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आंखो में हो तुम

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Kusum Sharma

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इस बार तुम्हे एक रुपया भी नहीं मिलेगा ! बहुत कर ली अपनी मनमानी.....और ये जितना कर्ज किया है ना..... अपनी कमाई से सब चुकाकर......अपनी इंडिया की टिकट भी खुद अंरेज करके आओगे......समझे....." धवल की मुट्ठियां कस गई , पीछे से उसकी मां की आवाज आ रही थी "...

Total Chapters (175)

Page 1 of 9

  • 1. आंखो में हो तुम - Chapter 1

    Words: 1154

    Estimated Reading Time: 7 min

    “इस बार तुम्हें एक रुपया भी नहीं मिलेगा! बहुत कर ली अपनी मनमानी… और यह जितना कर्ज़ किया है ना… अपनी कमाई से सब चुकाकर… अपनी इंडिया की टिकट भी खुद अरेंज करके आओगे… समझे…” धवल की मुट्ठियाँ कस गईं। पीछे से उसकी माँ की आवाज़ आ रही थी, “ऐसा मत कीजिए… इतने सालों बाद घर आने का मौका मिला है… आप नहीं दे सकते तो मैं दे देती हूँ…” “बिल्कुल चुप! इस नवाबजादे ने बहुत ऐश कर ली… सब तुम्हारी वजह से… तुमने ही तो उसको सर चढ़ाया है… कंट्रोल किया होता तो रुपए की कीमत जानता… अगर तुमने एक रुपया भी दिया ना तो उम्र भर मुझसे बात मत करना…” फिर सेक्रेटरी को बुलाकर कहा, “मैडम के अकाउंट की डिटेल मुझे चाहिए…” धवल ने अपने पापा की बात सुनकर गुस्से में फ़ोन काट दिया। उसके बाद उसकी माँ का फ़ोन आता रहा, लेकिन उसने बात नहीं की। धवल पर एकाएक उसके पापा ने खुद से कमाने का बम फोड़ा था! अपने पापा की तरह, उसे भी गुस्सा जल्दी आता था। धवल गुस्से में बाइक लेकर मियामी की सड़कों पर चल पड़ा। कुछ दूर चलने के बाद, रिजर्व मोड पर बाइक में फ़्यूल ख़त्म हो गया। कुछ दूर पैदल बाइक को घसीटने पर एक फ़िलिंग स्टेशन दिखाई दिया। उसे देखकर उसने चैन की साँस ली। लड़की से अंग्रेज़ी में फ़्यूल डालने को कहा और फ़्यूल डालकर पेमेंट करने लगा, तो इंडियन करेंसी उसके हाथ में थी। यह देखकर उसने माथा पीट लिया। लड़की को देखकर बोला, “सॉरी…” बाइक साइड में खड़ी करने लगा। पाइप रखकर लड़की उसके पास आई, “हे, क्या हुआ?” उसकी हिंदी सुनकर धवल चौंककर बोला, “आर यू इंडियन?” लड़की ने कहा, “हाँ… तुम चाहो तो इंडियन करेंसी मुझे दे सकते हो, बदले में मैं पे कर दूँगी…” धवल ने चैन की साँस लेते हुए कहा, “वैसे भी बाइक सेल करनी है…” कहकर लड़की की ओर रुपए बढ़ाए। लड़की उत्साह से बोली, “ये तो नई है… आपको बेचनी क्यों है?” धवल गुस्से में बोला, “कर्ज़ उतारकर इंडिया घर वापस जाना है…” लड़की ने पर्सनल मैटर जानकर कुछ नहीं कहा। कुछ सोचकर बोली, “अच्छा, बाइक सेल कर रहे हो तो मैं लेने के लिए तैयार हूँ…” धवल ने कहा, “बाइक सेल करने से क्या होगा… जॉब भी तो मिलने दो…” लड़की धीरे से बोली, “वैसे इस फ़िलिंग स्टेशन पर अभी दो दिन पहले ही सीट खाली हुई है… चाहो तो बात कर सकते हो!” धवल हैरानी से बोला, “तुम मेरी हेल्प क्यों करना चाहती हो?” लड़की कंधे उचकाकर बोली, “मुझे लगा कठिनाई में हो…” धवल उसकी शुद्ध हिंदी सुनकर अचंभित हुआ। धवल जाने लगा, फिर रुककर बोला, “अच्छा सुनो मिस… तुमसे बात करना है, मैं कल डॉक्यूमेंट्स लेकर आ जाऊँगा!” लड़की ने कहा, “माई नेम इज़ मृगांशी…” धवल मस्ती में बोला, “कितना टफ़ है यह… हिरणी बोल दूँ…” मृगांशी ने कमर पर हाथ लगाकर घूरकर देखा, तभी धवल जोर से हँस दिया। मृगांशी का फ़ोन रिंग हुआ। फ़ोन देखकर उसने फ़टाफ़ट उठाया, “हैलो पापा… बस आ रही हूँ… पन्द्रह मिनट में… ज़रूरी काम आ गया… घर आकर सब बताती हूँ! ओके बाय…” धवल मुस्कुराकर मृगांशी को इशारा करते हुए बोला, “इंडियन डैड…” मन में सोचा, “एक मेरे डैड हैं… एक नंबर के खड़ूस… भला ऐसे कोई करता है क्या… वह भी तब जब उनका बेटा विदेश में अकेला हो… अब बच्चे की जान लेकर ही छोड़ेंगे। लाइफ़ में थोड़ी मौज-मस्ती तो होनी चाहिए…” सोचते हुए अपने रूम की तरफ़ निकल गया। वहाँ जाकर देखा तो साथ वाले दोस्त इंडिया जाने की तैयारी कर रहे थे और एक वह था कि इंडिया जाना दूर… बल्कि रूम का रेंट और अपना खर्चा के लिए भी जुगाड़ करना पड़ेगा… उसके बाद ही कोई इंडिया जाने का सपना पूरा होगा। तभी उसका दोस्त बोला, “अपने नाना से बोलकर देख ना, कुछ बात बन जाए…” “नहीं, अब तो मैं खुद के दम पर ही इंडिया जाऊँगा!” धवल ने गहरी सर्द आवाज़ में कहा। मृगांशी ने कपड़े बदलकर डाइनिंग चेयर पर बैठकर कहा, “पापा… आज एक लड़का मिला था फ़िलिंग स्टेशन पर… अपनी बाइक सेल करना चाहता है… मैं ले लूँ…” प्लेट में रोटी रखते हुए उसकी मम्मी बोलीं, “कोई ज़रूरत नहीं है… कॉलेज ख़त्म हो गया है… फ़िलिंग स्टेशन पास में है…” मृगांशी ने हैरत से अपनी मम्मी की ओर देखकर कहा, “मम्मी… आप बेफ़िज़ूल की टेंशन लेती हो…” उसकी मम्मी चेयर खिसकाकर बैठते हुए बोलीं, “लेकिन बाइक चाहिए ही क्यों?” मृगांशी ने कहा, “कुछ दिन बाद मेरे दोस्त मियामी बीच पर जाने का प्रोग्राम बना रहे हैं! मम्मी, प्लीज़ अब मना मत करना… और अपने लॉजिक मत देना… प्लीज़…” उसकी मम्मी से रहा न गया, “तुम्हें पता है ना… तुफ़ान का कोई भरोसा नहीं है…” मृगांशी बेचारगी से बोली, “पापा…” उसके पापा बोले, “पहले खाना खाओ… फिर कुछ सोचते हैं!” तीनों ने खाना खाया ही था कि मृगांशी का फ़ोन रिंग हुआ और नाम देखकर एक्साइटमेंट में बोली, “मम्मी-पापा, वेदांत भाई का वीडियो कॉल है!” मृगांशी वेदांत से बात करती है… धवल ने फ़ोन चेक किया तो उसकी माँ की अनलिमिटेड मिस कॉल थी! फ़ोन मिलाते ही उसकी छोटी बहन बरस पड़ी। “फ़ोन नहीं उठाने का मतलब आप समझते हो ना… मम्मा का बीपी हाई हो गया है आपके फ़ोन न उठाने से… उनकी सोच पता है कहाँ चली गई… आपने सुसाइड अटेम्प्ट तो नहीं कर लिया है… यह अपना गुस्सा अपने पास रखो… और यह सब करके किसको दिखा रहे हैं… आप पापा से गुस्सा हैं… तो उनसे रहिए ना, लेकिन माँ… आप सोच नहीं सकते किस हद तक अपना दिमाग़ ख़राब कर लिया है… रो-रोकर बुरा हाल हो गया है…” प्रणामी का गला भर आया था। धवल ने कहा, “इमोशनल होने की ज़रूरत नहीं है… तुम सबकी छाती पर बैठकर ऐसे ही परेशान करूँगा… समझी… और क्या कह रही थी… सुसाइड अटेम्प्ट, यह फ़ालतू की बातें मेरे लिए नहीं बनी हैं! माँ को बोल दे मैं ठीक हूँ…” “सच्ची में घर आ, इतना मारूँगी ना, याद रखेगा… फिर कभी ऐसी हरकत नहीं करेगा!” इतना बोलकर धवल की मम्मी की आँखों में आँसू आ गए। धवल ने मनुहार करते हुए कहा, “सॉरी मम्मा… प्लीज़ आप यह सब मत कीजिए… जस्ट चिल, आप मॉडर्न हैं… ओल्ड लेडी की तरह मत कीजिए…” “भाई, माँ (दादी) पीछे ही है…” प्रणामी हँसकर बोली। धवल ने कान पकड़कर दादी को देखकर कहा, “सॉरी ओल्ड लेडी…” (दादी) माँ ने कहा, “घर आ, फिर देख चप्पल से आरती उतारूँगी तेरी… एक टाइम में तेरा बाप भी ऐसे ही था…” धवल ने कहा, “अच्छा गाइज़… कल शायद जॉब मिल जाए!” “कांग्रेचुलेशन भाई!” प्रणामी ने एक्साइटमेंट में कहा, फिर सोचकर बोली, “कौन महामूर्ख है जो आपको जॉब दे रहा है!” “देवी का अवतार लेकर आई है कोई… साक्षात लक्ष्मी… उसने बाइक लेने की इच्छा जताई है…” धवल खोया सा लग रहा था… प्रणामी ने उंगली हिलाते हुए कहा, “पक्का भूतनी है… उसे पता लग गया कि यह भी मेरी तरह आलसी… नल्ला… निकम्मा…” धवल घूरकर बोला, “अब चुप हो रही है या नहीं… माँ…” धवल की मम्मी ने आँखें दिखाईं तो माँ (दादी) ने अपने आँचल में छिपा लिया। क्रमशः*****

  • 2. आंखो में हो तुम - Chapter 2

    Words: 1031

    Estimated Reading Time: 7 min

    मीयामी संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणपूर्वी फ़्लोरिडा का एक प्रमुख शहर है। मीयामी और आसपास का महानगरीय क्षेत्र एवरग्लेड्स और अटलांटिक महासागर के बीच उत्तरी बिस्केन खाड़ी पर स्थित है। मीयामी अपने प्राचीन समुद्र तटों, नॉन-स्टॉप नाइटलाइफ़ और शानदार गर्म मौसम के लिए प्रसिद्ध है। मीयामी अपने शानदार क्षितिज, शानदार शॉपिंग मॉल, आर्ट डेको वास्तुकला और महंगे होटलों के लिए भी जाना जाता है। मीयामी के समुद्र तटों पर, अटलांटिक महासागर कैरेबियन सागर के साथ विलीन हो जाता है; रेत नरम और सफेद है, और पानी हल्के नीले रंग के लगभग स्पष्ट एक्वा में किनारे को गोद लेता है। यह क्षेत्र एक दर्जन से अधिक समुद्र तटों की पेशकश करता है, सभी अपने स्वयं के खिंचाव के साथ। बिना कहे चला जाता है कि आप इसके सर्वश्रेष्ठ सफेद रेत वाले समुद्र तटों पर कुछ समय बिताने जा रहे हैं। लेकिन फ़्लोरिडा के अटलांटिक समुद्र तट के आठ मील से अधिक फैले रेत के इन हिस्सों के साथ, जहाँ जाना है, वहाँ कुछ स्थानीय अंतर्दृष्टि होना अच्छा है। मीयामी बीच ऐसी विविधता प्रदान करता है जो सूरज और रेत से कहीं आगे तक जाती है, जिसमें विश्व-प्रसिद्ध नाइटलाइफ़ और विश्व-प्रसिद्ध कला दीर्घाएँ, प्रथम श्रेणी के होटल और द्वितीय श्रेणी का भोजन, डिज़ाइनर खरीदारी और एक अनूठी वास्तुकला शैली शामिल है जो इसे सबसे प्रसिद्ध में से एक बनाती है। पिछले कुछ सालों से करण यहीं अपनी नौकरी कर रहा था! मयूरी के साथ अपनी ज़िंदगी के हसीन पल बिताए थे! आज उसके दोनों बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो चुके थे! मृगांशी उनकी शादी के दो साल बाद ज़िंदगी में आई थी! वह एक मिश्रित रंग-रूप वाली, भारतीय संस्कारों से पोषित, अल्हड़ सी लड़की थी! उससे छोटा वेदांक था, जो सीमा जी और पृथ्वीसिंह के कहने पर अपने भाइयों के साथ दिल्ली में रहकर लॉ कर रहा था! मृगांशी ने अपना कॉलेज अभी-अभी पूरा किया था! घर पर बैठे बोर हो रही थी! मयूरी के मना करने के बावजूद उसने नौकरी ज्वाइन की थी, जिसमें उसका साथ करण ने दिया था! करण ने मयूरी को समझाया था कि बाहर निकलकर मुश्किलों का सामना करना आना चाहिए! फिर भी मयूरी का मन नहीं मानता था, और मृगांशी को देर होने पर कॉल कर देती थी! मृगांशी चिढ़ भी जाती थी... लेकिन मयूरी तो हमेशा से ही कोमल हृदय की थी! वह किसी दूसरे को दुखी नहीं देख सकती थी, यह तो फिर उसके कलेजे के टुकड़े थे!...उनको कुछ होते कैसे देख सकती थी! वेदांक को भेजने के बाद वह इतना रोई कि करण को उसे संभालना मुश्किल हो गया! मयूरी भी धर्म संकट में फँसी हुई थी। वह माँ-सा और बाबा-सा के हुक्म का कहना भी नहीं टाल सकी, लेकिन वही अपनी हालत जानती थी कि किस तरह से खुद को संभाला था। अगर करण न होते, तो शायद वह अपने जीवन की कल्पना भी न कर सकती थी! धवल अपने दस्तावेज़ लेकर फ़िलिंग स्टेशन पहुँचा! मृगांशी, जो अपने काम में लगी हुई थी, उसने उसे ऑफ़िस में जाने का इशारा किया! दस्तावेज़ और इंटरव्यू देकर बाहर आया तो काम करती हुई मृगांशी को एक्सक्यूज़ बोलकर थैंक्स कहा! बदले में उसने मुस्कुराकर अपने काम में लग गई! धवल उसके व्यवहार से चिढ़ गया! धवल मन में सोचा, "ज़्यादा भाव नहीं खा रही है... ऊंहह..." सबको इशारों पर नचाने वाला इंसान इतनी अनदेखी कहाँ सहन कर पाता है!...उस पर पहले दिन पिता के बोले गए कड़वे बोल...उसके घाव को ताज़ा कर गए, परंतु पीड़ा, गुस्सा जो भी हो, उसे दबाना पड़ा!...विदेशी सरज़मीं पर कौन किसकी सहायता करता है, बस यही सोचकर रुक गया! दूसरे दिन धवल को कॉल कर नौकरी ज्वाइन करने के लिए कहा गया। उसने जब अपनी सैलरी सुनी तो चौंक कर "व्हाट???" कहा। धवल हिंदी में ही बोल पड़ा, "इतना तो मेरा एक दिन का खर्चा है!" मृगांशी मुस्कुराकर बोली, "होता होगा एक दिन का तुम्हारा खर्चा! फ़िलहाल तुम्हारे पास एक महीने में इतना खर्च करने के भी लाले पड़े हुए हैं कि बाइक बेचने की नौबत आ गई है! और रही बात, इन्हें अभी तक हिंदी समझ नहीं आई है। अगर पता चल गया तो ये तुम्हें अभी के अभी बाहर निकाल देंगे! फिर बोलते रहना, 'अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत...'।" धवल को उसके इस तरह बोलने पर गुस्सा भी आया, लेकिन मरता क्या न करता! बस इसी के चलते उसने नौकरी के लिए हाँ भर दी! मृगांशी अपने बॉस को रुपये देकर बाहर आई तो धवल ने बाजू पकड़कर रोक लिया! मृगांशी की भौहें सिकुड़ गईं और धवल के हाथ को देखकर बोली, "ये हाथ हटाओ!" धवल नासमझी में, "व्हाट???" मृगांशी कठोर होकर, "सुना नहीं क्या??? मैंने कहा हाथ हटाओ!" धवल इतना पतला रवैया देखकर हाथ छोड़ दिया और नरम लहजे में बोला, "यार क्या है???? हाथ ही तो लगाया है, सब चलता है यहाँ!" मृगांशी नाराज़गी से, "तुम्हारे यहाँ चलता होगा, मेरे यहाँ नहीं चलता! नहीं पसंद है मुझे इस तरह किसी का पकड़ना!" मृगांशी को धवल का इस तरह पकड़ना बिलकुल पसंद नहीं आया था! धवल अपने काम में लग गया! काम करने में शहजादे को झुंझलाहट ज़्यादा थी! मृगांशी समझाने वाले लहजे में बोली, "ये घर नहीं है जो इस तरह की हरकतें कर रहे हो...बॉस को किक आउट करने में दो मिनट नहीं लगेंगे! समझे..." धवल चिढ़कर, "मुझे सिखाने की ज़रूरत नहीं है!" कुछ आधा घंटा बीता कि तभी बॉस आया और उसे वार्निंग देकर चला गया! मृगांशी को हँसी आई, लेकिन हँसी रोकने के बावजूद चेहरे पर मुस्कान बिखर गई! जिसे धवल ने नोटिस किया! वह उससे नाराज़ हो गया! धवल ने पूरे टाइम बात नहीं की, तो मृगांशी ने भी नोटिस नहीं किया कि वह नाराज़ है! उसे अपने काम से मतलब था, सो ड्यूटी ऑफ़ होते ही घर के लिए निकल गई! पंद्रह मिनट की दूरी पर था! वॉकिंग के बहाने पैदल ही आती-जाती थी! क्रमशः*****

