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शिद्दत-ए-लम्स

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Talha

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रात के अँधेरे ने मुझे चारों ओर से घेर रखा था। हवाएं मुझे थपेड़े मारते हुए कानों में गुर्रा रही थीं। टहनियां मेरे बालों और टखनों को पकड़ने की कोशिश करती हुई स्किन को खरोंच कर ऐसे लाल निशान छोड़ दे रही थीं मानो उस जगह पर चाबुक पड़ा हो। धड़कने बहुत ज़्यादा बढ़...

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कृष

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Total Chapters (380)

Page 1 of 19

  • 1. Chapter 1 - जंगल में पीछा!

    Words: 983

    Estimated Reading Time: 6 min

    रात के अँधेरे ने मुझे चारों ओर से घेर रखा था। हवाएँ मुझे थपेड़े मारते हुए कानों में गुर्रा रही थीं। टहनियाँ मेरे बालों और टखनों को पकड़ने की कोशिश करती हुई, स्किन को खरोंच कर ऐसे लाल निशान छोड़ दे रही थीं मानो उस जगह पर चाबुक पड़ा हो। धड़कने बहुत ज़्यादा बढ़ी हुई थीं, पर सीने में दिल का स्थान खाली लग रहा था। उखड़ी हुई साँसों के साथ मैं नंगे पाँव काले जंगल में दौड़ रही थी। जिस्म पर कोई लिबास नहीं था। नब्ज़ कानों में शेर की तरह दहाड़ रही थी। तलवों में लकड़ियां और चीड़ की सुइयां चुभ रही थीं। टहनियां खुली स्किन पर वार कर रही थीं। सहसा एक उभरी हुई जड़ पिंडली से टकराई और मैं लड़खड़ा गई। जंगल के चीखते हुए सन्नाटे और अंधेरी रात मुझे बुरी तरह हौला रहे थे। किसी तरह मैं फिर से संभली और भागने लगी। पीछे भारी मर्दाना कदमों की धम-धम गूंज रही थी, जो पल-पल तेज़ होती जा रही थी। मेरे पीछे आने वाले के मुँह से धीमी गुर्राहट निकल रही थी, और मैं जंगल के भयानक सन्नाटे में उसकी साँस की आवाज़ भी साफ सुन रही थी। वह हैवानियत से भरा दरिंदा मुझ से बस कुछ ही इंच पीछे था। उसे अपने करीब आता महसूस कर मेरे शरीर में खौफ की सिहरन दौड़ने लगी। कुछ पल में वह इतना करीब था कि उसकी गर्म साँसें मेरी गर्दन पर पड़ने लगीं और उसकी उँगलियाँ मेरे लंबे बालों को छूने लगीं। अगले किसी भी पल वह मेरे बाल पकड़ कर मुझे ज़मीन पर पटकने वाला था। मैं रूंधे गले से चिल्लाई! बदन उसके स्पर्श के ख्याल से ही बुरी तरह कांप गया था। अब बस किसी भी पल वह मुझे पकड़ने वाला था। लेकिन डर ने अचानक से मुझ में इतनी ऊर्जा भर दी कि मैं पहले से तेज़ दौड़ने लगी। ठीक उसी तरह जैसे कोई गाड़ी पेट्रोल खत्म होते वक्त एकदम से तेज़ हो जाती है, मगर यह तेज़ी कुछ ही सेकेंड की होती है। मैं उसे काले पेड़ों और परछाइयों के बीच से दाएँ-बाएँ चकमा देती भागती और चीखती जा रही थी। टहनियां मेरे चेहरे और नंगे जिस्म को छीलते हुए मुझे पीछे धकेलने की कोशिश कर रही थीं, मानो ये भी उस शख्स की गुलाम थीं जो मेरा पीछा कर रहा था। मुझे पकड़वाने के लिए जंगल की हवाएँ तक कोशिश में लगी हुई थीं। वह मेरे करीब था। वही जिसका चेहरा मुझे दिख नहीं रहा था, मगर उसका गुस्सा, उसकी नफरत और...और उसके शैतानी इरादों का एहसास मुझे स्पष्ट हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे आज मेरा सबसे खतरनाक डर ज़िंदा होकर सामने आ गया था। मैं दो पेड़ों के बीच झुकी और एक झटके से बायीं ओर भागी। मुझे खुली जगह की तलाश थी। उसके क़दमों की थाप करीब और करीब आती जा रही थी। मेरा दिल दहाड़ रहा था। मांसपेशियाँ चिल्ला रही थीं और कोर अकड़ी हुई थी। मैं जबरन खुद को भगा रही थी, वरना पैरों में अब जान नहीं रह गई थी। "अगर मैं खुली जगह पहुँच जाऊँ तो शायद बच सकती हूँ," मैंने सोचा। "तब शायद मैं इस दरिंदे के चंगुल से निकल जाऊँ। हाँ, यही एक रास्ता है।" गले से निकलती घुटी हुई हंफनी के साथ मैं भागती रही। "सामने देख। पीछे मत देखना। डर को निगल जा। भाग-भाग।" कोई शार्प चीज़ मेरे नंगे पाँव के तलवे काट गई। मैं चिल्लाई, लड़खड़ाई, लेकिन खुद को संभाल लिया। उफ… बाल-बाल बची। शायद एक सेकेंड से भी कम दूरी थी हमारे बीच। तभी मुझे पीठ पर उसका क्षणिक स्पर्श महसूस हुआ और इससे पहले कि मैं अपनी गति बढ़ाती, उसके लोहे जैसे हाथ का शिकंजा मेरी गर्दन के पीछे कस गया। "ओ गॉड…" मेरी आँखें उभर आईं। चीखने से पहले ही गला चोक हो गया। एक गर्म लोहे जैसी बाँह मेरे बदन के चारों ओर लिपट गई। उसने झटका देकर मुझे अपनी नंगी त्वचा से सटा लिया और फिर मुझे ज़मीन पर पटक दिया। उसके वज़न के कारण मैं धरती पर इतनी बुरी तरह चिपकी थी कि सारे शरीर में चीड़ की सुइयां धंस गई थीं। शरीर का हर अणु बम की तरह फट पड़ा था। एक-एक नस चिल्ला उठी थी। साँस घुटने लगी थी और अंदर तक ऐसा दर्द महसूस हो रहा था जैसे मुझे आग में झोंका जा रहा हो। मेरी गर्दन पर उसका सख्त पंजा और स्किन पर उसकी स्किन का एहसास बहुत दर्दनाक था। वह मेरी गर्दन दबा नहीं रहा था, बल्कि अपने नाखून धँसा रहा था। मैंने चीखकर हाथ-पांव झटकने चाहे, पर कोई फायदा नहीं। उसने अपने होंठों को मेरे कान के पास रगड़ते हुए कहा – "मुझ से बचना मुश्किल…" मैं हाँफती हुई उठकर बैठ गई। साँस टुकड़ों में आ रही थी। मैंने दोनों हाथों से गर्दन पकड़ रखी थी और पैरों से लात मारकर कंबल उड़ा दिया था। कानों में कमरे की साँय-साँय गूंजने लगी। मैंने हलक के सूखेपन को निगला और खिड़की से आती भोर की आधी-अधूरी रोशनी को देखकर पलकें झपकाने लगी। नब्ज़ अभी भी रगों में चिल्ला रही थी और मैं पलकें झपका-झपका कर कमरे में चारों ओर देख रही थी। जंगल गायब हो चुका था। अँधेरा छंट चुका था। सपने से हकीकत में आ चुकी थी मैं। हालाँकि दिल की गहराइयों में उस खौफ़नाक दर्द की छटपटाहट अभी भी ज़िंदा थी। मैंने फिर से थूक निगला और आँखें मूँद लीं। मेरा एक हाथ अभी भी गर्दन पर था और मैं धीरे-धीरे इसे सहला रही थी। अजीब सी जलन महसूस हो रही थी, जैसे यह अब तक उस दहकते हुए हाथ के शिकंजे में थी। एसी की ठंडक में भी मेरा बदन पसीने से तर था। धीरे-धीरे धड़कनें धीमी होती गईं और पहले से खड़े रोएँगों में पसीने के कारण ठंडक दौड़ने लगी। रूँधा हुआ गला भी खुल गया और अब जाकर मुझे कुछ आराम महसूस हुआ था। क्षितिज पर रोशनी की मद्धिम सी झलक दिखने लगी थी, मगर सूरज अब भी दूर था। मैंने नाइटस्टैंड पर रखी घड़ी देखी। पाँच बजने में चार मिनट बाकी थे। To be continued…

  • 2. Chapter 2 - क्रिमिनल एम्पायर!

    Words: 1045

    Estimated Reading Time: 7 min

    मैं ने साँस छोड़ते हुए हाथों को घुमा कर खुद को बाहों में भर लिया। यह पहली बार नहीं था कि मुझे बुरा सपना आया था।

    अक्सर आते रहते थे और आमतौर पर मैं अपने साथ जानलेवा दुर्घटनाएं होते देखती थी। कभी पानी में डूब कर, कभी ट्रक से टकरा कर, कभी बिल्डिंग से गिर कर। लेकिन किसी भी सपने में इंसान, जानवर, शैतान, या वो जो अंधेरे में मेरा पीछा कर रहा था, ऐसा कुछ कभी नहीं दिखा था।

    मैं भवें सिकोड़ कर बैठी रही। आज का अलार्म मैं ने सुबह सात बजे का सेट किया था। मतलब अब से लगभग दो घंटे बाद का। लेकिन पिछले अनुभवों की बदौलत मैं जानती थी कि इतना बुरा सपने देखने के बाद अब नींद नहीं आने वाली।

    पहली बार मैं ने कुछ ऐसा देखा था जिस ने मुझे झकझोर डाला था।

    मेरी आंखें कमरे में घूमने लगीं। भोर के हल्के उजाले के कारण मैं कमरे के तामझाम को देख पा रही थी। पूरा कमरा सफेदी की चमकार बना हुआ था। ऐसा लगता था जैसे मैं किसी शोरूम में आ गई हूं। कमरे में ठंडक थी और इसे अच्छे से सैनिटाइज़्ड किया गया था।

    मैं दो साल से देश से बाहर यूनिवर्सिटी में पढ़ रही थी और इस दौरान किस ने मेरे कमरे को ये लुक दे दिया था मैं नहीं जानती।

    कम से कम मेरे डैड का काम तो नहीं था।

    क्रिमिनल एम्पायर चलाने वाले की भला इंटीरियर डिज़ाइनिंग में क्या दिलचस्पी हो सकती है?

    शायद ये मेरी सौतेली माँ श्री…श्री..जनुजा जी का काम था। उन्होंने कमरे से मेरे एक-एक निशान को मिटा डाला था। क्योंकि यही तो उन का पसंदीदा शगल था। मेरी हिस्ट्री मिटा कर उस औरत को असीम आनंद मिलता था।

    मेरी सोच डैड की हेड  हाउसकीपर और सभी नौकरों की चीफ सहाना की ओर मुड़ी। लेकिन फिर मैं इसे वापस अपनी सौतेली माँ पर ले आई थी।

    गहरे नीले रंग को सफेद में बदल देना और मेरे फेवरेट ऐक्टर-ऐक्ट्रेस के पोस्टर्स फाड़ देना उन के अलावा किसी और का काम हो ही नहीं सकता था।

    एक महीने से मैं घर पर थी और अपने कमरे को बिल्कुल वैसा ही बनाने की प्लानिंग पर अमल कर रही थी जैसा ये पहले दिखता था। वापस वैसे ही पोस्टर ढूंढ रही थी जो जाने से पहले मैं ने रूम की दीवारों पर चिपका रखे थे। मैगज़ीन की कतरनें निकालनी भी शुरू कर दी थीं ताकि उन्हें अपनी डेस्क के चारों ओर चिपका सकूं। मैं बस उस औरत को जलाना चाहती थी जिस ने इस कमरे में मेरी यादों को गधे के सर से सींग की तरह गायब कर दिया था।

    लेकिन पिछला महीना अनिश्चितता और उदासी की धुंध में ही बीत गया था।

    अपने बाप की मौत के बाद उन्हीं की हवेली में वापस आ कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी पराई जगह में आ गई हूं।

    हम कभी करीब नहीं थे। और मुझे हमेशा से मालूम था कि मैं उन की लाइफ में दूसरे नंबर पर थी। पहले पर वो अपने काम को रखते थे। और मुझे यकीन है कि अगर मैं उन से ये सवाल करती तो वो अपने काम को मुझ से ऊपर बताने में ज़रा भी गुरेज़ नहीं करते।

    लेकिन फिर भी माँ-बाप को खोने का दुःख हमेशा एक सा ही होता है। इस से उबरने में वक्त लगता है।

    मेरी नज़र साइड टेबल पर रखी वस्तु पर गई।
    केवल वही एक चीज़ थी जो इस बेडरूम में मुझे अपनापन महसूस करा रही थी। मेरे मॉम-डैड की फ्रेम्ड फोटो। वो मैं ने नौ साल की उम्र में खींची थी जब हम पेरिस गए थे। हमारे लिए वे बहुत हैरतअंगेज़ पल थे क्योंकि डैड पहली बार पब्लिक के बीच थे। वो और मॉम एक काँच के पिरामिड के पास खड़े थे। डैड को मुस्कराना नहीं आता था। उन के चेहरे पर हमेशा हिमालय की बर्फ जमी रहती थी। तस्वीर में भी वो ठंडे ही नज़र आ रहे थे। लेकिन मॉम की मुस्कान ने पूरी फोटो को जगमग रोशनी से भर दिया था। ऐसा लग रहा था कि उन के साथ खड़े होने के कारण डैड के चेहरे पर भी नूर(रोशनी) बरस पड़ा था। 

    मैं ने मॉम के चेहरे पर उंगलियां फेरीं। उन की मौत चार साल बाद भी वैसी ही टीस देती थी।

    तभी फोन की स्क्रीन रोशन हुई और मेरा दिमाग मॉम की यादों से बाहर निकला।

    लायरा ने टेक्स्ट भेजा था। वो हार्वर्ड में मेरी रूममेट हुआ करती थी।

    हैप्पी बर्थडे, रूमी! उम्मीद है आज तुम्हारा दिन बेहतर से भी बेहतर होगा। मैं हर सेकेंड तुम्हारे लिए अवेलेबल रहूंगी, जब मन करे कॉल कर लेना!

    मेरे होंठ मुस्कराने लगे।

    चलो, मेरी लाइफ में कोई एक इंसान तो है जिसे आज का दिन याद है।

    अब से कुछ ही समय पहले तक तो मैं और लायरा एक ही रूम में रहते थे। एक-दूसरे को परेशान करते और खूब मस्तियाँ करते थे हम। वो मेरी बेस्ट से भी बेस्ट फ्रेंड बन गई थी। फिर मुझे अचानक अपने बाप के अंतिम संस्कार के लिए वापस आना पड़ गया। लेकिन वो रोज़ कॉल या मैसेज से मेरा हालचाल लेती रहती थी।

    ज़िंदगी में पहली बार मैं ने एक सच्ची दोस्त पाई थी। क्योंकि ज़िंदगी में पहली बार ही तो मैं बाहर निकली थी। लेकिन अब फिर से उसी दुनिया में वापस आ गई थी जहाँ मैं, मैं नहीं कोई और थी।

    वो तान्या राव नहीं जो हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक होनहार छात्रा थी।

    बल्कि तान्या का वो वर्ज़न जिसे मैं ने यूनिवर्सिटी के दो सालों में दफनाने की कोशिश की थी – मेरा काला रूप। मेरी स्याह सच्चाई।

    यहाँ, मैं एक माफिया प्रिंसेस तान्या राव थी!

    तान्या जिसे बहुत जल्द माफिया पॉलिटिक्स में उतरना था क्योंकि एक महीने पहले मेरे बाप की मौत के साथ ही अब मैं आधिकारिक तौर पर राव ऑर्गेनाइजेशन की गद्दी की अगली उम्मीदवार थी। वो क्रिमिनिल एम्पायर जिसे कभी मेरे नाना संचालित करते थे।

    मेरी सौतेली माँ की कड़वाहट के लिए इतना काफी था।

    अभी तक मैं पूरी तरह से नई इन चार्ज घोषित नहीं की गई थी मगर जल्द ही हो जाने वाली थी। नानाजी ने अपने जीवनकाल में ही कुछ सलाहकारों को नियुक्त किया था जिन्हें 'हाई काउंसिल' कहा जाता था।

    नानाजी के बाद से काउंसिल ही अगले लीडर का फैसला करती थी। और लड़कियों को राव फैमिली के कानून के मुताबिक हमेशा एक ही फैसला सुनाया जाता था ― शादी का फैसला।

    To be continued….

  • 3. Chapter 3 - ए नाइटमेयर कम ट्रू!

    Words: 1063

    Estimated Reading Time: 7 min

    मुझे शादी करनी थी ताकि मेरा पति आ कर इस क्रिमिनिल ऑर्गेनाइजेशन को संभाले।

    यही कारण है कि नानाजी के निधन के बाद पापा इन चार्ज थे न कि नानाजी की अपनी बेटी, लक्षिता।

    राव ऑर्गेनाइजेशन में यही चलता था। ये हमेशा से पुरुष प्रधान था। ऐसा नहीं है कि मुझे इस से कोई दिक्कत थी क्योंकि मुझे अपनी फैमिली के क्रिमिनिल ऑर्गेनाइजेशन से कोई लेना-देना नहीं था। लेकिन जब से मेरी शादी का मुद्दा खड़ा हुआ था तब से मुझे दिक्कत ही दिक्कत हो चली थी। शादी मेरी ज़िंदगी की लिस्ट में सब से नीचे आती थी। मुझे अभी शादी नहीं करनी थी लेकिन अब मेरे सर पर बोझ आ पड़ा था।

    मैं ने सांस छोड़ी। नींद तो पांच बजे ही उड़ गई थी। तब से बिस्तर पर बैठी सोचों में ग़र्क थी, लेकिन अब बिस्तर से उठने का समय हो चुका था। मैं ने दूसरी बार लायरा का टेक्स्ट चेक किया और उस का हैप्पी बर्थडे पढ़ कर फिर से मुस्करा दी।

    आज मैं ऑफिशियली बाइस की हो चुकी थी।

    हालाँकि मुझे अपना बर्थडे अकेले या फिर घर के स्टाफ के साथ सेलिब्रेट करना था क्योंकि जनुजा मैडम किसी काम से पेरिस गयी हुई थीं।

    मुझे तो उन के ये सडन डिसीज़न रहस्यमय लगते थे।

    तभी मेरी नज़र उस किताब पर पड़ी जिसे पढ़ते हुए मैं कल रात सो गई थी। जब मैं घर वापस जाने की जल्दी में सामान पैक कर रही थी तो लायरा ने मुझे वो बुक गिफ्ट करी थी। बुक में थेम्स नदी के ऊपर उड़ान भरने वाली पहली फीमेल पायलट हैरिएट क्विम्बी की कहानी थी और सच कहूं तो मुझे वो कहानी बहुत पसंद आई थी।

    मैं ने वहीं से शुरू किया जहां छोड़ा था। लेकिन उस बेहतरीन किताब में भी मन नहीं लगा और मैं ने उसे फिर से बंद कर दिया।

    इस बार मैं बेड से पूरी तरह उतर ही गई और जा कर अलमारी में पहनने के लिए कोई अच्छा कपड़ा चूज़ करने लगी।

    मुझे उम्मीद नहीं थी कि इस घर में किसी और को भी ये दिन याद होगा लेकिन भाड़ में जाएं सब। मुझे परवाह नहीं थी कि किसे याद है और किसे नहीं। मुझे तो बस अपनी मनपसंद ड्रेस पहननी थी और खुद के साथ ही आज का दिन सेलिब्रेट करना था।

    फाइनली मुझे मेरी फेवरेट जींस और टी-शर्ट मिल गई।

    मैं ने उन्हें चेयर पर फेंक दिया जब मेरी नज़र एक रिंग वाली सिल्वर नेकलेस पर पड़ी। ये छोटा सा सिल्वर चेन नेकलेस चार साल पहले डैड ने मेरे बर्थडे पर दिया था। उस वक्त मॉम दुनिया से जा चुकी थीं। रिंग में एक टूटे पज़ल का टुकड़ा लटक रहा था जो दिल की शेप में था और डैड ने पहली बार इमोशनल होते हुए बताया था कि उन्होंने मुझे ये पज़ल हार्ट वाली चेन इसलिए दी है क्योंकि मैं 'उन के दिल का खोया हुआ टुकड़ा हूँ'।

    आज फिर उसे पहनते समय मुझे डैड की याद आ गई थी। मैं ने उसे धीरे से गर्दन में डाल कर छोड़ दिया और वो बड़ी नज़ाकत से मेरी छाती तक सरक गई। मैं ने साँस छोड़ते हुए अपने कोयले से काले बालों की पोनीटेल बनाई। जैसे ही मैं खड़ी हुई और कपड़े ले कर पलटी कि तभी मेरे कान के पर्दे एक दर्दनाक चीख से हिल गए!

