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Kahani Teri Meri🍁🍁 "छोटे लम्हे… बड़ी मोहब्बत की दास्तान।"

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कभी एक अनकही मुलाकात… कभी आंखों में ठहरती खामोशी… कभी वो रिश्ता जो नाम नहीं मांगता… और कभी वो नाम जिससे पूरी ज़िंदगी बदल जाती है। “दिल से निकली हुई कहानियाँ” — एक ऐसी शॉर्ट स्टोरी सीरीज़ है जो आपको प्यार के हर रंग से रूबरू करवाएगी। यहां...

Total Chapters (152)

Page 1 of 8

  • 1. Kahani Teri Meri - Chapter 1

    Words: 865

    Estimated Reading Time: 6 min

    ---

    सिग्नल पर लाल बत्ती होते ही शेखर ने गाड़ी रोक दी। वह सिग्नल के हरा होने का इंतजार कर रहा था, तभी उसकी नज़र अचानक रियर-व्यू मिरर में गई। उसे लगा कि पिछली गाड़ी में बैठी लड़की कहीं वही तो नहीं? फिर उसने खुद को समझाया — "नहीं, यह कोई और होगी।"

    उसने गौर से देखने की कोशिश ही की थी कि सिग्नल हरा हो गया। उसे गाड़ी आगे बढ़ानी पड़ी। असल में, शेखर जिस ऑफिस में काम करता था, उसकी एक ब्रांच इस शहर में भी थी। प्रमोशन के बाद उसे यहां ट्रांसफर किया गया था। आज उसका इस ऑफिस में पहला दिन था, इसलिए उसे जल्दी पहुंचना था। यहां उसे पूरे ऑफिस का इंचार्ज बनाया गया था, और इस जिम्मेदारी को लेकर वह काफी सतर्क था। उसने अपने दिमाग से उस लड़की का ख्याल झटका और ऑफिस की ओर बढ़ गया।




    पूरे ऑफिस में नए इंचार्ज को लेकर हलचल थी। सब सोच रहे थे—
    "कैसा होगा नया बॉस? सुना है बहुत सख्त स्वभाव का है।"
    कहा जा रहा था कि यहां काम की लापरवाही दूर करने के लिए ही उसे भेजा गया है। इसी वजह से आज ऑफिस में सबने काम में पूरा ध्यान लगा रखा था। कोई भी लेट नहीं हुआ।

    शेखर भी समय पर ऑफिस पहुंच गया। आते ही उसने अकाउंट डिपार्टमेंट की फाइलें मंगवाईं। यह फाइलें शिखा के पास थीं।

    “शिखा, सर नए प्रोजेक्ट की फाइल मांग रहे हैं, जल्दी लेकर जाओ,” राहुल ने कहा।

    “मैं क्यों जाऊं? आप ले जाइए। ज़रूरी है क्या हर बार मैं ही जाऊं?” शिखा ने नाराज़गी जताई।

    “ये तुम्हारा काम है। पहले भी तुम ही जाती थी।”

    “पहले की बात और थी, तब दीप्ति के साथ मेरी दोस्ती थी, इसलिए चली जाती थी। लेकिन आज मैं नहीं जा रही।”

    “ये गलत है। ड्यूटी तुम्हारी है, जाना तो पड़ेगा।”

    “ठीक है, ले जाती हूं।” शिखा ने अनमने मन से फाइल उठाई और शेखर के केबिन की ओर चली गई।


    --

    शिखा ने दरवाजा खटखटाया।
    “May I come in, Sir?”

    “Yes, come in,” शेखर ने कहा।

    जैसे ही शिखा अंदर आई, वह उसे देखते ही पहचान गई। लेकिन उसने ऐसा दिखाया जैसे वह उसे नहीं जानती।

    “सर, आपने जो फाइल मंगवाई थी, वो मैं लेकर आई हूं,” उसने टेबल पर फाइल रखते हुए कहा।

    शेखर उसे देखकर कुछ कहने ही वाला था कि शिखा ने तुरंत कहा,
    “सर, अब मैं चलूं? जो फाइलें आपने मंगवाई थीं, वो दे दी हैं।”

    उसके ऐसे बर्ताव से शेखर सोच में पड़ गया —
    "क्या वाकई उसने मुझे नहीं पहचाना? इतने साल हो गए… शायद भूल गई हो।"
    उसने अपने चेहरे को छुआ।
    "कॉलेज के दिनों में मेरे बाल लंबे थे, दाढ़ी नहीं रखता था। अब बाल छोटे हैं और हल्की दाढ़ी भी है। शायद इसी वजह से… लेकिन शिखा तो बिल्कुल नहीं बदली। वही पतली-दुबली… बस कपड़े पहनने का अंदाज़ थोड़ा बदल गया है।"


    ---



    शिखा अपनी सीट पर लौट आई। शेखर को इतने सालों बाद देखकर उसके मन में हलचल मच गई थी। उसने भले ही पहचानने का नाटक किया, लेकिन अब वह उसी ऑफिस में था जहां वह काम करती थी। उसने परेशान होकर माथे पर हाथ रख लिया।

    शेखर का भी ऑफिस में पहला दिन था। उसके पास फालतू बातों का समय नहीं था। वह अपने काम में लग गया और शिखा भी खुद को काम में व्यस्त करने की कोशिश करने लगी।

    शाम को शिखा, शेखर से पहले ही ऑफिस से निकल गई।


    -

    शिखा घर पहुंची। उसकी मां ने दरवाजा खोला।
    “आ गई बेटा? मैं चाय लाती हूं,” कहकर वे रसोई में चली गईं।

    शिखा अपने कमरे में चली गई। थोड़ी देर में मां चाय लेकर आईं।
    “बेटा, अब तुम शादी कर लो। क्यों नहीं मानती मेरी बात? तुम्हारे पापा और मेरी जिम्मेदारी भी पूरी हो जाएगी।”

    “तो क्या मैं आप लोगों पर बोझ हूं?” शिखा ने नाराज़ होकर कहा।

    “नहीं बेटा, बोझ नहीं, लेकिन जिम्मेदारी तो हो। तुम्हारा घर-बार, बच्चे… यही ख्वाहिश है मेरी।”

    “दीदी के बच्चे हैं ना… आप उनसे मन नहीं भरता जो हर समय मुझ पर शादी का दबाव डालती हैं?” शिखा ने झुंझलाकर कहा।

    उसकी मां गुस्से में कमरे से बाहर चली गईं। शिखा भी उनके पीछे आई।
    “मॉम, गुस्सा क्यों कर रही हो? ठीक है, कोई बात नहीं… मैं शादी कर लूंगी।”

    “सच में? मुझे बहला तो नहीं रही?”

    “नहीं मॉम, मैं सच में कह रही हूं।”

    यह सुनकर उसकी मां खुश हो गईं।


    ---

    शेखर की शाम

    उधर शेखर अपने फ्लैट पहुंचा। वह अभी नया-नया यहां शिफ्ट हुआ था। उसके मॉम-डैड उसी शहर में नहीं रहते थे। घर पहुंचते ही मां का फोन आ गया।

    “हां बेटा, आज तुम्हारा पहला दिन था ऑफिस में। कैसा रहा?”

    “ठीक था मॉम, मगर बहुत थक गया हूं।”

    “खाना खा लिया?”

    “हां मॉम, आते हुए होटल से खाकर आया हूं। वैसे कुक का इंतज़ाम करना है। देखता हूं कोई मिल जाए।”

    “बेटा, अब तुम शादी कर लो। बीवी होगी तो तुम्हारा ख्याल रखेगी। मुझे भी चिंता नहीं रहेगी।”

    “मॉम, आप फिर शुरू हो गईं! शादी को छोड़कर कोई और बात करो।”

    मां गुस्से से फोन काट देती हैं। शेखर फिर कॉल करता है।
    “मॉम, फोन क्यों काट देती हो? ठीक है, शादी कर लूंगा।”

    “सच कह रहे हो ना? बहला तो नहीं रहे?”

    “नहीं मॉम, सच कह रहा हूं।”


    ---

  • 2. Kahani Teri Meri - Chapter 2

    Words: 703

    Estimated Reading Time: 5 min

    "...मॉम, यह बात बिल्कुल गलत है... आप फोन क्यों काट देती हो? ठीक है, मैं शादी कर लूँगा।"

    "...सच कह रहे हो? मुझे कहीं बहला तो नहीं रहे...?"

    "...नहीं मॉम, सच कह रहा हूँ।"

    माँ से बात करने के बाद शेखर अपने कमरे में आया और कपड़े बदलने लगा। लेकिन उसके दिमाग में शिखा ही घूम रही थी। कॉलेज के वे दिन उसकी आँखों के सामने तैरने लगे—जब शिखा उसकी जूनियर हुआ करती थी।

    ---

    कॉलेज की यादें

    कैंटीन में शेखर अपने दोस्तों के साथ बैठा था। सभी मज़ाकिया मूड में थे और कॉलेज की लड़कियों पर बातें कर रहे थे।

    अरविंद बोला, "...आज जो लड़की सबसे पहले गेट से अंदर आएगी, शेखर उसे पटाएगा।"

    शेखर मुस्कुराया, "...किसी लड़की को पटाना तो मेरे बाएँ हाथ का काम है।"

    अनिल ने चैलेंज दिया, "...तो ठीक है, जो भी सबसे पहले गेट से अंदर आएगी, उसके पास तुम जाओगे।"

    तभी गेट से एक स्कूटी अंदर आती दिखी। स्कूटी पर बैठी लड़की ने हेलमेट उतारा और अपने बालों को झटका। वह शिखा थी।

    रमेश ने तुरंत कहा, "...लो, आ गई तुम्हारी किस्मत। यही है वो लड़की।"

    शेखर ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "...मगर यह है कौन?"

    अरविंद बोला, "...इसका नाम शिखा है। बीकॉम फाइनल ईयर में पढ़ती है।"

    "...शिखा... नाम तो मुझसे मैच करता है। अब तो इसे कैसे भी पटाना ही पड़ेगा।"

    अनिल ने कहा, "...इतनी आसानी से नहीं पटेगी। इसके घर के बारे में मैं जानता हूँ। सीधी-सादी लड़की है।"

    "...कोई बात नहीं। आज नहीं तो कल, ये होगी मेरी दोस्त।" शेखर हँसते हुए खड़ा हुआ और पार्किंग की ओर बढ़ गया।

    ---

    पहली मुलाकात

    शेखर ने पार्किंग में जाकर जानबूझकर कंधा शिखा से टकराया।

    "...सॉरी, मुझे पता नहीं चला। पीछे देख रहा था। आपको लगी तो नहीं?"

    शिखा ने हल्की मुस्कान दी, "...कोई बात नहीं।"

    "...जरा सुनिए..." शेखर ने कहा।

    शिखा उसकी ओर देखने लगी।

    "...शायद यह आपका रुमाल गिर गया है," शेखर ने जमीन से एक रुमाल उठाते हुए कहा।

    "...नहीं, मेरा नहीं है," शिखा ने कहा और आगे बढ़ गई।

    शेखर कैंटीन में वापस लौटा।

    अरविंद ने चिढ़ाते हुए कहा, "...क्या हुआ? बात नहीं बनी क्या?"

    शेखर ने आत्मविश्वास से कहा, "...अभी तो बस मुलाकात हुई है। बात भी होगी। शेखर किसी लड़की को प्रपोज करे और वो मना कर दे, ऐसा नहीं होता।"

    रमेश हँसकर बोला, "...चलो, देखते हैं। वैसे हमारी क्लास शुरू होने वाली है।"

    ---

    शिखा का प्रोफाइल

    शेखर और उसके दोस्त MBA फाइनल ईयर के स्टूडेंट थे। पढ़ाई में तेज़, लेकिन साथ में मस्ती भी करते थे। शेखर की पर्सनैलिटी सबसे हटकर थी। स्मार्ट, स्टाइलिश और कॉन्फिडेंट—कई लड़कियाँ उस पर फिदा रहतीं।

    शिखा का स्वभाव बिल्कुल अलग था। वह बीकॉम फाइनल ईयर में थी, पढ़ाई में अच्छी और शांत स्वभाव की। लड़कों से उसका कोई खास मेलजोल नहीं था।

    ---

    अगले दिन शिखा जब कॉलेज आई तो शेखर गेट पर खड़ा था। उसने शिखा को देखकर हाथ हिलाया। शिखा ने नज़रअंदाज़ किया और सीधा पार्किंग की ओर बढ़ गई।

    बाद में जब वह लाइब्रेरी में पढ़ रही थी, शेखर उसके पास वाली कुर्सी पर बैठ गया।

    "...कैसी हैं आप?" शेखर ने मुस्कुराकर पूछा।

    शिखा ने किताब से नज़र उठाई और हल्की नज़र डाली, फिर बिना जवाब दिए पढ़ने लगी।

    "...आपने शायद मुझे पहचाना नहीं। हम लोग कल पार्किंग में मिले थे।"

    शिखा ने सिर हिलाकर "हाँ" कहा।

    "...आप कौन सी क्लास में हैं?"

    "...बीकॉम फाइनल," शिखा ने छोटा सा जवाब दिया और फिर पढ़ाई में लग गई।

    धीरे-धीरे शेखर अलग-अलग बहानों से शिखा के पास जाने लगा। कैंटीन, लाइब्रेरी, सीढ़ियों पर—जहां भी मौका मिलता, वह मिल जाता। यह सब जानबूझकर प्लान किया गया था, लेकिन शिखा को लगता था कि ये मुलाकातें यूँ ही हो रही हैं।

    --

    एक दिन शेखर लाइब्रेरी में आया और बोला,

    "...अगर आपको स्टडी में कोई हेल्प चाहिए हो तो मैं हूँ। MBA फाइनल ईयर में हूँ।"

    शिखा ने किताब बंद करते हुए कहा, "...सच में, मुझे थोड़ी मदद चाहिए।"

    उसने अकाउंट की बुक उसके सामने खोल दी।

    शेखर पढ़ाई में अच्छा था, इसलिए उसकी मदद करने लगा। कुछ ही दिनों में दोनों की दोस्ती हो गई। एग्ज़ाम नज़दीक थे और शेखर तय कर चुका था कि एग्ज़ाम से पहले वह शिखा को प्रपोज करेगा।

    धीरे-धीरे शिखा को भी शेखर अच्छा लगने लगा। उसके मन में हल्की-हल्की फीलिंग्स उठने लगीं।

    ---

  • 3. Kahani Teri Meri - Chapter 3

    Words: 1013

    Estimated Reading Time: 7 min

    शेखर स्टडी में अच्छा था। इस बात में कोई शक नहीं था। वह शिखा की थोड़ी-बहुत हेल्प करने लगा था। एग्ज़ाम शुरू होने में कुछ ही दिन बाकी थे। वह एग्ज़ाम शुरू होने से पहले उसे प्रपोज़ करना चाहता था। धीरे-धीरे वह शिखा को भी अच्छा लगने लगा था। शिखा के मन में उसके लिए फ़ीलिंग उठने लगी थीं। जब भी शेखर साथ होता था, शिखा को शेखर की कंपनी अच्छी लगती थी।


    एग्ज़ाम शुरू होने में थोड़े ही दिन बाकी थे। स्टूडेंट्स ने कॉलेज जाना बंद कर दिया था। वे सिर्फ़ एग्ज़ाम के दिन ही जाने वाले थे। शेखर का पूरा ग्रुप किसी होटल में बैठा हुआ था। अरविंद शेखर से कहने लगा,
    "...तुमने शिखा को प्रपोज़ नहीं किया... तुम शर्त हार गए..."
    "...अभी कॉलेज ख़त्म नहीं हुआ... इसलिए अभी तक मैं शर्त नहीं हारा हूँ..."
    "...फ़िर भी एग्ज़ाम के दिन तो पता नहीं मिल सकेंगे या नहीं... जैसे उसका पेपर इवनिंग को होगा... तुम्हारा एग्ज़ाम मॉर्निंग को होगा... इसलिए शर्त हार चुके हो..."
    "...तो ठीक है, मैं उसे अभी प्रपोज़ करता हूँ..."


    शेखर ने शिखा को व्हाट्सएप मैसेज सेंड कर दिया।
    "...मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ अभी... और उसने होटल का नाम लिख दिया..."
    एक ही मिनट में मैसेज का जवाब आ गया।
    "...कि मैं आ रही हूँ..."
    उसने अपने दोस्तों को मैसेज दिखाए।
    "...देखो, उसने कह दिया... वह यहीं पर मुझसे मिलने आ रही है... मैं उसे अभी प्रपोज़ करने वाला हूँ..."


    असल में, शिखा अपनी फ़्रेंड के साथ पहले ही उस होटल में बैठी हुई थी। उसने शेखर को अंदर आते हुए देख लिया था। जब शेखर ने उसे मैसेज किया, तो वह इसीलिए उसी टाइम मिलने को तैयार हो गई। वह उसे देखकर टेबल की तरफ़ आने लगी। उधर शेखर अपने दोस्तों से कह रहा था,
    "...देख लेना, आज मैं उसे प्रपोज़ करूँगा... और वह मेरी प्रपोजल स्वीकार कर लेगी... इसलिए ऐसा हो ही नहीं सकता... जिस लड़की पर मैं प्रपोज़ करूँ... और वह मुझे मना कर दे..."
    वह अपने दोस्तों से लगा हुआ था।


    उसके दोस्त हँस रहे थे। अचानक सभी हँसते हुए चुप हो गए... और वे सब शेखर की पिछली साइड देखने लगे।
    "...क्या हुआ... तुम लोग इतने सीरियस क्यों हो गए..."
    उनसे कहता हुआ शेखर अपनी पीछे देखने लगा। तो पीछे शिखा खड़ी हुई थी।


    "...अरे शिखा, तुम यहाँ..."
    उसे देखकर शेखर बोला।
    "...तभी जब तुम कह रहे थे... कि तुम मुझे प्रपोज़ करोगे... और मैं तुम्हारा प्रपोजल स्वीकार कर लूँगी... मैं आपको अपना अच्छा दोस्त मानती थी... मुझे नहीं पता था कि तुम्हारे मन में यह सब चल रहा है... कहीं ना कहीं मैं तुम्हें पसंद भी करने लगी थी... तुम इतने छोटे दिमाग के निकले... मैंने सोचा नहीं था... तुम तो मुझे ज़िन्दगी में कभी मत मिलना..."