  • 3. आंखो में हो तुम - Chapter 3

    Words: 1045

    Estimated Reading Time: 7 min

    धवल ने पूरे समय बात नहीं की, तो मृगांशी ने भी नोटिस नहीं किया कि वह नाराज है। उसे अपने काम से मतलब था, सो ड्यूटी ऑफ होते ही घर के लिए निकल गई। पंद्रह मिनट की दूरी पर था; वाकिंग के बहाने पैदल ही आती-जाती थी। दो-तीन दिन ऐसे ही निकल गए। मृगांशी अपने काम से काम रखती और काम पूरा होने पर घर चली जाती। धवल ने भी इग्नोर किया। आज पूरे सात दिन बाद जाते हुए मृगांशी बोली, "धवल, अपनी बाइक सेल कर रहे हो ना...?" धवल बाइक स्टार्ट करते हुए बोला, "क्यों? एक बार में सुनता नहीं है या एनाउंसमेंट करूँ?" मृगांशी के चेहरे के हाव-भाव बदले और बाइक के हैंडल पर हाथ रखकर बोली, "मुझे लेनी है, इसलिए पूछा है!" धवल बोला, "जब पेमेंट हाथ में दो, तब बात करना!" मृगांशी बोली, "ह्म्म्म्म... बिजनेस एटीट्यूड..." धवल उसे इग्नोर कर आगे बढ़ने लगा, तो मृगांशी कमर पर हाथ लगाकर आगे आकर खड़ी हो गई। धवल रुक गया और गुस्से में घूरने लगा। "मेरे पापा ये बाइक देखना चाहते हैं, इसलिए चलो मेरे साथ!" मृगांशी जल्दी से पीछे बैठते हुए बोली। धवल नाराजगी से बोला, "ये तुम लोगों का अच्छा फंडा है! सामने वाले का रिएक्शन इग्नोर कर अपनी मर्जी चला लो!" मृगांशी हैरत से बोली, "गौर उसी पे किया जाता है जो अपना हो! मेरा सिद्धांत है, मजबूरी हेल्प करो, लेकिन सिर मत चढ़ाओ!" धवल बाइक चलाते हुए बोला, "मतलब से बात करनी चाहिए। मतलब निकलते ही तुम कौन, मैं कौन, खामखां... यही ना..." मृगांशी उंगली पॉइंट करते हुए बोली, "लास्ट कार्नर वाला घर है, वहीं रोक देना!" कुछ पल में घर के आगे उतरकर बोली, "दो मिनट वेट, पापा को बुलाकर लाती हूँ!" धवल कंधे उचकाकर वहीं खड़ा हो गया। पाँच मिनट बाद करण बाहर आया। धवल ने आगे बढ़कर पैर छुए। कहीं न कहीं भारतीय संस्कार थे जो सामने भारतीय को देख उभर आए। करण ने पीठ थपथपाकर आशीर्वाद दिया। करण ने उसे अंदर आने के लिए कहा और आगे चल पड़ा। धवल लिविंग रूम में करण के साथ बैठा ही था कि मयूरी उन दोनों के लिए पानी ले आई। मृगांशी चेंज करके आई, तब तक करण सब कुछ चेक कर चुका था और लगभग डील फाइनल थी; लेकिन बीच में आकर मयूरी ने रोक दिया। मयूरी चाय की ट्रे रखते हुए बोली, "आज ये बाइक नहीं लेनी है। दस दिन बाद शुभ मुहूर्त है, तब लेंगे!" मृगांशी के एक्साइटमेंट पर पानी फिर गया। अंदर हॉल में खड़ी बच्चों की तरह चिल्लाई, "मम्मा... कुछ नहीं होगा!" मयूरी बोली, "मृग, जब पता है तुम्हें, मैं इनमें विश्वास करती हूँ। मैं कोई खतरा मोल नहीं ले सकती। अब तुम्हें मेरी बात माननी ही पड़ेगी!" करण को पता था मयूरी इन सब में विश्वास करती है, इसलिए उसने मृगांशी को ही समझाना बेहतर समझा। धवल को दस दिन बाद मिलने का कहकर उसे विदा किया। करण मृगांशी के कंधे पर हाथ रखकर बोला, "मृग, मेरी बेटी इस तरह अपनी बात नहीं रखती... आज क्या हुआ?" मृगांशी उदास सी बोली, "नेक्स्ट वीक मेरे सभी फ्रेंड्स मियामी बीच पर घूमने जा रहे हैं! मुझे भी जाना है!" "वही तुम्हारे अंग्रेजी मित्र काली... एला... निकल... हैं ना! उन के साथ में नहीं भेजने वाली!" मयूरी बर्तन समेटते हुए बोली। मृगांशी चिढ़ गई, "कायली, निकोल, गैब्रिएला, मेगन, डेजी... बस पाँच ही फ्रेंड हैं..." मयूरी हँस दी। करण उनकी बातों पर गर्दन हिलाकर बोला, "माँ-बेटी का कुछ नहीं हो सकता!" मृगांशी खासी नाराज होकर बोली, "कौन कह सकता है? मैं यूएसए में पली-बढ़ी हूँ! यहाँ जन्म लेते ही लड़कियों के बॉयफ्रेंड हो जाते हैं और मैं उसी को तरस रही हूँ!" मयूरी आवाक् सी देखती रही, तो करण को उसकी बात पर हँसी आई। मृगांशी करण की ओर मुड़कर बोली, "पापा, आपने ही मम्मा को सिर चढ़ाया हुआ है!" मयूरी अपनी पतली सी आवाज में, साथ ही कान पकड़कर बोली, "उसके लिए भी मुहूर्त पूछ लेती हूँ जो उम्रभर साथ देगा! माँ-सा, बाबा-सा को बोलकर उन्हें ही तुम्हारे लिए बॉयफ्रेंड ढूँढने की जिम्मेदारी सौंप देते हैं!" मृगांशी खीजकर अपने रूम में जाते हुए बोली, "मम्माऽऽऽ..." करण उसे जाते देखकर मयूरी के पास आया, "जाने दो ना... क्यों फूल सी बच्ची पर जुल्म ढा रही हो..." मयूरी आँखें तरेरकर बोली, "हुकूम आपको पता है ना, वहाँ तूफ़ान आते हैं और धूप इतनी तीखी है... इसे कहाँ सहन होती है!... इसकी आँखों की एलर्जी उसका क्या... बेटी पर इतनी जल्दी पिघल जाते हैं कि पूरा प्यार ही उड़ेल देते हैं!... मैं नहीं जाने दे सकती और ये बॉयफ्रेंड का क्या नया फैशन है... कपड़ों की तरह बदल लो, आज यह नहीं पसंद तो दूसरा बना लिया!" करण एक हाथ गले में डालकर बोला, "मेरी प्यारी हुकुम सा, यही उम्र है मौज-मस्ती की..." फिर उंगली से नाक छूकर बोला, "जब माँ ही इतनी प्यारी है, तो बच्चों का क्या कहना... इसीलिए इतना प्यार आता है!" इतना कहकर मयूरी के करीब आने लगा, तो मयूरी इरादे भांपकर उसे दूर करते हुए बोली, "जाइए... खाना बना रही हूँ! अपनी लाडली को मनाकर ले आइए!" करण मयूरी के चेहरे के हाव-भाव देखकर हँसा और मृगांशी को मनाने के लिए चला गया। धवल अजीब सी कशमकश में फँसा वहाँ से चला आया। मयूरी की बात सुनकर अचंभित हुआ। यहाँ रहकर भी भारतीय रीतियों का इस तरह निर्वहन कर रही है! कहाँ छप्पन भोग खाने वाला, आज सिर्फ नूडल्स बनाकर ही पेट भर रहा था। धवल के दोस्त का फोन आया, जो कि गोवा में मस्ती करने आए थे। धवल का भी उनके साथ जाने का प्रोग्राम था, लेकिन... उनको इस तरह टाइम स्पेंड करते देख धवल को गुस्सा आया और नूडल्स फेंकने को हुआ, तभी उसके हाथ रुक गए। उसके पास खाने के लिए कुछ नहीं था, सो इसी से पेट भरना था। धवल का मोबाइल रिंग हुआ। नंबर देख झुंझला उठा। क्रमशः*****

  • 4. आंखो में हो तुम - Chapter 4

    Words: 1035

    Estimated Reading Time: 7 min

    उनको इस तरह टाइम स्पेंड करते देख धवल को गुस्सा आया, और वह नूडल्स फेंकने को हुआ; तभी उसके हाथ रुक गए! उसके पास खाने के लिए कुछ नहीं था, सो इसी से पेट भरना था। धवल का मोबाइल रिंग हुआ। नंबर देखकर वह झुंझला उठा। कॉल उठाकर उसने कहा, "जल्दी बोल, मेरे पास बैलेंस के रुपये नहीं हैं, और हाँ, आगे से फोन मैं अपने आप कर लूँगा, लेकिन रोज़ नहीं!" प्रणामी कलाकंद खा रही थी—खा क्या रही थी, धवल को चिढ़ा रही थी—"भाई, लाइन पर आ रहे हो।" धवल गुस्से में बोला, "घर आने दे, फिर पता चलेगा लाइन पर हूँ या नहीं।" प्रणामी मुँह बनाकर बोली, "ऊंहह…आपका कुछ नहीं हो सकता! जिस तरह आप शॉर्ट टेंपर होते हैं…और बच्चों की तरह बिहेव करते हैं ना…इसके लिए माँट साहब चाहिए…" धवल नासमझी से देखता रहा। प्रणामी सोचकर बोली, "मास्टरनी चाहिए जो छड़ी मारकर सीधा कर दे!" "धवल को छड़ी मारने वाली पैदा नहीं हुई है, समझी…मेरा पूरा बैलेंस उड़ गया है!" धवल के इतना बोलते ही कॉल कट हो गई! धवल ने मन मसोस कर अपने नूडल्स खत्म किए और गेम खेलने लगा। इस महीने का रेंट उसके दोस्त ने पे कर दिया था। गेम खेलते हुए उसे याद आया और उसने सैलरी के हिसाब से अपने खर्चे मैनेज करने लगा। बरबस ही हैरत से उसका मुँह खुला रहा—"हाउ लो इज दिस…" धवल ने गुस्से को दबाते हुए कहा, "सबके डैड मेरे डैड की तरह हो जाएँ तो धरती का कल्याण होने से कोई नहीं रोक सकता!" धवल के आगे करण का चेहरा घूम गया। "और नहीं तो उस लड़की के डैड भी कैसे बात कर रहे थे!" धवल ने अपने बर्तन साफ किए और सो गया, लेकिन नींद फुर्र थी। आज पहली बार ऐसा था कि धवल को सब मैनेज करना था, कैसे भी करके…दिमाग नहीं लग रहा था कि कहाँ खर्च कम करे! तभी उसका फोन रिंग हुआ। नंबर देखकर उसकी भौंहें सिकुड़ गईं और उसने उठा लिया। बार वाला फोन उठाते ही अपने रुपये मांगने लगा। धवल ने समझाने की कोशिश की, परंतु वह नहीं माना और उसने पुलिस कंप्लेंट की धमकी दी। धवल रुपये ढूँढने लगा। कुछ नहीं मिला, किंतु प्रणामी का राखी पर पहनाया गया प्लेटिनम-डायमंड ब्रॉसलेट ज़रूर हाथ लगा। उसका मन नहीं था। प्रणामी खुद ऑर्डर देकर बनवा कर लाई थी, जिसमें डायमंड से डीसी लिखा था, जिसके चारों तरफ मोटी जंजीर थी। उसको नज़र भर देखकर धवल ने उसे होठों से लगाया, जेब में रख लिया और बार की तरफ निकल गया। बार वाले के पास अपना ब्रॉसलेट गिरवी रखकर वह आया और लेट गया, लेकिन सोने के पालने में झूलने वाले की आँखों से आज नींद गायब थी। दूसरे दिन धवल की नींद खुली तो टाइम देखकर वह भौचक्का रह गया। उसने एक जगह रिज्यूम लगाया था, लेकिन अब क्या हो सकता था! इंटरव्यू का टाइम फिनिश… धवल सिर पकड़कर बैठ गया और बोला, "ये सब मेरे साथ ही क्यों??? प्रणामी होती तो हेल्प करती…लेकिन…" सब उसकी समझ से परे था, तभी उसे शांत मृगांशी का चेहरा नज़र आया। जींस-शर्ट पहने, बालों में रबरबैंड डालकर पोनी बनाए, पैरों में बैली शूज डाले, सादे से रूप में आती थी, मुस्कुराकर हर किसी की समस्या का समाधान करती मृगांशी दिल को छू गई। शाम को काम से लौटते हुए धवल बोला, "मृग, कुछ टाइम मिल सकता है!" मृगांशी ने घूर कर देखा। "अरे यार, बात करने के लिए…बात-बात पर ऐसे घूरना ठीक नहीं है!" धवल ने मासूमियत से कहा। उसका बोलने का तरीका ही कुछ ऐसा था कि मृगांशी पिघल गई, किंतु मुड़कर वार्निंग देते हुए बोली, "मृग सिर्फ मेरे परिवार वाले ही बोल सकते हैं! तुम्हें कोई हक नहीं है!" धवल उसके साथ पैदल ही चल दिया—वैसे आया भी पैदल ही था; उसके हिसाब से बाइक में लगने वाले पेट्रोल के रुपये बचाकर ब्रॉसलेट वापस लाना ज़रूरी हो गया था। उसकी बहन का दिया कीमती तोहफा था, जो कि उसने अपनी पॉकेट मनी बचाकर और नानाजी से मिले रुपयों से लेकर आई थी। धवल बोला, "तुम हमेशा से ही इतना भाव खाती हो क्या??? या मुझे देखकर…" मृगांशी ने आँखें तरेर कर देखा—"तुम अपनी बात कहो!" धवल ने कहा, "मैं आपके हाथ बढ़ाकर कहना चाहता हूँ, वी आर फ्रेंड्स।" मृगांशी सड़क के किनारे हाथ बांधकर खड़ी होकर उसे देखते हुए बोली, "अभी फ्रेंड्स वाली बात कहाँ से आई बीच में? तुम्हें जो कहना है जल्दी से कहो…फिर तुम अपने रास्ते मैं अपने रास्ते…" धवल मुड़कर जाने लगा तो मृगांशी खीजकर पैर पटकते हुए बोली, "अब क्या हुआ???" धवल नहीं रुका; पीछे से मृगांशी दौड़कर आई और उसके आगे खड़ी हो गई—"स्क्रू ढीला है…जो पलटी खा जाते हो!" धवल रुककर उसे देखते हुए बोला, "कुछ ऐसा ही समझ लो, और जब तुम कुछ लगती नहीं हो तो मैं बात करके क्या करूँ! मैं यही सोचकर आया था कि कोई नहीं है यहाँ जिससे कुछ पूछ सकूँ या कोई मुझे सजेस्ट कर सके! तुम नज़र आईं तो मुझे लगा कि तुम हेल्प कर सकती हो…लेकिन तुम तो स्टॉक मार्केट की तरह हो, तुम्हारा सेंसेक्स चढ़ता ही जा रहा है! मुझे कहीं स्टॉप होता नज़र नहीं आ रहा है!" मृगांशी उसका कंपेरिजन सुनकर आवाक् रह गई। मृगांशी ने बिना भाव के कहा, "सिर्फ़ पाँच मिनट हैं तुम्हारे पास…" धवल हाथ बढ़ाकर बोला, "अगर फ्रेंडशिप के लिए एग्री हो तो…" मृगांशी पॉकेट में हाथ डाले बोली, "तुम नहीं मानोगे???" धवल मुड़कर बोला, "मानने न मानने का सवाल ही नहीं है!" मृगांशी ने हाथ आगे बढ़ा दिया! धवल ने हाथ मिलाकर तुरंत ही छोड़ दिया! जाने क्या था…या उस दिन का बिहेव याद आ गया! मृगांशी कुछ दूर चली गई; बीच में एक छोटे से पार्क में आकर बैठ गई, जहाँ छोटे बच्चे खेल रहे थे, कुछ झूले का आनंद ले रहे थे, कुछ अपने माता-पिता का हाथ पकड़कर घूम रहे थे। मौसम अच्छा था; शाम के समय हवा में हल्की ठंडक थी। क्रमशः*****

  • 5. आंखो में हो तुम - Chapter 5

    Words: 1064

    Estimated Reading Time: 7 min

    मृगांशी कुछ दूर चली और बीच में एक छोटे से पार्क में आकर बैठ गई। वहाँ छोटे बच्चे खेल रहे थे; कुछ झूले का आनंद ले रहे थे, कुछ अपने माता-पिता का हाथ पकड़कर घूम रहे थे। मौसम अच्छा था; शाम के समय हवा में हल्की ठंडक थी। मृगांशी गहन मुद्रा में बोली, "बोलो… क्या कहना है?" धवल ने कहा, "ये रुपयों का मैनेजमेंट बताओ… रुपये मेरे हाथ का मैल हैं… थोड़ा इकट्ठा हुआ नहीं कि इस मैल को झट से उतार फेंक देता हूँ!" मृगांशी ने कहा, "ह्म्म्म्म! लगता है घर में कोई कान खींचने वाला नहीं है, वरना आज ये नौबत ना आती!" मृगांशी की बात सुनकर धवल को अपने पापा के कहे शब्द याद आए और वह गुस्से में बोला, "नहीं है!" मृगांशी ने अचानक तेज हुई हवा को देखते हुए कहा, "चलो घर।" मृगांशी का फोन भी बज उठा। चारों तरफ नज़र उठाई तो लोगों में हलचल तेज हो गई थी। बच्चे अपने-अपने माता-पिता के साथ घरों को जाने लगे थे। मृगांशी ने फोन उठाते हुए कहा, "हैलो मम्मी, बस आ रही हूँ!" मयूरी ने कहा, "बेटा जल्दी आओ… मौसम विभाग की एडवाइजरी आ चुकी है!" मृगांशी ने बात करते हुए कदम भी तेज कर दिए। "हाँ मम्मा… पापा आ गए?" मयूरी ने कहा, "अभी पहुँचे हैं! जल्दी आना!" मृगांशी ने बाय बोलकर फोन रखा तो धवल विपरीत दिशा में जाता दिखाई दिया। वह भागकर उसके पास आई और जोर से पूछा, "तुम्हारा घर कहाँ है?" आधा घंटा या चालीस मिनट की दूरी पर… मृगांशी धवल का हाथ पकड़कर अपने घर की ओर भागने लगी। "दिमाग खराब है तुम्हारा… इतनी तेज हवाओं के साथ… चालीस मिनट की दूरी तय कर लोगे… अब भागो!" उन दोनों के भागते हुए ही हवा इतनी तेज हो गई कि लग रहा था दोनों साथ ही उड़ जाएँगे। मृगांशी के घर की दूरी ज्यादा नहीं थी, इसलिए उसने धवल से चलने को कहा था। जैसे-तैसे करके घर में आ गए, लेकिन वहाँ मयूरी मृगांशी को नाराज़ देख रही थी। मयूरी ने मृगांशी का कान खींचते हुए कहा, "कितनी बार कहा है… घर समय पर आया करो! एक बात नहीं लगती…" करण पास आकर बोला, "मयूरी, छोड़ो, बच्ची है… हो जाता है कभी-कभी…" "इसका कभी-कभी भी साथ में तूफ़ान लेकर आता है!" मयूरी का गला भर आया। मृगांशी मयूरी के इमोशन समझ उसे गले लगाने को हुई, तो मयूरी ने चेतावनी देते हुए कहा, "अभी पास मत आना… नहीं, सच में चाँटा पड़ेगा…" कहते हुए उसकी आँखें छलक आई थीं। करण ने उसे बाहों में भरते हुए कहा, "मैं आ सकता हूँ ना…" मयूरी ने दर्द में मुस्कुराते हुए कहा, "दोनों बाप-बेटी की मिलीभगत है!… जिससे भी नाराज़ हो जाऊँ… एक-दूसरे का पक्ष लेकर खड़े हो जाते हो… मेरा बेटा होता तो दोनों की एक न चलने देता!" करण का फ़ोन बजा। वेदांक का नाम देखकर वह मुस्कुराया। "ये लो, तुम्हारे कुंवर सा पधार चुके हैं!" करण ने फ़ोन स्पीकर पर किया। "हाय डैड…" किसी और के बोलने से पहले मयूरी ने नाराज़गी से कहा, "वेदांक?" वेदांक ने हँसते हुए कहा, "पापा-मम्मी, गुड इवनिंग…" करण ने कहा, "तुम्हारी मम्मी नाराज़ हैं… मनाओ इसे…" मयूरी ने करण को घूर कर देखा। वेदांक ने कहा, "आप दोनों ने तंग किया होगा मेरी माँ को… मेरे बिना अकेले जो रह गई है!… अब अकेले आप दोनों की टीम का सामना नहीं कर सकती ना…" मृगांशी ने कहा, "मम्मी के मच्छर पूरी बात सुन लेते… फिर कुछ बोलते…" वेदांक ने कहा, "मेरी माँ कभी गलत हो ही नहीं सकती…" मृगांशी ने चिढ़ाते हुए कहा, "इतनी फ़िक्र है तो आ क्यों नहीं जाते…" वेदांक ने कहा, "अब तो आप सब आना… अभ्युदय भाई का रिश्ता पक्का हो गया है… लड़की सॉफ्टवेयर इंजीनियर है…" मृगांशी ने कहा, "पहले मेरी बात सुन लेते, कहाँ मिठाई में घुस गए!" वेदांक ने कहा, "चल, सुना…" मृगांशी धवल की बात बताने ही वाली थी कि फ़ोन कट गया और उसे याद आया कि धवल बाहर गैलरी में खड़ा है! वह अपना सिर पीटते हुए जल्दी से बाहर आई और धवल को, जो पानी की बौछारों से भीग चुका था, अंदर ले आई। मयूरी और करण दोनों ही हैरान हुए। करण आगे आकर बोला, "मृग, तुम्हारे साथ आए थे!" धवल बीच में बोला, "अपना बेटा समझिए… प्लीज़ ये आपकी फ़ॉर्मैलिटीज़ मत कीजिए…" करण मुस्कुराते हुए बोला, "ओके… आओ अंदर, चेंज करो… बीमार हो जाओगे…" धवल हैरत से बोला, "बट सर…" करण ने कहा, "हाइट में तुम्हारे ही जितना है मेरा बेटा… उसके कपड़े पहन लो!" "मयूरी, वेदांक की ड्रेस दो और उसका रूम दिखा दो, चेंज करे!" करण ने कहा। हामी भरकर मयूरी वेदांक के रूम में आई और उसकी ड्रेस निकालकर दे आई और खाना खाने के लिए बुला गई। धवल को अजीब लग रहा था, लेकिन यहाँ आकर करण और मयूरी का अपनत्व भी महसूस किया था। कुछ देर में सबने खाना खाया। मृगांशी अपनी बातों में लगी थी, जहाँ वह करण के साथ कुछ ना कुछ डिस्कस कर रही थी। धवल ने आज इतने दिन बाद अच्छा खाना खाया था। सुबह-शाम नूडल्स बनाकर खाकर वह बोर हो गया था। मन ही मन धवल ने मृगांशी को थैंक्यू कहा। मयूरी ने उसकी प्लेट की ओर रोटी बढ़ाते हुए कहा, "शर्माओ मत, एक और लो…" धवल मना करता उससे पहले ही मयूरी ने उसकी प्लेट में रोटी रख दी। करण ने पूछा, "खाना अच्छा नहीं लगा होगा? आज शुद्ध सात्विक भोजन है…" "नहीं, अंकल, अच्छा है!" धवल ने गर्दन नीचे करके कहा। मृगांशी अपना खाना खत्म कर चुकी थी, जबकि करण खा रहा था। मयूरी उसे खाते हुए बात करने से मना कर रही थी। सब अपना खाना खत्म करके आए और हॉल से बाहर के मौसम का जायजा ले रहे थे। बारिश के साथ तेज हवाएँ चल रही थीं। शायद मौसम अभी ठीक होने के मूड में नहीं था। मृगांशी मोबाइल में लूडो गेम ले आई थी। वेदांक के साथ भी वह खेलती थी। करण चाहे कितना भी थका हो, ये मोमेंट मिस नहीं करता था। उसका फैमिली टाइम था। बस यहाँ की संस्कृति को देखकर ही उसने अपना रूटीन बनाया था ताकि भारतीय संस्कार बने रहें और बच्चे उनसे जुड़े रहें। मृगांशी ने धवल को भी आने को कहा, लेकिन थकावट का बहाना करके वह वेदांक के रूम में आ गया। मृगांशी और करण के शोरगुल ने उसे सोने नहीं दिया। अनजानी जगह पर नींद तो वैसे भी नहीं आ रही थी। क्रमशः…

