ये कहानी है तारा की जिसके पास सिर्फ उसके मां और एक सहेली होती है। पर उसकी मां के मौत के बाद उसे करनी पड़ती है उसकी मां के सहेली के बेटे से शादी वही दूसरी तरफ ध्रुव जो की इंडिया के सबसे बड़े बिजनेस में का बेटा और वो अपनी मां का कहा कोई बात नही टालता इ... ये कहानी है तारा की जिसके पास सिर्फ उसके मां और एक सहेली होती है। पर उसकी मां के मौत के बाद उसे करनी पड़ती है उसकी मां के सहेली के बेटे से शादी वही दूसरी तरफ ध्रुव जो की इंडिया के सबसे बड़े बिजनेस में का बेटा और वो अपनी मां का कहा कोई बात नही टालता इसलिए उसे अपनी मां के कहने पर करता है अपने से दस साल छोटी लड़की से शादी।
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बनारस सुबह का समय था। बनारस के गंगा घाट पर सूरज की पहली किरणें लहरों को सुनहरे रंग में रंग रही थीं। हर ओर एक अलौकिक शांति थी। संत-महात्मा ध्यान में लीन थे, और काशी विश्वनाथ मंदिर से गूंजती घंटियों की आवाज़ पूरी नगरी को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर रही थी। काशी विश्वनाथ मंदिर के अंदर भगवान शिव की प्रतिमा के सामने एक लड़की खड़ी थी। उसने नारंगी रंग की सलवार सूट पहनी हुई थी। बड़ी-बड़ी काली आंखें, गुलाबी होंठ, कमर तक लंबे घने बाल, गोरा रंग और चेहरे पर गजब की मासूमियत। वह सत्रह साल की लड़की तारा थी। तारा ने अपने नाजुक हाथ जोड़े और भगवान शिव से प्रार्थना की, “शिव जी, आपने हमेशा मेरी मदद की है। आज मेरा 12वीं का रिजल्ट आने वाला है। मैंने बहुत मेहनत की है। प्लीज, मुझे अच्छे नंबर दिलवा दीजिए ताकि मैं अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले सकूं। मुझे अच्छी नौकरी मिल जाए ताकि मैं अपनी मां का इलाज करवा सकूं और उन्हें एक अच्छी जिंदगी दे सकूं। बस, आपका आशीर्वाद चाहिए।” तारा की आवाज़ में मासूमियत और उम्मीद झलक रही थी। प्रार्थना के बाद उसने सिर झुका कर भगवान के चरणों में प्रणाम किया। फिर वह मंदिर के मुख्य पंडित के पास गई और झुककर उनके पैर छू लिए। पंडित जी तुरंत बोले, “तारा बेटा, मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है कि हमारे पैर मत छुआ करो। लड़कियां देवी का रूप होती हैं। उनसे पैर छुवाना ठीक नहीं।” तारा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “पंडित जी, आप मेरे पिता समान हैं। एक बेटी का अपने पिता से आशीर्वाद लेना कोई पाप नहीं है। तो अब जल्दी से आशीर्वाद दीजिए।” पंडित जी ने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा, “भगवान तुम्हारी सारी इच्छाएं पूरी करें। तुम हमेशा ऐसे ही चहकती रहो।” तारा ने पंडित जी का धन्यवाद किया और कहा, “पंडित जी, आप अपना ख्याल रखिएगा। अब मुझे घर जाना होगा। मां का जागने का समय हो गया है।” यह कहकर तारा मंदिर से बाहर निकली और पैदल ही घर की ओर चल दी। रास्ते में बनारस के छोटे-छोटे गलियारों से गुजरते हुए उसने