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दिल दिया यारम तुझे

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Mahira naaz

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यह कहानी है एक मासूम और सीधी-सादी लड़की ज़ारा की,जो बचपन से ही कई मेहरूमियों का शिकार रही और फिर दोस्ती में एक घिनावनी साज़िश का शिकार हो गई!उसकी पुरखुलूस दोस्ती का नतीजा उससे बेहद भयानक भुगतना पड़ा,मदीहा नामी लड़की ने उसके लिए ऐसी साजिश रखी जो खुद म...

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दिल दिया यारम तुझे

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Total Chapters (3)

Page 1 of 1

  • 1. दिल दिया यारम तुझे - Chapter 1

    Words: 1259

    Estimated Reading Time: 8 min

                                     एक झलक "फाइनली आज वो दिन आ गया,जब तुम दुल्हन बनकर शायान के निकाह में पहुंच जाओगी।" अर्शिया अंदर आकर सजी सजाई मदीहा को देखकर उसके रुप को तौसीफी नज़रों से तकने लगी। "तुम्हें पता है अर्शिया,इस रिश्ते के लिए मैंने कितने पापड़ बेले हैं,अगर शायान को भनक भी लग जाए न तो वो मुझे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने का लिए एक मिनट की भी देरी न करे!मदीहा कुछ सोच कर गुरुर भरे लहजे में बोली। "पता है मुझे,यह शायान न इतने दरियादिल का मालिक है कि हर किसी के साथ हमदर्दियां करता फिरता है!क्या ज़रूरत थी उसे तुम्हारे बीच में आने की?अच्छी खासी तुम्हारी और अमल की दोस्ती चल रही थी,पता नहीं बीच में कहां से यह ग़रीब ज़ारा की बच्ची टपक पड़ी और शायान तो उसका गुलाम ही बन गया! जब देखो बस उसके लिए कुछ न कुछ करने को तैयार नज़र आता था।" अर्शिया ने मुंह बिचका कर कुछ गुस्से से कहा। "एक तुम ही मेरी बेस्ट फ्रेंड हो जिसे मेरी परवाह हमेशा से रही है,जबकि वो अमल तो बस उसी ज़ारा की बच्ची के पीछे दीवानी हो गई थी!वो तो अच्छा हुआ मैंने कुछ जुगाड़ बनाकर उन लोगों की दोस्ती में दरार डाल दी,वरना तो इस ज़ारा की बच्ची को शायान की ज़िंदगी में शामिल होते देर नहीं लगती।" मदीहा एक अदा से सिर झटक कर बोली और अपने मेहंदी लागे हाथों में शायान का नाम पढ़कर मुस्कुराने लगी। "वैसे एक बात तो बताओ न मदीहा दो दिन पहले तक तो अंकल मंगनी करने का कह रहे थे,यह अचानक बीच में निकाह कहां से टपक पड़ा?।" अर्शिया अभी भी इस बात से अनजान जान थी कि मदीहा ने क्या चाल चली है,उसे यह जानने का मौका ही नहीं मिल पाया था। "तुम्हें तो पता ही है अर्शु मेरी जान,मैं कच्ची गोलियां खेलने वालों में से नहीं हूं!मुझे शायान के इरादे ठीक नहीं लग रहे थे!