दिग्विजय सिंह राठौड़, राठौड़ खानदान का वारिस, एक ऐसा नाम जो डर और ताक़त का प्रतीक है। जिसके लिए दुनिया उसकी मर्ज़ी से चलती है और उसकी मर्ज़ी… अक्सर क्रूर होती है। एक सनकी, रॉयल और अनप्रेडिक्टेबल शख्सियत,जो अपनी दुनिया में किसी की... दिग्विजय सिंह राठौड़, राठौड़ खानदान का वारिस, एक ऐसा नाम जो डर और ताक़त का प्रतीक है। जिसके लिए दुनिया उसकी मर्ज़ी से चलती है और उसकी मर्ज़ी… अक्सर क्रूर होती है। एक सनकी, रॉयल और अनप्रेडिक्टेबल शख्सियत,जो अपनी दुनिया में किसी की नहीं सुनता। और फिर उसकी ज़िंदगी में दाख़िल होती है मयूरी शर्मा, एक साधारण सी लड़की,जो अपने सपनों और सर्वाइवल के बीच जूझ रही है।एक मिडिल क्लास परिवार में पली-बढ़ी मयूरी, सिर्फ एक नौकरी की तलाश में थी… लेकिन फँस गई एक ऐसे आदमी के जाल में,जिसका प्यार भी क़ैद से कम नहीं। क्या हो सकता है जब जुनून, इश्क़ से ज़्यादा ज़हरीला हो जाए? जब मोहब्बत एक ऐसी दीवार बन जाए जिसे पार करना नामुमकिन हो? क्या दिग्विजय का दिल उसे इंसान बना पाएगा, या उसका प्यार मयूरी की ज़िंदगी को ही निगल जाएगा? और क्या उनका रिश्ता उस दुनिया में ज़िंदा रह पाएगा, जहाँ खानदानी इज़्ज़त, प्यार से ज़्यादा मायने रखती है? पढ़ें "रहनुमा-ए-इश्क़"(डेस्टिनीज़ जर्नी) सिर्फ स्टोरी मनिया पर!
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..."ॐ वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ"...
..."निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा"...
महाराष्ट्र...!!
मुंबई...!!
"मुंबई", सपनों की नगरी कहे जाने वाले इस शहर में जो आता है, या तो उसके सपने पूरे होते हैं, या किसी के बेशकीमती ख्वाब इसी शहर की भीड़ में कहीं विलुप्त हो जाते हैं। इसी शहर के सबसे रईस इलाके में, सबसे आलीशान और खूबसूरत होटल, आज किसी दुल्हन की तरह सजा हुआ था, जैसे किसी नामचीन हस्ती की आज शादी हो।
होटल के गार्डन में दो बड़े-बड़े और सुंदर मंडप सजे हुए थे। दोनों मंडपों में अलग-अलग पंडित बैठे हुए मंत्रोच्चारण कर रहे थे। मंत्रोच्चारण से वहाँ का वातावरण खुशनुमा हो चुका था। सब एकाग्र होकर मंत्रों की ध्वनि सुन रहे थे।
एक मंडप में बैठा हुआ दुल्हा काफी शांत था और उसका चेहरा पूर्णतः भावहीन था। वह एकटक सामने हवन कुंड में जल रही अग्नि को देख रहा था। उसकी आँखों की तपिश मानो उस अग्नि को भी भस्म करने की ताकत रखती थी, इतनी क्रूर शख्सियत थी उसकी।
उस क्रूर शख्सियत का नाम "दिग्विजय सिंह राठौड़" था, जो अपने सामने किसी को नहीं समझता था। लेकिन कहते हैं ना, कोई इंसान कितना भी ताकतवर क्यों न बन जाए, उसका परिवार उसकी सबसे बड़ी अहमियत और कमजोरी होती है।
यही हाल कुछ इनके साथ भी था। उम्र करीब अट्ठाईस वर्ष की होगी, लेकिन उसका शरीर उसकी उम्र से कहीं गुना ज़्यादा मज़बूत था, जिससे उसकी खूबसूरती पर कोई असर नहीं पड़ रहा था। वह जहाँ जाता वहाँ हर लड़की उसे अपना दिल दे बैठती, मगर मजाल कि उसे यह जरा सा भी भाव दे दें।
तभी पंडित की आवाज़ से उसकी तंद्रा टूटी, जो दुल्हन को लाने के लिए बोल रहे थे। दिग्विजय फिर से अग्नि को घूरने लगा। वहाँ बैठी दो ग्रेसफुल औरतें, जो काफी खूबसूरत थीं, वे ऊपर के फ्लोर पर चली गईं और कुछ देर बाद साथ में दो दुल्हनें लेकर नीचे उतरीं। दुल्हन के आने पर वहाँ एक बैकग्राउंड सॉन्ग बजने लगा, जो काफी धीमा था, लेकिन काफी खुशनुमा लग रहा था। वहाँ खड़े सभी उस वातावरण में खो से गए थे।
पहली औरत अपने साथ लाई दुल्हन को दिग्विजय के साथ बैठा दिया। दिग्विजय अपनी दुल्हन को एक नज़र देखकर फिर सामने देखने लगा, लेकिन उसका ध्यान अपनी दुल्हन पर ही था।
"मयूरी शर्मा", यह नाम था उसकी दुल्हन का। वह काफी खूबसूरत थी, लेकिन पारिवारिक स्थिति कुछ खास नहीं थी। इसी कारण से आज वह उसकी दुल्हन बनी हुई थी, वरना उसे इस बेरहम इंसान के साथ कुछ देर बिताना भी पसंद नहीं था।
दिग्विजय अपनी दुल्हन के कंपकंपाने को महसूस कर सकता था। मयूरी के कंपन ने उसे यह भरोसा दिला दिया था कि मयूरी ही उसके साथ है। उसके चेहरे पर एक कातिल मुस्कान आ गई, जिस पर वहाँ मौजूद हर लड़की उस पर फ़िदा हो गई, लेकिन दिग्विजय को इससे कुछ खास फ़र्क नहीं पड़ा।
समय के साथ उनका विवाह भी रफ़्तार पकड़ रहा था, और पंडित जी ने उनके गठबंधन के लिए दूल्हे की बहन को बुलाया। तो एक शादीशुदा लड़की, जो कि बेहद सुंदर थी, उसने आकर अपने भाई दिग्विजय का गठबंधन मयूरी के साथ कर दिया, फिर अपने दूसरे भाई के पास जाकर उनकी भी गठबंधन कर दिया।
सब कुछ काफी खुशी से हो रहा था। सबके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान छाई हुई थी।
फिर कुछ मंत्रोच्चारण के बाद पंडित जी ने उन्हें फेरों के लिए खड़े होने को कहा। उनकी बात पर दिग्विजय तो खड़ा हो गया, लेकिन मयूरी अपनी जगह से हिली तक नहीं। दिग्विजय उसे देखते हुए, या यूँ कहें, घूरते हुए, उसके हाथों को थामकर अपने साथ ही खड़ा कर दिया।
तब जाकर मयूरी होश में आई और फेरों के लिए उसका हाथ थामे उसके पीछे-पीछे चलने लगी। तीन फेरों में दिग्विजय आगे रहा, फिर मयूरी आगे चली। ऐसे ही उनके फेरे पूरे हुए।
पंडित जी ने अब दिग्विजय को अपनी दुल्हन को सिंदूर उसकी माँग में भरने को कहा। दिग्विजय सामने रखे सिंदूर के डिब्बे में से मुट्ठी भरकर सिंदूर लिया और अपनी दुल्हन की पूरी माँग भर दी। उससे कुछ सिंदूर उसके चेहरे व नाक पर भी गिर गया। मयूरी की माँग का ऐसा कोई हिस्सा नहीं होगा जहाँ सिंदूर न हों।
माँग में सिंदूर भरने के समय मयूरी ने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं। उसने अपनी मुट्ठी भी भींच ली थी। उसके हर एक प्रतिक्रिया को दिग्विजय काफी गहराई से महसूस कर रहा था।
सिंदूरदान के बाद पंडित जी ने उनके सामने मंगलसूत्र की थाल बढ़ा दी और कन्या के गले में पहनाने को बोले। दिग्विजय उस मंगलसूत्र को मज़बूती से पकड़ा और मयूरी के गले में बाँध दिया। मयूरी को यह मंगलसूत्र उनके विवाह का प्रमाण कम और फाँसी का फंदा ज़्यादा लग रहा था।
मयूरी का मन इस मंगलसूत्र को तोड़कर फेंक देने का कर रहा था, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती थी। आज वह अपने आप को काफी लाचार महसूस कर रही थी। उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी, लेकिन रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
वह अपने ग़म में ही थी कि उसे ऐसा शब्द अपने कान में सुनाई दिया जो वह सुनना नहीं चाहती थी।
"आज से आप दोनों पति-पत्नी हुए…!!" पंडित जी उनके विवाह को पूर्ण करते हुए कहा।
दिग्विजय के चेहरे पर पंडित जी की बात सुनकर एक हसीन मुस्कान खिल गई। उसमें अपनी दुल्हन का हाथ थामकर पहले पंडित जी के चरण स्पर्श किया, तो उन्होंने उनके सुखमय जीवन का आशीर्वाद दिया। दिग्विजय अपनी दुल्हन को लिए उन्हीं खूबसूरत और राजसी औरतों के सामने जाकर उनके चरण स्पर्श किए। उनमें से एक औरत दिग्विजय की माँ थी।
"दक्षिणा राठौड़", उन्होंने प्यार से अपने बेटे और बहू के सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया।
फिर दिग्विजय ने उनके साथ खड़ी औरत, जो उसकी चाची "सुदेशा राठौड़" थी, उसके पैर छू लिया। उन्होंने भी मुस्कुराते हुए उन दोनों को आशीर्वाद दिया।
दिग्विजय मुड़कर सामने खड़े मुस्कुराते हुए पुरुष के पाँव छुआ। राजेंद्र जी (दिग्विजय के चाचा) उसके सर पर हाथ रखते हुए बोले: "आज से एक और ज़िम्मेदारी बढ़ गई आपकी, अगर आप इसे अच्छे से निभाएँगे तो हम सबको आप के ऊपर काफी फक्र होगा…!!"
दिग्विजय अपनी रूह कंपा देने वाली, मगर शांत और ठंडे स्वर में जवाब दिया…
"दिग्विजय सिंह राठौड़ ने कभी अपनी ज़िम्मेदारियों से भागना नहीं सीखा…!!" (उसकी आवाज़ में एक आकर्षण था)
इतनी देर बाद मयूरी उसकी आवाज़ सुनकर जैसे बर्फ की भाँति जम गई। वह घुंघट में से ही अपने पति को झाँकने की कोशिश में जुट गई, लेकिन अपने पति के सख़्त और भावहीन चेहरे को देखकर उसने अपनी पलकें झुकाना ही सही समझा। वह अब डर के साथ-साथ शर्म से भी लिपटी हुई थी।
तब मयूरी को याद आया कि उसके पति ने अभी भी उसका हाथ थामकर खड़ा है। यह सोचते हुए उसके चेहरे पर शर्म की लालिमा आ गई, लेकिन तभी एक दमदार और तेज तर्रार आवाज़ उसके कानों में पड़ी, जिससे उसके रोएँ खड़े हो गए।
"लल्ला आप हमें भूल गए…!!" सुहासिनी जी (दिग्विजय की दादी माँ) ने अपनी कड़क आवाज़ में कहा।
दिग्विजय उनकी बात पर उनके सामने जाकर उनके चरण स्पर्श किया। सुहासिनी जी अपने हाथ को बढ़ाकर उसे आशीर्वाद दिया और बोलीं: "क्यों लल्ला, पत्नी के आते ही अपनी दादी माँ को भूल गए आप…!!"
दिग्विजय अपने चेहरे पर एक मनमोहक मुस्कान लिए उनसे कहा: "हम अपने शख़्सियत को भूल सकते हैं, पर अपने परिवार और आपको कतई नहीं भूल सकते दादी माँ…!!"
यह सुनकर सुहासिनी जी के चेहरे पर एक रौबदार मुस्कान ने जगह ले ली। उन्हें इसी बात का काफी गर्व था कि उनका पोता या घर का कोई भी सदस्य उनकी बातों का उल्लंघन कभी नहीं कर सकता, और उनका पोता, जिससे वह सबसे अधिक प्रेम करती हैं, वह उनकी कोई भी बात नहीं टाल सकता।
सुहासिनी जी अपनी पोते की दुल्हन के माथे का घुंघट सही करते हुए अपनी कड़क आवाज़ में बोलीं: "दुल्हन, अब से आप राठौड़ खानदान की बड़ी बहू हैं, तो हमेशा मान-मर्यादा का लिहाज़ रखना है आपको। घुंघट ठीक से रखें…!!"
मयूरी आहिस्ता से अपना सर हिलाकर अपना घुंघट सही कर ली। तो सुहासिनी जी ने प्यार से उसके सर को सहलाया। दूसरे जोड़े का भी विवाह पूर्ण हो चुका था। उन दोनों ने भी सबके आशीर्वाद ले लिए।
सुहासिनी जी की छोटी बहू सुदेशा उनसे बोलीं: "माँ, अब हमें विदाई करके दुल्हनों को महल ले चलना चाहिए। वैसे भी शाम हो गई है विवाह के कामों में, महल जाकर गृह प्रवेश की तैयारियाँ भी करनी होगी…!!"
उनकी बात पर सुहासिनी जी ने अपना सर हिलाकर आगे की रस्में करने का आदेश दिया। सुदेशा और दक्षिणा जी ने विदाई की रस्में की, जिसमें दोनों दुल्हनों की आँखें नम हो गई थीं। दुल्हनों को उनके-उनके दूल्हे के साथ अलग-अलग गाड़ियों में बैठा दिया गया। सभी उन्हें बैठाकर अपनी-अपनी आई हुई गाड़ियों में बैठकर अपने महल के लिए निकल गए।
वहीं दिग्विजय की गाड़ी में दुल्हन बनी मयूरी अपनी घुंघट की आड़ में खामोश बैठी हुई थी। गाड़ी में एकदम पिन ड्रॉप साइलेंस कायम था। दिग्विजय अपने फ़ोन में बिज़ी था।
मयूरी छिप-छिपकर अपने पति को देख रही थी। उसे लग रहा था कि उसके हरकतें केवल उसी तक सीमित हैं, लेकिन वह गलत थी। दिग्विजय जैसे शातिर व्यक्तित्व के लिए उसकी हरकतें नोट करना कोई बड़ी बात नहीं थी। वह तो मन ही मन शातिर मुस्कान मुस्कुरा रहा था।
वह अपना फ़ोन साइड करके अपनी नज़रें अपनी नई-नवेली दुल्हन पर कर लिया। मयूरी की तो जैसे चोरी पकड़ी गई हो, इसलिए वह हल्की सी हड़बड़ा गई। उसके हड़बड़ाने को देखकर दिग्विजय उसके कंधे से पकड़कर उसे अपने से चिपका लिया।
उसके ऐसे करने पर मयूरी की मानो साँसें अटक गई हों। उसकी धड़कनें एकदम से रफ़्तार पकड़ने लगीं। दिग्विजय गाड़ी के दरवाज़े के सामने लगे एक बटन को प्रेस कर दिया। बटन प्रेस करने पर एक पार्टीशन उनके और ड्राइवर के बीच आ गया। अब ड्राइवर पीछे कुछ भी देखने में असमर्थ था।
दिग्विजय अपनी दुल्हन को अपने सीने से लगाकर उसकी तेज़ होती धड़कनों की रफ़्तार को महसूस कर रहा था। उसके चेहरे पर सुकून दमकने लगा। वह मयूरी के कोमल हाथों को उठाकर अपने होठों से छू लिया।
उसके स्पर्श को महसूस करके मयूरी तो जैसे सिहर उठी। उसके हाथ अब दिग्विजय के होठों से लगे हुए थे। उसने अपने हाथ को पीछे खींचने की कोशिश की, तो दिग्विजय उसके हाथ पर अपनी पकड़ मज़बूत कर लिया।
उसकी पकड़ उतनी भी मज़बूत नहीं थी, लेकिन फिर भी मयूरी के हाथ लाल हो गए। दिग्विजय उसके हाथ को पकड़े हुए ही उसके घुंघट को धीमे से ऊपर उठाया। मयूरी के अत्यंत खूबसूरत चेहरे को देखकर उससे अब रहा न गया और उसने अपने सख़्त होठ उसके माथे पर रख दिया।
अपने पति के होठों का स्पर्श अपने माथे पर पाकर वह अपने दूसरे हाथ को जल्दी से उसके सीने पर रख दी। उसने अपने हाथ की पकड़ दिग्विजय के लिबास पर कस ली। वह अभी एक मासूम खरगोश के बच्चे की तरह अपने पति से लिपटी हुई थी।
दिग्विजय अपनी दुल्हन के हाथों से खेलते हुए, उसके हूँर जैसे चेहरे को शिद्दत से निहारते हुए, अपनी ख़तरनाक आवाज़ में लेकिन धीमे से बोला: "आपका स्वागत है हमारे जीवन में जाना, हमारी पत्नी बन चुकी हैं अब आप। कहा था हमने आप हमसे नहीं छुप पाएँगी, और देखिए आपको ढूँढ कर आपके माँग में अपने नाम का सिंदूर रच चुके हैं…!!"
मयूरी उसकी बात पर अपनी नम आँखों से उसके शिद्दत से परिपूर्ण चेहरे को देखते हुए बोली: "आपने हमें अपने साथ विवाह के बंधन में तो बाँध लिया, वह भी अपने सम्पूर्ण परिवार के सामने, लेकिन कल जब उन्हें यह पता चलेगा कि आपकी पत्नी हम हैं, तब… तब क्या होगा, सर…!!"
वह आगे बोलती कि, उसके पति ने उसके मुँह पर अपनी कठोर उँगलियों को रखकर उसे मौन रहने पर मजबूर कर दिया। दिग्विजय उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला: "आप बस इतना बताएँ कि आपको हमसे प्रेम है या नहीं, बाकी सब आपका यह पति संभाल लेगा…!!"
मयूरी उसकी बात पर आगे कुछ नहीं बोल पाई। उसकी खामोशी अब दिग्विजय को परेशान कर रही थी। वह बेचैनी से उसकी आँखों में देखते हुए बोला: "जवाब दीजिए जाना, चुप क्यों हैं…!!"