    मैं जम गई! नब्ज़ चीखने लगी और कलेजा हलक में आ गया। धाँय! कहीं गोली चली और मेरी आंखें भिंच गईं। मैं बुरी तरह घबरा कर दरवाज़े की ओर देखने लगी।

    धाँय! धाँय!

    इस बार एक साथ दो गोलियां चली थीं और आवाज़ भी करीब से आई थी। मुझे स्टाफ की चीखें सुनाई दे रही थीं जिन में पहले से ज़्यादा खौफ शामिल था!

    मैं ने जो कपड़े निकाले थे उन्हें नीचे गिराया और बाथरूम के दरवाज़े की ओर भागी। अंदर पहुंच कर मैं एक सेकेंड के लिए रुकी। हाथ कांप रहे थे और धड़कनें कानों में गूंज रही थीं। मैं ने पलट कर दरवाज़ा बंद किया और खिड़की खोलने लगी।

    इस वक्त मैं केवल स्लीप शॉर्ट्स और बैगी टी-शर्ट में थी। पैरों में स्लीपर भी नहीं थी। अपने बेडरूम के करीब आती गोलियों की आवाज़ नज़रअंदाज़ करते हुए मैं ने एक पाँव चौखट पर जमाया। खिड़की के पीछे गुलाब से ढकी जाली थी और मेरा दूसरा पाँव उसी पर पड़ा।

    मैं ने दाँत भींच कर कांटों की चुभन को इग्नोर किया और जितनी तेज़ी से हो सकता नीचे उतर गई।

    जैसे ही पाँवों ने घास को छुआ वैसे ही मैं पलट कर दौड़ने लगी।

    गुलाब के बगीचे से सीधी घर के पीछे भागी थी मैं। सुबह की रोशनी अभी पूरी तरह से नहीं फैली थी।

    गन की आवाज़ें आनी बंद हो चुकी थीं। न ही कोई चिल्ला रहा था।

    माहौल में बस मेरी साँसों और धड़कनों की आवाज़ ही थी। बिल्कुल उस सपने की तरह जो मैं ने आज देखा था।

    मुझे दूर से गेट दिख रहा था। गेट के सामने ड्राइववे बना हुआ था। अगर मैं वहां पहुंच जाऊँ तो ड्यूटी पर मौजूद गार्ड को अलर्ट कर सकती हूं। अगर कोई न भी हुआ तब भी मैं बच कर भाग निकलूंगी।

    अचानक मुझे एहसास हुआ कि मैं ने अपना फोन अपने कमरे में छोड़ ही दिया है।


    कोई बात नहीं। एक बार गेट तक पहुंच जाऊँ। उस के बाद शहर में जा कर किसी से फोन मांग…

    मेरे हलक में एक चीख अटक कर रह गई जब एक कठोर मांसल हाथ मेरी गर्दन के चारों ओर लोहे की तरह लिपट गया था!

    दूसरा हाथ मेरी कमर से लिपटा और मेरा पूरा वजूद डर से ऐंठ गया। फेफड़े हवा के लिए छटपटाने लगे और नब्ज़ पहले से तेज़ हो गई। मेरी पीठ किसी पुरुष के चट्टान जैसे कठोर शरीर से चिपकी हुई थी। उस की गर्म साँसों ने मेरी गर्दन के रोएं खड़े कर दिए थे।

    मैं पकड़ी जा चुकी थी। भागने का कोई रास्ता नहीं था। बिल्कुल उस सपने की तरह।

    लेकिन इस सपने से मैं जागने वाली नहीं थी।

    एक क्रिमिनिल की बेटी होने के बावजूद मैं ने ऐसा खौफ पहले कभी महसूस नहीं किया था। क्योंकि बाप भले क्रिमिनिल था पर मैं शहज़ादियों की तरह पली बढ़ी थी। उस ने मुझे पकड़ा हुआ था और मेरा पूरा बदन सख्त हो रखा था। एक कोकून की तरह अपने आप में ही सिकुड़ी हुई थी मैं। वो खामोश था और हम तेज़ी से आगे बढ़ रहे थे ― या यूं कहूँ कि वो मुझे गार्डन में खींचता हुआ घर के सामने की ओर ले जा रहा था।

    To be continued…

  • 4. Chapter 4 - ट्रबल-ट्रबल!

    Words: 1046

    Estimated Reading Time: 7 min

    ड्राइवर साइड का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई।

    आँखों पर पट्टी होने के कारण मैं देख तो नहीं सकती थी पर मुझे सब महसूस हो रहा था। जब उस ने अंदर आ कर दरवाज़ा बंद किया तो कार थोड़ी हिल सी हिली।

    अगले पल गाड़ी हवा से बातें कर रही थी।

    आज मेरा बाइसवाँ बर्थडे था और मैं हथकड़ी में थी। आंखों पर पट्टी थी और मैं एक कार की पिछली सीट पर मुंह के बल पड़ी थी। कार चलाने वाला जाने कौन था? जाने कहाँ से आया था? उस ने घर में घुस कर मुझे किडनैप किया था और अब जाने कहाँ लिए जा रहा था।

    भगवान ही जाने क्या हो रहा था मेरे साथ।

    मन में ऐसे-ऐसे ख्याल आ रहे थे कि घबराहट शांत नहीं हो रही थी!

    धीरे-धीरे खौफ गुस्से की लहर में बदलने लगा जो इतनी खतरनाक थी कि मेरी दहशत भी इसे रोक नहीं पा रही थी।

    जब मैं पहली बार हार्वर्ड पहुँची तो वहां नए स्टूडेंट्स के लिए एक सेमिनार आयोजित किया गया था। जिस में हमें शहर की जानकारी देते हुए बताया गया था कि यहाँ अपराध ज़्यादा होते हैं और आप को होशियारी के साथ रहना है। लड़कियों को ख़ासतौर से लड़ाई के बारे में सिखाया गया था। नहीं कुछ तो चीख-चिल्ला कर अपने आप को जितना मुमकिन हो उतना विज़िबल करने की सलाह दी गई थी। ताकि दूर से भी आप की आवाज़ सुनने वाले को पता चल जाए कि वहाँ कुछ गलत हो रहा है।

    और अचानक जैसे मुझे समझ आ गया कि क्या करना है।

    मैं जितनी जोर से चिल्ला सकती थी, चिल्लाने लगी। सीट पर उछलना और लात चलाना भी शुरू कर दिया। मेरे नंगे पैर डोर के आर्मरेस्ट से टकरा कर दर्द करने लगे मगर मैं रुकी नहीं।

    दोबारा किक मारी और इस बार पहले से ऊंची। इसी के साथ मुझे अपनी एड़ी खिड़की से टकराती महसूस हुई।

    "उछलना बंद करो," ड्राइविंग करता इंसान फुसफुसाया।

    उस ने एक्सलरेटर पर जोर से पैर मारा और कार की स्पीड ज़न से बढ़ गई। मैं तिरछे अंदाज़ में सीट पर गिर पड़ी।

    लेकिन मैं ने चिल्लाना नहीं छोड़ा और न ही लात चलाना। तब तक पाँव चलाती रही जब तक कि मेरे पैरों को एक बार फिर कांच नहीं मिल गया।

    "मैं ने कहा उछल कूद बंद कर!" इस बार वो तेज़ आवाज़ में चिल्लाया था।

    मैं काँप गई मगर खुद पर उस का असर नहीं होने दिया और खुद से कहा – हरगिज़ नहीं बंद करूंगी।

    आख़िर में उस के मुंह से गालियां निकलने लगीं और  कार सड़क के किनारे घूम गई जिस से मैं धक्का खा गई। टायरों ने डामर छोड़ दिया था और अब उन के नीचे कंकड़ और गिट्टी की चीत्कार गूंज रही थीं। उस ने जोर से ब्रेक लगाया और इंजन बंद होने से पहले ही मैं सीट से नीचे गिर गई।

    गला जल रहा था लेकिन मैं चिल्लाती रही। लात मारती रही। कार रुकने से मेरी उम्मीद बढ़ गई थी और मैं ऊपरवाले से प्रार्थना करने लगी कि कोई मेरी आवाज़ सुन ले। या कार को हिलता देख खुद ही देखने चला आए कि यहाँ हो क्या रहा है?

    मैं ने कार का दरवाज़ा खुलने और बंद होने की आवाज़ सुनी। मेरी नब्ज़ पागलों की तरह भागने लगी जब मेरे पैरों के पास दरवाज़ा झटके से खुला और आवाज़ आई –"मेरी बात समझ में नहीं…"

    मैं ने दोनों पैर घुटनों तक मोड़ रखे थे और जैसे ही उस ने दरवाज़ा खोला तो जितनी ज़ोर से हो सकता था मैं ने पैरों को खोल दिया जो उस की गर्दन और चेहरे पर लगे। उस के हलक से एक घुटी हुई कर्कश गुर्राहट निकली।

    किसी तरह अपने डर को कंट्रोल कर मैं आगे बढ़ी। कार से बाहर निकली और ठोकर लग कर मुँह के बल गिर पड़ी।

    उधर वो शख्स भी वापस पलट रहा था। मैं पूरी ताकत जुटा कर उठी और भागना शुरू कर दिया।

    "हेल्प!" मैं चिल्लाई। चीख-चीख कर अपने हलक की दुर्गति कर दी थी मैं ने। आग की तरह जल रहा था मेरा हलक। "हेल्प मी! हेल्प…"

    अचानक चीखों के साथ-साथ साँस भी रुक गई जब एक हाथ मेरे गले के चारों ओर धातु की तरह लिपट गया। उस ने मुझे पीछे खींचा और चुप कराने के लिए दूसरा हाथ मुंह पर रख दिया… बल्कि पटक दिया था। मैं पुनः उस की चट्टान जैसे सख्त सीने से चिपकी हुई थी। मैं ने छटपटाते हुए बेतहाशा लात चलाई। लेकिन इस बार वो तैयार था।

    इस बार मेरे पैर उसे छू भी नहीं पा रहे थे।

    "तुम्हारे सामने तीन कदम की दूरी पर चार सौ फुट गहरी खाई है।"

    सुनते ही मेरा मुँह सूख गया और मैं बुत सी हो गई। हवा का एक झोंका आया और मेरी स्किन को छू कर टी-शर्ट के किनारों को लहर दे कर गुज़र गया था।

    मैं ने थूक निगलने की कोशिश की लेकिन हलक की गांठ गले के चारों ओर लिपटी मांसल भुजा के कारण नीचे नहीं सरक पाई। मेरा दिमाग तेज़ी से चल रहा था और मैं सोचने की कोशिश कर रही थी कि ये कौन सा इलाका हो सकता है जहाँ खाई है।

    लेकिन कुछ समझ नहीं आया क्योंकि हमें इस शहर में आए हुए सिर्फ चार-पांच साल ही हुए थे और मैं इस के बारे में बहुत कम जानती थी।

    मुझे नहीं मालूम था कि मैं कहाँ थी और पता नहीं वो सच बोल रहा था या बस मुझे डरा रहा था।

    उस का एक हाथ मेरी गर्दन के गिर्द लिपटा हुआ था और दूसरा मुंह पर था। मेरी आंखों पर अभी भी पट्टी थी, हाथ हथकड़ी से पीछे बंधे हुए थे।

    अचानक, हम फिर से आगे बढ़े। लेकिन इस बार वो मुझे कार के पीछे ले जा रहा था।

    दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और मैं तेज़ स्वर में हाँफ गई जब उस ने मुझे गाड़ी में डालने के लिए दोनों बाहों में जकड़ कर उठाया।

    इस दफा मैं बैक सीट नहीं बल्कि ट्रंक में घुसाई जा रही थी।

    मेरी घबराहट चरम पर पहुंच गई। लेकिन अब मैं कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं थी। वो तुरंत मेरे ऊपर आया, दोनों टखनों के चारों तरफ रस्सी लपेटी और पैरों को कस कर बांध दिया। फिर पैरों को खींच कर इन्हें ट्रंक की दीवार से बांध दिया। एक और रस्सी मेरी कलाइयों के गिर्द लिपटी और फिर इन्हें भी दीवार से बांध दिया गया था।


    To be continued…

  • 5. Chapter 5 - इन द प्लेन!

    Words: 1033

    Estimated Reading Time: 7 min

    हालांकि मुझे यकीन नहीं था कि हमारे आस-पास कोई है लेकिन फिर भी मैं ने चिल्लाना शुरू कर दिया था।

    ठीक उसी समय कपड़े का एक मोटा गट्ठा मेरे होठों के बीच घुसा दिया गया।

    यानी अब उस ने मेरी आवाज़ का रास्ता भी बंद कर दिया था। मैं तब भी चिल्लाती रही, लेकिन अब आवाज़ इतनी दबी हुई निकल रही थी कि मुझे भी मुश्किल से सुनाई दे रही थी।

    फिर उस ने एक भी शब्द कहे बिना ट्रंक का दरवाज़ा ज़ोर से बंद किया और मैं हदस कर खामोश हो गई थी। मैं ने ड्राइवर डोर को फिर से खुलते हुए सुना और महसूस किया।

    उस के अंदर बैठते ही रेंज रोवर में हलचल हुई और गाड़ी फिर सड़क पर पहुँच गई।

    मैं ने रास्ते को याद करने की कोशिश शुरू कर दी। गाड़ी कभी लेफ्ट होती तो कभी राइट और मैं बेहद ध्यान से याद करती जा रही थी। लेकिन जल्द ही मुझे एहसास हुआ कि गाड़ी जहाँ रुकी थी उस जगह के बारे में जाने बिना, मेरी ये कोशिश निरर्थक है। अपने डर की वजह से मैं समय का पता भी खो चुकी थी। क्या मुझे घर से निकले हुए एक घंटा हो चुका था? या दस मिनट?

    अब मैं बस इतना ही कर सकती थी कि ट्रंक में खुद को चोटों का शिकार होने से बचाऊँ।

    इस के अलावा बराबर साँस लेने की भी कोशिश करनी थी ताकि दम न घुटे और साथ ही अपने दिल को छाती से बाहर निकलने से भी रोकना था।

    एक अनजान स्थान पर कार रुकी और इंजन बंद हो गया। ट्रंक खुलते ही मैं ने खुद बाहर निकलने की कोशिश करी लेकिन रस्सियों ने ​रोक दिया था। मेरी नाकाम कोशिश पर वो खूब मज़े से हंसा। वही राक्षस जिस ने देखते-देखते मुझे इस हाल में पहुंचा दिया था कि मैं हिलने-डुलने के भी काबिल नहीं थी।

    उस ने रस्सियां खोलीं और फिर उस के शक्तिशाली हाथों ने मुझे कस कर दबोच लिया।

    "तुम ने पहले जो किया था उसे दोबारा करने की कोशिश भी मत करना वरना वादा करता हूं कि अंजाम तुम्हारी सोच से भी बुरा होगा।"

    दूसरी परिस्थिति में मेरे कानों में पड़ी वो गहरी और मीठी आवाज़ रीढ़ में एक अलग तरह की सिहरन पैदा करती। लेकिन इस वक्त जो परिस्थिति थी उस के कारण मुझे उसे सुन कर बस एक ही सिरहन महसूस हुई थी। ख़ौफ़ की सिहरन! मौत की सिहरन!

    मैं हाँफ गई जब उस ने मुझे झटका दे कर उठाया और अचानक अपने चौड़े कंधे पर डाल लिया।

    मैं काँपने लगी थी। धड़कनें फिर तेज़ हो गई और वो मुझे ले कर कार से दूर जाने लगा। हम शायद शहर से बाहर थे और यहाँ किसी तरह की मशीन या इंजन की तेज़ आवाज़ आ रही थी।

    अचानक मैं सख्त हो गई!

    वो एक जेट इंजन की आवाज़ थी! एक प्लेन जब उड़ान भरने के लिए चालू हो रहा हो रहा होता है तो वैसी ही आवाज़ निकालता है।

    वो, वो आवाज़ थी जो मुझे हमेशा के लिए गायब करने जा रही थी।

    मैं उस राक्षस की लास्ट वॉर्निंग की परवाह किए बिना फिर से चिल्लाई और लातें मारने लगी। लेकिन इस बार भी वो तैयार था। न सिर्फ मेरी लातों से बच गया बल्कि मुझे अपनी भुजाओं में सख्ती से दबोच कर प्लेन की सीढ़ियां चढ़ने लगा। मैं लात चला रही थी और उस पर चिल्लाते हुए छूटने की कोशिश कर रही थी।

    'ह्यूमन ट्रैफिकिंग' और 'सेक्स स्लेवरी' जैसे शब्द मेरे दिमाग में फुदक रहे थे। मैं अंदर तक हिली हुई थी लेकिन अपनी ताकत और हिम्मत का एक-एक कतरा समेट कर उस से लड़ने की कोशिश कर रही थी। मैं उस पर कई वार करने में कामयाब रही लेकिन कोई फायदा नहीं मिला।

    अगले पल उस ने मुझे कंधे से उतार कर एक गद्देदार सीट पर पटक दिया और मेरे शरीर पर ऊपर से नीचे तक रस्सी बांधने लगा।

    मैं ने लात चलाई, तड़पी, लेकिन रस्सी कसती चली गई। जल्द मेरा पेट, ऊपरी छाती और दोनों हाथ रस्सी की सख्त पकड़ में थे।

    फिर एक रस्सी टखनों में लिपटने लगी और फिर टखनों को जिस सीट पर मैं थी उसी से बांध दिया गया।

    फिर मैं ने उस के बैठने और सीट बेल्ट बांधने की आवाज़ सुनी। वो मेरे पास ही था। जिन आँसुओं को रोकने की मैं सख्त कोशिश कर रही थी वे आखिरकार मेरी आँखों से बहने लगे। लेकिन मेरे दुःख और तकलीफ से भरे हुए आँसुओं को वो पट्टी निगल जा रही थी जिस ने मेरी आँखों से देखने की इजाज़त छीन रखी थी।

    इंजन ने तेज़ आवाज़ करी जब प्लेन आगे की ओर शूट हुआ। मैं उसे हवा में ऊपर उठते हुए फील करने लगी और अंत में पहियों के अंदर घुसने की आवाज़ ने मुझे कंपकपा डाला।

    वक्त फिसलता जा रहा था। लेकिन इस का कोई मतलब नहीं क्योंकि मेरे पास वक्त का हिसाब रखने का कोई तरीका ही नहीं था।

    मुझे किडनैप करने वाला बिल्कुल शांत बैठा था। इस हद तक कि मुझे हैरानी हो रही थी कि वो प्लेन में था भी या नहीं। शायद उस का काम बस मेरे घर में घुस कर, गोलियां चला कर मुझे किडनैप करना था और अब मैं उस शख्स के पास जा रही थी जो मेरे जिस्म को किसी दूसरे राक्षस को बेचने वाला था।

    मैं अपना अंजाम सोच-सोच कर हौल रही थी। खुद पर काबू रखने की जीतोड़ कोशिश के बावजूद भी कोई फायदा नहीं हो रहा था।

    बुरे विचार दिमाग से निकलने का नाम ही नहीं ले रहे थे। मुझे कंपकपी शुरू हो गई और मैं हिचकियाँ ले-ले कर सिसकने लगी। आँसू बिना रुके बह रहे थे।

    अचानक, कोई चीज़ मेरे हाथ से टकराई। मैं चुप हो गई और फिर लगा किसी की उंगलियां मेरे मुँह से कपड़ा निकाल रही हैं।

    हालांकि मैं ज़रा भी नहीं चौंकी थी कि ये कौन है? क्योंकि एक जानी-पहचानी मर्दाना गन्ध मेरे नथुनों में समा रही थी। वो वही था। किडनैपर।

    यानी पूरा समय प्लेन में ही था वो।

    उस ने मेरे होठों से कपड़ा हटाया और जब वो मेरे करीब झुका तो मैं उस की तपिश महसूस कर के कांप गई। "अगर चिल्लाई तो प्लेन की खिड़की खोल कर नीचे धकेल दूँगा। समझ में आ गया तो सर हिला कर बताओ।"

    मैं ने कठोरतापूर्वक सर हिलाया।

    "गुड गर्ल।"


    To be continued…

  • 6. Chapter 6 - अब क्या होगा?