    शिखा जाने लगी तो शेखर उसके पीछे आने लगा।
    "...प्लीज़... मेरा पीछा छोड़ दो..."
    शिखा ने आँखें निकालकर उसे देखा। वह गुस्से में वहाँ से चली गई। शेखर ने शिखा को मैसेज भी करने की कोशिश की, मगर शिखा ने उसे ब्लॉक कर दिया था। फिर दोनों के एग्ज़ाम का टाइम अलग-अलग था। ना ही शेखर में इतनी हिम्मत थी कि वह शिखा से बात कर सके। दोनों के एग्ज़ाम हो गए।


    शेखर ने दिनों बाद शिखा को सिग्नल पर देखा था। ऐसा नहीं था कि शेखर की लाइफ़ में उसके बाद कोई लड़की नहीं आई थी। स्टडी ख़त्म करने के बाद उसने अपनी नौकरी स्टार्ट कर दी थी। उस दौरान भी उसकी दोस्ती कई लड़कियों से हुई। मगर कोई रिलेशनशिप शादी तक नहीं पहुँच सका था। ना ही उसके दिल में ऐसी कोई फ़ीलिंग थी कि वह उसे रिश्ता लंबा ले जाता। आज शिखा को सिग्नल पर देखकर उसके दिल में कुछ-कुछ होने लगा था। फिर जब उसे ऑफ़िस में देखा, तो उसका दिल खुश हो गया था।


    शिखा एक प्यारी और ख़ूबसूरत लड़की थी। उसकी ज़िन्दगी में कभी कोई नहीं आया था। कॉलेज में कई लड़कों ने उसे प्रपोज़ करने की कोशिश की थी, मगर वह हमेशा लड़कों से दूर रहती थी। शेखर ने उससे कॉलेज में दोस्ती की थी, तो वह भी शेखर पसंद आ गया था। उसका मन शेखर की ओर खींचने लगा था। मगर होटल में जब उसे शेखर की सच्चाई पता चली, तो वह सुनकर हैरान रह गई थी। कैसे दोस्तों से शर्त जीतने के लिए शेखर उसे प्रपोज़ करने वाला था। उसका ऐसा मन टूटा कि वह फिर कभी किसी पर यकीन नहीं कर पाई।


    अपनी स्टडी ख़त्म होने के बाद उसे नौकरी भी मिल गई थी। मगर उसकी लाइफ़ में कोई नहीं आया। उसके मॉम ने उसकी शादी की कोशिश भी की, मगर कोई भी बात आगे नहीं बढ़ी। आज उसने ऑफ़िस में शेखर को देखा, तो उसे वही कॉलेज वाला शेखर याद आ गया। उसके मन में उसके लिए वही नफ़रत थी।


    रात को अपने बिस्तर पर पड़ा शेखर शिखा के बारे में सोच रहा था।
    "...इतने सालों बाद भी तुम वैसे ही ख़ूबसूरत हो... मगर अगर तुम्हारे मन में गुस्सा भी वही रहा मेरे लिए... तो बहुत मुश्किल हो जाएगी..."
    क्योंकि शेखर को पता था कि शिखा ने अपने कानों से सुन लिया था जो शेखर ने कहा था।
    "...चलो कोई बात नहीं, अब तो तुम मेरे ही ऑफ़िस में हो... आज नहीं तो कल मैं तुझे अपने मन की बात बता ही दूँगा... फिर देखा जाएगा कि क्या होता है..."
    वह सोच रहा था।


    शिखा की आँखों में नींद नहीं थी। वह अपनी बालकनी में चेयर पर बैठी हुई थी। उसके दिमाग में शेखर घूम रहा था। वह अब तक पहले वाला इंसिडेंट बिल्कुल भी नहीं भूली थी। वह सोचने लगी,
    "...मैं दुनिया में सिर्फ़ एक इंसान से नफ़रत करती हूँ... और मुझे उसी के साथ काम करना पड़ेगा... वह मेरा बॉस है... मैं उसे कुछ कह भी नहीं सकती..."
    शिखा को गुस्सा बहुत आ रहा था। शेखर के बारे में सोचती हुई वह कितनी देर बालकनी में बैठी रही।


    अगली सुबह उसे ऑफ़िस जाना था और वह लेट नहीं होना चाहती थी। इसलिए वह उठकर सोने के लिए चली गई।


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  • 4. Kahani Teri Meri - Chapter 4

    Words: 1013

    Estimated Reading Time: 7 min

    शेखर स्टडी में अच्छा था। इसमें कोई शक नहीं था। वह शिखा की थोड़ी-बहुत मदद करने लगा था। एग्ज़ाम शुरू होने में कुछ ही दिन बाकी थे। वह एग्ज़ाम शुरू होने से पहले उसे प्रपोज करना चाहता था। धीरे-धीरे वह शिखा को भी अच्छा लगने लगा था। शिखा के मन में उसके लिए भावनाएँ उठने लगी थीं। जब भी शेखर साथ होता था, शिखा को शेखर की संगति अच्छी लगती थी।


    एग्ज़ाम शुरू होने में थोड़े ही दिन बाकी थे। स्टूडेंट्स ने कॉलेज जाना बंद कर दिया था। वे सिर्फ़ एग्ज़ाम के दिन ही जाने वाले थे। शेखर का पूरा ग्रुप किसी होटल में बैठा हुआ था। अरविंद शेखर से कहने लगा,
    "...तुमने शिखा को प्रपोज नहीं किया... तुम शर्त हार गए..."
    "...अभी कॉलेज ख़त्म नहीं हुआ... इसलिए अभी तक मैं शर्त नहीं हारा हूँ..."
    "...फिर भी एग्ज़ाम के दिन तो पता नहीं मिल सकेंगे या नहीं... जैसे उसका पेपर इवनिंग को होगा... तुम्हारा एग्ज़ाम मॉर्निंग को होगा... इसलिए शर्त हार चुके हो..."
    "...तो ठीक है, मैं उसे अभी प्रपोज करता हूँ..."


    शेखर ने शिखा को व्हाट्सएप मैसेज भेज दिया।
    "...मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ अभी... "
    और उसने होटल का नाम लिख दिया। एक ही मिनट में मैसेज का जवाब आ गया,
    "...कि मैं आ रही हूँ..."
    उसने अपने दोस्तों को मैसेज दिखाए,
    "...देखो, उसने कह दिया... वह यहीं पर मुझसे मिलने आ रही है... मैं उसे अभी प्रपोज करने वाला हूँ..."


    असल में, शिखा अपनी फ़्रेंड के साथ पहले ही उस होटल में बैठी हुई थी। उसने शेखर को अंदर आते हुए देख लिया था। जब शेखर ने उसे मैसेज किया, तो वह इसीलिए उसी समय मिलने को तैयार हो गई। वह उसे देखकर टेबल की तरफ़ आने लगी। उधर शेखर अपने दोस्तों से कह रहा था,
    "...देख लेना, आज मैं उसे प्रपोज करूँगा... और वह मेरी प्रपोजल स्वीकार कर लेगी... इसलिए ऐसा हो ही नहीं सकता... जिस लड़की पर मैं प्रपोज करूँ... और वह मुझे मना कर दे..."
    वह अपने दोस्तों से लगा हुआ था।


    उसके दोस्त हँस रहे थे। अचानक सभी हँसते हुए चुप हो गए... और वे सब शेखर की पिछली साइड देखने लगे।
    "...क्या हुआ... तुम लोग इतने सीरियस क्यों हो गए..."
    उनसे कहता हुआ शेखर अपनी पीछे देखने लगा। तो पीछे शिखा खड़ी हुई थी।


    "...अरे शिखा, तुम यहाँ..."
    उसे देखकर शेखर बोला।
    "...तभी जब तुम कह रहे थे... कि तुम मुझे प्रपोज करोगे... और मैं तुम्हारा प्रपोजल स्वीकार कर लूँगी... मैं तुम्हें अपना अच्छा दोस्त मानती थी... मुझे नहीं पता था कि तुम्हारे मन में यह सब चल रहा है... कहीं न कहीं मैं तुम्हें पसंद भी करने लगी थी... तुम इतने छोटे दिमाग के निकले... मैंने सोचा नहीं था... तुम तो मुझे जिंदगी में कभी मत मिलना..."


    शिखा जाने लगी तो शेखर उसके पीछे आने लगा।
    "...प्लीज़... मेरा पीछा छोड़ दो..."
    शिखा ने आँखें निकालकर उसे देखा। वह गुस्से में वहाँ से चली गई। शेखर ने शिखा को मैसेज भी करने की कोशिश की, मगर शिखा ने उसे ब्लॉक कर दिया था। फिर दोनों के एग्ज़ाम का समय अलग-अलग था। न ही शेखर में इतनी हिम्मत थी कि वह शिखा से बात कर सके। दोनों के एग्ज़ाम हो गए।


    कुछ दिन बाद शेखर ने शिखा को सिग्नल पर देखा था। ऐसा नहीं था कि शेखर की लाइफ़ में उसके बाद कोई लड़की नहीं आई थी। स्टडी ख़त्म करने के बाद उसने अपनी नौकरी शुरू कर दी थी। उस दौरान भी उसकी दोस्ती कई लड़कियों से हुई, मगर कोई रिलेशनशिप शादी तक नहीं पहुँच सका था। न ही उसके दिल में ऐसी कोई भावना थी कि वह किसी रिश्ते को लंबा ले जाता। आज शिखा को सिग्नल पर देखकर उसके दिल में कुछ-कुछ होने लगा था। फिर जब उसने उसे ऑफ़िस में देखा तो उसका दिल खुश हो गया था।


    शिखा एक प्यारी और ख़ूबसूरत लड़की थी। उसकी ज़िंदगी में कभी कोई नहीं आया था। कॉलेज में कई लड़कों ने उसे प्रपोज करने की कोशिश की थी, मगर वह हमेशा लड़कों से दूर रहती थी। शेखर ने उससे कॉलेज में दोस्ती की थी, तो उसे भी शेखर पसंद आ गया था। उसका मन शेखर की ओर खींचने लगा था। मगर होटल में जब उसे शेखर की सच्चाई पता चली, तो वह सुनकर हैरान रह गई थी। कैसे दोस्तों से शर्त जीतने के लिए शेखर उसे प्रपोज करने वाला था। उसका ऐसा मन टूटा कि वह फिर कभी किसी पर यकीन नहीं कर पाई।


    अपनी स्टडी ख़त्म होने के बाद उसे नौकरी भी मिल गई थी। मगर उसकी लाइफ़ में कोई नहीं आया। उसकी मॉम ने उसकी शादी की कोशिश भी की, मगर कोई भी बात आगे नहीं बढ़ी। आज उसने ऑफ़िस में शेखर को देखा तो उसे वही कॉलेज वाला शेखर याद आ गया। उसके मन में उसके लिए वही नफ़रत थी।


    रात को अपने बिस्तर पर लेटा शेखर शिखा के बारे में सोच रहा था।
    "...इतने सालों बाद भी तुम वैसे ही ख़ूबसूरत हो... मगर अगर तुम्हारे मन में वही गुस्सा है मेरे लिए... तो बहुत मुश्किल हो जाएगी..."
    क्योंकि शेखर को पता था कि शिखा ने अपने कानों से सुन लिया था जो शेखर ने कहा था।
    "...चलो कोई बात नहीं, अब तो तुम मेरे ही ऑफ़िस में हो... आज नहीं तो कल मैं तुम्हें अपने मन की बात बता ही दूँगा... फिर देखा जाएगा कि क्या होता है..."
    वह सोच रहा था।


    शिखा की आँखों में नींद नहीं थी। वह अपनी बालकनी में चेयर पर बैठी हुई थी। उसके दिमाग में शेखर घूम रहा था। वह अब तक पहले वाला इंसिडेंट बिल्कुल भी नहीं भूली थी। वह सोचने लगी,
    "...मैं दुनिया में सिर्फ़ एक इंसान से नफ़रत करती हूँ... और मुझे उसी के साथ काम करना पड़ेगा... वह मेरा बॉस है... मैं उसे कुछ कह भी नहीं सकती..."
    शिखा को गुस्सा बहुत आ रहा था। शेखर के बारे में सोचती हुई वह कितनी देर बालकनी में बैठी रही।


    अगली सुबह उसे ऑफ़िस जाना था और वह लेट नहीं होना चाहती थी। इसलिए वह उठकर सोने के लिए चली गई।


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  • 5. Kahani Teri Meri - Chapter 5

    Words: 1010

    Estimated Reading Time: 7 min

    सुबह शिखा को ऑफिस जाना था और वह लेट नहीं होना चाहती थी। इसलिए वह उठकर सोने चली गई।


    अगली सुबह शिखा जल्दी ही ऑफिस के लिए निकल गई क्योंकि वह लेट नहीं होना चाहती थी।

    "...अरे वाह! तुम तो आज सबसे जल्दी आ गई।" प्रीति ने उसे आते ही कहा।

    "...समझ गई मैं... कि तू जल्दी क्यों आई है..."

    "...अच्छा, किस लिए आई हूँ? मुझे तो लगा ऑफिस में काम करने ही आई हूँ..." शिखा ने उसे बोला।


    "...मुझे पता है तुम्हारा भी दिल आ गया है... नए इंचार्ज पर... ऑफिस की सभी लड़कियों में उसी के चर्चे हैं... और अंदर की खबर है कि उसने शादी नहीं की है... अभी तक वह कुंवारा है..." प्रीति खुश होकर उसे बता रही थी।


    प्रीति को इतना खुश देखकर शिखा मुस्कुरा पड़ी।

    "...तो फिर ठीक है ना प्रीति... तुम कर लो उससे शादी..." शिखा ने कहा।

    "...मेरा तो बहुत मन है... मुझे तो वह पहली नजर में ही भा गया है... कितना हैंडसम है... मगर पता नहीं मैं उसको पसंद आऊँगी भी..." प्रीति उदास होकर बोली।

    "...वैसे तुम्हें कोशिश कर लेनी चाहिए... क्या पता तुम्हारा काम हो जाए..." शिखा ने फिर उससे कहा।



    "...वैसे मुझे लगता है... हम ऑफिस काम करने आते हैं प्रीति... अपनी सीट पर जाओ और मुझे भी काम करने दो..." ऑफिस का टाइम स्टार्ट होने वाला था। लगभग पूरा ऑफिस आ चुका था। तभी शेखर भी अंदर आया। वह सीधा अपने ऑफिस में चला गया। उसके ही जाते ही लड़कियों में चर्चा होने लगी,"...कितना हैंडसम लगता है... एक बार भी नजर उठाकर नहीं देखा... उसने किसी को..." लड़कियाँ एक-दूसरे से कहने लगी थीं। उन सब लड़कियों को देखकर शिखा सोचने लगी,"...कुछ दिन रुक जाओ... सिवाय लड़कियों को देखने के और कुछ नहीं करने वाला यह..."


    लंच टाइम में प्रीति ने फिर शिखा से कहा, "शिखा, कैंटीन में चलते हैं। वहीं पर कुछ खाएंगे..."

    "...नहीं, मेरा मन नहीं है... वैसे मैं लंच लेकर आई हूँ साथ में, लेकिन मुझे भूख नहीं है..." शिखा ने कहा।

    "...फिर भी तुम मेरे साथ चलो... प्लीज..." प्रीति के कहने पर शिखा उसके साथ चली गई।

    "...वह देखो! वह भी कैंटीन में बैठा हुआ है... इसीलिए मैं तुम्हें लेकर आई हूँ..."


    शिखा ने देखा, शेखर सामने बैठा हुआ था। ऑफिस के कुछ इम्प्लॉयी भी उसके पास बैठे हुए थे।

    "...प्लीज आप लोग अपना लंच स्टार्ट करें..."

    "...सर, आप मगर आप लंच नहीं लेकर आए... आपकी किचन का सामान सेट नहीं हुआ होगा... तो भाभी जी ने लंच नहीं बनाकर दिया होगा..." ऑफिस का ही एक एम्प्लॉयी, रवि बोला।

    "...मेरी अभी तक शादी नहीं हुई है... इसलिए कोई खाना बनाने वाली बीवी नहीं है... अभी तक मेरे कुक का इंतजाम नहीं हुआ है... इसलिए मुझे बाहर से ही खाना पड़ रहा है..." शेखर ने मुस्कुराकर कहा।

    "...सर, हम लोगों ने अपना लंच आपके आने से पहले ही खा लिया था... वरना आप हमारा लंच कर सकते थे..." एक्चुअली शेखर कैंटीन में बाद में आया था। ऑफिस के कर्मचारी पहले ही अपना लंच स्टार्ट कर चुके थे।

    "...कोई बात नहीं... प्लीज आप लोग सब अपना लंच खत्म करो... लंच टाइम ओवर होने वाला है..." वह चाय पीता हुआ बोला। वह चाय के साथ ही कुछ खा रहा था।

    "...सर, आज शिखा ने लंच नहीं किया... आप इसका लंच कर सकते हैं... शिखा की मॉम बहुत टेस्टी खाना बनाती है..." प्रीति जबरदस्ती उसके पास आकर बोली।


    इससे पहले शिखा कुछ बोलती, शेखर ने खड़ा होकर आगे हाथ बढ़ा दिया,"...लाइए शिखा जी, अगर आप अपना लंच नहीं कर रही... तो आपकी मॉम के हाथ का खाना आज मैं खा लेता हूँ..." शिखा को ना चाहते हुए भी अपना बॉक्स शेखर को देना पड़ा।


    अपना लंच बॉक्स शेखर को देने के बाद शिखा दूसरे टेबल की तरफ बढ़ गई।

    "...आप हमें ज्वाइन कर सकती हैं... शिखा जी और प्रीति जी..."

    "...नहीं, हम वहाँ पर बैठते हैं..." शिखा बोली।

    "...हम भी उनके साथ बैठते हैं ना..." प्रीति धीरे से बोली। शिखा ने प्रीति को अपनी आँखें दिखाईं। ना चाहते हुए भी प्रीति उसके साथ दूसरे टेबल पर चली गई। शेखर ने भी शिखा का चेहरा पढ़ लिया था। वह समझ गया था कि शिखा का मूड खराब है। उसने खाना खाने के बाद शिखा को उसका लंच बॉक्स लौटा दिया,"...शिखा जी, आपकी मॉम सच में बहुत अच्छा खाना बनाती है..."

    "...सर, अगर आपको घर का खाना ही खाना है... तो मैं रोज़ आपका लंच ले आया करूँ... मेरी मॉम भी बहुत अच्छा खाना बनाती है..." प्रीति शेखर से बोली।

    "...नहीं नहीं प्रीति जी... अब रोज़-रोज़ थोड़ी अच्छा लगता है... मेरा कुक आज आ जाएगा। वैसे अगर... जिस दिन शिखा जी अपना लंच नहीं करेंगी... उस दिन मैं इनका लंच ज़रूर खा सकता हूँ..." शेखर की बात सुनकर सभी एम्प्लॉयी शिखा की तरफ देखने लगे।

    "...ऑफिस का टाइम होने वाला है..." यह कहकर शिखा खड़ी हो गई।

    "...चलो प्रीति, हम चलते हैं..." शिखा फिर बोली क्योंकि प्रीति अपनी सीट से हिल ही नहीं रही थी।


    शिखा और प्रीति चली गईं। शेखर और बाकी इम्प्लॉयी भी अपनी जगह की तरफ जाने लगे।

    "...आपको कोई हेल्प चाहिए हो तो आप मुझे बता सकते हैं... मैं आप ही की कॉलोनी में ही हूँ... किसी कामवाली... कुक का इंतज़ाम करना हो तो..." पीयूष वर्मा ने कहा क्योंकि उसने सुबह शेखर को फ्लैट से निकलते हुए देखा था।

    "...अच्छा, तो क्या तुम भी मेरी बिल्डिंग में रहते हो...?"

    "...हाँ सर, मैंने देखा है आपको जब आप इस फ्लैट में शिफ्ट हुए थे..."

    "...ठीक है... चलो अच्छी बात है... अगर कोई हेल्प चाहिए होगी तो मैं तुम्हें बता दूँगा..."

    "...शिखा भी उसी बिल्डिंग में रहती है... इनका फ्लैट भी वहीं पर है..." उसने शेखर को बताया।


    पीयूष वर्मा की बात सुनकर शेखर खुश हो गया। मगर उसने अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिया।

    "...तुम कौन सी फ्लोर पर रहते हो पीयूष...?"

    "...मेरा घर थर्ड फ्लोर पर है... मगर शिखा जी टॉप, फोर्थ फ्लोर पर रहती हैं... आप भी तो उसी फ्लोर पर ही रहते हैं..."


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  • 6. Kahani Teri Meri - Chapter 6

    Words: 1157

    Estimated Reading Time: 7 min

    "...अच्छा... तो क्या तुम भी मेरी बिल्डिंग में रहते हो...?" "...हाँ सर, मैंने देखा है...आप जब उस फ्लैट में शिफ्ट हुए थे... मगर मुझे यह नहीं पता था कि आप हमारे बॉस हैं..." "...ठीक है...चलो अच्छी बात है...अगर कोई हेल्प चाहिए होगी तो मैं बता दूँगा।" "...शिखा भी तो उसी बिल्डिंग में रहती है...उनका फ्लैट भी वहीं पर है..." उसने शेखर को बताया।


    लंच टाइम खत्म हो गया। सभी अपने-अपने काम में लग गए। शिखा अपना काम कर रही थी, मगर उसका दिमाग घूम रहा था। उसे दिख रहा था कि शेखर पीछे हटने वाला नहीं है। मुझसे ज़रूर कोई पंगा करेगा और साथ में उसे प्रीति पर बहुत गुस्सा आ रहा था। क्या ज़रूरत थी मेरे लंच बॉक्स को उसे देने की?


