॥ अधोराय नमः रक्तांश रक्तो संपर्कोऽस्तु पुनर्जीवित मृत्युसंधि लंघ्य मन्त्रबंधन विमोच्य जीवत प्रतिलभताम ज्योतिः तमासि परिवर्त्य जागृत राक्षस्य रूपम भवतु॥ रक्त के अंश से बना है एक हैवान एक दानव रक्तांश , रक्त की तरह लाल हमेश... ॥ अधोराय नमः रक्तांश रक्तो संपर्कोऽस्तु पुनर्जीवित मृत्युसंधि लंघ्य मन्त्रबंधन विमोच्य जीवत प्रतिलभताम ज्योतिः तमासि परिवर्त्य जागृत राक्षस्य रूपम भवतु॥ रक्त के अंश से बना है एक हैवान एक दानव रक्तांश , रक्त की तरह लाल हमेशा अपना शिकार ढुंढती हर कोई ऊसका शिकार होता उसके प्रकोप से कोई नही बचा ,ना कोई मनुष्य ना कोई बन्य प्राणी मगर सौ बर्षो में एक बार आती है लाल चांद की वो रात जिस रात रक्तांश की शक्तिया चरम पर होती, उस रात मचता है मौत का तांडव खुन से लाल चांद की रात बेहती है रक्त की नदीया, माटी पे परे रहते हैं मनुष्यों के कटे शीष, बनो में ग्रामों में गुजंती है केबल दो आवाज रक्तांश की दहाड़ और लोगो की दर्दनाक चीख़े ,, मनुष्य को बचाने के लिए रक्तांश के अंत के रूप में हुआ रूद्राणी देवी का जन्म , समय चक्र फिर घुमा आइ नीले चांद की रात जब आती है होती है रक्तांश की शक्ति निस्तेज कइ प्रयास के बाद नीले चांद की रात हुआ रक्तांश का अंत रूद्राणी देवी के हाथो रक्त के अंश रक्तांश के प्राण को कैद किया रक्त के बंधन से बांध कर पुस्तक के पन्नों में मंत्रों में, इस प्रकार हजारों बर्षों के पुर्व हुआ था रक्तांश का अंत ,, परन्तु क्या होगा जब समय चक्र फिर बदलेगा आयेगा एक नया समय होगी एक नया तबाही,, जब वो पुस्तक मिलेगी किसी को? क्या होगा जब मायावी मन्त्र को कोई करेगा उच्चारण ? जब रक्त बंधन को रक्त मिलेगा एंव उसी रक्त से पुनर्जीवित होगा वो हैवान, जब मिलेगा उस हैवान को प्राण एक मनुष्य का शरीर क्या होगा तब? क्या फिर होगी वही तबाही जो बर्षों पहले हुई थी?जब राक्षस को मिलेगा एक मनुष्य का शरीर? आखिर क्या होगा तब? क्या रक्षिक पे हावी होकर उसी का अंत करेगा उसके अंदर रहता वो राक्षस ? क्या एकाशीं बचा पायेगी रक्षिक? क्या एक राक्षस की हैवानियत या मन्त्रो ताकत या प्यार की ताकत आखिर कौन जीत पायेगा किसका होगा अंत ? जानने के लिए पढ़े " Love you my demon "
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रात के आसमान के नीचे इस घने रात की तरह इस बेहद घने जंगल में एक विचित्र सा कोलाहल है जंगल में हर मनुष्य भयभीत है हर कोई इधर उधर भागे जा रहे थे पुनः एक वो खतरनाक और भयानक आवाज गुंज उठी ये केबल आवाज नहीं ये मृत्यु का बुलावा है ये आवाज इतनी तीव्र थी के एक क्षण को ऐसा प्रतीत हुआ मानों पुर्ण जंगल कांप उठा इस गुर्राहट के साथ एक एंव आवाज वो थी बिशाल वृक्ष के टुटकर गिरने की, जैसे ही कुछ वृक्ष हटे तभी दो खुन सी लाल आखें दिखी, मगर ये आखें ये गुर्राहट किसी जानवर की तो है मगर ये शेर या कोई और जानवर नहीं कुछ हद तक उसका आकार मनुष्य की