?"
लो भई रिद्धिमा जी तो अलग ही कश्ती पर सवार थीं। पहले दिन कहीं श्रेयस की बातों को वो दिल पर ले चुकी थी। पल भर ठहरते हुए उसने मुँह ऐंठते हुए आगे कहना शुरू किया।
"मैं उसे कभी अपने बारे में कुछ नहीं बताऊँगी। समझते रहे खुद से मुझे जो भी समझना है। बहुत ओवर स्मार्ट समझता है खुद को, किसी को भी अपने हिसाब से बिना कुछ जाने जज करके, कोई भी परसेप्शन बना लेता है... वैसे भी मुझे कौन सी अपनी सारी ज़िंदगी उस अकडू, बददिमाग़, अड़ियल, बदतमीज़ और सड़ियल आदमी के साथ बर्बाद करनी है? बस एक बार अपॉइंटमेंट लेटर आ जाए, फिर मैं फ़्लाइट में बैठूँगी और फुर्र हो जाऊँगी... अपने सपनों को उड़ान दूँगी। उसके बाद सड़ता रहे वो यहाँ अकेले मेरी बला से..."
"मतलब तू सब छोड़कर चली जाएगी?" रिद्धिमा की प्लानिंग सुनकर सौम्या बुरी तरह से चौंक गयी। वहीं रिद्धिमा ने बड़ी ही लापरवाही से हामी भर दी।
"और नहीं तो क्या? तुझे क्या लगा, मैं इस अनचाहे बंधन को निभाने में अपनी ज़िंदगी बर्बाद करूँगी? उस अकडू आदमी के लिए अपने सपनों को छोड़ दूँगी? बिल्कुल नहीं। बस कुछ वक़्त उसे झेल लूँ, उसके बाद मैं यहाँ से बहुत दूर चली जाऊँगी। जाते जाते डिवोर्स दे जाऊँगी, फिर वो भी इस जबर्दस्ती के अनचाहे बंधन से आज़ाद हो जाएगा और मैं भी यहाँ से बहुत दूर चली जाऊँगी।"
उसने पूरी प्लानिंग कर रखी है। सौम्या के मन में अब एक साथ बहुत सी बातें चलने लगी थीं और उसके चेहरे के भाव भी बदलने लगे थे।
"अच्छा, तो तूने पूरी प्लानिंग की हुई है, पर सोचा है कि अगर जो तू चाहती है वो नहीं हुआ तो क्या करेगी? अगर तेरा अपॉइंटमेंट लेटर आने से पहले तेरे दिल में उनके लिए फीलिंग्स डेवलप हो गयीं या उन्होंने इस रिश्ते को तोड़ने से इनकार कर दिया तो क्या करेगी? अपनी और उनकी फैमिली को क्या कहेगी? ये ज़िंदगी है, यहाँ प्लानिंग के हिसाब से कुछ भी नहीं होता, सोचा है अगर इस बार भी तेरी प्लानिंग फ़ेल हो गयी तो क्या करेगी तू?"
सवाल उसने बिल्कुल सही उठाए थे, जिसने रिद्धिमा को भी सोचने पर मजबूर कर दिया था। उसे गहरी सोच में लीन देखकर सौम्या ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए सौम्य स्वर में कहा।
"अच्छा, ये सब छोड़ और ये तो बता कि वो लकी पर्सन है कौन?... जिसे बिना कोई एफ़र्ट किए ही मेरी बेस्ट फ़्रेंड मिल गयी है। ज़रा नाम तो पता चले उस इंसान का, जिसका नाम अब तेरे नाम के साथ जुड़ गया है।"
सौम्या ने एक बार फिर बात का रुख बदल दिया था। शायद उसका मूड लाइट करने की कोशिश कर रही थी और कामयाब भी रही थी क्योंकि रिद्धिमा उसका सवाल सुनकर अपनी सारी परेशानी और उलझनें भूल गयी थी।
"श्रेयस... श्रेयस ओबेराय..."
"श्रेयस ओबेराय... ओबेराय इंडस्ट्रीज़ का CEO... वही जो पिछले कई सालों से इंडस्ट्री में छाया हुआ है, हर बिज़नेस अवार्ड को अपने नाम करता आ रहा है, बिज़नेस की दुनिया में हर किसी की ज़ुबान पर बस उसी का नाम होता है। अपने लुक्स और दमदार पर्सनैलिटी के साथ-साथ, अपने टैलेंट और काम करने के अंदाज़ के लिए कितना फ़ेमस है वो... तू उसी श्रेयस ओबेराय की बात कर रही है न, जिसकी एक झलक को लड़कियाँ दीवानी हैं। हर बिज़नेस मैग्ज़ीन के फ़्रंट पर वही होता है..."
सौम्या इतनी हैरान और एक्साइटेड हो गयी थी कि शायद वो श्रेयस की करते-करते दिन से रात ही कर देती, पर उसका ये श्रेयस पुराण सुनकर रिद्धिमा खीझ उठी और उसने बीच में ही उसे टोक दिया।
"हाँ, वही है... जिसे अपने लुक्स पर कुछ ज़्यादा ही घमंड है, पर तू बहुत जानती है उसके बारे में, जबकि मैं तो नाम तक नहीं जानती थी।"
सौम्या उसकी चिढ़ महसूस करते हुए मुस्कुरा उठी।
"जानेमन, श्रेयस ओबेराय इस वक़्त बिज़नेस वर्ल्ड का एक चमकता सितारा है, जिसने बहुत कम वक़्त में वो मुक़ाम हासिल किया है जिसके लिए लोग पूरी ज़िंदगी स्ट्रगल ही करते रह जाते हैं। अपने किलर लुक्स, ढाँसू रौबदार पर्सनैलिटी, तीखे तेवरों और कोल्ड ऑरा के साथ, बिज़नेस मैनेजमेंट की अपनी स्किल्स के लिए बहुत फ़ेमस है वो... जबसे उसने कंपनी जॉइन की है, उसका प्रॉफ़िट 4 गुना हो चुका है और कितनी ही न्यू ब्रांचेज़ खोली है उसने, कितने न्यू फ़ील्ड्स में कदम रखकर अपनी काबिलियत को साबित किया है। कभी तू बिज़नेस न्यूज़ सुने या मैग्ज़ीन पढ़े, तब तो तुझे इस बारे में कुछ पता चले। तुझे तो बस फ़ैशन मैग्ज़ीन और अपनी उस छोटी सी दुनिया से मतलब है..."
"मैं तो सब देखती रहती हूँ। अपडेट रखती हूँ खुद को और इनके कंपनी के एडवर्टाइज़मेंट के सारे कॉन्ट्रैक्ट हमें ही मिलते हैं, हमारी कंपनी के CEO और इनकी फैमिली... शायद फ़्रेंड्स हैं, शूटिंग के सिलसिले में इनका आना-जाना लगा ही रहता है। मैं भी कई बार मिली हूँ इनसे। एक सक्सेसफ़ुल और काबिल बिज़नेसमैन है, जो अपने काम को लेकर बहुत सीरियस रहते हैं, गुस्से के थोड़े तेज़ हैं पर इतने भी बुरे नहीं जितना तू बता रही है। कई बार इन्होंने मेरी मदद भी की है... पर्सनली मैं इनकी बहुत रिस्पेक्ट करती हूँ और सच कहूँ तो ये एक बहुत अच्छे इंसान हैं। तेरे लायक़ हैं, अगर तू इनके साथ सेटल हो जाती है तो कम से कम मुझे तो बहुत खुशी होगी।"
सौम्या अब सीरियस थी, पर उसकी बातें सुनकर रिद्धिमा झुंझला उठी थी और अजीबोगरीब मुँह बना रही थी।
"लड़कों के मामले में मुझसे ज़्यादा एक्सपीरियंस है मुझे। हमारी कंपनी में जितनी फ़ीमेल एम्प्लॉयी हैं न, सब की सब इनकी दीवानी हैं, फिर चाहे वो सिंगल हों, मिंगल हों या डिंगल हों... जब ये कंपनी में आते हैं तो बस बहाने ढूँढती हैं इनसे मिलने और चांस मारने के... पर आज तक इन्होंने किसी की ओर नज़र उठाकर नहीं देखा। कैरेक्टर अच्छा है इनका और फैमिली भी अच्छी है। शादी तो हो ही गयी है तो इस रिश्ते को एक मौका देने में कोई बुराई नहीं है।"
"मेरे अकेले के कुछ भी करने से क्या होगा? वो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं करता इसलिए अब वो अच्छा हो या बुरा, इससे कुछ फ़र्क़ ही नहीं पड़ता। ये शादी भी कोई मायने नहीं रखती।"
रिद्धिमा ने नाक सिकोड़ते हुए अजीब सा मुँह बनाया। सौम्या जो उसे समझाने की कोशिश कर रही थी, अचानक ही उसके दिमाग में कुछ आया और वो अपना फ़ोन निकालकर कुछ करने लगी।
"अब तू फ़ोन में क्या करने लगी...?"
रिद्धिमा ने उसके फ़ोन में झाँकना चाहा पर सौम्या दूसरी ओर घूम गयी और फ़ोन के कीबोर्ड पर जल्दी-जल्दी अपनी उँगलियाँ चलाते हुए व्यस्तता भरे स्वर में जवाब दिया।
"एक मिनट रुक, अचानक ही कुछ आया मेरे दिमाग में, एक बार कन्फ़र्म कर लूँ फिर बताती हूँ तुझे।"
कुछ ही मिनट बाद उसने कुछ ऐसा देखा कि उसकी आँखें हैरानी से फैल गयीं और तुरंत ही उसने फ़ोन की स्क्रीन रिद्धिमा की ओर घुमा दी।
"ए रिद्धिस्... तूने ये फ़ोटोज़ देखीं? इसमें जीजू उस मॉडल के साथ नज़र आ रहे हैं... क्या नाम है उसका...?"
"कायरा" सौम्या अभी नाम याद ही कर रही थी कि रिद्धिमा ने जवाब दे दिया और सौम्या की हैरत भरी निगाहें उसकी ओर घूम गयीं।
"मतलब तू जानती है..."
"Hmm... तुझे क्या लगता है, आज के मॉडर्न एज में, जहाँ सब कुछ फ़ोन पर अवेलेबल है... मुझसे ये न्यूज़ छुप सकती है?"
"ये बात तो ठीक है पर इस आर्टिकल में जो कर रहे हैं वो..."
"शायद ये सच है... ऐसा मुझे लगता है।"
"यार, रूमर्स तो फैले थे, मैंने भी सुना था पर उस मॉडल ने और जीजू दोनों ने उसे झूठा कह दिया था। फिर तुझे ऐसा क्यों लगता है कि ये सच है?"
"बस लगता है। अभी तक श्योर नहीं हूँ और सच कहूँ तो मुझे इन सब बातों से कोई मतलब भी नहीं क्योंकि मैं जानती हूँ कि इस रिश्ते का कोई फ़्यूचर नहीं। दो अंजान लोगों को फ़ोर्स करके मंडप पर बिठा दिया जाए, इसका मतलब ये तो नहीं है कि वो दोनों साथ में ज़िंदगी भी बिता लेंगे।"
रिद्धिमा का जवाब सुनकर सौम्या का चेहरा ही उतर गया। श्रेयस से शादी की बात सुनकर वो जितनी खुश और एक्साइटेड थी अब उतनी ही मायूस हो गयी थी।
"इससे अच्छा तो तू अपने बॉस से ही शादी कर लेती। मैंने तुझे कहा भी था कि अगर अंकल इतना ही तेरी शादी के पीछे पड़े हैं, तुझे ज़्यादा फ़ोर्स कर रहे हैं तो अपने बॉस को ही एक मौका दे दे। कितना तो चाहता है वो बेचारा तुझे और इतना अच्छा और शरीफ़ है कि झिझक के वजह से आज तक उसने कन्फ़ेशन तक नहीं किया। पर कितना तो ख़्याल रखता था वो तेरा। अब बेचारे को पता चलेगा कि तेरी शादी हो गयी है तो दिल ही टूट जाएगा उसका। यहाँ तुझे कुछ मिलना नहीं और वो भी हाथ से चला जाएगा।"
सौम्या का दिमाग अलग ही दिशा में दौड़ रहा था। वो दुखी भी थी और अफ़सोस भी जता रही थी पर उसकी बातें सुनकर रिद्धिमा शॉक्ड थी, आँखें फाड़े और मुँह खोले हैरान-परेशान सी उसे देखे जा रही थी। सौम्या जैसे ही चुप हुई रिद्धिमा ने उसके सर पर चपत लगा दिया।
"ये बकवास बातें बंद कर। मेरी चिंता छोड़ और अपने..."
"बाबू शोना जादू टोने पर ध्यान दे... देख याद कर रहा है तुझे कितना।"
रिद्धिमा ने उसके फ़ोन की ओर इशारा किया, जिस पर किसी का फ़ोन आ रहा था और उठकर किचन की ओर चली गयी। सौम्या ने स्क्रीन पर झलकता नाम देखा तो खीझते हुए अपना फ़ोन ही बंद कर दिया और उसके पीछे-पीछे दौड़ गयी।
आगे.....
अब ये एक नया दीवाना कौन आ गया रिद्धिमा का? उसकी एंट्री कहानी में कौन सा नया मोड़ लेकर आएगी और क्या वाकई रिद्धिमा के प्लैन्स पूरे होंगे?
सुबह से शाम हो गई थी। दोनों दोस्त बेसुध सी बेड पर पड़ी हुई थीं। सामने टेबल पर स्नैक्स के खाली पैकेट, कोल्ड ड्रिंक की बोतलें पड़ी थीं, साथ ही पिज़्ज़ा के डब्बे भी बिखरे हुए थे। खा-पीकर दोनों बेड पर पड़ी बातें कर रही थीं। बड़े दिनों बाद मिली थीं, तो उनकी बातें खत्म होने में ही नहीं आ रही थीं।
"यार रिद्धि, कितना अच्छा हो जाता अगर जीजू उस छिपकली के साथ इन्वॉल्व न होते और तुम दोनों एक हैप्पी मैरिड लाइफ एन्जॉय करते।"
सौम्या ने अफ़सोस भरे स्वर में कहा। उसकी बात सुनकर रिद्धिमा के चेहरे पर अजीब सी उदासी छा गई।
"तू कब तक यही सोचती रहेगी? मुझसे ज़्यादा दुख तो तुझे हो रहा है मेरी शादी के टूटने का।"
"दुख तो होगा ना यार। कितने अच्छे हैं वो, हर तरह से तेरे काबिल और मैं तो चाहती ही थी कि तुझे कोई ऐसा ही जेंटलमैन जैसा बंदा मिले, जो तेरे साथ खड़ा हो तो दुनिया जल-भुनकर राख हो जाए। तुझे ऐसा लाइफ़ पार्टनर मिला भी, पर ऐसी ट्रेजडी हो गई कि सब कुछ खड्डे में चला गया।"
बेचारी सच में बहुत दुखी थी। रिद्धिमा अब उसकी ओर पलट गई।
"तू ढूँढ ले ना अपने लिए कोई जेंटलमैन जैसा बंदा, जो विश्वास के काबिल हो और जिसके साथ तू अपनी पूरी ज़िन्दगी बिता सके। कब तक ऐसे भटकती रहेगी?..... तू सैटल हो जाएगी ना, तो सच में मुझे बहुत खुशी होगी।"
रिद्धिमा की बात सुनकर सौम्या हँस पड़ी। ऐसा लगा जैसे उसकी बात हँसी में उड़ा रही हो। रिद्धिमा उसका यह रिएक्शन देखकर उदास हो गई। अजीब बात थी, दोनों दोस्तों को एक-दूसरे की चिंता हो रही थी। दुखी और उदास भी थीं तो एक-दूसरे के लिए, अपनी कोई फ़िक्र ही नहीं थी।
दोनों बात ही रही थीं कि रिद्धिमा का फ़ोन बज उठा। इवान का नाम देखकर उसने तुरंत ही कॉल रिसीव कर ली।
"हैलो इवान..... हाँ, पहुँच गए तुम। बस पाँच मिनट में आ रही हूँ मैं।"
इवान नाम सुनते ही सौम्या के कान खड़े हो गए थे। वह तुरंत उठकर बैठ गई। रिद्धिमा ने कॉल कट करने के बाद जैसे ही निगाहें सामने उठाईं, अपने सामने बैठी सौम्या को देखकर इतना डर गई कि उसके मुँह से चीख निकलते-निकलते बची। अगले ही पल उसने तकिया उठाकर उसके मुँह पर दे मारा।
"कमीनी, डरा दिया मुझे। कैसे मेरे सामने बैठकर घूर रही थी मुझे, अभी मेरा दिल निकलकर बाहर आ जाता।"
तकिये के वार से सौम्या का चेहरा दाएँ मुड़ा, अगले ही पल वह वापस सीधी होकर बैठ गई।
"तेरा देवर आ गया ना?....." रिद्धिमा की बातों को इग्नोर करते हुए उसने सीधे अपने मतलब की बात कही। उसका यह सवाल सुनकर रिद्धिमा के चेहरे के भाव कुछ बदले, भौंह सिकोड़ते हुए उसने शक भरी नज़रों से उसे देखा।
"हम्म.... पर तू क्यों इस बात में इतनी दिलचस्पी ले रही है?"
