Novel Cover Image

काशी: एक संघर्ष

User Avatar

miss Sharma

Comments

65

Views

50412

Ratings

644

Read Now

Description

ये कहानी है एक ऐसी लड़की की जो अपनी मां को इंसाफ दिलाने के लिए अपनी ही जिंदगी बर्बाद कर देती है कर लेती है शिव राणा से शादी लेकिन क्या वो अपनी मां के साथ हुए अन्याय का बदला ले पाएगी क्या वो उस औरत को सजा दिलाएगी जिसने उसकी मां के साथ गलत किया था , क्...

Characters

Character Image

समर मल्होत्रा

Hero

Total Chapters (201)

Page 1 of 11

  • 1. काशी: एक संघर्ष - Chapter 1

    Words: 1207

    Estimated Reading Time: 8 min

    कुछ सिलसिलों का दौर ऐसा चल रहा था, कुछ दिल टूट रहे थे, तो कुछ जज्बातों का मेला लगा था। कुछ कहानियां बीच से शुरू होकर, शुरुआत पर खत्म होती हैं। "सार्थक… सार्थक…" एक लड़की बेड पर से चिल्लाते हुए उठी। उसका पूरा शरीर पसीने में भीग गया था। उसने अपने सीने पर हाथ रखा और गहरी साँस लेते हुए खुद से कहा, "जो गलती की ही नहीं, उसकी इतनी बड़ी सजा… दे दी तुमने मुझे… खुद से दूर कर दिया मुझे… मैं कैसे रहूँ तुम लोगों के बिना…" "प्लीज सार्थक, लौट आओ ना… तुम्हारे बिना कितने रिश्ते टूट गए हैं… प्लीज!" इतना बोल वो लड़की रोने लगी। उसके हाथ और होठ दोनों उसका साथ नहीं दे रहे थे। "क्या हुआ मम्मा? आप ठीक हैं ना…" एक लड़की उस औरत के बगल में उठकर बैठते हुए बोली। शायद इतनी तेज से चिल्लाने की आवाज सुनकर उस लड़की की नींद खुल चुकी थी। औरत: ये हकीकत है, लेकिन फिर भी हर रोज़ सपना बनकर मेरी आँखों में फिरता रहता है। कुछ समझ नहीं आता काशी, इन सब से मेरा पीछा कब छूटेगा… कब… मैं परेशान हो गई हूँ! काशी: मम्मा… प्लीज शांत होकर सो जाओ, प्लीज… सब ठीक हो जाएगा। हम हैं ना, मिलकर सब ठीक कर लेंगे। डोंट वरी मम्मा! वैदेही: कैसे सो जाऊँ? ताई ने कहा है कि हम लोग सुबह यहाँ से चले जाएँ। बड़ी मुश्किल से हाथ-पैर जोड़कर हमने रात यहाँ रहने के लिए उन्हें मनाया है। कहाँ जाएँगे सुबह होते ही? कहाँ ठिकाना है हमारा? काशी: बेड के पास से लैंप की लाइट जलाकर… "कुछ नहीं होगा, मैं जानती हूँ अब हम कहाँ जाएँगे…" इतना बोल काशी ने सामने देखा और वापस अपनी माँ की ओर देखकर उनके चेहरे को अपने घुटनों पर रख लिया। वैदेही: मुझे नींद नहीं आ रही, वैसे भी सुबह होने वाली है। तुम सो जाओ। काशी: नहीं, आप सो जाओ। जल्दी उठने की कोई ज़रूरत नहीं है। इतना बोल काशी ने उसकी माँ के सर पर हाथ फेरने लगी। वैदेही (मन में): काश एक बार तुमने मेरी बात का यकीन किया होता नील, बस एक बार… तुमने खुद अपने हाथों से हमारे इस रिश्ते को खराब कर दिया… क्या तुम्हें सच में अपनी वेदु पर यकीन नहीं था, इतना सा भी नहीं? "अब क्या मिस्टर रावत के बारे में सोचकर रात भी खराब करोगी… मॉम, आप अपना दिन तो उन्हीं के चक्कर में खराब करती हैं, कम से कम रात को तो चैन से सो जाया कीजिए!" काशी ने वैदेही के सर पर थपकियाँ देते हुए थोड़े अजीब तरह से कहा। "तुम तो सब जानती हो ना, तुम कैसे चुप रह लेती हो ये सब सहकर? तुम्हें दुख नहीं होता?" वैदेही ने अपनी आँखें ऊँचा करके काशी को देखते हुए कहा। "अच्छा चलो बताओ, दुख होने से क्या होगा? हमारी सारी प्रॉब्लम खत्म हो जाएँगी? हम खुश हो जाएँगी? हमने जो सहन किया है, सब सही हो जाएगा? मिस्टर रावत की नज़र में आप सही हो जाएँगी?" काशी ने वैदेही की ओर देखते हुए कहा। "मैं ये तो नहीं बोल रही कि जो नील ने किया है वो सही नहीं है। उसने मुझे प्यार किया था, फिर भी उसको मुझ पर बिलकुल भरोसा नहीं रहा। क्या प्यार में भरोसा नहीं होता?" "नहीं होता मॉम, तभी तो मिस्टर रावत ने एक बार भी आपके बारे में नहीं सोचा और तो और उस अधूरी से शादी कर ली…" काशी ने मुँह बनाते हुए कहा। "पापा बोल लिया करो काशी। डैड हैं तुम्हारे वो चाहे कैसे भी हों!" वैदेही ने काशी की ओर देखकर कहा। "डैड ऐसे नहीं होते मम्मा। सात्वी, आर्यन, किंशा सब के डैड देखे हैं ना आपने? कितने अच्छे हैं, और एक मिस्टर रावत है जो मुझे तो प्यार दूर, उस इंसान से भी नहीं करते जिनसे उन्होंने प्यार किया और सात जन्मों का रिश्ता बाँधा है। मुझे उनका नाम भी नहीं सुनना… तो सो प्लीज वेदू मॉम… आज के बाद आप उन्हें मुझे डैड बोलने के लिए न बोलें!" वैसे भी मैं आपकी बहुत बातें सुनती हूँ उस इंसान की वजह से। इतना बोल काशी ने वैदेही को सही से लिटाया और उठकर रूम से बाहर चली गई। काशी के जाते ही वैदेही उठी और टेबल से लैंप जलाकर खुद बेड से उतरकर खड़ी हो गई। दूध सा गोरा रंग, कंधे से नीचे तक आते बाल, मोटी-मोटी आँखें, गुलाबी होंठ… वैदेही को देखकर कोई बता भी नहीं सकता था कि उसकी एक बेटी भी है। वैदेही ने रूम को सही किया और खुद से ही कहा, "बाप रे बाप! इसका गुस्सा… अब तो सोने से रहा। इसे नींद आती क्यों नहीं है?" इतना बोल वैदेही रूम से बाहर चली गई। उसने रूम से निकलते ही आस-पास देखा और अपनी नज़रें आँगन में की, जहाँ एक कुर्सी लगी हुई थी जिस पर काशी बैठी हुई तारों को देख रही थी। वैदेही ने काशी को देखा और उसके बगल में बैठते हुए कहा, "अब से नाम नहीं लूँगी। प्लीज चलकर सो जा थोड़ा…" काशी: आप सो जाओ, मुझे नींद नहीं आ रही। वैसे भी पाँच बज गए हैं, अभी वो आपकी ताई आएंगी और भजन शुरू कर देंगी… ये लो, तुम दोनों यहाँ बैठकर सुबह-सुबह बातें शुरू कर दीं। थोड़ा काम कर लो तो घिस नहीं जाओगी… रोज़ बोलना पड़ता है, माँ-बेटी को कोई काम-धंधा नहीं है! काशी ने मुँह बनाते हुए ताई की नकल करते हुए कहा। काशी को यूँ नकल करता देख वैदेही को भी हँसी आ गई। उसने काशी की ओर देखा और उसके कंधे पर हाथ रखकर जोर से हँसने लगी। काशी ने वैदेही को हँसते हुए देखा तो उसके भी चेहरे पर स्माइल आ गई। वो भी वैदेही के साथ-साथ जोर-जोर से हँसने लगी। काशी बहुत कम वैदेही को हँसते हुए देखती थी। "भगवान भला करे… इन दोनों का सुबह-सुबह… माँ-बेटी दोनों हँसने लग जाती हो, कोई काम-धंधा नहीं है क्या… ये नहीं थोड़ा-बहुत काम कर लूँ, लेकिन नहीं मजाल है जो थोड़ा काम कर लें, बस बातें करवा लो दोनों महारानियों से…" काशी ने सुना और मुँह बनाते हुए चेयर से खड़ी हुई और ताई की ओर देखकर कहा, "क्या ताई, आज और काम करवा लो? कल से तो तुम ही करोगी ना… फिर किससे करवाओगी? हम तो आज चले जाएँगे।" इतना बोल काशी के चेहरे पर स्माइल आ गई। वैसे भी अब हम जा रहे हैं तो आपको ही ये सब काम करने होंगे ना… तो तैयार है ना आप झाड़ू-पोछा, बर्तन के लिए? इतना बोल काशी ने अपनी माँ का हाथ पकड़ा और अंदर ले आई। ताई ने दोनों को जाते देखा और खुद से कहा, "काली चुड़ैल कहीं की, कुछ भी अच्छा नहीं बोलती… बस मुँह चलवा लो… जब भी मुँह खोलती है बस आग उगलती है। मेरे बेटे पर डोरे डालेगी बड़ी आई…" दोनों को तो मैंने आज सबक नहीं सिखाया तो मेरा नाम भी कमला नहीं… कमला ने इतना बोला और झाड़ू को जोर से आँगन में फेंककर अंदर चली गई। To be continue… एक नई कहानी के साथ में आप सब के साथ फिर से आ गई हूँ। प्लीज सपोर्ट कीजिए… एंड कमेंट करके बता दीजिए! रिया पाराशर

  • 2. काशी: एक संघर्ष - Chapter 2

    Words: 1558

    Estimated Reading Time: 10 min

    ताई ने दोनों को जाते देखा और खुद से कहा, "काली चुड़ैल कहीं की! कुछ भी अच्छा नहीं बोलती! जब भी मुँह खोलती है, बस आग उगलती है। मेरे बेटे पर डोरे डालेगी बड़ी आई! दोनों को तो मैंने आज सबक नहीं सिखाया, तो मेरा नाम भी कमला नहीं!" इतना बोलकर उसने अपने हाथ में पकड़ी झाड़ू को जोर से आँगन में फेंका और अंदर चली गई। अब आगे… * * * * * वैदेही और काशी अपने कमरे में अपना सामान पैक कर रही थीं। तभी एक लड़का दरवाजे पर आया और दोनों को सामान पैक करते देख वहीं रुक गया। काशी गुस्से में अपना सामान अपने बैग में डाल रही थी। गुस्से में उसका चेहरा एकदम लाल हो जाता था। उसके कमर से नीचे तक आते बाल, गोरा रंग, तिरछे नैन-नक्श, दिखने में एकदम मासूम, लेकिन है या नहीं, ये रब जाने। वैदेही: काशी, शांत भी हो जाया कर बेटा! कितना गुस्सा करती है तू! काशी: अपने कपड़े बैग में डालते हुए, "तो क्या करूँ? आपकी उस ताई का सुनूँ क्या? मुझसे नहीं सुना जाता। आपको सुनना है, तो आराम से जाओ और सुनो उनके भजन…" इतना बोल काशी ने जैसे ही बैग में सामान रखने के लिए हाथ बढ़ाया, कि तभी उसकी नज़र दरवाजे पर खड़े लड़के पर गई। तो काशी ने गुस्से से अपना सामान बैग में डाल लिया। वैदेही ने काशी को दरवाज़े की ओर देखते हुए देखा। उन्होंने देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "अरे ज्ञान बेटा, आप आओ ना। बाहर क्यों खड़े हो?" ज्ञान: मम्मी की बात का बुरा लगा क्या? काशी: अपनी कमर पर हाथ रखकर ज्ञान को घूरते हुए, "नहीं-नहीं! हमें तो बहुत अच्छा लगा कि तुम्हारी माँ ने हमें भर-भर के ताने दिए हैं!" ज्ञान: (मन में) "सच में ये लड़की मेरी जान ले लेगी। इतना मासूम और बच्चों जैसी हरकतें कौन करता है!" काशी: काशी ने ज्ञान को देखा जो एकटक उसे देख रहा था। काशी ने उसके आगे हाथ हिलाया और कहा, "सपनों की दुनिया से बाहर आओ ज्ञान साहब! सपनों में कुछ नहीं रखा।" काशी की बात सुनकर ज्ञान अपनी सोच से बाहर आया और वैदेही के हाथ को पकड़कर कहा, "मत जाइए ना आंटी! मम्मी को मैं समझा दूँगा। प्लीज़! उन्हें गलतफहमी हुई है। उन्होंने आपसे और काशी से जो भी कहा है, उसके लिए सॉरी! मैं उनसे बोलूँगा, वो आपसे माफ़ी माँग लेंगे।" वैदेही: हमें माफ़ी नहीं मंगवानी बेटा, और अब यहाँ नहीं रहेंगे हम। बाकी तुम खुश रहो। काशी ने बैग उठाया और वैदेही को पकड़ा दिया। वैदेही जी बैग लेकर बाहर निकल गई। काशी ने जैसे ही बैग उठाया, कि ज्ञान ने उसका हाथ पकड़ लिया। काशी को ज्ञान की यह हरकत बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। उसने ज्ञान को घूरा और कहा, "देखो ज्ञान, मैं कोई सीधी-साधी लड़की नहीं हूँ, जो ऐसे पकड़ने से कुछ नहीं बोलेगी। शुक्र मनाओ मैं तुम्हें थोड़ा-बहुत जानती हूँ। अगर अब तक कोई और होता ना, तो जान से मार देती।" ज्ञान ने काशी का हाथ छोड़ दिया, लेकिन उसके बैग को पकड़कर कहा, "मम्मी की बात बुरी लगी…" ज्ञान ने काशी को देखते हुए उससे कहा। ज्ञान की बात सुनकर काशी ने अपने हाथ की मुट्ठी कसी और उसे घूरते हुए कहा, "इतना घटिया मैंने सिर्फ़ तुम्हारी वजह से सुना है, वरना कोई मेरे लिए कुछ बोले ना, तो जान से मार दूँ। लेकिन मैं इतनी भी बुरी नहीं हूँ। तुमने हमारी हेल्प की थी ना, उसके बदले मैंने तुम्हारी माँ के ताने सुन लिए। प्लीज़ अब जाने दो ज्ञान, और ध्यान रखना अपना! तुमने मेरी बहुत हेल्प की है, लेकिन तुम्हारी माँ ने मेरे कैरेक्टर पर उंगली उठा दी।" इतना बोल काशी ने ज्ञान को देखा और उसके हाथ से बैग उठाकर दरवाज़े तक ही आई थी कि तभी उसके कानों में ज्ञान की आवाज़ आई। "मम्मी ने जो बोला उसके लिए सॉरी, लेकिन मैं सच में तुमसे प्यार करने लगा हूँ। पता नहीं कब और कैसे, लेकिन मुझे तुमसे प्यार हो गया। प्लीज़ काशी, मत जाओ ना…" काशी ने जैसे ही ज्ञान की बात सुनी, तो उसके हाथ से अपना बैग नीचे गिर गया। उसके कदम एक पल को तो ठिठक गए। उसने पीछे मुड़कर ज्ञान को देखा, तो उसकी आँखों में हल्की नमी साफ़ दिखाई दे रही थी। काशी ने ज्ञान को देखते हुए कहा, "ये क्या बकवास कर रहे हो? ज्ञान, तुम्हें अच्छे से मालूम है ना मुझे इन सब में कोई इंटरेस्ट नहीं है। अगर तुम्हारी जगह आज किसी और ने मुझे ये सब बोला होता ना, बता दे रही हूँ, चलने और बोलने लायक नहीं छोड़ते! इसलिए अपनी फ़ालतू की बातों को अपने पास रखो, और जो ये फ़ीलिंग मेरे लिए अपने मन में लेकर घूम रहे हो ना, इसे किसी कोने में दफ़न कर देना। तुम्हारे और तुम्हारी माँ दोनों के लिए अच्छा होगा। तुमने मेरी हेल्प हमेशा की है, मैं तो तुम्हें दोस्त से ज़्यादा कुछ नहीं मानती, इसलिए प्लीज़… हमारी दोस्ती तो रहने दो, वरना इस एकतरफ़ा तुम्हारी जो फ़ीलिंग है ना, उसके चक्कर में तुम दोस्ती भी खो दोगे।" ज्ञान: तुम्हारे मन में कुछ नहीं है ये मैं जानता हूँ काशी, पर मैंने अपने दिल की बात बोल दी है। बस ये चाहूँगा, तुम्हारी लाइफ़ में जो भी आए, तुम्हें बेहद प्यार करे। काशी: तुम इन सब की फ़िक्र मत करो। ज्ञान: आगे आकर, "वैसे तुम उस बेचारे को भी पीट दोगी क्या?" काशी: बिलकुल! पर मेरी लाइफ़ में कोई नहीं आएगा। डोंट वरी! मुझे इस प्यार और शादी दोनों शब्दों से चीड़ है। ज्ञान: ऐसा जो लोग बोलते हैं ना, उन्हें सबसे पहले प्यार होता है! अब तुम आराम से सोच लो… इतना बोल ज्ञान ने बैग लिया और बाहर आ गया। उसने अपनी आँखों की नमी साफ़ की और बाहर आँगन में लाकर बैग को रख दिया। पास ही में वैदेही खड़ी हुई थी, उसकी आँखों में हल्की नमी थी। ज्ञान: आंटी, आप मुझे बेटा नहीं मानती ना, तभी तो आप मेरे बोलने पर भी यहाँ नहीं रुकीं। "हाँ, क्योंकि हमें हमारी इज़्ज़त का फ़ालतूदा नहीं करवाना, क्योंकि तुम्हारी…" काशी ने बाहर आँगन में आते हुए कहा, लेकिन ज्ञान ने उसकी बात को बीच में काटकर कहा। ज्ञान: हाँ-हाँ! जानता हूँ, आप लोग यहाँ रहोगी तो मेरी माँ के ताने आप लोगों को सुनने पड़ेंगे। काशी: बड़े समझदार हो… इतना बोल काशी ने अपने छोटे से बैग को कंधे पर रखा और कहा, "मैं ऑटो लेकर आती हूँ मॉम!" इतना बोल काशी जैसे ही जाने को हुई, कि उससे पहले ही ज्ञान ने उसका हाथ पकड़ा और कहा, "तुम यहीं रुको, मैं लेकर आता हूँ।" "अब क्या तू निठल्ला हो गया? तुझे कोई काम-धंधा नहीं है क्या? जो तू अब इन लोगों के लिए रिक्शा लेने जाओगे? वैसे भी ये माँ-बेटी बड़ी होशियार हैं, खुद ले आएंगी!" "देख ताई, मेरी माँ को बीच में मत ला, वरना…" काशी ने उंगली दिखाते हुए कहा। कमला: वरना क्या? जैसे तू लोगों को पीटती है, मुझे भी पीटेगी क्या? ज्ञान: (मन में) "ओह गॉड! ये मम्मी थोड़ी देर बाद आ जाती तो क्या गंगा बह जाती! शांत कराओ ना भगवान! और ये लड़की तो पूरे दिन गुस्से में होती है, हर छोटी बात पर गुस्सा! हाए! चुप कराओ इसे कोई! दोनों की दोनों एक जैसी हैं!" काशी: बिलकुल नहीं! उसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी, पर हाँ, आपकी सारी बातों का अचार बनाकर आपको खिला दूँगी। इसलिए मेरी माँ के बारे में एक और शब्द मत बोलना, वरना बोलने लायक ही नहीं छोड़ूँगी। बदला तो कहीं भी लिया जा सकता है। तुम मार्केट जाती हो ना सब्ज़ी लेने… इतना बोल काशी टेढ़ा मुस्कुराई, तो ज्ञान और वैदेही को भी हँसी आ गई। "मैं ऑटो लेकर आता हूँ।" इतना बोल ज्ञान ने काशी को कुछ इशारा किया, तो काशी आँगन में लगी चेयर पर बैठ गई। वैदेही ने बहुत प्यारी पिंक प्लेन साड़ी पहनी हुई थी। उसके खुले बाल उस पर बहुत जच रहे थे। तो वहीं काशी ने ग्रीन शॉर्ट कुर्ता एंड जींस पहना हुआ था, और कुर्ते पर एक जैकेट डाला हुआ था। बालों को खुला किया हुआ था, जो कि उसके कमर से नीचे तक आ रहे थे। कुछ ही देर में ज्ञान एक ऑटो को लेकर आ गया था। वैदेही ने ज्ञान को देखा और काशी के कंधे पर हाथ रखा, तो काशी भी उठ गई। उसने बैग उठाया और ऑटो में रख लिया। गली में काफ़ी लोग थे, जो दोनों के जाने से खुश थे, तो कुछ दुखी भी थे। एक लड़की जो कि जल्दी-जल्दी भागकर आई और काशी के गले लगते हुए कहा, "तू जा रही है काशी? तूने मुझे बताया क्यों नहीं यार? तू मुझे दोस्त नहीं मानती क्या? तूने एक बार भी बताना ज़रूरी नहीं समझा!" काशी: पूजा यार, सॉरी! फ़ोन है ना, कॉल कर लेना। मैं हमेशा तुझसे मिलने आऊँगी। पूजा: झूठी! अभी तो बिना बताए चली जाती। वो तो शुक्र है मुझे ज्ञान भैया मिल गए, तो उन्होंने बता दिया, वरना तू तो चली जाती, और जब मैं फ़ोन करती, तो वहाँ से कहीं से एक सॉरी बोल देती और बोलती, 'यार मैं भूल गई!' मुझे तो तुझसे बात ही नहीं करनी! तू ना दोस्त है ही नहीं… ये सब बोलते हुए, पूजा की आँखों में आँसू आ गए। उसने काशी को देखा और उसके गले लग गई। To be continue… कॉमेंट में ज़रूर बताएँ स्टोरी कैसी है… प्लीज़ सपोर्ट भी कर दीजिएगा! रिया पाराशर

