एक बहुत ही खूबसूरत लड़की 20 या 22 साल की उसने दुल्हन का जोड़ा पहना हुआ है लाल रंग का सारे जेवर और सिर से दुपट्टा और वह एक बहुत ही हैंडसम लड़के की बाहों में खड़ी हैरानी से उसके चेहरे की तरफ देख रही है और लड़के के चेहरे पर एकदम सीरियस एक्सप्रेशन है और... एक बहुत ही खूबसूरत लड़की 20 या 22 साल की उसने दुल्हन का जोड़ा पहना हुआ है लाल रंग का सारे जेवर और सिर से दुपट्टा और वह एक बहुत ही हैंडसम लड़के की बाहों में खड़ी हैरानी से उसके चेहरे की तरफ देख रही है और लड़के के चेहरे पर एकदम सीरियस एक्सप्रेशन है और दोनों एकदम क्लोज खड़े हुए हैं और उसे तस्वीर पर एकदम बीच में लिखा होना चाहिए कहानी का टाइटल "My Mysterious Husband" पोस्ट रोमांटिक होना चाहिए जिसमें वह दोनों क्लोज हस्बैंड वाइफ लगे और लड़के का हाथ दुल्हन की कमर पर होना चाहिए और दोनों एक दूसरे की आंखों में देख रहे हो।
आदित्य सिंहानिया
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अक्षत कपूर
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नैना
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विवान कपूर
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सुनैना
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स्वीटी सिंघानिया
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अनय सिंह
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मनस्वी सिंह राठौर
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एक बहुत ही भव्य, तीन मंजिला बंगलेनुमा घर के बाहर लाइट्स और फूलों की इतनी अधिक सजावट थी कि घर के साथ-साथ वहाँ खड़ी गाड़ियों के शीशे भी शाम के उस समय इतने जगमगा रहे थे कि बढ़ती रात का अंधेरा वहाँ पता ही नहीं चल रहा था। वह घर देखने में पहले ही बाहर से काफी सुंदर और भव्य बना हुआ था; ऊपर से आज की सजावट ने उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा दिए थे। शायद ही घर का कोई कोना होगा जो रोशनी से नहाया हुआ न हो, और तरह-तरह के ताज़े फूलों की सुगंध हर जगह बिखरी हुई थी क्योंकि हर जगह को ताज़े फूलों और पर्दों से सजाया गया था। उस जगह पर भीड़ नहीं थी, लेकिन अच्छी-खासी चहल-पहल नज़र आ रही थी। यह सब दूर से देखकर यही लग रहा था कि घर में कोई शादी या बड़ा समारोह है। दूर से देखने में ही वह घर किसी बहुत बड़े अमीर और रसूखदार व्यक्ति का लग रहा था। उसी घर के अंदर बने एक बड़े कमरे में, सुर्ख लाल रंग के दुल्हन के जोड़े में, पूरी तरह ब्राइडल ज्वेलरी और मेकअप से सजी-धजी एक बेहद खूबसूरत लड़की आईने के सामने बैठी हुई थी। वह लगभग पूरी तैयार हो चुकी थी; केवल सर से दुपट्टा लेना बाकी था। वह लड़की सच में बहुत खूबसूरत लग रही थी, लेकिन उसके चेहरे पर ज़रा सी भी खुशी या मुस्कुराहट नहीं थी, और न ही दुल्हनों वाली कोई शर्म या घबराहट। लेकिन इतना सजी-धजी होने के बावजूद भी वह आईने में खुद को नहीं देख रही थी। उसके चेहरे पर दुख और निराशा के भाव थे, और उसकी आँखें सूजी हुई और आँसुओं से भरी हुई लग रही थीं। उसके हाथ में मोबाइल फोन था और स्क्रीन पर एक मुस्कुराती हुई औरत की तस्वीर थी, जिसने साड़ी पहन रखी थी और लाल बिंदी व सिंदूर लगाया हुआ था। उस दुल्हन बनी लड़की का पूरा ध्यान अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन पर था, और वह उसे देखकर काफी देर से शिकायतें कर रही थी। "आप मुझे छोड़कर क्यों चली गईं मां? देखिए ना, आपके जाने के बाद क्या हाल हो रहा है मेरा। पहले दीदी के साथ भी यही करने वाले थे, लेकिन वह तो चली गई, बच गई इस सब से, लेकिन मैं... मैं नहीं बच पाई। और ये कैसे परिवारवाले हैं मेरे? एक बार भी मेरे बारे में नहीं सोचा; बस फरमान जारी कर दिया कि मेरी शादी यहीं होगी। मेरी मर्ज़ी क्या है, मुझसे किसी ने भी नहीं पूछा मां, क्यों चली गईं आप मुझे छोड़कर, क्यों? मुझे भी आपके पास आना है, नहीं करनी है यह शादी, नहीं बंधना मुझे किसी भी ऐसे रिश्ते में... और इस तरह से तो बिल्कुल भी नहीं..." अपनी मोबाइल स्क्रीन की तरफ देखकर वह लड़की एक के बाद एक शिकायतें करती जा रही थी, और यह सब बोलते हुए अब उसकी आँखों में भरे आँसू उसके गालों पर बहने लगे थे। लाख कोशिशों के बाद भी वह खुद को नहीं संभाल पाई और आखिरकार उस मोबाइल को अपने सीने से लगाकर रोने लगी। उसकी दोनों आँखों से आँसू निकल रहे थे, और मुँह से सिर्फ़ "माँ... माँ..." ही निकल रहा था। "क्या नौटंकी लगा रखी है इस लड़की ने भी सुबह से... अब बताओ, लड़के वाले भी आ चुके हैं। कहीं किसी ने सुन लिया तो क्या इज़्ज़त रह जाएगी हमारी? ज्योति, देख जाकर क्या हो गया अब सुनैना को, क्यों रो रही है वह ऐसे?" एक 50-55 वर्ष की औरत अपने साथ बैठी लगभग 27-28 साल की लड़की से बोली। "कोई बात नहीं मम्मी जी, मैं जाकर देखती हूँ, और मैं समझा दूँगी सुनैना को... आप यहाँ मेहमानों को देखिए।" ज्योति उठकर सुनैना के कमरे की तरफ जाती हुई बोली, जहाँ से रोने की आवाज़ आ रही थी। "क्या हो गया जीजी! इतना नाराज़ क्यों हो रही हैं आप? बस कुछ ही देर की बात है, वरमाला का मुहूर्त बस होने वाला है।" लगभग 50 वर्षीय एक आदमी उस औरत को चिल्लाते हुए सुनकर उसकी तरफ आते हुए बोला। "देख बृजेश, मुझसे तो ना संभलती तेरी छोरियाँ। गायत्री को ही भेज, वही जाकर समझाएगी तेरी लड़की को। कमरे से रोने की आवाज़ें तो इस तरह से आ रही हैं जैसे कोई डंडे से मार रहा हो तेरी सुनैना को।" वह औरत गुस्से में भुनभुनाती हुई बोली। "अरे जीजी, लड़कियाँ तो शादी के वक्त रोती ही हैं, इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई, और गायत्री थोड़ा काम में लगी है, नहीं तो वह चली जाती। वैसे आप भी तो सुनैना की बुआ हैं, थोड़ी देर आप समझा देंगी उसे, तो उसे भी अच्छा लगेगा।" बृजेश उस औरत की थोड़ी चापलूसी करते हुए बोला। "हाँ, पता था मुझे, तू ऐसा ही कुछ कहेगा, इसीलिए पहले ही ज्योति को भेज दिया है। अब पंडित और लड़के वालों को बोल, जल्दी शादी की रस्में शुरू करें और हमारी भी जान छूटे इन सब से।" उस औरत ने बृजेश से कहा और फिर एक तरफ चली गई। बृजेश भी वहाँ से दूसरी तरफ आ गया और शादी की रस्में जल्दी शुरू करवाने की बात करने लगा। "क्या है सुनैना? इतनी तेज़ आवाज़ में क्यों रो रही हो, बाहर तक आवाज़ें जा रही हैं। मम्मी जी इतना नाराज़ हो रही हैं, मेरा मतलब है तुम्हारी बुआ जी... सच में, बाकी सब सुनेंगे तो क्या बोलेंगे कि तुम्हें मारपीट कर मंडप में बैठाया है क्या हम लोगों ने?" ज्योति उस कमरे के अंदर आती हुई बोली। "हाँ, बस वही बाकी रह गया था, बाकी तो और कोई कसर छोड़ी भी नहीं है आप लोगों ने..." ज्योति की बात पर सुनैना अपने हाथों से अपने आँसू पोंछती हुई बोली। "यह बार-बार रोकर मेकअप मत खराब करो, कितनी बार टच अप करूँगी मैं तुम्हारा? तुम्हारी दीदी नैना नहीं हूँ मैं जो दस बार तुम्हारा बिगड़ा काम बनाती रहूँ।" सुनैना का आँसुओं से खराब हुआ मेकअप देखकर ज्योति भी गुस्से में भुनभुनाती हुई बोली और फिर हाथों में फेस पाउडर और पफ लेकर सुनैना के सामने आकर उसके चेहरे पर लगाने लगी। "नैना दी तो कोई बन भी नहीं सकता मेरे लिए कभी, लेकिन भाभी इतना ज़रूर कहूँगी कि चाहे जितना मेकअप लगा लीजिए, लेकिन इस शक्ल पर दिखते हुए आँसू, दर्द और तकलीफ का क्या करेंगे? वह तो किसी भी पाउडर-क्रीम से छिप नहीं सकते ना।" सुनैना एकदम संजीदा लहजे में ज्योति की तरफ देखकर बोली। "सुनैना! तुम मुझे क्या सुना रही हो बार-बार? मुझे कोई शौक नहीं है तुम्हारे लिए यह सब करने का, वह तो मजबूरी में करना पड़ रहा है मम्मी जी और बाकी सब के बोलने पर, क्योंकि कोई और है भी तो नहीं; और यह सब जो तुम्हारे साथ हो रहा है ना, वह तुम्हारी नैना दी का ही किया धरा है। अगर वह चुपचाप घरवालों की मर्ज़ी से शादी कर लेती तो तुम्हें तुम्हारी पढ़ाई और नौकरी के लिए अच्छा-खासा समय मिल जाता, लेकिन नहीं, उन्होंने तो नहीं सोचा तुम्हारे बारे में, और तुम हो कि उसके नाम की माला जपते हुए, हम सब को गलत ठहरा रही हो। तुम्हें तो शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि तुम्हारी बड़ी बहन के घर छोड़कर भाग जाने के बावजूद भी इतने बड़े और अमीर आदमी से तुम्हारी शादी होने जा रही है। पता है तुम्हें, यह घर भी उसका ही है।" सुनैना का मेकअप ठीक करती हुई ज्योति ने एक के बाद एक सारी बातें बताते हुए कहा। लेकिन सुनैना पर ज्योति की इन बातों का कोई फ़र्क नहीं पड़ा और उसने हिकारत से अपनी नज़रें दूसरी तरफ फेर लीं। "ज्योति भाभी! बुआ जी पूछ रही हैं, सुनैना दी तैयार हो गई क्या? पंडित जी और बाकी सब वरमाला की रस्म के लिए उन्हें नीचे बुला रहे हैं।" एक लगभग सत्रह-अठारह साल के लड़के ने कमरे के अंदर झाँकते हुए ज्योति से पूछा। "हाँ, बिल्कुल तैयार है ये... तुम जाकर सब से बता दो, मैं बस इसे लेकर आती हूँ अपने साथ..." ज्योति ने उस लड़के की बात का जवाब देते हुए कहा और वह लड़का ज्योति की बात सुनकर वहाँ से चला गया। "चलो अब, बहुत हो गया! तुम चाहे जितना रो लो और सर पटक लो, यह शादी तो होकर रहेगी, और यह बात तुम भी बहुत अच्छी तरह से जानती हो सुनैना, लेकिन बस मानती नहीं हो। वैसे जितनी जल्दी मान लोगी, उतना ही तुम्हारे लिए बेहतर होगा।" ज्योति ने दुपट्टे से सुनैना का आधा चेहरा ढकते हुए बोला। सुनैना सोफे पर बैठी अपने मोबाइल में किसी का नंबर डायल कर रही थी। ज्योति की नज़र जब उसके फ़ोन पर पड़ी तो उसने देखा कि स्क्रीन पर नैना का नाम फ़्लैश हो रहा था। "पागल हो गई हो क्या तुम सुनैना! खुद ही मुसीबत मोल लेती हो, और इस तरह फ़ेरों से पहले अपनी बहन से बात करके क्या हो जाएगा भला! क्या... करना क्या चाहती हो?" ज्योति उसके हाथ से उसका मोबाइल फ़ोन छीनते हुए थोड़े गुस्से में बोली। "भाभी! मेरा फ़ोन वापस करिए।" ज्योति की सारी बातों को पूरी तरह से इग्नोर करते हुए सुनैना उससे अपना फ़ोन वापस माँगते हुए एकदम गंभीर लहजे में बोली। "नहीं मिलेगा, चुपचाप नीचे चलो। और अगर फ़ोन चाहिए तो बिना कोई ड्रामा करें पूरी शादी करो, और फ़ेरों के बाद मैं चुपचाप कायदे से तुम्हारा फ़ोन तुम्हें वापस कर दूँगी, लेकिन अभी नहीं। और अगर ज़्यादा कोई ड्रामा किया तुमने तो यह मैं तुम्हारी माँ को या फिर अपनी सासू माँ, यानी कि तुम्हारी प्यारी बुआ जी को दे दूँगी, फिर तो तुम्हें कभी भी नहीं मिलेगा तुम्हारा मोबाइल..." ज्योति फ़ोन अपने पीछे करते हुए थोड़ा धमकी देने वाले अंदाज़ में बोली। "क्या... मिल क्या रहा है आप लोगों को, इस तरह से मुझे तकलीफ़ और परेशानियाँ देकर? शादी कर तो रही हूँ मैं आप लोगों के कहने पर, लेकिन फिर भी..." सुनैना एकदम मायूसी से वापस सोफे पर बैठती हुई बोली। उसकी आँखों में आँसू फिर से भर आए थे। "रोना नहीं और चुपचाप चलो नीचे..." बोलते हुए ज्योति ने उसे उठाया और फिर से उसका घूँघट ठीक करके उसे अपने साथ लेकर नीचे हॉल में आ गई। क्रमशः
उसी बड़े से बंगले का दूसरा कमरा था। उस कमरे में पहले से ही काफी चहल-पहल थी; एक-दो लड़कों के साथ कुछ पुरुष और महिलाएँ भी कमरे के अंदर खड़े थे, शायद आपस में बातचीत कर रहे थे। कुल मिलाकर उस वक्त चार-पाँच लोग पहले ही कमरे में मौजूद थे। तभी, ग्रे रंग का, काफी स्टाइलिश और महँगा दिखने वाला थ्री-पीस कोट-सूट पहने हुए एक आदमी, दोनों हाथ अपनी पैंट की जेब में डाले, एकदम से कमरे में दाखिल हुआ। उसके चेहरे पर एक अजीब सा खालीपन था, लेकिन फिर भी, बिखरे बालों और गोरे रंग के चेहरे की तीखी बनावट और तराशे हुए नैन-नक्श के साथ, वह आदमी बहुत ही हैंडसम लग रहा था। उसके अंदर आते ही सभी का ध्यान उसकी ओर गया और एक साथ दो-तीन लोग उसकी ओर आते हुए बोले। "शुक्र है तू आ गया, आदित्य! नहीं तो हमें लगा था कि बिना दूल्हे के बाराती बनकर ही बैठना पड़ेगा हम सबको यहाँ तेरी शादी पर..." एक लड़के ने उसकी ओर आते हुए कहा। उस लड़के की बात सुनकर कोट पहने आदमी ने एक तीखी नज़र उस पर डाली और बिना कुछ बोले ही सामने से बोलता हुआ वह लड़का एकदम चुप हो गया। उस आदमी की चाल एकदम सधी हुई नहीं थी; उसके कदमों में हल्की सी लड़खड़ाहट थी। लेकिन फिर भी, उसकी पर्सनैलिटी इतनी रौबदार थी कि उसके सामने बोलने से पहले वहाँ मौजूद सभी लोग सौ बार सोच रहे थे और एक-दूसरे के चेहरे की ओर देखकर हिम्मत जुटा रहे थे कि आखिर उनमें से पहले कौन बोले। "आदित्य बेटा, आखिर इतना गुस्सा क्यों करता है तू? हम सब तो तेरे अपने हैं, तेरे भले के लिए ही तो बोल रहा था, विशाल..." लगभग अधेड़ उम्र की एक औरत उस सूट वाले लड़के की ओर आती हुई, उसकी चापलूसी करती हुई बोली। "अपना भला-बुरा मैं खुद समझता हूँ, आंटी! आपको मेरी फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है।" आदित्य ने उसी तरह, बिना किसी भाव के, एकदम साफ़ लफ़्ज़ों में कहा। "आदित्य! यह कौन सा तरीका है अपनी चाची से बात करने का? वह तो तेरे भले के लिए ही बात कर रही है, और तुम्हारा यह एटीट्यूड... पता नहीं कौन सी दुनिया में रहते हो तुम?" उन चार-पाँच लोगों में से ही एक आदमी, आदित्य की ओर देखते हुए, थोड़ी नाराज़गी जाहिर करते हुए बोला। लेकिन आदित्य ने उसकी बात सुनकर भी इस तरह रिएक्ट किया, जैसे उसने उसकी बात सुनी ही ना हो, और "रवि... रवि..." नाम की आवाज़ लगाने लगा, कमरे में चारों ओर देखते हुए। तभी, आदित्य की आवाज़ सुनकर, तुरंत ही बाहर से एक शख्स दौड़ता-भागता हुआ कमरे में आया। देखने में वह आदित्य से उम्र में कुछ बड़ा लग रहा था, लेकिन आदित्य उसे नाम लेकर पुकार रहा था, इसलिए साफ़ पता चल रहा था कि वह उसके लिए काम करता है। उस आदमी ने भी फॉर्मल शर्ट और ब्लैक जींस पहने हुए थे, साथ ही उसके हाथ में एक मोबाइल और कुछ सामान भी था। "यस सर! आपने बुलाया..." आदित्य की दूसरी आवाज़ पर ही वह आदमी उसके सामने खड़ा होता हुआ, एकदम गंभीर आवाज़ में बोला और हाथ में पकड़ा हुआ सामान उसने वहीं सोफ़े पर रख दिया। "सारे इंतज़ाम हो गए हैं ना? और इन लोगों को क्या परेशानी है, देखो और दूर करो सबकी परेशानियाँ। मुझे सबकी शिकायतें सुनने की आदत नहीं है।" बोलते हुए आदित्य अपने बालों में हाथ फेरते हुए, उस कमरे में सामने की दीवार पर लगे बड़े से ड्रेसिंग-मिरर की ओर बढ़ा, कि तभी उसके कदम थोड़े लड़खड़ाए और वह गिरते-गिरते बचा, या यूँ कहें कि रवि ने उसे पकड़कर गिरने से बचा लिया। "हमें कोई परेशानी नहीं है, आदित्य बेटा, लेकिन तुम ज़रा अपनी हालत तो देखो। ऐसे कैसे जाओगे शादी के मंडप में? कम से कम आज के दिन तो शराब..." उसी आदमी ने कहा जिसने थोड़ी देर पहले आदित्य से कुछ कहा था। "क्या हुआ है मेरी हालत को? ठीक तो है सब कुछ। जाइए आप लोग भी यहाँ से, मैं रवि के साथ आ जाऊँगा।" आदित्य संभलकर फिर से खड़ा होता हुआ बोला। "सर, आप ठीक हैं? आप इधर बैठ जाइए, प्लीज़!" रवि ने एकदम सहूलियत से आदित्य की ओर देखकर कहा। "आई एम फाइन! मुझे छोड़ो और अपने काम पर ध्यान दो तुम..." बोलते हुए आदित्य उंगलियाँ अपने सर के बालों में डालते हुए अपने बाल ठीक करने लगा। "सारे इंतज़ाम हो गए हैं सर, बस आप रेडी हो जाइए और फिर वरमाला की रस्म शुरू ही होने वाली है।" रवि ने आदित्य की बात पर उसे बताते हुए कहा। "आदित्य, मैं रुक जाऊँ तेरे साथ, मैं भी तेरे साथ ही चलूँगा बाहर..." आदित्य की बात सुनकर एक लड़का बोल पड़ा। "नहीं, विशाल, उसकी कोई ज़रूरत नहीं है। मैंने कहा ना, मैं ठीक हूँ!" आदित्य ने तंज भरी एक मुस्कराहट के साथ उस लड़के की ओर देखते हुए कहा। आदित्य की ऐसी बातें सुनकर बाकी सब लोग एक-एक करके लाचारी से अपना सिर हिलाते हुए उस कमरे से बाहर निकल गए और फिर अंत में विशाल भी, मन ही मन आदित्य को कोसते हुए, वहाँ से बाहर निकल गया। "चलिए सर! रस्म का टाइम हो रहा है।" उन सभी के वहाँ से चले जाने के थोड़ी देर बाद ही रवि ने आदित्य से कहा। आदित्य ने हाँ में सर हिलाया और रवि के साथ ही कमरे से बाहर निकल गया। उस घर के बड़े से हॉल में, जिसे आज की शादी के लिए हर जगह से सजाकर बेहद खूबसूरत बनाया गया था, उसी हॉल के ठीक बीच में वरमाला के लिए बनाए गए स्टेज पर आदित्य जाकर जैसे ही खड़ा हुआ, वैसे ही उसे सामने से लाल जोड़े में ज्योति के साथ आती हुई सुनैना नज़र आई। सुनैना के चेहरे पर घूँघट था, इसलिए आदित्य उसका चेहरा नहीं देख पाया, और वह शायद देखना भी नहीं चाहता था, इसलिए उसने अपनी नज़रें दूसरी ओर कर लीं। ज्योति भी सुनैना को लेकर स्टेज तक आई और फिर स्टेज पर आदित्य के सामने सुनैना को खड़ा करके ज्योति उसके पीछे ही खड़ी हो गई। क्योंकि उसे सुनैना की हालत पता थी, इसलिए वह उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी; सुनैना अकेले में कोई भी गड़बड़ कर सकती थी। ठीक इसी वजह से आदित्य के साथ ही रवि भी उसके पीछे खड़ा हुआ था। "अब आप दोनों एक-दूसरे को वरमाला पहना सकते हैं।" स्टेज के पास ही खड़े पंडित जी ने थोड़ी तेज आवाज़ में कहा, तो बाकी सभी मेहमानों का ध्यान पंडित जी की ओर गया, शायद सिर्फ़ दूल्हा और दुल्हन को छोड़कर... एक लड़की थाल में दो मालाएँ लेकर स्टेज पर उनके पास ही खड़ी थी, लेकिन दूल्हा और दुल्हन इस तरह से बुत बनकर खड़े थे, जैसे उन्हें पंडित जी की कही बात सुनाई ही ना दी हो। "क्या है यह लड़का भी! नाक कटवाएगा हमारा, सुनाई नहीं दे रहा है क्या इसे?" आदित्य के चाचा ने