    Words: 1032

    Estimated Reading Time: 7 min

    मैं ने थूक निगला।

    "लो। इसे पी लो।"

    मैं ने पलकें फड़फड़ाईं जब प्लास्टिक का एक स्ट्रॉ मेरी आंखों के सामने लहराया। मैं ने होंठों को कस कर दबाया और उस से दूर होने की कोशिश में सीट के अंदर धंस गई। उस ने ज़ोर से आह भरी।

    "यह पानी है और तुम मेरे प्लेन में एक सीट से बंधी हुई हो। अगर मैं तुम्हें नुकसान पहुंचाना चाहता तो ये स्ट्रॉ तुम्हारे सामने करने की बजाए डायरेक्ट मुँह में घुसा देता।"

    मैं ने अपने होंठों को बंद ही रखा।

    "जैसा तुम चाहो।" वो स्ट्रॉ के साथ मुझ से दूर हट गया और मैं ने उस के सीट पर बैठने की आवाज़ सुनी। धीरे-धीरे वक्त सरकता रहा और अब सिवाए प्लेन की आवाज़ के कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।

    बदकिस्मती ने न जाने क्या प्लान कर रखा था मेरे बारे में और यही सोच-सोच कर मैं और ज़्यादा हलकान हो रही थी।

    ये शख्स मेरे साथ क्या क्या करने वाला है ये सोच कर ही मैं काँप जा रही थी।

    मैं ने निगलना चाहा लेकिन मुझे अपने गले में रेगिस्तान का एहसास हुआ। मेरे सूखे होंठों ने दर्द के साथ एक-दूसरे को छुआ।

    "चलो अब तो पी लो।" लहजा मज़ाकिया या गर्म नहीं था बल्कि आदेशात्मक था। वो मुझ से पूछ नहीं रहा था कि मैं पानी पियूंगी? बल्कि पीने का हुक्म दे रहा था।

    मैं ने उस के फिर से खड़े होने की आवाज़ सुनी और वो मेरे पास आ गया। लेकिन इस बार उस की उंगलियों ने मेरी आंखों से पर्दा हटा दिया था। तुरंत उस की आइस-ब्लू आँखें मेरी आत्मा में चुभने लगीं। मैं पीछे हट गई। उसे इतना करीब देख कर मैं बुरी तरह हैरान हुई थी!

    एक बार फिर उस की खतरनाक खूबसूरती मेरे सामने थी। उस के मज़बूत, धारदार जबड़े पर महीन दाढ़ी थी। कॉलर के नीचे गर्दन पर टैटू की इंक दिख रही थी और ठीक वैसा ही टैटू मुड़ी हुई आस्तीन से भी बाहर झाँक रहा था।

    उस के बाइसेप्स और कंधों की उभरी हुई मांसपेशियाँ, मोटी बांहों की नसें, सब जानलेवा थीं।

    उस के हिप पर एक होलेस्टर था जिस में गन रखी थी।

    हम चीज़ों से भरे हुए एक छोटे से प्राइवेट जेट के केबिन में बिल्कुल अकेले थे। वो टैटू वाले हाथ में एक स्ट्रॉ के साथ पानी का कप पकड़े हुए था। बिना पलक झपकाए और मेरी ओर से नज़र हटाए वो स्ट्रॉ को अपने मुंह में ले गया और उस के चारों ओर अपने होंठों को बंद कर के एक सिप ली और निगलने के बाद भौंह टेढ़ी कर के मुझे देखा मानो कह रहा हो ― "देखा? कुछ नहीं है।"

    फिर वही स्ट्रॉ मेरे मुँह के पास लाया। मैं भले ही अब तक काँप रही थी लेकिन इस बार स्ट्रॉ अपने होंठों के बीच डाल कर पानी पीने लगी।

    "गुड गर्ल।"

    उस के मुँह से ये शब्द सुन कर मुझे अपना चेहरा गर्मी से लाल पड़ता महसूस हुआ। जब मैं ने पानी की एक-एक बूंद हलक में उतार ली तो उस ने कप वापस खींच लिया।

    "हम जल्द ही उतरेंगे।" उस ने बताया तो मेरी भवें आपस में जुड़ गईं। होंठ अलग हुए और मुंह से निकला – "हम कहाँ…"

    पर बात पूरी होने से पहले ही उस ने दोबारा मेरी आँखों पर पट्टी खींच दी और मैं तड़फड़ा कर रह गई। लेकिन अब वो मेरे मुँह में कपड़ा नहीं ठूंस रहा था। वो खामोशी से वापस अपनी सीट पर बैठ गया और एक क्लिक के साथ अपनी सीट बेल्ट बांध ली। जैसे ही मैं ने महसूस किया कि प्लेन नीचे उतर रहा है तो मेरा पेट फूलने लगा।

    कोई एनाउंसमेंट नहीं हुई थी। प्लेन अनायास ही नीचे होने लगा था। अचानक एक झटका लगा, पहियों ने ज़मीन छुई और मेरी साँस अटक गई।

    धड़कनें कानों में धम-धम बजने लगीं और भूख के कारण पेट दर्द करने लगा।

    आख़िरकार प्लेन रुक गया और मेरा सर चकराने लगा। मैं ने उस शख्स के उठने की आवाज़ सुनी।

    "एक बात बता दूं कि तुम्हारा मुँह बंद न कर के मैं ने तुम्हें एक विशेषाधिकार दिया है और अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो इस का ना-मुनासिब(गलत) इस्तेमाल नहीं करता।"

    उस ने मुझे खोल दिया और मैं रो पड़ी जब उस ने मुझे सीट से खींच कर दोबारा अपने कंधे पर डाल लिया। हम सीढ़ियों से नीचे उतरे और मुझे फिर से एक कार की बैक सीट पर फेंक दिया गया।

    मेरा डर अब पहले से ज़्यादा बढ़ चुका था। मेरा हर हिस्सा रोना चाहता था, रहम की भीख मांगना चाहता था। मैं उस से विनती करना चाहती थी कि मुझे चोट न पहुंचाए, मुझे न छुए। ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अंदर छुपी कोई भयंकर काली आवाज़ मुझे आगाह कर रही थी कि मेरे साथ बहुत बुरा होने वाला है।

    लेकिन मैं चाह कर भी अपना मुंह नहीं खोल पाई। मुझे उस की वॉर्निंग याद आ गई थी।

    गाड़ी स्टार्ट हुई और चलने लगी। मैं खामोशी से पड़ी रही लेकिन भीतर से बहुत बुरी टूट-फूट का शिकार थी मैं।

    एक बार फिर उस ने मुझे आसानी से कार से बाहर निकाला और आगे बढ़ने से पहले अपने कंधे पर डाल लिया। पहले उस ने फुटपाथ पार किया, फिर बजरी पर चलने लगा और फिर ठकठक गूंजती लकड़ी पर।

    फिर वो तेज़ी से नीचे उतरा और मुझे आभास हुआ कि वो किसी चट्टान पर खड़ा था।

    तभी पानी की कल-कल सुन कर मैं काँप गई!

    अब हम एक बोट पर थे।

    उस ने मुझे किसी तरह की बेंच पर बिठाया और मेरी कलाइयों को पीछे किसी चीज़ में बाँध दिया। इंजन की गड़गड़ाहट के साथ बोट में जान आ गई और उस ने लहरों पर दौड़ना शुरू कर दिया था।

    वक्त बीतता जा रहा था और मेरा दिल समुद्र की लहरों के बीच उछलती बोट के साथ उछल रहा था। आख़िरकार, इंजन बंद होने की आवाज़ हुई और मैं ने कुछ राहत महसूस करी। लेकिन राहत पल भर की थी।

    उस ने मुझे फिर से उठाया और एक बार फिर मुझे लकड़ी की ठक-ठक सुनाई पड़ने लगी। ठकठक खत्म हुई और वो कुछ दूर तक बजरी पर चलने के बाद रुका और किसी प्रकार के बीपिंग अलार्म कोड पर उंगलियां चलाने लगा। बीप! बीप!

    दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और वो मुझे ले कर अंदर घुस गया।


    To be continued….

  • 7. Chapter 7 - बुकवाक एक राक्षस!

    Words: 1061

    Estimated Reading Time: 7 min

    उस ने सीढ़ियां चढ़ना शुरू किया और मेरे शरीर ने काँपना। 



    आखिरकार हम वहां आ चुके थे जहां वो मेरी दुर्गत बनाने वाला था। जहाँ वो मुझ से मेरा सब कुछ छीनने वाला था। जहां वो मेरे जिस्म का इस्तेमाल करने वाला था और अंत में मेरा अंजाम यकीनन मौत थी।



    जैसे ही वो एक दरवाज़ा खोल कर अंदर घुसा मेरे मुंह से सिसकियां फूट पड़ीं। उस ने मुझे अपने कंधे से झुला कर मेरे कांपते पैरों पर खड़ा कर दिया। फिर मेरी कलाइयां पकड़ लीं जिस से मैं घबरा गई। तभी एक क्लिक हुई और हैंडकफ्स खुल कर नीचे गिर गए। आँखों से पट्टी हटा दी गई और एकदम से रोशनी देख कर मेरी आंखें चौंधिया गईं थीं!



    मैं ने पलकें झपकीं और जब आँखें फोकस्ड हुईं तो मेरा जबड़ा लटक चुका था।



    मैं किसी डरावने गोदाम में नहीं थी। न एक अंधे कमरे में। बल्कि मैं एक ऐसे शानदार कमरे में थी जो मैं ने अपनी ज़िंदगी में नहीं देखा था। मैं ने पहले भी बहुत से खूबसूरत घर देखे थे, उन में रही भी थी पर ये…!



    ऐसे शानदार घर और कमरे तो यूरोपियन कंट्रीज़ में पाए जाते हैं!



    छत में हेक्सैग्नल सीलिंग लाइट्स लगी हुई थीं।



    (हेक्सैग्नल सीलिंग लाइट्स 👇)









    फर्श लकड़ी के चौड़े तख्तों से बना हुआ था। सामने दीवार पर लोहे के काले फ्रेम वाली खिड़की थी जिस के पार रात के अंधेरे में एक झील और उस के किनारे जंगल नज़र आ रहा था। इतनी घबराहट के बावजूद मैं एक पल के लिए उस चांदनी में नहाए मंज़र में खो गई थी।



    झील के पार और घना जंगल था और दूर-दूर तक दूसरा कोई घर नज़र नहीं आता था।



    मैं ने झुरझुरी ले कर अपनी निगाहें वापस कमरे के अंदर घुमाईं। छत में हर जगह क्रिस्टल और तरह-तरह की सजावट थी। एक दीवार के साथ बड़ा खूबसूरत सा फायरप्लेस बना हुआ था जिस के दोनों ओर किताबों से भरी अलमारियाँ थीं।



    एक खुले दरवाज़े के पार पूरी तरह से सफ़ेद टाइल और ब्लैक फ्रेम वाली खिड़की की झलक मिल रही थी। शायद वो बाथरूम था।



    मैं मुड़ी और मेरा दिल एकदम से धड़क गया जब मेरी निगाह दूर एक दीवार के सामने बड़े से बेड पर पड़ी। मैं जड़ हो गई। हर एक डर जो इतनी ख़ूबसूरती देखते-देखते गायब हो चुका था एकदम से वापस आ गया।



    "मैं खाना ले कर आता हूँ।"



    उस ने पीछे से कहा और मैं हिल गई। गले की गांठ निगलते हुए मैं ने धीरे-धीरे खुद को उस की ओर घूमने के लिए मजबूर किया और जैसे ही पलटी तो एक बार फिर उन भेदती हुई, सर्द आंखों ने मुझे कंपा डाला था।



    वो लंबा, गठीला, शांत दिखने वाला शख्स बेहद सुंदर था मगर मुझे उस से सिवाए ख़ौफ़ के कुछ भी महसूस नहीं होता था।



    वो कमरे से बाहर जाने के लिए मुड़ा और मेरा मुँह जाने कैसे खुल गया – "मैं कहाँ…"



    "मेरे घर में हो और अब यहीं रहोगी।"



    वो चलता हुआ आगे बढ़ गया और मेरा पेट फूल गया।



    "रुको," मैं ने कांपते हुए कहा – "म-मैं यहाँ क्यों…"



    "क्योंकि तुम मेरी हो।"



    ये शब्द मुझे एक तमाचे की तरह लगे और मेरी ओर घूमी बर्फीली निगाहों ने मुझे दो टुकड़ों में काट दिया ― "सिर्फ मेरी हो।"



    दरवाज़ा एक क्लिक के साथ खुला और उस ने बाहर निकलते ही उसे वापस बंद कर दिया।



    अब मैं अपनी दौड़ती नब्ज़, डूबते दिल और खौफ़नाक ख्यालों के साथ तन्हा खड़ी थी।



    मैं घूमी और बिस्तर पर नज़र पड़ते ही काँप गई।



    नहीं! मैं यहां नहीं मरूंगी। वो मुझ से कुछ नहीं छीन सकता। कुछ भी नहीं।



    मैं नहीं हारूँगी… बिना लड़े तो हरगिज़ नहीं।



          ⛓ 🔗 ⛓ 🔗 ⛓



    Krish's POV__



    मैं दिखने में भले ही इंसान था लेकिन मेरे अंदर शुरू से एक शैतान बसता था।



    मैं ने फेफड़ों में ताज़ा हवा भरते हुए सिंक के किनारों को पकड़ रखा था। तनाव के कारण उंगलियां सफेद हो गई थीं। दांतों की किटकिटाहट के साथ बांहों की मसल्स और टैटू कांप रहे थे।



    मैं उस राक्षस, उस शैतान को महसूस कर पा रहा था जिसे मैं ने कब से कैद कर के अपनी आत्मा की गहराई में दफन कर रखा था। वो सलाखों के पीछे से गुर्रा रहा था। कभी-कभी एक पल के लिए रुकता और फिर हिंसक रूप से सलाखों पर अपने हाथ पटकने लगता था। मानो उन सलाखों का परीक्षण कर रहा था… या फिर अपना।



    नहीं… मैं उसे बाहर नहीं निकलने दे सकता। मुझे खुद पर कंट्रोल रखना होगा।



    मैं ने धीरे से साँस छोड़ी और टोटी खोल दी। मुँह पर पानी के छींटे मारने से पहले मैं ने पानी को गिरता हुआ छोड़ दिया ताकि वो ठंडा हो जाए। हाँ, मुझे ठंडे पानी की ज़रूरत महसूस हो रही थी मानो ठंडे पानी का झटका मेरे अंदर बैठे राक्षस को सुन्न कर देगा।



    मैं ने चेहरे पर खूब सारी छींटे मारी फिर टोटी बंद कर के आईने में देखने लगा। चेहरे से पानी टप-टप गिर रहा था, आँखें पहले से कठोर थीं और सिंक के किनारों पर मेरी पकड़ और सख्त हो गई थी!



    मैं ने खुद से वादा किया था कि ये सब अब कभी नहीं करूंगा।



    मेरा मतलब हिंसा या पिछले कुछ घंटों में की गई हरकतों से नहीं था। बल्कि मेरा मतलब इन हरकतों को उस के लिए करने से था जिस के लिए मैं ने कभी काम न करने का वादा किया था खुद से।



    बरसों पहले मैं घोस्ट ऑर्गेनाइज़ेशन से दूर चला गया था और उस कैंसर को अपनी ज़िंदगी से हमेशा के लिए निकाल दिया था। लेकिन आज पता चला था कि वो कैंसर गायब नहीं हुआ था बल्कि शरीर के एक हिस्से से निकल कर दूसरे में पहुंच गया था।



    मैं अपनी जिस ज़िंदगी को भूल चुका था एक बार फिर उसी ज़िंदगी ने मुझे अपनी ओर खींच लिया था।



    वो ज़िंदगी जिस में मैं एक राक्षस था। एक शैतान था। एक जानवर था। एक हत्यारा था। एक बुरा सपना था जो कभी भी किसी को भी निगल सकता था। वो मुझे बुकवाक कहते थे। चार हाथ, दो पैर, मुड़ी हुई सींगों और नीलीं आँखों वाला एक काल्पनिक डेमन किंग। जो रात को शिकार पर निकलता है।


    हालांकि मैं ऐसा नहीं दिखता था। ये बस एक उपनाम था जो मुझे दिया गया था मेरी नीली आँखों के कारण। और जिस तरह से मैं खून बहाता था, जिस बर्बता से हत्याएं करता था। वो बस एक राक्षस में ही तो हो सकती थीं!





    To be continued…



  • 8. Chapter 8 - हत्यारे का अतीत!

    Words: 1056

    Estimated Reading Time: 7 min

    ये सारे काम मैं 'घोस्ट सिंडिकेट' के लिए करता था। एक ऐसे शख्स के लिए जिस से मुझे हद से ज़्यादा नफ़रत थी।

    जब मैं चौदह का था तो वो मुझे अपने साथ ले गया था। उस वक्त मैं अपनी माँ के साथ एक गंदी सी बस्ती में रहता था। माँ अनपढ़ थी तो उस ने उन्हें बड़ी आसानी से मना लिया था और बताया था कि वे सरकार की तरफ से एक सीक्रेट मिलिट्री प्रोग्राम पर काम कर रहे हैं जिस का नाम है – प्रोजेक्ट घोस्ट।

    लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। असल में मिलिट्री प्रोग्राम के नाम पर किराए के हत्यारों की एक फौज खड़ी की जा रही थी और इस के पीछे सरकार नहीं बल्कि एक ही इंसान का हाथ था – मिखाइल। 

    उस ने धीरे-धीरे घातक हत्यारों और जासूसों की पूरी एकेडमी खड़ी कर ली थी।

    फिर वही लड़का जिस की माँ से झूट बोल कर उसे उठाया गया था, मिखाइल का सब से खतरनाक प्यादा बना। मिखाइल ने ही उसे एक आम युवक से बुकवाक बना डाला था।

    उस का सब से बेशकीमती हत्यारा। सब से खतरनाक लड़ाका। फिर एक दिन मैं उस से दूर भाग निकला और कभी वापस नहीं गया।

    बात तब की है जब मैं एक माफिया एम्पायर में कैप्टेन की हैसियत से रह रहा था।

    सॉरी… रह नहीं रहा था… मिखाइल ने मुझे वहाँ प्लेस्ड किया था। वो बहुत चालाक था। किसी भी एम्पायर में अपने बंदों को घुसा कर पूरा एम्पायर टेक-ओवर कर लेता था। मुझ से भी वो ऐसा ही करवाने वाला था इसलिए मुझे वहाँ शामिल कराया था लेकिन उस से पहले ही निकिता की मौत हो गई और सब खत्म हो गया।

    मैं मिखाइल और उस के बुरे कामों से दूर भाग गया।

    मैं ने उस से सारे संबंध तोड़ लिए और एक माफिया के साथ उस के टॉप एडवाइज़र के रूप में रहने लगा। अब मैं कोई और था, कुछ और था।

    बाहर से लोग मुझे एक क्रिमिनिल एम्पायर के टॉप रैंक बंदे के रूप में देखते थे। एक ऐसा आदमी जो महंगे सूट और महंगी घड़ियाँ पहनता है।

    लेकिन वो सब सतही था। वो मुखौटा था जो मैं अतीत को दफनाने के लिए पहनता था। वो मुखौटा जो मेरे अंदर ज़ंजीरों में जकड़े राक्षस को छुपाए रखता था।

    मेरे अंदर का बुकवाक सोया हुआ था… बहुत समय से।

    उसे दोबारा जगाने की इच्छा या लालच मुझे कभी महसूस नहीं हुई थी।

    जब तक मिखाइल को मेरी कमज़ोर रग नहीं मिल गई और उस ने इसे दबा नहीं दिया। जब तक उस ने मेरे सामने एक ऐसा ऑफर नहीं रख दिया जिस ने मुझे हिला डाला था!

