Novel Cover Image

A Royal Arrange marriage

User Avatar

@author_ vintage

Comments

11

Views

5538

Ratings

18

Read Now

Description

इद्यान महेश्वरी रोयल महेश्वरी खानदान का छोटा बेटा जो अपने मनमर्जी का मालिक था। और इद्यान की शादी इसके दादाजी ने अपने दोस्त की पोती परिणीति सिंह चौहान के साथ जोड़ तय कर दिया जिसके लिए इद्यान बिल्कुल भी तैयार नहीं था अब देखना ये है कि कैसे उद्यान और पर...

Total Chapters (28)

Page 1 of 2

  • 1. A Royal Arrange marriage - Chapter 2

    Words: 2256

    Estimated Reading Time: 14 min

    अजमेर, राजस्थान।

    माहेश्वरी मेन्शन का बड़ा सा गार्डन, जिसमें बहुत ही सुंदर, छोटे-छोटे पेड़-पौधे लगे थे। गार्डनिंग करके शादी के लिए उसे बहुत खूबसूरती से सजाया गया था; जो देखने में बहुत ही ज्यादा खूबसूरत दिख रहा था। गाड़ियों का एक एरिया था, जिसमें ब्रांडेड एडिशन की गाड़ियों की लाइन लगी थी। माहेश्वरी पैलेस जितना बाहर से खूबसूरत था, उससे कहीं ज्यादा अंदर से खूबसूरत था। हर जगह खूबसूरत इंटीरियर और महंगे-महंगे फर्नीचर थे।

    हॉल में 68 वर्षीय एक बुजुर्ग व्यक्ति बैठे थे, जिनके चेहरे पर अलग ही तेज और आँखों में अलग ही चमक दिखाई दे रही थी। उन्हें देखकर ही पता चल रहा था कि वे बहुत ही गुणवान व्यक्ति थे। ये थे महेश्वरी खानदान के सबसे बड़े व्यक्ति, कैलाश महेश्वरी। कैलाश जी हॉल में पड़े सोफे पर बैठकर अखबार पढ़ रहे थे। तभी एक 50 वर्षीय व्यक्ति उनके सामने आया और उनके पैर छूते हुए कहा,
    "प्रणाम पापा सा।"

    कैलाश महेश्वरी ने उनकी ओर देखते हुए उनके सिर पर हाथ रखते हुए कहा,
    "सदा खुश रहिए और अपने जीवन में तरक्की कीजिए।"

    यह व्यक्ति कैलाश महेश्वरी के बेटे, रणविजय महेश्वरी थे, जो राजस्थान के बहुत बड़े बिज़नेसमैन में से एक थे।

    उनके साथ वहाँ अधेड़ उम्र की एक औरत भी थीं, जो बुजुर्ग थीं, लेकिन उनके चेहरे का तेज उनकी उम्र को झुठला रहा था। ये थीं कैलाश महेश्वरी की धर्मपत्नी, स्वर्णा महेश्वरी। रणविजय जी फिर अपनी माँ स्वर्णा महेश्वरी के भी पैर छूते हुए बोले,
    "प्रणाम माँ सा।"

    स्वर्णा महेश्वरी ने रणविजय के सिर पर अपना हाथ रखते हुए कहा,
    "सदा खुश रहें।"

    कैलाश महेश्वरी ने रणविजय जी से कहा,
    "रणविजय, हम जानते हैं कि आप अपने बिज़नेस को लेकर काफी सीरियस हैं। लेकिन कभी-कभार अपनी फैमिली को भी टाइम देना सीख लीजिए।"

    उनकी बात सुनकर रणविजय जी समझ गए कि कैलाश जी ये बात इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि इन दिनों रणविजय जी अपने बिज़नेस को लेकर काफी ज्यादा बिज़ी थे। जिससे वे अच्छे से न तो घर पर रह पाते थे और न ही फैमिली को टाइम दे पाते थे।

    रणविजय जी ने कैलाश जी से कहा,
    "पापा सा, हम आगे से ध्यान रखेंगे कि ऐसा दुबारा न हो।"

    कैलाश जी उनकी बात सुनकर हल्के से मुस्कुरा दिए और अपना सिर हिला दिया। रणविजय जी अपनी धर्मपत्नी को आवाज़ लगाई। कुछ ही देर में वहाँ एक खूबसूरत सी महिला आई। उनकी उम्र लगभग 42 वर्ष होगी। उन्होंने बहुत ही खूबसूरत तरीके से साड़ी पहनी थी; कानों में डायमंड के इयरिंग्स, गले में डायमंड का मंगलसूत्र, सोने का मोटा चेन और हाथों में सोने के कड़े। कुल मिलाकर, वे बेहद ही रॉयल और एलिगेंट लग रही थीं।

    यह थीं रणविजय महेश्वरी की धर्मपत्नी, मीनाक्षी महेश्वरी। वे जाकर पहले कैलाश जी और स्वर्णा जी से पैर छूकर आशीर्वाद लिया, फिर रणविजय जी की ओर देखते हुए बोलीं,
    "आप अभी तक ऑफिस नहीं गए?"

    मीनाक्षी जी की बात सुनकर कैलाश जी हल्के से मुस्कुराते हुए बोले,
    "मीनाक्षी बेटा, ये आज हमारे साथ ही ब्रेकफास्ट करेंगे।"

    उनकी बात पर मीनाक्षी जी चौंक कर रणविजय जी की तरफ देखीं, जो उन्हें देखकर हल्के से मुस्कुरा रहे थे। मीनाक्षी जी को समझ आ गया कि आज कैलाश जी ने रणविजय जी की क्लास लगाई होगी, वो भी अपने अंदाज में। इसलिए वे भी हल्के से मुस्कुरा दीं। क्योंकि वे जानती थीं कि इस समय रणविजय जी अपने ऑफिस के लिए कितने बिज़ी हैं और आज उनका ब्रेकफास्ट के लिए रुकना कुछ अलग था, क्योंकि बहुत दिनों से वे ब्रेकफास्ट के लिए तो रुकते ही नहीं थे।

    फिर मीनाक्षी जी उन तीनों से बोलीं,
    "आप लोग चलकर डाइनिंग टेबल पर बैठिए, मैं अभी ब्रेकफास्ट लगवाती हूँ।"

    उनकी बात सुनकर कैलाश जी, स्वर्णा जी और रणविजय जी जाकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गए। रणविजय जी मीनाक्षी जी को देखकर बोले,
    "बच्चे कहाँ हैं? उन्हें ब्रेकफास्ट नहीं करना?"

    उनकी बात पर मीनाक्षी जी बोलने से पहले ही, उन सभी को एक प्यारी सी आवाज़ सुनाई दी, जो डेढ़ साल के बच्चे की थी। वह दौड़ते हुए जाकर मीनाक्षी जी के पैरों पर लिपटते हुए बोली,
    "दादी सा, गुड मोर्निंग।"

    "गुड मॉर्निंग," उसने अपनी बच्ची वाली आवाज़ में कहा। उसे देख सभी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। मीनाक्षी जी नीचे झुक कर उसके सिर पर किस करते हुए बोलीं,
    "गुड मॉर्निंग, प्रिंसेस।"

    रणविजय जी उसे अपनी गोद में बिठाते हुए बोले,
    "तो आज हमारी प्रिंसेस को क्या खाना है?"

    उनकी बात पर वह नन्ही सी बच्ची बोली,
    "मुझे तो बहुत सारे चॉकलेट खाना हैं, दादू सा।"

    तभी वहाँ डाइनिंग एरिया में एक खूबसूरत सी लड़की आई। उसने बहुत ही अच्छे से इंडियन लुक कैरी किया था। वह लगभग 25 साल की लग रही थी और देखने में बेहद खूबसूरत थी। उस लड़की के साथ एक लड़का भी था, जो देखने में कम नहीं था; बेहद चार्मिंग और हैंडसम। ये थे महेश्वरी खानदान के बड़े बेटे, अनुभव महेश्वरी, जो एक बिज़नेसमैन थे, और उनकी पत्नी, मधुरिमा महेश्वरी, पेशे से प्रोफ़ेसर थीं।

    वे डाइनिंग एरिया की ओर आये और दोनों ने रणविजय जी, कैलाश जी, मीनाक्षी जी और स्वर्णा जी को प्रणाम किया।

    मधुरिमा ने छोटी सी बच्ची की बात सुन ली थी। उसने उस बच्ची को देखकर कहा,
    "चॉकलेट खाने से दांत सड़ जाते हैं।"

    यह छोटी बच्ची अनुभव और मधुरिमा की इकलौती बेटी, आरवी महेश्वरी थी; 3 साल की। देखने में बेहद क्यूट, हेज़ेल आँखें, गोरा रंग। उसने पिंक कलर का बहुत ही खूबसूरत सा फ्रॉक पहना था; बालों में दो छोटे-छोटे क्यूट से क्लिप लगे थे। उसके पैरों में पिंक कलर के जूते थे। कोई भी उसे देखकर उसकी क्यूटनेस में ही प्यार पा जाता। अपनी माँ की बात सुनकर छोटी आरवी बोली,
    "माँ माँ, मुझे चॉकलेट खाना हैं, तो आप मुझे क्यों रोक रही हो?"

    मधुरिमा ने कहा,
    "बेटा, ज़िद नहीं करते। ना आपके हेल्थ के लिए अच्छा नहीं है। आप अभी जूस पियो।"

    कहते हुए, उसने आरवी को रणविजय जी से अपनी गोद में लिया और सामने चेयर पर बैठकर उसे जूस पिलाने लगी। अनुभव भी आकर मधुरिमा के बगल वाली चेयर पर बैठा और अपनी नन्ही आरवी के सिर पर किस किया। स्वर्णा जी अनुभव और मधुरिमा को देखते हुए बोलीं,
    "लेकिन हमारे और दो बच्चे कहाँ हैं?"

    जवाब में अनुभव ने उनसे कहा,
    "दादी सा, अनाया को तो पता नहीं, लेकिन इध्यान सुबह ही हॉस्पिटल के लिए निकल चुका है। कुछ इमरजेंसी आ गई थी इसलिए।"

    मीनाक्षी जी ने कहा,
    "तो अनाया कहाँ है? वो भी हॉस्पिटल के लिए जा चुकी है क्या?"

    तभी पीछे से एक लड़की आकर मीनाक्षी जी के गले लग गई। मीनाक्षी जी पीछे मुड़ीं तो उनकी इकलौती बेटी, अनाया महेश्वरी थी, पेशे से एक सक्सेसफुल डॉक्टर; देखने में बेहद खूबसूरत और थोड़ी चुलबुली भी। वो भी सभी को आकर प्रणाम किया और अपनी चेयर पर बैठ गई। मीनाक्षी जी बोलीं,
    "चलो अब तो सब कोई आ ही चुके हैं। इध्यान तो नहीं है, वो हॉस्पिटल जा चुका है। इसीलिए अपना नाश्ता शुरू करते हैं।"

    कुछ देर में सभी ने नाश्ता किया। नाश्ते के बाद कैलाश जी सभी से बोले,
    "हमें आप सबसे कुछ ज़रूरी बात करनी है, तो सब हॉल में आ जाइए।"

    कैलाश जी की बात सुनकर सभी एक-दूसरे को देखने लगे, क्योंकि कैलाश जी को जब भी कोई ज़रूरी डिसीज़न लेना होता था, तब वे ऐसे ही सभी को बुलाते थे। कैलाश जी की बात सुनकर सभी 15 मिनट में हॉल में मौजूद हो चुके थे। कैलाश जी सोफे पर बैठते हुए बोले,
    "हमने इध्यान के लिए एक लड़की पसंद की है। हम चाहते हैं कि वो उसी से शादी करे।"

    उनकी बात सुनकर मीनाक्षी जी, रणविजय जी, स्वर्णा जी; सभी खुश हो गए। फिर रणविजय जी ने उनसे पूछा,
    "लेकिन लड़की कौन है?"

    तभी स्वर्णा जी बोलीं,
    "हाँ, लड़की कौन है? कैसी दिखती है? कहाँ से है? किस खानदान से है? सब जानना भी तो ज़रूरी है?"

    उन दोनों की बात सुनकर कैलाश जी हल्के से मुस्कुराते हुए बोले,
    "हमारे दोस्त देवराज सिंह चौहान को तो आप जानते ही होंगे।"

    रणविजय जी बोले,
    "हाँ पापा सा, बिज़नेस के मामले में वो भी हमारे जैसे बहुत अव्वल दर्जे के हैं और बहुत सी बिज़नेस पार्टी में उनके बेटे, वनराज चौहान से हमारी मुलाक़ात भी हुई है।"

    कैलाश जी बोले,
    "हाँ, तो देवराज की पोती, यानी वनराज चौहान की इकलौती बेटी, परिणीति चौहान ही है, मेरी पसंद हमारे इध्यान के लिए। हम कल ही जाकर ये रिश्ता पक्का करना चाहते हैं, ताकि शुभ काम में देरी न हो।"

    उनकी बात पर सभी ने हामी भरी, क्योंकि कैलाश जी की बात को कोई टाल भी नहीं सकता था। सभी ने हामी तो भर दी थी, लेकिन अनाया, अनुभव और मधुरिमा अभी भी कशमकश में थे, क्योंकि वे तीनों इध्यान को अच्छी तरह से जानते थे। उसने आज तक लव तो किया ही नहीं था, तो अरेंज मैरिज तो उसके बस में थी ही नहीं। अनाया ने अनुभव से कहा,
    "भाई सा, हमारे इध्यान भाई तो गए! क्योंकि दादा सा की बात तो कोई टाल नहीं सकता और ऊपर से वो इध्यान भाई की अरेंज मैरिज करवा रहे हैं।"

    मधुरिमा ने भी कहा,
    "हाँ, देवर सा को मनाएँगे कैसे? ये सोचो, वह हाँ कहेंगे क्या?"

    अनुभव उन दोनों को देखते हुए बोला,
    "तुम दोनों मुझसे क्या पूछ रही हो? मुझे तो खुद नहीं पता है कि इध्यान इस बात में क्या रिएक्ट करेगा?"

    तीनों ने एक साथ कंधे उचका दिए और फिर अपने-अपने कामों में लग गए। अनाया और मीनाक्षी जी दोनों हॉस्पिटल के लिए निकल गईं। उनके घर से बड़ा सा हॉस्पिटल उनके घर के सामने ही था।


    महेश्वरी हॉस्पिटल।

    अनाया और मीनाक्षी जी दोनों हॉस्पिटल के अंदर जाने लगीं। तभी अनाया ने मीनाक्षी जी से कहा,
    "माँ सा, इध्यान भाई को शादी के लिए कैसे मनाएँगे? वह तो लव मैरिज के लिए तैयार नहीं है, यहाँ तो उनकी अरेंज मैरिज हो रही है।"

    मीनाक्षी जी ने कहा,
    "ये तो हमें भी नहीं पता, लेकिन पापा सा की बात को टाला नहीं जा सकता। इध्यान को इस रिश्ते के लिए हाँ करना ही पड़ेगा।"

    अनाया ने कहा,
    "लेकिन मनाएगा कौन उन्हें?"

    मीनाक्षी जी ने कहा,
    "वो हमारी बात कभी नहीं टालता। हम ही उनसे बात करेंगे।"

    तभी दोनों एक केबिन के सामने खड़ी हो गईं, जिसके सामने एक नेम प्लेट लगा था: "डॉक्टर इध्यान महेश्वरी, न्यूरो सर्जन।"

    दोनों अंदर आ गईं। जैसे ही वे दोनों अंदर आईं, चेयर पर बैठे, फाइल पढ़ते हुए इध्यान पर उनकी नज़र पड़ी। वह बेहद ही ध्यान से फाइल पढ़ रहा था।

    ये थे इध्यान महेश्वरी, इस कहानी के हीरो। देखने में एकदम कमाल के थे। 28 साल की उम्र, हल्की भूरी आँखें, गठीला बदन, चेहरे पर अलग ही तेज। हालाँकि, इन्हें गुस्सा बहुत आता था, जिससे सभी घरवाले इनके लिए बहुत ही सोच-समझकर कोई फैसला लेते थे, नहीं तो ये अपनी लाइफ़ का फैसला खुद ही लेना पसंद करते थे। पैसे में बहुत ही सक्सेसफुल न्यूरोसर्जन थे।

    मीनाक्षी जी जाकर उनके कंधे पर हाथ रखा। तो इध्यान ने ऊपर देखा। वह मीनाक्षी जी को देखकर हल्के से मुस्कुराते हुए बोला,
    "माँ सा, आप बैठिए।"

    मीनाक्षी जी सामने वाली चेयर पर बैठते हुए बोलीं,
    "आप सुबह ही निकल गए थे हॉस्पिटल के लिए। नाश्ता भी नहीं किया बेटा आपने?"

    इध्यान ने अनाया को भी बैठने के लिए इशारा किया और मीनाक्षी जी को जवाब दिया,
    "वो माँ सा, कुछ ज़रूरी काम था, उसी के लिए जल्दी आना पड़ा।"

    मीनाक्षी जी बोलीं,
    "अच्छा, आपने ब्रेकफास्ट किया?"

    इध्यान ने कहा,
    "हाँ माँ सा, मैंने कर लिया।"

    फिर मीनाक्षी जी थोड़ा हिचकिचाते हुए बोलीं,
    "...इध्यान, आज आपके दादा सा ने एक फैसला लिया है..." इध्यान बेहद गंभीरता से मीनाक्षी जी की ओर देख रहा था कि ऐसा क्या फैसला लिया गया है। मीनाक्षी जी इससे आगे बोलने से पहले ही चुप हो गईं। अनाया ने अपने दोनों फिंगर्स क्रॉस कर लिए थे, क्योंकि वे जानती थीं कि यह ज्वालामुखी की तरह फटने वाला है।


    मीनाक्षी जी फिर थोड़ी देर चुप होकर बोलीं,
    "...इध्यान, आपके लिए एक लड़की पसंद की है और वो चाहते हैं कि आप उसी लड़की से शादी करें और कल हम सब उस लड़की के घर आपका रिश्ता तय करने जा रहे हैं।"

    इध्यान ने अपने सख्त चेहरे से सारी बातें अच्छे से सुनीं। अनाया तो इध्यान के ही चेहरे को देख रही थी। फिर इध्यान ने अपने चेहरे के भाव सख्त करते हुए कहा,
    "...माँ सा, मैं शादी नहीं करना चाहता हूँ और ख़ास करके अरेंज तो बिल्कुल नहीं। मुझे थोड़ा टाइम तो दीजिए।"

    मीनाक्षी जी बोलीं,
    "...बेटा, हम जानते हैं कि आप इस रिश्ते से खुश नहीं होंगे, लेकिन आपके दादा सा की बात हम में से कोई नहीं टाल सकता है। वह जो एक बार फैसला ले लेते हैं, वही होता है। तो हम चाहते हैं कि आप उनके फैसले की क़दर करें।"

    इध्यान अब कुछ नहीं बोला और गुस्से से अपने केबिन से बाहर चला गया। मीनाक्षी जी और अनाया को पता था कि इध्यान अभी बहुत गुस्से में है, इसलिए उन्होंने उससे कुछ नहीं कहा।

  • 2. A Royal Arrange marriage - Chapter 3

    Words: 1419

    Estimated Reading Time: 9 min

    आज पूरे दिन इध्यान ने किसी से बात नहीं की और न ही किसी का कॉल उठाया।

    सभी घर वाले इध्यान के बर्ताव से वाकिफ थे।

    उन सबको बस इध्यान और कैलाश जी के आमने-सामने होने से घबराहट हो रही थी, क्योंकि वे सब जानते थे कि कैलाश जी और इध्यान दोनों ही ज़िद में एक जैसे थे। इध्यान बिल्कुल अपने दादा सा यानी कैलाश जी पर गया था।


    शाम हो चुकी थी। मीनाक्षी जी और अनाया हॉस्पिटल से आ चुके थे और बाकी सब सदस्य भी आ चुके थे। सभी नीचे हाल में बैठे हुए थे।

    कुछ ही देर में इध्यान भी हॉस्पिटल से आ गया। उसने किसी से कोई बात नहीं की और सीधे अपने रूम में चला गया।


    उसके ऐसे बर्ताव से कैलाश जी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। जिसे देखकर किसी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था। तब स्वर्णा जी ने कैलाश जी से पूछ ही लिया, "जी, आप मुस्कुरा क्यों रहे हैं? हमें तो इध्यान की नाराज़गी, उनका स्वभाव देखकर ही लग रहा है कि वह बहुत ही ज़्यादा नाराज़ हैं।"



    स्वर्णा जी की बात सुनकर कैलाश जी उनसे कहते हैं, "हम अपने पोते को अच्छे से जानते हैं। उनके अंदर गुस्सा और ज़िद बहुत ज़्यादा है।"
    "लेकिन हम भी उनके दादा सा हैं, तो हम भी पीछे नहीं रहने वाले हैं।"



    कैलाश जी की बात सुनकर सभी सदस्य एक-दूसरे को देखने लगे। सब जानते थे कि कैलाश जी और इध्यान का रिश्ता कितना अच्छा है। इध्यान कभी भी कैलाश जी की कोई बात नहीं टालता था, लेकिन आज वाली बात में शायद इध्यान कैलाश जी की बात मान नहीं सकता था।


    कुछ देर में डिनर के वक्त सभी डायनिंग एरिया में बैठते हैं। इध्यान भी चुपचाप आकर अपने चेयर पर बैठता है।


    तभी कैलाश जी इध्यान से कहते हैं, "इध्यान बेटा, हमने आपके लिए एक लड़की पसंद की है। हम चाहते हैं कि आप उनसे ही शादी करें और हमें पूरा यकीन है कि आप हमारी यह इच्छा ज़रूर पूरी करेंगे।"



    कैलाश जी की बात सुनकर इध्यान उन्हें देखकर कहता है, "दादा सा, मैंने आपकी हर इच्छा का मान रखा है, लेकिन शादी, वो भी उससे जिससे मैं जानता तक नहीं हूँ? उस लड़की से शादी करना तो मैं बिल्कुल भी नहीं चाहता हूँ।"



    इध्यान ने यह बात बहुत ही शांत स्वर में कही थी।


    कैलाश जी उसकी बात सुनकर कहते हैं, "यह हम भी जानते हैं कि आप उस लड़की से नहीं मिले हैं। लेकिन हम उस लड़की से ज़रूर मिले हैं। उनका स्वभाव बहुत ही अच्छा है। और वह हमारे अच्छे दोस्त देवराज चौहान की पोती है।"



    इध्यान: "मैं यह जानता हूँ दादा सा, आप मेरे लिए अच्छा ही सोचेंगे, लेकिन मुझे भी शादी नहीं करनी है।" ऐसा कहते हुए इध्यान उठकर अपने रूम में जाने लगता है।


    इध्यान को कैलाश जी की बात ना मानते देख, रणविजय जी इध्यान को पीछे से आवाज़ लगाते हुए कहते हैं, "इध्यान, आप अब अपने दादाजी की भी बात नहीं मानेंगे? हमारी तो छोड़ो, लेकिन ऐसे आप दादा सा के भी आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं। ऐसे संस्कार नहीं हैं आपके।"



    रणविजय जी की बात सुनकर इध्यान के कदम ठहर जाते हैं। वह पीछे मुड़कर रणविजय जी से कहता है, "पापा सा, मैं यह जानता हूँ कि दादाजी की बात आज तक किसी ने नहीं काटी है और मैं भी नहीं काटना चाहता, लेकिन शादी जैसा फैसला मैं ऐसे ही नहीं ले सकता।" इतना कहकर इध्यान सीधे अपने रूम में चला जाता है।


    रणविजय जी को इध्यान पर बहुत ही ज़्यादा गुस्सा आ रहा था। वे जैसे ही गुस्से में इध्यान के पीछे जाने के लिए बढ़े, कैलाश जी ने उनके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ""जाने दीजिए उन्हें। हम अपने पोते को अच्छे से जानते हैं। वह आज नहीं तो कल हमारी बात मान ही लेंगे। आप उनकी चिंता मत करें। हम कल ज़रूर चौहान हाउस लेकर जाएँगे। यह हमारा वादा है आप लोगों से।""



    ऐसा कहते हुए कैलाश जी की आँखों में अलग चमक नज़र आ रही थी, जिसे देखकर समझ में आ गया कि अब कैलाश जी भी पीछे नहीं हटने वाले।


    उन्होंने सभी को अगले दिन सुबह 11:00 बजे तक चौहान हाउस जाने के लिए तैयार रहने को कहा और अपने रूम की ओर बढ़ गए।


    घर के सभी सदस्य कैलाश जी की बात सुनकर एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे। फिर अपने-अपने रूम में चले जाते हैं।


    रणविजय जी का कमरा।

    रणविजय जी अपने कमरे में पड़े सोफे पर बैठकर कुछ काम कर रहे थे। तभी उनके बगल में मीनाक्षी जी बैठे हुए उनसे कहती हैं, "आप भी यही चाहते हैं कि इध्यान इस रिश्ते के लिए हां करेगा? जहाँ तक हमें पता है, हमारे बेटे के इरादे कितने पक्के हैं कि वह किसी की बात नहीं मानेंगे।"



    उनकी बात पर रणविजय जी उनकी ओर देखकर कहते हैं, "हम जानते हैं, मीनाक्षी। आप अपने बेटे के लिए अच्छा ही सोच रही होगी, लेकिन पापा सा जो भी फैसला लेते हैं, वह हमारे लिए बहुत ही अच्छा रहता है। हमें और कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है।" इतना कहकर रणविजय जी चुप हो जाते हैं और अपना काम वापस करने लगते हैं।


    मीनाक्षी जी भी अब शांत हो जाती हैं। बस उन्हें अब चिंता हो रही थी कि इध्यान अगर अगले दिन सुबह पापा की बात न माने तो घर में सब कुछ बिगड़ सकता है।


    अगली सुबह।

    इध्यान का कमरा।

    इध्यान शीशे में खड़े होकर हॉस्पिटल जाने के लिए तैयार हो रहा था। तभी उसके दरवाज़े पर किसी ने नॉक किया। उसने जाकर दरवाज़ा खोला। सामने कैलाश जी खड़े थे। कैलाश जी को देखकर इध्यान ने उनके पैर छुए और अंदर आने को कहा। अंदर जाकर कैलाश जी इध्यान के रूम में पड़े सोफे पर बैठते हैं और इध्यान को भी बैठने का इशारा करते हैं।


    इध्यान भी उनके बगल में बैठ जाता है। कैलाश जी कुछ देर शांत रहते हैं, फिर इध्यान को देखकर कहते हैं, "इध्यान, हम जानते हैं कि आप इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन अगर आप यह रिश्ता नहीं करना चाहते हैं, तो हमें कोई अच्छा सा रीज़न बता दीजिए ताकि हम रिश्ता आगे न बढ़ा दें।"


    फिर वे आगे कहते हैं, "अगर आपको कोई और पसंद है, तब भी हम रिश्ता आगे नहीं बढ़ाएँगे और अगर आपको कोई और नहीं पसंद है, तो हमारा दृढ़ निश्चय यही रहेगा कि आप परिणीति से ही शादी करेंगे।"


    इध्यान अब कुछ समझ नहीं पा रहा है, क्योंकि वह अपने दादा सा से झूठ नहीं कह सकता। क्यों से कोई पसंद है? उसने आज तक कभी लड़कियों का चक्कर रखा ही नहीं था। इसके बारे में कैलाश जी को अच्छे से पता था। इसलिए कैलाश जी ने बड़े ही बारीकी से और सरल तरीके से एक बात पर इध्यान को अपनी बातों में फँसा लिया था, क्योंकि कैलाश जी भी जानते थे कि इध्यान उनसे झूठ नहीं कहेगा और न ही उनकी ज़िंदगी में कोई लड़की है।


    इध्यान से कुछ जवाब न पाकर कैलाश जी मुस्कुराते हुए कहते हैं, "हम आपका जवाब जान चुके हैं। अब क्या आप हमारे साथ चौहान हाउस जाने के लिए तैयार हैं?"