मयूरी तब भी खामोश रही। उसकी खामोशी जब दिग्विजय से बर्दाश्त न हुई, तो वह कुछ कहने लगा, लेकिन आगे दिग्विजय कुछ कह पाता कि, उन दोनों को ड्राइवर की आवाज़ सुनाई दी: "हम महल पहुँच गए हैं, बड़े मालिक…!!"
दिग्विजय ड्राइवर की बात सुनकर अपनी अर्धांगिनी से बोला: "इसका उत्तर हम आपसे रात्रि में ज़रूर लेंगे, जाना…!!"
तभी उनके तरफ़ का दरवाज़ा खुला, तो वे दोनों उसी पोज़िशन में चले आए, जिस पोज़िशन में उन्हें गाड़ी में बैठाया गया था, ताकि किसी को भी मयूरी को लेकर शक न हो।
दिग्विजय अपने विवाह से संबंधित सभी रस्मों के ख़त्म होने के बाद किसी भी तरह का तमाशा झेल लेता, लेकिन वह अभी किसी प्रकार का क्लेश नहीं बर्दाश्त कर सकता था, जिससे मयूरी को कष्ट पहुँचे।
दरवाज़ा दक्षिणा जी ने खोला था। वह मुस्कुराते हुए अपनी बहू के हाथ को पकड़ते हुए उसे उतरने में मदद करते हुए बोली: "राठौड़ परिवार में जय की पत्नी के रूप में आपका स्वागत है…!!"
मयूरी उनकी बात पर हल्का मुस्कुरा दी, लेकिन घुंघट के कारण उसका मुस्कुराना किसी को नहीं दिखा। दक्षिणा जी अपने बेटे और बहू को अपने साथ लेकर महल के मुख्य द्वार पर पहुँची। सामने सुदेशा जी आरती की थाल लिए उनके स्वागत में खड़ी थीं।
उन्होंने पहले उन दोनों की आरती उतारी, फिर दूसरे जोड़े रणविजय और दिव्या की। रणविजय दिग्विजय से छोटा था और उसका दिव्या के साथ विवाह लव मैरेज था, जिस पर परिवार वालों ने पहले नहीं स्वीकारा, लेकिन बाद में दक्षिणा और सुदेशा जी के कहने पर उनके विवाह को स्वीकृति मिली।
फिर सुदेशा जी ने मयूरी को प्यार से बोला: "बहू, सामने रखे कलश को अपने दाहिने पैर से गिराकर महल में प्रवेश करें…!!"
उनकी बात सुनकर मयूरी ने ठीक वैसा ही किया, लेकिन जब उसने अपनी कदम आगे बढ़ाई, तो उसका हल्का बैलेंस बिगड़ा। दिग्विजय उसके पीछे ही चल रहा था। उसने जब उसका बैलेंस सही न देखा, तो उसने जल्दी से उसके कमर से पकड़कर ठीक से खड़ा कर दिया।
सुहासिनी जी मयूरी को देखते हुए अपनी कड़क आवाज़ में ही बोलीं: "बहू, ध्यान कहाँ है आपका? अगर अभी कहीं गिर जाती तो, वह तो लल्ला ने आपको पकड़ लिया, वरना जमीन पर होती आप…!!"
मयूरी उनकी बात पर अपना सर झुकाकर खड़ी हो गई। उसके बाद सुदेशा जी ने आलते की थाल में पैर रखकर अपने पैर की छाप छोड़ते हुए अंदर आने को कहा। मयूरी उनकी बात पर वैसा ही करने लगी।
इस बार दिग्विजय ने उसका हाथ थाम खड़ा था, क्योंकि उसे डर था कि यह लड़की कहीं वापस से वही भूल न कर बैठे। मयूरी ने दिग्विजय के सहारे अपने भारी लहंगे के साथ चल ली।
…!!जय महाकाल!!…
(आज के लिए इतना ही, अगला पार्ट जल्द ही आएगा।
मुझे फॉलो जरूर करें और ये पार्ट अच्छा लगा हो तो, अपनी राय कॉमेंट्स में अवश्य लिखें)
...!!जय महाकाल!!...
अब आगे...!!
मयूरी को अभी मंदिर में ईश्वर की दर्शन के लिए दक्षिणा जी लेकर आई थी, दिग्विजय और मयूरी हाथ जोड़े खड़े हुए ईश्वर के सामने खड़े थे.
मयूरी अपने मन ही मन अपने ईश्वर से बातें कर रही थी.
"हे महादेव! ये कैसी परीक्षा ले रहे हैं आप हमारी. आपने आज तक कई परीक्षाएं ली हमारी लेकिन उन सब को पार करके, आज हम आपके सामन खड़े है. लेकिन जिस विडम्बना में आपने अब हमे डाल दिया है, हम उससे निकलने में सच में आज असमर्थ महसूस कर रहे हैं. आप और कितनी परीक्षाएं लेंगे हमारी, थक चुके हैं हम, अब और नहीं होता. आपसे अब बस एक ही विनती करना चाहती हूं की आप हमे इन सब से जुझने की शक्ति दे."
मयूरी अपनी आँखें बंद किए, लगातार महादेव के सामने अपने दुखों को बता रही थी. इसी बीच मयूरी से अपने आंसू ना संभलने के कारण, उसके आंखों में पूरी तरह आंसू भर गए, उसका चेहरे पर लाल रंगत भी आने लगी थी.
दिग्विजय उसके साथ में खड़ा था. वो भी अपनी आंखों को बंद किए अपने मन में कुछ बड़बड़ाए जा रहा था.
"आज आप हमारी हो गईं मयूरी, अब आपको ईश्वर भी हमसे अलग नहीं कर सकता क्योंकि ईश्वर ने ही आपको हमसे इस विवाह के बंधन में बंधा है. आज हम महादेव के शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने काफी मदद की आपको हमारे साथ जोड़ने में."
(दिग्विजय का चेहरा किसी तारे की तरह चमक रहा था)
दोनों ने एक साथ ही आंखें खोली, पहले दिग्विजय ने मयूरी की तरफ नजरें घुमाई, और उसे जुनूनी निगाहों से निहारा, लेकिन दिग्विजय की नजरों को खुद पर महसूस करते हुए भी, मयूरी ने अपना सर उसके तरफ नहीं घुमाया, वो एकाग्रता से महादेव ने लीन थी.
दोनों का ध्यान दक्षिणा जी की आवाज से टूटी, जो प्यार से उन्हें पुकारते हुए कह रही थी.
"अब आप दोनों की एक रस्म और होगी तो जल्दी से आइए बेटा."
मयूरी दिग्विजय के साथ उसके पीछे - पीछे चल दी, उसे अब काफी दिक्कत हो रही थी, उस भारी भरकम से लहंगे में, और तो और उसे नींद भी बहुत आ रही थी, जिसके कारण वो अब धीमी गति में भी नहीं चल पा रही थी, लेकिन इन सब के बावजूद वो हार नहीं मान रही थी.
दोनों जोड़े के लिए हॉल में चार आसन लगे हुए थे, जिसपर उन्हें बैठा कर, अंगूठी ढूंढने की रस्म की जानी थी.
एक आसन पर मयूरी को दक्षिणा जी ने बिठा दिया, और एक पर दिग्विजय को बिठा दिया गया. उनके सामने एक थाली रखी हुई थी, जिसमें दूध और गुलाब की पंखुरी डाली हुई थी.
दक्षिणा जी और सुदेशा जी ने दोनों जोड़ो को रस्म के बारे में बताया. उसके बाद रस्म शुरू हुई, दिग्विजय और मयूरी दोनों ने साथ में ही थाली में हाथ डाल दिया, जिससे उन दोनों के हाथ आपस में उलझ गए, मयूरी की नजरें एकाएक दिग्विजय पर चली गई.
दिग्विजय जो पहले से ही उसे देख रहा था, उसने उसे देखकर एक दिलकश मुस्कान उसे दी. जिसपर मयूरी ने अपनी नजरों को फेर कर अपना ध्यान अंगूठी ढूंढने में लगा दिया. वो अब अंगूठी ऐसे ढूंढ रही थी, जैसे अगर वो ना मिली तो वो कोई जंग हार जाएगी.
दिग्विजय उसे अंगूठी ढूंढने में इतना लीन देखा तो उसे ऐसा लगा जैसे मयूरी उसके इगो को ट्रिगर कर के उसे चैलेंज कर रही हो, जैसे वो उसे हरा कर ही मानेगी. दिग्विजय उसे खुद को हराने से रोकने के लिए, वो भी अपना पूरा फोकस अब अंगूठी पर ही लगा दिया.
अंगूठी मयूरी के हाथों आई, तो वो जल्दी से उसे बाहर निकाल कर सबको बड़ी खुशी से दिखा दी. उसका घुंघट अभी भी उसके पूरे सर को ढका हुआ था, मयूरी के हाथ में अंगूठी देखकर सब जोड़ो से तालियां बजाने लगे.
उन्हीं में से वही लड़की जिसने दिग्विजय और मयूरी की गठबंधन की थी, उसका नाम नीरा था, वो अपनी भाभी के अंगूठी ढूंढ लेने पर, खुशी से बोल उठी.
"भैया आप हर जगह जीतते हैं, तो क्या यहां भी जीत जाएंगे, देखिए भाभी ने आपको हरा दिया, और अब आप पर सिर्फ भाभी की हुकूमत चलेगी, वाह भाभी आपने तो कमाल ही कर दिया."
(लास्ट में उसने मयूरी को गले लगा लिया)
मयूरी इस अचानक के हुए इंसीडेंट से थोड़ी हड़बड़ा गई. लेकिन उसने ज्यादा रिएक्ट नहीं किया. दिग्विजय को अपनी हार कुछ खास रास नहीं आई इसलिए उसे बेहद गुस्सा आया, लेकिन अपनी बीवी की जीत को भी वो नजरअंदाज नहीं कर सकता था.
रस्म पूरी हो जाने के बाद नीरा और दक्षिणा जी, मयूरी को लेकर दिग्विजय के मास्टर बेड रूम में लेकर आईं, पूरा कमरा फूलों से और मोमबत्तियों की खुशबू से महक रहा था. बेड को भी किसी दुल्हन की तरह सजाया गया था, उसके बीचों बीच गुलाब की पंखुड़ियों से हार्ट शेप बनाया गया था.
दक्षिणा जी ने मयूरी को बेड पर बिठाया और उसके घुंघट को और थोड़ा लंबा करते हुए उससे बोलीं.
"बहु आज आपकी हमारे घर में पहली रात है, इसे बेफिजूल मत जाने देना, लल्ला और अपने बीच सारी गुप्त बातों को बेपर्दा कर देना. ह्म्म्म."
उनकी बातों को सुनते हुए नीरा उनसे बोली.
"अरे माँ! आज बात करने की रात थोड़ी ना है, आज की रात तो बस दूरियों को खत्म किया जाता है."
"ये कैसी बकवास बातें कर रही हो तुम नीरा, शादी हो चुकी है फिर भी तुममें अकल नाम की चीज नहीं आई, बेटा अगर रिश्तों में समझ - बुझ होती है, तो ये दूरियां अपने आप खत्म हो जाती हैं."
दक्षिणा जी ने अपनी बेटी को समझाते हुए कहा.
नीरा उनकी बात पर खामोश हो गई, दक्षिणा जी उसे एक नजर देखकर रूम के अलमारी के पास गईं. उन्होंने उसमें से मयूरी के ओय साड़ी निकाली. साड़ी उन्होंने मयूरी के हाथों में रख दिया और कहा.
"बेटा इस लहंगे में तुम असहज महसूस कर रही हो, चेंजिंग रूम में जाकर चेंज कर लो."
उन्होंने उनके सर पर हाथ रख दिया.
उनके जाने के बाद मयूरी अपनी जगह से उठी और चेंजिंग रूम में जाकर दक्षिणा जी की दी हुई साड़ी पहन कर वापस आई. उसने लहंगा अपने हाथों में पकड़ रखा था और बाकी ज्वेलरीज भी. ज्वैलरी को उसने वहीं साइड में लगे ड्रेसिंग टेबल पर रखा और लहंगे को कबर्ड में. वो पलट कर वापस से ड्रेसिंग टेबल उसमें लगे शीशे में वो खुद का चेहरा देख रही थी, जिसपर अभी थकान साफ समझ आ रही थी. मयूरी ज्वैलरी को ठीक से अरेंज करके रख दी.
फिर टेबल पर बैठ कर अपना ही चेहरा देखने लगी, उसका उदास सा चेहरा उसके सारे दुख बयां कर रहा था. वो एकटक अपने आप को देख रही थी, एकाएक उसकी आँखों में आंसू भर गए.
"क्यों किया आपने ऐसा सर? क्यों कि आपने मुझ जैसी लड़की से शादी. आप जानते हैं मैं ना तो आपके क्लास में हूं और ना ही आपके इर्द - गिर्द रह सकने की हिम्मत होती है मेरी."
(उसने एक बेहद गहरी सांस भरी)
"अगर घर में किसी को भी पता चला कि, मैं आपकी पत्नी हूं. सबका दिल टूट जाएगा. वो सब मुझे आपकी पत्नी के रूप में कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि मैं आपके लिए नहीं बनी. हमारी मानसिकताएं, प्रवृत्ति, भावनाएं, स्वभाव, दृष्टिकोण, यहां तक कि आदतें भी, सब.. सब कुछ अलग हैं. इस घुंघट के सहारे कब तक छुपी रहूंगी मैं सबसे आखिर कब तक."
वो ये सारे सवाल आईने में दिख रहे अपने ही अक्ष से कर रही, उसका दुख उसके आंसुओं के सहारे अब बहने लगे थे.
तभी, उसके पीछे से एक बेहद गहरी और कोल्ड आवाज आई.
"तुम्हे छुपने की कोई जरूरत नहीं है मयूरी, तुम मेरी पत्नी हो. अब ये सच्चाई है जिसे ना तुम बदल सकती हो और ना ही मैं. अच्छा होगा जब तुम इस रिश्ते को स्वीकार करके इसको अपने दिल से निभाओ."
मयूरी ने झट से पीछे मुड़ कर देखा, दिग्विजय दरवाजे पर खड़ा उसे ही देख रहा था. उसकी नजरों में मयूरी के लिए भावनाएं स्पष्ट नजर आ रहे थे, वो अपनी कठोर कदमों से बेड रूम में दाखिल हुआ और डोर को बंद कर दिया.
मयूरी ने उसके ऊपर से अपनी नजरें हटा लीं. वो टेबल से उठी और सीधे बेड की ओर जाने लगी वो लेटने को हुई ही थी कि दिग्विजय ने उसे पकड़ लिया, उसके कदम काफी तेज थे पर फिर भी वो दिग्विजय की पकड़ से बच नहीं पाई.
दिग्विजय उसे अपनी ओर खींच कर अपने सीने से लगा लिया, मयूरी उससे दूर होने के लिए पीछे हटने की कोशिश कर रही थी, बट दिग्विजय उसपर अपनी पकड़ वक्त के साथ और भी ज्यादा कसता जा रहा था. मयूरी बहुत छटपटा रही थी लेकिन दिग्विजय ने अपनी पकड़ को उसपर से बिल्कुल भी कम नहीं किया.
आखिर में परेशान होकर मयूरी ही बोली.
"ये क्या कर रहे हैं आप? दर्द हो रहा है मुझे छोड़िए."
दिग्विजय उसके चेहरे के बेहद करीब आया, और एक फुक मार कर मयूरी के चेहरे पर आ रहे बालों के लटो को पीछे कर दिया.
"क्या एक पति को अपनी पत्नी को छूने का अधिकार नहीं है?"
(फिर धीमे से उसके कान में फुसफुसाते हुए)
"फैमिली की टेंशन छोड़ दो, बीकॉज अब शादी हो चुकी है हम दोनों की कोई भी कुछ नहीं कर सकता. मैं वादा करता हूं कि तुम्पर की भी उंगली नहीं उठाएगा. मैं हमेशा तुम्हारे साथ खड़ा रहूंगा."
मयूरी ने उसकी बात सुनकर एक बेहद गहरी सांस ली और अपना सिर हिलाकर उससे दूर हुई. दिग्विजय ने अपनी बात कहकर उसपर से अपनी पकड़ ढीली कर दी थी, मयूरी ने अपनी साड़ी संभाली और बेड पर लेट गई.
दिग्विजय ने उसे एक नजर देखा और कबर्ड से अपने कपड़े लेकर चेंजिंग रूम में चला गया, थोड़ी देर बाद वो अपने कपड़े चेंज कर के रूम में आ चुका था. उसने देखा मयूरी सो चुकी है, उसे देखकर इसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान तैर गई.
"वाह! फर्स्ट नाइट में मेरी बीवी मुझे छोड़कर अकेले सो गई."
दिग्विजय ने मयूरी को ठीक से कम्बल ओढ़ा कर एयर - कंडीशनर का टेंपरेचर सही से सेट कर अपना लैपटॉप लेकर बेड पर बैठ गया.
(नेक्स्ट मॉर्निंग)
सूरज की रोशनी परदों के थ्रू रूम में आ रही थी, करीब साढ़े छह बजे के आस - पास मयूरी की आँखें खुल गईं. उसकी नजर सबसे पहले सीलिंग पर पड़ी कुछ देर तक एकटक उसे देखने के बाद उसे सच्चाई का आभास हुआ, उसे महसूस हुआ कोई वजनदार चीज उसके बॉडी से लिपटी हुई है.
उसने अपना सिर घुमा कर देखा तो दिग्विजय उसे लिपट कर गहरी नींद में सोया हुआ था. सोते हुए वो किसी खरगोश के बच्चे की भांति मासूम लग रहा था, कुछ पल तो मयूरी खुद भी उसे निहारती रह गई.
"ऐसे कब तक निहारती रहोगी जाना, अब तो घूरना बन्द कर दो. बहुत देर से कंट्रोल्ड रहने की कोशिश कर रहा हूं मैं."
दिग्विजय अपनी आँखें खोल कर उसे देखने लगा.
वहीं, मयूरी की आँखें हैरानी में बड़ी हो गई.
"आप.. आप.. जगे हुए थे."
"उम्म.. हां मैं जगा हुआ था, देख रहा था एक लड़की को, जो सिर्फ सामने से मुझसे डरने का नाटक करती है और पीठ पीछे घूरने में कोई भी कसर नहीं छोड़ती."
दिग्विजय ने उसकी आंखों में डिप्ली झांकते हुए कहा.
