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Love with a rented heart

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Micky Mouse

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पहला प्यार सबके लिए खास होता है, लेकिन अगर बात एक तरफा प्यार की हो तो उसे भुला देना नामुमकिन सा लगता है। और उसके खुशी के लिए मन कुछ भी करने को तैयार हो जाता है चाहे वो मजबूरी में भी क्यों न हो। कुछ ऐसी ही कहानी है मिहिर की। मिहिर हम सब की तरह एक आम स...

Total Chapters (1)

Page 1 of 1

  • 1. Love with a rented heart - Chapter 1

    Words: 2942

    Estimated Reading Time: 18 min

    लोनावला, एक पुराने जमाने के पुस्तैनी घर के आंगन में एक 55 साल की औरत तुलसी पूजा करते हुए पता नहीं किस पर जोर जोर से चिलाए जा रही थी। कहने को तो वो पूजा कर रही थी लेकिन उनका सारा ध्यान पूजा पर नहीं बल्कि किसी को ताना मारने पर था। ये थ मालिनी जी जो पूजा करते करते बोल रही थी,“ पता नहीं खुद को कौनसे राजा महाराजा के बेटे समझ रहे हैं! ये मेरा घर है, कोई धर्मशाला थोड़ी है जो जब चाहे घर से निकल जाए फिर जब मन करे वापस आ जाए। ये राजाओं वाली आराम की जिंदगी अपने मां बाप के सामने भी आज कल अच्छा नहीं लगता है है और हम तो छोड़ो पराए है। दो रुपए के पैसे कमाते नहीं और ऊपर से इनके शौक और फरमाइशें कभी खत्म ही नहीं होते। अच्छा होता मैं मर जाती, कम से कम जान तो छुटती मेरी।" तभी वही पास मैं एक कुर्सी पर बैठ कर न्यूजपेपर पढ़ रहे उनके पति कैलाश जी अपने आंखों से चश्मा उतार कर बोले बड़े प्यार से बोले,“ देवी जी, आप पूजा करने पर ध्यान दीजिए। क्यों सुबह सुबह ये सब बोल कर अपने आप को तकलीफ दे रही हैं! क्यों कि जिसे आप ये सब सुना रही हैं, वो तो आराम से सो रहा है।" मालिनी जी सिर घुमा कर बिना कुछ बोले तिरछी नजरों से उनके तरफ देखने लगे। ये देख कैलाश जी जितनी जल्दी हो सके चश्मे को दुबारा अपने आंखों मैं लगा कर अपने चेहरे के सामने न्यूजपेपर करक घर के अंदर के तरफ आवाज लगाते हुए बोले,“ राध्या बेटा, चाय ले आओ बेटा, सिर दर्द कर रहा है।" मालिनी जी उन्हें देख दांत पिसते हुए बोली,“ आप साफ साफ क्यों नहीं कहते कि मेरी बातें सुन कर आपका सिर दर्द कर रहा है। मैं बोल किसी और को रही हूं और दर्द आपको हो रहा है! अब क्या मैं इस घर मैं सही गलत भी किसी को न बताऊं। मैं भी किसे बोल रही हूं, आपने कभी मेरी बातों को सही कहा है जो आज कहेंगे।" मालिनी पूजा कर रही थी साथ ही साथ बड़बड़ाए जा रही थी। तभी घर के अंदर से उनकी बेटी राध्या चाय ले कर आई और कैलाश जी को देते हुए बोली,“ एक कप चाय से क्या होगा बाबा, अगर आपको हमेशा के लिए सिर दर्द से छुटकारा चाहिए तो आप भी मां की साइड क्यों नहीं ले लेते।" कैलाश जी चाय का घूंट भरते हुए बोले,“ वो तो शायद सपने मैं हो सकता है, लेकिन बेटा, फिलहाल तुम जा के उसे जगाओ जो इस वक्त हमारे देवी जी के सिर दर्द का वजह बन गया है।" “ बाबा मैं अभी उसके कमरे से आ रही हूं। लेकिन वो वहां नहीं है। पता नहीं फिर सुबह सुबह कहां चला गया है! मुझे तो ये सोच कर हैरानी हो रही है कि वो आज इतनी जल्दी उठ कैसे गया?!" राध्या कैलाश जी को जवाब देते हुए हैरानी जताते हुए बोली। ये सुनते ही उधर से मालिनी जी एक