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जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर

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Kusum Sharma

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कहते है ना मिलना लिखा होता है उन्हे मिलने से कोई भी नहीं रोक सकता...... जिन्ना ते वाहे गुरुजी दा हाथ होवे ओना दे सर ते अपणी स्पेशल मेहर रखदे ने......... अनुभा और सूक्ष्म पर कुछ इस तरह वाहे गुरुजी दी मेहर है कि ना मिलकर भी मिल जायेंगे.....

Total Chapters (27)

Page 1 of 2

  • 1. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 1

    Words: 1020

    Estimated Reading Time: 7 min

    कहते है ना मिलना लिखा होता है उन्हे मिलने से कोई भी नहीं रोक सकता...... जिन्ना ते वाहे गुरुजी दा हाथ होवे ओना दे सर ते अपणी स्पेशल मेहर रखदे ने......... अनुभा और सूक्ष्म पर कुछ इस तरह वाहे गुरुजी दी मेहर है कि ना मिलकर भी मिल जायेंगे....कैसे?.....इस कहानी में इन दोनों के बारे में बताया गया है। बस इतना ही😊.....बाकी इनसे मिलिए कहानी में...... अनु गुस्से में सिंक में प्लेट रखते हुए " मम्मी तुसी वी एक बार ढंग नाल झिड़का देंदें....बुआ रोज-रोज नवां नवां मुंडा ले के बुए अगे खड़ी ना होंदी है.....परोणा नहीं चाहिदा....." ( मां एक बार सख्ती से मना कर दो....बुआ जी रोज-रोज दरवाजे पर एक नया लड़का लेकर खड़ी हो जाती है....मुझे पति नहीं चाहिए.....) जया लास्ट रोटी तवे पर डालते हुए बोली " ऐंवें नी बोल्या जांदा... ओ तेरी बुआ हैगी.....तेरे पापा आण गे...आपे गल कर लेणी है....." (ऐसे नहीं बोलते वो तेरी बुआजी है, तेरे पापा आयेंगें तो अपनेआप ही बात कर लेंगे।) अनूभा मुंह बनाकर अपने कमरे में चली गई और अपने पलंग पर ओंधे मुंह लेट गई। जया रोटी सेक कर अनु के पीछे आई तो देखा कि वो औंधे मुंह लेटी हुई थी ! जया उसके सिर पर  हाथ फेरकर सहानुभूतिपूर्वक बोली" अनु गुस्सा ना कर....मैं बात करती हूं ना...." अनुभा ने गहरी नाराजगी के साथ जबाव दिया " तो उनको बोल देना कि जब तक लड़के की नौकरी नहीं लग जाती....तब तक ब्याह वी नी करणा......बला ही खत्म...." जया जी उसके बोलने के तरीके से नाराज हुई और जाते हुए गुस्से में" अनु.....ऐसे नही बोलते...हम भी चाहते हैं तु पैरों पर खड़ी हो.....लेकिन ये भी सच है कि कहीं कोई अच्छा लड़का मिल जाए....अच्छा परिवार मिल जाए तो उसमें हर्ज ही क्या है ? लेकिन तुम जिद्द पर अड़ी हो और अभी कुछ हो गया क्या? अभी बात शूरु हुई है, कहने के साथ ही विदा हो गई क्या?....अच्छे घर वर मिलने मुश्किल हैं लेकिन तुम क्या जानो हमारी चिंता, ऐसे किसी के पल्लू से तो नहीं बांध सकते ना तुझे। तू कह रही है नौकरी वाला हो उसके बारे में भी हमे पता थोड़ी ना है कि वो अच्छा है। सब नौकरी वाले अच्छे हो जरूरी तो नहीं।" "नौकरी वाला मेरी अहमियत समझेगा।" अनुभा की आंखो से आंसू ढलक आए। "कोई पता नहीं लगता।" जया इतना बोल कर किचन की तरफ आ गई ! बेटी की माने या पति और ननद की.....कहीं न कहीं दोनों ही सही है.....बस मझधार में ही फंसी थी कि संजीव जी आ गए जो कि प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं ! जया जी ने गेट खोलकर " जालंधर वाले दीदी आए हैं...." संजीव मोटर साइकिल अंदर खड़ा करके आते हुए " अच्छा! कब आए ?उन्हे खाना खिला दिया ? " " हां , शाम को ही आए थे.....वो थक गए थे....लगता है सो गए।" जया संजीव के हाथ से बैग लेकर संजीव मोटर साइकिल के बैग से सब्जी निकालते हुए " लो ये सब्जी देखो..... सस्ती मिल रही थी आते वक्त ले आया !" जया सब्जी की थैलियां लेकर " ये तो बहुत अच्छा किया।" संजीव अंदर आ हाथ मुंह धोते हुए " अनु कहां है....हमेशा तो आवाज सुनकर ही आ जाती है और आज....कहीं सहेली के पास गई थी क्या जो थककर सो गई....." जया सब्जी की थैलियां टेबल के कोने पर रखते हुए " नहीं, बस लेटी है, चेंज करके.....आप पहले खाना खा लीजिए फिर उसकी सुनना । " संजीव चेंज कर के आए और अनु के रूम में खाना लाने को कहा ! संजीव ने अनुभा के बालों में हाथ फेरते हुए मुस्कुरा दिए ! आंखे बंद किए लेटी अनुभा ने एक नजर संजीव को देखा और मुंह फेर लिया ! जया संजीव को खाना देकर वहीं बैठ गई ! आज वो भी थोड़ा नाराज थी ! अमूमन संजीव के खाना खाते वक्त कोई  शिकवा शिकायत नहीं करती थी।....आज जया को अनु के बोलने का तरीका पसंद नहीं आया ! संजीव का ध्यान खाने में था ! " मत मारी गई है ऐस कुड़ी दी , मैं मना कहां कर रही हूं.....पर लड़का नजर में हो तो सही है ना...... आज ही शादी के लिए थोड़ी कह रही हूं...... रिश्ता अच्छे से देखकर लड़के को रोक के रख लेते हैं।......" सब सुनते हुए संजीव भी खाना खाने में लगे थे ! अनुभा गुस्से से दबे स्वर में " मैं कहीं भाग रही हूं क्या ??? जो इतनी जल्दी मचा रखी है.......मैं नौकरी लग जाती हूं उसके बाद नौकरी वाला ढूंढ लेना......" जया नाराजगी से " पता नहीं की बणूगा ऐस दा.....एक नौकरी की रट लगा रखी है, नौकरी से क्या होगा ! जमीन भी तो होनी चाहिए......" संजीव खाना खत्म करके हाथ धोकर आए और अनुभा के सिर पर हाथ फेरकर मुस्कुराते हुए " अनु छोटी बच्ची की तरह मुंह फुला रखा है ! एकदम गुब्बारा हो जैसे......नहीं....नहीं.... मटका....." " अच्छा गुस्सा छोड़ मना कर देते हैं......" संजीव अनुभा संजीव की गोद में सर रख दिया "  आ होंदी है सयाने पयो आली गल " ( ये हुई ना सयाने पापा वाली बात... ) जया तुनक कर " पर मैं छानबीन करूंगी....." संजीव  " चलो अभी सोने चलो कल सुबह देखते हैं...." जया " किचन का काम पड़ा है......." संजीव जी अनु के साथ बैठकर बातें करने लगे जबकि जया किचन की ओर चली गई...... सुबह संजीव अपनी बहन रीता के पास बैठे बात कर रहे थे ! रीता लड़के की फोटो दिखाकर " जमीन वाला है...इको बहण है.....दो ही भाई-बहन हैं.....लड़का पढ़ा लिखा है....अपनी खेती करना चाहता है।....." संजीव फोटो गौर से देखते हुए " ये फोटो ऐसे अजीब क्यों है ???? " रीता " छांह विच है......(साथ में )नाले पुरानी है...... फौटो का शौक नहीं है......मुंडा वडा ही सयाना ते सिधा ने"" संजीव "  वैसे ठीक है.....एक बार अनु को पूछ ले ।" संजीव फोटो हाथ में लेकर किचन की तरफ आते हुए " अनु देख...." जया खुश हुई जबकि अनुभा अनमनी सी फोटो देखने लगी ! अनुभा मुंह बनाकर " पापा ऐसी कोई फोटो होती है ??? रिश्ते के लिए फोटो ऐसे भेजते हैं क्या....." क्रमशः***** एक मुलाकात आप से कहानियां काल्पनिक होती है लेकिन कहानियों का संसार सत्य घटनाओं पर आधारित होता है जो पाठक को कहानियों से जोड़ने का काम करती है।🙏🙏

  • 2. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 2

    Words: 1007

    Estimated Reading Time: 7 min

    जया खुश हुई जबकि अनु अनमनी सी फोटो देखने लगी !
    अनु मुंह बनाकर " पापा! ऐसी भी कोई फोटो होती है ??? रिश्ते के लिए फोटो ऐसे भेजते हैं क्या?.....सीरियसली उन लोगो ने ये फोटो दी है विश्वास नहीं हो रहा।"

    " बुआ जी लड़का क्या करता है???" अनु उस लड़के के बारे में पूछ बैठी।

    "कुछ नहीं अपणी जमीन जायदाद ओनू कोण संभालूगा।" रीता ने अनुभा को उसकी जमीन का रौब दिखाया।

    "फेर मैं नी करणा ऐस नालो ब्याह (फिर इसके साथ मुझे शादी नहीं करनी है।) " अनुभा ने बुआ जी से साफ मना किया।

    जया उन दोनों के बीच फस गई थी।

    "मत मारी गई है तेरी जो इतना अच्छा रिश्ता ठुकरा रही है और सुन लड़का बड़ी पोस्ट की नौकरी लग कर छोड़ चुका है।" रीता बुआ ने नाराजगी से कहा।

    " बुआ जी उससे मुझे क्या मतलब? फिलहाल ओ वेला ने,फिर से नौकरी लग जाए तब रिश्ता लेकर आ जाना।" अनुभा कहकर अपने रूम में चल दी।

    " अनुभा! बेटा! सुंदरता और अपने होशियार होने का घमंड ठीक नहीं है। " बुआ जी ने समझाया।

    "क्या करूं इस लड़की का.....कुछ समझ ही नहीं रही है। एक बार इसका रोका हो जाए तो शादी बाद में कर लेगें परन्तु ये लड़की मानती ही नहीं है।" जया अनुभा की जिद्द के आगे विवश थी।

    "भाभी इसमें हर्ज ही क्या है?लेकिन मुझे लगता है भाभी लड़की इस तरह मना कर रही है तो कहीं चक्कर में ना हो या पड़ जाए। " रीता ने अपनी सहमती के साथ-साथ शंका जताई।

    " नहीं,दीदी कॉलेज से आने के बाद घर पर ही रहती है या कभी-कभार प्रीतो के पास जाती है। ऐसा कुछ नहीं है।" उसने सफाई दी।

    "तो फिर हर बार ही मना क्यों कर देती है?" रीता ने सवालिया नजरों से जया को देखते हुए पूछा।

    "दीदी पढ़ाई का ज्यादा है बस बीएड करके नौकरी करनी है। अपने पापा को सहारा देना है। पूरा दिन यही चलता है उसके दिमाग में" जया ने अनुभा की सोच बताई।

    "भई तुम लोगों की जैसी इच्छा, लड़का अच्छा था और घर-बार भी.....लड़की को सातों सुख मिलते। अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारे तो कोई क्या करे।" नाराज सी बुआ खड़ी होकर कमरे में चली गई।

    "आज कॉलेज नहीं जाना है क्या?" जया के मन में संशय ने घेरा बनाया और जया गुस्से में अनूभा से बोल पड़ी।

    अनुभा ने जबाव न दिया तो जया खुद में ही बड़बड़ाई और अनुभा को सुनाने से न चूकी " ऐसे ही रहा ना तो ससुराल में नाक कटायेगी। पता नहीं क्या-कुछ चलता रहता है दिलो-दिमाग में"


    "तुसी ऐंवे ही टेंशन लेंदे ने, मैं आपे दस देणा है कि हुण तुसी मुंडा वेख लो।" अनुभा अपनी चेयर पर बैठी ही बोली।

    "और तू आपे व्याह करता फेर असी की करिए। लोकी सानू जीण नी देणा" जया ने समाज की दुहाई दी।

    "वाहेगुरुजी दी सों, मैं ओत्थे ही व्याह करणा जित्थे तूसी कैणगे।" अनुभा ने जया से वादा किया और कसम ली।

    अनुभा का फोन वाइब्रेंट हुआ मगर उसने उठाया नहीं। बुआ जी के आने से घर में क्या उसके दिल में हलचल सी मच गई। वह अभी शादी के लिए तैयार न थी और बुआ जी मम्मी के कहने पर लड़के खोज लाती। जया का मानना था कि अभी से दामाद ढूंढना शुरु करेंगे तो कोई ढंग का लड़का मिलेगा।

    वह मन में" वाहेगुरुजी तुसी मेहर रख्या जे। कोई बंदा ना भेज्या जे अग लाण नूं।"

    अनुभा ने हाथ जोड़कर ऊपर उनकी फोटो को देखा।

    वैसे तो अनुभा इस क्रिटिकल प्राब्लम से दूर थी। वह अपने समय की अहमियत समझती थी लेकिन कल को कॉलेज में कोई पंगा पड़ जाए तो यह उसकी हैसियत से बाहर था। उसके कॉलेज में भी प्रेम की अद्भुत घटनाएं घट चुकी थी और वर्तमान में भी इसका खुमार चढा हुआ था पर वो इन सबसे कोसों दूर थी। साधारणतः दिखाने के लिए सबसे बात करती मगर अपनी मर्यादा में रहकर।

    दूसरी तरफ जया का फोन बजा तो अनुभा समझ चुकी थी कि किसका है इसलिए वह इग्नोर करके चुपचाप बैठी उनकी बाते सुनती रही। वह फोन पर नाम देखकर कुछ शांत हुई" हां बेटा कैसी है तू....."

