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Twisted love

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PB nyx

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Description

यह कहानी है आश्वि और निदान के बेपनाह इश्क की—एक ऐसा प्यार जो किस्मत के क्रूर खेल में उलझकर रह गया। जन्म के समय अस्पताल की एक गलती ने आश्वि को निदान की बहन बना दिया। सालों तक वे इसी रिश्ते में बंधे रहे, सच्चाई से बेखबर। लेकिन जब हकीकत सामने आई,...

Total Chapters (9)

Page 1 of 1

  • 1. Twisted love - Chapter 1

    Words: 1492

    Estimated Reading Time: 9 min

    होटल इंपीरियल , 

    (गर्वित का केबिन)

    "सर, आपने बुलाया?"

    आश्वी, जो कि पहले ही चिड़ने की अपनी परम सीमा पर पहुंच चुकी थी, ने ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए अपने सामने पड़ी ऑफिस मेज़ के दूसरी तरफ  कुर्सी पर बैठे अपने बॉस गर्वित को लगभग घूरते हुवे पूछा , जो कि एक छोटे बच्चे की तरह मजे से अपनी कुर्सी पर गोल-गोल घूमते हुवे   ,अपने हाथ में पकड़ी stress ball से खेल रहा था ।

    आश्वी की आवाज में एक चिड़न महसूस करते हुवे गर्वित  ने अचानक अपनी ये खुद की बनाई सवारी को विराम दिया  और नज़रें उठाकर आश्वी को देखा—नहीं, सिर्फ देखा, यह कहना सही नहीं होगा बल्कि नीचे से ऊपर तक अच्छे तरीके से स्कैन किया । फिर अपनी stress ball को टेबल पर रखते हुवे शरारती मुस्कान के साथ, फ्लर्टिंग वाले अंदाज में बोला—

    "आश्वी…  ओह आश्वी, मेरी होशियार, सबसे समझदार और सबसे प्यारी सेक्रेटरी!"

    आश्वी जो अब तक आराम से खड़ी थी ने जोर अपनी आंखें गर्वित की तरफ  घुमाई कि अगर ज़्यादा हो जाता तो शायद  आँखें सिर के पीछे ही रह जातीं। खैर पर वो जानती थी अपने बॉस का नेचर जो हर किसी से हमेशा फ्लर्ट करता रहता तो सच कहे तो यह उसके लिए नया तो नहीं था ।

    "सर, प्लीज़…अब क्या आप सीधा मुद्दे पर आयेंगे । आपको क्या चाहिए?"

    "एक पार्टी!"

    “एक पार्टी ?”

    आश्वी ने अपनी आँखें छोटी करते हुवे गर्वित के फेस की तरफ  यह सोचते हुए देखा  कि कही उसने सही सुना है या नहीं।  और एक बार फिर से कंफर्म करने के लिए उसने पूछा, "पार्टी?" आपने पार्टी ही कहा ना sir?

    "हां!  पार्टी और  वो भी एक ऐसी शानदार पार्टी होनी चाहिए कि लोग अपनी ज़िंदगी पर ही सवाल उठाने लगें!"  ऐसा कहते हुवे गर्वित  की आंखें खुशी से चमक उठीं।

    “ एक और पार्टी ”आश्वी ने अपना  माथा पकड़ लिया , क्योंकि सच कहे तो इस महीने में गर्वित ने अब तक  ऐसी चार पार्टी को पहले ही अरेंज करवा चुका था ।

    और वो "किस खुशी में?" sir  उसने sir शब्द पे जोर डालते हुवे अपनी आँखें रोल करते हुवे पूछा ।

    गर्वित ने एक बार फिर से अपनी proud मुस्कान बिखेरते हुवे कहा, अरे यार , "मेरी महानता का बखान करने के लिए!" और किस लिए ।

    "हे भगवान..." आश्वी ने मन ही मन में अपने इस सेल्फ ऑब्सेस्ड बॉस  को कोसा।

     ये फिर से  शुरू हो गया!

    तो इसका मतलब…की  ” ये एक self-appreciation पार्टी होने वाली है, है ना सर?"मैने ठीक कहा ना?

    गर्वित  जो अपने सामने खड़ी आश्वी के हर एक वियर्ड और शॉकिंग एक्सप्रेशन को एंजॉय कर रहा था ,ने पूरी मासूमियत से सिर हिलाया। 

    "बिल्कुल! लेकिन business networking और… थोड़ा romance भी!"

     "एक मिनट… romance?" आश्वी ने लगभग चौंकते हुवे कहा ।

    गर्वित  ने अपनी आंखें बंद कर के सपनों में खो जाने वाला एक्सप्रेशन बनाते हुवे कहा । अरे मेरी प्यारी सेक्रेटरी आश्वी, जरा "सोचो… 

    मैं एकदम dashing टक्सीडो में, शहर की high-profile पार्टी में सबकी नज़रों का center, और तुम—"

    और मैं? ..

    "और मैं क्या Sir?" आश्वी ने अपने चेस्ट पे हाथ बांधते हुए पूछा। 

    और मैं "Fire extinguisher? ताकि आपका ego जलने लगे तो मैं उसे ठंडा कर सकूं?"

     "नहीं रे… मेरी date! और क्या!" गर्वित ने आंख मारते हुवे कहा !

    आश्वी जो अब तक की बिना सर पर की बातों से लगभग अपना मानसिक संतुलन खोने ही वाली थी ने अब  एक लंबी सांस ली। एवरीथिन इस फाइन, फुह्ह्ह ।। खुद को शांत करते हुवे बोली ,

    "मतलब हमें और कोई काम नहीं है, है ना?"

    गर्वित  ने  एक टीजिंग स्माइल देते हुवे, टेबल पर दोनों हाथ टिकाते हुए कहा, "अरे, ये भी काम ही तो है!" मेरी प्यारी सेक्रेटरी।

    आश्वी जो अब तक अपने बॉस से हार मान ही चुकी थी , 

    "ठीक है सर…  और आपकी  कोई special requirements?"

    अरे , 

    "हाँ! पहले तुम  ये guest list देखो।" गरवित ने एक लिस्ट आश्वी की  तरफ बढ़ाई।

    आश्वी ने लिस्ट को पढ़ना शुरू किया—और जैसे जैसे वो लिस्ट को पड़ती जा रही थी, वैसे वैसे उसकी आँखें सिकुड़ती जा रही थी, ।। यह लड़का सच में पागल है ।(उसने खुद से ही बुदबुदाते हुवे कहा)

    "Bollywood celebrities, sports personalities, politicians, businessmen, mayor… wow इसने किसी को भी लिस्ट से बाहर नहीं छोड़ा था ।

    "सर," 

    आश्वी ने नकली मुस्कान के साथ कहा, "आप शायद President of India को बुलाना भूल गए?"

    गर्वित  ने  भी एक चिड़ा देने वाली मुस्कान के साथ बोला  । 

    "अरे हां! Thank God तुमने याद दिलाया...तुम नहीं होती तो क्या ही होता मेरा।,वैसे  उनका नंबर तो होगा ही ना तुम्हारे पास?" चलो उनको भी बुला लो ,और इसके साथ वो ठहाका लगा के हंसने लगा ।

    आश्वी ने एक बार फिर से अपना  माथा पकड़ लिया। ये इंसान sarcasm समझता भी है या नहीं?

    क्या अब मेनू की बात करे sir, आश्वी ने बात को सही ट्रैक पे लाते हुवे पूछा , 

    गर्वित  ने  अब पूरे जोश में— "हाँ! एक काम करो , Gold-flaked sushi, खाने वाले फूल, और इतना बड़ा chocolate fountain कि उसमें परिंदे भी नहा लें!"

    आश्वी: "मतलब पार्टी की थीम है— बेवजह पैसे उड़ाओ?"

    गर्वित : "और लग्ज़री! और हां, वेटर्स की accent भी एकदम fancy होनी चाहिए!"

    "Ah, Monsieur, क्या आप अपने caviar के साथ सोने की हवा लेना चाहेंगे?" आश्वी ने फेक एक्सेंट में नकल उतरते हुवे कहा ।

    गर्वित : (हंसते हुए) "देखा! यही वजह है कि मैं तुम्हें अपने साथ रखता हूँ!"

    आश्वी: "मुझे तो लगा कि कोई और आपको  झेल ही नहीं सकता।"

    गर्वित : "वो भी सही है!"

    (आश्वी सिर हिलाते हुए  अपना नोटपैड निकालती है।)

    आश्वी: "ठीक है, पार्टी अरेंज हो जाएगी । लेकिन अगर आपने मुझसे  ज़रा भी फ्लर्ट करने की कोशिश की तो—"

     "तो तुम मान लोगी कि तुम्हें भी मुझमें इंटरेस्ट है?" उतना ही जितना मुझे है । गर्वित ने शरारती हसी के साथ बोला ।

    आश्वी: "नहीं।  इस बार अगर आपने मुझ से फ्लर्ट किया तो मैं आपकी शैम्पेन में सिरका मिला दूंगी।

    गर्वित : (सदमे में) "क्या!   तुम्हे पता है ना में सिरके से में मर भी सकता हु ,यार तुम तो बहुत निर्दयी  हो?"

    "मेरे mentor तोह आप ही है !" Right sir , आश्वी ने मुस्कुराते हुवे कहा , 

    तो अब अगर आपको कोई और काम नहीं है तोह में चलू sir, क्योंकि वो क्या है ना कि, मुझे बहुत काम है ,उसने गर्वित को एक एक चिड़ा देने वाली स्माइल देते हुवे कहा।

    (इतना कह कर आश्वी दरवाजे की तरफ बढ़ती जाती , और गर्वित  बस  उसे जाते हुए देखता  है, पूरी तरह entertained और impressed।)

     "आश्वी, ये जो हमारे बीच tension है ना— it’s electric, you know!" गर्वित ने पीछे से लगभग चिल्लाते हुवे कहा , 

    "वो tension नहीं, मेरी तुम्हें करंट देने की इच्छा है।" आश्वी ने बिना मुड़े , अपने मन ही मन में कहा 

     

    और 

    अचानक सब रुक गया...

    "Hey buddy, Nidan! How are you doing, man?"

    गर्वित  के मुंह से निकले इस एक नाम ने दरवाजे से बाहर जाती आश्वी के कदमों को जैसे जमीं में  जकड़ लिया। अचानक उसे अपने पैरों में दम ही महसूस नहीं हुआ।

    ”निदान ”

    वो झटके से गर्वित की तरफ  घूमी।

    गर्वित , जो अब भी अपने  फोन पर किसी से बात कर रहा था, आश्वी को यूं पलटकर देखता हुआ पाकर भौहें उचकाते हुवे पूछा 

    "क्या हुआ?"

    आश्वी के होंठ सूख गए। उसने जैसे-तैसे बोलने की कोशिश की। "...कुछ बचा है?"

    "निदान …" उसके मुंह से सिर्फ यही नाम निकला। 

    "One minute, buddy…"

    गर्वित  ने फोन को होल्ड पर डालते हुए अपने सामने फ्रीज हो चुकी आश्वी को गौर से देखा। अबकी बार उसकी आवाज़ में real concern था। "You okay?"

    आश्वी ने खुद को संभालते हुए सिर हिलाया। "नहीं, कुछ नहीं…" उसने जबरदस्ती अपनी अनियंत्रित होती हुई सांसें नॉर्मल करने की कोशिश की, खुद को दिलासा दिया कि ये बस इत्तेफाक होगा।

    और वो जल्दी से ऑफिस के दरवाजे की तरफ बढ़ गई ।

    "पागल हो गई है क्या आश्वी? निदान क्या सिर्फ एक ही है?इस  दुनिया में 7 बिलियन लोग हैं, और न जाने कितनों का नाम Nidan होगा।"

    मगर यह दिल कहां सुनता है logic की ज़ुबान? उसे तो वही चाहिए… जो ये चाहता।

    सिर्फ एक नाम ने उसके शांत समंदर जैसे दिल में तूफान ला दिया था।

    और अब वो उस तूफान में डूबती जा रही थी। यादों के भंवर में…

    जहां सिर्फ वो थी… और उसका निदान ।।

    ****************************************

    नमस्कार प्रिय पाठकों,

    आप सब कैसे हैं? उम्मीद है, बहुत अच्छे होंगे! यह मेरी हिंदी में लिखी  पहली किताब है, और दिल से आशा करती हूँ कि इसका पहला अध्याय आपको पसंद आया होगा। अगर आपको कहानी अच्छी लगी, तो अपने विचार कमेंट बॉक्स में ज़रूर साझा करें—आपकी प्रतिक्रियाएँ मेरे लिए बेहद खास हैं!

    आपका एक लाइक और शेयर मुझे आगे लिखने की प्रेरणा देता है, तो कृपया सपोर्ट ज़रूर करें। आपकी सराहना मेरे लिए बहुत मायने रखती है और यही मुझे बेहतर लिखने का हौसला देती है।

    इस कहानी को अपना समय देने के लिए दिल से धन्यवाद! फिर मिलते हैं अगले अध्याय में, तब तक अपना ख्याल रखें।

    आपकी अपनी,

    Novel Fairy.

