आदित्य राजवंश — एक ऐसा नाम, जिसे दुनिया सिर्फ बिज़नेस टाइकून कहती है। ऐसा माइंड, जो हर सौदे में सिर्फ फायदा देखता है। रिश्ते, जज़्बात, मोहब्बत — इन शब्दों से उसका कोई वास्ता नहीं। उसके लिए ज़िंदगी सिर्फ फैसलों और कंट्रोल में चलती है। और वहीं है... आदित्य राजवंश — एक ऐसा नाम, जिसे दुनिया सिर्फ बिज़नेस टाइकून कहती है। ऐसा माइंड, जो हर सौदे में सिर्फ फायदा देखता है। रिश्ते, जज़्बात, मोहब्बत — इन शब्दों से उसका कोई वास्ता नहीं। उसके लिए ज़िंदगी सिर्फ फैसलों और कंट्रोल में चलती है। और वहीं है मनाल खन्ना — एक साधारण सी लड़की, एक छोटी फैक्ट्री मालिक की इकलौती बेटी। उसकी दुनिया सीमित है, लेकिन दिल बेहद बड़ा। जब एक दर्दनाक हादसे में उसके पिता कोमा में चले जाते हं। और तभी आदित्य राजवंश उसके सामने एक अजीब सी डील रखता है: > "तुम मुझसे शादी करो, मैं तुम्हारे पिता के इलाज और तुम्हारी फैक्ट्री की ज़िम्मेदारी उठाऊंगा।" एक अरबपति बिज़नेसमैन... एक मामूली लड़की से शादी क्यों करना चाहता है? एक सधी हुई प्रेम कहानी, जिसमें रिश्ते डील से शुरू होते हैं और मोहब्बत अतीत से वापस लौटती है जहां हर मुस्कान के पीछे एक छुपा हुआ ज़ख़्म है और हर फैसला सिर्फ बिज़नेस नहीं, दिल से जुड़ा होता है
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उसने भारी मन से फोन उठाया।
"...क्या होने वाली बीवी ❤️..."
उसकी आवाज़ में एक मोहक खनक थी।
"...तुमने फोन ऑफ कर दिया... पता है ना, मुझे तुमसे कितनी बातें करनी हैं? अगर तुम कहो तो मैं मिलने आ जाऊं..."
मनाल की आवाज़ ठंडी पड़ गई—
"...नहीं... अगर कोई ज़रूरी बात है तो फोन पर ही बता दीजिए... और हां, अभी मुझे ‘बीवी’ कहने की कोई ज़रूरत नहीं है... हमारी शादी अभी हुई नहीं है..."
"...ठीक है, ठीक है... आज नहीं तो परसों हो जाएगी... फिर तो तुम मेरी ही बाहों में होगी... सही कहा ना मैंने..."
मनाल की आंखें छलक आईं।
अब तक किसी की हिम्मत नहीं हुई थी कि उसके साथ इस तरह बात करे।
"...जब शादी होगी... तब देखा जाएगा... अभी मुझे बीवी कहने की ज़रूरत नहीं है..."
उसकी आवाज़ भर्राई हुई थी।
आदित्य को उसका दर्द सुनाई दे रहा था, इसलिए उसने तुरंत बात बदल दी।
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🔍 एक एक्सीडेंट... या कुछ और?
"मैंने तुम्हें इसलिए फोन किया था..."
आदित्य गंभीर हो गया।
"मैं दो एम्पलॉई भेज रहा हूं — रीता परेरा और रतन कुमार।"
"क्यों...? किसलिए?" मनाल चौंकी।
"तुम्हारे पापा का एक्सीडेंट जितना साधारण लग रहा है, उतना है नहीं। मुझे पूरा शक है कि वो 'हादसा' था ही नहीं... करवाया गया था। और मुझे लगता है इसका सीधा रिश्ता तुम्हारे फैक्ट्री से जुड़ा है... और तुमसे भी..."
मनाल की आंखें फैल गईं।
"और जो वादा मैंने किया था — तुम्हारे बिज़नेस को सपोर्ट करने का — वो मैं निभाऊंगा। डरने की ज़रूरत नहीं... थोड़े ही दिनों में सब साफ हो जाएगा... और अगर मैं अपना वादा निभाऊं... तो तुम्हें भी अपना वादा निभाना होगा... सही कहा ना मैंने?"
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🧠 मनाल की उलझन — रिश्ता, लेकिन किस कीमत पर?
"...शायद हमारा रिश्ता भी उतने ही दिनों का है, जितने दिन उसका मन मुझसे नहीं भरता..."
वो खुद से कहती है।
"...उसे मुझसे क्या चाहिए, ये तो साफ है... और मुझे हर हाल के लिए तैयार रहना होगा..."
लेकिन उसे इस बात पर हैरानी थी कि जब वो पहली बार उसे मिलने आया था, तो मनाल को लगा था वो कॉन्ट्रैक्ट मैरिज की बात करेगा।
एक कॉन्ट्रैक्ट जिसमें साफ-साफ लिखा होगा कि शादी के बाद प्रॉपर्टी पर मेरा कोई हक़ नहीं होगा... और तलाक के बाद मुझे कुछ नहीं मिलेगा।
मगर उल्टा...
उसने अपने मां-बाप को रिश्ता लेकर भेजा।
पूरे मीडिया में सगाई की खबर फैली दी।
अब शादी भी मीडिया के सामने, बिज़नेस वर्ल्ड और समाज में उसका कद ऊँचा हो गया था।
अब वो 'मनाल आदित्य राजवंश' थी।
कानूनी तौर पर — आदित्य की पत्नी।
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🎊 गृह प्रवेश — रस्में निभी, मगर मन में हलचल थी
"...घर आ गया, चलो बीवी..."
आदित्य ने गाड़ी रोकी।
"...चलो उतरो बीवी..."
वो मुस्कराया।
तभी उसकी भाभी और माम आ गए —
"ऐसे कैसे उतारोगे? रुको!"
उन्होंने बड़े प्यार से मनाल को गाड़ी से उतारा।
फिर पूरे रीति-रिवाज से गृह-प्रवेश हुआ।
हर रस्म आदित्य ने मन से निभाई —
वो मुस्कुरा रहा था, जैसे सब कुछ सामान्य हो।
लेकिन मनाल का दिल बार-बार सवाल पूछ रहा था —
“क्या ये सब सच है? या कोई और चाल?”
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🏭 मनाल के पापा महेश खन्ना एक इज्ज़तदार बिजनेसमैन थे।
इस शहर में उनका नाम था।
उनकी फार्मास्युटिकल फैक्ट्री थी।
माँ एक खुशमिज़ाज गृहिणी, और छोटा भाई विदेश में एमबीए कर रहा था।
मनाल ने हाल ही में एम.कॉम पूरा किया था।
पढ़ाई के बाद उसने शौकिया तौर पर पापा का ऑफिस जॉइन किया।
कुछ ही समय में उसकी शादी की बात चलने लगी थी।
जिस लड़के से रिश्ता तय हुआ था, वो उसे पसंद भी आ गया था।
सगाई की तारीख़ भी लगभग तय थी।
मगर तभी...
एक एक्सीडेंट में उसका सब कुछ बदल गया।
महेश खन्ना कोमा में चले गए।
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📉
अब फैक्ट्री को देखने वाला कोई नहीं था।
भाई विदेश में था, मॉम घरेलू महिला थीं,।
मनाल ने पूरी कोशिश की —
फैक्ट्री संभालने की, काम को आगे बढ़ाने की।
मगर उसे हर कदम पर विफलता मिली।
मजदूर हड़ताल पर उतरने वाले थे
कच्चा माल आना बंद हो गया था
तनख्वाह देने तक के पैसे नहीं थे
कोई बैंक लोन नहीं दे रहा था
मनाल बुरी तरह टूट रही थी।
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इन्हीं हालातों में उसका फोन आया —
वो मीटिंग करना चाहता था।
मनाल हैरान थी —
उसे लगता था वो उसकी फैक्ट्री खरीदना चाहता है...
या शायद उसे ब्लैकमेल करना चाहता है।
पर उसके सामने मना करना मुश्किल था।
वो अब शहर के सबसे ताक़तवर बिजनेस टायकून में से एक था।
मीटिंग तय हुई — संडे शाम, मनाल के ऑफिस में।
जब आदित्य सामने आया —
मनाल की आंखें फटी रह गईं।
कॉलेज का चॉकलेटी बॉय अब एक बिजनेस सम्राट बन चुका था।
बेहतरीन सूट
ब्रांडेड घड़ी
सेट बाल
गहरी आंखें
गंभीर चेहरा
उसकी मुस्कराहट अब भी वही थी — मगर असर अलग था।
मनाल के दिल में जलन थी।
नफरत और मजबूरी के बीच फंसी हुई थी वो।
वो जानती थी — उसकी कोई हैसियत नहीं।
मगर बात करनी ज़रूरी थी।
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वो चाय का कप उठाते हुए बोला—
"मैं सीधे बात करूंगा... बिना घुमा-फिराए..."
वो क्या ऑफर लेकर आया था?
क्या वो वाकई उसकी फैक्ट्री खरीदना चाहता था?
या कोई और इरादा था उसके मन में?
मनाल को मिल गया था जवाब...
मगर उस जवाब के साथ आया था एक और सवाल —
“क्या मैं इस सौदे के लिए तैयार हूं?”
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वह चाय की चुस्की लेते हुए मनाल के सामने शांत लेकिन बेहद गहरी आवाज़ में बोला:
"...देखो, मैं ज़्यादा लाग-लपेट में बात नहीं करूंगा... जो कहूंगा, साफ़-साफ़ कहूंगा..."
वो मनाल के सामने एक ऐसा ऑफर रखने वाला था जिससे उसकी ज़िंदगी की दिशा ही बदल सकती थी।
"...इस वक़्त तुम्हें और तुम्हारी फ़ैक्ट्री दोनों को बहुत बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। तुम्हारी ज़्यादातर डील्स कैंसिल हो रही हैं, सप्लाई टाइम पर नहीं हो पा रही है। ना नए टेंडर मिल रहे हैं, ना पुराने बच रहे हैं। मज़दूर हड़ताल की तैयारी में हैं, रॉ मटेरियल भी नहीं आ रहा... और तुम्हारे पापा की हालत भी जस की तस है — कोई सुधार नहीं..."
फिर वह कुछ पल रुका, और गहरी नज़र से मनाल को देखा।
"...इस सारी प्रॉब्लम का एक ही सॉल्यूशन है — अगर तुम मुझसे शादी कर लेती हो, तो ये सारी समस्याएं अपने आप हल हो जाएंगी..."
मनाल अब पूरी तरह से चौंक चुकी थी।
"...अब तुम सोचोगी कि तुम मुझसे शादी क्यों करोगी। पर ये तुम भी जानती हो कि अगर तुम्हारी फैक्ट्री मेरे नाम से जुड़ती है, मेरे बिज़नेस से जुड़ती है, तो सब कुछ बदल जाएगा। सप्लायर्स भी भरोसा करेंगे, इंवेस्टर्स भी लौटेंगे, और तुम्हारे दुश्मन भी सोचेंगे दो बार। और अगर फैक्ट्री बंद होती है... तो तुम्हारे पापा कभी ठीक नहीं हो पाएंगे। तुम जानती हो, वो इससे कितने मानसिक रूप से जुड़े हुए हैं।"
"...सोच लो। जवाब मुझे इस नंबर पर दे देना।"
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मनाल अब तक उसे देखती रही थी। लेकिन अब उसकी आवाज़ में सख्ती आ गई:
"...आपको इससे क्या फ़ायदा होगा? आप मेरी फ़ैक्ट्री क्यों बचाना चाहते हैं? मेरे पापा की सेहत से आपको क्या लेना-देना है?"
आदित्य एक हल्की-सी मुस्कान के साथ बोला:
"...मुझे ना तुम्हारी फैक्ट्री से मतलब है, ना तुम्हारे पापा की सेहत से। अगर कुछ है... तो वो सिर्फ़ 'तुम' हो। तुम अच्छी तरह जानती हो... कॉलेज के वक़्त तुम मेरा क्रश थीं। तब तुमने मुझे नजरअंदाज़ किया... और अब मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगा..."
"...मैं तुम्हारे साथ एक रात नहीं, शायद कई रातें बिताना चाहता हूँ। लेकिन मैं जानता हूँ — बिना शादी के तुम कभी नहीं मानोगी। इसलिए मैंने ये ऑफर बनाया है — जिसमें तुम्हारा भी काम हो जाएगा और मेरा भी।"
उसकी नज़रों की गर्मी अब मनाल के चेहरे को चीर रही थी। वो अपनी नशीली आँखों से उसे ऐसे घूर रहा था जैसे किसी चीज़ का हक़ जता रहा हो।
कुछ देर चुप रहने के बाद, उसने कहा:
"...तुम्हें कोई जल्दी नहीं है। सोच-समझ कर फैसला लेना। तुम्हारे हालात वैसे ही बहुत खराब हैं... और अब कोई गलती की गुंजाइश नहीं है..."
इतना कहकर वह चला गया।
उसके जाने के बाद मनाल वहीं बैठी रही। उसके अंदर एक आग थी — खुद के खिलाफ़, हालात के खिलाफ़, और उस आदमी के खिलाफ़ जिसने उसकी मज़बूरी को अपना हथियार बना लिया था।
वो थकी-हारी जब रात को घर पहुंची, तो उसकी मां ने खाना पूछने पर वह चुपचाप मना कर गई। दरवाज़ा बंद किया और अकेली अपने कमरे में बैठ गई।
"...उसने जो कहा, वो गलत नहीं था... अगर उसकी फैक्ट्री मेरे नाम से जुड़ जाती है, तो सब कुछ बदल सकता है..."
"...मगर मैं उसके साथ ऐसा कैसे कर सकती हूँ...? सिर्फ़ मजबूरी में शादी...!"
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जिस लड़के से मनाल की सगाई तय होने वाली थी — उसने भी उसका साथ नहीं दिया। एक बार मिलने आया और फिर गायब हो गया। उसने मनाल के फोन नहीं उठाए। बाद में मनाल ने उसे किसी और लड़की के साथ घूमते देखा — और कुछ ही दिनों में उसकी सगाई की खबर भी आ गई।
उस दिन वह बहुत रोई थी।
उसके बाद से किसी ने उसका साथ नहीं दिया — सिवाय उस आदित्य के, जो साथ देने के बदले कीमत मांग रहा था।
अगली सुबह ही उसका कॉल आ गया।
"...तो बोलो, शादी कब करनी है...? कब आऊं तुम्हारे घर?"
मनाल ने भारी मन से कहा:
"...जब आप चाहें... मैं शादी के लिए तैयार हूँ..."
"...तो ठीक है... वेट करो मेरी..."
उसने कहा और कॉल कट कर दिया।
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शाम को वो अपने माता-पिता के साथ मनाल के घर पहुंच गया।
मनाल को उम्मीद भी नहीं थी कि वह इस तरह सीधे आकर उसका रिश्ता मांगेगा।
आदित्य की माँ ने मनाल की माम से कहा:
"...हम तो कब से इसके पीछे पड़े थे शादी के लिए... अब इसने खुद बताया कि इसे मनाल पसंद है... तो हमें क्या एतराज़? बच्चे एक-दूसरे को चाहते हैं तो शादी जल्दी कर देनी चाहिए..."
मनाल की माम चुप हो गईं। उन्हें अपने कोमा में पड़े पति की याद आई।
मनाल के डैड की गैरमौजूदगी में इतनी जल्दी फैसला करना ठीक है या नहीं, इस बात पर कुछ कह पाना मुश्किल था।
फिर आदित्य के पापा बोले:
"...हमें मालूम है कि मनाल के पापा इस वक़्त हॉस्पिटल में हैं... इसलिए हम कोई भव्य प्रोग्राम नहीं करेंगे। सादा और सम्मानजनक कार्यक्रम रखेंगे।"
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क्या आदित्य सचमुच मनाल की मजबूरी का फायदा उठा रहा है?
क्या यह रिश्ता सिर्फ़ एक सौदा है?
या फिर कहीं न कहीं, उसके दिल में कुछ और भी है?
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मनाल की माँ दीपा जी चुप हो गईं। पति की हालत की याद आते ही वो भीतर तक हिल गईं। जब वो कोमा में पड़े हैं, तब क्या उन्हें इतना बड़ा फैसला लेना चाहिए?
कुछ पल की खामोशी के बाद आदित्य के पापा, धर्मपाल जी बोले:
"हमें पता है कि मनाल के पापा इस समय ठीक नहीं हैं... बस इसीलिए हम चाहते हैं कि सब कुछ बहुत सादगी से हो। हम आपकी परेशानी को समझते हैं..."
फिर उन्होंने धीमे से कहा:
"...वैसे हमारे बेटे ने कहा है कि शादी मंदिर में होगी — एकदम सादा, बिना किसी ताम-झाम के..."
दीपा जी को इस प्रस्ताव में कोई दिक्कत नहीं दिखी। सच कहें तो पहली ही नज़र में उन्हें आदित्य बहुत पसंद आया था। वो अपनी बेटी के लिए एक बेहतर भविष्य देख रही थीं।
मनाल एक ऐसे घर में जा रही थी जो नाम, दौलत और रुतबे में सबसे ऊपर था। एक माँ के लिए इससे बड़ा संतोष और क्या हो सकता है?
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शाम ढल चुकी थी, लेकिन बातचीत जारी थी।
दीपा जी ने उन्हें रुकने का आग्रह किया और एक ही बार कहने पर आदित्य का परिवार रुक गया।
आदित्य की माँ अनीता जी और दीपा जी के बीच अच्छी बॉन्डिंग बन गई थी। दोनों बहुत खुश लग रही थीं, जैसे पुरानी सहेलियाँ मिल गई हों। और आज उनके बच्चों ने एक-दूसरे को पसंद कर, उन्हें एक और खूबसूरत रिश्ता दे दिया था।
अनीता जी लंबे समय से आदित्य के पीछे पड़ी थीं कि वो शादी कर ले। उन्होंने न जाने कितनी लड़कियाँ दिखाईं, लेकिन आदित्य ने हर बार मना कर दिया।
"अगर तुम्हें कोई पसंद है तो हमें मिलवा दो..."
वो अक्सर आदित्य से कहतीं। मगर उसने कभी हामी नहीं भरी।
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आदित्य के दो छोटे भाई-बहन और थे।
छोटे भाई की शादी हो चुकी थी और उसके दो बेटे भी थे।
छोटी बहन विदेश में मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी।
अनीता जी चाहती थीं कि सबसे पहले आदित्य की शादी हो, मगर वो किसी कीमत पर मानता ही नहीं था। वो डरती थीं कि कहीं विदेश जाकर वह किसी विदेशी लड़की से न शादी कर ले।
जब आदित्य ने खुद आकर "मनाल" का नाम लिया, तो वह एक पल भी नहीं सोच पाईं — उन्होंने तुरंत हाँ कर दी।
अब जब उन्होंने मनाल को देखा, तो उन्हें आदित्य के लिए उससे बेहतर कोई नहीं लगी।
मनाल बेहद खूबसूरत थी, संस्कारी थी और एक सम्मानित परिवार से आती थी।
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धर्मपाल जी पहले से महेश खन्ना जी को जानते थे।
उन्होंने मनाल को भी देखा था और हर लिहाज से वो उन्हें अपने बेटे के लिए सही लगी।
राजवंश परिवार, वैसे भी शहर के सबसे प्रभावशाली और प्रतिष्ठित घरानों में से था।
आदित्य का नाम देश के "मोस्ट एलिजिबल बैचलर" में शुमार था।
अनीता जी को हमेशा डर रहता था कि कहीं आदित्य किसी "ऐसी-वैसी" लड़की को घर की बहू न बना दे।
लेकिन अब मनाल को देखकर उनका दिल शांत हो गया था।
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रात को बहुत देर तक धर्मपाल जी, अनीता जी और दीपा जी के बीच बातचीत चलती रही।
आदित्य भी उनके साथ बैठा रहा।
जब दीपा जी किचन में कुछ लाने गईं, तो आदित्य भी उनके पीछे चला गया।
वह वहाँ करीब आधा घंटा रहा।
जब वो बाहर आया, तो दीपा जी के चेहरे पर गहरी संतुष्टि थी।
मनाल यह देखती रही और अंदर ही अंदर जलती रही।
"उसने मम्मी से ऐसा क्या कह दिया, जो वो इतनी खुश हो गईं?"