इसलिए मैंने पक्का काम करने के लिए डैड को बड़ी मुश्किल से मनाया है।" मदीहा संजीदा हो गई। "वाई द वे तुमने कहा क्या होगा अंकल से,तो वो निकाह के लिए राज़ी हो गए अर्शिया अंदर की बात जानने के लिए बहुत बेचैन थी। "अब तुम्हें क्या ही बताऊं?मैंने डैड से बस यही कहा था कि शायान बिजनेस की सिलसिले में कुछ दिन के लिए बाहर जा रहा है तो आप मंगनी की जगह डायरेक्ट निकाल रख लें,क्योंकि बाहर जाने के बाद क्या पता उसका इरादा बदल गया तो वो कोई फॉर्नर लेकर न आ जाए।" मदीहा ने ठंडी सांस भरकर उसे सारी डिटेल बताई। "चलो अच्छा ही हुआ जो तुमने पक्का काम कर लिया,पक्का काम हमेशा पक्का ही रहता है!अब तो शायान के फरिश्तों को भी इंकार करने की गुंजाइश नहीं निकलेगी,वो चाहे जहां भी जाए आएगा तो तुम्हारे ही पास।" अर्शिया इत्मीनान से पांव पर पांव रखकर बोली। "मदीहा बेटा,अगर तुम लोग तैयार हो चुकी हो तो बाहर का भी कुछ इंतेज़ाम देख लो,बाहर मैंने जैसा तुमने बताया था वैसा ही डेकोरेट तो करा दिया है!तुम आकर जल्दी से बस एक बार चेक कर लो।" गेट खोल कर गोल्डन काम की खूबसूरत सी साड़ी में मदीहा की अम्मी नेहा अंदर आईं तो,मदीहा को देखकर मुस्कुराने लगीं,उन्होंने करीब आकर मदीहा की बलाएं लेकर अपने गले से लगा लिया। मदीहा समीउद्दीन और नेहा बेगम की इकलौती औलाद थी,मदीहा के होने के बाद उनकी डिलीवरी में कुछ ऐसी पेचीदगी हो गई जिससे फिर उनकी कोई और औलाद न हो पाई!दोनों ने इसे अल्लाह की मर्ज़ी जान कर बिना किसी गिले शिकवे के मिलकर मदीहा को काफी नाज़ नखरों से पाला,मदीहा के नाज़ नखरे अभी भी कायम थे!वो जिस चीज़ पर उंगली रख देती बस वो उसी की हो जाती थी। शायान भी उसकी ज़िद का ही नतीजा था,हालांकि शायान समीउद्दीन साहब के दोस्त अशफाक अहमद का बेटा था,तो न करने की कोई गुंजाइश भी नहीं थी!घर का देखा भाला लड़का था और बचपन से उनकी नज़रों में पला बड़ा था,इसलिए उन्होंने मदीहा की ज़िद को एक्सेप्ट किया और उसी के नतीजे में आज मदीहा शायान की दुल्हन बनने के लिए बेकरार थी। "सच अम्मी,हमने जैसा कहा था आपने वैसी ही फूलों की चादर बनवाई है?आओ न अर्शिया,बाहर चलकर डेकोरेशन देखकर आते हैं,कैसी हुई है?।" मदीहा अपनी मां को देखकर मुस्कुराने लगी। "एक मिनट रुक तो जाओ मदीहा,ज़रा मुझे नज़र का टीका लगाने दो!आज तो तुम गजब का रूप ढा रही हो,शायान देखेगा तो पहली ही नज़र में फिदा हो जाएगा।" नेहा बेगम एक अदा से बोलीं,उनका भी कब से अरमान था कि शायान उनकी बेटी के लिए हां कर दे!क्योंकि समीउद्दीन और शायान के वालिद अशफाक में गहरी दोस्ती थी,तो इस रिश्ते के लिए न करने का कोई जवाज़ भी नहीं था। "अरे अम्मी यह नज़र के टीके लगाने का ज़माना गया,कुछ नहीं होता नज़र बजर लगने से!