अपनी पत्नी के कान में धीरे से कहा। "आपकी नाक कौन सी उसके साथ इतनी ज़्यादा जुड़ी हुई है? सिर्फ़ सरनेम एक है आप दोनों का, बाकी सब में तो कितना पीछे छोड़ चुका है आदित्य आप लोगों को..." चाचा जी की बात सुनकर उनकी पत्नी ने भी ताना मारते हुए कहा। "भतीजे की शादी है, कोई गड़बड़ हुई तो नाक तो हमारी ही कटनी है ना, और तुम कोई तो मौका छोड़ दिया करो ताना मारने का।" चाचा जी अपनी पत्नी की बात पर किलुसते हुए बोले और फिर अपनी जगह से थोड़ा सा आगे बढ़कर स्टेज पर चढ़ते हुए रवि के कान में बोले, "बोलो इसे, वरमाला डाले लड़की के गले में... सब लोग इस तरफ़ ही देख रहे हैं।" "जी, मैं बोलता हूँ!" रवि ने आदित्य के चाचा की बात सुनकर कहा और फिर थोड़ा आगे बढ़कर आदित्य को थोड़ा सा हिलाते हुए उसके कान में बोला, "सर! आपको वरमाला उनके गले में डालनी है।" "हाँ, हाँ, ठीक..." आदित्य थोड़ा सा चौंककर बोला और फिर उसने जल्दी से वरमाला अपने सामने खड़ी सुनैना के गले में डाल दी। "चलो सुनैना! अब तुम्हारी बारी, तुम भी डालो।" ज्योति भाभी सुनैना के कान में धीरे से, थोड़ा दाँत पीसते हुए बोली और फिर बाकी सब की ओर देखकर जबरदस्ती मुस्कुराई। क्योंकि सुनैना के शरीर में कोई हरकत ही नहीं थी; वह एकदम किसी बेजान मूर्ति की तरह सिर झुकाए स्टेज पर खड़ी थी। उसने अपने सामने खड़े आदमी, यानी कि अपने होने वाले पति की ओर नज़र उठाकर एक बार भी नहीं देखा था। वह हिलडुल नहीं रही थी और ना ही कुछ बोल रही थी, पर हाँ, उसके मन में काफी कुछ चल रहा था। लेकिन जो कुछ भी उसके मन में चल रहा था, उसके बारे में वह वहाँ पर किसी से भी बोल नहीं सकती थी, क्योंकि कोई नहीं था सुनने वाला। उसका मन कर रहा था कि चीख-चीख कर अभी सबको बता देगी कि उसे यह शादी नहीं करनी; यह क्या... उसे तो अभी किसी से भी शादी नहीं करनी, यह तो एक ऐसा रिश्ता है जो उसके घरवाले जबरदस्ती उस पर थोप रहे हैं, बिना उसकी मर्ज़ी के। तो फिर सामने खड़ा शख्स कोई भी हो, क्या फ़र्क पड़ता है? "हाय, लगता है शर्मा रही है बच्ची!" बोलते हुए सुनैना की सौतेली माँ भी स्टेज पर चढ़ी और सुनैना के हाथ में जबरदस्ती वरमाला पकड़ाकर ज्योति और उसकी माँ ने आदित्य के गले में डाल दी। आदित्य भले ही उस वक्त काफी नशे में था, लेकिन उसे काफी कुछ समझ आ रहा था, लेकिन फिर भी उसने कुछ नहीं बोला और चुपचाप सब कुछ होने दिया। वरमाला के बाद फेरों की रस्म हुई और उसमें भी सुनैना का ठीक वैसा ही रवैया था; वह किसी रोबोट की तरह, बिना किसी भाव के और बिना किसी की ओर देखे, बेमन से सारी रस्में निभा रही थी। लेकिन अब सुनैना के साथ-साथ आदित्य के भी कदम थोड़े डगमगा रहे थे और वहाँ मौजूद लोगों को दूल्हा और दुल्हन दोनों का ही बर्ताव काफी अजीब लग रहा था, लेकिन आदित्य की वजह से सामने से कोई भी कुछ नहीं बोल पा रहा था। ज़्यादा मेहमान तो नहीं थे यहाँ पर; कुल मिलाकर आदित्य और सुनैना के परिवार वाले और कुछ गिने-चुने करीबी लोग ही थे, लेकिन बात करने का मौका वह लोग कहाँ छोड़ते हैं। आदित्य को अपने आगे-पीछे से आती हुई काफी फुसफुसाहट सुनाई दे रही थी, लेकिन जैसे ही वह मुड़कर एक तरफ़ नज़र डालता था, उधर के सभी लोग एकदम चुप हो जाते थे और आदित्य वापस नज़रें सामने की ओर कर लेता था। खैर, जैसे-तैसे शादी की रस्में खत्म हुईं और फिर पंडित जी ने कहा, "विवाह संपन्न हुआ! अब आप लोग बड़ों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद ले सकते हैं।" यह सुनकर आदित्य अपने परिवार वालों से पहले सुनैना के परिवार वालों की ओर बढ़ा, लेकिन सुनैना अपनी जगह से एक भी कदम आगे नहीं बढ़ी। और उन दोनों का एक साथ गठबंधन हुआ था, इसलिए आदित्य भी ज़्यादा आगे नहीं बढ़ पाया और उसने पीछे मुड़कर देखा तो सुनैना बोली, "आशीर्वाद! वह भी इन लोगों का... नहीं चाहिए मुझे।" क्रमशः
दुल्हन के जोड़े में मंडप में खड़ी सुनैना के अचानक इस तरह बोलने पर वहाँ मौजूद सभी का ध्यान उसकी ओर गया। आदित्य भी मुड़कर उसे देखने लगा। "आशीर्वाद लेने के काबिल नहीं हैं ये बड़े, सिर्फ़ उम्र और रिश्ते में ही बड़े हैं; बाक़ी तो हर चीज़ में कहीं ज़्यादा छोटे और गिरे हुए हैं। कोई रिश्ता नहीं है अब इनसे मेरा, और ना ही कुछ चाहिए मुझे इनसे, आशीर्वाद भी नहीं...." सुनैना ने अपने हाथों से घूँघट हटाते हुए अपने परिवार वालों की ओर देखकर, काफ़ी नफ़रत से कहा। सुनैना के ये शब्द सुनकर वहाँ मौजूद हर शख्स स्तब्ध रह गया। किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर एक नई-नवेली दुल्हन अचानक शादी के बाद अपने मायके वालों और रिश्तेदारों को ये सब क्यों कह रही है। वहाँ मौजूद सारे लोग तरह-तरह की बातें करने लगे थे। उनकी कुसकुसुहाट की आवाज़ें मंडप में मौजूद दूल्हा और दुल्हन, सुनैना और आदित्य, के कानों तक भी पहुँच रही थीं। तभी सुनैना की सौतेली माँ आगे बढ़कर सुनैना का हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचते हुए बोली, "ये सब क्या बोल रही है तू? होश में तो है ना! चुपचाप पैर छू सबका और बंद कर अपना ये ड्रामा!" "अब इतनी देर के बाद तो कुछ सच बोला है मैंने, नहीं तो कब से चुप ही थी। लेकिन अफ़सोस, मेरा ये सच आपको ड्रामा लग रहा है।" बोलते हुए सुनैना ने एक झटके से अपना हाथ अपनी सौतेली माँ से छुड़वा लिया और उनसे अपना चेहरा भी फेर लिया। "क्या हो गया? ये दुल्हन ऐसे क्यों बोल रही है?" आदित्य की चाची ने भी सुनैना की बुआ के पास आते हुए कहा। "कुछ नहीं, बस थोड़ी नाराज़ है शायद बच्ची। उसे इतनी जल्दी शादी नहीं करनी थी अभी, लेकिन हम सब के बोलने पर उसे करनी पड़ी। शायद इसीलिए। कोई बात नहीं, वह समझ जाएगी।" सुनैना की बुआ जी आदित्य की चाची को सफ़ाई देते हुए बोलीं। लेकिन आदित्य की चाची ने काफ़ी अजीब नज़रों से उन्हें घूरते हुए देखा। वह उनकी बात सुन तो रही थीं, लेकिन पूरी तरह यकीन नहीं कर पा रही थीं उनकी बात पर। "बात सिर्फ़ इतनी सी तो नहीं हो सकती कि लड़की अपने परिवार वालों से कोई रिश्ता रखने से ही मना कर दे।" चाची अपने पति, आदित्य के चाचा, के बगल में आकर खड़ी होती हुई बोली। "हाँ, तो तुम गई तो थी पता लगाने, कुछ पता लगा क्या?" चाचा जी ने भी तंज कसते हुए पूछा। "इतनी आसानी से कहाँ किसी का मुँह खुलता है आजकल।" चाची ने भी मुँह बनाते हुए कहा। आदित्य स्टेज पर खड़ा उनकी सभी बातें सुन रहा था। पूरी तो नहीं, लेकिन कुछ आधी-अधूरी बातें तो उसके कानों तक पहुँच ही रही थीं। "चलो कोई बात नहीं, हमारी धर्मपत्नी जी शायद कुछ ज़्यादा ही नाराज़ हैं। अब उनकी नाराज़गी की वजह तो पता नहीं, लेकिन आप लोग ही बड़े बन जाइए। और बच्चों पर बड़ों का आशीर्वाद हमेशा ही होता है, ना? तो बस फिर पैर छूने की क्या ज़रूरत है? रहने देते हैं।" आदित्य ने थोड़ी तेज़ आवाज़ में कहा जिससे वहाँ मौजूद सभी लोगों तक उसकी बात पहुँच जाए। "सुनैना! तू हमें ये दिन दिखाएगी? ये तो मैंने कभी नहीं सोचा था।" सुनैना के पापा उसके पास आते हुए बोले। "पूरी ज़िंदगी तो बर्बाद कर दी मेरी आपने अपनी ज़िद में आकर। अब और क्या चाहते हैं? मैं खुश रहने का दिखावा करूँ? नहीं, मुझसे ये नहीं हो पाएगा। प्लीज़!" सुनैना ने अपने पिता की ओर हिकारत भरी नज़रों से देखकर कहा। उसकी आँखों में इस वक्त सिर्फ़ गुस्से और नाराज़गी के भाव थे, इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं। "क्या हुआ पापा जी? अब आपकी बेटी ने तो मना ही कर दिया, तो मैं ही आपके पैर छू लेता हूँ। मुझे ही आप दोनों के हिस्से का आशीर्वाद दे दीजिए।" आदित्य सुनैना और बृजेश की बातचीत सुनकर बृजेश की ओर आता हुआ बोला। आदित्य के बोलने के तरीके से बृजेश समझ गया कि आदित्य ने काफ़ी ज़्यादा शराब पी रखी है। क्योंकि इस वक्त आदित्य के क़दम भी डगमगा रहे थे, और आँखें भी काफ़ी ज़्यादा लाल थीं। उसका बोलने का लहजा भी थोड़ा लड़खड़ाता हुआ लग रहा था। लेकिन बृजेश को इन सब बातों से इतना ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ा। उसे शायद आदित्य के बारे में ये सब पहले से ही पता था। लेकिन आदित्य इतना ज़्यादा अमीर और पावरफुल बिज़नेसमैन था कि जब उसने सामने से सुनैना से शादी करने का प्रस्ताव सुनैना के घरवालों के सामने रखा, तो किसी के पास भी मना करने का कोई मौक़ा नहीं था। और वो लोग मना करते भी क्यों? नैना के घर से चले जाने के बाद वो सब आखिर इसी मौक़े की ताक में तो थे कि कैसे भी करके सुनैना की शादी करवा दें, ताकि कहीं वो भी नैना की तरह घर से भाग जाने का क़दम ना उठाएँ। आदित्य जब सुनैना के पापा की ओर बढ़ा, तो सुनैना वहाँ से थोड़ा आगे हटकर ज्योति की ओर पहुँची और उसने ज्योति के हाथ से अपना मोबाइल फ़ोन गुस्से में छीन लिया। ज्योति भी कुछ नहीं कर पाई और सुनैना अपना मोबाइल लेकर वहीं मंडप में एक तरफ़ खड़ी हो गई। आदित्य बस थोड़ा-सा नाममात्र ही झुका था कि सुनैना के पिता ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "खुश रहो बेटा! ठीक है, ठीक है।" सुनैना के पिता की बात सुनकर आदित्य हल्का-सा मुस्कुराया और फिर बाकी सब की ओर देखने लगा। "विदाई, विदाई का इंतज़ाम करते हैं अब..." सुनैना की सौतेली माँ एकदम से बोल पड़ी। "सासू माँ ने मुझसे भी ज़्यादा पी रखी है क्या?" सुनैना की माँ की बात सुनकर आदित्य थोड़ा हँसते हुए बोला। तो रवि उसके पास आकर खड़ा हो गया और बोला, "ये क्या बोल रहे हैं आप, सर!" बाकी सब भी आदित्य की ये बात सुनकर हैरानी से उसकी ओर देखने लगे। और बृजेश, गायत्री और सुनैना के सभी परिवार वाले तो एकदम चुप ही हो गए। "सच! सच बोल रहा हूँ मैं। इन लोगों को ज़रा याद दिलाओ रवि, कि ये तो मेरा ही घर है, तो यहाँ से विदाई करवा के वापस अपने घर भेजेंगे क्या दुल्हन को?" आदित्य उसी तरह से तंजिया लहजे में हँसता हुआ बाकी सब को घूरता हुआ रवि से बोला। "हाँ, सही कह रहे हैं दामाद जी, हम सब ही चले जाते हैं। वैसे भी शादी तो हो ही गई है।" बुआ जी आदित्य की बात का मतलब समझते हुए बोलीं। "हाँ बुआ जी, काफ़ी स्मार्ट हैं। आई लाइक यू बुआ जी..." आदित्य बुआ जी की ओर फ़्लाइंग किस देता हुआ बोला और फिर थोड़ा-सा लड़खड़ा गया। "ठीक से खड़े रहो आदित्य! क्या हरकतें कर रहे हो तुम? सबको पता चल ही गया होगा अब तक कि इतने ज़्यादा नशे में हो तुम कि तुमसे ठीक से खड़े भी नहीं हुआ जा रहा। और कितनी बेइज़्ज़ती करवाओगे तुम हम लोगों की?" आदित्य के नशे में इस तरह बोलने और इस तरह की हरकतें करने पर आदित्य के चाचा जी उसके करीब आते हुए उसे समझाते हुए थोड़ी नाराज़गी से बोले। "कोई इज़्ज़त है आपकी चाचा जी? जो बेइज़्ज़ती हो रही है मेरी वजह से?" आदित्य ने फिर से उसी तरह व्यंग्यात्मक ढंग से अपने चाचा जी को जवाब दिया। "तुमसे तो बात करना ही बेकार है।" बोलते हुए चाचा जी ने आदित्य का हाथ छोड़ दिया और तेज़ क़दमों से चलते हुए वहाँ से दूर चले गए। सुनैना वहाँ पर थोड़ी दूर ही एक तरफ़ खड़ी ये सब देख रही थी। लेकिन उसने अपने परिवार वालों की ओर से या आदित्य की इन हरकतों को देखते-समझते हुए भी कुछ नहीं बोला और चुपचाप मन ही मन खुद की किस्मत पर रोने लगी और मन में ही भगवान से शिकायत करते हुए बोली, "आसमान से गिरे और खजूर में अटके। क्या भगवान जी, आप भी ये कहाँ फँसा दिया है मुझे? कौन से मूड में किस्मत लिखी थी मेरी आपने?" सुनैना के परिवार वाले सभी जाने के लिए तैयार हो चुके थे। और निकलने से पहले आदित्य के परिवार वालों की ओर आकर सुनैना के माता-पिता, बुआ और परिवार के बाकी सदस्यों ने लड़के वालों के परिवार के सभी सदस्यों से हाथ जोड़कर कहा, "अच्छा, अब हम सब चलते हैं। इजाज़त दीजिए।" और इतना बोलकर सुनैना की बुआ और पापा सुनैना की ओर बढ़ने लगे, तो सुनैना उन्हें अपना हाथ दिखाकर रोक देती है और नज़रें दूसरी ओर करते हुए अपने मोबाइल में कुछ करने लगती है। "बेटा, अपना ध्यान रखना।" जाते-जाते सुनैना की बुआ जी उससे इतना ही बोलीं। "थकती नहीं हो आप लोग ये सब ड्रामा करके? क्या साबित करना चाहते हो? कि बहुत ज़्यादा फ़िक्र है आप लोगों को मेरी, या बहुत ज़्यादा अच्छे और महान हो आप लोग?" सुनैना ने अपनी बुआ की बात सुनकर कहा। "रहने दीजिए जीजी, इससे कुछ भी बोलने का फ़ायदा नहीं है। अपनी बहन की ही तरह हो गई है ये भी।" सुनैना की सौतेली माँ बुआ जी को सांत्वना देते हुए बोली। "नैना दी का तो नाम भी मत लीजिएगा आप..." ये सुनकर सुनैना काफ़ी गुस्से से अपनी सौतेली माँ की ओर देखते हुए बोली। तो उसकी माँ ने भी उसे उसी तरह गुस्से में घूरकर देखा। लेकिन तब तक बाकी लोग भी वहाँ पर आ गए और फिर सुनैना के परिवार के लगभग सभी लोग एक-एक करके वहाँ से चले गए। अब सिर्फ़ आदित्य और उसका परिवार ही वहाँ पर बचे हुए थे। और साथ ही कुछ काम करने वाला स्टाफ़ और नौकर आदि भी थे जो कि शादी होने के बाद काफ़ी सारा सामान इधर-उधर उठाकर रखने में लगे थे। "आदित्य बेटा, तुम्हारा कमरा साफ़ करवा दिया है और अच्छे से सजा भी दिया गया है। तुम चाहो तो जाकर देख सकते हो अपने कमरे में..." आदित्य की चाची जी फिर से उसी तरह आदित्य की चापलूसी करते हुए बोलीं। "किसने कहा था आपसे? किससे पूछकर आपने मेरा कमरा खुलवाया? मैंने आपसे एक बार भी कहा कि मैं यहाँ रहने वाला हूँ?" अब तक तो आदित्य बोलते वक़्त सिर्फ़ एटीट्यूड और ताने भरे शब्दों का इस्तेमाल ही कर रहा था। लेकिन अपनी चाची की ये बात सुनकर उसे जैसे एकदम से गुस्सा आ गया और वह उन पर लगभग बरसता हुआ बोला। "अरे लेकिन बेटा, शादी यहाँ पर हुई है तो मुझे लगा कम से कम आज की रात तो यहीं..." चाची जी दोबारा से अपनी सारी हिम्मत समेटकर बोल ही रही थीं कि आदित्य ने अपनी जलती हुई निगाहों से उनकी ओर घूरकर देखा। तो बाकी के शब्द उनके मुँह में ही दबकर रह गए और वह एकदम चुप हो गईं। आदित्य ने उन सब पर एक सरसरी निगाह डाली और फिर रवि की ओर देखकर थोड़ी तेज़ आवाज़ में कहा, "कार निकालो रवि, मुझे घर जाना है अभी इसी वक़्त..." "ओके सर!" रवि आदित्य के गुस्से से अच्छी तरह वाकिफ़ था, और वहाँ मौजूद आदित्य के परिवार के सभी सदस्य भी। लेकिन सुनैना ने आदित्य का ये रूप पहली बार ही देखा था, वैसे तो अभी ठीक से देखा भी नहीं था उसने आदित्य को। लेकिन उसकी ऐसी आवाज़ सुनकर उसे भी आदित्य से थोड़ा-सा डर लगने लगा था। और वह मन ही मन सोच रही थी कि ये इतना बड़ा घर तो है ही, फिर अब ये भला कौन से घर जाने की बात कर रहा है? लेकिन सुनैना की भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि सामने से आकर आदित्य से उस वक़्त कुछ भी पूछे या बोले। इसलिए वह चुपचाप मंडप में एक किनारे पर ही खड़ी थी। आदित्य बाकी सबको इग्नोर करते हुए एकदम से सुनैना की ओर आया और उसकी ओर देखते हुए लगभग आदेश देने वाले अंदाज़ में बोला, "तुम इस तरह से क्या एकदम आराम से खड़ी हो? चलो, तुम्हें भी मेरे साथ ही चलना है, धर्मपत्नी जी!" आदित्य ने पहली बार इतनी देर में सुनैना से कुछ बोला था। और सुनैना का मन तो नहीं था उसके साथ इस वक़्त जाने का, लेकिन और कोई रास्ता भी तो नहीं था अब उसके पास। इसलिए उसने चुपचाप सहमति में सिर हिलाया और आदित्य के पीछे ही चल दी। क्रमशः
