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Kahin pyar Na Ho jaaye(completed)

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यह कहानी है तकरार से मोहब्बत तक के उस सफ़र की, जहाँ हर पल अनजाने अहसास, छोटी-छोटी बातें और दिल की गहराई से भरे लम्हे हमें सिखाते हैं कि प्यार हमेशा अचानक नहीं आता—कभी-कभी वह बचपन से ही हमारे साथ चलता है, बस हमें उसका एहसास देर से होता है। “तु...

Total Chapters (46)

Page 1 of 3

  • 1. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 1

    Words: 1004

    Estimated Reading Time: 7 min

    राजदीप की माँ ने उसे आवाज़ लगाई और कहा, "जल्दी से तैयार हो जाओ। लड़की वाले हमारी राह देख रहे होंगे।"

    राजदीप ने अपनी मॉम से कहा, "२ मिनट, मॉम। बस मैं तैयार हो गया।"

    "भैया, आप इतना टाइम क्यों लगा रहे हो? आज हम लड़की देखने जा रहे हैं, शादी करने नहीं। शादी के दिन आप कितना टाइम लगाओगे?"

    "कोई बात नहीं। जब तुम्हें लड़के वाले देखने आएंगे, तो मैं देखूँगा तुम तैयार होने में कितना टाइम लगाती हो। मुझे भी तो अच्छा दिखना है। कहीं ऐसा न हो कि वो लड़की मुझे ही रिजेक्ट कर दे।"

    डॉ. रवि खन्ना के घर से सुबह-सुबह ऐसी ही आवाज़ें आ रही थीं।

    असल में क्या है ना, डॉ. रवि खन्ना और उनकी धर्मपत्नी डॉक्टर रितिका खन्ना के घर में सुबह-सुबह भूचाल आ रहा था। उनके लाडले बेटे राजदीप खन्ना को लड़की दिखाने ले जाना था। पहले तो वह तैयार ही नहीं था लड़की देखने के लिए। मगर जब लड़की देखने को तैयार हुआ, तब उसकी तैयारी ही ठीक नहीं आ रही थी। एक कपड़े निकाला, कभी दूसरे। उसकी पूरी अलमारी के कपड़े उसके बेड पर थे।

    उनके साथ लड़की देखने उनकी छोटी लाडली बेटी रीना खन्ना भी जा रही थी। दोनों बहन-भाई एक जैसे थे; बहुत बोलते थे, बहुत लड़ते थे। राजदीप को देखकर तो कोई कह नहीं सकता था कि यह डॉक्टर है। इसी शहर में इनका अपना क्लीनिक था जहाँ पर रवि खन्ना, जो कि आँखों के डॉक्टर थे, शहर में काफी फेमस थे। उनकी वाइफ रितिका खन्ना एक गायनोलॉजिस्ट थीं। उनके पास भी पेशेंट की एक बड़ी भीड़ रहती थी। और उनका बेटा राजदीप खन्ना, जो ऑर्थोपेडिक डॉक्टर था, उसने प्रैक्टिस स्टार्ट किये हुए, चाहे थोड़ा ही टाइम हुआ हो, मगर उसकी गिनती भी शहर के अच्छे डॉक्टरों में की जाती थी। उनकी बेटी अभी पढ़ रही थी। यह थी डॉ. रवि खन्ना की प्यारी सी फैमिली।

    डॉ. रवि खन्ना की फैमिली बठिंडा (पंजाब) में रहती थी, जब कि लड़की देखने लुधियाना जा रहे थे। इस लड़की को देखने के लिए राजदीप खन्ना की नानी माँ, मतलब रितिका की मॉम ने कहा था। उनको यह लड़की बहुत पसंद थी और वह चाहती थीं कि डॉक्टर राजदीप खन्ना इससे शादी कर लें। उन्होंने राजदीप को उसकी फोटो भी भेज दी थी। पहले तो वह जाने को तैयार ही नहीं था, मगर लड़की की फोटो देखकर उसके चेहरे पर एक स्माइल आ गई।

    हमारी हीरोइन, जिसको देखने ये लोग जा रहे थे, पाखी गुप्ता बहुत खूबसूरत थी। पाखी गुप्ता के फादर पीयूष गुप्ता एक सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल थे और उनकी माँ स्नेहा गुप्ता एक लेक्चरर थीं। पाखी गुप्ता का एक छोटा भाई था, जिसका नाम साहिल गुप्ता था, जो बीकॉम कर रहा था।

    पाखी ने खुद भी M.A., B.Ed. किया था और वह एक स्कूल में पढ़ाती थी। स्कूल ज्वाइन किये हुए अभी उसे कुछ ही महीने हुए थे। वैसे पाखी को डॉक्टर्स बिल्कुल भी पसंद नहीं थे। मगर यह रिश्ता उसकी दादी माँ को पसंद था। इसीलिए यह बात आगे बढ़ रही थी। बात यह थी कि पाखी के मॉम-डैड, मतलब पीयूष गुप्ता और स्नेहा गुप्ता की लव मैरिज थी। पीयूष गुप्ता की मॉम को स्नेहा बिल्कुल भी पसंद नहीं थी, मगर पीयूष गुप्ता की ज़िद की वजह से वह शादी के लिए मान गई थी। मगर उन्होंने स्नेहा को कभी भी दिल से पसंद नहीं किया और हमेशा उन्हें कुछ न कुछ कहती ही रहती थीं।

    पाखी की दादी माँ उन लोगों के पास ना रहकर पाखी के चाचा जी के साथ रहती थीं। पीयूष ने हमेशा चाहा कि उसकी मॉम उसके साथ रहे, मगर वह थोड़े दिनों के लिए आती थी और फिर चली जाती थीं। मगर पाखी की दादी को पाखी से बहुत प्यार था। जब उन्होंने पाखी के लिए रिश्ता सुझाया, तो पाखी ने लड़के को बिना देखे ही हाँ बोल दी। वह अपनी दादी को किसी भी तरह से खुश करना चाहती थी और उनकी दादी भी खुश हो गईं। उन्होंने इस बात से स्नेहा की भी बहुत तारीफ़ की कि उसने अपनी बेटी को बहुत अच्छी शिक्षा दी है। वरना आजकल के बच्चे ऐसे बिना देखे कहाँ हाँ करते हैं? उसी दिन से उसकी दादी माँ उनके साथ घर रहने चली आई थीं।

    बिना देखे लड़के को हाँ करने पर पाखी के मॉम-डैड ने पाखी से कहा, "ये तूने क्या कर दिया? अगर अब लड़के को देखकर ना पसंद किया तो... उसकी दादी उन लोगों से हमेशा के लिए रूठकर चली जाएगी..." उन्होंने पाखी से कहा कि पाखी को ऐसा नहीं करना चाहिए था। पाखी की पूरी ज़िन्दगी का फैसला था। ऐसा फैसला पाखी को सोच-समझकर लेना चाहिए था।

    मगर हमारी पाखी है ना थोड़ी सी ज़्यादा ही इमोशनल थी। उसने अगर एक बार हाँ कह दी तो कह दी। यह बात उसके माँ-बाप भी जानते थे। अगर एक तरफ़ उनका भी मन खड़ा था कि पूरी फैमिली डॉक्टर है, अच्छे पढ़े-लिखे लोग हैं। यह बात ठीक है कि वह बठिंडा लुधियाना से काफी छोटा शहर था। उनका अपना क्लीनिक था। मगर उन्हें एक बात समझ नहीं आई कि जब वे सभी लोग डॉक्टर हैं, तो वे डॉक्टर लड़की की जगह टीचिंग लाइन की लड़की क्यों देखने आ रहे थे।

    हम आपको बता दें कि पाखी की दादी माँ और राजदीप की नानी माँ दोनों कॉलेज की सहेलियाँ थीं। वे दोनों पहले अपने बच्चों की शादी करना चाहती थीं, लेकिन तब पीयूष की लव मैरिज की वजह से वह बात बीच में ही रह जाती है। जब उनको अब लगा कि उनकी फ्रेंडशिप अब रिश्तेदारी में बदल सकती है, तो उन्होंने कोशिशें शुरू कर दीं। अब जब पाखी ने तो बिना देखे ही हाँ बोल दी, तो अब राजदीप की बारी थी। मगर पाखी और राजदीप के बीच और भी लफ़ड़ा था, जो कि जब पाखी और राजदीप एक-दूसरे को देखेंगे, तो उनको याद आएगा। अब राजदीप तो पाखी की फोटो देख चुका था, मगर पाखी ने राजदीप को नहीं देखा था।

    चलिए देखते हैं क्या होता है जब डॉक्टर राजदीप खन्ना और पाखी गुप्ता दोनों आपस में मिलते हैं। दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं या फिर यह रिश्ता बीच में ही रह जाता है।

  • 2. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 2

    Words: 1048

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब तक आप पढ़ चुके हैं कि डॉ. राजदीप खन्ना अपनी माँ और पिता के साथ लड़की देखने के लिए तैयार हो रहा था। तैयार होते हुए वह अपनी छोटी बहन के साथ झगड़ा भी करता रहा। दोनों भाई-बहनों में नोकझोंक चलती रही। उधर, पाखी गुप्ता, जिसे राज देखने जा रहा था, उसके घर में भी तैयारी चल रही थी।

    बठिंडा से डॉ. रवि खन्ना का परिवार जल्दी, अर्ली मॉर्निंग ही चल पड़ा था और वे ३-५ घंटे के सफ़र के बाद लुधियाना पहुँच गए। लुधियाना पहुँचकर, राजदीप के पिता रवि जी बोले, "राज, क्या तुम्हें पता है हमें कहाँ जाना है?"

    "मुझे कैसे पता होगा डैड? आप भी कमाल करते हैं डैड!" डॉक्टर राजदीप अनजान बनते हुए बोला।

    "आप ही बता दीजिये हमें कहाँ जाना है। आप राज से क्यों पूछ रहे हैं? उसे कैसे पता होगा?" डॉक्टर राजदीप की माँ, रितिका जी बोलीं।

    "तो फिर ठीक है। अब आप तीनों के लिए सरप्राइज़ होगा। गाड़ी मुझे चलाने दो, मैं ले जाता हूँ।"

    "ऐसा क्यों कह रहे हैं डैड? गाड़ी मैं ही चलाता हूँ। आप मुझे बताते जाइये।" राजदीप बोला।

    "वैसे ऐसा क्या सरप्राइज़ है हमारे लिए?" रितिका जी बोलीं।

    रवि जी रास्ता बताते गए और डॉक्टर राजदीप उसी रास्ते पर गाड़ी चलाता गया। फिर वह अनजान बनते हुए अपने पिता से बोला, "डैड, ये रास्ता कुछ जाना-पहचाना सा नहीं लग रहा है। यह तो वही कॉलोनी है ना जहाँ पर हम पहले रहते थे?"

    "हाँ डैड, मुझे भी लग रहा है। यहाँ हम पहले रहते थे। यह तो वही है।" राजदीप की बहन रीना बोली।

    "....😊 अच्छा, तो यही सरप्राइज़ है? तो क्या हम उस परिवार को भी पहले जानते हैं?" रितिका जी ने कहा।

    "पता है रितिका, तुम इतनी बिज़ी रहती हो। तुमने ना तो ठीक से बायोडाटा पढ़ा और ना ही लड़की की फ़ोटो देखी। अब हम तो आँखों के डॉक्टर हैं। इमरजेंसी के केस तो आते नहीं हमारे पास। काम करने के घंटे भी फ़िक्स हैं हमारे। हमें फ़्री टाइम मिल जाता है, तो बायोडाटा हमने अच्छे से देखा है। परिवार भी हमारे पसंद का है और लड़की भी। और आप सब को भी लड़की पसंद आएगी।"


    असल में क्या है कि डॉ. रवि खन्ना आँखों के डॉक्टर हैं। रवि जी सुबह 9:00 बजे से लेकर दोपहर के 2:00 बजे तक और शाम को 4:00 बजे से लेकर 7:00 बजे तक बैठते हैं। मौसम के हिसाब से टाइम थोड़ा ऊपर-नीचे हो जाता है। मगर रितिका जी, क्योंकि वे एक गायनोलॉजिस्ट हैं, तो उनके पास इमरजेंसी केस आते रहते हैं। उनका समय बहुत हद तक अस्पताल में ही गुज़रता है। तो रवि जी को लगता है कि वे ऐसी बहू लेकर आएँ जो उन्हें कंपनी दे सकें। अगर उनकी पत्नी की तरह डॉक्टर हुई तो उन्हें कंपनी कौन देगा? तो उन्हें अपने बेटे के लिए अलग फ़ील्ड की लड़की चाहिए। इसीलिए वे डॉक्टर लड़की नहीं देख रहे हैं।


    दूसरी तरफ़, राजदीप का भी शादी में कोई इंटरेस्ट नहीं था। उसने तो सोचा भी नहीं था कि लड़की डॉक्टर चाहिए या किसी फ़ील्ड की। मगर एक चेहरा था जो हमेशा उसके सपनों में आता था। चाहे वह सपनों में आकर उसके साथ लड़ाई ही करता था। मगर उसके मन की इच्छा थी उस चेहरे को अपनी ज़िन्दगी में लाने की। जब रवि जी ने यह ख़्वाहिश ज़ाहिर की कि वे राजदीप के लिए डॉक्टर लड़की नहीं, बल्कि किसी और फ़ील्ड की लड़की चाहते हैं, तो राज की आँखों के सामने वह चेहरा अपने आप घूम गया।


    मगर उस चेहरे को देखे हुए बहुत साल हो गए थे। वह सोच रहा था कि शायद उसकी ज़िन्दगी में भी अब तो कोई आ चुका होगा। इसलिए उसे अभी शादी करने में कोई इंटरेस्ट नहीं था। मगर उसकी नानी माँ ने उसे लड़की की फ़ोटो भेज दी तो फ़ोटो देखकर वह हैरान हो गया। वह इतनी खूबसूरत हो चुकी होगी, यह तो उसने सोचा भी नहीं था। मगर साथ ही राजदीप सोच रहा था कि अब उसका दिमाग ठीक हो चुका हो तो अच्छी बात है। अगर पहले जैसा हुआ तो वह उसे काट खाएगी। डॉक्टर राजदीप खन्ना ने पाखी की फ़ोटो देखते ही उसे पहचान लिया था। मगर बहुत जानबूझकर अनजान बन रहा था।


    इसलिए वह अपने पिता के सामने अनजान बनता हुआ उनके बताए रास्ते पर चलता रहा। वह यह भी जानता था कि अगर सारी बात उसकी छोटी बहन रीना को पता चल गई तो वह पहले ही सारा हल्ला मचा देगी। रवि जी उन सबको पीयूष गुप्ता की कोठी के सामने ले गए। उनकी कोठी को देखते ही रितिका जी बोलीं, "...अरे, यह तो स्नेहा का घर है! तो क्या हम पाखी के लिए यहाँ पर आये हैं?"

    "....कौन? पाखी? मॉम...." डॉक्टर राजदीप अनजान बनते हुए बोला 😁😁।

    "....माँ, मुझे भी अब याद आ रहा है। वही पाखी जो भैया के साथ बहुत झगड़ती थी।" रीना बोली।

    "....रीना, तुम किसके साथ झगड़े की बात कर रही हो? मुझे तो कुछ भी याद नहीं।" रीना की तरफ़ आँखें दिखाते हुए राजवीर बोला। उसे लगा रीना वहाँ जाकर भी सबके सामने यही बोलेगी और उसकी शादी की बात शुरू होने से पहले ही ख़त्म करवा देगी। अगर पाखी उसके साथ झगड़ा ना भी करना चाहे तो भी यह रीना आग लगा ही देगी। 😡😡😡


    डॉक्टर राजदीप ने अपनी गाड़ी पार्क की और वे सभी अंदर चले गए। सामने से पीयूष गुप्ता और स्नेहा जी ने उनका स्वागत किया और उनके साथ उनका बेटा साहिल भी था। रवि खन्ना और उनके परिवार को देखकर पीयूष जी और स्नेहा जी बहुत हैरान हुए। उनको बिल्कुल भी आईडिया नहीं था कि रवि जी और रितिका जी वही होंगे जिनको वे जानते हैं। दोनों परिवार इतने सालों के बाद एक-दूसरे से मिलकर बहुत खुश हुए।

    "....अरे, पाखी बिटिया को तो बुलाओ..." रवि जी बोले।

    "....वैसे अगर बच्चे एक-दूसरे को पसंद कर लें तो सबसे ज़्यादा खुशी मुझे होगी। पाखी बिटिया की और मेरी तो पहले से ही बहुत बनती है।"

    तभी पाखी अपनी दादी माँ के साथ चाय की ट्रे लिए ड्राइंग रूम में आ जाती है। पाखी अंदर आती है और नज़र उठाकर ऊपर देखती है। पाखी रवि और रितिका जी को देखकर खुश हो जाती है। फिर उसकी नज़र डॉक्टर राजदीप पर जाती है। उसकी आँखें फैलकर बड़ी हो जाती हैं और वह अपने मन में सोचती है, "लौ हो गया सियापा 😱😱"। उसने तो अपनी दादी माँ को पहले ही शादी के लिए हाँ बोल दी थी।

  • 3. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 3

    Words: 1005

    Estimated Reading Time: 7 min

    डॉक्टर राजदीप, अपनी माँ रितिका जी, अपने पिता रवि जी और अपनी छोटी बहन रीना के साथ लड़की देखने गए थे। इस बात पर दोनों भाई-बहन में छोटी-मोटी नोकझोंक भी हुई थी। जब वे सभी लड़की वालों के घर पहुँचे, तो उन्हें पता चला कि वह परिवार उनका जाना-पहचाना है। उनकी बेटी पाखी, जिसे वे देखने आए थे, और पाखी के पिता पीयूष जी तथा माँ स्नेहा जी के साथ रवि जी और रितिका जी की अच्छी दोस्ती रही थी। दोनों परिवार एक-दूसरे को देखकर बहुत खुश हुए। मगर डॉक्टर राजदीप और पाखी की आपस में कभी नहीं बनी थी। डॉक्टर राजदीप ने तो पाखी की फ़ोटो पहले ही देख ली थी। उसे पता था कि वह पाखी को देखने जा रहे हैं, मगर पाखी को डॉक्टर राजदीप के बारे में नहीं पता था। चलिए, अब देखते हैं क्या होता है जब पाखी और राजदीप मिलते हैं। क्या दोनों एक-दूसरे को पसंद करेंगे या बात यहीं पर खत्म हो जाएगी?