यह सब पुरानी और दकियानूसी बातें हैं।" मदीहा को इनको खुराफातों से बहुत चिढ़ होती थी। "तुम नहीं जानती बेटा,कितनी भी मॉडर्न सोच क्यों न हो जाए इंसान की,लेकिन यह चीज़ें भी अपना एक वजूद रखती हैं और इससे हम नज़रें नहीं फेर सकते।" नेहा ने जल्दी से उंगली में काजल लेकर मदीहा के कान के पीछे छोटी सी बिंदी बना दी, जो मदीहा ने न चाहते हुए भी बनवा ली। "यह गेट खोलो जल्दी,वरना हम इसे तोड़ देंगे।" अर्शिया और मदीहा कमरे का गेट खोल भी नहीं पाई थीं,कि धाड़-धाड़ कमरे का गेट बजने लगा। "कौन है?।" नेहा बेगम जल्दी से गेट की सिटकनी खोलने लगीं, और गेट खोलते ही उनकी रूह फना हो गई,शायान गुस्से से मदीहा को घूर रहा था और उसके साथ कुछ लेडीज़ पुलिस खड़ी थी। "यही है वो लड़की जिसने मेरी बहन को जीते जी दरगोर कर दिया,आज भी उसकी चीखें मेरे कानों में गूंजती हैं!रात के किसी भी पहर उठकर वो बुरी तरह चीखने लगती है,और जिस लड़की को मैंने सज़ा दिलाई है,वो बेचारी मासूम इसके बदले की सज़ा काट रही है!असल मुजरिम तो यही थी,जो वक्त रहते मुझे पता चल गया वरना सारी ज़िंदगी वो बेचारी बेगुनाह इसके गुनाह की सज़ा काटती रहती।" शायान के जुमले थे कि आग के गोले जो मदीहा को बुरी तरह झुलसा रहे थे। "मैंने कुछ नहीं किया शायान,आपको शायद गलतफहमी हो गई है?शायान मैंने अमल के साथ कभी कुछ नहीं किया,शायान प्लीज़ मेरी बात तो सुनो।" मदीहा हाथ जोड़कर शायान के आगे बुरी तरह गिड़गिड़ा रही थी,लेकिन शायान की नज़रों में रत्ती बराबर भी फर्क नहीं था!वो उसे शोलाबार निगाहों से घूरे जा रहा था। "हां शायान मदीहा सही कह रही है,शायद तुम्हें कोई गलतफहमी हो गई होगी!मेरी बेटी अब इतनी भी बुरी नहीं जो अमल जैसी लड़की के लिए यह सब प्लान बनाएगी,वो तो अमल को अपना बेस्ट फ्रेंड और बहन जैसा मानती है!उसने कुछ नहीं किया होगा,प्लीज़ शायान बात को समझो,आज तुम्हारा निकाह है और तुम हो कि अपनी ही दुल्हन को ज़लील करने पर तुले हुए हो।" नेहा की भी कुछ समझ नहीं आ रहा था, और उन्हें अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था कि वो ऐसा कुछ नहीं कर सकती!हालांकि वो थोड़ी ज़िद्दी तो थी,लेकिन उनका यही मानना था कि वो इतनी बड़ी प्लानिंग तो शायद ही कर सकती थी। "आंटी आप नहीं जानतीं,इसने ही की है यह हरकत और मेरे पास इसका सबूत भी है।" शायान बुरी तरह आग बगूला हो चुका था। "बेटा तुम बात को समझने की कोशिश करो,मेरी बेटी इतनी गिरी हुई हरकत नहीं कर सकती!वो लड़की ज़ारा ने ही यह हरकत थी होगी!तुम इन गरीब लोगों को नहीं जानते,यह पैसे के लालच में कुछ भी कर सकते हैं।" नेहा बेगम को अपनी लाडली बेटी पर कैसे शक हो सकता था। लेकिन उनकी वहां सुनने वाला कौन था,देखते ही देखते रोती गिड़गिड़ाती मदीहा पुलिस की कैद में उसकी जीप में बैठ चुकी थी। इससे आगे की कहानी आप जल्द ही पड़ेंगे,.......

