यह कहानी है जीतू जान्हवी की जो जान्हवी की उजड़ी हुई जिंदगी की कड़ियां जोड़ने में लगे है।
Jindagi (shrap ya vardan)
Heroine
Jindagi (shrap ya vardan)
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यह जान्हवी अग्रवाल की कहानी है, जो मुंबई में मालाड की एक छोटी सी चॉल में रहती थी। जान्हवी बचपन से ही एक आँख से नहीं देख पाती थी। उसकी इस एक आँख से न देख पाने के पीछे भी एक कहानी है। जान्हवी अपने चाचा-चाची के साथ रहती थी। चाचा-चाची की एक बेटी थी, जिसका नाम दिया था। दिया, जान्हवी से उम्र में छोटी थी। जान्हवी की उम्र लगभग सोलह साल होगी। गाँव से जबरन उसे यहाँ लाया गया था, जब वह दस साल की थी। गाँव में वह अपने माँ-बाप के साथ रहती थी। पर एक हादसे ने उससे उसका परिवार छीन लिया। जान्हवी जब दस साल की थी, तब दो परिवारों में हुए घमासान के बीच उसका बचपन तबाह हो गया। उसके पिता की मृत्यु हो गई और उसकी माँ लापता हो गई। वह कहाँ है, उसे आज तक नहीं पता। दस साल की जान्हवी तब गाँव से अपनी जान बचाने के लिए भागी और प्लेटफ़ॉर्म पर लगी एक ट्रेन में बैठ गई। उसे नहीं पता था कि वह ट्रेन कहाँ जा रही है। उसे नहीं पता था कि आगे उसके साथ क्या होगा। उसे नहीं पता था कि ज़िन्दगी उसे कहाँ ले जाएगी। बस अपनी जान इस वक्त बचानी थी उसे, जिनसे वह भाग रही थी। उस वक्त उसने अपनी जान तो बचा ली, पर अपना परिवार उससे छूट गया। यह एक ऐसी लड़की की कहानी है जो जीने के लिए आज भी ज़िन्दगी से जुझ रही है।
जान्हवी अब स्कूल जाने लगी थी। दिया के साथ पढ़ने लगी थी। जिस चॉल में वह रहती थी, उसे झोपड़पट्टी कहा जाता था; स्लम एरिया, जो गरीबी रेखा के नीचे आते हैं; जिन्हें दो टाइम के खाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है, ऐसे लोग। छह साल पहले जान्हवी के चाचा, जो उसे यहाँ लेकर आए थे, उसे प्लेटफ़ॉर्म पर मिले थे। वह प्लेटफ़ॉर्म पर अपनी गंदी सी फ़्राक को पैरों तक नीचे खींच कर ठंड से बचने की कोशिश में बैठी थी। आने-जाने वाले लोगों की तरफ़ बड़ी आस लेकर देख रही थी कि कोई उसकी भूख मिटाने के लिए उसे कुछ दे दे। पर जिसकी तरफ़ भी देखती, वह एक घृणा से भरी सरसराती नज़र उसके ऊपर डालकर निकल जाता। और बड़ी आस से उनकी तरफ़ देख रही जान्हवी की नज़रें, उन नज़रों को सह न पाने की वजह से अपने आप नीचे झुक जातीं। जान्हवी की हालत भिखारियों से भी बदतर थी, पर उसे जीना था, कुछ भी हो जाए; अपने खाली पेट को भरना था। इसलिए, साथ बैठे अपने जैसे ही मैले कपड़ों में बैठे लोगों की तरफ़ उसने देखा और हिचकिचाहट के साथ अपना दाहिना हाथ उसने आगे कर दिया।
एक सीट पर अपने सब्जियों से भरे थैले के साथ बैठे, धीरज अग्रवाल जी बोरिवली की ट्रेन के आने का इंतज़ार कर रहे थे। इस वक्त दादर स्टेशन पर बहुत बड़ी भीड़ थी। सुबह का वक्त इस स्टेशन पर ऐसा ही रहा करता था। छोटे-मोटे व्यापारी यहाँ से सस्ते में माल उठाकर उसे अपने यहाँ बाज़ार में ले जाकर बेचते थे। इसलिए धीरज जी भी सब्जियों के बड़े से थैले को अब अपने बाज़ार, जहाँ वो रहते थे, ले जाना चाहते थे। बोरिवली जाने वाली ट्रेन जैसे ही प्लेटफ़ॉर्म पर लगी, धीरज जी थैले के साथ चढ़ने की कोशिश करने लगे। इतने में जान्हवी को किसी आदमी के सामने हाथ फैलाए देखकर उनका थैला नीचे गिर गया और थैले को उठाने के चक्कर में ट्रेन का डिब्बा खचाखच भर गया और वह चाहकर भी उसमें चढ़ नहीं पाए, क्योंकि ट्रेन निकल चुकी थी। धीरज जी थैले को घसीटते हुए जान्हवी जहाँ बैठी थी, वहाँ लेकर आ गए। जान्हवी ने जिसके सामने हाथ फैलाए थे, वह आदमी ट्रेन पकड़ने के चक्कर में बिना पैसे दिए भागते हुए चला गया था और उसके पैर के धक्के से जान्हवी बैठे-बैठे नीचे गिर गई थी। धीरज जी ने हाथ बढ़ाकर उसे बिठाया, तो अनजाने स्पर्श की वजह से जान्हवी पीछे खिसक गई।
"बेटी, डरो मत, मैं तुम्हें कुछ नहीं करूँगा!"
किसी अनजान के मुँह से 'बेटी' शब्द सुनकर जान्हवी की आँख में आँसू भर आए। वह अपनी पनीली आँखों से धीरज जी की तरफ़ देखने लगी। गोरी-चीट्ठी जान्हवी इस वक्त मैले कपड़ों में भी अच्छी दिख रही थी। एक आँख बुरी तरह सूज गई थी, किसी ने बुरी तरह मारा हो जैसे आँख पर। उसे वहाँ दर्द हो रहा था, क्योंकि बार-बार उस आँख पर अपना छोटा सा हाथ रखकर कुछ और न लगे, इसलिए वह उसे बचा रही थी। धीरज जी उसे डरा हुआ देख, पास वाली दुकान से एक वड़ा पाव ले आए। एक पानी की बोतल और वड़ा पाव उसके हाथ में देकर उन्होंने कहा, "कब से बैठी हो यहाँ?"
जान्हवी ने वड़ा पाव को देखकर खाने की चीज़ का अंदाज़ा लगाया और हाथ में पकड़कर खाना शुरू कर दिया। धीरज जी समझने की कोशिश करने लगे कि इस दस साल की बच्ची के साथ ऐसा क्या हुआ होगा जो ऐसे रास्ते पर भीख माँगने के लिए मजबूर हो गई है। पानी पीकर जब जान्हवी को अच्छा लगा, तब उसके सिर पर ममता वाला हाथ फेरकर धीरज जी थैला संभाले जाने के लिए आगे बढ़े। जान्हवी अपनी मायूसी से छोटी हुई आँखें और छोटी कर धीरज जी को जाता हुआ देखने लगी। धीरज जी ने एक बार उसे पलटकर देखा और इस बार खाली डिब्बा होकर भी वह उस लड़की को वहाँ छोड़कर जाने के लिए अपने मन को राज़ी नहीं कर पाए। वापस आकर वह जान्हवी के पास बैठ गए। जान्हवी के पास सिर्फ़ एक थैली थी जिसमें उसने अपने कुछ कपड़े और कुछ सामान रखा था। "बेटी, क्या गाँव से यहाँ आई हो?"
जान्हवी ने कुछ नहीं कहा, पर उसके पास बैठे एक लंगड़े भिखारी ने कहा, "तीन दिन से यहाँ बैठी है। कुछ नहीं बोलती। कहाँ से आई है नहीं बताती। पता नहीं क्या है उसके मन में। बस आने वाले लोगों को देखती रहती है। कल एक लाल साड़ी पहने हुए औरत के पीछे भागी थी। जब उसका चेहरा देखा तो वापस आकर यहाँ बैठ गई। किसी ट्रेन से उतरी थी, पर बात नहीं कर रही। लगता है किसी बात का सदमा लगा हो जैसे।"
"शुक्रिया भाईसाहब! ये कुछ पैसे रख लीजिए! कुछ खा लीजिए आप! इस लड़की को मैं अपने साथ लेकर जाता हूँ। यहाँ इस बच्ची का इस हालत में रहना अच्छा नहीं है। वैसे भी यह बम्बई है! यहाँ लोग आत्मा बेचकर खा जाते हैं, तो इस छोटी बच्ची के साथ क्या होगा!"
जान्हवी ने धीरज जी की तरफ़ देखा तो उन्होंने कहा, "चलो मेरे साथ! मेरी भी एक बेटी है!" जान्हवी अब तक उस आदमी को अच्छा नहीं समझ रही थी, पर 'बेटी' का नाम लेते ही वह उठकर खड़ी हो गई। उसे चलने के लिए राज़ी देख धीरज जी के चेहरे पर राहत के भाव आ गए। अपनी थैली संभाले वह धीरज जी के पीछे-पीछे चलने लगी। उसे ट्रेन में चढ़ाकर धीरज जी अपने थैले को लेकर अंदर आ गए। जान्हवी नीचे बैठ गई, तो धीरज जी ने उसे अपने पास बेंच पर बिठाया। जान्हवी आस-पास के लोगों की तेज नज़रें अपने ऊपर महसूस कर रही थी। धीरज जी ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा, "कोई तुम्हें कुछ नहीं कहेगा, मैं हूँ ना तुम्हारे साथ!" जान्हवी अब रिलैक्स होकर बैठ गई, पर सबकी नज़रों का अभी भी सामना नहीं कर पा रही थी।
मालाड स्टेशन पर उतरकर धीरज जी ने थैले को अपने कंधे पर उठा लिया। रिक्शा वाले को देने वाले पैसे वह पहले ही जान्हवी और उस भिखारी पर खर्च कर चुके थे। अब जेब में बस दस रुपये का नोट पड़ा था, जो उन्हें धंधा शुरू करने के वक्त बरकत के लिए अपने पास रखना था। इसलिए उस दस रुपये के नोट को उन्होंने खर्च नहीं किया। थैले को अपने सब्ज़ी बेचने की जगह पर रखकर और रामू काका, जो उनके साथ ही बाज़ार बैठते थे, थैले का ख्याल रखने के लिए बोल, वह जान्हवी को लेकर पैदल ही घर के लिए निकल पड़े। पुनम जी अपने झोपड़े के बाहर एक पत्थर पर बैठकर चावल बीन रही थीं। धीरज जी को किसी बच्ची के साथ आता देख उन्होंने चावल की थाली नीचे रख दी और धीरज जी को घूरने लगीं। दोनों हाथ कमर पर रखकर पास बह रही नाली में उन्होंने मुँह में चबाया पान थूक दिया। धीरज जी अभी थोड़ी दूरी पर ही थे कि उनकी ज़ुबान तलवार से तेज़ धार की बनकर चलने लगी। "ये दिया के पिताजी, ये किसे उठा लाए हो आप? हमारा घर तुम्हें अनाथ आश्रम दिख रहा है क्या?"
"पुनम जी, धीरे बात कीजिए, बिटिया डरी हुई है और भूखी भी!"
"तो मेरे सिर पर काहे लेकर आए हो नचाने? पता नहीं किसका गन्दा खून है! एक मेरे ही मर्द को राम जी का भूत काटा था क्या, दयावान होने का? हम कह दे रहे हैं, इस भिखारिन को अपने घर में नहीं रखेंगे, मतलब नहीं रखेंगे!"
"जाओ पहले पानी तो पिलाओ! बाकी का झगड़ा बाद में कर लेना हमसे! दुकान बिना खोले आए हैं, वापस भी जाना है हमको!"
पुनम जी बड़बड़ाते हुए अंदर चली गईं और पीने का पानी लाकर उन्होंने लोटा धीरज जी के हाथ में थमाया। बहुत देर से पुनम जी की तरफ़ देख रही जान्हवी धीरज जी के पास छिपकर बैठ गई, ताकि पुनम जी उसे देख न सकें। धीरज जी पानी पीकर अंदर चले गए। दिया अभी सो रही थी। धीरज जी ने चूल्हे पर चढ़ाया गरम पानी अपने दुपट्टे से उतारा और पर्दा लगाकर रखे एक छोटे बाथरूम में रखे बाल्टी में वह पानी डाल दिया। बाहर आकर जान्हवी का हाथ पकड़कर वह अंदर ले गए। अपने हाथों से उसे नहलाकर उन्होंने उसके शरीर पर लगा मैल धो दिया। नहाने के बाद दिया के कपड़े उन्होंने जान्हवी को पहनने के लिए दे दिए। जान्हवी जब बाहर आई, तब तक पुनम जी दूसरा पान मुँह में डाल चुकी थीं। पुनम जी ने जब गोरी-चीट्ठी जान्हवी को देखा तो उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं। उन्होंने धीरज जी के पास खिसकते हुए कहा, "कहाँ से लेकर आए हो इस लड़की को आप? कहीं से उठाकर तो नहीं लेकर आए! लड़की अच्छे घर से लगती है! हमें पुलिस का कोई चक्कर नहीं चाहिए, बता दें रहे हैं?"
"अरे बच्ची दादर स्टेशन पर भीख माँग रही थी! भूखी थी! हमें दया आ गई इसलिए यहाँ उठाकर लेकर आ गए! आप भी ना हमेशा करेले की तरह ज़हर उगलती रहती हो!"
"हम्म... अभी के लिए रहने दें रहे हैं इसे! बाद में इसे किसी आश्रम में छोड़ आइएगा, हम इस लड़की को अपने साथ नहीं रख सकते!"
"बच्ची को हम पालने वाले हैं! आपको क्या दिक्कत होने वाली है! आप बस अपनी बेटी पर ध्यान दीजिए!"
धीरज जी ने बड़े प्यार से जान्हवी की तरफ़ देखा। "यहाँ आओ बेटी! देखो ये पुनम चाची हैं! आज से तुम हमारे साथ रहोगी! ये जो अंदर सो रही है, वो दिया है, हमारी बेटी! आज से तुम भी हमारी बेटी हो! तुम मुझे चाचा बुलाना, ठीक है? तुम्हें भूख लगी है ना?" धीरज जी ने कढ़ाई के पास जाकर उसमें रात का रखा हुआ चावल मिलाया और उसे गरम करके जान्हवी को परोस दिया। "तुम ये खाकर यहीं सो जाना! मैं दोपहर को खाना खाने आऊँगा! फिर तुम मुझे अपने बारे में बताना, ठीक है!" धीरज जी ने उसके सिर पर हाथ फेरा और बाहर चले गए। जाते वक्त उन्होंने पुनम जी की अच्छे से क्लास ले ली। "अगर उस बच्ची को डराया-धमकाया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा पुनम जी! इसलिए, कुछ भी कहने से पहले दस बार सोच लीजिएगा!" कहकर वह दुकान पर चले गए। धीरज जी के जाते ही पुनम जी अंदर आ गईं। उस लड़की की एक आँख पर लगी चोट देखकर उनका दिल पसीज गया। उसे जानवरों की तरह खाता देख उन्होंने टोका। "ऐसे लालचीयों की तरह खाता है क्या कोई? अच्छे से बैठकर और अपनी उंगलियों का इस्तेमाल करके खाओ! इस थैली में क्या है?" पुनम जी ने थैली खोलकर देखनी चाही, पर जान्हवी उनके हाथ से थैली खींचकर कोने में जाकर बैठ गई। उसने दूसरी ओर मुँह कर लिया था। पुनम जी उसे देखती रह गईं।
जारी!
पुनम जी जान्हवी को इस तरह वो थैली खींच कर दूसरी तरफ जाते देख चौंक गईं। "कैसी लड़की हो तुम??? मेरे पति ने तुम्हारी इतनी मदद की!! तुम्हें घर लेकर आए... और तुम हो कि इस थैली में रखी चीज भी दिखाने के लिए नाटक कर रही हो!! हमने सही सोचा था तुम्हारे बारे में!! इतनी सी हो... लेकिन बहुत चालाक हो तुम लड़की!! अब तो मैं देखकर रहूंगी इस थैली में क्या है??? लाओ दिखाओ मुझे...!!"
पुनम जी वो थैली लेने उसके पास पहुंचीं तो जान्हवी ने थैली को अपने पीछे छुपा लिया। पुनम जी ने वह थैली फिर भी उसके पीछे से खींच कर नीचे जमीन पर उंडेल दी। उसमें एक लाल साड़ी, एक खत, और दो हरी चूड़ियों के अलावा कुछ नहीं था। पुनम जी ने जान्हवी की तरफ देखा, जो खड़ी रहकर आँसू बहा रही थी। वह वहाँ से भागते हुए आई और उसने वो सारा सामान वापस उस थैली में डाल दिया।
पुनम जी ने उसकी एक सूजी हुई आँख की तरफ देखकर पूछा, "यह आँख को क्या हुआ तुम्हारी??? किसी ने मारा था क्या???"
जान्हवी पीछे खिसक गई और अपनी आँख पर हाथ रख उसने उस आँख को छुपा लिया। पुनम जी बड़बड़ाते हुए बाहर चली गईं। "अजीब लड़की है...??? कुछ बोलती ही नहीं!! कुछ भी पूछो... बस मुँह ताकती रहती है!! आखिर हुआ क्या होगा उसके साथ???"
पुनम जी ने साथ वाली झोपड़ी में रहने वाली लाली को आवाज लगाई, "ए लाली... इधर आओ... बनिये की दुकान से पान ले आओ हमारे लिए!!"
लाली, जो छोटी स्कर्ट पहने हुए थी, बालों को खुला छोड़ रखा था जो कि झाड़ू की तरह इधर-उधर फैले हुए दिख रहे थे, और ऊपर की कमीज फटी होने के बावजूद पहन रखी थी, पुनम जी के सामने आकर खड़ी हो गई।
लाली: "पुनम मौसी... तुम्हारे घर पर मेहमान आई है ना... उसकी आँख को क्या हुआ??? उसके बाबा ने दारू पीकर मारा था क्या???"
पुनम जी: "तुमको क्या करना है जानकर लाली देवी!! जो काम दिए हैं वो करके आओ पहले!! उसके बाबा ने मारा हो या अम्मा ने... हमको कुछ लेना-देना नहीं है!!"
लाली चुपचाप डाँट खाकर पान लेने चली गई। दिया के पास अपनी थैली हाथ में कसकर पकड़कर जान्हवी सो गई। तीन दिन से एक जगह अकड़ कर सोने की वजह से उसकी नींद पूरी नहीं हुई थी और भीख माँगने के लिए एक जगह पर बैठने की वजह से ज़्यादा सो भी नहीं पाई थी। दिया के पास चादर पर शरीर को पसारते ही उसे नींद आ गई। शरीर को गोलाकार में कर उसने पैरों को पेट के पास कर दिया था ताकि उसे कहीं लगे नहीं।
दोपहर को जब धीरज जी घर आए, तो उन्होंने चैन से सोती जान्हवी को देखा और उसके पास गरम तेल की कटोरी लेकर वो बैठ गए। उन्होंने उस कटोरी से गरम तेल अपने हाथ पर लिया और जान्हवी की सूजी हुई आँख पर हल्के से लगाने लगे। गरम तेल से मालिश करने पर जान्हवी को आराम मिल रहा था। फिर ज़्यादा दर्द होने पर वो अचानक से उठकर बैठ गई। उसे डरा हुआ देखकर धीरज जी ने कहा, "डरो मत बेटा... देखो तेल लगाने से तुम्हारी ये आँख जल्दी ठीक हो जाएगी!!"
धीरज जी की बात सुनकर दिया उठ गई। अपने सामने एक दूसरी लड़की को बैठा देखकर वो भागते हुए अपने बाबा के पास चली गई। "बाबा यह कौन है??? और हमारे घर में क्या कर रही है???"
धीरज जी: "दिया बेटा, उठ गई तुम!! देखो ये दीदी है!! अभी मुझे इसका नाम नहीं पता... तुम पूछकर देखो... शायद तुम्हें बता दें!!"
दिया धीरे से जान्हवी के पास आकर बैठ गई। "दीदी... तुम्हारा नाम क्या है??? बाबा तुम्हें यहाँ क्यों लेकर आए हैं??? क्या तुम हमारे साथ रहोगी???"
जान्हवी दिया की बातें सुनकर हँस दी। उसने पहली बार अपने मुँह से शब्द निकाला। "मेरा नाम जान्हवी है!! मैं यहाँ खो गई हूँ!! मैं गाँव से यहाँ आई थी... उन लोगों से बचने के लिए!!"
धीरज जी जल्दी से उठकर उसके पास आ गए। "कौन से लोग??? क्या किसी ने तुम्हें मारा??? क्या तुम अकेली आई हो यहाँ???"
जान्हवी: "हाँ!!! अकेली आई हूँ!! उन्होंने बाबा के सीने में चाकू मारा था!! और माँ को कहीं लेकर जा रहे थे... फिर माँ जब वहाँ से भागी... उन्होंने मुझे पकड़कर पीटा!! और मेरी आँख पर लोहे के डंडे से मारा!! मैं वहाँ से भागी किसी तरह और फिर ट्रेन में छुपकर बैठ गई!! जब उतरी तो लोग ही लोग थे!! कहाँ जाना है... मुझे पता नहीं था इसलिए स्टेशन पर ही बैठ गई!! भूख लगी थी तो लोगों से खाने के लिए माँगने के लिए मैंने अपने हाथ आगे कर दिए!! क्योंकि जो पास वाले बाबा थे!! उन्हें इसी तरह खाना मिल जाता था!!"
धीरज जी उस बेसहारा बच्ची की बात सुनकर दुखी हो गए। कैसे लोग होंगे वह... जिन्होंने इतनी छोटी सी बच्ची पर हाथ उठाया!! लोहे के डंडे से उसकी नाज़ुक आँख पर वार किया!! "क्या तुम्हें अभी भी दर्द हो रहा है आँख पर?? तुम देख पा रही हो इस आँख से???"
जान्हवी ने कहा, "नहीं चाचा... मैं इस आँख से उसी दिन से देख नहीं पा रही हूँ!!"
धीरज जी: "दिया... आज से जान्हवी दीदी हमारे साथ रहेंगी!! तुम इसका ख्याल रखोगी ना??? और जान्हवी... अच्छा हुआ तुमने मुझे सब बताया!! वरना मैं परेशान हो गया था तुम्हारे साथ क्या हुआ है सोचकर!! अब तुम आराम करो!! जब मैं शाम को लौटूँगा... यहाँ पास वाले सरकारी अस्पताल में ले चलूँगा!! तुम्हारी आँख का इलाज कर देंगे वह लोग!!"
पुनम जी: "आज तक मुझे ले गए हो कभी अस्पताल...? यह लड़की आई नहीं कि इसकी सेवा में लग गए!! सुन लिया मैंने सब!! जब इसे मार रहे थे गाँव के लोग... तो ज़रूर इन्होंने बहुत बड़ा पाप किया होगा!! जिसकी वजह से इसकी अम्मा भाग गई!! देखिए... हमें किसी झमेले में नहीं पड़ना!! आप इस लड़की को पुलिस के हवाले करके आओ!! वह लोग देख लेंगे!! इसके साथ क्या करना है!!"
जान्हवी जोर से अपनी गर्दन ना में हिलाने लगी। "चाचा मुझे पुलिस के पास मत लेकर जाओ!! मुझे नहीं जाना!! वह लोग मुझे ढूँढ रहे होंगे!! वह मुझे मार डालेंगे!! मुझे वहाँ नहीं जाना!! पुलिस के पास नहीं जाना!!"
धीरज जी जान्हवी को डरता देख समझ गए। ज़रूर उसने जो कुछ भी हुआ उसे अपनी आँखों से देखा है। जान्हवी की ओर देख उन्होंने कहा, "बेटी तुम दिया के साथ बाहर जाओ!! मुझे पुनम जी से कुछ बात करनी है!!"
दिया अपने बाबा की बात समझ गई। उसने जान्हवी का हाथ खींचना शुरू कर दिया। "चलो दीदी... हमें बाहर जाना चाहिए!! जल्दी चलो!!"
दिया जान्हवी का हाथ खींचकर उसे बाहर ले गई। दिया आठ साल की प्यारी बच्ची थी, बहुत ही समझदार। उसे पता था बाबा और माँ के बीच जब भी झगड़ा शुरू होता बाबा उसे बाहर जाकर खेलने के लिए बोल देते थे और वो अक्सर इस झगड़े को बाहर से सुनती थी। दिया ने जान्हवी का हाथ पकड़कर खींचा क्योंकि वो जानती थी अब भी वैसा ही कुछ होने वाला है। दोनों बाहर आ गईं। एक पेड़ के पास दोनों बैठ गईं। इस पेड़ से लगकर ही दोनों की झोपड़ी थी। झोपड़ी की दूसरी ओर जीतू और उसकी गैंग बैठी थी। दिया ने जान्हवी से कहा, "दीदी उधर उनकी तरफ मत देखो!! वह अच्छे लड़के नहीं हैं!! माँ कहती हैं वो सब के सब गुंडे हैं..!! और लोगों के यहाँ चोरी करते हैं!!"
जान्हवी फिर डर गई। उसने अपनी नज़रें फेर लीं और वो दूसरी तरफ देखने लगी।
जीतू के दोस्तों की नज़र दिया के पास खड़ी जान्हवी पर गई। उनमें से एक लड़के ने दिया से पूछा, "दिया तुम्हारे यहाँ मेहमान आई हैं... तुमने हमें बताया नहीं???"
दिया ने गुस्से से कहा, "मेरी मौसेरी बहन है, गाँव से आई है!! और कुछ जानना है तुम्हें भैय्या???"
दिया के "भैय्या" बोलते ही साथ खड़े लड़के हँसने लगे, जिनमें जीतू भी था। दिया जान्हवी को लेकर मंदिर की तरफ चली गई। जीतू इस वक़्त जान्हवी की उस आँख को देख रहा था जो सूजन की वजह से लाल दिख रही थी। जब जान्हवी उन सबकी बगल से गुज़री, जीतू ने पहचान लिया... उसकी आँख पर मार का निशान है। तेरह साल का जीतू उम्र में बस तेरह साल का था, लेकिन जन्म से बहुत होशियार था। पिता के गुज़रने के बाद स्कूल को हमेशा के लिए राम-राम ठोककर गुंडागर्दी करने लगा था। ग़लत संगत में ग़लत काम करने लगा था और इस बात का उसे कोई खेद नहीं था। वह और उसके आवारा दोस्त दिन भर यहाँ-वहाँ घूमते और शाम होने पर चोरी-चकारी करने निकल पड़ते। चुराया हुआ सामान चोर बाज़ार में बेचकर दोगुनी कीमत वसूलते। जीतू का ख़ास दोस्त था बिहारी। बिहार से था तो सब बचपन से उसे बिहारी बुलाते, उसका नाम यही पड़ गया उसके बाद। आज तक उसका असली नाम जीतू के अलावा कोई नहीं जानता था। जीतू ने जैसे ही गौर किया कि जान्हवी की आँख पर मार का निशान है, वह समझ गया दिया उनसे झूठ बोल रही है, पर उसने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। किसी दूसरे के फटे में टांग अड़ाने वालों में से नहीं था वह।
जान्हवी और दिया मंदिर की सीढ़ियों पर आकर बैठ गईं। दिया ने जान्हवी की आँख की तरफ देखकर कहा, "दीदी तुम्हें दर्द नहीं हो रहा!! मुझे तो देखकर ही रोंगटे आ रहे हैं!!"
"दर्द हो रहा है दिया, पर मैं उसे सहने की कोशिश कर रही हूँ!! तुम्हारे बाबा बहुत अच्छे हैं..!! जो मुझे... जिनसे उनका कोई नाता नहीं... यहाँ ले आए!! मुझे अपने घर में पनाह दी!! आजकल तो लोग बिना मतलब के किसी को भीख भी नहीं देते... कुछ दिनों में ही पता चल गया मुझे!! पता नहीं... अब मेरी किस्मत मुझे कहाँ ले जाए???"
"दीदी यहीं रहो ना हमारे साथ!! मुझे बहुत अच्छा लगेगा!! वैसे भी हम दोनों बहनें दिखती हैं... देखो!!"
दिया ने उसके चेहरे के पास अपना चेहरा ले जाकर कहा। जान्हवी उसकी नादानी पर हँस पड़ी। पर वह जानती थी... दिया के माँ-बाबा उसे घर में रखने की बात पर लड़ रहे थे अंदर!! जिसकी आवाज़ें उसे यहाँ आने से पहले सुनाई दी थीं। वह परेशान थी अब यहाँ से कहाँ और कैसे जाए???
कुछ देर बाद जब दिया ने उससे कहा, "दीदी घर चलो!!", तो उसने यह कहकर मना कर दिया वो मंदिर में और कुछ देर बैठना चाहती है।
"दिया तुम घर जाकर देखकर आओ!! सब ठीक है या नहीं!! तब तक मैं यहाँ रुकती हूँ!! और तुम मुझे लेने आना उसके बाद हम घर चलेंगे!!"
"दीदी यहाँ से कहीं मत जाना... मैं अभी वापस आती हूँ, ठीक है!!"
दिया दौड़ते हुए अपनी झोपड़ी की ओर निकल गई। जान्हवी ने अपनी थैली की ओर देखा जिसमें उसकी माँ की यादें थीं। वो आते वक़्त भी थैली को उठा लाई थी। उसने उठकर भगवान की मूर्त को प्रणाम किया और दिया जिस ओर गई थी उसकी उल्टी दिशा में चलने लगी।
धीरज जी पुनम जी को घर से बाहर निकाल चुके थे, उनकी ज़िद के कारण। जब दिया घर पहुँची अपनी माँ को अटैची के साथ बाहर खड़ा देख उसने बाबा से पूछा, "क्या हुआ बाबा... माँ इस तरह सामान के साथ बाहर क्यों खड़ी है???"
धीरज जी ने देखा दिया अकेली थी, उसके साथ जान्हवी को ना पाकर वो घबरा गए। "जान्हवी कहाँ है बेटा???"
"दीदी मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी है, उसने मुझे घर जाकर देखने को कहा था... इसलिए मैं यहाँ आ गई!!"
धीरज जी सुनते ही मंदिर की तरफ दौड़ पड़े। उन्हें लगा जान्हवी पुनम जी के तीखे रवैये से परेशान होकर चली गई। वह जब मंदिर के पास पहुँचे, जान्हवी वहाँ नहीं थी। उन्होंने वहाँ एक भिखारी से पूछा, "भैय्या आपको एक लड़की दिखी यहाँ??? अभी इस बच्ची के साथ यहाँ बैठी थी???"
"हाँ... एक लड़की बैठी थी इस लड़की के साथ, फिर इस छोटी बच्ची के जाने के बाद वह इस तरफ चली गई!!"
उस भिखारी बाबा की बात सुनकर धीरज जी उस तरफ दौड़ पड़े। उन्होंने देखा जान्हवी अंधेरे से डरते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। सामने रास्ता था, पर उसके लिए तो अब सारे रास्ते एक समान थे। जाना कहाँ है यह तक उसे पता नहीं था। फिर भी किसी और को अपने वजह से असुविधा ना हो, इसलिए वो आगे निकल गई थी। धीरज जी ने उसे देखा तो उन्हें तसल्ली हुई और उनके पीछे आई दिया ने जोर से आवाज लगाई, "जान्हवी दी... रुक जाओ!!"
जारी!!!
दिया की आवाज़ सुनकर जान्हवी समझ गई कि दिया उसे ढूँढती हुई आई है। उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपनी चाल तेज कर दी। धीरज जी समझ गए कि जान्हवी रुकने वाली नहीं है। इसलिए वे तेज दौड़ पड़े। उन्होंने तेज भागकर जान्हवी को पकड़ लिया। दिया भी भागकर उन दोनों के पास पहुँच गई। दोनों को हांफते देख जान्हवी को बुरा लगा।
"चाचा, मेरा यहाँ से जाना ही ठीक है, मैं अपनी वजह से चाची और आपके बीच झगड़े का कारण नहीं बनना चाहती। आप जाने दीजिये मुझे! कहीं न कहीं तो कोई जगह होगी जो मेरे रहने लायक होगी। अगर भगवान ने ज़िन्दगी दी है, तो मेरे लिए कुछ सोच भी रखा होगा ना!"
उसकी बात सुनकर धीरज जी उसकी तरफ़ हैरानी से देखने लगे। सिर पर छत नहीं थी, माँ-बाप का साया सिर से उठ चुका था। कहाँ जाएगी, क्या करेगी, यह तक पता नहीं था, फिर भी उसकी समझदारी दूसरे लोगों से कितनी अच्छी थी! कितनी जल्दी समझ गई थी वह कि उसकी वजह से उन पति-पत्नी के बीच झगड़ा हो रहा था!
धीरज जी: "मैं तुझे कुछ दिखाता हूँ, चल! दिया, मेरे पीछे ही रहना तुम!"
धीरज जी झोपड़पट्टी के बाहर कचरे के पास बैठे कुछ लोगों के पास उसे लेकर आ गए।
"जान्हवी, ये लोग कचरा उठाते हैं दिन भर और शाम को कचरे वाले को बेचकर जो भी मिलता है उसे खाकर इसी कचरे में आकर सो जाते हैं! क्या तुम ऐसी ज़िन्दगी जीना चाहती हो? मैं मानता हूँ तुम मुझ पर बोझ नहीं बनना चाहती, पर ये दुनिया किसी को सिर उठाकर जीने नहीं देती, किसी की परवाह नहीं करती। जीने के लिए, अपनी पहचान बनाने के लिए झगड़ना पड़ता है और मैं तुम्हें वो पहचान देना चाहता हूँ, बेटा! तुम जैसी प्यारी बच्ची, जो इतनी समझदार है, मैं उसके साथ कुछ ग़लत नहीं होने देना चाहता। पुनम जी मुँहफट हैं, ज़िद्दी हैं और थोड़ी गुस्सैल भी, पर मैं उन्हें भी आज तक छोड़ नहीं पाया, तो तुम्हें कैसे छोड़ दूँ? मैं तुम्हें यहाँ लेकर आया था, बेटा! तुम मेरी दिया की तरह ही मेरी बेटी हो! मत जाओ बच्चे! मुझे अच्छा नहीं लगेगा!"
जान्हवी उन कचरे में पड़े लोगों की तरफ़ देख अपने माँ-बाप को याद करने लगी, जिन्होंने कितने लाड़-प्यार से उसे पाला था! उसकी हर ख्वाहिश पूरी की थी! उनकी याद आते ही जान्हवी नीचे बैठकर रोने लगी। धीरज जी ने अपने दोनों हाथ उसके कंधे पर रखकर कहा,
"आज से मैं तुम्हारी माँ और बाबा दोनों हूँ, बेटा! ऐसे रोओ मत! मैं जानता हूँ उन दोनों की कमी मैं पूरी नहीं कर सकता, पर मैं तुम्हें वो हर खुशी देने की कोशिश करूँगा जो मैं अपनी बेटी दिया को दूँगा!"
धीरज जी की बात सुनकर जान्हवी उठकर खड़ी हो गई और उनसे लिपटकर रोने लगी। दिया को समझ में कुछ नहीं आया था, पर जान्हवी को बाबा से लिपटते देख वो भी उनसे जाकर लिपट गई। दोनों बेटियों को अपने इर्द-गिर्द देख धीरज जी को तसल्ली हुई कि अब जान्हवी वहाँ से नहीं जाएगी।
पिछली गली से जीतू और उसके दोस्त चोरी करते हुए भाग रहे थे। वॉचमैन ने उनके पीछे दौड़ लगाई थी, तो वह भागते-भागते धीरज जी के पीछे से जाकर छुप गया। उसके सारे दोस्त तितर-बितर हो गए थे, सारे जाकर कहीं न कहीं छुप गए थे। बस जीतू ही अपने आपको धीरज जी को देखकर उनके पीछे छिपने की कोशिश करने लगा। लड़कियाँ डर गईं। वॉचमैन धीरज जी के पास आकर खड़ा हो गया।
"सुनो, तुमने यहाँ से किसी को भागते देखा क्या? किस तरफ़ गया वह?"
धीरज जी: "वो उस ओर गया है, लेकिन हुआ क्या?"
वॉचमैन: "कुछ लड़के चोरी कर के भागे हैं, पिछली बिल्डिंग के हिस्से से! पुलिस को फोन किया है, आती ही होगी! उस तरफ़ ना... मैं अभी देखकर आता हूँ!"