    उस ने मुझे मेरी बहन की आखिरी जगह बताने का वादा किया था। वो जगह जहाँ वो दफ्न थी। मुझे वहाँ जाना था… अपनी बहन को शांति देने के लिए मुझे उस जगह की तलाश थी और इसलिए मैं ने अपना ही रूल तोड़ दिया।

    मैं उस शैतान के लिए फिर से काम करने को तैयार हो गया।

    मिखाइल से बात किए हुए मुझे सालों बीत चुके थे और हाल-फिलहाल भी उस की आवाज़ सुनने को नहीं मिली थी।

    सारी बात-चीत और आदान-प्रदान उस की सेकेंड इन कमांड जेना के थ्रू हुआ था।

    मिखाइल जानता था कि मैं उस से सीधे तौर पर बात नहीं करूँगा। क्योंकि वही था जिस ने निकिता को मरने दिया था। मैं ने भी मिखाइल को मारने की कसम खाई थी और सही वक्त तथा सही मौके के इंतज़ार में बैठा हुआ था।

    लेकिन फिर भी, मैं ने उस का काम ले लिया। एक नहीं… दो काम। क्योंकि इस के बदले मेरी बहन को इतने सालों बाद वो शांति मिलने वाली थी जिस की वो हकदार थी।

    भले ही इस के लिए मुझे उस शख्स का साथ देना पड़ रहा था जिस ने उसे मरने दिया था।

    पहला काम एक साधारण हत्या थी – एक महीने पहले मुंबई में एक गवर्नमेंट ऑफिसर की हत्या। वो व्यक्ति किसी प्रकार के सरकारी प्लान को आगे बढ़ा रहा था जो द घोस्ट सिंडिकेट को प्रभावित कर सकता था।

    काम उतना मुश्किल नहीं था। बस एक स्नाइपर गन, एक ऊंची बिल्डिंग और फिर हो गया एक बख्तरबंद कार की विंडशील्ड में छेद।

    अब हमारी डील पूरी करने के लिए दूसरा और आखिरी काम बाकी था।

    पार्थिव राव की एकमात्र जीवित उत्तराधिकारी की हत्या। ये तो पहले से भी आसान था। बेहद आसान।

    लेकिन देखो हुआ क्या? मैं यहां हूं। हज़ारों मील दूर  अपने इस घर में। उस लड़की के साथ जिसे मुझे मारना था।

    एक आसान सा… बेहद ही आसान सा काम अब बहुत जटिल हो चुका था।

    और ये सब हुआ था सिर्फ उस रिंग की वजह से। उस सिल्वर चेन में लटकती रिंग की वजह से जो इस वक्त तान्या की गर्दन में लटक रहा था। तान्या…  उस पार्थिव की बेटी जो मर चुका था। वो पार्थिव जिस से मिखाइल हद दर्जे की नफरत करता था।

    मिखाइल के सब से बड़े सपनों में से एक था राव ऑर्गेनाइज़ेशन पर अपना शिकंजा कसना। उसे अपनी मुट्ठी में कैद करना।

    उस ने कौन-कौन सी चालें नहीं चली थी जीतने के लिए। यहां तक ​​​​कि पार्थिव की बीवी के मरने के बाद अपनी सेकेंड इन कमांड जेना को जनुजा बना कर पार्थिव की ज़िंदगी में घुसा दिया और जेना ने उसे ऐसा बहकाया कि वो उस से शादी कर बैठा था। लेकिन कामयाबी तब भी नहीं मिल पाई।

    ख़ैर जो भी हो, आज सुबह मेरे द्वारा तान्या को उस के बाप के घर में गोली मारने के साथ ही इस का अंत होना था। प्लान तो यही था कि मैं उस के घर में घुसूंगा, उसे गोली मारूंगा और फिर गायब हो जाऊंगा।

    लेकिन चीज़ें वैसी नहीं हुईं।

    मैं ने दाँत पीसे और बाथरूम से वापस अपने स्टडी में घुसा और सीधा बार कार्ट के पास पहुँचा। एक गिलास में ढेर सारा वोडका उंडेला और ललचाए अंदाज़ में गिलास होंठों से चिपका लिया।

    मैं जानता था कि वो वह रिंग नहीं थी जो मैं ने निकिता को बहुत पहले दी थी। फिर कमीने मिखाइल ने उसे भी उठवा लिया और उस पागल प्रोग्राम का हिस्सा बना लिया जिस ने मुझे इंसान से जानवर बनाया था।

    वो वह अंगूठी नहीं थी लेकिन मुझे गोली चलाने से रोक दिया था, एक और खून करने से रोक दिया था। उस ने मुझे उस अवस्था से निकाल दिया था जिस में मैं तब जाता था जब मुझे एक इमोशनलेस किलिंग मशीन बनने की ज़रूरत होती थी।



    To be continued…

  • 9. Chapter 9 - काम हो चुका है!

    Words: 1038

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब तक की ज़िंदगी में पहली बार मैं अपने शिकार के सामने इस तरह झिझका था। मार नहीं पाया था उसे। और यहाँ उठा लाया था। वो मुझ से खूब लड़ी और भागने की कोशिश की थी लेकिन मैं ने कामयाब न होने दिया था। और अब… मेरे अंदर एक शैतान था जो सलाखों के पीछे से उस लड़की को घूर रहा था।


    वो चाहता था कि लड़की फिर से उद्दंडता दिखाए और फिर मैं इसे मज़ा चखाऊँ। मैं ने एक और गिलास पिया। समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ? एक तरफ ड्यूटी थी और दूसरी तरफ मुझे कुछ और करने का मन कर रहा था।

    नहीं अब मैं अपनी एक नहीं सुनूंगा। ऐसी लापरवाही मैं ने ज़िंदगी में पहले कभी नहीं करी। मेरी ज़िंदगी में लापरवाही की कोई जगह ही नहीं! और न ही उस लड़की की जगह है जिस ने मेरे अंदर एक नई भूख पैदा कर दी है। अब मैं वो करूँगा जो पहले नहीं कर पाया था। उस गेस्ट रूम में वापस जाऊंगा जहाँ उसे बंद किया है और जो काम मुझे इंडिया में उस के बाप के घर पर पूरा करना था उसे यहीं पूरा कर दूंगा। लेकिन उस से पहले एक कॉल ज़रूरी है।


    मैं ने अपना फोन निकाला और जेना का नंबर डायल किया।

    "राव हाउस पर पुलिस परछाई की तरह छाई हुई है," – मिखाइल की भतीजी और मेरी दूसरी सब से पसंदीदा शख़्सियत फौरन मुद्दे पर आई थी – "एक डिलीवरी ड्राइवर ने सीढ़ियों पर लाश देख कर तुरंत फोन घुमा दिया था।"

    मैं उस के अगले अल्फ़ाज़ों का इंतज़ार करने लगा जो मुझे पता था क्या होंगे। "क्या तुम जानते हो किस की लाश अभी तक नहीं मिली है?" – वो चिढ़ी हुई थी –"बताओ… चुप क्यों हो?"

    "काम हो चुका है।" न जाने क्यों मेरे मुंह से निकला और अब मैं अपनी बात से वापस भी नहीं जा सकता था। मैं पलक झपकते झूट की सड़क पर आ खड़ा हुआ था और समझ नहीं पा रहा था कि क्यों?

    अचानक से मन, दिल सब बदल गया था। पता नहीं क्या हुआ था?  जेना चुप हो गई और मैं फोन के इस तरफ से भी उस के सिकुड़े हुए आईब्रोज़ और चढ़ी हुई नाक को महसूस कर रहा था। "तुम्हें वहीं के वहीं उसे जान से मार…"

    "प्लान चेंज होता रहता है जेना। मगर काम हो चुका है।"

    "कहाँ?"

    मेरी आंखें सिकुड़ गईं। "इस से कोई फर्क नहीं पड़ता।"

    "अगर तुम हम से वो जानकारी चाहते हो जिस पर हमारी डील हुई थी तो मुझे सुबूत दिखाओ।"


    मैं ने दाँत पीसे। "मैं कुछ भी नहीं मांगूंगा, तुम्हें खुद देना है और देना ही पड़ेगा क्योंकि यही डील थी। बस मुझे वो दो और मैं तुम्हें सुबूत भी दे दूंगा।"


    "मैं आती हूँ तुम्हारे पास। उस की लाश को खुद अपनी आँखों से देखना पसंद करूंगी मैं। तुम कहाँ हो?"


    "तुम्हारा काम पूरा कर दिया है मैं ने। अब जल्द ही तुम से कॉन्टैक्ट करूंगा और बताऊंगा कि मुझ तक मेरी चीज़ कैसे पहुंचानी है।" मैं ने फौरन फोन काट दिया। मुझे एकमात्र अफसोस इस बात का था कि मैं इस वक्त जेना के सामने नहीं था। उसे आपा खो कर तोड़-फोड़ मचाते देख कर मज़ा आता था और मुझे यकीन था कि वो इस वक्त यही कर रही होगी। मेरी आँखें स्टडी रूम की खिड़की से अंधेरे में डूबी झील को घूरने लगीं। मैं आखिरी गिलास पी कर स्टडी से बाहर निकला और एक बार में दो-दो सीढ़ियां चढ़ता ऊपर जाने लगा। मैं लंबे हॉलवे से होते हुए ईस्ट विंग की ओर जा रहा था। गेस्ट रूम वहीं था। उम्मीद कर रहा था कि दरवाज़े के पास पहुँचते ही मुझे दरवाज़ा तोड़ने या बुलेट-प्रूफ खिड़कियों पर चीज़ें फेंकने की आवाज़ें सुनाई देंगी। लेकिन इस के बजाए मेरा स्वागत सन्नाटे ने किया था। मैं ने उसे ये नहीं बताया था कि वो यहाँ क्यों है। उफ… जानता तो मैं भी नहीं था कि उसे यहाँ क्यों उठा लाया था मैं। मुझे याद आने लगा कि वो मुझ से किस तरह लड़ी थी। किस तरह हाथ-पांव चलाए थे। किस तरह मेरी पकड़ में ऐंठ रही थी। और किस तरह उस की खुशबू ने मेरे अंदर कुछ जगा रही थी। मेरे कानों में बजती नब्ज़ तेज़ हो गई जब मैं ने धीरे से गेस्ट रूम का दरवाज़ा खोला। अंदर घुसा और भवें सिकोड़ कर कमरे को स्कैन करने लगा। खिड़की के सामने एक डेस्क टूटी पड़ी थी मगर खिड़की को कुछ नहीं हुआ था। होता भी कैसे? जिसे बुलेट न तोड़ पाए उसे लकड़ी की डेस्क कैसे तोड़ सकती है? साइड टेबल भी नीचे गिरी थी और टेबल लैंप फर्श पर गिरने से टूट चुका था। मुझे बस वही दिख रही थी ― उस के द्वारा फैलाई तबाही। मगर वो नहीं। जैसे ही मैं उसे ढूंढने को बाथरूम की ओर बढ़ा तो मेरी आँखें सिकुड़ गईं और फिर अचानक, मेरी सिक्स्थ सेंस एकदम से चीखी!



    मैं पीछे मुड़ा लेकिन तब तक वो अपनी चाल चल चुकी थी। दूसरा टेबल लैंप मेरे सिर के पिछले हिस्से पर टकराया और मेरा बैलेंस बिगड़ गया। मैं घुटनों पर गिरा और बमुश्किल अपना हाथ ऊपर कर लिया ताकि टूटी हुई कुर्सी का पैड-फुट मेरा सर न फोड़ दे। व्हाट द हेल! मैं ने उठना चाहा मगर उस ने मेरे कंधे पर लात मार कर दोबारा बैलेंस बिगाड़ दिया और मैं पीछे गिर पड़ा। मैं ज़ोर से गुर्राया और वो तेज़ी से दरवाज़े की ओर भागी।। जब तक मैं दरवाज़े पर पहुँचा वो हॉल की सीढ़ियां उतर रही थी। लेकिन उसे इस तरह भागते देख कर मुझे जो महसूस हो रहा था वो गुस्सा नहीं था। न ही मुझे इस बात पर गुस्सा आया था कि उस ने मुझे चोट पहुँचाने की कोशिश की। मैं खुद पर भी नहीं नाराज़ था कि इतनी
    लापरवाही क्यों दिखाई? नहीं! गुस्सा! नफरत! कुछ नहीं महसूस कर रहा था मैं! बल्कि एक ऐसी आग महसूस हो रही थी जिस का एहसास पहले कभी नहीं किया था मैं ने। मैं उसे मारना या चोट पहुंचाना नहीं चाहता था। मैं तो उस का पीछा करना चाहता था। पीछा कर के पकड़ना चाहता था। एक अलग ही रोमांच महसूस हो रहा था मुझे उसे भागता देख कर। बेचारी…. जानती नहीं थी कि किस से बच कर भाग रही है। उस से… जिस से आज तक कोई नहीं बच सका।




    To be continued…

  • 10. Chapter 10 - रनिंग फ्रॉम द डेविल!

    Words: 1215

    Estimated Reading Time: 8 min

    Tanya's POV___ मैं दौड़ती हुई बाहर निकली और हॉलवे में बिछे कालीन पर फिसल गई। लेकिन फौरन खुद को संभाला और जल्दी से खड़ी हुई। फेफड़ों से हवा का एक-एक हिस्सा निचुड़ता हुआ बाहर निकल रहा था। भीतर खौफ और सनसनाहट के धमाके हो रहे थे। रन। रन। रन।

    मैं इतनी तेज़ी से सीढ़ियां उतरी की गिरते-गिरते बची थी। अब तक उस के कदमों की ठकठक भी कानों में पड़ने लगी थी। इस बार अगर इस ने मुझे पकड़ लिया तो कोई रहम नहीं दिखाएगा। क्योंकि मैं ने इसे मारने की जुर्रत की है। पकड़े जाने का सोच कर ही मैं दहल गई थी! मैं जानती हूं कि मुझे लकवा मार स्थिति में अभी भी उस कमरे के किसी कोने में पड़े होना चाहिए था। घुटनों में सर दे कर सिसकना चाहिए था और उस शैतान से रहम की भीख माँगनी चाहिए थी जो मुझे यहाँ लाया था। लेकिन मैं किसी तरह अपने अंदर लड़ने की कूव्वत जुटाने में कामयाब हो गई थी। मैं यहां नहीं मरूँगी। नहीं मरूँगी मैं! बिना लड़े हरगिज़ नहीं मरूँगी!

    मैं एक कॉर्नर पर मुड़ी और एग्ज़िट की तलाश में पागलों की तरह चारों तरफ देखने लगी जब मेरी नज़र सामने मौजूद दरवाज़े पर पड़ी। अपने पीछे मुझे उस की गुर्राहट सुनाई दी और डर के साथ-साथ न जाने किस अजीब भावना का मिश्रण मेरे शरीर में फैल गया। मैं ने पूरा ज़ोर लगा दिया और इतनी तेजी से दौड़ी जितना पहले कभी नहीं दौड़ी थी। मेरा कूल्हा एक सोफे के पास रखी साइड-टेबल से रगड़ा गया। मैं दर्द से चिल्लाई लेकिन फिर अनदेखा कर दरवाज़े की तरफ भागती चली गई। आज़ादी का ये एकलौता अवसर था। अब उस की आवाज़ नहीं आ रही थी मगर मैं जानती थी कि वो मेरे पीछे था। मैं जानती थी कि ये मेरे दिल की धड़कन है जिस ने कानों को बहरा कर दिया है। मेरा पूरा ध्यान सामने दरवाज़े पर था। मैं ने झट से नॉब घुमा कर दरवाज़ा खोला और खुद को बाहर की ओर फेंक दिया और हवा में लटक गई।



    मेरे मुँह से चीख निकलने लगी क्योंकि बीच हवा में ही उस ने मेरी गर्दन अपने मज़बूत शिकंजे में दबोच ली थी। मैं ऐसे चिल्ला रही थी मानो यमराज ने मेरा गला पकड़ रखा था। गले पर पड़ते दबाव और दमघोटू खौफ के बावजूद भी चीख रुक नहीं रही थी मेरी। उस ने मुझे नीचे उतार कर अपने सीने से चिपका लिया। मैं यहां नहीं मरूँगी। मेरी मौत यहाँ नहीं हो सकती।



    "चिल्लाती रहो, मेरी ओर से खुली छूट है।" मेरे कान से चिपके होंठों से निकली रूखी आवाज़ ने मुझे यूं कंपा दिया जैसे किसी ने मुझे बर्फीले पानी में धकेल दिया हो। उस की चट्टान जैसी बॉडी मुझ से चिपकी हुई थी और मैं पत्थर की मानिंद सख्त हो चुकी थी।


    "लेकिन इतना गला फाड़ने के बाद तुम्हें बस एक ही चीज़ हासिल होगी ― बैठी हुई आवाज़। यहाँ तुम्हारी चीख-ओ-पुकार सुनने वाला कोई नहीं है।"



    मेरा दिल पसलियों से टकराता हुआ कानों में बज रहा था। आँखें चारों ओर बेतहाशा घूम रही थीं। एक पल के लिए मुझे ऐसा लगा है जैसे मैं डूब रही हूं। वो सही था। मेरी बात सुनने वाला कोई नहीं था वहाँ। झील के किनारे या आस-पास कोई दूसरा घर नज़र नहीं आता था।



    "प्लीज़…" ― शब्द मेरे कांपते होठों से टूट कर गिरे ― "प्लीज़...प्लीज़...जाने दो म...मुझे…" उस ने मेरी गर्दन छोड़ दी और दूर हो गया। मैं ने पलकें झपकाईं और पलट कर देखा तो तेज़ धड़कनें और तेज़ हो गईं। उस की आँखें मुझे चीर रही थीं और वो शांति से खड़ा था। मेरी नज़र उस की शर्ट के खुले कॉलर के नीचे दिख रहे टैटू पर पड़ी फिर उस के भरे हुए होठों पर, जहाँ हल्की मुस्कान थी। उस के होंठ खामोश थे और मैं भी चुपचाप उसे घूर रही थी। अचानक मुझे एक एहसास हुआ और मैं ने अपनी बाहें सीने पर लपेट लीं। "मैं…मैं..."

    "भागो।" उस के एक ही शब्द ने मेरे अंदर खौफ दौड़ा दिया।


    "म... मैं समझी नहीं..."


    उस की आँखें थोड़ी सिकुड़ गईं, होंठों के कोने खतरनाक ढंग से मुड़ गए ― "मैं चाहता हूँ तुम भागो। मुझ से दूर।"


    "मैं…"


    "अगर तुम बच निकली," वो धीरे से बड़बड़ाया। मुझे गहराई से घूरती आँखें एक बार भी नहीं झपक रही थीं। "तो फिर तुम आज़ाद हो और अगर मैं ने तुम्हें पकड़ लिया..." – उस ने कंधे उचकाए – "तो सज़ा मिलेगी।"


    मैं कांपने लगी। रोंगटे खड़े हो गए। "कहाँ भागूं?" कांपती आवाज़ में फुसफुसाई।


    "ये प्रॉपर्टी ज़्यादा बड़ी नहीं है। तुम भी साफ-साफ देख रही हो। अगर तुम मेरी पकड़ में आए बिना यहाँ से बाहर निकल जाओ तो फिर तुम आज़ाद हो।"


    मैं उसे घूरती रही। छाती ऊपर-नीचे हो रही थी। "क… क्या बकवास है! तुम मेरे साथ खेल क्यों खेल रहे हो?"



    वो किसी शिकारी की तरह मुस्कराया। "खेल नहीं ऑपर्च्युनिटी दे रहा हूँ।"


    "किस लिए?"



    वो बस मंद-मंद मुस्कुराता रहा और मैं उस की आँखों की चमक देख कर कांप ही तो जा रही थी। मैं ने बाहों को सीने के चारों तरफ और ज़्यादा कस लिया। काश मैं ने स्लीप शॉर्ट्स और बैगी टी-शर्ट की जगह कोई और ड्रेस पहनी होती। उस के आईब्रोज़ हल्के से सिकुड़े – "क्या हुआ? तुम भाग नहीं रही?"


    "तुम चाहते हो कि मैं भागूं?"


    "ऑफकोर्स।"


    "मैं नहीं चाहती.."


    "बेशक चाहती हो।" वो मेरे करीब आया और मेरी साँसें थम गईं। स्किन में चुभन होने लगी, बाहें और कस कर चिपक गईं, पैर आपस में भिंच गए। मैं ने गले में एक और गांठ निगली। "म-मैं ने जूते भी नहीं पहने हैं।"



    "अच्छा? तो ये चीज़ पहले भागते वक्त क्यों नहीं सोची थी? मैं तीन तक गिनूँगा और तुम्हें भागना होगा।" मेरी सांसें तेज़ हो गईं। "एक।" मैं पीछे हटने लगी, निगाहें अभी भी उस की आँखों पर टिकी हुई थीं। "दो।" मुझ में एक नई ऊर्जा का संचार हो शुरू हुआ। अचानक, मैं चक्कर लगा कर पलटी और दौड़ने लगी। मेरी नब्ज़ कानों में चिल्ला रही थी और मैं आस-पास के पेड़ों को पार करती बस भागती जा रही थी। कभी-कभी मैं किसी पेड़ की जड़ या टहनी से टकरा जाती और मेरा वजूद खौफ से भर जाता था। मुझे वो भयानक सपना याद आने लगा। फर्क बस इतना था कि यहाँ मैं जाग कर खुद को बचा नहीं सकती थी। मैं ने एक बार भी पीछे नहीं देखा था और न ही देखना चाहती थी। बस भाग रही थी। भागती ही जा रही थी। मैं नहीं जानती थी कि उस ने जो कहा था वो सच था या नहीं। सचमुच वो मुझे रिहा करने वाला था या नहीं। लेकिन एक बात जानती थी। न दौड़ना हार मान लेना है। न भागना हार मान लेना है। और इसलिए मैं पेड़ों के बीच छाए अंधेरे में दौड़ रही थी। शरीर की एक-एक नस चीख रही थी। जलते हुए गले में साँसें उखड़-उखड़ जा रही थीं। कानों में धड़कनों का बेहद डरावना शोर भरा हुआ था। अंधेरा बार-बार पेड़ों से टकरा दे रहा था। तभी मैं ने उसे सुना। वो ठीक मेरे पीछे था। आतंक मेरी सारी हिम्मत, सारे हौंसले को जला कर राख करने लगा। पर मैं रुकी नहीं। पीछे-पीछे चट-चट चटकती टहनियों का शोर बता रहा था कि वो पास आ रहा है। मैं चिल्लाने लगी और वो पास आता गया… आता गया। इतना पास कि मैं उस की गर्म साँसों को अपनी गर्दन पर महसूस करने लगी।



    To be continued….

  • 11. Chapter 11 - पनिश!