सड़क किनारे बिक रही ताजी सब्जियों को देखा। हर ओर हलचल थी, लेकिन तारा के मन में आज एक ही बात थी—उसका रिजल्ट। तारा का घर तारा का घर बनारस की एक गली में था। ज्यादा बड़ा नहीं था। दो बेडरूम, एक किचन, एक बाथरूम, एक गेस्ट रूम, और एक छोटा सा लिविंग हॉल। घर के बाहर तुलसी का पौधा रखा हुआ था, जिसे तारा हर सुबह पानी देती थी। जैसे ही तारा घर पहुंची, उसने सबसे पहले किचन में जाकर नाश्ता बनाना शुरू किया। फिर वह नाश्ता लेकर अपनी मां के कमरे में गई। बेड पर एक औरत लेटी हुई थी। वह तारा की मां, सरिता जी थीं। उनकी हालत बहुत कमजोर थी। चेहरा पीला पड़ चुका था। उन्हें ब्लड कैंसर था। तारा ने मां के पास जाकर धीरे से कहा, “मां, उठिए। देखिए, मैंने आपके लिए नाश्ता बनाया है।” सरिता जी ने मुस्कुराने की कोशिश की और कहा, “तारा, तू इतना सब कुछ अकेले क्यों करती है? मुझे बुला लिया कर। मैं भी मदद कर दूंगी।” तारा ने मां के हाथ पकड़कर कहा, “नहीं मां, अब आप सिर्फ आराम करें। डॉक्टर ने कहा है कि आपको ज्यादा मेहनत नहीं करनी चाहिए। मैं सब संभाल लूंगी।” तारा राजवंश दिल्ली के एक बड़े बिजनेसमैन अखिलेश राजवंश की बेटी थी। जब तारा सिर्फ पांच साल की थी, तब उसके पिता के दुश्मनों ने उन्हें मार डाला। दुश्मनों ने चालाकी से उनकी सारी प्रॉपर्टी भी अपने नाम कर ली। लेकिन उनकी दुश्मनी यहीं खत्म नहीं हुई। वे तारा और उसकी मां सरिता जी को भी मारना चाहते थे। अपनी बेटी की जान बचाने के लिए सरिता जी ने दिल्ली छोड़ दिया और बनारस आ गईं। इस बारे में सिर्फ उनकी एक सहेली को पता था। बनारस आने से पहले सरिता जी कुछ कैश अपने साथ लेकर आई थीं। उन्होंने एक छोटी सी कॉफी शॉप शुरू की। इसी कॉफी शॉप की कमाई से उन्होंने तारा की पढ़ाई और घर का खर्चा चलाया। जो थोड़ा बहुत बचता, उसे वे सेविंग में डाल देतीं। कुछ सालों में सरिता जी ने अपने सेविंग्स से जिस घर में वे किराए पर रहती थीं, उसे खरीद लिया। तारा पढ़ने में बहुत होशियार थी। हर साल टॉप करती थी। दसवीं में टॉप करने के बाद उसे एक अच्छे स्कूल में स्कॉलरशिप मिली, जिससे उसने बिना किसी फीस के इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की। तारा का संघर्ष छह महीने पहले तारा को पता चला कि उसकी मां को ब्लड कैंसर है। तब से तारा ने घर का सारा काम खुद संभाल लिया। वह अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपनी मां की कॉफी शॉप भी संभालती थी। मां की दवाइयों और इलाज का खर्चा भी वही उठाती थी। कुछ दिन पहले तारा ने 12वीं की परीक्षा दी थी। वह दिन-रात मेहनत करती थी और उसे यकीन था कि उसके अच्छे नंबर आएंगे। रिजल्ट का दिन कहानी जारी रहेगी...