वॉचमैन अपना डंडा लेकर उस तरफ़ चला गया। तब धीरज जी जीतू की तरफ़ मुखातिब हुए।
"जीतू, कितनी बार कहा है ये चोरी-चकारी करना छोड़ दो! अच्छी शक्ल और परिवार है, उनका तो ख्याल करो! तुम्हें अगली बार बचा नहीं पाऊँगा मैं! इससे अच्छा पढ़ाई क्यों नहीं करते?"
"काका, रहने दीजिये ना? अब आप भी भाषण शुरू मत कीजिये! वैसे आपका फैमिली ड्रामा अच्छा था! आप लोग शुरू कीजिये, मैं चलता हूँ! और हाँ, मदद के लिए शुक्रिया! आपका ये एहसान उधार रहा मुझ पर!"
जीतू जल्दी से कचरे वाली दीवार से लगी काँटे की तार से उस तरफ़ कूद गया। अपनी जेब से सिगरेट निकालकर उसने जलाई और उसका कश भरकर जान्हवी की तरफ़ देखने लगा, जो पहली नज़र से ही कुछ अटक सी गई थी मन में। उसकी वो सूजी हुई आँख, उस पर तरस खाने के लिए मजबूर कर रही थी। वहीं दूसरी तरफ़ जान्हवी धीरज जी के सामने छुपी हुई थी। जीतू के दीवार के पीछे कूदते ही वो धीरज जी के पीछे छुप गई, जबकि दिया अपने दोनों हाथ कमर पर रखकर जीतू को घूर रही थी। दिया ने आखिर कह ही दिया,
"ऐसे क्यों देख रहे हो मेरी दीदी की तरफ़? मैं पुलिस को बता दूँगी तुम यहाँ छुपे हुए हो!"
जीतू ने मुस्कुराते हुए कहा,
"इतनी सी हो, पर ज़बान कैसे चलती है तुम्हारी! काका अपनी बेटी को भी कुछ अच्छी बातें सिखा दीजिये! उसके काम आएंगी!"
कहकर जीतू, पुलिस की सीटी की आवाज़ आते ही वहाँ से भाग गया। जान्हवी अब भी छुपकर उसे देख रही थी। धीरज जी ने दिया को डाँटा,
"दिया, ऐसी बातें नहीं करते हैं! वो बड़ा है तुमसे! तुम इस तरह उससे कैसे बात कर सकती हो?"
दिया: "लेकिन बाबा, वो दीदी को परेशान कर रहा था! दीदी डर रही थी उससे!"
धीरज जी: "अभी दीदी उसे जानती नहीं है ना! जब दीदी उसे जानने लगेगी तब नहीं डरेगी! ठीक है! चलो अब घर चलते हैं! बहुत देर हो गई है!"
धीरज जी दोनों बच्चियों को लेकर घर आ गए। पुनम जी अब भी झोपड़ी के बाहर पत्थर पर अपनी सूटकेस के साथ बैठी हुई थीं। धीरज जी के साथ जान्हवी को वापस आता देख उन्हें अच्छा नहीं लगा, पर अब घर के अंदर जाने के लिए उन्हें धीरज जी की ये बात माननी ही थी। धीरज जी ने अंदर जाते वक़्त उन्हें बुला लिया,
"पुनम जी, अंदर आ जाइए! आप चाहें तो अंदर आकर मुझ पर गुस्सा निकाल सकती हैं!"
पुनम जी जानती थीं कि धीरज जी उन्हें घर के अंदर ज़रूर बुलाएँगे, इसलिए वे वहाँ से गई नहीं थीं। वहीं खड़ी रहकर इंतज़ार कर रही थीं। जैसे ही उन्होंने आवाज़ लगाई, वह सूटकेस के साथ अंदर आ गई और घर में रखे स्टोव्ह पर उन्होंने चावल के लिए पानी चढ़ा दिया। जान्हवी एक कोने में बैठी टुकुर-टुकुर सब देख रही थी। दिया अपनी किताबें लेकर उसके पास बैठ गई और किताब के अक्षर उसे पढ़कर सुनाने लगी। धीरज जी हाथ-पैर धोकर उन दोनों के पास बैठ गए। फिर उन्हें याद आया कि जान्हवी की आँख के लिए उन्हें अस्पताल जाना था, जो आज की भागदौड़ में रह गया। वो उठकर हल्दी का लेप गर्म कर ले आए। उन्होंने अपने हाथ पर वो थोड़ी सी गर्म हल्दी लेकर जान्हवी को लेटने को कहा और धीरे-धीरे उसकी आँख को सेंकने लगे। उनके इस मालिश से जान्हवी को बहुत राहत मिल रही थी, पर उस आँख से अब भी कुछ देख नहीं पा रही थी। पुनम जी ने दाल-चावल सबके लिए थाली में परोस दिया। खा-पीकर सब सो गए और धीरज जी अस्पताल के लिए पैसों की जुगाड़ के बारे में सोचने लगे। उन्होंने जान्हवी को दिल से अपनाया था, अपनी बेटी की तरह उसकी भी अब फ़िक्र होने लगी थी उन्हें। थके होने के कारण अब उन्हें नींद आ गई, उन्हें पता भी नहीं चला।
दूसरे दिन धीरज जी फिर सब्ज़ी लेने चले गए। जान्हवी और दिया उठकर खेलने लगीं और पुनम जी घर के कामों में बिजी हो गईं। पुनम जी अब अपना लिया था कि जान्हवी को भी उन्हें साथ ही लेकर चलना है। अभी वो छोटी थी तो धीरे-धीरे वो उसे घर के सारे काम सिखाने लगी। जान्हवी ने भी सारे काम करना सीख लिया। जब धीरज जी उसे अस्पताल ले गए तब पता चला आँख की पुतली नष्ट होने के कारण वह कभी देख नहीं पाएगी। डॉक्टर ने दूसरी नकली आँख लगवाने के लिए कहा, पर जान्हवी ने मना कर दिया। उसे उस हिस्से को और तकलीफ़ नहीं देनी थी, जो पहले ही बहुत दर्द सह चुका था। जान्हवी की आँख अब ठीक होने लगी थी, आस-पास की सूजन चली गई थी, भले ही वह देख नहीं सकती थी, फिर भी उसकी आँख की तरफ़ देख कोई कह नहीं सकता था कि वह उस आँख से देख नहीं सकती। उसने इसी को अपना नसीब मान लिया था अब। धीरज जी ने उसे दूसरी आँख के लिए मनाने की बहुत कोशिश की, पर एक तो पैसे, और दूसरा वह दर्द झेलने को तैयार ना होने के कारण उसकी आँख वैसे ही रही। धीरज जी ने दिया के साथ उसका भी दाखिला स्कूल में करवा दिया। जान्हवी पढ़ने-लिखने लगी। पुनम जी आश्रित जैसा व्यवहार करती, उसे वह बुरा नहीं मानती थी, उनके स्वभाव की अब आदत सी हो गई थी उसे, पर धीरज जी से बहुत स्नेह था, एक सगे पिता की तरह वह उसकी देखभाल करते और दिया की तरह ही उसे प्रेम करते।
दिन गुज़रते गए। जान्हवी अब सोलह साल की हो गई। वह दिया के साथ ही स्कूल जाती। यह उसका दसवीं का साल था। यहाँ तक आने के लिए बहुत पढ़ाई की थी उसने और अब दसवीं कक्षा में भी उसे पास होना था। स्कूल से किताबें मिल चुकी थीं और पुराना यूनिफ़ॉर्म अब भी चल सकता था। वो पढ़ाई में इतनी भी अच्छी नहीं थी, पर धीरज जी का विश्वास टूटने नहीं देना चाहती थी। उसे चाचा की नज़रों में पढ़-लिखकर एक अच्छी नौकरी करते दिखना था, इसलिए वह खूब मेहनत कर रही थी। पर आज तक जो हमने सोचा है, वैसा कभी हुआ है? यह ज़िन्दगी है, जो हर दिन नए इम्तिहान लेती है। जान्हवी की ज़िन्दगी भी कुछ इसी तरह बदलने वाली थी और किस्मत उसे कहाँ ले जाएगी, ये किसी को पता नहीं था।
स्कूल में हर दिन जाना, फिर अपनी सहेली किर्ती के साथ लाइब्रेरी में पढ़ाई करना और फिर दिया और किर्ती के साथ घर आना, जान्हवी इन सब में बहुत बिजी हो गई थी। एक दिन ऐसे ही वो स्कूल के लिए निकली थी कि जीतू के पीछे कुछ लोगों को दौड़ते देख उसके कदम रुक गए। जीतू के पीछे दौड़ने वाले लोगों में से एक के हाथों में बड़ा छूरा देख उसके पैर काँपने लगे। किताबें नीचे गिर गईं। उसने पीछे मुड़ना चाहा, पर वो पैर ही नहीं उठा रही थी डर के मारे। उसने आँखें बंद कर लीं। जीतू उसी की तरफ़ दौड़ते हुए चला आया था! दो चोटियों में खड़ी काँपती जान्हवी को देख उसके पास पहले पहुँचे हुए आदमी को उसने पेट में बिना मुड़े ही घूँसा मार दिया। वो धीरे-धीरे नीचे बैठकर ज़मीन पर ढेर हो गया। जीतू अब भी जान्हवी को देख रहा था, जो आँखें बंद कर उन सबके पास से गुज़रने का इंतज़ार कर रही थी। जान्हवी ने उस आदमी के कराहने की आवाज़ सुनकर आँखें खोलीं और जीतू को अपने सामने खड़े देखकर उसकी बोलती बंद हो गई। उसकी आँखें भर आईं और आँसू बिना किसी शोर के बहने लगे। जीतू ने मुड़कर सारे लड़कों की ताबड़तोड़ पिटाई कर दी। छुरे वाले लड़के के हाथ को ज़ोर से पकड़कर उसने उसका हाथ मरोड़ दिया। वो आदमी दर्द से कराहने लगा तो जान्हवी ने अपने कानों पर हाथ रख लिए। जीतू ने जान्हवी की किताबें उठाकर उसका हाथ पकड़ा और उसे स्कूल के पास खींचकर ले गया। जान्हवी उसकी पकड़ से छूटने की कोशिश करने लगी। उसे एक पेड़ के पास खड़ा कर जीतू चिल्लाया,
"तुम्हें समझ नहीं आता जब कोई झगड़ा चल रहा हो तो वहाँ खड़े नहीं रहते! तुम अभी भी बच्ची हो क्या? वहाँ रोने से अच्छा होता तुम यहाँ भागकर आ जाती!"
जान्हवी ने काँपते हुए हाथों से किताबें उठाईं, तो वे फिर गिर गईं। जीतू ने अपने आपको शांत कर उसकी किताबें उठाईं और उसके हाथ में रख वह वहाँ से बिना कुछ बोले चला गया। सिसकती जान्हवी उसे जाता हुआ देखने लगी।
जारी!!!
जीतू अपने दोस्तों के पास आ गया। बिहारी उसकी राह देख रहा था। "अरे यार, क्या हुआ??? इतना टाइम कहाँ लगा दिए बे??? हम यहाँ कब से बैठकर तुम्हारा इंतज़ार कर रहे थे!!"
जीतू ने उसकी जलाई हुई सिगरेट अपने मुँह में डाली और जान्हवी के थरथराते हाथों को याद कर जोर-जोर से कश लेना शुरू कर दिया। बिहारी जीतू के पास जाकर उसे देखने लगा। "लगता है किसी की पिटाई कर आए हो!! तो हमसे काहे गुस्सा हो बे..??? हम का किए???"
जीतू ने उसकी तरफ सिगरेट बढ़ाई और अंदर भरे धुएँ को बाहर छोड़कर लंबी साँस ली। "वह दूसरी गली के पंटर हमें मारने आए थे!! मैंने अच्छे से खबर ले ली सबकी!!"
"का कहा... तुमको मारने आए थे??? दिन भर गए का उनके??? साला, एक-एक को मारकर नंगा ना किया तुम्हारे सामने.. तो आगे से बिहारी ना कहना हमको!!"
"बिहारी... छोड़, मैंने सबको सबक सिखा दिया है!! जाने दें!! अगली बार मुझ पर हाथ उठाने से पहले सौ बार सोचेंगे वह लोग!!"
"अरे पर तुम हमको जाने काहे नहीं दे रहे हो??? आज हम नहीं थे साथ.. तो उनकी इतनी हिम्मत बढ़ गई!! अगर अगली बार भी कभी हम साथ ना रहें तो का करोगे तुम अकेले बताओ!!"
"तुम्हें भरोसा नहीं मुझ पर!! तो खुद जाकर देख लो उनकी हालत!!"
बिहारी ने लजाते हुए कहा, "हमें पता है तुमने उनको सबक सिखा दिया है!! उ का है ना.. हम जब वहाँ आए तो तुम उ अग्रवाल की बेटी से बातिया रहे थे!! तो हम आगे नहीं आए!!"
जीतू ने घूरकर बिहारी को देखा। "इसका मतलब मुझे मरने के लिए छोड़कर साले, तू तमाशा देख रहा था!!"
बिहारी: "अब हम का करें जब हमको पिटाई करनी नहीं आती!! इसलिए हम खड़े-खड़े तुमको दूर से देख रहे थे!! वैसे भी तुम्हारे आगे आज तक कोई टिक पाया है का??? जो वो डेढ़ फुटिए टिकते!!"
जीतू ने ना में सिर हिलाकर उसके हाथ से फिर सिगरेट छीन ली और वह उसके और लंबे कश भरने लगा। "इतना क्यों डर जाती है वह.. जब भी मुझे सामने देखती है!! क्या वह अभी भी मुझसे बात करने से डरती है??? कितना कांप रही थी वह!! क्या मुझे उसके सामने उन सबको पिटना नहीं चाहिए था???"
जीतू सोचते हुए कश पर कश ले रहा था। बिहारी ने उसकी सिगरेट छीनते हुए कहा, "चल, अड्डे पर बुलाया है मलिक ने!! कह रहा था कोई दूसरा काम देगा!! नया काम है तो पैसे भी बहुत मिलेंगे कह रहा था!!"
"तुने पता किया क्या काम है??? अगर कोई भी उल्टा-सीधा काम होगा तो मैं नहीं करने वाला.. जानता है ना तू???"
"अरे.. वह बोल रहा था बस जैसे हम चोरी करते हैं..!! उसी तरह का काम है!! कुछ गाड़ियाँ हैं.. जो हमें एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने हैं!! और पुलिस की नज़रों से बचना है!! बोल रहा था एक गाड़ी के बीस हज़ार देगा!!"
"हम्मम्... मतलब कुछ तो झोलझाल है!! अपने लड़कों से कह दे मलिक पर नज़र रखने के लिए!! उसके जितने भी धंधे हैं, पता करने को बोल!!"
"लेकिन तुम उसके धंधे के बारे में जानकर का करोगे बे??? तुम जानते हो ना.. उ साला टेढ़ा आदमी है!! कहीं उसे पता चला कि हम उसके बारे में छानबीन करवा रहे हैं, तो हमको ही उल्टा ना लटका दें!!"
जीतू ने उसकी तरफ देखकर कहा, "तो तुम यहाँ क्यों हो??? जाओ जाकर अपनी अम्मा के पल्लू में छुप जाओ!!"
बिहारी ने गुस्से से कहा, "ए जीतू.. हमारी अम्मा को बीच में लाने की कोई ज़रूरत नहीं है समझे!! हमारी अम्मा हमको जन्म दे के पता नहीं किसके साथ भाग गई!! आज तक हम भी नहीं जानते कौन है हमारी अम्मा!! अगर आगे से हमारी अम्मा के बारे में एक भी शब्द बोला तो हम तुम्हारा खून कर देंगे!!"
बिहारी को नकली चाकू हाथ में लेकर नाटक करते देख जीतू के चेहरे पर मुस्कान आ गई। "नौटंकी साला!!"
बिहारी ने उसकी मुस्कराहट देख कहा, "अब बात बनी.. पता नहीं किस टेंशन में रहते हो आजकल कि मुस्कुराना भूल गए हो बे!!"
जीतू: "मुस्कुराने के लिए कोई वजह भी तो होनी चाहिए!! आजकल मन उब गया है मेरा इस चोरी-चकारी से!!"
बिहारी: "ऐसा कभी हमारे लड़कों के सामने मत बोलना जो तुम्हारी एक आवाज़ पर कुछ भी कर देने के लिए तैयार रहते हैं!! कहीं उन्हें गलती से पता चल गया.. तो मुसीबत हो जाएगी!!"
जीतू: "हो गया तेरा भाषण.. अब चलें???"
बिहारी: "एक बात तो बताना भूल ही गया!! अरे.. गणेशोत्सव के लिए चंदा मांगने जाना है!! इस साल हम बहुत धूम मचाएँगे गणेशोत्सव में!!"
जीतू: "क्या चंदा मांगने भी मुझे जाना होगा!!"
बिहारी: "तुम हमारे बॉस हो जीतू!! तुम्हें तो आना ही पड़ेगा!! उ का है ना.. जब तक तुम नहीं दिखोगे हमको चंदा कौन देगा??
जीतू अब गणेशोत्सव के बारे में सोचने लगा और बिहारी पिछली गली से निकलकर उसके साथ आगे बढ़ गया।
इधर रो रही जान्हवी ने जीतू ने पकड़ाई किताबें अपने हाथों में संभाल ली थीं, पर उसका सिसकना अभी कम नहीं हुआ था। तभी स्कूल के पास रहने वाला आरिश उसके पास आ गया। अब तक उन दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी। आरिश ने उसे रोते देखकर पूछा, "अब क्या हुआ?? तुम हमेशा रोती क्यों रहती हो???"
जान्हवी: "वह गुंडे.. वह लोग... उसे मारने...आए थे!!"
आरिश: "तुम भी कमाल करती हो जान्हवी!! जानती तो हो जीतू और उसकी गैंग को!! यह उनका हमेशा का है!! मार-पीट करना!! गुंडागर्दी करना, जबरन या फिर बहाने से किसी को तंग करना!! तुम चलो स्कूल के अंदर!! देखो हमें देर हो गई है!! और यह रोना बंद करो!! नहीं तो सब समझेंगे.. मैंने ही तुम्हें रुलाया है!! वैसे तुम हर बार इतनी डर क्यों जाती हो?? मैंने देखा था तुम्हें..!! तुम तो उनसे काफी दूर खड़ी थी!!"
जान्हवी: "कुछ साल पहले यही सब अपनी आँखों से देखा था मैंने!! और मेरी यह आँख तब से ही ऐसी है!! बस उस हादसे को याद कर डर जाती हूँ!!"
आरिश: "वैसे बहुत अच्छी दिख रही हो!! कौन सा साबून इस्तेमाल करती हो!! मैं भी करूँगा!! ताकि तुम्हारी तरह अच्छा दिख सकूँ!!"
जान्हवी के चेहरे पर हँसी खिल गई। "तुम पागल हो!! कोई लड़कियों वाला साबून इस्तेमाल करता है क्या???"
उसे हँसते देख आरिश उसके पीछे क्लास में आ गया। जान्हवी को देखकर किर्ती उसके पास आ गई। "ये क्या हुआ तुम्हारे चेहरे को!! रोकर आई हो क्या???"
किर्ती ने उसकी क्लास ले ली। जान्हवी ने डरते हुए कहा, "तुम्हें कैसे पता चला???"
किर्ती: "आँसुओं से गाल अब भी गीले हैं!! क्या हुआ..??? पुनम आंटी ने कुछ कहा क्या???"
जान्हवी: "नहीं तो!! बस रास्ते में.. जीतू के पीछे लोगों को भागते देख बस थोड़ी सी डर गई!!"
किर्ती: "थोड़ी सी..?? चेहरा देखा है.. रंग उड़ गया है चेहरे का!! वैसे जानू तुम इतनी क्यों डरती हो??? तुमने आज तक मुझे इस बारे में नहीं बताया!!"
पीछे से आरिश आते हुए कहा, "और मुझे भी नहीं बताया!!"
किर्ती ने घूरकर आरिश को देखा। उसे आरिश से नफ़रत थी। उसका बात करने का ढंग.. और लड़कियों की तरफ देखने का ढंग किर्ती को कभी पसंद नहीं आता था। वह हमउम्र के थे फिर भी आरिश को देखते ही उसे गुस्सा आता था और वह उसे हमेशा उल्टे जवाब देकर चुप कर देती थी। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ। जब आरिश ने बिना बात के उनकी बातचीत में टांग अड़ाई तो किर्ती ने कहा, "तुम्हें किसी ने इन्विटेशन दिया था हम दोनों के बीच बात करने के लिए!!"
उसका तीखा रवैया देख आरिश ने कहा, "तुम्हें क्यों जलन होती है हमें बात करते देखकर!! तुम्हें तो बात करने का भी ढंग नहीं आता!!"
"तो मत बात किया कर मुझसे!! क्योंकि तू जब सामने दिखता है ना.. तो यही सारी बातें निकलती हैं मेरे मुँह से, तेरे लिए!!"
जान्हवी: "तुम दोनों चुप हो जाओ!! मैं ठीक हूँ!! और यह ऐसी चीज है जो मैं किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहती!! तो चुप करो तुम दोनों!!"
थोड़ी देर बाद क्लास में सर आ गए और आरिश अपनी जगह पर चला गया। वह अब भी किर्ती को घूरकर देख रहा था।
शाम का वक्त हो रहा था। जीतू और उसकी पलटन चंदे की बुक हाथ में लिए, झोपड़पट्टी के हर घर पर दस्तक दे रहे थे। कोई कुछ देता तो कोई कुछ और। भगवान के उत्सव के लिए कोई ना नहीं कहता था क्योंकि गणेशोत्सव के दस दिन ही थे जब झोपड़पट्टी में त्योहार जैसा वातावरण तैयार हो जाता था। गणेश जी की मूर्ति से लेकर झोपड़पट्टी की गलियाँ साफ़ करने तक सारे काम जीतू और उसकी पलटन बड़े लगन से करती। जीतू खुद भगवान गणेश का भक्त था। वह खुद गणेश जी के लिए पंडाल बाँधने का काम करता, रंग-बिरंगे पताकाएँ लगवाता। सारे उसके ऑर्डर्स मानते, कोई डर की वजह से तो कोई उसकी मदद लेने की आस से।
जीतू जब अग्रवाल जी के घर के सामने आया, उसकी धड़कनें तेज़ थीं। उसकी वजह से फिर जान्हवी घबरा ना जाए इसलिए उसने बिहारी को आगे कर दिया। बिहारी भी उसकी तरफ देख आगे बढ़ गया। जैसे ही उसने दरवाज़ा खटखटाने के लिए हाथ ऊपर किया, पीछे से आए धीरज जी ने कहा, "यह क्या कर रहे हो तुम लोग यहाँ???"
बिहारी: "अरे चाचा.. उ का है ना.. हम गणेशोत्सव का चंदा मांगने आए थे!! आप इधर ही मिल गए हो तो बताओ.. कितने रुपये की रसीद निकालूँ???"
धीरज जी: "अच्छा..!! तो आ गया तुम लोग का गणेशोत्सव!! ठीक है!! सौ रुपये कर दो!! फिलहाल मेरे पास इतने ही हैं!!"
जीतू: "चाचा.. ये क्या बात हुई.. हम बड़ी आस से आपके पास हर साल आते हैं, कि कम से कम पूरी झोपड़पट्टी में आप तो हमें ज़्यादा चंदा दोगे!! आपने तो सौ की हरी पत्ती देकर मुड़ ही ऑफ कर दिया!!!"
धीरज जी: "बेटा.. यह जो हरी पत्ती तुमने अपने हाथ में पकड़ी है ना... यह ईमानदारी से, मेहनत से कमाई गई है!! तुम सब की तरह चोरी-चकारी कर के.. किसी को लूट कर लाई हुई नहीं है!! दिन भर मेहनत करने पर जब मुझे कुछ फ़ायदा होता है ना उसमें से दिए हैं मैंने!! अब मैं ठहरा उसूलों से चलने वाला आदमी!! तुम जैसी चोरी करने निकल पड़ूँगा इस उम्र में तो लोग मुझे पकड़कर पीटेंगे पहले.. नाम बाद में पूछेंगे!! इसलिए जो मेरे बस का है.. मैं तुम सबको दे रहा हूँ!!"
बिहारी: "इ का.. बुड्ढे ने हमारे धंधे पर फिर भाषण चालू कर दिया!! ए जीतू.. चल यार!! मैं इससे ज़्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकता!! मेरे कान से कीड़े बाहर निकल आएंगे बे!!"
जीतू: "चाचा की बात सुनकर कभी-कभी लगता है.. मैं कुछ ग़लत तो नहीं कर रहा!! हाश... मैं यहाँ क्यों आता हूँ!! ऐसा लगता है.. गाँधी जी अपनी आत्मा चाचा के अंदर डाल गए!! चाचा हम चलते हैं!! यह सौ रुपये में गणेश जी को चढ़ाऊँगा आपके नाम पर!!"
धीरज जी की तरफ देख सब ऐसे भागे जैसे गधे के सिर से सींग। धीरज जी मुस्कुराकर अंदर आ गए। अंदर आकर उन्होंने देखा, जान्हवी एक कोने में खड़ी कांप रही थी। धीरज जी दौड़कर उसके पास पहुँचे। इस वक्त घर पर जान्हवी के अलावा और कोई नहीं था।
धीरज जी: "क्या हुआ बेटा??? इतना डर क्यों गईं???"
जान्हवी: "चाचा वो बाहर जीतू....???"
धीरज जी: "वो चला गया है, तुम डरो मत!! और तुम अकेली क्यों हो घर पर??? दीया कहाँ हैं??? और पुनम जी..???"
जान्हवी अभी भी बात नहीं कर पा रही थी तो धीरज जी पानी का ग्लास ले आए। उसे थोड़ा पानी पिलाकर उन्होंने उसके पीठ पर वात्सल्य से हाथ फिराया। उनका प्रेम भरा स्पर्श पाकर जान्हवी धीरे-धीरे शांत हो गई।
"चाचा.. चाची दीया को लेकर बाज़ार गई है!! मुझे खाना बनाने को बोलकर!! तभी इन सबकी आवाज़ सुनकर मैं डर गई!! मुझे लगा वह लोग घर के अंदर आ रहे हैं!! मुझे लेकर जाने के लिए!!"
"सब ठीक है बेटा!! और देखो.. तुम्हें जीतू से डरने की ज़रूरत नहीं है!! मैंने कितनी बार समझाया है!! मेरे रहते वह तुम्हें छू भी नहीं सकता!! वह वैसे बुरा लड़का नहीं है!! बस इस माहौल ने उसे ऐसा बना दिया है!! अब तुम बैठो आराम से!! खाना मैं बना देता हूँ!!"
धीरज जी हाथ-मुँह धोकर शुरू हो गए। इस जन्म में अगर उसे अपनी ज़िन्दगी से भी कोई प्यारा था तो वह थे धीरज जी जिनकी ममता और प्यार के सामने सारे जहाँ की खुशी कुछ नहीं थी।
जारी!!!
जान्हवी का यह डर उसे बड़े होने पर भी जीने नहीं दे रहा था। फिर भी वह जीने के लिए लड़ रही थी। डर-डरकर ही सही, उसे जीना था। सबको यह दिखाना था कि वह कमजोर नहीं है। जान्हवी स्कूल से घर आकर दिनभर पढ़ाई करती थी। बाहर घूमना, सहेलियों के साथ मस्ती करना उसे नहीं आता था। वह धीरज जी को दिखाना चाहती थी जो विश्वास उन्होंने उस पर दिखाया था। वह सही थे। पर अब स्कूल में भी गणेशोत्सव की वजह से दो दिन की छुट्टी थी। सब गणेशोत्सव को लेकर बहुत खुश थे। हर कोई अपना योगदान गणेशोत्सव के कामों में दे रहा था। तो जान्हवी को भी लगा कि उसे कुछ करना चाहिए। तो वह किर्ती के साथ बाजार जाकर रंग-बिरंगी रंगोली ले आई। वह रंगोली बनाने में अच्छी थी। तरह-तरह के रंगोली डिज़ाइन बना सकती थी वह। किर्ती ने उसकी मदद की, रंग पसंद करने में। फिर दोनों घर चली आईं।
दूसरे दिन मूर्ति की स्थापना थी। इसलिए जीतू और उसकी गैंग बैंड-बाजा लेकर आए थे। पंडाल सज चुका था। जीतू ने सबसे मदद लेकर पंडाल को सजा दिया था। मूर्ति का स्टेज भी सज चुका था। सब लोग खुश थे, बप्पा का स्वागत करने के लिए। जो उन्होंने मेहनत की थी, वह इस सजे हुए पंडाल से बिल्कुल नज़र आ रही थी। जब जीतू बप्पा को गाड़ी में लेकर आया, आगे बैंड-बाजे के साथ सब नाच रहे थे। जीतू को भी उन्होंने नाचने के लिए खींच लिया था।
सुबह-सुबह जल्दी उठकर तैयार होकर जान्हवी ने सबके लिए नाश्ता बनाया। फिर किर्ती को बुलाने चली गई। किर्ती ने उसे देखा तो बस देखती रह गई। जान्हवी ने सफ़ेद कलर का कुर्ता और चूड़ीदार पहना था। बाल गीले होने की वजह से खुले छोड़ रखे थे।
"आय हाय! क्या लग रही है मेरी दोस्त! इस तरह सजने का क्या कारण है जान्हवी जी?" किर्ती ने उसे छेड़ते हुए कहा।
जान्हवी ने सीधे जवाब दिया, "आज बप्पा आ रहे हैं घर। उनके लिए ही तो है सब! उनका स्वागत अच्छे से होना चाहिए न... एक साल बाद पधार रहे हैं वे हमारे घर!"
उसका जवाब सुनकर किर्ती खुश हो गई।
"आज तू बस बता मुझे क्या करना है? मैं तुझसे भी बड़ी भक्त बनकर दिखाऊंगी बप्पा की!"
जान्हवी उसकी बात पर मुस्कुरा दी। जान्हवी और किर्ती स्टेज के आगे बैठकर बड़ी वाली रंगोली बना रही थीं। बहुत सुंदर रंग भरे थे जान्हवी ने। एक आँख से दिखाई न देने पर भी वह रंगों का इस्तेमाल करना जानती थी। किर्ती की मदद से बहुत से रंगों का मिश्रण कर उसने वह जगह सजा दी। तभी बैंड-बाजे की आवाज़ से उनका ध्यान गणेश जी की मूर्ति लेकर आ रहे और नाच रही जीतू की गैंग पर पड़ा। जान्हवी घबराहट सी महसूस करने लगी। पर चाचा ने कल उसे समझाया था कि उसे डरना नहीं है। इसलिए वह जीतू नाच रहा था, उस तरफ पीठ करके बैठ गई। अब बस रंगोली को बोल्ड करना रह गया था। जीतू ने पीठ की हुई जान्हवी को देखा। वह उसका चेहरा नहीं देख पाया था। इसलिए उसे पता नहीं था रंगोली बना रही लड़की कौन है। वह बिहारी के साथ बैंड पर नाच रहा था। हाँ, यह बताना मुश्किल था, नाच रहा था या किसी को मार रहा था। जब गणेश जी की मूर्ति के साथ सब नाचते हुए पंडाल में पहुँचे, जान्हवी उन्हें पास आता देखकर उठकर खड़ी हो गई। अपने लंबे बाल, जो गले के पास आए थे, उसने पीछे कर दिए और रंगोली के डिब्बे समेटने लगी। अचानक ही जीतू की नज़र उस पर पड़ी और वह हाथ हवा में उठाए उसे देखने लगा। पैर रुक गए थे और रुक गया था वक़्त भी! पहली बार उसने जान्हवी को इस तरह खूबसूरती के साथ सजते देखा था। वरना वह तो हमेशा दो चोटियाँ डालकर छोटी बच्ची की तरह ही स्कूल जाती और दिनभर घर में कैद हो जाती। जान्हवी का तो इस तरफ़ ध्यान भी नहीं था कि जीतू उसे देख रहा है। वह अपने काम में ही बिजी थी। जैसे ही किर्ती के साथ डिब्बे उठाकर जाने के लिए मुड़ी, अपने सामने हाथ हवा में खड़े किए और एकटक उसे देख रहे जीतू पर उसकी नज़र पड़ी। उसके क़दम वहीं रुक गए और सीने में बोझ सा महसूस होने लगा। उसे अब डर लगने लगा। वह किर्ती के पीछे छुप गई।
उसे देखने के लिए जीतू गर्दन यहाँ से वहाँ घुमाने लगा। लेकिन जान्हवी ने किर्ती के पीछे छुपते हुए कहा, "किर्ती जल्दी चलो यहाँ से, मुझे डर लग रहा है!"
"पर अभी तो स्थापना बाकी है! हमें गणेश जी की मूर्ति के आगे भी तो रंगोली बनानी है!"
"तू आ रही है या मैं जाऊँ? मुझे अच्छा नहीं लग रहा! हम बाद में आ जाएँगे!"
किर्ती ने जीतू को जब उसकी तरफ़ घूरते देखा तो वह समझ गई जान्हवी जीतू से ही डर रही है। इसलिए बिना बात का बतंगड़ बनाए किर्ती उसके साथ चल दी और उसी आड़ लेकर जान्हवी डिब्बों के साथ आगे बढ़ गई। जीतू को बस अब उसकी पीठ नज़र आ रही थी। उसे दूसरी तरफ़ देखते देख बिहारी उसके पास आकर खड़ा हो गया।
"ओ महाराज! यह आसमान पकड़ने की कोशिश काहे कर रहे हैं आप?" बिहारी ने उसके हवा में हाथ देखकर आखिर कह ही दिया।
जीतू ने हाथ नीचे करते हुए कहा, "कुछ नहीं! बस कुछ याद आ गया था! इसलिए भूल गया! तुझे कोई और काम नहीं है क्या? मेरे पीछे पड़ा रहता है!"
"लो भाई! यह तो वही बात हो गई... 'जिसका करो भला वो बोलें मेरा ही काँटा खरा!' जाओ, हमको तुमसे बात नहीं करनी है! हमें गणेश जी की स्थापना भी करनी है!"
कहकर बिहारी पंडाल के अंदर दूसरे लड़कों की मदद करने चला गया। जीतू अब भी वहीं खड़ा था जहाँ से जान्हवी अभी-अभी गुज़री थी। उसे इस तरह कभी नहीं देखा था तो वह उसका यह रूप भूल नहीं पा रहा था। "वह मुझे देखकर भाग गई! फिर डर गई! वह मुझसे डर क्यों जाती है बार-बार? क्या मैं कोई भूत दिखाई देता हूँ? किस्मत से अच्छी-खासी शक्ल दी है भगवान ने और यह है कि मुझसे ऐसे भागती है कि मैं उसे खा जाऊँगा!" जीतू बड़बड़ाते हुए अंदर चला गया।
जान्हवी ने घर आकर चैन की साँस ली। उसे लगा आज उसे जीतू से कोई नहीं बचा पाएगा। इसलिए वह किर्ती को रास्ते में छोड़कर घर की तरफ़ भाग गई थी। किर्ती जब घर पहुँची तब जान्हवी पानी पी रही थी। किर्ती ने उसके पास जाकर उसका सिर सहलाया, फिर पीठ थपथपाई।
"अच्छा लग रहा है तुम्हें अब? कितना तेज़ भागकर आई हो पता भी है? वैसे तुम्हारी चाची नहीं दिख रही?"
"चाचा के साथ मंदिर गई हैं! थोड़ी देर में आ जाएँगी! मुझे भी चलने के लिए बोला था, पर यह रंगोली बनानी थी और वो सब एक परिवार है! कितना भी मान लूँ, कुछ भी कर लूँ यह सच तो नहीं बदलेगा न कि मैं उनके परिवार का हिस्सा नहीं हूँ! इसलिए मैंने उनके साथ जाने से मना कर दिया।"
"सच-सच बता, चाची ने फिर तुझे कुछ बोल दिया न? अनाथ हो, मनहूस हो, हमारे टुकड़ों पर पलती हो और वह सब सुनकर तूने जाने से मना कर दिया?"
"तो और क्या करती मैं? दीया और चाचा जी जैसा स्नेह चाची नहीं कर पाती मुझसे! उन्हें लगता है मैंने उनकी ज़िंदगी में आकर उनसे उनकी खुशियाँ छीन ली और सही भी तो है, कोई भी होता तो ऐसे ही रिएक्ट करता!"