    जब पाखी ने डॉक्टर राजदीप को देखा, तो उसकी आँखें बड़ी हो गईं। उसने सोचा, "लो हो गया सियापा! मैंने तो शादी के लिए पहले ही दादी से हाँ कर दी है।" सारे लोग बैठकर आपस में बातें करते रहे और पुरानी बातें याद करके हँसते रहे। डॉक्टर राजदीप ऐसे सामान्य बैठा रहा, जैसे पहले की कोई बात उसे याद ही नहीं।

    रितिका जी बोलीं, "पाखी तुम तो पहले ही बहुत सुंदर थीं, अब तो और भी सुंदर हो गई हो। देख लेना पाखी, हम दोनों की खूब जमेगी। यह दोनों तो बिजी रहेंगे अपने काम में, हम दोनों घर पर एक-दूसरे को कंपनी देंगे। वैसे तुम्हें अपनी मम्मी जी की तरह खाना बनाना तो आता है ना? स्नेहा जी क्या खाना बनाती थीं? मुझे तो अभी तक याद है..." रवि जी के यह कहने पर आँखें निकालकर रितिका जी ने रवि जी की ओर देखा।

    "अरे भाई साहब, आप बिल्कुल नहीं बदले!" पीयूष जी बोले। "वैसे हमारी पाखी बहुत अच्छा टेस्टी खाना बनाती है। इसको घर के कामकाज का बहुत शौक है। चाहे घर सजाना हो, चाहे खाना बनाना हो, हर काम में परफेक्ट है। हमने अपनी बेटी को बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं। मेरी पोती किसी की बात नहीं टालती। आजकल की लड़कियों जैसी नहीं है मेरी पोती, जो हम कहते हैं वही करती है।" दादी माँ पाखी की तारीफ़ करने लगीं।

    अब तो लगता है सारे घरवाले मुझको फँसाकर ही छोड़ेंगे। जिसे देखो मेरी तारीफ़ कर रहा है। ऐसे तो मैं मना भी नहीं कर सकूँगी। बाबा जी मुझे बचा लो! आज कैसे मेरी जान छूट जाए? मैं किसी लूले, लंगड़े, अनपढ़ से शादी कर लूँगी, मगर इस राज के बच्चे से मेरी शादी नहीं होनी चाहिए। अब क्या करूँ मैं बाबा जी? पाखी बाकी सोच रही थी।

    "बेटा राज, तुम्हारी प्रैक्टिस कैसी चल रही है? कितने साल हो गए तुम्हें देखे हुए? जब तुम जहाँ थे, तब तुम एमबीबीएस कर रहे थे..." पीयूष जी ने कहा। "...जब हम जहाँ थे, तब भैया और पाखी दीदी कितना लड़ते थे आपस में! अब इन दोनों को देखकर लगता ही नहीं ये वही हैं..." रीना बोली।

    राजदीप उसको आँखें दिखाते हुए चुप रहने का इशारा करता है, मगर रीना कहाँ समझने वाली थी। वह फिर बोली, "एक दिन भी ऐसा नहीं गया होगा जब भैया दीदी ना लड़े हों! ठीक कहा ना मैंने पाखी दीदी?" "पाखी दीदी नहीं... अब तो मैं आपको पाखी भाभी कहूँगी। खूब बनेंगी अब हम दोनों में। भैया को हम दोनों मिलकर ठीक करेंगी..." रीना ने खड़े होकर खुशी से पाखी के गले में अपनी बाहें डाल दीं।

    "मुझे तो आपकी बेटी बहुत पसंद है। पाखी को तो मैं वैसे भी बचपन से जानती हूँ, इसलिए पाखी अगर मेरी बहू बनती है तो मुझे बहुत खुशी होगी। मैं चाहती हूँ कि बच्चे एक-दूसरे को पसंद कर लें..." रितिका जी बोलीं। "...मेरी भी यही इच्छा है बहन जी। मुझे तो राज शुरू से बहुत पसंद है। दोनों साथ में बड़े अच्छे लगेंगे। अब बच्चों की क्या मर्ज़ी है, यह तो यही बताएँगे..." स्नेहा जी ने कहा।

    "राज बेटा, तुम भी कुछ बोलो। कैसा चल रहा है तुम्हारा काम?" पीयूष जी ने कहा। "जी, पहले स्टडी ख़त्म करने के बाद वहाँ के एक बड़े हॉस्पिटल में काम किया। कई साल वहाँ पर काम करने के बाद मुझे लगा कि अपना काम करना चाहिए, तो मैंने थोड़ी देर पहले ही अपना काम शुरू किया है। बस हॉस्पिटल में बिल्डिंग का काम भी चल रहा है। मैंने माँ-डैड के हॉस्पिटल को बढ़ा दिया है। अभी ऑपरेशन थिएटर, फिजियोथैरेपी के लिए मशीनें वगैरह आ रही हैं। थोड़े ही दिनों में मेरा पूरा काम शुरू हो जाएगा..." डॉक्टर राजदीप बोला। "हाँ, बेचारा जो मरीज़ इसके पास आएगा, वह बेचारा तो सीधा भगवान के पास जाएगा। पता है मुझे कैसे डॉक्टर बने होंगे..." पाखी अपने मन ही मन बोली।

    डॉक्टर राजदीप बिल्कुल शांत बैठा हुआ था। बहुत धीरे से नज़र बचाकर पाखी को देख लेता था। सच में पाखी बहुत सुंदर लग रही थी। कमी तो पाखी में पहले भी कोई नहीं थी। पहले राजदीप में बचपना था, मगर जब से डॉक्टर राजदीप ने जीवनसाथी के सपने देखने शुरू किए, तो हमेशा से ही उसे पाखी उसकी आँखों के आगे आ जाती थी। अपने इंटर्नशिप करते समय और डॉक्टरी की जॉब करते समय कई लेडी डॉक्टर उसकी तरफ़ आकर्षित हुईं, मगर राजदीप के मन में पाखी की जगह कोई नहीं ले सका। राजदीप के अपने कॉलेज के टाइम पर कई अफ़ेयर्स हुए, मगर पाखी की वजह से कोई भी रिलेशन सीरियस नहीं हो सका, चाहे राजदीप को उसके माँ-डैड ने कह दिया था कि अगर उसे कोई लड़की पसंद आए तो हमें बता देना।

    राजदीप सभी के बीच बैठा, सामने बैठी पाखी की आँखों में डूब रहा था। वह देख रहा था पाखी की बदामी आँखें और भी गहरी हो गई थीं, गोरा रंग और भी निखर आया था। लम्बे काले बाल, जिसकी वह दो चोटियाँ बनाकर घूमती थी, खुले हुए उसके चेहरे पर आ रहे थे। उसके गुलाबी होंठ, मोतियों से दांत, गालों में पड़ते डिम्पल किसी को भी दीवाना बनाने के लिए बहुत थे, और वह तो पहले से ही कोई दीवाना बनकर आया था।

  • 4. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 4

    Words: 1020

    Estimated Reading Time: 7 min

    हमने पिछले भाग में पढ़ा कि डॉक्टर राजदीप पाखी को देखने आया था। उनके दोनों परिवार पहले से एक-दूसरे को जानते थे। सभी लोग एक-दूसरे से मिलकर बहुत खुश हुए थे। मगर पाखी और राजदीप की पहले बिल्कुल भी नहीं बनती थी और पाखी यह बात अब तक नहीं भूली थी। राजदीप के मन में तो पाखी थी। मगर पाखी के दिल में क्या था, चलिए देखते हैं।


    "...पाखी बेटा... तुम आजकल क्या कर रही हो...?" रितिका जी बोलीं।
    "जी... मैं स्कूल में पढ़ाती हूँ..." पाखी ने कहा।

    अभी बातें चल ही रही थीं, स्नेहा जी बोलीं, "...मुझे लगता है... हमें बच्चों को अकेले मिलने देना चाहिए... अब हमें तो सारा कुछ पसंद ही है... अगर बच्चे भी हाँ करते हैं तो... हमारे लिए बहुत खुशी की बात होगी..."

    पाखी और राजदीप दोनों साथ में छत पर चले गए। राजदीप को वैसे भी उन पुराने दिनों की याद आ गई, जब वह लोग वहाँ रहते थे।


    जब दोनों ऊपर चले गए, जाते ही पाखी बोली, "...आप... शादी के लिए मना कर दीजिए... कह दीजिए आपको मैं पसंद नहीं हूँ..."

    पाखी की आवाज सुनकर राजदीप ने मन में सोचा, "शुक्र है.... इसने... मुझे 'आप' तो कहा... मुझे तो लगा था.... पहले की तरह 'तू' कहकर ही बुलाएगी..."
    "...मैं... मना क्यों मना करूँ..... आप भी तो कर सकती हैं....."
    "...नहीं मैं नहीं कर सकती..... क्योंकि मैं तो पहले ही हाँ कह चुकी हूँ..."


    पाखी की बात सुनकर राजदीप के मन में फुलझड़ियाँ चलने लगीं। उसने भगवान का धन्यवाद किया। जानबूझकर अपने चेहरे को उदास करता हुआ बोला, "...वह क्या है कि... मैंने भी नानी से पहले ही हाँ कह दी... अब मैं नानी को मना नहीं कर सकता.... नानी ने मुझसे कहा था... लड़की उसकी सहेली की पोती है... तो मैंने नानी को खुश करने के लिए... हाँ कह दी... अब मुझे नहीं पता था... कि वह लड़की आप निकलोगी..."


    "...इसी बात का तो पंगा है... आपने आज तक कोई काम सोच-समझकर किया है?... मैं आपको शुरू से जानती हूँ... आप बताओ मैं क्या करूँ....." गुस्से से पाखी बोली।
    "...देखिए आप गुस्सा मत होना... देखते हैं... कोई बीच का रास्ता निकालते हैं... क्या आप अपनी दादी को बिल्कुल भी मना नहीं कर सकती...?" राजदीप खुश होने से पहले पूरी तरह कन्फर्म कर लेना चाहता था।
    "...नहीं... अगर मैंने मना कर दिया तो... दादी मॉम को चार बातें सुनाएंगी... जो मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा... इसलिए मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती... मगर आपको तो सोचना चाहिए था..." पाखी अभी भी बहुत गुस्से में थी।


    राजदीप बहुत खुश था। मगर वह अपनी खुशी अपने चेहरे पर नहीं दिखा रहा था। उसके सामने पाखी का मूड खराब था। उसे पाखी पर बहुत प्यार आ रहा था। वह सोच रहा था, एक बार पाखी उसकी ज़िंदगी में आ जाए, बहुत प्यार देगा कि उसका सारा गुस्सा दूर हो जाएगा। फिर वह कन्फर्म करने के लिए पाखी से बोला, "...क्या... तुम्हारी ज़िंदगी में कोई और है...?"
    "...क्या... क्या कह रहे हैं आप... अगर लड़की किसी लड़के को शादी के लिए मना करे... इसका मतलब यह तो नहीं कि... उसका कहीं अफेयर चल रहा है..." पाखी और भी गुस्सा हो गई।


    राजदीप के फ़ोन पर रीना का मैसेज आया, "...भैया.. क्या हुआ?" तो राजदीप ने उसके जवाब में "हाँ ❤️" स्माइली भेजी। राजदीप चाहता था कि उसके नीचे जाने से पहले ही सबको पता चल जाए कि हाँ हो चुकी है। पाखी की तरफ़ से तो पहले ही हाँ थी। राजदीप बहुत संभलकर बात कर रहा था। वह नहीं चाहता था कि वह कुछ ऐसा बोल दे जिससे पाखी बहुत ज़्यादा गुस्से में आ जाए। उसने पाखी के गुस्से वाले रूप देखे हुए थे।


    "...मुझे... एक बात समझ नहीं आ रही... आपने बिना देखे... ऐसे कैसे हाँ बोल दी... आजकल के जमाने में... कौन सा लड़का बिना लड़की देखे हाँ करता है..." पाखी अभी भी गुस्से में थी। तो राजदीप बोला, "...आजकल के जमाने में... आप जैसी लड़कियाँ भी नहीं होतीं जो... बिना लड़के से मिले हाँ बोल दें..." राजदीप की बात सुनकर पाखी का गुस्सा थोड़ा कम होने लगा। "...शायद... आपकी भी इसमें कोई गलती नहीं है... जितनी गलती आपकी है... उतनी ही मेरी... है। मुझे दादी मॉम को ऐसे हाँ... नहीं कहनी चाहिए थी..."


    "...वैसे मुझे आप एक बात बताएँ.... आप जिस लड़की को पसंद नहीं करते... सुबह-सुबह जिसका चेहरा देखना भी पसंद नहीं है... रोज़ उसका चेहरा देखकर कैसे उठेंगे...?" पाखी बोली। राजदीप ने नज़र उठाकर पाखी की तरफ़ देखा। फिर कहने लगा, "...आप किसकी बात कर रही हैं...?"
    "...और किसकी... मेरी..."
    "...आपको किसने कहा... मैं आपसे नफ़रत करता हूँ..."
    "...इसमें किसी के कहने की क्या बात है.... हम लोग इतने साल पड़ोसी थे... आप ही तो रोज़ करते थे... सुबह-सुबह... किसका चेहरा देख लिया... अब तो पूरा दिन बेकार जाएगा..."


    "...मैं आपसे बात कहूँ... पहली बात... वह बचपन की शरारतें थीं..... दूसरी बात मैं सिर्फ़ आपको छेड़ता था..... तीसरी बात अब हम बच्चे नहीं हैं..... चौथी बात... मुझे तो कुछ भी याद नहीं है... मैं तो सब कुछ भूल चुका हूँ..." राजदीप अपनी सफ़ाई देता रहा।


    राजदीप फिर बोला, "देखो पाखी... हम ऐसा करते हैं... एक बार तो अब हमारी दोनों की तरफ़ से हाँ हो ही चुकी है... अभी मना नहीं करते... सगाई हो जाने देते हैं... उसके बाद देखते हैं... कोई तरकीब लगाएंगे कि यह शादी ना हो।"
    "...हाँ यह ठीक है... एक बार सगाई कर लेते हैं... फिर शादी को किसी बहाने से आगे-आगे डालते रहेंगे... भगवान करे... कुछ न कुछ ऐसा हो जाएगा कि शादी नहीं होगी..."


    पाखी ने राजदीप की हाँ में हाँ मिलाई। "वैसे मैं तुमसे एक बात पूछूँ पाखी," राजदीप बोला, "...हाँ... पूछिए..."
    "...तुम...😁 इतनी मोटी थी😁.... इतनी पतली कैसे हो गई...?"

    उसके पूछने पर पाखी ने राजदीप को अपनी आँखें दिखाईं तो राजदीप चुप कर गया।


    "...नहीं... मैं तो वैसे ही पूछ रहा था..." वह मुस्कुराया। उसकी मुस्कराहट से पाखी अंदर तक तप गई। राजदीप की बात पर पाखी को बहुत गुस्सा आया होगा, पर उसने अपना गुस्सा अंदर ही पी लिया और बोली, "...अब... नीचे चलें... सब लोग हमारी राह देख रहे होंगे..." गुस्से से पाखी आगे चली गई और राजदीप मुस्कुराता हुआ उसके पीछे चला गया। पाखी का गुस्से वाला चेहरा देखकर उसे वह इतने साल पहले वाली पाखी ही लगी।

  • 5. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 5

    Words: 1096

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब तक आपने पढ़ा कि पाखी और राजदीप एक डील करते हैं कि अभी सगाई हो जाने देते हैं, शादी को किसी न किसी बहाने से आगे बढ़ाते जाएँगे। पाखी ने तो यह बात सच मान ली कि राजदीप सही बोल रहा है, मगर राजदीप की प्लानिंग कुछ और थी। वह चाहता था किसी तरह एक बार पाखी उसकी ज़िंदगी में आ जाए, फिर वह उसे अपना बना ही लेगा। दोनों नीचे आकर हां कर देते हैं।


    "मुझे तो लगा था... कहीं आप दोनों को लड़ने से हटाने के लिए... हमें ऊपर ही ना आना पड़े..." रीना पाखी के गले में बाहें डालते हुए बोलती है।

    "...क्यों...?"

    "...और नहीं तो क्या... पहले तो आप पाँच मिनट के लिए भी अगर इकट्ठे हो जाते हैं तो घर में भूचाल आ जाता था... अब आप दोनों इतनी शांति से वापस आ गए हैं..." रीना हँसने लगी। फिर साहिल बोला, "...और नहीं तो क्या... जीजू और आप... कितना लड़ते थे... मुझे याद है... मगर अब आप बहुत खुश हैं..."


    साहिल के मुँह से अपने लिए 'जीजू' सुनकर राजदीप को बहुत अच्छा लगा। वह खुश हो गया। उसने नज़र घुमाकर पाखी को शरारत भरी नज़रों से देखा। पाखी जो पहले ही तप रही थी, राजदीप के ऐसे मुस्कुराकर देखने से और तप गई। दोनों परिवारों ने सगाई की डेट फिक्स कर दी और फैसला किया कि सगाई बठिंडा में होगी। राजदीप का परिवार वापस लौट गया। उनके जाने के बाद पाखी ने साहिल को खूब डाँटा। उसने साहिल से कहा, "...तुम्हें राज को जीजू कहने की क्या ज़रूरत थी...?"

    "...जीजू... नहीं तो और क्या कहूँ..." साहिल डरता हुआ धीरे से बोला।

    तो पाखी ने कहा, "...जब तक शादी नहीं हो जाती... तब तक अगर राजदीप को जीजू कहा तो... मुझसे बुरा कोई नहीं होगा..."

    "यह बात गलत है... रीना तो आपको 'भाभी-भाभी' कह रही थी... फिर मैं जीजू क्यों नहीं कहूँ... अगर वो आपको भाभी कहेगी तो मैं भी... राजदीप जीजू को जीजू कहूँगा... मेरी बात सुन लो..." यह कहते हुए साहिल उसके पास से भाग गया।


    राजदीप का परिवार वापस बठिंडा पहुँच गया। रास्ते में रवि जी इतने खुश थे कि पूरे रास्ते पाखी की ही तारीफ़ करते रहे। राजदीप चुपचाप सुनता रहा। उधर पाखी की दादी बहुत खुश थीं। उन्होंने पाखी को ढेरों दुआएँ दीं कि उसने अपनी दादी की सारी बात मान ली। दादी ने अपने बेटे पीयूष जी को खूब डाँटा। उन्होंने कहा कि उसने अपने टाइम पर तो अपनी माँ की नहीं सुनी, मगर उसकी पोती ने उसकी लाज रख ली। उन्होंने स्नेहा की भी तारीफ़ की कि उसने अपनी बेटी को अच्छे संस्कार दिए हैं। दादी ने कह दिया कि अब पाखी हमेशा के लिए उनके पास ही रहेगी। यह सब बातें सुनकर पाखी को लगा कि अब न सगाई टूटेगी, न शादी।


    बिस्तर पर पड़े हुए पाखी और राजदीप उस टाइम के बारे में सोच रहे थे जब वे दोनों इकट्ठे लड़ा करते थे। अब आपको भी तो बताना है कि उनके बीच आखिर क्या हुआ था, जो पाखी अब भी राजदीप पर इतना गुस्सा है। चलिए, आपको बताते हैं।


    फ्लैशबैक


    राजदीप अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेल रहा था। उसको किसी ने बताया कि एक लड़की साइकिल लिए उसकी मोटरसाइकिल पर गिर गई। जब उसने सुना तो वह भागकर वहाँ आया। उसने देखा कि एक लड़की साइकिल समेत उसकी मोटरसाइकिल पर गिरी पड़ी है और उठने की कोशिश कर रही है। नीचे उसके मोटरसाइकिल के ऊपर साइकिल, साइकिल के ऊपर लड़की थी और उसके मोटरसाइकिल की सारी लाइट्स टूट गई थीं। उसने आकर उस लड़की को चोटियों से पकड़कर खींच लिया और कहा, "बेवकूफ मोटी लड़की... यह क्या कर दिया... मेरे मोटरसाइकिल की लाइट तोड़ दी..." उस लड़की ने अपने दोनों हाथों से लड़के के बालों को जोर से पकड़ लिया, "मेरी चोटी छोड़ो... फिर बात करो... मैं मोटरसाइकिल पर नहीं गिरी... इस मोटरसाइकिल को रास्ते में किसने खड़ा किया... इसकी वजह से मैं गिर पड़ी... मेरी साइकिल भी टूट गई और मेरे घुटनों पर चोट भी लगी है... बेवकूफ लड़के... इतना भी नहीं पता... मोटरसाइकिल को कहाँ खड़ा करना है..." वह छोटी सी लड़की राजदीप के गले पड़ गई।