    इध्यान अब अपने दादाजी को देखने लगता है। फिर कुछ सोचकर वह हाँ में सिर हिला देता है। जिसे देखकर कैलाश जी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है। वे खड़े हो जाते हैं। उन्हें देखकर इध्यान भी खड़ा हो जाता है। कैलाश जी जाते हुए इध्यान के कंधे पर हाथ रखते हुए कहते हैं, "हमें अपने पोते पर विश्वास था कि वह हमारी बात को कभी नहीं टालेंगे। हम इंतज़ार कर रहे हैं नीचे। आप जल्दी आइएगा।"


    इतना कहकर कैलाश जी इध्यान के रूम से चले जाते हैं।


    इध्यान अब शांत होकर सोचने लगता है कि एक बार लड़की के घर जाना ही सही रहेगा। उसके बाद वह बाद में इस रिश्ते के लिए मना कर देगा।

    सोचकर इध्यान अब तैयार होने के लिए चला जाता है।


    इधर कैलाश जी भी नीचे आते हैं। सभी उन्हें देखने लगते हैं। तभी कैलाश जी उनसे कहते हैं, "आप सभी तैयार हैं? इध्यान बस कुछ देर में ही नीचे आ रहा है, फिर हम निकलते हैं।"


    यह सुनकर सभी की आँखें बड़ी हो जाती हैं, क्योंकि उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इध्यान चौहान हाउस जाने के लिए तैयार हो चुका है।

  • 3. A Royal Arrange marriage - Chapter 4

    Words: 2463

    Estimated Reading Time: 15 min

    इध्यान कुछ देर में तैयार होकर नीचे आया।

    सभी चौहान हाउस के लिए निकल गए। एक कार में केशव जी, स्वर्ण जी, रणविजय जी और मीनाक्षी जी थे, वहीं दूसरी कार में मधुरिमा, अनुभव और इध्यान थे। उसके गोद में नन्ही आरवी थी। अनाया इन लोगों के साथ नहीं आई थी। अस्पताल में कुछ जरूरी काम के कारण उसे हॉस्पिटल जाना पड़ा था।

    अनुभव कार ड्राइव कर रहा था। पीछे मधुरिमा बैठी थी। अनुभव के बगल में इध्यान बैठा था, जो अपने ही सोच में गुम था। तभी पीछे से मधुरिमा इध्यान से कहती है, "देवर सा, हमें नहीं पता था कि आप इतनी जल्दी इस रिश्ते के लिए हां कर देंगे।"

    अनुभव भी इध्यान से कहता है, "हाँ इध्यान, मुझे नहीं पता था कि तुम अरेंज मैरिज के लिए तैयार होगे। आई एम शॉक्ड टु योर डिसीजन।"

    इध्यान दोनों से कहता है, "मैं सिर्फ लड़की देखने जा रहा हूँ, कोई शादी करने नहीं। इतना सोचने की जरूरत नहीं है।"

    तभी मधुरिमा इध्यान से कहती है, "ये क्या बात हुई देवर सा? अब तो हमारी देवरानी ला दीजिए।"

    "अब तो आरवी को भी उसकी चाची सा को देखने की जल्दी हो रही है।"

    इध्यान उसकी बात पर हल्के से चिढ़कर कहता है, "क्या भाभी सा, आप भी ना हर वक्त यही रट लगाए रखती हो! मुझे अभी नहीं करनी है शादी, और अरेंज तो बिल्कुल नहीं करनी है।"

    लेकिन मैंने तो सुना है कि परिणीति दिखने में बहुत ही ज्यादा खूबसूरत है। और बहुत ही ज्यादा चुलबुली भी। लेकिन उसका चुलबुला नेचर सुनकर मुझे बहुत ही ज्यादा खुशी हुई क्योंकि आप पहले इतने शांत टाइप के इंसान थे। वो आपकी जिंदगी में थोड़ी बहुत शांति लाएगी।" मधुरिमा इध्यान को हल्का चिढ़ाते हुए कहती है।

    मधुरिमा की बात पर अनुभव भी हँसते हुए कहता है, "हाँ इध्यान, सही है। एक बार शादी कर ले, क्या ही चला जाएगा।"

    "क्या भाई सा, आप कह रहे हो शादी कर ले? आपको तो भाभी सा जैसी इतनी अच्छी बीवी मिल गई, तो क्या मुझे मिल जाएगी? ऊपर से इतनी क्यूट सी बेटी आरवी।" कहते हुए इध्यान आरवी के गालों को सहलाता है। आरवी भी इध्यान से अटैच्ड थी। इसलिए वह इध्यान देखकर हल्के से मुस्कुराती है और अपनी प्यारी सी आवाज़ में कहती है, "चाचू सा, मुझे ना मेरी चाची सा देखना है। वह मेरे साथ खेलेगी ना।"

    आरवी की बात सुनकर इध्यान आँखें फाड़कर उसे देखने लगता है कि इस छोटी बच्ची को भी अब उसकी चाची चाहिए। आरवी की बात सुनकर अनुभव और मधुरिमा जोर से हँसते हुए एक साथ कहते हैं, "देखा डॉ साहब!"

    इध्यान अब चुप रहने में ही अपनी भलाई समझता है।

    चौहान मेंशन...

    बड़ा सा घर। हर जगह शांति। तभी एक बूढ़े आदमी, जिन्होंने सिंपल सा क्रीम कलर का कुर्ता-पजामा पहना था, उनके हाथ में एक छड़ी थी जिसे वह अपने साथ ही रखते थे। ऐसे चलने में उन्हें प्रॉब्लम नहीं थी, लेकिन उनका यह रुतबा बहुत ही ज्यादा सूट करता था। यह कोई और नहीं, बल्कि देवराज चौहान थे।

    देवराज चौहान सभी को इंस्ट्रक्ट करते हुए कहते हैं, "महेश्वरी फैमिली आने वाली होगी। हमें जल्दी ही सारी तैयारियाँ खत्म करनी होंगी।" कहते हुए वह अपने बेटे वनराज चौहान और बहू आर्शीता चौहान को बुलाते हैं। तभी वनराज जी और आर्शीता जी वहाँ जाकर कहते हैं, "जी पापा, सब कहिए?"

    देवराज जी उन दोनों से कहते हैं, "आप दोनों ने परिणीति से बात कर लिया ना? वो तैयार है ना? महेश्वरी फैमिली अब किसी भी वक्त आ सकते हैं। उन्होंने हमें फोन करके पहले ही बता दिया।"

    आर्शीता चौहान और वनराज चौहान एक-दूसरे को देखने लगते हैं।

    उनसे पहले ही देवराज चौहान की बीवी, अनामिका चौहान (यानी परिणीति की दादी), देवराज जी से कहती है, "हमें ऐसे अचानक से परिणीति को इस रिश्ते के लिए दबाव नहीं डालना चाहिए। वह भी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती है।"

    "आप एक बार समझने की कोशिश कीजिए..." अनामिका जी कुछ और कहतीं, देवराज जी ने हाथ दिखाकर रोकते हुए कहा, "हम अपने पोते के लिए कभी गलत नहीं करना चाहेंगे।"

    उनकी बात सुनकर अनामिका जी शांत हो जाती है। वनराज जी और आर्शीता जी भी देवराज जी को कुछ नहीं कहते हैं क्योंकि वो दोनों देवराज जी की हर बात मानते हैं। उनकी बात ना मानना उनके मर्यादा के खिलाफ है। इसलिए उन्होंने जैसे ही कहा था, वैसे ही अपनी बेटी परिणीति से बात कर ली थी। हालाँकि परिणीति इस रिश्ते के लिए बिल्कुल नाखुश थी, लेकिन वह भी अपने दादा सा की खुशी के लिए सिर्फ लड़के से मिलने के लिए हाँ कह दिया था।

    कुछ देर में महेश्वरी फैमिली चौहान हाउस पहुँचती है। सभी लोग बहुत अच्छे से महेश्वरी फैमिली का स्वागत करते हैं। देवराज जी और केशव जी एक-दूसरे के गले मिलते हुए कहते हैं, "अब तो दोस्ती रिश्ते में बदलने वाली है।" देवराज जी कहते हुए केशव जी से अलग होते हैं। सभी हाल में बैठ जाते हैं।

    देवराज जी अपने बेटे वनराज को इशारा करते हैं कि परिणीति को लेकर आएँ। देवराज जी का इशारा समझकर वनराज जी और आर्शीता जी ऊपर जाकर परिणीति के रूम में आते हैं।

    एक बड़ा सा कमरा, जिसमें पिंक और व्हाइट कलर के कॉम्बिनेशन में पूरा सजाया गया था। हर जगह खूबसूरत लड़की की फोटो थीं। बड़ा सा बेड, जिसमें कई सारे सॉफ्ट टॉयज़ और टेडी बेअर्स रखे थे। उसी के पास ड्रेसिंग टेबल, जहाँ पर एक लड़की बहुत ही खूबसूरत सा ग्रीन कलर का फुल स्लीव्स सूट पहने बैठी थी। गुलाबी होंठ, देखने लायक नैन-नक्श, लंबे घने काले बाल। वह लड़की दिखने में किसी अप्सरा से कम नहीं थी। उसकी आँखें बहुत ही ज्यादा खूबसूरत थीं, लेकिन आज इन आँखों में अलग ही उदासी छा गई थी।

    परिणीति, कहते हुए वनराज जी और आर्शीता जी दोनों उसे आवाज़ लगाते हैं। यह कोई और नहीं, हमारी कहानी की हीरोइन, परिणीति चौहान है।

    परिणीति पीछे पलटकर देखती है और जाकर तुरंत अपने पापा के गले लगकर कहती है, "पापा, अभी हमें ये शादी नहीं करनी है। आप दादा सा को समझाएँ ना। हम अभी आगे पढ़ना चाहते हैं।"

    उसके बाद आर्शीता जी परिणीति को वनराज जी से अलग करते हुए कहती है, "परिणीति बेटा, हम जानते हैं कि आप इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं है, लेकिन आप एक बार लड़के से मिल तो लीजिए। हम वादा करते हैं अगर आपको लड़का पसंद ना आए तो हम इस रिश्ते को नहीं होने देंगे।" अपनी माँ की बात सुनकर परिणीति एक नज़र दोनों को देखती है, फिर अपना सर हल्के से हिला देती है।

    हमेशा मस्ती करने वाली लड़की आज इतनी शांत देखकर वनराज जी और आर्शीता जी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। लेकिन वो दोनों देवराज जी के खिलाफ नहीं जा सकते थे।

    परिणीति को लेकर आर्शीता जी और वनराज जी नीचे आते हैं। परिणीति को देखकर सभी महेश्वरी फैमिली की आँखें परिणीति पर ही टिक जाती हैं। वो लग ही इतनी प्यारी थी कि कोई उसे बिना देखे नहीं रह सका। बस एक नाराज़ थे, और वो थे हमारे डॉक्टर साहब, यानी इध्यान। उसने एक नज़र परिणीति को देखा तक नहीं था। वह सिर्फ़ आरवी के साथ बिज़ी था।

    परिणीति ने भी अपनी पलकें उठाकर सामने नहीं देखा था। उसकी पलकें झुकी हुई थीं। तभी मीनाक्षी जी जाकर परिणीति के बालों को सहलाते हुए कहती हैं, "कितनी प्यारी है आपकी बेटी! किसी की नज़र ना लगे।" कहते हुए वह अपने आँखों का काजल निकालकर परिणीति के कान के पीछे लगा देती है।

    मीनाक्षी जी की बात सुनकर सभी मुस्कुराने लगते हैं। परिणीति एक-एक करके सभी के पैर छूती है।

    सभी के पैर छूते-छूते जैसे ही वह इध्यान के पैर भी छूने को झुकी, इध्यान ने तुरंत ही उसके हाथों को पकड़ते हुए कहा, "ऐ, स्टॉप इट!"

    इध्यान भी परिणीति को देखा नहीं था, लेकिन जैसे ही परिणीति ने उसके पैर छूने के लिए नीचे झुका, इध्यान ने उसके हाथ पकड़कर उसकी तरफ़ देखा था। परिणीति भी अपनी पलकें उठाकर सामने देखती है तो उसकी नज़रें इध्यान से टकरा जाती हैं। दोनों ही उसे देखने लगते हैं। परिणीति को लगा नहीं था कि सामने वाला लड़का इतना अच्छा होगा दिखने में, लेकिन फिर वह अपने दिमाग से वह ख्याल झटकते हुए तुरंत ही ध्यान से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करती है। लेकिन इध्यान तो इस कदर परिणीति की आँखों में खो चुका था कि उसे एहसास ही नहीं हुआ कि अब तक उसने परिणीति का हाथ अपने हाथ में पकड़कर रखा हुआ है।

    उसके बगल में बैठे अनुभव ने कोहनी मारते हुए कहा, "भाई सा, हाथ छोड़ दें।"

    अनुभव की बात सुनकर इध्यान तुरंत सँभलता है और परिणीति का हाथ छोड़ देता है। उसकी ऐसी हरकत देखकर सभी मुस्कुराने लगते हैं।

    परिणीति जाकर सामने के सोफे पर बैठ जाती है। महेश्वरी फैमिली पूरी खुले विचार के थे। उन्होंने परिणीति से ऐसा कुछ सवाल नहीं किया कि तुम्हें खाना बनाना आता है क्या, या तुम क्या करना चाहती हो। उन्होंने सिर्फ़ इतना कहा कि परिणीति जो करना चाहती है, हम उसे रोकेंगे नहीं, और उस पर कोई दबाव नहीं बनाएंगे। ऐसा सुनकर सभी चौहान हाउस को खुशी मिलती है कि महेश्वरी फैमिली की सोच और जैसी है, जो अपनी बहू को बस घर में बंद रखें।

    कुछ देर में स्वर्णा जी चौहान फैमिली से कहती है कि कुछ देर परिणीति और इध्यान को अकेले में बात करने दिया जाए ताकि वे दोनों एक-दूसरे को समझ पाएँ।

    इसमें चौहान फैमिली को कोई भी प्रॉब्लम नहीं थी। लेकिन परिणीति की तो हालत ही खराब हो चुकी थी। यह सुनकर कि उसे इध्यान से अकेले में बात करना पड़ेगा, वह अपने मन में कहती है, "ले बेटा परिणीति, आज तो हम गए! अब यह पता नहीं क्या होगा हमारे साथ।" परिणीति अपने ही ख्यालों में खोई हुई थी, तभी उसकी माँ उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहती है, "परिणीति, जा बेटा।"

    परिणीति हाँ में सर हिला देती है और इध्यान के साथ नॉर्मली छत पर चली जाती है।

    इधर इध्यान भी परिणीति से अकेले में बात करने में थोड़ा ऑकवर्ड लग रहा था। उसे अभी कुछ देर पहले का इंसिडेंट याद आ चुका था कि कैसे उसने परिणीति का हाथ पकड़ा हुआ था। यह सोचकर इध्यान को बहुत ही ज्यादा अजीब लग रहा था।

    इध्यान और परिणीति जाकर छत के रेलिंग के पास खड़े हो जाते हैं। न तो परिणीति इध्यान की तरफ़ देख रही थी, न ही इध्यान परिणीति की तरफ़ देख रहा था।

    कुछ देर में हिम्मत करके परिणीति ने ही इध्यान से बात की और कहा, "आपको अगर कुछ पूछना है तो आप पूछ सकते हैं।"

    इध्यान परिणीति से बहुत ही शांत स्वर में कहता है, "नहीं, मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं हूँ कि तुम्हें यह करना है, तुम्हें वह करना है। बिल्कुल भी नहीं। सो यू डोंट वरी और हेज़िटेट टु टॉक विथ मी..."

    इध्यान की बात सुनकर परिणीति ने एक राहत की साँस ली और इध्यान से सीधे पूछती है, "क्या आप शादी करना चाहते हैं?"

    इध्यान परिणीति का सवाल सुनकर चुप हो जाता है। परिणीति समझ जाती है कि इध्यान भी इस शादी के लिए खुश नहीं है। वो सीधे इध्यान से कहती है, "देखिए, हम भी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हैं। हमारी पढ़ाई अभी बाकी है। हम अपने सपनों को पहले पूरा करना चाहते हैं। ऐसा हम बिल्कुल नहीं चाहते हैं कि हम सिर्फ अपने फैमिली से जाने जाएँ। हम अपना कुछ मुकाम बनाना चाहते हैं ताकि लोग हमें हमारे नाम से जानें, ना कि हमारे फैमिली सरनेम से।"

    उसकी ऐसी बातें सुनकर इध्यान काफी हद तक उससे इम्प्रेस हो चुका था। परिणीति बाकी लड़कियों जैसी बिल्कुल भी नहीं है, जो चुपचाप किसी भी रिश्ते को एक्सेप्ट कर लेती हैं। वह खुलकर अपनी बात सामने वाले को कह देती है। उसे भी लगा कि परिणीति से अब कुछ छुपाना नहीं चाहिए, तो वह भी कहता है, "फ़िलहाल के लिए तो मैं भी अभी शादी के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हूँ।"

    इध्यान की बात सुनकर परिणीति खुश हो जाती है। वह चेहरे पर स्माइल लाते हुए कहती है, "तो इस रिश्ते के लिए मना कर देते हैं ना?" उसने इतनी ही जल्दी में कहा था कि इध्यान उसे अजीब नज़रों से देखने लगता है। अभी यह लड़की इतनी शांत स्वर में बात कर रही थी और अभी इस तरीके से...

    तभी परिणीति को एहसास होता है कि अभी-अभी उसने कैसे रिएक्ट किया है, तो वह थोड़ा घबराते हुए कहती है, "मतलब आपको यह रिश्ता नहीं करना है, हमें भी यह रिश्ता नहीं करना है, तो हम इस रिश्ते के लिए मना कर देते हैं ना..."

    इध्यान: "ठीक है, हम अभी चलकर नीचे सबको कह देते हैं।" वो दोनों जैसे ही नीचे आते हैं, नीचे का माहौल ही कुछ और था। सभी एक-दूसरे को मिठाई खिला रहे थे।

    परिणीति और इध्यान दोनों एक-दूसरे को देखने लगते हैं।

    स्वर्णा जी जाकर परिणीति के गाल को छूते हुए कहती हैं, "हमें तो आपकी बेटी बहुत ही ज्यादा पसंद है। हम जल्द से जल्द उसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं।"

    उनकी बात सुनकर परिणीति को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह सब अभी अचानक से कैसे हो सकता है। अभी तो वह दोनों सिर्फ बातें करने के लिए गए थे।

    केशव जी भी आकर इध्यान का कंधा पकड़ते हुए कहते हैं, "हमें हमारे घर की छोटी बहू मिल चुकी है। हम सिर्फ इतना चाहते थे कि आप एक बार परिणीति से मिल लें, बाकी हमने पहले ही आपका रिश्ता तय कर दिया था।" उनकी बात सुनकर इध्यान को बहुत ही ज्यादा गुस्सा आ जाता है। इसका एहसास मीनाक्षी जी को हो चुका था। जैसे ही इध्यान किसी से कुछ कहने वाला हुआ, मीनाक्षी जी ने उसका हाथ पकड़ते हुए धीरे से कहा, "इध्यान..."

    मीनाक्षी जी उसे अपनी आँखों से आश्वस्त करती हैं कि वह भी शांत रहे।

    इध्यान ने बहुत ही मुश्किल से अपने गुस्से को कंट्रोल किया।

    परिणीति को भी झटका लग चुका था बात सुनकर। वो अपने माँ-बाप को एक नज़र देखती है, तो वो उनसे आँखों में ही सॉरी माँग रहे थे। वो दोनों परिणीति की आँखों में अपने लिए नाराज़गी साफ़ देख रहे थे। लेकिन उन्हें यह बात परिणीति से छुपानी पड़ी थी क्योंकि वो परिणीति को जानते थे कि ऐसे में तो वह महेश्वरी फैमिली के घर बिल्कुल भी नहीं आती अगर उसे पहले से ही पता रहता कि उसका रिश्ता पहले ही तय हो चुका है।

    Stay tuned.........✍️✍️✍️

  • 4. A Royal Arrange marriage - Chapter 5

    Words: 1569

    Estimated Reading Time: 10 min

    फैमिली की बात सुनकर इध्यान और परिणीति परेशान हो गए। दोनों को पता था कि वे इस रिश्ते के लिए खुश नहीं हैं और न ही इसे अपनाना चाहते हैं। उपर से, उनकी फैमिली ने उन दोनों से इतनी बड़ी बात छुपाई थी कि दोनों का रिश्ता पहले ही तय हो चुका था।


    परिणीति और इध्यान को सोफे पर बैठाया गया। इध्यान की माँ, मीनाक्षी जी, आकर परिणीति के सर पर लाल चुनरी उड़ाकर उसका तिलक किया और मुँह मीठा कराया। इधर, परिणीति की माँ, अर्षिता जी, आकर इध्यान को शगुन दिया और उसका मुँह मीठा कराया। इध्यान ने बहुत मुश्किल से अपने गुस्से को कंट्रोल किया हुआ था, जिसे सारी माहेश्वरी फैमिली समझ रही थी। लेकिन कैलाश जी ने उन्हें आँखों से संकेत किया कि कुछ भी नहीं होगा। इससे सारी फैमिली थोड़ा रिलैक्स फील करने लगी।


    कुछ देर में माहेश्वरी फैमिली चौहान फैमिली से विदा लेती है। पूरे रास्ते इध्यान ने न तो किसी से कुछ बात की और न ही किसी और ने उससे बात करने की हिम्मत की।


    इधर चौहान फैमिली में, परिणीति दौड़कर अपने रूम में चली जाती है। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसका ऐसे जाना उसके पापा और मम्मी को खल रहा था। वे दोनों उसके पीछे उसके रूम में गए। साथ ही साथ देवराज जी और अनामिका जी भी परिणीति के कमरे की ओर बढ़ गए। क्योंकि वे लोग जानते थे कि परिणीति से उन्होंने यह बात छुपाई थी कि उसका रिश्ता इध्यान से पहले ही तय हो चुका है।


    वनराज जी जैसे ही परिणीति के रूम में दाखिल हुए, परिणीति उनके सामने आकर भरी आँखों से कहती है, "पापा, हमें आपसे यह उम्मीद नहीं थी कि आप हमसे झूठ कहेंगे।" वनराज जी उसे अपने सीने से लगाते हुए कहते हैं, "हम जानते हैं कि हमसे गलती हुई है, लेकिन क्या आप हमारी खुशी के लिए इस रिश्ते को हाँ नहीं कह सकती हैं?"


    परिणीति कहती है, "पापा, हमने आज तक आपकी कोई बात नहीं काटी है, लेकिन शादी का फैसला हमारे जीवन का सबसे बड़ा फैसला है, जिसे हम ऐसे ही नहीं ले सकते हैं।"


    वनराज जी परिणीति से आगे कुछ कहते, उससे पहले ही पीछे से देवराज जी की आवाज आती है, "हम भी जानते हैं कि शादी का फैसला हमारी ज़िंदगी का सबसे बड़ा और अहम फैसला होता है। परिणीति बेटा, क्या आपको अपने दादा साहब पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है? क्यों? आपके लिए हम गलत फैसला क्यों देंगे?"


    देवराज जी की आवाज सुनकर परिणीति पीछे देखती है। उनके साथ वनराज और अर्षिता जी भी पीछे मुड़कर देखने लगते हैं। तभी देवराज जी परिणीति के पास आकर उसके सिर पर हाथ रखकर कहते हैं, "बेटा, हम अच्छे से जानते हैं कि आज की जनरेशन को ऐसे अरेंज मैरिज बिल्कुल पसंद नहीं है और हमने तो आपसे झूठ भी कहा कि आप सिर्फ आज लड़के से मिलेंगी। लेकिन हमारा कोई गलत इरादा नहीं था। हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि आप अपनी ज़िंदगी में हमेशा खुश रहें।"


    परिणीति देवराज जी की बात सुनकर उनसे कहती है, "हम जानते हैं दादा साहब, कि आप हमारे लिए हमेशा अच्छा ही करेंगे, लेकिन ऐसे शादी करना हमारे लिए बहुत ही डिफिकल्ट है। जिस लड़के से हम आज पहली बार मिले हैं, उसे ठीक से हमने बात तक नहीं की। इन फैक्ट, वह भी इस रिश्ते के लिए अभी तैयार नहीं है। उनसे हम शादी कैसे कर लें?"


    हम जानते हैं परिणीति के इध्यान भी अभी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं है क्योंकि वह भी अरेंज मैरिज में विश्वास नहीं रखता है। लेकिन उनके दादा साहब को हम बहुत सालों से जानते हैं। हमारे बीच बहुत ही गहरा नाता है, इसलिए हमें उन पर पूरा भरोसा है कि उनके पोते भी उन्हीं की तरह खुददार होंगे, जो हर रिश्ते को अच्छे से निभाना जानते होंगे।


    परिणीति अब आगे किसी से कुछ नहीं कहती है। वह चुप रहती है। उसे चुप देखकर अनामिका जी कहती है, "बेटा, आप हमारे घर की इकलौती बेटी हैं। तो हम आपके लिए कभी गलत फैसला नहीं लेंगे। इसलिए आप अपने दादा साहब पर भरोसा रखें और इस रिश्ते के लिए खुशी-खुशी हाँ कह दें, ताकि हमें भी खुशी हो और हमारे दिल हल्का हो कि हमने आपके साथ कोई अन्याय नहीं किया हो।"


    उनकी बात पर परिणीति उनके गले लगते हुए कहती है, "हमें कुछ समय दीजिए। हम अपने आप लोगों से कह देंगे।"


    तभी देवराज जी कहते हैं, "आपको समय लेना है तो आप ले सकती हैं, लेकिन हमें विश्वास है कि आप हमें नाराज़ नहीं करेंगी।" कहते हुए देवराज जी सीधे नीचे की ओर बढ़ जाते हैं। अनामिका जी भी परिणीति के सिर पर हाथ फेरकर चली जाती हैं। परिणीति अब अपने मम्मी-पापा को देखती है तो वे दोनों आकर उसे समझाते हुए कहते हैं, "बेटा, हम आज तक दादा जी के खिलाफ़ नहीं गए हैं और न ही जाएँगे। यह हमारे मर्यादा के खिलाफ़ है।"


    "हम जानते हैं पापा, बस हमें कुछ वक्त दीजिए। हमें इस रिश्ते के बारे में थोड़ा सा हिम्मत जुटाने दीजिए, ताकि हम इस रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हो सकें।" परिणीति ने यह बात भारी मन से बोली थी।


    परिणीति की बात सुनकर अर्षिता जी उसके दोनों गालों पर हाथ रखते हुए कहती हैं, "आपको जितना वक्त लेना है, आप ले सकती है परी।"


    वनराज जी और अर्षिता जी भी नीचे चले जाते हैं।


    परिणीति खाली आँखों से उन्हें जाते हुए देख रही थी। उसके मन में अलग ही कशमकश थी। हालाँकि उसकी ज़िंदगी में आज तक किसी लड़के ने दस्तक नहीं दी थी, जिसे उसको किसी और से प्यार हो और वह रिश्ते के लिए ना बोल दे। लेकिन फिर भी आज जब उसने इध्यान की बात सुनी कि वह भी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं है, तब से परिणीति का दिल अलग ही तरीके से घबरा रहा था कि अगर लड़का इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं है, तो मैं कैसे इस रिश्ते के लिए हाँ कह दूँ? यह सोचते हुए परिणीति अपने बेड पर बैठ जाती है और अपने सिर पर हाथ रखते हुए कहती है, "O god! ये मेरे साथ क्या होगा? हे भगवान, बचा लीजिएगा।"


    माहेश्वरी फैमिली अब तक हवेली पहुँच चुकी थी।


    सभी मेंबर अंदर जाते हैं और हाल में पहुँचते हैं। इध्यान अपने दादा जी के सामने खड़ा होकर कहता है, "दादा जी, यह क्या था? दादा जी, मैंने आपको कहा था कि मैं अभी शादी नहीं करना चाहता और आपने मेरी शादी ऐसे ही, मुझसे बिना पूछे, उस लड़की के साथ करा दी। और आपने मुझे बताना भी ज़रूरी नहीं समझा।"


    कैलाश शांति से इध्यान की बात सुन रहे थे। वे जानते थे कि इध्यान का गुस्सा जायज़ था, क्योंकि इध्यान से उन्होंने यह बात छुपाई थी कि परिणीति और इध्यान का रिश्ता पहले ही तय हो चुका है।


    थोड़ी देर चुप रहने के बाद कैलाश इध्यान से कहते हैं, "हम जानते हैं बेटा कि आप हमारे इस फैसले से खुश नहीं है, लेकिन ना चाहते हुए भी आपको यह रिश्ता करना ही पड़ेगा। आपकी शादी की उम्र भी हो चुकी है। अब अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़िए। आपको अपनी ज़िंदगी में एक नया मोड़ लाने की ज़रूरत है। शादी जैसा पवित्र बंधन है और हमें आपके लिए परिणीति ही पसंद है और हम चाहते हैं कि आप उन्हीं से शादी के बंधन में बंधें। इससे आगे हम आपसे और कुछ नहीं कहना चाहते। आज तक आपने हमारी बात मानी और हमने भी आपकी सारी बातें मानीं। अब आपको हमारी बात माननी पड़ेगी।"


    इतना कहकर कैलाश जी अपने रूम की ओर बढ़ने लगते हैं। तभी इध्यान कहता है, "और अगर मैं शादी के लिए ना कह दूँ तो?"


    इध्यान के जवाब सुनकर कैलाश जी के कदम रुक जाते हैं। वहीं उसकी बात पर रणविजय जी को गुस्सा आ जाता है। वह सामने आकर इध्यान से थोड़ी ऊँची आवाज़ में कहते हैं, "इध्यान, आप अपने दादा जी की बात काटेंगे? आज तक हमारी हिम्मत नहीं हुई है उनकी कोई बात ना मानने की, और आप हमसे इतने बड़े हो गए हो?"