सुनैना का बिल्कुल भी मन नहीं था आदित्य के साथ जाने का, लेकिन उसके पास अब कोई और जगह नहीं बची थी। वह जिस जगह पर थी, वह भी आदित्य का ही घर था; और अपने घरवालों से सारे रिश्ते तोड़ने का ऐलान कुछ देर पहले ही उसने चीख-चीख कर कर दिया था। इसलिए, फिलहाल कोई और रास्ता न देखकर, सुनैना आदित्य के साथ ही चल पड़ी। "लेकिन बेटा, यह भी तो तुम्हारा ही घर है ना, और हम सब तुम्हारे परिवार वाले हैं। यहाँ क्यों नहीं रुकना तुम्हें?" इस बार एक दूसरी औरत आदित्य के सामने आती हुई बोली। "बुआ जी, प्लीज! आप जानती हैं मुझे बहुत अच्छी तरह से। मैंने कह दिया है, मुझे यहाँ नहीं रुकना है, तो नहीं रुकना है। लेकिन आप लोग अगर चाहें तो आज रात यहीं रुक सकती हैं, और कल सुबह केयरटेकर को घर की चाबी देकर चले जाइएगा।" सुनैना ने नोटिस किया कि उस औरत से बात करते वक्त आदित्य के लहजे में कुछ नरमी थी, लेकिन एटीट्यूड वही था। और उनकी आगे कोई भी बात सुने बिना वह वहाँ से चला गया। सुनैना उनमें से किसी को भी नहीं जानती थी। शादी से पहले वह किसी से भी नहीं मिली थी; आदित्य की फोटो तक दूर से नहीं देखी थी, क्योंकि वह यह शादी करना ही नहीं चाहती थी। लेकिन फिर, जबरदस्ती अपने घरवालों के दबाव की वजह से उसे शादी करनी पड़ी। उसने आदित्य को आज से पहले कभी नहीं देखा था और न ही उससे मिली थी। जाना तो दूर की बात, लेकिन शादी होने से लेकर अब तक जितनी बार भी उसने आदित्य को देखा था, उसे उसका चेहरा काफी जाना-पहचाना सा लगता था। लेकिन सुनैना को याद नहीं आ रहा था कि उसने उसे कब और कहाँ देखा है? खैर, सुनैना के मन में इस शादी को लेकर काफी गुस्सा था आदित्य पर, इसलिए वह इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देती और न ही ज्यादा गौर करके इस बारे में सोचने या याद करने की कोशिश करती थी। आदित्य उन सभी लोगों को वहाँ पर छोड़कर घर से बाहर की तरफ बढ़ा, तो सुनैना भी उसके पीछे ही घर से बाहर आ गई। वहाँ पर रवि पहले से ही कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा, उन दोनों का इंतज़ार कर रहा था। आदित्य ने कार का दरवाज़ा खोला। सुनैना कार के अंदर बैठने के लिए दरवाज़े की तरफ बढ़ी। उसे लगा कि शायद आदित्य ने उसके लिए कार का दरवाज़ा खोला है, लेकिन आदित्य खुद भी कार में बैठने के लिए उस तरफ बढ़ा, और दोनों एक-दूसरे से टकरा गए। "आउच! देखकर नहीं चल सकते क्या? या शायद कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा है इतने ज़्यादा नशे में हो।" सुनैना आदित्य से टकराने के बाद कुछ पीछे हटती हुई बोली। "मुझे क्या पता था तुम्हें इतनी ज़्यादा जल्दी है कार के अंदर बैठने की? नॉर्मली दुल्हनें तो जाने के लिए तैयार ही नहीं होती हैं शादी के बाद भी... और तुम्हें तो मुझसे भी पहले कार में बैठना है।" आदित्य ने उसकी बात का जवाब दिया। "मुझे तुमसे बात ही नहीं करनी है, वेस्ट ऑफ़ टाइम टोटली! तुम्हें खुद भी समझ आ रहा है कि क्या बोल रहे हो और क्या नहीं?" सुनैना ने आदित्य की बात का जवाब देते हुए कार के अंदर आकर बैठ गई। उसके कार में बैठने के बाद आदित्य ने बाहर से ही कार का गेट बंद कर दिया और खुद आकर आगे कार की फ्रंट सीट पर रवि के साथ बैठ गया। आदित्य के कार में बैठने पर रवि ने तुरंत ही कार स्टार्ट कर दी और वे लोग वहाँ से निकल गए। कार की बैक सीट पर बैठी हुई सुनैना बार-बार अपने मोबाइल से किसी का नंबर डायल कर रही थी, लेकिन उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ समझ में आ रही थीं कि वह जिसका भी नंबर डायल कर रही है, वह इंसान कॉल रिसीव नहीं कर रहा है। आदित्य भले ही आगे बैठा हुआ था, लेकिन उसका दिमाग और आँखें दोनों ही पीछे बैठी सुनैना में ही लगे हुए थे, और वह कार में लगे मिरर से बार-बार चोर नज़रों से उसे देख रहा था। लेकिन सुनैना को इस बात का पता चलने से पहले ही वह अपनी नज़रें दूसरी तरफ़ कर लेता था। सुनैना का ध्यान आदित्य की तरफ़ नहीं था; वह अपने में ही काफी परेशान लग रही थी। रवि कार चला रहा था। उसे शायद पता था कि यहाँ से लेकर घर तक का सफ़र काफी लंबा है, और फिलहाल उन तीनों की आपस में कोई बातचीत नहीं हो रही थी। ऐसे में चुपचाप लंबा सफ़र और ज़्यादा लगता है, इसलिए रवि ने कार का एफएम ऑन कर दिया, बिना किसी से पूछे ही... और कार के एफएम पर गाना बजने लगा। सुनैना जिसे कॉल लगा रही थी, वह तो वैसे भी नहीं लग रहा था, इसलिए उसका ध्यान भी गाने की तरफ़ ही गया। तू जो नज़रों के सामने कल होगा नहीं तुझको देखे बिन मैं मर ना जाऊँ कहीं ओ हो हो तू जो नज़रों के सामने कल होगा नहीं तुझको देखे बिन मैं मर ना जाऊँ कहीं, तुझको भूल जाऊँ कैसे माने ना मनाऊँ कैसे तू बता रोके ना रुके नैना तेरी ओर है इन्हें तो रेहना रोके ना रुके नैना गाने के बोल सुनकर कुछ पल के लिए आदित्य भी उस गाने में खो गया। उसने आँखें बंद कर लीं, जैसे वह गाने के सभी बोल और एहसासों को महसूस कर रहा हो। काटता हूँ लाखों लम्हें, कटते नहीं हैं साये तेरी यादों के हटते नहीं हैं काटता हूँ लाखों लम्हें, कटते नहीं हैं साये तेरी यादों के हटते नहीं हैं सूख गए हैं आँसू तेरी जुदाई के पलकों से फिर भी बादल छंटते नहीं हैं, आदित्य खुद को संभालने की काफी कोशिश कर रहा था, अपनी आँखों में आँसू छिपाने की भी, लेकिन शायद संभाल नहीं पा रहा था। उसने अपना चेहरा बाहर की तरफ करते हुए अपने आँसुओं को पोंछा। फिर जैसे ही वापस कार के अंदर की तरफ मुड़ा, उसने कार के ड्रॉअर में रखी हुई एक काफी महँगी शराब की बोतल निकाली और सीधे बोतल से ही पीने लगा। खुदको मैं हँसाऊँ कैसे माने ना मनाऊँ कैसे तू बता रोके ना रुके नैना तेरी ओर है इन्हें तो रेहना रोके ना रुके नैना ममम.. ओ ओ ओ… सुनैना का बिल्कुल भी मूड नहीं था, इस वक्त गाना सुनने का, लेकिन फिर भी उसने रवि या आदित्य में से किसी से भी गाना बंद करने को नहीं कहा और चुपचाप ही पीछे कार की सीट पर टेक लगाकर बैठी रही। आँसू तो उसकी आँखों में भी थे, लेकिन गाने के बोलों के हिसाब से ये आँसू इश्क़ में मिले दर्द के नहीं, बल्कि अपने और परिवारवालों से मिले दर्द के थे। ममम हाथों की लकीरें दो मिलती जहाँ हैं जिसको पता है बता दे, जगह वो कहाँ है? ममम हाथों की लकीरें दो मिलती जहाँ हैं जिसको पता है बता दे जगह वो कहाँ है इश्क़ में जाने कैसी ये बेबसी है धड़कनों से मिलकर भी दिल तन्हा है दूरी मैं मिटाऊँ कैसे माने ना मनाऊँ कैसे तू बता रोके ना रुके नैना तेरी ओर है इन्हें तो रेहना रोके ना रुके नैना लेकिन आदित्य की आँखों में भी इस वक्त आँसू थे। उसके दिमाग में काफी कुछ चल रहा था। अब वह और ज़्यादा नहीं सुन सकता था, इसलिए उसने गाना खत्म होते ही रवि की तरफ घूर कर देखा। रवि समझ गया कि आदित्य को शायद ठीक नहीं है, या फिर इस गाने को सुनकर और ज़्यादा खराब हो गया है। रवि ने पहले तो आदित्य पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन आदित्य के इस तरह से घूरकर देखने पर रवि समझ गया, और उसकी जुबान सूख गई। उसने जल्दी से रेडियो बंद कर दिया और चुपचाप सामने देखते हुए गाड़ी चलाने लगा। आदित्य ने फिर से कार के सामने लगे मिरर से एक नज़र सुनैना को देखा और पाया कि सुनैना का ध्यान इस वक्त उस पर बिल्कुल भी नहीं था, बल्कि अपने आप में ही किसी बात को लेकर परेशान नज़र आ रही थी। आदित्य ने उससे उसकी परेशानी की वजह नहीं पूछी, क्योंकि वह शायद जानता था कि सुनैना उसे बताएगी भी नहीं। इसलिए उसने बोतल में बची हुई बाकी शराब एक ही साँस में पी ली। "सर! आप यह क्यों?" आदित्य ने पहले ही काफी ज़्यादा शराब पी रखी थी, और अभी-अभी फिर से रवि के सामने उसने एक पूरी बोतल खाली कर दी थी, और दूसरी बोतल भी निकालने लगा था। इसलिए रवि ने उसे रोका और समझाते हुए बोला, लेकिन रवि के बोलने का कोई असर आदित्य पर नहीं हुआ, और वह दूसरी बोतल भी निकाल चुका था। "रहने दीजिए ना सर! मैम भी हैं साथ में, वो क्या सोचेंगी आपके बारे में?" आदित्य को दूसरी बोतल खोलने की कोशिश करता देख रवि ने उसे सुनैना का हवाला देकर समझाने और रोकने की कोशिश की। "कोई कुछ भी सोचे रवि! मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, और मैं सबकी सोच तो कंट्रोल नहीं कर सकता ना? सोचने दो जिसे जो सोचना है।" बोलते हुए आदित्य ने दूसरी बोतल का ढक्कन खोल लिया और उसे भी सीधे मुँह लगाकर पीने लगा। आदित्य को इस तरह से एक के बाद एक शराब की बोतल पीते देखकर सुनैना ने हिकारत से अपनी नज़रें फेर लीं। रवि की बात सुनकर उसने जवाब दिया - "कोई क्या सोचेगा, इससे पहले इंसान को ही खुद की फ़िक्र होनी चाहिए। रहने दो, तुम बेकार ही समझा रहे हो। इतना तो जानते ही होगे तुम अपने सर को शायद!" सुनैना की बातें सुनकर रवि ने हैरानी भरी निगाहों से सुनैना की तरफ़ देखा, और फिर आगे देखकर गाड़ी चलाने लगा। उसे सुनैना से इस तरह की बातों की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। उसे लगा था वह बाकी लोगों की तरह आदित्य को समझाएगी, शराब पीने से रोकेगी, या फिर कम से कम उस पर गुस्सा करेगी या नाराज़ होगी इतनी ज़्यादा शराब पीने के लिए, लेकिन नहीं, सुनैना तो इसके उलट ही बोल रही थी कि उसे क्या फ़र्क पड़ता है जब आदित्य को ही खुद की फ़िक्र नहीं है तो... तभी रवि ने कार रोक दी और आदित्य की तरफ़ देखते हुए बोला - "सर! हम पहुँच गए।" क्रमशः
"क्या... क्या... कहाँ?" रवि की बात पर आदित्य चारों तरफ अपना सिर घुमाकर देखता हुआ बोला। उसे नशे की वजह से सच में समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वे लोग कहाँ थे।
"सर! हम घर, आपके घर पहुँच गए हैं।" रवि ने फिर से कहा।
"ओह, हाँ, घर... यहीं पर आने को तो कहा था ना, ठीक है रवि! तुम कार पार्क करके नीचे अपने रूम में सो जाना।" बोलते हुए आदित्य लड़खड़ाते कदमों और आँखों में आँसू भरी हुई धुंधली नज़रों के साथ कार का गेट खोलकर कार से बाहर निकला और घर के दरवाज़े की तरफ बढ़ने लगा।
"सर, एक मिनट!" कार से बाहर निकलता हुआ रवि आदित्य को आवाज़ लगाया।
"अब क्या हुआ? कुछ रह गया है क्या कार में...?" आदित्य ने थोड़ा उकताकर सवाल किया। जाहिर था कि उसे रवि का इस तरह से आवाज़ देकर रोकना बिल्कुल रास नहीं आया था।
"हाँ, सर, वो... वह मैम, वह अभी तक कार में ही बैठी हैं। उन्हें आप अपने साथ..." रवि आदित्य को यह बात बोलते हुए थोड़ा हिचकिचा रहा था।
आदित्य ने इस वक्त सच में बहुत ही ज़्यादा पी रखी थी। इसलिए शायद उसे सुनैना का ध्यान भी नहीं रहा। और आज से पहले तो रोज़ ही वह रवि के साथ या ज़्यादातर अकेले ही घर वापस आता था और इसी तरह से सीधे दरवाज़े की तरफ जाने लगता था। लेकिन नशे में होने की वजह से वह भूल गया था कि अब उसकी शादी हो चुकी है और सुनैना भी उसके साथ ही थी कार में और अब घर में भी उसके साथ ही रहेगी।
"ओह! तो उसे बोलो ना कार से बाहर आए वह..." रवि की बात सुनकर आदित्य ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा।
"लेकिन सर, मैं कैसे? आई मीन, थोड़ा ऑक्वर्ड नहीं हो जाएगा?" आदित्य की बात पर रवि ने उससे कहा।
"ठीक है, तुम जाकर गीता दी (घर की मेड) से कहो कि सफ़ाई-सफ़ाई कर दे और बाकी इंतज़ाम भी, मैं आता हूँ उसे लेकर।" आदित्य ने रवि से कहा और खुद वापस कार की तरफ़ जाने लगा।
रवि ने आदित्य से कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था, लेकिन आदित्य आगे बढ़ गया। तो रवि ने कुछ नहीं कहा और सीधा घर के अंदर की तरफ़ ही जाने लगा।
"हे... हेलो! मेरी यह कार कुछ ज़्यादा ही पसंद आ गई है क्या तुम्हें? बाहर आने का मूड है या नहीं, घर पहुँच गए हैं हम।" आदित्य झुककर कार के शीशे से अंदर झाँककर सुनैना को देखता हुआ बोला।
सुनैना वहाँ बैक सीट पर पता नहीं कौन सी, अपनी ही किसी सोच में गुम बैठी थी कि उसे कार रुकने या फिर रवि और आदित्य दोनों के कार से उतरने का पता तक नहीं चला। लेकिन इस तरह अचानक से आदित्य की कार की खिड़की से बाहर से आती हुई आवाज़ सुनकर सुनैना ने चौंककर उसकी तरफ़ देखा और फिर हैरानी से अपने चारों तरफ़ नज़रें घुमाकर देखने लगी।
जैसे कि यह सुनिश्चित कर रही हो कि कार सच में रुकी हुई है या नहीं और आदित्य जो बोल रहा है वह सच है या फिर उसके ख़्याल में ही चल रहा है यह सब...
"अब इधर-उधर क्या देख रही हो, सुनाई नहीं दे रहा क्या... मैं क्या बोल रहा हूँ, पूरी रात यहाँ नहीं खड़ा रह सकता मैं तुम्हारे लिए। चलो, इसलिए चुपचाप अंदर।" आदित्य ने दोबारा से काफी रूखी सी सर्द आवाज़ में कहा और कार की खिड़की से अपना हाथ अंदर करके कार का गेट खोल दिया।
कार का गेट खुलते ही सुनैना भी कार से बाहर आ गई। उसने कुछ भी नहीं कहा, लेकिन आदित्य की तरफ़ ही देख रही थी। उसे फिर से आदित्य कुछ जाना-पहचाना सा लग रहा था। इसलिए वह आदित्य के चेहरे की तरफ़ थोड़ा गौर से देखने लगी थी और अब शायद वह याद करने की भी कोशिश कर रही थी कि आखिर उसने आदित्य को पहले कहाँ देखा है?
"मुझे पता है मैं हैंडसम हूँ और काफ़ी स्मार्ट भी, लेकिन तुम्हें इस तरह से यहाँ खड़े होकर मुझे देखने की कोई ज़रूरत नहीं है। ऑफ़िशियली तो शादी हो गई है ना अब हमारी... जी भर के देखती रहना बाद में, बट पहले घर के अंदर तो चलो।" आदित्य सुनैना के इस तरह से देखने पर अपने बालों में हाथ फेरता हुआ काफ़ी एटीट्यूड से बोला। तो सुनैना थोड़ा सा सकपका गई और इधर-उधर देखने लगी।
वह जानबूझकर आदित्य को नहीं देख रही थी और उसने इतना सब तो सोचा भी नहीं था उसकी तरफ़ देखते हुए। वह तो बस उसे आदित्य का चेहरा कुछ जाना-पहचाना सा लग रहा था। इसलिए वह थोड़ी सोच में पड़ गई थी। लेकिन आदित्य के इस तरह से टोकने पर उसने तुरंत उसके चेहरे से अपनी नज़रें हटा ली और आदित्य के आगे आते हुए उसके पहले ही घर के दरवाज़े की तरफ़ बढ़ गई।
"अरे! मेरे लिए तो रुको!" आदित्य सुनैना के पास पहुँचकर उसकी कलाई पकड़ते हुए उसे रोकते हुए बोला।
"हाथ छोड़ो मेरा, इतनी ज़्यादा पी रखी है, होश भी है खुद को खुद का, या कुछ भी बोलते चले जा रहे हो? मुझे कोई शौक नहीं है तुम्हें देखने का।" सुनैना अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए आदित्य की तरफ़ हिकारत भरी नज़रों से देखती हुई बोली। तो उसकी बात का मतलब समझते हुए आदित्य ने भी उसका हाथ छोड़ दिया।
"बट देख तो रही थी और तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ कि मैंने आज कोई पहली बार शराब नहीं पी रखी है। इसलिए मुझे पूरा होश है और मैं जो कुछ भी बोल रहा हूँ, पूरे होशो-हवास में ही बोल रहा हूँ।" बोलते हुए आदित्य थोड़ा तैश में दो कदम सुनैना की तरफ़ बढ़ा और उसके कदम कुछ डगमगा गए। वह गिरने ही वाला था, लेकिन फिर खुद ही संभलकर खड़ा होता हुआ थोड़ी अजीब नज़रों से सुनैना की तरफ़ देखने लगा।
"हाँ, वह तो दिख ही रहा है कितने ज़्यादा होश में हो।" सुनैना ने आदित्य की हालत देखकर तंजिया लहजे में कहा और उसे वहीं छोड़कर दरवाज़े की तरफ़ बढ़ गई।
घर के दरवाज़े पर सुनैना जब पहुँची तो उसने देखा कि लगभग 35-40 साल की एक युवती सादे कपड़े पहने हुए मुस्कुराती हुई हाथ में आरती की थाल और दिया लेकर खड़ी थी। रवि भी उसके साथ ही खड़ा था। हाँ, वह मुस्कुरा तो नहीं रहा था, लेकिन फिर भी सामान्य लग रहा था।
सुनैना को इस सब की कोई भी उम्मीद नहीं थी और इस तरह की शादी होने के बाद वह सच में ऐसा कोई स्वागत-सत्कार चाहती भी नहीं थी। लेकिन फिर भी ना जाने क्यों उस औरत का मन रखने के लिए या फिर शायद शादी की एक और रस्म समझकर सुनैना वहीं दरवाज़े पर रुक गई। और कुछ ही देर में आदित्य भी वहाँ दरवाज़े पर आकर सुनैना के साथ ही खड़ा हो गया।
"क्या गीता दी, आप भी? इन सब की क्या ज़रूरत...?" आदित्य वह सब आरती और स्वागत का सामान देखकर उस औरत से बोला।
"अरे, ज़रूरत कैसे नहीं थी भैया! आखिर भाभी पहली बार जो घर आ रही है आपके साथ।" उस औरत ने आदित्य की बात काटते हुए कहा। तो फिर आदित्य भी आगे कुछ नहीं कह पाया और चुपचाप सुनैना के साथ वहीं पर खड़ा हो गया।
गीता ने उन दोनों की एक साथ आरती उतारी और सुनैना के पैरों के पास एक कलश में चावल भरकर रख दिए। सुनैना को यह सब काफ़ी अटपटा लग रहा था और वह सब की तरफ़ देखती हुई अचानक से रुक गई।
"अरे, क्या हुआ भाभी! कलश में धीरे से ठोकर मार के गिराइए। हमारे यहाँ पर तो नई बहू का स्वागत ऐसे ही होता है घर में..." गीता ने सुनैना को कम्फ़र्टेबल करने की कोशिश करते हुए काफ़ी प्यार और अपनेपन से कहा। सुनैना ने उसकी बात मानते हुए ठीक वैसा ही किया और घर के अंदर आ गई। घर के अंदर आते ही आदित्य तेज़ कदमों से एक तरफ़ बढ़ गया और किसी से कुछ भी बोलने-कहने-सुनने के लिए वह वहाँ पर रुका ही नहीं।
सुनैना आदित्य के वहाँ से इस तरह से चले जाने पर मुड़कर उसकी तरफ़ ही देखने लगी। उसे समझ नहीं आया कि अचानक आदित्य को ऐसा क्या हुआ कि घर के अंदर आते ही बिना किसी से कोई बात किए या बिना वहाँ पर उन सभी के साथ रुके, वह कहीं और ही चला गया।
"भैया! अभी आ जाएँगे, चलिए जब तक मैं आपको आपका कमरा दिखा देती हूँ।" गीता ने सुनैना को उस तरफ़ (जिस तरफ़ आदित्य गया था) देखते हुए पाया तो वह बोली।
"नहीं, कुछ नहीं, मैं तो बस..." गीता की बात पर सुनैना थोड़ा देखते हुए बोली, तो वहाँ पर पास ही खड़ा रवि भी मुस्कुराने लगा।
और फिर सुनैना गीता के साथ ही चली गई जिस तरफ़ गीता जा रही थी।
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"नहीं, बस अब बहुत हो गया। अब मेरे को तेरा कोई भी बहाना नहीं सुनना है। तुम अपना यह सामान उठाओ और निकलो यहाँ से..." टखनों तक आती हुई मैक्सी पहने और बालों का कसा जुड़ा बनाकर उसमें जुड़ा पिन लगाए हुए एक अधेड़ उम्र की औरत चेहरे पर एकदम सख्त भाव लाते हुए सामने सर झुकाए खड़ी हुई बेचारी सी दिखने वाली लड़की से बोली।
"नहीं, मारिया आंटी, प्लीज़! इतनी रात को इस वक्त मैं अकेले कहाँ जाऊँगी? प्लीज़, मुझे कुछ दिनों के लिए और यहाँ पर रहने दीजिए। मैं आपका सारा किराया दे दूँगी, मेरा विश्वास करिए।" उस लड़की ने उसी तरह जमीन पर नज़रें गड़ाए हुए काफ़ी सहमी सी आवाज़ में बोला।
"पिछले दो महीनों से यही सब सुन रही हूँ मैं तेरा, आज दे दूँगी, कल दे दूँगी। लेकिन आज तक एक नया पैसा भी किराये के नाम पर नहीं दिया है तूने। वह तो पूजा की सिफ़ारिश पर मैंने तेरे को बिना एडवांस डिपॉजिट के तरस खाकर कमरा दे दिया, तो उसका अच्छा सिला मिल रहा है मेरे को..." वह औरत उसी तरह से सख्त भाव के साथ उस लड़की को जवाब देती हुई बोली। उस लड़की ने अब तक अपना नीचा किया हुआ चेहरा उठाकर अब उस औरत की तरफ़ बड़ी ही दयनीय दृष्टि से देखा। उसकी आँखों में आँसू थे और उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि वह किसी भी पल रो पड़ेगी।
लगभग 24-25 साल की वह लड़की शरीर और चेहरे से तो काफ़ी खूबसूरत और आकर्षक दिख रही थी इस वक्त रोते हुए भी। साथ ही उसकी आँखें तो काफ़ी ज़्यादा बड़ी और सुंदर थीं, लेकिन उनमें इस वक्त आँसू भरे हुए थे। उस मासूम लड़की की ऐसी हालत देखकर तो किसी को भी उस पर तरस आ जाता, लेकिन उस औरत को उस लड़की पर ज़रा भी तरस नहीं आया।
"आंटी, प्लीज़!" वह लड़की एक बार फिर काफ़ी उम्मीद के साथ प्रार्थना करने वाले स्वर में उस औरत से बोली।