उसका मन किया कि उन सबको घर से बाहर निकाल दे।
मगर मजबूरी के चलते वो अनीता जी के साथ मुस्कुराते हुए बातें करती रही।
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जाते-जाते अनीता जी बोलीं:
"ठीक है, तो हम कल दोपहर को आते हैं। सिर्फ घर के लोग होंगे। मनाल और आदित्य एक-दूसरे को अंगूठी पहनाएंगे। शादी मंदिर में सादगी से होगी, मगर सगाई की रस्म तो होनी ही चाहिए।"
अनीता जी और धर्मपाल जी बहुत खुश थे,
मगर दीपा जी की खुशी उनसे भी ज़्यादा थी।
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उनके जाते ही दीपा जी ने आदित्य और उसके परिवार की तारीफ़ों के पुल बांध दिए।
"मनाल को कितनी बड़ी जगह मिल रही है... अब कोई चिंता नहीं रह गई..."
दरअसल, जब से महेश जी का एक्सीडेंट हुआ था,
दीपा जी हर दिन अंदर से टूट रही थीं।
जिस लड़के के साथ वो मनाल की सगाई तय कर रही थीं,
वो भी अब पीछे हट चुका था।
अब जब आदित्य जैसे लड़के ने पहल की थी,
दीपा जी को लगा जैसे कोई भगवान का भेजा हुआ सहारा मिल गया हो।
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अगले दिन दोपहर को आदित्य अपनी मॉम, डैड, छोटे भाई और भाभी के साथ आया।
घर में ही सादगी से सगाई की रस्म हुई।
दोनों ने एक-दूसरे को अंगूठी पहनाई।
उसके बाद सभी ने लंच किया।
आदित्य की भाभी बार-बार मुस्कुरा कर कहती रहीं:
"...हमें यकीन ही नहीं हो रहा कि आदि भैया शादी कर रहे हैं... हमें तो लगता था कि वो कभी शादी नहीं करेंगे..."
आदित्य की फैमिली, सिवाय आदित्य के, मनाल को अच्छी लगी।
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पूरे सगाई कार्यक्रम में,
जितनी बार भी मनाल ने आदित्य की तरफ देखा — वह उसकी ओर ही देख रहा था।
उसकी आंखों में चाह नहीं, सिर्फ़ हवस थी।
मनाल का मन किया कि वो उसे वहीं मार डाले।
मगर खुद को काबू में रखते हुए,
वो चुपचाप बैठी रही।
आदित्य की नशीली आंखें हर पल उसे घूरती रहीं।
मनाल उसकी नजरों की तपिश को पल-पल महसूस करती रही।
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जाते-जाते धर्मपाल जी बोले:
"...ठीक है बहन जी, फिर दो दिन बाद मंदिर में शादी कर देते हैं..."
उनकी बात सुनकर मनाल ने आदित्य की ओर देखा।
"इतनी जल्दी...?"
वो तैयार नहीं थी।
पर एक ही दिन में सगाई हो गई थी...
और अब शादी भी बस दो दिन में।
वो जानती थी, आदित्य की यह जल्दी सिर्फ़ शादी की नहीं — किसी और वजह की है।
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❓ अब आगे क्या होगा?
क्या मनाल अपनी मम्मी को आदित्य की सच्चाई कभी बता पाएगी?
क्या ये शादी उसे बचाएगी या और गहरा डुबो देगी?
क्या आदित्य सिर्फ़ मनाल को पाना चाहता है या इसमें कोई और साज़िश भी है?
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❗
जाने से पहले धर्मपाल जी मुस्कुराते हुए बोले,
"ठीक है बहन जी, तो फिर दो दिन बाद मंदिर में शादी कर देते हैं... शादी बिल्कुल सादगी से होगी... हम आपके मन की बात अच्छे से समझते हैं..."
उनकी बात सुनकर मनाल ने आदित्य की तरफ देखा।
इतनी जल्दी शादी...? उसने कभी सोचा भी नहीं था।
मगर जिस तरह एक ही दिन में सगाई हो गई थी, उसी तरह अब आदित्य शादी की जल्दी भी कर रहा था।
और मनाल को उसकी इस जल्दबाज़ी की असली वजह पता थी।
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वह जानती थी — आदित्य बस एक ही चीज़ चाहता है —
उसे जल्द-से-जल्द अपने बिस्तर तक लाना।
उसे मनाल के साथ सोने की जल्दी थी।
धर्मपाल जी आगे बोले:
"जब बच्चों की इच्छा है, बहन जी... तो फिर शादी दो दिन में ही सही। वैसे भी शादी के बाद मनाल को फैक्ट्री संभालने में आसानी होगी... तब आदित्य उसे खुलकर मदद कर सकेगा। और हाँ, हम यह भी चाहते हैं कि जब तक आपका बेटा विदेश से वापस नहीं आता, आप मनाल के साथ हमारे घर में रहें... आप अकेली कैसे रहेंगी? फिर महेश जी की तबीयत भी..."
दीपा जी ने तुरंत जवाब दिया:
"आप लोगों ने मेरी फिक्र की, इसके लिए शुक्रिया, भाई साहब। मगर मेरी बहन यानी मनाल की बुआ जी हमारे पास आ रही हैं। उनसे मेरी कल ही बात हुई थी। वो विदेश में अपने बच्चों के साथ रहती हैं, मगर जब से महेश जी के एक्सीडेंट का पता चला है, तब से ही आने को कह रही थीं।"
मनाल को अच्छा तो लगा कि आदित्य के मम्मी-पापा उसकी माँ की इतनी फिक्र कर रहे हैं, मगर अंदर ही अंदर उसका दिल बैठा जा रहा था।
उसका मन कर रहा था कि सब कुछ छोड़कर कहीं भाग जाए।
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कमरे में आकर मनाल ने गुस्से में अपनी इंगेजमेंट रिंग निकाल कर फेंक दी।
मगर उसे मालूम था — इससे कुछ नहीं बदलेगा।
उसका ध्यान अपने पापा की ओर गया।
"काश कोई चमत्कार हो जाए... और पापा होश में आ जाएं..."
ताकि उसे ये शादी ना करनी पड़े।
मगर वो जानती थी — ऐसा कुछ नहीं होने वाला।
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इतने में उसके फोन की रिंग बजी — "आदित्य राजवंश" का फोन था।
फोन उठाने का मन नहीं था, मगर उसने उठा लिया।
आदित्य की आवाज़ आई:
"मेरा नंबर अभी तक सेव नहीं किया तुमने?"
"नहीं... कर लिया है..." — मनाल ने झूठ बोला।
आदित्य हँसते हुए बोला:
"व्हाट्सएप पर तो प्रोफाइल पिक नहीं दिख रही। चलो, मैं दोबारा कॉल करता हूँ, पहले मेरा नंबर सेव करो।"
और फोन काट दिया।
मनाल ने मजबूरी में उसका नंबर सेव किया।
कुछ ही देर में सगाई की कुछ तस्वीरें उसके फोन पर आ गईं।
फिर तुरंत कॉल आया:
"अपनी व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और फेसबुक — हर जगह हमारी सगाई वाली फोटो प्रोफाइल पिक के तौर पर लगाओ।"
"क्यों?" — मनाल ने गुस्से में पूछा।
"क्यों क्या? अब तुम्हारा नाम मेरे नाम से जुड़ चुका है।
दुनिया को पता चलना चाहिए। इससे तुम्हारे बिज़नेस को भी फायदा होगा।
तो जो कहा है, कर दो। समझीं?"
फोन काट दिया गया।
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मनाल ने गुस्से में फोन फर्श पर फेंक दिया।
मगर थोड़ी देर बाद गुस्सा शांत हुआ, तो उसने फोन उठाया।
"बात तो सही है उसकी..." — वो सोचने लगी।
"अगर लोगों को पता चलेगा कि मेरी सगाई आदित्य राजवंश से हुई है,
तो फैक्ट्री को सप्लायर्स मिलेंगे... दुश्मन डरेंगे... और बिज़नेस में विश्वास लौटेगा..."
उसने अपना व्हाट्सएप प्रोफाइल पिक बदला —
आदित्य के साथ अपनी मुस्कुराती तस्वीर लगाई।
फिर इंस्टाग्राम और फेसबुक पर भी वही तस्वीर पोस्ट कर दी।
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कुछ ही देर में फिर से कॉल आया।
"गुड गर्ल... वैसे हम दोनों साथ में कितने अच्छे लग रहे हैं।
शादी के बाद तो और भी अच्छे लगेंगे। सही कहा ना मैंने, मेरी जान ❤️
वैसे भी आदित्य हमेशा सही कहता है..."
मनाल का मन किया फोन ही तोड़ दे या उसका गला घोंट दे।
उसने गुस्से में आकर फोन ही बंद कर दिया।
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कुछ देर बाद माँ ने दरवाज़ा खटखटाया:
"क्या हुआ बेटा? कोई काम था?"
"नहीं मम्मी..."
दीपा जी बोलीं:
"तुम्हारा फोन शायद बंद हो गया है। दामाद जी कॉल करना चाहते हैं। उनका कॉल मेरे फोन पर आया था। और हाँ, तुम्हारी सासू माँ का भी कॉल आ रहा है — मैंने बीच में ही काट दिया था।"
जाते-जाते उन्होंने एक और बम फोड़ा:
"तुम्हारी सास ने बताया है कि परसों शादी का मुहूर्त निकल आया है..."
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दीपा जी की बात सुनते ही मनाल का दिल बैठ गया।
"कितना चालाक है ये आदमी...
दो-तीन दिन में सब सेट कर दिया — सगाई, शादी, तस्वीरें, सब कुछ...
यह सब ऐसे प्लान किया गया है कि मैं मना ही ना कर सकूं..."
मनाल ने मन-ही-मन आदित्य को भद्दी गालियाँ दीं।
उसका सिर गुस्से से फट रहा था।
वो फोन ऑन करना ही भूल गई।
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थोड़ी देर बाद माँ फिर आईं:
"क्या हुआ बेटा? फोन अब तक ऑन नहीं किया?
दमाद जी का फिर से कॉल आया था — उन्होंने कहा है कि तुमसे ज़रूरी बात करनी है..."
मन मारकर उसने फोन ऑन किया।
जैसे ही ऑन किया, आदित्य का कॉल फिर से आ गया।
"क्या बात है मेरी होने वाली बीवी 😊
तुमने फोन बंद कर दिया था — मुझे तो तुमसे बहुत सारी बातें करनी हैं..."
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क्या मनाल इस शादी से खुद को बचा पाएगी?
क्या वह अपनी माँ को सच्चाई बता पाएगी?
क्या आदित्य वाकई उसकी मदद करना चाहता है या इसके पीछे कुछ और है?
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उसे मन मारकर फोन ऑन करना ही पड़ा।
जैसे ही फोन चालू हुआ, आदित्य का कॉल फिर से आने लगा।
फोन उठाने का मन बिल्कुल भी नहीं था, मगर वह जानती थी —
उसे फोन उठाना ही पड़ेगा।
वह जानती थी कि वो उसे अपने इशारों पर नचा रहा है, और दुखद ये था कि वह ये जानते हुए भी नाच रही थी।
उसका मन कह रहा था —
"अगर शादी से पहले ही वो इतना कंट्रोल कर रहा है, तो शादी के बाद क्या होगा?"
"जिसकी नजरों में अभी से इतनी भूख है, वो फिर बाद में क्या करेगा?"
उसने भारी मन से फोन उठाया।
"क्या बात है मेरी होने वाली बीवी ❤️... तुमने फोन बंद कर दिया था... पता है ना, मुझे तुमसे कितनी बातें करनी हैं? अगर कहो, तो मैं अभी मिलने आ जाऊं..."
मनाल ने नफ़रत भरी आवाज़ में कहा —
"नहीं, अगर कोई ज़रूरी बात है तो यहीं बता दीजिए। और हां, अभी मुझे ‘बीवी’ कहने की कोई ज़रूरत नहीं है। हमारी शादी अभी हुई नहीं है।"
वो हँसते हुए बोला —
"ठीक है, ठीक है... आज नहीं तो परसों हो जाएगी। फिर तुम मेरी ही बाहों में होगी। सही कहा ना मैंने?"
मनाल की आँखें भर आईं।
आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुई थी जो उससे इस तरह की बात कर सके।
"जब शादी होगी... तब देखा जाएगा।
अभी मुझे बीवी कहने की कोई ज़रूरत नहीं है..." —
उसने भीगी आवाज़ में कहा।
उसकी कांपती हुई आवाज़ से आदित्य समझ गया कि वो रो रही है।
आदित्य ने तुरंत बात बदल दी।
"मैंने तुम्हें असल में इसलिए फोन किया है...
मैं दो एम्प्लॉयीज़ भेज रहा हूं — रीता परेरा और रतन कुमार।"
"क्यों? किस लिए?" — मनाल ने हैरानी से पूछा।
"क्योंकि तुम्हारे पापा का एक्सीडेंट जितना सीधा दिख रहा है, उतना है नहीं।
मुझे लगता है, ये एक्सीडेंट नहीं... करवाया गया है।
और इसके तार तुम्हारे आसपास और तुम्हारी फैक्ट्री से जुड़े हो सकते हैं।"
"मैंने जो वादा किया था, तुम्हारे बिजनेस और फैक्ट्री को सपोर्ट करने का... वो निभा रहा हूं।
मत डरना... जल्द ही तुम खुद सब जान जाओगी।
क्योंकि जब मैं अपना वादा निभाऊंगा, तभी तो तुम भी अपना निभाओगी... सही कहा ना मैंने?"
कुछ पल चुप रहकर वो फिर बोला —
"हां, और मॉम ने कहा है कि कल तुम उनके साथ शॉपिंग के लिए चलना... शादी की तैयारियां करनी हैं।"
-
"आप जानते हैं, कितना काम फैला हुआ है। मैं कल कैसे जा सकती हूं?
मम्मी को जो पसंद आए, वही ले लें। मुझे उनकी पसंद ही पसंद आ जाएगी।"
"तुम काम की फिक्र मत करो।
मैं जिन लोगों को भेज रहा हूं, वो तुम्हारा आधा काम देख लेंगे।
शायद तुम लंच के बाद शॉपिंग के लिए निकल सको।
वैसे भी मैं मम्मी को मना नहीं कर सकता..."
---
अगली सुबह जब उसने अख़बार उठाया,
तो फ्रंट पेज पर उसकी और आदित्य की सगाई की तस्वीर छपी थी।
उन दोनों की मुस्कुराती हुई फोटो —
हर न्यूज़ चैनल पर वही खबर थी।
आदित्य राजवंश और मनाल की सगाई।
इससे आदित्य को तो कोई सीधा फायदा नहीं था,
मगर मनाल के बिजनेस को ज़रूर मजबूती मिलने वाली थी।
मनाल समझ गई थी कि वो अपने हर वादे को पूरा कर रहा है।
--
ऑफिस पहुंचने से पहले ही
रीता परेरा और रतन कुमार वहाँ पहुंच चुके थे।
रीता परेरा — एक समझदार महिला, उम्र लगभग पचास वर्ष।
रतन कुमार — 35 साल के आसपास का स्मार्ट और तेज़ इंसान।
रीता ने ऑफिस की जिम्मेदारी संभाली,
जबकि रतन फैक्ट्री चला गया।
मनाल ने रतन को फैक्ट्री का इंचार्ज बना दिया।
--
शादी का दिन आ गया।
मनाल बेहद परेशान थी।
उसकी परेशानी दीपा जी ने भी महसूस की,
मगर उन्होंने समझा कि ये उसके पापा की तबीयत को लेकर है।
उसकी बुआ जी भी शादी के दिन आ गई थीं।
उन्होंने मिलकर उसे समझाया —
"बेटा, अपने पापा की चिंता मत कर। आज तुम्हारी शादी है — एक नई ज़िंदगी की शुरुआत।
हंस कर, पूरे दिल से इस दिन को अपनाओ।"
---
शादी मंदिर में सादगी से हो गई।
सिर्फ घर के करीबी लोग ही मौजूद थे।
तभी डॉक्टर का फोन आया —
जो उसके पापा का इलाज देख रहे थे।
"विदेश से जो विशेषज्ञ डॉक्टर आना था, वो पहुंच चुका है।"
मनाल ने आदित्य की ओर देखा।
उसे समझ आ गया — ये भी आदित्य ने ही किया है।
अब वो उसके बिजनेस के बाद उसके पापा की सेहत का भी ध्यान रख रहा था।
शादी के बाद जब वो मंदिर से बाहर निकले,
मीडिया ने उन्हें पूरी तरह घेर लिया।
हर न्यूज़ चैनल पर उनकी शादी की तस्वीरें चलने लगीं।
आदित्य ने उसका हाथ थाम रखा था।
फोटो खिंचवाते वक्त वो अपना हाथ उसकी कमर में डालकर खड़ा था।
उसकी नशीली आंखों में एक अजीब सी चमक थी।
जब भी वो मनाल की ओर देखता —
मनाल को घबराहट होती।
वो जानती थी, अब वो उसके साथ एक ही घर में रहेगी। एक ही कमरे में।
--
राजवंश मेंशन आते समय
हर कोई अपनी-अपनी गाड़ियों में था।
आदित्य ने मनाल को अपने साथ ले लिया।
आज उसका ड्राइवर नहीं था —
वो खुद गाड़ी चला रहा था।
गाड़ी चलते-चलते
उसने मनाल का हाथ पकड़ लिया।
फिर धीरे से उसे सीने से लगा लिया।
मनाल ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की,
मगर आदित्य ने और कस कर पकड़ लिया।
---
मनाल के शरीर में जैसे जान ही नहीं बची थी।
वो सोच रही थी —
"काश, ये समय थम जाए... आज रात ही ना आए।
कोई जादू हो जाए और ये शादी रुक जाए..."
मगर उसे मालूम था —
असल जिंदगी में जादू नहीं होते।
जो होना होता है, वो होकर ही रहता है।
---
> क्या शादी के बाद मनाल को राहत मिलेगी या और भी डरावना सच सामने आएगा?
क्या आदित्य का साथ उसके लिए सुरक्षा है या कैद?
मनाल में जैसे जान ही नहीं थी।
वो बस जैसे-तैसे खुद को खींचे चली जा रही थी।
मन में बार-बार यही आ रहा था —
"काश, समय थम जाए… रात ही न हो।"
मगर वो जानती थी — समय किसी के लिए नहीं रुकता।
--
राजवंश मेंशन लौटते समय सब अपने-अपने वाहनों में बैठ चुके थे।
आदित्य ने मनाल को अपने साथ अपनी गाड़ी में बैठा लिया।
आज वह खुद ही ड्राइव कर रहा था।
बाकी फैमिली मेंबर्स दूसरी गाड़ियों में थे।
गाड़ी चलते-चलते
उसने अचानक मनाल का हाथ थाम लिया
और धीरे-धीरे उसे अपने सीने से लगा लिया।
मनाल ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो
वो हँसकर बोला —
"...अभी तो हक है मेरा... ऐसे कैसे हाथ छुड़ा लोगी? सही कहा ना मैंने?