  • 3. काशी: एक संघर्ष - Chapter 3

    Words: 1523

    Estimated Reading Time: 10 min

    काशी ने पूजा को खुद से दूर करते हुए कहा, "अबे यार ये गले लगना जरूरी है क्या? दूर हो अब! क्या रुलाएगी क्या? मैं रोई ना तो बाढ़ आ जाएगी!" उसने पूजा के गाल पर हाथ रखकर कहा, "तू मेरी दोस्त हमेशा रहेगी, इसलिए ये रोना-धोना बंद कर। समझी? ना? तू तो हँसती-मुस्कुराती हुई अच्छी लगती है। अपना ध्यान रखना।" अपने बैग से कुछ पैसे निकालकर उसने पूजा को दिए, "ये ले और कुछ सामान दिला देना छोटी को, और उसकी स्कूल की फीस दे देना।" काशी ने सबसे छुपाकर धीरे से पैसे दिए। पूजा ने कहा, "नहीं, मैं ये नहीं ले सकती!" काशी ने कहा, "नहीं, चुपचाप रख ले!" वैदेही ने कहा, "चल काशी!" ज्ञान ने कहा, "कैसे जाएगी आंटी? ज्ञान दे रही है ना लोगों को, इसे तो यही काम है। मिलने दो दोनों को!" काशी की ओर देखकर बोला, "ओह मैडम! ये ऑटो वाले अंकल तुम्हारे चाचा नहीं हैं जो तुम्हारा वेट करेंगे। चलो बैठो!" काशी ने पूजा को अलविदा कहा और ऑटो में आकर बैठ गई। वैदेही भी बैठ चुकी थी। वैदेही की आँखों में हल्की नमी आ चुकी थी, लेकिन काशी के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। वैदेही ने पीछे देखा तो सब लोग उन्हें ही देख रहे थे। ज्ञान लगातार काशी की ओर देख रहा था, लेकिन काशी अपनी ही धुन में अंदर सीट से टेक लगाकर बैठी हुई थी। काशी को गुस्सा बहुत आता था। हर छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा उसकी नाक पर ही सवार रहता था। कुछ दूर चलने के बाद अचानक ही ऑटो के ब्रेक लगे। काशी ने वैदेही को देखा और ड्राइवर से कहा, "क्या हुआ अंकल?" ड्राइवर ने कहा, "मैडम, लगता है गाड़ी खराब हो गई। आप थोड़ी देर रुकिए, मैं चेक करके बताता हूँ।" काशी ने अपनी साइड का दरवाजा खोला और बाहर निकलकर देखा, "आप एक बार चेक कर लीजिए ना! फिर बताओ कितना टाइम लगेगा? हम दूसरा ऑटो ले लेते हैं!" ड्राइवर ने कहा, "जी मैडम, थोड़ा इंतज़ार कीजिए। अभी देखकर बताता हूँ।" काशी ऑटो से लगकर खड़ी हुई थी। वह आस-पास से निकल रही गाड़ियों को देख रही थी, जो कभी तेज तो कभी धीरे चल रही थीं। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। काशी ने अपनी नज़रें अपने बगल में की तो उसके बगल में वैदेही खड़ी हुई थी। काशी ने उन्हें देखा और कहा, वैदेही ने कहा, "अब हम कहाँ चलेंगे काशी? यहां हम किसी को नहीं जानते।" काशी ने कहा, "हाँ, वो तो है, लेकिन जहाँ हम जाएँगे ना, उन्हें आप बहुत अच्छे से जानती हैं। डोंट वरी।" वैदेही को देखकर आगे बढ़ते हुए, "कुछ खाओगे क्या?" वैदेही ने काशी को देखा और कहा, "मेरा मन नहीं है। तुम खा लो। सामने आइसक्रीम है, तुम खा लो।" काशी ने वैदेही को देखा और काम कर रहे ड्राइवर को देखते हुए कहा, "अंकल, दुनियाँ भर का समय इसी में लगेगा क्या?" ड्राइवर ने कहा, "हाँ, बेटा, लगता नहीं ये ठीक होगा। मुझे और अब टाइम भी बहुत लगेगा, इसलिए आप दूसरा ऑटो ले लो।" काशी ने कहा, "अजीब नहीं हो! एक घंटा खराब करके फिर बोल रहे हो!" इतना बोल काशी ने ड्राइवर को देखा और उसे घूरने लगी। वैदेही ने कहा, "तुम यहीं रुक। मैं कुछ लेकर आती हूँ तुम्हारे लिए।" काशी ने कहा, "हाँ, जाओ। तब तक मैं सामान निकाल लेती हूँ।" वैदेही ने कहा, "ऑटो भी देखती हूँ मैं।" काशी ने कहा, "तुम जाओ, मैं देख लूँगी।" इतना बोल काशी ने वैदेही को जाने को बोला और खुद ऑटो से सामान निकालने लगी। वैदेही सामने देखते हुए रोड पार कर रही थी। उसने आस-पास देखा और सामने की ओर देखा तो आइसक्रीम वाला दूसरी साइड था। वैदेही उस ओर आई। जल्दी से दो आइसक्रीम लेकर वापस आई तो उसका पल्लू अचानक वहाँ रोड पर लगे डिवाइडर में उलझ गया। वैदेही ने आइसक्रीम को एक हाथ में लिया और एक हाथ से अपने पल्लू को निकाला और जल्दीबाजी में आगे बढ़ी कि सामने से आ रही कार, जो कि काफी तेज थी, वैदेही डर की वजह से वहीं रुक गई। कार वाले ने वैदेही को रुका हुआ देखा तो उसने तुरंत जोर से ब्रेक लगाकर गाड़ी रोक दी। गाड़ी बिलकुल वैदेही के पैरों के पास आकर रुकी थी। वैदेही के हाथ से डर के मारे आइसक्रीम नीचे गिर गई थी। कार चला रहे लड़के ने सामने खड़ी वैदेही को देखा तो वह तुरंत बाहर आ गया। उसने वैदेही को देखते हुए कहा, "आप ठीक हैं ना मैम? आपको लगी तो नहीं ना? सॉरी, वो मेरा ध्यान नहीं रहा।" काशी की नज़र अचानक अपनी माँ पर गई तो उसके हाथ-पैर ठंडे पड़ गए। काशी तुरंत भागकर वैदेही के पास आई और उसे सही से देखते हुए कहा, "आप ठीक हो ना?" वैदेही ने कहा, "मैं ठीक हूँ।" लड़के ने कहा, "सॉरी।" वैदेही कुछ बोलती उससे पहले काशी ने उस लड़के की ओर देखा और जोर से खींचकर उसके गाल पर थप्पड़ मार दिया। काशी ने जैसे ही थप्पड़ मारा तो वैदेही ने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया, "क्या कर रही है काशी?" वैदेही ने काशी को देखते हुए कहा। काशी ने कहा, "आप रुकिए, मैं देखती हूँ।" इतना बोल काशी ने उस लड़के को देखा तो वो लड़का अपना चेहरा नीचे करके गाल पर हाथ रखे हुए खड़ा था। उसने गुस्से से काशी को देखा। तो काशी ने गुस्से से उसकी कॉलर को पकड़ते हुए कहा, "लगते तो किसी अमीर घर से हो। तुम्हारे घर वालों ने तुम्हें सिखाया नहीं है क्या? किसी को भी उड़ा के चले जाओगे! इंसान हो ना, तमीज़ नाम की चीज़ नहीं है! तुम अमीर लोग खुद को समझते क्या हो, मुझे ये बताओ!" उस लड़के की आँखें गुस्से से एकदम लाल हो गई थीं। उसके हाथों की नसें तनी हुई थीं। उस लड़के ने काशी के हाथ को पकड़ा और खुद से जोर से दूर किया और उंगली दिखाते हुए कहा, "शिव राणा किसी की नहीं सुनता। मैंने गलती नहीं की, फिर भी मैंने उनसे सॉरी बोला है। तुम लड़की हो, वरना मैं क्या करता, ये तो तुम्हें अच्छे से पता चल जाता कि शिव राणा से पंगा लेना कितना भारी पड़ता है!" इतना बोल शिव ने काशी को घूरा और खुद से धक्का देते हुए अपनी गाड़ी के पास आया ही था कि तभी वैदेही ने उसके हाथ को पकड़ लिया। शिव ने वैदेही को देखा और कहा, "देखिए मैम, आप…" शिव इतना ही कहा था कि तभी वैदेही ने शिव के गाल पर हाथ रखकर कहा, "काशी की तरफ़ से मैं सॉरी बोलती हूँ।" काशी की ओर देखकर बोली, "काशी, गलती मेरी ही थी। तुमने बिना पूछे उन पर हाथ उठा दिया। ऐसे कौन उठाता है बेटा?" काशी ने नीचे जमीन पर बिखरी आइसक्रीम को देखते हुए कहा, "मेरी आइसक्रीम…" शिव ने जैसे ही काशी के मुँह से आइसक्रीम का नाम सुना तो उसका गुस्सा और भी बढ़ गया। उसे लगा कि काशी उसे सॉरी बोलेगी, लेकिन उसने तो अपनी आइसक्रीम के लिए रोना शुरू कर दिया! शिव ने वैदेही को देखा और कहा, "हो सके तो मैम, अपनी बहन को हॉस्पिटल ले जाएँगा।" वैदेही ने जैसे ही काशी के बारे में सुना तो उसे हँसी आ गई। उसने हँसते हुए कहा, "मैं उसकी बहन नहीं, माँ हूँ।" इतना बोल उन्होंने काशी की ओर देखा और कहा, "काशी, सॉरी तो बोलो!" कोई कुछ बोलता उससे पहले काशी ने चिल्लाते हुए कहा, "ओह भाई! वीडियो काहे बना रहे हो? मुझे फेमस करने का विचार है या इन भाई साहब को?" इतना बोल काशी ने भीड़ में खड़े उस लड़के को घूरा। सब के सब काशी की बात सुनकर उस लड़के की ओर देखने लगे। उस लड़के ने अपना फोन साइड में पकड़ा हुआ था। उसे देखकर लग नहीं रहा था कि वह वीडियो बना रहा है। काशी की बात सुनकर शिव ने भी उसे घूरा तो उस लड़के ने तुरंत फोन नीचे कर लिया। काशी ने कहा, "कहाँ फेमस करने वाले हो? खुद के लाइक-व्यू बढ़ जाएँगे, मेरी तारीफ हो जाएगी कि क्या बहादुर लड़की है! और इन भाई साहब के लिए आपने मुसीबत खड़ी कर दी। डिलीट करो उसे!" इतना बोल काशी ने शिव को देखा और आँखें दिखाते हुए कहा, "आगे से देखकर चलाना! अगली बार मैं या मम्मा नहीं होंगी!" इतना बोल काशी ने आइसक्रीम को देखा और मुँह बनाते हुए वहाँ से वैदेही का हाथ पकड़कर चली गई। दोनों रोड के पास आकर ऑटो का इंतज़ार करने लगीं, लेकिन कोई ऑटो रुक ही नहीं रहा था। और काशी को पहले से ही गुस्सा आ रहा था। उसने एक सामने से आ रहे ऑटो को इशारा किया तो वो भी नहीं रुका। तो काशी ने उस ऑटो को पीछे से लात मार दी। तो वहीं गाड़ी में बैठे शिव ने उसे देखा तो उसे काशी को परेशान देखकर हँसी आ गई। उसने कार स्टार्ट की और काशी के आगे आकर मुस्कुराते हुए कहा, "हाथ देकर आराम से बोलोगी तो कोई तुम पर तरस खाकर रोक भी दे… वरना खड़ी रहो इस धूप में!" इतना बोल शिव ने काशी को घूरते हुए अपनी आँखों पर चश्मा लगा लिया। To be continue......... रिव्यू देना मत भूलिए और कॉमेंट भी 😁 रिया पाराशर

  • 4. काशी: एक संघर्ष - Chapter 4

    Words: 1545

    Estimated Reading Time: 10 min

    काशी ने उसकी कार की खिड़की पर हाथ रखा और कहा, "तुम निकालो, वरना मेरे हाथों यहां एक मर्डर हो जाएगा!" इतना बोलकर काशी ने कार को एक लात मार दी। शिव ने कार से देखा; उसके चेहरे पर गुस्से के भाव आ गए। उसने मन में कहा, "भगवान करे, मैं इस लड़की से कभी न मिलूँ, मुझे इस लड़की की शक्ल भी नहीं देखनी।" इतना बोलकर शिव चला गया। वैदेही जी: काशी, बेटा, बिना बात सुने गुस्सा क्यों करती हो तुम? देखो, उस लड़के की कोई गलती नहीं है, फिर भी तुमने उसे सबके सामने थप्पड़ मार दिया। ताई ना सच बोलती है कि तुम गुस्सा होती हो तो हाथ बहुत चलते हैं, बेटा। बिना जाने किसी पर हाथ... काशी: शांत, वैदेही माँ... शांत। मुझे ऑटो रोकने दीजिए। इतना बोलकर काशी ऑटो रोकने लगी। एक ऑटो रुका भी गया। काशी ने उसे पता बताया और बैठ गई। वैदेही ने काशी से पूछा तो उसने कहा, "आप चलो बस।" लगभग आधे घंटे में ऑटो वाले ने ऑटो रोका तो काशी और वैदेही जी बाहर आ गईं। वैदेही ने जैसे ही सामने देखा, तो उनके पैर लड़खड़ा गए। उन्होंने सामने देखा तो उनकी आँखों में तुरंत नमी आ गई। वैदेही जी ने काशी को देखा और कहा, "हम यहां क्यों आई हैं, काशी?" काशी: यहीं रहेंगे, मॉम। इस घर में हमारा पूरा हक है। तो आराम से चलो और मस्त रहो। वैदेही जी ने काशी की बाजू पकड़ी और अपनी ओर करके कहा, "किस हक से जाएँगी हम? बताना जरा, क्या लगते हैं हम उनके?" काशी: हाए हाए, मॉम, कैसे भूल जाती हो? ऑफ़कोर्स हम उनके लगते हैं ना, आप वाइफ़ और मैं उनकी बेटी। वैदेही जी: तुम भूल रही हो, काशी, कि हमारा तलाक हो गया है। तो किस हक से हम रहेंगे यहाँ? काशी: उफ़्फ़, डोंट वरी, मैं हूँ ना। चलो आप तो... बस इतना भरोसा कर सकती हैं आप मुझ पर। इतना बोलकर काशी ने बैग लिया और वैदेही जी का हाथ पकड़ लिया। वैदेही जी के पैर लड़खड़ा रहे थे; उनके पैर उनका साथ नहीं दे रहे थे। उनकी आँखों में बार-बार एक सीन चल रहा था। वैदेही और नील दोनों दूल्हा-दुल्हन बनकर दरवाजे पर खड़े हुए थे। नील ने वैदेही को देखते हुए कहा, "तुम मेरे घर की लक्ष्मी हो। तुम्हारे मेरे इस घर में पैर पड़ते ही ढेरों खुशियाँ आई थीं ना, वैसे ही हम साथ रहेंगे। इस घर की दहलीज लाँघकर तुम मेरे घर में आओगी।" इतना बोलकर नील ने वैदेही का कसकर हाथ पकड़ लिया। वैदेही ने चावल के कलश को ठोकर मारी और सामने देखने लगी। तभी नील ने आगे बढ़कर वैदेही को गोद में उठा लिया। "चलो ना, मॉम, क्या सोच रही हो?" काशी ने वैदेही जी का हाथ पकड़कर आगे किया क्योंकि वैदेही जी एक जगह ही खड़ी अपनी पुरानी बातें सोच रही थीं। काशी: ज़्यादा मत सोचो, यार। इस दिल को ना धड़कने मत दो, प्लीज़, और खुद को मज़बूत बनाओ। हम यहीं रहेंगे। बहुत कुछ सहना पड़ेगा। आपके लिए बहुत कठिन होगा मिस्टर रावत को आध्नी के साथ देखकर। वैदेही: उसका नाम भी मत लो, प्लीज़। उस औरत की वजह से... काशी: मॉम, उस औरत की वजह से नहीं, मिस्टर रावत आपसे प्यार करते ही नहीं थे, तभी तो उन्हें आप पर ट्रस्ट नहीं हुआ। इतना बोलकर काशी ने पीछे देखा और आगे बढ़कर घर की डोरबेल दो-तीन बार बजा दी। वैदेही जी ने जैसे ही काशी को डोरबेल बजाते देखा, तो उनके हाथ उसकी साड़ी के पल्लू पर कस गए। जैसे ही घर की डोरबेल की आवाज सुनकर किसी ने अंदर से दरवाजा खोला, तो काशी ने देखा यह नौकर था। उस नौकर ने काशी को देखा और कहा, "कौन है आप? किससे मिलना है आपको?" काशी: काशी... इतना बोलकर काशी सामने देखने लगी। नौकर: यहां कोई काशी नहीं रहती, आप गलत जगह आई हैं। काशी: मेरा नाम काशी है, मुझे वैदेही जी से मिलना है। नौकर ने काशी को देखा और कहा, "वो तो यहां नहीं रहती, वो तो यह घर छोड़कर चली गई थी। अब यहां नहीं रहती वो।" काशी: अब से यहीं रहेगी। इतना बोलकर काशी ने अपने पीछे खड़ी वैदेही का हाथ पकड़कर अपने साथ लिया और घर के अंदर आ गई। नौकर ने जैसे ही वैदेही को देखा, तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई, लेकिन अगले ही पल किसी की आवाज सुनकर उस नौकर के चेहरे की मुस्कान उदासी में बदल गई। "कौन आया है, श्याम?" यह बोलते हुए एक औरत, जो लगभग वैदेही से उम्र में थोड़ी बड़ी होगी, उसने एक नज़र नौकर को देखते हुए पूछा। लेकिन वह आगे कुछ बोल पाती, उससे पहले ही उसकी नज़र काशी और वैदेही पर गई तो उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं; उसके चेहरे पर गुस्से के भाव आने लगे। उसने तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर आने की, वैदेही? अब किस हक से इस घर में आई हो?" वैदेही जी कुछ बोलतीं, उससे पहले काशी ने आराम से सोफ़े पर बैठते हुए कहा, "अंकल, एक कॉफ़ी और एक चाय ले आओ।" इतना बोलकर काशी ने आध्नी जी को देखा और कहा, अपनी उंगली को सामने करके वापस अपने सर पर रखकर, "क्या शब्द बोला? अभी आपने वो..." आध्नी: हक... किस हक से आई है ये? काशी: हक... यही-यही... इसी हक से आई है जिस पर आप इस घर में बैठी हुई हैं। क्यों, मॉम, आप बता रही हो या मैं बताऊँ कि आप किस हक से आई हो? काशी ने अपनी मॉम को देखते हुए कहा। वैदेही जी ने कुछ नहीं कहा; उन्हें काशी पर काफ़ी गुस्सा आ रहा था। तो वहीं, काशी को वैदेही जी का ना बोलना अच्छा नहीं लग रहा था। उसने गुस्से से अपने हाथों की मुट्ठी कस ली। काशी कुछ बोलती, उससे पहले ही उसकी नज़र सीढ़ियों पर गई जहाँ नील खड़ा हुआ था। काशी ने उसे देखा और नज़रें फेर लीं। उसने आध्नी की ओर देखकर कहा, "हाँ, तो मैं क्या बोल रही थी?" "हक की बात कर रही थी। तुम बताओगी मुझे कि तुम और तुम्हारी माँ किस हक से यहाँ आई हो?" काशी और वैदेही के साथ सबने यह आवाज सुनी तो सबने सीढ़ियों की ओर देखा जहाँ नील खड़ा हुआ था। काशी ने उन्हें देखते हुए कहा, काशी: क्या, मिस्टर रावत? लगता है उम्र के साथ-साथ भूलने की बीमारी होने जा रही है आपको। वैदेही ने जैसे ही काशी की बात सुनी, तो उन्होंने काशी का हाथ पकड़कर कहा, "चुप हो जा, काशी। वो तुमसे बड़े हैं, प्लीज़। हम चलते हैं यहाँ से। तुम चलो, बेटा।" काशी: शांत हो जाओ। बोल नहीं सकती ना, तो सुन लो, प्लीज़। नील: कुछ नहीं भूलता मैं... यह लाइन नील ने वैदेही की ओर देखकर कही थी। उसकी आँखों में एक अजीब ही भाव थे; वैदेही से उनकी नज़र हट ही नहीं रही थी। काशी: हाँ, तो मिस्टर रावत, मानते हैं आप कुछ भूलते नहीं, लेकिन आप यह भूल रहे हैं कि वैदेही आपकी वाइफ़ हैं। नील: हैं नहीं थीं। हमारा डाइवोर्स हो गया, यह शायद तुम भूल चुकी हो। काशी: ओह हाँ, डाइवोर्स... याद आया... तो इनका हक नहीं है, बट मेरा हक है इस घर पर, आप पर, क्योंकि मैं तो आपकी बेटी हूँ और इस घर की इकलौती वारिस। तो हुआ ना इस घर में, और आप पर मेरा हक... अब क्या करें? कानून के तहत ऐसा कोई नियम नहीं है ना जिससे कोई भी माता-पिता अपने बच्चों से डाइवोर्स ले सकें। इतना बोलकर काशी मुस्कुराई और सोफ़े पर से खड़ी होकर नील के पास आई और कहा, "अभी भी और कुछ समझाऊँ या समझ गए हैं आप?" नील: तुम मेरी बेटी नहीं हो, वैदेही की हो ना। तुम मेरे साथ कभी नहीं रही। काशी: अपने सर पर चपत मारते हुए, "हे भगवान, फिर से बताना होगा। मैं कोई छोटी बच्ची नहीं थी जिसे आपको दोनों की कस्टडी मिलती। इसलिए मेरा पूरा हक है आप पर और अपनी मॉम पर। याद है ना कोर्ट में क्या बोला था, कि मैं किसी के भी पास रह सकती हूँ। वो मेरा फ़ैसला होगा। मेरा फ़ैसला है मैं दोनों के पास रहूँ। इसलिए ज़्यादा पूछताछ ना करें और हमें हमारा रूम बता दीजिए।" नील ने काशी को देखा और मन में कहा, "ये बिलकुल तुम पर गई है, वेदू।" नील अपनी सोच से बाहर आया और आध्नी की ओर देखा तो आध्नी नील को गुस्से से घूर रही थी। सभी घर वाले आवाज सुनकर हॉल में आ गए थे। कुछ लोग वैदेही को देखकर खुश थे तो कुछ के चेहरों पर सिर्फ़ गुस्सा। आध्नी: ये लोग यहाँ कैसे रह सकते हैं, नील? दादी: जैसे तुम और तुम्हारा बेटा रह रहा है, वैसे ये और इसकी माँ भी रह लेंगी। आध्नी जी: ये घर है, दादी, धर्मशाला नहीं। दादी: ये मेरा घर है, तो मैं इसे कुछ भी बनाऊँ। खर्चे हम उठाते हैं तो तुम्हें क्या प्रॉब्लम है? मैं बड़ी हूँ इस घर की और आज भी मुझे पूरा हक है मेरे घर के फ़ैसले लेने का। नियति जी: माँ सही बोल रही है। (नील की माँ) To be continue... नेक्स्ट पार्ट में आप सभी किरदारों को जान जाएँगे इसलिए परेशान मत होना। रिया पाराशर