"नहीं बोला ना मैं, नहीं तो मतलब अब नहीं। कोई मर्सी नहीं दिखाएगा अब हम तुम पर। और वैसे भी सिर्फ़ पैसे की बात होती तो हम तुमको कुछ दिन और रह लेने देते। लेकिन पैसे के साथ ही वह लड़के लोग भी अक्सर यहाँ आता-जाता रहता है। यहाँ तक कि तुम जब रूम पर नहीं होती हो तब भी वह लोग तुम्हारे बारे में पूछने इधर-उधर आता है और मेरे को यह रोज़-रोज़ का लफड़ा नहीं मँगता है अपनी खोली में... बाकी बच्चों लोगों की सेफ़्टी का भी तो सवाल है। इसलिए तुम अभी के अभी अपना सामान उठाओ और निकलो यहाँ से..." मारिया आंटी तो उस लड़की के इतनी ज़्यादा रिक्वेस्ट करने पर भी नहीं पिघली और उसे पूरी बात बताते हुए वहाँ से जाने को बोलकर अपने कमरे की तरफ़ चली आई और दरवाज़ा भी उन्होंने अंदर से ही बंद कर लिया।
और वह लड़की काफ़ी देर तक वहाँ पर ही खड़ी रोती रही, शायद इस आस के साथ कि अभी थोड़ी देर बाद वह दरवाज़ा खुल जाएगा; लेकिन लगभग एक घंटा बीत गया और ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
क्रमशः
एक घंटे बाद, लड़की ने आँसू पोछे और अपना सामान उठाया। भारी कदमों से वह घर के सामने से निकलकर सड़क पर आ गई। लगभग ग्यारह या बारह बजे होंगे। सुनसान सड़क पर, बिना किसी मंज़िल के, वह चलती रही। उसे पता नहीं था कि कहाँ जाए या किससे मदद मांगे। तभी उसे अपने मोबाइल का ख्याल आया। उसने मोबाइल निकाला, पर बैटरी डेड थी, मोबाइल बंद था। "शिट! मोबाइल बैटरी भी अभी डिस्चार्ज होनी थी। श्वेता या नीलम को कॉल कर लेती मैं, शायद उनके घर जा सकती इस वक्त और तो मुझे कोई समझ नहीं आ रहा।" वह गुस्से में मोबाइल बैग में रखती हुई बोली और सामान लेकर टैक्सी की राह देखते हुए सड़क किनारे चलने लगी। सुनसान सड़क पर, पहले तो उसे दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आया। कुछ देर बाद, दूर से चार-पाँच आदमियों की हँसने-बोलने की आवाज़ आई। पीछे मुड़कर देखा तो वे चार-पाँच आदमी उसी तरफ़ आ रहे थे जहाँ वह थी। "ओह गॉड! यह सारे तो गुंडे, मवाली, शराबी लग रहे हैं, कहीं मुझ पर नज़र ना पड़ जाए इन लोगों की..." वह परेशान होकर मन ही मन बोली और सोचने लगी कि क्या करे? फिर पीछे मुड़कर देखा तो उसे लगा कि एक आदमी ने उसे देखा है और फुसफुसाकर अपने साथियों को इशारा कर रहा है। फिर वे सब उसकी तरफ़ बढ़ने लगे। यह देखकर लड़की की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। वह दौड़कर आगे भागी और सड़क पार करने लगी। पर वह बहुत घबराई और डरी हुई थी। उसका ध्यान सड़क पर नहीं था और एक कार से उसकी टक्कर होते-होते बची। कार उसके सामने रुक गई। उसका बैग जमीन पर गिर गया। उसने दोनों हाथ आँखों और चेहरे पर रख लिए और आँखें बंद कर लीं। कार की हेडलाइट सीधे उसके चेहरे पर पड़ रही थी। अचानक किसी के सामने आ जाने पर कार वाला आदमी भी घबरा गया, पर उसने कार का नियंत्रण नहीं खोया और कुछ दूर पहले ही ब्रेक लगा दिए। लड़की की साँसें तेज चल रही थीं। दौड़ने और कार के सामने आ जाने से उसे लगा था कि एक्सीडेंट हो गया, लेकिन वह बच गई। वह घबराई हुई, वहीं जड़ हो गई। आदमी कार से बाहर निकला और लड़की की तरफ़ बढ़ते हुए बोला - "आप... आप... ठीक तो है ना? आई एम सो सॉरी! आप एकदम अचानक से सामने आ गईं। आपको कहीं लगी तो नहीं ना..." आदमी की आवाज़ सुनकर लड़की होश में आई। सबसे पहले उसने पीछे देखा तो वे चार-पाँच आदमी अभी भी उसकी तरफ़ बढ़ रहे थे। नैना जल्दी से आगे बढ़कर उस कार वाले आदमी के गले लग गई और तेज आवाज़ में बोली - "पता है कब से तुम्हारा वेट कर रही हूं मैं यहां, कितनी देर लगा दी तुमने... थैंक गॉड तुम आ गए!" नैना के गले लग जाने और बातों से आदमी कुछ समझ नहीं पाया। वह उसे जानता तक नहीं था। वह क्यों उसका इंतज़ार कर रही थी? लेकिन लड़की का प्लान सफल हो चुका था। उसकी बातें सुनकर और उसे कार वाले आदमी के गले लगे देखकर वे सारे आदमी दूसरी तरफ़ मुड़ गए और दूर चले गए। यह देखकर लड़की ने राहत की साँस ली और आदमी से दूर हटते हुए बोली - "आई एम.. आई एम ओके और आप क्यों सॉरी बोल रहे हैं, आप की कोई गलती नहीं है। वह तो मेरे पीछे गुंडे लगे थे ... और सॉरी तो मुझे बोलना चाहिए। मैंने अचानक ही आप को इस तरह गले... लेकिन वह लोग इस तरफ़ ही हमें देख रहे थे।" लड़की की बात सुनकर और उसे बार-बार पीछे मुड़कर देखते हुए पाकर, आदमी ने भी मुड़कर देखा और उन आदमियों को देखकर सारा माजरा समझ गया। "यह... यह लोग आपके पीछे पड़े थे क्या मैडम! मैं पुलिस को कॉल करूँ?" उन आदमियों को देखकर आदमी ने पूछा। "नहीं, चले गए वे लोग। वैसे भी और एक्चुअली मैं पहले से ही बहुत परेशान हूँ, मेरी मकान मालिक ने मुझे इस वक्त घर से निकाल दिया और फिर रात के इस वक्त मुझे समझ नहीं आ रहा मैं कहाँ जाऊँ और फिर रास्ते में ऐसे गुंडे लोग पीछे लग गए, तो मैं काफी ज्यादा घबरा गई थी और आप की कार के सामने आ गई।" आदमी की बात सुनकर लड़की ने एक साँस में सारी बात बता दी। बताते-बताते उसकी आँखों में आँसू आ गए। आदमी ने उसे शांत कराते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा। वह लड़की उम्मीद भरी निगाहों या शायद थोड़ी हैरानी से आदमी की तरफ़ देखने लगी। क्रमशः
"भैया का कमरा ऊपर है, चलिए मैं आपको बताती हूँ।" गीता दी ने सुनैना से कहा और उसे अपने साथ लेकर वहाँ से जाने लगी। गीता के साथ चलते हुए सुनैना ने पूरे घर पर एक नज़र डाली। अंदर से वह काफी खूबसूरत और एकदम मॉडर्न स्टाइल का बना हुआ घर था। वह काफी बड़ा और सुसज्जित भी था। इस वक्त सुनैना उस घर के हॉल में खड़ी थी, जहाँ का पूरा फर्नीचर बहुत ही खूबसूरत था। हॉल के एकदम बीच में सोफा और सेंटर टेबल रखी हुई थी। थोड़ा सा दूर, एक साइड में किचन दिख रहा था और दूसरी तरफ दो या तीन कमरे बने हुए थे। सीढ़ियों की तरफ बढ़ते हुए सुनैना की नज़र उन कमरों पर पड़ी। उसने गीता दी से उत्सुकतावश पूछ ही लिया, "ऊपर वाला कमरा मेरा है, तो फिर यहाँ पर इन कमरों में कौन रहता है?" सुनैना अब तक समझ चुकी थी कि गीता दी यहाँ पर काम करती हैं और आदित्य से उम्र में बड़ी हैं, इसलिए वह उन्हें 'दी' बोलती है। "यह मेरा कमरा है और वह गेस्ट रूम है। और वह रवि सर का कमरा है। कभी-कभी, जब आदित्य भैया की हालत ज़्यादा खराब होती है, तो रवि सर को यहीं पर रुकना पड़ता है, उन्हें संभालने के लिए। आपको तो पता ही होगा यह सब..." सुनैना के सवालों का जवाब देते हुए गीता ने एकदम सहजता से कहा। उसे लगा था कि शायद सुनैना को आदित्य के बारे में सब कुछ पता है और सब कुछ जानते हुए ही सुनैना ने आदित्य से शादी की है। लेकिन गीता इस बात पर यकीन नहीं कर पाई। सुनैना ने बड़ी मासूमियत से अपना सिर हिलाया। तब जाकर गीता को समझ आया कि शायद सुनैना आदित्य के बारे में ज़्यादा कुछ भी नहीं जानती है। इसलिए गीता ने भी आगे कुछ नहीं बोला और चुपचाप उसे उसके कमरे तक पहुँचा दिया। सीढ़ियों से ऊपर पहुँचकर, थोड़ा आगे गलियारे में चलते हुए, एक कमरे के आगे रुककर गीता ने उस कमरे का दरवाज़ा खोलते हुए सुनैना की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "यह है भैया का कमरा और अब से आपका भी, भाभी जी!" "आप मुझे मेरा नाम लेकर बुला सकती हैं। सुनैना, नाम है मेरा!" गीता का इस तरह बार-बार उसे भाभी कहकर बुलाना सुनैना को काफी अजीब लग रहा था। इसलिए उसने गीता को अपना नाम बताते हुए कहा। "जी, सुनैना मैडम!" गीता ने इस बात पर सुनैना से कोई बहस नहीं की और उसे उसके नाम से बुलाती हुई बोली। सुनैना ने भी आगे कुछ नहीं कहा क्योंकि वह अभी उसे ज़्यादा नहीं जानती थी और चुपचाप कमरे के अंदर चली गई। सुनैना के कमरे के अंदर जाने के बाद गीता ने दरवाज़ा आधा बंद किया और वहाँ से उतरकर नीचे आ गई। सुनैना कमरे के अंदर आई। उसने देखा कि कमरा बहुत ही बड़ा और आर्टिस्टिक बना हुआ था। किसी भी नॉर्मल कमरे से बहुत ही ज़्यादा बेहतर था वह। उस वक्त मोगरे, गुलाब के लाल-सफ़ेद फूलों के साथ की गई सजावट और पूरे कमरे में जगह-जगह पर जलती हुई खुशबूदार सेंट कैंडल्स के साथ तो वह कमरा और भी ज़्यादा खूबसूरत लग रहा था। कमरे की लाइट्स ऑफ़ थीं और इस वक्त सिर्फ़ मोमबत्तियाँ जलने का ही उजाला उस कमरे में था। लेकिन फिर भी सुनैना को सब कुछ एकदम साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था। सुनैना अपने साथ अपने एक बड़े से हैंड पर्स के अलावा कुछ भी नहीं लाई थी। उस पर्स में उसकी ज़रूरत का कुछ सामान था, शायद उसके पैसे, मोबाइल और चार्जर वगैरह ही। उसने अपना वह बैग बेड के पास रखे साइड टेबल पर रख दिया और स्विच ढूँढने लगी, लाइट ऑन करने के लिए। क्योंकि यह सब सजावट भले ही उसके लिए ही की गई हो, लेकिन वह जानती थी कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला। क्योंकि जब वह इस शादी के लिए ही राज़ी नहीं थी, तो शादी के बाद ऐसे किसी रिश्ते की तो उसने कल्पना भी नहीं की थी। और फिर आदित्य भी इतने ज़्यादा नशे में था कि उससे तो बात करना ही बेकार समझती थी सुनैना इस वक्त। और वह अभी फ़िलहाल यहाँ पर था भी नहीं। तभी सुनैना ने सामने रखा एक खूबसूरत सा एंटीक कैंडल स्टैंड अपने हाथ में उठा लिया और उसे लेकर दीवार की तरफ़ बढ़ी। उसे सामने की दीवार पर एक स्विच बोर्ड नज़र आया। उस स्विच बोर्ड के सारे बटन ऑन करते हुए आखिरकार सुनैना ने कमरे की लाइट भी ऑन कर दी। फिर बेड की तरफ़ बढ़ते हुए उसने देखा कि बेड पर रेड रोज़ पेटल्स से बेडशीट पर एक हार्ट शेप बनाया हुआ है। सुनैना ने काफी गुस्से से उस गुलाब की पंखुड़ियों से बने हार्ट शेप को पहले तो कुछ देर निहारा। फिर आगे बढ़कर अपने हाथों से उसने सारी पंखुड़ियाँ एक किनारे कर दीं और बेड पर नींद आलसी बैठ गई। "क्या है यह सब और क्यों है? शादी नहीं, बर्बादी है यह मेरे लिए। मेरी पढ़ाई, मेरा करियर, मेरे सारे प्लान, फ्यूचर सब कुछ बर्बाद होकर रह गया है सिर्फ़ एक शादी की वजह से। इसलिए मैं नहीं मानती इस शादी को और नहीं चाहिए मुझे यह सब कुछ भी। कभी स्वीकार नहीं करूँगी मैं इस ज़ोर-ज़बरदस्ती से बंधे रिश्ते को।" बेड के आसपास की गई फूलों की सजावट को अपने हाथ से बिखेरते हुए सुनैना की आँखों में आँसू आ गए और वह रोते-रोते जमीन पर ही बैठ गई। आदित्य कुछ देर के बाद वापस हॉल में आया और फिर सीधे अपने कमरे की तरफ़ सीढ़ियों पर ही बढ़ने लगा। तभी उसने गीता दी को आवाज़ लगाते हुए उनसे सुनैना के बारे में पूछा। गीता ने आदित्य को बताया कि वह ऊपर कमरे में है। "ओके" बोलते हुए आदित्य ऊपर सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गया और गीता भी वापिस अपने कमरे की तरफ़ ही चली गई। सुनैना थोड़ी बहुत सजावट बिगाड़ने के बाद जमीन पर बैठी, घुटनों में अपना मुँह छुपाकर रो रही थी। तभी उसे दरवाज़े पर किसी के कदमों की आहट हुई। वह जल्दी से अपने आँसू पूछती हुई उसी कोने में उठकर खड़ी हो गई, जहाँ पर बैठकर वह रो रही थी। उठकर खड़े होते ही उसकी नज़र दरवाज़े पर पड़ी। उसने किसी को अंदर आते हुए देखा। ध्यान से देखा तो वह आदित्य था जो कि लड़खड़ाते कदमों और बिखरे हुए बालों के साथ और अपना कोट अपने हाथ में पकड़े हुए कमरे के अंदर आया था। कमरे के अंदर आते ही उसने एक नज़र सुनैना पर डाली और जमीन पर बिखरी हुई सारी सजावट देखी। फिर उसने अपना कोट बेड पर फेंक दिया और सुनैना की तरफ़ ही बढ़ने लगा। क्रमशः
"क्या है यह सब?" आदित्य ने अनजाने में ही सुनैना की तरफ एक-दो कदम बढ़ते हुए थोड़ी तेज आवाज में चिल्लाया। लेकिन उसका ध्यान सुनैना की तरफ नहीं था। हाँ, वह सुनैना की तरफ नहीं देख रहा था। नजरें घुमाकर चारों तरफ, शायद उस सजावट को देख रहा था। उसे वह सब काफी ज्यादा इरिटेटिंग लग रहा था। उसे उम्मीद नहीं थी कि यहां, इस घर के कमरे में भी इस तरह से सजावट की जाएगी। सुनैना पहले से ही काफी ज्यादा परेशान और दुखी थी। इन सब चीजों को लेकर, और ऊपर से आदित्य के कमरे में अचानक आ जाने पर वह थोड़ी घबरा गई थी। अब आदित्य के चिल्लाने से उसने समझ लिया कि शायद उसने जो सजावट बिगाड़ी है, उसी वजह से आदित्य उस पर चिल्ला रहा है। "वह मुझे कुछ नहीं पता, यह सब गलती से..." आदित्य को इस तरह गुस्से में चिल्लाता हुआ देखकर सुनैना घबराई हुई सी आवाज में सफाई देने की कोशिश करती हुई बोली। "तुम... तुम... तुम यहां..." सुनैना की आवाज सुनकर आदित्य का ध्यान उसकी तरफ हुआ। नशे की वजह से उसे शायद ज्यादा कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसकी आँखों से सब कुछ धुंधला-धुंधला सा दिखाई दे रहा था। वह बार-बार अपनी आँखें कसकर बंद करके खोल रहा था, शायद सामने कमरे में मौजूद सुनैना और बाकी चीज़ों को देखने की कोशिश कर रहा था। सुनैना को आदित्य की बात का मतलब समझ में नहीं आया। लेकिन फिर जब उसने आदित्य को गौर से देखा और उसकी हालत देखी, तो वह समझ गई कि आदित्य इस वक्त काफी ज्यादा नशे में है और शायद इसी वजह से कुछ भी बोल रहा है और कुछ भी कर रहा है। यह बात समझ में आते ही सुनैना अपनी जगह से पीछे हटने लगी। लेकिन आदित्य उसकी तरफ ही बढ़ने लगा। सुनैना अपनी जगह से पीछे हट रही थी। वहाँ पर काफी सारी कैंडल्स जल रही थीं और उसका दुपट्टा, जो उसके कंधे से नीचे की तरफ लटक रहा था, उन जलती हुई कैंडल्स के ऊपर ही था। लेकिन सुनैना को इस बात की बिल्कुल भी भनक नहीं थी। उसका पूरा ध्यान सिर्फ़ अपनी तरफ बढ़ते हुए आदित्य पर था और वह बिना पीछे देखे ही अपने कदम पीछे करती चली जा रही थी। "रुक जाओ... रुक जाओ तुम वहीं... स्टॉप!" सुनैना आदित्य की तरफ देखकर चिल्लाते हुए बोली। उसे लग रहा था कि आदित्य कहीं नशे में उसके साथ कोई उल्टी-सीधी हरकत करने की कोशिश ना करे। इसलिए अब सुनैना को डर भी लग रहा था। "अरे तुम... तुम... वह हटो उधर से... उधर हाँ, वह... पीछे..." आदित्य की नज़र जैसे ही सुनैना के पीछे जलती हुई कैंडल्स पर पड़ी, तो वह अपने लड़खड़ाते शब्दों को जोड़-जोड़कर उसे बताने की कोशिश कर रहा था। लेकिन सुनैना की समझ में नहीं आ रहा था कि आदित्य आखिर बोलना क्या चाह रहा है। शायद उसे वहाँ से हटाने के लिए आदित्य उस तरफ आ रहा था। लेकिन सुनैना उसकी कोई भी बात सुने बिना पीछे ही हटती गई। और उसका दुपट्टा अब एक मोमबत्ती के ऊपर था और शायद किनारे से थोड़ा जलने भी लगा था। लेकिन सुनैना को इस बात की भनक तक नहीं थी। यह देखकर आदित्य जल्दी से आगे बढ़कर सुनैना के कंधे से वह दुपट्टा हटाकर जमीन पर फेंक दिया और उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचने लगा। वह सिर्फ़ सुनैना को किसी भी तरह की चोट लगने से बचाना चाहता था। लेकिन सुनैना को आदित्य का ऐसा अचानक कुछ करना बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। वह समझ नहीं पाई कि यह सब अचानक क्या हुआ। आदित्य ने उसका दुपट्टा हटाकर साइड में कर दिया। तो उसने आदित्य से अपना हाथ छुड़ाते हुए तेजी से उसे खुद से दूर किया। आदित्य, जो पहले ही काफी ज्यादा नशे में था और सीधे खड़ा भी नहीं हो पा रहा था, सुनैना के इस तरह से पूरी ताकत से धक्का देने की वजह से जमीन पर गिर पड़ा। और उसका सिर शायद किसी चीज से टकरा गया। उसकी आँखों के नीचे अंधेरा छाने लगा और आदित्य वहीं जमीन पर गिरकर बेहोश हो गया। "हाउ डेयर यू, हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी ऐसा कुछ भी सोचने की? शादी हो गई है तो क्या कुछ भी करोगे?" सुनैना जमीन पर गिरे हुए आदित्य की तरफ देखकर काफी गुस्से में चिल्लाती हुई बोली। उसने इस बात का ध्यान भी नहीं दिया कि आदित्य के सिर पर चोट लगी है या फिर वह बेहोश हो चुका है। और फिर अपना दुपट्टा लेने के लिए वापस पीछे की तरफ मुड़ी, तो उसने देखा कि उसका दुपट्टा मोमबत्ती पर होने की वजह से आधे से ज्यादा जल चुका है। वह समझ नहीं पाई कि दुपट्टा पहले से मोमबत्ती पर था या फिर आदित्य के उसे वहाँ फेंकने की वजह से दुपट्टे में आग लगी। लेकिन इस तरह से अपना दुपट्टा जलता हुआ देखकर सुनैना काफी घबरा गई और इधर-उधर चारों तरफ नज़रें घुमाकर आग बुझाने के लिए देखने लगी। उसने सबसे पहले मोमबत्ती बुझाई। लेकिन दुपट्टे की आग थोड़ी ज्यादा बढ़ चुकी थी, तो वह सिर्फ़ हाथ से हवा करने से नहीं बुझ रही थी। इसलिए इधर-उधर देखने के बाद सुनैना को साइड टेबल पर एक पानी से भरा हुआ जग दिखाई दिया। तो उसने जल्दी से वह पानी से भरा जग उठाकर उस जलते हुए दुपट्टे पर डाल दिया। पानी की वजह से आग तो बुझ गई, लेकिन दुपट्टा लगभग पूरा ही जलकर खराब हो चुका था। और जमीन पर जलने की वजह से उस कमरे के महँगे कार्पेट पर भी जलने के कुछ निशान आ गए थे। अभी-अभी पाँच मिनट के अंदर इतना कुछ हुआ था कि सुनैना को समझ नहीं आया कि अभी-अभी इतनी देर में क्या कुछ हुआ। उसने चारों तरफ नज़र डाली। तो एक तरफ आदित्य जमीन पर गिरा हुआ बेहोश पड़ा था और दूसरी तरफ आधा जला हुआ उसका दुपट्टा और साथ ही जमीन पर जलने के निशान। और बीच में खड़ी सुनैना उजड़ी सी और रुआंसी हालत में। वह उसी तरह निढाल सी फिर से वहीं जमीन पर बैठ गई और रोने लगी। क्रमशः