सुबह का समय था। बनारस की गलियों में हलचल शुरू हो चुकी थी। गंगा के किनारे सूरज की पहली किरणें लहरों पर नाच रही थीं। तारा घर के किचन में मां के लिए नाश्ता तैयार कर रही थी। लेकिन आज का दिन उसके लिए बहुत भारी था। उसकी मां, सरिता जी, कैंसर की आखिरी स्टेज पर थीं। डॉक्टर ने कह दिया था कि उनके पास कुछ ही दिन बाकी हैं। यह सोचकर तारा का दिल बैठ जाता था। उसकी आंखों में अक्सर आंसू आ जाते थे, लेकिन उसने अपनी मां के सामने कभी कमजोर नहीं पड़ने की कोशिश की। तारा हर दिन सुबह उठकर शिव जी के मंदिर जाती। वह बचपन से देर तक सोने की आदी थी, लेकिन अपनी मां के लिए वह सुबह जल्दी उठकर प्रार्थना करती थी। आज भी उसने भगवान शिव से यही प्रार्थना की कि उसकी मां ठीक हो जाएं। तारा मां के कमरे में गई। सरिता जी बेड पर लेटी हुई थीं। उनकी हालत देखकर तारा की आंखें भर आईं। वह उनके पास बैठ गई और धीरे-धीरे उनका सिर सहलाने लगी। तारा ने धीरे से कहा, "मां, उठो। देखो, सुबह हो गई है। आपको दवाई भी लेनी है, और हां, आज मेरा रिजल्ट भी आने वाला है। आप मुझे आशीर्वाद नहीं देंगी?" सरिता जी ने मुस्कुराने की कोशिश की और धीरे-धीरे उठकर बैठ गईं। तारा ने अलमारी से उनके कपड़े निकाले और बाथरूम में रख दिए। वह अपनी मां को सहारा देकर बाथरूम तक ले गई और उन्हें नहलाने लगी। तैयार करने के बाद वह उन्हें डाइनिंग टेबल पर लेकर आई। तारा ने मां के लिए नाश्ता बनाया और अपने हाथों से उन्हें खिलाने लगी। सरिता जी बस उसे देखे जा रही थीं। उनकी आंखों में गर्व और दर्द दोनों थे। नाश्ता करवाने के बाद तारा ने दवाइयां लाकर मां को दीं। दवाइयां खत्म होती देख, वह नाम लिखने बैठ गई। सरिता जी ने धीरे से कहा, "तारा, तुम्हें इतनी छोटी उम्र में कितना कुछ झेलना पड़ रहा है। मेरी वजह से तुम्हारी पढ़ाई और बचपन दोनों प्रभावित हो गए। मैं बेबस महसूस करती हूं।" यह सुनकर तारा की आंखों में आंसू आ गए। उसने मां के हाथ पकड़कर कहा, "मां, आपने मेरी हर जरूरत पूरी की है। अब यह मेरा कर्तव्य है कि मैं आपकी देखभाल करूं। आप चिंता मत कीजिए। हम हमेशा साथ रहेंगे।" तारा ने जैसे ही नाश्ता शुरू किया, तभी तृषा दौड़ती हुई आई और उसका प्लेट छीनकर खाने लगी। तारा ने उसे घूरते हुए कहा, "तृषा! तू हर बार ऐसा क्यों करती है? दूसरा प्लेट लगा लेती, मेरा क्यों छीनती है?" तृषा हंसते हुए बोली, "अरे, झूठा खाने से प्यार बढ़ता है। और वैसे भी, तुम्हारा खाना इतना टेस्टी होता है कि इसे छोड़ पाना मुश्किल है।" तृषा, तारा की सबसे अच्छी दोस्त थी। वह अनाथ थी और अनाथालय में रहती थी। तारा और सरिता जी उसे अपने घर में रखने की कोशिश कर चुके थे, लेकिन अनाथालय के नियमों के कारण वह ऐसा नहीं कर सकती थी। दोनों ने मिलकर नाश्ता किया और फिर रिजल्ट देखने का समय आ गया। तारा ने लैपटॉप खोला और अपना रोल नंबर डाला। जैसे ही रिजल्ट स्क्रीन पर आया, तारा खुशी से चिल्ला उठी, "मां! 