ये कहानी है मल्लिका आदित्य प्रताप की, एक ऐसी लड़की की जो सिर्फ़ दुनिया में एक इन्सान से डरती है, जो भक्त है महाकाल की, जिसे न मौत से डर है ना ही किसी चीज़ का खौफ, जिसे सिर्फ़ गलत काम करने वाले लोगों से नफरत है, जिसे पूरे शहर की पुलिस ढूढने में लगी है... ये कहानी है मल्लिका आदित्य प्रताप की, एक ऐसी लड़की की जो सिर्फ़ दुनिया में एक इन्सान से डरती है, जो भक्त है महाकाल की, जिसे न मौत से डर है ना ही किसी चीज़ का खौफ, जिसे सिर्फ़ गलत काम करने वाले लोगों से नफरत है, जिसे पूरे शहर की पुलिस ढूढने में लगी है, क्या होगी मल्लिका आदित्य प्रताप की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिए" revenge of mallika aaditya partap"
Revenge of mallika aaditya partap ( chapter 1) introduction
Warrior
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यह एक खंडहर सा घर था जिसके अंदर एक बेसमेंट था। इस बेसमेंट में जाने के लिए कई लिफ्टें थीं, पर सब बंद थीं, सिवाय एक के। एक शख्स ने एक पत्थर को किनारे किया और एक बटन दबा दिया। तभी उसके सामने एक लिफ्ट खुलती हुई दिखाई दी। वह शख्स लिफ्ट में गया और लिफ्ट कुछ ही देर में बंद होकर उसे उसके गंतव्य पर ले गई। जैसे ही उसका दरवाज़ा खुला, उसके अंदर से एक लगभग २७ साल का लड़का निकला। उसके चेहरे पर घनी दाढ़ी, छोटे बाल, एकदम फिट बॉडी, सफ़ेद शर्ट, काले पैंट, और हाथ में एक ब्रांडेड घड़ी तथा एक फाइल थी। वह अपने जूतों की आवाज़ करते हुए अंदर चला गया। कुछ ही देर में वह एक कमरे में आया जहाँ कई लोग थे। उसने फाइल टेबल पर रखी और सबको जोर से सैल्यूट किया।
उस आदमी को सैल्यूट करने के बाद, सामने बैठे एक आदमी ने कहा–"क्या पता चला तुम्हें अभी तक उसके बारे में...?"
"अभी तक जितने भी मर्डर हुए हैं, उन सब में एक ही इंसान शामिल है," उस लड़के ने उस आदमी को देखते हुए कहा, "यह तो हमें पहले से पता था। मगर सबसे अजीब बात यह है कि जितने भी व्यक्तियों की मौत हुई है, उन सबका कनेक्शन गैरकानूनी धंधों से था; किसी के क्लब थे, कोई ड्रग्स की सप्लाई करता था, और कोई लड़कियों को बेचता था। अब तक जितने भी लोग मारे गए हैं, सबका किसी न किसी चीज़ से कनेक्शन है!"
सामने से यह बात सुनकर उस दूसरे इंसान के चेहरे पर गंभीरता छा गई। उसने अपने सामने खड़े लड़के को देखा और कहा–"जब हमें यह सब पता है, तो अब तक हमारी फ़ोर्स क्या कर रही है? अभी तक किसी ने उस मर्डर करने वाले को नहीं पकड़ा...?"
"मर्डर करने वाला नहीं, सर, करने *वाली*। पूरा लखनऊ उसे जानता है, पर आज तक उसे किसी ने नहीं देखा है," लड़के ने अपना सीना तानते हुए कहा। "उसे ढूँढ पाना किसी के बस में नहीं है। बाकी हमारी टीम पूरी कोशिश कर रही है कि उस इंसान को बहुत जल्द ढूँढ कर उसे उसके गुनाहों की सजा दिलाई जाए। और साथ ही साथ, उससे हमें एक बहुत ज़रूरी काम निकलवाना है। एक वही है पूरे लखनऊ में जो यह काम कर सकती है! उसे हमें बहुत जल्द ढूँढना ही होगा, या फिर कोई ऐसा इंसान जो यह सब कर सके!"
एक अंधेरे कमरे में सिर्फ़ किसी के चीखने की आवाज़ आ रही थी। पूरा कमरा अंधेरे से भरा हुआ था; उस कमरे में देखने को एक रोशनदान भी नहीं था। कमरे के बीचोंबीच एक कुर्सी पर एक लड़की बैठी थी। ब्लैक जीन्स और ब्लैक हूडी से उसका चेहरा ढँका हुआ था, और चेहरे पर मास्क लगा हुआ था। उसके एक हाथ में रुद्राक्ष की माला और एक मोटा कड़ा था, और हाथ में एक मोटी, अजीब डिजाइन वाली अंगूठी भी थी। उसके दूसरे हाथ में एक रिवाल्वर थी। उसने अपना एक पैर दूसरे पर रखा हुआ था, और अपना एक हाथ कुर्सी पर रखकर उस बंदूक को देख रही थी; कभी-कभी उस बंदूक पर अपना हाथ रगड़ती।
उस पूरे कमरे में तीन बॉडीगार्ड खड़े हुए थे, और दो लड़के उसकी कुर्सी के ठीक पीछे खड़े थे, जिनके चेहरे पर एक अजीब सा भाव था। उन सबके चेहरे पर भी काले मास्क लगे हुए थे; किसी का भी चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था।
उस लड़की के सामने एक आदमी घुटनों के बल बैठा हुआ था, जिसके दोनों हाथ पीछे की तरफ़ बंधे हुए थे। लड़की ने अपनी बंदूक उस लड़के के सर पर निशाना साधते हुए कहा–"नवाबों के शहर में आपका स्वागत है। आखिर आपकी मौत आपको यहाँ खींच ही लाई। आपको आपकी मौत बहुत जल्दी मुबारक होगी, अगर आपने जो मैंने पूछा है, वह नहीं बताया तो!"
उस आदमी के चेहरे पर पसीना आ रहा था। सर्दियों का मौसम था, फिर भी उसके चेहरे पर पसीने की बूँदें चिपक रही थीं। उसने उस लड़की की तरफ़ देखा और कहा–"आखिर कौन हो तुम, और मुझसे क्या चाहती हो? मैंने कहा ना, मेरा गैरकानूनी मामलों में कोई हाथ नहीं है!"
जैसे ही उस लड़की ने यह सुना, उसने अपनी बंदूक लेकर उसके घुटनों पर जोर से मारी। बंदूक के साथ-साथ उस आदमी की चीख निकल गई। उस लड़की ने उस आदमी को घूरते हुए चिल्लाया–"पूरे लखनऊ में अपना नाम सब जानते हैं। छोटे बच्चे से भी पूछोगे ना, वह तुझे मेरा नाम बता देंगे। पूरा लखनऊ काँपता है मुझसे! मल्लिका आदित्य प्रताप किसी से नहीं डरती, समझा ना तू!" इतना बोलकर उसने उस आदमी के बालों को पीछे से पकड़ा और उसकी गर्दन पर बंदूक लगाकर वापस कहा–"अगर ज़िंदा जाना चाहता है, तो मेरे बंदूक चलाने से पहले जो मैंने तुझसे पूछा है, वह बता दे!"
उस आदमी की हालत बहुत खराब हो चुकी थी। उसने मल्लिका को देखा और सब कुछ बता दिया। जैसे ही मल्लिका ने सुना, वह झट से कुर्सी से खड़ी हुई और उस आदमी के बगल में आकर खड़ी हो गई। उसने उस आदमी पर दो-तीन बार गोलियाँ चला दीं। गोलियाँ चलते ही वह आदमी एक ही पल में मर गया। उसने बंदूक जोर से फेंक दी। उसके पीछे कुर्सी के पास खड़े एक लड़के ने तुरंत बंदूक अपने हाथ में ले ली और अपनी गर्दन हिलाकर कहा–"आप जा सकती हैं, सब कुछ हो जाएगा।" इतना बोलकर उस लड़के ने दूसरे लड़के को इशारा किया। उस लड़की ने उन दोनों को देखा, एक नज़र उस आदमी को देखकर वहाँ से चली गई।
क्रमशः
लखनऊ, नवाबों का शहर।
शाम का समय था। लोगों को अपने ऑफिस से आने की जल्दी थी। कोई ट्रैफिक में रुका था, तो कोई अभी भी आकर चाय की टपरी पर रुक रहा था। सूरज पूरी तरह नहीं डूबा था; उसकी हल्की-हल्की किरणें अभी भी दिखाई पड़ रही थीं, शायद सबके चेहरों पर पड़ रही थीं। सर्दियों का मौसम था; ठंडी-ठंडी हवाएँ चल रही थीं और हल्की बारिश भी।
चाय की टपरी पर चाय बनाते हुए, उस आदमी ने बड़े ही आराम से कहा— "कहा जाता है ना, कलयुग आ रहा है। वैसे ही देखो, बिना मौसम के बारिश चल रही है। धूप भी आ रही है, लेकिन बारिश आए जा रही है। आजकल क्या हो जाए, किसी चीज का भरोसा नहीं है!"
उस छोटी सी चेयर पर बैठे लड़के ने न्यूज़पेपर पढ़ते हुए कहा—"यह देखो काका, आज न्यूज़पेपर नहीं पढ़कर गया था सुबह। देखो क्या पढ़ने को मिल रहा है। उस छोटी सी लड़की ने फिर से एक आदमी को मार दिया। अब उस लड़की का नाम तो नहीं है, लेकिन जब वह आदमी मरा है, तो मुझे तो लगता है कि यह काम मल्लिका का ही है!"
चाय वाले ने कप उठाकर उस आदमी की तरफ बढ़ाया और अपने गले के रुमाल को सही करते हुए कहा—"सुना तो सुबह हमने भी था। पर कुछ भी कहो, चाहे गलत ही तरह से, लेकिन काम बड़ा अच्छा कर रही है लड़की! इतने सालों से इसका डर है इस शहर में, लेकिन देखो तो किसी ने नहीं देखा, ना कोई उसे जानता है। यहाँ तक हमने सुना है पुलिस भी अब तक उसका पता नहीं लगा पाई। पुलिस से तो कुछ नहीं होता; पुलिस के तो लोग खुद ही गैर-कानूनी काम वालों के साथ मिले हुए हैं। हमें तो सुनने में आया है!"
"पर बताने से क्या होता है? हमारे सुनने में तो बहुत कुछ आता है। चलो, तुम चाय पी लो। हम अपनी दुकान संभाल लेते हैं भैया।" इतना बोलकर चाय वाला वापस अपनी दुकान के अंदर चला गया।
चाय वाले के जाते ही उस आदमी के चेहरे पर थोड़े अजीब और गंभीरता के भाव आ गए। उसने उस चाय को देखा और पीने लगा। तभी उसकी नज़र सड़क के उस पार एक लड़की पर गई जो छोटे-छोटे बच्चों को कुछ बांट रही थी। कंधे तक आते बाल, फुल बाजू का टॉप और स्कर्ट, और गले में दुपट्टा, और साथ ही उसके चेहरे पर एक बहुत प्यारी सी मुस्कुराहट। उसकी चेहरे की मुस्कुराहट बढ़ती जा रही थी। बारिश की बूँदें उसके शरीर को भिगो रही थीं; वह लड़की उस बारिश का बड़ा ही मज़ा ले रही थी।
उस लड़के ने अपनी चाय खत्म की और अपनी बाइक लेकर वहाँ से चला गया। उसके जाते ही वह लड़की उस चाय की टपरी पर आई और चेयर पर बैठकर दुकान वाले से बोली— "काका, एक चाय दे दीजिए!"
उस लड़की की आवाज सुनकर उस आदमी ने उसे देखा और मुस्कुराते हुए कहा—"कहाँ से आ रही हो बिटिया...? आज तुम चाय पीने आने में लेट नहीं हो गई...? और तुम्हारे वो दोस्त कहाँ रह गए...?"
उस लड़की ने उस चाय वाले को देखा और वहाँ से न्यूज़पेपर उठाकर पढ़ते हुए कहा—"आपको तो सब पता है ना काका? माँ घर से बाहर नहीं निकलने देती। अगर उन्हें पता चला ना मैं यहाँ चाय पीने आई हूँ, वह भी उनके हाथ की चाय छोड़कर, मार देंगी मुझे। चलो, इसी बात पर चाय तो पिला दो मुझे। और रही दोस्तों की बात, तो होंगे सब अपने कामों में बिजी!" इतना बोलकर उस लड़की ने न्यूज़पेपर देखा। जैसे ही उसने न्यूज़पेपर की पहली लाइन पढ़ी, उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई और उसने पेपर पढ़ते हुए धीरे से कहा—"एक और गया..."
"हाँ बिटिया, एक और गया...!" अच्छा किया। इस शहर में बहुत कुछ खराब चल रहा है; सब ठीक हो जाएगा, देखना!"
उस लड़की ने उस चाय वाले के हाथ से चाय ली और चाय का एक घूँट पीते हुए कहा—"बिल्कुल सही कहा काका, एक दिन सब सही हो जाएगा।" इतना बोलकर उस लड़की ने एक ही घूँट में पूरी चाय खत्म कर दी। उसने वहाँ पर पैसे रखे और उठकर वहाँ से चली गई।
वह लड़की वहाँ से उठकर एक मकान की ओर बाहर से ही देखने लगी। मकान तो ज़्यादा बड़ा नहीं था; बाहर छोटा सा दरवाज़ा और बाहर से दिखाई देने वाली बाउंड्री के पास सिर्फ़ पेड़-पौधे थे। कहा जा सकता था कि यह मकान बड़े-बड़े पेड़ों की वजह से दिखाई भी नहीं पड़ रहा था। उसने अपने हाथों से दरवाज़े पर हाथ रखा और इधर-उधर देखकर जल्दी से दरवाज़ा खोला और अंदर चली गई। जैसे ही वह अंदर आई, उसने देखा अंदर का दरवाज़ा खुला हुआ था। दरवाज़ा खुला देखकर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उसने अपनी गर्दन को तिरछा करके देखा, तो उसे हाल में कोई भी नज़र नहीं आ रहा था। वह अपने दबे पाँव से अंदर जा ही रही थी कि तभी किसी ने उसके कान को पकड़कर मरोड़ दिया!
उस लड़की के कदम वहीं पर रुक गए। उसने अपनी गर्दन घुमाकर अपने बगल में देखा, तो एक लगभग 45 से 50 साल की औरत, आँखों में गुस्सा लिए, उस लड़की का कान मरोड़कर खड़ी थी। उस लड़की ने उस औरत को देखकर धीरे से कहा—"अरे माँ, छोड़ो ना यार! मेरा कान टूट जाएगा। प्लीज़! फिर अच्छा थोड़ी लगेगा, मैं बिना कान के घूमूँगी और फिर मैं आपकी सुन भी नहीं पाऊँगी!"
उस औरत ने उस लड़की को देखा और उसका कान छोड़ते हुए कहा—"कहाँ गई थी तुम, तारा...?"
तारा ने अपनी माँ को देखा और मुस्कुराते हुए उनके कंधे में अपने दोनों हाथ डालकर थोड़े अलग अंदाज़ में कहा—"तुम्हें छोड़कर कहाँ जाऊँगी मेरी प्यारी सी कल्याणी!"
कल्याणी जी (तारा की माँ) ने तारा के सर पर चपत मारते हुए कहा—"आने दे, तेरे बाबा को बताती हूँ। मेरा नाम लेना सीख गई ना तू?" इतना बोलकर उन्होंने तारा का वापस से कान पकड़ लिया और उसे आगे ले जाते हुए कहा—"पढ़ाई तो तुम्हें करनी नहीं है बिल्कुल भी। आज आने दो तुम्हारे भाई और तुम्हारे पापा को, सब बताती हूँ। और बताती हूँ कैसे तुम घर से बाहर भी जाती हो छुप-छुप कर!"
तारा ने कल्याणी जी को देखा और उनके गले लगते हुए कहा—"पक्का माँ? जा रही हूँ पढ़ने। प्लीज़ बाबा को कुछ मत बताना। प्लीज़, प्लीज़!"
कल्याणी जी तारा की ओर देखकर बोली—"ठीक है। सुन, भाई आ रहा है तेरा। चल, चलकर पहले मेरी रसोई में मदद कर दे!"
तारा ने कल्याणी जी की बात सुनी और मुस्कुराते हुए जोर से चिल्लाते हुए कहा—"ओह वाउ! भाई आ रहे हैं...? मज़ा आएगा! फ़ाइनली भाई पाँच साल बाद आ रहे हैं बुआ के घर से!"
कल्याणी जी ने तारा का हाथ पकड़ा और उसे किचन में ले जाते हुए कहा—"नाच-कूद बाद में करना, पहले मेरी थोड़ी सी मदद कर दे।" इतना बोलकर कल्याणी जी तारा को अपने साथ रसोई में ले गईं। दोनों माँ-बेटी किचन में काम कर रही थीं।
तो वही उसी घर की छत पर कोई खड़ा हुआ था। दीवार पर अपने दोनों हाथ लगाकर खड़ी हुई थी। ब्लैक कलर का टी-शर्ट, ब्लैक कलर का ट्राउज़र, और बालों का जूड़ा बँधा हुआ था। उसके हाथ में एक पेन था, और वह लड़की बस एकटक खड़ी होकर आसमान में चाँद को देख रही थी, क्योंकि सूरज अब ढल चुका था। और ठंडी-ठंडी हवाएँ चल रही थीं, जिससे उस लड़की के बाल हवा में उड़ रहे थे। तभी किसी ने उसके पीछे से हग किया। तो उस लड़की के चेहरे के भाव एक मिनट में बदल गए। उसने खुद को नॉर्मल किया और पीछे पलट गई। उसके पीछे तारा खड़ी हुई थी। उसने उस लड़की को देखा और मुस्कुराते हुए कहा—"ओह्हो दी! आप यहाँ हैं? मैं आपको कब से ढूँढ रही थी!"
उस लड़की ने तारा के कंधे पर हाथ रखा और कहा—"क्या हुआ...? कोई काम था मुझसे?"
तारा ने उस लड़की को देखा और दीवार के पास टिककर खड़े होते हुए कहा—"तुम मुझे यह बताओ, तुम्हें यहाँ पर ऐसा क्या दिखता है जो तुम हर शाम को यहीं पर आकर बैठ जाती हो? नहीं, तुम आज मुझे बता दो। मैं तुमसे कब से पूछ रही हूँ यह बात, लेकिन आज तो मुझे जानना है कि तुम ऐसा आकर यहाँ क्या देखती हो...?"