"क्या... क्या हो रहा है यह सब? क्या कर रहा था यह? क्या यह मुझे सच में बचा रहा था? लेकिन अगर ऐसा था तो बोल भी तो सकता था। ऐसे खुद आकर दुपट्टा खींचकर फेंकने की क्या ज़रूरत थी? इतने ज़्यादा नशे में है यह! और क्या समझूँगी मैं भला? और फिर मुझे कुछ पता भी तो नहीं है। तो कैसे किसी की इंटेंशन...? क्या सच में मैंने इतना गलत समझा उसे?" अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई आदित्य की तरफ बढ़ती हुई सुनैना मन ही मन खुद से बोल रही थी और सवाल कर रही थी। लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि सच में अभी क्या हुआ और क्या नहीं। "इतनी ज़्यादा शराब क्यों पीता है यह? और वह भी अपनी शादी वाले दिन! पता नहीं कौन सा ऐसा ग़म है या फिर खुशी में पिया है इसने। मेरे लिए तो एक पहेली की तरह है इसका यह बिहेवियर और नेचर, जिसे कि शायद मैं खुद भी सुलझाना नहीं चाहती। अभी खुद में इतनी ज़्यादा उलझी हुई हूँ जो।" आदित्य की तरफ देखकर सुनैना यह सब सोच रही थी। साथ ही उसे यह भी लग रहा था कि आदित्य शायद शराब के ज़्यादा नशे की वजह से बेहोश हो गया है। ****************** "थैंक यू सो मच फॉर योर हेल्प! आई डोंट नो मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँगी।" कार में बैठी हुई वह लड़की उस शख्स से बोली जो कार ड्राइव कर रहा था। "कोई बात नहीं। प्लीज डोंट बी फॉर्मल। आपकी जगह कोई भी मुसीबत में फँसा इंसान होता तो मैं उसकी भी हेल्प करता। वैसे आप चाहे तो अपना नाम मुझे बता सकती हैं, इतनी हेल्प के बदले में..." वह आदमी मुस्कुराते हुए उस लड़की की तरफ देखकर बोला और उसने कार रोक दी। "नैना, नैना अग्रवाल!" लड़की ने भी अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए उस आदमी की तरफ किया। और उस आदमी ने मुस्कुराकर हाथ मिलाते हुए कहा, "नाइस मीटिंग तो नहीं बोल सकता क्योंकि तुम इतनी मुसीबत में थी जब हम मिले, बट इट्स डेस्टिनी में बी, एंड वेरी नाइस नेम, नैना। बिल्कुल सूट करता है तुम पर। तुम्हारी आँखें इतनी सुंदर हैं जो।" वह आदमी नैना की थोड़ी तारीफ करते हुए बोला। तो नैना को कुछ अजीब तो लगा, लेकिन वह इस बात पर ध्यान दिए बगैर ही बोली, "आपका नाम, सर!" "फर्स्ट ऑफ ऑल, डोंट कॉल मी सर! मेरा नाम नकुल है और तुम मुझे मेरे नाम से ही बुला सकती हो, नैना, जैसे कि मैं तुम्हें बुला रहा हूँ। अंडरस्टैंड!" नकुल ने नैना से कहा। तो नैना ने उसकी बात पर सहमति से सर हिलाया। और फिर नकुल कार से बाहर आ गया। उसके बाद नैना भी दूसरी तरफ से कार के बाहर आ गई। और नकुल कार की डिक्की से नैना का सामान निकालने लगा। नैना अपने चारों तरफ नज़र घुमाकर देख रही थी। तो उसने देखा कि वह दोनों इस वक्त किसी बड़ी सी बिल्डिंग के काफी बड़े और सुनसान से दिखने वाले पार्किंग लॉट में थे। वहाँ पर दूर-दूर तक लाइन से खड़ी कारों के अलावा और कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। उन दोनों के अलावा कोई भी इंसान नहीं था उस वक्त वहाँ पर। शायद इसलिए क्योंकि रात काफी ज़्यादा हो चुकी थी। नैना हैरत से उस पूरी जगह को चारों तरफ नज़रें घुमाकर देख रही थी और शायद समझने की कोशिश कर रही थी कि तब तक नकुल नैना के दोनों बैग कार डिक्की से निकालकर उसकी तरफ आ गया। "कहाँ... कहाँ पर हैं हम लोग इस वक्त?" नैना ने नकुल को सामने देखकर उससे सवाल किया। "अपार्टमेंट का पार्किंग लॉट है यह और मेरा फ़्लैट इस बिल्डिंग में ही है जिसके बारे में मैंने तुम्हें बताया था।" नकुल ने नैना की बात का जवाब देते हुए कहा और उसके बैग से लेकर उससे थोड़ा आगे, शायद लिफ़्ट की तरफ़ जाने लगा। नैना भी उसके पीछे ही चल दी और थोड़ा आगे आकर उसके हाथ से अपना एक बैग लेते हुए बोली, "मेरा सामान है यह सब। आपने क्यों उठाया है? लीजिए, मैं खुद उठा लूँगी।" "ओके, इंडिपेंडेंट गर्ल्स आई लाइक!" बोलते हुए नकुल ने मुस्कुराते हुए नैना के दोनों बैग्स उसके हाथ में थमा दिए और आगे बढ़कर लिफ़्ट का बटन प्रेस कर दिया। कुछ देर बाद लिफ़्ट खुली और वह दोनों ही लिफ़्ट के अंदर आ गए। नैना अपने दोनों बैग्स कैरी करने में कुछ स्ट्रगल कर रही थी, लेकिन जैसे-तैसे मैनेज करके वह भी नकुल के पीछे लिफ़्ट के अंदर आ गई। और फिर अंदर आते ही नकुल ने छठे फ़्लोर का बटन प्रेस किया। नैना ने कुछ नहीं बोला और चुपचाप उसके साथ ही खड़ी रही। कुछ ही देर में छठे फ़्लोर पर लिफ़्ट खुली और वह दोनों ही लिफ़्ट से बाहर आ गए। इस बार नैना ने अपने दोनों बैग ठीक तरह से पकड़ लिए थे और वह भी तुरंत ही नकुल के साथ ही लिफ़्ट से बाहर आ गई। और नकुल लिफ़्ट से थोड़ा आगे आकर एक फ़्लैट के दरवाज़े के सामने खड़ा हो गया और अपनी जेब में शायद दरवाज़े की चाबियाँ ढूँढने लगा। लेकिन तभी उसे समझ में आया कि शायद दरवाज़ा खुला हुआ है। तो उसके बस हल्का सा धक्का देने पर ही दरवाज़ा अंदर की ओर खुल गया। नकुल ने नैना से बताया था कि उसका यह फ़्लैट काफी दिनों से खाली ही है और वह अगर चाहे तो कुछ टाइम के लिए यहाँ रह सकती है। इसीलिए तो वह नैना को यहाँ पर लेकर आया था। और अभी इस तरह से दरवाज़ा खुला पाकर नैना हैरानी से नकुल की तरफ़ ही देखने लगी जो कि पहले से ही थोड़ा अचंभित था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर अंदर कौन हो सकता है इस वक्त, लेकिन फिर भी उसने घर के अंदर क़दम रखा और देखा कि एक लड़की मिनी शॉर्ट्स और स्लीवलैस क्रॉप टॉप पहनकर कानों में हेडफ़ोन लगाए और खुले हुए बालों के साथ आँखें बंद करके शायद किसी म्यूज़िक पर डांस कर रही थी। उसे घर के अंदर आते हुए नकुल या नैना के बारे में तब तक बिल्कुल भी पता नहीं चला जब तक कि उसने अपनी आँखें नहीं खोलीं। नकुल उस वक्त अपने फ़्लैट के हॉल में उस लड़की को देखकर ज़्यादा हैरान तो नहीं, लेकिन थोड़ा शर्मिंदा ज़रूर लग रहा था, नैना के सामने। क्योंकि नैना इस वक्त उसे काफी सवालिया निगाहों से देख रही थी। क्रमशः
"हे नकुल! व्हाट अ सरप्राइज! सो गुड टू सी यू आफ्टर अ लॉन्ग टाइम! और तुमने कॉल भी नहीं किया आने से पहले?" वह लड़की आगे बढ़कर नकुल के गले लगी। वह काफी खुश थी। लेकिन नकुल उस लड़की के इस तरह गले लगने से असहज महसूस कर रहा था। यह उसके चेहरे पर आती घबराहट और पसीने की बूंदों से साफ पता चल रहा था। वह तुरंत ही उसे थोड़ा पीछे धकेलते हुए, थोड़े गुस्से में अपना दांत पीसते हुए बोला, "शैली! तुम्हें कम से कम मुझसे एक बार पूछना तो चाहिए था ना, मेरा फ्लैट यूज़ करने से पहले?" नैना अभी भी सवालिया निगाहों से नकुल की तरफ देख रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे सवाल करे। वह खुद नकुल की एहसानमंद थी। लेकिन उस लड़की का नकुल के प्रति व्यवहार, और फिर नकुल का उस लड़की से इस तरह बोलना, नैना को खटक रहा था। "मैं तो बस कल ही यहां आई थी..." वह लड़की नकुल की बात का जवाब दे रही थी, तभी उसकी नज़र नैना पर पड़ी। उसने नैना की तरफ एक कदम बढ़ाते हुए नकुल से पूछा, "हू इज़ शी?" "शी इज़ नैना, माय... माय फ्रेंड।" उस लड़की का सवाल सुनकर नकुल थोड़ा सोचते हुए, एक पॉज़ लेकर बोला, और फिर नैना की तरफ देखते हुए बोला, "एंड नैना, शी इज़ माय कज़िन, शालिनी। यह कभी-कभी इस फ्लैट पर आ जाती है दोस्तों के साथ पार्टी करने के लिए, या ऐसे ही। एक्चुअली मैंने स्पेयर की दे रखी थी, लेकिन यह अभी चली जाएगी। इसका अपना घर है... है ना, शालिनी!" "ओह, हेलो शालिनी! नाइस टू मीट यू।" नकुल ने शालिनी का नैना से परिचय कराया। नैना ने अपना हाथ शालिनी की तरफ बढ़ाते हुए, थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा। लेकिन शालिनी, नकुल ने जो कुछ भी कहा था, वह सब सुनकर थोड़ी हैरान लग रही थी। वह हैरानी से बड़ी-बड़ी आँखों और खुले मुँह से बारी-बारी से नकुल और नैना की तरफ देख रही थी। लेकिन वह कुछ नहीं बोली। उसने अपना हाथ बढ़ाकर नैना से हैंडशेक किया। "तुम अपना सामान उस कमरे में रख दो, नैना!" नकुल ने नैना को एक कमरे की तरफ इशारा करते हुए कहा। वह एक बड़ा सा तीन बेडरूम का फ्लैट था। किसी भी इंसान के रहने के लिए जरूरी सभी लग्ज़रियस और सामान्य वस्तुएँ वहाँ पहले से ही थीं। घर का इंटीरियर और फ़र्नीचर भी काफी अच्छा था। नैना को थोड़ी देर तक विश्वास नहीं हो रहा था कि वह इस घर में रहने वाली है। क्योंकि इससे पहले वह जहाँ रहती थी, वह तो बस एक खाली सा कमरा था, बीच में पड़े हुए एक पलंग के साथ। बाकी ज़रूरी चीज़ें खुद ही मैनेज करनी पड़ती थीं वहाँ पर। "थैंक यू सो मच नकुल, मैं आपका जितना भी शुक्रिया अदा करूँ, उतना कम है..." नकुल की बात सुनकर नैना उसका शुक्रिया अदा करते हुए बोली। वह इस वक्त सच में नकुल की बहुत एहसानमंद थी। उस जगह से निकाले जाने पर उसके पास सबसे बड़ी प्रॉब्लम यही थी कि उसके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं थी। और नकुल से मिलते ही उसकी इस प्रॉब्लम का सॉल्यूशन निकल आया था। "कितनी बार थैंक्स बोलोगी नैना? इतनी भी बड़ी कोई हेल्प नहीं कर रहा हूँ मैं। वैसे, जब तुम्हारे पास पैसे हो जाएँ ना, तो तुम मुझे रेंट दे देना इस घर का। हिसाब बराबर हो जाएगा।" नकुल ने मुस्कुराते हुए नैना को सहज करने की कोशिश करते हुए कहा। नैना ने सिर हिलाकर सहमति जताई और उस कमरे की तरफ चली गई, जहाँ नकुल ने उसे अपना सामान रखने के लिए कहा था। नैना के उस कमरे में जाते ही, नकुल और शालिनी दोनों के तेवर बदल गए। शालिनी जो अब तक शांत खड़ी थी, अब वह सवालिया नज़रों से नकुल की तरफ देखने लगी। नकुल उसे खुद की तरफ देखता हुआ पाकर इरिटेट होते हुए बोला, "व्हाट! इस तरह क्या घूर रही हो? चलो निकलो यहाँ से... हमारा ब्रेकअप वैसे भी हो चुका है और मैं नहीं चाहता तुम नैना के सामने कोई ड्रामा क्रिएट करो!" "ओह, शायद इसीलिए तुमने मुझे कज़िन बना लिया है अब? मुझे लगा था कि उस म्यूचुअली डिसाइडेड ब्रेकअप के बाद हम अभी भी फ्रेंड्स हैं। हाउ स्टूपिड आई एम! यू आर जस्ट टोटली रिडिक्यूलस, लाइक ऑलवेज!" नकुल के मुँह से अपनी बेइज़्ज़ती भरी बातें सुनकर शालिनी का भी पारा चढ़ गया। वह जल्दी से अपना सारा सामान समेटकर गुस्से में वहाँ से जाने लगी। जैसे ही वह दरवाज़े के पास पहुँची और फ्लैट से बाहर निकलने ही वाली थी, वैसे ही नकुल ने उसे रोकने के लिए आवाज़ लगाई, "वन मिनट, शैली..." "अब क्या है?" शालिनी ने नकुल के इस तरह टोकने पर गुस्से में पीछे मुड़ते हुए पूछा। "फ्लैट की चाबी, जो तुम्हारे पास है, वह तो वापस कर दो। नहीं तो तुम्हारा क्या भरोसा, कब आ टपको।" नकुल ने ताना मारते हुए शालिनी से अपने फ्लैट की चाबी वापस मांगी। उसकी ऐसी बातें सुनकर शालिनी ने गुस्से से अपना सिर हिलाया और आगे बढ़कर अपने बैग से वह चाबी निकालकर नकुल के हाथ में थमा दी और तेज़ कदमों से वहाँ से निकल गई। अगली सुबह, नैना को पता ही नहीं चला कि इतना सब होने के बाद, जब वह इतनी परेशान थी और रो भी रही थी, तो पता नहीं कब, रोते-रोते ही उसकी आँख लग गई और वह उसी तरह जमीन पर बैठे-बैठे सो गई। लेकिन जब रात में वह वहाँ बैठी थी, तो आदित्य भी वहाँ जमीन पर ही बेहोश पड़ा हुआ था। लेकिन अभी जब उसकी आँख खुली, तो वह कमरे में अकेली थी। कमरे की सजावट और सारा सामान जस का तस रखा हुआ था, और कमरे का दरवाज़ा भी उसी तरह से आधा खुला हुआ था जैसे कि रात में। क्रमशः
11 अगली सुबह, सुनैना को पता ही नहीं चला कि इतना सब होने के बाद, जब वह इतनी परेशान थी और रो भी रही थी, तो कब, रोते-रोते उसकी आँख लग गई और वह उसी तरह जमीन पर बैठे-बैठे सो गई। लेकिन जब रात में वह वहाँ बैठी थी, तब आदित्य भी वहाँ जमीन पर ही बेहोश पड़ा हुआ था। अब जब उसकी आँख खुली, तो वह कमरे में अकेली थी। कमरे की सजावट और सारा सामान जस का तस रखा हुआ था, और कमरे का दरवाज़ा भी उसी तरह आधा खुला हुआ था जैसे रात में। सुनैना समझ गई कि आदित्य कमरे से बाहर जा चुका है। यह सोचकर उसने मन ही मन राहत की साँस ली, क्योंकि रात को जो कुछ भी हुआ, उसके बाद वह आदित्य का सामना नहीं करना चाहती थी। अब उसे समझ में आया कि आदित्य उसे बचाना चाह रहा था, और उसने बेवजह उसे इतना गलत समझा था। लेकिन साथ ही सुनैना को आदित्य से काफी चिढ़ थी, उसकी शराब पीने की आदत की वजह से। उसने शराब की वजह से अपने घर में होने वाली लड़ाइयाँ भी देखी थीं, अपने माँ-बाप के बीच, और अब वही सब अपनी ज़िंदगी में होते हुए वह बर्दाश्त नहीं कर पाती। इसलिए वह आदित्य से फिलहाल दूरी रखने में ही विश्वास कर रही थी, खासकर तब जब वह नशे में हो। अपने लिए इस तरह के जीवनसाथी और इस तरह के जीवन की कल्पना तो सुनैना ने सपने में भी नहीं की थी। लेकिन अब जो हो चुका था, उसे कोई नहीं बदल सकता था। इसलिए वह अपनी जगह से उठी और सामने लगे बड़े से आदमकद शीशे में खुद को देखने लगी। सारी रात जमीन पर बैठे रहने की वजह से उसके होंठ सूख गए थे, और सारा चेहरा सर्दी की वजह से सफ़ेद पड़ चुका था। इतना रोने की वजह से आँखों में लगा काजल भी फैल चुका था, और उसकी काली लाइन उसके पूरे चेहरे पर बनी हुई थी। साथ ही लिपस्टिक और बाकी मेकअप भी काफी हद तक खराब हो चुका था। सुनैना अपनी खुद की इस तरह की हालत कभी इमेजिन भी नहीं कर सकती थी, लेकिन इस वक्त वह सच में इस हाल में ही थी। "क्या है यह सब? यह मैं नहीं हूँ! मैं यह बिल्कुल भी नहीं हूँ..." सामने लगे शीशे में अपना ऐसा हुलिया देखकर उसने अपने हाथों से अपने पूरे चेहरे को रगड़-रगड़ कर साफ़ करना शुरू कर दिया, और साथ ही पहनी हुई सारी ज्वेलरी और हाथों की चूड़ियाँ उतार-उतार कर वहीं जमीन और बिस्तर पर फेंकने लगी। "क्यों हो रहा है यह सब मेरे साथ ही क्यों? आखिर क्या कुसूर है मेरा?" रोते-रोते वह खुद से ही सवाल कर रही थी। तभी उसकी नज़र जमीन पर पड़े अपने दुपट्टे के जले हुए टुकड़े और थोड़े बहुत जल चुके कारपेट पर पड़ी। तो उसे रात का सब कुछ याद आ गया। उसने वह सारा कुछ पहले अपने हाथ से समेटा, और फिर उठाकर बाथरूम में रखे डस्टबिन में ले जाकर डाल दिया। फिर चेंज करने के लिए कपड़े ढूँढने लगी। उसे वहाँ कोई कपड़े नहीं मिले, तो उसने अलमारी में रखा हुआ, शायद आदित्य का ही लोअर टीशर्ट पहन लिया, क्योंकि वह लहँगा उसे बहुत भारी, बल्कि किसी बोझ की तरह लग रहा था। वह सब कपड़े आदित्य के थे, तो जाहिर सी बात है सुनैना के लिए काफी ज़्यादा ओवरसाइज़ थे। लेकिन सुनैना उस लहँगे में अब किसी भी कीमत पर नहीं रहना चाहती थी। इसलिए उसने जैसे-तैसे खुद को संभाला, और फिर सारा सामान समेटकर उसी अलमारी में रख दिया। अब सुनैना को समझ नहीं आ रहा था कि वह इसी तरह से बाहर कैसे जाए। लेकिन फिर उसने सोचा कि वह पहले गीता को यहाँ बुला लेती है, और उससे पूछ लेगी नीचे कौन-कौन है, फिर ही वह यहाँ से बाहर निकलेगी। "गीता... गीता दी!" अपने कमरे के दरवाज़े के पास आकर सुनैना ने गीता को आवाज़ लगाई। कुछ ही देर बाद उसे गीता सीढ़ियाँ चढ़ती हुई नज़र आई। तो सुनैना चुप हो गई और वापस कमरे के अंदर चली आई। गीता आकर कमरे के दरवाज़े पर खड़ी हो गई और सुनैना की तरफ देखते हुए बोली- "आपने बुलाया मैडम, कोई काम था..." यह बोलते हुए जैसे ही गीता की नज़र सुनैना पर पड़ी, उसकी हँसी छूट गई और वह हँसते हुए बोली- "भाभी, यह... यह तो भैया के कपड़े! यह क्या पहन रखा है आपने...?" "बहुत ज़्यादा फ़नी लग रही हूँ क्या मैं इनमें? वैसे कुछ और था भी तो नहीं पहनने..." गीता को इस तरह खुद पर हँसता देख सुनैना भी खुद को देखने शीशे की तरफ़ मुड़ी। जैसे ही उसने शीशे में खुद को देखा, वह सच में बहुत ज़्यादा अजीब दिख रही थी। आदित्य की टीशर्ट की आस्तीन उसके हाथ के हिसाब से काफी ज़्यादा लंबी थी, और टीशर्ट भी उसे बहुत ज़्यादा लूज़ था। खुद को इस हालत में देखकर उसकी भी हँसी छूट गई, और वह भी हँसने लगी। लेकिन फिर उसी तरह हँसते-हँसते उसकी आँखों में आँसू आ गए, जैसे ही उसे अपनी करंट सिचुएशन याद आई। "अरे आप रोने क्यों लगी? मैंने आप पर हँसा इसलिए क्या? सॉरी, सॉरी मैडम!" गीता सुनैना की आँखों में आँसू देखकर उसकी तरफ़ बढ़ती हुई बोली। "नहीं, आप... आप सॉरी क्यों बोल रही हैं गीता दी? यहाँ तो ज़िंदगी ने ही मेरे साथ इतना बड़ा मज़ाक किया है।" गीता के इस तरह माफ़ी माँगने पर सुनैना मन में काफी कुछ सोचते हुए एकदम से बोल गई। गीता को सुनैना से इस तरह की बातों की उम्मीद नहीं थी, तो उसने थोड़ा हैरान होते हुए पूछा- "क्या हुआ मैडम? भैया से झगड़ा हुआ है क्या आपका? इस तरह क्यों बोल रही हैं!" "नहीं, कुछ नहीं। बस कोई और कपड़े नहीं थे पहनने को, तो अलमारी में मुझे यही मिला।" सुनैना ने बात बदलते हुए, और अपने आँसू छिपाते हुए चेहरे पर एक झूठी मुस्कराहट लाते हुए गीता से कहा। "तो इतनी सी बात के लिए रो क्यों रही हैं आप? नीचे काफी सारा सामान है, मैं लाती हूँ। उसमें ज़रूर कुछ न कुछ होगा आपके पहनने के लिए।" गीता ने सुनैना से बताया। तो सुनैना थोड़ा सा चौंक गई। उसे नहीं पता था कि गीता किस सामान की बात कर रही है। क्योंकि जहाँ तक उसे याद था, वह तो अपने मायके से कुछ भी सामान लेकर नहीं आई थी यहाँ पर, क्योंकि वह इतनी ज़्यादा गुस्से में थी। और अपने परिवार वालों से जब उसने सारे रिश्ते ही तोड़ दिए थे, तो उनके घर से कोई भी सामान लेकर कैसे आती? भला यह आखिर सुनैना के आत्मसम्मान की बात थी। "कौन... कौन सा सामान? किस सामान की बात कर रही हो तुम?" सुनैना ने गीता से पूछा। "अरे वह नीचे हॉल में है, काफी सारा सामान। आपको नहीं पता क्या? आप यहीं रुकिए, मैं ले कर आती हूँ।" सुनैना के सवाल का जवाब देते हुए गीता कमरे से बाहर चली गई, शायद वह सारा सामान लेने के लिए... क्रमशः