    प्रीति, शिखा की ऑफिस में सबसे अच्छी सहेली थी। वह एक सीधी-सादी लड़की थी, जिसे हर हाल में शादी करनी थी। वह हर लड़के को देखकर शादी का सपना देखती, मगर कोई उससे शादी के लिए तैयार नहीं हो रहा था। प्रीति, शिखा के पास वाली बिल्डिंग में ही रहती थी। दोनों का घर नज़दीक था।


    उधर, शेखर के फोन पर उसकी मॉम का फोन आ रहा था। वह अपनी मॉम को किसी बात के लिए मना कर रहा था।
    "...मॉम, आपको बुआ का पता है ना...मैं जिस शहर में जाता हूँ वहाँ पर उसकी सहेली होती है...और उनकी सहेलियाँ कैसी होती हैं...यह आपको भी अच्छे से पता है...मैं नहीं जाने वाला...उनकी सहेली के यहाँ..."
    "...बेटा, तुम्हारी बुआ को बुरा लगेगा...एक बार जाकर मिल आओ...वैसे भी वह तो तुम्हारी ही बिल्डिंग में है...यही बात तो मुझे पसंद नहीं...मॉम..."
    "...देखो मॉम, आजकल तुम किसी की बात नहीं मानते...अगर तुम्हारी बुआ ने कहा है कि तुम जाकर उनसे मिलकर आओ...तो जाकर मिलकर ही आओ...मुझे कुछ नहीं सुनना...तुम्हारी बुआ मुझे चार बातें सुनाएगी...कि मैं तुम्हें उसकी बात नहीं मानने देती..."
    "...ठीक है मॉम...वैसे भी मैं ऑफिस से जल्दी जा रहा हूँ...पहले उन्हीं के यहाँ चला जाऊँगा...बुआ से कहो मुझे उनका एड्रेस सेंड कर दे..." शेखर ने गुस्से से फोन रखा था क्योंकि उसे अपनी बुआ का स्वभाव पता था।


    ऑफिस का टाइम खत्म होने के बाद शिखा को अपने टेलर से अपना सूट पकड़ना था। इसलिए वह अपने टेलर की तरफ चली गई। वहाँ से उसे घर लौटते हुए थोड़ी देर हो गई थी। उसने अपनी मॉम को फोन करके बता दिया था कि वह थोड़ा लेट हो जाएगी। जब घर पहुँची तो अंधेरा हो चला था। उसने अपने घर पहुँचकर बेल बजाई तो किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला। उसने फिर गुस्से में दूसरी बार बेल बजाई। तभी उसके फ्लैट का दरवाज़ा खुला। वह गुस्से में अपनी मॉम को बोलने ही वाली थी तो सामने उसने देखा कि दरवाज़ा शेखर ने खोला है।


    उसने अपनी आँखों को मसला कि उसे मॉम की जगह शेखर दिखाई दे रहा है। फिर उसने अपने फ्लैट के बाहर से अपने फ्लैट का नंबर चेक किया। कहीं वह गलत फ्लैट पर तो नहीं आ गई। उसे ऐसा करते देख शेखर बोला, "...आप ही का घर है शिखा जी...अंदर आ जाइए..." वह उसकी तरफ आँखें फाड़कर देखती हुई घर के अंदर चली गई।


    "...अच्छा हुआ बेटा तू आ गई...मैं तुम्हारी कब से वेट कर रही थी..." उसको देखते ही उसकी मॉम बोली। "...तुम इनसे मिलो...यह शेखर है...शेखर कपूर, मेरी कॉलेज की सहेली का भतीजा है...यह इसी बिल्डिंग में अभी-अभी शिफ्ट हुआ है...बेचारे को अभी तक कोई कामवाली और खाना बनाने वाली नहीं मिली है...होटल से खाना खा रहा है...मैंने इससे कहा है जब तक कोई खाना बनाने वाली नहीं मिल जाती...तुम सुबह-शाम हमारे ही साथ खाना खाना...चलो आ जाओ अब तुम...खाना बनाने में मेरी थोड़ी हेल्प कर दो..." मॉम की बात सुनकर शिखा को इतना गुस्सा आया। उसका मन किया कि टेबल पर जो वासा पड़ा है, वह उठाकर वह शेखर के सिर पर मार दे। एक तो वह इतनी थकी हुई थी, दूसरे वह मॉम के साथ शेखर के लिए खाना बनाएगी। शिखा को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?


    "...वैसे आंटी जी, शिखा उसी ऑफिस में काम करती है जहाँ पर मैं काम करता हूँ...मुझे नहीं पता था कि यह आपकी बेटी है..." शेखर की बात सुनकर मॉम हँसने लगी। "...अच्छा, यह तो बहुत अच्छी बात है...चलो अब तुम दोनों एक ही ऑफिस में काम करते हो...तुम्हारे होते हुए मुझे इसकी फ़िक्र नहीं रहेगी...इसके पापा भी आते ही होंगे...तुम जहाँ पर बैठो हम खाना लगाते हैं...खाना खाने के बाद ही जाना तुम..." "...आंटी, आप ऐसा करें आप खाना लगा दें...मेरा तो फ्लैट साथ में ही है...मैं 2 मिनट में अपने कपड़े चेंज करके आता हूँ...तब तक अंकल जी भी आ जाएँगे..." "...ठीक है बेटा...मगर जल्दी आना वरना खाना ठंडा हो जाएगा।"


    शेखर शिखा की तरफ देखकर मुस्कुराता हुआ बाहर की तरफ चला गया। शिखा को समझने में देर नहीं लगी कि शेखर जान गया था कि यह घर शिखा का है क्योंकि लॉबी में सामने उनकी फ़ैमिली फ़ोटो लगी हुई थी जिसमें शिखा भी थी। वह मन में सोच रही थी, "...कितना चालक बंदा है...मम्मी को भी बेवकूफ़ बना सकता है...मुझे नहीं...काश मैं इसमें ज़हर डाल सकती तो कितना अच्छा होता..." थोड़ी सी देर में शेखर वापस आ गया था। वह नहाकर लोअर टीशर्ट में आया था। दिखने में काफ़ी फ़्रेश लग रहा था।


    शेखर ने खाना स्टार्ट किया। शिखा के मॉम-डैड भी उसके साथ खाना खाने लगे। मगर शिखा बाहर नहीं आई। शेखर के आने से पहले ही वह पूरा खाना टेबल पर लगाकर चली गई थी। "...आंटी जी, शिखा खाना नहीं खाएगी क्या...?" "...नहीं बेटा...वो थोड़ा देर से खाना खाएगी...कह रही थी कि उसे अभी भूख नहीं है...उसने बाहर कुछ खा लिया था..."


    शेखर खाना खाकर चला गया था। शिखा की मॉम ने उसे कह दिया था कि दोनों टाइम का खाना वह उन्हीं के साथ खाएगा। तो शेखर ने कहा, "...आंटी, मैं शाम के खाने के टाइम पर ज़रूर आ जाऊँगा...मगर दिन को नहीं...मुझे बहुत काम होता है..." उधर शिखा जानबूझकर बाहर नहीं निकली थी। जब शेखर चला गया तो वह खाना खाने के बाद वह सीधा अपने बालकनी में जाकर बैठ गई। यह बालकनी उसकी फ़ेवरेट जगह थी जहाँ पर वह ठंडी हवा के साथ-साथ वह चाँद-तारों से भी बातें करती थी। उसका मूड कितना भी खराब होता है, वहाँ बैठकर उसका मन अच्छा हो जाता था। वह आँखें बंद करके टेबल पर पैर रखकर बैठ गई। अभी उसे बैठे हुए थोड़ा टाइम ही हुआ था कि उसने किसी की आवाज़ सुनी, "...शिखा जी, लगता है...हम तो पड़ोसी हो गए हैं..." उसने आँखें खोली तो दूसरे फ्लैट की बालकनी, जो बिल्कुल उसके इसकी बालकनी से लगी हुई थी, वहाँ शेखर खड़ा था।


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  • 7. Kahani Teri Meri - Chapter 7

    Words: 1011

    Estimated Reading Time: 7 min

    अभी उसे बैठे हुए थोड़ा समय नहीं हुआ था कि उसने किसी की आवाज सुनी।

    “शिखा जी… लगता है हम तो पड़ोसी हो गए हैं…”

    उसने आँखें खोलीं तो दूसरे फ्लैट की बालकनी, जो बिल्कुल उसकी बालकनी से लगी हुई थी, वहाँ शेखर खड़ा था। शिखा आँखें फाड़े उसे देखती रही।

    “…क्या बात है शिखा जी… आप कुछ नहीं बोल रही… यह देखिए मेरा फ्लैट बिल्कुल आपके फ्लैट के साथ है…” शेखर बोल रहा था।

    शिखा अपने हाथ पर एक पिंच करती है। वह यह देखना चाहती थी कि यह सच है या सपना है।

    “…आप यहाँ पर क्या कर रहे हैं?” शिखा ने कहा।

    “…कह तो रहा हूँ… यह मेरा कमरा है… सच में आपने बालकनी को बहुत सुंदर सजाया है… यह देखो मेरे रूम की बालकनी तो बिल्कुल रूखी-सूखी सी है… असल में घर तो लड़कियाँ ही बनाती हैं…” शेखर बोल रहा था।

    शिखा की बालकनी में प्लांट्स लगे हुए थे। एक झूला भी था और साथ में दो चेयर और टेबल। असल में इस बिल्डिंग के हर एक फ्लैट में एक रूम की बालकनी ज़्यादा बड़ी थी और शिखा की यह फेवरेट जगह थी।

    शिखा उठकर अंदर जाने लगी।

    “…अरे शिखा जी आप जा रही हैं… मुझे तो आपसे बातें करनी थी…”

    “…नहीं मुझे बहुत नींद आ रही है… मैं सोने जा रही हूँ…” कहते हुए शिखा अंदर आ गई और उसने दरवाज़ा बंद कर लिया।

    वह आकर बेड पर गिर गई। “…हे भगवान! यह इंसान तो बिल्कुल मेरे घर तक पहुँच गया है… मुझे नहीं लगता इससे पीछे छूटूँगी… ऑफिस में उसका होना क्या कम था… मेरे घर में खाना और मेरे घर के ही साथ रहना…”

    शिखा बहुत परेशान थी। वह अपना सिर पीट रही थी। “…हे भगवान! अब मैं क्या करूँ…”

    दूसरी तरफ़ शेखर भी कमरे में चला गया। वह बहुत खुश था। शिखा को उसने सिग्नल बार देखा था। तब से उसके दिमाग में वही घूम रही थी। पहले ऑफिस में, फिर जब वह अपनी बुआ और अपनी सहेली से घर आया तो वह शिखा का घर था और अब उसका कमरा भी शिखा के साथ था, तो वह बहुत खुश था।

    सुबह शिखा की मॉम चाय लेकर उसे उठाने आ गई। शिखा की आदत थी कि वह हमेशा अपनी बालकनी में बैठकर ही चाय पीती थी। उसने हमेशा की तरह अपना कप उठाया और बालकनी में झूले पर आकर बैठ गई। वहीं बैठकर चाय पीने लगी।

    “…गुड मॉर्निंग शिखा जी…” उसने शेखर की आवाज़ सुनी तो झट से आँखें उठाकर देखा। फिर उसे रात की बात याद आ गई।

    “…गुड मॉर्निंग शिखा जी… मैं आपको बुला रहा हूँ…” जब शिखा ने जवाब नहीं दिया तो शेखर फिर बोला।

    “…गुड मॉर्निंग सर…”

    “…आप मुझे सर मत कहो… जहाँ पर मेरा नाम ले सकती हो… जहाँ थोड़ी मैं आपका बॉस हूँ…”

    शिखा उठकर अंदर जाने लगी।

    “…अरे शिखा जी आप जा रही हैं…”

    “…हाँ मुझे थोड़ा काम है…” वह कहते हुए चली गई।

    “…अब मेरा कमरा भी लगता मेरा नहीं रहा… अब तो मैं बालकनी में भी नहीं बैठ सकती हूँ…” शिखा कमरे में अपना सिर पकड़कर बैठी हुई थी।

    मगर वह गुनगुनाता हुआ तैयार हो रहा था। वह अपने आप से बातें करता हुआ कह रहा था, “…सोच रहा हूँ अब शादी कर ही लूँ… अब बहुत रह लिया अकेले… अब अकेले रहने का मन नहीं करता… अब उसको देखने उठकर बालकनी में जाना पड़ता है… अगर उसका चेहरा सुबह-सुबह मेरी बाहों में ही दिख जाए तो…”

    उसके मन में कई तरह के ख्याल चल रहे थे। फिर वह सोचने लगा, “…अगर उसे कॉलेज वाली बात याद हुई… कोई बात नहीं अब मैं उसे मना लूँगा… अब ना तो पहले वाली शिखा है… ना ही मैं पहले वाला शेखर हूँ…”

    वह बहुत ही फ्रेश मूड में तैयार हो गया था। उसने सोच लिया था कि अब उसको सेटल हो जाना है और वह भी शिखा के साथ।

    शिखा जलती-कुढ़ती तैयार हुई थी। ऑफिस जाना उसकी मजबूरी थी, वरना वह ऑफिस भी ना जाती। जब वह ऑफिस जाने के लिए अपनी स्कूटी पर बैठने लगी तो शेखर भी वहाँ पर अपनी गाड़ी लेकर आ गया।

    “…अरे शिखा जी आप मेरे साथ ही गाड़ी में चलें… स्कूटी पर क्यों जा रही हैं…”

    “…नहीं मुझे स्कूटी पर जाना पसंद है… वैसे पापा की गाड़ी है मेरे पास… मगर मुझे यही अच्छी लगती है…” कह वह चली गई।

    लंच टाइम में उसने प्रीति को सारी बात बताई। उसकी बात सुनकर प्रीति पहले रोने लगी फिर हँसने लगी। उसकी ऐसी हालत देखकर शिखा प्रीति से बोली, “…शेखर मेरे सिर पर सवार हुआ है… वह मेरे घर पर खाना खा रहा है… मेरे कमरे के साथ उसका कमरा है… तुम क्यों रो रही हो… मुझे रोना चाहिए… और फिर तुम हँस क्यों रही हो… अपने आप पर मुझे हँसना चाहिए…” शिखा बहुत गुस्से में थी।

    “…मैं रो इसलिए रही हूँ… क्योंकि मुझे शेखर पसंद था… हँस इसलिए रही हूँ उसने तुझे पसंद कर लिया… मैं तुम्हारी फ्रेंड हूँ… मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूँ…”

    “…देख प्रीति उसने मुझे पसंद कर लिया… मैं क्या कोई चीज़ हूँ… जो किसी को पसंद आ गई… मेरा दिमाग मत खराब करो तुम… मैं पहले ही बहुत परेशान हूँ… मैं उसको कॉलेज से जानती हूँ…”

    “…सच में?” प्रीति हैरान होकर बोली।

    “…और नहीं तो क्या… वहाँ पर भी वह मेरे पीछे पड़ा था…”

    “…सच में शिखा! तुम दोनों की जोड़ी कितनी अच्छी लगेगी… तुम दोनों के नाम भी एक जैसे हैं… शेखर और शिखा…”

    “…मैं तुम्हें अपनी प्रॉब्लम बता रही हूँ… और तुम किसी और ही दुनिया की बातें कर रही हो…” शिखा उस पर गुस्सा हो गई।

    “…प्लीज़ शिखा! वो कितना हैंडसम है और तुम भी कितनी ब्यूटीफुल हो… तुम दोनों साथ में कितने अच्छे लगोगे… मेरी बात मानो… तुम दोनों शादी कर लो…”

    “…मैं उस इंसान को देखना भी पसंद नहीं करती… और तुम कहती हो कि मैं उससे शादी कर लूँ… वैसे भी वो उन लोगों में से नहीं है… जो शादी करें… उसे सिर्फ़ लड़कियों को यूज़ करना आता है… शादी करके घर बसाना नहीं… समझी…”

    “…तो ठीक है जैसे तुम्हारी मर्ज़ी…” प्रीति ने उसके आगे हाथ बाँध दिए।

  • 8. Kahani Teri Meri - Chapter 8

    Words: 1093

    Estimated Reading Time: 7 min

    "...प्लीज शिखा, वो कितना हैंडसम है... और तुम भी कितनी ब्यूटीफुल हो... तुम दोनों साथ में कितने अच्छे लगोगे... मेरी बात मानो... तुम दोनों शादी कर लो..."

    "...मैं उसे इंसान को देखना भी पसंद नहीं करती... और तुम कहती हो कि मैं उससे शादी कर लूँ... वैसे भी वह उन लोगों में से नहीं है... जो शादी करें... उसे सिर्फ लड़कियों को use करना आता है... शादी करके घर बसाना नहीं... समझी..."

    "...तो ठीक है, जैसे तुम्हारी मर्जी..." प्रीति ने उसके आगे हाथ बांध दिए थे।


    ऐसे ही दिन गुजरने लगे थे। यह बात पूरे ऑफिस ही समझता था कि शेखर शिखा को पसंद करता है। मगर शिखा के आगे कोई नहीं बोलता था। शेखर ने पूरे ऑफिस को बहुत अच्छे से संभाल लिया था। इसके लिए उसने दिन रात मेहनत भी की थी। पूरे ऑफिस में शेखर की बहुत इज्जत थी। सभी उसे बॉस के रूप में पसंद करते थे। मगर शिखा को कभी अच्छा नहीं लगा था।


    "...तुम तो कहती थी कि... शेखर का लड़कियों के साथ अफेयर रहता है... मगर उसे एक महीना होने को आया है... ऑफिस में किसी भी लड़की को उसने आँख उठाकर नहीं देखा... वह तो सिर्फ तेरा दीवाना है..." प्रीति, जो संडे के दिन उसके घर पर आई हुई थी, उसे कहने लगी।

    "...तू चुप कर प्रीति... मेरी सहेली है... जान उस शेखर की..."

    "...सहेली तो मैं तेरी हूँ... मगर उसको मैं जीजू बनाना चाहती हूँ..." प्रीति बोली।


    शिखा उठकर उसे पिलो मारने लगी। प्रीति शिखा से बचने के लिए बालकनी में भाग गई। शिखा उसके पीछे बालकनी में आ गई। दोनों सहेलियाँ आगे पीछे दौड़ रही थीं। थककर दोनों झूले पर बैठ गईं। तभी उनका ध्यान शेखर पर गया जो अपनी बालकनी में खड़ा उन दोनों को देख रहा था।

    "...मुझे नहीं पता था कि आप दोनों इतनी छोटी बच्ची हैं..." उन्हें देखकर शेखर ने मुस्कुरा कर कहा।


    "...सर आप कैसे हैं..." शेखर को देखकर प्रीति बोली।

    "...ठीक हूँ मिस प्रीति... आप बताएँ... आप दोनों सहेलियाँ काफी एन्जॉय कर रही हैं..." उसने एक नज़र शिखा को देखा। उसने लॉन्ग स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था। खुले बाल थे, वह शेखर को बहुत अच्छी लगी। शेखर को शिखा की तरफ देखा देखकर प्रीति बोली, "...वैसे मैं आपसे एक बात पूछूँ सर..."

    "...हाँ बिल्कुल पूछो..."


    प्रीति के सवाल पर शिखा प्रीति की तरफ देखने लगी। प्रीति शिखा से बोली, "...शिखा मुझे प्यास लगी है... मुझे एक गिलास पानी मिलेगा..." शिखा पानी लेने चली गई।

    "...सर मुझे आपसे एक बात पूछनी थी... आप मुझ पर गुस्सा नहीं होंगे..."

    "...नहीं, पूछो..."


    "...पूरे ऑफिस में यह चर्चा है... कि आप शिखा को पसंद करते हैं... तो फिर आप उसे कहते क्यों नहीं..."

    "...मुझे शिखा से डर लगता है..." शेखर की बात सुनकर प्रीति खिलखिला कर हँस पड़ी।

    "...आप तो अभी से पतियों वाला बिहेव कर रहे हैं..."

    "...वो कैसे..." शेखर ने हैरानी से पूछा।

    "...और नहीं तो क्या... मेरे पापा भी मेरी माँ से बहुत डरते हैं... मेरे भाई भी भाभी से बहुत डरते हैं... सारे पति ही अपनी पत्नियों से डरते हैं..." उसकी बात सुनकर शेखर मुस्कुरा पड़ा।

    "...वैसे आपकी सहेली मुझे कितना पसंद करती है... आप पता करो ना..."

    "...ठीक है सर... अब आपकी लव स्टोरी में ही बनाऊँगी..."


    तभी शिखा भी उसके लिए पानी लेकर आ गई।

    "...क्या बना रही हो तुम..." उसने प्रीति से पूछा।

    "...कुछ नहीं, मैं तो सर से पूछ रही थी... आपके यहाँ जो खाना बनाने वाली आती है... वह खाना तो अच्छा बनाती है... सर ने कहा ठीक ही बनती है... तो मैंने कहा... अब आप शादी कर लो... आपकी बीवी ही आपके लिए अच्छा खाना बनाएगी..."


    शिखा प्रीति का हाथ खींचकर ले जाने लगी।

    "...अरे शिखा आप बैठो ना... कुछ देर बातें करते हैं... मैं अकेला बोर हो रहा हूँ..." शेखर बोला।

    "...सही बात तो है... शिखा हम लोग यहीं बालकनी में बैठते हैं..." शिखा को मन मारकर वहीं बालकनी में बैठना पड़ा।

    "...वैसे सर आपको शादी के लिए कैसी लड़की चाहिए..." प्रीति ने शेखर से पूछा।

    "...जो सुंदर हो... समझदार हो... जिसको मेरे बारे में सब कुछ पता हो... अगर वह मुझे पहले से जानती हो तो और भी अच्छी बात है... क्यों कोई लड़की है क्या नज़र में..."