तरह ही है मगर मनुष्य नहीं उसका कद आम मनुष्यों से कई अधिक है आठ नौ फुट करीब या उस्से अधिक , उसकि खुन सी लाल आखें जो अपना दूसरा शिकार ढुंढ रहीहै बड़े नुकीले दांत जिन दातों में खुन है दोनों हाथों में बड़े नुकीले नाखूनों में भी खुन है उसके सामने जो वृक्ष या बस्तु आरहा था वो उसे नौचते हुए उखाड़ दूर फेंक रहा था उसे अपने अपना दुसरा शिकार नहीं मिल रहा जिस वजह से उसकी खुनी आखें और लाल होती जारही थी, उसके हाथ ने एक वृक्ष को तोड़ उखाड़ फेंका उसे तोड़ते हुए उसने एक मनुष्य को देखा वो मनुष्य बुरी तरह कांप रहा था अपने ठीक सामने उस हैवान को देख वो ना भाग पारहा था ना ही उठ पाया जब तक वो अपना होश सम्हाल पीछे हटता उसए पहले ही उस राक्षस ने एक हाथ से उसके गर्दन से उठाया और तुंरत उस मनुष्य के सर को धर से अलग कर दिया और उस शरीर से निकलते खुन को पीने लगा देखते ही देखते उस मनुष्य के शरीर को उसने खालिया उसकी केबल कुछ हड्डीया माटी पे परि है,, सौ बर्षों में सिर्फ एक बार आने बाली इस खुन से लाल चांद की रात में चारों ओर लहु की नदिया प्रवाहित होती है चारों ओर केबल मनुष्यों के मांस के टुकड़े हड्डियों के टुकड़े होते, लाल चांद की रात उसकी शक्तिया चरम पर होती इस रात हर कोई उसका शिकार होता उसके खुन की प्यास अत्याधिक बढ़ जाती मांस की भुख सीमाये पार कर जाती है, रक्त के अंश से जुरी उसकि शक्तिया रक्त का अंश रक्तांश, आज तक रक्तांश नाम के राक्षस को कोई जादू कोई तंत्र मंत्र काबू नहीं कर पाया कोई उसे बांध नहीं पाया प्रयास तो हर किसी ने की और करते आरहे है परन्तु प्रयास हर बार व्यर्थ होता है,, _______________________ कुछ बर्ष गुजर गये ऐसे ही रक्तांश की शक्तिया दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जारही थी उसकी रक्त की प्यास पहले से अत्याधिक बढ़ गइ हर रात्रि अपने संग मृत्यु का बुलावा लाता वो सभी मनुष्य अत्यंत पीड़ीत थे उसके तांडव से उसके प्रकोप से,, इसी दौरान चंद्रप्रभा के कोख से जन्म हुआ सोमेश्वर एंव चंद्रप्रभा की पुत्री का ,एक ऐसे नारी का जो रक्तांश सामना कर पाये जन्म हुआ रूद्राणी का जिन्हें कहा जाता रूद्राणी देवी जिनकी शक्तिया जन्म से अपार था उनका जन्म हुआ ही रक्तांश के अंत करने के हेतु रक्तांश का सामना करने के हेतु , उनके माता पिता एंव गुरू ने उन्हें प्रस्तुत किया बाल्यकाल से , रक्तांश का तांडव आज भी बैसा ही अविचल है , केबल शिशुकाल मे भी रूद्राणी को माता पिता का स्नेह मिला इसके पश्चात बाल्यकाल में आते ही रक्तांश ने उनके माता पिता को उनके छिन लिया तब से उनके गुरूदेव ने उन्हें पालन पोषण किया धीरे धीरे रूद्राणी ने स्वयं को पुर्ण रूप से प्रस्तुत किया , समय आगे बढ़ता जारहा था, रूद्राणी जानती थी क्षणिक बर्षों के पश्चात समय का चक्र परिवर्तित होगा एंव सौ बर्ष में आने बाली लाल चांद की रात्रि अवश्य आयेगी, उस रात्रि रक्तांश का अंत करना