वैसे भी, मैं गलत बात नहीं करता..."
फिर उसने मनाल का हाथ अपने होंठों से छू लिया।
मनाल अंदर तक सुलग गई।
उसका चेहरा तमतमा उठा।
आदित्य उसकी हालत देखकर खिलखिलाया —
"...अरे अभी तो सिर्फ हाथ पकड़ा है...
सोचो, आज रात क्या होगा बीवी..."
उसकी आंखों में एक अजीब सी शोखी थी।
डोरे लाल थे — मानो रात का नशा आंखों से छलक रहा हो।
मनाल ने मुँह फेर लिया।
"...मुँह फेरने से क्या होगा बीवी? सच्चाई तो बदल नहीं जाएगी..."
वो फिर हँसा और बोला —
"देखो, मैं हर वादा निभा रहा हूं... अब तुम भी अपने वादे से मुकरना मत..."
वो गाड़ी चलाते हुए, एक पल के लिए आंखें घुमाकर उसकी ओर देखने लगा।
मनाल ने अपनी निगाहें झुका लीं।
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"सच ही तो कह रहा है,"
मनाल ने मन में सोचा।
"...वो अपने हर वादे को निभा रहा है,
तो फिर मुझे गुस्सा किस बात का है?
उसने तो पहले ही कह दिया था कि वो मुझसे शादी क्यों करना चाहता है..."
"शायद ये रिश्ता सिर्फ तब तक चलेगा
जब तक उसका मन मुझसे नहीं भरता।
उसे मुझसे क्या चाहिए — ये तो शुरू से ही साफ था..."
"...मगर फिर भी, जो सबसे ज़्यादा हैरान करने वाली बात थी —
वो ये कि उसने मेरा रिश्ता मां-बाप से भेजा।
उसने हमारी सगाई और शादी मीडिया में घोषित की।
पूरे बिजनेस वर्ल्ड और समाज के सामने मुझे इज्ज़त दी।
आज मैं कानूनी रूप से उसकी पत्नी बन चुकी हूं...
मनाल आदित्य राजवंश..."
"...मैंने सोचा था वो कॉन्ट्रैक्ट मैरिज की शर्तें रखेगा —
ताकि बाद में मुझे कुछ ना देना पड़े।
मगर उसने ऐसा कुछ नहीं किया।
ये सब इतनी जल्दी हुआ कि मैं खुद भी समझ नहीं पाई..."
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🏠
"घर आ गया, चलो बीवी..."
आदित्य की आवाज़ से मनाल की सोच टूटी।
उसने गाड़ी रोक दी।
"चलो, उतर जाओ बीवी..."
आदित्य मुस्कराया।
तभी उसकी भाभी और मामी वहाँ आ गईं।
"ऐसे कैसे उतर जाए बहू... रुको..."
उन्होंने प्यार से मनाल को गाड़ी से उतारा।
उसके बाद पारंपरिक गृहप्रवेश की रस्में शुरू हुईं।
हर रस्म के दौरान आदित्य बहुत खुश नजर आ रहा था।
उसने हर रस्म मन से निभाई।
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💍
फिर दोनों को ड्राइंग रूम में एक साथ सोफे पर बिठा दिया गया।
आदित्य उसके पास बैठा बार-बार उसकी ओर देख रहा था।
उसकी नज़रें शरारत से भरी थीं।
मनाल उसे नजरअंदाज कर रही थी।
तभी आदित्य के फोन पर उसकी छोटी बहन निशा का वीडियो कॉल आ गया।
"भाई, भाभी को दिखाओ ज़रा!"
वो चहकते हुए बोली।
जैसे ही निशा ने मनाल को देखा, वो कहने लगी —
"भाभी तो आपसे भी ज्यादा खूबसूरत हैं!
अब समझ आया कि आप इतनी जल्दी शादी क्यों करना चाहते थे!
सोचा था आपकी शादी में नाचूंगी, डांस करूंगी, नेग लूंगी —
मगर आप तो हफ्ते भर में ही शादी कर बैठे!"
आदित्य हँसते हुए बोला —
"कोई बात नहीं, इंडिया आ जाओ — जो चाहोगी, मिल जाएगा!"
तभी पीछे से उसकी भाभी नैना आ गईं।
"पता है निशा, आदित्य तो शादी का नाम ही नहीं लेते थे।
अब देखो — एक हफ्ते में शादी कर ली!
लगता है भाभी ने कोई जादू कर दिया!"
"असल में भाभी इतनी खूबसूरत हैं...
इसीलिए भैया ने हां कर दी।
है ना, आदित्य भैया?"
निशा ने छेड़ा।
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💎
मुंह दिखाई में धर्मपाल जी और अनीता जी ने
बहुत ही खूबसूरत डायमंड सेट मनाल को भेंट किया।
अनीता जी बोलीं —
"बेटा, पसंद तो आया ना?"
"जी, बहुत सुंदर है..."
मनाल ने आदर से जवाब दिया।
अनीता जी मुस्कराकर बोलीं —
"सुंदर तो है... मगर तुमसे ज्यादा नहीं..."
इसके बाद अधिराज और नैना ने भी
महंगी ज्वेलरी गिफ्ट की।
नैना ने मज़ाक में कहा —
"आदि भैया, मेरी जेठानी को मुंह दिखाई में क्या गिफ्ट दे रहे हो?"
आदित्य ने झट से कहा —
"मुझसे बड़ा कोई गिफ्ट हो ही नहीं सकता...
फिर भी पूछ लो इनसे — जो मांगना चाहें, मांग लें..."
नैना ने ठहाका मारा —
"गिफ्ट तो भैया रात को देंगे, है ना दीदी?"
-
हंसी-मज़ाक के बीच
धर्मपाल जी आदित्य के पास आए।
"बोलो आदि, रिसेप्शन कब रखें?
तुम्हारी शादी की खबर तो पूरे मीडिया में फैल चुकी है।
हर चैनल पर तुम दोनों की वीडियो चल रही है।
अब सब पूछ रहे हैं कि पार्टी कब है..."
आदित्य कुछ बोलने ही वाला था कि
उसका फोन फिर बज गया।
वह साइड में गया, कॉल रिसीव की,
फिर लौटकर आया और कुछ गंभीरता से बोला...
---
> अब आगे क्या होगा? क्या रिसेप्शन में सब कुछ सामान्य रहेगा या कोई तूफान आने वाला है? क्या मनाल आदित्य के इरादों को समझने लगेगी या कोई और राज़ सामने आएगा?
आदित्य उठकर फोन पर बात करने चला गया और कुछ देर बाद वापस आकर बोला,
"डैड, रिसेप्शन तो कल ही रखनी पड़ेगी। कल रात को ही मुझे ऑस्ट्रेलिया के लिए निकलना है। वहाँ हमारे होटल प्रोजेक्ट में कुछ समस्याएँ आ गई हैं, और मुझे वहाँ मौजूद रहना ज़रूरी है।"
धर्मपाल जी नाराज़ हो गए,
"मगर आज ही तुम्हारी शादी हुई है और कल तुम ऑस्ट्रेलिया जाने की तैयारी कर रहे हो? ये सही बात नहीं है, आदित्य!"
आदित्य ने शांत स्वर में कहा,
"डैड, ये मेरी मजबूरी है। मुझे जाना ही होगा।"
"कितने दिन लगेंगे तुम्हें वहाँ?" धर्मपाल जी ने पूछा।
"कम से कम एक हफ्ता..." आदित्य ने उत्तर दिया।
"...इसलिए रिसेप्शन कल ही रखना सही रहेगा।"
"तो ठीक है," धर्मपाल जी बोले,
"रिसेप्शन कल रख देते हैं, और उसके बाद तुम बहू के साथ ऑस्ट्रेलिया निकल जाना।"
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धर्मपाल जी की बात सुनकर मनाल अंदर से बेचैन हो गई।
वो किसी भी हाल में आदित्य के साथ ऑस्ट्रेलिया नहीं जाना चाहती थी।
मगर उससे पहले कि वह कुछ कह पाती, आदित्य खुद ही बोला—
"मैं मनाल को साथ नहीं ले जाऊँगा, डैड।
आपको पता है, उसके पापा की तबीयत ठीक नहीं है।
और फिर उसे ऑफिस भी देखना है — वहाँ उसकी मौजूदगी बहुत ज़रूरी है।
मैं दो-चार दिन में वापस आ जाऊँगा।"
मनाल ने राहत की सांस ली।
ऑस्ट्रेलिया जाने से तो बच गई, मगर आज की रात...
उसके ज़हन में वही सवाल बार-बार घूमने लगे —
"मैं आदित्य के साथ... कैसे?"
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मनाल लॉबी में बैठे-बैठे थक चुकी थी,
मगर वो अपने कमरे — मतलब आदित्य के कमरे — में जाने से कतरा रही थी।
अब वो यही सोच रही थी कि उसे आज रात क्या-क्या सहना पड़ेगा।
तभी अनीता जी ने नैना से कहा,
"जाकर बहू को कमरे में छोड़ आओ।"
अब तो मनाल को जाना ही था।
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नैना उसे आदित्य के कमरे तक ले गई और दरवाज़ा खोलकर चली गई।
कमरा फूलों से सजा हुआ था — हर कोना सुगंध से महक रहा था।
बेड के पीछे आदित्य और मनाल की सगाई की एक बड़ी-सी तस्वीर लगी थी।
कमरा विशाल और आलीशान था —
बिलकुल आदित्य की पर्सनैलिटी की तरह भव्य।
मगर इन सबकी भव्यता से दूर,
मनाल का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
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तभी दरवाज़ा खुला —
आदित्य अंदर आया।
उसने पीछे से आकर मनाल के कंधों पर अपने दोनों हाथ रख दिए और मुस्कराते हुए बोला,
"अच्छी लगी ना ये तस्वीर? हमारी सगाई वाली… मैंने कल ही लगवाई है।"
मनाल चुप रही।
शायद वो खुद को अंदर से तैयार कर रही थी —
उस डरावनी रात के लिए जो अब शुरू होने वाली थी।
--
आदित्य बोला,
"माना... वैसे तुम पहले से भी ज़्यादा खूबसूरत लग रही हो..."
मनाल के मुंह से अपना पुराना नाम "माना" सुनकर उसकी धड़कन तेज़ हो गई।
नफरत की एक लहर उसके मन में दौड़ गई।
मगर उसने अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिया।
"तुम थक गई होगी खड़े-खड़े..."
आदित्य ने उसका हाथ पकड़कर उसे धीरे से सोफे पर बैठा दिया।
फिर उसी हाथ से खेलने लगा।
मनाल सिर झुकाए चुपचाप बैठी रही।
"कुछ तो बोलो... माना..."
उसके कहने पर मनाल ने एक नज़र ऊपर उठाकर देखा, मगर उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।
---
आदित्य थोड़ा और पास आ गया।
उसने धीरे से उसका दुपट्टा गर्दन से साइड किया
और अपने होठों से उसकी गर्दन को छू लिया।
मनाल की पीठ पर पसीने की बूंदें छलक आईं।
आदित्य हँसते हुए बोला —
"कहो तो AC तेज कर दूँ? लगता है तुम्हें गर्मी लग रही है..."
"...और हाँ, अपने कपड़े भी बदल लो। तुम्हारा लहंगा बहुत भारी लग रहा है। कुछ हल्का पहन लो।"
उसने उसका दुपट्टा हटाने की कोशिश की।
-
मनाल तुरंत खड़ी हो गई।
"नहीं... मैं बाद में बदल लूंगी।"
उसने धीरे से कहा।
"ठीक है... वैसे भी अब खाने का वक्त हो रहा है..."
कहकर आदित्य वॉशरूम चला गया।
---
कुछ देर बाद नैना एक सर्वेंट के साथ खाना लेकर आ गई।
"यह तुम दोनों का खाना है, खा लेना,"
कहकर नैना चली गई।
आदित्य कपड़े बदलकर बाहर आया।
उसका चेहरा चमक रहा था — आँखों में वही शरारत, वही चाह।
"आओ माना, खाना खा लो..."
मनाल ने हल्की आवाज़ में कहा,
"मुझे भूख नहीं है..."
"ऐसे कैसे... थोड़ा तो खा लो।"
वो चम्मच में चावल भरकर उसकी ओर बढ़ाने लगा।
"नहीं, कोई बात नहीं। मैं खुद खा लूंगी।"
"अरे आज तो मुझे खिलाने दो। आज तो हमारी पहली रात है..."
वो दिलफरेब मुस्कान के साथ बोला।
--
आदित्य फिर बोला,
"जाओ माना, कपड़े बदल आओ। मैं यहीं बैठा हूं, तुम्हारा इंतज़ार करूंगा।"
मनाल ने अपनी सारी ताक़त समेटी
और बैग खोलकर नाइटसूट निकाला।
वह चेंज करने बाथरूम चली गई।
---
वह बहुत देर तक वहीं खड़ी रही।
शायद यही सोचते हुए कि बाहर निकलने की हिम्मत कैसे जुटाए।
मगर कब तक?
उसे आना ही था।
जब वह लोअर और टी-शर्ट पहनकर बाहर आई,
आदित्य ने उसे देखकर भौंहें चढ़ा लीं।
"अरे ये क्या माना... मुझे लगा था
तुम कोई सेक्सी सी नाइटी पहनकर आओगी...
और तुम तो लड़कों की तरह लोअर-टीशर्ट में आ गईं!"
-
---
"...मेरे पास यही है रात को पहनने के लिए..."
मनाल ने धीमे स्वर में कहा।
"कोई बात नहीं," आदित्य मुस्कराते हुए बोला,
"अगर कल थोड़ा वक़्त मिला तो हम शॉपिंग पर चलेंगे।"
"ठीक है..."
मनाल ने बेहद धीमी आवाज़ में जवाब दिया।
आदित्य ने उसका हाथ खींचकर अपने पास बैठा लिया। उसका हाथ थामे हुए उसने कहा—
"तो तुम्हें अपना वादा याद है ना?"
"हाँ..."
जैसे उसके गले से आवाज़ नहीं निकल रही थी।
वो स्वर इतना भारी और टूटता हुआ था कि जैसे किसी कुएँ के तल से आ रहा
उस क्षण, मनाल को सामने बैठे उस आदमी से नफ़रत हो रही थी... बेहद गहरी नफ़रत।
इतनी कि शायद उसने अपनी पूरी ज़िंदगी में कभी किसी से नहीं की होगी।
और यह नफ़रत केवल आदित्य तक सीमित नहीं थी,
वो खुद से भी नफ़रत करने लगी थी।
उसे लग रहा था, वो अब एक इंसान नहीं रही — बस एक सौदा बन गई है।
एक सौदा, जिसमें अपने पिता की फ़ैक्ट्री को बचाने के लिए
उसने अपने शरीर को दांव पर लगा दिया था।
शब्दों में वो आदित्य की पत्नी थी,
मगर मन के किसी कोने में वह खुद जानती थी —
ये शादी एक सच्चा रिश्ता नहीं, बस एक डील है।
--
तभी किसी ने दरवाज़ा खटखटाया।
मनाल को जैसे राहत मिल गई।
वो फौरन उठी और दरवाज़ा खोल दिया।
मे़ड दूध की ट्रे लेकर खड़ी थी।
मनाल ने ट्रे पकड़ी और उसे टेबल पर रख दिया।
आदित्य ने दूध का ग्लास उठाते हुए शरारत से कहा,
"ठीक है... आज हम दोनों एक ही ग्लास में दूध पिएंगे।"
--
तभी आदित्य के फोन की घंटी बजी।
वो फोन लेकर बालकनी की ओर चला गया।
मनाल ने राहत की सांस ली।
वो बेड की बैक से टिककर बैठ गई, और फिर आदित्य लौट आया।
उसने आकर फिर से मनाल का हाथ पकड़ लिया।
अब मनाल ने खुद को पूरी तरह हालातों के हवाले कर दिया।
उसने अपनी आंखें बंद कर लीं।
जो होना था, वो अब हो ही जाएगा...
--
आदित्य ने उसका चेहरा अपने हाथों में ले लिया।
वो धीरे-धीरे उसके और करीब आ रहा था।
मनाल के दिल की धड़कनें बेकाबू हो चुकी थीं।
तभी —
फिर से उसका फोन बज उठा।
वो झुंझलाते हुए उठकर फोन पर बात करने चला गया।
इस बार, मनाल को असली राहत महसूस हुई।
---
वो चुपचाप बाथरूम में चली गई।
दिनभर की थकावट, असहायता और डर — सब आँखों से बहने लगा।
उसने खुद को अब तक इतना टूटा हुआ, इतना कमज़ोर कभी महसूस नहीं किया था।
बहुत देर तक वो बाथरूम में बैठकर रोती रही।
जब मन थोड़ा हल्का हुआ, तो वो मुँह धोकर बाहर आ गई।
बिस्तर पर लेटे-लेटे कब उसकी आँख लग गई, उसे पता ही नहीं चला।
सुबह उसकी आँखें तब खुलीं,
जब उसे किसी की गरम साँसें अपनी गर्दन पर महसूस हुईं।
वो घबराकर उठ बैठी।
उसने देखा —
आदित्य उसके पास औंधे मुँह लेटा हुआ था।
और उसकी साँसें अब भी मनाल की गर्दन को छू रही थीं।
बहुत धीरे से, सावधानी से, वो उठकर वॉशरूम चली गई।
--
उसने कपड़े निकाले, नहाई और तैयार हो गई।
तब तक आदित्य अभी भी सो रहा था।
तभी फिर से दरवाज़ा खटका।
मेड चाय लेकर आई थी।
मनाल ने चाय ले ली और सोचने लगी,
"आदित्य को जगाऊँ या नहीं?"
---
चाय पीते-पीते ही आदित्य खुद ही जाग गया।
"अरे बीवी... तुम उठ गई?"
वो मुस्कराया।
"रात तुम मेरे आने से पहले ही सो गई थीं...
मैंने तुम्हें बहुत उठाया... मगर तुम नहीं उठीं।
मुझे तुम्हें मुँह दिखाई का तोहफ़ा भी देना था..."
फिर शरारत से बोला,
"...वैसे दो-चार किस तो तुम्हें सोते हुए कर ही लिए..."
मनाल ने बिना किसी प्रतिक्रिया के चुपचाप चाय पीती रही।
आदित्य ने अचानक कुछ फ़ोटोज़ उसे भेजे।
"देखो, हम दोनों कैसे लग रहे हैं..."
मनाल ने जैसे ही फोन खोला,
उसका चेहरा पीला पड़ गया।
रात की तस्वीरें थीं...
आदित्य उसे गालों और होठों पर चूम रहा था।
वो सोचने लगी — क्या वो सच में इतनी गहरी नींद में थी?
या फिर उसने... बस... सब सह लिया था?
पर जब आदित्य कह रहा था कि उसने उसे उठाया था, तो शायद वो सच कह रहा हो...
उसे झूठ बोलने की क्या ज़रूरत थी
"कोई बात नहीं..."
आदित्य बोला,
"रात तो तुम सो गई थीं... अब कौन सा ज़्यादा टाइम हुआ है..."
वो उठकर मनाल के पास सोफे पर आ गया।
मनाल फिर से असहज हो उठी।
"अब... इस वक़्त..."