"कुछ नहीं.... मैं तो बस कहने वाली थी कि उसे भी यहीं बुला ले, थोड़ी देर हमारे साथ रह लेगा, मैं उससे थोड़ी जान-पहचान बढ़ा लूँगी। फिर चली जाना तू।"
सौम्या ने सौम्य सी मुस्कान लबों पर सजाते अपनी पलकें झपकाईं। उसकी बात सुनकर रिद्धिमा तीखी निगाहों से उसे घूरने लगी।
"अपने दिमाग से यह फ़ितूर निकाल दे। कहा था मैंने, इवान में दिलचस्पी मत ले। कोई ज़रूरत नहीं है तुझे उससे जान-पहचान बढ़ाने या मिलने की।"
अबकी बार रिद्धिमा की बात सुनकर और यह रवैया देखकर सौम्या खीझ उठी।
"यार, तेरा टेंपरेरी देवर ही तो है, फिर इतना क्या प्रोटेक्टिव हो रही है तू उसके लिए? एक ट्राई मार लेने दे मुझे, क्या पता तेरी नहीं, मेरी ही लाइफ़ सेट हो जाए।"
रिद्धिमा पहले तो उसकी बात सुनकर चौंक गई, फिर आँखें छोटी-छोटी करके उसे घूरते हुए झल्ला उठी।
"कुछ तो शर्म कर कमीनी, देवर है वो मेरा और तू पहले से किसी और के साथ रिलेशनशिप में है, फिर भी उस पर ट्राई मारने की बात कर रही है।"
"यार, उससे तो दो दिन पहले ही ब्रेकअप हो गया मेरा, पर वो गधा मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रहा।" सौम्या ने अपने एक्स-बॉयफ्रेंड को कोसते हुए बुरा सा मुँह बनाया, पर अब रिद्धिमा ने सख्ती से अपना फैसला सुना दिया।
"मुझे यह सब कुछ नहीं पता। तू इस मामले में बिल्कुल सीरियस नहीं होती....... और इवान को तो तू टेस्ट करना चाहती है, जिसकी इजाज़त मैं तो तुझे कभी नहीं दे सकती।.......... तू बस दूर रहेगी उससे, तुझे मेरी कसम जो तूने उसके साथ कोई उल्टी-सीधी हरकत करने की सोची भी। अगर तेरे वजह से उसे चोट पहुँची या हर्ट हुआ तो मैं छोड़ूँगी नहीं तुझे........ इसलिए इन सबके चक्कर में हमारी सालों पुरानी दोस्ती खराब हो, इससे बेहतर है कि तू उससे दूर रहे।"
"यार, यह तो गलत बात है। तू अपने उस दो दिन पुराने देवर के लिए मुझे धमकी दे रही है......... और मैं कौन सा उसका रेप-शेप करने जा रही हूँ, मैं तो बस यह देखना चाहती हूँ कि जो तूने कहा वो सच है या उसने तुझे अपनी झूठी बातों के लपेटे में लेकर अपने तरफ़ कर लिया है।" रिद्धिमा की धमकी सुनकर सौम्या भी झुँझला गई। उसकी नाराज़गी भी अपनी जगह ठीक थी और रिद्धिमा की बात थी सही थी।
"यार सोमु, प्लीज़ ना.... मेरी ज़िन्दगी में पहले ही बड़े रायते फैले हुए हैं, जो मेरे समेटने में भी नहीं आ रहे। अब मेरे लिए कोई नई मुसीबत खड़ी मत कर।" रिद्धिमा ने अब उसकी ज़िद देखकर बुरी तरह चिढ़ गई। सौम्या ने उसे यूँ नाराज़ और परेशान होते देखा तो तुरंत ही उसकी बात मान गई।
"अच्छा, चल नहीं करती कुछ...... बख्शा दिया मैंने तेरे प्यारे देवर को। अब नीचे तो चल, इंतज़ार कर रहा होगा ना वो तेरा।"
रिद्धिमा फिर चौंकी, आँखें फाड़कर उसने पहले टाइम देखा फिर सौम्या को कोसते हुए बेड से नीचे उतरने लगी।
"ओह.... सब तेरे वजह से हो रहा है। तूने मुझे यहाँ अपनी इन बेकार की बातों में लगा लिया और वहाँ वो बेचारा कब से खड़ा-खड़ा मेरा वेट कर रहा होगा। अब जल्दी अपना समान समेट, वरना मैं तुझे अंदर ही लॉक करके चली जाऊँगी।"
रिद्धिमा ने एक बार फिर उसे धमकाया और हड़बड़ी में कमरे से बाहर निकल गई। अपना पर्स, फ़ोन, सैंडल सब समेटते हुए सौम्या भी उसके पीछे भागी। दोनों दोस्त हड़बड़ी में दौड़ते-भागते लिफ्ट में पहुँचीं। सैंडल पहनीं, एक-दूसरे के बाल ठीक किए, अपना हुलिया दुरुस्त किया, इतने में लिफ्ट ग्राउंड फ़्लोर पर पहुँच गई।
अपार्टमेंट के गेट पर पहुँचते ही उन्हें सामने ही कार के पास इवान खड़ा नज़र आ गया। रिद्धिमा ने एक बार फिर आँखों ही आँखों में सौम्या को धमकाया, जिस पर उसने किसी आज्ञाकारी बच्चे जैसे सर तो हिला दिया, पर अगले ही पल उसकी आँखें शरारत से चमक उठीं और लबों पर चंचल रहस्यमयी मुस्कान बिखर गई। कुछ तो चल रहा था उसके दिमाग में, जिससे रिद्धिमा बिल्कुल अनजान तेज़ कदमों से इवान की ओर बढ़ रही थी।
"सॉरी, मुझे थोड़ा टाइम लग गया और तुम्हें यहाँ खड़े होकर मेरा इंतज़ार करना पड़ा।"
रिद्धिमा ने आते ही माफ़ी माँगी। बड़ी ही आकवर्ड सी फ़ीलिंग थी यह। आते-जाते लोग उन्हें ही देख रहे थे और वह कुछ शर्मिंदा थी, जबकि इवान बेफ़िक्र था। उसे तो जैसे किसी चीज़ से कोई फ़र्क ही नहीं पड़ रहा था। वह बेपरवाही से मुस्कुरा दिया।
"इट्स ओके भाभी, इतना भी इंतज़ार नहीं करना पड़ा मुझे।"
रिद्धिमा उसका यह जवाब सुनकर फ़ीका सा मुस्कुरा दी। इवान की नज़र अब रिद्धिमा के बगल में खड़ी सौम्या पर पड़ी जो जाने कब से उसे ही देखे जा रही थी, शायद मौके की तलाश में थी और इवान की निगाहें खुद की ओर मुड़ते ही वह बोल पड़ी।
"हाय..... आई एम सौम्या.... रिद्धिमा की बेस्ट फ़्रेंड।"
मौके पर चौका मारा था उसने। रिद्धिमा सारे रास्ते उसे समझाती आई थी कि बाहर निकलते ही वहाँ से चली जाए, पर उसने तो इवान से बात करने का फैसला कर लिया था, सो डटी रही।
रिद्धिमा को भी अब एहसास हुआ कि सौम्या तो यहीं है और इसके साथ ही उसके चेहरे पर चिंता के भाव उभर आए।
वहीं इवान ने उसके आगे बढ़े हाथ को देखा और मुस्कुराते हुए उसे थाम लिया।
"हाय...... इवान..... भाभी का देवर।"
क्या इंट्रो दिया था उसने, सौम्या खिलखिलाकर हँस पड़ी।
"भाभी के देवर की और कोई पहचान नहीं?"
"है तो सही....... पर आप भाभी की फ़्रेंड हैं तो मैं उनका देवर..... इंट्रो देने का यही सही तरीका लगा मुझे।"
बढ़िया तरीके से बात घुमाई थी उसने। रिद्धिमा और सौम्या दोनों ही बस उसे देखते ही रह गए। जबकि इवान अब भी मुस्कुरा रहा था।
"भाभी के देवर को बातें घुमाना भी आता है।"
"बातें बनाना और बढ़ाना भी आता है।" इवान एक बार फिर मुस्कुराया और इस बार सौम्या के लबों पर भी हल्की मुस्कान उभर आई।
"इंटरेस्टिंग..... तो और क्या-क्या आता है भाभी के देवर को...... बातें बनाने और घुमाने के साथ, लड़कियाँ पटाना और घुमाने का हुनर भी है क्या?"
घुमा-फिराकर सौम्या आखिर मुद्दे पर आ ही गई थी और तीखी सी मुस्कान उसके लबों पर बिखरी थी, जबकि रिद्धिमा अब गुस्से भरी निगाहों से उसे घूरते हुए लगातार उसके हाथ को दबाते हुए उसे चुप होने का इशारा कर रही थी।
इवान पहले तो उसकी बात और अंदाज़ में कुछ उलझा, फिर नासमझी से सर हिलाते हुए बोला।
"लड़की तो आज तक मैंने ना पटाई या घुमाई, अपने इस हुनर से तो मैं वाकिफ़ नहीं।"
"अच्छा, तो मतलब जो मैंने सुना वो बात सच है?"
"अब आपने क्या सुना और क्या सच है, क्या झूठ.... यह तो आप ही जानती होंगी।"
"मैंने सुना है कि कोई गर्लफ्रेंड नहीं तुम्हारी, आज तक किसी लड़की के साथ रिलेशनशिप में नहीं रहे.... अखंड सिंगल हो......... अपनी ड्रीम गर्ल की तलाश में हो। वो क्या था...... हाँ, याद आया राम जी ने लिया था ना एक पत्नी व्रत, वैसे ही तुमने लिया है एक लड़की व्रत.... मतलब कोई एक ही लड़की तुम्हारी ज़िन्दगी में आएगी जिसके साथ तुम अपनी सारी ज़िन्दगी बिताओगे....... सच है क्या?........."
सौम्या की जलेबी जैसी गोल-गोल बातें सुनकर इवान पहले कुछ उलझा, फिर उसकी बातों का मतलब समझते हुए उसकी हैरानी भरी निगाहें रिद्धिमा की ओर घूम गईं। जिसने सौम्या की हरकतों से शर्मिंदा होकर बेबसी से अपनी आँखें भींच ली थीं।
"सच है।"
"मतलब इतने हैंडसम, गुड लुकिंग और हीरो जैसी बॉडी होने के बावजूद सच में तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं?...... अच्छे खासे दिखते हो, अमीर हो..... फिर अब तक बचे कैसे रह गए?"
सौम्या ने ज़रा हैरानी जताई और आँखें चढ़ाए शक भरी नज़रों से उसे देखते हुए, कुटिलता से मुस्कुरा दी। इवान सब समझ रहा था कि वह करना क्या चाह रही है।
"बचा रह नहीं गया, बल्कि मैंने खुद को बचाकर रखा है। अपनी ड्रीम गर्ल के लिए। मेरे लुक्स पर फ़िदा तो अब तक बहुत लड़कियाँ हुई हैं, इस बॉडी को चाहने वालियों की भी लंबी कतार लगी है, मेरे सरनेम के पीछे भी कई लड़कियाँ पागल हैं, मेरे साथ फ़्लर्ट करने की कोशिश भी बहुतों ने की है, प्रपोज़ करने वालियों की तो गिनती ही नहीं......... पर अब तक मुझे कोई एक भी नहीं मिली, जो मुझमें दिलचस्पी ले। जो इवान ओबेराय को नहीं, सिर्फ़ इवान को चाहे, जिसे मेरे लुक्स या बॉडी नहीं, मेरे दिल से प्यार हो।....... जिस दिन ऐसी लड़की मिल जाएगी, यह अखंड सिंगल का जो टैग आपने मुझ पर लगाया है वह हट जाएगा।"
चेहरे पर गंभीर भाव लिए इवान ने बेहद संजीदगी से अपनी बात कही। रिद्धिमा आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी और सौम्या तो पलकें तक झपकना भूल गई। बस उसकी उन हल्की नीली आँखों में खोकर रह गई।
इवान उसकी निगाहों को खुद पर ठहरे देखकर मुस्कुराया और इसके साथ ही सौम्या ने अपनी पलकें झपकाते हुए उस पर से निगाहें फेर लीं। उसके कॉन्फिडेंस से भरे चेहरे पर कुछ अजीब से भाव उभरे, यह देखकर इवान की मुस्कराहट गहरा गई।
"और कुछ जानना है आपको मेरे बारे में?"
इवान के सवाल पर सौम्या की निगाहें एक बार फिर उसकी ओर उठ गईं।
"तुम स्ट्रेट हो?" एकदम से सौम्या ने जो सवाल किया उसे सुनकर जहाँ रिद्धिमा को खांसी आ गई, वहीं चौंकने के साथ-साथ इवान के लब बेपरवाही से मुस्कुरा उठे।
"फ़िलहाल तक तो मैं बिल्कुल स्ट्रेट हूँ। मुझे लड़कियों में ही इंटरेस्ट है और आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मैं फ़ादर भी बन सकता हूँ....... तो ऐसी कोई वजह नहीं जिसके वजह से मैं डेट करना अवॉइड करूँ....... सिवाए एक के कि मुझे अभी तक वह लड़की मिली ही नहीं जिसके लिए मेरे दिल में, इस तरह से फ़ीलिंग्स आए।"
इवान ने साफ़-साफ़ शब्दों में उसके सवाल का जवाब दे दिया। पल भर को इतना स्ट्रेट जवाब सुनकर सौम्या भी सकपका गई, पर मन अब भी सवाल पूछने से बाज़ नहीं आया।
"जब तुम अभी तक कभी किसी लड़की के साथ रिलेशनशिप में ही नहीं गए। कभी किसी को अपने करीब ही नहीं आने दिया, किसी को मौका ही नहीं दिया तो तुम्हें कैसे पता चलेगा कि कौन सी लड़की तुम्हारी ड्रीम गर्ल है?"
"इस सवाल का जवाब आपको खुद मिल जाएगा, जब आपको वो लड़का मिलेगा जो सिर्फ़ आपके लिए बना होगा।" इवान ने हल्की मुस्कान लबों पर सजाते हुए जवाब दिया, फिर रिद्धिमा की ओर पलटते हुए बोला।
"भाभी चलें, मॉम का दो बार फ़ोन आ चुका है। वो इंतज़ार कर रही है आपका।"
रिद्धिमा ने हामी भरी, पर अगले ही पल सौम्या ने कुछ ऐसा किया जिससे रिद्धिमा और इवान दोनों ही चौंक गए।
जल्द ही.......