मयूरी की नजरें अपने आप झुक गई, उसने हल्के से दिग्विजय को धक्का दिया. बेड से उठी तभी बेडरूम के दरवाजे पर नॉकिंग हुई. मयूरी ने जल्द बाजी में अपने सिर और चेहरे को घुंघट से ढका फिर जाकर डोर खोला तो सामने दक्षिणा जी और सुदेशा जी खड़ी हुई थी, दक्षिणा जी ने अपने हाथों में पकड़ी साड़ी उसके हाथ में रखी.
"बेटा एक यही पहनना. ठीक है! और घुंघट क्यों ले रखा है तुमने."
मयूरी थोड़ी दर गई, वो कुछ बोलती उसे पहले ही दिग्विजय की आवाज उनके कानों में पड़ी.
"मैने कहा उसे घुंघट लेने को, नई बहु हैं ना इसलिए. अम्म.. कोई मुंह दिखाई की रिचुअल होती है ना इसलिए."
दक्षिणा जी ने उसे बेहद अचंभे से देखा फिर शक्की आवाज में बोलीं.
"बेटा! तुम तो ये सब रिचुअल रस्म के बारे में ज्यादा नॉलेज रखना पसन्द नहीं करते, तो अब कैसे तुम्हे इन सब में इतना इंटरेस्ट आ गया."
सुदेशा जी उनकी बात पर बोलीं.
"दीदी आप नहीं समझती नई - नई दुल्हन आईं हैं इनकी, इसलिए अभी बीवी को सबकी नजरों से बचा कर रखना चाहते हैं."
दक्षिणा जी भी दिग्विजय को देखी जो अब अपने फोन में बिजी हो गया था, उन्होंने मयूरी को तैयार होने के बाद नीचे आने को कहा.
"बेटा तैयार होकर नीचे आ जाना, माँ को जरा सी भी देरी बर्दाश्त नहीं होती. ह्म्म्म."
कहकर वो सुदेशा जी के साथ नीचे चली गई.
मयूरी ने झट से डोर बंद कर दिया. डोर बंद करके पीछे मुड़ी तो दिग्विजय उसे ही घूर रहा था.
...!!जय महाकाल!!...
(इस कहानी को सपोर्ट करे, मुझे आप सभी के सपोर्ट की बहुत जरूरत है. मुझे फॉलो अवश्य करें, और आज का पार्ट अच्छा लगा हो तो कमेंट्स और रेटिंग जरूर दें.)
...!!जय महाकाल!!...
अब आगे...!!
दिग्विजय की नज़र को इग्नोर करके मयूरी वाशरूम में जाने लगी, लेकिन दिग्विजय लंबे - लंबे कदम लेकर एकदम से उसके करीब आ गया. बेहद धीमे से उसके बाहें पकड़ कर वो पीछे से उसके कंधे पर झुका.
"ये.. ये क्या कर रहे हैं आप?"
मयूरी एकदम से डर गई, उसने अटकती आवाज में कहा.
दिग्विजय धीमे से अपनी गहरी सांस को उसके कंधे पर ही छोड़ते हुए बोला.
"अपनी बीवी से रोमांस."
"छोड़िए मुझे, नीचे सब इंतेज़ार कर रहे हैं."
मयूरी ने हल्का घबराते हुए कहा.
दिग्विजय ने कोई जवाब नहीं दिया, उसने अपने माथे को उसके कंधे में घुसा लिया था. वो धीरे - धीरे उसके कंधे पर अपने होंठ रख दिया. मयूरी का पूरा शरीर सिहर उठा वो उससे दूर होने के लिए उसे धक्का देती लेकिन दिग्विजय उस पर अपनी पकड़ को और भी ज्यादा मजबूत कर देता. जिससे कुछ देर बाद मयूरी थक हार कर शांत खड़ी हो गई.
दिग्विजय उसके कंधे से अपने होंठ हटाकर उसे अपनी ओर पलट लिया. फिर एकदम से उसके घबराए चेहरे को देखकर तिरछी मुस्कान लिए हंसा और अगले ही पल वो उसके नर्म और बेहद कोमल होठों पर अपने सख्त और ठंडे होंठ रख दिया.
मयूरी का पूरा शरीर कांपने लगा था लेकिन वो उससे दूर भी नहीं हो पा रही थी, दिग्विजय ने उसे कांपते हुए महसूस किया और उसे उसके कमर से पकड़ कर अपने और करीब खींच लिया. उसने धीमे - धीमे उसके होठों पर हरकत करने लगा. मयूरी भी कुछ पल के बाद उसके एहसासों में खोने लगी थी, लेकिन वो उससे दूर होने की भी जद्दोजेहद में लगी हुई थी.
दिग्विजय पांच मिनट बाद उससे खुद दूर हुआ, लेकिन उसकी नजरें अभी भी मयूरी के रसीले होठों पर टिकी हुई थी. मयूरी ने खुद को आजाद महसूस किया तब जल्दी से दक्षिणा जी के दिए हुए साड़ी को लेकर वाशरूम में घुस गई.
दिग्विजय तब तक उसकी पीठ को देखता रहा, जब तक उसने वाशरूम की डोर एक तेज आवाज के साथ बंद ना कर ली.
"जाना! तुम तो सच में बेहद खूबसूरत हो."
दिग्विजय खुद में ही बुदबुदाया.
वो एक नजर वाशरूम को देख अपने रूम से बाहर निकल गया, कुछ पंद्रह मिनिट बाद मयूरी ने हल्के से वाशरूम के डोर को खोला, वो सिर निकाल कर बाहर झांकी. अपनी नजरों को पूरे रूम में दौड़ाई, जब उसे कहीं भी दिग्विजय ना दिखा तो वो फट से वाशरूम से निकल आई.
उसने जैसे - तैसे करके अपने शरीर पर उस साड़ी को लपेट रखा था, शायद वाशरूम में उससे साड़ी पहनना हुआ नहीं. इसलिए वो बाहर आई थी, उसने जल्दी - जल्दी अपनी साड़ी के प्लेट्स खोले और फिर से उसे सही करके पहनने लगी.
उसने प्लेट्स ठीक किए और तभी अचानक से उसकी नजर एक कोने पर पड़ी, जहां दिग्विजय खड़ा उसे ही तिरछी मुस्कान लिए निहार रहा था. मयूरी की नजर खुद पर पड़ने के बाद दिग्विजय धीमे - धीमे उसके करीब आया. मयूरी ने अपने कदम पीछे खींच लिए, लेकिन दिग्विजय ने एक और कदम उसके करीब होने के लिए बढ़ाया.
ऐसे ही मयूरी अपने कदम पीछे खींचती रही और दिग्विजय अपने कदम बढ़ाता रहा. लेकिन अचानक से मयूरी फिर कदम खींचने को हुई तब उसे पता चला कि अब वो दिवाल से जा लगी है, एक बड़ी बड़ी आंखों से दिग्विजय को घूरने लगी जिसकी तिरछी मुस्कान काफी बड़ी हो गई थी.
दिग्विजय एकदम से उसके करीब आकर अपने दोनों हाथ दीवाल पर रख कर मयूरी को पूरा अपने कैद में कर लिया, वो उसे दीवाल से चिपकाता की, मयूरी उसके घेरे से तुरंत बाहर निकल गई. मयूरी की हाइट दिग्विजय के कंधे तक ही थी इसलिए उसे निकलने में ज्यादा कोई प्रॉब्लम भी नहीं हुई.
दिग्विजय तिरछी मुस्कान के साथ ही जोड़ो से हंसने लगा, जिसे एक बार मयूरी अजीब सी नजरों से देखने के बाद ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी होकर तैयार होने लगी. दिग्विजय उसे इंटेंसिटी से निहारते हुए कबर्ड से अपने कपड़े लेकर बेड पर रख कर वाशरूम में घुस गया.
मयूरी ने उसे वाशरूम में जाते देखा तो एक चैन की सांस भर कर जल्दी जल्दी तैयार होने लगी, वो पूरी तैयार हो गई थी उसने खुद को एक नजर देखा फिर सिंदूर की डिब्बी लेकर उसमें से सिंदूर लेकर अपनी मांग में भर ली. उसने खुद को एक स्माइल के साथ निहारा, लेकिन कुछ याद आते ही फिर से उसके चेहरे पर उदासी झलकने लगी.
उसने अपने सिर पर पल्लू रखा अपना चेहरा पूरा ढक कर, रूम से बाहर निकल आई. लेकिन अब उसे साड़ी में चलने में काफी दिक्कत आ रही थी और ऊपर से ये पल्लू उसे काफी परेशान कर रहा था. वो डगमगाते हुए ही सीढ़ियों तक पहुंची. तभी, पीछे से उसे किसी ने आवाज दी.
"दी रुकिए, मैं भी आ रही हूं आपके साथ."
मयूरी रुक गई और उसका इंतेज़ार करने लगी. दिव्या (मयूरी की देवरानी) जल्दी से चलते हुए उसके पास आई, दोनों ने ही एक ही डिजाइन की भारी वर्क वाली साड़ी पहनी थी. लेकिन दिव्या की साड़ी का रंग गुलाबी था और मयूरी का लाल रंग का, दोनों ही साड़ी दोनों पर काफी अच्छी लग रही थी. साड़ी काफी भारी थी जिससे दोनों को ही चलने में बेहद दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था, ऊपर से सोने पास सुहागा दोनों ने ही घुंघट लिया हुआ था.
"चलिए दी."
दिव्या ने अपनी प्यारी सी मुस्कान के साथ कहा.
मयूरी ने अपना सिर हिलाया फिर सीढ़ी पर अपनी नजरें गड़ा - गड़ा कर नीचे उतरने लगी, बट दिव्या को इन सब का इतना ज्यादा एक्सपीरियंस नहीं था इसलिए वो बार बार भूल से दूसरी सीढ़ी पर पाओ रख देती, मयूरी ने उसका हाथ पकड़ लिया.
"मेरे साथ चलो, वरना तुम गिर जाओगी सीढ़ियों से."
मयूरी ने हल्की आवाज में कहा.
"ठीक है, दी."
दिव्या ने सर झुकाए हुए कहा.
दिव्या का "दी" कहना मयूरी के लिए काफी खास एहसास था. इसलिए वो भी अपनी बड़ी बहन होने के कर्तव्य को निभा रही थी. दोनों साथ में ही सीढ़ियों से नीचे उतरीं, सभी हॉल में बैठे बड़ों की नजरें दोनों बहुओं पर पड़ी. दक्षिणा जी और सुदेशा जी ने दोनों को एक साथ देखा तो उनके चेहरे पर एक मुस्कान खिल उठी.
बहुएं आईं और सभी बड़ों के पैर छूंइं, सभी ने उन्हें आशीर्वाद दिया. सुहासिनी जी एक सोफे पर चाय पीती हुईं न्यूजपेपर पढ़ रहीं थीं, उनके पास जाने से दोनों बहुएं ही सकुचा रही थी.
दक्षिणा जी ने दोनों से कहा.
"जाओ माँ के भी पैर छु लो."
दोनों सिर हिलाई और धीरे से सुहासिनी जी के पास गई, पहले मयूरी सुहासिनी जी के पैरों में झुकी और पैर छुई. सुहासिनी जी की नजर न्यूजपेपर से हट कर उस पर चली गई, उन्होंने उसके सर पर हाथ रखा और आशीर्वाद दी.
"सदा सौभाग्यवती भवः!"
मयूरी अपने हाथ जोड़े उनसे दूर हो गई. फिर दिव्या भी सुहासिनी जी के पैर छूंइ, उसे भी सुहासिनी जी ने आशीर्वाद दिया.
"सौभाग्यवती भवः!"
सुहासिनी जी वापस से अपनी नजर न्यूजपेपर पर करके, दक्षिणा जी और सुदेशा जी से बोलीं.
"जाओ दोनों बहुओं की चूल्हा छूने की रस्म पूरी कराओ, सास बनी हो तुम दोनों, जाओ अपनी बहुओं के प्रति अपना कर्त्तव्य निभाओ. हम कुछ समय में आते है."
दक्षिणा जी और सुदेशा जी जल्दी से अपनी जगह से उठीं, फिर दोनों बहुओं को लेकर किचेन की ओर चल पड़ी. गैस के सामने उन दोनों को ले जाया गया और दोनों से गैस की पूजा करवाया गया. सुहासिनी जी आईं और दोनों नई नवेली दुल्हनों को चूल्हा पूजते हुए देखने लगी.
दक्षिणा जी ने दोनों को ही गैस के बीच में स्वास्तिक बनाने को कहा. मयूरी को आता था स्वास्तिक बनाने लेकिन दिव्या को नहीं आता था, दिव्या घबरा गई उसका घबराना मयूरी ने भी महसूस किया और जल्दी से उसने अपना हाथ बढ़ाया और चंदन लेकर स्वास्तिक बनाने लगी.
सुहासिनी जी के चेहरे पर एक थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन मुस्कान आ गई, कुछ देर में मयूरी ने स्वास्तिक बना कर तैयार कर दिया था. दक्षिणा जी उसे कुछ और करने को बोलतीं की सुहासिनी जी की कड़क आवाज आई सभी के कानो में.
"रुको दुल्हन!"
उनकी आवाज पर दक्षिणा जी और बाकी सभी का सिर उनकी ओर मुड़ गया, वो आईं और मयूरी से पूछी.
"स्वास्तिक क्यों बनाया जाता है, इसका अर्थ क्या होता है और स्वास्तिक कब बनाया जाता है, बताइए बड़ी दुल्हन."
मयूरी कुछ पल तक चुप रही तब सुहासिनी जी के चेहरे पर नाराजगी के भाव नजर आने लगे, लेकिन तभी मयूरी ने अपनी मीठी आवाज में बोलना शुरू किया.
"हिन्दू धर्म में दो प्रतीक चिन्हों को बहुत ही शुभ माना जाता है इनमें से एक ओमकार यानी "ओउम् (ॐ)" चिन्ह है. ॐ स्वयं में सम्पूर्ण ही ब्रह्माण्ड को समाये हुए है यह भगवान शिव से संबंधित होता है. दूसरा शुभ चिन्ह स्वास्तिक को माना जाता है. स्वास्तिक शुभता का प्रतीक चिन्ह है. हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत से पहले स्वास्तिक का चिन्ह बनाया जाता है. पूजा पाठ के कार्यों में भी सबसे पहले स्वास्तिक का चिन्ह ही बनाया जाता है.
स्वास्तिक का अर्थ शुभ होना होता है. स्वास्तिक के चिन्ह को भगवान श्री गणेश से का प्रतीक माना गया है.
ऋग्वेद के अनुसार, स्वास्तिक को सूर्य माना जाता है ऐसे में स्वास्तिक को चारों भुजाओं की उपमा दी जाती है. स्वास्तिक के मध्य स्थान को भगवान विष्णु की 'कमल नाभि' और चारों रेखाओं को ब्रह्माजी की चार मुख, चार वेद, चार हाथ के रूप में माना जाता है. स्वास्तिक को चार युग और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक भी मानते हैं."
कहकर मयूरी शांत हो गई, उसकी बातों को सुनकर सभी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव झलकने लगे. यहां तक कि सुहासिनी जी के मुख पर भी मुस्कान आ गई.
"ह्म्म्म, बड़ी दुल्हन को पूजा के बारे इतना ज्ञान है ये जानकर आज हम बेहद खुशी हो रही है."
सुहासिनी जी ने प्यार से कहा.
"बहु, पूजा शुरू करो."
दक्षिणा जी ने अपना सिर हिलाया और उसे गैस पर फूल चढ़ा कर पूजा करने बोली. मयूरी ने अपना सिर हिलाया और सारी विधि के साथ पूजा करने लगी, दिव्या भी उसका साथ दे रही थी लेकिन उसे पूजा पाठ का इतना ज्ञान नहीं था, जितना कि मयूरी को था.
"छोटी बहु! क्या आपको पूजा पाठ का इतना भी ज्ञान नहीं है. अगर नहीं है तो सीखिए अपनी जेठानी से क्योंकि इस घर में आप एक दिन भी पूजा किए बगैर नहीं रह सकतीं."
सुहासिनी जी समझ चुकी थी कि दिव्या को पूजा करना नहीं आता.
दिव्या ने अपना सिर हिलाया और फिर मयूरी जो आरती की थाली तैयार कर चुकी थी, उसके साथ आरती करने लगी. पूजा होने के बाद सुहासिनी जी ने दोनों को कुछ बनाने को कहा.
"चलिए अब आप दोनों ही मिलकर आज का भोजन बनाइए, जो हमारे लल्ला और परिवार के सभी को पसंद आए और क्या बनाना है ये आपकी दोनों सास बता देंगी."
वो वहां से जाने लगी, लेकिन फिर रुक गई.
"छोटी बहु खाना बनाना आता है आपको?"
उन्होंने दिव्या से पूछा.
दिव्या हिचक गई, और धीरे से हकलाते हुए बोली.
"न.. नहीं दादी माँ. नहीं आता है मुझे ख.. खाना बनाना."
सुहासिनी जी ने उसे एक नजर घूरा फिर शख्ती से मयूरी की ओर मुड़कर उससे पूछी.
"बड़ी बहु आपको आता है ना खाना बनाने."
"हाँ!"
मयूरी ने अपनी शांत प्यारी और सौम्य आवाज में कहा.
सुहासिनी जी ने अपना सिर हिलाया और शख्त आवाज में दिव्या से कहा.
"बड़ी बहु बनाएंगी, आप उनकी मदद करिए और सीखिए कैसे बनाती हैं वो."
दिव्या ने सिर झुका कर हामी भरी. सुहासिनी जी वहां से चली गई.
मयूरी दक्षिणा जी से पूछी.
"मैम!"
वो अटक गई बोलते हुए.
उसकी बात पर दक्षिणा जी उसे अचंभे से देखीं.
मयूरी अपनी जीभ दांतों तले दबा कर खुद में ही बड़बड़ाई.
"ये क्या कह रही हो मयूरी! सब जान जायेंगे कि तुम कौन हो."
फिर जल्दी से अपनी बात सही करते हुए बोली.
"माँ! खाने में सबको क्या पसंद आता है."
दक्षिणा जी मुस्कुरा कर प्यार से उसे बोलीं.
"बेटा, तुम क्या करो उम्म.. पुलाव, वेजिटेबल बिरयानी, राजमा मसाला, मटर पनीर, आलू के पराठे और पूरियां तल लेना. मीठे ने तुम सुजी का हलवा, सेवईं की खीर बना सकती हो. ये सबको पसंद आएगा."