    राजदीप के पापा ने उससे कहा था कि अगर उसको एमबीबीएस में एडमिशन मिलेगा तो उसको नया मोटरसाइकिल मिलेगा। राजदीप के पापा ने उसे नया मोटरसाइकिल ले कर दिया था। वह उस मोटरसाइकिल को लेकर सबसे पहले खेलने ही आया था और बिल्कुल नई मोटरसाइकिल की आगे की सारी लाइट्स पाखी ने तोड़ दीं। अब आप ही बताओ कि बेचारा राजदीप गुस्सा नहीं होगा तो क्या करेगा? और ऊपर से राजदीप को ही कसूरवार ठहरा दिया गया कि उसने मोटरसाइकिल बीच में खड़ा किया था।


    राजदीप का परिवार कुछ दिन पहले ही पाखी की कॉलोनी में रहने आया था। उन्होंने वहाँ पर किराए पर घर लिया था। उनका घर पाखी के घर के बिल्कुल साथ ही था। राज ने अपनी प्लस टू अच्छे नंबरों से पास की थी। उसके बाद उसने मेडिकल का इंटरेस्ट टेस्ट दिया था। उसका एमबीबीएस में सिलेक्शन हो गया था। उसने लुधियाना के डीएमसी मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में एडमिशन ले लिया था। डीएमसी में डॉक्टर रवि खन्ना आँखों के डॉक्टर थे और उनकी माँ रितिका खन्ना भी वहाँ पर काम करती थीं और वहीं पर अब राजदीप का एडमिशन हो गया था। उसकी बहन रीना भी स्कूल में पढ़ती थी। रीना ने जिस स्कूल में एडमिशन लिया था, पाखी उस स्कूल में दसवीं कक्षा में पढ़ती थी।


    पाखी जोर से रोते हुए साइकिल लेकर घर पहुँची। जब उसकी माँ ने पूछा तो उसने बताया कि एक लड़के ने मोटरसाइकिल उसकी साइकिल से मारकर उसे गिरा दिया। उसकी साइकिल भी टूट गई और उसके घुटने पर भी चोट आई। उस लड़के ने उसकी चोटी भी खींची। जब पाखी की माँ बाहर पता करने गई कि क्या हुआ है तो उसे पता चला कि पाखी ने एक लड़के की मोटरसाइकिल की सारी लाइट्स तोड़ दी थीं। उस लड़के ने उसकी चोटी खींची तो उसने भी उसके बाल अपने दोनों हाथों से खींच लिए और दोनों में खूब लड़ाई हुई।


    अब इतना तो पाखी की माँ भी जानती थी कि उसकी बेटी लड़ाई में हारकर तो आएगी नहीं। उधर, बाहर की लड़ाई का हंगामा सुनकर राज की माँ रितिका जी भी आ गई थीं। दोनों की माँओं ने एक-दूसरे से माफ़ी माँगी। राज और पाखी अपनी-अपनी माँ के साथ खड़े एक-दूसरे को खा जाने वाली नज़रों से देख रहे थे। अगर उन दोनों का बस चलता तो एक-दूसरे का गला दबा डालते। इन दोनों बच्चों की लड़ाई में इन दोनों की माँओं की दोस्ती ज़रूर हो गई थी।

  • 6. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 6

    Words: 1017

    Estimated Reading Time: 7 min

    राजदीप खन्ना के पिता रवि खन्ना, जो आँखों के डॉक्टर थे, और उनकी माँ रितिका खन्ना, जो एक गायनोलॉजिस्ट थीं, दोनों डीएमसी मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर थे। राज ने अपना टेस्ट क्लियर करने के बाद उसी कॉलेज में एडमिशन पा लिया था। उसकी बहन रीना, जो स्कूल में पढ़ती थी और उससे काफी छोटी थी, ने पाखी के स्कूल में छठी कक्षा में एडमिशन लिया था। राजदीप के परिवार के साथ उनकी बुआ के बच्चे, शौर्य और शीना भी रहते थे। शौर्य राज से 1 साल बड़ा था और प्लस 2 के बाद कमीशन क्लियर कर एयरफ़ोर्स में चला गया था। शीना ने प्रथम वर्ष में एडमिशन लिया था। उन्होंने कुछ दिन पहले ही पाखी की कॉलोनी में किराये पर घर लिया था। उनका घर बिल्कुल पास-पास था। पाखी के पिता एक सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल थे, और उनकी माँ एक कॉलेज में लेक्चरर थी। उसका भाई साहिल, रीना की ही कक्षा में पढ़ता था।


    गुप्ता परिवार और खन्ना परिवार में कुछ ही दिनों में अच्छी दोस्ती हो गई। इस दोस्ती का सबसे बड़ा कारण राज और पाखी की लड़ाई थी। उनकी लड़ाई की वजह से दोनों परिवारों में ज़्यादा ही दोस्ती हो गई थी। स्नेहा जी और रितिका जी अच्छी सहेलियाँ बन गई थीं। अगर कोई किसी दिन अपने काम से लेट आता, तो वह दूसरे को फोन करके बच्चों को देखने के लिए कह देता था। अगर किसी दिन रितिका जी किसी इमरजेंसी केस में फंस जातीं, तो स्नेहा जी को फोन करके बच्चों को खाना खिलाने के लिए कह देती थीं। उधर, रवि जी और पीयूष जी में भी अच्छी दोस्ती हो गई थी। दोनों साथ में अच्छा समय बिताते थे। पाखी और शीना की भी अच्छी बनने लगी थी। अगर सच कहें, तो पाखी की राज को छोड़कर पूरी फैमिली से बहुत अच्छी बनती थी। पाखी की तो रितिका जी से भी अच्छी बनने लगी थी।


    पाखी को खाना खाने का बहुत शौक था, जिसकी वजह से वह मोटी भी थी। इसीलिए उसे खाना बनाना सीखने का भी बहुत शौक था। जब भी उसे समय मिलता, वह अपनी माँ से खाना बनाना सीखती। जब वह कोई नई रेसिपी सीखती, तो राज के घर में ज़रूर देकर आती और रितिका जी से कहती, "....राज को छोड़कर...आप सभी खाकर देखिए और...बताइए कैसी बनी है...?" मगर उसको और कोई खाए या ना खाए, राज सबसे पहले खाकर देखता और स्नेहा जी से शिकायत करता, "आंटी...आपने हमारे घर में वो क्या भेजा था...बिल्कुल भी टेस्टी नहीं था...मेरे तो मुँह का स्वाद खराब हो गया..." कहता चाहे वह स्नेहा जी को था, मगर सुनाता वह पाखी को था। जब कभी रितिका जी देर से आतीं, तो राज हमेशा ही खाना खाने के लिए स्नेहा जी के पास आ जाता। तब पाखी अपनी माँ से कहती, "माँ...इसको खाना नहीं देना..."


    जैसे-जैसे समय बीता, दोनों परिवारों में दोस्ती और भी बढ़ती गई, और साथ-साथ पाखी और राज की दुश्मनी भी बढ़ती गई। राज उसे चिढ़ाने के लिए स्नेहा जी से कहता, "आंटी...कहीं ये मोटी हॉस्पिटल में चेंज तो नहीं हो गई थी...देखो इसका रंग कितना गोरा है...इसका गोरा रंग आपसे और अंकल जी से तो बिल्कुल भी मैच नहीं करता..." असल में पाखी की दादी माँ बहुत ज़्यादा खूबसूरत थीं। उनका रंग बहुत गोरा था। स्नेहा जी का रंग ज़्यादा गोरा नहीं था। स्नेहा जी की बड़ी-बड़ी आँखें थीं और बाल बहुत लम्बे थे। पाखी को गोरा रंग और तीखे नैन-नक्श अपनी दादी माँ से मिले थे, तो बड़ी-बड़ी आँखें और कमर के नीचे तक झूलते काले बाल अपनी माँ से। पाखी की दादी माँ स्नेहा जी को उनके रंग के कारण भी पसंद नहीं करती थीं।


    पाखी की पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं थी। उसके ठीक-ठाक ही नंबर आते थे। जब पाखी को अपने घर कम नंबरों के कारण डाँट पड़ती, तो राज हमेशा कहता, "इतनी बड़ी-बड़ी आँखों का क्या फायदा...जब इससे बुक्स ही नहीं पढ़नी..." जब कभी पाखी अपने लम्बे बालों को खुला छोड़ देती, तो राज हमेशा कहता, "रात को बाल खुले मत छोड़ा करो...इतने लम्बे, काले खुले बालों में तुम भूतनी लगती हो..." हमेशा राज उसकी हर बात में कमी ढूँढता।


    धीरे-धीरे समय बीता। पाखी ने अपनी प्लस टू पूरी कर ली। राज का एमबीबीएस तीसरा साल ख़त्म होने वाला था। जैसे-जैसे समय बीता, दोनों में दुश्मनी गहरी होती गई। ना तो पाखी उसे सुनाने में कसर छोड़ती और ना ही राज। अब तो दोनों की लड़ाई दोनों के परिवारों को भी आम सी लगने लगी थी। समय बीतने के साथ-साथ दोनों ही स्मार्ट हो गए थे। पाखी का वज़न काफी कम हो गया था। वह दिखने में बहुत सुन्दर लगने लगी थी। मगर राज अभी भी मोटी ही कहता था। राजवीर भी, जो पतला सा लड़का था, अब भर गया था। काफी स्मार्ट हो गया था। लम्बा तो पहले ही था। पहले अपनी संभाल नहीं करता था, अब वह जिम जाता था। आखिरकार वह डॉक्टर बनने के करीब था। कॉलेज में लड़कियाँ उस पर मरती थीं, मगर हमारी पाखी है, उसकी जान लेना चाहती थी।


    जब दोनों लड़ते, तो पाखी हमेशा कहती, "मुझे उस लड़की पर तरस आता है जिसकी शादी तुम्हारे साथ होगी...पता नहीं किसकी किस्मत फूटेगी..." तो राजवीर कहता, "मुझे भी उस लड़की पर तरस आता है...जिसके पल्ले पढ़ोगी...सारा खाना तो खुद ही खा जाओगी...वो बेचारे तो भूखा मर जाएगा..." दोनों एक-दूसरे के साथ लड़ने का एक भी मौका नहीं जाने देते थे। पाखी तो शायद कभी ना भी लड़े, मगर राज तो अगल-बगल से भी पाखी के साथ लड़ने के लिए आ जाता था। पाखी को जहाँ पर सफाई पसंद थी, वहीं राज का ध्यान सफाई पर बिल्कुल भी नहीं था। पाखी घर को हमेशा साफ-सुथरा रखती। जब वह किचन में काम करती, तो हर चीज अपनी जगह रखना पसंद करती। उसका कमरा भी बहुत साफ-सुथरा होता, मगर राजदीप तो यहाँ बैठा वहीं पर खिलौना डाल देता। सोफ़े पर बैठा तो कुछ इधर-उधर फेंक देता। खाना खाने बैठा तो खाना बीच में छोड़कर चला जाता।

  • 7. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 7

    Words: 1048

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब तक आपने पाखी और राज की लड़ाई के बारे में पढ़ा। कैसे वे दोनों साथ में लड़ते हुए जवान हुए। अब आप कहेंगे कि जब वे दोनों इतना लड़ते थे, तो फिर राजदीप को पाखी से प्यार कब हुआ? प्यार तो शायद हम सभी के अंदर ही होता है। इसका एहसास दिलाने के लिए कभी किसी बहाने की ज़रूरत होती है। ऐसा ही डॉक्टर राजदीप के साथ हुआ था। कोई तो ऐसी बात होती है जिससे हमको पता चलता है कि हम सामने वाले से प्यार करते हैं। कई बार हमारी लड़ाई में हमारा प्यार छुपा होता है। राज पाखी से चाहे जितना भी लड़ता, मगर उम्र के साथ राजदीप को पाखी पर गुस्सा आना कम हो गया था। राजदीप को पाखी को छेड़ने में मज़ा आता था। उसे पता था कि पाखी किस बात से चिढ़ जाती है, तो वह जानबूझकर उसी बात को बार-बार करता है और इससे पाखी को गुस्सा आ जाता। पाखी उसे देखकर ही तप जाती। पाखी को पता था कि जब भी उसका राज से सामना होगा, वह ज़रूर उसे किसी बात पर छेड़ेगा। शायद राजदीप को खुद भी नहीं पता था कि उसे पाखी की कंपनी अच्छी लगती थी। इसीलिए, चाहे उससे लड़ाई के बहाने ही से, वह पाखी के साथ टाइम स्पेंड कर लेता था।


    ऐसे ही हमारी पाखी ने स्कूल खत्म कर लिया और वह कॉलेज चली गई। पाखी फर्स्ट ईयर में हो गई। राजदीप भी अपने एमबीबीएस के चौथे साल में चला गया। छीना भी अपनी B.A. खत्म करने के बाद एम.ए. करने लगी। रीना और साहिल तो अभी स्कूल में ही थे। छीना और पाखी की दोस्ती समय के साथ बढ़ने लगी और हमारी पाखी की खूबसूरती भी और बढ़ गई। अब वह बेहद खूबसूरत दिखने लगी थी। अब उसका सजने-संवरने का स्टाइल बच्चों से नहीं, बल्कि कॉलेज की लड़कियों जैसा हो गया था।


    पाखी की सहेलियाँ भी राज पर मरती थीं। वे पाखी से कहती थीं, "कितना हैंडसम बंदा है... तुम क्यों लड़ती हो उससे...?"
    तो पाखी कहती, "इसमें हैंडसम क्या है... लगता है आजकल की लड़कियों का टेस्ट खराब हो गया है... जो इसे हैंडसम कह रही हैं..."


    पाखी के कॉलेज में कोरोना की वैक्सीन लगनी थी। वैक्सीन लगाने के लिए डीएमसी कॉलेज की टीम आई हुई थी। उस टीम में डॉक्टर के साथ एमबीबीएस के थर्ड और फोर्थ ईयर के स्टूडेंट्स भी थे। उनको अपने सीनियर डॉक्टर को assist करना था। जब पाखी की बारी वैक्सीन लगाने की आई, तो वह बहुत डर गई। पाखी शुरू से ही इंजेक्शन से बहुत डरती थी। यह बात डॉक्टर राजदीप अच्छे से जानता था। एक लेडी डॉक्टर उसे इंजेक्शन लगाने की कोशिश कर रही थी, मगर वह बार-बार हिल रही थी। पाखी की वजह से कितना समय वेस्ट हो रहा था। उनकी टीम को और भी इंजेक्शन देने थे। यह देखकर राजदीप उसके पास आ गया।


    उसने आकर कहा, "डरो मत... मैं हूँ तुम्हारे पास..."
    पाखी एक स्टूल पर बैठी हुई थी और राज उसके पास आकर खड़ा हो गया। पाखी ने जोर से राज की बाजू पकड़ ली और आँखें बंद कर लीं। और डॉक्टर ने उसे इंजेक्शन दे दिया।


    राज के दोस्त, जो कि उस टीम का हिस्सा थे, उन दोनों को देख रहे थे। उन्होंने राज और पाखी की तस्वीर खींच ली। राज के दोस्त उससे बोले, "क्या बात है भाई... बड़ा हाथ पकड़ा जा रहा था..."


    तभी दूसरा दोस्त बोला, "इन दोनों की तो बिल्कुल नहीं बनती... इन दोनों में तो 36 का आंकड़ा है... पूरी कॉलोनी जानती है... ये दोनों एक-दूसरे के साथ लड़ते रहते हैं..."


    तो फिर तीसरा दोस्त बोला, "कमाल है... अगर लड़ाई ऐसी है, तो प्यार कैसा होगा? 😁😁 तुम दोनों का... वैसे किसको बेवकूफ बना रहे हो... तुम्हारी आँखों में उसके लिए प्यार दिखता है... और उसने भी जैसे तुम्हारा हाथ पकड़ा... हम तो नहीं कह सकते कि तुम उसे अच्छे नहीं लगते..."


    राज के दोस्तों को तो राज को छेड़ने का बहाना मिल गया था। वैक्सीन लगते-लगते राज और पाखी की फ़ोटो उसके दोस्तों ने उसे भेज दी थी। राज उस फ़ोटो को कई बार देख लेता, फिर मन में सोचता, "ये लोग भी कमाल हो गए हैं... ये तो मुझसे कितनी छोटी है... हम दोनों दुश्मन हैं... ना कि दोस्त... मैं ये बात कैसे भूल सकता हूँ... उसने मेरी नई मोटरसाइकिल तोड़ दी थी!😡😡" वो कहते हैं ना कि इंसान अपने मन को समझाना चाहता है, तो वैसे ही शायद राज अपने मन को समझा रहा था।


    उस दिन संडे था। छीना, पाखी और छीना की दो सहेलियाँ थिएटर में कोई फिल्म देखकर आई थीं। फिल्म देखने के बाद वे लोग छीना के घर पर ही बैठ गए। उस दिन रितिका जी को एमरजेंसी की वजह से हॉस्पिटल जाना पड़ा। जाते हुए उन्होंने उन लोगों को कहा कि ठीक है, अब तुम लोग दो-तीन घंटे यहीं पर रुक जाना। कहीं जाना मत। घर में कोई नहीं है। मैं हॉस्पिटल जा रही हूँ, दो-तीन घंटे में आ जाऊँगी। रितिका जी चली गईं। राजदीप उस दिन कहीं गया था, मगर वह जल्दी लौट आया। उसके लौटने के बारे में किसी को पता नहीं चला। उसके कॉलेज का काफी काम बाकी था, तो उसे पूरा करने के लिए वह सीधा छत पर चला गया। चारों सहेलियाँ लॉन में बैठ गईं।


    छीना की सहेली रिया बोली, "फ़िल्म अच्छी थी ना..."
    तो छीना ने कहा, "हाँ, देखकर फ़िल्म अच्छी लगी... बहुत दिनों के बाद ऐसी कॉमेडी फ़िल्म देखी है... वरना लड़ाई की फ़िल्में देख-देखकर बोर हो गए..."


    तो छीना की सहेली नेहा बोली, "मुझे तो फ़िल्म की हीरो-हीरोइन में तुम्हारा भाई राज और पाखी दिखाई देते रहे..."


    "वह कैसे फ़िल्म के हीरो-हीरोइन में... मैं और राज क्यों दिखाई दिए तुझे...?" पाखी बोली।
    "और नहीं तो क्या... जैसे तुम और राज पूरा दिन लड़ते हो... कभी एक साथ में नहीं बैठ सकते... वैसे ही तो फ़िल्म के हीरो-हीरोइन लड़ते हैं..." नेहा बोली। "वैसे अगर सच में, जैसे फ़िल्म में हीरो-हीरोइन आपस में लड़ते रहते हैं, मगर उनके पेरेंट्स उनकी शादी कर देते हैं... अगर इन दोनों के साथ में ऐसा हो... कि इन दोनों...❤️❤️😁 पाखी और राज की शादी हो जाए..." इन लोगों की बातें सुनकर छत पर बैठे राजदीप के भी कान खड़े हो गए। वह भी ध्यान से लड़कियों की बातें सुनने लगा।

  • 8. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 8

    Words: 1064

    Estimated Reading Time: 7 min

    जब छीना और उसकी सहेलियाँ फिल्म देखने के बाद उस फिल्म के हीरो-हीरोइन की तुलना राज और पाखी से करने लगीं, तो छत पर बैठे राज के भी कान खड़े हो गए। वह भी उनकी बातें ध्यान से सुनने लगा।


    "जैसे फिल्म में हीरो-हीरोइन लड़ते थे... मगर उनके पेरेंट्स उन दोनों की शादी करा देते हैं... अगर ऐसा सच में राज और पाखी के साथ भी हो जाए तो कैसा रहेगा...?"


    नेहा के जवाब में छीना बोली, "...तुम सब लोगों को हम पर तरस नहीं आता क्या... वह तो फिल्म थी... अगर इन दोनों की शादी हो गई... यह तो हमारे घर को कुरुक्षेत्र का मैदान बना देंगे..."


