कई सदियों से, प्रेम को सबसे पवित्र भावना माना जाता रहा है। लेकिन क्या हो अगर एक प्रेम कहानी समय की दीवारों को लांघकर दो आत्माओं को बार-बार जोड़ने की कोशिश करे? कहते हैं कि कुछ प्रेम कहानियाँ अधूरी रह जाती हैं, लेकिन खत्म नहीं होतीं। वे बार-बार ज... कई सदियों से, प्रेम को सबसे पवित्र भावना माना जाता रहा है। लेकिन क्या हो अगर एक प्रेम कहानी समय की दीवारों को लांघकर दो आत्माओं को बार-बार जोड़ने की कोशिश करे? कहते हैं कि कुछ प्रेम कहानियाँ अधूरी रह जाती हैं, लेकिन खत्म नहीं होतीं। वे बार-बार जन्म लेती हैं, जब तक कि वे मुकम्मल न हो जाएँ। यही कहानी है आरव और मीरा की—एक ऐसी प्रेम गाथा जो सदियों पुरानी है, लेकिन फिर भी अधूरी है।
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आरव की पलकें धीरे-धीरे खुलीं। सिर में हल्का दर्द था, मानो कोई गहरी नींद से अचानक जगा दिया गया हो। आँखों के सामने सब कुछ धुंधला था—हल्की सफ़ेदी, तेज़ रोशनी, और अस्पष्ट आवाज़ें।
उसने खुद को हिलाने की कोशिश की, लेकिन शरीर में अजीब-सी जकड़न थी।
"तुम्हें होश आ गया! डॉक्टर को बुलाओ!"
किसी ने घबराई हुई आवाज़ में कहा।
आरव ने धीरे-धीरे गर्दन घुमाई। सामने एक अजनबी चेहरा था—मध्यम उम्र की एक नर्स, जिसकी आँखों में चिंता और राहत दोनों थीं।
"कैसा महसूस कर रहे हो?"
उसने कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन गले से आवाज़ नहीं निकली। सिर्फ़ हल्की सरसराहट।
"शांत रहो, तुम कई दिनों से कोमा में थे। डॉक्टर बस आते ही होंगे।"
कुछ मिनट बाद डॉक्टर अंदर आए। उनके चेहरे पर पेशेवर गंभीरता थी। उन्होंने स्टेथोस्कोप से जाँच की, फिर सवाल किया—
"तुम्हें याद है कि तुम कौन हो?"
आरव ने पलकें झपकाईं।
उसके दिमाग़ में अजीब-सा सन्नाटा था।
उसका नाम...?
उसने खुद से पूछा, लेकिन जवाब नहीं मिला।
उसका घर...?
कोई तस्वीर नहीं उभरी।
उसकी पहचान जैसे किसी गहरी धुंध में खो चुकी थी।
"तुम्हारा नाम क्या है?" डॉक्टर ने फिर पूछा।
आरव ने बोलने की कोशिश की, लेकिन सिर्फ़ एक खालीपन महसूस हुआ।
"मुझे... याद नहीं..."
कमरे में एक अजीब-सी खामोशी छा गई।
डॉक्टर ने सिर हिलाया, "शायद सिर पर गहरी चोट लगने की वजह से तुम्हारी याददाश्त चली गई है। चिंता मत करो, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।"
आरव ने अपनी आँखें बंद कीं, अपने दिमाग़ को झकझोरने की कोशिश की।
और तभी, एक हल्की-सी छवि उभरी—
एक लड़की की छवि।
लंबे काले बाल, गहरी आँखें, हल्की मुस्कान...
लेकिन जैसे ही उसने उस चेहरे को पहचानने की कोशिश की, वह धुंध में गुम हो गई।
"ये कौन थी?"
आरव ने अपनी साँसें रोकीं।
क्या वह उसकी कोई करीबी थी? कोई दोस्त? या... उससे भी ज़्यादा कुछ?
पर जवाब फिर से खो गया।
4. बीते दिनों की परछाइयाँ
अस्पताल में तीन दिन बीत गए। धीरे-धीरे उसकी हालत बेहतर हो रही थी, लेकिन उसकी याददाश्त अब भी एक खाली पन्ने जैसी थी।
डॉक्टर ने उसे बताया कि वह एक सड़क दुर्घटना में घायल हुआ था।
"कोई पहचान पत्र नहीं मिला था तुम्हारे पास। पुलिस को भी कोई रिपोर्ट नहीं मिली। ऐसा लगता है कि तुम्हें कोई ढूँढ नहीं रहा।"
आरव को अजीब-सा महसूस हुआ।
क्या उसकी कोई फैमिली नहीं थी?
कोई दोस्त, कोई अपना?
तीसरे दिन, नर्स ने उसे एक छोटा बैग दिया।
"यह तुम्हारे साथ अस्पताल लाया गया था। शायद इससे तुम्हें कुछ याद आ जाए।"
आरव ने बैग खोला।
उसमें सिर्फ़ कुछ कपड़े थे और एक स्केचबुक।
उसने धीरे-धीरे स्केचबुक का पहला पन्ना पलटा।
और उसकी साँसें थम गईं।
हर पन्ने पर एक ही लड़की की तस्वीर बनी थी।
वही लड़की, जो उसके ज़ेहन में धुंधली छवि की तरह बार-बार आ रही थी।
कौन थी वह?
क्यों उसकी तस्वीरें बार-बार बनाई गई थीं?
क्या वह उसकी ज़िंदगी का हिस्सा थी? या सिर्फ़ एक कल्पना?
आरव के दिमाग़ में सवालों का तूफ़ान उठ चुका था।
कौन थी वह?
क्यों उसकी तस्वीरें बार-बार बनाई गई थीं?
क्या वह उसकी ज़िंदगी का हिस्सा थी? या सिर्फ़ एक कल्पना?
आरव के दिमाग़ में सवालों का तूफ़ान उठ चुका था।
लेकिन इन सवालों के जवाब उसे कहीं नहीं मिले...
आरव अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुका था। डॉक्टरों ने कहा था कि उसकी याददाश्त धीरे-धीरे वापस आ सकती है, लेकिन इसमें हफ़्तों या महीनों भी लग सकते थे।
अब वह एक छोटे से गेस्टहाउस में रह रहा था, जो पुलिस ने उसके लिए अस्थायी रूप से उपलब्ध कराया था।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल अब भी वही था—वह कौन था?
उसके पास कोई आईडी नहीं थी, न कोई मोबाइल, और न ही कोई संपर्क करने वाला व्यक्ति।
लेकिन उसकी स्केचबुक...
उसमें एक ही लड़की की अनगिनत तस्वीरें थीं।
"क्या वह मेरी प्रेमिका थी?"
"अगर हाँ, तो वह कहाँ है?"
आरव का दिल किसी अनजाने डर से भर गया।
उसने स्केचबुक को और ध्यान से देखा।
हर तस्वीर के नीचे एक छोटा-सा नाम लिखा था—"मीरा"।
"मीरा?"
नाम सुनते ही एक हल्की-सी गर्माहट उसके सीने में उठी, जैसे यह नाम उसके लिए अजनबी नहीं था।
लेकिन कौन थी मीरा?
आरव ने स्केचबुक के पिछले पन्ने देखे। आख़िरी पेज पर एक पते जैसा कुछ लिखा था—
"संगम कॉलोनी, वाराणसी"
"क्या यह मीरा का पता है?"
उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
"मुझे वहाँ जाना होगा। शायद वही मेरी पहचान की चाबी हो।"
---
वाराणसी की तंग गलियों में एक पुराना मकान था, जहाँ मीरा अपने छोटे भाई आदित्य के साथ रहती थी।
मीरा एक खोजी पत्रकार थी। उसकी ज़िंदगी रोमांच और साज़िशों से भरी थी। वह हमेशा सच की तलाश में लगी रहती थी।
उसका जीवन सरल था, लेकिन कुछ समय से उसे अजीब-अजीब सपने आ रहे थे।
एक अजनबी किले की छवि...
बारिश में भीगती एक पेंटिंग...
और कोई जिसे वह जानती थी, लेकिन पहचान नहीं पाती थी।
उसने अपने सपनों के बारे में अपने दोस्त अनिकेत को बताया।
"ये सिर्फ़ तुम्हारा वहम है, मीरा।" अनिकेत ने हँसकर कहा।
"लेकिन ये सिर्फ़ सपने नहीं हैं... ऐसा लगता है जैसे मैंने इन्हें कहीं देखा है, कहीं महसूस किया है..."
मीरा को एहसास नहीं था कि उसकी ज़िंदगी जल्द ही बदलने वाली थी।
दूसरे दिन, मीरा अपनी गली से बाहर निकली ही थी कि अचानक उसके सामने एक युवक आकर रुका।
उसकी आँखों में उलझन थी, जैसे वह उसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो।
"क्या तुम मीरा हो?"
मीरा चौंक गई।
"हाँ, लेकिन आप कौन?"
आरव ने धीरे-धीरे स्केचबुक खोली और उसके सामने रख दी।
मीरा ने पन्ने पलटे और उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।
हर पेज पर उसकी तस्वीर थी।
"ये क्या है? ये तस्वीरें तुमने कहाँ से पाईं?"
आरव ने गहरी साँस ली।
"मुझे कुछ याद नहीं... लेकिन मेरे पास बस यही एक चीज़ है जो मेरे अतीत से जुड़ी है।"
मीरा के हाथ से स्केचबुक गिर गई।
"मैंने तुम्हें पहले कभी नहीं देखा। फिर भी... मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि मैं तुम्हें जानती हूँ?"
दोनों की आँखों में कुछ था—एक पुरानी पहचान, एक अनकही कहानी।
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बीते समय की झलकियाँ
मीरा ने स्केचबुक को फिर से उठाया और आखिरी पन्ना खोला।
उसके हाथ ठिठक गए।
एक स्केच था—एक पुराना किला, जिसके ऊपर बादल छाए हुए थे।
"ये किला मुझे जाना-पहचाना क्यों लग रहा है?"
आरव के ज़ेहन में अचानक एक झटका-सा महसूस हुआ।
उसने अपनी आँखें बंद कीं, और कुछ छवियाँ तेज़ी से उसके दिमाग़ में दौड़ने लगीं—
बारिश में खड़ा एक आदमी...
एक स्तंभ के पीछे छिपी एक लड़की...
कोई तेज़ चीख रहा था...
उसने आँखें खोल दीं और मीरा की ओर देखा।
"मुझे लगता है... हम दोनों किसी गहरे रहस्य से जुड़े हुए हैं।"
मीरा की साँसें तेज़ हो गईं।
मीरा और आरव चुपचाप सड़क के किनारे बने छोटे से चाय के ढाबे में बैठे थे।
मीरा की उंगलियाँ अब भी स्केचबुक के पन्नों को महसूस कर रही थीं। उसकी तस्वीरें किसी ने इतनी बारीकी से बनाई थीं, जैसे कलाकार उसे बरसों से जानता हो।
"क्या तुम सच में मुझे नहीं जानते?" मीरा ने संदेह से पूछा।
आरव ने सिर हिलाया।
"मुझे कुछ भी याद नहीं है... लेकिन जब मैंने तुम्हारी तस्वीरें देखीं, तो मेरे अंदर कुछ अजीब-सा महसूस हुआ। जैसे मैं तुम्हें हमेशा से जानता हूँ, लेकिन भूल गया हूँ।"
मीरा ने गहरी साँस ली।
"मुझे लगता है, हमें इसके पीछे की सच्चाई खोजनी होगी।"
पुराना किला
अगले दिन मीरा और आरव संगम कॉलोनी से कुछ किलोमीटर दूर स्थित शिवगढ़ किले के बारे में जानकारी लेने गए।
मीरा को यह किला अपने सपनों में बार-बार दिखता था।
पुराने शहर के बुजुर्गों से पूछने पर उन्हें पता चला कि यह किला करीब 400 साल पुराना था और इसका इतिहास काफी रहस्यमयी था।
"इस किले में एक दर्दनाक प्रेम कहानी दबी हुई है।" एक बूढ़े पंडितजी ने बताया।
"कहानी?" मीरा चौंकी।
पंडितजी ने गहरी नज़र से आरव और मीरा को देखा, फिर बोले—
"कहते हैं, सदियों पहले यहाँ राजकुमारी मृणालिनी रहती थी। वह एक चित्रकार से प्रेम करती थी, जिसका नाम अर्जुन था। लेकिन समाज ने इस प्रेम को स्वीकार नहीं किया।"
मीरा और आरव की साँसें तेज़ हो गईं।
"फिर क्या हुआ?" आरव ने उत्सुकता से पूछा।
पंडितजी ने एक ठंडी साँस भरी।
"कहते हैं कि राजकुमारी के परिवार ने अर्जुन को मरवा दिया, और दुखी मृणालिनी ने किले की सबसे ऊँची मीनार से कूदकर अपनी जान दे दी। लेकिन मरते समय उसने एक वचन लिया—"हम फिर मिलेंगे...""
आरव और मीरा को एक झटका सा लगा।
"क्या यह सिर्फ़ एक कहानी है?" मीरा ने घबराकर पूछा।
पंडितजी हल्के से मुस्कुराए।
"शायद। लेकिन कहते हैं कि आज भी उस किले में रहस्यमयी घटनाएँ होती हैं। कुछ लोगों ने वहाँ एक परछाईं को भटकते हुए देखा है। कुछ ने सुना है कि वहाँ आधी रात को किसी के रुदन की आवाज़ आती है।"
आरव और मीरा ने एक-दूसरे को देखा।
क्या यह सिर्फ़ एक संयोग था? या उनका अतीत इस किले से किसी तरह जुड़ा था?