मयूरी उनकी बात पर सिर हिलाई और अपने काम में लग गई, दक्षिणा जी और सुदेशा जी किचेन से बाहर निकलने लगी तभी, दक्षिणा जी रुकी और मुड़कर वापस से मयूरी के पास आईं.
"बेटा दिग्विजय इलायची का स्वाद पसंद नहीं करता और उसे एलर्जी भी है उससे तो खीर में मत डालना, अगर डालो तो उसके लिए पहले अलग कर लेना."
इतना कहकर वो किचेन से चली गई.
मयूरी काम करते हुए अपने मन ही मन सोची.
"हे महादेव! इलायची से एलर्जी किसको होता है."
...!!जय महाकाल!!...
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...!!जय महाकाल!!...
अब आगे...!!
मयूरी, दिग्विजय की एलर्जी वाली बात पर अचंभे से अपने सारे काम कर रही थी, दिव्या उसका हाथ बख़ूबी बटा रही थी. दोनों साथ में काम करती हुई बेहद संस्कारी बहुएं लग रही थी, करीब एक घंटे के बाद दक्षिणा जी किचेन में आई.
दोनों को देखकर उनके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान खिल उठी, उन्होंने दरवाजे पर खड़े होकर दोनों की बालाएं ली. अंदर आकर प्यार से पूछीं.
"बन गया खाना?"
"हाँ माँ, बन गया है."
मयूरी अपने पल्लू को सही करते हुए पीछे मुड़ी.
"ठीक है. जरा मैं देखूं कैसा खाना बनाती हैं मेरी दोनों बहुएं."
दक्षिणा जी आगे बढ़ी और सारे खाने के बर्तनों में देखीं. उनके चेहरे पर फिर मुस्कान तैर गई. खाना देखने में वाकई बेहद स्वादिष्ट लग रहा था.
उन्होंने दो छोटे - छोटे बर्तन लिए और उसमें दोनों को बनाया हुआ खीर पड़ोसने को कहा.
"लड्डू गोपाल को भोग लगाना है अभी तुम दोनों को तो जल्दी से इसमें पड़ोस दो खीर."
मयूरी और दिव्या ने सिर हिलाया और खीर पड़ोस दीं.
"चलो मेरे साथ."
दक्षिणा जी प्यार से बोलीं.
दोनों ने अपने माथे पर रखा पल्लू सही किया, फिर दक्षिणा जी के पीछे - पीछे चलने लगी. दक्षिणा जी मैंशन में ही बने मंदिर में दोनों को लेकर आईं, दोनों ने धीरे से भगवान को प्रणाम किया और अपने साथ लाए हुए खीर को थोड़ा सा लेकर भगवान को भोग लगा दीं.
दोनों ने झुककर वापस से भगवान को प्रणाम किया और दक्षिणा जी की तरफ मुड़ी, दक्षिणा जी उन्हें लेकर डाइनिंग रूम में आईं.
"जल्दी - जल्दी खाना पड़ोस दो, मैं अभी सबको बुलाकर लाती हूं. ह्म्म्म!"
दक्षिणा जी सबको बुलाने चली गईं.
दोनों बहुएं किचेन की ओर बढ़ गईं और सारा खाना लाकर डाइनिंग टेबल पर रखने लगी, उनकी मदद सर्वेंट्स भी कर दे रहे थे. दिव्या ने मयूरी से हल्की घबराहट से पूछी.
"दी अगर सबको खाना पसंद नहीं आया तो."
मयूरी पहले हल्के से मुस्कुराई फिर थोड़ा हस्ते हुए बोली.
"सबको खाना पसंद आएगा, मुझे खाना बनाना ना बचपन से आता है. मुझे बहुत शौक था खाना बनाने का इसलिए मेरी माँ मुझे सिखाती थीं. अगर कोई कमी होगी ना हमारे खाने में तो शायद वो इतनी भी बड़ी नहीं होगी कि वो खाना छोड़कर चले जाएं. तुम चिंता मत करो."
उसने बेहद धीमे स्वर कहा था.
"आपसे एक बात कहें दी."
दिव्या फिर से पूछी.
"हाँ क्यों नहीं, कहो."
"आप ना बहुत अच्छी हैं, मुझे खाना बनाना नहीं आता था उस टाईम आपको ये पता चल गया था, तब भी आप मुझे अपने साथ बनाने दीं."
दिव्या ने उसका हाथ पकड़ कर कहा.
"अरे तो इसमें मैने कुछ गलत किया क्या? अच्छा! शायद तुम मेरे साथ खाना बनाना नहीं चाहती थी हैं ना. देखो अब हम दोनों को इसी घर में रहना है तो साथ मिलकर काम करेंगे तभी तो हमारा घर बसेगा, इसलिए कभी भी हम दोनों में से कोई भी किसी को नीचा नहीं दिखाएगा, समझी."
मयूरी ने लास्ट में उसके सिर पर हल्की सी टपली मारी.
दिव्या मुस्कुरा कर उसके गले लग गई, मयूरी भी प्यार से उसके माथे को सहलाई.
सुहासिनी जी खाना खाने के लिए वहां आ चुकीं थीं, दोनों को गले लगे हुए देखकर उनके चेहरे पर सुकून का भाव आ गया. एक बेहद प्यारी सी मुस्कान खिल उठी उनके होंठों पर.
"है ईश्वर! आपसे बस मेरी एक ही विनती है, मेरे परिवार को ऐसे ही बांध कर रखना किसी को भी बिखरने मत देना. कितनी प्यारी लग रही हैं दोनों साथ में और भी जो बहुएं आए घर में वो भी ऐसी ही हो घर को जोड़ कर रखने वाली."
सुहासिनी जी ने हाथ जोड़े ईश्वर से विनती की.
तभी, दक्षिणा जी की आवाज से उनकी तंद्रा टूटी.
"चलिए माँ."
सुहासिनी जी ने उन्हें देखा और अपने चेयर पर बैठ गई.
वहीं, मयूरी और दिव्या दक्षिणा जी की आवाज पर जल्दी से अलग हुईं और सबके प्लेट्स सही करने लगी. दोनों मिलकर सुहासिनी जी के प्लेट में खाना पड़ोसने लगी, सुहासिनी जी ने उन्हें देखा फिर अपने प्लेट में देखी.
"अरे बस बहुत हो गया, हम इतना ही खा नहीं पाएंगे."
सुहासिनी जी ने प्लेट को अपने हाथों से ढक दिया.
मयूरी और दिव्या पीछे हट गईं, सभी मेंबर्स आकर अपनी - अपनी जगह बैठने लगे. दिव्या की नजरें रणविजय को ढूंढ रही थी तो मयूरी की आँखें सिर्फ दिग्विजय की तलाश में जुटी हुई थीं, हालांकि अभी दोनों ही नहीं आए थे.
दोनों नई नवेली बहुएं सबको आदर के साथ खाना पड़ोस रहीं थी, रणविजय आया और अपनी चेयर खींच कर बैठ गया.
दिव्या की नजरें अपने आप उसकी ओर उठ गईं लेकिन वो अपने काम में लगी रही, वो कुछ भी गलती नहीं करना चाहती थी अभी, क्योंकि सामने सुहासिनी जी बैठी हुई थीं. सुबह - सुबह ही उसने काफी कुछ सुन लिया था उनसे इसलिए अब कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी वो.
मयूरी अपनी साइड में बैठे सभी को खाना पड़ोस चुकी थी, उसने रणविजय को देखा, जो दिव्या को देख रहा था वो उसे खाना सर्व करने नहीं गई क्योंकि वो ये मौका दिव्या को देना चाहती थी. उसने अपनी नजरें उठा कर सभी तरफ घुमाई पर दिग्विजय उसे कहीं ना दिखा जिससे वो थोड़ी उदास सी हो गई.
उसका ध्यान सुहासिनी जी पर गया, जो दक्षिणा जी से कुछ पूछ रही थी.
"बहु! दिग्विजय को नहीं बुलाई क्या अभी तक आया नहीं वो."
"माँ मैने बुलाया है उसे अभी खाने के लिए, लेकिन उसने कहा कि कुछ देर बाद आयेगा एक जरूरी काम है उसे."
दक्षिणा जी सीढ़ियों की ओर देखीं, जहां पर अभी भी दिग्विजय का कोई नामो - निशान नहीं था.
सुहासिनी जी के चेहरे पर नाराजगी की एक लहर दौर गई.
"मुझे समझ नहीं आता, क्या करता है ये लड़का सारा दिन भर, पूरे दिन ऑफिस में पड़ा रहता है और अब घर में खाने के लिए सबके साथ शामिल नहीं हो रहा."
"माँ खाने के समय बोलिए मत, खांसी आ जाएगी आपको."
सुदेशा ने कहा ही था कि सच ने सुहासिनी जी को खांसी उठी.
मयूरी जल्दी से उनके सामने पानी का ग्लास कर दी.
"दादी माँ, ये लीजिए."
सुहासिनी जी ने ग्लास पकड़ा और पानी की कुछ घुट अपने मुंह में भरीं, मयूरी उनकी पीठ सहला रही थी. सुहासिनी जी शांत हुईं और हल्के आवाज में बोलीं.
"हो गया नई दुल्हन."
मयूरी उनके पीछे से हट गई, तभी उसकी नजरें दिग्विजय पर ठहरी जो काफी कोल्ड एक्सप्रेशंस लिए वहां तेज कदमों से आ रहा था. एक पल को मयूरी सोच में डूब गई.
"ये सुबह तो बिल्कुल सही थे, अभी इतने गुस्से में क्यों हैं."
दिग्विजय अपनी चेयर पर बैठा ही था कि मयूरी आई और उसके प्लेट में खाना सर्व कर दी. दिग्विजय ने उसके हाथों को देखकर ही उसे पहचान लिया था कि वो मयूरी ही है. उसके चेहरे पर एक हल्की दिन वाली तिरछी मुस्कान तैर गई.
राजेंद्र जी (दिग्विजय के चाचा जी) खाना खाते हुए पूछे.
"किसने बनाया है खाना?"
मयूरी और दिव्या का शरीर घबराहट से सूखने लगा, मयूरी धीमे से अपना सिर झुकाकर बोली.
"मैने और दिव्या ने मिलकर खाना बनाया है चाचा जी."
राजेंद्र जी मुस्कुरा दिए.
"सच में बहुत स्वादिष्ट भोजन बनाती हैं आप दोनों."
उनके शब्द सुनकर जैसे दोनों का मन जैसे शांत हुआ, दिग्विजय ने पहला निवाला खाया तो उसके होठों पर भी एक मुस्कान आई जो केवल कुछ सेकंड्स के लिए ही थी. मयूरी का ध्यान राजेंद्र जी की ओर था तो वो उसके मुस्कान को देख ना पाई, उसने अपनी नजरें पर दिग्विजय पर की तब तक दिग्विजय दूसरा निवाला भी खा चुका था, मयूरी उससे पूछना चाहती थी कि "कैसा बना है खाना?" सब बैठे थे, इसलिए वो चुप थी.
दिग्विजय अब बिना किसी रिएक्शन के सिर्फ खाना कहते जा रहा था, जबकि मयूरी उसे अपनी आंखें सिकोड़ कर घूर रही थी.
"हूँह, एक बार भी खाने की तारीफ़ नहीं की इन्होंने. कैसे पति है यें."
वो अपने मन ही मन बुदबुदाए जा रही थी.
सभी ने उसके खाने की बेहद तारीफ की, यहां तक कि सुहासिनी जी भी लास्ट में बोल ही दीं.
"खाना काफी अच्छा बनाया है तुम दोनों ने मिलकर."
वो अपने साथ में ही लाई हुई, दो बॉक्स दोनों को एक - एक पकड़ा दीं.
"ये तुम दोनों की पहली रसोई का तोहफा है, रखो इसे अपने पास."
मयूरी ने मना किया, लेकिन सुहासिनी जी ने जबरदस्ती उसके हाथ में पकड़ा दिया था. दोनों ने खोलकर देखा तो उसमें एक ही डिज़ाइन की गोल्ड, डायमंड और रेड डायमंड्स से बना बेहद खूबसूरत कंगन था, कंगन का वेट भी अच्छा खासा था. सभी ने दोनों को अच्छा सा गिफ्ट दिया, लेकिन दिग्विजय और रणविजय को ऐसा कोई रस्म भी होता है उसकी कोई जानकारी नहीं थी, दोनों ही कुछ नहीं लाए थे.
दक्षिणा जी ने दोनों को देखकर पूछा.
"क्या हुआ? तुम दोनों नहीं दोगे कुछ अपनी - अपनी पत्नी को."
दिग्विजय कुछ पल रुका और बोला.
"माँ मुझे नहीं पता था कि ऐसा भी कोई रस्म वगैरा कुछ होता है, इसलिए मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है."
उसकी बात पर रणविजय ने भी हाँ में हाँ मिलाया.
"हाँ माँ मुझे भी पता नहीं था."
कहकर उसने अपनी बत्तीसी चमका दी.
दक्षिणा जी दोनों को घुड़कर बोलीं.
"मतलब तुम दोनों सिर्फ और सिर्फ अपने काम में घुसे रहोगे, इतना भी सेंस नहीं है कि नई दुल्हनों को खाना बना कर खिलाने पर कुछ न कुछ भेंट के रूप में दिया जाता है, तुम दोनों ने शादी ही क्यों की?"
दिग्विजय अजीब से एक्सप्रेशंस लिए कहा.
"हो गया माँ, दे दूंगा मैं कुछ लाकर रात को, अब सुनाना बंद कीजिए. अभी मैं ऑफिस जा रहा हूं."
"ऑफिस जा रहे हो. बेटा! आज रिसेप्शन है तुम्हारी. कुछ देर बाद बहु की मुंह दिखाई भी होनी है, नहीं बेटा आज मत जाओ ऑफिस."
दक्षिणा जी हल्की चिंता से बोलीं.
"मुंह दिखाई" ये वर्ड सुनकर दिग्विजय जाते जाते ठिठक गया, वो मुड़ा और उनसे पूछा.
"मुंह दिखाई मींस सभी को मुंह दिखाना, एम आई राइट माँ?"
"हाँ बेटा, सभी रिलेटिव्स आएंगे बहुओं का चेहरा देखने, ऐसे में तुम नहीं रहोगे तो कैसे चलेगा."
दक्षिणा जी कहा.
दिग्विजय की नज़र मयूरी पर टिक गईं.
"अगर आज ही सब इस मुंह दिखाई की रस्म के लिए आएंगे, तो सबको ये जान जायेंगे कि मयूरी मेरी पत्नी है, अन्या नहीं. ओह गॉड! नहीं मैं मयूरी को इस सिचुएशन में अकेले छोड़कर नहीं जा सकता, मुझे रुकना होगा."
उसके दिमाग में ये शब्द गूंज उठे थे.
"ओके माँ, मैं घर में ही रहूंगा."
दिग्विजय ने कहा और सीधा अपनी रूम की ओर बढ़ गया.
दक्षिणा जी को उसके अचानक से बदले हुए तेवर कुछ समझ नहीं आये, वो एक पल को सोच में डूब गई. लेकिन कुछ देर बाद उन्होंने मयूरी और दिव्या की ओर देखा.
"बेटा तुम दोनों भी अब खाना खा लो. ज्यादा देर भूखी रहना सही नहीं है, कल रात से कुछ नहीं खाया तुम दोनों ने. बैठो मैं पड़ोस देती हूं तुम दोनों को खाना."
"नहीं माँ हम दोनों ले लेंगे, आप जाइए अपने रूम में आराम करिए."
मयूरी ने उन्हें रोकते हुए कहा.
"ठीक है, तुम दोनों जल्दी अपना खाना खत्म कर लो फिर जाकर रूम में कुछ देर रेस्ट कर लेना. अभी नौ बजे हैं बारह बजे तक सारे मेहमान आ जाएंगे तब तुम दोनों को बिल्कुल भी समय नहीं मिलेगा. ह्म्म्म!"
दक्षिणा जाने के लिए मुड़ी ही थी कि उन्हें कुछ याद आया.
"बेटा तुम दोनों को अपनी अभी वाली साड़ी भी बदलनी होगी, मैं दूसरी साड़ी लेकर आऊंगी तुम दोनों के रूम में."
दक्षिणा जी ने प्यार से कहा.
मयूरी और दिव्या ने अपना सिर हिला दिया तो दक्षिणा जी वहां से अपने रूम की ओर बढ़ गईं. दोनों अपने जगह पर बैठी और खाना खाकर अपने - अपने रूम में आ गई. मयूरी जब अपने रूम में कदम रखा तो उसे किसी ने खींच लिया और रूम का डोर अन्दर से लॉक कर दिया. मयूरी छटपटाने लगी उसने अपने सिर उस व्यक्ति के सीने से निकाल कर उसके चेहरे को देखी.
"सर प्लीज़ दूर होइए मुझसे बार - बार ये आप मेरे करीब क्यों आ जातें हैं, मुझे बिल्कुल नह.."
उसने इतना कहा ही था कि अचानक से उसके अन्दर की बात उसके गले में ही घुट कर रह गई.
दिग्विजय उसके चेहरे पर बेहद अजीब तरह से हाथ फेर रहा था, धीरे - धीरे उसने उसके होठों को अपने होंठों के गिरफ्त में कर लिया. मयूरी की आँखें शॉक से बड़ी - बड़ी हो गई, उसने उसके सीने पर हाथ रख उसे धकेलना शुरू किया, लेकिन दिग्विजय एक इंच भी मूव नहीं हुआ.
कुछ देर बाद दिग्विजय ने उसके होठों को कुछ ब खुद छोड़ दिया, उसकी निगाहें अब भी उसकी होंठों पर ही टिकी हुई थी.
"यू नो जाना, तुम्हारे ये होंठ काफी रसीले हैं छोड़ने का मन ही नहीं करता."
दिग्विजय ने नजरें उसके होठों से हट कर अब चेहरे को निहारने लगी थी.
मयूरी उसकी बात सुनकर शर्म से पानी - पानी हो गई, उसका चेहरा लाल हो गया, वो शर्म से अपनी नजरें इधर - उधर करने लगी.
"स.. सर छोड़िए मु.. मुझे."
उसने धीमी आवाज में हकलाते हुए कहा.
दिग्विजय मुस्कुराया जो सच में बेहद खूबसूरत मुस्कान थी, वो उसे उसके कमर से पकड़ लिया और अपने हाथों से हरकत करने लगा. मयूरी का शरीर अकड़ने लगा, वो उससे दूर जाने के लिए बार - बार बोल रही थी, लेकिन दिग्विजय मानने को तैयार ही नहीं हो रहा था.