  • 2. Twisted love - Chapter 2

    Words: 1702

    Estimated Reading Time: 11 min

    आश्वी न जाने कितनी  ही देर से अपनी कुर्सी पर बैठी शून्यता में देख रही थी। उसकी उंगलियाँ अनजाने में कॉफी के मग के किनारे को सहला रही थीं। कप से उठती भाप कब की खत्म हो चुकी थी—ठीक वैसे ही, जैसे उसकी पुरानी यादों की गर्माहट अब ठंडी पड़ चुकी थी।





    बाहर बारिश तेज़ी से कांच की खिड़कियों पर गिर रही थी, और शहर का नज़ारा धुंधला कर रही थी। ठीक वैसे ही, जैसे उसकी आँखों में भर आए आँसू उसके हर दर्द, हर तड़प और हर उस घाव को हरा कर रहे थे, जिसे उसने कितनी ही बार भुलाने की कोशिश की थी।





    "मुझे अब उसके बारे में नहीं सोचना चाहिए…"





    लेकिन कुछ जख्म कभी नहीं भरते, है ना?





    निदान।





    उसका नाम ही एक अधूरी साँस जैसा लगता है—जैसे कोई आधा-अधूरा वादा, जैसे कोई ऐसा सपना जिसे देखना ही नहीं चाहिए।





    आश्वी ने अपनी आँखें बंद कीं, और वो फिर से दस साल पहले चली गई...





    ग्यारह साल की वो लड़की...



    उसी फ़तेहसागर झील के किनारे खड़ी थी। उसकी उंगलियाँ निदान की उंगलियों में उलझी हुईं, और उसकी आवाज़ आत्मविश्वास से भरी हुई—





    "I will come back soon… you will be mine forever."





    "Mine forever… mine forever…"





    आज भी उसके कहे ये शब्द आश्वी के कानों में गूंजते हैं। आज भी उसे लगता है कि वो वही कहीं मिलेगा, जहाँ उसने छोड़ा था आखिरी बार … और कहेगा—





    "See, मैंने अपना वादा निभाया…"





    लेकिन वादे कहाँ पूरे करने के लिए किए जाते हैं… उनकी तो नियति ही टूटना है।





    उसके वादे पर यकीन करना कितना आसान और सुकूनभरा था। लेकिन सुकून कब तक रहता? मेरा सुकून भी ठीक वैसे ही चला गया, जैसे वो चला गया…





    एक आखिरी मुलाक़ात, एक वादा… और उसका वो आखिरी दफा अलविदा कहना…



    "मुझे अमेरिका जाना होगा आश्वी , पर मैं बहुत जल्द आऊँगा…"





    लेकिन वो नहीं आया।



    ना वो आया, ना उसकी कोई ख़बर…





    आश्वी ने कितनी ही बार खुद को समझाने की कोशिश की थी कि लोग बदल जाते हैं, हालात बदल जाते हैं। लेकिन दिल? वो तो एक ज़िद्दी बच्चा होता है… जिसे वही चाहिए जो उसका नहीं है।





    आज भी, सालों बाद, किसी की हँसी, किसी के बोलने का लहजा, कोई पुराना गाना… कुछ भी उसे उसी अतीत में खींच ले जाता, जहाँ निदान खड़ा था… लेकिन वो खुद कहीं नहीं।





    "आश्वी!"





    किसी जानी-पहचानी आवाज़ ने अतीत में खोई आश्वी को फिर से वर्तमान में खींच लिया।





    "आज लंच नहीं करना है क्या?"





    उसके केबिन के दरवाज़े पर खड़ी उसकी सबसे अच्छी दोस्त और साथ काम करने वाली निया ने अपने हाथ सीने पर बाँधते हुए पूछा।





    "तू लंच के लिए नहीं आई… कब से तुझे आवाज़ें लगा रही हूँ! तेरा ध्यान किधर है, हाँ?"





    आश्वी ने ज़बरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश की, ताकि वो छुपा सके… वो दर्द, जो उसकी आँखों से कभी भी आँसू बनकर निकलने वाला था। पर ये आँखें… ये कम्बख्त आँखें, इन्हें तो झूठ बोलना आता ही नहीं!





    निया ने भी इन आँखों की सच्चाई  शायद भाँप ली। और वो अपनी जगह से चल कर, आश्वी के ठीक सामने वाली कुर्सी पर आकर बैठ गई।





    "क्या हुआ? तू इतनी खोई-खोई क्यों है? किसी की याद आ रही है?"





    बस… बस यही सवाल था, और जैसे किसी ने उसके अंदर सालों से जमी बर्फ़ को पिघला दिया हो।





    उसने कुछ नहीं कहा। बस खिड़की से बाहर देखने लगी… बारिश अब भी उतनी ही तेज़ थी।





    "कोई था, जिसने कहा था कि वो हमेशा मेरा रहेगा..."





    …और उसकी आँखें छलक पड़ी।





    ***



    पूरा दिन निदान और पार्टी की तैयारियों में ही बीत गया। अब सूरज अपनी लालिमा समेट कर वापस छिपने की कगार पर था।





    आश्वी भी अब घर जाने के लिए एलीवेटर के "क्लोज़" बटन को प्रेस कर ही रही थी कि…





    ठक!





    …एलीवेटर का दरवाजा लगभग बंद हो ही चुका था, लेकिन गर्वित —हाँ, वही आश्वी का बॉस—किसी सुपरमैन की तरह अंदर कूद पड़ा!





    "आह! You scared me!"





    आश्वी, जो अचानक हुई हलचल से घबरा गई थी, ने अपने दिल पर हाथ रखते हुए कहा। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।





    "Oh my god! देखो तो कौन मिला!" यह पक्का किस्मत का खेल है ।



    गर्वित ने अपनी 1000 वाट की स्माइल देते हुवे कहा।





    "और तुम इतनी हाँफ क्यों रही हो? क्या मुझे देखकर तुम्हारी साँसें रुक जाती हैं?"



    उसने अपनी आईब्रो ऊपर उठाकर अपना जाना-पहचाना स्मर्क चेहरे पर चिपका लिया।





    "ये क़िस्मत का खेल नहीं, मेरी बुरी क़िस्मत का कभी न खत्म होने वाला लूप है…" आश्वी ने मन ही मन सोचा।





    ."सर, ये होटल आपका है, और आपके लिए आपकी प्राइवेट लिफ्ट भी है… तो आपको इस लिफ्ट में स्पाइडरमैन की तरह छलांग लगाने की क्या ज़रूरत थी? आपको चोट लग जाती!" आश्वी ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा।





    "बिलकुल! होटल मेरा है, एलीवेटर मेरा है, और यहाँ मौजूद लोग भी मेरे ही हैं…" गर्वित ने हल्का सा उसके करीब झुकते हुए कहा। "पर वो क्या है ना, प्राइवेट लिफ्ट में कोई टेक्निकल इशू हो गया है, इसलिए वो काम नहीं कर रही… ह्म्म आश्वी जी, उम्मीद है मैंने आपके सभी सवालों का सही-सही जवाब दे दिए  होंगे ?"





    "तो फिर फ़ालतू की पार्टी में लाखों रुपए वेस्ट करने से अच्छा, ये पैसे आपकी लिफ्ट की टेक्नोलॉजी पर लगाना चाहिए! ऐसे कैसे खराब हो गई कि आपको इस पब्लिक  लिफ्ट से जाना पड़ रहा है?" आश्वी ने मुँह बनाते हुए कहा।





    "तुम्हें मेरी बड़ी फ़िक्र है…?" गरवित ने आँखें छोटी करते हुए, एलीवेटर की दीवार से सिर टिकाते हुए कहा।





    "मुझे आपकी नहीं, बल्कि खुद की फ़िक्र है! अभी-अभी आपने मुझे हार्ट अटैक दे ही दिया था!"





    "तुम... तुम ना, बहुत निर्दयी हो!" गरवित ने उसकी तरफ़ उंगली उठाकर उसे पॉइंट करते हुए कहा। "अगर तुम मेरी बहन की दोस्त नहीं होती ना, तो मैं तुम्हें इस एलीवेटर से ही उठा के फेंक देता!"



    और ऐसा कहकर उसने अपनी छाती पर बाँहें मोड़ लीं।





    (सच ही था आश्वी ,गर्वित  को पिछले तीन साल से जानती थी—वो उसकी बेस्ट फ्रेंड का भाई था। और सच कहा जाए तो आश्वी को ये जॉब भी उसकी दोस्त की सिफारिश से ही मिली थी। वरना एक सिंपल ग्रेजुएट लड़की, जिसकी न तो कोई हाई-क्वालिफिकेशन थी, न ही कोई कनेक्शंस, उसे गर्वित सिंघानिया—इंडिया के टॉप एंटरप्रेन्योर और सिंघानिया होटल ग्रुप के मालिक—की सेक्रेटरी के रूप में कैसे सेलेक्ट कर लिया जाता?)





    लेकिन आज वो तीन सालों से उसकी PA थी… तब से जब वो सिर्फ़ फर्स्ट ईयर BBA की स्टूडेंट थी। 







    "वैसे, अच्छा हुआ तुम मुझे यहीं मिल गई। पार्टी की तैयारियाँ कैसी चल रही हैं? सब अच्छे से कर लोगी ना तुम? वैसे मुझे तुम्हारी स्किल्स पर डाउट नहीं है… लेकिन इस पार्टी में कोई गड़बड़ की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ये पार्टी मेरे लिए बहुत स्पेशल है!"





    "और वो क्यों?" आश्वी ने पूछा।







    "मेरा बेस्ट फ्रेंड और उसकी मंगेतर भी ये पार्टी अटेंड करने वाले हैं। अगले हफ्ते उनकी एंगेजमेंट पार्टी भी इसी होटल में होने वाली है। वो स्पेशली अमेरिका से यहाँ अपनी एंगेजमेंट करने आए हैं, और मैं चाहता हूँ कि वो हमारे होटल की पार्टी से इतना इंप्रेस हो जाए कि बस..."





    गर्वित की आँखें चमक उठीं। "वो बोले—Wow Garvit, क्या पार्टी है! और तेरा होटल भी कितना शानदार है!"





    आश्वी, जो गर्वित के हर एक्सप्रेशन को ध्यान से नोटिस कर रही थी, न जाने उसके दिमाग में क्या आया, लेकिन उसने पूछ ही लिया—





    "और आपके इतने ख़ास दोस्त का नाम क्या है?"





    गर्वित  ने जैसे ही नाम बताने के लिए अपना मुँह खोला…





    लेकिन इससे पहले कि वो कुछ कह पाता, एलीवेटर अचानक एक झटके से रुक गया था । लाइट्स हल्की हो गईं।





    आश्वी, जो आराम से खड़ी थी, खुद को गिरने से बचाने के लिए उसने एलीवेटर में लगे होल्डर को कस के पकड़ लिया। वो काफ़ी घबरा गई थी। हालत तो गर्वित  की भी खराब हो गई थी, लेकिन वो अपने आपको इस तरह से आश्वी के सामने प्रेजेंट नहीं कर सकता था—घबराया हुआ तो बिल्कुल नहीं!





    और अपनी पसंदीदा लड़की के सामने तो कायर से कायर भी बहादुर बन जाता है… तो ये तो हमारा गर्वित था! उसने अपने आप को पूरी तरह से संयमित कर रखा था।





    "तुम घबराना मत… मैं यहाँ हूँ।" गर्वित ने उसे भरोसा दिलाते हुए कहा कि वो सेफ है।





    "यही तो डर है, सर!" आश्वी, जिसकी अंदर ही अंदर हालत खराब हो रही थी, ने अपनी सिचुएशन से ध्यान हटाने के लिए कहा। 





    "वैसे, अगर हम दोनों यहाँ ज़्यादा देर तक बंद रहे, तो क्या लगता है… क्या होगा?"





    "क्या होगा?" आश्वी  ने अपनी आँखें छोटी करते हुवे पूछा।





    "वही, जो एक लड़के और एक लड़की के बीच होता है…"





    और ऐसा कहते हुए उसके होठों के किनारे हल्के से ऊपर उठ गए।





    आश्वी के अजीब चिढ़ने वाले एक्सप्रेशन देख कर , गर्वित अचानक ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा।





    आश्वी (गुस्से में): "तो मैं होटल छोड़ दूँगी!"





    गर्वित : "इतना गुस्सा?"





    "हाँ! आपका होटल, आपका एलीवेटर भी नहीं संभाल सकता?" आश्वी ने गुस्से में कहा ।





     "अबे, एलीवेटर की भी शादी करवा दूँ क्या? ताकि वो अकेलेपन की वजह से बीच रास्ते में रुकना बंद कर दे!" गर्वित ने अपनी हसी को कंट्रोल करते हुवे बोला ।





    आश्वी: "हाँ! और बारात के लिए सारे होटल स्टाफ को इन्वाइट कर लीजिएगा !"





    (तभी एलीवेटर झटका खाकर फिर से चलने लगता है।  और ग्राउंड फ्लोर पे रुक जाता है दरवाज़ा खुलते ही आश्वी तेज़ी से बाहर की और भागती है। उसने पीछे मूड  कर एक बार भी नहीं देखा )







    गर्वित ने पीछे से चिल्लाते हुवे कहा--





    "निदान… निदान नाम है मेरे दोस्त का ।।





    ***************************************







    नमस्कार दोस्तों! आप सब कैसे हैं?