  • 6. आंखो में हो तुम - Chapter 6

    Words: 1084

    Estimated Reading Time: 7 min

    मृगांशी ने धवल को भी आने को कहा, लेकिन थकावट का बहाना करके वेदांक के कमरे में आ गया! मृगांशी और करण के शोरगुल ने सोने नहीं दिया! अनजानी जगह पर नींद तो वैसे भी नहीं आ रही थी! मृगांशी देर रात कमरे में आई तो धवल जेब में हाथ डालकर वहाँ खड़ा खिड़की से बाहर देख रहा था! मृगांशी को उसे देखकर हैरानी हुई! गेट बंद करके उसने कहा, "तुम यहां क्या कर रहे हो?? और तुम्हें कैसे पता चला कि यह मेरा कमरा है?" धवल ने उसे एक नज़र देखकर वापस मुड़ गया और कहा, "इस कमरे को देखकर कोई अंधा भी बता सकता है कि यह तुम्हारा कमरा है!" मृगांशी चौंकी और बोली, "मतलब???" धवल ने बिना भाव के कहा, "ब्वॉयफ्रेंड की कमी तो ये बड़े-बड़े भालू पूरी कर रहे हैं!" "टेडी बियर... नाम है इनका," मृगांशी चिढ़कर बोली। धवल ने दाँत दिखाकर कहा, "हम जैसे लोगों के लिए भालू ही हैं!" मृगांशी ने बेड पर अपना टेडी रखते हुए कहा, "नो कमेंट्स..." धवल ने दोनों हाथ ऊपर करके सरेंडर कर दिया! मृगांशी धवल के पास आकर खड़ी हुई और बोली, "बोलो... क्या कहना है और अपने कमरे में जाओ! मम्मी दूध देने आएंगी!" धवल ने कहा, "अरे गुरु मैनेजमेंट... बस छोटे से बजट का मैनेजमेंट कैसे करें..." मृगांशी हैरत में पड़ गई और बोली, "मतलब???" धवल कुछ बोलने को हुआ, तभी उसके कमरे का गेट बजा! मृगांशी शॉक्ड होकर बोली, "मम्मी इतनी जल्दी... तुम छिप जाओ... जाओ जल्दी..." मृगांशी ने कहा, "आई मम्मी..." धवल को कुछ समझ नहीं आया, उसने बेड पर कंबल ओढ़कर लेट गया और टेडी बेड से नीचे डाल दिया! मृगांशी ने लाइट ऑफ कर गेट खोलकर कहा, "मम्मी..." मयूरी के हाथ में जग और गिलास देखकर मृगांशी ने अपने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, "लाइए..." मयूरी ने जग देते हुए कहा, "भूल गई ना..." रूम की लाइट बंद देखकर मयूरी बोली, "सो मत जाना... दूध ला रही हूँ! लगता है धवल सो गया है... एक बार डोर नॉक करके चेक करूँ क्या???" मृगांशी ने जब सुना तो जग रखकर फटाफट उसके पीछे आई और बोली, "मम्मी मैं हेल्प कर देती हूँ!" मयूरी ने कहा, "तू सो रही है ना... सो जा..." मृगांशी साथ चलते हुए बोली, "दूध पीना है ना... इतनी जल्दी भूल गई!" मृगांशी ने जग लिया और फटाफट वेदांक के कमरे में धवल के लिए रख दिया! भागते हुए वापस नीचे आई तो करण किचन में खड़ा था! मृगांशी ने कहा, "पापा गुड नाइट..." करण ने साइड से बांहों में लेकर माथा चूमकर कहा, "गुड नाइट बेटा..." मृगांशी मुस्कुरा दी और दूध के गिलास की ट्रे लेकर चली गई! रूम को बंद कर जीरो पावर जलाकर धीरे से बोली, "धवल उठो, तुम्हारा दूध का गिलास लो और अपने कमरे में गो वेंट गोन हो जाओ..." धवल की आवाज नहीं आई तो उसने इधर-उधर देखा! बेड पर नज़र पड़ते ही उसकी भौंहें सिकुड़ गईं! उसके पास आई तो कंबल हटाकर देखा धवल गहरी साँस लेकर सो रहा था! नींद आ गई थी उसे... मृगांशी हैरान सी बोली, "कोई इतनी जल्दी कैसे सो सकता है!" मृगांशी ग्लास विंडो के पास आ खड़ी हुई, दूध पीते हुए धवल को जगाने न जगाने के असमंजस में खड़ी थी! मयूरी के अनुसार सोते हुए को नहीं उठाना चाहिए! इस कुंभकर्ण को न उठाया तो बिना वजह शक के दायरे में आ जाएगी! मृगांशी ने खाली गिलास टेबल पर रखकर कहा, "धवल उठो... अपने कमरे में जाओ..." धवल गहरी नींद में जा चुका था! "धवल उठो... धवल..." मृगांशी बेचारी जोर से बोलकर भी नहीं उठा सकती... उसे उठाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, लेकिन वापस खींच लिया! परंतु धवल को उठाना ही था!... हिम्मत कर मृगांशी पास आकर कंधे से पकड़कर हिलाते हुए बोली, "धवल... धवल उठो..." धवल के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी! खुद से ही बोली, "ये लंबा-चौड़ा मूँछ वाला कैसे हिलेगा! पानी... नहीं... जोर से चिल्लाएगा... नीचे धक्का दूँ तो हिले तब ना... क्या करूँ???... क्या करूँ???" एक बार के लिए थका-हारा इंसान गहरी नींद में जाता ही है! वही हाल धवल का भी था! धवल टस से मस नहीं हुआ! मृगांशी ने आवाज की बजाय दोनों हाथों से हिलाया! इस बार धवल हिला और नींद में ही था! मृगांशी के दोनों हाथ पकड़कर खींचा और बोला, "यार क्या जल्दी है उठने की... तु भी सो जा... मुझे भी सोने दे थोड़ी देर..." मृगांशी जम गई और बोली, "ये तो अपना कमरा समझकर... सब कुछ बेचकर सोया है... फकीरा बनकर..." मृगांशी हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी! हाथ नहीं छोड़ने पर उसे गुस्सा आया और गुस्से में उसने उसके कंधे पर काट लिया! नींद में धवल जोर से चीखने लगा, तो धवल ने कंधे पर हाथ लगाने के लिए मृगांशी का हाथ छोड़ दिया, तो उसने उसके मुँह पर हाथ रख दिया! धवल आँखें फाड़कर मृगांशी को देख रहा था! मृगांशी को समझ नहीं आया कि वह चौंका क्यों??? उसने दो-तीन बार पलकें झपकाईं! फिर एकदम से उठ बैठा, उसके ऐसा करने से मृगांशी उसकी गोद में आ गई! मृगांशी अपनी स्थिति देखकर उछली और नीचे खड़ी होकर बोली, "ऐसे कौन सोता है वो भी दूसरी जगह पर..." धवल ने कहा, "सॉरी यार... आज ही हुआ है ये..." मृगांशी घूर कर देखने लगी! धवल उठने को हुआ, लेकिन कंधे पर अचानक तेज दर्द से हाथ रख लिया! मृगांशी पास आकर बोली, "क्या हुआ???" धवल ने आँखें बंद करके कहा, "पता नहीं..." मृगांशी ने हाथ और कंधे को ध्यान से देखा तो अपना सिर पीटा, तभी धवल ने वेदांक की पहनी टी-शर्ट निकाल दी और अपने कंधे को देखने लगा! मृगांशी चिल्लाने को हुई, आँखें बंद कर के अपने मुँह पर हाथ रख लिया! धवल ने हाथ लगाकर देखा, हल्का खून निकल रहा था! मृगांशी की ओर देखकर बोला, "क्या हुआ??? ऐसे आँखें बंद क्यों कर ली! फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आओ... ब्लड निकल रहा है, ठीक से दिखाई भी नहीं दे रहा है किसकी लगी..." मृगांशी ने अभी तक आँखें नहीं खोली थीं! धवल बोला, "अरे अभी तक समाधि लिए बैठी हो जाओ... जाकर फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आओ!" मृगांशी ने कहा, "पहले टी-शर्ट पहनो!" धवल हैरत से बोला, "अरे यार लगी है देखो ना, पेन भी हो रहा... मुझसे जरा सी खरोंच बर्दाश्त नहीं होती और तुम इतना वेट करवा रही हो!" मृगांशी आँखें बंद किए चल दी तो आगे अलमारी से सिर टकराया! धवल उठकर जल्दी से उसके पास आया और मृगांशी के हाथ को माथे से हटाकर फूँक मारने लगा! क्रमशः*****

  • 7. आंखो में हो तुम - Chapter 7

    Words: 1107

    Estimated Reading Time: 7 min

    मृगांशी ने आँखें बंद कर लीं और चल पड़ीं। आगे बढ़ते हुए वह अलमारी से टकरा गई! धवल उठकर झट से उसके पास आया और मृगांशी के माथे से हाथ हटाकर फूंक मारने लगा। मृगांशी की आँखें बंद थीं। अनजाने में ही उसका हाथ धवल के कंधे पर चला गया! धवल जोर से चीखा। मृगांशी की आँख खुली तो उसने अपने मुँह पर हाथ रख लिया। मृगांशी ने नाराज़गी से कहा, "पागल हो क्या? तुम सच में मरवाओगे!" धवल ने उसका हाथ हटाते हुए कहा, "तुमने भी तो मेरी लगी चोट पर हाथ रखा था!" "नहीं, छुईमुई हो… नाज़ुक कली हो… कमसिन हो… ऊंहह्… हसीना बानो! इतना सा ही तो दांत लगा है! बंदर वाला घाव कर लिया है जो सारा दिन खुजाता रहता है!" मृगांशी जाने लगी। धवल ने उसका हाथ पकड़कर वापस खींच लिया। "मुझसे चोट सहन नहीं होती, समझी तुम? और अंधेरे में फिर से लगेगी, ध्यान से…" मृगांशी ने हाथ बढ़ाकर डिम लाइट जलाई और फर्स्ट एड बॉक्स से दो बैंडेज निकाल लाई। धवल को बिना टी-शर्ट के देखकर उसने आँखें बंद कर लीं और धीरे-धीरे कदम बढ़ा रही थी। धवल ने कहा, "आँखें खोलो, फिर से चोट लगेगी!" "पहले तुम टी-शर्ट पहनो, और मैं चोट से नहीं डरती!" "हाँ, टी-शर्ट के ऊपर से बैंडेज लगा देना, काम हो जाएगा और मेरी चोट भी छूमंतर हो जाएगी!" "मुझसे बैंडेज नहीं लगाई जाएगी!" धवल दर्द और गुस्से में उसके पास आकर बैंडेज लेते हुए बोला, "लाओ, तुम्हारे मॉम-डैड से लगवा लूँगा!" मृगांशी ने बैंडेज छीनकर उसके कंधे पर लगाने लगी। उसकी उंगलियाँ काँप रही थीं। धवल को गेट की तरफ धक्का देते हुए उसने कहा, "चलो, निकलो यहाँ से…" धवल ने कहा, "टी-शर्ट तो पहनने दो!" मृगांशी भागकर बेड की तरफ गई और धवल की तरफ उसकी टी-शर्ट फेंक दी। सुबह-सुबह घर में आरती और घंटी की आवाज़ धवल के कानों में पड़ी तो उसने कान पर तकिया रख लिया। फिर थोड़ा होश में आकर उसने देखा कि वह मंदिर में तो नहीं आया है। नींद भरी आँखें खोलकर उसने देखा कि वह घर पर ही है और वापस लेट गया। कुछ देर बाद आरती की थाली लिए मृगांशी आई और धवल को जगाया, साथ ही मंत्र बोल रही थी। "शान्ताकारं भुजङ्गशयनं पद्मनाभं सुरेशम्। विश्वाधारं गगनसदृश्यं मेघवर्णं शुभाङ्गम्। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्। वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।" "धवल, गुड मॉर्निंग… उठो धवल।" धूप और दीपक पर हाथ घुमाकर वह कमरे में धूप फैला रही थी। धवल लेटा ही हुआ था। मंत्र बोलती और कमरे में धूप फैलाती मृगांशी को देखकर वह अचंभित हुआ। उसने डार्क ग्रीन कुर्ती-ऑरेंज सलवार और इन दोनों ही रंगों का दुपट्टा पहना था, जिस पर चुनरी प्रिंट था! बाल कल्‍च किए हुए थे! "मृगांशी, इंडियन अवतार ह्म्म्म… गुड लुकिंग… सो नाइस।" टी-शर्ट पहनते हुए उसने कहा। मंत्र बोलती मृगांशी ने आँखें दिखाईं। "क्या यार, बीवी वाले तेवर दिखा रही हो…" हैरानी से एक नज़र धवल को देखकर वह दूसरे कमरे में चली गई। कुछ देर बाद चाय लेकर आई। कमर पर दुपट्टा बाँधे मृगांशी ने चाय बैड के साइड टेबल पर रखी और धवल का कान पकड़कर बोली, "बोलो अब, क्या बोल रहे थे… बीवी की तरह तेवर दिखा रही हूँ!… थैंक गॉड तुम्हारी बीवी नहीं हूँ! वरना अभी तक तैयार हो मेरे साथ पूजा में खड़े होते… जल्दी करो… जाओ फ्रेश होकर आओ…" धवल के कान लाल होने के साथ उसे दर्द भी हुआ, लेकिन उसने कुछ नहीं बोला। मृगांशी फिर नाज़ुक कली, कमसिन, हसीना बानो जाने क्या-क्या कहकर चिढ़ाती रही! मृगांशी ने कहा, "नाश्ता बन रहा है, फटाफट आओ…" धवल बेड से खड़ा हुआ। "मृगांशी, सच में सुंदर लग रही है!" "मृगांशी गुणगान हो गया हो तो चाय ठंडी हो रही है!" धवल ने कहा, "एक तो तारीफ करो, ऊपर से इनके नखरे…" मृगांशी ने कहा, "नहीं चाहिए तारीफ…" मृगांशी नीचे आकर मयूरी की मदद करने लगी और साथ ही बीच पर जाने के लिए उसे मना रही थी, लेकिन मयूरी मानने को तैयार नहीं थी। पीछे खड़े करण को देखकर मृगांशी ने रोने वाली सूरत बनाई। करण ने बाहर जाने का इशारा किया। मृगांशी अपने कमरे में आकर बेड पर आलथी-पालथी मारकर दोनों हाथों के बीच मुँह रखकर बैठ गई। रोटी बनाती हुई मयूरी को पीछे से बांहों में लेकर मृगांशी बोली, "मयूरी…" मयूरी एकदम से चौंककर बोली, "दूर हटो आप… मृग आ जाएगी!" करण ने कहा, "नहीं, पहले मेरी बात सुनो…" मयूरी ने इंडक्शन ऑफ करके कहा, "कहिए…" करण ने कहा, "उसे जाने दो ना… प्लीज… फिर वहीं शिफ्ट हो जाएँगे! वहाँ से यहाँ आना नहीं होगा… बच्ची है…" मयूरी ने पूछा, "इसलिए इतना प्यार बरस रहा है क्या?" "इजाज़त दो तो बिना रीज़न के बारिश हो सकती है प्यार की।" प्यार शब्द पर उसने ज़ोर दिया। मयूरी ने अपनी तरफ से सख्ती से घूरा, लेकिन करण ने उसके गाल पर किस करके चला गया! मयूरी हैरत से खड़ी रह गई! मृगांशी कशमकश में बैठी थी कि धवल आ गया। "हे शोकग्रस्त क्यों बैठी हो? जैसे किसी के जनाज़े में आई हो…" मृगांशी ने खीजकर कहा, "हाँ, अपने अरमानों के जनाज़े में…" धवल ने नासमझी में कहा, "व्हाट आर यू सेइंग…" मृगांशी ने मुँह फुलाकर कहा, "बीच पर जाना है, लेकिन मम्मी…" धवल ने उसके गाल खींचकर कहा, "सो क्यूट एंड इनोसेंट…" मृगांशी ने उसके हाथ हटाते हुए कहा, "छोड़ो क्यूट और इनोसेंट को…" धवल उसे समझाते हुए बोला, "क्यूँ टेंशन ले रही है? चल, आज ही चलते हैं बाइक पर… रात तक आ जाएँगे…" "पूरा एक दिन बिताना है मुझे…" धवल ने गौर से देखकर कहा, "तो इतना उखड़ने वाली क्या बात है?" मृगांशी ने कहा, "मम्मी माने तब ना…" धवल खड़ा होकर माथे पर हाथ फेरते हुए बोला, "सबकी लाइफ में एक विलेन होता है, किसी की में मम्मी… किसी के में पापा…" मृगांशी ने गुस्से में घूरा। तभी करण आया। "मृगांशी, डन…" मृगांशी खुशी में उछलकर करण के गले लगी। "थैंक्यू… थैंक्यू… थैंक्यू… पापा, आई एम सो लकी…" करण ने उसके बालों में हाथ फेरकर उसे चूमा। "अब जल्दी से प्रोग्राम बना लो!… वरना मयूरी को तुम जानती हो!…" धवल दोनों बाप-बेटी के प्यार को देखता रहा। "अंकल, मैं भी यही कह रहा था, बाइक पर चलते हैं!…" करण हैरान सा मृगांशी को देखकर बोला, "तुम अपनी फ्रेंड्स के साथ जाने वाली थी ना…" "पापा, ये ऐसे ही बोल रहा है, मेरा प्रोग्राम वही है!" मृगांशी ने सफाई दी। करण ने कहा, "चलो नीचे… नाश्ता तैयार है…" मृगांशी के जाने के बाद करण ने धवल से कहा, "तुम भी आ जाओ…" धवल ने गर्दन हिलाई और करण के पीछे चल दिया। क्रमशः*****

  • 8. आंखो में हो तुम - Chapter 8

    Words: 1151

    Estimated Reading Time: 7 min

    धवल ने गर्दन हिलाई और करण के पीछे चल दिया। मृगांशी नीचे आकर मयूरी के गले लग गई। "थैंक्स, मम्मी..." मयूरी ने नाराज़गी से कहा, "मत कर ये नाटक। दोनों बाप-बेटी समझते ही नहीं हो..." मृगांशी दूर होकर चेयर पर बैठते हुए बोली, "सॉरी! नहीं जा रही..." करण धवल के साथ नीचे आया। मृगांशी को चुपचाप नाश्ता करते देख करण ने कहा, "मयूरी, खुद की तरह डरपोक मत बनाओ! जाने दो...बाहर की दुनिया में जाकर ही लोगों की नज़र और नज़रिया समझ आएगा!" मयूरी ने कहा, "ठीक है, मैंने कहाँ रोका है..." मृगांशी चहक उठी, "निकोल और बाकी सब से बात कर लूँ क्या?" मयूरी ने मुस्कुराकर हामी भरी। मृगांशी ने फटाफट नाश्ता किया। धवल नाश्ता करते हुए सबको नोटिस कर रहा था। करण के पास वेदांक का फ़ोन आया। आज वह अपना पहला केस लड़ने जा रहा था, इसलिए उसने मयूरी और करण का आशीर्वाद लेने के लिए फ़ोन किया। करण ने विजयी भव का आशीर्वाद दिया, तो मयूरी ने बेटे को काबिल और ईमानदार वकील बनने की दुआएँ दे डालीं। कुछ मिनट मृगांशी से बात कर, रात को फिर से बात करने का वादा करके फ़ोन रख दिया। करण ऑफ़िस के लिए निकल गया। मयूरी धवल के साथ बात कर रही थी कि इतनी देर में मृगांशी जींस-टीशर्ट पहनकर आ गई और धवल से चलने के लिए कहा। मयूरी ने धवल को टिफ़िन और एक पैकेट दिया। टिफ़िन में लड्डू थे और पैकेट में भुजिया। दोनों घर से निकलकर एस मियामी अवे (मेन रोड) पर आ गए। धवल ने पूछा, "साउथ बीच पर कैसे जाओगी?" मृगांशी ने कहा, "अरे यार! बाइक किसलिए ले रही हूँ!" मृगांशी को किसी ने हाय-हैलो किया। कुछ मिनट बात करने के बाद वह लड़का उसके गले लग गया। धवल को अजीब लगा। उसके जाते ही धवल ने शिकायत की, "उस दिन कह रही थी कि किसी लड़के को हाथ नहीं लगाने देती..." मृगांशी हैरत से देखने लगी। धवल ने कंधा मारकर भौंहें उचकाईं। "सीधा गले लगाती हो..." मृगांशी ने उसके कंधे पर थप्पड़ मारते हुए कहा, "मेरा नेबर है...और मुझे जानता है...उनके लिए नॉर्मल है, उसमें उनकी हीन भावना नहीं होती...जैसे हमारे लिए नमस्कार...समझे..." धवल अपने कंधे को मसलने लगा। मृगांशी ने कंधे को मसलते देख मुस्कुराते हुए कहा, "हसीना बानो..." यह सुनकर धवल भी मुस्कुराया। मृगांशी दस-पंद्रह मिनट साथ चलने के बाद एक मोड़ पर आकर धवल को बाय कहा। यहाँ से आगे मृगांशी को निकोल के घर जाना था। धवल भी अपने रास्ते हो लिया। जाने क्यों वह मृगांशी के साथ अपने घर से कुछ आगे आ गया था। शायद उसका साथ अच्छा लगने लगा था। यह अपने मातृभूमि का लगाव था। वैसे भी, विदेशी धरती पर अपनी मातृभूमि का कोई भी मिल जाए, तो वह अपना ही लगता है। धवल को मृगांशी अच्छी लगने लगी थी। धवल मृगांशी को सोचकर खुद में मुस्कुरा दिया। अपने रूम पर आकर टिफ़िन और पैकेट खोला, तो लड्डू और भुजिया देखकर खुश हुआ। तीन-चार दिन नूडल्स नहीं खाने पड़ेंगे! रात को खाने की टेबल पर मयूरी ने कहा, "मृग, मां सा हुकुम ने तुम्हारे लिए दुष्यंत को चुना है!" मृगांशी को खांसी उठी। करण और मयूरी दोनों ने पानी का गिलास आगे कर दिया। करण ने कहा, "ये बात बाद में हो सकती थी! शायद किसी को बात पसंद आए..." मयूरी ने करण को देखते हुए कहा, "हुकुम वैसे गलत भी नहीं था...मृग को सब पता है, फिर भी..." मृगांशी ने पानी पीकर खुद को ठीक करते हुए कहा, "मम्मा, इतनी जल्दी..." मयूरी ने कहा, "तुम्हें पता है, चौबीस की हो जाओगी..." "चौबीस की हो जाऊँगी तो किसी को पकड़कर उसे बांध दो! आप यही कहना चाहती हो!" मृगांशी की आवाज जोर से थी। करण ने उसे गहरी नज़र से देखते हुए कहा, "मृगांशी..." मृगांशी को उसके लहजे में नाराज़गी झलकी। मृगांशी ने धीरे से कहा, "आई एम सॉरी..." वह चुपचाप अपना खाना खाने लगी। करण को ऐसा लगा, मयूरी ने भी मौन धारण कर लिया। मृगांशी ने खाना खाया और अपने रूम में जाते हुए बेहद ठंडे स्वर में बोली, "माँ सा हुकुम को मेरी तरफ़ से हाँ बोल दीजिएगा!" करण ने कहा, "मृगांशी, रुको! जो तुम समझ रही हो, वैसी बात नहीं है!" करण ने भी जूठा न छोड़ने की आदत के कारण मन मारकर जितना प्लेट में मौजूद था, खाना खाया। करण सब कुछ छोड़कर मृगांशी के पीछे आया। मयूरी बर्तन इकट्ठे कर मृग के रूम की तरफ़ आई। करण उसे गेट खोलने के लिए कह रहा था। मृगांशी ने धीरे से गेट खोला और दोनों के गले में बाहें डाल दीं। करण ने मृगांशी की पीठ थपथपाते हुए कहा, "दुष्यंत ज़रूरी नहीं है! तुम अपनी मम्मा को जानती हो ना...बस मां सा हुकुम ने आदेश दिया, नहीं कि पालन करना है!" मृगांशी दूर होकर आँसू साफ़ करते हुए बोली, "दुष्यंत की बात नहीं है! इतनी जल्दी हमला कौन करता है...चौबीस की हुई हूँ अभी...बुड्ढी नहीं हो रही हूँ!" मयूरी ने कहा, "हम भी जल्दी नहीं कर रहे हैं...लेकिन मां सा हुकुम ने कहा है, दुष्यंत की दादी की इच्छा है, मरने से पहले वह दुष्यंत की शादी देखना चाहती है...बस इसलिए जल्दी कर रही है...अभ्युदय के साथ तुम्हारी भी सगाई कर दें!" "मम्मा, सोचने का टाइम मिलेगा या वो भी नहीं...उससे बात करके नेचर को जान लूँ! बस इतना सा..." मृगांशी ने रिक्वेस्ट करते हुए कहा। करण ने कमरे में लाकर बेड पर बैठाते हुए कहा, "कोई जल्दी नहीं है...पसंद न हो तो मना..." मृगांशी खुश होकर गले लग गई। मयूरी चौंकी। "हुकुम..." करण ने मयूरी को बाहर ले आया। परेशान मयूरी अपना काम करने लगी। करण ने मयूरी को सामने खड़ा करके कहा, "डोंट वरी, सब अच्छा होगा!" मयूरी ने मासूमियत से मुस्कुराकर गर्दन हिलाई। करण को टूट कर प्यार आया और उसने उसे गले लगा लिया। मयूरी दूर होने की कोशिश करते हुए बोली, "हुकुम, किचन बिखरा है, समेटने दीजिए..." करण ने मस्ती से कहा, "कल कर लेना..." मयूरी हैरान सी रह गई। "हुकुम..." करण ने मयूरी को सीने से लगाया। "ह्म्म्म्म..." मयूरी ने कहा, "हुकुम, रूम नहीं है और अब बच्चे बड़े हो चुके हैं!" करण ने कहा, "बच्चे बड़े होने के बाद प्रेम वर्जित है..." मयूरी घबराहट में बोली, "नहीं...लेकिन..." करण ने कहा, "मयूरी, तुम पागल हो...विदेश की ज़मीं पर हो, जहाँ सरेआम..." मयूरी ने कहा, "हुकुम, हम भारतीय हैं! जिनमें सर्वप्रथम मर्यादा और संस्कार दिए जाते हैं, जिनकी वजह से ही सम्पूर्ण विश्व में अलग पहचान है!" करण ने कंधे उचकाकर हथियार डाल दिए। मयूरी वापस अपने काम में जुट गई। कुछ देर बाद मृगांशी के कमरे में पानी का जग और दूध का गिलास लेकर आई, तो देखा मृगांशी सो चुकी थी। क्रमशः*****