    " मम्मी मैं ठीक हूं। आप बताइए। पापा और दी कैसे है?" सामने से लड़की की आवाज आई।

    "हम सब ठीक है लेकिन तू आज कोचिंग नहीं गई।" जया ने हैरान होकर पूछा

    "मम्मी आज संडे है। आप भी ना...." सामने से जबाव मिला।

    जया ने अफसोस से सिर हिलाकर " कंपनी वालो ने तेरे पापा को आज रविवार को भी छुट्टी नहीं दी। बमुश्किल हफ्ते में एक छुट्टी देते है उसमें भी जरूरी काम का कहकर बुला लेते हैं। सारा काम तेरे पापा से ही करवायेंगें।"

    जया ने कंपनी वालों को कोसा।


    "वो सब छोड़िए दी कहां है? उन्होने फोन नहीं उठाया।" लड़की ने पूछा।

    "लगी होगी कॉलेज के काम में....." जया झुंझलाहट में

    "क्या बात है? आप दोनों फिर लड़ी हो। एक मिनट....एक मिनट......रीता बुआ आई थी क्या?" उसने अंधेरे में तीर चलाया।

    "यहीं है।" जया ने छोटा सा जबाव दिया।

    "बस तो फिर तो पता ही है। मम्मी आप बहाना लगा देती घर नहीं हो।" लड़की ने उपाय सुझाया।

    "अचानक से आ गई। " जया धीरे से बोली।

    " हायो रब्बा एना दा बस चले तो दुनिया दी कोई कड़ी कुंवारी नी रैण देंणी हैगी।" (इनका बस चले तो दुनिया की कोई  लड़की कुंवारी ना रहने दे।) उसने खीजकर मजाक बनाया ।

    " चुप कर....और बता तेरी तबीयत ठीक है ना.....खाना तो ठीक मिल रहा है ना।" जया ने डपटा।

    " हॉस्टल का खाना आपको पता तो है ही.....आगे दो दिन की छुट्टी है तो घर आ जाऊंगी तब मठरी और घर के बिस्किट बनवा देना।" लड़की ने अपनी बात रखी।

    " ठीक है,आने से दो दिन पहले बता देना। चल रखती हूं तेरी बुआ जी को भी जाना है।" जया ने कहा।

    "बाय मम्मी...." लड़की बोली।

    जया ने अपनी ननद को सूट ,नकदी ,फल-मिठाई कुछ देकर विदा किया। फिर अनु के रूम में आई और समझाने लगी। वह चुपचाप सुनती रही और हां में हां मिला दी। जया के समझाने पर कि आगे से रीता बुआ कोई रिश्ता लेकर आए तो ना-नुकुर ना करे।



    क्रमशः*****

  • 3. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 3

    Words: 932

    Estimated Reading Time: 6 min

    जया ने अपनी ननद को सूट ,नकदी ,फल-मिठाई कुछ देकर विदा किया। फिर अनु के रूम में आई और समझाने लगी। वह चुपचाप सुनती रही और हां में हां मिला दी। जया के समझाने पर कि आगे से रीता बुआ कोई रिश्ता लेकर आए तो ना-नुकुर ना करे।

    संजीव बिंदल मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं। उनकी पत्नी जया घर गृहणी है बड़ी बेटी अनुभा बीए.एमए. करके B.Ed कर रही है जबकि छोटी बेटी बाहर रहकर कोचिंग इंस्टिट्यूट मैं 11वीं के साथ इंजीनियरिंग की तैयारी कर रही है। संजीव प्राइवेट कंपनी में काम करते है और गांव में थोड़ी सी जमीन है जिससे उनका घर चल जाता है उसी में से दोनो पति-पत्नी बचत भी कर लेते हैं बस इसी तरह से उनका परिवार हंसी खुशी से दिन गुजार रहा है।

    संजीव छह भाई-बहन है, जिनमें तीन भाई और तीन बहन है। बड़े भाई ने अपने बच्चों की शादी कर दी है और गांव में आराम से गुजारा कर रहे हैं। दो बड़ी बहनों ने भी अपने बच्चों की शादी करके अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुकी है। छोटे भाई की बेटी अनुभा की हम उम्र है उसका रिश्ता हो चुका है। उसके चाचाजी अपने दोनों बच्चों की शादी एक साथ करना चाहते हैं इसलिए अपने बेटे के लिए लड़की ढूंढ रहे है।

    बस जया की यही टेंशन थी कि इसके साथ के सभी बच्चों की शादी हो रही है और वो हामी नहीं भर रही थी। बस उसका जुनून था कि वह खुद के पैरों पर खड़ी हो और सरकारी नौकरी हासिल करे। वैसा ही लड़का उसे मिले।

    रीता बुआ को रिश्ते के लिए मना करने की यही वजह थी। अनुभा नहीं चाहती कि उसके पापा को दहेज जैसी लाइलाज बीमारी का सामना करना पड़े। बदलते वक्त के साथ आजकल इसका स्वरूप बदल चुका है। उसे पता था कि लड़के वाले सीधा रुपया न लेकर डेस्टिनेशन वेडिंग या फिर गिफ्ट या उनसे अपनी बेटी के नाम पर कोई गिफ्ट(प्लॉट,गाड़ी ) देने के लिए कहेंगे। बस इस बीमारी से बचने का उपाय यही है कि वो सरकारी नौकरी लग जाए।

    *****

    उस बात को दो साल बीत गए। बुआ जी फिर कोई रिश्ता लेकर न आई। अनु ने कई एग्जाम दे रखे थे। बस उनके रिजल्ट पर ही उसका भविष्य टिका था। उसकी छोटी बहन गुंजन अभी भी इंजीनियरिंग की तैयारी कर रही थी। इतनी बड़ी प्रतियोगिता में भाग लेना और सेलेक्शन होना जैसे दूध पर मलाई निकालने के जैसे था।


    इतने समय तक अनुभा हाथ पर हाथ धरे बैठ नहीं सकती थी सो एक प्राइवेट स्कूल में इंटरव्यू दिया। जिसमें वह चयनित हो गई। प्राइवेट में चयन होना कोई बड़ी बात नहीं थी। उसे अपने विषय में महारत हासिल थी।

    वह अपनी पढ़ाई को बीच में छोड़ना नहीं चाहती थी। स्कूल जॉइन करने के पीछे मकसद भी यही था कि वो कॉम्पिटिशन से जुड़ी रहे।

    अनुभा आज ही हिंदी की टीचर के पद पर स्कूल जॉइन किया था ! प्रार्थना के बाद सब बच्चे और टीचर्स अपनी क्लास की ओर चले गए ! क्लर्क रूम में आकर सब टीचर्स अटेंडेंस रजिस्टर उठाकर चल दिए ! उनके पीछे - पीछे अनुभा भी आई और आठवीं क्लास का रजिस्टर लिए क्लास की ओर बढ़ गई !आठवीं क्लास की क्लास टीचर नियुक्त किया गया था !..... नये सेशन के साथ आज उसका पहला दिन था।

    अनुभा ने सबकी अटेंडेंस ली और अपना नाम बताकर सब बच्चों से उनके नाम पूछे ! फिर ब्लैकबोर्ड पर हिन्दी व्याकरण का उपविषय संज्ञा लिख दिया ! उसने ऐसा उपविषय चुना जो बच्चों ने पहले से पढ रखा था और उसका जबाव आसानी से दे सके।

    सब बच्चों से पूछने पर उन्होने किताबों में रटे रटाए जबाव दे दिए।

    " किसी नाम,वस्तु,स्थान को संज्ञा कहते है। फिर उसके उदाहरण रटा दिए जाते हैं। राम,श्याम वगैरह-वगैरह...." अनुभा चॉक को साइड टेबल पर रखते हुए कहा।

    " संज्ञा को साधारण शब्दो में समझने की कोशिश कीजिए। नाम से मतलब वही रटे रटाए शब्द नहीं है इसमें आपका और मेरा भी हो सकता है। आपको उदाहरण न आए तो आप अपना और अपने दोस्तों का भी लिख सकतें हैं कोई गलत नहीं करेगा। " उसने चॉक लेकर ब्लैकबोर्ड पर अपना और किसी बच्चे का नाम लिख दिया।

    "अब आगे दूसरा शब्द वस्तु लिखते है तो वस्तु को हम इस तरह समझ सकतें हैं जैसे मेरे हाथ में चॉक है ये भी एक वस्तु है। है ना...."  उसने चॉक दिखाकर पूछा तो सबने हां में हां मिलाई।

    " वैसे ही आपका बैग, टेबल, शूज,पेन पेंसिल आदि। उसके बाद आता है स्थान, तो आप कौनसे शहर में रहते हो....बोलो सब। "

    " बठिंडा " सब एक साथ बोले।

    " स्थान या जगह कोई भी हो सकती है। बस यही संज्ञा है।" उसने उदाहरणों के माध्यम से सबको प्वाइंट कर के परिभाषा समझाई।

    " किसी व्यक्ति,वस्तु और स्थान को संज्ञा कहते है। सबको समझ आया या नहीं" अनुभा जोर से बोली।

    " पहले आप अपने आस-पास के उदाहरण देखो फिर आप उस परिभाषा को उठाओ। ऐसे ही आप सर्वनाम को समझ सकते हैं। सर्वनाम में क्या है कुछ भी नहीं......" अनुभा हाथ में चॉक घुमाते हुए बोली।

    उसने खुद के हाथ लगाकर" मैं " (फिर एक बच्चें की तरफ उंगली कर) " तुम, पूरी क्लास आप सब हो जायेंगे।" अनुभा ने अच्छे से सबको समझाया।

    स्कूल में पीरियड की बेल हुई तो उसका ध्यान भंग हुआ। वह बच्चों को समझाने में मग्न हो गई थी उसे पता न चला कि कब पैंतीस मिनट निकल गए।

    "कल आप वसंत किताब लेकर आयेंगे।" अनुभा कहकर अपना पर्स और रजिस्टर लेकर दूसरी क्लास के लिए चली गई।

    इस छोटे से व्याकरण के विषय को उसने खुद जोड़कर अच्छे से समझा दिया जो कभी न भूलने वाला था।

    क्रमशः*****

  • 4. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 4

    Words: 945

    Estimated Reading Time: 6 min

    इस छोटे से व्याकरण के विषय को खुद जोड़कर अच्छे से समझा दिया जो कभी न भूलने वाला था।

    इसी तरह स्कूल में अपनी एक इमेज बना ली थी। उसके एक-दो कॉम्पिटिशन एग्जाम के रिजल्ट आ चुके थे जिनमें निराशा ही हाथ लगी। एक बार के लिए इसी जॉब में सेट होना सही समझा।


    " स्टेंड अप!आप खड़े हो जाइए और किससे पूछ कर आप मेरी क्लास में आए है। अगर मैनेजमेंट की तरफ से हैं तो भी मेरे पास अभी टाइम नहीं है।" अनुभा एकदम से गुस्से में बोल पड़ी। सब उसकी तरफ देखने लगे।

    प्रिसिंपल कुछ बोलने को हुआ तो सामने खड़ा गबरू जवान हाई फाई ड्रेस पहने बीच में ही "आई एम सॉरी लेकिन मैं भी हिंदी ही पढने आया हूं।"

    "व्हाट?" वह हैरानी से

    "अपना स्टुडेंट समझिए। " वह लड़का बोला।

    "स्टुडेंट वाला मैनर्स भी होना चाहिए। " अनुभा बिफर पड़ी।

    "कहा ना सॉरी" उसने अपनी गलती मानी। अनुभा बुक्स देखने लगी।

    "हां, आप अच्छा पढा रही थी तो बस आकर बैठ गया।" वह लड़का बोला।

    "ऐसे तो कोई भी ऐरा गैरा नत्थू खैरा आकर बैठ जाएगा और टीचर की फिर क्या वैल्यू रह जाएगी । स्कूल क्लास के अपने रूल्स होते हैं।" अनुभा

    "ओके देन मुझे क्या करना होगा।" वह लड़का बोला।

    "अब आप बैठ जाइए लेकिन आगे से ध्यान रखना।" अनुभा ने आदेश दिया।

    उस लड़के ने प्रिसिंपल को जाने का इशारा किया और पीछे की सीट पर बैठ गया।

    *****

    "कौन था? ये तो बता।" अमनदीप ने अनुभा से पूछा।

    अमनदीप कौर उसके मोहल्ले की लड़की जो उसके साथ  ही पढी थी और पहले से ही उस  स्कूल में जॉब करती थी। अब दोनों साथ ही स्कूल आती जाती थी।

    "पता नहीं, होगा कोई मैनेजमेंट का....." दोनों गली मुड़ते हुए

    "बच के रहना। स्कूल मालिक का रिलेटिव हो।" उसके पीछे चलते हुए अमनदीप ने अनुमान लगाया।

    "क्या कर लेगा?" वह निडरता से बोली।

    "अरे आजकल इतने हथकंडे है। छोटी सी बात इगो को चुभ जाती है और....." अमनदीप ने अपना संशय जाहिर किया।

    "फिटे मूं चुप कर, हमेशा डरायेगी ही।" उसने डपटा। एक बार के लिए वह सहम गई थी। आज उसने बेबाकी से अपनी बात रखी थी। कुछ गलत तो नहीं कहा था।

    दोनों बात करते हुए मार्केट आ गई। अपना सामान लिया और घर आ गई लेकिन अमनदीप की बातें उसके दिमाग में घूम गई। सोच में डूबे हुए कब उसने खाना खत्म किया उसे पता ही न चला।

    वह खुद को शांत करते हुए लेट गई"जाको राखे सांईया,मार सके न कोय।"


    "अनु आज मार्केट से आते हुए ये देख इस हल्के रंग के ऊन के गोले कपड़ा मार्केट से आते हुए ले आना।" जया ने कहा।

    " मम्मी तुसी वी ना, एनी धुप चे,हुणे  किस नूं स्वेटर पाणी है।(मम्मी आप भी ना,इतनी धूप में अभी किसको स्वेटर पहननी है।)" अनुभा खीज कर

    "तुझे टेंशन नहीं होगी पर मुझे है। कब कोई रिश्ता आ जाए। इतने अच्छे नसीब नहीं है। प्रीतो तेरे जितनी है उसके लड़की हो गई है।" जया ने नाराजगी जताई।

    "अनाथ आश्रम से में भी गोद ले लूं।" वह दुपट्टा सही करके अपना पर्स टांगते हुए बोली

    "जबान चाहे कितनी लड़ा लेगी पर काम......काम इक नी होणा।" जया उसका टिफिन हाथ में पकड़ाकर

    "अनु जल्दी आ लेट हो रहे हैं।" अनुभा को बाहर खड़ी अमनदीप ने आवाज लगाई।

    "आई......." अपनी मम्मी को प्यार करके बाहर भाग गई।


    *****

    "बलराज भाई साहब ने एक रिश्ता भेजा है।" संजीव ने हाथ धोकर तौलिए से पौंछे।

    "अच्छा " थाली परोसते हुए जय की आंखें चमक उठी।

    "तो फिर देर किस बात की है।" संजीव के बैठते ही थाली उसके आगे मेज पर रखते हुए

    "हमारी पहुंच से बाहर है।" संजीव एक निवाला तोड़कर

    " ऐसा कौन सा हवाई जहाज मांग रहे हैं। " वह तुनक कर

    " हाई प्रोफाइल शादी की डिमांड है उनकी " संजीव

    " मतलब..." जया नासमझी से

    " मतलब बाहर यानी बड़े शहर या पहाड़ी इलाके में शादी हो और उसके लिए पैसा चाहिए जो कि अपने पास है नहीं।" संजीव

    "अपनी दहलीज बिना फेरे के नहीं रह जाएगी। आजकल लोगों के नखरे पर कितने हो गए हैं।" जया

    "आजकल ये सब कोई नहीं जानता बस पैसे की माया है।" संजीव

    " इक फुलका और ले लो जी।" जया

    " नहीं, बस भूख नहीं है।" संजीव

    " आज आपने रोटी कम खाई है। ऐसे खाना नहीं खाने से तो बीमार पड़ जाओगे। " जया चिंतित सी

    " कुछ नहीं होगा। कभी-कभार भूख नहीं लगती। फालतू की टेंशन मत लिया करो। " संजीव अपने फोन की ओर लपके जो कि अभी बजा ही था।

    हैलो पापा जी सत् श्री अकाल, तुसी किंवें हो? (आप कैसे हो?) फोन पर आवाज आई।

    " मैं चंगा तु दस....." संजीव

    " पापा पैंती हजार रुपए चाहिदे ने। फीस मंगी है कोचिंग आले ने।" गुंजन

    " हां कल ही देता हूं।" संजीव कुछ देर बात करके फोन रख दिया।

    "जया कितने रूपए पड़े है?" संजीव ने पूछा।

    "शायद बीस हजार " खाना खाती जया के हाथ रुके

    " आपको इतनी रात में रूपये क्यों चाहिए। " जया

    "गुंजन की फीस जमा करवानी है। चल देखता हूं बिलंदी के पास एक लाख रुपए पड़े है। बीस हजार उससे ले लूंगा। " संजीव

    " वह दे तो ले लो। साल होने को आया है देने का नाम नहीं है।" जया नाराजगी से

    " देगा, अभी उसके हाथ तंग है।" संजीव

    " जितनी जल्दी हो सके ले लो और नहीं तो बेटी के ब्याह के नाम पर ही ले लो वरना कहीं फरार ना हो जाए। सारा धंधा चौपट कर लिया है। " जया ने मन मार के खाना खत्म किया और बर्तन साफ करने लगी।


    बस उसके दिमाग में हाई प्रोफाइल शादी, रूपए की कमी,गुंजन की फीस, बिलंदी को दी उधारी बस दिमाग इन्ही सब में घूम रहा था।


    क्रमशः*****

  • 5. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 5

    Words: 694

    Estimated Reading Time: 5 min

    बस उसके दिमाग में हाई प्रोफाइल शादी, रूपए की कमी,गुंजन की फीस, बिलंदी को दी उधारी बस दिमाग इन्ही सब में घूम रहा था।

    "अरे आज आप दोपहर में भी घर आ गए। चलो अच्छा कम से कम दो वक्त की रोटी गर्मागर्म खा लेंगे।" जया ने गेट खोलते हुए कहा।

    "हां,सेठ जी बाहर से घूम कर जो आ गए हैं।" संजीव ने हाथ धोकर उसी के दुपट्टे पल्लू से पौंछने लगे।

    संजीव अंदर आकर एक पन्ने पर हिसाब किताब लिखने लगे।

    जया ने थाली रखते हुए " आते ही फिर से हिसाब किताब करने लगे। "

    " कुछ देख रहा था। " बही बंद करते हुए

    " शाम को आते हुए उनसे रुपए ले आना। याद है कि नहीं...."