    "...तुम लोग यह क्या बोल रही हो... कुछ तो शर्म करो... बात करने से पहले..." पाखी ने कहा।


    "...वैसे एक बात है... अगर इन दोनों की शादी हो तो... यह दोनों तो फेरों के समय ही लड़ पड़ेंगे... पाखी कहेगी मैं राज को किसी भी फेरे में आगे नहीं चलने दूंगी... हर फेरे में मैं ही आगे रहूंगी..." रिया ने कहा।


    "...वैसे जब इन दोनों के बच्चे होंगे... तो वह विचारे इन दोनों को लड़ने से हटाया करेंगे... वह कहा करेंगे औरों के तो माँ-बाप बच्चों को लड़ने से हटाते हैं... हमें तो अपने माँ-बाप की निगरानी करनी पड़ती है... कहीं लड़ ना पड़ें..." नेहा हँसने लगी।


    "...तुम लोग बोलने से पहले जरा सी तो शर्म करो..." पाखी उन पर गुस्सा होने लगी। तभी छीना बोली, "...तुम लोगों को लगता है... इन दोनों के बच्चे होंगे... इनको लड़ाई से फुर्सत मिलेगी... बच्चे तो तभी होंगे..."


    बातें करती हुई तीनों सहेलियाँ जोर-जोर से हँसने लगीं। "...देखो अब बहुत हो गया... अब कुछ और मत बोलना..." पाखी गुस्से में वहाँ से चली गई। "अरे...पाखी...रुको तो...तुम क्यों जा रही हो... हमारी बात अभी पूरी नहीं हुई..." वह तीनों हँसने लगीं।


    उन सब की बातें सुनकर राज अकेला बैठकर छत पर हँसता रहा।


    "...वैसे छीना देखो... पाखी इतनी खूबसूरत है... कभी तो तुम्हारा भाई... उसको देखकर बहकेगा... इसलिए कहती हूँ... बच्चे तो इनके जरूर होंगे... यार शादी के बाद..."


    "...वैसे शादी के बाद बहकना नहीं कहते... इसे प्यार करना कहते हैं... जिसकी पाखी जैसी खूबसूरत बीवी होगी... उस इंसान के अरमान कैसे नहीं जागेंगे... लड़ाई दिन को कर लिया करेंगे... और रात को प्यार...वैसे तुम्हें बड़ा पता... शादी के बाद... किसे बहकना कहते हैं... किसे प्यार करना..." रिया नेहा को छेड़ने लगी।


    "...वैसे छीना एक बात कहूँ मैं तुमसे... मान चाहे ना मान... तुम्हारा भाई राज 100% पाखी को पसंद करता है... आगे चलकर मेरी बात साबित हो जाएगी..." "...तुम्हें पता है नेहा... तुम क्या कह रही हो... तुम आग और पानी को साथ में रखने की बात कर रही हो... फिल्म की बात और है... तुम राज और पाखी दोनों को ही... अच्छी तरह से जानती हो... देखा ना कैसे पाखी हम लोगों की बात सुनकर उठकर चली गई।" मगर राज उनकी बातें और भी ध्यान से सुनने लगा।


    "...मैं राज और पाखी को अच्छी तरह से जानती हूँ... तभी तो कह रही हूँ... तुम मुझे यह बताओ... जब राज पाखी से लड़ता है तो क्या कहता है... आंटी देखो ना... यह पाखी हॉस्पिटल में चेंज तो नहीं हो गई... यह कितनी गोरी है... मतलब राज ने उसके गोरे रंग की तारीफ की... फिर क्या कहेगा... तुम मुझे अपनी यह बड़ी-बड़ी बदाम जैसी आँखें दिखाकर डरा नहीं सकती... मतलब उसकी बड़ी-बड़ी आँखों की तारीफ की... और फिर क्या कहता है... इतने काले लंबे बालों को खुला मत छोड़ा करो... भूतनी लगती हो... मतलब साफ है... जब राज उसे खुले बालों के लिए टोकेगा... तो वह जरूर बाल खुले छोड़ेगी... जो कि राज को अच्छा लगेगा..."


    "...वैसे तुम्हारी बात बिल्कुल सही है... यह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं... राज ने पाखी के बारे में एक भी कोई बुरी बात नहीं कही... उसका हाथ का बनाया हुआ खाना इतने शौक से खाता है... यह बात अलग है... कि उसके सामने नहीं कहता... और तो और कभी-कभी मामी जी... पाखी को राज का कमरा साफ करने के लिए भी कह देती है... तो राज ने कभी नहीं टोका कि पाखी उसका कमरा साफ न करे... बल्कि पाखी उसके कमरे को कैसे भी ऑर्गेनाइज कर दे... राज ने इस बात को कभी issue भी नहीं बनाया..."


    "...मगर छीना यह बात में पाखी के लिए नहीं बोल सकती... अब ही देखो वह कैसे गुस्से से उठकर चली गई..."


    "...वैसे कोई बात नहीं... अगर... आज राज के मन में पाखी के लिए कुछ है तो... आज नहीं तो कल... देख लेना पाखी ही मेरी भाभी बनेगी... अभी तो वैसे भी वह बच्ची है..." तीनों सहेलियाँ हँसने लगीं।


    छत के ऊपर बैठा राज इन सब सहेलियों की बातें सुनकर सोच में पड़ गया। उसके आगे पाखी का चेहरा घूमने लगा। वह सोचने लगा, "...सच ही तो कह रही हैं... उसका गोरा रंग... बड़ी-बड़ी हिरनी जैसी आँखें... काले लंबे बाल उसको इतना खूबसूरत बनाते हैं... उसके दोस्त भी तो यही कहते हैं कि मैं उसे पसंद करता हूँ... वैक्सीन लगने के दिन सभी दोस्तों ने यही कहा कि मेरे मन में पाखी के लिए कुछ है... मगर वह तो मुझसे कई साल छोटी है... मगर मैं बड़ा हो रहा हूँ तो... वह भी तो बड़ी हो रही है... अब कॉलेज जाती है... बच्ची थोड़ा ना है..." राज अकेला ही सोचकर मुस्कुराने लगा।


    राज के मन में पाखी के लिए जज़्बात तो शायद बहुत दिनों से थे। उन जज़्बातों को किसी के बयान करने की ज़रूरत थी। छीना, रिया और नेहा ने शायद अनजाने में ही राज के अंतर्मन को छू लिया था। राज अपनी फीलिंग किसी से शेयर करना चाहता था। वह चाहता था कि इस बारे में वह किसी से बात करे। मगर उसके आसपास ऐसा कोई नहीं था जिससे वह बात कर सकता, तो उसको शौर्य भैया का ख्याल आया। उसने अपने मन में सोचा जब इस बार भैया छुट्टी आएगा तो मैं उससे इस बारे में बात करूँगा।


    उधर पाखी को इन तीनों की बातों का बहुत बुरा लगा। उसने अब सोच लिया कि वह राज से बात ही नहीं करेगी, ना ही उससे लड़ाई करेगी, उससे कोई वास्ता ही नहीं रखेगी। पाखी ने किया भी वैसा ही। कॉलेज के लिए वह राज से पहले ही निकल गई और शाम को भी जब राज उनके घर आया तो वह अपने कमरे से ही बाहर नहीं आई।

  • 9. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 9

    Words: 1024

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब तक आपने पढ़ा था कि राज को अपने दिल की फीलिंग समझ आने लगी थी। उसे पाखी अच्छी लगने लगी थी। लेकिन पाखी के मन में कुछ नहीं था। पाखी ने अब लड़ना छोड़ दिया था। वह उनके घर भी कम जाने लगी थी। वह जाते वक़्त इस बात का ध्यान रखती थी कि राज घर ना हो। वह तभी उनके घर जाती थी जब राज बाहर गया होता था। राज पाखी से मिलने की कोशिश करता था। अगर सच कहूँ तो राज पाखी से लड़ने की कोशिश करता था, मगर पाखी ने उसे इग्नोर करना शुरू कर दिया था। जितना पाखी इग्नोर कर रही थी, राज के मन की फीलिंग उतनी ही बढ़ रही थी। राज उसे देखकर मुस्कुराने लगता और सोचता, "कोई बात नहीं, मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करने दो, फिर मॉम से कहूँगा कि मुझे तुमसे शादी करनी है।" वह जानता था कि अगर उसने पाखी को प्रपोज़ किया तो घर में बवाल मच जाएगा और शायद उन दोनों परिवारों का रिश्ता भी टूट जाएगा। इसलिए उसने चुप रहना ही बेहतर समझा।


    इसी बीच रवी जी और रितिका जी ने अपनी हॉस्पिटल की जॉब छोड़ दी और बठिंडा में अपना क्लीनिक शुरू कर दिया। उन्होंने वह घर छोड़ दिया। राज की पढ़ाई बाकी थी, तो राज हॉस्टल चला गया। बाकी पूरी फैमिली बठिंडा शिफ्ट हो गई। छीना ने भी अपनी पढ़ाई बठिंडा में ही शुरू कर दी। रीना भी सही से पढ़ने लगी। पहले तो दोनों परिवार कांटेक्ट में थे, मगर सबकी बिज़ी लाइफ होने के कारण धीरे-धीरे उनका आपस में कोई संपर्क नहीं रहा। राज कभी-कभी पाखी के घर आ जाता था। जब भी राज आता, स्नेहा जी हमेशा उसे खाना खिलाकर ही जाने देती थीं। मगर पाखी कभी नहीं मिली। एक-दो बार उसने पूछा भी कि पाखी कहाँ है? फिर हर बार उसे यह पूछना अच्छा नहीं लगा। फिर भी राज उसे कॉलेज में कभी-कभी देखकर ही खुश हो जाता था। इसी बीच राज की पढ़ाई पूरी हो गई और उसने M.D. करने के लिए दिल्ली एम्स में एडमिशन ले लिया।


    इतने टाइम से राज का और पाखी के परिवार का कोई संपर्क नहीं रहा और राज भी सोचने लगा कि शायद अब तक तो पाखी की ज़िन्दगी में कोई और आ चुका होगा। वैसे भी पाखी ने उसे कभी पसंद नहीं किया था। एक बार उसने शादी में इंटरेस्ट ही छोड़ दिया और अपने करियर की तरफ़ ज़्यादा ध्यान देने लगा। पहले उसने किसी और हॉस्पिटल में जॉब की। फिर मॉम और डैड के साथ ही अपनी प्रैक्टिस करने लगा। आज वह अपने शहर का माना हुआ डॉक्टर था। उसकी बहुत इज़्ज़त थी। दिखने में भी हैंडसम और बहुत स्मार्ट था। लड़कियाँ उस पर मरती थीं। मगर पाखी के बाद उसकी ज़िन्दगी में कोई नहीं आ सका।


    जब उसकी नानी ने पाखी की फ़ोटो दिखाई, तो वह शादी के लिए झट से तैयार हो गया। उसको जैसे मन मांगी मुराद मिल गई थी। कहने को वो पाखी के साथ एक डील करके आया था कि हम दोनों सगाई कर लेते हैं, उसके बाद देखते हैं कि क्या करना है। मगर उसने मन में सोच लिया था कि वह हर हाल में पाखी से शादी करेगा।


    राजदीप की फैमिली के घर पहुँचने से पहले ही, उसकी नानी और पाखी की दादी ने सगाई की डेट फ़िक्स कर दी थी। फैसला हुआ कि सगाई बठिंडा में होगी। तो सगाई होने में सिर्फ़ 1 हफ़्ता का टाइम था। घर पहुँचकर रितिका जी ने स्नेहा जी को फ़ोन किया कि अब सगाई में बहुत कम दिन बचे हैं, तो हम चाहते हैं कि आप लोग एक दिन बठिंडा आ जाएँ। पाखी की शादी की ड्रेस हम अपनी तरफ़ से पाखी के पसंद की दिलवा देंगे। तो स्नेहा जी कहती हैं, "राज भी सगाई की ड्रेस उसी दिन ले लेगा जो कि हमारी तरफ़ से होगी।" उसके अगले दिन ही पाखी के परिवार के बठिंडा जाने की तैयारी हो गई। राज बहुत खुश था। उसका और क्या चाहिए था? उसे फिर पाखी से मिलने का बहाना मिल गया था। उसने सोच लिया था कि अब पाखी को धीरे-धीरे एहसास कराएगा कि वह उससे प्यार करता है।😁😁


    रितिका जी ने स्नेहा जी से कह दिया था कि आप लोग जल्दी आ जाइएगा क्योंकि रास्ते का टाइम भी काफी हो जाता है। पीयूष जी और स्नेहा जी, पाखी और साहिल के साथ अगले दिन सुबह जल्दी ही राज के शहर पहुँच गए थे। रितिका जी ने उन लोगों को घर पर ही बुला लिया था। रितिका जी ने उन लोगों को ब्रेकफ़ास्ट कराया क्योंकि रितिका जी को पता था कि वह लोग घर से इतना जल्दी निकले थे तो कुछ खाकर नहीं आए होंगे। पीयूष जी और स्नेहा जी राज के घर आकर बहुत खुश हुए। पीयूष जी कहने लगे, "...मेरी माँ ने राज को पसंद किया है... इसलिए मैं यह तो जानता था कि उनकी पसंद अच्छी ही होगी... मगर मुझे नहीं पता था कि हम लोग ऐसे फिर मिल जाएँगे..." "...शायद इन बच्चों के सितारे ही हैं... जो इन दोनों को पास ले आते हैं..." रवी जी हँसने लगे। "...पाखी मेरी भाभी बन रही है... मैं बहुत खुश हूँ..." रीना चहकने लगी। उन सब की बातें सुनकर पाखी नज़र झुकाकर बैठ गई और सोचने लगी, "...यह सब लोग इतने खुश हैं... तो क्या सगाई टूट पाएगी...?"


    वह सब लोग एक साथ बाजार जाने के लिए तैयार हो गए। रितिका जी राज से कहने लगीं, "...तुम अपने साथ पाखी को ले आओ... हम लोग एक साथ चलते हैं..." वह सब लोग एक गाड़ी में निकल गए और राज और पाखी एक साथ जिस दुकान से पाखी की ड्रेस खरीदनी थी, वहाँ पर चले गए। पाखी और राज अकेले बुटीक में पहुँच गए। पाखी राज से कहने लगी, "...वह सब लोग कहाँ रह गए...?" "...आते ही होंगे..." राज बोला। बुटीक की ऑनर राज और पाखी से पूछने लगी कि उन्हें किस फंक्शन के लिए ड्रेस चाहिए, तो राज बोला, "हमें सगाई के फंक्शन के लिए कोई ड्रेस दिखाओ।" उसने कई लहंगे दिखाए। पाखी और राज दोनों को ही एक पिंक कलर का लहंगा बहुत पसंद आया। मगर वह दोनों ही कुछ नहीं बोले। उन्होंने वह लहंगा साइड पर निकलवा लिया। तब तक सभी लोग वहाँ पर आ गए।

  • 10. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 10

    Words: 1064

    Estimated Reading Time: 7 min

    पाखी और राज दोनों बुटीक पर पहुँचे। वे सगाई के फंक्शन के लिए कई लहंगे सेलेक्ट कर लेते हैं। तभी बाकी परिवार के लोग भी आ गए। आते ही रितिका जी पूछती हैं, "...बेटा... तुमने कोई लहंगे किए...?" पाखी उन्हें सिलेक्ट किए हुए चार लहंगे दिखाती है और कहती है, "...ये चार मुझे अच्छे लगे... अब आप बताओ आंटी कि मैं कौन सा लहंगा लूँ...?"

    "पहली बात, मुझे अब आंटी नहीं, राज की तरह मॉम कहो," स्नेहा जी हँसते हुए कहती हैं। रितिका जी की बात पर राज आँखों में शरारत भरकर पाखी की तरफ देखता है।


    राज का चेहरा देखकर पाखी थोड़ी घबरा जाती है। पाखी और राज के सिलेक्ट किए हुए लहंगों को सभी लोग पाखी को पहनने के लिए कहते हैं। पाखी बारी-बारी से लहंगे चेंज करके आती है। सबसे पहले एक ब्लू कलर का लहंगा पहनती है, जिसे सब रिजेक्ट कर देते हैं। फिर वह ब्लैक कलर का लहंगा पहनती है, तो स्नेहा जी कहती हैं, "...किसी भी फंक्शन में ब्लैक और व्हाइट कलर के कपड़े नहीं पहने जाएँगे..." फिर पिंक और रेड दो ही लहंगे बचते हैं। रेड कलर का लहंगा ज़्यादा वर्क वाला था, जबकि पिंक कलर के लहंगे में वर्क कम था। रीना पाखी से कहती है, "...भाभी अब रेड कलर का लहंगा पहन कर आओ..." रेड कलर का लहंगा पाखी पर बहुत अच्छा लगता है। सभी कहते हैं कि उन्हें यही लहंगा ले लेना चाहिए। तो राज कहता है, "एक पिंक कलर का लहंगा रह गया है। यह भी पहन लेना चाहिए।"


    पाखी पर पिंक कलर का लहंगा भी बहुत अच्छा लगता है। सभी कंफ़्यूज हो जाते हैं कि कौन सा लहंगा लें। तो राज कहता है, "...मॉम... मुझे लगता है पिंक कलर का लहंगा ले लेना चाहिए... रेड कलर का तो हम लोग शादी पर भी पहन सकते हैं।" यह कहकर राज पाखी की तरफ देखने लगता है। पाखी को भी पिंक ही पसंद था। पाखी ने भी कह दिया कि उसे यही पसंद है। तो रवि जी हँसने लगते हैं, "...चलो बच्चों की पसंद तो मिलनी शुरू हुई है... वरना मुझे तो लगा था... ये लोग ही लड़ते हुए ही बाहर आएंगे..."

    "...अंकल आप सही कह रहे हैं, मैं तो खुद डर रहा था..." साहिल रवि जी की बात पर हां में हां मिलाने लगता है। सभी लोग हँसने लगते हैं। पाखी आँखें निकालकर साहिल की तरफ देखने लगती है। मगर राज सिर्फ़ मुस्कुराता रहता है, उसने कुछ नहीं कहा। 😁


    फिर पीयूष जी कहने लगते हैं, "...राज आपको अपनी ड्रेस भी ले लेनी चाहिए..."

    "...पहली बात, आप मुझे 'आप' नहीं, 'तुम' कहें... मैं वही राज हूँ जिसे आप शुरू से ही 'तुम' कहते थे... दूसरी बात, ये नए कपड़े वगैरह तो लड़कियों के लिए होते हैं... मेरे पास बहुत से ऐसे कपड़े पड़े हैं... जो मैंने एक बार भी नहीं पहने... इसलिए आप मेरे कपड़ों की बात छोड़िए..."

    "...तुम भी राज, मुझे 'अंकल' नहीं, पाखी की तरह 'पापा' कहो 😁...और नए कपड़े तो तुम्हें लेने ही पड़ेंगे..."

    "...ठीक है... मैं नए कपड़े लेने के लिए आपके शहर में आऊँगा... मुझे यहाँ से कपड़े नहीं खरीदने..." राज हँसने लगता है। राज रीना से कहने लगता है, "...तुम्हें भी सगाई के लिए ड्रेस चाहिए होगी... तुम भी अपना लहंगा यहीं से पसंद कर लो..." और उसे पकड़कर एक ऑरेंज कलर के लाइटवेट लहंगे के पास ले जाता है। रीना को वह लहंगा देखते ही पसंद आ जाता है।

    "...मॉम और आंटी आपको भी तो ड्रेसेस लेनी होंगी..." तो रितिका जी कहने लगती हैं, "...नहीं... हम साड़ियाँ कहीं और से लेंगी... हम दूसरे शोरूम पर चलते हैं..." पीयूष जी आगे होकर उन दोनों लहंगों की पेमेंट करने लगते हैं, तो रवि जी कहने लगते हैं, "...नहीं, आज तो अपनी बहू को ड्रेस दिलवाने में लाया हूँ..." इतने में वे दोनों बातें करते रहते हैं। राज जाकर अपने कार्ड से काउंटर पर पेमेंट कर देता है।


    वे सब लोग दुकान से बाहर निकलने के लिए तैयार हो जाते हैं। इतने में राज का फ़ोन बजता है। उसने बात करने के बाद अपनी मॉम से कहा, "...मॉम, मुझे जाना होगा... एक एमरजेंसी केस आया है... पर हाँ... आप सब लोग शाम को मुझसे मिले बिना नहीं जाएँगे... अगर मैं जल्दी फ़्री हो गया, तो आपको बाज़ार में ही ज्वाइन कर लूँगा... नहीं तो आप सब लोग घर पर आ जाइएगा..."