चाहती है वो उसे अंत करने के हेतु दो दिवस का बिकल्प है उनके पास सौ बर्ष में दो रात्रि आती है जो रात्रि रक्तांश के हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है प्रथम लाल चांद की रात्रि जिस रात्रि उसकी शक्तिया अपने चरम पे होती एंव द्वितीय नीले चांद की रात्रि जिस रात्रि रक्तांश की शक्तिया अत्यधिक दुर्बल होजाती है उन्हें दोनों में से एक रात्रि को चुनना होगा समय आगे आगे बढ़ने लगा,, सभी दायित्व एंव अपने सकल शक्तियों को रूद्राणी देवी को सौप उनके गुरूदेव वीरभद्र ने देहत्याग किया वो अब चालीस बर्ष की होचुकि थी इतने बर्षों में उन्होंने स्वंय को सम्पुर्ण प्रस्तुत कर लिया था रक्तांश का सामना करने के हेतु कुछ ही दिवस में पुनः लाल चांद की वो रात्रि आने बाली है, रूद्राणी देवी उनके तीन शिष्य वैरव, देविका, निर्भय के सहायता से रक्तांश का अंत करगे उसी रात्रि,, क्षणिक दिवस के प्रतीक्षा के पश्चात वो रात्रि आही गई सभी प्रस्तुत थे, एक पुनः वही सर्वनाश आरम्भ हुआ ग्राम के मनुष्य बन के पशु पक्षीया भयभीत है पुनः वही गुर्राहट गुंजी ये गुर्राहट पुनः मृत्यु का बुलावा बनके आया है एक बृहद पत्थर के पीछे से एक तीव्र आवाज आइ इसी कए साथ वो बिशाल पत्थर टुटकर बिखर गया बहा रक्तांश खड़ा था उसके एक हाथ में शरीर से अलग हुआ मनुष्य का शीष था एंव उसका अन्य हाथ खुन से रंगा था उसके नुकिले दांत मनुष्य के शरीर के मांस को चबा रहे है , उसके मुख पे खुन लगे हैं उसका रूप पुर्व से भी अत्याधिक भयानक एंव खतरनाक होगया था उसके सिंग खंजर की भातिं निकुले होगये दांत एंव नाखुन पुर्व से भी अधिक धारदार बन गये उसकी गुर्राहट इतनी तीव्र है के ऐसा प्रतीत होराह है के माटी तक कांपने लगी आज रात्रि उसकी शक्तिया चरम पे होती यदि आज रात्रि लाल चांद्रमा की रौशनी के नीचे उसने किसी ऐसे व्यक्ति का रक्त पान किया जिसके पास जादूइ शक्तिया या तंत्र शक्तिया हैं तो रक्तांश की शक्तिया अत्याधिक बढ़ जायेगी उसी मनुष्य की खोज में हैं वो, रक्तांश ग्राम की दिशा में बढ़ने लगा वो भारी कदमों से आगे बढ़ रहा था उसके हर कदम पे हर के बस्तु कांपने लगा उसके आगे बढने के पुर्व ही उसके समक्ष निर्भय, देविका, वैरव आगये, इसी के साथ तीनो अपने जादूइ शक्ति एंव मंत्रों से उसे रोक लिया,, क्रमश...... (अगर कोई पढ़ रहे हैं तो प्लीज पढकर कमेंट रेटिंग देकर बतायेंगे प्लीज के कहानी का पहला भाग कैसा लगा और प्लीज फॉलो भी कर लिजीए ना)
निर्भय, देविका, वैरव ने रक्तांश को जादू एंव मंत्रो से रोक लिया परन्तु तीनों परन्तु उसे रोकने उनके लिए भी कठिन होता जारहा था रक्तांश की दहाड़ पुनः एक बार गुंज उठी किसी प्रकार उसे रोके रखा तीनो ने,रूद्राणी देवी रक्तांश के ठीक समक्ष आकर खड़ी होगई उन्होने दोनों हाथों को आगे किया उनके हाथों से लाल किरणे निकलने लगी इसी के साथ रक्तांश के चारों ओर एक चक्र बन गया रक्तांश को अब जादू के