    Words: 1080

    Estimated Reading Time: 7 min

    खौफ और आतंक ने मेरी जान निकाल रखी थी। वो बिल्कुल मेरे पीछे था पर मैं भाग रही थी। यही मेरी एकमात्र उम्मीद थी। इसी तरह मैं बच सकती थी।

    मैं बार-बार खुद से यही कहती जा रही थी और अचानक मेरा डर एक ऊर्जा में बदलने लगा।

    एक जोश। एक नई शक्ति पैदा होने लगी मुझ में।

    मैं उस से जीत सकती थी, मुझे बस थोड़ी ही दूर और भागना था और फिर मैं आज़ाद।

    खुद को जीत के करीब सोचते ही मैं खुद को पहले से ज़िंदा महसूस करने लगी और इसी के साथ मेरी स्पीड बढ़ने लगी।

    अब एक अलग तरह का रोमांच महसूस हो रहा था। पकड़े न जाने का रोमांच। और ये रोमांच मेरी रगों में एक दवा की तरह बह रहा था। मैं अपने आप को और ज़ोर से धकेलने लगी थी। पूरा शरीर नई शक्ति और रोमांच से भर उठा था।

    रोएं काँप रहे थे। धड़कनें तेज़ थीं। ऊपर से नीचे तक मैं पसीने में थी और अब यही पसीना हवा के कारण ठंड का एहसास करा रहा था।

    अंधेरे जंगल के बीच मेरी दौड़ एक प्रकार का नृत्य बन चुकी थी। कभी बाएं, कभी दाएं, कभी झुकना, कभी कूदना। मेरे होंठ एक मुस्कराहट में खिंच गए और मुझे अपने कोर में एक गर्मी का एहसास हुआ क्योंकि सामने झील का किनारा दिखने लगा था।

    "ये प्रॉपर्टी ज़्यादा बड़ी नहीं है। तुम भी साफ-साफ देख रही हो। अगर तुम मेरी पकड़ में आए बिना यहाँ से बाहर निकल जाओ तो फिर तुम आज़ाद हो।"

    फू… मैं आज़ाद होने जा रही हूँ। बस कुछ कदम और। मैं पहुंच चुकी हूँ। मैं सच में पहुँच…

    लोहे जैसी उंगलियाँ मेरी गर्दन के चारों ओर लिपट गईं। उस ने झटका दे कर मुझे अपनी ओर खींचा तो गले से निकलने वाली चीख फंस कर दबी रह गई!

    पूरे जिस्म में आतंक का धमाका हो गया! वो सारी ऊर्जा और सारा रोमांच जो मेरे अंदर फिर से पैदा हुआ था एक झटके में तितर-बितर हो गया था।

    आँखें बाहर उभर आई थीं मेरी, मुँह खुला हुआ था लेकिन आवाज़ एक भी नहीं निकल रही थी। उस ने मुझे अंधेरे में घुमाया और एक पेड़ के तने से भिड़ा दिया।

    उस का हाथ मेरे गले पर था, उस की भस्म कर देने वाली घातक नीली आँखें मुझे घूर रही थीं और मेरी पीठ पेड़ के तने से चिपकी हुई थी। हम दोनों की छाती दौड़ने के कारण बुरी तरह फूल-पिचक रही थी। मैं उस की उंगलियों के पोरों में बजती धड़-धड़ को अपनी गर्दन की सॉफ्ट स्किन के अंदर महसूस कर रही थी।

    "च्… च्… बेचारी इतना करीब पहुँच कर भी हार गई," वो अंधेरे में बड़बड़ाया।

    मेरे कानों में झुनझुनी हुई। मेरी कोर पहले सिकुड़ी फिर इस में अजीब सी ऐंठन हुई थी। पाँव बुरी तरह काँप रहे थे जब मैं ने आँखें चौड़ी करते हुए पूछा – "अब क्या…"

    जिस ने मेरी बात को काट दिया वो उस के मुँह से निकला कोई शब्द नहीं था बल्कि… उस का मुंह ही था, जो मेरे मुंह से चिपक गया था। उस के होंठ मेरे फेफड़ों से सांस खींचते और शरीर में आग भरते हुए मेरी आत्मा को चूसने लगे।

    वो बहुत सख्त तरीके से मुझे चूम रहा था। क्या इसी सज़ा की बात करी थी उस ने? हाँ… ये सज़ा ही तो थी। उस ने मुझ से मेरी फर्स्ट किस चुरा ली थी। बल्कि छीन ली थी।

    मेरी आँखों में रंग-बिरंगी आतिशबाज़ियाँ शुरू हो गईं। सीने में आग पनपने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी त्वचा के एक-एक इंच पर लाखों चिंगारियां बरस रही थीं।

    उस की सख्त उंगलियां अभी भी मेरे गले पर थीं। उस के मज़बूत जबड़े पर उगी महीन दाढ़ियां मेरी ठुड्डी में गड़ रही थीं। उस के शरीर से मर्दाना गंध के साथ जंगल और किसी परफ्यूम की महक भी निकल रही थी। उस का कठोर और ऊंचा शरीर मेरे नन्हें बदन के साथ चिपका हुआ था।

    लेकिन इन सब के बीच जो चीज़ मुझे सब से ज्यादा महसूस हो रही थी, वो थी है उस के होठों की गर्म सॉफ्टनेस। वो होंठ मेरे होंठों से लड़ रहे थे और ज़बरदस्ती अंदर समाने की कोशिश कर रहे थे। लाख कोशिशों के बावजूद मैं उस की पकड़ से छूटने में नाकाम थी। और चाहे जितना उस के होंठों से दूर होना चाहा लेकिन वो मुझे इस कदर चूम रहा था कि मेरे होंठ अलग हो कर खुल ही गए। इसी के साथ उस की जीभ ने आक्रमण कर दिया और मेरे मुंह में घुस गई।

    बाइस साल की उम्र में ये मेरी पहली किस थी। शायद न होती अगर मैं एक क्रूर माफिया की बेटी न होती। मेरी पढ़ाई हमेशा वैसे ही स्कूल और कॉलेज में हुई थी जहाँ लड़के-लड़कियां साथ पढ़ते थे।

    लेकिन ऐसा लगता था कि मैं जहाँ भी जाती थी वहाँ सब पहले ही जान जानते थे कि मैं कौन हूँ, मेरा बाप कौन है, क्या करता है? कॉलेज से ले कर यूनिवर्सटी तक मैं ने बारी-बारी चार लड़कों से दोस्ती करी लेकिन उन में से कोई भी एक हफ्ते से ज़्यादा नहीं रुका। अगले हफ्ते ही वो मुझे देख कर रास्ता बदल लेते थे।

    मेरी सहेलियां भी मुझ से घबराती थीं और उन से भी मेरी दोस्ती ज़्यादा लंबे समय तक नहीं चल पाती थी।

    तो इस तरह मेरी अब तक की लाइफ गुज़री थी। मैं नहीं जानती कि कभी मेरा कोई बॉयफ्रेंड क्यों नहीं बन पाया। शायद डैड मुझ पर नज़र रखवाते थे और जब भी कोई लड़का मेरे करीब आने की कोशिश करता तो उस के एड्रेस पर धमकियां भिजवा दी जाती होंगी।

    इसलिए कभी किसी ने किस तो दूर की बात…. छूने की भी हिम्मत नहीं करी थी मुझे। 

    जब तक वो नहीं आ गया जिस ने घर में घुस कर मुझे उठा लिया था। मेरे मुँह में कपड़ा ठूंस दिया था। हाथों में हथकड़ियां लगा दीं थीं। मैं जब भी भागने की कोशिश करती हर बार किसी जिन्न की तरह एकदम से मेरे पीछे प्रकट हो कर पकड़ लेता था।

    मेरे होठों पर रगड़ खाते उस के होंठों की गर्मी और अधिक बढ़ रही थी।

    गले पर चिपकी उँगलियां भी गर्म होती जा रही थीं। अचानक वो खुलीं और फिसलती हुई मेरे जबड़े तक पहुँच गईं।

    उस की छाती में उठी धीमी सी गरज ने मेरे अन्तर्भाग में कंपन भर दी और मैं कांप उठी।

    अब मैं खुद को उस के नशे में डूबती महसूस कर रही थी।

    न चाहते हुए भी मैं ने एकदम से अपने होंठों को पूरा खोल दिया और अपनी जीभ पर उस की जीभ का स्वाद चखने लगी।


    To be continued…

  • 12. Chapter 12 - अनेक्सपेक्टेड!

    Words: 978

    Estimated Reading Time: 6 min




    मैं उस से दूर नहीं हट पा रही थी। ऐसा लग रहा था कि मुझे इस की ज़रूरत थी। यही चाहती थी मैं, इसलिए पाँव अब भागना नहीं चाहते थे।

    लग रहा था जैसे मेरे हाथ मेरे कंट्रोल में नहीं थे। ये खुद-ब-खुद धीरे-धीरे उस की छाती की ओर उठ रहे थे। पर जैसे ही मैं उसे छूने चली एक झटका लगा और उस ने मेरे हाथों को अचानक से पकड़ कर सर के ऊपर तने से चिपका दिया। मेरा दम निकलने लगा। उस के हाथ इतने बड़े थे कि एक ही हाथ में उस ने मेरे दोनों हाथों को भींच दिया था। दूसरे हाथ से उस ने मेरी चोंच दबोची और गुर्राता हुआ किस करने लगा।

    मेरी गर्मी बुरी तरह बढ़ती जा रही थी। मेरा जिस्म उस के जिस्म से सट कर कांप रहा था। मेरी एड़ियां अपने-आप मुड़ गई थीं और मैं उचक कर उस के बराबर पहुंच गई थी।

    धड़कनें कानों में ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रही थीं।

    जैसे-जैसे वो मुझे धीमे वहशीपन और शिद्दत के साथ चूमता जा रहा था वैसे-वैसे मेरा काँपता शरीर उबलने की हद तक गर्म होता जा रहा था। जैसे केतली में पानी डाल कर बहुत देर तक छोड़ दिया जाए तो जो हाल उस का होता है वही मेरा हो रखा था।

    और जब केतली का पानी ज़ोर से उबलने चला तभी उस ने मुझे छोड़ दिया। ये इतना तेज़ और अप्रत्याशित था कि मैं अगले दो सेकंड बेवकूफों की तरह आँखें मूंदे, होंठ खोले खड़ी रही, जब तक स्थिति का एहसास नहीं हो गया!

    मैं ने पलकें झपकीं, लालसा के घुमड़ते तूफ़ान से लड़खड़ाती हुई बाहर निकली और सच्चाई के धरातल पर लौट आई, जहाँ मैं ने अभी-अभी उस इंसान को किस किया था जिस ने मुझे किडनैप किया था!

    मेरे फेफड़ों में दर्द हो रहा था और ऐसा लग रहा था कि मैं अभी भी सांस नहीं ले पा रही हूं। मैं ने तेज़ी से एग्ज़हेल कर के फेफड़ों में हवा भरी और कांप गई जब उस की खतरनाक सर्द आँखों को अपनी ओर घूरते देखा।

    "शहज़ादी पकड़ी गई… अब क्या?"

    मुझे उस के शब्द बमुश्किल सुनाई दे रहे थे क्योंकि न चाहते हुए भी मैं अब तक उसी किस की अनुभूति में डूबी हुई थी।

    अचानक उस ने मुझे अपनी ओर खींचा और कंधे पर डाल कर पेड़ों के बीच चलने लगा।

    मैं चीखना चाहती थी लेकिन अभी तक सदमे में थी। लड़ना चाहती थी लेकिन जमी हुई थी। या कहूँ कि झुलस कर कुरकुरा बन चुकी थी। उस ने मेरे अंदर जो आग लगाई थी वो बुझने का नाम नहीं ले रही थी और न ही मैं खुद को उस से निकाल पा रही थी।

    मुझे अंधेरे में ज़्यादा कुछ नहीं दिख रहा था मगर वो मुझे ले कर घने पेड़ों के बीच यूं चलता जा रहा था जैसे मोर्बियस का जुड़वा भाई हो।

    जल्द ही हम घर के बेहद करीब थे। क्या? घर? इतनी जल्दी कैसे पहुंच गए हम? मेरी आँखें बाईं ओर घूमीं तो मेरा दिल चुल्लू भर पानी में डूब गया।

    आह! मैं उस से दूर जाने की जल्दी में बेपरवाह और दिशाहीन हो कर भागी थी और कब बड़ा सा U बनाते हुए वापस वहीं लौट आई थी इस की ख़बर मेरे फरिश्तों को भी नहीं हुई थी।

    पेड़ों के बीच से झील का जो किनारा देखा था वो, वो किनारा था जिस से केवल बीस मीटर दूर खड़ा था ― घर। मेरा नहीं…. उस का। मेरे लिए तो ये बंदीगृह था।

    जंगल और झील रात के साथ गहरे बैंगनी रंग में रंगे हुए थे। हवा ठंडी लग रही थी, भले अंदर मेरे लावा भरा हुआ था।

    उस किस से मेरा दिमाग अब तक सुन्न था। हम किनारे की चट्टानों को पार करते वापस घर की ओर जा रहे थे। जानती हूं कि मुझे लड़ना चाहिए था, लेकिन ऐसा लग रहा था कि मैं पूरी तरह से थक कर खाली हो चुकी थी। सुबह से बस दौड़ ही तो रही थी। एक मिनट के लिए आराम नहीं किया था मेरे पैरों ने, हाथों ने, हलक ने।

    थक चुकी थी मैं।

    भागते-भागते।

    पकड़ाते-पकड़ाते।

    और रही-सही कसर उस ख़ूबसूरत, अनाम राक्षस के होंठों ने पूरी कर दी थी।

    वो मुझे उसी दरवाज़े से अंदर ले आया जिस से भागी थी। उन्हीं सीढ़ियों से ऊपर ले कर जाने लगा जिन पर फिसल कर गिरते-गिरते बची थी। और वापस हम उसी कमरे में आ गए जहाँ से मैं इतनी किस्मत से निकली थी।

    इस दफ़ा मेरी छठी इंद्री ने पहले ही समझा दिया कि अब यहाँ से निकलना नामुकिन है।

    उस ने मुझे बेड पर गिराया और मुझ से एक फुट पीछे खड़ा हो गया। मैं हर जगह से कांप गई। सांसें भारी और तेज होने लगीं और गाल लाल होते चले गए। मेरी आँखें उस की तरफ उठीं और दिमाग ने पूछा कि अब आगे क्या होगा?

    पहले, इस ने मेरा पीछा कर के पकड़ा और किस करी। अब ला कर बिस्तर पर डाल दिया और मेरे सामने खड़ा मुझे घूर रहा है। क्या अब ये वो करेगा जो…

    "गुडनाइट, प्रिंसेस।"

    वो पलटा और बिना कुछ कहे, मेरे हैरान जबड़े को खुला छोड़ कर कमरा छोड़ गया।

    मगर उस ने दरवाज़ा बंद करना नहीं भूला था और शायद लॉक भी कर दिया था क्योंकि क्लिक की एक धीमी आवाज़ सुनी थी मैं।

    कुछ गलत था… कुछ बहुत गलत हो रहा था मेरे साथ। क्योंकि जैसे ही वो मुझे छोड़ कर गायब हुआ तो मुझे वैसी राहत महसूस नहीं हुई थी जैसी होनी चाहिए थी।

    ऐसा भी नहीं है कि उस के लौट जाने से मैं निराश थी।

    नहीं, बिल्कुल नहीं। उस के चले जाने से मेरे अंदर सिकुड़ी पड़ी कमज़ोर सी लड़की कहीं न कहीं अच्छा फील कर रही थी कि उस ने मेरे कपड़े नहीं फाड़े थे। मुझ से फर्स्ट किस के बाद कुछ और नहीं छीना था।

    मगर फिर पूरी राहत क्यों नहीं मिली थी? सुकून क्यों नहीं आ रहा था?

    ऐसा लग रहा था मैं कहीं फंस चुकी थी।


    To be continued….

  • 13. Chapter 13 - तरकीब!

    Words: 1020

    Estimated Reading Time: 7 min

    मैं फंसी हुई थी अपने मन के ग्रे एरिया में। एक ऐसी जगह जहां अंधेरा रोशनी में समा जाता है और सही-गलत के बीच के उजाले को धुंधला कर देता है। अच्छे और बुरे का फर्क मिटा देता है। यहाँ ख़तरे और ख़्वाहिश में फर्क नहीं मिलता। समझदारी और पागलपन एक हो जाते हैं।

    कुछ घण्टे पहले तक मेरे दिमाग को साफ-साफ मालूम था कि मैं कहाँ खड़ी हूँ और आगे क्या करना है। पर अब?
    उस किस के बाद, मुझे ये तक याद नहीं था कि मैं कौन हूँ।

    सेकंड मिनटों में और मिनट घँटों में घुल गए। सब से पहले तो मैं फर्श पर टूटे हुए दो लैंपों के दरमियान धीरे-धीरे इधर-उधर चहलकदमी करती रही। फिर दरवाज़ा चेक करने का ख्याल आया तो मैं उस की ओर बढ़ी।

    जा कर दरवाज़ा खोला तो वही खबर मिली जिस की उम्मीद थी। वो बुरी तरह लॉक्ड था। इतनी बुरी तरह की उस का नॉब तक नहीं घूम रहा था। तभी मुझे ध्यान आया कि सफेद टाइल वाले बाथरूम में एक खिड़की है। लेकिन वो भी लॉक्ड थी। ठीक उन काँच की खिड़कियों की तरह जो रूम के ठीक सामने बनी हुई थीं और उन से पूरा झील दिखता था।

    वाकई बड़े आलीशान कैदखाने में बंद किया था उस ने मुझे!

    बाहर निकलना नामुमकिन था। 

    मैं वापस आ कर बेड के किनारे बैठ गई। घुटनों को सीने से चिपकाया और घबराहट के साथ होंठ चबाने लगी। नब्ज़ कानों में गूंजती रही।

    अब क्या होगा? क्या होगा आगे? वो क्या करने वाला है मेरे साथ? मुझे वो उस तरह का इंसान तो नहीं लगता जिस ने मुझे बस इसलिए किडनैप किया है ताकि मुझे अपने आलीशान घर में कैद रख सके। या जंगल में दौड़ा-दौड़ा कर किस करे।

    मैं ने काँपते हुए अपने घुटनों को और कस कर पकड़ लिया। मेरे अंदर अभी तक वही उजाले में घुला हुआ अंधेरा घूम रहा था। आतंकित तो मैं थी ही लेकिन अजीब सी हूक थी जो बार-बार उठ रही थी। हर पल, उन चीरती हुई आइस-ब्लू आँखों का मन्ज़र मेरे भीतर एक कसक पैदा कर दे रहा था।

    जिस तरह वो एकदम से मेरे पीछे आ कर मुझे पकड़ता था, करंट ही तो दौड़ जाता था अंदर! एक पल के लिए मैं ऐसा शॉक और उत्तेजना महसूस करती थी कि एक-एक रोआं सनसना जाता था।

    उस की लोहे की उंगलियां मेरी गर्दन पकड़ कर मुझे खिलौने की तरह इधर-उधर घुमाती थीं तो मैं खौफ से थरथराते हुए भी एक एक्साइटमेंट फील करती थी।

    और… और वो पल तो मैं भूल ही नहीं पा रही थी जब वो मुझे उस पेड़ से चिपका कर खुद मुझ से चिपक गया था। मेरे होंठों को वो इस तरह निगलने की कोशिश कर रहा था जैसे सदियों का प्यासा हो।

    जैसे… जैसे… मैं उस की हूँ… सिर्फ उस की।

    अचानक होश में आते हुए मैं ने अपनी आँखें भींच लीं। मेरे साथ कुछ गड़बड़ थी। कुछ गलत कर रही थी मैं अपने साथ। 

    मैं खुद को समझाने लगी। नहीं! उसे इस तरह मत याद कर। वो खूबसूरत आंखों वाला खूबसूरत राक्षस तेरा क्लासमेट नहीं है। न ही तुझे कॉफी शॉप में देख कर मुस्कराने वाला कोई लड़का।

    वो एक हत्यारा है। एक किडनैपर है। और शायद पैदाइशी साइको भी।

    और तू उस की एक किस को ऐसे याद कर रही है जैसे ये कितनी रोमांटिक चीज़ हो?! मुझे तुझ से ये उम्मीद नहीं थी। खुद को संभाल तान्या की बच्ची।

    उस ने तेरी ज़िंदगी नर्क बना दी है। तुझे जंगलों में भगाता है और फिर जबरन तुझे किस भी करता है। नहीं, करता नहीं ….बल्कि छीनता है। आह… कितना कुछ सोचा था तूने अपनी फर्स्ट किस के बारे में लेकिन देख क्या हो गया?!