    एक्चुअली, रवि और रितिका जी का घर क्लीनिक के ऊपर था। नीचे दो मंज़िल पर क्लीनिक बना हुआ था और तीसरी मंज़िल पर इनका खूबसूरत सा घर था। राज के चले जाने के बाद पाखी ने चैन की साँस ली। वे सभी लोग साड़ियों के शोरूम पर पहुँच गए। रितिका जी स्नेहा जी से कहने लगती हैं, "...क्यों ना हम दोनों एक सी ही साड़ी लें...?"

    "...ठीक है... सही बात है... हम दोनों एक जैसी ही साड़ी लेंगी... दोनों बहनें लगेंगी..." उन्होंने दोनों ने रेड कलर की बनारसी बॉर्डर वाली साड़ियाँ खरीदीं। तो रीना कहने लगती है, "...आंटी जी... अगर साहिल लड़की होता, तो हम दोनों की एक जैसे ऑरेंज कलर के लहंगे पहनते..." तो उसकी बात सुनकर साहिल बोलता है, "...कोई बात नहीं, मैं ऑरेंज कलर की शेरवानी पहन लूँगा..." यह सुनकर सभी हँसने लगते हैं। पूरे परिवार को एक-दूसरे के साथ इतने खुले और मिलनसार देखकर पाखी सोच में पड़ जाती है। "...अब मुझे मान लेना चाहिए कि ये सगाई ही नहीं... शादी भी 100% होकर रहेगी... दोनों माँ कितनी खुश हैं... पापा, साहिल, रीना सभी लोग बहुत खूब घुल-मिल गए हैं... अगर सच पूछो तो..." वह मन में सोचने लगती है, "...राज का बिहेवियर भी पहले जैसा बिल्कुल नहीं है... आज पीयूष जी को और रवि जी को पेमेंट ना करने देना... राज का खुद पेमेंट करना भी अच्छा लगा..." और फिर भी वह इन सब बातों को नकार रही थी।


    पूरा दिन शॉपिंग करने के बाद वे लोग घर आ गए। रवि जी बोलते हैं, "...भाई साहब... आप अपने शहर के लिए मत निकलिए... बाहर आओ, काफी अंधेरा हो चुका है... सुबह चाहे जल्दी चले जाइए..."

    "...बात तो ठीक थी... काफी टाइम हो गया था..." रितिका जी बोलती हैं। राज, जो अभी क्लीनिक से आया था, वह बोलता है, "...डैड ठीक कह रहे हैं... आपको इतनी रात को जाने की कोई ज़रूरत नहीं है... वैसे भी कल संडे है... आपको ऑफिस भी नहीं जाना है..." तभी रितिका जी आकर कहने लगती हैं, "...सही बात है स्नेहा... ये मत सोच कि ये तेरी बेटी का होने वाला ससुराल है... हमारी अपनी दोस्ती भी अपनी जगह है... इन दोनों का रिश्ता तो जब होगा तब होगा..."

  • 11. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 11

    Words: 1003

    Estimated Reading Time: 7 min

    रवि जी और रितिका जी ने पाखी के पूरे परिवार को उनके यहाँ रात रुकने के लिए जोर दिया था। उन सबकी बातें सुनकर स्नेहा जी ने पीयूष जी की तरफ देखा। पीयूष जी और स्नेहा जी ने आँखों ही आँखों में सलाह की।

    स्नेहा जी कहने लगीं, "ठीक है... रितिका, हम लोग रुक जाते हैं..."

    उनकी बात सुनकर राज के मन में लड्डू फूटने लगे। उसने नज़र उठाकर पाखी की तरफ देखा। पाखी कन्फ्यूज सी खड़ी थी। वह सोच रही थी कि वह इस से कैसे पीछा छुड़ा पाएगी, जबकि उसके घरवाले यहीं रुकने को राज़ी हो गए थे। पाखी सोच रही थी कि वह कहाँ फँस गई है। उसे राज को और झेलना पड़ेगा।


    इन सबकी बातें सुनकर रीना चिल्लाकर बोली, "...पाखी भाभी मेरे साथ मेरे रूम में रहेगी..."

    उसकी बात सुनकर राज पाखी की तरफ देखने लगा। उसे देखते हुए मन में सोचने लगा, "...कोई बात नहीं... अभी जहाँ रुकना है, रुक जाओ... फिर तो तुम हमारे ही कमरे में रहोगी ❤️..."

    फिर पाखी मन ही मन सोचने लगी, "इस रीना की बच्ची को भाभी कहने से भी रोकना पड़ेगा... जब देखो भाभी भाभी लगी रहती है..."

    यहाँ पाखी खड़ी हुई अपना सिर पीट रही थी। वहीं राजदीप अपनी ही दुनिया में खो गया था। राजदीप सोचने लगा, "...अगर कहीं ऐसा हो जाए... डैड कह दें अभी के अभी राज और पाखी की शादी होगी😜 और अभी रात को १ घंटे😱😇 में इनकी शादी हो जाए... तो क्या बात हो..."

    फिर वह खड़ा-खड़ा ही सोचने लगा कि उन दोनों की शादी हो रही है। पाखी दुल्हन बनकर उसके सामने खड़ी है और वह दूल्हा बना हुआ है। वह आगे बढ़कर पाखी की मांग भर रहा है।

    उसको ऐसे सपनों में खोया देखकर रीना उसके पास गई।

    "भैया... भैया..."

    राज होश में आया तो बात करे।

    "भैया सो गए क्या...?"

    राज एकदम घबराकर होश में आया और उसने अपने आसपास देखा। वह मुस्कुरा दिया कि वह अभी सपना देख रहा था।

    "...क्या हुआ भैया, अकेले-अकेले मुस्कुरा रहे हो... हमें भी बता दो..." रीना कहने लगी।

    "...कोई बात नहीं छोटी बहन... तुम्हें नहीं बताऊँगा तो और किसे बताऊँगा... तुम्हें मेरा एक काम करना होगा..."

    "...हाँ बोलो..."

    "...मुझे पाखी का नंबर चाहिए..."

    "...तुम खुद ही माँग लो..."

    "...नहीं, मैं नहीं माँग सकता... मैं तुम्हें सारी बात फिर बताऊँगा... अगर तुम चाहती हो कि पाखी तुम्हारी भाभी बने... तो चुपचाप मुझे नंबर दे दो..."


    खाना तो उन लोगों के आने से पहले घर में काम करने वाली मासी आनंदी ने बना दिया था। रितिका जी किचन में जाकर एक-आध सब्ज़ी और बनाने लगीं तो स्नेहा जी, जो उनकी पीछे किचन में आ गई थीं, हँसने लगीं, "...रितिका, तुम ज़्यादा फ़ॉर्मेलिटी में मत पड़ो... जो खाना बना है, हम वही खाएँगे..."

    स्नेहा जी के पीछे पाखी भी किचन में आ गई।

    पाखी बोली, "माँ, मुझे बताएँ मैं क्या करूँ..."

    "...अरे, तुम किचन में शादी के बाद आना... अभी नहीं..."

    "...कोई बात नहीं... अभी तो मैं आपकी बेटी हूँ... क्या मैं काम नहीं कर सकती..."

    आनंदी तो खाना बनाकर जा चुकी थी, तो शाम को रितिका जी, स्नेहा जी और पाखी ने मिलकर सबको खाना खिलाया। पाखी किचन में रोटी बनाने लगी। रितिका जी ने सबको खाना सर्व किया। रितिका जी स्नेहा जी से कहने लगीं, "...तुम सभी के साथ बैठकर खाना खा लो... हम दोनों माँ-बेटी बाद में खाना खाएँगी... ठीक है ना पाखी..."

    "...सही कहा माँ आपने..."


    उन दोनों की बातें जब राजवीर के कान में पड़ीं तो बिन सोचे ही बोल पड़ा, "...माँ... माँ-बेटी नहीं... सास-बहू..."

    तो सब जोर से हँसने लगे।

    "...नहीं... मैं तो सिर्फ़ सब ठीक कर रहा था ना... क्या बोलना चाहिए था..."

    "...कोई बात नहीं बेटा... अगर कहने में माँ-बेटी बोल दिया... तो क्या सच में पाखी तुम्हारी बहन नहीं बनने वाली... बीवी ही बनेगी..." सभी जोर-जोर से हँसने लगे। राज अपनी ही बात पर झेंप गया। मगर वह मन में सोच रहा था, "...बेटी नहीं बोलना चाहिए था... सास-बहू बोलना चाहिए था और खाना भी दोनों क्यों साथ खाएँगे... पाखी को मेरे साथ खाना खिलाना चाहिए था..."

    मगर फिर राज चुपचाप खाना खाता रहा।


    खाना खाने के बाद राज रूम में जाकर अपने कपड़े चेंज कर आया। बाकी सब वहीं लॉबी में बैठे रहे। वह सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए बोला, "...साहिल, रीना, पाखी चलो तुम सबको आइसक्रीम खिलाकर लाता हूँ।"

    साहिल और रीना तो तभी खड़े हो गए।

    पाखी कहने लगी, "...नहीं... आप सब जाओ... मैं यहीं ठीक हूँ..."

    राज ने रीना को आँख से इशारा किया कि पाखी को साथ जाने के लिए कहे। इससे पहले रीना बोलती, रितिका जी कहने लगीं, "...यह क्या पाखी... जाओ बच्चे, तुम इन लोगों के साथ..."

    तो साहिल बोला, "...रीना और मेरा तो बहाना है... असल में जीजू को पाखी दी😁 के साथ ही जाना है... हम तो वैसे ही साथ जा रहे हैं..."

    साहिल की बात सुनकर राज हँसने लगा। राज का साहिल की बात को ना काटना और हँसकर उसकी बात को सही ठहराना, इस पर पाखी को बहुत गुस्सा आया। वह सोचने लगी, "...इतना बेशर्म है... मॉम-डैड सब बैठे हैं... उसको कोई फ़र्क नहीं पड़ता..."

    वह मन मारकर उन तीनों के साथ चल दी।


    घर से निकलते हुए राज रीना से बोला, "तुम अपने कपड़े पाखी को पहनने को दे देना और साहिल, तुम्हें मैं अपने-अपने दे दूँगा रात को पहनने के लिए..."

    रीना और साहिल दोनों साथ में लड़ाई-झगड़ा करते हुए उन दोनों के आगे निकल गए। पाखी और राज दोनों साथ में चलने लगे। राज पाखी से कहने लगा, "...पाखी, आप बहुत बदल गई हैं... पहले तो इतना बोलती थी... अब बहुत चुप-चुप हो गई हैं..."

    "...नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है... आपको ऐसे ही लगता है..."

    "...मानता हूँ... हम दोनों को मिले हुए काफ़ी साल हो गए... फिर भी इतना तो मुझे पता है कि जो पाखी सारा दिन नॉनस्टॉप बोलती थी... आज बहुत चुप-चुप है... जान मेरी कंपनी कितनी बुरी है..."

    "वैसे पाखी, मैं आपसे एक बात कहूँ।"

  • 12. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 12

    Words: 1006

    Estimated Reading Time: 7 min

    "...राज, मैं आपसे एक बात पूछूँ..."

    "...हाँ, पूछो..."

    "...आप कॉलेज में इतने साल रहे, आज एक कामयाब डॉक्टर हैं... क्या अब तक आपकी लाइफ में कोई लड़की सच में नहीं आई..."

    राज कुछ सोचते हुए, "...सच-सच बताऊँ...एक लड़की, पगली सी, जब मैं अपने मेडिकल की पढ़ाई तुम्हारे शहर में कर रहा था...अच्छी लगती थी मुझको...तुम्हारे ही कॉलेज की थी..."

    "...फिर, फिर क्या हुआ..."

    "...कुछ नहीं...कभी कह नहीं पाया उससे..."

    "...क्यों नहीं कह पाए...चुप रहने का तो आपका स्वभाव भी नहीं था 😁..."

    "...पहले तो मैं उससे डरता था...अगर मैंने उससे कह दिया तो कहीं ऐसा ना हो कि वह मुझसे बिल्कुल बात ना करे...फिर मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी...मन में सोचने लगा...पहले कुछ बन जाऊँ...फिर उसका हाथ माँग लूँगा..."

    "...तो अब कहाँ है..."

    "...वो मालूम नहीं...इतने साल हो गए...मुझसे कोई कांटेक्ट नहीं रहा...शायद उसकी लाइफ में भी कोई आ गया होगा...हो सकता है शादी हो चुकी हो या होने वाली हो..."

    "...अब आप बताओ पाखी...क्या आपकी लाइफ में कभी कोई नहीं आया...क्या किसी ने आपको प्रपोज नहीं किया..."

    "...कॉलेज में शुरू-शुरू में कई लड़कों ने प्रपोज किया...जब एक-दो की पिटाई 😜 हो गई तो फिर सब मुझसे डरने लगे...इसलिए मेरी ज़िंदगी में आज तक आपके सिवा कोई नहीं आया..."

    "...वैसे तुम अब मेरी तो पिटाई नहीं करोगी ना..."

    राज हँसने लगा।


    पाखी छीना के बारे में पूछने लगी, "...अब छीना दी कहाँ है..."

    "...उनकी शादी हो चुकी है...वह इसी शहर में है...उनका एक प्यारा सा बेटा भी है...सुबह मिलवा दूँगा...उससे...आज पहले वह आने वाली थी...मगर उसके बेटे के बीमार होने की वजह से नहीं आ पाई..."

    "...उसके हस्बैंड क्या करते हैं..."

    "...डॉक्टर हैं वह...सुबह उन दोनों से मिल लेना...उसकी भी बहुत तमन्ना है...तुमसे मिलने की..."

    "...और शौर्य भैया कैसे हैं..."

    "...ठीक हैं...अब एयर फ़ोर्स में ऑफ़िसर हैं...शादी उन्होंने नहीं की...अब तक...कोई लड़की ही पसंद नहीं आई उनको..."


    चारों आइसक्रीम खाकर वापस आ गए। राज को पाखी के साथ वक्त बिताना बहुत अच्छा लगा। पीयूष जी और स्नेहा जी को एक अलग कमरा दे दिया गया। पाखी रीना के साथ कमरे में एडजस्ट हो गई और साहिल राज के साथ कमरे में सो गया। सुबह संडे था तो सब लेट उठने वाले थे। मगर पाखी को जल्दी उठने की आदत थी, तो रितिका जी भी जल्दी उठती थीं। जब राज उठा तो किचन में से अपनी माँ और पाखी की आवाज़ें सुनाई दीं। वह सुनकर खुश हो गया। मन में सोचने लगा उसे इस बात की तो टेंशन नहीं होगी कि उसकी बीवी और उसकी माँ की नहीं बनती। इन दोनों की तो अभी से इतनी बनने लगी है। वह किचन में आकर बोला, "...मॉम, चाय मिलेगी..."

    "...पाखी, राज को चाय बनाकर दे दो..."

    रितिका जी खड़ी हुईं, पराठे बनाने की तैयारी करती रहीं। पाखी ने चाय बनाकर राज को दे दी। "...जाओ पाखी...तुम भी अपना कप लेकर लॉबी में राज के पास चली जाओ..."

    रितिका जी ने पाखी को भी राज के पास चाय पीने के लिए भेज दिया। चाय पीते हुए पाखी राज से बोली, "...क्या आपको लगता है...अब हम सगाई के बाद ये रिश्ता तोड़ पाएँगे..."

    "...पागल हो गई हो क्या...मैं यह नहीं कह सकता...मेरे मॉम-डैड तो मुझे घर से निकाल देंगे 😜...अब आपका तो वह मुझसे भी ज़्यादा प्यार करने लगे हैं...अब मैं नहीं चाहता कि मेरा घर परमानेंटली मुझसे छूट जाए 😁..."

    "...तो फिर हम अब क्या करेंगे..."

    "...करना क्या है...शादी करेंगे...अब किसी ना किसी से तो शादी करनी है, तो आप क्या बुरी हैं...आपको तो मैं जानता भी हूँ...मेरी माँ से भी आपकी इतनी बनती है...सास-बहू की लड़ाई का लफड़ा भी नहीं...पापा भी आपको पसंद करते हैं, तो ससुर-बहू की लड़ाई का भी लफड़ा नहीं...रीना आपकी इतनी बड़ी फैन है, तो ननद-भाभी की लड़ाई का भी कोई लफड़ा नहीं...तो थोड़ा बहुत हम लड़ लिया करेंगे...कोई बात नहीं 😁..."

    "...शादी मैं आपसे कर रही हूँ...आपके परिवार से नहीं...उनके साथ तुम्हें वैसे भी प्यार से रहूँगी...इसलिए नहीं कि वह आपके मॉम-डैड हैं...मगर हम दोनों का क्या...हम दोनों की कब बनी है आपस में..." आँखें दिखाते हुए पाखी थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोली।

    "...कोई बात नहीं, आप लड़ लिया करना...मैं कुछ नहीं बोलूँगा...प्रॉमिस 😁...मगर मैं मॉम-डैड से सगाई को तोड़ने के बारे में कुछ नहीं कह सकूँगा...मैं यह बात आज ही आपको क्लियर कर देता हूँ..."

    पाखी गुस्से से खड़ी हो गई।


    तब तक घर के और लोग भी उठकर लॉबी में आ गए। रितिका जी ने सबको चाय पिलाई। फिर कहने लगीं, "...आज आप लोग आराम से जाइए...जल्दी मत करें...एक तो संडे है...दूसरा जो पाखी का लहँगा अल्टरेशन के लिए दिया है...वह दोपहर तक मिलेगा...नहीं तो आपको एक बार फिर आना पड़ेगा..." रितिका जी और स्नेहा जी मिलकर नाश्ता बनाने लगीं। तब तक छीना भी आ गई। छीना अपने पति और बेटे के साथ आई थी। वह पाखी से मिलकर बहुत खुश हुई। दोनों सहेलियाँ बहुत देर तक बातें करती रहीं। छीना का हस्बैंड, संजीव गोयल भी एक डॉक्टर था। वह राज को देखकर हँसने लगा, "...अबकी बार तुम कैसे मान गए, साले साहब...पहले तुम्हारे लिए इतनी लड़कियों के रिश्ते आए...मगर तुम तो देखने भी नहीं गए..."

    राजदीप कहने लगा, "...धीरे-धीरे...सब राज से पर्दा उठेगा...अभी आप चुप रहें...अगर आपको मेरी शादी देखनी है तो..."

    वह दोनों हँसने लगे। "...मतलब मामला दिल का है...कुछ तो ऐसा है...जो मैं नहीं जानता...शायद तुम्हारी बहन छीना भी नहीं जानती...मगर पाखी है बहुत सुंदर...तुम दोनों साथ में बहुत अच्छे लगोगे..."


    तभी छीना उठकर राज और संजीव के पास आ गई। वह संजीव से कहने लगी, "...आपको पता है हमारा परिवार और पाखी का परिवार पड़ोसी था...इन दोनों की आपस में बहुत लड़ाई होती थी...इन दोनों का एक-दूसरे से 36 का आँकड़ा था...ऐसा एक भी दिन नहीं गया होगा...जब ये दोनों ना लड़े हों..."

