अक्षत रॉय और तारा मेहता—दो विपरीत ध्रुव, जो टकराने के लिए ही बने हैं। अक्षत, जो किसी चीज़ को सिर्फ देखता नहीं, बल्कि उसे पूरी तरह से अपना बना लेता है। उसकी दुनिया में जो चीज़ एक बार दाखिल हो गई, वो या तो उसकी होती है या फिर खत्म कर दी जाती ह... अक्षत रॉय और तारा मेहता—दो विपरीत ध्रुव, जो टकराने के लिए ही बने हैं। अक्षत, जो किसी चीज़ को सिर्फ देखता नहीं, बल्कि उसे पूरी तरह से अपना बना लेता है। उसकी दुनिया में जो चीज़ एक बार दाखिल हो गई, वो या तो उसकी होती है या फिर खत्म कर दी जाती है। तारा उसके लिए पहली नजर में ही एक जुनून बन जाती है—एक ऐसी पहेली, जिसे हल करने की चाह उसे बेकाबू कर देती है। तारा की बेपरवाह हँसी, उसकी निडरता, और हर मुश्किल से लड़ने की उसकी आदत अक्षत को हैरान कर देती है। मगर तारा कोई आम लड़की नहीं। वो किसी की जागीर बनने के लिए पैदा नहीं हुई। अक्षत की हुकूमत और उसके खतरनाक इरादों के सामने भी वो वही रहती है—बेबाक, निडर और शरारती। अगर अक्षत आग है, तो तारा चिंगारी, जो भड़कने के बाद पूरे जंगल को राख कर सकती है। कैसे होगी इनकी मुलाकात,देखते रहिए The physco lover
Akshat roy
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तारा मेहता के लिए ये सुबह भी किसी आम सुबह जैसी ही थी—चहल-पहल से भरी, बच्चों की हंसी-ठिठोली से गूंजती और हल्की-फुल्की मस्ती से सराबोर। वह एक किंडरगार्टन स्कूल की टीचर थी, और बच्चों के साथ उसका दिन हमेशा ही खुशनुमा गुजरता था। लेकिन उसे क्या पता था कि आज की ये सुबह उसके लिए एक तूफान लेकर आएगी—एक ऐसा तूफान जो उसकी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल देगा। चुलबुली तारा तारा का रंग गेहुँआ था, बड़ी-बड़ी expressive आँखें और चेहरे पर एक मासूमियत जो किसी को भी अपनी तरफ खींच ले। लेकिन ये मासूमियत सिर्फ उसके चेहरे तक थी, उसके अंदर एक अलग ही एनर्जी थी—एक ऐसी एनर्जी जो किसी की भी नाक में दम कर सकती थी। वो जब भी बोलती, तो ऐसा लगता जैसे रेडियो ऑन हो गया हो। "अरे पिंकी! रो क्यों रही हो बेटा? देखो, अगर ऐसे रोती रहोगी तो तुम्हारे गालों पर झुर्रियां पड़ जाएंगी!" तारा ने हँसते हुए एक छोटी बच्ची को गोद में उठा लिया। पिंकी ने सुबकते हुए उसे देखा, "मैम, राहुल ने मेरी चॉकलेट छीन ली।" "ओह! राहुल बेटा, इधर आओ," तारा ने आँखें घुमाते हुए कहा। छोटा सा राहुल, जो पहले से ही डर चुका था, धीरे-धीरे तारा के पास आया। राहुल, अगर तुम्हें चॉकलेट इतनी पसंद है, तो बताओ ना! मैं तुम्हें ढेर सारी चॉकलेट दूँगी, लेकिन अपनी दोस्त को रुलाना अच्छी बात नहीं, समझे?" राहुल ने झेंपते हुए पिंकी को चॉकलेट वापस कर दी। तारा मुस्कुरा दी। वो ऐसी ही थी—हर छोटी-छोटी चीज़ को हल्के-फुल्के अंदाज में संभालने वाली। लेकिन किस्मत ने उसके लिए कुछ और ही प्लान कर रखा था। स्कूल की छुट्टी के बाद तारा अपने स्कूटी पर निकली। वो हमेशा की तरह अपनी मस्ती में थी, गाने गुनगुनाते हुए सड़क पर चली जा रही थी। लेकिन तभी अचानक... धड़ाम! उसकी स्कूटी एक बड़ी काली कार से टकरा गई। तारा का बैलेंस बिगड़ गया और वो धड़ाम से सड़क पर गिर पड़ी। "अरे, आँखें हैं या फिर सजावट के लिए रखी हैं?" तारा गुस्से में बड़बड़ाते हुए उठी और अपनी स्कूटी संभाली। तभी कार का दरवाजा खुला, और जैसे ही उसने नजरें उठाईं, उसकी सांसें एक पल के लिए थम गईं। सामने एक लंबा-चौड़ा, काले सूट में खड़ा आदमी था। उसके चेहरे पर न कोई एक्सप्रेशन था, न कोई झुंझलाहट। बस उसकी ठंडी, गहरी आँखें सीधे तारा पर टिकी थीं। "तुम ठीक हो?" उसकी आवाज गहरी थी, लेकिन उसमें कोई भाव नहीं था। तारा झटके से खड़ी हुई और गुस्से से बोली, "अरे वाह! पहले तो अपनी बड़ी सी कार मेरे ऊपर चढ़ा दी, और अब पूछ रहे हो कि मैं ठीक हूँ या नहीं? वाह भाई, वाह!" वो आदमी चुपचाप तारा को देखता रहा। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, मानो उसने किसी दिलचस्प चीज़ को देख लिया हो। "मेरा नाम अक्षत रॉय है।" "तो मैं क्या करूँ? तुम्हारा नाम गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में लिख दूँ?" तारा ने तुनक कर कहा। अक्षत के चेहरे पर हल्की सी स्मिर्क आई, लेकिन अगले ही पल वो गायब हो गई। "तुम्हारी हिम्मत काफी ज्यादा है।" "हाँ, वो तो है! लेकिन आप कौन होते हैं मुझे यह बताने वाले?" तारा ने अपनी स्कूटी स्टार्ट करते हुए कहा। अक्षत बिना कुछ बोले उसे देखता रहा। तारा ने स्कूटी आगे बढ़ाई, लेकिन जैसे ही वो जाने लगी, उसने अपनी पीठ पर एक ठंडी नजर महसूस की। अक्षत रॉय अब भी वहीं खड़ा था, उसे देख रहा था... ऐसे जैसे उसने कोई कीमती चीज़ पा ली हो। अक्षत रॉय के लिए ये बस एक मामूली टक्कर नहीं थी। तारा की बेबाकी, उसकी चुलबुली बातें और उसका बिना डरे उसे जवाब देना—ये सब कुछ नया था उसके लिए। वो आदतन हर चीज़ पर कंट्रोल रखता था। लेकिन तारा... वो उसके कंट्रोल से बाहर थी। और यही बात उसे तारा की तरफ खींच रही थी। रात को जब वो अपने पेंटहाउस में बैठा था, उसके हाथ में वाइन का ग्लास था और सामने तारा की तस्वीर थी—सीसीटीवी फुटेज से निकाली हुई। उसने उंगलियों से तस्वीर पर चलते हुए हल्की मुस्कान दी। "अब तुम मुझसे बच नहीं सकती, तारा मेहता," उसने खुद से कहा। अगले दिन तारा स्कूल पहुँची, लेकिन उसे ये एहसास नहीं था कि उसकी जिंदगी अब पहले जैसी नहीं रहने वाली। क्योंकि कोई था जो हर कदम पर उसकी हरकतों को देख रहा था... और उसे अपना बना लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था।
तारा के लिए ये सुबह भी बाकी दिनों जैसी ही थी, लेकिन उसे क्या पता था कि उसकी ज़िंदगी में अब बदलाव की आहट हो चुकी थी। जो आंखें कल तक उसे सिर्फ एक अजनबी की तरह देख रही थीं, वो आज उसे अपने दायरे में समेटने की तैयारी कर चुकी थीं। "सिया! यार ये देख, मेरी स्कूटी की हेडलाइट फिर टूट गई। कल रात घर जाते वक्त किसी पागल से टकरा गई थी!" तारा ने झुंझलाते हुए कहा। सिया, जो कि उसकी बेस्ट फ्रेंड थी, हंस पड़ी। "किसी से टकरा गई थी या फिर किसी को टक्कर मार दी थी?" तारा ने उसे घूरा। "ऐसा कुछ नहीं था! वो बंदा ही अजीब था। नाम अक्षत रॉय था, लेकिन ऐसा बर्ताव कर रहा था जैसे खुद को मसीहा समझता हो!" सिया का चेहरा अचानक गंभीर हो गया। "अक्षत रॉय? वो... बिज़नेस टाइकून?" "कौन बिज़नेस टाइकून?" तारा ने लापरवाही से कहा। "तारा! तुम सीरियसली नहीं जानती कि अक्षत रॉय कौन है?" सिया ने लगभग फुसफुसाते हुए कहा। "नहीं, और ना ही जानना चाहती हूँ," तारा ने कंधे उचकाए। "तुम पागल हो क्या? वो आदमी... वो बहुत खतरनाक इंसान है। उसके बारे में बहुत सारी अफवाहें हैं। कहते हैं कि उसके रास्ते में जो भी आता है, वो गायब हो जाता है।" तारा हंसी, "अरे यार, तुम भी! ये सब फिल्मी बातें हैं।" लेकिन सिया की आँखों में चिंता थी। "बस मेरी बात सुन, तारा। अगर वो इंसान फिर से तुम्हारे सामने आए, तो उससे जितना दूर रह सको, उतना ही बेहतर होगा।" कहीं न कहीं... कोई देख रहा था स्कूल खत्म होने के बाद तारा जब बाहर निकली, तो उसे एहसास हुआ कि माहौल थोड़ा अजीब है। हवा में एक अजीब सी घुटन थी, और ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसे देख रहा हो। उसने चारों तरफ नजरें घुमाईं, लेकिन कुछ नजर नहीं आया। उसने अपने ख्यालों को झटका और स्कूटी स्टार्ट की। जैसे ही उसने स्कूटी आगे बढ़ाई, अचानक सामने एक काली गाड़ी आकर रुकी। दरवाजा खुला और वही आदमी बाहर निकला—अक्षत रॉय। तारा की भौहें तन गईं। "अब क्या है?" अक्षत की आँखों में वही ठंडापन था, लेकिन इस बार उसकी आवाज़ में एक अजीब सा अधिकार था। "तुम्हें घर छोड़ना है।" तारा हंसी, "ओह, तो अब आप कैब सर्विस भी चला रहे हैं?" अक्षत ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। "बैठो अंदर।" "मुझे कहीं नहीं जाना, मैं स्कूटी से चली जाऊंगी," तारा ने अकड़कर कहा। अक्षत एक कदम आगे बढ़ा, उसके बेहद करीब आकर। "ये कोई रिक्वेस्ट नहीं थी, तारा।" तारा का दिल जोर से धड़कने लगा, लेकिन उसने खुद को संभाला। "तुम्हें क्या लगता है कि मैं डर जाऊंगी?" अक्षत हल्का सा मुस्कराया, लेकिन उसकी मुस्कान में खतरा छुपा था। "डरने की जरूरत नहीं है... अभी।" तारा ने बिना जवाब दिए स्कूटी स्टार्ट की और तेजी से वहां से निकल गई। लेकिन वो जानती थी कि ये आखिरी बार नहीं था जब उसकी मुलाकात इस सनकी आदमी से हुई थी। रात को जब तारा अपने कमरे में थी, उसका फोन बजा। अननोन नंबर। उसने अनदेखा किया, लेकिन दूसरी बार वही नंबर फिर से आया। "कौन है?" उसने कॉल उठाते ही कहा। दूसरी तरफ से वही गहरी, ठंडी आवाज़ आई। "मैंने कहा था न, तारा... तुम मुझसे दूर नहीं जा सकती।" तारा का दिल धड़कना बंद कर गया। "तुम... मेरे नंबर तक कैसे पहुँचे?" "मुझे जो चाहिए, वो मैं हासिल कर लेता हूँ," अक्षत ने बेहद सहजता से कहा। तारा ने गुस्से से फोन काट दिया, लेकिन उसके अंदर एक अजीब सा डर घर कर चुका था। क्या सच में वो इस पागल आदमी के चंगुल में फँस चुकी थी
तारा को अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि अक्षत रॉय ने उसका नंबर कहीं से निकाल लिया था। उसे लगा कि शायद ये महज़ एक इत्तेफाक है, लेकिन उसके दिल के किसी कोने में हल्की सी बेचैनी घर कर चुकी थी। सुबह उठते ही तारा ने खुद से कहा, "तू बेवजह डर रही है, तारा! तुझे किसी से डरने की जरूरत नहीं है। वो चाहे कोई भी हो, तेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।" मन को मजबूत करते हुए वो तैयार हुई और स्कूटी लेकर स्कूल के लिए निकल पड़ी। लेकिन जैसे ही उसने अपनी गली पार की, एक काली गाड़ी उसके पीछे धीमी रफ्तार से चलने लगी। तारा ने आईने में देखा, उसकी सांसें तेज हो गईं। "ये क्या है? कहीं ये..." उसने स्कूटी की स्पीड बढ़ाई, लेकिन गाड़ी भी उसी हिसाब से तेज हो गई। तारा ने झट से एक और गली में मोड़ लिया, फिर दूसरी, फिर तीसरी... और जब उसने दोबारा पीछे देखा, गाड़ी गायब हो चुकी थी। "शायद मेरा वहम था..." उसने खुद को समझाया और आगे बढ़ गई। स्कूल पहुंचने के बाद जब तारा अपनी क्लास में दाखिल हुई, तो उसकी टेबल पर एक गुलाब रखा था—काले रिबन में बंधा हुआ। तारा ठिठक गई। "ये किसने रखा?" उसने बच्चों से पूछा। छोटे-छोटे मासूम चेहरे उसे देखते रहे, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। उसने गुलाब उठाया, और तभी उसे एक छोटा सा नोट मिला। नोट पर सिर्फ एक लाइन लिखी थी— "तुम जितना दूर भागोगी, मैं उतना पास आऊंगा। - A" तारा का दिल जोर से धड़कने लगा। उसे अब यकीन हो चुका था कि ये अक्षत का काम है। लेकिन वो डरने वालों में से नहीं थी। उसने झटके से गुलाब को फेंक दिया और नोट को फाड़कर डस्टबिन में डाल दिया। "अगर उसे लगता है कि मैं डर जाऊंगी, तो वो बहुत बड़ी भूल कर रहा है।" ये बोल वह अपना काम करने लगी स्कूल खत्म हुआ, तारा बाहर निकली, और उसकी नजर फिर उसी काली गाड़ी पर पड़ी। इस बार उसके चेहरे पर डर की जगह गुस्सा आया। "अब ये हद हो रही है!" वो गाड़ी के पास गई और खिड़की पर ज़ोर से थपथपाया। खिड़की नीचे सरकी, और अंदर वही ठंडी आँखें उसकी तरफ देख रही थीं—अक्षत रॉय। "तुम मेरी जासूसी कर रहे हो?" तारा ने गुस्से में पूछा। अक्षत ने बिना पलक झपकाए उसे देखा। "मैं तुम्हारी जासूसी नहीं करता, तारा। जो मेरा है, उस पर नज़र रखना मेरा हक़ है।" तारा एक पल के लिए स्तब्ध रह गई। "ये आदमी सच में पागल है!" "मैं तुम्हारी कुछ नहीं हूँ, समझे?" तारा ने तीखे लहजे में कहा। अक्षत हल्का सा मुस्कराया। "अभी नहीं। लेकिन जल्द ही सब कुछ बदल जाएगा।" तारा ने गुस्से से अपने स्कूटी का हैंडल पकड़ा और वहां से निकल गई, लेकिन अक्षत की आंखों में वही जुनून झलक रहा था—जो इस खेल की सिर्फ़ शुरुआत थी। रात को तारा जब अपने कमरे में थी, अचानक उसकी खिड़की पर हल्की सी आहट हुई। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। वो धीरे-धीरे खिड़की के पास गई, लेकिन बाहर कोई नहीं था। "क्या ये सिर्फ़ मेरा भ्रम था, या फिर... वो सच में यहीं था?" तारा बोली ।। तारा ने खिड़की बंद की, लेकिन उसे एहसास हो गया था—वो अकेली नहीं है। कोई था जो हर वक़्त उसे देख रहा था। और वो कोई और नहीं, बल्कि अक्षत रॉय था। तारा की बेचैनी अब डर में बदलने लगी थी। पहले अनजान नंबर से कॉल, फिर स्कूल में काला गुलाब, अब रात के अंधेरे में खिड़की पर किसी की आहट... ये सब महज़ इत्तेफाक नहीं हो सकते थे। अक्षत रॉय सच में उसके पीछे पड़ा था। लेकिन तारा तारा थी—डर उसकी फितरत में नहीं था। सुबह तारा जब स्कूल जाने के लिए निकली, तो गली में वही काली गाड़ी खड़ी थी। "अब ये रोज़ का ड्रामा होने वाला है क्या?" तारा ने गहरी सांस ली और स्कूटी स्टार्ट की। जैसे ही वो सड़क पर निकली, गाड़ी फिर से उसके पीछे चलने लगी। इस बार तारा रुक गई। गाड़ी भी कुछ दूरी पर रुक गई। "चलो, आज देखते हैं कितनी हिम्मत है इसमें!" तारा स्कूटी से उतरी और सीधा गाड़ी के पास जाकर दरवाजे पर ज़ोर से हाथ मारा। "क्या प्रॉब्लम है तुम्हारी? पीछा क्यों कर रहे हो?" खिड़की धीरे-धीरे नीचे सरकी, और अंदर वही ठंडी आँखें नजर आईं। अक्षत रॉय, हमेशा की तरह शांत, गंभीर। "मैं पीछा नहीं कर रहा, बस देख रहा हूँ कि तुम ठीक से स्कूल पहुंचो।" तारा हंसी, लेकिन उसमें तंज़ था। "ओह, तो अब तुम मेरी सेफ्टी गार्ड बन गए हो?" अक्षत ने सिर थोड़ा सा झुकाया, जैसे ये बात उसे सही लगी हो। "अगर इसे तुम ऐसा कहना चाहती हो, तो हाँ।" तारा ने गुस्से में अपना हाथ हवा में झटका। और बोली "देखो मिस्टर, मैं किसी बॉडीगार्ड की जरूरत नहीं रखती, और ना ही किसी के कंट्रोल में रहना पसंद करती हूँ। तुम्हारी ये जबरदस्ती की प्रोटेक्शन मेरे काम की नहीं।" अक्षत ने उसकी बात सुनी, लेकिन उसका चेहरा एकदम सपाट था। "ये सिर्फ प्रोटेक्शन नहीं है, तारा। ये मेरा हक़ है।" तारा को ऐसा लगा जैसे उसके पैरों तले जमीन खिसक गई हो। वह मन ही मन सोचने लगी।। "ये आदमी वाकई पागल है!" लेकिन उसने खुद को संभाला। और बोली "मुझे फर्क नहीं पड़ता तुम क्या सोचते हो। बस मुझसे दूर रहो!" वो गुस्से में अपनी स्कूटी पर बैठी और वहां से निकल गई। रात को जब तारा घर लौटी, तो दरवाजे के नीचे एक सफेद लिफाफा पड़ा था। उसने धीरे से लिफाफा उठाया और खोला। अंदर बस एक लाइन लिखी थी— "जब तक तुम मुझे स्वीकार नहीं करोगी, तब तक तुम्हें दुनिया से बचाने की ज़रूरत है। - अक्षत" तारा की उंगलियां कांप गईं। "ये आदमी किसी भी हद तक जा सकता है..." उसने तुरंत दरवाजा बंद किया, लाइट्स बंद की और खिड़की से झांका। गली में दूर एक परछाईं दिखी। अंधेरे में खड़ा वो शख्स... उसे देख रहा था। अक्षत रॉय। ये देख तारा ने तेजी से खिड़की पर टंगा पर्दा खींच लिया, लेकिन वो नहीं जानती थी — अभी तो ये दीवानगी सिर्फ़ शुरू हुई थी। अक्षत का साइको पन अभी बाकी था । (जारी रहेगा...)