    सबसे पहले, दिल से धन्यवाद कि आपने पूरा चैप्टर पढ़ा और मेरी Book  को अपना कीमती समय दिया। आपकी यह मोहब्बत और सपोर्ट मेरे लिए बहुत मायने रखती है। ❤️





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    तो फिर मिलते हैं अगले चैप्टर में...



    तब तक अपना ख़्याल रखें और पढ़ते रहें!





    आपकी अपनी,





    Novel Fairy ✨

  • 3. Twisted love - Chapter 3

    Words: 1510

    Estimated Reading Time: 10 min

    ---





    रात के दो बज चुके थे, लेकिन नींद आश्वी की आँखों से कोसों दूर थी। वह न जाने कब से बिस्तर पर लेटी छत को एकटक देख रही थी। ना जाने कितनी बार उसने अपने सिर के ऊपर धीमी गति से घूमते पंखे के चक्करों को गिना, उसे खुद भी याद नहीं था।





    "निदान।" यह नाम उसका पीछा ही नहीं छोड़ रहा था। हर बार जब इसका ज़िक्र होता, तो एक अजीब-सा एहसास होता—मानो कोई भूली-बिसरी याद उसके सामने फिर से जी उठी हो। कहीं गर्वित का दोस्त निदान, वही निदान तो नहीं? लेकिन फिर हर बार उसका दिमाग उसकी इस सोच को अपने तर्कों से ख़ारिज कर देता।





    पर दिल… दिल हर बार गवाही देता कि शायद, हो सकता है, वही हो।





    आज फिर जब उसने गर्वित के मुँह से उसका नाम सुना, एक पल के लिए आश्वी जड़ हो गई। उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा था। लेकिन अगले ही क्षण यह सोचकर उसकी सांस अटक गई—"निदान किसी और से सगाई कैसे कर सकता है?"





    वह मान सकती थी कि शायद उसने उसे भुला दिया, शायद उसकी फैमिली ने भी… लेकिन दिल के एहसास इतनी आसानी से मिटाए जा सकते हैं क्या?





    "नहीं… ऐसा नहीं हो सकता।" आज भी, उसका दिल है कि उम्मीद का दामन नहीं छोड़ता।





    ख़ामोशी को एकटक निहारते हुए, और अपने ही विचारों के बोझ तले दबी आश्वी की पलकें अब और भार नहीं सह पाईं… और धीरे-धीरे बंद होने लगीं।







    ---





    तीन दिन बाद | होटल इंपीरियल





    पार्टी अपने शबाब पर थी। भव्य बॉलरूम सुनहरी रोशनी से जगमगा रहा था, और गिलासों की खनक धीमी जैज़ धुन में घुली हुई थी। आश्वी ने हर छोटी से छोटी चीज़ का ध्यान रखा था—गर्वित की यह शानदार पार्टी पूरी तरह सफल रही थी।





    फिर भी, वह भीड़ से ज़रा हटकर एक कोने में खड़ी थी—थकी हुई, हाथ में आधा भरा गिलास थामे, जैसे इस चकाचौंध से उसका कोई नाता ही न हो।





    तभी अचानक किसी ने पीछे से उसे ज़ोर से अपने गले लगा लिया।





    एक पल के लिए आश्वी चौंक गई, लेकिन वह इस स्पर्श को जानती थी, और उसके चेहरे पर एक प्यारी-सी मुस्कान बिखर गई।





    "आश्वी मेरी जान! कैसी है तू?"





    एक खनकती हुई हँसी उसके कानों में पड़ी।





    सिया!





    आश्वी की बेस्ट फ्रेंड सिया सिंघानिया—गर्वित की छोटी बहन।





    "मैं ठीक हूँ! तू बता, कैसी है?" आश्वी ने हड़बड़ाते हुए उसकी बाहें खुद से हटाईं और उसका हाथ पकड़कर उसे अपने सामने किया।





    "और ये बता, तू कब आई लंदन से? और परसों से तेरा फोन क्यों बंद था?"





    एक ही सांस में न जाने कितने ही सवाल पूछ लिए थे उसने।





    सिया हँस पड़ी। "कल आई, और फ्लाइट में फोन ऑफ़ था। फिर जब घर पहुँची, तो जानबूझकर तुझे कॉल नहीं किया ताकि तुझे सरप्राइज़ दे सकूँ!"





    फिर आँखें नचाते हुए बोली, "और वैसे भी अगर पहले ही बता देती तो ये एक्सप्रेशन्स कैसे देखने को मिलते?"





    "हूँ… और यहाँ मैं तेरे लिए कितनी परेशान हो रही थी! मैंने सर से भी पूछा था, लेकिन 'अस यूज़ुअल' उन्होंने भी कुछ नहीं बताया। उल्टा अपनी फ्लर्टिंग टोन में बोले—'तुम उसे नहीं, मुझे याद करो!'"





    यह सुनते ही दोनों ज़ोर से हँस पड़ीं।





    सिया ने सिर झटकते हुए कहा, "मेरा भाई भी ना...!"





    इतना कहते हुए उसका ध्यान गर्वित पर चला गया, जो होटल की में एंट्रेंस पर इस तरह से चक्कर काट रहा था, जैसे कोई बाप डिलीवरी रूम के बाहर खड़ा हो और अंदर उसकी किस्मत का फैसला लिखा जा रहा हो।





    "ये मेरे भाई को क्या हुआ है? ये ऐसे गोल-गोल क्यों घूम रहे हैं, वो भी एंट्रेंस पर, जैसे बस किसी ने सिग्नल दिया और इन्हें दौड़ लगा देनी हो!" सिया ने गर्वित की ओर आँखों से इशारा करते हुए आश्वी का ध्यान उसकी तरफ किया।





    आश्वी भी हैरान थी। "हाँ यार, इन्हें क्या हुआ? तू यही रुक, मैं अभी देख के आती हूँ।"





    "मैं भी चलती हूँ ना तेरे साथ।"





    "अरे नहीं, तू पार्टी एंजॉय कर, मैं बस अभी आई।"





    आश्वी गर्वित के पास पहुँची, जो कभी अपनी घड़ी देख रहा था, तो कभी फोन निकाल रहा था, कभी गेट के बाहर झाँक रहा था।





    "Sir, आप यहाँ क्या कर रहे हैं? पार्टी तो अंदर चल रही है," आश्वी ने हैरानी से पूछा।





    गर्वित जो बेचारा पहले से ही फ्रस्ट्रेट था, बड़बड़ाने लगा, "पता नहीं प्लेन लैंड हुआ होगा या नहीं, बैगेज क्लेम में फंसे होंगे या फिर… अरे एक तो मुंबई का ट्रैफिक! आई एम श्योर, पक्का यह लोग ट्रैफिक में ही फंस गए होंगे।"





    "Sir, आप यहाँ किसी गार्ड से कम नहीं लग रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे कोई सिक्योरिटी गार्ड मेन गेट पर चक्कर काटते हुए होटल की रखवाली कर रहा हो।"





    तभी किसी एम्प्लॉई ने पीछे से पूछा, "मैडम, सर ठीक हैं न? मैं क्या किसी डॉक्टर को बुलाऊँ? अगर इनकी तबियत ज्यादा खराब है तो हम एंबुलेंस बुलवा लेते हैं।"





    गर्वित, जो पहले से ही चिढ़ा हुआ था, दाँत पीसते हुए बोला, "इधर आ, पहले तुझे ही एंबुलेंस में भिजवाता हूँ!"





    बेचारा एम्प्लॉई कुछ समझ नहीं पाया, लेकिन गर्वित की टोन सुनकर उसने बिना पीछे देखे भागने में ही अपनी भलाई समझी।





    आश्वी को अंदर से बहुत हँसी आ रही थी, लेकिन किसी तरह उसने खुद को कंट्रोल करते हुए कहा, "Calm down, sir! इस तरह से आप अपनी तबियत खराब कर लेंगे। Please relax!"





    गर्वित ने शीशे में खुद को देखा,और अपनी  टाई ठीक की और लंबी साँस लेकर बोला, "हाँ, मुझे कूल रहना चाहिए।"





    पर इससे पहले कि वो लोग अंदर जाते, एक कार का हॉर्न बजा।





    और फिर क्या था ..बस हमारे 



    गर्वित ने आव देखा न ताव और अपनी जगह से कूदते हुए कार की तरफ दौड़ पड़ा । इतनी तेजी से दौडा कि आश्वी और गार्ड भी एक पल के लिए समझ नहीं पाए कि यह हुआ क्या!





    गर्वित ने जल्दी से दौड़ते हुवे कार का गेट खोला और पूरे जोश में चिल्लाया, "भाई! निदान!"





    पर कार से निकली… मिसेज़ सिंह।







    "अरे गर्वित बेटा, आज तुम पर्सनली वेलकम कर रहे हो? हाऊ स्वीट ऑफ यू!" मिसेज़ सिंह ने प्यार से उसके गाल थपथपाए।





    गर्वित का चेहरा अभी तक जो गंदे के फूल की तरह खिला हुआ था, अब अंगूर से बनी किशमिश जैसा सिकुड़ गया। बगल में खड़ी आश्वी और गार्ड्स के चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन जॉब प्यारी थी, सो ज़ोर से हँसने की हिम्मत किसी ने नहीं की।





    गर्वित ने आँखें छोटी कर आश्वी को घूरा।





    "Sir, मेरी बात मानिए और अंदर चलिए, प्लीज़।"उसने हड़बड़ाते हुवे कहा ।





    गर्वित ने एक लंबी साँस ली और मान गया कि अब यहाँ से हटना ही बेहतर है।





    तभी—





    एक चमचमाती काली कार होटल के गेट पर आकर रुकी।





    गर्वित की आँखों में फिर से चमक आ गई। "आ गया अपना भाई!"





    ड्राइवर ने आगे बढ़कर  दरवाज़ा खोला… और…





    आश्वी का दिल जैसे किसी ने मुट्ठी में जोरो से भींच लिया हो।





    नहीं…





    ये मज़ाक था है ना?





    पर नहीं। ये सच था।उतना ही जितना उसका खुद का अस्तित्व था ।





    निदान।





    दस साल बाद, अचानक, बिना किसी चेतावनी के, वो उसके सामने था।





    वही निदान… जिसने कहा था कि वो हमेशा उसके साथ रहेगा। और फिर वह चला गया था।





    उसके ज़ेहन में हज़ार सवाल उमड़ पड़े, पर इससे पहले कि वो कुछ सोच पाती, कार की दूसरी तरफ का  दरवाज़ा खुला।





    और उसमें से एक लड़की बाहर निकली।







      लंबा कद, खूबसूरत सी, देखने से ही शालीन लग रही थी । उसने आकर  सहजता से निदान का हाथ थाम लिया। जैसे ये उसका हक़ हो।





    उसका हक़…?





    गर्वित ने हँसते हुए बोला, "आख़िरकार, भाई! कितने सालों बाद! 





    निदान की नज़रें अचानक गर्वित के बगल में खड़ी आश्वी पर आ टिकी , पर उसने नज़रें फेरते हुवे कहा । "ये मेरी मंगेतर, सान्वी है।"





    एक पल के लिए जैसे दुनिया रुक गई।





    दिल में कुछ दरकने की हल्की-सी आवाज़ आई।





    मंगेतर।





    गर्वित उसकी तरफ  मुस्कुराया।  और आश्वी की तरफ हाथ से इशारा करते हुवे कहा "ओह हाँ, मैं तो तुझे इंट्रोड्यूस कराना ही भूल गया! आश्वी, ये निदान है, मेरा बचपन का सबसे करीबी दोस्त। और निदान, ये है मेरी सेक्रेटरी, जो दिनभर मुझसे चिढ़ती रहती है।"





    निदान हल्के से बोला, "आश्वी?"





    वही आवाज़। वही अंदाज़। पर अब एक अजनबीपन के साथ, अब वो उसका नहीं था ।





    आश्वी ने जैसे खुद को झटका दिया हो ,अपने आप को वास्तविकता के धरातल पे लाने के लिए । उसकी आवाज़ शांत थी, मगर आँखों में दबा दर्द कहीं गहरे तैर रहा था।





    "हम पहले भी मिल चुके हैं।"





    सान्वी ने उत्सुकता से पूछा, "अच्छा? आप लोग एक दूसरे को पहले से जानते हैं?"