हंसी के साथ बोली,“ अगर ऐसा होता तो मैं अपने नाम ही न बदल लेती। नवाबजादे को आज कल इन छोटे कमरे मैं घुटन होने लगा है। एक दफा छत पर भी देख आती।" उनके बातों का मतलब समझ कर राध्या अंदर जाने ही वाली थी तभी पीछे से मालिनी जी चीड़ते हुए बोली,“ जाते जाते साथ मैं उसके coffee ले जाना, वरना नींद कहां खुलेगी।" राध्या और कैलाश जी एक दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे। फिर राध्या किचेन से कॉफी बना कर सीढियां चढ़ते हुए छत के तरफ जाने लगी। छत पर जाते ही इधर उधर नजर घुमाने के बाद उसे एक झूले पर एक छे फुट तीन इंच का लंबा चौड़ लड़का सोता हुआ नजर आया, जिसका एक पैर और एक हाथ उस झूले मैं एडजस्ट न हो पाने के वजह से नीचे लटक रहा था। राध्या अपने सिर पर हाथ मारती हुई उसके पास जा कर बोली,“ सीनू, उठ जा, तू बहत लेट हो चुका है।" दो तीन बार पुकारने पर भी जब समाने से कोई जवाब नहीं मिला, राध्या को एक खुराफाती सूझी और उसने अपने साथ लाए गरम coffee को उस लड़के के उस हाथ पर गिराना शुरू कर दिया जो नीचे लटक रहा था। जलन का एहसास होते ही वो लड़का एकदम से हड़बड़ाते हुए उठ कर चिलाने लगा,“ आग लग गई आग।" राध्या उसके हाथों मैं coffee cup थमाते हुए बोली,“ आग लगी है तेरे घर मैं।" एक नजर राध्या को फिर coffee cup को देखते हुए सीनू अपना हाथ झटकते हुए बोला,“ दी, आप भी न, ये क्या बच्चों वाली हरकतें कर रही है मेरे साथ!!" राध्या उसके बगल मैं बैठते हुए बोली,“ अच्छा तू पहले ये बता, तू यहां इतनी अनकंफर्टेबल हो कर क्यों सो रहा है? क्या सच मैं तुझे अब उन छोटे से कमरे मैं घुटन हो रहा है?" “ और ये किसने कह दिया आपसे?" सीनू coffee पीते हुए बोला तो राध्या बोली,“ मां के सिवाए इस तरह की बातें और कौन कर सकता है!" सीनू राध्या के गोद मैं सिर रख के लेटते हुए बेफिक्र से बोला,“ वो तो हमेशा कुछ भी बोलती है। आपको पता है न मुझे छत कितना पसंद है, बस इसलिए यहां सो जाता हूं और कुछ नहीं।" तभी उसे नीचे से मालिनी जी के आवाज सुनाई देने लगी जो अभी भी चिल्लाए जा रही थी। वो अपने आंखे बंद करके एक गहरी सांस छोड़ते हुए बोला,“ अरे यार, अब क्या है?! उनके खुशी के लिए मैं जॉब तो कर रहा हूं न, वो भी इतने बड़े कंपनी मैं। फिर भी ये मदर टेरेसा क्यों चिल्लाए जा रही है?!" “ बेटा कहीं पहुंचने के लिए न कहीं से निकलना पड़ता है। टाइम देखा है कितने बज रहे हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा न तो एक मिनिट भी नहीं लगेगा और वो लोग तुझे कंपनी से निकाल देंगे।" राध्या के ये कहते ही सीनू राध्या के हाथ मैं पहने वॉच मैं टाइम देखने लगा। टाइम देखते ही मानो उसके होश उड़ गए। हड़बड़ाहट मैं जल्दी जल्दी उठने के कारण वो गलती से झूले से नीचे गिर गया। फिर तुरंत खुदको संभालते हुए वो उठा और नीचे के तरफ भागते हुए बोला,“ दी आप इतने irresponsible कब से बन गए? कम से कम आपको तो मुझे उठा देना चाहिए था न। I am very disappointed to you." राध्या बस मुंह खोले हैरानी से उसे देखती रह गई। वो उसे कोई जवाब देती तब तक वो वहां से जा चुका था। कुछ देर बाद, एक कमरे से जोर जोर से गाना बजने की आवाज सुनाई दे रही थी,“ ओह मुंडा कुक्कड़ कमाल दा ओह मुंडा कुक्कड़ कमाल दा ओह बंदों मैं बंदा परफेक्ट बेमिशाल दा कुक्कड़ कमाल दा... और