    " याद है.....याद है....भाग्यवान.....कल गुंजन को शर्मिंदा न होना पड़े और वैसे भी रुपए देने तो है ही....आज दिए कल दिए।" कुछ देर में खाना खत्म कर वापस चले गए।


    " अनु..... जया......जया.....अनु....." संजीव ने आवाज लगाई।


    " आई पापाजी....." वह फोन पर अमनदीप से बात कर रही थी।

    वह बाहर आई तो संजीव का हाल बुरा हो गया था। वह जोर से चिल्लाकर उनके पास पहुंची "  पापाजी.....पापाजी..... आपको क्या हुआ है??? "

    संजीव की हालत देखकर घबरा गई और घबराहट में कदम डगमगा रहे थे। पानी का गिलास लाकर उन्हे दिया लेकिन तबीयत में सुधार की बजाय ज्यादा गंभीर लगी। वह भागकर पड़ोस में गई और पास मे रहने वाले कुलदीप को बुलाकर ले आई उसके साथ उसकी पत्नी निम्मी भी आ गई।

    कुलदीप अपनी गाड़ी में बैठाकर डॉक्टर के पास ले गया।

    "अरे निम्मी इस वक्त तू यहां?" जया हैरानी के साथ

    " हां आंटी वो अंकल जी दी तबीयत खराब हो गई तो अनु और उसके भैया डॉक्टर के पास लेकर गए हैं।"

    " क्या? " घबराहट और अचरज से भरी जया के हाथों से पीतल की परात जिसमें तदूंर की गर्म रोटियां सेक कर लाई थी, गिरते-गिरते बची।

    " निम्मी क्या हुआ है?" वो एकदम से उसकी ओर तेज कदम बढाकर आई।

    "आंटी कुछ नहीं हुआ है बीपी की शिकायत हो गई होगी। वो खुद ही कहकर ले गए है मगर अनु का जी कच्चा हो रहा था तो वो भी साथ चली गई। " वह जया का हाथ पकड़कर बैठाते हुए बोली

    "तुसी ऐंवे ही टेंशन ले लीति (आपने ऐसे ही टेंशन ले ली)" वह रसोई घर से पानी का गिलास ले आई।

    जया चिंतित हो गई थी जब तक दोनों बाप बेटी घर नहीं आ जाते चैन नहीं मिलने वाला था। निम्मी ने देखा दाल के सीटी लगाई है तो उसने जया के हाथ में लहसुन छिलने के लिए दे दिया। निम्मी उसके साथ इधर-उधर की बातें करती हुई तदूंर की रोटियों पर घी लगाने लगी।

    कुछ देर बाद संजीव अनु घर लौटे तो जया उसकी हालत देख परेशान हो गई।  दोपहर में सही सलामत घर से विदा किया था आते ही क्या हो गया? वह आगे बढ़कर कुछ पूछती किंतु अनु ने ज्यादा बात न करने का इशारा किया। संजीव को कूलर के आगे सुलाकर कुलदीप से चाय के लिए पूछा तो उसने खाने का वक्त कहकर टाल दिया और घर चले गए।


    दवाइयां चैक करती अनु के पास आकर जया ने उससे जानकारी ली तो उसने नार्मल बीपी का कहकर दाल के तड़का लगाने के लिए बोला। जया रसोई घर में अपना काम करने लगी।


    "अनु....अनु.....जल्दी कर लेट हो रहा है।"

    अनु दौड़कर बाहर आई " आज पापा जी की तबीयत ठीक नहीं है। आज मैं नहीं जा रही तू मेरी एप्लीकेशन ले जा।"

    "अच्छा ठीक आते वक्त मिलती हूं। चल बाय" एप्लीकेशन पर्स में डालकर जाते हुए

    बाय बोल कर अंदर आई और संजीव को खाली पेट कैप्सूल देने के बाद हल्का नाश्ता देना था उसी को बनाने में लग गई।
    बस दिमाग में डॉक्टर के कहे शब्द घूम रहे थे।

    " इन्हे हार्ट की शिकायत हो सकती है अगर इनका बीपी कंट्रोल न हुआ तो...." इतना कहकर इंजेक्शन तैयार करने लगा।

    " बीपी से हर्ट की बीमारी होते देर नहीं लगती। इन्हे चिन्तामुक्त रखिए। पांच दिन की दवाइयां देने के बाद फिर चैक अप होगा।"

    " ऐसी कौनसी टेंशन है जो इस तरह बीमार हो गए। कहीं तेरे लिए  तो नहीं....नहीं....ऐसा नहीं हो सकता है।" वह बात की खोज में लगी थी।


    क्रमशः****

  • 6. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 6

    Words: 631

    Estimated Reading Time: 4 min

    ऐसी कौनसी टेंशन है जो इस तरह बीमार हो गए। कहीं तेरे लिए  तो नहीं....नहीं....ऐसा नहीं हो सकता है।" वह बात की खोज में लगी थी।

    उसने अपनी मम्मी से जाकर पूछा कि कल घर में क्या हुआ था। जया के अनुसार नार्मल सा दिन गुजरा था। वह जया से बात करने के बाद संजीव के पास बैठ कर सीधे ही पूछ लिया " पापाजी ऐसी कौन सी बात है जो इतनी तबीयत खराब हो गई। "

    " तु इतनी फिकर मत कर ठीक हो जाणा है सब" संजीव जी बैठते हुए बोले

    "नहीं, तुसी (आप) दसो (कहो) कि गल है?(क्या बात है?)" उसने हठधर्मिता दिखाई।

    " बिलंदी को दिए हुए एक लाख रूपए वापिस नहीं मिलेंगे। उसका सब कुछ नीलाम हो चुका है और गुंजन को कोचिंग फीस पैंतीस हजार रूपए देने है।"

    " जो हमारा नहीं था वो चला गया। उन चंद रंगीन कागजों के लिए हम आपको नहीं खो सकते। आपके बिना हमारा क्या होगा?" बात तो टेंशन की ही थी लेकिन संजीव के सामने जाहिर नहीं करना चाहती थी।

    "कोई गल नी (बात नहीं) , मैं कुछ करती हूं।" उसने दिलासा दी।

    "तू क्या करेगी?"

    "  टेंशन ना लो, बाबा जी दी मेहर देखो तुसी " उसने मुस्कुरा कर चुटकी बजाई।

    "आज आप काम पर नहीं जाओगे , पूरा दिन रेस्ट मतलब रेस्ट। आप लेट जाइए।"

    "तेरा भी दिन खराब कर दिया।"

    " हाफ डे लीव ले रखी थी। बस अभी तैयार होकर निकल रही हूं।" इतना कहकर तैयार होने चली गई।

    "अरे तु आ गई। आजा इक दो कोर तू वी चख। " स्टाफ रूम में सबके साथ खाना खा रही अमनदीप ने उसे देख कर पूछा।

    "और अंकल जी किंवे ( कैसे ) है?" उसके पूछने पर पीछे-पीछे पूरे स्टाफ ने भी हाल चाल पूछा।

    सबको ठीक बोल कर वहीं बैठ गई और अपनी नेक्स्ट क्लास में पढाने वाले टॉपिक को देखने लगी किंतु दिमाग में बस रूपए घूम रहे थे। 

    " अमन तेरे पास सेविंग है क्या???" साथ चलते उसने पूछ लिया।

    "अचानक तुझे जरूरत कैसे पड़ गई?" 

    " गुंजन की फीस देनी है। पंद्रह हजार रूपए चाहिए बीस घर पर हैं।" उसने नजर इधर-उधर घुमाई।

    " यार तू लेट हो गई। परसों ही मम्मी ने मुझसे लिए हैं मामाजी दी कुड़ी दा ब्याह है। कुछ शापिंग अपने लिए कुछ उनके लिए.....अभी काके की शापिंग तो पेंडिंग है।"

    "अच्छा तो फिर किसी ओर से पूछना पड़ेगा।"

    " कुलदीप वीर जी तों पुछ ले।"

    " नहीं है।"

    " तेरे चाचा ताया कदो (कब) काम आण गे।"

    "ओना दी गल ही छड दे। (उनकी बात ही छोड़ दे।) इक फोन नी किता....उन्होने तो वैसे ही खार खाई है। अब लड़के ने उनकी बेटी को पसंद नहीं किया तो मैं क्या करूं? मैने अपना रिजेक्शन दे दिता सी। तब नहीं करनी थी मुझे शादी.... अब आगे आप जानो और वो लड़का....अब इसका ओलामा (ब्लेम) मेरे और मम्मी के सिर है कि रिश्ता हमने न होने दिया। " उसकी आवाज में गुस्सा छलक आया और भड़ास निकाली।

    "ठंड रख, देखती हू।" अमनदीप

    अनु का फोन रिंग हुआ तो बात कर के झट से रख दिया।

    " अमन चल आगे वाली गली मुड़ " तेज चलते हुए

    " हुआ क्या?" उसने भी गति बढाई।

    " दो किलो मौसम्बी लेनी है।" तेज चलते हुए

    " कितने हुए वीर जी " उसने थैली के गांठ लगाते हुए  पूछा

    " एक सौ तीस रूपए "

    " मंहगी है वीर जी , सौ रूपए में देनी है तो दो....."

    " इतना कम नहीं होगा।"

    " फिटे मूं तेरा चल घर लेट हो रहा है। कुछ कम नहीं करवाने है।" वह

    "ऐसे कैसे दस बीस रूपए कम तो करेगा ना" वह गुर्राई।

    " तू खड़ी रह मै जा रही हूं।" इतना कहकर मुड़ी तो फोन पर बात करते लड़के से टकरा गई और मौसमी की थैली के नीचे गिरने से सब बिखर गई। 

    क्रमशः*****

  • 7. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 7

    Words: 663

    Estimated Reading Time: 4 min

    तू खड़ी रह मै जा रही हूं।" इतना कहकर मुड़ी तो फोन पर बात करते लड़के से टकरा गई और मौसमी की थैली के नीचे गिरने से सब बिखर गई। 

    "हायो रब्बा , आ की किता?(ये क्या किया?)"

    "सॉरी....आई एम रियली वैरी सॉरी"

    "अब सॉरी बोलने से मौसमी दो किलो हो जाएगी क्या?" अमनदीप बोल पड़ी।

    अनु का ध्यान उन मौसमी पर था जो गाड़ी और बाइक के नीचे कचूमर बन गई। एक-दो वहीं खड़े पशुओ का भोजन बन गई। वह उधर देख रही थी कि लड़के ने जो सही थी उठा कर फल वाले की टोकरी में डाल कर दे दी। इतनी ही उसमें आई थी। उसका चेहरा उतर गया।

    " ये लीजिए आपकी मौसमी।" उसने रेहड़ी वाले से दो किलो करने को कहा।

    अमनदीप आंखे फाड़े देख रही थी इतना शरीफ बंदा...





    " फिटे मूं तेरा, वाहे गुरू जी त्वानु आंख देण....(आपको आंखे दे)" शब्द बोल कर थूक निगला।

    " आलरेडी चार आंखे है मेरे पास, इसमें न आपकी गलती है न मेरी....." उस लड़के ने थैली आगे करते हुए

    "सॉरी...आप यहां?" अनु आश्चर्य से बोली।

    "क्यों हमारा आना मना है?" उस लड़के ने भौंह उचकाई।

    "नी, ओ गल नहीं है जी।" अनु  हड़बड़ाहट में

    "ता कि गल है।" उस लड़के ने बीच में मजा लिया।

    "हुणे दसां.....(अभी बताऊं) " अमन ने उसका हाथ खींच कर परे किया।

    " नहीं, तुसी कोण, जाण ना पहचाण मैं तेरा मेहमाण...." उसने भी तीखा जबाव दिया।

    अनु ने अमन को खींचकर धीरे से " मैनेजमेंट का मेंबर है। माता चुप हो जा।"

    अमनदीप सकपकाई और उसका हाथ पकड़कर चलती बनी। वह जल्दी से ओझल ही हो जाना चाहती थी। वह अनु को तब तक देखता रहा जब तक दिखाई देना बंद न हो गई।

    "वीर जी क्या चाहिए?" फ्रूट वाले ने उसे जगाया।

    " दिमाग चे साग भरा होया है! हर किसी दे नाल उलझी रहदीं है।" अनु ने अमन की बाजू पर एक टिकाया।

    अमनदीप ने मुंह बिचकाया"चल हुण छेती(अब जल्दी चल)"

    "मुंडा बड़ा ही सोणा है।" अमनदीप ने चलते हुए शांति तोड़ी

    "असी बराबरी नहीं कर सकदे।" अनु ने आंखे खोली।

    " लेकिन...." वह बोलने को हुई तो अनु ने उसे आंख दिखाई और चुपचाप चलने के लिए कहा।

    अमनदीप को बाय बोलकर घर आ गई। उसे घर में सब ठीक लगा। अपने पापा की तबीयत पूछने के लिए पर्स आंगन में रखी चारपाई पर अंदर आई जो कि खाना खाकर लेट गए थे। वह बातें करने के साथ-साथ दवाई भी चैक करने लगी। अचानक से पीछे से किसी ने गले में बाहें डाल दी। स्पर्श महसूस कर के वह मुस्कुराई।

    " तू कब आई मोटो..." अनु घर के अंदर आते हुए

    "कुछ देर पहले, चलो हाथ धोकर आओ दी। खाना खाते हैं भूख लगी है।" गुंजन ने पेट पकड़कर कहा।

    जया किचन की ओर जाते हुए " जल्दी करो, खाना बना रही हूं। "

    "आप भी साथ आ जाओ।" बाथरूम में अपने हाथ पैर मुंह धोते हुए बोली।

    गुंजन की छुट्टी होने पर फीस लेने आई थी और घर पर सबसे मिले हुए बहुत दिन हो गए थे। यहां आकर ही उसे अपने पापा की तबीयत खराब होने का पता चला था।

    दूसरे दिन अनुभा ने एडवांस सैलरी ले ली थी जिससे गुंजन की फीस की भरपाई की गई।

    "सोनू कित्थे (कहां) है?" वह छत पर खड़ी पास वाले घर के सदस्य को बुला रही थी।

    उसकी आवाज किसी ने न सूनी तो वह दीवार फांदकर उस तरफ आई तो एक लड़का अपना टॉवेल सुखा रहा था।

    "किन्नी वारी वाजां मारी है तैनू सुणदा नी ( कितनी बार आवाज लगाई है? तुझे सुनाई नहीं दे रहा है।)" वह कमर पर हाथ लगाकर बोली।

    " हां तो कितनी बार आवाज लगाई है बताओ जरा " तौलिया हटाकर सामने आया।

    "तुसी एत्थे (आप यहां)" वह अचंभित होकर

    " कि गल हो गई?" एकदम से सोनू बोला।

    वह पीछे से आए सोनू को देखने लगी और झेंप गई कि क्या जबाव दे? सोनू उससे इशारे में बात कर रहा था जबकि वह नैन मटका कर पूछ रही थी कि कौन है ये???