  • 9. आंखो में हो तुम - Chapter 9

    Words: 1126

    Estimated Reading Time: 7 min

    करण ने कंधे उचका कर हथियार डाल दिए! मयूरी वापस अपने काम में जुट गई। कुछ देर बाद मृगांशी के कमरे में पानी का जग और दूध का गिलास लेकर आई, तो देखा मृगांशी सो चुकी थी। सोई मृगांशी के सिर सहलाकर भावुक हो उठी। पंख लगाकर समय उड़ा और पलक झपकते ही गोल-मटोल करण की हुबहू मृगांशी जाने कब बड़ी हो गई! उसके लिए रिश्ता भी आ गया। धवल अपना काम करके दस मिनट के ब्रेक में उसके पास आया। "थैंक्स..." हैरान मृगांशी देखने लगी। धवल बोला, "आंटी को बोल देना लड्डू के लिए..." मृगांशी ठंडे रिस्पांस के साथ, "ह्म्म्म्म..." धवल इतना ठंडा रिस्पांस देखकर बोला, "हे क्या हुआ??? बीच पर जाने से आंटी ने फिर मना कर दिया क्या???" "नहीं, लेकिन बाइक के बिना..." मृगांशी ने कहा। "ओओ...बस इतनी सी बात! ऐसे करना, मैं तुम्हें छोड़ दूँगा और जब तुम्हारा घूमना-फिरना हो जाए, तो कॉल कर देना या फिर वहीं आसपास मैं भी घूमता रहूँगा। लेकिन हाँ, फ्यूल का तुम्हें पे करना होगा!" आखिरी लाइन चौड़ी सी मुस्कान के साथ बोली। मृगांशी भी मुस्कुराई। "हाँ, इसको फेविक्विक से चिपका लो..." अंगूठे और उंगली से स्माइल का साइन करके। मृगांशी ने मुस्कुराकर गर्दन हिलाई। धवल उसे देखता रह गया, या यूँ कहें खो गया था उसमें...जाने आज उसे क्या एहसास हुआ था! यह कला मयूरी से ही मिली थी। मृगांशी ने ध्यान नहीं दिया और चुपचाप खोई चाय पीती रही। धवल किसी के "हैलो" कहने से होश में आया। "मुझे ऐसे क्यों लग रहा है...तुम परेशान हो..." "नथिंग..." "खाओ मेरी कसम..." मृगांशी झुंझलाहट में खड़ी हो गई। "धवल, क्या बकवास है ये? मतलब कसम खाने पर ही सब सच बोलेंगे, है ना? अगर झूठ बोला, तब तुम बात को सच मान लोगे? क्यों, यही बात है ना? लेकिन झूठी कसम खाने के बाद तुम्हें कुछ हो गया तो..." धवल उसे शांत करवाते हुए बोला, "रिलेक्स...ऐसा कुछ नहीं होता..." मृगांशी धवल की बात पर और उखड़ गई। मृगांशी धवल की कॉलर पकड़कर बोली, "देवदूत हो ना, तुम्हें तो कुछ होने वाला है...सही कहा ना..." सब उनकी ओर देख रहे थे। धवल ने नोटिस किया था। तभी मालिक आया और धवल को गलत समझने लगा। इंग्लिश में धवल को धक्का देकर डाँटने लगा। मृगांशी को एहसास हुआ कि उसकी बात को गलत समझ लिया गया है। उसने बीच में आकर धवल को बेस्ट फ्रेंड बताकर बचाव किया। मृगांशी अपना सर पकड़कर बैठ गई। धवल से सॉरी कहा, लेकिन धवल अपने काम में लग गया। मृगांशी गिल्ट में थी और धवल नाराज सा लगा। ऑफ होने पर मृगांशी रोड के साइड में चलते धवल के पीछे आई और उसे आवाज लगा दी। किन्तु वह लम्बे-लम्बे डग भरता आगे चल पड़ा। मृगांशी उसके पीछे भाग रही थी। तेज़ दौड़ लगाकर उसके आगे आ खड़ी हुई और घुटनों पर हाथ रखकर साँस लेने लगी। नज़र उठाकर देखा, तो धवल उसे खा जाने वाली नज़रों से घूर रहा था। मृगांशी साँसों को सही कर उसके दोनों हाथों से अपने कान पकड़कर बोली, "आई एम वैरी...वैरी...वैरी...वैरी...सॉरी।" धवल ने हाथ नीचे कर अपनी पॉकेट में डाल लिए। "अब बताओ क्या बात है???" "माँ का हुक्म का फ़ोन आया था कि उन्होंने मेरे लिए लड़का देखा है। बस उसी बात को लेकर परेशान थी।" धवल ने आँखें फाड़कर ऐसे देखा, जैसे अनहोनी हो गई हो। उसका चेहरा हाथों में भरकर बोला, "मना कर दो...और फ़ाइनल डिसीज़न...कह दो अभी नहीं करनी है शादी..." मृगांशी एकदम से उसकी हरकत पर हड़बड़ाकर अपना चेहरा उसके हाथों से छुड़ाते हुए बोली, "हमारे में इतना आसान नहीं है..." धवल तैश में आकर बोला, "अरे, कौन सा तुम अभी बूढ़ी हो रही हो..." मृगांशी घूर कर बोली, "धवल, ये किस तरह का बिहेवियर है???" शार्ट टेंपर होना उसकी कमज़ोरी थी। गुस्से में कंट्रोल भी नहीं कर पाता था। मृगांशी के बोलने पर उसे एहसास हुआ कि वह गुस्से में क्या बोल गया। "सॉरी...बस यही कह रहा था कि उसको जाने बिना तुम शादी कैसे कर सकती हो???" मृगांशी बोली, "अभी कुछ सोचा नहीं है। थोड़ा टाइम चाहिए...कुछ महीने बाद बड़े भाई की इंगेजमेंट है, तब तक देखते हैं..." धवल ने कुछ नहीं कहा। मृगांशी ने आगे भी बात जारी रखी और सब बताती रही। धवल शांत हो गया। मृगांशी उसको चुप देखकर बोली, "क्या हुआ धवल??? तुम चुप क्यों हो???" धवल बोला, "कुछ नहीं...बस तुम्हें सुन रहा था..." मृगांशी बोली, "अब क्या सुनोगे...बाय, कल मिलते हैं..." धवल को ध्यान आया कि उसका मोड़ आ चुका है। "सुनो...एक दिन ज़िन्दगी में ऐसा मोड़ आएगा और तुम मुझे छोड़कर चली जाओगी...सही बात है ना?" इतना बोलकर धवल आगे बढ़ गया। मृगांशी उसे देखती रही...आज धवल का बिहेवियर अजीब लगा! मृगांशी सोचते हुए घर पहुँची। मयूरी उसके आगे-आगे अंदर आई। "पूरे दस मिनट लेट हो!" मृगांशी शूज़ खोलकर बोली, "वो धवल बात करने लग गया था!" मयूरी बोली, "क्या कह रहा था???" मृगांशी सोफ़े पर बैठकर बोली, "बस ऐसे ही..." मयूरी पानी का गिलास देते हुए बोली, "ऐसे ही क्या???" मृगांशी खीझकर बोली, "ओहो मम्मा...ऐसा हो क्या गया उसने बात कर ली!" मयूरी बोली, "चाय या कॉफी...हर्ज कुछ नहीं है, लेकिन दुष्यंत को पसंद न हुआ तो..." मृगांशी दुष्यंत के नाम से चिढ़कर बोली, "फ़ाइनल काम नहीं हुआ है अभी...सिर्फ़ माँ ने सजेस्ट किया है..." मयूरी नाराज़गी से बोली, "मृग...जब एक बार कह दिया है तो बार-बार दोहराव ज़रूरी है???" मृगांशी अपने रूम में जाते हुए बोली, "कुछ नहीं चाहिए..." मयूरी पीछे आवाज़ देती रह गई। मृगांशी चेंज करके पानी का जग और गिलास लेकर बेड के सहारे से नीचे बैठ गई। "मना कर दो...और फ़ाइनल डिसीज़न...कह दो अभी नहीं करनी है शादी..." धवल तैश में आकर बोला, "अरे, कौन सा तुम अभी बूढ़ी हो रही हो..." "सॉरी...बस यही कह रहा था कि उसको जाने बिना तुम शादी कैसे कर सकती हो???" "सुनो...एक दिन ज़िन्दगी में ऐसा मोड़ आएगा और तुम मुझे छोड़कर चली जाओगी...सही बात है ना?" मृगांशी के दिमाग में धवल की बात गुंजायमान थी। उसकी आँखों में आँखें डालकर कही गई बात में जुनून झलक रहा था। कहीं धवल उसकी ओर झुक तो नहीं रहा है? उसकी नज़दीकियाँ दोनों के लिए मुसीबत तो नहीं बन जाएँगी? धवल को रोकना होगा...उसका शार्ट टेंपर होना बता रहा था कि वह उसके प्रति कितना पजेसिव था! अगर ये सच है तो... उसने गलत रास्ता चुन लिया है। क्रमशः*****

  • 10. आंखो में हो तुम - Chapter 10

    Words: 1330

    Estimated Reading Time: 8 min

    धवल को रोकना होगा। उसका शॉर्ट टेंपर होना बता रहा था कि वह कितना पजेसिव था! अगर यह सच है तो…

    उसने गलत रास्ता चुन लिया है!

    घुटनों के बल पर मुँह रखकर बैठी मृगांशी सोचती रही कि कल उससे बात करके सब मैटर क्लियर करने का सोचेगी। खुद की सोच पर लगाम लगाते हुए, "नहीं, कहीं मैं ही ज़्यादा सोच रही हूँ! बाय चांस रिएक्ट हो गया हो… एक-दो दिन उसका बिहेवियर देखती हूँ… फिर उसे समझा दूँगी…"

    मृगांशी ने कहा, "गुड मॉर्निंग…"

    धवल ने नज़रअंदाज़ कर दिया और उसके साथ काम करने वाले ने कहा, "हैव ए नाइस डे…"

    धवल उसे इग्नोर कर अपने काम लग गया। मृगांशी को बुरा लगा। मृगांशी भी अपने काम में लग गई, किंतु नज़र धवल पर अटकी थी।

    टी टाइम में मृगांशी ने कहा, "तुम मुझे इग्नोर क्यों कर रहे हो?"

    धवल ने कॉफी मग मुँह से लगाते हुए कहा, "तुम्हें मुझसे दूर रहना चाहिए… कल को तुम्हारे होने वाले पति को बुरा लगेगा…"

    मृगांशी ने जोर से कहा, "जस्ट शट अप…"

    सब उसे देखने लगे। मृगांशी को कल की बात याद आई और सफ़ाई देते हुए बोली, "गॉइज़, रिलेक्स… जस्ट नॉर्मल कन्वर्सेशन…"

    मृगांशी ने दबी आवाज़ में कहा, "जो तुम समझ रहे हो, वो बात नहीं है… पापा ने फ़ैसला मुझ पर छोड़ दिया है… समझो कुछ…"

    जैसे तपती ज़मीन पर बारिश की ठंडी बूँदों ने राहत पहुँचाई हो, उसी तरह धवल के चेहरे पर खुशी के भाव आए… जिसे मृगांशी ने भाँप लिया और उसका शक यकीन में बदलने लगा था।

    मृगांशी ने मयूरी को मैसेज कर निकोल के घर की तरफ़ चली गई। उसके साथ धवल भी था। मृगांशी ने धवल का इंट्रो दिया ही था कि निकोल ने फ़ाइनल ईयर का रिजल्ट आने की बात कही। तीनों अपना-अपना रिजल्ट देखने लगे। धवल का रिजल्ट ही सेवेंटी-एट के करीब था। बाकी इनके ग्रुप में नाइंटी के करीब थे।

    मृगांशी ने कहा, "तुम्हें देखकर लगा नहीं था कि इतने नंबर आ जाएँगे!" पीठ थपथपाकर बोली, "वेल डन…"

    धवल ने घूरकर देखा। निकोल ने कहा, "ओके गॉइज़… लेट्स हैव समथिंग स्वीट एंड फ़न…"

    धवल ने कहा, "श्योर…"

    निकोल अलग-अलग चॉकलेट ले आई। सबसे कॉन्फ़्रेंस पर बीच का प्रोग्राम बनाने लगी। निकोल के अलावा सबने मना कर दिया। मृगांशी और निकोल ने बीच पर प्रोग्राम बनाया।

    "सब की सब धोखेबाज़ हैं… उस दिन सब ने प्रोग्राम बनाया था और आज… डिसगस्टिंग… चारों डफ़र…"

    धवल उसके साथ चलते हुए बोला, "बस करो… सबकी जीभ कट जाएगी… खाना कैसे मैनेज करेगी…"

    मृगांशी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "कायली कई बार जा चुकी है… मेगन आलसी है इसलिए बहाना बना रही है!"

    "फिर से वही हरकत… अपनी पर आया तो गायब ही जाओगी… बाकी दोनों दोस्त तो सही हैं ना…"

    मृगांशी ने कहा, "वावो… मार्स पर दिन और रात कटेंगे…"

    धवल ने छेड़ते हुए कहा, "शादी के लिए हाँ करो तो… हनीमून मंगल पर होगा…"

    मृगांशी ने मारने के लिए हाथ उठाया, मगर बीच में ही रह गया क्योंकि धवल झटके से दूर हट गया था। "हसीना बानो!"

    मृगांशी हँसी। "सपने मत देखो… समझे…"

    धवल ने कंधे से कंधा मारते हुए कहा, "बोलो ना, मार्स के या मून के…"

    मृगांशी ने घूरकर कहा, "कुछ ज़्यादा ओपन नहीं हो रहे हो…"

    धवल मस्ती में उसके कंधे से कंधा टकराने लगा। मृगांशी ने उसे धक्का दिया तो वह साइड में लगे खजूर के पेड़ और हरी घास पर जा गिरा। मृगांशी हँसती हुई चिढ़ाती हुई बोली, "अरे रे हसीना बानो गिर गई… चोट तो नहीं लगी…"

    धवल ने मुस्कुराकर उससे हेल्प के लिए हाथ माँगा। मृगांशी ने भी हाथ आगे कर दिया, लेकिन मज़बूती से, कहीं धवल उसे हेल्प के बहाने गिरा न दे। धवल भी हाथ पकड़कर उठ खड़ा हुआ, लेकिन मृगांशी का हाथ न छोड़कर उसे कमर से पकड़कर पीछे की ओर गिर गया। मृगांशी की घबराहट में धड़कन बढ़ गई और आँखें बंद कर लीं। कुछ शब्द निकलते तब तक दोनों घास पर थे।

    उसके ऊपर लेटी मृगांशी ने आँखें खोली तो धवल आराम से दोनों हाथ सर के नीचे लगाए उसे ही देख रहा था। मृगांशी जल्दी से खड़ी होकर खफ़ा सी हो गई। "धवल! तुम पागल हो! ऐसे बैकबोन में चोट लग सकती थी… और ये हँस क्या रहे हो…"

    धवल खड़ा हुआ। "आदत है मुझे…"

    मृगांशी ने कमर पर हाथ रखते हुए भौंहें सिकोड़कर कहा, "ऐसे कितनी लड़कियों को गिराया है… हाँ… बोलो…"

    धवल ने उसकी नाक पर उंगली टच करते हुए कहा, "हिरणी एक ही मिली है… पर कॉलेज में प्रैक्टिस की है…"

    मृगांशी ने गर्दन हिलाकर आगे चल दिया। धवल पीछे आया तो मृगांशी ने बिना मुड़े कहा, "जाओ अब…"

    धवल ने जिद्दी लहजे में कहा, "नहीं, मोड़ तक चल रहा हूँ तुम्हारे साथ…"

    मृगांशी ने कहा, "यह क्या है??? कौन कहेगा कि चौबीस साल के हो… बिल्कुल बच्चों सी जिद…"

    धवल ने कहा, "रोंग… चौबीस नहीं, छब्बीस…"

    मृगांशी ने कहा, "अभी तक कॉलेज में हो… अब तक सेट हो जाना चाहिए था…"

    धवल ने कहा, "तुम ना मेरी हर बात का मज़ाक बना देती हो, इसलिए रीज़न नहीं बताता…"

    मृगांशी को मौका मिला था, उसे कैसे जाने देती… धवल को छेड़कर मज़ा भी आता था! मृगांशी ने उसकी बाजू पकड़कर कहा, "प्लीज… धवल बताओ ना… प्लीज… प्लीज…"

    धवल उसके ऐसे बोलने और बाजू पकड़ने पर खुश हुआ।

    "अच्छा सुनो… नाना-दादा के प्यार ने एफिल टावर पर चढ़ा रखा था… मजाल है किसी ने कुछ कह दे, कहना तो दूर, आँखें ही दिखा दे… पाँच साल का था तब दादाजी चल बसे थे, इसलिए दो साल लेट हो गया! और नानाजी अपने काम में बिज़ी रहते थे… एक दिन पापा घसीटकर मुझे स्कूल ले गए! उसके बाद एक महीने तक यही प्रोग्राम चला… मैं हाथ-पैर मारता रोता… लेकिन पापा तो अम्बूजा सीमेंट की तरह खड़े रहे, जैसे ऐड में सामने वाले का सिर फूटता है ना, वैसे मेरी कुटाई होती थी…" कंधे उचकाकर धवल बोला, "यही थी मेरी इमोशन से भरी कहानी…"

    मृगांशी आगे भागकर चिढ़ाया और जोर से हँसी। धवल ने एक पल देखा और हँसकर भागती हुई मृगांशी के पीछे भागा! तब तक उसके घर का मोड़ आ चुका था। धवल रुककर उसकी शरारत पर हँसा और वापिस मुड़ गया।

    मयूरी और करण दोनों उसके रिजल्ट से खुश थे। मयूरी ने मीठे में हलवा बनाया था। उनके पड़ोसी ब्रेडन, उसकी पत्नी डेज़ी और उनके दो बेटे रोनन और टिम को हलवा अच्छा लगता था। मयूरी उनको भी घर जाकर दे आई।

    बस एक यही परिवार था जो वेजिटेरियन था। डेज़ी ने मयूरी का स्वागत किया। वह घर पर अकेली थी, ब्रेडन काम पर गया था जबकि उसके दोनों बेटे खेलने गए हुए थे। मयूरी कुछ देर बात करके घर आ गई।

    मृगांशी अपने बैग में सामान डालते हुए, जिसमें ड्रेस भी थी। मयूरी उसे हिदायत पर हिदायत दे रही थी और पास खड़ा करण मुस्कुरा रहा था।

    मृगांशी ने कहा, "पापा… आज आप मम्मी को एक मिनट के लिए भी अकेला मत छोड़ना… वरना मैं आम… तब तक मुझे पता चले कि मम्मी हॉस्पिटल में एडमिट है!"

    मयूरी ने उसे घूरकर देखा, तभी करण ने मयूरी को साइड से पकड़कर कहा, "मयूरी! इतनी टेंशन मत लिया करो! दोनों बच्चे अब बड़े हो गए हैं, सेल्फ़ डिपेंड होने दो!"

    मयूरी चुपचाप करण की बात सुनती रही। मृगांशी दोनों को बाय करके निकोल के घर के लिए निकल गई। मोड़ पर आगे बाइक लिए धवल खड़ा था। मृगांशी ने अचंभित होकर कहा, "तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"

    धवल ने कहा, "तुम बाइक पर जाना चाहती थी ना, इसलिए लेकर आ गया!"