सहारे और रोका नहीं जा सकता ये देख रूद्राणी देवी ने दोनों हाथों को जोड़े एंव मंत्र उच्चारण करने लगी वो जैसे जैसे मंत्र उच्चारण कर रही थी वैसे उनके चारों तरफ भी एक चक्र बनने लगा दोनों चक्र की रौशनी तेज होने लगी उसी प्रकार मंत्र भी तेज होगये अब तीनों उसे धीरे धीरे छोड़ने लगे लाल किरणें अब स्वर्ण रंग में परिवर्तन होने लगी साथ ही रक्तांश की तेज दहाड़ पुनः गुंज उठी, रक्तांश क्षणिक समय के हेतु निस्तेज परने लगा तीनों ये देख क्षणिक पीछे हट गये इसी के साथ तीनो ने साथ में पुनः एकबार हाथों को आगे बढ़ाया एंव वो भी अब मंत्र उच्चारण करने लगे रूद्राणी देवी हाथ झुकाये आगे बढ़ी,, तीनों ने रक्तांश को जादू एंव मंत्र से बांध रखा है वो क्षणिक निस्तेज अवश्य हुआ है परन्तु उसे नियत्रंण करना अब भी सरल नहीं प्रथम उसके सिंगो को तोड़ना होगा इसी कारण रूद्राणी देवी ने हाथ बढ़ाया एंव तंत्र से बंधे एक खंजर को रक्तांश के सीने पे घोप दिया क्षणिक समय के हेतु वो पीड़ा से दहाड़ा अवश्य परन्तु वो खंजर सम्पुर्ण प्रभावी नहीं हुआ जितना उसे करने की आवश्यकता थी ये रूद्राणी देवी समझ चुकी थी अब क्षणिक क्षणों को व्यर्थ किये बिना उन्होंने अपने शिष्य को बुलाया, वो तीन मुखो बाले रक्त खंजर को लेकर आया जिस्से रक्तांश का अंत होगा, वो तीव्र स्वर में मंत्र उच्चारण करना लगी उस मंत्र को तीन बार उच्चारण करने के पश्चात उस खंजर को रक्तांश के सीने के मध्यम घोपना होगा, दो बार मंत्र उच्चारण करने के पश्चात वो जैसे हि तृतीय बार उच्चारण करने को हुइ उसी क्षण रक्तांश पुनः अनियंत्रित होने लगा उसे देख भय से देविका के हाथ कांप उठे जिस कारण रक्तांश अन्य दिशा के जादू से मुक्त होगया उसने उसी क्षण रूद्राणी देवी पे प्रहार किया , उसका अचानक प्रहार काम कर गया उनके शरीर से लहु प्रवाहित होने लगी ये देख सब व्याकुल हो उठे देविका ने पुनः हाथ आगे बढ़ाये उसे रोका लिया वैरव ने उनसे प्रश्न किया "रूद्रा माँ आप ठीक है? " उन्होंने केबल हा कहा एंव ठीक से खड़ी हुई समय एंव रात्रि बढ़ते जा रहे थे चंद्रमा और लाल होता जारहा था जिससे रक्तांश की शक्तिया भी पुर्व से भी अत्यंत बढ़ गई इस समय उसे मारना अत्यंत कठिन होता जारहा था ये देख कुछ सोच रूद्राणी देवी कहने लगी "आज इसका अंत असम्भव है तिथि अनुसार आज से दस दिवस पश्चात नीले चंद्रमा की रात्रि आने बाली है तभी सब करना होगा तब तक के हेतु हम इसे स्वयं के भीतर धारण करेंगे..." वो आगे बात सम्पूर्ण करती उसके पुर्व ही उनकी बाते सुन एंव समझ देवीका बोली "आप नही हम.. हम धारण करेंगे इसे हमारे भुल के कारण आपको घाव पहची ये हुआ (उसकी आधी बाते सुन रूद्राणी देवी ने उसे टोकते हुए कहा"कदापी नहीं!"उनके इतना कहते ही रक्तांश की दहाड़ पुन गुंज उठी ये सुन देवीका ने शीर्घ कहा) रूद्रा माँ हमारी बात मान लिजिये... " पुनः देवीका की ये बात सुन रूद्राणी देवी बोली "नहीं!