  • 5. काशी: एक संघर्ष - Chapter 5

    Words: 1008

    Estimated Reading Time: 7 min

    नील ने वैदेही को देखा और वहाँ से चला गया। काशी ने जब नील को जाता देखा, तो उसे आवाज देकर कहा, "मिस्टर रावत, थैंक यू।" इतना बोलकर काशी ने अपना बैग लिया और सब की ओर देखकर कहा, "कोई रूम बताएगा या मैं मिस्टर रावत के रूम में ही रखूँ अपना सामान?" इतना बोलकर काशी ने सबको देखा और अपना सामान उठाकर सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। नियति जी ने कहा, "मैं तुम्हें रूम दिखा देती हूँ।" इतना बोल नियति जी ने काशी को इशारा किया और उनके आगे-आगे सीढ़ियाँ चढ़कर वहाँ से ऊपर की ओर जाने लगी। नियति जी ने रूम को देखते हुए कहा, "ये रूम तुम्हारा है, वैदेही। नील का बगल वाला रूम है।" इतना बोल नियति जी ने वैदेही को देखा, जो चुपचाप रूम को देख रही थी। नियति जी ने वैदेही को देखा और आगे बढ़कर उसे गले लगाते हुए कहा, "मैंने तुम्हें बहुत मिस किया था। तुमने तो कभी मेरे बारे में पूछा भी नहीं ना, कि माँ कैसी है, ज़िंदा भी है या नहीं।" वैदेही ने नियति जी के गालों पर हाथ रखकर कहा, "आपको कुछ होने से पहले मुझे कुछ हो जाए, ऐसा मत बोलिए, मॉम।" इतना बोल वैदेही नियति जी से दूर हुई और उनके पैर छू लिए। नियति जी ने वैदेही को देखा और कहा, "तुम्हारे जाने के बाद इस घर में कभी कुछ अच्छा नहीं हुआ, बेटा। सब कुछ बिखर सा गया है। मेरा नील किसी से भी बात नहीं करता। तुम्हारे जाने के बाद वो बिलकुल बदल गया है, वैदेही।" वैदेही: "ये फैसला भी तो उनका ही था ना, माँ।" काशी, जो कमरे को घूम-घूम कर देख रही थी, ने वैदेही की बात सुनी और उसने चारों ओर देखा और बिना मुड़े ही कहा, "तो हम क्या करें इसमें? आप के बेटे हैं, आप समझाओ। और प्लीज मेरी मॉम से दूर रहो और परेशान मत कीजिए। और रही बात आपके बेटे की तो वो कोई बच्चे नहीं हैं।" वैदेही ने काशी को देखा और कहा, "काशी... तुमने अपने बोलने की तमीज को कहीं उतार के रख दिया क्या? सबको एक ही लाइन से आँकती हो। वो तुमसे बड़ी है, और दादी है तुम्हारी।" काशी: "क्या बात है, मॉम? यहाँ तो आप बोल रही हैं। नीचे क्यों नहीं बोला जब मिस्टर रावत और उनकी वो वाइफ आपसे हक की बात कर रहे थे।" वैदेही जी: "मैंने कितनी बार कहा है, 'डैड' बोल लिया करो। अभी तुमने बोला ना, तुम्हारा हक है उन पर, तो प्लीज 'डैड' तो बोल लिया करो।" काशी: "कभी नहीं... आंटी मुझे मेरा रूम बता देंगी आप।" इतना बोल काशी ने बैग को उठाया और रूम से बाहर निकल गई। वैदेही: "सॉरी, मॉम... काशी ऐसी ही है।" नियति जी: "इसका मतलब काशी नाम तुमने यूँ ही रखा था? ये लड़की नाम के जैसे बिलकुल नहीं है।" वैदेही: "मैंने नहीं रखा, नील ने ही रखा था। बिलकुल नाम जैसी नहीं है, मैं भी यही सोचती हूँ। पूरा दिन नाक पर गुस्सा लिए घूमती है। ये भी नहीं देखती, लड़का है, लड़की है, बड़ा है, छोटा है, क्या मैटर है, बस उलझ जाती है और लड़ाई-दंगे कर आती है। आज भी जब हम आ रहे थे, तो एक लड़के की कार से मुझे टक्कर लगती, लेकिन मैं बच गई। लेकिन फिर भी उसने उसे थप्पड़ लगा दिया और इतना सुनाया ना, क्या ही बताऊँ।" नियति: "ये तो बहुत टेढ़ी है।" वैदेही: "प्यारी भी बहुत है।" नियति जी: "तुम रेस्ट करो।" इतना बोल नियति जी वहाँ से चली गई। तो वहीं काशी अपना रूम देख रही थी कि तभी उसकी नज़र एक रूम पर गई जिसके दरवाज़े पर लिखा हुआ था, "No one is allowed in my room..." काशी ने उसे पढ़ा और कहा, "हैं ये कौन लिखता है यार? कुछ मस्त सा लिखा होता, जिसे पढ़कर किसी के भी फेस पर स्माइल आ जाए, ना कि उसका अच्छा-खासा मूड खराब हो जाए।" इतना बोल काशी के फेस पर एक खतरनाक स्माइल आ गई। उसने आस-पास देखा और अपने बैग से पेपर और पेन लेकर उस पर कुछ लिखा और वापस से चारों ओर देखा और पेपर को दरवाज़े पर उसी जगह लगा दिया। और वहाँ से साइड जैसे ही हुई कि नियति जी ने उनके कंधे पर हाथ रखा, तो काशी ने मुस्कुराते हुए कहा, "मुझे अभी भी रूम नहीं मिला, दादी।" नियति जी ने काशी का हाथ पकड़ा और सामने वाले रूम में लेकर आई और कहा, "ये आपका रूम है। आप रेस्ट कीजिए।" काशी: "ये सामने वाला रूम किसका है, वैसे?" नियति जी ने दरवाज़े से सामने वाले रूम की ओर देखा और काशी की ओर देखकर कहा, "उसे छोड़ो। बस याद रखना उस रूम में मत जाना, वरना बहुत बुरा होगा।" काशी: "ओके।" इतना बोल काशी ने अपना बैग खोल लिया और उसके से कपड़े लेकर जैसे ही जाने को हुई कि उससे पहले ही नियति जी ने कहा, नियति जी: "थैंक यू।" इतना बोल नियति जी ने काशी की ओर देखा, जो वैसे की वैसे खड़ी हुई थी। नियति जी वहाँ से चली गई। उनके जाते ही काशी भी वहाँ से चली गई। थोड़ी ही देर में काशी ने शावर लिया और चेंज करके अपने रूम में बनी छोटी सी बालकनी में खड़ी हो गई। शाम के समय पर चिलचिलाती धूप उसके फेस पर सीधे गिर रही थी। काशी ने पजामा और उसके ऊपर शॉर्ट टी-शर्ट पहना हुआ था। उसके कमर से नीचे तक आ रहे बाल खुले हुए थे। काशी ने बालकनी को देखा और कहा, "थोड़ी सी मेहनत कर ली जाए, काशी।" इतना बोल काशी ने चारों ओर देखा तो बालकनी एक ही थी पूरे घर में, मतलब यहाँ से मैं पूरी बालकनी घूम सकती हूँ। इतना बोल काशी ने सभी फूलों के गुलदस्तों को सही से रखना शुरू कर दिया। काशी रूम में आई और वो चेयर बाहर बालकनी में रख दी। कुछ ही देर में काशी ने सारा सामान सेट किया और हाथ को देखते हुए जैसे ही बाथरूम में आई कि बाथरूम के नल में पानी नहीं आ रहा था। "ये क्या सिस्टम है यार? पानी नहीं है..."

  • 6. काशी: एक संघर्ष - Chapter 6

    Words: 1012

    Estimated Reading Time: 7 min

    कुछ ही देर में काशी ने सारा सामान सेट किया और हाथ धोने बाथरूम में गई। बाथरूम के नल में पानी नहीं आ रहा था। "ये क्या सिस्टम है यार? पानी नहीं है! अभी तो आ रहा था…?" अब कहाँ गया? अब हाथ कहाँ साफ़ करूँ? इतना बोलकर काशी कमरे से बाहर निकल गई। उसने आस-पास देखा तो कोई नहीं था। काशी ने कमरे का गेट पीछे मुड़कर बंद किया और जैसे ही पीछे की ओर पलटी, किसी से टकरा गई। काशी के मिट्टी से सने दोनों हाथ उस लड़के की व्हाइट शर्ट पर लग गए। काशी खुद उसके सीने से लग गई थी। उस लड़के ने काशी को अपने सीने से लगते ही झटके से दूर किया और गुस्से में कहा, "देखकर चलो!" इतना बोलकर उस लड़के की नज़र जैसे ही अपनी शर्ट पर गई, तो गुस्से से उसके हाथों की मुट्ठियाँ बंद हो गईं। उसने काशी की ओर देखा तो उसकी आँखें बड़ी हो गईं, और उसके मुँह से एक ही शब्द निकला, "तुम…" काशी ने जैसे ही यह आवाज़ सुनी, उसने भी सामने देखा और वही बोली, "तुम… तुम मेरा पीछा करते हुए यहाँ आ गए? तुम्हें क्या लगा मैं तुम्हारी धमकियों से डरती हूँ? मुझे मारने आए हो तुम यहाँ? देखो…" काशी ने उंगली दिखाते हुए कहा… लड़का— "शिव नाम है मेरा। मैं किसी के पीछे नहीं आता।" इतना बोलकर शिव ने अपनी एक उंगली को काशी की उंगली में उलझाया और नीचे करते हुए कहा, "मुझसे पंगा मत लो, वरना बहुत महँगा पड़ेगा।" काशी— "काशी को सस्ता पंगा लेना अच्छा भी नहीं लगता, कुछ तो यूनिक और महँगा हो…" इतना बोलकर काशी ने शिव को घूरा और वापस कहा, "वैसे तुम मेरे घर में क्या कर रहे हो?" शिव— "तुम्हारा घर…? सपने में होगा। यह मेरा घर है।" इतना बोलकर शिव ने काशी को देखा जो उसे मुँह बनाकर घूर रही थी। काशी— "सामने मत आना दोबारा… वरना यह बची हुई मिट्टी सीधे तुम्हारे मुँह पर लगेगी।" इतना बोलकर काशी वहाँ से जाने लगी। शिव ने काशी को जाते देखा और कहा, "सुनो…" इतना बोलकर शिव ने अपनी शर्ट को देखते हुए कहा, "वैसे सुनो… इसे लेकर जाओ और मुझे धोकर प्रेस करके देना। इसी काम के लिए आई हो ना यहाँ तो मेरे काम से ही अपने काम का मुहूर्त कर लो।" काशी जो वहाँ से जा रही थी, उसने शिव की बात सुनी तो उसके कदम रुक गए। वह पीछे पलटी और मुस्कुराते हुए शिव के हाथ से उसकी शर्ट ली और अपने हाथ में लगी मिट्टी से उसकी शर्ट को और गन्दा करने लगी। शिव ने जैसे ही काशी को यह हरकत करते देखा, उसने काशी की कमर पर हाथ रखा और अपनी ओर खींचते हुए उसकी ओर देखते हुए कहा, "जितना गन्दा करोगी, तुम्हें उतना महँगा पड़ेगा।" काशी को शिव का यह अचानक स्पर्श बिलकुल अच्छा नहीं लगा था। उसने गुस्से से शिव को खुद से धक्का देकर दूर किया और उसे घूरते हुए जैसे ही उसे थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया, उससे पहले ही शिव ने काशी का हाथ पकड़ा और कहा, "यह गलती मत दोहराओ, वरना तुम्हें सच में बहुत महँगा पड़ेगा। पहले मैं पब्लिक प्लेस पर था, इसलिए अब मैं अपने घर में हूँ… कुछ भी कर सकता हूँ…" इतना बोलकर शिव ने काशी को जोर से धक्का देकर दूर किया और वहाँ से अपने कमरे में चला गया। काशी ने खुद को ऐसे अचानक धक्के से गिरने से बचाया और उस ओर देखा जहाँ अभी शिव गया था। उसने काफ़ी जोर से दरवाज़ा बंद किया था। काशी ने शिव के कमरे की ओर देखा और उसकी शर्ट की ओर देखकर तिरछा मुस्कुराई और उसे हाथों से मसलकर उसे जमीन पर पटका और उसे पैर से कुचलकर एक हाथ से उठाया और मुँह बनाते हुए शिव की टी-शर्ट को उसी के दरवाज़े के टाँके पर टाँग दी और चारों ओर देखकर मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गई। तो वहीं वैदेही जी अपने बैग का सामान अलमारी में रख रही थीं। काशी ने दरवाज़े से उन्हें देखा और कमरे में आकर सीधे बाथरूम में चली गई। काशी ने हाथ साफ़ किए और बाहर आई तो उसकी नज़र वैदेही जी पर गई जिनका ध्यान कपड़ों पर बिलकुल नहीं था। काशी ने वैदेही जी को देखा और आगे बढ़कर वैदेही जी के हाथों से कपड़े लिए और उनकी फोल्डिंग करने लगी। वैदेही जी ने काशी को देखा और धीरे से कहा, "गुस्सा हो?" वैदेही जी इतना बोलकर एकटक काशी को देख रही थीं। काशी ने वैदेही जी को देखा और अपने आस-पास नज़रें घुमाकर देखा और एक नज़र वापस वैदेही जी को देखकर कपड़ों की तह करने लगी। वैदेही जी— "तुम्हारे अलावा कोई है क्या यहाँ?" काशी— "हाँ… मैं गुस्सा क्यों हूँ? इतना बोलकर काशी ने कपड़े अलमारी में रखे और कहा, "आप ना सिर्फ़ मेरे आगे बोल सकती हैं, एक बार खुद के हक़ के लिए लड़ लेना।" वैदेही जी— "जिस दिन तुम्हें प्यार होगा ना काशु, उस दिन पता लगेगा।" काशी ने वैदेही जी की बात सुनी तो अलमारी बंद की और दरवाज़े तक जाते हुए कहा, "प्यार…? कभी नहीं होगा। आप को देखकर तो बिलकुल नहीं। अगर प्यार आप दोनों जैसा होता है ना तो यह काशी कभी प्यार नहीं करेगी। तो आप यह भूल जाओ मॉम की मुझे कभी प्यार होगा।" इतना बोलकर काशी दरवाज़े पर आई तो उसकी नज़र दरवाज़े पर खड़े नील पर गई तो काशी ने नज़रें फेरीं और वहाँ से चली गई। वह थोड़ा आगे ही आई थी कि उसकी आँखों में नमी आ गई। काशी ने अपने आँसू साफ़ किए और अपने कमरे की ओर जैसे ही आई कि उसकी नज़र शिव के कमरे पर गई जो अभी भी बंद था। काशी ने वापस अपने पैर मोड़ लिए और सीढ़ियों से नीचे आ गई। काशी ने चारों ओर देखा तो उसे हॉल में काफ़ी लोग थे। To be continue… पढ़कर क्यों निकलते हो यार? कमेंट देकर बताओ। अच्छी नहीं है स्टोरी तो मैं लिखना बंद कर दूँगी।🥺 रिया पाराशर

  • 7. काशी: एक संघर्ष - Chapter 7

    Words: 1195

    Estimated Reading Time: 8 min

    काशी ने चारों ओर देखा। हॉल में काफी लोग थे। काशी ने सबको देखा और जाने को हुई, कि उससे पहले ही आध्नी की आवाज उसके कानों में पड़ी। आध्नी जी— इतनी रात को कहाँ जा रही हो, लड़की? काशी के कदम आध्नी की आवाज सुनकर रुक गए। काशी पीछे की ओर पलटी और मुस्कुराते हुए अपने हाथ बाँधकर खड़ी हो गई। और कहा— आप कौन हैं? मेरी माँ हैं या मेरे पापा, या मेरी बहन? कुछ नहीं हैं आप मेरी… इसलिए मुझसे आज के बाद दोबारा ये सवाल मत करना। मेरी लाइफ मैं अपने हिसाब से जीती हूँ, मुझे बिलकुल पसंद नहीं है कि कोई मुझे आने-जाने के लिए टोके। आध्नी जी— कैंची से भी तेज जुबान है तुम्हारी। तुमसे बड़ी हूँ और तुम्हारी इस माँ ने सिखाया नहीं क्या कि बड़ों से कैसे बात करते हैं? आध्नी की आवाज सुनकर सब हॉल में आ गए थे। ऊपर से नील, वैदेही और शिव भी अपने कमरे से बाहर आ गए थे। वैदेही ने काशी को आध्नी से उलझते देखा तो वह परेशान हो गई। उसने नील की ओर देखकर कहा— प्लीज आध्नी को रोक लीजिए, अगर काशी का दिमाग खराब हुआ ना! शिव पीछे खड़ा वैदेही जी की बातें सुन रहा था। उसने साइड होकर रेलिंग पर हाथ रखा और नीचे की ओर देखने लगा। वहीं नील ने वैदेही को देखा और वहाँ से नीचे आ गया। काशी— कैंची… कैंची से तो कपड़े काटे जाते हैं। और रही बात आप के बड़े होने की, तो जो इज्जत आपको मिल रही है ना, वो उसी वजह से मिल रही है। लेकिन जिस हक़ से आप यहाँ हैं ना, उस हक़ से तो मैं आपका नाम भी अपनी जुबान से ना लूँ। उंगली दिखाकर— आइंदा मुझसे मत उलझना। और रही बात मेरी मॉम की, तो उनका नाम भी मत लेना, वरना बाबा की कसम ऐसा हाल करूँगी ना कि मुझसे बोलने लायक नहीं रहोगी आप। इतना बोल काशी जाने लगी कि तभी आध्नी ने आगे बढ़कर चारों ओर देखा और काशी का हाथ पकड़ लिया। आध्नी जी— मैं तुम्हारा बुरा क्यों सोचूँगी, बेटा? मैं माँ जैसी हूँ तुम्हारी। काशी ने आध्नी जी से जोर से अपना हाथ छुड़ाया और उंगली दिखाते हुए कहा— माँ तो नहीं हूँ ना। देखिए, मैं आपसे बात करने के मूड में बिलकुल नहीं हूँ। इतना बोलते ही काशी जाने लगी कि तभी नील की आवाज सबके कानों में आई। नील— काशी… तुम्हें बिलकुल मैनर्स नहीं हैं कि अपनों से, बड़ों से कैसे बात करते हैं। बड़ी है ना वो तुमसे? नील ने आध्नी और काशी के पास आकर कहा— माँ जैसी है वो तुम्हारी। काशी ने नील को घूरा और चिल्लाते हुए कहा— माँ नहीं है वो मेरी, समझे ना आप? मिस्टर रावत। और ना ही आप मेरे डैड हैं जो मुझे फ़ालतू का ज्ञान देने आ गए। मेरे आने-जाने पर रोक-टोक लगाने का हक़ किसी को नहीं है। शिव लगातार काशी को देख रहा था। नील ने काशी को देखा, तो काशी ने चिल्लाते हुए कहा— ये मेरी माँ नहीं है, मिस्टर रावत! ये आपकी सेकंड वाइफ है। पहली वाइफ से आपका मन भर गया था! काशी ने इतना ही कहा था कि तभी उसके गाल पर एक थप्पड़ वैदेही ने मार दिया। सब ने वैदेही को देखा, तो वो गुस्से में काशी को घूर रही थी। वैदेही— तुम हमेशा मुझ पर उंगलियाँ ही उठाती रहोगी क्या? यही सिखाया है मैंने तुम्हें? कोई अपने पापा से ऐसे बात करता है? काशी ने वैदेही को देखा और एक नज़र सबको देखते हुए घर से बाहर चली गई। नील— तुम पागल हो क्या? ऐसे कौन मारता है? बोल के समझा सकती थी ना तुम! वैदेही जी ने सबको देखा और ऊपर अपने कमरे में चली गई। शिव के चेहरे पर स्माइल आ गई। उसने अपने सर पर दो उंगलियाँ मसलते हुए अपने कमरे में चला गया। उसका ध्यान अभी भी अपने दरवाज़े पर लगी टी-शर्ट पर नहीं गया था। सब लोग वैदेही जी के ऐसे बर्ताव से परेशान हो गए थे। नियति जी— ये ऐसे कौन बोलता है? बच्ची है वो, अभी समझा देते! कोमल जी (नील की चाची)— सही बोला दीदी! ये वैदेही को बच्ची पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था। नील ने सबको देखा और वहाँ से वैदेही के कमरे में चला गया। वैदेही अपने कमरे में आई और बेड पर बैठ गई। उसने अपने मुँह पर हाथ रखा और रोने लगी। सॉरी, मैं तुझ पर हाथ नहीं उठाना चाहती थी, काशी, पर तुम मुझे मजबूर कर देती हो। इतना बोल फिर से वैदेही रोने लगी। तभी नील ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो वैदेही ने नील को देखा और बेड से खड़ी हो गई। नील ने वैदेही को देखते हुए कहा— इतनी बड़ी बच्ची पर हाथ कौन उठाता है, वेदु? वैदेही— मैंने गुस्से में बस हाथ उठा दिया, वरना मैंने आज तक कभी हाथ नहीं उठाया। मैंने कितनी बड़ी गलती कर दी ना, पता है नील? वो मुझसे नहीं बोलती ना तो मेरी जान निकलने लगती है। नील ने वैदेही को कंधे से पकड़ा और अपनी ओर करके कहा— कोई बात नहीं, थोड़ी देर में आ जाएगी, तो तुम उसे सॉरी बोलना, वो मान जाएगी। वैदेही जी— आपने उसका गुस्सा आज तक नहीं देखा, मैंने देखा है। बड़ा ही खतरनाक है। हमेशा खुद को चोट पहुँचाती है, और वो गुस्सा और है, पता नहीं कहाँ गई होगी। नील ने वैदेही को देखा और उसके हाथ को पकड़कर अपने करीब करते हुए कहा— सॉरी। वैदेही ने नील को देखा और उससे दूर होते हुए कहा— गलती आपने की है। आपने मुझ पर भरोसा भी नहीं किया। इतना बोल वैदेही ने नील से अपनी नज़रें फेर लीं। नील ने वैदेही को देखा और उसके हाथ को पकड़कर कहा— और अगर मैं कहूँ कि मैं मजबूरी में था तो? नील ने वैदेही को देखते हुए कहा। वैदेही ने नील को देखा और कहा— मैं नहीं मानती। तुमने खुद मुझे इस घर से निकाला था। तुम्हें लगता है कि सार्थक मेरी वजह से तुमसे अलग हुआ है? उसका दर्द सिर्फ़ तुम्हें है। वो दिन मैं आज भी याद करती हूँ ना तो मेरी रूह काँप जाती है। कौन सी माँ होती है जो अपने बच्चे को खुद से दूर करेगी? नील— पर मैंने… नील ने इतना ही कहा था कि, तभी वैदेही ने कहा। वैदेही— हमारे बीच अब कोई रिश्ता नहीं है, सो प्लीज आप जा सकते हैं। नील— सच में क्या अब हमारा कोई रिश्ता नहीं है…? वैदेही— है ना नील… बहुत बड़ा रिश्ता है, कि आप मेरी बेटी के पिता हैं, वरना मैं यहाँ कभी नहीं आती। इतना बोल वैदेही ने नील से नज़रें फेर लीं। नील ने वैदेही को देखा और वहाँ से चला गया। वहीं सब लोग हॉल में बैठे हुए थे। तभी नील भी वहीं आ गया। उसने सबको एक नज़र देखा और वहीं एक साइड सोफ़े पर बैठ गया और अपनी आँखें बंद करके सोफ़े से टेक लगा लिया। To be continue… कमेंट ज़रूर करें, स्टोरी कैसी चल रही है। रिया पराशर