"लो छोड़ दिया मैने तुम्हे, अब खुश?"
दिग्विजय उससे अलग होते हुए कहा.
मयूरी घबराहट से उसे घूरी फिर बिस्तर पर जाकर लेट गई, दिग्विजय अजीब तरह से मुस्कुराते हुए उसे निहार रहा था. तभी उसकी फोन की रिंगटोन बजी. उसने स्क्रीन पर चमक रहे नाम को देखा फिर कॉल रिसीव करके कहा.
"हाँ बोलो क्या बात है?"
"सर! इट्स ऐन इमरजेंसी आपको तुरंत संजीवनी हॉस्पिटल पहुंचना होगा."
सामने से एक शख्स की चिंता भरी आवाज आई.
"ओके, आई एम कमिंग."
दिग्विजय ने कहा और कॉल कट कर दिया.
मयूरी के पास जाकर उसके माथे को चूम लिया, मयूरी ने उसे फिर हैरानी से घूरा, वो उसे देख एक दिलकश स्माइल उसे पास किया और रूम से बाहर निकल गया.
...!!जय महाकाल!!...
(इस कहानी को सपोर्ट करे, मुझे आप सभी के सपोर्ट की बहुत जरूरत है. मुझे फॉलो अवश्य करें, और आज का पार्ट अच्छा लगा हो तो कमेंट्स और रेटिंग जरूर दें.)
...!!जय महाकाल!!...
अब आगे...!!
(संजीवनी हॉस्पिटल)
पार्किंग लॉट में करीब पांच गाड़ियां कतार से आकर रुकीं, सबसे पहले वाले गाड़ी से एक बॉडीगार्ड बाहर आया, उसने तीसरी गाड़ी का दरवाज़ा खोला और आदरपूर्वक झुक कर खड़ा हो गया. दिग्विजय शान से गाड़ी से उतरा, एक बेहद ठंडी नजर पूरे हॉस्पिटल पर दौरा कर, लंबे -लंबे डग भरते हुए हॉस्पिटल के भीतर पहुंचा.
एंट्रेंस गेट पर एक शख्स उसी के इंतेज़ार में इधर - उधर चल रहा था, जैसे ही उसकी नजर बॉडीगार्ड्स से घिरे दिग्विजय पर गई. वो रिस्पेक्ट से उसके सामने झुका और एक तरफ इशारा करते हुए कहा.
"सर! हमें इस तरफ जाना है."
दिग्विजय ने अपना सिर हिलाया और उसके साथ चलने लगा. वो उसे वीवीआईपी फ्लोर पर ले आया था, वो फ्लोर काफी शांत और अजीब से सन्नाटे से भरा हुआ था. वॉर्ड के सामने पहुंच कर वो शख्स (दिग्विजय का असिस्टेंट) उसने धीरे से डोर पर नॉक किया, काफी देर बाद भी वॉर्ड से कोई रिस्पॉन्स नहीं आया. दिग्विजय डोर खुलने का इंतेज़ार और नहीं कर सकता था, इसलिए उसने सीधे डोर को बाहर वाले हैंडल लॉक से खोला और अंदर आकर सीधे अपनी नजरों को बेड पर गड़ा दिया.
एक अट्ठारह साल का लड़का बिना किसी इमोशंस के एकटक सामने वाली दीवार को घूर रहा था. दिग्विजय बेड के साइड में रखी चेयर को अपनी ओर खिसका कर बैठ गया, लड़के ने अभी भी उसे नहीं देखा, लेकिन दिग्विजय के फेशियल एक्सप्रेशंस नॉर्मल थे, जैसे इस बात का थोड़ा सा बुरा भी बुरा उसे ना लगा हो. दिग्विजय ने उसके माथे को धीरे से सहलाया. लड़के ने एक बेहद गहरी नजर उस पर डाली और फिर अपनी नजरों को सामने कर लिया. दिग्विजय ने हल्की स्माइल के साथ उससे कहा.
"मृदुल, अपनी बहन से बात करना चाहोगे?"
मृदुल की आँखें अपने आप उसके चेहरे पर टिक गईं, उसने कुछ कहा नहीं लेकिन साफ था कि वो अपनी बहन से बात करना चाहता है. दिग्विजय ने अपना फोन निकाल कर एक कॉल किया.
"हेलो."
कॉल पिक होते ही किसी लड़की की प्यारी सी आवाज आई.
मृदुल के चेहरे पर मुस्कान आ गई, उसने दिग्विजय के हाथ से फोन छीना और जल्दी से बोला.
"दी, मैं मृदुल. आई एम मिसिंग यू. कहां हो आप?"
वो अचानक से हांफने लगा.
दिग्विजय उसके पीठ पर लगातार हाथ फेरने लगा. मृदुल की आवाज संतुलित करने के लिए. मृदुल काफी बीमार था, इसलिए वो ठीक से बोल भी नहीं पाता था.
मृदुल की आवाज सुन कर, मयूरी की पकड़ अपने फोन पर कस गई. उसकी आँखों खुद ब खुद भर आईं.
"मृदु, तुम.. तुम ठीक हो ना, तुम्हारी आवाज इतनी क्यों कांप रही है. हॉस्पिटल वाले खाना नहीं देते क्या?"
मयूरी ने घबराहट से कहा.
"नहीं दी. हॉस्पिटल वाले सही से और टाईम पर खाना देते हैं, सब कुछ बहुत अच्छा है बट फिर भी मुझे अच्छा नहीं लग रहा."
मृदुल ने अपने आप को स्टेबल कर कहा.
मयूरी ने चैन की सांस भरी, लेकिन अगले ही पल उसकी आखिरी बात सुनकर बोली.
"क्या अच्छा नहीं लग रहा. ठीक से बताओ ना, मृदु!"
"आप यहां नहीं हो ना इसलिए अच्छा नहीं लग रहा, माँ - पापा भी कुछ देर पहले चले गए. आप आओ ना दी."
मृदुल रुंधी हुई आवाज में कहा.
मयूरी चुप हो गई, उसे नहीं समझ आ रहा था कि वो क्या बोले. क्योंकि कुछ ही देर बाद मुंह दिखाई की रस्म होने वाली थी और उसका तमाशा काफी बड़ा होने वाला था, शायद उसकी सोच से भी कही गुना ज्यादा बड़ा तमाशा. जिसका खयाल मन में आने पर वो अभी से ही घबरा रही थी. ऐसे में अगर वो महल छोड़ कर कहीं चली गई तो परिवार के सभी सदस्यों को काफी बड़ी बदनामी का सामना करना पड़ सकता था. इन्हीं सारे विचारों के दौरान फिर से उसे मृदुल की आवाज सुनाई पड़ी.
"दी! आ रही हो ना आप."
मृदुल ने बेहद उम्मीद लगा कर कहा.
मयूरी के आँखों में आंसुओं का सैलाब भर आया. वो अपने आंसुओं को साफ कर बोली.
"मृदु. भाई तुम जानते हो ना मैं अभी किस सिचुएशन में हूं और मेरे लिए ये हैंडल करना इतना आसान नहीं है. कोई नहीं जानता कि तुम्हारी दी इस घर की बहू है, जब सबको पता चलेगा ना तो पता नहीं सबका रिएक्शन कैसा होगा? समझने की कोशिश करो मृदु मैं जरूर आऊंगी तुमसे मिलने और कम से कम छह से सात घंटे तुम्हारे पास बिताऊंगी. लेकिन कुछ दिनों तक तुम्हे मेरे बिना ही रहना होगा."
मयूरी ने लंबी सांस खींची, उसकी आवाज कांपने लगी थी.
मृदुल उसकी बात सुनकर कुछ देर चुप रहा, वो इतना भी ईममेच्योर नहीं बिहेव कर सकता था. वो जनता था कि उसकी दी के लिए ये सारे सिचुएशंस हैंडल करना काफी दिक्कतों से भरा होने वाला है और ऐसे में वो अगर उस पर प्रेशर बनाएगा, बस उससे मिलने के लिए तो ये उसके एक भाई होने लांछन जैसा था.
"मैं समझ गया दी. लेकिन आप कुछ दिन बाद जरूर आओगे मुझसे मिलने, प्रॉमिस करो."
मृदुल ने समझदारी से कहा.
मयूरी ने खुशी से अपना सिर हिला कर कहा.
"जरूर मृदु. मैं पक्का आऊंगी मुझसे भी तुमसे मिलना है. काफी दिनों से तुम्हे अपने हाथों से खाना नहीं खिलाया मैने, अच्छा सुनो मैं तुम्हारी सबसे फेवरेट डिश बना कर लेकर आऊंगी तुम्हारे लिए. खाओगे ना?"
"क्यों नहीं दी. अरे आप लेकर तो आओ, मैं सारा खुद खा जाऊंगा, आपको कुछ नहीं दूंगा खाने के लिए."
मृदुल इतने देर पहली बार थोड़ा हंसा था.
"हाँ! हाँ! खा जाना सारा, आखिर तुम्हारे लिए ही तो बनाउंगी मैं. अच्छा दवाई समय खा लेते हो बिना नखरे किए. मृदु ख्याल रखो अपना. तुम्हारी ये हालत ना माँ - पापा को चैन से जीने दे रही है ना और किसी को. इसलिए समझदारी लाओ अपने दिमाग में और अपने आप को जल्दी इन बीमारियों से दूर करो. ह्म्म्म."
मयूरी ने प्यार से उसे समझा कर कहा.
"जानता हूं दी और अब मैं भी ठान चुका हूं कि इस हॉस्पिटल से ठीक होकर ही घर लौटूंगा. आप चिंता मत करो और अपने न्यू फैमिली पर फोकस करो. उनका खयाल रखो, अब जीजा जी को फोन दे रहा हूं."
मृदुल ने फोन दिग्विजय को पकड़ा दिया.
दिग्विजय उन दोनों की बातें सुनकर अपने दिल के किसी हिस्से में कहीं ना कहीं कुछ अधूरा सा फील कर रहा था. उसकी बहन नीरा की जब शादी हुई थी तब ना चाहते हुए भी कुछ बूंद उसके आँखों से भी टपक हुए थे. वो समझ सकता था कि भाई और बहन का रिश्ता कितना पवित्र होता है, कितनी दुखमय स्थिति होती है जब बहन अपने संपूर्ण परिवार से विदा लेकर, उन्हें छोड़कर एक नए परिवार में जाती है.
दिग्विजय ने अपने कान पर फोन लगाया.
"मैं कुछ देर में आ रहा हूं."
उसने इतना कह फोन रख दिया.
मयूरी को उसका यूं फोन काट देना बिल्कुल भी रस नहीं आया, वो बेड से उतर कर बालकनी में जाने लगी. तभी, रूम के दरवाजे पर किसी ने दस्तक की. मयूरी जल्दी से अपना सर पल्लू से ढक कर डोर खोल दी, दक्षिणा जी और सुदेशा जी साथ में खड़ी हुई थी, दक्षिणा जी लगभग तीन शॉपिंग बैग्स मयूरी को दी.
"बेटा ये मुंह दिखाई में पहननी है तुम्हे, अच्छे से तैयार हो जाना. बिल्कुल राठौड़ खानदान की बड़ी बहु की तरह. सब देखे तो देखते रह जाएं."
दक्षिणा जी ने कहा.
सुदेशा जी, दक्षिणा जी को देखकर मुस्कुराते हुए बोलीं.
"दी! बहु की आवाज में जो खूबसूरती है ना, वो वहां किसी के चेहरे में भी नहीं मिलेगी आपको."
"अच्छा ठीक है, बातें बाद में होती रहेंगी. बेटा तुम्हे जरूरत पड़ेगी क्या किसी की, बोलो तो नीरा को भिजवा देती हूं, कुछ मदद कर देगी तुम्हारी."
"नहीं माँ. मैं कर लूंगी."
मयूरी ने कहा तो दक्षिणा जी ने उससे फिर एक बार श्योर होने के लिए पूछा.
"सच में नहीं चाहिए ना मदद."
"नहीं माँ. आप निश्चिन्त रहिए."
दक्षिणा जी एक बार उसे देखीं, फिर सुदेशा जी के साथ वहां से चली गई.
मयूरी ने जल्दी से डोर को बंद किया और कपड़े बिस्तर पर रख, वाशरूम में घुस गई. कुछ देर बाद वो नहा कर बाहर आई. उसने एक बैग को खोला तो उसमें ज्वेलरीज थे, उसने फिर दूसरा बैग उठाया जिसमें एक रेड और ग्रीन की कॉम्बिनेशन में बेहद खूबसूरत बनारसी साड़ी थी. मयूरी ने साड़ी पहनी लेकिन उसे दिक्कत हो रही थी वो साड़ी पहनने में बीकॉज काफी भारी थी.
मयूरी ने जैसे तैसे कर साड़ी अपने शरीर पर लपेट ली, फिर ठीक से उसके प्लेट्स तैयार कर अच्छे से पहनी.
मयूरी ने मुस्कुराते हुए खुद को मिरर में देखा.
"थैंक यू मम्मा. आज आपके वजह से ही मुझे साड़ी पहनी आती है. वरना आज पूरे परिवार के सामने मेरी बेइज्जती हो जाती."
फिर वो पहले बैग से ज्वैलरी निकाल कर मिरर के सामने जाकर अपने बालों को गूथ कर लंबी सी चोटी बनाई, कुछ लाइट मेकअप करने के बाद ज्वैलरी में रखा एक हार उठा कर अपने गले में पहन ली. सारी ज्वैलरी पहनने पर उसने अपने आप को नज़ाकत से अपने आप को देखी.
फिर अपने चेहरे को चुनरी से ढक कर सोफे पर बैठ गई, तभी उसे एक और बैग दिखा जो उसने नहीं खोला था. वो उसमें देखी तो एक खूबसूरत सी सैंडल थी, वो खुश होकर उसे अपने पैरों में पहन ली वो सैंडल उसे काफी अच्छी फिट आ गई. वो सोफे पर बैठ गई, उसे तैयार होने में लगभग चालीस मिनट के करीब लग गए थे. सोफे पर इंतजार करते हुए अभी पंद्रह मिनिट हुए थे कि दरवाज़े पर फिर से नॉकिंग हुई, मयूरी अपने पल्लू को सही करते हुए दरवाजा खोली.
दरवाजे पर नीरा और दक्षिणा जी खड़ी थीं. नीरा उसे देखकर हैरानी से बड़ी - बड़ी आंखों से घूरी.
"वाह भाभी. आप कित्ती खूबसूरत लग रही हो, आपने तो मेरा दिल जीत लिया, मैं फिदा हो गई आपके ऊपर. प्लीज मुझसे शादी कर लीजिए."
नीरा ने उसका हाथ पकड़ लिया.
दक्षिणा जी नीरा के सर पर हल्की सी चपत लगाई, वो उसे गुस्से से घूरी.
"ये क्या हरकत है नीरा, अपनी भाभी से कोई ऐसी बातें करता है."
"माँ, भाभियां ना होती ही हैं मजाक करने के लिए, लेकिन भाभी पर मेरा दिल सच में आ गया. मैं तो भईया के बारे में सोच रही हूं, वो तो बिलकुल लट्टू हो जाएंगे अगर एक बार भाभी को देखेंगे तो."
नीरा, मयूरी को छेड़ती हुई बोली.
उसकी बात सुन - सुन कर मयूरी शर्म से पानी - पानी हो रही थी, उसके चेहरे पर गाढ़ी लालिमा बिखर गई थी. होंठ कंप कंपाने लगे थे, मयूरी ने अपनी साड़ी को मुट्ठियों में कस कर भींच लिया.
दक्षिणा जी ने अपने आंखों से काजल निकाल कर मयूरी के कान के पीछे लगा दिया, मयूरी की नजरें झुक गई. दक्षिणा जी ने उसके कंधे से उसे पकड़ा और अपने साथ लेकर लिविंग हॉल में आई और सोफे पर आराम से बिठा दीं.
मयूरी ने पायल पहनी थी, तो उसकी खन खन की आवाज से सभी मेहमानों की नजरें उस पर ही टिक गईं, एक औरत के मुंह से अपने आप निकला.
"दक्षिणा तुम्हारी बहु तो चेहरे ढके रहने पर इतनी सुंदर लग रही है, तुम्हारी बहु दिखने में कितनी सुंदर होगी."
दक्षिणा जी ने मयूरी के सर में सहलाया, उनके चेहरे पर गर्व से लिप्त मुस्कान तैर गई.
राठौड़ खानदान की सारी बहुएं या औरतें बेहद खूबसूरत थीं, चाहे वो सुहासिनी जी हो या सुदेशा जी या फिर खुद दक्षिणा जी ही क्यों ना हो, सारी औरतें बेहद खूबसूरत थीं.
तभी, सुदेशा जी भी दिव्या को लेकर आईं और मयूरी के साथ ही बिठा दीं. सुहासिनी जी कुछ देर बाद आईं और आते ही अपने सोफे पर बैठ गईं, सभी मेहमान बनी औरतों ने झुक कर उन्हें प्रणाम किया, सुहासिनी जी भी अपना हाथ जोड़ कर सभी का अभिवादन की.
"सुहासिनी जी, आपकी दोनों पोता बहु तो बिना चेहरे दिखे ही इतनी सुंदर हैं, कितन समय लगा है आपको इन दोनों में."
एक औरत ने कहा, उनकी आवाज में हल्का व्यंग भी था, जिसे उन्होंने चाशनी में डूबो दिया था.
सुहासिनी जी मुस्कुराई, धीरे से उनकी ओर नजर कर अपनी उसी कड़क आवाज में बोलीं.
"रेखा, कुछ चीजें भाग्य से मिलती हैं. आप उसे कितना भी ढूंढ लें लेकिन तब तक वो नहीं मिलेंगी जब तक उसका सही समय निकट ना आ जाए, हम या हमारे परिवार में किसी ने भी दोनों बहुओं को ढूंढने की कोशिश नहीं की, हमारे पोतों का भाग्य था जो उनको इतनी सुंदर कन्यायें अर्धांगिनी के रूप में मिलीं."
वो कुछ देर रुकी फिर बोली.
"और भी कोई सवाल है आपका?"
रेखा जी ने अपना सिर ना में हिला दिया, सुहासिनी जी ने दक्षिणा जी और सुदेशा जी को मुंह दिखाई की रस्म को शुरू करने का इशारा किया. सभी औरतें एक - एक कर आती और दोनों बहुओं का चेहरा देख उन्हें तोहफे देती.