तारा ने जितनी कोशिश की, अक्षत रॉय को नज़रअंदाज़ करना उतना ही मुश्किल होता जा रहा था। वो उसकी हर हरकत पर नज़र रख रहा था, उसके रास्तों को घेर रहा था, और अब तो उसके घर तक दस्तक देने लगा था। तारा को लगने लगा था कि ये सिर्फ़ जुनून नहीं, बल्कि एक पागलपन था—एक ऐसा पागलपन जो उसे घेर चुका था। सुबह जब तारा स्कूल पहुंची, तो उसका मूड खराब था। सिया ने उसे देखते ही पूछा, "क्या हुआ? फिर से वही गाड़ी पीछा कर रही थी?" तारा ने झुंझलाते हुए जवाब दिया, "सिया, वो आदमी... वो मेरी जिंदगी नर्क बना रहा है! कल रात मेरे घर के बाहर खड़ा था। ये तो सरासर स्टॉकिंग है!" सिया चिंतित हो गई। "तारा, तुझे पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिए।" तारा गहरी सांस लेकर बोली, "नहीं, ये आदमी खतरनाक है। अगर मैंने कोई गलत कदम उठाया तो पता नहीं वो क्या कर बैठेगा।" सिया ने उसका हाथ पकड़ा। "तो फिर क्या करेगी तू?" तारा की आँखों में गुस्सा चमका। "इस बार मैं उससे सीधे बात करूंगी। अब बहुत हो चुका!" स्कूल खत्म होने के बाद तारा बाहर निकली, और हमेशा की तरह वही काली गाड़ी खड़ी थी। "आज नहीं!" वो गुस्से से भरी गाड़ी के पास पहुंची और ज़ोर से खिड़की पर हाथ मारा। "अक्षत! बाहर आओ!" खिड़की नीचे सरकी, और अक्षत की जमी हुई नज़रें तारा पर पड़ीं। "तुम्हें क्या लगता है? तुम मेरा पीछा करोगे, तो मैं डर जाऊंगी?" तारा ने तीखे स्वर में कहा। अक्षत ने उसकी आँखों में गहराई से देखा। "डरने की जरूरत नहीं है, तारा।" "ओह, सच में? तो फिर बताओ, ये सब क्या है? हर जगह मेरा पीछा करना, मेरे घर के बाहर आकर खड़ा होना, मुझे जबरदस्ती अपनी प्रोटेक्शन देने की कोशिश करना—ये सब क्या है?" अक्षत धीरे-धीरे गाड़ी से बाहर आया। उसकी लंबी कद-काठी तारा पर एक छाया की तरह पड़ रही थी। "ये सब इसलिए है क्योंकि तुम मेरी हो।" तारा का दिल जोर से धड़का। "तुम्हें क्या लगता है, तुम जो चाहोगे, वो मिलेगा?" अक्षत ने एक कदम आगे बढ़ाया। "हाँ।" तारा गुस्से में पलटकर जाने लगी, लेकिन तभी अक्षत ने उसकी कलाई पकड़ ली। "छोड़ो मुझे!" तारा ने झटका देने की कोशिश की, लेकिन अक्षत की पकड़ मजबूत थी। "तारा, तुम जितना मुझे रोकने की कोशिश करोगी, मैं उतना ही तुम्हें अपना बना लूंगा।" "तुम्हें कोई हक़ नहीं है!" तारा की आवाज़ कांपी, लेकिन उसमें हिम्मत थी। अक्षत ने अचानक तारा को अपनी ओर खींच लिया, इतनी नजदीक कि उसके गर्म सांसों की तपिश तारा के चेहरे पर महसूस हो रही थी। "हक़ खुद लिया जाता है, तारा।" और अगली ही पल, उसने तारा के होंठों पर अपने होंठ रख दिए। तारा के दिमाग ने कुछ पलों के लिए काम करना बंद कर दिया। उसके शरीर ने पलटकर विरोध करना चाहा, लेकिन अक्षत की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वो खुद को छुड़ा नहीं पाई। अक्षत की सांसें गहरी थीं, उसकी पकड़ में एक पागलपन था, और उस छूअन में एक ऐसा जुनून था जो डरावना था। तारा ने पूरी ताकत से उसे धक्का दिया, और जैसे ही अक्षत पीछे हटा, उसने बिना कुछ सोचे-समझे एक ज़ोरदार थप्पड़ उसके चेहरे पर जड़ दिया। अक्षत का सिर हल्का सा एक तरफ झुका, लेकिन उसकी आँखों में कुछ नहीं बदला। वो अब भी उसी तरह तारा को देख रहा था—जैसे कुछ भी हुआ ही नहीं। "तुम पागल हो!" तारा की आँखों में आँसू थे, लेकिन वो खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी। अक्षत ने अपनी जीभ से हल्के से अपने होंठों को छुआ, जैसे वो अभी भी उस पल को महसूस कर रहा हो। "ये सिर्फ़ शुरुआत है, तारा।" उसकी आवाज़ में कोई पछतावा नहीं था, बस एक वादा था—एक खतरनाक वादा। तारा एक गहरी सांस लेकर पीछे हटी, और तेज़ी से वहां से चली गई। लेकिन उसके दिल की धड़कनें अब भी बेकाबू थीं। उसने खुद को समझाया, "नहीं तारा, तुझे डरना नहीं है।" लेकिन उसके भीतर कुछ था जो बुरी तरह हिल चुका था। अक्षत रॉय ने उसे अपने खेल में फंसा लिया था... और अब उससे बच निकलना आसान नहीं था।
तारा का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। उसके होंठ अब भी अक्षत की जबरदस्ती को महसूस कर रहे थे, और उसका थप्पड़... क्या अक्षत को कोई फर्क पड़ा? नहीं। उसकी आँखों में कोई पछतावा नहीं था, बल्कि एक और गहरी पागलपन भरी चाहत थी।
घर पहुंचते ही तारा ने खुद को बाथरूम में बंद कर लिया। उसने शीशे में खुद को देखा। चेहरा गुस्से से लाल था, आँखों में आँसू थे, लेकिन वो खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी।
"तुझे डरने की जरूरत नहीं है, तारा।" उसने खुद से कहा।
लेकिन उसकी आत्मा तक काँप गई थी। अक्षत रॉय का ये दीवानापन अब उसकी सहनशक्ति को चीर रहा था।
अगली सुबह तारा जैसे ही स्कूल पहुंची, सिया उसके पास आई।
"तू ठीक है?" सिया ने पूछा।
तारा जानती थी कि उसकी आँखें सब बयां कर रही हैं।
"सिया, वो हदें पार कर रहा है... मैं सच में डरने लगी हूँ।" तारा की आवाज़ में एक हल्की थरथराहट थी।
सिया ने उसका हाथ पकड़ा। "तारा, अब तुझे पुलिस में जाना ही पड़ेगा। ये आदमी पागल है, ये किसी भी हद तक जा सकता है!"
तारा चुप हो गई।
क्या पुलिस में जाने से अक्षत रॉय रुक जाएगा? नहीं। बल्कि वो और भी खतरनाक हो सकता है।
"नहीं सिया, मैं खुद हैंडल करूंगी।"
"तारा..." सिया कुछ और कहने ही वाली थी कि तभी स्कूल के गेट के बाहर कुछ गाड़ियों की आवाज़ आई।
तारा ने बाहर देखा, और उसका दिल बैठ गया।
अक्षत रॉय।
काली शर्ट, गहरे भूरे रंग की आँखें, चेहरे पर वही ठंडी मुस्कान।
उसने बिना किसी को परवाह किए, स्कूल के गेट के अंदर कदम रखा।
तारा तेजी से उसके पास आई। "तुम यहां क्या कर रहे हो?"
अक्षत मुस्कुराया। "तुमसे मिलने आया हूँ।"
"तुम्हें मुझसे मिलने की कोई जरूरत नहीं है!" तारा ने गुस्से से कहा।
अक्षत ने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा, "जरूरत नहीं, तारा। ये मेरा हक़ है।"
तारा ने गहरी सांस ली और उसे इग्नोर करने की कोशिश की। लेकिन अक्षत ने उसके सामने एक फाइल लाकर रख दी।
"इसे देखो।"
तारा ने अनमने मन से फाइल खोली, और उसकी आँखें फैल गईं।
ये स्कूल की डीड थी।
"ये क्या है?" तारा ने सदमे में पूछा।
अक्षत ने शांत स्वर में जवाब दिया, "तुम जहां काम करती हो, वो जगह अब मेरी है।"
तारा को लगा जैसे किसी ने उसके पैरों तले ज़मीन खींच ली हो।
"तुमने... तुमने मेरा स्कूल खरीद लिया?" उसकी आवाज़ काँप रही थी।
अक्षत ने सिर हिलाया। "हाँ। ताकि अब तुम्हें मुझसे दूर जाने का कोई मौका न मिले।"
तारा को पहली बार अक्षत के इस जुनून की असली ताकत महसूस हुई।
"ये आदमी सिर्फ़ मुझे पाना नहीं चाहता, बल्कि मेरी पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठी में करना चाहता है।"
वो डर गई थी, लेकिन डर उसे तोड़ नहीं सकता था।
"तुम ये सब करके क्या साबित करना चाहते हो?" तारा की आँखों में आंसू थे, लेकिन आवाज़ में अब भी जिद थी।
अक्षत झुका और धीमे स्वर में फुसफुसाया, "कि तुम मेरी हो, और हमेशा मेरी रहोगी।"
तारा ने उसकी आँखों में देखा। वो सिर्फ़ एक सनकी इंसान नहीं था... वो उसकी पूरी ज़िन्दगी पर कब्ज़ा जमाने की तैयारी कर चुका था।
तारा का पूरा वजूद कांप गया था। अक्षत रॉय सिर्फ़ उसका पीछा नहीं कर रहा था, अब वो उसकी ज़िन्दगी के हर पहलू को जकड़ने लगा था। स्कूल खरीदना—ये तो बस शुरुआत थी।
तारा ने अक्षत की तरफ देखा, उसकी आँखों में गुस्से की लपटें उठ रही थीं।
"तुम्हें लगता है कि स्कूल खरीदकर तुम मुझे अपने काबू में कर लोगे?"
अक्षत मुस्कुराया, लेकिन उसकी आँखों में वही जमी हुई ठंडक थी। "मैंने ये सब इसलिए किया, ताकि तुम कहीं और मत भाग सको। तुम यहीं रहोगी, मेरे सामने।"
तारा को ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने उसके सांस लेने की जगह तक छीन ली हो।
"तुम एक बीमार इंसान हो, अक्षत।"
अक्षत की मुस्कान और गहरी हो गई। "बीमार? हो सकता है। लेकिन तुम ही मेरी दवा हो, तारा।"
तारा गुस्से में वहां से निकल गई। लेकिन जब वो रात को घर लौटी, तो दरवाजे के सामने वही काला गुलाब रखा हुआ था।
"नहीं... फिर से नहीं।"
तारा ने गुलाब उठाया, और एक नोट मिला—
"आज नहीं तो कल... तुम मेरी ही बनोगी। - A"
तारा ने झटके से गुलाब फेंक दिया।
"अब ये आदमी मेरी हदों को तोड़ने पर तुला है।"
वो तेजी से दरवाजा खोलकर अंदर चली गई और लाइट बंद कर दी। लेकिन तभी...
दरवाजे पर हल्की सी दस्तक हुई।
तारा का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
वो धीरे-धीरे आगे बढ़ी, और peephole से झांककर देखा।
अक्षत रॉय।
सूट में खड़ा, चेहरे पर वही गहरी मुस्कान।
"ये आदमी यहां तक कैसे पहुंच गया?"
तारा ने दरवाजा खोलने की बजाय अंदर से चिल्लाकर कहा, "अक्षत, मैं पुलिस बुला लूंगी!"
लेकिन बाहर से उसकी ठंडी आवाज़ आई, "बुला लो, तारा। लेकिन क्या तुम्हें लगता है कि कोई तुम्हें मुझसे बचा पाएगा?"
तारा का पूरा शरीर ठंडा पड़ गया।
"ये आदमी सच में मुझे कहीं का नहीं छोड़ेगा।"
अगले ही पल दरवाजे पर एक और दस्तक हुई—इस बार ज़ोर से।
तारा घबराई, लेकिन उसने खुद को संभाला।
"मुझे उससे डरने की जरूरत नहीं है।"
लेकिन वो ये भी जानती थी... अक्षत रॉय अब कोई भी हद पार कर सकता था।
और अगली बार जब उसकी नजर अक्षत पर पड़ेगी, तब तक वो उसके लिए एक और नई साज़िश बुन चुका होगा।
तारा हमेशा से बेफिक्र और चुलबुली लड़की थी, लेकिन अक्षत रॉय के पागलपन ने उसकी जिंदगी में खौफ भर दिया था। फिर भी, वो हार मानने वालों में से नहीं थी। अगर अक्षत उसके नसीब का तूफान था, तो वो भी एक बवंडर थी जो उसकी जिद का जवाब अपनी शरारतों से देने वाली थी।
सुबह-सुबह सिया ने देखा कि तारा के चेहरे पर एक अलग ही चमक थी।
"क्या बात है, मैडम? आज तो बड़ी खुश लग रही हो?" सिया ने आँखें सिकोड़ते हुए पूछा।
तारा ने मुस्कुराकर कहा, "अगर कोई तुम्हारी ज़िन्दगी नर्क बना दे, तो उसे भी चैन से जीने नहीं देना चाहिए।"
सिया की आँखें चौड़ी हो गईं। "मतलब?"
"मतलब ये कि... अब मैं अक्षत रॉय को उसकी ही स्टाइल में जवाब दूंगी!" तारा ने शरारती अंदाज में कहा।
"हे भगवान! तारा, वो आदमी खतरनाक है!"
"और मैं भी कुछ कम नहीं!"