  • 8. काशी: एक संघर्ष - Chapter 8

    Words: 1011

    Estimated Reading Time: 7 min

    तो वही सब लोग हॉल में बैठे हुए थे। तभी नील भी वहाँ आ गया। उसने सबको एक नज़र देखा और वहीं एक साइड सोफ़े पर बैठ गया और अपनी आँखें बंद करके सोफ़े से टेक लगा लिया। पहले आप सब इस फैमिली से मिल लीजिए, वरना उलझ जाओगे। (श्याम देवी रावत — दादी आलोक जी रावत — नील के पिता नियति जी — नील की माँ कोमल जी — नील की चाची सर्लोक जी — नील के चाचा आध्नी जी — नील की सेकंड वाइफ… (इनके बारे में स्टोरी से ही पता लगेगा) नील रावत — स्टोरी के हीरो वैदेही जी — नायिका, पहली पत्नी काशी रावत — नील की बेटी (नायिका है ये भी) रुद्रांश राणा — ये हीरो है स्टोरी के (सब इनके सरनेम से कंफ़्यूज़ न हो) अनमोल — कोमल जी का बेटा सोरभी — अनमोल की वाइफ शुभ — अनमोल का बेटा सारिका — कोमल जी की बेटी आनंद — सारिका का हसबैंड खुशी — इनकी एक बेटी सार्थक — ये कौन है…? इसके बारे में कुछ तो आप जान गए और आगे जान जाएँगे) अब आते हैं स्टोरी पर… शाम से रात हो गई थी। सब अपने-अपने कामों में लगे हुए थे। नील सोफ़े पर बैठकर कोई ऑफ़िस का काम कर रहा था। तो वहीं रात के दस बज चुके थे। नियति जी ने सबको देखा और कहा, "चलिए सब लोग डिनर कर लीजिए।" तो वहीं वैदेही अपने फ़ोन को कान के पास लगाकर बार-बार काशी को फ़ोन कर रही थी, लेकिन काशी का फ़ोन ऑफ आ रहा था। वैदेही के चेहरे पर परेशानी साफ़ दिखाई दे रही थी। उसने जल्दी-जल्दी में वापस काशी को फ़ोन लगाया और सीढ़ियों की ओर बढ़ी, तभी वह सीधे बाहर आ रहे शिव से टकरा गई। शिव: सॉरी… आंटी… वैदेही जी ने शिव की ओर देखकर कहा, "कोई नहीं।" और अपना सिर हिलाया और घबराते हुए बाहर से नीचे चली गई। वैदेही जी को इतना घबराया हुआ देखकर शिव को भी अजीब लगा। उसने अपने कंधे उचकाए और नीचे की ओर चला गया। वैदेही जी को इतना परेशान देख सब लोग हॉल में आ गए थे। नियति जी ने वैदेही को देखते हुए कहा, "क्या हुआ? तुम इतना परेशान क्यों हो रही हो?" वैदेही जी: काशी… काशी अभी तक नहीं आई। दस बज गए हैं। शिव, जो कि कहीं जा रहा था, उसने वैदेही जी की आवाज सुनकर अपने कदम रोक लिए और उनकी बात सुनकर गर्दन को ना में हिलाते हुए बाहर से चला गया। नील: मैं… नील आगे कुछ बोलता, उससे पहले आध्नी ने नील को देखते हुए कहा, "कुछ देर देख लेते हैं। शायद आ जाए। अपने लवर से मिलने गई हो। वैसे भी आजकल के बच्चे…" वैदेही जी ने आध्नी को देखा और कहा, "लिमिट्स में बात करो। तुम जानती भी हो वो कहाँ गई है। अपनी मर्ज़ी से मेरी बेटी के बारे में इतना कुछ मत बोलो, समझी ना… वरना बिलकुल अच्छा नहीं होगा।" इतना बोल वैदेही ने आध्नी को घूरा और सोफ़े पर आकर बैठ गई। तो वहीं काशी एक गार्डन में चेयर पर बैठी हुई कुछ सोच रही थी। रह-रह कर उसके दिमाग में वैदेही जी का अपने ऊपर हाथ उठाना याद आ रहा था। काशी ने ऊपर आसमान में देखा। सच में रात काफ़ी हो गई थी। हल्की सर्दी का समय था, इसलिए ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। काशी ने खुद को देखा जिसने शॉर्ट टॉप और पजामा ही पहना हुआ था। उसने अपने पजामे की पॉकेट से फ़ोन निकाला और देखा जो कि बंद हो चुका था। काशी ने उसे देख फ़ोन को अपने सर पर मारा और खुद से ही कहा, "वैदेही तो परेशान हो गई होगी…" इतना बोल काशी तेज़-तेज़ कदमों से गार्डन से बाहर निकल रही थी कि तभी सामने से आ रही गाड़ी से टकरा गई। काशी का ध्यान बिलकुल भी सामने नहीं था। कार से टक्कर लगते ही काशी नीचे ज़मीन पर गिर गई। कार ड्राइव कर रहे शिव ने जब किसी लड़की को देखा तो वह तुरंत गाड़ी से बाहर आया। उसने काशी की ओर देखे बिना ही कहा, "हेलो मिस, आप ठीक हैं ना?" काशी, जो कि शिव की आवाज को पहचान गई थी, उसने अपने बालों को चेहरे से हटाया और अपनी गर्दन ऊपर करके देखा। तो शिव भी उसे यूँ देखकर थोड़ा परेशान हो गया। शिव तुरंत घुटनों पर बैठा और हाथ बढ़ाकर जैसे ही काशी को टच करने को हुआ कि उसे कुछ देर पहले हुई अपनी और काशी की बातें याद आ गईं। शिव तुरंत उठ गया और गाड़ी से टिक कर खड़ा हो गया। काशी, जो कि अपना हाथ शिव के हाथ में रखने वाली थी, लेकिन जब उसने शिव को दूर होता देखा तो वह भी ज़मीन पर हाथ रखकर खड़ी हो गई… और शिव के सामने आकर कहा, काशी: लगता है मेरी बातों का असर दिमाग पर नहीं होता… तभी तो जब देखो टकराए जा रहे हो। शिव: देखो… (उंगली दिखाते हुए…) काशी ने शिव की उंगली में अपनी उंगली फँसाई और कहा, "घर में नहीं हूँ… पब्लिक प्लेस पर हूँ!" इतना बोल काशी ने अपनी गर्दन ना में हिलाकर शिव को मना किया और कहा, "पंगा मत लो… मेरा मूड खराब है। मैं भूल जाऊँगी कि तुम मेरे घर में रहते हो…" इतना बोल काशी जाने लगी कि तभी शिव की नज़र काशी के सर से निकल रहे खून पर गई। शिव ने जाती हुई काशी को देखा और उसकी कलाई पकड़कर अपनी ओर खींच लिया। काशी को ऐसे अचानक झटके से अपनी ओर खींचने से काशी का एक हाथ रुद्रांश के सीने पर रखा हुआ था। दोनों सब चीज़ों से बेखबर होकर एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे। तभी पास से जाती हुई गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ से दोनों का ध्यान टूटा तो काशी ने शिव को घूरते हुए कहा, "क्या बदतमीज़ी है? मेरा हाथ क्यों पकड़ा?" शिव ने काशी की ओर देखकर हल्का सा अपना हाथ ऊँचा किया और कहा, "तुम्हारे सर पर चोट… खून…" काशी: खून ही आ रहा है ना, मरी नहीं हूँ! continue

  • 9. काशी: एक संघर्ष - Chapter 9

    Words: 1007

    Estimated Reading Time: 7 min

    शिव ने काशी की ओर देखकर हल्का सा अपना हाथ ऊँचा किया और कहा, "तुम्हारे सर पर चोट… खून…!" काशी— "खून ही तो आ रहा है, मरी नहीं हूँ…!" काशी का यूँ बोलना शिव को गुस्सा दिला रहा था। उसने अपना मुँह काशी के ये बोलते ही फेर लिया और काशी का हाथ छोड़ दिया। काशी ने शिव को देखा और वहाँ से जाने लगी। काशी कुछ कदम ही चली थी कि शिव की नज़र साइड में बैठे कुछ लड़कों पर गई, तो उसके हाथों की मुट्ठी कस गई, क्योंकि वे लोग लगातार काशी को घूर रहे थे। काशी के टॉप से उसकी कमर साफ़ दिखाई दे रही थी। शिव ने उन्हें घूरा और अपने कदम काशी की ओर बढ़ा लिए। काशी ने जब अपने पीछे किसी को आता देखा, तो उसने पीछे मुड़कर देखा। शिव था। काशी ने जैसे ही शिव को देखा, तो उसके पैर वहीं रुक गए। काशी— "पीछा कर रहे हो मेरा…?" शिव— "इतने बुरे दिन नहीं आए…!" काशी— "जल्द आ जाएँगे… पीछे मत आओ मेरे, समझे ना…?" काशी ने उँगली दिखाते हुए कहा। शिव— "तुम्हारी मॉम ने लेने भेजा है…!" काशी— "बिलकुल नहीं… इससे अच्छा तुमने कहा होता ना, 'मेरे साथ चलो,' तो मैं चल लेती… इतना बोल काशी फिर से पैदल चलने लगी। घर वैसे भी ज़्यादा दूर नहीं है।" शिव ने काशी को घूरा और वहाँ से अपनी गाड़ी में जाकर बैठ गया। और गाड़ी स्टार्ट करके काशी के पीछे चलने लगा। काशी ने अपनी उँगलियों को फँसाया और खुद से ही कहा, "कितना कमीना इंसान है! एक लड़की पैदल चल रही है, और ये इंसान गाड़ी में बैठकर मज़े ले रहा है!" ऊपर से ये सर्दी… इतना बोल काशी चलने लगी। थोड़ी दूर चलते हुए उसने धीरे से बुदबुदाया, "आते समय तो गुस्से में थी, इसलिए रास्ते का मालूम ही नहीं पड़ा, लेकिन अब ये इतना लंबा क्यों निकल रहा है…?" कितना लंबा है ये रास्ता, किससे पूछूँ…? इतना बोल काशी ने आस-पास देखा, तो उसे ऑटो नज़र आया। ऑटो को देख काशी के फेस पर स्माइल आ गई। वह ऑटो वाले के पास गई, और जैसे ही बैठने को हुई, कि उसे कुछ याद आया। तो वहीं शिव काशी की हरकतों से परेशान हो गया था। कहाँ फँस गया! और ये ऑटो में जा सकती है, लेकिन मेरे साथ जाने से इसकी सेल्फ रेस्पेक्ट खराब हो जाएगी। इतना बोल शिव ने काशी को ऑटो से वापस बाहर आते देखा, तो उसके फेस पर स्माइल आ गई। मुझे बुरा लग रहा है, मैं गाड़ी में जा रहा हूँ और ये पैदल अकेले रात को… लेकिन मेरी मजबूरी है, क्योंकि मेरे साथ जाएगी नहीं और मुझे अपने साथ आने नहीं देगी। काशी ने आस-पास देखा और गुस्से से जाकर कार के आगे खड़ी हो गई। इस बार भी टक्कर होते-होते बच गई थी, क्योंकि शिव ने कार को एक ब्रेक के साथ रोक दिया था। काशी ने उसे घूरा और वहाँ से साइड का गेट खोलकर बैठ गई। काशी के बैठते ही शिव उसे घूरने लगा, तो काशी ने सामने देखते हुए कहा, काशी— "मुझे बाद में घूरना, प्लीज़ घर चलो…!" शिव— "मैं ड्राइवर नहीं हूँ जो तुम्हारे ऑर्डर फॉलो करूँ…!" काशी— "भाई बोलूँ चलेगा…?" काशी के मुँह से 'भाई' सुनकर शिव ने उसे घूरा, तो काशी ने सामने देखते हुए कहा, "नहीं ना, तो प्लीज़ चलाओ…!" शिव ने गुस्से में कार को स्टार्ट किया, तो काशी ने उसे देखते हुए कहा, "ओह हीरो… ज़्यादा हीरो मत बनो… घर के लिए बोला है… हॉस्पिटल नहीं जाना मुझे, समझे ना…!" शिव— "तमीज़ से बात करो… तुमसे तो बड़ा हूँ…!" काशी जो कि सामने देख रही थी, वह अचानक जोर-जोर से हँसने लगी। उसे यूँ हँसता हुआ देख शिव ने उसे घूरा, तो काशी ने कहा, "तमीज़ का नंबर दो… और दूसरा… तुम अंकल हो क्या… जो बड़ा बता रहे हो…!" शिव— "शटअप… बोलना मत अब एक और शब्द…!" काशी— "प्लीज़ थोड़ा जल्दी चलो, वेदी इंतज़ार कर रही होगी…!" वेदी नाम सुनते ही शिव ने कार के ब्रेक लगाए और काशी की ओर घूरने लगा। काशी ने उसे देखा और सामने की ओर देखते हुए चुप बैठ गई। शिव हल्का सा नीचे झुका और डैशबोर्ड से टेप निकालकर काशी के मुँह पर लगा दिया। शिव ने जैसे ही टेप लगाई, तो काशी ने अपने हाथ से उसे हटाने की कोशिश ही की थी कि शिव ने कहा, "कोशिश भी मत करना खोलने की। पाँच मिनट का रास्ता है, प्लीज़ चुप रहो… और आगे से कभी मेरे सामने मत आना, मुझे तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखनी…!" काशी (मन में)— "मैं कौन सी मर रही हूँ तुम्हारी राक्षस जैसी शक्ल देखने को…!" थोड़ी ही देर में दोनों घर आ गए थे। काशी ने तुरंत अपने मुँह से टेप हटाई और कार से उतरकर अंदर चली गई। रुद्रांश ने उसे जाता देखा और पाँच मिनट बाद खुद भी अंदर चला गया। काशी जैसे ही घर के अंदर आई कि सबकी नज़रें उस पर ही टिक गईं। काशी ने सब को देखा, और जैसे ही जाने को हुई कि उसकी नज़र वैदेही जी पर गई, जो कि काफ़ी परेशान लग रही थीं। वैदेही जी ने काशी को देखा और भागकर उनके पास आईं और उसे सीने से लगाकर कहा, "कहाँ चली गई थी? कोई ऐसे बिना बताए जाता है क्या…!" पता है कितनी टेंशन हो गई थी, फ़ोन भी गुस्से में बंद कर लिया…!" वैदेही जी ने काशी के चेहरे को छूते हुए बोला। शिव जो कि अंदर आ गया था, वह भी वहीं रुककर खड़ा हो गया और सब की बातें सुनने लगा। काशी— "कहीं भी जाऊँ… बच्ची नहीं हूँ मैं… जो फ़ोन बंद करूँगी। मेरा फ़ोन खुद से ऑफ़ हो गया था…!" "चार्जर लगाना भी होता है उसे… वरना तो खुद से बंद होगा ही…" शिव ने धीरे से काशी के पास खड़े हुए ही कहा। शिव की आवाज़ काशी के अलावा किसी ने नहीं सुनी थी। वैदेही— "तुम ठीक हो ना? ये चोट कैसे लगी…?" काशी ने वैदेही जी के माथे पर हाथ लगाकर पूछा। To be continue… प्लीज़ कॉमेंट ज़रूर करें रिया पराशर

  • 10. काशी: एक संघर्ष - Chapter 10

    Words: 1249

    Estimated Reading Time: 8 min

    काशी— कहीं भी जाऊँ… बच्ची नहीं हूँ मैं… जो फोन बंद करूँगी। मेरा फोन खुद से ऑफ हो गया था। "चार्जर लगाना भी होता है उसे… वरना तो खुद से बंद होगा ही…" शिव ने धीरे से काशी के पास खड़े हुए कहा। शिव की आवाज काशी के अलावा किसी ने नहीं सुनी थी। वैदेही— तुम ठीक हो ना? यह चोट कैसे लगी? काशी जी ने वैदेही जी के माथे पर हाथ लगाकर पूछा। काशी ने शिव की तरफ अपनी गर्दन घुमाई और वापस वैदेही जी को देखकर कहा, "रोड पर कोई राक्षस बिना देखे गाड़ी चला रहा था!" "और आप मेरी नहीं, इन लोगों की फ़िक्र कीजिए। मेरी मैं खुद हूँ करने के लिए।" वैदेही— इतना गुस्सा मॉम से? तुम्हें गुस्सा क्यों और किस बात पर आया है? काशी— आपने ही दिलाया था, शुक्र मनाओ कंट्रोल करके आई हूँ। और किस बात पर आया है यह मुझे आपको बताने की कोई ज़रूरत नहीं है। नील— कैसे बात कर रही हो तुम अपनी माँ से? नील ने वैदेही को देखकर कहा। काशी— यह मेरे और वैदेही के बीच का मैटर है… आई होप… इतना सा होप तो कर सकती हूँ ना कि कोई भी हमारे मैटर में ना बोले। इतना बोल काशी जाने लगी कि तभी आध्नी जी की आवाज वापस उसके कानों में आई। उनकी आवाज सुनकर काशी के कदम वहीं रुक गए। शिव ने देखा तो वह वहाँ से ऊपर की ओर चला गया। आध्नी जी— कोई अपनी माँ से यूँ बात करता है क्या? इस लड़की में तो किसी की शर्म लिहाज़ नहीं है, बड़े-छोटे सब को एक लाइन में रखती है। काशी ने अपने हाथ बाँधे और आध्नी को घूरते हुए कहा, "लगता है, आपको मुझसे उलझकर अपनी बेइज़्ज़ती करवाने का बड़ा शौक है!" "तभी तो बिना बात आप हमारे मैटर में बोल रही हैं।" आध्नी के पीछे खड़ी नियति जी और कोमल जी और सोर्भी को हँसी आ रही थी, उन्होंने अपने मुँह पर हाथ रख लिया। आध्नी— देखो! काशी की ओर उंगली दिखाते हुए। काशी— अपनी उंगली आध्नी की उंगली में फँसाकर नीचे करते हुए—"क्या दिखाना है?" "थोड़ा शुक्र मनाओ कि आप मुझसे उम्र में बड़ी हैं वरना मैं यह भूल जाती कि मेरे सामने कौन खड़ा है!" "आपको कोई काम नहीं होता क्या, जो आते-जाते मुझसे उलझती रहती हैं, इंसान ही हैं आप या कोई धागा… सॉरी-सॉरी, धागा तो नहीं हो सकतीं आप… क्योंकि धागा जोड़ने का काम करता है, तोड़ने का नहीं… आप तो दूसरों के घर तोड़ती हैं ना, मिसेज़ आध्नी… सॉरी-सॉरी… मिसेज़ आध्नी नील रावत, यही नाम है ना आपका पूरा… जिस पर भी आपने ज़बरदस्ती का कब्ज़ा किया हुआ है!" सब लोग काशी को आध्नी से उलझता हुआ देख रहे थे, सब के चेहरे पर स्माइल थी। नियति जी तो आध्नी का मुँह देख रही थीं। आध्नी— जो कि कब से काशी की बातें सुन रही थीं, उन्होंने काशी को घूरते हुए कहा—"मैं तुम्हारी देखी जाए तो दूसरी माँ हूँ… तो तुम मुझसे इज़्ज़त से बात करो!" काशी— "दूसरी है ना… माँ तो नहीं ना… इसलिए उलझने को सोचो भी मत!" "और हाँ, आप फ़्री होंगी, मैं नहीं हूँ, इसलिए उलझने की सोचना भी मत, और अगर आप मुझसे उलझीं तो बाबा की कसम पछताएँगी… मुझे डर नहीं लगता, सब के सामने बोला है।" इतना बोल काशी वहाँ से ऊपर चली गई थी। काशी जैसे ही सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर आई तो उसकी नज़र अपने रूम के दरवाज़े पर खड़े शिव पर गई। तो काशी भी अपने रूम के दरवाज़े पर आकर रुक गई। उसने शिव को घूरा और साइड से जाने को हुई कि शिव ने दीवार पर हाथ रख लिया। शिव की ऐसी हरकत देख काशी को बहुत गुस्सा आया। उसने अपने हाथ बाँधे और शिव की ओर देखकर कहा, "शायद अभी कुछ देर पहले ही किसी ने मुझे यह बोला था…" "आगे से कभी मेरे सामने मत आना, मुझे तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखनी!" "अब क्या… मेरी शक्ल इतनी अच्छी है जो तुम मुझे देखने के लिए हर वक़्त मेरे आस-पास होते हो?" शिव ने काशी को देखा और उसकी बाजू को पकड़कर पलट दिया और उसकी पीठ अपने सीने से लगाकर, थोड़ा झुककर काशी के कंधे पर अपनी ठोड़ी रखी और एक हाथ से काशी के सामने अपनी उंगली करके अपने रूम का दरवाज़ा दिखाते हुए कहा, "यह तुमने किया ना!" "हाउ डेयर यू… हिम्मत भी कैसे हुई तुम्हारी यह लिखने की!" काशी ने अपने हाथ को मोड़कर अपनी कोहनी से शिव के पेट में जोर से दे मारा। काशी ने काफ़ी तेज़ शिव को मारा था, शिव के हाथ काशी की बाजू से ढीले हो गए थे, उसने अपने पेट पर हाथ रख लिया। शिव— क्या है यह? काशी— तुमसे बोल क्या लिया, सर ही चढ़ गए। आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कोई काशी को हाथ भी लगा दे… मैं हाथ-पैर अच्छे से तोड़ती हूँ! शिव ने काशी का हाथ गुस्से से पकड़ा और उसे खींचते हुए अपने रूम में लाया और दरवाज़े पर लिखे शब्द की ओर देखकर कहा, "मैं कुछ नहीं करता, आगे से तुम करती हो। आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कोई शिव राणा पर हाथ उठा दे, और मेरे लिखे हुए वर्ड्स को हटाकर यह क्या लिखा है तुमने?" काशी— वह मुझे पसंद नहीं था! शिव ने काशी के मुँह से यह सुना तो वह उसे हैरानी से देखने लगा, उसने काशी को घूरते हुए कहा, "व्हाट? तुम्हें पसंद नहीं था… पागल हो क्या? तुम्हारी पसंद पर कुछ नहीं करता… मेरी लाइफ़ है, मेरी मर्ज़ी चलेगी!" काशी— शिव की कॉलर ठीक करते हुए—"क्या मिस्टर राणा… कोई बात नहीं, आप वापस लिख लीजिए।" इतना बोल काशी ने एक आँख शिव को मारी और वहाँ से जैसे ही जाने को हुई कि शिव ने उसका हाथ पकड़ लिया। शिव— लगता है इन सब का बहुत एक्सपीरियंस है… वेल, तुम्हारे बॉयफ्रेंड को पता नहीं है क्या? काशी— तुम लड़कों की डिक्शनरी में यह बॉयफ्रेंड शब्द सबसे ऊपर आता है क्या? और मुझे एक्सपीरियंस है या नहीं, तुम्हें बहुत अच्छे से पता है, लगता है, तभी तो मेरे पीछे पड़े हो और यह बार-बार टच करते हो… अगर तुम मेरे कैरेक्टर सर्टिफ़िकेट को लेकर घूमना चाहते हो तो… घूमो… मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। इतना बोल काशी वहाँ से चली गई। उसको काफ़ी हद से ज़्यादा गुस्सा आ रहा था। काशी ने रूम में आकर रूम का दरवाज़ा लॉक किया और रूम में रखे फ्लावर पॉट को उठाकर जोर से दीवार पर दे मारा। तो वहीं नील ने वैदेही को इशारा किया तो वैदेही वहाँ से काशी के रूम में जाने लगी। नियति जी ने आध्नी को देखा और कहा, "तुम्हें कुछ काम नहीं है क्या?" आध्नी जी— लगता है आप सब भूल रहे हैं कि आपका पोता इस घर में नहीं है! इतना बोल आध्नी जी वहाँ से चली गईं। नियति जी ने दादी को देखा और चुपचाप वहाँ से चली गईं। नियति जी की आँखों में नमी आ गई थी। तो वहीं वैदेही ने काशी के रूम का दरवाज़ा खटखटाया तो काशी ने अंदर से कोई जवाब नहीं दिया। वैदेही जी ने नील की ओर देखकर कहा, "नील, नील… काशी… वह स्ट्रेस लेती है ना तो उसके सर में दर्द होता है और वह ज़्यादा स्ट्रेस लेने से बेहोश हो जाती है… अगर उसने कुछ…" इतना बोल वैदेही जी चुप हो गईं। To be continue… यार स्टोरी अच्छी नहीं होती तो बोल दिया करो। रिया पाराशर