वो सोचने लगी।
-
आदित्य ने उसका हाथ थाम लिया।
वो नशीली नज़रों से उसे देख रहा था —
मानो उसकी आँखें ही सब कुछ बयां कर रही हों।
फिर उसने उसके चेहरे के पास आई बालों की लटों को कान के पीछे कर दिया।
मनाल वहीं बैठे हुए अंदर से काँप रही थी।
"रात तो किसी तरह कट गई... मगर अब कहाँ जाऊँ?"
--
आदित्य उसका चेहरा पकड़कर झुक ही रहा था,
कि तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई।
वो रुक गया।
मन नहीं था, मगर फिर भी उसे उठना पड़ा।
दरवाज़ा खोला — सामने नैना खड़ी थी।
"भैया, मैं अंदर आ जाऊँ?"
आदित्य साइड हो गया। नैना अंदर आ गई।
"मनाल को लेने आई हूँ — आज इनकी पहली रसोई है।
और मामी बुला रही हैं। आप भी जल्दी से तैयार हो जाइए भैया..."
नैना मुस्कुराते हुए बोली।
---
🔚
दरवाज़ा खोला तो देखा — नैना सामने खड़ी थी।
"मैं अंदर आ जाऊं?"
वो आदित्य से पूछते हुए बोली, जो दरवाज़े पर खड़ा था।
आदित्य एक तरफ हट गया।
"भैया, आप भी तैयार होकर नीचे आ जाइए... मॉम बुला रही हैं।
मैं मनाल को लेने आई हूं... आज इसकी पहली रसोई है..."
नैना कमरे में दाख़िल होते ही मुस्कुराकर बोली।
आदित्य ने मुस्कुराते हुए उसे टोका,
"वैसे मुझे लगता है, तुम्हें दीदी कहना चाहिए। ये रिश्ते में तुमसे बड़ी हैं।"
यह कहकर वह बाथरूम की ओर चला गया।
मनाल, नैना के साथ नीचे लॉबी की ओर चली गई।
---
आदित्य का इस तरह से नैना को टोक देना — मनाल को हैरान कर गया।
उसके लिए किसी का यूँ स्टैंड लेना, उसे अच्छा भी लगा।
शायद पहली बार उसे एहसास हुआ कि इस रिश्ते को लेकर आदित्य के मन में कहीं न कहीं सम्मान है।
जब वो नीचे पहुँची, तो नाश्ता लगभग तैयार था।
अनीता जी उसका इंतज़ार कर रही थीं।
"मनाल, खाना तैयार है... आओ, बस तुम हाथ लगा दो..."
माम ने प्यार से कहा।
"अगर कुछ बनाना हो, तो मैं बना देती हूं...
मुझे खाना बनाना आता है,"
मनाल ने विनम्रता से जवाब दिया।
"नहीं बेटा, सब कुछ बन चुका है।
तुम और नैना मिलकर सब कुछ सर्व कर दो..."
मनाल और नैना ने मिलकर नाश्ता सर्व किया।
मनाल को परिवार में अपनापन महसूस हो रहा था।
सभी उससे बहुत स्नेह से पेश आ रहे थे।
उसी वक़्त आदित्य भी तैयार होकर नीचे आ गया।
उसके चेहरे पर एक सुकूनभरी मुस्कान थी।
और मनाल जानती थी, उस मुस्कान की वजह क्या थी।
---
पूरा परिवार हँसी-खुशी नाश्ता कर रहा था और शाम के रिसेप्शन की तैयारियों की चर्चा भी चल रही थी।
पहली रसोई के उपलक्ष्य में सभी ने मनाल को गिफ्ट दिए।
"भैया, आप क्या गिफ्ट दे रहे हो मनाल दीदी को?"
नैना शरारती अंदाज़ में आदित्य से पूछने लगी।
आदित्य मनाल की तरफ देखने लगा।
मनाल ने उसकी नज़रें महसूस कीं और तुरंत नज़रें झुका लीं।
"मुझे तो पता ही नहीं था कि गिफ्ट देना होता है...
मैं शाम को कुछ अच्छा सा दूंगा... वैसे, माना... तुम्हें क्या चाहिए?"
"अगर भैया पूछ रहे हैं, तो आपको कोई अच्छा-सा गिफ्ट मांग ही लेना चाहिए, दीदी!"
नैना हँसते हुए बोली।
"नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिए...
मुझे पहले ही बहुत कुछ मिल चुका है..."
मनाल ने धीमे स्वर में कहा, आँखें झुकाकर।
--
तभी सामने से एक व्यक्ति आता दिखा —
एक बैग लिए हुए अधेड़ उम्र का आदमी।
"वकील साहब, मैं आपका ही इंतज़ार कर रहा था,"
आदित्य ने उसकी ओर बढ़ते हुए कहा।
"माफ़ कीजिएगा, मैं जल्दी आना चाहता था लेकिन थोड़ी देर हो गई।
मुझे पता है कि आज आपकी रिसेप्शन है, और आप बहुत व्यस्त होंगे..."
कहते हुए उस व्यक्ति ने फाइलों से कुछ दस्तावेज़ निकाले और उन्हें मनाल के सामने रख दिया।
"इन सब पर साइन करने हैं, मैम।"
मनाल ने चौंककर आदित्य की ओर देखा।
आदित्य ने सिर हिलाकर "हां" का इशारा किया।
---
मनाल को समझ नहीं आया कि ये किस चीज़ के कागज़ात हैं।
पर उसने कोई सवाल नहीं किया।
जो भी कागज़ वकील अरुण मेहता ने आगे बढ़ाए,
वो चुपचाप उन पर साइन करती चली गई।
उसका मन कह रहा था —
"शायद यह शादी का कोई एग्रीमेंट होगा...
जिसमें लिखा होगा कि उसे आदित्य की किसी संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलेगा...
और अगर कभी तलाक हो, तो वो कोई दावा न कर सके..."
वो सबके सामने कुछ भी पूछकर
अपनी इज़्ज़त और रिश्ते की सच्चाई को उजागर नहीं करना चाहती थी।
इसलिए उसने बिना पढ़े सारे पेपर साइन कर दिए।
--
सारे दस्तावेज़ पर साइन करवाने के बाद
वकील अरुण मेहता ने एक प्रति मनाल को देते हुए कहा:
"ये आपकी कॉपी है, मिसेज़ राजवंश।
अब मैं आपको इसकी सारी शर्तें बता देता हूँ..."
मनाल चौक गई।
उसने आदित्य और वकील दोनों की ओर देखा।
वो चाहती थी कि बात वहीं रुक जाए।
क्योंकि उनकी "डील" कोई और न जाने।
मगर इससे पहले कि वो कुछ कहे —
वकील अरुण मेहता बोल पड़ा:
"शायद आपको पहले ही मिस्टर आदित्य ने बताया होगा...
उनकी नानी की संपत्ति — जो पूरी तरह से आदित्य के नाम थी —
अब आप दोनों के नाम ट्रांसफर हो गई है।"
"जी...?"
मनाल कुछ समझ नहीं पा रही थी।
उसकी आँखें हैरानी से भर गईं।
-
धर्मपाल जी ने बात आगे संभाली —
"पूरी बात मैं बताता हूँ..."
मनाल ने ध्यान से उनकी बात सुनी।
**"आदित्य की माँ — मेरी पहली पत्नी —
अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी।
आदित्य के जन्म के कुछ दिन बाद ही वो दुनिया से चली गई।
उसकी नानी ने अपनी पूरी प्रॉपर्टी उसके नाम कर दी।
लेकिन उसमें शर्त थी —
उसे ये संपत्ति तभी मिलेगी जब वो शादी करेगा।
और शादी के बाद —
आधी प्रॉपर्टी आदित्य के नाम होगी,
आधी उसकी पत्नी के नाम।
मगर इस प्रॉपर्टी को
न तो आदित्य और न ही उसकी पत्नी
बेच सकते हैं।
उनके बच्चे जब 18 साल के हो जाएंगे,
तब वो लोग अपने-अपने हिस्से को
बच्चों के नाम ट्रांसफर कर सकते हैं।
और अगर किसी वजह से
आदित्य अपनी पत्नी को तलाक़ देता है,
तो ये सारी संपत्ति बनारस के एक आश्रम को दान कर दी जाएगी।
इसलिए...
ये संपत्ति अब तुम दोनों की है —
लेकिन उसका मालिकाना हक तुम्हारे बच्चों तक ही जाएगा।
तुम दोनों इसे बेच नहीं सकते,
एक-दूसरे के नाम ट्रांसफर नहीं कर सकते —
मगर आमदनी का उपयोग अपनी ज़रूरतों के अनुसार कर सकते हो।"**
धर्मपाल जी की आवाज़ शांत थी —
मगर उनके शब्द मनाल के कानों में घंटियों की तरह गूंजते रहे।
---
मनाल हैरान थी... स्तब्ध थी।
उसने तो सोचा था, वो एक सौदे की दुल्हन बनी है —
लेकिन यहाँ तो उसके नाम पर संपत्ति ट्रांसफर हो रही थी।
उसने ये कल्पना भी नहीं की थी
कि इस रिश्ते के पीछे कुछ और भी था —
एक पुरानी वसीयत, एक नानी का आशीर्वाद... और एक अटूट बंधन।
---
धर्मपाल जी की बात सुनकर मनाल एकदम से हैरान रह गई।
उसे यह बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि जिन दस्तावेज़ों को वह कॉन्ट्रैक्ट मैरिज का हिस्सा समझ रही थी,
वो असल में संपत्ति के ट्रांसफर से जुड़े थे।
उसका दिमाग एक पल के लिए ब्लैंक हो गया।
धीरे से नज़र उठाकर उसने आदित्य की तरफ देखा।
उसे उम्मीद थी कि शायद अब वह कुछ कहेगा... कुछ समझाएगा।
--
तभी वकील अरुण मेहता बोले,
"मिसेज राजवंश, ये डॉक्यूमेंट्स आपकी कॉपी हैं।
आप इन्हें अच्छे से संभाल लीजिए।
ज़रूरत हो तो पढ़ सकती हैं —
और अगर कुछ पूछना हो,
तो आप मुझे कॉल कर सकती हैं।
आपके अकाउंट की सारी डीटेल्स भी इन्हीं में हैं।"
यह कहकर वो विदा हो गया।
---
वकील भले चला गया हो,
लेकिन मनाल का मन अब और भी उलझ गया था।
कौन-से अकाउंट?
कौन-सी प्रॉपर्टी?
और वो कब से उन चीज़ों की मालिक बन गई?
वो तो समझ रही थी कि यह एक सौदा है,
एक डील... जहां बदले में उसे अपना सब कुछ देना है —
इज़्ज़त भी, और भावनाएं भी।
अब ये अचानक से प्रॉपर्टी ट्रांसफर,
और ऐसी शर्तें?
उसे आदित्य पर शक होने लगा —
आख़िर ये सब हो क्या रहा है?
आदित्य उससे स्थायी रिश्ता चाहता है या कुछ और खेल चल रहा है...?
-
"मुझे रात को ऑस्ट्रेलिया जाना है।
कुछ तैयारी करनी है,
ऑफिस में थोड़ा पेपरवर्क भी बाकी है।
मैं वहीं जाकर पूरा कर लूंगा।"
आदित्य जाते-जाते बोला,
"और हां माना,
तुम्हें भी ऑफिस जाना है तो अधीराज के साथ चली जाना।
मैंने उससे कह दिया है।
काम खत्म करके उसके साथ वापस आ जाना।"
मनाल उससे बात करना चाहती थी,
पर आदित्य जल्दी में था।
इसलिए बात हो ही नहीं सकी।
--
रात को रिसेप्शन था,
घर में सभी तैयार हो रहे थे।
मेकअप आर्टिस्ट मनाल को तैयार करके जा चुकी थी।
आईने के सामने खड़ी — खुद को निहार रही थी।
पिंक कलर का लहंगा, डायमंड ज्वेलरी, खुले लंबे बाल —
वो किसी परी जैसी लग रही थी।
तभी दरवाज़ा खुला —
आदित्य कमरे में दाख़िल हुआ।
ब्लैक सूट में आदित्य बेहद आकर्षक लग रहा था।
मनाल को लगा — शायद अब बात करने का मौका मिलेगा।
आदित्य धीरे से उसके पीछे आकर खड़ा हो गया।
उसकी गरम साँसे मनाल की गर्दन से टकरा रही थीं।
कानों के पास वह फुसफुसाया।
मनाल के मन में गुस्सा उमड़ने लगा।
आईने में खुद को देखकर आदित्य ने कहा,
"बीवी, तुम गुस्सा कर रही हो?
अब इतना प्यार तो जता ही सकता हूं...
चेहरे पर नहीं कर रहा,
वरना तुम्हारा मेकअप खराब हो जाता...
रात ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले देखते हैं,
अगर कुछ वक्त एक साथ बिता सकें..."
मनाल चुप रही। कोई जवाब नहीं दिया।
---
आदित्य ने पीछे से उसकी कमर में बाहें डालीं,
और उसका सिर अपने कंधे पर टिकाते हुए कहा,
"बोलो ना बीवी,
मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूं..."
मनाल कुछ देर तक चुप रही।
फिर धीमे से बोली,
"...ठीक है..."
"अरे ये क्या?
इतना रूखा जवाब?
तुम्हें तो खुशी से 'हाँ' कहना चाहिए था!"
आदित्य की नज़र उसके चेहरे से हट ही नहीं रही थी।
---
"चलो अब निकलते हैं,
मॉम का दो बार फोन आ चुका है..."
वो बोला।
पूरा परिवार रिसेप्शन स्थल पर पहुँच चुका था,
सिर्फ आदित्य और मनाल रह गए थे।
दोनों साथ निकल पड़े।
रास्ते भर आदित्य ने उसका हाथ थामे रखा था।
मनाल उससे नानी की संपत्ति के बारे में बात करना चाहती थी —
पर आदित्य मस्ती के मूड में था।
वो हर बात को हल्के में ले रहा था।
-
मनाल चुपचाप बैठी रही,
सिर झुकाए — खिड़की से बाहर देखते हुए।
"क्या हुआ माना? किस सोच में हो?"
"कुछ नहीं..."
**"अब किसी चीज़ की चिंता मत करो।
तुम्हारी फैक्ट्री को लेकर जो खतरा था,
वो अब खत्म हो गया है।
रीता, प्रेरा और रतन कुमार
तुम्हारे ऑफिस और फैक्ट्री को अच्छे से संभाल रहे हैं।
रीता ऑफिस में परफेक्ट है,
रतन फैक्ट्री की हर प्रॉब्लम को संभाल लेगा।
तुम्हारे पापा भी जल्द ठीक हो जाएंगे —
डॉक्टर से मेरी बात हो चुकी है।
और तुम्हारे भाई की पढ़ाई भी अब पूरी होने को है —
वो जब लौटेगा, फैक्ट्री संभाल लेगा।
तो अब तुम्हें किसी चीज़ की फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है।"**
---
"मैं आपसे एक बात पूछूं?"
"हाँ, कहो... बीवी, ये भी कोई पूछने की बात है?
मैं पूरा तुम्हारा हूं —
मुझसे जो चाहे पूछ सकती हो।"
"...आपने कहा था कि मेरे पापा का एक्सीडेंट...
हुआ नहीं... करवाया गया है...
क्या आप मुझे इसके बारे में कुछ बताएंगे?"
आदित्य थोड़ा गम्भीर हुआ।
"देखो, मुझे सिर्फ शक है।
बहुत जल्द सब कुछ पता चल जाएगा।
तुम टेंशन मत लो।
वैसे भी मैं हूं तुम्हारे साथ।
जब तक मैं हूं,
तुम्हें किसी बात की चिंता करने की ज़रूरत नहीं।"
उसके शब्दों में आत्मविश्वास था।
मनाल का मन थोड़ा हल्का हो गया।
एक राहत-सी महसूस हुई।
---
अभी वो उस भरोसे में डूबी ही थी कि
आदित्य ने एक हल्के अंदाज़ में कहा:
"बस तुम मुझे खुश रखो..."
और साथ ही उसने एक आई-ब्लिंक कर दी।
इस एक लाइन ने मनाल के भीतर आग लगा दी।
उसने झटके से अपना हाथ आदित्य के हाथ से छुड़ाया,
और खिड़की की ओर देखने लगी।
आदित्य ने शरारत से मुस्कुराते हुए
झुककर उसके गाल पर एक किस कर लिया।
---
एक बार जब आदित्य की बात मनाल ने सुनी, तो उसका मन थोड़ा हल्का हो गया। एक शांति सी महसूस हुई, जैसे किसी ने उसके अंदर चल रही उथल-पुथल को थोड़ी देर के लिए थाम लिया हो। अगले ही पल वह धीमे स्वर में बोली,
"बस तुम मुझे खुश रखो..."
और फिर उसने अपनी नज़रों को आदित्य की आँखों से जोड़ दिया। उसकी यह बात सुनकर मनाल के भीतर कहीं कुछ जल उठा। उसने सोचा, "ये इंसान कभी नहीं बदलेगा..."
वह चुपचाप अपना हाथ आदित्य की पकड़ से छुड़ाकर खिड़की से बाहर देखने लगी। आदित्य ने बिना कुछ कहे आगे बढ़कर उसके गाल पर एक हल्का सा चुंबन दे दिया।
मनाल के दिल में भी कुछ हलचल हुई, एक बीट मिस हुई — मगर उसने अपने चेहरे पर कोई भी भाव नहीं आने दिया। वह वैसे ही चुपचाप बैठी रही।
कुछ ही देर में गाड़ी उस आलीशान होटल के सामने आकर रुकी, जहां रिसेप्शन का कार्यक्रम रखा गया था। दरअसल, यह होटल भी आदित्य राजवंश का ही था। उसने अपने ही होटल को इस खास मौके के लिए चुना था।
गाड़ी से उतरते ही मीडिया ने दोनों को घेर लिया। आदित्य ने सहजता से अपनी बाँह मनाल की कमर में डाल दी और उसके बेहद करीब खड़ा हो गया।
मीडिया वाले सवालों की बौछार करने लगे —
"सर, आपकी शादी लव मैरिज है या अरेंज मैरिज?"
आदित्य ने मुस्कुराते हुए मनाल की तरफ देखा और बोला,
"आपको क्या लगता है?"
एक रिपोर्टर ने तुरंत कहा,
"ये तो आप ही बता सकते हैं। हम क्या कहें? आपका नाम तो कभी किसी लड़की के साथ जुड़ा ही नहीं... और अब अचानक शादी?"
दूसरा रिपोर्टर बोल पड़ा,
"आपके छोटे भाई की शादी तो पहले ही हो चुकी थी, हम तो कब से आपकी शादी की खबर का इंतज़ार कर रहे थे..."
आदित्य हँसते हुए बोला,
"अब क्या करें... इन्हें मनाने में ही इतना समय लग गया। कॉलेज के जमाने की रूठी हुई मोहब्बत थीं ये... अब जाकर मानी हैं, तो थोड़ा वक्त तो लगना ही था।"
सभी हँस पड़े।
एक रिपोर्टर ने चुटकी ली,
"तो क्या मैडम तैयार नहीं थीं शादी के लिए?"
आदित्य ने नज़रें झुकाते हुए मज़ाकिया अंदाज़ में कहा,
"और नहीं तो क्या! इन्होंने हमें नापसंद कर दिया था। बड़ी मुश्किल से हमारी मोहब्बत को पसंद किया इन्होंने। मुझे तो लगने लगा था कि कहीं पूरी उम्र कुंवारा ही ना रह जाऊं।"
भीड़ में से एक और सवाल आया,
"आप पर तो लाखों लड़कियाँ मरती हैं... फिर भी आपने इन्हीं को चुना? क्या खास बात थी इनमें?"