  • 2. दिल दिया यारम तुझे - Chapter 2

    Words: 1991

    Estimated Reading Time: 12 min

    "बेटा तुम कॉलेज क्यों नहीं जा रहीं आज?।" ज़ारा को बिस्तर में ढिठाई से लेटा देख कर हुस्न आरा चिढ़कर बोलीं,दो दिन पहले ही तो जैसे-तैसे उन्होंने ज़ारा का बड़ी मुश्किल से एडमिशन कराया था और ज़ारा थी कि आज यूनिवर्सिटी जाने का नाम ही नहीं ले रही थी। "वो अम्मी आज मुझे आपकी तबीयत बिगड़ी हुई दिखाई दी तो मैंने युनिवर्सिटी से आफ़ ले लिया,मुझे पता है आपकी तबीयत ठीक नहीं है!आपको रात में कितनी खांसी उठ रही थी और आप फिर सुबह-सुबह जाकर किचन में जुट गईं,जब आपको मालूम है कि घर का काम ताई जी को भी बराबर से करना चाहिए तो फिर आप अकेले क्यों लगी रहती हैं?।" ज़ारा उन पर ख़फ़ा होने लगी जो अपनी सेहत का ध्यान बहुत ही कम रख पाती थीं। "बेटा ऐसे नहीं कहते,अपना घर है और अपने घर में काम करना कोई गलत बात तो नहीं!अब कम या ज़्यादा तो होता ही रहता है,कभी भाभी कर लेती हैं ज़्यादा काम,तो कभी मैं कर लेती हूं! इसमें बुराई ही क्या है?तुम फटाफट उठकर मुंह हाथ धो लो,मैं किचन देख लूं।" हुस्न आरा उसे समझाकर बिस्तर समेट कर रखते हुए बाहर निकलकर आने लगीं। "अम्मी कुछ तो खुदा का खौफ भी करें,क्यों इतना झूठ बोल रही हैं?जब देखो ताई अम्मी तो आराम फरमाती हैं,या फिर अपने आने जाने वालों से बैठकर गपशप लगाती हैं!घर का सारा काम तो हर वक्त आप ही करती रहती हैं,क्या इस घर में हमारा कोई हक नहीं है?।" ज़ारा अंगड़ाई लेते हुए करवट बदल गई। "नहीं बेटा ऐसा नहीं कहते,हमारा भी उतना ही हक़ है जितना तुम्हारे ताया शहज़ाद का।" हुस्न आरा यह कहकर उसके ड्रेस पर स्त्री करने लगीं। "यह आप ड्रेस किस खुशी में प्रेस कर रही हैं?मैंने कहा न मैं युनिवर्सिटी नहीं जाने वाली।" ज़ारा फिर से चिढ़ गई। "बेटा तुम आखिर समझती क्यों नहीं हो,तुम्हारे अब्बू जी का ख्वाब था कि तुम पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो और तुम्हें तो पढ़ाई से कोई दिलचस्पी ही नहीं लगती।" उन्हें अब ज़ारा क्या बताती कि कल यूनिवर्सिटी में उसके साथ क्या हुआ?जिससे उसका मन ही नहीं कर रहा था आज यूनिवर्सिटी जाने का। "अम्मी आपकी तबीयत आज कुछ ठीक नहीं थी,इसलिए मैंने सोचा आज छुट्टी कर लेती हूं!कल से पक्का जाऊंगी।" ज़ारा ने जब अपनी दाल न गलती देखी तो यही बहाना सूझ गया। "मुझे क्या हुआ है?मैं तो ठीक-ठाक हूं जाओ जल्दी से हाथ मुंह धोकर यह ड्रेस पहनो।" वो उसे गुस्से से घूरती हुई किचन में चली गईं,जब ज़ारा को कुछ और समझ नहीं आया तो वो उनके पीछे-पीछे किचन में आ गई। "अम्मी आपकी तबीयत देखिए कितनी नाज़ुक है,लगता है आपको बुखार भी आ रहा है!आप जाकर आराम करें,मैं सारा काम कर लूंगी।" ज़ारा देख रही थी कि दो दिन से उन्हें हल्की सी हरारत थी,लेकिन वो थीं कि अपने ऊपर ध्यान ही नहीं दे रही थीं। "यहां क्या चल रहा है?अब तक सुबह का नाश्ता तैयार नहीं हुआ?