रात को मीरा अपने कमरे में थी, लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी।
उसने खिड़की से बाहर देखा—चाँदनी रात थी। ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी
आरव ने सिर हिलाया।
"मुझे कुछ भी याद नहीं है... लेकिन जब मैंने तुम्हारी तस्वीरें देखीं, तो मेरे अंदर कुछ अजीब-सा महसूस हुआ। जैसे मैं तुम्हें हमेशा से जानता हूँ, लेकिन भूल गया हूँ।"
मीरा ने गहरी साँस ली।
"मुझे लगता है, हमें इसके पीछे की सच्चाई खोजनी होगी।"
2. पुराना किला
अगले दिन मीरा और आरव संगम कॉलोनी से कुछ किलोमीटर दूर स्थित शिवगढ़ किले के बारे में जानकारी लेने गए।
मीरा को यह किला अपने सपनों में बार-बार दिखता था।
पुराने शहर के बुजुर्गों से पूछने पर उन्हें पता चला कि यह किला करीब 400 साल पुराना था और इसका इतिहास काफी रहस्यमयी था।
"इस किले में एक दर्दनाक प्रेम कहानी दबी हुई है।" एक बूढ़े पंडितजी ने बताया।
"कहानी?" मीरा चौंकी।
पंडितजी ने गहरी नज़र से आरव और मीरा को देखा, फिर बोले—
"कहते हैं, सदियों पहले यहाँ राजकुमारी मृणालिनी रहती थी। वह एक चित्रकार से प्रेम करती थी, जिसका नाम अर्जुन था। लेकिन समाज ने इस प्रेम को स्वीकार नहीं किया।"
मीरा और आरव की साँसें तेज़ हो गईं।
"फिर क्या हुआ?" आरव ने उत्सुकता से पूछा।
पंडितजी ने एक ठंडी साँस भरी।
"कहते हैं कि राजकुमारी के परिवार ने अर्जुन को मरवा दिया, और दुखी मृणालिनी ने किले की सबसे ऊँची मीनार से कूदकर अपनी जान दे दी। लेकिन मरते समय उसने एक वचन लिया—"हम फिर मिलेंगे...""
आरव और मीरा को एक झटका सा लगा।
"क्या यह सिर्फ़ एक कहानी है?" मीरा ने घबराकर पूछा।
पंडितजी हल्के से मुस्कुराए।
"शायद। लेकिन कहते हैं कि आज भी उस किले में रहस्यमयी घटनाएँ होती हैं। कुछ लोगों ने वहाँ एक परछाईं को भटकते हुए देखा है। कुछ ने सुना है कि वहाँ आधी रात को किसी के रुदन की आवाज़ आती है।"
आरव और मीरा ने एक-दूसरे को देखा।
क्या यह सिर्फ़ एक संयोग था? या उनका अतीत इस किले से किसी तरह जुड़ा था?
रात को मीरा अपने कमरे में थी, लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी।
उसने खिड़की से बाहर देखा—चाँदनी रात थी। ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी, लेकिन मन में एक अजीब बेचैनी थी।
उसने धीरे-धीरे आँखें बंद कीं।
और फिर...
एक धुंधली छवि उभरी।
वही किला।
एक युवती, जो भारी रेशमी लहँगा पहने शीशे के सामने खड़ी थी।
उसकी आँखें उदास थीं।
"मृणालिनी..."
मीरा ने झटके से आँखें खोलीं।
उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
"क्या यह सपना था, या मेरी कोई भूली हुई याद?"
अगले दिन, आरव और मीरा ने तय किया कि वे शिवगढ़ किले में जाकर खुद देखेंगे कि वहाँ क्या छिपा है।
वे एक टैक्सी लेकर किले की ओर चल पड़े। रास्ते में आरव ने महसूस किया कि उसके अंदर एक अजीब बेचैनी थी।
"मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि मैं पहले भी इस जगह आया हूँ?"
"शायद तुम्हारी याददाश्त लौट रही है।" मीरा ने कहा।
जैसे ही वे किले के पास पहुँचे, वहाँ की पुरानी दीवारें, टूटी हुई खिड़कियाँ और घने पेड़ों के बीच खड़ा वह भव्य ढाँचा देख, दोनों को एक गहरी सिहरन महसूस हुई।
किला वीरान था।
पर ऐसा लग रहा था, जैसे यहाँ कुछ छुपा हो...
वे किले के अंदर पहुँचे। जगह-जगह धूल जमी थी, पुराने झूमर टेढ़े लटक रहे थे।
आरव ने एक कमरे में कदम रखा और उसकी नज़र एक पुरानी दीवार पर पड़ी।
वहाँ खरोंचों से बना एक नाम उभरा था—
"मृणालिनी ❤️ अर्जुन"
आरव को एक झटका लगा।
उसका सिर अचानक तेज़ी से घूमने लगा।
"आरव!" मीरा ने उसे सँभाला।
लेकिन तभी...
उसकी आँखों के सामने एक अतीत की झलक उभरी—
वह खुद एक चित्रकार था। वह राजकुमारी की पेंटिंग बना रहा था।
राजकुमारी ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में प्रेम था।
लेकिन तभी, किसी ने दरवाजा तोड़ा और सैनिक अंदर घुस आए...
आरव ने घबराकर आँखें खोल दीं।
उसका पूरा शरीर काँप रहा था।
"मीरा... मुझे कुछ याद आया..."
मीरा ने उसकी आँखों में देखा।
"क्या?"
आरव ने कांपती आवाज़ में कहा—
"हम पहले भी मिल चुके हैं... चार सौ साल पहले..."
क्या होगा अगले अध्याय में?
आरव ज़मीन पर बैठा था। उसका सिर तेज़ी से घूम रहा था, साँसें अनियमित हो गई थीं।
मीरा ने उसके कंधे पर हाथ रखा।
"आरव! क्या हुआ तुम्हें?"
आरव की आँखों में अजीब-सा खालीपन था। वह दीवार पर उकेरे गए नाम को घूर रहा था—
"मृणालिनी ❤️ अर्जुन"
फिर उसने धीमी आवाज़ में कहा—
"अर्जुन... यह नाम... मेरा ही है।"
मीरा का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
"तुम क्या कह रहे हो, आरव?"
आरव ने अपनी आँखें बंद कीं, और अतीत की कुछ और झलकियाँ उभरने लगीं—
एक चित्रकार... राजमहल का एक कमरा... सुनहरी रोशनी... और सामने बैठी एक युवती, जिसके चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान थी।
"अर्जुन, तुमने मेरी इतनी सुंदर तस्वीर क्यों बनाई?" उसने हौले से पूछा।
"क्योंकि तुम मेरे लिए सबसे सुंदर हो, राजकुमारी मृणालिनी।"
आरव ने झटके से आँखें खोलीं।
"मीरा, मुझे लगता है कि हम दोनों किसी तरह अतीत से जुड़े हुए हैं। मुझे कुछ दृश्य याद आ रहे हैं, कुछ अधूरी कहानियाँ, लेकिन सब कुछ अभी भी धुंधला है।"
मीरा स्तब्ध थी।
क्या यह पुनर्जन्म की कहानी थी? क्या वह सच में मृणालिनी थी?
शाम होने लगी थी। किले के पत्थरों पर सूरज की सुनहरी किरणें पड़ रही थीं, और हवाओं में एक पुरानी गूँज थी।
मीरा धीरे-धीरे किले की दीवारों पर हाथ फेरने लगी।
एक अजीब-सा अपनापन महसूस हो रहा था, जैसे वह यहाँ पहले भी थी।
तभी उसे एक पुराना दरवाजा दिखा, जो आधा टूटा हुआ था।
"आरव, देखो! यह दरवाज़ा कहीं जाता है।"
दोनों ने मिलकर दरवाज़े को धक्का दिया।
भीतर अंधेरा था।
मोबाइल की टॉर्च जलाकर उन्होंने अंदर कदम रखा।
यह एक पुराना कमरा था, दीवारों पर अब भी कुछ पुराने चित्र टंगे थे। लेकिन उनमें से एक चित्र अधूरा था।
मीरा ने धूल झाड़कर उस चित्र को देखा।
यह एक युवती का चित्र था—वही चेहरा, वही आँखें।
"यह तो मेरी ही तस्वीर है!"
उसकी आवाज़ काँप रही थी।
आरव ने उसके कंधे पर हाथ रखा।
"मीरा, यह सिर्फ़ एक संयोग नहीं हो सकता।"
मीरा ने गहरी साँस ली।
"मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा कि मैं मृणालिनी हो सकती हूँ..."
आरव ने उसकी आँखों में देखा।
"अगर मैं अर्जुन था और तुम मृणालिनी... तो हमें अपनी अधूरी कहानी पूरी करनी होगी।"
मीरा ने उसे देखा, और उसे महसूस हुआ कि कहीं न कहीं, उसकी आत्मा भी इस बात को सच मानने लगी थी।
अचानक, मीरा की नज़र एक छोटे से लकड़ी के बॉक्स पर पड़ी।
उसने उसे उठाया और धीरे से खोला।
अंदर एक पुराना पत्र रखा था।
"प्रिय मृणालिनी,
अगर मुझे कुछ हो जाए, तो यह मत समझना कि हमारा प्रेम यहीं समाप्त हो गया। हम फिर मिलेंगे, इस जीवन में या अगले जन्म में..."
आरव ने काँपते हाथों से पत्र उठाया।
"यह पत्र... मैंने ही लिखा था..."
मीरा की आँखें नम हो गईं।
"तो यह सब सच है। हम दोनों सच में 400 साल पहले एक-दूसरे से जुड़े थे।"
अचानक, कमरे की हवा भारी हो गई।
चारों ओर अजीब-सी खामोशी थी, जैसे कोई छिपा हुआ अतीत जाग गया हो।
आरव ने अचानक अपने सिर को पकड़ा।
"आह!"
उसकी आँखों के सामने फिर से कुछ दृश्य चमक उठे—
राजमहल में आग लगी हुई थी।
सैनिकों ने अर्जुन को पकड़ रखा था।
मृणालिनी रो रही थी, लेकिन उसके पिता की आँखों में कठोरता थी।
"अगर तूने मेरी बेटी से प्रेम किया, तो तुझे इसकी सज़ा मिलेगी!"
सैनिकों ने अर्जुन पर तलवार चलाई।
और फिर... अंधकार।
आरव ने घबराकर आँखें खोलीं।
"मीरा, मुझे सब याद आ गया!"
"क्या?"
"मुझे राजा ने मरवा दिया था... हम अपने प्रेम को पूरा नहीं कर सके थे।"
मीरा ने अपनी धड़कनें तेज़ होते हुए महसूस कीं।
"इसलिए हम इस जन्म में फिर मिले हैं?"
"शायद।"
दोनों चुप हो गए।
क्या यह नियति थी? क्या वाकई उनका प्रेम अधूरा रह गया था?
तभी अचानक, बाहर से किसी के पैरों की आवाज़ आई।
कोई वहाँ था।
मीरा ने धीरे-धीरे दरवाजे की ओर देखा। "किसी के कदमों की आवाज़ आई थी।" आरव सतर्क हो गया। दोनों ने धीरे-धीरे कमरे से बाहर कदम रखा। चारों ओर अंधेरा था। किले की टूटी दीवारों के पीछे कोई छिपा हुआ था। "कौन है वहाँ?" आरव ने आवाज़ लगाई। कोई जवाब नहीं आया। लेकिन फिर... एक छाया हल्की सी हिली। "हमसे छिपने की कोशिश मत करो!" मीरा ने सख़्त आवाज़ में कहा। छाया धीरे-धीरे सामने आई। यह एक आदमी था, जिसकी आँखों में अजीब चमक थी। "तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था।" उसने गहरी आवाज़ में कहा। मीरा और आरव एक-दूसरे को देखने लगे। "तुम कौन हो?" "मैं इस किले के अतीत को जानता हूँ। और मैं तुम्हें आगाह करने आया हूँ—इस कहानी का अंत पहले जैसा ही होगा।" आरव और मीरा के शरीर में एक ठंडी लहर दौड़ गई। "इसका क्या मतलब?" आदमी ने एक ठंडी हँसी हँसी। "अगर तुम दोनों इस कहानी को दोबारा जीने की कोशिश करोगे... तो इतिहास खुद को दोहराएगा।" मीरा के रोंगटे खड़े हो गए। "तुम कहना क्या चाहते हो?" आदमी ने धीरे-धीरे उनकी ओर देखा। "जिस तरह अर्जुन और मृणालिनी अलग हुए थे, उसी तरह तुम दोनों को भी अलग होना पड़ेगा।" आरव और मीरा के सामने खड़ा व्यक्ति अब भी रहस्यमयी मुस्कान लिए उन्हें घूर रहा था। "तुम कौन हो?" आरव ने कठोर स्वर में पूछा। आदमी ने एक गहरी साँस ली और कहा— "मुझे लोग 'रुद्र' कहते हैं। मैं इस किले की सच्चाई जानता हूँ। और मैं यहाँ तुम्हें एक आखिरी चेतावनी देने आया हूँ।" मीरा ने संदेह से उसकी ओर देखा। "कैसी चेतावनी?" रुद्र ने एक कदम आगे बढ़ाया। "यह किला सिर्फ़ एक खंडहर नहीं है, यह एक अभिशप्त स्थान है। और तुम्हारी कहानी... यह महज़ एक पुनर्जन्म की कहानी नहीं, बल्कि एक त्रासदी है जो बार-बार दोहराई जाती है।" आरव की आँखों में बेचैनी झलकने लगी। "तुम कहना क्या चाहते हो?" रुद्र ने एक ठंडी हँसी हँसी। "तुम्हारा पुनर्जन्म हुआ है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुम अपने अतीत को बदल सकते हो।" "क्या मतलब?" "इस किले में जो हुआ था, वह फिर से होगा। ठीक वैसे ही। और इस बार भी, तुम्हारा प्यार अधूरा रह जाएगा।" मीरा और आरव दोनों एक-दूसरे को देखने लगे। मीरा ने गहरी साँस ली। "नियति पर हर कोई विश्वास करता है, लेकिन हम इसे बदलने की कोशिश तो कर सकते हैं, है ना?" रुद्र ने सिर हिलाया। "अगर यह इतना आसान होता, तो तुम्हारी आत्माएँ सदियों तक भटकती न रहतीं।" तभी, हवा अचानक ठंडी हो गई। और फिर... एक अजीब-सा कंपन महसूस हुआ। मीरा ने घबराकर इधर-उधर देखा। "यह क्या हो रहा है?" रुद्र ने धीरे से कहा— "तुम्हारे अतीत की परछाइयाँ जाग रही हैं।" और फिर... आरव और मीरा के सामने किले का दृश्य बदलने लगा। वे 400 साल पीछे पहुँच चुके थे। मीरा ने अपनी आँखें झपकाईं। अब वह एक विशाल महल के अंदर खड़ी थी। सामने शीशे में वही चेहरा झलक रहा था, लेकिन यह मीरा नहीं थी... यह मृणालिनी थी। उसने भारी रेशमी लहँगा पहना हुआ था, गहनों से लदी हुई थी, लेकिन उसकी आँखों में उदासी थी। तभी कमरे का दरवाज़ा खुला। "मृणालिनी!" आरव की आवाज़ थी, लेकिन जब मीरा ने पलटकर देखा, तो यह आरव नहीं था... यह अर्जुन था। यानी वे सच में अतीत में पहुँच गए थे। अर्जुन तेजी से अंदर आया और बोला— "हमारे पास ज्यादा समय नहीं है। तुम्हारे पिता को हमारे बारे में पता चल गया है।" मृणालिनी की आँखों में आँसू आ गए। "तो हमें भागना होगा!" अर्जुन ने धीरे से उसका हाथ पकड़ा। "तुम्हें मुझ पर भरोसा है?" मृणालिनी ने उसकी आँखों में देखा और हल्के से सिर हिलाया। "हम आधी रात को यहाँ से भाग जाएँगे।"
इतिहास दोहराने को तैयार
तभी, अचानक माहौल बदल गया।
आरव और मीरा की चेतना वापस वर्तमान में आ गई।
वे दोनों फिर से शिवगढ़ किले के खंडहर में खड़े थे।
रुद्र ने गहरी नज़रों से उन्हें देखा।
"अब तुमने सब कुछ देख लिया।"
मीरा की साँसें तेज़ थीं।
"तो क्या... इस बार भी हम अलग हो जाएँगे?"