12 अगली सुबह जब नैना की आँख खुली, तो उसने पाया कि वह फ्लैट में अकेली थी। नकुल कल रात ही चला गया था; शालिनी के जाने के कुछ देर बाद। जागने के बाद भी, नैना को कुछ देर अपनी आँखों और अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था। वह इतने अच्छे, लग्ज़रियस, तीन बेडरूम वाले फ्लैट में थी, जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। "थैंक यू, थैंक यू सो मच भगवान जी! मेरी इतनी... इतनी हेल्प करने के लिए!" - वह सुबह उठते ही, बिस्तर पर बैठी-बैठी मन ही मन भगवान को धन्यवाद करती हुई बोली। फिर सबसे पहले उसने अपना मोबाइल चार्जिंग से निकाला, जो कि रात को कमरे में आते ही उसने चार्ज पर लगा दिया था। और बेड पर से उठते हुए उसने अपना मोबाइल चेक करना शुरू किया। किसी के इम्पॉर्टेन्ट मैसेजेस या कॉल्स तो नहीं थे? उसने देखा कि सुनैना के कम से कम २०-२५ मिसकॉल पड़े हुए थे। "ओ गॉड! इतने सारे मिसकॉल सुनैना के! क्या हो गया? पिछले एक हफ्ते से बात भी नहीं हो पाई मेरी सुनैना से। मैं ही इतनी ज़्यादा बिज़ी थी, और फिर कल तो फ़ोन ही लॉक था। क्या हो गया? आई होप! सब ठीक हो। वैसे, उस घर में रहते हुए किसी के साथ कुछ ठीक तो नहीं हो सकता, लेकिन प्लीज़ बस मेरी बहन ठीक हो, उसके साथ कुछ बुरा ना हुआ हो।" - बोलते हुए नैना ने सुनैना का नंबर डायल करना चाहा, लेकिन घड़ी की तरफ देखा। सुबह के 9:00 बज रहे थे। उसे याद आया कि इस वक्त तो सुनैना की क्लासेस होती हैं। वह शायद अभी कॉल रिसीव ना कर पाए। यह सोचकर नैना ने कॉल नहीं किया। उसने मन में सोचा कि 10:00 बजे के बाद कॉल करेगी सुनैना को। तब तक वह फ़्रेश होकर कुछ खाने के लिए सामान देखेगी कि किचन में क्या है, क्या नहीं। ******** "यह देखिए मैडम! यह इतना सारा सामान नीचे हॉल में तो रखा हुआ था, और भी है अभी। मैं तो इतना ही ले कर आ पाई हूँ एक बार में..." - गीता अपने दोनों हाथों में ६-७ शॉपिंग बैग्स लिए हुए, सुनैना के कमरे के अंदर आई। सुनैना हैरानी से उसकी तरफ देखती हुई बोली - "लेकिन यह सब तो मेरा सामान नहीं है।" "हाँ, शायद आपका पुराना सामान नहीं है, लेकिन है तो आपके ही लिए। देखिए, इसमें सारे लेडीज़ कपड़े ही हैं। तो आदित्य भैया का तो होगा नहीं ये..." - गीता वह सारे बैग्स बेड पर सुनैना के सामने रखती हुई बोली। सुनैना ने एक बैग उठाकर देखा। उसके अंदर सच में लेडीज़ ड्रेसेस ही थीं, और हर बैग में अलग तरह की ड्रेस थी। एक में ब्लैक और रेड कलर की सुंदर सी नेट की साड़ी थी, तो दूसरे में प्लाज़ो कुर्ती और तीसरे में वन पीस ड्रेस। एक में गाउन और फिर एक में जीन्स और सिम्पल सा ऑफ़ व्हाइट टॉप था। साथ ही फ़ुटवियर, इनरवेयर और मैचिंग ज्वेलरी और एक्सेसरीज़ भी थीं। "ओ गॉड! यह इतना सब मेरे अकेले के लिए! लेकिन ले कर कौन आया?" - सुनैना एक-एक करके वह सारी चीज़ें देखती हुई, काफी हैरानी से गीता से पूछती है। "रवि सर! यह सब सामान रखवा कर गए थे आज सुबह। आदित्य भैया ने ही बोला होगा उन्हें आपके लिए यह सब लाने को।" - गीता अपनी समझ के हिसाब से सुनैना की बातों का जवाब देती हुई बोली। "लेकिन मेरे लिए यह इतना सब करने की क्या ज़रूरत थी उन्हें... और मैंने तो उनसे कुछ कहा भी नहीं!" - सुनैना अभी भी मन ही मन सोच रही थी कि क्या सच में आदित्य ने इतना सब सोचा उसके लिए? वह तो कल से कुछ और ही राय अपने मन में बनाकर बैठी थी आदित्य के लिए। लेकिन रात को जो कुछ भी हुआ, आदित्य ने उसे जलने से बचाया। और फिर यह सब उसके लिए बिना कहे ही इतना करना! क्या सच में वह आदित्य को गलत समझ रही है, या फिर कुछ और ही बात है! "क्या मतलब आपके लिए किया? और क्यों ज़रूरत नहीं है भाभी? ऐसा क्यों बोल रही हैं आप... आखिर शादी हुई है आप दोनों की, तो भैया आपके बारे में नहीं सोचेंगे तो फिर किसके बारे में सोचेंगे?" - सुनैना की बातें गीता के समझ में नहीं आईं, तो वह अपनी तरफ़ से ही सवाल करती हुई बोली। सुनैना भी गीता को अपनी शादी और अपने और आदित्य के रिश्ते का सच नहीं बताना चाहती थी। इसलिए बात बदलते हुए बोली - "अरे कुछ नहीं, बस इतना सारा सामान है कि मैं थोड़ी कन्फ़्यूज़ हो गई हूँ, क्या पहनूँ इनमें से? बस इसीलिए बोल दिया कि इतना सारा लाने की क्या ज़रूरत थी।" "यह आपको ज़्यादा लग रहा है, भाभी! ऐसे ही १०-१५ बैग अभी और हैं नीचे। और मैंने तो देखा भी नहीं कि क्या है उन सब में। लेकिन शायद सब में लेडीज़ कपड़े ही हैं, क्योंकि आदित्य भैया के कपड़े तो पहले ही अलमारी में हैं।" - सुनैना की बात पर गीता ने उसे बताया। सुनैना ने अभी इस वक्त गीता के खुद को "भाभी" बोलने पर ऐतराज़ भी नहीं किया। शायद उसने उस शब्द पर इतना ध्यान भी नहीं दिया। क्योंकि बाकी सारी चीज़ें देखकर बहुत कुछ चल रहा था उसके दिमाग में इस वक्त... जो कि शायद ज़्यादा इम्पॉर्टेन्ट थीं। जैसे कि आदित्य बिना माँगे ही उसके लिए इतना कुछ कर रहा है। और अगर कर भी रहा है तो क्यों? और साथ ही सबसे बड़ा सवाल: आदित्य इस वक्त कहाँ है? वह सुनैना के सामने क्यों नहीं आ रहा? "तुम्हारे भैया कहाँ हैं?" - सुनैना ने गीता से सवाल किया। "आपको बताकर नहीं गए क्या? वैसे मुझे नहीं पता। क्योंकि भैया कभी भी बताकर आते-जाते नहीं हैं। घर किसी वक्त भी आते हैं और कभी भी चले जाते हैं। शादी से पहले तक तो ऐसा ही था। लेकिन मुझे लगा कि कल शादी हो गई तो शायद अब आपको बताकर जाएँगे। लेकिन नहीं, शायद लोग और उनकी आदतें इतनी जल्दी नहीं बदलतीं।" - सुनैना का सवाल सुनकर गीता उसे शुरू से अंत तक पूरी कहानी सुनाती हुई बोली। "क्या सच में? घर पर नहीं है आदित्य..." - गीता की बात सुनकर सुनैना को जैसे उसकी बात का विश्वास ही ना हुआ, तो उसने दोबारा पूछा। "हाँ, भैया नीचे तो नहीं है। लेकिन मैंने उन्हें घर से बाहर जाते भी नहीं देखा। शायद मेरे उठने से पहले ही निकल गए हों।" - गीता ने थोड़ा सोचते हुए जवाब दिया।
13 सुनैना को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ, इसलिए उसने दोबारा पूछा। "हाँ, भैया नीचे तो नहीं हैं, लेकिन मैंने उन्हें घर से बाहर जाते हुए भी नहीं देखा। शायद मेरे उठने से पहले ही निकल गए हों।" गीता ने सोचते हुए जवाब दिया। "अच्छा, ठीक है।" सुनैना ने राहत की साँस ली और बोली, "आप नाश्ते में क्या खाएँगे? बताइए, मैं आपके लिए बना देती हूँ।" गीता ने कमरे से बाहर निकलते वक्त सुनैना से पूछा। उस वक्त सुनैना को एहसास हुआ कि उसे बहुत तेज भूख लगी है क्योंकि कल से उसने कुछ भी नहीं खाया था, अपने गुस्से की वजह से। "कुछ भी चलेगा, इस वक्त तो सच में बहुत तेज़ भूख लगी है।" सुनैना ने गीता की तरफ देखते हुए, मासूमियत से बच्चों की तरह मुँह बनाते हुए कहा। "ठीक है, आमलेट या फिर सैंडविच बना देती हूँ, जल्दी बन जाएगा।" गीता ने सुनैना की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा। "अरे दी! मैं आमलेट नहीं खाती। एक्चुअली मैं वेजिटेरियन हूँ!" सुनैना ने गीता से कहा। "ठीक है, अच्छा हुआ आपने बता दिया। मैं ध्यान रखूँगी इस बात का..." गीता बोलती हुई वहाँ से चली गई। उसके जाने के बाद, सुनैना बेड पर रखे कपड़ों को देखने लगी। फिर उसने प्लाज़ो और कुर्ती उठाया और चेंज करने के लिए वॉशरूम की तरफ जाने लगी। आदित्य के कपड़ों में वह बहुत अजीब लग रही थी और किसी भी कीमत पर इस तरह वह सबके सामने कमरे से बाहर नहीं जाना चाहती थी। उसे इतना तो पता चल ही गया था कि शायद उसके और आदित्य के अलावा कोई और नहीं रहता था उस घर में, लेकिन गीता और रवि तो थे ही, जो किसी भी वक्त आ जाते थे। इसलिए उसने सोचा कि वह चेंज करके ही रूम से बाहर जाएगी। लेकिन जैसे ही वह चेंज करने के लिए वॉशरूम के अंदर पहुँची, उसने देखा कि आदित्य वॉशरूम में बेहोश पड़ा है और उसके हाथ पर थोड़ा खून भी लगा हुआ था। सुनैना को इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि आदित्य उसे इस तरह वॉशरूम में मिलेगा। वह आदित्य को बेहोश देखकर काफी घबरा गई। "ओ गॉड! यह यहाँ पर...यहाँ वॉशरूम में आकर भी बेहोश हो गया! इतनी ड्रिंक क्यों करता है यह? क्या करूँ मैं अब?" बोलती हुई सुनैना आदित्य की तरफ बढ़ी और उसके चेहरे पर झुककर, अपने हाथों से उसके गाल पर धीरे से थपथपाती हुई उसे होश में लाने की कोशिश करने लगी। "हे आ...आदि...आदित्य! हेलो हे..." सुनैना उसका नाम लेकर गाल पर हाथ से थपकी दे रही थी, लेकिन आदित्य पर कोई असर नहीं पड़ रहा था। "इसको तो कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है। क्या करूँ मैं अब? और ये इसके हाथ पर खून...कहाँ पर चोट लगी है? और कहीं उसी चोट की वजह से तो बेहोश नहीं है यह?" सुनैना आदित्य को बेहोश देखकर घबराते हुए खुद से ही बोल रही थी कि तभी उसे कुछ ध्यान आया। वह जल्दी से भागकर टैप के पास आई और अपने हाथ में पानी लेकर आदित्य की तरफ भागी और उसके चेहरे पर पानी की छींटें डालने लगी। चेहरे पर पानी की बूँदें पड़ने की वजह से आदित्य ने कुछ ही पल में थोड़ा सा कसमसाते हुए अपनी आँखें खोल दीं। लेकिन सिर पर लगी चोट और कल रात को इतनी ज़्यादा शराब पीने से उसके सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा था। आँख खुलते ही उसने अपना हाथ सिर के पीछे लगाया और उठने की कोशिश करने लगा। आदित्य को सब कुछ धुंधला सा नज़र आ रहा था। होश में आने के कुछ देर बाद, वह अपने सामने खड़ी सुनैना से पूछते हुए बोला - "तुम...तुम कौन? यहाँ...यहाँ कैसे?" वह सुनैना को उन कपड़ों में काफी अजीब सी लग रही थी, इसलिए शायद आदित्य को समझ नहीं आया। फिर भी वह खुद ही जमीन से उठने की कोशिश करने लगा, लेकिन उठ नहीं पाया। उसके कदम लड़खड़ा गए तो सुनैना ने जल्दी आगे बढ़कर उसे संभाला और उसका एक हाथ पकड़ते हुए बोली - "जब संभल नहीं पाते, तो इतना क्यों पीते हो?" "मैंने तुमसे नहीं कहा कि आकर मुझे संभालो। मैं ठीक हूँ। और ये मेरे कपड़े क्यों पहने हुए हैं तुमने?" आदित्य ने उसका हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा। "मैं बस तुम्हारी हेल्प कर रही हूँ, क्योंकि इस वक्त तुम्हें ज़रूरत है। और इसके अलावा कोई कपड़े नहीं थे अलमारी में..." सुनैना आदित्य को बाथरूम से बाहर ले आती हुई बोली। "हेल्प? हाँ, वही तो मैं भी कर रहा था कल रात, लेकिन उसका अच्छा इनाम मिला मुझे यह चोट...आह! इट्स हर्टिंग..." आदित्य अब पूरी तरह से सुनैना से दूर होता हुआ, बेड पर बैठता हुआ बोला। साथ ही उसने सिर पर भी अपना हाथ लगाया। अब खून तो नहीं निकल रहा था वहाँ से, लेकिन दर्द अभी भी था, वह भी काफी ज़्यादा। "आई एम...आई एम सो सॉरी! वह...तुम कल रात...हमारी शादी हुई थी। और उसके बाद जब तुम यहाँ आए तो इतने ज़्यादा नशे में थे। और ऐसे अचानक से तुमने मेरा दुपट्टा...तो मुझे लगा कि शायद तुम मेरे साथ..." सुनैना आदित्य की बात का मतलब समझते हुए उसे सफाई देती हुई बोल ही रही थी कि उसे समझ में आया वह अभी क्या बोलने वाली थी। बोलते-बोलते ही वह एकदम से चुप हो गई और उसने अपनी नज़रें दूसरी तरफ कर लीं। "हाँ, मुझे याद है कि कल हमारी शादी हुई थी। और मैंने तुमसे पहले भी कहा था कि मुझे सब याद रहता है, चाहे मैं जितने भी ज़्यादा नशे में हूँ। लेकिन तुम्हें...तुम्हें क्या लगा...कि मैं तुम्हारे साथ क्या करने वाला हूँ?" बोलते हुए आदित्य ने सुनैना का हाथ पकड़ कर उसे खींच कर अपने एकदम करीब कर लिया। सुनैना को इस वक्त आदित्य से ऐसी किसी भी हरकत की कोई उम्मीद नहीं थी। इसलिए पहले तो वह एकदम हैरानी से आँखें फाड़ कर उसकी तरफ देखने लगी, लेकिन फिर थोड़ा सा झिझकते हुए सुनैना ने अपनी नज़रें दूसरी तरफ कर लीं और अपना हाथ उसके हाथ से छुड़ाने की नाकाम कोशिश करती हुई बोली - "नहीं कुछ...कुछ भी नहीं लगा मुझे। छोड़ो मेरा हाथ। और हमारी शादी हो गई है, तो उसका यह मतलब नहीं है कि तुम मेरे साथ कुछ भी..." क्रमशः
आदित्य सुनैना को अपने करीब करता हुआ, उसकी ओर बड़े ही प्यार से देख रहा था। उसकी आँखों में इस वक्त सुनैना के लिए बेशुमार मोहब्बत नज़र आ रही थी, जो शायद सुनैना को ही दिखाई नहीं दे रही थी क्योंकि उसने अब तक आदित्य की आँखों की ओर देखा ही नहीं था।
"अ..आ...आदि...आदित्य तुम...तुम...तुम...यह क्या कर रहे हो?"
आदित्य की नज़रों की तपिश सुनैना को अभी भी खुद पर महसूस हो रही थी। भले ही वह उसकी ओर देख नहीं रही थी, लेकिन फिर भी उसे समझ आ रहा था कि आदित्य उसकी ओर ही देख रहा है। इस वजह से घबराहट और डर की वजह से अटक-अटक कर अल्फ़ाज़ उसके मुँह से निकल रहे थे।
"क्या लगता है तुम्हें? मैं क्या करने वाला हूँ?"
आदित्य ने सुनैना के गालों के एकदम पास आते हुए कहा। सुनैना की आँखें अपने आप ही बंद हो गईं। उसे आदित्य की गरम साँसें अपने चेहरे पर महसूस हो रही थीं। सुनैना को समझ में नहीं आ रहा था कि वह चाह कर भी आदित्य से दूर क्यों नहीं हो पा रही है और ना ही कल रात की तरह उसे खुद से दूर कर पा रही है।
सुनैना ने अपनी आँखें और कस कर मींच लीं और बिना देखे ही अपना चेहरा आदित्य के चेहरे से दूर ले जाने की कोशिश में चेहरा पीछे करने लगी। सुनैना की इस तरह की हरकतों पर आदित्य ना चाहते हुए भी हल्का सा मुस्कुराया, लेकिन वह मुस्कान बस कुछ पलों की ही थी।
आदित्य की ऐसी बातों के बावजूद भी, पता नहीं क्यों, सुनैना के मन के किसी कोने में इतना विश्वास था आदित्य पर कि वह ऐसा कुछ भी नहीं करेगा उसके साथ, बिना उसकी मर्ज़ी के... और सुनैना का विश्वास सही भी साबित हुआ। क्योंकि आदित्य ने कुछ पलों बाद ही उसका हाथ छोड़ दिया और उससे दूर जाते हुए बोला-
"रिलैक्स! तुम अपनी आँखें खोल सकती हो, मैं ऐसा कुछ भी नहीं कर रहा जैसा कि तुम सोच रही हो और ना ही कल रात मैंने ऐसा कुछ भी सोचा था।"
आदित्य की यह बात सुनकर सुनैना ने अपनी आँखें खोलीं और नज़रें उठाकर सामने देखा। उसने देखा कि आदित्य वहाँ पर नहीं था। वह बेड से उठकर दरवाज़े की ओर जा रहा था। उसकी पीठ सुनैना की ओर थी और वह बस कमरे से बाहर निकलने ही वाला था। तभी सुनैना की नज़र उसकी गर्दन पर लगे हुए थोड़े से खून पर पड़ी।
यह देखकर सुनैना को समझ में आया कि शायद आदित्य के सिर पर चोट लगी है और जिसकी वजह से उसके हाथ पर भी खून लगा हुआ था। यह शायद कल रात सुनैना की वजह से ही लगी होगी। यह सोचकर सुनैना को बहुत ही ज़्यादा गिल्ट होने लगा और वह जल्दी से भागकर आदित्य के पास पहुँची और उसे रोकती हुई बोली-
"एक मिनट, यह तुम्हें तो बहुत ज़्यादा चोट लगी है! ओ माय गॉड! आई एम सो सॉरी...ये...ये मेरी वजह से...ओ गॉड! आई डोंट नो अबाउट इट! काफी ज़्यादा लग गई, तुम्हें दर्द हो रहा है।"
सुनैना आदित्य के सिर के पास अपना हाथ लगाती हुई बोली। आदित्य ने उसका हाथ अपने हाथों से पकड़ लिया और एकदम सीरियस होते हुए बोला-
"यह दर्द तो कुछ भी नहीं है, और वैसे भी दर्द, चोट और तकलीफ़ों की वजह तो कोई अपना या करीबी ही होता है हमेशा..."
सुनैना आदित्य की इस बात का मतलब नहीं समझ पाई, लेकिन उसे एक काफी अजीब सा एहसास हुआ, शायद थोड़ा बुरा भी लगा, लेकिन वह समझ नहीं पाई कि क्यों? उसे आदित्य की यह बातें जब पूरी तरह से समझ नहीं आईं तो इतना बुरा क्यों लगा? आदित्य ने उसे अपना या करीबी कहा इसलिए या फिर अपनी तकलीफ़ की वजह कहा इसलिए? खैर, वजह जो भी हो, लेकिन सुनैना एकदम स्तब्ध थी, वहीं आदित्य के सामने ही खड़ी हो गई। आदित्य ने भी अभी तक उसका हाथ पकड़ा हुआ था। उसे इस तरह चुपचाप खड़े हुए, किन्हीं ख्यालों में डूबा देखकर आदित्य ने सुनैना पर सिर से पैर तक एक नज़र डाली और बोला-
"थोड़े से ओवरसाइज़ हैं, बट मेरे कपड़े काफी सूट कर रहे हैं तुमको, चाहो तो रख लेना, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है।"
आदित्य की आवाज से सुनैना अपने ख्यालों से बाहर आई और उसने आदित्य के हाथ से अपना हाथ वापस लिया और अपने बाल कानों के पीछे करती हुई बोली-
"नहीं, मैं...मैं बस चेंज करने ही तो गई थी वॉशरूम में, वैसे ये सारे कपड़े...तुम...तुम ले कर आए मेरे लिए?"
"थैंक्स! बोलने की ज़रूरत महसूस हो तो मुझे नहीं रवि को बोल देना, वही ले कर आया था। मैंने तो बस उसे लाने को बोला था।"
सुनैना की बात सुनकर आदित्य ने सिर्फ़ इतना ही कहा और तेज़ कदमों से कमरे से बाहर चला गया।
"इतनी ज़्यादा चोट लगी है, लेकिन फिर भी इतना नॉर्मल खड़ा है! जैसे कि...क्या बोला था इसने अभी? हाँ, दर्द सहने की आदत...जैसे सच में दर्द सहने की आदत है इसे? क्या है यह इंसान? इतना अनजाना, अजीब, इतना मिस्टीरियस, लेकिन फिर भी इतना जाना-पहचाना लग क्यों लगता है? जैसे पता नहीं कब से जानती हूँ और इतना विश्वास तो मुझे आज तक किसी पर भी नहीं हुआ इतनी जल्दी! इतना करीब था मेरे, फिर भी इसे पूरी तरह दूर नहीं कर पाई खुद से और ना ही खुद दूर जा पाई। पता नहीं क्या हो गया था मुझे?"
आदित्य तो कमरे से बाहर चला गया था, लेकिन सुनैना के दिल और दिमाग में काफी कुछ छोड़ गया सोचने और समझने के लिए। सुनैना भी काफी देर तक उसके बारे में ही सोचती रही, लेकिन फिर उसने आदित्य का ख्याल अपने दिमाग से झटक दिया और खुद से बोली-
"यह क्या हो गया है मुझे? किसी लड़के के बारे में इतना तो आज से पहले मैंने कभी नहीं सोचा, हाँ, इतना करीब भी नहीं गई पहले मैं किसी के, लेकिन फिर भी मेरी मर्ज़ी के बिना इतना नहीं आ सकते तुम मेरे ख्यालों में, मिस्टर आदित्य सिंघानिया!"
क्रमशः
आदित्य कमरे से बाहर चला गया था, लेकिन सुनैना के दिल और दिमाग में काफी कुछ छोड़ गया; सोचने और समझने के लिए। सुनैना भी काफी देर तक उसके बारे में सोचती रही। फिर उसने आदित्य का ख्याल अपने दिमाग से झटकते हुए खुद से कहा-
"यह क्या हो गया है मुझे? किसी लड़के के बारे में इतना तो आज से पहले मैंने कभी नहीं सोचा। हां, इतना करीब भी नहीं गई पहले मैं किसी के। लेकिन फिर भी मेरी मर्जी के बिना इतना नहीं आ सकते तुम मेरे खयालों में, मिस्टर आदित्य सिंघानिया!"