    मृगांशी ने कहा, "नहीं, मैं निकोल के साथ चली जाऊँगी!" आगे चलते हुए…

    धवल ने उसके साथ-साथ धीरे-धीरे बाइक चलाते हुए कहा, "तुम्हें नहीं लग रहा कि कुछ दिन से कटकर रह रही हो… मुझे इग्नोर कर रही हो… जब भी बात करने की कोशिश करता हूँ, किसी और से बात करने का बहाना बनाकर चली जाती हो!"

    मृगांशी ने कहा, "इसी को ओवरथिंकिंग, पजेसिवनेस कहते हैं।"

    धवल ने कहा, "वह तो अभी पता चल ही जाएगा, अगर तुम मेरे साथ चलती हो तो मुझे विश्वास हो जाएगा कि मैं गलत सोच रहा हूँ…"

    मृगांशी कशमकश में देखती रही…

    क्रमशः*****



    फोलो, लाइक, कमेंट्स 💐💐

  • 11. आंखो में हो तुम - Chapter 11

    Words: 1073

    Estimated Reading Time: 7 min

    मृगांशी कशमकश में देखती रही। वह इतने दिनों से धवल को परोक्ष रूप से अनदेखा कर रही थी, कोई न कोई बहाना बनाकर। लेकिन धवल ने आज उसकी पोल खोल दी, इसलिए वह उसे कुछ कह न सकी। "धवल, ऐसा कुछ नहीं है… तुम बहुत सोचते हो," उसने टालना चाहा। "कम ऑन, बच्चा समझा है पाँच साल का? बनावटी बातों का झुनझुना थमा दोगी और मैं मान जाऊँगा?" मृगांशी ने कहा, "नहीं…" "नहीं, तो आ जाओ, बैठो पीछे… इतना तो कर सकता हूँ। वैसे, बाइक लेने का मुहूर्त निकल गया है… कैंसिल कर दी है क्या?" मृगांशी पीछे बैठते हुए बोली, "हाँ… बड़े भाई की एंगेजमेंट है, तो इंडिया जाना पड़ सकता है… फिलहाल क्लियर नहीं है!" धवल ने कंधे उचकाते हुए कहा, "कोई बात नहीं… लेकिन यार, मैं अकेला हो जाऊँगा…" "तुम भी साथ चल लेना…" "बाइक किसी और को दे दूँ…" "हाँ… मगर… बाइक रोको…" "लेकिन क्यों?" "धवल, प्लीज…" धवल मृगांशी के 'प्लीज' पर इतना जल्दी मेल्ट नहीं होता जितना जल्दी चॉकलेट पिघलती है। बाइक रोककर, मृगांशी ने धवल को नीचे उतरने को कहा। धवल उतरा, तो अपना बैग देकर खुद चलाने के लिए आगे बैठ गई! निकोल के घर पहुँचने पर, धवल को जाने के लिए बोला गया, मगर निकोल ने उसे साथ चलने को कहा। मयूरी और करण दोनों अकेले थे। मयूरी काम से जल्दी फ्री हो गई। करण पास आकर बोला, "इतनी टेंशन मत लिया करो!" "हुकुम… अपने आप हो जाती है!" करण ने मयूरी को अपने सामने घुमाते हुए कहा, "हमारी हुकुम को टेंशन में देखकर हम टेंशन में आ जाते हैं!" इतना बोलकर, करण ने मयूरी के होठों को चूमा। मयूरी ने आँखें तरेरते हुए कहा, "हुकुम…" करण ने मयूरी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "बोलो हुकुम…" "अरे मृगांशी, तुम वापस आ गई…" मयूरी ने झट से मुड़कर देखा, वहाँ कोई नहीं था। मयूरी खफा सी होकर बेड पर बैठते हुए बोली, "आज फिर झूठ…" करण भी दूसरी साइड से आकर बेड पर बैठ गया और मयूरी को सीने से लगाते हुए सोचने लगा, "पहली बार कब…" मयूरी ने कहा, "आपको सब पता है…" फ्लैशबैक करण मयूरी को गोद में उठाकर शामियाने में ले आया और फूलों से सजी सेज पर बैठाकर उसका घूँघट उठाया। माथे से लेकर अधरों तक अपने प्रेम का अंकन कर दिया। नाव पर चलता संगीत उनके मधुर मिलन की कहानी कह रहा था। (AMBHT-35) करण और मयूरी देर रात अपने कमरे में आए थे, तो सुबह उठने में लेट हो गए थे। लैंडलाइन फ़ोन की घंटी बजी, तो नींद में हाथ मारकर उठाया गया। "हैलो…" "कुंवर साहब, मयूरी को हवेली ले आइए…" छाया ने कहा। बाहों में सोई मयूरी की भी आँख खुल गई। करण ने मयूरी को देखते हुए कहा, "चाची साहबा, हुकुम को बुखार हो गया है! वो नहीं आएगी…" करण का झूठ सुनकर मयूरी का मुँह खुला का खुला रह गया। छाया ने घूँघट की आड़ में कहा, "कौन सा कुंवर साहब?" करण मुस्कुराकर बोला, "चाची साहबा, हुकुम… आप समझ जाइए… वहाँ आप सब संभाल लेना…" छाया ने चेहरा सीरियस करते हुए फ़ोन रख दिया। सीमा के पूछने पर मयूरी के बुखार का बहाना बना दिया गया। मयूरी घूरते हुए बोली, "आप कब से झूठ बोलने लगे…" "जब से मासूम सी हुकुम मिली है…" इतना कहकर करण मयूरी पर झुक गया। मयूरी भी करण में खो गई। शाम को घर आने पर सबने उसकी तबीयत का पूछा, इस पर मयूरी झेंप गई थी। करण को नीचा न देखना पड़े, इस बात का खास ध्यान रखकर उसने ठीक होने का हवाला दिया। गंगा देवी ने खास अपने पास बुलाकर मयूरी के लिए बनाया गया काढ़ा दिया था। मयूरी बेचारी सब को हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए उनके पास आई और करण की वजह से कड़वा काढ़ा पीने पर मजबूर हो गई। गंगादेवी तो वैसे भी मयूरी पर मंत्रमुग्ध थीं। उसकी मासूमियत देखकर और भी कायल हो जाती थीं… करण के साथ मयूरी के आने पर सीमा जी ने अच्छे से नसीहत दी थी और घर आने पर गोद में बिठाकर उसकी गोद भरी हुई थी। मयूरी चुपचाप उनकी बातों को सुनकर हाँ में गर्दन हिलाती रही। नई ज़मीं… नया देश… नए लोग… थोड़ा एडजस्ट करने में मयूरी को दिक्कत हुई थी, खानपान भी तो शुद्ध नहीं था! करण ऑफिस से आया, तो मयूरी की तबीयत ठीक नहीं थी। उसकी वोमिटिंग रुकने का नाम नहीं ले रही थी। दूसरे फ्लैट में बन रहे नॉनवेज से मयूरी को साँस लेने में दिक्कत हो रही थी! करण, जो अभी कुछ महीने पहले ही फ्लैट में आया था, उसे कोफ्त होने लगी! उसने कंपनी से खुद के घर के लिए अप्लाई कर दिया। नए घर का किस्सा याद कर दोनों मुस्कुराए। एक दिन करण ऑफिस से लौटा, तभी मयूरी मुँह पर हाथ रखकर वॉशरूम की ओर भागी। करण अपना बैग सोफ़े पर फेंककर कोट ढीला करते हुए मयूरी के पीछे आया। मयूरी को सहारा दिया। "मयूरी, क्या हुआ?" "पता नहीं… यहाँ तो दूसरे खाने की कोई समस्या नहीं है, फिर भी…" "फ़ूड पॉइज़निंग हो गई होगी… चलो डॉक्टर के पास…" परेशान सा करण डॉक्टर के पास पहुँचा, तो डॉक्टर की बात सुनकर उसके चेहरे पर खुशी और हैरानी के भाव उमड़ आए! डॉक्टर की बात उसके कानों में गूंज रही थी! "मे बी शी इज़ प्रेग्नेंट… कम बैक टुमारो… विल नाउ ऑन टेस्टिंग…" करण ने मयूरी को गले लगा लिया! करण ने मयूरी का ध्यान रखने के लिए सीमा जी को बुलाया था! वैसे तो कोई प्रॉब्लम नहीं थी, लेकिन करण मयूरी के मामले में रिस्क नहीं लेना चाहता था! इन सबके बीच सीमा जी और मयूरी की बॉन्डिंग अच्छी हो गई थी! मयूरी के कहने पर करण भी नॉर्मल हो गया था! मृगांशी के दो साल बाद वेदांत उनकी ज़िंदगी में आया था! करण और मयूरी ने ज़िंदगी का एक हिस्सा हाँसी-खुशी से गुज़ारा था! जिसे वो दोनों आज एकांत पाकर याद कर रहे थे! मृगांशी की जीन्स देख निकोल ने मुँह बनाते हुए कहा, "गुड… बीच पर ये पहनकर जाएगी?" मृगांशी मुस्कुराकर बोली, "दो मिनट…" बैग से ड्रेस निकालकर चेंज करके आई, तो धवल उसे देखता रह गया! लाइट पिंक कलर की शॉर्ट फ़्रॉक में मेहरून कलर के हार्ट बने हुए थे! धवल ने आज इस तरह की ड्रेस पहली बार देखी थी! क्रमशः*****

  • 12. आंखो में हो तुम - Chapter 12

    Words: 1356

    Estimated Reading Time: 9 min

    बैग से ड्रेस निकालकर बदलकर आई तो धवल उसे देखता रह गया! लाइट पिंक कलर की शॉर्ट फ्रॉक में मेहरून कलर के हार्ट बने हुए थे! धवल ने आज इस तरह की ड्रेस पहली बार देखी थी! इससे पहले रात में उसके घर पर रेड फ्लावर, ग्रीन लीव्स वाले व्हाइट कलर के क्रॉप टॉप और शॉर्ट्स में देखा था! अनजाने में ही उसकी खुली कमर पर हाथ चला गया था, जिसके बाद वह उछली थी! धवल ने मृगांशी की ओर वाव का साइन करते हुए कहा, "कमाल का है..." मृगांशी खीझकर बोली, "नहीं...मेरा है..." धवल नासमझ सा देखने लगा! मृगांशी हल्के हाथ से मारकर बोली, "कमाल गर्ल्स ड्रेस नहीं पहनता...हसीना बानो..." धवल ने उसके इस अंदाज पर हंसकर गर्दन हिलाई! निकोल टूटी-सी हिंदी में बोली, "हसीना बानो..." निकोल को हिंदी मृगांशी ने सिखाई थी...उसे रुचि भी थी...कई शब्दों में अंग्रेजी टच भी आता था, जैसे अभी... धवल ने मृगांशी को घूरा...मृगांशी ने हंसकर चिढ़ाया... "उस दिन क्यों नहीं बताया कि उसे हिंदी समझ आती है...समझ क्या, बोलना भी जानती है!" मृगांशी मुस्कुराकर उसे अपना और निकोल का बैग देकर बोली, "ये एक्सप्रेशन देखने को नहीं मिलते..." मृगांशी निकोल के पीछे जा बैठी तो धवल हक्का-बक्का देखता रह गया! मृगांशी ने पीछे मुड़कर देखा और हंस दी! बाइक पर निकोल के साथ मस्ती करती मृगांशी खुश लग रही थी। साउथ बीच को रात में उसकी चहल-पहल भरी जगहों के नजारों के लिए जाना जाता है! दिन में भी हलचल थी। यहाँ कई सिलेब्रिटी शेफ़ के भोजनालय थे जिनसे खाने की स्मेल चारों तरफ़ फैली हुई थी! लिंकन रोड मॉल में कई चेन स्टोर और इंडी कपड़ों की दुकानें (आम दुकानों से हटकर) वहाँ की रौनक बढ़ा रही थीं! ओशियन ड्राइव को उसकी संरक्षित की गई आर्ट डेको शैली की इमारतों के लिए जाना जाता है। यहाँ के खुले में बने कैफ़े पर बैठे लोग आस-पास की साफ़ दिखती चीज़ों और माहौल का आनंद ले रहे थे! वूल्फ़सोनियन-फ़ियू संग्रहालय भी है जिसमें आधुनिक कला और चीज़ें देखने को मिलती हैं! रंगीन मिजाज के लोगों के लिए बार और क्लब भी थे! नाइट लाइफ़ और पार्टीज़ के लोगों के लिए साउथ बीच और शांत वातावरण ढूँढने वालों के लिए नॉर्थ बीच उपयुक्त था! मियामी साउथ बीच पर भीड़ होने लगी थी। सैलानी रूटीन के उबाऊपन को दूर करने के लिए संडे को ही आते थे! मृगांशी ने भी संडे को ही अपनी लाइफ़ का बेस्ट डे बनाने का सोचा था जो आज पूरा हो रहा था! करण और मयूरी ने कभी आने ही नहीं दिया! उसके सब दोस्त बीच का गुणगान करते थे तो उसका मन भी ललचा उठता! धूप होने की वजह से तीनों पहले बॉटनिकल गार्डन घूमने गए जहाँ की हरियाली सुकून पैदा कर रही थी! छोटे-छोटे लकड़ी के पुल...बैठने के लिए सुंदर लकड़ी के सोफ़े टाइप में चेयर...एक बड़ा सा तालाब जो प्राकृतिक पत्थर से बनाए गए नाले से पानी से भर रहा था! एक सफ़ेद रंग का घोड़ा जो देखने में असली लग रहा था! तालाब में लाल-ऑरेंज रंग की मछलियाँ...एक पत्थर पर साँप को खाते हुए बाज़ बने हुए थे! जिस पर पीस (शांति) लिखा हुआ था! एक लम्बा हाथ बना हुआ था जिसकी कलाई पर कुछ लोग अद्भुत नक्काशी करके बनाए गए थे! मियामी बीच पर सबसे पहले हरी घास और विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे लगे थे जो ऊपर से देखने पर एक सीधी लाइन में दिखते हैं, उसके आगे सफ़ेद रेत...उस सफ़ेद रेत पर बीच ड्रेस में मस्ती करती महिलाएँ...पुरुष भी थे...कहीं बच्चे... पश्चिम सभ्यता है ही ऐसी जहाँ सब अपने में मस्त रहते हैं! बीच पर भी सब अपने-अपने में मग्न थे! रेत पर बीच लाउंज चेयर लगी थी...कुछ अंडर अम्ब्रेला थी! लकड़ी के कुछ होटल जो विभिन्न डिज़ाइन से बने थे और कलरफुल किए गए थे! जिन पर खाने-पीने का सामान उपलब्ध था! धवल ने मृगांशी को छेड़ते हुए कहा, "यहाँ तुम इन सबके बीच अनफिट हो..." वह धवल को हैरानी से देखने लगी तो धवल ने बीच पर सबकी पिकनिक ड्रेस की ओर इशारा किया! मृगांशी हैरत से फिर मुँह बनाकर बोली, "सच में मुझे उस ड्रेस में होना चाहिए...क्यों??? निकोल भी टीशर्ट और शॉर्ट्स में है..." धवल उसके जवाब पर हँस दिया! मृगांशी बोली, "तुम उन सबकी तरफ़ देखो मत..." "सिर्फ़ तुम्हें देखता रहूँ...है ना..." धवल ने कहा। मृगांशी धवल को इग्नोर करके निकोल का हाथ पकड़कर समुंदर के पानी का मज़ा लेने लगी! धवल वहीं सामने टीशर्ट निकालकर लाउंज चेयर पर सन बाथ लेने लगा! कुछ देर पानी में मस्ती करने के बाद रेत से खेलने लगी! दोनों को भूख लगी तो कुछ खाने-पीने के लिए धवल के पास आईं और कोल्ड ड्रिंक के साथ स्नैक्स लिए! इसी बीच मृगांशी का फ़ोन रिंग हुआ। निकोल की पीठ पर एक थप्पड़ रसीद करके मृगांशी बोली, "तेरा फ़ोन कहाँ है???" निकोल अफ़सोस से सर हिलाकर बोली, "बैग में है, लगता है स्विच ऑफ़ है...और चार्ज भी नहीं है..." मृगांशी मारने को हुई लेकिन बंद मुट्ठी बंद करके दाँत पीसकर बोली, "तेरा हमेशा का यही रहता है तभी आंटी मुझे हमेशा बोलती है उसका फ़ोन देख लेना और आज भी वही हुआ! ले, उनसे बात कर, उनका फ़ोन है!" कुछ देर बात करने के बाद निकोल अपना बैग में बिखरा सामान डालने लगी। इसके साथ ही मृगांशी ने उसे ज़रूरत के अनुसार रखने के लिए कहा लेकिन हैरान सी निकोल से पूछने लगी कि "हुआ क्या है???" निकोल परेशान सी बोली, "नानी कई दिनों से बीमार चल रही है। आज उन्हें आईसीयू में ले जाया गया है! मम्मी को लेकर जाना है! तुम दोनों अपना ख्याल रखना और टाइम से घर चली जाना!" निकोल ने धवल की ओर मुड़कर कहा, "इसका ध्यान तुम रखना, तुम्हारी ज़िम्मेदारी है! टेक केयर।" मृगांशी का मूड खराब हो चला था! कुछ देर पहले ही दोनों ने तय किया था कि लेट नाइट में जाएँगे...सनसेट का अद्भुत नज़ारा अपनी पिक के साथ कैद करेगी! जो सोचते हैं वो कहाँ हो पाता है! निकोल को बाय करके उदास सी चेयर पर बैठ गई! धवल ने कहा, "एंजॉय करो ना...ये सब चलता रहता है..." घुटनों के बल रखी हथेली पर ठुड्डी रखकर बोली, "मूड ऑफ़ हो गया!" धवल ने हाथ पकड़कर उसे समुंदर की लहरों के बीच ले आया! "बोलो स्कीइंग करनी है...प्राइवेट याच...या क्रूज़ पर...कहाँ चलोगी..." मृगांशी उलझन में थी कि धवल ने फ़्लाइ बोर्ड गेम खेलने उसे ले गया! मृगांशी बोली, "धवल क्या कर रहे हो..." "फ़्लाइ बोर्ड गेम...देखो तीन से सात मिनट की प्रैक्टिस होगी उसके बाद अपने-आप सीख जाओगी..." "नहीं धवल...ऊँचाई वाला गेम है...मुझे डर लगता है!" "ज़्यादा ऊँचा नहीं है हिरणी...ट्राई करो...मैं भी हूँ साथ में...अच्छा लगेगा आज़ाद परिंदे की तरह उड़कर..." मृगांशी ने धवल के कहने पर हाँ कह दी और सब तरह से तैयार होने के बाद धवल ने उसका हाथ पकड़ा और जेट स्की वाले ने हवा में हल्का सा उछाल दिया! धवल का हाथ पकड़े हुए मृगांशी खुद को सेफ़ महसूस कर रही थी! धवल ने उसे इशारे से पूछा तो वह खुश हुई! अभी ट्रेनिंग ही चल रही थी कि वह हल्का सा ऊपर हुई तो धवल ने उसका हाथ छोड़ दिया! गिरने के डर से घबराहट में मृगांशी चिल्लाई, "धवल नीचे उतारो...प्लीज़ धवल रोको इसे...प्लीज़..." धवल ने रोकने का इशारा किया और फटाफट उसके पास आया और देखा डर से उसकी आँखों में आँसू आ गए थे! धवल ने उसे गले लगाते हुए कहा, "रिलेक्स..." मृगांशी ने भी काँपते हाथों से उसकी बाज़ू कसकर पकड़ ली! कुछ मिनट में रिलेक्स हुई तो धवल ने पानी दिया! उसके बाद धवल ने पानी के किसी भी गेम का नाम नहीं लिया! मृगांशी सनसेट के साथ पिक ली...साथ में धवल भी था! बस वहीं पानी-रेत के साथ मस्ती करते रहे... रात घिरने लगी थी! धवल उसे आकाश मियामी बीच होटल ले आया! बाइक चलाते हुए मृगांशी खुश हुई! क्रमशः*****