तुम..." उनकी बात एंव रक्तांश को देख वैरव एंव निर्भय देवीका की बात पर सहमती जताते हुए बोलने लगे "रूद्रा माँ मान लिजिये देवीका की बात समय व्यर्थ करने के योग्य समय नहीं है " ये सुन उन्होंने एक बार देवीका को देखा तो उसने हा मे शीष हिलाया उनके पास अल्पसमय में और कोई बिकल्प नहीं अब समय व्यर्थ करना उचित नहीं होगा एंव स्वयं के स्थान से पीछे हटी, देवीका भी पीछे हटी अब तक वो जहा खड़ी थी वहा उसी क्षण अन्य व्यक्ति आकर खड़ा होगया एंव जादू से रक्तांश को नियंत्रित करने लगा , रूद्राणी देवी ने पुनः मंत्र उच्चारण आरम्भ किया उनके साथ वही मंत्र देवीका भी उच्चारण करने लगी रक्तांश के आसपास जो चक्र था वो अदृश्य हो गया एंंव इसके अपितु एक नवीन चक्र बन गया साथ ही एक अन्य चक्र देवीका के आसपास भी बन गया , मध्यम गति से दोनों चक्र एक साथ जुड़ने लगे मंत्र बोलते हुए देवीका ने अपने हथेली को खंजर से काटा जिस्से प्रवाहित होता रक्त चक्र पर गिड़ने लगा, इसी के साथ उन तीनो के साथ रूद्राणी देवी भी रक्तांश को नियंत्रण करने लगी देवीका आगे बढ़ी एंव निस्तेज परते रक्तांश के सीने के मध्यम हथेली रखा एंव ऐसा कर उसी क्षण वो पीछे हट गई पीछे हटते ही वो बैठ गइ रक्तांश भी क्षणिक समय के हेतु सम्पुर्ण निस्तेज पर गया रूद्राणी देवी आगे मंत्र उच्चारण करने लगी क्षणिक समय के भीतर ही दो आवाज गुंज उठी एक आवाज रक्तांश की दहाड़ थी एंव द्वितीय देवीका की तीव्र चीख़ थी दोनों के भीतर से एक तीव्र किरण निकली वो इतनी तीव्र थी के सकल की आखें बंद होगई साथ ही अत्यंत तीव्र एक चीख़ गुंज उठी सब दूर छट गये रूद्राणी देवी शीर्घ खड़ी हुई उन्होंने देखा देवीका आखें रक्तांश की भाती लाल होचुकी थी दांत नुकिले होने लगे उसकी शक्तिया अब भी कम नहीं हुइ रक्तांश को नियंत्रित करने का सम्पुर्ण प्रयास कर रही थी देवीका एंव उसे स्वय पर नियंत्रण करने से रोअ भी रही थी परन्तु रक्तांश की शक्तिया अत्यंत थी,, देवीका ने अत्यंत कष्ठ से कहा "रूद्रा माँ....हमे... जंजीरो से.... बां... ध .... आ!!! " वो इतना ही कह पाइ इसके आगे कहने के अपितु उसके मुख से चीख़ निकल गई उसे पीड़ा मे देख रूद्राणी देवी एंव सभी को अत्यंत बुरा लग रहा था क्षणिक क्षणो के पश्चात देवीका एक कक्ष में जंजीरों से बांध दिया गया वो जंजीर मंत्र से लिपटे थे उन्हे देख रूद्राणी देवी कुछ कहने को हुइ परन्तु उनके कुछ कहने के पुर्व ही देवीका ने कहा "य यदि....आप... धार..ण ...करती ....तो इसका अंत कौ...न करता...?" अटके वाक्यो से उसने प्रश्न सम्पूर्ण किये जो कोई उत्तर देने के अपितु रूद्राणी देवी कहने लगी "दस...दिवस...ये पीड़ा सहन कर लो पुत्री..." क्रमश.... (प्लीज प्लीज थोड़े से कमेंट रेटिंग देकर मुझे फॉलो कर लिजिये ना अगर कोई पढ़ रहे हैं तो )