"नहीं करता! तुम्हारी चाची की तरह नहीं करता! अगर हम घर पर आवारा कुत्ता भी लेकर आते हैं न, तो उससे भी हमें कुछ ही दिनों में लगाव हो जाता है! तुम तो जीती-जागती इंसान हो! तुमसे इस तरह का बर्ताव कैसे कर सकती हैं वह!"
"जहाँ अपने ही नहीं रहे, वहाँ गैरों से किस बात की शिकायत करूँ मैं! इसलिए तुम भी इस बात पर ध्यान मत दो! तुम सबने यह नए रिश्ते बनाकर मुझे इतना प्यार दिया है, यही मेरे लिए काफ़ी है!"
"तुम ऐसी क्यों हो जान्हवी! तुम ऐसे ही मुझे हर बार चुप करवा देती हो! तुम्हारी वजह से मैं तुम्हारी चाची को कुछ नहीं कह पाती?"
"और बोलना भी मत! अब मैं अच्छा महसूस कर रही हूँ! चलें, रंगोली निकालनी है न बप्पा के पास!"
"पक्का तुझे अब डर नहीं लगेगा? मुझे लगता है तू बार-बार डर जाएगी!"
"नहीं बाबा! चल, अब नहीं डरूँगी! मैं देखूंगी ही नहीं किसी की तरफ़!"
जान्हवी की बात सुनकर किर्ती फिर उसके साथ चल दी। अब वह दोनों अंदर जहाँ मूर्ति की स्थापना हुई थी वहाँ चले आए। गणेश जी की तरफ़ देख जान्हवी ने हाथ जोड़कर आँखें बंद कर लीं। दूर कहीं से कोई उसकी और किर्ती की तस्वीरें खींच रहा था। दोनों इस बात से अनजान अपने वालों के लिए खुशियाँ मांग रही थीं। जान्हवी ने कहा, "बप्पा, यह जो ज़िंदगी आपने मुझे दी है, यह बहुत खूबसूरत है! अब तक जो कुछ हुआ उसे बड़ी मुश्किल से भुलाकर आगे बढ़ रही हूँ! मेरी मदद कीजिए, मेरी मदद कीजिए कि मैं इस डर का भी सामना कर सकूँ और मेरे अपनों को खुश रख सकूँ!" जान्हवी कहकर रंगोली के डिब्बे खोलने लगी। मूर्ति के पीछे झूमर लगाने की कोशिश में खड़ा जीतू छुपकर उसे देखने लगा। "ऐसा पहले कभी नहीं किया है मैंने! किसी लड़की की तरफ़ नहीं देखा! चीड़ होती थी मुझे लड़कियों की तरफ़ देखने से! क्यों यह लड़कियाँ इतना इतराती हैं? पर जब इसे देखा था पहली बार तब भी अटक सी गई थी यह मन में! समझ नहीं आ रहा था क्यों ऐसा है और आज जब इसे ऐसे देखा नज़र नहीं हट रही इसके चेहरे से! पता नहीं उसके घर तक कैसे पहुँच गया! मुझे नहीं लगा था कभी मैं इसे देखने के लिए यह सब करूँगा! आज समझ आ रहा है लड़के-लड़कियों के पीछे इतने पागल क्यों हो जाते हैं! उनका दिल भी कुछ इसी तरह महसूस करता होगा!"
जीतू छुपकर उसे देख रहा था। वह अपने बालों की लटों को अपने उल्टे हाथ से पीछे कर रही थी क्योंकि हाथों में रंगोली का रंग लगा था। वह रंगोली बनाते-बनाते किर्ती से बातें भी किए जा रही थी और हँस भी रही थी। यह पहली बार था जब जीतू ने उसे हँसते देखा था। वरना उसके सामने तो वह डर ही जाती थी या फिर रोने लग जाती थी। जीतू सिर टेढ़ा कर उसे देख रहा था और उसके मुस्कुराने पर खुद की बत्तीसी भी दिखा रहा था। अभी वह उन दोनों को नज़र नहीं आया था। तभी बिहारी जीतू के पास आकर खड़ा हो गया। उसे झूमर को हाथ में थामकर ऐसे हँसते देख बिहारी को लगा वह पागल हो गया है। वह जोर से चिल्लाया, "इ का हो गया ससूर! हमारा दोस्त अभी कुछ ही देर पहले ठीक-ठाक था! अब पागलों जैसी हरकतें करने लग गया है!" उसे चिल्लाते देख जीतू ने झूमर छोड़कर उसका मुँह दबाया। "साले मरवाएगा! कौन पागल? तेरा बाप पागल, तेरा पूरा खानदान पागल! तूने मुझे पागल बोला?"
बिहारी ने मुँह पर से हाथ हटाने के लिए इशारा किया। पर जीतू ने कहा, "चुप रह थोड़ी देर! लड़कियों को पता चला तो यहाँ आकर बवाल करेंगी!" बिहारी की आवाज़ उन्हें आई ज़रूर थी पर किसी को कुछ काम बता रहा हो सोचकर दोनों फिर काम में लग गईं। जीतू बिहारी के मुँह पर हाथ रख फिर जान्हवी को देखने लगा। बिहारी ने ऊँ-ऊँ कर के हाथ हटाने के लिए जीतू को मनाया। "तुम चिल्लाओगे नहीं, ठीक है! तभी हाथ हटाऊँगा!" बिहारी ने हाँ में सिर हिलाया तब जाकर जीतू ने उसके मुँह पर से हाथ हटाया।
"हम भी तो देखें कि किसे देखकर आँखें बाहर आने को बेताब थीं तुम्हारी!" कहकर बिहारी ने जैसे ही गर्दन घुमाई जान्हवी और किर्ती को देख उसे सारा मामला समझ आ गया।
"यार, तुम्हें एक आँख वाली भौजी पसंद आई? वैसे उनके साथ खड़ी उनकी दोस्त भी बुरी नहीं हैं! सोच लो एक बार!"
जीतू: तू अपना मुँह बंद रखेगा?
बिहारी: ठीक है! वैसे एक बात पूछूँ, कब से शुरू हुआ भौजी को देखना? का है कि तुम आज ही हमें ऐसे खोए-खोए लगे?
जीतू: मुझे भी आज ही पता चला बिहारी, वो इतनी खूबसूरत है! और अभी मैं नहीं जानता वह मुझसे डरती क्यों है? इसलिए छुपकर देखने से ही काम चला रहा हूँ!
जारी!!!
जीतू को इस तरह बात करते देख बिहारी को बहुत खुशी हुई। यह पहली बार था जब जीतू ने किसी लड़की के लिए ये शब्द बोले थे, और उसके चेहरे की रौनक यह बता रही थी कि वह उसे पसंद करता है। जब जीतू ने कहा कि जान्हवी उससे डर जाती है, तो बिहारी को कुछ सुझा। उसने तय किया कि वह कीर्ति से बात करेगा और जान्हवी के डरने का कारण पूछेगा। पर यह आसान नहीं था। कीर्ति, जीतू और उसके दोस्तों से दूर ही रहती थी। एक ही मोहल्ले में रहने के बावजूद उन्होंने एक-दूसरे से ना जाने कब से बात नहीं की थी। लेकिन अपने दोस्त के लिए इतना तो करना बनता है, सोच बिहारी उसकी मदद करने की ठान चुका था।
"एक बात पूछूँ तुमसे जीतू? ये पहली बार है जब तुमको कोई पसंद आया है। तुम छुप के देख रहे हो, हमें अच्छा नहीं लग रहा। चलो ना, बात करते हैं उनसे!"
"बिल्कुल नहीं! तू ऐसा कुछ नहीं करेगा! वह डर जाती है मुझसे! मैं नहीं चाहता वह और कुछ बुरा सोचे मेरे बारे में, क्योंकि पहले ही सब हमें चोर समझते हैं!"
"हम चोर हैं, पर अच्छे वाले! हम सिर्फ उन लोगों को लूटते हैं जो बुरे हैं!"
"हम्मम्, तू पागल हो गया है! अच्छा-बुरा कुछ नहीं होता! चोर सिर्फ चोर होता है, और वह कभी अच्छा नहीं बन सकता! इसलिए मेरे लिए इतनी मेहनत मत कर, कुछ नहीं मिलने वाला! वैसे भी मैं उसे कभी नहीं बताऊँगा मैं उसके लिए क्या महसूस करता हूँ, तो तुझे इन सब में पड़ने की जरूरत नहीं है!"
"लेकिन अगर तुम बताओगे नहीं, तो बात आगे कैसे बढ़ेगी? भौजी को पता कैसे चलेगा तुम उन्हें पसंद करते हो?"
"हो गई तेरी बकवास! अब मुँह बंद कर! वो दोनों सुन लेंगी!"
कहकर जीतू फिर उन दोनों की तरफ देखने लगा, पर उसका सारा ध्यान जान्हवी की तरफ था जो डिब्बे इकट्ठे कर बैग में रख रही थी। जीतू भले ही चोर था, पर जानता था कि वह बुरे काम करता है और बुरे कामों का नतीजा हमेशा बुरा ही होता है। इसलिए उसने खुद को पहले ही समझा दिया कि वह आगे नहीं बढ़ेगा। जान्हवी का डर देखा था उसने; वह उसे पसंद नहीं करती, यह बात उसके दिल में घर कर गई थी। जिस तरह उसका कोई कसूर नहीं था ऐसा बनने में, वैसे ही जान्हवी का भी कोई कसूर नहीं था उसे पसंद ना करने में। इस बात को समझकर बस उसे दूर से देखता रहा और सीने के अंदर मचल रहे दिल को उसने समझा लिया कि इस पसंद की कोई मंजिल नहीं है।
जान्हवी कीर्ति के साथ आगे बढ़ गई। बाहर आते ही उसके चेहरे पर फ्लैश लाइट चमकी जिसकी वजह से उसने आँखें बंद कर लीं। जीतू उसके पीछे बाहर आ रहा था, पर उसे दिखाई नहीं पड़ना है, इसकी खबरदारी भी ले रहा था। जैसे ही वह बाहर आया, तेज रोशनी की वजह से उसने भी आँखें बंद कर लीं। जान्हवी और कीर्ति के सामने आई एक वैन ने वहाँ ब्रेक लगाए। दरवाजा खोल, अंदर से आते दोनों हाथों ने जान्हवी और कीर्ति दोनों को अंदर खींच लिया। जान्हवी चिल्ला भी नहीं पाई। "नहीं... नहीं...! कौन हो तुम लोग?" कहती रही। जीतू जो अभी आँखें बंद किए खड़ा था, वह उस वैन के अंदर देखने की कोशिश करने लगा और आगे बढ़ गया ताकि उस वैन को रोक सके। बिहारी भी उसके पीछे ही था। देखते-देखते ही वैन स्टार्ट होकर आगे निकल गई और जीतू वैन के पीछे बेतहाशा दौड़ने लगा। दौड़ते-दौड़ते वह एक बार गिर भी पड़ा था, लेकिन फिर से उठकर उसने भागना शुरू किया। उसके घुटने छिल गए थे जहाँ से खून आ रहा था और उसकी पैंट पर उसके धब्बे साफ़ नज़र आ रहे थे। बिहारी अभी भी वैन के पीछे दौड़ रहा था। उसने वह नंबर याद करने की कोशिश की। बिहारी ने दौड़ते-दौड़ते अपने फ़ोन से किसी को फ़ोन लगाया। "सर, एक गाड़ी का नंबर नोट कीजिए! अभी झोपड़पट्टी से निकली है!" उसके नंबर बताने पर सामने से फ़ोन कट गया। वैन तेज़ी से आगे निकल गई।
जान्हवी ने देखा अंदर चार आदमी बैठे थे। वह चिल्लाने लगी, "बचाओ... बचाओ... जाने दो!" तो उसकी बगल में बैठे एक आदमी ने अपनी रिवॉल्वर निकाल कर उसके सिर पर लगा दी। "मुँह से एक शब्द भी बाहर निकाला, तो इसकी सारी गोलियाँ तुम्हारे सिर के अंदर डाल दूँगा! फिर तुम कोई आवाज़ नहीं कर पाओगी!" कीर्ति इतनी डरी हुई थी कि उसने अपनी बगल में बैठे आदमी पर उल्टी कर दी, उस इंसान की भयानक बातें सुनकर। सिर पर रिवॉल्वर लगी देख जान्हवी चुप बैठ गई। दोनों को समझने में देर नहीं लगी कि उन्हें किडनैप किया जा रहा था। जो इंसान उन्हें किडनैप करके ले जा रहे थे, अक्सर उनके पास छुरी होती थी, जितना कि वह दोनों आज तक जान पाई थीं या कहीं पढ़ा था। पर सीधे रिवॉल्वर देख जान्हवी और कीर्ति डर से कांप रही थीं। उन लोगों का सामना भी नहीं किया जा सकता था क्योंकि चारों हालत और बॉडी से ताकतवर थे। अब सिर्फ एक रास्ता बचा था: जिस रास्ते से वह उन्हें लेकर जा रहे थे, उसे याद करना। जान्हवी को बचपन से दुकानों पर लिखे नाम पढ़ने का शौक था, तो वह अपने मन के अंदर सब पढ़कर याद करने की कोशिश कर रही थी। उसके बगल में बैठे आदमी की नज़र जान्हवी पर पड़ी। उसके सिर से लगी रिवॉल्वर वह ऊपर से नीचे सरकाते हुए लेकर आ रहा था। जान्हवी उससे दूर बैठने की कोशिश कर रही थी। उसके सफ़ेद दुपट्टे पर रंगोली के रंग लग गए थे जब उसने रंगोली के डिब्बों को छोड़ दिया था और छीना-झपटी में सारा रंग उसके हाथों पर लग गया था। दुपट्टा उड़कर खिड़की से बाहर चला गया था और इस वक़्त दुपट्टे के बगैर बैठी वह सकुचा रही थी। उस आदमी ने उसकी तरफ देख, रिवॉल्वर हाथ से नीचे लाकर उसके पेट पर लगा दी और अपने आदमी से कहा, "इंजेक्शन निकालो!"
सामने बैठे आदमी ने अपनी जेब से एक सिरिंज निकाल कर उसमें एक बोतल से दवा भरी और पहले कीर्ति को, जो उसके पास बैठी थी, उसे इन्जेक्ट किया। कीर्ति अगले ही पल सिर साइड में कर बेहोश हो गई। कीर्ति के बेहोश होते ही उस आदमी ने जान्हवी की तरफ अजीब नज़रों से देखा। बेचारी इंजेक्शन के डर से सहमी हुई थी और पास बैठे आदमी की गंदी नज़र जो उसके चेस्ट पर थी, उसे आँखें बंद कर सहने की कोशिश करने लगी। उस आदमी ने उसके पास सटकर बैठने की कोशिश की और फिर उसके मुँह पर अपना रुमाल बाँध दिया ताकि वह चिल्ला ना सके। जान्हवी की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे। बचपन में घटी सारी घटनाएँ उसकी आँखों के सामने आ गईं। उसने अपने आस-पास देखा कि शायद किसी से मदद माँगी जा सके, लेकिन भूखे भेड़िये उसे नोचने के लिए घात लगाए बैठे थे। कोई उसकी सुनता भी तो हँस पड़ता! उनकी आँखों में वहशियत नज़र आ रही थी। जान्हवी के पास खुद को बचाने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था क्योंकि दो आदमियों ने उसे पकड़ रखा था; वह हिल भी नहीं पा रही थी। लेकिन उसने हार नहीं मानी। आखिर तक उसे कोशिश करनी चाहिए, यह सोचकर उसने वैन का दरवाज़ा खोल दिया। अपने हाथ से तो उसके पास बैठा आदमी वैन के नीचे गिर गया। वह खुद भी वैन से छलांग लगाने वाली थी, पर साथ में बैठा आदमी अलर्ट था। उसने जान्हवी का हाथ कसकर पकड़ रखा था। जान्हवी ने छूटने की बहुत कोशिश की, बहुत चिल्लाई, पर उस आदमी ने गिरे हुए आदमी की परवाह ना करते हुए जान्हवी को अपने तेज नाखून वाले हाथ से अंदर खींच लिया और दरवाज़ा बंद कर दिया। जान्हवी के बाहों पर उस आदमी के नाखूनों से निशान बन गए थे और खरोंचे दिखने लगी थीं। जान्हवी के नाजुक हाथों में दर्द हो रहा था; वह दर्द से तड़प उठी।
दरवाज़ा बंद कर उसने जान्हवी को नीचे गिरा दिया और बेचारी, बस सोलह साल की उम्र में उन दरिंदों का शिकार हो गई। कीर्ति का भी यही हाल था। वह तो बेहोश थी, फिर भी उन दरिंदों को उन पर दया नहीं आई। जान्हवी को भी इंजेक्ट कर बेहोश कर दिया गया। अभी थोड़ी देर पहले दोनों गणेश जी के सामने रंगोली बना रही थीं; आज सज-धज कर पूजा करने जाने वाली थीं; गणेश जी के आगमन की, भक्ति की ज्योत मन में जगाए, पवित्र वातावरण का अनुभव कर रही थीं, और कुछ ही देर में उन दोनों ने अपना कौमार्य खो दिया था। नाजुक सी कलियाँ जो अब तक खिली भी नहीं थीं, उनके साथ इतना बुरा सलूक करके, वह चारों आदमी अंदर बैठे मज़ाक-मस्ती कर रहे थे। लड़कियों की बुरी हालत थी और वह दोनों अंदर एक कोने में पड़ी थीं। इस वक़्त उनके साथ क्या घट चुका था और क्या घटने वाला था, इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था उन्हें।
इधर जीतू भागते हुए थक गया और एक पेड़ का सहारा लेकर लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगा। उसकी साँसें चढ़ी हुई थीं। वहीं बिहारी उसके पास चलते-चलते लौट कर आया जो आगे निकल गया था। उसने जीतू के पास आकर फिर फ़ोन पर किसी से संपर्क किया। सामने वाले आदमी ने कहा, "(या नंबरची गाडी आत्ताच टोल नाक्या वरुन पास झाली आहे!! मुंबई च्या बाहेर!!)"
"इस नंबर की गाड़ी अभी टोल से गुज़री है जो मुंबई के बाहर है!"
बिहारी ने जीतू की तरफ देखा। उसकी आँखों में खून उतर आया था। उसने बिहारी की कॉलर पकड़ते हुए कहा, "हमारे मोहल्ले से हमारी लड़की को उठाकर ले जाने की हिम्मत किसने की? मुझे सब जानकारी चाहिए बिहारी! उन्होंने मेरी जान्हवी को उठाकर ले जाने की कोशिश की है! मैं उन सबको जलाकर राख कर दूँगा!"
"जीतू, मेरी बात सुन! पहले शांत हो जाओ! वह लोग जान्हवी और कीर्ति दोनों को मुंबई से बाहर लेकर गए हैं! मैं इससे आगे पता नहीं कर सकता! मेरे आदमी मुंबई में हैं, मुंबई से बाहर नहीं! और तू पहले अपनी चोट देख, खून आ रहा है यार! पहले पट्टी करवा लें! हम ढूँढेंगे उन्हें, मैं वादा करता हूँ, लेकिन पहले इसे दवा लगा लें!"
"बिहारी, तू समझ नहीं रहा! वह लोग क्या कर सकते हैं उन दोनों के साथ! पहले ही बहुत दर्द झेला है यार उसने! उसे ही क्यों? क्यों...? क्यों...? क्यों???? उसके साथ इतना बुरा...? क्यों???? बहुत मासूम है वह! कैसी हालातों से उठाकर लेकर आए थे चाचा उसे! क्यों...? पूरी दुनिया में बस वही क्यों?"
जीतू कहते हुए पास वाली पक्की दीवार पर अपने हाथों की मुट्ठियाँ बरसाने लगा। उसकी मुट्ठी बंधे हाथों से खून बहने लगा, पर जीतू इस वक़्त होश में नहीं था। बिहारी उसे रोकने की जी-तोड कोशिश कर रहा था, लेकिन वह पागल सा हो गया था। वह सह नहीं पा रहा था अभी जो उसके आँखों के सामने थी। अभी जिसके लिए उसके मन में मासूम अरमान जागे थे, अभी-अभी जो उसे देखकर खुश हो रहा था, वह जान्हवी, पलक झपकते ही उसकी नज़रों से दूर हो गई थी और उसके साथ क्या हो सकता था, यह जीतू सोच भी नहीं पा रहा था। वह उससे दो साल बड़ा था और दुनियादारी की बेहतर समझ रखता था, इसलिए सब सोचकर उसे पता चल चुका था कि जान्हवी इस वक़्त किस मुसीबत में थी।
"जीतू... देख... मेरी तरफ देख! तू मुझ पर भरोसा करता है ना? मैं अभी जाकर सब पता करता हूँ। तू अपने आपको दोष मत दे। देख, मैं उन दोनों को ढूँढकर निकालूँगा। सिर्फ़ तू अपने आपको संभाल! ऐसा कुछ मत कर यार! देख, तुझे कितनी लगी है!!"
"बिहारी चाचा घर पर नहीं हैं! वह आएंगे और जान्हवी को ढूँढेंगे! उन्हें वह नहीं मिली तो सोच उनकी क्या हालत होगी? बिहारी, तू जा! तू जानता है ना किसी को! तेरी बहुत पहचान है! जानता हूँ मैं! तू जा और उसे ढूँढकर लेकर आ! मुझे उसके पीछे ही रहना चाहिए था! मैंने क्यों उसे आगे जाने दिया? अगर मैं उसके साथ होता तो शायद उन्हें बचा लेता!"
बिहारी पछतावा कर रहे जीतू को देख, सोचने-समझने की ताकत खो बैठा था। दोनों को नहीं लगा था आज के दिन यह सब हो जाएगा और थोड़ी देर पहले खुश होने वाला उसका दोस्त इस तरह दर्द से तड़पेगा।
जारी...
बिहारी ने मुंबई में जितने भी पहचान वाले थे, उनसे बात करना शुरू किया। उसकी बड़ी-बड़ी पहचान इस समय कुछ काम नहीं आ रही थी। जीतू की तरफ देखता तो उसे ऐसे लगता जैसे अभी जीतू कुछ कर बैठेगा, और वह कोई गलत कदम ना उठाए, इसलिए जीतू के सामने ही बिहारी फ़ोन पर सबको धमका रहा था। जीतू की पूरी गैंग अब खड़ी हो गई थी, और जीतू हाथ से बह रहे खून के साथ एक पत्थर पर बैठा सब देख रहा था। जीतू को ऐसे देख उसकी गैंग के लड़के कांप रहे थे। उन्हें पता था, जीतू जब बिगड़ता है, तब किसी को नहीं छोड़ता। वह सिर्फ़ दिखने में अच्छा था; बाकी सारे गुण उसमें गुंडे वाले थे। तभी बिहारी को फ़ोन आ गया।
"तुमने जिस वैन का नंबर बताया था, वह वैन गुजरात के सूरत में स्टेशन के पास मिली है। तुम अभी यहाँ आ जाओ। शायद कुछ पता चल सकें!"
बिहारी: "जीतू, वैन का पता चल गया! तुम लोग क्यों खड़े हो? गाड़ी निकालो, चलो!"
जीतू: "बिहारी, तुम लोग आगे जाओ। मुझे कुछ काम है।"
बिहारी: "लेकिन अभी तो तुम जान्हवी के लिए इतने परेशान थे! अब कहाँ जा रहे हो? हमें पहले जान्हवी को ढूँढना चाहिए।"
जीतू: "बिहारी, मैंने कहा ना, जाओ! इन सबके साथ जाकर पता करो, वो लोग कहाँ लेकर गए हैं उसे? मैं तुम्हारे पास पहुँचता हूँ।"
बिहारी जीतू के बिगड़ने पर डर गया। लड़के गाड़ी लेकर आए थे। बिहारी उसमें लड़कों के साथ बैठ गया। उसने जीतू की तरफ देखा जो अपनी शर्ट निकालकर काँधे पर रख, दोनों छीले हुए पैरों से आगे चलने की कोशिश कर रहा था। लड़कों ने जीतू को कभी ऐसा नहीं देखा था। जीतू एक जिंदादिल इंसान था। भले ही बुरे काम करता हो, लेकिन वह ज़िन्दगी को भरपूर जीता था। अपने आस-पास के लोगों को खुश रखता था। जो भी मुसीबत में हो, चाहे उनके लिए फिर मारपीट ही क्यों ना करनी पड़े, करता था, और उनके चेहरे पर खुशी देख खुश होता था। ऐसे लड़के का इस तरह बिहेव करना उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था। जीतू को ऐसे देख बिहारी के सीने पर साँप लौट रहे थे। उसे लग रहा था अभी के अभी जान्हवी को लाकर उसके सामने खड़ा करें। पर किस्मत बहुत कुत्ती चीज़ होती है; कब कहाँ किसे राजा से रंक बना दें, यह कह नहीं सकते। इसलिए अपनी बेचारगी पर बिहारी को बहुत गुस्सा आ रहा था।
जीतू ने अपने आपको संभाला और वह धीरज जी के घर के आगे आकर खड़ा हो गया। अब तक वह लोग लौटे नहीं थे। आज तक जान्हवी को अपनी बेटी बनाकर रखने वाले धीरज जी यह बात सुनकर क्या महसूस करेंगे, जीतू यह सोचकर भी घबरा रहा था। उसके हाथ ठंडे पड़ चुके थे।
थोड़ी देर बाद जब धीरज जी लौटे अपनी झोपड़ी के सामने, जीतू को खून से भरे हाथ और सनी हुई पैंट के साथ अजीबोगरीब हालत में देख उनके सीने में अनजाने डर ने जगह ले ली। पुनम जी और दिया आँखें फाड़कर जीतू की ओर देख रही थीं। जीतू शून्य में ताकता हुआ कुछ सोच रहा था। धीरज जी ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर कहा,
"जीतू...? जीतू... यहाँ क्या कर रहे हो?"
जीतू ने उठते हुए कहा,
"आप आ गए? आपका ही इंतज़ार कर रहा था! चाचा, वो जान्हवी...?"
धीरज जी ने दरवाजे की तरफ देखा और बंद दरवाज़ा देख उन्होंने कहा,
"अरे हाँ, जान्हवी कहाँ है? रही थी, कीर्ति के घर जाएगी! मैं उधर देख आता हूँ!"
"वहाँ नहीं है जान्हवी चाचा!! वह आपको वहाँ नहीं मिलेगी!!"
पुनम जी ने चिल्लाते हुए कहा,
"पगला गए हो क्या जीतू?? काहे नहीं मिलेगी जान्हवी उधर??"
"सुबह जब वह यहाँ गणेश जी के सामने रंगोली बना रही थी, मैं उसके पीछे ही खड़ा था! लेकिन तब...?"
धीरज जी ने गुस्से से जीतू की कॉलर पकड़ ली।
"क्या हुआ मेरी बेटी को?? तुमने उसके साथ कुछ किया है ना? इसलिए वह यहाँ दिखाई नहीं दे रही! सच-सच बताओ, क्या किया तुमने उसके साथ?"
तभी आस-पास से रहीम चाचा और कीर्ति की माँ भागते हुए आईं। कीर्ति की माँ रो-रो कर सब बताने लगी।
"धीरज जी, कीर्ति और जान्हवी को कुछ लोग उठाकर ले गए हैं! एक गाड़ी आई थी सुबह, पंडाल से निकलते ही दोनों को गाड़ी में डालकर ले गईं! मैं पुलिस में रिपोर्ट लिखाने के लिए आपका इंतज़ार कर रही थी! इन दोनों ने, जीतू ने और बिहारी ने उस गाड़ी का पीछा किया था, लेकिन गाड़ी के आगे कैसे निकलते, दोनों को चोट लग गई है जीतू को!"
धीरज जी ने सुनते ही अपने हाथों में थामी थैली को छोड़ दिया। हाथ ढीले पड़ गए थे उनके।
"ऐसा नहीं हो सकता...? मेरी बच्ची को कोई उठाकर कैसे ले जा सकता है? कितनी छोटी है वह? अभी दसवीं की परीक्षा देनी है उसे! उसने मुझसे वादा किया था वह बड़ी इंसान बनकर दिखाएगी! यह नहीं हो सकता! वह ऐसे अपना वादा नहीं तोड़ सकती! कभी किसी का बुरा नहीं चाहा उसने! कीर्ति के अलावा कोई दूसरी दोस्त भी नहीं है उसकी! जिस हाल में रखा, जो खाने को दिया, बेचारी चुपचाप खा लेती थी! कभी कुछ ज़्यादा नहीं माँगा उसने! बहुत मुश्किल से संभल पाई थी वह, अपने गुज़रे कल को भूल पाई थी! यह सब...? ऐसा कैसे हो गया?"
धीरज जी नीचे बैठकर रोने लगे। रहीम चाचा ने आगे बढ़ते हुए कहा,
"ऐसे हार मानने से काम नहीं चलेगा धीरज बेटे! जाओ, जाकर पुलिस में कंप्लेंट लिखाकर आओ! अब पुलिस ही उसे ढूँढ सकती है! जाओ, कीर्ति की माँ भी परेशान हैं!"
जीतू ने आगे बढ़ते हुए कहा,
"उसे कुछ नहीं होगा चाचा! मैं उसे वापस लेकर आऊँगा, चाहे वह दुनिया के किसी भी कोने में क्यों ना हो! वह इस तरह आपसे दूर नहीं हो सकती! मैं जान्हवी और कीर्ति दोनों को ढूँढकर निकालूँगा!"
जीतू कहकर आगे बढ़ गया। उससे चला भी नहीं जा रहा था। धीरज जी उसे लँगड़ाते हुए देखते रहे। जीतू ने एक टैक्सी रोकी और उसमें बैठकर निकल गया। पुनम जी ने कहा,
"हाय, आज ही के दिन के लिए उसे अकेला छोड़ा, और आज ही के दिन वह गायब हो गई! किसी को भी आराम से जीने नहीं देगी यह लड़की! अगर अपने आपको कायदे में रखती तो आज ऐसे कोई उठाकर ना ले जाता उसको! हमारी बेटी को तो कोई नहीं ले गया उठाकर! इसलिए लड़कियों को कायदे में रखना चाहिए!"
धीरज जी ने गुस्से से पुनम जी की तरफ देखा तो वह चुप हो गईं। धीरज जी कीर्ति की माँ के साथ पुलिस स्टेशन के लिए निकल गए।
जारी!!!
पुलिस स्टेशन में जब धीरज जी कविता जी के साथ अंदर जाने लगे, तो बाहर खड़े हवालदार ने उन्हें टोक दिया। "कहाँ...??? कहाँ घुसे जा रहे हो अंदर!! क्या काम है???"
धीरज जी ने हाथ जोड़ लिए। "साहब, हम कंप्लेंट लिखवाने आए हैं!! बड़े साहब के पास जाने दीजिए ना??? उनसे बात करनी है!!"
हवालदार ने कविता जी की तरफ देखा। कविता जी हवालदार की गंदी नज़र से बचने के लिए धीरज जी के आड़ में छिप गईं। हवालदार ने मुँह में भरा पान अंदर चबाते हुए कहा, "क्या हुआ??? बीवी के साथ झगड़ा हो गया क्या??? अरे तुम लोग भी अजीब हो.. एक ही छत के नीचे रहकर अपनी बीवियों से दिन-रात लड़ते रहते हो!! हमें देखो.. ना जाने कितने ही दिन बीवी बच्चों का थोड़ा भी देखना नसीब नहीं होता हमें!!"
"नहीं साहब.. मेरी बच्ची को उठाकर ले गए हैं कुछ लोग..!! इसलिए हम कंप्लेंट लिखवाने आए हैं!! मेरी बेटी के साथ इनकी बेटी भी गणेश जी के पास रंगोली बनाने गई थी!!"
"अच्छा, तो ये तुम्हारी बीवी नहीं है!! साहब को आने में अभी वक्त है.. तब तक यहाँ बाहर बैठकर इंतज़ार करो!!"
धीरज जी कविता जी के साथ बाहर बेंच पर बैठ गए। कविता जी ने साड़ी का पल्लू कांधे से ओढ़कर खुद को ठंड से बचाने की कोशिश की। दोनों बड़े साहब के आने का इंतज़ार करने लगे जो राउंड पर गए थे। धीरज जी को जान्हवी की बहुत फ़िक्र हो रही थी।
"वह मासूम बच्ची कितनी डर गई होगी!! मुझे ना पाकर उसकी क्या हालत हो रही होगी!! पता नहीं वह भेड़िये उसके साथ क्या करेंगे??? मेरी फूल सी नाज़ुक बच्ची के साथ!!" धीरज जी मन में बड़बड़ा रहे थे। फिर उनका सब्र जवाब दे गया। उन्होंने उठकर सीधा अंदर की ओर दौड़ लगाई। साहब अंदर ही बैठे थे, चाय का लुत्फ़ उठा रहे थे। धीरज जी ने उनके आगे हाथ जोड़ते हुए कहा, "साहब, कृपया करके मेरी बेटी को ढूँढ़ दीजिए!! वह लोग उसे उठाकर ले गए हैं!! मेरी बेटी गणेश जी के पास रंगोली बना रही थी!! उसकी दोस्त और वह दोनों को ही उठाकर ले गए हैं!!"
पीछे से आते हवालदार ने अपने डंडे से एक वार किया धीरज जी के पीठ पर। "जब हमने रुकने को कहा था.. तो तुम अंदर दौड़ता हुआ क्यों आया बे???"
धीरज जी इसके लिए तैयार नहीं थे। उस डंडे ने पीठ पर ऐसा वार किया कि उनकी आँखों में दर्द की वजह से आँसू आ गए।
साहब: "अरे लक्ष्मण.. बेचारे की बेटी लापता है.. और तुम उसे मार रहे हो??? जाओ, मैं बात करता हूँ!! हमम्मं.. तो बताओ क्या हुआ तुम्हारी बेटी के साथ???"
धीरज जी: "कविता जी...?"
कविता जी: "साहब... गणेशोत्सव के लिए हमारी झोपड़पट्टी में गणेश जी की मूर्ति लेकर आए थे बच्चे!! स्थापना होने के बाद.. मेरी बेटी कीर्ति और इनकी बेटी जान्हवी.. पंडाल में गणेश जी के सामने रंगोली बना रही थीं!! दोनों जब रंगोली बनाकर पंडाल से बाहर आईं, तब उनके सामने एक वैन आकर रुकी!! और दोनों को जबरदस्ती अंदर डालकर वह लोग उठाकर ले गए!! हमारे बस्ती के लड़कों ने रोकने की कोशिश की.. पर वैन बहुत तेज थी!! तो वह लोग उस गाड़ी को रोक नहीं पाए!! बिहारी और जीतू को चोट भी लग गई इस हादसे में!! साहब, मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ.. पांव पड़ती हूँ!! मेरी बेटी को ढूँढ़ दीजिए साहब!! पता नहीं वह लोग कहाँ लेकर गए हैं??? दोनों स्कूल की बच्चीयाँ हैं साहब!!"
साहब: "क्या नाम बताया तुमने अभी...??? जीतू और बिहारी..??? ओह.. तो ये लोग हैं तुम्हारी बस्ती में!! इन दोनों ने तुम दोनों की बेटी को बचाने की कोशिश की!! दिलचस्प है!! देखो.. अभी 24 घंटे नहीं हुए हैं.. तुम दोनों की बेटी को लापता हुए...???"
धीरज जी: "साहब, वह दोनों लापता नहीं हुई हैं!! उन्हें उठाकर ले गए हैं!!"
साहब: "क्या तुम मुझसे ज़्यादा कायदे-कानून जानते हो??? ये हम लोग तय करेंगे.. कि क्या केस बनेगा??? जब हम कह रहे हैं कि.. 24 घंटे होने तक हम एफआईआर दर्ज नहीं कर सकते!! मतलब नहीं कर सकते!! तो तुम लोग अब घर जाओ... और बच्ची के लौटने का इंतज़ार करो!! शायद खुद ब खुद घर लौट आएँ!! फिर भी अगर ना लौटी तो कल पुलिस स्टेशन आ जाना!! और हाँ... क्या नाम था...जीतू... हाँ, उस लड़के को भी अपने साथ लेकर आना!! उसके साथ पुराना हिसाब है जो चुकाना है!!"