सुनैना ने जैसे खुद को ही समझाया। फिर अपना ध्यान भटकाने के लिए, उसने बेड पर पड़े कपड़े समेट कर साइड में रखने शुरू किए। यह सब करते हुए जब उसकी नज़र शीशे पर पड़ी, तो उसने खुद को आदित्य के कपड़ों में देखा। उसे आदित्य की बात याद आ गई कि ये कपड़े उस पर सूट कर रहे हैं। पता नहीं क्यों, सुनैना को भी खुद पर वह ओवरसाइज्ड टी-शर्ट और लोअर अच्छे लगने लगे। लेकिन उसने फिर से खुद को समझाया और जल्दी से वॉशरूम में जाकर वे कपड़े बदल लिए।
कपड़े बदल कर जब वह वॉशरूम से निकली, तो उसे बहुत तेज भूख लगी थी। इसलिए बाकी किसी भी चीज़ पर उसका ध्यान नहीं गया और वह सीधे कमरे से बाहर निकल कर नीचे की तरफ चली गई।
"बहुत देर लगा दी भाभी आपने? ये लीजिए, मैंने वेज सैंडविच बनाए हैं आपके लिए।"
गीता ने सैंडविच से भरी हुई प्लेट लाकर सुनैना के सामने रखते हुए कहा। सुनैना चारों तरफ नज़रें घुमा कर उस पूरे घर को ऑब्जर्व कर रही थी। उसने देखा कि घर सच में बहुत ही ज्यादा खूबसूरत बना हुआ था। रात के वक्त वह इतनी गुस्से में थी कि उसने इतना ध्यान ही नहीं दिया था। हां, थोड़ा बहुत देखा था, लेकिन ज्यादा गौर से वो अभी ही देख रही थी। लेकिन सिर्फ़ तब तक ही, जब तक कि उसके सामने नाश्ते की प्लेट नहीं आई थी। क्योंकि उसे इतनी ज्यादा भूख लगी थी कि उसे कुछ भी याद नहीं था। उसने कितने टाइम से कुछ नहीं खाया था? शायद कल सुबह से...
"थैंक यू सो मच गीता दी, और ये सैंडविच बहुत ही टेस्टी बने हैं।"
मुंह में सैंडविच भरे हुए सुनैना ने गीता की तारीफ करते हुए कहा।
"थैंक यू! लेकिन आप आराम से खा लीजिए। और मुझे बहुत अच्छा लगा कि आज कोई तो सुबह नाश्ता कर रहा है घर में। नहीं तो भैया तो हमेशा ऐसे ही निकल जाते हैं हमेशा।"
गीता ने थोड़ा सा इमोशनल होकर बोल दिया।
"कहां चले जाते हैं?"
सुनैना ने खाते हुए रुक कर गीता से सवाल किया।
"ऑफिस या काम पर ही जाते होंगे। लेकिन आज पता नहीं कहाँ चले गए इस वक्त, कमरे से निकले और सीधा ही घर से बाहर..."
गीता ने सुनैना को बताया। तो सुनैना खाते-खाते रुक गई और आदित्य के बारे में ना चाहते हुए भी फिर से सोचने लगी। उसने तो कुछ भी नहीं खाया था कल रात से ही और बिना खाए ही चला गया घर से। भूख नहीं लगती है उसे? या फिर शराब पीकर ही पेट भर जाता है उसका?
सोचते हुए सुनैना ने अपने कंधे उचकाए और दूसरा सैंडविच उठाकर खाने लगी। गीता ने उसे इस तरह खाते हुए देख कर हल्का सा मुस्कुराया और किचन की तरफ जाते हुए रुक कर उससे पूछा-
"भाभी! आप चाय पिएंगी या कॉफी? मैं बना दूँगी आपके लिए?"
"नहीं, और कुछ भी नहीं, इतना बहुत है।"
बोलते हुए सुनैना ने वो सैंडविच भी खत्म करने के बाद पानी का ग्लास उठा कर पानी पिया।
"ठीक है। आपको और कुछ चाहिए होगा तो मुझे बता दीजिएगा, मैं यहीं हूँ।"
बोलते हुए गीता किचन में चली गई। सुनैना उठकर घर से बाहर आकर इधर-उधर गार्डन में टहलने लगी।
सुनैना ने नोटिस किया कि वह एक बहुत ही खूबसूरत और मॉडर्न स्टाइल का बना हुआ विला था। घर के सामने ही गार्डन और स्विमिंग पूल भी था और फिर कुछ दूर जाकर मेन गेट था, जहाँ पर वॉचमैन बैठा हुआ था। मेन गेट से अंदर साइड में दो कारें भी खड़ी थीं, जिनमें से एक कार तो वही थी जिसमें सुनैना रात को आदित्य के साथ बैठकर यहां तक आई थी।
बाहर से देखने में वह घर बहुत ही खूबसूरत था। पूरी बालकनी में कांच की डिजाइनिंग थी और खिड़कियाँ और घर का फ्रंट काफी खूबसूरत और यूनीक बना हुआ था। आर्किटेक्चर डिजाइन भी काफी अच्छा था घर का। रात को तो सुनैना ने इतना ध्यान ही नहीं दिया था किसी भी चीज़ पर, लेकिन अभी दिन के उजाले में उसे सब कुछ एकदम ठीक से नज़र आ रहा था। लेकिन सिर्फ़ कोई नज़र नहीं आ रहा था, तो वह था आदित्य...
*********
नैना ने उठकर उस पूरे फ्लैट का एक चक्कर लगाया और कुछ खाने का सामान ढूंढने के लिए किचन में आ गई। ज्यादातर किचन खाली ही था। लेकिन फिर नैना ने फ्रिज में देखा तो उसे कुछ फ्रूट्स और पानी की बोतलें मिलीं। बाकी कुछ भी उसे वहाँ पर नहीं मिला। तो उसने एक एप्पल ही काट कर खा लिया और पानी पी लिया।
उसके बाद वह वहाँ से बाहर जाने के लिए रेडी होने लगी। तभी उसकी नज़र घड़ी पर पड़ी तो 10:30 बज रहे थे। टाइम देख कर उसने सुनैना को कॉल करने की सोची। लेकिन उसने सुनैना का नंबर मिलाया तो सुनैना का फोन स्विच ऑफ आ रहा था।
"ओ गॉड! यह लड़की भी ना हमेशा अपना फोन चार्ज करना भूल जाती है। खैर! मैसेज छोड़ देती हूँ, जब देखेगी तो कॉल बैक कर लेगी!"
बोलते हुए नैना अपने फोन पर मैसेज टाइप करने लगी। जैसे ही उसने सुनैना को मैसेज सेंड किया, वैसे ही उसके फोन पर किसी का कॉल भी आने लगा। वह कॉल देखकर नैना के चेहरे पर उम्मीद और खुशी की चमक नज़र आने लगी। नैना ने जल्दी से वह कॉल रिसीव किया और बात करते हुए, अपना बैग लेकर उस फ्लैट से बाहर निकल गई। नकुल ने उसे जाते वक्त फ्लैट की चाबी दे दी थी, तो नैना ने फ्लैट बाहर से लॉक भी कर दिया और लिफ्ट से होते हुए उस अपार्टमेंट के ग्राउंड फ्लोर पर आ गई और फिर वहाँ से भी बाहर चली गई।
"नैना दी की मिस कॉल!" कमरे के अंदर वापस आते हुए, सुनैना ने अपना मोबाइल फोन स्विच ऑन किया। उसने देखा कि नैना की तीन-चार मिस्ड कॉल थीं और साथ ही कुछ मैसेजेस भी थे। सुनैना ने कॉल बैक करने से पहले मैसेज ओपन करके देखे।
"अभी तक क्लास में है क्या; सोनू?"
"ठीक है, जब फ्री हो तो कॉल बैक कर लेना मुझे। मैं ठीक हूँ, तू कैसी है?"
यह नैना के मैसेजेस थे। मैसेज पढ़कर सुनैना जवाब टाइप करने लगी। "मैं भी ठीक हूँ।" लिखते वक्त वह थोड़ी सोच में पड़ गई। उसने तो अपनी शादी के बारे में नैना को कुछ बताया ही नहीं था। इतना कुछ हो गया था पिछले कुछ दिनों में। उसकी तो पूरी लाइफ ही बदल गई थी। अब वह घर पर अपने पापा और स्टेप मॉम के साथ भी नहीं रहती थी। वह सोच में पड़ गई कि यह सब उसे नैना को बताना चाहिए या नहीं?
यह सब सोचते हुए सुनैना ने एक ठंडी सांस भरी और फिर "मैं भी ठीक हूँ, दी" जवाब में मैसेज टाइप करके भेज दिया। फोन साइड में रखकर वह सोचने लगी कि इस तरह तो नहीं बता सकती वह नैना को सब कुछ। कॉल पर या फिर मिलकर ही बताएगी तो ठीक रहेगा।
"कॉल... कॉल करूँ क्या दी को अभी?" मन में सोचते हुए सुनैना ने मोबाइल फोन की तरफ देखा और फिर मोबाइल फोन उठाकर नैना का नंबर डायल करने लगी।
कुछ ही पल बाद दूसरी तरफ से कॉल रिसीव हो गया।
"हाँ सोनू बोल! इतनी सारी मिसकॉल तेरी कल की, क्या हुआ? सब ठीक है ना?" दूसरी तरफ से नैना ने कॉल रिसीव करते हुए कहा। नैना अभी टैक्सी में थी और कहीं जा रही थी शायद...
"हेलो... हेलो दी! आप की आवाज नहीं आ रही।" सुनैना को सच में कुछ समझ नहीं आ रहा था क्योंकि दूसरी तरफ से काफी ज्यादा दूसरी आवाजें भी आ रही थीं, नैना की आवाजों के साथ ही....
"मुझे तो आ रही है तेरी आवाज, बोल ना... क्या हुआ था? क्यों इतना कॉल कर रही थी तू कल मुझे?" नैना ने फिर से वही सवाल किया।
"दी, आप कहाँ हो? हम मिल सकते हैं क्या?" सुनैना को जैसे ही नैना की थोड़ी बहुत आवाज सुनाई दी, उसने तुरंत ही उससे मिलने के लिए पूछा।
"अभी... अभी तो मैं काम से जा रही हूँ, मैं रास्ते में हूँ सोनू! घर पहुँच कर बात करती हूँ। मुझे अभी ठीक से सुनाई नहीं दे रहा।" नैना ने सुनैना की आधी-अधूरी बात सुनकर कहा।
"अभी नहीं दी, जब भी आप फ्री हो बता देना मुझे कॉल करके..." सुनैना बोल ही रही थी कि उसे कॉल डिस्कनेक्ट होने की टोन सुनाई दी। उसने अपना फोन कान से हटाकर देखा तो कॉल डिस्कनेक्ट हो चुकी थी।
नैना ने देखा कि उसके मोबाइल में नेटवर्क बिल्कुल भी नहीं था। वह समझ गई कि शायद इसलिए ही कॉल डिस्कनेक्ट हो गई होगी। उसने सोचा कि वह घर पहुँचकर सुनैना से आराम से बात कर लेगी। इसलिए उस वक्त उसने फोन वापस अपने बैग में रख लिया और जहाँ भी जा रही थी, वहाँ पहुँचने का इंतज़ार करने लगी।
दूसरी तरफ सुनैना ने फिर से नैना का फोन ट्राई किया, लेकिन उसका नंबर आउट ऑफ़ नेटवर्क कवरेज एरिया बता रहा था। वह सोचने लगी कि अभी तो बात हो रही थी और अब आउट ऑफ़ कवरेज एरिया बता रहा है, कहाँ पर है दी?
सुनैना यह सब सोच ही रही थी कि तभी उसने बाहर से आती कुछ आवाजें सुनीं।
"सर! सर... यह क्या जिद है, आप प्लीज डॉक्टर के पास चलिए। इतनी चोट लगी है आपको, आप सुनते क्यों नहीं हैं कभी।" यह शायद रवि की आवाज थी। यह सुनकर सुनैना अपना मोबाइल फोन वहीं कमरे में छोड़कर कमरे से बाहर आई और आकर देखने लगी कि आखिर क्या है, क्या बात हो रही है बाहर?
"शट अप रवि! मैं तुम्हारा बॉस हूँ, तुम मेरे बॉस नहीं हो। इसलिए जितना मैं कहूँ तुम सिर्फ उतना ही किया करो। अपनी तरफ से दिमाग मत लगाया करो।" बोलते हुए आदित्य ऊपर की तरफ सीढ़ियाँ चढ़ने लगा और रवि उसके पीछे ही था। गीता दूर से खड़े होकर उन दोनों को देख रही थी और बात सुन रही थी। उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि शायद उसके लिए यह सब हमेशा की ही बात है, अक्सर ऐसा होता होगा यहाँ....
और सुनैना, जो कि कमरे से बाहर अभी सीढ़ियों तक ही आई थी, आदित्य को सीढ़ियों से ऊपर आता देख वहीं पर रुक गई और नीचे उतरकर नहीं गई।
"आई नो सर बट... आप तो इतने केयरलेस हो, स्पेशली खुद को लेकर। इसलिए किसी को तो आपकी फिक्र..." बोलते हुए रवि भी आदित्य के पीछे ही सीढ़ियाँ चढ़ रहा था। लेकिन जैसे ही उसकी नज़र सुनैना पर पड़ी तो वह चुप हो गया। आदित्य सुनैना के एकदम सामने आकर दो पल को रुका और फिर बिना कुछ बोले ही आगे चला गया। लेकिन वह कमरे में ना जाकर आगे बने अपने स्टडी रूम में चला गया।
रवि भी उसी तरह भागते हुए उसके पीछे गया। लेकिन तब तक आदित्य ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था। सुनैना भी रवि के पीछे ही गई और उससे पूछने लगी कि क्या हुआ?
"पता नहीं मैम! कहाँ से सर को चोट लग गई है, लेकिन वह है कि डॉक्टर के पास चल ही नहीं रहे। मैं कब से बोल रहा हूँ, सुनते ही नहीं है मेरी बात। जो मन में आता है वही करते हैं हमेशा। आप ही समझाइए।" रवि काफी लाचार सा सुनैना की बात का जवाब देता हुआ बोला।
"ओ गॉड! लेकिन ऐसा क्यों करते हैं आपके सर?" आदित्य के बारे में सुनकर सुनैना को ध्यान आया कि वह चोट तो उसे उसकी वजह से ही लगी थी। सुबह जब आदित्य कमरे से निकलकर गया था तो सुनैना को लगा था कि शायद वह डॉक्टर के पास ही जा रहा होगा। लेकिन अभी रवि के बताने पर उसे पता चला कि आदित्य तो किसी की सुनता ही नहीं है और ना ही खुद का ध्यान रखता है।
क्रमशः
सुनैना को काफी गिल्ट हो रहा था क्योंकि उसकी मिसअंडरस्टैंडिंग की वजह से कल रात आदित्य को यह चोट लगी थी। वैसे तो वह नशे में भी था, लेकिन फिर भी काफी गलती सुनैना की भी थी। उसने उसे गलत समझा था। इसलिए उसने रवि से कहा कि डॉक्टर को कॉल करके घर पर ही बुला ले।
"लेकिन मैम, सर तो..."
रवि बोल ही रहा था कि सुनैना ने उसकी तरफ देखते हुए कहा-
"बुलाइए डॉक्टर को। मैं बोलती हूँ आपके सर को..."
"ओके मैम!"
सुनैना की बात सुनकर इतना बोलते हुए रवि ने अपना मोबाइल फोन निकाला और डॉक्टर का नंबर डायल करते हुए सीढ़ियों से नीचे उतर गया।
सुनैना थोड़ा आगे बढ़ी और उसने स्टडी रूम के दरवाजे पर नॉक किया। उसने देखा कि दरवाजा अंदर से लॉक नहीं था। उसने धीरे से दरवाजा खोला तो देखा कि रूम की सारी लाइट्स ऑफ थीं। सुनैना ने बाहर दरवाजे से ही आवाज लगाई-
"आदित्य... आदित्य कहाँ हो तुम? लाइट क्यों ऑफ कर रखी है?"
इधर रवि नीचे आया और उसने डॉक्टर को कॉल करके घर पर ही बुला लिया था। जैसे ही उसने कॉल डिस्कनेक्ट किया, गीता ने उससे पूछा-
"क्या हुआ भैया को? कैसे चोट लगी है?"
"पता नहीं, गीता। तुम तो जानती हो कि बताते ही कहाँ है सर कुछ। लेकिन सिर पर लगी है, यह नहीं पता कि कब और कैसे लगी?"
रवि ने एक ठंडी साँस भरते हुए गीता से कहा।
"हम दोनों ने तो हमेशा ही भैया को ऐसे ही देखा है। लेकिन अब लगता है, भाभी उन्हें संभाल लेंगी।"
गीता ने सुनैना की तरफ इशारा करते हुए रवि से कहा।
"हाँ, मुझे भी यही लगता है। अभी भी मैम ने ही मुझसे डॉक्टर को कॉल करने के लिए कहा था। नहीं तो सर तो हमेशा की तरह अपने स्टडी रूम में जाकर ड्रिंक करने लगे होंगे।"
रवि ने गीता को पूरी बात बताई। गीता के चेहरे पर एक उम्मीद भरी मुस्कान आ गई।
************
शहर से कुछ दूर, शहर के आउटसाइड में बने एक बड़े से स्टूडियो के आगे नैना की टैक्सी रुकी। नैना ने टैक्सी वाले को पैसे दिए और भगवान का नाम लेते हुए स्टूडियो के मेन गेट से स्टूडियो के अंदर चली गई।
"हेलो सर! आई एम नैना, नैना अग्रवाल! मुझे कॉल आई थी यहाँ से कि मेरा सिलेक्शन हो गया है जो मैंने लास्ट वीक ऑडिशन दिया था, उस बेस पर..."
ब्लैक जींस पर स्टूडियो के लोगो की प्रिंट वाली ब्लैक टी-शर्ट पहने, माइक और हेडफोन लगाए हुए एक लगभग 30-35 साल के आदमी से नैना ने कहा।
वहाँ पर काफी सारे लोगों ने लगभग उसी तरह के कपड़े पहने हुए थे। लेकिन यह आदमी काफी लोगों को इंस्ट्रक्शन दे रहा था। इसलिए नैना को यह वहाँ का बॉस या थोड़ा मेन आदमी लगा। कुछ देर वहाँ की चीजों को ऑब्जर्व करने के बाद नैना ने उस आदमी से ही इतना बोला।
नैना की बात सुनने के बाद उस आदमी ने कुछ पल के लिए नैना के सामने ठहरकर उसे ऊपर से नीचे तक एक नज़र निहारा और फिर गौर से उसके चेहरे की तरफ देखता हुआ बोला-
"ओके! अगर तुम्हें कॉल किया गया है तो हो सकता है तुम आज सेलेक्ट हो जाओ, इस एड फिल्म के लिए। लेकिन अभी हमारे कास्टिंग डायरेक्टर नहीं आए हैं। तो तुम उस रूम में जाकर वेट करो। जैसे ही वह आते हैं, मैं तुम्हें बुला लूँगा।"
"ओके, लेकिन डायरेक्टर सर कितनी देर में आएंगे? मुझे तो 12:00 बजे तक का टाइम दिया गया था उनसे मिलने के लिए और 12:00 बजने वाले ही हैं।"
उस आदमी की पूरी बात सुनकर नैना ने एक और सवाल किया।
"ज्यादा सवाल-जवाब मत करो लड़की! तुम्हारी जैसी हज़ारों आती हैं यहाँ रोज़ और तुम्हारे लिए बाकी सारे लोगों को टाइम पर आना ज़रूरी नहीं है। हाँ, लेकिन तुम लेट हुई तो तुम्हारा मौका ज़रूर हाथ से जा सकता है। इसलिए जितना कहा है उतना करो अभी। मैंने कहा ना, वह जैसे ही आएंगे तुम्हें इन्फॉर्म कर दिया जाएगा।"
नैना की बात सुनकर उस आदमी ने थोड़ा गुस्से से, रूड होते हुए कहा।
"ओके... ओके मैं वेट करती हूँ।"
उस आदमी के बिहेवियर देखकर नैना ने आगे कोई और सवाल नहीं किया और चुपचाप वेटिंग एरिया की तरफ जाकर एक चेयर पर बैठ गई। उसने अपना मोबाइल फोन निकाला तो देखा उसके मोबाइल में अभी भी नेटवर्क नहीं था।
"कैसी जगह है यह? मोबाइल में नेटवर्क ही नहीं है, बात भी नहीं हो पाई सोनू से और फिर अभी यहाँ भी... पता नहीं सब इतना रूडली क्यों बात करते हैं? अरे माना स्ट्रगलर हूँ मैं अभी, लेकिन फिर भी थोड़ा कायदे से हर बात का जवाब देंगे तो क्या चला जाएगा इन लोगों का?"
नैना उस जगह पर बैठी हुई मन ही मन सारी बातें याद करती हुई यह सब बड़बड़ा रही थी और उसे गुस्सा भी आ रहा था। वैसे पिछले 1 महीनों से वह इसी तरह ऑडिशन दे रही थी और कई सारी फिल्म लोकेशन और स्टूडियोज़ के चक्कर काट रही थी। और अब तक तो उसे इस बात का अंदाजा भी हो चुका था कि यह सब कुछ इतना भी आसान नहीं जितना कि बाहरी दुनिया से नज़र आता है। असल स्ट्रगल काफी ज़्यादा चैलेंजिंग है और मुश्किल भी। लेकिन मुश्किलें तो हर जगह पर ही थीं, उसकी अब तक की लाइफ क्या कम मुश्किलों में कटी थी?
वहाँ पर नैना जैसी ही दो-तीन और लड़कियाँ बैठी हुई थीं, लेकिन सब एक-दूसरे से काफी दूर-दूर बैठी हुई थीं और एक-दूसरे को अजीब नज़रों से घूरकर देख रही थीं। साफ़ पता चल रहा था कि वह सब भी उसकी तरह ही यहाँ पर बुलाई गई हैं या फिर खुद से ही आई होंगी। लेकिन कोई भी एक-दूसरे को जानती नहीं थी। इसलिए आपस में बात करने से भी कतरा रही थीं, क्योंकि काम तो इसी 1 या 2 को ही मिलना था और बाकी सब को यहाँ से ही वापस अपने घर जाना पड़ता है। इसलिए एक-दूसरे के लिए द्वेष और कंपटीशन की भावना तो उन सभी की आँखों में ही नज़र आ रही थी उस वक्त...