98% आए हैं!" सरिता जी की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। तृषा ने भी अपना रिजल्ट चेक किया। उसे 96% मिले। दोनों लड़कियों ने खुशी-खुशी एक-दूसरे को गले लगाया। तारा ने कहा, "मां, अब मैं एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन लूंगी। हमारी सारी परेशानियां खत्म हो जाएंगी।" सरिता जी ने तारा को गले से लगा लिया। तारा ने अपनी मां से कहा, "मां, मैं मंदिर जा रही हूं। भगवान शिव को धन्यवाद देना है। तृषा को भी ले जाती हूं।" दोनों मंदिर की ओर चल पड़ीं। मंदिर में दीये जल रहे थे, और घंटियों की आवाज गूंज रही थी। तारा ने शिव जी के सामने सिर झुकाकर कहा, "आपने हमेशा मेरा साथ दिया है। अब मेरी मां को ठीक कर दीजिए। उनके बिना मेरी दुनिया अधूरी है।" कहानी जारी है...
दिल्ली सुबह 6 बजे एक भव्य विला, जो बाहर से बेहद खूबसूरत दिख रहा था। काले रंग का बड़ा-सा गेट, जिसे खोलते ही चारों तरफ हरा-भरा बगीचा नजर आता था। वहां बड़े-बड़े पेड़ लगे थे। विला के सामने एक शानदार स्विमिंग पूल था और घर के बाहर लगे नामपट्ट पर लिखा था "राठौड़ हाउस"। घर जितना बाहर से सुंदर था, उतना ही भव्य और आकर्षक अंदर से भी था। एक विशाल लिविंग रूम, जिसमें खूबसूरत सोफे और कुर्सियां सजी हुई थीं। साइड में एक मॉडर्न किचन, जहां एक महिला नौकरानी को निर्देश दे रही थी। किचन के सामने एक बड़ा-सा डाइनिंग टेबल था। लिविंग रूम में एक बुजुर्ग व्यक्ति और उनकी पत्नी सोफे पर बैठे हुए थे। घर के ग्राउंड फ्लोर पर तीन कमरे थे। लिविंग रूम के बीचों-बीच एक बड़ी सीढ़ी ऊपर की ओर जा रही थी। ऊपरी मंजिल पर चार-पांच कमरे थे, जिनमें से एक कमरा काले और स्लेटी रंग में सजा हुआ था। यह कमरा बड़ा ही आकर्षक और आधुनिक था। ध्रुव सिंह राठौड़ उस कमरे में एक युवक मिरर के सामने खड़ा होकर अपने बाल सेट कर रहा था। काले पैंट, सफेद शर्ट, और ब्लैक कोट में वह बेहद आकर्षक लग रहा था। उसकी नीली आंखें ऐसी थीं कि कोई भी उनमें खो जाए। मजबूत कद-काठी, जिम में बनाई हुई फिट बॉडी, और उम्र करीब 27 साल। वह पूरी तरह तैयार होकर नीचे आया और अपने दादा-दादी के पैर छुए। वीरेंद्र सिंह राठौड़ (दादा जी): "खुश रहो। ऑफिस में काम कैसा चल रहा है?" ध्रुव: "बहुत बढ़िया, दादाजी।" इसके बाद ध्रुव अपनी मां से कहता है, "मां, एक कप कॉफी देना।" सलोनी जी, जो किचन में नौकरानी को निर्देश दे रही थीं, एक कप कॉफी और तीन कप चाय लेकर आईं। उन्होंने कॉफी का कप ध्रुव को दिया और चाय का कप अपने सास-ससुर को देकर खुद भी एक कप लेकर सोफे पर बैठ गईं। ध्रुव ने पूछा, "मां, किट्टू और छोटी कब तक आएंगे?" सलोनी जी: "कल शाम तक आ जाएंगे, बेटा।" कुछ देर बाद सलोनी जी अपनी सास संजना जी से कहती हैं, "मांजी, सरिता और तारा को गए हुए कितने साल हो गए हैं न।" संजना जी: "हां बेटा, उन्हें गए हुए कई साल हो गए। मेरी गुड़िया अब कितनी बड़ी हो गई होगी, पता नहीं। मैंने उसे आखिरी बार तब देखा था, जब वह छोटी सी थी।" सलोनी जी: "मां, हम उन्हें बताकर गए थे कि वे बनारस जा रही हैं। कुछ दिन बाद उन्होंने हमें अपने नए घर का पता भी भेजा था, लेकिन उसके बाद उनसे कोई संपर्क नहीं हो