धीरज जी ने हाथ जोड़ लिए.. और कराहते हुए वह बाहर चले आए। "मेरी बेटी.. पता नहीं ये रात कितनी भयानक होगी उसके लिए!! हे भगवान.. तुम्हारे ही तो स्वागत की तैयारी करने गई थी दोनों!! तुम्हें उन मासूम बच्चीयों पर जरा भी दया नहीं आई!! अब मैं किसके पास जाऊँ??? कहाँ जाकर पता करूँ..???" रोते हुए धीरज जी पुलिस स्टेशन के बाहर आ गए। कविता जी की आँखें बार-बार उनके दर्द को महसूस कर भर आती थीं। ऐसा उन दोनों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा!! पर आजकल की सच्चाई यही है!! लड़कियाँ आज भी अपने शहर, मुहल्ले या घर में भी सेफ़ नहीं हैं!! उन्हें आज भी खुद को ऐसे भूखे भेड़ियों से बचाने के लिए तरह-तरह के नियम लादे जाते हैं!! शाम होते ही घर का रास्ता नापो, लड़कों के साथ बाहर मत जाओ!! उनसे ज़्यादा दोस्ती अच्छी नहीं!! कहीं घूमने अकेले मत जाओ!! छोटे कपड़े मत पहनो!! कभी-कभी लगता है इन सारे नियमों की वजह ये तो नहीं.. कि माँ-बाप चाहते हैं बेटियाँ सुरक्षित रहें!! हर बात के दो पहलू होते हैं!! फिर भी हमारे देश में सबसे ज़्यादा बलात्कार के केसेज़ होते हैं!! सोलह साल की ही नहीं.. छोटी तीन-चार साल की बच्चीयों को भी नहीं छोड़ते ये लोग!! ऐसे लोगों को जीने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए!! जो विकृत मानसिकता के साथ खुलेआम समाज में घूमते हैं!! और ऐसी लड़कियों के लिए ख़तरनाक होते हैं!! खैर...
जीतू के साथ पुलिस स्टेशन के साहब की पुरानी दुश्मनी थी। एक बार वर्मा साहब अपने पुलिस स्टेशन में बार से कुछ लड़कियों को पकड़कर ले आए थे!! और उसी दौरान जीतू को भी एक छोटी-मोटी चोरी के लिए पकड़ा गया था। जीतू ने देखा बार बालाओं को एक लाइन में बिठाकर वर्मा साहब उनमें से एक को चुनकर अंदर ले गए थे। जीतू की खोपड़ी खिसक गई। उसने अपने पास चेयर पर बैठे एक हवालदार का डंडा उठा लिया और वर्मा साहब के सिर पर जोर से वार किया। खून देखकर और वर्मा साहब का चिल्लाना देखकर बार बाला डरकर भाग गईं। हवालदार अंदर भागे.. लेकिन तब तक पुलिस स्टेशन की टूटी हुई पिछली खिड़की से जीतू भाग गया था। एक तरह तो उसने उस बार बाला को वर्मा साहब के चंगुल से बचा लिया था, पर खुद दुश्मनी मोल ले ली थी। इस हादसे के बाद.. वर्मा साहब ने उसकी अच्छे से छानबीन करवाई थी और उसे चोरी करते हुए पकड़ने के बहुत से जाल बिछाए। पर जीतू चालाक था!! वो उनके एक भी जाल में नहीं फँसा!! और वर्मा साहब हाथ मलते रह गए थे। अब ये सुनहरा मौका उनके हाथ अपने आप चलकर आया था!! जीतू को सबक सिखाने का!! वह अपनी इस चाल पर मुस्कुरा रहे थे!! जबकि.. जीतू को इस बात की भनक भी नहीं थी!!
जीतू अंधेरी आ गया था। उसके मालिक का अड्डा था यहाँ!! जहाँ सारे दो-नंबर के काम होते थे। मलिक उसका बॉस था। मलिक एक ड्रग डीलर था। वह दूसरे देशों से यहाँ ड्रग का माल लाता था और इंडिया में सब जगह उसे पहुँचाता था। ड्रग डीलिंग के साथ-साथ.. किडनैपिंग, खून और बड़ी-बड़ी चोरियाँ उसके एरिया में आती थीं। मलिक एक पहुँचा हुआ आदमी था जो बड़े-बड़े लोगों से जान-पहचान रखता था। बचपन से उसके साथ काम करने की वजह से जीतू उसके हर एक अच्छे-बुरे काम को जानता था और उसकी पहचान को भी। जब किसी इंसान तक पहुँचना मुश्किल हो जाता था, तब मलिक का नेटवर्क कुछ यूँ काम करता कि दुनिया में खड़ा कोई भी आदमी वह ढूँढ़ सकता था। वह भी आधे घंटे के अंदर-अंदर!!
जीतू ने क्लब में एंट्री ली। जहाँ सारे गुंडे भरे पड़े थे और थीं विदेशी बालाएँ जो छोटे कपड़े पहन अपने नृत्य से उनका दिल बहला रही थीं। जीतू ने अंदर एंट्री ली, तो एक काला आदमी उसके पास आकर खड़ा हो गया। उसने जीतू की तलाशी ली, फिर उसे अंदर जाने का इशारा किया। जीतू अंदर बढ़ गया। बहुत से सिगरेट के धुएँ के साथ अंदर दो लड़कियों के साथ अंदर बैठा था। वह लड़कियाँ उसे शराब पिला रही थीं। जीतू ने मलिक को देखकर सलाम किया। मलिक ने अपने मुँह में पकड़ी सिगरेट उसे थमाई।
"जीतू....???? तुम खुद आए हो यहाँ??? मेरी आँखों पर मुझे भरोसा नहीं हो रहा!! कैसा चल रहा है तुम्हारा काम??? तुमने तो मुझे मना किया था अगले दस दिन तक तुम कोई बुरा काम नहीं करोगे...!! अब कौन सी आफ़त आ गई???"
जीतू मलिक के पैरों में घुटनों पर बैठ गया। "कुछ भी करो मलिक भाई... पर उस लड़की को ढूँढ़ दो मेरे लिए!! मैं जन्म भर तुम्हारा नौकर बनकर रहूँगा!! बस ये पता लगाओ वह कहाँ है???"
मलिक मुस्कुराया। "लड़की...??? पहली बार तुमने खुद की छोड़ किसी की परवाह की!! और तुम्हारी ये परवाह तुम्हें मुझ तक घसीट कर लेकर आई!! ज़रूर कुछ बात होगी उस लड़की में!! जिसने एक राक्षस को पहली बार इंसान बनने पर मजबूर किया!! साफ़-साफ़ बता... क्या हुआ है???" उसे तो मैं ढूँढ़ ही लूँगा.. अब उससे मिलना जो है!! और तुम्हें अपना कुत्ता बनाना है!!"
जीतू ने सारी बात कह सुनाई। मलिक की भौंहें ऊपर उठ गईं। "इसका मतलब कोई तुम्हारी बस्ती वाली लड़की को उठाकर ले गया!! और तुम उसके लिए मेरे पास आए हो!! चुतुचुतचत... यही बात नहीं है.. जीतू!! तुम अटक गए हो उस लड़की में!! तुम्हारी ये आँखें बता रही हैं.. अगर वह नहीं मिली तो तुम बगावत पर उतर आओगे!! और आग लगा दोगे इस दुनिया को!!"
जीतू ने मलिक ने उसके आगे की हुई सिगरेट मुँह में डालकर उसके कश भरना शुरू कर दिया।
जारी!!!
जीतू ने उस सिगरेट को अपने मुँह में रखकर लम्बा कश लिया और धुएँ को बाहर छोड़ते हुए कहा, "तुम समझ नहीं रहे हो भाई। वह लड़की नहीं मिली तो मैं सच में तुम्हारी इस लंका में आग लगा दूँगा!!"
मलिक जीतू की तरफ़ देखने लगा। "तुझमें इतनी आग मैं हमेशा से जानता था, बस इस चिंगारी के जलने का इंतज़ार कर रहा था! अगर मैंने उस लड़की को ढूँढ लिया तेरे लिए, तो तू हमेशा के लिए मेरा गुलाम बनेगा! जब मैं कहूँगा तब भोंकेगा, जिस पर कहूँगा उस पर भोंकेगा! बोल, मंज़ूर है?"
"भाई, मैंने सब बुरे काम करके देख लिए! अब मैं इससे भी बुरा बनूँगा तो आप लोग झेल नहीं पाओगे मुझे! और मुझे आजमाना बंद कर दो तुम लोग! सिर्फ़ यह बताओ, मेरा काम होगा या नहीं?"
मलिक ने पास बैठी लड़की को थप्पड़ जड़ दिया। वह उठकर खड़ी हो गई और सिर झुका लिया।
"तुमने सुना नहीं उसने क्या कहा...? तुम मुझे ऑर्डर कैसे दे सकते हो? भूल गए मेरे ही टुकड़ों पर पलते आ रहे हो अब तक?"
जीतू जिस चेयर पर बैठा था, उसने उसके सामने रखी टेबल को लात मारी और उसे मलिक के ऊपर गिराया। लेकिन जब तक टेबल उससे टकराती, मलिक पीछे हट गया था।
"एक लड़की पर हाथ उठाते हुए... तुम्हें शर्म नहीं आती?" जीतू की जलती आँखें मलिक के सीने में गड़ जाने के लिए बेताब थीं। मलिक ने उस लड़की के आगे हाथ जोड़ लिए।
"सॉरी स्वीटहार्ट! वह क्या है ना... मैं देखना चाहता था... इसके अंदर लगी हुई आग की लपटें कितनी तेज हैं? यह तो पूरा का पूरा जल रहा है अंदर से! वैसे, तुने सोचा... वह लोग सुबह से तेरी बंदी को ले गए हैं! अब तक तो उसका कोमल अंग उन्होंने नोच लिया होगा! (ऐसे वर्ड यूज़ करने के लिए मुझे यानि लेखिका को पाठक माफ़ करें!) तुम अब क्या करोगे? वह तो अब तक किसी कोठे पर पहुँच गई होगी!"
जीतू, जो अब तक खुद को शांत रखने की कोशिश कर रहा था, उसका सब्र टूट गया। उसने जिस चेयर पर वह बैठा था, वह उठाई और मलिक के सिर पर वार किया। मलिक ने अपने दोनों हाथों से सिर को कवर कर लिया था। मलिक के मुँह से खून बहने लगा। मलिक फिर भी पागलों जैसे हँस रहा था। जीतू ने उसकी कॉलर पकड़ ली।
"मैं कुछ नहीं होने दूँगा उसे! अगर उसकी इज़्ज़त लूट भी गई है, तब भी मैं उसे अपने पास रखूँगा! समझे तुम! और उसे वहाँ से वापस लेकर आऊँगा!"
मलिक ने अपने होंठों से गिर रहे खून को अपने हाथ से पोंछते हुए कहा, "यही तो मैं देखना चाहता था! तुम्हारे अंदर की यह आग मैं बुझने नहीं दे सकताँ जीतू! तू मेरा वह हथियार है जिसका मुकाबला इस पूरी मुंबई में कोई नहीं कर सकता! मैं खुश हूँ तूने मुझे चुना है अपनी मदद के लिए! लेकिन अपना वादा भूलना मत! उस लड़की के मिलते ही तू मेरा गुलाम बनेगा और मैं इस पूरी मुंबई पर राज करूँगा, बादशाह बनकर! रुक, कहाँ जा रहा है? मैं तुझे दिखाता हूँ वह कहाँ हैं? चल मेरे साथ!"
मलिक, जो चेयर की मार हाथ से सह गया था, चेयर की लकड़ी मुँह पर लगने से उसके होंठ फट गए थे। मुँह से खून आ रहा था। फिर भी वह आगे बढ़ गया। जीतू की तरफ़ देख उसने पीछे आने को कहा। उस रूम से निकलकर दोनों दूसरे रूम में पहुँच गए। यहाँ उजाला था और चारों दीवारें एक जैसी थीं। मलिक ने एक दीवार पर कहीं हाथ लगाया और वह दीवार ऊपर चली गई। दीवार के ऊपर जाते ही नज़र आया एक बड़ा सा रूम जो सारी सुविधाओं से सुसज्जित था। बहुत सारे कंप्यूटर और लैपटॉप वहाँ की ऊपरी स्क्रीन से कनेक्टेड थे और करीब बीस लोग उन कंप्यूटर्स के सामने बैठे थे। मलिक जीतू को लेकर वहाँ आ गया।
"यह मेरा सीक्रेट तरीका है पुलिस से बचने का! आज तक कोई भी पुलिस वाला मेरे माल को पकड़ नहीं पाया है! इसका रीज़न यही है! यह मेरी दुनिया है! यहाँ से मैं मेरी तरफ़ आने वाले हर खतरे को भाँप सकता हूँ! अब देख मेरा कमाल!"
"आज सुबह मालाड की झोपड़पट्टी से दो लड़कियाँ गायब हुई हैं! मुझे वह लड़कियाँ किस गाड़ी में किडनैप हुईं और वह लोग कौन थे? सब जानकारी चाहिए! चलो, शुरू हो जाओ!"
मलिक का ऑर्डर होते ही वह बीस लोग जल्दी से हाथ चलाने लगे। जीतू बड़ी सी स्क्रीन पर सब देख रहा था। एक लड़के ने तेज़ी दिखाते हुए एक सीसीटीवी को कनेक्ट किया जहाँ पर छीनाझपटी में एक आदमी कार से नीचे गिर गया था। जीतू की आँखें बड़ी हो गईं।
"यह वही वैन है!"
"इसकी नंबर प्लेट पर ज़ूम करो!"
लड़के ने ज़ूम करते ही उस गाड़ी का नंबर मलिक की तरफ़ बढ़ाया, लिखकर। फिर उस नंबर पर क्लिक कर वह गाड़ी अभी कहाँ है वह देखना शुरू किया। दूसरे लड़के ने उस नंबर की पूरी हिस्ट्री निकाल ली और पेज प्रिंट करके मलिक को थमाया। स्क्रीन पर गाड़ी जीतू की आँखें देख मलिक ने उस पेपर पर नज़र डाली और कुछ देर के लिए उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया। पेपर हाथ से छूटकर जमीन पर गिर गया और गिरने वाले मलिक को जीतू ने दोनों हाथों से सहारा देकर खड़ा किया। उसने जल्दी से इधर-उधर देख पानी मँगवाया। जो लोग कंप्यूटर के सामने बैठे थे, वह लोग भी उठकर मलिक को देखने पहुँच गए। जीतू ने एक लड़के ने लाया हुआ पानी मलिक के चेहरे पर दे मारा। मलिक ने होश में आते हुए कहा, "जाओ, सब अपना-अपना काम करो! ठीक हूँ मैं... जाओ...!"
मलिक की बात मानकर सब लड़के वापस कंप्यूटर के सामने जाकर बैठ गए।
"क्या हुआ भाई...? तुम ऐसे बेहोश कैसे हो गए?"
"जीतू, तू जा यहाँ से! मैं तेरी कोई मदद नहीं कर सकता! और हाँ... हो सके तो उस लड़की को भूल जा! जा यहाँ से!"
"लेकिन भाई... अभी तो तुम मुझे उसके बारे में बताने वाले थे! ऐसा क्या हो गया... तुम अपनी बात से मुकर रहे हो?"
"तू समझ नहीं रहा! मैं तेरे भले के लिए बोल रहा हूँ! तू वापस जा और अपनी छोटी-मोटी चोरियों में खुश रह! मैंने जो कुछ भी कहा वह सब भूल जा! मैं तेरी कोई मदद नहीं कर सकता!"
मलिक उस कमरे से उसे बाहर धकेलते हुए ले आया। पर जीतू ने वह पेपर उठा लिया था जिसे देखकर मलिक की ऐसी हालत हो गई थी। जीतू ने फिर मलिक की कॉलर पकड़ ली।
"जब तक मुझे सच नहीं बताओगे मैं नहीं जाऊँगा और ना ही तुम्हें कहीं जाने दूँगा भाई! मुझे सच जानना है! क्यों तुम मुझे उसके बारे में भूल जाने के लिए कह रहे हो? मैं उसे नहीं भूल सकता! मैं उसे वापस लाकर रहूँगा!"
"पागल हो गया है तू! समझ भी आ रहा है! क्या कह रहा है! वह जगह श्राप है, श्राप! वहाँ गया हुआ कोई इंसान लौटकर नहीं आता! बस वहीं का हो जाता है! अगर अपनी खैरियत चाहता है तो वहाँ जाने के बारे में सोचना भी मत! वह जगह जहन्नुम है और उस जगह पर राज करने वाला इंसान खूंखार शिकारी है! सपने में भी वहाँ जाने के बारे में मत सोचना!"
"ऐसा क्या है वहाँ? जो तुम मुझे वहाँ जाने से रोक रहे हो? कैसा खूंखार शिकारी? और तुम उसकी वजह से यहाँ बेहोश हो गए! वह तो तुम्हारे सामने है भी नहीं!"
"तू भूल जा हमारे बीच कोई सौदा हुआ था! मैं तुझे अपना गुलाम बनाना चाहता था, तुझसे अपने सारे काम करवाना चाहता था! पर अब नहीं करवाना चाहता! तू भूल जा सब कुछ और उस लड़की को भी!"
मलिक ने कहकर आगे जाने के लिए कदम बढ़ाए तो जीतू उसके सामने आ गया।
"जिसका नाम लेने में भी इतना डर रहे हो... उसके बारे में बताना होगा तुम्हें! मैं इस तरह हार नहीं मान सकता! तुम डरते होंगे उससे, पर मैं किसी से नहीं डरता! मैं जानना चाहता हूँ कौन है वह? और क्यों उठाकर ले गया है हमारे यहाँ की लड़कियों को?"
"वह वहाँ का बेताज बादशाह है! हम छोटे-मोटे गुंडे हैं! लेकिन वह... अंडरवर्ल्ड का बादशाह है! उसके एक इशारे पर सरकारें बदल जाती हैं! अगर वह चाहें तो इस देश को बेचकर खा सकता है और डकार भी नहीं लेगा! पूरे देश के मंत्री, एमएलए, सब उसकी जेब में पड़े रहते हैं! यहाँ तक की दूसरे देशों में भी उसके जितनी पहचान किसी की नहीं है! वह किसी को एक पल में आबाद कर सकता है और दूसरे पल में बर्बाद! इस पूरी दुनिया में उसका एक घर है! वह इतना बड़ा है कि तुम जैसा मामूली चोर उसके सामने कुछ नहीं! बड़े-बड़े काले धंधे उसके एक इशारे पर चलते हैं वहाँ! वह तुम्हें चींटी की तरह मसल सकता है! यह जो लड़कियाँ लेकर गया है ना... तू उसके बाल को भी ढूँढ नहीं पाएगा! अब तक तो वह इस देश के बाहर पहुँच चुकी होगी! वह यही काम करता है! हमारे यहाँ की लड़कियों को विदेश में बेचता है और जो उसे पसंद आ जाती हैं उनसे कोठों पर धंधा करवाता है! जीतू, हमारे बीच जो कुछ भी हो... मैं तुम्हें एक अच्छी सलाह दूँगा... तू वहाँ मत जा! अगर तूने उसकी लंका में जाने की कोशिश की तो वह पागल हो जाएगा और सारे लोगों को, जो लाखों में हैं, तुझे मारने भेजगा! तुझे मारकर तेरी लाश से जब तक उसका मन नहीं भरेगा तब तक खेलेगा वह! तू मेरी बात मान... मत जा वहाँ!"
"जब इतना बता दिया तो यह भी बता दो... कहाँ हैं वह?" चिल्लाते हुए, मैंने पूछा, "कहाँ है वह?"
"हरियाणा... हरियाणा में है वह! और तेरी बंदी अब तक वहाँ पहुँच चुकी होगी!!!"
जीतू ने मलिक के मुँह पर ग्लास का पानी फेंककर मारा। "तुम इतने बुज़दिल निकलोगे मैंने कभी नहीं सोचा था! लेकिन फिर भी आज तुमने मेरी जो भी मदद की है, इसे मैं हमेशा याद रखूँगा! तुमने मुझे उसका नाम नहीं बताया ना...? एक दिन उसके मुँह से तुम मेरा नाम सुनोगे और बोलोगे... कि तुमसे गलती हो गई कि तुमने मुझे रोका!"
"एक बात मेरी भी सुनते जाओ जीतू! जिस लड़की के लिए तुम यह सब कर रहे हो... वह कभी तुम्हारे हाथ नहीं लगेगी! उसकी मर्ज़ी के बगैर... उसके घर में जाकर कोई सुई भी नहीं उठा सकता! यह तो फिर भी लड़की है... उसके धंधे का ज़रिया! मैं दुआ करूँगा तुम अपने मकसद में कामयाब हो जाओ! पर यह दुआ कभी क़ुबूल नहीं होगी मैं जानता हूँ!"
जीतू ने अपनी शर्ट उठाई और बाहर आने लगा। तब बिहारी का फ़ोन आ गया उसे। "जीतू, गुजरात के सूरत स्टेशन से दो लड़कियों के साथ कुछ तीन आदमी... दिल्ली जाने वाली ट्रेन में बैठे हैं! ऐसा यहाँ के लोगों से बात करने पर पता चला! गाड़ी का पेट्रोल ख़त्म हो गया है! पेट्रोल भरते ही हम वापस आ रहे हैं!"
"बिहारी, जितनी जल्दी हो सके घर वापस आ जा! हमें कहीं जाना है! और सुन, लड़कों को कुछ खिला देना! वह बिचारे मेरी फ़िक्र में वहाँ तक चले गए! और सुन... पैसे हैं ना तेरे पास!"
"तू बस अपनी फ़िक्र कर! हम भौजी को कैसे भी ढूँढ लेंगे! मैं वापस आने के बाद बात करता हूँ तुझसे! और सुन... अपने ज़ख्मों पर मरहम लगा लें! मैं नहीं हूँ तेरे पास! मेरी बात मानेगा ना?"
बिहारी का अपने लिए प्यार देख जीतू का दिल भर आया था। एक वही तो था उसका बचपन का साथी जिसके साथ उसने सारे दुख-सुख बाँटे थे, जो खुद तन्हा होकर भी उसके लिए ममता की छाँव बन गया था। जब जीतू चोरी करता तो पकड़े जाने पर उसके हिस्से का मार भी खुद खा लेता था। जीतू के ज़ख्म उसे अपने ज़ख्मों के आगे कुछ नज़र नहीं आते थे। जीतू के ज़ख्मों पर मरहम लगाकर अपने ज़ख्मों को वैसे ही छोड़ देता था वह और गहरी नींद सो जाता था। एक फटा हुआ शर्ट होता था ओढ़ने के लिए तो वह भी वह उसे ओढ़ाता था। जीतू के शरीर से बहता हुआ खून का एक भी कतरा उसे पागल बना देता था और यहाँ तो उसकी आँखों से लावा की नदियाँ बह गई थीं। अब वह किसी की सुनने वाला नहीं था।
जारी!!!
जीतू का फ़ोन रखकर बिहारी अपने लड़कों को लेकर एक ढाबे पर पहुँचा। वहाँ सारे लड़के आराम से पैर पसारकर बैठ गए। वहाँ के आदमी ने पानी लाकर उनके सामने रख दिया। उस आदमी को डरते देख बिहारी अपनी जगह से उठकर उसके पास पहुँचा।
"क्या हुआ भैय्या? काहे इतने डर रहे हो? किसी ने कुछ कहा क्या?"
आदमी बिहारी के बात करने के अलग ढंग को देखकर थोड़ा रिलैक्स हुआ। फिर उसने बताया, "कल यहाँ एक गाड़ी आई थी। जिसमें तीन आदमी थे। और दरवाज़ा बंद करने से पहले मैंने देखा था... दो लड़कियाँ थीं उसमें। लड़कियों के हाथ और पैर बाँध रखे थे और दोनों को होश नहीं था। उन तीन आदमियों ने यहाँ बैठकर खाना खाया और पार्सल लेकर यहाँ से निकल गए। दिखने में बहुत ही अजीब थे और एक के पास तो कट्टा भी था!"
बिहारी की आँखें बड़ी हो गईं। उसने पूछा, "तुम्हारे यहाँ CCTV कैमरा है? जिससे पता कर सकें... उन लड़कियों को वह लोग किस तरफ़ ले गए?"
"यह ढाबा है साहब, यहाँ कैमरा-वैमरा नहीं होता। और तो और वह लोग तो गाड़ी यहीं छोड़ गए हैं!"
"कहाँ है वह गाड़ी? मुझे देखनी है! जाओ जल्दी... और चाबी लेकर आओ!"
वह आदमी गाड़ी की चाबी लेने अंदर दौड़ गया। उसका मालिक अभी वहाँ नहीं आया था, इसलिए चाबी लेने में आसानी हो गई। गाड़ी की चाबी लिए वह बिहारी के पास दौड़ता हुआ आया और उसे अपने पीछे चलने का इशारा किया। गाड़ी जंगल में रखकर गहरी झाड़ियों के पीछे छुपा दी थी उन लोगों ने। बिहारी ने चाबी लेकर गाड़ी का दरवाज़ा खोल दिया। यह वही वैन थी जिसका पीछा किया था जीतू और उसने। बिहारी ने ठीक से तलाशी लेना शुरू किया तो वहाँ गाड़ी में सीट के नीचे उसे इंजेक्शन दिखाई दिए। उसमें अब भी थोड़ी दवा थी। बिहारी ने उस आदमी को एक साफ़ पॉलीथीन लाने के लिए कहा। पॉलीथीन लाने के बाद बिहारी ने वह इंजेक्शन उसमें डाल दिया। क्योंकि लड़के खाना खा रहे थे, बिहारी को यह वक़्त इस पर ध्यान देने के लिए मिल गया था। उसने देखा उसके पैरों में कुछ चुभ रहा है तो उसने वह चीज उठा ली। यह जान्हवी का झुमका था, जो शायद छीना-झपटी में वहाँ गिर गया था। बिहारी उसे उठाकर बाहर चला आया। झुमके को अपनी पॉकेट में डालकर उसने गाड़ी लॉक कर दी और चाबी उस आदमी को थमाते हुए कहा, "भाईसाहब आपका धन्यवाद! हम जिन लड़कियों को ढूँढने आए थे, यह वही दोनों हैं जिन्हें इस गाड़ी में ले जाया गया है। हम उन्हें तलाश रहे हैं। वह चार आदमी थे जिनमें से एक गाड़ी से नीचे गिर गया था। पुलिस को उसकी लाश मिल चुकी है। आप एक कंप्लेंट कर दीजिये और पुलिस को इस गाड़ी के बारे में बता दीजिये। वह लोग आगे की छानबीन कर लेंगे। और एक बात, मैं यहाँ आकर इस गाड़ी की तलाशी ले चुका हूँ, यह बात उन्हें मत बताइएगा। डरिये मत, आपका कोई नुकसान नहीं होगा।"
आदमी ने हाँ में सिर हिलाया और बिहारी वहाँ से निकलकर ढाबे पर आ गया। लड़के खा चुके थे। पेट्रोल भरकर बिहारी ने वापस मुंबई का रास्ता पकड़ लिया। बिहारी सोच-सोचकर पागल हो रहा था कि आखिर यह काम किसका हो सकता है? क्योंकि उनका लड़कियों को दिल्ली ले जाना बिहारी को समझ नहीं आ रहा था। उसने अपने फ़ोन से फिर फ़ोन लगाया। फ़ोन सामने वाले ने उठा तो लिया पर किसी की आवाज़ नहीं आ रही थी। बिहारी ने बोलना शुरू किया, "कुछ पता करो मेरे लिए! दिल्ली के आस-पास लड़कियों को उठाने वाला कोई दल काम करता है क्या? और है तो उसे चलाने वाले का नाम क्या है?" बिना कुछ बोले सामने से फ़ोन कट गया।
इधर जान्हवी को जब हल्का सा होश आया, तब उसे लगा कि दर्द के मारे उसका शरीर टूट रहा है। आँखें खोलकर जब उसने सामने देखा, कीर्ति बेहोश पड़ी थी। उसके बाल बिखरे हुए थे और कीर्ति के सामने बैठा आदमी कीर्ति का हाथ पकड़े हुए था। जान्हवी भी सीट पर सोई हुई थी और उसका पैर किसी ने पकड़ा हुआ था। इसका मतलब कल जो कुछ भी उन दोनों के साथ हुआ था, वह सब सच था! जान्हवी ने देखा, उसका पैर पकड़े जो आदमी बैठा हुआ था, वह उसे घूर रहा था। उठने की ताकत नहीं थी उसके अंदर, तो वह पैर अपने पेट के पास लाकर वैसी ही पड़ी रही। जान्हवी ने डर के मारे आँखें बंद कर लीं। कोई स्टेशन आ गया था और लोग अंदर चढ़ रहे थे। एक औरत भी उसी डिब्बे में चढ़ गई जहाँ जान्हवी थी। भीड़ होने की वजह से वह बैठने के लिए जगह देख रही थी। दोनों लड़कियों को सोता देखकर वह चिढ़ गई।
"जब यहाँ बैठने के लिए जगह नहीं है, तुम दोनों मज़े से सो रही हो! चलो उठो, बैठने के लिए जगह दो!"
उस औरत की झिड़की से परेशान होकर जान्हवी के पास बैठा आदमी भड़क गया।
"देखिये, दोनों बच्चीयाँ बीमार हैं! इसलिए इन्हें अस्पताल ले जा रहे हैं! आप चाहें तो मेरी जगह पर बैठ जाइए, लेकिन लड़कियों को सोने दीजिये!"
वह औरत लड़कियों की तरफ़ देख रही थी। कीर्ति तो बेहोश थी, इसलिए उसे पता नहीं था इस वक़्त क्या हो रहा है। और जान्हवी की तरफ़ देखकर उस आदमी ने दी हुई जगह पर वह औरत बैठ गई। पर उसकी नज़रें तेज थीं। उसे समझ आ गया था, जिस लड़की के पास वह बैठी है, वह डर रही है! इसलिए उसने प्यार से पूछा, "तुम्हें अच्छा लग रहा है? कुछ खाओगी?"
जान्हवी को प्यास लगी थी, पर उसे पानी पिलाया तो वह होश में आ जाएगी पूरी तरह, इसलिए उन आदमियों ने उसे पानी नहीं दिया था। जान्हवी ने पानी पीना है का इशारा किया तो वह औरत अपनी लाई हुई बोतल उसके सामने करने लगी। तभी वह आदमी चिल्लाया, "यह क्या कर रही हैं आप? उसे पानी मत दीजिये! उसकी तबीयत ज़्यादा ख़राब है! अगर आपने पानी पिलाया, तो उसे उल्टियाँ शुरू हो जाएंगी!"
उस काले आदमी का चिल्लाना देख एक पल के लिए वह औरत डर गई। उसने बोतल पीछे ले ली। जान्हवी भी बुरी तरह डर गई थी। जान्हवी ने आँखें बंद कर लीं।
जब दूसरे स्टेशन पर थोड़ी देर के लिए गाड़ी रुकी, तो वह तीनों आदमी नीचे उतर गए और जान्हवी के पास बैठी औरत ने मौका देखकर उससे पूछा, "क्या हुआ बेटा? वह कौन है जो तुम्हारे साथ है?"
उस औरत की प्यार भरी बातों से जान्हवी को लगा, वह उसे अपनी हालत बता सकती है और मदद मांग सकती है। इसलिए उसने कहना शुरू किया, "हमें ज़बरदस्ती उठाकर ले जा रहे हैं वह लोग! मैं उठ नहीं पा रही इंजेक्शन की वजह से!"
वह औरत हैरान रह गई। उसने जान्हवी को पानी पिलाना चाहा, पर उन आदमियों को वापस आते देख उसने झट से बोतल अपने मुँह से लगा ली।
वह औरत गुजरात से चढ़ी थी। रतलाम स्टेशन आते-आते उसने तय कर लिया वह उन दोनों बच्चीयों की मदद करेगी। पर यह इतना आसान नहीं था। वह तीनों आदमी सतर्क थे। जब दो लोग सोते तो तीसरा पहरा दे रहा था। जान्हवी को चुपके से पानी पिलाने का मौका भी हाथ से छूट गया था। अब वह औरत सो गई और दिखाने लगी कि उसे उन लड़कियों से कोई लेना-देना नहीं है। एक बेहोश थी, पर दूसरी जो होश में है, उसे बचाया जा सकता है! यह सोचकर वह औरत सोने का नाटक करने लगी।
इधर धीरज जी घर आकर अपने सिर पर हाथ देकर बैठ गए थे। अगर आज मैं नहीं गया होता, तो मेरी बच्ची मेरे पास होती! उन लोगों से मैं उसकी रक्षा करता! अब मैं क्या करूँ? कैसे बचाऊँ अपनी बच्ची को? कहाँ लेकर गए होंगे वह लोग? अब किसे बताऊँ मैं कि कैसे उसे उस प्लेटफ़ॉर्म से उठाकर लेकर आया था? कैसे उसके ज़ख्मों पर मरहम लगाकर उसे ठीक किया था? कैसे रात भर जागकर उसकी चीखें सुनी थीं और उसे थपथपाया था जब डर जाती थी वह! डर जाती थी उसके साथ जो कुछ भी हुआ था उससे! कितनी मुश्किल से उसे घर पर रहने के लिए मनाया था! कितनी मुश्किल से उसके बढ़ते कदम मैंने रोके थे जब वह हमें छोड़कर जा रही थी! कितने दिनों तक उसकी उस आँख का इलाज करवाया ताकि वह कुछ देख पाएँ उस आँख से! भले ही मैंने जन्म ना दिया हो, वह मेरा अंश ना हो, पर वह बेटी है मेरी! अपने इन्हीं हाथों से मैंने उसे निवाला खिलाया है! अपनी बेटी से बढ़कर चाहा है!! हे भगवान! तुझे उस मासूम पर इतनी भी दया नहीं आई! कितना चिल्लाई होगी?? उसकी आँखें मुझे ढूँढ रही होंगी कि कहीं से बाबा आ जाए और उन लोगों से उसे बचा लें! अरे कितने मन से पढ़ रही थी वह कि पढ़-लिखकर बड़ी हो जाए और सबको कहे कि उसका बाबा मैं हूँ! उसने उसकी श्रापित ज़िन्दगी को एक वरदान में बदल दिया है! पर नहीं कह पाई मेरी बच्ची!! तू पत्थर का ही है भगवान! अगर तू इंसानी भावनाएँ समझता, तो तुझे उस बच्ची पर दया ज़रूर आती! लेकिन तुम ठहरा पत्थर का! तुझ पर हमारी प्रार्थनाओं का असर नहीं होता न भगवान! तो ठीक है, आज से मैं तुझे पूजना छोड़ रहा हूँ!
धीरज जी का रोना और गिड़गिड़ाना जीतू उनके घर के बाहर पत्थर पर बैठे-बैठे सुन रहा था। वह हर बात जो उन्होंने कही थी, उसे सुनकर उसके आँसू बह रहे थे। वह पागलों की तरह अपने बाल नोंच रहा था। मैंने और थोड़ा जोर लगाया होता, तो उस वैन तक पहुँच जाता मैं! मैंने क्यों उसे जाने दिया...? क्यों?? क्यों??
जारी!
वह औरत कोटा जा रही थी। रात को, जब तीनों सो गए, वह जाग रही थी। उसने सोचा, एक को, जो अभी होश में है, उसे बचाया जा सकता है। इसलिए उसने तीनों के सो जाने का इंतज़ार किया। जान्हवी भी उस इंजेक्शन की दवाई के असर से नींद में थी। उस औरत ने मौका देखते ही जान्हवी को जगाया।
"जान्हवी ने आँखें खोलीं तो सामने वह औरत खड़ी थी।" उसने चुप रहने का इशारा किया। फिर उन तीनों की तरफ देखा, जो सो रहे थे। जान्हवी अब भी डरी हुई थी।
उस औरत ने जान्हवी को उठाकर बिठाया। फिर कहा, "यही रहो! स्टेशन आते ही हम उतर जाएँगे।"
जान्हवी ने हाँ में सिर हिलाया। औरत बेसब्री से स्टेशन आने का इंतज़ार करने लगी। उन तीनों में से कोई जरा भी हलचल करता, तो इन दोनों के प्राण खतरे में पड़ जाते। औरत होशियार थी। ऐसा लगता, जैसे उनमें से एक चेक करने के लिए उठकर देख रहा है, तो वह जान्हवी को सोने को कहती और खुद भी सोने का नाटक करती, जैसे गहरी नींद में हो। फिर उन्हें पंद्रह मिनट बाद मौका मिल ही गया। रात के दो बज रहे थे। औरत ने स्टेशन आते ही अगल-बगल देखा। सोते हुए उन तीनों को देखकर उसने अपने सामान की बैग पकड़ी और उसे नीचे प्लेटफ़ॉर्म पर छोड़ दिया। अब वह जान्हवी की मदद करने अंदर ट्रेन में आई। जैसे ही उसने अंदर कदम रखा, देखा कोई दूसरा ही आदमी दरवाज़े पर खड़ा है। उसकी जान में जान आई। उसे लगा, उन्हीं में से एक उठ गया है। फिर अंदर जाकर उसने जान्हवी को सहारा देकर खड़ा किया और उसे धीरे-धीरे ट्रेन से उतार दिया। कब वह जान्हवी का हाथ पकड़कर आगे चलने लगी। एक हाथ में बैग और दूसरे हाथ में जान्हवी का हाथ पकड़े, वह तेज कदमों के साथ स्टेशन से बाहर निकलने की कोशिश करने लगी।
इधर, जो पहरा दे रहा था, उसने फिर उठकर देखा तो जान्हवी गायब थी। उसने बाकी के दोनों को उठाया। सब उसे ट्रेन में ढूँढ़ने लगे। जब कीर्ति की तरफ देखा तो एक को उसके पास छोड़कर बाकी दो बाहर देखने निकल पड़े। वह औरत अब भी प्लेटफार्म पर चल रही थी। इतने में जान्हवी, जो उसका हाथ पकड़े थी, कमजोरी की वजह से गिर गई। औरत ने पीछे मुड़कर अपनी बैग छोड़ दी और जान्हवी को उठाकर खड़ा किया।
"क्या हुआ?? तुम चल नहीं पा रही?? देखो बेटा, वह सामने रिक्शा खड़ी है। वह तुम्हारी आजादी का रास्ता है! बस उस तक पहुँचने की कोशिश करो! तुम उन गुंडों की कैद से निकल जाओगी!"