    अपने पापा की बात सुनकर इध्यान उनकी तरफ देखकर कहता है, "पापा जी, मैं यह अच्छे से जानता हूँ कि हमें दादा जी की सारी बातें माननी चाहिए, लेकिन शादी जैसा फैसला तो मैं ऐसे बिल्कुल नहीं लूँगा। यह आप समझ लें।" इतना कहकर इध्यान गुस्से में अपने रूम में चला जाता है।


    कैलाश जी भी चुपचाप इध्यान को जाते हुए देख रहे थे। फिर वे भी अपने रूम की ओर बढ़ जाते हैं। इधर सारी फैमिली के चेहरे पर परेशानी के भाव उतर चुके थे।


    परिणीति और इध्यान के सामने ज़िन्दगी का सबसे बड़ा फैसला लेने का समय था। जहाँ पर दोनों एक-दूसरे से पहली मुलाक़ात में सिर्फ़ इतनी ही बात किया था कि वे दोनों इस रिश्ते के लिए खुश नहीं हैं, लेकिन अगले ही पल उनकी ज़िंदगी ने कुछ अलग ही मोड़ ले लिया था।

  • 5. A Royal Arrange marriage - Chapter 5

    Words: 2181

    Estimated Reading Time: 14 min

    फैमिली में सभी लोग अपने-अपने कमरों में जा चुके थे।

    रणवीर जी का कमरा

    रणविजय जी अपना कुछ काम कर रहे थे। तभी मीनाक्षी जी उनके पास आकर बोलीं, "जी, आप एक बार ध्यान से बात करके तो देखिए। वह ज़रूर मानेगा।"


    रणविजय जी ने कहा, "इध्यान को यह फैसला मानना ही पड़ेगा। आज तक हमने पापा जी की कोई भी बात नहीं टाली है, तो उनका फ़ैसला कायम रहेगा। इध्यान को परिणीति से ही शादी करनी होगी।"

    रणविजय जी की बात सुनकर मीनाक्षी जी आगे कुछ नहीं बोलीं।

    मीनाक्षी जी इध्यान की माँ थीं, और एक माँ का दिल ही जानता है कि उनका बेटा किस चीज़ के लिए नाराज़ रहता है। उनका दिल नहीं मान रहा था, इसलिए वे अपने कमरे से निकलकर सीधे इध्यान के कमरे की ओर आईं। उन्होंने इध्यान के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। कुछ देर बाद इध्यान ने दरवाज़ा खोला।

    अपनी माँ को देखकर उसने उन्हें अंदर आने के लिए कहा।

    मीनाक्षी जी आकर इध्यान के सोफ़े पर बैठीं और इध्यान को भी अपने पास बैठने को कहा। इध्यान भी आकर उनके बगल में बैठ गया। तब मीनाक्षी जी ने इध्यान का एक हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, "इध्यान बेटा, हम जानते हैं कि हमें आपसे इतनी बड़ी बात नहीं छुपानी चाहिए थी। लेकिन आपके दादा जी का फ़ैसला सही है। अब आपको शादी कर लेनी चाहिए। शादी बहुत ही पवित्र बंधन होता है, जिसे हम जानते हैं कि आप बखूबी निभाएँगे। बस आप इस रिश्ते के लिए मंज़ूरी दे दें।"


    इध्यान ध्यान से अपनी माँ की बात सुन रहा था। तभी उसने उनसे कहा, "अगर सिर्फ़ मैं इस रिश्ते के लिए ना खुश होता, तो मैं कुछ सोच सकता था, लेकिन परिणीति भी इस रिश्ते के लिए खुश नहीं है। उसने मुझसे कहा कि वह अभी अपनी पढ़ाई आगे पूरी करना चाहती है। जिस रिश्ते में लड़का-लड़की दोनों की मंज़ूरी न हो, वह रिश्ता कैसे कायम हो सकता है?"


    मीनाक्षी जी इध्यान की बात सुनकर कुछ पल हैरान रह गईं, क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि परिणीति इस रिश्ते के लिए नाखुश है। लेकिन फिर उन्होंने इध्यान को समझाते हुए कहा, "अगर परिणीति सिर्फ़ अपनी पढ़ाई के लिए इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं है, तो हम खुद परिणीति से बात करेंगे और उनसे कहेंगे कि शादी के बाद उनकी पढ़ाई में कोई भी रुकावट नहीं होगी।"


    इध्यान उनकी बात सुनकर बोला, "और अगर इसके बाद भी परिणीति नहीं मानी, तो?"

    "तब हम खुद इस रिश्ते को नहीं होने देंगे। यह हमारा वादा है आपसे। हम खुद पापा जी से बात करेंगे।" मीनाक्षी जी ने कहा।


    अपनी माँ की बात सुनकर इध्यान कुछ पल रिलैक्स हो गया। उसे लगता था कि परिणीति इस रिश्ते के लिए मना कर देगी। फिर मीनाक्षी जी उसे सचमुच ग़म में डूबा देखकर बोलीं, "बेटा, आपको ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है। हम कल ही परिणीति से बात करते हैं। अगर वह इस रिश्ते के लिए हाँ करेगी, तो हम भी इस रिश्ते को आगे बढ़ाएँगे, जिसमें आपको शामिल होना ही पड़ेगा, क्योंकि हमें भी परिणीति भा गई है। उनका खुला नेचर हमें बहुत ज़्यादा पसंद आया है, और हमें ऐसा लगता है कि वह आपकी ज़िन्दगी में आकर आपकी ज़िन्दगी जीने का नज़रिया बदल देगी।"


    अपनी माँ की बात सुनकर इध्यान कुछ नहीं बोला। कुछ देर में मीनाक्षी जी इध्यान के कमरे से चली गईं। इध्यान अपने ही सोच में ग़म में डूबा था कि परिणीति इस रिश्ते के लिए मना कर देगी, क्योंकि परिणीति ने उसे साफ़ मना कर दिया था कि वह भी यह रिश्ता नहीं करना चाहती।


    देखना यह होगा कि कल मीनाक्षी जी को परिणीति क्या जवाब देती है।

    अगली सुबह मीनाक्षी जी चौहान मेंशन गईं।

    उन्हें देखकर पूरा चौहान मेंशन हैरान रह गया। सभी को लगता था कि इस रिश्ते के होने या न होने का डर सता रहा था। मीनाक्षी जी आकर सभी को नमस्ते कहती हैं। सभी ने उन्हें बैठने को कहा।


    तभी मीनाक्षी जी बोलीं, "हम यहाँ परिणीति से कुछ ज़रूरी बात करने के लिए आए हैं। अगर आपकी इजाज़त हो, तो मैं पहले परिणीति से कुछ अकेले में बात कर सकती हूँ।"


    उनकी बात सुनकर अर्षिता जी वनराज जी की ओर देखती हैं, तो अनुराधा जी ने आँखों से हाँ बोला। वे मीनाक्षी जी को ऊपर परिणीति के कमरे में ले गईं। परिणीति अपने कमरे में बैठकर एक किताब पढ़ रही थी। तभी अर्षिता जी उनके कमरे में आकर बोलीं, "परिणीति बेटा, देखिए, आपसे कौन मिलने आए हैं।" परिणीति आँखें उठाकर देखती है। सामने मीनाक्षी जी को देखकर परिणीति डर गई कि कहीं इध्यान ने उन्हें यह न कह दिया हो कि परिणीति इस रिश्ते के लिए खुश नहीं है, और वे यहाँ रिश्ता तोड़ने आई हों। अगर यह बात हुई, तो परिणीति के दादा जी बहुत गुस्सा हो जाएँगे, जो वह बिल्कुल नहीं चाहती थी।


    परिणीति झट से उठकर मीनाक्षी जी के पास जाकर उनके पैर छूते हुए बोली, "प्रणाम आंटी।"

    मीनाक्षी जी प्यार से उसे उठाकर गले लगाते हुए बोलीं, "बेटा, यह फ़ॉर्मेलिटी करने की ज़रूरत नहीं है। आप हमारे गले लग सकती हैं। आप भी हमारी बेटी ही हैं।" उनकी बात सुनकर अर्षिता जी मुस्कुरा दीं। उन्हें अच्छा लगा कि मीनाक्षी जी वैसी सास नहीं हैं जो बहू से सिर्फ़ पैर छुआना या तन ढाँकना चाहती हों।


    परिणीति को मीनाक्षी जी का व्यवहार काफ़ी सॉफ़्ट लगा।

    मीनाक्षी जी परिणीति से बोलीं, "हमें आपसे कुछ बात करनी है। परिणीति, क्या आप हमारी बात सुनेंगी?" उनकी बात सुनकर परिणीति अपनी माँ को देखने लगी। तो अर्षिता जी ने कहा, "हाँ बेटा, कर लो। मैं आप दोनों के लिए नाश्ता लेकर आती हूँ।" कहकर वे चली गईं। परिणीति मीनाक्षी जी को अपने कमरे में पड़े सोफ़े पर बैठने के लिए कहती है और खुद उनके बगल में बैठ जाती है। तभी मीनाक्षी जी ने देखकर कहा, "परिणीति, क्या आप इस रिश्ते के लिए खुश नहीं हैं?"


    मीनाक्षी जी की बात सुनकर परिणीति की जान सूखने लगी। वह अपने मन में सोचने लगी, "अब तो हमारा बेड़ा गर्क हो गया।" सोचते हुए वह तरह-तरह के मुँह बना रही थी, जिसे देखकर मीनाक्षी जी उसे अजीब नज़रों से देखते हुए बोलीं, "परिणीति, आप ठीक तो हैं?" तभी परिणीति अपने होश में आते हुए बोली, "हाँ हाँ, हम ठीक हैं।"


    "तो जवाब दीजिए परिणीति, हम आपसे सच जानना चाहते हैं। क्या आप इस रिश्ते के लिए खुश हैं या कुछ ऐसा है जो आप इस रिश्ते के लिए ना कह देना चाहती हैं?" मीनाक्षी जी ने फिर से कहा।


    परिणीति सोचती है कि मीनाक्षी जी को सारा सच बता दिया जाए ताकि उसके सारे प्रॉब्लम्स का सॉल्यूशन निकल जाए। वह अपने मन में हिम्मत बनाते हुए एक गहरी साँस लेती है और कहती है, "एक्चुअली आंटी, हम इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि आपकी फैमिली अच्छी नहीं है। आपकी फैमिली बहुत अच्छी है, लेकिन हम अभी अपनी पढ़ाई कम्प्लीट करना चाहती हैं। अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हैं, फिर ही शादी के बारे में सोचेंगी।"


    परिणीति की बात सुनकर मीनाक्षी जी मुस्कुरा देती हैं, क्योंकि वे जानती थीं कि परिणीति को पैसों की कमी तो बिल्कुल नहीं है। उन्हें जो चाहिए होता है, वे अपने पापा से मांग सकती हैं। इनफ़ैक्ट, वह चाँद फैमिली की इकलौती बेटी थी। वह जो मांगती थी, वह एक झटके में मिल जाती थी। फिर भी परिणीति अपने पैरों पर खड़ा होने का सोच रही है। यह सोचकर मीनाक्षी जी परिणीति से अब और ज़्यादा इम्प्रेस हो चुकी थीं। वे अपने मन में सोचती हैं कि वह उनके घर की छोटी बहू बनेगी।


    मीनाक्षी जी उसकी बात सुनकर कहती हैं, "अगर आप सिर्फ़ अपनी पढ़ाई के लिए इस रिश्ते को ना कर रही हैं, तो हम आपको प्रॉमिस करते हैं कि आपकी पढ़ाई शादी के बाद भी नहीं रुकेगी। आप जो करना चाहेंगी, हमारी फैमिली आपको फ़ुल सपोर्ट करेगी। इनफ़ैक्ट, हमारी भी बेटी अनाया भी एक डॉक्टर है। वह भी अपने करियर में बहुत ज़्यादा फ़ोकस्ड है। तो हम अपनी बहू और बेटी में बिल्कुल भी अंतर नहीं करते। इनफ़ैक्ट, मधुरिमा भी अपने काम को आगे बढ़ाती है, शादी के बाद भी।"


    परिणीति मीनाक्षी जी की बात सुनकर सोचती है कि वह इस रिश्ते के लिए इसलिए तैयार नहीं थी क्योंकि उसे लग रहा था कि शादी के बाद उसकी पढ़ाई आगे नहीं हो पाएगी। लेकिन मीनाक्षी जी की बात सुनकर उसे सोचने पर मजबूर कर दिया था।


    मीनाक्षी जी फिर परिणीति से कहती हैं, "हमारे बेटे इध्यान से कल आपने जो कुछ भी कहा, इसलिए जब हमने उनसे बात की, तो उन्होंने हमसे बता दिया कि आप इस रिश्ते के लिए खुश नहीं हैं। इसलिए हम खुद यहाँ आपसे पूछने के लिए आए थे कि क्या आप किसी रीज़न से इस रिश्ते के लिए नाखुश हैं।"


    "देखिए, इध्यान थोड़े शर्मीले मिजाज के हैं, लेकिन माँ होने के नाते, ख़ासकर एक बेटे की माँ होने के नाते, हमें आप पर भरोसा है कि आप हमारे बेटे का हाथ थामेंगी और उन्हें ज़िन्दगी भर साथ निभाएँगी, और जल्द ही हमारे घर हमारी छोटी बहू बनकर आ जाएँगी।"


    मीनाक्षी जी की बात सुनकर परिणीति कशमकश में फँस जाती है कि वह इस रिश्ते के लिए किस तरह से ना कहे।

    मीनाक्षी जी आशा भरी नज़रों से परिणीति को देखती हैं। तो परिणीति अपने मन को समझाते हुए उनका हाथ पकड़ते हुए कहती है, "ठीक है आंटी, हमें इस रिश्ते में अब कोई भी आपत्ति नहीं है।"

    उनकी बात सुनकर मीनाक्षी जी ख़ुशी से परिणीति को गले लगा लेती हैं। बाहर खड़ी अर्षिता जी भी मीनाक्षी जी और परिणीति की सारी बातें सुन रही थीं, और परिणीति का जवाब सुनकर उन्हें बहुत ज़्यादा ख़ुशी महसूस होती है कि परिणीति इस रिश्ते के लिए खुश है।


    मीनाक्षी जी कुछ देर उन सब से बात करती हैं, फिर चौहान मेंशन से सीधे अस्पताल की ओर निकल जाती हैं।


    वह अस्पताल पहुँचकर इध्यान के केबिन में चली जाती हैं। इध्यान उस वक़्त किसी केस की फ़ाइल को बड़े ही ध्यान से पढ़ रहा था। तभी मीनाक्षी जी उसे कहती हैं, "बेटा, काम में इतने मगन नहीं होते कि कोई आपके केबिन में आए और आपका ध्यान भी न रहे।" तभी इध्यान नज़र उठाकर अपनी माँ को देखकर कहता है, "मुझे पता है माँ, आप हैं। आप कभी भी बिना मेरे परमिशन के आ सकती हैं।" कहकर इध्यान हल्का मुस्कुराता है।


    इध्यान की बात सुनकर मीनाक्षी जी के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान आ जाती है। वह सामने चेयर पर बैठकर बोलती हैं, "हम अभी परिणीति से मिलकर आ रहे हैं।" इध्यान उनकी बात सुनकर उनकी तरफ़ देखने लगता है, जैसे वह कुछ जवाब जानना चाहता है। तो मीनाक्षी जी कहती हैं, "परिणीति इस रिश्ते के लिए राज़ी है बेटा, और अब आप इस रिश्ते को आराम से अपना सकते हैं, और परिणीति से शादी करने के लिए हाँ कह दीजिए।"


    इध्यान को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था, क्योंकि उसने जब परिणीति से बात किया था, तो उसके चेहरे से साफ़ पता चल रहा था कि वह इस रिश्ते के लिए खुश नहीं है। लेकिन अभी जो मीनाक्षी जी कह रही हैं, उसे झुठला भी नहीं सकता था।


    इध्यान अब मीनाक्षी जी से कहता है, "माँ, मैं आपसे इस बारे में शाम को बात करूँगा। अभी फ़िलहाल मुझे एक केस के लिए एक ज़रूरी केस स्टडी करनी है।"

    "आप अभी भी इस बात से भाग रहे हैं?" इध्यान कहते हुए मीनाक्षी जी उसे घूरने लगती हैं।


    इध्यान समझ जाता है कि उसकी चालबाज़ी अब कहीं नहीं चलेगी, क्योंकि अब परिणीति ने भी शादी के लिए रज़ामंदी दे दी है।


    वह अब कहता है, "मैं भाग नहीं रहा हूँ। मुझे सच में केस की स्टडी करनी है। तो मैं आपसे शाम में अच्छे से बात करूँगा।" उसके बाद मीनाक्षी जी वहाँ से चली जाती हैं।


    मीनाक्षी जी के जाने के बाद इध्यान अपने चेयर के आर्मरेस्ट से सिर लगाते हुए सोचने लगता है कि परिणीति ने हाँ कैसे कहा। उसे अब यह जानना था। वह किसी भी हाल में परिणीति से मिलना चाहता था।


    इध्यान अब सोचने लगता है कि परिणीति से कब, कैसे और कहाँ मिले। वह अपने एक असिस्टेंट को फ़ोन करता है और परिणीति के बारे में डीटेल्स निकालता है। हालाँकि वह अपने घरवालों से भी पूछ सकता था, लेकिन उसने ऐसा करना सही नहीं समझा। इसलिए उसने खुद ही परिणीति से मिलने का प्लान बनाया। उसे अब किसी भी हाल में जानना था कि परिणीति ने आखिर क्या फ़ैसला किया है।

  • 6. A Royal Arrange marriage - Chapter 6

    Words: 1217

    Estimated Reading Time: 8 min

    दोपहर के समय परिणीति अपनी सहेली के साथ कॉलेज से बाहर खड़ी थी। वह अपने ड्राइवर का इंतज़ार कर रही थी। तभी उसके सामने एक काली मर्सिडीज़ आकर रुकी। परिणीति ने उसे अनदेखा कर थोड़ी दूर जाकर खड़ी हो गई। उस कार से इध्यान बाहर निकला और परिणीति के सामने आकर बोला, "मुझे आपसे कुछ बात करनी है?"


    इध्यान को अपने सामने देखकर परिणीति समझ गई कि वह ज़रूर रिश्ते की बात करने आया होगा।


    तभी परिणीति ने कहा, "अभी हमें घर जाना है। हम आपसे बाद में बात करेंगे।"


    "मुझे आपसे अभी इसी वक्त बात करनी है।" इध्यान बहुत ज़िद्दी था। उसने परिणीति का हाथ पकड़कर जबरदस्ती अपनी कार में बिठा लिया। ऐसा कहकर इध्यान तुरंत पैसेंजर सीट से ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गया और कार आगे बढ़ा दी। परिणीति उसे घूरते हुए बोली, "यह क्या हरकत है यह इध्यान आपकी?"


    इध्यान ने उसकी ओर देखे बिना कहा, "और आपने जो किया वह क्या सही था?"


    "मैंने ऐसा क्या किया है? जरा आप भी बताइए?" परिणीति ने कहा।


    "आपको यह भी बताना होगा कि आपने उस दिन कहा था कि आप इस रिश्ते के लिए खुश नहीं हैं। फिर आज आप माँ से कहती हैं कि आपको इस रिश्ते में कोई परेशानी नहीं है।" इध्यान ने सामने देखते हुए, गाड़ी चलाते हुए कहा।


    परिणीति को समझ आ गया कि इध्यान उससे यही बात करने आया था। तभी वह इध्यान से बोली, "पहले आप गाड़ी रोकिए।" इध्यान झट से कार रोकता है। इध्यान ने कार एक सुनसान सड़क पर रोकी थी जहाँ केवल एक-दो गाड़ियाँ ही गुज़र रही थीं। परिणीति तुरंत कार से बाहर आते हुए बोली, "हमने उस दिन शादी के लिए इसलिए मना किया था क्योंकि हमें लगा था कि शादी के बाद हमारी पढ़ाई रुक जाएगी। लेकिन आपकी माँ ने हमसे वादा किया है कि वह हमारी पढ़ाई नहीं रुकने देंगी। अब मुझे इसमें कोई दिक्कत नहीं है।"


    इध्यान भी परिणीति के पीछे कार से निकलते हुए बोला, "आपको दिक्कत नहीं है तो क्या उन्हें दिक्कत नहीं होगी? आप चुपचाप एकतरफ़ा फ़ैसला लेकर मेरी माँ से कैसे कह सकती हैं?"


    परिणीति कुछ दूर खड़ी होकर इध्यान से बोली, "आपको क्या दिक्कत है शादी से? हमें पता है कि आजकल कोई अरेंज मैरिज नहीं करता। लेकिन हमारे परिवार के रिश्ते अच्छे हैं। असल में हम अपने दादाजी की हर बात मानते हैं, और यह बात भी मानेंगे। अगर आपको इस रिश्ते में दिक्कत है, तो आप मना कर सकते हैं।"


    परिणीति के बाद इध्यान झुँझलाते हुए बोला, "अगर मेरा परिवार मेरी बात सुनता तो मैं आपसे क्यों कहता? मेरे परिवार ने एक मौका दिया था कि अगर आप इस रिश्ते के लिए मना कर देंगी तो मुझे यह शादी नहीं करनी होगी। लेकिन आपने रिश्ते के लिए सहमति दे दी। अब कुछ नहीं हो सकता।"


    "क्या कोई और आपको पसंद है?" परिणीति ने सीधे इध्यान से पूछा।


    "नहीं।" इध्यान ने तुरंत जवाब दिया।


    परिणीति - "तो क्या दिक्कत है? अगर आपकी ज़िंदगी में कोई और होती, तो हम इस रिश्ते के लिए मना कर सकते थे। लेकिन हम अपने दादा जी की बात को ऐसे नहीं तोड़ सकते और हमारे पापा ने भी हमारी सारी बातें मानी हैं। तो हमारा भी हक़ बनता है कि हम उनकी सारी बातें मानें।"


    "तो आपका यह हक़ मेरे ऊपर चलना था? शादी के लिए आप किसी और से हाँ कह देते?" इध्यान ने परिणीति को देखते हुए कहा।


    "आप क्या बोल रहे हैं? कुछ समझ में आ रहा है? अगर मेरा रिश्ता आपके लिए है, तो हम आप ही को हाँ कहेंगे ना कि किसी और को।" परिणीति अब थोड़ी चिढ़ते हुए बोली।


    इध्यान परिणीति की बात पर उसे देखते हुए बोला, "कहीं मुझे देखकर आपकी नियत तो नहीं बदल गई?"


    "क्या मतलब है आपका?" परिणीति ने आँखें छोटी करते हुए कहा।


    इध्यान - "मतलब इतना हैंडसम लड़का आपको मिल रहा है, कहीं आपकी नियत तो नहीं बदल गई, मेरा मतलब यह है।"


    परिणीति - "जी नहीं, यह आपकी बहुत बड़ी गलतफ़हमी है कि हम आपको देखकर फ़िदा हो गए। ठीक है, मान लिया कि आप अच्छे दिखते हैं, मतलब ठीक-ठाक।" परिणीति ने अपना दायाँ हाथ उठाकर थोड़ा सा बाएँ-दाएँ करते हुए इध्यान के सामने दिखाया। इध्यान चिढ़ते हुए बोला, "यह ठीक-ठाक का मतलब क्या है? अच्छा-खासा बैचलर हूँ मैं..."


    परिणीति - "हाँ तो मैं भी कोई एवरेज तो नहीं हूँ।"


    इध्यान को पता चल चुका था कि परिणीति से बहस करना बहुत मुश्किल है। वह बोला, "ओके, फ़ाइन। अब मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। अब मैं सीधे जाकर अपनी माँ से ही बात करूँगा। मुझे आपसे तो बिल्कुल शादी नहीं करनी। कितना बोलती हैं आप, बाप रे!!!"


    इध्यान की बात पर परिणीति ने अपनी आँखें बड़ी कर उसे कहा, "हम ज़्यादा बोलते हैं? अच्छा, तो आप जो तब से बहस कर रहे हैं, और ऊपर से हमें कॉलेज के बाहर खींचकर अपनी गाड़ी में बिठाकर यहाँ तक लाए हैं, यह क्या आपको अच्छा सुभाग्य दिया?"


    इध्यान गाड़ी चलाते हुए बोला, "ओह गॉड! आपसे ना, सच में बहस नहीं कर सकता।"


    "मैं भी कोई मरी नहीं जा रही हूँ आपसे बात करने के लिए।" परिणीति ने पीछे से इध्यान से कहा।


    इध्यान कार में आकर बैठा और जैसे ही कार स्टार्ट करने वाला था, परिणीति ने आकर उसकी गाड़ी के शीशे को खटखटाते हुए कहा, "ओह हेलो मिस्टर माहेश्वरी! आप क्या पागल हैं?"


    उसके बाद इध्यान चिढ़ते हुए बोला, "क्या मैं आपको पागल नज़र आ रहा हूँ?"


    "नहीं, बिल्कुल नहीं। अच्छे-खासे हैं आप, लेकिन जब एक लड़की अकेले सुनसान सड़क पर है, तो आप ऐसे कहाँ छोड़कर जा रहे हैं? जहाँ से उठाया वहीं पर जाकर छोड़कर आइए। समझ में आया?"


    इध्यान ने अपने चश्मे पर शेड चढ़ाते हुए कहा, "अच्छा तो आप धमकी भी देती हैं।"


    "ज़रूरत पड़ने पर मैं धमकी भी दे देती हूँ... अब चुपचाप मुझे कॉलेज में छोड़ दीजिए। अगर ड्राइवर अंकल ने मुझे नहीं देखा, तो घर पर बता दूँगी और सभी घरवाले परेशान हो जाएँगे।" ऐसा कहते हुए परिणीति आकर इध्यान के बगल वाली पैसेंजर सीट पर बैठ जाती है।


    इध्यान चुपचाप गाड़ी आगे बढ़ा देता है और कुछ ही देर में वह परिणीति को उसके कॉलेज के सामने छोड़कर सीधे चला जाता है। पीछे से परिणीति उसे जाते हुए देखकर कहती है, "कितना खड़ूस लड़का है! हमें तो लगा था कि बहुत स्वीट होगा, लेकिन इनकी माँ ने ठीक ही कहा था, यह बहुत सख्त है। ऊपर से बोलते हैं जैसे ज्वालामुखी उगल रहा हो।"


    ऐसा कहकर परिणीति अपनी कार में आकर चौहान मेंशन के लिए निकल जाती है।

  • 7. A Royal Arrange marriage - Chapter 7

    Words: 1995

    Estimated Reading Time: 12 min

    शाम को इध्यान महेश्वरी हाउस आया।

    कुछ देर अपने कमरे में फ्रेश होकर वह सीधे मीनाक्षी जी के कमरे की ओर बढ़ा। उसने उनके कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। मीनाक्षी जी ने दरवाज़ा खोला। सामने इध्यान को देखकर मीनाक्षी जी ने कहा, "इध्यान आप?"

    "वो उसे कमरे में आने के लिए कहती हैं।"

    इध्यान कमरे में आ गया। उसने कमरे के चारों ओर नज़र डाली। अपने पिता कहीं नज़र नहीं आ रहे थे। उसने मीनाक्षी जी से पूछा, "माँ, पापा अभी तक नहीं आए हैं?"


    मीनाक्षी जी ने कहा, "नहीं बेटा, वे आज देर से आएँगे। उन्होंने पहले ही मुझे कॉल करके बता दिया है।"


    इध्यान ने सिर हिलाया और मीनाक्षी जी के हाथ पकड़कर बिस्तर के सामने बैठ गया। फिर नीचे बैठकर उसने अपना सिर उनकी गोद में रख लिया। इस हरकत पर मीनाक्षी जी मुस्कुराईं और अपना हाथ इध्यान के सिर पर रखकर उसके बाल सहलाने लगीं। इससे इध्यान को बहुत सुकून मिला। इतने दिनों की फ्रस्ट्रेशन उसे कम होती महसूस हो रही थी।


    मीनाक्षी जी ने इध्यान का हाल समझते हुए पूछा, "कहिए, क्या कहना है आपको?"


    इध्यान ने सर उठाकर मीनाक्षी जी की ओर देखा और कहा, "माँ, मैं अभी भी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हूँ। आप सब बेवजह परिणीति की भी लाइफ खराब करने पर तुले हो। अगर मैं खुश नहीं हूँ तो उसे कैसे खुश रखूँगा, यह आप भी तो समझें।"


    मीनाक्षी जी हल्के मुस्कुराते हुए उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोलीं, "बेटा, हम ऐसा नहीं कहेंगे कि परिणीति तुरंत आकर आपके दिल में जगह बना लेगी, या आप उसके दिल में जगह बना लेंगे। शादी बहुत ही पवित्र बंधन है, जिसे लोग धीरे-धीरे ही अपने आप में ढालते हैं। इसलिए हमें पूरा भरोसा है कि आप परिणीति को बहुत खुश रखेंगे और बहुत जल्द वह आपके दिल में अपने लिए जगह बना लेगी। हमें परिणीति पर पूरा भरोसा है, वह आपकी ज़िन्दगी में नए रंग लाएगी और आपको आपकी बोरिंग ज़िन्दगी को अच्छे से जीने का तरीका भी सिखाएगी।"

    "वह मेरे साथ ज़िन्दगी बिताएगी। आपको पता है, वह कितनी चिड़चिड़ी टाइप की लड़की है। जब बोलती है तो किसी को सुनने-समझने का मौका ही नहीं देती, और बोलते ही नहीं रुकती। बहस करवा लो सिर्फ़ मैडम से।" ऐसा कहते हुए इध्यान काफी फ्रस्ट्रेटेड लग रहा था।


    इध्यान के ऐसे एक्सप्रेशन मीनाक्षी जी ने पहली बार देखे थे। इससे वह समझ गई थीं कि परिणीति ही इध्यान के लिए सही है, क्योंकि वह परिणीति के बारे में ऐसा कह रहा था। उसने आज तक किसी के बारे में इस तरीके से बात नहीं की थी।


    मीनाक्षी जी ने समझाते हुए कहा, "देखिए बेटा, हम जानते हैं परिणीति थोड़ी चुलबुली किस्म की लड़की है और हमें उसकी यही आदत पसंद है। ऐसा नहीं है कि कम बोलने वाली लड़कियाँ अच्छी नहीं होती हैं, लेकिन जो लड़कियाँ चुलबुली होती हैं ना, वे लोगों को खुश रखना जानती हैं। वे ज़्यादा टेंशन नहीं लेतीं और सामने वाले के बारे में सोचती हैं और उसे खुश कर देती हैं। और ऐसी आदतें और स्वभाव परिणीति के अंदर हैं बेटा। तो आप समझें। अब आप इस रिश्ते के लिए बिल्कुल पीछे नहीं हटेंगे, आपको हमारी कसम।"


    अपनी माँ की पूरी बात सुनकर इध्यान ने कहा, "अब आप मुझे कसम क्यों दे रही हो?"