अक्षत ने स्कूल तो खरीद लिया था, लेकिन आजकल बिज़नेस के काम में भी व्यस्त था। उसकी कंपनी में एक इंपोर्टेंट मीटिंग थी, जहां बड़े-बड़े इन्वेस्टर्स आने वाले थे।
और यही मौका था तारा के लिए।
तारा ने जल्दी-जल्दी एक प्लान बनाया और अपनी स्कूटी उठाकर अक्षत के ऑफिस पहुंच गई।
अक्षत का ऑफिस एकदम आलीशान था—काले और ग्रे थीम वाला इंटीरियर, स्टाफ हर वक्त अलर्ट, और हर जगह बस उसकी ही धाक।
लेकिन आज इस ऑफिस में एक तुफान आने वाला था—तारा मेहता नाम का तूफान!
जैसे ही तारा रिसेप्शन पर पहुंची, वहां की लड़की ने उसे रोका, "मैम, क्या आपको अपॉइंटमेंट लिया है?"
तारा ने मासूमियत से सिर हिलाया, "अरे नहीं, लेकिन बताइए अक्षत सर कहाँ हैं? मुझे ज़रूरी बात करनी है!"
"मैम, सर बहुत बिज़ी हैं..."
"कोई बात नहीं, मैं खुद ही चली जाती हूँ!" तारा ने हंसते हुए कहा और तेजी से अंदर घुस गई।
रिसेप्शनिस्ट उसे रोक नहीं पाई।
तारा जब अंदर पहुंची, तो वहां बोर्ड मीटिंग चल रही थी। अक्षत बड़े बिज़नेस टायकून्स के साथ डिस्कशन कर रहा था।
और फिर...
दरवाजा धड़ाम से खुला!
सभी लोगों ने चौंककर देखा।
तारा बड़े स्टाइल में अंदर आई और सीधे अक्षत के पास जाकर खड़ी हो गई।
अक्षत ने धीरे से आँखें बंद की, एक लंबी सांस ली, और फिर ठंडी आवाज़ में कहा, "तारा, तुम यहाँ क्या कर रही हो?"
"अरे वाह! तुम सच में बहुत बिज़ी लग रहे हो!" तारा ने शरारती अंदाज में कहा।
अक्षत ने अपने माथे पर हाथ फेरा। "तारा, बाहर जाओ।"
"ओह, लेकिन मैं तो तुम्हें एक खास गिफ्ट देने आई हूँ!"
इतना कहते ही तारा ने बैग से एक बड़ी सी किटी कैट (बच्चों का खिलौना) निकाली और अक्षत के सामने रख दी।
सभी लोग हक्के-बक्के रह गए।
"ये क्या है?" अक्षत ने दाँत पीसते हुए पूछा।
तारा ने मासूमियत से कहा, "तुम इतने गुस्से में रहते हो, सोचा कि तुम्हें एक क्यूट सा टॉय दे दूं, ताकि जब भी तुम्हें गुस्सा आए, तुम इसे देख सको और क्यूट फील करो!"
पूरे कमरे में सन्नाटा छा गया।
अक्षत की आँखें जल उठीं। उसकी नसें तन गईं, और उसकी पकड़ टेबल पर कस गई।
"तारा..." उसकी आवाज़ इतनी ठंडी थी कि कमरे में ठंडक फैल गई।
लेकिन तारा को कोई फर्क नहीं पड़ा।
"और हाँ, मैंने सुना है कि तुम्हारी कंपनी का नाम ‘ROY EMPIRE’ है, लेकिन मुझे तो ‘ROY DAYCARE’ ज्यादा अच्छा लगेगा, क्योंकि तुम्हें बेबीज़ की तरह गुस्सा आता है!" तारा ने ठहाका लगाया।
अब तो बाकी लोग भी मुस्कुराने लगे।
अक्षत का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
"गेट. आउट."
"हाय राम! इतना गुस्सा?" तारा ने नकली हैरानी दिखाई और फिर खिलौने को अक्षत की टेबल पर रखकर बोली, "ठीक है, मैं जा रही हूँ, लेकिन ये टॉय तुम्हें याद दिलाएगा कि तुम मुझे परेशान करोगे, तो मैं भी तुम्हारी नाक में दम कर सकती हूँ!"
और ये कहकर तारा तेज़ी से बाहर भागी, इससे पहले कि अक्षत कुछ करता!
गुस्से की चरम सीमा
जैसे ही तारा ऑफिस से निकली, अक्षत ने ज़ोर से टेबल पर मुक्का मारा।
सभी लोग डर गए।
उसकी आँखों में खतरनाक आग थी।
"तारा, तुमने बहुत बड़ी गलती कर दी है। अब मैं तुम्हें छोड़ूंगा नहीं।"
अक्षत ने खिलौना उठाया और गुस्से में उसे ज़मीन पर पटक दिया।
उसका दिमाग अब सिर्फ़ एक ही चीज़ सोच रहा था—
"अब ये खेल और भी दिलचस्प होगा, तारा। अब मैं तुम्हें ऐसा सबक सिखाऊंगा कि तुम खुद चलकर मेरे पास आओगी!"
तारा ने अक्षत के ऑफिस में जो ड्रामा किया था, उसकी गूंज अब हर जगह थी। सिया ने जब सुना तो सिर पकड़ लिया।
"तारा, तू पागल है क्या? वो आदमी सीरियसली खतरनाक है, और तूने उसकी मीटिंग में जाकर ऐसा तमाशा कर दिया!"
तारा ने मस्ती में कंधे उचका दिए। "तो क्या हुआ? उसने मेरा स्कूल खरीदा, मेरी जिंदगी में जबरदस्ती घुस आया, तो मैंने भी थोड़ा फन कर लिया!"
सिया ने माथा पीटा। "ये फन तुझे बहुत भारी पड़ेगा, तारा।"
तारा हंसते हुए बोली, "देखेंगे!"
लेकिन तारा को नहीं पता था कि अक्षत रॉय किसी को जवाब देने में ज्यादा वक्त नहीं लगाता... और उसकी सजा तय हो चुकी थी।
अगली सुबह तारा जब स्कूल पहुंची, तो स्टाफ़ के चेहरे उतरे हुए थे। सब फुसफुसा रहे थे।
"क्या हुआ?" तारा ने एक टीचर से पूछा।
"नई मैनेजमेंट से आज कोई इंस्पेक्शन टीम आ रही है..."
तारा का मन तुरंत डूब गया। "मतलब?"
"मतलब ये कि स्कूल का नया मालिक, अक्षत रॉय, यहाँ कुछ चेंज करने वाला है।"
तारा ने गहरी सांस ली। "तो आ जाने दो उसे, मैं डरती नहीं!"
लेकिन जब ऑफिस पहुंची, तो वहाँ पहले से ही सस्पेंशन लेटर रखा था।
"तारा मेहता को अगले आदेश तक स्कूल से निलंबित किया जाता है।"
तारा के हाथ से कागज़ गिर गया।
"ये आदमी सच में पागल है!"
गुस्से में तमतमाई तारा ने फोन निकाला और अक्षत को कॉल किया।
"हैलो?"
दूसरी तरफ ठंडी आवाज़ आई।
"क्या हुआ, तारा? स्कूल पहुंचकर सरप्राइज़ अच्छा लगा?"
"अक्षत, ये सब क्या बकवास है?" तारा चीखी।
"ये तुम्हारे बचकाने हरकतों का जवाब है।"
"तुम्हें लगता है कि इस तरह मुझे डरा सकते हो?"
अक्षत हल्के से हंसा। "डराने की जरूरत ही नहीं है, तारा। मैंने तो बस तुम्हें तुम्हारी जगह दिखाने की कोशिश की है। अब तुम घर पर बैठकर आराम करो... जब तक मैं चाहूँगा, तुम स्कूल वापस नहीं आ सकोगी।"
गुस्से से तारा की आँखें जल उठीं।
"तुम बहुत बड़े कमीने हो!"
"और तुम बहुत ज़िद्दी हो। लेकिन कोई बात नहीं, तुम्हारी ये ज़िद भी जल्द टूट जाएगी।"
फोन कट गया।
तारा ने गुस्से में फोन दीवार पर फेंक दिया।
"ये आदमी सोचता है कि मैं इतनी आसानी से हार मान लूंगी? नहीं, अक्षत रॉय, खेल अभी बाकी है!"
अक्षत के घर में बवाल
अक्षत अपने ऑफिस में था जब अचानक उसके सिक्योरिटी गार्ड ने इंटरकॉम पर कहा, "सर, एक प्रॉब्लम हो गई है..."
"क्या हुआ?" अक्षत ने नज़रे उठाई।
"आपके घर के बाहर कोई हंगामा कर रहा है..."
"कौन?"
"तारा मेहता।"
अक्षत का हाथ वहीं रुक गया।
"क्या?"
"हाँ सर, वो गेट के बाहर खड़ी है और ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रही है कि आप उसे मिलें।"
अक्षत के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आई।
"तो, अब खुद मेरे पास आई हो?"
वो अपनी जैकेट उठाकर तेज़ी से घर की तरफ निकला।
अक्षत की हवेली के बाहर तारा एक पत्थर लेकर खड़ी थी।
"अक्षत रॉय! बाहर निकलो!"
गार्ड्स उसे रोकने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन तारा झुकी और एक पत्थर उठाकर गेट पर ज़ोर से दे मारा।
धड़ाम!
"अगर बाहर नहीं आए तो मैं पूरी हवेली के शीशे तोड़ दूंगी!" तारा चीखी।
इतने में ही अक्षत की कार रुकी, और वो काले कपड़ों में उतरा।
उसका चेहरा अब भी शांत था, लेकिन आँखों में वही खतरनाक ठंडक थी।
वो धीरे-धीरे तारा के पास आया।
"ये क्या नाटक है, तारा?"
"नाटक?" तारा ने गुस्से से कहा, "नाटक तो तुम कर रहे हो, जबरदस्ती मुझे सस्पेंड करके! सोचा था कि मैं चुपचाप घर बैठ जाऊंगी?"
अक्षत ने एक लंबी सांस ली। "मैंने तुम्हें चुपचाप रहने के लिए नहीं कहा था। मैंने सिर्फ़ तुम्हारी लिमिट दिखाने की कोशिश की।"
तारा एक कदम आगे बढ़ी और उसकी आँखों में झांकते हुए बोली, "तुम अपनी औकात दिखा रहे थे, अक्षत। और मैं तुम्हें बताने आई हूँ कि मैं झुकने वालों में से नहीं हूँ!"
अक्षत ने उसे गौर से देखा। तारा की आँखों में आग थी।
फिर अचानक...
अक्षत ने उसकी कलाई पकड़ ली और एक झटके में उसे अपनी ओर खींचा।
"और मैं तुम्हें बताने वाला हूँ, तारा... कि तुम्हारी ज़िद की भी एक हद होती है।"
तारा का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। वो उसकी पकड़ से खुद को छुड़ाने लगी।
लेकिन अक्षत ने उसकी कमर पकड़कर उसे ज़बरदस्ती अपनी ओर खींच लिया।
"अब ज्यादा बकवास मत करो, तारा। अगर मैंने अपना सब्र खो दिया, तो तुम्हें इसका अंजाम भुगतना पड़ेगा।"
तारा ने उसकी पकड़ से खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन अक्षत की पकड़ मजबूत थी।
"अक्षत, छोड़ो मुझे!"
अक्षत के होंठ तारा के कान के पास आए, और उसने धीमे से कहा, "तुम चाहो या न चाहो, तारा, अब तुम मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुकी हो।"
तारा की आँखें गुस्से से भर गईं। "मैं तुम्हारी कभी नहीं बनूँगी!"
अक्षत हल्के से मुस्कुराया। "देखते हैं..."
और फिर उसने तारा को छोड़ दिया।
तारा गुस्से में जल रही थी। उसने उसे धक्का दिया।
"मैं तुम्हें सबक सिखाकर रहूंगी, अक्षत रॉय!"
अक्षत ने सिर झुका कर उसे देखा। "तो ट्राई करके देख लो, तारा। लेकिन हर चाल के लिए तैयार रहना, क्योंकि अब मेरी बारी है!"
(जारी रहेगा...)
अक्षत रॉय अब तक बहुत से लोगों से टकराया था, लेकिन तारा जैसी सिरदर्द लड़की उससे पहली बार मिली थी। उसकी कंपनी के बीचों-बीच आकर उसे सबके सामने शर्मिंदा करना… ये मज़ाक नहीं था, बल्कि एक खुली चुनौती थी!
तारा घर पहुंची तो बहुत खुश थी।
सिया ने उसे घूरा, "तुमने फिर कुछ किया, है ना?"
तारा ने हंसकर कहा, "छोटा-मोटा कुछ नहीं, बल्कि बहुत बड़ा धमाका किया है!"
"हे भगवान! अब अक्षत तुम्हें छोड़ने वाला नहीं!"
"वो तो पहले ही छोड़ने वाला नहीं था, तो सोचा थोड़ा और मज़ा ले लूं!" तारा ने कंधे उचकाए।
सिया ने अपना सिर पकड़ लिया। "अब कुछ उल्टा मत करना, प्लीज़!"
लेकिन तारा इतनी आसानी से रुकने वाली नहीं थी...
अक्षत का गुस्सा और तारा की मस्ती
दूसरे दिन तारा स्कूल पहुंची, लेकिन वहाँ एक अजीब नज़ारा था।
पूरी स्टाफ लाइन में खड़ी थी, और सामने अक्षत रॉय अपने कोट में, गुस्से से भरा हुआ खड़ा था।
"ये आदमी इतनी सुबह यहाँ क्या कर रहा है?" तारा ने सोचा।
तभी उसकी नज़र अक्षत के हाथ में कुछ फाइलों पर पड़ी।
"इस स्कूल में कौन-कौन कामचोर है, मुझे सबकी रिपोर्ट चाहिए।" अक्षत की आवाज़ ठंडी थी।
सबकी सांसें रुक गईं।
"लो भई, आज इसका मूड बहुत खराब है!" तारा ने मन ही मन सोचा और धीरे से पीछे हटने लगी।
लेकिन तभी...
"मिस तारा मेहता, आइए ज़रा!"
तारा के कदम जम गए।
वो धीरे-धीरे उसके सामने पहुंची और मासूमियत से मुस्कुराई। "गुड मॉर्निंग, बॉस!"
अक्षत ने उसे घूरा। "कल जो तमाशा किया था उसका हिसाब देना है!"
"ओह! आपको खिलौना पसंद आया?" तारा ने चिढ़ाने वाले अंदाज में पूछा।
अक्षत के जबड़े भिंच गए। "तुम्हें लगता है कि तुम बच जाओगी?"
तारा ने आंखें मटकाई, "मैं तो अब तक बच ही रही हूँ!"
"अब नहीं!"
अक्षत को गुस्सा दिलाने में मज़ा आ रहा था, लेकिन तारा भूल गई थी कि ये आदमी खतरनाक था।
अचानक, अक्षत ने उसकी कलाई पकड़ ली और उसे घसीटते हुए अपने ऑफिस ले गया।
"अरे! छोड़ो मुझे!" तारा चिल्लाई।
लेकिन अक्षत ने दरवाजा बंद किया और उसे दीवार से सटाकर खड़ा कर दिया।
"अब क्या करोगे?" तारा ने हिम्मत दिखाई।
अक्षत एक सेकंड के लिए रुका, फिर अचानक झुककर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
तारा के दिमाग में धमाका हो गया।
उसने कभी सोचा भी नहीं था कि ये आदमी ऐसा करेगा।
अक्षत ने कसकर उसकी कमर पकड़ रखी थी, और तारा पूरी तरह उसकी गिरफ्त में थी।
वो झटके से पीछे हटी, लेकिन अक्षत ने उसे जाने नहीं दिया।
"अब बोलो? मज़ा आया?" उसकी आवाज़ में एक गहरी आग थी।
तारा का चेहरा लाल हो गया।
उसने गुस्से से उसकी कमर पर एक ज़ोरदार मुक्का मारा।
"बदतमीज़! पागल इंसान!"
अक्षत ने उसकी पकड़ ढीली की, और तारा तुरंत बाहर भागी।
अब तक तारा बस मज़ाक कर रही थी, लेकिन ये आदमी हद पार कर चुका था!
अब वो उसे वैसे ही सबक सिखाएगी, जैसे ये उसे सिखा रहा था।
तारा अब तक बस मज़े ले रही थी, लेकिन अक्षत रॉय ने जो किया, उसके बाद अब ये मज़ाक नहीं था—ये जंग थी!
वो अपने घर में बैठी गहरी सोच में डूबी थी।
"मुझे अक्षत से बदला लेना है, लेकिन कैसे?"
तभी उसके दिमाग में एक जबरदस्त आइडिया आया।
अगले दिन, तारा स्कूल गई, लेकिन इस बार उसके कदमों में एक अलग ही कॉन्फिडेंस था।
अक्षत को भी इस लड़की के जवाब का इंतजार था।
"अब देखता हूँ, कितनी बहादुर ho tum तारा मेहता!"
लेकिन वो भूल गया था कि तारा किसी से डरने वालों में से नहीं थी।
अक्षत अपने ऑफिस में बैठा काम कर रहा था, जब उसके फोन की स्क्रीन चमकी।
मैसेज:
"डियर मिस्टर रॉय, मेरी एक प्यारी सी गिफ्ट डिलीवरी है आपके लिए! आज ऑफिस मत छोड़ना! बहुत मज़ा आने वाला है!"