    क्रमशः*****

  • 8. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 8

    Words: 1059

    Estimated Reading Time: 7 min

    वह पीछे से आए सोनू को देखने लगी और झेंप गई कि क्या जबाव दे? सोनू उससे इशारे में बात कर रहा था जबकि वह नैन मटका कर पूछ रही थी कि कौन है ये???

    तभी वो लड़का उनकी इशारे बाजी से तंग आकर बोला " तुम दोनों में क्या इशारे बाजी चल रही है? क्या पूछना चाहती हो? सीधे-सीधे बात करो ना।"

    वह झेंप गई और बात बदलकर सोनू से" तू कदो आया? (तू कब आया?)"

    " कल ,गुंजन के साथ "

    "आंटी कित्थे (कहां) है?"

    "थल्ले (नीचे)"

    "ओ बिलंदी दा दहाका (अंतिम संस्कार) है। ओथे (वहां) जाणा है।" वह वहीं से पलटी मार गई और " हुणे(अभी)" जोर से बोलते हुए दीवार फांदकर अपनी छत पर आ गई।

    "हुणे (अभी) गया।" सोनू सीढियों की ओर खिसक गया।

    "सुनो....." उसकी आवाज ने अनु के कदमों पर ब्रेक मार दिये।

    "उस दिन स्कूल में तो आप बड़ा बोल रही थी और आज.... " वह दीवार पर दोनों हाथ बांधकर खड़ा मुस्कुरा रहा था।

    "स्कूल आपका है तो मैं कैसे रोक सकती थी।" वह झुक कर अपनी सलवार की नीचे से सही करती बोली।

    " एक्सक्यूज मी..... मेरा स्कूल? आपको कोई गलत फहमी हुई है।" वह हैरानी से

    वह एकदम से चौंक खड़ी हुई " आप मैनेजमेंट के मेंबर नहीं है। आप स्कूल के मालिक भी नहीं है।"

    उसने ना में गर्दन हिलाई।

    उसने अपने माथे पर हाथ मार कर " इतने दिनों से आप भुलावे में रख रहे थे। उस दिन आप मेरी क्लास में करने क्या आए थे।"

    " दोबारा पढ़ाई करने " तिरछा मुस्कुराकर

    " तुसी पीछे जाओ...." इतना बोली और दीवार फांदकर वापस आई।

    "तुसी पढ दे हो?" वह ऊपर से नीचे देख कर बोली।

    वह हल्का सा हंसकर " यहां का डी ई ओ हूं "

    उसे झटका और उसके हाथ सिर पर चले गए जैसे चकरी सी घूम गई। वह सदमें की स्थिति में थी।

    "क्या हुआ?" वह एकदम से बोला

    " हो गया मजाक , असी त्वानू काठ दे उल्लू दिखदे हां.... बोलो आया बड़ा डीईओ....." उसने मुंह बणाया।

    "अनु....अनु.....सोनी की मम्मी आ रही है क्या?" उसकी मम्मी ने आवाज लगाई।


    " हुणे आ रहे ने..... " उसने दीवार की ओर झुक कर आवाज लगाई फिर एक नजर उसे देखकर जाने लगी तो उसने हल्के से हाथ पकड़ा।

    उसे उसकी इस हरकत पर गुस्सा आया और हाथ झटक कर " डीईओ सर ये कहां का मैनर है कि बिना इजाजत हाथ पकड़े।"

    "अरे आप तो बुरा मान गए। नेचुरली था ना ही कोई मेरा ऐसा वैसा इरादा है। बस आपको बताना.....नहीं.... नहीं.... दिखाना चाह रहा था किंतु अब नहीं....."

    "और मुझे भी आपके बारे में जानने का कोई इंट्रेस्ट नहीं है।   डीईओ की पोस्ट वाला इंसान हमारे जैसे मध्यमवर्गीय नहीं.....निम्न मध्यमवर्गीय लोगों के बीच क्यों रहेगा? उसको सरकार घर देती है। इतनी भी मूर्ख नहीं हूं।" वह दीवार से कूद कर अपनी छत पर आई। वह उसके हाथ पकड़ने से चिढ़ गई थी।

    जबाव देने से पहले उसका फोन बजा और बात करने लगा।


    जया के जाने के बाद वह नीचे आकर खाने की तैयारी करने लगी और उसके हाथ पकड़ने पर गुस्से में बड़बड़ाती रही।

    "क्या हुआ दी?" पढती हुई गुंजन आई और उसके बाद बोलने पर पूछने लगी। बस ऐसे ही बोल कर बहाना बनाया।


    सर ते चढ़ाया जिवे माड़ी सरकार
    पर करदें प्यार फैदा की लकोन तों
    केह वी नी सकदे दिल एको गल्ल दा गिला
    मैं डरा तेरी यारी खोन तों

    गाना चलने पर वह पलटी और उसने भौंह उचकाई। गुंजन उछल कर दोनों से ताली बजाते हुए साथ में डांस करते हुए उसकी तरफ आई तो वह गर्दन हिलाकर मुड़ गई।

    रोज रोज मिलने नू जी करे
    दस दिल की करे
    बहुत होइया गल्लां फोन तों
    रोज रोज मिलने नू जी करे
    दस दिल की करे
    बहुत होइया गल्लां फोन तों

    एंझ लगे खोरे किन्ने हो गेये ने साल
    भावे टपेया वीक एक होर नी
    एक वारी आखे सीना चीर के विखा दे
    जे अख दे दिल विच चोर नी

    ओपन ते छड़ देवे मैसेज तू मेरे
    जज़्बातां उत्ते करदी ना गौर नी
    अज तक ऊंची नीवी किसे दी ना सुनी
    कल्ला तेरे अग्गे चलदा नी ज़ोर नी

    वह चश्मा लगाकर फोन देखने का दिखावा करने लगी।

    नैना दे नेड़े वे दिल बनेरे ते
    बैठी रवे यारा सारी उमर
    राहों में बाँहों में
    बचके निगाहों से
    लग न जाए तुझे कहीं नज़र

    उसने अनु को बाहों में भर लिया।

    छड दो गरूर
    तुसी हुन तां हजूर
    डर लगदा ए थोडे कोलो दूर होन तों
    केह वी नी सकदे दिल एको गल्ल दा गिला
    मैं डरा तेरी यारी खोन तों

    गुंजन ने उसे सलाम किया तो वो खिलखिलाई ।

    रोज रोज मिलने नू जी करे
    दस दिल की करे
    बहुत होइया गल्लां फोन तों
    रोज रोज मिलने नू जी करे
    दस दिल की करे
    बहुत होइया गल्लां फोन तों

    उसे गोल-गोल घुमा दिया।

    सहद मुकन ते औन हि ना
    एहे गल्लां ने जो
    ओहदी अखां विच
    मैं दिसा मेरिया अखां विच ओ
    जिना मैं ओहदा करदा
    ओह करे बरबर मोह

    वह उसके साथ छेड़खानी कर रही थी और उसे डांस करने को कह रही थी। वह खाने की तैयारी का बहाना बना रही थी।

    ओहदी आखना विच मैं दिसा
    मेरिया आखां विच ओ
    तड़के ही उठ के चेते तेनु करां
    नाले नाम तेरा लैवा पैला सोण तों
    तू केह वी नी सकदे दिल एको गल्ल दा गिला
    मैं डरा तेरी यारी खोन तों

    गुंजन सीने पर हाथ रखकर चारपाई पर गिर पड़ी। वह उसकी नौटंकी देख कर बेलन दिखाया।

    रोज रोज मिलने नू जी करे
    दस दिल की करे
    बहुत होइया गल्लां फोन तों
    रोज रोज मिलने नू जी करे
    दस दिल की करे
    बहुत होइया गल्लां फोन तों
    फुल्लां तों सोहने सज्जन
    मीठी धूप वरगे मदम
    जिन्नी वारी वेखा यारा रूह जांदी खिल नी
    नित्त नी फिर निंदर टूट दी
    नित ही फिर तड़फन उठ दी

    उसकी नजर उतार कर अनु के आगे पीछे लहराई। उसने झूठा गुस्सा दिखाया।

    जिन्नी वारी ओहना वारे सोचदा ए दिल
    बदले इस बहाने यारा लोक गवाह ने यारा
    तेरे पिछे गेया जिंदगी जियोण तों
    केह वी नी सकदे दिल एको गल्ल दा गिला
    मैं डरा तेरी यारी खोन तों

    उसका हाथ पकड़कर कपल्स डांस करने लगी।

    रोज रोज मिलने नू जी करे
    दस दिल की करे
    बहुत होइया गल्लां फोन तों
    रोज रोज मिलने नू जी करे
    दस दिल की करे
    बहुत होइया गल्लां फोन तों

    गाना खत्म होने के साथ ही डोर बेल बजी। दोनों एक दूसरे को देखने लगी।


    क्रमशः****

  • 9. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 9

    Words: 678

    Estimated Reading Time: 5 min

    गाना खत्म होने के साथ ही डोर बेल बजी। दोनों एक दूसरे को देखने लगी। गुंजन भागकर पढने बैठ गई तो वह मेन गेट की तरफ आई। उसने गेट खोला तो बाहर एक लड़का खड़ा था। उसे लेटर देकर साइन करवाये और जाने लगा तो वह उलट-पलट कर देखते हुए बोल पड़ी " वीर जी ये लेटर कैसा है?"

    "सरकारी कागज हैगा भैणे(बहन सरकारी कागज है)।" वह साईकिल पर बैठकर

    तभी दूध वाला आ गया और लेटर गुंजन को देकर पतीला और छलनी लेकर दूध लेने के लिए चली गई। उसने दूध लेकर मेन गेट बंद किया और गैस पर दूध रखा ही था कि गुंजन चिल्ला उठी। वह उसकी ओर दौड़ कर गई।

    लेटर उसके हाथ में था। " क्या हुआ? किसका लेटर है?" उसने उत्सुकतावश पूछा।

    " दी लव लेटर है।" उसने हाथ ऊपर किया।

    " किसकी शामत आई है। मरजाण्या ने छितर खाणे ने....गिटे फोड़ देणे ने ओदे......" तमतमाई सी बोली।

    गुंजन जोर से हंसी। उसने धक्का दिया और बैड पर गिर पड़ी तो अनु ने लेटर छीन लिया। लेटर पढ़कर हैरान हुई।

    " क्या हुआ दी??? कल डीईओ ऑफिस जाना है।" वह उठकर चेयर पर बैठी।

    " लेकिन मुझे क्यों बुलाया है?"

    "हाय साडा जीजा बैया होवे।" उसने टेबल पर रखी हथेली पर ठोडी टिकाई।

    "चुप कर नहीं ता तेरे टेढ (पेट) चे लात मार के तैनू हॉस्टल सिट देणा है।" (पेट में लात मार कर हॉस्टल फेंक दूंगी।) खीजकर

    "जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर....जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर......" वह गुनगुनाने लगी।

    उसने आंखे दिखाई " गाने ता ढंग नाल चूज कर लैया कर।"

    वह किचन में आकर दूध चैक करते हुए उस लेटर को एक बार फिर पढ़ा। उसने जल्दी से कागज समेटा और दाल तड़कने के लिए प्याज, टमाटर, हरी मिर्च काटने लगी। जितनी जल्दी हो सके उसने दाल और आटा तैयार कर के छोड़ दिया।





    वह लेटर लेकर ऊपर आई और दीवार फांदकर सोनू की छत पर आ गई। एकदम से उसके कदमों पर ब्रेक लगे। इस तरह किसी छड़े ( लड़के) के रूम में जाना ठीक नहीं है। वह वापस मुड़कर दीवार तक आ गई।

    "कोई काम था क्या?"

    उसकी आवाज सुनकर हड़बड़ाहट में " फिटे मूं तेरा.....कदे वी दमाग ना लाया कर....."

    " होगा तब लगेगा ना...."

    " मतलब कि है मेरे कौल (पास) दमाग नी हैगा....." वह उखड़ कर बोली।

    "मैने कब कहा आप ही बोल रही है।" उसकी बात पर बात मारी।

    उसने झेंप मिटाने के लिए बात पलटी और लेटर आगे करके " ये आपने भेजा है???"

    उसने लेटर लिया और रूम की खिड़की के पास आकर पढने लगा।

    "हां तो आप ने कहा था आप काठ के उल्लू नहीं है तो अब क्या हुआ?" उसने भी ताना मारा।

    " जहां तक मुझे मालूम है कि किसने कहा था कि मैं ऑडियो लोअर एरिया में कैसे रह सकता हूं।" उसकी बातों के पेच उसी पर कस रहा था।

    उसकी बातें सुनी नहीं गई तो वह लेटर लेकर भाग आई। उसे खुद पर ही गुस्सा आ रहा था। गेट बजा जया उसे आवाज लगा रही थी। उनके आते ही घर के कामों में लग गई।

    दूसरे दिन स्कूल से उसने बीस हजार एडवांस ले लिए थे। उसके फोन पर डीईओ ऑफिस से मैसेज था जिसे देख कर चौंक गई। उसने अमन को बात बताई। वह भी अचभिंत थी।
    उसके साथ जाने में असमर्थता जताई और घर चली गई। अनु ने रिक्शा लिया और भरी दोपहर में शहर के बाहर बने ऑफिस की ओर चली गई।

    उसने चपरासी से कन्फर्म किया तो सर एक मीटिंग में गए हुए  थे। वह गर्मी के मारे बेहाल थी। कॉरीडोर पर लगी बैंच पर बैठ गई और अपनी मम्मी को जरूरी मीटिंग का बोलकर इंतजार न करने के लिए कहा। उसका गला डर और गर्मी के मारे सूख रहा था।

    उसके मन में उलझन थी कि उसे यहां क्यों बुलाया गया है।
    घबराहट में वह नाखून काट रही थी। उसकी समझ से सब बाहर था और दिमाग मैं ऐसी कोई बात याद नहीं आ रही थी कि उसने गलत किया हो या कोई महान काम किया हो। एक मामूली से प्राइवेट टीचर को शहर का डीईओ क्यों बुलाएगा?