तारा ने जो सवाल पूछा था, उसका जवाब उसे आज चाहिए था। उस लड़की ने एक नज़र तारा को देखा और उसके बगल में आकर उस बाउंड्री पर बैठ गई और अपने पैरों को फोल्ड करके उन पर दोनों हाथ रखकर कहा—"कुछ भी नहीं। मुझे यह जगह बहुत अच्छी लगती है।"
क्रमशः
तारा ने उस लड़की को दीवार के पास टिकी देखकर कहा, "तुम मुझे बताओ, तुम्हें यहाँ क्या दिखता है कि तुम हर शाम यहाँ आकर बैठ जाती हो? आज मुझे बता दो। मैं कब से पूछ रही हूँ यह बात, लेकिन आज तो जानना ही है कि तुम यहाँ आकर क्या देखती हो...?" तारा को उस लड़की का जवाब आज ही चाहिए था। उस लड़की ने तारा को एक नज़र देखा और उसके बगल में, उस बाउंड्री पर बैठ गई, अपने पैर मोड़कर, हाथ उन पर रखते हुए कहा, "कुछ भी नहीं। मुझे यह जगह बहुत अच्छी लगती है।"
"तुम देखो, कितना अंधेरा हो रहा है। आसमान में चाँद है, उसके बगल में देखो, कितने सितारे हैं, फिर भी वह एक कोने में अकेला ही है। ऊपर से हवा भी कितना सुकून दे रही है। तुम्हें पता है... खैर, तुम आज कॉलेज नहीं गई... क्या?"
तारा ने उस लड़की को देखा और अपने सिर पर हाथ मारते हुए कहा, "ओहो ध्रुवा, तुम तो भूल जाती हो! यार, तुम्हें याद नहीं है क्या...? मेरा दो दिन का ऑफ था ना, अब तो कल जाना है।"
ध्रुवा ने तारा को देखा और कहा, "तुम्हें मुझसे कोई काम था? बताया नहीं तुमने...?"
ध्रुवा के बोलते ही तारा ने अपने सिर पर हाथ मारा और बाउंड्री से नीचे उतरकर, ध्रुवा की ओर देखते हुए कहा, "हे भगवान! मैं जो काम तुमसे बोलती आई थी, वह तो मैं भूल ही गई! तुम्हें माँ नीचे बुला रही हैं। उन्हें तुम्हारी थोड़ी सी मदद चाहिए। चलो नीचे!"
ध्रुवा ने तारा की बात सुनी और बाउंड्री से कूदकर, अपने हाथों से फटकारते हुए, तारा के साथ नीचे चली गई। दोनों नीचे आईं तो कल्याणी जी ने दोनों को देखा और कहा, "तुझे मैंने ध्रुवा को बुलाकर लाने को बोला था ना कि वहीं जाकर बैठ जाने को! बस बातें करवा लो। मैं जो काम बोलती हूँ, वह तो तुम भूल ही जाती हो!"
ध्रुवा ने कल्याणी जी को देखा और उनकी ओर देखते हुए कहा, "क्या हेल्प चाहिए थी आंटी? आप मुझे बता दीजिए, मैं कर देती हूँ!"
कल्याणी जी ने ध्रुवा को देखा और उसकी ओर इशारा करते हुए कहा, "वो जो ऊपर की अलमारी है ना, दरवाजे के ऊपर, उसमें से मुझे कुछ सामान निकलवाना था। एक तुम ही हो जो वहाँ चढ़ सकती हो और सामान दे सकती हो। प्लीज मेरी मदद कर दो। थोड़ा जल्दी करना। इस तारा को पकड़ा देना, मैं आती हूँ पास वाली मीनू के पास से!" इतना बोलकर कल्याणी जी वहाँ से चली गईं।
ध्रुवा ने तारा को देखा और अपनी टी-शर्ट की बाजू ऊपर करके, हॉल में सोफे पर बैठते हुए, तारा से जोर से बोली, "बड़ी वाली कुर्सी लाओ जल्दी!" ध्रुवा के बोलते ही तारा तुरंत सीढ़ियों के पास गई और उसके नीचे एक कमरे से बड़ी वाली कुर्सी लेकर आ गई। ध्रुवा ने उस पर पैर रखा और ऊपर चढ़ गई। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था! वह सामान को इधर से उधर कर रही थी। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था! उसने अपने हाथों को इधर-उधर किया, लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। तारा फ्रिज से अपनी चॉकलेट ले आई थी और उसी बड़ी सी कुर्सी पर बैठ गई थी और आराम से चॉकलेट खाते हुए ध्रुवा से बोली, "सामान मिल गया क्या ध्रुवा...? तुम्हें नहीं मिलेगा, तुम आ जाओ नीचे!"
"चुप करके बैठ जा बंदरिया, मैं निकाल दूँगी।" इतना बोल ध्रुवा ने एक डिब्बे को हाथ लगाया ही था कि वह सामान नीचे आ गिरा। वह सामान जैसे ही नीचे गिरा, बहुत तेज आवाज आई। ध्रुवा ने ऊपर से नीचे देखा और वापस सामान निकालने लगी।
तारा चॉकलेट खा रही थी कि तभी उसकी नज़र सामने दरवाजे पर गई जहाँ एक लड़का खड़ा हुआ था। उसके एक हाथ में एक बैग और एक हाथ में लगेज था। वह तारा को देखकर बस मुस्कुरा रहा था। वह जैसे ही आगे आया कि तभी उसके ऊपर कुछ बर्तन गिर गए। लेकिन बर्तन प्लास्टिक के होने की वजह से उसे ज़्यादा चोट नहीं लगी थी, लेकिन उसमें कुछ सामान थोड़ा सा भारी था जिससे उस लड़के के माथे पर गिरने से हल्का सा कट लग गया था, जिससे हल्का सा खून आ गया था। ध्रुवा ने वापस अपनी आँखें बंद कर ली थीं। उसने नीचे देखा तो उसे कोई खड़ा हुआ नज़र आया। उसने एक बॉक्स लिया और नीचे तारा की ओर देखकर कहा, "पहले इसे पकड़ो तारा।" इतना बोल ध्रुवा ने उसे जल्दी से सामान पकड़ाया और उस कुर्सी पर पैर रखकर जैसे ही उतरने को हुई कि अचानक उसका पैर मुड़ गया और वह सीधा जाकर गिरती, उससे पहले ही कुर्सी के पास खड़े उस लड़के ने ध्रुवा को अपनी बाहों में पकड़ लिया था। दोनों में से एक बार भी पलकें किसी ने नहीं झपकाई थीं। दोनों एकटक एक-दूसरे को देख रहे थे, और तारा उस कुर्सी पर हाथ रखकर उन दोनों को देख रही थी।
ध्रुवा ने अपने हाथ से उस लड़के के पेट में एक हाथ मारा तो उस लड़के के हाथ ध्रुवा पर ढीले पड़ गए थे। तभी ध्रुवा नीचे कूद गई। उसने अपने हाथ सही से किए और उस लड़के को घूरने लगी। छ फीट की हाइट, ज़्यादा गोरा तो नहीं, लेकिन उसका रंग साँवला भी नहीं था। दाढ़ी और बाल जो उसके माथे पर आ रहे थे। उसने ब्लू जीन्स और व्हाइट टी-शर्ट पहना हुआ था, जिस पर ब्लू कलर की ही जैकेट पहनी हुई थी। ध्रुवा ऊपर से आकर बिना कुछ बोले सोफे पर बैठ गई।
उस लड़के ने ध्रुवा को देखा और तारा की ओर देखकर कहा, "कौन है ये मिस नकचढ़ी? बड़ी ही अजीब है। सॉरी बोलना तो दूर, पूछा भी नहीं मुझे लगी या नहीं...? एक तो इसकी वजह से चोट आई है और इसने जानना तक नहीं चाहा!"
तारा: "चले जाने दीजिए ना यार भाई, आप आ गए ना घर पर...?"
उस लड़के ने ध्रुवा को देखा और तारा की ओर देखकर कहा— "कौन है ये मिस नकचड़ी? बड़ी ही अजीब है। सॉरी बोलना तो दूर, पूछा भी नहीं मुझे लगी या नहीं...?"
तारा—"चले जाने दीजिए भाई, आप गए ना...?"
उस लड़के ने पीछे जाकर वापस से अपना लगेज लिया और अपने हाथ से अपने सर पर फेरते हुए कहा— "नहीं, अभी नहीं आया। अभी तो मेरा भूत ही आया है, और बर्तन भी उसी पर गिरे थे।" इतना बोलकर वह लड़का अंदर आकर बैठ गया। वह बिलकुल ध्रुवा के बगल में, दूसरे सोफे पर बैठ गया था। ध्रुवा ने अपने फ़ोन में गाना लगाकर ईयरफ़ोन लगा लिए थे।
तभी बाहर से कल्याणी जी और उनके साथ एक आदमी अंदर आ रहे थे। कल्याणी जी ने उस लड़के को देखा और मुस्कुराते हुए कहा— "अरे बेटा, तुम आ गए! तुम्हें मालूम है मैंने तुम्हें कितना मिस किया?" इतना बोलकर कल्याणी जी ने उस लड़के को गले लगा लिया।
उस लड़के ने पहले कल्याणी जी के पैर छू लिए और फिर उनके गले लग गया— "जी मॉम, आपने इतनी शिद्दत से मुझे याद किया था, तभी तो आ गया!"
कल्याणी जी ने उस लड़के के कान को पकड़कर मरोड़ते हुए कहा— "अच्छा जी, और पिछले पाँच साल से याद कर रही थी, तब क्यों नहीं आए तुम, रेयांश?"
रेयांश ने कल्याणी जी को देखा और "सॉरी मॉम," बोलकर सोफे पर बैठ गया। जैसे ही वह सोफे पर बैठा, तभी कल्याणी जी की नज़र उसके सर की चोट पर गई। उन्होंने रेयांश के सर पर हाथ रखकर बड़े ही आराम से पूछा— "तुझे चोट कैसे लगी बेटा? तू ठीक है ना? क्या हुआ तेरे साथ? किसी से हाथापाई करके आया है क्या...?"
रेयांश ने कल्याणी जी को देखा और कहा— "मॉम...? हाथापाई ही नहीं हुई है, लेकिन लखनऊ में ऐसे ही वेलकम होता है। देखो ना, इसका निशान भी तो होना चाहिए। सबको पता चलना चाहिए ना कि मेरा वेलकम हुआ है।" इतना बोलकर रेयांश ने अपने पास में बैठी ध्रुवा की तरफ़ देखा।
कल्याणी जी ने सोफे पर बैठे अपने पति मानस जी की तरफ़ देखा और बड़े ही आराम से सोफे पर बैठकर कहा— "आपको पता है मानस, आपकी लाड़ली बेटी आजकल मेरा नाम लेने लगी है और बाहर भी बहुत घूमने लगी है। आपको तो सब पता है ना, बाहर कितना कुछ चल रहा है। सोचो अगर किसी ने किडनैप कर लिया या फिर वह लड़की—क्या नाम है इसका? हाँ, वह मालिका—अगर उसने मेरी बच्ची को उठा लिया, मार दिया तो मानस, आप इसे समझाएँ!"
मानस जी ने तारा को देखा तो तारा भागकर उनके पास आकर बैठ गई और उनके कंधे पर अपना सर रखकर बोली— "आपको मालूम है ये मुझे कहीं नहीं जाने देती, और मुझे कुछ भी नहीं होगा। और ये उस मालिका को बुरा क्यों बोल रही है? वो तो गंदे लोगों को मारती है ना, पापा!"
कल्याणी जी—"बस, बहस करवा लो या ड्रामा, मगर माँ की बात तो सुननी ही नहीं! मैं तुम्हारा बुरा थोड़ी चाहूंगी? तुम्हारी माँ हूँ, तुम्हारे भले के लिए बोलती हूँ। वह लड़की चाहे बुरे लोगों को मारती हो, लेकिन मुझे बिल्कुल नहीं पसंद! ऐसे लोगों का कोई भरोसा नहीं है!"
ध्रुवा बहुत ध्यान से कल्याणी जी की बात सुन रही थी। उसने अपने फ़ोन का गाना बंद कर दिए थे और अपने ईयरफ़ोन को निकालकर कंधे में डाल लिया था। कल्याणी जी की एक-एक बात उसके दिमाग में बैठ रही थी। उसने एक नज़र कल्याणी जी को देखा और बिना किसी भाव के कहा— "आई थिंक तारा इज़ राइट आंटी। वह लड़की बुरे लोगों को मार रही है, पर हमारी तारा तो है ही बहुत प्यारी। तारा क्या वह किसी को क्यों कुछ नुकसान करेगी? अब तक हम इतने सालों से सुनते आ रहे हैं कि वह लड़की सिर्फ़ बुरे लोगों को मार रही है! इसलिए उसकी वजह से आप तारा पर रोक-टोक नहीं लगा सकती!"
कल्याणी जी ने ध्रुवा की बात सुनी और थोड़े से गुस्से से कहा— "मैं सब जानती हूँ, तुम तो रहने दो। तुम बड़ी हो, तारा बच्ची है। तुम तो सिर्फ़ हाथापाई करना जानती हो। अगर तुम कभी किसी प्रॉब्लम में पढ़ भी जाओगी तो तुम आराम से लड़ सकती हो, लेकिन यह नहीं लड़ सकती है ना, यह तो डर जाती है।" कल्याणी जी के यह बोलते ही तारा ने उनकी ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा— "माँ, आप ध्रुवा पर क्यों गुस्सा हो रही है? उसने तो सही कहा है ना? अच्छा, चलिए ठीक है, मैं आपके लिए, अब से मैं अकेले कहीं नहीं जाऊंगी। अब तो भाई आ गए ना, मैं उनके साथ जाया करूंगी, मुझे जहाँ भी जाना होगा। अब तो आप गुस्सा छोड़ दीजिए!"
रेयांश ने तारा की बात सुनी और उसके पास जाकर उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा— "तारा सही बोल रही है मॉम, मैं अब हमेशा इसके साथ रहूँगा। इसे कुछ नहीं होगा। इसे तो क्या, किसी को कुछ नहीं होगा!"
कल्याणी जी ने रेयांश को देखा और गुस्से से कहा— "क्यों? तू कहीं का कोई पुलिस वाला है या फिर कोई गुंडा है? बता तो ऐसा क्या करोगे जो तारा को या किसी को कुछ नहीं होने देगा!"
कल्याणी जी के बोलते ही मानस जी ने एक नज़र रेयांश को देखा, जो सिर्फ़ कल्याणी जी को देख रहा था। उन्होंने कल्याणी जी की ओर देखकर बड़े ही आराम से कहा— "शांत हो जाओ, तुम बच्चों पर क्यों चिल्ला रही हो? और आज क्या ऐसे डाँट-डाँट कर ही पेट भर दोगी हमारा? भूख लग रही है यार, डिनर लगा दो!"
कल्याणी जी सोफे पर से उठी और वहाँ से जाते हुए बोली— "ठीक है, आप हाथ-मुँह धो लीजिए, हम खाना लगा देते हैं। और रेयांश, तुम अभी क्या यहीं बैठे रहोगे? जाओ जाकर पहले पट्टी करो अपने सर पर, देखो अभी भी खून निकल रहा है।" कल्याणी जी के यह बोलते ही रेयांश ने अपने सर पर हाथ लगाया और वापस ध्रुवा की तरफ़ देखा, जो अभी भी बेफ़िक्र होकर बैठी हुई थी। ध्रुवा को देखकर रेयांश को चिढ़ हो रही थी क्योंकि उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस लड़की की वजह से उसे चोट लगी है, उस लड़की ने एक बार भी ना तो उससे सॉरी बोला था और ना ही उसने उसकी तरफ़ देखा था!
क्रमशः...
कल्याणी जी सोफे से उठीं और जाते हुए बोलीं, "ठीक है, आप हाथ-मुँह धो लीजिए। हम खाना लगा देते हैं। और रेयांश, तुम अभी यहीं बैठे रहोगे? जाओ, जाकर पहले पट्टी करो अपने सर पर। देखो, अभी भी खून निकल रहा है।"
कल्याणी जी के यह बोलते ही रेयांश ने अपने सर पर हाथ लगाया और ध्रुवा की तरफ देखा। ध्रुवा बेफिक्र बैठी हुई थी। ध्रुवा को देखकर रेयांश को चिढ़ हो रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस लड़की की वजह से उसे चोट लगी है, उसने न तो उससे माफ़ी माँगी और न ही उसकी तरफ देखा।
ध्रुवा वहाँ से उठकर ऊपर जाने लगी थी कि मानस जी ने उसे रोकते हुए कहा, "रुक जाओ ध्रुवा, डिनर करके जाना। तुम भी आ जाओ!"
ध्रुवा मानस जी के बोलते ही रुक गई। उसने उनकी तरफ देखकर कहा, "बस, मैं आती हूँ दो मिनट में।" इतना बोलकर वह ऊपर चली गई।
तारा और रेयांश भी ऊपर चले गए। रेयांश का कमरा तारा के कमरे के बगल में था। वह कमरे में गया। तारा भी उसके लिए दवा लेकर आ गई। उसने उसके सर पर दवा लगाकर एक छोटी सी बैंडेज लगा दी। बैंडेज लगाते ही रेयांश ने उसकी ओर देखकर कहा, "ये लड़की यहीं रहती है...? कुछ अजीब नहीं है...?"
तारा: "मुझे तो नहीं लगता। खैर, मुझे कल कॉलेज जाना है। वैसे, आपने कौन सी कॉलेज में जाना है...?"
रेयांश: "तुझे क्यों बताऊँ?" इतना बोलकर रेयांश वहाँ से चला गया।
ध्रुवा किसी को फ़ोन कर रही थी, लेकिन सामने से किसी ने फ़ोन नहीं उठाया। उसने फ़ोन अपने हाथ में लिया और वापस नीचे आ गई। नीचे आकर देखा तो सब लोग डिनर करने बैठ गए थे। ध्रुवा भी आकर तारा के बगल में बैठ गई। तभी मानस जी ने कहा, "तुम इस शहर में ही क्यों आई हो...? मतलब, किसी वजह से या फिर कुछ है यहाँ?"
ध्रुवा ने मानस जी की बात सुनी और कहा, "कुछ नहीं, बस यूँ ही मुझे कॉलेज यहीं मिली थी, तो स्टडी के लिए तो आना ही था।" इतना बोलकर ध्रुवा चुप हो गई।
कल्याणी जी ने ध्रुवा को देखा और कहा, "तुमने कभी बताया नहीं तुम्हारी फैमिली में कौन-कौन है!"
कल्याणी जी के बोलते ही ध्रुवा के हाथ खाने पर रुक गए, लेकिन उसके चेहरे के भाव नहीं बदले। उसने कल्याणी जी की ओर देखा और अपने एक हाथ की मुट्ठी को भींचते हुए कहा, "कोई नहीं है..."
सबने खाना खाया और अपने-अपने कमरों में सोने चले गए।
यह था कपूर हाउस। मानस जी, जो पेशे से जज हैं, उनकी पत्नी हाउसवाइफ हैं, और बेटी तारा अभी कॉलेज में फर्स्ट ईयर में है। बेटा रेयांश बाहर से पढ़कर आया है। अभी इतना ही आगे और जानने को मिलेगा।
एक कमरे में अंधेरा था। उसमें कोई बेड पर बैठा किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था। बेड पर बैठी उस काली परछाई ने अपने फ़ोन पर किसी से थोड़े गुस्से भरी आवाज़ में कहा, "मैंने तुमसे एक छोटा सा काम बोला था, वह भी नहीं हो पा रहा। मुझे कुछ नहीं सुनना। लास्ट दो दिन हैं तुम्हारे पास। उस इंसान का पता लगाओ, समझे ना? और वह जहाँ भी है, उसे हमारे अड्डे पर लेकर आओ।" इतना बोलकर उस परछाई ने अपना फ़ोन काट दिया।
अगली सुबह...