इन्हीं सब के बीच, मयूरी का पूरा शरीर कांपने लगा था लेकिन औरतों के सामने एक प्यारी सी मुस्कान लिए हुए थी और उनके दिए गए गिफ्ट्स स्वीकार कर रही थी ताकि किसी को भी कोई संदेह ना हो. लेकिन वो खुद जानती थी कि ये सब उसके लिए काफी मुश्किल था, बस कुछ देर बचे थे जब उसका चेहरे पर से घुंघट हटा दिया जाएगा और सबको पता चल जाएगा कि दिग्विजय की पत्नी वो है.
वो अपने अंतर्मन में इन्हीं सारे विचारों से घिरी हुई थी. सभी मेहमानों ने दोनों बहुओं का चेहरा देख लिया था तो दक्षिणा जी उसके करीब आईं और बेहद प्यार से उसके चेहरे का घुंघट उठा दीं. दक्षिणा जी मुस्कुराते हुए पीछे हुईं उन्होंने सुहासिनी जी की ओर देखा तो उनके चेहरे की मुस्कान फीकी पड़ गई थी, दक्षिणा जी ने मयूरी का चेहरा देखा तो वो भी हैरानी का भाव लिए उसे निहारने लगी.
"कहां है आप सर? मुझे डर लग रहा है. प्लीज़ आ जाइए ना."
मयूरी अपने मन ही मन सोची.
...!!जय महाकाल!!...
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...!!जय महाकाल!!...
अब आगे...!!
दक्षिणा जी को ऐसा लगा जैसे उन्हें कोई बहुत बड़ा शॉक लगा हो, लेकिन अचानक से उनकी नजर मेहमानों पर गई तो सभी उन्हें ही देख रहे थे. तो उन्होंने जल्दी से अपने चेहरे पर मुस्कान की चादर वापस ओढ़ी. उनके कानों में एक व्यंगपूर्ण आवाज आई.
"अरे दक्षिणा, तुम्हारी बहु तो करोड़ो में एक है और तुम उसे ऐसे देख रही हो जैसे उसे जानती ही ना हो."
दक्षिणा जी उस आवाज की ओर मुड़ी, तो वो रेखा जी थीं. दक्षिणा जी मुस्कुराईं और बोलीं.
"ऐसे नहीं है रेखा, मैं तो अपनी खुद अपनी बहु की खूबसूरती देखकर हैरान हो गई हूं. सच में ईश्वर ने काफी अच्छा सौभाग्य दिया है मुझे की मैं इतनी खूबसूरत बहु की सास बनी हूं."
रेखा जी अपने चेहरे पर एक झूठी मुस्कान ओढ कर अपना सिर हिला दी, दक्षिणा जी ने सुहासिनी जी की तरफ देखा तो उन्होंने उन्हें शांत रहने का इशारा किया.
करीब आधे घंटे तक सभी मेहमान मयूरी और दिव्या से कुछ बातें किए, फिर धीरे - धीरे कर सब वहां से विदा लेकर चले गए. दक्षिणा जी और सुदेशा जी ने सभी को आदर पूर्वक विदा किया, पूरे राठौड़ मैंशन में अब शांति और अजीब सी चुप्पी से पसर गई थी.
दक्षिणा जी ने मयूरी को देखा, वो धीरे से चलकर उसके पास आईं.
"तुम.. तुम तो दिग्विजय की पर्सनल असिस्टेंट हो ना? लास्ट टाईम ऑफिस में मिली थी मुझसे. बोलो."
मयूरी सबकी नजरें खुद पर महसूस कर काफी अनकंफर्टेबल हो गई थी, आंसू के बूंदें अपने आप गिरने लगी थीं उसके आंखों से. दक्षिणा जी की बात पर क्या बोलती, वो कुछ नहीं समझ पा रही थी.
"ह.. हाँ!"
मयूरी अटकते हुए बोली ही थी कि तभी, उसे सुहासिनी जी की कड़क आवाज सुनाई पड़ी.
"पर्सनल असिस्टेंट हो, तो अभी लल्ला की पत्नी के स्थान पर क्या कर रही हो?"
मयूरी सहम गई, वो कुछ नहीं बोली. सुहासिनी जी उसके सामने आईं और उसे घूरते हुए बोलीं.
"कुछ बोल क्यों नहीं रही? क्यों हो तुम यहां?"
मयूरी अपनी पलकों को झुका ली, जैसे ही वो कुछ बोलती की उसके पीछे से एक बेहद खतरनाक आवाज सबके कानो में पड़ी.
"मैने उससे शादी की है, इसलिए वो यहां है. दादी माँ."
सुहासिनी जी ने दिग्विजय को देखा, जो अब मयूरी के साईड में आकर खड़ा हो गया था.
"लेकिन लल्ला, आपका विवाह रायसा के साथ तय हुआ था और आप ऐसे किसी भी लड़की से विवाह कर चुके हैं. दिग्विजय ये सही नहीं है. हमारे खानदान पर उंगली उठाने का मौका दिया है अपने रायसा के परिवार वालो को."
सुहासिनी जी ने कहा तो दिग्विजय ने अजीब तरीके की हँसी हँसी.
सभी उसे हैरानी से देखने लगे, सुहासिनी जी ने उसकी हँसी देखी तो वो भी कुछ आश्चर्य में पड़ गईं.
"लल्ला, क्या मैने कोई मजाक किया है जो आप इस तरह हँस रहे हैं?"
"नहीं दादी माँ आपने कोई मजाक नहीं किया, मैं तो बस इसलिए हँस रहा था कि, जब मैने इनकार किया था उस लड़की से शादी करने के लिए तब भी आप सबने जबरदस्ती मुझे उससे जोड़ने की कोशिश की. अब जब मेरा मन उससे शादी करने के लिए तैयार नहीं था तो मैं कैसे उससे शादी कर लेता."
दिग्विजय बमुश्किल अपनी हँसी को रोकते हुए कहा.
"और अगर मैं आपके सबको ये बताता कि मैं इसे.."
(दिग्विजय ने मयूरी को कंधे से पकड़ कर अपने करीब खींच लिया)
"इसे पसंद करता हूं, तो क्या आप सब करते मेरी शादी मयूरी से बोलिए, दीजिए जवाब. दादी माँ. नहीं क्योंकि आपको सिर्फ अपनी इज्ज़त दिखती हैं इस सो कॉल्ड से समाज में. जो सिर्फ उंगली उठाने के समय रहता है और जब हमें इनकी जरूरत होती है तो ये सब गायब हो जाते हैं, जैसे कभी थे ही नहीं."
"बेटा, ये कैसे बात कर रहे हो तुम माँ से."
दक्षिणा जी बीच में बोली.
"मैं गलत तरीके से बात कर रहा हूं, मैं माँ. सच में. अच्छा आप ही बताइए माँ, अगर मैं दादी माँ को ये बताता कि मैं अपनी पर्सनल असिस्टेंट को पसंद करता हूं, उससे शादी करना चाहता हूं तो क्या दादी माँ हमारे रिश्ते को मंजूरी देती. क्या दादी माँ एक मिडिल क्लास लड़की को अपने खानदान की बहु बनाती."
दिग्विजय, दक्षिणा जी की ओर मुड़ा और उनसे पूछा.
दक्षिणा जी कुछ नहीं बोलीं, जिस पर दिग्विजय एक एक अजीब सी मुस्कान लिए सुहासिनी जी को ओर मुड़ा, सुहासिनी जी एकदम स्तब्ध खड़ी थी. दिग्विजय ने उन्हें उनके कंधे से पकड़ा और अपने लहजे को नॉर्मल कर प्यार से बोला.
"दादी माँ, आपके लल्ला और मयूरी की शादी हो चुकी है. आप माने या ना माने लेकिन हो चुकी है हमारी शादी, आपको ये मानना ही होगा. क्या मयूरी आपको अपनी पोता बहु के रूप में पसंद नहीं आई? क्या उसने आपका अपमान किया? क्या इसमें वो गुण नहीं जो आपको अपनी पोता बहु में चाहिए था?"
सुहासिनी जी ने उसे देखा, फिर उसके साथ खड़ी मयूरी को जिसकी सुबह उन्होंने खुद तारीफ की थी. दिग्विजय की कुछ देर पहले की बातें उनके दिल में चुभी थी, लेकिन उसकी बातें सौ प्रतिशत सही थी, जिसको सुहासिनी जी खुद भी नहीं नकार सकती थीं.
"लल्ला, क्या हम आपके लिए इतने बुरे हो गए, जो आप अपनी दादी माँ के लिए यहां पूरे परिवार के सामने ऐसे शब्दों का उपयोग कर रहें हैं."
सुहासिनी जी ने नम आँखों के साथ कहा.
दिग्विजय उनके समाने अपना सर झुकाया और अपने हाथों को जोड़कर बोला.
"माफ कर दीजिए दादी माँ, आपको मेरी कोई भी बात बुरी लगी हो तो. मुझे आपसे या आपके बारे में ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए थीं."
सुहासिनी जी अपना सिर हिलाई, फिर उन्होंने मयूरी को देखा जो अभी भी अपना सर झुकाए धीमे - धीमे सिसक रही थी, लेकिन उसके सिसकने की तनिक भी आवाज बाहर नहीं आ रही थी.
"ऐसी क्या खुबी है तुममें जो मेरे लल्ला को एक ही नजर में पसंद आ गई तुम."
सुहासिनी जी ने मयूरी को देख पूछा.
मयूरी ने अपनी निगाहें उठा कर उन्हें देखा, जो उसे ही देख रही थीं. मयूरी उन्हें देखते ही जल्दी से अपनी नजरें झुका ली. सुहासिनी जी दिग्विजय के हाथ को कस कर पकड़ अपने माथे से लगा कर बोली.
"लल्ला अगर आप इन्हें पसंद करते हैं तो अब इसमें कुछ और सवाल नहीं कर सकते हम. लेकिन.."
वो चुप हो गई और दिग्विजय के हाथ को अपने माथे से हाथ कर नीचे कर दीं.
"अगर आप यही चाहते हो कि ये इस घर की बहू रहे, तो सबसे पहले इन्हें खुद को साबित करना होगा कि ये हमारे परिवार की बहु बन सकती हैं कि नहीं और मैं खुद इनकी परीक्षा लुंगी."
दिग्विजय ने उन्हें देखा और अपना सर हां में हिला कर नर्मी से कहा.
"आप जैसा चाहेंगी वैसा ही होगा दादी माँ, रही बात परीक्षा की तो उस पर आपका अधिकार है, आप ले सकती हैं."
सुहासिनी जी, मयूरी को अपने पास बुलाईं.
"दुल्हन आइये हमारे पास."
मयूरी जल्दी से उनके सामने खड़ी आकर अपनी नजरें झुका कर खड़ी हो गईं. सुहासिनी जी ने उसे नीचे से ऊपर तक गौर से देखा. मयूरी असहज हो रही थी, लेकिन उसने सबके सामने खुद को शांत रखने की भर पूर कोशिश की.
"आज हमारे पास आपसे परीक्षा लेने के लिए कुछ नहीं है, क्योंकि आपकी परीक्षा पहली रसोई के समय ही पूरी कर ली आपने. लेकिन कल तैयार रहिएगा आप."
सुहासिनी जी ने कहा और मयूरी के सर पर हाथ रख कर अपने कमरे की ओर बढ़ गईं.
दिग्विजय मयूरी को कमरे में आने का इशारा कर, वो भी अपने कदम रूम की तरफ बढ़ा दिया. मयूरी वहीं खड़ी रही, सभी धीरे - धीरे कर अपने कमरे में चले गए. लेकिन दक्षिणा जी वहीं रुक गईं, वो सधी कदमों से चलते हुए मयूरी के करीब आई.
"बेटा सुनो."
उन्होंने मयूरी का प्यार से पकड़ लिया.
"तुम मायूस मत होना. ह्म्म्म. माँ सिर्फ ऊपरी गुस्सा कर रहीं हैं तुम पर, उनके भीतर नाराजगी है तुम्हारे लिए कुछ दिनों बाद वो खुद तुमसे प्यार जताएंगी. समझी ना, इसलिए जो माँ कहे सिर झुका कर मान लेना."
"आप मुझसे गुस्सा नहीं हैं, माँ. आई मीन मैम."
मयूरी सकुचाते हुए बोली.
दक्षिणा जी उसे थप्पड़ दिखाईं.
"देख रही हो ना, ये पड़ेगा तुम्हारे इस खूबसूरत से चेहरे पर."
"लेकिन क्यों मैम?"
मयूरी अपनी आँखें बड़ी कर उन्हें देखी.
"फिररर, मैं मैम हूँ तुम्हारी. माँ हूँ समझी अगर अगली बार से कभी भी मुझे मैम बुलाया ना. तो अभी तो बस थप्पड़ दिखाया है अगली बार सीधा पड़ जाएगा."
दक्षिणा जी उसे झूठी नाराजगी से घूरी.
मयूरी उनकी बात पर अविश्वास से उन्हें देखी. उसने असमंजस में कहा.
"आप सच में मुझसे गुस्सा नहीं हैं मैं.. आई मीन माँ."
"नहीं मैं तुमसे क्यों नाराज रहूंगी, बल्कि मैं तो चाहती थी कि वो लड़की रायसा हमारे घर की बहू कभी ना बने. बड़ों से कैसे बात की जाती है इतनी सी तमीज नहीं थी उसके अंदर. उनका लिहाज कैसे किया जाता है उसे कुछ मालूम नहीं था."
उन्होंने रायसा को याद कर नाराजगी जाहिर की लेकिन फिर उनके चेहरे एक मुस्कान तैर गई.
"और एक तुम हो, जब मैने तुम्हे पहली बार देखा था, एक इच्छा जागी थी मन में की तुम्हीं मेरे जय की बहु बनो. और शायद ईश्वर भी यही चाहते थे, तभी तो आज तुम मेरे समाने मेरी बहु बन कर हो."
कहते हुए उन्होंने मयूरी का चेहरा अपने दोनों हाथों के बीच थाम लिया.
मयूरी उन्हें मुस्कुरा कर देखी.
"जाओ अपने कमरे में, मैने देखा था जय ने तुम्हे आने का इशारा किया. जल्दी जाओ उसे लेट करना बिल्कुल नहीं पसंद है."
दक्षिणा जी मयूरी को उसके रूम तक छोड़ दिया.
मयूरी दरवाजे को घूरते हुए अंदर जाने से घबरा रही थी. तभी, गेट खुला और मयूरी को किसी ने अंदर खींच लिया. मयूरी ने डर से अपनी आंखें बंद कर ली, कुछ देर बाद जब उसे कुछ महसूस नहीं हुआ तो उसने धीरे से अपनी आंखें खोली. सामने दिग्विजय दिल्कश मुस्कुराहट लिए उसे बड़े प्यार से निहार रहा था. मयूरी ने अपनी नजरें उससे हटा ली.
"सर.. छोड़िए मुझे."
मयूरी उसके सीने पर हाथ रख धक्का दी, मगर दिग्विजय एक कदम भी पीछे नहीं हटा.
दिग्विजय अपनी आँखें सिकोड़ कर उसे घूरा और अपनी पकड़ उस पर और अधिक तेज कर ली. मयूरी का गला घबराहट से सूखने लगा उसे देख कर.
"क्या कहा तुमने अभी?"
दिग्विजय ने मदहोशी से पूछा.
मयूरी के चेहरे पर नासमझी के भाव उभर आए, वो कुछ सोच कर बोली.
"क्या बोला मैने सर?"
दिग्विजय अपनी पकड़ उस पर और अधिक कस लिया.
"सर. दर्द हो रहा है, छोड़िए मुझे."
मयूरी के चेहरे पर दर्द साफ झलकने लगे.
"व्हाई डिड यू कॉल मी 'सर'?"
दिग्विजय ने नाराजगी से पूछा.
"क्योंकि आ.. आप मेरे बॉस हैं इसलिए मैने आपको स.. सर कहा."
मयूरी ने अटक कर जवाब दिया, पता नहीं क्यों जब भी दिग्विजय उसके करीब होता था तब अचानक से उसकी आवाज उसकी दिल की धड़कनें उसके कंट्रोल से बाहर आ जाया करती थीं.
दिग्विजय उसके निचले होंठ को मदहोशी से घूरते हुए, धीरे से उसके करीब बढ़ने लगा. मयूरी अपना चेहरा घुमा ली, दिग्विजय अचानक उसे घूरने लगा.
"चेहरा क्यों घुमा लिया तुमने?"
दिग्विजय अजीब से टोन में बोला.
मयूरी उसे खुद से दूर की और फिर उसे बिना देखे बालकनी में जाकर रेलिंग पकड़ कर खड़ी हो गई. दिग्विजय इसके पीछे - पीछे आया. मयूरी ने उसे अपने पीछे महसूस कर लिया था, वो सामने राठौड़ मैंशन के विशाल से गार्डन को एकटक देखती हुई बोली.
"क्या आपका प्रेम केवल मेरे शरीर तक ही सीमित है, मिस्टर दिग्विजय सिंह राठौड़?"
दिग्विजय उसकी बात सुन कर हैरान रह गया.
"ये क्या कह रही हो मयूरी."
"मैं क्या कह रही हूं? आपने मुझे चैलेंज किया था कि अपने पूरे परिवार के सामने मुझसे शादी करेंगे आप और आपने किया भी, लेकिन इन सब के बीच जो मुझे सहन करना पड़ा. उन सब का क्या सर.. सॉरी जय जी."
मयूरी उसकी ओर पलटी, उसकी आँखें नम हो गई थीं.
दिग्विजय उसके करीब आया और उसकी मनोस्थिति समझते हुए, एकदम प्यार से उसके बालों के लटो को उसके कान के पीछे कर दिया. मयूरी ने उसपर से अपनी नजरें फेर ली. दिग्विजय उसके चेहरे को अपनी हथेलियों के बीच थाम कर प्यार से बोला.
"मेरा प्यार तुम्हारे शरीर के लिए कभी नहीं था मयूरी, अगर मेरा प्यार सिर्फ तुम्हारे शरीर के लिए होता ना तो उस दिन ही तुम्हे बे आबरू कर चुका होता. प्यार जताने का तरीका था ये मेरा, मुझे नहीं आता किसी के लिए वेट करना. इसलिए शायद भूल हो गई मुझसे."
मयूरी के आंसू बह गए, दिग्विजय उसे अपने करीब खींच कर अपने हाथ उसके कमर के दोनों ओर से बांध लिया. मयूरी भी उसकी करीबी से मोम की भांति पिघल गई, धीरे - धीरे उसने भी दिग्विजय को पकड़ लिया.