तारा।
अक्षत ने आँखें संकरी कीं।
"ये लड़की फिर कोई तमाशा करने वाली है!"
अभी अक्षत कुछ सोच ही रहा था कि उसके ऑफिस के अंदर ढेर सारे बैलून उड़ते हुए आए!
हर बैलून पर कुछ लिखा था—
"बॉस फॉर सेल!"
"गुस्सैल सिंहासन से नीचे आए!"
"खतरनाक बॉस से बचो!"
पूरे ऑफिस में हंसी की लहर दौड़ गई।
सभी एम्प्लॉयज़ हंसी रोक नहीं पा रहे थे।
और वहाँ खड़ी थी तारा, मासूमियत से मुस्कुराते हुए।
"तो मिस्टर रॉय, आपको मेरा गिफ्ट कैसा लगा?"
अक्षत का गुस्सा फूट पड़ा!
अक्षत ने सबके सामने अपनी फाइल टेबल पर पटकी।
"गेट आउट! सबके सब, अभी के अभी!"
सारे एम्प्लॉय डर के मारे बाहर भागे।
अब ऑफिस में सिर्फ अक्षत और तारा रह गए थे।
अक्षत धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा।
"तारा..."
"जी, अक्षत?" तारा ने निडर होकर कहा।
"तुम्हें लगता है कि तुम ये सब करके मुझसे बच जाओगी?"
"मैं तो अब तक बच ही रही हूँ, अक्षत!" तारा ने मुस्कुरा कर कहा।
अक्षत ने एक झटके में तारा का हाथ पकड़ा और उसे अपनी कुर्सी पर गिरा दिया।
"अब तुम बचोगी नहीं!"
तारा का दिल तेजी से धड़कने लगा।
अक्षत की नई चाल...
अक्षत ने फोन उठाया।
"गेट द कॉन्ट्रैक्ट!"
कुछ ही देर में एक आदमी ऑफिस में आया और उसने तारा के सामने एक फाइल रख दी।
"ये क्या है?" तारा ने चौंककर पूछा।
"तुम अब इस कंपनी की पार्ट-टाइम वर्कर बन गई हो!"
"क...क्या?" तारा हैरान रह गई।
"तुमने मेरे ऑफिस में तमाशा किया, अब इसकी सजा तुम्हें यहीं रहकर भुगतनी पड़ेगी!"
"लेकिन मैंने साइन कब किए?"
अक्षत ने एक पेपर उसकी ओर बढ़ाया।
"ये तुम्हारी वही गिफ्ट डिलीवरी रिसीट है, जिस पर तुमने अपने हाथ से साइन किए थे।"
तारा की आँखें फैल गईं।
"इस आदमी से बचना अब नामुमकिन था!"
yaar pls comment kar do aur follow bhi 🥹🥹 aur itna toh bata hi do ki story kaisi lag rhi aapko plsssssss
To be continued
तारा ने घूरकर सामने बैठे आदमी को देखा, जिसने अभी-अभी उसे एक नई मुसीबत में डाल दिया था।
"तुमने धोखा दिया, अक्षत!" तारा गुस्से में बोली।
अक्षत ने ठंडी मुस्कान के साथ कहा, "तुमने मुझे गुस्सा दिलाने की गलती की थी, तारा। अब भुगतो।"
"मैं कोई नौकरी-वौकरी नहीं करने वाली!" तारा ने पेपर उसके सामने फेंक दिया।
अक्षत आराम से उठा, उसकी कुर्सी के पास आया और दोनों हाथ उसके हैंडल पर रख दिए।
"तुम्हारे पास कोई और ऑप्शन नहीं है, मिस मेहता!"
तारा का दिल जोर से धड़कने लगा। वो उसकी पकड़ में थी और उसे ये बिल्कुल पसंद नहीं था।
"मैं तुम्हारी ये नौकरी नहीं करने वाली! और वैसे भी, एक टीचर का तुम्हारे ऑफिस में क्या काम?" तारा ने पलटकर जवाब दिया।
अक्षत ने गहरी सांस ली और ठंडे लहजे में कहा, "अब से तुम मेरी पर्सनल असिस्टेंट होगी!"
तारा की आँखें चौड़ी हो गईं। "क्या???"
तारा का रिएक्शन और अक्षत का ऑर्डर
"तुम्हारा ऑफिस सुबह 9 बजे से शुरू होगा। तुम मेरी हर मीटिंग का ध्यान रखोगी, मेरी हर जरूरत का ख्याल रखोगी, और मेरी हर बात मानोगी!"
तारा ने एक कदम पीछे लिया। "मैं कोई तुम्हारी गुलाम नहीं हूँ!"
अक्षत ने उसकी ठुड्डी पकड़कर ऊपर किया और आँखों में आँखें डालकर बोला, "अब बन जाओगी, तारा!"
तारा ने झटके से उसका हाथ हटाया। "मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली! ये नौकरी तुम किसी और को दे दो!"
अक्षत ने टेबल से एक पेपर उठाया और उसकी आँखों के सामने लहराया।
"अगर तुमने नौकरी छोड़ी, तो तुम्हें 5 करोड़ का हर्जाना देना होगा!"
"प...पांच करोड़?" तारा की बोलती बंद हो गई।
"हम्म, ये कॉन्ट्रैक्ट तुमने खुद साइन किया है, बेबी!" अक्षत ने मुस्कराकर कहा।
तारा ने गुस्से में अपनी मुट्ठी भींच ली। "ये आदमी शैतान का दूसरा रूप है!"
तारा ने ऑफिस की नौकरी शुरू कर दी थी, लेकिन अब उसने बदला लेने की ठान ली थी।
अगले दिन...
अक्षत अपनी केबिन में बैठा हुआ था, जब अचानक उसके कंप्यूटर स्क्रीन पर कुछ अजीब सा दिखा।
"बॉस इज़ अ डेविल!"
अक्षत ने तुरंत फोन उठाया। "ये स्क्रीन पर क्या चल रहा है?"
"सर... लगता है किसी ने आपके सिस्टम का वॉलपेपर चेंज कर दिया है!"
"WHO DID THIS?!" अक्षत गुस्से में उठ खड़ा हुआ।
उसी वक्त तारा चाय लेकर अंदर आई, "सर, आपकी स्पेशल ब्लैक कॉफी!"
अक्षत ने गुस्से से उसकी तरफ देखा। "ये सब तुम्हारी हरकत है, तारा?"
तारा ने मासूमियत से पलकें झपकाईं। "मैं? बिल्कुल नहीं, सर!"
अक्षत ने कप उठाया और एक सिप लिया, और फिर...
"ये क्या है?!"
"सर, ये काढ़ा है। आजकल ठंड बहुत है ना, तो मैंने सोचा आपकी हेल्थ का भी ध्यान रखा जाए!" तारा ने मुस्कुराते हुए कहा।
अक्षत ने कप ज़मीन पर फेंक दिया।
"तारा!"
"जी सर?" तारा ने और मासूमियत से कहा।
अक्षत का गुस्सा – तारा की सजा!
अक्षत अपनी कुर्सी से उठा और तारा की ओर बढ़ा।
"तुम मुझे बेवकूफ बना रही हो?"
"नहीं तो! मैं तो बस आपको रिलैक्स करने के लिए थोड़ा फन कर रही हूँ!"
अक्षत ने एक झटके में तारा की कलाई पकड़ ली और उसे अपने करीब खींचा।
"अब बहुत हो गया, तारा!"
"अरे अरे, छोड़ो मुझे!" तारा ने छूटने की कोशिश की।
अक्षत ने उसे टेबल के करीब धक्का दिया, जिससे तारा का बैलेंस बिगड़ गया।
उसने दोनों हाथ उसकी कमर के दोनों तरफ टेबल पर रख दिए, जिससे तारा फंस गई।
"अब मैं तुम्हें वो सजा दूँगा, जो तुम्हें हमेशा याद रहेगी!"
अगले ही पल... अक्षत ने झुककर उसके होंठों पर अपना हक जमा लिया!
तारा की आँखें चौड़ी हो गईं।
वो छूटने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अक्षत का पकड़ और गहरा होता जा रहा था।
ये कोई आम किस नहीं थी, ये उसका पागलपन, उसका गुस्सा और तारा के हर शरारत का जवाब
तारा ने ज़ोर से अक्षत को पीछे धक्का दिया, उसकी आँखें गुस्से और सदमे से भरी थीं।
"तुमने ये किया कैसे?!"
अक्षत ने होंठों पर अपनी उंगलियाँ फेरी और एक हल्की मुस्कान दी। "क्यों? तुम्हें पसंद नहीं आया?"
तारा का खून खौल गया। "तुम एक बदतमीज़, बदतमीज़ आदमी हो!"
अक्षत ने उसकी आँखों में गहराई से देखा, फिर आगे बढ़ा, लेकिन इस बार तारा ने अपना पर्स उठाकर सीधे उसकी तरफ दे मारा!
"OUCH! तारा!" अक्षत थोड़ा पीछे हट गया।
"ये सिर्फ ट्रेलर था, मिस्टर डेविल! अब देखना, मैं तुम्हें क्या सजा देती हूँ!"
अक्षत ने गुस्से से अपनी उंगलियाँ भींचीं, लेकिन तारा फुर्ती से दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गई।
तारा को गुस्सा तो बहुत था, लेकिन उसे समझ आ गया था कि अक्षत से सीधे लड़ना मुश्किल है। तो उसने अपना दिमाग लगाया।
अगले दिन, जब अक्षत ऑफिस पहुँचा, तो पूरे ऑफिस में कानाफूसी हो रही थी।
"क्या तुमने देखा? बॉस का नया लुक!"
"OMG! ये तो कमाल हो गया!"
अक्षत ने भौंहें चढ़ाईं। "अब ये क्या नाटक है?"
लेकिन जब उसने अपने केबिन में कदम रखा, तो उसकी नज़र सीधे दीवार पर गई...
वहाँ उसकी एक मॉर्फ़ की हुई फोटो लगी थी, जिसमें वह एक गुलाबी रंग के टुटू (बैले ड्रेस) में डांस कर रहा था!
और नीचे लिखा था – "बॉस इज़ द न्यू बैले प्रिंसेस!"
पूरा ऑफिस ठहाकों से गूँज रहा था।
अक्षत की आँखें लाल हो गईं। "WHO THE HELL DID THIS?!"
उसी वक्त तारा अंदर आई, एक मासूम मुस्कान के साथ। "अरे सर, आपको अच्छा नहीं लगा?"
अक्षत ने गुस्से से उसकी तरफ देखा। "तारा..."
"आपका नया लुक तो बहुत क्यूट लग रहा है, सर! मुझे तो लगता है आपको हर दिन बैले क्लास लेनी चाहिए!"
पूरा ऑफिस एक बार फिर हँसी में डूब गया।
अक्षत का पलटवार – अब बचेगी नहीं तारा!
अक्षत के सब्र का बाँध टूट चुका था। उसने सबके सामने तारा की कलाई पकड़ी और सीधा अपनी केबिन में ले आया।
"अक्षत! छोड़ो मुझे!" तारा ने झटके से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन अक्षत ने दरवाज़ा लॉक कर दिया।
वो एकदम उसके पास आया, इतना करीब कि तारा दीवार से जा टकराई।
"बहुत हो गया तुम्हारा ड्रामा, तारा!"
"तो? तुमने भी तो मेरे साथ बदतमीज़ी की थी!" तारा ने आँखें तरेरीं।
अक्षत ने उसकी ठुड्डी पकड़कर ऊपर किया। "अगर मैंने बदतमीज़ी की होती, तो तुम अब तक बेहोश पड़ी होती!"
तारा का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।
"अब तुम्हें इसकी सजा मिलेगी!" अक्षत ने उसकी आँखों में जलती हुई आग के साथ कहा।
..... TO be continued ......
तारा की साँसें तेज़ हो गईं। अक्षत की उंगलियाँ उसकी ठुड्डी पर कसकर जमी थीं, उसकी आँखों में वही वहशी आग जल रही थी।
"तुम्हें लगा, मुझे सबके सामने बेइज्जत करोगी और मैं कुछ नहीं करूँगा?" उसकी आवाज़ धीमी लेकिन खतरनाक थी।
"छो... छोड़ो मुझे, अक्षत!" तारा ने झटके से खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन अक्षत ने उसे दीवार से और कसकर दबा दिया।
"अब हरकतें करने से पहले दस बार सोचना पड़ेगा, मिस टीचर!"
अगले ही पल, अक्षत ने उसकी नज़दीकियाँ और बढ़ा दीं। तारा का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
"ये तुम्हारी सजा है!" अक्षत ने फुसफुसाया और झटके से उसके चेहरे के करीब आ गया।
तारा की आँखें हैरान रह गईं जब उसने महसूस किया—अक्षत के होंठ उसके गाल से मात्र कुछ मिलीमीटर दूर थे।
लेकिन तभी...
"अक्षत सर! जल्दी बाहर आइए!"
बाहर से उसकी सेक्रेटरी की घबराई हुई आवाज़ आई।
अक्षत ने झुंझलाकर अपनी पकड़ ढीली की, और तारा तुरंत उससे दूर हट गई।
"आज के लिए छोड़ रहा हूँ, लेकिन अगली बार... ये खेल तुम्हारे लिए बहुत भारी पड़ेगा!" अक्षत ने आँखों में धमकी लिए कहा और दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गया।
तारा ने राहत की साँस ली, लेकिन उसका दिल अभी भी ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
तारा जानती थी कि उसने जो किया, उसके बाद अक्षत उसे कभी नहीं छोड़ेगा। लेकिन वो डरने वालों में से नहीं थी।
"अगर उसने मुझे डराने की सोची, तो अब देखना, मैं क्या करती हूँ!" तारा ने आँखें मटकाई और अपने प्लान पर काम करने लगी।
अगले दिन...
जब अक्षत अपने ऑफिस पहुँचा, तो पूरे स्टाफ के चेहरे पर अजीब सी मुस्कान थी। सबकी आँखें उसके केबिन की तरफ थीं।
अक्षत ने भौंहें चढ़ाईं। "अब क्या हुआ?"
लेकिन जैसे ही उसने अपने केबिन का दरवाज़ा खोला, उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।
पूरे कमरे में पोस्टर्स लगे थे – जिनमें अक्षत को सुपरमैन की तरह उड़ते हुए दिखाया गया था!
हर पोस्टर में अक्षत के चेहरे के साथ सुपरहीरो वाली बॉडी थी, और नीचे लिखा था – "Meet our SUPER BOSS – who can fly high and make your fears cry!"
ऑफिस में फिर से हँसी गूँज उठी।
अक्षत के गुस्से का पारावार नहीं था।
तभी तारा कमरे में घुसी, एक मासूमियत भरी मुस्कान लिए।
"कैसा लगा सर आपका सुपरहीरो अवतार?"
अक्षत ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखों में इस बार कुछ अलग ही खतरनाक मिज़ाज था।
"अब तो मैं तुम्हें नहीं छोड़ने वाला, तारा!"
तारा की शरारत ने पूरे ऑफिस को हँसा-हँसाकर लोटपोट कर दिया था। लेकिन अक्षत रॉय… वो हँसने वालों में से नहीं था। उसकी आँखों में गुस्सा उबाल मार रहा था।
"तारा, तुमने अपनी हदें पार कर दी हैं!"
तारा मुस्कुराई। "ओह, सर! मैंने तो बस आपको सुपरहीरो बनाया, आप तो सच में विलेन बन गए!"
ऑफिस के स्टाफ की हँसी अभी भी थमी नहीं थी। लेकिन अक्षत की आँखों में कुछ ऐसा था कि सबकी हँसी खुद-ब-खुद बंद हो गई।
"मेरे केबिन में आओ। अभी!"
तारा को एहसास हुआ कि अब मामला गड़बड़ हो सकता है, लेकिन वो भी हार मानने वालों में से नहीं थी। "अगर नहीं गई तो क्या करोगे, सुपर बॉस?"
अक्षत ने एक नज़र उसकी तरफ डाली, और तारा के रोंगटे खड़े हो गए।
"तुम्हें आना ही पड़ेगा, तारा!"
तारा अंदर गई और दरवाज़ा बंद होते ही उसे झटका लगा। अक्षत ने एक झटके में उसे दीवार से चिपका दिया।
"अब बचकर कहाँ जाओगी?" उसकी आवाज़ गहरी और खतरनाक थी।
तारा ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन अक्षत ने उसे और करीब खींच लिया।
"अक्षत, छोड़ो मुझे!"
"इतनी आसानी से नहीं। पहले ये बताओ, तुम मुझे परेशान करने में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रही हो?"
तारा ने गुस्से से उसे घूरा। "क्योंकि तुम इसी लायक हो!"
अक्षत की आँखों में एक अलग ही आग जल उठी। अगले ही पल, उसने तारा की कलाई कसकर पकड़ ली और उसे अपनी तरफ खींच लिया।
"तो अब मैं भी दिखाऊँगा कि मैं किस लायक हूँ!"