    "...वह क्या है सर... आप शादी के लिए लड़की ढूँढ रहे हैं... शिखा के मॉम डैड इसके लिए लड़का ढूँढ रहे हैं... तो मैं सोचती थी क्यों ना दोनों की प्रॉब्लम सॉल्व हो जाए..." प्रीति की बात सुनकर शेखर ने शरारती नज़रों से शिखा की तरफ देखा। शिखा ने प्रीति के पैर पर जोर से पैर मार दिया।

    "...हाय रब्बा! मेरा पैर तोड़ दिया तुमने..." प्रीति चिल्लाने लगी।


    "...वैसे शिखा बात तो ठीक है प्रीति की... जब हम दोनों को ही शादी करनी है... तो क्यों ना हम आपस में ही कर लें... हम दोनों एक दूसरे को जानते भी हैं, मुझे लगता है हमें एडजस्ट करना आसान होगा..." शेखर ने शिखा से कहा। पहले तो शिखा चुप कर गई। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था। फिर वह अपने आप को कंट्रोल करती हुई बोली, "...वह क्या है कि मेरी शादी का फैसला मेरी मॉम डैड करेंगे... और मेरी बड़ी बहन और मेरे जीजा जी से भी पूछा जाएगा... उनकी भी हाँ शामिल होगी... अगर आपको लगता है कि आपको शादी करनी है तो... आप अपने मॉम डैड को मेरे मॉम डैड के पास भेज सकते हैं..." शिखा बोली। क्योंकि समझती थी शेखर सिर्फ टाइम पास कर रहा है। वह कभी भी अपने मॉम डैड को उसके मॉम डैड के पास शादी के लिए नहीं भेजेगा।


    शिखा शाम को खाना खाती हुई सोच रही थी कि शायद शेखर से उसका परमानेंटली पीछा छूट गया है क्योंकि शादी तो वह कभी नहीं करने वाला था। ऑफिस में शरीफ बनता है। बाहर क्या करता है? किसको क्या पता?


    "...शाम को खाने पर जब शेखर आता था... तो अच्छा लगता था... मगर जब से उसने आना छोड़ दिया तो अकेला फील होता है..." शिखा के पापा कह रहे थे।

    "...मैंने तो उससे कहा था... चाहे उसे खाने बनाने के लिए कुक मिल गया है... शाम का खाना वह हमारे ही साथ खाए..." अपने मॉम डैड की बातें सुनकर शिखा को अच्छा नहीं लग रहा था। ऑफिस में तो उसका चेहरा देखना ही पड़ता है, घर में भी मुझे उसी की बातें सुनाई पड़ती हैं।


    अगले दिन शिखा जब ऑफिस गई तो पता चला कि शेखर दो-तीन दिन के लिए नहीं आएगा। उसने छुट्टी ली है। शिखा ने चैन की साँस ली।

    "...चलो दो-तीन दिन के लिए ही सही... उससे पीछा तो छूटा..."


    मगर क्या सचमुच शिखा का पीछा छूटने वाला 🤔था?

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  • 9. Kahani Teri Meri - Chapter 9

    Words: 1049

    Estimated Reading Time: 7 min

    अगले दिन शिखा जब ऑफिस गई, तो पता चला कि शेखर दो-तीन दिन के लिए नहीं आएगा। उसने छुट्टी ली थी। शिखा ने चैन की साँस ली।

    "...चलो दो-तीन दिन के लिए ही... उससे पीछा तो छुटा... अब मैं शाम को और सुबह आराम से अपनी बालकनी में बैठ सकती हूँ... जब से शेखर आया है... मेरा तो जीना मुहाल हो गया है..." शिखा सोच रही थी।


    शिखा ऑफिस से जब शाम को घर पहुँची, तो घर में पूरी चहल-पहल थी। उसकी बड़ी दीदी और जीजू आए हुए थे। साथ में उसके दोनों बच्चे भी थे। वह भाग कर अपनी दीदी के गले लग गई।

    "...कितना बड़ा सरप्राइज दिया है दीदी आपने... कल तो हमारी बात हुई थी... आपने बताया ही नहीं आप आ रही हैं..."
    "...सिर्फ़ अपनी बहन के गले लगती हैं... अपने जीजा जी के गले भी लग जाओ..."

    शिखा रवि के पास जाकर रवि के गले लग गई।

    "...आप मेरे जीजा जी थोड़ी हैं... आप तो मेरे बड़े भाई हैं... मुझे आपके गले लगने में क्या प्रॉब्लम है..."
    "...सही बात है, तुम मेरे लिए छोटी बहन जैसी हो..." रवि हँसने लगा।


    "...दीदी, इस बार आप लोग कुछ दिनों के लिए रुक जाएँ... बहुत दिन हो गए आपको आए हुए... आप तो यह भी बहाना नहीं है कि पीछे जीजू को खाने की मुश्किल हो जाएगी..."
    "...बिल्कुल सही बात है साली साहिबा... मगर यह तो आप पर डिपेंड करता है... कि आप हमें कितने दिन रखेंगी... या जल्दी भेज देंगी..."
    "...वह कैसे...?" शिखा ने पूछा।


    "...हम लोग जिस काम के लिए आए हैं... अगर उसे काम के लिए आपकी हाँ होगी... तब तो वह काम पूरा करके ही जाएँगे... नहीं तो जल्दी चले जाएँगे..."
    "...ऐसा क्या काम है दीदी... जो मुझसे है...?"


    शिखा ने अपनी मॉम-डैड की तरफ़ नज़र उठाकर देखा। वे लोग चुपचाप खाना खा रहे थे।

    "...मॉम, आप लोग इतने चुप क्यों हैं? क्या हुआ...?"
    "...अगर मैं बोलूँगी, फिर कौन सा तुम मान जाओगी...?" मॉम नाराज़गी से बोलीं।
    "...आपने ऐसी कौन सी बात कही है... जो नहीं मानी... जो आप मुझसे नाराज़ हो रही हैं...?" शिखा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है।


    "...देखो शिखा, अब तक तुम्हारे लिए बहुत रिश्ते आए... जो बिना देखे रिजेक्ट करती रही... अब एक रिश्ता हम लेकर आए हैं... प्लीज़ मैं चाहती हूँ कि तुम उस पर ठंडे दिमाग से सोचो..." शिखा की बड़ी बहन पिया ने कहा।
    "...सही बात है साली साहिबा... हम आपके लिए बुरा नहीं करेंगे... जो तुम्हारे लिए अच्छा होगा वही करेंगे... शिखा, एक बार हमारी बात ध्यान से सुन लो..." जीजू ने कहा।


    क्योंकि इससे पहले शिखा के लिए रिश्ते की बात होती, तो शिखा पहले ही जवाब दे देती थी कि उसे अभी शादी नहीं करनी। मगर अब पूरा परिवार चाहता था कि शिखा सेटल हो जाए। उसकी उम्र भी शादी के लायक थी। अपने परिवार की बात सुनकर शिखा चुप हो गई और चुपचाप खाना खाती रही। खाना खत्म करने के बाद वह मुस्कुरा कर बोली,

    "...ठीक है... जो आप सबको अच्छा लगे, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं... जीजू, मैंने पूरी बात आप पर छोड़ी... आप जैसा करेंगे, मैं वैसा ही करूँगी... मैं सिर्फ़ आपको बड़ा भाई कहती ही नहीं... मानती भी हूँ..."


    सभी खुश हो गए। शिखा के जीजू रवि अपने चेयर से उठकर शिखा के पास आए। उसने शिखा के सिर पर हाथ रखकर कहा,

    "...शिखा, तुम्हारे लिए जो अच्छा होगा... मैं वही करूँगा... तुम मुझ पर यकीन कर सकती हो..."
    "...आपके फोन में जो लड़के की तस्वीर है... वह तो दिखाओ आप शिखा को..." पिया ने कहा।


    रवि अपना फोन खोलकर शिखा के आगे करता है। मगर शिखा फोन को साइड पर कर देती है।

    "...जीजू, मुझे लड़का नहीं देखना... मुझे आप पर पूरा यकीन है... अगर आपको रिश्ता पसंद है, तो मुझे पसंद है... आप आगे बात चलाओ..."

    शिखा के यह कहने पर रवि हैरान हो गया।

    "...सचमुच तुम पछताओगी नहीं शिखा... इस लड़के से शादी करके... यह लड़का तुम्हें बहुत खुश रखेगा..."

    पूरा परिवार खुश हो गया था शिखा के हाँ कहने पर।


    रात को शिखा अपने कमरे की बालकनी में बैठी हुई शेखर के बारे में सोचने लगी।

    "...जब शेखर आएगा और उसे मेरी शादी के बारे में पता चलेगा... तो उसका चेहरा देखने वाला होगा... बिल्कुल 440 वाट का झटका लगेगा उसे... बढ़ा आया मुझसे शादी करने... अब मैं उसके बारे में क्यों सोच रही हूँ... छोड़ो उसे शेखर को..." उसने अपने मन में कहा।


    फिर वह उस लड़के के बारे में सोचने लगी, जिसकी फोटो उसने नहीं देखी थी।

    "...जीजू मेरे लिए जो करेंगे, अच्छा ही करेंगे... अगर पूरे परिवार को पसंद है, तो मुझे भी कोई प्रॉब्लम नहीं..." उसने अपने मन में कहा।
    "...जीजू कह रहे थे किसी मल्टीनेशनल कॉरपोरेशन में उसकी बहुत अच्छी जॉब है... नेचर का भी लड़का बहुत अच्छा है... चलो जिस दिन मिलूंगी... चेहरा उसी दिन देखूंगी... थोड़ा सस्पेंस भी चाहिए..." वह अपने आप से ही बातें कर रही थी।


    तभी उसके रूम के दरवाजे पर किसी ने नॉक किया। उठकर उसने दरवाज़ा खोला। सामने दीदी और जीजू खड़े थे। वे लोग अंदर बालकनी में आकर झूले पर बैठ गए।

    "...आओ बैठो शिखा, हमें तुमसे बात करनी है..." शिखा भी वहीं चेयर पर बैठ गई।
    "...देखो शिखा, यह बातें मज़ाक की नहीं हैं... तुम एक बार लड़के के बारे में जान लो... उसके बाद हम लड़के के परिवार को तुमसे मिलने के लिए बुलाना चाहते हैं..."
    "...आप उन लोगों को बुला लीजिए... मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं... अगर आपको वह, आप दोनों को बहुत पसंद है... तो मेरे लिए अच्छा ही होगा... मैंने आपसे कह दिया... मैं अपनी बात से मुकरने वाली नहीं हूँ... चाहे जो हो जाए..."
    "...पक्का कह रही हो शिखा...?"
    "...हाँ जीजू... मैं पक्का कह रही हूँ..."


    "...देखा पिया, मैंने कहा था ना... शिखा अपनी बात से नहीं मुकरेगी... तुम तो ऐसे ही फ़िक्र कर रही थी... उसे पता है उसका बड़ा भाई उसके लिए कभी गलत नहीं करेगा..."
    "...ठीक है शिखा, अब तुम सो जाओ... कल दोपहर के बाद लड़के की फैमिली और लड़का तुमसे मिलने आ रहे हैं..."


    "...कल को...? आपने मुझे पहले नहीं बताया... मुझे छुट्टी लेनी पड़ेगी ऑफिस से..."
    "...तुम ऐसा करना, आधे दिन की छुट्टी ले लेना... एक बार ऑफिस चली जाना..." दीदी ने कहा।
    "...दीदी, ठीक है... कल मैं आधे दिन के बाद आ जाऊँगी... आप उन लोगों को दोपहर के बाद ही बुलाना..."

  • 10. Kahani Teri Meri - Chapter 10

    Words: 1023

    Estimated Reading Time: 7 min

    "...कल को...आपने मुझे पहले नहीं बताया...मुझे छुट्टी लेनी पड़ेगी ऑफिस से..." "...तुम ऐसा करना...आधे दिन की छुट्टी ले लेना...एक बार ऑफिस चली जाना..." दी ने कहा।
    "...ठीक है...कल मैं आधे दिन के बाद आ जाऊंगी...आप उन लोगों को दोपहर के बाद ही बुलाना..."


    अगले दिन शिखा ऑफिस पहुँची। ऑफिस पहुँचकर उसे पता चला कि शेखर भी ऑफिस में आया हुआ है। "...उसे दिन तो मैंने सुना था...शेखर ने दो-तीन दिन की छुट्टी ली है...यह तो आ भी गया..." वह मन में सोच रही थी। तभी उसे पता चला कि ऑफिस में एक अर्जेंट मीटिंग है।


    राहुल ने पूरे ऑफिस को बताया था कि सर को दोपहर के बाद किसी जरूरी काम से जाना है। वह सिर्फ़ मीटिंग के लिए ही आए हैं क्योंकि आज की मीटिंग बहुत जरूरी है। शिखा ने इस बात का शुक्र मनाया कि मीटिंग सुबह है। अगर दोपहर के बाद होती तो उसे मुश्किल हो जाता। उसने राहुल से कह दिया था कि उसे आज आधे दिन की छुट्टी चाहिए, उसे जरूरी काम के लिए जाना है।


    जब से शेखर आया था, वह काम में लगा हुआ था।
    "...राहुल जल्दी से सभी को मीटिंग हॉल में बुलाओ..." शेखर ने राहुल से कहा। सभी लोग जल्दी से मीटिंग हॉल में पहुँच चुके थे।


    सभी लोग अपनी-अपनी जगह पर बैठ गए थे। शेखर ने उन सब से जिस काम के लिए मीटिंग थी, उस पर बात करनी शुरू की। वह खड़ा होकर सबसे बात कर रहा था। बात करते-करते जब उसकी शिखा से नज़रें मिलतीं तो वह मुस्कुरा कर शिखा की तरफ देखता। शिखा को उसका ऐसे मुस्कुराना अच्छा नहीं लगा। वहीं मीटिंग में बैठी प्रीति ने उसे एक-दो बार इशारा भी किया कि शेखर उसे देखकर मुस्कुरा रहा है। मगर शिखा उसकी तरफ आँखें निकाल कर देखने लगी।
    "...तुम चुपचाप बैठ जाओ...और सर क्या कह रहे हैं यह सुनो..."


    मीटिंग खत्म होने के बाद शेखर ऑफिस से जल्दबाजी में निकल गया था। शिखा भी मीटिंग खत्म होने के बाद तुरंत ही वहाँ से निकल गई थी। उसे घर पहुँचने की जल्दी थी और दी का भी कई बार फोन आ चुका था कि वह लोग पहुँच चुके हैं।


    शिखा ने टैक्सी ली और वह घर पहुँच गई। शेखर और शिखा एक ही बिल्डिंग में इंटर हुए थे। शेखर भी भागता हुआ लिफ्ट की तरफ जा रहा था। दोनों एक ही टाइम पर लिफ्ट में इकट्ठे हो गए।
    "...कैसी हो शिखा तुम...तुम भी जल्दी आ गई...क्या बात है..."
    "...कुछ नहीं मुझे कुछ काम था घर पर...कोई गेस्ट आने वाले हैं..." शिखा ने कहा। शिखा ने आगे बात करने में कोई इंटरेस्ट नहीं दिखाया।


    उन दोनों की फ़्लोर आ गई थी, तो वह दोनों लिफ्ट से बाहर आ गए। शेखर अपने फ़्लैट की तरफ़ चला गया। शिखा ने अपने घर की डोर बेल बजा दी थी। दी ने दरवाज़ा खोला। जो लोग शिखा को देखने आने वाले थे, वह लोग ड्राइंग रूम में बैठे हुए थे।
    "...जल्दी करो शिखा...तुम तैयार हो जाओ...लड़के वाले तुम्हारी वेट कर रहे हैं..." दी ने शिखा का हाथ पकड़ कर उसे कमरे में ले गई।


    उसके लिए पहले ही साड़ी निकाल दी थी।
    "...यह साड़ी पहन लो..." दी ने कहा। दस मिनट में वह तैयार हो गई। पिंक कलर की साड़ी और हल्के मेकअप में शिखा बहुत खूबसूरत लग रही थी। दी ने उसके बाल ठीक कर दिए।
    "...तुम खुले बालों में बहुत खूबसूरत लगती हो शिखा...इन्हें बांधा मत करो..." दी उसे कहने लगी।


    अब दी शिखा को उन लोगों के पास ले गई। मॉम के इशारे पर शिखा आगे बढ़कर जो औरत उसे देखने आई हुई थी, उसके पैर छू लिए।
    "...नहीं बेटा इसकी कोई ज़रूरत नहीं..." उस लेडी ने उसे अपने पास बिठा लिया। शिखा ने ध्यान दिया, "...वहाँ कोई लड़का तो था ही नहीं।"


    "...शिखा यह लड़के की मॉम-डैड हैं...नेहा जी...लड़का अभी आता ही होगा...उसे जरूरी काम था...इसलिए वह पीछे रह गया..." नेहा जी शिखा से कई सवाल पूछने लगीं। शिखा चुपचाप जवाब देती रही।
    "...अगर हम दोनों बच्चे एक-दूसरे को पसंद कर लें...तो मुझे तो शिखा बेहद अच्छी लगी..." नेहा जी ने कहा।


    "...बहन जी बच्चे ज़रूर पसंद कर लेंगे एक-दूसरे को...मुझे भी आपका बेटा बहुत पसंद है..." शिखा की मॉम बोली।
    "...मेरी भी बस यही इच्छा है...कि जल्दी से शिखा की शादी हो जाए..." अभी बातें चल ही रही थीं कि दरवाज़े पर डोर बेल बजी। रवि उठकर दरवाज़ा खोलने चला गया। थोड़ी देर बाद रवि वापस आया तो उसके साथ शेखर था।


    शेखर को देखकर शिखा मन में सोचने लगी, "...इसे भी अभी आना था...कोई तो टाइम होता है...जब इंसान को अपने घर रहना चाहिए...ऐसा तो नहीं है कि हर टाइम दूसरों के घर चले आओ...कहीं ये लंच करने तो नहीं आया जहाँ पर...आज इसकी खाना बनाने वाली नहीं आई होगी..." शिखा को शेखर का इस टाइम आना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था।


    शेखर नेहा जी के पास आकर बोला, "...सॉरी मॉम...देर हो गई...जरूरी मीटिंग थी आज मेरी..." वह उनके साथ ही सोफ़े पर बैठ गया। शेखर के उस औरत को मॉम कहने पर शिखा हैरान हो गई। वह समझ गई कि वह लड़का जिसकी वेट हो रही थी, कोई और नहीं शेखर ही था। उसने अपना सिर पीट लिया क्योंकि उसने तो जीजू से शादी के लिए हाँ कह दी थी। अब अपनी बात से वह कैसे मुकरेगी?


    शेखर के बैठते ही जीजू ने बात शुरू कर दी।
    "...देखो शेखर शिखा ने तो शादी के लिए हाँ कर दी है...उसने पूरी बात मुझ पर छोड़ दी है...अगर तुम शिखा से शादी करने हो...तो याद रखना मेरी नज़र तुम पर होगी...तुम मेरी छोटी बहन को कोई तकलीफ नहीं दे सकते..."
    "...आप बिल्कुल फ़िक्र मत करें जीजू...मैं शिखा को बहुत खुश रखूँगा..."


    उसके बाद जीजू शिखा की तरफ़ देखते हुए कहने लगे, "...पता है शिखा शेखर मेरे छोटे भाई का दोस्त है...इन दोनों ने साथ में कुछ साल काम किया है...एक दिन उसने बातों-बातों में बताया...कि तुम पसंद हो..."

  • 11. Kahani Teri Meri - Chapter 11

    Words: 1103

    Estimated Reading Time: 7 min

    उसके बाद जीजू शिखा की तरफ देखते हुए कहने लगे, "...पता है शिखा... शेखर मेरे छोटे भाई का दोस्त है... इन दोनों ने साथ में कुछ साल काम किया है... एक दिन इसने बातों-बातों में बताया... कि इसे तुम पसंद हो..."

    जीजू शेखर के बारे में बात कर रहे थे। मगर शिखा अंदर से तपी हुई बैठी थी। वह शेखर को देखकर जल गई थी। उसे पता नहीं था कि वह लड़का शेखर होगा। वरना वह शादी के लिए कभी हां नहीं करती। एक बार पहले शेखर ने कॉलेज टाइम पर उसकी ज़िंदगी में आने की कोशिश की थी। मगर तब उसके सामने शेखर की असलियत आ गई थी। शेखर एक बार फिर उसकी ज़िंदगी में शामिल होने की कोशिश कर रहा था।

    उसने एक नज़र उठाकर शेखर को देखा। शेखर आँखों में खुमारी लिए शिखा को ही देख रहा था। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कराहट थी। "...मेरे ख्याल से शेखर और शिखा को अकेले में बात कर लेनी चाहिए... वैसे तो दोनों एक-दूसरे को जानते हैं... मगर पहले की बात और थी... जाओ शिखा, तुम शेखर को अपना कमरा दिखा लाओ..." दी ने शिखा से कहा।

    दी की बात सुनकर शिखा को बहुत गुस्सा आया। मगर वह जानती थी, गलती उसी की थी। जीजू तो उसे लड़के की फ़ोटो दिखाने लगे थे, मगर उसी ने जवाब दे दिया था। उसे खुद पर सबसे ज़्यादा गुस्सा था। "...क्या ज़रूरत थी... बिना देखे शादी के लिए हां कहने की..." शिखा अपने मन में सोचने लगी।

    "...जाओ ना शिखा..." दी ने फिर कहा। शिखा अपनी सोच से बाहर निकली। वह खड़ी हो गई। शेखर भी उसके साथ ही जाने लगा। कमरे में जाते ही शिखा ने दरवाज़ा बंद कर लिया।

    "...अरे तुम अभी से ही क्यों दरवाज़ा बंद कर रही हो... उसका भी टाइम आएगा..." शेखर ने उसे शरारत से बोला।

    "...तुम शादी के लिए मना कर दो..."