ध्रुवा अपने समय के हिसाब से 4:00 बजे उठ चुकी थी। उसने एक नज़र घड़ी में देखी और अपने इयरफ़ोन्स लिए और फ़ोन को जेब में रखकर घर से बाहर निकल गई। वह घर से बाहर बने गार्डन में आई और इधर-उधर जॉगिंग करने लगी। यह अक्सर ध्रुवा का जॉगिंग टाइम होता था। उसने कुछ देर गार्डन में जॉगिंग की और फिर वहाँ से बाहर चली गई। बाहर रोड पर जॉगिंग करते हुए इधर-उधर देख रही थी। पूरा रास्ता सुनसान था। मानो जैसे सुबह के 4:00 बजे भी कोई ना उठा हो। चाँद की रोशनी हल्की-हल्की थी।
ध्रुवा जॉगिंग से वापस आ गई थी। उसने टाइम देखा तो 5 बजने में ज़्यादा ही वक़्त बच चुका था। वह अपने कमरे में आकर जल्दी से तैयार होकर बैठ गई। उसने वापस किसी को फ़ोन किया, लेकिन सामने से फ़ोन का कोई जवाब नहीं आया। उसने फ़ोन को जोर से बेड पर पटका और कमरे से निकलकर बाहर बालकनी में आ गई। बालकनी में आकर उसने अपने सर पर हाथ रखा और इधर-उधर बालकनी में घूमने लगी। तभी उसकी नज़र नीचे गार्डन में एक्सरसाइज़ कर रहे रेयांश पर गई। रेयांश की नज़र जैसे ही ध्रुवा पर गई, ध्रुवा ने तुरंत अपनी नज़र हटा ली। उसने एक बार भी रेयांश को नहीं देखा और वहाँ से अपने कमरे में आ गई। उसने टेबल पर से अपनी किताब देखी और किताबें पढ़ने लगी।
घर में सब लोग उठ चुके थे। कल्याणी जी सुबह-सुबह रसोई में लगी हुई थीं। चाहे मानस जी जज थे, उनके पास पैसा था, लेकिन कल्याणी जी अपने रसोई का काम खुद करती थीं। उनके घर में नौकर भी थे, लेकिन सिर्फ़ बाहर का काम या फिर घर का काम करने के लिए। रसोई का काम हमेशा कल्याणी जी खुद ही संभालती थीं और उनका यह शौक था। अभी भी वह सबके लिए सुबह-सुबह नाश्ता बना रही थीं।
मानस जी सोफे पर बैठकर न्यूज़पेपर पढ़ रहे थे। उन्होंने जैसे ही न्यूज़पेपर की हेडलाइन पढ़ी, उनकी आँखें बड़ी हो गईं। उन्हें यूँ शॉक में देखकर कल्याणी जी, जो कि उनके लिए चाय रखने आई थीं, उन्होंने उनकी ओर देखकर सोफे पर बैठते हुए कहा, "सुबह-सुबह आपने ऐसा क्या देख लिया जो चेहरे के भाव ही बदल गए...?"
क्रमशः...
मानस सोफे पर बैठकर समाचार-पत्र पढ़ रहे थे। हेडलाइन पढ़ते ही उनकी आँखें फैल गईं। उन्हें इस प्रकार स्तब्ध देख कल्याणी जी, जो उनके लिए चाय लेकर आई थीं, सोफे पर बैठते हुए बोलीं— "सुबह-सुबह आपने ऐसा क्या देख लिया कि चेहरे के भाव ही बदल गए...?"
मानस जी ने कल्याणी जी की बात सुनी और जवाब दिया—"तुम नहीं जानती, लेकिन इस मल्लिका ने बहुत कुछ बिगाड़ रखा है। तुम्हें पता है, इसने परसों एक और इंसान को मार दिया और अब सुनने में आ रहा है कि शास्त्री जी का कोई पता नहीं है! कल रात से वो गायब हैं!"
कल्याणी जी ने मानस जी की बात सुनी और उनके हाथ से समाचार-पत्र छीनकर मेज़ पर रखते हुए कहा—"हे राम! यह लड़की पता नहीं क्या चाहती है। पूरे लखनऊ में हल्ला मचा रखा है। मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आता। देखो जी, मैं आपसे बोल रही हूँ, आप इन मामलों से दूर रहना। और तारा और रेयांश से भी बोल देना। मुझे यह सब मारपीट, खून-खराबा पसंद नहीं। अगर किसी को कुछ हो गया तो इसलिए मैं बोल रही हूँ, इन सब मामलों में पड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं जानती हूँ शास्त्री जी आपके बहुत अच्छे दोस्त हैं!"
कल्याणी जी के इतना कहते ही ऊपर सीढ़ियों से आ रही ध्रुवा के कदम वहीं रुक गए। उसने उनकी सारी बातें सुन ली थीं। वह नीचे आई और सोफे पर बैठ गई।
कल्याणी जी ने ध्रुवा को देखा और बोलीं—"तारा तुम्हारे साथ कॉलेज जा रही है ना? तुम उसका थोड़ा ध्यान रखना। उसे किसी से उलझने मत देना, और किसी अनजान इंसान से तो बिल्कुल भी बात मत करने देना!"
ध्रुवा ने कल्याणी जी को देखा और बिना किसी भाव के कहा—"आजकल अजनबी की ज़रूरत नहीं है। अपने ही साँप की तरह डस जाते हैं। उन पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए! खैर, आप बताएँ, तारा कहाँ है? हमें 8:00 बजे कॉलेज पहुँचना है और वह अभी तक नहीं आई!"
"और तुमसे किसने कहा? मैं अभी तक तैयार होकर नहीं आई।" ध्रुवा ने जैसे ही यह आवाज़ सुनी, उसने सीढ़ियों की ओर देखा जहाँ एक सीढ़ी पर तारा खड़ी थी और उसके ठीक पीछे वाली सीढ़ी पर रेयांश खड़ा हुआ था।
ध्रुवा ने तारा को देखा और मुस्कुराते हुए सोफे से खड़े होते हुए कहा—"जल्दी से नाश्ता करो और चलो। आधा घंटा हमें पहुँचने में लग जाएगा।" इतना बोल ध्रुवा वहाँ से उठकर नाश्ते की मेज़ पर आकर बैठ गई।
सब लोग नाश्ता कर रहे थे। ध्रुवा ने एक नज़र सबको देखा और अपने फ़ोन में कुछ देखकर पढ़ते हुए कहा—"मल्लिका आदित्य प्रताप ने फिर से किसी को मार दिया। आई थिंक होगा कोई जो गैरकानूनी काम करता होगा!"
सबने जैसे ही ध्रुवा के मुँह से यह बात सुनी, मानस जी ने कुछ सोचते हुए कहा—"समझ नहीं आता यह लड़की क्या कर रही है। भाई, कानून बना है सज़ा देने के लिए। अब कानून में निर्दोष लोगों को कभी सज़ा नहीं देता। यह लड़की सामने आए और सबूतों के साथ हमें दे, तो हम सज़ा देते हैं। गुनाहगारों को सज़ा देने के लिए पुलिस और कानून है। इस लड़की ने अपने हाथ में सब कुछ लेकर खुद की ज़िन्दगी खराब कर रखी है!"
ध्रुवा ने मानस जी की बात सुनी और उनकी ओर देखकर कहा—"कानून...? अंकल, कानून कभी-कभी निर्दोष लोगों को भी सज़ा दे देता है, और वो लड़की जो कर रही है, मेरे अकॉर्डिंग बहुत अच्छा कर रही है, क्योंकि आपका कानून कुछ नहीं करता! सालों लग जाते हैं केस चलते हुए और बेचारे प्लेन्टिफ़, उनका क्या? जब उन्हें इंसाफ़ नहीं मिलता तो वो तो यूँ ही मर जाते हैं! इसलिए अंकल, ज़रूरी नहीं हर इंसान को जस्टिस मिले। इसलिए, खैर, तारा, तुम्हारा नाश्ता हो गया तो चलें...?" ध्रुवा ने तारा की ओर देखकर कहा।
रेयांश, जो कब से ध्रुवा और मानस जी की बातें सुन रहा था, उसने ध्रुवा की ओर देखकर कहा—"कुछ चीज़ों में टाइम लगता है, इसलिए... बाकी, खुद कानून को हाथ में लोगे तो गलत है। कानून का काम है, वो खुद कर लेगी। और कानून कभी भी निर्दोष लोगों को सज़ा नहीं देता!"
ध्रुवा ने रेयांश की बात सुनी और उसे पूरी तरह से अनदेखा करते हुए वहाँ से उठकर चली गई। उसके पीछे-पीछे तारा भी चली गई। ध्रुवा ने बाहर आकर स्कूटी उठाई और उस पर बैठ गई। तारा भी उसके पीछे आकर बैठ गई। तारा के बैठते ही ध्रुवा ने स्कूटी चला दी। ध्रुवा अपनी धुन में स्कूटी चला रही थी, तभी तारा ने उसे दोनों हाथों से कमर से पकड़ लिया। तारा के पकड़ते ही ध्रुवा ने बिना किसी भाव के कहा—"टेंशन मत लो, मैं तुम्हें नहीं गिराऊँगी!"
ध्रुवा के यह बात बोलते ही तारा ने स्कूटी में लगे शीशे की ओर देखा जिसमें ध्रुवा का चेहरा दिखाई दे रहा था और बोली—"मैं आज ही थोड़ा ना बैठी हूँ आपके साथ, पिछले 1 महीने से मैं आपके साथ बैठी हूँ। मुझे तो नहीं लगता डर, आप ना गिर जाओ इसलिए मैंने आपको पकड़ लिया।" इतना बोल तारा ने आँख मार दी। ध्रुवा ने अपनी गर्दन को ना में हिलाया और स्कूटी चलाने लगी। कुछ ही देर में वे दोनों एक बहुत बड़ी बिल्डिंग के सामने थीं। ध्रुवा ने स्कूटी रोकी और अपना हेलमेट उतारकर स्कूटी में ही रख दिया। उसने उस यूनिवर्सिटी का नाम पढ़ा जो बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था—
"लखनऊ यूनिवर्सिटी..."
ध्रुवा ने उस यूनिवर्सिटी को देखा और अपनी स्कूटी पार्क करके अंदर चली गई। तारा भी उसके साथ थी। तारा ने अपनी नज़र इधर-उधर घुमाई तो देखा अभी तक यूनिवर्सिटी में ज़्यादा बच्चे नहीं आए थे और जो आए थे, सब बाग़ में बैठे हुए थे।
क्रमशः
ध्रुवा ने उस यूनिवर्सिटी को देखा और अपनी स्कूटी पार्क करके अंदर चली गई। उसके साथ तारा भी थी। तारा भी उसी के साथ जा रही थी। तारा ने अपनी नज़र इधर-उधर घुमाई तो देखा कि अभी तक यूनिवर्सिटी में ज़्यादा बच्चे नहीं आए थे और जो आए थे, सब गार्डन में बैठे हुए थे। ध्रुवा ने एक नज़र तारा को देखा और वहीं गार्डन में लगी बेंच पर जाकर बैठ गई। तारा ने ध्रुवा को देखा और उसके बगल में बैठते हुए बोली—
"अब हम यहां क्या कर रहे हैं? तुम्हें हमेशा जल्दी रहती है। देखो कितनी जल्दी लेकर आ गई हो! बच्चे भी नहीं आए अभी तक और मेरा फ्रेंड सर्कल भी नहीं आया।" इतना बोल तारा उदास हो गई।
ध्रुवा ने तारा को देखा और एक नज़र चारों ओर देखने लगी। जैसे ही उसने कॉलेज की पार्किंग की ओर नज़रें घुमाईं, उधर से आते हुए कुछ बच्चे दिखाई दिए! उसने तारा के कंधे पर हाथ रखा और उसके चेहरे को पकड़कर उसकी ओर घुमा दिया। जैसे ही तारा ने अपने दोस्तों को आता देखा, वह ध्रुवा को छोड़कर उनके पास चली गई। उसके जाते ही ध्रुवा ने अपना सिर बेंच से टिका लिया और अपनी आँखें बंद कर लीं। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। तभी उसे कुछ धुंधली यादें याद आने लगीं—
"मैंने कुछ नहीं किया, मैं निर्दोष हूँ! मैंने कुछ नहीं किया!"
ध्रुवा ने तुरंत अपनी आँखें खोल लीं। इस सर्दी के मौसम में भी उसके चेहरे पर पसीने आ गए थे। उसने आँखें खोलकर इधर-उधर देखा तो यूनिवर्सिटी में बहुत बच्चे आ गए थे। उसने खुद को एक ही पल में सामान्य किया और जैसे ही वह वहाँ से जाने को हुई, तभी एक लड़की भागकर उसके पास आई। उसने ध्रुवा का हाथ पकड़ा और जल्दी-जल्दी में साँस लेते हुए कहा—
"ध्रुवा दी! वो लोग फिर से रैगिंग कर रहे हैं! प्लीज़ चलो ना!"
ध्रुवा ने उस लड़की की बात सुनी और बिना कुछ बोले उसके साथ चली गई।
वहीं कॉलेज के अंदर एक साइड में बहुत भीड़ लगी हुई थी। एक लड़की बीचों-बीच खड़ी हुई थी, जिसने आँखों पर चश्मा लगाया हुआ था और सिंपल सी बालों की चोटी बनाई हुई थी। उसके चेहरे पर डर साफ़ दिखाई दे रहा था! उसके आस-पास बहुत सारे लड़के-लड़कियाँ खड़े थे, लेकिन बोलने की हिम्मत किसी की नहीं थी। वहीं एक चेयर रखी हुई थी, जिस पर एक लड़का बैठा हुआ था। उसके पीछे तीन लड़के और उनके साथ दो लड़कियाँ खड़ी हुई थीं।
उस चेयर पर बैठे लड़के ने उस लड़की को देखा और कहा—
"अपना नाम बताओ...?"
वह लड़की इतने लोगों की नज़रें खुद पर महसूस करके कांप रही थी। उसने हकलाते हुए कहा—
"ग...ग..."
वह अभी इतना ही बोल पाई थी कि तभी उनमें से एक लड़की ने कहा—
"लगता है बेचारी ऐसी ही हकलाकर बोलती है, गूंगी टाइप!" उसके इतना बोलते ही सब लोग हँसने लगे।
उस लड़के ने उस लड़की की बात सुनी और कहा—
"चुप करो सिया! वो अपना नाम बता रही है ना!" उस लड़की की ओर देखकर, "और तुम...बोलो भी अपना नाम! तुम्हें क्या नाम बताने में पूरा दिन लगेगा...?"
उस लड़की ने सबकी बात सुनी और धीरे से कहा—
"ग...ग...गौरी!"
उस लड़के ने एक स्माइल की और उस लड़की की ओर देखकर वापस बोला—
"ठीक है, इस लड़के को किस करो..." इतना बोल उस लड़के ने अपने पीछे खड़े एक लड़के को पकड़कर आगे कर दिया! वह लड़का मुस्कुराते हुए गौरी के पास आ गया था।
सिया ने उस लड़के को देखा और अपने आगे चेयर पर बैठे हुए लड़के के कंधे पर हाथ रखकर उसके कान में कहा—
"जल्दी करो आरव, डीन सर भी आ सकते हैं!"
आरव ने सिया की बात सुनी और अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए कहा—
"डोंट वरी बेब, चील करो और सामने देखो!" इतना बोल आरव ने सामने देखा तो गौरी अभी भी डरी हुई खड़ी हुई थी। उसके पास वह लड़का खड़ा हुआ था। आरव ने उस लड़के को देखकर कहा—
"क्या यार कृष! एक लड़की तुझे किस नहीं कर रही...? क्या ही करेगा तू!" इतना बोल आरव खड़ा हुआ और गौरी के पास आ गया। उसने गौरी का हाथ पकड़ा और कृष के पास ले गया और उसके बगल में आकर बोला—
"देखो जल्दी करो! अगर तुमने आज कर दिया तो तुम्हें हम परेशान नहीं करेंगे, लेकिन अगर तुमने नहीं किया तो रोज़ तुम्हारे साथ कुछ भी हो सकता है। जल्दी करो!"
गौरी पूरी तरह से डर चुकी थी। उसकी आँखों से लगभग आँसू निकलकर बाहर आ ही गिर रहे थे। उसने एक नज़र सबको देखा और आरव की ओर देखकर कहा—
"सर प्लीज़, आप कुछ और बता दीजिए! ये मुझसे नहीं होगा!"
आरव—"नहीं होगा...?" इतना बोल आरव उसके कंधे के पास आया और जैसे ही उसके करीब आया कि गौरी ने अपने कदम पीछे ले लिए! आरव ने गुस्से से उसे घूरा और उसकी ओर देखकर कहा—
"कृष, तू तो ले सकता है ना! चल के!" आरव के बोलते ही कृष आगे बढ़ गया था! उसने गौरी का हाथ पकड़ा और बाजू पकड़कर अपने करीब कर लिया। गौरी अपने हाथ को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी।
सब लोग यह सब आराम से देख रहे थे। तभी तारा बीच में आई और गौरी को कृष से दूर करते हुए बोली—
"आरव सर, प्लीज़ इसे रहने दो! देखो ना वो कितनी डरी हुई है! अगर आप नहीं मानेंगे तो मैं डीन सर से आप सब की कंप्लेंट कर दूँगी!"
निया ने तारा की बात सुनी और आरव की ओर देखकर कहा—
"इस लड़की की इतनी हिम्मत कि हमसे बोले और हमें धमकी दे! देखा आरव, ये लड़की कितना बोल रही है!"
आरव ने निया की बात सुनी और आगे बढ़कर तारा का हाथ पकड़ लिया और उसकी ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोला—
"मैंने तुम्हारे साथ भी कुछ नहीं किया..."
निया ने तारा की बात सुनी और आरव की ओर देखकर कहा, "ये लड़की की इतनी हिम्मत! हमसे बोले और हमें धमकी दे! देखा आरव, ये लड़की कितना बोल रही है!"
"आरव ने निया की बात सुनी और आगे बढ़कर तारा का हाथ पकड़ लिया। उसकी ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोला, "मैंने तुम्हारे साथ भी कुछ नहीं किया, तो ऐसा करते हैं, उसे जाने देते हैं। तुम उसकी जगह किश कर लो!"