  • 13. आंखो में हो तुम - Chapter 13

    Words: 1374

    Estimated Reading Time: 9 min

    रात घिरने लगी थी! धवल उसे आकाश मियामी बीच होटल ले आया था। बाइक चलाते हुए मृगांशी खुश हुई। इस होटल में इंडियन फूड मिलता है, इसलिए वहीं चला आया था। वहाँ से खाना खाने के बाद मेन रोड पर चलते हुए चमक देखने लगी! "धवल, रात में कितना सुंदर लग रहा है... रंगीन नज़ारा..." "ह्म्म्म्म..." "तुम पहले भी आए हो?" "हाँ, दो-तीन बार या उससे ज़्यादा भी..." "तभी तुम्हें सब मालूम है..." धवल कुछ नहीं बोला, उसके पीछे चलता रहा। मृगांशी एक बार के आगे रुक गई। धवल अचंभित हो उसे देखने लगा। धवल ने हाथ पकड़कर कहा, "अंदर चलें..." मृगांशी ने आँखें तरेर कर कहा, "नो..." "फिर यहाँ रुकी क्यों...?" "शादी के बाद हसबैंड के साथ आना है... कुछ गलत होने का अफ़सोस ना रहे..." "अगर हसबैंड ने ख्वाहिश पूरी ना की तो? ... चाहो तो ट्राई कर सकती हो... मैं हूँ साथ में..." "लड़की के होश खो देने से... लड़कों की नियत बदलने लगती है... और तुम जो अभी कह रहे हो... डिसऑनेस्ट हुए तो..." "आई स्वेअर... ऐसा कुछ नहीं होगा... जानता हूँ इंडियन लड़कियों के लिए अपनी इज़्ज़त प्यारी होती है... और लेकिन मैंने अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया है... समझी?" मृगांशी कशमकश में आ गई। धवल ने कहा, "चलें।" मृगांशी ने कहा, "सिर्फ़ एक गिलास..." धवल हँसकर बोला, "तुम्हारे लिए एक गिलास बहुत है..." बार का माहौल किसी से छिपा नहीं था। जिस पर पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव हो, तो रंगीनियत खुद-ब-खुद सरेआम हो जाती है! मृगांशी ने एक नज़र देखा और काउंटर की तरफ़ बढ़ गई। धवल भी उसके पीछे आया। छोटा सा वाइन गिलास देखकर बोली, "ये क्या? बड़ा गिलास दो..." धवल ने टपली मारकर कहा, "लेमन जूस नहीं है..." धवल सामने की वाइन रैक पर नज़र मार रहा था कि वेटर ने बड़ा गिलास आधा कर दिया। वेटर के सोडा वाटर मिलाने से पहले ही गटक गई और अजीब सा मुँह बनाकर बोली, "धवल, कितना तीखा सा... कड़वा सा है ये..." धवल ने घूरकर वेटर से कहा, "तुमसे कहा था ना वाटर और आइस ज़्यादा डालना..." वेटर ने कहा, "इन्होंने कुछ करने ही नहीं दिया..." "आइस और वाटर मिक्स एक ओर..." वेटर ने गिलास मृगांशी के आगे कर दिया। मृगांशी ने कहा, "ये कुछ कम था..." धवल ने कहा, "अब चलो..." मृगांशी ने कहा, "एक और..." "नो... नेवर..." मृगांशी ने उसकी बाँह पकड़कर कहा, "प्लीज... प्लीज... प्लीज..." धवल नाराज़गी से बोला, "एक तो तुम ये 'प्लीज' मत बोला करो... और तुम फ़ायदा उठा रही हो... कसम देने..." मृगांशी ने वेटर से इशारा किया, "वन मोर..." धवल ने थोड़ा देने का इशारा किया तो मृगांशी ने घूरा। धवल ने कहा, "चढ़ने के बाद तुम्हें संभालेगा कौन..." "तुम... तुमने कसम दी है..." धवल ने पे किया। तब तक मृगांशी बाहर आ चुकी थी और एक जगह खड़ी हो गई। धवल के आते ही बोली, "ये क्या है? नशा कहाँ हो रहा है... मुझे तो चक्कर आ रहे हैं... या मेरे मज़ाक कर रहे हो... इधर-उधर हिलने का..." "रिलेक्स..." धवल ने उसका हाथ पकड़कर चलने लगा। मृगांशी को धरती घूमती हुई लग रही थी। उसने धवल की बाँह पकड़कर उसके कंधे पर सिर रख लिया। "धवल, धरती घूमती है... आज पता चल गया है... साइंटिस्ट की खोज सही है कि धरती घूमती है..." मृगांशी को नशा हो रहा था। ट्रैफ़िक रश बढ़ गया था, इसलिए वह मृगांशी को थामे आकाश बीच मियामी की ओर जा रहा था जहाँ उसकी बाइक पार्क थी। मृगांशी को समझाकर फ़टाफ़ट बाइक लेने गया। आया तब तक भीगी मृगांशी को कुछ लड़कों ने घेर रखा था। मृगांशी हवा में हाथ मारकर उन्हें दूर रहने के लिए कह रही थी। छोटे बच्चे की तरह रोती हुई बोली, "मृगांशी... धवल कहाँ हो तुम? धवल प्लीज़... आ जाओ..." धवल ने बाइक की स्पीड बढ़ाकर एक को बाइक की टक्कर से ही गिरा दिया। मृगांशी रोते हुए धवल की ओर बढ़कर गले लग गई। उनमें से एक ने कहा, "हू आर यू...?" "शी इज़ माई वाइफ़... एंड इट्स अ क्राइम टू टीज़ माई वाइफ़। कॉल द पुलिस..." पास खड़े लड़के को मुक्का मारकर गुस्से में जोर से चिल्लाकर कहा। वो लड़के भाग गए थे। दिन होता तो नहीं जाते, इस वक़्त पुलिस की गश्त बढ़ जाती है और रुक-रुक कर पुलिस बाइक का सायरन सुनाई दे रहा था। धवल जल्दी आ जाता, मगर मृगांशी के वाइब्रेंट होते मोबाइल पर उसकी मम्मी की कॉल देखकर मैसेज टाइप करने लगा था। मृगांशी छोटे बच्चे की तरह सुबक कर बोली, "वो बहुत बुरे हैं, धवल..." धवल ने बाहों में भरकर कहा, "कुछ नहीं हुआ है, मैंने सबको मारकर भगा दिया है... देखो कोई नहीं है..." मृगांशी ने गर्दन मोड़कर देखा, कोई नहीं था। "धवल, तुम सबसे अच्छे हो..." धवल ने कहा, "चलो..." मृगांशी ने गर्दन हिलाई। धवल आगे चला ही था कि फिर से रंग-बिरंगे फाउंटेन के नीचे खड़ी होकर झूमने लगी। धवल ने पीछे मुड़कर देखा, मृगांशी फाउंटेन के नीचे खड़ी नाच रही है। धवल को गुस्सा आया, परन्तु काबू में कर उसके पास आया। हाथ पकड़कर साइड में ले आया और आँखों के आगे आए बाल हटाकर बोला, "मैं तुम्हें अच्छा लगता हूँ ना..." मृगांशी ने बच्चे की तरह जल्दी-जल्दी गर्दन हिलाई! "जल्दी से बाइक पर मेरे पीछे बैठो... घर चलकर चॉकलेट मिलेगी!" मृगांशी का हाथ पकड़कर ले आया और मृगांशी गाल चूमकर उसके पीछे बैठ गई तो धवल ने उसे कसकर पकड़ने को कहा। मृगांशी ने उसके सीने पर हाथ बाँधकर पीठ पर सिर लगाकर आँखें बंद कर लीं। सुबह आँख खुली तो अंगड़ाई लेती मृगांशी पेट पर इतना वज़न देख हैरान हुई। साइड में किसी के होने का एहसास हुआ तो झट से गर्दन घुमाई और चेहरा न देख पाने के कारण हड़बड़ाहट में उठी और चेहरा देखा तो धवल था! "धवल, उठो... कुंभकर्ण के वंशज... हम कहाँ और..." नींद में धवल ने कहा, "मत मारो यार... सोने दो... और मेरे रूम पर हो!" मृगांशी का ध्यान पहनी बड़ी सी सफ़ेद शर्ट पर गया। "मेरी ड्रेस तुमने चेंज की? और तुम मेरे साथ..." साइड में उल्टा लेटा धवल होश में आया, "तुम्हें क्या लगता है!" मृगांशी ख़ासी नाराज़ होकर कुशन से मारने लगी, "धवल तुम ना..." धवल उसके बराबर बेड पर घुटनों के बल खड़ा हो उसके दोनों हाथ पकड़कर बोला, "एलेक्सा, खामोशियाँ..." कुछ पल धवल को देखती रही! खामोशियाँ… तेरी मेरी खामोशियाँ खामोशियाँ… लिपटी हुई खामोशियाँ नदिया का पानी भी खामोश बहता यहाँ खिली चांदनी में छिपी लाख खामोशियाँ "धवल, तुम्हें गाने की पड़ी है... और यहाँ..." धवल ने कमर में हाथ डालकर करीब किया और होंठों पर उंगली रख दी! बारिश की बूंदों की होती कहाँ है जुबां सुलगते दिलों में है खामोश उठता धुआँ खामोशियाँ आकाश हैं तुम उड़ने तो आओ ज़रा खामोशियाँ एहसास है तुम्हें महसूस होती है क्या बेकरार है बात करने को कहने दो इनको ज़रा… हाँ… न जाने कितनी देर उसकी आँखों में देखती रही... आज उसने पहली बार उसे करीब से देखा था! आर्मी कट हेयरस्टाइल, बीयर्ड लुक से क्लीन शेव... बिल्ली के जैसी चमकती भूरी आँखें... सिंगल डायमंड ईयरिंग्स एक कान में... हीरो की तरह लग रहा था! उसके सीने पर रखा हाथ उसकी धड़कनों को महसूस कर रही थी! खामोशियाँ… तेरी मेरी खामोशियाँ खामोशियाँ… लिपटी हुई खामोशियाँ क्या उस गली में कभी तेरा जाना हुआ जहाँ से ज़माने को गुज़रे ज़माना हुआ मेरा समय तो वहीं पे है ठहरा हुआ बताऊँ तुम्हें क्या मेरे साथ क्या क्या हुआ एक तरह से उसमें खोकर रह गई! धवल मृगांशी को इस तरह देख बहकने लगा था! उसके उड़ते बाल, खोई आँखें... उसकी धड़कनें लय बदलने पर मजबूर हो गईं! हम्म… खामोशियाँ एक साज़ है तुम धुन कोई लाओ ज़रा खामोशियाँ अल्फ़ाज़ हैं कभी आ गुनगुना ले ज़रा बेकरार हैं बात करने को कहने दो इनको ज़रा… हाँ…खामोशियाँ आवाज़ हैं तुम सुनने तो आओ कभी छूकर तुम्हें खिल जाएंगी घर इनको बुलाओ कभी बेकरार हैं बात करने को कहने दो इनको ज़रा… खामोशियाँ… तेरी मेरी खामोशियाँ खामोशियाँ… लिपटी हुई खामोशियाँ एक दूसरे में खोये दोनों की साँसें रुक गई थीं! धवल मृगांशी को खोया देख बोला, "आँखों में हो तुम।" मृगांशी होश में आई तब तक धवल ने उसके बालों में उंगलियाँ फँसाकर करीब कर लिया था! मृगांशी ने चेहरा फेरकर काँपती आवाज़ में कहा, "धवल..." क्रमशः*****

  • 14. आंखो में हो तुम - Chapter 14

    Words: 1105

    Estimated Reading Time: 7 min

    मृगांशी होश में आई, तब तक धवल ने उसके बालों में उंगलियां फंसाकर उसे करीब कर लिया था! मृगांशी ने चेहरा फेर कर कांपती आवाज़ में कहा, "धवल..." "धवल, तुमने ऐसा कुछ नहीं किया है..." "सारी हदें टूट चुकी हैं, गई रात में..." मृगांशी के जबड़े कस गए। उसे मालूम था कि धवल की नज़रें उस पर जमी हुई थीं! मृगांशी धवल का हाथ अपनी कमर से हटाते हुए बोली, "धवल, तुमने कसम खाई थी, फिर भी!" "अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। तुमने कहा था कि पति हो तो... मैं पति बनने को तैयार हूँ!" मृगांशी ने उसकी बात सुनकर गर्दन घुमाई; उसके होठ धवल के गाल पर आ ठहरे! मृगांशी के दिल में अजीब सी हलचल मच गई! मृगांशी दूर हटने की कोशिश लगातार कर रही थी! धवल की मजबूत गिरफ्त के आगे उसके हौसले पस्त थे! धवल ने चेहरा घुमाया; उसके अधर मृगांशी के अधरों से स्पर्श कर रहे थे! मृगांशी को उसकी आँखों में एक कशिश दिखाई दी! धवल उसे सीधा उठाकर बिस्तर पर ले गया! मृगांशी का दिमाग उसे धवल से दूर रहने को कह रहा था, जबकि दिल के हाथों मजबूर होकर वह चली गई थी! अहसासों का ज्वालामुखी फूट चुका था! धवल खुद को रोक नहीं पा रहा था; वह उसके होठों को गिरफ्त में लेने ही वाला था कि मृगांशी ने चेहरा घुमा लिया! धवल के होठ मृगांशी की कॉलर बोन पर आ गए! करीबी से साँसें तेज हो गई थीं! जज़्बातों को जाहिर करने के खेल में दोनों खुद को भूलने ही लगे थे कि मृगांशी ने आँखें खोलीं; उसके मोबाइल की फ़्लैश लाइट ऑन थी! 'मम्मा' नाम चमक रहा था! "धवल, मम्मा..." धवल एकदम से दूर हो गया! मृगांशी खुद को संभालते हुए मयूरी को फ़ोन मिलाया! "तुम अभी तक निकोल के घर से नहीं निकली हो क्या? और निकोल का नंबर क्यों नहीं लग रहा है?" मयूरी की बात सुनकर वह चौंकी, "वो... वो... मम्मा अभी निकल रही हूँ, कुछ मिनट में... आकर सब बताती हूँ!" इतना कहकर उसने फ़ोन रख दिया और गहरी साँस लेकर धवल की ओर देखने लगी! जो कि दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढके, घुटनों के पास बैठा था। वह उसके पास आकर बैठी, "धवल, कह दो झूठ है।" बिना भाव के चेहरे से उसने कहा, "मेरे कहने से सच झूठ हो जाता है तो मैं बोल दूँगा, लेकिन इस दिल का क्या करूँ... जल्दी करो, मेरी शर्ट वापस दो, मेरे पास एक ही है... सब कपड़े लॉन्ड्री में गए हैं!" मृगांशी नम आँखों से हैरत से देखती हुई कपड़े बदलने के लिए चली गई! बाहर आई तो धवल टी-शर्ट पहनकर तैयार खड़ा था! उसकी लाल आँखें देखकर उसे बुरा लगा। मृगांशी आगे बढ़ गई! "चलो, घर तक छोड़ दूँ..." "कोई ज़रूरत नहीं है..." आवाज़ में गुस्सा था! "तुम ऐसे रिएक्ट कर रही हो जैसे सारा कसूर मेरा है..." मृगांशी ने मुड़कर गुस्से में देखा, "तुम पास आई थीं, सब तुमने शुरू किया था... मैं बेचारा शरीफ़ इंसान डिसऑनेस्ट हो गया!" उसने 'डिसऑनेस्ट' शब्द पर ज़ोर दिया! मृगांशी, जो कि जाने के लिए मुड़ चुकी थी, वापस धवल के पास आकर उसका गला दबाते हुए बोली, "धवल, चुप रहो! कुछ नहीं सुनना है मुझे..." धवल ने जल्दी से उसके हाथ पकड़ कर उसे गले लगा लिया! मृगांशी एक बार फिर हैरत के सागर में गोता लगा गई! मृगांशी के आँसू उसकी टी-शर्ट भीगो गए! धवल ने कहा, "कुछ नहीं हुआ है... बस मज़े ले रहा था!" मृगांशी ने पीठ पर मुक्का मारा तो धवल जानबूझकर चिल्लाया! मृगांशी आँसू साफ़ करते हुए बोली, "हसीना बानो..." मृगांशी आगे चली तो धवल ने रोका, "मुझे नहीं पता तुम मेरे बारे में क्या सोचती हो, क्या नहीं! बट रियली आई लव यू... वेट करूँगा... तुम्हारे जवाब का... हाँ या ना कुछ भी हो..." कहकर उसे कसकर गले लगा लिया! मृगांशी को हैरत का एक झटका लगा! "लेकिन धवल..." मृगांशी बेचैनियों से घिर गई थी! "लोरी सुनी थी और पैर दबवाए थे... मुझे मजबूर होकर तुम्हारी सेवा में प्रस्तुत होना पड़ा... और जाकर मैसेज चेक कर लेना! पता चल जाएगा कि मैंने आंटी को क्या मैसेज किया था!" धवल मृगांशी के डीपली किस करने की बात को छिपा गया था। वह खुद से आगे बढ़ी थी और यह जानकर वह गिल्ट में रहती थी... मृगांशी घर पहुँची तो मयूरी उसे देख चिंतामुक्त हो गई और उसके ट्रिप के बारे में पूछने लगी! करण ऑफ़िस जा चुका था! मयूरी ने कहा, "निकोल का फ़ोन नहीं लग रहा था... फिर से घर भूल गई थी या चार्ज नहीं था..." "मम्मा, आपको उसका पता नहीं है क्या??? उसकी नानी सीरियस है... इसके लिए भी उसकी मम्मी का फ़ोन मेरे पास आया था!" मृगांशी ऊपर जाते हुए मैसेज चेक कर रही थी कि धवल का लिखा मैसेज पढ़ा... "अच्छा, फिर निकोल चली गई थी तो उसके घर तुम अकेली थीं??? डर नहीं लगा..." "नहीं... नहाकर आती हूँ... अच्छा सा नाश्ता तैयार रखना..." मयूरी किचन की ओर बढ़ते हुए बोली, "खुद भी बनाना सीख लो, काम आएगा..." कोई जवाब न आता देखकर उसने कहा, "ये लड़की कब सीखेगी... पता नहीं!" मृगांशी शॉवर के नीचे खड़ी धवल के बारे में सोच रही थी! "क्या सच में इतना इनोसेंट है... नहीं... इतना जल्दी नहीं, विश्वास नहीं... जानती ही कितना हूँ... कर्ज़ में डूबा है कहीं, मतलब निकालने के लिए तो नहीं... फ़्रॉड हो! कहीं एक गलत कदम... ज़िंदगी खराब कर दे!" धवल के फ़ोन पर उसके दोस्त बात कर रहे थे! "धवल, तेरे नानू को बोल दूँ... तू कहे तो राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी है... अरे इतनी प्रॉपर्टीज़ का क्या करेंगे... बताना... कॉलेज... स्कूल... मेडिकल कॉलेज, जमीन-जायदाद और तो और पुरानी हवेली... दिल्ली में विला... तुम्हारे दादा का काउंट किया ही नहीं..." धवल ने कहा, "बस कर, सब किस्मत में लिखा होता है... यार तुम क्यों जल रहे हो..." "नहीं, अभी हमारे साथ मस्ती कर रहा होता..." "चल जाने दो... कल एक और जॉब पार्ट में कर रहा हूँ। फिर जल्दी आ जाऊँगा!" बाय बोलकर फ़ोन रख दिया! धवल ने अपना प्यार मृगांशी के सामने एक्सेप्ट किया था! कहीं मृगांशी मना न कर दे! इतनी नज़दीकियों के बावजूद उसने विरोध तो नहीं किया था! अब तो वह जल्द से जल्द इंडिया जाना चाहता था ताकि अपने मम्मी-पापा को मृगांशी के बारे में बता सके! धवल ने दूसरी जॉब के लिए अप्लाई किया और इंटरव्यू पास कर ज्वाइन कर ली! अब उसका ध्यान सिर्फ़ ब्रेसलेट और बच्चे हुए रुपये देने में लग गया! खर्च में लिमिट तय कर ली! क्रमशः*****