    आश्वी हल्के से मुस्कुराई। एक ऐसी मुस्कान, जिसमें हज़ारों कहानियाँ दफ़्न थीं।



    और उसने कहां…





    "हाँ, बस कुछ इसी तरह…"





    निदान अब भी उसे देख रहा था। जैसे वो भी इन दस सालों का फ़ासला महसूस कर पा रहा हो।





    पर अब, वो लड़की नहीं थी जो किसी के जवाब का इंतज़ार करे। जो किसी के लौटने की उम्मीद लगाए बैठे रहे ।





    उसने वही अपनी पेशेवर मुस्कान ओढ़ ली।





    "होटल में आपका स्वागत है। Sir ,उम्मीद है कि आपको यहाँ अच्छा अनुभव मिलेगा।"





    और बिना एक पल रुके, वो मुड़ी और अंदर चली गई।





    ठीक वैसे ही… जैसे कभी निदान चला गया था।

  • 4. Twisted love - Chapter 4

    Words: 1515

    Estimated Reading Time: 10 min

    निदान





    आज पूरे दस साल बाद मैं फिर से अपने देश में हूँ, जिसे कभी मैंने छोड़ दिया था, आगे बढ़ने के लिए। लेकिन मैं भूल गया था कि आगे सिर्फ़ मेरा शरीर बढ़ा था, मेरा मन… मेरा मन तो वहीं रह गया था, उसी जगह, जहाँ मैंने उससे वादा किया था। मेरा दिल आज भी वहीँ, फ़तेह सागर झील के किनारे अटका हुआ है… जहाँ शायद उसने अब तक मेरा इंतज़ार किया होगा। और फिर… शायद मुझे धोखेबाज़ और झूठा समझकर भुला भी दिया होगा।





    पर शायद मैं ग़लत था। आज जब कार से उतरते हुए मैंने उसे गर्वित  के बगल में खड़ा देखा, तो लगा जैसे कोई सपना देख रहा हूँ। हाँ, सपना ही तो था वो… काले सिल्क गाउन में, किसी आसमानी हुस्न परी से कम नहीं लग रही थी। वही झील जैसी नीली आँखें, जो यह एहसास दिलाने के लिए काफी थीं कि हकीकत में इतनी खूबसूरत लड़कियाँ होती भी हैं क्या? उसके बालों का बनाया messy bun बता रहा था कि शायद आज भी उसे खुले बाल पसंद नहीं। हल्का सा सादा मेकअप, फिर भी वो बेइंतहा ख़ूबसूरत… एक जाना-पहचाना अहसास, जैसे नज़रे सिर्फ़ उसी पर टिक गई हों और अब कहीं और देखने की सुध-बुध ही खो बैठा हूँ।





    दिल कह रहा था, ये वही है… पर दिमाग़ के अपने हज़ार तर्क होते हैं, साहब। उसने मुझे समझाने की पूरी कोशिश की—"ये वो नहीं हो सकती… सिर्फ़ ग्यारह साल की बच्ची थी वो, और मैं सत्रह का। चेहरे बदल जाते हैं, मगर अहसास नहीं।" यही अहसास था जो चीख-चीख कर कह रहा था कि ये वही है। उसके गले में पड़ा वही पेंडेंट, जिसे उसने सालों पहले मुझसे वादा किया था कि वो हमेशा इसे पहने रखेगी। "हमेशा, हमेशा…" और फिर उसकी वही खिलखिलाहट…





    "आश्वी, ये मेरा बेस्टफ्रेंड निदान है… और निदान, ये मेरी सेक्रेटरी, जो हमेशा मुझसे चिढ़ती रहती है।"





    आश्वी… मैं बस जड़ हो गया। दिमाग़ हार चुका था। ये मेरी आश्वी थी… मेरी अपनी… या शायद अब उसे अपना कहने का हक़ मैं खो चुका था। जी में आया, सब भाड़ में जाए—सानवी, गर्वित , और ये पार्टी—बस मैं आगे बढ़ूँ और अपनी आश्वी को अपने सीने से लगा लूँ। ये जो दस साल का फासला है, उसे एक ही पल में मिटा दूँ। बस उसका हाथ पकड़ूँ और उसे यहाँ से कहीं दूर ले जाऊँ। उसे हर अधूरी साँस, हर बिछड़े हुए लम्हे की कहानी सुनाऊँ। बताऊँ कि मैंने उसे कितना मिस किया… इतना कि अमेरिका में रहना मेरे लिए किसी सज़ा से कम नहीं था।





    पर… पापा का बिज़नेस और फिर एक के बाद एक ट्रैजेडी… जैसे हर एक रुकावट ने कसम खा रखी थी कि मुझे उससे दूर ही रखना है। और अब… मेरे बगल में खड़ी मेरी मंगेतर…





    आश्वी की वो नज़रे, जो मुझ पर कभी से हटती नहीं थीं, आज किसी अजनबी की तरह थी। वही आँखें, जिन्हें देखकर मैं हमेशा कहा करता था, "आश्वी, तुम मेरी बहन हो ही नहीं सकती… तुम कोई और ही हो, शायद मम्मी-पापा तुम्हें कहीं से उठा लाए हैं।" और वो हमेशा गुस्से में मुझे मारती थी कि, "नहीं! मैं तुम्हारी बहन ही हूँ!" पर सच्चाई तो यही थी… आश्वी मेरी कोई नहीं थी। बहन तो बिल्कुल भी नहीं…





    उन ही आँखों में एक पल के लिए मेरे लौट आने की ख़ुशी दिखी… वादे को निभाने की ख़ुशी… और बेइंतहा प्यार। मगर फिर… जैसे ही सान्वी ने मेरा हाथ थामा, उन आँखों में एक गहरी निराशा उतर आई।





    अब वो बहुत समझदार हो गई थी। उसे बातों को घुमाना आ गया था, अपने चेहरे के भावों को छुपाना आ गया था।





    जिस चेहरे पर मुझे देखते ही हज़ारों रंग खिल जाते थे, उसी चेहरे को बेरंग करना आ गया था उसे…





    "अंदर चलें? सब तेरा इंतज़ार कर रहे हैं।" गर्वित ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, और मैं उस हकीकत से रूबरू हो गया, जो मेरे सामने खड़ी थी। और सामने खड़ा इंसान, जो कभी मेरी दुनिया था, आज मुझे अजनबी सा महसूस हो रहा था।





    गर्वित  ने पार्टी बहुत शानदार रखी थी—बिल्कुल उसकी पर्सनैलिटी की तरह भव्य। उससे मेरी पहली मुलाकात कॉलेज में हुई थी, जब हमने साथ में MBA किया था। वो मेरा बहुत अच्छा दोस्त बन गया। विदेश में जब अपने देश का कोई जाना-पहचाना चेहरा मिल जाता है, तो उससे लगाव कुछ और ही होता है। और यही एक चीज़ थी, जिसने हमें जोड़े रखा। पर जैसे-जैसे मैंने उसे और जाना, उसकी बेफिक्री, उसका ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जीने का तरीका मुझे और ज़्यादा पसंद आने लगा। मैं हमेशा गंभीर रहने वाला इंसान, जो अपने से ऊपर सबको तवज्जो देता था, उस बिंदास और बेपरवाह इंसान का दीवाना हो गया। और नतीजा? आज वो मेरा बेस्टफ्रेंड था।





    जब उसने मुझे अपने होटल प्रोजेक्ट की डील ऑफर की, तो मैं मना नहीं कर सका। वैसे तो होटल मैनेजमेंट मेरा बिज़नेस नहीं था, लेकिन इसमें हाथ आज़माने में क्या बुराई थी? और मुझे भी तो भारत में अपना बिज़नेस बढ़ाना था। बस, मैं आ गया… अपने नसीब को एक और मौका देने।





    और यहाँ मेरी मुलाकात उससे हुई…





    जो अब एक कोने में खड़ी खुद से जूझ रही थी। पिछले आधे घंटे से उसके हाथ में वही खाली ग्लास था, वो अपनी जगह से एक कदम भी नहीं हिली होगी, और मेरी तरफ तो अब उसने एक बार भी नज़र उठा कर नहीं देखा होगा…





    कितनी बुरी तरह मैंने उसे तोड़ा होगा, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जो आँखें मुझसे कभी हटती नहीं थीं, आज वो मुझसे नज़रें मिलाने से कतरा रही थीं।





    पार्टी अपनी चरम सीमा पर थी, सामने स्टेज पर खड़ा सिंगर मेरे दिल की बात गा रहा था… लेकिन मेरी आँखें तो बस उस पर थीं, जो मुझसे नज़रें चुराना चाहती थी।





    और फिर…





    मेरा दिल जैसे धड़कना भूल गया, जब मैंने उसे अपनी तरफ आते हुए देखा।





    मैं मन ही मन खुद को इस बातचीत के लिए तैयार करने लगा। मैं उसे क्या बताऊँगा? क्या वजह दूँगा कि आज सान्वी हमारे बीच खड़ी थी? कहीं मैं अपने दिल को उन सौ बेड़ियों से आज़ाद न कर दूँ… कहीं मैं कुछ ऐसा न कर बैठूँ, जिससे मेरे आस-पास के लोग मेरी वफादारी पर सवाल उठाएँ…





    मैं गहरी साँसें लेने लगा, खुद को शांत करने की कोशिश में… पर ये कमबख़्त दिल…





    मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं, खुद को यकीन दिलाने के लिए कि ये कोई सपना तो नहीं…





    और फिर… गुलाब की हल्की सी खुशबू मेरे पास से गुज़री…





    और वो चली गई।





    मैंने झटके से अपनी आँखें खोलीं।





    "सर, पार्टी बस खत्म ही होने वाली है। घर से फ़ोन आया है, एक अर्जेंट ज़रूरत है। क्या मैं जा सकती हूँ?"





    ओह… तो वो मेरे लिए नहीं, गर्वित  के लिए आई थी।





    और फिर, एक गहरी निराशा ने मुझे सच से वाकिफ़ करा दिया…



     



    "ठीक है, कोई बात नहीं... रुको, मैं ड्राइवर को बोलता हूँ, वो तुम्हें घर छोड़ देगा।"



    गर्वित  ने चिंता जताते हुए कहा, "वैसे, सब ठीक है ना, आश्वी?"





    "जी सर, सब ठीक है... बस माँ ने बुलाया है," उसने अपने हाथों को आपस में उलझाते हुए कहा।





    मैं जानता हूँ इस आदत को... जब भी वो अपनी सच्ची भावनाएँ छुपाने की कोशिश करती है, या कोई झूठ बोलती है, तो या तो अपने बालों से खेलती है या फिर अपनी उंगलियों को एक-दूसरे में उलझा लेती है।





    मेरे सीने में कुछ गिरा, तेज़ और भारी।





    ******



    अब वो मेरे सामने खड़ी थी—एक छोटा सा घर, जिसके दरवाज़े पर  आश्वी खड़ी थी।



    उसे पार्टी से बाहर जाते देख, मैं खुद पर काबू नहीं रख पाया। मैंने पास खड़ी सान्वी—जो शायद नशे में थी—को उसके कमरे में छोड़ा और बस एक बहाना बना लिया कि मुझे ज़रूरी काम से बाहर जाना है। फिर सीधे अपनी गाड़ी उठाई और निकल पड़ा।





    ड्राइवर यहाँ की गलियों से अच्छी तरह वाकिफ था, लेकिन जब उसने एक संकरी सी गली के सामने गाड़ी रोकी और कहा कि अब यहाँ से मुझे पैदल जाना होगा, तो मेरा दिल बैठ गया ।





    क्या आश्वी ऐसी जगह रहती है?





    मैं उसके घर के सामने  लगे एक पीपल के  पेड़ के पीछे छिप गया, ताकि वो मुझे न देख पाए... और सच कहूँ तो, ताकि मैं कुछ और पल उसे निहार सकूँ। शायद यही उसका घर था। घर की हालत कुछ खास अच्छी नहीं थी।





    तभी, उसके बगल में खड़ा एक लड़खड़ाता हुआ लड़का—जो न जाने क्या बड़बड़ा रहा था—अचानक गिरने को हुआ, सीधा आश्वी पर।



    मेरा मन किया एक कदम आगे बढ़ाने का। कौन था ये? एक शराबी का क्या भरोसा?





    पर मैं रुका, जब मैंने देखा कि आश्वी ने न सिर्फ़ उसे संभाला, बल्कि गेट खोलकर उसे अपने साथ अंदर भी ले गई।





    कौन था ये शख्स?



    जिसे मेरी आश्वी अपने घर में लेकर जा रही थी?





    और फिर... उसने दरवाज़ा बंद कर लिया।





    पर बंद करने से पहले... उसने एक बार इधर-उधर देखा, जैसे उसे एहसास हो कि कोई उसे देख रहा है।





    मेरा दिल ज़ोर से धड़क उठा।





    मन किया दौड़कर जाऊँ, दरवाज़ा खटखटाऊँ, और पूछूँ—



    कौन है ये आदमी?



    क्या हक़ है इसे मेरी आश्वी को छूने का?





    ...लेकिन अगले ही पल, एक और सवाल ने मेरे पैरों में ज़ंजीर डाल दी—





    मुझे क्या हक़ है उससे ये सवाल पूछने का ।

  • 5. Twisted love - Chapter 5

    Words: 1338

    Estimated Reading Time: 9 min

    रात के सन्नाटे में खड़ी आश्वी दूर कहीं शून्य में ताक रही थी।



    सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें



    क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता ।





    ना जाने क्यों, दिल को एक अजीब  अहसास हो रहा था कि एक जोड़ी निगाहें उसे  कहीं से देख रही हैं। शायद यह उसका भ्रम ही था... क्योंकि जो आगे बढ़ गए, वे पीछे मुड़कर नहीं देखा करते। दरवाज़े पर खड़ी आश्वी ने भी यही सोचा था... पर यह दिल...