आशिर यूनिवर्सिटी जाने के लिए रेडी हो चुका है और कब से डाइनिंग टेबल पर नाश्ते का इंतजार कर रहा है।" अफशीं ताई किचन में आईं तो दोनों को वहां देखकर गुस्से से डांटने लगीं। "हां भाभी नाश्ता तो तैयार है,बस दो मिनट में,मैं लगाती हूं अभी।" हुस्न आरा जल्दी से सारी चीज़ें ट्रे में सजाने लगीं। "और यह ज़ारा किस खुशी में यहां टहल रही है?यूनिवर्सिटी नहीं गई आज?।" अफशीं ताई उसे देखकर टोंकने लगीं,जो अभी तक सिर झाड़ मुंह फाड़ हुलिए में ही किचन में खड़ी सबको देख रही थी। "बस भाभी मैंने कहा तो है इसे,अभी जाएगी!आशिर से कहें इस साथ लेकर ही जाए,वरना यह छुट्टी मार लेगी‌" हुस्न आरा ने उसे कड़े तेवरों से घूरते हुए इशारा किया,और ज़ारा युनिवर्सिटी जाने के लिए किचन से निकलने ही वाली थी कि अफशीं ताई ने उसे आड़े हाथों ले लिया। "क्यों महारानी किस खुशी में छुट्टी मनाई जा रही है?तुम्हारे बाप का राज नहीं चल रहा यहां जो इतनी महंगी फीस भरने के बावजूद तुम छुट्टियां करो!जाकर जल्दी से तैयार हो,आशिर से कहती हूं साथ लेकर जाया करे इसे।" अब ज़ारा उनसे मुंह लगती भी तो हुस्न आरा उसे उनके मुंह लगने नहीं देती,ज़ारा मन ही मन गुस्से का घूंट भरकर ड्रेस चेंज करने चली गई। इस घर में एक आशिर ही था जो ज़ारा से हमदर्दी रखता था और अक्सर उसकी मदद भी कर दिया करता था,आशिर नाश्ता करने के बाद अपनी कार की चाबी उठाकर जब बाहर आया तो ज़ारा पहले से ही कार में बैठी हुई थी। "यह मुंह फूला हुआ क्यों है?लगता है सुबह-सुबह नाश्ते में अम्मी की गरमा-गरम डांट और ज़बरदस्त कड़क फटकार सुनकर आई हो शायद?।" आशिर अपनी अम्मी का मिज़ाज जानता था,तो अक्सर उसे छेड़ता रहता था। "हां आपको तो पता ही है,आपकी अम्मी किसी थानेदार से कम हैं क्या?जब देखो मेरे सिर पर सवार रहती हैं,सच कहूं तो आशिर भाई सिर्फ आपकी और ताया अब्बू की वजह से ही इस घर में हूं!वरना न जाने मैं तो दर-दर की ठोकरें खाती फिरती।" ज़ारा जो सच था वो ज़ुबान पर ले आई थी। "अब क्या हूं कहूं मैं ज़ारू तुमसे,तुम तो जानती हो अम्मी शुरू से ही ऐसी ही हैं!चलो छोड़ो यह सब,बस तुम रोज़ यूनिवर्सिटी टाइम से जाया करो!पढ़ लिख जाओगी तो कुछ बन जाओगी, अम्मी की बातों पर ज़्यादा ध्यान मत दिया करो।" आशिर धीरे-धीरे गाड़ी ड्राइव कर रहा था,उसका अंदाज़ काफी सुलझा हुआ और नरम मिज़ाज था। "भाई आपको पता है मुझे यूनिवर्सिटी में पढ़ना बहुत पसंद था, लेकिन कल के बाद अब मैं क्या ही कहूं‌" ज़ारा दांतो तले होंठ दवाकर अपने आंसू रोकने की कोशिश करने लगी। "बताओ न ज़ारू क्या हुआ कल यूनिवर्सिटी में तुम्हारे साथ?मुझे वहीं बता देतीं तो मैं आकर तुम्हारी हेल्प कर देता।" आशिर चौंक कर उसे देखने लगा,जो कुछ अपसेट और घबराई हुई सी लग रही थी। "पता है आशिर भाई,कल मेरा दूसरा ही दिन था और मेरी रैगिंग के लिए कुछ लोगों ने मुझे घेर लिया था!