"लेकिन आंटी, मेरी दोस्त भी तो उनके कब्ज़े में है! मैं उसे छोड़कर कैसे जा सकती हूँ???"
"तुम्हें अभी खुद को बचाने के बारे में सोचना चाहिए! तुम्हारी दोस्त को हम बाद में ढूँढ़ लेंगे, तुम्हारी ही मदद से!"
औरत ने जल्दी से उसे खड़ा किया और रिक्शा की तरफ चलने लगी। तभी वह दो आदमी उस औरत के सामने आकर खड़े हो गए। उन्हें अपने सामने देखकर जान्हवी और वह औरत बुरी तरह डर गए। औरत ने भागने की कोशिश की, लेकिन उन दोनों ने उन दोनों के चारों ओर घेरा बना लिया था। जान्हवी नशे में होने की वजह से ज़्यादा देर तक दौड़ नहीं सकती थी। औरत ने उसे अपने पीछे कर लिया।
"इस छोटी सी बच्ची को कहाँ लेकर जा रहे हो तुम लोग?? मेरे रहते इसे नहीं ले जाओगे???" उनमें से एक की आवाज़ गर्जित हुई। "तु जानती नहीं है तेरे साथ क्या हो सकता है...? तुझे अब भी मौका दे रहा हूँ... लड़की को छोड़... और भाग यहाँ से!!! वरना बेमौत मारी जाएगी!!"
उस औरत ने फिर भी हार नहीं मानी। वो लोग वहीं खड़े थे। उसने जान्हवी के मुँह पर तमाचे मारे, उसे होश में लाने के लिए। जान्हवी ने फिर जबरदस्ती आँखें खोलीं।
"लड़की, होश में आओ तुम! तुम्हारी ज़िन्दगी का सवाल है! भागो बेटा, नहीं तो ये कमीने तुझे नोच डालेंगे!!"
जान्हवी ने हाँ में सिर हिलाया और उनका हाथ पकड़ लिया। औरत ने सामने खड़े आदमी के टांगों के बीच अपने पैर से वार किया। वह बुरी तरह चीख पड़ा। बादल घिर आए थे। हल्की बूँदाबाँदी शुरू हो चुकी थी। उस आदमी के गिरते ही औरत ने दूसरे के सिर पर अपनी हैंडबैग से मारा। वह आदमी नीचे झुक गया। मौका देख औरत आगे की तरफ दौड़ पड़ी। दोनों भागने लगीं। बेतहाशा भागने लगीं। दोनों को अपनी-अपनी ज़िन्दगी के लिए भागना था; अपनी इज़्ज़त के लिए भागना था; ऐसे हैवानों से खुद को बचाने के लिए भागना था। बस थोड़ा सा फ़ासला रह गया था उनके और उस रिक्शा के बीच। जान्हवी ने पीछे मुड़कर देखा, भागते-भागते, तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। उस आदमी ने उन पर गन तान ली थी और कुछ सोचने-समझने से पहले उसने ट्रिगर दबा दिया। धायं-धायं करती, हवा से भी तेज दौड़ती वह गोली जाकर उस औरत के पेट में लगी और बड़ी भयानक आवाज़ हुई! पंछी तेज आवाज़ सुनकर पेड़ पर से उड़ गए। जान्हवी डर के मारे जम गई थी। उसने अपना हाथ पकड़कर खड़ी औरत की तरफ देखा, जो धीरे-धीरे नीचे जमीन की तरफ लुढ़क गई। तेज बारिश हो रही थी। जान्हवी सिर से लेकर पाँव तक भीग गई थी। उस औरत का खून पानी में मिलकर उसके पाँव की तरफ बह रहा था। जान्हवी कांप रही थी डर के मारे! उस खून को देखकर जान्हवी के दिल ने एक बार के लिए धड़कना छोड़ दिया।
भयानक मंज़र था! और भयानक थी वह रात! रिक्शा वाला फ़ायर की आवाज़ सुनकर कब का नौ दो ग्यारह हो चुका था। स्टेशन से बाहर का यह रास्ता सुनसान था। जान्हवी हिलने की भी कोशिश नहीं कर पा रही थी, पर पूरे होश में आ चुकी थी भीगने की वजह से। दूसरा आदमी उसके पास आकर खड़ा हो गया। उसके बाल पकड़कर उसने जान्हवी को खींचना शुरू किया। गन वाला आदमी उस औरत के पास चलकर आया। उसने उसकी नब्ज़ चेक की। उसे मरा हुआ पाकर उसने तेज लात उसके पेट में मारी।
"साली, मुझे मारने की कोशिश की तुने??? अगर आज मुझे यह ट्रेन नहीं पकड़नी होती तब बताता तुझे... मैं क्या चीज़ हूँ!!" (ग़लत शब्द यूज़ करने के लिए रीडर्स लेखिका को माफ़ करें!!) उसने एक और लात जड़ते हुए उसे पास की झाड़ियों में उठाकर फेंक दिया। जान्हवी को पकड़कर वह दोनों फिर ट्रेन में आ गए, जहाँ उनका दूसरा साथीदार उनका इंतज़ार कर रहा था। उसने देखा जान्हवी को वापस लेकर आए हैं, तो वह कीर्ति, जो अब तक सोई थी, उसके पास जाकर बैठ गया। जान्हवी को साइड बर्थ वाली सीट पर बिठा दिया था उन्होंने, क्योंकि वह पूरी तरह भीग चुकी थी और कांप रही थी। जान्हवी के लगातार आँसू बह रहे थे। उस औरत की दयनीय हालत उसने अपनी इन आँखों से देखी थी। बेचारी आज इसलिए मर गई क्योंकि वह जान्हवी को बचाना चाहती थी। उसने कोशिश पूरी की थी, पर नसीब ने साथ नहीं दिया। कोई रिश्ता-नाता ना होने के बावजूद, वह इन दरिंदों से उस मासूम को बचाना चाहती थी, पर यह मुमकिन नहीं हो पाया। उस औरत की जान मेरी वजह से चली गई, और मैं बच भी नहीं पाई। इस बात को अपने मन में दोहराते हुए, जान्हवी थरथरा रही थी। अब भागने की कोशिश करना यानी मौत को दावत देने जैसा था। इसलिए गीले कपड़ों के साथ ठंड की वजह से वह अपनी सीट पर ठिठुरती रही। कीर्ति की तरफ़ देख उसे दया आ रही थी। उसकी वजह से कीर्ति पर भी अन्याय हुआ था। उस बेचारी की तो कोई गलती नहीं थी। गलती तो उसकी भी कोई नहीं थी। कुछ लोगों के लालच की वजह से उन दोनों के साथ यह सब हो रहा था।
कोटा बड़ा स्टेशन होने की वजह से ट्रेन यहाँ आधा घंटा रुकी थी। अब ट्रेन चल पड़ी और जान्हवी की उम्मीद टूटने लगी। एक जो बच सकती थी, वह भी आज टूट गई थी। उन लोगों ने बंधक के ज़ोर पर मासूम बच्चियों को अपना गुलाम बना लिया था, और क्या-क्या होने वाला था उसके साथ! जान्हवी सोच-सोचकर पागल हो रही थी।
एक कुर्सी पर सिर टिकाकर बैठा जीतू आसमान की तरफ़ देख रहा था। रात गहराती जा रही थी। रात के दो बज रहे थे। आसमान साफ़ था, बस ठंडी-ठंडी हवाएँ चल रही थीं। जीतू खुली आँखों से आसमान की तरफ़ देख रहा था। हाथ में पकड़ी शराब की बोतल आधी हो चुकी थी। यह कड़वा लावा पीकर भी उसके सीने का दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था। बिहारी का इंतज़ार करती उसकी आँखें सूज गई थीं। उसे उसके आते ही जान्हवी को ढूँढ़ने निकलना था। जान्हवी का चेहरा सामने आते ही उसने पंडाल में बैठे गणेश जी की मूर्ति की तरफ़ देखा।
"धीरज चाचा सही बोलते हैं... तु पत्थर का ही है!! अरे कितने लोग भरे पड़े हैं दुनिया में!! जो बुरा काम करते हैं!? दो नंबर का काम कर के अपने घर की तिजोरियाँ भर रहे हैं!! धोखा दे रहे हैं!! लूट रहे हैं लोगों को!! पर तू कभी उन पर बिजली नहीं गिराता!! और उसकी... जिसकी खेलने-कूदने की उम्र थी... जो कितना कुछ सहकर अब अपनी ज़िन्दगी जीने की कोशिश कर रही थी... तूने उस पर ऐसी बिजली गिराई... के सब तहस-नहस कर दिया!! तू सच में पत्थर है... आज से मैं जीतू... जो जीतू दस दिन तक तेरी आने की खुशी में पाँव में चप्पल तक नहीं पहनता था... ना चोरी करता था!! ना किसी को लूटता था!! तुझे मानना छोड़ रहा हूँ!! तेरे अस्तित्व को ठुकरा रहा हूँ... तू सिर्फ़ पत्थर है...!! भगवान जैसी कोई चीज़ नहीं है दुनिया में!! तूने उन दो लड़कियों के साथ बहुत बुरा किया!! अरे तुझे ही तो पूजने आई थीं वो दोनों!! तेरी श्रद्धा में चूर होकर... तेरे ही चरणों में रंगोली बिछा रही थीं!! और तू उनकी रक्षा नहीं कर पाया!! मैं... मैं भी उनकी रक्षा नहीं कर पाया!! मर जाना चाहिए मुझे... मुझे मर जाना चाहिए!!"
कहकर जीतू ने हाथ में पकड़ी बोतल नीचे जमीन पर फोड़ दी।
बिहारी लड़कों के साथ झोपड़पट्टी में एंट्री कर चुका था। जीतू को पंडाल के पास बोतल फोड़ते देख लिया उसने दूर से ही। वह गाड़ी स्लो करने को बोल, चलती गाड़ी से कूद गया और जीतू की तरफ़ दौड़ पड़ा। इससे पहले कि जीतू वह काँच की टूटी हुई बोतल अपने हाथ पर चलाता, बिहारी ने एक हाथ से उसका बोतल वाला हाथ पकड़ लिया और दूसरे हाथ से उसके चेहरे पर थप्पड़ मार दिया।
"यह क्या करने जा रहे थे??? तुम्हें किसने हक़ दिया ऐसा करने का?? अगर मैं वक़्त पर नहीं आया होता... तो तू खुद को मार लेता??? मेरे बारे में नहीं सोचा तूने एक भी बार??? तेरी ज़िन्दगी पर तेरा हक़ नहीं है जीतू??? तेरी यह ज़िन्दगी मेरी है!! मैंने तुझे अपने इन हाथों से खाना खिलाया है!! तेरा ख्याल रखा है!! तेरे बीमार होने पर रात भर जागकर तेरा ख्याल रखा है!! जो माँ-बाप अपने बच्चे के लिए करते हैं ना... वह सब मैंने तेरे लिए किया है!! मर जाने से पहले... तुझे मुझसे इजाज़त लेनी पड़ेगी!! समझा तू...? कभी भी दोबारा ऐसा करने का ख्याल भी तेरे मन में आया... तो पहले तू मुझसे पूछेगा... समझ गया!!"
बिहारी की आँखों में आँसू देख जीतू के हाथ से वह बोतल नीचे गिर गई और वह उसके गले लग रो पड़ा।
"मैं क्या करूँ... बिहारी...? मुझे बहुत तकलीफ़ हो रही है!! मेरी वजह से... वह लड़कियाँ उनके हाथ लगी!! अगर मैं थोड़ी और कोशिश करता तो शायद उन्हें बचा सकता था!! यह बात... यह बात मुझे सोने नहीं दे रही... पीने नहीं दे रही!! जीने नहीं दे रही!! तू ही बता अब मैं क्या करूँ???"
बिहारी ने उसे और कसकर गले लगाया। "तुझे यह सब करने की कोई ज़रूरत नहीं है जीतू!! हम दोनों उन दोनों को ढूँढ़ निकालेंगे!! और हमारी बस्ती में वापस लेकर आएंगे!! मेरा वादा है तुझसे!! अगर उन्हें ढूँढ़ने में मुझे मेरी जान भी दांव पर लगानी पड़ेगी... तो लगाऊँगा!! एक पर के लिए नहीं सोचूँगा!! मेरा वादा है तुझसे!! पर तू भी मुझसे वादा कर... आज के बाद अपनी जान देने के बारे में तू कभी नहीं सोचेगा!!"
जीतू ने उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया और बाकी के लड़के अपनी आँखें साफ़ करने लगे।
जारी...
जीतू पीकर चूर हो चुका था! फिर भी नशा नहीं उतर रहा था! सीने में भरे दर्द को कम करने के लिए उसने बिहारी से एक और बोतल लाने को कहा। लेकिन बिहारी ने यह कहकर टाल दिया कि सब दुकानें बंद हो चुकी हैं।
जीतू ने याद करते हुए कहा, "हमें वहाँ जाना है बिहारी... उसे लेने जाना है! चल मेरे साथ! गाड़ी स्टार्ट कर!"
बिहारी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। और यह बात नशे में होने के बावजूद जीतू समझ गया। उसने पास की झोपड़ी के आगे भरे ड्रम के पानी में अपना सिर डाल दिया। और तब तक नहीं निकाला जब तक वह होश में न आ जाए। जब साँस लेना मुश्किल हो गया, तब वह ड्रम से बाहर आया। सिर के पानी को उसने अपने ऊपर बहने दिया। वह पूरी तरह होश में आ गया।
"बिहारी, हम उसे वहाँ पहुँचने नहीं दे सकते! गाड़ी निकाल। अगर वह वहाँ पहुँच गई तो उसे बचाना नामुमकिन हो जाएगा!"
बिहारी: कहाँ जाने की बात कर रहा है तू? और क्या पता कर लिया तूने? कहाँ ले गए हैं उसे?
जीतू: वह लोग उसे हरियाणा ले गए हैं! उसे या तो कोठे पर बेच दिया जाएगा या फिर इस देश से बाहर बेच दिया जाएगा!
बिहारी: यह सब किससे पता किया तूने?
जीतू: तू मेरी बात सुन क्यों नहीं रहा? अगर तुझे नहीं आना तो मत आ! मैं अकेला चला जाऊँगा! जाने दे मुझे!
बिहारी ने उसका हाथ पकड़ लिया। "तू मुझे छोड़कर चला जाएगा? तुझे पता है कितना खतरनाक रास्ता है यह! तेरी जंग सिर्फ उस एक लड़की के साथ नहीं है! वहाँ कैद हर उस लड़की के लिए है जो खुद को आजाद करने का सिर्फ सपना देख सकती है! वह लोग तुझे मार डालेंगे ऐसा करने से पहले!"
"तो क्या करूँ हूँ? हाथों में चूड़ियाँ पहनकर बैठ जाऊँ? अगर मैं उसे बचा नहीं सकता तो मुझे मर जाना चाहिए! अगर हम एक लड़की की रक्षा नहीं कर सकते, तो लानत है हमारी जिंदगी पर! वह लड़की चाहे कोई भी हो—माँ, बहन, बीवी या दोस्त, फर्क नहीं पड़ता! अगर हम उनकी इज्जत नहीं बचा सकते, तो हमें भी कमज़ोरों की तरह हाथ में चूड़ियाँ पहन लेनी चाहिए! अपनी जान जाने के डर से मैं कुछ न करूँ? तू क्या चाहता है मुझसे? क्या करूँ मैं?"
"मैं तुझे चुपचाप बैठ जाने के लिए नहीं कह रहा! और भी तरीके हैं! हम पुलिस के पास जा सकते हैं! उन्हें सब बताएँगे तो वह ज़रूर हमारी मदद करेंगे!"
"तू बिहारी नहीं हो सकता! अरे सुनो... यह किसे उठा लाए तुम सब! यह मेरा दोस्त नहीं है! यह बिहारी नहीं है! मेरा दोस्त कभी पुलिस के पास जाने की बात नहीं करता! उल्टा मुझे दो थप्पड़ मार देता! तुम... तुम पुलिस के पास जाने की बात कर रहे हो! मैंने कभी नहीं सोचा था तुम इतने डरपोक निकलोगे!"
"मैं डरपोक नहीं हूँ जीतू! मैं सिर्फ तुझे बचाना चाहता हूँ यार! तू जानता नहीं है कितने खतरनाक लोग हैं वह! मैं तुझे खोना नहीं चाहता यार! मत जा वहाँ!"
"देख, मैं वहाँ जाऊँगा! चाहे बचूँ या मरूँ, मैं वहाँ ज़रूर जाऊँगा! लेकिन अब तुझे वहाँ आने की ज़रूरत नहीं है बिहारी! तू बस यहाँ सबका ख्याल रखना! ठीक है!"
कहकर जीतू जाने के लिए निकल पड़ा। उसने एक लड़के से गाड़ी लेकर उसमें बैठ गया। लेकिन गाड़ी में पेट्रोल नहीं था। उसने एक लड़के को भेजा पेट्रोल लाने के लिए। तब तक बिहारी अपने घर चला गया। जीतू गाड़ी में ही नशे की वजह से सो गया था। पेट्रोल लेकर आने वाला लड़का लगातार बिहारी के संपर्क में था। बिहारी पहुँचकर पहले घर से कुछ पैसे उठाए। अपने सारे कार्ड्स ले लिए। झोपड़पट्टी में रहने के बावजूद वह लोग अमीर थे। एक बैग लेकर जीतू और उसके कपड़े उसने उसमें भरे। फिर वह खाने का कुछ सामान देखने लगा। फर्स्ट एड बॉक्स भी उसने अपने साथ ले लिया कुछ दवाइयों के साथ। और वह पंडाल में जहाँ गाड़ी खड़ी थी वहाँ चला आया। बैग को गाड़ी की पिछली सीट पर डालकर वह धीरज जी के घर की तरफ निकल गया। धीरज जी नींद उड़ने की वजह से बाहर चक्कर काट रहे थे। बिहारी को अपनी तरफ आते देख उन्होंने पूछा, "रात के 3 बज रहे हैं! तुम सोए नहीं? यहाँ क्या कर रहे हो?"
बिहारी ने धीरज जी को गले लगाकर कहा, "वह बहुत चाहता है आपकी बेटी को... और मैं उसे! जिस आग में वह कूदने की कोशिश कर रहा है, मैं उसमें अकेले कूदने नहीं दे सकता उसे! इसलिए उसके साथ मैं भी उस आग में कूदने जा रहा हूँ! हो सके तो आपकी बेटी को लेकर ही लौटेंगे हम! और अगर न लौटें तो हमारे नाम से भी गंगा में एक डुबकी लगा आना! बस यही कहना चाहता था मैं! चलता हूँ!"
धीरज जी: रुको... अगर उसमें एक कतरा भी जान बची हो, तब भी उसे मेरे पास ले आना! और अगर वह बच नहीं पाई, तो उसकी लाश उठाकर लाना! जब तक मैं उसे अपनी इन आँखों से नहीं देखूँगा मुझे शांति नहीं मिलेगी!
बिहारी उनकी बात सुनकर आँखों में भर आए आँसू पोंछता हुआ चला गया। गाड़ी में आकर उसने पहले फर्स्ट एड बॉक्स से क्रीम निकाली। जीतू के ज़ख्मों पर मरहम लगाकर, लड़कों की मदद से उसे पिछली सीट पर सुला दिया। और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठकर उसने एक लड़के से कहा, "तुझे मुंबई तक मेरे साथ चलना है! उसके बाद हम दोनों ट्रेन से निकल जाएँगे!" लड़का भी बिहारी की बात सुनकर तुरंत गाड़ी में बैठ गया। गाड़ी चालू कर बिहारी ने सबकी तरफ देखा, "यहाँ का ख्याल रखना हमारे लौटने तक!" बिहारी ने देखा दूर उसे धीरज जी अपने ऊपर शॉल ओढ़े दिखाई दिए। उन्हें विदा करने आए थे वह। उनकी तरफ देख बिहारी ने गाड़ी नुक्कड़ से मोड़ दी। सीएसटी स्टेशन पहुँचने के बाद बिहारी ने अब तक सो रहे जीतू को उठाया। वह लड़का तब तक टिकटें ले आया था। जीतू ने देखा वह लोग स्टेशन पर खड़े हैं, तो उसने बिहारी की तरफ देखा।
"मैंने कहा था न तुझे आने की ज़रूरत नहीं है! मैं सब सम्भाल लूँगा!"
कहते ही जीतू गिर पड़ा। उसे वापस खड़ा करते हुए बिहारी ने कहा, "हाँ, जानता हूँ... सब सम्भाल सकता है! उठा तो नहीं जा रहा खुद से!" बिहारी और दूसरे लड़के ने उसे सहारा देकर दिल्ली वाली ट्रेन में बिठाया। लड़के ने बिहारी से कहा, "भाई, आप अपना और जीतू भाई का ख्याल रखना! हम सब आपके साथ हैं! कोई भी काम हो, हमें ज़रूर याद करना भाई!" बिहारी ने उसे जाने के लिए कहा और ट्रेन चल पड़ी। बिहारी और जीतू उस लड़के की तरफ देखने लगे। बचपन से सब साथ ही बड़े हुए थे, झोपड़पट्टी की गलियों में! एक दूसरे की कमज़ोरी को जानने के साथ-साथ, एक दूसरे को मदद करने तक सब साथ ही थे! झोपड़पट्टी की लड़कियों को छेड़ने से लेकर चोरी तक सब काम उन्होंने साथ किए थे! और जब आज जीतू और बिहारी वहाँ अकेले जा रहे थे, तो लड़कों की हालत खराब थी!
जीतू बिहारी के पैरों पर सिर रखकर सो गया। उसका नशा अब भी कम नहीं हुआ था। बिहारी ने अपने शरीर को सीट के ऊपर धकेल दिया। और सोचने लगा कि हरियाणा के बारे में उसे कैसे पता चला। जीतू उसके पैरों पर सोया था, तो उसे पॉकेट में रखी चीज़ चुभ गई। उसने पॉकेट में हाथ डालकर देखा, यह जान्हवी का झुमका था, जो उसे उस गाड़ी में मिला था। बिहारी ने फिर अपने दूसरे पॉकेट में हाथ डाला जिसमें उन इंजेक्शन की रिपोर्ट रखी थी। जब वह गुजरात से निकल रहा था, तब एक लैब में उसने उस इंजेक्शन को जाँचने के लिए दिया था। पेट्रोल भरने तक उसकी रिपोर्ट भी आ गई थी, जिसे वह जल्दी-जल्दी में पढ़ नहीं पाया। जब उसने उसे खोलकर देखा, तो पता चला उसमें भारी मात्रा में ड्रग्स थीं, वह भी कई प्रकार की! इसलिए दोनों लड़कियों को होश नहीं था। वह सोती रहीं। बिहारी सब समझ चुका था, यह सब क्यों हुआ? उन लड़कियों के साथ अब आगे क्या होगा यह भी समझ चुका था। बस एक बात पर उसकी खूंटी अटक गई थी, वह था जीतू! जीतू... उस लड़की से प्यार कर बैठेगा, नहीं जानता था बिहारी! लेकिन आज तक हमउम्र होने के बावजूद, अपने बच्चे की तरह उसका ख्याल रखने वाला बिहारी, जीतू को उसकी पसंद न मिलने पर पागलों की तरह हरकतें करते नहीं देखना चाहता था, जो उसने इस एक रात में देख ली थी!
कीर्ति को धीरे-धीरे होश आने लगा था। उसने अपनी अधखुली और पूरी तरह न खुलने वाली आँखों से देखना शुरू किया। पहले तो सब धुँधला दिखाई दिया। फिर सामने बैठे उस आदमी को देख, कीर्ति ने झट से आँखें खोल दीं। और उठकर इधर-उधर देखने लगी। आदमी ने पानी की बोतल उसके सामने कर दी। कीर्ति ने ना में सिर हिलाया। उसे सब याद आया उनके साथ क्या हुआ था। वह जान्हवी की तरफ देखने लगी, जिसे फिर इंजेक्शन दे दिया गया था। जिसके असर से वह सो रही थी। कीर्ति ने सबकी तरफ देखा जो डिब्बे में बैठे हुए थे। सब सो रहे थे। सुबह के 5 बज रहे थे। कुछ लोग उतरने में थे क्योंकि स्टेशन आने वाला था। कीर्ति को बहुत दर्द हो रहा था। उसने उस आदमी की तरफ देख बाथरूम जाने का इशारा किया। तो वह उसका हाथ पकड़कर उसे बाथरूम तक ले गया। और वहीं खड़ा रहा। अंदर जाकर खून देखकर कीर्ति जोर से चिल्लाई! आस-पास के लोग उस आदमी को देखने लगे, तो उसने कहा, "अंदर कॉकरोच से डर गई होगी!" कीर्ति थोड़ी देर बाद रोते हुए बाहर आई। उस आदमी की तरफ न देख उसने अपनी सीट की तरफ जाना सही समझा। और वह बैठकर रोने लगी। जान्हवी की तरफ देख उसे और रोना आ रहा था। वह आदमी उसके पास आकर बैठ गया। उसने बैग से कुछ कपड़े निकाले और खून से सना उसका सलवार बदलकर आने को कहा। कीर्ति उसी तरह अपने आँसू पोंछकर वह कपड़े बदलने चली गई। पास वाली सीट पर बैठा एक कॉलेज वाला लड़का यह सब देख रहा था। उसने उन आदमियों की तरफ गौर से देखा। वह समझ गया था यह लोग इन लड़कियों को अगवा कर ले जा रहे हैं। पर उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह उन लोगों से पंगा ले सके। वह बस चुपचाप देख रहा था। जो आदमी जान्हवी के पास बैठा था, उसकी पैंट की पॉकेट में गन देख चुका था वह। अपनी जान तो कोई भी बचाना चाहेगा! इसलिए उसने कोई भी हलचल करने का विचार छोड़ दिया।
कीर्ति वापस आकर अपनी जगह पर बैठ गई। एक पुरानी सी सलवार-कमीज़ पहन ली थी उसने। कीर्ति को बहुत भूख लगी थी। उसने उसके पास बैठे दूसरे यात्री की तरफ देखा जो इस वक्त नाश्ता कर रहा था। खाने की चीज़ों को ताड़ती उसकी निगाहें... देख पास वाला आदमी वह उस यात्री को न देख पाएँ, ऐसे बैठ गया। कीर्ति ने नज़रें फेर लीं। इतनी ज़िल्लत वह भी खाने को लेकर कभी नहीं हुई थी उसे। गरीब थी उसकी माँ! पर दो वक्त की रोटी लोगों के झूठे बर्तन साफ़ करके कमाती थी। और अपनी बेटी कीर्ति को पालती थी। कीर्ति को माँ की बहुत याद आई। और आँसू फिर बह चले। वह भगवान से पूछना चाहती थी कि उससे क्या ग़लती हो गई जो यह सज़ा मिल रही है उसे। लेकिन उसके तड़पते मन को सुनने वाला यहाँ कोई नहीं था। दर्द बेहिसाब था, पर दर्द बाँटने वाला कोई नहीं था। कीर्ति रोते-रोते सो गई।
जान्हवी की तरफ बैठे उस गन वाले आदमी ने बाहर जाकर नाश्ता खरीदा। फिर दोनों लड़कियों को उठाकर खाने के लिए बोला। जान्हवी कीर्ति को होश में देख खुश हुई, बस भर के लिए! और फिर उसके साथ जो हुआ याद कर तड़प उठी। वह कीर्ति से नज़रें भी नहीं मिला पा रही थी। कीर्ति खुद उठकर उसके पास चली आई। कीर्ति उसके आँसू देख अपने आँसू नहीं रोक पाई और उसके गले लग रोने लगी। जान्हवी बस इतना बोल पाई, "मुझे माफ़ कर दो, कीर्ति, मेरी वजह से तुम्हारे साथ... यह सब...?"
जारी!
इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है, जान्हवी!! गलती तो इन लोगों की है, जिन्होंने हमारे साथ यह सब किया!! तुम अपने ऊपर इन सबका दोष क्यों ले रही हो!! रो मत, जान्हवी!! मैंने तुम्हें पहले ही कहा था न, यह सब हमारे नसीब में था!! इसलिए यह सब हो रहा है!
"तुम ठीक हो ना?? ज्यादा दर्द हो रहा है?? देखो, थोड़ी देर में दर्द ठीक हो जाएगा!! यह मैं क्या बोल रही हूँ!! ऐसे दर्द कभी ठीक नहीं होगा!! शरीर ठीक हो जाएगा, पर मन पर लगे घाव, वे कैसे ठीक होंगे!! कीर्ति, तुम्हें पता है ना, हम यहाँ नहीं रह सकते!! इन लोगों के साथ नहीं रह सकते!! तुम्हें यहाँ से भागना होगा!! मैं नहीं जा सकती, क्योंकि मुझे इनके पास रहना होगा!! मैं पहले भी सब सह चुकी हूँ!! लेकिन तुम, तुम्हारे आगे तुम्हारी पूरी ज़िन्दगी पड़ी है!! तुम वहाँ नहीं जाओगी जहाँ ये लोग हमें ले जाना चाहते हैं!! तुम भागने का मौका मिलते ही यहाँ से भाग जाना!! मैं तुम्हारी मदद करूँगी!! जाओगी ना???"
कीर्ति: "तुने सोचा भी कैसे लिया कि मैं तुझे अकेली छोड़कर चली जाऊँगी!! और तुम्हारे बाबा से क्या कहूँगी? हाँ!! कि तूने मुझे बचाने के लिए अपने आपको उन्हें सौंप दिया!! तू ऐसा कह भी कैसे सकती है!! हम दोस्त हैं, जान्हवी!! दोस्त एक-दूसरे के लिए जान देते हैं, उनकी जान नहीं लेते!! इस वक्त तू और मैं, हम दोनों बराबर खड़े हैं!! अगर भागने का मौका मिला तो तुझे मेरे साथ भागना होगा!! हम दोनों इनके चंगुल से भाग जाएँगे!!"
जान्हवी: "तु मेरी बात समझ क्यों नहीं रही है!! हम इनका मुकाबला नहीं कर सकते!! कल उस औरत ने कोशिश की थी!! मुझे भगाकर वह तुझे भी बचाना चाहती थी!! पर तुझे पता है उसके साथ क्या हुआ? इसने अपनी बंदूक से उसके पेट में गोली मारी!! और वह मर गई!! उसे जानवरों की तरह उठाकर कूड़े में फेंक दिया इसने! ये लोग इंसान नहीं हैं, कीर्ति!! ये लोग जानवर हैं!! राक्षस हैं!! जो सिर्फ़ औरत को उपभोग की नज़र से देखते हैं!! मुझ में इनका सामना करने की हिम्मत नहीं है!! तुम में है!! तुम मुझसे ज़्यादा हिम्मत रखती हो!! तुम यहाँ से भाग सकती हो!! किसी भी स्टेशन पर उतरकर किसी से मदद माँग सकती हो!! मुझे प्रॉमिस करो, तुम ऐसा मौका मिलते ही मुड़कर पीछे नहीं देखोगी!! जल्दी से भाग जाओगी!! जल्दी प्रॉमिस करो!!"
कीर्ति को क्या कहें, क्या करें, कुछ सूझ नहीं रहा था!! उसने अभी तक कुछ नहीं खाया था और ना ही जान्हवी ने!! पर खाना ज़रूरी था!! आँतों से आवाज़ आने लगी थी अब तो!!! ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी था कि पेट को भरा जाए!! ताकि जब भागने का मौका मिले, उनकी कोशिश बेकार ना जाए!! जान्हवी उसकी तरफ देख रही थी!! तभी पीछे से वह आदमी चिल्लाया, "खाने के लिए बिठाया है, बातें करने के लिए नहीं!! चलो अपनी जगह पर!!"
कीर्ति उठकर अपनी जगह पर चली आई!! उसके चिल्लाने से दोनों डर गई थीं!! कीर्ति ने "ठीक है," कह दिया था अपनी पलकें झपकाकर!! कीर्ति ने कटोरी में रखी कचोरी की तरफ़ देखा और खाना शुरू किया!! जान्हवी भी उसे खाता देखकर खाने लगी!! दोनों ने कल सुबह से कुछ नहीं खाया था!! बस बेहोश थीं दोनों!! अब जब भूख थी, खाने को था, पर खाने की इच्छा मर चुकी थी!! फिर भी पेट भरना ज़रूरी था!!
सुबह हो गई थी!! सूरज निकल आया था!! घना अंधेरा छटकर हर जगह रोशनी फैल गई थी!! पर कुछ लोग ऐसे थे, जिनकी ज़िन्दगी में अंधकार अब भी था!! जीतू और बिहारी ट्रेन में बैठे थे!! यह सफ़र बहुत मुश्किल होने वाला था उनके लिए!! वे लोग मुंबई से अभी निकले थे!! जबकि जान्हवी और कीर्ति दिल्ली बस पहुँचने ही वाले थे!! जीतू का नशा उतर चुका था!! दिल में तुफ़ान लिए वह खिड़की से बाहर देख रहा था!! हवा के थपेड़ों से चेहरे पर किसी मार का एहसास हो रहा था!! लेकिन ठंडी हवा से सुकून भी मिल रहा था!! बिहारी को फ़ोन आ गया!! इस लिए बिहारी की तरफ़ उसने नज़रें घुमाईं।
"हाँ... और क्या पता चला...???? नहीं, बस ट्रेन में है!!! जो भी पता चले ज़रूर बताना!!"
जीतू: "किसका फ़ोन था??"
बिहारी: "पुलिस स्टेशन से फ़ोन था!! उन्हें उस आदमी की लाश रास्ते के किनारे मिली है, जो कल जान्हवी और कीर्ति को उस वैन में ले जा रहे थे!! उनमें से एक नीचे गिर गया था!!"
जीतू: "क्या उसकी पहचान मिली? कौन है वह???"
बिहारी: "पुलिस ने यह नहीं बताया!! लेकिन कहा है कि अगर हम वहाँ जा रहे हैं तो संभलकर रहें!!"
जीतू: "पुलिस को किसने बताया हम वहाँ जा रहे हैं??"
बिहारी: "बस्ती के लोगों ने!! कल धीरज चाचा ने जब एफ़.आई.आर. लिखवाई थी, तब पुलिस झोपड़पट्टी में आई थी!! उन्होंने पूछताछ की थी सबसे!!"
जीतू: "पुलिस स्टेशन का इंचार्ज कौन है???"
बिहारी: "वर्मा साहब!!! क्यों???"
जीतू: "तु जानता है ना वर्मा को!! वह ना जाने कितने दिनों से मुझसे बदला लेने की कोशिश में लगा हुआ है!! उसे यह अच्छा चांस मिल गया सबको सताने का!!"
बिहारी: "तु टेंशन मत ले, उसका इलाज है मेरे पास!!"
जीतू: "कैसा इलाज???"