एक कक्ष में देविका को जंजीरो से बांध दिया गया है वो जंजीरे मंत्र से लिपटे हुए थे रूद्राणी देवी कुछ कहने को हुई परन्तु उनके पुर्व ही वो देविका बोलने लगी "यदि.....आ...प धा..रण कर क..रती तो...इसका....अंत कौन कर...ता?" ये सुन इसपर कुछ के अपितु रूद्राणी देवी ने कहा "दस दिवस ये पीड़ा सहन करलो.." ये सुनकर देविका हल्का सा मुस्कुराइ उसे अंदर से पीड़ा का आभास हो रहा था वो पीड़ा असहनशील होने लगी वो अचानक चीख़ परि,,
वो पुनः स्वंय पे नियत्रंण खोने लगी रक्तांश की शक्तिया ऊस पर नियंत्रण करने लगा उसके माध्यम से वो बाहर आने चाहता है ,
उसे देख वैरव रूद्राणीदेवी से कहने लगा "हमे भय लग रहा है..सहन तो कर पायेगी न ?" उसके प्रश्न पे वो उत्तर देते हुए कहने लगी "हमे उस पर सम्पूर्ण विश्वास है वो उसे स्वंय पे नियत्रंण करने नहीं देगी " उनके बात पर कोई कुछ कहता उसके पुर्व ही रक्तांश की दहाड़ गुंज उठी इसीके साथ देविका तेज आवाज में किसी तरह बोली "बाहर जाइये सब...." ये सुन सब तेजी से बाहर जाने लगे रूद्राणी देवी ने सकल को देखा और कहा वो बही रूकेगी उन्हे देविका शीष हिलाकर ना कहा परन्तु वो बही रुकी,
समय आगे बढ़ने लगा दिवस गुजरने लगे इस अवधि समय मे रूद्राणी देवी अधिकतर समय उसी कक्ष में रहती एंव उस हैवान के अंत करने का तरिका खोजती देविका अभी तक सकुशल जीवीत है ये कुछ बिचित्र बात है विश्वास उस पे सबको था के वो सह सकती है परन्तु रक्तांश की शक्तिया अपार है इसी का भय था सकल को , देविका ने स्वंय को उसके नियत्रंण में आने नहीं दिया,,
कुछ दिवस के पश्चात नीले चंद्रमा की रात्रि का आगमन होगया, रूद्राणी देवी एंव उनके शिष्यो ने सकल प्रस्तुती कर लिया सकल सामग्री प्रस्तुत है एक दिशा में दो मनुष्य शरीर उपस्थित हैं वो दोनों ही माटी से बने हैं दोनों के सीने के अंश मे माटी कम है आज कि रात्रि रक्तांश दुर्बल होजाता है उसकी शक्तिया अत्यंत कम होजाती है वो अपने रक्त के त्रिश्ना को मिटाने हेतु अवश्य बाहर आने का प्रयास करेगा वही हुआ आज स्वयं पे नियत्रंण करना देविका के लिए असम्भव होने लगा उसके भीतर से रक्तांश बाहर आने लगा मंत्र से बंधी जंजीरे उसने तोड़ दिया उसे किसी प्रकार बाकि शिष्य बाहर लाये नीले चंद्रमा के ज्योती के नीचे वो जैसे ही आइ तभी रूद्राणी देवी ने हाथ जोड़ मंत्र उच्चारण करना आरम्भ किया,
किसी प्रकार देविका बोली "रूद्रा माँ...शीघ्र!! " रक्तांश बाहर आने का प्रयास अविराम कर रहा था सभी जादू से उसे रोकने का प्रयास करने लगे निर्भय ने उसके मंत्र जल छिड़का धीरे धीरे,, रूद्राणीदेवी बोली "देविका उसे बाहर आने दो!!" देविका ने उनकी बात को सुन आखें बंद कर लिया और उसे बाहर आने दियी एकबार फिर उसकि चीख़ निकल गई आवाज खत्म होते हुए एक दहाड़ गुंज उठी देविका के भीतर से वो बाहर आगया उसके वाये तरफ का सिंग पुनः आगया जिसे रूद्राणी देवी ने तोड़ दिया लाल चंदमा की रात्रि,