  • 11. काशी: एक संघर्ष - Chapter 11

    Words: 1042

    Estimated Reading Time: 7 min

    वैदेही जी ने नील की ओर देखकर कहा, "नील, काशी… वो स्ट्रेस लेती है ना, तो उसके सर में दर्द होता है और वो ज़्यादा स्ट्रेस लेने से बेहोश हो जाती है… अगर उसने कुछ…!" इतना बोल वैदेही जी चुप हो गईं। नील ने काशी के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया और चिल्लाते हुए कहा, "काशी, काशी! कमरे का दरवाज़ा खोलो बेटा! काशी, तुम मुझे सुन रही हो ना! प्लीज़ दरवाज़ा खोलो ना काशी, देखो मम्मा परेशान हो रही है!" जब कुछ देर दरवाज़ा नहीं खुला, तो नील आगे बढ़कर दरवाज़ा तोड़ने की कोशिश करने लगा। तभी वैदेही ने शिव के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। शिव ने आवाज़ सुनकर बाहर आया। वैदेही: प्लीज़ हेल्प कर दो! शिव ने नील की ओर देखा और उसकी मदद करने लगा। दोनों ने एक साथ दरवाज़ा तोड़ने के लिए अपने कंधे आगे बढ़ाए और जैसे ही तोड़ने को हुए, उससे पहले ही गेट खुल गया। नील तो रुक गया, लेकिन शिव का बैलेंस बिगड़ा और वह सीधे सामने खड़ी काशी को लेकर नीचे जमीन पर गिर गया। जैसे ही दोनों गिरे, शिव के होंठ काशी के माथे पर जा लगे, जहाँ अभी थोड़ी देर पहले उसे चोट लगी थी। दोनों एक-दूसरे को देखकर घूर रहे थे। शिव ने काशी को देखा और मन में कहा, "ओह गॉड! इसका नाम काशी नहीं, मुसीबत होना चाहिए… जो सीधा मेरे गले में आकर पड़ती है!" काशी ने शिव को घूरा और अपने दोनों हाथ शिव की बाजू पर रखते हुए कहा, "अबे, अब क्या घूरते ही रहोगे? उठो मेरे ऊपर से! पता नहीं क्या खाते हो जो इतना भारी हो… मेरी तो जान ही निकल गई!" शिव, काशी की बातें सुनकर इरिटेट हो गया। उसने खुद को संभाला और उठकर खड़ा हो गया। वैदेही ने दोनों को देखा और आगे बढ़कर काशी के गले लगते हुए कहा, "तुम सच में मेरी जान लेने का सोच रही हो क्या!" काशी: मैं क्यों तेरी जान लूंगी? मैं वाशरूम में थी, लेकिन तूने तो इतनी देर में पूरे घर को सर पर उठा लिया! नील: तुम ठीक हो ना? नील ने काशी के सर पर हाथ रखते हुए कहा। काशी: हम्म, मैं ठीक हूँ। वैदेही: चल, चलकर खाना खा ले! काशी: मुझे नहीं खाना! नील: चलकर प्लीज़ खा लो… सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं! वैदेही: हाँ, प्लीज़ काशी! काशी ने सबको देखा और अपने हाथ को छुपाते हुए कहा, "आप सब चलो, मैं आती हूँ।" इतना बोल काशी जैसे ही रूम में जाने को पलटी, वैदेही जी भी उसके रूम में आने को हुईं कि काशी ने बीच में हाथ लगाया और कहा, "रूम में कुछ नहीं है, बाहर चलो, यहीं से चलो, मैं भी चल रही हूँ!" सब लोग आगे चल रहे थे, काशी अपनी माँ के साथ पीछे चल रही थी, और दोनों के पीछे रुद्रांश आ रहा था। सब एक साथ खाना खाने बैठ गए थे। काशी ने अपना हाथ बाहर ही नहीं निकाला और उलटे हाथ से खाने लगी। तो वैदेही जी ने उसे देखकर उसके हाथ पर मारते हुए कहा, "सीधे हाथ से खा!" काशी: आपके हाथ से खाना है! वैदेही जी ने काशी को खिलाया और खुद भी खाने लगीं। काशी ने एक-दो बाइट खाए और उठकर खड़ी हो गई। "मेरा हो गया, मैं रूम में जा रही हूँ।" इतना बोल काशी वहाँ से चली गई। थोड़ी देर में बाकी सब भी चले गए थे। काशी रूम में आई और गेट बंद करके रूम को देखा, तो रूम की हालत सच में खराब थी। काशी ने सर पर हाथ लगाया और कहा, "बच गई…" इतना बोल काशी ने फ्लावर पॉट के टुकड़े उठाकर डस्टबिन में डाल दिए और बेड पर आकर लेटते हुए कहा, "कितना बकवास दिन था आज का… बस सुबह से अब तक एक ही इंसान के दर्शन किए हैं, उस खड़ूस राणा के!" इतना बोल काशी ने अपनी आँखें बंद कर लीं। तो वहीं सब लोग अपने रूम में चले गए थे। …सुबह-सुबह… कुछ आवाज़ें सुनकर रूम में सो रहे शिव की नींद खुल गई थी। उसने बेड पर लेटे हुए ही अपने रूम की लैंप लाइट ऑन की और टेबल से अपना फ़ोन उठाकर टाइम देखा, तो अभी पाँच भी नहीं बजे थे। "घर में तो कोई भी इतनी जल्दी नहीं उठता, फिर ये आवाज़…?" इतना बोल शिव ने अपने ऊपर से ब्लैंकेट हटाया और पास में रखी चप्पल पहनकर अपनी बालकनी में आ गया। शिव ने इधर-उधर देखा और फिर जैसे ही नीचे देखा, तो उसे काशी नज़र आई, जो अभी भी कल वाले कपड़ों में फ़ुटबॉल के साथ खेल रही थी, और साथ ही साथ बीच में रुककर पास पड़े पानी के पाइप से वहाँ लगे छोटे-छोटे पेड़ों में पानी डाल रही थी। काशी ने चारों ओर देखा और पाइप को जमीन पर रखकर वापस अपनी बॉल के साथ खेलने लगी। शिव काशी को बड़े ध्यान से देख रहा था। सच में वो अकेली भी फ़ुटबॉल बहुत अच्छे से खेल रही थी। शिव का ध्यान बार-बार काशी के हाथ पर जा रहा था। उसने उसके हाथ से अभी भी खून निकलते देखा, तो उसने गुस्से से अपने हाथों की मुट्ठी को रेलिंग पर कस ली। तो वहीं फ़ुटबॉल खेल रही काशी को जब अपने हाथ गीले लगे, तो काशी ने अपनी हाथ की मुट्ठी खोली और देखा कि रात में लगी हुई चोट वापस गहरी हो गई थी। काशी ने फ़ुटबॉल को वहीं रखा और पाइप को लेकर अपने हाथ को धो लिया। "हे भगवान! ये खून… अगर रात को वैदेही ने देख लिया होता तो बवाल, नहीं-नहीं, आँधी-तूफ़ान, सुनामी, और भी क्या-क्या होती है, सब आ जाती…" इतना बोल काशी जैसे ही पीछे होने के लिए पलटी, अचानक नीचे गिरे पाइप में उसका पैर फँस गया। काशी जैसे ही गिरने को हुई, उससे पहले ही शिव ने उसे पकड़ लिया। काशी को शिव ने उसकी कमर से पकड़ा हुआ था, लेकिन काशी अभी भी हवा में लटकी हुई थी। शिव: तुम सच में मुसीबत को अपने गले में लेकर घूमती हो क्या… वो जैसे… आ मुसीबत, मुझसे लिपट जा! शिव ने काशी को सही से खड़े करते हुए कहा।

  • 12. काशी: एक संघर्ष - Chapter 12

    Words: 1566

    Estimated Reading Time: 10 min

    "हे भगवान! ये खून... अगर रात को वेदी ने देख लिया होता तो बवाल, नहीं नहीं, आंधी, तूफान, सुनामी, और भी क्या-क्या होती है, सब आ जाती...! " इतना बोलते ही काशी जैसे ही पीछे होने के लिए पलटी, अचानक नीचे गिरे पाइप में उसका पैर फँस गया। काशी जैसे ही गिरने को हुई, उससे पहले ही शिव ने उसे पकड़ लिया। शिव ने उसकी कमर से पकड़ा हुआ था, लेकिन काशी अभी भी हवा में लटकी हुई थी। शिव— तुम सच में मुसीबत को अपने गले में लेकर घूमती हो क्या...? "वो जैसे... आ, मुसीबत मुझसे लिपट जा...!" शिव ने काशी को सही से खड़ा करते हुए कहा। काशी— वेरी फनी... बट फिर भी मुझे हँसी नहीं आई। शिव— हँसी क्यों आएगी? वो भी बेचारी तुमसे डरती है ना...! शिव ने साइड में फेस करके बड़बड़ते हुए कहा। काशी— क्या कहा तुमने...? शिव— तुम देखकर क्यों नहीं चलती? बार-बार गलती तुम्हारी होती है। देखकर चलना सीख लो, समझी ना...? शिव ने काशी को देखते हुए कहा। काशी— इसमें भी तुम्हें अब मेरी गलती नज़र आ रही है। तुम्हारी आँखों में सिर्फ़ एक चीज़ चिपक गई है कि हर बार गलती मेरी होती है... अपनी उंगली शिव को दिखाते हुए... "यू मेक..." अपनी उंगली को नीचे करके साइड में देखते हुए... "साला, टाइम से इंग्लिश भी नहीं बनती..." इतना बोलकर काशी ने वापस शिव को देखा जो एक अजीब तरह से काशी को देख रहा था। काशी ने शिव को देखते हुए एक स्माइल करके कहा... "मैं तुम्हें व्हाट्सएप कर दूँगी।" शिव— और मैं तुम्हें अपना नंबर क्यों दूँगा...? शिव ने अपने हाथ बाँधकर अपनी आईब्रो को ऊँचा करते हुए कहा। काशी— और ये किसने कहा कि मैं आपका नंबर माँग रही हूँ...? काशी ने अपनी कमर पर हाथ रखकर शिव को घूरते हुए कहा। शिव— बस बहस करवा लो... इतना बोलकर शिव ने काशी को घूरा और कहा... "हाथ में चोट कैसे लगी...?" काशी— तुम्हें क्यों बताऊँ...? तुम मेरे कुछ लगते हो क्या...? काशी ने उंगली दिखाकर उंगली हिलाते हुए पूछा। शिव— मत बताओ... "जाते हुए"... वैसे मैं ना क्या सोच रहा था, वैदेही आंटी को बता देता हूँ, फ़र्स्ट एड किट लेकर आ जाएँगी।" इतना बोलकर शिव जाने लगा तो काशी ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ा और कहा... "रुक जाओ... तुम मम्मी को कुछ नहीं बताओगे, वरना मैंने ना तुम्हारा मुँह तोड़ देना है!" काशी ने मुँह बनाकर शिव की टी-शर्ट की कॉलर पकड़कर अपने हाथ का पंच उसके मुँह की ओर किया, लेकिन शिव ने बीच में ही काशी के पंच पर अपने हाथ को रखा और नीचे करते हुए कहा... "तुम्हें मारने का बड़ा शौक है, क्या...?" "सीधे मुँह बात कर रहा हूँ ना मैं, तो तुम भी नॉर्मली बात करो ना... और ये खुले बाल करके मत घुमा करो... मैं तो बोलता हूँ, तुममें चुड़ैल आ गई!" काशी— तुम्हारा मुँह नहीं दुखता क्या...? कितना बोलते हो!! शिव— तुम्हारे हाथ नहीं दर्द करते क्या? इतना मारती रहती हो, जब देखो... इतना बोलकर शिव ने काशी का हाथ पकड़ा और अपनी पॉकेट से रुमाल निकालकर बाँध दिया। और वहाँ से जाने लगा। काशी ने शिव को देखा और कहा... "इस रुमाल को लेकर जाओ, किसी ने इसे देख लिया ना तो मेरी चोट मेरी माँ को दिख जाएगी... तो मेरी लाइफ में सुनामी आ जाएगी..." इतना बोलकर काशी ने रुमाल को शिव के आगे कर दिया। शिव ने रुमाल को देखा, जिस पर खून लगा हुआ था, उसने रुमाल लिया और लेकर वहाँ से चला गया। शिव को काफ़ी गुस्सा आया था जब काशी ने उसका रुमाल निकालकर उसे दिया। काशी ने शिव को जाते देखा और वहाँ से अंदर चली आई। काशी जैसे ही अंदर आई तो उसकी नज़र सामने खड़ी आध्नी जी पर गई, तो काशी के कदम रुक गए। उसने आध्नी को घूरा और वहाँ से ऊपर चली गई। आध्नी जी ने काशी को जाते देखा और धीरे से बड़बड़ाई... "ये दोनों बाहर क्या कर रहे थे? शिव इस काशी के साथ क्या कर रहा था...? दोनों बाहर थे... हाए, मेरा बेटा ये बहुत काम आएगा मेरे..." इतना बोलकर आध्नी ने किचन से एक ग्लास पानी पिया, और जैसे ही जाने को हुई, उसकी नज़र सामने से नीचे आ रही वैदेही पर गई, तो आध्नी के फेस पर स्माइल आ गई। और इधर-उधर देखकर कुछ ढूँढने लगी। तो वैदेही जी काशी के रूम में जाकर आई थीं। काशी की आदत थी सुबह जल्दी उठकर चाय पीने की। वैदेही जी सीढ़ियों से नीचे आईं और किचन में आकर चाय के लिए बर्तन लिया और फ्रिज से दूध का बर्तन निकालकर सेल्फ पर रखा और उन्होंने इधर-उधर देखा। और जैसे ही गैस चलाने को हुईं, उससे पहले ही काशी ने आकर उनका हाथ पकड़ लिया... "मॉम, आप मेरी ड्रेस की आयरन कर दीजिए, मुझे जाना है आज... बस इंटरव्यू क्लियर हो जाए... और ये मैं कर दूँगी, आप जल्दी कर दो ना!" वैदेही जी ने अपने हाथ में पकड़े लाइटर को नीचे रखा और कहा... "बस मेरी माँ, एक कप ही चाय बनाना... मुझे नहीं पसंद तेरे हाथ की वो कड़क और वो तेज अदरक वाली चाय!" काशी— हे भगवान! फिर आप चाय लवर कैसे हो गई...? इतना बोलकर काशी ने एक नज़र किचन को देखा और वैदेही जी की ओर देखकर कहा... "आपको ठंड लगी हुई है क्या...? आई मीन जुकाम...?" वैदेही— हाँ, दो दिन हो गए। तेरा ध्यान अब गया है क्या? वैदेही जी ने काशी को देखते हुए कहा। काशी के फेस पर अलग ही भाव आ गए थे। उसने मुस्कुराते हुए वैदेही जी के कंधे पर हाथ रखा और कहा... "जाके कपड़ों की आयरन कर दे ना..." इतना बोलकर काशी ने वैदेही जी को वहाँ से निकाल दिया। वैदेही जी के जाते ही काशी किचन में आई और गैस को उठाकर देखने लगी। उसे गैस लीक होने की बदबू आ रही थी। काशी ने गैस का स्विच चेक किया जो कि ठीक था। काशी ने नीचे सिलेंडर देखा तो वो भी सही था, लेकिन अचानक ही काशी की नज़र गैस के जॉइंट पाइप पर गई जो कटा हुआ था। काशी ने उसे देखा और गुस्से से उसे ठीक करके बाहर निकल गई। उसने बाहर आकर देखा तो सब लोग उठ गए थे। काशी ने सबको देखा और परेशानी के भाव लिए ऊपर रूम में जैसे ही जाने को हुई, वैदेही जी नीचे आती हुई दिखीं। वैदेही जी ने काशी को देखा और कहा... "क्या हुआ काशी? चाय बना भी ली...?" वैदेही जी ने काशी को देखते हुए कहा। काशी— वो... वो... वैदेही— मैं बनाती हूँ, तू चल रूम में। काशी— वो मुझे चाय नहीं पीनी, आपने कपड़े आयरन कर दिए...? वैदेही— सॉरी, वो प्रेस कहाँ है, वही पूछने आई थी। नियति जी— वही है बेटा, देखो रूम में होगी नील के कमरे में... इतना बोलकर नियति जी ने काशी को अपने पास बुलाया और कहा... "चलो मैं बनवा देती हूँ चाय..." काशी— नहीं... वो मुझे कुछ बताना था। वैदेही जी— क्या हुआ काशी? तुम परेशान लग रही हो। वैदेही जी काशी की ओर बढ़ते हुए कहा। काशी— अरे यार, आप जाकर कपड़े आयरन करो ना, वरना मैं लेट हो जाऊँगी, परेशान इसलिए हो रही हूँ। और जाकर मिस्टर रावत के रूम से प्रेस ले आओ, वरना मैं कर लूँगी, जैसा होगा वैसा! वैदेही जी— हा हा, तू तो कर ही लेगी, मालूम है मुझे। इतना बोलकर वैदेही जी ऊपर चली गईं। तो वही काशी ने सबको देखा और कहा... "किचन की गैस का पाइप लीक है, इसलिए आंटी उसे ठीक करवाकर ही गैस चालू कीजिएगा।" इतना बोलकर काशी वहाँ से ऊपर अपने रूम में चली गई। तो वही आध्नी जी ने काशी की बात सुनी और अपने प्लान को फेल होता देखा तो उन्हें गुस्सा आने लगा। वो वहाँ पैर पटकते हुए वहाँ से चली गईं। नियति जी ने काशी की बात सुनी और किचन में चली गईं। दादी ने सबको जाते देखा तो वह वहाँ से उठकर मंदिर में आईं और वहाँ बैठते हुए कहा... "प्लीज कान्हा, मेरे बच्चों को मिला दे। मेरे नील की हालत देखी नहीं जाती। इस बला को घर से निकालकर हमारे सार्थक को हमें लौटा दे। वैदेही को वापस इसी घर में ले आओ, हमारे नील की ज़िंदगी में ले आओ... प्लीज कान्हा, जानती हूँ वैदेही के यहाँ आने के पीछे भी तेरा कोई मकसद होगा, उसे जल्दी पूरा कर दे..." इतना बोलकर दादी ने मंदिर में सिर को टिकाया और वहाँ से उठकर हाल में आकर बैठ गईं। तो वही वैदेही जी नील के रूम में आईं तो देखा नील रूम में नहीं था। वैदेही जी कुछ देर इधर-उधर देख रही थीं। "पन्द्रह साल में भी तुम्हारी पसंद नहीं बदली, आज भी वैसे ही रखा हुआ तुमने तुम्हारा रूम, जैसे मैंने सालों पहले रखा था।" नील— अभी भी तो रख सकती हो ना तुम ऐसे ही...? आवाज़ सुनकर वैदेही जी ने पीछे देखा तो नील टॉवल लपेटे हुए बालों को झटक रहा था। वैदेही ने उसे देखा और कहा... वैदेही— किस हक़ से मुझे बोल रहे हो? मैं तो अब तुम्हारी कुछ नहीं लगती। कभी-कभी तो लगता है काशी सही बोलती है कि तुमने कभी मुझसे प्यार ही नहीं किया, तभी तो तुमने मुझ पर विश्वास नहीं किया! लगता है हमारी लव मैरिज में कभी भरोसा रहा ही नहीं। हमारे साथ के सभी कपल बेस्ट हैं, लेकिन किस्मत को कोसने से क्या ही फायदा...? नील ने वैदेही को देखा और उसकी आँखों में देखते हुए कहा... To be continue... रिया पाराशर