हमारे ध्रुव के ये दो पोल जो एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं और अलग ही मेंटैलिटी के साथ ज़िन्दगी जीते हैं, कैसे उनकी किस्मत एक-दूसरे की किस्मत से उलझेगी, देखना दिलचस्प होगा।
सॉरी इवान, वो बातों-बातों में मेरे मुँह से तुम्हारी बात निकल गई। सौम्या यह जानकर हैरान थी कि तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है और बस उसी वजह से वह ऐसे बिहेव कर रही थी। वरना वह ऐसी नहीं है।
बेचारी रिद्धिमा अब भी सौम्या के व्यवहार को लेकर शर्मिंदा थी, जबकि इवान बिल्कुल रिलैक्स लग रहा था।
"इट्स ओके भाभी, मुझे आपकी फ्रेंड की बातों का बिल्कुल भी बुरा नहीं लगा तो आप भी रिलैक्स हो जाइए।"
रिद्धिमा ने सर हिलाया और गहरी साँस छोड़ते हुए खिड़की से बाहर देखने लगी। जबकि इवान के ज़हन में अब भी सौम्या और उससे हुई बातें घूम रही थीं और उसके लबों पर हल्की मुस्कान उभर आई थी।
बोर होते हुए रिद्धिमा ने निगाहें बेपरवाही से इधर-उधर घुमाईं। इवान को खुद में ही मुस्कुराते देखकर वह चौंक गई।
"अब तुम्हें क्या हुआ? ये अकेले-अकेले किस खुशी में मुस्कुरा रहे हो?"
इवान ने उसका सवाल सुनकर एक नज़र उसे देखा, फिर वापस सामने की ओर निगाहें घुमाते हुए मुस्कुराकर जवाब दिया।
"सोच रहा था आपकी फ्रेंड भी बिल्कुल आपकी ही जैसी है। आप दोनों का रिएक्शन मेरे बारे में जानने के बाद एक जैसा ही था। वह भी बेझिझक, बेबाकी से अपनी बात कह गई थी।… आई मस्ट से, काफी दिलचस्प पर्सनैलिटी है आपकी फ्रेंड की, बिल्कुल आपकी ही जैसी।"
"पर उसमें और मुझमें एक बहुत बड़ा अंतर है।"
"वो क्या?" इवान ने तुरंत ही निगाहें घुमाकर उसे देखा। रिद्धिमा पल भर को उसके चेहरे को जाँचती निगाहों से देखती रही, फिर मुस्कुराते हुए बोली।
"उसे सच्चे प्यार और कमिटमेंट में विश्वास नहीं है। वह ज़िंदगी को खुलकर जीने में विश्वास करती है और रिलेशनशिप उसके लिए फ़न और टाइम पास का ज़रिया है, जबकि मैं लड़कों से ही दूर रहने और अपने हिसाब से अपनी ज़िंदगी जीने में विश्वास रखती हूँ।"
"और इसकी वजह?"
"वजह तो नहीं बता सकती, पर इतना बता दिया है, यह काफी होना चाहिए तुम्हारे लिए।"
रिद्धिमा बेहद गंभीर लग रही थी। शायद कुछ समझाना चाह रही थी वह इवान को, और इवान उसकी बात सुनकर यूँ मुस्कुराया जैसे उसकी बात समझ गया हो।
"बेटा, आप आ गईं। हम कब से आपका इंतज़ार कर रहे थे।" रिद्धिमा ने घर में कदम रखा ही था कि निलिमा जी ने उसे गले से लगा लिया।
"सॉरी मॉम, बहुत वक़्त बाद फ़्रेंड से मिली थी तो वक़्त का अंदाज़ा ही नहीं हुआ।"
बेचारी रिद्धिमा उन्हें यूँ परेशान होते देखकर शर्मिंदा सी हो गई। जबकि उसके ऐसे माफ़ी माँगने पर निलिमा जी मुस्कुरा उठीं।
"कोई बात नहीं बेटा। हम शिकायत थोड़े कर रहे हैं आपसे। सुबह गई थीं आप और रात होने को थी, बस इसलिए हमें थोड़ी चिंता हो गई थी। आपको सही-सलामत अपनी आँखों से देख लिया, बस सुकून मिल गया।"
रिद्धिमा उनकी परेशानी की वजह नहीं समझ सकी, पर कुछ सोचते हुए मुस्कुरा दी और वहीं दादा-दादी के पास बैठ गई।
रात के करीब दस बज रहे थे। रिद्धिमा पानी लेने के लिए नीचे आई तो निलिमा जी को लिविंग रूम में बैठा देखकर चौंक गई। उस मद्धम रोशनी में भी रिद्धिमा उनके चेहरे पर परेशानी व चिंता देख पा रही थी। चेहरे पर उलझन के भाव लिए रिद्धिमा ने उनकी ओर कदम बढ़ा दिए।
"मॉम, आप यहाँ क्या कर रही हैं?… कुछ परेशान लग रही हैं। कोई प्रॉब्लम है क्या?"
निलिमा जी जो अपने ही परेशानी में उलझी हुई थीं, उन्होंने रिद्धिमा को देखा तो पल भर को उनके चेहरे के भाव कुछ बदले। परेशानी भरे चेहरे पर अब हल्की नाराज़गी सी उभर आई थी।
"रिद्धि बेटा, श्रेयस कहाँ है?" लहज़ा कोमल था, पर जिस तरह से उन्होंने यह सवाल किया, रिद्धिमा सकपका सी गई।
"पता नहीं मॉम… मुझे कहाँ कुछ बताकर जाते हैं।"
"तुमने पूछा था उससे?"
निलिमा जी के इस सवाल पर उसने अपना सर झुका लिया।
"रात के दस बज रहे हैं, कब तक आएगा? कुछ बताया है?"
उन्होंने अगला सवाल किया जिस पर रिद्धिमा ने इंकार में सर हिला दिया।
"नहीं।"
"आपने फ़ोन करके पूछा नहीं कि इतनी देर तक कहाँ है और घर कब आएंगे?"
"मैं कैसे पूछूँ मॉम?" रिद्धिमा ने अब लाचारी से निगाहें उनकी ओर उठाईं।
"मुँह से पूछिए बेटा… पत्नी हैं आप उनकी। आपके पति रात के दस बजे तक घर से बाहर हैं। आपको पता होना चाहिए कि कहाँ हैं?… किसके साथ हैं?… क्या कर रहे हैं?… कब आएंगे?"
"पर वो तो इस रिश्ते को मानते ही नहीं ना… फिर मैं जबरदस्ती पत्नी होने का अधिकार कैसे जता सकती हूँ?" रिद्धिमा इस लम्हे में बड़ी बेबस नज़र आई। जबकि निलिमा जी के चेहरे पर संजीदगी के भाव उभर आए।
"वो नहीं मानते तो क्या आप मानती हैं?… वो इस रिश्ते को नहीं अपनाना चाहते, तो क्या आप इसे अपनाकर निभाने की कोशिश कर रही हैं?… वो आपको पत्नी होने का अधिकार नहीं दे रहे, तो क्या आप पति होने का हक़ दे रही हैं उन्हें?… उन्हें एहसास दिलाने की कोशिश कर रही हैं कि अब वो अकेले नहीं हैं, शादी हो गई है उनकी। अब वो पति हैं आपके और उन पर आपका अधिकार है। आप उनकी ज़िम्मेदारी हैं, जिनसे वो चाहकर भी मुँह नहीं मोड़ सकते।"
रिद्धिमा ने एक बार फिर अपना सर झुका लिया। लब खामोश ही रहे, शायद अब कहने को कुछ भी नहीं था उसके पास।
"बेटा, हम आपको डाँट नहीं रहे बल्कि समझा रहे हैं। एक पत्नी का फ़र्ज़ होता है, अपने पति को भटकने से रोकना, उसे अपनी मौजूदगी और ज़िम्मेदारी का एहसास कराना… मानते हैं हम कि श्रेयस गुस्से में थोड़ा तेज है। यह शादी उनकी मर्ज़ी से नहीं हुई इसलिए आपसे उखड़े-उखड़े रहते हैं… पर शादी चाहे जिनहीं हालातों में क्यों न हुई हो, लेकिन अब आप पत्नी हैं उनकी। अगर वो इस रिश्ते को नहीं निभाना चाहते तो आप पहल कीजिए। इस रिश्ते को सुधारने की कोशिश कीजिए, उनका दिल जीतने की कोशिश कीजिए… अगर आप दोनों ही ऐसे एक-दूसरे से मुँह मोड़ लेंगे तो कैसे चलेगा?"
निलिमा जी बहुत ही प्यार से उसे समझा रही थीं, पर रिद्धिमा की आँखों के आगे कायरा का चेहरा घूम रहा था। वह तस्वीर जिसमें वह श्रेयस के करीब नज़र आ रही थी, वह उसके ज़हन में बस गई थी।
"पर वो किसी और को चाहते हैं।"
रिद्धिमा के लबों से धीमे से ये शब्द निकले, जिसे सुनकर निलिमा जी के चेहरे का रंग उड़ गया।
"आपको यह किसने बताया बेटा?"
"मैंने सर्च किया था उनके नाम से, तो न्यूज़ आर्टिकल पढ़ा जिसमें उनका नाम कायरा नाम की मॉडल के साथ जोड़ा गया था और जिस तरह से वो इस शादी के खिलाफ है। मुझे पहले ही अंदाज़ा था कि वो झूठी खबर नहीं थी।"
निलिमा जी जो पहले हैरान थीं और रिद्धिमा की बात सुनकर कुछ घबरा भी गई थीं, अब उनके चेहरे पर चिंता के भाव उभर आए।
"बेटा, यह सच है कि श्रेयस कायरा को पसंद करते हैं और वो यह भी जानते हैं कि इस घर में उन्हें बहू के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया जाएगा। हम आपको सब समझा तो नहीं सकते, बस इतना समझ लीजिए कि कायरा श्रेयस के लिए ठीक नहीं है। हम माँ हैं उनकी, अपने बेटे का भला ही चाहेंगे और हम कह रहे हैं कि कायरा के साथ वो कभी खुश नहीं रहेंगे। आप उनकी जीवनसाथी बनने के काबिल हैं, वो नहीं है। अब यह आप पर है कि आप कैसे अपने पति को गलत रास्ते पर जाकर तकलीफ पहुँचाने से रोकती हैं?… कैसे उन्हें सही रास्ता दिखाती हैं?… और कैसे अपने पति को उस लड़की के मायाजाल से बाहर निकालती हैं?… हमें अपनी बहू पर पूरा विश्वास है कि जिस भरोसे के साथ हम उन्हें इस घर और अपने बेटे की ज़िंदगी में लेकर आए थे, वो उस भरोसे को ठेस नहीं पहुँचाएँगी, इस परिवार को बिखरने नहीं देंगी और अपने पति पर कायरा नामक ग्रहण नहीं लगने देंगी।"
निलिमा जी ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और अपने कमरे में चली गईं, जबकि रिद्धिमा उनकी बातों में उलझी रह गई।
रात के करीब 1 बजे श्रेयस ने अपने रूम में कदम रखा और नज़र सीधे सामने बेड पर पैर फैलाकर बैठी रिद्धिमा पर चली गई। जिस दिन ज्यादा देर होती थी, श्रेयस को रिद्धिमा घोड़े-गधे बेचकर सोती नज़र आती थी, इसलिए आज उसे इस वक़्त तक जागते देखकर वो कुछ चौंक गया, पल भर को आगे बढ़ते कदम भी ठिठके। अगले ही पल रिद्धिमा की मौजूदगी को नज़रअंदाज़ करते हुए उसने रुख़ फेरा और चेंजिंग रूम की ओर कदम बढ़ाए ही थे कि रिद्धिमा की तल्खी भरी सख्त आवाज़ उसके कानों से टकराई।
"कहाँ से आ रहे हो इस वक़्त?"
उसका यह सवाल और सवाल पूछने का यह लहजा… श्रेयस की त्योरियाँ चढ़ गईं। गुस्से में वो उसकी ओर पलटा और तीखी निगाहों से उसे घूरने लगा।
"तुमसे मतलब?… कहीं भी जाऊँ, कभी भी आऊँ?… और तुम होती कौन हो मुझसे ऐसे सवाल-जवाब करने वाली?… भूलो मत यह जबरदस्ती का रिश्ता है तो खुद को मेरी वाइफ़ समझकर, हक़ जताने की कोशिश भूलकर भी मत करना।"
श्रेयस गुस्से से गुर्राया। पर रिद्धिमा कहाँ कम थी। उसने भी उसी के अंदाज़ में करारा-करारा जवाब उसके मुँह पर दे मारा।
"मुझे भी कोई शौक़ नहीं है तुम्हारी बीवी का हक़ जताने का… या तुमसे सवाल-जवाब करने का… कहीं भी जाओ, कुछ भी करो, किसी के भी साथ रहो, मुझे इससे घंटा फ़र्क़ नहीं पड़ता… पर सिर्फ़ तब तक, जब तक इन सब का असर मुझ पर और मेरी ज़िंदगी पर नहीं पड़ता… और तुम्हें यह जानकर बहुत दुख होगा कि मुझ पर इन सब का असर पड़ रहा है क्योंकि तुम तो आधी-आधी रात तक गायब रहते हो, तुमसे कोई कुछ नहीं कहता… पर सवाल-जवाब मुझसे किए जाते हैं क्योंकि बदकिस्मती से फ़िलहाल मैं तुम्हारी वाइफ़ हूँ और तुम मेरे हस्बैंड। सो मिस्टर हस्बैंड… मैं बस आपसे इतना कहना चाहती हूँ कि आप अपनी पर्सनल लाइफ़ में जो मर्ज़ी कीजिए। मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, कोई शौक़ भी नहीं मुझे आपकी पर्सनल लाइफ़ में घुसकर ताक-झाँक करने का… पर कृपा करके वक़्त पर घर आ जाया कीजिए ताकि आपके घरवाले मुझे आपके बारे में सवाल-पूछकर परेशान न करें। वरना मैं तो कह दूँगी कि बीवी को घर पर छोड़कर उनका लाडला बेटा, आधी-आधी रात तक अपनी गर्लफ्रेंड के साथ अय्याशी करता फिरता है।"
श्रेयस जो गुस्से भरी निगाहों से उसे घूर रहा था, रिद्धिमा की बात सुनकर गुस्से में उसकी नसें तन गईं और उसने अपने गुस्से को कंट्रोल करने की कोशिश में अपनी मुट्ठी बांध ली, दाँत पर दाँत चढ़ाए धधकती निगाहों से उसे घूरने लगा।
उसके चेहरे को गुस्से से लाल होते देखकर रिद्धिमा कुटिलता से मुस्कुराई और आँखें मटकाते हुए बेफ़िक्री भरे अंदाज़ में आगे कहने लगी।
"वैसे कायरा नाम है ना उसका, काया कहते हैं लोग उसे… लगता है उसकी कंचन काया पर ही आपका दिल आ गया। काया की माया में फँस गए आप।"
निगाहों से व्यंग्य भरे तीर छोड़े थे उसने, जो बिल्कुल निशाने पर लगे और श्रेयस तिलमिला उठा।
"हो गई तुम्हारी बकवास ख़त्म, तो अब अपना मुँह बंद करो और दफ़ा हो जाओ मेरी नज़रों के सामने से।"
"क्यों दफ़ा हो जाऊँ?… गलत काम तुम करो और दफ़ा मैं हो जाऊँ?… सबको परेशान तुम करो और दफ़ा मैं हो जाऊँ?… आधी-आधी रात तक घर से बाहर तुम रहो और दफ़ा मैं हो जाऊँ?… ऐसा तो नहीं होता ना मिस्टर। जो गलती करता है सज़ा भी उसे ही मिलती है और यहाँ तुम गलत हो क्योंकि यह कोई वक़्त नहीं है घर आने का। अगर अपनी गर्लफ्रेंड के साथ वक़्त बिताने का इतना ही मन करता है तो शाम को ऑफ़िस से निकलने के बाद से रहिए 8-9 बजे तक उसके साथ, पर उसके बाद आप यहाँ घर पर होने चाहिए।"
"ऑर्डर दे रही हो तुम मुझे?" श्रेयस गुस्से से बौखलाया हुआ उसके पास पहुँचा, पर रिद्धिमा उससे ज़रा ना घबराई और बराबर उसकी निगाहों में निगाहें डाले देखती रही।
"जी नहीं… पहली और आखिरी बार समझा रही हूँ। अगर मेरी बात नहीं मानी तो इसका ख़ामियाज़ा भी आपको ही भुगतना होगा, यह याद रहे क्योंकि आपके वजह से मैंने आपकी फैमिली की बातें सुनने का ठेका नहीं ले रखा है।"
रिद्धिमा ने अपनी बात पूरी की। कुछ देर तक यूँ ही आँखों में आँखें डाले उसे घूरती रही, फिर अपना चेहरा फेरते हुए लेट गई और खुद को ब्लैंकेट से कवर कर लिया।
रिद्धिमा की चेतावनी के बावजूद, अगले दिन श्रेयस फिर से लेट आया। रूम का दरवाजा बंद मिला। पहले तो वह चौंक गया, फिर रिद्धिमा की बीती रात की बातें याद करते हुए, उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने ज़ोर से हाथ दरवाजे पर मारना चाहा, पर रात का समय था; शोर से सबकी नींद खराब होगी, यह सोचकर वह रुक गया। अगले ही पल दरवाजा खुल गया। रिद्धिमा ठीक उसके सामने आ खड़ी हुई थी।
"यह सिर्फ़ ट्रेलर था। अगर आगे से देर से घर आए तो बाहर सोने के लिए तैयार रहना, क्योंकि आज तो मैंने तुम पर तरस खाकर दरवाजा खोला, पर आगे से ऐसा नहीं होगा।"
रिद्धिमा ने चेतावनी भरी नज़रों से उसे घूरा और अंदर जाकर सोने को लेट गई, जबकि श्रेयस वहीं खड़ा गुस्से भरी नज़रों से उसे घूरता रहा।
इसका असर यह हुआ कि अगले दिन से श्रेयस ने घर आना ही बंद कर दिया। पहले देर रात गए ही सही, पर घर तो आता था, लेकिन अब तीन दिन होने को थे और उसने घर में कदम तक नहीं रखा था। सबके साथ-साथ रिद्धिमा भी परेशान थी। बात तो वह पहले ही किसी से नहीं करता था। अब तो वह लोग उसे देखने के लिए भी तरस गए थे और रिद्धिमा इन सबका ज़िम्मेदार खुद को समझने लगी थी।
आज भी श्रेयस ऑफिस से फ़्री होकर कहीं जाने को निकला, पर एक कॉल आई और उसने तीन दिन बाद कार ओबरॉय मेंशन की ओर घुमा ली।
कुछ देर बाद श्रेयस और रिद्धिमा एक तरफ़ बैठे थे और बाकी पूरा परिवार उनके सामने दूसरी तरफ़। रिद्धिमा की घबराहट से हालत खराब थी। वहीं श्रेयस का चेहरा बिल्कुल सपाट था।
"कहिये, क्यों बुलाया है मुझे?"