  • 13. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 13

    Words: 1057

    Estimated Reading Time: 7 min

    पाखी से मिलने छीना अपने बेटे और पति डॉक्टर संजीव गोयल के साथ आई थी। राज और संजीव बात कर रहे थे, तभी छीना आई और संजीव से बोली, "आपको पता है... हमारा परिवार और पाखी का परिवार पड़ोसी थे... इन दोनों की आपस में बहुत लड़ाई होती थी.... इन दोनों के बीच में 36 का आंकड़ा था.... एक भी दिन नहीं गया होगा जब ये दोनों आपस में ना लड़े हों 😁...."

    "तो ये माजरा है... मैं तो इसकी सूरत देख कर ही समझ गया था ... अब तक शादी के लिए ना मानने वाले मेरे साले साहब अचानक ... कैसे मान गए..."

    "...क्यों ऐसा क्यों कह रहे हैं आप...?" छीना हैरानी से बोली।

    संजीव राज की तरफ देखते हुए बोला, "...यह माजरा इतना सीधा-साधा नहीं है... वीबी... इसकी शक्ल देखो ... कितना खुश है... जो लड़का शादी के लिए नहीं मान रहा था😜... आज शादी से पहले अपने ससुराल वालों की सेवा कर रहा है ... कुछ तो समझो तुम ..."

    "...तो यह बात है... मुझे तो समझ ही नहीं आया था ...."

    राज हाथ जोड़ते हुए बोला, "...प्लीज आप दोनों के हाथ जोड़ता हूँ मैं... मेरी बनती हुई बात पहले ही मत बिगाड़ देना..."

    उसकी बात सुनकर छीना और संजीव दोनों हँसने लगे।

    सारे लोग इकट्ठे बैठकर नाश्ता करने लगे। नाश्ता करने के बाद रितिका जी छीना से बोली, "...अरे छीना अच्छा हुआ तू आ गई... रीना को साथ ले जाओ... राज का कमरा और अलमारियाँ ही ठीक कर आओ.... तुम्हें तो उसका पता है कितना खिलारा डालकर रखता है... मैं भी बिजी रहती हूँ... मुझसे भी नहीं हो पाता..."

    "अरे मामी जी आप भी कमाल करते हैं... आपको मुझसे कहने की क्या ज़रूरत है... पाखी है ना अब... पाखी ही ठीक करेगी 😁... चलो पाखी तुम मेरे साथ चलो....."

    छीना पाखी का हाथ पकड़कर राज के कमरे में ले गई। राज उन दोनों को जाते हुए देखता है और मन ही मन बहुत खुश होता है। ऊपर जाकर छीना पाखी से कहती है, "...देख लो अब तुम्हारा भी रूम यही होने वाला है... कौन सा समान कहाँ सेट करना है.. क्या करना है.. तुम अच्छे से कर दो..."

    छीना अलमारी खोल देती है। पाखी देखती है कि राजवीर ने कितना खिलारा डाला हुआ है। उसके रात के उतारे हुए कपड़े भी वहीं सोफे पर पड़े हैं। कमरे की चादर भी ठीक करने वाली है। वह सोचकर परेशान होती है कि ऐसे आदमी के साथ उसकी ज़िंदगी कैसे कटेगी। पाखी चादर ठीक करने लगती है। छीना उसे वहीं पर छोड़कर चुपचाप नीचे चली जाती है।

    छीना नीचे आकर सबके सामने राज से कहती है, "...जाओ जाकर पाखी की हेल्प कर दो ... आज मेरे पीठ में बहुत दर्द है ... मुझसे काम नहीं किया जाता...😁"

    अभी छीना राज से ऊपर जाने के लिए कह ही रही थी कि पाखी अचानक से सीढ़ियों से उतरती हुई लॉबी में आ जाती है और कहती है, "छीना दी... आपको याद है मेरी पायल खो गई थी... रानी की शादी वाले दिन ..वही जो हमारे पड़ोस में शादी हो रही थी ..."

    "...क्यों क्या हुआ पाखी...?"

    "...यह देखो मेरी वही पायल है ... ऊपर कमरे में तकिए के नीचे मिली 😱.."

    पाखी माथे पर हाथ रखकर सोचते हुए कहती है, "...❤️ मगर ये यहाँ पर कैसे पहुँची...?"

    राज की तरफ देखते हुए पाखी पूछने लगी, "...ये आपके कमरे में कैसे आई...?"

    लॉबी में बैठे हुए सभी लोग मंद-मंद मुस्कुराने लगे और राज की तरफ देखने लगे। राज ने भी मन में सोचा, "ये लो हो गया सियापा 😁.... इस लड़की को कम से कम कौन सी बात कहाँ कहनी है😊 ये तो पता होना चाहिए...."

    जब कोई कुछ नहीं बोला तो छीना बोली, "...अरे यार... तुम ही सोचो कोई लड़का किसी लड़की की पायल अपने पास क्यों रखेगा...?"

    "...क्यों...?"

    "...अरे वाह.. तुम मेरे भाई का दिल चुराओ ❤️ तो कोई बात नहीं... इसने तुम्हारी एक पायल क्या उठा ली 😁.. इतने सवाल... समझो अगर किसी के तकिए के नीचे तुम्हारी पायल मिली 😁.... इसका क्या मतलब है...?"

    पाखी को अपनी बात समझ में आ गई 😁।

    पाखी ने देखा सभी लोग उसके और राज की तरफ देखकर मुस्कुरा रहे हैं। उसने सोचा कि उसने क्या 😁 कर दिया।

    "...मैं कमरा ठीक करके आती हूँ..." कहकर पाखी ऊपर सीढ़ियों की तरफ भागी। उसके जाने के बाद संजीव, छीना, साहिल और रीना जोर-जोर से हँसने लगे। रितिका जी, स्नेहा जी, पीयूष जी और रवि जी भी उनके साथ जोर-जोर से हँसने लगे। फिर रवि जी बोले, "...तो यह बात थी... हमको तो अब तक पता ही नहीं था...😜..."

    राज जो उन सब की तरफ देखकर अपना सिर खुजा रहा था, उसे रितिका जी कहने लगी, "...जाओ जाकर... उसे बताओ .. उसकी पायल तुम्हारे पास क्यों है ...."

    जब राज नहीं उठा तो रवि जी बोले ,"...जाओ बेटा..."

    राज उठकर चला गया। उसके कानों में सब की हँसने की आवाज आ रही थी।

    पाखी कमरे में खड़ी हुई पायल देख रही थी। राज ने उसके पीछे से जाकर पायल उसके हाथ से पकड़ ली।

    "...पहले आप मुझे यह बताएँ... आपके पास कैसे आई...?"

    "...कैसे आई का क्या मतलब है... मेरी पायल है ... इस पर कहाँ लिखा है यह पायल तुम्हारी है..😁... आप लड़के होकर पायल पहनते हैं...😱"

    "...नहीं मेरे कहने का मतलब... मैं पहनता नहीं हूँ ... पर यह मैंने खरीदी है ..."

    "...नहीं .. यह मेरी ही पायल है ... जो खो गई थी...."

    "...क्या निशानी है😁...?"

    "...इसकी यह देखो... मुझसे पैरों पर नेल पेंट लगाते हुए इस पर नेल पेंट भी लग गई थी... यह देखो यह वही है..."

    पाखी पायल छीनने लगी। इसी छीना-झपटी में दोनों बेड पर गिर पड़े। जब पाखी उठने लगी तो राज ने उसका हाथ पकड़ लिया।

    "...नाराज हो गई... अरे यार समझा करो... तुम्हारी पायल क्यों है मेरे पास.... मैंने क्यों संभाल कर रखी है तुम्हारी पायल इतने सालों से...."

    पाखी राज की तरफ एकदम ब्लैंक होकर देखते हुए बोली, "...क्यों संभाल कर रखी थी...?"

    "❤️ प्यार करने लगा था मैं तुमसे..."

    "...मगर आप तो किसी और से प्यार करते थे... आपने बताया था ... मेरे कॉलेज में पढ़ती थी...." पाखी कुछ सोचकर चुप हो गई।

    "...आपके कहने का मतलब है...?"

    "...तुम ही थी पाखी ... वो लड़की..." आँखों में प्यार भरकर राज बोला।

    पाखी ने राज की तरफ देखते हुए एक बीट मिस की। उसके पेट में तितलियाँ ❤️ उड़ने लगीं। फिर उसने अपने आप को संभालकर खड़ा हो गई। राज भी उसके पीछे खड़ा हो गया।

  • 14. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 14

    Words: 1015

    Estimated Reading Time: 7 min

    पाखी ने अपने आप को संभाला और खड़ी हो गई। राज आज भी उसके पीछे ही खड़ा रहा। जब पाखी जाने लगी, तो राज ने उसका हाथ पकड़ लिया। पाखी कंफ्यूज्ड लग रही थी। राज ने पाखी के गले में बाहें डाल दीं, जिससे पाखी घबरा गई। राज ने अपनी बाहें पीछे हटा लीं।

    "यार, तुम ऐसे क्यों घबरा रही हो? मैं तुमसे प्यार करता हूँ, और वैसे भी हमारी सगाई और शादी होने वाली है।"

    "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं," पाखी घबराती हुई बोली।

    "कोई बात नहीं पाखी, आना तो तुम्हें मेरी बाहों में ही है, आज नहीं तो कल," राज पाखी के पास आते हुए बोला।

    "मैं नीचे जाती हूँ।"

    "वैसे, तुम्हें पता है आज तुमने कितना बड़ा घोटाला किया है? सभी लोग हम पर हँस रहे हैं। यार, इतना तो समझना चाहिए था। तुम्हारी पायल मेरी तकिए के नीचे क्यों है? सबके सामने कौन पूछता है?" राजवीर हँसता हुआ बोला।

    पाखी गुस्से से बोली, "ऐसे काम करते ही क्यों हो?"

    "तो और कैसे करूँ? तुमसे तब कह नहीं सकता था, तुमसे डरता था। आज अगर हमारी सगाई नहीं हो रही होती, तो कसम से... फिर भी मैं तुमसे नहीं कह सकता था। थैंक्स नानी जी, कि तुम मेरी होने जा रही हो। रही बात मेरे प्यार की, तो... बहुत जल्दी मंजूर करना पड़ेगा, मेरी जान," अपनी आँखें झपकते हुए राजवीर बोला।


    पाखी नीचे आ गई। उसके पीछे राज भी आ गया। उन दोनों को आते देखकर रितिका जी बोलीं, "जाओ, तुम दोनों जाकर अपना लहंगा ले आओ। अल्टरेशन हो गया है, अभी फ़ोन आया था।"

    "मॉम, मैं क्या करूँगी? लहंगा ही पकड़ना है," पाखी बोली।

    "तुम वहाँ पर पहनकर देखना, बाद में प्रॉब्लम हो जाएगी," स्नेहा जी कहने लगीं।

    राज बोला, "मैं अभी तैयार होकर आता हूँ, मैं सुबह से नहाया भी नहीं।"

    पाखी और राज दोनों तैयार हो गए। पाखी ने रिया की ड्रेस पहनी थी। पाखी छीना और रिया से कहने लगी, "चलो हम चले, कपड़े लेने के लिए।"

    तो छीना एक्टिंग करने लगी, "मेरी तो पीठ में बहुत दर्द है, और रिया जहाँ रहेगी तो मेरे बेटे को उठा तो लेगी..." उसने राज की तरफ देखकर आँखें झपकीं और जाने का इशारा किया।


    पाखी गाड़ी के पास आकर वापस अंदर जाने लगी, तो राज बोला, "क्या हुआ? वापस क्यों जा रही हो?"

    "मैं अपना पर्स भूल गई।"

    "ये क्या यार! जब ये बंदा तुम्हारे साथ है, तो तुम्हें पर्स की क्या ज़रूरत है? जो शॉपिंग करनी होगी, मैं करा दूँगा।" राज ने हाथ पकड़कर उसे गाड़ी में बिठा दिया।

    राज और पाखी दुकान के लिए निकल गए। रास्ते में पाखी बोली, "आज यह सब आपकी वजह से हुआ है। मुझे पता है सबके सामने कितना embarrassing फील हो रहा था, और मुझे मेरी पायल भी चाहिए।" राज मुस्कुराता हुआ गाड़ी चलाता रहा। उसने एक ज्वेलरी शॉप के आगे गाड़ी रोक दी। पाखी से बोला, "चलो।"

    "ये देखो, ये तो कोई ज्वेलरी की शॉप है। हमें कपड़े लेने जाना है।"

    "कपड़े तो हम पकड़ लेंगे। देखो, तुम पायल मांग रही हो ना, मैं तुम्हें पायल दिलवा देता हूँ।"

    "नहीं, वो पायल तुम्हें नहीं मिलेगी। उस पायल के सहारे तो मैंने इतने साल निकाले। जब तुम शादी करके मेरे पास आ जाओगी, तो तुम्हें दे दूँगा।"

    "नहीं, मुझे तो अभी चाहिए," पाखी जिद करने लगी।

    "यार, मैं तो समझता था, ये बातें सुनकर देखकर तुम थोड़ी बहुत रोमांटिक हो जाओगी, मगर तुम तो बिल्कुल बच्ची बन गई, वही जिसने मेरे अपने साइकिल से मोटरसाइकिल की लाइट तोड़ी थी।" राज उसे छेड़ने लगा।

    "वैसे, मैं तुमसे एक बात पूछूँ, पाखी..."

    "कहो..."

    "...तुम्हारा बचपना देखकर मुझे डाउट हो रहा है..."

    "किस बात पर...?"

    "...यही कि तुम्हें सुहागरात के बारे में भी कुछ पता है या नहीं? पता चला, शादी की रात को मुझे ही तुम्हें सब कुछ सिखाना पड़ रहा है..."

    "हाँ, बस सिर्फ़ यही बातें आती हैं आपको, यही करवा लो।" पाखी गुस्से से दूसरी तरफ देखने लगी। सचमुच पाखी को समझ नहीं आ रहा था कि वह शर्माए या गुस्सा करे। वह कैसे रिएक्ट करे, उसे अपनी पोजीशन बहुत अजीब लग रही थी, क्योंकि राज का जो रूप उसने आज देखा था, उसने सोचा ही नहीं था।


    दुकान पर पहुँचकर पाखी लहंगा ट्राई करने चली गई। जब उसने ट्राई रूम से आने में टाइम लगा दिया, तो बाहर खड़ा होकर राज उसे कहने लगा, "क्या हुआ? इतना टाइम क्यों लगा रही हो?"

    उसने कहा, "किसी सेल्स गर्ल को भेज दो, हेल्प की ज़रूरत है।"

    "अगर तुम कहो, तो मैं आ जाऊँ हेल्प करने के लिए," राज बोला।

    "देखो, प्लीज़ मुझे तंग मत करो, मेरा दिमाग पहले से ही बहुत खराब है। भेज दो किसी को।"

    जब पाखी लहंगा पहनकर आई, तो राज उसे देखता ही रह गया। कपड़े लेकर जब वापस आने लगे, तो राज उसे कहने लगा, "बहुत सुंदर लग रही थी तुम इस लहंगे में। यार, अब मुझसे इंतज़ार नहीं होता, जल्दी से आ जाओ शादी करके मेरे घर।"

    पाखी उसे देखने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले।

    "पाखी, तुम्हें लड़ना तो एक मिनट में आ जाता है, जब रोमांस की बात आती है, तो भी कुछ बोल दिया करो," राज उसे छेड़ने लगा।

    "सुनो, पाखी, मैं तुमसे मिलने के लिए, तुम्हारे शहर आ जाऊँ सगाई से पहले।"

    "क्यों? थोड़े ही तो दिन बचे हैं सगाई में। क्या काम है? आप बता दो।"

    "अगर किसी को देखने का मन करे, तो... काम होना तो ज़रूरी नहीं है।"

    उसकी बात सुनकर पाखी को कोई जवाब नहीं सूझा।

    "क्यों देखना चाहते हो मुझे?" राज ने अपना सर पीट लिया।

    "सचमुच मुझे तो लग रहा है, शादी के बाद मुझे तुम्हें बहुत कुछ सिखाना पड़ेगा। अब मेरा क्यों मन कर रहा है तुम्हें देखने को? यह बात पूरे शहर को पता चल गई होगी, मगर तुम्हें नहीं पता चल पाई।" कहकर राज गुस्से से अंदर चला गया। पाखी उसके पीछे-पीछे अंदर आ गई।


    दोनों के उतरते हुए चेहरे देखकर छीना और संजीव समझ गए कि दोनों में कुछ हुआ है। छीना किसी बहाने से पाखी को बुलाकर कमरे में ले गई।

  • 15. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 15

    Words: 1003

    Estimated Reading Time: 7 min

    छीना पाखी को किसी बहाने से बुलाकर कमरे में ले गई और पूछने लगी, "...क्या हुआ? राज का चेहरा इतना उदास क्यों है? तुम भी चुप-चुप लग रही हो..."

    "...नहीं... कुछ नहीं..."

    "...कुछ तो है... पाखी, मैं तुम दोनों से बड़ी हूँ... प्लीज़ मुझे बताओ... क्या तुम्हें राज पसंद नहीं है..."

    "...नहीं, ऐसी कोई बात नहीं... जब वह ऐसी-वैसी बातें करते हैं... तो मुझे समझ में नहीं आता... मैं क्या करूँ..."

    "...क्या राज ने तुमसे कोई गलत बात कही... जो उसे नहीं कहनी चाहिए थी...? क्या उसने तुमसे कोई ऐसी छेड़खानी की जो उसे नहीं करनी चाहिए थी...?"

    "...नहीं नहीं... ऐसी कोई बात नहीं... जैसे, 'मैं तुम्हें पायल नहीं दूँगा 😁'... इसे देखकर मैंने इतने साल निकाले हैं... मैं तुम्हें पसंद करता हूँ... मैं तुझसे मिलने आ जाऊँ... तो मैं क्या कहूँ 😜..."


    रीना हँसने लगी, "...तो क्या तुम उससे मिलना नहीं चाहती? उससे कहो कि मिलने आ जाए... और रही बात पायल की... देखो वह तुमसे कितना प्यार करता है... इतने सालों में तो पायल तुम भी गुम कर देतीं और उसने संभाल कर रखी हुई है... शादी तो सभी कर लेते हैं... मगर शादी अगर आपकी ऐसे इंसान के साथ हो... जो आपको पसंद करता हो... आपसे प्यार करता हो... तो ज़िन्दगी बहुत आसान हो जाती है... उसके प्यार को समझो... अगर वह आगे बढ़ रहा है... तो तुम भी आगे बढ़ो... वैसे भी तुम दोनों की थोड़े ही दिनों में सगाई है और फिर शादी... तुम्हारे दोनों के माँ-बाप को भी कोई एतराज नहीं... इसीलिए तो तुम दोनों को अकेला भेजा था... ❤️"

    "...शायद सही कह रही हैं दी आप..."

    "...शायद नहीं... मैं बिल्कुल सही कह रही हूँ..." दोनों हँसती हुई गले लग गईं।

    "...अब जाओ... जाकर मना लो उसे ❤️..."

    "...कैसे मनाऊँ 😁..."

    "...मैसेज कर दो..."

    "...मेरे पास तो फ़ोन नंबर ही नहीं है उसका 😜..." छीना माथे पर हाथ मारते हुए, "...हे भगवान! कैसी लड़की से पाला पड़ा है... बेचारे राज का 😱..." वह पाखी को राज का नंबर सेंड करती है।

    "...करो मैसेज उसको... समझी 🥰..."

    "...दी सुनो... क्या लिखूँ मैं..."

    "...सॉरी..."