बिहारी ने अपना फ़ोन निकालकर कुछ ढूँढा!! फिर मोबाइल जीतू के हाथ में दे दिया!! "यह वर्मा है???" जीतू के मुँह से निकला!! "हाँ...!! और यही है जिसे देखकर वह चुप बैठने वाला है!!" वर्मा का किसी लड़की के साथ वीडियो बना हुआ था! जो सेफ़्टी के लिए बिहारी ने अपने पास रखा था!! वह जानता था वर्मा साहब जीतू से बदला लेना चाहता है!! इसलिए कभी काम आ जाएगा सोचकर उसने रखा था!! बिहारी ने वर्मा साहब को वह वीडियो फ़ॉरवर्ड किया!! और नीचे लिखा, "अपनी बीवी और बेटी को खुश देखना चाहते हो तो, झोपड़पट्टी में दोबारा जाने की कोशिश मत करना!! वरना यह वीडियो तुम्हारी बीवी के पास पहुँच जाएगा!!" जीतू ने हैरानी से बिहारी की तरफ़ देखा!! "क्या-क्या कांड करते रहते हो मेरी पीठ पीछे!! मुझे तो अंदाज़ा भी नहीं था, ऐसा कुछ होगा???"
बिहारी: "यह मुंबई शहर है, जीतू... यहाँ बड़े-बड़े लोगों की पहचान के साथ, अपने पास उनकी कमज़ोरियों का होना भी बहुत बड़ी बात है!! अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो वह हमें चींटी की तरह मसल देंगे!! और किसी को पता भी नहीं चलेगा!! यह दुनिया ऐसे ही चलती है!! इसलिए बोल रहा हूँ, मत पंगा ले उनसे!! जहाँ तू जा रहा है, वह इस समुंदर की बहुत बड़ी मछली है!! जिसके पास जाने का मतलब है, उसे यह कहकर बुलाना कि हम तुम्हारा चारा बनने आए हैं!! जीतू, अभी भी देर नहीं हुई है, तू इस बारे में एक बार सोचता क्यों नहीं???"
जीतू ने चलती ट्रेन में उसका गला पकड़ लिया!! "ए... क्या लगा रखा है... मत जा, मत जा...??? मैंने कहा था न, तू नहीं आएगा तो भी चलेगा!! फिर तू आया क्यों??? मुझे भाषण देने!!! देख, मैं तुझे साफ़-साफ़ बता रहा हूँ, तू कितनी भी कोशिश करेगा, मुझे रोकने की, उतना ही मेरी वहाँ जाने की प्यास और बढ़ेगी!! तू छोड़ दे, मेरे पीछे आना!! क्योंकि तू समझना ही नहीं चाहता, मैं क्या चाहता हूँ!!"
"मैं तुझे खुश देखना चाहता हूँ!! मुस्कुराते हुए देखना चाहता हूँ!! अपनी गली के नुक्कड़ पर तुझे लड़कों के साथ मस्ती करते हुए देखना चाहता हूँ!! जब तू चोरी करता है, तो तेरे सामान को चोर बाजार में बेचकर पैसे कमाना चाहता हूँ, हम दोनों के लिए!! यह जो तू कर रहा है, इससे मुझे खुशी नहीं मिल रही!! क्योंकि तू खुश नहीं है!! क्या वह कल की लड़की तेरे लिए आज सब कुछ हो गई!! हमारी दोस्ती से भी ज़्यादा वह मायने रखती है तेरे लिए!! क्या इसलिए मेरी बातों का तुझ पर कोई असर नहीं हो रहा??? तो ठीक है, फेंक दें मुझे अभी इसी ट्रेन से!! क्योंकि जब तू मेरी बात नहीं सुनता, तो मेरा भी कुछ ऐसा ही दिल करता है!!"
जीतू ने हार मानते हुए उसकी तरफ़ देखा, क्योंकि वह दूसरी ओर ही मुड़ गया था!! "बिहारी, तू गलत सोच रहा है!! मेरे कहने का यह मतलब नहीं था!! तू जानता है ना मैं यह नहीं कहना चाहता था!! जान्हवी को तुझसे कंपेयर करने की ज़रूरत नहीं है दोस्त!! क्योंकि तुम दोनों मेरे लिए बराबर हो!! पर तू समझने की कोशिश क्यों नहीं करता, एक जुनून सा सवार हो गया है मुझ पर!! मैं बस उसे बचाना चाहता हूँ!! जो दर्द, जो तकलीफ़ वह बचपन से झेलती आई है, आगे भी उसे वह ना मिले, इसलिए उसे बचाना चाहता हूँ!! चाहे वह मेरे साथ ना रहे, कभी मुझसे बात ना करे, फिर भी बचाना चाहता हूँ!!"
बिहारी दूसरी तरफ़ मुँह करके खड़ा था!! जीतू ने पहली बार उसका गला पकड़ा था!! उसे तकलीफ़ हुई तो थी!! ट्रेन के डिब्बे में बैठे लोग इन दो अजीबोगरीब लड़कों को कभी झगड़ते देखते, तो कभी आराम से बात करते देखते! बिहारी को कुछ ना कहते देख जीतू ने उसे पीछे से गले लगाया!! तो बिहारी जोर से चिल्लाया, "यह क्या कर रहे हो तुम??? लोग ग़लत समझेंगे, छोड़ मुझे...???" वे लोग हँस पड़े उन दोनों की नौटंकी पर!! "तब तक नहीं छोड़ूँगा जब तक तू मुझे माफ़ नहीं करेगा!! सॉरी यार!! लव यू!! तू जानता है ना मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूँ!!" सीट पर बैठे बाकी के लोग हँसने लगे!! बिहारी जो थोड़ी देर पहले गुस्सा था, वह जीतू की इस नौटंकी पर हँसे बगैर रह नहीं पाया!! जीतू की तरफ़ देख उसने एक थप्पड़ उसे मारा!! "फिर कभी ऐसा कहा कि मैं यहाँ से चला जाऊँ, तो मैं तेरी शक्ल नहीं देखूँगा कभी!!" जीतू ने मुस्कुराते हुए कहा, "तू मान गया है ना!! या मैं और प्यार करूँ???" बिहारी उसे घूरते हुए बैठ गया!! "बड़ा आया, अपना यह प्यार उसके लिए बचाकर रख जिसके लिए रावण की लंका में पैर रखने जा रहा है!!"
"जब तू साथ है, तो लंका में पैर भी रखूँगा!! और उन सब से भी लड़ लूँगा!! मेरी बकवास को भूल जा!!"
बिहारी और जीतू फिर एक बार एक-दूसरे की तरफ़ देख हँस पड़े!! "तू नहीं सुधरेगा!!" कहकर बिहारी ने पानी की बोतल मुँह से लगा ली!! कुछ देर के लिए ही सही, जीतू मुस्कुराया था, यह बात बिहारी को सुकून दे रही थी!!
दिल्ली स्टेशन आने वाला था!! उन तीन आदमियों ने अपनी बैग्स लेकर सामान समेटना शुरू किया!! उन्होंने अब कीर्ति और जान्हवी को इंजेक्शन नहीं दिया!! और कोई नहीं चिल्लाया उन पर!! दिल्ली स्टेशन पर उतरकर बस दोनों ने कीर्ति और जान्हवी का हाथ कसकर पकड़ लिया!! गन वाला आदमी उन दोनों के पीछे चल रहा था!! भीड़ से निकलते हुए उन्होंने हरियाणा जाने वाली ट्रेन की ओर चलना शुरू किया!! ट्रेन बस छूटने वाली थी!! जान्हवी ने कीर्ति की ओर देखकर इशारा किया!! और उसे भागने को कहा, कीर्ति उसे देखकर भी अनदेखा करने लगी!! वह उसे उन लोगों के साथ अकेली को छोड़कर भागना नहीं चाहती थी!! कीर्ति ने ध्यान नहीं दिया!! पर उसका एक और कारण था, उस आदमी ने उसका हाथ इस तरह पकड़ रखा था कि वह चाहे तो भी छुड़ा नहीं सकती थी!! कीर्ति चलती रही!! वे सब लोग हरियाणा की ट्रेन में आ गए!! इस ट्रेन में आते ही गन वाले आदमी ने दोनों को बाथरूम में ले जाकर इंजेक्शन लगाया!! और दोनों को लाकर वहाँ सीट पर सुला दिया!! जान्हवी और कीर्ति के हाथ आया यह भी मौका हाथ से छूट गया!! दोनों वहाँ से भाग नहीं पाई!! बस गन वाला आदमी बहुत खुश था!! किसी का फ़ोन आते ही वह अपनी जगह पर खड़ा होकर झुक गया!! "मालिक, दोनों छोरियाँ हमारे साथ ही हैं!! अभी नशे में हैं!! कल शाम तक आपके सामने हाजिर हो जाएँगी!! मैंने एक औरत की बलि देनी पड़ी रास्ते में मालिक!! आप संभाल लीजिएगा!! मेरे लिए कोई और हुक्म???" सामने से जो कहा गया, वह सुनकर गन वाला आदमी फिर झुक गया!! और अपनी जगह पर जाकर बैठ गया!! जान्हवी और कीर्ति की तरफ़ नज़र डालकर वह आदमी उस सीट पर पैर फैलाकर बैठ गया!! ट्रेन में सफ़र करने वाला हर आदमी, हर औरत, या फिर बच्चे उस गन वाले आदमी के सामने झुककर प्रणाम कर रहे थे!! और फिर अंदर जा रहे थे!! किसी ने भी आँख उठाकर जान्हवी और कीर्ति की तरफ़ नज़र नहीं उठाई!!
जारी!!!
कीर्ति को बहुत जल्दी होश आ गया। क्योंकि उनके पास बची दवा का असर खत्म हो गया था। अब वह सब देख और समझ रही थी। गन वाला आदमी कोई साधारण आदमी नहीं था। यह उसे अब तक पता चल चुका था। क्योंकि ट्रेन में चढ़ने वाले यहाँ के लोग उसे पहचानते थे। वह झुककर उसके सामने से ऐसे भाग जाते थे, जैसे कोई राक्षस उनके सामने बैठा हो और ज्यादा देर खड़े रहने पर वह उन्हें खा जाएगा। जो भी स्टेशन आता, लोग उसे सामने बैठे देख दूसरे डिब्बे में चले जाते थे। स्कूल की लड़कियाँ जो गाँव से आकर शहर में पढ़ती थीं, उसके दिखते ही तितर-बितर हो जाती थीं, कि उसकी नज़र उन पर न पड़े। कीर्ति को जल्दी होश में आता देख उस आदमी ने उसके हाथ बाँध दिए। कुछ लोग जो चुपचाप इस तमाशे को देख रहे थे, कीर्ति को ऐसे बाँधने पर उनका दिल पसीज गया। कीर्ति उस मेमने की तरह लग रही थी, जिसे कुर्बानी के लिए बाँधकर ले जाया जा रहा हो। पर उस आदमी के सामने बोलने की किसी की हिम्मत नहीं थी।
रोहतक जिले में एक गाँव है राम नगर, जहाँ इस वक्त वह सब लोग उतर चुके थे। कीर्ति के साथ-साथ जान्हवी को भी होश आ चुका था। वह भी आस-पास सब देख रही थी। नई जगह, नए लोग! और उनके साथ चलने वाला वह गन थामे हुए राक्षस जैसे दिखने वाला आदमी! कीर्ति को इतना गुस्सा आ रहा था कि छूटते ही वह सबसे पहले उसे मार दे, पर अपनी तरफ़ देख उसकी सारी हिम्मत गल जाती। उसने जान्हवी की तरफ़ देखा जिसका चेहरा बहुत ही मुरझा हुआ दिख रहा था। दोनों के स्टेशन के बाहर आते ही एक जीप उनके सामने आकर रुकी। लड़कियों को उसमें बिठाकर वह तीन लोग भी बैठ गए और जीप चल पड़ी। जीप एक भरे हुए बाज़ार की तरफ़ आ चुकी थी। उस बाज़ार के बीचोबीच बहुत बड़ी हवेली थी। उस हवेली के सामने आकर वह जीप रुक गई। लड़कियों को बाहर निकालकर, वह गन वाला आदमी उस हवेली के अंदर ले आया। तभी किसी ने आवाज़ लगाई,
"रे, कैसे हो भूपति सिंह! बहुत दिनों बाद दिखाई पड़ रहे हो...?"
"राम राम सरपंच जी। काम से गया था, आज ही लौटा हूँ। ये नई छोरियाँ हैं। मालिक से मिलाने ले जा रहा हूँ!"
"फिर तो जाओ भाई। मैंने बीच में रोड़ा डाल दिया। कहीं तुम्हारे मालिक को गुस्सा न आ जावे!"
सरपंच ने मुँह में भरा पान एक तरफ़ थुंकते हुए कहा और अपनी बड़ी सी सफ़ेद पगड़ी के साथ आगे बढ़ गया। जान्हवी और कीर्ति ने पहली बार उस इंसान का नाम सुना जिसने उनकी ज़िन्दगी नर्क बना दी थी। पर अब आगे और क्या-क्या देखना था, यह जानना बाकी था। हवेली की सीढ़ियाँ चढ़कर जब वह सब बाहर दरवाज़े पर पहुँचे तो बहुत से आदमी अपनी बड़ी-बड़ी बंदूकों के साथ जान्हवी और कीर्ति को दिखाई दिए। जान्हवी ने डरकर कीर्ति का हाथ पकड़ लिया। पीछे वाला आदमी उन्हें धक्का देकर आगे बढ़ने के लिए बोल रहा था। भूपति सिंह उनको मालिक के पास ले आया। वह मालिक अंदर रोशनी भरे कमरे में बैठा था। बहुत सी लड़कियाँ उसके आस-पास बैठी थीं। जान्हवी और कीर्ति डर से काँप रही थीं। भूपति ने कहा, "मालिक, लड़कियों को ले आया हूँ!" तो जो सामने गद्दे पर बैठा था वह उठकर लड़कियों के पास आया। उसके पास आते-आते, जान्हवी और कीर्ति ने देखा वह आदमी नहीं, किन्नर है! उस किन्नर ने पूरा श्रृंगार कर रखा था। दिखने में बेहद खूबसूरत थी वह किन्नर! यहाँ सिर्फ़ उसका राज चलता था। यहाँ क्या, हर जगह, देश-विदेश में भी उसका ही राज चलता था। जान्हवी और कीर्ति उसे अपने पास आते देख सिकुड़ गईं। लड़कियों के पास जाकर उसने उन्हें सूँघा, फिर भूपति के पास आकर सबके सामने उसे थप्पड़ मारा। थप्पड़ इतनी जोर से था कि बाहर खड़े बंदूक पकड़े लोगों तक उसकी आवाज़ पहुँच चुकी थी। भूपति नीचे गिर गया। किन्नर ने उसे धक्का देकर नीचे गिरा दिया और उसकी गर्दन पर पाँव रखकर कहा, "हिम्मत कैसे हुई लड़कियों को छूने की! तेरी हवस संभाली नहीं गई न तुझसे! भूपति, तुझे इन लड़कियों को सेफ़्टी के साथ यहाँ लेकर आने के लिए कहा था, तूने तो रास्ते में ही इनकी इज़्ज़त लूट ली! किसने हक़ दिया ऐसा करने का! मैंने कहा था न मुझे लड़कियाँ कोरी चाहिए!" भूपति थर-थर काँप रहा था। उसने हाथ जोड़ते हुए कहा, "माफ़ कर दो मालिक, खुद को रोक नहीं पाया! आगे से ऐसी ग़लती नहीं होगी! इस बार माफ़ कर दो मन्ने मालिक!"
किन्नर गुस्से में थी, फिर भी हँसने लगी। उसकी हँसी कर्कश थी। जान्हवी और कीर्ति ने आँखें बंद कर ली उसकी हँसी सुनकर। वह फिर उनके पास आई। "लड़कियाँ खूबसूरत हैं! तेरा मन डोल गया, इसका मतलब है, इनसे भारी क़ीमत मिलेगी! जा, इन्हें लाने के लिए तुझे माफ़ किया!"
"मालिक, आपने पैसे तो दिए नहीं? और राजेन्द्र भी मारा गया, इन्हें लाते वक़्त?"
"तूने अपना काम ठीक से नहीं किया! राजेन्द्र की मौत का ज़िम्मेदार तू है! तू पहली बार अपने काम को अच्छे से नहीं कर पाया! तू बूढ़ा तो नहीं हो गया भूपति? लगता है तुझे इस काम से छुट्टी देनी पड़ेगी?"
"नहीं मालिक! मैं और अच्छे से करूँगा आगे से! मन्ने इस बार माफ़ कर दो!"
"राणा... तूने सुना नहीं... भूपति ने क्या कहा... इसे माफ़ी चाहिए...? एक तो मेरी लड़कियों को यहाँ पहुँचने से पहले ही इसने कुचल दिया और अब माफ़ी माँग रहा है! इसे इसकी माफ़ी दे दे जा!"
राणा जो भूपति की तरह ही किन्नर का ख़ास था, वह भूपति के पास पहुँच गया। राणा का शरीर एक पुष्ट पहलवान की तरह था। उसने एक ही हाथ से भूपति की गर्दन पकड़ ली। भूपति का इतना दबदबा होने के बावजूद वह किन्नर से डर रहा था। उसने अपनी जान की भीख माँगी, "मन्ने माफ़ कर दो मालिक... आगे से ऐसा नहीं होगा! मैं और लड़कियाँ खोजकर लाऊँगा थारे वास्ते!"
राणा बस उसकी गर्दन मरोड़ने ही वाला था कि किन्नर इठलाती-बलखाती भूपति के पास पहुँची। "छोड़ दे राणा... अब यह कभी भी मेरी लड़की को आगे से छूने की हिम्मत नहीं करेगा! इस बार तू इस लड़की की वजह से बच गया! मुझे यह बहुत पसंद आ गई थी! क्या नाम है इसका...? अ... लड़की... तेरा नाम क्या है?" किन्नर की बातों का ढंग और शैली देखकर जान्हवी अपनी जगह पर ही काँप रही थी। उसने गर्दन उठाकर देखा तक नहीं यह बात किसके बारे में हो रही थी। पर हाय री किस्मत... यह सब उसी के बारे में बोला जा रहा था! किन्नर फिर बलखाती उसके पास आई और उसके शरीर पर दुपट्टा न पाकर उसने राणा को इशारा किया। राणा ने अपनी पगड़ी निकालकर किन्नर के सामने पेश की, तो उस पगड़ी को खोलकर किन्नर ने उसे जान्हवी के गर्दन में डाल दिया। जान्हवी घबराकर पीछे हट गई। किन्नर उसके करीब आ गई। जैसे-जैसे जान्हवी पीछे हटने लगी, वह किन्नर उसके पास जाती रही। पीछे खड़ी लड़की से टकराने के बाद जब जान्हवी रुक गई, तो किन्नर ने उसके एकदम पास जाते हुए कहा, "तुझे शर्म आ रही थी न तेरे ऊपर दुपट्टा न होने की वजह से! लेकिन तब क्या करेगी, जब लोग तेरी इस खूबसूरती पर बोली लगाएँगे! हमम्म... तू अभी भोली है! जब एक बार तू बिक जाएगी, यह भोलापन, यह सादगी, अपने आप मिट्टी हो जाएगी! देख, मैं कहना तो नहीं चाहती, पर तुझे... मैंने अपने पास इतनी दूर से बुलाया है! मुझे तू उसी दिन भा गई थी, जब तुझे मैंने स्टेशन पर भीख माँगते देखा था! पर उस दिन, वह बूढ़ा बीच में आ गया और तब तू बहुत छोटी थी! इसलिए मैंने तेरे बड़े होने का इंतज़ार किया! तू समझ रही है न मेरी बात! तू साथ देगी तो तुझे रानी बनाकर रखूँगी इस महल में और नहीं, तो तुझे दिन का उजाला देखना भी नसीब नहीं होगा! मैं जानती हूँ तू मेरी बातों को अच्छे से समझ रही है! तेरी यह दोस्त तुम्हारी वजह से यहाँ फँसी है! जब तक तू न कहेगी, यह यहाँ से नहीं जाएगी! अब फ़ैसला तेरे हाथ में है!... अरे हाँ... मैं तो भूल ही गई... तूने अपना नाम नहीं बताया अभी तक...?"
जान्हवी: "मैं जान्हवी हूँ! देखिए, आप अच्छी इंसान लगती हैं! हम दोनों को यहाँ से जाने दीजिए! हमें यहाँ नहीं रहना! हमारे घरवाले परेशान हो रहे होंगे! मैं आपके सामने हाथ जोड़ती हूँ, जाने दीजिए हमें!"
किन्नर जोर-जोर से हँस पड़ी। सब कुछ कहने के बाद भी इस लड़की के पल्ले कुछ नहीं पड़ा! किन्नर ने राणा के कानों में कुछ कहा। राणा उन दोनों लड़कियों को अपने साथ एक कमरे में ले गया। उस कमरे में दोनों को धकेलकर वह बाहर आया। किन्नर ने उसकी तरफ़ मुड़ते हुए कहा, "मुझे कोई भी ग़लती नहीं चाहिए! कल मेरे मेहमान आने वाले हैं! तब तक इन लड़कियों की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है राणा!"
राणा: "आप बेफ़िक्र रहिए हुकूम! लड़कियाँ मेरे पास सुरक्षित हैं!"
किन्नर: भूपति के पास आते हुए, "तूने काम अच्छा किया, पर अधूरा! इसके पैसे नहीं मिलेंगे तुझे! क्योंकि तूने मेरी बरसों की मेहनत को यहाँ पहुँचने से पहले ही झूठा कर दिया! मैं तेरी ज़िन्दगी बख्श रही हूँ! अगर मेरे साथ काम करना है तो इसी तरह करना होगा जैसा मैं चाहती हूँ! तुम अब जा सकते हो भूपति!"
भूपति: "मालिक, पर आपने पहले ऐसा तो किसी लड़की के लिए नहीं कहा! आज ही क्यों...?"
किन्नर: "यह बात तू नहीं समझेगा भूपति... वह लड़की ख़ास है! उससे पुराना हिसाब है मेरा!"
भूपति के पेट में जोर से घूँसा मारकर किन्नर आगे बढ़ गई। वह अपने रूम की तरफ़ चल दी, तो वहाँ बैठी सारी लड़कियाँ भी उसके पीछे-पीछे चल दीं। उन्होंने रूम में जाकर किन्नर को सजाना शुरू किया। कोई उसका मेकअप कर रही थी, तो कोई उसके नाखूनों पर रंग लगा रही थी। कोई उसके बाल बना रहा था, तो कोई उसके पाँव दबा रही थी। किन्नर ने खुद को आईने में देखा और अपनी सुंदरता पर खुद ही इतराने लगी।
इस किन्नर का नाम था शालिनी। शालिनी का असली नाम था शैलेन्द्र बक्षी। बचपन में लड़के के रूप में जन्मी शालिनी बड़े होते ही समझ गई, वह स्पेशल है। उसे लड़कों की तरह नहीं, लड़कियों की तरह सजने-संवरने में रुचि थी। इसलिए अपने घर को उसने खुद ही छोड़ दिया। फिर वह एक गाँव आई जिसका नाम था भरतपुर। यह गाँव महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में था, जहाँ इत्तेफ़ाक़ से जान्हवी और उसके घरवाले रह रहे थे। जान्हवी जहाँ अपने छोटे और सुखी परिवार के साथ बहुत खुश थी, वहाँ उस गाँव में जाकर शालिनी ने जान्हवी के सुखी परिवार को ग्रहण लगा दिया।
जारी...
जीतू बिहारी के साथ गुजरात पहुँच पाया था। उसे नहीं पता था कितनी देर लगेगी। पर ट्रेन में पुलिसवालों का आना-जाना बढ़ गया था। यह देख उसने अपने सामने बैठे एक आदमी से पूछा, "यह इतनी पुलिस क्यों है ट्रेन में? आम तौर पर तो इतनी सुरक्षा नहीं रहती?"
"कल रात कोटा स्टेशन पर एक औरत की लाश मिली है। गोली लगी है, इसलिए किसी ने उसका खून किया ऐसा दिखाई पड़ रहा है। औरत कोई मामूली इंसान नहीं थी; पुलिस में थी। इसलिए इतनी सिक्योरिटी है। वह लोग जांच करने की कोशिश कर रहे हैं, यह सब किसने किया और उस औरत को मारने की असली वजह क्या थी?" आदमी ने कहा।
बिहारी: "लाश कहाँ मिली?"
आदमी: "लाश स्टेशन से बाहर एक कूड़ेदान में मिली है। इसका मतलब वह औरत स्टेशन से बाहर भागी थी बचने के लिए, पर गोली के आगे किसकी चली है जो उसकी चली! बेचारी मारी गई।"
बिहारी: "नाम क्या था उस औरत का? और किसी ने देखा नहीं यह सब होते हुए?"
आदमी: "कल बहुत बारिश हो रही थी, इसलिए बाहर कम ही लोग थे। ऐसा इस न्यूज़पेपर में लिखा है। और तो और, एक रिक्शा वाले ने देखा था, पर वह भी अंधेरे की वजह से कुछ देख नहीं पाया। पर उसने बयान में यह बताया कि उसके साथ एक लड़की थी, कुछ सोलह-सत्रह साल की। उस लड़की का कोई अता-पता नहीं है।"
बिहारी ने वह न्यूज़पेपर उस आदमी के हाथ से छीन लिया और देखने लगा। जीतू भी अपनी जगह से उठकर बिहारी के पास पहुँचा। उन्होंने दोनों ने वह न्यूज़ ठीक से पढ़नी शुरू की।
"क्या जो मैं सोच रहा हूँ, तू भी वही सोच रहा है?" बिहारी के कहते ही जीतू ने हाँ में सिर हिलाया। और वे दोनों कोटा आने का इंतज़ार करने लगे। अब उन्हें कोटा स्टेशन उतरकर ही पता करना था आखिर क्या हुआ था उस स्टेशन पर।
जान्हवी और कीर्ति उस अंधेरे कमरे में बंद हो गई थीं। जान्हवी सोचने लगी कि उसने इस किन्नर को कहीं तो देखा है, पर कहाँ देखा है उसे याद नहीं आ रहा था। उसने बहुत सोचने की कोशिश की, पर दिमाग पर जोर डालने के बाद भी याद नहीं कर पाई।
कीर्ति ने उसे खोया हुआ देख पूछा, "क्या सोच रही है जान्हवी? तू इतनी खोई हुई क्यों है?"
"इस किन्नर का मुझसे पहले से कोई नाता है। हम पहले भी मिल चुके हैं। ऐसा लग रहा है मैं उसे जानती हूँ, पर कुछ याद नहीं आ रहा। आखिर क्या है जो मैं नहीं जानती?"
"तूने ही कहा ना कि तू उसे पहले से जानती है। कहीं ऐसा तो नहीं धीरज काका को मिलने से पहले तू इससे कहीं मिली हो और अब तुझे याद नहीं आ रहा हो?"
"मैं जब गाँव से भागी थी, तब मेरे पीछे कोई मुझे पकड़ने के लिए भाग रहा था। और मेरी इस आँख पर चोट लगने की वजह से मैं कुछ देख नहीं पा रही थी। इस आँख में इतना दर्द हो रहा था कि दूसरी आँख से भी मुझे धुंधला दिखाई दे रहा था तब। अब मुझे बस यह याद आ रहा है कि उस दिन मेरी आँख पर जब किसी ने मारा था, उसने साड़ी पहनी थी; वह नीले रंग की साड़ी थी। और उसकी हँसी बहुत अजीब थी।"
"जैसा तू बता रही है, कहीं यह वही तो नहीं?"
"पता नहीं! कुछ याद नहीं आ रहा। बस वह नीली साड़ी याद आ रही है।"
जान्हवी: "कीर्ति, वह मुझसे कुछ करवाना चाहती है। अगर मैं मान जाऊँगी तो वह तुझे छोड़ देगी। तू चली जा यहाँ से; इस तरह तू बच जाएगी। और मेरे लिए किसी से मदद माँग सकेगी।"
कीर्ति: "वह तुझसे क्या करवाना चाहती है, तेरी समझ में भी आ रहा है या नहीं? वह हमसे और बुरा काम करवाएगी। और तुझे क्या लगता है तेरे मानने पर वह मुझे छोड़ देगी? नहीं! उसने इतनी दूर से हमें यहाँ मँगवाया है। वह तुझसे सौदा ज़रूर कर रही है, पर वह हम दोनों को यहाँ से जाने नहीं देगी।"
जान्हवी: "हमारी इज़्ज़त तो लूट भी चुकी है। अब खोने को हमारे पास बचा ही क्या है? जब तक हम उसकी बात नहीं मानेंगे वह हमें यहाँ से बाहर आने नहीं देगी; खाने को भी नहीं देगी। इस तरह हम ज़िंदा नहीं रह सकते।"
कीर्ति: "तुझे यह सब कैसे पता कि वह यह सब करेगी?"
जान्हवी: "मैंने देखा है, कभी-कभी टीवी पर। पर खुद के साथ भी कभी ऐसा होगा सोचा नहीं था। बाबा ने एक बार बताया था कि ऐसे लोगों से दूर रहना। बाबा... कितने परेशान हो रहे होंगे वह! मुझे सब जगह ढूँढ़ रहे होंगे। दिया भी परेशान हो रही होगी। उन्हें तो यह भी पता नहीं मैं यहाँ कितनी दूर पहुँच चुकी हूँ। कीर्ति, मैं एक बार उस किन्नर से बात करके देखूँ। अगर उसमें थोड़ी भी इंसानियत होगी, तो वह तुझे छोड़ देगी।"
कीर्ति: "उसमें इंसानियत जैसी कोई चीज़ नहीं है जान्हवी! तूने देखा नहीं, उसने उस भूपति को, जो उसका खास नौकर है, उसे किस तरह मारा, सबके सामने! हमें कुछ और सोचना होगा; यहाँ से भागने के बारे में सोचना होगा।"
जान्हवी: "उनके पास बड़े-बड़े हथियार हैं। तूने देखा नहीं। अगर हम यहाँ से एक कदम भी हिलते हुए दिखें उन्हें, तो वह हम दोनों को गोली मार देंगी।"
तभी दरवाज़ा खुला और राणा अंदर आया। उन दोनों को पकड़कर वह बाहर ले आया। किन्नर ने उन दोनों की तरफ देखते हुए कहा, "लड़कियों, इन दोनों को हमारे यहाँ की मेहमाननवाज़ी भी दिखाओ। तैयार करो इन्हें और हाँ, कुछ खाने को भी दे देना।" किन्नर अपनी जगह से उठकर जान्हवी के बेहद करीब आ गई। "जान्हवी, तुम्हारी यह आँख कैसी है अब? ठीक तो है ना? तुम्हें दर्द तो नहीं हो रहा? मैंने सुना कि तुम इस आँख से देख नहीं सकती। क्या यह बात सच है?"
किन्नर के करीब आने पर जान्हवी डर कर काँपने लगी। उसने उसकी उस आँख पर हाथ फेरा तो जान्हवी ने अपना चेहरा उससे दूर कर लिया।
"इतना डरोगी तो आगे क्या करोगी? तुम्हें मुझसे डरने की ज़रूरत नहीं है जान्हवी! मैं तुम्हें कुछ नहीं करूँगी। बस मेरी बात मान जाया करो। मुझे तुमसे और कोई शिकायत नहीं है। मैंने पहले ही कहा ना, मैं तुम्हें रानी बनाकर रखूँगी।"
"मैंने भी पहले ही कहा था, मुझे यहाँ नहीं रहना। आप हम दोनों को यहाँ से जाने क्यों नहीं देती? आप ग़लत कर रही हैं मेरे साथ।"
"और जो मेरे साथ हुआ, वह ग़लत नहीं था? तब तो किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ा; किसी ने नहीं कहा कि मेरे साथ भी ग़लत हुआ था उस वक़्त। और तुम कह रही हो मैं ग़लत कर रही हूँ। वह तुम्हारे ही घरवाले थे जिन्होंने मुझे यह काम करने पर मजबूर कर दिया। मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे साथ कुछ भी बुरा हो, इसलिए तो मैं तुम्हें यहाँ लेकर आई हूँ, मेरे पास। बस मैं जो कहूँ तुम्हें वह करना है। मेरी बात मान जाया करो। मुझे और कुछ नहीं चाहिए।" किन्नर शालिनी ने जान्हवी के बालों को ठीक करते हुए कहा।
"पर मुझे आपके पास नहीं रहना। प्लीज़ मुझे जाने दीजिए। मैं यहाँ से जाना चाहती हूँ। मेरा दम घुट रहा है यहाँ। मैं यहाँ नहीं रहना चाहती।"
किन्नर ने उसके समेटते हुए बालों को अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया, "यह क्या नाटक लगा रखा है—मुझे नहीं रहना, मुझे नहीं रहना! रहना तो तुम्हें यहीं पड़ेगा। बहुत सालों तक तुम्हारा इंतज़ार किया है मैंने, समझी! अब इसके बाद कभी मत कहना कि यहाँ नहीं रहना। वरना अभी तूने भूपति को देखा है, राणा की ताकत का अंदाज़ा नहीं है तुझे। वह इतनी बेरहमी से मारता है कि तुम उसके बाद कभी ना नहीं कह पाओगी। मैं तुम्हारी यह नाज़ुक त्वचा छिली हुई नहीं देखना चाहती। इसलिए अभी मान जाओ, वरना राणा तुम्हें ना कहने का मौका भी नहीं देगा।"
"आप यह सब अपने बदले की वजह से कर रही हो ना? क्या आपका बदला इतना ज़रूरी है कि आप मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर देना चाहती हैं? मुझसे बदला लेकर क्या आपके मन को शांति मिल जाएगी?"
"नहीं मिलेगी! नहीं मिलेगी मुझे शांति! लेकिन तुम्हें तकलीफ़ में देखकर राहत ज़रूर मिल जाएगी। जान्हवी, तुम अब मुझसे जुड़ गई हो। अब तुम्हें जाने नहीं दे सकती मैं। इसलिए इस माहौल को, मुझे अपना लो।"
जान्हवी ने देखा किन्नर के चेहरे पर एक उदासी थी जो कई साल पहले उसने महसूस की थी। पर उसके लिए ऐसी भावनाओं का जन्म लेना, उस पर दया आना जबकि वह उसे नुकसान पहुँचाना चाहती थी, जान्हवी को समझ नहीं आ रहा था। शालिनी के इशारे पर राणा ने जान्हवी का हाथ पकड़ा। पर जान्हवी इस बार घबराई नहीं। उसने गुस्से से राणा की तरफ़ देखा। राणा ने अपने दोनों हाथ, जिनसे उसने जान्हवी को पकड़ रखा था, छोड़ दिए। शालिनी हँसने लगी; वही उसकी हँसी की कर्कश आवाज़ वहाँ फिर गुंजने लगी। उसने राणा के पास जाते हुए कहा, "तुम्हें उसे डराना चाहिए, उससे डरना नहीं चाहिए। उसकी आँखों से डर गए! बस यह चमड़ी बढ़ा लेने से काम नहीं चलेगा राणा! वह आग है और वह खुद बेख़बर है इस बात से। फिर कभी इस तरह छूने की कोशिश मत करना उसे।"
जान्हवी खुद उठकर गुस्से से उनकी तरफ़ देख दूसरे कमरे में चली गई। शालिनी ने राणा की तरफ़ देखा, "मैं तुम्हें पागल नज़र आती हूँ जो उससे कह रही हूँ मान जाओ! इतनी सी थी वह, तब उसने मुझे यहाँ, यहाँ जाँघ पर चाकू घोंपा था! उससे उलझना मत तुम।"
राणा: "हुकूम, आपने भूपति पर पहली बार हाथ उठाया, इस लड़की की वजह से! जब यह आप पर पहले भी हमला कर चुकी है तो आप इससे ऐसे अच्छे से क्यों पेश आ रही है?"
शालिनी: "क्योंकि वह मेरी है! उसे तुम में से कोई भी छूने की कोशिश मत करना! उसका जो भी हिसाब करना है वह मैं कर लूँगी, तुम्हें करने की ज़रूरत नहीं है। उसकी आँखें देखी तुमने? कितना गुस्सा था उन आँखों में! एक झटके में उसे मारकर मुझे वह सुकून नहीं मिलेगा जो उसे धीरे-धीरे तड़पाने में आएगा।"
राणा कुछ नहीं समझ पा रहा था। शालिनी को पहली बार किसी लड़की के लिए इतनी शिद्दत से नफ़रत करते हुए देखा था उसने। आज तक हवेली में हज़ारों लड़कियाँ आकर बिक चुकी थीं और दुनिया के हर कोने में पहुँचाई गई थीं, पर किसी लड़की को आँखें उठाकर देखा तक नहीं था शालिनी ने। फिर जान्हवी के लिए ऐसा क्यों था? क्या था उन दोनों के बीच जो वहाँ खड़ा कोई भी समझ नहीं पा रहा था? शालिनी अपने मुँह में पान रख उसे चबाने लगी और जान्हवी की गुस्से वाली आँखों को याद कर उसे गुदगुदी होने लगी। "यह तो शुरुआत है जान्हवी! मैं तुम्हें इतनी तकलीफ़ दूँगी कि तुम भूल जाओगी याद करना कि तुम कौन हो?"