वही पुराना कठोर, तल्ख़ लहज़ा। रिद्धिमा आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी, जबकि संकल्प जी ने भी उसी गंभीर लहज़े में जवाब दिया।
"हमें आप दोनों से कुछ ज़रूरी बात करनी है।"
इसके बाद उन्होंने एक नज़र दादू को देखा, फिर आगे कहना शुरू किया।
"आप दोनों की शादी तो जैसे होनी थी, हो गई..."
उन्होंने इतना ही कहा था कि श्रेयस ने उनकी बात काटते हुए तीखे स्वर में कहा, "हुई नहीं है, करवाई गई है... जबरदस्ती!"
उसके लहज़े में गुस्सा और नाराज़गी साफ़ ज़ाहिर हो रही थी। संकल्प जी ने शांति से उसकी बात पर सहमति ज़ाहिर कर दी।
"चलिए... जबरदस्ती ही करवाई गई है, पर अब तो हो गई। तो हम सोच रहे हैं कि रिसेप्शन पार्टी में सब मेहमानों को बुलाकर, अपनी बहु से मिलवा देते हैं। हमने कल पूजा रखी है और उस पूजा में आप दोनों को एक साथ बैठना है। शाम को रिसेप्शन है जिसमें हमने सभी रिश्तेदारों और जानकारों को इनवाइट किया है; वहाँ हम सबके सामने आप दोनों की शादी की अनाउंसमेंट करेंगे।"
"मुझे यह मंज़ूर नहीं।" उनके चुप होते ही श्रेयस ने उनके फैसले का कठोरता से विरोध किया। तो अबकी बार दादू की बुलंद आवाज़ वहाँ गूंज उठी।
"हम आपसे पूछ नहीं रहे हैं, श्रेय, बता रहे हैं कि कल पूजा में आपको रिद्धिमा बहु के साथ बैठना है और पार्टी में उनके साथ आना है। आपका जो भी गुस्सा और नाराज़गी है, वह अगर हमारे बीच ही रहे तो अच्छा होगा आपके लिए... घर आए मेहमानों और पार्टी में शामिल गेस्ट के बीच आपको ऐसे व्यवहार करना होगा, जिससे सबको लगे कि आप दोनों साथ में बहुत खुश हैं। रिद्धिमा बहु के साथ प्यार से पेश आना होगा। यह हमारे परिवार की इज़्ज़त, मान-सम्मान और प्रतिष्ठा की बात है। किसी को भी हम पर उंगली उठाने का मौका नहीं मिलना चाहिए। अगर आप इस घर में रहना चाहते हैं तो आपको हमारी बात माननी ही होगी; जैसा हमने कहा है, वैसा करना होगा। भूलिए मत, अब तक इस घर में सभी अहम फैसले हम ही लेते आए हैं और इस घर में रहने वाले सभी सदस्यों को उन फैसलों को मानना होता है।"
दादू ने तो सख्ती से अपना फैसला सुना दिया था, जिसमें इंकार का कोई ऑप्शन ही नहीं था। एक बार फिर अपनी मर्ज़ी को जबरदस्ती खुद पर थोपते देखकर, श्रेयस गुस्से में उठकर वहाँ से चला गया। सबके चेहरों पर तनाव के भाव उभर आए।
"दादू, अगर वह नहीं चाहते तो रहने दीजिए न।" रिद्धिमा ने सहमते हुए दादा जी से बात करने की कोशिश की।
"नहीं रहने दे सकते, बेटा। वह तो अपने गुस्से में किसी की बात समझते नहीं, कम से कम आप तो हमारी बात समझने की कोशिश कीजिए। आप दोनों की शादी जिन हालातों में हुई, हम चाहकर भी कुछ नहीं कर सके। अब हम बस इतना चाहते हैं कि रिश्तेदारों और जानकारों को अपनी बहु से मिलवाएँ, आप दोनों के रिश्ते के बारे में सबको पता चले। सब देखें कि हम अपनी बड़ी बहु को घर ले आए हैं, हमारे बड़े पोते की शादी हो गई है और कितनी प्यारी बच्ची को हमने उनके लिए चुना है। श्रेयस को भी एहसास हो कि अब वह अकेले नहीं है, उनकी शादी हो गई है और आप पत्नी हैं उनकी, उन्हें उनकी ज़िम्मेदारियों और दायित्वों का आभास हो। इससे आप दोनों के रिश्ते में भी कुछ सुधार होगा, इसलिए हम जो कर रहे हैं, करने दीजिए।"
अब दादू गुस्सा नहीं थे, बल्कि गंभीर थे। बहुत कुछ सोचा था उन्होंने और अपनी जगह वह सही भी थे, पर रिद्धिमा तो श्रेयस के यूँ उठकर चले जाने की वजह से परेशान थी और उसे अभी सिर्फ़ उसकी ही चिंता हो रही थी।
"पर वह..." उसने फिर झिझकते हुए कुछ कहना चाहा, पर दादू ने उसे रोक दिया।
"आप उनकी चिंता मत कीजिए, आज भी इस घर के किसी सदस्य में इतनी हिम्मत नहीं कि हमारी बात काट सके या हमारे फैसले के खिलाफ़ जाए। वह चाहे मर्ज़ी से या फिर मन के खिलाफ़ जाकर मजबूरी में... पर करेंगे वही जो हमने कहा है।"
"मेरी फैमिली..."
उसके इस सवाल का जवाब निलिमा जी ने दिया।
"बेटा, हमने बात की, पर अभी उनका आना मुमकिन नहीं। आपके मामा जी भी अभी यहाँ नहीं हैं। हम रुकना चाहते हैं, पर श्रेय के व्यवहार को देखते हुए हमें लगता है कि जितनी जल्दी हम आप दोनों के रिश्ते को अनाउंस करवा देते हैं, उतना अच्छा होगा।"
रिद्धिमा ने सिर हिला दिया, पर कुछ मायूस हो गई। दादी ने निलिमा जी को आँखों से कुछ इशारा किया तो उन्होंने सिर हिलाया और सामने टेबल पर रखे कपड़े और गहनों को लेकर रिद्धिमा के पास चली आईं।
"बेटा, यह साड़ी और गहने कल पूजा में पहनने हैं आपको और सुबह जल्दी उठना होगा क्योंकि पूजा से पहले आपको भोग भी बनाना होगा। जिससे आपकी चूल्हा पूजन की रस्म हो जाएगी और कल आपकी मुँह दिखाई भी होगी, तो अच्छे से तैयार होइएगा, किसी को हमारी बहु में कमी निकालने का मौका न मिले।"
रिद्धिमा ने एक नज़र उन चीजों को देखा, फिर सिर हिलाते हुए उसे थाम लिया। निलिमा जी ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरने लगीं।
रिद्धिमा सामान लेकर कमरे में आई तो काउच पर बैठा श्रेयस तीखी निगाहों से उसे ही घूर रहा था।
"अब मुझे ऐसे क्या घूर रहे हो तुम? मैंने कुछ नहीं किया है। मुझे खुद को अभी पता चला है।"
रिद्धिमा ने चिढ़ते हुए कहा और मुँह बनाते हुए वॉक इन क्लोजेट की ओर बढ़ गई। रिद्धिमा वापिस आकर बेड पर बैठ गई। वह अपने ही ख्यालों में गुम थी। श्रेयस पूरे वक़्त तीखी निगाहों से उसे घूरता रहा और अंत में अपनी खामोशी तोड़ते हुए, भौंह सिकोड़ते हुए, तंजिया लहज़े में बोला।
"तुम्हें देखकर मुझे ऐसा नहीं लगता कि यह रिश्ता तुम्हारी मर्ज़ी के खिलाफ़ जुड़ा है और तुम इस शादी से खुश नहीं हो। तुम तो मुझसे शादी होना, कुछ ज़्यादा ही एन्जॉय कर रही हो। लगता है मज़ा आ रहा है तुम्हें मेरी वाइफ़ बनकर, मुझ पर और मेरे चीजों पर अपना हक़ जताने में। या कहीं ऐसा तो नहीं कि यह सब नाटक था, ताकि मुझे तुमसे शादी करने पर मजबूर किया जा सके, जिसमें मेरे परिवार के साथ-साथ तुम्हारी फैमिली और खुद तुम भी शामिल हो। तभी तुम्हारी फैमिली ने बिना किसी ऐतराज़ के एक अंजान लड़के से तुम्हारी शादी करवा दी और तुम भी बिना किसी ऐतराज़ के अपनी फैमिली छोड़कर यहाँ आ गई... और अब मेरी वाइफ़ बनकर मुझ पर हक़ जता रही हो, मेरे घर में रह रही हो, ऐश से ज़िंदगी जी रही हो।"
श्रेयस के लबों पर ज़हरीली मुस्कान उभरी थी। जिस तरह उसने रिद्धिमा पर इल्ज़ाम लगाया, उसका दिल कटकर रह गया और आँखें झिलमिला गईं। लबों पर दर्द व बेबसी भरी मुस्कान उभर आई।
"हाँ, सब मेरी मर्ज़ी से हुआ है... बहुत खुश हूँ मैं यहाँ आकर... तुम्हारी वाइफ़ बनकर बहुत मज़ा आ रहा है मुझे। इतनी खुश हूँ कि देखो, खुशी से मेरी आँखें भर आईं... और खुश होना तो बनता है न, इतना अच्छा ससुराल और चाहने वाला पति मिला है मुझे... एक गाँव की गँवार को इतना सब मिल जाए तो वह खुश क्यों नहीं रहेगी? तकलीफ़ तो तुम्हें हुई है... सिर्फ़ तुम्हें ही हुई है... तुम ही दुखी हो... तो निकालो अपना गुस्सा अपनी फैमिली और मुझ पर... तुम्हारे पास लोग हैं तो सही जिन पर तुम अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर सकते हो... मैं तो एक ऐसी जगह आ गई, जहाँ किसी को जानती तक नहीं। तुम तो इस रिश्ते को मानने से मुकर सकते हो, ऑप्शन है तुम्हारे पास... पर मैं तो यह भी नहीं कर सकती... तुम्हारे पास इंकार करने का हक़ तो है, पर मुझे तो मजबूरी में सब मानना ही होगा... क्योंकि मेरी फैमिली नहीं चाहती न ऐसा और तुम्हारी फैमिली भी मुझसे उम्मीदें बाँधकर बैठी है... मेरे पास तो सब मानने के अलावा और कोई ऑप्शन ही नहीं है... और तुम्हें लगता है कि सब मैंने किया है, बहुत खुश हूँ मैं यहाँ आकर, इस जबरदस्ती के रिश्ते में बंधना एन्जॉय कर रही हूँ... दिखाती नहीं तो मुझे कोई तकलीफ़ नहीं, कहती नहीं तो मुझे किसी बात से कोई ऐतराज़ नहीं..."