    "...सॉरी तो मैंने लिख दिया... उसके बाद क्या लिखूँ 😁..." छीना ने सर पकड़ लिया 😱, "...तो तुम मेरे भाई से अब कैसे रोमांस करोगी... यह भी मुझे बताना पड़ेगा 😁... क्या दिन आ गए हैं 😇... मेरा बेचारा राज... सुनो पाखी... तुमसे एक बात पूछूँ ❤️..."

    "...पूछिए दी..."

    "...तुम्हें सुहागरात ❤️😁 के बारे में तो पता है ना पाखी..." पाखी उसकी तरफ़ आँखें निकाल कर देखने लगी 🤨, "...नहीं नहीं... मैं तो ऐसे ही पूछ रही थी... मुझे लगा क्या पता तुम कौन सी दुनिया की हो..."

    पाखी गुस्से से, "...पता है तुम्हारा भाई भी मुझसे यही पूछ रहा था..." छीना पेट पकड़कर हँसने लगी 😊।

    पाखी गुस्से से, "...क्या दी... आप हँस क्यों रही हो..."

    "...सच में पाखी, तुम दुनिया की अजब-गजब ऐसी लड़की हो, जो मेरी भाभी बनना चाहिए थी... सच में राज ने कहाँ दिल लगाया..."

    दोनों बातें कर रही होती हैं, तो संजीव और राज दरवाज़े पर उनकी बातें सुन लेते हैं। संजीव भी पेट पकड़कर हँसने लगता है। राज उसको आँखें दिखाता है।


    राज और संजीव अंदर आ जाते हैं। "...अरे भाई... लो संभालो अपनी होने वाली बीवी को... मेरे बस का नहीं है..." राजा जाकर पाखी के पास खड़ा हो जाता है। उसके पीछे अपने दोनों हाथ उसके कंधों पर रख देता है और कहता है, "...कोई बात नहीं दी... आप अपना टाइम भूल गए 😁 अगर मैं नहीं होता तो... तुम याद करो... तुम दोनों की शादी भी नहीं होती... मैंने कितनी मेहनत की है... तुम दोनों की शादी के लिए और अब तुम लोग हमारा मज़ाक बना रहे हो..."

    "...अरे तुम तो बुरा मान गए..."

    "...सच ही तो कह रहा है... राज... अगर यह नहीं होता तो... हम दोनों की शादी भी नहीं होती..." संजीव छीना से कहने लगा। फिर संजीव पाखी के पास आया और बोला, "...छोटी बहन... तुम बहुत किस्मत वाली हो... जो तुम्हारी किस्मत में राज लिखा है... यह बहुत प्यार करने वाला प्यारा लड़का है... इसकी वजह से ही हम दोनों की शादी हुई है... हम अपनी लव स्टोरी तुम्हें किसी दिन फिर सुनाएँगे... जान तुम राज से सुन लेना... अब तुम्हारे पेरेंट्स जाने की जल्दी कर रहे हैं... तो तुम दोनों यहाँ अकेले में मिलो... मैं और छीना बाहर जाते हैं... मगर जल्दी आ जाना... ठीक है..." कहकर संजीव और छीना बाहर चले गए। कमरे में राज और पाखी अकेले रह गए ❤️।


    राज पाखी का हाथ पकड़ते हुए बोला, "...कहो तो... मैं तुमसे मिलने आ जाऊँ... सगाई से पहले..."

    "...ठीक है... जैसा आप कहें..."

    "...एक बार आऊँ, जाऊँ, दो बार..."

    "...जैसा आपको अच्छा लगे..."

    "...हर बात पर... जैसा आपको अच्छा लगे... यह क्या हुआ... मुझे तो वो पाखी पसंद है जो मेरी एक बात पर मुझे 4 सुनाती है... लगता है छीना दी ने कुछ ज़्यादा ही समझा दिया..." राज हँसने लगा। पाखी भी मुस्कुराने लगी।

    "...वैसे आपको आना तो है लुधियाना... अपनी शॉपिंग के लिए..."

    "...क्या तुम्हें सच में लगता है... कि मैं शॉपिंग के लिए आऊँगा? मैं माँ-डैड से बात करने वाला हूँ... मुझे कुछ नहीं चाहिए... दहेज़ में... तुम्हारे माँ-डैड मुझे तुम्हें दे रहे हैं... यह क्या बड़ी बात है..."

    पाखी चेहरा उठाकर राजवीर की तरफ़ देखती हुई, "...क्या सच में आप मुझसे इतना प्यार करते हैं? क्या सच में आपकी लाइफ़ में मेरी इतनी इम्पॉर्टेंस है कि कोई और चीज मायने ही नहीं रखती ❤️"


    राजवीर पाखी के नज़दीक होकर उसको बाहों के हिसार में लेते हुए अपने गले से लगा लेता है। पाखी भी उसके सीने से लग जाती है। "...ज़िन्दगी में जब चाहे आज़मा लेना तुम... मुझे इतनी प्यारी हो... यह मैं शब्दों से बयाँ नहीं कर सकता... पाखी... जान भी दे दूँगा तेरे लिए..."

    पाखी राजवीर के गले से लगे हुए, "...कैसी बातें करते हैं... मुझे तो ज़िन्दगी जीनी है आपके साथ... प्यार के बीच मरने की बातें नहीं करते..."

    मगर एक बात तो तुम्हें सीखनी पड़ेगी पाखी।

    गले से लगे हुए पूछती है, "...बोलो, मैं सब सीख लूँगी..."

    "...यही कि सुहागरात कैसे मनाते हैं 😁..." पाखी नकली गुस्से से राजवीर के बाहों के हिसार से निकलते हुए, "...यही बातें करा लो बस आपसे... ऐसी ही आपकी बहन है..."

  • 16. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 16

    Words: 1002

    Estimated Reading Time: 7 min

    पाखी और उसका परिवार अपने शहर लौट गया। जाते-जाते पाखी अपना दिल वहीं छोड़ आई। उसे सच में राजदीप से प्यार हो गया था; वह बहुत खुश थी। वह सोच रही थी कि वह दिन कब आएगा जब वह उसकी हो जाएगी।

    वह सोच रही थी कि हम क्या सोचते हैं और क्या हो जाता है। वह राजदीप, जिससे वह झगड़ा करती थी, आज उसी से उसे प्यार हो गया था। रात को राज का फोन आया।

    "क्या कर रही थी?"

    "..कुछ नहीं, टीवी देख रही थी.."

    "मुझे पता है तुम मुझे याद कर रही थी; इसीलिए तो मैंने फोन किया.."

    दोनों की फोन पर घंटों बातें होने लगीं।


    राज ने पाखी से कितनी बार कहा, "...मैं तुम्हें मिलने आ जाता हूँ।" मगर पाखी नहीं मानी। उसने कहा, "...हम लोग एंगेजमेंट वाले दिन ही मिलेंगे..."

    "प्लीज यार...आने दो ना मुझे...हम दोनों मिलते हैं..." राजदीप ने पाखी की मिन्नत की।

    "...आपको आपके काम की तरफ ध्यान देना चाहिए। पूरा दिन खराब हो जाएगा आपका। आप कॉलेज के स्टूडेंट नहीं, डॉक्टर हैं..." पाखी उसे डाँटने लगी।


    "...मैं आपसे एक बात पूछूँ..." पाखी ने कहा।

    "...पूछने के लिए परमिशन थोड़ा ना चाहिए...पूछो, क्या पूछना चाहती हो..."

    "...आपको कब लगा कि आप मुझे पसंद करते हैं...?" उसकी बात सुनकर राजदीप हँसने लगा।

    "...आप हँस क्यों रहे हैं? बात ही कुछ ऐसी है कि मुझे कब पता चला...मुझे तुमसे प्यार हो गया..."

    "...प्लीज बताओ ना..."


    "तो सुनो, तुम्हें याद है...तुम, छीना दी और उसकी दो सहेलियाँ...एक का नाम नेहा था...दूसरी का नाम मालूम नहीं क्या था...एक फिल्म देखकर आए थे...उसमें हीरो-हीरोइन बहुत लड़ते थे...और उनके पेरेंट्स उनकी शादी करा देते हैं..." पाखी के चेहरे पर स्माइल सी आ गई। उस दिन की बात याद करते हुए वह बोली, "...आप कहाँ थे...उस वक्त ये बातें हो रही थीं...आप घर पर नहीं थे..."

    "...नहीं पाखी, पूरी बात तुम्हें नहीं पता...तुम तो गुस्से में शुरू में ही उठकर चली गई थीं...पूरी बात तो मैंने सुनी थी...छीना दी और उनकी सहेलियों की..." राज की बात सुन पाखी बोली, "...मतलब..."


    राज जोर-जोर से हँसने लगा।

    "...हँस क्यों रहे हो? मुझे पूरी बात बताओ..." पाखी उस पर गुस्सा होने लगी।

    "...ठीक है बाबा...शुरू से सारी बात बताता हूँ..."


    "...तुम्हें याद है...कॉलेज में कोरोना की वैक्सीन लगनी थी और हमारे ही कॉलेज की ड्यूटी लगी थी..."

    "हाँ, अच्छी तरह से याद है..."

    "जब मुझे इंजेक्शन लगना था...आप ही ने तो मेरी हेल्प की थी...इंजेक्शन लगवाने में...मैं तो बहुत डर रही थी...तब हम छोटे थे ना...सोचकर ही हँसी आती है..."

    "इंजेक्शन लगाने के दौरान तुम्हारा जिस तरह से मेरा हाथ पकड़ना...मेरे सब दोस्त मुझसे कहने लगे...कि तुम मुझे पसंद करती हो..."

    "ये बात आपके दोस्तों की गलत थी..."

    "...आपके दोस्तों की ये बात तो बिलकुल ही गलत थी..."

    "...गलत थी...चाहे ठीक थी...मेरे दिल में ज़रूर कुछ-कुछ होने लगा था..." राज हँसने लगा।


    "मेरे दोस्त कहने लगे थे...कि तुम भी उसे पसंद करते हो...और वो भी तुम्हें पसंद करती है...अब कहने को चाहे तुम लोग चाहे लड़ते रहो😊..."

    "...ठीक है राज...अब आगे बताओ...फिर क्या हुआ..."

    "...उस दिन तुम लोग जो फिल्म देखकर आई थीं...छीना दी और उसकी सहेलियाँ उस फिल्म की स्टोरी की तुलना हम दोनों से करने लगी थीं..."

    "...हाँ, मुझे पता है...इसीलिए मैं रूठकर चली गई थी..."

    "...तुम तो चली गई थी...लेकिन मैंने उनकी पूरी बात सुन ली...उन्होंने कहा अगर हम दोनों की शादी होगी तो हम लोग फेरों के टाइम पर लड़ पड़ेंगे...हाँ और हम दोनों को बच्चे😊 हम दोनों को लड़ने से हटाया करेंगे..."

    "...मैं तो यहीं से उठकर चली गई थी..."

    "...फिर उन लोगों ने कहा...हमारे बच्चे कैसे होंगे...जब हमें लड़ाई से फुर्सत नहीं होगी...तो छीना दी की सहेलियों ने कहा...कि हम लड़ाई दिन को कर लिया करेंगे...रात को🫣 प्यार..."

    "...इसीलिए आप इतने खुश हो रहे थे...उनकी बातें सुनकर...अब समझ में आया मुझे..."


    "...आगे तो सुनो, बीच में मत बोलो...फिर कहने लगी...जिसकी पाखी जैसी खूबसूरत वाइफ होगी...वह कैसे नहीं बहकेगा😁...पाखी को देखकर तो राज के अरमान😁 जाग जाएँगे..."

    "...उन लोगों को बिलकुल शर्म नहीं आई...ये सब बातें करते हुए..."

    "...अभी आगे और सुनो...फिर उन्होंने कहा कि तुम्हारी भाभी पाखी ही बनेंगी...हंड्रेड परसेंट श्योर है कि राज पाखी को पसंद करता है...जब राज पाखी से लड़ाई करता है तो उसकी तारीफ ही करता है...जैसे पाखी हॉस्पिटल में चेंज तो नहीं हो गई...ये आंटी आपसे कितनी गोरी❤️ है...पाखी तो मुझे अपनी बड़ी-बड़ी आँखों🥺 से डराया मत करो...कभी कहता है, 'ये काले बालों🥰 को खुला मत छोड़ो...भूतनी लगती हो...' मतलब राज को सारी बातें नोटिस हैं कि पाखी का रंग गोरा है...मोटी-मोटी आँखें हैं...काले लंबे बाल हैं...जब कोई किसी को पसंद करता है तो भी इतना डिटेल में बोलता है..."


    "...तो क्या आपको उनकी बातें सुनकर रियलाइज़ हुआ...मुझे पसंद करते हैं...?"

    "...और नहीं तो क्या? मुझे लगा बात तो सही है...अरमान तो मेरे तभी जाग😜 गए थे...जब मैंने उनकी बातें सुनी..." राजवीर पाखी से शरारत से बात करने लगा।

    "...शट अप राज..." गुस्से से बोली।

    "अरे यार मैंने तो कुछ कहा ही नहीं...जब करूँगा तब क्या होगा..." राज पाखी को छेड़ने लगा।

    "...प्लीज यार कोई और बात करो ना..."

    "...अगर पाखी तुम कहो तो मैं तुमसे रात को मिलने आ जाऊँ...चोरी-चोरी..."

    "...ठीक है, कल रात को आ जाना...मैं खिड़की खुली रखूँगी...मगर याद रहे...चोरी-चोरी आना है...घर में किसी को पता नहीं चलना चाहिए..." पाखी राज की टांग खिंचाई करने लगी।


    "...तो कल रात को आ रहा हूँ...तुमसे मिलने...चोरी-चोरी...खिड़की याद करके खुली रखना..."

    "...हाँ, बिलकुल खुली रखूँगी...मगर आपको आना पड़ेगा...कहीं बातें बनाकर मत छोड़ देना..." पाखी को लगा ही नहीं था कि राज उसे मिलने के लिए चोरी से आएगा। इसलिए उसकी खिंचाई कर रही थी।

  • 17. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 17

    Words: 623

    Estimated Reading Time: 4 min

    पाखी ने राज को रात को मिलने के लिए आमंत्रित किया था। उसे लगा था कि राजदीप उससे मिलने रात को नहीं आएगा। वह तो सिर्फ़ उसकी खिंचाई कर रही थी।

    अगले दिन पाखी राजदीप के बारे में ही सोचती रही। वह मन के किसी कोने में यह सोचने लगी कि सचमुच राजदीप आ गया तो। फिर अगले ही पल सोचती, यह नहीं हो सकता। पूरा दिन इन्हीं बातों को सोचते हुए निकाल दिया।

    वह बहुत खुश थी। सच में उसने सोचा नहीं था कि उसकी ज़िंदगी में ऐसे दिन भी आएंगे जब वह पूरे दिन-रात राज के सपनों में खोई रहेगी। जब शाम होने आई तो उसने राज को फोन कर लिया।

    "...जरा बताएँगे कि आप कहाँ तक पहुँचे... बस अभी रात होने ही वाली है..."

    "...वह क्या है कि होने वाली मिसेज़ डॉक्टर साहिबा... मैं आपके शहर से एक घंटा दूर हूँ... बस 1 घंटे में पहुँच जाऊँगा... अब इतना टाइम तो आपको इंतज़ार करना ही पड़ेगा... वैसे भी जब सब सो जाएँगे... तो मैं चोरी से आऊँगा... हाँ अपनी खिड़की ज़रूर खुली रखना... तुम्हारा कमरा ऊपर वाला ही है ना..."

    पाखी उसके बाद सुनकर हँसने लगी। उसे लगा कि वह उससे मज़ाक कर रहा है।

    "...बिल्कुल ऊपर वाला ही है मेरा कमरा... मैं अपनी पलकें बिछाए आपका इंतज़ार कर रही हूँ..."

    "...मुझे वहाँ पहुँचने पर क्या मिलेगा..."

    "...मिलेगा मतलब..." पाखी उसकी बात का मतलब पूछने लगी।

    "...अब मैं इतनी दूर से आ रहा हूँ... तो मुझे कुछ चाहिए होगा..." राजदीप ने अपनी बात दोहराई।

    "...देखो मुझसे डबल मीनिंग बातें मत करो..." पाखी उस पर झूठा गुस्सा होने लगी।

    "...अब इसमें डबल मीनिंग क्या हुआ... मैं तो तुमसे सीधा-सीधा पूछ रहा हूँ... मुझे क्या मिलेगा... अब मैं इतनी रात को आ रहा हूँ तुमसे मिलने... इतनी दूर से चलकर... अब दो-चार किस तो मुझे चाहिए ही होंगे..." राजदीप बड़ी बेशर्मी से बोला।

    "...चलो ठीक है... अगर आप 1 घंटे के अंदर-अंदर पहुँच गए... आपको जो मांगोगे वह मिलेगा..." पाखी ने उसे खुला निमंत्रण दिया था।

    "...अपनी बात से मुकरना मत..." राजदीप खुश होते हुए बोला।

    "...अरे बाबा नहीं... मुझे लगता है... मुझे माँ नीचे बुला रही है... अभी मैं जा रही हूँ..." पाखी अपना फ़ोन काटते हुए नीचे चली गई।

    रात का खाना खाने के बाद वह माँ के किचन में रसोई समेटने में मदद करने लगी। वह सारे काम ख़त्म करने के बाद रात को 10:00 बजे ऊपर आई। जब उसने लाइट ऑन की तो उसकी चीख़ निकल गई।

    "...आप तो सच में आ गए... मुझे तो लगा था मज़ाक कर रहे हैं..." राजदीप जो बड़े मज़े से उसके बेड पर लेटा हुआ था, उससे कहने लगी।😜

    "...क्या मतलब सचमुच आ गया... मैंने तुमसे कहा तो था... कि मैं 1 घंटे में पहुँच जाऊँगा... मैं तो यहाँ आधे घंटे से तुम्हारा वेट कर रहा हूँ... मगर तुम तो कमरे में ही नहीं आई... मैंने तुम्हें कितने मैसेज भी किए... जरा अपना फ़ोन तो चेक करो..." राजदीप की बात सुनकर पाखी को याद आया कि वह अपना फ़ोन तो टेबल पर ही भूल आई थी।

    पाखी अपना फ़ोन उठाने के लिए वापस जाने लगी।

    "...अरे तुम कहाँ जा रही हो..." राजदीप डर गया। उसे लगा कहीं वह अपनी माँ-बाप को तो बुलाने नहीं जा रही।

    "...बस मैं अभी आई... मेरा फ़ोन नीचे रह गया... अगर किसी ने आपके मैसेज पढ़ लिए तो पंगा हो जाएगा..." कहते हुए वह नीचे भाग गई।

    कमरे में वापस आकर उसने अच्छे से दरवाज़ा लॉक कर दिया। उसने सारी खिड़कियाँ भी अच्छे से बंद कर दीं। फिर वह राज के पास आकर बोली, "...आपको ऐसे नहीं आना चाहिए था... अगर किसी को पता चल गया तो कितना बड़ा पंगा हो जाएगा... वह तो मज़ाक रही थी... उसने सोचा नहीं था कि राज सचमुच आ जाएगा।"

  • 18. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 18

    Words: 811

    Estimated Reading Time: 5 min

    कमरे में वापस आकर उसने दरवाज़ा अच्छे से लॉक कर दिया। उसने सारी खिड़कियाँ भी अच्छे से बंद कर दीं। फिर वह राज के पास आकर बोली, "...आपको ऐसे नहीं आना चाहिए था... अगर किसी को पता चल गया... तो कितना बड़ा पंगा हो जाएगा..."। वह तो मज़ाक कर रही थी। उसने सोचा नहीं था कि राज सचमुच आ जाएगा।

    "...तुम इतना घबरा क्यों रही हो... कुछ नहीं होगा... डरो मत..." राज पाखी का हाथ पकड़ते हुए कहने लगा। "...डरूँ नहीं तो और क्या करूँ... अगर किसी को पता चल गया कि आप मेरे कमरे में हैं तो क्या होगा..."।

    राज खुद भी बेड पर बैठ गया और पाखी का हाथ पकड़कर उसे अपने पास बैठा लिया। "...वैसे अगर सबको पता चल गया...कि हम दोनों...रात को...सबसे चोरी-छुपे...एक साथ हैं...तो एक बात अच्छी होगी..."