रुद्र ने सिर हिलाया।
"अगर तुमने इस किले को नहीं छोड़ा... तो हाँ।"
आरव ने गुस्से से उसकी ओर देखा।
"लेकिन हम इस बार अपने प्यार को अधूरा नहीं छोड़ेंगे!"
रुद्र ने गहरी साँस ली।
"देखते हैं... क्या तुम इतिहास बदल सकते हो?"
रुद्र के शब्द मीरा और आरव के दिलों में हलचल मचा चुके थे।
"अगर तुमने इस किले को नहीं छोड़ा... तो तुम्हारा अंत भी वैसा ही होगा, जैसा 400 साल पहले हुआ था।"
मीरा की आँखों में भय था, लेकिन आरव के चेहरे पर जिद थी।
"मैं इस बार अपने प्यार को अधूरा नहीं छोड़ूँगा," आरव ने दृढ़ता से कहा।
रुद्र ने ठंडी निगाहों से उसकी ओर देखा।
"क्या तुम सच में समझते हो कि नियति को बदला जा सकता है?"
मीरा ने गहरी साँस ली।
"अगर हमें एक और जन्म मिला है, तो इसका मतलब ही यह है कि हमें अपनी गलती सुधारने का मौका दिया गया है।"
रुद्र मुस्कराया।
"अगर तुम सच में नियति को बदल सकते हो, तो तुम्हें एक आखिरी परीक्षा देनी होगी।"
रुद्र ने अपनी जेब से एक प्राचीन सिक्का निकाला।
"यह कोई साधारण सिक्का नहीं है। यह 400 साल पुराना है, उसी समय का जब तुम्हारी प्रेम कहानी अधूरी रह गई थी।"
मीरा और आरव ने ध्यान से सिक्के को देखा।
"इस सिक्के की एक तरफ़ तुम्हारा अतीत लिखा है, और दूसरी तरफ़ तुम्हारा भविष्य। तुम्हें इसे उछालना होगा और जो भी सामने आएगा, उसे स्वीकार करना होगा।"
आरव ने गहरी साँस ली।
"अगर मैं इसे उछालने से इनकार करूँ?"
रुद्र ने हल्की हँसी हँसी।
"तो इसका मतलब होगा कि तुमने नियति को पहले ही स्वीकार कर लिया है।"
मीरा और आरव ने एक-दूसरे को देखा।
"हमें इसे उछालना ही होगा," मीरा ने धीरे से कहा।
आरव ने सिक्का अपने हाथ में लिया और अपनी आँखें बंद कर लीं।
"अगर हम सच में अपने प्यार को पूरा करने के लिए लौटे हैं, तो इस बार हमारी जीत होगी।"
उसने सिक्का हवा में उछाल दिया।
सिक्का हवा में घूमता रहा, और फिर नीचे गिरा।
मीरा और आरव दोनों ने साँस रोक ली।
रुद्र ने झुककर सिक्के की ओर देखा।
और फिर...
उसने सिर उठाया और गंभीरता से कहा—
"नियति ने अपना फैसला सुना दिया है।"
मीरा के दिल की धड़कन तेज़ हो गई।
"क्या फैसला हुआ?"
रुद्र ने सिक्के को उठाया और उनकी ओर बढ़ा दिया।
"तुम्हें खुद देखना होगा।"
आरव ने काँपते हाथों से सिक्का उठाया।
उस पर वही अंकित था, जो 400 साल पहले हुआ था—अर्जुन और मृणालिनी का बिछड़ना।
मीरा की आँखों से आँसू बहने लगे।
"इसका मतलब यह हुआ कि... इस बार भी हमें अलग होना होगा?"
रुद्र ने गहरी आवाज़ में कहा—
"नियति वही है, लेकिन तुम कैसे प्रतिक्रिया देते हो, यह तुम्हारे हाथ में है।"
आरव ने सिक्के को कसकर पकड़ लिया।
"अगर नियति हमें फिर अलग करने के लिए बनी है, तो इस बार मैं इसे हरा दूँगा!"
मीरा ने उसकी आँखों में देखा।
"कैसे?"
आरव ने गहरी साँस ली।
"हमें किले से बाहर निकलना होगा।"
रुद्र ने सिर हिलाया।
"अगर तुम इस किले को छोड़कर चले जाओगे, तो शायद तुम्हें एक नया भाग्य मिल सकता है। लेकिन अगर तुमने यहाँ एक और रात गुज़ारी... तो इतिहास फिर से दोहराया जाएगा।"
मीरा ने आरव का हाथ पकड़ लिया।
"हमें जाना होगा, आरव!"
लेकिन तभी...
किले का दरवाज़ा अचानक ज़ोर से बंद हो गया।
चारों ओर घना अंधेरा छा गया।
किले की दीवारों से अस्पष्ट आवाज़ें आने लगीं।
"अर्जुन... भागो यहाँ से!"
"मैं तुम्हें कभी अपने साथ रहने नहीं दूँगा!"
"तलवारें उठाओ! इस प्रेमी को खत्म कर दो!"
आरव ने सिर घुमाया।
वह एक बार फिर अपने अतीत में खड़ा था—उसी क्षण में जब उसे मौत के घाट उतार दिया गया था।
सैनिक उसकी ओर बढ़ रहे थे।
मीरा घबराकर चिल्लाई—
"आरव! नहीं!"
रुद्र ने चुपचाप खड़ा रहकर सब देखा।
"अब सब कुछ तुम्हारे हाथ में है, आरव। तुम क्या करोगे?"
आरव ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं।
"इस बार, मैं लड़ूँगा!"
आगे क्या होगा?
चारों ओर गूँजती चीखें, धुंध में छिपे अनजान साए और हवा में तैरती तलवारों की चमक—शिवगढ़ का किला अब केवल एक खंडहर नहीं था। यह अतीत और वर्तमान के बीच का एक पुल बन चुका था, जहाँ समय का कोई अर्थ नहीं था।
मीरा ने अपने चारों ओर देखा। वह अब भी आरव का हाथ थामे थी, लेकिन किले का वातावरण पूरी तरह बदल चुका था।
"यह सब क्या हो रहा है?" उसने घबराकर पूछा।
रुद्र शांत खड़ा था, जैसे उसे पहले से ही पता था कि यही होने वाला है।
"अभिशाप जाग गया है। यह अब तुम्हें तुम्हारे अतीत में खींच रहा है।"
आरव ने क़दम आगे बढ़ाया।
"अगर हमें इसी क्षण में वापस धकेला जा रहा है, तो इस बार मैं इसे बदल दूँगा!"
रुद्र ने गहरी साँस ली।
"हर जन्म में तुम यही कहते हो, आरव। लेकिन नियति इतनी आसानी से नहीं बदलती।"
आरव ने अपनी आँखें झपकाईं और जब उसने दोबारा देखा, तो वह अर्जुन बन चुका था।
राजमहल के भीतर एक विशाल दीवानख़ाना था।
दीपों की मद्धम रोशनी में, भारी रेशमी परदे हिल रहे थे। मीरा अब मृणालिनी के रूप में खड़ी थी, उसी संगमरमर की छत के नीचे, जहाँ पहली बार उसने अर्जुन से अपने प्रेम का इज़हार किया था।
"अर्जुन, हमें भागना होगा!"
मृणालिनी की आवाज़ काँप रही थी, उसकी आँखों में आँसू थे।
"मेरे पिता को हमारे बारे में पता चल चुका है। वे तुम्हें मार डालेंगे!"
अर्जुन ने उसकी आँखों में देखा।
"अगर हमें भागना ही है, तो हमें अभी जाना होगा।"
लेकिन तभी...
दरवाजे पर ज़ोरदार धमाका हुआ।
राजा के सैनिक अंदर घुस आए।
"राजकुमारी! आप इस दास के साथ नहीं जा सकतीं!"
राजा खुद अंदर आए और क्रोध में बोले—
"इस दुष्ट को अभी मार डालो!"
सैनिकों ने तलवारें निकाल लीं।
अर्जुन ने तुरंत अपनी कटार खींच ली।
"अगर मुझे मरना भी पड़ा, तो भी मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जाऊँगा!"
वर्तमान में खड़े आरव और मीरा, अपनी ही पिछली ज़िंदगियों को देख रहे थे।
"हम वही देख रहे हैं जो 400 साल पहले हुआ था!" मीरा ने घबराकर कहा।
रुद्र ने सिर हिलाया।
"हाँ, और अगर कुछ नहीं बदला, तो इसका मतलब है कि तुम दोनों का अंत भी वही होगा जो पिछली बार हुआ था।"
"नहीं!" आरव चिल्लाया।
वह अपने अतीत के भीतर दाखिल हुआ।
अब वह अर्जुन को नियंत्रित कर सकता था।
अर्जुन की तलवार चमकी। सैनिकों ने उस पर हमला किया, लेकिन इस बार, अर्जुन ने पहले से अधिक तेज़ी से जवाब दिया।
"इस बार मैं मरूँगा नहीं!"
उसने एक सैनिक को नीचे गिराया।
मृणालिनी की आँखें आश्चर्य से फैल गईं।
"अर्जुन, तुम...!"
अर्जुन ने उसका हाथ पकड़ लिया।
"हम यहाँ से बचकर निकलेंगे, मृणालिनी। इस बार कोई हमें रोक नहीं सकता!"
आरव अब पूरी तरह अर्जुन बन चुका था।
"रुद्र, अब बताओ, मैं इस किले से कैसे बाहर निकल सकता हूँ?"
रुद्र ने मुस्कराकर कहा,
"अगर तुम्हें सच में नियति बदलनी है, तो तुम्हें इसके केंद्र तक पहुँचना होगा—शिवगढ़ के प्राचीन द्वार तक। वहाँ से गुजरते ही यह अभिशाप टूट सकता है।"
"लेकिन रास्ता आसान नहीं होगा।"
मीरा—या कहें कि मृणालिनी—ने दृढ़ता से सिर हिलाया।
"हम तैयार हैं!"
अर्जुन और मृणालिनी महल के गलियारों में भागते हुए प्राचीन द्वार की ओर बढ़ रहे थे।
लेकिन राजा के सैनिक अब भी उनका पीछा कर रहे थे।
आखिरकार, वे उस द्वार तक पहुँच गए।
बस एक कदम और, और हम मुक्त हो जाएँगे!" अर्जुन ने कहा।
लेकिन तभी, एक तीर हवा में लहराया और...
मृणालिनी के सीने में आकर धँस गया।
"नहीं!!!" अर्जुन चीख पड़ा।
मृणालिनी ने काँपते हाथों से उसका चेहरा छुआ।
"हम फिर मिलेंगे, अर्जुन... अगली बार..."
और उसकी आँखें हमेशा के लिए बंद हो गईं।
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6. वर्तमान में जागृति
मीरा ने तेज़ी से अपनी आँखें खोलीं।
वह अभी भी शिवगढ़ के किले में थी।
आरव बेहोश पड़ा था।
रुद्र खड़ा सब देख रहा था।
"तो, तुम फिर हार गए।"
मीरा की आँखों में आँसू थे।
"इसका मतलब है कि..."