आदित्य ने मुस्कराते हुए कहा,
"हमारा दिल इन्हीं पर आया था। हम इन्हें तब से जानते हैं जब ये हमारे कॉलेज में जूनियर थीं।"
"तो आप दोनों एक ही कॉलेज में थे?"
"बिलकुल! ये B.Com कर रही थीं, और हम MBA।"
इसके बाद आदित्य ने मीडिया से विदा लेते हुए कहा,
"अब हमें इजाज़त दीजिए, रिसेप्शन शुरू होने वाला है। आप सभी आमंत्रित हैं, प्लीज़ अंदर आइए और हमारे साथ खाना खाइए।"
--
होटल भीतर से भी उतना ही शानदार था जितना बाहर से। लाइट्स, फ्लावर डेकोरेशन और म्यूजिक – सब कुछ बेहद शाही था।
हॉल पहले से ही मेहमानों से भरा हुआ था। देश-विदेश से लोग आए थे। केवल दूल्हा और दुल्हन की ही प्रतीक्षा हो रही थी।
मनाल ने अंदर कदम रखते ही जो देखा, उससे वह हैरान रह गई। आदित्य, जो बाहर मीडिया के सामने उसके साथ खड़ा था, अब हर किसी से उसे अपनी पत्नी के रूप में परिचित करवा रहा था।
वो सोच रही थी — "जिस शर्त पर इसने मुझसे शादी की थी, क्या मुझे इससे कभी इज़्ज़त की उम्मीद करनी चाहिए थी?"
लेकिन सच्चाई यह थी कि आज आदित्य हर किसी के सामने उसका सम्मान कर रहा था। बड़े-बड़े उद्योगपति, राजनेता और मशहूर हस्तियां उसके पास आकर हाथ मिला रहे थे, मुस्कुरा रहे थे।
पूरा कार्यक्रम के दौरान आदित्य ने मनाल का साथ नहीं छोड़ा। हर समय वह उसके करीब रहा — उसकी कमर में हाथ डाले, जैसे यह जताना चाहता हो कि "यह मेरी है।"
और सिर्फ मनाल ही नहीं, आदित्य ने उसकी मां — दीपा जी — को भी बेहद आदर दिया। वह उनसे घुलमिलकर बात कर रहा था। दीपा जी भी पहली बार इतनी सहज और खुश दिखीं।
आदित्य ने उनसे कहा,
"आप अब कुछ भी चिंता मत कीजिए। ना फैक्ट्री की, ना मनाल की, ना उनके पापा की। अब मैं हूं — हर चीज़ का ध्यान रखने वाला। आपके सारे फिक्र अब मेरे हैं।"
दीपा जी उसकी बात सुनकर बेहद प्रसन्न हो गईं।
वहीं, एक कोने में खड़ी मनाल सोच रही थी —
"मेरी मां कितनी भोली हैं... उन्हें क्या पता कि इसके पीछे क्या सौदा है। उन्हें नहीं मालूम कि यह आदमी हर चीज़ को एक बिज़नेस डील की तरह देखता है — फिर चाहे वो रिश्ता ही क्यों ना हो..."
---
रिसेप्शन कार्यक्रम अब समाप्ति की ओर था। सभी मेहमान धीरे-धीरे विदा ले रहे थे।
तभी आदित्य ने मनाल का हाथ थामा और उसे एक किनारे ले गया।
"मैं कुछ दिनों के लिए ऑस्ट्रेलिया जा रहा हूँ... वहाँ बिज़नेस डील्स हैं, समय लग सकता है।"
मनाल ने सपाट स्वर में कहा,
"ठीक है।"
पर अंदर ही अंदर वो संतुष्ट सी महसूस कर रही थी — जैसे कुछ वक्त अकेले बिताने को मिल जाएगा।
आदित्य ने मुस्कुरा कर कहा,
"इतनी जल्दी खुश मत हो बेबी... दो-चार दिन के लिए जा रहा हूँ... दो-चार साल के लिए नहीं।"
यह कहते हुए उसने बाहें फैलाकर उसे अपने सीने से लगा लिया।
मनाल अब भी बिना किसी प्रतिक्रिया के खड़ी रही।
"कम से कम डील तो याद रखा करो..." आदित्य ने मुस्कराते हुए कहा।
मनाल ने धीरे से अपनी बाँहें उसकी पीठ पर रख दीं।
आदित्य ने उसे और करीब खींचते हुए कहा,
"मुझे याद तो करोगी ना बीवी... चाहे गालियां देकर ही सही..."
वो फिर भी चुप रही।
"अरे, दिल ही रख देती... कह देती कि हां, याद करूंगी... मैं कौन सा तुम्हारे दिल में उतरकर देखने वाला था?"
मनाल ने कोई जवाब नहीं दिया।
उसकी खामोशी में भी जैसे हजारों शब्द छुपे थे।
--
आदित्य राजवंश ऑस्ट्रेलिया चला गया था।
उस रात मनाल अपने बिस्तर पर अकेली लेटी थी। उसके आँखों में नींद नहीं थी, पर दिल और दिमाग में उथल-पुथल थी। वह छत की ओर टकटकी लगाए सोच रही थी,
"क्या से क्या हो गया..."
"कभी मैं अपने पापा की लाडली, राजदुलारी बेटी थी... और आज...? आदित्य ने मुझे क्या बना दिया है?"
उसी पल उसके भीतर एक और ख्याल आया —
"हमारी शादी को अभी दो दिन ही हुए हैं... और इन दो दिनों में, आदित्य ने एक बार भी मेरे साथ कोई बदतमीजी नहीं की। जैसा उसने कहा था, वैसा कुछ नहीं हुआ। बल्कि उसने तो अपनी ओर से हर वादा निभाया है।"
"पर मैंने...? मैं तो अब तक उस डील के अनुसार कुछ भी नहीं कर सकी हूँ..."
वह बेचैनी से करवट बदलने लगी। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या सही है और क्या गलत।
जब नींद बिल्कुल नहीं आई तो उसने उठकर टीवी ऑन कर दिया।
जैसे ही चैनल बदला, हर जगह उसी की और आदित्य की तस्वीरें चल रही थीं। उनकी रिसेप्शन की तस्वीरें, मीडिया में उनके बयानों के वीडियो — सबकुछ।
टीवी पर एंकर कह रहा था:
"मेड फॉर ईच अदर — आदित्य और मनाल। दोनों की केमिस्ट्री इतनी शानदार है कि देखने वाले बस देखते रह जाएं।"
स्क्रीन पर क्लिप चल रही थी — जिसमें आदित्य मनाल की आँखों में देखकर प्यार से मुस्कुरा रहा था।
एक पल के लिए मनाल भी मुस्कुरा दी। वो दृश्य... वो शब्द... उसकी आँखों में कुछ गहराई सी छोड़ गए थे।
पर जल्दी ही उसकी मुस्कान गायब हो गई।
"मैं कैसे भूल सकती हूँ... मैं जानती हूँ आदित्य कौन है। उसका असली चेहरा मुझे पता है।"
"वो धोखेबाज़ है... प्लेबॉय है... और शायद आज भी है। तभी तो मैंने उस शादी के लिए शर्त रखी थी। मैं इतना सब कुछ ऐसे ही तो नहीं भूल सकती..."
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वो पहली मुलाकात... कॉलेज की गलियों में
मनाल ने बी.कॉम में जिस कॉलेज में एडमिशन लिया था, वहीं आदित्य एमबीए के फाइनल ईयर में था। कॉलेज में सब उसे "आदि" के नाम से जानते थे — एक अमीर बाप का बिगड़ा बेटा।
उसका रुतबा इतना था कि कॉलेज की ज़्यादातर लड़कियाँ उस पर मरती थीं। रोज नई कार, नई घड़ी, नई जैकेट — उसके पास किसी चीज़ की कमी नहीं थी।
पर मनाल को ना तो उसका रुतबा प्रभावित करता था और ना ही उसका लुक।
वो अपने आप में रहने वाली एक समझदार, खुशमिज़ाज लड़की थी।
जहाँ आदित्य हैंडसम और स्टाइलिश था, वहीं मनाल बला की खूबसूरत थी — गोरा रंग, तीखी नाक, बड़ी-बड़ी काली आँखें, गालों में पड़ते डिंपल और कमर तक लंबे बाल।
एक तरह से दोनों ही अपने-अपने तरह से परियों और राजकुमारों जैसी छवि रखते थे।
---
एक रात मनाल अपनी सहेली के बर्थडे पार्टी में गई थी। लौटते वक्त देर हो गई थी। उसकी सभी सहेलियाँ रास्ते में अपने-अपने घर उतरती गईं और अंत में मनाल अकेली रह गई।
वह एक टैक्सी में बैठी थी। पर जैसे ही रास्ता सुनसान हुआ, टैक्सी ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी और उसकी ओर खतरनाक निगाहों से देखने लगा।
मनाल उसकी नीयत भाँप चुकी थी। वह डर के मारे टैक्सी से उतरकर भागने लगी, मगर ड्राइवर ने उसे पकड़ लिया।
उसी वक्त, दूर से बाइक की आवाज़ आई।
आदित्य बाइक पर था — वो पास से ही गुजर रहा था। लड़की की चीख सुनकर वह रुका और तुरंत वहां पहुंचा।
जैसे ही उसने देखा कि वो लड़की मनाल है, उसका पारा चढ़ गया।
उसने टैक्सी ड्राइवर की जमकर पिटाई की।
डर से कांपती हुई मनाल भागकर आदित्य के गले लग गई। उस रात आदित्य ने उसे घर छोड़ा।
पर जाते-जाते... उसका दिल भी अपने साथ ले गया।
---
उस रात के बाद सब बदल गया।
मनाल को आदित्य अच्छा लगने लगा।
कॉलेज में अब वो दोनों मिलने लगे। बातें होने लगीं। धीरे-धीरे दोस्ती गहराती चली गई।
और एक दिन, आदित्य ने उसे प्रपोज कर दिया।
मनाल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसे लगा जैसे उसकी परियों वाली कहानी शुरू हो गई हो।
वो उसके साथ ज़िंदगी के सपने देखने लगी थी।
मगर आदित्य के लिए... शायद यह सिर्फ एक और "टाइमपास" था।
हालाँकि उसने मनाल के साथ कभी कोई सीमा नहीं लांघी थी, फिर भी... उसकी नीयत पर भरोसा करना मुश्किल था।
एक दिन की बात है — मनाल की बुआ, जो विदेश से लौटी थीं, अपने मायके में कुछ दिन रहने आईं।
उनके पति नहीं थे और उनके बच्चे विदेश चले गए थे। वे चाहती थीं कि मनाल उनके साथ जाकर पढ़ाई करे ताकि उन्हें अकेलापन ना लगे।
मनाल के पिताजी को यह सुझाव अच्छा लगा।
उसी दिन सुबह, मनाल ने आदित्य को फोन कर बता दिया कि वह कॉलेज नहीं आ पाएगी।
लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतता गया, उसका मन बेचैन होने लगा।
"उसे यह बात खुद जाकर समझानी चाहिए..." — इसी सोच में वह कॉलेज पहुंच गई।
---
कॉलेज के बाहर उसने एक दोस्त से पूछा —
"क्या आदित्य आया है?"
"हाँ, उसकी गाड़ी लॉन के पास खड़ी है।"
मनाल ने कई बार कॉल किया, पर फोन साइलेंट पर था।
वह सीधी गाड़ी के पास चली गई।
दरवाज़ा खुला हुआ था — शायद वो भूल गए थे।
जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, वह कुछ पल के लिए स्तब्ध रह गई।
आदित्य... किसी और लड़की के साथ... बेहद करीब था।
मनाल ने अपनी आँखें बंद कर लीं।
साँस रुकने लगी थी।
वो वहाँ से बिना कुछ कहे, बिना कुछ सुने... भाग गई।
---
जैसे ही मनाल ने आदित्य की गाड़ी देखी, वह सीधे उसकी ओर बढ़ गई। दरवाज़ा लॉक नहीं था, शायद गलती से खुला रह गया था। और फिर, जो उसने देखा —
वह एक ऐसा दृश्य था, जिसने उसकी आत्मा को झकझोर दिया।
आदित्य, किसी और लड़की के साथ... उस हालत में।
मनाल ने तुरंत अपनी आँखों पर हाथ रख लिए और वहाँ से भाग गई। उसकी रग-रग में गुस्सा, अपमान और घृणा दौड़ गई थी।
उसने उसी पल फैसला कर लिया —
"अब इस इंसान का चेहरा दोबारा कभी नहीं देखूँगी।"
उसने महसूस किया कि अब किसी सफाई की गुंजाइश ही नहीं बची थी। उस एक दृश्य ने आदित्य की असलियत उसके सामने खोल दी थी।
---
मनाल ने बिना किसी को बताए कॉलेज छोड़ दिया। उसकी बुआ पहले ही उसे अपने पास बुला रही थीं। वह चुपचाप सब कुछ छोड़कर उनके शहर चली गई।
न आदित्य से मिलने की कोशिश की,
न कोई शिकायत की,
न कोई सफाई मांगी।
उसने अपना मोबाइल नंबर बदल दिया।
फेसबुक और इंस्टाग्राम के प्रोफाइल डिलीट कर दिए।
अपने सभी दोस्तों से संबंध तोड़ दिए।
वह जैसे पूरी तरह इस दुनिया से गुम हो गई थी।
---
उसे आदित्य से एक अनजाना-सा डर बैठ गया था।
"कहीं वो मुझे ब्लैकमेल न करने लगे..."
क्योंकि उसे पता था कि आदित्य जैसे लड़के को लड़कियों से सिर्फ एक ही चीज़ चाहिए होती है।
पर वह खुद को शुक्रगुज़ार समझ रही थी कि उसने आदित्य को कभी वो हदें पार नहीं करने दीं।
आज उसके मन में सिर्फ पछतावा था —
"मैंने उस इंसान से प्यार किया, जो उसके लायक ही नहीं था।"
उसने खुद से वादा किया कि वह हर हाल में उसे भुला देगी।
--
उधर आदित्य, मनाल के इस अचानक गायब हो जाने से हैरान था।
उसने कॉल किया, मैसेज किया — लेकिन सब व्यर्थ।
फिर वह उसकी सहेली नेहा के पास पहुँचा।
"मनाल कहाँ है? कोई नंबर? पता?"
नेहा ने रूखे स्वर में जवाब दिया:
"नहीं पता। उसने कॉलेज छोड़ दिया है। और अब मेरे टच में भी नहीं है।"
आदित्य चौंका,
"ऐसा कैसे हो सकता है? तुम उसकी बेस्ट फ्रेंड हो..."
नेहा का जवाब तीखा था:
"उसने हम सबसे रिश्ता तोड़ लिया... सिर्फ तुमसे डरकर। उसे लगता है कि तुम उसकी ज़िंदगी बर्बाद कर सकते हो। और पता नहीं, तुम लोगों के बीच क्या हुआ — ये तो तुम्हें ही पता होगा। मगर तुम्हारी वजह से हमारी इतनी गहरी दोस्ती टूट गई।"
---
आदित्य को सब समझ आ गया।
हाँ, उसने उसे देख लिया था — उस लड़की के साथ। और अब उसे आदित्य से घिन आती है।
उसकी नज़र में आदित्य एक "चीप" इंसान था।
और शायद वो गलत भी नहीं थी...
क्योंकि अब तक जितनी लड़कियाँ उसकी ज़िंदगी में आई थीं, उनमें से कई उसके बिस्तर तक पहुँचीं — पर कोई भी उसके दिल तक नहीं पहुँच सकी।
मनाल पहली लड़की थी जिसने उसका दिल छुआ था।
उसे उसके साथ वक़्त बिताना अच्छा लगता था। और यही वजह थी कि उसने कभी मनाल के साथ ज़्यादा कुछ नहीं किया था।
उस दिन के बाद, आदित्य बदलने लगा।
---
धीरे-धीरे उसने अपने सारे फ़्लर्टी रिश्ते ख़त्म कर दिए।
जिससे दोस्ती थी, उससे एक दायरे में रहने लगा।
एमबीए पूरा होते ही उसने अपने पिता के होटल बिजनेस में खुद को झोंक दिया।
आदित्य का परिवार पहले से ही बहुत बड़ा नाम था। उनके इंडिया के बड़े शहरों में होटल थे, लेकिन आदित्य ने इस चेन को विदेशों तक फैला दिया।
अब वह एक सफल और व्यस्त बिजनेसमैन बन गया था।
बिजनेस में उसका नाम होने लगा।
पर कोई लड़की... उसकी ज़िंदगी में दोबारा नहीं आई।
कई नामचीन लड़कियों के रिश्ते आए, मगर वह हर बार टाल देता।
---
जब किस्मत ने फिर टकराया
और फिर, सालों बाद —
उसने मनाल को देखा।
किसी ऑफिस में, एक कोने में बैठी, बेहद परेशान सी।
वही मासूमियत... वही गहरी आँखें।
पर चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं।
आदित्य का दिल फिर से धड़क उठा।
उसने बात करने की कोशिश की, मगर मनाल ने उसे अनदेखा कर दिया।
वो उसके पास से ऐसे निकल गई जैसे वह कभी जानती ही नहीं थी।
---
आदित्य को बाद में पता चला —
मनाल के पापा का एक्सीडेंट हो गया था, वह कोमा में थे।
पूरी फैक्ट्री की ज़िम्मेदारी मनाल पर आ गई थी।
वो परेशान थी, डरी हुई थी... और अकेली थी।
आदित्य ने तय किया —
"मैं उसकी मदद करूंगा। उसकी हर मुश्किल आसान करूंगा।"
मगर वो जानता था —
"वो मुझसे मदद नहीं लेगी। मुझे नफरत करती है।"
पर उसे मनाल को पाना भी था।
तो उसने एक प्लान बनाया।
---
उसने मनाल के सामने एक प्रस्ताव रखा —
"मुझसे शादी करो। मैं तुम्हारी फैक्ट्री और परिवार को इस मुसीबत से निकाल दूँगा।"
मनाल चौंक गई।
उसे लगा —
"ये सब सिर्फ इसलिए कि वो मुझे पाना चाहता है?"
पर उसे कोई रास्ता नहीं दिखा। फैक्ट्री डूब रही थी, माँ की जान खतरे में थी, और पापा कोमा में।
आख़िरकार उसने शर्त के साथ शादी के लिए हाँ कह दी।
---
मनाल को यकीन था कि आदित्य उसके साथ कुछ गलत करेगा।
मगर शादी के बाद... उसने कभी कोई सीमा पार नहीं की।
उसने इज्ज़त दी, माँ को सम्मान दिया, और पूरे रिसेप्शन में हाथ थामे रखा।
वो हर जगह proudly कहता,
"ये मेरी पत्नी है..."
मनाल के लिए ये सब चौंकाने वाला था।
वो सोच में थी —
"क्या सच में आदित्य बदल गया है?"
---
अब आदित्य ऑस्ट्रेलिया जा रहा था।
उसके दिल में कसक थी —
"मैं उसका प्यार था... अब मैं उसके लिए एक ज़रूरत भर हूँ।"
उसने सोचा —
"मैंने अपनी मोहब्बत की कहानी का विलेन खुद को बना लिया... अब इसे हीरो बनकर पूरी करने में वक्त तो लगेगा..."