"आरव के ये बोलते ही तारा ने उसके सीने पर अपना एक हाथ रखा और उसे धक्का दिया। लेकिन आरव एक-दो कदम ही आगे हुआ था। उसने वापस से कसकर तारा का हाथ पकड़ा। जैसे ही उसके चेहरे के करीब जाने को हुआ, कि तभी उसे अहसास हुआ जैसे किसी ने उसकी गर्दन पकड़कर वहीं रोक दी हो।"
उसकी गर्दन इतनी टाइट पकड़ी हुई थी कि वह पीछे घूम भी नहीं पा रहा था। उसने तारा को छोड़ा और अपने हाथ से पीछे खड़े इंसान के हाथ को पकड़ा। उसे आगे करके अपनी गर्दन छुड़वा ली। आरव ने अपने आगे देखा तो ध्रुवा खड़ी हुई थी। उसकी आँखों में बेहद गुस्सा था।
आरव ने अपनी गर्दन से हाथ हटाया और नीचे होकर तुरंत घूम गया। अचानक घूमने की वजह से ध्रुवा का हाथ उसकी गर्दन से हट गया था। उसने अपने आगे देखा तो ध्रुवा खड़ी हुई थी, उसकी आँखों में बेहिसाब गुस्सा था; गुस्से से उसकी आँखें लाल हो गई थीं। उसने आरव को देखा और उसका हाथ पकड़कर उसकी ही पीठ से लगा दिया। और उसको धमकाते हुए कहा, "इनसे दूर रहना, वरना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा। और तुम अपनी इन हरकतों से बाज़ हो जाओ, समझे? वरना अच्छा नहीं होगा।" इतना बोल ध्रुवा ने आरव को जोर से धक्का देकर छोड़ दिया।
तभी सबके कानों में डीन सर की आवाज आई जो कि उनकी ही तरफ आ रहे थे। उनको आता देखकर सारे बच्चे अपनी-अपनी जगह से चले गए थे। ध्रुवा ने तारा और गौरी का हाथ पकड़ा और उन्हें लेकर वहाँ से चली गई।
कृष, सिया, निया और उज्जवल और रमन सब आरव के पास आ गए थे। आरव ने अपना हाथ देखा जिस पर ध्रुवा की उंगलियों के निशान हो गए थे। उसने एक नज़र जाती हुई ध्रुवा को देखा और बाजू से अपना मुँह साफ़ किया। एक अलग ही तरह से मुस्कुराते हुए कृष के कंधे पर हाथ रखकर बोला, "लड़की बड़ी कमाल की है ये तो! बोले तो एकदम मेरी टाइप की!"
ध्रुवा वहाँ से तारा और गौरी को पकड़कर ले आई थी। उसने अपने पास खड़ी हुई तारा को देखा और उसे घूरते हुए कहा, "कहा था ना उससे दूर रहना...? तुम समझती क्यों नहीं हो?"
तारा ने ध्रुवा की बात सुनी और अपनी गर्दन को ऊँचा करके उसे देखते हुए बोली, "वो सीनियर उसे परेशान कर रहे थे! तो क्या वहाँ खड़े होकर वो सब देखती? मैं इतनी भी डरपोक नहीं हूँ कि उनसे डरूँ। और मेरा तो मन कर रहा था उस आरव का सर फोड़ दूँ!"
ध्रुवा लगातार तारा को घूर रही थी। उसने अपने दोनों हाथ बाँध लिए थे। तभी गौरी ने दोनों को देखते हुए कहा, "सॉरी, वो मेरी वजह से आप लोगों को। लेकिन क्या सच में ये लोग ऐसे ही हैं? छी! कितनी गंदी तरह से रैगिंग कर रहे थे!"
ध्रुवा के साथ तारा, गौरी, और वो लड़की भी थी जो कुछ देर पहले ध्रुवा को बुलाने आई थी, और भी कुछ लोग थे।
मानवी: "हाँ ध्रुवा दीदी! तारा ने तो सही किया ना! आपने ही तो कहा था ना हर चीज़ के लिए लड़ना पड़ता है, तो हम चुप तो नहीं रह सकते ना। हम आपके साथ रहते हैं इसलिए वो हम सबको कुछ नहीं बोलते!"
ध्रुवा ने सबको देखा और कहा, "क्लास में जाओ।" इतना बोल खुद भी वहाँ से चली गई।
गौरी ने जाती हुई ध्रुवा को देखा और कहा, "ये नॉर्मल है या गुस्सा होकर गई है?"
मानवी ने गौरी की बात सुनी और कहा, "मैंने तो ऐसे ही देखा है इन्हें अब तक।"
तारा ने सबकी बातों पर विराम लगाते हुए कहा, "क्लास में चलो, वरना लेट हो जाएँगे!" इतना बोलकर सब लोग क्लास के लिए निकल गए थे।
तो वहीँ ध्रुवा क्लास में आ गई थी। उसने देखा क्लास में तो काफ़ी शोर हो रहा था, लेकिन जैसे ही वो अंदर आई, एक पल तो बिल्कुल खामोशी छा गई थी। उसने एक नज़र सबको देखा और एक जगह आकर सबसे आगे बैठ गई। उसकी आँखें एकदम लाल हो रखी थीं। उसने अपने फ़ोन में कुछ देखा और एक मैसेज टाइप करके छोड़ दिया।
उसने अपनी आँखें बंद कीं और सीट से टिककर बैठ गई थी। उसे अभी दो ही मिनट हुए थे कि तभी क्लास में प्रोफ़ेसर आ गए। सब बच्चे चुप हो गए थे। मिस्टर अग्निहोत्री की क्लास सब अभी बहुत अच्छे से लेते थे, एकदम शांत होकर, क्योंकि वो काफ़ी गुस्से वाले थे। ऐसे ही दो क्लास लेने के बाद सब क्लास रूम से निकलकर कैंपस में आ गए थे। तो कुछ बच्चे सीढ़ियों पर बैठे हुए थे। ध्रुवा ने अपना बैग बंद किया और अपना फ़ोन देखने लगी। उसकी नज़र फ़ोन में ही थी, तभी उसका सर किसी से टकरा गया। उसने फ़ोन को बंद किया और अपनी नज़रें ऊँची करके देखा तो सामने आरव खड़ा हुआ था। (5’8 की हाइट, गोरा सा रंग, बियर्ड और जींस और जैकेट में बहुत हैंडसम लग रहा था, उसकी उम्र लगभग 25 साल होगी,) ध्रुवा ने उसे देखा और साइड से जाने लगी कि तभी उसने उसका हाथ पकड़ लिया। ध्रुवा ने आरव को घूरकर देखा।
क्रमशः
ध्रुवा ने अपना बैग बंद किया और अपना फ़ोन देखने लगी। उसकी नज़र फ़ोन में ही थी कि तभी उसका सिर किसी से टकरा गया। उसने फ़ोन बंद किया और अपनी नज़रें ऊँची करके देखा तो सामने आरव खड़ा हुआ था। " (5’8 की हाइट, गोरा सा रंग, दाढ़ी और जींस और जैकेट में बहुत हैंडसम लग रहा था, उसकी उम्र लगभग 25 साल होगी,) ध्रुवा ने उसे देखा और साइड से जाने लगी, कि तभी उसने उसका हाथ पकड़ लिया। ध्रुवा ने आरव को घूर कर देखा और अपना हाथ एक ही झटके में छुड़ाते हुए कहा – "फ़ालतू के मज़ाक मत किया करो, वरना मुझे तुम्हारी जान लेने में एक मिनट भी नहीं लगेगी!"
आरव ने ध्रुवा की बात सुनी और मुस्कुराते हुए कहा – "जान तो तुम अभी भी लेती हो! तुम जब भी युग की आँखों में गुस्सा लिए मुझे घूरती हो तो कसम से लगता है जैसे प्यारे से देख रही हो!"
ध्रुवा ने उसकी बात सुनी और उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे जोर से पीछे धक्का दे दिया और उसे उंगली दिखाकर बोली – "मुझसे मत उलझो, वरना पछताओगे!" इतना बोलकर ध्रुवा वहाँ से निकल कर नीचे आ गई। उसने इधर-उधर नज़रें घुमाईं तो उसे एक साइड में खाली जगह दिख गई। वह उस जगह आई और वहाँ आकर चेयर पर बैठ गई। उसने देखा तो उसके आस-पास कोई नहीं था। उसने अपना फ़ोन लिया और किसी से बात करने लगी,
लेकिन सामने से किसी ने फ़ोन उठाया ही नहीं। उसके चेहरे पर गुस्सा साफ़ दिखाई पड़ रहा था। ऊपर से ठंड की वजह से वह धूप में बैठी हुई थी, जिससे उसका चेहरा लाल हो गया था।
तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। उसने अपने पीछे देखा तो तारा खड़ी हुई थी, और उसके साथ उसके दोस्त भी, जिनमें से दो लड़के और तीन लड़कियाँ थीं, और अब तो गौरी भी इनही के साथ थी। तारा ने ध्रुवा को देखा और बेंच पर बैठते हुए बोली – "परेशान लग रही हो तुम...? सब ठीक है ना?"
तारा के सवाल को सुनकर ध्रुवा ने उसे देखा और बेंच से सिर लगाकर अपनी आँखें बंद करते हुए कहा – "हाँ, तुम लोग कहीं तो मुझे अकेले रहने दिया करो!"
सबने ध्रुवा की बात सुनी और एक साथ कहा – "बिल्कुल भी नहीं, तुम हमारे साथ रहोगी और हम सब तुम्हारे साथ!"
सबके यह बोलते ही ध्रुवा ने तुरंत अपनी आँखें खोल लीं। उसने सबकी ओर देखा और कहा – "कैंटीन में चलते हैं, भूख लगी है।" इतना बोलकर ध्रुवा उठकर वहाँ से चली गई।
वे सब आए तो पूरा कैंटीन भरा हुआ था। बस खाली थी तो एक टेबल। ध्रुवा ने अपने कदम उसी ओर कर लिए थे, लेकिन बीच में ही उसने सबको देखा और जाने का बोलकर खुद ऑर्डर देने के लिए रुक गई।
तभी आरव की टीम वहाँ आ गई थी। उन्होंने भी वही एक टेबल देखी और आकर जैसे ही बैठने को हुए, तभी तारा और उसके दोस्त उस पर बैठ गए थे।
निया ने उन सबको देखा और अपनी उंगली दिखाते हुए कहा – "उठो यहाँ से! तुम्हारे सीनियर्स खड़े हैं और तुम सब बैठे हुए हो? उठो और दूसरी जगह देख लो!"
तारा ने उन सबको देखा और अपने दोस्तों को उठने के लिए आँखों से मना कर दिया। किसी ने भी निया की बात नहीं सुनी थी। निया ने खुद को इग्नोर होते हुए देखा तो उसने आरव की ओर देखा और कहा – "उठाओ ना इन्हें...?"
आरव कुछ करता उससे पहले, ध्रुवा के लिए जो चेयर खाली थी, उस पर निया बैठने को हुई, कि तभी वह धड़ाम से नीचे गिर गई। उसके नीचे गिरते ही सब लोग उसे देखकर हँसने लगे थे। उसकी इतनी बुरी इंसल्ट आज पहली बार हुई थी। उसने आरव और अपनी टीम की तरफ देखा तो सब शांत थे, लेकिन आरव हँस रहा था। निया जल्दी से खड़ी हुई और पीछे देखा तो ध्रुवा हाथ बाँधे खड़ी हुई थी। निया को समझते देर नहीं लगी, यह ध्रुवा ने ही उसके पीछे से चेयर हटाई है। ध्रुवा ने उसे पूरी तरह से इग्नोर किया और चेयर लेकर बैठ गई थी। निया ने ध्रुवा को देखा और कहा – "तुम्हें... तुम्हें मैं छोड़ूँगी नहीं मैं! तुम जानती हो मैं कौन हूँ, तुमने पंगा लेकर अच्छा नहीं किया!"
ध्रुवा चेयर से खड़ी हुई और हाथ बाँधकर बस निया को देखने लगी। निया के पास खड़े आरव की नज़रें बस ध्रुवा पर थीं। ध्रुवा ने निया को देखा और कहा – "तुम खुद नहीं जानती कि तुम कौन हो...? तुम्हारे फैमिली वाले जानते होंगे ना, तो जाकर उनसे पूछना कि तुम कौन हो! और दूसरी बात, मैंने तुम्हारा पंगा नहीं छेड़ा। किसी ने भी नहीं देखा तो टाइम खराब मत करो और करना है तो खुद का करो।" इतना बोलकर ध्रुवा चेयर पर बैठ गई और अपने कानों में उंगली डालकर तारा की तरफ़ देखकर बोली – "तुम भी डाल लो, वरना किसी की आवाज़ से बहरी हो जाओगी!"
ध्रुवा की बात सुनकर सब लोग हँसने लगे थे। तो वहीँ आरव ने निया का हाथ पकड़ा और उसे वहाँ से ले जाकर दूसरी टेबल पर बैठा दिया जहाँ अभी जगह खाली हुई थी।
निया ने अपनी गुस्से वाली आँखों से घूरते हुए ध्रुवा को देखा और कहा – "इस लड़की को तो मैं छोड़ूँगी नहीं, इसकी वजह से आज मेरी बहुत ज़्यादा बेइज़्ज़ती हुई है, तुम देखती जाओ मैं तुम्हारे साथ क्या करती हूँ!"
आरव के साथ-साथ उसके सभी साथी निया की बात सुनकर उसकी तरफ़ देखने लगे। उसने एक नज़र निया को देखा और अपने पीछे चेयर पर बेफ़िक्र होकर बैठी ध्रुवा को देखा, जिसने चेयर से अपना सिर टिका रखा था और अपने हाथों को बाँधा हुआ था।
तभी रेयांश किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था। उसने अपना फ़ोन देखा और किसी से वापस कहा – "जी सर, मैं आ जाऊँगा!" इतना बोलकर उसने फ़ोन डिस्कनेक्ट किया और जैसे ही पीछे पलटा, कि तभी उसकी नज़र अपने पीछे खड़ी कल्याणी जी पर गई!
क्रमशः
आरव और उसके सभी साथी निया की बात सुनकर उसकी ओर देखने लगे। उसने निया को एक नज़र देखा और फिर पीछे चेयर पर बेफ़िक्र होकर बैठी ध्रुवा को देखा, जिसने अपना सिर चेयर पर टिका रखा था और हाथ बाँध रखे थे।
तो वहीं रेयांश किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था। उसने अपना फ़ोन देखा और कहा—"जी सर, मैं आ जाऊँगा।" इतना बोलकर उसने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया। जैसे ही वह पीछे पलटा, उसकी नज़र पीछे खड़ी कल्याणी जी पर पड़ी। उसने कल्याणी जी को देखा और जैसे ही कुछ बोलने को हुआ, कल्याणी जी ने कहा— "कहाँ जा रहे हो...?"
रेयांश ने कल्याणी जी की बात सुनी और अपना फ़ोन जेब में रखकर कल्याणी जी को कंधे से पकड़ते हुए, उन्हें वहाँ से ले जाते हुए कहा—"अब क्या आपका बेटा यहीं घर में रहेगा...? जॉब के लिए जा रहा हूँ ना! उनका ही फ़ोन था!"
कल्याणी जी ने रेयांश का हाथ अपने कंधे से हटाया और उसकी ओर देखते हुए बोलीं—"कहाँ जा रहा है...? कब जायेगा...? और क्या जॉब है...?"
रेयांश ने कल्याणी जी के इतने सारे सवाल एक साथ सुनकर कहा—"माँ... माँ, सारे सवाल एक साथ ही कर दिए, एक के बाद एक पूछ लेती ना। मैं कल यूनिवर्सिटी जा रहा हूँ। मैंने वहाँ जॉब ली है! प्रोफ़ेसर के तौर पर। इसलिए अब मुँह काम है और अपना काम कीजिए!" इतना बोलकर वह वहाँ से चला गया। जाते हुए उसने एक चैन की साँस ली और चला गया।
लखनऊ में एक बहुत बड़ा घर था। यह एरिया ही काफी अच्छा था; चारों तरफ़ एकदम शांति। आराम से कहा जा सकता था कि यह कोई मामूली लोगों का एरिया नहीं था। इधर जो भी रहता होगा, वह लग्ज़री लाइफ़ जीता होगा। एक बड़ा सा बंगला, जो आगे से बिल्कुल व्हाइट कलर का था, दो मंजिला था। उसके बाहर बहुत बड़ा गार्डन बना हुआ था, जिसमें एक झूला और एक तरफ़ दो चेयर लगी हुई थीं।
उसी घर में एक अधेड़ उम्र का आदमी सोफ़े पर बैठा हुआ था। उसके चेहरे पर एक अजीब भाव था। उसके सामने बैठे लड़के की तरफ़ देखकर उस आदमी ने कहा—"उसे यहाँ क्यों नहीं बुलाते? मैंने कितनी बार कहा है, तुमसे नहीं होता तो उससे मेरी बात करवाओ। मेरी बात को ना कभी नहीं मान सकती वो!"
उस आदमी की बात सुनकर उस लड़के ने अपना फ़ोन साइड में रखते हुए कहा—"वो नहीं आना चाहती पापा, मैंने उससे बहुत बार बोला है। मैं उसे आज ही बात करके समझाता हूँ, अगर वो मानती है तो!"
वे दोनों बात ही कर रहे थे कि तभी दोनों के कान में एक आवाज़ आई—"उसे यहाँ बुलाने की कोई ज़रूरत नहीं है, वो जहाँ है उसे वहीं रहने दो।" यह आवाज़ सुनकर दोनों ने आवाज़ की तरफ़ देखा तो सीढ़ियों पर लगभग तीस साल का एक लड़का खड़ा हुआ था, जिसके चेहरे पर दाढ़ी और आँखों पर चश्मा लगा हुआ था। दोनों ने उसे देखा और कहा—"क्या बोल रहे हो तुम अभिनव बेटा!"
अभिनव ने उस अधेड़ उम्र के आदमी को देखा और उनकी ओर आते हुए कहा—"पापा, जब वो आना ही नहीं चाहती तो बुलाना ही क्यों है...? मत आने दो उसे!" इतना बोलकर वह सोफ़े पर बैठ गया।
"पर भाई, वो अकेली है, हम उसे यूँ भी तो नहीं छोड़ सकते ना, आप तो सब जानते हैं, आपसे क्या छुपा है!" उस लड़के के यह बोलते ही अभिनव ने कहा—"मैं जानता हूँ युवराज! इसलिए बोल रहा हूँ। मैं हमेशा उसके साथ हूँ, लेकिन उसे लाने की ज़रूरत नहीं है!"
"क्यों ज़रूरत नहीं है...? हमारी बच्ची है वो, उसे हमारी ज़रूरत है, और हमको उसकी। उसे ले आओ यहाँ, मुझे उसके साथ रहना है।" यह आवाज़ सुनकर सबने उसकी ओर देखा तो एक अधेड़ उम्र की औरत, जिसने काफी हैवी साड़ी पहनी हुई थी, हाथों में सोने के कंगन और गले में सोने की चैन और मंगलसूत्र, बालों का जूड़ा और चेहरे पर काफी चमक थी। वे बहुत ही सुंदर लग रही थीं। उनके साथ एक नौकर भी खड़ा हुआ था! उन्होंने उसे अपने हाथ में पकड़ी चाय की ट्रे रखने का इशारा किया और उसे जाने को कहा। वो उन सब के पास आ गई।
"बुला लीजिए ना भावेश जी उसे, अभिनव को समझाइए ना!" उन्होंने भावेश जी के पास बैठते हुए कहा।
भावेश जी ने उस औरत को देखा और कहा—"मैंने बहुत बोला है इनसे, श्री आप खुद बोलिए इनसे कि ये हमारी बात सुने!"