    मेरी आंखें सख्त हो उठीं और मैं गुस्से से कांपने लगी।

    हाँ ये तो मैं भूल ही गई थी कि वो एक शैतान है और शैतान हमेशा शैतान ही होता है। मुझे इस पागलपन से निकलने की ज़रूरत है।

    वो ऐसा इंसान ही नहीं था कि उस के बारे में सोचा जाए। उस ने सचमुच मुझे कैद किया हुआ था।

    मेरे बाप के घर में घुस कर न जाने कितनों की जानें ली थीं उस ने और मुझे हथकड़ी पहना कर प्लेन के ज़रिए भगवान जाने कहाँ ले आया था। और आगे क्या करने वाला था ये भी भगवान ही जाने।

    मुझे बस किसी तरह यहाँ से निकलना था।

    मैं खड़ी हुई और खिड़कियों वाली दीवार के पास पहुँची। सामने काँच के विशाल पर्दे थे। पहली बार जब मैं ने इन पर कुर्सी पटकी थी तो वो कुर्सी ही टूट गई थी लेकिन काँच को एक खरोंच नहीं आई थी।

    मेरी आँखें उन की निचली परतों पर घूमने लगीं। ये उस प्रकार की खिड़कियाँ थीं जिन्हें बाहर की ओर घुमाया जा सकता था लेकिन सारी लॉक्ड थीं।

    जब मैं एक खिड़की के कब्ज़े पर उंगलियां फिरा रही थी तो अचानक मेरी आईब्रोज़ सिकुड़ गईं। ऐसा लगा जैसे यहाँ कोई क्लू था जिसे मैं साफ़तौर पर देख नहीं पा रही थी।

    एक मज़बूत चीज़ भी तब तक ही मज़बूत होती है जब तक उस का कमज़ोर पॉइंट न मिल जाए।

    और अचानक मैं ने चौंकते हुए अपनी उंगलियां रोक लीं और कब्ज़े को करीब से देखने लगी। तब मेरे होंठों पर थिरक उठी एक मुस्कान!

    उस मज़बूत चीज़ का कमज़ोर पॉइंट मिल चुका था – कब्ज़ा।

    भारी खिड़कियां इस तरह से सेट की गई थीं कि कब्ज़े के दो हिस्से थे। एक हिस्सा खिड़की के शीशे से जुड़ा हुआ था और दूसरा दीवार में खिड़की के फ्रेम से जुड़ा हुआ था। कब्ज़े का खिड़की से जुड़ा हिस्सा ऐसा दिख रहा था जैसे इसे ऊपर से सरका कर फ्रेम से जुड़े निचले हिस्से में लॉक कर दिया गया हो और अगर कोशिश की जाए तो फ्रेम से जुड़े कब्ज़े को बाहर की ओर धकेला जा सकता है।

    उसे देखते वक्त मेरे दिमाग में पहली बात आई कि मुझे ये चीज़ समझ में आई कैसे? जिस का जवाब यही सूझा कि मुसीबत में इंसान का दिमाग अपने-आप दौड़ने लगता है, पैर की तरह।

    साथ ही मेरे दिमाग में दूसरी बात भी चल रही थी, कि क्या अब जो मैं करने जा रही हूँ वो सचमुच इतना आसान होगा जितना एकदम से लगने लगा है?


    To be continued….

  • 14. Chapter 14 - बोटहाउस

    Words: 1039

    Estimated Reading Time: 7 min

    साथ ही मेरे दिमाग में दूसरी बात भी चल रही थी, कि क्या अब जो मैं करने जा रही हूँ वो सचमुच इतना आसान होगा जितना एकदम से लगने लगा है?

    पता लगाने का केवल एक ही तरीका था।

    मैं कोने से एक डेस्क खींच कर खिड़की तक ले आई और खिड़की के पास दीवार से सटा कर रख दिया। जिस कुर्सी को मैं ने पहले तोड़ा था वो कुछ यूं टूटी थी कि उस का टूटा हुआ हिस्सा अब मेरे काम आने वाला था। मैं ने उस के एक टूटे हुए लेग को खिड़की के फ्रेम वाले कब्ज़े के पास दबाया और धकेलना शुरू कर दिया। खिड़की जितनी दिख रही थी उस से कहीं ज़्यादा भारी थी लेकिन मैं दाँत पीस कर लगी रही। मैं ने कराहते हुए अपनी पूरी ताकत से ज़ोर लगाया और धीरे-धीरे मेरा प्लान कामयाब होता दिखने लगा।

    कब्ज़ा बाहर की ओर खिसकने लगा था।

    मेरे माथे पर पसीना बह रहा था, हाथ और सीने में दर्द शुरू हो गया था लेकिन मैं रुकी नहीं। कोई सवाल ही नहीं था रुकने का। जितनी ताकत थी, सारी निचोड़ कर लगा दी और धक्का देती रही।

    मिलीमीटर-दर-मिलीमीटर कब्ज़ा बाहर सरकता गया। मैं लोहे के भारी फ्रेम के तीनों हिस्सों को मुक्त होता देख रही थी जब तक कि अचानक, पूरी विशाल खिड़की का शीशा मुक्त नहीं हो गया।

    उस का कोना टूट कर एक तेज़ धमाके के साथ नीचे गिरा जिस से लकड़ी के सख्त फर्श पर खरोंच बन गई। इस से पहले कि पूरा शीशा नीचे गिर जाता मैं उसे पकड़ कर धीरे-धीरे नीचे लाने लगी। इस में भी हद से ज़्यादा ताकत लग रही थी।

    नब्ज़ काफी बढ़ी हुई थी। और जब मैं शांत हो कर कोई आहट सुनने की कोशिश कर रही थी तो मुझे अपना दिल कानों में सुनाई पड़ने लगा। मैं उस राक्षस के कमरे की ओर आते कदमों की आवाज़ का इंतज़ार कर रही थी।

    टिक-टिक करते सेकेंड मिनट में बदल गए मगर कोई आहट, कोई आवाज़ नहीं मिली।

    वो नहीं आ रहा था।

    जैसे ही मैं ने पलट कर खिड़की से बाहर झाँका तो मेरी साँसें तेज़ हो गईं! सामने घुप्प अंधेरा था! झींगुर और रात के पक्षियों की आवाज़ों से पूरा जंगल भरा हुआ था। साथ ही चाँद की रोशनी में नहाई झील के चट्टानों से टकराने की आवाज़ भी गूंज रही थी।

    मेरा अपनी धड़कनों से काबू हट चुका था।

    कमऑन तान्या। इतनी मेहनत करने के बाद तू पीछे नहीं हट सकती। हिम्मत दिखा।

    मैं सेकेंड फ्लोर पर थी लेकिन खिड़कियों के नीचे छज्जा या इस टाइप का कुछ बना हुआ था। मैं ने रात की ठंड में कांपते हुए अपना एक नंगा पैर बाहर निकाला। उसे निकालने के बाद दूसरा पैर भी निकाल लिया और उस छज्जे जैसी आकृति पर खड़ी हो कर आहिस्ता-आहिस्ता बाईं ओर रेंगने लगी। शरीर की हर नस फड़क रही थी।

    सामने एक फैला हुआ पेड़ नज़र आया जो पता नहीं मज़बूत था या नहीं लेकिन अभी मेरे पास कोई प्लान बी नहीं था। इसलिए मैं ने तीन तक गिना और कूद गई।

    झटका लगने से मैं हाँफ गई थी लेकिन शुक्र था कि अब मैं उस पेड़ की एक सख्त शाखा के सहारे लटकी हुई थी। तेज़ रफ्तार में कूदने के कारण मैं कुछ देर यूं ही झूलती रही। इस दौरान शाखा को पूरी कूवत से जकड़ा हुआ था मैं ने वरना नीचे गिरने पर जाने क्या हश्र होता।

    झूलन शांत होते ही मैं आगे बढ़ने लगी। एक के बाद एक टहनियों पर लटकने और चढ़ने में जांघों और बाहों के अंदरूनी हिस्सों को कई खरोंचें आईं। नब्ज़ बुरी तरह दौड़ती रही।

    धड़कने फिर से बेकाबू हो गई थीं लेकिन कुछ सेकेंड बाद मेरे पाँवों ने घास को चूमा और मुझ में सिहरन दौड़ गई!

    फाइनली, मैं उस की कैद से निकल चुकी थी।

    निचली मंज़िल पर अभी भी लाइट्स ऑन थीं लेकिन मुझे उस की झलक कहीं नहीं मिली।

    अचानक मुझे ख्याल आया कि कहीं ये उस का कोई और पागलपन भरा खेल तो नहीं?

    शायद वो पहले से जानता था कि मैं किसी तरह खिड़की से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ लूँगी और अब वो बस मेरा इंतज़ार कर रहा था ― कहीं पेड़ों की किसी छाया में ― मुझ पर झपटने को तैयार!

    इस बार उस ने मुझे पकड़ लिया तो क्या करेगा? फिर से किस करेगा? या उस से बढ़ कर कुछ छीन लेगा मुझ से?

    मैं सिहर उठी। दिल कांपने लगा मगर मैं ने हिम्मत जुटाई और फौरन अपने पाँवों को हरकत में लाते हुए पेड़ों के बीच भागने लगी। कुछ देर में ही साँसें उखड़ने लगीं। मैं ने आँखें फाड़ कर अँधेरे के पार देखने की कोशिश की मगर कुछ नहीं दिख रहा था। पिछली बार जब भागी थी तो उस वक्त मैं ख़ौफ़ज़दा थी क्योंकि पीछे 'वो' लगा हुआ था।

    इस बार वो पीछे नहीं था मगर मैं पहले से भी ज़्यादा ख़ौफ़ज़दा थी!

    ऐसा लग रहा था एक-एक टहनी मुझे चीरने को लालायित थी और जानबूझ कर मुझ पर झपट्टा मार रही थी। उल्लू, चमगादड़, झींगुर या फिर यहाँ रहने वाले किसी भी जीव की आवाज़ ऐसी लगती थी जैसे कोई मुझ पर पीछे से बंदूक तान रहा है, या तलवार से मेरा गला छिटकाने वाला है।

    एकाएक ख़ौफ़ ने मेरा गला एकदम से घोंट दिया और मैं सिहर कर पीछे घूम गई। ऐसा लगा था जैसे कोई ठीक पीछे है मगर दूर-दूर तक कोई नहीं था। मैं ने आँख मूँद कर एक डायरेक्शन चुनी और फिर से दौड़ना स्टार्ट किया। शाखाएं पुनः झपटने लगीं। कभी मेरी त्वचा को काटतीं, खरोंचती तो कभी बालों में फँस जातीं। और फिर एकाएक मैं जंगल को पीछे छोड़ते हुए एक खुले स्थान पर आ गई।

    झील के ठीक पास।

    उफ्फ! नहीं! फिर से वही गलती हो गई। मैं दोबारा U बनाती हुई वापस आ चुकी थी और उस घटिया घर के सामने खड़ी थी।

    मैं कराह उठी और तभी मुझे एहसास हुआ कि मैं असल में वहाँ नहीं हूँ जहाँ खुद को समझ रही हूँ। मेरे सामने मौजूद स्ट्रक्चर भले एक घर जैसा था मगर ये घर नहीं था। बल्कि था एक ― बोटहाउस! जो झील के किनारे से सटा हुआ था। मैं भ्रूभंग कर के दाईं तरफ घूमी तो दूर एक रोशनी की झलक दिखी, जो कि मेन हाउस से आ रही थी। वहीं से जहाँ से मैं भाग कर आई थी।


    To be continued….

  • 15. Chapter 15 - काला साया!

    Words: 1022

    Estimated Reading Time: 7 min

    मेरा दिल अभी तक आज़ादी की खुशी और जंगल में पागलों की तरह भागने के कारण बुरी तरह धड़क रहा था लेकिन आँखें बोटहाउस पर जमी हुई थीं।

    बोटहाउस में बोट होती हैं। बोट के ज़रिए मैं इस झील को पार कर सकती हूँ। एक बार झील के उस पार पहुंच गई तो मदद करने वाला कोई न कोई मिल ही जाएगा।

    अभी मैं बढ़ी हुई धड़कनों के साथ दौड़ कर बोटहाउस की ओर भागने ही वाली थी कि अचानक एक हलचल हुई। मेरे सर में खतरे की घण्टियां बज उठीं और मैं जल्दी से नीचे झुक गई जिस से मुँह ने ज़ोरदार आवाज़ के साथ साँस खींची मगर मैं ने झट से मुंह दबा लिया था। मैं ने अपने पीछे कुछ दूर एक परछाई को प्रकट होते देखा जो धीरे-धीरे मेरी ही ओर आ रही थी।

    ओ माय गॉड! क्या उस ने मुझे फिर से ढूंढ लिया?

    मैं झाड़ियों की गहराई में समा गई ताकि गलती से भी उस की नज़र मुझ पर न पड़ने पाए। मेरी चौड़ी आंखें परछाई पर जमी रहीं और वो धीरे-धीरे इसी ओर रेंगती रही, जैसे शिकार की तलाश में घूम रहा कोई जानवर।

    मैं पत्थर बनी पड़ी थी। हाथ छाती पर दबे हुए थे और मैं काँपती हुई अपने धड़कते दिल को शांत करने की कोशिश कर रही थी। तभी बादल छँट गए और चाँदनी की चमक ने पेड़ों के साथ झील और उस के किनारे को भी चमका दिया।

    ये परछाई 'वो' नहीं था।

    ये कोई जवान औरत लग रही थी।

    वो पूरी तरह से काले रंग की ड्रेस में थी। ड्रेस भी कोई आम ड्रेस नहीं थी बल्कि एक कॉम्बैट सूट था। किसी आर्मी की कमांडर लग रही थी वो उस में। बॉडी अच्छी तरह से छुपी हुई थी उस की। चेहरे पर बेलक्लावा मास्क था जिस से उस की आँखों, होंठों और काले बालों की झलक मात्र ही मिल रही थी।

    वो उस जगह पहुँची जहाँ मैं लेटी हुई थी। यहाँ आते ही उस की आँखें सिकुड़ गईं। मैं दम साधे पड़ी थी जब मेरी नज़र उस की छाती पर एक पट्टे से लटकी असॉल्ट राइफल पर गई। साँस ही तो अटक गई थी मेरी!

    कानों में नब्ज़ की चीख इस तरह गूंजने लगी जैसे एकदम से कोई ज़ोर-ज़ोर से नगाड़ा पीटने लगा हो।

    वो मेरे सामने से गुज़री और कुछ ही कदम पर रुक गई। उस की आईब्रोज़ गहराई से सिकुड़ी हुई थीं जब वो अपनी पॉकेट से कुछ निकालने की कोशिश कर रही थी। उसे निकालने के बाद उस ने जाने क्या किया, फिर उस चीज़ को अपने कान से सटा लिया।

    ओह… वो एक फोन था।

    "इट्स मी," वो धीरे से बड़बड़ाई – "मैं ने अभी-अभी यहाँ की छानबीन की है। वो यहीं है, लेकिन ऐसा लगता है कि वो अकेला है।"

    मैं ने तेज़ी से पलकें झपकाईं। निचला होंठ दर्द कर रहा था क्योंकि मेरे दांत इस में धंसे हुए थे।

    उस रहस्यमयी औरत ने सर हिलाते हुए कहा –"हाँ। मैं काम कर के ही लौटूंगी। अगर वो यहीं है और इस कमीने ने उसे ज़िंदा रखा हुआ है, तो मैं खुद उस की चिता फूंक दूँगी।"

    शिट! शिट! शिट!

    य… ये सब क्या सुन रही थी मैं? किस को फूंकने की बात कर रही थी वो?

    मेरे दांतों ने नाज़ुक होंठ को भेद डाला और मुंह में खून का स्वाद भर गया।

    धड़कनों की धड़-धड़ क्लैक्सन अलार्म के चिंघाड़ते शोर में बदल गई थी। ऐसा लगने लगा जैसे माहौल में हवाई हमले से पहले बजने वाला सायरन गूंज उठा हो।

    "अगर वो यहीं है और इस कमीने ने उसे ज़िंदा रखा हुआ है, तो मैं खुद उस की चिता फूंक दूँगी।"

    मेरे दिमाग का हरेक न्यूरॉन मुझ पर चिल्लाने लगा कि उठो और भागो। भागो, पानी में कूद जाओ और जब तक तैरना पड़े तब तक तैरो ताकि कम से कम इस जानलेवा जगह से तो दूर निकल जाओ। आगे जो होगा देखा जाएगा।

    लेकिन अगर मैं दौड़ी तो हो सकता है कि ये औरत मेरी आवाज़ सुन ले। और अगर इस ने नहीं सुना तो वो सुन लेगा जिसे अब तक मेरी गुमशुदगी की खबर लग गई होगी और मुझे चारों तरफ ढूंढ रहा होगा।

    मैं बस इतना ही कर सकती थी कि एक हाथ मुंह पर और दूसरे को ज़मीन पर जमा कर पड़ी रहूं और इंतज़ार करूँ।

    उस ने फोन को वापस जेब में डाला और फिर असॉल्ट राइफल को हाथ में ले लिया।

    उस की आँखें चारों तरफ घूमती हुई उस जगह पहुँची जहां मैं छुपी थी, लेकिन वे ठहरी नहीं और दूसरी ओर घूम गईं।

    उस ने कुछ देर यूं ही आँखें सिकोड़ कर इधर-उधर देखा। होंठ भिंचे हुए थे। फिर घूमी और हल्के कदमों से किनारे की ओर दौड़ गई।

    मेरा भी कंट्रोल अब खत्म हो चुका था। फौरन उठी और एक तरफ भागने लगी।

    पिछली बार का सारा जोश खत्म हो चुका था और अब मैं बेतहाशा बस भागती जा रही थी। कहाँ? नहीं जानती।

    अब मुझे इस बात की भी परवाह नहीं थी कि टहनियां मुझे नोच रही थीं, काट रही थीं।

    तभी सामने रोशनियां दिखने लगीं और मेरी साँस ठहर गई! क्या मैं वापस मेन हाउस आ पहुँची थी? 

    मेरे नंगे पैरों में सैकड़ों कांटों की चुभन महसूस हो रही थी लेकिन मैं दर्द को निगलते हुए तब तक बढ़ती रही जब तक कि सामने का मन्ज़र दोबारा चांदनी में नहा नहीं गया और दिमाग ने एकदम से चिल्ला कर मुझे रोक नहीं दिया।

    उफ… मैं उस बोटहाउस के एकदम पास खड़ी थी जिसे कुछ देर पहले मैं ने जंगल के किनारे से देखा था।

    मैं जल्दी से झुक गई और जितना हो सकता था अपनी साँस धीमी कर ली। वो औरत भी तो इसी तरफ आई थी। मेरी आँखों ने उसे किनारे पर ढूंढना शुरू कर दिया और मेरा दिमाग घबराहट और डर से घिरता चला गया।

    और फिर मैं ने उसे देखा। एक काले रंग का रबर डिंजी(एक प्रकार की मिलिट्री बोट) झील के उस पार विपरीत किनारे की ओर चुपचाप बढ़ रहा था। जिस में काले कपड़े वाली वही औरत बैठी थी। मेरी साँसें एक हूश के साथ बाहर निकल गईं। खतरा टल चुका था।



    To be continued….

    क्या सचमुच टल चुका है खतरा है? या अभी तो बस शुरुआत है? जानेंगे अगले चैप्टर में।

  • 16. Chapter 16 - यहाँ कोई था!

    Words: 1090

    Estimated Reading Time: 7 min

    मैं ने गले में बनी गांठ निगली। धड़कनों की बेताबी अभी पूरी तरह से शांत नहीं हुई थी लेकिन अब मैं थोड़ी रिलैक्स्ड महसूस कर रही थी। आख़िरकार मैं ने एक सेकेंड की राहत भरी सांस ली।

    वो चली गई थी। खतरा टल गया था।

    मेरी आँखें बोटहाउस की ओर घूमीं, त्वचा में हल्की सी झुनझुनी हुई और मैं उठ कर खड़ी हो गई।

    मुझे बोट ढूंढनी चाहिए। शायद वो बोट अब भी यहीं हो जिस में मुझे वो यहाँ लाया था।

    मैं ने धीरे-धीरे खुली ज़मीन पर चलना शुरू कर दिया।

    अचानक मेरे पीछे कहीं टहनी चटखने की आवाज़ गूंजी और मेरी साँस हलक में अटक गई! रुका हुआ दिल ले कर पलटी मैं।

    एक गिलहरी अखरोट चबाते हुए पेड़ों से बाहर निकलती दिखी।

    मैं ने आह भर कर एक कंपकंपी भरी सांस छोड़ी।

    सिर्फ एक बदमाश गिलहरी है। डरने की ज़रूरत नहीं।

    मैं ने सुस्त, गहरी सांस ली  जिस से दिल की धड़कन नॉर्मल हो गई। नसों ने शोर मचाना बंद कर दिया। आख़िरकार, मैं ठीक फील करने लगी। अब यहाँ से निकलने का समय आ चुका था। मैं वापस घूमी और बुरी तरह चीख पड़ी! मैं सीधी उस की सख्त, चट्टान जैसी छाती से टकराई थी।

    एक शक्तिशाली हाथ ने मेरे सर के पीछे के बाल पकड़े और दूसरा हाथ मेरे चीख पैदा करते मुँह पर चिपक गया। और जब वो मुझ पर झुका तो मेरी आंखें भर गई थीं।
    उस की आइस-ब्लू आंखें मुझे चीरने लगीं और मैं फटी आँखों के रास्ते आँसू बहाती हुई उसे देखती रही। अगले पल उस के होंठों पर एक वहशियाना(बर्बर) मुस्कान थी।

    "कहीं जा रही थी, प्रिंसेस?"