    "...क्या..." शेखर ने हैरानी से उसकी तरफ देखा। "...अगर मना करना है... तो तुम करो... मुझे तो तुम बहुत पसंद हो... और वैसे भी मैं तो तुमसे पूछकर गया था शादी के लिए... तुम ही ने तो हां कहा था... जो लड़का तुम्हारी फैमिली को पसंद होगा... तुम उसी से शादी करोगी... तो मैंने तुम्हारी फैमिली की हां करवा ली है..."

    "...अब मुझे क्या पता था... कि परसों तुम मुझसे शादी के लिए पूछोगे... और अगली ही दिन अपना रिश्ता लेकर आ जाओगे 😥..." शिखा गुस्से से बोली।

    "...तो पूछने का तो मतलब ही नहीं होता है😬 ना... अब मैं कोई टाइम पास थोड़ी कर रहा था तुमसे... मुझे तो लगा था मैं तुम्हें पसंद हूँ इसीलिए मुझे मिलने का प्रोग्राम बन रहा है..." शेखर बोला।

    "...मैंने तुम्हारी फ़ोटो बिना देखे ही हां कह दी... अब मुझे क्या पता था कि तुम निकलोगे... अब मैं मना नहीं कर सकती..."

    "...तो मैं क्यों मना करूँगा... तुमसे शादी के लिए... पता है मैंने कितना जुगाड़ लगाया है... तुम्हारे दी और जीजू के थ्रू रिश्ता भेजने के लिए... देखो तुम्हें ना करना है तो कहो,... मैं नहीं ना कहने वाला... तुम मुझे बहुत पसंद हो..." शेखर ने साफ़-साफ़ कह दिया था।

    शिखा ने उसकी तरफ गुस्से से देखा। "...यार बीवियों की तरह तो तुम अभी से देखने लगी हो..." शेखर उसके मूड को देखकर बोला।

    शेखर की मॉम-डैड ने सगाई की डेट भी फ़िक्स कर दी थी। उन्होंने कहा कि अगले संडे को हम लोग सगाई कर देंगे इनकी। शिखा की मॉम-डैड को कोई प्रॉब्लम नहीं थी। शिखा की दी ने भी कहा कि अगले हफ़्ते ठीक रहेगा। शिखा चुपचाप बैठी उनकी बातें सुनती रही। शेखर भी उसके ऐसे मूड को देखता रहा।

    शेखर सोच रहा था, "...किसी तरह से सगाई और शादी हो जाए... शिखा को तो मैं पटा लूँगा..." शेखर को पता था... कि अभी तक कॉलेज वाली बात का गुस्सा शिखा के मन से उतरा नहीं है..." शेखर ने ऑफ़िस से थोड़े दिनों की छुट्टी और ले ली थी। वह सगाई से पहले शिखा के सामने नहीं आना चाहता था। "...वह डरता😜 था शिखा से... कि कहीं वह उसे देखकर ही सगाई से मना ना कर दे..." इसलिए उसने शिखा से दूर रहना ही बेहतर समझा।

    दी और जीजू सगाई तक रुक गए थे। अब शिखा किसी से यह नहीं कह सकती थी कि उसे शेखर पसंद नहीं है। पूरा दिन घर में शहर की बातें होती थीं। शिखा की मॉम शेखर की बहुत तारीफ़ करती थी। उन्हें शेखर बहुत पसंद था। उसके पापा भी खुश थे। अपनी मॉम को डैड को देखकर कभी वह सोचती, "...अगर मॉम-डैड को शेखर पसंद है... तो वह अच्छा ही होगा..." फिर दूसरे ही पल उसके मन में आता कि उसकी असलियत ये नहीं जानते हैं... ये इसलिए उसे पसंद करते हैं..."

    फिर प्रीति को उसकी सगाई का पता चला तो प्रीति उसे मुबारक देने के लिए घर आ गई। कमरा बंद करने के बाद शिखा ने प्रीति का गला पकड़ लिया, "...यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है... तुमने उस दिन अपनी ज़बान खोली... कि हम दोनों को आपस में शादी कर लेनी चाहिए... उस दिन मैंने तो मज़ाक में हां कहा था... तुम्हारी ही वजह से यह सारा पवाड़ा पड़ा है... तो मैं आज नहीं छोड़ूंगी..." प्रीति ने बड़ी मुश्किल से अपना गला छुड़ाया शिखा से। "...इतना अच्छा तो लड़का है... और तुम्हें क्या चाहिए... वह मुझसे पूछे एक बार शादी के लिए। मैं तो एक मिनट में मान जाऊँ..." प्रीति उसे कहने लगी।

    "...तो ऐसा करेंगे... शादी के टाइम पर मैं भाग जाऊँगी... तुम मेरी जगह शादी के मंडप में बैठ जाना... यह सही रहेगा..." प्रीति खुश होकर बोली। शिखा पिल्लों से प्रीति को पीटने लगी। "...तुम मेरी कैसी सहेली हो... तुमसे अच्छे तो मेरे दुश्मन होंगे..."

    सगाई का दिन भी आ गया था। सगाई के लिए हॉल बुक किया गया था। ब्लू कलर के लहंगे में शिखा बहुत खूबसूरत लग रही थी। उसके चेहरे पर गुस्सा ज़रूर था। दीदी ने उसे एक-दो बार पूछा भी, "...तुमने चेहरा ऐसा क्यों बनाया हुआ है... आज तो तुम्हारी सगाई है..." "...दीदी कुछ नहीं... बस मुझे थोड़ी घबराहट हो रही है..." उसने कहकर टाल दिया था।

    घर के सभी लोग बहुत खुश थे। शेखर भी सगाई में बहुत स्मार्ट लग रहा था। उसने शेरवानी पहनी हुई थी। उसकी नज़रें शिखा पर थीं। उसने शिखा को देखते ही अपनी आँखें आई ब्लिंक 😉 कर दी और फिर धीरे से शिखा के कान में बोला, "...आज तुम इतनी सुंदर लग रही हो... मेरा मन कर रहा है... मैं आज ही शादी करके ले जाऊँ..." उसके ऐसा कहने पर शिखा ने उसकी तरफ आँखें निकालकर देखा। "...तुम मुझे जैसे बड़ी-बड़ी आँखों से देखती हो... मैं इनमें डूब जाऊँगा... ऐसे मत देखा करो तुम मुझे..." शेखर शिखा से बोला।

  • 12. Kahani Teri Meri - Chapter 12

    Words: 1074

    Estimated Reading Time: 7 min

    उसने शिखा को देखते ही अपनी आँखें झपकाईं और फिर धीरे से शिखा के कान में बोला, "...आज तुम इतनी सुंदर लग रही हो... मेरा मन कर रहा है... मैं आज ही शादी करके ले जाऊँ..." ऐसा कहने पर शिखा ने उसकी तरफ आँखें निकाल कर देखा। "...तुम मुझे ऐसे बड़ी-बड़ी आँखों से देखती हो... मैं इनमें डूब जाऊँगा... ऐसे मत देखा करो तुम मुझे..." शेखर शिखा से बोला।


    सारे प्रोग्राम के दौरान शेखर बोलता रहा। शिखा चुपचाप सुनती रही। वह किसी बात पर नहीं बोली। क्योंकि वह जानती थी, गलती उसकी खुद की थी। पहले तो उसने शेखर से कहा था कि जहाँ पर उसके घर वाले, उसकी माँ, पिता, दी और जीजू कहेंगे, वहीं पर वह शादी करेगी। दूसरे, उसने बिना फ़ोटो देखे शादी के लिए हाँ कह दी थी। अब वह किसी और को दोष कैसे दे सकती थी? इसलिए उसने चुप रहना ही बेहतर समझा।


    सगाई प्रोग्राम के दौरान वह बस शेखर की बकवास सुनती रही। उसके कान पक गए थे।
    "...हे भगवान! इस आदमी के साथ मैं आज का दिन नहीं निकाल सकती... पूरी ज़िंदगी कैसे निकालूँगी..." शिखा सोच रही थी।


    सगाई के दौरान सभी बहुत थक गए थे। शाम को सभी घर वापस आकर आराम करने लगे।
    "...मैं अपने रूम में जा रही हूँ..." शिखा ने कहा।
    "...ठीक है शिखा, तुम आराम करो..." दी ने शिखा को कहा। उसने शिखा को बेडरूम में भेज दिया था। घर के बाकी लोग भी आराम करने चले गए थे। अभी वह कमरे में पहुँची ही थी कि शेखर का मैसेज आ गया। उसने चेक किया तो कुछ सगाई की फ़ोटोग्राफ़ थीं। कुछ फ़ोटोस में शिखा अकेली थी, तो कुछ में वे दोनों थे।


    फ़ोटोस को देखकर उसे अपने आप पर पछतावा हो रहा था। उसे सोच-समझकर हाँ करनी चाहिए थी। अगर वह थोड़ा सा भी दिमाग से काम लेती, तो आज का दिन नहीं आता। शेखर का फिर वापस मैसेज आ गया।

    "...प्लीज शिखा, बालकनी में आना..."


    शिखा ने वापस मैसेज भेजा।

    "...मैं बहुत थकी हुई हूँ... इसलिए सोना चाहती हूँ... बाहर नहीं आ सकती..."


    यह कहकर उसने अपना फ़ोन स्विच ऑफ़ कर लिया और सोने की कोशिश करने लगी।


    सुबह उठकर जब उसने अपना फ़ोन ऑन किया, तो शेखर के बहुत सारे मैसेज थे।
    "...इस आदमी को कोई काम नहीं है क्या... सिवाय मैसेज करने के..." वह गुस्से में बाथरूम चली गई।


    शिखा ने ऑफ़िस की छुट्टी ली हुई थी। इसलिए वह आराम से जाकर लॉबी में बैठ गई। उसने देखा, उसके उठने से पहले दी और जीजू तैयार हो चुके थे। जीजू उसके पास आकर बैठ गए।
    "...शिखा, हम आज जा रहे हैं... मगर आप तो कुछ दिन रुकने वाली थीं... आप ही ने तो कहा था..." शिखा उनसे बोली।
    "...हाँ शिखा, मगर मेरे ऑफ़िस में बहुत ज़रूरी काम है... मुझे ऑफ़िस के ट्रिप के लिए... ऑफ़िस के काम से देश से बाहर जाना है... पहले वह प्रोग्राम लेट था... मगर अब जल्दी हो गया... इसलिए हम आज ही जा रहे हैं..."


    तभी उसकी दी भी उसके पास आकर बैठ गई।
    "...शिखा, तुमने हम दोनों को जो इज़्ज़त दी... हम कभी नहीं भूल सकते... हमारी अपनी औलाद भी सिर्फ़ हमारे कहने से ऐसे किसी से शादी के लिए तैयार नहीं होती... और तुमने बिना लड़के को देखे हाँ कह दिया..." दी और जीजू उस पर बहुत प्यार लुटा रहे थे।


    शिखा अपने मन ही मन पछता रही थी।
    "...कभी किसी को ऐसा करना भी नहीं चाहिए... हमेशा देखकर ही शादी कहनी चाहिए..." मगर वह उनके सामने चुपचाप मुस्कुराती रही। दी और जीजू जल्दबाज़ी में ही निकल गए थे। शिखा ने लॉबी में चुपचाप टीवी लगाया और उसे देखने लगी। उसकी माँ उसके पास आकर बैठ गई।
    "...क्या बात है बेटा... तुम चुप क्यों हो... मैं कल से देख रही हूँ... तुम थोड़ी खामोश हो..."
    "...बस माँ, ऐसे ही... जैसे दी चली गई है... क्या मैं भी आपको छोड़कर चली जाऊँगी... आप अकेले रह जाएँगी..."


    "...तुम कहाँ जाओगी? शेखर तो यही रहता है... तुम्हारा फ़्लैट तो यही है... शादी के बाद तुम दोनों हमारे ही साथ शिफ़्ट हो जाना..." तभी उसके पिता उठकर आ गए।
    "...नहीं, ऐसा मत कहना... बच्चों को अलग रहने दो... यह हमारे ही पास है... जब मन करे मिल लेना... इनको भी अपनी ज़िंदगी जीने दो..." पिता माँ से कह रहे थे।


    तभी दरवाज़े पर घंटी बजी। शिखा खड़ी होने लगी।
    "...नहीं, मैं जाता हूँ..." यह कहकर पिता खड़े हो गए। पिता अभी दरवाज़े तक पहुँचे ही नहीं थे कि अचानक गिर पड़े। शिखा और माँ जल्दी से उनके पास पहुँची। वे बेहोश हो गए थे।
    "...शिखा, जल्दी से शेखर को बुलाओ... तुम्हारे पिता को हॉस्पिटल ले जाना पड़ेगा..." घबराकर माँ बोली।


    शिखा ने जल्दी से शेखर को फ़ोन किया। शेखर ने पहली ही घंटी में फ़ोन उठा लिया। शिखा के बोलने से पहले ही शेखर बोला, "...मैं तुम लोगों के दरवाज़े पर खड़ा हूँ... कोई दरवाज़ा तो खोलो..." शिखा ने भागकर दरवाज़ा खोल दिया।
    "...पिता बेहोश हो गए हैं... अस्पताल में जाना पड़ेगा..." शिखा ने कहा।


    शेखर जल्दी से भागकर अंदर आया और उसने पिता को उठाकर ले गया। उसने जल्दी-जल्दी अपनी गाड़ी निकाली। थोड़ी ही देर में वे हॉस्पिटल पहुँच गए थे। शेखर रास्ते में माँ को हौसला देता रहा।
    "...माँ, आप घबराएँ नहीं... पिता को कुछ नहीं होगा... हम बस जल्दी ही हॉस्पिटल पहुँच जाएँगे..."


    हॉस्पिटल में पता चला कि पिता को हार्ट अटैक आया था। वे काफ़ी सीरियस थे। शिखा और माँ बहुत घबराए हुए थे। शेखर ने उन्हें अच्छे से संभाला था। पिता के लिए जो दवाई चाहिए थी, सभी शेखर ही लेकर आया था। हॉस्पिटल में पैसे भी उसी ने जमा कराए थे। शिखा पूरा टाइम माँ को संभालती रही, क्योंकि उन्हें माँ की हालत बिगड़ने का भी डर लगा हुआ था।


    शेखर डॉक्टर से मिलकर आया था। वह माँ और शिखा के पास आकर बोला, "...अब आप घबराएँ नहीं... डॉक्टर ने कहा है... थोड़ी ही देर में पापा को होश आ जाएगा..."
    "...हमें दी और जीजू को बुला लेना चाहिए..." शिखा बोली।
    "...मुझे लगता है... अभी हमें उन्हें फ़ोन नहीं करना चाहिए... वैसे भी उन्हें देश से बाहर जाना था... और दी बच्चों के साथ अकेली होंगी... जब पापा घर चले जाएँगे... फिर हम उनको बुला लेंगे... जहाँ पर हम लोग हैं, डैड को संभालने के लिए..." शेखर ने कहा। माँ ने भी शेखर की हाँ में हाँ मिला दी थी।
    "...शेखर, तुम ठीक कह रहे हो... अभी हम उन्हें नहीं बुलाते... कितने दिनों के बाद गए हैं वे जहाँ से..."

  • 13. Kahani Teri Meri - Chapter 13

    Words: 1124

    Estimated Reading Time: 7 min

    "...मुझे लगता है...अभी हमें उन्हें फोन नहीं करना चाहिए...वैसे भी उन्हें देश से बाहर जाना है...और दी बच्चों के साथ अकेली होगी...जब पापा घर चले जाएंगे...फिर हम उनको बुला लेंगे...जहाँ पर हम लोग हैं डैड को संभालने के लिए..." शेखर ने कहा। माम ने भी शेखर की हाँ में हाँ मिला दी थी।

    "...शेखर तुम ठीक कह रहे हो...अभी हमें उन्हें नहीं बुलाते...कितने दिनों के बाद गए हैं जहाँ से..." माम ने कहा।


    थोड़ी देर बाद डैड को होश आ गया था। डॉक्टर ने कहा कि थोड़े दिन हॉस्पिटल में रखना पड़ेगा, मगर अभी के खतरे से बाहर है। शेखर ने अस्पताल की पूरी जिम्मेदारी संभाली हुई थी। शेखर ने माम से कहा, "...माम रात को आप घर चली जाएँ...मैं और शिखा जहाँ पर रुक जाएँगे..."

    "...सही बात है माम, आप जहाँ पर बीमार हो जाएँगी..." शिखा ने भी कहा। शेखर ने ज़बरदस्ती मॉम को घर भेज दिया था।


    डैड आईसीयू में थे। शेखर और शिखा वहाँ बाहर जो सोफ़े लगे हुए थे, वहीं पर बैठे हुए थे। शिखा के दिमाग में आया कि वह शेखर के साथ अकेली है। वहाँ पर चाहे और पेशेंट थे, उनके साथ जो लोग थे, वे भी वहाँ पर थे। फिर भी शिखा के मन में शेखर के लिए थोड़ा डर था। उसे लगा कि वह उसे अकेली देखकर ज़रूर उसके साथ कोई शरारत करेगा। शिखा सोच ही रही थी कि शेखर ने उसे बुलाया, "...शिखा...कॉफ़ी..."


    शिखा ने उसके हाथ से कॉफ़ी पकड़ ली। शेखर उसके और अपने लिए कॉफ़ी लेकर आया था। वह वहीं बैठकर पीने लगा। शिखा वैसे ही कॉफ़ी पकड़े बैठी रही। "...प्लीज़ शिखा...कॉफ़ी ठंडी हो जाएगी...फ़िक्र मत करो...पापा अब खतरे से बाहर हैं...कल उन्हें रूम में शिफ़्ट कर देंगे...सिर्फ़ थोड़ी सावधानी के लिए उन्हें आईसीयू में रखा है रात को..."


    पूरी रात ऐसे ही आँखों में निकल गई। वे दोनों थोड़ी देर के लिए ही वहीं बैठे-बैठे सोए थे। वैसे भी वहाँ पर और लोग थे, उनके पेशेंट भी आईसीयू में थे। सभी लोग वहाँ टेंशन में ही बैठे हुए थे। शेखर ने रात को शिखा का बहुत ख्याल रखा। अगले दिन डैड को रूम में शिफ़्ट कर दिया गया था। मॉम भी जल्दी ही आ गई थी। वह उनके लिए चाय और नाश्ता भी साथ लेकर आई थी। शेखर चाय पीने के बाद मॉम से बोला, "...मैं शाम को आऊँगा...एक बार ऑफ़िस जा रहा हूँ...अगर मेरी ज़रूरत पड़ी तो प्लीज़ आप मुझे फ़ोन कर दीजिए..."


    "...शेखर तुम ऐसा करो...शिखा को भी साथ ले जाओ...मैं घर पर थोड़ा आराम कर लूँगी...वरना यह भी बीमार हो जाएगी..." शिखा के मना करने के बावजूद मॉम ने उसे ज़बरदस्ती घर भेज दिया था। वह शेखर के साथ ही चली आई थी। शिखा को चुप देखकर शेखर बोला, "...शिखा पापा ठीक हैं...तुम घबराओ मत...वे जल्दी ठीक हो जाएँगे...तुम्हें घबराना नहीं चाहिए...बल्कि मॉम का सहारा बनना चाहिए...यह टाइम घबराने का नहीं है..." शेखर शिखा को घर छोड़ते हुए खुद ऑफ़िस चला गया था।


    शिखा दिन भर की रात भर जगी हुई थी, तो वह घर आते ही सो गई। वह अभी सो ही रही थी कि दोपहर को उसका फ़ोन बजने लगा। उसने नंबर देखकर फ़ोन उठा लिया। शिखा के बोलने से पहले ही शेखर बोला, "...मैं घर पहुँचने वाला हूँ...मैं आकर चेंज कर लूँ...तुम तुम भी तैयार हो जाओ...हम लोग हॉस्पिटल चलेंगे..."