श्री ने अभिनव को देखा और कहा—"बेटा, आप मान क्यों नहीं जाते? बहन है वो आपकी, और हम जानते हैं आपसे ज़्यादा प्यार उसे इस दुनियाँ में कोई भी नहीं कर सकता!"
श्री जी ने यह कहा ही था कि तभी युवराज ने मुँह बनाते हुए कहा—"दिस इज़ रॉन्ग मॉम।" आप गलत बोल रही हैं, वो मेरी भी बहन है, मैं भी उससे बहुत प्यार करता हूँ!" युवराज के बोलते ही सबके चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। तभी अभिनव ने अपने पास रखे टीवी के रिमोट से टीवी ऑन किया तो उसमें सिर्फ़ एक ही न्यूज़ आ रही थी।
"लखनऊ शहर के जाने माने मोहक शास्त्री दो दिन से लापता हैं। उन्हें पिछली बार उनके घर से जाते हुए देखा गया था, लेकिन अब हमें पता चला है कि वे दो दिन से ग़ायब हैं। क्या है उनके ग़ायब होने का राज...? जानने के लिए बने रहिए, आपकी अपनी खबरों की खबर के साथ!"
जैसे ही सबने सुना, सबके चेहरे पर परेशानी के भाव आ गए थे। युवराज ने देखते हुए कहा—"ये...ये भी ग़ायब हो गया!"
अभिनव—"हम्मम, मुझे नहीं लगता एमएलए शान्त बैठेगा, ये उसी का आदमी है, ना!"
भावेश जी सब देख रहे थे। उन्होंने अभिनव के पास से टीवी का रिमोट लिया और बंद कर दिया।
अभिनव वहाँ से उठा और जाते हुए कहा...
क्रमशः
सबने जैसे ही सुना, सबके चेहरों पर परेशानी के भाव आ गए। युवराज ने देखते हुए कहा, "ये...ये भी गायब हो गया!"
अभिनव ने कहा, "हम्मम, मुझे नहीं लगता एमएलए शांत बैठेगा। ये उसी का आदमी है, ना!"
भावेश जी सब देख रहे थे। उन्होंने अभिनव के पास से टीवी का रिमोट लिया और बंद कर दिया।
अभिनव वहाँ से उठा और जाते हुए कहा, "मैं ऑफिस जा रहा हूँ! शाम को मिलता हूँ।" इतना बोलकर वह चला गया। युवराज ने कहा, "ओके डैड, मैं भी जा रहा हूँ। मेरा एक केस है, और मुझे कोर्ट जाना है!" इतना बोलकर वह वहाँ से चला गया।
उनके जाते ही श्री ने भावेश जी को देखा और उनके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "सब कुछ बिखर के रह गया ना! बस एक उम्मीद है कि सब कुछ जल्दी ठीक हो जाए! बाकी मैं भगवान से प्रार्थना करने के अलावा कुछ नहीं कर पा रही!"
ध्रुवा की क्लास खत्म हो चुकी थी। वह बाहर गार्डन में अपनी स्कूटी पर बैठी हुई थी। तभी उसे सामने से आती हुई तारा नज़र आई। उसने अपनी स्कूटी निकाली और तारा को बैठने का इशारा किया। दोनों वहाँ से चली गईं। कुछ ही मिनटों में वे घर पहुँच गई थीं।
वह घर आई तो उसने देखा हॉल में कोई नहीं था। वह सीधा अपने कमरे में चली गई। ध्रुवा कमरे में आई और बैग रखकर अपनी अलमारी खोली और एक फ़ोन निकाला। उसने एक पर्स निकाला और उसमें से एक सिम निकालकर उस फ़ोन में लगा दी। फ़ोन ऑन होते ही ध्रुवा ने किसी को फ़ोन लगाया और कहा, "कर क्या रहे हो यार तुम दोनों...?"
सामने से कुछ कहा गया जिसे सुनते ही ध्रुवा ने फ़ोन काट दिया। उसने फ़ोन बंद किया और वापस पहले की तरह रखकर अलमारी बंद की और कपड़े चेंज करने चली गई।
एक घर में एक आदमी इधर-उधर घूम रहा था। उसके एक हाथ में फ़ोन था और उसकी आँखों में बेहद गुस्सा था। उसने अपने एक हाथ से अपने पास में रखी टेबल पर जोर से मारा, जिससे पूरे हॉल में उस टेबल पर रखे गुलदस्ते के टुकड़े बिखरे हुए थे। उस आदमी ने अपने आस-पास खड़े आदमियों को घूरते हुए कहा, "शास्त्री....शास्त्री....कहाँ गया वो शास्त्री...? कैसे गायब हो गया वो? एक सामान था क्या जो गायब हो गया? ढूँढो उसे, मुझे वो किसी भी हालत में मेरे सामने सही-सलामत चाहिए! अगर इसे कुछ हुआ ना तो तुम में से कोई नहीं बचेगा!" इतना बोलते ही वे आदमी वहाँ से चले गए। उनके जाते ही वह आदमी सोफ़े पर बैठ गया। उसने अपना फ़ोन अपने सिर पर लगा लिया और किसी गहरी सोच में डूब गया।
तभी उसे किसी के आने की आवाज़ सुनाई दी। उसने सामने देखा तो आरव था। आरव को देखते ही उस आदमी के चेहरे के भाव बदल गए। आरव ने उस आदमी को देखा और बिना किसी भाव के वहाँ से चला गया। उस आदमी ने जाते हुए आरव को देखा और आवाज़ देते हुए कहा, "आरव...आरव यहाँ आओ, मुझे बात करनी है तुमसे, इधर आओ आरव!" उस आदमी की आवाज़ सुनकर आरव के कदम रुक गए। उसने पीछे मुड़कर देखा और एक सख्त भाव से कहा, "लेकिन मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी! और मुझसे कोई उम्मीद मत कीजिएगा!"
आरव वहाँ से ऊपर चला गया। जैसे ही वह एक कमरे में आया तो देखा एक औरत वहाँ बेड पर लेटी हुई थी। उसको देखते ही आरव की आँखों में हल्की सी नमी आ गई। वह उनके पास आया और अपने चेहरे को पलटकर अपनी आँखों में आई नमी को साफ़ कर लिया और उनके पास बैठते हुए बोला, "कैसे हो मम्मा? प्लीज़ उठ जाओ ना यार, ये इंसान मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है, अपनी आदतों से बाज नहीं आ रहा, इनके गलत काम बढ़ते जा रहे हैं! क्या करूँ, कुछ समझ नहीं आ रहा! आप ही बताओ ना! उन्हें लग रहा है जैसे मैं उनकी हेल्प करूँगा! कभी भी नहीं मॉम!" इतना बोलकर आरव वहाँ से चला गया। उस औरत की आँखों में आँसू निकलकर बेड पर गिर गए।
आरव वहाँ से निकलकर अपने कमरे में आया और बालकनी में आकर खड़ा हो गया। उसने कुछ देर आसमान में देखा। सर्दियों का मौसम था, और हवाएँ चल रही थीं। शाम भी ढल चुकी थी। आरव ने अपनी आँखें बंद कीं और एक मिनट बाद उसने अपनी आँखें खोलीं और अपनी पॉकेट में से सिगरेट निकालकर पीने लगा। वह जैसे-जैसे सिगरेट के कश ले रहा था, वैसे-वैसे उसके चेहरे के भाव बदल रहे थे।
ध्रुवा अपने कमरे में इधर-उधर घूम रही थी। उसने दोनों हाथ पीछे बाँधे हुए थे, लेकिन उसके चेहरे के भाव एकदम सख्त थे। उसकी आँखें एकदम लाल हो चुकी थीं। वह अपनी गहरी सोच में गुम थी कि तभी उसके कमरे पर दस्तक हुई। उसने जैसे ही आवाज़ सुनी तो उसने पलटकर देखा तो वहाँ दरवाज़े पर तारा खड़ी हुई थी।
तारा ने ध्रुवा को देखा और दरवाज़े पर खड़े होकर कहा, "मैं आ जाऊँ ध्रुवा...?" तारा की बात सुनकर ध्रुवा ने अपनी गर्दन हाँ में हिलाई और शांति से बेड पर बैठ गई।
तारा भी उसके बगल में बैठी और बिना उसकी ओर देखे कहा, "बाहर चलें ध्रुवा...?"
ध्रुवा ने तारा की बात सुनी और उसकी ओर देखकर कहा, "मन नहीं है मेरा!"
तारा ने ध्रुवा को देखा और हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली, "प्लीज़ चलो ना, मेरा बहुत मन है, तुम साथ रहोगी तो माँ भेज देंगी!"
ध्रुवा ने तारा की बात सुनी और मुस्कुराते हुए उसके चेहरे पर हाथ रखकर बोली, "ठीक है चलो!" तारा ने ध्रुवा की बात सुनकर कहा, "थैंक यू...थैंक यू!" इतना बोलकर तारा ध्रुवा के गले लग गई।
तारा ने ध्रुव को देखा और हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली—"प्लीज चलो ना, मेरा बहुत मन है। तुम साथ रहोगी तो मां भेज देगी!"
"ठीक है, चलो!" ध्रुव ने तारा की बात सुनी और मुस्कुराते हुए उसके चेहरे पर हाथ रखकर कहा।
"थैंक यू.. थैंक यू," इतना बोलकर तारा ध्रुव के गले लग गई।
तारा जैसे ही बाहर गई, ध्रुव मुंह बनाकर हल्का सा तैयार हुई। उसने बालों का साधारण जुड़ा बनाया और अपने आप को देखा। उसने ब्लैक जींस और व्हाइट कलर की हुडी पहनी हुई थी। इन सब में भी वह बहुत प्यारी लग रही थी। उसके हाथ में एक कड़ा था। उसने इधर-उधर देखा और अलमीरा को लॉक कर दिया और अपना फोन लेकर नीचे आ गई। उसने देखा तो तारा खड़ी हुई थी, उसके सामने ही कल्याणी जी तारा के पास खड़ी होकर उसे और ध्रुव को घूर रही थीं। कल्याणी जी ने ध्रुव को देखा और हल्के से गुस्से से कहा—"कहाँ लेकर जा रही हो इसे? तुम्हारा काम है तो तुम करो ना, उसे लेकर क्यों जाना? और घूमना है तो तुम घूमो, तारा को लेकर जाना जरूरी है क्या?"
ध्रुव लगातार तारा को देख रही थी। उसने कल्याणी जी की सारी बातों को अनसुना कर दिया और कहा—"मैं कुछ देर में आ जाऊँगी, इसलिए सोचा इसे भी ले जाऊँ।"
तारा ने कल्याणी जी के कंधे पर हाथ रखा और कहा—"प्लीज मां, जाने दो ना!"
"हाँ, चलो, मैं लेकर चलता हूँ तुम दोनों को!" यह आवाज़ सुनकर सबने पीछे देखा तो सीढ़ियों पर रेयांश खड़ा हुआ था। उसके हाथ में कार की चाबी थी जिसे वह हाथ में डाले घुमाए जा रहा था। वह सबको एक नज़र देखते हुए नीचे आया और तारा की ओर देखकर कल्याणी जी से बोला—"टेंशन मत लो मॉम, मैं भी चला जाता हूँ और जल्दी ही ले आऊँगा।" इतना बोल रेयांश ने ध्रुव को देखा और मुस्कुराते हुए कहा—"चले!" इतना बोलकर रेयांश बाहर चला गया।
उसके जाते ही कल्याणी जी ने ध्रुव को देखा और कहा—"ध्यान से जाना और जल्दी आ जाना, समझी?" इतना बोलकर वह बाहर चली गईं। ध्रुव ने एक नज़र कल्याणी जी को देखा और बाहर तारा को देखते हुए चली गई। उसकी आँखों में अभी भी कोई भाव नहीं थे। ध्रुव बाहर कार के पास आई तो उसके पीछे-पीछे तारा भी आ गई थी। उसने ध्रुव की तरफ देखते हुए कहा—"सॉरी ना यार!"
ध्रुव ने तारा की बात को अनसुना किया और कार में पीछे वाली सीट पर बैठ गई। रेयांश कार चला रहा था, तारा उसके बगल में आगे बैठी हुई थी। रेयांश ने एक नज़र बैक मिरर में देखा और तारा को इशारा करते हुए कहा—"इसे क्या हुआ...?"
तारा ने रेयांश की बात सुनी और हल्का सा पीछे मुड़कर ध्रुव को देखते हुए बोली—"सॉरी ना यार ध्रुव, आई नो, मुँह झूठ नहीं बोलना था मम्मा से, लेकिन यू नो ना, वो मुझे कभी नहीं जाने देती। प्लीज यार सॉरी, आई नो मम्मा ने तुम्हें डाँट दिया, लेकिन आई प्रॉमिस आगे से ऐसा नहीं होगा!"
तारा लगातार माफी मांग रही थी। उसे सच में बहुत बुरा लग रहा था। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसका एक झूठ बोलना ध्रुव के लिए बुरा साबित होगा, कल्याणी जी उसे इतना कुछ बोलेंगी।
ध्रुव ने तारा से धीरे से पूछा—"तुम कहाँ जाओगी...?"
ध्रुव का सवाल सुनकर रेयांश अभी भी कन्फ़्यूज़ था। उसने बैक मिरर में देखते हुए कहा—"कहाँ जाओगी से क्या मतलब है? तुम लेकर जा रही हो ना, तो तुम बताओ। और दूसरी बात," तारा की ओर देखकर, "तुम किस लिए अब तक सॉरी बोल रही थी? मुझे तुम दोनों का कुछ समझ ही नहीं आ रहा, चल क्या रहा है तुम दोनों के बीच...?" रेयांश की बात सुनकर जहाँ ध्रुव एकदम शांत थी, वहीं तारा ने रेयांश की ओर देखकर हल्के से डर के साथ कहा—"वो भाई, ध्रुव मुझे अपने साथ नहीं लाई, बल्कि मैंने उससे जिद की थी कि वो मेरे साथ बाहर घूमने चले। मैं घर में बोर हो रही थी, लेकिन मां को लगा मुझे ध्रुव अपने साथ लेकर जा रही है, इसलिए वो उसे डाँट रही थी!" और मुझे सच में बहुत बुरा लग रहा है!
रेयांश ने तारा की बात सुनी और उस पर हल्के गुस्से से चिल्लाते हुए कहा—"तुम्हें किसी ने सिखाया नहीं तारा कि बड़ों से झूठ बोलकर घर से बाहर बिल्कुल नहीं निकलना चाहिए। दूसरी बात, अगर मां इसे डाँट रही थी तो तुम्हें बोलना चाहिए था, लेकिन तुम वहाँ पर चुप खड़ी हुई थी। झूठ बोलना कहाँ से सीख रही हो तुम तारा? यह अच्छी बात बिल्कुल भी नहीं है।"
ध्रुव रेयांश की बात सुन रही थी। उसने अपना एक हाथ आगे बढ़ाकर तारा के कंधे पर रखा और धीरे से कहा—"तुम्हारा भाई सही कह रहा है। इस बार तो कोई बात नहीं, लेकिन आगे से ध्यान रखना।" इतना बोल ध्रुव वापस से खिड़की से बाहर देखने लगी और चुप होकर बैठ गई।
रेयांश ने तारा को देखा और कहा—"बताओ तो कहाँ जाओगी तुम?" रेयांश की बात सुनकर तारा ने उसे देखकर चहकते हुए कहा—"लखनऊ का मरीन ड्राइव, मुझे वहाँ जाकर बैठना है!"
रेयांश ने तारा को देखते हुए एक अजीब हैरानी के भाव से कहा—"हैं...? यहाँ भी मरीन ड्राइव है...? पर मैंने तो सुना मुंबई में है!"
तारा ने रेयांश की बात सुनकर कहा—"चलो फिर देख लेना।" इतना बोलकर वह चुप होकर बैठ गई। रेयांश को समझ भी नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले और कहाँ जाए, तभी ध्रुव ने रेयांश को देखा और कहा—"तुम हटो, मुझे चलाने दो। कार रोको!"
रेयांश ने ध्रुव की बात सुनी और कहा—"बिल्कुल भी नहीं, मैं नहीं रोकने वाला।" ध्रुव ने रेयांश की बात सुनी और कुछ नहीं कहा। उसने बिना रेयांश की ओर देखे कहा—"राइट लेना, फिर सीधे जाकर लेफ्ट लेना, फिर वापस राइट, फिर लेफ्ट, फिर एक कट से यू-टर्न, फिर राइट एंड सीधे से लेफ्ट!"
तारा ने रेयांश की बात सुनकर कहा, "चलो फिर देख लेना।" इतना बोलकर वह चुप होकर बैठ गई। रेयांश को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले और कहाँ जाए। तभी ध्रुवा ने रेयांश को देखा और कहा, "तुम हटो, मुझे चलाने दो। कार रोको!"
रेयांश ने ध्रुवा की बात सुनी और कहा, "बिल्कुल भी नहीं, मैं नहीं रोकने वाला।" ध्रुवा ने रेयांश की बात सुनी और कुछ नहीं कहा। उसने बिना रेयांश की ओर देखे कहा, "राइट लेना, फिर सीधे जाकर लेफ्ट लेना, फिर वापस राइट, फिर लेफ्ट, फिर एक कट से यू-टर्न, फिर राइट एंड आरएफआईआर सीधे लेफ्ट!"
ध्रुवा ने जल्दी-जल्दी बोल दिया था। रेयांश ने सुना तो उसका तो सर ही चकराने लगा था। उसने झुंझलाते हुए एकदम से कार में ब्रेक लगा दिए। उसके अचानक से लगाए ब्रेक से तारा का सर डैशबोर्ड से लगते-लगते बचा था। लेकिन वही ध्रुवा पीछे से उठकर आगे ही आ गई थी, और रेयांश के कंधे पर उसका सर जा लगा।
ध्रुवा ने खुद को सही किया और गुस्से से कहा, "शांति से चलाना नहीं आता? बेवकूफ हो क्या? ऐसे कौन ब्रेक लगाता है?" इतना बोल ध्रुवा ने एक नज़र आगे तारा पर डाली, जिसने अपना हाथ सर पर रखा हुआ था। उसने पहले ही हाथ लगा लिया था; उसे बिल्कुल भी चोट नहीं आई थी। ध्रुवा ने उसकी ओर देखकर कहा, "तुम ठीक हो ना...?"
"मैं ठीक हूँ," तारा ने ध्रुवा को देखा और कहा, "आप दोनों ठीक हैं ना?" उसके बोलते ही दोनों ने हाँ में गर्दन हिला दी। तभी रेयांश ने गुस्से से कहा, "ऐसे एड्रेस कौन बताता है? और तुम्हें क्या लग रहा था? तुम तीन सेकंड में सब बोलोगी और मैं इतना सारा एड्रेस अपने माइंड में किसी रिकॉर्डर की तरह फिट कर लूँगा...?"