    "क्योंकि आप हमारी कसम कभी नहीं तोड़ेंगे, यह हमें पता है।" मीनाक्षी जी ने इध्यान को देखते हुए कहा।


    इध्यान को अब कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था। इसलिए उसने एक गहरी साँस लेकर मीनाक्षी जी से कहा, "ठीक है, मैं शादी के लिए तैयार हूँ।" इध्यान की बात सुनकर मीनाक्षी जी खुश हो गईं। वह खुश होते हुए इध्यान से बोलीं, "हमें आपसे यही उम्मीद थी बेटा।" फिर इध्यान से दूर जाकर उसके सिर पर हाथ रखते हुए उसे आशीर्वाद देते हुए बोलीं, "हमेशा खुश रहिए और जल्द से जल्द हमें हमारी छोटी बहू लाकर दीजिए।"


    इध्यान कुछ नहीं बोला और अपने कमरे की ओर चला गया। उसने अब सारी उलझन का रास्ता भगवान पर छोड़ दिया था।


    इधर मीनाक्षी जी खुशी से फूली नहीं समा रही थीं। उन्हें बहुत खुशी हो रही थी क्योंकि इध्यान ने इस रिश्ते के लिए हाँ कह दिया था।


    तभी कमरे में रणविजय जी आए। मीनाक्षी जी को इतनी खुश देखकर वह उनके सामने आकर बोले, "क्या बात है? आज आप बहुत ज़्यादा खुश नज़र आ रही हैं?"


    रणविजय जी को देखकर मीनाक्षी जी ने कहा, "आपको पता है, इध्यान ने रिश्ते के लिए हाँ कह दिया।"


    रणविजय जी को विश्वास नहीं हो रहा था कि इध्यान ने इस रिश्ते के लिए हाँ कह दिया। उन्होंने मीनाक्षी जी से पूछा, "आप सच कह रही हैं? इध्यान ने सच में परिणीति के लिए हाँ कहा?"


    मीनाक्षी जी - "वह अभी-अभी हमसे यही बात कर रहे थे।"


    रणविजय जी - "यह तो बहुत अच्छी बात है। हमें पापा से जाकर यह बात बतानी चाहिए कि उनके लाडले पोते ने उनकी बात मानी।" रणविजय जी भी खुश होते हुए मीनाक्षी जी को देखकर बोले।


    मीनाक्षी जी - "हम अभी जाकर पापा से यह बात कहते हैं।" और वह तुरंत कैलाश जी के कमरे की ओर बढ़ गईं।


    कैलाश जी के कमरे के बाहर आकर मीनाक्षी जी ने पहले कमरा लॉक किया। अनामिका जी ने उन्हें अंदर आने के लिए कहा। मीनाक्षी जी कमरे में आईं। उनके चेहरे की खुशी देखकर अनामिका जी बोलीं, "क्या बात है मीनाक्षी बहू? आज बहुत ज़्यादा खुश नज़र आ रही हैं।"


    अनामिका जी की बात सुनकर मीनाक्षी जी ने कहा, "आप भी खुश हो जाएँगी माँ सा, जब हमारी बात सुनेंगी।"


    "हमें भी सुनाइए खुशी की बात।" कैलाश जी ने अनामिका जी से पहले मीनाक्षी जी से कहा। तभी मीनाक्षी जी ने कहा, "पापा सा, माँ सा, इध्यान परिणीति से शादी करने के लिए हाँ कह दिया।"


    मीनाक्षी जी की बात सुनकर अनामिका जी और कैलाश जी दोनों के चेहरे पर बहुत बड़ी मुस्कान आ गई।


    अनामिका जी मीनाक्षी जी के पास आकर उन्हें गले लगाते हुए बोलीं, "यह तो आपने बहुत ही खुशी की बात बताई है मीनाक्षी बहू।" अनामिका जी ने कहा, "जी माँ सा, मैं भी बहुत खुश हूँ। भगवान का शुक्र है कि इध्यान ने इस रिश्ते के लिए हाँ कह दिया। अब हम परिणीति को इस घर की बहू जल्द से जल्द बनाकर लाना है।"


    कैलाश जी यह बात सुनकर बहुत ज़्यादा खुश थे। उन्हें पूरा यकीन था कि इध्यान उनकी बात कभी नहीं मानेगा।


    कैलाश जी ने मीनाक्षी जी और अनामिका जी को देखकर कहा, "हम अभी देवराज को फोन करके यह खुशखबरी दे देते हैं और जल्द से जल्द परिणीति और इध्यान की सगाई की तारीख फ़िक्स कर देते हैं।"


    उनकी बात पर अनामिका जी बोलीं, "हाँ हाँ, शुभ काम में देरी नहीं करनी चाहिए।"


    कैलाश जी ने देवराज जी से बात की। दोनों ने तय किया कि कल वे लोग महेश्वरी हाउस आकर अपने कुल पंडित से सगाई की तारीख फ़िक्स करेंगे।


    अगली सुबह,


    पूरे महेश्वरी हाउस के सदस्य चौहान हाउस के स्वागत के लिए अच्छी तरह से तैयारी कर रहे थे, क्योंकि आज उनके घर की छोटी बहू पहली बार उनके घर में कदम रखने वाली थी। इसके लिए मीनाक्षी जी ने कोई कमी नहीं छोड़ी थी। उन्होंने सुबह से न जाने कितने सारे परिणीति के फ़ेवरेट पकवान बनवा लिए थे।


    कुछ देर में पूरे चौहान परिवार महेश्वरी मेंशन आए।


    सभी ने उनका बहुत अच्छे से स्वागत किया।


    परिणीति भी उनके साथ आई हुई थी। परिणीति ने आज बहुत ही खूबसूरत रेड कलर का फ्रिल अनारकली सूट पहना था, जिसका दुपट्टा उसने गले में रखा था। बालों को उसने एक तरफ़ चोटी बनाया था। आँखों में उसने काजल लगाया था और होंठों पर लाल लिपस्टिक। कानों में मीडियम साइज़ के झुमके पहने थे। वह बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी।


    अनाया सबसे पहले परिणीति को अपना परिचय देते हुए बोली, "नमस्ते, मैं आपकी होने वाली छोटी ननद हूँ। अरे, मैं पहले आपको देखने नहीं आ पाई थी, अस्पताल में कुछ ज़रूरी काम था।"


    अनाया के बाद परिणीति बोली, "कोई बात नहीं।"


    सभी नीचे हॉल में बैठ गए। परिणीति की नज़र इध्यान को ढूँढ रही थी। माधुरीमा ने इसे समझते हुए उससे कहा, "आप जिन्हें ढूँढ रही हैं, वे ऊपर कमरे में हैं। बहुत मुश्किल से उन्हें अस्पताल जाने से रोका था, नहीं तो वे सुबह ही अस्पताल जा रहे थे।"


    माधुरीमा की बात पर परिणीति हल्का सा मुस्कुराई। हालाँकि उसे पता था कि इध्यान को कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं है, लेकिन जब उसने कल सुना कि इध्यान ने रिश्ते के लिए हाँ कह दिया, तो वह बहुत ज़्यादा कन्फ़्यूज़ हो गई थी। आखिर इध्यान ने उससे कहा था कि उसे शादी नहीं करनी है, और वह शादी के लिए ना कह दे, लेकिन अचानक से यह इध्यान का कहना परिणीति को अजीब लग रहा था।


    कुछ देर में इध्यान भी नीचे आया। जैसे ही उसने परिणीति को देखा, वह उस पर फ़िदा हो गया, क्योंकि आज तक उसने परिणीति जितनी खूबसूरत लड़की अपनी ज़िन्दगी में नहीं देखी थी। ऊपर से परिणीति ने उसका फ़ेवरेट कलर रेड पहना था, जिससे उसकी नज़रें उस पर से हट ही नहीं रही थीं।


    इध्यान को बिल्कुल भी ध्यान नहीं था कि सबकी नज़रें उस पर हैं। तभी अनाया उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, "भाई सा, सबको प्रणाम कीजिए ना, भाभी सा के दर्शन करने आए हो।"


    अनाया की बात पर इध्यान अपने होश में आया और सबके पैर छुए।


    परिणीति भी आज इध्यान को बड़े गौर से देख रही थी। इध्यान ने आज व्हाइट शर्ट और ब्लू जीन्स पहनी हुई थी। उसके मैसी हेयर उसके माथे पर बिखरे हुए थे। उसकी नीली आँखें...परिणीति की नज़रें इध्यान पर टिकी हुई थीं। वह उसे बहुत ज़्यादा हैंडसम लग रहा था।


    इध्यान सबके पैर छूकर परिणीति के बगल में आकर बैठ गया। इध्यान को अभी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह परिणीति को देखे, क्योंकि अभी कुछ देर पहले वाली बात उसे बहुत अजीब लग रही थी।


    सामने बैठे पंडित ने उनकी सगाई की तारीख 2 दिन बाद रखी।


    चौहान परिवार और महेश्वरी परिवार को दोनों तारीख में कोई आपत्ति नहीं थी। दोनों परिवार आपस में सलाह-मशविरा करके दो दिन बाद की तारीख को फ़िक्स कर देते हैं।


    सगाई की तारीख फ़िक्स होते ही दोनों परिवार एक-दूसरे को मिठाई खिलाने लगे। अनाया मिठाई लेकर इध्यान के पास आई और इध्यान से बोली, "भाई सा, आप भी भाभी सा का मुँह मीठा कीजिए, आख़िर आप दोनों की सगाई हो ही रही है।"


    अनाया के बाद इध्यान ने मिठाई का एक छोटा टुकड़ा उठाकर परिणीति के होठों की ओर बढ़ा दिया, जिससे परिणीति ने अपने मुँह खोलकर उसके हाथ से मिठाई खा ली। सहसा परिणीति के होठ इध्यान की उंगलियों को छू गए, जिससे इध्यान को काफी अलग फीलिंग महसूस हुई।


    परिणीति ने मिठाई उठाकर इध्यान का मुँह मीठा करवाया।


    Stay tuned....

  • 8. A Royal Arrange marriage - Chapter 8

    Words: 1715

    Estimated Reading Time: 11 min

    सब परिवार के सदस्य सगाई की तारीख को लेकर खुश थे। सब एक-दूसरे का मुँह मीठा कर रहे थे।

    इद्यान और परिणीति ने भी एक-दूसरे का मुँह मीठा कराया।


    अनाया परिणीति को घर दिखाने ले गई। वह धीरे-धीरे परिणीति को पूरा घर दिखा रही थी। परिणीति भी शांत भाव से पूरे घर को देख रही थी। उसके दिल में अलग सी बेचैनी हो रही थी, जिसे वह समझ नहीं पा रही थी।


    कुछ देर में अनाया परिणीति को लेकर इद्यान के कमरे के बाहर खड़ी हो गई। फिर अनाया परिणीति को छेड़ने के लिए बोली, "भाभी जी, ये है भाई साहब का... नहीं-नहीं, आपका और भाई साहब का कमरा।"


    अनाया की बात सुनकर परिणीति और भी अजीब महसूस करने लगी। तभी वहाँ पर इद्यान आ गया।


    इद्यान जैसे ही अपने कमरे की ओर जाने लगा, अनाया ने उसे रोकते हुए कहा, "भाई साहब, मैंने तो भाभी जी को पूरा घर दिखा दिया। अब आप इन्हें अपना और इनका कमरा भी दिखा दीजिए। आखिर ऑफिशियली अब आपका कमरा इनका भी होने वाला है, कुछ ही दिनों बाद।"


    अनाया की बात पर इद्यान को काफी अजीब लगा, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। वह वैसे ही वहाँ खड़ा रहा। तभी अनाया ने कहा, "ठीक है, मैं चलती हूँ।" वह जैसे ही जाने लगी, नन्ही आरवी, जो कि अनाया की गोद में थी, परिणीति के पास आने के लिए मचलने लगी और अपने बेबी टोन में बोली, "मुझे अपनी चाची जी के पास ले जाना है।"


    आरवी की बात सुनकर परिणीति ने मुस्कुराते हुए उसे अपनी गोद में ले लिया। आरवी भी खुशी-खुशी परिणीति की गोद में आ गई। इसे देखकर अनाया ने हैरानी से कहा, "ये कैसे आपके पास आ गई? आपको पता है, भाभी जी, आरवी किसी की गोद में नहीं जाती, सिवाय परिवार के सदस्यों के। लेकिन शायद यह समझ चुकी है कि अब आप भी परिवार की सदस्य हैं।"


    अनाया की बात पर परिणीति हल्के से मुस्कुरा दी। तभी नन्ही आरवी उसे देखते हुए बोली, "आप मेरी चाची जी हो ना?"


    परिणीति ने हाँ में सिर हिलाया।

    "आप कितनी ब्यूटीफुल हो," नन्ही आरवी ने क्यूट सी मुस्कुराहट के साथ कहा।


    इसे सुनकर परिणीति और अनाया मुस्कुरा दीं।


    फिर अनाया इद्यान को देखकर बोली, "भाई साहब, आप खड़े क्यों हो? जाइए ना, भाभी जी को कमरा दिखाइए। मैं तो चलती हूँ। मुझे नहीं बनना कबाब में हड्डी।"


    इद्यान कुछ नहीं बोल सका, तो उसने सिर्फ सिर हिला दिया और परिणीति को लेकर अपने कमरे में चला गया। अनाया वहाँ से चली गई।


    अनाया नीचे हॉल की ओर जा रही थी। तभी उसका पैर सीढ़ियों के पास फिसल गया और उसने अपना बैलेंस खो दिया। वह नीचे गिरने लगी। सामने से आते हुए एक लड़के ने उसे अपनी बाहों में थाम लिया। गिरने के डर से अनाया ने अपनी आँखें कसकर बंद कर रखी थीं। वह इस समय बहुत ही ज्यादा क्यूट लग रही थी। और वह लड़का, जिसने अनाया को पकड़ा हुआ था, अनाया का ऐसा चेहरा देखकर उसकी क्यूटनेस में कहीं खो गया। वह एकटक अनाया को देखने लगा।


    जब अनाया को एहसास हुआ कि वह गिरी नहीं है, तो उसने भी अपनी आँखें खोलीं। सामने खड़े लड़के का चेहरा देखकर वह उसके आकर्षण में खो सी गई। सामने वाला लड़का देखने में बहुत ही ज्यादा हैंडसम और चार्मिंग था। अनाया खुद को रोक नहीं पाई। उन दोनों को इस बात का एहसास नहीं था कि वे सीढ़ियों के पास एक-दूसरे को पकड़े खड़े हैं।


    इधर, परिणीति आरवी को गोद में लिए इद्यान के कमरे में आई। परिणीति अपनी नज़रें कमरे के चारों ओर डाल रही थी। उसे इद्यान का कमरा बहुत पसंद आया। मैजेंटा, ग्रीन और व्हाइट कलर के कॉम्बिनेशन में पूरे कमरे को पेंट किया गया था। पीच कलर का सोफा जो कि दीवार के एक साइड लगा था। दीवारों पर इद्यान और उसकी फैमिली की ढेर सारी तस्वीरें थीं। परिणीति एक-एक करके सब चीजों को देख रही थी। इधर इद्यान चुपचाप खड़ा, हाथ बंधे, दीवार से ठीक लगा, अपने फ़ोन में कुछ नोटिफ़िकेशन चेक करने लगा।


    परिणीति पूरे कमरे का मुआयना कर रही थी, तभी उसकी नज़र सामने बेड के ऊपर लगी एक बड़ी सी तस्वीर पर पड़ी। वह तस्वीर इद्यान की थी। इद्यान उस तस्वीर में चेयर पर बैठा, एक पैर दूसरे पैर के ऊपर रखे हुए, और हाथ में गिटार लिए, उसे बजाने वाला पोज़ देकर मुस्कुरा रहा था। इस पिक्चर में इद्यान की स्माइल इतनी किलर थी कि परिणीति उस पिक्चर से अपनी नज़र ही नहीं हटा पाई। वह एकटक इद्यान की तस्वीर को देख रही थी।


    इधर इद्यान ने अपनी नज़र उठाई और सामने परिणीति को अपनी तस्वीर को देखते हुए पाया। वह उसके पास जाकर पीछे से बोला, "क्या बात है? आप मेरी तस्वीर को इतना गौर से क्यों देख रही हैं? कहीं नज़र लगाने के फिराक में तो नहीं आप?"


    इसके बाद परिणीति होश में आई और हड़बड़ाते हुए बोली, "नहीं, ऐसी बात नहीं है।" फिर उसे याद आया कि इद्यान ने क्या कहा था, तो उसने उसे घूरते हुए कहा, "आपने हमें क्या कहा? कि हम आपकी तस्वीर को नज़र लगा रहे हैं? हम क्या कोई काला जादू करते हैं जो आपकी तस्वीर को नज़र लगाएँगे?"


    इद्यान को उसकी बात पर हँसी आ गई। वह उसे और चिढ़ाने के लिए बोला, "मुझे क्या पता है? शायद आप काला जादू जानती हों।"


    इद्यान की बात पर परिणीति सच में बहुत ज्यादा चिढ़ गई। वह उसे खिन्न भरी नज़रों से देखते हुए बोली, "आपसे तो बात करना ही बेकार है। हम जा रहे हैं। हमें नहीं देखना आपका कमरा।" कहकर आरवी को गोद में लिए कमरे से बाहर चली गई। यह देखकर इद्यान भी मुस्कुराते हुए उसके पीछे चल पड़ा। उसे पता चल चुका था कि उसने परिणीति को ज़्यादा ही चिढ़ा दिया है। उसे माफ़ी मांगने के लिए पीछे से आवाज़ लगी, लेकिन परिणीति गुस्से में चली जा रही थी।


    परिणीति आगे बढ़ रही थी। इद्यान भी उसे पीछे से कह रहा था, "अरे, मैं तो आपसे मज़ाक कर रहा था। अरे, रुकिए तो!" कहते हुए इद्यान परिणीति के पीछे-पीछे जाने लगा। तभी परिणीति अचानक रुक गई। इसे देखकर इद्यान भी तुरंत उसके पास आया। परिणीति को देखकर माफ़ी मांगने वाला था, तभी उसने परिणीति की नज़रों का पीछा किया। जहाँ परिणीति देख रही थी, वहीं इद्यान भी एकटक देख रहा था। वे अनाया और उस लड़के को देख रहे थे जो वहाँ खड़े थे।


    परिणीति को इतना समझ आ चुका था कि जब तक वह जाकर कुछ बोलेगी नहीं, तब तक वे दोनों अपने होश में नहीं आने वाले। इसलिए परिणीति तुरंत वहाँ जाकर उस लड़के से बोली, "अरे भाई, आप...?"


    परिणीति की बात पर वह लड़का अपने होश में आया और अनाया को संभालते हुए खड़ा किया। अनाया भी परिणीति की आवाज़ सुनकर अपने होश में आई और तुरंत अपने आप को संभालते हुए लड़के से दूर खड़ी हो गई।


    इद्यान भी वहाँ आ गया। उसने परिणीति के मुँह से "भाई" सुनकर चौंकते हुए कहा, "भाई? ये आपके भाई हैं?"


    "हाँ, शिवांश भाई। ये हमारे बड़े भाई हैं," परिणीति ने इद्यान को शिवांश से मिलाते हुए कहा।


    शिवांश ने अपने चेहरे पर एक स्माइली इमोशन लाते हुए हाथ बढ़ाते हुए कहा, "क्या बात है जीजा जी? आप अपने साले साहब को नहीं पहचान पाए?"


    इसके बाद इद्यान मुस्कुराया, उसका हाथ मिलाया और कहा, "हम आज पहली बार मिल रहे हैं ना, इसलिए थोड़ा सा मिसअंडरस्टैंडिंग हो गया।"


    शिवांश मुस्कुराते हुए बोला, "इट्स ओके, कोई बात नहीं।"


    परिणीति ने अब शिवांश को अनाया की तरफ इशारा करते हुए कहा, "भाई, ये अनाया है, मेरी छोटी बहन। और ये... ये डॉक्टर हैं।"


    शिवांश अनाया की तरफ देखा, जो बिल्कुल भी शिवांश की ओर नहीं देख रही थी। वह अभी भी उस घटना से बहुत असहज महसूस कर रही थी। इसलिए उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह शिवांश से आँखें मिला पाए।


    शिवांश उसे देखकर हल्के से मुस्कुराया और धीरे से बोला, "Hello Anaya 👋"


    अनाया ने बदले में हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "हेलो।" उसके बाद वह दोनों चुप हो गए। फिर परिणीति छोटी आरवी को दिखाते हुए शिवांश से बोली, "और ये है आरवी।" शिवांश आरवी को देखकर उसके गाल छूते हुए बोला, "हे बेबी!"


    उसकी बात सुनकर आरवी ने बेबी टोन में कहा, "आपने अभी मेरी बुआ को क्यों पकड़ा था?"


    उसकी बात सुनकर शिवांश तो बिल्कुल चुप हो गया और अनाया भी आरवी की बात सुनकर खामोश हो गई। इधर, इद्यान आरवी को परिणीति की गोद से लेते हुए बोला, "अरे बेटा, बुआ गिर रही थी ना, इसलिए उसने उन्हें बचाया था।"


    इद्यान की बात सुनकर आरवी बोली, "हाँ, तो इन्होंने अनाया बुआ को बचाया ना, तो बुआ को थैंक यू तो बोलना चाहिए।"


    उसकी बात पर सभी मुस्कुराने लगे। तभी अनाया बोली, "बिल्कुल, मुझे थैंक यू बोलना चाहिए।" तभी वह शिवांश की ओर देखकर बोली, "थैंक यू सो मच, आपने मुझे बचाया। नहीं तो मेरे भाई की सगाई में मेरा पैर ज़रूर टूट जाता।"


    उसके बाद शिवांश मुस्कुराते हुए बोला, "कोई बात नहीं।"


    फिर चारों नीचे आ गए।


    कुछ देर सभी बातें करते रहे। फिर चौहान परिवार, माहेश्वरी परिवार को विदा करके चौहान मेंशन के लिए निकल गए।


    अब दोनों परिवार जमकर सगाई की तैयारी करने लगे। पूरे राजस्थान में यह बात फैल चुकी थी कि राजस्थान के दो रॉयल परिवार, माहेश्वरी परिवार और चौहान परिवार, एक-दूसरे से रिश्ता जोड़ने जा रहे हैं। हर तरफ इन दोनों परिवारों की ही चर्चा हो रही थी।

  • 9. A Royal Arrange marriage - Chapter 9

    Words: 1423

    Estimated Reading Time: 9 min

    आज सगाई का दिन था।

    पूरे चौहान मेंशन को दुल्हन की तरह सजाया गया था। आखिर ऐसी सजावट हो भी क्यों ना, चौहान खानदान की लाडली बेटी की सगाई तो थी।

    पूरा चौहान मेंशन बहुत ही खूबसूरत तरीके से, पिंक और व्हाइट लैवेंडर फूलों से सजाया गया था। उसमें पिंक कलर के गुलाबों का बहुत ही खूबसूरत कॉम्बिनेशन किया गया था।

    इस देर में माहेश्वरी परिवार चौहान हाउस आ गया। माहेश्वरी परिवार का बहुत ही ग्रैंड वेलकम किया गया।

    सभी को व्हाइट और गोल्डन कलर के कॉम्बिनेशन में ड्रेस अप करना था। उसी के हिसाब से सभी ने व्हाइट और गोल्डन कॉम्बिनेशन में कपड़े पहने थे। बहुत ही खूबसूरत, सफ़ेद रंग की साड़ी, जो पूरी नेटवर्क थी और जिसमें बहुत सारे स्टोंस लगे थे। सभी ने ग्रीन कलर की ज्वेलरी कैरी की हुई थी।

    वहीं दूसरी ओर, लड़के भी कुछ कम नहीं लग रहे थे। व्हाइट कलर की चिकनकारी कुर्ती और क्रीम कलर के पायजामा में सभी बहुत अच्छे लग रहे थे।

    बस सिर्फ़ दूल्हा-दुल्हन को अलग कलर के कपड़े दिए गए थे। इध्यान ने लाइट पाउडर पिंक कलर का, फुल वर्क कुर्ता, ऊपर से कोट और क्रिस्टल ग्रीन कलर का ब्रोच पहना था। बालों को अच्छे से सेट किया हुआ था। हाथों में ब्रांडेड घड़ी और पैरों में मोजड़ी। कुल मिलाकर, इध्यान बहुत ज़्यादा हैंडसम लग रहा था।

    इध्यान जाकर स्टेज पर बैठ गया। कुछ देर में इंगेजमेंट का समय हुआ। तो परिणीति को बुलाया गया। अर्शिता जी और उसकी बेस्ट फ्रेंड मानुसी परिणीति को लेने ऊपर गईं।

    कुछ देर में परिणीति को भी नीचे इंगेजमेंट के लिए लाया गया। इध्यान की नज़र जैसे ही परिणीति पर पड़ी, उसकी नज़र परिणीति पर ही जम गई।

    क्योंकि परिणीति आज बहुत खूबसूरत लग रही थी। उसने बहुत ही खूबसूरत पिंक कलर का लहंगा पहना था, जो पूरी तरह से वर्क था। उसने अमेरिकन डायमंड और व्हाइट कलर के स्टोन से बनी ज्वेलरी कैरी की हुई थी। उसके बालों को आगे से हेयर स्टाइल बनाकर, हेयर एक्सेसरीज़ लगाई गई थीं। कुछ बाल उसके आगे की ओर झूल रहे थे, और बाकी के बाल पूरी तरह से खुले थे, जो उसने कर्ल किए हुए थे। परिणीति के बाल लंबे होने के कारण वह और ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी।

    उसने माथे पर छोटी, व्हाइट स्टोन वाली बिंदी लगाई थी। होठों पर रेड लिपस्टिक और आँखों में लाइट ग्लिटर पिंक कलर का आईशैडो लगाया था।

    कुल मिलाकर, परिणीति आज स्वर्ग से उतरी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। इध्यान की तो नज़रें परिणीति पर जम सी गई थीं। उसे ऐसा देखकर, उसके बगल में खड़ी अनाया ने उसे कोहनी मारकर कहा, "बस भाई साहब, भाभी साहबा अब कुछ देर में आपकी ऑफिशियल हो ही जाएंगी। थोड़ा तो वेट कीजिए, तब से घूर रहे हैं।"

    "हा देवर साहब, माना कि हमारी देवरानी बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत है... इसका मतलब यह नहीं है कि आप यहां खुलकर उसे ऐसे घूरते रहें।" उसकी बात सुनकर, बगल में खड़ी मधुरिमा भी हँस दी और इध्यान को चिढ़ाते हुए कहा।

    दोनों की बात सुनकर इध्यान शर्मा गया और अपनी नज़रें परिणीति से हटा लीं।

    परिणीति जाकर इध्यान के साथ स्टेज पर खड़ी हो गई। पंडित जी ने अपने मुहूर्त के अनुसार सारे रस्म शुरू किए। स्वर्णा जी आकर परिणीति की आरती उतारी, उसे चुनरी ओढ़ाई, माथे पर तिलक करके मुँह मीठा करवाया और बहुत सारे शगुन दिए।

    इधर अर्शिता जी भी इध्यान को आकर आरती उतारी, तिलक किया, उसे बहुत सारे शगुन दिए और फिर उसका मुँह मीठा करवाया। इध्यान और परिणीति दोनों ही अपनी माँ के पैर छुए।

    कुछ देर में रिंग सेरेमनी शुरू हुई। पहले इध्यान को परिणीति को इंगेजमेंट रिंग पहननी थी। इध्यान कुछ देर तो वैसे ही रिंग लेकर खड़ा रहा और परिणीति की आँखें झुकी हुई थीं। इध्यान कुछ पल रुककर परिणीति को देखता है, फिर उसका हाथ पकड़कर, परिणीति को देखते हुए कहता है, "पहना दूँ?"