आगे भी वह कुछ कहना चाहती थी, पर जाने मन में क्या आया कि कहते-कहते रुक गई। अपनी भीगी आँखों को अपनी हथेलियों से पोंछ लिया और एक बार फिर मज़बूती से उसके आगे खड़ी हो गई।
"निकाल ली न तुमने अपनी भड़ास मुझ पर?... अगर और कुछ सुनाना है तो अभी ही सुना दो, क्योंकि बार-बार मैं तुम्हारे ताने नहीं सुनूँगी।"
श्रेयस जिसके चेहरे के कठोर भाव, उसकी नम आँखें देखकर कुछ कोमल हो गए थे। वह अपना चेहरा फेरते हुए वहाँ से चला गया। उसके जाते ही रिद्धिमा ब्लैंकेट ओढ़कर लेट गई। पूल साइड खड़े श्रेयस की आँखों के आगे रह-रहकर उसकी नम आँखें, दर्द व बेबसी से भरा चेहरा उभर रहा था और कानों में उसके कहे शब्द गूंज रहे थे। आज गुस्से में कुछ ज़्यादा ही सुना गया था उसे और जब उसने कहना शुरू किया, तब कुछ एहसास हुआ कि गलत तो उसके साथ भी हुआ है और उसकी स्थिति तो श्रेयस से भी खराब थी।
अपने परिवार, अपने शहर से सबसे दूर, एक अंजान जगह, अंजान लोगों के बीच, एक अजनबी के साथ रहना आसान बात तो नहीं थी। उसे अगर यहाँ रहना था तो सबकी बात माननी ही थी, विरोध करने का अधिकार ही नहीं था उसके पास। यह सब सोचते हुए श्रेयस के मन में कुछ कोमल भाव उभरे, अगले ही पल कुछ याद आया और चेहरा एकदम कठोर हो गया।
कुछ देर बाद जब वह कमरे में लौटा, तब तक रिद्धिमा सो चुकी थी। उसे शाम को सोते देखकर वह पल भर को चौंक गया, फिर सर झटकते हुए रूम से बाहर निकल गया।
सुबह पाँच बजे अलार्म की लगातार बजने की आवाज़ से खीझते हुए श्रेयस ने आँखें खोलीं। उसने एक नज़र अलार्म घड़ी को देखा, फिर रिद्धिमा को देखा जो तकिए में मुँह छिपाए निश्चिंत सो रही थी। शाम को जब वह गया था, तब भी वह सो रही थी; आधी रात में लौटा, तब भी सो ही रही थी और अभी भी सो रही थी।
श्रेयस मन ही मन चिढ़ उठा। फिर गुस्से में अलार्म बंद करके सो गया। आधे घंटे बाद फिर अलार्म बज उठा और फिर से उसकी नींद खराब हो गई। जबकि रिद्धिमा अब भी घोड़े-गधे सब बेचकर सो रही थी। श्रेयस ने जलती निगाहों से उसे घूरा और फिर से अलार्म बंद कर दिया। बेचारे की आँख ही लगी थी कि अलार्म फिर बज उठा और अबकी बार गुस्से से उसका खून खौल उठा।
रिद्धिमा को चैन से सोते देखकर उसकी आँखें खतरनाक अंदाज़ में सिकुड़ गईं। उसने अलार्म घड़ी उठाकर रिद्धिमा के कान से लगा दी। कान फाड़ू तीखी आवाज़ कानों में पड़ते ही वह हड़बड़ाते हुए उठकर बैठ गई। अभी वह ठीक से नींद की खुमारी से बाहर नहीं निकली थी कि श्रेयस की कर्कश आवाज़ उसके कानों के पर्दे चीर गई।
"जब अलार्म से उठना ही नहीं होता, तो दर्जन भर अलार्म लगाया क्यों है? ताकि मेरी नींद खराब कर सको।"
उसके एकाएक चिल्लाने से रिद्धिमा घबरा गई और उसने अपने कानों को कसके अपनी हथेली से ढक लिया।
"सुबह-सुबह चिल्ला क्यों रहे हो तुम? मेरे कान दुखने लगे..."
रिद्धिमा की नाराज़गी भरी सुरमई निगाहें श्रेयस की ओर उठीं और पल भर को श्रेयस उन हल्के गुलाबी रंग में रंगी सुनहरी निगाहों की नाराज़गी में कहीं खो सा गया।
जबकि मुँह फुलाए बैठी रिद्धिमा नाराज़गी से आगे कहने लगी,
"अब ऐसे घूर-घूर कर क्या देख रहे हो मुझे? मेरी सारी नींद बर्बाद करके चैन नहीं पड़ा तुम्हें, अब क्या मुझे आँखों से जलाकर भस्म करोगे?"
बच्चों जैसे नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कितनी प्यारी लग रही थी वह! पल भर को श्रेयस की निगाहें उस पर ठहरीं। अगले ही पल अलार्म का ख्याल आया और शांत चेहरे पर एक बार फिर गुस्से व चिढ़ भरे भाव उभर आए।
"वाह...ये बढ़िया है तुम्हारा! एक तो सौ अलार्म लगाकर खुद घोड़े-गधे बेचकर सोती रही, मेरी नींद बर्बाद की और अब सुना भी मुझे ही रही हो...ये तो वही बात हो गई...एक तो चोरी, ऊपर से सीनाज़ोरी..."
अलार्म का ज़िक्र सुनते ही रिद्धिमा के चेहरे के भाव बदले। उसने चौंकते हुए निगाहें घड़ी की ओर घुमाईं और समय देखकर उसकी चीख निकल गई।
"ओह माय गॉड! छह बज गए और मैं अब तक सो रही हूँ! मॉम ने तो मुझे जल्दी तैयार होकर नीचे आने को कहा था...रिद्धु, तू तो गई आज काम से...तेरा कुछ नहीं हो सकता, तू सच में लेडी कुंभकरण है...नहीं, तूने तो सोने के मामले में उसे भी फेल कर दिया है...इतने अलार्म लगाने के बावजूद तू निठल्ली होकर सोती रही। अब अगर मॉम नाराज़ हो गईं तो क्या करेगी तू? नहीं...नहीं, ऐसा नहीं होगा...मैं फटाफट से नहाकर तैयार हो जाऊँगी..."
रिद्धिमा घबराई हुई सी खुद पर ही खीझती रही, खुद को डाँटती रही। फिर हड़बड़ाते हुए जल्दबाज़ी में बेड से नीचे उतरने को हुई कि ब्लैंकेट में पैर उलझा और धड़ाम की आवाज़ के साथ वह मुँह के बल ज़मीन पर गिर गई।
श्रेयस ने फटी आँखों से यह दिलचस्प और अद्भुत नज़ारा देखा। वह तो रिद्धिमा को खुद पर भड़कते देखकर हैरान था और उसे यूँ गिरते देखकर उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं, मुँह भी खुल गया। साथ ही साथ उसकी बेवकूफी पर मन ही मन खीझ भी उठी।
बेचारी रिद्धिमा फर्श पर कालीन जैसी बिछी हुई थी और कमरे में दिल दहला देने वाला सन्नाटा पसरा था, जिसे चीरते हुए श्रेयस की बेरुखी भरी कठोर आवाज़ उसके कानों से टकराई।
"ठीक से चलना भी नहीं आता तुम्हें।"
रिद्धिमा जो फर्श पर लेटी, जैसे दंडवत प्रणाम कर रही थी। चेहरे पर दर्द झलक रहा था। श्रेयस का यह ताना सुनकर उसका मन गुस्से से भर गया।
उसने जिराफ जैसे अपनी लंबी गर्दन को घुमाकर श्रेयस को गुस्से से घूरा और दाँत पीसते हुए बोली,
"बस ताने ही मार सकते हो तुम...ये तो होगा नहीं कि आकर उठने में ही मदद कर दो, झूठे मुँह ही सही, खैरियत ही पूछ लो...अकड़ू, घमंडी, बदतमीज़..."
रिद्धिमा ने आखिर में मन ही मन उसे कोसते हुए अपनी भड़ास निकाली। श्रेयस की नज़र जब उसके गोरे मुखड़े पर बिखरी लालिमा, आँखों में मौजूद नमी और नाक से रिसते खून पर पड़ी, तो एकाएक उसे भी अपनी भूल का एहसास हुआ। उनके बीच जो भी गिला-शिकवा, नाराज़गी, गुस्सा, नफ़रत थी...सब को छोड़ते हुए वह उसकी मदद के लिए आगे बढ़ गया।
"लो, पकड़ लो..." श्रेयस ने अपनी हथेली उसकी ओर बढ़ा दी, जिसे रिद्धिमा ने नाक-मुँह सिकोड़ते हुए थाम लिया। पर उठने लगी तो उसकी आह निकल गई, बैलेंस बिगड़ा...फिर से गिरने को हुई, पर श्रेयस ने तेज़ी से उसके कंधे को थामते हुए उसे संभाल लिया और कड़वे करेले जैसे उसके मुँह से चिंता भरे शब्द निकले,
"संभालकर।"
रिद्धिमा की निगाहें उसकी ओर उठ गईं, श्रेयस ने भी नज़र उठाकर उसे देखा। पल भर को दोनों की निगाहें टकराईं, अगले ही पल रिद्धिमा ने दर्द से अपनी आँखों को कसके भींच लिया और झुकी पलकों के नीचे से आँसू की एक बूँद फिसलकर उसके रुखसारों पर बिखर गई।
जाने क्यों, पर हमेशा पत्थर जैसे सख्त रहने वाला श्रेयस उसे यूँ देखकर विचलित सा हो गया। उसने संभालकर उसे वापस बेड पर बिठाया।
"कहाँ दर्द हो रहा है तुम्हें?"
श्रेयस की चिंता भरी नरम आवाज़ रिद्धिमा के कानों में पड़ी तो उसने आँखें खोलकर अचरज से उसे देखा।
"बताओ भी, कहाँ लगी है तुम्हें?" उसकी चुप्पी पर श्रेयस खीझने लगा। रिद्धिमा ने अपनी बाँह से अपनी नाक को सहलाते हुए नाक से बहते खून को साफ किया। यह देखकर श्रेयस ने अजीब सा घिन भरा चेहरा बना लिया।
"हे भगवान! हाथ गंदे कर रही हो तुम अपने...एक मिनट रुको।" श्रेयस ने तुरंत ही उसे टोका और साइड में लगे नाइट स्टैंड की दराज से फ़र्स्ट एड बॉक्स निकालने लगा। उसने जल्दी से रुई निकाली और खून को साफ करने के बाद उसकी नाक में हल्की रुई घुसाकर, चेहरा ऊपर की ओर कर दिया।
"कुछ मिनट ऐसे ही रहो, खून रुक जाएगा।"
रिद्धिमा ने अपनी नाक को उंगलियों से हल्के से दबाया तो श्रेयस की नज़र उसकी कोहनी पर पड़ी जो गिरने से फूट गई थी और खून रिसने लगा था।
उसने अफ़सोस से सर हिलाया और कॉटन में डेटॉल लगाकर जैसे ही उसे साफ करने लगा, रिद्धिमा के मुँह से हल्की सी सिसकी निकल गई और उसने अपने हाथ को पीछे हटा लिया।
"आह्ह्ह...क्या कर रहे हो?"
"चोट लगी है तुम्हें, साफ करने दो।" श्रेयस ने गंभीर स्वर में कहा और उसके हाथ को पकड़कर वापस आगे कर लिया।
"तो प्यार से करो ना, दर्द हो रहा है मुझे।" रिद्धिमा ने दर्द से मुँह बिचकाया। श्रेयस ने एक नज़र उसके चेहरे को देखा, जो किसी छोटे बच्चे जैसे क्यूट और मासूम लग रहा था। फिर फूँक मारते हुए उसके ज़ख्म को साफ करने लगा। रिद्धिमा की नज़रें श्रेयस पर ही ठहरी थीं और हल्की सी मुस्कान उसके लबों पर बिखर गई थी।
"और कहीं भी लगी है क्या?" श्रेयस ने जैसे ही निगाहें उसकी ओर उठाईं, रिद्धिमा ने हड़बड़ाते हुए उस पर से निगाहें फेर लीं और झट से इंकार में सर हिला दिया। पर श्रेयस को अपने सामने बैठी इस बेवकूफ़ लड़की पर भरोसा नहीं हुआ। उसने खुद से उसके दूसरे हाथ को चेक किया, फिर बारी-बारी दोनों पैरों को हल्के से हिलाते हुए चिंता भरे स्वर में सवाल किया,
"दर्द तो नहीं हो रहा?"
"नहीं।" रिद्धिमा ने झट से इंकार में सर हिला दिया। साथ ही अपने माथे को अपनी हथेली से सहलाने लगी। यह देखकर श्रेयस ने गहरी साँस छोड़ी।
"वहाँ तो नहाकर ही दवाई लगा लेना।"
इतना कहकर वह पीछे हट गया। अपने माथे को अपनी हथेली से सहलाते हुए रिद्धिमा उठने लगी तो एक बार फिर उसकी आह निकल गई और वह लड़खड़ाते हुए वापस बेड पर बैठ गई। श्रेयस जो जाने को पलट चुका था, जल्दबाज़ी में वापस उसके पास लौटा।
"क्या हुआ? कहीं और भी लगी है क्या?"