ध्रुवा ने कुछ नहीं बोला था, वह चुपचाप बैठ गई थी। तारा उसे रास्ता बता रही थी। कुछ ही देर में सब आ गए थे। तारा जल्दी से निकल कर उस जगह आकर बैठ गई थी। रात होने लगी थी; उस सड़क की सभी लाइट्स ऑन हो गई थीं, और तारा एक बेंच पर बैठी हुई थी। ध्रुवा हमेशा यहीं आती थी, लेकिन उसे आज अजीब सा लग रहा था। उसे बस घर जाना था। वह अभी भी कार से टिककर खड़ी हुई थी; उसका एक पैर गाड़ी के टायर पर था और दोनों हाथ उसने बंधे हुए थे। रेयांश भी वहीं किसी से फोन पर बात कर रहा था। उसने फोन पर बात करते हुए ही एक नज़र तारा को देखा, और एक नज़र ध्रुवा को। वहीं ध्रुवा के पास आकर खड़ा हो गया, और सामने बैठी तारा की ओर देखकर बोला, "इसकी और तुम्हारी इतनी कब से बनने लगी...? और तुम कब से रह रही हो यहाँ...? वैसे तुम्हारा नाम क्या है...? तुम करती क्या हो...? तुम कहाँ से हो...?" रेयांश ने अपने सारे सवाल एक साथ किए और अपने बगल में देखा; उसे महसूस हो रहा था जैसे उसे कोई घूर रहा हो। उसने बगल में नज़रें घुमाईं और देखा तो सच में ध्रुवा उसे घूरकर देख रही थी।
"क्या?" ध्रुवा ने रेयांश को देखा तो रेयांश ने अपनी आइब्रो को ऊँचा करके कहा, "मेरे सवालों के जवाब दो, और घूर क्यों रही हो?"
ध्रुवा ने रेयांश की बात सुनी और कहा, "इतने सवाल एक साथ...? तुम्हारे अंदर कोई सवालों की मशीन फिट है क्या? और दूसरी बात, मैं क्यों बताऊँ...तुम्हें कुछ भी? होते कौन हो तुम!" इतना बोल ध्रुवा वहाँ से निकल कर तारा के पास आकर बैठ गई थी।
ध्रुवा ने सीट से टेक लगाया और आँखें बंद कर लीं। उसने जैसे ही आँखें बंद करीं, उसकी आँखों के सामने एक आवाज आने लगी, "छोड़ दो उन्हें, उन्होंने कुछ नहीं किया...पापा...पापा...मैं निर्दोष हूँ, मैंने कुछ नहीं किया।"
तारा, जो कि ध्रुवा के बगल में बैठी हुई थी, उसने ध्रुवा को देखा, जिसके चेहरे पर दर्द की लकीरें उभर आई थीं। उसने ध्रुवा को ध्यान से देखा तो उसके चेहरे पर पसीने की बूँदें आ गई थीं; उसका पूरा चेहरा पसीने में हो गया था। तारा ने ध्रुवा को इस हाल में देखा तो उसने तुरंत उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "ध्रुवा...ध्रुवा, तुम ठीक हो ना!"
ध्रुवा ने जैसे ही यह आवाज सुनी तो उसने अचानक से अपनी आँखें खोल लीं। तारा की आवाज से वह तुरंत अपने अतीत की यादों से बाहर आ गई थी; उसके चेहरे पर अभी भी पसीना था। तारा की आवाज रेयांश ने भी सुन ली थी; वह भी ध्रुवा के पास आ गया था। ध्रुवा ने तारा को देखा और कहा, "मैं ठीक हूँ, बस पता नहीं क्यों अचानक से गर्मी सी लगी। हो सकता है ब्लड प्रेशर हाई हो गया हो। खैर, मैं ठीक हूँ।" इतना बोलकर ध्रुवा वहाँ से उठकर चली गई।
तारा उसके ऐसे बिहेवियर से हैरान नहीं थी, क्योंकि इस एक महीने में उसे उसके ऐसे बिहेवियर की आदत ही हो गई थी। वह अभी उसके लिए सोच ही रही थी कि तभी उसके बगल में आकर रेयांश बैठ गया। उसने तारा को देखा और कहा, "ये कैसी लड़की है यार? वैसे क्या हुआ इसको? परेशान सी लगी मुझे!"
"पता नहीं क्या है इसका," तारा ने रेयांश की बात सुनी और बिना किसी भाव के सामने देखते हुए कहा, "एक महीना हो गया इसे यहाँ आए, लेकिन ऐसे ही परेशान रहती है। और दूसरी बात, मैंने इसे एक महीने में आज तक हँसते हुए नहीं देखा। कितना ही बड़ा जोक मार लो इसके सामने, और बोलती है कि कोई प्रॉब्लम भी नहीं है!"
रेयांश ने तारा की बात सुनी और सामने देखने लगा। उसने अपने हाथों को अपने सर के पीछे लगाया और कुछ सोचने लगा। तभी उसके दिमाग में कुछ याद आया तो उसने आँखें बंद कीं और बिना तारा की ओर देखकर कहा, "वैसे ये मल्लिका आदित्य प्रताप, यही नाम है ना इसका...? कौन है आखिर ये...? आज तक किसी को कुछ पता नहीं चला ना!"
"नहीं," तारा ने रेयांश की बात सुनी और कहा।
रेयांश ने तारा की बात सुनी और सामने देखने लगा। उसने अपने हाथ अपने सर के पीछे लगाए और कुछ सोचने लगा। तभी उसके दिमाग में कुछ याद आया। उसने आँखें बंद की और बिना तारा की ओर देखे कहा— "वैसे ये मल्लिका आदित्य प्रताप, यही नाम है ना इसका...? कौन है आखिर ये...? आज तक किसी को कुछ पता नहीं चला ना!"
"नहीं पता उसके बारे में," तारा ने रेयांश की बात सुनी और कहा, "लेकिन इतना मालूम है कि पूरा लखनऊ डरता है उससे। लेकिन एक बात तो है, वो अब तक उन लोगों को मार रही है जिनका हाथ गैरकानूनी मामलों में है। बहुत अजीब बात है, इस लड़की के बारे में कुछ पता भी नहीं चल रहा किसी को!" "इंफेक्ट, सुनने में आ रहा है कि पुलिस भी अब तक उसका पता नहीं लगा पाई!"
तारा की बात सुनकर रेयांश ने अपनी आँखें खोली और कहा— "हाँ, वो इसलिए क्योंकि आज तक उसे किसी ने नहीं देखा ना शायद, और जिसने देखा होगा वो तो मर ही गया होगा ना!" "तुम बैठो, मैं आता हूँ!" इतना बोलकर रेयांश वहाँ से जैसे ही जाने को उठा, कि तभी अचानक उन दोनों के सामने ध्रुवा आकर खड़ी हो गई। उसने दोनों को देखा और तारा को देखकर कहा—"आई थिंक अब चलना चाहिए, वरना तुम्हारी मॉम बहुत गुस्सा होने वाली है। और देखो, शाम भी हो चुकी है, सूरज ढल चुका है, चलें!"
ध्रुवा की बात सुनकर तारा ने एक नज़र दोनों को देखा और कहा—"ठीक है, चलो।" इतना बोलकर तीनों कार में आकर बैठ गए। आस-पास के लोग उन तीनों को देख रहे थे, लेकिन ध्रुवा को कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था। सब उसके पहनावे को ही देख रहे थे क्योंकि उसने एक ब्लैक जीन्स और हुडी पहनी हुई थी। उसमें कोई भी ऐसे घूमने तो नहीं निकलेगा, लेकिन ध्रुवा का पहनावा यही था। उसे बोलें तो इन कपड़ों में ही कम्फ़र्ट फील होता था। वो फिर से पीछे बैठने को हुई कि तभी तारा ने कहा—"इस बार तुम चलाओ ना, बड़ा मज़ा आता है!"
रेयांश ने दोनों को देखा और जल्दी से आगे आकर ड्राइविंग सीट संभाल ली। तारा भी तुरंत पीछे जाकर बैठ गई थी। ध्रुवा ने एक नज़र दोनों को देखा और चुपचाप बिना बोले आगे आकर बैठ गई। उसने अपना फ़ोन देखा और किसी को कुछ टाइप करने लगी। उसने मैसेज जैसे ही सेंड किया कि उसके कुछ ही सेकंड बाद उसके मोबाइल में वाइब्रेट हुआ। उसने देखा तो एक मैसेज लिखा हुआ था, जिससे उसके चेहरे पर एक अजीब भाव आ गए थे। उसने अपना सर सीट से टिकाया और अपने पैरों को डैशबोर्ड से लगाकर उस पर रख लिए और सीधे कर लिए। उसको इतना बेफ़िक्र होकर बैठा देखकर रेयांश ने खीझते हुए कहा—"अजीब हो! यहाँ मैं ड्राइव कर रहा हूँ और तुम ऐसे आराम से बैठकर सो रही हो...?"
रेयांश की बात सुनकर ध्रुवा ने बंद आँखों से कहा—"तो... तुम कहीं बहुत लंबा सफ़र तय नहीं करने वाले और तुम कार को भी बच्चों की तरह चलाओगे तो तुम्हें ये पच्चीस मिनट का रास्ता तय करने में दो घंटे तो लगेंगे ही।" इतना बोल ध्रुवा ने खिड़की से बाहर अपना सर टिका लिया।
कुछ ही देर में सब लोग घर आ गए थे। रात के आठ बज गए थे। सब लोग खाने के लिए बैठे हुए थे। तभी मानस जी ने कल्याणी जी को देखते हुए कहा—"ध्रुवा नहीं आई क्या...? उसे भी बुला लो!"
कल्याणी जी ने मानस जी की बात सुनी और कहा—"भूख होगी तब खा लेगी, नहीं होगा उसका मन। आप तो जानते ही हैं, अजीब ही लड़की है। एक महीने में मुश्किल से मैंने उसको दस दिन खाना खाते देखा है। मैं तो सोचती हूँ, जिंदा किस चीज़ पर है!"
मानस जी ने कल्याणी जी की बात सुनी और कहा—"आजकल के बच्चे हैं, बाहर का कुछ खा लेते हैं और घर के खाने से बचते हैं। खा लेती होगी बाहर कुछ, इसलिए नहीं खाती होगी। खैर, कोई बात नहीं। जब भूख लगेगी तब खा लेगी। अभी सब जल्दी से डिनर करो और रूम में जाओ। कल मेरी भी एक सुनवाई है इसलिए जल्दी जाना होगा!" इतना बोलकर मानस जी खाना खाने लगे। सब लोग भी चुपचाप खाना खा रहे थे।
ध्रुवा, जो कि ऊपर से रेलिंग पर हाथ रखे नीचे ही देख रही थी, उसने कल्याणी जी की बात सुनी और मन में खुद से ही कहा—"इंसान को खाना ही जोड़ी नहीं है। मुझे मेरा इंतकाम जिंदा रखे हुए है, और तुम्हारे यहाँ खाना खाने से बेहतर है मैं ना ही खाऊँ!" इतना सोचकर उसने अपना फ़ोन देखा और एक मैसेज वापस टाइप किया—"इज़ एवरीथिंग रेडी...?" इतना बोल उसने फ़ोन को देखा, जिसमें तुरंत ही एक मैसेज आ गया था। उसने पूरा चैट वापस से डिलीट किया और फ़ोन को बंद करके रख दिया।
रात हो चुकी थी। पूरे लखनऊ में अंधेरा छा गया था। सुबह से शाम तक जिन सड़कों पर भीड़ और ट्रैफ़िक होता था, वो सड़कें एकदम खाली थीं। सर्दियों का मौसम था। मार्केट भी जल्दी बंद हो गया था, और आज तो मौसम भी अजीब हो रहा था। आसमान में काले बादल छाए हुए थे। मानो ऐसा लग रहा था जैसे कभी भी किसी भी पल बारिश आ सकती थी। पूरा शहर एकदम सूना था। इन सब में एक परछाई पैदल ही चल रही थी। तभी उस परछाई ने इधर-उधर देखा ही था कि तभी उसके पास एक गाड़ी आकर रुकी। वो परछाई तुरंत उसके अंदर बैठकर कहीं गायब हो गई।
तो वहीं एक कमरे में एक आदमी आज फिर से वही जमीन पर घुटनों के बल बैठा हुआ था। उसके दोनों हाथ बंधे हुए थे और मुँह के साथ ही साथ उसका चेहरा भी ढका हुआ था। उसने झटपटाते हुए अपने आप को इधर-उधर हिलाया कि तभी किसी ने उसके चेहरे से उस काले कपड़े को हटाते हुए कहा—"कितनी जल्दी है ना तुम्हें?"
एक कमरे में एक आदमी घुटनों के बल बैठा था। उसके दोनों हाथ बंधे हुए थे, और मुँह के साथ-साथ चेहरा भी ढँका हुआ था। उसने झटपटाते हुए खुद को इधर-उधर हिलाया। तभी किसी ने उसके चेहरे से काला पट्टा हटाते हुए कहा—
"कितनी जल्दी है ना तुम्हें? अब जब तुम्हारे हाथ बंधे हुए हैं तो तू काहे को इतना कष्ट ले रहा है? अपुन है ना।"
इतना बोलकर वह लड़की झटके से चेयर पर बैठ गई। उसने एक पैर पर दूसरा पैर रखा और दोनों हाथ चेयर के हाथों पर रख लिए। उस आदमी की ओर देखकर बोली—
"चल बता, कहाँ-कहाँ तक है तुम्हारा बिज़नेस? और दूसरी बात, तुम लोग लड़कियों की स्मगलिंग करते हो ना? तेरी भाषा में बोलूँ तो, लड़कियों को बेचने का धंधा, यही काम करते हो ना?"
उस लड़की की बात सुनकर भी उस आदमी ने कुछ नहीं कहा। तब उस लड़की ने अपना पैर हटाया और उस आदमी को लात मार दी। वह आदमी संतुलन खोकर जमीन पर गिर पड़ा।
उसके गिरते ही मल्लिका के पीछे खड़े दोनों लड़कों ने उस आदमी को उठाया और मल्लिका की ओर देखकर कहा—
"कैसे बोलेगा वो? उसका तो मुँह ही बंद था!"
इतना बोलकर उस लड़के ने सामने बैठे आदमी के मुँह से पट्टी हटा दी।
मल्लिका ने उस आदमी को देखा और पास रखी टेबल से बंदूक उठाई। उसने बंदूक उसके मुँह में डाल दी। उसने अपना हाथ रिवॉल्वर के ट्रिगर पर रखा हुआ था। उसकी आँखों में इस वक्त दुनिया भर का गुस्सा भरा हुआ था। उसने आँखें बंद कीं और वहाँ से उठकर चली गई।
उसके जाते ही दोनों लड़कों ने चैन की साँस ली। उन्होंने उसके मुँह को फिर से बाँध दिया और खुद भी मल्लिका के पीछे बाहर चले गए।
मल्लिका बाहर खड़ी हुई थी। दूर-दूर तक बड़े-बड़े पेड़-पौधे दिखाई दे रहे थे। उसके आस-पास बड़े पेड़ों की तेज हवाएँ चल रही थीं। मकान के आगे छोटे-छोटे फूलों के पौधे लगे हुए थे। मल्लिका रेलिंग पर हाथ रखकर खड़ी हुई थी। वह अपनी आँखों का गुस्सा शांत करने की सोच रही थी। उसने अपने चेहरे पर मास्क लगा रखा था। आसमान में देखते हुए बोली—
"बहुत जल्द, बहुत जल्द, आपके सभी खूनियों को सज़ा मिलेगी। आपको, आपको निर्दोष साबित करके ही चैन लूँगी। बहुत जल्द, सब कुछ ठीक हो जाएगा!"
मल्लिका यह सब बोल रही थी तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। मल्लिका ने पीछे देखा तो वही दोनों लड़के खड़े हुए थे। दोनों ने मल्लिका को देखा और उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा—
"सब ठीक हो जाएगा। तुम टेंशन मत लो। अब तुम्हें जाना चाहिए। यहाँ रुकना अब तुम्हारे लिए सही नहीं है।"
मल्लिका ने वह बात सुनी और अपनी गर्दन हाँ में हिलाकर कहा—
"हाँ, लेकिन मौसम तो देखो यार! बारिश आने को हो रही है। इससे कोशिश करना कि कुछ बता दे!"
"वो पहले ही मर चुका है। अगर उसने बता दिया होता तो इसकी जान नहीं जाती।"
उस लड़के ने मल्लिका को देखा और कहा—
"तुमने गुस्से में आकर उसको मार दिया। यह बहुत ही गलत किया। वो बता सकता था अगर हम उसे टॉर्चर करते तो। और कुछ दिन उसे हम अच्छे से डरा-धमकाकर रखते तो शायद वह आराम से सब कुछ बता सकता था! लेकिन मुझे यह समझ नहीं आ रहा..."
उस लड़के ने इतना ही कहा था कि तभी अंदर से कुछ आवाज़ आई। दोनों अंदर से आती आवाज़ को सुनकर अंदर चले गए। अंदर आकर देखा तो वह आदमी अपने एक हाथ में एक डंडा लेकर खड़ा हुआ था। उसने मल्लिका के एक आदमी पर डंडा मार दिया था। उस लड़के ने उस आदमी को पकड़ा हुआ था और एक हाथ से अपने सर को पकड़ा हुआ था।
मल्लिका ने उस आदमी को देखा जिसके सर पर खून निकल रहा था। उसे देखते ही मल्लिका चिल्लाते हुए बोली—
"अरमान! तुम ठीक हो ना?"
इतना बोलकर मल्लिका ने अपने दूसरे आदमी को इशारा किया। उसने जाकर उस आदमी को पकड़कर चेयर से बाँध दिया था। मल्लिका ने अपने हाथ में बंधा हुआ रूमाल देखा और उसे लेकर अरमान के सर पर बाँध दिया। ज़्यादा तो नहीं, लेकिन थोड़ा बहुत खून निकल चुका था। मल्लिका ने उसके सर पर रूमाल बाँधा और खड़े होकर चेयर के पास आई और अपना हाथ दूसरे लड़के की ओर करते हुए गुस्से से बोली—
"निशांत..."
उसने इतना ही कहा था कि तभी उस लड़के ने एक काफी मज़बूत चाबुक उसके हाथ पर रख दिया। मल्लिका ने उसे देखा और उस आदमी के शरीर पर चाबुक से मारने लगी। उसके हाथों में काफी हिम्मत थी। वह बहुत बुरी तरह से मार रही थी। उस आदमी के मुँह में कपड़े ठूस दिए थे जिससे उसकी आवाज़ तक नहीं निकल रही थी, लेकिन उसकी हालत उसकी आँखें अच्छे से बयाँ कर रही थीं।
मल्लिका ने उस आदमी को काफी देर तक मारा, लेकिन वह जरा सी भी नहीं थकी। उस आदमी की दर्द से हालत ख़राब हो गई थी। तभी अचानक अरमान ने मल्लिका का हाथ पकड़ा और उसे रोकते हुए बोला—
"बस कर! मार डालेगा वो, और हम वो नहीं जान पाएँगे जो हमें जानना है। और देख, चोट लग गई है तुझे!"