    अचानक, किसी के गिरने की आवाज़ ने उसे ख़यालों से बाहर खींच लिया। उसने झटपट अपने घर का मेन गेट बंद किया और ज़मीन पर बेसुध पड़े अपने भाई को उठाने के लिए दौड़ी। "दिनेश! इतनी पीते क्यों हो कि खुद को ही संभाल ना सको? अगर चोट लग जाती तो?" आश्वी ने घबराहट और झुंझलाहट में कहा, पर दिनेश को कहां होश था कि वह उसकी किसी भी बात का जवाब देता।





    "बेटा, इसे उठाते हैं..." रसोई से तेज़ आवाज़ सुनकर बाहर आई उसकी माँ ने, आश्वी की मदद करते हुए दिनेश को उठाने की कोशिश की।





    यह था दिनेश—आश्वी का बड़ा भाई... मगर सिर्फ़ नाम का। बड़े भाई होने का कोई भी फ़र्ज़ उसने आज तक नहीं निभाया था। शराब, जुआ, ग़लत संगत—कौन सी बुरी आदत उससे छूटी थी? उसकी इन्हीं आदतों की वजह से आश्वी को कॉलेज के साथ-साथ नौकरी भी करनी पड़ रही थी। देखा जाए तो इस घर में कमाने वाली बस वही थी, और खाने वाले तीन। हालाँकि, उसकी माँ पास की गली में एक छोटा सा ढाबा चलाती थी, लेकिन उसकी कमाई ना के बराबर थी। फिर भी, कुछ न करने से बेहतर कुछ करना होता है—यही सोचकर वह बस अपनी बेटी का हाथ बंटाना चाहती थी।





    "तू उनके साथ क्यों नहीं गई, बेटा? तुझे उनके साथ ही चले जाना चाहिए था..." दिनेश को उसके कमरे में सुलाकर लौटी आश्वी को दरवाज़े की चौखट पर खड़ी उसकी माँ ने हाथ पकड़कर रोका। उनकी आँखों में चिंता, ग्लानि, पछतावा... कुछ तो था अनकहा सा ।





    "माँ, हमने तय किया था कि हम इस बारे में दोबारा बात नहीं करेंगे।" आश्वी ने उनकी झुर्रियों से भरे चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए कहा। उसकी आँखें भीग चली थीं।





    "तू चली जाती तो आज तुझे ये सारी ज़िम्मेदारियाँ नहीं उठानी पड़तीं। ना ही एक शराबी भाई और ना ही एक निकम्मी माँ, जो तेरे लिए कभी कुछ नहीं कर पाई... उसे पालने का बोझ तुझे नहीं सहना पड़ता। वो चली गई थी... तू क्यों नहीं गई?" उसकी माँ की आवाज़ भारी हो गई थी।





    "माँ, आपने खाना खाया?" आश्वी ने बात का कोई जवाब ना देते हुए बस बात मोड़ना ही बेहतर समझा।





    उसकी माँ के चेहरे पर फीकी सी मुस्कान आ गई। उन्होंने अपनी आँखों से छलकते आँसुओं को अपनी हथेलियों से पोंछ डाला। वो जानती थीं कि आश्वी फिर से उनकी इस बात का कोई जवाब नहीं देगी।





    "हाँ, खा लिया... और दवाई भी ले ली। अब तू जा, जाकर सो जा। पूरे दिन की थकी होगी।" माँ ने उसके बालों में हाथ फेरते हुए कहा।





    बिस्तर पर लेटे दो घंटे हो चुके थे, लेकिन आश्वी की आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। आज शाम की सारी यादें किसी अटकी कैसेट की तरह बार-बार उसके जहन में घूम रही थीं। मन में कहीं न कहीं एक.खुद से ही नाराजगी थी कि ,क्यों आश्वी ने इतना overreact किया ।।उसने तो निदान को एक बार बात तक करने का मौका नहीं दिया , क्या वो इतनी सेल्फिश हो गई थी कि अपने टूटे वादे का गम मानने में वो उसकी खुशी (मंगेतर) की बधाई भी ना दे सकी , आज खुद में ही बड़ा छोटा अनुभव किया था उसने खुद को , इतनी खुदगर्ज तो नहीं थी वो , 



    उसने क्या सोचा होगा , कितना बदल गई हु में , शायद मेरे इस व्यवहार से उसे निराशा हुई होगी ,है ना? !



    अगली सुबह 



    कमरे में फैली गहरी खामोशी को घड़ी की टिक-टिक और हल्की हवा की सरसराहट ही तोड़ रही थी। आश्वी अपने बालों को रबर बैंड से बांधते हुए जल्दी-जल्दी बैग में कुछ ज़रूरी डॉक्यूमेंट्स  रख रही थी। उसे काम पर पहले ही  देर हो रही थी, और वैसे भी, हर दिन की तरह आज भी उसे किसी और की फ़िक्र करने की फुर्सत नहीं थी। उसकी माँ रसोई में बर्तन समेटने में लगी थीं, तभी अचानक, दिनेश के कमरे से एक जोरदार आवाज़ गूंज उठी—





    "क्या?? निदान आ रहा है!! वो भी अपनी मंगेतर के साथ??" यह लोग फिर से यहां क्यों आ रहे है ? 





    आश्वी के हाथ वहीं रुक गए। बैग की चेन आधी खुली ही रह गई और उसकी माँ के हाथ में पकड़ी थाली ज़मीन पर गिरते-गिरते बची थी ।





    दिनेश, जो को अब तक बिस्तर में धंसा पड़ा था, अख़बार के पन्नों को घूरते हुए अपनी जगह से झटके से उठा। उसकी आँखों में भारीपन था, और सिर पर शायद अब भी नशे का असर बाकी था, मगर इस खबर ने जैसे उसे झकझोर दिया था।





    "माँ!!" उसने और भी ऊँची आवाज़ में पुकारा, "देखा आपने? निदान  राजवंश वापस आ रहा है! और उसके साथ उसकी मंगेतर भी आ रही है!"





    आश्वी ने गहरी सांस ली और ज़बरदस्ती खुद को शांत रखते हुए अपने कदम दरवाजे की ओर बढ़ाए। वह इस बहस में फंसना नहीं चाहती थी, पर दिनेश ने अखबार ज़ोर से मोड़कर उसकी तरफ़ उछाल दिया।





    "देख इसे! देख! तेरे प्यारे निदान राजवंश  की ख़बर छपी है! अब भी कहेगी कि कुछ बदला नहीं?"





    आश्वी ने अख़बार उठाया, लेकिन उसे खोलकर देखने की हिम्मत नहीं हुई। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। माँ भी चुपचाप पास आ खड़ी हुईं थी । उनकी आँखों में सवाल थे, घबराहट थी... या शायद कोई पुराना दर्द फिर से ताज़ा हो गया था…क्या निदान के साथ वो भी आई होगी?, उनकी नम हुई आंखों में किसी के लिए एक उम्मीद थी ।





    "निदान... वापस क्यों आ रहा है?" माँ ने धीमी मगर कांपती आवाज़ में पूछा।





    दिनेश , जिसका नशा आज की ताजा खबर पढ़ कर ही उतर गया था ,  ताना मारते हुए हंसा। "क्योंकि अमीर लोग जब चाहें, जहाँ चाहें, लौट सकते हैं, माँ! उन्हें कोई मजबूरी रोकती थोड़ी है!"





    आश्वी ने भारी मन से अख़बार के मुड़े हुए पन्ने खोले। फ्रंट पेज पर निदान की तस्वीर चमक रही थी—सफल, आत्मविश्वास से भरा हुआ, और उसके साथ एक सुंदर लड़की, सान्वी खड़ी थी, जिसके हाथ में सगाई की अंगूठी साफ़ चमक रही थी।





    दिल में कुछ चटक गया।





    पर उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी ।





    उसने बस अख़बार मोड़कर टेबल पर रखा, और अपने  कंधे पर पर्स  टांगा और बाहर की ओर बढ़ गई।





    "आश्वी—" 



    उसकी माँ ने उसे रोकना चाहा, पर वह बिना पीछे मुड़े ही बोली, "मुझे देर हो रही है, माँ। इस सब पर सोचने का वक्त नहीं है मेरे पास।"





    और दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ पूरे घर में गूंज उठी थी ।



    *********************



    आश्वी  अपने केबिन में बैठी फाइलों में डूबी हुई थी। टाइपिंग की आवाज़ और माथे पर चिंता की लकीरें बता रही थीं कि वो अपने काम में पूरी तरह खोई हुई है। तभी पास ही पड़ा इंटरकॉम बज उठा ।





    उसने  एक गहरी सांस ली, क्योंकि वो पहले से ही जानती थी कि अब कुछ नया ड्रामा होने वाला है।



    “Yes sir” 



     "महाबलेश्वर प्रोजेक्ट की फाइल लेके तुरंत मेरे केबिन में आओ!" गर्वित की आवाज में एक झुंझलाहट थी।



    अब क्या हो गया , आश्वी ने अपनी आँखें घु मांते हुवे खुद ही से कहा ,



     "Sir, अभी थोड़ी देर में भिजवा दूँगी।"



     "तुम्हें 'अब' और 'अभी' में फ़र्क समझाना पड़ेगा क्या?" Its urgent आश्वी , इस बार उसकी आवाज में एक ऑर्डर था , 





    आश्वी ने बिना कुछ बोले फोन काट दिया, एक लंबी सांस ली और फाइल उठाकर गर्वित  के केबिन की तरफ बढ़ गई।



    केबिन का दरवाजा थोड़ा खुला था। आश्वी ने हल्का सा धक्का दिया और अंदर कदम रखा।



    "Sir, यहाँ है आपकी—"



    उसकी आवाज़ वहीं उसके गले में अटक गई, जैसे किसी ने रीमोट से pause बटन दबा दिया हो।





    गर्वित की चेयर पर निदान आराम से बैठा हुआ था जैसे यह केबिन उसी का हो !

  • 6. Twisted love - Chapter 6

    Words: 1498

    Estimated Reading Time: 9 min

    आश्वी का pov 









    “निदान ”





    "ये यहाँ क्या कर रहा है? वो भी गर्वित की chair पर?"





    मैंने अपने हाथों  में पकड़ी files को गर्वित की table पर रखा और इधर-उधर  अपनी नज़रें दौड़ाईं, इस उम्मीद में की शायद कहीं गर्वित दिख ही जाए।  





    Chair पर किसी राजा की तरह बैठे निदान की निगाहें मुझ पर ही टिकी थीं। में उसकी नज़रों की तपिश खुद पर  साफ़ महसूस कर सकती हु , पर मैंने उस पर ध्यान  ना देना ज़रूरी  समझा। या शायद, सच कहूँ तो ये situation मेरे लिए awkward थी। मैंने उसे इस तरह अकेले अपने सामने expect नहीं किया था। तो मेरा इस तरह कुछ ना कहना ही मुझे सही लगा !





    "वैसे तुम ढूँढ क्या रही हो?" उसने अपनी husky आवाज़ में पूछा। उसकी आवाज रौबदार थी, जो  मेरी body में एक अजीब सी झुरझुरी पैदा करने के लिए काफ़ी थी।





    और मुझे अचानक लगा जैसे मेरे गले में कुछ अटक गया हो। मैंने अपना गला साफ़ किया और normal act करने की पूरी कोशिश करते हुए सामने बैठे उस इंसान की तरफ़ देखा, जो अपनी eyebrows उठाए मुझे ही देख रहा या कहा जाए कि पूरी तरह से घुर रहा था।





    "वो… गर्वित sir…" मैंने अपनी हकलाती, बिखरती आवाज़ में कहा। सच कहूँ, तो एक पल को लगा कि मेरी खुद की आवाज़ मुझे सुनाई नहीं दी, लेकिन वो सुन पा रहा था।





    "Ohh, अच्छा, तो तुम इधर-उधर Garvit को ढूँढ रही हो?" उसने अपनी सीट से थोड़ा आगे झुकते हुए कहा, फिर उसने अपनी नज़रें टेबल पर टिकाते हुवे इशारे से कहा । "पर क्या तुमने टेबल के नीचे देखा?"





    उसकी आँखों में एक मजाकिया चमक थी।





    “हुह्? Table के नीचे?"





    और बिना कुछ सोचे-समझे, मैं झुक गई टेबल के नीचे झाँकने के लिए । इस उम्मीद में कि  शायद Garvit वहीं हो?