उसके लहजे में फिक्र साफ़ झलक रही थी। रिद्धिमा पल भर को अचरज से उसे देखती रही, फिर उंगली को अपने घुटने पर रख दिया। श्रेयस यह देखकर पहले ही हड़बड़ी में उसके लोअर को ऊपर करने के लिए बढ़ा, पर फिर अचानक ही उसके आगे बढ़ते हाथ ठहर गए और वह कुछ असहज सा हो गया।
रिद्धिमा ने गौर से उसे देखा, फिर फीकी मुस्कान लबों पर बिखेरते हुए बोली,
"इट्स ओके, ज़्यादा नहीं लगी है। ज़रा सा दर्द है, मैं मैनेज कर लूँगी।"
रिद्धिमा के शब्द श्रेयस के कानों से टकराए और निगाहें उसकी ओर उठ गईं। आँखों में नमी थी और लबों पर मुस्कराहट। जाने उसकी उन बड़ी-बड़ी गोल सुनहरी आँखों में नमी में लिपटा दर्द देखकर श्रेयस को कैसा एहसास हुआ कि अपनी हिचक और संकोच को त्यागते हुए उसने रिद्धिमा के लोअर को घुटने तक फोल्ड कर दिया। झिझकते हुए नज़र उठाई तो उसकी दूध सी गोरी टांग पर निगाहें पल भर को ठहरीं, फिर नज़र घुटने पर गई जहाँ का पूरा हिस्सा लाल हो गया था।
श्रेयस ने पेन रिमूवल स्प्रे निकाला और उसके घुटने पर स्प्रे कर दिया। फिर जेल लगाने के बाद गर्म पट्टी बाँध दी।
"दर्द कुछ देर में आराम हो जाएगा। बस थोड़ा ध्यान रखना कि ऐसी बेवकूफी दोबारा ना हो।"
रिद्धिमा जिसने आज उसका एक अलग रूप देखा था, जो सॉफ्ट था, केयरिंग था और काफी हद तक रिद्धिमा के दिल पर अपनी छाप छोड़ गया था। बेवकूफ़ शब्द सुनकर उसने खीझते हुए बुरा सा मुँह बना लिया।
श्रेयस ने एक नज़र उसे देखा, फिर पीछे हट गया।
"सुनो..." रिद्धिमा की मिश्री सी मीठी कोमल आवाज़ श्रेयस के कानों में घुल गई, आगे बढ़ते कदम ठिठके और वह पलटकर सवालिया निगाहों से उसे देखने लगा।
"थैंक्यू...इतने भी बुरे नहीं हो तुम, जितना बनते हो।" सौम्य सी मुस्कान रिद्धिमा के चेहरे पर बिखरी थी और ठोड़ी में गड्ढा पड़ गया था जिसने श्रेयस का ध्यान अपनी ओर खींचा।
उसने पलटकर कुछ जवाब नहीं दिया तो रिद्धिमा ने मन ही मन बुदबुदाते हुए बुरा सा मुँह बना लिया।
"अकड़ू।"
अगले ही पल उसकी केयर याद करते हुए उसके होंठों पर मीठी सी मुस्कान बिखर गई। वह उठकर बाथरूम की ओर बढ़ गई। दर्द तो अब भी था, पर उसका एहसास कम हो गया था। कुछ दवाई का असर था, तो कुछ श्रेयस के इस बदले रूप और परवाह से भरे अंदाज़ का।
दूसरे तरफ श्रेयस अपने आज के बिहेवियर पर हैरान-परेशान सा पूल साइड चक्कर काट रहा था। जब उसकी बेचैनी कम ना हुई तो उसने पूल में छलांग लगा दी। रिद्धिमा के ख्याल को अपने दिलो-दिमाग से निकालने की कोशिश करने लगा, पर कुछ अजीब सा एहसास था जो उसकी दिल की गहराइयों तक जा बस गया था।
श्रेयस स्विमिंग के बाद बाथरोब पहनकर अंदर आया। उसकी नज़रें सीधे ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी रिद्धिमा पर गयीं। रिद्धिमा आईने में देखते हुए अपनी साड़ी ठीक कर रही थी। वह अभी-अभी नहाकर निकली थी। उसके गीले बाल टॉवल में लिपटे हुए थे और वह गाजरी व पीले रंग के कंबिनेशन वाली खूबसूरत साड़ी में उलझी हुई थी। श्रेयस को उसका सिर्फ़ साइड फेस दिखाई दिया। पल भर के लिए उसकी नज़रें उसके दूधिया बेदाग चेहरे पर ठहरीं, जिस पर कुदरती सुर्खी बिखरी हुई थी, जो उसे और भी दिलकश बना रही थी। फिर उसने सर झटका और बाथरूम की ओर कदम बढ़ाया।
इधर, श्रेयस की मौजूदगी से अनजान रिद्धिमा ने अपनी साड़ी की प्लेट्स ठीक कीं। फिर झटके से अपने भीगे बालों को टॉवल से आज़ाद कर दिया। पानी की सुनहरी बूँदें पूरे कमरे में बिखर गईं। कुछ बूँदें श्रेयस के चेहरे पर ओस की बूँदों की तरह ठहर गईं, और साथ ही उसके आगे बढ़ते कदम भी ठहर गए। पलकों ने झुककर जैसे उस खूबसूरत सुबह को नमन किया और कुछ अलग सी अनुभूतियाँ दिल को छूकर गुज़र गईं।
लगा जैसे मोहिनी का जाल बिछाया गया हो, जिसमें पल भर के लिए श्रेयस उलझ गया, पर अगले ही पल उसने अपनी आँखें खोलीं। उसने रिद्धिमा को घूरकर देखा, जो अपने भीगे बालों को कंधे से आगे करके टॉवल से पोंछ रही थी। वह गुस्सा करना चाहता था, पर कर नहीं सका। जाने क्यों, उसके मुँह से शब्द ही नहीं निकल सके और वह तेज कदमों से बाथरूम में चला गया।
रिद्धिमा के कानों में दरवाज़े की तेज आवाज़ पड़ी तो वह चौंककर आवाज़ की दिशा में देखी। बाथरूम के बंद दरवाज़े को देखकर वह पल भर के लिए हैरान हुई, फिर उसने कंधे उचकाए और जल्दी-जल्दी तैयार होने लगी।
जब तक श्रेयस नहाकर बाहर आया, रिद्धिमा तैयार होकर कमरे से जा चुकी थी। बीती रात निलिमा जी ने उसे आज पूजा में पहनने के लिए कपड़े दिए थे। उसने पीले रंग का सिल्क का कुर्ता पहना हुआ था, जिसके कॉलर के पास लाल एम्ब्रॉइडरी थी, और नीचे उसी के मैचिंग का चूड़ीदार। कुर्ते की स्लीव्स को कोहनी तक फोल्ड किया हुआ था, जिससे उसकी मज़बूत बांह की मांसपेशियाँ उभरकर सामने आ रही थीं। उसने अपनी उंगलियों से माथे पर बिखरे भीगे बालों को सहलाया और ड्रेसिंग टेबल के सामने आकर खड़ा हो गया।
बाल सुखाकर उसने अपने अंदाज़ में हथेली और उंगलियों की मदद से उन्हें सेट किया। उसने अपनी कलाई पर एक अच्छी सी घड़ी पहनी और एक नज़र खुद को आईने में देखा। वह उस कुर्ते में कमाल लग रहा था। उसकी पर्सनैलिटी इस इंडियन अटायर में और भी ज़्यादा खिल उठी थी। तैयार होने के बाद वह नीचे आ गया, क्योंकि उसे दो-तीन बार फ़ोन आ चुके थे।
नीचे पहुँचते ही कई मेहमानों से उसका सामना हुआ। उसकी शादी की खबर सुनकर सुबह सूरज के उगने से पहले ही मेहमान और रिश्तेदार आने शुरू हो चुके थे।
श्रेयस ने गहरी साँस ली, जैसे खुद को सबका सामना करने के लिए तैयार कर रहा हो, और आगे बढ़ गया।
"क्या बात है भाई, आप तो इस कुर्ते में बड़े हैंडसम लग रहे हैं।"
श्रेयस के किसी कज़न ब्रदर ने उसे देखते हुए छेड़ा। वहाँ तो गैंग तैयार बैठी थी और शायद उन्हें श्रेयस का ही इंतज़ार था, तो उसके आते ही सब शुरू हो गए।
"अरे श्रेयस को हैंडसम लगने की क्या ज़रूरत है, वो तो है ही इतना गुड लुकिंग और चार्मिंग कि हर लुक में महफ़िल में छा जाता है।"
"हाँ, ये बात बिल्कुल सही कही तुमने, पर अब देखना ये कि भाभी इसके टक्कर की है या नहीं? जैसे हमारा श्रेयस हर महफ़िल की जान है, भाभी भी चाँदनी सी हसीन होनी चाहिए कि जो देखे बस उन्हीं पर उसकी निगाहें ठहर जाएं।"
उसके भाई-बहन आपस में बातें करते हुए श्रेयस को छेड़ रहे थे। उसकी यह बात सुनकर श्रेयस की आँखों के आगे रिद्धिमा का चेहरा उभर आया, जब उसने उसे उस साड़ी में देखा था। सूरज की पहली किरण सी सुंदरी और चाँद की चाँदनी सी हसीन। कुदरती खूबसूरती का अद्भुत संगम लग रही थी वह। श्रेयस की निगाहें भी तो पल भर के लिए उस पर ठहर गई थीं। अब भी वह उसी लम्हे में खोया हुआ था, जब किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा।
"कहाँ खो गया यार, कहीं भाभी के ज़िक्र से उनके ख्यालों में तो नहीं खो गया।"
उसने आँखों से श्रेयस को छेड़ा। चोरी पकड़े जाने पर पल भर के लिए श्रेयस सकपका गया और बाकी सब ठहाके लगाकर हँस पड़े। अगले ही पल श्रेयस की घूरती निगाहें उन पर पड़ीं और सब एकदम से चुप हो गए।
"अरे भैया नाराज़ क्यों हो रहे हैं। हम तो बस मज़ाक कर रहे थे।"
"अच्छा भई, हमें तो अभी भाभी के दर्शन मिले नहीं और उनकी मुँह-दिखाई से पहले किसी को उनका चेहरा देखने की इज़ाज़त तक नहीं। पर तुमने तो उन्हें देखा ही होगा, तू ही बता दे, खूबसूरत है क्या भाभी?"
"अरे यार, ये भी कोई पूछने की बात है, खूबसूरत होंगी तभी तो हमारे श्रेयस भैया से सब्र न हुआ और उन्होंने ऐसे गुपचुप तरीके से हड़बड़ी में शादी की, किसी को कानों-काँन खबर तक नहीं हुई।"
"हाँ, ये बात तो है, पर ये हमारे साथ बड़ा गलत हुआ। कितने प्लान्स थे हमारे आपकी शादी को लेकर, पर आपने सब पर पानी फेर दिया। न कोई फंक्शन हुआ, न मस्ती।"
एक भाई ने अफ़सोस जताया। ऐसे ही सब कज़न्स मिलकर उसे छेड़ते रहे, शिकायतों के बीच हँसी-मज़ाक होता रहा। श्रेयस कुछ देर बेमन से वहाँ रुका। बड़ों से तो पहले ही मिल चुका था, तो फ़ोन का बहाना बनाकर बाहर लॉन में चला आया। अब उसका गुस्सा उससे कंट्रोल नहीं हो रहा था और कुछ कहने की इज़ाज़त उसे थी नहीं, तो अंदर ही अंदर कुढ़ता रहा।
उन सबके बीच बैठे इवान और मनु ने भी आज मौके का फ़ायदा उठाकर श्रेयस को जमकर छेड़ा और खूब टांग भी खींची और उसके वहाँ से जाते ही सब ठहाके मारकर हँस पड़े।
एक बार बाहर आया श्रेयस श्यामा के बुलाने पर वापस गया। सब पूजा के लिए आसन ग्रहण कर चुके थे। श्रेयस को इवान ने पकड़कर रिद्धिमा के बगल में बिठा दिया। न चाहते हुए भी उसे खामोशी से पूजा करनी पड़ी। रिद्धिमा पूजा में नाक तक घूँघट डालकर बैठी थी। उसके लाल गोटेदार सोने की तार से जड़ी खूबसूरत चुनरी के छोर से श्रेयस के गले में डाले हुए दुपट्टे के किनारे को बांधा हुआ था। पंडित जी के पीछे मंत्रों को दोहराते हुए दोनों हवन कुंड में आहुति डाल रहे थे। कौन सी पूजा थी, वह दोनों ही नहीं जानते थे, बस जैसा उन्हें कहा जा रहा था, करते जा रहे थे।
पूजा खत्म हुई तो अंत में पंडित जी ने सिंदूर श्रेयस की ओर बढ़ाते हुए कहा,
"अपनी अर्धांगिनी की मांग में सिंदूर भरते हुए सुखी दाम्पत्य जीवन की कामना कीजिये।"
यह सुनकर जहाँ श्रेयस की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं, वहीं रिद्धिमा की आँखों के आगे वह लम्हा किसी चलचित्र की भाँति घूम गया, जब श्रेयस ने शादी के मंडप पर सिंदूर उसकी मांग में भरने की जगह मुट्ठी भर सिंदूर से उसके पूरे चेहरे और बालों को खराब कर दिया था।
"श्रेयस बेटा, सोच क्या रहे हो, चढ़ा हुआ सिंदूर सौभाग्य लाता है। रिद्धिमा की मांग में सिंदूर भर दो।"
दादी ने प्यार से कहा और श्रेयस ने मजबूरी में चुटकी भर सिंदूर लेकर रिद्धिमा की मांग में सजा दिया। रिद्धिमा की पलकें झुक गईं और जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई।
इसके बाद घर में बने मंदिर में दोनों से साथ पूजा करवाई गई। घूँघट में रिद्धिमा को बड़ी तकलीफ़ हो रही थी और न चाहते हुए भी श्रेयस ही उसे संभाल रहा था।
पूजा के बाद प्रसाद वितरण हुआ। भोग में बने शीरे की जब सबने तारीफ़ शुरू की तो दादी बड़े ही गर्व से बोलीं,
"आज भोग का प्रसाद हमारी बहु रिद्धिमा ने खुद अकेले बनाया है।"
अब तो सब रिद्धिमा के हाथ के स्वाद की तारीफ़ करने लगे। श्रेयस ने भी शीरा खाया था। मुँह में जाते ही उसकी मिठास आत्मा तक घुल गई थी और जब पता चला कि शीरा रिद्धिमा ने बनाया है तो उसे बड़ी हैरानी हुई।
मुँह-दिखाई की रस्म शुरू हुई। जिसने रिद्धिमा का चेहरा देखा, उसके रूप की मोहिनी में खोकर रह गया। हर कोई उसके रूप की प्रशंसा कर रहा था, उसकी पसंद की तारीफ़ दूर तक गूंज रही थी।
"निलिमा, बड़ी भाग्यवाली है तू, जो ऐसी चाँद सी बहु मिली है तुझे।"
किसी रिश्तेदार ने कहा जो निलिमा जी की किस्मत से जल रही थी और निलिमा जी गर्व से मुस्कुरा दीं।
"चाँद सी बहु ही नहीं है, बहुत गुणी और संस्कारी भी है। इसके घर आने से घर में रौनक आ गई है। कुछ ही दिनों में सबको अपने मोह में बाँध लिया है इसने।"
निलिमा जी तो अपनी बहु से बहुत खुश थीं और बाकी सब भी उससे संतुष्ट थे। बड़ों में होती बातों पर श्रेयस के किसी भाई ने उससे भी कह दिया,
"श्रेय, तू तो बड़ा लकी निकला यार। भाभी तो इतनी खूबसूरत है, इतना टेस्टी शीरा बनाया था उन्होंने। तेरी तो किस्मत चमक गई उन्हें वाइफ़ के रूप में पाकर। तेरे जगह जो भाभी मेरी किस्मत में लिखी होती तो मैं उन्हें पलकों पर बिठाकर रखता।"
"बात तो आपने बिल्कुल सही कही भाई। भाभी इतनी सुंदर है कि एक पल को मेरे मन में भी यह ख्याल आ गया कि काश श्रेयस से पहले मैं उनसे मिला होता तो कभी उन्हें किसी और का न होने देता।"
"सच में भाभी बहुत खूबसूरत है, मैं तो लड़की होकर खुद को उनकी ओर अट्रैक्ट होने से नहीं रोक पा रही।"
किसी लड़की ने यह बात कही थी। हर जगह रिद्धिमा के रूप के ही चर्चे थे, श्रेयस की किस्मत पर वह रश्क कर रहे थे। कितनों की धड़कनें उसे देखकर थम गई थीं और निगाहें तो उस पर से हट ही नहीं रही थीं।
इवान गहरी निगाहों से श्रेयस को देख रहा था, जैसे कुछ जता रहा हो। श्रेयस जो निर्मोही बना हुआ था, अब उसकी निगाहें रिद्धिमा की ओर मुड़ीं।
सोफ़े पर बैठी रिद्धिमा औरतों से घिरी थी, गोद में ढेर सारे गिफ़्ट्स रखे थे। वह मुस्कुराते हुए सबसे मिल रही थी और मानवी उसके साथ ही थी।
श्रेयस को उसकी एक झलक ही दिखाई दी थी। पीले और गाजरी रंग की खूबसूरत साड़ी में लिपटी, सर पर सुर्ख दुपट्टा डाले वह मुस्कुरा रही थी, जिससे ठोड़ी में गड्ढा पड़ रहा था। मांग में सजे मांगटीके के नीचे से झाँकता सुर्ख सिंदूर उनके रिश्ते की गवाही दे रहा था। दोनों भौंहों के बीच सजी छोटी सी लाल बिंदी आकाश में बिखरे तारों जैसे चमक रही थी। नाक में मौजूद नथ उसके सुर्ख लबों को बेताबी से चूम रहा था। काजल से सजी सुनहरी आँखें मुस्कुरा रही थीं। खिलखिलाने पर उसके मोतियों से दाँत चमक उठते थे। कानों में झुमके, गले में गोल्ड का सेट, कलाइयों में भरा-भरा चूड़ा, महावर लगे पैरों में झूमते पाजेब।
रिद्धिमा जो शादी के बाद भी सादगी से ही रहती थी, आज उसका यह रूप देखकर श्रेयस के सीने में मौजूद दिल की धड़कनें भी थम गई थीं। नई-नवेली दुल्हन जैसे सोलह श्रृंगार किए, वाकई में आज वह स्वर्ग से उतरी अप्सरा लग रही थी। उसके रूप ने श्रेयस को भी सम्मोहित कर लिया था। अचानक ही रिद्धिमा के सामने कोई खड़ा हो गया। आँखों के आगे से वह दिलनशीं चेहरा ओझल हुआ, तब कहीं जाकर श्रेयस उसके सम्मोहन जाल से बाहर आया।
दादी ने खानदानी कंगन रिद्धिमा को पहनाते हुए उसकी नज़र उतारी और प्यार से उसके माथे को चूमा।
जब संकल्प जी, निलिमा जी ने भी उसे गिफ़्ट्स दिए तो भला इवान और मानवी क्यों पीछे रहते? वे दोनों भी वहाँ पहुँच गए।
"ये है हमारी प्यारी सी भाभी के लिए एक प्यारा सा गिफ़्ट।" दोनों ने अपने-अपने गिफ़्ट्स उसकी ओर बढ़ा दिए, जिन्हें रिद्धिमा ने मुस्कुराते हुए एक्सेप्ट कर लिया।
"थैंक्यू।"
"श्रेयस, सब भाभी को गिफ़्ट दे रहे हैं, तू उन्हें कुछ नहीं देगा?"
To be continued…
अब किसकी शामत आई है, जिसने श्रेयस से यह सवाल कर लिया? किसे अपनी जान से प्यार नहीं? सोते शेर को छेड़ रहा है और अब श्रेयस क्या करेगा इसका?