अरमान के बोलते ही मल्लिका ने देखा तो सच में उसके हाथ से खून आने लगा था। उसके हाथ में छाले पड़ चुके थे! उसने चाबुक निशांत को दिया और उस आदमी को देखा जो बेहोश हो चुका था। उसे देखते ही मल्लिका वहाँ से निकलकर बाहर बालकनी में आकर खड़ी हो गई।
अरमान ने मल्लिका का हाथ पकड़ा और उसे रोकते हुए कहा, "बस कर, मार जाएगा वो, और हम वो नहीं जान पाएँगे जो हमें जानना है। और देख, चोट लग गई है तुझे!"
अरमान के बोलते ही मल्लिका ने देखा तो सच में उसके हाथ से खून आने लगा था; उसके हाथ में छाले पड़ चुके थे! उसने चाबुक निशांत को दिया और उस आदमी को देखा जो बेहोश हो चुका था! उसे देखते ही मल्लिका वहाँ से निकलकर बाहर बालकनी में आ गई और वहाँ खड़ी हो गई। उसकी आँखों में ना जाने कितना दर्द उभर आया था, पर उसने खुद को संभाले रखा था। तभी निशांत ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, "शांत, देवी माँ! आप बहुत गुस्सा करने लगी हैं। और तुम जानती हो, गुस्सा सेहत के लिए अच्छा नहीं है, और साथ ही साथ काम बिगाड़ देता है। इतना गुस्सा मत करो, और टेंशन फ्री रहो!"
अंदर से अरमान आया। दोनों को देखते हुए उसने कहा, "मैं सुबह से काम करके थक गया हूँ। भूख लगी है। तुमको कुछ खाना है...?" उसके ये बोलते ही निशांत ने उसकी ओर देखकर कहा, "और तुझे यहाँ क्या मिलेगा...? बता तो जरा!" अरमान ने दोनों को देखा और कहा, "तू तो चुप रह, तू बता, मल्लू, तू तो खाएगी ना...?"
मल्लिका ने अरमान की बात सुनी और वहीं एक चेयर पर पैर रखकर बैठ गई, आँखें बंद करते हुए बोली, "भूख तो लगी है, लेकिन है क्या खाने में? और यहाँ खाना कहाँ से ले आया तू?"
मल्लिका का सवाल सुनकर अरमान मुस्कुराते हुए बोला, "खाना नहीं है, बस मैगी है। खानी है तो खा लो, वरना मैं ही बनाकर खा लूँगा!" इतना बोलकर वह उस जगह से नीचे गार्डन में आया और वहाँ से कुछ लकड़ियाँ उठाकर जला दी। उसने पास ही दो छोटी-छोटी चेयर रखीं और जल्दी से अंदर से मैगी और एक बर्तन ले आया और बनाने लगा। मल्लिका ने उसे देखा और उठकर उसके पास आकर बैठ गई। सर्दी की ठंडी हवाएँ बहुत तेज चल रही थीं और सबके अंदर कंपकपी पैदा कर रही थीं, लेकिन मल्लिका अभी भी आराम से बैठी हुई आग में हाथ सेक रही थी।
"खुल कैसे गया था वो...?"
मल्लिका की बात सुनते ही अरमान ने याद करते हुए कहा, "पता नहीं। तुम दोनों के बाहर आते ही मैंने उसके मुँह से रिवॉल्वर निकालकर रख दी। जैसे ही वो पीछे जाकर अपना सामान सही करने लगा, तभी उसने मेरे सर पर डंडे से मार दिया। मैं कुछ बोलता उससे पहले ही उसने मेरे मुँह पर हाथ रखा, लेकिन मैंने उसे पकड़ा और चिल्लाया, इसलिए तुम लोगों को सुनाई दिया!"
निशांत ने अरमान की बात सुनी और मल्लिका की ओर देखकर कहा, "बहुत तेज है ये मल्लू, बोलने को तैयार ही नहीं है। अगर ये नहीं बताएगा तो बताएगा कौन? वो शास्त्री पता नहीं अचानक कहाँ गायब हो गया। लेकिन डोंट वरी, उसे हमारे आदमी ढूँढ रहे हैं, और बाकी जिसे मदद करनी होगी, वो खुद बता देंगे!"
मल्लिका बस आराम से सबकी बात सुन रही थी और तीनों ठंड में मैगी का आनंद लेकर अपनी-अपनी भूख मिटा रहे थे। तभी अचानक निशांत का ध्यान अपने फ़ोन पर गया; सुबह के चार बजने वाले थे। निशांत ने मैगी की प्लेट नीचे रखी और कहा, "मल्लू, तुझे जाना चाहिए, वरना वहाँ पता लग गया तो कलेश हो जाएगा!"
निशांत की बात पर अरमान ने भी सिर हिला दिया। मल्लिका ने भी हाँ कहा और वहाँ से निकल गई! लेकिन अभी भी उसकी आँखों में नींद बिल्कुल नहीं थी।
रेयांश जल्दी उठ गया था। वो अपने रूम से निकलकर साइड वाले रूम में आया तो देखा ध्रुवा के रूम का दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था। उसने वहीं से दो-चार कदम बढ़ाए और नीचे बालकनी में देखा, जहाँ ध्रुवा नहीं दिखाई दी। वह उसके रूम के दरवाजे पर आ गया। उसने रूम में देखा तो उसे बेड पर कोई नहीं दिखा। उसे यह देखकर हैरानी हुई। उसने अपने हाथ में पकड़े फोन में टाइम देखा; रात के तीन बजकर पैंतीस मिनट हो रहे थे। उसने खुद से बड़बड़ाते हुए कहा, "ये लड़की इतनी रात को कहाँ चली गई!" इतना बोलकर रेयांश सोचते हुए नीचे आया और किचन से पानी लेने लगा। उसने पानी लिया और वहीं हॉल में सोफे पर बैठ गया। वहाँ बहुत अंधेरा था। उसने इधर-उधर देखा और सोफे पर ही लेट गया। कुछ ही मिनट हुए थे कि तभी उसे अजीब सी आवाज़ आई। उसने तुरंत अपनी आँखें खोलीं और इधर-उधर देखा, लेकिन कुछ सेकंड तक जब कोई आवाज़ नहीं आई तो वह वापस से अपनी आँखें बंद करके लेट गया। तभी वापस से उसके कानों में दरवाज़ा खोलने की आवाज़ आई। उसने अपनी एक आँख खोलकर देखा तो एक साया अंदर आ रहा था!
वह साया जैसे ही अंदर आया, उसने सोफे पर सोए हुए रेयांश को अंधेरे में भी देख लिया था, क्योंकि चाँद की रोशनी उसके चेहरे पर हल्की सी पड़ रही थी। वह वहाँ से निकलकर ऊपर जाने को हुआ कि तभी पीछे से आकर रेयांश ने उसे पकड़ लिया था! रेयांश ने उस साये को पकड़ा और उसका हाथ पकड़कर सोफे के पास लाया और लाइट ऑन कर दी! रेयांश ने अभी भी उसे पकड़ा हुआ था, तभी उसके पेट में एक मुक्का पड़ा। रेयांश के पेट में मुक्का पड़ते ही वह सोफे पर गिर गया। तभी ध्रुवा उसकी तरफ पलटी और गुस्से से देखते हुए बोली, "आँखें कमज़ोर हैं तो इलाज करवा लो, और ये बार-बार टच करने की प्रॉब्लम है तो डॉक्टर से जाकर मिलो, समझे? बहुत हल्के से मारा है। अगर कोई और होता ना, छोड़ती नहीं मैं उसे, समझे?" इतना बोलकर वह जैसे ही जाने को हुई, तभी रेयांश ने उसका हाथ पकड़ा और अपनी ओर खींच लिया।
क्रमशः
रेयांश ने उस साये को पकड़ा और उसका हाथ पकड़कर सोफ़े के पास लाया और लाइट ऑन कर दी। रेयांश ने अभी भी उसे पकड़ा हुआ था। तभी उसके पेट में एक मुक्का लगा। रेयांश के पेट में मुक्का लगते ही वह सोफ़े पर गिर गया। तभी ध्रुवा उसकी ओर पलटी और गुस्से से देखते हुए बोली—
"आँखें कमज़ोर हैं तो इलाज करवा लो, और यह बार-बार टच करने की प्रॉब्लम है तो डॉक्टर से जाकर मिलो, समझे? बहुत हल्के से मारा है। अगर कोई और होता, ना छोड़ती मैं उसे, समझे?"
इतना बोल वह जैसे ही जाने को हुई, तभी रेयांश ने उसका हाथ पकड़ा और अपनी ओर खींच लिया। अचानक खींचने से ध्रुवा का बैलेंस बिगड़ा और वह रेयांश के करीब आ गई। लेकिन वह रेयांश के सीने से लगने से पहले ही उसने अपने दोनों हाथ सोफ़े के दोनों हाथों पर टिका लिए। उसने अपनी गुस्से भरी आँखों से रेयांश को देखा और जैसे ही उठकर जाने को हुई, तभी रेयांश ने उसका हाथ वापस पकड़ा और खड़े होकर कहा—
"मुझे शॉक नहीं तुम्हें टच करने का। यह बताओ, कहाँ से आ रही हो, वह भी इतनी रात को...?"
"तुमसे मतलब होते कौन हो तुम यह सब पूछने वाले...?" ध्रुवा ने जैसे ही सुना, उसने घूरकर रेयांश को देखा और कहा—"कहीं भी जाऊँ, मेरी लाइफ, तुम्हें क्यों बताऊँ? तुम्हें तो क्या, किसी को भी क्यों बताऊँ!"
इतना बोल ध्रुवा जाने को हुई, तभी रेयांश सीढ़ियों में आगे आ गया। उसने उसी तरह हल्के गुस्से से कहा—
"मेरा हक बनता है क्योंकि तुम मेरे घर में रहती हो, इसलिए बताना पड़ेगा। क्योंकि तुम खून करके आओ और मेरे घर में रहो तो पुलिस तो कल को हमें पकड़ेगी ना, इसलिए पूछ रहा हूँ!"
खून का और पुलिस का नाम सुनकर ध्रुवा एकटक रेयांश को देखने लगी। उसकी आँखों में कोई भाव नहीं थे और उसका मूड इस बात को अब आगे बढ़ाकर बहस करने का बिल्कुल नहीं था। इसलिए उसने धीरे से कहा—
"नींद नहीं आ रही थी, इसलिए सोचा जॉगिंग जल्दी कर आऊँ, इसलिए चली गई!"
इतना बोल वह आगे बढ़ी ही थी कि उससे पहले रेयांश आगे बढ़ा और वापस कहा—
"और यह हाथ में चोट कैसे लगी...?"
रेयांश का सवाल सुनकर ध्रुवा ने जाते हुए कहा—
"पता नहीं, लग गई बस।"
इतना बोल ध्रुवा बाहर चली गई। उसके ऐसे अजीब बर्ताव से रेयांश को काफी हैरानी हो रही थी। उसने अपनी गर्दन को ना में झटका और कुछ सोचते हुए कमरे में चला गया।
ध्रुवा उसी कमरे में आई और बिस्तर पर लेट गई। लेकिन ऐसी कोई रात नहीं थी जिसने उसका अतीत ना आता हो। उसकी यादें उसके दिल और दिमाग़ में अजीब तरह से बैठी हुई थीं, जो निकलने का नाम ही नहीं ले रही थीं। वह जब भी अपनी आँखें बंद कर लेती थी, तभी उसे अपने अतीत की यादें आने लगती थीं। इसलिए वह अच्छे से सो भी नहीं पाती थी और अभी भी वही हुआ। उसकी कुछ सेकंड में आँख तो लग गई थी, लेकिन उसका चेहरा पसीने से तर-बतर हो चुका था। वह एक झटके में अपनी आँखें खोलकर बिस्तर से उठ बैठी थी। उसकी आँखों में नींद तो थी, लेकिन इन यादों की वजह से वह सो भी नहीं पा रही थी। तब ही उसने पास की दराज को खोला और उससे आधी टेबलेट ले ली। उस दवा के असर से ध्रुवा सो चुकी थी।
तो वही, सुबह हो चुकी थी। सब लोग उठकर अपने-अपने कामों में लगे हुए थे। तारा भी उठकर रेडी होकर आ गई। उसने टाइम देखा तो सुबह के नौ बजने वाले थे। तारा को हैरानी हुई कि जल्दी काम करने वाली ध्रुवा आज अभी तक उठकर नहीं आई। वह चुपचाप आकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गई। तो कल्याणी जी ने उसके सामने नाश्ता रखते हुए कहा—
"तेरी ध्रुवा कहाँ है आज? वह नहीं जा रही क्या...?"
कल्याणी जी की बात सुनकर तारा ने बस मुस्कुराकर कहा—
"पता नहीं, शायद उनकी मॉर्निंग वाली क्लास है, नहीं तो इसलिए लेट जाएगी थोड़ा। मैं नाश्ता करके बुलाकर लाती हूँ।"
इतना बोल तारा ने पराठा लिया और रोल करके खाते हुए ऊपर ध्रुवा के कमरे में चली गई। उसने दरवाज़ा खटखटाया तो अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई। उसने फिर से दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन अभी भी कोई जवाब नहीं आया। तो उसने ज़ोर-ज़ोर से दो-तीन बार एक साथ ही बजाया। तब जाकर अंदर बिस्तर पर सोई ध्रुवा की आँखें खुल गईं। उसने दरवाज़े पर दस्तक सुनी तो वह उठकर आई और दरवाज़ा खोल दिया।
अपने कमरे के दरवाज़े पर खड़ी तारा को देखते हुए ध्रुवा ने अजीब तरह से उसे घूरा और कहा—
"क्या हुआ तुम यहाँ?"
इतना बोल ध्रुवा वापस अंदर आ गई। उसने जैसे ही अपने सामने दीवार पर लगी घड़ी में टाइम देखा तो सुबह के नौ बजने वाले थे। ध्रुवा को इस चीज़ का अहसास तो था कि जब उसने दवाई ली थी तो उसकी इतनी जल्दी आँख नहीं खुलेगी। उसने बिस्तर पर बैठते हुए कहा—
"नौ बज गए। तुम कॉलेज नहीं गई...?"
तारा अंदर आई और बिस्तर पर बैठते हुए बोली—
"मुझे लगा तुम भी चलोगी, इसलिए इंतज़ार कर रही थी। अब तुम नहीं जा रही हो ना...?"
ध्रुवा ने तारा को देखा और कहा—
"मैं भी चलती हूँ। यहाँ बोर हो जाऊँगी। तुम बैठो, मैं दस मिनट में आती हूँ!"
इतना बोल ध्रुवा रेडी होने चली गई।
वही रेयांश किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था। उसने अपने कानों में इयरबर्ड्स लगाए हुए थे और आईने में सामने देखते हुए अपने बालों को सही कर रहा था। तभी सामने से कुछ कहा गया, जिसे सुनकर रेयांश ने मुस्कुराते हुए कहा—
"आपने कर दिया ना मेरा काम? बाकी मैं देख लूँगा। डोंट वरी, मैं पूरी कोशिश करूँगा।"
इतना बोल कुछ देर बात करने के बाद उसने फ़ोन रखा और एक फ़ाइल लेकर बाहर नीचे आ गया। वह जैसे ही नीचे आया, तभी उसकी नज़र ध्रुवा और तारा पर गई जो कि साथ ही आ रहे थे।
क्रमशः...
रेयांश ने मुस्कुराते हुए कहा, "आपने कर दिया ना मेरा काम? बाकी मैं देख लूँगा। डोंट वरी, मैं पूरी कोशिश करूँगा!" इतना बोलकर कुछ देर बात करने के बाद उसने फ़ोन रखा और एक फ़ाइल लेकर लिफ़्ट से नीचे आ गया। जैसे ही वह नीचे आया, उसकी नज़र ध्रुवा और तारा पर पड़ी जो साथ ही आ रहे थे। ध्रुवा ने ब्लैक जीन्स और ब्लैक हूडी पहनी हुई थी। वह ज्यादातर ब्लैक ही कपड़े पहनती थी। उसने बालों को यूँ ही घुमाकर जूड़ा बना रखा था, जिसमे से कुछ बाल इधर-उधर घूम रहे थे। वह तारा के साथ लिफ़्ट से बाहर निकली, तो उसने किसी की तरफ़ भी नहीं देखा और लिफ़्ट से बाहर चली गई। जैसे ही वह बाहर आई, रेयांश भी आ गया था। तारा और ध्रुवा को स्कूटी पर देखकर उसने तारा से कहा, "मैं छोड़ दूँगा, चलो तुम दोनों!"
तारा ने जैसे ही मुँह खोला कुछ बोलने को, उससे पहले ही ध्रुवा ने स्कूटी स्टार्ट करते हुए कहा, "क्यों? हमारे ड्राइवर बन गए हो क्या...?"
ध्रुवा की ऐसी बात सुनकर रेयांश आगे आया और स्कूटी से चाबी निकालकर बोला, "बिल्कुल भी नहीं, लेकिन मैं उसी कॉलेज में जा रहा हूँ, तो सोचा तुम दोनों को लेता चलूँ!" इतना बोलकर रेयांश ने स्कूटी की चाबी ली और घुमाते हुए अपनी कार के पास चला गया।
ध्रुवा उसकी इस हरकत से काफी हद तक आग-बबूला हो गई थी, लेकिन उसने खुद को एक नज़र स्कूटी के शीशे में देखा और तारा से कहा, "जाओ और अपने भाई से चाबी लाओ!"