  • 13. काशी: एक संघर्ष - Chapter 13

    Words: 1049

    Estimated Reading Time: 7 min

    किस हक़ से मुझे बोल रहे हो? मैं तो अब तुम्हारी कुछ नहीं लगती। कभी-कभी तो लगता है काशी सही बोलती है, कि तुमने कभी मुझसे प्यार ही नहीं किया, तभी तो तुमने मुझ पर विश्वास नहीं किया। लगता है हमारी लव मैरिज में कभी भरोसा रहा ही नहीं। हमारे साथ के सभी कपल बेस्ट हैं, लेकिन किस्मत को कोसने से क्या ही फायदा! नील ने वैदेही को देखा और उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "प्यार तो मैंने भी किया था। तुमने मेरे एक फैसले को मान लिया, एक बार भी नहीं पूछा कि ऐसा क्यों कर रहा हूँ मैं। मजबूरी के चलते ही कुछ किया था ना। मैं जानता हूँ कि मैं कैसे तुम्हारे और मेरी बेटी के बिना जी रहा हूँ, सार्थक के बिना जी रहा हूँ। मुझे भी तो पसंद नहीं है, लेकिन ज़रूर मेरी मजबूरी रही होगी ना!" "ऐसी कौन सी मजबूरी आ गई नील जो पन्द्रह साल में भी ख़त्म नहीं हुई? एक मजबूरी ने हमारे प्यार को हिला के रख दिया, तो बताओ क्या कुछ नहीं करवा सकती वो मज़बूरी!" वैदेही ने नील को देखते हुए कहा। नील ने वैदेही का हाथ पकड़ कर अपनी ओर किया और कहा, "उसी मजबूरी की वजह से आज भी तुम सब से दूर हूँ। वरना मैं यहाँ से कब का निकल जाता!" वैदेही ने नील के सीने पर हाथ रखा और कहा, "जिससे नफ़रत की, उससे ही शादी कर ली तुमने। मेरे जाते ही तुमने यही किया ना!" वैदेही के मुँह से ये सुनकर नील के हाथ की मुट्ठी बंद हो गई। वैदेही ने नील को खुद से दूर किया और कहा, "पता है, जब तुमने मुझ पर भरोसा नहीं किया था और इस घर से निकाला था ना, उस समय टूट सी गई थी। सोचा था कहाँ जाऊँगी मैं? यहाँ किसी को नहीं जानती थी, अनाथ जो थी। लेकिन एक अंकल ने मेरी बहुत हेल्प की। लेकिन एक दिन उनके बहू-बेटे ने वहाँ से भी निकाल दिया। मैंने छोटी-मोटी जॉब करके अपना ख़र्चा निकाल लिया। हमने वहाँ से निकलने के बाद दर-दर की ठोकरें खाईं, लेकिन फिर एक लड़के ने मेरी हेल्प की। मेरी जवान बेटी को लेकर मैं कहाँ-कहाँ जाती। भला हो ज्ञान का, लेकिन उसकी माँ ने हमें वहाँ रहने के लिए और दो वक़्त का खाना देने के लिए भी घर का काम करवाया। लेकिन एक-एक दिन उन्हें पता चल गया कि काशी लड़ाई-झगड़े करती है, और उनका बेटा ज्ञान काशी से प्यार करने लगा था, इसलिए उन्होंने हमें..." "बताओ नील, इतना कुछ झेलने के बाद मेरे मन में तुम्हारी छवि गायब होने लगी थी। ये नहीं था मेरा प्यार ख़त्म हो गया था, लेकिन मुझे अपनी किस्मत को लेकर कोई शिकायत नहीं हुई। हुई तो सिर्फ़ तुमसे दूर जाने का एक दुख! जब तुमने मुझ पर भरोसा नहीं किया, तो तुम्हें कैसे लग रहा है कि मैं भी तुम पर अब भरोसा करूँ? प्यार भी तो दो लोगों ने किया था ना, फिर भरोसा करने का भार मैं ही क्यों अपने सर रखूँ? तुम भी तो रख सकते थे ना! तुम भी तो एक बार मुझसे पूछ सकते थे ना, पर नहीं! दो सबूत मेरे ख़िलाफ़ क्या मिल गए, तुमने तो भरोसा ही तोड़ के रख दिया। और तो और, भरोसे के साथ-साथ, तुमने हमारा प्यार, अपना परिवार, सब बर्बाद कर दिया! और अभी भी तुम मुझसे आस लगाए बैठे हो!" ये सब बोलते ही वैदेही की आँखों से आँसू आने लगे थे। नील ने अपने काँपते हाथों को आगे बढ़ाकर वैदेही के आँसू साफ़ किए और कहा, "प्लीज़ वेदू, रोओ मत ना। मैं तुम्हारी आँखों में आँसू नहीं देख सकता। मैं खुद तुमसे मिलने के लिए परेशान था। लेकिन कभी तुम्हारा पता लगा ही नहीं पाया। तुम्हारा पता लग भी गया था, लेकिन तुम वहाँ से काशी को लेकर चली गई थीं, फिर तुम्हारा कहीं पता नहीं चला।" "मैं आज भी उतना ही प्यार करता हूँ। तुमसे दूर होने का फैसला भी मेरा नहीं था। तुमसे दूर होकर मेरे दिल के हज़ारों टुकड़े हुए थे। तुमसे दूर होना मेरे हाथ में नहीं था, मैं बस कठपुतली बन के रह गया था।" "तुम कुछ छिपा रहे हो मुझसे..." वैदेही ने नील की आँखों में देखते हुए कहा। नील ने अपने ऊपर कंट्रोल किया और पलट कर खड़ा हुआ और अपनी गर्दन को ना में हिलाते हुए बोला, "क्या ही छिपाऊँगा?" इतना बोल नील अपने अलमारी के पास आया और उसे खोलकर बिना वैदेही की ओर देखे कहा, "तुम्हें क्या चाहिए था?" वैदेही आगे आई और नील की बाज़ू को पकड़ कर अपनी ओर किया और कहा, "नील बताओ ना, तुम मुझसे क्या छिपा रहे हो? कुछ ऐसा जो तुम मुझसे शेयर नहीं कर पा रहे हो।" नील अभी भी खड़ा कुछ सोच रहा था। तो वहीं दरवाज़े पर खड़ी काशी, जो कि काफ़ी देर से यहाँ खड़ी सब सुन रही थी, उसने अपने हाथों की मुट्ठी बंद की और खुद से ही मन में कहा, "ऐसा क्या है जो मिस्टर रावत वेदू से छिपा रहे हैं? कुछ भी करके मुझे मालूम करना होगा।" इतना बोल काशी ने अपने चेहरे पर स्माइल लाई और वहाँ से रूम में जाते हुए कहा, "ओहो वेदू, तुम प्रेस लेने आई थीं या खरीदने, पा..." काशी ने अचानक ये शब्द बोला तो नील और वैदेही उसे देखने लगे। काशी को भी बड़ा अजीब लगा। उसने अपनी आँखें बंद की और वापस खोलकर कहा, "सॉरी मिस्टर रावत, आप मुझे प्रेस देंगे। मुझे इंटरव्यू के लिए लेट हो रहा है।" इतना बोल काशी ने दोनों से नज़रें चुरा लीं। नील को काशी के मुँह से "पापा" सुने काफ़ी साल हो गए थे। उसने जैसे ही काशी के मुँह से "पापा" सुना, तो उसके चेहरे पर स्माइल आते-आते रह गई क्योंकि काशी ने बीच में ही "सॉरी" बोलकर "मिस्टर रावत" बोल दिया था। नील ने काशी को देखा और अलमारी से प्रेस देते हुए कहा, "जॉब के लिए कहाँ जा रही हो?" "जहाँ भी जाना होगा, मैं चली जाऊँगी।" इतना बोल काशी वहाँ से प्रेस लेकर निकल गई, लेकिन दरवाज़े पर आकर उसने बिना देखे ही कहा, "थैंक यू।" इतना बोल काशी नील का जवाब सुने बिना ही वहाँ से चली गई। वैदेही ने काशी को देखा और नील की ओर देखकर कहा, "उसे आयरन करना नहीं आता, मैं करके आती हूँ।" इतना बोल वैदेही काशी के पीछे चली गई। To be continue रिया पाराशर

  • 14. काशी: एक संघर्ष - Chapter 14

    Words: 1347

    Estimated Reading Time: 9 min

    नील ने काशी के मुँह से "पापा" सुने कई साल हो गए थे। जैसे ही उसने काशी के मुँह से "पापा" सुना, उसके चेहरे पर आती-जाती मुस्कान रह गई, क्योंकि काशी ने बीच में ही "सॉरी" बोलकर "मिस्टर रावत" कह दिया था। नील ने काशी को देखा और अलमारी से प्रेस देते हुए कहा, "जॉब के लिए कहाँ जा रही हो?" "जहाँ भी जाना होगा, मैं चली जाऊँगी।" इतना बोलकर काशी वहाँ से प्रेस लेकर निकल गई, लेकिन दरवाजे पर आकर उसने बिना देखे कहा, "थैंक यू।" इतना बोलकर काशी नील का जवाब सुने बिना ही चली गई। वैदेही ने काशी को देखा और नील की ओर देखकर कहा, "उसे आयरन करना नहीं आता, मैं करके आती हूँ।" इतना बोलकर वैदेही काशी के पीछे चली गई। काशी अपने कमरे में आई और प्रेस को लगाकर उसे घूरने लगी। उसने अपनी कुर्ती देखी और जैसे ही उसे उस पर रखने को हुई, उससे पहले ही वैदेही जी आते हुए बोलीं, "ऐसे नहीं करते काशी!" वैदेही जी की आवाज़ सुनकर काशी ने प्रेस को हाथ में ही पकड़ लिया। काशी: "फिर कैसे होती है?" काशी ने पलटकर वैदेही जी की ओर देखते हुए कहा। वैदेही जी आगे आईं और आयरन टेबल को सही से खड़ा किया। उन्होंने उस पर कुर्ती को सही से रखा और एक-एक साइड से पकड़कर अच्छे से प्रेस करने लगीं। काशी ने वैदेही जी को देखा और मुँह बनाते हुए कहा, "तुम करो, मैं अभी आई।" इतना बोलकर काशी ने अपना फोन लिया और कमरे से निकलकर बाहर वाली बालकनी में आ गई, जो चारों ओर से खुली हुई थी। काशी ने अपना फोन निकाला और पूजा को फोन लगा दिया। थोड़ी देर रिंग जाने के बाद जब किसी ने फोन नहीं उठाया, तो काशी को गुस्सा आने लगा। वह जैसे ही काटने को हुई, उस ओर से पूजा ने फोन उठाते हुए कहा, "सॉरी सॉरी काशी, मैं बिजी थी।" काशी: "हाँ तो रहो अब बिजी।" इतना बोलकर काशी ने मुँह बना लिया। पूजा: "सॉरी यार, गुस्सा मत हो ना, मैं सच में घर के काम में बिजी थी।" काशी: "अच्छा बता, स्कूल की फीस जमा करवा दिया?" पूजा: "नहीं... हाँ... वो..." पूजा बोल ही नहीं पा रही थी, उसकी जुबान उसका साथ नहीं दे रही थी। काशी: "जमा नहीं किया ना?" पूजा: "वो पैसे तो..." काशी: "कहाँ गए? मैंने तुझे फीस के लिए दिए थे ना, तो पैसे कहाँ किए?" पूजा ने याद किया और उसे काशी को बताने लगी, "कल जब तुम लोग गए थे ना, तो वो पैसे मेरे हाथ में थे। तुम्हारे जाने के बाद जैसे ही मैं घर जाने को हुई, कमला ताई मेरे पास आई और मेरी मुट्ठी से पैसे लेकर बोलीं कि तुमने ये पैसे उन्हें देने के लिए ही दिए थे और उन्होंने कहा कि इतने दिन से तुम लोग रह रहे थे और खा रहे थे, ये उसके पैसे हैं, इसलिए बस वो पैसे उन्होंने मुझसे ले लिए।" काशी ने गुस्से से अपने हाथ की मुट्ठी बंद की और कहा, "ज्ञान कहाँ है?" "ज्ञान भैया तो किसी काम से बाहर गए हैं।" पूजा ने परेशान होकर चेयर पर बैठते हुए कहा। काशी: "तारा स्कूल जा रही है ना?" इतना बोलकर काशी ने फोन को स्पीकर पर करके बालकनी की बाउंड्री पर रखा और आस-पास अपने लिए बैठने के लिए चेयर देखने लगी। पूजा: "हम्म, बट अगर दो दिन में फीस जमा नहीं हुई तो, तारा को वो लोग स्कूल से निकाल देंगे। टीचर ने बोला है।" काशी जो कि बाउंड्री के पास आई और हल्के से ऊँचा होकर उस पर बैठ गई, पूजा की बात सुनकर काशी के चेहरे पर भी एक अजीब परेशानी दिखाई दे रही थी। वहीं से जा रहे शिव की नज़र जैसे ही काशी पर गई, तो उसे बाउंड्री पर बैठा देख शिव के चेहरे पर एक अजीब भाव आ गए। वह तुरंत काशी की ओर चला गया। काशी बाउंड्री पर बैठकर: "तू पागल है! तुझे पहले बोलना चाहिए था ना!" इतना बोलकर काशी ने पीछे की ओर देखा कि तभी किसी ने अचानक उसे उसकी कमर से पकड़कर नीचे खींच लिया। अचानक काशी नीचे आ गई। उसने सामने देखा तो शिव खड़ा हुआ था। काशी: "अबे ओह! पागल-वागल हो क्या? क्या कर रहे हो ये?" "क्या हुआ काशी? तू ठीक है ना?" पूजा ने अचानक काशी की आवाज़ सुनकर पहले तो अजीब सा मुँह बनाया और काशी से पूछने लगी, "क्या हुआ है? कौन है काशी?" शिव: "तुम गिर जाती तो... ऐसे कौन बैठता है बताओ?" काशी ने फोन को नीचे किया और एक उंगली शिव को दिखाते हुए कहा, "इसका मतलब तुम डरते हो है ना?" इतना बोलकर काशी ने शिव की ओर घूरते हुए उंगली की ओर अचानक से जोर-जोर से हँसते हुए कहा, "ओह माय गॉड! ओह माय गॉड! शिव जी इस बाउंड्री से डरते हैं, आई मीन तुम ऊँचाई से डरते हो!" वाह वाह! चलो तुम्हारी कुछ तो कमज़ोरी मालूम हुई मुझे मिस्टर शिव राणा। इतना बोलकर काशी जोर-जोर से वापस हँसने लगी। शिव ने काशी को घूरा और उसकी बाजू को पकड़कर एक झटके में पीछे किया, तो काशी की तो जान ही गले में अटक गई। अचानक हुए इस हादसे से उसकी तो आँखें फटी की फटी रह गईं। काशी कुछ बोलती उससे पहले ही शिव ने उसे वापस पीछे खींच लिया। काशी को शिव की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया। काशी ने झटके से शिव से अपना हाथ छुड़ाया और आगे आकर उसकी कॉलर पकड़कर कहा, "तुम्हारे इस छोटे से दिमाग में एक बार में बात समझ नहीं आती क्या? या फिर मेरी बातों को तुम समझना नहीं चाहते? मैं तो ये भी नहीं बोल सकती कि तुम एक साइड से सुनकर एक साइड से निकाल देते हो। मुझे तो लगता है मेरी बातें तुम अपने कान तक भी नहीं आने देते, तभी तो समझ नहीं पाते!" देखो मेरे आस-पास भी मत आया करो, चाहे मैं मरूँ या जियूँ, किसी भी मुसीबत में अपने गले डालूँ या हाथ-पैर, माथे कहीं पर भी, प्लीज़ दूर रहो मुझसे! तुम्हारा ये बार-बार छूना मुझे इरिटेट करता है! अगर आइन्दा से मुझे हाथ लगाया ना तो हाथ साथ में नहीं दिखेगा! इतना बोलकर काशी ने अपने एक हाथ से शिव को पीछे की ओर धक्का दिया और वहाँ से चली गई। शिव ने काशी की कोई बात पर ध्यान नहीं दिया, उसकी आँखों में गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था। उसने अपने हाथ की मुट्ठी बंद की और वहाँ से अपने कमरे में आ गया। तो वहीं काशी अपने कमरे में आई और वैदेही की ओर देखा जो कि प्रेस करके कुर्ते को बेड पर रख रही थी। काशी ने ड्रेस ली और वहाँ से वाशरूम में चली गई। थोड़ी देर में सब लोग एक साथ नाश्ता कर रहे थे। काशी ने शॉर्ट कुर्ती, जीन्स और बालों की एक ऊँची सी पोनी बनाई हुई थी और कुर्ते पर एक प्लेन सी जैकेट डाला हुआ था। काशी हमेशा लगभग यही ड्रेसिंग सेंस रखती थी खुद का। उसे फालतू के फैशनेबल कपड़े पहनने का शौक नहीं था। काशी ने सबको देखकर कहा, "अनमोल अंकल, आप मुझे ये एड्रेस बता देंगे क्या?" अनमोल ने काशी को देखा और नील की ओर देखा, जो काशी को देखकर काफी उदास हो गया था। "मैं तो बता दूँगा, लेकिन भाई तुमसे छूट जाएँगे, वो ऑफिस जा रहे हैं।" काशी जो कि अपने मोबाइल को आगे कर ही रही थी, अनमोल जी की बात सुनकर उसने अपना फोन अपनी पॉकेट में रखा और सबको घूरते हुए एक एप्पल लिया और उठाकर बाहर जाते हुए कहा, "काशी को हेल्प लेना पसंद नहीं है।" इतना बोलकर काशी वहाँ से चली गई। उसके जाते ही नील ने अनमोल को देखते हुए कहा, "क्या ज़रूरत थी? तुम जानते हो ना वो कैसी है, बता ही देते उसे..." नील को काफी बुरा लग रहा था जब काशी ने उसकी हेल्प नहीं ली और उसका नाम सुनकर उसने अनमोल से भी हेल्प नहीं ली। आलोक जी: "क्या ही करें भई, बच्चों के बीच मैं बोल भी नहीं सकता, लेकिन नील कब तक ये सब चलेगा? बात किया करो उससे, बेटी है तुम्हारी।" To be continue..... रिया पाराशर

  • 15. काशी: एक संघर्ष - Chapter 15

    Words: 1002

    Estimated Reading Time: 7 min

    आलोक जी ने कहा, "क्या ही करे भई, बच्चों के बीच मैं बोल भी नहीं सकता, लेकिन नील, कब तक ये सब चलेगा? बात किया करो उससे, बेटी है तुम्हारी।" सर्लोक जी ने कहा, "भैया सही बोल रहे हैं, नील। तुम चुप क्यों रहते हो? तुम उससे कोशिश तो किया करो बात करने की।" नील ने कहा, "पापा, चाचू, आपको क्या लगता है? मुझे अच्छा लगता है काशी को यूँ देखकर। मेरी गलती को उसने अपने दिल में ऐसा बिठा लिया ना कि उसके मन से मेरी वो बातें निकलती नहीं हैं और आज भी वो मुझे बस बुरा समझती है।" वैदेही ने सबको देखा और वहाँ से उठकर जाने लगी। तभी दादी ने उसे देखकर कहा, "तुम समझाओ ना वैदेही काशी को कि वो नील से तो बात कर ले। नील के साथ-साथ गलती हमने भी तो की थी, लेकिन वो सबसे बोलती है बस नील से; हमेशा टेढ़े मुँह बात करती है।" वैदेही ने अपनी नज़रें नीचे कीं और कहा, "आज से पन्द्रह साल पहले जो भी हुआ ना, उसमें उसकी क्या गलती थी? नील ने जब सारी गलती मुझ पर थोपी तो उसे बुरा लगा, लेकिन उसके मन से आज भी वो सब बातें नहीं निकली हैं। नील ने खुद ने उसके मन से पिता शब्द के लिए कड़वाहट भर दी है। आज भी, आज भी वो तो मुझसे यही कहती है दादी, कि उसके पापा औरों जैसे क्यों नहीं हैं, जो उसे सपोर्ट करे, साथ रहे। लेकिन क्या बोलूँ मैं उसे? मेरे बोलने की तो ज़रूरत ही नहीं पड़ती, बहुत समझदार है मेरी काशी।" उसका गुस्सा जायज है नील से, लेकिन नील से वो नाराज़ नहीं है; गुस्सा बहुत आता है, लेकिन नाराज़ नहीं होती वो। इसलिए अगर उसे मनाना है तो तुम ट्राई करो नील, वो मान जाएगी। लेकिन उसे महंगे तोहफे या कुछ भी कीमती चीज़ मत देना। उसे गिफ्ट और सरप्राइज़ से हमेशा से चिढ़ रही है, ध्यान रखना। तुम कोशिश करोगे तो शायद अपनी बेटी को पा लोगे।" शिव भी वैदेही की बातों को ध्यान से सुन रहा था। उसने टेबल से एक सेब लिया और काटने लगा। उसने वैदेही की ओर देखा जो सबको देखकर वापस बोली, "बस उसे देना है ना तो उसके चेहरे पर खुशी ले आना। वो भी पता है कैसे: गरीब बच्चों की हेल्प करना, मुसीबत में फंसे लोगों की हेल्प करना, और रात में उसे आइसक्रीम खाना। बस यही ख़वाहिशें हैं उसकी। बाकी ना उसे महंगी चीज़ का शौक है, ना कुछ खाने-पीने और कपड़ों का। इसलिए अगर तुम उसके गुस्से को दूर करना चाहते हो तो ट्राई करो।" इतना बोल वैदेही जी वहाँ से चली गईं। नील के साथ-साथ पूरा परिवार वैदेही की बातों को सुनकर खुश हो रहा था, क्योंकि उन्हें काशी के बारे में जानने को बहुत कुछ मिला था। नील के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। लेकिन आध्नी को वैदेही पर बहुत गुस्सा आ रहा था। उसने मन में कहा, "कुछ भी करके इन सब में कड़वाहट लानी होगी। ये बाप-बेटी एक साथ नहीं हो सकते। बड़ी मुश्किल से पन्द्रह साल पहले एक तीर से तीन निशाने लगे थे, इस बार भी कुछ ऐसा ही करना होगा।" शिव ने आध्नी को देखा और वहाँ से बाहर आया और अपनी कार लेकर कहीं चला गया। तो वहीं काशी ऑटो में बैठी हुई थी। उसने टाइम देखा तो दस बजने वाले थे। काशी ने मोबाइल को देखते हुए कहा, "ओह! अंकल, इंटरव्यू देने जाना है, गार्डन में घूमने नहीं जो आप ऐसे चला रहे हो।" ड्राइवर ने कहा, "फिर तो तुमको प्लेन से जाना था ना बिटिया, ये तो ऑटो ही है, ऐसे ही चलेगा। हम तो इसको उड़ा भी नहीं सकते।" काशी ने कहा, "आप नहीं उड़ा सकते, लेकिन मैं उड़ा सकती हूँ। आप ऑटो रोको।" ड्राइवर ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, "पर क्यों बिटिया?" "काशी! अरे रोको तो सही, फिर बताऊँगी ना।" इतना बोल काशी ने ड्राइवर को ऑटो रोकने को बोला। ड्राइवर ने ऑटो रोक दिया। काशी जल्दी से बाहर आई और ड्राइवर की ओर देखकर बोली, "बाहर आओ अंकल।" "अरे पर बिटिया, तुम..." काशी ने बीच में ही ड्राइवर को चुप होने को कहा और खुद आगे आकर ऑटो में बैठ गई और ऑटो को देखकर ऊपर हाथ जोड़े और बोली, "बचा लेना बाबा।" इतना बोल काशी ने ऑटो स्टार्ट किया। ड्राइवर ने काशी की हरकत देखी तो उसके ऑटो को पकड़े हुए कहा, "अरे बिटिया, तनिक यही बता दो कि आपको आता भी है या नहीं ऑटो चलाना? जैसे बाबा को याद कर रही हो लगता है। म्हारी ऑटो को राम ही भला करेगा। बचा लेना भगवान, ये तो मेरे ऑटो को ज़िंदा ही नहीं छोड़ेगी। मेरे तो कमाने का ज़रिया है, मेरा तो पेट इसी से पलता है।" काशी ने ऑटो वाले की बात सुनी और कहा, "अरे अंकल, टेंशन काहे ले रहे हो, मैं हूँ ना।" ड्राइवर ने कहा, "तुम हो, तभी तो इतनी टेंशन है, वरना काहे होती मुझे टेंशन।" काशी ने कहा, "अच्छा, ये एड्रेस बताओ कहाँ है, जल्दी।" ड्राइवर ने काशी के मोबाइल में एड्रेस देखा और कहा, "सीधे से लेफ्ट, फिर राइट, आगे जाकर फिर लेफ्ट।" काशी ने इरिटेट होकर कहा, "ऑफिस का रास्ता बता रहे हो या भूलभुलैया लेकर जाने का?" काशी ने आस-पास देखते हुए कहा। कुछ ही देर में काशी ने एक काफ़ी ऊँची बिल्डिंग के नीचे गाड़ी रोकी और बाहर निकल कर आ गई। उसने आस-पास देखा और अपना फ़ोन और पर्स लेकर जैसे ही जाने को पलटी, ड्राइवर ने जैसे ही काशी को आवाज़ देना चाहा, उससे पहले काशी पलटी और ड्राइवर को किराया देते हुए बोली, "ये लो अंकल, मेरा ध्यान नहीं रहा।" ड्राइवर ने काशी के हाथ से पैसे लिए और देखे तो वो सौ का नोट था। ड्राइवर ने काशी को देखा और कहा, "मैं पैसे देता हूँ।" काशी ने जाते हुए कहा, "रख लीजिए अंकल।" इतना बोल काशी वहाँ से चली गई। काशी ने वहाँ खड़े होकर ऊपर की ओर देखा तो ये बिल्डिंग सात मंज़िल की बड़ी-सी, काँच से बनी हुई थी। काशी ने बिल्डिंग को देखा और मुँह बनाते हुए कहा, "..." क्रमशः कमेंट करना न भूलें