कुछ देर बाद दिग्विजय इससे अलग होकर, उसकी डबडबाई आँखों खुद अपने अंगूठे से साफ किया और धीमी आवाज में उसके कान में फुसफुसाया.
"रात साथ में बिताएंगे, तारों के नीचे बस मैं और तुम."
मयूरी सिहर कर अपनी नजरें फेर कर खड़ी हो गई, दिग्विजय हल्की मुस्कुराहट से उसके गाल पर जल्दी से अपने होंठ रख दिया और लंबे कदम भरते हुए वहां से निकल गया.
मयूरी अपने गाल पर हाथ रख कर दिग्विजय की छुअन को अभी भी महसूस कर रही थी, वो गीली आँखों से मुस्कुरा दी.
...!!जय महाकाल!!...
(इस कहानी को सपोर्ट करे, मुझे आप सभी के सपोर्ट की बहुत जरूरत है. मुझे फॉलो अवश्य करें, और आज का पार्ट अच्छा लगा हो तो कमेंट्स और रेटिंग जरूर दें.)
...!!जय महाकाल!!...
अब आगे...!!
मयूरी बालकनी से बेडरूम में आकर बेड पर लेट गई, उसके दिमाग में उन दिनों की बातें चलने लगी जब वो दिग्विजय से मिलीं तक ना थी, और उसकी जिंदगी ने उसे कहां लाकर खड़ा कर दिया था.
(फ़्लैशबैक बिगिंस)
एक छोटा सा घर था, बाहर से दिखने में बेहद खूबसूरत था और अंदर से उससे भी कहीं गुणा ज्यादा. उसी घर के ऊपर वाले बेडरूम में एक बेहद प्यारी और खूबसूरत सी लड़की सो रही थी, तभी उसके दरवाजे पर जोड़ से जोड़ कोई नॉक करने लगा.
वो लड़की जल्दी से अपने बेड से उठ कर नींद में ही चलते हुए गेट खोली, सामने एक औरत बेहद गुस्से से घूर रही थी. जिसे देख कर वो लड़की बत्तीसी दिखा कर वापस से बेड पर जाने लगी. वो औरत उसे जल्दी से पकड़ कर उसे डांटी.
"मयूरी टाईम देखा है कितना हो रहा है, और तुम अभी तक सोई हुई हो. अरे बेटा आज तुम्हारे जॉब का इंटरव्यू है, भूल गई क्या फिर से."
मयूरी की नींद फट से गायब हो गई, वो अपने सिर पर अपना हाथ माड़ कर बोली.
"हाँ माँ, मैं तो सच में भूल गई थी. थैंक यू, याद दिला देने के लिए."
वो जल्दी से वाशरूम में घुस गई.
उसकी माँ, माधुरी जी अपना सिर ना में हिला कर खुद से बड़बड़ाईं.
"कब ये लड़की बड़ी होगी? हे कान्हा, कुछ कृपा करो इस लड़की पर कुछ तो अक्ल आए."
फिर अचानक से फिर गुस्से से बोली.
"मयूरी कपड़े ली है, क्या पहनेंगी?"
"माँ, निकाल दो ना मेरे लिए. प्लीज़, प्लीज़.. गुस्सा मत करना!"
मयूरी वाशरूम से ही चिल्लाई.
माधुरी जी उसके कबर्ड से फॉर्मल कपड़े निकाल कर बिस्तर पर रख दी.
"कपड़े निकाल का बिस्तर पर रख दिए मैने, जो मैने निकला है वही पहनेंगी, समझी."
"ठीक है माँ, और सुनो आई लव यू. गुस्सा नहीं करते इतना."
मयूरी बोली तो माधुरी जी मुस्कुराए बिना ना रह सकीं. वो रूम से निकल गई.
मयूरी टॉवेल पहने वाशरूम से बाहर आई, और जैसे - तैसे कपड़े बदल कर माधुरी जी के निकाले कपड़े पहनने लगी. उसकी नजर कपड़े पर पड़ी तो वो मुंह बना ली.
"माँ ने आज फिर यही ड्रेस निकाल दी, ये मुझे नहीं पसंद."
वो आड़े टेढ़े मुंह बना कर ड्रेस पहन ली और जल्दी से हल्का - पुलका मेकअप लगा कर, रूम से भागते हुए डाइनिंग टेबल पर चेयर खींच कर बैठ गई.
"माँ, आपको पता है ना मेरे को ये इंटरव्यू वाले दिन ये कपड़े नहीं अच्छे लगते."
मयूरी नाश्ते का निवाला मुंह में जैसे - तैसे भर कर बोली.
"आराम से खा, इतनी क्या जल्दी है. अभी है एक घंटे का समय. और यही पहनेगी तू अब ना नुकूर की सीधा थप्पड़ पड़ेगी, बहुत नखरे दिखाने लगी है."
माधुरी जी गुस्से से उसे घूरी, जैसे उसे निगल ही जाएंगी.
मयूरी खा रही थी कि उसका भाई मृदुल गुनगुनाते हुए चेयर खींच कर बैठ गया, हेडफोन्स में फैंसी गाने सुन सुनकर थिरक भी रहा था बीच बीच में. उसकी नजर मयूरी पर पड़ी तो उसे चिढ़ाने के मकसद से, अपने हेडफोन्स निकाल कर अपने स्वर को दुखमय बनाते हुए कहा.
"क्या हुआ दी? ऐसे जानवरों की भांति क्यों खा रही हो. ठीक से खाओ, पता नहीं मेरे जीजू का क्या होगा जो वो आपके पति बनेंगे."
मृदुल सर पर हाथ शर्मिंदगी जाताया.
"तुझे क्यों इतनी चिंता हो रही है मेरे पति की, अपने ऊपर ध्यान दे ना ना खाने की वजह से सुख के हड्डी हो गया है, कोई खा रहा है तो उसे नजर लगाना सही नहीं होता समझा."
(फिर अपनी आवाज धीमा कर)
"बकलोल कहीं का...!"
"माँ, दी मुझे बकलोल कह रही है. डांटिए इसे."
मृदुल ने उसकी लिप्सिंग समझ कर, माधुरी जी का हाथ पकड़ कर बेचारा बनने का नाटक रच कहा.
"सही तो कह रही है, कब तुम टाईम पर खाना खाते हो. आज पता नहीं कहां से सूर्य उदय हुआ है, जो तुम टाईम से खाना खाने आ गए हो.
माधुरी जी उसे ही झिड़क दीं.
"लेकिन, दी ने बकलोल कहा मुझे."
मृदुल आँखों में नकली आंसूओं को भर कर कहा.
"हाँ तो क्या हो गया? दीदी है तुम्हारी तुम्हे कह सकती है. माँ समान होती है बड़ी बहन, कितनी बार समझाऊं तुझे.
माधुरी जी ने अपनी सिर फिर मयूरी की ओर मुड़ी.
मयूरी अपनी माँ की बातों को सुनकर बड़े ही अदा से इतरा रही थी, जिसे देखकर माधुरी जी की आँखें छोटी हो गईं.
"तू क्या इतना इतरा रही है, छोटा है तुझ से तो कुछ भी कहेगी उसे."
मयूरी का सारा इतराना फट से फूर हो गया, मृदुल उसे तिरछी मुस्कान लिए चिढ़ा कर अपना नाश्ता करने लगा. नाश्ता करने के बाद मयूरी अपना हैंड बैग पकड़ी और चेक की की उसमें सारे इंपॉर्टेंट फाइल्स हैं कि नहीं.
"मैने सब रख दिया है तेरे बैग में, आराम से जाना रास्ते में उछल कूद मत करने लग जाना."
माधुरी जी उसके हाथ में कुछ पैसे पकड़ा दी.
"अरे मेरे पास हैं माँ."
"कोई नहीं लेती जा, भूख लगे तो कुछ खा लेना. भूखी रही तो चप्पल खाने के लिए तैयार रहना."
मयूरी अपनी माँ के गले लग गई.
"आप मेरी कितनी चिंता करते हो माँ, और एक मैं जो इतने दिनों से जॉब ढूंढ रही हूं लेकिन मिल नहीं रही."
"मिल जाएगी, कान्हा जी विश्वास रख."
"बाय माँ!"
"बाय!"
"बाय बंदरिया दी!"
मृदुल अपना हाथ हिला कर, दांत दिखाते हुए बोला.
मयूरी अपने दांत किट किटा कर रह गई. वो अपने स्कूटी पर बैठ कर चली गई.
"जॉब ना मिलने से ऐसे ही परेशान है वो, और क्यों परेशान कर रहे हो उसे."
माधुरी जी मृदुल के कान पकड़ कर खींच ली.
"आह माँ क्या कर रही हो? दर्द हो रहा है छोड़ दो."
मृदुल दर्द से छट पटा गया.
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("द ग्लॉरिक्स प्राईवेट लिमिटेड")
मयूरी ने जैसे ही स्कूटी को पार्किंग में लगाया, उसकी नजर अपने आप ऊपर उठ गई, सामने इतना लंबा-सा कांच वाला बिल्डिंग देखकर कुछ पल को उसे लगा, जैसे किसी फिल्म के सेट में आ गई हो. वो लगभग पचास मंजिला था.
"इतना बड़ा...!"
उसके मुंह से खुद-ब-खुद निकला.
पूरा बिल्डिंग बस कांच का था, लेकिन अंदर कुछ भी साफ़ नहीं दिख रहा था, सूरज की रोशनी उस पर पड़ते ही और अधिक चमक पैदा कर रही थी.
"वाह मयूरी, तू इतने बड़े कंपनी में काम करेगी. इतनी ऊंची बिल्डिंग में तो आज तक मैं लिफ्ट में भी नहीं चढ़ी और अब इसी में इंटरव्यू देने जा रही हूं!"
उसने जल्दी से अपना हुलिया थोड़ा ठीक किया, बैग कंधे पर अच्छे से सेट की और अपने कदम आगे बढ़ा दी.
गेट के पास जाकर उसने वो गोल-गोल घूमने वाले दरवाज़े को देखा और थोड़ी देर तक सोचती रही कि कैसे अंदर जाना है, सामने कुछ बॉडीगार्ड्स और सिक्योरिटी उसे ही देख रहे थे, जिससे वो थोड़ी हिम्मत करके अंदर घुसी. अंदर आने पर उसकी नर्वसनेस थोड़ी कम हुई.
"The Glorix Private Limited"
सामने दीवार पर सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ था, उसके नीचे एक लाइन थी "Beyond Brilliance".
मयूरी उस लाइन को पढ़ी और हल्के से मुस्कुरा दी.
"बस मयूरी, यहीं से तेरी असली सफर शुरू होयी है. अभी तो तुझे बहुत आगे जाना है."
उसने रिसेप्शन पर अपने इंटरव्यू लेटर को जमा कराया, रिसेप्शनिस्ट ने उसे टेंथ फ्लोर पर वेटिंग एरिया में जाकर वेट करने को कहा. मयूरी ने उसे थैंक यू कहा और लिफ्ट की ओर बढ़ गई.
वहां भी एक सिक्योरिटी गार्ड खड़ा हुआ था, मयूरी पहले हिचकिचाई फिर कॉन्फिडेंटली उससे पूछी.
"अ.. यहां इतने सारे लिफ्ट हैं, मैं कोई भी यूस कर सकतीं हूँ."
"नो मैडम आप सिर्फ उस साईड वाले ही लिफ्ट्स यूस कर सकतीं हैं, ये वाले ऊंचे पोस्ट्स वालों के लिए हैं."
सिक्योरिटी गार्ड रिस्पेक्टली जवाब दिया.
"ओह! ओके थैंक यू."
मयूरी बोली और सिक्योरिटी गार्ड के बताए गए लिफ्ट में चढ़ गई. उसने टेंथ फ्लोर का बटन परस किया. तभी दो करीब चौबीस साल के लड़के लिफ्ट में आए.
"यहां लिफ्ट भी अलग - अलग हैं, बड़े लोगों के बड़े चोंचले होते हैं ये सिर्फ सुना था, आज देख भी लिया."
(फिर लिफ्ट को देख कर)
"यहां का लिफ्ट भी काफी वेल मेंटेंड है, आज तक जितनी भी कंपनीज में गईं हूँ, सबसे ज्यादा साफ है ये और कितना स्टाइलिश भी है."
मयूरी अपने मन ही मन सोच रही थी.
उसे अपने ऊपर किसी की नजरें महसूस हुईं, तो मयूरी ने उस तरफ देखा. दोनों लड़के उसे ही घूरे जा रहे थे. मयूरी ने उन्हें देख कर भी अनदेखा कर दिया बट तब भी वो दोनों अजीब नजरों से उस ही देख रहे थे.
टेंथ फ्लोर आने पर मयूरी जल्दी से लिफ्ट से निकलने को हुई, तब वो लड़के एकदम से आगे बढ़ कर पहले निकल गए. एक लड़के की कोहनी मयूरी के कंधे से टच हो गई. इस बार मयूरी को गुस्सा आ गया.
"ये कैसी हरकत कर रहे हो आप दोनों? देख रहे हो कि मैं निकल रही हूँ, तब भी घुसे ही जा रहे हो."
उसने काफी तेज आवाज में कहा था, वहां के सभी स्टाफ्स वर्कर्स एम्पलाइज अब बस उन्हें ही देखने लगे थे.
"ओ मैडम, फालतू के इल्ज़ाम हम पर मत लगाओ. खुद आगे जा रही थी हमे बोलने आईं हैं."
जिस लड़के की कोहनी मयूरी से टच हुई थी, उसने बड़ी ही बेशर्मी से कहा.
मयूरी के माथे पर शिकन दिखने लगी, क्योंकि अब वो सेंटर ऑफ अट्रैक्शन बन चुकी थी. सब उसे ही अजीबो गरीब नजरों से देख रहे थे, उसे अपने ऊपर उनकी नजरें बर्दाश्त नहीं हो पा रही थी.
लेकिन वो उन लड़कों को अपने से जितने भी नहीं देना चाहती थी, इसलिए उसने एक नजर पूरे फ्लोर पर दौड़ाई जिससे एक पल को सबकी नजरें झुक गई. वो हल्की मुस्कान अपने चेहरे पर लाई और दोनों हाथ आगे बांध कर बोली.
"अच्छा! तो मैं फालतू के इल्ज़ाम लगा रही हूं, तो चलो एक काम करते हैं. देखो...!"
(उसने दीवाल पर लगे सीसीटीवी कैमरा की तरफ इशारा किया)
"वहां सीसीटीवी कैमरे लगें हैं, अगर मैं झूठ कह रही हूं तो चलो अभी चेक करते हैं. और यहां जितने भी लोग हैं अब चलेंगे देखने के लिए, ठीक हैं."
उसने कहा, तो सब वापस से अपना - अपना काम करने लगे, वो लड़के उसे बेहद गुस्से में देख रहे थे. लेकिन उन दोनों ने अब आगे कोई बहस नहीं की.
मयूरी उन्हें इग्नोर कर के वहां से वेटिंग एरिया में चली गई. वो अपने सीट ढूंढ कर बैठ गई.
उसने बैठने के बाद देखा कि, वो लड़के भी इंटरव्यू ही देने आए थे. मयूरी ने अपनी नजरें उस पर से फेर ली. अपने बैग से फाइल्स निकाल कर उसके देखने लगी.
वहीं, उस फ्लोर के ऊपर भी काफी सारे फ्लोर्स थे. एलेवंथ फ्लोर पर दो आदमी खड़े थे. उनसे एक आदमी मयूरी को तब से देख रहा था जब से वो लिफ्ट से निकली थी. उसने उन लड़कों के साथ मयूरी के झगड़े को भी बेहद बारीकी से ऑब्जर्व किया था.
मयूरी के चले जाने के बाद उसने अपने असिस्टेंट को एक इशारा किया, जिसे देख कर असिस्टेंट तुरंत अपना सिर हिलाया. वो वहां से एटीट्यूड से सीढ़ियों से उतरा. टेंथ फ्लोर के सभी स्टाफ्स और एम्पलाइज अपना सर झुका कर उसे "गुड मॉर्निंग" विश कर रहे थे.
वो अचानक से रुका, और बेहद धीमे से पीछे मुड़ा और एक बेहद तीखी निगाहों से सभी को घुरा.
"काफ़ी दिनों से देख रहा हूँ, तुम सब ज़रूरत से ज़्यादा मेहनत कर रहे हो. थक चुके हो शायद? अगर वाकई छुट्टी चाहिए तो बताओ. हमेशा के लिए आराम दिलाने का इंतज़ाम मैं कर सकता हूँ."
उसने बस इतना ही कहना था, लेकिन वहां जितने भी उसके वर्कर्स थे सबकी हड्डी जैसे टूटती हुई सी महसूस हुई. उस आदमी की आवाज हद से ज्यादा कोल्ड थी और एक्सप्रेशंस एकदम रफ थी.
सबने धीरे से अपना सिर झुकाया, लेकिन वो आदमी धीमे से सर हिलाया और तिरछी मुस्कान लिए हंसा और कहा.
"माफ़ी? नहीं.. इस बार नहीं, इस बार सीधा सज़ा मिलेगी. अगले तीन महीने कोई बोनस नहीं मिलेगा और सैलरी का बीस प्रतिशत कट जाएगा. नेक्स्ट टाइम, गलती करने से पहले सोच लेना. क्योंकि अगली बार सिर्फ एक पेपर होगा टर्मिनेशन लेटर तुम सबको हाथों में. और तब न सिर झुकाने का मौका मिलेगा, न ही पछताने का."
उसकी आवाज और भी अधिक डॉमिनेटिंग और कोल्ड हो गई.
वो मुड़ा और लंबे कदम भरते हुए इंटरव्यू केबिन में एंटर किया, वो अपने चेयर पर बैठ गया सामने टेबल पर अपने पैर पर पैर चढ़ा लिया. बिना किसी एक्सप्रेशंस के वो टेबल पर रखे पैकेट से सिगरेट निकाल कर लाइटर से जलाया.
वो उसे अपने होंठों तले दबा लिया. और धीमे - धीमे कर कश भरता रहा, उसके असिस्टेंट हाथ में फाइल खोल कर खड़ा था. वो वेटिंग एरिया से इंटरव्यू के लिए एक - एक कैंडिडेट को नाम लेकर बुलाया.