    क्रमशः*****

  • 10. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 10

    Words: 645

    Estimated Reading Time: 4 min

    उसके मन में उलझन थी कि उसे यहां क्यों बुलाया गया है।
    घबराहट में वह नाखून काट रही थी। उसकी समझ से सब बाहर था और दिमाग मैं ऐसी कोई बात याद नहीं आ रही थी कि उसने गलत किया हो या कोई महान काम किया हो। एक मामूली से प्राइवेट टीचर को शहर का डीईओ क्यों बुलाएगा?

    कुछ देर वह बैठी रही। एक तो गर्मी से परेशान ऊपर से भूख लगी थी। इन सबमें वह झुंझला उठी। चपरासी के पास जाकर " आपके सर अभी तक तो नहीं आए हैं। मैं इससे ज्यादा पेट नहीं कर सकती मैं जा रही हूं आप अपने सर से बोल दीजिएगा "

    "अरे मैडम रुकिए सर आ चुके हैं। अभी अभी उनका फोन आया और आपके अंदर बुलाया है।"

    वह अंदर गई तो कमरे का मआयना करने लगी। कमरे में हाई-फाई मॉडर्न और मोटे कर्टन लगे थे चारों तरफ वॉल में लकड़ी का काम था मतलब यह था कि यहां से कोई आवाज लगाई तो बाहर तक आवाज नहीं जा सकते थे यह देखकर वह डर गई तभी उसके हाथ में पकड़ा फोन बस उठा और डरने से वह उछलकर नीचे गिर गया। वह तो शुक्र है नीचे बढ़िया क्वालिटी की कारपेट बिछी हुई थी। वह नीचे गिरकर टूटा नहीं तो उसने वाहेगुरु जी की मेहर बताई और हाथ जोड़ लिए।

    "वाहे गुरुजी तुसी बचा लो आज तो..." उसने अरदास की।

    "तू वी जान कढ लें।" वह नाराजगी से बोली

    " पहुंच गई है तू....." पहला ही सवाल दागा।

    "ह्म्म्म्म " उसका ध्यान अभी भी कमरे पर ही था

    "कि नांव हैगा " उसने सवाल किया

    "नी पता" वह बेपरवाही से

    " एनी पागल है तू जी करदा है तेरा बुथा छितर नाल भुन देणा है।" उसने गुस्सा जताया

    " नी ध्यान रैया...." भोलेपन से

    "चल बाय कदै वी आ सकदा है।" जल्दबाजी में

    "ध्यान रखी बडे लोगा दा कुछ नी बण सकदा और सतर्क रैयी। फोन विच कॉल सिस्टम ऑन रखी। और की हो सकदा है.....और हां गल्लां चे ना आ जाई तू। उम्म्म.... " सोचते हुए उसने चेतावनी दी और कुछ ध्यान नहीं आया तो उसने फोन रख दिया लेकिन उसने आग में घी डालने का काम कर दिया। अनु और भी घबरा गई और मन में " माता ने ज्ञान दिया है या डराया है......"

    वह चेयर के अपोजिट खड़ी थी इसलिए झुक कर वह अधिकारी का चेहरा देखने लगी लेकिन उसे नजर नहीं आया उसने दूसरी तरफ झुक कर चेहरा देखना चाहा कि तभी रूम का गेट खुला तो वह डर कर एकदम से मुड़ गई और उसका चेहरा सफेद हो गया। उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें छलक आई थी चपरासी एक वेटर के साथ था, ट्रे में खाना लेकर आया था।

    यह देखकर उसकी आंखें सिकुड़ गई " आप तो कह रहे थे कि सर मुझे मीटिंग करने के लिए आ रहे हैं और अब यह खाना।"

    " मैडम लंच टाइम हो चुका है सर खाना तो खाएंगे ही। हम तो वैसा ही करेंगे जैसा हमें आर्डर मिलेगा। सर ने कहा तो मैं लाकर रख दिया। " बेचारगी से

    उसने चपरासी के साथ माथा मारी करना उचित नहीं समझा क्योंकि उसे तो जो आर्डर मिल रहा था वही काम कर रहा था।

    उसके मन में अजीबोगरीब ख्याल आने लगे थे वह खुद से ही बड़बड़ाती हुई चक्कर काटते हुए" पता नहीं किस चीज का घमंड होता है जब तक सामने वाले को वेट नहीं करायेंगे तब तक ऑफिसर्स होने का पता ही नहीं चलेगा।"

    वह अपने आप में बोल रही थी कि उसे अपने पीछे किसी के होने का अह्सास हुआ और सामने बंद केबिन के गेट की तरफ देख उसकी आंखे फैल गई,डर के मारे टांगे कांपने लगी। खड़ी-खड़ी के पसीने छूट गए। उसके मन में एक आवाज आई "भूत...."

    वह डर के मारे अमनदीप की बताई बातें भी भूल गई। वह पीछे मुड़ना चाहती थी मगर टांगे साथ नहीं दे रही थी। उसकी सूरत रोने वाली हो गई थी।

    क्रमशः*****

  • 11. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 11

    Words: 830

    Estimated Reading Time: 5 min

    वह डर के मारे अमनदीप की बताई बातें भी भूल गई। वह पीछे मुड़ना चाहती थी मगर टांगे साथ नहीं दे रही थी। उसकी सूरत रोने वाली हो गई थी। उसका मन साथ नहीं दे रहा था कि मुड़कर देखे। भूत का ख्याल आते ही फिल्मी सीन दिमाग में घूम जाते है। जिन्होने इमेजिनेशन के नाम पर भूत की छवि लोगो के दिमाग में भर दी है और वही उसके साथ हुआ।

    वह आंखे बंद करके मुड़ गई और कोई प्रतिक्रिया न देख कुछ पल बाद एक आंख खोलकर देखा फिर से बंद कर ली।

    " हंअअअअ.....आ बंदा....भूत" एकदम से बोल कर आंखे खोल दी क्योंकि सामने वाला माथे का पसीना रूमाल से पोंछ रहा था।

    " तुसी....ऐत्थे..." अचंभित हो उसका हाथ परे कर

    " हां,कल बताया तो था।" वह टेबल की ओर जाते हुए

    " और तुम आए कहां से.....ये तुम्हारी कोई चालबाजी जो इस तरह डरा कर तुम कुछ......" उसने जबान पर ब्रेक मारा।

    " तुम्हारा दिमाग गरम हो रहा है। लो पानी पियो।" उसने पानी का गिलास आगे किया।

    सच में डर के मारे उसका गला सूख गया था। उसने गिलास लिया और एक सांस में आधा गिलास पी गई तब उसकी बत्ती जली। " स्कूल के ऑफिस की ही बात नहीं है। जब अकेली हो और अनजान के साथ हो तो कुछ खाना पीना मत......"

    उसकी आंखे फैली और फटाफट गिलास उस लड़के के सामने करते हुए " पियो इसे....."

    " व्हाट......" उसने नजर उठाकर देखा।

    " व्हाट??? नहीं, इसे पियो कहीं तुमने इसमें कुछ मिलाया हो?"   गिलास आगे किए वह उसके सामने खड़ी थी।

    पानी पीते हुए वह मुस्कुरा रहा था। वह अचरज से उसे देख रही थी किंतु राहत की बात थी कि पानी में कुछ नहीं मिला हुआ था। उसने पानी पीकर सोफे पर पास बैठने का इशारा किया। वह उसके पास न बैठकर सिंगल सोफे पर बैठ गई।

    उसने प्लेट लगाकर उसके सामने कर दी। इतना तो वह समझ गई थी कि वह कल झूठ नहीं बोल रहा था। उसने प्लेट लेने से मना कर दिया तो वह प्लेट से एक-एक चम्मच सब चीजों खाने लगा। कुछ ही पल में सब चीज चखकर प्लेट उसके सामने कर दी वह अचंभित सी उसे देख रही थी।

    "अरे मैं नहीं खाणा है। "

    "क्यों??"

    "क्योंकि हाई-फाई खाना जीभ और पेट खराब कर देगा।" उसने मुंह फेरा।

    "जहर धीरे-धीरे असर करता है। वैसे ही ये....."

    " क्या??? इसमें जहर है।" एकदम से चौंक कर

    " पागल लड़की इसमें जहर होता तो मैं क्यों खाता पहले खाने का मतलब है एक बार में जब और पेट खराब नहीं होगा।"

    " नहीं, फेर वी नी खाणा और तुसी खाणा खाण नु बुलाया है।"

    "नहीं, यह बताने के लिए की डीईओ मैं ही हूं।"

    वह स्तब्ध सी उसे देखकर" कि मतलब.....इतनी गरमी में....इतनी दूर....बस इसीलिए बुलाया है।"

    ठंडी लस्सी का गिलास आगे कर " यह पियो दिमाग शांत होगा। "

    उसे गुस्सा आया कि उसे गिलास को हाथ मार कर गिरा दे।

    " एडेड पोस्ट खाली होने वाली है अगर तुम चाहो तो एप्लाई कर सकती हो। जब तक गवर्नमेंट जॉब न मिले। बस इसीलिए बुलाया था। तुम में वह काबिलियत है तुम यह जॉब इंटरव्यू बेस पर हासिल कर लोगी।" यह सुन कर ठंडी पड़ गई और सोचने लगी।

    " लो खाना खाओ। घर जाकर आराम से सोचना और जवाब दे देना। "

    सहसा उसके हाथ प्लेट की तरफ चले गए। बेख्याली में उसकी उंगलिया टच हो गई तो फटाफट प्लेट खींच ली।

    "अपना जूठा खिला तो रहे हो कहीं कोई वायरस ना हो।" उसने ध्यान भटकाने के लिए बात कही

    " सूक्ष्म नाम का वायरस धीरे-धीरे ही रगों में गहरे से जाता है।" वह मुस्कुराकर

    उसने नजरें उठाकर उसकी तरफ देखकर " तो आपका नाम सूक्ष्म है।"

    " ह्म्म्म्म...."

    " तो इस लोअर एरिया में घर लेने का मकसद "

    " तुम्हारा पीछा करना है और तुम्हें जाल में फसाना...." वह हंसा।

    " ज्यादा ना बोलो पैरां चे हील पाई होई है। सच्ची गल्ल दसो।" खीजकर

    " मौसा जी के दोस्त के दोस्त हैं सोनू के पापा.....सरकारी घर रिनोवेशन होने तक यहीं रहूंगा।" उसने सफाई दी।

    " ह्म्म्म्म....."

    " और अगर तुम जैसी कोई लड़की मिल जाए तो मूड बदल भी सकता है। " उसने फ्लर्ट किया।

    "और.....और भी कुछ इरादा है।" अनुभा आश्चर्य से

    " तुम्हारे साथ बात बन जाए तो शादी तक बात पहुंच जाएगी।" उसने भौंह उचकाई।

    " बस बस असल जिंदगी में आ जाओ वरना घोड़ी से गिरते हुए देर नहीं लगेगी पूरे समाज में बेइज्जती होगी सो अलग।" वह हंसी और खाना खत्म कर के पानी पीकर गिलास रखकर वह जाने लगी ।

    " थैंक्यू....." वह मुड़ कर बोली।

    वह भी उठ कर उसके पास आते हुए " चलो तुम्हे छोड़ देता हूं। "

    " ऐंवें ही कुड़ी मुंडे दिया गल्ला शुरू होंदी ने......तुसी रहण दयो मैं आपे चली जाणा है। ( लड़के लड़कियों की बात ऐसे ही शुरू होती है। आप रहने दो मैं चली जाऊंगी)" उसने पर्स उठाया और बाहर निकल गई।

    वह कुछ क्षण हैरानी से उसे देखता रहा और फिर अपनी चेयर पर आकर बैठ गया।

    क्रमशः*****

  • 12. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 12

    Words: 631

    Estimated Reading Time: 4 min

    वह कुछ क्षण हैरानी से उसे देखता रहा और फिर अपनी चेयर पर आकर बैठ गया। एक नजर डाली और काम में जुट गया। वह चली गई और एक नजर केबिन के बाहर नेम प्लेट पर नजर डाली। होठों में ही बुदबुदाई सूक्ष्म....
    फिर गर्दन हिलाकर ऑटो का वेट करने लगी।

    धूप होने के कारण उसने सिर पर चुन्नी ले ली और वहां खड़ी होकर ऑटो का वेट करने लगी। पंद्रह से बीस मिनट हो गई कोई ऑटो नहीं आया है। उसके पास पानी बोटल खाली थी। गला सूख गया था।

    " तुसी वी आज ही " वह ऊपर देखते हुए बोली।

    तभी उसके फोन पर मैसेज आया। उसने फोन पर अननोन नंबर से मैसेज देखा और भंवे सिकुड़ गई।

    " घर पहुंच गई क्या?"

    "तुसी कौन?" वह हैरान थी कि उसे इस तरह कौन पूछ रहा है। उसने इधर-उधर देखा कि कोई उसकी जासूसी तो नहीं कर रहा है परंतु उसे कोई नजर नहीं आया। मुझे इधर-उधर नजर दौड़ा ही रही थी कि तभी एक ब्लैक कर उसके सामने आकर रुकी और उसने हॉर्न बजाया और गेट खोलकर सूक्ष्म नाम से अंदर आने के लिए कहा।

    वह हैरानी से " मैं नहीं जा सकदी।"

    "क्यों?"

    "ऑटो बस आ ही रहा है।"

    " शाम को चार या पांच बजे से पहले कोई ऑटो नहीं मिलेगा। यहां से इस टाइम कोई सवारी नहीं मिलती। अब और कुछ मत पूछना।" वह झुंझलाहट से

    "नहीं, लेकिन तुम पर भरोसा कैसे करूं?" स्पष्ट ही पूछा।

    " ये लो मेरा फोन....." उसने फोन आगे किया।

    उसने एक नजर फोन को देखा "क्या करूं इसका?"

    " मेरा सर फोड़कर गाड़ी ड्राइव करो।" खीजकर

    फोन लेकर गाड़ी में बैठते हुए " ये उधार रहा। "

    उसने बाहर देखकर कुछ कहा और गाड़ी स्टार्ट कर दी।
    इक तेरी बांह होवे दुजे तेरी चुन्नी दी छां होवे
    दोनों एंवें रलया के तेरे नां ते नाल मेरा नां होवे !!

    "क्या कहा?" उसने उसकी तरफ देखकर

    "कुछ नहीं, एड्रेस नोटिस कर रहा था। मीटिंग कहां है?" वह सामने देखते हुए

    " मैं हेल्प करूं?"