    तकरीबन २० मिनट बाद दरवाज़े पर बैल बजी। शिखा ने दरवाज़ा खोला। सामने शेखर खड़ा था। उसने कपड़े चेंज करके लोअर और टी-शर्ट पहना हुआ था और पाँव में स्पोर्ट्स शूज़ थे। "...चलो शिखा हॉस्पिटल चलें..." वह उसके साथ आ गई थी। गाड़ी में बैठते हुए शिखा बोली, "...आप तो शाम को आने वाले थे..." "...हाँ, मेरी ज़रूरी मीटिंग थी शाम को...मगर वह कैंसिल हो गई...तो मुझे लगा कि मुझे मॉम के पास होना चाहिए...इसलिए मैं चला आया..." चाहे शिखा ने अपने चेहरे से कोई फ़ीलिंग नहीं दिखाई थी, मगर उसका ऐसे डैड और मॉम की फ़िक्र करना उसे अच्छा लग रहा था। वह चुपचाप उसे सुनती रही।


    तकरीबन तीन-चार दिन तक डैड हॉस्पिटल में रहे। शेखर ने उनका पूरा ख्याल रखा था। दिन को वह चाहे ऑफ़िस चला जाता, मगर रात को शिखा के साथ अस्पताल में ही रुकता था। उसने शिखा से एक बराबर दूरी बनाए रखी थी। ना ही शिखा से कोई मज़ाक किया और ना ही शिखा के पास आने की कोशिश की। बल्कि वह शिखा का सहारा बना था। शिखा को लग रहा था कि जिस शेखर को वह जानती थी, वह यह नहीं है। यह तो एक ज़िम्मेदार इंसान है, जिसे अपनी ज़िम्मेदारियों का पता है। उसने शिखा का दिल पूरी तरह से जीत लिया था, मगर शिखा अभी तक अपने मान के भाव उसके सामने नहीं आने दिए थे।


    जब डैड डिस्चार्ज होकर घर चले गए तो मॉम ने शिखा की बड़ी बहन को भी बता दिया था। उसको पता चलते ही वह डैड से मिलने के लिए आ गई थी। आते ही वह मॉम और शिखा पर गुस्सा होने लगी। "...आप लोग कम से कम मुझे बता तो सकते थे...अकेले आप लोगों को कितना मुश्किल हुआ होगा हॉस्पिटल में..." "...नहीं दी, हम अकेले कहाँ थे...शेखर थे ना हमारे साथ...जीजू जहाँ नहीं हैं और आपके बच्चों के साथ अकेले आना मुश्किल हो जाता...इसलिए हमने आपको नहीं कहा..."


    जैसे-जैसे सबको पता चलता गया, सभी डैड की सेहत का पता लेने के लिए आने लगे। ऐसे ही एक दिन शेखर की फैमिली भी उनसे मिलने के लिए आई। शिखा ने उनका पूरा ख्याल रखा। उनके लिए स्पेशल तौर पर खाना बनाया, मगर उस दिन शेखर घर पर नहीं था। वह ऑफ़िस से काम के लिए बाहर गया हुआ था, तो उनकी फैमिली उससे मिले बिना ही वापस चली गई।


    शेखर घर वापस आकर अपनी मॉम को फ़ोन किया, "...मॉम अगर आप रुक जातीं आज की रात को कितना अच्छा होता...मुझे ज़रूरी तौर पर जाना पड़ा...मुझे अच्छा नहीं लग रहा...कि मुझसे मिले बिना ही चले गए..." "...कोई बात नहीं...बेटा, हम शिखा से मिल लिए...तो एक ही बात है...उसने हमारा बहुत ख्याल रखा...बहुत अच्छी लड़की ढूँढ़ी है तुमने..." उसकी मॉम ने शिखा की बहुत तारीफ़ की। शेखर भी सुनकर हैरान हो गया था। उसे उम्मीद नहीं थी कि शिखा उसकी फैमिली को इतनी अच्छी तरह से ट्रीट करेगी। फिर उसकी माँ कहने लगी, "...अब तो बेटा जल्दी से शिखा को शादी करके घर ले आओ...तुम्हारे अकेले रहने से मुझे तुम्हारा फ़िक्र रहता है...शिखा आ जाएगी तो मुझे तुम्हारी फ़िक्र नहीं रहेगी..." "...कोई बात नहीं मॉम, जल्दी ही शादी की खुशखबरी आपको सुनाऊँगा..." शेखर ने फ़ोन काट दिया था। तभी उसके घर के दरवाज़े पर बैल बजी।

  • 14. Kahani Teri Meri - Chapter 14

    Words: 1178

    Estimated Reading Time: 8 min

    शेखर ने घर वापस आते ही अपनी मॉम को फोन किया। "मॉम, अगर आप आज रात को रुक जातीं तो कितना अच्छा होता... मुझे जरूरी तौर पर जाना पड़ा... मुझे अच्छा नहीं लग रहा... कि मैं बिना मिले ही चला गया..."

    "...कोई बात नहीं बेटा, हम शिखा से मिल लिए... तो एक ही बात है... उसने हमारा बहुत ख्याल रखा... बहुत अच्छी लड़की ढूंढी है तुमने..." उसकी मॉम ने शिखा की बहुत तारीफ की। शेखर भी सुनकर हैरान हो गया। उसे उम्मीद नहीं थी कि शिखा उसकी फैमिली को इतनी अच्छी तरह से ट्रीट करेगी। फिर उसकी मां कहने लगी, "...अब तो बेटा जल्दी से शिखा को शादी करके घर ले आओ... तुम्हारा अकेले रहने से मुझे तुम्हारा फ़िक्र रहता है... शिखा आ जाएगी तो मुझे तुम्हारी फिक्र नहीं रहेगी..."

    "...कोई बात नहीं मॉम, जल्दी ही शादी की खुशखबरी आपको सुनाऊँगा..." शेखर ने फोन काट दिया। तभी उसके घर के दरवाजे पर बेल बजी।


    शेखर ने दरवाजा खोला तो सामने शिखा खड़ी थी। वह हैरान हो गया उसे इतनी रात को वहाँ पर देखकर।

    "...क्या बात है? डैड तो ठीक है ना...?"

    "...पहले मुझे अंदर तो आने दीजिए आप... यही दरवाजे पर ही सारी बातें करनी हैं...?" शिखा ने गुस्से से कहा।


    शेखर साइड पर हो गया। शिखा अंदर आ गई। उसके हाथ में कुछ पकड़ा हुआ था।

    "...डैड बिल्कुल ठीक हैं... मम्मी ने आपके लिए खाना भेजा है..." उसने प्लेट को टेबल पर रखते हुए कहा।

    "...मैंने मॉम को फोन पर कह दिया था... कि मैं खाना खाकर आऊँगा..."

    "...नहीं, खाना नहीं... मॉम ने आज गाजर का हलवा बनाया था... उन्होंने मुझसे कहा कि मैं आपको दे आऊँ... इसलिए देने आ गई... ठीक है, अब मैं चलती हूँ..." कहकर वह जाने लगी।


    शेखर ने पीछे से उसका हाथ पकड़ लिया। वह एकदम से शेखर की तरफ देखने लगी। उसने उसका हाथ छोड़ दिया।

    "...सॉरी... बस मैं तो आपसे रुकने के लिए कह रहा था... तुम आज पहली बार यहाँ आई हो... तुम भी तो अपना मुँह मीठा करो..." शेखर ने उसी के लाई हुई प्लेट से एक चम्मच हलवा उसके मुँह में डाल दिया। शिखा ने चुपचाप खा लिया।


    शेखर काफी हैरान हुआ। वह चुपचाप शेखर की बात मान गई थी।

    "...ठीक है... अब मैं चलती हूँ..."

    "...अरे रुको तो सही... तुम घर तो देख लो एक बार... तुम्हें कैसा लगा? तुम्हें थोड़े दिनों बाद शादी करके यहाँ आना है।"

    "...देखना क्या है? मैं एक ही नज़र में समझ गई... मुझे पूरे घर की सेटिंग बदलनी पड़ेगी... क्या हाल कर रखा है आपने घर का...?" शिखा बोली।

    "...भाई एक बात तो सच है, घर तो औरतें ही बनाती हैं... जब तुम इस घर में आ जाओगी... मुझे तभी घर लगेगा... शिखा, मैं तुमसे एक बात पूछूँ...?" शेखर ने हलवा खाते हुए बोला।

    "...जैसे मैं ना कहूँगी... तो आप पूछेंगे नहीं... पूछिए..."

    "...मैं तुम्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगता क्या...?" उसकी बात पर शिखा ने उसकी तरफ अपनी आँखें उठाकर देखा।

    "...आपको ऐसा क्यों लगता है...?" उसने नज़र झुकाते हुए पूछा।


    "...तुमने जिस तरह से सगाई की रात को अपना फ़ोन बंद कर दिया था... उससे मुझे बहुत कुछ समझ आ रहा है शिखा... मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ... तुम एक बार मेरी दुनिया में आ जाओ, सच कहता हूँ, बहुत खुश रखूँगा मैं तुम्हें..." उसकी बात सुनकर शिखा मुस्कुराने लगी।

    "...तुम मुस्कुरा क्यों रही हो? क्या तुम्हें मेरी बात पर यकीन नहीं है...?"

    "...अगर यकीन नहीं होता तो इतनी रात को मैं यहाँ नहीं आती... क्या सिर्फ़ मॉम के कहने से मैं यहाँ आई हूँ? अगर मेरी मर्ज़ी नहीं होती तो... मैं यहाँ कभी नहीं आती..." शिखा की बात सुनकर शेखर के फेस पर स्माइल आ गई।

    "...तो क्या मैं तुम्हें पसंद हूँ? तुम्हें मुझसे शादी से कोई प्रॉब्लम नहीं है...?"

    "...नहीं..." शिखा ने शरमाते हुए धीरे से कहा। उसने आगे बढ़कर शिखा को गले से लगा लिया।


    "...आप छोड़िए मुझे... मुझे यह बात आपकी पसंद नहीं... मैंने जरा सा क्या हाँ कहा... आप तो मेरे पूरे के पूरे गले पड़ गए..."

    "...अब नहीं छोड़ने वाला मैं तुझे... बड़ी मुश्किल से तो मेरे हाथ आई हो..." उसने दोनों हाथों से शिखा का चेहरा पकड़ लिया था और वह उसके चेहरे पर झुकने लगा था। जब वह बिल्कुल उसके चेहरे के नज़दीक पहुँचा तो शिखा ने उसे धक्का दे दिया।

    "...यह सब शादी के बाद... पहले जल्दी से मुझसे शादी कर लो..." यह कहते हुए शिखा जाने लगी तो शेखर ने उसका हाथ पकड़कर खींच लिया।

    "...क्या यार तुम जाने की बातें करती हो...?"

    "...माँ मेरी वेट कर रही होगी... सोचो वह क्या सोचेंगी... कि इतना टाइम हो गया मुझे आए हुए..."

    "...नहीं... मॉम कुछ नहीं सोचेंगी... मॉम की तरफ़ से हमें परमिशन है... तभी तो उन्होंने तुम्हें यहाँ भेजा है..." उसने हँसकर शिखा को गले से लगा लिया।


    "...नहीं शेखर, अब मैं चलती हूँ..." शिखा खुद को शेखर की बाहों से छुड़ाते हुए बाहर चली गई। वह बहुत खुश थी। शेखर की नज़दीकी आज उसे बहुत अच्छी लगी थी। शेखर की नज़दीकी उसके मन को इतना भाएगी उसने सोचा नहीं था। उसके चेहरे से स्माइल नहीं जा रही थी। जब वह घर पहुँची तो मॉम ने पूछा, "...क्या बात है? अकेले-अकेले मुस्कुरा रही हो...?"

    "...कुछ नहीं मॉम, बस ऐसे ही... पापा घर आ गए ना इसलिए..."

    "...आज तुम्हारी सास कह रही थी... कि अब जल्दी ही शादी की तारीख निकलवा लेते हैं... तुम बताओ, ठीक है ना...?"

    "...जी मॉम, जब आपको अच्छा लगे... आप देख लो... मुझे क्या पता..." शिखा शरमाते हुए कमरे में चली गई।


    शिखा के ऐसे शरमाने से मॉम भी बहुत हैरान थी क्योंकि यह लड़की तो आज तक नहीं शरमाई थी। शिखा ने कमरे में जाते ही अपना दरवाजा बंद कर लिया और जाकर बालकनी में बैठ गई। उसे पता था कि शेखर अपनी बालकनी में ज़रूर आएगा। तभी शेखर भी बालकनी में आ गया।

    "...क्या बात है? मुझे लगता है कोई हमसे मिलने ही यहाँ आया है..." शेखर ने उसे छेड़ा।

    "...मैं भला क्यों किसी से मिलने आने लगी? मैं तो अपने कमरे की बालकनी में आकर बैठी हूँ..." शिखा ने मुस्कुराते हुए कहा।


    "...तो ठीक है... मैं किसी से मिलने आ जाता हूँ..." शेखर बालकनी को फाँदकर शिखा की बालकनी में आ गया।

    "...यह आप क्या कर रहे हैं? कोई देख लेगा..."

    "...देखता है तो देखने दो... मैं क्या डरता हूँ किसी से? अच्छा है ना जो शादी हमारे थोड़े दिनों के बाद होनी है... वह आज ही हो जाएगी... मुझे लगता है आज हम दोनों को मॉम-डैड को देख लेना चाहिए..." यह कहता हुआ वह उसके साथ झूले पर आकर बैठ गया।

    "...अब शेखर, यहाँ से जाओ..."

    "...एक शर्त पर जाऊँगा..."

    "...वह क्या शिखा...?" हैरान होते हुए वह उसकी तरफ देखने लगी।


    "...पहले मुझे एक किस चाहिए..." शेखर।

    "...शट अप कहो या कुछ और कहो... किस के बिना मैं नहीं जाने वाला..." यह कहते हुए शेखर शिखा के चेहरे पर झुकने लगा। शिखा की आँखें अपने आप बंद हो गई थीं। वह उसके चेहरे पर झुक गया था।


    समाप्त

    अगले एपिसोड में मिलेंगे एक नई स्टोरी के साथ।

  • 15. Kahani Teri Meri - Chapter 15

    Words: 1087

    Estimated Reading Time: 7 min

    हम बेवफा हरगिज़ न थे। (next story)


    उसे भूलना बहुत मुश्किल था। आखिर वह जैसी भी थी, वह उसका पहला प्यार थी। उसके लिए वह अपने माँ-बाप के भी खिलाफ चल गया था। उसने अपने माँ-बाप के खिलाफ जाकर उससे मंदिर में शादी की थी और अपने माँ-बाप से कह दिया था कि अगर वे उसकी बीवी को स्वीकार करेंगे तो वह उनके साथ रहेगा; वरना घर छोड़कर चला जाएगा। उसके माँ-बाप ने उसके लिए उसे भी अपना लिया था। मगर उसने उसके साथ क्या किया?


    अक्सर आधी रात को रवि खन्ना की आँख खुल जाती थी और उसके दिमाग में यही सब चलता था। कई साल होने को आ गए थे इस बात को। तकरीबन पाँच साल हो गए होंगे। मगर वह इस बात को भुला नहीं पाया था। वह रिया से जितना प्यार करता था, अब उससे उतनी ही नफ़रत करता था। वह नफ़रत और प्यार के बीच झूल रहा था। वह उसे पूरी तरह से नफ़रत भी नहीं कर पाया था। तो जब वह उससे मिल जाती थी, तो वह हमेशा अपसेट हो जाता। उसके मन के अंदर क्या था? उसने कभी किसी को नहीं बताया था। अब, चाहे इतने सालों बाद, वह आगे बढ़ने को तैयार था। उसके माँ-बाप ने उसके लिए जो लड़की पसंद की थी, उसके साथ उसकी सगाई हो चुकी थी और अगले कुछ महीनों में उसकी शादी होने वाली थी।


    सुबह नाश्ता करते हुए रवि ने अपने पिता से कहा,
    "...डैड, मैं कुछ दिनों के लिए चंडीगढ़ जा रहा हूँ..."
    "...तो तुमने वह चंडीगढ़ वाली कंपनी खरीद ली है...?"
    "...हाँ डैड, मैंने वह कंपनी खरीद ली है... इसके लिए उसके ऑफ़िस का एक बार मुझे संभालना पड़ेगा... उसके बाद मैं वहाँ पर किसी की ड्यूटी लगा दूँगा... शायद मुझे एक महीना वहाँ पर लग जाए..."
    "...ठीक है बेटा... मगर तुम अपनी पर्सनल लाइफ़ पर भी ध्यान दो... तुम काम को इतना बड़ा मत बनाओ... तुम्हें संभालना मुश्किल हो जाएगा..."
    "...कोई बात नहीं डैड, काम करना मुझे अच्छा लगता है..."


    "...आप मेरे बेटे को टोका मत करें... उसे काम करने दीजिए..." उन दोनों की बात सुनकर किचन से आई हुई माँ ने कहा। रवि वहाँ से एयरपोर्ट के लिए निकल गया था। उसकी चंडीगढ़ के लिए फ़्लाइट थी। उसने चंडीगढ़ में एक कंपनी खरीदी थी। उसके मालिक ने घाटे में चलती हुई कंपनी को बेच दिया था। रवि की आदत थी कि वह घाटे में चलती हुई कंपनियों को खरीदकर बिज़नेस को बढ़ाता था। उसको घाटे को प्रॉफ़िट में बदलना आता था।


    उसने चंडीगढ़ पहुँचने से पहले ही खुद के लिए एक पेंटहाउस किराए पर ले लिया था। वहाँ पर उसका एक दोस्त रहता था। उसके दोस्त ने उसके लिए अपनी ही बिल्डिंग में रवि के लिए पेंटहाउस पसंद किया था। उसने रवि से कह दिया,
    "...एक बार मैंने तुम्हारे लिए एक किराए पर पेंटहाउस ले लिया है... अगर तुम्हें अच्छा लगे तो तुम उसे खरीद सकते हो... क्योंकि उसका मालिक उसे बेचना चाहता है..."
    "...ठीक है, मैं आकर देखता हूँ... अगर अच्छा लगा तो मैं उसे खरीद लूँगा... क्योंकि अब मेरा चंडीगढ़ में आना-जाना लगा रहेगा..."