श्रेयस के भाई ने उसके पास आते हुए सवाल किया, "श्रेयस सब भाभी को गिफ्ट दे रहे हैं, तू उन्हें कुछ नहीं देगा?" उसके साथ ही दूसरा भाई भी आ गया और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए शरारत से मुस्कुरा दिया।
"समझा कर न भाई, हमारे श्रेयस ने तो अपना दिल ही भाभी को दे दिया। उनकी मोहब्बत में बेमोल बिक गया। ज़िंदगी भर के लिए उनके हुस्न का गुलाम बन गया है। अब इससे ज़्यादा और क्या ही दे सकता है वो उन्हें।"
दोनों ने श्रेयस को छेड़ा जिससे वह खीझ उठा। वे दोनों ताली मारते हुए ठहाके मारकर हँस पड़े। श्रेयस को उनकी बातें ज़रा भी रास नहीं आ रही थीं। आज वह खुद में कुछ उलझा हुआ था, इसलिए वह कुछ ज़्यादा ही चिढ़ गया और सबसे दूर जाकर अकेला खड़ा होकर यह तमाशा देखने लगा।
रिद्धिमा ने निगाहें उठाकर सवालिया नज़रों से दादू को देखा जो कुछ पेपर्स उसे दे रहे थे। "दादा जी ये क्या है?" रिद्धिमा के साथ बाकियों की नज़र भी उन पर थी और कईयों की आँखों में यही सवाल झलक रहा था जिसमें श्रेयस सबसे आगे था। वह भौंह सिकोड़े गहरी निगाहों से उन पेपर्स को घूर रहा था।
"बेटा, आप श्रेय की पत्नी हैं तो उनकी प्रॉपर्टी और शेयर्स पर आपका आधा अधिकार है। ये उन्हीं के पेपर्स हैं जो हम आज आपको आपकी मुह दिखाई में उपहार के रूप में दे रहे हैं।"
दादा जी का जवाब सुनकर श्रेयस के चेहरे पर खतरनाक भाव उभर आए। कई लोग चौंक गए; श्रेयस भयानक तरीके से रिद्धिमा को घूरने लगा।
रिद्धिमा पहले हैरान-परेशान सी उन्हें देखती रही। फिर उसने उन पेपर्स को अपनी हथेली से उनकी ओर सरकाते हुए कहा,
"सॉरी दादा जी, पर मैं इसे एक्सेप्ट नहीं कर सकती।"
उसका जवाब सुनकर सब अविश्वास भरी निगाहों से उसे देखने लगे। करोड़ों की प्रॉपर्टी को ठुकराने से पहले उसने पल भर को नहीं सोचा, ज़रा नहीं हिचकिचाई, माथे पर एक शिकन तक नज़र नहीं आ रही थी। बाकी सब जहाँ हैरान थे, वहीं श्रेयस अब भी उसे ही घूर रहा था।
"क्यों बेटा?" दादा जी ने परेशानी भरी निगाहों से उसे देखा। जवाब में रिद्धिमा सौम्यता से मुस्कुरा दी।
"क्योंकि इस पर मेरा नहीं, श्रेयस जी का अधिकार है। मैं उनकी वाइफ ज़रूर हूँ पर इन सब पर मेरा कोई अधिकार नहीं। श्रेयस जी की सालों की मेहनत है ये जिसे मैं उनसे नहीं छीन सकती। मुझे तो वैसे भी बिज़नेस की कोई नॉलेज नहीं, प्रॉपर्टी लेकर मैं क्या करूँगी? मुझे इन सबकी कोई ख्वाहिश नहीं। मुझे आप सबका इतना प्यार और अपनापन मिल रहा है यही बहुत है मेरे लिए और आप सबके बेशुमार प्यार के आगे तो इन कागज़ के टुकड़ों की कोई कीमत ही नहीं है। आप ये सब श्रेयस जी को दे दीजिए, इस पर उनका अधिकार है। उन्होंने मुझसे अपना परिवार और उनका प्यार बाँट लिया, बस और किसी चीज़ में मुझे उनसे हिस्सा नहीं चाहिए।"
कितनी आसानी से उसने ये बातें कह दी थीं। दादा जी के साथ-साथ बाकी सब बेयकिनी से उसे देख रहे थे। रिद्धिमा ने दादा जी की हथेली को थामकर अपने सर पर रख लिया।
"मुह दिखाई में मुझे आप अपना आशीर्वाद दीजिए और बस एक वादा कीजिए कि चाहे कुछ भी हो आपका हाथ हमेशा मेरे सर पर ऐसे ही बना रहेगा।"
उन चंद साधारण से लफ़्ज़ों में कुछ गहरी बात छुपी थी जिसे ज़्यादा लोग समझ न सकें, पर दादू को आज अपनी पसंद पर गर्व ज़रूर हुआ।
"बिल्कुल बेटा, भविष्य में स्थिति चाहे जैसी भी हो, आपके दादू का आशीर्वाद हमेशा आपके साथ रहेगा। इस घर की बहु से पहले आप हमारे यार की पोती हैं तो हमारी भी पोती हुईं और इस रिश्ते पर किसी रिश्ते का असर नहीं पड़ने देंगे हम। हमारे लिए आप भी श्रेयस, इवान और मानवी जैसी ही हैं और आपके ये दादू हमेशा आपका साथ देंगे।"
दादा जी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसके सर को चूम लिया। जहाँ रिद्धिमा की मुस्कुराहट गहरा गई वहीं आँखों में हल्की नमी भी उभर आई, शायद अपने दादू याद आ गए थे उसे।
सब ओबेरॉय खानदान की इस बहु की प्रशंसा कर रहे थे। रिद्धिमा ने एक लम्हें में सबका दिल जीत लिया था। एक तरफ़ अकेला खड़ा श्रेयस जाँचती निगाहों से रिद्धिमा को देख रहा था, शायद उसके उठाए इस कदम के पीछे की वजह समझने की कोशिश कर रहा था, तभी इवान वहाँ चला आया।
"ब्रो, देख रहे हैं कितनी आसानी से भाभी ने दादा जी के गिफ्ट को ठुकरा दिया। करोड़ों की दौलत उनके सामने थी पर उसे ठुकराते हुए वो एक बार झिझकी नहीं। उनके जगह कोई और लड़की होती तो ऐसी बेवकूफी कभी नहीं करती। इससे पता चलता है कि भाभी के मन में कोई लालच नहीं। उनके लिए धन-दौलत, पैसों से ज़्यादा अहम रिश्ते और उनमें बसा प्यार है। आप मानें या न मानें पर वाकई में आप बहुत लकी हैं जो आपको भाभी जैसी लाइफ पार्टनर मिली है और सबसे बड़ी बात पता है क्या है? आपको बिन मांगे ही हीरा मिल गया है, उसे पाने के लिए आपको कुछ भी करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी, पर कहीं इस बेशकीमती हीरे की बेक़दरी करके उसे खो मत दीजिएगा, वरना सारी उम्र बस पछताते रह जाएँगे।"
पता नहीं वह समझा रहा था या चेतावनी दे रहा था। शायद अपने बड़े भाई को आगाह कर रहा था। श्रेयस बस उसे देखता ही रह गया, जबकि इवान अपनी बात कहकर बाकी लड़कों के पास चला गया था जो अभी भी रिद्धिमा के बारे में ही बात कर रहे थे।
पूजा और मुह दिखाई के बाद रिद्धिमा पंडित जी के खाने की व्यवस्था करने चली गई। सुबह से बहुत काम किए थे उसने। भोग बनाया था, पूजा की सारी तैयारी उसी ने की थी, मंदिर सजाया था। दादी ने ही ये सब काम उसे करने कहे थे और आज से उसे घर-गृहस्थी की ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गई थीं।
पंडित जी को भोजन करवाकर दक्षिणा देकर विदा किया गया। जाते-जाते श्रेयस और रिद्धिमा दोनों को आशीर्वाद दे चुके थे वे। सुबह से दोपहर होने को थी। मेहमानों का खाना-पीना शुरू हो चुका था और इसकी ज़िम्मेदारी भी रिद्धिमा को दी गई थी।
रिद्धिमा का हाथ बार-बार उसके पेट पर जा रहा था। चलने में शायद उसे परेशानी हो रही थी। रह-रहकर उसके चेहरे पर दर्द की रेखाएँ उभर आतीं जिन्हें वह अपनी मुस्कुराहट के पीछे छुपा लेती थी। एक तरफ़ बैठा श्रेयस खुद को फ़ोन में व्यस्त तो दिखा रहा था पर ध्यान रह-रहकर उसकी ओर जा रहा था।
रिद्धिमा अभी भी अपने पेट को थामे मीठा सर्व करवा रही थी, जब श्यामा उसके पास चली आई।
"भाभी ये लीजिए।"
रिद्धिमा ने पलटकर देखा तो ट्रे में एक ग्लास जूस और दवाई रखी थी। रिद्धिमा ने सवालिया निगाहों से उसे देखा तो उसने ट्रे उसकी ओर बढ़ाते हुए आगे कहा,
"भैया ने भेजा है।"
"भैया मतलब श्रेयस...?" रिद्धिमा ने उलझन भरे स्वर में सवाल किया। श्यामा ने तुरंत ही हामी भर दी।
"जी।"
"उस जल्लाद ने मेरे लिए भेजा है।" रिद्धिमा को ताज्जुब हुआ। नज़र श्रेयस पर गई जो अभी तक तो उसे ही देख रहा था पर अब निगाहें फेरकर खड़ा हो गया था।
ट्रे में रखी दवाई देखकर रिद्धिमा को सुबह की उसकी परवाह याद आ गई और हल्की मुस्कान उसके लबों पर उभर आई।
"थैंक्यू।" रिद्धिमा की मीठी सी आवाज़ श्रेयस के कानों में घुल गई। पहले तो वह उसके अचानक सामने आने पर चौंक गया, फिर जल्दी ही उसने खुद को संभाला और चेहरे पर कठोर भाव लाते हुए भौंह उचकाकर उसे देखा।
"किस लिए?"
"इसके लिए।" रिद्धिमा ने मुस्कुराते हुए जूस का ग्लास और दूसरी हथेली में मौजूद दवाई उसके आगे कर दिया और उसे देखते हुए ही दवाई मुँह में डालकर जूस पीने लगी।
श्रेयस पल भर को सकपकाया, फिर तंजिया निगाहों से उसे देखते हुए रूखे स्वर में कहा,
"आधा दिन भी तुमसे भूखे नहीं रहा गया?"
तंज कसा था उसने; सुनकर रिद्धिमा तुनक गई।
"आधा दिन नहीं मिस्टर। कल रात भी मैंने कुछ नहीं खाया था। कल दोपहर का खाया हुआ है और अब दोपहर हो गई है, इसका मतलब पूरे एक दिन यानी 24 घंटे भूखी रही हूँ मैं।"
"तो मुझे क्या बता रही हो? मैंने कहा था भूख हड़ताल पर बैठने।" वही बेरुखी भरा अंदाज़। ज़हर लग रहा था इस वक़्त वह। रिद्धिमा फिर खीझ उठी।
"मैं भूख हड़ताल पर नहीं बैठी थी। वो तो शाम को मैं जल्दी सो गई थी। मनु ने उठाया था शायद, पर मैं उठी नहीं तो भूखी ही रह गई।"
"तो इसमें गलती तुम्हारी है, रात सोने के लिए होती है शाम नहीं।"
श्रेयस का ताना सुनकर रिद्धिमा ने नाराज़गी से अपने गालों को फुला लिया।
"मेरा मूड खराब था..." बोलते-बोलते वह अचानक ही चुप हो गई। पल भर को ठहरी, फिर मुँह बनाते हुए बोली,
"इतने रूड क्यों हो तुम।"
"ये सब क्यों कर रही हो तुम? सुबह चोट लगी थी न तुम्हें। इतने सर्वेंट हैं घर में, वो भी ये काम कर सकते हैं।" श्रेयस ने उसके सवाल को पूरे तरह से नज़रअंदाज़ करते हुए त्योरियाँ चढ़ाते हुए कठोर लहज़े में सवाल किया। नाराज़ रिद्धिमा झल्लाते हुए उसे घूरने लगी।
"कर सकते हैं पर दादी और मॉम ने ये ज़िम्मेदारी मुझे सौंपी है। जब से मैं यहाँ आई हूँ उन्होंने बहुत कुछ किया है मेरे लिए और अब मैं उन्हें शिकायत का मौका नहीं देना चाहती। कितने गर्व से वो मुझे अपनी बहु कह रहे थे, मैं नहीं चाहती कि मेरे कारण उनका मान कम हो या किसी को भी उन्हें कुछ कहने का मौका मिले। अपनी बहु से उन्हें जो उम्मीदें हैं मैं बस उन पर पूरी उतरने की कोशिश कर रही हूँ ताकि वो खुश रहें।"
रिद्धिमा ने मुँह ऐंठा और वहाँ से चली गई। श्रेयस एक बार फिर उसके चेहरे पर सच्चाई पढ़ने की कोशिश करता रह गया।
दोपहर बीत गई थी। खा-पीकर सब लोग कुछ देर आराम कर रहे थे जबकि संकल्प जी पार्टी की तैयारियाँ देखने जा चुके थे। रिद्धिमा को भी नीलिमा जी ने कुछ देर आराम करने भेज दिया था।
इस वक़्त वह आज मिले गिफ्ट्स देख रही थी और उन्हें साथ ही अलग-अलग भी करती जा रही थी। काउच पर बैठा श्रेयस लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था पर कमरे में गूंजती आवाज़ों से लगातार डिस्टर्ब हो रहा था। असल में जब-जब रिद्धिमा अपने हाथ हिलाती, कलाई में मौजूद चूड़ियाँ खनखना उठतीं और यहाँ से वहाँ कदम रखते ही पैरों में मौजूद पायल की छम-छम की मधुर आवाज़ कमरे में हवाओं में घुल जाती।
कुछ देर तक तो श्रेयस बर्दाश्त करता रहा, पर जब उससे और टॉलरेट नहीं हुआ तो खीझते हुए बोल पड़ा,
"बंद करो ये आवाज़ें। मुझे पसंद नहीं है ये शोर-शराबा। अगर इस रूम में रहना है तो एकदम शांत होकर बैठो, वरना निकलो यहाँ से। तब से डिस्टर्ब कर रही हो मुझे।"
उसके अचानक चिल्लाने से रिद्धिमा पहले तो आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखती रही, फिर चिढ़ते हुए बोली,
"मैं क्या तुम्हारे कमरे की शोभा बढ़ाने वाला कोई बेजान शो पीस हूँ जो एक जगह पड़ी रहूँगी? जीती-जागती इंसान हूँ, हाथ-पैर तो हिलाऊँगी ही...और तुम्हें काम में डिस्टर्ब हो रहा है तो तुम जाओ न यहाँ से। मुझे तो कोई परेशानी नहीं। मैं तो आराम से अपना काम कर रही हूँ।"
"बड़ी ही बदतमीज़ हो तुम।" श्रेयस ने उसका जवाब सुनकर तीखी निगाहों से उसे घूरा तो रिद्धिमा भी अपने दोनों हाथ कमर पर रखे उसे घूरते हुए अकड़ते हुए बोली,
"Thanks you for the complement...पर आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि आप जैसे अकड़ू, घमंडी और निहायती रूड आदमी के साथ मेरे जैसी लड़की ही गुज़ारा कर सकती है।"
दो-टूक जवाब दिया था उसने और पलटकर वापिस अपना काम करने लगी थी, जबकि उसके ये तेवर देखकर श्रेयस मन ही मन सुलग उठा था।
"क्या मुसीबत गले पड़ी है। आते ही ज़िंदगी उलट-पुलट करके रख दी इस मुँहफट और बदतमीज़ लड़की ने।"
श्रेयस उसे घूरते हुए खुद में भुनभुनाया, लैपटॉप लेकर पूल साइड चला गया।
To be continued…
"अब यहां क्या करने आई हो तुम? तुम्हारी वजह से मैं यहां आया हूँ, अब क्या यहां भी मुझे दो पल सुकून से बैठना नसीब नहीं होगा?"