जारी!
कोटा स्टेशन आ गया था। बिहारी और जीतू कोटा स्टेशन पर उतर गए। बिहारी ने उस आदमी से न्यूज़पेपर ले लिया था। कोटा स्टेशन पर भारी मात्रा में पुलिस का तांता लगा हुआ था। पुलिस वाले अपनी गन और डंडे के साथ इधर-उधर घूम रहे थे। जीतू नीचे उतरकर अपने कदम स्टेशन से बाहर की ओर बढ़ा दिए, जबकि बिहारी अब भी चाय वाले से पूछताछ करने में लगा हुआ था।
स्टेशन से बाहर आकर जीतू ने दूर तक नज़र डाली। एक तरफ उसे कूड़ेदान नज़र आया, वहीं दूसरी तरफ दूर खड़े कई रिक्शा वाले दिखाई दिए जो पुलिस की वजह से स्टेशन के अंदर रिक्शा लाने से कतरा रहे थे। वे लोग वहीं से चिल्लाकर ग्राहकों को अपनी ओर आने को मजबूर कर रहे थे। जीतू बाहर निकल गया। कूड़ेदान के पास आकर उसने देखा कि बारिश की वजह से खून धुल गया था वहाँ का, और पुलिस ने वहाँ सफ़ेद चॉक से मार्क बनाए थे। उन मार्क की तरफ देखकर उसने अंदाज़ा लगाया कि बीस कदम की दूरी से गोली चलाई गई थी और शायद यहाँ जान्हवी भी खड़ी थी। क्योंकि खून से सने पैरों के निशान स्टेशन की तरफ़ जाने का इशारा कर रहे थे। क्योंकि वहाँ पत्थर थे, पत्थर पर पैर रखकर गई थी शायद जान्हवी। तभी वहाँ का खून बारिश से धुल नहीं पाया था। जीतू वहाँ बैठ गया और उस पैर के निशानों को देखने लगा।
"तुम्हें भी चोट लगी थी! यह तुम्हारा खून है शायद! तुमने उसकी तरफ़ ध्यान नहीं दिया होगा और इस पत्थर तक पानी नहीं पहुँचा होगा शायद???"
पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। जीतू ने पीछे पलटकर देखा; बिहारी खड़ा था।
"मैं खुश हूँ तुमने अपनी जान बचाने की पूरी कोशिश की, अपनी खुद की रक्षा करने की पूरी कोशिश की। बस थोड़ा सा इंतज़ार और कर लो जान्हवी! मैं तुम्हें लेने आ रहा हूँ और वहाँ से तुम्हें लेकर ही जाऊँगा!"
"तु टेंशन मत ले, हम उसे ढूँढ लेंगे!" बिहारी बोला।
"तु जानता है ना किसका काम है यह! बस तू मुझे नहीं बता रहा। बिहारी, तुझे मेरी दोस्ती की कसम... बता क्या जानता है तू?"
"मैं कुछ नहीं जानता यार! बस इतना पता है जहाँ हम जा रहे हैं, वह जगह जान्हवी जैसी लड़कियों के लिए नर्क है! वे उसे नहीं छोड़ेंगे और हमें भी मार डालेंगे! यहाँ से हम उसके इलाके में आ गए हैं। हमारे साथ कुछ भी हो सकता है यहाँ! वह जो इस सबका मालिक है, उसका नाम लेने से भी डरते हैं यहाँ सब! कहते हैं जो वह बोलता है वह सच हो जाता है... वह बहुत ताकतवर है! तु सोच, यहाँ उन्होंने एक पुलिसवाली को मार डाला, पर कोई एक्शन लेने के बजाय यह सुरक्षा बढ़ाने का नाटक कर रहे हैं सब! पुलिस भी ऊपर के ऑर्डर के आगे कुछ नहीं कर पाती! सब करप्शन से जन्मे पैसे के भूखे हैं यहाँ! सबको बस पैसा कमाना है, रास्ता चाहे जो भी हो! उन्हें फर्क नहीं पड़ता! हमें देर नहीं करनी चाहिए, चल!"
बिहारी जीतू का हाथ पकड़कर उसे जबरदस्ती ट्रेन की तरफ़ ले आया। ट्रेन निकलने में बस दो मिनट रह गए थे। कोई सुराग नहीं मिल पाया था दोनों को। बस बिहारी को इतना पता चला था कि जो लोग लड़कियों को बेचने का धंधा करते हैं, उनमें से किसी का काम है यह। बिहारी ने देखा जीतू सो गया है तो उसने अपने मोबाइल से किसी को फ़ोन लगाया।
"मुझे कोटा स्टेशन पर हुए खून की पूरी स्टोरी चाहिए! पता करो यह काम किसका था??? और हाँ, मुझे फ़ोन करना, मैसेज मत करना! मैसेज कोई भी देख सकता है!"
सामने से फ़ोन कट गया। बिहारी ने सोचा था जीतू सो गया, पर जीतू सोया नहीं था, जाग रहा था। बिहारी के पास ऐसे बंदे हैं जो उसे हर तरह की टीप लाकर दे सकते हैं, यह बात जीतू पहले से जानता था। अब उसे यह पता करना था बिहारी क्या जानना चाहता है।
जान्हवी गुस्से से अपने कमरे में आ गई थी। थकान की वजह से नींद आँखों में भर आई थी। जान्हवी ने कीर्ति की तरफ़ देखा, जो उसी की तरफ़ देख रही थी।
"तुम इतनी गुस्से में क्यों हो?" कीर्ति ने आखिर पूछ ही लिया।
"तो और क्या करूँ? वह औरत पागल हो गई है! उसकी समझ में यह नहीं आ रहा कि इस तरह मुझ पर जबरदस्ती करना ठीक नहीं है! क्या हमारे देश के कायदे-कानून कुछ नहीं हैं उनके सामने?"
कीर्ति ने चुटकियाँ बजाते हुए कहा, "ऐसे लोग कानून से ऐसे बच जाते हैं! उनके लिए मज़ाक है कानून व्यवस्था! और तुम जितना इस बारे में सोचोगी, तुम्हें उतनी ही तकलीफ़ होगी। जान्हवी... क्या कुछ याद आया तुम्हें?"
"याद करने की कोशिश कर रही हूँ! जब छोटी थी तो माँ और बाबा मुझे मेले में ले गए थे! उनके चेहरे याद नहीं आ रहे, पर वे दोनों थे मेरे साथ! हम झूले में बैठे, मुझे कूल्फी पसंद थी तो हमने कूल्फी भी खाई! उसके बाद हम झूले में बैठे थे! फिर कुछ लोगों के साथ हम सिनेमाघर में चले गए! वहाँ मेरे ताऊजी भी आए थे, अपनी बीवी बच्चों के साथ! शायद मेरे बाबा से ताऊजी की बनती नहीं थी, इसलिए दोनों अलग-अलग मेला देखने गए थे! मेरे बालमन को तब जो समझ आया वह मैं तुम्हें बता रही हूँ! उसके बाद वह सिनेमा छोटा होने के कारण जल्द ही खत्म हो गया और मैं रोने लगी! तो बाबा और माँ मुझे लेकर बाहर चले गए, पर तभी वहाँ कुछ लोग आए और मैंने पीछे देखा कि ताऊजी के साथ उनका झगड़ा चल रहा था! हम लोग तो बाहर चले गए, पर अंदर क्या हुआ, उसके बाद मुझे नहीं पता! फिर हम घर चले गए! उसके कई दिनों बाद ताऊजी के घर पर कोई आया! हमारे घर पास-पास होने की वजह से ताऊजी के घर में जो भी होता हम देख सकते थे! वह कोई औरत थी! मैं जब भी खेलने जाती, वह हाथ में चॉकलेट पकड़े मुझे उसके पास आने के लिए कहती, पर मुझे उससे डर लगता था, इसलिए मैं वहाँ से भाग जाया करती थी! मुझे उस औरत का चेहरा भी याद नहीं है! ऐसे ही एक दिन रात को उस औरत की चीखें सुनाई देने लगीं! मैं सोई थी, पर तेज आवाज़ से मैं उठकर बैठ गई! माँ ने मुझे अपने सीने में छुपा लिया था और वह रो रही थी! फिर बाबा जल्दी-जल्दी में कपड़े पहनकर ताऊजी के घर चले गए! मैं भी माँ का हाथ छोड़कर उनके पीछे भागी! जब तक मैं दरवाज़े में पहुँची, बाबा के सीने में चाकू मारा था किसी ने! मैंने अपनी आँखों से देखा था! ताऊजी की लाश भी खटिए के पास पड़ी थी! बाबा के सीने से खून बह रहा था! मैं डर गई और तेज चिल्लाई, तो किसी ने मेरी आँख पर लोहे के रॉड से मारा! मारना तो दोनों आँखों पर चाहता था, पर मैं मुड़ गई थी, इसलिए वह सारा वार इस आँख पर हुआ! मुझे लगा बाबा की तरह वे लोग मेरे सीने में भी चाकू मार देंगे, इसलिए उसके बाद मैं अपनी जान बचाकर वहाँ से भागी और घर आई, तो घर पर भी कुछ लोग थे, जिन्होंने मेरी माँ को पकड़ रखा था! उसके कपड़े फाड़ दिए थे! मैं जब वह सब देख नहीं पाई, तो आँगन में एक पेड़ के पीछे जाकर छुप गई! मेरी इस आँख से खून बह रहा था, जिसे देखकर मैं बहुत डर गई थी! तभी माँ को वे लोग पकड़कर एक गाड़ी में बिठाकर ले गए! जब सब वहाँ से चले गए, तो मैं घर के अंदर चली गई! अलमारी से माँ की साड़ी निकाल ली, ताकि माँ को पहनने के लिए दे सकूँ! चूड़ियाँ भी ले लीं और मुझे वहाँ एक खत मिला जो माँ ने लिखा था! मुझे ज़्यादा पढ़ना नहीं आता था, इसलिए मैंने उसे मेरे पास जो साड़ी की थैली थी, उसमें डाल दिया! मेरे गुल्लक में कुछ पैसे थे, इसलिए मैंने वह मिट्टी का गुल्लक तोड़ दिया और जैसे ही पैसे उठाने लगी, वे लोग गुल्लक की आवाज़ सुनकर अंदर आ गए! एक ने कहा, "पकड़ो उस लड़की को, माँ के साथ-साथ बेटी भी हमारे काम आएगी!" यह सुनकर मैं पिछले दरवाज़े से भाग गई!"
जान्हवी रोने की वजह से खांसने लगी। तो कीर्ति वहाँ रखे मटके से उसके लिए पानी ले आई। जान्हवी को उसने पानी पिलाया तो जान्हवी अच्छा महसूस करने लगी और फिर उसने कहना शुरू किया, "पिछले दरवाज़े से भागकर मैं स्टेशन की तरफ़ दौड़ गई... क्योंकि हमारे खेत से रेलगाड़ी गुज़रती थी तो मैंने वहाँ की तरफ़ दौड़ना शुरू किया! वे लोग मेरे पीछे ही थे! जब वहाँ एक मालगाड़ी आई, मैं इंजन के साइड में जो सीढ़ियाँ थीं उस पर चढ़कर दूसरी ओर चली गई, ताकि ट्रेन चलाने वाले को दिखाई न दूँ! वहाँ अंधेरा होने की वजह से मुझे छुपने में आसानी हो गई और कुछ ही देर में ट्रेन भी चल पड़ी! शायद बहुत देर से वह रुकी हुई थी! मुझे लगा वे लोग मुझे ढूँढ लेंगे, क्योंकि वे लोग वहाँ भी आ गए थे! लेकिन ट्रेन तेज थी, इसलिए वे ट्रेन में चढ़ नहीं पाए! ट्रेन ने रफ़्तार पकड़ ली थी! मुझे तो यह भी पता नहीं था कि ट्रेन कहाँ जा रही है! इसलिए मुझे नहीं पता था मैं कहाँ जा रही हूँ! आँख से खून निकलना बंद हो गया था, पर दर्द इतना था जिसे मैं शब्दों में बयाँ नहीं कर सकती! मैं सुबह मुंबई पहुँच गई थी, पर मुझे वहाँ का नाम भी पता नहीं था! इस शहर ने भीख माँगने पर मजबूर कर दिया क्योंकि मेरे पास फूटी कौड़ी तक नहीं थी! एक दिन ऐसे ही किसी के सामने हाथ फैलाए बैठी थी, तब बाबा को मुझ पर दया आई और वे मुझे वहाँ कचरे से उठाकर अपने घर में लेकर आए! पुनम आंटी तो मुझे आज भी अपना नहीं पाई! फिर भी मैंने वह सब कुछ सहा! मैं आज तक यह बात किसी को नहीं बता पाई कीर्ति! जबकि तू भी मुझे कितनी बार पूछ चुकी थी! मैं यह सब किसी से नहीं कह पाई! बाबा को एक बार बताया था और कहा था, 'बाबा, मेरी माँ ज़िंदा होगी ना? एक दिन मैं उसे ढूँढ लूँगी! वह चाहें दुनिया के किसी भी कोने में हो! पढ़-लिखकर बड़ा बन जाऊँगी और फिर अपनी माँ को ढूँढूँगी!' पर यहाँ तो मेरी किस्मत में कुछ और ही लिखा था! मैं यहाँ इस कीचड़ में पहुँच गई कीर्ति! शायद मेरी किस्मत मुझसे हमेशा के लिए रूठ गई है!"
रोती हुई जान्हवी को कीर्ति ने अपनी बाहों में छुपा लिया।
"मुझे माफ़ कर दे यार! मैंने तेरे उन ज़ख्मों को कुरेद दिया जिसे तू सालों से मरहम लगाकर ठीक करने की कोशिश कर रही थी! तूने इतना सब कुछ सहा, अकेले! मैं होती तो मर जाना पसंद करती! तू तो अब भी लड़ रही है! आज हम दोनों की इज़्ज़त भी नहीं हमारे पास, इतना दर्द इतनी तकलीफ़ होने के बावजूद तू लड़ रही है! मैंने देखा था तुझे, जब तू राणा को गुस्से से देख रही थी, पीछे हट गया था वह! तू कहती है मुझ में हिम्मत है, लेकिन असली हिम्मत तो तेरे अंदर है! तू है असली फ़ाइटर! जान्हवी, वह जो ऊपर बैठा है ना, वह हम जैसों की परीक्षा लेता है! हमें तोड़ने की कोशिश करता है! वह देखना चाहता है हम उसके दिए दुखों को किस हद तक सह पाते हैं! तुम्हें सबका सामना करता देख, उसे लग रहा होगा वह और कौन सी चुनौती तुम्हें दे! पर तुम डरो मत जान्हवी! अब से मैं तुम्हारे साथ हूँ हर कदम पर!"
दोनों सहेलियाँ सिसकती रहीं। आज जान्हवी ने अपनी दोस्त से सारी बातें कहकर अपना दिल हल्का कर लिया था। सीने पर रखा इतने सालों का भार कुछ कम हुआ, ऐसा महसूस हुआ उसे। पर नियति के आगे आज तक कोई नहीं जा पाया है। जान्हवी की ज़िंदगी यहाँ से वरदान में बदलेगी या उसके लिए श्राप बन जाएगी, यह कहना मुश्किल था।
जीतू और बिहारी दिल्ली पहुँच गए। और बिहारी के सोने के बाद, उसके फ़ोन पर आए मैसेज को देखकर जीतू की आँखें फैल गई थीं। जिसके बारे में लिखा था, शायद कुछ हद तक वह उसे जानता था और उसकी ताक़त को भी। मैसेज पढ़ रहे जीतू को लगा, उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक चुकी है।
जारी!!!
जीतू ने मैसेज देखकर फ़ोन छोड़ दिया। फ़ोन नीचे गिर गया जिसकी आवाज़ से बिहारी जाग गया। उसने देखा जीतू शॉक लगने की तरह बैठा है, तो उसने अपना फ़ोन चेक किया। और फ़ोन को नीचे जमीन पर गिरा देख उसने झट से उठा लिया। जो मैसेज जीतू पढ़ चुका था उसे वह भी पढ़ने लगा। मैसेज में लिखा था:
"बिहारी, यह हरियाणा में रहने वाला वह राक्षस है जिसे हमारे देश की पुलिस से लेकर मंत्री तक सब डरते हैं। उसके पास जाने की कोई कोशिश नहीं करता। उसका फ़ोन भी कोई उठाना नहीं चाहता। जिसके फ़ोन पर उसका फ़ोन आता है, वह आदमी या तो रातों-रात अमीर बन जाता है या फिर दूसरे दिन किसी नाले या समंदर में बहता मिला है। उसका नाम है शालिनी।"
जीतू की तरफ़ नज़र डालकर जब बिहारी ने उसे देखा तो उसे लगा अब उसे ज़्यादा कुछ समझाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। जीतू खुद वहाँ जाने से मना कर देगा। जीतू ने बिहारी की तरफ़ देखा। क्या सोच रहा है?
"सोच रहा हूँ... तू अब वहाँ जाने के बारे में नहीं सोच रहा ना???"
"तू मेरा दोस्त होकर भी मुझे पहचान नहीं पाया बिहारी! मैं अगर एक बार अपनी ज़िद पर अड़ जाता हूँ तो फिर मैं... पीछे नहीं हटता! फिर वह तो वह इंसान है जिसे मैं चाहता हूँ! मैं उसे वहाँ कैसे रहने दूँगा! लोग प्यार में अपनी जान दे देते हैं! क्या मैं उसे बचाने के लिए उस इंसान से नहीं लड़ सकता!!"
"तू पागल हो गया है जीतू! उस लड़की ने तुझे पागल कर दिया है! अपनी जान देने चला है तू! क्या दो दिन का प्यार भूला नहीं सकता तू! तेरी जान पर बन आई है फिर भी???"
"प्यार बस एक पल में हो जाता है यार! मुझे उसी दिन इस प्यार का एहसास हुआ जिस दिन उसे उठाया गया! बस वह एक पल भी काफी था प्यार के लिए! तू क्या चाहता है... मैं उससे प्यार ना करूँ... उसे छुड़ाने का ख़्याल छोड़ दूँ! फिर एक मरे हुए जीतू के साथ रह पाएगा तू!"
"तू सच में पागल हो गया है! हाश... मैं किसे समझाने की कोशिश कर रहा था???"
बिहारी अपनी सीट पर जाकर सो गया। और जीतू अपनी पॉकेट से सिगरेट निकालकर उसके कश लेने लगा। खिड़की से जलती सिगरेट बाहर फेंककर खिड़की से आते हवा के थपेड़ों को वह अपने चेहरे पर महसूस करने लगा। बिहारी को एक नज़र देखा उसने। बिहारी सो चुका था। कल से आज तक वह लोग एक पल के लिए भी सो नहीं पाए थे। आसमान में खिले तारे देखते हुए जीतू भी बैठे-बैठे सो गया। अब उनकी मंज़िल हरियाणा में कैद जान्हवी थी जिसके लिए उसे बहुत तैयार रहना था।
जान्हवी और कीर्ति एक दूसरे के पास सो गए थे। सुबह उठते ही बंद खिड़की से आती सूरज की किरणें सीधे जान्हवी की आँखों पर पड़ रही थीं जिसकी वजह से उसकी नींद खुल गई। किसी और शहर के इस बंद कमरे में खुद को कैद देख उसकी हिम्मत जवाब दे गई। उसने कीर्ति की तरफ़ देखा। उस मासूम की तो कोई गलती नहीं थी। बस उसकी दोस्त होने के कारण वह वहाँ उसके साथ फँस गई थी। जान्हवी ने बाहर जाना चाहा पर दरवाज़ा बाहर से बंद था। यहाँ तक कि जान्हवी ने दरवाज़ा पुराना होने की वजह से उसमें हाथ डालना चाहा तो दरवाज़ा आधा खुला पर हाथ डालने पर पता चला उस पर लॉक लगा है। जान्हवी का नाज़ुक हाथ उस गैप से बाहर निकालते समय छिल गया और लाल हो गया। लेकिन उसने उस दर्द की परवाह नहीं की। किसी के कदमों की आहट सुनकर वह अंदर अपनी जगह पर आकर बैठ गई। दिल में हलचल मची हुई थी। कहीं किसी ने उसे देख तो नहीं लिया! राणा ने ताला खोलकर दरवाज़ा खोला और अंदर आकर कहा:
"चलो दोनों मेरे साथ!"
जान्हवी ने कीर्ति को उठाया। अपने सामने राणा को देखकर कीर्ति ने अपनी आँखें पोछ दीं और उठकर खड़ी हो गई। जान्हवी ने उसे चलने का इशारा किया। दोनों बाहर आईं तो शालिनी अपनी कुर्सी में बैठकर सिगरेट के कश ले रही थी। अपने काले होंठों को लाल रंग से पोतकर उसने अजीब बना लिया था जिससे वह इस वक्त भयंकर नज़र आ रही थी। ऐसा लग रहा था किसी का खून पीकर आई हो। जान्हवी ने तिरस्कार भरी नज़र से उसकी तरफ़ देखा तो शालिनी मुस्कुराई। उसने हाथ अपने होंठों से लगाकर उस पर फूँक मारते हुए जान्हवी की ओर किया। जान्हवी जहाँ राणा उसे ले जा रहा था, उसकी तरफ़ देखने लगी। भूपति ने जान्हवी की वह तिरस्कार भरी नज़र देखी और अपनी नज़रें नीची कर लीं।
शालिनी के सामने इस वक्त भूपति खड़ा था। सिर को झुकाए वह कोई आदेश मिलने का इंतज़ार कर रहा था। शालिनी अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई और भूपति के सामने जाकर उसके मुँह पर उसने मुँह में दबाया पूरा धुआँ डाल दिया। भूपति ने आँखें बंद कर लीं।
शालिनी: "कोई बुरी खबर लाए हो...!! तभी तो सिर झुकाकर खड़े हो तुम!! भूपति, तुम मुझे गुस्सा दिला रहे हो अब!!"
भूपति: "मालिक मुझे माफ़ करो, वह लड़के हरियाणा पहुँच जाएँगे सोचा नहीं था मैंने!!"
शालिनी: "तो अब तक उनके आने का इंतज़ार कर रहे थे तुम???"
शालिनी ने अपनी आँखें बड़ी करके कहा और सिगरेट का बचा हुआ जलता टुकड़ा भूपति के हाथ पर रखकर दबा दिया। भूपति ने दर्द सह लिया। आँखें बंद कर अब भी वह उस दर्द को सहने की कोशिश करने लगा।
भूपति: "मैं उसे वहीं रोक लूँगा मालिक, वह यहाँ पहुँच नहीं पाएगा!!"
शालिनी: "करना ही पड़ेगा तुम्हें भूपति! वरना मैं तुम्हें अपने शिकारी कुत्तों के बीच छोड़ दूँगी!!"
भूपति: "वह लोग यहाँ आ नहीं पाएँगे मालिक! मैं रोक लूँगा उन्हें किसी भी कीमत पर!!"
शालिनी ने हाथ हटा लिया। जलती सिगरेट बुझ चुकी थी पर भूपति के हाथ पर उसका जला हुआ गोल निशान बन गया था। उसने उस जले हाथ को देखा।
शालिनी: "क्या हुआ??? दर्द हो रहा है!! ओह... मैं क्या करूँ??? क्या तुम्हें मरहम लगा दूँ!!! अगर तुमने उसे अपना शिकार ना बनाया होता तो तुम अब भी मेरे वफ़ादार होते भूपति! तुने उसे हाथ लगाकर बहुत बड़ी गलती कर दी! पर मैं तुम्हें मार नहीं सकती ना! लेकिन तुम्हें यह बात भूलने भी तो नहीं दे सकती कि तुमने क्या किया है!!"
शालिनी ने एक्टिंग करते हुए सब कहा था। फिर आखिरी लाइन पर वह गंभीर हो गई। जान्हवी और कीर्ति को नहाने के लिए भेजकर दूसरे कपड़े पहनने को दे दिए थे। आज पार्टी जो थी हवेली में। जान्हवी बाहर आकर शालिनी ने किया यह सारा तमाशा अपनी आँखों से देख लिया। उसकी क्रूरता देखकर उसे शालिनी से घृणा होने लगी। शालिनी उसकी तरफ़ घूमकर फिर मुस्कुरा दी तो कीर्ति का हाथ पकड़कर जान्हवी उसे अंदर ले गई।
कीर्ति: "इंसान नहीं... इंसान के भेष में डायन है वह! क्या उसके पास दिल नहीं है! पैसों के लिए... सिर्फ़ पैसों के लिए... वह हमें बेच देना चाहती है! क्या पैसा अपने साथ ऊपर लेकर जाएगी! कैसे इंसान हैं इस दुनिया में जो पैसों के लिए कुछ भी कर सकते हैं!!"
जान्हवी: "हम बिकाऊ नहीं हैं कीर्ति! कोई खिलौना नहीं हैं हम! जो दुकानदार अपनी मर्ज़ी के दाम पर किसी और को बेच देता है! हम यहाँ से मौका मिलते ही भाग जाएँगे!!"
कीर्ति: "तो अब हमें क्या करना चाहिए???"
जान्हवी: "सही मौके का इंतज़ार! हमें पहले उनकी सारी बातें माननी पड़ेंगी ताकि उन्हें हम पर भरोसा हो जाए कि अब हम हार मान चुके हैं। जब उन्हें हम पर भरोसा हो जाएगा वह हमें थोड़ी ढील दे देंगे।"
कीर्ति: "और उसके बाद हम निकल जाएँगे!!"
जान्हवी: "तू बस मेरे साथ रहना कीर्ति! उन्हें भनक भी नहीं लगनी चाहिए कि हम ऐसा कुछ सोच रहे हैं!!"
कीर्ति: "ठीक है!!"
वह दोनों अभी बातें कर रही थीं कि दरवाज़ा खोलकर शालिनी अंदर आ गई कुछ लड़कियों के साथ। शालिनी ने लड़कियों की तरफ़ हँसते हुए देखा तो वह लड़कियाँ जान्हवी और कीर्ति के पास चली आईं। उन्होंने उन दोनों के मुँह पर पट्टी बाँध दी। फिर दोनों हाथ दोनों तरफ़ से पकड़कर उनके पहने कपड़े निकालना शुरू किया। जान्हवी गुस्से से चिल्लाई:
"क्या कर रही हो तुम??? क्या तुम हमें मारना चाहती हो??? और कितने घाव करोगी हम पर???"
एक लड़की जो वहाँ बहुत सालों से थी उसने शालिनी से कहा:
"आप बाहर जाइए मालिक, हम इन दोनों को तैयार कर देंगे!!"
शालिनी: "ठीक है! वह मैं भूल गई कि मुझे बाहर जाना है! वैसे... आज तुम्हारे मुँह में भी ज़बान है... यह देखा मैंने! बहुत जल्द तुम्हें इसका अंदाज़ा होगा कि ज़बान चलाने का नतीजा क्या होता है! और तुम दोनों..... मुझे कोई नखरे नहीं चाहिए! जल्दी से तैयार होकर बाहर आओ! पार्टी बस शुरू होने वाली है!!"
जान्हवी अब भी उसे अपनी पनीली आँखों से देख रही थी। उस लड़की ने आगे बढ़कर कहा:
"तुम दोनों ये कपड़े पहन लो! जब तक तुम उनका कहना मानोगी ज़्यादा तकलीफ़ नहीं होगी! वह आज तुम दोनों को पार्टी में लेकर जाएँगी!!"
जान्हवी: "आँखें साफ़ करते हैं, कैसी पार्टी??? और क्यों ले जा रही है वह हमें वहाँ???"
लड़की: "इस पार्टी में तुम दोनों पर बोली लगाई जाएगी! जिसकी ज़्यादा बोली लगेगी उसे वह बेच देगी!!"
कीर्ति: "क्या हम भेड़-बकरियाँ दिख रही हैं उसे जो वह हमें बेच देगी! कैसी इंसान हैं वह जो हमें इंसानों के लायक भी नहीं समझती!!"
लड़की: "तुम दोनों के साथ-साथ वह हम सबको भी खड़ा करने वाली हैं आज! देश-विदेश के रईस आएंगे यहाँ लड़कियों पर बोली लगाने!"
जान्हवी: "उसके हाथ-पैर पर मारने के निशान देखते हुए, कितनी बार भागने की कोशिश कर चुकी हो???"
लड़की: "करीब सौ बार! पर हर बार पकड़ी जाती हूँ! और फिर वह ऐसे पीटती है जैसे किसी जानवर को पीट रही हो! जानवरों पर भी हमें दया आ जाती है! पर उसके दिल में दया, रहम जैसे कोई शब्द नहीं! वह जल्लाद से भी बदतर है! वह भी तो किसी को फाँसी देने से पहले उस पर रहम करता होगा! पर वह किसी पर रहम नहीं करती!!"
कीर्ति: "तुमने अपना नाम नहीं बताया!!"
लड़की: "माँ-बाप ने तो नाम सीमा रखा था पर वह मुझे सैम बुलाती है। कहती है मैं उसकी ज़िंदगी में आई वह लड़की हूँ जिसकी वजह से उसकी तरक्की हुई! हम जैसे को बेचकर उनसे अपना यह महल खड़ा किया है...!! ऐसी चालबाज़ औरत कभी सुधर नहीं सकती! वह पत्थर से भी बदतर है!!"
जान्हवी: "सीमा दीदी आप हमसे बड़ी हैं! तो मैं आपको दीदी बुलाऊँगी! आप बताएँगी हम यहाँ से कैसे भाग सकते हैं! हमें यहाँ नहीं रहना! और आप भी मत रहिए! हम सब यहाँ से भागने का कोई तरीका ढूँढ लेंगे!!"
सीमा: "बातें करना जितना आसान है वैसा करना बहुत मुश्किल! पाँच साल से मैं इसी कोशिश में लगी हूँ! और हर बार पकड़ी जाने पर या तो मार खाती हूँ या फिर किसी ऐसे इंसान का शिकार हो जाती हूँ जो हैवानों की तरह मुझ पर टूट पड़ता है! हम यहाँ से नहीं जा सकते जान्हवी!!"
जान्हवी: "आपको मेरा नाम पता है दीदी!!"
सीमा: "हाँ! अक्सर वह तुम्हारे बारे में बात करके कहा करती थी कि जान्हवी को यहाँ लाकर मैं उससे अपना बदला लूँगी! तब ऐसा लगता था काश तुम कहाँ हो यह बात उसे कभी पता ना चले! पर तुम इसी जगह पर आ गई! उस दिन बहुत खुश थी वह! मेरे सामने अंदर नाच रही थी और कह रही थी देखा तुमने मैंने कहा था ना मैं उसे यहाँ ले आऊँगी! उसने उस रात मेरे साथ जबरदस्ती की! दिल में आया उसका खून कर दूँ और फाँसी पर लटक जाऊँ! पर अपने छोटे भाई-बहनों के बारे में सोचकर ठंडी पड़ जाती हूँ!!"
कीर्ति: "क्या आपके भाई-बहन भी उसकी गिरफ्त में हैं???"
सीमा: "नहीं! वह लोग आराम से घर पर रह रहे हैं! उनके बदले मैं जो यहाँ हूँ! शालिनी का आदमी हर वक्त मेरे घर पर जाकर पैसे पहुँचा देता है! माँ-बाप उनके साथ खुश हैं मुझे और क्या चाहिए???"
कहते-कहते सीमा रो पड़ी। घरवालों के लिए अपने जिस्म को बेचकर उनकी खुशियाँ खरीदना कहाँ का न्याय है??? कितना खोखला है हमारा समाज जो ऐसी लड़कियों की मदद नहीं कर सकता! उन्हें जिस्मफ़रोशी करने पर मजबूर कर देता है! और समाज के उच्च वर्ग के कुछ लोग ऐसी लड़कियों पर अपना पैसा लुटाकर अपनी हवस पूरी करते हैं! घृणा आती है ऐसे समाज पर जो लड़कियों को सुरक्षित होने का एहसास नहीं करवा सकता! उनकी सुरक्षा नहीं कर सकता! पैसे के लिए मजबूर कर देता है! कभी-कभी ख्याल आता है क्या पैसे से बढ़कर कुछ नहीं बचा हमारी दुनिया में...? सवाल कड़वा है पर है सच!!
जारी!!!
जान्हवी और कीर्ति के मुँह पर फिर पट्टी चढ़ाकर सीमा और बाकी लड़कियों ने उन्हें तैयार कर दिया। जान्हवी को काले रंग की तो कीर्ति को नीली भड़कीली ड्रेस पहनाई गई थी। सीमा ने उन दोनों की तरफ देखकर कहा, "कोई और वक्त होता तो कहती, तुम दोनों बहुत खूबसूरत लग रही हो! पर आज ऐसा कहने का मौका नहीं है। तुम दोनों की किस्मत भी इतनी बुरी होगी, सोचा नहीं था! यहीं पर बैठी रहो! हम भी तैयार होकर आते हैं!"
जान्हवी ने जाती हुई सीमा का हाथ पकड़ लिया।
"आप खुद तैयार होंगी... इस नीच काम के लिए?"
सीमा ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा, "जब जन्म देने वाले माँ-बाप ने नहीं सोचा, तो मैं सोचकर क्या करूँ जान्हवी? जब उन्हें मुझ पर दया नहीं आई, तो मैं खुद पर दया क्यों करूँ? अब बस यही मेरी किस्मत है! और इसे मैंने मान लिया है! मेरे बारे में सोचकर तुम्हें बुरा लग रहा है! तुम अपने आस-पास देखो... हम करीब पचास लड़कियाँ हैं यहाँ पर! हर किसी को ऐसे ही लाया गया है यहाँ! पचास पिछले हफ़्ते ही बिक चुकीं! हर किसी की अलग कहानी है! किसी से झूठ बोला गया है! या ज़बरदस्ती करके लाया गया है! किस-किस पर रहम करोगी! सौ बार भागने की कोशिश करने पर भी नाकामयाब होने पर मुझे लग रहा है, एक और बार यहाँ से भाग जा सकता है! पर यह ख्याल बस ख्याल रह जाता है! शालिनी के गुंडे, वह भूपति और राणा... दोनों भूखे भेड़ियों की तरह हमारे पीछे पड़े रहते हैं! भागने की कोशिश करने पर उन भेड़ियों के आगे हमें पेश कर दिया जाता है! ताकि उस खौफनाक रात को याद कर हम फिर भागने की कोशिश ना कर पाएँ! तुम मेरी चिंता मत करो जान्हवी! अपने बारे में सोचो! आज तुम्हारे साथ क्या होगा? यह सोचकर भी डर लग रहा है!"
सीमा बाकी लड़कियों के साथ दरवाज़ा खोलकर बाहर चली गई। जान्हवी और कीर्ति मायूस सी एक जगह पर बैठ गईं। उन आधे कपड़ों में खुद की तरफ देखकर, खुद से ही नज़रें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। जान्हवी ने कीर्ति की तरफ देखकर कहा, "क्या हम कभी यहाँ से निकल नहीं पाएँगी कीर्ति?"
"तुम्हें इतना मत सोचो! तुम्हें याद है एक बार हम..."
"स्कूल की क्लास में सो गए थे! और अगले दो दिन स्कूल को छुट्टी थी! और हमारी क्लास के दरवाज़े पर किसी ने लॉक लगा दिया था! हम दोनों उस वक्त अंदर थीं! जब हम दोनों उठीं तब अंधेरा हो चुका था! कौन सी क्लास में थीं हम दोनों?"
जान्हवी ने भर आए आँसू पोछकर कहा, "सातवीं क्लास में! तुमने मुझे भी सुला दिया था उस दिन! यह कहकर कि स्कूल छुटने पर तुम मुझे उठा दोगी!"