    (हां शायद में आप लोगों को  पागल लग  रही हूँ, but trust me, मैं वैसे भी होश में नहीं हूँ।)





    इस इंसान का यूँ मेरे सामने होना ही मेरी मानसिक स्थिति के लिए harmful था।





    "दिखा क्या ?" उसने मज़ाकिया लहजे में पूछा।





    "नहीं… यहाँ तो नहीं दिख रहे," मैंने गर्दन हिलाते हुए कहा।





    और फिर… एक ज़ोरदार हँसी मेरे कानों में घुल गई। मैंने ऊपर की तरफ नज़रे  करते हुवे देखा , और वो अपनी सीट पर हँसी से लोटपोट हो रहा था।





    और मैं — में बस अपनी जगह पे  खड़ी हुई और बस उसे देखती रही, एकटक देखती रही ।





    काश ये पल यहीं रुक जाए…



    काश मैं इसे यूँ ही देखती रहूँ…



    काश मैं इसकी दिलकश हँसी बस सुनती रहूँ…





    और फिर अचानक…





    मैं किसी के आगोश में थी।





    मुझे नहीं पता कब वो अपनी जगह से उठा, कब मेरी तरफ़ बढ़ा, और कब उसने मुझे अपनी बाहों के घेरे में बाँध लिया। मैं तो बस अभी…





    उसकी पकड़ tight होती गई…





    "I missed you… I missed you so, so much…"





    उसकी आवाज़ मेरे कानों के पास सरसराई, और मेरी रीढ़ में एक सिहरन सी दौड़ गई। उसकी गर्म साँसें मेरी गर्दन और earlobe पर महसूस हो रही थीं। मैं _मैं साँस लेना ही भूल गई… मेरे lungs शायद भूल गए कि उनका काम क्या है…





    "Breathe, …" उसने मेरे कान में धीरे से कहा ।





    और मैंने अपनी पूरी हिम्मत जुटाकर एक गहरी सी  साँस भरी और,  और अपनी आँखें बंद कर लीं।





    क्योंकि अगर ये सपना है, तो मैं इससे जागने की हालत में नहीं हूँ…



    ना मेरा जहन, ना ही मेरा वजूद इस बात की इजाज़त देता है कि मैं इस ख्वाब से जागूँ और फिर से हक़ीक़त से रूबरू हो जाऊँ।





    "ये कोई सपना नहीं है…"





    उसने एक बार फिर मेरे कान में whisper किया, और इस बार… मैं खुद को रोक नहीं पाई।





    मैंने भी उसकी पीठ पे अपने हाथों को कस  लिया, कहीं वो दूर न चला जाए।





    पता नहीं कितनी ही देर मैं उसकी बाहों में रही। न उसने कुछ कहा, और ना ही  मैंने। बस आंखों से बिखेरते  आँसू अपना काम करते रहे, उसकी शर्ट को भीगाते रहे, और साँसें हल्की होती गईं।





    "मुझे तुमसे कुछ बात करनी है… कुछ बताना है…"





    उसने मेरे बालों में उंगलियाँ फेरते हुए कहा। उसकी उंगलियाँ मेरी बिखरी लटों से खेल रही थीं।





    "हुह?"





    मैं उसके बाँहों से बड़ी मुश्किल से  अलग होते हुए बोली, और उसकी आँखों में झाँकने लगी। वो आँखें… जैसे पूरा समंदर उसमें उतर आया हो।





    उसने अपने दोनों हाथ मेरे गालों पर रखे और अपनी हथेलियों से मेरे आँसू पोंछते हुए कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोला ही था कि—





    "क्लिक!"





    ऑफिस के दरवाज़े की knob खुलने की आवाज़ आई।





    और हम दोनों तुरंत एक-दूसरे से थोड़ी दूरी पर खड़े हो गए।





    मैंने झट से अपने आँसू पोंछे और चेहरे पर एक fake smile चिपका ली।





    जैसे… सब normal हो।





    "आश्वी , तुम files ले आई?"





    गर्वित ने  दरवाज़े से अंदरआते हुवे पूछा , उसकी नज़रें अब भी अपने  phone की screen पर थीं, और मैं शुक्रगुज़ार थी कि उसकी नजर मेरी शक्ल पर नहीं गई । वरना उसके सवालों के जवाब देना मेरे लिए नामुमकिन था।





    "जी sir… ये रही files," मैंने हल्की सी मुस्कान देते हुए कहा।





    "Hmm… urgent call आ गया था, इसलिए बाहर जाना पड़ा," उसने अब भी अपनी नज़रें phone पर ही टिकाई हुई थीं।





    निधान अब तक Garvit के सामने वाली chair पर बैठ चुका था, लेकिन उसकी नज़रें अब भी मुझ पर ही टिकी थीं।





    "Sir, ये files…" मैंने Garvit की तरफ़ बढ़ाईं।





    Garvit ने हाथ बढ़ाया, और इस बार उसकी नज़रें मेरी आँखों पर पड़ीं।





    "क्या तुम रो रही थी?"





    उसकी भौंहें चढ़ गईं। उसका tone demanding और concern से भरा था।





    "न-नहीं… तो…" मैं सकपका गई।





    "अच्छा…?"





    "Garvit, हम project की बात कर लें?" निधान ने बीच में टॉपिक बदलते हुए कहा।





    "हाँ…"  project, गर्वित  का ध्यान finally divert हुआ, और मैं निधान की इस ‘मदद’ के लिए शुक्रगुज़ार थी। क्योंकि सच कहूँ तो Garvit बात की जड़ तक पहुँचने वाला इंसान है, और अगर वो मुझसे और सवाल करता, तो मैं कभी उसे convince नहीं कर पाती।





    "तो आश्वी i, अपना luggage पैक  कर लो…" 





    "क्याआआ?"



    तुम्हें निदान के साथ महाबलेश्वर जाना है।" गर्वित  ने बिना किसी expression के कहा—कहा क्या, लगभग ऑर्डर ही दे दिया।





    "क्या…?"



    मैंने  इस बार तेज़ आवाज़ में कहा। एक पल के लिए तो कोई भी मेरी आवाज़ सुनकर घबरा जाता!





    "शायद मैने गलत सुना ?" मैंने घबराकर पूछा।





    "नहीं, तुमने सही सुना।”







    इस बार, गर्वित  ने अपने हाथ में पकड़ी फाइल—जिसे वो पढ़ रहा था—साइड में रखते हुए calmly कहा,



    "तुमने सही सुना है।"





    "निदान को एक personal secretary की ज़रूरत है। अब जब वो हमारे प्रोजेक्ट में help कर रहा है, तो मेरी भी responsibility बनती है कि उसके काम में कोई रुकावट न आए। उसे एक अच्छी, समझदार और होशियार secretary चाहिए।"





    "इसलिए, मैं तुम्हें पूरे एक हफ़्ते के लिए निदान की PA बना रहा हूँ... temporary तौर पर।" Temporary शब्द पर उसने खास ज़ोर दिया।









    "नहीं, ये नहीं हो सकता... It's wrong."



    मैं निदान के साथ अकेले महाबलेश्वर नहीं जा सकती... बल्कि सच कहूँ तो, मैं उसके साथ एक मिनट भी अकेले  नहीं बिता सकती! मैंने मन ही मन कहा। उसके साथ अकेले रहना... रिस्की है।





    वो सामने होगा, तो मैं सब कुछ भूल जाऊँगी। He is engaged! और मेरे लिए अपनी भावनाओं को काबू में रखना बहुत मुश्किल होगा। मैं फिर से नहीं टूट सकती... अब और नहीं। मैं कमज़ोर नहीं पड़ सकती। इसलिए, मेरा उससे दूर रहना ही सही है। उसके लिए भी... और मेरे लिए भी।





    "स... सर..." मैंने अपने एक हाथ की उंगलियाँ दूसरे हाथ से उलझाते हुए, दिमाग़ को पूरी ताकत से दौड़ाया और कुछ सोचते हुए कहा…







    "पर सर, मैं…"





    "कोई बहाना मत दो, आश्वी i।"





    "Sir, मुझे allergy है!" मैंने झट से कहा।





    "किस चीज़ से?"  इस बार निदान  ने interest लेते हुए पूछा।





    "मुझे… समुद्री हवा से एलर्जी है!"





    अच्छा! गर्वित  ने confusion में पूछा, "पर महाबलेश्वर तो पहाड़ों में है? वहाँ समुद्र ही नहीं है?"





    मैं तुरंत झेंप गई।  वो "मेरा मतलब… वहाँ की हवा भी नमी वाली होती है। मुझे पहाड़ी हवा से भी एलर्जी है!"





    निदान ने सिर हिलाते हुए हँसी दबाई। "अच्छा… पहाड़ की हवा से एलर्जी, समंदर की हवा से भी  एलर्जी… शहर की हवा ठीक लगती है?"





    "नहीं !" मैंने बिना सोचे कहा।





    "अरे, कोई और बहाना ढूँढो।"





    गर्वित ने सिर हिलाते हुवे कहा ।





    Sir, और वैसे भी, कितना काम है मुझे! ईमेल चेक करने हैं, इन्वेंटरी का जायज़ा लेना है... कौन जाने, होटल से कोई तौलिया ही गायब हो गया हो! मैं हर तरह के सही-गलत बहाने गढ़ती रही, बस किसी तरह गर्वित को मना सकूँ।





    लेकिन, मेरी किस्मत! निदान तो जैसे मेरे बहानों पर मज़े ले रहा था, और गर्वित  ने बस एक हल्की सी न में गर्दन हिला दी।





    "अब और कोई बहाना नहीं, आश्वी। तुम महाबलेश्वर जा रही हो," उसने अपने फैसले पर अंतिम मुहर लगा दी।





    "ओके, तोह  मेरी असिस्टेंट! कल सुबह नौ बजे पिक करने आ जाऊँगा, तैयार रहना!"





    निदान ने मुझे देखते हुए एक तंज़भरी मुस्कान बिखेरी, और मैं समझ गई—मेरा अजीबो-गरीब समय शुरू हो चुका है। अब खुद पर बहुत कंट्रोल रखना पड़ेगा…

  • 7. Twisted love - Chapter 7

    Words: 1413

    Estimated Reading Time: 9 min

    ठीक 9 बजे निदान की गाड़ी, आश्वी के घर के बाहर खड़ी थी। या यूं कहें, की गली के बाहर, क्योंकि गली इतनी तंग थी कि गाड़ी का गली के  अंदर तक जाना बड़ा मुश्किल था। निदान ने अपनी पैंट की जेब से अपना फोन निकाला और आश्वी का नंबर डायल कर दिया। कल रात  ही उसने गर्वित से आश्वी का  नंबर मांग लिया था।





    "इंतज़ार की घड़ियाँ भी कैसी अजीब होती हैं,



    नाम किसी का होता है और धड़कनें किसी की तेज़ होती हैं..."





     अपने फोन पर बजती दूसरी ही रिंग में आश्वी ने फोन उठा लिया... और अगले ही पल वह मेन गेट की ओर दौड़ पड़ी। 



    हालाँकि उसके लिए इस तरह से अपने  घर से दूर जाना आसान तोह नहीं था। वह अपनी बूढ़ी माँ को अपने बदमिजाज ,बेवड़े  भाई के साथ अकेला नहीं छोड़ सकती थी। लेकिन वो इस तरह से अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ना भी तो उसके लिए संभव नहीं था। यह नौकरी सिर्फ़ उसके लिए ही नहीं, बल्कि उसके पूरे घर के लिए भी बेहद ज़रूरी थी। वह हर बार अपनी सबसे अच्छी दोस्त से फ़ेवर तो नहीं माँग सकती थी।





     इसलिए अपनी मां को कुछ ज़रूरी हिदायतें देने के बाद, उसने अपना सामान पैक किया और बाहर की और निकल पड़ी ।





    गली के आखिरी छोर पर एक ब्लैक रोल्स रॉयस  खड़ी थी और उस पर एक शख्स हल्के से टिके हुए खड़ा था—निदान।  डार्क ब्राउन कलर की शर्ट के साथ बेज ट्राउज़र्स में वो बड़ा ही दिलकश लग रहा था । हल्के से बिगड़े हुए बाल, धूप से बचाने के लिए आँखों पर डार्क शेड ग्लासेस, 





    "इश्क़ की एक नज़र ही काफी होती है,



    दिल को बेचैन करने के लिए…"





    एक पल के लिए आश्वी के दिल की धड़कनें मानो  ठहर सी गईं। उसकी आँखें निदान के आकर्षक व्यक्तित्व को एकटक निहारती  गईं। अचानक उसने अपने  चेहरे पर एक अनजानी गरमाहट महसूस की । और हाथ में पकड़ा बैग ना जाने कब  भारी सा लगने लगा। मानो अब हाथों में जान ही ना रही हो ।





    "भगवान ने बड़ी फुर्सत से बनाया था  उसे... किसी के भी दिल में हलचल पैदा करने के लिए तोह  बस  उसकी एक नज़र ही काफ़ी है!"





    अपनी तरफ आती आश्वी पर नजर जाते ही निदान ने आगे बढ़कर आश्वी के हाथ से उसका बैग ले लिया।





    क्या वह समझ गया था कि अचानक आश्वी को अपना  बैग भारी क्यों लगने लगा है? या फिर यह सिर्फ़ उसकी शिष्टता थी? खैर यह सब तो एक ख्याली पुलाव है , वरना कौन किसके दिल के हाल से वाकिफ होता है।





    "इट्स ओके, मैं ले लूँगी..." आश्वी ने सकपकाते हुए बैग वापस लेने की कोशिश की। वो निदान के ऐसे अचानक बैग लेने से एक पल को घबरा गई थी ।





    "हाँ पता है, की तुम ले जा सकती हो... अब बहुत बड़ी हल्क बन गई हो ना!" निदान ने हल्के मज़ाकिया अंदाज़ में कहा और उसे अपने कंधे से हल्का सा धक्का दिया।





    "मोहब्बत की हदें कुछ यूं भी होती हैं,



    कोई पास होकर भी दूरियों में जीता है…"





    आश्वी का दिल  खुद से ही कह रहा था कि—"ये क्यों नहीं समझता कि उसकी इतनी  नज़दीकियाँ मेरे लिए  कितनी मुश्किलें खड़ी कर रही हैं?"