रुद्र ने सिर झुका लिया।
"तुम्हारा प्यार फिर अधूरा रह गया।"
मीरा घुटनों के बल बैठी थी, उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।
आरव अभी भी बेहोश पड़ा था।
रुद्र चुपचाप खड़ा था, उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।
"क्या यही हमारी नियति थी?" मीरा ने फुसफुसाते हुए कहा।
रुद्र ने गहरी सांस ली।
"हर जन्म में तुम्हारी कहानी वहीं खत्म हो जाती है, जहाँ से यह शुरू हुई थी। अर्जुन और मृणालिनी अलग हुए थे, आरव और मीरा भी अलग हो गए। नियति को कोई नहीं बदल सकता।"
मीरा ने गुस्से से उसकी ओर देखा।
"लेकिन अगर हमें फिर से जन्म दिया गया है, तो इसका मतलब है कि हमें कुछ बदलने का मौका भी दिया गया है!"
रुद्र ने हल्की मुस्कान दी।
"शायद। लेकिन इसके लिए तुम्हें मौत को भी मात देनी होगी।"
मीरा ने कांपते हाथों से आरव का चेहरा छुआ।
"आरव, उठो... इस बार हम हार नहीं सकते!"
लेकिन आरव की आँखें बंद थीं।
उसकी सांसें हल्की थीं, जैसे वह किसी दूसरी दुनिया में जा चुका था।
रुद्र ने एक गहरी सांस ली।
"अगर तुम सच में उसे बचाना चाहती हो, तो तुम्हें एक आखिरी दरवाजा पार करना होगा—'काल द्वार'।"
मीरा ने उसकी ओर देखा।
"काल द्वार?"
"यह वह स्थान है जहाँ समय रुक जाता है। जहाँ अतीत और भविष्य के बीच का अंतर मिट जाता है। अगर तुम वहाँ तक पहुँच पाईं, तो शायद तुम्हें अपने प्रेम को बचाने का एक और मौका मिल सकता है। लेकिन यह आसान नहीं होगा।"
मीरा की आँखों में दृढ़ता थी।
"मैं कुछ भी कर सकती हूँ, अगर इससे आरव को बचाया जा सकता है!"
रुद्र ने सिर हिलाया।
"तो चलो, तुम्हें काल द्वार तक ले चलता हूँ।"
रुद्र ने अपने हाथ से हवा में एक चक्र बनाया।
धीरे-धीरे, एक विशाल द्वार प्रकट हुआ—काले रंग का, जिसके किनारों पर प्राचीन लेखन चमक रहे थे।
मीरा ने घबराकर उसकी ओर देखा।
"इसमें जाने के बाद... क्या मैं वापस आ सकूँगी?"
रुद्र ने कहा—
"यह तुम्हारी इच्छा शक्ति पर निर्भर करेगा। लेकिन याद रखना, काल द्वार में जाने के बाद तुम्हें अपने अतीत की सबसे भयावह यादों का सामना करना होगा।"
मीरा ने गहरी सांस ली और बिना कुछ सोचे द्वार के अंदर कदम रख दिया।
जैसे ही मीरा ने द्वार पार किया, वह एक विशाल रेगिस्तान में पहुँच गई।
चारों ओर केवल धूल और धुंध थी।
तभी, उसके सामने एक छवि प्रकट हुई—
मृणालिनी का मृत शरीर!
मीरा ने घबराकर कदम पीछे खींचे।
लेकिन फिर...
मृणालिनी की आत्मा ने आँखें खोलीं और कहा—
"तुम फिर से यहाँ आई हो, मीरा। लेकिन क्या तुम इस बार अपनी नियति को बदल पाओगी?"
मीरा ने दृढ़ता से कहा—
"हाँ! मैं इस बार आरव को नहीं खोऊँगी!"
मृणालिनी की आत्मा मुस्कराई।
"तो तुम्हें समय के नियमों को तोड़ना होगा।"
मीरा के सामने एक जलता हुआ दीपक प्रकट हुआ।
"यह काल दीप है। अगर तुम इसे बुझा सको, तो समय की धारा उलट जाएगी और तुम आरव को दोबारा जीवित कर सकोगी।"
मीरा ने दीपक की ओर देखा।
लेकिन जैसे ही उसने इसे बुझाने की कोशिश की, हवा का एक झोंका आया और उसकी जगह कई सारे दीपक प्रकट हो गए।
"अब इनमें से असली दीपक को पहचानो!" मृणालिनी की आत्मा ने कहा।
मीरा के माथे पर पसीना छलक आया।
"अगर मैंने गलत दीपक बुझा दिया, तो क्या होगा?"
"तो तुम हमेशा के लिए इस दुनिया में फँस जाओगी!"
मीरा ने अपनी आँखें बंद कीं और अपनी आत्मा की गहराई से महसूस किया।
तभी, उसे एक दीपक से हल्की गर्मी का एहसास हुआ।
"यही है!"
उसने दीपक को बुझा दिया।
जैसे ही दीपक बुझा, चारों ओर रोशनी फैल गई।
मीरा ने अपनी आँखें खोलीं और पाया कि वह वापस शिवगढ़ किले में थी।
आरव अब भी ज़मीन पर पड़ा था।
लेकिन इस बार...
उसकी साँसें लौट आईं!
मीरा खुशी से रो पड़ी।
"आरव! तुम वापस आ गए!"
आरव ने धीरे-धीरे आँखें खोलीं और कहा—
"मीरा...? मैं... जिंदा हूँ?"
रुद्र एक किनारे खड़ा मुस्करा रहा था।
"शायद तुमने सच में नियति को बदल दिया है।"
काल द्वार के अंदर जाकर मीरा ने समय के नियम तोड़ दिए थे।
लेकिन क्या सच में सब कुछ ठीक हो गया?
कहीं नियति इसका बदला लेने के लिए कोई और योजना तो नहीं बना रही?
आगे क्या होगा?
मीरा और आरव अब शिवगढ़ किले के बीचों-बीच खड़े थे।
आरव अभी भी थोड़ा कमजोर महसूस कर रहा था, लेकिन उसकी आँखों में अब नया जीवन था।
"मैं जिंदा हूँ..." आरव ने खुद से बुदबुदाया।
मीरा ने मुस्कुराकर उसका हाथ पकड़ लिया।
"हाँ, और इस बार हम कभी अलग नहीं होंगे!"
रुद्र एक तरफ खड़ा दोनों को देख रहा था।
"तुमने सच में इतिहास को बदल दिया। लेकिन यह जीत अभी अधूरी है।"
"क्या मतलब?" मीरा ने पूछा।
रुद्र ने गहरी सांस ली और किले की दीवारों की ओर इशारा किया।
"यह किला अब भी जाग रहा है।"
मीरा और आरव ने देखा—
दीवारों पर अजीबोगरीब लिखाइयाँ चमक रही थीं, जैसे कोई प्राचीन शक्ति जाग रही हो।
"क्या यह अभिशाप अभी भी पूरी तरह टूटा नहीं?" आरव ने घबराकर पूछा।
रुद्र ने सिर हिलाया।
"नहीं, क्योंकि तुम दोनों को जीवित रखने के लिए, समय ने खुद को तोड़ दिया है। और समय इसे बर्दाश्त नहीं करेगा।"
मीरा ने अपनी साँस रोकी।
"तो हमें अब क्या करना होगा?"
रुद्र ने कहा—
"हमें इस अभिशाप की जड़ तक पहुँचना होगा। केवल तभी यह किला तुम्हें पूरी तरह से मुक्त करेगा।"
"लेकिन यह जड़ कहाँ है?" आरव ने पूछा।
रुद्र ने धीमे से कहा—
"राजा का तहख़ाना।"
मीरा और आरव के रोंगटे खड़े हो गए।
"लेकिन वो तो 400 साल से बंद है!"
"और यही कारण है कि यह अभिशाप आज भी जीवित है।"
रुद्र ने उन्हें किले के एक पुराने दरवाजे तक पहुँचाया।
"यह वही दरवाजा है जिससे होकर राजा का निजी तहख़ाना जाता था। लेकिन इसे खोलना आसान नहीं होगा।"
मीरा ने दरवाजे पर हाथ रखा और अचानक उसे अजीब सा एहसास हुआ।
उसके भीतर पुरानी यादें जाग उठीं।
वह फिर से मृणालिनी बन गई थी।
उसने खुद को राजा के सामने खड़ा पाया।
"पिता, कृपया अर्जुन को छोड़ दीजिए!"
राजा ने गुस्से से कहा—
"नहीं! यह प्रेम अभिशाप बनेगा हमारे राज्य के लिए। उसे मरना ही होगा!"
मीरा का सिर घूमने लगा।
अचानक उसकी आँखें खुलीं और वह वर्तमान में लौट आई।
"यह दरवाजा तभी खुलेगा जब हम इसके पीछे छिपे सच को जान लेंगे!"
जैसे ही उन्होंने दरवाजे को छूने की कोशिश की, चारों ओर अंधेरा छा गया।
एक रहस्यमयी साया प्रकट हुआ—
"तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था!"
आरव ने तलवार खींच ली।
"तुम कौन हो?"
साया हँसा।
"मैं हूँ वह जो इस किले का असली रक्षक है। तुमने नियति के साथ खेल खेला है, और अब तुम्हें इसकी सजा मिलेगी!"
अचानक, अंधकार ने चारों ओर से हमला कर दिया।
मीरा और आरव ने खुद को बचाने की कोशिश की, लेकिन वे धीरे-धीरे अंधेरे में समाने लगे।
रुद्र चिल्लाया—
"दरवाजे को खोलो, मीरा! यही तुम्हारा एकमात्र रास्ता है!"
मीरा ने हिम्मत जुटाई और अपने अंदर की ऊर्जा को महसूस किया।
उसे याद आया कि यही दरवाजा मृणालिनी के लिए भी था—
"अगर यह मेरे अतीत से जुड़ा है, तो इसे खोलने की कुंजी भी मुझमें ही होगी!"
उसने गहरी सांस ली और आँखें बंद कर लीं।
"मैं मृणालिनी हूँ। मैं इस अभिशप्त प्रेम की अंतिम गवाह हूँ!"
दरवाजा अचानक कंपन करने लगा।
अंधकार चीख उठा—
"नहीं! यह संभव नहीं है!"
लेकिन इससे पहले कि साया कुछ कर पाता, दरवाजा ज़ोर से खुल गया।
मीरा, आरव और रुद्र तेजी से अंदर घुसे।
वहाँ...
एक पुराना तख़्त पड़ा था, और उसके ऊपर राजा का एक सूखा हुआ शव पड़ा था।
"राजा...?" मीरा फुसफुसाई।
रुद्र ने धीरे से कहा—
"हाँ, तुम्हारे पिता। और यह वही स्थान है जहाँ तुम्हारे प्रेम को अभिशप्त किया गया था।"
अचानक, राजा की आत्मा जाग उठी।
"तुम फिर आ गईं, मृणालिनी?"
"पिता!" मीरा के मुँह से अनायास ही निकल पड़ा।
"तुमने हमारा प्रेम अभिशप्त किया, और यह किला आज तक इस दर्द को सह रहा है!"
राजा की आँखों में पछतावा झलकने लगा।
"मैंने अपनी बेटी को खो दिया था। लेकिन अब मुझे समझ आ गया कि प्रेम को कोई कैद नहीं कर सकता
जैसे ही राजा की आत्मा ने अपनी गलती स्वीकार की, पूरा किला अचानक रोशनी से भर गया।
अंधेरा मिटने लगा।
राजा की आत्मा धीरे-धीरे शांत हो गई।
"अब तुम दोनों मुक्त हो। शिवगढ़ का अभिशाप समाप्त हुआ!"
मीरा और आरव ने राहत की सांस ली।
रुद्र मुस्कराया।
"अब तुम दोनों अपनी नई जिंदगी जी सकते हो—बिना किसी अभिशाप के।"
आरव ने मीरा का हाथ पकड़ा।
"क्या हम सच में अब हमेशा के लिए साथ रहेंगे?"
मीरा ने मुस्कराकर सिर हिलाया।
"हाँ, इस बार कोई हमें अलग नहीं कर सकता!"
शिवगढ़ किला अब पहले जैसा नहीं था।
दीवारों पर लगी अजीबोगरीब चमकती लकीरें धीरे-धीरे फीकी पड़ रही थीं।
वह जगह, जो सदियों से रहस्यों और भय में जकड़ी हुई थी, अब शांत महसूस हो रही थी।
मीरा ने चारों ओर देखा।
"क्या यह सच में खत्म हो गया?" उसने धीरे से पूछा।
आरव ने उसका हाथ दबाया।
"हाँ, हमने जीत हासिल कर ली।"
लेकिन तभी...
रुद्र ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
"हर अंत, एक नई शुरुआत की भूमिका होती है।"
मीरा और आरव ने उसकी ओर हैरानी से देखा।
"इसका क्या मतलब है?" मीरा ने पूछा।
रुद्र ने गहरी सांस ली।
"शिवगढ़ का अभिशाप भले ही टूट चुका है, लेकिन इतिहास अभी भी अपनी छाया छोड़ सकता है।"
आरव और मीरा जब किले से बाहर जाने लगे, तो अचानक ज़मीन हिलने लगी।
"भूकंप?" मीरा ने घबराकर कहा।
"नहीं, यह कुछ और है!" रुद्र ने तेजी से कहा।
अचानक, किले के बीचों-बीच ज़मीन फट गई, और एक गहरी सुरंग प्रकट हुई।
उस सुरंग से ठंडी हवा बाहर आ रही थी, और अंदर अंधेरा था।
"यह क्या है?" आरव ने चौंककर पूछा।
रुद्र ने गंभीर स्वर में कहा—
"यह राजा के गुप्त तहख़ाने का दूसरा भाग है। जहाँ उसकी सबसे गहरी साजिश दफन है।"
मीरा ने उसकी ओर देखा।
"तो क्या हमें इसे भी खत्म करना होगा?"