  • 15. आंखो में हो तुम - Chapter 15

    Words: 1143

    Estimated Reading Time: 7 min

    धवल ने दूसरी जॉब के लिए अप्लाई किया और इंटरव्यू पास कर ज्वाइन कर ली! अब उसका ध्यान सिर्फ ब्रॉसलेट और बच्चे हुए रुपये देने में लग गया! खर्च में लिमिट तय कर ली! एक दिन धवल ने मृगांशी को गिफ्ट दिया! मृगांशी मना करती रही.....लेकिन धवल नहीं माना.....मृगांशी को लेना पड़ा! नवाबों जैसा जीवन जीने वाला लड़का एकदम आम हो गया! इतनी कड़ी मेहनत से कमाए धन की वैल्यू समझ रहा था! आज जब मृगांशी के लिए महंगा गिफ्ट लेने मॉल में आया था......सबसे पहले ज्वैलर्स की तरफ ही बढ़ा था! गिफ्ट सेलेक्ट करने के बाद जेब टटोली, कोड़ी न पाई वाली हालत हो गई! निराश होकर वहाँ से चला गया और एक छोटे से स्टोर से सस्ता सा गिफ्ट लिया! दोनों हाथों से रुपये लुटाने वाला लड़का आज उसे गिफ्ट लेने के लिए हिसाब-किताब देखना पड़ रहा था! उसे सस्ता गिफ्ट देना पड़ रहा था! रूम पर आ तो गया, बस दिमाग पर गुस्सा सवार हो गया! टार्गेट बस उसके पापा थे! कुछ देर बाद उसका फोन बजा; मृगांशी का नाम देखकर शांत हुआ! मृगांशी ने कहा, "थैंक्स......इतना सुंदर टेडी देने के लिए......" धवल ने कहा, "टेडी देने वाले की तारीफ......" मृगांशी ने कहा, "हसीना बानो...." धवल ने मुँह बनाकर कहा, "यही आता है....." मृगांशी हँसी। धवल ने कहा, "सुनो ना........" मृगांशी ने कहा, "ह्म्म्म्म....." धवल ने कहा, "टेडी के पीछे की ज़िप खोलो....." मृगांशी ने कहा, "क्यों? वहाँ तो कॉटन होती है....." धवल ने कहा, "यार, जैसा कह रहा हूँ वैसा करो ना....." मृगांशी ने कहा, "ओके बाबा.....देखती हूँ....... " मृगांशी ने चैन खोलकर देखा, एक क्रिस्टल का हार्ट बना था जिसमें उन दोनों की पिक थी! उस हार्ट को साइड में हिलाने पर कभी मृगांशी तो कभी धवल की पिक दिखाई देती! यह देख वह दंग रह गई! धवल ने पूछा, "क्या हुआ??? पसंद नहीं आया......" मृगांशी ने कहा, "वावो सो अमेजिंग धवल.....आई एम इम्प्रेशड......" धवल ने पूछा, "गिफ्ट से या उसे देने वाले से......" मृगांशी बेचैन होकर बोली, "धवल, इतना जल्दी.....पहले तुमसे मिलना चाहती हूँ.....कुछ सवाल.....कुछ शंकाएँ हैं....उन्हें दूर करना है!" धवल ने कहा, "आ जाओ रूम पर....." मृगांशी ने कहा, "धवल....." धवल ने कहा, "फिलहाल इतने रुपये नहीं हैं.......और एक रात में कुछ नहीं हुआ तो एक घंटे में क्या होगा......या खुद पर भरोसा नहीं है.....कहीं मुझे देखकर बहक न जाओ....." मृगांशी ने कहा, "देखती हूँ.......बाय......" धवल ने पूछा, "इतनी जल्दी क्यों है....." मृगांशी ने कहा, "नींद आ रही है....." धवल ने कहा, "झूठ...." सकपकाकर मृगांशी ने कहा, "वो....हाँ, मम्मा बुला रही है..... " धवल ने फोन रखकर कहा, "ढंग से झूठ भी नहीं बोल सकती!" मृगांशी आसमानी कलर के टेडी, जिसके सिर पर कैप और गले में मफलर था, को देखते हुए मुस्कुरा उठी और सीने से लगाकर आँखें बंद कर ली। बिना टीशर्ट के धवल घुटनों के बल अपने रूम के बेड पर बैठा था। जब उसका हाथ धवल के सीने पर था.....धवल के हाथ उसकी कमर पर.......वह उसमें खोकर रह गई थी........"ये सब गलत न हो......पापा से बात करूँ.....नहीं, वो मुझ पर ही छोड़ देंगे!.....मन की बात कह दूँ.......फिर देखती हूँ उसका रिएक्शन......" दोनों हाथों में मुँह को लेकर खुद में ही बड़बड़ाती रही, "ओ गॉड! क्या करूँ??? कुछ समझ नहीं आ रहा!" धवल का मृगांशी से मिलना कम ही हो पाता था! जब दोनों साथ होते तो वह मृगांशी को एक नज़र देख लेता या फिर टी टाइम सबके बीच बात हो जाती!...... बिना टीशर्ट के एप्रन पहने धवल किचन कैबिनेट पर प्याज काट रहा था और उसकी आँखें लाल, उनसे पानी निकलने को तैयार.......पसीने से लथपथ हो गया था! धवल के रूम का गेट खुला; मृगांशी को देखा और मन ही मन बोला, "थैंक्स हार्ले....... " धवल ने ताना मारा, "हिरणी आज रास्ता भूल गई है....यहाँ की ड्यूटी के लिए मैडम के पास टाइम ही नहीं है!" रूम का डोर बंद करके मृगांशी ने कहा, "शट अप.......हार्ले ने ही मैसेज कर रिक्वेस्ट की थी कि अगले संडे को उसे काम है तो वो आज उसकी जगह ले रहा है.......तो मैं इधर चली आई!" धवल ने कहा, "ह्म्म्म्म....." बैग रखकर मृगांशी उसकी हालत देखकर शर्ट की बाजू ऊपर करके बोली, "हटो........हसीना बानो......क्या बना रहे हो????" एप्रन उतारकर धवल कंधे उचकाते हुए बोला, "पता नहीं....." मृगांशी हैरत से बोली, "धवल तुम सच में पागल हो......पूरा रूम बिखरा के रखा है.......और ये किचन भी छोटा सा है....." धवल पीछे से आकर एप्रन बांधते हुए बोला, "हिरणी पहले कुछ अच्छा सा बनाकर खिलाओ.......उसके बाद कुछ कहना....कंगारू उछल रहे हैं......." मृगांशी प्याज देखकर काटते हुए बोली, "इतने बड़े-बड़े पीस काटकर रखे हैं...." मृगांशी आगे कुछ बोल पाती, उसकी हरकत पर कांप गई! धवल ने पीछे से बाहों में भरकर दोनों गाल पर अपना पसीना पोछ दिया! मृगांशी धीरे से आँखें बंद करके बोली, "धवल......" धवल ने उसके हाथ को प्याज सहित हटाया, "हिरणी मुझ में इतना खो गई कि उंगली का ध्यान न रहा!" धवल दूर हो गया! मृगांशी खीजकर बोली, "सब तुम्हारी वजह से हुआ है...." धवल ने कहा, "मुझे नहीं पता था मेरी अटेंडेंट इतना इफेक्ट करती है......" मृगांशी ने पूछा, "शट अप......क्या खाना पसंद करोगे???? " धवल ने कहा, "हिरणी जो खिलाएगी प्यार से......" मृगांशी घूरकर देखते हुए वापस काम में लग गई! धवल बेड पर लेटकर हार्ले को मैसेज कर थैंक्स कहा! धवल मोबाइल चला रहा था! मृगांशी किचन का काम करके बाहर आई तो धवल से मोबाइल छीनकर बोली, "जाओ....जाकर नहाकर आओ....." धवल ने कहा, "धवल पहले कुछ खा लूँ......फिर....." टॉवेल पकड़ाकर बेड की चादर उतारकर एक साइड रखते हुए मृगांशी ने कहा, "नो.....नेवर....." धवल उसके आगे-पीछे घूमते हुए बोला, "इस भूखे प्राणी का ख्याल करो......" मृगांशी धवल को धक्का देकर वॉशरूम की ओर धकेलते हुए बोली, "चलो.....जाओ......पहले नहाना.....फिर खाना..... " धवल के अंदर जाने के बाद मृगांशी उसके रूम को ठीक करने लगी! वॉशरूम का गेट खोलकर धवल ने कहा, "हिरणी तुम भी मेरे पसीने में भीग गई थी.....पीछे से शर्ट गीली है....आ जाओ साथ देने......" टेबल साफ करते हुए वॉशरूम का टॉवेल उसके हाथ में था! झूठी नाराजगी दिखाकर उसकी तरफ टॉवेल फेंकने का नाटक किया तो धवल ने जल्दी से गेट बंद कर लिया! मृगांशी मुस्कुराकर अपने काम में लग गई.....टेबल साफ कर सामान सेट किया, शू रैक में शूज लगाकर.......लॉन्ड्री बैग में सब कपड़े रखकर.......बेड की चादर ठीक से लगा दी! किचन की साइड आकर कुकर खोलकर नमकीन राइस चेक कर....छोटे फ्रिज में दही चेक कर बाहर की शॉप से लेने चली गई! मृगांशी दही लेकर रूम में आते हुए बोली, "सच में हसीना ही हो......शॉवर लेने में इतना टाइम लगता है???" धवल वॉशरूम से बाहर आया तो देखा और फटाक से आँखें बंद करके बोला, "उठ जा धवल, सपना ले रहा है! वह नहीं आ सकती यहाँ, अरे उठ ना!......तू ही उसके पीछे भाग रहा है! तू कभी उसके सपनों में नहीं आ सकता और उसने तेरी नींद हराम कर रखी है!......." क्रमशः*****

  • 16. आंखो में हो तुम - Chapter 16

    Words: 1013

    Estimated Reading Time: 7 min

    धवल वॉशरूम से बाहर आया। उसने देखा और फटाक से आँखें बंद कर लीं। "उठ जा, धवल! सपना ले रहा है! वह नहीं आ सकती यहाँ। अरे, उठ ना!……तू ही उसके पीछे भाग रहा है! तू कभी उसके सपनों में नहीं आ सकता, और उसने तेरी नींद हराम कर रखी है!…….." मृगांशी ने आवाज लगाई, "अरे, कहाँ खोये हो? जल्दी आओ ना…." धवल पास आया और गीले बालों को हल्की उंगलियों से हिलाकर बारिश कर दी। मृगांशी ने आँखें दिखाकर नवाजा। मृगांशी नमकीन चावल और दही डालकर बेड पर ले आई। धवल पीछे से सॉस की बोतल ले आया। मृगांशी खीजकर बोली, "बासी खाने की आदत हो रखी है…" धवल से बोतल छीनकर मृगांशी किचन कैबिनेट की ओर बढ़ी। धवल हैरान सा बोला, "अरे…खाएँगे किसके साथ…." मृगांशी मुड़कर बोली, "दही के साथ…." धवल प्लेट पर नज़र मारकर बोला, "अच्छा लगेगा??…." मृगांशी बोली, "एक बाइट खाकर देखो…." धवल बिना भाव के खाने लगा। मृगांशी खड़ी उसे देख रही थी कि वह कुछ कहे। उसे चुपचाप खाते देखकर बोली, "क्या हुआ?? अच्छे नहीं बने जो चुपचाप खाए जा रहे हो??…." धवल ने मृगांशी का हाथ पकड़कर पास बैठा लिया और एक चम्मच उसकी ओर बढ़ा दी। मृगांशी ने एक नज़र उसे देखा और मुँह खोल दिया। मृगांशी ने कुछ रिएक्ट नहीं किया। खाने के बाद धवल बोला, "अब अच्छे हैं…." मृगांशी मुस्कुराकर उसे मारना चाही, तो इरादा भांपकर वह पीछे हट गया। मृगांशी ने उसकी बाजू पकड़कर अपना सिर रखते हुए कहा, "धवल, आज मैं तुमसे कुछ जानने आई हूँ!" धवल उसे देखता हुआ अपने खाने में मस्त रहा, "और मिलेगा…." मृगांशी ने नज़रें उठाकर देखा और जल्दी से चावल-दही ले आई! मृगांशी वापस अपनी उंगलियों को उलझती हुई बैठ गई। धवल इग्नोर कर अपने खाने में मस्त था। बहुत दिनों के बाद कुछ अच्छा खाने को मिला था! धवल अपनी प्लेट सिंक में रखकर पानी पीकर उसके पास आया। धवल रूमाल से मुँह साफ करके बोला, "अब बोलो…." मृगांशी अपनी उलझती उंगलियों को देखकर सोच रही थी। धवल के बोलने पर होश में आई। धवल को पास बैठा देखकर वह उसके गले लग गई! धवल हैरत में था! "दिमाग और दिल में जंग चल रही है…किसकी सुनूँ? दोनों अपनी जगह सही हैं…या दिमाग ही सही है जो दुनिया में हो रहा है…उसे देखकर…दिल का क्या है? वह तो हर पर फिसल जाता है…." धवल सीरियस होकर बोला, "मुझे पता है क्या लगता है…." "ह्म्म्म्म," मृगांशी ने कहा। "तुम्हारा दिल ना केले के छिलके पर टिका हुआ है जो कहीं भी…कभी भी…फिसल जाता है!" मृगांशी नम होकर बोली, "धवल…." धवल साइड से बाहों में भरकर बोला, "मुझे ये ड्रामेटिक सीन नहीं आते…आई लाइक यू एंड आई लव यू…कोई मैटर नहीं है!" मृगांशी उसकी बेबाकी देखकर हैरान हुई। "धवल, इतना आसान नहीं है ये दो शब्द। आज के लिए हैं या हमेशा के लिए…अगर ये इंग्लिश प्रेम है तो बस हम दोनों का रास्ता अलग है…." धवल बात बीच में काटकर बोला, "प्रेम की परिणति अगर विवाह है तो इसके लिए इंडिया में चलना होगा!" "लेकिन धवल…." "अब भी लेकिन…." "मम्मी को कैसे समझाऊँ…पापा मान जाएँगे…." "तुम्हारी फैमिली में लोचा है…किसी के पापा नहीं मानते और तुम कह रही हो कि मम्मी नहीं मानेगी…." "धवल, सच में मार खाओगे…मम्मी बहुत प्यार करती है अपनी फैमिली से…." "वो तो मैंने अंकल के साथ बॉन्डिंग देखी है…दोनों का प्यार और समझदारी…." "अब तुम बताओ…कैसे उनके विरोध में खड़ी हो जाऊँ!" "एक बार बात भी नहीं कर सकती क्या?" धवल के शब्द गहरे थे। "पापा से कर सकती हूँ…मम्मी से नहीं…." धवल मृगांशी का चेहरा हाथ में लेकर बोला, "तुम नहीं कह सकती तो मैं आकर बात करूँ…." मृगांशी गाल पर किस करके गले लगी, "लव यू…." "सेम टू यू…." धवल बाहों में लेकर बोला। मृगांशी उसके मजाकिया लहजे पर हँसी। मृगांशी बोली, "मैं पापा से बात करूँगी!" धवल बोला, "नहीं माने तो उठाकर ले जाऊँगा…." मृगांशी विनोदपूर्ण बोली, "है हिम्मत…." "आज़माइश करने की सोच मत लेना…कहीं गलतफ़हमी दूर करने में…." मृगांशी ने उसके मुँह पर उंगली रखकर चुप रहने को कहा! धवल उसके चेहरे को हाथ में लेकर निहार रहा था! मृगांशी भी उसमें खोकर रह गई! दोनों की नज़दीकियाँ दिन ब दिन समृद्ध हो रही थीं! दोनों ड्यूटी के बाद पार्क आना और कुछ देर वहीं बैठकर बातें करना! मृगांशी ने करण से इनडायरेक्ट बात करने की कोशिश की थी, लेकिन करण के समझ न पाने के कारण अपने फलस्वरूप और अनुभव के आधार पर स्वविवेक से काम लेने को कहा! जाने कितने दिनों के बाद मौका मिला था! आज मृगांशी रात में करण के साथ घर के बाहर बने छोटे से लॉन में टहलते हुए बात करने का मन में सोचकर आई थी! करण पीछे हाथ करके घूमते हुए बोला, "मृगांशी…शायद तुम कुछ कहना चाहती हो…." "हाँ…पापा, मैं…वो…धवल के बारे में बात करना चाहती थी!" "हाँ तो बोलो, क्या हुआ?? उसने सब पेमेंट कर दी क्या???" "नहीं, वो मुझे नहीं पता…." "तो इंडिया जा रहा है…." "नहीं…अभी कोई निर्णय नहीं लिया है…." करण का फ़ोन रिंग हुआ। कुछ देर बात करने के बाद वह गाड़ी लेकर घर से निकल गया! उसने किसी को कुछ नहीं बताया! ज़रूरी काम का बोलकर गया था! उसे आने में देर रात हो गई थी! मृगांशी सो चुकी थी और मयूरी उनींदी सी करण का वेट करते हुए वहीं हॉल में सोफ़े पर सो गई! करण ने मयूरी को उठाकर अंदर चलकर सोने को कहा! मयूरी के पूछने पर उसने काम का बहाना बनाया था! करण की आँखों से नींद गायब थी और वह करवट पर करवट बदल रहा था! बेचैनी हावी थी…उठकर बैठ गया और पानी पीकर चक्कर काटकर सुबह होने का इंतज़ार करने लगा! क्रमशः*****

  • 17. आंखो में हो तुम - Chapter 17

    Words: 1048

    Estimated Reading Time: 7 min

    करण की आँखों से नींद गायब थी; वह करवटें बदल रहा था। बेचैनी हावी थी। उठकर बैठ गया और पानी पीकर चक्कर काटते हुए सुबह होने का इंतज़ार करने लगा। मयूरी को सुबह जल्दी उठाकर उसने अपनी पैकिंग करने के लिए कहा। क्योंकि मयूरी और मृगांशी की एक ही फ़्लाइट में जाना था, जबकि करण को अलग फ़्लाइट की टिकट मिली थी। करण की फ़्लाइट अठारह घंटे में, जबकि मयूरी की फ़्लाइट सवा इक्कीस घंटे में पहुँचेगी। करण ने मृगांशी को उठकर तैयार होने के लिए कहा। नींद में हड़बड़ाते हुए मृगांशी उठी और इतनी जल्दी तैयार होने का कारण पूछा। करण ने बाबा पृथ्वीसिंह की तबीयत खराब होने की बात बताई और कहा कि उन्होंने हम सब से मिलने की इच्छा ज़ाहिर की है। करण ने रात को इमरजेंसी में टिकट बनवाई थी। उसने मृगांशी को अपना सामान पैक करके एक घंटे में निकलने को कहा। मृगांशी करण के जाने के फैसले पर स्तब्ध थी, लेकिन मजबूरी भी समझ रही थी। उसने धवल को फ़ोन किया, परन्तु फ़ोन ऑफ आ रहा था। दो-तीन बार ट्राई करने के बाद मृगांशी ने थक हारकर फ़ोन रख दिया और अपनी पैकिंग में लग गई। मयूरी ने मृगांशी और करण को नाश्ता दिया और सारा सामान चेक करने लगी। दोनों ने अपने फ़ोन लिए और बैग लेकर करण के साथ गाड़ी में बैठकर एयरपोर्ट के लिए निकल गए। मृगांशी पूरे रास्ते धवल को सोचती रही। रात को अपने परिवार से फ़ोन पर बात करते वक़्त वह बर्तन धो रहा था, तभी धवल का फ़ोन सिंक में नल के नीचे गिर गया। सुबह तक वह स्विच ऑफ था। धवल सुबह उठा और अपना फ़ोन देखने लगा; उसे याद आया कि फ़ोन खराब हो गया है। आज ऑफ़िस के लिए लेट हो रहा था, इसलिए बिना कुछ खाए मोबाइल लेकर चला गया। आज ऑनर ने धवल को बाहर किसी काम से जाने को कह दिया, इसलिए उसका मोबाइल भी ठीक नहीं हुआ। स्टोर पर फ़ोन देने पर उसने दो दिन का समय माँगा। मायूस सा धवल अपने रूम पर आ गया। मृगांशी से भी नहीं मिल सका। उसका मन मृगांशी से मिलने के लिए हुआ, किन्तु उसने अपने क़दम वापस खींच लिए। दिल्ली एयरपोर्ट पर उदय और अभिधा का बेटा अभ्युदय उन दोनों को लेने आया था, जो मृगांशी से छह महीने बड़ा था। उसके बाद वेदांक का हमउम्र शूर और नेहा का बड़ा बेटा वैभव था, जबकि छोटी बेटी आस्था थी। परम और शुभांजली का बड़ा बेटा कविश और सबसे छोटा बेटा भविन था। सबकी अपनी फैमिली थी, फिर भी संयुक्त परिवार की परम्परा का निर्वाह कर रहे थे। अभ्युदय दिल्ली में अपने विला ले आया था, जहाँ अजय सिंह और प्रीति उनका बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। अभ्युदय ने घर आकर बड़ी माँ (मयूरी) और मृगांशी से कुशलक्षेम पूछकर हॉस्पिटल चला गया। मयूरी ने अजय सिंह और प्रीति से आशीर्वाद लेकर अपने रूम की ओर आ गई, जहाँ प्रीति ने उसका सामान रखवाया था। मृगांशी भी छोटे दादा-छोटी दादी से स्नेहपूर्वक मिलकर अपने रूम में आ गई। थकान से चूर थी; फ़्रेश होकर सीधा सोने चली गई और सुबह जाकर उठी। नीचे आई तो घर पर वेदांक के अलावा कोई नहीं था। वेदांक से मिलकर तैयार होकर उसके साथ हॉस्पिटल चली गई, जहाँ उसके दादा की स्थिति स्थिर थी। भारत आते ही मृगांशी की सिम चेंज हो गई। दूसरी तरफ धवल को दूसरा फ़ोन अरेंज करना पड़ा। फ़ोन हाथ में आते ही सबसे पहले उसने मृगांशी का नंबर मिलाया। मृगांशी का नंबर मिलाने में थक गया। अंत में हारकर उसने उसके घर का रुख़ किया; आगे ताला देख हैरान हुआ। उसने आसपास के लोगों से पूछा, तो उन्होंने भी इनकार किया कि इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं है। धवल परेशान सा अपने रूम पर आ गया। धवल को गुस्सा भी आया कि अगर मृगांशी भारत गई है, तो उसने एक बार भी उसे नहीं बताया और न ही कॉल की। बस अब उस पर इंडिया आने का जुनून सवार हो गया। मृगांशी भी बेचैन हो गई थी। उसके दादा पृथ्वीसिंह की तबीयत में सुधार होने लगा था। मयूरी, मृगांशी और करण पृथ्वीसिंह से मिलकर अपने शहर आ गए और सब उनसे मिलकर खुश हुए। सीमा जी तो मृगांशी को अपनी आँखों से ओझल ही नहीं होने दे रही थीं। मृगांशी सबके बीच रम गई थी, लेकिन रात में धवल की फ़ोटो देख लेती। यहाँ आकर उसने एक-दो बार ट्राई किया था, लेकिन नहीं। पृथ्वीसिंह दस दिन में दिल्ली से इलाज करवाकर घर लौट आए थे, परन्तु बहुत सी हिदायतों के साथ। करण और मयूरी के साथ वेदांक भी घर आ गया था। पूरा परिवार एक साथ देख पृथ्वीसिंह और सब भाई खुश थे। इसी बीच पृथ्वीसिंह ने अभ्युदय की मंगनी और शादी की बात छेड़ दी। सब ने हामी भरी। करण और मयूरी भी आए हुए थे; बस इसी बात का फ़ायदा उठाया था। मौक़ा और दस्तूर दोनों ही थे। कार्यक्रम निश्चित होते ही सब तैयारियों में लग गए। शॉपिंग और डेकोरेशन की तैयारी। परिवार को निमंत्रण; जिनमें दीपिका, जहान्वी और अवनी की फैमिली पहले ही आने वाली थी। मृगांशी अपने भाई-बहनों के साथ दिल्ली शॉपिंग के लिए बाहर गई थी। सीमा जी, छाया, प्रीति, शैली और मयूरी के साथ बैठी थीं, कि छाया ने मृगांशी के लिए दुष्यंत के रिश्ते की फिर से बात की। सीमा जी ने करण और पृथ्वीसिंह, बाकी सभी सदस्यों के सामने दुष्यंत और मृगांशी के रिश्ते पर चर्चा की। उन्होंने अभ्युदय की सगाई के साथ ही मृगांशी की सगाई का प्रोग्राम रखने को कहा। दुष्यंत ने अभ्युदय के साथ रहकर ही अपनी पढ़ाई की है और परिवार में उसका आना-जाना था। दुष्यंत छाया के भतीजे का इकलौता बेटा था। छाया के साथ विशेष लगाव भी था। करण ने इस प्रस्ताव पर मृगांशी की सहमति होने तक रोक लगा दी। सीमा जी के साथ अनबन भी हो गई थी, क्योंकि उनके हिसाब से परिवार के बड़ों के फ़ैसले ही सर्वमान्य थे। क्रमशः*****