    मैं आँसू पीते हुए फिर से चिल्लाने और छटपटाने लगी लेकिन उस की पकड़ लोहे जैसी थी। कोई उस से छूट कर नहीं निकल सकता था।

    मैं बेतहाशा छटपटाती रही मगर वो हिला भी नहीं। स्थिरता से एक ही जगह खड़ा रहा, उस का एक हाथ मेरे सर के पीछे और दूसरा मुँह पर ही रहा, जिस से मेरी चीखों को वो हलक में ही घोंटता रहा।

    उस की आँखें चांदनी में चमक रही थीं और मेरी छटपटाहट पर उस की मसल्स धीरे-धीरे काँप रही थीं।

    अचानक उस ने मेरे बाल खींचे, मगर इस तरह की मेरे सर में ज़्यादा दर्द नहीं हुआ। लेकिन मेरा ध्यान ध्यान भटक गया और मैं ने तड़फड़ाना बंद कर दिया। मेरे शांत पड़ते ही वो मुस्कराया और मैं उसे घूरने लगी। वो बदला हुआ था। उस ने ब्लैक जींस और एक वाइट टी-शर्ट डाल रखी थी जो उस के चौड़े सीने पर कसी हुई थी। दूसरी बात, मेरी तरह वो भी नंगे पांव था। उस ने आँखें सिकोड़ते हुए कहा – "मैं हाथ हटाने जा रहा हूँ। लेकिन उस से पहले तुम्हें मशवरा दे दूँ कि चिल्लाने की कोशिश भी मत करना।"

    मैं ने फौरन से सर हिलाते हुए थूक निगला। उस का जबड़ा एक सेकेंड के लिए भिंचा और फिर उस ने मेरे मुँह से अपना हाथ हटा लिया। लेकिन दूसरा अभी भी बालों में उलझा रहा।

    "मैं देख रहा हूं कि तुम ने मुझे बताए बिना फिर से गेम खेलने का फैसला कर लिया…"

    "यहाँ कोई था!"

    मेरे मुँह से अनायास ही निकल गया। उस ने आईब्रोज़ चढ़ाईं और सख्त अंदाज़ में घूरने लगा। जब उस ने 'गेम' का ज़िक्र किया तो उस वक्त उस की आँखें कुछ ज़्यादा ही चमक उठी थीं।

    "क्या कहा?"

    "यहाँ कोई था। एक औरत।"

    उस की आंखें सिकुड़ गईं।

    "अकेली?"

    मैं ने सर हिलाया और बोली – "हाँ…म-मैं ने तो अकेली ही देखा था। उस ने मिलिट्री टाइप ड्रेस पहनी थी, साथ में एक असॉल्ट राइफल थी और वो किसी से फोन पर बात कर रही थी।"

    मैं थोड़ी सी घूम गई, इस बात को नज़रअंदाज़ करते हुए कि मेरे बालों पर उस की मुट्ठी का खिंचाव मेरे भीतर एक अजीब सी झनझनाहट भेज रहा था।

    मैं ने उस तरफ इशारा किया जहां वो औरत खड़ी थी, ठीक उसी जगह जहां मैं छिपी हुई थी।

    "वहाँ। उस ने फोन पर कहा कि ऐसा लगता है तुम यहां अकेले हो लेकिन…"

    मैं सिहर कर खामोश हो गई।

    "आगे बताओ!" वो गुर्राया।

    "फिर वो एक रबर डंजी में बैठ कर चली गई।" मैं ने उस ओर इशारा किया जहाँ उस की छोटी सी बोट को जाते देखा था – "मैं ने उसे दूसरे किनारे की ओर जाते देखा…"

    "उस की पूरी बात बताओ मुझे! क्या कहा था उस ने?!"

    मैं ने कांपते हुए जीतोड़ कोशिश करी कि दूसरी ओर देखूं, लेकिन अपनी नज़रें उस से हटा नहीं पाई।

    "अगर वो यहीं है और इस कमीने ने उसे ज़िंदा रखा हुआ है, तो मैं खुद उस की चिता फूंक दूँगी।" मेरे मन में गूंज रहे थे ये वाक्य।

    कुछ सेकेंड पहले उस की निगाहें सख्त थीं पर अब नरम पड़ चुकी थीं। जाने कैसे या क्यों हुआ था वो जादू?

    "मुझे बताओ तान्या, क्या कहा उस ने?"

    "त… तुम ने मेरा नाम लिया?! जब कि मैं तुम्हारा नाम जानती तक नहीं।"

    मेरी बात सुन उस की भौंहें दिलचस्पी से तन गईं। "क्या करोगी जान कर?"

    "कुछ नहीं। बस मुझे उस कमीने का नाम जान कर अच्छा लगेगा जिस ने मुझे घर से उठाया, हवाई जहाज़ में बिठा कर जाने कहाँ ले आया, किसी पागल की तरह जंगल में दौड़ाया और…"

    "और फिर?" वो मुझ से सट गया। मेरी धड़कनें बेकाबू और साँसें बेतरतीब होने लगीं।

    "फिर मेरी इजाज़त के बिना मुझे किस…"

    और ये फिर से होने लगा। इस बार भी कोई वॉर्निंग कोई इशारा नहीं। उस के होंठ अदृश्य तूफान की तरह मेरे होंठों से टकराए। मेरी सांसें छीन लीं और अंदर घुसने की मांग करने लगे। मैं ज़ोर लगा कर भी उसे रोक नहीं पाई और उस की टंग ने पूरी गहराई तक गोता लगाया और मेरी टंग से उलझने लगी। वो तब तक लगा रहा जब तक मेरे पैर कांपने नहीं लगे और पंजों की उंगलियां मुड़ नहीं गईं।

    फिर वो एकदम से पीछे हट गया।

    कोई कुछ नहीं बोल रहा था। मैं तो साँस भी नहीं ले रही थी बस शॉक्ड हालत में खड़ी गर्मी से कांप रही थी। होंठ सूज गए थे और इन में झुनझुनी भी हो रही थी।

    "मुझे इस की आदत लग चुकी है।"

    मैं ने शब्द याद करने की कोशिश करते और उन्हें मुंह से बोलने का तरीका याद करते हुए पलकें झपकाईं।

    "क... किस की आदत?"

    "तुम्हारी किस की। चाहे तुम इजाज़त दो या न दो। मैं जब चाहूंगा जहाँ चाहूंगा इसे तुम से छीन लूँगा। यहाँ तक कि अगर किसी ने मेरी खोपड़ी को गनपॉइंट पर भी ले रखा होगा तब भी मैं तुम्हें किस करने से नहीं रुकूँगा। अब फटाफट बताओ उस औरत ने क्या कहा था?"


    To be continued…

  • 17. Chapter 17 - यू आर डेड!

    Words: 1030

    Estimated Reading Time: 7 min

    मैं ने गले की गांठ निगलते हुए अपने अवचेतन मन को उस किस के बाद की स्तब्धता से बाहर निकाला, उस की तरफ देखा और हिम्मत करके बोली – "क्या तुम मुझे मारने आए थे? मेरे घर पर?" चाहते हुए भी आवाज़ साफ नहीं बल्कि फुसफुसाती हुई निकली थी –"क्या इसीलिए तुम मुझे यहाँ लाए हो?"

    उस ने भौंहें सिकोड़ लीं और खामोशी से घूरता रहा।

    मैं भी उसे घूरने लगी –"ठीक है…. मैं समझ गई, यही सच है। कोई मुझे मरवाना चाहता है… ओए!"

    मैं चीख पड़ी जब उस ने मुझे उठाया और बेपरवाही से अपने कंधे पर फेंक दिया। फिर पलटा और तूफान की तरह मेन हाउस की ओर बढ़ने लगा।

    मैं ने मारना और छटपटाना शुरू किया लेकिन ईमानदारी से कहूं तो अब मुझ में वो आग बाकी नहीं रह गई थी।

    उस ने खत्म कर दी थी। उसी दम जब उस के होंठ मेरे होंठों से चिपके थे।

    घर में दाखिल हो कर वो सीढ़ियों की तरफ नहीं घूमा बल्कि मुझे और अंदर की तरफ ले जाने लगा। वो तब तक ठकठक कर के चलता रहा जब तक हम एक लाइब्रेरी में नहीं पहुँच गए, या शायद स्टडी रूम था… पता नहीं। मगर काफी किताबें थीं यहाँ और एक डेस्क भी। मैं हाथ-पाँव चलाते-चलाते हांफने लगी थी जब उस ने मुझे कंधे से उतार कर सोफे पर पटक दिया। फिर डेस्क से कुछ उठाने के लिए मुड़ा।

    "व्हाट द हेल!" मैं अपने पैरों पर खड़ी हो कर चिल्लाई –"मुझे हाँ या ना में जवाब दो, क्या तुम मुझे मारने के लिए मेरे घर आए…"

    वो वापस घूमा और मेरा चेहरा भक्क से सफेद हो गया! मुँह से चीख उबल गई।

    उस के हाथ में चमचमाता हुआ शिकारी चाकू था।

    वो मेरे पास आया और मैं चिल्लाती हुई पीछे हटी लेकिन मेरा एक पैर फिसल गया और मैं वापस सोफे पर गिर गई।

    "नहीं! प्लीज़!"

    वो मेरे ऊपर आया, मैं ज़ोर से चिल्लाई और उस ने मेरे बालों की एक पतली लट पकड़ ली। फिर उस का चाकू वाला हाथ हिला और ब्लेड ने बड़े करीने से छः इंच की लट को काट कर अलग कर दिया।

    मैं ने तेज़ी से पलकें झपकाते हुए उसे देखा।

    "य… ये क्या किया?!"

    मेरा हाथ सर के किनारे के उन बालों को छूने के लिए अपने-आप ऊपर उठ गया जहाँ से उस ने इन्हें काटा था।

    वो वापस डेस्क की ओर गया, बालों की लट और चाकू को उस पर गिरा कर डेस्क से कुछ उठाया और वापस लौटा।

    इस बार, उस के हाथ में थी एक ― सिरिंज।

    "न-नहीं!"

    "अपना हाथ दो।"

    मेरी आंखें ख़ौफ़ से चौड़ी हो चुकी थीं। मैं ने सर इधर-उधर झटकते हुए कहा –"प्लीज़ नहीं…"

    उस ने कलाई पकड़ कर मेरी बाँह को ज़ोर से अपनी ओर खींच कर सीधा किया और सिरिंज की नोक को त्वचा की सतह पर नज़र आती एक नस पर रख दिया।

    "प्लीज़ मत करो!"

    "हिलो मत!" वो गुर्राया।

    जैसे ही सुई ने मेरी स्किन को चीरा मैं कराह उठी और होठों से सिसकियां फूटने लगीं।

    "मैं तुम्हें ड्रग नहीं दे रहा। सिर्फ खून निकाल रहा हूं।"

    मैं ने कन्फ्यूज़न से पलकें झपकाते हुए देखा, वो सचमुच सिरिंज में मेरा ब्लड खींच रहा था। अंत में उस ने सिरिंज को धीरे से बाहर खींचा और निशान को फौरन कॉटन बॉल से ढक दिया।

    "इसे दबा कर रखो।"

    वो वापस डेस्क पर गया और सिरिंज को एक टेस्ट ट्यूब में खाली कर दिया, मैं खाली नेत्रों से घूरती रही। फिर उस ने उसे और बालों को उठा कर एक प्लास्टिक के पाउच में कस कर सील कर के डेस्क पर रख दिया। पलटा और अपनी बाहों को छाती पर फोल्ड कर के हिप्स को डेस्क से टिकाते हुए, ज़रा सा झुक कर चुभती नीली आँखों से मुझे देखने लगा।

    "य… ये सब क्या कर रहे थे तु.."

    "यू आर डेड।"

    मैं ने हकबका कर आँखें फाड़ीं।

    "व-व्हाट?"

    "तुम कह रही थी कोई तुम्हें मरवाना चाहता है?" – उस ने कंधे झटके – "नाओ, यू आर डेड।"

    मैं ने पलकें झपकीं और उस ने गहरी आह भर कर कहा –"मैं तुम्हें एक चॉइस दे रहा हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि तुम इस के लायक हो।"

    उस की निगाहें लगातार मुझ पर थीं।

    "चाहो तो तुम बारूद के ढेर पर बैठ कर ज़िंदगी बिता सकती हो। तुम्हारी फैमिली दुनिया की कोई आम फैमिली नहीं एक खतरनाक माफिया ऑर्गेनाइज़ेशन है और डेंजरस लोगों की नज़र अब तुम्हारे बाप की गद्दी पर है। तुम आराम से उन का शिकार बन कर मर सकती हो। या चाहो तो खुद को मरा घोषित कर के जी सकती हो।"

    मैं ने थूक गटका।

    "तुम्हारा मतलब है नकली मौत।"

    उस ने सर हिलाया।

    "हाँ। लेकिन तुम कभी अपनी पुरानी लाइफ में लौट नहीं पाओगी।"

    मैं ने अपना मुँह खोलना शुरू किया मगर वो फिर से बोल पड़ा – "कभी भी नहीं।"

    कमरा सन्नाटे में डूब गया।

    "म-मतलब… मैं समझी नहीं।" आखिरकार मैं धीरे से फुसफुसाई।

    "मतलब कोई कॉलेज, कोई पढ़ाई नहीं। मतलब तुम्हारी दोस्त को कभी कोई कॉल नहीं, न ही मिलना-मिलाना। इंस्टाग्राम, ट्विटर, फेसबुक, कुछ भी नहीं। मतलब कि तान्या राव अब मर चुकी है… हमेशा के लिए।"

    मैं ने अपने गले में सूजी हुई गांठ निगली।

    "तो फिर मैं क्या करूंगी? कहाँ रहूँगी?"

    "यहीं रहोगी।"

    मैं सिहर गई। "हमेशा?"

    "फिलहाल ये तय नहीं किया है।"

    मेरा सीना कस गया।

    "मेरे साथ आओ।"

    "क्यों?" मैं बोली।

    वो मंद-मंद मुस्कराता हुआ मेरी तरफ पलटा।

    "क्योंकि तुम्हें बार-बार कंधे पर ले जाना थोड़ा बदतमीज़ी टाइप हो जाता है, लेकिन अगर तुम चाहती हो तो फिर मुझे खुशी होगी।"

    "न.. नहीं! मैं चलती हूँ।" उसे करीब आता देख मैं हड़बड़ाए अंदाज़ में बोली।

    वो घूमा और कमरे से बाहर निकल गया जब कि मेरा चेहरा गर्मी से लाल हो चुका था।

    मैं उस के पीछे हो ली।

    लिविंग रूम से गुज़रते समय मैं ने सर घुमा कर सामने दिखते दरवाज़े को घूरा।

    "मैं दोबारा भागने से पहले तब तक इंतज़ार करता जब तक मुझे भरपेट खाना और पैरों में पहनने को जूते नहीं मिल जाते।"

    उस के शब्दों ने मुझे चौंका दिया, मेरी नज़र उस ओर गई जहाँ वो फिर से सीढ़ियाँ चढ़ रहा था और उस की आँखें मेरी ओर थीं भी नहीं। फिर कैसे जान गया था वो कि मैं दरवाज़े को घूर रही थी?



    To be continued…

  • 18. Chapter 18 - यू आर ए प्रिज़नर!

    Words: 1060

    Estimated Reading Time: 7 min

    "कब तक?" मेरे मुंह से आवाज़ आई।

    "क्या कब तक?"

    "कब तक रहूंगी मैं यहां?"

    "कहा न सोचा नहीं है।"

    मैं ने दांत पीसे। अचानक पेट में भूख की पीड़ा हो रही थी। मैं ने नीचे देखा तो अपने नंगे, गंदे पैरों की चोट और खून से लथपथ हालत देख आंखें कांप गईं।

    मैं कातर भाव से उस के पीछे-पीछे सीढ़ियां चढ़ी।

    पहले तो मुझे लग रहा था कि हम उसी कमरे में वापस जाएंगे जिस में उस ने मुझे कैद किया था। लेकिन वो उस से आगे निकल कर हॉलवे के कोने पर घूम गया।

    अब हम एक दूसरे दरवाज़े के पास खड़े थे। दरवाज़ा खोलते ही उस ने मुझे अंदर जाने का इशारा किया।

    मैं ठिठक कर उसे घूरने लगी, लेकिन फिर अचानक मेरी नाक में खाने की गंध भर गई। इसी के साथ मेरी निगाहें कमरे में घुसी और मेरे मुँह में पानी आ गया।

    ये कमरा भी बैडरूम जैसा था और अंदर एक चेयर के साथ एक छोटी सी टेबल लगी थी। जिस पर एक प्लेट में चीज़बर्गर, मोमोज़, फ्रेंच फ्राइज़ का ढेर के साथ कटे हुए फल रखे थे।

    ओ माय गॉड!

    मेरी कमज़ोरी। फ्रेंच फ्राइज़! टेंशन के समय मैं वही तो खाती थी। मेरे सामने मेरा पसंदीदा भोजन रखा था।

    मैं शांत हो कर सोच में पड़ गई। वो मेरा पास्ट जानता था। मेरी फैमिली के बारे में जानता था। मेरा नाम जानता था।  तो क्या टेबल पर रखी चीज़ें संयोग नहीं थीं?

    "मुझे तुम्हारी पसंद मालूम है। जब तुम मेरी खिड़कियाँ खराब करने में बिज़ी थी मैं तुम्हारे खाने का इंतज़ाम करने में बिज़ी था।"

    मेरा चेहरा बुरी तरह दहकने लगा। 

    "बैठो और खाना शुरू करो।"

    वो कोई इनविटेशन नहीं था। एक आदेश था। लेकिन मैं और मेरा दर्दनाक रूप से खाली पेट अभी इस हाल में नहीं थे कि उस के आदेश को वापस उस के चेहरे पर फेंक पाते। मैं ने अपने ग़ुरूर और शर्म को निगला और टेबल पर जा बैठी।

    "अटैच्ड बाथरूम में टॉइलेट्रीज़ हैं। रेफ्रिजरेटर में रेडीमेड फ़ूड मिल जाएंगे…"

    उस ने दूर दीवार के पास रखी मिनी फ्रिज की ओर इशारा किया जिसे देख कर मेरी पलकें हैरत से झपकीं। फ्रिज के ऊपर एक माइक्रोवेव भी था।

    "और बाथरूम के सिंक का पानी पूरी तरह पीने योग्य है।"

    मैं ने धीरे से सर हिलाया और अपनी निगाहें वापस उस की ओर घुमाईं।

    "क्या यह मेरा नया कमरा है?"

    उस ने सर हिलाया। मैं ने होंठ चबाए। आंखें दीवार के साथ लगी खिड़कियों की ओर उठ गईं और फौरन ही मुझे एहसास हो गया कि ये पहले वाले कमरे से थोड़ी अलग हैं।

    "हालांकि मैं तुम्हारी काबिलियत की सराहना करता हूँ मगर मुझे यकीन है कि इन खिड़कियों से निकलना तुम्हारे लिए नामुमकिन होगा।"

    मेरे गाल लाल हो गए और अपने दाँतों के पिछले हिस्से को ज़बान से छूती हुई मैं उस की तरफ पलटी।

    "क्या मैं एक कैदी हूं?"

    वो कुछ नहीं बोला।

    "नया कमरा," मैं बड़बड़ाई – "बाथरूम, खाना और पानी, खिड़कियाँ जो नहीं खुलेंगी। और मुझे यकीन है कि दरवाज़ा भी तुम बाहर से बंद कर के जाओगे..." मैं ने निगला – "तो? क्या इस का मतलब ये है कि मैं यहाँ बंदी बन चुकी हूँ?"

    उस ने कंधे उचकाए।

    "अगर दरवाज़ा बंद न हो, खिकड़ियाँ खुली हों, तो क्या तुम भागोगी नहीं?"

    मैं ने होंठ भींच कर उस की मुस्कुराहट पर अपनी आँखें सिकोड़ लीं।

    "तब तो मुझे कहना ही पड़ेगा… कि तुम बंदी हो। यू आर ए प्रिज़नर।"

    वो पलटा और दरवाज़े की ओर चल दिया। और जैसा कि मैं ने भविष्यवाणी की थी, उस ने दरवाज़े के बाहर लगे डेडबोल्ट लॉक में एक चाबी फिट कर दी।

    "खाने का मज़ा लो। मैं कल दोपहर तक वापस आऊंगा।"

    मेरा जबड़ा खुला रह गया था।

    "रुको, क्या…?!"