    "...अच्छी होगी... क्या अच्छा होगा..." पाखी हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए बोली।

    "...देखो अगर हम दोनों आज रात को एक साथ रहते हैं...और सुबह सबको यह पता चलता है कि...तुम रात में मेरे साथ थी तो...सब लोग हमारी सगाई के दिन ही हमारी शादी कर देंगे...तुम समझ रहे हो ना मेरा मतलब..." राज शरारत से पाखी को कहने लगा।

    "...देखो अब हम बच्चे नहीं हैं...हम बड़े हो चुके हैं...आप वैसे भी डॉक्टर बन गए हो...आपकी अपनी एक रिस्पेक्ट है...ऐसी बातें करते हुए आप अच्छे नहीं लगते...मुझे बहुत डर लग रहा है..." पाखी अपने मन की बात बताती है।

    "...मुझे पता है...कि अब हम बच्चे नहीं हैं...इसीलिए तो चोरी-छुपे रात को आया हूँ तुम्हारे कमरे में...जब हम बच्चे थे...तब तो हमें कोई रोकता भी नहीं था...हम कभी भी एक-दूसरे के रूम में लड़ने के लिए जा सकते थे...अब तुम समझो ना..."

    "...क्या समझूँ..." पाखी उसकी बात सुनकर कहने लगी।

    "...यही समझो कि अब मैं तुमसे लड़ने तो नहीं आया हूँ...अब मैं इतनी दूर से तुम्हारे पास रात को आया हूँ तो मुझे कुछ चाहिए होगा...जो कुछ भी चाहिए होगा मैं आपको सगाई वाले दिन दे दूँगा...अब आप जहाँ से जाओ...मुझे बहुत डर लग रहा है..." पाखी बेड से खड़े होते हुए बोली।

    राज ने उसे उठने नहीं दिया। उसका हाथ पकड़कर उसे बैठा लिया और उसके कान के पास आता हुआ बोला, "...यार तुम इतनी अनरोमांटिक कैसे हो सकती हो...थोड़ी तो बड़ी हो जाओ...मैं इतनी रात को तुम्हारे पास आया हूँ...मुझे ऐसे तो मत चलता करो..." यह कहते हुए राज ने अपना चेहरा बहुत उदास कर लिया।

    तभी किसी ने दरवाज़ा खटखटाया। "...हे भगवान! अब कौन आ गया..." पाखी टेंशन में खड़ी हो गई। "...अब आप जल्दी से उठकर छुप जाएँ...मैं देखती हूँ कौन है..." राज उठकर पर्दे के पीछे चला गया। जब पाखी ने दरवाज़ा खोला तो सामने दादी माँ खड़ी थीं।

    "...अरे दादी माँ! आप यहाँ क्यों आईं...मुझे बुला लिया होता...सीढ़ियाँ चढ़ने से आपके घुटनों में दर्द होने लगता है..."

    "...अरे नहीं बेटा...आज मेरा मन था कि मैं तुम्हारे पास सो जाऊँ...इसलिए मैं आ गई...मेरी पोती की शादी हो जाएगी तो वह मुझसे दूर चली जाएगी..." यह कहते हुए वह कमरे में आकर उसके बेड पर बैठ गई।

    पाखी दरवाज़े पर खड़ी रह गई। "...अरे पाखी! तुम तो आओ बेड पर...तुम्हारा ही कमरा है...तुम तो दरवाज़े पर ऐसे खड़ी हो...जैसे किसी और का रूम हो..." दादी माँ उसे ऐसे खड़े देखकर कहने लगीं। दादी माँ की बात सुनकर पाखी को होश आया। वह भी जाकर दादी माँ के पास बैठ गई।

    "...तुम्हारे चेहरे पर 12 बज रहे हैं पाखी...क्या तुम्हें मेरा यहाँ आना अच्छा नहीं लगा..." दादी माँ उसे ऐसे चुप देखकर कहने लगीं। "...नहीं दादी माँ...यह आप क्या कह रही हैं..." कहते हुए पाखी दादी माँ के गले लग गई।

    "...आपका आना मुझे अच्छा क्यों नहीं लगेगा...मैं तो किसी और ही सोच में थी..." पाखी जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहने लगी।

    "...ठीक है आ जाओ...बेटा मुझे तुमसे बातें करनी हैं...मेरी प्यारी बच्ची आ जाओ मेरे पास..."

    बेचारा राजवीर पर्दे के पीछे दीवार से लगा हुआ अपना सिर पीट रहा था। दादी माँ को भी आज ही पाखी पर प्यार आना था। आज तो मेरा प्यार जताने का दिन था। अब मैं जहाँ फँस गया हूँ। दादी माँ को जल्दी नींद नहीं आएगी। मैं यहाँ से कैसे निकलूँगा। वह मन में सोच रहा था, "...अगर दादी माँ को पता चल गया...मैं पाखी के रूम में हूँ...कहीं मेरा रिश्ता ही ना पाखी से टूट जाए..."।

    उसके मन में पाखी और उसके रिश्ते को लेकर बुरे-बुरे ख्याल आने लगे। "...आज तो राजवीर तू गया काम से...तुझे क्या ज़रूरत थी...पाखी से मिलने आने की..." उसे वहाँ से जाने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था।

  • 19. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 19

    Words: 873

    Estimated Reading Time: 6 min

    उसके मन में पाखी और उसके रिश्ते को लेकर बुरे-बुरे ख्याल आने लगे। वह सोच रहा था, "...राजवीर, तूं तो गया काम से... तुम्हें क्या जरूरत थी... चोरी से पाखी से मिलने आने की..." उसे वहाँ से जाने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था।

    बेड पर बैठते ही दादी माँ बोलीं, "...वह पर्दा कैसे इकट्ठा हो रहा है... ठीक करके आओ... चलो, तुम रहने दो... मैं ही ठीक करती हूँ..." यह कहते हुए दादी माँ खड़ी होने लगीं।

    "मैं ठीक करती हूँ ना दादी माँ... आपके घुटने में दर्द पहले से ही हो रहा होगा..." पाखी जल्दी से खड़ी हुई। पाखी धीरे-धीरे खिड़की के पास पहुँच गई। वह मन ही मन राज को गालियाँ निकाल रही थी। "...आज लगता है... यह राज का बच्चा... मुझे भी फँसाएगा और खुद भी फँसेगा... इसकी वजह से मुझे पहले भी डाँट पड़ती थी... अब भी डाँट पड़ेगी..." अब उसी पर्दे के पीछे तो राज था, जिसे दादी माँ ने ठीक करने को कहा था।

    "...तुम पर्दे की तरफ क्या देख रही हो पाखी? जल्दी से ठीक करके आ जाओ... बहुत रात हो गई है... मुझे तुमसे ज़रूरी बात भी करनी है..."

    "...हाँ हाँ, दादी माँ, आ रही हूँ... मैं सोच रही थी... कि खिड़की खोल देती हूँ... बाहर से बहुत अच्छी हवा आती है... हमें बाहर की फ्रेशर हवा भी लेनी चाहिए... सेहत के लिए बहुत अच्छी होती है..."

    दादी माँ उसकी बात सुनकर पहले तो चुप हो गईं। फिर थोड़ी देर बाद कहने लगीं, "...ठीक है... पाखी, खोल दे खिड़की... आने दे ताज़ी हवा... रात को तो बहुत वैसे भी ठंडी हवा चलती है... यह नवंबर का महीना है... इन दिनों में बाहर का मौसम रात को बहुत अच्छा हो जाता है..."

    "...आप ठीक कहती हैं दादी माँ... दिसंबर के महीने में तो सर्दी स्टार्ट हो जाएगी... यह महीना बहुत सुहावना होता है..."

    "...मैं सोचती हूँ इसी दिसंबर के महीने में ही तुम्हारी शादी करते हैं... अगर 15 दिसंबर तक तुम्हारी शादी नहीं होती... फिर तो 15 जनवरी के बाद ही होगी... अब तुम बताओ कौन से महीने रखें तुम्हारी शादी..."

    "...अब मुझे क्या पता है... यह बात तो आपको देखनी है... कि शादी कौन से महीने में करनी चाहिए..." पाखी की बात सुनकर उधर राज को गुस्सा आ रहा था। वह सोच रहा था, "...शादी दिसंबर में होनी चाहिए... जनवरी तो बहुत लेट हो जाएगा... अब वह इस बेवकूफ को कैसे बताएँ..."

    "...चलो, शादी की तारीख तो तुम्हारे ससुराल वालों से पूछ कर रखेंगे... जैसा उन लोगों को ठीक लगेगा... वैसा ही करना पड़ेगा... तू मुझे यह बता, तुझे लड़का कैसा लगा..."

    "...मतलब..." पाखी ने अपनी दादी से वापस सवाल किया। क्योंकि वह जानती थी झूठ दादी से वह बोल नहीं सकती। अगर सच बोलेगी तो राज सुन रहा है।

    "...क्या मतलब... तुम्हें डॉक्टर राज कैसा लगा..." दादी ने उससे वापस सवाल किया।

    "...दादी, सवाल का जवाब देना ज़रूरी है क्या..." पाखी इधर-उधर देखते हुए पूछने लगी। उसकी बात सुनकर दादी थोड़ा कन्फ्यूज़ हो गईं। वह बेड से लेटे हुए उठकर बैठ गईं।

    "...दादी, आप बैठ क्यों रही हो..."

    "...पाखी, मुझे सच-सच बता... तुम्हें रिश्ता तो पसंद है ना... तुम मुझे नहीं बता रही कि तुम्हें लड़का कैसा लगा..." दादी माँ सचमुच परेशान हो गई थीं। उसे लगा कहीं ऐसा तो नहीं पाखी को कोई और पसंद हो और उसके दबाव की वजह से पाखी शादी के लिए मान रही हो।

    उधर राज के भी कान खड़े हो गए। उसकी दिलचस्पी इस बात में हो गई थी कि दादी-पोती क्या बातें कर रही थीं? इससे पहले राज कहाँ से कैसे निकले, इस बात के लिए परेशान था, मगर अब उसकी परेशानी दूसरी तरफ हो गई थी।

    "...अरे समझो ना दादी माँ... मेरे कहने का मतलब यह नहीं था... मुझे राज बेहद पसंद है... मैं बहुत खुश हूँ..." यह कहते हुए वह दादी माँ के गले लग गई। राज भी उन दोनों को पर्दे के बीच में से देख रहा था। उसने पाखी के फ़ोन पर मैसेज किया, "...गले तुम्हें दादी के नहीं... मेरे लगना चाहिए... तुम्हें मैं पसंद हूँ... शादी मुझसे होगी ❤️..." साथ ही उसने हार्ट वाली स्माइली भेजी थी।

    पाखी अपना फ़ोन चेक करने लगी।

    "पाखी, अब सो जाओ... बहुत रात हो गई है... सुबह फिर तुमसे उठा नहीं जाऊँगा... आजकल के इन बच्चों को तो फ़ोन सिवा कुछ और अच्छा ही नहीं लगता..."

    "...ठीक है दादी, कोई बात नहीं... आप सो जाओ... मुझे थोड़ा फ़ोन पर थोड़ा काम था... उसके बाद सोती हूँ..."

    "...हाँ, पता है आजकल तुम बच्चों के काम... आजकल के बच्चों को फ़ोन के सिवा कहीं ध्यान ही नहीं रहता..." कहते हुए दादी ने दूसरी तरफ अपना चेहरा घुमा लिया। दादी एक्साइड होकर सोने की कोशिश करने लगीं।

    "...हाँ, मुझे पता है... यही सब कुछ आता है आपको 😡..." पाखी ने गुस्से वाली स्माइली भेजी। पाखी ने राज को वापस मैसेज किया। राज के फ़ोन पर मैसेज की आवाज आई तो सबसे पहले उसने जल्दी से अपना फ़ोन साइलेंट पर किया। ताकि दादी को उसके फ़ोन के मैसेज की आवाज न सुने।

    "...फिकर मत करो, तुम्हें भी यह सब सिखा दूँगा...😜..." राज ने वापस मैसेज किया।

    "...मैं कोई बेशर्म थोड़ी हूँ... जो यह सब कुछ सीखूँगी 😡..."

    "...मेरे साथ तो... तुम्हें बेशर्म होकर ही रहना पड़ेगा...❤️..."

  • 20. Kahin pyar Na Ho jaaye - Chapter 20

    Words: 825

    Estimated Reading Time: 5 min

    "...मैं कोई बेशर्म थोड़ी हूँ... जो यह सब कुछ सीखूँगी...😡..."

    "...मेरे साथ तो... तुम्हें बेशर्म होकर ही रहना पड़ेगा...❤️"

    दोनों एक-दूसरे के साथ मैसेज पर ही रोमांस कर रहे थे। कभी लड़ते थे, कभी प्यार दिखाते थे।

    "...अगर हम दोनों को एक-दूसरे को मैसेज ही करने थे... तो क्या ज़रूरत थी मुझे यहाँ आने की🥺... इससे अच्छा तुम अपने बेडरूम में आराम से बिस्तर पर लेटकर मुझे मैसेज करता 😭...मैं दीवार के साथ खड़ा-खड़ा अकड़ गया हूँ... कुछ तो करो यार पाखी तुम..." राज का मैसेज पाखी के फ़ोन पर आया।

    "...अब आप ही बताओ... 😁मैं क्या कर सकती हूँ... किसने कहा था आपसे... रात को चोरी-छुपे मेरे कमरे में आने के लिए😱..."

    "...एक तो मैं तुमसे मिलने के लिए अपनी जान हथेली पर रखकर आया 🤨...दूसरा तुम मुझ पर प्यार जताने की जगह... मुझसे लड़ रही हो...😡"

    "...कोई बात नहीं, एक बार शादी हो जाने दो😜... फिर तुमसे सभी बातों का बदला लूँगा... तुम भी क्या याद करोगी..."

    "...आप मुझे डरा रहे हो... 😡 अच्छा हुआ मुझे पहले ही पता चल गया... मैं तो शादी ही नहीं करूँगी🫣..."

    "...कैसे नहीं करोगी जान🥰... वह तो तुम्हें मुझसे करनी ही पड़ेगी... मैं अभी दादी मां के सामने आ जाता हूँ... कहता हूँ कि मुझे पाखी ने बुलाया था... और आप आ गई, तू मुझे छुपा दिया... देखना ये लोग अभी के अभी हमारी शादी करके भी हमें यहाँ से भेज देंगे❤️..."

    "...देखो प्लीज़ ऐसा कुछ मत करना...
    मैं कुछ नहीं बोलूँगी दादी मां को🫣... वहीं पर छुपे रहो अभी आप... जब दादी मां सो जाएँगी... तो मैं आपको यहाँ से निकाल दूँगी..." पाखी को एक बार डर लगा कि कहीं सचमुच राज दादी मां के सामने ना जाए। क्योंकि जिस राज को वो जानती थी, वो उसे फँसाने के लिए कुछ भी कर सकता था।

    "...इतना डर क्यों रही हो... मैं तो तुमसे मज़ाक कर रहा था... तुम मुझसे वापस ये तो पूछ लो... मैं शादी के बाद उसका कैसे बदला लूँगा...😜"

    "...अच्छा तो फिर बताएँ... कैसे बदला लेंगे आप मुझसे... शादी के बाद..🤔"

    "...जैसे आज मैं तुम्हारी वजह से जाग रहा हूँ 😁... मैं भी तुम्हें रात-रात भर सोने नहीं दूँगा 😜 सारी रात जगाकर रखूँगा तुम्हें... ठीक है...❤️"

    "...अगर आप मुझे सोने नहीं देंगे 🤔 तो आपको भी जागना पड़ेगा... जब आप सो जाएँगे... पीछे से मैं सो जाऊँगी😂..."

    "...तुम्हें जगाने के लिए... मुझे तो जागना ही पड़ेगा... दोनों मिलकर ही तो जागेंगे... सारी-सारी रात...😜"

    "...तब तो मेरे साथ-साथ आपको भी तो सज़ा मिलेगी... रात को जागने की😥... तो आप आज जागकर क्यों दुखी हो रहे हैं🥺... तब भी तो आप मेरे साथ जागेंगे... आज भी तो हम दोनों ही जाग रहे हैं..."

    पाखी का मैसेज पढ़कर राज ने सिर पीट लिया। वह सोच रहा था,"...वह इस लड़की के साथ क्या रोमांस करेगा... रोमांस की तो इसे ए बी सी भी नहीं आती... मैं इससे क्या कह रहा हूँ... यह उसका क्या मतलब निकाल रही है... लगता है राज तुम्हारी सारी उम्र इस लड़की को रोमांस सिखाने में ही निकल जाएगी... लड़ाई जितनी मर्ज़ी कर लो... हर टाइम तैयार रहती है... अब इसे इतना भी समझ नहीं आ रहा है... इसको कि हम दोनों रात भर क्यों जागेंगे..." राज ने फिर पाखी को मैसेज किया।

    "...क्या तुम्हारी कोई सहेली है...😥"

    "...यह कैसा सवाल है🤨... सहेलियाँ तो सारी लड़कियों की होती ही हैं... मेरी भी हैं..."

    "...अच्छा तो फिर😜 जो मैंने तुम्हें रात को जगाने वाला मैसेज भेजा है... उसको मैसेज भेजकर उसका अर्थ पूछो..."

    "...मैं किसी को मैसेज भेजकर 😇... उसका अर्थ क्यों पूछूँ... वह कहेगी जिससे तुम्हारी शादी होने वाली है... वह कितना बुरा आदमी है... अभी से तुझको घरेलू हिंसा का डर दिखा रहा है... तुझको रात को सोने भी नहीं देगा... खुद मान रहा है...😥"

    "...प्लीज़ पाखी एक बार भेजकर पूछ तो लो☺️... खुद ही कहानियाँ मत बनाओ... सारे लोगों के दिमाग तो जैसे तेज😥 नहीं होते... कुछ लोग मेरे जैसे भी होते हैं...😜 सीधे-साधे😜..."

    "...ठीक है अगर आप इतना कह रहे हैं तो पूछ लेती हूँ..."

    "...पाखी तुम्हें सोना नहीं है... क्या अब सारी रात फ़ोन पर ही निकाल लोगी... सुबह उठना भी है... कल को तुम्हारे ससुराल वाले क्या कहेंगे... लड़की तो पूरा दिन-रात फ़ोन पर ही लगी रहती है... अपनी आदतों को ठीक करो पाखी... ऐसा ना हो कि तुम्हारे ससुराल वाले हमें सुनाएँ... तुम्हारी इस गलत आदत की वजह से..." दादी मां ने ज़बरदस्ती फ़ोन पकड़कर अपने तकिए के नीचे रख लिया।

    "...दादी मेरा फ़ोन मुझे दे दो... मैं अभी सो जाऊँगी... बस सिर्फ़ एक बार मुझे फ़ोन देखने दो..." पाखी ने दादी मां की मिन्नत की।

    "...नहीं, पता है मुझे... कब से देख रही हूँ... टिक-टिक-टिक लगाई है फ़ोन पर... सो जाओ चुपचाप... अभी तुम बच्ची नहीं हो... बड़ी हो गई हो... आज मेरी बात नहीं मान रही हो... कल को सास की बात कैसी मानोगी..."