"उस दिन तुम बुखार में तप रही थीं जान्हवी! और पुनम आंटी ने घर से सारे काम करवाकर तुम्हें स्कूल भेजा था! तुम्हें ठंड लग रही थी ज़्यादा देर पानी में रहने की वजह से! उस दिन मैंने तुम्हें कह दिया कि मैं तुम्हें उठाऊँगी! पर पता नहीं कैसे मेरी भी आँख लग गई! जब मैं उठी तब मैंने तुम्हें भी उठाया था! और तुम कितना डर गई थी! उस दिन भी हम दोनों डरी हुई थीं! उस दिन भी इतना ही अंधेरा था जितना आज है! पर हमने हार नहीं मानी उस दिन! तुमने उस दिन मुझे बताया कि वहाँ क्लास में ऊपर एक खिड़की है, जिससे बाहर जाया जा सकता है! फिर हम दोनों ने मिलकर बेंच के ऊपर बेंच रखकर तुम्हें ऊपर चढ़ाया था! और तुमने बाहर कूदकर क्लास का ताला तोड़ दिया था! फिर मुझे बाहर निकाला था! और उसके बाद हम दोनों घर पहुँच गई थीं! याद आया?"
"याद है कीर्ति! उस दिन जीतू भी हमसे टकराया था! और किसी को ढूँढ रहा था!"
"किसी को नहीं, हमें ही ढूँढ रहा था! सब जगह बात फैल गई थी कि हम स्कूल से लौटी ही नहीं! इसलिए सब हमें ढूँढ रहे थे! और जीतू स्कूल की तरफ आया था! हमने उस दिन भी हार नहीं मानी थी जान्हवी! और हम अब भी हार नहीं मानेंगी! हमारे साथ कुछ भी क्यों ना हो... हम यहाँ से भागने की कोशिश ज़रूर करेंगी!"
"कीर्ति... उस दिन जीतू ने मुझे डाँट दिया था ना? जबकि वह हमें ढूँढने आया था! वह मुझे हमेशा डाँट क्यों देता है? वह मुझसे बड़ा है इसलिए!"
"पता नहीं, लेकिन उस दिन ऐसा लग रहा था जैसे वह तुम्हारी फ़िक्र कर रहा था! लेकिन वह तुम्हारी फ़िक्र क्यों करेगा?"
"पता नहीं! उसने मुझे चार दिन पहले भी डाँट दिया था स्कूल के बाहर! जबकि मेरी कोई गलती भी नहीं थी! वह हमेशा ही ऐसा करता है!"
"स्कूल के बाहर? क्यों?"
"वह किसी से मारपीट कर रहा था! और मैं खड़ी देख रही थी! जब वह गुंडा मेरे पास आया और मुझे पकड़ने की कोशिश की, तो जीतू को बहुत गुस्सा आया और उसने उसकी बहुत पिटाई की! और मुझे डाँटते हुए कहने लगा, 'बच्ची हो! स्कूल क्यों नहीं जा रही? यहाँ क्यों खड़ी हो? तुम्हें समझ नहीं आता, डर लगता है, तो ऐसी चीज़ों से दूर रहना चाहिए!' उसकी बातें सुनकर मैं काँप रही थी! उससे नज़रें मिलाने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी मेरी! उनको मारने वाला जीतू, जिसकी आँखों में खून उतर आया था, वह मेरी फ़िक्र क्यों करेगा भला? ज़रूर मेरी वजह से उसका ध्यान हट गया होगा और उसी का गुस्सा मुझ पर निकाल रहा होगा?"
"जान्हवी... मुझे ऐसा नहीं लगता! कहीं वह... तुझे...?"
अभी कीर्ति की बात पूरी नहीं हुई थी कि राणा दरवाज़ा खोलकर अंदर आ गया। अभी किसी और दुनिया में जी रही वह दोनों, ज़मीन पर आसमान से गिरने जैसी वर्तमान में पहुँचीं। राणा ने दोनों को चलने का इशारा किया। जान्हवी और कीर्ति बाहर आ गईं। राणा ने दोनों को हाथ पकड़कर उन्हें लड़कियों के बीच लाकर खड़ा कर दिया। अंधेरे कमरे में होने की वजह से लाइट्स की तेज रोशनी का वह सामना नहीं कर पाईं और उन दोनों ने आँखें बंद कर लीं। उस जगह पर एक ही हल्ला मच गया! लेकिन किसी के आने पर सब जगह शांति फैल गई। जान्हवी ने अपनी आँखें धीरे-धीरे खोलते हुए देखा, सबके सामने शालिनी खड़ी थी। डिब्बे से पान निकालकर उसने अपने मुँह में डाल दिया और वह जान्हवी के पास आ गई। "इसे बेच नहीं रही हूँ! सिर्फ़ यहाँ खड़ा इसलिए किया है, ताकि आप सब इसकी सुंदरता का दीदार कर सकें! इसे अपने पास ही रखूँगी! इसलिए बाकी की लड़कियों पर बोली लगा सकते हैं आप सब! चलिए शुरू कीजिए!" राणा!
राणा ने लड़कियों को अपना चेहरा ऊपर कर सबकी तरफ देखने का इशारा किया। सामने अलग-अलग मेज़ पर बैठे विदेशी और कुछ यहाँ के लोग उन लड़कियों को देखने लगे। एक दुबई से आया शेख खड़ा हो गया। उसने बाईं तरफ बैठी शालिनी के पास जाते हुए कहा, "इस लड़की को क्यों नहीं दे रही हैं आप? यह लड़की पसंद आ गई है मुझे!"
शालिनी: शेख जी! इस लड़की की कोई कीमत नहीं! इससे पुराना हिसाब-किताब है मेरा! उसके पास खड़ी उसकी दोस्त को ले जाइए! वह भी हसीन है!
शेख: मेरा तो उसी पर दिल आ गया है! मैं तुम्हें मुँह माँगी कीमत देने को तैयार हूँ! अगर सौदा पसंद आ रहा हो तो बोलो! वरना आज मुझे यहाँ से कुछ नहीं खरीदना!
शालिनी: जो भी कीमत दोगे, वह उस लड़की की बराबरी नहीं कर सकता शेख जी! आपको और कुछ पसंद नहीं आया तो हमें माफ़ कीजिए!
शालिनी का रवैया देख शेख चौंक गया! जो शालिनी पैसों की खुशबू सूँघकर पता लगा लेती थी कि वह कितने रुपए हैं, आज वही शालिनी इतनी बड़ी ऑफ़र को ठुकरा रही थी! शेख जी ने फिर एक बार जान्हवी की तरफ देखा, जो अपना चेहरा ऊपर नहीं कर रही थी! पर काली घुटनों तक आती उसकी वेस्टर्न ड्रेस उसकी खूबसूरती को बढ़ा रही थी! जिन अंगों को छिपाने के लिए लड़कियाँ दुपट्टे का सहारा लेती हैं, आज उसी शरीर को ये भूखे भेड़िये पापी नज़रों से देख रहे थे! जान्हवी के दिल में आ रहा था, वह सीता मैया की तरह धरती में समा जाएँ! जब आज चरित्र की जगह उनकी इज़्ज़त को बचाने की नौबत आई थी! जान्हवी ने जब दूसरी लड़कियों को बीस हज़ार, पचास हज़ार कहकर लोगों को ले जाते देखा, तो उसके दिल में आया, वह खुद को मारकर इन सब ज़िल्लतों से मुक्ति पा लें! इतनी बेरहमी तो जानवरों के साथ भी नहीं होती जब उन्हें बाज़ारों में बेचा जाता है! यहाँ तो ज़िंदा इंसानों के साथ जानवर जैसा सलूक किया जा रहा था! कीर्ति और बाकी की लड़कियाँ डर रही थीं कि कोई उनका नाम ना ले ले! वह इस तरह डर रही थीं, जैसे अब क़साई किसी मेमने को चुनकर हलाल करने ले जा रहा हो, कहीं उसी तरह उनको भी ना जाना पड़े! क्या इतनी भी कीमत नहीं थी उन लड़कियों की, कि जानवरों से भी बदतर हालात थे वहाँ!
शालिनी ने जान्हवी की तरफ़ देखा। उसके थरथराते होंठ, चेहरे भर डर की ऐसी लाली छाई थी कि जान्हवी को वहाँ खड़ा रहना भी मुश्किल लग रहा था! वहीं उसे ऐसे देखकर शालिनी के चेहरे पर खुशी थी, राहत थी! शालिनी अब उसे आवाज़ देने ही वाली थी कि किसी ने कहा, "यह लड़की कितने में बेचोगी?" शालिनी ने आवाज़ की तरफ़ देखा। एक लंबा सा नौजवान, जिसकी मूँछें थीं और कपड़ों से बिल्कुल जेंटलमैन दिखाई पड़ रहा था! शालिनी ने उसे नीचे से ऊपर तक घूरा। "तुम नए लग रहे हो यहाँ? इसे मैंने पहले कभी नहीं देखा राणा? कौन है यह?"
राणा: कल रात को जब मैं वापस घर जा रहा था, तब इस नौजवान से मुलाक़ात हुई थी मालिक! मेरी गाड़ी बंद पड़ गई थी, इन्होंने मेरी बहुत मदद की! इन्हें यहाँ की लड़कियों में बहुत दिलचस्पी है, ऐसा बताया था कल इन्होंने! तो मैं ही इन्हें यहाँ ले आया!
शालिनी को यह बात कुछ हज़म नहीं हुई! उसने राणा को पास आने का इशारा किया और उसके कान में बड़बड़ाने लगी, "तुम हमारे नियम भूल गए राणा? किसी भी अनजान आदमी को ऐसे घर तक लेकर आओगे? यह कोई भी हो सकता है! पुलिस का आदमी हो सकता है! हमारा कोई दुश्मन हो सकता है! ऐसे कैसे तुम किसी को भी यहाँ लेकर आ सकते हो?"
"मालिक, मैंने छानबीन की थी! यह यहाँ सबसे महँगे होटल में रुके हुए हैं! विदेशी हैं! और तो और बहुत पैसे वाले भी हैं! वेटर बता रहा था, सब वेटर्स को पाँच सौ रुपए की बख्शीश दी थी इन्होंने! कल जा रहे हैं यहाँ से! इसलिए मैंने उन्हें यहाँ बुलाया!"
"फिर भी इस तरह किसी पर भी भरोसा करना सही नहीं है! तुम मरवाओगे मुझे किसी दिन? मुझे तो किसी भी एंगल से विदेशी नहीं लग रहा!"
"मालिक, उनको लड़की पसंद आ गई है! आप जाने दीजिए ना! उनसे पैसे लेकर माल दे दीजिए!"
"ऐसे कैसे माल दे दूँ? उसने जिस लड़की पर ऊँगली रखी है, वह जान्हवी की दोस्त कीर्ति है! कीर्ति के ज़्यादा से ज़्यादा पैसे वसूलने हैं मुझे!"
"वह नौजवान फिर चिल्लाया, 'तुम लोग बात सुन रहे हो या नहीं?'" राणा उसके पास दौड़ गया। "हाँ साहब, बस अभी बात ही कर रहा था मालिक से! वह देने को तैयार हैं! पर पैसे...?"
राणा ने उस नौजवान की जेब की तरफ़ लालची नज़रों से देखा! साफ़ नज़र आ रहा था! वह बस उसकी जेब पर कूदना चाहता है! उस नौजवान ने कहा, "पहले लड़की को मेरे पास ले आओ! पहले मैं देखूँगा, फिर सौदा करूँगा!"
राणा ने शालिनी की तरफ़ देखा, जिसका मुँह बन गया था! उसे वह नौजवान कतई पसंद नहीं आया था! उसने मुँह बनाते हुए राणा को ले जाने का इशारा किया। कीर्ति जोर से चिल्लाई, "नहीं... नहीं! मुझे जाने दो! मुझे कुछ मत करो! मैं किसी के साथ नहीं जाना चाहती! छोड़ दो... नहीं..... नहीं!"
कीर्ति ने राणा के हाथ को दाँतों से काट लिया! राणा ने उसे जोर से थप्पड़ मारा जिससे वह नीचे गिर गई! अपने बैग में रखी नोटों की गड्डियों को उस नौजवान ने राणा के सामने फेंका! राणा ने पैसे ले जाकर शालिनी के पास दे दिए! पैसे दस लाख के करीब थे! शालिनी की आँखें फटी की फटी रह गईं! "ओ साहब... इस लड़की के लिए ये पैसे ज़्यादा हैं!"
"मेरे लिए ये पैसे जूतों की नोक के बराबर हैं! मैं लड़की को ले जा रहा हूँ!"
कहकर वह कीर्ति को ले जाने लगा! जान्हवी का रो-रोकर बुरा हाल था! वह कीर्ति को पकड़कर खड़ी थी और उसका हाथ नहीं छोड़ रही थी! तो उस नौजवान ने जान्हवी को थप्पड़ मारा और कीर्ति को घसीटते हुए ले गया!
जारी!
कीर्ति जान्हवी के गिरने से बौखला गई। और जिसने उसे पकड़ रखा था, उस आदमी को मारने लगी। वह आदमी गिरी हुई जान्हवी को लांघकर कीर्ति को वहाँ से ले गया। कीर्ति उसे देखकर रोने लगी।
"जान्हवी उठो..!! उठो ना...!!"
"छुड़ाओ मुझे इस आदमी से," कहकर रोने लगी। उस आदमी को कीर्ति पर तरस नहीं आया, और वह उसे घसीटते हुए ले गया। जान्हवी रोते हुए बेहोश हो गई। तो शालिनी टेंशन में उसके पास भागी।
बारह घंटे पहले:-
जीतू और बिहारी हरियाणा पहुँच चुके थे। रोहतक में जैसे ही पहुँचे, एक आदमी कुछ गुंडों के साथ बिहारी और जीतू की तरफ़ चला आया। जीतू की तरफ़ देखकर उसने कहा, "पहनावे से तू शहरी छोरा लगता है। बम्बई से आया है???"
बिहारी ने जीतू के सामने आते हुए कहा, "तो...??? हमसे क्या काम है?? और तुम लोग ऐसे रास्ता रोककर क्यों खड़े हो???"
"रे छोरा तो गुस्से वाला लग रहा है। आप सब जश्न में आए हो??? शुरू हो जाओ, वरना राणा तुम्हें बंद कर देगा।"
राणा का नाम सुनकर जीतू की आँखों में खून उतर आया। अपनी मुट्ठियाँ उसने गुस्से से कस लीं, और चेहरे पर व्यंग वाली हँसी लाकर कहा, "तुम लोग यह तो जानते ही होंगे कि हम यहाँ किसलिए आए हैं??? और अगर जानते हो तो फिर मैदान में आ जाओ। मेरे पास ज़्यादा वक्त नहीं है।"
उसकी धमकी सुनकर वहाँ खड़े पाँच-छह लड़के गुस्से में आ गए। दो लोग होकर इतने लोगों के सामने उन्हें ललकारना उनकी मर्दानगी पर सवाल उठाने जैसा था। इसलिए वे सारे लड़के जीतू की तरफ़ चल पड़े। बीच में ही बिहारी अपनी बैग को झटककर आगे आया, तो वे लड़के रुक गए। उनके रुकने से बिहारी को जोश आया।
"ना ना.. मैं नहीं.. मेरा दोस्त लड़ेगा तुमसे। वह भी अकेला। मैं तो बैग लेकर उस कोने में जा रहा हूँ। तुम लोग शुरू करो।"
जीतू ने अपनी घड़ी निकालकर बिहारी के हाथ में रखी। बिहारी वहाँ से चला गया और कोने में पेड़ के नीचे बैठकर फाइटिंग का मज़ा उठाने लगा। सबसे पहले वाले लड़के ने जीतू के पेट में चाकू मारना चाहा, तो जीतू ने उसका वही हाथ कलाई से पकड़कर मरोड़ दिया और उसी हाथ को मरोड़कर उसे नीचे गिरा दिया। एक थप्पड़ मारकर उसने उस लड़के को बाकी लड़कों के पास भेज दिया। दूसरे के मुँह पर घूँसा मारकर उसके दाँत तोड़ दिए। और तीसरे की पेट में इतनी जोरदार लात लगी कि वह उछलते हुए पास की फ्रूट की दुकान पर जाकर गिर गया और उठ ही नहीं पाया। चौथा जब पीछे से जीतू को पकड़ने आया, तो बिहारी ने पेड़ के पास बैठे एक लड़के से खेलने वाला तीर-कमान लेकर उस लड़के की पीठ पर तीर मार दिया। अचानक हुए इस हमले से वह चौंका और जीतू ने उसकी मार मारकर बुरी हालत कर दी। पाँचवाँ तो पास आने से भी ऐसे डर रहा था कि सबकी तरह वह भी जमीन पर लेटा न मिले कुछ ही देर में। इसलिए वह भागने की कोशिश में था, पर गुस्से से भरा जीतू नहीं रुका। उसने उसे पकड़कर जमीन पर पटक दिया। अब बचा था वह आदमी जो इन लड़कों को यहाँ लेकर आया था। उसकी गर्दन पकड़कर जीतू ने जैसे ही दीवार पर मारना चाहा, वह चिल्लाया, "हमारा कोई कसूर नहीं है साहब! हमें तुम दोनों को मारने के लिए भेजा गया था! इसलिए हम यहाँ आए थे!"
बिहारी ने उसे घूँसा मारते हुए कहा, "और किसने भेजा था तुम्हें??? नाम बताओ, वरना थोड़ी देर में हड्डियाँ टूटी हुई मिलेंगी तुम्हें!"
"उसका नाम राणा है! वह रामनगर गाँव में ही रहता है! उसी ने कहा था शहर से दो लड़के आ रहे हैं, उनकी हड्डियाँ तोड़कर अस्पताल भेजो, और ठीक होकर बाहर आए तो फिर मारकर दोबारा अस्पताल भेजने को! मैं बस इतना ही जानता हूँ!"
वह आदमी भागने लगा तो बिहारी ने कहा, "तू कहाँ भाग रहा है??? तुझे इन सबको अस्पताल ले जाने के लिए छोड़ा है! लेकर जा!"
उस आदमी ने हाँ कहकर एक-एक को उठाना शुरू किया। बिहारी ने जीतू की तरफ़ देखा जो अब भी गुस्से में था।
"बिहारी, सिगरेट..???"
कहते ही बिहारी ने उसकी जेब में रखी सिगरेट जला ली और जीतू के हाथ में थमा दी।
"तू क्या सोच रहा है जीतू???"
"सोच रहा हूँ... उसे हमारे आने की खबर थी! इसलिए उसने लड़के भेजे हमें मारने के लिए! उसने हम दोनों को देखा नहीं है! मेरे पास प्लान है! तुझे बस थोड़ी सी एक्टिंग करनी है! करेगा???"
बिहारी: तो इस कहानी में मैं क्या मक्खियाँ मारने के लिए हूँ! तू बस बता क्या करना है???
जीतू ने उसे अपना पूरा प्लान बताया, और दोनों रामनगर गाँव के लिए निकल पड़े। गाँव के पास आकर जीतू ने गाँव के बाहर ही रुकना पसंद किया। वह बहुत देर तक बिहारी के साथ बहुत सारे लोगों से बात करता रहा। शाम होने तक रास्ते पर आकर उसने कुछ कीलें रास्ते पर डाल दीं। बिहारी के लिए अच्छे कपड़े खरीदकर उसे वहाँ आने के लिए बोला। बिहारी सूट में काफ़ी अच्छा लग रहा था। क्लीन शेव कर ली थी उसने। अपना पूरा गेट-अप बदलकर वह खुद ही आईने में अपने आपको देखकर चौंक गया था। अब वे दोनों पेड़ के पीछे खड़े होकर वहाँ से किसी के गुज़रने का इंतज़ार कर रहे थे। जैसे ही एक बुलेट वहाँ से गुज़री, कीलों से उसके टायर की हवा निकल गई, और बुलेट रुक गई। राणा नीचे उतर गया। उसने अपनी बुलेट खड़ी करके देखना शुरू किया कि आखिर हुआ क्या??? तभी बिहारी पेड़ के पीछे रखी गाड़ी लेकर उसके पास पहुँचा।
बिहारी: क्या हुआ भाईसाहब???
राणा: वह मेरी बुलेट पंक्चर हो गई! अभी-अभी तो टायर बदला था! ऐसा कैसे हो गया!
बिहारी: कोई बात नहीं! चलिए मैं आपको छोड़ देता हूँ!
राणा: धन्यवाद साहब, लेकिन गाड़ी को यहाँ नहीं छोड़ सकता! आप जाइए!
बिहारी: पक्का?? वरना मैं किसी को बोल देता हूँ! वह आपकी गाड़ी ले जाएगा मैकेनिक के पास!
राणा: इसकी इतनी पहुँच है??? यहाँ लड़का बुलाएगा??? देखता हूँ... कौन है यह विदेशी???
बिहारी ने जीतू को फ़ोन किया। यहाँ आते ही उसने जीतू के लिए फ़ोन खरीदा था, जिससे बात हो सके उसके साथ ऐसी सिचुएशन आने पर। बिहारी ने उस नंबर पर फ़ोन किया तो जीतू ने झट से उठा लिया।
"देखो यहाँ एक बुलेट बंद पड़ी है रास्ते पर! यह रास्ता रामनगर गाँव का है! तुम जल्दी से पहुँच जाओ!"
जीतू ने कहा, "उसे गाड़ी में बिठा! और बात करने की कोशिश कर उसके साथ!"
बिहारी ने राणा को अपनी कार का दरवाज़ा खोलकर बैठने के लिए कहा।
"वैसे कहाँ जा रहे थे आप???"
राणा: मैं तो घर ही जा रहा था! आप यहाँ इस गाँव में??? किसके यहाँ आए हैं???
बिहारी: मैंने सुना है... यहाँ लड़कियों की खरीददारी होती है! बस ऐसे ही शौक पूरा करने आ गया! पर मेरी पसंद का मिले तो ही मैं हाथ आगे बढ़ाऊँगा! कल से घूम रहा हूँ... कुछ अच्छा नज़र नहीं आया!
राणा: फिर तो आप एकदम सही मौके पर सही इंसान से टकराए हैं साहब! मेरे मालिक यही धंधा करते हैं! वह आपको एक से बढ़कर एक और अच्छा माल दिखा सकते हैं! कल हमारे यहाँ पार्टी है... कहें तो आपके लिए बात करके देखूँ???
बिहारी: तुमने अपना नाम नहीं बताया??? क्या नाम है तुम्हारा???
राणा: मुझे सब राणा बुलाते हैं यहाँ साहब! आप भी वही बुला लीजिए!
बिहारी ने गुस्से से दाँत चबाते हुए कहा, "राणा...!! लेकिन मैं ऐसे किसी की पार्टी में जबरदस्ती नहीं जाता! उस पार्टी का इनविटेशन भी तो होना चाहिए था! ताकि कार्ड दिखाकर मैं अंदर आ सकूँ!"
राणा: आप उसकी बिल्कुल चिंता मत कीजिए सरकार! मैं खुद आपको वहाँ ले जाऊँगा! आप बस कल गाँव के चौराहे पर मुझसे मिलिएगा!
बिहारी के फ़ोन पर मैसेज की टोन बजी।
"आपकी गाड़ी पहुँच गई है मैकेनिक के पास! कल ले लीजिएगा! क्या यह आपका घर है???"
"जी साहब, आइए ना! आपके पैर अगर मेरे घर को लगेंगे... तो मैं धन्य हो जाऊँगा!"
बिहारी ने उसकी ललचाती नज़र उसके गले में पहनी मोटी सोने की चैन पर है यह जान लिया था। उसने कहा, "अभी मुझे जल्दी जाना है! अगली बार यह मौका ज़रूर दूँगा!"
राणा ने गाड़ी से उतरकर हाथ जोड़ लिए, और बिहारी ने स्टाइल से गाड़ी आगे बढ़ा दी। जीतू को उसी पेड़ के पास से गाड़ी में बिठाकर वे लोग गाँव के बाहर चले आए। आज रात के लिए रोहतक में रुकना जीतू को सही लगा। एक होटल में जाकर उन्होंने खाना खाया और फिर सोने के लिए एक लॉज में चले गए।
जीतू: बेड पर जाकर लेट गया। उसे तुम पर शक तो नहीं हुआ???
बिहारी: साला एक नंबर का लालची आदमी है! उसकी नज़र शुरू से मेरी चैन पर थी! तेरा यह आइडिया काम कर गया! उसने नहीं पहचाना मुझे! आगे क्या करना है???
जीतू: अभी के लिए सो जा! कल सुबह बताऊँगा क्या करना है? वरना तू मुझे सोने नहीं देगा!
बिहारी जीतू के सोते ही अपनी बैग से ऑइनमेंट लेकर आया और जीतू के हाथ पर, जब उसने लड़ाई की थी, उस वक्त की चोटों पर मरहम लगाने लगा। एक बार जलन की वजह से जीतू ने हाथ झटक दिया, तो दूसरी बार हल्के से उसके हाथ पर फूँक मारकर बिहारी ने उसके हाथ पर मरहम लगाई। फिर खुद जाकर उसकी बगल में लेट गया। कल का दिन उनके लिए बहुत महत्व रखता था! दोनों में से एक को छुड़ाना था उन्हें।
सुबह होते ही जीतू उठकर बैठ गया। बिहारी की गन बैग से निकालकर उसने उसे लोड किया, फिर उसे अपनी कमर में छिपाकर उसने बिहारी को उठाया। बिहारी और जीतू दोनों नाश्ता करने पास वाले होटल चले गए। आज बेहतर महसूस हो रहा था उन दोनों को। दोनों ने नाश्ता कर लॉज का रास्ता पकड़ा। अंदर आकर जीतू ने अपनी योजना उसे सुनाई तो बिहारी के होश उड़ गए।
"मैं जान्हवी पर हाथ नहीं उठा सकता यार! तू पागल हो गया है! वे दोनों मुझे पहचान लेंगी!"
"नहीं पहचानेंगी! मैंने तुझे इस वक्त जैसा बनाया है ना... तुझे कोई पहचान नहीं पाएगा! बस तुझे... जो कुछ मैंने बताया है... वैसा करना है!"
"अगर हम पकड़े गए तो??? मुझे डर लग रहा है! हमारी गलती की वजह से लड़कियाँ मुश्किल में ना पड़ जाएँ! तू राणा को पहचानता है... पर जिसे वह मालिक कहता है... उसे नहीं! उसकी ताकत को नहीं!"
"अगर तू हिम्मत दिखाएगा थोड़ी सी तो उनमें से एक को छुड़ाया जा सकता है! आज ही!"
बिहारी ने कुछ सोचा, फिर हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, "ठीक है! मैं जाऊँगा वहाँ! पर तुझे कैसे पता चलेगा... हम बाहर निकले या नहीं! अगर मैं भी वहाँ किसी मुश्किल में पड़ गया तो???"
"तो किसी भी तरह मुझे एक फ़ोन कर देना! मैं वहीं आस-पास रहूँगा! जैसे ही तू वहाँ से निकलेगा... मैं तुझे आकर मिलूँगा! और हम वहाँ से कीर्ति को सेफ जगह पर पहुँचा देंगे!"
"तू इतने सारे पैसे लाएगा कहाँ से???"
"मैंने इंतज़ाम कर लिया है! तू बस राणा के पास पहुँच थोड़ी देर में! मैं तुझे रास्ते में पैसे दे दूँगा!"
जारी!!!
जीतू ने कहा था कि बिहारी पैसे लाएगा। लेकिन बिहारी का सूट, घड़ी और चैन में चोरी के सारे पैसे लग गए थे। चैन सोने की नहीं थी; उसे बस सोने का पानी चढ़ाया गया था। और घड़ी उसने किराए से एक दिन के लिए ली थी। जीतू ने अपनी जेब में देखा; सिर्फ़ सौ रुपये बचे थे। उसने अपने ही जैसे एक चोर को चोरी करते देखा। वह चोर किराने की दुकान के आगे खड़े लोगों में से किसी की जेब से पॉकेटमार कर गया। आगे जाकर उसने पॉकेट से रुपये निकाले और पॉकेट को वहीं कचरे के पास फेंककर गुनगुनाते हुए जाने लगा। उसका रास्ता जीतू ने रोक लिया।
"तुने पॉकेट में रखा कार्ड तो लिया ही नहीं???"
जीतू के बोलने पर उसने उसकी तरफ देखा और भागने की कोशिश की। लेकिन थोड़ी दूर भागने पर भी, जब उसने उसका पीछा नहीं किया, तो वह वहीं रुक गया।
"तुम मुझे पकड़ोगे नहीं???" चोर ने बड़ी शराफत से पूछा।
"क्यों पकड़ूँ? मैं भी तो तुम्हारी तरह ही हूँ! जब हम दोनों एक ही प्रोफेशन में हैं, तो तुझसे दुश्मनी लेकर करूँगा क्या?"
"तु सच बोल रहा है? मुझे फँसा तो नहीं रहा?"
"वैसे सच बोल रहा हूँ। लेकिन हाँ, तुझसे एक काम है; करेगा तो तुझे बख्शीश मिलेगी।"
"क्या करना है? कुछ उल्टा-पुल्टा होगा, तो अभी राम-राम... नमस्ते!"
"नहीं, ऐसे कुछ बुरा नहीं बताने वाला हूँ। तुझे मेरे लिए कुछ चुराना है।"
"चुराना है! यह काम तो मैं एक झटके में कर सकता हूँ। लेकिन क्या चुराना है? और कहाँ?"
जीतू ने उसे शालिनी की हवेली के बारे में बताया और वहाँ होने वाली खरीदारी में से एक ब्रीफकेस चुराने के लिए कहा। सब सुनकर चोर बौखला गया।
"तु पागल हो गया है! तू शालिनी के यहाँ मुझे चोरी करने के लिए बोल रहा है? वह इंसान नहीं, शैतान है! सौ शैतान मरे होंगे जब वह पैदा हुई होगी! मैं उसकी हवेली नहीं जा रहा चोरी करने! तू दूसरा कोई भी घर बोलता, तो मैं चोरी कर लेता, पर उसके यहाँ कभी नहीं जाऊँगा!"
"सोच लें! मैं तुझे वही पैसा वापस दूँगा, जितना उस ब्रीफकेस में होगा! मुझे उस पैसे की ज़रूरत नहीं है!"
"अगर मैं पकड़ा गया, तो शालिनी के गुंडे मुझे मार-मार कर मेरी हलक से मेरी ज़बान बाहर खींच लेंगे! फिर उस पैसे का मैं क्या करूँगा?"
"ठीक है, फिर तेरी मर्ज़ी! वैसे, इस ब्रीफकेस के मिलने पर तुझे उम्र भर चोरी करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी!"
जीतू कहकर उसकी दूसरी तरफ़ चलने लगा। जब उसने मना किया, तभी जीतू समझ गया था; इंसान काम का है! एक चोर को चोर से बेहतर कौन जान सकता था भला! उसकी बातें सुनकर चोर एक पल के लिए सोच में पड़ गया। जीतू की बात सही भी थी; ऐसा मौका उसे बार-बार थोड़ी ही मिलने वाला था। उसने जाते हुए जीतू को देखकर थोड़ी देर सोचा। आखिर रिस्क लेते हुए उसने आवाज़ लगाई, "ठीक है, करूँगा! पर तुम्हें मेरे साथ चलना पड़ेगा! यह मेरी शर्त है!" आगे बढ़ रहे जीतू के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई। उसने उस चोर को अपने प्लान में शामिल कर लिया था।
दो घंटे पहले:
थोड़ी देर बाद जीतू और वह चोर शालिनी के घर के बाहर खड़े थे। पार्टी में अभी एक घंटे का वक्त था। जीतू ने चेहरे पर दुपट्टा बाँध रखा था, ताकि कोई उसे पहचाने नहीं। उसने उस चोर को नकली नोट से भरी एक ब्रीफकेस लाने को कहा था, जो इस वक्त उस चोर के हाथ में थी। जीतू ने उसे ऊपर चढ़ने का इशारा किया। यह हवेली की पीछे की दीवार थी, जो बहुत ऊँची थी और उस पर चढ़ना आसान नहीं था। उस चोर ने अपने जीतू को नीचे झुकने के लिए बोला। उसके कंधे का सहारा लेकर वह दीवार पर साँप की तरह चढ़ गया। जीतू ने उसे थम्स अप करके दिखाया। फिर चोर की छोड़ी हुई रस्सी से उसने ब्रीफकेस बाँध दिया। चोर ने उस ब्रीफकेस को खींच लिया और दीवार के दूसरी तरफ़ छलांग लगा दी। धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए उसने पानी ले जा रहे एक वेटर के सिर पर वही ब्रीफकेस मारकर उसे बेहोश किया। फिर एक कमरे के अंदर ले जाकर वेटर की ड्रेस पहन ली। अब सब कुछ सेट था। जीतू ने जो कुछ सोचा था, उसे बस अब अमल में लाने की ज़रूरत थी।
आधे घंटे बाद चोर पानी की ट्रे लेकर जहाँ पार्टी चल रही थी, वहाँ पहुँचा। देखा तो शालिनी ने करीब पाँच लड़कियों को एक मुँछ वाले अन्ना को बेच दिया था, जिसने पैसे से भरा ब्रीफकेस शालिनी के सामने खोला। उस चोर की नज़र उन रुपयों पर पड़ी, तो वह जोर-जोर से खांसने लगा। शालिनी ने वह बैग भूपति को थमाया और अंदर ले जाने का इशारा किया। जिस तरफ़ भूपति गया था, चोर की नज़रें भी उसी दिशा में भाग रही थीं। उसने भूपति के रास्ते का आँखों से ही पीछा किया और भूपति के लौटने के बाद वह पार्टी से गायब हो गया। भूपति ने रखी ब्रीफकेस उसने खोल दी। "इतने सारे मेरे पैसे!" कहकर उसकी आँखें चमक उठीं। उसने अपनी ब्रीफकेस से उस ब्रीफकेस को बदल दिया और तुरंत वहाँ से निकल गया। हवेली में पार्टी के कारण इतना शोर-शराबा था कि बाहर से कोई आकर इतना बड़ा कांड करेगा, शालिनी ने कभी सोचा भी नहीं होगा।
बाहर आकर चोर ने एक सीटी बजाई, तो बाहर से बड़ी मोटी रस्सी उसकी तरफ़ आई। पहले उसने ब्रीफकेस बाँधकर बाहर पहुँचाया, फिर जीतू ने उसे भी खींच लिया। चोर ने उसके गले मिलते हुए कहा, "मैं पकड़ा नहीं गया और पैसे भी मिल गए! लेकिन अब तुम इसका क्या करोगे? वादे के मुताबिक तुम्हें ये पैसे मुझे देने हैं, याद तो है ना?"
"मुझे सब याद है! ये एक करोड़ रुपये हैं! मुझे बस इसमें से दस लाख चाहिए; बाकी सब तुम्हारे!"
"तुम्हें सिर्फ़ दस लाख चाहिए??? ये सारा प्लान तुम्हारा था! तुमने मुझे चुना, मुझसे ये काम करवाया और तुम्हें ही इसमें से कुछ नहीं चाहिए???"
"मैं पैसों के लिए यहाँ नहीं आया था! इन सारे पैसों से भी कुछ बहुत कीमती है जो मैं लेने आया हूँ! अगर वो मुझे मिल जाए, उसके बाद कुछ नहीं चाहिए मुझे ज़िंदगी से!"
"तुम तो चोर हो... क्या वो कोई कीमती हीरा है जिसे तुम चुराने आए हो? अगर है, तो उसे चुराने में मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ! तुमने आज मुझे इतना मालामाल कर दिया!"
"वो कोई हीरा नहीं है, पर हीरे से कम भी नहीं है! वो एक लड़की है, जिसे मैं यहाँ से ले जाने आया हूँ! मेरी मदद के लिए शुक्रिया! अब इसकी कोई ज़रूरत नहीं है! तुम अब जा सकते हो! तुम्हारा यहाँ रुकना ख़तरे से खाली नहीं है!"
"अगर दोबारा मेरी मदद की ज़रूरत पड़े, तो रोहतक में पुरानी टॉकीज़ के पास आकर सुलेमान से मिलना, कहना; मैं पहुँच जाऊँगा! अभी के लिए अलविदा दोस्त!"
वह चोर, जिसका नाम सुलेमान था, जीतू को सलाम कर चला गया। और जीतू ने बिहारी को फ़ोन लगाया। बिहारी ने पेड़ के नीचे मिलने की बात की, तो जीतू उसके पास चला गया। उसे ब्रीफकेस थमाते हुए उसने कहा, "दस लाख हैं! ऐसे दिखाना तू बहुत अमीर है! अगर जान्हवी को एक थप्पड़ भी लगाना पड़े, तो लगा देना! वो कीर्ति को आसानी से जाने नहीं देगी! तू समझ गया!"
"मैं समझ गया! लेकिन राणा इसी तरफ़ आ रहा है! तू छुप जा!"
बिहारी के कहते ही जीतू छुप गया और राणा को आता देख बिहारी अपनी सिगरेट बुझाने की एक्टिंग कर गाड़ी में जाकर बैठ गया।
जारी!!!