अक्षत ने तारा के चेहरे के पास झुकते हुए उसे बेबस कर दिया। उसकी साँसें तारा के चेहरे से टकरा रही थीं। तारा का दिल तेजी से धड़क रहा था।
"अक्षत, ये गलत है..." तारा ने धीमी आवाज़ में कहा।
"गलत या सही, अब ये तुम तय नहीं करोगी!"
और अगले ही पल, अक्षत ने तारा को ज़बरदस्ती किस कर लिया।
तारा की आँखें चौड़ी हो गईं। उसने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन अक्षत की पकड़ इतनी मज़बूत थी कि वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पाई।
अक्षत ने उसके होठों को अपनी गिरफ्त में लेकर ऐसा एहसास दिया जिसे तारा कभी नहीं भूल सकती थी।
कुछ सेकंड बाद… अक्षत ने खुद को पीछे किया और तारा को देखने लगा। तारा की आँखें अब भी गुस्से और शर्म से भरी थीं।
"अब ये मत कहना कि तुमने इस सजा के बारे में नहीं सोचा था!" अक्षत ने एक हल्की मुस्कान के साथ कहा।
तारा ने गुस्से से उसकी तरफ देखा। उसकी आँखों में आँसू छलकने लगे थे, लेकिन वो खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी।
"तुम बहुत बड़े कमीने हो, अक्षत रॉय!" उसने दाँत पीसते हुए कहा और वहाँ से निकलने लगी।
लेकिन अक्षत ने फिर उसका हाथ पकड़ लिया।
"तारा, ये तो बस शुरुआत है। अब तुम्हें मेरी असली सजा का इंतजार करना चाहिए!"
To be continued
तारा तेज़ कदमों से अक्षत के केबिन से बाहर निकली। उसका दिल इतनी तेज़ धड़क रहा था कि उसे लग रहा था कि अभी वहीं बेहोश हो जाएगी। उसके होंठ अब भी अक्षत के छूने की गवाही दे रहे थे, और यह एहसास उसे गुस्से से पागल कर रहा था।
"ये इंसान हद से ज़्यादा सनकी है! मुझे इससे बचना ही होगा..."
लेकिन तारा को अंदाज़ा भी नहीं था कि अक्षत रॉय से बचना नामुमकिन था।
तारा ने अपने आँसू पोंछे और ऑफिस में कदम रखा। स्टाफ के लोग अब भी उसके सुपरहीरो वाले मज़ाक की बातें कर रहे थे, लेकिन तारा का दिमाग कहीं और था। उसे अक्षत से बदला लेना था।
अचानक, उसके दिमाग में एक शरारती ख्याल आया।
"अगर अक्षत ने मुझे शर्मिंदा किया है, तो अब मेरी बारी है!"
तारा ने अपने कंप्यूटर पर कुछ किया और अगले ही पल...
अक्षत के ऑफिस के इंटरकॉम पर उसकी आवाज़ गूँज उठी।
"गुड मॉर्निंग, अक्षत सर! आज के लिए आपका स्पेशल रिमाइंडर: 'गुस्से में भी हैंडसम लगने वाले आदमी को अपने चेहरे पर ज्यादा क्रोध नहीं लाना चाहिए!' और हाँ, सुपरहीरो केप पहनना मत भूलिएगा!"
पूरे ऑफिस में हँसी का फव्वारा फूट पड़ा।
"ओएमजी! तारा ने फिर से बॉस को चिढ़ा दिया!"
"अरे, इस बार तो तारा की खैर नहीं!"
लेकिन तारा मज़े से अपनी सीट पर बैठी, पॉपकॉर्न जैसा खाने का नाटक करने लगी।
अक्षत, जो अपने केबिन में बैठा था, उसकी नसें खिंच गईं। उसने फोन उठाया और तारा का नंबर डायल किया।
"तारा! केबिन में आओ! अभी!"
लेकिन इस बार तारा डरने वाली नहीं थी। उसने फोन उठाया और...
"सॉरी, सर! अभी मैं बिज़ी हूँ। आपको कोई और सुपरहीरो मिल जाए तो बता देना!"
फोन काट दिया।
ऑफिस में सबकी साँसे अटक गईं।
"अब तो तारा गई काम से!"
अक्षत अपने केबिन से निकला और पूरे ऑफिस में एक सन्नाटा छा गया। वो तारा के डेस्क तक पहुँचा और बिना कुछ बोले, उसकी कुर्सी को पीछे खींचा।
"उठो!" उसकी आवाज़ बेहद सख्त थी।
लेकिन तारा भी कम नहीं थी। उसने उसकी आँखों में देखा और कहा, "क्यों? अब और कोई जबरदस्ती करनी है?"
अक्षत के चेहरे की मांसपेशियाँ खिंच गईं। उसने तारा का हाथ पकड़कर उसे जबरदस्ती खींचा और अपने केबिन में ले गया।
"अब मैं तुम्हें तुम्हारी हदें दिखाऊँगा, तारा!"
अक्षत ने तारा को केबिन के अंदर खींचा और दरवाजा ज़ोर से बंद कर दिया। ऑफिस के सभी लोग साँसें रोककर देख रहे थे। किसी को नहीं पता था कि अंदर क्या तूफान आने वाला है।
तारा ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन अक्षत की पकड़ मजबूत थी। उसकी आँखों में गुस्सा था, लेकिन तारा भी कम नहीं थी।
"अब और क्या बाकी रह गया है, मिस्टर सुपरहीरो?" तारा ने चिढ़ाते हुए कहा।
अक्षत ने उसे घूरा। "तुम्हें सच में लगता है कि तुम मुझसे बच सकती हो?"
...
अक्षत ने तारा को दीवार से लगा दिया। उसका चेहरा तारा के बहुत करीब था। तारा का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
"तुम मुझसे खिलवाड़ कर रही हो, तारा?" अक्षत की आवाज़ धीमी थी, लेकिन खतरे से भरी हुई।
"हाँ! और हमेशा करती रहूँगी!" तारा ने हिम्मत से कहा, लेकिन उसकी आवाज़ काँप रही थी।
अक्षत को तारा की ये हिम्मत पसंद भी आ रही थी और गुस्सा भी दिला रही थी। उसने एक झटके में तारा की कलाई पकड़ी और उसकी आँखों में देखा।
"तुम्हें मेरी सज़ा का अंदाज़ा भी नहीं है!"
और अगले ही पल...
अक्षत ने तारा के होंठों पर अपना कब्ज़ा कर लिया।
तारा की आँखें चौड़ी हो गईं। उसने अक्षत को पीछे धकेलने की कोशिश की, लेकिन अक्षत ने उसे मजबूती से पकड़े रखा। ये कोई नॉर्मल किस नहीं थी। ये गुस्से, जुनून और पागलपन से भरी हुई थी।
तारा का दिमाग सुन्न हो गया।
तारा ने अपने होश संभाले और जितनी ताकत से हो सकता था, अक्षत को धक्का दिया। "तुम पागल हो गए हो?!"
अक्षत के चेहरे पर हल्की सी स्मिरक आई। "मैं हमेशा से ही पागल हूँ, तारा! और अब तुम मेरी इस पागल दुनिया का हिस्सा हो!"
तारा को समझ नहीं आया कि वो क्या करे। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, लेकिन उसका गुस्सा उससे भी तेज़ था।
और तभी…
"थप्पड़!"
पूरे ऑफिस में सन्नाटा छा गया।
तारा ने अक्षत को एक ज़ोरदार थप्पड़ मार दिया था। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन चेहरे पर गुस्सा।
"तुम्हारी ये जबरदस्ती अब और नहीं चलेगी, अक्षत रॉय!"
अक्षत ने धीरे से अपनी जीभ से अपने कटे हुए होंठ को छुआ। उसकी आँखें अब और भी खतरनाक हो गई थीं।
तारा की साँसें तेज़ चल रही थीं। उसकी आँखों में डर और गुस्सा दोनों थे। उसने अक्षत को धक्का दिया, लेकिन अक्षत अपनी जगह से नहीं हिला।
"तुम पागल हो गए हो?" तारा की आवाज़ काँप रही थी।
अक्षत ने धीरे से अपने होंठों को छुआ, जहाँ तारा के थप्पड़ का असर साफ़ दिख रहा था। उसकी आँखें गहरी हो गई थीं, जैसे वो किसी खतरनाक फैसले पर पहुँच चुका हो।
"अब बहुत हो गया, तारा।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सा सन्नाटा था।
तारा ने महसूस किया कि माहौल अचानक से बदल गया है। अक्षत का गुस्सा अब किसी और ही दिशा में बढ़ रहा था।
अक्षत ने तारा का हाथ पकड़ा और उसे अपनी तरफ खींच लिया।
"अगर तुम मुझसे इतनी नफरत करती हो, तो ठीक है। लेकिन अब ये खेल ख़त्म। अब मैं तुम्हें अपने नाम से बाँध दूँगा।"
तारा का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
"क्या... क्या मतलब?" उसने घबराकर पूछा।
अक्षत ने गहरी साँस ली और फोन उठाया।
"पंडित को बुलाओ। अभी, इसी वक्त!" उसने अपने किसी आदमी को हुक्म दिया।
तारा की आँखें चौड़ी हो गईं। "अक्षत, ये मत करो! ये गलत है!"
अक्षत ने उसकी ठुड्डी को अपनी उंगलियों से ऊपर किया और गहरी नज़रों से उसे देखा।
"तुम्हें लगता है कि मुझे सही और गलत की परवाह है?" उसने तारा की आँखों में झाँकते हुए कहा।
अगले ही पल, तारा को अक्षत के आदमियों ने जबरदस्ती मंडप तक पहुँचाया। उसने भागने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
"मैं ये शादी नहीं करूँगी!" तारा चिल्लाई।
अक्षत ने उसकी तरफ देखा और मुस्कराया। "करनी तो पड़ेगी, तारा। अब तुम्हें मेरी ज़िंदगी में रहना ही होगा।"
पंडित मंत्र पढ़ने लगे। तारा की आँखों से आँसू बह रहे थे। अक्षत ने जबरन उसकी माँग में सिंदूर भर दिया और मंगलसूत्र उसके गले में डाल दिया।
तारा अक्षत की पत्नी बन चुकी थी। लेकिन क्या वो इसे स्वीकार करेगी? और अक्षत अब उसके साथ कैसा व्यवहार करेगा?
To be continued
सिंदूर की हल्की सी लकीर तारा की माँग में चमक रही थी, लेकिन उसके चेहरे पर डर और गुस्से की परछाइयाँ थीं। उसके गले में पड़ा मंगलसूत्र किसी जंजीर से कम नहीं लग रहा था।
पंडित मंत्र पढ़ चुके थे, शादी की रस्में पूरी हो चुकी थीं। अक्षत रॉय ने जो ठान लिया था, वो कर दिखाया।
"अब तुम सिर्फ़ मेरी हो, तारा।" अक्षत ने धीरे से कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में वही पागलपन झलक रहा था।
तारा ने एक झटके में मंगलसूत्र को छूकर हटाने की कोशिश की, लेकिन अक्षत ने उसकी कलाई को कसकर पकड़ लिया।
"ये मत करना, तारा। ये अब तुम्हारी हकीकत है।" उसकी आँखों में एक चेतावनी थी।
"ये मेरी हकीकत नहीं है! ये जबरदस्ती है! तुमने मुझे खरीदा नहीं है, अक्षत रॉय!" तारा ने गुस्से से कहा।
अक्षत के होंठों पर हल्की मुस्कान आई। "अगर तुम इसे जबरदस्ती मानती हो, तो मैं तुम्हें धीरे-धीरे इसकी आदत डाल दूँगा।"
अक्षत ने तारा को जबरदस्ती अपनी गाड़ी में बैठाया और उसे अपने विशाल बंगले में ले आया।
"ये तुम्हारा नया घर है, तारा। और अब यहाँ से तुम्हारी नई ज़िंदगी शुरू होगी।" अक्षत ने कहा।
तारा ने इधर-उधर देखा। बंगला किसी राजमहल से कम नहीं था, लेकिन उसे ये किसी कैदखाने जैसा लग रहा था।
"मैं इस पागलखाने में एक पल भी नहीं रुकूँगी!" तारा ने गुस्से से कहा।
अक्षत ने एक लंबी साँस ली और धीरे से उसके करीब आकर फुसफुसाया, "भागने की कोशिश मत करना, तारा। मैं तुम्हें हर बार पकड़ लूँगा।"
तारा ने उसे घूरा, "तुम जो कर रहे हो, वो गलत है! ये प्यार नहीं, ज़िद है!"
अक्षत के चेहरे पर अजीब सा सन्नाटा छा गया। उसने तारा की ठुड्डी पकड़ी और गहरी आवाज़ में कहा, "मेरी ज़िंदगी में जो चीज़ मेरी होती है, वो सिर्फ़ मेरी होती है। और तुम अब मेरी हो।"
तारा ने डर से उसे धक्का दिया और कमरे की ओर भागी। लेकिन जैसे ही उसने दरवाजा खोला, अक्षत पहले ही वहाँ पहुँच चुका था।
"तारा, ये दरवाजे अब तुम्हारे लिए नहीं खुलेंगे। अब तुम सिर्फ़ मेरी हो और मैं तुम्हें अपनी दुनिया के हर कोने में महसूस करना चाहता हूँ।"
तारा घबराई हुई थी। उसके दिल की धड़कनें इतनी तेज़ थीं कि उसे लग रहा था कि ये आवाज़ बाहर तक गूंज रही होगी। वो कमरे के एक कोने में खड़ी थी, जबकि अक्षत दरवाजे पर खड़ा उसकी हर हरकत को बारीकी से देख रहा था।
"ये शादी मेरी मर्ज़ी के खिलाफ़ हुई है, अक्षत। मैं तुम्हारी कोई चीज़ नहीं हूँ!" तारा बोली, उसकी आवाज़ काँप रही थी, लेकिन उसकी आँखों में अब भी नफरत थी।
अक्षत ने हल्की मुस्कान के साथ उसकी तरफ़ देखा, "तुम्हें जो भी सोचना है, सोच सकती हो। लेकिन अब तुम मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुकी हो, तारा। ये सच जितनी जल्दी स्वीकार करोगी, तुम्हारे लिए उतना ही अच्छा होगा।" उसने सख्ती से कहा।
तारा गुस्से से अक्षत की तरफ़ बढ़ी, "अगर तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारी इस जबरदस्ती को चुपचाप सह लूँगी, तो तुम गलत सोच रहे हो!" उसने तेज़ आवाज़ में कहा और पास रखा एक गिलास उठाकर ज़मीन पर पटक दिया।
अक्षत की आँखें गहरी हो गईं। उसने अपनी उँगलियों को हल्का सा मोड़ा, जैसे अपने गुस्से को काबू में रखने की कोशिश कर रहा हो।
"गुस्सा मत दिलाओ मुझे, तारा। मुझे तोड़फोड़ पसंद नहीं है। और वैसे भी, ये घर अब तुम्हारा भी है।" अक्षत ने शांति से कहा, लेकिन उसके अंदर का तूफान साफ़ झलक रहा था।
तारा ने तीखी नज़रों से उसे देखा, "ये घर नहीं, ये जेल है! और मैं यहाँ एक कैदी हूँ!" उसने गुस्से से कहा।
बस, अक्षत का धैर्य अब जवाब दे चुका था। उसने झटके से तारा का हाथ पकड़ लिया और उसे दीवार से सटा दिया।
"तुम जितना भी चाहो, भागने की कोशिश कर सकती हो, तारा। लेकिन याद रखना, मैं तुम्हें हमेशा पकड़ लूँगा!" उसने गहरी, खौफनाक आवाज़ में कहा।
तारा ने घबराकर उसे धक्का देने की कोशिश की, लेकिन अक्षत की पकड़ बहुत मजबूत थी। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
"छोड़ो मुझे, अक्षत! जबरदस्ती से प्यार नहीं मिलता!" तारा ने गुस्से और डर के मिले-जुले भाव के साथ कहा।
अक्षत ने उसकी ठुड्डी को अपनी उँगलियों में कसकर पकड़ लिया, "तुम्हें अब भी लगता है कि मैं तुमसे प्यार माँग रहा हूँ?" उसने आँखों में पागलपन के साथ कहा।
तारा ने अपनी नज़रों को उसकी आँखों में गड़ा दिया, "तुम्हें सिर्फ़ जीतना आता है, लेकिन किसी का दिल जीतना नहीं आता, अक्षत रॉय!" उसने ठहरकर कहा।
अक्षत ने एक पल के लिए उसे देखा, और फिर उसने तारा को छोड़ दिया। उसने गहरी साँस ली और पीछे हट गया।
"अच्छा, तो अब मेरा प्यार नहीं चाहिए? ठीक है, तारा। अब मैं देखता हूँ कि तुम कब तक मुझसे दूर भाग पाती हो!" उसने आँखें संकरी करके कहा और कमरे से बाहर चला गया।
(जारी रहेगा...)
guys sorry m busy thi isliye chapter nhi de payi.... ab continue hi chapter dungi....🙃🙃🙃🙃 guy's jyda nhi toh kuch toh comment kar hi dena aur follow bhi......pls follow kar lo mujhe..aur comment m jarur bataiye ki story kaisi lg rhi h ....