उसी गाने के साथ full on अपने vibe को मैच करते हुए डांस करते करते सीनू खुदको तैयार कर रहा था। वो तैयार तो ऑफिस जाने के लिए हो रहा था, लेकिन उसे देख कर लग रहा था मानो किसी दोस्त के शादी में जाने की तैयारी हो रही हो। क्यों कि दुनिया चाहे इधर से उधर क्यों न हो जाए लेकिन हमारा सीनू खुदको मेंटेन रखना कभी नहीं भूलता था। वो अपने धुन मैं तैयार हो ही रहा था तभी उसके नजर अपने खिड़की से बाहर गई जहां बगल वाले घर के एक कमरे के खिड़की से एक लड़की उसे देखते हुए हंसे जा रही थी। शीनू रुका और खिड़की के पास जा कर एक तरफ दीवार पर हाथ टिकाए आंखे छोटी करके उस लड़की को घूरने लगा। वो लड़की अपने हाथों से इशारा करते हुए उसे बोलने की कोशिश करने लगी कि वो बहत हैंडसम लग रहा है। ये देख शीनू की स्माइल वापस आ गई। वो फिर उस घर के दूसरे तरफ इशारा करके उस लड़की से कुछ पूछने लगा। मानो बोल रहा हो वो क्या कर रहा है? जवाब मैं वो लड़की उसे उसी तरह इशारा से बताने लगी कि वो सो रहा है। ये देख शीनू के आंखों मैं चमक आ गई। वो अपने हाथों से परफ्यूम का इशारा करते हुए उसे बोला,“ please उसका परफ्यूम ला दे।" वो लड़की तुरंत न मैं सिर हिलाने लगी तो शीनू बिना उसके बात सुने उसे छत के तरफ इशारा करके खुद छत पे चला गया। थोड़ी देर बाद छत पे, शीनू उस लड़की के आने का इंतजार कर रहा था। तभी उस लड़की अपने घर के छत पे तमतमाती हुई और अपने कमर पर दोनों हाथ रखे शीनू को गुस्से से घूरने लगी। लेकिन शीनू के नजर उसके हाथ मैं पकड़े परफ्यूम पर था। वो कुछ बोलता उससे पहले वो लड़की गुस्से से बोली,“ आखिर तू मुझे समझता क्या है हां! मैं कोई डिलीवरी वाली लगती हूं तुझे! अगर तुझे ये परफ्यूम इतना पसंद है तो तू खुद खरीद ले न। अब अगर भाई पूछेगा तो मैं उसे क्या कहूंगी?" “ तेरे भाई के तरह मैं IAS थोड़ी हूं जो अपने शौक पूरा करने के लिए चीजें खरीदता रहूंगा। कुछ चीजें मांग कर भी गुजारा करना पड़ता है। और कुछ नहीं कहने वाला वो। अगर पूछे तो बता देना के तेरे परम मित्र ने लिया है। अब बकवास बंद कर और फेंक इसे।" बोलते हुए शीनू कैच पकड़ने के लिए पोजीशन पे खड़ा हो गया। दोनों छत इतने तो पास नहीं था लेकिन इतना भी दूर नहीं था कि कोई चीजें फेंकने पर इधर से उधर न आ सके। वो लड़की जिसका नाम सिमरन थी वो अभी भी उसे वो परफ्यूम देने को तैयार नहीं थी। शीनू परेशान होकर बोला,“ अब दे दे मेरी मां, ऑलरेडी लेट हो चुका हूं मैं। आते वक्त तेरे लिए चॉकलेट्स ला दूंगा पक्का।" ये सुन कर सिमरन खुश हो गई और जल्दी से वो परफ्यूम उसके तरफ फेंक दी जिसे बड़े आसानी से शीनू पकड़ कर तुरंत नीचे भाग गया। सिमरन मुंह बनाते हुए बोली,“ atleast एक thank you तो अभी बोल देता।" कुछ देर बाद, शीनू एकदम तैयार था। वो पता नहीं क्यों बहत एक्साइटेड नजर आ रहा था। ऑफिस जाने के लिए नहीं बल्कि किसी से मिलने के लिए। कोई खास जो उसके लिए उसके सांसों से भी ज्यादा एहमियत रखता था। उसने अपने कमरे मैं लगे मिरर को थोड़ा स्लाइड किया जिसके पीछे एक बेहद खूबसूरत लड़की की एक बड़ी सी तस्वीर लगी हुई थी। Baby blue और white colour की अनारकली कुर्ती पहनी वो लड़की हाथों मैं कुछ books पकड़े एक तरफ देख के मुस्कुराए जा रही थी। उस फोटो को देख कर लग रहा था मानो किसीने उस लड़की के बिना परमिशन