    "मना करेंगे तो नहीं पहनाएँगे?" परिणीति ने अपनी पलकें उठाकर इध्यान को देखते हुए कहा।

    इध्यान उसकी बात सुनकर हल्का मुस्कुराते हुए कहता है, "सोच लीजिए, अगर पहना दिया तो आप मेरी हो जाएँगी हमेशा के लिए, फिर कुछ भी नहीं हो सकता।"

    "हमें मंज़ूर है आपका होना।" ऐसा कहकर परिणीति अपना हाथ इध्यान के सामने इशारा करते हुए कहती है।

    इध्यान उसकी बात सुनकर तुरंत ही परिणीति को रिंग पहना देता है। सभी इध्यान और परिणीति की ऐसी बातें सुनकर मुस्कुराने लगे। सभी को लगा कि दोनों की जोड़ी बिल्कुल सही है।

    इध्यान जैसे ही परिणीति को रिंग पहनाता है, चारों तरफ तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठती है। फिर परिणीति ने भी इध्यान को रिंग पहनाई। अब उन दोनों पर ढेर सारे फूलों की बरसात होने लगी। सभी मीडिया वाले और बाकी फ़ोटोग्राफ़र्स उनकी फ़ोटो लेने लगे। इस सगाई से सबसे ज़्यादा खुश देवराज जी और कैलाश जी थे और उनकी खुशी उनके चेहरे से साफ़ झलक रही थी। इध्यान और परिणीति अब जाकर सभी बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं।

    परिणीति और इध्यान कुछ देर में वापस स्टेज पर आकर बैठ जाते हैं। परिणीति के दिमाग में अभी भी इध्यान की कही हुई बातें चल रही थीं, जिससे उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है। उसे देखकर इध्यान उसे छेड़ने के लिए कहता है, "क्या बात है, इंगेजमेंट की इतनी खुशी?"


    परिणीति उसे देखकर कहती है, "क्यों, आप खुश नहीं हैं इस इंगेजमेंट से?"


    इध्यान उसकी बातों में एक पल के लिए खामोश हो जाता है, जिसे समझकर परिणीति के चेहरे पर जो मुस्कुराहट थी, वह फीकी हो जाती है। तभी इध्यान उसे कहता है, "अगर खुशी नहीं होती तो अभी मैं यहां नहीं रहता।"

    इध्यान की बात सुनकर परिणीति के चेहरे पर एक बार फिर से मुस्कुराहट आ जाती है।

    दूसरी ओर,

    अनाया की ना चाहते हुए भी उसकी नज़रें बार-बार शिवांश पर ही जा रही थीं। शिवांश बहुत ही डैशिंग और हैंडसम लग रहा था। पार्टी में आई बाकी लड़कियों की भी नज़र शिवांश पर ही जमी हुई थी। उसने बहुत ही खूबसूरत लाइट क्रीम कलर और व्हाइट कॉम्बिनेशन का धोती कुर्ता पहना था। ऊपर से उसने कोट पहना था, जिसमें वह और ज़्यादा हैंडसम लग रहा था।

    अनाया की नज़रें शिवांश पर ही पड़ रही थीं और इस बारे में शिवांश को पता था। लेकिन शिवांश की ऐसी हरकतें नहीं थीं कि वह जाकर किसी भी लड़की से ऐसे बातें करे। वह बहुत ही शांत और साइलेंट लड़का था और उस पर यह क्वालिटी सूट भी करती थी।


    अब सभी फैमिली मेंबर्स एक साथ मिलकर डिनर करते हैं। इध्यान और परिणीति को एक साथ बैठाया गया था। हालाँकि दोनों के बीच इतनी बातें तो नहीं हुई थीं, लेकिन आज दोनों परिवारों में अलग सी खुशी थी। इध्यान भी ना चाहते हुए इस सगाई से खुश था।

    कुछ देर में इंगेजमेंट पार्टी खत्म होती है। माहेश्वरी हाउस के सभी मेंबर चौहान फैमिली से विदा लेते हैं।


    परिणीति पूरे दिन की थकावट और शाम के इंगेजमेंट फंक्शन से पूरी तरह से थक चुकी थी। उसने तुरंत ही अपना लहंगा बदल दिया और सिंपल सा टॉप और लूज़ पैंट पहन लिया और अपने बालों का जूड़ा बना लिया। वह आकर अपने बेड पर बैठकर कुछ देर अपने हाथ को देखती है, जिस पर अभी कुछ देर पहले इध्यान ने इंगेजमेंट रिंग पहनाई थी। मेहँदी वाले हाथों में वह अंगूठी और भी ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी। परिणीति एकटक उस अंगूठी को देखे जा रही थी। फिर अपने मन में सोचती है, "भले ये रिश्ता आपकी मर्ज़ी का नहीं है, लेकिन इसमें आपकी मर्ज़ी भी शामिल होगी और अब आप ऑफ़िशियली मेरे हो, तो भूल जाइए किसी और के बारे में सोचने भी देंगे हम डॉक्टर साहब।"


    दूसरी ओर, माहेश्वरी मेंशन।


    इध्यान भी अपने रूम में बैठे हुए अपने हाथ की उस उंगली को देख रहा था जिस पर परिणीति ने इंगेजमेंट रिंग पहनाई थी। उसे देखते हुए इध्यान भी सोच रहा था कि क्या सच में वह इस रिश्ते को अच्छे से निभा पाएगा। कहीं ना कहीं परिणीति उससे अच्छी भी लगने लगी थी।


    दोनों ही एक-दूसरे के बारे में सोच रहे थे। आज दोनों के बीच जो रिश्ता बना था, वह बहुत ही खूबसूरत था।

    देखा नहीं जाएगा कि आगे उनके रिश्ते में क्या मोड़ आता है।

  • 10. A Royal Arrange marriage - Chapter 10

    Words: 1090

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब तक हमने पढ़ा था कि इद्यान और परिणीति की सगाई हो चुकी थी और दोनों के दिल में एक-दूसरे के लिए अनजान फीलिंग्स भी आ चुकी थीं।

    कुछ दिन ऐसे ही बीत गए, लेकिन सगाई के बाद एक बार भी इद्यान और परिणीति के बीच बात नहीं हुई थी। स्वर्णा जी, माधुरीमा और अनाया, ये सब परिणीति से दिन में एक-दो बार बात कर लेती थीं। लेकिन इद्यान ने अभी तक परिणीति से एक भी बार बात नहीं की थी।

    जिससे परिणीति को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था। उसे इद्यान के बारे में और जानना था। वह उसे समझाना चाहती थी, लेकिन इद्यान उससे बात करना नहीं चाहता था। वह जानता था कि हम दोनों के बीच... लेकिन फिर भी, अरेंज मैरिज में ऐसी बातें करते-करते रिश्ता strong बनता है। लेकिन अभी इद्यान इस चीज़ पर ध्यान नहीं दे रहा था। जिसे सोचकर परिणीति को काफी बुरा लगता था।

    इधर, इद्यान को भी अपनी फीलिंग्स ठीक से समझ नहीं आ रही थीं। वह नॉर्मली अपना रूटीन हर वक्त कंप्लीट करता था और हॉस्पिटल में सारे पेशेंट्स को चेक करता था। वह उनमें उलझा रहता था और उसके दिमाग में कभी-कभी परिणीति का ख्याल आता था। लेकिन फिर वह अपने दिमाग को झटका देकर अपने काम पर फोकस करने लगता था।

    कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। अब घर के सभी बड़े लोग परिणीति और इद्यान की शादी की डेट फिक्स करने का सोच रहे थे।

    इसके बारे में परिणीति को पता लग चुका था। परिणीति अपनी माँ के पास गई और उन्हें पीछे से हग करते हुए बोली,
    "इतनी भी क्या जल्दी है हमें अपने से दूर करने की?"

    परिणीति की बात सुनकर अर्षिता मुस्कुराते हुए बोलीं,
    "ये तो रीत है बेटा। जिसे हम ना चाहते हुए भी करना पड़ता है। जो है, अपनी बेटी को खुद से अलग करके किसी और के घर विदा करना पड़ता है।"

    परिणीति यह बात सुनकर हल्की इमोशनल हुई और बोली,
    "हमारे साथ ऐसा क्यों होता है हमेशा? हम बेटियाँ ही हर वक्त अपने घर छोड़कर क्यों जाती हैं?"

    परिणीति की बात सुनकर अर्षिता ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,
    "बेटा, तुम ऐसे मत मानना कि वो पराया घर है। दूसरों के लिए वो शादी के बाद तुम्हारा खुद का घर होगा। मैंने देखा है, सब तुम्हें अपनी आँखों पर बिठाकर रखेंगे। सभी तुमसे बहुत प्यार करते हैं। अभी से देखती हूँ, सभी तुम्हें वहाँ लाने के लिए कितने एक्साइटेड हैं।"

    अपनी माँ की बात सुनकर परिणीति खुद से बड़बड़ाने लगी,
    "लेकिन जिसको एक्साइटेड होना चाहिए, वो तो है ही नहीं। बात तक नहीं करना चाहता।"

    किसी को खुद में गड़बड़ आते देखकर अर्षिता जी उसे हिलाते हुए बोलीं,
    "कहाँ खो गई है?"

    परिणीति अपने होश में आते हुए बोली,
    "कुछ नहीं। हम अपने रूम में पढ़ाई करने जा रहे हैं।" इतना कहकर परिणीति वहाँ से चली गई।

    परिणीति अपने रूम में आई और अपनी किताबें खोलकर पढ़ाई करने लगी। ना चाहते हुए भी उसके दिमाग में बार-बार इद्यान के ही ख्याल आ रहे थे। जिसे झुझलाकर वह अपने बाल नोंचते हुए बोली,
    "यह क्या हो गया है? बार-बार उनकी याद क्यों आ रही है? जो हमें याद तक नहीं करना चाहते, उन्हें तो हमसे बात करने का सोचा भी नहीं।"

    परिणीति ने अब सारा ध्यान इद्यान से हटाकर अपनी किताबों में लगा दिया।

    दूसरी ओर, महेश्वरी हॉस्पिटल।

    इद्यान अपने केबिन में बैठा काम कर रहा था। तभी उसकी केबिन में अनाया आई और सामने आकर दोनों हाथ कमर पर रखकर इद्यान को घूरते हुए बोली,
    "ये क्या हरकत है भाई साहब?"

    इद्यान सामने अनाया को देखकर बोला,
    "क्या हुआ?"

    अनाया: "आपकी सगाई हो चुकी है और शादी भी होने वाली है, और आप यहाँ काम में फँसे हुए हैं। अपने एक बार भी भाभी साहब से बात करने की सोचा भी है आपने कि नहीं?"

    अनाया की बात सुनकर उसे याद आया कि उसने सगाई के बाद एक बार भी परिणीति से बात नहीं की। इसके बारे में सोचकर इद्यान को थोड़ा बुरा लगा। लेकिन उसे बात करना थोड़ा अजीब भी लग रहा था।

    अनाया वापस इद्यान को देखते हुए बोली,
    "क्या हुआ? मैंने कुछ अजीब नहीं कहा। चुपचाप से भाभी साहब से बात कीजिए। बेचारी कुछ कहती नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि आप उनके साथ कुछ भी कर सकते हैं।"

    इद्यान अनाया की बात सुनकर अपने मन में बोला, "अच्छा, बेचारी? उसके सामने तो कोई कुछ बोल ही नहीं सकता। मुझे एक बार बोलना स्टार्ट करती है तो बोलती जाती है, किसी को बोलने का मौका भी नहीं देती, और अनाया को लगता है कि वह बेचारी है।"

    अब अनाया ने इद्यान का फोन टेबल से उठाकर परिणीति का नंबर डायल किया और सीधे इद्यान को बढ़ाते हुए बोली,
    "ये लीजिए भाई साहब, भाभी साहब से बात कीजिए और पूछिए कैसी हैं वो?"

    इतना कहकर अनाया ने परिणीति का नंबर डायल करके इद्यान को दे दिया। धीरे-धीरे फोन रिंग कर रहा था। कुछ देर में परिणीति ने फोन उठाया और बोली,
    "हेलो? कौन है?"

    इधर, परिणीति की आवाज सुनकर इद्यान थोड़ी हिम्मत करके बोला,
    "मैं बोल रहा हूँ। कैसी हैं आप?"

    परिणीति इद्यान की आवाज सुनकर यकीन नहीं कर पा रही थी कि इद्यान ने खुद से फोन किया है। उसे बहुत खुशी हुई, लेकिन फिर उसे याद आया कि कितने दिनों तक इद्यान ने उसे इग्नोर किया है। जिसे याद करके वह गुस्से से बोली,
    "हमें आपसे कोई बात नहीं करनी है। आपको हमारी याद नहीं आई? इंगेजमेंट के बाद आपने हमसे बात तक नहीं की। मैं समझ रही हूँ आप शादी से खुश नहीं हैं, लेकिन अब हम इंगेज्ड हैं, इसलिए आप हमसे एक बार बात तो कर सकते थे।"

    इधर, परिणीति एक बार बोलना शुरू हुई तो इद्यान को बोलने ही नहीं दिया। वह चुपचाप परिणीति की सारी भड़ास सुन रहा था। जिसे सुनकर उसके चेहरे पर एक प्यारी सी स्माइल आ गई। वह बस इतना बोला,
    "तो क्या आप इतने दिनों से मुझसे बात करना चाहती थीं?"

    इद्यान का यह सवाल सुनकर परिणीति अब चुप हो गई... वह अब बोले भी क्या इद्यान से? जब इद्यान ने उसकी फीलिंग्स को समझ लिया था।

    आखिर इस बात का परिणीति इद्यान को क्या जवाब देंगी?

  • 11. A Royal Arrange marriage - Chapter 11

    Words: 1534

    Estimated Reading Time: 10 min

    इद्यान ने परिणीति को चुप देखकर कहा, "क्या हुआ? क्या आप मुझसे बात नहीं करना चाहती थी?"

    परिणीति ने इद्यान के सवाल पर कहा, "हमारे चाहने या ना चाहने से क्या होता है।" परिणीति की नाराजगी साफ दिख रही थी।

    इद्यान ने कहा, "आप ही के चाहने से तो सब कुछ होगा। आखिरकार अब आप हमेशा-हमेशा के लिए मेरी लाइफ की पार्ट बनने वाली हैं।" इद्यान ने यह बात बहुत खूबसूरती से कही। इसे सुनकर परिणीति के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि इद्यान इस रिश्ते के लिए खुश है या नहीं। क्योंकि उनकी अरेंज मैरिज है और इद्यान हमेशा से कहता है कि वह इस रिश्ते के लिए अभी राजी नहीं है। फिर इद्यान की ऐसी बातें सुनकर उसके मन में अलग से भाव आने लगे, जिन्हें वह समझ नहीं पा रही थी।

    परिणीति को कुछ ना बोलते देखकर इद्यान ने कहा, "क्या हुआ? आप चुप क्यों हो गई?"

    तभी परिणीति बोली, "हम आपकी जिंदगी में आए तो बस आपकी जिंदगी सेट हो जाएगी।" परिणीति ने बच्चों जैसे कहा। इसे सुनकर इद्यान उसे थोड़ा चिढ़ाते हुए बोला, "सेट का तो पता नहीं, अशांति जरूर होगी।" इद्यान की बात पर परिणीति चिढ़ गई और बोली, "प्रॉब्लम क्या है आपको हमसे...?"

    इद्यान ने उसकी बात सुनकर कहा, "प्रॉब्लम कुछ नहीं है, बस आप थोड़ा बोलना कम कर दीजिये।"

    "यह कभी नहीं हो सकता है।" परिणीति ने सपाट लहजे में कहा।
    "क्यों?" इद्यान ने पूछा।

    "क्योंकि हमारा बोलना कभी कम नहीं होता। घरवाले परेशान रहते हैं। और हम अपने आप को किसी के लिए भी चेंज नहीं करती हैं। हम जैसी हैं, वैसे ही ठीक हैं।" परिणीति ने कहा।

    इद्यान ने परिणीति की बात सुनकर कहा, "बिल्कुल सही है। आप जैसी हैं, वैसी बहुत ही अच्छी हैं।"

    परिणीति ने इद्यान की बात सुनकर थोड़ा मुंह बनाते हुए कहा, "तो आप हमें अभी कुछ देर पहले क्यों कह रहे थे कि आप थोड़ा कम बोलिए?"

    इद्यान ने बेहद प्यार से कहा, "ताकि आप दूसरे की बातें भी सुनें। क्योंकि आप तब से बोले जा रही हो। मुझे पता है कि मैं इन दिनों बहुत बिजी था, इसलिए आपसे बात नहीं कर पाया।"

    "अच्छा, और अगर बिजी नहीं रहते तो आप हमसे बात करते क्या?" परिणीति ने तपाक से सवाल पूछा। इद्यान कुछ पल सोच में डूब गया, फिर उसने जवाब दिया, "हाँ, करता।"

    "अच्छा जी, कैसे करते हैं आप?" परिणीति ने सवाल किया। इद्यान ने सामान्य लहजे में कहा, "मैं आपको कॉल करता।"

    परिणीति चिढ़ते हुए बोली, "आपने हमसे हमारा नंबर लिया या किसी और से? आप हमसे बात करेंगे, कौन से नंबर से बात करते हैं?"

    परिणीति की बात सुनकर इद्यान को एहसास हुआ और वह बोला, "सॉरी।"

    परिणीति ने कहा, "सॉरी से काम नहीं चलेगा। अभी के अभी आप हमें हमारे फ़ोन में फ़ोन कीजिए और सॉरी बोलिए, तभी हम मानेंगे।" ऐसा कहकर परिणीति ने फ़ोन काट दिया।

    इद्यान को थोड़ी हैरानी हुई क्योंकि अभी परिणीति ने ही उससे कहा था कि उसके पास उसका नंबर नहीं है, फिर भी वह कह रही है कि उसे फोन करे। वह यही सोच रहा था कि तभी उसे वापस से परिणीति का फोन आता हुआ दिखाई दिया। इसे देखकर इद्यान के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। उसने फोन उठाया। तभी परिणीति बोली, "सॉरी, हम भूल गए थे कि आपके पास हमारा नंबर ही नहीं है।"

    इद्यान ने कहा, "बहुत जल्दी आपको समझ आता है।" परिणीति ने कहा, "तो आप किसी और से नंबर लेकर हमें फोन करें।" कहकर फिर से फोन काट दिया।

    इद्यान अब उसकी हरकत पर हँसने लगा और अपने मन में बोला, "वाह! गजब की मिली है मुझे! कैसे संभालूँगा इसे?"

    इतना कह रहा था कि उसके सामने अनाया का चेहरा दिखा, जो उसे आँखें फाड़े देख रही थी। इद्यान ने कहा, "क्या हुआ? ऐसे क्या देख रही हो?"

    अनाया बोली, "भाई सा, आप कब से इतने प्यार से किसी से बात करने लगे? ऐसे तो रूड होकर ही बात करते हो।" कहकर अनाया थोड़ा मुँह बनाती है। इद्यान बोला, "ज्यादा बोल रही हो तुम।"

    "हाँ, मैं ही तो ज्यादा बोल रही हूँ, भाई सा। आप अभी क्या कर रहे थे? और भाभी सा के साथ? आपके पास उनका नंबर तक नहीं है?" अनाया ने पूछा। इद्यान ने जवाब दिया, "हाँ, मैंने लिया नहीं है उससे नंबर।"

    अनाया ने पूछा, "तो आप अब क्या करेंगे?"

    इद्यान ने कहा, "उन्हें सॉरी चाहिए, पर कैसे कहूँ? मेरे पास उसका नंबर ही नहीं है!" अनाया ने अपने सिर पर हाथ मारते हुए कहा, "भाई सा, मेरे पास भाभी सा का नंबर है। तो आप मुझसे नंबर लेकर भाभी सा को कॉल करें।"

    अनाया की बात सुनकर इद्यान का दिमाग खुल गया। वह तुरंत परिणीति का नंबर लेकर उसे कॉल करता है। अनाया नंबर देकर वहाँ से जा चुकी थी। एक रिंग के बाद ही परिणीति तुरंत फोन उठा लेती है। इसे जानकर इद्यान के चेहरे पर फिर से मुस्कान आ गई।

    उधर परिणीति सिर्फ़ "हेलो" कहती है। उसे पता था कि यह इद्यान का ही नंबर होगा, क्योंकि उसके फोन पर नया नंबर ही शो हो रहा था। इद्यान ने बेहद प्यार से कहा, "सॉरी।" इसे सुनकर परिणीति के चेहरे पर जो भी झुंझलाहट और गुस्सा था, वह तुरंत छूमंतर हो गया और वह मुस्कुराते हुए बोली, "इट्स ओके।"

    अब दोनों तरफ़ खामोशी फैल गई। कहें भी क्या? दोनों के बीच ऐसा रिश्ता था भी नहीं।

    कुछ देर बाद परिणीति ने बात शुरू की, "वैसे आप डॉक्टर क्यों बने?"

    परिणीति ने बहुत ही स्टुपिड सवाल किया। इद्यान अजीब भाव में बोला, "ये कैसा सवाल है?"

    परिणीति ने अपने सिर पर हाथ मारते हुए खुद से कहा, "हम भी ना पागल हैं।" तभी उसने अपनी बात संभालते हुए कहा, "वो हम ये जानना चाहते थे कि आपने मेडिकल फील्ड ही क्यों चुना?"

    इद्यान ने बेहद सरल तरीके से जवाब दिया, "मैं हमेशा से अपनी माँ को इस प्रोफ़ेशन में देखा है। उनका डेडीकेशन और हार्ड वर्क देखकर मुझे भी इस मेडिकल फील्ड में इंटरेस्ट आ गया और मैंने साइंस लेकर मेडिकल की पढ़ाई की और डॉक्टर बना।"

    परिणीति ने उसकी बात सुनकर कहा, "ओह, लेकिन डॉक्टर बनने में तो बहुत ज्यादा पढ़ाई करनी पड़ती है। एमबीबीएस, फिर इंटर्नशिप, मतलब कितना सारा? कैसे पढ़ लिए आप इतना सारा? क्या किया था?"

    उसके अजीबोगरीब सवाल सुनकर इद्यान थोड़ा झुंझला गया और बोला, "नहीं..."

    "वैसे भी आप थोड़े बोरिंग टाइप के हैं। तो आपने ये पढ़ाई करने को सोचा।" परिणीति ने बेझिझक कह दिया।

    इसे सुनकर इद्यान अपनी बड़ी आँखें किये हुए फ़ोन को घूरता है, फिर अपने कान से लगाते हुए कहता है, "आपको मैं बोरिंग नज़र आता हूँ?"

    परिणीति उसे चिढ़ाते हुए बोली, "बहुत ज्यादा।"

    इद्यान ने कहा, "अभी तक आप मुझे जानती नहीं हैं, मिस परिणीति चौहान। जिस दिन जान गईं ना, उस समय आप ये नहीं कहेंगी।"

    परिणीति बोली, "हम आपको जानेंगे, यह बाद की बात है। लेकिन अभी के लिए तो आप मुझे बहुत ही ज्यादा बोरिंग लगते हो।"

    वही बात सुनकर इद्यान ने कहा, "हाँ, तो अब आप क्या कर सकती हैं? अब आपको इस बोरिंग इंसान के साथ ही पूरी जिंदगी बितानी है।"

    "हाँ, तो हम आपके साथ जिंदगी बिताएँगे, तो आप वैसे बोरिंग थोड़ी रहने देंगे..." परिणीति ने खुश होकर कहा।

    इद्यान ने उसकी बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहा, "अच्छा, तो आप मुझे बदल देंगी?"

    "हाँ।" परिणीति ने भी उसी अंदाज में कहा। इद्यान ने कहा, "जैसे आप किसी के लिए नहीं बदलती हैं, वैसे ही मैं भी किसी के लिए नहीं बदलता हूँ।"

    परिणीति ने कहा, "हम आपको बदलेंगे नहीं, बल्कि आपकी इस बोरियत वाली जिंदगी में रंग भर देंगे।"

    इद्यान को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे कैसी बातें करें। उसे परिणीति के सामने कुछ बोलते ही नहीं बन रहा था, और परिणीति नॉनस्टॉप कुछ भी बोल रही थी।

    कुछ देर परिणीति ने इद्यान से इतनी बातें कीं कि इद्यान को नीट का पेपर देते वक़्त जितना डर नहीं लगा था, उतना परिणीति के सवालों के जवाब देने से लगा।

    कुछ देर बाद दोनों की बातें खत्म हुईं। तब परिणीति इद्यान से बोली, "ओके, बाय।" बोलकर परिणीति ने कॉल काट दिया, बिना इद्यान का जवाब सुने। इससे इद्यान घूर कर फोन को देखते हुए बोला, "दादा सा को यही मिली थी मेरे लिए।" ऐसा कहते हुए इद्यान का चेहरा बहुत ही ज्यादा मासूम नज़र आया।

    लेकिन कुछ देर बाद ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई, परिणीति की बातों को याद करते हुए।

  • 12. A Royal Arrange marriage - Chapter 12

    Words: 2070

    Estimated Reading Time: 13 min

    अगले दिन सुबह परिणीति अपने कॉलेज के लिए निकली। कॉलेज जाकर वह अपने क्लासरूम में आकर बेंच पर बैठ गई। तभी उसके बगल में उसकी फ्रेंड दीक्षा आकर बैठते हुए, एक्साइड होकर पूछा, "हाय परिणीति! मैंने सुना तुम्हारी इंगेजमेंट कैसी रही? सॉरी यार, मैं नहीं आ पाई।"

    परिणीति दीक्षा की बात सुनकर, नाराजगी भरे स्वर में बोली, "हा हा! तुम्हें तो अपनी फ्रेंड से कोई लेना-देना है ही नहीं। तुम्हें अपने काम को ही ज़्यादा वक़्त देना होता है।"

    दीक्षा अब उसे थोड़ा सा मानते हुए बोली, "सॉरी ना परिणीति। वैसे मैंने सुना है कि तुम्हारे होने वाले जी, बहुत ही ज़्यादा हैंडसम हैं। ऊपर से इस शहर के फेमस डॉक्टर भी हैं।"

    परिणीति दीक्षा का सवाल सुनकर मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हाँ, बिल्कुल!" फिर वह ऐसा कहकर अपने हाथ की रिंग दीक्षा को दिखाई। फिर परिणीति अपने फ़ोन से दीक्षा को अपनी इंगेजमेंट की कुछ पिक्चर्स दिखाईं। दीक्षा ध्यान से परिणीति की पिक्चर देखते हुए बोली, "हाय! ये डॉक्टर क्या दिखता है यार! कितना हैंडसम है! तुझे ऐसा बंदा मिला, तो तू बहुत किस्मत वाली है।" दीक्षा हल्का बच्चों वाला मुँह बनाती है, जिसे परिणीति उसके सिर पर चपत लगाते हुए बोली, "तुझे भी ऐसे हैंडसम बंदा मिल ही जाएगा। डोंट वरी! हाँ, लेकिन कब?"

    परिणीति बोली, "अरे, मिल ही जाएगा। वैसे भी प्यार अचानक ही होता है। सोच-समझकर प्यार करना, कोई प्यार करना नहीं होता है।"

    "वाह देवी जी! आप तो बड़ा ही प्यार के नाम पर ज्ञान देने लगी हैं! इद्यान का कुछ ज़्यादा ही प्यार का असर हो रहा है आपके ऊपर।" दीक्षा की बात सुनकर परिणीति हल्का सा ब्लश करने लगी।

    पूरा दिन कॉलेज का ऐसे ही बीत गया। परिणीति वापस अपने घर आई। कल दोपहर के बाद उसकी इद्यान से एक भी बात नहीं हुई थी। उसका मन बेचैन हो रहा था; उसे इद्यान से बात करना था। वह अपना फोन उठाने ही वाली थी, फिर इद्यान का नंबर डायल करने से पहले उसे नीचे कर लिया। ऐसा उसने तीन-चार बार किया। फिर उसने एक गहरी साँस लेकर नंबर डायल कर ही दिया, लेकिन इद्यान ने उसका फोन नहीं उठाया। परिणीति ने अब उसे वापस कॉल करना सही नहीं समझा, इसलिए वह जाकर चुपचाप बिस्तर पर लेट गई। थोड़ी देर में उसे नींद के आगोश में ले लिया।

    अर्षिता जी परिणीति के रूम में आईं। उन्होंने परिणीति को सोया देखकर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "परिणीति बेटा, उठ जाइए, शाम हो चुकी है।" परिणीति थोड़ा सा करुणामय स्वर में बोली, "माँ, थोड़ी देर सोने दीजिए ना। हमें बहुत नींद आ रही है।"

    उसकी ऐसी बात सुनकर अर्षिता जी मुस्कुराते हुए बोली, "अच्छा, अब आपको अपनी आदत बदलनी पड़ेगी बेटा। अब आप ससुराल जाने वाली हैं। ऐसे बिना वक़्त के सोएँगी तो कैसा लगेगा?"