वो तो अच्छा हुआ मेरे क्लास की एक लड़की में आकर उन्हें रफा दफा किया और मेरी जान में जान आई।" ज़ारा की बात सुनकर आशिर की हंसी छूट गई। "धत्त पगली,यूनिवर्सिटी में तो यह आम बात है।" आशिर के लबों पर अब भी शरारती मुस्कान थी,ज़ारा उसकी हंसी देखकर चिढ़ गई और नाराज़गी से मुंह फेर कर बैठ गई!ज़ारा जैसी सीधी-सादी लड़की जो गांव से ही पिछली साल आशिर के घर रहने आई थी,भला शहर का माहौल इतनी जल्दी कैसे एक्सेप्ट कर पाती। "ज़ारु तुम्हें पता है,यूनिवर्सिटी में यह सब कॉमन है और यह सब अक्सर यहां पर होता रहता है!इससे डरने की कोई बात नहीं है,तुम उनके सवालों के जवाब दे देतीं,फिर वो कुछ नहीं कहते तुम्हें!चलो अब कुछ हो न तो मुझे बताना,देख लूंगा मैं सबको।"  आशिर ने उसे हंसते हुए उसे अपने साथ लगा लिया। आशिर की कोई बहन नहीं थी और वो इकलौता ही था,इसलिए जब ज़ारा उसके घर आई थी तो उसकी उससे अच्छी पटने लगी थी!पढ़ाई में ज़ारा को वो काफी हेल्प भी कर दिया करता था,और उसे उसने अच्छी खासी इंग्लिश भी सिखा दी थी। यूनिवर्सिटी आ चुकी थी,बातों बातों में सफर कैसे कटा ज़ारा को पता ही नहीं चला!ज़ारा जब क्लास में एंटर हुई तो कल वाली लड़की ने उसे देखते ही हाथ हिलाकर अपनी बेंच पर अपने करीब बुला लिया,ज़ारा बिना कुछ कहे उसके पास जाकर बैठ गई!ज़ारा को बैठता देखकर उस लड़की की बराबर बैठी उसकी दोस्त ने नाक भंव चढ़ाया और उस लड़की को कोहनी मारकर मना करने लगी। "मेरा नाम अमल है,क्या तुम अपना नाम बताना पसंद करोगी?।" ज़ारा के करीब बैठी लड़की ने उसे दिलचस्पी से ऊपर से नीचे देखते हुए अपना एक हाथ दोस्ती के लिए आगे बढ़ाया,ज़ारा ने एक लम्हे को कुछ सोचा फिर झट से उसका हाथ थाम कर मुस्कुराने लगी। "मेरा नाम ज़ारा है और यह मेरा यूनिवर्सिटी में पहला साल है ।" अमल के बराबर बैठी उसकी दोस्त मदीहा ने बिना कुछ कहे अपने किताब खोली और मुंह देकर इन लोगों से लापरवाही ज़ाहिर करने लगी,जिसका अमल ने कोई नोटिस नहीं लिया और बेफिक्री से ज़ारा को अपने बारे में बाकी जानकारियां देते हुए उसका भी इंट्रोडक्शन लेने लगी। प्रोफेसर हारून रिज़्वी के आते ही क्लास शुरू हो चुकी थी,अब सब पढ़ाई पर ध्यान दे रहे थे!ज़ारा को अमल बहुत पसंद आई थी,लंच टाइम में जब सब कैंटीन गए तो अमल ने ज़ारा को भी अपने साथ जबरदस्ती चाय,स्नेक और कई चीजें खिलाईं!ज़ारा को सच में भूख लग रही थी!वो आज गुस्से में घर से खाली पेट ही चली आई थी यहां आकर उसने झिझकते हुए भी काफी कुछ खा लिया था। मदीहा और अमल में ज़ारा की वजह से हल्का सा खिंचाव शुरू हो चुका था,मदीहा के हाव भाव आज ज़ारा को कुछ अच्छे नहीं लग रहे थे!लेकिन वो अभी इन सब बातों से अनजान थी और बस अमल के साथ ही उसके ज़बरदस्ती करने पर बैठी हुई थी, क्लास खत्म होते ही आशिर उसे लेने आ गया और ज़ारा के साथ चिपकी अमल को देखते ही पहचान गया!अमल बस उससे एक क्लास ही जूनियर थी और कभी-कभी वो लोग एक ही ट्यूशन लेने की वजह से पहले भी एक दूसरे से मिल चुके थे। "अरे अमल तुम भी ज़ारा की क्लास में हो?बड़ी खुशी हुई तुमसे मिलकर,अच्छा हुआ जो ज़ारा से तुम्हारी दोस्ती हो गई!