अक्षत रॉय उस रात अकेला था। पूरी हवेली में सन्नाटा पसरा हुआ था, और बस बार एरिया की मद्धम लाइट्स जल रही थीं। ये वही wooden bar था जो उसने खास अपने लिए बनवाया था, लेकिन आज वो वहां बैठकर खुद से ही लड़ रहा था।
वो एक के बाद एक शराब के गिलास अपने गले के नीचे उतार रहा था, लेकिन नशा? वो तो उसके पास फटक भी नहीं रहा था। उसकी आंखें सुर्ख थीं, लेकिन उनमें नींद नहीं—तारा थी। उसकी हर बात, हर चीख, हर ताना अक्षत के कानों में गूंज रहा था।
उसने एक और गिलास भरा, इस बार रेड वाइन से। ग्लास को हल्के से घुमाया और फिर एक सांस में आधा गिलास पी गया। फिर लड़खड़ाते कदमों से वो सोफे पर जाकर बैठ गया। पैर सामने पड़े टेबल पर टिकाए, गिलास हाथ में लिए, और निगाहें छत पर।
"जितनी नफरत करनी है कर लो तारा... लेकिन तुम मेरा जुनून हो," अक्षत ने बुदबुदाते हुए कहा, "मेरी ज़िद हो, मेरी चाहत हो, और तुम्हे मैं अपना बना कर ही रहूंगा..."
उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान थी, पर वो मुस्कान दर्द में डूबी हुई थी। उसे तारा की आंखें याद आ रही थीं—वो गुस्सा, वो नफरत, वो तिरस्कार... लेकिन फिर भी, उसमें एक अजीब सी खूबसूरती थी जो अक्षत को घायल कर रही थी।
"तुम मुझे नफ़रत से देखती हो, तारा... पर मैं तो बस तुम्हें देखता हूं," उसने धीरे से कहा और एक और घूंट ले लिया।
कभी वो खुद को समझा रहा था, कभी खुद से सवाल कर रहा था।
"क्यों? क्यों इतनी ज़रूरत हो गई है तुम्हारी मुझे? तुम तो बस एक नॉर्मल सी लड़की हो ना? मेरी दुनिया से दूर, मेरी लाइफ से बहुत अलग। फिर भी... फिर भी तुम हर कोने में छाई हो, तारा।"
उसने गिलास मेज पर रखा और अपनी दोनों हथेलियों से चेहरा ढक लिया।
"मैं तुमसे नफरत करने की कोशिश करता हूं, पर कर नहीं पाता," वो फुसफुसाया।
वो उठकर बार के पास गया, एक पुरानी व्हिस्की निकाली और बिना मिक्सर के गिलास में डाली।
"याद है तारा, उस दिन तुमने कहा था मैं एक साइको हूं? हां, हूं मैं। लेकिन क्या करूं, जब तुम्हें देखा था पहली बार... उसी पल से कुछ भी नॉर्मल नहीं रहा। सब कुछ बदल गया।"
उसने धीरे-धीरे व्हिस्की पीते हुए खुद से कहा, "मैं तुम्हें तोड़ नहीं सकता तारा, पर झुका जरूर सकता हूं। और एक दिन तुम खुद मेरे पास आओगी। मुझे अपनाओगी।"
फिर उसने खुद को शीशे में देखा, उसकी आंखें और चेहरा थका हुआ था लेकिन उनमें एक जुनून साफ़ दिख रहा था।
अचानक वो हंस पड़ा।
"देख रहे हो न, क्या बना दिया है तुमने मुझे तारा! एक बिजनेस टाइकून... और आज एक लड़की के लिए खुद से लड़ रहा है।"
वो वापस सोफे की तरफ गया, एक हाथ में अब भी गिलास था, और दूसरे से उसने अपने बालों को पीछे किया।
"मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता... और तुम्हें मेरे साथ रहना ही होगा। क्यूंकि ये मेरी जिद है।"
थक कर वो वहीं सोफे पर लेट गया, आंखें धीरे-धीरे बंद होने लगीं। शराब अब भी खत्म नहीं हुई थी, लेकिन उसका जिस्म थक चुका था। उसकी जुबान पर आख़िरी शब्द थे—
"तारा... मैं तुमसे प्यार नहीं करता... मैं तुमसे पागलपन की हद तक जुड़ चुका हूं..." तुम सिर्फ मेरी चाहत नहीं मेरा जुनून भी हो ।
और फिर, वो वहीं सो गया।
उसका गिलास नीचे गिर गया, रेड वाइन फर्श पर फैल गई, लेकिन उसे कुछ भी पता नहीं चला।
रात का सन्नाटा अब भी वहीं था, हवेली खामोश थी, और एक जुनूनी आशिक अपने ख्यालों में तारा को फिर से जी रहा था।
अक्षत के कमरे से निकलने के बाद तारा बिल्कुल पत्थर सी वहीं दीवार के सहारे बैठ गई। उसकी साँसें तेज थीं, आँखें सूनी, और चेहरा बिल्कुल सफेद पड़ गया था। उसने अपने दोनों घुटनों को सीने से लगाकर सिर टिका लिया। कमरे की हल्की रोशनी में उसके चेहरे पर बहते आँसू साफ़ दिख रहे थे।
वो वही तारा थी जो कभी बच्चों को कहानी सुनाते-सुनाते खुद ही हँस पड़ती थी, जो सुबह के सूरज से पहले उठती थी और ज़िंदगी को अपनी मर्जी से जीना चाहती थी। लेकिन आज... आज वो बिखर गई थी। एक अनचाहा रिश्ता, एक जबरदस्ती की शादी, और वो भी एक ऐसे आदमी से जो उसे डराता था, झकझोर देता था।
उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन दिमाग़ में हर पल जैसे दोबारा से जी रही हो — अक्षत की वो जबरदस्ती की शादी, मंडप, सिंदूर, मंगलसूत्र, उसकी घबराई हुई साँसे, और अक्षत की वो आखिरी बात — "अब तुम मेरी हो... सिर्फ मेरी।"
तारा फुसफुसाई, “कैसे हो सकते हो तुम इतने खुदगर्ज़... कैसे अक्षत? क्या तुम्हें किसी की मर्ज़ी, उसकी भावनाओं का कोई मतलब नहीं?”
उसने गुस्से से अपने आँसू पोंछे। फिर धीरे-धीरे खुद को दीवार का सहारा लेकर खड़ा किया। पैरों में अब भी थरथराहट थी, लेकिन उसकी आँखों में एक नई आग थी।
वो बड़बड़ाई, “मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि ज़िंदगी में ऐसा भी दिन देखना पड़ेगा। पर अब बहुत हो गया। अब तुम्हारी बारी है पछताने की अक्षत रॉय।”
वो कमरे की तरफ बढ़ी और दरवाज़ा अंदर से लॉक कर दिया। बाहर कोई आता भी तो वो किसी से मिलना नहीं चाहती थी।
कमरे में पड़े wooden dresser के सामने जाकर वो कुछ देर खुद को आईने में देखती रही। बाल बिखरे हुए थे, चेहरा थका हुआ और लाल आँखें... पर उसकी आँखों में अब डर नहीं था... बल्कि एक चुप लड़ाई की शुरुआत थी।
तारा ने दबी आवाज़ में कहा,
“तुमने मेरी ज़िंदगी बर्बाद की है अक्षत... अब मैं तुम्हें चैन से जीने नहीं दूंगी। तुमने जो मेरी मर्ज़ी के खिलाफ किया... उसकी सजा तुम्हें मिलेगी।”
फिर वो वही लॉन्ग कुर्ती और दुपट्टा पहने सीधे bed पर बैठ गई। उसके पास कोई दूसरा कपड़ा नहीं था, और इस हवेली में उसका कोई नहीं था, जो उससे पूछे कि वो कैसी है।
उसने तकिये में मुँह छुपाकर खुद को थोड़ी देर रोने दिया। पर इस बार उसके आँसू बेबसी के नहीं थे... ये आँसू उसके अंदर इकट्ठे हो रहे उस तूफान की तरह थे जो अब सब कुछ बदल देने वाला था।
तारा ने खुद से कहा,
“अब हर रोज़ तुम्हें मेरी मौजूदगी चुभेगी अक्षत रॉय। अब तुम तारा मेहता से खेल नहीं पाओगे। देखना... तुम मुझे चाहोगे, लेकिन मैं तुम्हें घुट-घुट कर जीने पर मजबूर कर दूंगी।”
फिर वो करवट लेकर लेट गई। मन में बहुत कुछ था, लेकिन शरीर थक चुका था। इतना थक चुका था कि कब नींद आ गई, उसे खुद भी नहीं पता चला।
क्या करने वाली है तारा इसके लिए देखते रहिए अगला एपिसोड । ।
.....To be continued .....
सुबह की हल्की रोशनी खिड़की से छनकर कमरे में आ रही थी। तारा की नींद खुद-ब-खुद खुली, जैसे दिल में कोई बेचैनी थी। उसने थके हुए से आँखें खोलीं और चारों तरफ देखा — वही भारी हवेली का कमरा, वही अनजान सी दीवारें, और वो अजनबी सा एहसास कि उसकी ज़िंदगी अब उसकी अपनी नहीं रही।
उसने करवट बदली और धीरे-धीरे खुद को बिस्तर से उठाया। बाल बिखरे हुए थे, आँखों में नींद के साथ-साथ गुस्सा और घुटन साफ़ झलक रही थी। तारा अपने मन में बोली—
“कितनी अजीब बात है… मैं यहां हूं, पर मेरा कुछ भी नहीं है।”
वो बाथरूम की तरफ बढ़ी ताकि खुद को थोड़ा ठीक कर सके, लेकिन जैसे ही कपड़ों की अलमारी खोली — उसका चेहरा उतर गया।
"Great… एक भी कपड़ा नहीं है चेंज करने के लिए!" उसने खुद से कहा और गुस्से में अलमारी बंद कर दी।
कोई चॉइस न होने की वजह से, उसने वही हल्का गुलाबी सूट पहन लिया जो उसने kal se पहना था। बालों को बांधा, चेहरा धोया और एक लंबी सांस लेकर कमरे से बाहर निकली।
...
जैसे ही उसने सीढ़ियाँ उतरनी शुरू कीं, हवेली में एक अजीब सी बेचैनी थी। और जैसे-जैसे वो हॉल के पास पहुंची, उसकी आंखों ने जो देखा — वो थोड़ा हैरान करने वाला था।
फर्श पर रेड वाइन बिखरी हुई थी, जगह-जगह खाली ग्लास पड़े थे, और वहां — wooden bar के पास सोफे पर — अक्षत पड़ा हुआ था, एक हाथ उसके माथे पर और दूसरा वाइन की खाली बोतल के पास। चेहरा थका हुआ, बिखरे बाल, और उसकी कमीज़ अब भी आधी खुली हुई थी।
तारा कुछ देर वहीं खड़ी उसे देखती रही।
"Wow... ये है हवेली का मालिक?" उसने खुद से तंज कसते हुए कहा।
वो बिना कुछ बोले सीधा किचन की तरफ बढ़ गई। चेहरा अब फिर से सीरियस था। अंदर घुसते ही उसे कुछ नौकर नजर आए, जो सुबह की तैयारी में लगे थे।
उन्होंने तारा को देखकर हल्का सा सिर झुकाया, लेकिन कुछ नहीं कहा।
तारा ने भी बस ठंडी नजरों से उन्हें देखा और खुद से बोली —
"चलो तारा... अब यहां खुद ही अपना खाना बनाना होगा। और शायद… अपनी लड़ाई भी खुद ही लड़नी होगी।”
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तारा ने जैसे ही किचन में कदम रखा, वहां कुछ नौकर इधर-उधर काम कर रहे थे। उसकी मौजूदगी से थोड़ी हलचल सी मच गई। सभी के चेहरे पर हैरानी थी — शायद इस हवेली में कभी किसी “मालकिन” ने खुद से रोटी नहीं बनाई थी।
लेकिन तारा को किसी की परवाह नहीं थी।
वो सीधा फ्रिज की ओर बढ़ी और उसे खोला। फिर बर्तनों की तरफ देखा, लेकिन हर चीज़ नयी और चमचमाती थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहाँ रखा है। तभी उसने एक नौकरानी को आवाज दी—
" सुनो! उसने वह खड़ी के लड़की से कहा … मुझे सिर्फ इतना बता दो कि सब्ज़ी-वब्जी कहां रखी जाती है, और नमक-मसाले किस दराज में हैं।" तारा ने शांत लेकिन सख्त आवाज़ में कहा।
वो लड़की थोड़ी डरी, लेकिन फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ी और तारा को इशारों में सारी चीज़ें बता दीं।
तारा ने सिर हिलाया और कहा,
"थैंक्स। अब तुम जा सकती हो। बाकी मैं देख लूंगी।”
फिर उसने आटा निकाला, सब्ज़ी काटने लगी और पूरे kitchen को अपने हाथों से संभाल लिया। लेकिन एक चीज़ जो उसने जान-बूझकर की — वो थी आवाज़।
कभी बेलन टेबल पर पटक रही थी, कभी तवे को ज़ोर से रख रही थी, कभी मसालों के डिब्बे की ढक्कन गिरा रही थी — यानी जितना हो सके उतना शोर।
शायद गुस्सा निकाला जा रहा था... या शायद किसी को जगाने की कोशिश हो रही थी।
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हॉल में सोया अक्षत जैसे ही किसी आवाज़ से हल्का हिला, उसने आंखें खोलीं। सिर भारी था, पर कानों में शोर साफ जा रहा था।
उसने आंखें मिचमिचाकर देखा और फर्श पर बिखरी वाइन, खाली ग्लास, और खुद को देखा। माथे पर गुस्से की लकीरें उभर आईं।
"किसने इतनी आवाज़ करने की हिम्मत की मेरी हवेली में?" उसने मन ही मन सोचा।
फिर जोर से आवाज़ लगाई—
"रघु काका!!!"
एक नौकर हड़बड़ाते हुए दौड़ता आया।
"जी सर!"
"ये शोर किसका है? मेरी नींद में खलल डालने की इतनी हिम्मत किसकी हुई?" अक्षत की आंखें अब पूरी तरह लाल थीं।
रघु डरते हुए बोला,
"सर… वो… तारा मैम… खुद ही खाना बना रही हैं किचन में। बाकी स्टाफ को उन्होंने हटा दिया है।"
बस इतना सुनना था कि अक्षत का पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचा।
"What the hell!" उसने गुस्से में कहा और एक झन्नाटेदार थप्पड़ रघु काका के गाल पर जड़ दिया।
"तुम सबकी इतनी हिम्मत कैसे हुई मेरी बीवी से काम करवाने की?! तुम्हारी अक्ल घास चरने गई है?"
बाकी स्टाफ दूर खड़े कांप रहे थे।
अक्षत ने गुस्से से पैर पटके और सीधा किचन की तरफ बढ़ा। जैसे ही अंदर पहुंचा, तारा तवे पर रोटी डाल रही थी, आंखों में एक अजीब सी चमक और चेहरे पर पूरी बेपरवाही।
अक्षत किचन के दरवाज़े पर खड़ा था, और सामने तारा रोटी पलट रही थी। आवाज़ें अब धीमी थीं, लेकिन ताना अब भी गरम था। उसने बिना घबराए, बिना पीछे देखे कहा—
"अब तो तुम उठ ही गए होंगे... चलो ठीक है, अब जल्दी से नहा लो और रेडी हो जाओ... मेरी पहली रसोई है आज, खाना बनने वाला है बस!"
अक्षत ने उसकी बात सुनी, और जैसे पल भर को freeze हो गया।
"क्या?" उसने खुद से बुदबुदाया।
"ये वही लड़की है जो मुझे देखना भी नहीं चाहती थी... अब अचानक शादी को ऐसे मान लिया?"
वो अंदर आया और बोला,
"तारा, ये सब ड्रामा मत करो… तुम्हें कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। तुम ये सब करने के लिए बनी ही नहीं हो।”
तारा ने तवे से रोटी निकाली, प्लेट में रखी, और ठंडे लहजे में जवाब दिया—
"मैं अब सिर्फ तारा मेहता नहीं रही, मिस्टर रॉय… अब मैं तुम्हारी बीवी हूं, और बीवी बनकर कुछ जिम्मेदारियां निभाना चाहती हूं। पहली रसोई हर दुल्हन की होती है, और ये मेरी भी है। अब तुम प्लीज़ रेडी हो जाओ, खाना बस तैयार है।"
उसका लहजा इतना सादा था, पर बात सीधी दिल में जा लगने वाली।
अक्षत एक पल के लिए चुप हो गया। उसके चेहरे पर हैरानी थी, दिमाग में शक।
"ये लड़की इतना चुपचाप मान कैसे गई? जरूर कुछ खेल चल रहा है…" वो मन में सोचता रहा, लेकिन कुछ बोले बिना मुड़ गया और ऊपर चला गया।
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अक्षत ने खुद को आईने में देखा, वही कल के कपड़े, वही शर्ट — जिसमें वाइन की कुछ बूँदें अब भी दिख रही थीं।
"Shit!" उसने खुद को घूरते हुए कहा।
"तारा ने तो कल के ही कपड़े पहने है उसके पास और कपड़े नहीं है ?"