    तब तक  निदान के ड्राइवर ने निदान से बैग लेकर कार की डिग्गी में रख दिया और निदान ने उसके लिए कार का दरवाज़ा खोला और आश्वी को आंखों के इशारे से अंदर बैठने को कहा ।









    लगभग 30 मिनट का सफर बीत चुका था, लेकिन कार में अभी भी पिन-ड्रॉप साइलेंस पसरा हुआ था।  ना निदान ने कुछ कहा और ना आश्वी ने ,आश्वी ने अपने स्तर पर पूरी कोशिश की थी निदान से दूरी बनाए रखने की।





    पर क्यों?





    जो आश्वी सारा दिन चटर-पटर बातें करती थी, आज वह ख़ामोश क्यों थी? दोनों के बीच इतनी अजनबीयत सी क्यों थी?





    कार अपनी गति से चल रही थी और आश्वी... उसने तो कार में बैठते ही अपने पर्स में  से एक किताब निकाल ली थी। न जाने वह क्या ही पढ़ रही थी, लेकिन उसकी निगाहें कनखियों से बार-बार निदान को देखना नहीं भूल रही थीं। और निदान? वह तो हर एक  मिनट आश्वी के हाव-भाव नोटिस कर रहा था। उसकी हल्की-सी मुस्कान इस बात का सबूत थी कि वह समझ रहा था—आश्वी उसे इग्नोर कर रही है।





    पर क्यों?





    **"बचने की लाख कोशिशें जब नाकाम हो जाएं,





    समझ लेना कि मोहब्बत ने दस्तक दे दी है..."**





    अब निदान से और  रहा नहीं गया। उसने धीरे-धीरे अपनी जगह से खिसकते हुए खुद को आश्वी के और करीब कर लिया।





    आश्वी बेचारी  हालांकि किताब में डूबी रही, लेकिन उसे एहसास हो गया था कि निदान  उसके और करीब आ रहा है।





    थोड़ा और...





    फिर थोड़ा और...





    अब तो वह उससे  एकदम सटकर बैठ गया था।





    और आश्वी बस मन ही मन यह  दुआ कर रही थी कि उसकी बढ़ती धड़कनों का शोर किसी तरह बस निदान तक न पहुँचे।





    निदान उसके क़रीब झुकते हुए उसके कान में फुसफुसाया, "किताब बहुत अच्छी होगी ना?"





    उसकी आवाज़ में एक सरसराहट सी थी, जो आश्वी की गर्दन के पिछले हिस्से तक सिहरन भेजने के लिए काफी थी।





    आश्वी ने गला सूखते हुए कहा, "हाँ, बहुत इंट्रेस्टिंग है..."





    "ओह, अच्छा ?  बिल्कुल होगी!" निधान ने मुस्कुराते हुए कहा।





    "तभी तो तुम इसे उल्टी तरफ से भी  पढ़ सकती हो...!"





    मैने कभी कोई इतनी इंटरेस्टिंग बुक नहीं पढ़ी, जिसे में उल्टा पकड़ कर पढ़ सकता। 



    यह बुक बहुत खास होगी, है न ।









    "क्या?"





    अचानक आश्वी सकपका गई। उसने तुरंत अपनी किताब को चेक किया और देखा कि वह सचमुच उल्टी पकड़ी हुई थी।





    है भगवान ! ,, उसने शर्मिंदगी में कस कर अपनी आँखें बंद कर ली , 



    "कसम से! अभी ज़मीन फट जाए और मैं उसमें समा जाऊँ!"



    और निदान बस वो ऊपर से मिट्टी डाल दे ।





    उसने जल्दी से अपन चेहरा खिड़की की तरफ़ कर लिया ताकि निदान उसकी शर्मिंदगी को  न देख सके।





    और निदान...?





    वह हंस पड़ा।





    और आश्वी बस असहमति से अपनी गर्दन ना में हिलाती रही ।





    "वैसे, तुम मुझे इग्नोर क्यों कर रही हो?"





    निदान ने उसका चेहरा अपनी उंगलियों से पकड़कर अपनी ओर मोड़ते हुवे पूछा ।





    " तुम रिएक्ट तो ऐसे कर रही हो जैसे मुझे जानती ही नहीं हो..."





    उसकी आवाज़ नरम थी, पर सवाल गहरा था।





    "अब ये मत कहना कि तुम 'मेरी' आश्वी भी नहीं हो..."





    निदान ने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा।





    आश्वी की आँखों में कुछ था, कुछ ऐसा जो निदान को बेचैन कर रहा था। 



    लगा मानो पूरा समुंदर की गहराई इन आंखों में उतर आई हो, और वो बस उस छोर तक जाना चाहता है, जहां उन गहराई में छिपे भावों को वो समझ पाए ।





    "तेरी आँखों में ऐसा क्या बसता है,



    जिसे देखने के बाद ये दिल ठहर सा जाता है...?"





    "जब मैंने तुम्हें गर्वित  के पास खड़ा  देखा था, तब ही मेरे दिल ने  तुम्हे पहचान लिया था... कि ये 'तुम' ही हो..."





    उसने उसकी गर्दन में पहने लॉकेट को देखते हुए कहा।





    आश्वी की आँखों में नमी आ गई।





    उसने झुककर निधान की कॉलर पकड़ ली और अपने माथे को उसके कंधे पर टिका दिया।





    जैसे... इस पूरे संसार में यही एक जगह थी, जहाँ वह महफ़ूज़ महसूस करती थी।





    "मम्मी-पापा कैसे हैं?" आश्वी ने सुबकते हुए पूछा।





    "हमने तुम्हें बहुत मिस किया, इतना ज्यादा कि..."





    "तो फिर क्यों नहीं आए तुम?"





    "क्यों नहीं आए वो?"





    "एक बार भी मुझे देखने की कोशिश नहीं की?"





    आश्वी की आँखों में दर्द था, गिला था, शिकवा था, शिकायत थी, 10 सालों का अधूरा सवाल...





    "किसने कहा कि हमने तुम्हें ढूंढा नहीं?"





    निदान ने उसका चेहरा अपने हाथों में थाम लिया...





    "पूरे उदयपुर का कोना-कोना छान मारा था... लेकिन तुम्हारा कोई सुराग नहीं मिला..."



    कोई गली, कोई मोहल्ला, कोई चौराहा नहीं छोड़ा , लेकिन ना धरती ना इस बेरहम आसमान ने तुम्हारा पता बताया।







    "पिछले पाँच सालों से तुम्हें पागलो की ढूंढ रहा हूँ, लेकिन..."





    अब तोह जैसे एक आस भी टूट गई थी , की कही हमने  तुम्हे हमेशा के लिए तो नहीं खो दिया ।





    "माँ की हालत बहुत ख़राब हो गई थी... वह तुम्हें देखने के लिए तड़प रही थी..."





    ऊपर से अहाना, तुम्हे तोह पता है .. 







    "आहाना कैसी है?"  मां उसे बहुत याद करती है, साथ मैं होती  हु, पर उनकी जुबान पर नाम सिर्फ उसका होता है आश्वी ने अपने आँसू पोंछते हुए पूछा, उसकी आवाज में तल्खी थी, और चेहरे पर एक कड़वाहट से भरी मुस्काना।





    वो बस .. 



    इससे पहले कि निदान आगे कुछ कह पाता, अचानक उन्हें पीछे से एक धक्का लगा, और गाड़ी अचानक से अपनी जगह पर रुक गई ।

  • 8. Twisted love - Chapter 8

    Words: 1233

    Estimated Reading Time: 8 min

    जैसे ही गाड़ी झटके से रुकी आश्वी अपना संतुलन नहीं रख पाई  और आश्वी सीधा निदान की ओर झुक गई।





    उसका हाथ अनजाने में ही  निदान के सीने पर टिक गया, और अगले ही पल उसने खुद को संभालने की कोशिश की, लेकिन निदान ने उसकी कमर को हल्के से थाम लिया था ।





    "संभल कर..." उसकी आवाज़ धीमी थी, पर इतनी गहरी कि आश्वी का दिल एक पल के लिए धड़कना ही भूल गया।





    उसने जल्दी से खुद को उससे अलग किया, लेकिन तभी गाड़ी एक बार फिर हल्के  झटके से हिली, और इस बार आश्वी पूरी तरह से निदान के करीब आ गई , इतना  करीब कि उनकी साँसें एक-दूसरे से टकराने लगीं।







    निदान और आश्वी ने एक-दूसरे की तरफ देखा, उनको आँखें जैसे पल भर के लिए झपकाना ही भूल गई लेकिन  फिर अचानक पीछे से हॉर्न की तेज़ आवाज़  ने उनको होश में लाने का काम किया ।





    "क्या हुआ?" आश्वी ने घबराकर पूछा।





     बगल में बैठे निदान ने  अपना ध्यान आश्वी से हटाकर ड्राइवर की और देखते हुवे उससे  पूछा, "सब ठीक है?"





    ड्राइवर ने हड़बड़ाते हुए जवाब दिया, "सर, लगता है कोई पीछे से टकरा गया है… मैं  देखता हूँ!"





    ड्राइवर गाड़ी से उतरा और पीछे देखने के लिए चला गया ।





    बाहर हल्की हल्की  बारिश होने लगी थी। बारिश तोह कार के अंदर भी हो रहीं थी , आश्वी और निदान के जज्बातों की ।





    शीशों पर गिरती पानी की बूंदें कार के अंदर पसरे सन्नाटे को और गहरा कर रही थीं।





    आश्वी ने घबराकर अपनी तरफ की खिड़की की ओर देखा, लेकिन वो महसूस कर पा रही थी कि निदान की नज़रें अब भी उसी पर टिकी हुई थीं।





    "तुम ठीक हो?" निदान ने उसकी कलाई को हल्के से छूते हुए पूछा।







    आश्वी के पूरे बदन में एक झुरझुरी सी फेल गई , उसका यह स्पर्श आश्वी के नसों में बह रहे blood के संचार को तेजी से बढ़ाने के लिए काफी था .





    हां , आश्वी ने धीरे से सिर हिलाया, लेकिन उसकी तेज़ होती धड़कनों ने उसे झूठा साबित कर दिया था ।





    "तेरी नज़दीकियों का असर कुछ ऐसा है,



    दिल धड़कता भी है... और थम भी जाता है।”







    "लग तो नहीं रहा है ," निदान की आवाज़ धीमी होते हुए भी उसकी नसों में एक अजीब सी गर्मी घोल रही थी।





    आश्वी ने उसकी तरफ देखने की हिम्मत तक नहीं की, लेकिन अगले ही पल निदान ने उसके चेहरे को हल्के से अपनी उंगलियों से छुआ और उसकी ठुड्डी ऊपर की, ताकि वो उसकी आँखों में देख सके।





    "डर गई?"





    आश्वी की सांसें खुद में ही उलझ गईं।





    "न-नहीं..." उसने जवाब दिया, उसकी आवाज बिखर गई थी ,लेकिन उसकी आँखें कुछ और ही हाल बयान कर रही थी ।





    निदान ने हल्के से मुस्कुराते हुवे , उसके चेहरे से कुछ बूंदें हटाईं, जो शायद बारिश की नहीं, बल्कि उसकी अपनी उलझनों की थीं।





    "झटके से डरने वाली लड़की तो तुम कभी नहीं थी, आश्वी... फिर अब क्यों भाग रही हो?"





    आश्वी को लगा जैसे वो कुछ बोलना चाहती थी, पर शब्द , पर शब्द साथ नहीं दे रहे थे। मानो शब्द गले के अंतिम छोर तक आके रुक गए , और बाहर निकलने का रास्ता ही भूल गए हो ।





    निदान उसके चेहरे पे  झुका, उसका चेहरा अब उसके और करीब था... इतना कि उसकी खुशबू तक महसूस की जा सकती थी।







    यह सब आश्वी को असहज बना रहा था ,आश्वी को तो समझ ही नहीं आया कि वो  इस पर क्या प्रतिक्रिया दे। उसने खुद को थोड़ा पीछे किया, लेकिन तभी गाड़ी फिर से हिली।





    "अब क्या हुआ?" आश्वी फिर से घबराई।





    तभी ड्राइवर अंदर आया और बोला, "सर, पीछे एक बाइक वाला था, हल्की सी टक्कर लगी थी, पर अब सब ठीक है। अब हम जा सकते हैं।"





    निदान ने सहमति में अपना सिर हिलाया और ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट कर दी।





    लेकिन आश्वी ? वो तो अभी भी बेचैन थी।







    गाड़ी अपनी रफ्तार से मंज़िल की ओर बढ़ रही थी।





    बातों का सिलसिला अब थम-सा गया था, क्योंकि निदान समझ गया था कि आश्वी के मन में इस समय कितनी उथल-पुथल मची हुई है। उसके लिए ये सब नया था, और खुद निदान भी अपने जज़्बातों को काबू में रखने की नाकाम कोशिश कर रहा था। इसलिए उसने  उसे संभलने और अपने मन की दशा को समझने के लिए थोड़ा वक्त देना ही ठीक समझा ।





    बाकी का सफर खामोशी में बीता।





    निदान  ने जहां अपने नए प्रोजेक्ट की ब्रिफिंग लेने के लिए लैपटॉप खोल लिया, और आश्वी , वो बस  खिड़की से बाहर देखते हुए बीते हुए रास्तों को अपनी यादों में कैद करने लगी। ताकि उसका ध्यान उसके भीतर  मची उथल पुथल से जरा  हट सके ।





    "कभी-कभी सब कुछ पास होते हुए भी दिल बेचैन रहता है,



    जिसे पाकर भी खो देने का डर बना रहता है..."