    परिणीति अर्षिता जी की बात सुनकर हल्का सा सपना आँख खोलकर उन्हें बोली, "कुछ भी नहीं लगेगा। ऐसा ससुराल होना ही नहीं चाहिए जो बेटी और बहू में फ़र्क करे।"

    अर्षिता जी परिणीति की बात सुनकर बोली, "बेटा, यही तो रीत है। बेटी और बहू में हर वक़्त फ़र्क किया जाता है। इसलिए बहू हर वक़्त गलत हो जाती है, बेटी सही रहती है, गलत होकर भी।"

    परिणीति अपनी माँ के गोद में अपना सर रखते हुए बोली, "लेकिन हमें तो ऐसा ससुराल मिला है। आपको दादा साहब, दादी साहब कितना ज़्यादा प्यार करते हैं! हमने तो आपको हमेशा से इस घर की बेटी ही रूप में देखा है। सब कोई आपको बहू भी नहीं कहते हैं। दादा साहब तो आपको हमेशा बेटी कहकर बुलाते हैं।"

    अर्षिता जी परिणीति के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, "बिल्कुल, हम बहुत ही ज़्यादा खुशनसीब हैं कि हमें ऐसा ससुराल मिला। और उससे भी ज़्यादा खुशनसीब इस बात में हैं कि आपके पापा को ऐसा जीवनसाथी मिला, जो हमें हर कदम पर साथ रखा और हमारी हिम्मत बढ़ाई। आपको पता है, परिणीति, हम पहले घर की ऐसी बहू थीं, जो अपने घर के काम को भी संभालती थी और बाहर एक वर्किंग वुमन भी। वरना पहले चौहान हाउस में सभी घर की बहुएँ घर की देखभाल करती थीं और पर्दा करके रहती थीं। लेकिन आपकी दादी साहबा वैसी नहीं थीं। वह हमेशा से आपकी बुआ साहबा और हमें कभी भी फर्क नहीं करती थीं। इसलिए उन्होंने हमें काम करने के लिए प्रोत्साहन किया, और आज हम एक हाउसवाइफ के साथ-साथ एक वर्किंग वुमन भी हैं।"

    परिणीति अपनी माँ की बात सुनकर खुशी से उछलते हुए बोली, "हाँ, तो हमें भी लगता है कि हमारे ससुराल वाले भी वैसे ही होंगे, क्योंकि इद्यान की माँ बहुत ही ज़्यादा अच्छी हैं। उन्होंने पहले ही हमें बहुत ज़्यादा पढ़ाई के लिए मोटिवेट किया और वह हमें काम करने के लिए भी नहीं रोकेंगी।"

    परिणीति की बात सुनकर अर्षिता जी बोली, "बिल्कुल, हमारी बेटी का भाग्य हमसे भी ज़्यादा अच्छा होगा। और हमें पूरा भरोसा है कि आप उनके विश्वासों पर खरी उतरेंगी। तो चलिए ज़्यादा बात नहीं करते हैं। आप फ़्रेश हो जाइए, हम आपके लिए कुछ स्नैक्स लाते हैं।" कहकर अर्षिता जी वहाँ से चली गईं। परिणीति भी मुस्कुराई, फिर उसे फिर से इद्यान की याद आई। लेकिन उसे फिर याद आया कि उसने दोपहर के टाइम फ़ोन किया था, तो इद्यान ने फ़ोन वापस कॉल बैक नहीं किया था। तो उसे इद्यान पर बहुत ही ज़्यादा चिढ़ हुई। वह अपने आप से बोली, "अब वह फ़ोन भी करेगा ना, तो हम नहीं उठाएँगे। समझते हैं क्या? खुद हर वक़्त बिज़ी रहना ज़रूरी है क्या?" वह अपने बाथरूम में चली गई।


    हॉस्पिटल

    इद्यान अपने केबिन में बैठा कुछ फाइल्स रीड कर रहा था। उसने अभी-अभी एक बहुत ही बड़ा सर्जरी किया था, जिसमें वह सक्सेसफुल रहा। इस सर्जरी को लेकर वह कुछ डिटेल पढ़ रहा था।

    तभी उसके फ़ोन में उसके पिता रणविजय जी का कॉल आया। वह तुरंत ही उनका फ़ोन उठाते हुए बोला, "जी पापा साहब?"

    रणविजय जी उधर से खुशी से बोले, "हमने सुना आपने एक बहुत ही क्रिटिकल केस की सर्जरी की है, जिसमें आप सक्सेसफुली इंसान की जान बचा ली।"

    रणविजय जी की बात सुनकर इद्यान ने हाँ बोला। तो रणविजय जी उधर से बोले, "हमें पूरा यकीन था कि आप किसी को मौत के मुँह में अकेला नहीं छोड़ेंगे। उन्हें ज़रूर ठीक कर देंगे। हमें पूरा गर्व है अपने बेटे पर। आपको पता है, यह न्यूज़ पूरे शहर में फैल चुकी है कि इद्यान माहेश्वरी ने और एक केस सॉल्व करके अपनी काबिलियत को और ज़्यादा उजागर कर दिया।"

    रणविजय जी की बात सुनकर इद्यान को अच्छा लगा कि उसके पापा हर वक़्त उसे मोटिवेट करते रहते हैं।

    रणविजय जी आगे बोले, "आप मानें या ना मानें इद्यान, लेकिन परिणीति हमारे घर के लिए बहुत ही ज़्यादा शुभ है। आपको पता है, आज हमें करोड़ों की डील मिली, और आपने भी आज इतना अच्छा काम किया। वह बच्ची हमारे घर के लिए लक्ष्मी के रूप में आ रही है।" रणविजय जी की बात सुनकर इद्यान को परिणीति की याद आई। फिर उसकी हरकतें भी याद आ गईं, जिस पर इद्यान हल्का सा मुस्कुराते हुए बोला, "लक्ष्मी है वह...चलेगा..." लेकिन बोलते-बोलते कुछ ज़्यादा ही... रणविजय जी ने सुन तो लिया था, लेकिन वह अनजान बनते हुए बोले, "आपने कुछ कहा?"

    इद्यान अपनी बात बदलते हुए बोला, "कुछ नहीं पापा साहब।"

    कुछ देर बात करके रणविजय जी ने फ़ोन काट दिया। इधर अब इद्यान अपना फ़ोन चेक करता है, तो उसे परिणीति का एक मिस कॉल नज़र आया। तो उसने वापस से बिना कुछ सोचे-समझे कॉल बैक कर दिया। वहीं पर परिणीति नीचे थी और उसका फ़ोन ऊपर था, तो परिणीति को अपने फ़ोन पर कॉल आये यह पता नहीं चला। इद्यान ने उसे दो-तीन बार फ़ोन किया, लेकिन परिणीति से कोई रिप्लाई ना मिलकर वह उसे एक मैसेज ड्रॉप कर देता है, "कॉल मी।"


    कुछ देर में परिणीति अपने रूम में आई, तो उसने फ़ोन उठाया। उसे इद्यान के दो-तीन मिस कॉल नज़र आए। उसे अच्छा लगा कि इद्यान ने कॉल बैक किया। फिर उसने इद्यान का मैसेज भी पढ़ा। तो उसने अब अपने सारे गुस्से को साइड रखते हुए इद्यान को वापस कॉल किया। इद्यान ने दो-तीन रिंग में ही फ़ोन उठाया और कहा, "कहाँ बिज़ी थी आप...?"

    परिणीति बच्चों वाला मुँह बनाते हुए बोली, "हम बिज़ी थे या आप? हमने जब आपको दोपहर में कॉल किया, तब तो आपने फ़ोन नहीं उठाया।"

    इद्यान उसकी बच्चों वाली बात सुनकर हल्का सा मुस्कुराते हुए बोला, "अच्छा, आपने हमें दोपहर में कॉल किया था?" इद्यान को पता था कि परिणीति ने उसे कॉल किया था, लेकिन फिर भी वह अनजान बनते हुए ऐसा कह रहा था।

    परिणीति बोली, "हाँ जी, मैंने आपको कॉल किया था। लेकिन मज़ाल है डॉक्टर साहब को कुछ ज़्यादा ही अपने काम को लेकर प्यार है। क्यों नहीं और कुछ दिखाई देता है, सिवाय काम के।"

    इद्यान को परिणीति की बातें बहुत ही ज़्यादा प्यारी लग रही थीं। ना चाहते हुए भी उसे परिणीति को सुनना बहुत अच्छा लग रहा था। परिणीति के मुँह से अपने लिए "डॉक्टर साहब" सुनकर इद्यान को और ज़्यादा खुशी महसूस हुई।

    परिणीति कुछ देर ख़ामोश रही, फिर वह इद्यान से बोली, "आपका काम कैसा चल रहा है?"

    तो इद्यान बोला, "एकदम सही चल रहा है।"

    परिणीति अब अपने बिस्तर पर बैठी थी। तभी उसके हाथ रिमोट के बटन पर दब गए, जिससे टीवी ऑन हो गया। और उस न्यूज़ चैनल पर इद्यान की न्यूज़ आ रही थी कि आज इद्यान माहेश्वरी ने बहुत ही बड़ा क्रिटिकल केस सॉल्व किया है, जो कि बहुत बड़े पॉलिटिशियन की हार्ट सर्जरी थी। यह न्यूज़ देखकर परिणीति हैरानी से आँखें बड़ी किए हुए बोली, "आज आपने इतना बड़ा केस सॉल्व किया? नॉट बैड!"

    परिणीति की बात सुनकर इद्यान बोला, "आपको कैसे पता?" तो परिणीति बोली, "आप न्यूज़ नहीं देखते क्या? आपकी न्यूज़ पूरे तरीके से शो हो रही है कि 'इद्यान माहेश्वरी ने किया सक्सेसफुली हार्ट सर्जरी'।"

    इद्यान परिणीति की बात सुनकर मुस्कुराते हुए बोला, "यह हमारा प्रोफेशन है, तो मेरा यह काम करना बनता है। अब लोगों को हर एक चीज़ की न्यूज़ बनानी है, तो मैं क्या कर सकता हूँ?"

    परिणीति को यह जानकर अच्छा लगा कि इद्यान को अपने काम का ज़्यादा उछालना पसंद नहीं है। वह एक डॉक्टर की तरह एक पेशेंट की जान बचाना जानता था, ना कि पेशेंट की जान बचाकर अपने आप को वाह-वाह लूटना।

    इद्यान की ऐसी बातें बहुत ज़्यादा भाती थीं, और उसे आज भी इद्यान की बात बहुत ज़्यादा अच्छी लगती थी। वह इद्यान से पूछती है, "क्या आपको यह सब अच्छा नहीं लगता कि आपकी कोई तारीफ़ करे?"

    "नहीं-नहीं, ऐसी बात नहीं है। तारीफ़ होनी चाहिए, लेकिन इतना भी नहीं...लेकिन..." कहकर इद्यान कुछ देर चुप हो गया।

    फिर इद्यान उसे थोड़ा प्यार भरे शब्दों से बोला, "जब तारीफ़ करने वाला भी कोई ख़ास हो, तभी तारीफ़ें अच्छी लगती हैं। ऐसे तो कोई भी कर सकता है।"

    इद्यान के बाद के शब्द परिणीति के सर से ऊपर से गुज़र गए थे। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इद्यान ने क्या कहा। इसलिए वह उसे बोली, "अब क्या कहना चाहते हैं? कौन ख़ास व्यक्ति आपकी तारीफ़ करेगा?"

    परिणीति ने बहुत ही मासूम भरे शब्दों से कहा था, जिसे सुनकर इद्यान मुस्कुराकर बोला, "कोई बात नहीं, आपको उसके बारे में ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है।"

    परिणीति को कुछ काम से उसकी दादी साहबा नीचे से बुला रही थीं। जिस पर परिणीति इद्यान से बोली, "सुनिए, ज़रा दादी साहबा बुला रही हैं, तो हमें नीचे जाना पड़ेगा। आपसे बाद में बात करते हैं, क्या?" परिणीति ने फ़ोन काट दिया। इधर इद्यान का परिणीति से और बात करने का मन हो रहा था, लेकिन परिणीति के फ़ोन काट देने से इद्यान को ना चाहते हुए भी अपना मन मारना पड़ा।

  • 13. A Royal Arrange marriage - Chapter 13

    Words: 1327

    Estimated Reading Time: 8 min

    ऐसे ही १०-१५ दिन बीत गए। इध्यान और परिणीति के बीच बातें होती रहीं, जिनमें परिणीति के अजीबोगरीब सवालों से इध्यान कन्फ्यूज़ होता था। लेकिन अब उसे उसकी सारी हरकतें अच्छी लगने लगी थीं।


    घर के बड़ों ने उनकी शादी की तारीख तय करने के लिए एक-दूसरे से मिलना उचित समझा, क्योंकि उनकी सगाई को लगभग एक महीना हो चुका था।


    इस बारे में न तो इध्यान को पता था, न ही परिणीति को। दोनों परिवारों ने मिलकर एक साथ मिलने का फैसला लिया और उस रविवार को परिणीति के घर पर, उन्होंने अपने कुल पंडित को बुलाकर शादी की तारीख तय करने का कार्यक्रम रखा।


    परिणीति और इध्यान को जब यह पता चला, तो दोनों को खुशी हुई। दोनों ही एक-दूसरे को पसंद करने लगे थे।


    परिणीति अपने कमरे में बैठी इध्यान की कुछ तस्वीरें देख रही थी। वह अब शायद इध्यान से प्यार करने लगी थी। उनकी भले ही अरेंज मैरिज थी, लेकिन उसे इध्यान से पहले ही प्यार हो चुका था।


    वह इध्यान को दिल से चाहने लगी थी, लेकिन वह यह बात इध्यान से कहने में झिझक रही थी, क्योंकि उसे इध्यान की भावनाएँ पता नहीं थीं।


    इधर, इध्यान अपने काम में व्यस्त था, लेकिन उसे परिणीति के बारे में सोचने का समय मिल ही जाता था। उसने अपने फ़ोन में परिणीति की एक खूबसूरत तस्वीर रखी थी, जो उनकी सगाई की थी। वह परिणीति की फ़ोटो को देखते हुए कहता है, "पता नहीं था कि अरेंज मैरिज भी इतनी खूबसूरत होती है।" इध्यान को अपने शब्दों पर आश्चर्य होता है, तो वह कहता है, "कहीं मैं परिणीति को पसंद तो नहीं करने लगा?" इतना बोलकर इध्यान कुछ देर खामोश हो जाता है। फिर वह अपने विचार झटकते हुए कहता है, "ये क्या सोच रहा हूँ? पता नहीं परिणीति क्या सोचती होगी मेरे बारे में? हमारी तो अरेंज मैरिज है, इतनी जल्दी प्यार कहाँ से होता है?"


    देखते-देखते रविवार का दिन आ गया।


    सभी चौहान मेंशन आए, सिर्फ़ इध्यान को छोड़कर। अस्पताल में आने की वजह से उसे एक ज़रूरी काम के लिए जाना पड़ा, क्योंकि आज अनाया भी अस्पताल जाने वाली थी और मीनाक्षी जी भी। इन दोनों की ज़िम्मेदारी इध्यान ही संभालता था।


    परिणीति को अच्छा नहीं लगा कि इध्यान वहाँ नहीं आया, लेकिन वह समझती थी कि इध्यान का काम उसके लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण था।


    इधर, अनाया सोफ़े पर बैठी थी, उसके सामने ठीक शिवांश भी बैठा था। अनाया की निगाहें बार-बार शिवांश पर जा रही थीं, शिवांश की भी निगाहें अनाया पर ही टिकी रहती थीं। अनाया ने एक हरे रंग का बहुत ही खूबसूरत सूट पहना हुआ था। उसने अपने बालों को दोनों तरफ़ से बांध रखे थे और कुछ बाल आगे की तरफ़ छोड़े हुए थे। वह इस वक़्त बहुत खूबसूरत लग रही थी।


    सभी लोग पंडित जी का इंतज़ार कर रहे थे। कुछ देर में पंडित जी आ गए। उन्होंने परिणीति और इध्यान की कुंडलियाँ देखकर सभी को कहा, "यह दोनों की जोड़ी बहुत ही अच्छी बनेगी। जीवन में कठिनाइयाँ आएंगी, लेकिन यह दोनों अगर साथ रहने का फ़ैसला कर लेंगे, तो उनका प्यार और गहरा होता जाएगा। दोनों का साथ एक-दूसरे के लिए ही बना है।"


    पंडित जी की बात सुनकर सभी को बहुत खुशी हुई। परिणीति को भी बहुत अच्छा लगा यह सब सुनकर कि उसकी और इध्यान की जोड़ी बहुत अच्छी है। पंडित जी ने फिर कुछ देर में दोनों की शादी की तारीख भी देखी, जो २ महीने बाद की थी। हर एक चीज ६ महीने बाद की थी, सभी को २ महीने बाद वाली डेट ठीक लगी। उन्होंने घरवालों से परिणीति और इध्यान से पूछा। परिणीति ने अपना फैसला घरवालों पर छोड़ दिया। इध्यान को जब कॉल किया गया तो उसने भी फैसला घरवालों पर छोड़ दिया। सभी ने पहली वाली तारीख ही तय की।


    तारीख तय करने के बाद पंडित जी को दक्षिणा देकर विदा किया गया। सभी घरवाले अब एक-दूसरे का मुँह मीठा करा रहे थे और बैठकर शादी की तैयारियों की बातें करने लगे।


    इधर, रिदा, परिणीति, अनाया और नन्ही आरवी परिणीति की गोद में थी। परिणीति आरवी से बहुत लाड़ करती थी। रिदा को देखकर काफी अच्छा लगा कि परिणीति बच्चों के साथ सहज महसूस करती है।


    परिणीति, अनाया और रिदा को अपने कमरे में ले गई। वे आराम से कमरे में बैठे। परिणीति का कमरा बहुत बड़ा और बहुत खूबसूरत था। व्हाइट और पिंक कलर के कॉम्बिनेशन में कमरा खूबसूरती से सजाया गया था।


    अनाया को कॉल आया, तो वह बालकनी में जाकर बात करने लगी। इधर, परिणीति और रिदा एक-दूसरे से बात करने लगे। रिदा को परिणीति पहले ही पसंद थी और परिणीति भी रिदा के साथ बहुत अच्छा महसूस कर रही थी। उसे उसके साथ बात करने में कोई झिझक नहीं हो रही थी। नन्ही आरवी भी आराम से परिणीति की गोद में बैठी उसे देख रही थी। परिणीति प्यार से कहती है, "क्या हुआ आरवी? तुम मुझे ऐसे क्यों देख रही हो?"


    तो नन्ही आरवी अपनी बेबी टोन में कहती है, "चाची सा, आप हमारे साथ आज चलो ना हमारे घर।"


    आरवी की बात सुनकर परिणीति मुस्कुराने लगी। इधर रिदा कहती है, "अरे आरवी बेटा, हम अभी सिर्फ़ आपके चाचू साहब यहाँ नहीं हैं, वरना वो तो आज ही परिणीति को यहाँ से ले जाते!" यह सुनकर परिणीति ब्लश करने लगी।


    दोनों यूँ ही बातें कर रहे थे, तभी शिवांश वहाँ आकर दोनों को बताता है कि नीचे सब उनका इंतज़ार कर रहे हैं। शिवांश की बात पर परिणीति नीचे जाने लगी, तभी परिणीति शिवांश से कहती है, "भाई साहब, वो अनाया बालकनी में है।" शिवांश कहता है, "मैं उनसे कह देता हूँ।"


    इतना बोलकर वह वहीं रुक जाता है और परिणीति रिदा के साथ नीचे चली जाती है।


    इधर, कुछ देर में अनाया फ़ोन काटकर कमरे में आती है। उसका ध्यान अभी भी अपने फ़ोन पर था, इसलिए वह बिना ध्यान दिए एक बेड पर आकर बैठ जाती है और कहती है, "अरे मेरी दोनों भाभियाँ! कितनी बातें करोगी? अब तो नीचे चलो।" शिवांश आराम से अनाया की हरकतें निहार रहा था। उसे अनाया पर बहुत प्यार आ रहा था। जब अनाया को कोई रिस्पांस नहीं मिला, तो वह अपना सर उठाकर देखती है, तो उसकी नज़र सीधी जाकर शिवांश से टकरा जाती है। वह शिवांश को देखकर हड़बड़ाकर उठती है। शिवांश कहता है, "अरे आराम से! आप तो ऐसे घबरा रही हैं, जैसे कोई भूत देख लिया हो।"


    अनाया अपनी टूटी-फूटी आवाज़ में कहती है, "नहीं-नहीं..." वह हकलाने लगती है। शिवांश कहता है, "परिणीति और रिदा भाभी दोनों ही नीचे जा चुकी हैं, आप भी चलिए।"


    अनाया शिवांश की बात सुनकर कहती है, "ठीक है, मैं भी जाती हूँ।" कहकर वह जाने लगती है। अनाया शिवांश के बेहद करीब से गुज़रती है। शिवांश की धड़कनें तेज हो जाती हैं।


    अनाया और शिवांश भी नीचे आ जाते हैं। कुछ देर में माहेश्वरी परिवार वहाँ से अपने मेंशन चला जाता है।


    रात में इध्यान को पता चल जाता है कि उसकी शादी की तारीख तय हो चुकी है।


    वह परिणीति को कॉल करता है। दो-तीन दिन बाद परिणीति फ़ोन उठाती है।



  • 14. A Royal Arrange marriage - Chapter 14

    Words: 1578

    Estimated Reading Time: 10 min

    इद्यान ने परिणीति को कॉल किया। दो-तीन रिंग के बाद परिणीति ने फोन उठाया।

    परिणीति फोन उठाकर खामोश हो गई। इद्यान को थोड़ा अजीब लगा। उसे समझ नहीं आया कि हमेशा बातूनी परिणीति आज इतनी खामोश क्यों है।

    "क्या बात है? आप आज इतनी खामोश क्यों हो?" इद्यान ने पूछा।

    "आज आप यहां क्यों नहीं आए? हमारी शादी की डेट फिक्स हो रही है! आपको आना चाहिए था, सिर्फ़ एक घंटे के लिए ही सही।" परिणीति ने बच्चों से मुँह बनाकर कहा, फिर रुक गई। वह अपने होंठ दांतों से काटते हुए सोची, क्योंकि इमोशन में आकर उसने सब कुछ इद्यान के सामने कह दिया था, जो वह नहीं कहना चाहती थी।

    इद्यान परिणीति की शिकायत सुनकर मुस्कुराने लगा।

    कुछ देर मुस्कुराने के बाद उसने कहा, "तो आप मेरा वेट कर रही थी?"

    इद्यान के सवाल से परिणीति बिल्कुल खामोश हो गई। इद्यान ने एकदम सटीक सवाल पूछा था। परिणीति पूरे दिन उसका इंतज़ार कर रही थी क्योंकि इंगेजमेंट के बाद उनकी मुलाक़ात बहुत कम हुई थी, और उसे लगा था कि आज इद्यान उससे मिलेगा।

    "अच्छा, सॉरी। अगर आपको मुझसे मिलना है तो मैं आपके लिए टाइम निकालकर ज़रूर मिलने आऊँगा।" इद्यान ने परिणीति की खामोशी को हाँ में समझते हुए कहा।

    इद्यान की बात सुनकर परिणीति खुशी से उछलना चाहती थी, लेकिन अपनी भावनाओं को कंट्रोल करते हुए बोली, "और अगर हम कहें कि हम आपसे नहीं मिलना चाहते हैं, तो?" उसने जितनी शक्ति बरती थी, उसकी आवाज़ इतनी प्यारी थी कि उसकी रुडनेस भरी आवाज़ भी इद्यान को प्यारी लग रही थी।

    परिणीति की बात सुनकर इद्यान के चेहरे पर मुस्कराहट और बढ़ गई। "अच्छा, तो आपको मुझसे नहीं मिलना? मैं सोच रहा था कि कल हम कहीं लंच पर जाएँ, लेकिन अगर आपको मुझसे मिलना ही नहीं है तो मैं कैंसिल कर देता हूँ।"

    "नहीं-नहीं..." परिणीति ने कहा, फिर रुक गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे, क्योंकि वह इद्यान के सवालों में चुप हो चुकी थी।

    इद्यान में यह खूबी थी कि वह किसी को भी अपनी बातों में आसानी से फँसा लेता था।

    अब इद्यान प्यार से बोला, "मैं आज नहीं आ पाया, इसलिए कल मैं तुम्हें लंच पर ले जाऊँगा। आप तैयार रहेंगी? अगर आपकी मर्ज़ी हो, तभी हाँ कहना, नहीं तो कोई लोड नहीं है।"

    "ठीक है, हम आने के लिए तैयार हैं।" परिणीति इद्यान के सामने पिघलते हुए बोली। परिणीति का स्वभाव ही ऐसा था कि वह ज़्यादा देर तक नाराज़ नहीं रह सकती थी।

    यह बात इद्यान को पता थी। वह जानता था कि परिणीति उससे ज़्यादा देर तक नाराज़ नहीं रह सकती।

    "आपको सिर्फ़ यही कहना था?" परिणीति ने पूछा।

    "हाँ।" इद्यान ने कहा।

    "आज हमारी शादी की डेट फिक्स हुई है! कम से कम उसके लिए कांग्रेचुलेशन तो कर दीजिये ना! शादी से भागने का इरादा है क्या आपका?" परिणीति थोड़ी चिढ़ते हुए बोली।

    "हाँ, भगाने का तो इरादा था, लेकिन अब नहीं। अब इरादा बदल चुका है। अब मैं तुम्हें अपने साथ लेकर ही भागूँगा, वो भी सबके सामने अपना बनाकर।" इद्यान ने उसे चिढ़ाने के लिए कहा।

    परिणीति इद्यान की बात सुनकर शर्मा गई। वह इद्यान से ज़्यादा बात नहीं कर सकती थी। इद्यान की बातें सुनकर उसकी धड़कनें तेज हो रही थीं।

    उसने कुछ बहाना बनाकर फोन रख दिया।

    फोन रखते ही परिणीति ने अपने सीने पर हाथ रखते हुए कहा, "ये हमें क्या हो रहा है? हमारी धड़कन तो बुलेट ट्रेन से भी ज़्यादा तेज दौड़ रही है।"

    कहकर परिणीति ने दो-तीन गहरी साँसें लीं।

    परिणीति का यूँ फोन काटना इद्यान को थोड़ा अजीब लगा, लेकिन फिर भी उसने अपने मन से वो ख्याल झटककर अपने काम में लग गया।

    अगले दिन, इद्यान परिणीति को चौहान मेंशन ले जाने के लिए तैयार हुआ। उसने अस्पताल से हाफ डे की छुट्टी ली थी।

    इद्यान ने किसी को नहीं बताया था कि वह परिणीति के साथ लंच पर जा रहा है, नहीं तो सब उसका मज़ाक उड़ाने से पीछे नहीं हटते। इसलिए उसने पर्सनल काम के लिए छुट्टी ली थी।

    सिर्फ़ उसने मीनाक्षी जी को बताया था। मीनाक्षी जी खुश हो गई थीं कि इद्यान अपने रिश्ते को अच्छे से संभाल रहा है।

    तैयार होकर इद्यान अपनी कार लेकर माहेश्वरी मेंशन से बाहर निकला और चौहान मेंशन की ओर बढ़ गया।

    इधर, परिणीति भी काफी एक्साइटेड थी। आज पहली बार इद्यान और वह कहीं बाहर एक साथ जा रहे थे। उसे बहुत ख़ुशी हो रही थी।

    उसने अपने बेड पर कई कपड़े फैला रखे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या पहने। वह आज इद्यान की पसंद के कपड़े पहनना चाहती थी। उसे इतना पता था कि इद्यान को इंडियन वेअर अच्छे लगते हैं, लेकिन इद्यान का फ़ेवरेट कलर कौन सा था, यह उसे नहीं पता था।

    कुछ देर सोचते हुए वह अपने बेड पर बैठ गई। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

    उसके रूम के बाहर खड़ी अर्षिता जी परिणीति की हरकत पर मुस्कुराईं। वह अंदर आते हुए बोलीं, "क्या बात है? आज हमारी बेटी इतनी चिड़चिड़ी क्यों लग रही है?"