    रवि अपनी पेंटहाउस की जगह सीधा ऑफ़िस ही पहुँचा था। पूरे ऑफ़िस में उसने पहले ही मैसेज भेज दिया था कि वह आ रहा है। उसके आने से पहले ही पूरा ऑफ़िस मीटिंग हॉल में इकट्ठा था। वह जाकर सबसे पहले अपने स्टाफ़ से मीटिंग करना चाहता था।


    रवि ने मीटिंग हॉल में पहुँचकर अपनी मीटिंग शुरू कर दी थी। उसने कहना शुरू किया,
    "...आप लोगों ने पुराने मालिक के साथ जैसे भी काम किया हो... मुझे नहीं पता... मगर मुझे काम में कोताही बिल्कुल भी पसंद नहीं... आप लोगों के पास एक महीना है... जो लोग ज़िम्मेदारी से काम करेंगे... वही लोग यहाँ पर रहेंगे... जो लोग अपने काम के प्रति ज़िम्मेदार नहीं होंगे... उन्हें निकाल दिया जाएगा... मुझे मेहनत करने वाले लोग ही पसंद हैं... और मेरी हर किसी पर नज़र रहेगी... यह मत सोचना कि मैं किसी को देख नहीं रहा हूँ..." वह बोल ही रहा था कि उसकी नज़र पीछे की लाइन पर बैठी हुई उस लड़की पर गई। वह एकदम से बोलते-बोलते चुप हो गया। क्योंकि वह रिया थी। उसे उम्मीद नहीं थी कि वह इतने सालों बाद उसे यहाँ मिलेगी।


    वह जल्दी ही संभल गया था। उसने रिया पर से ध्यान हटाकर अपनी बात अपने ऑफ़िस के लोगों से कहने लगा था। मीटिंग के बाद सब लोग अपनी-अपनी सीट पर चले गए थे। ऑफ़िस काफी बड़ा था। रवि मीटिंग खत्म होने के बाद अपने ऑफ़िस में आकर बैठ गया था।


    वह अपना लैपटॉप खोलकर अपने काम में ध्यान लगाने की कोशिश कर रहा था। मगर उसके दिमाग में रिया घूम रही थी। तभी किसी ने ऑफ़िस का दरवाज़ा खटखटाया,
    "...मे आई कम इन सर...?" आवाज़ आई। उसने देखा तो सामने रिया खड़ी थी।
    "...यस, कम इन..." रिया अंदर आ गई। उसके हाथ में फ़ाइल थी।
    "...सर, जो प्रोजेक्ट चल रहा है... यह उसकी फ़ाइल थी..." वह फ़ाइल रखकर जाने लगी।


    "...कैसी हो रिया...?" रवि ने पूछा। रवि के बोलने पर रिया वापस रवि की तरफ़ मुड़ गई,
    "...ठीक हूँ सर..."
    "...तुम्हारी फैमिली लाइफ़ कैसी चल रही है? पति, बच्चे सब ठीक हैं...?"
    "...आप मुझे अच्छे से जानते हैं सर... मुझे बंधकर रहना बिल्कुल पसंद नहीं... मैं आज़ाद पंछी हूँ... मेरे पति से मेरा तलाक हो चुका है... हाँ, बच्चा है मेरा... मेरे माँ-बाप के पास है... मैं बिल्कुल ठीक हूँ..." कहकर वह चली गई।


    जब रिया ने कहा कि उसे बंधकर रहना पसंद नहीं है, तो रवि के सामने उस दिन का सीन घूमने लगा। रवि अपनी सीट पर बैठा सोचने लगा। रवि उस दिन बहुत खुश था क्योंकि उसे रिया का अल्ट्रासाउंड हुआ था। उसे पता चला था कि रिया जुड़वाँ बच्चों को जन्म देने वाली है। उसका भी तीसरा महीना शुरू हुआ था। रिया अपने कमरे में थी। वह हाल में बैठा हुआ था। अचानक उसके फ़ोन पर मैसेज की आवाज़ आई। उसने अपना फ़ोन मैसेज चेक करने के लिए खोला तो रिया की अपने दोस्त के साथ फ़ोटो आई थी। वह दोनों साथ में बैठे हुए थे। वह देखकर हैरान हो गया। फिर अचानक से कितने सारे मैसेज आए। उसके फ़ोन पर उसने बहुत सारी पिक्चर रिया और उसके दोस्त राज की देखीं। किसी में वह दोनों साथ में बैठे हुए थे, किसी में वह साथ में एक-दूसरे के गले में बाहें डाले हुए थे। उन दोनों के कितने सारे नज़दीकी पिक्चर्स थे।

  • 16. Kahani Teri Meri - Chapter 16

    Words: 1007

    Estimated Reading Time: 7 min

    hum bewafa hargiz Na

    The next story

    अचानक उसके फ़ोन पर मैसेज की आवाज़ आई। उसने अपना फ़ोन मैसेज चेक करने के लिए खोला; रिया की उसके दोस्त के साथ फ़ोटो आई थी। पिक में वे दोनों साथ में बैठे हुए थे। यह देखकर वह हैरान हो गया। फिर अचानक कई सारे मैसेज आए। उसके फ़ोन पर बहुत सारी रिया और उसके दोस्त राज की पिक्चर्स आई थीं। किसी में वे दोनों साथ में बैठे हुए थे, किसी में एक-दूसरे के गले में बाहें डाले हुए थे; उन दोनों के कई नज़दीकी पिक्चर्स थे।


    उसने वहीं बैठे हुए रिया को गुस्से में आवाज़ लगाई। रिया को कमरे में उसकी आवाज़ सुनाई नहीं दी; वह उठकर सीढ़ियों के पास आने लगा, रिया को जोर-जोर से आवाज़ देता हुआ। उसकी आवाज़ सुनकर उसके माँ-बाप कमरे से बाहर आ गए, और रिया भी बाहर आ गई।


    रिया और उसके माँ-बाप जल्दी से उसके पास आ गए।
    "क्या हुआ? आप मुझे ऐसे क्यों बुला रहे हैं?" रिया ने पूछा।
    "मुझे नहीं पता था कि तुम ऐसी निकलोगी। क्या कमी रह गई थी मेरे प्यार में?" वह गुस्से में बोल रहा था। रिया को कुछ समझ नहीं आया।
    "आप क्या बात कर रहे हैं? मुझे समझ नहीं आ रहा है। क्या हुआ?"


    वह रिया पर गुस्सा हो रहा था कि रिया के माँ-बाप भी वहीं आ गए।
    "...आप लोग मेरी बेटी से कैसे बात कर रहे हैं?" रिया के पापा ने रवि से पूछा।
    "...आप अपनी बेटी की करतूतें... आप खुद देख लो..." उसने रिया की पिक्चर्स उसके पापा के सामने रख दीं।


    रिया के पापा, मिस्टर खन्ना, वह पिक्चर देखकर रिया के सामने किए।
    "बेटा, यह क्या है?"
    "यह सब झूठ है! मेरा राज के साथ कोई अफ़ेयर नहीं है। पिक्चर झूठी हैं!" यह कहकर रिया रोने लगी।
    "...आप अपनी बेटी को यहाँ से ले जाओ... इससे पहले कि हम लोग इसे धक्के मारकर यहाँ से निकाल दें..." रवि की माँ ने कहा। वह बहुत गुस्से में थी।


    "हम अपनी बेटी को यहाँ से ले जाएँगे... मगर उससे पहले यह बात क्लियर करना बहुत ज़रूरी है... कि पिक्चर्स झूठी हैं..."
    "...तुम कैसे कह सकते हो... यह पिक्चर झूठी हैं..." रवि की माँ, मल्लिका जी, मिस्टर खन्ना से कह रही थीं।
    "...यह पिक्चर्स किसने भेजी हैं? कहाँ से आई हैं? हमें पता करना चाहिए..."
    "...हमें कुछ पता करने की ज़रूरत नहीं है... जो बात सच है... वह सच है... तुम अपनी बेटी को यहाँ से जल्दी से ले जाओ..." मल्लिका जी गुस्से में कह रही थीं।


    तभी रवि के डैड, मिस्टर रणजीत, मिस्टर खन्ना के पास आए और कहने लगे, "...एक बार आप रिया को ले जाओ... तब तक हम पता करते हैं... यह किसने भेजी हैं... पिक्चर्स कहाँ से आई हैं... और झूठी हैं या सच्ची है... अब रवि बहुत गुस्से में है... ऐसे में रिया का यहाँ रहना ठीक नहीं है..." रिया के माँ-बाप चुपचाप उसे ले जाने लगे। रिया जाने से पहले रवि के सामने बहुत रोई।
    "यह पिक्चर झूठी हैं! रवि, आप समझते क्यों नहीं हैं? मैं यहाँ से नहीं जाऊँगी!"
    "तुम यहाँ से चली जाओ! मैं तुम्हारा चेहरा भी नहीं देखना चाहता!" रवि गुस्से में कह रहा था।


    "मगर एक बार मेरी बात तो सुनो..." रिया उससे विनती कर रही थी। रवि ने अपना फ़ोन जोर से फ़र्श पर मारा और कहा, "...मैं ज़िन्दगी में तुम्हारा चेहरा नहीं देखना चाहता! तुम यहाँ से जा सकती हो..."
    "...रवि, मगर हमारे बच्चे..." रिया ने कहा।


    "...तुम इनका अबॉर्शन करवा दो... और फिर यह भी नहीं पता... यह बच्चे रवि के हैं भी या नहीं..." रवि के बोलने से पहले रवि की माँ, मल्लिका जी, बोलीं।
    "मॉम, आप यह क्या कह रही हैं?" रिया मल्लिका जी से बोली।
    "...मैं ठीक कह रही हूँ... तुम लोगों में इतनी भी शर्म है... अपनी बेटी को लेकर यहाँ से जाते क्यों नहीं..." मल्लिका जी लगातार बोल रही थीं। रवि गुस्से में चुपचाप सोफ़े पर बैठा हुआ था।


    "चलो बेटा, चलते हैं..." रिया की माँ ने कहा। वह लगातार रो रही थी।
    "चलो बेटा, चले..." रिया के पापा उसका हाथ पकड़कर ले जाने लगे। रिया एक बार फिर रवि के पास गई।
    "प्लीज़ रवि, मुझे जो कहना है कहो... मगर मेरे बच्चों पर इतना बड़ा इल्ज़ाम मत लगाओ..."
    "...रिया, तुम यहाँ से चली जाओ... मैं तुम्हारी शक्ल नहीं देखना चाहता..." रवि यह कहकर वहाँ से उठकर अपने कमरे में चला गया।


    "...अब तो आप लोगों को पता चल गया होगा ना... रवि भी मानता है कि यह बच्चे उसके नहीं हैं... अपनी बेटी को यहाँ से हमेशा के लिए ले जाओ... इसका सामान तुम लोगों के घर पहुँच जाएगा... साथ में तलाक के पेपर भी..." यह कहते हुए उसकी माँ सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। रवि के डैड, रंजीत, रिया के पास आए और कहने लगे, "...बेटा, एक बार तुम चली जाओ... फिर उसका गुस्सा ठंडा हो जाएगा... तो वह खुद ही तुम्हें लेने आ जाएगा... तुम्हें पता है वह तुमसे कितना प्यार करता है... इस टाइम तुम्हारा यहाँ रहना ठीक नहीं है..." उन्होंने मिस्टर खन्ना से भी यही कहा, "...प्लीज़, एक बार रिया को ले जाएँ... जब रवि का गुस्सा शांत होगा... तब सब ठीक हो जाएगा..."


    रिया अपने माँ और पापा के साथ घर वापस आ गई थी। रिया की हालत बहुत खराब थी। वह लगातार रो रही थी। घर जाकर उसकी माँ उसे समझाने लगी, "...देखो बेटा, यह किसी ने शरारत की है... जो तुम्हारी ऐसी पिक्चर्स रवि के पास भेजी हैं... उसके पापा सही कह रहे हैं... एक बार उसका गुस्सा शांत होने दो... फिर सब ठीक हो जाएगा..." उसके माँ और पापा रिया को समझाते रहे, मगर रिया की हालत ठीक नहीं थी। रिया ने रवि से फ़ोन पर बात करने की कोशिश भी की। रिया ने रवि को कितनी बार फ़ोन किया, मगर रवि ने उसका फ़ोन नहीं उठाया। फिर जब रिया ने फ़ोन करना बंद नहीं किया और रवि को मैसेज करने लगी, तो रवि ने अपना फ़ोन ही बंद कर दिया।

  • 17. Kahani Teri Meri - Chapter 17

    Words: 1051

    Estimated Reading Time: 7 min

    हुम बेवफा हरगिज नहीं थे


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    उसके माँ-बाप रिया को समझाते रहे, मगर रिया की हालत ठीक नहीं थी। रिया ने रवि से फ़ोन पर बात करने की कोशिश भी की। रिया ने रवि को कितनी बार फ़ोन किया, मगर रवि ने उसका फ़ोन नहीं उठाया। जब रिया ने फ़ोन करना बंद नहीं किया और रवि को मैसेज करने लगी, तो रवि ने अपना फ़ोन ही बंद कर लिया।


    रवि बहुत अपसेट था। रिया वह लड़की थी जिसे वह कॉलेज से प्यार करता था। उनका कॉलेज खत्म होने के बाद भी प्यार खत्म नहीं हुआ था। वह ऐसे ही चलता रहा। रवि के माँ-बाप रिया से शादी के लिए नहीं मान रहे थे क्योंकि रिया एक मिडिल क्लास की लड़की थी और रवि की फैमिली बहुत अमीर थी। उसके पिता का अपना बिजनेस था। रवि ने अपने माँ-बाप को मनाने की बहुत कोशिश की, मगर उसकी माँ नहीं मानीं। पिता शायद कहीं न कहीं मान भी जाते, मगर उसकी माँ की वजह से पिता ने भी शादी के लिए हां नहीं कही थी। रिया के माँ-बाप ने भी कह दिया था,


    "...अगर रवि के पेरेंट्स शादी के लिए मानेंगे...तो ही हम शादी के लिए हां कहेंगे...वरना रिया रवि को भूल जाए।"


    उन दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली थी। इस शादी के बाद न तो रवि के पेरेंट्स कुछ कर सके थे और न ही रिया के। ऐसे ही उन दोनों की शादी को एक साल हो गया था। इस एक साल में वे दोनों एक-दूसरे के साथ बहुत खुश थे। मगर रवि की दुनिया तबाह हो गई थी जब उसने वे तस्वीरें देखी थीं। रात को रवि शराब पीकर लेट गया था। उसे रिया की बेवफाई का दर्द सहन नहीं हो रहा था।


    सुबह रवि काफी देर से उठा था। रात को पीने की वजह से उसके सिर में बहुत दर्द हो रहा था। सुबह उठते ही उसे कल वाली बात याद आ गई थी। उसने मन में सोचा उसे रिया से एक बार बात करनी चाहिए। यह सोचकर उसने फ़ोन उठाया। रिया के बहुत सारे मिस्ड कॉल थे। वह फ़ोन करने ही वाला था। वह उससे पहले फ़ोन पर आए हुए मैसेज देखने लगा।


    रिया ने बहुत सारे मैसेज भेजे थे। जब उसने अपना व्हाट्सएप्प खोला तो सबसे ऊपर माँ का मैसेज था। तो सबसे पहले वह उसे देखने लगा। उसकी माँ ने लिखा था,


    "...रिया ने अपना अबॉर्शन करवा दिया है..."


    साथ में रिया की अस्पताल में एडमिट होने की तस्वीर थी। वह अस्पताल के बेड पर लेटी हुई थी और उसे एक लेडी डॉक्टर ट्रीट कर रही थी। रवि उठकर अपने कमरे से बाहर आया तो माँ हाल में बैठी हुई थी।


    "...माँ, क्या आप रात अस्पताल गई थीं...?"
    "हाँ मेरे बच्चे... असल में रिया के पीछे उसके घर तक गई थी... मुझे तुम्हारा बहुत फ़िक्र हो रहा था... मैं एक बार रिया से बात करना चाहती थी... मगर जब मैं उनके घर पहुँची तो वे लोग कहीं जा रहे थे... तो मैं उनके पीछे जाने लगी... वे लोग अस्पताल गए... और वहाँ जाकर रिया ने उनसे कहा कि वह उन बच्चों को गिराना चाहती है... उसके माँ-बाप भी उसके साथ थे... तो रात को रिया ने अबॉर्शन करवा दिया... मैंने सबूत के तौर पर यह तस्वीर खींच ली... मुझे लगा पता नहीं तुम मेरी बात पर यकीन करोगे या नहीं... मुझे पता है तुम अब भी रिया को बहुत प्यार करते हो... अगर तुम चाहो तो... मैं तुम्हारी उस लेडी डॉक्टर से भी बात करा सकती हूँ..."


    वह अपनी माँ की गोद में सिर रखकर जोर-जोर से रोने लगा।
    "...माँ, रिया ने ऐसा क्यों किया... रिया को बच्चों का अबॉर्शन नहीं करवाना चाहिए था..."
    "बेटा, वे बच्चे उसकी आयाशी के बीच रहे थे... इसलिए उसने अबॉर्शन करवा दिया... तुम अपने आप को संभालो... हम लोग आज ही ऑस्ट्रेलिया जा रहे हैं... तुम्हारे पिता आते ही होंगे... हम आज ही वहाँ से चले जाएँगे..."


    माँ ने रवि के हाथ से फ़ोन पकड़ लिया था।


    माँ फ़ोन पकड़ते हुए कहने लगी,
    "...मैं रिया का नंबर ब्लॉक कर रही हूँ... जो लड़की अपने बच्चों की नहीं हुई... वह तुम्हारी क्या होगी...?"


    रवि ने भी अपनी माँ को कुछ नहीं कहा।
    "...हम लोग शाम को ही ऑस्ट्रेलिया के लिए निकल जाएँगे..."


    फिर धीरे-धीरे रवि ने खुद को संभाल लिया था। उसके माँ-बाप तो वापस आ गए, मगर रवि उनका ऑस्ट्रेलिया में जो काम था उसे देखने लगा था। फिर धीरे-धीरे रवि ने अपने पिता का पूरा बिजनेस देखना शुरू कर दिया। वह रिया को अपने मन से कभी नहीं भूला था, मगर उसने कभी अपने माँ-बाप के सामने रिया का जिक्र भी नहीं किया। वह पूरी तरह काम में डूब चुका था। फिर उसके माँ-बाप को दिव्या पसंद थी, तो उसकी दिव्या के साथ सगाई हो गई थी। थोड़े महीनों में उसकी दिव्या के साथ शादी होने वाली थी। इसी बीच वह अपने काम के सिलसिले में चंडीगढ़ रहने आ गया था, जहाँ ऑफिस में उसने रिया को देखा था।


    रिया देखने में वैसे ही दुबली-पतली थी जैसे वह पहले हुआ करती थी। कॉलेज के टाइम पर वह हमेशा सूट-सलवार पहनती थी, तो आज भी उसने सूट ही पहना हुआ था। बालों को उसने खोलने की जगह बाँधा हुआ था। वरना कॉलेज में वह हमेशा बालों को खोलकर रखती थी।


    जब रिया उससे बात करने के बाद अपनी सीट पर आई थी तो वह काफी परेशान थी। सीसीटीवी कैमरे पर वह उसे ही देख रहा था। कितनी देर वह अपने चेहरे को दोनों हाथों से छिपाकर बैठी रही। फिर अपना टाइम देखकर अपना काम करने लगी थी।


    रवि बहुत अपसेट था। फिर वह अपने आप को नॉर्मल करने की कोशिश करने लगा था क्योंकि रिया से उसका तलाक हो चुका था। रिया ने खुद ही उसे साइन किए हुए पेपर्स भेजे थे।
    "...अब मुझे रिया को देखकर अपसेट नहीं होना चाहिए..."


    वह अपने आप से कह रहा था। ऑफिस टाइम खत्म होने पर वह अपने केबिन से बाहर आया। उसने देखा रिया जल्दी-जल्दी उसके आगे जा रही थी। वह अपनी गाड़ी की तरफ़ बढ़ने लगा था। उसने देखा रिया ने अपनी स्कूटी स्टार्ट की और चली गई। रवि भी अपने पेंटहाउस की ओर चल पड़ा था।


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  • 18. Kahani Teri Meri - Chapter 18

    Words: 1077

    Estimated Reading Time: 7 min

    हम बेवफा हरगिज़ न थे

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    रवि बहुत अपसेट था। फिर वह अपने आप को सामान्य करने की कोशिश करने लगा था। क्योंकि रिया से अब उसका तलाक हो चुका था। रिया ने खुद ही उसे साइन किए हुए पेपर्स भेजे थे।

    "अब मुझे रिया को देखकर अपसेट नहीं होना चाहिए," वह अपने आप से कह रहा था।

    ऑफिस टाइम खत्म होने पर वह अपने केबिन से बाहर आया। रिया उसके आगे जा रही थी। वह अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ने लगा। उसने देखा रिया ने अपनी स्कूटी स्टार्ट की और चली गई। रवि भी अपने पेंटहाउस की ओर चल पड़ा।


    वह घर पहुँच गया था। मगर वह दिमाग़ी तौर पर बहुत ज़्यादा परेशान था।

    "...कितना अच्छा होता अगर जिंदगी में मैं और रिया कभी नहीं मिलते..."