    उसके ठीक बगल में बैठा वो शख़्स, जो उसके लिए उसकी पूरी दुनिया था  , जिसे उसने सालों तक सिर्फ एक ख़्वाब की तरह चाहा था—आज वो हकीकत बनकर उसके सामने था। फिर भी मन अशांत था, कहीं ये हसीन सपना टूट न जाए... कहीं ये सब सिर्फ उसका ख्याली पुलाव न निकले...





    निदान अपने काम में, और आश्वी अपनी उलझनों में इतनी डूब गई थी कि कब मुंबई से महाबलेश्वर का सफर तय हो गया, उन्हें पता ही नहीं चला।





    "जब सफर में मनभावन मौसम हो,



    और साथ में दिल के करीब कोई खास हो,



    तो वक्त भी परियों के पंख लगा उड़ने लगता है..." है ना।





     "सर, हम होटल पहुँच चुके हैं," ड्राइवर ने रियर व्यू मिरर में देखते हुवे कहा , और पीछे बैठे आश्वी निदान  को तब जाकर अहसास हुआ कि उनका यह  सफर कब का पूरा हो चुका है।





    "इतनी जल्दी?" निदान ने  अपने कलाई पे बांधी घड़ी की ओर देखते हुए कहा।





    दोपहर के दो बज चुके थे।





    वो थोड़ा हैरान था। समय का जैसे पता ही नहीं चला हो और ,उसकी नज़रें अनायास ही आश्वी की ओर चली गईं, जो अपना दुपट्टा ठीक कर रही थी।





    ड्राइवर ने गाड़ी से बाहर निकल कर  उसकी तरफ़ का दरवाज़ा खोला, और निदान ने  बाहर निकलकर अपने बॉडी को हल्का सा स्ट्रेच किया । और  निदान ने  सीधा जाकर एक परफेक्ट जेंटलमैन की तरह आश्वी की तरफ का दरवाजा खोल दिया ।





    आश्वी का दिल एक पल को ठहर सा  गया।





    उसने कहां ही सोचा था कि कोई उसके लिए भी इस तरह से दरवाज़ा खोलेगा...





    "शायद ये वो छोटी-छोटी बातें होती हैं,



    जो दिल के सबसे करीब जाकर बस जाती हैं..."





    "वेलकम टू महाबलेश्वर, मैडम!" निदान ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।





    आश्वी ने उसकी आँखों में देखा, और फिर झिझकते हुए एक हल्की सी मुस्कान बिखेर दी।





    तब तक ड्राइवर ने उनका सामान निकाल लिया था, और वो दोनों होटल के रिसेप्शन एरिया की ओर बढ़ गए।





    "हैलो सर, मैं ,आपके लिए क्या कर सकती हूँ?" रिसेप्शनिस्ट ने प्रोफेशनल मुस्कान के साथ पूछा।





    "मिस्टर निदान राजवंश और मिस आश्वी के नाम से बुकिंग है," निदान ने जवाब दिया।





    जस्ट ए मिनिट sir, 





    रिसेप्शनिस्ट इस से पहले  की कुछ और कह पाती कि अचानक...





    किसी ने पीछे से निदान को अपनी बाहों में जकड़ लिया।





    "आई मिस्ड यू, डार्लिंग...!"





    आश्वी और निदान, दोनों ही अवाक से रह गए।





    कौन थी ये लड़की? और उसने निदान को इस तरह क्यों पकड़ा...?





    आश्वी के दिल की धड़कन एक पल को रुक गई।





    "कुछ लम्हों में ही दुनिया बदल जाती है,



    कभी कोई अपना सा लगने लगता है,



    तो कभी कोई अपना भी अजनबी बन जाता है..."

  • 9. Twisted love - Chapter 9

    Words: 1041

    Estimated Reading Time: 7 min

    आश्वी और निदान, दोनों ही अवाक रह गए…

    आश्वी की तो मानो धड़कनें ही थम गईं। उसकी साँसों की रफ्तार जैसे थमकर किसी अनदेखी पीड़ा में घुल गई थी।



    वो जानती थी, जानती थी इस शख्स को...

    जिसे पूरा हक था निदान को इस तरह अपनी बाँहों में भर लेने का।

    पर जानना और सह लेना... दोनों अलग-अलग बातें थीं।



    "दिल की धड़कनों को थामने की कोशिश मत कर,

    जब सामने कोई अपना हो, तो बस खुद को बहने दे…"



    "सान्वी, तुम… तुम यहाँ क्या कर रही हो?" उसने जल्दी से उसके हाथ अपने सीने से हटाते हुए कहा। वो अचंभित था, सान्वी को इस तरह अपने सामने देखकर… लेकिन फिर उसे एहसास हुआ कि उसके सामने आश्वी खड़ी थी।

    वो आश्वि जो बस एकटक सान्वी के हाथों को देख रही थी, जो फिसलकर अब निधान के कंधे पर आ चुके थे।



    "सप्राइज़!"

    और फिर,

    पीछे से अचानक एक और आवाज़ आई, जिसने निदान और आश्वी दोनों को पीछे मुड़कर देखने पर मजबूर कर दिया।

    जहां गर्वित के साथ एक लड़की खड़ी थी।

    लंबी , छरहरी, खूबसूरत, जिसकी मुस्कान से ही उसका गुरूर झलक रहा था, उसने एक नज़र आश्वी को देखा, और फिर वो आगे बढ़कर निदान से लिपट गई। मगर… उसकी वो एक नज़र ही कड़वाहट से भरी थी।



    आश्वी अचंभित थी, जिस लड़की को वो जानती तक नहीं, वो उसे इस तरह से क्यों देख रही थी?



    "आहाना, तुम… तुम कब आई? तुम तो तीन दिन बाद इंडिया आ रही थी न?"

    निधान ने आहाना को खुद से अलग करते हुए पूछा। उसकी नजरें अब तक गर्वित पर टिकी थीं, जो काफ़ी देर से खामोश खड़ा था।



    "आहाना… तो ये लड़की आहाना थी?"

    निदान की बहन। Correction – सगी बहन!



    आज भी वैसे ही थी... वही घमंड भरा चेहरा।

    अब आश्वी को समझ आ रहा था, वो उसे इस तरह क्यों देख रही थी।



    "कुछ नहीं बदला… इन सालों में भी नहीं।"



    "किसी की नफरत का क्या शिकवा करें,

    जब मोहब्बत ही उसकी सबसे बड़ी तकलीफ हो!"



    आश्वी के ज़ेहन में पुरानी यादों का समंदर हिलोरें मारने लगा…

    आखिरी बार जब उन्होंने बात की थी, तो आहाना ने उससे यही कहा था—

    "मुझे वो मिल गया, जिस पर मेरा हक था… और तुम्हें तुम्हारी बदनसीबी मुबारक!"



    आश्वी के चेहरे पर एक फीकी मुस्कान तैर गई।

    वो गौर से आहाना को देख रही थी, और आहाना की जलती निगाहें उसे धुआं धुआं कर रही थीं।



    "भाई, ये मुझसे मत पूछो, अपनी इस क्रेज़ी बहन से पूछो!"

    गर्वित ने अपने हाथ खड़े करते हुए कहा, मानो वो खुद इस सब में फंस गया हो।



    "जैसे ही इसने सुना कि तू और आश्वी महाबलेश्वर आए हो प्रोजेक्ट के लिए … , इसने ज़िद पकड़ ली कि इसे भी यहाँ घूमना है। और फिर क्या…? तेरी मंगेतर और आहाना ने मेरा जीना हराम कर दिया।

    मुझे अपना सारा काम छोड़कर मजबूरी में यहाँ आना पड़ा!" गर्वित ने निधान की तरफ शिकायती लहज़े में देखा।



    "आहाना, ये क्या बचपना है?"

    निदान ने झुंझलाते हुए कहा, "तुम्हारी जिद में गर्वित का कितना नुकसान हो गया और मुझे समझ नहीं आता, इतनी क्या अर्जेंसी थी कि तुम **मुंबई आने तक भी इंतज़ार नहीं कर सकी?"



    फिर उसने गहरी सांस लेते हुए सान्वी की तरफ देखा,

    "…और सान्वी, तुम? मैं तुमसे इस तरह की बचकानी हरकत की उम्मीद नहीं करता था!"



    एक पल के लिए माहौल काफी गर्म हो गया था…



    पर तभी, सान्वी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ी और निडान की बाहों में बाहें डाल दीं,

    "बेबी, I missed you!"

    "मुझे पता है, पहले मैंने ही कहा था कि मुझे मुंबई घूमना है… पर जब आहाना ने बताया कि महाबलेश्वर कितनी खूबसूरत जगह है, तो मैं खुद को रोक नहीं पाई!"



    फिर उसने मुस्कराते हुए निधान की आँखों में देखा और कहा,

    "और वैसे भी, मैंने सोचा, तुम्हारे काम के साथ-साथ, हम दोनों कुछ क्वालिटी टाइम भी बिता लेंगे!"



    आश्वी की नजर अब भी सानवी के हाथ पर बनी हुई , या सच कहो तो उसके हाथ में पहनी हुई अंगूठी पर,

    वो छोटी सी अंगूठी, निदान का नाम अपने भीतर समेटे, जैसे उसके सीने पर कोई नश्तर बनकर उतर आई थी।



    एक पल... बस एक पल में,

    जैसे भीतर ही भीतर कुछ दरक सा गया।

    जैसे मन की ज़मीन पर चुपचाप कोई दरार फैल गई हो।

    होंठो पर आई मुस्कान पलभर में बिखर गई...

    और आँखों में एक अनकहा सा सूनापन उतर आया।



    पर अगले ही पल, आश्वी ने अपने बिखरे जज़्बातों को बालों की तरह झटक दिया।

    खुद से कहा —

    "ये तो बस रात का सपना था आश्वी...

    जो भोर की पहली रोशनी में बिखर गया..."



    लेकिन उसे महसूस हुआ,

    उसकी टूटी सांसों को, उसके डगमगाए हावभाव को, कोई बहुत ध्यान से देख रहा था।



    उसने सिर उठाया...

    और सामने की और देखा — आहना ।

    जो अपने चेहरे पर वही मुस्कान लिए उसे देख रही थी,

    जो जीतने के बाद दुश्मन के सामने खिलती है।



    आश्वी समझ गई थी...

    यह कोई इत्तफाक़ नहीं था,

    यह एक बारीकी से बुना गया खेल था —

    जिसका एक ही मकसद था... उसे निधान से दूर करना।





    ...आश्वी की नज़रें अब भी आहाना पर टिकी थीं, और आहाना की आँखों में वही पुरानी नफरत झलक रही थी…



    "कुछ चीज़ें वक्त के साथ बदल जाती हैं…

    और कुछ... नफरत की तरह, दिल में जड़ें जमा लेती हैं!"



    आश्वी ने गहरी सांस ली। वो जानती थी कि आहाना का गुस्सा उसके लिए नया नहीं था, पर इतना सालों बाद भी वही आग…?

    ये देखकर उसे खुद पर हंसी आ गई।



    "बिलकुल बदला नहीं कुछ…" उसने खुद से बुदबुदाया।



    और उस भीड़, उस हँसी, उस जीत के बीच —

    आश्वी अकेली थी।

    खामोश...

    पर मजबूत।





    लेकिन वहीं, कोई और भी था — जो सिर्फ आश्वी की मनोदशा को नहीं समझता था, बल्कि उसे अपनी रूह तक महसूस कर सकता था। उसकी आँखों ने भी देखा था आश्वी के अंदर उठते उस दर्द के तूफान को, उस घुटन को, जो वो बेमन होकर भी सबके सामने छुपा रही थी।

    यह कोई पहली बार नहीं था। आश्वी को यूँ सबके बीच अकेला होते देखना, या सही कहें तो जानबूझकर उसे अकेला कर देना — यह सब अब कोई अनजाना मंज़र नहीं था।

    किसी की जलन, किसी के भीतर पनपते हसद का बोझ आज फिर आश्वी के कंधों पर था। और वो... वो बस चुपचाप सह रही थी — जैसे हर बार!