ध्रुवा के यह बोलते ही तारा ने स्कूटी से उतरते हुए कहा, "रहने दो ना, वैसे ही लेट हो गए हैं, और स्कूटी भी नहीं चल रही। अभी हम भाई के साथ ही चलते हैं ना? आ जाओ अब ध्रुवा, जल्दी से चलते हैं!" तारा के बोलने की वजह से ध्रुवा ने भी बहस करना ठीक न समझा और लिफ़्ट से रेयांश की कार में आकर पीछे बैठ गई। रेयांश ने उसे एक नज़र देखा और कार स्टार्ट कर दी।
कुछ ही देर में सब लोग कॉलेज आ गए थे। वहीँ रोज़ की तरह आरव की गैंग एक साथ बैठकर मज़े कर रही थी। सब लोग अभी भी इधर-उधर बैठे हुए थे। तारा और ध्रुवा दोनों कार से निकलकर बाहर आ गई थीं और दोनों अंदर ही जा रही थीं, लेकिन अभी भी कॉलेज को देखकर कोई नहीं बता सकता था कि यहाँ पढ़ाई भी हो रही होगी, क्योंकि कुछ बच्चे अभी भी बाहर बैठे बातें कर रहे थे। ध्रुवा और तारा जा ही रही थीं कि तभी ध्रुवा को अहसास हुआ जैसे कोई उसके बगल में चल रहा है। उसने देखा तो रेयांश था। रेयांश ने दोनों को देखा और लिफ़्ट से प्रिंसिपल के ऑफिस की ओर चला गया।
तारा भी अपनी क्लास में चली गई थी, और ध्रुवा अपनी क्लास में आई तो देखा अभी तक क्लास में प्रोफ़ेसर भी नहीं आए थे। ध्रुवा वहीं से बाहर निकल गई थी और कॉलेज में इधर-उधर घूम रही थी। वह हर चीज़ को बड़े ध्यान से देख रही थी। उसकी नज़र चील से भी तेज बनी हुई थी। उसने चारों ओर देखकर मुस्कुराते हुए खुद से कहा, "इस लाइन में तेरह रूम हैं एंड इसी साइड सिर्फ़ चार कैमरा। वाह! लेकिन हर रूम में भी कैमरा है, जब रूम में हैं तो बाहर इतने क्यों लगा रखे हैं इन लोगों ने?" इतना बोलते हुए ध्रुवा लिफ़्ट से कैंटीन साइड जाने को हुई कि तभी उसकी नज़र प्रिंसिपल के ऑफिस पर गई तो उसके कदम बाहर ही रुक गए। उसने अंदर से आती आवाज़ को सुना जहाँ प्रिंसिपल के साथ रेयांश की भी आवाज़ आ रही थी। ध्रुवा कान लगाकर सुनने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसे कुछ साफ़ सुनाई नहीं दे रहा था, सिर्फ़ हँसने की आवाज़ आ रही थी।
वहीं प्रिंसिपल ने रेयांश की ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "उनसे मेरी बात हो गई थी, और तुम्हारा सच..." उन्होंने इतना ही बोला था कि तभी रेयांश ने उन्हें चुप रहने का इशारा किया तो प्रिंसिपल चुप हो गए। वह खुद हैरान थे कि रेयांश उन्हें चुप क्यों कर रहा है। रेयांश की नज़र दरवाज़े पर गई जहाँ से एक परछाई कमरे के पर्दे के साइड में दिखाई दे रही थी। वह अपने हल्के-हल्के कदमों से आया और बाहर देखा तो उसे ध्रुवा दिखाई दे गई थी। उसने अपने एक पैर पीछे किया और एक बार खासकर आगे बढ़ा, लेकिन ध्रुवा उसके खांसने की आवाज़ सुनकर साइड हो गई थी। रेयांश ने इधर-उधर देखा और मुस्कुराते हुए प्रिंसिपल की साइड देखकर कहा, "इस बात को यहीं छोड़ते हैं। आप मुझे क्लास रूम बता दीजिये, और हाँ, मैंने जो कहा है उसका ध्यान आप रखना। यह बात सिर्फ़ हमारे बीच में ही रहनी चाहिए!" बाकी मैं आपसे क्लास के बाद मिलता हूँ! इतना बोलकर रेयांश लिफ़्ट से चला गया। उसके जाते ही प्रिंसिपल ने किसी को फ़ोन किया और बात करने लगा। उसके माथे पर अजीब सी शिकन आ गई थी। उन्होंने कुछ देर बात की और वापस से अपना कोई काम करने लगे।
तो वहीं रेयांश अपनी क्लास के लिए रूम में जा रहा था कि तभी उसे एक साइड में दीवार से टेक लगाकर खड़ी ध्रुवा कुछ सोच में गुम थी। उसके चेहरे के भाव एकदम सख्त थे। वह बस एकटक शून्य में देख रही थी। इस साइड बच्चे भी ज़्यादा नहीं थे। तभी उसके बगल में रेयांश आकर खड़ा हो गया। उसने देखा ध्रुवा अभी भी किसी सोच में थी। तभी रेयांश ने अपनी गर्दन को आगे किया और उसके सामने से देखने लगा। ध्रुवा को अहसास हुआ जैसे कोई उसके बगल में हो। उसने तुरंत अपने साइड में देखा तो रेयांश खड़ा हुआ था। ध्रुवा ने रेयांश को घूरा और लिफ़्ट से जैसे ही जाने को हुई कि रेयांश की आवाज़ उसके कानों में पड़ी, "क्या बातें सुनी तुमने...?"
"यह आवाज़ सुनकर ध्रुवा के कदम रुक गए थे। उसने पलटकर रेयांश को देखा और अपनी बाहों को ऊँचा करके अपने हाथों को बाँधते हुए कहा, "तुमने अभी तक मेरे सामने किसी से बात नहीं की, तो बताओ जरा किसकी बात सुनी मैंने...?"
ये आवाज़ सुनकर ध्रुव के कदम रुक गए थे। उसने पलटकर रेयांश को देखा और अपनी बाहें ऊँचा करके हाथ जोड़ते हुए कहा— "तुमने अभी तक मेरे सामने किसी से बात नहीं की, तो बताओ जरा किसकी बात सुनी मैंने? और जाओ, जाकर बच्चों को पढ़ाओ।" इतना बोल ध्रुव वहाँ से चली गई।
"रेयांश ने उसे घूरा और वहाँ से वह भी खुद से बड़बड़ाते हुए चला गया। उसने इधर-उधर देखा और किसी से पूछकर सेकेंड फ्लोर पर आ गया। उसने आकर एक कमरे में बाहर से देखा और उसके अंदर आ गया। जैसे ही उसने क्लास में कदम रखा, उसकी नज़र वापस से सामने बैठी ध्रुव पर गई जो कि बुक में कुछ कर रही थी। उसने अभी तक अपनी नज़रें नहीं उठाई थीं। सब बच्चे रेयांश को देख रहे थे। किसी को भी नहीं पता था कि रेयांश प्रोफ़ेसर हैं। सब बच्चे अभी भी अपने काम में लगे हुए थे। तभी अचानक ध्रुव को लगा सामने कोई है। उसने अचानक ही नज़रें उठाईं और सामने देखा तो रेयांश खड़ा हुआ था। रेयांश ने ध्रुव को देखा और जैसे ही कुछ बोलने को हुआ, तभी ध्रुव ने टेबल से खड़े होकर हाथ पटकते हुए थोड़े गुस्से से कहा—"आह्ह्ह! तुम यहाँ भी आ गए! तुम्हें कितनी बार बोल दिया ना, जाकर अपनी क्लास लो! मेरा पीछा क्यों कर रहे हो! तुम यहाँ भी आ गए...?"
"रेयांश कुछ बोलता उससे पहले ही ध्रुव ने उसकी ओर देखकर गुस्से से कहा—"तुम्हें अभी भी समझ नहीं आ रहा?" ध्रुव की बात सुनकर सब बच्चों का ध्यान दोनों पर चला गया। उसने टेबल पर हाथ रखा और कहा—"शांत रहो।" इतना बोल रेयांश बात करने लगा। उसने सब बच्चों को परिचय दिया और पढ़ाने लगा। सब बच्चे उसे देखकर यकीन भी नहीं कर रहे थे। ध्रुव चुपचाप बस पढ़ाई कर रही थी। उसने कुछ देर पढ़ाई की और उठकर वहाँ से चली गई। रेयांश अभी भी पढ़ा रहा था। उसने जाती हुई ध्रुव को देखा और एक नज़र खुद से बड़बड़ाने लगा।
ध्रुव क्लास से निकलकर बाहर गार्डन में आ गई और चेयर पर बैठकर बुक निकालकर पढ़ने लगी। तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो ध्रुव ने पीछे मुड़कर देखा तो आरव उसके पीछे खड़ा हुआ था।
आरव को देखकर ध्रुव ने अपनी बुक बंद की और कहा—"तुम यहाँ बैठकर क्या कर रही हो...?"
ध्रुव ने वापस से अपनी नज़रें हटाईं और अपनी बुक खोलकर वापस पढ़ने लगी। ध्रुव का इस तरह इग्नोर करना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था। वह मुस्कुराते हुए ध्रुव के पास आया और चेयर पर बैठ गया। उसने अपने दोनों हाथों को बाँधा हुआ था और वह मुस्कुराते हुए ध्रुव को देख रहा था। उसने सामने देखते हुए कहा—"बता भी दो, क्लास छोड़कर यहाँ क्या कर रही हो...?"
ध्रुव ने आरव की बात सुनी और बिना किसी भाव के कहा—"कुछ नहीं। मन नहीं था।" इतना बोल उसने अपनी बुक खोली और पढ़ने लगी। तभी आरव की नज़र उसके हाथ पर गई। उसने ध्रुव के हाथ को देखा और इशारा करते हुए कहा—"हाथ में चोट कैसे लगी?"
ध्रुव ने मन में कुछ सोचा और मुस्कुराते हुए कहा—"फिसल गई थी। अभी ठीक हूँ। तुम बताओ...? तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है...?"
ध्रुव का सवाल सुनकर आरव ने उसे देखा और कहा—"बस बढ़िया। निया से थोड़ा संभल कर।" इतना बोलकर आरव वहाँ से चला गया। उसके जाते ही ध्रुव ने वापस से उसे देखा और अपनी गर्दन को ना में हिलाकर अपनी बुक पढ़ने लगी।
रेयांश और तारा दोनों एक साथ आ गए थे। उसने इधर-उधर देखा तो तभी तारा ने देखा ध्रुव अपनी बुक रखकर सो चुकी थी। उसने सिर्फ़ अपनी आँखें बंद की हुई थीं। उसके सर में दर्द हो रहा था।
तारा ने उसके चेहरे से बुक ली और उसके बैग में रखकर उसके कंधे पर हाथ रखकर उठाकर कहा—"उठो ना यार! घर चलना है ना!"
तारा की आवाज़ सुनकर ध्रुव ने उसे देखा और अपने हाथ की ओर देखकर कहा—"तुम लोग आ गए? चलें घर पर!" इतना बोल ध्रुव वहाँ से उठकर चली गई। वह जैसे ही बाहर पार्किंग में आई, तभी उसकी नज़र रेयांश की कार पर गई। उसने अपने कदम कार की ओर किए और हल्का सा नीचे झुककर कार को देखा और अपने पीछे आ रहे रेयांश की ओर देखकर बोली—"टायर में हवा नहीं है। स्ट्रेंज ना...?"
रेयांश ने ध्रुव की बात सुनी और अपनी कार के टायर को देखते हुए कहा—"ये कैसे हुआ...? सुबह तक तो सही थी बिल्कुल।"
दोनों के परेशान और कार का टायर पंक्चर देखकर तारा ने दोनों की ओर देखते हुए कहा—"अब हम घर कैसे जाएँगे?" वह अभी यही बोल पाई थी कि तभी ध्रुव ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा—"ऑटो से चलेंगे ना!" इतना बोलकर उसने तारा को पकड़कर ले गई। रेयांश भी चुपचाप उनके पीछे आ गया था। वे सब बाहर आकर खड़े हो गए थे।
वे लोग ऑटो का इंतज़ार ही कर रहे थे कि तभी एक कार उनके सामने आकर रुकी। ध्रुव का ध्यान उस कार पर गया तो वह पीछे हो गई। तभी वापस से कार से हॉर्न की आवाज़ आई। इस बार रेयांश आगे आया और कार की ओर देखकर बोला—"क्या प्रॉब्लम है भैया?"
रेयांश के यह बोलते ही कार में बैठे आरव ने कार का शीशा नीचे किया और मुस्कुराते हुए कहा—"सर आपको कोई हेल्प चाहिए? वो मैंने... आप लोगों की कार खराब हो गई है। इसलिए आप लोगों को अजीब ना लगे तो मैं ड्रॉप कर देता हूँ।"
रेयांश ने आरव की बात सुनी और कहा—"हाँ हाँ, बिल्कुल। वैसे भी हमें घर जाना ही है।" इतना बोलकर उसने तारा और ध्रुव को देखा और कहा—"चलो आ जाओ।" उसके यह बोलते ही दोनों चुपचाप आकर बैठ गईं। तारा और ध्रुव पीछे बैठे हुए थे और रेयांश आरव के साथ। आरव की नज़र बार-बार ध्रुव पर जा रही थी।
रेयांश के ये शब्द मुँह से निकलते ही कार में बैठे आरव ने कार का शीशा नीचे किया और मुस्कुराते हुए कहा, "सर, आपको कोई सहायता चाहिए? वो... आप लोगों की कार खराब हो गई है! इसलिए आप लोगों को अजीब न लगे तो मैं ड्रॉप कर देता हूँ!"
रेयांश ने आरव की बात सुनी और कहा, "हाँ हाँ, बिलकुल। वैसे भी हमें घर जाना ही है।" इतना बोलकर उसने तारा और ध्रुवा को देखा और कहा, "चलो आ जाओ।" उसके ये शब्द पड़ते ही दोनों चुपचाप आकर बैठ गईं। तारा और ध्रुवा पीछे बैठे हुए थे, और रेयांश आरव के साथ। आरव की नज़र बार-बार ध्रुवा पर जा रही थी और यह चीज़ ध्रुवा से ज़्यादा रेयांश महसूस कर रहा था! उसने सामने देखते हुए कहा, "तुम्हें पता है कार चलाने वाले का ध्यान हमेशा सामने होना चाहिए, बैक मिरर में नहीं!" उसके ये शब्द सुनते ही आरव ने तुरंत अपनी नज़रें ध्रुवा से हटा लीं!
"आपने आज ही ज्वाइन किया है। उससे पहले क्या करते थे आप? मैंने आपको इन दोनों के साथ कभी नहीं देखा!" आरव ने रेयांश की ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा।
आरव की बात सुनकर तारा ने रेयांश के बोलने से पहले ही कहा, "आपको क्या लेना-देना है जानकर? पता नहीं भाई को पूरी दुनिया में आपकी ही कार मिली थी क्या!" इतना बोल तारा ने खिड़की से बाहर गर्दन निकाली और देखने लगी।
तारा के इस तरह जवाब देने पर आरव ने कोई सवाल नहीं किया। ध्रुवा खिड़की पर अपना हाथ रखे बैठी थी। तभी वापस से आरव ने कहा, "तुम्हें आई थिंक डॉक्टर को दिखा लेना चाहिए। हाथ में इन्फेक्शन भी हो सकता है।" आरव की बात सुनकर ध्रुवा उसी की ओर देखने लगी। तभी तारा और रेयांश का ध्यान भी ध्रुवा पर गया। तभी उसे कल रात वाली बात याद आ गई! उसने ध्रुवा के जवाब का इंतज़ार किया। तभी ध्रुवा ने बिना देखे कहा, "ओके।" इतना बोल वो शांत बैठ गई।
तो वहीं एक कमरे में एक लड़का बैठा हुआ था। उसके सामने टेबल पर लैपटॉप, दो फोन और काफी सारे पिंस, चिप वगैरह रखे हुए थे। उसके कानों में इयरफोन लगे हुए थे और वो बस एकटक सामने देखते हुए अपनी उंगलियाँ काफी तेज़ी से उस लैपटॉप में चला रहा था। लगभग कुछ देर एकटक उसमें देखने के बाद अचानक ही उस लड़के के हाथ रुक गए। उसने एक नज़र लैपटॉप पर देखी और एक हाथ से अपना फोन लेकर मुस्कुराते हुए बोला, "आई एम प्राउड ऑफ़ मी! जो मैं बोलता हूँ वो होकर रहता है। ऐसे ही मेरा नाम शान थोड़ा ना है! उसने जो काम बोला था वो हो चुका है!" "लेकिन अभी तक कुछ ऐसा है जो यहाँ मेरे हाथ से कुछ छूट रहा है!" "सबसे पहले मुझे इन सब का पता लगाना होगा, उसके बाद ही मैं बॉस को ये गुड न्यूज़ दूँगा!" इतना बोल वो लड़का अपना काम करने लगा।
तो वहीं एक सुनसान सी सड़क थी जिस पर कोई नहीं आता-जाता था। तभी वहाँ एक कार फुल स्पीड में आई और एक गोदाम के बाहर आकर रुक गई। कार जैसे ही रुकी, तभी एक ही मिनट में सामने गोदाम में लगे हुए शटर खुल गया। उसके खुलते ही वो कार एकदम स्पीड से अंदर चली गई! उस कार के जाते ही वो शटर फिर से एकदम बंद हो गया। तभी उस लाल कार का दरवाज़ा खुला और एक हाथ बाहर आया। उसने एक औरत और एक सुंदर सा आदमी बाहर निकाला! उस आदमी ने इधर-उधर देखा और मुस्कुराते हुए बोला, "बुला लो अपने बॉस को और बोलो उनका बॉस आया है! और हाँ, थोड़ा जल्दी आएँ, वरना मेरा मूड तो एक मिनट भी नहीं लगाता चेंज करने में!"
उस आदमी के इतना बोलते ही उसके सामने खड़े आदमी ने अपना फोन लिया और जैसे ही किसी को फोन करने को हुआ, तभी अचानक उन सबके कानों में उस गैराज के शटर के खुलने की आवाज़ आई। सबने पीछे मुड़कर देखा तो सामने से एक गाड़ी आ रही थी। उसे देखकर वो आदमी मुस्कुराया और अपने हाथों को अपनी गाड़ी पर रखकर उसी पर बैठ गया! वो औरत भी उसके पास खड़ी हुई, बस सामने देख रही थी। उसने डायमंड की ज्वैलरी पहनी हुई थी। उसने अपने बगल में खड़े अपने पति को देखा और कहा, "इस बार कोई अच्छी सी लड़की लेना जिससे हमें ज़्यादा पैसे मिलें! पिछली बार वो लड़की ने क्या किया था ना पता है ना आपको?" "उसने मिस्टर बांगडू को जान से मारने की कोशिश की और खुद मर गई, इसलिए इस बार कोई अच्छी सी लड़की लेना!"
उस औरत की बात सुनकर उस आदमी के चेहरे पर भी थोड़ी टेंशन की लकीरें उभर आई थीं। उसने अपने हाथों से अपने माथे पर दो उंगलियाँ फिराईं और वहाँ से सामने देखने लगा। उसने सामने देखा तो उस गाड़ी में से एक आदमी आकर खड़ा हो गया था। उस आदमी ने व्हाइट कलर का कुर्ता पहना हुआ था और हाथ में सोने की घड़ी। उस आदमी और उस औरत ने उस आदमी को देखा और कहा, "एमएलए साहब... कहाँ थे आप? आपको अच्छे से मालूम है हमारी मोहतरमा को इंतज़ार करना पसंद नहीं...? फिर भी आपने हमारा कितना समय खराब किया...?"
एमएलए यानी यशपाल सिंह चौधरी ने उन दोनों को देखा और उस औरत की ओर देखकर कहा, "क्या रानी जी, आपको अच्छा माल भी चाहिए और... और इंतज़ार भी नहीं करना? ये तो गलत है ना...?"
यशपाल के ये शब्द सुनते ही रानी ने उसकी तरफ़ एक मुस्कुराहट दी और कहा, "दिखा दीजिए कोई अच्छा सा माल... तब जानेंगी हम भी कि आपने हमारे इंतज़ार का फल हमें अच्छा दिया है!"
यशपाल ने रानी की बात सुनी और अपने एक आदमी को इशारा कर दिया। तभी वहाँ कुछ ही मिनट में सात लड़कियों को लाकर खड़ा कर दिया था। सब लड़कियाँ बस रो रही थीं, उनके मुँह और हाथ दोनों बंधे हुए थे! रानी सबको बड़े ध्यान से देख रही थी। उसने काफी अच्छे से देखने के बाद यशपाल को देखा और कहा, "ये तीसरे नंबर वाली लड़की..." उसका इतना बोलना ही था...