    अर्षिता जी को वहाँ देखकर परिणीति झट से उनके पास आकर बोली, "मम्मा, देखो ना, हम आज कौन सी ड्रेस पहनें? कुछ समझ नहीं आ रहा है।"

    अर्षिता जी ने परिणीति को बेड पर बिठाते हुए कहा, "आप पहले शांत रहो। इतना क्या हाइपर हो रही हो? आप जो भी पहनती हो, बहुत खूबसूरत लगती हो, परिणीति।"

    "हाँ, खूबसूरत लगती हूँ, लेकिन आज मुझे अच्छे से तैयार होना है।" परिणीति ने कहा।

    अर्षिता जी मुस्कुराते हुए बोलीं, "अच्छा, तो आपको हम आज दामाद साहब के लिए तैयार करते हैं।"

    परिणीति को एहसास हुआ कि उन्होंने क्या कहा। वह शर्म से सर झुका ली। अर्षिता जी ने एक क्रीम कलर का लॉन्ग अनारकली सूट उठाया, जिस पर मल्टी कलर का, पूरे स्टोन वर्क वाला दुपट्टा था।

    वह सूट परिणीति को देते हुए बोलीं, "जाइए, इसे पहनकर आइए। आज हम अपनी बेटी को तैयार करेंगे। आखिर आज उनका जीवनसाथी पहली बार उन्हें कहीं बाहर ले जा रहा है, तो अच्छा दिखना तो बनता है।"

    अर्षिता जी बड़ी खुले विचारों वाली थीं। इसलिए वह अपनी बेटी से हर बात खुलकर कहती थीं। यह बात परिणीति को पता थी, लेकिन आज अर्षिता जी के मुँह से यह सब सुनकर परिणीति को बहुत शर्म आ रही थी। वह बिना उनकी ओर देखे चेंजिंग रूम में चली गई।

    पीछे अर्षिता जी मुस्कुराते हुए परिणीति को देख रही थीं। उन्हें काफी अच्छा लग रहा था कि परिणीति इद्यान के लिए सोचने लगी है। परिणीति के चेहरे पर जो नरमी उन्होंने देखी थी, उसे देखकर वह समझ चुकी थीं कि परिणीति और इद्यान का रिश्ता काफी अच्छा है।

    वह भगवान से प्रार्थना करने लगीं कि उनकी बेटी की ख़ुशी यूँ ही बनी रहे।

    कुछ देर में परिणीति वह सूट पहनकर बाहर आई। वह उस सूट में बहुत खूबसूरत लग रही थी। अर्षिता जी उसे मिरर के पास बिठाती हैं। उन्होंने परिणीति के बालों को अच्छे से स्टाइल किया और खुला छोड़ दिया। कुछ बालों को आगे करके छोड़ दिया था, जो परिणीति के गालों को चूम रहे थे। परिणीति मेकअप नहीं करती थी, इसलिए उन्होंने सिर्फ़ परिणीति की आँखों पर काजल, होठों पर रेड लिप बाम और माथे पर छोटी बिंदी लगाई। कानों में मीडियम साइज़ के झुमके और दुपट्टे को अच्छे से सेट किया। अब परिणीति खड़े होकर खुद को देखने लगी। आज वह हर दिन से ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी। वह अर्षिता जी को गले लगाते हुए बोली, "मम्मा, थैंक यू सो मच! आज तो हम कुछ ज़्यादा ही खूबसूरत लग रहे हैं, देखो!" कहकर वह अपने आप को घुमा-घुमाकर उन्हें दिखाने लगी। अर्षिता जी अपलक उसे देख रही थीं। आज परिणीति बहुत ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी। वह अपनी उंगली में काजल लेकर परिणीति के कान के पीछे लगाते हुए बोलीं, "हमारी बेटी को किसी की नज़र न लगे! कितनी प्यारी लग रही है।"

    परिणीति बस मुस्कुरा दी। तभी उन्हें नीचे से हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी। परिणीति समझ गई कि इद्यान नीचे आ चुका है। वह तुरंत वहाँ से जाने के लिए दौड़ी, जिससे अर्षिता जी उसे रोकते हुए बोलीं, "अरे-अरे! आज ही आपको अपने ससुराल जाना है क्या? थोड़ा धीरे से चलो।"

    परिणीति उनकी बात सुनकर झेंप गई।

  • 15. A Royal Arrange marriage - Chapter 15

    Words: 1029

    Estimated Reading Time: 7 min

    परिणीति और अर्षिता जी दोनों नीचे आए। इद्यान मेंशन के अंदर आ चुका था।

    इद्यान की नज़रें जैसे ही परिणीति पर पड़ीं, वह उसे एकटक निहार रहा था।

    उसके सामने आकर उसने हाथ जोड़ते हुए कहा, "जमाई साहब, आपका स्वागत है।"

    "जमाई साहब" सुनकर इद्यान को थोड़ा अजीब लगा, लेकिन फिर भी वह जाकर अर्षिता जी के पैर छूते हुए बोला, "नमस्ते आंटी..."

    अर्षिता जी ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "अरे अरे, घर के दामाद पैर नहीं छूते।"

    इद्यान खड़े होकर अर्षिता जी से परमिशन लेते हुए बोला, "आंटी, क्या मैं परिणीति को लेकर कुछ देर के लिए बाहर जा सकता हूँ?"

    अर्षिता जी मुस्कुराते हुए दोनों को हामी भर दीं।

    इद्यान और परिणीति दोनों बाहर आए। बाहर आकर इद्यान, एक जेंटलमैन की तरह, परिणीति के लिए गाड़ी का दरवाज़ा खोला। परिणीति को यह बहुत अच्छा लगा। वह मुस्कुराते हुए कार में बैठ गई।

    इद्यान भी आकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। इद्यान गाड़ी स्टार्ट करता है। इद्यान गाड़ी चला रहा था, लेकिन उसकी नज़र बार-बार बगल में बैठी परिणीति पर ही जाकर रुक रही थी।

    परिणीति चुपचाप बैठकर सामने की ओर देख रही थी। तभी इद्यान ने बात शुरू की, "परिणीति, आज आप बहुत सुंदर लग रही हैं।"

    इद्यान के मुँह से अपनी तारीफ़ सुनकर परिणीति मुस्कुराने लगी।

    दोनों के बीच कुछ ख़ास बातें नहीं हुईं। परिणीति को इद्यान से बहुत बातें करने का मन हो रहा था, लेकिन वह जानती थी कि इद्यान थोड़ा चुप्पड़ूप स्वभाव का है, इसलिए वह चुप ही रही। इधर, इद्यान के मन में भी कुछ उलझन थी, इसलिए वह भी चुप रहा।

    कुछ देर में वे लोग एक 7 स्टार होटल में पहुँचे।

    दोनों कार से उतरे और ओपन-एयर रेस्टोरेंट की ओर चले गए। वह रेस्टोरेंट बहुत ख़ूबसूरत था।

    इद्यान ने पहले ही एक टेबल बुक कर रखी थी, जिस पर वे दोनों जाकर बैठ गए।

    इद्यान ने पहले ड्रिंक ऑर्डर की, फिर परिणीति को ऑर्डर करने के लिए मेन्यू देते हुए कहा, "परिणीति, आपको जो ऑर्डर करना है, ऑर्डर कर लीजिए।"

    परिणीति ने मेन्यू देखा और ज़्यादा कुछ नहीं, बस व्हाइट सॉस पास्ता और पनीर चिली ऑर्डर किया।

    इद्यान ने बिल्कुल हेल्दी फ़ूड, सलाद, ऑर्डर किया।

    चूँकि इद्यान एक डॉक्टर थे, इसलिए उन्हें अपनी हेल्थ की बहुत फ़िक्र रहती थी और वे हेल्दी फ़ूड खाना ज़्यादा पसंद करते थे।

    इद्यान के प्लेट में सलाद देखकर परिणीति का मुँह बिगड़ गया। इद्यान ने उसका मुँह बिगड़ा देखकर पूछा, "क्या बात है? आपका मुँह ऐसे क्यों बन गया मेरा खाना देखकर?"

    परिणीति मुँह बनाकर बोली, "ये क्या घास-फूस खा रहे हैं आप?"

    इद्यान ने कहा, "ये घास-फूस नहीं है, ये हेल्दी फ़ूड है, जिससे इंसान की हेल्थ भी अच्छी रहती है।"

    परिणीति ने बचकानी शरारत से कहा, "अरे, एक ही तो ज़िंदगी है! वो भी ऐसे घास-फूस खाकर ही बिताया जाए, तो कैसे चलेगा?"

    इद्यान उसकी बात पर कुछ नहीं बोला। लेकिन परिणीति ने सही कहा था- एक ही ज़िंदगी है, खाओ, पियो, ऐश करो!

    वे दोनों चुपचाप अपना लंच कर रहे थे। परिणीति को यह लंच डेट बहुत बोरिंग लग रहा था क्योंकि इद्यान उससे कुछ बात नहीं कर रहा था। इद्यान कम बोलता था और परिणीति बहुत ज़्यादा। परिणीति ने तो चुप रहना सीखा ही नहीं था। इसलिए उसने अपना खाना बीच में रोककर कहा, "सुनिए, हम आपके साथ यहाँ सिर्फ़ खाना खाने नहीं आए हैं। कम से कम आप हमसे बात तो करें। सच में बहुत बोरिंग है।"

    इद्यान ने परिणीति की बात सुनकर अपना खाना रोका और अपनी आइब्रो उठाते हुए कहा, "आपको मैं किस एंगल से बोरिंग लग रहा हूँ? खाना चुपचाप ही खाया जाता है, ना कि बोलकर। वही मैं कर रहा हूँ।"

    परिणीति उसकी बात से झुँझलाकर बोली, "नहीं, मुझे बोलकर ही खाना खाना पसंद है।"

    इद्यान अब परिणीति से बहस नहीं कर सकता था। वह जानता था कि बहस में परिणीति ही ज़िद्दी है, इसलिए बोला, "अच्छा, कहिए, क्या बातें करनी हैं?" परिणीति ने कहा, "अब बातें क्या करें? आप बोलिए।"

    इद्यान ने कहा, "अरे, आपने कहा कि बातें करनी हैं, तो आप ही शुरुआत कीजिए।"

    परिणीति ने कहा, "वही तो, आप शुरुआत कीजिए। हर बार मैं ही क्यों करूँ?"

    इद्यान ने कहा, "अच्छा, ठीक है। हम दोनों बात करेंगे, लेकिन आपको मेरी एक बात माननी पड़ेगी।"

    परिणीति ने पूछा, "क्या?"

    इद्यान ने कहा, "देखिए, मैं डॉक्टर हूँ। मुझे पता है कि खाते वक़्त बोलना हेल्थ के लिए अच्छा नहीं होता और खाना गले में भी अटक जाता है। इसलिए हम लोग खाने के बाद ढेर सारी बातें करेंगे। ओके?"

    परिणीति को मन मारकर हाँ कहना पड़ा। अब दोनों चुपचाप लंच करने लगे।

    लंच होने के बाद परिणीति और इद्यान उस रेस्टोरेंट से बाहर निकले और इद्यान परिणीति को एक गार्डन में ले जाकर बैठाते हुए बोला, "हाँ तो, आप बोलिए। अब आपको मुझसे क्या बातें करनी हैं?"

    परिणीति ने कहा, "मुझे आपसे कोई बातें नहीं करनी। आप बहुत ही बोरिंग हैं।"

    इद्यान चिढ़ते हुए बोला, "मैं बिल्कुल भी बोरिंग नहीं हूँ। अभी आप मुझे अच्छे से जानती नहीं हैं, इसलिए यह कह रही हैं। एक बार जान जाएँगी, तो नहीं कहेंगी।"

    "अच्छा, तो मुझे आपको जानने के लिए क्या करना पड़ेगा?" परिणीति ने तपाक से सवाल किया।

    इद्यान ने परिणीति का हाथ पकड़ते हुए कहा, "बस, मेरी आँखों में देखिए।" यह बहुत ही रोमांटिक अंदाज़ में कहा गया था, जिससे परिणीति की दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं।

    यह पहली बार था जब इद्यान ने परिणीति का हाथ पकड़ा था। इस एहसास पर परिणीति के पेट में तितलियाँ उड़ने लगी थीं।

    परिणीति बिल्कुल चुप हो गई। इद्यान मुस्कुराते हुए बोला, "देखा, मैं बोरिंग नहीं हूँ। अभी मैं आपसे बात कर रहा हूँ और आप चुप हैं, मतलब आप बोरिंग हो गई हैं।"

    उसकी बात पर परिणीति चिढ़ते हुए बोली, "हम कोई बोरिंग नहीं हैं। वह तो बस..." इतना कहकर वह रुक गई। इद्यान ने पूछा, "बस क्या?"

    Stay tuned.....✍️✍️✍️✍️

  • 16. A Royal Arrange marriage - Chapter 16

    Words: 1289

    Estimated Reading Time: 8 min

    बस क्या? इतना पूछते ही परिणीति खामोश हो गई। पता नहीं ऐसा क्यों होता था कि हमेशा बोलने वाली परिणीति, इद्यान के सामने खामोश हो जाती थी।


    इद्यान कुछ देर चुप रहकर परिणीति को देखता रहा, फिर बोला, "देखिए परिणीति, मैं आपसे सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि मैं कम बोलने वाला हूँ। और ये मेरी शुरू से आदत रही है। मैं चाहता हूँ कि जो भी मेरा पार्टनर रहे, वो मेरी आँखें देखकर ही समझ जाए कि मैं क्या कहना चाहता हूँ। मेरे चेहरे को पढ़ने, मेरी दिल की धड़कनों को सुनकर ही वो मेरी सारी बातें समझ जाए। और मैं भी बस खामोश रहकर उसके चेहरे को पढ़ना चाहता हूँ।"


    इतना बोलकर इद्यान चुप हो गया। फिर वह आगे बोला, "क्योंकि हमेशा बोलकर ही नहीं जताया जाता कि हम क्या बोलना चाहते हैं। फीलिंग्स को महसूस किया जाता है।"


    परिणीति खामोश होकर इद्यान की सारी बातें सुनती रही। उसे अब जाकर इद्यान की फीलिंग्स का पता चला। वो समझ गई थी कि इद्यान कम बोलने वाला इसलिए है क्योंकि वो ज़्यादा बोलकर नहीं, बल्कि महसूस करके अपने सारे फीलिंग्स एक्सप्रेस करता है।


    इद्यान एकटक परिणीति की आँखों में देख रहा था, और परिणीति भी इद्यान को ही देख रही थी। कुछ पल दोनों एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। फिर इद्यान अपने होश में आते हुए परिणीति से बोला, "घर चलें। नहीं तो लेट हो जाएगा।"


    परिणीति कुछ जवाब नहीं दी, बस हाँ में सिर हिला दिया।


    वह दोनों अब चौहान मेंशन पहुँचे। रास्ते में परिणीति और इद्यान की बिल्कुल ना के बराबर बात हुई थी। परिणीति के दिमाग में इद्यान की बातें ही चल रही थीं।


    वहीं इद्यान का हाल कुछ अलग था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि परिणीति से क्या बात करे। हर समय परिणीति ही अपनी बातें करके उसे बिजी रखती थी।


    चौहान मेंशन पहुँचकर परिणीति घर के अंदर जाने लगी। तब भी वह पीछे मुड़कर इद्यान से बोली, "आप भी अंदर आइए।" इद्यान गाड़ी से टेक लगाकर खड़ा था, परिणीति को जाते हुए देख रहा था। उसने ना में सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, अब मैं घर जाता हूँ। मेरी शाम से नाइट शिफ्ट है हॉस्पिटल में, तो लेट हो जाएगा।"


    परिणीति उसकी बात सुनकर उसे ज़्यादा फ़ोर्स नहीं करती और घर के अंदर आ जाती है। इद्यान भी अब वापस अपने मेंशन की ओर चला गया।


    इद्यान मेंशन आते ही नन्ही आरती दौड़ती हुई आकर उसके पैरों से लिपट गई। उसे देखकर इद्यान के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने नन्ही आरती को गोद में उठाते हुए उसके गालों पर किस किया और कहा, "आरती बेबी, ऐसे नहीं दौड़ते। गिर जाओगी।"


    नन्ही आरती अपनी बेबी टोन में बोली, "हमें नहीं लगेगी चाचू। हम बहुत स्ट्रॉन्ग हैं।" कहकर आरती अपने नन्हें हाथों की मसल्स दिखाने लगी। इसे देखकर इद्यान मुस्कुराने से खुद को रोक नहीं सका।


    वह फिर आरती से बोला, "हाँ, मेरी आरती बहुत ज़्यादा स्ट्रॉन्ग है।"


    आरती - "हाँ, अपने चाचू जैसे।" उसके बाद पीछे से माधुरी ने कहा, "आरती बेटा, चलो मिल्कशेक पी लो।"


    माधुरीमा की आवाज़ सुनकर इद्यान पीछे मुड़ा। उसे देखकर माधुरीमा मुस्कुराते हुए आरती को लेते हुए बोली, "अरे देवर साहब, आप कब आए? आपका इम्पॉर्टेन्ट काम हो गया?"


    उसकी बात सुनकर इद्यान थोड़ा सा सकपका गया। फिर अपने आप को नॉर्मल करते हुए बोला, "हाँ भाभी जी, हो गया।"


    आरती माधुरीमा के गोद में मचलते हुए बोली, "चाचू साहब, हमें हमारी चाची साहब बहुत याद आ रही हैं। हमें उनसे मिलना है।"


    आरती की बात सुनकर माधुरीमा मुस्कुराते हुए बोली, "आरती, आपके चाचू साहब खुद चाची साहब से नहीं मिलते, तो आपको क्या मिलाएँगे?"


    माधुरीमा की बात सुनकर इद्यान बिल्कुल हड़बड़ा गया। अरे भाई, अब माधुरीमा भाभी को कौन समझाए कि उनके प्यारे देवर अभी-अभी उनकी देवरानी से ही मिलकर आ रहे हैं।


    इद्यान को कुछ सूझा नहीं। वह वहाँ से जाते हुए बोला, "अच्छा ठीक है भाभी जी। मैं फ्रेश होकर आता हूँ। फिर मैं आरती को लेकर हॉस्पिटल जाऊँगा। वहाँ से आज अनन्या इसे वापस लेकर आ जाएगी।"


    माधुरीमा जैसे ही इद्यान को रोकने वाली थी, आरती खुशी से उछलते हुए बोली, "येएए! हम हॉस्पिटल जाएँगे! हम भी बड़े होकर डॉक्टर बनेंगे!" उसके बाद माधुरीमा मुस्कुराते हुए बोली, "बिल्कुल! आप भी अपनी दादी साहब, बुआ साहब और अपने चाचू साहब जैसे ही डॉक्टर बनना।"


    आरती - "हाँ!" फिर वह स्टेथेस्कोप का नाम भूल जाती है। एक बच्चे होने के नाते उसे इतना लंबा और हैवी नाम याद नहीं रहता। इद्यान उसके गालों को खींचते हुए बोला, "स्टेथेस्कोप को अपने गले में लेकर लोगों का चेकअप करना है आपको, राइट आरती?"


    तो आरती हाँ में सिर हिला देती है। इद्यान उसके माथे पर किस करते हुए कहता है, "बिल्कुल! आप एक सक्सेसफुल डॉक्टर बनोगी।"


    इद्यान अब अपने रूम में चला गया।


    कुछ देर में वह फ्रेश होकर वापस अस्पताल के लिए तैयार होने लगा। वह शीशे में खड़े होकर तैयार हो रहा था, तभी उसके सामने आज परिणीति के साथ बिताए पल दिमाग में घूमने लगे। ऐसे ही उसके होंठों पर एक मुस्कान तैर गई।


    इद्यान अब अपने मन को समझ नहीं पा रहा था कि वह परिणीति को लेकर इतना अच्छा फील क्यों कर रहा है। थोड़ी देर में वह अस्पताल के लिए निकल गया। अस्पताल पहुँचकर अपने केबिन में आया तो उसकी नज़र सामने उसके असिस्टेंट पर पड़ी जो उसकी कुछ फाइल्स चेक कर रहा था। इद्यान की परमिशन के बिना किसी को भी उसके रूम में आना मना था। इसलिए असिस्टेंट को देखकर इद्यान को थोड़ा अजीब लगा। उसने तुरंत कहा, "तुम क्या कर रहे हो देव?"


    इद्यान की आवाज़ सुनकर इद्यान का असिस्टेंट, देव, सकपका कर पीछे घूमा। उसकी फाइल उसके हाथ से नीचे गिर गई। इद्यान उसे थोड़ी सख्त नज़रों से घूर रहा था। देव बहुत डर गया। इद्यान एक बार फिर कड़क आवाज़ में बोला, "कुछ पूछ रहा हूँ मैं तुमसे देव! कहो, बिना मेरी परमिशन कैसे मेरे केबिन में हो? ऊपर से मेरी फाइल चेक कर रहे हो? क्या कर रहे हो, बताओ?"


    देव घबरा गया। उसका चेहरा देखकर इद्यान को कुछ गड़बड़ लगा।


    देव अपने आप को थोड़ी देर में संभालते हुए बोला, "वो... मैं... मैं आपकी फाइल्स को सेट कर रहा था। आपका डेस्क थोड़ी मैसी थी इसलिए..."


    इद्यान को उसकी बात पर भरोसा नहीं हुआ, फिर भी उसने हाँ में सिर हिलाकर उसे वहाँ से जाने के लिए कहा।


    वह आकर अपनी सीट पर बैठ गया। उसे अभी हुए वाक्ये को सोचकर थोड़ा अजीब लग रहा था।


    वह वही फाइल उठाकर देखने लगा जो फाइल अभी देव देख रहा था। उस फाइल को देखकर इद्यान के चेहरे पर एक डेविलिश स्माइल आ गई। उसने किसी को कॉल लगाया और उससे कुछ देर बात की। बात करते वक्त इद्यान का चेहरा बेहद सख्त नज़र आ रहा था।


    कुछ देर बात करने के बाद इद्यान फ़ोन रख दिया और उस फाइल को सामने रखते हुए बोला, "चाहे जितना ढूँढ लो, तुम्हें यह फाइल तो बिल्कुल नहीं मिलने वाली।" इतना कहकर वह खामोश हो गया।

    Stay tuned.....✍️✍️✍️

  • 17. A Royal Arrange marriage - Chapter 17

    Words: 1185

    Estimated Reading Time: 8 min

    ऐसे ही डेढ़ महीना बीत गया। इस बीच परिणीति और Idhayan के बीच बातें होती थीं। दोनों अब काफी हद तक एक-दूसरे को पहचानने, जानने और एक-दूसरे की फीलिंग्स को समझने लगे थे।


    अब बस परिणीति और Idhayan की शादी को 15 दिन ही रह गए थे। दोनों तरफ से शादी की तैयारी जोरों-शोरों से चल रही थी।


    परिणीति शादी की शॉपिंग, अपने लिए हर फंक्शन के अकॉर्डिंग ज्वेलरी और ड्रेस चुनना, यह सब अकेले ही कर रही थी। क्योंकि Idhayan इस बीच बहुत ही ज्यादा बिजी चल रहा था। शादी के वक्त से छुट्टी लेनी थी उसे, इसलिए वह अभी अपने काम को ज्यादा प्रायोरिटी दे रहा था। इसके लिए परिणीति को कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन फिर भी उसे Idhayan के साथ थोड़ा टाइम स्पेंड करना था।


    परिणीति, अनाया और मधुरिमा के साथ पूरी शॉपिंग कर चुकी थी। बस उसका ब्राइडल लहंगा लेना बाकी रह गया था।


    शाम को परिणीति और Idhayan एक-दूसरे से बात कर रहे थे।
    "सुनिए ना, हम चाहते हैं कि जो ब्राइडल लहंगा हम लें, वह आपकी पसंद से हो और आपकी शेरवानी मेरे लहंगे से मैच करे, वैसा हमें लेना है।" परिणीति ने कहा।



    Idhayan परिणीति की बात को समझ गया। क्योंकि इस बीच परिणीति ने दो-तीन बार उसे शॉपिंग के लिए कहा था, लेकिन Idhayan काम में बिजी होने के कारण उसके साथ शॉपिंग पर नहीं आ पाया था। लेकिन इस बार उसे परिणीति को निराश नहीं करना था, इसलिए उसने हाँ कह दिया।


    परिणीति Idhayan की बात पर बहुत ही ज्यादा खुश हो गई। लेकिन उसने अपनी खुशी जाहिर नहीं की। उसने नॉर्मली बात करके अपना फ़ोन रख दिया। उसके बाद अपना फ़ोन बेड पर फेंक कर इधर-उधर नाचने लगी। क्योंकि आखिरी बार वह Idhayan से उनकी लंच डेट पर ही मिली थी, उस बात को डेढ़ महीने हो चुके थे। वे दोनों एक-दूसरे से नहीं मिले थे, इसलिए एक्साइटमेंट काफी ज्यादा था।


    अगले दिन परिणीति का चेहरा बहुत खिला-खिला नज़र आ रहा था।


    उसे अब जल्द से जल्द Idhayan के आने का इंतज़ार था। परिणीति की आँखें तरस गई थीं Idhayan को देखने के लिए।


    दूसरी ओर, Idhayan चौहान मेंशन जाने के लिए तैयार हो चुका था। तभी उसके फ़ोन पर एक फ़ोन आया। फ़ोन अर्जेंट होने के कारण Idhayan तुरंत ही फ़ोन उठाकर अपने कान से लगा लिया।


    उधर से आदमी कुछ ऐसा कहता है कि Idhayan के चेहरे पर कुछ परेशानी के भाव उभर आते हैं। वह अब जल्दी आने का बोलकर फ़ोन काट देता है।


    वह तुरंत ही नीचे आया, अपना व्हाइट कोट और स्टेथोस्कोप लेकर। नीचे अनाया और मधुरिमा Idhayan का ही वेट कर रही थीं। लेकिन उसे अस्पताल के लिए तैयार हुआ देखकर मधुरिमा ने पूछा,
    "देवर जी, आप आ रहे हैं ना हमारे साथ?"


    "नहीं भाभी, सब कुछ अर्जेंट काम आ गया है। अस्पताल जाना ज़रूरी है। आप प्लीज़ परिणीति को बता दीजिएगा, मैं उसे फिर कभी मिल लूँगा।" इतना कहकर Idhayan जल्दबाजी में वहाँ से निकल गया।


    मधुरिमा और अनाया चौहान मेंशन के लिए निकल गए। कुछ देर में दोनों चौहान मेंशन के अंदर आते हैं। उन्हें अकेला देखकर परिणीति ने उनसे सवाल नहीं किया। तभी मधुरिमा ने उसका दिल का हाल समझकर कहा, "वो देवर जी को आज ज़रूरी काम आ गया। वो तैयारी थे, लेकिन पता नहीं फिर अचानक उनका कॉल आया और उन्हें जाना पड़ा।"


    परिणीति यह बात सुनकर काफी उदास हो गई। वो कितनी उम्मीद लगाए बैठी थी कि आज वह Idhayan से मिलेगी, लेकिन उसका यह सपना सपना ही रह गया।


    कुछ देर में वे लोग राजस्थान के बड़े लहंगे के शोरूम में पहुँचते हैं। वहाँ पर एक से एक लहंगे थे। ब्राइडल लहंगों के लिए और उसी से मैचिंग दूल्हे के कपड़ों के लिए भी बड़ा शोरूम था।


    वहाँ का मैनेजर आकर मधुरिमा को ग्रीट करते हुए कहता है, "मिसेज़ महेश्वरी, वेलकम टू वेदिका फ़ैशन ब्राइडल शोरूम।"


    मधुरिमा ने हल्के से मुस्कुराकर उन्हें हाँ में सिर हिलाया और परिणीति का इशारा करके कहा, "यह हमारी होने वाली छोटी देवरानी है, और उनके लिए आप हमें यहाँ का सबसे खूबसूरत लहंगा दिखाएँ।"


    वह मैनेजर अब खुद ही उन्हें पर्सनली असिस्ट करते हुए सारे लहंगे दिखा रहा था। इधर परिणीति का मूड पहले ही ख़राब था, तो उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह कोई भी लहंगा अच्छे से नहीं पा रही थी, क्योंकि उसने सोचा था कि वह आज Idhayan की पसंद का लहंगा लेगी।


    उस मैनेजर को एक कॉल आया। उधर की बात सुनकर मैनेजर सिर्फ़ "हाँ सर" बोलकर फ़ोन काट देता है और अंदर की ओर जाकर एक खूबसूरत सा लहंगा लाता है, जो शायद उसे किसी ने पर्सनली फ़ोन करके बनवाने के लिए कहा था।


    वह मैनेजर जैसे ही वह लहंगा खोलकर परिणीति को दिखाता है, परिणीति की आँखें चमक उठती हैं। परिणीति के साथ-साथ अनाया और मधुरिमा की निगाहें भी उस लहंगे पर ही जम जाती हैं।


    वह लहंगा था इतना खूबसूरत! डार्क रॉयल रेड कलर का लहंगा, उस पर ग्रीन और येलो कलर से भी काम किया गया था। उसके मोटे बॉर्डर में पूरा स्टोन वर्क था। डार्क रॉयल ग्रीन वेलवेट कलर का फ़ुल वर्क वाला एक दुपट्टा, दूसरा दुपट्टा रेड कलर का, हेवी बॉर्डर वाला। ब्लाउज़ भी बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत था, पूरा वर्क वाला, उस पर मोतियों की कढ़ाई। एक नज़र में ही वह लहंगा परिणीति को पसंद आ गया।


    मधुरिमा ने तुरंत उसे लहंगा पैक करवा लिया। वे लोग दूसरी ओर आकर Idhayan के लिए शेरवानी देखने लगे, ठीक उसी तरह जिस तरह का लहंगा परिणीति ने लिया था।


    इधर मैनेजर किसी को कॉल करके कहता है, "सर, मैम को लहंगा बहुत ज़्यादा पसंद है। उन्होंने वह पैक भी करवाने के लिए कह दिया।"


    उधर के शख्स के चेहरे पर यह सुनकर मुस्कुराहट आ जाती है। यह कोई और नहीं, बल्कि Idhayan था। उसी ने परिणीति के लिए यह लहंगा बनवाया था। उसने खुद ही मैनेजर को फोन करके लहंगा दिखाने के लिए कहा था। उसने परिणीति को सरप्राइज़ देने के लिए लहंगा कोलकाता के सबसे बड़े लहंगा ब्रांड, जो कि इंडिया में भी फेमस था - सब्यसाची से स्पेशली ऑर्डर देकर मंगवाया था।


    इधर Idhayan के लिए भी उन्होंने बहुत ही खूबसूरत सा डार्क रेड कलर का शेरवानी, उस पर पीच कलर की पगड़ी और मोतियों वाला ब्रोच लिया।


    तीनों ही शॉपिंग करके एक रेस्टोरेंट आते हैं और वहाँ बैठकर लंच करते हैं। फिर परिणीति को चौहान मेंशन छोड़कर अनाया और मधुरिमा महेश्वरी मेंशन आ जाते हैं।


    परिणीति का मूड काफी ख़राब था। वह घर आते ही अपने कपड़े चेंज करके बेड पर लेट जाती है। उसके दिमाग में Idhayan का ही ख़्याल था। उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। Idhayan का आना नहीं, यह बात से परिणीति ज़्यादा ख़फ़ा हो गई थी।