पाया। मैं सोच रही हूं कि क्यों न एक बार उनसे मिलने जाऊं और उन्हें यहां ले आऊं।" संजना जी: "बिलकुल सही कह रही हो। मेरी गुड़िया से मिलना बहुत जरूरी है। अब तो वह बहुत सुंदर हो गई होगी।" सलोनी जी: "ठीक है मांजी, मैं आज शाम बनारस के लिए निकल जाऊंगी।" फिर ध्रुव की ओर मुड़ते हुए कहती हैं, "ध्रुव बेटा, मेरी आज शाम की बनारस की टिकट बुक कर देना।" ध्रुव: "जी मां। वैसे, ये सरिता और तारा हैं कौन?" सलोनी जी: "सरिता मेरी बचपन की सहेली है, और तारा उसकी बेटी।" परिचय: ध्रुव सिंह राठौड़ तो आइए, मिलते हैं हमारी कहानी के नायक ध्रुव सिंह राठौड़ से। वह एशिया के नंबर वन बिजनेसमैन हैं। ध्रुव एक शांत स्वभाव का व्यक्ति है, जो हर किसी से प्यार और सम्मान से बात करता है। लेकिन जब गुस्सा आता है, तो उसे शांत करना आसान नहीं होता। वह अपने परिवार से बेहद प्यार करता है। लड़कियां उस पर मरती हैं, लेकिन वह किसी पर ध्यान नहीं देता। परिवार के सदस्य वीरेंद्र सिंह राठौड़ (दादाजी): उम्र 75 साल। वे बेहद स्नेही और परिवार के लिए समर्पित हैं। ध्रुव से उनका विशेष लगाव है। संजना राठौड़ (दादीजी): उम्र 70 साल। वे तारा को बहुत प्यार करती थीं और उसकी यादों में अक्सर खोई रहती हैं। सुरेंद्र सिंह राठौड़ (पिता): उम्र 50 साल। ध्रुव के पिता एक सफल बिजनेसमैन हैं। वे अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हैं और उनके लिए कुछ भी कर सकते हैं। सलोनी राठौड़ (मां): उम्र 45 साल। सलोनी अपने परिवार की धुरी हैं। उन्हें सबकी जरूरतें और इच्छाएं पता रहती हैं। कार्तिक सिंह राठौड़ (छोटा भाई): उम्र 23 साल। सभी उसे प्यार से किट्टू बुलाते हैं। वह मस्तमौला स्वभाव का है और चाहता है कि जल्द ही ध्रुव की शादी हो। धृति सिंह राठौड़ (छोटी बहन): उम्र 15 साल। घर की सबसे छोटी और सबसे प्यारी सदस्य। ध्रुव और कार्तिक उसे बहुत दुलार करते हैं। कहानी जारी रहेगी....
बनारस तारा और तृषा सुबह मंदिर पहुंचती हैं। वहां प्रसाद चढ़ाने के बाद वे बच्चों में प्रसाद बांटती हैं। इसके बाद दोनों एक रेस्टोरेंट जाती हैं और अपने-अपने काम में लग जाती हैं। दिल्ली – राठौड़ हाउस सभी परिवार के सदस्य नाश्ता करते हैं। नाश्ते के बाद ध्रुव ऑफिस के लिए निकल जाता है। दादा-दादी अपने कमरे में चले जाते हैं, और सलोनी जी, जो एक एनजीओ चलाती हैं, अपनी संस्था के काम के लिए निकल जाती हैं। राठौड़ एंपायर – ध्रुव का ऑफिस ध्रुव जब ऑफिस पहुंचता है, तो सभी कर्मचारी खड़े होकर उसे "गुड मॉर्निंग" कहते हैं। ध्रुव मुस्कुराकर उनका अभिवादन स्वीकार करता है। वह अपने कर्मचारियों के साथ दोस्ताना व्यवहार करता है, लेकिन तभी तक जब तक वे अपने काम में पूरी तरह से केंद्रित रहते हैं। अगर कोई कर्मचारी गलती करता है, तो ध्रुव ऐसी सख्त सजा देता है कि कोई उसकी शालीनता को हल्के में लेने की हिम्मत नहीं करता। ध्रुव अपने केबिन में प्रवेश करता है। उसका केबिन