के बहत दूर से उसके फोटो खींचा हो। अब तक शीनू अपने होश खो बैठा था। आज नहीं बल्कि हर दिन उस फोटो को देखने के बाद उसके साथ कुछ ऐसा ही होता था। वो उसे प्यार जो करता था। लेकिन उसका प्यार ऐसा वैसा प्यार नहीं बल्कि एकतरफा प्यार था। कुछ सालों पहले वो कलेज मैं एक बार उस लड़की से टकराया था और कॉलेज के पूरे दो सालों मैं वो उस लड़की से बात करना तो दूर उस के नाम के सिवाए और कुछ नहीं जान पाया। ये थी उसका प्यार श्रुति जिसे वो प्यार से गरम मसाला बुलाता था। शीनू उस गौर सेे देखते हुए कहीं खोया हुआ सा बोला,“ आपसे अभी मिला नहीं हूं, आपको छू कर देखना अभी बाकी है आपसे अभी इश्क हुआ है इश्क अभी बेहद करना बाकी है आपकी हाथों की नरमी मुझे मालूम नहीं है आपके बाहों में सिमटना अभी बाकी है आपकी आंखे, आंखों की क्या ही तारीफ करूं haayee आंखें सितारों सी है अभी आंख बंद कर ख्वाइश मांगना बाकी है आपसे अभी मिला नहीं हूं आपको पाना बाकी है... काश एक दिन आपके सामने ये सब कह दूं इसके लिए आपका मेरे सामने आना बाकी है... शीनू श्रुति के यादों मैं और खोता तभी उसे हकीकत मैं वापस लाते हुए कोई उसके रूम का दरवाजा जोर जोर से पीटने लगा था। शीनू ने अपनी मुट्ठियां भींच ली। वो गुस्से मैं कुछ बोलने के लिए दरवाजे के तरफ जैसे ही पलटा वहां खड़ी मालिनी जी को देख उसके मुंह से शब्द ही नहीं निकले और वो अपने शब्द वापस निगल गया। मालिनी जी कुछ देर तक उसे घूरती रही फिर बिना कुछ बोले वहां से चली गई। और शीनू के समझने के लिए उनका ये एक ही नजर काफी था। उसने तुरंत श्रुति के फोटो को छुपाया और जल्दी से नीचे चला गया जहां पहले से कैलाश जी और राध्या उसका खाने पर इंतजार कर रहे थे। उसे आता देख राध्या बोली,“ कौनसा लड़का तैयार होने मैं घंटों लगाता है भाई?!" “ दी शायद आपके आंखे खराब है। मैं कहां तैयार हुआ हूं, मैं तो पैदाइश हैंडसम हूं। बस आपने कभी नोटिस नहीं किया ये अलग बात है।" बोलते हुए शीनू कैलाश जी के गले लग कर नीचे उनके बगल मैं खाना खाने बैठ गया। राध्या कुछ बोलती तब तक वहां मालिनी जी आ गई इसलिए वो चुप हो गई क्यों कि उन्हें खाने के वक्त ये सब पसंद नहीं था। बचपन से लेकर आज तक उसे ये बात समझ नहीं आया के उनके घर मैं डाइनिंग टेबल होते हुए भी वो लोग नीचे बैठ कर खाना क्यों खाते थे! खाना खाते खाते कैलाश जी बोले,“ बेटा यहां से मुंबई जाने मैं डेढ़ घंटे से ज्यादा वक्त लगता है। हर दिन इतना वक्त ट्रैवल करना सही नहीं होगा। कुछ सोचा है तुमने इसके बारे में?" शीनू बोला,“ जी पापा, सोच रहा हूं मुंबई मैं रेंट पे एक अपार्टमेंट ले लूं।" “ ये तो बहत अच्छी बात है।" कैलाश जी का इतना कहना ही था मालिनी जी भड़क उठी और गुस्से से बोली,“ और इसमें क्या अच्छा है? अब अगर रहने और खाने के लिए वो अलग से पैसे देगा तो उसके तनख्वा तो उसी मैं खर्च हो जाएगा। और जो खर्च आज तक हमने इसके पढ़ाई और इसे बड़ा करने पर किया उसका क्या?" खाना खाते खाते सबके हाथ रुक चुके थे। शीनू बिल्कुल चुपचाप नजरें नीचे किए बैठा था। राध्या मालिनी को टोकते हुए बोली,“ मां आप ये क्या बोल रही है, बस कीजिए?!" “ क्यों कुछ गलत कहा क्या मैने? इतनी मुश्किल से ये नौकरी मिली है इसे। अगर सारा पैसा वहां खर्च हो जाएगा तो इस घर का क्या? इस घर के खर्चे कौन देगा? हमसे जितना हो