---
आदित्य राजवंश के ऑस्ट्रेलिया जाने की खबर सुनकर मनाल के चेहरे पर पहली बार थोड़ी राहत आई थी।
उसने मन ही मन सोचा —
"चलिए, चाहे कुछ दिन के लिए ही सही... उससे पीछा तो छूटा।"
इन दो दिनों में उसे एक अजीब सी घुटन महसूस हो रही थी।
जैसे हर सांस में आदित्य की मौजूदगी उसे परेशान कर रही हो।
वह थोड़ी देर अकेली रहना चाहती थी।
अपने अंदर उठे तूफ़ान को शांत करना चाहती थी।
वो जानती थी —
आदित्य ने अब तक उसके साथ कोई सीमा पार नहीं की थी।
मगर वो ये भी जानती थी कि जब वह लौटेगा,
तो उस पर अपने "सारे अधूरे अरमान" पूरे करने की कोशिश करेगा।
"उसने मेरी मदद इसलिए की थी, ताकि मुझे पा सके।"
यही ख्याल उसे सबसे ज़्यादा डराता था।
रात के सन्नाटे में वो बहुत देर तक करवटें बदलती रही।
सोचती रही,
"जब आदित्य मुझे छूएगा... तब मुझे कैसा लगेगा?"
उसकी सोच वहीं घूमती रही,
"अगर कॉलेज के दिनों में वो मुझे पा लेता... तो शायद आज मुझसे शादी न करता।
अब जब उस वक़्त नहीं कर सका, तो सब कुछ पूरा करने की जल्दबाज़ी में है।"
रात इसी उधेड़बुन में बीती... और नींद कब आई, उसे खुद भी नहीं पता चला।
---
सुबह जब उसकी आंख खुली तो काफी देर हो चुकी थी।
आंखें भारी थीं, सिर बोझिल।
वह बिस्तर से उठते हुए बड़बड़ाई —
"सारी रात आदित्य को कोसते हुए सोई हूँ... नींद क्या खाक आएगी..."
किसी तरह उठकर वह बाथरूम चली गई।
उधर उसका फोन बार-बार बजने लगा।
उसने सोचा शायद माँ का कॉल होगा।
शादी के बाद से उससे ठीक से बात नहीं हो पाई थी।
लेकिन जैसे ही बाहर आकर फोन देखा —
"फिर से आदित्य!"
उसका मन एक पल को किया कि फोन उठाकर दीवार से दे मारे।
"कल ही तो गया है... फिर इतनी सुबह फोन करने की क्या जरूरत थी?
क्या उसे और कोई काम नहीं है सिवा मुझे परेशान करने के?"
वह लंबे समय तक फोन की स्क्रीन को घूरती रही,
फिर अनिच्छा से कॉल उठा ही लिया।
फोन उठाते ही आदित्य की आवाज़ आई —
"क्या बात है बीवी... फोन उठाने में इतना टाइम लग गया?
मुझे तो लगा, तुम मेरी याद में रात भर सोई ही नहीं होगी..."
मनाल ने कोई जवाब नहीं दिया।
"क्या हुआ माना... कहां खो गई?"
आदित्य फिर बोला।
"माना" — यह शब्द सुनते ही मनाल और चिढ़ गई।
वो जानती थी, ये नाम सिर्फ वही लोग लेते थे जिनसे वह बेहद जुड़ी होती थी।
और वह नहीं चाहती थी कि आदित्य भी उन लोगों की लिस्ट में आए।
वह रूखे स्वर में बोली —
"कहिए, किस लिए फोन किया? कोई ज़रूरी बात थी?"
"और क्या... मुझे लगा तुम्हें मेरी याद आ रही होगी।
मैंने सोचा, चलो तुम्हें अपनी आवाज़ सुना दूं।
आम बीवियाँ तो पति का जीना हराम कर देती हैं...
बार-बार कॉल करके पूछती हैं — क्या कर रहे हो, क्या खा रहे हो...
और तुम हो कि एक कॉल भी नहीं किया।
अभी-अभी हमारी शादी हुई है, और तुम मुझे बिल्कुल मिस नहीं कर रही हो?"
मनाल खामोश रही।
"तुम्हें रात मेरे बिना नींद तो आई ना, माना?"
आदित्य की आवाज़ में शरारत थी।
मनाल मन ही मन सोच रही थी —
"हाँ आई... और बहुत चैन की नींद आई... क्योंकि तू नहीं था..."
लेकिन ये सब वह कह नहीं सकती थी।
वह चाहती थी कि बातचीत जल्द से जल्द खत्म हो।
फिर आखिरकार बोली —
"आप ठीक से पहुंच गए?"
आदित्य ने सवाल दोहराया —
"तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया...
क्या मेरी याद आई?"
मनाल चुपचाप फोन कान से लगाए खड़ी रही।
आदित्य की बातें उसके ज़हन में गूंजती रहीं,
लेकिन वह एक शब्द भी नहीं कह सकी।
वह सोच रही थी —
"जब अभी वो दूर है और मुझे इतना टॉर्चर कर रहा है...
तो जब वापस आएगा तब क्या होगा?
मैं कहाँ जाऊंगी... किससे मदद मांगूंगी?"
आदित्य ने हँसते हुए कहा —
"ठीक है माना, मैंने तो सिर्फ तुम्हारी आवाज़ सुनने के लिए फोन किया था।
जल्दी आ जाऊंगा... तब तक मुझे ज्यादा याद मत करना..."
फोन कट गया।
फोन कटते ही जैसे मनाल की जान में जान आई।
"शुक्र है... कुछ देर को ही सही... मगर पीछा तो छूटा..."
उसने गहरी सांस ली और टॉवल उठाकर बाथरूम की ओर चल दी।
--
शावर के नीचे खड़ी होकर मनाल काफी देर तक खुद को शांत करती रही।
वह नहीं चाहती थी कि कोई भी उसके चेहरे की परेशानी पढ़ सके।
आज उसका ससुराल में दूसरा दिन था, और वह एक आदर्श बहू की तरह व्यवहार करना चाहती थी।
"अगर मुझे यहीं रहना है... तो सम्मान से रहना होगा..."
उसने एक हल्की-सी साड़ी निकाली और पहन ली।
बाल बाँधे, सिंपल मेकअप किया और नीचे चली गई।
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भाग 4: एक नया परिवार
जैसे ही वह नीचे पहुँची —
"गुड मॉर्निंग मम्मी जी, गुड मॉर्निंग डैडी जी।"
धर्मपाल जी ने मुस्कुरा कर कहा —
"आओ बेटा, गुड मॉर्निंग... हमारे पास बैठो।"
उन्होंने साथ वाली कुर्सी की ओर इशारा किया।
मनाल वहीं बैठ गई।
"लड़के और लड़कियों में यही फर्क होता है,"
धर्मपाल जी बोले,
"लड़कियाँ माँ-बाप के पास बैठती हैं, और लड़के दूर-दूर भागते हैं।
जब निशा घर पर होती है, तो सुबह की चाय हमारे साथ पीती है।
मगर हमारे दोनों नालायक बेटे तो कभी नजर ही नहीं आते।"
मनाल हँस पड़ी।
उसे धर्मपाल जी की बातें एक सच्चे पिता जैसी लगीं।
"बेटा, जैसे आदित्य मेरे लिए है, वैसे ही तुम भी हो।
इस घर की बहू नहीं, मेरी बेटी हो..."
मनाल का गला भर आया।
छोटा-सा जवाब दिया —
"जी डैड..."
दीपा जी भी उसे बहुत प्यार से देख रही थीं।
"बेटा, ये तुम्हारा ही घर है।
आदित्य घर में हो या ना हो, तुम इस घर की बड़ी बहू हो।
कभी किसी बात से अनकंफर्टेबल महसूस मत करना..."
इन प्यार भरे शब्दों से मनाल को सुकून मिला।
"काश आदित्य भी ऐसा ही होता..."
उसने मन ही मन सोचा।
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उसी समय अधिराज वहाँ आ गया।
हँसते हुए बोला —
"गुड मॉर्निंग भाभी...
आपको भाई के बिना नींद आ गई थी ना?
चेहरा तो बता रहा है कि सारी रात करवटें बदलती रहीं।
कोई बात नहीं, भैया जल्दी ही आ जाएंगे।
वैसे तो वो आपको एक मिनट के लिए भी दूर नहीं करना चाहते थे..."
मनाल मुस्कुरा दी, मगर जवाब में कुछ नहीं बोली।
"भैया तो शादी के नाम से ही भागते थे।
लेकिन जब आपकी बात आई, तो चट मंगनी पट ब्याह हो गया।
इतनी सारी लड़कियों को रिजेक्ट किया उन्होंने!"
अधिराज की बातें हल्की-फुल्की थीं, मगर मनाल के मन में कुछ और ही चल रहा था।
उसने बात बदलने के लिए पूछा —
"नैना और बच्चे दिखाई नहीं दे रहे?"
"अभी तक उठे नहीं।
कल रात रिसेप्शन में काफी देर हो गई थी।
बच्चे भी थक गए हैं... आज स्कूल भी नहीं जाना था।"
दीपा जी ने बताया।
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चाय पीते हुए मनाल ने दीपा जी से कहा —
"मम्मी जी, मुझे आपसे एक परमिशन चाहिए थी..."
"हां बेटा, बोलो। इसमें परमिशन की क्या बात है। जो कहना है खुलकर कहो..."
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यहाँ
"...मॉम, मुझे आपसे एक परमिशन लेनी थी..."
मनाल ने अनीता जी की ओर देख कर धीरे से कहा।
अनीता जी मुस्कुरा पड़ीं,
"हाँ बेटा, बोलो। इसमें पूछने की क्या बात है? जो कहना है खुलकर कहो।"
मनाल थोड़ी झिझक के साथ बोली,
"...अगर आप कहें तो मैं एक दिन के लिए अपनी मम्मी के पास हो आऊं।
पापा को भी देख लूंगी... और बुआ जी भी जल्दी जाने वाली हैं,
तो उनसे भी एक बार मिलना चाहती थी।
बस आपकी इजाज़त चाहिए थी, अगर आपको कोई एतराज न हो तो..."
अनीता जी ने बहुत स्नेह से कहा,
"ये भी कोई पूछने की बात है बेटा?
तुम जाकर उनसे मिल आओ। मुझे भला क्या एतराज हो सकता है?
ठीक है, अभी आदित्य भी घर पर नहीं है।
तो तुम दो दिन के लिए दीपा जी के पास चली जाओ।
उन्हें भी तुम्हारी बहुत याद आ रही होगी।
आज ऑफिस के बाद वहीं चली जाना।"
मनाल मुस्कुरा उठी —
"ठीक है मॉम, ऑफिस के बाद मैं सीधा वहाँ चली जाऊंगी।
मैं अभी मम्मी को फोन करके बता देती हूँ..."
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ऑफिस में दिनभर काम करने के बाद
मनाल जब शाम को मायके पहुँची,
तो उसे ऐसा लगा जैसे किसी कैद से आज़ादी मिली हो।
घर की दीवारें, आँगन, अपनी माँ की गंध —
सब उसे सुकून दे रहे थे।
"जैसे कितने सालों बाद इस घर में कदम रखा हो..."
उसके मन में यही भाव उमड़ रहे थे।
उसकी माँ दीपा जी उसे देखकर बेहद खुश थीं।
बेटी को गले लगाते हुए उन्होंने कहा —
"मनाल, तू आ गई बेटा... मेरा मन बहुत बेचैन था..."
--
दीपा जी ने प्यार से उसका सिर सहलाते हुए कहा —
"देख बेटा, उस वक़्त हालात कैसे थे...
हमें लगने लगा था कि कुछ भी नहीं बच पाएगा।
पापा की तबीयत... फैक्ट्री की हालत... और बैंक का लोन...
ऐसे वक्त में अगर आदित्य नहीं होता...
तो सब कुछ बिखर चुका होता..."
मनाल चुपचाप उनकी बात सुनती रही।
दीपा जी आगे कहती गईं —
"डॉक्टर ने भी कहा है कि तुम्हारे पापा कुछ ही दिनों में होश में आ जाएंगे।
और सबसे बढ़कर, मुझे आदित्य जैसा दामाद मिल गया।
वो कितना अच्छे से तुम्हारी और हमारी फिक्र करता है...
बिजनेस को भी संभाल रहा है...
इतने बड़े घर का बेटा होकर भी इतना जिम्मेदार है...
तू कितनी किस्मत वाली है बेटा..."
मनाल बस हल्की-सी मुस्कान देकर सिर हिला रही थी।
वह अपनी माँ का दिल नहीं तोड़ सकती थी।
वो कैसे बताती कि ये शादी एक शर्त पर हुई थी —
जिसे जानने के बाद शायद माँ कभी दोबारा मुस्कुरा भी न सके।
---
बुआ जी भी वहाँ थीं।
उन्होंने भी आदित्य की खूब तारीफ की।
"देखो बेटा, आजकल ऐसा लड़का मिलना मुश्किल है।
तू बहुत भाग्यशाली है जो आदित्य जैसा जीवनसाथी मिला।
भले ही उसका भाई बीमार हो,
मगर वह अपनी भतीजी को इतने अच्छे घर में ब्याह कर गया है।
कितनी इज्ज़त से रखा है उन्होंने तुझे!"
मनाल फिर भी मुस्कुरा दी।
उसका मन अंदर से जल रहा था, मगर चेहरे पर एक भी शिकन नहीं आने दी।
---
इन दो दिनों में आदित्य ने मनाल को एक बार भी कॉल नहीं किया।
मनाल ने चैन की सांस ली —
"शुक्र है उसने फोन नहीं किया...
कहीं वो वहीं किसी और के साथ बिज़ी तो नहीं?"
उसने कंधे उचकाते हुए खुद से कहा —
"वैसे भी, वहाँ तो उसकी कोई न कोई गर्लफ्रेंड होगी ही..."
वो एक हल्की हँसी हँस कर रह गई।
---
जब मनाल राजवंश हाउस लौट आई,
उसी रात अचानक उसकी नींद खुली।
उसे महसूस हुआ —
उसकी पीठ किसी की चौड़ी छाती से सटी हुई थी।
कमर पर भारी-सा हाथ,
और गर्दन पर किसी की गर्म साँसें।
उसकी आँखें फट गईं।
"ये क्या...?"
पीछे पलट कर देखा —
आदित्य!
वो उसके बगल में सो रहा था।
मनाल घबरा कर उठ बैठी।
"अरे माना, क्या हुआ? ऐसे कोई उठता है क्या?"
आदित्य भी उठ गया और उसे अपनी बाहों में खींच लिया।
"...मैं... बाथरूम जा रही हूँ..."
कहती हुई वह बाथरूम में चली गई।
---
बाथरूम में वह लगातार खुद से सवाल करती रही —
"अब कैसे वापस जाऊं बेड पर...?
वो तो वहीं लेटा है..."
काफी देर तक वह बाथरूम में ही बैठी रही,
उसे उम्मीद थी कि आदित्य फिर से सो जाएगा।
जब वापस लौटी,
तो थोड़ी दूरी बनाकर लेट गई।
मगर आदित्य ने खींच कर उसे फिर अपने पास सटा लिया।
उसका हाथ मनाल की कमर पर था,
और फिर वह हाथ पेट पर आ गया।
फिर उसने अपनी टीशर्ट थोड़ी ऊपर कर दी,
और हाथ त्वचा पर रख दिया।
मनाल की धड़कनें तेज़ हो गईं।
वह काँपने लगी।
"कहीं... यह आगे न बढ़ जाए..."
वह घबराई हुई थी।
उसने आदित्य का हाथ कसकर पकड़ लिया।
आदित्य हल्के से मुस्कुराया —
उसे समझ में आ गया था कि मनाल डर रही है।
"मुझे तो बचपन से आदत है ऐसे पेट पर हाथ रखकर सोने की...
अब डर क्यों रही हो..."
आदित्य की आवाज़ में शरारत नहीं, सच्चाई थी।
थोड़ी देर में वो सो गया... और फिर मनाल की भी आँख लग गई।
---
सुबह जब उसकी आँख खुली,
तो खुद को आदित्य की बाजू पर सिर रखे हुए पाया।
वो घबरा कर उठ गई।
"आराम से... आराम से..."
आदित्य बोला,
"तुम इतनी प्यारी लग रही थी...
कि मेरा मन हुआ तुम्हें उठाऊं ही नहीं।
मुझे तो तुम्हारे साथ कुछ 'गलत' करने का मन करने लगा था..."
उसने शरारत से आँखें मटकाईं।
मनाल ने उसे घूर कर देखा।
"एक तो मेरी बाहों में सोई हुई थी,
ऊपर से अब मुझे ऐसे बड़ी-बड़ी आँखों से डरा रही हो?"
आदित्य ने हँसते हुए कहा।
"तुम्हें तो शुक्रिया कहना चाहिए,
कि मैंने तुम्हें इतनी देर तक आराम से सुलाया!"
मनाल ने बात बदल दी,
"आप कब आए? मुझे पता ही नहीं चला..."
"रात को... चुपचाप आया था...
ताकि तुम्हें डिस्टर्ब न करूं..."
वह मुस्कुरा कर बोला।
---
दरवाजे पर दस्तक हुई।
मनाल दरवाज़ा खोलने उठी,
मगर आदित्य ने उसे रोक दिया —
"तुम रुको, मैं देखता हूँ..."
मेड चाय लेकर आई।
आदित्य ने चाय लेकर एक कप मनाल को भी दे दिया।
चाय की चुस्की लेते हुए आदित्य ने फिर पूछा —
"माना, सच-सच बताना — मुझे कितना मिस किया?"
मनाल ने उसकी ओर देखा —
और मन में सोचा,
"इस आदमी से बड़ा झूठा कोई नहीं...
अगर इतनी याद आ रही थी तो सिर्फ एक दिन फोन क्यों किया?
बाकी दिन तो आवाज़ तक नहीं सुनी..."
आदित्य ने फिर शरारत से कहा —
"वैसे किसी को भी अपनी आँखों से ऐसे नहीं डराना चाहिए...
थोड़ी मोहब्बत दिखाया करो..."
---
(जारी...)
चाय पीते हुए आदित्य मुस्कराते हुए बोला,
"माना, सच-सच बताना... मुझे कितना मिस किया?
वैसे, मुझे तुम्हारी बहुत याद आई।
मैं वहां रोज़ तुम्हें मिस करता था...
तुम्हारे बिना बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था..."
मनाल ने चुपचाप अपनी निगाहें आदित्य की ओर उठाईं और मन ही मन सोचा —
"कितना झूठ बोलता है ये आदमी...
सिर्फ एक ही दिन फोन किया था,
बाकी दिन तो मुझे याद तक नहीं किया...
अगर इतनी याद आ रही थी तो एक कॉल भी नहीं किया?"
उसके मन की बातें जैसे आदित्य ने पढ़ ली हों,
वह मुस्कुराते हुए बोला —
"ये बात गलत है...
किसी को अपनी आंखों से ऐसे डरा कर नहीं देखना चाहिए..."
मनाल समझ गई थी कि वह यूं पीछा नहीं छोड़ने वाला।
चाय खत्म करके वह उठ खड़ी हुई,
"मैं नहा कर आती हूं... काफी देर हो गई है...
नीचे सब लोग हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे..."
कहते हुए वह टॉवल उठाकर बाथरूम की ओर चली गई।
---
जब वह नहा कर बाहर आई,
तो देखा — आदित्य कमरे में नहीं था।
उसने राहत की सांस ली।
वह तैयार होकर नीचे चली आई।
नीचे डाइनिंग टेबल पर आदित्य पूरे परिवार के बीच बैठा था,
हाथ में गिफ्ट्स थे, जो वह सबको दे रहा था।
अधिराज के दोनों बच्चे उससे लिपटे खड़े थे,
"चाचू-चाचू!" कहते हुए उनसे गिफ्ट खोलवा रहे थे।
मनाल एक कोने में खड़ी बस देख रही थी।
"कम से कम नहा-धोकर तो आना चाहिए था,
सीधा उठकर चला आया..."