  • 16. काशी: एक संघर्ष - Chapter 16

    Words: 1010

    Estimated Reading Time: 7 min

    काशी ने वाह खड़ा करके ऊपर की ओर देखा। यह इमारत सात मंजिल की बड़ी सी, कांच से बनी हुई थी। काशी ने इमारत को देखा और मुँह बनाते हुए कहा, "ये बिल्डिंग इंटरव्यू पास हुआ तो काम की, वरना ये महफ़िल मेरे किस काम की?" इतना बोलकर काशी ने मुँह बनाया और वाह से अंदर चली गई। लिफ्ट से ऊपर आकर काशी ने रिसेप्शनिस्ट से पूछा। उसने उसे अंदर जाने को कहा। काशी ने चारों ओर देखा; कई लोग इंटरव्यू के लिए आए हुए थे। काशी ने मुँह बनाया और एक तरफ़ आकर चेयर पर बैठ गई। उसने देखा कि वहाँ काफी सारी लड़कियाँ आई हुई थीं, लेकिन किसी को भी देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि वे इंटरव्यू के लिए आई हों। "हे भगवान! ये लोग इंटरव्यू के लिए आई हैं या किसी शादी पार्टी में? इतना मेकअप थोप के आई हैं! शॉर्ट ड्रेस पहन रखी हैं, लेकिन अब क्या ही बोलूँ... लड़कों को भी क्या चाहिए! साला आधा फिगर दिख जाए, बस उतने में ही इनकी खुशी है!" इतना बोलकर काशी ने अपने बगल की लड़की को देखा और उसकी ओर देखकर कहा, "हेलो!" उस लड़की ने काशी की ओर देखा और कहा, "हेलो। इंटरव्यू देने के लिए आई हो तुम?" "इंटरव्यू ही है ना? कहीं यहाँ किसी की शादी तो नहीं है ना?" काशी ने थोड़ा तेज और आस-पास देखते हुए कहा। लड़की: "हे, तुम पागल हो क्या? ऑफ़िस में हो तो ऑफ़कोर्स इंटरव्यू ही होगा ना! तुम्हें शादी लग रही है क्या ये?" काशी ने उस लड़की को देखा और मुँह बनाते हुए कहा, "लग तो रहा है, क्योंकि देखो, शॉर्ट ड्रेस एंड दो-दो किलो मेकअप! साला हम तो किसी की शादी में भी इतना यूज़ नहीं करते। मैं तो मेकअप ही यूज़ नहीं करती। वैसे देखा जाए तो इंटरव्यू के हिसाब से फ़ॉर्मल कपड़े ही यूज़ होते हैं।" लेकिन लोग यहाँ अपना स्टेटस दिखाने आते हैं। लड़की: "ओह... तो तुम्हारी तरह ऐसे बहन जी टाइप उठकर आ जाएँ... तुम ही काफी हो।" इतना बोलकर उस लड़की ने अपने बगल वाली लड़की को हाई-फ़ाइव दिया और हँसने लगी। काशी: "ये लड़की क्या कर सकती है... ये तुम नहीं जानती? जरा ये ही बता दो कि मेरे कपड़ों में खराबी क्या है और इन कपड़ों की वजह से यहाँ मुझे जॉब नहीं मिलेगी क्या?" "क्या हो रहा है यहाँ...?" यह आवाज़ सुनकर सबने पीछे देखा। एक लड़का खड़ा हुआ था; काफी अच्छी बॉडी, छः फ़ीट की हाइट, साँवला रंग, बिज़नेस सूट पहने वह लड़का काफी हैंडसम लग रहा था। एक लड़का: "पता नहीं ये दोनों किस बात पर बहस कर रही हैं।" उस लड़के ने जैसे ही अपने कदम बढ़ाए, उससे पहले ही काशी अचानक पीछे मुड़ी। काशी के पोनीटेल में बंधे बाल उस लड़के के चेहरे को ढँक गए। काशी का पैर अचानक उस लड़के के जूते में लगने की वजह से काशी का बैलेंस बिगड़ा और वह जैसे ही गिरने को हुई, उससे पहले ही उस लड़के ने काशी को उसकी कमर से पकड़ लिया। काशी ने भी उस लड़के को उसके कंधे से पकड़ा हुआ था। काशी ने उस लड़के को देखते हुए कहा, "ऐसे ही रखोगे ना तो मेरी कमर अकड़ जाएगी, इसलिए प्लीज़ खड़ा करो सही से।" इतना बोलकर काशी ने खड़े होने के लिए उस लड़के के कंधे को कसकर पकड़ लिया। उस लड़के ने काशी को सही से खड़ा किया और उसकी ओर देखकर कहा, "क्या बहस कर रहे थे आप?" काशी: "बहस...? किसने की?" काशी ने उस लड़के को देखते हुए कहा। लड़की: "तुम कर तो रही थी अभी।" लड़का: "तुम दोनों कर रही थीं ना।" काशी: "मैंने तो सिर्फ़ हेलो बोला था। बाकी जो बोला, इन्होंने बोला।" काशी ने उस लड़की की ओर उंगली दिखाते हुए कहा। लड़की: "तुमने ही तो कहा था कि शादी में आई हो क्या?" काशी: "जरा ऊपर जाना... अरे सॉरी, जरा फ़्लैशबैक में जाना..." इतना बोलकर काशी ने उसे याद दिलाते हुए कहा, "तुमने ही तो कहा था कि इंटरव्यू के लिए आई हो क्या?" उस सूट वाले लड़के की ओर देखकर, "आप बताओ, मिस..." लड़का: "आगम आरोड़ा।" काशी: "हाँ, जो भी... हो आप बताओ कि यहाँ क्या शादी चल रही है?" आगम: "चुप करो! ये ऑफ़िस है, घर या कोई पब्लिक प्लेस नहीं है। अगर इंटरव्यू देना है तो रुको, वरना दोनों ही जाओ यहाँ से।" काशी: "मैं कहीं नहीं जा रही।" इतना बोलकर काशी वहाँ चुपचाप बैठकर आगम को घूरने लगी। आगम ने काशी को घूरकर देखा और वहाँ से अंदर चला गया। थोड़ी देर में सब एक-एक करके इंटरव्यू देकर बाहर आ रहे थे, जैसे-जैसे नंबर आ रहा था, सब के दिलों की धड़कनें बढ़ी हुई थीं। तो वहीं काशी मस्त मजे से बैठी मोबाइल में कुछ देख रही थी। सबका नंबर आकर काशी का आया, तो पीयून ने आकर आवाज़ दी। काशी ने अपना फ़ोन बंद किया और उठकर अंदर चली गई। वह जैसे ही अंदर आई, तो उसकी नज़र सामने खड़े शिव पर गई। काशी ने अपनी आँखें गोल-गोल की और शिव को घूरते हुए कहा, "तुम यहाँ भी आ गए? देखो, मैं बोल दे रही हूँ... अगर तुम्हारी वजह से मेरा इंटरव्यू गया ना, तो मैं तुम्हारा सर फोड़ दूँगी।" इतना बोलकर काशी ने दरवाज़े की ओर देखा तो आगम अंदर आ रहा था, उसने एक फ़ाइल पकड़ी हुई थी। काशी: "देखो सर, आप इनसे बोलो कि ये बाहर जाएँ, मैं तभी इंटरव्यू दूँगी।" काशी की बात सुनकर आगम ने शिव को देखा और जैसे ही कुछ बोलने को हुआ, उससे पहले ही शिव ने काशी को देखा और कहा, "क्या बोला तुमने? देखो, मैं कहीं नहीं जा सकता।" काशी: शिव का हाथ पकड़कर बाहर ले जाते हुए, "क्यों? तुम्हारे बिना क्या ये इंटरव्यू नहीं होगा क्या?" काशी ने दरवाज़े पर आकर शिव से पूछा। सब लोग काशी और शिव की बातें सुनकर अपनी जगह से खड़े हो गए थे। To be continue... कैसी लगी स्टोरी? और कमेंट भी कर दिया करो। रिया पाराशर

  • 17. काशी: एक संघर्ष - Chapter 17

    Words: 1410

    Estimated Reading Time: 9 min

    काशी की बात सुनकर आगम ने शिव को देखा। शिव कुछ बोलने से पहले ही काशी को देखकर बोला, "क्या बोला तुमने? देखो, मैं कहीं नहीं जा सकता!" काशी शिव का हाथ पकड़कर बाहर ले जाती हुई बोली, "क्यों? तुम्हारे बिना क्या यह इंटरव्यू नहीं होगा?" काशी के दरवाज़े पर आकर उसने शिव से पूछा। सब लोग काशी और शिव की बातें सुनकर अपनी जगह से खड़े हो गए थे। शिव ने सबको देखा और काशी की ओर देखकर कहा, "देखो, मेरे बिना तुम्हारा यह इंटरव्यू नहीं हो सकता।" काशी: "क्यों? इस कंपनी के सीईओ हो?" आगम: "देखो, उन्हें छोड़ो!" काशी: "आप बीच में मत आइए सर। मैं ऐसे लोगों को अच्छे से जानती हूँ, इसलिए आप रहने दीजिये। और वैसे भी, इनसे मेरा पर्सनल मैटर है, तो मैं देख लूँगी।" और तुम... शिव की ओर देखकर... "देखो, सीधे से चल जाओ, वरना मैं... मैं... मैं तुम्हारी शिकायत कर दूँगी!" एक लड़की: "यह लड़की पागल है क्या? क्या कर रही है? सीईओ से ऐसे बात कर रही है! ऐसे तो जॉब लगना तो दूर, इंटरव्यू भी नहीं देने देंगे।" उस लड़की की आवाज़ इस शांत माहौल में काशी समेत सभी के कान तक पहुँच चुकी थी। काशी ने सीईओ का नाम सुनते ही शिव पर से हाथ हटा लिया। काशी: "तुम... तुम... तुम सीईओ हो? पर यह तो ए आर ग्रुप्स है ना? ओह! मतलब मिस्टर राणा... सॉरी शिव, तुम्हें बताना चाहिए था मुझे!" अभी भी काशी के मुँह से शिव का नाम और "तुम" सुनकर सब काशी को देख रहे थे। शिव ने काशी के मुँह से अपना नाम सुना तो उसे काफी अच्छा लगा। उसने काशी की ओर देखकर कहा, "अंदर चलो, इतना बोल..." शिव वहाँ से चला गया। उसके जाते ही काशी ने आगम को घूरा और उसकी बाजू पर मारते हुए कहा, "बता नहीं सकते थे क्या!" आगम: "तुम सुनो तब ना..." इतना बोल आगम ने काशी को घूरा तो वह अंदर चली गई। आगम ने अपनी बाजू पर हाथ रखा और कहा, "अजीब लड़की है! मैं उसका बॉस हूँ, फिर भी ऐसे मारकर चली गई! अजीब लड़की है, सुनी नहीं मेरी और उल्टा सुनाकर चली गई!" इतना बोल आगम मुँह बनाते हुए अंदर चला गया। तो वही बाहर खड़ी लड़की को काशी पर हँसी आ रही थी। उसने सबकी ओर देखकर कहा, "लगता है अब मज़ा आने वाला है! बॉस बहुत डाँट सुनाएँगे उसे!" एक लड़का: "लगता नहीं है, क्योंकि जिस तरह से बोल रही थी, लग रहा था जैसे वे पहले से एक-दूसरे को जानते हैं। खैर, जो भी हो, बस डाँटे नहीं उस लड़की को!" शिव चेयर पर बैठा काशी को घूर रहा था, जो चुपचाप बैठी टेबल पर रखी फाइल्स को घूर रही थी। शिव: "बोलो! तुमने बताया क्यों नहीं कि तुम्हारा इंटरव्यू यहाँ है?" काशी: "तुम मेरे पापा लगते हो क्या?" शिव: "नहीं तो... पर जो पूछा है, उसका जवाब... सीधा-सा जवाब भी दे सकती हो तुम मुझे!" काशी: "नहीं हो ना, तो मैं बताना भी ज़रूरी नहीं समझती।" इतना बोल काशी उठकर जाने लगी तो उसके कान में शिव की आवाज़ आई, जिसकी आवाज़ में अजीब सा रूखापन और गुस्सा था। शिव: "तुम तो अपने पापा से बात भी नहीं करती तो उन्हें भी नहीं बताती हो ना!" शिव की बात सुनकर काशी के हाथों की मुट्ठी कस गई। उसने शिव को घूरकर कहा, "पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ को मिक्स तो मत करो!" इतना बोल काशी जाने लगी तो शिव ने वापस कहा, "तो इंटरव्यू तो देती जाइए मिस काशी रावत..." शिव के ऐसे बोलने से काशी ने पलटकर शिव को देखा। शिव ने अपने एक हाथ से काशी को बैठने का इशारा किया और काशी से सवाल-जवाब करने लगा। थोड़ी देर बाद काशी बाहर चेयर पर बैठी हुई थी। थोड़ी देर बाद आगम बाहर आया और बोला, "चार लोगों को सिलेक्ट किया गया है; तीन एम्प्लॉय के तौर पर और एक पर्सनल असिस्टेंट।" जिनके नाम हैं मिस काव्या, सुरेश गांधी, निमिता और मिस काशी। सब लोग अपना नाम सुनकर खुश थे, लेकिन काशी के चेहरे पर अभी भी कोई भाव नहीं थे। उसने आगम की ओर देखकर कहा, "मुझे शिव से मिलना है!" आगम: "सॉरी, अभी सर किसी से नहीं मिलना चाहते।" काशी: "तुम्हें तो मैं देखती हूँ..." (मन में) "शाम को घर मिलती हूँ इससे।" इतना बोल काशी ने आगम को घूरा तो आगम ने भी उसे घूरते हुए कहा, "आप शिव सर की पर्सनल असिस्टेंट हैं। कल से जल्दी ऑफिस आना!" काशी: "व्हाट...? पर्सनल असिस्टेंट? वो भी उसकी?" इतना बोल काशी ने मुँह बनाया और वहाँ से चली गई। तो वही शिव ने जब खिड़की से बाहर देखा तो उसे जाती हुई काशी नज़र आई। शिव ने एक अजीब सी स्माइल दी और वापस अपनी चेयर पर आकर बैठ गया और काम करने लगा। तो वही काशी को एक तरफ तो जॉब मिलने की खुशी थी, तो वही दूसरी तरफ शिव की कंपनी और पर्सनल असिस्टेंट की वजह से उसका पूरा मूड खराब हुआ पड़ा था। काशी जल्दी से ऑटो में बैठकर घर के लिए निकल गई थी। तो वही वैदेही जी नीचे से ऊपर फोन पर किसी से बात करते हुए नील के रूम की ओर जा रही थीं कि तभी बीच में आध्नी ने वैदेही को हाथ देकर रोक दिया। वैदेही ने अपने कान से फोन हटाया और आध्नी को देखकर कहा, "तुम्हारी आदत अभी भी वही पुरानी वाली है, बीच में आने की! इसे सुधार लो! अपने परिवार को छोड़कर किसी और के परिवार पर नज़रें... सॉरी, सॉरी! कुंडली मारकर बैठना अच्छी बात नहीं है!" आध्नी: "ओह ओह... बोल भी कौन रहा है, जो मेरी एक चाल पर हारकर पन्द्रह साल से अपने पति और घर से दूर है, अभी भी उन लोगों ने तुम्हें नहीं अपनाया है।" वैदेही: "मुझे तो लगता है इन सब में भी तुम्हारी ही कोई चाल है, तभी तो मेरे जाते ही यहाँ आकर राज कर रही हो! तुमने प्रतिक भैया को छोड़कर खुद की किस्मत खुद से फोड़ ली है! आध्नी, तुम्हें ना भैया की परवाह थी, ना अपने बेटे की! पर शुक्र मानाओ, लगता नहीं है तुम्हारा बेटा तुम पर गया है... वह बहुत अलग है!" आध्नी ने वैदेही को देखा और टेढ़ा मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "प्रतिक, प्रतीक! ये नाम सुन-सुनकर ना मेरा सर दर्द करता है, इसलिए चुप रहा करो! और रही बात मेरे बेटे की, तो उसे कोई नहीं समझ सकता, मैं खुद भी नहीं समझ पाती। वह जैसे दिखाता है, वैसा बिल्कुल नहीं है! इस बात को अपने दिमाग में बिठा लो, यह बहुत काम आने वाला है तुम्हारे, इसलिए बता रही हूँ!" वैदेही ने अपने हाथों को फोल्ड किया और आध्नी को घूरते हुए कहा, "मुझे समझाने से बेहतर है... तुम खुद समझो कहीं तुम्हारे बेटे की यह आदत तुम्हें ही महँगी ना पड़ जाए, और तुम्हारा सारा प्लान खराब हो जाए! इसलिए तुम भी मेरी यह बात याद रखना, मैंने कभी तुम्हारी तरह बीच में आने का नहीं सोचा! तुम और तुम्हारी सोच दोनों एकदम घटिया हैं!" आध्नी: "तुम्हें देखकर लगता नहीं है तुम्हें अपने बेटे को खोने का कोई डर है... रती भर भी फर्क नहीं पड़ता ना तुम्हें! कैसी माँ हो तुम वैदेही! तुमने अभी क्या कहा कि अच्छा हुआ जो नील तुमसे दूर हो गया, वरना तुम खुद चली जाती! तुम्हें नील घटिया इंसान लगता है!" वैदेही आध्नी की बातों को सुनकर अजीब तरह से उसे देख रही थी। उसे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि आध्नी क्या बोल रही है। "क्या बोल रही हो? और यह फालतू के शब्द बोलने से कुछ नहीं होता! मैंने यह सब कब बोला? और रही बात तुम्हारे बोलने की तो कोई भरोसा नहीं करता! बस तुम इतना कुछ होने के बाद भी, तुम यहाँ जबरदस्ती अपने बेटे के साथ यहाँ पड़ी हो!" आध्नी: "लो भई! सच बोलने का तो जमाना भी नहीं रहा..." इतना बोल आध्नी वहाँ से चली गई। वैदेही ने जाती हुई आध्नी को पलटकर देखा तो सामने कोमल जी खड़ी हुई थीं। वैदेही ने उन्हें देखा और मुस्कुराते हुए उनके पास आई और कहा, "माँ, कहाँ हैं चाची?" कोमल जी: "यह औरत सच में पागल है क्या..." इतना बोल कोमल जी हँसने लगीं। वैदेही जी ने कोमल जी को देखा और कहा, "उसे लगा आप मुझे गुस्सा हो जाएँगी और कुछ ऐसा-वैसा सुना देंगी, इसलिए उसने वह सब बोला!" To be continue