    "नहीं,नहीं मैने गूगल से हेल्प ले ली।"

    दोनों का सफर खामोशी से गुजर रहा था कि अचानक अनु " बस.....बस....यहीं रोको।"

    उसने अचरज से देखा।

    "अरे आगे नहीं , किसी ने देख लिया तो....." घबराहट में जोर से

    "तो क्या?" गाड़ी रोक कर, उसने गर्दन घुमाई।

    उसने अपने माथे पर हाथ मार कर " छडो, तुसी नी समझोगे। "

    "व्हाट? क्या नहीं समझूँगा।" नासमझी से

    "नहीं....." कहकर वो मैन रोड़ पर उतर गई और इधर-उधर देखते हुए घर की ओर जाने वाली गली में तेज कदम बढा दिए। घर आते ही बीस हजार रूपए अपनी मम्मी की ओर बढा दिए।

    "तू कब आ रही है?" अनु चाय का कप लेकर सीढी पर बैठ गई और अमनदीप से बात करने लगी।

    " दो दिन और लग जायेंगे आनंद कारज में.....अच्छा तुझसे रात में बात करती हूं।" अमनदीप

    उसके बात बताने से पहले ही अमनदीप ने फोन कट कर दिया। वह रात होने का बेसब्री से इंतजार करने लगी लेकिन इंतजार इंतजार ही रहा।.वह फैमिली प्रोग्राम में बिजी थी। उसने भी दोबारा फोन करना ठीक न समझा और गुंजन की तैयारी में लग गई। घर के पकवान जैसे नमकीन और मीठी मठरी.... घर के बने बिस्किट.....भजिया आदि सब......उसके प्रेस किए कपड़े बैग में डाल कर तैयार किया।

    दूसरे दिन गुंजन संजीव के साथ चली गई। अब वह उलझन में थी। स्कूल की जॉब  छोड़कर वहां कैसे एप्लाई करे.....और उनके रूपए......

    स्कूल से आने के बाद थोड़ी देर रेस्ट किया और शाम होते ही चाय का कप लेकर छत पर चली गई। उसकी नजर एकाएक सामने रूम और किचन की तरफ गई। वहां लॉक लगा हुआ था। उसने राहत की सांस ली। उसका ऊपर आना दूभर हो गया था।

    उसका हाथ पकड़ना याद आया। उसके इंटेस गलत नहीं थे लेकिन लगाम कसना जरूरी था वरना उसके हौसले बढ जाते।

    क्रमशः*****

  • 13. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 13

    Words: 664

    Estimated Reading Time: 4 min

    उसका हाथ पकड़ना याद आया। उसके इंटेस गलत नहीं थे लेकिन लगाम कसना जरूरी था वरना उसके हौसले बढ जाते। वह उसे किसी गलतफ़हमी में नहीं रखना चाहती थी।

    वह खुद में उलझी थी। एडेड पोस्ट पर सैलरी ज्यादा थी लेकिन स्कूल वाले बिना पैसे वापस लिए छोड़ने नहीं देंगे।
    ये बंदा.....ये मेरी मदद क्यों कर रहा है। मुझे इसकी बात समझ नहीं आई। इसका मकसद कुछ ओर तो नहीं.....कहीं शरीफ बंदा बनने की कोशिश तो नहीं कर रहा है।

    "अनु कहां खोई हो?" उसने भारी सी आवाज सुनी।

    उसने पीछे मुड़कर देखा और वापस आंखे बंद करके टोंट में गाना गाते हुए " कीड़े पैन गे मरेंगे सब लड़के......"

    "क्या कहा?" वह रौब से बोला।

    " क.....कु....कुछ...नहीं..." एकदम से हकला गई।

    " अच्छा...."

    " हां...." चाय का लास्ट घूंट भर कर....

    " चाय...." उसने कप आगे करके..... उसकी भंवे तन गई।

    " जहर नहीं है.....ऑलरेडी मैं पी चुका हूं।" उसने सफाई दी।

    " हां, तो मैने भी आपके सामने कप रखा है ना।"

    " बेसिक मैनर्स....तुमने नहीं पूछा तो मैं क्या करूं। मैने तो फर्ज निभाया है।" वह धीरे से

    उसने हाथ बांधकर सवालिया नजरों से " कितनी बार और कितनी लड़कियों के साथ अपना ये फर्ज निभाया है।"

    " पहले कभी मौका ही नहीं मिला और अब मिला है तो सोचा निभा लूं।" वह हंसा।

    " ऐंवे ही तुसी केड़े पी एम हो जे मौका ही नी मिलया।" उसने एक हाथ कमर पर लगाया दूसरे हाथ को उठाकर कलाई के साथ उंगलियां घुमाई।

    " नहीं,पी एम तो नहीं हूं। पहले जॉब ही कुछ ऐसी थी फिर फैमिली प्राब्लम हो गई। " उसका चेहरा भावहीन हो गया।

    " चलो छडो कि होया के नी होया....सानू की.....तुसी चा पियो...." वह इग्नोर कर के जाने लगी।

    "क्या सोचा है? ऑफर के बारे में....." उसने चाय का कप होठों पर लगाकर मुंह फेर लिया।

    " रीजन जान सकती हूं इतनी मेहर की....."

    " तीस हजार रुपए सैलरी है एडेड पोस्ट की......परमानेंट साठ हजार....... लगातार आठ से दस साल में तुम इस पर परमानेंट हो जाओगी। अब तुम सोच लो जब तक कोई सेलेक्शन न हो।" कहकर वह अपने रूम में चला गया।

    वह बिना मुड़े ही उसकी बात सुनती रही और वह कुछ नहीं बोला तो एक बार मुड़कर उसे देखा तो नीचे आ गई। 

    रात को उसने जया और संजीव को पूरी बात बता बस डीईओ ऑफिस जाने का कारण बदल दिया। उन दोनों ने भी हिदायत के साथ सहमति जताई। बस उसे एक अनजाना सा डर सता रहा था। वह एक बार अमनदीप से और राय चाहती थी और उसी के आने का इंतजार था।

    " हाय मैं सोचया आंटी अंकल ने तेरा वी आनंद कारज कर दिता। " लगभग चार दिन बाद उसे देख रही थी।

    उसने मुक्का मार कर " इतनी जल्दी...."

    "हुणे निक्की हैं( अभी तो तू छोटी है)" उसने दांत दिखाए और कहते हुए स्कूल के रास्ते की ओर बढ़ गई।

    " तुझे पता है मुझे डीईओ ऑफिस में कौन मिला?" स्टाफ रूम में कोने पर बैठकर खाना खाते हुए

    "हां ,मैने तुझसे वो बात पूछनी थी।" उसने अपना टिफिन खोला।

    "ओ ही किरायेदार सोनू के ऊपर रूम में रहता है।"

    " हंअअअअ....." उसका हैरानी से मुंह खुला।

    " ओ डीईओ है। सोनू दे पापा उसके मौसाजी के दोस्त के दोस्त है और उसका घर रिनोवेट हो रहा है। और कुछ ना पुछी।"

    अमनदीप ने उसे घूरा " फेर बुलाया क्यूं? आ वी नी दसना (बताना)।"

    " हां ता गौर नाल सुणी...." इधर-उधर देखते हुए

    उसे पुरी बात बताने के बाद " हुण में कि करां दस?......"
    (अब बता मैं क्या करूं?)

    वह कुछ सोचते हुए " इंटरव्यू देकर देख उसके बाद अगर सिलेक्शन हो जाए तो फिर कुछ सोचते है।"

    उसके मन को कुछ राहत मिली।

    " वैसे भी देख इंटरव्यू देने में क्या जाता है तेरी प्रैक्टिस हो जाएगी। " उसने राय दी।

    उसने उसकी सलाह मानकर इंटरव्यू देने का मन बना लिया और ऑनलाइन इंटरव्यूज देख कर प्रेक्टिस करने लगी। पेपर्स  और इंटरव्यूज का हौवा ही ऐसा होता है चंगे भले आदमी कबूतर बण जांदे ने.......


    क्रमशः*****

  • 14. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 14

    Words: 688

    Estimated Reading Time: 5 min

    उसने उसकी सलाह मानकर इंटरव्यू देने का मन बना लिया और ऑनलाइन इंटरव्यूज देख कर प्रेक्टिस करने लगी। पेपर्स  और इंटरव्यूज का हौवा ही ऐसा होता है चंगे भले आदमी कबूतर बण जांदे ने.......

    "हैलो दी आप इंटरव्यू की तैयारी कर रहे हो ना...." गुंजन ने पहला सवाल दागा।

    " कंम्प्यूटर आता है?" बीच में मैसेज देखकर चौंकी।

    " गुंजन थोड़ी देर बाद बात करूं तो चलेगा कोई जरूरी मैसेज आ रहा है। "

    " कोई गल्ल नी, असी ता फेर गल्ला कर लेइये। पैला तुसी अपणा जरूरी काम करो।" मजाक किया।

    " गुंजन....."नाराजगी से

    वह बाय बोल कर हंसी और कॉल कट कर दी।

    " ज्यादा नी....."

    " तो सीखो.....जल्दी......"उसने नाराजगी वाला इमोजी भेजा।

    " पै गया इक होर स्यापा " उसने सिर पीटा।

    अमनदीप से हेल्प मांगी। उसके पास कंम्प्यूटर था। उसके घर जाकर ही प्रैक्टिस कर सकती थी। बस उसकी लाइफ बिजी हो गई थी। आजकल जया की हेल्प भी नहीं हो पाती थी।


    एक शाम घर आई तो जया के पास निम्मी को बैठा देख कर वह अचंभित हुई।

    " भाभी कि होया?" निम्मी से बात करते हुए में दुपट्टा उतार कर मुंह धोने लगी।

    "कुछ नहीं गर्मी में बीपी घट गया।"

    एकदम से उसके हाथ रुके। फिर से एक बार और हथेलियों में भर कर मुंह पर पानी डाला फिर तौलिए से साफ करती हुई उन दोनों के पास आ बैठी।

    "अच्छा मैं चलती हूं।"  निम्मी उठते हुए बोले

    " भाभी ऐसे कैसे? चाय पीकर जाना।" उसने निम्मी का हाथ पकड़ा।

    "नहीं, दीदी तुसी आंटी दा ध्यान रखो। चाय फेर कदी।" कह कर उसने हाथ छुड़ाया और एक दवाई उसके हाथ में रख कर सुबह शाम देने को कहा।

    निम्मी के जाते ही वह जया को डांटना लगी।" किन्नी वारी केता तुसी ऐना काम ना करया करो। गर्मी चे ओंवें ही त्वाडी हालत चंगी नी रहदीं। फेर वी नी मनणा। "

    (कितनी बार समझाया है इतना काम मत किया करो गर्मी में आपके वैसे ही हालत खराब हो जाती है फिर भी आपको मानना ही नहीं है।)

    उसने बोलते हुए जया के आगे कूलर चला दिया। अपना हुलिया सुधार न सकी आधे गीले और पसीने से भरे चेहरे पर चिपकू बाल लिए दुपट्टा लेकर पर्स से पैसे निकाले और बाहर चल दी।

    "इस टाइम कहां जा रही है?" जया धीरे से बोली।

    "पार्टी करने के लिए कोल्ड ड्रिंक ला रही हूं।" चिढ़कर

    वह जल्दी में जाली का गेट बाहर से लगाकर चली गई।

    " वीर जी दस आली एक फ्रूटी देया जे।" ( भइया जी दस रूपये की फ्रूटी देना।) आनन फानन में बोली। 

    "आप से पहले भी आए हुए हैं। जरा गौर फरमाईए। " एकदम से आवाज सुनी।

    उसने अब ध्यान दिया।

    "आप....सब आपकी वजह से हुआ है।" वह इतना ही बोल ही पाई थी कि दुकान वाला फ्रूटी लेकर आ गया। वह रूपए देकर मुंह बनाकर फटाफट चली गई। दूध वाले के आने का टाइम हो रखा था।

    "एक्सक्यूज मी...." अनु ने रिस्पांस न दिया तो सूक्ष्म हैरानी से उसे तकता रह गया।

    वह घर आई तो दूध वाला हार्न बजा रहा था। उसने फटाफट दूध लिया और किचन में आकर काम करने लगी इसी बीच जया को फ्रूटी दी जिससे बीपी ठीक रहे। काम करते हुए उसके फोन पर अननोन नंबर से मैसेज था।

    " रात में ऊपर आकर मिलना।"

    उसे हैरानी हुई कि रात में क्यों बुलाया है?

    "रात में क्यों? किसी को पता चला तो.....नहीं, ऐसे नहीं आ सकती। सब क्या सोचेंगे। "

    उसकी एक नजर मोबाइल पर थी किंतु उसका रिप्लाई नहीं आया। वह परेशान हो उठी साथ ही उसे गुस्सा आ रहा था। इतनी रात में छत पर अधिकतर लोग छत पर ही सोते थे। शुक्र है सोनू नहीं उसकी मंजी (चारपाई) तो नीचे ही नहीं उतरती।

    " पै गया हुण नवां स्यापा....कोई बहाना भी तो हो ऊपर जाने का....." वो काम करते हुए उसको मन ही मन कोस रही थी और अपने मम्मी पापा के सोने का इंतजार कर रही थी। उसकी धड़कन बढी हुई थी।

    ऐसे छिप कर मिलना काम चोरी का ही था। रात में इस तरह किसी लड़के के बुलाने पर सब घर वाले सवाल उठाते हैं तो वो कौनसे हाई प्रोफाइल घराने से थी जो उस पर उंगलियां न उठेगी।

    क्रमशः*****

  • 15. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 15

    Words: 666

    Estimated Reading Time: 4 min

    ऐसे छिप कर मिलना काम चोरी का ही था। रात में इस तरह किसी लड़के के बुलाने पर सब घर वाले सवाल उठाते हैं तो वो कौनसे हाई प्रोफाइल घराने से थी जो उस पर उंगलियां न उठेगी।

    वह ऊपर जाने का बहाना सोच रही थी इसके साथ ही पढने बैठ गई। दिमाग में उसका मैसेज घूम रहा था। कहीं जरूरी काम हुआ तो.......सोच कर परेशानी में नाखून कुतरने लगी।
    कुछ समझ न आया तो कुछ देर किताब हाथ में ली फिर खीज कर रख दी और फोन हाथ में लिया तो उसनें रेंज नहीं थी। वह मोबाइल चलाते हुए ऊपर जाने लगी तो संजीव " इतनी रात में कहां जा रही है? "

    "उते पापा जी, नीचे नेट नी आणा।" कह कर वह अपने में ही चल पड़ी।

    "जल्दी सो जा, सवेरे स्कूले जाणा है।" संजीव करवट लेते हुए

    वह छत पर पहुंची तो भी उसे ध्यान न रहा। वह अपना ही कुछ सर्च करने में लगी थी।

    " इतनी लेट ऊपर आई हो। सबको वर्किंग पैलेस पर जाना होता है।"

    उसकी आवाज सुनकर उसने इधर-उधर गर्दन घुमाई तो उसकी लंबी चोटी भी साथ घूम गई। अचानक से अपना काम पूरा देख जोर से उछली लेकिन चीखने से पहले मुंह पर हाथ रख लिया। चारों तरफ उमस थी हवा का नामोनिशान नहीं था। वह उसकी बचकानी हरकत देखता पसीना साफ करने लगा।

    चांदनी रात में उसके माथे पर पसीने की बूंदे चमक उठी। ये सब उनके लिए नार्मल था लेकिन सूक्ष्म परेशान था वह एसी ऑन करके आया था और उसका इंतजार कर रहा था।

    "वाहे गुरुजी थैंक्यू.....थैंक्यू.....थैंक्यू....." वह धीरे से बोलते हुए दीवार के पास आई। दीवार की ऊंचाई मुश्किल से कमर तक थी।

    " हो गया हो तो.....बता सकती हो कि मेरी वजह से क्या हुआ?" उसकी आवाज ठंडी सी थी।

    उसने उंगली दिखाई और जोर से बोलने को हुई लेकिन समय का ध्यान आया तो उंगली नीचे कर पलकों को झपकाती हुई
    " आपने ही कंम्प्यूटर सीखने को कहा था। बस इसी में बिजी हो गई और गर्मी के कारण मम्मी की तबीयत खराब हो गई। बस गुस्सा आ गया। "