  • 18. आंखो में हो तुम - Chapter 18

    Words: 1046

    Estimated Reading Time: 7 min

    करण ने इस प्रस्ताव पर मृगांशी की सहमति होने तक रोक लगा दी। सीमा जी के साथ अनबन भी हो गई थी क्योंकि उनके हिसाब से परिवार के बड़ों के फैसले ही सर्वमान्य थे। मृगांशी आस्था के साथ शॉपिंग करके खुश थी। आस्था, छोटी बहन और सहेली, कितने सालों बाद मिली थी! देर शाम तक सब घर आ गए थे। मृगांशी यहाँ आने के बाद सबसे मस्ती करती हुई थक जाती; कभी सब भाई-बहन मिलकर उसके हिंदी बोलने के तरीके को लेकर चिढ़ाते, इंग्लिश टच को लेकर। पैर नीचे लटकाए, बिस्तर पर करवट बदलते हुए लेट गई और थकावट में मृगांशी की आँख लग गई। मयूरी उसके कमरे में आई तो लेटा देखकर उसके बालों में हाथ फेरकर उसे प्यार से निहारती रही। आज मयूरी को अपनी बेटी पर प्यार आ रहा था। मन में आया, "जो उसके साथ हुआ, वह अपनी बेटी के साथ नहीं होने देगी!" अचानक ही जय और अंजना की छवि, साथ ही उसकी गोद में उनका बेटा नज़र आया। अतीत को धकेलकर खुद में मुस्कुराती, करण की याद आई। साथ ही याद आया कि करण को भूख लगी थी और उसने खाने के लिए कहा था। मृगांशी को कंबल ओढ़ाकर नीचे की ओर आई तो आस्था सबके साथ बात कर रही थी और दोनों की नई ड्रेस दिखा रही थी। आस्था सब सामान समेटकर अपने कमरे में ले आई। मृगांशी को सोया देखकर वापस नीचे आ गई। कुछ देर बाद करण मृगांशी को डाइनिंग पर न देखकर उसे बुलाने के लिए जाने लगा तो आस्था ने टोका। "बड़े पापा सो रही हैं..." करण वापस खाना खाने लगा और सबसे बातें करने लगा। कुछ समय बाद मृगांशी की आँख खुली तो खुद पर कंबल देखकर हैरान हुई और हाथ में ली शर्ट को सीने से लगा लिया, जो कि धवल के लिए लाई थी। व्हाइट में मेहरून फ्लोरल प्रिंटेड शर्ट थी। आजकल धवल उसे गाँह-बगाहे नज़र आ जाता; बैठे-बैठे उसकी यादों में खो जाती। खड़ी हो, शर्ट को ध्यान से देखते हुए चूम लिया। फिर शर्ट को अपनी अलमारी में रखकर एक गिलास पानी पिया। तभी कमरे का दरवाज़ा खुला तो करण खाना हाथ में लिए था। मृगांशी हैरत से बोली, "पापा, मैं नीचे आ जाती ना, आप क्यों लेकर आए?" करण सोफ़े की ओर बढ़ते हुए बोले, "मेरी बेटी के लिए इतना नहीं कर सकता?" मृगांशी सोफ़े पर बैठकर बोली, "आप मेरा आधार स्तंभ हैं पापा, आपके हाथ से खाना मुझे बहुत अच्छा लगता है!" करण ने दाल-भात को मिलाकर एक चम्मच उसके मुँह की ओर बढ़ाया। मृगांशी खाना खाते हुए करण से दिल्ली में की गई शॉपिंग के बारे में बताने लगी और साथ में लोट्स टेंपल के बारे में बताने लगी। टाइम कम होने की वजह से बस वही देख सकी थी। अभ्युदय ने फ़ंक्शन के बाद दिल्ली घुमाने का वादा किया था। मयूरी मृगांशी के कमरे में आई तो नाराज़गी से बोली, "शादी लायक हो चुकी...जहाँ खाना बनाना चाहिए! लाड़ो बनकर आपसे खाना खा रही है!" करण मुस्कुराकर बोले, "बस इसलिए तो खिला रहा था...वहाँ इसे कौन खिलाएगा...किसी से कह भी नहीं सकेगी कि आज खाना खिला दो..." मृगांशी माहौल का रुख बदलता देखकर बोली, "मम्मी आप भी ना...पापा को इमोशनल कर दिया! चलो! पापा हम बाहर जाकर बात करेंगे!" मयूरी हैरानी से आँखें फाड़कर देखती रही। दोनों बाप-बेटी बाहर चले गए। करण लॉन एरिया में घूमते हुए बोला, "मृग माँ साहब और बाबा साहब ने एक बार फिर से दुष्यंत के नाम पर तुम्हारे लिए मुहर लगा दी है। उन्होंने सबने दुष्यंत को देखा है और अभ्युदय के साथ पढ़ाई की है, बड़ा हुआ है। मैंने ही उन्हें रोका है तुम्हारी राय जानने के लिए..." मृगांशी को ध्यान से देखा जो जड़वत् खड़ी थी। करण उसे देखकर बोला, "मृगांशी, सोच समझकर फैसला बताना। अगर कोई है तो उसके बारे में भी बता सकती हो।" मृगांशी को करण की बात सुनकर राहत मिली। उसने करण से उसका मोबाइल लिया और सुबह जवाब देने का कहकर अपने कमरे में आ गई और भगवान को याद करते हुए उसने निकोल को कॉल लगाई। कुछ देर बाद निकोल ने फ़ोन उठाकर हैलो किया तो मृगांशी की आवाज़ सुनकर एक्साइटिड हो गई और सवाल पर सवाल पूछने लगी। मृगांशी ने सबको इग्नोर करते हुए उसे धवल से फोन करने के लिए कहा। मृगांशी पर घबराहट छा रही थी। "निकोल, प्लीज जल्दी करना और उससे कहो कि मुझसे बात करे!" निकोल ने पूछा, "एनी प्रॉब्लम...?" मृगांशी ने कहा, "नथिंग...बॉय..." निकोल ने हैरत से फोन को देखा और धवल को कॉल लगाने लगी। कुछ देर बाद मृगांशी का फ़ोन बज गया। मृगांशी का ध्यान फ़ोन पर ही था तो उसने फ़ट से फ़ोन उठाया। "हैलो निकोल, क्या हुआ? बात हुई धवल से?" "नहीं...उसका फोन नहीं लग रहा है!" "ऐसे कर, तू अभी फ़िलिंग स्टेशन जा और उसका पता लगा, समझी...मैं तेरा वेट कर रही हूँ!" "लेकिन हुआ क्या है? अचानक से तू इंडिया चली आई!" "आकर तुझे सब बताती हूँ...तू पहले उसका पता लगा!" मृगांशी बेचैन सी चक्कर काट रही थी कि आस्था कमरे में आते हुए बोली, "दी, क्या हुआ?" मृगांशी ने एकदम से कहा, "नहीं, कुछ नहीं...तुम सो रही हो तो सो जाओ...मैं पापा का फोन देकर आती हूँ!" आस्था बिस्तर पर बैठते हुए बोली, "आप आइए, कुछ देर बैठकर बातें करते हैं!" मृगांशी ने कहा, "बट थोड़ा टाइम लगेगा!" "इट्स ओके...आई एम वेटिंग..." मृगांशी मुस्कुराकर छत पर चली गई। इधर-उधर घूमते हुए बोली, "प्लीज धवल...तुम कहाँ हो? जल्दी से मिल जाओ!" कुछ देर बाद फिर से फ़ोन बजा जिसे देखकर उसकी घबराहट बढ़ गई! अनिश्चितता की लहरों पर बैठी, ना डूब रही थी ना तैर रही थी। कुछ पल फ़ोन को देखती रही, फिर होश में आकर फ़ोन पिक किया। निकोल का जवाब सुनकर आसमान से ही गिरी थी। क्रमशः*****

  • 19. आंखो में हो तुम - Chapter 19

    Words: 1043

    Estimated Reading Time: 7 min

    कुछ देर बाद फिर से फोन बजा, जिसे देखकर उसकी घबराहट बढ़ गई! अनिश्चितता की लहरों पर बैठी, वह ना डूब रही थी, ना तैर रही थी! कुछ पल फोन को देखती रही, फिर होश में आकर फोन पिक किया। निकोल का जवाब सुनकर वह आसमान से गिर पड़ी! मृगांशी हैरत से, "क्या???? उसने जॉब छोड़ दी! निकोल, प्लीज एक काम करो, तुम... उसके रूम पर जाकर पता लगाओ... कहीं उसकी तबीयत ठीक तो नहीं है! प्लीज... प्लीज... इतना सा काम कर दो!" "ओके, बस ये 'प्लीज' बोलकर कन्वेंस करने की ज़रूरत नहीं है!... दस मिनट बाद कॉल करती हूँ!" "थैंक्स निकोल... लव यू सो मच निकोल..." "धवल से कहना है क्या?" "शट अप! मैं खुद कह सकती हूँ..." निकोल ने हंसकर कहा, "बाय, टेक केयर।" मृगांशी की धड़कनों की रफ्तार बढ़ गई थी। "धवल, तुम कहाँ हो... एक बार भी फोन नहीं किया और ना ही निकोल से मिले! धवल, प्लीज एक बार बात कर लेना... आज बात नहीं की तो उम्र भर के लिए हम दोनों दूर हो जाएँगे!" मृगांशी हाथों को आपस में उलझाकर छत पर बैठी सोचती रही। कुछ समय बाद निकोल का फोन आया तो कट करके उसने मिलाया। बेसब्र सी मृगांशी ने कहा, "निकोल, धवल पास में है तो पहले उससे बात करवा दो!" निकोल ने कहा, "इतनी परेशान क्यों हो, वो भी धवल के लिए...?" मृगांशी चिढ़कर बोली, "यार, धवल को फोन दे..." निकोल भी नाराज़ सी, "कोई होगा तब फोन दूँगी ना, यहाँ कोई नहीं है! धवल इंडिया जा चुका है..." बीस दिन होने को आए थे! उसने ना ही उससे, और ना ही निकोल से बात की! मृगांशी का दिल भर आया और उसने कॉल काट दी। उसकी आँखों में आँसू आ गए। कुछ देर बुत बनी बैठी रही। निकोल कॉल करते रहे और मृगांशी काटती रही... आखिर निकोल ने भी कॉल करना बंद कर दिया, लेकिन वह टेंशन में आ गई थी। दूसरे दिन फोन करने का सोचकर घर चली आई। मृगांशी आँसू साफ़ करके करण के रूम में आकर गले लग गई और दुष्यंत के साथ शादी के लिए हाँ भर दी। करण उसे भावुक देख खुद भी भावुक हो गया। "खुश नहीं हो?" मृगांशी ने कहा, "ऐसी बात नहीं है... पहले से बात पता होती तो खुद को मेंटली स्ट्रांग कर लेती... फिर पापा का प्यार का तो आपको पता ही है ना... और आप भावुक होते हुए अच्छे नहीं लगते..." वेदांक अंदर आते हुए मृगांशी को चिढ़ाकर बोला, "दी, सब तुम्हारे कारण... और पापा आप भावुक न हो! ... भावुक तो बेचारा दुष्यंत होगा! मुझे तो बस उसकी चिंता खाए जा रही है!" पीछे से अभ्युदय, वैभव, कविश, आस्था, भविन सब एक साथ बोले, "ये बात एकदम सच है..." मृगांशी हैरान सी आँखें फाड़े सबको देख रही थी! कविश ने कहा, "दी, जीजू को आपकी हिग्लिश समझ आएगी भी या नहीं..." मृगांशी घूर कर बोली, "तुझे समझ आ रही है ना..." अभ्युदय बीच में बोला, "लेकिन लहजा वही रहेगा... हिग्लिश..." मृगांशी बोली, "एक आईडिया... गिफ्ट में तुम सबको ही ले जाऊँगी..." करण सबकी बात सुनकर हँस रहा था। मृगांशी ने कहा, "पापा, ये ठीक है ना..." भविन मृगांशी के गले में हाथ डालकर बोला, "दी, पहले जीजू से पूछ लेना... क्यों बड़े पापा..." मृगांशी भी उसके गाल पर हाथ लगाकर बोली, "पूछना क्या है? मैं... वो क्या बोलते हैं बड़े लोग जो लड़की को शादी में गिफ्ट और सामान देते हैं..." इतना बोलकर सोचने लगी। आस्था तपाक से बोली, "दहेज..." मृगांशी ने कहा, "हाँ... वही... सब भाई-बहन ही दहेज में लाई हूँ!" मयूरी आई, सबको अपने रूम में देख अचंभित हुई! वेदांक मयूरी की ओर बढ़कर बोला, "आइए मम्मा, आपकी समस्या का हल हो गया है!" मयूरी को अंदर लाने लगा, "अरे रुक तो आ रही हूँ..." वेदांक मयूरी के साथ रूम के अंदर आया। भविन जो मृगांशी के गले में बाँहें डाले खड़ा था, बोला, "बड़ी माँ, दी के दहेज की समस्या खत्म..." मयूरी स्तब्ध सी, "ये बात कहाँ से आई... उन्होंने मृगांशी को माँगा है और कुछ नहीं..." कविश ने कहा, "लेकिन फिर भी आप देंगे..." मयूरी ने कहा, "लेकिन..." आस्था बोली, "बड़ी माँ, लेकिन-वेकिन कुछ नहीं..." मयूरी कुछ बोलती, उससे पहले भविन बोला, "हम सब भाई-बहन जाएँगे दी के साथ... बस इसके आगे एक शब्द और नहीं।" अभ्युदय उसके सर पर चपत लगाकर बोला, "बस कर... सबको पता है ऐसा कुछ नहीं होता..." मयूरी की ओर मुड़कर बोला, "बड़ी माँ सा... सब टाइम पास कर रहे हैं!" मृगांशी अभ्युदय को घूर कर बोली, "आपका सब सही है... चेष्टा भाभी हुकुम के साथ रहने को नहीं मिलेगा... और कहीं वो भी अपने भाई-बहनों को ले आई तो..." मयूरी झिड़क कर बोली, "चलो सब अपने-अपने रूम में... कल सबको अपने-अपने हिस्से का काम मिलेगा! चलो रेस्ट करो, दो दिन फिर आराम नहीं मिलेगा!" वेदांक, अभ्युदय, कविश बाहर आ गए जबकि भविन और आस्था उसके गले लग गए। "लव यू माँ सा..." मुस्कुराकर दोनों के सिर पर हाथ फेरकर गुड नाइट विश किया। उन दोनों के जाने के बाद मृगांशी करण के पास खड़ी रही। मयूरी पास आकर बोली, "क्या बात है? तुझे सोने के लिए स्पेशल कहूँ क्या..." मृगांशी मयूरी के गले लगकर बोली, "दुष्यंत के साथ शादी करने के लिए तैयार हूँ!" मयूरी खुश होकर बोली, "सच में..." "हाँ, मम्मा..." "सच में तुमने हाँ करके दिल का बोझ हल्का कर दिया!" करण चुपचाप दोनों माँ-बेटी की बात सुन रहा था। मयूरी ने कहा, "दुष्यंत अभ्युदय के साथ पढ़ा है और बचपन से घर आ जा रहा है!" "ह्म्म्म्म..." पास आकर करण ने उसके सिर पर हाथ रखा। मयूरी ने उसे सोने के लिए कहा। मृगांशी अपने रूम में आस्था के पास आ गई! करण मयूरी की भावनाओं को समझ रहा था। मृगांशी को उसने अपनी आँखों से ओझल न होने दिया था और अब अचानक कोई आएगा और उसे हमेशा के लिए अपना बनाकर ले जाएगा! करण के गले लगकर सुबक पड़ी! करण ने धीरे से कान में कुछ कहा तो भरी आँखें फाड़े उसे देखने लगी! क्रमशः*****

  • 20. आंखो में हो तुम - Chapter 20

    Words: 1086

    Estimated Reading Time: 7 min

    करण के गले लगकर मयूरी सुबक पड़ी! करण ने धीरे से उसके कान में कुछ कहा, तो मयूरी ने भरी आँखें फाड़कर उसे देखना शुरू कर दिया। करण मुस्कुराकर बोला, "क्या हुआ? कुछ गलत कहा क्या? जो इस तरह देख रही हो?" मयूरी दूर होकर बोली, "कुछ ज़्यादा ही मस्ती नहीं सूझ रही है... दामाद आने वाला है, आप मुझे परसों समाज की नज़रों में प्रमोट कर देंगे!" करण ने कहा, "इस बात का उससे क्या लेना-देना? हमारी हुकुम हमेशा से खूबसूरत थी, है, और रहेगी।" मयूरी प्यार से घूरते हुए बोली, "आप ये सब बोलते हुए अच्छे नहीं लगते!" करण ने अपना सिर पीटते हुए कहा, "एक हमारी हुकुम हैं जिन्हें मेरा तारीफ़ करना पसंद नहीं है, और दुनिया में लोगों की बीवियाँ तरसती हैं इन लफ़्ज़ों के लिए।" चुनरी को सिर पर ठहराने के लिए लगाई गई पिन खोलते हुए मयूरी बोली, "आपकी आँखें ही हमारी तारीफ़ कर देती हैं, इसलिए आपको शब्दों की ज़रूरत नहीं है।" करण के इस रिस्पॉन्स को देखकर मयूरी हैरान हुई। उसने कहा, "क्या हुआ? कुछ कहा नहीं!" करण बेड पर लेटकर बोला, "हमारी हुकुम बोलती ही बंद कर देती हैं अपने जवाब से।" मयूरी करण की बात सुनकर और उसे आईने में देखकर मुस्कुरा उठी! वह जानती थी कि जब-जब वह मियामी में ठेठ राजपूताना ड्रेस पहनती थी, तो करण उस दिन उसकी तारीफ़ किए बिना नहीं रहता था, और अब यहाँ आने के बाद तो रूटीन में भी उसे परिवार में रहकर यही परिधान पहनना था। मृगांशी आई तो आस्था रूम से गायब थी! एकांत पाकर उसका मन भारी होने लगा था! रह-रहकर धवल और उसकी बातें याद आ रही थीं! वह हारकर रूम के गेट के पास ही बैठ गई और रोने लगी। "धवल, एक बार निकोल को कहकर जाते… धवल, प्लीज़ एक बार आ जाओ…" मृगांशी के रूम का दरवाज़ा खटखटाया गया! मृगांशी ने फटाफट उठकर आँखें पोछकर दरवाज़ा खोला! भविन सामने था! भविन ने कहा, "दी, क्या हुआ??? आप…" मृगांशी बीच में ही बोली, "कुछ नहीं… तुम बता, किसलिए आया है?" भविन ने कहा, "भाई लोगों ने आपको बुलाने के लिए कहा है… आज सब मस्ती करेंगे!" मृगांशी ने कहा, "नहीं, मेरा मूड नहीं है। आप सब कंटिन्यू रखो…" भविन ने मृगांशी को साइड से पकड़ते हुए कहा, "दी, आप इमोशनल हो रही हैं…" मृगांशी मुस्कुराते हुए बोली, "बड़ा भाई मत बन, अभी छोटा ही बना रह… कल ज़रूर सब मिलकर मस्ती करेंगे, और हॉल में।" भविन ने सबको मृगांशी के सिर दर्द का बहाना बनाकर कल का प्रोग्राम रखने के लिए कहा, और सब अपने-अपने रूम में चले गए। मृगांशी मुँह धोकर बेड पर लेट गई! आस्था आई और अपने कॉलेज की बातें बताने लगी! उसकी बातें सुनते हुए मृगांशी की आँख लग गई! सुबह से ही घर में हलचल थी… हल्का-फुल्का फूलों से डेकोरेशन का काम चल रहा था! सब पहुँच चुके थे! बच्चों में आपस का मेल-मिलाप जारी था, जबकि दीपिका, जहान्वी और अवनी मयूरी और करण से मिलकर प्रफुल्लित हुईं। मृगांशी अभी तक उठी नहीं थी! रात में आस्था की बातें सुनकर उसकी आँख लग गई थी! देर रात अचानक आहट से उसकी आँख खुली, तो सो ही नहीं सकी! ख्यालों में धवल घूमता रहा! अवनी ने जाकर उसे जगाया, तो अवनी की आवाज़ सुनकर वह एक्साइटेड होकर उसके गले लग गई। फ़्रेश होकर आई और सबसे मिली! शाम होते-होते मेंहदी वाली आ गई, और मृगांशी के साथ-साथ आस्था और अन्य ने भी मेंहदी लगवाई! मेंहदी वाली ने जब मृगांशी से अल्फ़ाबेट पूछा, तो उसके मुँह से 'डी' निकला। आस्था ने चुटकी ली, "वाह दी, बड़ी जल्दी आंसर आया…" मृगांशी झेंप गई। उसने ध्यान नहीं दिया था कि दुष्यंत का नाम भी 'डी' से शुरू होता है। आस्था मृगांशी को छेड़ते हुए आवाज़ बदलकर बोली, "जानेमन, हमारा नाम डी आर है, और लोग हमें आर डी के नाम से बुलाते हैं…" मृगांशी ने आँखें फाड़कर कहा, "आसू, तू आवाज़ चेंज कर सकती है????… हँअअअअ…" आस्था ने कहा, "जीईईईईईईई हां, इस नाचीज़ में ये एबिलिटी भी है।" मेंहदी वाली ने कहा, "मैम, प्लीज़ हाथ मत हिलाइए…" मृगांशी ने डाँटते हुए कहा, "आसू, देख, ख़राब कर ली ना…" आस्था ने कहा, "दी, कुछ नहीं होता… और वैसे भी मुझे कौन सा आर डी से सगाई करनी है! वैसे दी बहुत शर्मीली है वो…" मृगांशी ने उसे आँखें दिखाकर चुप रहने के लिए कहा। आस्था ने कहा, "कसम से दी… मुझे लग रहा है मुँह दिखाई आपको ही देनी पड़ेगी!" मेंहदी वाली भी आस्था की बात सुनकर हँसने लगी। "आसू, अब तू चुप नहीं हुई ना, तो देख लेना…" मृगांशी ने कहा। आस्था चुपचाप हँसती रही, मृगांशी भी उसे देखकर मुस्कुरा दी! मृगांशी की मेंहदी सूख चुकी थी। प्रीति सबकी मेंहदी पर नींबू-चीनी का घोल लगा रही थी। मृगांशी ने कहा, "दादी, प्यास लगी है!" प्रीति ने कहा, "अभी लाई…" मृगांशी ने कहा, "थोड़ा ठंडा हो…" कुछ देर बाद सीमा जी आईं और मृगांशी की मेंहदी की नज़र उतारी और मृगांशी के पास बैठ गईं। मृगांशी ने उनका गोद में सर रख दिया। कुछ देर बाद वैभव आया और मृगांशी को नीचे चलने के लिए कहा, साथ बड़ी दादी सा हुकुम को भी… हॉल में बैठे सब बच्चे अपनी शैतानियाँ एलईडी पर देख रहे थे! शूर और जहान्वी की शादी में मृगांशी आई थी! जब वह दो साल की थी! अभ्युदय के संग ही खेल रही थी! करण को छोड़कर किसी के पास जाती भी नहीं थी! उदय, शूर, परम उसे लेने की कोशिश कर रहे थे! सीमा जी ने कहा, "ये पहली बार आई थी, आते ही बीमार हो गई… हवा-पानी नहीं जमा… मयूरी बेचारी कोई भी रस्म ढंग से ना देख सकी और न ही निभा सकी!" उसके बाद परम और अवनी की शादी में आई थी! जब वेद साल भर का था! उस समय की वीडियो नहीं थी। कविश के हाथ में रिमोट था और वह जल्दी-जल्दी आगे की ओर बढ़ा रहा था! सीमा जी ने कहा, "कवि, इतनी जल्दी आगे करने से अच्छा है बंद ही कर दे…" आस्था मुस्कुराते हुए बोली, "दादी सा हुकुम, ऐसे लग रहा है जैसे हम ही जल्दी-जल्दी पलकें झपका रहे हैं…" भविन ने कहा, "सही कहा दी…" कविश ने धीरे-धीरे करके पिक्स आगे बढ़ाई! उसके बाद करण के दादाजी के स्वर्ग लोक जाने पर आए थे! वेदांक होने वाला था, तब दादी सा हुकुम का महाप्रयाण हो चुका था! तब दोनों ही नहीं आ सके थे! क्रमशः *****