  • 18. काशी: एक संघर्ष - Chapter 18

    Words: 1000

    Estimated Reading Time: 6 min

    आध्नी — लो भई, सच बोलने का तो जमाना भी नहीं रहा… इतना बोलकर आध्नी वहाँ से चली गई। वैदेही ने आध्नी को पलटकर देखा तो सामने कोमल जी खड़ी हुई थीं। वैदेही ने उन्हें देखा और मुस्कुराते हुए उनके पास आई और कहा, "माँ, कहाँ हैं चाची?" कोमल जी — ये औरत सच में पागल है क्या… इतना बोलकर कोमल जी हँसने लगीं। वैदेही — ने कोमल जी को देखा और कहा, "उसे लगा आप मुझे गुस्सा हो जाएँगी और कुछ ऐसा-वैसा सुना देंगी… इसलिए उसने वो सब बोला।" कोमल जी — अभी भी वही सब गलतियाँ थोड़ा ना करनी हैं, पहले बहुत कर दीं, उस बात का दुःख आज भी है मुझे। तूने तो माफ़ कर दिया वैदेही, पर मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगी। वैदेही — भूल जाओ ना चाची… मैं तो कब का भूल गई, फिर आप ज़हन में रखकर क्यों अपना दिल दुखाती हो? कोमल जी — अच्छा, बताओ तुम्हें दीदी से क्या काम था? वैदेही — अपने सर पर हाथ मारकर, "भूल गई ना मैं आप के चक्कर में। नील ने मुझसे एक फ़ाइल अनमोल भैया को देने के लिए कही थी। ओह माय गॉड! उनकी मीटिंग है, बस वही बोलने आई थी कि माँ लाकर देंगी रूम से फ़ाइल मुझे।" कोमल जी — रूम तो तुम्हारा भी है ना, तुम ले आओ जाओ, और जाकर अनमोल को नीचे दे दो, वो वेट कर रहा होगा। वैदेही — हैं! नहीं चाची, था! इतना बोलकर वैदेही कोमल जी को देखने लगी। कोमल जी ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा, "ये फ़ैसला बाद में करेंगे, अभी फ़ाइल लाकर दे दो।" वैदेही वहाँ से नील के रूम में आई और फ़ाइल लेकर वापस बाहर आ गई। तभी उसे जल्दी से अपने रूम में जाती हुई काशी नज़र आई। वैदेही ने उसे जाते देखा और फ़ाइल को देखकर सीढ़ियों से नीचे जाने लगी, कि तभी उसे वहाँ से जाती हुई सोर्भी नज़र आई। वैदेही — सोर्भी… सोर्भी ने जैसे ही अपना नाम सुना तो उसने वैदेही की ओर देखकर कहा, "जी, भाभी, बोलिए।" "मेरा एक काम कर दो, ये फ़ाइल बाहर अनमोल भैया खड़े हैं, उन्हें ले जाकर दे दो, वो नील की एक इम्पॉर्टेन्ट मीटिंग है, उसी के लिए ये बस अनमोल भैया…" वैदेही इतना बोलकर चुप हो गई। "आप ना बहुत सोचती हैं, लाओ मुझे दो, मैं अनमोल को दे आती हूँ।" इतना बोलकर सोर्भी ने फ़ाइल ली और वहाँ से बाहर चली गई। उसके जाते ही वैदेही ने ऊपर काशी के रूम की ओर देखा और उसके रूम में चली गई। वहाँ काशी बेड पर बैठी अपने पैरों को जोर-जोर से हिला रही थी। वैदेही ने उसे देखा तो कहा, "हाय! ये क्या कर रही हो काशी? ऐसे कौन करता है बेटा? पैरों में दर्द होगा रात को। क्या टेंशन है? बताओ।" काशी ने एक बार वैदेही को घूरकर देखा और वापस पैर हिलाने लगी। वैदेही ने काशी के पैरों में अपने पैरों को लगाया और उसके चेहरे पर हाथ रखकर पूछा, "क्या हुआ? बताओ… सब ठीक है ना? जॉब नहीं मिली क्या? कोई नहीं बेटा, अगर नहीं मिली तो…" काशी — जॉब तो मिल गई मम्मा, लेकिन… इतना बोलकर काशी सामने देखने लगी। वैदेही ने काशी को देखा और कहा, "मतलब जॉब मिल गई और तुम उदास हो? क्यों? क्या हुआ बेटा?" काशी ने वैदेही का हाथ पकड़ा और बेड पर बिठाते हुए कहा, "जॉब तो मिल गई, लेकिन ये पूछो कहाँ और किसकी कंपनी में मिली!" वैदेही ने काशी के सवाल को सुनकर उसकी ओर देखा तो काशी ने वापस कहा, "उस शिव राणा की कंपनी में, वो वहाँ का सीईओ है… बस यही सोचकर दिमाग खराब है, मुझे ये लड़का बिल्कुल पसंद नहीं है… इरिटेट होती हूँ मैं, उस इंसान को थोड़ी देर अपने आस-पास देखकर। अब घर के अलावा उसे मैं ऑफिस में भी झेलूँ, ओह माय गॉड! ऐसे तो मुझे मर जाना है!" काशी ने ऊपर मुँह करके दाँत भींचते हुए कहा। वैदेही — कुछ नहीं होगा, कितना अच्छा लड़का है वो, कितने प्यार से बात करता है। काशी — आपकी सौतन का बेटा है, और आप को क्यूट और प्यारा लग रहा है! तो मेरी जगह आप काम कर लो ना, वैसे भी आजकल आप को वो बड़ा अच्छा लगता है! "कहीं से जलने की बदबू आई क्या… मुझे तो बड़ी आ रही है!" वैदेही ने काशी को देखते हुए कहा। काशी — मॉम, मेरे वो इयररिंग्स कहाँ हैं, सोने की? वैदेही — क्या हुआ? कुछ काम था उनसे? तेरी शादी में देने हैं इसलिए रखे हैं। काशी ने शादी सुनी और उठते हुए कहा, "मैं तुझे छोड़कर कहीं नहीं जा रही, इसलिए अपने दिमाग से इस बात को निकाल दे और मुझे चैन से इस चार दिन की ज़िंदगी के मज़े तो लेने दे। क्यों शादी-ब्याह का नाम लेकर मेरी जान लेने पर तुली होती है आप? यहाँ मुझे जीने दो!" इतना बोलकर काशी खुद ही उठकर वहाँ से चली गई। "ये इतनी परेशान क्यों लग रही है? लगता है कुछ हुआ है आज इसके साथ… हे भगवान! ये लड़की अपनी प्रॉब्लम किसी से शेयर क्यों नहीं करती? जब ये प्रॉब्लम में होती है तो प्रॉब्लम भी इतनी बड़ी नहीं लगती जितनी बड़ी इसकी बातें और ये और इसका ये बिन बुलाया वाला मेहमान, आई मीन ये इसका गुस्सा आ जाता है… क्या करूँ? ये तो बताने से रही अपनी प्रॉब्लम… पूजा को मालूम हो, लेकिन वो भी तो इसकी ही दोस्त है, सब कुछ इसे ही बता देगी उल्टा!" वहाँ काशी का दिमाग बिल्कुल काम नहीं कर रहा था। वो वहाँ से बाहर गार्डन में चली आई थी। दोपहर के चार बज रहे थे। गार्डन में अभी भी हल्की-हल्की धूप की किरणें आ रही थीं। काशी ने अपने सर पर हाथ रखा और चेयर से सर लगाकर टेक लगाकर दोनों हाथों को अपने माथे पर रख और आँखें बंद करके वहीं चुपचाप बैठ गई। काशी के मन में क्या चल रहा था, ये बताना मुश्किल था। To be continue… आप सब पढ़कर कमेंट करना ना भूलें। रिया पारशर

  • 19. काशी: एक संघर्ष - Chapter 19

    Words: 1014

    Estimated Reading Time: 7 min

    तो वही काशी का दिमाग बिलकुल काम नहीं कर रहा था। वह वहाँ से बाहर गार्डन में चली आई थी। दोपहर के चार बज रहे थे। गार्डन में अभी भी हल्की-हल्की धूप की किरणें आ रही थीं। काशी ने अपने सर पर हाथ रखा और चेयर से सर लगाकर टेक लगाई, दोनों हाथों को अपने माथे पर रखा, और आँखें बंद करके वहीं चुपचाप बैठ गई। काशी के मन में क्या चल रहा था, यह बताना मुश्किल था। "कुछ समझ नहीं आ रहा क्या करूँ। मेरे पास जो पैसे थे, वे मैंने पहले ही पूजा को दे दिए, और अब क्या करूँ? मॉम कभी मुझे वह सोने की चीज़ नहीं देंगी। उनसे तो माँगना ही खराब है; उल्टा मुझसे ही हज़ार सवाल कर लेंगी। बता दिया तो ऊपर से परेशान हो जाएँगी, वह अलग। और ना ही मुझे यहाँ से किसी से हेल्प लेना है। इनसे हेल्प लेने से अच्छा है मैं बिना किसी हेल्प लिए रह लूँ। ओह गॉड! यह ज़िन्दगी है या क्या? साला एक प्रॉब्लम जाती नहीं, दूसरी पहले ही आकर खड़ी हो जाती है!!" "हद हो गई! अभी तो मेरे साथ..." काशी ने अपने हाथों को हटाकर सही से बैठते हुए कहा। "किसने हद कर दी तुम्हारे साथ? मुझे बता दो! शायद मैं कुछ हेल्प कर दूँ।" यह आवाज सुनकर काशी ने अपने पीछे देखा तो शिव खड़ा हुआ था। "तुमने..." काशी ने मुँह बनाते हुए कहा। काशी को यूँ बोलता देख शिव ने अपने कोट की बाजू को सही किया और काशी के बगल में बैठते हुए कहा, "ओह माय गॉड! मैंने तो कुछ किया नहीं, फिर भी तुमने मेरा नाम लिया। और जब मैं कुछ करूँगा तो लगता नहीं मैं कहीं दिखूँगा। खैर, क्या मैं जान सकता हूँ कि आप मेरा नाम क्यों ले रही हैं?" काशी: "तुम मुझसे इतने अच्छे से बात कैसे करने लगे? कल सुबह तो इतना गुस्सा हो रहे थे! बताओ जरा, तुमने एक दिन में खुद को इतना कैसे बदल लिया?" काशी ने शिव की ओर सवाल भरी नज़रों से देखा। काशी का सवाल सुनकर शिव के चेहरे के भाव एक पल को तो बदल ही गए। उसने अपने चेहरे पर मुस्कराहट बरकरार रखी और काशी की ओर देखकर कहा, "तुम क्या मेरी दुश्मन हो क्या? जो मैं तुमसे लड़ता फिरूँ, और अब इतना फ्री तो बिलकुल नहीं हूँ कि आते-जाते तुमसे पंगे लूँगा?" काशी ने शिव को देखा और "नहीं" कहा। शिव ने काशी की ओर देखकर वापस कहा, "ना तुम मेरी दुश्मन हो, ना दोस्त हो, ना ही कुछ, तो बताओ मैं तुमसे ऐसे सड़ा सा बनकर क्या करूँगा! इसलिए और कल तुमने मुझे थप्पड़ मारा था ना, इसलिए ऐसे बोल रहा था।" काशी ने अपनी गर्दन को इधर-उधर किया और शिव की ओर देखते हुए कहा, "लेकिन मैंने तो अभी तक सॉरी नहीं बोला थप्पड़ के लिए, फिर भी तुम मुझसे इतना अच्छे से बात कर रहे हो।" शिव (मन में): "ओह गॉड! इसे लड़की किसने बनाया है? इसका नाम और काम तो सवाल करने वाली मशीन होना था ना! यह तो सच में बड़ी टेढ़ी खीर है। क्या बोलूँ? कितना बोलती है यार यह! क्या बोलूँ कि मैं इससे... नो नो! अगर सीधा बोला तो अभी यहीं गला दबाकर मुझे बैठे-बिठाए स्वर्ग के दर्शन करवा देगी।" काशी शिव को देख रही थी, जो कि अजीब-अजीब भाव अपने चेहरे पर ला रहा था। काशी ने शिव को देखा और उसके आगे अपने हाथ को हिलाया। तो शिव ने कोई जवाब नहीं दिया। तो काशी ने उसे उसके कंधे से पकड़कर जोर से हिला दिया। "ओह हैलो! बोलते-बोलते सो गए या किसी के खयालों में खो गए? कुछ सोचकर... पर तुम और किसी के खयालों में... ना ना! लाइन्स ही मैच नहीं हुई। तुमसे मैंने कुछ बोला था, लाइन्स बना रहे हो या झूठ बोलने की सोच रहे हो?" काशी ने शिव का हाथ घुमाकर पूछा। शिव: "छोड़ो, यह बताओ क्या सोच रही थी?" काशी: "तुम मेरे कुछ नहीं लगते। अभी तुमने बोला तो सवाल ही नहीं उठता कि मैं तुम्हें कुछ बताऊँ।" इतना बोल काशी उठकर जाने लगी कि तभी शिव ने उसका हाथ पकड़ा और अपनी ओर खींच लिया। अचानक ऐसे हाथ खींचने की वजह से काशी शिव की गोद में आकर गिर गई थी। शिव ने काशी की आँखों में देखकर कहा, "अब क्या हर चीज़ मुँह से बोलकर समझाना ज़रूरी होता है क्या? कुछ बात इंसान को बिना बोले ही समझ जानी चाहिए।" काशी ने शिव से अपनी नज़रें हटाई और कहा, "क्यों तुम बोल नहीं सकते क्या? वैसे तो पूरा दिन बोलते हो। मुझसे लड़ने और मुझे सुनाने के लिए तो तुम्हारी जुबान बहुत चलती है। तो अब क्या हुआ? और क्या यह बेतुकी बात कर रहे हो?" शिव ने काशी की आँखों में देखते हुए उसके चेहरे पर आए बालों को धीरे से जैसे ही हाथ लगाकर पीछे करने को हुआ कि उससे पहले ही काशी ने अपने एक हाथ से शिव का हाथ पकड़ा और कहा, "क्या कर रहे थे? यह छीछोरो वाली हरकत बंद करो, वरना बाय गॉड! इतना पीटूँगी कि खुद को भी याद नहीं कर पाओगे। और मैंने कहा था ना कि कोई मुझे हाथ लगाए, मुझे पसंद नहीं। अगर याद नहीं हो तो अब दिमाग, दिल, लीवर सब में बिठा लेना।" इतना बोल काशी ने शिव के हाथ को जोर से झटका और खुद उसकी कॉलर पकड़कर खड़ी हो गई और गुस्से में शिव को घूरते हुए वहाँ से चली गई। "पता नहीं कहाँ से यह सारे नमूने मुझे ही मिलते हैं!" शिव ने जाती हुई काशी को देखा और सीरियस होकर खड़ा हुआ और चारों ओर देखकर अपना कोट ठीक किया और अंदर जाने को हुआ कि उसकी नज़र गार्डन में एक साइड खड़ी आध्नी पर गई। शिव को देखकर आध्नी मुस्कुराई, तो शिव भी हल्के से मुस्कुराते हुए वहाँ से अंदर चला गया। काशी रूम में ना आकर अपनी माँ के रूम में आई तो देखा वैदेही कुछ काम कर रही थी। काशी उनके पास आई और कहा, "मॉम, मुझे कुछ पैसे चाहिए थे, आपके पास हैं क्या?"

  • 20. काशी: एक संघर्ष - Chapter 20

    Words: 1030

    Estimated Reading Time: 7 min

    काशी अपने मां के कमरे में गई। वैदेही कुछ काम कर रही थी। काशी उनके पास गई और बोली, "मॉम, मुझे कुछ पैसे चाहिए थे, आपके पास हैं क्या?" वैदेही ने काशी को देखा और कहा, "जो जोड़कर रखे थे, वही हैं, बाकी नहीं हैं।" काशी कुछ नहीं बोली और वहाँ से बाहर निकल गई। वह अपनी सोच में मग्न थी कि तभी उसका हाथ अपनी गर्दन पर गया। उसने सोने का एक बहुत प्यारा चेन पेंडेंट के साथ पहना हुआ था। "उफ्फ! एक तू ही मेरी हेल्प कर सकता है। थैंक गॉड, सही समय पर दिखाई दिया तू मुझे..." इतना बोलकर काशी अपने कमरे के आगे आई और उस चेन को अपने गले से निकाल लिया। और वहाँ से घर के बाहर निकल गई। वहीं कोई था जो काशी को जाते हुए देख रहा था। काशी जैसे ही वहाँ से गई, उसके पीछे शिव बाहर आया और अपने कोट को सही करते हुए काशी के पीछे जाने लगा। लेकिन वह जैसे ही नीचे आया, वह आ रही नियति जी से टकरा गया। शिव – सॉरी, सॉरी आंटी! नियति जी – देखकर चलो बेटा। कहीं जा रहे हो क्या इतनी जल्दबाजी में? सब ठीक है ना? शिव – जी आंटी, बस कुछ काम था। सॉरी। इतना बोलकर शिव वहाँ से घर के बाहर चला गया। काशी ने ऑटो लिया और वहाँ से मार्केट में आ गई। उसने दुकान देखी और ऑटो वाले को रुकवाकर बाहर आई और कहा, "कितने हुए, भैया?" ऑटो वाला – पचास रुपये हो गए। काशी ने ऑटो के ऊपर हाथ रखा और नीचे ऑटो वाले को घूरते हुए कहा, "ओह भई! मार्केट लाए हो ना कि स्वर्ग, जो कि पचास रुपये हो गए!" ड्राइवर – स्वर्ग किसे जाना है, वो भी पचास रुपये में! काशी – ओये! मैं यहाँ नई नहीं हूँ, समझे ना आप? जो पचास मांग रहे हो, किसी को भी लूटना मत। अगर तो इस ऑटो को स्वर्ग में ही देखोगे। और हाँ, तीस रुपये बनते हैं, लेकिन अब मैं बीस दूंगी क्योंकि मेरे पास पैसे नहीं हैं और मुझे घर भी जाना है। ऑटो वाला – देख के तो नहीं लग रहा है, जिस तरह तुम इस दुकान पर रुकी हो और बोल रही हो कि पैसे नहीं हैं, फिर यहाँ क्या करने आई हो? खैर, पैसे दो, मुझे मगजमारी नहीं करना। काशी ने ऑटो वाले को बीस रुपये दिए और कहा, "आइंदा से सामने मत आना...वरना..." ऑटो वाला – वरना क्या करोगी? काशी ने ऑटो की मीटर पर हाथ रखकर कहा, "अगली बार बिना पैसे दिए सफ़र करूँगी!" समझे? इतना बोलकर काशी ने उसका मीटर डाउन किया और वहाँ से चली गई। ऑटो ड्राइवर ने जाती हुई काशी को देखा और अपने सर पर मारते हुए कहा, "पता नहीं किसकी शक्ल देखने को मिली थी!" इतना बोलकर ऑटो वाला वहाँ से चला गया। काशी अंदर आई और चारों ओर देखकर दुकान वाले के पास आकर उसके सामने खड़ी हो गई। उसने अपने हाथ में रखी हुई चेन और उस पेंडेंट को देखकर आगे बढ़ाने को हुआ कि उससे पहले ही दुकान वाले की आवाज उसके कानों में आई। "क्या दिखाऊँ मेम आपको?" उस आदमी ने चारों ओर देखकर काशी की ओर देखकर कहा। काशी ने नज़रें ऊँची करके उस आदमी को देखा और कहा, "लेना नहीं है...वो मुझे ये चेन बेचनी है।" "बेचनी है?" कहीं चोरी की तो नहीं है ना? उस आदमी ने काशी को सवालिया नज़रों से घूरते हुए और चेन को देखते हुए कहा। काशी ने उस आदमी को घूरा और वापस अपनी चेन को मुट्ठी में बंद किया और कहा, "मैं आपको चोर नज़र आ रही हूँ? देखिए, ज़रूरी नहीं है हर कोई चोरी करके या चोरी किया हुआ सामान बेचे। कभी-कभी मजबूरी में भी हमें बेचनी पड़ती है।" इसका बिल नहीं है मेरे पास। मेरे पास ये बच्चे से ही है। उस आदमी ने काशी को देखा और कहा, "अगर इतनी ही प्यारी है तो ऐसा करो, बेचो मत, तुम गिरवी रख दो। जब तुम्हारे पास पैसे आएँ तो ले जाना।" काशी – ओके। फिर आप दो महीनों के लिए ये गिरवी रख लीजिए और मुझे पेपर साइन करवा दीजिए। दुकान वाले ने काशी को देखा और कहा, "बिना पेपर के हम कोई काम नहीं करते।" इतना बोलकर दुकान वाले ने हाथ आगे किया तो काशी ने अपनी चेन उसके हाथों में दे दी। दुकान वाले ने उसे देखा और उसका वज़न करने लगा। दुकान वाले ने चेन को देखकर काशी से कहा, "बीस हज़ार तीन सौ रुपये दे सकता हूँ।" काशी ने उस दुकान वाले की सुनी और उसकी ओर देखते हुए कहा, "सोने की चेन थी भैया, चाँदी मोल की थोड़ी ना थी।" "तो मैंने कब कहा मोल की है, मैडम? जो भाव चल रहा है, उसी के हिसाब से चलता है।" दुकान वाले ने काशी को देखते हुए कहा। काशी – ठीक है, दीजिए। इतना बोलकर काशी वहाँ लगी चेयर पर बैठ गई। कुछ देर में दुकान वाले ने एक कागज़ को काशी के आगे किया और उस पर साइन करने को कहा। काशी ने उस पर साइन किया और कहा, "इसकी दूसरी कॉपी मुझे दे दीजिए।" दुकान वाले ने एक कागज़ के साथ-साथ एक रसीद काशी को दी और नकद बीस हज़ार तीन सौ रुपये दे दिए। काशी ने उन्हें चेक किए और बैग में रखकर बाहर चली गई। वहीं दुकान में बैठे शिव ने काशी और दुकान वाले की सारी बातें सुन ली थीं। उसने अपने कदम उस दुकान वाले की ओर बढ़ाए ही थे कि तभी उसे काशी की बात याद आई, "तुम मेरे पापा नहीं हो ना, इसलिए मेरे बीच में मत बोला करो।" ये शब्द याद आते ही रुद्रांश ने वापस अपने पैर पीछे लिए और दुकान से बाहर चला गया। काशी दुकान के बाहर आकर खड़ी हो गई। उसने किसी को फोन किया और बात करने लगी, "ओये आकाश, कहाँ है? सुन, मुझे तुझे ये पैसे देने हैं, प्लीज़ बता कहाँ मिलेगा?" काशी ने चारों ओर देखते हुए कहा। To be continue स्टोरी पर रेटिंग्स और कॉमेंट देकर तो बता ही सकते हैं आप सब। स्टोरी कैसी है, प्लीज़ कॉमेंट कर दिया कीजिए।