उसके मन में खीज उठी।
उसे अब आदित्य की हर आदत से चिढ़ सी होने लगी थी।
---
ब्रेकफास्ट के बाद आदित्य फिर कमरे में लौट आया और ऑफिस जाने की तैयारी करने लगा।
"मैं तुम्हारे लिए कुछ गिफ्ट लाया हूं...
ब्लू बैग में रखा है...
तुम खोलकर देख लेना,
शायद तुम्हें पसंद आए।
और हां, पहन कर दिखाना जरूर..."
वह अलमारी खंगालते हुए बोला।
"माना, ज़रा देखना तो... मेरी ब्लैक शर्ट नहीं मिल रही..."
मनाल मना नहीं कर सकती थी,
वह उसकी शर्ट ढूंढ़ने अलमारी की ओर बढ़ी।
तभी आदित्य पीछे से आया,
उसकी कमर में अपनी बाहें डालीं
और ठोड़ी उसके कंधे पर रख दी।
उसका गाल, मनाल के गाल से टच हो रहा था।
मनाल घबरा कर इधर-उधर देखने लगी।
"अरे बीवी... इधर-उधर क्या देख रही हो?
शर्ट ढूंढ़ो ना मेरी... मुझे देर हो रही है..."
शर्ट सामने ही रखी थी,
मनाल ने उसे जल्दी से निकाल कर दे दी।
"छोड़िए ना मुझे...
आप ऑफिस के लिए लेट हो जाएंगे... तैयार हो जाइए..."
"तो मत जाऊं...
अगर तुम कहो, तो आज घर ही रहूं..."
वह उसके गाल पर हल्का-सा किस करते हुए बोला।
मनाल ने गुस्से से आंखें बंद कर लीं,
फिर नरम आवाज़ में बोली —
"नहीं, आपको ऑफिस जाना चाहिए।
मुझे भी ऑफिस जाना है...
बहुत जरूरी काम है...
शाम को मिलते हैं न!"
आदित्य को उसके डर और झिझक का अंदाज़ा था,
मगर वह केवल उसका मज़ा ले रहा था।
---
"अरे बीवी...
अगर तुम कहो तो आज दोनों ऑफिस से छुट्टी ले लेते हैं।
एक-दूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिताते हैं... हाँ?"
मनाल ने झूठ बोला,
"मैं आज छुट्टी ले लेती,
मगर मुझे पहले से जरूरी मीटिंग्स थीं...
मुझे नहीं पता था कि आप आज आने वाले हैं..."
"कोई बात नहीं...
तुम बस शाम को जल्दी आ जाना...
और हाँ, ब्लू बैग में एक नाइट ड्रेस है तुम्हारे लिए।
रात को पहन कर दिखाना...
देखते हैं कैसी लगती हो..."
आदित्य की बात सुनकर
मनाल का मूड और बिगड़ गया।
उसके चेहरे पर गुस्से की लहर थी,
मगर उसने खुद को संयत रखा।
वह समझ गई थी —
आदित्य आज उसके साथ "कुछ और" सोच कर आया है।
--
आदित्य ऑफिस चला गया।
मनाल भी अपने दफ्तर पहुंची।
मगर उसका ध्यान काम में नहीं लग रहा था।
वह लगातार रात के बारे में सोच रही थी।
"आज रात... वो क्या करेगा?"
उसका मन बेचैन था।
उसे आज आदित्य के इरादे साफ नज़र आ रहे थे।
और वह जानती थी —
यही तो वह रात थी, जिसके लिए यह शादी हुई थी।
वह उससे बचना चाहती थी।
---
मनाल के मन में एक और बात चल रही थी —
नानी की वसीयत।
वकील ने उसे कुछ डॉक्यूमेंट्स और अकाउंट डिटेल्स दिए थे।
कहा था कि वह उस पैसे को अपनी इच्छा से खर्च कर सकती है।
मनाल के पास सब कुछ था,
मगर उसे पैसे नहीं, जवाब चाहिए थे।
"क्या वाकई ये वसीयत हमें एक-दूसरे से जोड़े रखने के लिए बनाई गई थी?"
उसे यह भी बताया गया था
कि इस वसीयत की शर्तों के अनुसार
वह और आदित्य तलाक नहीं ले सकते।
वह चाहती थी आदित्य से इस बारे में खुलकर बात करना —
मगर बात करे कैसे?
आदित्य जब भी उसके पास होता,
बात को छेड़ने ही नहीं देता।
हर बार उसके व्यवहार में शरारत, फ़्लर्टिंग और हंसी-मज़ाक होता।
---
रात होने लगी।
खाना खाने के बाद आदित्य अपने कमरे में चला गया।
मनाल जानबूझकर नीचे नैना और अनीता जी के साथ बैठी रही।
अंदर मन में सोच रही थी —
"अगर मैं यहीं देर तक बैठी रही,
तो आदित्य थक कर सो जाएगा..."
वह उम्मीद लगा बैठी थी कि
"शायद आज रात बच जाऊं..."
मगर जैसा हम सोचते हैं,
वैसा होता कहां है?
---
कुछ देर बाद आदित्य खुद सीढ़ियों तक चला आया,
और नीचे खड़े होकर बोला —
"मनाल, मेरी एक फाइल नहीं मिल रही है।
ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले मैंने कमरे में रखी थी।
आकर देखोगी ज़रा?"
मनाल ने माथा पकड़ लिया।
"इस आदमी को चैन है भी या नहीं...?
क्या ये फाइल का बहाना है या कोई और इरादा?"
नैना हँसते हुए बोली —
"भैया आपको बुला रहे हैं...
आपके बिना उनका मन नहीं लगता!"
अनीता जी ने कहा,
"जाओ बेटा, जाओ।
काम खत्म हो गया है तो अब जाकर देख लो फाइल क्या चाहिए।
नैना, तुम भी अपने कमरे में जाओ।"
अब मनाल के पास कोई रास्ता नहीं बचा था।
मन मारकर, वो सीढ़ियाँ चढ़ने लगी...
---
आदित्य को देखकर मनाल ने मन ही मन सिर पीट लिया।
"...इस आदमी को ज़रा भी चैन नहीं...
जहां देखो मुझे बुलाने का बहाना ढूंढता है।
आख़िर आती तो मैं कमरे में ही...
रात भर क्या लॉबी में ही रहने वाली थी..."
वो खड़ी सोच रही थी कि तभी नैना हँसते हुए बोली,
"भाई आपको बुला रहे हैं...
आपके बिना उनका मन नहीं लगता।
बेचारे कितने दिन बाद ऑस्ट्रेलिया से लौटे हैं...
अब आपको याद तो करेंगे ही!"
अनीता जी ने भी मुस्कराते हुए कहा,
"जाओ बेटा, जाकर देख लो।
आदित्य को जो फाइल चाहिए, ज़रा उसे ढूंढ़ कर दे दो।
नैना, तुम भी अब अपने कमरे में जाओ।"
आख़िरकार, मन मार कर मनाल को जाना ही पड़ा।
---
जैसे ही मनाल कमरे में दाखिल हुई,
आदित्य, जो बिस्तर की टेक लगाए बैठा था, बोल पड़ा —
"अरे माना, तुमने नीचे कितनी देर लगा दी!
मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ।
खाना खाए हुए भी काफी देर हो गई है...
तुम्हें जल्दी आ जाना चाहिए था।
अब मुझे फाइल का बहाना बनाकर बुलाना पड़ा..."
मनाल ने हल्की-सी मुस्कान के साथ जवाब दिया —
"वो नीचे माम को थोड़ी मदद कर रही थी...
इसलिए देर हो गई..."
वो साफ-साफ तो नहीं कह सकती थी कि
वो जानबूझकर आदित्य के सोने का इंतज़ार कर रही थी।
उसकी सारी स्कीम फेल हो चुकी थी।
--
"छोड़ो इन सब बातों को...
देखो ना, तुम्हारे लिए कुछ गिफ्ट्स लाया हूँ।
ज़रा देखो तो, तुम्हें कैसे लगे...
मैंने तुम्हारी पसंद का ध्यान रखकर ही खरीदे हैं..."
आदित्य उत्साहित होकर कह रहा था।
लेकिन जैसे ही "गिफ्ट" शब्द कानों में पड़ा,
मनाल को नाइट ड्रेस की याद आ गई।
उसके माथे पर पसीना आ गया।
"हे भगवान! अब तो मुझे पहननी ही पड़ेगी!"
उसने सोचते हुए माथा पकड़ लिया।
उसे अच्छी तरह पता था कि
जब तक वह वो ड्रेस नहीं पहनेगी,
आदित्य पीछा नहीं छोड़ेगा।
--
अभी वह सोच ही रही थी कि आदित्य बोला —
"अच्छा, अपना हाथ दिखाओ..."
मनाल ने हैरान होकर अपना हाथ आगे कर दिया।
"अब ये क्या करने वाला है...
कभी नाइट ड्रेस, अब मेरा हाथ...
ये आदमी हर दिन नया ड्रामा करता है..."
वो सोच ही रही थी कि आदित्य ने
धीरे से एक खूबसूरत डायमंड रिंग उसके हाथ में पहना दी।
उसका हाथ पकड़कर उसे चूम लिया। ❤️
मनाल थोड़ी सकपका गई, फिर बोली —
"बहुत खूबसूरत है... मगर इसकी क्या ज़रूरत थी?
मेरे पास पहले से ही काफी ज्वेलरी है..."
आदित्य मुस्कराया,
"खूबसूरत तो है... मगर तुमसे ज्यादा नहीं।
और तुमने ये नहीं पूछा कि
मैंने आज ये अंगूठी क्यों दी..."
मनाल ने ठंडी सांस लेते हुए पूछा —
"क्यों...? किसलिए दी ये अंगूठी?"
आदित्य ने शरारत से जवाब दिया —
"मूंह दिखाई दे रहा हूँ तुम्हें।
उस दिन तो तुम सो गई थीं,
जब मैं फोन पर बात करके आया था।
तुम सो रही थी और बहुत प्यारी लग रही थी...
मुझे जगाने का मन नहीं किया।
सोचा आज ही दे दूं...
क्योंकि रात को तो मैं सब भूल ही जाऊंगा..."
उसकी आंखों में मानो प्यार की खुमारी थी।
---
आदित्य की आंखें मानो कुछ और ही कह रही थीं।
वो इस रिश्ते को सिर्फ जिस्म नहीं,
दिल की गहराई से जीना चाहता था।
वो जानता था कि मनाल अभी तक उसे समझ नहीं पाई है।
"...अरे माना, क्या सोच रही हो?
तुम्हें ये रिंग पसंद नहीं आई क्या?"
आदित्य ने धीरे से कहा।
"अगर नहीं पसंद तो मैं दूसरी ला दूँगा...
आओ, मेरे पास बैठो।"
उसने मनाल को पास खींच लिया।
मनाल की धड़कनें तेज़ हो गईं।
"तुम कुछ कहना चाहती हो?
तो कहो... मुझसे मत छुपाओ..."
वो हकलाते हुए बोली —
"...असल में... मैं... टाइम चाहती हूँ..."
आदित्य ने गंभीरता से पूछा —
"किस बात के लिए?"
वो नजरें झुकाकर बोली —
"मैं... इस रिश्ते को आगे बढ़ाने से पहले...
थोड़ा वक़्त चाहती हूँ।
अगर आपको ऐतराज़ न हो तो..."
वो यह सोचते हुए कांप रही थी कि
"जिस वजह से आदित्य ने मुझसे शादी की,
अब मैं वही चीज़ रोक रही हूँ...
क्या वो ये बात मानेगा?"
---
आदित्य ने चुपचाप उसकी बात सुनी।
कुछ देर बाद बोला —
"ठीक है... मगर मेरी एक शर्त है...
मंज़ूर हो तो सुनो..."
मनाल ने बिना सोचे ही कहा —
"ठीक है..."
"तो सुनो, इस रिश्ते को हम तब तक आगे नहीं बढ़ाएंगे
जब तक तुम न चाहो।
मगर तुम मेरे साथ ही रहोगी —
मेरे ही कमरे में, मेरे ही बेड पर।
मैं जब चाहूं तुम्हें बाहों में ले सकूं,
तुम्हें प्यार कर सकूं —
बिना टोके..."
मनाल ने सिर थाम लिया।
"हे भगवान! मुझे तो उसकी बात पूरी सुनकर हां कहना चाहिए था!"
वो अब पछता रही थी कि
जल्दबाज़ी में "ठीक है" क्यों कह दिया।
-
आदित्य ने फिर पूछा —
"तुम्हें कितना टाइम चाहिए? आज ही बता दो..."
मनाल सोचने लगी कि
क्या कहे —
वो दो हफ्ते कहना चाहती थी।
"...एक... एक नहीं, दो..."
वो बोल ही रही थी कि
आदित्य ने बीच में ही कहा —
"ठीक है, दो महीने!
कोई बात नहीं... ये भी गुज़र जाएंगे..."
मनाल हैरान रह गई।
"मैं तो सिर्फ दो हफ्ते कहना चाहती थी,
पर उसने खुद ही दो महीने दे दिए!"
---
आदित्य जानता था —
मनाल अभी उससे नफरत करती है।
शायद वह सिर्फ अपने पापा के लिए इस रिश्ते में आई है।
मगर वह हर हाल में उसका दिल जीतना चाहता था।
वो चाहता था कि
मनाल जाने —
उसका प्यार सच्चा है।
---
मनाल ने झिझकते हुए पूछा —
"मेरे मन में एक बात थी...
मैं आपसे पूछ सकती हूं?"
"पूछो... जो भी पूछना है, पूछो..."
आदित्य ने मुस्कुराते हुए कहा।
"...उस दिन वकील साहब ने जो वसीयत पर साइन करवाए थे...
पापा ने मुझे नानी की वसीयत के बारे में कुछ बताया था,
मगर उनकी बात मुझे समझ नहीं आई..."
"...आख़िर उस वसीयत में ऐसा क्या था
जो हमारी शादी के बाद बताना जरूरी समझा गया?"
---
मेरे मन में एक बात है... मैं आपसे कुछ पूछूं? मैं कई दिनों से पूछना चाह रही थी..."
मनाल ने झिझकते हुए आदित्य की तरफ देखा।
"...पूछो न, क्या पूछना है? तुम्हारे मन में जो भी सवाल हैं, सब मुझसे पूछ सकती हो।
सवाल पूछने के लिए तुम्हें मुझसे परमिशन लेने की जरूरत नहीं है..."
आदित्य ने मुस्कुराते हुए कहा।
"...उस दिन वकील साहब ने जो नानी जी की वसीयत पर मेरे साइन करवाए थे...
वसीयत के बारे में पापा ने मुझे कुछ बताया था,
लेकिन उनकी बात मुझे ठीक से समझ नहीं आई।
मैं उसी बारे में जानना चाहती थी... वसीयत को लेकर मेरे मन में बहुत सवाल हैं..."
मनाल ने संकोच में कहा।
"...मेरे ख्याल से उस दिन डैड ने तुम्हें सब कुछ बता तो दिया था।
कुछ रह ही नहीं गया था बताने को।
ये सीधी सी बात है — वो मेरी नानी की प्रॉपर्टी है।
क्योंकि मेरी मम्मी उनकी इकलौती संतान थीं,
तो उनके बाद उनकी सारी संपत्ति मेरी हुई।
अब शादी के बाद उस प्रॉपर्टी के हम दोनों मालिक हैं।
मगर न तुम उसे बेच सकती हो,
न मैं।
हम दोनों उसे सिर्फ अपने बच्चों को दे सकते हैं,
वो भी तब जब वो अठारह साल के हो जाएंगे।
अगर उससे पहले हमारा तलाक हो गया,
तो वो प्रॉपर्टी सीधे बनारस के एक आश्रम को चली जाएगी।
फिर न वो मुझे मिलेगी, न तुम्हें।
हाँ, उस प्रॉपर्टी से जो आमदनी होगी,
वो हम दोनों को आधी-आधी मिलेगी —
जिसका हिसाब हमें किसी को नहीं देना।
तुम चाहो तो उस पैसे को अपनी मर्जी से खर्च कर सकती हो..."
आदित्य ने विस्तार से समझाते हुए कहा।
"यही बताया था न तुम्हें डैड ने?"
"...हाँ, यही बताया था..."
मनाल ने हल्के स्वर में कहा।
"...तो फिर इसमें कंफ्यूजन क्या है?
ये तो एकदम सीधी बात है।
क्या तुम्हें इसमें कुछ उलझन लगती है?"
"...आपको ये सब बातें पहले से पता थीं न?
वसीयत की जो शर्तें हैं...
मैं उसी के बारे में बात कर रही हूं..."
मनाल ने उसे देखते हुए पूछा।
"...हाँ, बिल्कुल।
ये बात तो मुझे बचपन से ही पता है।
नानी मां की वसीयत के बारे में सबको पता है।
जबसे होश संभाला है,
तबसे जानता हूं कि मुझे नानी मां की प्रॉपर्टी नहीं मिलेगी,
बल्कि मेरे बच्चों को मिलेगी —
तब, जब मेरी शादी कायम रहेगी..."
आदित्य ने बिल्कुल सहज होकर जवाब दिया।
"...इस वसीयत के बारे में जानते हुए भी आपने मुझसे शादी की?"
मनाल की आँखें हैरानी से फैल गईं।
"...इस वसीयत का हमारी शादी से क्या लेना-देना?
शादी अपनी जगह है, वसीयत अपनी जगह।
जिस लड़की से मैं शादी करूंगा,
उसे इस प्रॉपर्टी पर अधिकार मिलेगा।
अगर उसे तलाक दे दूं,
तो मेरा हक भी चला जाएगा।
सीधी सी बात है..."
आदित्य ने नज़रें टिका कर कहा।
"...आपने मुझसे एक डील के तहत शादी की है।
जब वो डील पूरी हो जाएगी,
तो शायद आप मुझसे तलाक लेना चाहेंगे।
तो क्या आप चाहेंगे कि आपकी प्रॉपर्टी ऐसे ही चली जाए?
आप उस प्रॉपर्टी के मालिक न रहें?"
मनाल ने थोड़ा रूखे स्वर में कहा।
"...क्यों, क्या डील हुई थी हमारी?
तलाक की तो कभी बात ही नहीं हुई।
हमारी तो बस शादी की बात हुई थी..."
आदित्य ने शांत लहजे में कहा।
"...आपको नहीं पता?
आपने किस डील के तहत मुझसे शादी की है?
हाँ, ये बात सही है कि तलाक को लेकर सीधा कुछ नहीं कहा गया था,
मगर वो डील... सबको पता है..."
"...पता तो मुझे है...
फिर भी तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं।
हाँ, बताओ तो सही एक बार...
अब ये तलाक की बात बीच में कहां से आ गई?"
आदित्य ने गहराई से उसकी आँखों में देखा।
मनाल के लिए ये बात बोलना बेहद मुश्किल था,
फिर भी उसने साहस कर कहा —
"...यही कि... आप मेरी हेल्प करेंगे...
और... और उसके बदले में...
आप मेरे साथ... एक या एक से ज़्यादा रातें बिताएंगे..."
यह कहते हुए उसकी आँखें भर आईं,
जिन्हें उसने बड़ी कोशिश से छिपाने की कोशिश की —
मगर आदित्य की नज़रों से कुछ नहीं छुपा।
उसने हल्के से कहा —
"...हाँ, तो मैंने ये कब कहा था कि मैं तुमसे तलाक लेना चाहूंगा?