    "बस इतनी बात पर इतना परेशान हो गई। उनका सोचो जिनके पास इनका साया नहीं होता और अपनी राहें आसान करते हुए मंजिले प्राप्त करते हैं। तुम कम से कम उनके पास तो हो.......उनका सोचो जिनकी मां अंतिम सांसे ले रही हो और उसकी संतान को पता न चले और उसको देखने की आस में मरने के बाद भी आंखे खुली रहे। कब उसका पुत्र आएगा।" वह आगे कुछ नहीं बोल सका और रूम में चला गया।

    उसे लगा कि गुस्से में बोलते हुए भावुक हो गया था। उसने तो नजरें ही न मिलाई, ना ही वो उसे देख सकी। वो कंधे उचका कर नीचे आ गई। कुछ देर तक उसकी बात दिमाग में घूमती रही।

    जया की तबीयत में सुधार हुआ। कंम्प्यूटर पर फोक्स कर उसने कंम्प्यूटर क्लासेज ही ज्वाइन कर ली। उसके बाकी बचे एक-एक कर के सब रिजल्ट आ रहे थे उनमें निराशा ही हाथ लग रही थी। कल वह आते वक्त टीचर के कॉम्पिटिशन एग्जाम का रिजल्ट देख कर आई थी। उसमें उसे उम्मीद थी लेकिन किनारे पर आकर  रह गई। 

    घर आने के बाद रो पड़ी। जया उसे दिलासा दे रही थी। गुंजन  भी फोन पर समझा रही थी। उस पर असर नहीं हुआ। शाम को अमनदीप का फोन भी आया पर उसने बात नहीं की।

    " ऐसे रोने से क्या होगा? कहीं तो कमी रखी होगी।" आवाज  रूखी हो गई ।

    वह कुछ नहीं बोली। रात को संजीव ने भी समझाया और खाने के लिए कहा तो उसने बाद में खाने का बोल कमरे में चली गई।

    दूसरे दिन शाम को अमनदीप घर आ गई।

    "पागल होवेगी तू। इको ही पेपर नी होणा। अगे वी वेकेंसी आणगी।" वह उसको डांट रही थी।

    "मूं देख्या है तेरा जिंवे छितर नाल भुनया होवे।"

    "अकेला छोड़ दे मुझे....कल तक ठीक हो जाऊंगी।" उसने दो टूक जबाव दिया।


    अमनदीप जया के पास बैठ कर बातें करने लगी। कुछ देर बाद अनु को ध्यान रखने का बोलकर चली गई।

    क्रमशः*****

  • 16. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 16

    Words: 720

    Estimated Reading Time: 5 min

    अमनदीप जया के पास बैठ कर बातें करने लगी। कुछ देर बाद अनु को ध्यान रखने का बोलकर चली गई। वह बैठी सोच रही थी कि फिर से पेपर निकाल लिया। जया आई और गुस्से में पेपर और रिजल्ट फाड़ दिया। अनु हैरानी से देख रही  थी।

    "आ कि किता तुसी?(ये क्या किया?)" वो परेशानी और झुंझलाहट में

    " अब यहां से खड़ी हो जा। कब तक मातम मनायेगी। " वह नाराजगी से बोली

    " मम्मी...." उनका गुस्सा देख कर रोने लगी।

    " रोने से नौकरी लग जाएगी। सब निहाल न हो जाते....." उसका जबाव न देख उनको गुस्सा आ गया।

    " तुमने ही ठीक से पढ़ाई नहीं की वरना जिन बच्चों का सेलेक्शन हुआ है वो कोई होशियारी की घुटी पीकर नहीं आए है और ना ही किताबे घोल कर पी है। उन्होने भी दिन रात मेहनत की है तुमने अकेले ने नहीं की। हम तो अनपढ है समझ नहीं लेकिन तुम तो सब जानती हो। नहीं समझ आ रहा तो पढने का तरीका बदलो। किताब खोल कर बैठने से कुछ नहीं होगा। "

    "मम्मी तुसी वी जाणदे हो।" वह रोते हुए बोली।

    जया तो आज आगे-पीछे का सब सुनाने के मूड में थी।

    " सुबह जाकर रात में घर आते है तब जाकर तनख्वाह मिलती है लेकिन तुम..... तुम्हे तो हर चीज हाथ में मिलती है तुम क्या जानो......अभी तक नौकरी नहीं लगी हो। कब तक घर बैठे रहने का इरादा है। कब हम अपनी जिम्मेदारी निभायेंगे। तुमने कोई पसंद कर रखा है तो ये बता दे..... जल्दी से तेरी शादी कर तुझे तेरे घर भेज दे।..... उसके  बाद गुंजन भी है उसका भी देखना है......कब तक तेरा करते रहेंगे।" जया ने भड़ास निकाली।

    वो आंखो में हैरानी और आंसू लिए जया को देख रही थी। उसके मन में टीस उठी। दूध वाले ने हार्न बजाया तो गुस्सा दबाकर दूध लेने चली गई।

    जया की बातों को सोच-सोचकर रोती रही। उसे भी अब अपनी काबिलियत पर शक होने लगा था। उसका सर दर्द होने लगा था। वह खड़ी होकर किचन में आई और बर्तन साफ करने लगी। जया की बातें उसके दिमाग में घूम गई।

    सच में अब तो उसका जोर-जोर से रोने का मन कर रहा था लेकिन कोई दिलासा देने वाला नहीं था। उखड़े मन से काम करती रही कूलर में पानी डालना,आंगन में चारपाई, शाम की पूजा-पाठ कुछ देर मंदिर में खड़ी आंसू बहाती रही। जया ने खाने की तैयारी की तो उसने संजीव के आने से दस मिनट पहले खाना बना दिया।

    संजीव घर आए तो सब शांत देख कर उन्हे अह्सास हो गया कि घर का माहौल गर्म है। अनु भी कुछ ठीक हो चुकी थी।

    " अनु, ले सब्जी की थैलियां पकड़....." अनु आई और चुपचाप सब्जी की थैलियां लेकर चली गई संजीव ने हेलमेट उतार कर मोटर साइकिल पर टांगा।

    संजीव शर्ट खोलकर आंगन में बैठ गए तो जया ने कूलर चला दिया। संजीव ने कुछ नहीं कहा। अनु ने पानी का गिलास लाकर स्टूल पर रख दिया।

    वापस रसोई में आकर वाटर कूलर में रात के लिए ठंडा पानी डालने लगी साथ में बर्फ तोड़ कर डाल रही थी। कुछ देर बाद संजीव जी नहाकर कपड़े चेंज करके आए तो जया ने थाली लगाई।

    " एक प्लेट तुम्हारे लिए और अनु के लिए लगाओ।"

    "आज वो खाना नहीं खाएगी।" जया नाराजगी से

    " अनु..... अनु इधर आओ।" संजीव ने उसे इग्नोर कर अनु को आवाज लगाई।

    अनु चारपाई पर संजीव के पास आकर बैठ गई तो उन्होंने खान की प्लेट अनु के हाथ में देकर " खाओ...."

    अनु गर्दन झुकाए रोने लगी तो रोटी का एक टुकड़ा सब्जी लगाकर उसके आगे कर दिया। उसने सिर उठाकर रोते हुए मुंह खोल कर रोटी खा ली संजीव ने उसके आंसू पौंछे और पानी का गिलास आगे कर दिया।

    " कभी-कभी मेहनत का फल देरी से मिलता है। " संजीव भी  बेटी की हालत देख नहीं पा रहे थे।

    गर्दन झुकाकर खाना खाते हुए " कई बार परीक्षायें जीवन का अनुभव भी देती हैं। कुछ नहीं मिला तो सीख ही सही..."

    वह रोते हुए खाना खा रही थी। जया को भी दया आई पर खुद को मजबूत किया और दोनों के साथ खाना खाने लगी।
    उसने भी उसे रात-रात भर जागते देखा था। किताबों के साथ  जूझते हुए कमजोर हो चली थी लेकिन किस्मत को जाने क्या मंजूर था। आज गुस्से में बोल गई मगर अंदर ही अंदर पछतावा हो रहा था।


    क्रमशः*****

  • 17. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 17

    Words: 717

    Estimated Reading Time: 5 min

    वह रोते हुए खाना खा रही थी। जया को भी दया आई पर खुद को मजबूत किया और दोनों के साथ खाना खाने लगी।
    उसने भी उसे रात-रात भर जागते देखा था। किताबों के साथ  जूझते हुए कमजोर हो चली थी लेकिन किस्मत को जाने क्या मंजूर था। आज गुस्से में बोल गई मगर अंदर ही अंदर पछतावा हो रहा था।

    सब सो गए उसे नींद नहीं आ रही थी। वह हौले से उठकर छत पर चली गई और अंधेरे में दीवार के सहारे बैठ गई।

    " कीरत में ठीक हूं। तुम ठीक हो ना और पापा जी....." इतना पूछ कर सामने वाले की बात सुनता रहा।

    " हां, पापा जी को बोलना जब मजदूरों और फसल बुवाई का काम हो तो मैं आ जाऊंगा उन्हें बोल देना टेंशन मत ले और अपना ध्यान रखें। ठीक है! चल रखता हूं। आज मैं लेट हो गया, कल टाइम से बात करूंगा। ठीक! बाय....." वह छत पर चक्कर काटते हुए किसी से बात कर रहा था।

    उसे झुंझलाहट होती थी। यहां की स्ट्रीट लाइट काम नहीं कर रही थी। बस चांद की चांदनी में ही काम करते रहो। नहीं तो अंधेरे में लगे रहो और ऐसे लाइट जलाने में मच्छर आ जाते थे। वह फोन रखकर कुछ सोच ही रहा था कि मुड़ने पर उसे लगा के जैसे वह वहां बैठी हो इतनी रात में उसने इग्नोर किया चला गया वापस उसने मुड़कर गौर से देखा तो उसे सच में दिखाई दी।

    उसने हल्की सी आवाज दी लेकिन चारों तरफ कूलर चलने से उसकी आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। वह धीरे से दीवार   फांदकर आया और धीरे से उसके पास बैठ गया।

    " हालात देखकर यूं प्रतीत होता है कि जैसे दिल टूट गया हो या ब्रेकअप हुआ?" उसने पूछा।

    उसने आवाज सुनकर आंसू साफ कर के उसकी तरफ देखा।

    " हम मिडिल क्लास वालों के जिंदगी के और मसले खत्म नहीं होते और तुम्हें ब्रेकअप की पड़ी है।"

    " फिर तो कुछ और ही गंभीर समस्या है।"

    " कुछ नहीं है तुम जाओ यहां से मैं अपने मसले खुद सुलझा लूंगी।" वह धीरे झल्लाई।

    " यहां बैठे-बैठे रोकर....."

    " अब तुम यहां से न गए तो....."

    " तो...... इससे सर फोड़ देना लेकिन उससे पहले बात बता देना।"पास पड़ा आधी ईट का टुकड़ा उसके हाथ में देकर

    उसके पागलपन पर मुस्कुराकर उसने हाथ में लिया ईंट का आधा टुकड़ा उसकी तरफ फेंकने लगी मगर उसकी तरफ नया फेंक कर दूसरी तरफ फेंक दिया।

    " क्या हुआ?" उसने एक भौंह उचकाई।

    " कुछ नहीं, निरे बुद्धू हो,पागल हो और पागलों के मुंह नहीं लगा करते।" वह मुंह फेर कर फ्लो में बोल गई।

    " गलत.....बिल्कुल गलत......"

    "जाओ अब,मुझे कुछ देर अकेले रहना है। " उसने ऊपर चांद की तरफ देखा।

    " ओह अब समझ आया तुम जाने के लिए क्यों कह रही हो?" यह बात उसने इतनी गंभीरता के साथ कही की जैसे वह उसका सारा रहस्य जान गया हो।

    वह उसे असमंजस में देखने लगी।

    " लड़कियों के यही तो ख्वाब है चांद से उतर कर कोई सफेद घोड़े पर राजकुमार आएगा और उन्हें ले जाएगा। बस तुम भी उसी का इंतजार कर रही हो।" वह भी चांद की तरफ देखने लगा।

    " बुथा (मुंह)भुन देणा है हुण जे वाज आई तो....." आंखें तरेर कर बोली।

    वह वहां से खड़ा होकर चला गया। उसने दोनों घुटनों पर हाथ बांधकर अपना सिर टिका लिया। कुछ देर बाद उसे वापस उसके कदमों की आवाज सुनाई दे तो उसने मुड़कर देखा वह हाथ में कुछ लेकर आ रहा था स्पष्ट तो उसे भी दिखाई ना दिया।

    वह पास आकर बैठा तो उसने प्लेट पास की। जिसमें व्हाइट  कोई डिश थी। वह पूछती उससे पहले ही वह बोल पड़ा "ठंडी पेस्ट्री है खाओ दिमाग भी ठंडा होगा और मुंह का स्वाद भी...... क्योंकि मेरे मुंह से लगकर मुंह का टेस्ट खराब हो गया होगा।"




    " छीः.....कैसी गंदी बाते करते हो।" उसने मुंह बनाया।

    "अरे इसमें मुंह बनाने वाली कौन सी बात है तुम ने ही तो कहा था।" उसने बात घुमाई।

    "अरे मैने तो मुहावरा बोला था।" सफाई दी।

    उसने प्लेट लेने का आग्रह किया। आधी रात में कुछ लोग कूलर के नीचे आंगन में सोये थे,कुछ छतों पर लेटे ऊंघ रहे थे तो कहीं से बीच-बीच में खर्राटों की आवाज सुनाई दे जाती। कभी कभार हवा का झोंका भी चल जाता जिसमें गर्मी से कुछ राहत मिल जाती।


    क्रमशः*****

  • 18. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 18

    Words: 606

    Estimated Reading Time: 4 min

    उसने प्लेट लेने का आग्रह किया। आधी रात में कुछ लोग कूलर के नीचे आंगन में सोये थे,कुछ छतों पर लेटे ऊंघ रहे थे तो कहीं से बीच-बीच में खर्राटों की आवाज सुनाई दे जाती। कभी कभार हवा का झोंका भी चल जाता जिसमें गर्मी से कुछ राहत मिल जाती।

    हवा में ठंडक नहीं थी लेकिन गर्मी में पसीने से सराबोर होने पर गर्म हवा का झोंका भी ठंडक दे जाता है। इस समय बस वही हाल था। बीच-बीच में मच्छर अपना गीत गुनगुना जाते। उसके मनुहार करने पर वह दीवार के सहारे से प्लेट लेकर पेस्ट्री खाने लगी। वह पेस्ट्री खा रही थी तब हवा में उसके झूलते बाल उसके आगे आ रहे थे।

    जाने उसके मन में क्या आई उसने मोबाइल निकाला और उसकी फोटो खींच ली। उसने आंखें तरेर कर उसे देखा।

    "फोटो खींचने को किसने कहा था। ये चालाकियां यहां नहीं चलेगी।" प्लेट छोड़कर उससे फोन खींचने को तैयार थी मगर उसने हाथ ऊपर कर लिया।

    "अच्छी नहीं आई।" सूक्ष्म ने बहाना बनाया

    "डिलीट करो अभी के अभी अच्छी हो या बुरी....." उसने वार्निंग दी।

    "ब्लैक ब्यूटी......निखर रही फोटो में...." उसने फोन दिखाया।

    फोटो नेचुरल और अच्छी आई थी, फोटो इतनी क्लीयर भी नहीं थी। उसका मन नहीं डिगा और उसने गर्दन पर उंगली चला कर खत्म करने को कहा। जब तक उसने डिलीट नहीं की,वह देखती रही। उसने फोटो डिलीट कर दी।

    "यह बकवास करने की डिग्री कौन सी यूनिवर्सिटी से ली है।"

    "अच्छा तुम्हें इतनी पसंद आई यह डिग्री तो मैं भी तुम्हें दिलवा सकता हूं।"

    "ह्म्म्म्म पहले सेटल हो जाऊं उसके बाद सोचती हूं।" वह आराम से खा रही थी।

    " ऐसे रोकर...."