काले और स्लेटी रंग में सजा हुआ है। यह बड़ा और खूबसूरत है। बीच में एक बड़ा-सा टेबल और कुर्सी है। कुर्सी के पीछे एक बुकशेल्फ है, जिसमें ढेर सारी किताबें रखी हुई हैं। टेबल पर लैपटॉप रखा हुआ है। ध्रुव कुर्सी पर बैठकर काम में लग जाता है। काम में व्यस्त रहते हुए ध्रुव को पता ही नहीं चलता कि दोपहर हो गई है। तभी उसका फोन बजता है। वह घड़ी देखता है, तो दोपहर का 1 बज चुका होता है। फोन सलोनी जी का होता है। ध्रुव कॉल रिसीव करता है। सलोनी जी: "ध्रुव, तुमने फ्लाइट की टिकट बुक की ना?" ध्रुव को याद आता है कि वह काम के चक्कर में टिकट बुक करना भूल गया। अपनी गलती स्वीकार करते हुए वह कहता है, ध्रुव: "मुझे माफ कर दीजिए मां, मैं भूल गया। लेकिन अभी कर देता हूं।" सलोनी जी: "मुझे पता था कि तुम काम में उलझ जाओगे, इसलिए याद दिलाने के लिए कॉल किया। जल्दी कर लो, शाम को निकलना भी है।" ध्रुव: "ठीक है मां।" कॉल काटने के बाद ध्रुव तुरंत टिकट बुक करता है और फिर अपने काम में लग जाता है। बनारस – शाम 5 बजे तारा और तृषा पूरे दिन रेस्टोरेंट में काम करने के बाद शाम को निकलती हैं। तारा अपने घर जाती है, और तृषा आश्रम। तारा अपने घर पहुंचकर सरिता जी के पास कुछ देर बैठती है और उनसे बातचीत करती है। इसके बाद वह डिनर बनाने में लग जाती है। खाना बनाने के बाद दोनों मां-बेटी साथ में डिनर करती हैं और फिर सो जाती हैं। दिल्ली – राठौड़ हाउस शाम को ध्रुव घर लौटता है, तो देखता है कि सलोनी जी का सामान पैक हो चुका है। वे जाने की तैयारी में हैं। सलोनी जी दादा-दादी के पैर छूती हैं। ध्रुव भी उनके पैर छूकर कहता है, ध्रुव: "मां, चलिए, मैं आपको एयरपोर्ट छोड़ देता हूं।" सलोनी जी: "नहीं बेटा, मैं ड्राइवर के साथ चली जाऊंगी। तुम अपना ध्यान रखना। कल सुबह तुम्हारे पापा और किट्टू आ रहे हैं, तो एयरपोर्ट जाकर उन्हें ले आना।" ध्रुव: "ठीक है मां। अपना ख्याल रखना।" दादी: "सलोनी बेटा, मेरी गुड़िया को अपने साथ जरूर लेकर आना। मैं उसे बहुत याद कर रही हूं। पता नहीं, वह हमें याद भी करती होगी या नहीं।" सलोनी जी: "जी मां, मैं उसे अपने साथ जरूर लेकर आऊंगी। अब मैं निकलती हूं।" इसके बाद सलोनी जी एयरपोर्ट के लिए रवाना हो जाती हैं। बनारस – एयरपोर्ट सलोनी जी एयरपोर्ट पहुंचकर फ्लाइट में बैठती हैं और कुछ देर बाद बनारस पहुंचती हैं। फ्लाइट से उतरने के बाद जब वह बाहर आती हैं, तो उनका फोन बजता है। वह देखती हैं कि ध्रुव का कॉल है। ध्रुव: "मां, आप ठीक से पहुंच गईं न? कोई परेशानी तो नहीं हुई?" सलोनी जी: "चिंता मत करो बेटा, मैं ठीक से पहुंच गई हूं। बस होटल जा रही हूं।" ध्रुव: "ठीक है मां। कोई दिक्कत हो तो मुझे फोन कर लेना।" सलोनी जी: "जरूर करूंगी। तुम अपना ध्यान रखना।" इसके बाद वह कॉल काट देती हैं और होटल के लिए रवाना हो जाती हैं, क्योंकि इतनी रात को किसी के घर जाना उचित नहीं होता। कहानी आगे जारी रहेगी.....