क्रमशः
सुनैना थोड़ी घबराई हुई आदित्य के स्टडी रूम में पहुँची। उसे नहीं पता था कि आदित्य उसकी बात सुनेगा भी या नहीं, या उसके वहाँ जाने पर वह कैसा प्रतिक्रिया करेगा। सुनैना आदित्य को बिल्कुल नहीं जानती थी, लेकिन फिर भी वह अपनी वजह से किसी को तकलीफ में नहीं देख सकती थी। इसलिए वह चाहती थी कि आदित्य अपनी चोट डॉक्टर को दिखाए और उसकी चोट ज़्यादा न हो।
वहाँ स्टडी रूम में अंधेरा था। सुनैना को कुछ भी ठीक से नज़र नहीं आ रहा था। वह दीवार छूते हुए स्विच बोर्ड ढूँढने लगी। कुछ देर में उसका हाथ स्विच बोर्ड पर पड़ा, और उसने सारे स्विच ऑन कर दिए। उसे नहीं पता था कि लाइट का स्विच कौन सा है।
जैसे ही लाइट के स्विच पर उसका हाथ पड़ा, लाइट ऑन होते ही पूरे कमरे में रोशनी हो गई। नैना ने देखा कि सामने रखे बड़े काउच पर आदित्य आधा लेटा हुआ बैठा था। उसकी आँखें बंद थीं। देखकर समझ में नहीं आ रहा था कि वह सो रहा है या जाग रहा है। उसके एक हाथ में शराब की बोतल थी।
वह आधी खाली थी। शराब की बोतल देखकर सुनैना को बहुत गुस्सा आया। उसका मन हुआ कि तुरंत कमरे से बाहर चली जाए, आदित्य को उसके हाल पर छोड़कर। उसे शराब और शराब पीने वालों से बहुत नफ़रत थी। आदित्य से तो वैसे भी अभी कोई रिश्ता नहीं था। भले ही उनकी शादी हो गई थी, लेकिन पति-पत्नी जैसा कुछ भी नहीं था अभी तक उन दोनों में...
"क्या है यह आदमी भी, इतनी ड्रिंक क्यों करता है? होश में रहने से दिक्कत है क्या इसे जो हर वक्त नशे में ही रहता है यह... ऐसे ही रहना था इसे तो फिर शादी क्यों की इसने मुझसे? कोई तो रीज़न होगा, और इतना जाना पहचाना सा क्यों लगता है मुझे? इस का चेहरा देखकर खो जाती हूँ मैं हमेशा ही... चाह कर भी नफ़रत नहीं कर पा रही हूँ जितना कि मुझे शराब और शराबियों से प्रॉब्लम है!"
आदित्य की तरफ़ बढ़ते हुए सुनैना यह सब सोच ही रही थी। लेकिन उसका ध्यान आदित्य के चेहरे पर इतना ज़्यादा था कि उसने नीचे ध्यान ही नहीं दिया। जमीन पर आदित्य का पैर आगे फैला हुआ था और सुनैना का पैर भी उसमें फंस गया। उसने संभलने की कोशिश की, लेकिन संभल नहीं पाई और वह लड़खड़ा कर आदित्य के ऊपर गिर गई।
"ओ गॉड! तुम... तुम यहाँ क्या कर रही हो? और तुमने भी ड्रिंक कर रखी है क्या? ठीक से चल भी नहीं सकती, सीधा मेरे ऊपर ही आ गिरी। क्या... कर क्या रही हो?"
सुनैना के ऊपर गिरने पर आदित्य अपनी आँखें मलता हुआ सुनैना की तरफ़ देखता हुआ बोला।
"तुम्हारी गलती है सारी, इस तरह से कौन बैठता है? और क्यों परेशान करते हो अपने उस असिस्टेंट, मैनेजर, सेक्रेटरी जो भी है वह तुम्हारा, बेचारा कब से परेशान है तुम्हारे लिए..."
सुनैना उसी तरह से आदित्य के ऊपर लेटी हुई बोलने लगी। आदित्य की आँखें पूरी तरह से खुल चुकी थीं, जो कि काफी लाल थीं। जैसे ही उसने पलट कर सुनैना की तरफ़ देखा, सुनैना का चेहरा उसके चेहरे के एकदम करीब था। आदित्य तो जैसे बाकी सब भूल गया और सुनैना के चेहरे पर आते हुए उसके बाल अपने हाथों से पीछे करने लगा, जो उसके चेहरे पर आकर उसकी खूबसूरती को छिपा रहे थे।
"वह परेशान है मेरे लिए या तुम?"
आदित्य ने सुनैना के बाल उसके चेहरे से हटाते हुए उसकी आँखों में देखकर पूछा।
"मैं... मैं... मैं भला क्यों.... मैं भला क्यों परेशान होंगी तुम्हारे लिए? मुझे... मुझे तो बस वह चोट... तुम्हें मेरी वजह से... आई एम सॉरी!"
आदित्य के इस तरह अपनी तरफ़ देखने पर सुनैना को पता नहीं क्या हो गया। वह इतनी नर्वस हो गई और उसी तरह हकलाते हुए, सारे शब्दों को जोड़-जोड़ कर बोलते हुए आदित्य से कहती है।
"ठीक हूँ मैं, तुम्हें इतने गिल्ट में रहने की कोई ज़रूरत नहीं है।"
आदित्य उसकी बात पर एकदम सीरियस होते हुए बोला। सुनैना भी उसके ऊपर से उठने की कोशिश करने लगी।
"वेट!"
बोलते हुए आदित्य अपनी जगह से थोड़ा साइड होकर सीधे सोफे पर बैठता है और सुनैना के हाथों को पकड़ कर उसे भी उसी तरह से उठने में मदद करता है।
उसी वक्त दरवाजे पर नॉक करके रवि बोलता है—
"मैम, वो डॉक्टर आ गए हैं।"
"हाँ, उन्हें मेरे रूम में भेजो, मैं आती हूँ..."
सुनैना रवि से बोलती है। रवि उसकी बात सुनकर वहाँ से चला जाता है।
"क्या डॉक्टर? डॉक्टर को किसने बुलाया?"
सुनैना और रवि की बातचीत सुनकर आदित्य सुनैना से पूछता है।
"मैंने बुलाया है, चलो चुपचाप और बैंडेज करवाओ अपनी चोट का, नहीं तो बढ़ जाएगी तो बाद में मुझे ही ब्लेम करोगे। अभी तो बोल रहे हो कि इतना गिल्ट मत लो।"
सुनैना सोफे से उठकर खड़े होते हुए आदित्य की तरफ़ देखकर बोलती है।
"मैंने तुमसे कहा ना मैं ठीक हूँ, समझ में नहीं आती है क्या तुम्हें एक बार की बात? मुझे कोई ट्रीटमेंट नहीं करवाना।"
आदित्य दूसरी तरफ़ चेहरा करते हुए थोड़े गुस्से में बोला।
"ठीक नहीं हो तुम, इसीलिए तो इस तरह की बातें कर रहे हो। चलो डॉक्टर को देखने दो, कहीं सिर पर ज़्यादा गहरी चोट तो नहीं है।"
आदित्य की इस तरह की हरकतें देखकर सुनैना ने उसका हाथ पकड़कर उसे सोफे से उठाते हुए कहा।
आदित्य को उसके इस तरह से हाथ पकड़कर उठाने की उम्मीद नहीं थी। सुनैना भले ही आदित्य को उठा नहीं सकती थी, लेकिन हाथ पकड़कर वह बार-बार उसे उठने और अपने साथ चलने के लिए बोल रही थी। आखिरकार आदित्य बेमन से ही सही, लेकिन उस जगह से उठा और सुनैना के साथ ही स्टडी रूम से बाहर आ गया। बेडरूम में डॉक्टर और रवि पहले से ही मौजूद थे और उसका इंतज़ार कर रहे थे।
"यह चोट कैसे लगी आपको?"
डॉक्टर ने आदित्य के सर की चोट का चेकअप करते हुए उससे पूछा। आदित्य ने एक नज़र उठाकर सुनैना की तरफ़ देखा और फिर डॉक्टर की बात का जवाब देते हुए बोला—
"इतनी भी नहीं लगी है, मैं ठीक हूँ, डॉक्टर!"
"जब आपको यही नहीं पता कि चोट आपको लगी कैसे तो फिर आप इतनी लापरवाही से यह कैसे बोल रहे हैं कि ज़्यादा नहीं लगी आपको? डॉक्टर आप हैं या मैं?"
आदित्य की बात पर डॉक्टर एकदम सीरियस होते हुए बोले। रवि उनकी बात सुनकर आगे आया और डॉक्टर से पूछते हुए बोला—
"कोई सीरियस बात तो नहीं है ना, डॉक्टर! आप मुझे बता दीजिए मेडिसिन और प्रिसक्रिप्शन, मैं देख लूँगा।"
क्रमशः
आदित्य की बात पर डॉक्टर एकदम सीरियस होकर बोले। रवि उनकी बात सुनकर आगे आया और डॉक्टर से पूछा, "कोई सीरियस बात तो नहीं है ना, डॉक्टर! आप मुझे बता दीजिए मेडिसिन और प्रिसक्रिप्शन, मैं देख लूँगा।"
"गिरने की वजह से ही लगी है चोट। सबसे पहले तो आप इन्हें समझाइए। इतनी ज़्यादा ड्रिंक करना इनकी हेल्थ के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं है। आप लोग ध्यान रखिए।" डॉक्टर ने आदित्य की चोट पर बैंडेज करते हुए रवि और सुनैना की तरफ देखते हुए कहा।
"मेरा... मेरा ख्याल रखने की किसी को ज़रूरत नहीं है, आई...आई एम टोटली फाइन, डॉक्टर!" आदित्य के शब्द लड़खड़ा रहे थे क्योंकि वह पहले से ही शराब के नशे में था और डॉक्टर ने उसे नींद का इंजेक्शन भी लगाया था, जो उसकी चोट और दर्द के लिए ज़रूरी था।
"नो मिस्टर सिंघानिया, यू आर नॉट फाइन; यू हैव टू टेक रेस्ट नाउ।" डॉक्टर ने आदित्य की तरफ देखकर जवाब दिया। आदित्य की आँखें भारी होने लगी थीं और कुछ ही पलों में उसे नींद आ गई।
"आप... आप इनकी वाइफ हैं?" डॉक्टर ने पास में खड़ी सुनैना से पूछा। वह काफी देर से आदित्य की तरफ देख रही थी, शायद अपने गिल्ट की वजह से। उसे दुख हो रहा था कि आदित्य को उसकी वजह से चोट लगी, और डॉक्टर ने उसे ऐसा करते हुए नोटिस कर लिया था।
"जी?" डॉक्टर के सवाल पर सुनैना चौंक गई। उसे समझ नहीं आया कि वह क्या जवाब दे।
"यस डॉक्टर, यह सर की वाइफ हैं, मिसेज सिंघानिया!" सुनैना के रिएक्शन पर आदित्य बीच में बोल पड़ा।
"आप दोनों के बीच कोई लड़ाई-झगड़ा हुआ है क्या? जिस वजह से इतनी ज़्यादा ड्रिंक कर ली है मिस्टर सिंघानिया ने? आई थिंक आपको इन्हें समझाना चाहिए। जो कुछ भी है, आपस में मिलकर सॉर्ट आउट कर लीजिए। नहीं तो काफी बुरा असर पड़ेगा इनकी हेल्थ पर इस तरह लगातार ड्रिंक करने की वजह से?" डॉक्टर ने सलाह देते हुए सुनैना से कहा। वह अपना सामान समेटकर अपने बॉक्स में रखने लगा और जाने के लिए खड़ा हो गया।
"एक्चुअली डॉक्टर, इनकी कोई गलती नहीं है। सर तो पहले से ही ड्रिंक करते हैं और इन दोनों की शादी तो अभी ही हुई..." रवि डॉक्टर का बॉक्स उठाते हुए सुनैना की तरफ से सफाई देता हुआ बोला। सुनैना कुछ नहीं बोली।
"ओके, मेरा काम था आपको बताना, मैंने बता दिया। अब आप लोग देख लीजिए और जो भी है, आपस में सॉल्व कर लीजिए। मैं चलता हूँ। मेरी ज़रूरत हो तो बुला लीजिएगा। वैसे ध्यान रखिएगा, एटलीस्ट 24 आवर्स तक यह ड्रिंक ना करें दोबारा..." डॉक्टर ने सुनैना और रवि दोनों की तरफ देखते हुए कहा। सुनैना ने सहमति से सिर हिलाया और रवि डॉक्टर को कमरे से बाहर छोड़कर आया।
डॉक्टर और रवि के जाने के बाद, सुनैना सोते हुए आदित्य की तरफ गौर से देखने लगी। वह सोते वक्त बहुत ही ज़्यादा हैंडसम और डेशिंग लग रहा था। उसका चेहरा और जॉ लाइन एकदम परफेक्ट थी। साथ ही उसकी नेक बोन भी काफी ज़्यादा रिवीलिंग थी। और उसके गोरे चेहरे पर बिखरे, लंबे और सिल्की बाल उसके लुक को और भी ज़्यादा अट्रैक्टिव बना रहे थे। उसे देखकर ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि वह बीमार या इतनी ज़्यादा नशे में था, कुछ देर पहले।
सुनैना को पता नहीं क्यों आदित्य अपनी तरफ इतना अट्रैक्ट कर रहा था, जबकि वह बिल्कुल भी अट्रैक्ट होना नहीं चाहती थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। उसे गुस्सा होना चाहिए था कि उसकी जबरदस्ती शादी आदित्य से हो गई और फिर उसकी शराब पीने की आदत। शराब... जिससे सुनैना को हमेशा से ही नफरत थी। लेकिन इस शख्स से वह चाहकर भी नफरत नहीं कर पा रही थी। शायद उसके दर्द से उसे हमदर्दी हो रही थी। बिना पूरी तरह से जाने पहचाने भी एक अजीब सा एहसास था सुनैना के अंदर, जो उसे आदित्य की तरफ खींच रहा था और वह ना चाहते हुए भी खींची चली जा रही थी।
यह सब सोचते हुए सुनैना सोते हुए आदित्य की तरफ बढ़ी। कुछ देर तक ध्यान से उसका चेहरा देखने के बाद, उसने बेड पर रखा ब्लैंकेट आदित्य को ओढ़ा दिया और खुद सामने पड़े काउच पर बैठ गई। वह सोचने लगी कि क्या है ऐसा इस शख्स में जो मुझे मजबूर कर रहा है इसके बारे में जानने के लिए? क्या यह हमारे बीच जुड़े रिश्ते, हमारी शादी का असर है जो इतना ज़्यादा कनेक्ट कर रही हूँ मैं इस इंसान से? पता नहीं क्यों, लेकिन यह भी मेरी तरह काफी ज़्यादा टूटा और बिखरा हुआ लगता है मुझे... जिस तरह मुझे मेरे परिवार ने हर कदम पर दुःख पहुँचाया है, शायद इसके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। क्या करूँ? कहाँ से शुरुआत करूँ? यह खुद कुछ बताएगा क्या होश में आने के बाद मुझे? और सबसे बड़ा सवाल अभी तक तो मेरा ध्यान ही नहीं गया था इस बात पर कि इसने आखिर मुझसे शादी क्यों की, जब कोई और रिश्ते-नाते नहीं हैं इसके आस-पास अभी? तो मुझसे एक नया रिश्ता क्यों जोड़ा इसने, वह भी जब खुद इतनी तकलीफ में है?
"क्या चाहते हो तुम आदित्य! क्यों हो इतने मिस्टीरियस कि सब कुछ जानने का मन कर रहा है तुम्हारे बारे में? खुद के बारे में तो सोच ही नहीं पा रही हूँ मैं, जैसा कि मैंने सोचा था कि मुझे कोई मतलब नहीं होगा इस शादी से और मैं सिर्फ अपने बारे में सोचूँगी अब। और इसीलिए तो अपने परिवार से भी रिश्ता तोड़ दिया मैंने। सारे रिश्ते तोड़ दिए। तो फिर क्यों? यह हमारा एक दिन पहले बना रिश्ता... इससे मुँह क्यों नहीं फेर पा रही हूँ मैं चाहकर भी..." सुनैना आदित्य की तरफ देखते हुए मन ही मन यह सब सोच रही थी। उसके मन में अंतर्द्वंद चल रहा था, लेकिन वह किसी फैसले पर नहीं पहुँच पा रही थी।
क्रमशः
वहां उस स्टूडियो में पूरा दिन बिताने के बाद नैना काफी थकी-हारी सी हालत में अपने घर की तरफ वापस आई। बिल्डिंग की लिफ्ट से निकलकर, वह भारी कदमों से अपने फ्लैट की तरफ बढ़ रही थी। जैसे ही वह फ्लैट के दरवाजे तक पहुँची, उसने नोटिस किया कि फ्लैट का दरवाजा खुला हुआ था। उसका दिमाग थोड़ा सा ठनका क्योंकि उसे अच्छे से याद था कि सुबह जाते वक्त वह बाहर से फ्लैट का गेट लॉक करके गई थी। फिर यह खुला कैसे था?
नैना ठिठक कर घर के दरवाजे से बाहर ही रुक गई। उसे डर लग रहा था कि कहीं घर में कोई चोर या अनजान व्यक्ति तो नहीं घुस आया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। वह अभी कल रात ही तो यहाँ रहने आई थी और किसी भी पड़ोसी या आस-पास के लोगों को नहीं जानती थी। उसके पास तो बिल्डिंग के सिक्योरिटी गार्ड या वॉचमैन का नंबर भी नहीं था।
"ओ गॉड! यह दरवाजा खुला कैसे है? मैंने तो सुबह लॉक किया था, मुझे अच्छी तरह से याद है।" खुद से मन में ही बात करती हुई, नैना जैसे खुद को विश्वास दिला रही थी।
"अंदर चल कर ही देखती हूँ। कोई चोर-वोर हुआ तो? या फिर कोई खतरनाक इंसान? ओ गॉड! क्या है यह? प्रॉब्लम्स खत्म क्यों नहीं होती मेरी लाइफ में? किस्मत से रहने को यह घर मिला था, लेकिन यहाँ भी..." मन ही मन बोलते हुए, नैना ने डरते-डरते घर के दरवाजे के अंदर कदम रखा। हॉल में उसे कोई नज़र नहीं आया।
"यहाँ तो कोई भी नहीं है... तो फिर दरवाजा खुला कैसे? क्या मेरे जाने के बाद कोई आया था यहाँ?" चारों तरफ नज़र घुमा कर देखते हुए, नैना मन ही मन यह बोल रही थी।
"हे नैना! तुम वापस आ गई।" नैना ने अपने पीछे से आती हुई कुछ जानी-पहचानी सी आवाज सुनी। वह एकदम से पीछे पलट कर देखी। वहाँ पर नकुल मुस्कुराता हुआ खड़ा था।
"ओह नकुल! थैंक गॉड इट्स यू! आई वॉज़ सो स्केयर्ड..." सामने नकुल को खड़ा देखकर, नैना ने जैसे चैन की साँस ली और आगे बढ़कर जल्दी से उसके गले लग गई।
"रिलैक्स, मेरा फ्लैट है, तो मैं ही होगा ना। वैसे तुमने क्या सोच लिया था जो इतना डर गई।" नकुल ने नैना के कंधे पर हाथ रखकर उसे तसल्ली देते हुए और समझाते हुए कहा।
"नहीं, कुछ नहीं... बस अकेले रहने की आदत नहीं है ना मुझे बिल्कुल भी। तो इसलिए आज सुबह मैं गेट लॉक करके गई थी और इस वक्त खुला हुआ मिला तो बस... यह नहीं सोचा कि तुम भी हो सकती हो। मुझे लगा कि पता नहीं कौन?" बोलती हुई नैना नकुल से थोड़ा दूर हटी। उसे एहसास हुआ कि वह अचानक से नकुल के गले लग गई थी और नकुल ने अभी भी उसे पूरी तरह से गले नहीं लगाया था।
नैना नकुल से दूर हटकर हॉल की तरफ बढ़ी। उसने अपना बैग वहीं बीच में रखी टेबल पर रख दिया। फिर सोफे के सिरहाने से सिर टिकाकर, और अपनी आँखें बंद करके, वह काफी थकी-हारी वहाँ पर ही निढाल सी बैठ गई।
"टायर्ड?" नकुल ने नैना को ऐसे बैठे देखकर पूछा।
"या सो मच..." नैना ने उसी तरह आँखें बंद किए हुए नकुल की बात का जवाब दिया।
"कॉफी पियोगी? एक्चुअली बना ही देता हूँ, बैटर फील करोगी।" नकुल ने कहा और किचन की तरफ जाने लगा।
"लेकिन बनाओगे कैसे? किचन में तो कोई सामान ही नहीं है।" नैना ने नकुल की बात पर कहा।
"मैजिक से... तुम देखना अभी मेरा जादू।" नकुल ने हँसते हुए यह बात कही। नैना ने चौंक कर अपनी आँखें खोली और उसकी तरफ देखने लगी। तब उसे समझ में आया कि नकुल मज़ाक कर रहा है।
और फिर नैना भी वहाँ से उठकर नकुल के पीछे किचन तक आ गई। उसने देखा कि वहाँ पर अब काफी सारा सामान था जो कि सुबह नहीं था। फिर नैना ने पानी पीने के लिए फ्रिज खोली। फ्रिज में भी अब दूध, जूस और फ्रूट्स, काफी सारे सामान थे।
"तुम ले कर आए यह सब?" नैना ने नकुल की तरफ देखते हुए पूछा।
"हाँ, मुझे सुबह ही याद आया कि वहाँ पर तो कुछ सामान ही नहीं है फ्लैट में और तुम्हें ज़रूरत होगी इन सब चीजों की तो बस..." नकुल ने नैना की बात का जवाब देते हुए कहा और कॉफी बनाने के लिए बर्तन ढूंढने लगा।
नैना अभी तक नकुल को ही देख रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि नकुल क्यों उसके लिए इतना सब कुछ कर रहा है। आखिर वह तो उसे ठीक तरह से जानती भी नहीं है। अभी कल रात ही तो वह दोनों मिले थे।
"क्या हुआ? ऐसे क्या देख रही हो? कुछ लगा है क्या मेरे फेस पर?" नकुल ने नैना को इस तरह अपनी तरफ देखते हुए पाया। अपनी आइब्रो उठाते हुए उसने उससे पूछा और साथ ही अपने चेहरे पर हाथ भी फेरने लगा।
"तुम्हारे इतने सारे एहसान मैं कैसे चुकाऊँगी नकुल! दो दिन भी नहीं हुए हमें मिले और मेरे लिए इतना कुछ कर दिया है तुमने, जितना कि शायद कभी मेरे घर और परिवार वालों ने भी नहीं किया। आई एम सो ग्रेटफुल टू यू! पता नहीं मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा कैसे करूँ, मुझे तो वर्ड्स भी समझ में नहीं आ रहे।" नकुल की बात पर नैना एक के बाद एक अपने दिल की सारी बातें बोलने लगी। तब नकुल ने कहा,
"ओहो प्लीज नैना, मैंने इतना भी कुछ नहीं किया। फ़ालतू में मुझे महान मत बनाओ। तुम इतनी बार थैंक यू बोलकर, अभी फ़िलहाल कॉफी बनाने दो मुझे, और हेल्प करो, मुझे पैन नहीं मिल रहा।" नकुल ने उसकी बात सुनकर बात बदलते हुए कहा। नैना भी मुस्कुरा दी, जिसके चेहरे पर अब तक काफी सरप्राइज्ड और सीरियस एक्सप्रेशन थे।
"तुम रहने दो, मैं बनाकर लाती हूँ कॉफी हम दोनों के लिए..." नैना ने नकुल से कहा।
"अरे इतना मत घबराओ, मैं भी काफी अच्छी कॉफी बनाता हूँ।" नकुल ने फिर से मुस्कुराते हुए कहा।
"हाँ, तो तुम्हारे हाथ की कॉफी फिर कभी। अभी मैं बनाती हूँ, तुम वेट करो वहाँ बाहर बैठकर..." बोलते हुए नैना ने नकुल को वहाँ से बाहर का रास्ता दिखाया। नकुल भी चुपचाप उसकी बात मानकर किचन से बाहर चला गया। नैना भी मुस्कुराते हुए उन दोनों के लिए कॉफी बनाने लगी।
क्रमशः