    " नहीं,वो तो कल रिजल्ट निल आया था इसलिए दुख हुआ। बस कोई ओर उपाय न था। इस चक्कर में मम्मी से डांट खा ली और गुस्से में उन्होने बहुत कुछ कह सुनाया।" उसकी आंखे नम हुई।

    " लकी हो कुछ कहने के लिए मां है। वरना तो आवाज को कान तरस जाते है। तुम्हे बुरा नहीं मानना चाहिए था। कई बार गुस्सा किसी ओर का भी निकल जाता है। पता उनको सब है तुम गलत नहीं हो। कभी-कभी हो जाता है जब वक्त और हालात बस में नहीं होते।" वह उसे समझा रहा था।

    " हां, मुझे सब पता है लेकिन शादी तक सुना दिया। उन्हे पता है उनकी मर्जी के खिलाफ नहीं जाऊंगी फिर भी जानबूझकर  मुझे ब्लेम कर रही है कि मैंने कोई ढूंढ रखा है तो बता दूं।"

    कुछ क्षण रूकी " ऐनी वेली नहीं हूं। जिनगी चे ऐना टाइम नी है प्यार दिया पिंगा पाण नू....." उसे देख कर अपने मन की बात कही। ( इतना फ्री नहीं हू। प्यार के झूले लेने के लिए जिंदगी में इतना टाइम नहीं है।)

    " सयानी कुड़िये.....और जिनगी कित्थे खराब करण लई है।" उसने पंजाबी में जबाव दिया।

    " हाय मैं मरजा डीईओ साब नू पंजाबी आंदी....हाय किदी सोणी पंजाबी बोली.....हाय मैं मरजां गुड़ खा के...." एकदम से अचरज के साथ,उसने चम्मच मुंह की तरफ की लेकिन खाई नहीं।( हाय मैं मर जाऊं डीईओ साहब को कितनी सुंदर पंजाबी आती है।)

    " नहीं, हुणे ता पेस्ट्री खा के....(अभी तो पेस्ट्री खाकर मरो।)" उसने मस्ती की।

    "हाय कि दस्या तूसी?.....(हाय तुमने क्या कहा?)" अनुभा हैरानी से

    " पेस्ट्री में नशे की दवाई मिलाई गई थी, अभी तुम बेहोश होने वाली हो।" गंभीर आवाज आई।

    इसकी सांसे अटकी और आंखें फाड़ कर सूक्ष्म को देखने लगी वह जोर से बोली "यू चीटर....मरजाण्या....."

    अनुभा आगे कुछ बोलती उसके पहले सूक्ष्म ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया और वह पीछे दीवार के लग गई। उसकी करीबी से अनु की धड़कन की लय बिगड़ी। अनुभा उसकी नजदीकी से घबरा गई। दोनों की नजरें उलझ सी गई थी।

    क्रमशः*****

  • 19. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 19

    Words: 696

    Estimated Reading Time: 5 min

    आगे कुछ बोलती उसके पहले सूक्ष्म ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया और वह पीछे दीवार के लग गई। उसकी करीबी से अनु की धड़कन की लय बिगड़ी। उसकी नजदीकी से घबरा गई। दोनों की नजरें उलझ सी गई थी।

    उसके हाथ में चम्मच अभी भी था। उसे लगा कि वह अभी बेहोश हुई और उसके साथ कुछ गलत होगा। वह अपनी गर्दन हिलाने लगी। उसकी हवाईयां उड़ चुकी थी। घबराहट में पसीने से तर-बतर हो चुकी थी। उसका दिमाग ब्लेंक हो चुका था। मानो सारे हथियार डाल दिए हो।

    " ऊंऊंऊंऊं......." वह गर्दन हिलाकर बोलने की कोशिश कर रही थी।

    "श्श्श्श्श....." सूक्ष्म के इस तरह बोलने पर वह शांत हुई। उसने उसके हाथ में ली चम्मच में पेस्ट्री खा ली। वह हैरान थी।

    उसने हाथ हटाकर " पागल.....तुम्हारे हाथ किसी बंधन में नहीं थे। इनका यूज भी सेल्फ डिफेंस के लिए किया जाता है।"

    अब तो दिमाग गरम हो गया। उसका गला दबाने के लिए हाथ बढाए " बेगैरत इंसाण.....कुट चंगी तरा पैणी है। स्वाद लैंदा सी,सां कढ लेणी सी तू तां....हुण बंदे ता पुत बण के उठ खड़...ऐत्थों जिन्नी छेती कढणा कढ नी तां...... "(बेगैरत इंसान अच्छी तरह से कूट देना है। मजे ले रहा था, तूने तो सांस ही निकाल दी थी। अब इंसान का पुत्र बन के उठ खड़ा हो, यहां से जितनी जल्दी हो सके निकलना है तो निकल ले।)

    इधर-उधर देखकर फिर ईंट उठाकर " तेरी दमाग दियां नसा खोल देणी....."(तेरे दिमाग की नसे खोल देनी है।)

    उसकी कलाई पकड़कर ईंट साइड में रख दी। उसका हाथ कांप रहा था।

    " बस इतने में ही घबरा गई अगर सच में होता तो....."

    " हां तो....बंदा देख्या जांदा है.....बम सिट के कहदां वजी ता नी....हुणे-हुणे ही नबज चली बीचे ब्रेक मार लीता सी......" ( बंदा देखा जाता है, बम गिरा कर कहता है कहीं लगी तो नहीं। अभी-अभी नब्ज चली है बीच में तो ब्रेक मार ही लिया था।)

    वह हल्का सा हंसा " यम है हम...."

    "कल्ला बैया करदा रहंदा यम है हम....."(अकेले बैठे करते रहना यम है हम)मुंह बनाकर

    "बेबे मेरी ने सुपने सजाये होये सी जागो दे.....मैं एत्थों ही उत्ते तुर जाणा है फेर कि बणदा।.....फेर ओने गिटे तेरे भुन देणे है।" उसकी प्लेट चम्मच उसके हाथ में देकर खड़ी होकर चली गई।

    (मां ने मेरी जागो के सपने सजाये है लेकिन मैं तो यहीं से चली जाती तो फिर क्या बनता.....फिर उसने तेरे टखने भुन देने है।)

    उसके जाने के बाद वह मुंह पर हाथ रख हंसा और खड़ा होकर चला गया। उसकी नजरों के सामने उसका चेहरा घूम रहा था।

    वह दबे पांव नीचे आई और खाट पर लेट गई। उसकी धड़कन ने ब्रेक मारा था लेकिन उसकी करीबी से.....उसकी आंखो के सामने उसका चेहरा नजर आ रहा था। वह किसी आंख बंद करके सो गई।

    सवेरे जल्दी तैयार होकर स्कूल जाने की तैयारी कर थी कि उसके फोन पर मैसेज आया। मैसेज आया,ऊपर नंबर देख कर चौंक गई।

    "अनु आजा.....चलिए...." अमनदीप ने आवाज लगाई।

    " हुणे आई....." उसने जबाव दिया।

    रिसेस में वह उसका मैसेज पढ़ रही थी।

    " सांसा दी ब्रेक ठीक हो गई। गुड़ आली मार्निंग....."

    " हां ओदो ही गई सी......चा आली मार्निंग....." वह चाय पी रही थी। उसने कोई रिप्लाई नहीं दिया।

    " बिजी बंदा...दुनिया ने काम दा सारा ठेका ऐनू ही देता।" रिसेस खत्म होने तक उसका रिप्लाई नहीं आया तो वह मन में झुंझलाई।

    एक बार उसका मन किया कि रात वाली बात का बदला ले लेकिन उसने कुछ सोचकर इग्नोर किया।  उस दिन के बाद से खुद को नार्मल किया और अभी कोई वेकेंसी नहीं थी फिर भी रात को एक-दो घंटा किताब के लिए निकाल लिया करती थी।


    " क्या बात है? बहुत बिजी हो।" उसका मैसेज आया।"

    " हां,अपणी लता ते खड़ा होणा है।(अपने पैरों पर खड़े होना है।)"

    " हुण किस तो उधार लई है?(अब किससे उधार ली है?)

    " कि लई है??? (क्या लिया है?)" खीजकर

    " लतां (पैर) "

    " हायो रब्बा! मैं कि करां? "

    " कुछ नहीं, तुसी उत्ते आ जाओ।"

    "अजे नी(अब नहीं).....राति......"

    चन्न चानणी टिम टिमादें तारे
    उत्ते आजा सोणियां सो गये पिंड दे सारे........

    उसका रिप्लाई देख वह हक्की बक्की रह गई। मन ही मन गुस्से में बड़बड़ाई " ऐंदी आशिकी दा भूत तारणा पैणा है।"

    क्रमशः*****

  • 20. जाने कब कहां मिलोगे हमसे हमसफर - Chapter 20

    Words: 746

    Estimated Reading Time: 5 min

    उसका रिप्लाई देख वह हक्की बक्की रह गई। मन ही मन गुस्से में बड़बड़ाई " ऐंदी आशिकी दा भूत तारणा पैणा है।"

    "क्या हुआ? किससे बात कर रही है?" जया किचन से बोली

    " कुछ नी.....ऐंवें ई उल्लू दे पठेया तों दुनिया आबाद है।"


    " रांग नंबर नाल माथा फोड़ी करणी ही क्यों है। चंगी तरह दो गल्लां सुणा दे।" जया ने राय दी।

    " गिटे ही छिल देणे है ओस दे। लग्या है फ्लर्ट करण नुं.." वह मन में

    अपनी छत पर सर्दियों में पानी गर्म करने के लिए रखी हुई कपास की लकड़ियों के ढेर में से एक लकड़ी लेकर उसके छोटे-छोटे सूखे तने तोड़ते हुए " खसमा नू खाण आज ओंदी खैर नी......कि कैण चलया सी......ओस दे चन्न, तारे ते सूरज आज ही टिमटिमा देंदी हा......जिनगी चे हनेरा नी होणा....."
    (खसमा नू खाण..... आज उसकी खैर नहीं, क्या कह रहा था? उसके चांद तारे सूरज आज ही टिमटिमा दूंगी। पूरी जिंदगी में अंधेरा नहीं होगा।)

    परिस्थिति ही उसके बस में नहीं थी वरना वह जोर-जोर से चिल्ला कर रहती और उसे सुनाती।

    "अनु मार छाल.....कर हनुमान जी वल्लों समंदर पार.....आज ओस राक्षस दी खैर नी..... " दीवार फांदते हुए (अनु उछाल मार जा और हनुमान जी की तरह समंदर पार कर ले। आज उस राक्षस की खैर नहीं।)

    उसने देखा कि रोशनदान से कमरे की लाइट जल रही थी। वह कमरे में घुसने लगी कि अंधेरा हो गया। वह अचंभित हुई कि तभी उसका हाथ पकड़कर अंदर खींच लिया। सोटी वाला हाथ उसके कंधे से जा लगा।

    " आ कि है.... (ये क्या है?)" चौंक कर एकदम से बोली

    "तुम यहां क्या कर रही हो? मैं वहीं आ रहा था।" वह गहरी सी आवाज में बोला।

    वह आंखे घुमाकर उसे अंधेरे में देखने की कोशिश कर रही थी। कमरे में गहन अंधेरा था। चुप होने पर बस दोनों की सांसे और धड़कने सुनाई दे रही थी।

    उसके घेरे में थी अंदर ही अंदर घबरा उठी।

    " छडो जाण दयो......" वह हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी।

    " आज पहली बार मेरे दर पर आई हो। ऐसे कैसे चली जाओगी।" वह कशिश के साथ बोला।

    "व....वो....ग....गल...गलती हो गई। " वह हकला उठी।

    वह पसीने से तर-बतर हो गई। उसे अह्सास हो गया था कि गलत टाइम आ गई है।

    "छडो तुसी..." उसकी आंखो में नमी आ गई।

    " कल फार्म फिल कर देना। बस यही कहना था। "  उसने धीरे से कहा।

    "अब आई हो तो खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा।"

    "क्क..कै....कैसा....ख्ख....खा....खामि...या..जा...." डर कर शब्द उसके मुंह से निकल रहे थे।

    उसने लाइट ऑन की तो वह मुंह और आंख पर हाथ रख कर मुड़ गई "छीः इस तरह कौन रहता है।"

    "अरे मेरी क्या गलती तुम अचानक से आ गई। " वह नीचे गिरी टी शर्ट उठाकर पहनते हुए

    "हां,तो सोचना चाहिए कोई आ जाएगा।" उसे ही ब्लेम किया।

    "कोई होता तो इतना न सोचता लेकिन तुम थी इसलिए नहीं सोचा।" वह साइड से बाहर निकला।

    " हंअअअअ......कि कैया......" वह हैरानी से आंखे फाड़े देखते हुए छड़ी उसके हाथ से गिर चुकी थी।

    इतनी देर में आइसक्रीम के कोन ले आया एक उसके हाथ में  कोन खोल कर दे दिया। उसने एक बार ना में गर्दन हिलाई तो मुंह से लगा दिया। उसने मीन सी आंखे दिखाई। उसकी आंखे बीच से बड़ी और किनारों से तीखी ,पतली लंबी थी जो बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती थी।

    वह भी उसकी आंखो में खो सा गया। उसके अचानक बोलने पर" आजकल कुछ ज्यादा नहीं बोल रहे हो।"

    " अच्छा इसलिए सोटी लेके आई हो।"

    "आ मैनर सिखाण लई...." आइसक्रीम खाते हुए

    "अच्छा आज मैडम बन कर आई थी।"

    "कोई शक....." उसने फटाफट आइसक्रीम खत्म की।

    "नहीं, कोई शक नहीं है।" कान पकड़कर " आगे से ऐसी कोई बात नहीं करूंगा। अप एंड डाउन भी करना पड़ेगा या कान पकड़ने से काम चल जाएगा।" 

    खड़ी होते हुए वह हंसी " आज इसी से चल जाएगा।"

    वह बाहर जाने लगी तो उसने वापस हाथ पकड़कर खींचा।

    वह घबराकर " पागल हो गए हो। इस तरह कोई खींचता है क्या? जान ही निकाल दी। "

    "खुद तो मारोगी, मुझे भी मरवाओगी।"उसने लाइट बंद करते हुए कहा।

    उसे ध्यान आया कि चारों तरफ अंधेरे में उनका लाइट में बाहर निकलना किसी को भी दिखाई दे सकता था।

    " याद से फार्म फिल कर देना।" उसने याद दिलाया।

    " ह्म्म्म्म....." वह दीवार फांदकर जाने लगी।

    " कुछ देर मेरे पास बैठोगी?...." उसने आग्रह किया।

    उसकी नरमाई देख कर उसने हामी भर दी। वह कुछ देर तक चुपचाप बैठा रहा। उसके न बोलने पर वह उसे हैरान होकर देखने लगी।

    क्रमशः*****