  • 18. A Royal Arrange marriage - Chapter 18

    Words: 1765

    Estimated Reading Time: 11 min

    ऐसे ही कुछ दिन गुज़र गए। इस बीच परिणीति ने इद्यान से एक भी बात नहीं की थी। यहाँ तक कि उसने गुस्से में इद्यान का नंबर ब्लॉक लिस्ट में डाल दिया था।


    इद्यान बहुत अच्छे से समझ चुका था कि परिणीति को उसने खूब नाराज़ किया हुआ है। वह बहुत बार परिणीति को कॉल करता रहा, लेकिन ब्लॉक लिस्ट में होने के कारण इद्यान का फ़ोन परिणीति तक नहीं पहुँच रहा था।


    अनाया के थ्रू भी इद्यान ने परिणीति को कई बार कॉल लगवाया था। लेकिन वह उसमें भी नाकाम रहा। परिणीति सिर्फ़ अनाया से बात करती थी और फिर फ़ोन रख देती थी।


    ऐसे ही वक़्त गुज़रते गए और वह दिन भी आ गया जब परिणीति और इद्यान की हल्दी होने वाली थी।


    चौहान मेंशन को किसी दुल्हन की तरह येलो, व्हाइट और ऑर्किड फ़्लावर्स और पर्दों से सजाया गया था।


    हॉल के बीचो-बीच एक बड़ा सा दुल्हन का स्टेज बनाया गया था जहाँ पर परिणीति को बिठाया जाना था।


    इधर, माहेश्वरी मेंशन से भी सभी परिणीति के लिए हल्दी लेकर निकल चुके थे। दोनों फैमिली के रीति-रिवाज के अनुसार सारे रस्म अलग-अलग ही होने वाले थे। दूल्हा-दुल्हन डायरेक्ट शादी के दिन ही एक-दूसरे से मिलते हैं। इसलिए आज इद्यान को छोड़कर बाकी सब परिणीति के घर शगुन की हल्दी लेकर आए थे।


    परिणीति के लिए पहले से ही उसके शगुन के कपड़े भेज दिए गए थे ताकि वह सही समय पर तैयार हो जाए।


    परिणीति अपनी हल्दी के लिए बहुत अच्छे से तैयार हुई। येलो कलर की जस्टानी पोशाक में वह किसी खूबसूरत परी से कम नहीं लग रही थी।


    उसने मेकअप नहीं किया था। बालों को गुँथकर छोटी चोटी बनाई थी। नाक में बड़ी सी नथ, कानों में झुमके, गले में चोकर, हाथों में चूड़ियाँ, पैरों में पायल, माथे पर छोटी बिंदी, आँखों में काजल, होठों पर लाल डार्क लिपस्टिक, बालों में फूलों का बना खूबसूरत मांग टीका; कुल मिलाकर परिणीति आज बहुत ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी।


    अर्षिता जी जैसे ही परिणीति को नीचे ले जाने लगीं, उनकी नज़रें परिणीति पर ही ठहर गईं। आज उनकी बेटी इतनी सुंदर लग रही थी! अर्षिता जी की आँखें हल्की नम हो गईं। क्योंकि जिस बेटी को इन्होंने इतने नाज़ों से पाला था, वह अब कुछ दिनों में उनका घर छोड़कर किसी और के घर जाने वाली थी। यह सोचकर किसी का भी दिल पसीज जाता था। अर्षिता जी ज़्यादा इमोशनल नहीं हुईं क्योंकि वह जानती थीं कि अगर वह इमोशनल हुईं तो परिणीति को संभालना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए वह अपने चेहरे पर स्माइल लाते हुए परिणीति के पास गईं और अपनी आँखों से काजल निकालकर परिणीति के कान के पीछे लगाते हुए बोलीं, "हमारी बच्ची इतनी प्यारी लग रही है, कहीं हमारी नज़र न लग जाए।" ऐसे कहकर वह परिणीति को आशीर्वाद देती हैं।


    परिणीति मुस्कुरा कर अर्षिता जी को गले लगाती है।


    कुछ देर में आशिका जी और प्रीति परिणीति को नीचे लेकर आईं। माहेश्वरी फैमिली पहले ही आ चुकी थी। वे परिणीति को देखकर बहुत ज़्यादा खुश हो गए। सभी ने एक-एक करके परिणीति की भलाई माँगी। मीनाक्षी जी और अनामिका जी तो परिणीति की भलाई लेने से रुक ही नहीं रही थीं। इधर, माधुरी और अनाया भी परिणीति की खूब तारीफ़ करती रहीं।


    परिणीति धीरे से सबको "थैंक यू" बोलती है और फिर जाकर स्टेज पर बैठ जाती है। सभी अब एक-एक करके परिणीति को हल्दी लगाना शुरू करते हैं। पहले दुल्हन की माँ हल्दी लगाती है। इसलिए परिणीति की माँ, अर्षिता जी, पहले परिणीति को हल्दी लगाती हैं, फिर उसकी नज़र उतारकर सारे रस्म करती हैं।


    उनके हल्दी लगाने के बाद सभी परिणीति को हल्दी लगाते हैं। हल्दी की रस्म लगभग 1 से 2 घंटे तक चलती है। परिणीति इस बीच काफ़ी ज़्यादा थक गई थी। एक ही जगह पर बैठे-बैठे वह कुछ ज़्यादा ही बोर हो रही थी और उसकी पीठ पर दर्द करने लगा था। वह अपनी नज़र इधर-उधर कर रही थी, तभी अनाया की नज़र परिणीति के परेशान चेहरे पर पड़ती है। वह जाकर परिणीति के पास बैठते हुए कहती है, "क्या हुआ भाभी साहब आपको?"


    परिणीति अनाया को बताने में थोड़ा हिचकिचा रही थी, लेकिन फिर अनाया के जोर देने पर उसने अनाया को बता दिया कि वह इस हल्दी रस्म में बैठे-बैठे कुछ ज़्यादा ही थक चुकी है। तो अनाया मुस्कुराते हुए कहती है, "बस भाभी साहब, कुछ और देर, फिर उसके बाद आप यहाँ से फ़्री हो जाएंगी।"


    परिणीति बस हाँ में सिर हिलाती है।


    अब अनाया उसे पूछती है, "भाभी साहब, आप भाई साहब से बात क्यों नहीं कर रही हो? पता है वह कितना परेशान है आपसे बात करने के लिए।"


    अनाया की बात सुनकर परिणीति कुछ देर चुप हो जाती है। उसे अच्छा लगता है यह सुनकर कि इद्यान उससे बात न कर पाने पर परेशान है, लेकिन फिर भी उसकी नाराज़गी दूर नहीं हुई थी।


    इसलिए उसने ज़्यादा जवाब नहीं दिया। तभी वहाँ पर शिवांश आता है। वह परिणीति को हल्दी लगाता है और कुछ हल्दी उसके नाक पर लगा देता है जिससे छींककर परिणीति उसे कहती है, "क्या भाई साहब, आप हमें परेशान करना कब छोड़ेंगे?"


    शिवांश उसे गले लगाते हुए कहता है, "कभी नहीं।"


    उसकी बात सुनकर परिणीति अपना बनाकर कहती है, "बस आने दीजिये मेरी भाभी साहब को, फिर गिन-गिन कर उनसे हम आपकी हरकतों का बदला लेंगे।"


    परिणीति की बात सुनकर शिवांश की नज़रें अनाया पर चली जाती हैं। अनाया यह बात सुनकर थोड़ा अजीब फील करती है। फिर जैसे ही वह शिवांश की नज़रों से अपनी नज़र मिलती है, घबराहट से उसकी नज़रें नीचे हो जाती हैं। शिवांश अनाया को एकटक देख रहा था क्योंकि आज अनाया बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी। आज उसने येलो कलर का बहुत ही खूबसूरत सा अनारकली सूट पहना था। उसने बालों को खुला छोड़ा था और कानों में बड़े-बड़े इयररिंग्स डाले थे।


    जिसमें अनाया बेहद खूबसूरत लग रही थी। शिवांश तो अनाया पर ही खोकर रह गया था। वहीं परिणीति शिवांश की सारी फ़ीलिंग्स को शायद समझ रही थी। वह मुस्कुराते हुए शिवांश के बाहु को पकड़कर हिलाते हुए कहती है, "भाई साहब, अगर सौन्दर्य दर्शन हो गया हो तो बहन के ऊपर भी ध्यान दीजिए।" उसकी बात पर अनाया और शिवांश दोनों ही झेंप जाते हैं।


    शिवांश वहाँ से जल्दी चला जाता है। अनाया भी वहाँ से बहाना बनाकर चली जाती है। परिणीति उन दोनों को देखकर मुस्कुराने लगती है।


    इधर, अनाया की तो घबराहट के मारे धड़कनें तेज रफ़्तार में चल रही थीं। वह धीरे-धीरे एक कमरे में आती है। उसे शायद पता नहीं था कि यह कमरा किसी और का नहीं, बल्कि शिवांश का था। वह उस कमरे में आती है, बेड पर बैठती है। उसने आस-पास कमरे को ध्यान से नहीं देखा था क्योंकि पूरे कमरे पर शिवांश की तस्वीरें लगी हुई थीं।


    अनाया बस अभी-अभी हुए इंसिडेंट को याद कर रही थी, तभी उस कमरे में शिवांश आता है। अनाया को देखकर वह एक पल के लिए चौंक जाता है। अनाया भी शिवांश को देखकर घबराहट से खड़ी हो जाती है। जैसे ही अपनी नज़रें इधर-उधर घुमाती है, समझ जाती है कि यह कमरा शिवांश का है। वह बिना शिवांश की ओर देखे हुए कहती है, "वह... सॉरी, मुझे नहीं पता था कि यह कमरा आपका है।" कहकर अनाया तुरंत ही उसके बगल से जाने लगती है।


    तभी शिवांश उसका हाथ पकड़कर अपने ओर खींच लेता है। अनाया इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी, इसलिए वह तुरंत ही शिवांश की बाहों में जाकर गिर जाती है।


    शिवांश अनाया के चेहरे को देख रहा था और अनाया की आँखें इस वक़्त बंद थीं। वह घबराहट से अपनी आँखें नहीं खोल रही थी। शिवांश को अनाया को ऐसे देखकर बहुत प्यार आ रहा था।


    वह अनाया के कान में धीरे से कहता है, "आपको सॉरी बोलने की ज़रूरत नहीं है।" इतना कहकर शिवांश उसे तुरंत छोड़ देता है। अनाया तो अपनी साँसों को काबू ही नहीं कर पा रही थी। वह तुरंत शिवांश को पीछे धक्का देते हुए वहाँ से चली जाती है।


    शिवांश अपनी हरकत पर मुस्कुराने से खुद को रोक नहीं सका और मुस्कुराने लगा।


    अब तक पूरी हल्दी की रस्म खत्म हो चुकी थी। अब सभी माहेश्वरी फैमिली वापस चले जाते हैं।


    हाँ, इस बीच अनाया ने ना ही एक नज़र भी शिवांश को नहीं देखा था। वह जब शिवांश को देख लेती थी, लेकिन आज के हुए सारे इंसिडेंट के बाद अनाया को शिवांश से नज़रें मिलाने में काफ़ी शर्म आ रही थी। वहीं शिवांश की तो नज़रें ही अनाया पर ही रहीं।


    अनाया सबसे पहले माधुरी, आरव और अनुभव के साथ पहले ही निकल जाती है।


    बाद में सभी धीरे-धीरे करके चले जाते हैं।


    इधर, परिणीति भी जाकर अपने सारे कपड़े चेंज करती है और क्रीम कलर का बहुत ही खूबसूरत सा सूट पहनती है। उसके हाथों में अभी लाल चूड़ियाँ, माथे पर कुमकुम की बिंदी और चेहरे पर दुल्हन का निखार साफ़ नज़र आ रहा था। उसके घर के रीति-रिवाज के अनुसार होने वाली दुल्हन के शरीर से पल्लू नीचे नहीं होना चाहिए था, इसलिए परिणीति ने अपने सिर पर पल्लू रखा हुआ था।


    वह अब शिवांश के कमरे में आती है। शिवांश अभी अपने कमरे में लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। परिणीति उसके बगल में बैठती है और शिवांश को घूरने लगती है।


    शिवांश परिणीति को खुद को घूरते देखकर नज़र उठाकर कहता है, "क्या बात है परी, ऐसे क्यों घूर रही हो तुम मुझे?"


    परिणीति: "अभी क्या चल रहा था?"


    उसके ऐसे सवाल सुनकर शिवांश कुछ पल हिचकिचाता है, फिर अपने आप को संभालते हुए कहता है, "कुछ भी नहीं।"


    परिणीति आँखें छोटी करके कहती है, "आप हमें छोटी बच्ची मत समझिए।"


    शिवांश परिणीति के सर पर चपत लगाते हुए कहता है, "ज़्यादा मत सोच।"


    परिणीति अब कुछ बोलने के लिए मुँह खोलती है, उससे पहले ही शिवांश बोलता है, "परी बच्चा, तुम्हें जाकर रेस्ट करना चाहिए। वैसे भी आज पूरे दिन तुम थक चुकी होगी।" ऐसा कहकर शिवांश बात टाल देता है।


    परिणीति शिवांश की बात को अच्छे से समझ रही थी कि वह अभी इस बारे में बात नहीं करना चाहता, इसलिए वह बिना कुछ बोले वहाँ से चली जाती है।

  • 19. A Royal Arrange marriage - Chapter 19

    Words: 1026

    Estimated Reading Time: 7 min

    आज परिणीति और Idhayan की मेहंदी-संगीत की रस्म थी। परिणीति ने एक बहुत ही खूबसूरत हरे रंग का लहंगा पहना था। उसने फूलों के गहने पहने थे। माथे पर दुपट्टा था, जिसे वह शादी से पहले अपने सिर से हटा नहीं सकती थी। आँखों में काजल और माथे पर कुमकुम की बिंदी। बस, परिणीति बहुत खूबसूरत लग रही थी। उसके हाथों में इद्यान के नाम की मेहंदी लग रही थी।


    मेहंदी लगाते समय, मेहंदी वाली ने परिणीति से दूल्हे का नाम पूछा। परिणीति ने मुँह बनाते हुए इद्यान का नाम बताया। वह बहुत प्यारी लग रही थी। उसकी इद्यान से नाराजगी अभी खत्म नहीं हुई थी।


    दूसरी ओर, माहेश्वरी मेंशन में, सभी लोग धूमधाम से इद्यान की मेहंदी की रस्म कर रहे थे। इद्यान ने हरे रंग का सीक्वेंस कुर्ता और सफ़ेद पजामा पहना था। वह बहुत हैंडसम लग रहा था। उसके ललाट पर भी कुमकुम की टिका लगी हुई थी।


    उसके हाथों पर अनाया ने मेहंदी लगाई थी। जिस पर सिर्फ़ Idhayan और परिणीति का नाम लिखा था। Idhayan बहुत बेचैन हो चुका था। उसे परिणीति से बात करनी थी। लेकिन परिणीति ने कसम खा रखी थी कि वह उससे बिल्कुल बात नहीं करेगी।


    अनाया को इद्यान की हालत पर तरस आ रहा था और हँसी भी। इसलिए उसने अपनी बहन का फर्ज़ निभाते हुए परिणीति को कॉल किया।


    उसने वीडियो कॉल किया। परिणीति के हाथ में मेहंदी लगी थी, इसलिए उसकी किसी कज़िन ने कॉल उठाया। परिणीति को देखकर अनाया अपने पलकें झपकना भूल गई थी। वह बहुत प्यारी लग रही थी। अनाया परिणीति से बात करने लगी। अनाया के बगल में Idhayan बैठा था। उसने जैसे ही स्क्रीन पर देखा, उसकी निगाहें भी स्क्रीन पर जम गईं।


    Idhayan एकटक परिणीति को देख रहा था।


    परिणीति को बिल्कुल भी पता नहीं था कि अनाया के बगल में इद्यान बैठा है। इसलिए वह आराम से अनाया से बात कर रही थी।


    परिणीति से बात करते-करते, जैसे ही अनाया ने अपना कैमरा साइड में घुमाया और Idhayan को दिखाया, वह चुप हो गई। वह एकटक इद्यान को देखने लगी।


    इद्यान परिणीति को देख रहा था। परिणीति Idhayan से नाराज थी। इसलिए उसने मुँह फेर लिया।


    परिणीति की इस हरकत से Idhayan खुद को मुस्कुराने से रोक नहीं पाया। वह परिणीति को देखकर बोला, "इतनी नाराजगी? आपने मुझसे बात ही नहीं की इतने दिनों से।"


    परिणीति ने कहा, "आपकी हरकतें ऐसी हैं। हमने एक ही विश आपसे की थी, वह भी आपने पूरी नहीं की।"


    Idhayan ने कहा, "सॉरी। मुझे उस दिन काम आ गया था। कुछ ज़रूरी काम था इसलिए।"


    परिणीति ने कहा, "हाँ, आपको क्या ही बोला जा सकता है। आपका काम ऐसा है कि आपको दूसरों पर ध्यान ही नहीं होता। दूसरों की कोई इच्छाएँ होती हैं या नहीं, यह आपको मायने नहीं रखता।"


    उसकी बात सुनकर इद्यान को लगा कि उसने परिणीति को बहुत दुःख पहुँचाया है।


    इद्यान कुछ कहने ही वाला था कि परिणीति ने अनाया से कहा, "अनाया, हमारी बात आरवी से कराना ना।"


    अनाया ने आरवी को अपने पास बुलाया और उसे गोद में लेकर परिणीति से बात करने लगी। परिणीति बहुत प्यार से आरवी से बात कर रही थी। आरवी भी अपनी बेबी टोन में परिणीति का जवाब दे रही थी।


    कुछ देर बात करने के बाद, परिणीति ने फ़ोन रख दिया।


    अनाया ने इद्यान को देखते हुए कहा, "भाई साहब, भाभी साहबा कुछ ज़्यादा ही नाराज हैं आपसे।"


    Idhayan ने कहा, "कोई बात नहीं, मैं मना लूँगा।"


    परिणीति के घर में, परिणीति अपने हाथों में लगी मेहंदी देख रही थी। तभी उसकी माँ अर्षिता जी और अनामिका जी आ गईं। दोनों ने परिणीति के हाथों में तेल लगाया। परिणीति मुस्कुराई।


    अर्षिता जी के दिल में बेचैनी थी। कल उनकी बेटी इस घर को हमेशा के लिए छोड़कर दूसरे घर जा रही थी। यह सोचकर उन्हें दुःख तो हो रहा था, लेकिन साथ ही खुशी भी थी कि उनकी बेटी को इतना अच्छा ससुराल मिल रहा है।


    अनामिका जी ने परिणीति के हाथ पर हाथ फेरते हुए कहा, "परिणीति बेटा, हम जानते हैं कि तुम बहुत चंचल हो। लेकिन अब तुम्हें अपनी ज़िन्दगी में थोड़ा विचार बदलना होगा। यह रिश्ता बहुत मज़बूत बंधन है, जो सिर्फ़ समझदारी और प्यार से ही आगे बढ़ता है।"


    अनामिका जी की बातें सुनकर परिणीति इद्यान के बारे में सोच रही थी। अर्षिता जी कुछ बोल नहीं पा रही थीं। वह जितनी बार परिणीति को देख रही थीं, उनकी आँखें नम हो जा रही थीं।


    इसलिए वह परिणीति से अपनी आँखें नहीं मिला पा रही थीं। कुछ देर बाद, वह वहाँ से चली गईं। परिणीति को यह एहसास था। उसकी आँखें भी नम हो गईं। उसने अनामिका जी को अपने सीने से लगा लिया और कहा, "आपकी माँ अभी ज़्यादा इमोशनल हैं। और होना भी चाहिए, क्योंकि एक माँ के लिए यह फ़ितरत है।"


    ऐसा कहते हुए अनामिका जी की भी आँखें नम हो गईं। परिणीति उनकी जान थी। वह अपना घर छोड़कर दूसरे घर जा रही थी, अपनी खुशियाँ वहाँ बसाने जा रही थी।


    ऐसे ही आज का सारा फंक्शन खत्म हुआ। परिणीति अपने कमरे में बैठी हुई थी। वह अपने हाथों में लगी मेहंदी को देख रही थी। मेहंदी का रंग बहुत खूबसूरत था। उसने अपनी हथेली में इद्यान का नाम लिखवाया था, जो बहुत खूबसूरत लग रहा था।

  • 20. A Royal Arrange marriage - Chapter 20

    Words: 1170

    Estimated Reading Time: 8 min

    आज शादी का दिन था। इद्यान अपने कमरे में तैयार हो रहा था। अभी उसके घर की ओर से एक शादी का रिवाज था, जिसे उसे करने के लिए नीचे जाना था।

    इड्यान तैयार होकर नीचे आया तो मीनाक्षी जी उसे एक चौकी पर बैठाती हैं और उसके सिर पर मधुरिमा को अपना पल्ला रखने के लिए कहती हैं।

    यह एक रिवाज था जिसमें भाभी अपने देवर के सिर पर पल्ला रखती है और बाकी सारे घर वाले दूल्हे और दुल्हन का मुँह अलग-अलग तरह की मिठाइयों से मीठा कराते हैं। ताकि उनकी आने वाली ज़िंदगी मिठास से भरी रहे, और साथ ही उन्हें कुछ गिफ्ट भी देते हैं।

    इड्यान खामोश बैठा, बस चुपचाप यह रस्म कर रहा था। वह मीठा खाते-खाते बहुत ज़्यादा इरिटेट हो चुका था। क्योंकि वह बहुत ज़्यादा हेल्थ कॉन्शियस था, और इतना मीठा खाना उसे रास भी नहीं आ रहा था।

    लेकिन इद्यान ने जैसे-तैसे करके यह सारी रस्म पूरी की और उठकर अपने कमरे में चला आया। उसका मुँह इतना ज़्यादा मीठा हो चुका था कि उसके मुँह में थोड़ा तीतापन सा लगने लगा था। जिससे उसका पूरा मूड बिगड़ चुका था।

    तभी उसके कमरे में अनुभव और मधुरिमा आते हैं। मधुरिमा के हाथ में एक प्लेट था। उस प्लेट में कुछ नमकीन थे। मधुरिमा वह प्लेट लेकर इद्यान के पास आती है और उसे अपने हाथ से खिलाते हुए कहती है, "हमें पता है देवर सा, आप इतना मीठा खाकर बहुत ज़्यादा इरिटेट हो चुके हैं। इसलिए हमने आपके लिए यह स्नैक्स लाया है ताकि आपको कुछ अच्छा लगे।"

    इड्यान मधुरिमा को हग करते हुए कहता है, "थैंक यू सो मच भाभी सा। आप सच कह रही हैं, मेरा तो पूरा मुँह इतना मीठा हो चुका है कि अब तो तीतापन भी आने लगा है।" क्या करूँ इद्यान मुँह बनाने लगता है।

    अनुभव हँसता हुआ जाकर इद्यान के कंधे पर हाथ रखकर कहता है, "यही हाल मेरा भी हुआ था मेरी शादी के दिन। तभी पता चल चुका था कि लोग एक बार शादी क्यों करते हैं।"

    अनुभव की बात पर मधुरिमा घूरते हुए कहती है, "तो आपको कितनी शादी करनी है और??"

    अनुभव थोड़ा शक पकाते हुए कहता है, "अरे मैं तो एक ही शादी से खुश हूँ। वह तो मैं इसलिए कह रहा था कि..." अनुभव इतना ही कहा था कि तभी मधुरिमा उसे पर हल्की नाराज़गी जताते हुए कहती है, "हम सब जानते हैं कि आप क्या कहना चाहते हैं।" कह कर वह उठकर वहाँ से चली जाती है।

    इड्यान उन दोनों को देखकर हँसने लगता है। तब अनुभव उसे घूरते हुए कहता है, "एक बार शादी हो जाने दे बेटा तेरे, फिर पता चलेगा कि बीवी का रूठना कैसा होता है। एक तो मानती नहीं है।" वह अलग बात। कह कर अनुभव उठकर वहाँ से मधुरिमा को मनाने के लिए उसके पीछे-पीछे चला जाता है।

    इधर, इद्यान को अनुभव और मधुरिमा को देखकर अच्छा लग रहा था।

    दूसरी ओर, चौहान मेंशन।

    परिणीति वही रस्म अदा कर रही थी जिसमें दुल्हन दूल्हे को मुँह मीठा कराकर कुछ गिफ्ट दिए जाते हैं। परिणीति ने एक बहुत ही खूबसूरत, पतली गोल्डन बॉर्डर वाली रेड साड़ी पहनी थी। उसने ज़्यादा मेकअप नहीं किया था। उसने सिम्पल सा चैन और कानों में छोटे-छोटे झुमके रखे थे। बाकी उसके माथे पर कुमकुम का बिंदी, सिर पर पल्ला, हाथों में हरी चूड़ियाँ, पैरों में पायल, नाक में सोने की छोटी सी नोज़ रिंग; बस इतना में ही परिणीति बहुत ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी।

    परिणीति को भी चौकी पर बैठाया गया था और उसके कज़िन की बीवी, जो नाते में परिणीति की भाभी लगती थी, उसने परिणीति के सिर पर पल्ला रखा हुआ था। और सभी एक-एक करके परिणीति का मुँह मीठा कर रहे थे और कुछ गिफ्ट्स दे रहे थे। उसे परिणीति खुशी-खुशी सारी मिठाइयाँ खा रही थी। उसे अच्छा लग रहा था। वे मिठाइयाँ जो उसे खाने को मिल रही थीं, परिणीति को स्वीट्स बहुत ज़्यादा पसंद थे।

    अब वनराज जी और आर्षिता जी एक साथ आते हैं और परिणीति को कुछ गिफ्ट देकर उसका मुँह मीठा कराने लगते हैं। वनराज जी की आँखें नम हो चुकी थीं क्योंकि आज उनकी बेटी उन्हें छोड़कर किसी और के घर जाने वाली थी। एक पिता के लिए यह बहुत बड़ी बात थी। क्योंकि एक बेटी अपने पिता से सबसे ज़्यादा अटैच्ड रहती है और एक पिता भी अपनी बेटी को सबसे ज़्यादा प्यार करता है। इसलिए वनराज जी की आँखें इस दर्द को बयाँ कर रही थीं।

    वनराज जी को देखकर परिणीति की आँखें भी नम हो चुकी थीं। वह वनराज जी को गले लगाकर फफक कर रोने लगी। वहीं वनराज जी की आँखों के कोने भी भीग चुके थे। आर्षिता जी की आँखों में भी आँसू आ चुके थे। वह परिणीति का सिर सहलाते हुए कहती है, "परी बेटा, रोते नहीं हैं।"

    वनराज जी अब परिणीति को समझाते हुए कहते हैं, "परिणीति बेटा, आप ऐसे रोएँगी तो कैसे चलेगा? और वैसे भी यह तो खुशी की बात है कि आप किसी और के घर खुशियाँ लेकर जा रही हैं।"

    परिणीति: "हाँ, लेकिन आप सब कुछ छोड़ना हमें अच्छा नहीं लग रहा है।"

    वनराज जी: "यह तो रीत है बेटा, एक बेटी को हमेशा अपना घर छोड़कर किसी और के घर जाना ही पड़ता है।"

    परिणीति वनराज के सीने से लगी रो रही थी। तभी देवराज जी जाकर परिणीति का सर सहलाते हुए कहते हैं, "परिणीति बेटा, आप हमारी जान हैं, आप हमारे जिगर का टुकड़ा हैं। आप ऐसे रोएँगी तो हमें अच्छा नहीं लगेगा।" परिणीति अब देवराज जी की बात सुनकर थोड़ा अपने आप को संभालती है और वापस अपनी जगह पर बैठ जाती है।

    हालाँकि देवराज जी की भी आँखें नम हो चुकी थीं। अनामिका जी भी अपने आप को जैसे-तैसे रोक रही थीं। परिणीति पर सबकी जान बसी थी और आज उनके घर की सोन चिड़िया यहाँ से हमेशा के लिए उड़ने वाली थी। यह सोचकर सभी के दिल में एक अलग सी बेचैनी थी।

    सोन चिड़िया अब तो उड़ने वाली है।
    इस अंगना सुना करने वाली है।

    बिन चिड़िया की सारी बगिया खाली-खाली है।
    सोन चिड़िया अब तो उड़ने वाली है।

    शिवांश भी आकर परिणीति को एक गिफ्ट देता है जो बहुत बड़ा था। परिणीति शिवांश का गिफ्ट देखकर आँखें चमकाते हुए कहती है, "भाई सा, इसमें क्या है?"

    शिवांश: "खोल कर देख लो।"

    परिणीति जैसे ही उसे गिफ्ट खोलती है, उसकी आँखें खुशी से चमक उठती हैं क्योंकि वह गिफ्ट बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत था। शिवांश ने परिणीति को एक बहुत बड़ा फोटो एल्बम दिया था जिसमें परिणीति के बचपन से लेकर अब तक की सारी मेमोरीज़ के फ़ोटोस थे। परिणीति सारे फ़ोटोस पर अपना हाथ फेर रही थी जैसे वह उन्हें फिर से जी रही हो।

    शिवांश परिणीति के सर को चूमते हुए कहता है, "अच्छा लगा?"

    परिणीति: "बहुत ज़्यादा।" कहकर शिवांश के गले लग जाती है।

    देखते ही देखते, सारी रस्में करते-करते रात हो जाती है।