सकता था हमने इसे पढ़ाने लिखाने मैं लगा दिया। अब इसका भी तो जिम्मेदारी बनता है न कि हमें वो सब वापस करे।" शीनू को उनकी कड़वी बातें चुभ रही थी। वो वहां से उठ कर जाने ही वाला था तभी मालिनी जी राध्या से बोली,“ इसे बोल की खाना खा कर जाए। मेहनत की है ये। किसी का बाप यहां कोई दौलत छोड़ के नहीं गया है जो लोग खाना छोड़ कर जा रहे है।" शीनू के आंखें नम होने लगी थी। कैलाश जी बात को संभालते हुए बोले,“ बेटा ऐसे खाना छोड़ कर नहीं जाते। खा लो।" शीनू वहां से खड़ा हो कर बोला,“ नहीं पापा वो लेट हो रहा है न इसलिए। दी आप ये खाना रख दो मैं आने के बाद खा लूंगा।" वो सीधे वहां से बाहर चला गया। बाहर आ कर वो सिर ऊपर कर के अपने आंखे बंद करके दो चार गहरी सांसे लेने लगा। यही तो थी उसकी रोज की जिंदगी। आज कुछ नया नहीं था। वो पांच साल का था जब उसकी मां एक बीमारी के कारण गुजर गई और उनके दो साल बाद उसके पापा एक एक्सीडेंट मैं अपने जान गवाह बैठे। ये उसके ताया ताई थे जिन्होंने उसे बचपन से पाल पास कर बड़ा किया। कैलाश जी उसे बहत प्यार करते थे इसलिए वो उसे पापा बुलाता था लेकिन पता नहीं मालिनी जी को उससे क्या नाराजगी थी जो वो उसे कभी सीधे मुंह बात ही नहीं करती थी और न ही उसे कभी खुदको मां बुलाने का मौका दिया। उनका नाराज होना और ये सब बातें कहना भी जाहिर था। तभी किसी ने शीनू के कंधे पर हाथ रखा। वो पीछे पलट कर देखा जहां राध्या खड़ी थी। वो परेशान होकर बोली,“ शीनू मां के बातों को दिल पर मत ले। तुझे पता है न वो कैसी है।" शीनू मुस्कुराते हुए बोला,“ हां दी पता है। अब तो मैं भूल भी चुका हूं कि थोड़ी देर पहले उन्होंने क्या कहा था। आप टेंशन न लो। आप कहो तो मैं आपको स्कूल छोड़ दूं।" राध्या एक गवर्मेंट स्कूल की टीचर थी। राध्या उसके चेहरे पर हाथ रख कर बोली,“ नहीं तुझे देर हो रही थी न, तू चला जा मैं चली जाऊंगी।" शीनू उसके गले लग गया फिर अपने जान से भी ज्यादा प्यारी बुलेट को निकाल कर निकल गया आज के सफर पे। वही देश के टॉप कंपनियों मैं से एक कंपनी AGI (Arora Group of industries ) के 50th floor पर मार्केटिंग department की दो लड़की पता नहीं कब से सारे काम छोड़ कर glass wall से नीचे देखे जा रहे थे, मानो किसी से आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हो। उनमें से एक लड़की पायल अपनी दोस्त रिया से बोली,“ यार अब और कितनी देर इंतजार करना पड़ेगा? ये मिहिर अब तक आया क्यों नहीं?" रिया मुंह बनाते हुए बोली,“ हां यार, अब तो उसक इस कदर आदत लग चुकी है कि उसके हैंडसम फेस को देखे बगैर काम करने मैं दिल ही नहीं लगता है।" “ लेकिन डायरेक्टर का क्या? अगर उन्होंने हमें बिना काम किए ऐसे खड़े देख लिया तो जान ले लेंगी। मैं जा रही हूं, जब वो आ जाए तो मुझे बुला देना।" पायल वहां से जाने ही वाली थी तभी रिया उसे वापस पीछे खींचते हुए एक्साइटेड होकर बोली,“ कहीं जाने की जरूरत नहीं because he is already here darling पायल भी जल्दी से नीचे झांकने लगी जहां हमारा शीनू means मिहिर office के नीचे पहुंच चुका था। लेकिन वो अपना बुलेट रोकता तभी सामने से पांच ब्लैक ऑडी एक लाइन में उसे अपने तरफ आता हुआ नजर आया। वो एकदम से हड़बड़ा गया और गलती से अपना बुलेट पहले वाले ऑडी मै ले कर ठोक दिया। To Be Continue....