मैंने तो तुमसे सिर्फ शादी की बात की थी।
नानी की वसीयत से उसका कोई वास्ता नहीं है।
जब हमारे बच्चे होंगे, और वो अठारह के हो जाएंगे,
तो हम उन्हें प्रॉपर्टी दे देंगे।
इसमें और क्या है?"
"...मेरा मतलब है..."
मनाल हकलाने लगी।
"...हाँ-हाँ, बोलो..."
आदित्य ने उसे प्रोत्साहित किया।
"...जब मैं आपको अच्छी लगना बंद हो जाऊंगी,
जब आपका मन मुझसे भर जाएगा,
तब आप मुझसे तलाक तो लेंगे ही...
और अगर आपने तलाक लिया,
तो वो सारी प्रॉपर्टी चली जाएगी।
जिस वजह से आपने मुझसे शादी की,
उस वजह से तो आप पूरी उम्र मेरे साथ नहीं बिताना चाहेंगे...
एक दिन तलाक तय है..."
उसका गला भर आया था।
आदित्य मुस्कराया —
"...तो बात ये है?
अरे, मैंने इतना लंबा तो सोचा ही नहीं था...
लेकिन इसका इलाज भी है मेरे पास..."
मनाल ने चौंककर उसकी तरफ देखा।
"...देखो 😜 एक बार में कुछ नहीं होगा,
तो दूसरी बार... दूसरी बार में नहीं,
तो तीसरी बार।
मतलब, हम दोनों कोशिश तो करेंगे ना...
देखेंगे कितनी मेहनत लगती है हमें बेबी के लिए।
फिर 9 महीने... फिर वो अठारह साल का होगा...
फिर हम अपनी खुशी से वो प्रॉपर्टी उसके नाम कर देंगे।
असल में करनी नहीं पड़ेगी,
वो खुद-ब-खुद उसकी हो जाएगी।
तलाक तो हम उसके बाद भी ले सकते हैं!
और ये भी हो सकता है कि
हमारा बच्चा ही हमें तलाक न लेने दे...
हम तो उसके खिलाफ जा भी नहीं पाएंगे ना...
हर बात तो उसकी माननी पड़ेगी!"
ये कहते हुए आदित्य ने एकदम संजीदा चेहरा बना लिया।
"...मगर इसमें देरी का कारण तो तुम हो।
तुम्हारी वजह से ही सब रुक रहा है..."
उसने हँसते हुए कहा।
"...मैं? वो कैसे?"
मनाल ने चौंककर पूछा।
"...देखो न, जो 9 महीने से पहले की मेहनत है,
वो तुम नहीं करने दे रही हो।
अगर तुम चाहो तो वो 9 महीने जल्दी आ सकते हैं..."
अब आदित्य के चेहरे पर शरारत छलकने लगी थी।
मनाल उसकी तरफ ऐसे देखने लगी
जैसे कोई बच्चा गणित का सवाल पहली बार पढ़ रहा हो।
"...अब हर बात तो साफ-साफ कहनी नहीं चाहिए,
थोड़ा इंसान खुद भी तो समझे..."
आदित्य मन में सोच रहा था।
"...कोई बात नहीं, समझी तुम?"
उसने पूछा।
"...नहीं..."
मनाल ने सिर हिला दिया।
"...अरे वही, जो तुमने कहा कि तुम्हें दो महीने का टाइम चाहिए।
अगर वो दो महीने तुम नहीं लेतीं,
तो ये 9 महीने जल्दी आ सकते थे।
फिर हमारा बच्चा अठारह साल का होता,
और फिर हम प्रॉपर्टी उसके नाम कर देते।
देखो, मैं तो तैयार हूं...
मगर तुम ही मुझे पास नहीं आने दे रही हो..."
अब जाकर मनाल को आदित्य का मतलब समझ में आया।
"हे भगवान!"
उसने मन ही मन कहा और गुस्से से उठ खड़ी हुई।
"...मैं आपसे कुछ और पूछ रही हूं
और आप हर बार बात घुमा देते हैं।
क्या आप किसी सवाल का सीधा जवाब नहीं दे सकते?"
वो झुंझलाकर बोली।
"...मैंने तो सिर्फ सच ही कहा है...
अब इसमें गुस्सा होने वाली क्या बात है..."
आदित्य ने शांत भाव से कहा।
मनाल बिना कुछ कहे कमरे से बाहर चली गई।
उसे आदित्य की बातों में मज़ाक नज़र आ रहा था,
जबकि वो गंभीर सवाल पूछ रही थी।
-
उसके जाने के बाद आदित्य चुपचाप मुस्कराया।
"...तुम ही मेरी बीवी बनी हो...
मेरे बच्चों की मां भी तुम ही बनोगी।
हम अठारह साल क्या — पूरी ज़िंदगी साथ बिताएंगे।
मैं तुम्हें अपने प्यार का अहसास कराके ही रहूंगा।
तुम सोच भी नहीं सकती माना...
मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं।
मुझे अपनी ज़िंदगी सिर्फ तुम्हारे साथ ही बितानी है —
चाहे वो प्यार में हो... या लड़ाई में...❤️"
---
मनाल तौलिया उठाकर बाथरूम में नहाने चली गई।
इधर आदित्य एकटक दीवार को देखते हुए सोचने लगा,
"...तुम ही मेरी पत्नी बनी हो... मेरे बच्चों की मां भी तुम्हें ही बनना है।
हम ज़िंदगी के सिर्फ 18 साल नहीं, पूरी ज़िंदगी एक साथ बिताएंगे।
मुझे अपना प्यार जताना आता नहीं, लेकिन तुम्हें महसूस ज़रूर कराऊंगा।
तुम सोच भी नहीं सकती मनाल, मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं।
मुझे अपनी पूरी ज़िंदगी तुमसे ही लड़ते-झगड़ते गुज़ारनी है..."
थोड़ी देर बाद मनाल नहाकर बाहर आई।
उसने लोअर और टी-शर्ट पहन रखी थी।
वो देखती है कि आदित्य किसी से फोन पर बात कर रहा है।
फोन काटते ही आदित्य मुस्कुराते हुए बोला,
"चलो... तैयार हो जाओ, बीवी।"
"मगर... कहां? वो भी इस वक्त? अब तो रात भी काफी हो चुकी है..."
मनाल ने हैरानी से पूछा।
"सरप्राइज़ है!" आदित्य ने आंखें चमकाकर कहा,
"और सरप्राइज़ पहले से नहीं बताए जाते। गैस करो, कहां चल रहे हैं?"
वो मुस्कुराते हुए उसका हाथ पकड़ता है और गाड़ी तक ले जाता है।
"बताइए तो सही, हम कहां जा रहे हैं... वो भी इन कपड़ों में?
आप इतना सस्पेंस क्यों क्रिएट कर रहे हैं?
मुझे तो घबराहट हो रही है, आप कुछ बताते क्यों नहीं?"
मनाल लगातार सवाल करती रही,
मगर आदित्य चुपचाप गाड़ी स्टार्ट कर देता है।
रास्ते भर मनाल बाहर देखती रही, अंदाज़ा लगाने की कोशिश करती रही।
"...ये रास्ता तो हॉस्पिटल की तरफ जाता है...
क्या हम हॉस्पिटल जा रहे हैं? पापा ठीक तो हैं न?"
उसकी आवाज़ में चिंता झलक रही थी।
गाड़ी हॉस्पिटल के सामने जाकर रुकती है।
आदित्य मुस्कुराते हुए कहता है,
"चलो उतरो बीवी... जहां पहुंचना था, वहां आ गए हैं।"
"यहां? पापा यहां एडमिट हैं... सब ठीक तो है न?
मुझे उनकी बहुत चिंता हो रही है..."
मनाल जल्दी से उतरती है।
आदित्य आगे-आगे चलने लगता है, और मनाल उसके पीछे दौड़ती है।
"आप धीरे नहीं चल सकते क्या?
मैं तो पीछे ही रह जाती हूं...
मुझे आपके पीछे भागना पड़ रहा है..."
जैसे ही वे कमरे में पहुंचते हैं,
मनाल देखती है कि उसके पापा बैठकर मुस्कुरा रहे हैं,
और उसकी मां उन्हें दवाई दे रही हैं।
आदित्य आगे बढ़कर महेश जी को गले लगाता है।
"पापा! कैसे हैं आप? अब कैसा महसूस कर रहे हैं?"
आदित्य ने भावुकता से पूछा।
मनाल अपने पापा को इस हालत में ठीक-ठाक देखकर बेहद खुश हो गई,
मगर जब उसने आदित्य को अपने पापा से लिपटते हुए
"पापा" कहते सुना, तो उसके अंदर जैसे कोई चिंगारी सी सुलग उठी।
"...ये मेरे पापा हैं... ये क्यों गले लग रहा है मेरे पापा को...?
उसे क्या हक है मेरे पापा को ‘पापा’ कहने का..."
वो मन ही मन कुड़क रही थी।
मनाल दौड़ती हुई पापा के पास पहुंची और उन्हें कसकर गले से लगा लिया।
उसकी आंखों से खुशी और दुख के मिले-जुले आंसू बहने लगे।
"पापा... आप कैसे हैं? अब कैसा लग रहा है?
आप होश में कब आए थे?"
उसकी आवाज़ कांप रही थी।
महेश जी उसे सीने से लगाते हुए बोले,
"अब क्यों रो रही हो, बच्चा? मैं अब बिल्कुल ठीक हूं।
तुझे कैसे लग रहा है कि तेरा बाप हार मान लेगा?
बुरा वक्त था, निकल गया। भगवान की कृपा है।"
"पापा, आप तो एक ही दिन में इतने ठीक कैसे हो गए?
ICU से तो रूम में भी शिफ्ट कर दिया गया है..."
मनाल ने आश्चर्य से पूछा।
"बेटा, एक दिन में नहीं...
मुझे होश तो तुम्हारी शादी के अगले ही दिन आने लगा था।
मगर डॉक्टरों और तुम्हारी मां ने किसी को बताने से मना कर दिया।
जान को खतरा था — सिक्योरिटी की वजह से सब छुपाया गया।"
अभी वह और कुछ कहते,
तभी आदित्य बीच में बोल पड़ा —
"अरे मॉम, एक कप चाय तो पिला दीजिए।
चाय पीने का बहुत मन कर रहा है।"
साथ ही वह आंखों के इशारे से महेश जी को कुछ इशारा करता है।
महेश जी बात बदल देते हैं।
मगर मनाल ने वो इशारा देख लिया था।
उसे अब आदित्य पर शक होने लगा।
"...पापा, आप कोमा में थे, और मैंने शादी कर ली...
एक अच्छी बेटी ऐसे कैसे शादी कर सकती है?
आपको बुरा तो लगा होगा न?"
उसकी आवाज़ टूट रही थी।
"अरे मेरी बच्ची... मुझे कोई बुरा नहीं लगा।
बल्कि होश में आकर मुझे बहुत खुशी हुई।
मैंने तो भगवान का शुक्र मनाया कि
मुझे इतना अच्छा दामाद और परिवार मिला।
अगर मैं खुद भी खोजता तो आदित्य जैसा दामाद नहीं मिल पाता।
मैं बहुत खुश हूं तेरे लिए, बेटा।"
"अब अगला महीना आ रहा है,
तेरा भाई आ जाएगा — वो फैक्ट्री संभालेगा।
तू अपनी गृहस्थी संभाल।
मुझे पता है तुझे बिज़नेस का शौक नहीं।
अब तो दिल में एक और ख्वाहिश जाग गई है...
तेरे बच्चों से खेलने की...
मुझे और तेरी मां को ‘नाना-नानी’ कहने वाला चाहिए..."
ये सुनकर आदित्य के चेहरे पर शरारत तैर गई।
उसने चुपके से मनाल की तरफ देखा और आंख मारी।
मनाल का तो खून खौल गया।
उसका मन हुआ कि आदित्य का सिर फोड़ दे।
"...ये क्या चल रहा है...?
पहले ये बच्चों की बात करता है,
अब पापा भी शुरू हो गए...
लगता है सारा घर प्लान बनाकर बैठा है मुझे मां बनाने का...
मैं तो सोच रही थी कि पापा ठीक हो जाएं,
तो इस आदित्य से तलाक ले लूं...
अब सब उल्टा चल रहा है..."
दीपा जी ने बात संभालते हुए कहा,
"बेटा, अब बहुत रात हो गई है।
तुम दोनों अब घर जाओ।
कल आ जाना।
पापा को भी रेस्ट चाहिए, और तुम लोगों को भी।"
"माम, मैं यहीं रुक जाती हूं न?
मेरा मन कर रहा है पापा के पास रुकने का..."
मनाल ने नर्मी से कहा।
"नहीं बेटा, अभी यहां सिर्फ एक अटेंडेंट ही रुक सकता है।
तू सुबह जल्दी आ जाना..."
दीपा जी ने स्पष्टता से मना कर दिया।
मनाल का बिल्कुल भी मन नहीं था,
मगर उसे न चाहते हुए भी जाना पड़ा।
अब उसके मन में एक और सवाल था —
"आदित्य ने पापा को इशारे में कुछ कहने से क्यों रोका था?
क्या छुपा रहा है वो मुझसे?
कहीं जैसे उसने मुझसे डील की,
वैसे ही पापा से भी तो कुछ नहीं किया...?
उसने पापा को कोई मजबूरी में तो नहीं डाला?"
उसके मन में शक गहराने लगा था।
अब वो आदित्य से ये जवाब जरूर लेगी —
साफ-साफ और सीधे शब्दों में।
---
... "नहीं बेटा, तुम यहाँ नहीं रुक सकतीं। तुम्हारे पापा के पास सिर्फ कोई एक ही रुक सकता है... तुम सुबह आ जाना। अब तुम लोग जहाँ से आए हो, वहीं लौट जाओ..."
दीपा जी ने जबरदस्ती दोनों को भेज दिया। मनाल का बिल्कुल भी मन नहीं था। उसे ना चाहते हुए भी लौटना पड़ा। उसके मन में ढेरों सवाल उठ रहे थे—खासतौर पर आदित्य को लेकर।
"...उसने पापा को क्यों रोका?... क्या बात थी जो इशारे में कही?... क्या कोई चाल चल रहा है आदित्य?... क्या उसने पापा से भी कोई डील की है, जैसे उसने मुझसे की थी?..."
उसका शक अब और गहरा होने लगा था।
---
गाड़ी में मनाल और आदित्य
मनाल, आदित्य के साथ अस्पताल से घर लौट रही थी। रास्ते भर उसके दिमाग में सवालों का तूफ़ान था। वो जानती थी, आदित्य से सीधे कुछ पूछना बेकार होगा। वो बात को घुमा देगा, जैसे हमेशा करता है। "अबकी बार मुझे कोई ऐसा तरीका अपनाना होगा कि वो जवाब देने से बच ही ना सके," उसने सोच लिया।
"गाड़ी रोको आदित्य!" मनाल ने अचानक कहा।
"क्या हुआ? सब ठीक है?" आदित्य ने गाड़ी रोकते हुए पूछा।
जैसे ही गाड़ी रुकी, मनाल दरवाजा खोलकर उतर गई। आदित्य भी तुरंत पीछे उतरा।
"बीच रास्ते क्यों उतर रही हो, माना? क्या हुआ? मैं तो जबरदस्ती नहीं लाया तुम्हें, मम्मी ने भेजा था..."
"मुझे भी जानना है कि आपने पापा को इशारे में क्या कहा था! मैंने आपको उनका हाथ पकड़ते देखा था। मुझे सब दिखा है। बहुत चालाक मत बनो, आदित्य!"
"मैंने कुछ नहीं किया, तुम्हें गलतफहमी हुई है... चलो गाड़ी में बैठो, बच्चों की तरह मत बिहेव करो माना..."
"नहीं! मैं यहीं रहूंगी। आप पहले सच बताइए।"
आदित्य ने समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन माना टस से मस नहीं हुई। उसने सड़क किनारे बैठने तक की ठान ली।
"अच्छा ठीक है, रहो यहाँ... आधी रात है, डर लगने लगेगा तो खुद चली आओगी... चोर-डाकू उठाकर ले जाएंगे!"
आदित्य ने गाड़ी में बैठते हुए कहा, पर उसका मज़ाक मनाल पर असर नहीं कर पाया। वह चुपचाप सड़क किनारे बैठी रही।
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आदित्य ने गुस्से और चिंता के बीच हार मान ली। वो फिर से नीचे उतरा।
"ठीक है, पूछ लो जो पूछना है... लेकिन यहाँ नहीं, घर चलकर। यह जगह सुरक्षित नहीं है।"
"और अगर घर जाकर आप मुकर गए तो?"
"नहीं मुकरूंगा। पूछ लेना जो पूछना है। वैसे भी, तुम्हारी ज़िद का मुझे अब तक अंदाज़ा नहीं था!"
"पहले कसम खाइए... उस इंसान की, जिसे आप सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं!"
आदित्य ने मनाल के सिर पर हाथ रख दिया।
"मैं तुम्हारी कसम खाता हूँ, माना। सच के सिवा कुछ नहीं बोलूंगा।"
एक पल को मानाल चौंक गई।
"मैंने तो कहा था जिसे आप सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं, उसकी कसम खाइए। आपने मेरी कसम क्यों खाई?"
"तो क्या पता... शायद मेरी ज़िंदगी में सबसे प्यारी चीज़ तुम ही हो। न माँ है, न बच्चे... जिसे भी देखता हूँ, तुम्हारी कसम खा सकता हूँ।"
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"ठीक है, लेकिन सुन लीजिए—अगर घर जाकर आपने एक भी बात छुपाई, तो सब खत्म कर दूंगी... सारी डील, सब कुछ!" मनाल ने कहा और गुस्से में जाकर गाड़ी में बैठ गई।
आदित्य मन में मुस्कुराया: "कितनी ज़िद्दी है... जैसे बच्ची बन गई हो आज।"
रास्ते भर दोनों में एक भी बात नहीं हुई। माना आदित्य से नजर तक नहीं मिला रही थी। उसके मन में कई कहानियाँ घूम रही थीं—
"...कहीं फैक्ट्री चाहिए तो नहीं इसको?... पापा को ब्लैकमेल तो नहीं कर रहा?... अचानक पापा चुप क्यों हो गए?..."
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घर पहुँचने पर आदित्य ने गाड़ी रोकी।
"माना, आ गया घर... अब तो नीचे उतरो... या यहीं गाड़ी में रात बिताओगी?"
माना चुपचाप उतरकर सीधे अपने कमरे में चली गई और आदित्य से सीधा सवाल किया:
"अब बताइए... क्या खेल चल रहा है?... मेरे पापा से आप क्या चाहते हैं?... कौन-सी चालें चल रहे हैं उनके साथ?... मुझे झूठ मत बोलिए! मुझसे जो करना है कीजिए, लेकिन मेरे परिवार से दूर रहिए!"
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आदित्य को अब समझ आ गया था कि बात को और छुपाना सही नहीं होगा। मनाल अब उसे शक की नजर से देखती है, और उसके लिए आदित्य की कोई बात मायने नहीं रखेगी—जब तक वो सबूत के साथ बात न करे।
अब समय आ गया था कि वह सच्चाई बता दे।
वो सच्चाई जो बहुत खतरनाक थी।
जिसका संबंध फैक्ट्री से था, एक्सीडेंट से था, और एक ऐसी साज़िश से जो मनाल के परिवार को तहस-नहस कर सकती थी। आदित्य अब चाहता था कि माना को ये सब जानना चाहिए — लेकिन वह कैसे रिएक्ट करेगी, इसका डर भी था।
पर अब, कोई और रास्ता नहीं बचा था।
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