श्रेयस ने तीखी निगाहों से रिद्धिमा को घूरा जो उसके पीछे-पीछे पूल साइड भी चली आई थी। रिद्धिमा ने उसका रूड़ बिहेवियर देखकर चिढ़ते हुए कहा,
"तुम इतना भड़क क्यों रहे हो? देख नहीं रहे मैं सब कुछ उतार आई हूँ।"
श्रेयस ने अब गौर किया। रिद्धिमा सारे गहने उतार आई थी। अब बस उसके गले में वो छोटा सा मंगलसूत्र मौजूद था और कपड़े भी बदल चुकी थी। सिंपल से प्लाज़ो सूट में वो मुँह फुलाए उसके सामने खड़ी थी।
"आई क्यों हो तुम यहां?" श्रेयस ने आँखें चढ़ाते हुए सवाल किया।
"कुछ बात करनी थी मुझे तुमसे। कहूँ....... अगर तुम शांति से मेरी बात सुनो क्योंकि मेरा अभी बहस करने या लड़ने का बिल्कुल मूड नहीं है।"
"मेरा तो तुम्हारी शक्ल तक देखने का भी मन नहीं है।" वही अकड़ से भरा रूखा लहज़ा था। रिद्धिमा जो शांति से उससे बात करना चाहती थी, उसका व्यवहार देखकर झुँझला गई।
"तो आँखों पर पट्टी बाँधो ना, नहीं आऊँगी नज़र।"
"ज़्यादा होशियार बनने की ज़रूरत नहीं तुम्हें।" श्रेयस ने गुस्से से जबड़े भींचे। जवाब में रिद्धिमा उसे घूरते हुए खुद पर इतराने लगी,
"मैं पैदा ही होशियार हुई थी।" श्रेयस फिर कुछ बोलने को हुआ, पर रिद्धिमा ने उसे बोलने का मौका ना देते हुए नाराज़गी से आगे कहना शुरू कर दिया,
"देखा फिर तुमने लड़ाई शुरू करवा दी। मैं आज तुमसे शांति से बात करना चाहती हूँ....... please अब बिना लड़ाई या गुस्सा किए मेरी बात सुन लो।"
श्रेयस के चेहरे के भाव अब कुछ सामान्य हुए और वो गंभीर निगाहों से उसे देखने लगा। रिद्धिमा ने पल भर ठहरते हुए गंभीरता से आगे कहना शुरू किया,
"तुम अपनी फैमिली के साथ ठीक नहीं कर रहे हो। वो तुम्हारे अपने हैं, तुम्हें उनके साथ इतना रूड़ बिहेव नहीं करना चाहिए।"
रिद्धिमा उसे उसकी गलती बता रही थी जो श्रेयस से बर्दाश्त न हुआ और वो गुस्से से उस पर बरस पड़ा,
"होती कौन हो तुम मुझे ये बताने वाली कि मुझे किसके साथ कैसे बिहेव करना चाहिए?....... कहीं आज सबके सामने मेरी वाइफ बनकर सबकी तारीफ़ें लूटने....... और दादू ने हमारे रिश्ते को पब्लिक करने और तुम्हें मिसेज़ रिद्धिमा श्रेयस ओबेरॉय के रूप में दुनिया के सामने लाने का फैसला कर लिया है तो सच में खुद को मेरी वाइफ तो नहीं समझने लगी?"
रिद्धिमा तो शांति से बात करना चाहती थी, पर श्रेयस के ये बिगड़े तेवर देखकर वो भी खीझ उठी और उसी के अंदाज़ में उसे करारा जवाब दे दिया,
"बिल्कुल नहीं....... ये तो तुम्हारी खुशफ़हमियाँ है कि मैं तुम्हारी वाइफ के नाम से जाने जाने के लिए मरी जा रही हूँ....... जबकि असलियत में मुझे न तुम्हारी वाइफ बनने में कोई दिलचस्पी है और न ही तुम में। मुझे फ़िक्र है तो उन लोगों की जो तुमसे बहुत प्यार करते हैं और तुम्हारे इस तरह के बिहेवियर के वजह से हर्ट हो रहे हैं।"
"मेरी फैमिली है, तुम्हें उनकी इतनी चिंता क्यों हो रही है?....... वैसे अच्छे होने का नाटक बहुत अच्छे से कर लेती हो तुम। यही अच्छाई दिखाकर मेरी पूरी फैमिली को अपने तरफ़ किया है तुमने, मेरे रिलेटिव्स को भी अपने जाल में फँसा लिया तुमने....... पर अफ़सोस कि तुम्हारी इस अच्छाई का नाटक मेरे सामने नहीं चलेगा।"
श्रेयस का व्यंग्य भरा तीखा अंदाज़ देखकर रिद्धिमा तैश में आ गई,
"न तो मैं अच्छी हूँ और न ही अच्छी बनने का नाटक करती हूँ। मैं जानती हूँ कि मैं बहुत बुरी हूँ, पर तुम्हारी फैमिली बहुत अच्छी है और तुमसे बहुत प्यार करती है।....... मुझे उनकी चिंता है क्योंकि वो मुझे बहुत अच्छे से ट्रीट करते हैं, बहुत प्यार देते हैं।....... मैं तो तुम्हारे वजह से उनकी ज़िन्दगी में आई हूँ, तुम मुझसे कोई रिश्ता भी नहीं रखना चाहते, फिर भी वो मुझे इतना प्यार दे रहे हैं तो वो तुमसे कितना प्यार करते होंगे इसका अंदाज़ा तुम खुद लगा लो।
मैं जानती हूँ कि तुम इस शादी से खुश नहीं हो। जबरदस्ती तुम्हें मेरे साथ इस रिश्ते में बाँध दिया गया है। तुम गुस्सा हो, नाराज़ हो इसलिए ऐसे बिहेव कर रहे हो।....... अपनी जगह तुम पूरी तरह से गलत भी नहीं, पर अब कब तक तुम अपने व्यवहार से उन्हें तकलीफ़ पहुँचाते रहोगे?....... अपनी बेरुखी से उन्हें हर्ट करते रहोगे?
तुम्हारे दादा-दादी इस उम्र में तुम्हारी नाराज़गी झेल रहे हैं, अपने पोते से बात करने को तरस रहे हैं। मॉम कितनी परेशान रहती है तुम्हारे लिए। डैड को कितनी चुभती है तुम्हारी बेरुखी।....... तुम्हारे भाई-बहन जो इतना चाहते हैं तुमको बेवजह बीच में पिस रहे हैं।.......
कोई तुमसे कुछ नहीं कहता, पर इसका मतलब ये नहीं ना कि उन्हें तुम्हारे इस तरह के व्यवहार से तकलीफ़ नहीं होती, या उन्हें तुम्हारी कमी नहीं खलती।....... मेरे साथ सब मुस्कुराते हैं, फिर भी उनकी आँखों में एक उदासी, सुनपन दिखता है, कहते नहीं पर उनकी आँखों में तुम्हारा इंतज़ार दिखता है।
और इन सब को छोड़ दो, खुद को ही देख लो। ऐसा करके क्या तुम खुद खुश हो?....... मैंने तो सुना था कि तुम्हारी जान तुम्हारे परिवार में बसती है और उसी परिवार से तुम मुँह मोड़े खड़े हो। उनके साथ-साथ खुद को भी तकलीफ़ पहुँचा रहे हो।....... सुबह बिना खाए निकल जाते हो, देर रात गए घर आते हो या आते ही नहीं। किसी से कोई बात नहीं करते, घर में एक टाइम खाना तक नहीं खाते।
जैसे हवा पर रहते हो और आग जैसे झुलसते रहते हो, किसी दिन भाप बनकर उड़ जाओगे। तब अच्छा लगेगा तुमको... या अभी सबको इतना परेशान करके सुकून मिल रहा है तुम्हें? सब तुम्हारे लिए परेशान रहते हैं, तुम्हारा इंतज़ार करते हैं। इतना याद करते हैं तुम्हें। तुम्हारी कमी खलती है उन्हें।
मैं तुमसे अपने लिए तो कुछ नहीं मांग रही। बस कह रही हूँ कि मेरे वजह से अपने परिवार से अपने रिश्ते ख़राब मत करो। मैं आज हूँ, कल नहीं भी रही, पर ये तुम्हारा परिवार है, तुम्हें इन्हीं के साथ रहना है। मैं इनकी कुछ नहीं लगती, पर तुम उनके पोते, बेटे और बड़े भाई हो। उन्हें मेरी नहीं तुम्हारी ज़रूरत है और तुम्हें उनकी।
तुम्हें मैं पसंद नहीं, तो अपना गुस्सा, नाराज़गी मुझ पर निकालो ना, मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी। मुझसे कोई रिश्ता नहीं रखना तो मत रखो, मैं नहीं दखल दूँगी तुम्हारी ज़िन्दगी में। दूर रहूँगी तुमसे, बात भी नहीं करूँगी, तुमसे बहस भी नहीं करूँगी। तुम समझ लेना कि मैं हूँ ही नहीं, इग्नोर कर देना मुझे जैसे अभी करते हो।....... पर अपनी फैमिली के साथ अब ये बेरुखी मत दिखाओ। उन्हें माफ़ कर दो, मुझे अच्छा नहीं लगता उन्हें दुखी या परेशान देखकर।"
रिद्धिमा बोलते-बोलते भावुक हो गई, पर उसने खुद को संभाल लिया। शांति से अपनी बात कहने के बाद वो वहाँ से चली गई और पीछे छोड़ गई श्रेयस के मन में ढेरों उलझनें और सवाल।
रात के 8 बज रहे थे। ब्यूटीशियन रिद्धिमा को पार्टी के लिए तैयार करके जा चुकी थी। बाकी सब भी रेडी होकर वेन्यू पर पहुँच चुके थे, बस रिद्धिमा और श्रेयस ही रह गए थे और दोनों को साथ ही जाना था। रेडी होने के बाद श्रेयस कहीं बाहर चला गया था और अभी-अभी वापिस लौटा था। अपने रूम के बाहर खड़ा वो अपने हाथ में मौजूद शॉपर को देख रहा था और कानों में कुछ शब्द गूंज रहे थे।
"बेबी गाँव की लड़कियाँ बहुत चालाक होती हैं, तुम उसकी बातों में मत आ जाना। वो ये सब सिर्फ़ तुम्हारी नज़रों में आने के लिए कर रही है। एक तरफ़ तुम्हारी फैमिली को अपने काबू में कर रही है तो दूसरी तरफ़ तुम्हें भी अपने तरफ़ करने की कोशिश कर रही है।
वो जानती है कि तुम्हारी फैमिली तुम्हारी कमज़ोरी है और उसी कमज़ोरी का फ़ायदा उठाकर वो तुम्हारे करीब आना चाहती है, पर तुम्हें उसके इस झूठी अच्छाई के जाल में नहीं फँसना है।
याद रखो ये वही लड़की है जिसके वजह से तुम्हारी पूरी फैमिली आज तुमसे अलग है। उसके वजह से आज हम दोनों इतने दूर हैं, वो जबरदस्ती तुम्हारी ज़िन्दगी में घुसी है और अब तुम्हें अपने काबू में करना चाहती है। उसे लगता है कि इतनी आसानी से वो तुम्हें अपनी मुट्ठी में कर लेगी, पर तुम्हें उसे बताना होगा कि तुम श्रेयस ओबेरॉय हो।
तुम्हारी फैमिली को उसने अपने तरफ़ कर रखा है तो कुछ ऐसा करो कि सबकी नज़रों में वो गिर जाए। तुम्हारी फैमिली को एहसास हो कि उन्होंने तुम्हारे लिए एक गलत लड़की को चुन लिया है। उसे उसकी औक़ात दिखाओ कि वो तुम्हारे साथ खड़े होने के भी लायक नहीं है।"
ये आवाज़ थी कायरा की जिससे वो अभी-अभी मिलकर आ रहा था और कायरा ने उसके मन में रिद्धिमा को लेकर ज़हर भरने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। श्रेयस जिसके मन से नाराज़गी कुछ कम हो रही थी, अब उसका मन कड़वाहट से भर गया था। उसने दरवाज़े के हैंडल को घुमाया और जैसे ही रूम के अंदर कदम रखा, रिद्धिमा की सॉफ्ट सी आवाज़ उसके कानों से टकराई,
"अच्छा हुआ तुम खुद ही आ गया, वरना मुझे तुम्हारा नंबर लेकर तुम्हें फ़ोन करना पड़ता।....... इवान का दो बार फ़ोन आ चुका है। सब हमें बुला रहे हैं वहाँ।"
श्रेयस की निगाहें अनायास ही आवाज़ की दिशा में घूम गईं। सामने रिद्धिमा खड़ी थी....... लाइट पर्पल कलर का ऑफ-शोल्डर गाउन....... खुले हल्के कर्ली बाल जिन पर डायमंड का हेयर बैंड बड़ा प्यारा लग रहा था। एकदम लाइट मेकअप, चेरी रंग में रंगे गुलाब की पंखुड़ियों से कोमल मुस्कुराते लब। गले में डायमंड का भारी सेट, कानों में उसके मैचिंग के इयरिंग्स झूल रहे थे। उल्टे हाथ में ब्रेसलेट, सीधे हाथ में खूबसूरत सा ड्रेस के मैचिंग का क्लच थामा हुआ था और पैरों में हील्स।
अब तक इंडियन लुक में नज़र आने वाली रिद्धिमा को जब श्रेयस ने वेस्टर्न लुक में देखा तो अपनी पलकें तक झपकाना भूल गया, इस कदर हसीन लग रही थी। उसके रूप के आकर्षण जाल में श्रेयस भी उलझ गया था और अनायास ही उसकी धड़कनें शोर करने लगी थीं।
हालात तो दूसरी तरफ़ भी कुछ ऐसा ही थे। व्हाइट शर्ट के साथ वाइन कलर के थ्री-पीस सूट में, चेहरे पर हल्की बियर्ड्स के साथ रौब, बढ़िया से सेट किए बाल, बाएँ हाथ की कलाई में मौजूद चमचमाती वॉच, पैरों में बूट्स। और उसकी रौबदार पर्सनालिटी....... आज श्रेयस भी धड़कनों को बेकाबू करने को तैयार था। इस वक़्त उसे कोई लड़की क्या लड़का भी देखता तो पल भर को उसकी निगाहें भी उस पर थम जातीं, फिर भला रिद्धिमा उसके चार्म से अछूती कैसे रह सकती थी?
अपने बालों को ठीक करती रिद्धिमा की निगाहें जब श्रेयस पर पड़ीं, पल भर को उस पर ठहर सी गईं। दिल ने जोरों से धड़ककर जैसे उसे बताना चाहा कि उसके सामने खड़ा ये शख्स उसके दिल को बहकाने की कुव्वत रखता है।
दोनों की निगाहें एक-दूसरे के वजूद पर ठहरी थीं, तभी उस सन्नाटे में फ़ोन की रिंगटोन की आवाज़ गूँजी और दोनों ने हड़बड़ाते हुए एक-दूसरे पर से निगाहें हटा लीं। रिद्धिमा ने बेड पर पड़ा अपना फ़ोन उठाया तो स्क्रीन पर इवान का नाम चमक रहा था।
"लो फिर से इवान का फ़ोन आ गया।"
"हैलो....... हाँ, आ गए तुम्हारे भैया....... बस निकल रहे हैं हम।"
श्रेयस को बस यही बातें सुनाई दी थीं। उसके बाद रिद्धिमा ने फ़ोन रख दिया और उसकी ओर पलटते हुए बोली,
"चले।"
"चलते हैं, पर इतनी भी क्या जल्दी है, पहले तैयार तो हो जाओ तुम।" श्रेयस ने बड़े ही एटीट्यूड के साथ जवाब दिया। उसकी बात सुनकर रिद्धिमा के चेहरे पर उलझन के भाव उभर आए।
To be continued…