उसने फोन उठाया और अपने असिस्टेंट को कॉल किया।
"मैंने कहा था न, wardrobe should be ready! अबकी बार कुछ भी मिस नहीं होना चाहिए — sarees, suits, indo-western, western — सब कुछ चाहिए मेरी बीवी के लिए, and I want that almirah full by today evening!"
फोन कटते ही उसने फ्रेश होने के लिए वॉशरूम का दरवाज़ा खोला।
तारा ने जब पूरा खाना तैयार कर लिया, तो वो खुद ही ट्रे में रखकर डाइनिंग हॉल की तरफ बढ़ी। रसोई से निकलते वक्त हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर थी— एक सुकून, एक साज़िश, या फिर दोनों।
लेकिन जैसे ही वो हॉल में पहुंची, उसका चेहरा बदल गया।
हॉल में स्टाफ की भीड़ जमा थी। सब एक जगह खड़े थे, फुसफुसा रहे थे। उसने नज़र घुमाई, और देखा — ज़मीन पर कोई बैठा है।
वो तेजी से आगे बढ़ी।
"हटो सब! हटो!"
उसने भीड़ को चीरते हुए जगह बनाई और जब नीचे देखा — तो वहां रघु काका बैठे थे। उनके सर से हल्का खून बह रहा था, गाल पर लाल निशान था।
तारा घबरा गई।
"हे भगवान!"
वो झट से नीचे बैठ गई, घुटनों के बल।
"ये कैसे हुआ...? कोई बोलेगा?"
कोई कुछ नहीं बोला, सब सिर झुकाए खड़े थे।
तारा ने आंखें तरेरते हुए सबकी ओर देखा।
"मैं पूछ रही हूं... किसने मारा इन्हें?"
डरते-डरते एक स्टाफ मेंबर बोला,
"मैम… जब अक्षत सर को नींद से उठाया गया था… तो उन्होंने... रघु काका को थप्पड़ मार दिया… और वो गिर गए… शायद सिर टेबल से लग गया…”
तारा की आंखों में आग सी जल उठी।
"तुम सब खड़े हो क्या कर रहे हो? First aid kit लाओ कोई!"
वो खुद अपने दुपट्टे से रघु काका का खून साफ करने लगी।
कुछ ही देर में फर्स्ट एड बॉक्स आया, तारा ने खुद ही पट्टी की। उसके हाथ कांप रहे थे, लेकिन उसकी आंखें रघु काका के चेहरे पर टिकी थीं।
"माफ कीजिएगा काका… ये सब मेरी वजह से हुआ।"
रघु काका की आंखों में पानी था, पर मुस्कान भी थी।
"नहीं बहूरानी… तुम बहुत अच्छी हो। भगवान तुम्हें खुश रखे… बहुत सालों बाद इस हवेली में किसी ने अपनापन दिखाया है…"
तारा की आंखें भर आईं… लेकिन उसने खुद को रोने नहीं दिया।
उधर सीढ़ियों पर खड़ा अक्षत ये सब देख रहा था….
...... To be continued .......
Hello readers 🤗🤗 मै इस कहानी को काफी टाइम से नहीं दे पाई थी और बीच में ही छोड़ दिया लेकिन अब मैं इसे पूरा करुंगी रोज चैप्टर देकर,,,,लेकिन मेरी आप सबसे बस एक रिक्वेस्ट है कि आप सब मेरी कहानी को पूरा सपोर्ट दे और फॉलो करे,,,, स्पेशली कॉमेंट्स,,🥹🥹 देखिए एक राइटर एक लिए कमेंट्स ही सबसे इंपॉर्टेंट होते है इससे उन्हें पता चलता की कहानी कैसी लग रही है सबको और उन्हें लिखने का मोटीवेशन मिलता है🙏🏻 तो मैं आप सबसे आशा करुंगी कि आप कमेंट जरूर करेंगे मुझे इंतजार रहेगा आपके कमेंट्स का
Thank you 💗 💗 💗
सामने का नजारा देखकर अक्षत की आंखें सिकुड़ गई थीं। नीचे रघु काका ज़मीन पर बैठे थे, उनके सिर से हल्का खून बह रहा था और तारा, उसी मिट्टी में घुटनों के बल बैठी, उनके घाव पर पट्टी बाँध रही थी। चारों तरफ स्टाफ खामोश खड़ा था, और हवा में एक अजीब सी बेचैनी थी। तभी अक्षत की भारी, सख्त आवाज़ पूरे हॉल में गूंजी—
"क्या हो रहा है यहां पर?"
उसकी आवाज़ सुनते ही पूरा स्टाफ एकदम से सहम गया। सबने जैसे अपनी सांसें रोक ली हों। किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि वो कुछ कह सके। डर के मारे सभी एक तरफ जाकर खड़े हो गए।
तारा ने जैसे ही उसकी आवाज़ सुनी, उसके हाथ रघु काका के सिर से हटे और उसकी आंखों में गुस्से की चिंगारियां जल उठीं। वो धीरे से खड़ी हुई, रघु काका को सहारा देकर सीधा बैठाया और फिर सीधी, बिना डरे हुए निगाहों से अक्षत की तरफ देखने लगी। उसका चेहरा अब मासूम नहीं था, वहां अब गुस्सा, सवाल और हिम्मत साफ झलक रही थी।
"मिस्टर रॉय," तारा ने सख्त लहजे में कहा, "आपका दिमाग खराब हो चुका है क्या? आप किसी पर इस तरीके से हाथ कैसे उठा सकते हैं? देखिए, इन्हें कितनी चोट आई है! जबकि ये आपसे उम्र में कितने बड़े हैं।"
अक्षत अब धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा। उसकी चाल में वही रॉब था, वही गुरूर जो उसने हमेशा से अपने चारों तरफ बुन रखा था। लेकिन तारा के चेहरे की गंभीरता ने उसके कदमों की ठहराव को तोड़ दिया।
"तारा," अक्षत बोला, "ये सब लोग मेरे यहाँ काम करते हैं, और इन्हें काम करने के पैसे मिलते हैं। अगर ये अपना काम ठीक से नहीं करेंगे, तो पनिशमेंट तो मिलेगी ही। इन सबकी गलती थी, इन लोगों ने तुम्हें—इस घर की मालकिन और मेरी बीवी—से काम करवाया।"
तारा ने एक कदम आगे बढ़ते हुए गुस्से में कहा, "इनमें से किसी ने मुझे कुछ नहीं कहा था कि मैं खाना बनाऊं। मैं खुद खाना बनाने गई थी। और मैंने ही इन्हें ऑर्डर किया था कि कोई मेरी मदद नहीं करेगा। इन सब बेचारे कर्मचारियों का क्या कसूर है? आपको रघु काका पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था। क्या आप खुद को भगवान समझते हैं?"
अक्षत के चेहरे पर तनी हुई जबड़े की रेखाएं और उभरी हुई नसें गुस्से की निशानी थीं। लेकिन तारा की बातें, उसका लहजा, सब कुछ उसे पलभर को शांत कर रहा था। वो कुछ बोलने ही वाला था कि तभी रघु काका ने बीच में बात काट दी।
"कोई बात नहीं बहुरानी... छोटे मालिक हमारे अन्नदाता हैं... अगर उन्होंने गुस्से में मुझ पर हाथ उठा भी दिया, तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। प्लीज... आप दोनों मेरी वजह से बहस मत करिए।"
रघु काका की आंखों में दर्द भी था और सम्मान भी। उनके चेहरे की झुर्रियों में सालों की वफादारी झलक रही थी। तारा का दिल और ज्यादा भारी हो गया। उसका गुस्सा थोड़ी देर को ठंडा पड़ा और उसने एक स्टाफ से कहा—
"जाओ, रघु काका को उनके कमरे में छोड़ आओ... और हाँ, डॉक्टर को भी बुलवा देना।"
फिर उसने रघु काका की तरफ देखा और नरमी से बोली, "जाइए काका, आप आराम कीजिए... आज पूरे दिन आप बाहर नहीं आएंगे। आपको मेरी कसम।"
रघु काका ने धीमे से सिर हिलाया और धीरे-धीरे अपने कमरे की ओर चले गए। जब वो बाहर निकल गए, तब तारा ने गहरी सांस ली और पलटी। वो अब अक्षत की तरफ देख रही थी, लेकिन इस बार उसकी आंखों में कोई शिकायत नहीं थी—बल्कि एक अजीब सी शांति थी। शायद तूफान के बाद वाली खामोशी।
फिर उसने अपने चेहरे पर एक नकली मुस्कान लाई, जो उसकी आंखों तक नहीं पहुंची, और बोली—
"आइए मिस्टर रॉय, खाना तैयार है। अपनी जगह पर बैठिए।"
अक्षत ने कुछ नहीं कहा। वो चुपचाप अपनी जगह पर जाकर बैठ गया। उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था—तारा का बदला हुआ बर्ताव, उसकी हिम्मत, और वो गुस्सा जो उसने किसी और पर नहीं, बल्कि खुद अक्षत रॉय पर दिखाया था।
डाइनिंग टेबल पर अब सिर्फ दो लोग बैठे थे—अक्षत और तारा। बीच में ढेर सारे पकवान थे, जो तारा ने खुद बनाए थे। लेकिन खाने से पहले दोनों के बीच एक और जंग बाकी थी—जुबानों की।
पूरा स्टाफ एक तरफ खड़ा था। डाइनिंग हॉल में जैसे सन्नाटा छा गया था। सामने की कुर्सी पर अक्षत बैठा था, और उसके ठीक सामने तारा। माहौल जितना शांत दिख रहा था, अंदर ही अंदर अक्षत के दिल में एक ही सवाल चल रहा था—"तारा इतनी प्यार से क्यों पेश आ रही है?"
कल रात तक तो वह इस शादी से इंकार कर रही थी। उसे अक्षत से नफरत थी। और अब वो खुद उसके लिए खाना बनाकर ले आई थी? उसके मन में उलझन थी,
तारा ने बिना उस से नजरें मिलाए जल्दी-जल्दी से अक्षत की थाली में खाना परोसा। फिर अपनी प्लेट में भी थोड़ा खाना लिया और हँसते हुए बोली,
"खाइए मिस्टर रॉय, और बताइए कि मेरी पहली रसोई कैसी लगी?"
अक्षत उसकी आँखों में देखता रहा। उस मुस्कुराहट के पीछे का सच वो भांप चुका था। लेकिन कुछ बोले बिना उसने एक रोटी तोड़ी, सब्जी में डुबोई और धीरे से अपने मुँह में रख ली।
तारा उसकी हर हरकत पर नजरें गड़ाए बैठी थी। जैसे ही अक्षत ने पहला निवाला लिया, उसकी आँखें एक पल के लिए सख्त हो गईं। चेहरे पर कुछ देर को शिकन उभरी, लेकिन अगले ही पल उसने उसे छुपा लिया।
तारा के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान थी।
"अब देखती हूँ, कैसे मुंह बनाते हो," तारा ने मन ही मन सोचा।
पर जो उसने सोचा था, वैसा कुछ नहीं हुआ।
अक्षत ने बिना कुछ कहे, बिना एक भी शिकायत के, धीरे-धीरे पूरा खाना खत्म कर दिया। मिर्च से लाल हो रही आँखें, पसीने से भीगा माथा… लेकिन उसके चेहरे पर शिकन नहीं आई।
तारा की हँसी धीरे-धीरे सन्नाटे में बदल गई। वो मन ही मन बड़बड़ाई,
"हे भगवान! ये आदमी है या पत्थर? इतना मिर्च और नमक डाला था मैंने... और इसे कुछ भी नहीं हुआ?"
अक्षत ने प्लेट से आखिरी निवाला उठाया, चबाया, और फिर पानी पीकर उठ खड़ा हुआ।
"खाना सच में... काफी मजेदार था," उसने तारा की तरफ देखते हुए कहा,
"शायद मुझे ये ज़िंदगी भर याद रहेगा।"
तारा के चेहरे पर हल्की हैरानी थी, लेकिन वो कुछ कह नहीं पाई।
अक्षत दरवाज़े की तरफ बढ़ा, लेकिन जैसे ही बाहर निकलने वाला था, वो अचानक पलटा और बोला,
"और हां तारा... भागने की कोशिश मत करना। यहाँ से निकलना तुम्हारे लिए उतना आसान नहीं होगा, जितना तुम सोचती हो।"
उसकी आवाज़ में गहराई थी, चेतावनी थी। और आंखों में... वही खतरनाक झलक।
तारा कुछ पल तक उसे देखती रह गई। दरवाज़ा बंद होते ही उसने तेज़ी से अपनी नजरें खाने की प्लेट की तरफ मोड़ी।
"क्या सच में उसे खाना अच्छा लगा?"
उसने खुद खीर की एक चम्मच उठाई और जैसे ही मुँह में डाली, उसका पूरा चेहरा बिगड़ गया।
"ऊफ्फ... इसमें तो इतना नमक है!"
उसने गुस्से से प्लेट को देखा और फिर बड़बड़ाई,
"यह इंसान इंसान नहीं, कोई राक्षस है। जो इतना तीखा, नमकीन खाना भी ऐसे खा गया जैसे गुलाब जामुन हो!"
उसने झुंझलाहट में सारी खीर उठाई और तेज़ी से किचन में जाकर सिंक में फेंक दी।
फिर पानी पिया, एक चम्मच चीनी मुँह में डाली और खुद से बोली,
"कड़वा इंसान है... तभी तो कड़वी खीर भी उसे मीठी लगी!"
थोड़ी देर तक किचन में खड़ी रही, फिर गहरी सांस ली और पैरों को घसीटते हुए सीढ़ियों की तरफ बढ़ी।
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अपने कमरे में पहुँचते ही वो पलंग पर बैठ गई। उसका मन बेचैन था।
"मैंने इतना मसाला मिलाया था... ताकि ये जल जाए, बौखला जाए... पर ये तो और भी शांत हो गया!"
उसने दीवार की तरफ देखते हुए कहा,
"तुम्हें क्या लगता है मिस्टर रॉय, मैं हार मान लूंगी? नहीं... ये तो सिर्फ शुरुआत है। मैं भी देखती हूँ, कब तक तुम्हारी ये नकली शांति बनी रहती है!"
दूसरी तरफ अक्षत अपनी कार में बैठकर ऑफिस जा रहा था। ड्राइवर चुपचाप गाड़ी चला रहा था। अक्षत ने बैक मिरर में खुद को देखा, होंठों पर एक हल्की मुस्कान थी।
"तारा मेहता..." वो मन में बुदबुदाया,
"तुम मुझे नीचा दिखाने आई थी... लेकिन तुम भूल गईं कि मैंने तुमसे शादी है अक्षत रॉय ने और अक्षत रॉय कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं है ।"
उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। जैसे शेर अपने शिकार की चाल को देखकर और ज़्यादा खेल में दिलचस्पी लेने लगा हो।
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उधर स्टाफ के कुछ लोग किचन में धीरे से बातें कर रहे थे।
"तारा मैम ने इतना मिर्च डाला था..." एक ने कहा,
"और सर ने सब खा भी लिया!"
दूसरा बोला,
"मुझे तो लगा था सर मुंह से आग निकाल देंगे..."
तीसरा हल्के से मुस्कुराया,
"सर तो जैसे खून पी जाते हैं... मिर्च क्या चीज़ है उनके लिए!"
सब हल्की-हल्की हँसी में डर को छुपाने की कोशिश कर रहे थे।
तारा अपने कमरे की बालकनी में खड़ी बाहर झांक रही थी। उसके चेहरे पर एक अजीब सी दृढ़ता थी।
"जो तुमने मुझे डराने की कोशिश की है मिस्टर रॉय, अब देखना... तुम्हें पछताना पड़ेगा। मैं सिर्फ तुम्हारी बीवी नहीं हूँ, मैं वो आग हूँ जो सबकुछ राख कर देती है।"
नीचे लॉन में झूलते पेड़ों के बीच, एक काली बिल्ली चुपचाप चल रही थी। सब कुछ शांत था, लेकिन उस शांति में भी तूफान छुपा था।
Guys न तो व्यूज आ रहे है और ना ही किसी ने कमेंट किया तो मैं न देनी वाली अब चैप्टर,,,जब तक मुझे अच्छे से व्यूज़ और कमेन्ट नहीं मिलते 😏😏 पहले मुझे मोटीवेशन दो फिर चैप्टर लो । वरना अभी कहानी शुरू ही कहा हुई है दोनों की लड़ाइयां तारा का बदला और अक्षत का रोमांस 🤭 उनकी नोक झोंक सब बाकी है मेरे रीडर्स 😏
तारा बेड पर बैठी खिड़की की ओर देख रही थी। बाहर धूप धीरे-धीरे अपने पंख फैला रही थी, लेकिन तारा के मन में बस एक ही बात चल रही थी—"इस पिंजरे से निकलना है। किसी भी कीमत पर।"
कल रात उसने तय कर लिया था कि अब और नहीं। वह इस जबरदस्ती की शादी को स्वीकार नहीं करेगी। इस हवेली में हर दीवार, हर कोना उसे उसकी मजबूरी का एहसास दिला रहा था। लेकिन भागे कैसे? बाहर हर वक्त दो बॉडीगार्ड्स, सीसीटीवी कैमरे, और अंदर नौकरों की नजरें हर वक़्त उस पर रहती थीं।
वह इन ही खयालों में उलझी थी कि अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई।
"नॉक... नॉक..."