रुद्र ने सिर हिलाया।
"अगर तुम सच में इस कहानी का पूरा अंत चाहती हो, तो हाँ।"
तीनों ने धीमे कदमों से सुरंग में प्रवेश किया।
अंदर जाते ही माहौल अचानक ठंडा हो गया।
दीवारों पर जलते हुए मशालें अपने आप जल उठीं।
"यहाँ कुछ है..." मीरा ने फुसफुसाया।
वे धीरे-धीरे आगे बढ़े।
कुछ ही कदम चलने के बाद, उनके सामने एक विशाल पत्थर का दरवाजा आ गया।
उस दरवाजे के ऊपर कुछ लिखा था—
"सच्चा प्रेम कभी नहीं मरता, लेकिन झूठा प्रेम विनाश लाता है।"
आरव ने उसे पढ़कर कहा—
"इसका क्या मतलब है?"
रुद्र ने गंभीर आवाज़ में कहा—
"इस दरवाजे के पीछे वह सच्चाई छिपी है, जिसे राजा ने सबसे छिपाया था।"
मीरा ने धीरे-धीरे दरवाजे को छुआ।
एक तेज़ रोशनी चमकी और दरवाजा अपने आप खुल गया।
अंदर का दृश्य देखकर तीनों स्तब्ध रह गए।
एक काँच के ताबूत में...
एक महिला की ममी पड़ी थी।
मीरा के दिल की धड़कन तेज़ हो गई।
"यह कौन है?"
रुद्र ने क़रीब जाकर ताबूत पर लिखा नाम पढ़ा—
"राजमाता वसुधा"
आरव ने चौंककर कहा—
"तो यह राजा की माँ थीं?"
रुद्र ने धीरे से सिर हिलाया।
"हाँ। लेकिन इतिहास ने इन्हें भुला दिया।"
मीरा ने ताबूत के पास रखी पुरानी किताब उठाई और पढ़ने लगी।
"राजा ने अपने राज्य को बचाने के लिए अपनी ही माँ को इस तहख़ाने में कैद कर दिया था। वह प्रेम के पक्ष में थीं, लेकिन राजा ने उनकी एक न सुनी। उन्होंने अपनी माँ को हमेशा के लिए दफन कर दिया ताकि उनकी सच्चाई कभी सामने न आए।"
आरव ने दाँत भींच लिए।
"तो राजा खुद ही सबसे बड़ा अभिशाप था?"
रुद्र ने कहा—
"हाँ, लेकिन हर चीज़ का अंत होता है। और अब यह सच्चाई सबके सामने आ चुकी है।"
मीरा की आँखों में आँसू थे।
"इतने सालों तक एक निर्दोष आत्मा यहाँ पड़ी रही, बस इसलिए कि उसने प्रेम का समर्थन किया?"
वह ताबूत के पास झुकी और धीरे से बोली—
"अब आप आज़ाद हैं, राजमाता।"
तभी...
काँच का ताबूत अपने आप टूट गया।
एक हल्की सफेद रोशनी उठी और धीरे-धीरे हवा में विलीन हो गई।
एक कोमल आवाज़ गूँजी—
"धन्यवाद, पुत्री..."
शिवगढ़ अब पूरी तरह शांत था।
सभी रहस्य अब खुल चुके थे।
रुद्र ने मुस्कराकर कहा—
"अब यह किला सच में मुक्त हो गया है।"
मीरा ने उसकी ओर देखा।
"और तुम?"
रुद्र ने हँसते हुए कहा—
"मेरा काम पूरा हुआ। अब मुझे भी मुक्त होना है।"
"मुक्त?" आरव ने चौंककर कहा।
रुद्र ने धीरे से कहा—
"मैं सिर्फ एक रक्षक था, जो तब तक जीवित था जब तक यह अभिशाप था। अब जब यह खत्म हो गया है, तो मेरी भूमिका भी खत्म हो गई है।"
मीरा की आँखों में आँसू आ गए।
"लेकिन तुम हमारे सच्चे दोस्त बन गए थे!"
रुद्र ने सिर हिलाया।
"और दोस्त कभी दूर नहीं होते। सिर्फ उनकी शक्ल बदल जाती है।"
धीरे-धीरे, रुद्र की आकृति फीकी पड़ने लगी।
"शायद हम फिर मिलें, मीरा और आरव। लेकिन तब तक... अपना ख्याल रखना।"
और देखते ही देखते, वह हवा में घुल गया।
मीरा और आरव ने एक-दूसरे की ओर देखा।
"अब आगे क्या?" आरव ने पूछा।
मीरा ने गहरी सांस ली और कहा—
"अब एक नई ज़िन्दगी। बिना किसी डर, बिना किसी अभिशाप के।"
आरव ने उसका हाथ पकड़ा।
"और हमेशा साथ?"
मीरा मुस्कराई।
"हमेशा साथ!"
शिवगढ़ किले के पीछे, सूरज धीरे-धीरे उग रहा था।
400 साल बाद, उस किले पर पहली बार एक नया सवेरा आया था।
400 साल पुराने अभिशाप के अंत के बाद, मीरा और आरव की जिंदगी अब नई शुरुआत की ओर बढ़ रही थी। लेकिन क्या शिवगढ़ का इतिहास सच में खत्म हो चुका था? या फिर नियति ने उनके लिए कुछ और तय कर रखा था?
एक नई जिंदगी
शिवगढ़ की घटनाओं के तीन महीने बाद, मीरा और आरव अब नई जिंदगी बसा चुके थे।
वे अब एक शांत शहर में रहते थे, जहाँ किसी भी अभिशाप, रहस्य या अतीत की छाया नहीं थी।
आरव अब एक लेखक बन चुका था। वह अपनी और मीरा की कहानी को एक उपन्यास का रूप दे रहा था।
मीरा अब कला और इतिहास पर शोध कर रही थी।
"अब सब कुछ सामान्य लग रहा है, है ना?" मीरा ने आरव से कहा।
आरव ने मुस्कराकर सिर हिलाया।
"हाँ, लेकिन कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि कुछ अधूरा रह गया है..."
बीते कुछ दिनों से मीरा को अजीब सपने आ रहे थे।
वह खुद को किसी अजनबी शहर में देखती।
एक पुराना महल, जलते हुए दीपक, और एक छायामयी आकृति जो उसे पुकार रही थी।
"मीरा... वापस आओ..."
मीरा अचानक जाग जाती और घबराई हुई महसूस करती।
"क्या यह सिर्फ एक सपना है? या फिर कोई संकेत?"
जब उसने यह बात आरव को बताई, तो उसने चिंता जताई।
"शायद यह बस तुम्हारे मन का डर है। शिवगढ़ की यादें धीरे-धीरे मिट जाएँगी।"
मीरा ने हामी भर दी, लेकिन दिल के किसी कोने में उसे यकीन था—
यह सिर्फ सपना नहीं था।
एक दिन, मीरा को लाइब्रेरी में एक पुरानी किताब मिली।
उसका नाम था—
"पुनर्जन्म की गाथा"
मीरा ने उत्सुकता से उसके पन्ने पलटे।
"कुछ प्रेम कहानियाँ सिर्फ एक जन्म तक सीमित नहीं रहतीं। वे युगों तक चलती हैं, बार-बार जन्म लेकर अपने अधूरे अंत को पूरा करती हैं।"
मीरा की आँखें फैल गईं।
"क्या यह हमारे साथ भी हुआ है?"
तभी, किताब के आखिरी पृष्ठ पर एक जगह का ज़िक्र था—
"रुद्रगढ़— एक खोया हुआ किला, जहाँ अधूरी कहानियाँ फिर से जन्म लेती हैं।"
मीरा के हाथ काँप गए।
"क्या यह कोई संकेत है?"
मीरा ने जब यह किताब आरव को दिखाई, तो उसने तुरंत गूगल पर "रुद्रगढ़" खोजा।
परंतु, वहाँ कोई जानकारी नहीं मिली।
"यह जगह कहाँ है?" आरव ने हैरानी से कहा।
मीरा ने किताब के पिछले पन्ने पर देखना शुरू किया, जहाँ एक हाथ से लिखा नोट था—
"अगर तुम सच में जानना चाहती हो, तो आओ। उत्तर तुम्हारे भीतर है।"
मीरा और आरव ने एक-दूसरे की ओर देखा।
"क्या हमें जाना चाहिए?" मीरा ने पूछा।
आरव ने गहरी सांस ली।
"अगर यह हमारी कहानी का अगला अध्याय है, तो हमें जाना ही होगा।"
अगले ही दिन, दोनों ने अपना सामान बाँधा और रुद्रगढ़ की खोज में निकल पड़े।
कई पुराने नक्शों और किताबों को खंगालने के बाद, उन्हें पता चला कि यह किला राजस्थान के किसी दूर-दराज इलाके में स्थित था।
लेकिन जब वे वहाँ पहुँचे, तो वहाँ सिर्फ रेत के टीले और गहरे सन्नाटे के अलावा कुछ नहीं था।
"क्या यह सिर्फ एक भ्रम था?" मीरा ने निराश होकर कहा।
तभी, अचानक हवा तेज़ चलने लगी।
एक अदृश्य शक्ति ने मीरा को पीछे की ओर खींचा।
आरव घबराकर उसकी ओर बढ़ा, लेकिन तभी...
रेत हटने लगी, और नीचे एक पुराना दरवाजा प्रकट हुआ।
"यह क्या है?" आरव ने हैरानी से कहा।
मीरा के शरीर में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई।
"शायद यह हमारे अतीत का कोई और टुकड़ा है... जो अब तक अनदेखा था!"
अगले अध्याय में...
क्या मीरा और आरव सच में अपने अतीत से जुड़ी किसी नई पहेली को सुलझाने जा रहे थे? या यह सिर्फ एक संयोग था? रुद्रगढ़ का वह पुराना दरवाजा कौन सा नया राज़ खोलने वाला था?
1. रहस्यमयी दरवाजा
मीरा और आरव कुछ क्षणों तक उस दरवाजे को बस देखते रहे।
"यह दरवाजा यहाँ रेत के नीचे क्यों छिपा था?" आरव ने सवाल किया।
मीरा ने धीरे से हाथ बढ़ाया और दरवाजे को छूते ही एक अजीब सी कंपकंपी महसूस हुई।
"यहाँ कुछ तो है... कुछ जो हमें बुला रहा है।"
आरव ने उसे रोका, लेकिन तब तक दरवाजा खुद-ब-खुद खुलने लगा।
अंदर एक अंधेरी सुरंग थी। वहाँ से ठंडी हवा आ रही थी, मानो सदियों से वह जगह बंद थी।
"हमें सच में यहाँ जाना चाहिए?" आरव ने झिझकते हुए कहा।
मीरा ने गहरी सांस ली।
"अगर हमें अपने सवालों के जवाब चाहिए, तो हाँ।"
2. सुरंग के अंदर
दोनों ने अपने मोबाइल की टॉर्च जलाकर आगे बढ़ना शुरू किया।
दीवारों पर अजीबोगरीब संकेत और चित्र बने हुए थे।
"ये सब किस भाषा में हैं?" मीरा ने दीवार पर उकेरे गए अक्षरों को देखते हुए कहा।
आरव ने गौर से देखा।
"संस्कृत जैसी लग रही है, लेकिन कुछ शब्द समझ नहीं आ रहे।"
अचानक, मीरा के दिमाग में एक झटका सा लगा।
"यह... यह तो वही प्रतीक हैं जो मैंने अपने सपनों में देखे थे!"
अब आरव भी सतर्क हो गया।
"मतलब, यह कोई इत्तेफाक नहीं है। हम सच में अपने अतीत के किसी छिपे राज़ तक पहुँचने वाले हैं।"
3. रहस्यमयी मूर्तियाँ
थोड़ा आगे बढ़ने के बाद, उन्होंने देखा कि सुरंग के दोनों ओर पत्थर की मूर्तियाँ रखी हुई थीं।
हर मूर्ति एक ही मुद्रा में थी—
दोनों हाथ जोड़कर, आँखें बंद किए हुए, मानो किसी प्राचीन कसम की रक्षा कर रही हों।
लेकिन तभी मीरा ने कुछ नोटिस किया।
"आरव, देखो यह मूर्तियाँ... ये सब एक ही व्यक्ति की हैं!"
आरव ने गौर से देखा और चौंक गया।
"यह तो... रुद्र की शक्ल जैसी लग रही हैं!"
मीरा के रोंगटे खड़े हो गए।
"क्या यह मतलब है कि रुद्र का हमारे अतीत से कोई और भी गहरा रिश्ता था?"
4. रहस्य की किताब
सुरंग के अंत में, एक पत्थर की मेज पर एक पुरानी किताब रखी थी।
मीरा ने धीरे से उसे खोला।
पहले पन्ने पर लिखा था—
"रुद्रगढ़ के अभिशप्त प्रेम की गाथा"
और अगले ही पन्ने पर, जो नाम लिखा था, वह देखकर दोनों स्तब्ध रह गए—
"राजकुमारी मीरा और योद्धा आरव का प्रेम"
"यह... यह क्या मतलब है?" मीरा के हाथ काँप रहे थे।
आरव ने पन्ने पलटे।
कहानी कुछ इस तरह थी—
"सैकड़ों साल पहले, रुद्रगढ़ की राजकुमारी मीरा और एक योद्धा आरव एक-दूसरे से बेइंतहा प्रेम करते थे। लेकिन उनकी शादी से पहले ही राज्य में एक युद्ध छिड़ गया। आरव को देश की रक्षा के लिए युद्ध पर भेज दिया गया, और लौटकर आने से पहले ही उसे मार दिया गया।"
"लेकिन मीरा ने हार नहीं मानी। उसने किले के गुप्त तहखाने में जाकर तपस्या की और अपने प्रेम को फिर से पाने की प्रार्थना की। उसे एक वरदान मिला— 'तुम्हारा प्रेम अमर रहेगा, लेकिन उसे हर जन्म में पहचानना और पूरा करना तुम्हारी परीक्षा होगी।'"
मीरा की आँखों में आँसू आ गए।
"मतलब... हम सिर्फ इस जन्म में नहीं, बल्कि कई जन्मों से जुड़े हुए हैं?"