    वह शराब पी रहा था और रिया के बारे में सोच रहा था। अगर उसकी ज़िंदगी से रिया नहीं जाती, तो उसके आज दो बच्चे होते। रिया, जिसे उसने बहुत चाहा था। उसके पास एक प्यारी फैमिली होती।


    वह एक अजीब सी स्थिति से गुज़र रहा था। उसके फ़ोन पर बेल बजने लगी। देखा तो दिव्या का फ़ोन था। वह इस वक़्त दिव्या का फ़ोन नहीं उठाना चाहता था। चाहे दिव्या एक अच्छी लड़की थी, मगर उसका उससे शादी करने में कोई इंटरेस्ट नहीं था। मॉम-डैड के कहने से उसने सगाई तो कर ली थी, मगर शादी की तारीख़ को उसने काफ़ी आगे बढ़ा दिया था। दूसरी बार फिर दिव्या का फ़ोन आया। उसने फ़ोन उठाकर बंद कर दिया।


    मेड खाना बनाकर जा चुकी थी। घर में कोई नहीं था। वह अकेला था। वह अपनी ड्रिंक पीता हुआ लाबी का स्लाइडिंग डोर खोलकर बाहर बैठ गया। बाहर हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। क्योंकि बालकनी के ऊपर छत थी, तो उसे बारिश नहीं लग रही थी। वह ऐसे ही बाहर की तरफ़ देखने लगा। बिल्डिंग के मेन गेट से कई लोग अंदर आ रहे थे। रात के 9:00 बजे का टाइम था। सभी बिल्डिंग के लोग अपने घर को लौट रहे थे।


    तभी उसकी निगाह रिया पर गई जो स्कूटी से बिल्डिंग के अंदर आ रही थी। उसने रिया को देखकर सोचा, "...इस टाइम, इतनी रात को...वह बिल्डिंग में किससे मिलने आई है...वह भी बारिश में भीगते हुए..." बारिश चाहे हल्की थी, मगर रिया बिल्कुल भीग चुकी थी। उसे इतनी रात गए बिल्डिंग में आने से काफ़ी हैरानी हो रही थी।


    "...मेरा उससे क्या रिश्ता है...मैं क्यों सोच रहा हूँ कि वह इतनी रात को किससे मिलने आई है..." फिर भी उसका ध्यान रिया की तरफ़ ही था। वह बिल्कुल भीगी हुई थी और उसने सुबह के ही कपड़े पहने हुए थे, जो वह ऑफिस पहनकर आई थी। रिया अंदर चली गई थी। वह थोड़ी देर उसके बाहर आने की वेट करता रहा। शायद वह वापस जाएगी। आधे घंटे तक वह वहीं खड़ा रहा, मगर वह बाहर नहीं आई। वह अपने आप पर ही हँस रहा था। फिर वह अंदर आ गया। खाना खाने का उसका मन नहीं था। वह ऐसे ही जाकर सो गया।


    सुबह उसकी आँख देर से खुली। उसके सिर में भी बहुत दर्द था। उसने उठकर अपने लिए चाय बनाई, फिर सिर दर्द की दवा ली। वह ऑफिस के लिए निकल गया था। उसके जाने से पहले ही पूरा स्टाफ़ आ चुका था। ऑफिस में सभी लोग अपने काम पर लगे हुए थे। वह केबिन में जाकर बैठते ही सबसे पहले उसने सीसीटीवी कैमरा में रिया को देखने लगा। रिया का ध्यान अपने काम पर था। वह अपने काम में लगी हुई थी। आज भी उसने प्लाज़ो सूट पहना हुआ था और बालों को बाँधा हुआ था।


    रिया को देखना उसे अच्छा लगा था। फिर वह अपने काम पर लग गया। ऐसे ही उसकी एक-दो मीटिंग भी थीं, तो वह ऑफिस से मीटिंग के लिए बाहर भी गया था। फिर शाम को वह घर चला गया। उसका ध्यान रिया की तरफ़ था; वह किस तरफ़ जा रही है। जिस साइड वह कल गई थी, आज भी वह उसी साइड चली गई।


    फिर रात को उसने जल्दी खाना खा लिया था। क्योंकि कल पीने की वजह से उसका शरीर बहुत डाउन था, तो आज वह पीना नहीं चाहता था। रात को टाइम देखकर वह बालकनी में आ गया। वह देखना चाहता था कि क्या रिया आज रात को भी उसकी बिल्डिंग में आएगी। बिल्कुल सेम टाइम पर रिया फिर इस बिल्डिंग में दाखिल हो रही थी। उसने वही ऑफिस वाले कपड़े पहने हुए थे। उसे काफ़ी हैरानी हो रही थी। उसके मन में यह जानने की इच्छा हो गई कि इतनी रात को रिया किसके पास आती है।


    ऐसे ही उसने लगातार कई दिन नोटिस किया कि रिया रात को रोज़ उसकी बिल्डिंग में आती है। पहले तो वह जानना चाहता था, फिर उसने सोचा अब उसका रिया से क्या वास्ता। होगा कोई जिससे मिलने वह रात को आती होगी। उसने अपने आप को मेंटली इस बात के लिए तैयार किया कि वह रिया से दूर रहे। वह जल्दी से अपना काम ख़त्म करे और फिर वापस चला जाए। वह अपने आप को दिव्या के साथ शादी के लिए भी तैयार करना चाहता था।


    उसका ऑफिस का काम अच्छे से चलने लगा था। वह अपने ऑफिस के लिए काफ़ी मेहनत कर रहा था। अब वह रात को लेट आने लगा था, तो वह रिया को नहीं देख पाया था। पहले तो उसकी रिया में दिलचस्पी बढ़ने लगी थी, मगर जब उसने देखा रिया रात को उसकी बिल्डिंग में आती है, तो वह समझ गया था ज़रूर किसी अपने बॉयफ़्रेंड से मिलने आती होगी। उसने उसे पर ध्यान देना भी बंद कर दिया। उसने सोच लिया था वह जल्दी-जल्दी काम ख़त्म करके वापस चला जाएगा। वह रिया जैसी लड़की के पीछे अपने आप को बर्बाद नहीं करेगा।


    रिया को उससे कोई काम था तो रिया उसकी तरफ़ आ रही थी। उसने सीसीटीवी कैमरा में देख लिया था कि रिया उसके ऑफिस की तरफ़ आ रही है। रिया जब अंदर आई तो उसने एक एप्लीकेशन उसके पास थी।

    "...सर, मुझे कुछ दिनों की छुट्टी चाहिए..."

    वह एप्लीकेशन देखकर बोला, "...पता है इस टाइम काम का कितना प्रेशर है...तो आप छुट्टी लेना चाहती हो..."

    "...सर, मुझे कुछ पर्सनल काम है...इसके लिए मुझे दो-तीन दिन की छुट्टी चाहिए..."

    "...देखो रिया, आपको ज़्यादा से ज़्यादा एक दिन की छुट्टी मिल सकती है।" यह कहकर उसने रिया को वापस भेज दिया था।

  • 19. Kahani Teri Meri - Chapter 19

    Words: 1014

    Estimated Reading Time: 7 min

    "...पता है इस टाइम काम का कितना प्रेशर है... तो आप इस टाइम छुट्टी लेना चाहती हो?... सर, मुझे कुछ पर्सनल काम है... इसके लिए मुझे दो-तीन दिन की छुट्टी चाहिए थी..."

    "...देखो रिया, आपको ज्यादा से ज्यादा एक दिन की छुट्टी मिल सकती है..." यह कहकर उसने रिया को वापस भेज दिया था।


    रिया अपनी सीट पर वापस आ गई थी। वह बहुत परेशान थी। उसने अपनी सीट पर आकर अपनी चेयर की बैक पर अपना सिर रखकर ठंडी सांस ली और अपनी आँखें बंद कर लीं। रवि को सीसीटीवी कैमरा में दिख रहा था। रवि को लग रहा था कि वह बहुत परेशान है। शायद उसे छुट्टी दे देनी चाहिए थी। वह थोड़ी देर बाद वापस अपने काम में लग गई।


    शाम को, ऑफिस से छुट्टी होने के बाद, रिया अपनी स्कूटी के पास खड़ी फोन पर बात कर रही थी।

    "...नहीं, मैं नहीं जा सकती... मुझे छुट्टी नहीं मिली... आपको ही जाना पड़ेगा... आप समझते क्यों नहीं हैं... मैं बीच के एक दिन आ जाऊंगी... आप कल सुबह निकलने की तैयारी कर लो... मैं तो रात को इस टाइम आऊंगी... आप लोग सुबह ही निकल जाइए... मैं शाम को ऑफिस के बाद निकल जाऊंगी... आपके पास आने के लिए... पर अगले दिन शाम तक वापस आ जाऊंगी... प्लीज आप मेरा फिक्र ना करें... मॉम... मैंने आपसे कहा तो है... देखो, इस समय मुझे जाना है... मुझे लेट हो रहा है... आपको पता है मैं लेट होना अफोर्ड नहीं कर सकती... प्लीज आप दोनों सुबह जाने की तैयारी कर लो..."


    रिया ने फोन बंद करके ठंडी सांस ली। फोन अपने पर्स में डालकर स्कूटी स्टार्ट कर चली गई। रवि को उसकी बातों से कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि लड़की क्या कर रही है। परेशान तो बहुत है।

    "...इसको छुट्टी की इतनी भी क्या जरूरत... उसने सोच लिया था... कि मैं इसको दो-तीन दिन की छुट्टी दे दूँगा... शायद इसकी फैमिली में कोई प्रॉब्लम हो सकती है..."


    वह रिया की छुट्टी मंजूर कर देता है। रिया अगले तीन दिन तक काम पर नहीं आई। ना ही उसने रिया को बिल्डिंग में आते देखा था। आज रात उसने अपने दोस्त के बेटे की जन्मदिन की पार्टी में जाना था। वह उसी फ्लोर पर ही रहता था जहाँ पर रवि का पेंटहाउस था। उसका पेंटहाउस भी उसके साथ ही था। उसने उसके बेटे के लिए गिफ्ट खरीदा और वहाँ जाने की तैयारी कर ली। जब वह वहाँ पहुँचा, दो बच्चों की पार्टी शुरू हो चुकी थी। बच्चों को ऐसे खेलते देखकर रवि को बहुत अच्छा लगा।


    वह सोच रहा था कि अगर उसकी ज़िंदगी में सब सही रहता, उसके भी बच्चे होते।

    "...हो सकता है उसके दो बेटे... या दो बेटियाँ... कुछ भी होता... जो उसे पापा कहते..." वह बच्चों को देखकर खुश हो रहा था। तभी एक बच्चा भागता हुआ आकर उससे टकरा गया।

    "...क्या बात है बेटा...?"

    "...अंकल, मुझे आप अपने पीछे छुपा लो... वरना रवीना मुझे पकड़ लेगी..." वह बच्चा उसके पीछे छिप गया।

    "...अंकल, जहाँ पर अभी एक शैतान आया था... वह कहाँ है...?"

    "...तुम किस शैतान की बात कर रही हो?... जहाँ पर तो कोई शैतान नहीं है..."

    "...जहाँ पर तो सभी फ़रिश्ते हैं..." रवि ने हँसते हुए कहा।


    "...कोई बात नहीं अंकल... मैं उसको ढूँढ लूँगी... वह जहाँ भी छुपा होगा..." वह बच्ची अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोली।

    "...मैं आपके पास सोफे पर बैठ जाऊँ...?" उसने रवि से पूछा।

    "...हाँ हाँ बेटा... तुम बैठ जाओ..." वह उसके पास ही बैठ गई।

    "...अंकल, आप भी इसी बिल्डिंग में रहते हैं...?" उसने रवि से पूछा।

    "...हाँ, मैं यहीं पर रहता हूँ..."

    "...मैंने आपको एक-दो बार देखा है जहाँ पर..."

    "...अभी नया आया हूँ..."

    "...तो आपके भी तो बच्चे होंगे... हमें उनसे मिला दो, मुझे उनसे खेलना है... वह मेरा शैतान भाई से तो अच्छे ही होंगे..."

    "...नहीं बेटा, मेरे कोई बच्चे नहीं हैं..."

    "...अंकल, मुझे ऐसा लगता है मैंने आपको कहीं देखा है..."

    "...मुझे भी ऐसा ही लगता है..." वह बच्चा छुपा हुआ बच्चा बाहर निकाल कर बोला।


    "...मुझे भी ऐसा लग रहा है... मैंने अंकल को कहीं देखा है... अंकल आप तो कह रहे थे जहाँ पर नए आए हैं..." वह बच्चा कह रहा था।

    "...मुझे पता नहीं था कि यह जहाँ पर छुपा..." रवि ने झूठ बोला। वह बच्चा रवीना का हाथ पकड़कर साइड पर ले गया।


    "...पहले तुम मेरी बात सुनो..." उस बच्चे ने कहा। दोनों बच्चे बात करते हुए मुड़कर रवि की तरफ देख रहे थे। तभी उसका दोस्त, जिनके घर जन्मदिन की पार्टी थी, वह आ गया।

    "...रवि, तुम यहाँ क्या कर रहे हो?... अंदर आओ ना... यहाँ पर तो केवल बच्चे हैं... हम लोग ड्रिंक करते हैं..."


    "...नहीं, मैं तो इन बच्चों से बातें कर रहा था..." रवि हँसने लगा।

    "...हाँ, यह दोनों बड़े प्यारे बच्चे हैं... इसी बिल्डिंग में रहते हैं... दोनों बहन-भाई जुड़वाँ हैं..."

    "...हाँ, दोनों एक-दूसरे के साथ अभी तो झगड़ रहे थे, अभी दोनों में दोस्ती हो गई..." रवि बात करते हुए महेश के साथ अंदर चला गया।


    रवि महेश के साथ अंदर चला गया। महेश उसे अपनी फैमिली से मिलवाने लगा। महेश की मॉम रवि से बोली,

    "...रवि बेटा, अब तुम भी शादी कर लो... देखो ना बच्चे कितने अच्छे लगते हैं... आज बच्चों की वजह से घर में कितनी रौनक है..."

    "...इसको तो बच्चे वैसे भी बहुत अच्छे लगते हैं... बाहर इसे रवीना और रणवीर मिल गए थे... उनसे वहीं बैठकर इसे बातें कर रहा था..."


    "...सही बात है, वह दोनों तो बच्चे हैं ही बड़े प्यारे... मगर बेचारे किस्मत के मारे हैं... मालूम नहीं है कैसा बाप था उनका... और कैसे दादा-दादी... जिन्होंने उन दोनों को पराया कर दिया..." महेश की मॉम की बात सुनकर वह उनकी तरफ देखने लगा।

    "...तो यह बच्चे किसके साथ रहते हैं यहाँ पर...?" रवि ने पूछा।


    "...अपनी माँ और नाना-नानी के साथ रहते हैं... इसी बिल्डिंग में इनका फ्लैट है... अब इसके नाना तो रिटायर हो चुके हैं... तो इनकी मॉम दिन-रात काम करती है इनके लिए... पहले वह ऑफिस जाती है... शाम को किसी कोचिंग क्लास में पढ़ाती..."

  • 20. Kahani Teri Meri - Chapter 20

    Words: 1004

    Estimated Reading Time: 7 min

    "...अपनी मां और नाना-नानी के साथ रहते हैं... उनका फ़्लैट है इसी बिल्डिंग में... अब इसके नाना तो रिटायर्ड हो चुके हैं... तो इनकी मॉम दिन-रात काम करती है इनके लिए... पहले ऑफ़िस जाती है... शाम को किसी कोचिंग क्लास में पढ़ाती है..." महेश की मॉम ने कहा।


    "...यह तो बहुत गलत बात है... उसे बेचारी के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था... और साथ ही इतने प्यारे बच्चों को कौन छोड़ सकता है..." रवि उन बच्चों के बारे में सोचकर कहने लगा। "...वैसे ये सब बातें बच्चों की मॉम नहीं करती... वह तो कोई बात भी नहीं करती अपनी पिछली ज़िंदगी के बारे में... इन बच्चों की नानी, मां की फ़्रेंड है... उसकी वजह से इन्हें ये बातें पता हैं... वरना बिल्डिंग में बहुत कम लोग जानते हैं इस बात के बारे में..." महेश की वाइफ़ रेखा उन बच्चों के बारे में बताने लगी।


    अभी वे लोग बातें ही कर रहे थे कि रवीना उनके पास आ गई।
    "...ठीक है आंटी... अब हम चलते हैं..."
    "...इतनी जल्दी? थोड़ी देर और रुक जाओ..." रेखा ने कहा।
    "...देखो क्या हुआ... मॉम भी आने वाली होगी... और फिर आपको पता है कि मॉम को हमारा लेट तक जागना बिल्कुल भी पसंद नहीं है... इसलिए अब हम दोनों चलते हैं..."
    "...ठीक है बच्चों, तुम्हारे अंकल तुम्हें छोड़ आएंगे..."
    "...अब हम इतने छोटे बच्चे भी नहीं हैं कि हमें छोड़ना पड़े... एक फ़्लोर नीचे ही तो जाना है... हम लिफ़्ट से चले जाएँगे... मॉम कहती हैं कि हमें स्ट्रांग बनाना चाहिए... इसलिए हम किसी से नहीं डरते..."


    रवि उसे छोटी बच्ची की बातें सुनकर हैरान होने लगा।
    "...अच्छी बात है बेटा... आपकी मम्मी ने आपको बहुत अच्छी आदतें डाली हैं... छोटे बच्चों को जल्दी सोना चाहिए... अभी तो बड़े होकर आपको बहुत कुछ करना है..."
    "...बिल्कुल, मेरी मॉम भी मुझसे यही कहती है... फिर जब मैं बड़ी हो जाऊँगी तो... मुझे बहुत काम करना है... फिर मैं मॉम को इतना काम नहीं करने दूँगी..." वो बच्ची की बात सुनकर रवि मुस्कुराने लगा।


    रवीना के मना करने के बावजूद भी महेश उन दोनों बच्चों को छोड़ने चला गया। रवि बात करता हुआ वहाँ ड्राइंग रूम की खिड़की से बाहर देखने लगा। उसने देखा रिया उसी समय पर बिल्डिंग के अंदर एंटर कर रही है। वह स्कूटी पर थी और उसने अपनी स्कूटी के पीछे कुछ बाँधा हुआ था। उसने अपनी स्कूटी वहीं रोक दी और बिल्डिंग के सिक्योरिटी गार्ड की मदद से जो पीछे सामान बाँधा था उसे खोलने लगी।


    रवि ऊपर से ही उसे देख रहा था। जब उसने पीछे बाँधा हुआ सामान खोला तो देखा वह दो छोटे बच्चों की साइकिलें थीं। जैसे तीन-चार साल के बच्चे साइकिल चलाते हैं, उसी साइज़ की थीं। एक साइकिल का कलर ब्लू था और एक का कलर पिंक। वह उन दोनों साइकिलों को उसने स्कूटी से वहीं पर उतार दिया। खुद स्कूटी पार्क करने चली गई। फिर आकर उसने एक तो साइकिल खुद उठा ली, दूसरी जो बिल्डिंग का सिक्योरिटी गार्ड था, वह उठाने लगा।


    वे दोनों साइकिल लेकर बिल्डिंग के बिल्कुल अंदर जा रहे थे। इतने में रवीना और रवि दोनों भागते हुए आकर रिया से लिपट गए। रवि यह देखकर हैरान रह गया। उसे ऊपर कुछ सुनाई तो नहीं दे रहा था, मगर दोनों बच्चे बहुत खुश थे। रिया अपने घुटनों पर बैठ गई। दोनों बच्चे उसके गले लग गए और दोनों ने बारी-बारी से रिया के गाल पर प्यार किया। फिर दोनों बच्चे अपनी-अपनी साइकिल की तरफ़ हो गए। रवि के ऊपर से उन दोनों बच्चों के चेहरे की खुशी दिखाई दे रही थी और रिया का चेहरा भी खुशी से खिल रहा था।


    वह बच्चों को खुश देखकर बहुत खुश हो रही थी। उसने ध्यान से देखा तो वह उनके बच्चों के साथ रिया के पापा थे। वह उनको कैसे भूल सकता था? एक पल के लिए रवि के दिमाग से पूरी बात घूम गई। "...ये दोनों बच्चे जुड़वाँ हैं... इसके बाप और दादा-दादी ने छोड़ दिया है..." रवि यही शब्द सोच रहा था।


    रवि को वहाँ से जाने की जल्दी हो गई।
    "...ठीक है महेश, मैं चलता हूँ... इतनी जल्दी? खाना तो खाकर जाते..." महेश ने रवि से कहा।
    "...नहीं महेश, मुझे बहुत ज़रूरी काम है... अभी फ़ोन आया है... इसलिए मुझे जाना पड़ेगा..." वह महेश के बेटे को गिफ़्ट देकर वापस अपने पेंटहाउस में आ गया। घर में आते ही उसने किसी को फ़ोन लगाया। फ़ोन लगाकर रवि ने उससे कहा "...मैं तुम्हें किसी की इन्फ़ॉर्मेशन सेंड कर रहा हूँ... मुझे उसकी पूरी डिटेल चाहिए... इसलिए पाँच सालों में उसकी लाइफ की हर डिटेल मुझे जाननी है... और मुझे एक बात गलत नहीं बताना... जो सही हो मुझे वही कहना... और किसी के बारे में भी बताते हुए... वह मेरा कोई भी नज़दीकी क्यों ना हो... बताते हुए हिचकिचाना नहीं..."


    आज का रवि पाँच साल पहले वाला रवि नहीं था। आज वह एक सफल बिज़नेसमैन था और उसको जिसके बारे में पता करना चाहता था, आराम से पता कर सकता था। रवि ने रिया की पिक्चर और उसके बारे में पूरी इन्फ़ॉर्मेशन सेंड की।


    रवि घर में आते ही अपना सर पकड़कर सोफ़े पर बैठ गया। उसे यह बात समझने में देर नहीं लगी कि वे दोनों उसके ही बच्चे हैं। "...इसका मतलब था रिया ने अबॉर्शन नहीं करवाया था... उसने अकेले ही उन दोनों बच्चों को पाला था..." उसका दिमाग ख़राब हो रहा था... मगर उसकी मॉम ने कहा था कि रिया ने अबॉर्शन करवा दिया है... तो उसकी बात का क्या मतलब था?... रिया ने उसके पास तलाक़ के पेपर्स भेजे थे... और कहा था कि वह उसके साथ कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती... यह बात भी उसे मॉम ने ही बताई थी..." और फिर वह देश छोड़कर ऑस्ट्रेलिया चला गया था। रिया ने उसके साथ कांटेक्ट करने की कोशिश भी की थी, मगर उसने रिया से बात नहीं की थी। अब उसे बहुत पछतावा हो रहा था। "...उसे रिया से एक बार बात कर लेनी चाहिए थी... उसे रिया को ऐसे इग्नोर नहीं करना चाहिए था..." वह सोच रहा था।