तारा चौंकी। वह झट से उठी और दरवाज़े की ओर गई।
"क... कौन है?" उसने पूछा।
"मैडम, नीचे से बॉक्स आया है। अक्षत सर के असिस्टेंट ने दिया है," बाहर से एक धीमी आवाज़ आई।
तारा ने धीरे से दरवाज़ा खोला। सामने एक मेड खड़ी थी, उसके हाथ में एक ब्राउन बॉक्स था। मेड ने वह बॉक्स उसकी ओर बढ़ाया।
"क्या है इसमें?" तारा ने शक भरी निगाह से पूछा।
"मैडम, मुझे नहीं पता। लेकिन सर के असिस्टेंट ने कहा है कि ये बॉक्स सर ने आपके लिए भेजा है।"
तारा ने बॉक्स लिया और बिना कुछ कहे दरवाज़ा बंद कर दिया। उसने बॉक्स को बेड पर रखा और धीरे-धीरे उसे खोलने लगी।
जैसे ही उसने ढक्कन हटाया, उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। बॉक्स में एक सुंदर अनारकली सूट रखा था। हल्के पीच रंग का, उसपर सुनहरे काम की कढ़ाई थी। साथ में मैचिंग चूड़ीदार, दुपट्टा और यहां तक कि फुटवियर, इनरवेयर्स और हल्की-फुल्की ज्वेलरी भी थी।
तारा को पहले तो आश्चर्य हुआ। फिर जैसे ही उसे एहसास हुआ कि वह कल से वही एक जोड़ी कपड़े पहने हुए थी, उसे थोड़ा शर्म और गुस्सा दोनों आने लगे।
"अच्छा! तो अब कपड़े भी भेज रहा है। शायद अपनी हवेली की शोभा बढ़ाने के लिए? या फिर ये एहसान दिखाने के लिए?" उसने खुद से बड़बड़ाया।
लेकिन फिर एक सच्चाई सामने आई—वह खुद अपने कपड़ों से परेशान हो चुकी थी। कपड़े पसीने और धूल से गंदे हो चुके थे। शरीर में खुजली होने लगी थी। उसे ये एहसास हुआ कि शायद शावर लेने से उसके शरीर को थोड़ी राहत मिल पाएगी।
ये सोच वह बॉक्स से कपड़े उठाकर वॉशरूम में चली गई।
शावर की ठंडी धारों ने जैसे उसे हल्का कर दिया हो। कई दिनों के बाद उसने अपने शरीर को ताजगी से भरा महसूस किया।
जब वह नहाकर शावर से साइड हटी , तो अनारकली सूट पहनने लगी।
"कितना कंजूस आदमी है ये... इतनी बड़ी हवेली में रहता है, करोड़ों का मालिक है, और मेरे लिए बस एक ही जोड़ी कपड़े? अरे कम से कम दो-तीन तो भेज देता। कोई सेंस है इस आदमी में?" तारा खुद से बड़बड़ाते हुए तैयार हो रही थी।
जब वह तैयार होकर बाथरूम से बाहर निकली, तो हैरान है गई । ।
तारा जैसे ही बाथरूम से बाहर निकली, वह ठिठक गई। उसके कदम वहीं जम गए।
उसकी आंखें बड़ी हो गईं, जैसे सामने कोई अजूबा देख लिया हो। पूरा कमरा बदला हुआ था। एक पल के लिए उसे लगा कि शायद वह किसी और के कमरे में आ गई है।
कमरे के बीचों-बीच, चार-पांच मेड्स खड़ी थीं। कोई वार्डरोब के पास कपड़े सजा रही थी, कोई ड्रेसिंग टेबल पर महंगे काजल, लिपस्टिक और परफ्यूम जमाने में लगी थी। हर जगह सिर्फ और सिर्फ कपड़े ही कपड़े फैले थे। सिल्क की साड़ियाँ, डिज़ाइनर गाउन, भारी-भरकम लहंगे, वेस्टर्न ड्रेसेज़, नाइटवेयर और वह सब कुछ जो किसी अमीर घराने की बहू के लिए भेजा जाता है।
तारा बस आंखें फैलाकर देखती रह गई। उसके कदम खुद-ब-खुद आगे बढ़े, लेकिन दिमाग वहीं ठहर गया — “ये सब क्या है?”
वह धीरे-धीरे चली और सामने जाकर खड़ी हो गई। मेड्स अपना काम कर रही थीं, किसी ने तारा की हैरानी को नोटिस तक नहीं किया। लेकिन जब सब कुछ सजा लिया गया, तो वे जाने लगीं।
तारा ने तुरंत एक मेड को रोका, "एक मिनट... ये सब क्या है?"
वो मेड, जो पहले से घबराई हुई थी, रुककर बोली, "मैडम, ये सब अक्षत सर ने भिजवाया है। आपके लिए..." बस इतना कहकर वो और बाकी मेड्स वहां से फौरन निकल गईं।
तारा वहीँ ठिठक कर खड़ी रही। उसकी नजरें वार्डरोब पर थीं।
वह धीरे-धीरे चलती हुई वार्डरोब के पास पहुंची और एक-एक करके कपड़े देखने लगी। हर एक कपड़ा जैसे चिल्ला रहा था – "हम महंगे हैं, बहुत महंगे!"
सिल्क की साड़ियाँ जिन पर महीन कढ़ाई थी। ज़री का काम, भारी बॉर्डर। एक लहंगा तो ऐसा था कि किसी दुल्हन के लिए भी कम नहीं पड़ता। वेस्टर्न ड्रेसेज़ तो जैसे पेरिस फैशन वीक से सीधी आई थीं। जूते, चप्पलें, सैंडल—हर ब्रांड, हर स्टाइल।
ड्रेसिंग टेबल पर लाइन से रखे हुए परफ्यूम्स। बड़े-बड़े ब्रांड – डायर, चैनल, गुच्ची, और भी जाने क्या-क्या! उसके सामने रखी एक लिपस्टिक की कीमत ही शायद उसके पूरे महीने की कमाई से ज़्यादा थी।
तारा की आंखों में हैरानी थी। लेकिन उसके अंदर एक बवंडर चल रहा था। उसने पलटकर पूरा कमरा देखा—वो आलीशान दीवारें, सजा-संवरा बिस्तर, खूबसूरत पर्दे, और अब ये सब कपड़े।
वह मन में सोचने लगी —
"इतना कुछ... इतने कपड़े, इतने गहने, ये सब... मेरे लिए? क्यों?"
वह एक पल के लिए बैठ गई। सिर पकड़ कर।
"क्या सोच रखा है इस आदमी ने? क्या समझता है खुद को?"
"ये सोचता है कि मैं इन महंगे कपड़ों, गहनों और इस शानो-शौकत से प्रभावित हो जाऊंगी?"
"क्या इससे मेरा गुस्सा खत्म हो जाएगा? मैं प्यार करने लगूंगी उससे?"
"नहीं! बिल्कुल नहीं!"
वह उठी और वार्डरोब की तरफ बढ़ी। एक साड़ी निकाली और उसे हाथ में लिया। रेशम जैसे नरम कपड़े को महसूस किया और फिर गुस्से में उसे वहीं फेंक दिया।
"मैं कोई खरीदी हुई चीज़ नहीं हूं, मिस्टर रॉय!"
"तुम्हें लगता है ये सब मुझे तुम्हारे करीब लाएगा, तो तुम बहुत बड़ी गलतफहमी में हो।"
उसकी आंखों में नमी थी, लेकिन चेहरा गुस्से से तना हुआ।
"मुझे इन सब चीज़ों की कोई जरूरत नहीं। मुझे मेरी आज़ादी चाहिए। मुझे मेरा खुद का अस्तित्व चाहिए।"
तारा बैठ गई, हाथ घुटनों पर और सिर झुका लिया। वह अब चुप थी, लेकिन उसकी आंखों में तूफान था।
कुछ मिनटों बाद, वह उठी और सीधे ड्रेसिंग टेबल के पास गई। एक परफ्यूम उठाया और खोला। खुशबू बहुत महंगी थी। उसने बोतल बंद की और खुद से बोली—
"महंगी खुशबू से किसी का किरदार नहीं बदलता, मिस्टर रॉय।"
उसने अपने आप को आईने में देखा। सामने खड़ी लड़की अब वैसी नहीं थी, जैसी कुछ दिन पहले हुआ करती थी। उसके चेहरे पर अब मासूमियत नहीं, एक चुनौती थी।
“अब ये तारा तुम्हारी जाल में नहीं फंसेगी, मिस्टर अक्षत रॉय।”
“तुमने मेरा सब कुछ छीन लिया, लेकिन अब मैं खुद को वापस पाऊंगी। तुम्हारे इसी पिंजरे में, तुम्हारे ही खिलाफ खड़ी होऊंगी।”
कहानी अब सिर्फ प्यार या नफरत की नहीं थी। अब यह कहानी थी आत्मसम्मान की।
Guys pls comment de do,,,,ek comment karne m kya jata h aapka 🥺 itna bhaw n khaya karo,,warna m bhi khane lag jaungi aur chapter mhi dungi....
...... To be continued ......
तारा अब भी बेड पर बैठी थी, पर उसकी आंखें किसी गहरे सोच में डूबी थीं। अचानक... अक्षत की कही हुई बात उसके कानों में गूंजने लगी —
"तारा, यहां से भागने की कोशिश मत करना..."
उसने एक झटके से आंखें खोलीं और गुस्से से बोली,
"मिस्टर रॉय, आप होते कौन हैं जो मैं आपकी बात मानूं? अब तो मैं ज़रूर भागूंगी! और इस बार, आप मुझे रोक भी नहीं पाएंगे!"
वो बेड से तेजी से उठी, उसके चेहरे पर एक अजीब सी जिद और चमक थी। जैसे ही दिमाग में कोई प्लान क्लिक किया, वो फटाफट वार्डरोब की तरफ भागी।
उसने वहां से दो सिल्क साड़ियाँ निकालीं — एक गुलाबी और दूसरी नीली — और उन्हें आपस में कसकर बांधने लगी।
"Silk का क्या है, इतना strong तो होता ही है… Let’s make it my escape rope!" – वो बड़बड़ाते हुए, साड़ियों को जोड़कर एक लंबा सा रस्सा बना चुकी थी।
फिर वो बालकनी की ओर बढ़ी, साड़ियों का सिरा रेलिंग से कसकर बांध दिया और खुद के हाथ झाड़ते हुए बोली —
"अब देखती हूं मिस्टर रॉय, कैसे ढूंढते हो मुझे... I'm out of here, forever!"
उसके चेहरे पर एक शरारती सी मुस्कान थी, जैसे किसी बच्चे को शरारत करते हुए मज़ा आ रहा हो। लेकिन जैसे ही उसने बालकनी से नीचे झाँका, उसकी हंसी वहीं अटक गई।
नीचे ग्राउंड पर चार–पांच भारी-भरकम जर्मन शेफर्ड्स उसे ही घूर रहे थे — सीधा उसकी आंखों में। जैसे बस इसी पल का इंतज़ार कर रहे हों।
"Oh my God... ये क्या है?"
"अरे बाप रे! ये तो ऐसे देख रहे हैं जैसे मैं आज इनका dinner बनने वाली हूं!"
उसका चेहरा सफेद पड़ गया। एक कदम पीछे हटते हुए बोली,
"ये कुत्ते हैं या खूनी दरिंदे...? बरसों से भूखे लग रहे हैं और अब भूख मिटेगी तो बस मुझे खा के!"
उसी वक्त उसकी नजर बालकनी की दायीं तरफ लगी एक दीवार पर गई, जहां एक पेपर टेप से चिपका था।
उसने पेपर उठाया और पढ़ा—
"My darling Tara,
क्या हुआ? भाग नहीं पाई क्या?
सोचा था कि मुझसे इतनी easily भाग जाओगी?
Shayd तुम भूल गई कि मैं अक्षत रॉय हूं...
— AR"
उसकी आंखें गुस्से से लाल हो गईं।
"तुम्हें क्या लगता है मिस्टर रॉय, तुम मुझे कुत्तों से डराकर रोक लोगे?"
उसने वो पेपर फाड़ दिया, और टुकड़े हवा में उड़ा दिए। फिर बालकनी से नीचे कुत्तों को देखा और ताना मारते हुए बोली
"जैसा मालिक है, वैसे ही उसके पालतू — डरावने, राक्षस जैसे!"
गुस्से में पैर पटकती हुई वापस कमरे में आ गई। दरवाज़ा ज़ोर से बंद किया और खुद को बेड पर फेंक दिया।
"Ughhh! I hate him! उस आदमी को अपनी ही दुनिया में जीना आता है... एक पिंजरे में रख के सोचता है मैं उसे प्यार कर बैठूंगी? Dream on, Mr. Roy!"
वो मुंह फुलाकर बैठ गई। बालों को झटका, तकिये में चेहरा छुपा लिया और आंखें बंद कर लीं।
पर उसके चेहरे पर अब भी वही जिद थी... हार नहीं मानी थी उसने... अभी नहीं... कभी नहीं।
शाम के साए कमरे की खिड़कियों से अंदर उतर चुके थे।
तारा अपने कमरे में अकेली बैठी थी, बोर और उदास। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करे। तभी अचानक उसके मन में ख्याल आया —
"चलो नीचे जाकर रघु काका से मिलती हूं, पता नहीं उनकी तबीयत कैसी है..."
वो धीमे-धीमे कदमों से सीढ़ियों से नीचे उतरी और सीधे रघु काका के कमरे की तरफ बढ़ी।
जैसे ही रघु काका ने तारा को दरवाज़े पर देखा, वो घबरा गए —
"अरे बहुरानी! ये क्या कर रही हैं आप यहां? आप यहां क्यों आईं?"
तारा थोड़ा अचकचाई, फिर मासूमियत से बोली —
"मतलब... मैं यहां नहीं आ सकती क्या?"
रघु काका थोड़े परेशान होते हुए बोले,
"नहीं बहुरानी... मेरा मतलब वो नहीं था... ये तो एक नौकर का कमरा है और आप इस घर की मालकिन हैं। आपको यहां आना शोभा नहीं देता।"
तारा उनके कमरे में दाखिल होते हुए बोली —
"काका, पहली बात — मैं कोई मालकिन नहीं हूं। ये सब बस दिखावा है।
मेरे लिए ये घर एक पिंजरा है... एक जेल — सोने की जेल।
और दूसरी बात — आप कोई नौकर नहीं हैं, आप इंसान हैं... हमारी ही तरह।
बल्कि आप तो मेरे पापा की उम्र के हैं।
मेरे मम्मी-पापा नहीं हैं, लेकिन मैं जानती हूं वो होते... तो बिलकुल आपके जैसे होते — अच्छे, सादे, और सच्चे।"
ये सुनकर रघु काका की आंखें भर आईं। उन्होंने अपनी नमी छुपाने की कोशिश की, पर तारा देख चुकी थी।
तारा मुस्कुरा कर बोली —
"वैसे काका, आपकी चोट कैसी है अब?"
रघु काका बोले —
"अब ठीक है बेटा, दवा से आराम है।"
तारा थोड़ा झिझकते हुए बोली —
"काका... एक बात पूछूं?"
रघु काका ने तुरंत कहा —
"हां बहुरानी, ज़रूर पूछो।"
"अगर मैं इस हवेली से जाना चाहूं... तो जा सकती हूं क्या?"
ये सुनते ही रघु काका थोड़ी देर तक उसकी आंखों में देखते रहे। फिर धीरे से बोले —
"माफ करना बेटा... लेकिन ये मुमकिन नहीं है। कभी किसी जेल से कोई भाग सका है क्या?"
"ये हवेली जंगल के एकदम सुनसान हिस्से में है। यहां कोई आता-जाता नहीं।
साहब हर बार कार की चाबी अपने साथ ले जाते हैं, और अगर किसी तरह तुम गार्ड्स से बचकर बाहर भी निकल गई...
तो रोड तक पहुंचने में 5-6 घंटे लगेंगे — वो भी पैदल।
और जंगल में... जंगल के जानवर तो तुम जानती ही हो।
इसलिए बेटा, भागना बिल्कुल असंभव है।"
ये सुनकर तारा चुप हो गई। उसकी आंखों की चमक जैसे बुझ गई हो।
वो धीरे-धीरे चलती हुई हॉल में आई, और अकेले सोफे पर बैठ गई। सिर दीवार से टिका दिया और आंखें बंद कर लीं।
"कैद सिर्फ दीवारों से नहीं होती... कुछ कैदें अंदर से भी तोड़ती हैं..." — उसके मन में ये ख्याल आया।
हवेली में सन्नाटा था। और उस सन्नाटे के बीच... तारा का अकेलापन और गहरा हो चुका था। ।
अब क्या करेगी तारा, क्या निकल पाएगी वो अक्षत के चंगुल से इसके लिए देखते रहिए ये कहानी और करते रहिए लगातार कमेंट । ।
.......To be continued.......