आरव ने भी महसूस किया कि यह सिर्फ एक पुरानी कहानी नहीं थी।
"शायद यही कारण है कि हम शिवगढ़ में मिले थे, और शायद यही वजह है कि हमें यह जगह मिली।"
लेकिन मीरा ने एक और नाम देखा—
"रुद्र"
"तो रुद्र कौन था?" उसने किताब में आगे पढ़ा।
"रुद्र, राजकुमारी मीरा का सबसे भरोसेमंद संरक्षक था। वह हर जन्म में उसके प्रेम को पूरा करने के लिए उसकी रक्षा करता था। लेकिन वह खुद भी एक अभिशाप से बंधा हुआ था— जब तक मीरा और आरव का प्रेम पूर्ण न हो, वह इस दुनिया को नहीं छोड़ सकता था।"
5. क्या यह पुनर्जन्म की आखिरी कड़ी है?
मीरा और आरव अब एक-दूसरे की ओर देख रहे थे।
"इसका मतलब है कि हमें फिर से एक परीक्षा देनी होगी?" आरव ने गंभीरता से पूछा।
मीरा ने धीरे से किताब को बंद किया और कहा—
"नहीं, शायद यही हमारा आखिरी जन्म है। शायद इस बार हमने अपने प्रेम को बिना किसी बाधा के पूरा किया, और अब रुद्र भी मुक्त हो चुका होगा।"
तभी अचानक, सुरंग की दीवारों पर नक्काशीदार चित्र चमकने लगे।
और धीरे-धीरे वे सब रेत में समाने लगे।
मीरा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
"अब यह कहानी सच में खत्म हो रही है।"
आरव ने उसका हाथ थामा।
"और अब से हमारी असली जिंदगी शुरू हो रही है।"
जैसे ही दोनों सुरंग से बाहर निकले, पीछे का दरवाजा अपने आप बंद हो गया।
रुद्रगढ़ का रहस्य अब हमेशा के लिए खत्म हो चुका था।
अंतिम शब्द
शिवगढ़ और रुद्रगढ़ की कहानियाँ अब इतिहास बन चुकी थीं।
मीरा और आरव की कहानी ने आखिरकार अपना मुकाम पा लिया था।
अब कोई अभिशाप नहीं, कोई रहस्य नहीं...
सिर्फ सच्चा, शाश्वत प्रेम।
नई कहानी: मीरा और आरव के बच्चों की रोमांचक और रोमांटिक कहानी
(शिवगढ़ और रुद्रगढ़ की गाथा समाप्त हो चुकी थी, लेकिन क्या उनका प्रेम सिर्फ उन्हीं तक सीमित था? या फिर नियति ने उनकी संतान के लिए भी कोई अनोखी कहानी लिख रखी थी?)
अध्याय 1: एक नई शुरुआत
मीरा और आरव की शादी को अब 18 साल हो चुके थे।
वे एक शांत और खुशहाल जीवन जी रहे थे।
उनके दो बच्चे थे—
आरुष (21 वर्ष) – समझदार, शांत, लेकिन रोमांच का शौकीन।
अन्विता (19 वर्ष) – जिज्ञासु, भावुक और कला प्रेमी।
दोनों भाई-बहन शिवगढ़ और रुद्रगढ़ की कहानियाँ सुनते हुए बड़े हुए थे।
लेकिन वे इन कहानियों को सिर्फ "पुरानी दंतकथाएँ" मानते थे।
उन्हें यह नहीं पता था कि उनका भाग्य भी कहीं न कहीं इन्हीं कहानियों से जुड़ा हुआ था...
एक रात, आरुष और अन्विता अपनी पुरानी हवेली की लाइब्रेरी में किताबें देख रहे थे।
तभी अचानक, उन्हें एक पुरानी तिजोरी मिली, जिसे कभी खोला नहीं गया था।
"मम्मी-पापा ने कभी इस बारे में बताया नहीं?" अन्विता ने उत्सुकता से कहा।
आरुष ने तिजोरी खोलने की कोशिश की, लेकिन वह हिली भी नहीं।
परंतु जैसे ही अन्विता ने उसे छुआ, वह अपने-आप खुल गई!
"यह... यह कैसे हुआ?" दोनों चौंक गए।
अंदर एक सोने का लटकन (locket) रखा था।
"राजकुमारी मीरा का प्रतीक"
"लेकिन यह तो मम्मी का नाम है!" अन्विता ने हैरानी से कहा।
जैसे ही उसने लटकन उठाया, हवेली की सारी मोमबत्तियाँ खुद-ब-खुद जल उठीं।
अब दोनों को समझ आ गया कि यह सिर्फ कोई कहानी नहीं थी।
कुछ बहुत बड़ा होने वाला था।
उस रात अन्विता को एक अजीब सपना आया।
वह खुद को 400 साल पुराने एक महल में देख रही थी।
सामने एक स्त्री खड़ी थी, जिसने राजसी वस्त्र पहने हुए थे।
"अन्विता... अब समय आ गया है। तुम्हें अपनी असली पहचान जाननी होगी।"
"कौन हो तुम?" अन्विता ने घबराकर पूछा।
"मैं राजकुमारी मीरा हूँ... तुम्हारी पूर्वज।"
अन्विता की आँखें चौड़ी हो गईं।
"तो मम्मी का नाम तुम्हारे नाम पर रखा गया है?"
"हाँ, और तुम्हारे खून में भी वही शक्ति है जो मेरे पास थी। अब तुम्हें अपनी यात्रा शुरू करनी होगी।"
अचानक, सपना टूट गया।
अन्विता हड़बड़ाकर उठ बैठी।
"क्या यह सब सच था?"
अगले दिन, अन्विता ने अपने सपने के बारे में आरुष को बताया।
"शायद हमें इस लटकन की सच्चाई खोजनी चाहिए।"
दोनों ने अपने माता-पिता से इस बारे में पूछा, लेकिन मीरा और आरव घबरा गए।
"बेटा, कुछ राज़ दफन ही रहने दो।"
लेकिन अन्विता और आरुष ने हार नहीं मानी।
उन्होंने खुद ही इसकी खोज करने का फैसला किया।
शहर के पुराने संग्रहालय में रुद्रगढ़ से जुड़ी कुछ पुरानी पेंटिंग्स रखी थीं।
वहाँ अन्विता की मुलाकात एक रहस्यमयी लड़के से हुई—
"वीर"
वीर एक इतिहासकार था, जो रहस्यमयी किलों पर शोध कर रहा था।
जैसे ही उसने अन्विता के गले में लटकन देखा, वह चौंक गया।
"यह... यह तो वही लटकन है जिसे मैंने एक किताब में देखा था!"
"तुम्हें इसके बारे में क्या पता है?" अन्विता ने उत्सुकता से पूछा।
"यह सिर्फ एक गहना नहीं है, यह एक चाबी है... जो एक गुप्त खजाने तक पहुँचाती है।"
अब अन्विता और वीर के बीच एक नई जिज्ञासा और कनेक्शन बनने लगा था।
क्या यह सिर्फ एक संयोग था?
या फिर वीर भी किसी तरह से इस कहानी का हिस्सा था?
अब अन्विता, आरुष और वीर ने मिलकर इस रहस्य को सुलझाने की ठानी।
उन्होंने रुद्रगढ़ जाने का फैसला किया— जहाँ उनके अतीत का अंतिम अध्याय लिखा गया था।
परंतु, उन्हें नहीं पता था कि कोई छुपा हुआ दुश्मन उनकी ताकतों के बारे में पहले से जानता था।
जैसे ही वे किले की ओर बढ़े, किसी ने छाया से उन्हें देखते हुए कहा—
"आखिरकार, नए वारिस जाग चुके हैं... लेकिन इस बार, प्रेम और शक्ति की यह लड़ाई आसान नहीं होगी!"
(अगले अध्याय में— रुद्रगढ़ के खजाने की खोज, अन्विता और वीर के बीच पनपता प्यार, और एक नई ताकत जो सब कुछ बदल सकती है!)
अध्याय 2: रुद्रगढ़ का खजाना और प्रेम की नई परीक्षा
(अन्विता, आरुष और वीर अब रुद्रगढ़ की ओर बढ़ चुके थे। लेकिन क्या वे वाकई खजाने तक पहुँच पाएंगे? या फिर प्रेम और विश्वास की यह यात्रा उन्हें और गहरे राज़ों तक ले जाएगी?)
रुद्रगढ़ के किले में कदम रखते ही अन्विता को एक अजीब सी घबराहट महसूस हुई।
"यह जगह... इतनी जानी-पहचानी क्यों लग रही है?"
वीर ने इधर-उधर देखा।
"यह किला 400 साल से बंद पड़ा था। यहाँ जो कुछ भी होगा, वो हमारी कल्पना से परे होगा।"
अचानक, किले की दीवारों पर प्राचीन प्रतीक चमकने लगे।
आरुष ने गौर किया—
"ये तो वही संकेत हैं, जो हमने पुरानी किताब में देखे थे!"
अन्विता ने अपने गले में पहना लटकन उठाया।
जैसे ही उसने उसे दीवार के पास किया, पूरी दीवार हिलने लगी और एक गुप्त दरवाजा खुल गया!
"यह सुरंग हमें खजाने तक ले जा सकती है!" वीर ने कहा।
तीनों ने बिना समय गँवाए सुरंग में कदम रख दिया।
जैसे ही वे सुरंग में आगे बढ़े, वहाँ घना अंधेरा था।
अन्विता के पाँव लड़खड़ा गए, लेकिन वीर ने तुरंत उसे थाम लिया।
"संभलकर, अन्विता!"
उनकी आँखें अचानक आपस में टकराईं।
कुछ पल के लिए सब कुछ रुक सा गया।
वीर ने धीरे से उसका हाथ पकड़ा।
"जब तक मैं हूँ, तुम्हें कुछ नहीं होगा।"
अन्विता का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
(अन्विता, आरुष और वीर अब रुद्रगढ़ की ओर बढ़ चुके थे। लेकिन क्या वे वाकई खजाने तक पहुँच पाएंगे? या फिर प्रेम और विश्वास की यह यात्रा उन्हें और गहरे राज़ों तक ले जाएगी?)
रुद्रगढ़ के किले में कदम रखते ही अन्विता को एक अजीब सी घबराहट महसूस हुई।
"यह जगह... इतनी जानी-पहचानी क्यों लग रही है?"
वीर ने इधर-उधर देखा।
"यह किला 400 साल से बंद पड़ा था। यहाँ जो कुछ भी होगा, वो हमारी कल्पना से परे होगा।"
अचानक, किले की दीवारों पर प्राचीन प्रतीक चमकने लगे।
आरुष ने गौर किया—
"ये तो वही संकेत हैं, जो हमने पुरानी किताब में देखे थे!"
अन्विता ने अपने गले में पहना लटकन उठाया।
जैसे ही उसने उसे दीवार के पास किया, पूरी दीवार हिलने लगी और एक गुप्त दरवाजा खुल गया!
"यह सुरंग हमें खजाने तक ले जा सकती है!" वीर ने कहा।
तीनों ने बिना समय गँवाए सुरंग में कदम रख दिया।
जैसे ही वे सुरंग में आगे बढ़े, वहाँ घना अंधेरा था।
अन्विता के पाँव लड़खड़ा गए, लेकिन वीर ने तुरंत उसे थाम ल
क्या यह सिर्फ एक रोमांचक सफर था? या फिर कुछ और भी था, जो दोनों के दिलों में हलचल मचा रहा था?
लेकिन इससे पहले कि वे और कुछ समझ पाते, आरुष ने पुकारा—
"जल्दी आओ! यहाँ कुछ मिला है!"
सुरंग के अंत में एक विशाल संगमरमर का दरवाजा था।
दरवाजे के सामने एक प्राचीन योद्धा की मूर्ति खड़ी थी।
लेकिन जैसे ही अन्विता ने लटकन से दरवाजा खोलने की कोशिश की, मूर्ति अचानक हिलने लगी!
और फिर एक गहरी आवाज़ गूँजी—
"कौन हैं तुम लोग? इस जगह का रहस्य सिर्फ वारिसों के लिए खुल सकता है!"
वीर तुरंत आगे बढ़ा।
"हम जवाब ढूँढने आए हैं, और हमें इस खजाने की सच्चाई जाननी है!"
मूर्ति कुछ पल के लिए चुप रही, फिर धीरे से बोली—
"अगर तुम सच्चे वारिस हो, तो यह परीक्षा पास करो!"
और तभी दरवाजे के चारों ओर आग की लपटें उठने लगीं!
मूर्ति ने कहा—
"यहाँ से आगे बढ़ने के लिए तुम्हें एक बलिदान देना होगा। कुछ ऐसा छोड़ना होगा जो तुम्हारे दिल के सबसे करीब है।"
वीर, अन्विता और आरुष एक-दूसरे की ओर देखने लगे।
"लेकिन हम क्या छोड़ सकते हैं?"