वरना यह लड़की तो आज यूनिवर्सिटी ही नहीं आ रही थी।" आशिर ने जब कल की बात बताई तो अमल भी मुस्कुराने लगी,जबकि मदीहा सबको इग्नोर करके अपने फोन में लग चुकी थी। "ठीक है अमल कल फिर मिलेंगे।" ज़ारा को आज सच में मज़ा आया था और वो उससे कल मिलने का वायदा करके आशिर के साथ कार में आकर बैठ गई। मदीहा के सब्र का पैमाना अब लबरेज़ हो चुका था,पूरा दिन ही वो जलती भुनती रही थी,लेकिन अमल से कुछ कहने का फायदा ही नहीं था!वो मदीहा की सुनने हैं कहां वाली थी,उसको अब सच में बहुत गुस्सा आ चुका था!उसने अमल की तरफ देखा और मुंह बिचकाकर अपना बैग उठाकर आगे-आगे तेज़ क़दमों से चलने लगी। "क्या हुआ मदीहा?रुको तो सही,मैं भी तुम्हारे ही साथ जाऊंगी! मुझे यूं अकेला छोड़कर मत जाओ‌" अमल उसका गुस्सा भांप चुकी थी,जो की जायज़ भी था!अपनी इतनी पुरानी दोस्त मदीहा को छोड़कर आज उसने सारा दिन ज़ारा के साथ स्पेंड जो कर लिया था। "क्या करोगी मेरे साथ चलकर?जाओ न अपनी उस जाहिल गंवार लड़की के साथ!उसी की कार से ही घर चली जातीं।" मदीहा ने गुस्से में उसे कड़ा जवाब दिया। मुझे पता है मद्दो,कि तू मुझसे नाराज़ है!लेकिन सोच न उस लड़की मैं आज मेरी कितनी हेल्प की थी,कुछ क्वेश्चन तो उसने मेरे ऐसे सॉल्व किए जैसे लगता था कि कब से वो यूनिवर्सिटी में पढ़ रही हो!मुझे तो उसकी आदत काफी अच्छी लगी,अरे हमारी क्लासमेट है,कभी हम उसकी हेल्प कर देंगे तो कभी वो हमारी! इसमें क्या बुराई है?।" अमल को मदीहा का रिस्पांस समझ नहीं आ रहा था। "तुम नहीं जानती अम्मू मेरी जान,इन जाहिल गंवार लड़कियों का यही बतेरा होता है!यह हाई सोसाइटी की लड़कियों से दोस्ती करती हैं फिर उन्हें अपने मतलब निकालने के लिए यूज़ करती हैं,अभी तुम्हें यह बात समझ नहीं आएगी!लेकिन मैं ऐसे लोगों को बहुत अच्छे से जानती हूं,सोशल मीडिया तो इन सब चीज़ों से दिनभर भरा रहता है।" मदीहा उसे नादान समझ कर अपना ज्ञान भगारने लगी। "नहीं मद्दू अब हर कोई ऐसा भी नहीं होता,ज़रूरी नहीं जो चीज़ बाहर हो वही अंदर भी हो!और वो लड़की मुझे कभी ऐसी नहीं लगती,परखने के लिए तो एक लम्हा भी काफी होता है और कभी-कभी पूरी ज़िंदगी भी हम किसी को परख नहीं पाते।" अमल की अपनी ही सोच थी,अमल अपने मां-बाप की तरबियत पर चलती थी जो एक सुलझे हुए और काफी बैल एजुकेटेड भी थे,तो अमल को उनसे अच्छी ही सीख मिलती थी। "क्या बात है अमल,तुम तो एक दिन में ही उस लड़की की इतनी दीवानी हो गई जो उसकी साइड लेने पर तुल गई हो! लगता है,अब हमारी दोस्ती में वो बात नहीं रही।" मदीहा को अब भी अमल से नाराज़गी थी। "ऐसी बात नहीं है मदीहा,अच्छा तुम कहती हो तो मैं अब उससे इतना नहीं बोलूंगी।" अमल ने कान पड़कर सॉरी बोल दिया,मदीहा मुस्कुराने लगी और फिर दोनों साथ ही घर के लिए निकल आईं।         ‌                   बाकी आइंदा.......

  • 3. दिल दिया यारम तुझे - Chapter 3

    Words: 0

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