उसके बाहर आते ही सभी ने उसपे मंत्रजल छिड़का आज की रात्रि पुर्व से उसकि शक्तिया दुर्बल होती इसी कारण वो जल काम कर गया उसे वो जल अग्नि कि भातिं आभास हो रहा था रक्तांश अपने स्वरूप में आने लगा वो क्षणिक निस्तेज पर गया ये देख रूद्राणी देवी तीव्र स्वर में उच्चारण करने लगी ,,
अघोर मंन्त्रबलं धारय रक्तांश बंन्धन प्रविश
तमः शक्तिः सीमासु बद्ध निस्तेजो भव राक्षस्य स्वरूपम।।
तीन बार ये एक मंत्र उच्चारण करते हुए उन्होंने पुनः उसके एक सिंग को तोड़ दिया अब रक्तांश और दुर्बल होगया इसीके साथ रक्त से स्नान कराये खंजर को उठाया एंव पुनः एकबार उसके सीने के मध्यम घोप दिया पुनः एकबार रक्तांश की गुर्राहट गुंज उठी तीन बार लगातार घोपने के पश्चात उन्होंने खंजर अलग किया उसकी गुर्राहट अत्यंत भयानक थी उसे पीड़ा का आभास हो रही थी उसके गुर्राहट के कारण माटी तक कांप रही थी माटी पे खड़े बिशाल बृक्ष, मनुष्य सब कांपने लगे रूद्राणी देवी के समक्ष एक पुस्तक रखी हुइ है जिसके पन्ने कोड़े है खंजर निकालने के पश्चात उस पुस्तक के ऊपर पकड़ा उस खंजर से प्रवाहित होता रक्त उस कोड़े पन्ने पे झड़ने लगा रूद्राणी देवी के मंत्र रूके नहीं
वो जैसे जैसे मंत्र उच्चारण कर रही थी वैसे कोड़े पन्नों पे उस रक्त से स्वयं ही वाक्य बनने लगे साथ ही रक्तांश क्रमश अदृश्य होने लगा अब उसका अंत निकट आगया रक्तांश की दहाड़ तेजी होती जारही थी अपने अंत को निकट देख वो और अनियंत्रित होने लगा जैसे जैसे अदृश्य होरहा था वैसे ही पुस्तक कि लिखाबट मंत्र में परिवर्तित होने लगे बर्षों, युगो के तांडव के रक्तांश नाम के हैवान का अंत आखिरकार होने लगा जाते हुए रक्तांश एक प्रहार करके गया रूद्राणीदेवी पर परन्तु वो इसबार नहीं रूकि नाही मंत्रो को रूकने दिया अन्य खंजर से अपने हथेली को पुस्तक के ऊपर किया एंव खंजर से काटा हथेली से रक्त प्रवाहित होकर उस लिखावट पर झड़ने लगा रक्तांश के रक्त के लिखावट पर उनके रक्त से कबज बन गया एक तीव्र दहाड़ के साथ रक्तांश सम्पुर्ण अदृश्य होगया एंव देविका अब अचेत होकर गिड़ गई
रूद्राणी देवी ने उसके सिंग को एक छोटे से पेटिका में रखा एंव उस रक्त खंजर को मंत्र जल में स्नान कराया एंव उसे भी पेटिका में रखा, माटि से बने मनुष्य के सीने पे रखने को कहा दोनों पेटिका दोनों माटि मनुष्यो के भीतर रखने के पश्चात माटी मे समाधी देने को कहा,,
ये कहते हुए एंव सब देखते हुए उन्होंने कहा "स्मरण रहे इस सिंग पे या पुस्तक पे रक्त ना गिड़े " उनके शिष्यो ने उनकी आदेश मानते हुए कहा "जी रूद्रा माँ " इसके पश्चात उनके शिषी ने बाकि काम किये उन्होंने देविका को सम्हाला सकल को भय था के जीवीत है या नहीं परन्तु वो जीवीत है रूद्राणी देवी ने उसे जादू मंत्र से ठीक किया आखें खुलते ही उसने देखा जाते हुए रक्तांश एक चिह्न दे गया रूद्राणी देवी के मुख एंव गाल पे उसके बिषोधर नाखुनो के चिह्न उसे सकुशल देख रूद्राणी देवी ने उसे गले लगा लिया एंव कहा "धन्यवाद देविका ,धन्यवाद सकल को ",
क्रमश....
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