तभी मूर्ति ने वीर की ओर देखा।
"तुम्हें अपनी सबसे गहरी भावना को कुर्बान करना होगा।"
वीर कुछ पल के लिए चुप रहा।
फिर उसने एक गहरी सांस ली और अन्विता की ओर देखा।
"मैं... मैं तुम्हें चाहता हूँ, अन्विता। लेकिन अगर इस खजाने की सच्चाई के लिए मुझे अपने दिल को मारना पड़े, तो मैं तैयार हूँ।"
अन्विता स्तब्ध रह गई।
"वीर... क्या तुम सच में?"
वीर ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
"शायद इस जन्म में हमें एक-दूसरे का साथ नसीब न हो, लेकिन अगर हमारे प्यार में सच्चाई होगी, तो यह किसी न किसी रूप में हमेशा रहेगा।"
जैसे ही वीर ने यह कहा, मूर्ति हिलने लगी और दरवाजा धीरे-धीरे खुल गया!
लेकिन अन्विता की आँखों में आँसू थे।
दरवाजे के पीछे एक बड़ा सोने और गहनों से भरा कमरा था।
लेकिन उसके बीचों-बीच एक पुराना दस्तावेज़ रखा था।
आरुष ने उसे उठाया और पढ़ा—
"यह कोई आम खजाना नहीं, बल्कि एक अभिशाप की कुंजी है!"
अन्विता ने आँखें पोछते हुए दस्तावेज़ को गौर से देखा।
उस पर लिखा था—
"सिर्फ सच्चा प्रेम ही इस खजाने को मुक्त कर सकता है।"
वीर ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
"शायद, सच्चे खजाने का मतलब सोना-चाँदी नहीं, बल्कि हमारे रिश्ते की सच्चाई है।"
लेकिन क्या अन्विता यह बात स्वीकार कर पाएगी?
और तभी पीछे से एक छाया तेजी से उनकी ओर बढ़ी—
"इस खजाने पर अब मेरा हक़ है!"
कौन था यह नया दुश्मन?
क्या वीर और अन्विता को एक और परीक्षा देनी होगी?
और क्या उनका प्रेम इस नई परीक्षा में जीत पाएगा?
(अगले अध्याय में— कौन है यह रहस्यमयी छाया? क्या अन्विता और वीर का प्रेम इस परीक्षा में सफल होगा? और क्या रुद्रगढ़ का असली अभिशाप अब खुलेगा?)
अध्याय 3: प्रेम और अतीत का रहस्य
(रुद्रगढ़ के खजाने का रहस्य खुलने वाला था, लेकिन वीर, अन्विता और आरुष के सामने अब एक नया खतरा आ खड़ा हुआ था। कौन था यह रहस्यमयी व्यक्ति जो इस खजाने पर अपना हक़ जता रहा था? और क्या वीर और अन्विता का प्रेम इस परीक्षा में सफल हो पाएगा?)
1. नकाबपोश रहस्यवादी
पीछे से एक गहरी आवाज़ आई—
"इस खजाने पर अब मेरा हक़ है!"
तीनों तेजी से मुड़े।
सामने एक नकाबपोश व्यक्ति खड़ा था, जिसके हाथ में एक चमकती हुई तलवार थी।
आरुष गुस्से में बोला—
"तुम कौन हो?"
नकाबपोश ने धीरे-धीरे अपना चेहरा उजागर किया।
अन्विता और वीर की आँखें हैरानी से फैल गईं!
यह वही व्यक्ति था, जिसे उन्होंने शिवगढ़ की पुरानी पेंटिंग्स में देखा था!
"लेकिन यह तो असंभव है! यह आदमी 400 साल पहले जिंदा था!" अन्विता ने चौंकते हुए कहा।
2. 400 साल पुराना श्राप
नकाबपोश ने गहरी सांस ली और बोला—
"मेरा नाम आदित्य है... और मैं वही योद्धा हूँ जिसने मीरा और आरव के प्रेम को अलग करने की कोशिश की थी।"
वीर गुस्से में आगे बढ़ा—
"तुम्हारा नाम इतिहास में एक खलनायक के रूप में दर्ज है!"
आदित्य ने हल्की हँसी के साथ कहा—
"शायद, लेकिन मुझे एक श्राप मिला था। मीरा और आरव के प्रेम को तोड़ने की सजा यह थी कि मैं अनंतकाल तक इस खजाने का रक्षक बनकर यहाँ कैद रहूँ।"
"तुम्हें यह खजाना चाहिए? तो पहले मुझे हराना होगा!"
3. तलवारों की टकराहट और वीर का बलिदान
वीर ने बिना सोचे-समझे अपनी तलवार निकाल ली।
"अगर तुम्हें लड़ाई चाहिए, तो मैं तैयार हूँ!"
आदित्य और वीर के बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया।
तलवारों की टकराहट से पूरी गुफा गूँज उठी।
अन्विता घबराकर बोली—
"नहीं! यह लड़ाई नहीं होनी चाहिए!"
लेकिन वीर लड़ता रहा, और आखिरकार आदित्य ने एक खतरनाक वार किया—
वीर घायल होकर ज़मीन पर गिर पड़ा!
"वीर!" अन्विता चीख पड़ी।
वह उसकी ओर भागी, लेकिन आदित्य ने उसे रोक दिया।
"तुम्हारी सजा अब शुरू होती है!"
4. प्रेम की सच्ची परीक्षा
आदित्य ने अपनी तलवार ऊपर उठाई और कहा—
"सिर्फ एक तरीका है जिससे मैं इस श्राप से मुक्त हो सकता हूँ।"
"कैसे?" अन्विता ने रोते हुए पूछा।
"अगर कोई सच्चे प्रेम से मुझे माफ कर दे, तो यह श्राप टूट सकता है। लेकिन क्या तुम अपने प्रेमी को छोड़कर मुझे माफ कर पाओगी?"
अब यह परीक्षा सिर्फ वीर की नहीं थी, बल्कि अन्विता के प्रेम की भी थी।
अगर वह आदित्य को माफ कर देती, तो वीर हमेशा के लिए उससे दूर हो सकता था।
"अब क्या करूँ?" अन्विता के दिल में सवाल उठने लगे।
क्या वह अपने प्रेम को बचाने के लिए इतिहास से नफरत करती रहेगी?
या फिर वह क्षमा की शक्ति को अपनाएगी?
5. प्यार की ताकत और श्राप का अंत
कुछ देर तक अन्विता ने कुछ नहीं कहा।
फिर उसने गहरी सांस ली और कहा—
"आदित्य, मैं तुम्हें माफ करती हूँ।"
गुफा में अचानक एक तेज़ रोशनी फैल गई!
आदित्य की आँखों में आँसू थे।
"क्या... यह सच है?"
अन्विता ने सिर हिलाया—
"प्यार सिर्फ पाने का नाम नहीं है, बल्कि माफ करने और आगे बढ़ने का नाम भी है।"
आदित्य ने आँखें बंद कर लीं और एक मुस्कान के साथ कहा—
"शायद, यही वह सबक था जो मुझे 400 साल पहले सीखना चाहिए था।"
धीरे-धीरे आदित्य धुएं में बदलने लगा और गायब हो गया।
श्राप टूट चुका था!
जैसे ही आदित्य का अंत हुआ, वीर धीरे-धीरे होश में आया।
"अन्विता... तुम ठीक हो?"
अन्विता ने मुस्कुराकर उसका हाथ थाम लिया।
"अगर तुम मेरे साथ हो, तो मैं हमेशा ठीक रहूँगी।"
वीर ने धीरे से कहा—
"मैंने सोचा था कि हमें यह खजाना चाहिए, लेकिन अब मुझे समझ आ गया कि असली खजाना तो तुम्हारा साथ है।"
अन्विता ने हल्की हँसी के साथ कहा—
"तो क्या तुम सच में मुझसे प्यार करते हो?"
वीर ने उसकी आँखों में झाँका और मुस्कुराकर कहा—
"इतना कि अगर 400 साल भी इंतजार करना पड़े, तो मैं करूंगा।"
(और इसी के साथ, वीर और अन्विता के प्रेम की एक नई शुरुआत हुई।)
नई सुबह, नया सफर
(वीर और अन्विता ने रुद्रगढ़ के रहस्य को सुलझा लिया था। लेकिन क्या उनके प्रेम की परीक्षा खत्म हो गई थी? या फिर किस्मत ने उनके लिए कोई नया मोड़ तैयार किया था?)
खजाने का श्राप टूट चुका था, और वीर व अन्विता ने एक-दूसरे की आँखों में सुकून देखा।
आरुष ने दीवार पर बनी प्राचीन चित्रकारी की ओर इशारा किया।
"यहाँ कुछ और भी लिखा है!"
अन्विता ने पास जाकर पढ़ा—
"सच्चा प्रेम सिर्फ परीक्षा से नहीं, बल्कि एक नई यात्रा से भी गुजरता है।"
वीर ने मुस्कुराते हुए कहा—
"शायद यह सिर्फ खजाने की कहानी नहीं थी, बल्कि हमें कुछ सिखाने के लिए थी।"
लेकिन क्या किस्मत ने सच में उनकी परीक्षा खत्म कर दी थी?
रुद्रगढ़ से लौटने के बाद, वीर और अन्विता फिर से अपनी सामान्य जिंदगी में लौटने की कोशिश कर रहे थे।
अन्विता को अभी भी वीर के शब्द याद आ रहे थे—
"इतना कि अगर 400 साल भी इंतजार करना पड़े, तो मैं करूंगा।"
वह सोच रही थी—
"क्या हम सच में साथ रह सकते हैं? या फिर जिंदगी हमें फिर से अलग कर देगी?"
वीर ने उसे अचानक उसके ख्यालों से बाहर निकाला।
"क्या सोच रही हो?"
अन्विता हँसी—
"बस यही कि अब हमारी ज़िंदगी कितनी नॉर्मल हो जाएगी!"
लेकिन जैसे ही उसने यह कहा, एक अजनबी ने उनका रास्ता रोक लिया।
सामने एक लंबा, काले कपड़ों में लिपटा आदमी खड़ा था।
उसने एक छोटा सा पत्र अन्विता की ओर बढ़ाया।
"तुम्हारे लिए।"
अन्विता और वीर ने चौंककर उसे देखा।
"यह कौन है?" वीर ने पूछा।
लेकिन वह आदमी बिना जवाब दिए अंधेरे में गायब हो गया।
अन्विता ने धीरे से वह पत्र खोला—
"तुमने सिर्फ एक श्राप तोड़ा है, लेकिन असली कहानी अब शुरू होती है। अगर अपने प्रेम की रक्षा करनी है, तो अगली निशानी को खोजो।"
आरुष ने उत्सुकता से कहा—
"मतलब अभी कुछ और राज़ बाकी हैं!"
वीर गंभीर हो गया—
"या शायद, हमारी परीक्षा अभी खत्म नहीं हुई है..."
अन्विता और वीर दोनों ही इस नए संदेश को लेकर परेशान थे।
एक तरफ उनका प्यार गहराता जा रहा था, लेकिन दूसरी तरफ यह नया खतरा उनके भविष्य पर सवाल उठा रहा था।
अन्विता ने वीर का हाथ पकड़ा—
"अगर हमें एक और सफर पर निकलना है, तो क्या तुम हमेशा मेरे साथ रहोगे?"
वीर ने हल्की हँसी के साथ कहा—
"क्या तुम्हें अभी भी शक है?"
लेकिन जैसे ही उन्होंने अगली निशानी ढूँढनी शुरू की, उन्हें एहसास हुआ कि यह यात्रा पहले से भी ज्यादा खतरनाक होने वाली थी।
अध्याय 5: प्रेम और खतरे की नई राह
(रुद्रगढ़ का श्राप खत्म होने के बाद भी, वीर और अन्विता की परीक्षा खत्म नहीं हुई थी। रहस्यमयी पत्र ने उन्हें एक नए रहस्य की ओर खींच लिया था। लेकिन क्या यह सिर्फ एक और चुनौती थी, या उनके प्रेम के लिए सबसे बड़ा खतरा?)
वीर और अन्विता दोनों ही उस पत्र को लेकर परेशान थे।
"तुमने सिर्फ एक श्राप तोड़ा है, लेकिन असली कहानी अब शुरू होती है। अगर अपने प्रेम की रक्षा करनी है, तो अगली निशानी को खोजो।"
आरुष, जो हमेशा मस्ती में रहने वाला लड़का था, आज पहली बार गंभीर था।
"यह किसी का मजाक नहीं लग रहा। लगता है, कोई हमें किसी बड़े सच तक पहुँचाना चाहता है।"
वीर ने पत्र को मोड़ा और अन्विता की ओर देखा—
"हमें अगली निशानी को ढूँढना होगा।"
अन्विता को वीर की आँखों में वही संघर्ष और दृढ़ संकल्प दिखा, जो उसने पहले देखा था।
लेकिन इस बार, उसे डर था कि कहीं यह यात्रा उनके लिए कोई बड़ा खतरा न बन जाए।
पत्र में सिर्फ एक नाम लिखा था— "कृष्णापुरी"
"यह कौन सी जगह है?" अन्विता ने पूछा।
आरुष ने तुरंत अपने फोन पर सर्च किया—
"यह तो एक पुराना, सुनसान शहर है! लोग कहते हैं कि वहाँ कुछ रहस्यमयी घटनाएँ होती हैं।"
वीर ने बिना देर किए कहा—
"हमें वहीं जाना होगा!"
जैसे ही वे कृष्णापुरी पहुँचे, उन्हें एक अजीब सा सन्नाटा महसूस हुआ।
चारों तरफ टूटे-फूटे मकान, पुरानी गलियाँ और हवा में एक अजीब सी ठंडक।
एक बूढ़ा आदमी सड़क किनारे बैठा था।
जब अन्विता ने उससे कृष्णापुरी के बारे में पूछा, तो उसने डरकर कहा—
"तुम यहाँ क्यों आए हो? यह जगह प्रेमियों के लिए अभिशाप है!"