    "इट्स कृष।"

    उस की घातक नीली आंखें मेरी आँखों में चुभ गईं और उस ने खड़े-खड़े मुझे पिघलाते हुए कहा – "मेरा नाम कृष है।"

    दरवाज़ा बंद हो कर एक क्लिक के साथ लॉक हो गया।

    ⛓ 🔗 ⛓ 🔗 ⛓

    _krish's POV_

    "तू चाहता है मैं झील को वॉच करूँ?"

    "हाँ।"

    रेंज रोवर में घुसते समय मैं ने फोन पर बात करते हुए सर हिलाया। करीब ही वो बोट खड़ी थी जिस से मैं इस तरफ आया था। झील का बहाव उसे धीरे-धीरे हिला रहा था।

    "क्या पूरी झील पर नज़र रखनी है?"

    "अगर तू नहीं कर सकता तो मैं किसी और को कॉल…"

    "अबे साले," माधव चिढ़ कर बोला – "पहली बात, अपुन जानता है कि तुझे मालूम है अपुन की बेइज़्ज़ती करना अच्छी बात नहीं… फिर काएको करता है? दूसरी बात, अपुन जानता है कि तेरा काम अपुन से बेहतर कोई कर ही नहीं सकता।"

    "और इन दोनों बकवासों का मतलब?"

    "मतलब अपन किस चीज़ की तलाश में हैं ये तो बता?"

    मैं मंद-मंद मुस्कुराया।

    "बिन बुलाए मेहमानों की।"

    "मतलब तेरे घर की ओर जाते बिन बुलाए मेहमान, करेक्ट?"

    रात के सन्नाटे में मैं ने गाड़ी को प्राइवेट एयरफील्ड की ओर घुमाते हुए सर हिलाया – "हाँ।"

    "लगता है मैटर बहुत ज़्यादा सॉलिड है, भिड़ू।"

    "हाँ।"

    मेरे पुराने दोस्त ने आह भरी – "ठीक है, अपुन संभाल लेगा। अपुन के रहते कोई तेरे घर को टाप नहीं सकता।"

    "बदले में केवल तारीफ मिलेगी।"

    उस के मुंह से ऐसी आवाज़ निकली मानो किसी आरामदायक सोफे से उठा हो।

    "तारीफ अपुन को पसंद नहीं, कुछ और मिलेगा?"

    "चाइनीज़ बर्गर?"

    वो हँसने लगा। हम हमेशा से ऐसे ही थे। भले ही हम में बातें कम होती थीं लेकिन हम उस तरह के पुराने दोस्त थे जो एक या दो साल बाद भी मिलते थे मगर मिलते ज़रूर थे और साथ में खूब धमाके करते थे।

    जो सोल्जर्स एक साथ लड़ाई में रहे हों वे ऐसे ही होते हैं।

    हालाँकि, माधव और मैं ने कभी भी यूनिफार्म नहीं पहनी थी। और जो लड़ाइयां हम ने लड़ीं वो बस लड़ाई नहीं थीं, मौत और बर्बादी का नंगा नाच थीं।

    मेरी तरह, माधव भी मिखाइल द्वारा निर्देशित घोस्ट प्रोजेक्ट का हिस्सा था। लेकिन मेरे विपरीत, उस की आत्मा बहुत जल्दी जाग गई और उस ने वहाँ से निकलने की युक्ति ढूंढ निकाली। अपनी दिमागी हालत को जानबूझ कर कमज़ोर दिखाने के लिए उस ने LSD (Lysergic acid diethylamide/hallucinogenic drug) की एक साथ तीन खुराकें ले ली थीं, जिस से उसे मानसिक अस्थिरता के आधार पर सिंडिकेट से तत्काल बर्खास्त कर दिया गया।

    मजेदार बात यह है कि वो साइकेडेलिक्स लिए बिना भी उस दिमागी टेस्ट में फेल हो सकता था, क्योंकि वो शुरू से ही पागल था।


    To be continued….

  • 19. Chapter 19 - ए मीटअप विद सेकेंड इन कमांड!

    Words: 1076

    Estimated Reading Time: 7 min

    लेकिन बंदा जितना पागल लगता है उतना ही सॉलिड भी है। मेरी पूछो तो वो दुनिया का एकमात्र सर्वश्रेष्ठ स्नाइपर है। और मैं यूं ही नहीं बोल रहा, उस के करिश्मे देखे हैं मैं ने।

    आज रात उस का मिशन तान्या की रखवाली करना था, हालांकि उसे ये नहीं मालूम था। उसे बस यही पता था कि उसे लेक पर निगाह रखनी है। मैं तान्या को तनहा छोड़ने का रिस्क नहीं लेना चाहता था। उस के मुंह से ये सुनने के बाद तो बिल्कुल नहीं कि कोई औरत किनारे पर घूम रही थी। हो न हो उसे यकीनन मिखाइल ने ही भेजा था।

    मामले को जल्द से जल्द खत्म करना ज़रूरी था और उस के लिए मुझे जेना से मिलना ज़रुरी था।

    जिस का मतलब था तान्या को अकेला छोड़ना। इसलिए मैं ने ये इंतज़ाम किया था।

    "ऑलराइट, मैं ने पैकिंग शुरू कर दी है और लगभग पांच घंटे में वहां पहुंच जाऊंगा और उस के बाद तेरी छत पर जमेगा मेरा डेरा।"

    मेरा चेहरा काला पड़ गया।

    "नहीं," मैं गुर्राया। बहुत तेज़।

    माधव हँस कर बोला – "चिल बडी, अपुन तेरी छत में छेद नहीं करेगा, न केबल चुराएगा।"

    मैं ने सिर हिलाया – "पश्चिमी तट पर एक छिपा हुआ टीला है। उस से पूरी झील का खुला मंज़र नज़र आएगा।"

    मैं अपनी पूरी प्रॉपर्टी में लगे इन्फ्रारेड सेंसरर्स और मोशन डिटेक्टर्स भी चालू कर आया था। लेकिन मुझे माधव जैसे बंदे की ज़रूरत थी जिस की आंखें आसमान से नज़र रख सकें।

    "आय थिंक अपुन को वो स्पॉट याद है, ह्म्म्म।" वो गहरी सांस ले कर बोला – "ठीक है यार, रास्ते में हूँ। अगर अपुन को कोई अजनबी तेरे घर की ओर बढ़ता दिखा तो ठोंक दूँगा... है न?"

    "हाँ।"

    वो एक सेकंड चुप रहा।

    "क्या कोई प्रॉब्लम है?" मैं ने पूछा।

    "नहीं यार।" वो बोला – "बस ये जानने को उत्सुक हूं कि तू किस प्रकार के झमेले में फंसा हुआ है? मेरा मतलब… देख भाई मुझे गलत मत समझ, मैं हमेशा तेरी मदद को तैयार रहता हूँ और अपुन को ऐसा करने में खुशी मिलती है लेकिन... क्या, भास्कर रेड्डी के पास ऐसे लोग नहीं हैं जिन्हें वो तुझे बॉडीगार्ड या होमगार्ड के तौर पर दे?"

    "दे भी दे तो क्या फायदा?" – मैं ने आह भरी – "उन में से कोई भी तेरे जितना शार्प नहीं है।"

    वो हँसा – "हाँ, लगा ले मक्खन। वैसे, क्या तू ठीक है?"

    "मैं ठीक हूँ, माधव। और सेफ भी हूँ… मेरी फिक्र छोड़, जो कहा है वो कर।"

    भास्कर मेरे नए बॉस का नाम था और मैं उसे कुछ नहीं बताना चाहता था।

    एक तो वो कोई परवाह नहीं करता। दूसरा, उसे इस बात का इल्म बिल्कुल नहीं था कि मेरा घोस्ट सिंडिकेट से कोई संबंध रह चुका है।

    बहरहाल, अपनी ग़ैरमौजूदगी में मैं ने तान्या की सुरक्षा का हरसंभव इंतज़ाम कर दिया था। अब वो सेफली मेरे घर के एक कमरे में कैद थी।

    मेरे सीने की गहराई में एक घरघराहट उभरी जब मेरी उंगलियों को एकदम से उस की त्वचा का स्पर्श याद आया था। नब्ज़ एकदम से धड़धड़ करने लगी। उस के दिल की धड़कन। उस की साँसों की छटपटाहट और आँखों में उभरता एक अलग सा नशीलापन दिमाग पर छाने लगा।

    उस के होठों का टेस्ट और मेरे मुँह में घुसती उस की कराहों ने मुझे उस क्षण लगभग बेकाबू कर दिया था।

    जब वो पहली बार मेरी आगोश में तड़फड़ाई थी तो मेरे भीतर एक दीवार सी टूटी थी।

    मैं अच्छा फील नहीं कर रहा था। हालत ठीक नहीं थी मेरी उस से मिलने के बाद से। मैं पतली बर्फ पर लापरवाही से दौड़ रहा था और मुझे इस का एहसास भी नहीं था।

    उस के बारे में इस तरह के ख्यालात आना एक अलग बात थी…. और ये मेरे जैसे इंसान के लिए कोई ख़ुशख़बरी नहीं थी।

    लेकिन मिखाइल की अवहेलना करना…. उफ… मैं ने क्या कर दिया था? मानता हूँ कि मैं उस शख्स से नफरत करता था लेकिन मैं ने उसे इतना हल्के में क्यों ले लिया था?

    मिखाइल अरकास एक इमोशनलेस, वहशी दरिंदा था। उसे हल्के में लेने की गलती तो मैं भी नहीं कर सकता था।

    मुझे तान्या को उसी जगह उसी वक्त उड़ा देना चाहिए था लेकिन… वो इस वक्त मेरे ही घर में थी, मेरे साथ। मुझे अपना ही नियम तोड़ने और ये भूलने पर मजबूर कर दिया था उस ने कि मैं कौन हूं और क्या हूं?

    और अगर वो जान जाए मैं कौन हूँ? देख ले मेरी सच्चाई तो अब तक की सब से तेज़ चीख निकलेगी उस के मुंह से और मुझ से इतनी तेज़ भागेगी जितनी अब तक नहीं भागी थी।

    "मैं प्लेन पर चढ़ने जा रहा हूँ और तुम घबराओ मत, तुम्हारी मेहनत और वक्त की कीमत तुम्हें मिल जाएगी।"

    "एह, बस भी कर साले," माधव हंसा – "पहले तू मिल जल्दी से।"

    "हाँ, जल्द मुलाकात होगी। थैंक यू, माधव।"

    "ऐनीटाइम, पंटर।"

    ⛓ 🔗 ⛓ 🔗 ⛓

    मुंबई में उतरने के एक घंटे बाद मैं दो बंद दरवाज़ों के सामने किसी मूर्ति की तरह स्थिर खड़ा था।

    दरवाजों के दोनों ओर खड़े गार्ड हालांकि मिखाइल द्वारा ट्रेंड थे मगर मेरे जितने शांत या स्थिर नहीं थे। मेरी शक्ल पर इस समय कोई भाव नहीं था, सिवाए ठंडेपन के।

    जब कि वे घबराहट से मुझे फिर एक दूसरे की ओर देख रहे थे।

    आप की प्रतिष्ठा कभी-कभी हथियार का काम करती है। यहां मेरा नाम ही काफी था गार्ड्स के जिस्म में सिहरन भरने को।

    मैं और एक मिनट तक खड़ा इंतज़ार करता रहा। जानता था कि जेना जानबूझ कर मुझे वेट करा रही है। इस खेल में उसे मज़ा आता था।

    क्या वो बिज़ी थी? मीटिंग में थी? नहीं। ये आधी रात का समय था और मैं ने हमारी मुलाकात उस के मुंबई ऑफिस में ही रखी थी।

    मिनट समाप्त होते ही मैं खामोशी से दरवाज़े की ओर बढ़ा। खेल का समय ख़त्म हो चुका था।
    दोनों घबराए हुए गार्ड्स ने मुझे रोकने की आधी-अधूरी कोशिश की। लेकिन जब मैं ने उन पर सख्त नज़र डाली तो वे काँप कर पीछे हट गए। एक अपने इयरपीस को टटोलता हुआ बोला – "अह, मैम? बुका…"

    उस का चेहरा सफेद था और आँखें मुझे दहशत से देख रही थीं।

    "वो आ चुका है।"

    मैं ने जवाब का इंतज़ार नहीं किया। बस आगे बढ़ा और दोनों दरवाज़े खोल कर सीधा जेना के ऑफिस में जा समाया।

    जेना ने डेस्क पर रखे लैपटॉप के ​​ऊपर से मुझे देखा और खड़ी हो कर हल्की सी मुस्कराई – "ओह, कृष," उस ने एक अदा से मुझे फ्लाइंग किस भेजी।


    To be continued….

  • 20. Chapter 20 - मुझे धमकाने की सोचना भी मत!

    Words: 1056

    Estimated Reading Time: 7 min

    मैं ने एक तेज़ क्लिक के साथ अपने पीछे दरवाज़ा बंद किया और जा कर उस के सामने खड़ा हो गया। वो नीले रंग की तीन-चौथाई आस्तीन वाली बिज़नेस ड्रेस में डेस्क के पीछे खड़ी थी।

    जेना जैसी शख़्सियत के लिए, ज़िंदगी का हरेक पहलू फरेब और चालबाज़ियों का खेल था। क्योंकि उसे ज़िंदगी भर इसी की ट्रेनिंग दी गई थी।

    मिखाइल की सेकेंड इन कमांड और भतीजी होने के अलावा, जेना घोस्ट सिंडिकेट के दूसरे प्रोग्राम: स्वान प्रोजेक्ट में मिखाइल की सब से बेशकीमती शिष्या भी थी।

    जहां मेरे जैसे जवान लड़कों को इंसानियत त्याग कर खुद को क्रूर और बर्बर बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था वहीं स्वान प्रोजेक्ट में जाने वाली नौजवान लड़कियां थोड़ा अलग रास्ता अपनाती थीं। हाँ, उन्हें भी हत्या के लिए ट्रेन किया जाता था, क्रूरता और मक्कारी का भी प्रशिक्षण दिया जाता था। लेकिन अगर बात की जाए तो युद्ध में कई प्रकार के हथियार होते हैं।

    जैसे माधव और मैं ऐसे धारदार खंजर थे जो कब कहाँ से टपक कर शिकार का गला रेत जाएं, कोई सोच भी नहीं सकता था। वैसे भी राक्षसों को कौन आते हुए देखता है? वो तो जब मौत बन कर सर पर खड़े हो जाते हैं तब नज़र आते हैं।

    और फिर आता है जेना जैसा हथियार जो सामने से चल कर आता है, बल्कि आप खुद उसे इनवाइट करते हैं और एकदम से आप के दिल में जगह बना कर कर कब वो उस दिल में छुरा उतार जाती है पता भी नहीं चल पाता।

    मिखाइल की 'स्वांस' को हैवानियत सिखाई जाती थी…. ठंडी हैवानियत! लेकिन साथ ही उन के पास हुस्न का जादू भी होता था। मतलब अगर हम घातक हथियार थे तो वो दिलफ़रेब हथियार थीं।

    इसीलिए तो जेना ने बिना किसी दिक्कत तान्या के बाप के दिल और बिस्तर में आराम से जगह बना ली थी। जब कि वो अभी भी अपनी दिवंगत पत्नी की याद में मजनू बना हुआ था।

    मौत से पहले निकिता भी स्वान प्रोजेक्ट में थी।

    "कहो क्या कहना है?" जेना ने मुझ पर अपनी निगाहें टिका रखी थीं। मैं जानता हूँ कि उस ने जानबूझ कर ऐसा मग़रूर लहजा चुना था। क्योंकि वो मुझे उकसाना और शायद थोड़ा सा सेड्यूस करना चाहती थी।

    उस की फैशनेबल ड्रेस का ऊपरी बटन खुला हुआ था। उस के खुले बाल, परफ्यूम की महक, उस की खूबसूरती को पूरे कमरे में फैलाए हुए थे।

    यही तो उस की खासियत थी। उस की ट्रेनिंग थी। वो पहनावा, वो दिखावा दूसरों को अपने जाल में फंसाने का जादू था।

    लेकिन मुझ पर उन में से कुछ भी काम नहीं करने वाला था।

    मैं ने जैकेट की जेब में हाथ दे कर सीलबंद पाउच निकाल कर उस के सामने गिरा दिया।

    "इट्स डन।"

    जेना पहले चौंकी फिर एक आइब्रो सिकोड़ ली। उस की नज़र तान्या के बालों और खून की छोटी शीशी पर थी।

    "कृष…"

    "इट्स डन, जेना। अब मुझे वो चाहिए जो देने का वादा किया गया था। फिर, हम में दोबारा कभी बात नहीं होगी।"

    उस ने आह भर कर बाहों को छाती पर मोड़ लिया – "तुम इसे प्रूफ कहते हो?"

    "ये उस के बाल हैं और खून में घातक मात्रा में रिसिन दिखाई देगा।"

    मैं ने उसे खून निकालने के बाद मिलाया था।

    "उसे घर से कहीं और ले जाना ज़रूरी था। कार में बिठाते ही मैं ने उसे इंजेक्शन दे दिया था।"

    जेना की आंखें आहिस्ता से सिकुड़ गईं – "मुझे समझ नहीं आता जब तुम्हें साफ-साफ ऑर्डर मिला था उसे जहाँ की तहाँ उड़ाने का तो तुम उसे उठा क्यों ले गए?"

    "बस मुझे सही नहीं लगा तो…।" मैं ने कंधे उचकाए थे।

    उस ने दाँतों के बीच से मुंह में साँस खींच कर कुंठायुक्त आवाज़ निकाली और डेस्क पर पड़े खून को घूरती रही।

    "मैं समझ नहीं पा रही कि इस से ये किस प्रकार साबित…"

    "तुम आखिर चाहती क्या हो, उस का दिल?"

    उस की आँखें झपक कर मेरी ओर उठीं – "अगर मैं हाँ कहूँ तो?"

    "फिर मेरा सुझाव है कि तुम्हें एक फावड़ा खरीद लेना चाहिए। मैं उस की लाश दफना आया हूँ।"

    उस के चेहरे पर गुस्सा झलका।

    "कहाँ खुदाई करनी पड़ेगी?"

    मेरा जबड़ा भिंच गया। मुझे दफनाने की बजाए जलाने का ज़िक्र करना चाहिए था। मगर तब वो शमशान घाट या उस की अस्थियों का पता मांगती। ऐसी ही कमीनी थी वो।

    "ख़ैर, अगर वो पाताल में भी दफ्न होगी तो भी उस की लाश ढूंढ कर निकाल ली जाएगी।"

    ऐसा हरगिज़ नहीं होने वाला था लेकिन मैं बोला – "चाहे जो करो।"

    उस ने आँखें उठाईं और उस के रक्तिम होंठ थोड़े से मुड़ गए – "मिखाइल खुश नहीं होंगे।"

    "मुझे उस की ख़ुशी नहीं, वो इन्फॉर्मेशन चाहिए जिस के लिए मैं ने ये काम किया है।"

    उस के होंठ और सिकुड़े – "अगर जांच में ये खून गलत साबित हुआ तो शायद मुझे तुम्हें याद दिलाने की ज़रूरत नहीं…"

    "मैं धमकियों से डरता नहीं जेना!" मैं ठंडे स्वर में फुसफुसाता डेस्क के करीब पहुँचा और खतरनाक अंदाज़ में उस के ऊपर झुक गया।

    वो मुझे अपना हुस्न दिखा रही थी? अब मेरी बारी थी अपना राक्षस दिखाने की।

    मेरी अकस्मात हरकत पर वो पल भर के लिए हिचकिचा गई और अपने गले की गांठ निगली।

    "मुझे धमकाने की सोचना भी मत… जेना डार्लिंग।"

    उस ने खुद को किसी तरह कंट्रोल में लाते हुए कहा – "पहले मुझे इसे मिखाइल के पास ले जाना होगा।"

    "बेशक ले जाओ। लेकिन हमारी डील पूरी हो गई है इसलिए मुझ से दोबारा कॉन्टैक्ट मत करना जब तक कि मुझे वो इन्फॉर्मेशन न देनी हो जिस पर डील हुई थी।"

    मैं मुड़ा और दरवाज़े की ओर बढ़ गया, कुछ कदम पर रुका और पीछे मुड़ कर उसे देखा – "ज़्यादा इंतज़ार मत करवाना। वरना महंगा पड़ेगा।"

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    एक घंटे बाद मैं जेट प्लेन में बैठा वापस घर जा रहा था। उस हसीन कैदी के पास जो उस घर में बंद थी। वो हसीन कैदी जिस ने मेरे फैसले को धूमिल कर के मुझे मेरे ही नियमों के विरुद्ध खड़ा कर दिया था।

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    Tanya's POV___

    एक बार फिर, मैं उसी सुंदर पिंजरे में कैद थी और उस के जाने के कुछ घंटों बाद अंततः हार मान ली थी। इस कमरे से बाहर निकलना असंभव था।

    खिड़कियाँ अलग बनावट की थीं, जिन के कब्ज़े फ्रेम के भीतर ही छिपे हुए थे। उन्हें किसी हाल में नहीं तोड़ा जा सकता था।


    To be continued…