अन्विता ने चौंककर पूछा—
"मतलब?"
बूढ़े आदमी ने एक पुरानी किताब निकाली और कहा—
"इसमें उस लड़की की कहानी लिखी है, जो अपने प्रेमी के साथ यहाँ आई थी और फिर कभी वापस नहीं जा पाई।"
उन्होंने किताब खोली और पढ़ना शुरू किया।
"करीब 200 साल पहले, यहाँ एक प्रेमिका अपने प्रेमी से मिलने आई थी। लेकिन जैसे ही वे दोनों कृष्णापुरी में दाखिल हुए, लड़की गायब हो गई। लोगों का कहना है कि जो भी सच्चे प्रेम के साथ यहाँ आता है, उसे किसी अनदेखी शक्ति का सामना करना पड़ता है।"
वीर ने किताब को बंद किया और कहा—
"यानि, यह जगह हमारे लिए भी खतरनाक हो सकती है।"
अन्विता का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
"क्या यह हमारे लिए कोई नई परीक्षा है?"
तभी अचानक, हवा का रुख बदलने लगा और मंदिर की घंटियाँ अपने आप बजने लगीं!
आरुष घबराकर बोला—
"मुझे नहीं लगता कि यह सिर्फ एक कहानी है। यहाँ सच में कुछ है!"
जैसे ही वे मंदिर के पास पहुँचे, अचानक एक तेज़ रोशनी फैली और अन्विता की चीख निकली—
"वीर!!!"
वीर ने देखा कि अन्विता धीरे-धीरे गायब हो रही थी!
उसने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने उसका हाथ पकड़ा, एक रहस्यमयी शक्ति ने वीर को दूर फेंक दिया।
वीर ज़मीन पर गिर पड़ा और उसकी आँखों के सामने सब कुछ धुंधला होने लगा।
आखिरी आवाज़ जो उसने सुनी, वह थी अन्विता की चीख।
"वीर!!! बचाओ!!!"
और फिर...
अंधेरा।
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क्या वीर अपनी प्रेमिका को वापस ला पाएगा......????
वीर के होश में आने पर, उसे सिर में भयानक दर्द हो रहा था। वह एक अँधेरे कमरे में पड़ा हुआ था, उसके हाथ-पैर बंधे हुए थे। उसके आस-पास सन्नाटा छाया हुआ था, केवल दूर से मंदिर की घंटियों की धीमी, भयावह आवाज़ सुनाई दे रही थी। उसने आँखें खोलीं तो देखा कि कमरा बहुत पुराना और उजाड़ है। दीवारों पर मोटी धूल की परत जमी हुई थी और कोनों में मकड़ियों के जाले लटके हुए थे।
धीरे-धीरे, उसे याद आया कि क्या हुआ था। अन्विता... वह गायब हो गई थी। उसके दिल में एक ठंडा सा डर समा गया। क्या यह सब सच में हुआ था? या यह कोई बुरा सपना था?
तभी, उसे एक आवाज सुनाई दी। यह एक महिला की आवाज थी, बहुत ही मधुर, लेकिन साथ ही भयानक भी। आवाज धीरे-धीरे करीब आ रही थी।
"तुम जाग गए, वीर?"
आवाज कमरे के अंधेरे से आ रही थी, इसलिए वीर समझ नहीं पा रहा था कि वह कौन है।
"कौन है वहाँ?" वीर ने डरते हुए पूछा।
"मैं हूँ... कृष्णापुरी की रक्षक।"
वीर ने अपने हाथ-पैर हिलाने की कोशिश की, लेकिन वे कसकर बंधे हुए थे।
"तुमने जो किया, वह गलत था।" महिला की आवाज थोड़ी कठोर हो गई। "यहाँ प्रेम की परीक्षा होती है, लेकिन तुमने अन्विता को खतरे में डाल दिया।"
"मैंने क्या गलत किया? मुझे अन्विता को वापस चाहिए!" वीर ने गुस्से में कहा।
"तुमने अपने प्रेम की परीक्षा नहीं दी। तुमने सिर्फ़ भाग्य को चुनौती दी। अन्विता को वापस पाने के लिए, तुम्हें एक परीक्षा पास करनी होगी।"
महिला ने कमरे में एक छोटा सा दीया जलाया। धीमी रोशनी में, वीर को कमरे में एक पुराना पत्थर का स्लैब दिखाई दिया। उस पर कुछ प्राचीन लिपि लिखी हुई थी।
"यह परीक्षा है। इस लिपि को समझो और उसका अर्थ बताओ। सिर्फ़ तभी तुम्हें अन्विता मिल पाएगी।"
वीर ने स्लैब पर लिखी लिपि को ध्यान से देखा। यह कोई साधारण लिपि नहीं थी। यह बहुत ही पुरानी और रहस्यमयी लग रही थी।
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वीर ने घंटों तक उस प्राचीन लिपि को देखा। उसके माथे पर पसीना आ गया था, और उसकी आँखें थक गई थीं। वह इसे समझने की पूरी कोशिश कर रहा था, लेकिन यह एक अजीबोगरीब भाषा थी, जिससे वह अनजान था। उसने अपने ज्ञान का, अपनी याददाश्त का, सब कुछ झोंक दिया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
तभी, उसे कुछ याद आया। उसकी दादी ने उसे बचपन में प्राचीन भाषाओं की कई कहानियाँ सुनाई थीं। उसने उन कहानियों में से एक का एक छोटा सा अंश याद किया, जिसमें इसी तरह की लिपि का जिक्र था। उसने अपनी याददाश्त में उस कहानी को खंगाला, हर शब्द, हर विवरण को ढूंढने की कोशिश की।
धीरे-धीरे, उसे कुछ समझ आने लगा। वह लिपि किसी प्राचीन भाषा में लिखी गई थी, जो सदियों पहले इस क्षेत्र में बोली जाती थी। वह लिपि किसी कविता का एक अंश थी, जो प्रेम, त्याग, और फिर से मिलन की कहानी कहती थी। कविता के अंत में, एक पहेली छिपी हुई थी।
पहेली का हल था - "जहाँ सूर्य अस्त होता है, और चाँद उदय होता है, वहाँ प्रेम का द्वार खुलता है।"
वीर को समझ आ गया कि यह पहेली कृष्णापुरी के मंदिर के बारे में थी। वह मंदिर सूर्योदय के समय पूर्व की ओर और सूर्यास्त के समय पश्चिम की ओर होता है। पश्चिम की ओर मंदिर की एक गुप्त गुफा थी, जिसके बारे में स्थानीय लोग कहानियाँ सुनाया करते थे।
वीर ने अपनी पूरी ताकत से चीखना शुरू किया। "कृष्णापुरी की रक्षक! मुझे पता चल गया है! पहेली का हल... वह गुफा..."
कुछ देर बाद, कमरे का दरवाजा खुला, और कृष्णापुरी की रक्षक फिर से प्रकट हुई। उसके चेहरे पर एक हल्का सा आश्चर्य था।
"तुम्हें पता चल गया?" उसने पूछा।
"हाँ," वीर ने कहा। "पहेली का हल मुझे पता चल गया है। मुझे अन्विता मिल जाएगी।"
रक्षक ने वीर के हाथ-पैर खोले और उसे गुफा का रास्ता दिखाया। वह गुफा अँधेरी और डरावनी थी, लेकिन वीर के मन में अब कोई डर नहीं था। उसे अपनी प्रेमिका को ढूंढना था, चाहे कुछ भी हो जाए।
गुफा के अंदर, वीर को एक छोटा सा कमरा दिखाई दिया। और वहाँ, एक छोटी सी मोमबत्ती की रोशनी में, वह बैठी हुई थी - अन्विता।
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क्या अन्विता ठीक है? क्या वीर उसे वापस ले जा पाएगा? कृष्णापुरी का रहस्य क्या है? कहानी का अंत कैसे होगा?
कहानी का अगला भाग: "कृष्णापुरी का अंतिम रहस्य"
गुफा के उस छोटे से कमरे में जब वीर ने अन्विता को देखा, उसकी आँखों में आंसू आ गए। वह सच में वही थी — थकी हुई, कमज़ोर, लेकिन ज़िंदा। मोमबत्ती की धीमी रोशनी में अन्विता का चेहरा एक परी की तरह लग रहा था।
"अन्विता!" वीर दौड़ता हुआ उसके पास पहुँचा।
अन्विता ने अपनी कमजोर आँखों से वीर को देखा, और धीमे से मुस्कुरा दी। "मुझे पता था... तुम आओगे," उसने धीरे से कहा।
वीर ने उसे सहारा दिया, "मैं तुम्हें यहाँ से ले जाऊँगा। अब सब ठीक हो जाएगा।"
लेकिन तभी, गुफा की दीवारें हिलने लगीं। एक तेज़ आवाज गूंजने लगी — जैसे कोई पुरानी शक्ति जाग रही हो।
कृष्णापुरी की रक्षक अचानक वीर और अन्विता के सामने प्रकट हुई। उसका चेहरा गंभीर था।
"तुमने पहेली हल कर ली, वीर," उसने कहा। "लेकिन कृष्णापुरी का रहस्य यहीं खत्म नहीं होता।"
वीर ने चौंक कर पूछा, "मतलब?"
रक्षक ने कहा, "जिस प्रेम की परीक्षा तुमने दी है, उसका अंतिम चरण अभी बाकी है। इस गुफा से बाहर निकलने का रास्ता तभी खुलेगा जब तुम सबसे कठिन निर्णय लोगे।"
"क्या निर्णय?" अन्विता ने डरते हुए पूछा।
रक्षक ने एक प्राचीन मुद्रा हवा में बनाते हुए कहा, "तुम दोनों में से केवल एक ही इस गुफा से बाहर जा सकता है। दूसरा... यहाँ हमेशा के लिए रह जाएगा।"
वीर और अन्विता दोनों स्तब्ध रह गए।
"यह कैसी परीक्षा है?" वीर ने गुस्से में कहा। "हम दोनों ने एक-दूसरे के लिए सब कुछ त्यागा है!"
रक्षक शांत स्वर में बोली, "यही प्रेम की सच्ची कसौटी है — त्याग। अगर तुम सच में प्रेम करते हो, तो तुम उसे जाने दोगे। और अगर वह तुमसे सच में प्रेम करती है, तो वह तुम्हें जाने देगी।"
कमरे की दीवार पर एक दरवाज़ा प्रकट हुआ, लेकिन वह अधखुला था — जैसे किसी के निर्णय का इंतज़ार कर रहा हो।
वीर ने अन्विता की तरफ देखा। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन एक दृढ़ निश्चय भी।
"मैं रह जाऊँगा," वीर ने धीरे से कहा। "तुम बाहर जाओ, अन्विता। तुम्हें जीवन जीना है। मेरी कोई ज़रूरत नहीं।"
अन्विता रो पड़ी। "नहीं! अगर तुम नहीं जाओगे, तो मैं भी नहीं जाऊँगी। मैं भी यहीं रहूँगी।"
रक्षक चुपचाप सब देख रही थी।
तभी, गुफा की दीवारें अचानक शांत हो गईं। हवा में एक मधुर स्वर गूंजा — जैसे कोई शक्ति प्रसन्न हो गई हो।
रक्षक मुस्कराई। "तुम दोनों ने परीक्षा पास कर ली है। तुम्हारा प्रेम सच्चा है — त्याग से परिपूर्ण। अब तुम दोनों जा सकते हो।"
दरवाज़ा पूरी तरह खुल गया।
वीर और अन्विता ने एक-दूसरे का हाथ थामा और गुफा से बाहर निकल गए। बाहर सूरज उग रहा था। कृष्णापुरी का रहस्य अब एक मीठी याद बन चुका था।
अंत......
अँधेरे में जब खो गया था प्रकाश,
बंधी थी साँसें, टूटे थे विश्वास।
सन्नाटों में एक धीमी सी पुकार थी,
कहीं अन्विता तो कहीं वीर की भार थी।
कृष्णापुरी की गहराइयों में छिपा राज,
नहीं था बस प्रेम, था त्याग का अंदाज़।
एक पत्थर की लिपि, एक रहस्यमयी बात,
प्रेम की परीक्षा, नहीं थी यह कोई सौगात।
"जहाँ चाँद उगता और सूरज ढलता,
वहीं प्रेम का द्वार स्वयं ही खुलता।"
वीर ने समझा, और दिल से जाना,
सच्चे प्रेम में होता है खुद को हराना।
जब अन्विता मिली, आँखें भर आईं,
लेकिन रक्षक ने फिर शर्त सुनाई।
"एक को रहना होगा, एक जाए बाहर,
यही है प्रेम का अंतिम आधार।"
वीर ने कहा, "मैं रह जाऊँगा यहीं,
उसके लिए त्याग दूँ ये ज़िंदगी सही।"
अन्विता ने कहा, "तेरे बिना अधूरी हूँ मैं,
प्रेम हूँ मैं तेरा, तेरे बिना क्या हूँ भला मैं?"
दोनों ने जब त्याग को चुना,
तभी प्रेम ने राह अपनी बुना।
रक्षक मुस्काई, और गुफा ने कहा —
"यह सच्चा प्रेम है, इसकी जयजयकार करा!"
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कृष्णापुरी की कहानी अब भी बहती है हवा में,
जहाँ प्रेम हो सच्चा, वहाँ चमत्कार होते हैं दवा में।
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अगर आप यहां तक पहुंच चुके है तो आपका बहुत बहुत धन्यवाद, आपने इस कहानी के लिए अपना समय निकाला.....
आगे और कहानियां पढ़ने के लिए मेरे साथ बने रहे ....☺️☺️☺️