आज से पहले असिस्टेंट ने ये काम नहीं किया था, लेकिन पता नहीं क्यों आज उसके बॉस को भूत चढ़ा था कि वो ही कैंडिडेट्स का इंटरव्यू लेगा, और ये फैसला उसके बॉस ने एलेवंथ फ्लोर पर खड़े होकर तमाशे को देखने के बाद किया था. वरना उसकी कंपनी के पास इंटरव्यू के लिए अलग से स्पेशल टीम थी. जो इंटरव्यू लिया करती थी कैंडिडेट्स का. लेकिन नहीं उसके बॉस को अपने बिजी शेड्यूल पता होने के बावजूद भी खुद ही इंटरव्यू लेना था. हह! वो इस मामले मे कुछ भी नहीं कह सकता था.
एक - एक कर सभी कैंडिडेट्स खुशी से इंटरव्यू देने के लिए केबिन के अंदर गए, लेकिन बाहर आए तो उदास चेहरे के साथ आए, जिस पर बेइज्जती साफ दिख रही थी.
असिस्टेंट ने अपना चश्मा सही किया और पेपर पर लिखा नाम पढ़ा.
"मयूरी शर्मा...!"
उसने अपनी नजर दौड़ाई, तो मयूरी अपने सीट से खड़ी हो गई.
असिस्टेंट ने उसे अपने साथ केबिन में आने को कहा.
...!!जय महाकाल!!...
(इस कहानी को सपोर्ट करे और मुझे फ़ॉलो जरूर करें, कॉमेंट्स और बिल्कुल ना भूलें)
...!!जय महाकाल!!...
अब आगे...!!
"मे आई कम इन सर!"
मयूरी ने दरवाजा हल्का सा खोल उस बैठे शख्स को देख कर उसके सम्मान में पूछा.
उसने केवल अपना सिर हिलाया और आकर बैठने का इशारा किया, मयूरी कॉन्फिडेंटली एक बार फिर उसकी ओर देखी और बैठ गई. मयूरी ने अपनी फाईल उसके सामने बढ़ा दीं, उस आदमी ने धीमे से उसका फाईल पकड़ा और अपनी पैनी नजर उसपर गड़ा दिया. मयूरी को उससे काफी डर लग रहा था बीकॉज उसका औरा ही बेहद डेंजरस था, निगाहें तो मानो चील की भांति थी.
"सो.. मिस मयूरी शर्मा, हम आपको किसलिए जॉब पर रखें? अपनी कोई क्वालीफैक्शंस बताएं?"
उसने बेहद कोल्डली उसके चेहरे को देख पूछा.
उसके वॉयस पर एक सेकंड को मयूरी उलझ गई, लेकिन जल्द ही अपना जवाब उसके सामने रखा.
"सर! बस मेरे पास डिग्री है बट कोई वर्क एक्सपीरियंस नहीं है. मुझे बस एक मौका चाहिए था. आप चाहें तो मुझे एक इंटर्न की तरह रख सकते हैं. आई जस्ट वांट टू प्रूव माइसेल्फ."
वो शख्स एक पल चुप रहा, फिर हल्की सी डेंजरस सी मुस्कान उसके चेहरे के कोने पर उभरी.
"इंटरेस्टिंग!"
उसने सामने पड़ी फाइल को एक बार देखा, फिर धीरे से उसे बंद कर दिया.
"मिस शर्मा."
वो अब टेबल पर थोड़ा आगे झुक गया, उसकी निगाहें अब सीधे मयूरी पर थीं.
"तुम जानती हो ये पोस्ट सिर्फ एक्सपीरियंस वालों के लिए होती है?"
मयूरी ने धीरे से सिर हिलाया.
"येस, सर."
"फिर भी तुमने अप्लाय किया?"
"बीकॉज, आई जस्ट नीडेड ए चांस टू वर्क हेयर."
मयूरी अभी भी एक स्माइल लिए बोली.
उसने अपनी कुर्सी पर हाथ टिका कर कहा.
"फाइन. तुम्हें वो चांस मिल गया, यू आर हायर्ड. तुम किस पोस्ट पर हायर्ड हो ये तुम्हे मेल कर दिया जाएगा."
मयूरी को एक पल को यकीन ही नहीं हुआ.
"सर. क्या सच में?"
"डोंट आस्क क्वेश्चन्स."
उसकी आवाज़ अब शांत हो गईं थीं.
"अब से तुम्हारा हर मिनट मेरा होगा. तुम जब भी ऑफिस आओगी, सबसे पहले मुझसे मिलोगी. तुम्हारी हर ड्यूटी, मेरी जरूरत के हिसाब से होगी."
उसने अपनी पेन उठाई और कागज़ पर साइन करते हुए खुद-ब-खुद कहा.
"वेलकम टू माय वर्ल्ड, मिस शर्मा."
उसके चेहरे पर एक शातिर मुस्कान आ ठहरी, वो मयूरी को देखा और अपने चेयर से उठ गया. उसने मयूरी को जाने का इशारा किया. मयूरी ने उसे विश किया और केबिन से निकल गई.
इसका असिस्टेंट वहां आया, तो उस आदमी ने अपनी आवाज को फिर टफ कर कहा.
"इंटरव्यू कंप्लीट हो चुका है."
"बट सर अभी दो कैंडिडेट्स और बचे हुए हैं."
उसका असिस्टेंट चौंक कर कहा.
"तो क्या हुआ? उन्हें वापस लौटा दो."
वो उसकी ओर मुड़ कर, अपनी भौहें उचका दिया.
असिस्टेंट उसकी ठंडी आवाज पर एक पल को ठिठक गया. वो अपना सिर झुका कर कुछ नहीं बोला और केबिन से बाहर निकल कर, बचे हुए दो कैंडिडेट्स से बोला.
"आज की इंटरव्यू की प्रक्रिया यहीं समाप्त होती है!"
उन दोनों बचे कैंडिडेट्स ने एक दूसरे का मुंह देखा, फिर हैरानी भरे भाव से एक कैंडिडेट बोला.
"लेकिन सर हमारी बारी तो अभी आई ही नहीं."
"आप अगली बार ट्राई करें! शायद आपकी किस्मत में हो."
असिस्टेंट ने कहा और सीधे केबिन के अंदर चला गया.
वो दोनों कैंडिडेट्स एक दूसरे का मुंह देखने लगे, मयूरी अपने सीट से अपना बैग उठा कर उन दोनों लड़कों को देख कर उन्हें इग्नोर कर वहां से चली गई.
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"हाँ माँ, मैं सच कह रहीं हूँ, मेरी जॉब फाइनल हो गई है."
मयूरी ने तेज आवाज में सोफे पर पसरते हुए कहा.
माधुरी जी खुश हो गईं.
"रुक, अभी मुंह मीठा करने के लिए कुछ लेकर आती हूं."
"हाँ, हाँ जल्दी लाओ माँ."
"दी, क्या मैं जो सुन रहा हूं? वो वाकई सच है."
मयूरी की आवाज सुन कर मृदुल अपने रूम से आते हुए उससे पूछा.
"हाँ भाई, मेरी जॉब लग गई."
मयूरी ने सिर हाँ में हिला दिया.
माधुरी जी वहां आईं, वो मयूरी और मृदुल को मिठाई देकर सोफे पर बैठ गई.
"अब तो करेगी ना शोमित से शादी?"
मयूरी के चेहरे की रंगत पूरी की पूरी उड़ गई, वो मिठाई को जैसे तैसे निगली और खामोश हो कर टीवी ऑन कर देखने लगी.
"क्या हुआ बता ना?"
"आप इतनी जल्दी मेरी शादी के पीछे क्यों पड़ी हैं? क्या मैं आपको खुश अच्छी नहीं लग रही हूं, जो मुझे मौत के कुएं में फेंकने की सोच रहे हो आप."
"मयूरी, शादी उम्र पर ही अच्छी लगती है, ज्यादा उम्र होना शादी के लिए सही नहीं रहता."
मयूरी ने वही सुनी सुनाई बातें फिर सुनी तो एकदम से उसका पारा चढ़ गया, लेकिन वो अपने आप को स्टेबल कर बोली.
"तो माँ आप ये चाहतीं हैं कि, मैं पूरा दिन अपने सास ससुर की गुलामी करने के बाद, लाश बन कर जाऊंगी ऑफिस. अगर आपको लगता है कि मैं ये कर लूंगी, तो मैं इतनी मैच्योर नहीं हूं माँ."
"मयूरी, इसमें मैच्योर वाली बातें कहां से आ गईं. हर माँ बाप का सपना होता है कि उनकी बेटी उनके जीते जी एक परिवार में ब्याही जाएं, अगर हम अपनी बेटी की शादी कर रहे हैं तो इसमें क्या गलत कर रहें हैं हम."
माधुरी जी अब गुस्से में आ गईं थीं.
मयूरी उन्हें देखी और फिर बिना कुछ बोले उठ कर अपने कमरे में चली गई, वो डोर जोड़ से पटकी और बेड पर मुंह के बल लेट गई. देखते ही देखते उसके आंखों से आंसुओं को धरा बहने लगी.
"मुझे नहीं शादी? माँ क्यों नहीं समझ रहीं. उ.. उस शोमित से शादी करने से अच्छा तो मैं किसी भिखारी से शादी कर लूंगी, लेकिन उससे कभी नहीं करूंगी. आई हेट हिम, मुझे बहुत ज्यादा नफ़रत है उस घटिया इंसान से."
वो सिसक सिसक कर बोल रही थी.
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(रात का समय)
डाइनिंग टेबल पर सब खाने के लिए बैठ गए थे, मयूरी के पापा अभी थोड़ी ही देर पहले ऑफिस से आए थे. उन्हें तब से अपनी बेटी कहीं नहीं दिखी थी और माधुरी जी का भी मूड उन्हें कुछ सही नहीं लगा था, उन्होंने मृदुल से पूछा था तो उसने उन्हें दोपहर को सारी हुई बातें उन्हें कह दी थीं. माधुरी जी का हमेशा शादी के विषय पर मयूरी पर इतना जोड़ डालना उन्हें कभी सही नहीं लगता था, लेकिन वो माधुरी जी को चुप कराने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकते थे.
वो खाने को एक नजर देख कर, मृदुल को बोले.
"बेटा जाओ मयूरी को भी बुला लाओ."
"ठीक है!"
मृदुल मयूरी के रूम का दरवाजा खटखटाया, मयूरी सोई हुई थी काफी खटखटाने के बाद मयूरी एकदम से जागी और दरवाजा खोली, उसने उबासी लेते हुए मृदुल की ओर देखा तो उसकी आँखें छोटी हो गईं.
"क्या हुआ?"
"पापा आपको खाने के लिए बुला रहे हैं."
"मुझे खाने का मन नहीं है, जाओ." कह कर वो गेट बंद करने को हुई थी, तब मृदुल जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ा और उसे लेकर डाइनिंग टेबल पर इसके चेयर पर बिठा दिया.
मयूरी उसे खा जाने वाली नजरों से देख रही थी, तभी अशोक जी उसके प्लेट में खाना पड़ोस कर बोले.
"बेटा लो भर पेट खाना खाओ. और चाहिए तो बताना."
"आपने ऑलरेडी बहुत ज्यादा निकाल दिया है, पापा."
"तुम इतना सा नहीं खा सकती?" वो चौंक कर बोले, वो उसके पास थोड़ा झुके और धीमी आवाज में बोले.
"अरे खाया करो, वरना अपनी माँ की बातें सुनने की ताकत कैसे आएगी."
तभी पीछे से आवाज आई.
"क्या खुसुर - फुसुर ही रही है दोनों बाप बेटी में."
कहती हुईं माधुरी जी वहां आईं और अपना चेयर खींच कर बैठ गई.
उन्हें देख कर मयूरी चुप चाप खाने लगी, माधुरी जी मयूरी को देखी हर खाना खाने लगी. सब शांति से खाना खा रहे थे. मयूरी का जैसे ही खाना हुआ, वो तुरंत उठ कर अपने बेडरूम में चली गई.
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(नेक्स्ट मंडे)
मयूरी आज जल्दी सुबह उठ गई थी, क्योंकि वो रात को जल्दी ही सो गई थी. वो फटाफट तैयार हो कर नीचे आई, अशोक जी की नजर उस पर पड़ी तो उन्होंने कुछ रुपए उसे दे दिए. मयूरी उनके पैर छू कर निकलने लगी की माधुरी जी दरवाजे से आती दिखीं.
"कहाँ जा रही है तू?"
उन्होंने सवाल किया.
"ऑफिस!"
वो निकलने लगी, की माधुरी जी उसका हाथ पकड़ी और गुस्से से बोली.
"बिना नाश्ता लिए जा रही है."
"पापा ने पैसे दिए हैं, मैं कैंटीन में ही कुछ खा लूंगी."
इस बार वो नहीं रुकी और सीधे बाहर निकल गई.
माधुरी जी उसे देखती रह गईं, उस दिन से मयूरी ने उनसे सही से बात भी नहीं की थी. जो काम होता करना होता, चुप चाप ही करती.
मयूरी अपनी स्कूटी पर बैठी, और सीधे ग्लोरिक्स के लिए निकल गई. वो कम्पनी के पार्किंग में अपनी स्कूटी पार्क की और अपने हाथ में बंधी रिस्ट वॉच के टाईम देखी.
"मैं बिल्कुल टाईम पर हूँ."
वो एक बार अपने अपने बैग को ठीक से पकड़ी और अंदर चली गई.
"ये मेरी जॉइनिंग लेटर है."
वो रिसेप्शनिस्ट को अपना लेटर दी.
रिसेप्शनिस्ट ने एक कॉल की और उसे टॉप फ्लोर पर जाने बोली.
"मैम आपको सबसे टॉप फ्लोर पर जाना है. वो गार्ड आपको उस फ्लोर तक ले जाएगा."
"ओके!"
वो गार्ड उसके पास आया और उसे अपने साथ लेकर लिफ्ट में चढ़ गया. टॉप फ्लोर पर उनकी लिफ्ट रुकी और गार्ड ने उसे अब यहां से खुद जाने को कहा.
मयूरी लिफ्ट से निकली की एकदम से उसके सामने कोई आ गया. असिस्टेंट घबरा कर दो कदम पीछे हट गया.
"मैडम ऐसे दिल का दौरा मत दीजिए और आपको इस तरफ आना है."
"ओह सौरी."
मयूरी जबरदस्ती हंस दी.
...!!जय महाकाल!!...
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...!!जय महाकाल!!...
अब आगे...!!
मयूरी असिस्टेंट के पीछे पीछे चल रही थी, असिस्टेंट सबसे कॉर्नर में बने एक बहुत बड़े और आलिशान स्पेस में ले आया. मयूरी वहां के रॉयल्टी को देख कर हैरान थी. उसे समझ नहीं आया कि ये ऑफिस है या कोई राजमहल, जो इतना डेकोरेटेड है.
असिस्टेंट ने केबिन के डोर पर दस्तक दी, तो अंदर से गहरी आवाज उनके कानों में पड़ी.
"कम इन!"
डोर अपने आप खुल गया, जिसे देख कर मयूरी अपने आप को सीधी खड़ी कर कॉन्फिडेंट से चलकर अंदर गई.
"गुड मॉर्निंग सर!" मयूरी ने अपने मीठी आवाज को कॉन्फिडेंस भर कर कहा.
"ह्म्म्म!" मिस्टर राठौड़ कांच के वॉल के सामने खड़े पूरे शहर को इत्मीनान से देख रहे थे और कॉल पर किसी से बात कर रहे थे.
मयूरी ने उस समझ शांत रहना सही समझा, क्योंकि असिस्टेंट ने भी उसे चुप रहने का इशारा कर दिया था. कुछ देर बाद मिस्टर राठौड़ पीछे मुड़ा और सबसे पहले मयूरी को देखा, उसे देखते ही क्षण भर में ही उसके चेहरे पर तिरछी मुस्कान आ गई. वो अपने हेड चेयर पर बैठ गया और असिस्टेंट को एक इशारा किया.
"सर, ये मिस मयूरी शर्मा हैं. जिनको आपने सेलेक्ट किया था इन्टरव्यू के जरिए, इनका आज पहला दिन है." इतना कहकर असिस्टेंट चुप हो गया.
दिग्विजय मयूरी को एक पल को देखा और असिस्टेंट से कहा.
"तो क्या तुमने ये नहीं पता कि न्यू इंटर्न को कहां ले जाया जाता है. मिस मयूरी एक हफ्ते ट्रेनिंग में रहेंगी. उसके बाद ये अपने रियल काम में आएंगी. सो, ले जाओ."
असिस्टेंट ने सिर हिलाया और मयूरी के साथ वहां से निकल गया. मयूरी को असिस्टेंट ने इंडस्शन रूम में छोड़ा, और उसे फोकस से सब कुछ सीखने को कहा. मयूरी एक सीट पर बैठी, उसके सामने एक करीब पैंतीस साल की महिला बैठीं और उसे कुछ बताने लगी. मयूरी अब कुछ बड़े ही गौर से सुनने लगी.
दिग्विजय अपने कैबिन में बैठा अपने लैपटॉप के ध्यान से देख रहा था, इसकी नजर मयूरी पर तब से थी जब से वो उसके केबिन से निकली थी. उसके काम में इतना इंटरेस्ट से सीखना उसे इंप्रेस कर गया था.
"मेरी पसंद कभी भी बेकार नहीं होती!" कहते हुए उसके चेहरे पर डेंजर मुस्कान तैर गई थी.
वो लैपटॉप को क्लोज़ कर अपने एक फाइल खोल कर पढ़ने लगा, कुछ देर के साइलेंस के बाद अचानक से उसका फोन वाइब्रेट हुआ, दिग्विजय ने स्क्रीन पर देखा तो सुहासिनी जी उसे कॉल कर रहीं थीं.
"हेलो!"
"लल्ला! अरे आप अभी तक आए क्यों नहीं, इतनी देर से रायसा के परिवार वाले आकर बैठे हैं." सुहासिनी जी ने कठोरता से कहा.
उनकी बात पर दिग्विजय बोरियत से कहा.
"तो बैठे रहने दीजिए, मैं आऊंगा तो खड़े थोड़ी ना हो जाएंगे."
"लल्ला....!" सुहासिनी जी गुस्से से चीख कर पड़ी.
"दादी माँ, आप जानती हैं ना कि मुझे इन सारे चोंचले में कोई इंटरेस्ट नहीं है. तो भी आप मुझे इतना प्रेशराइज क्यों कर रहीं हैं."
"लल्ला, फिर तुम वही बातें बोल रहे हो. वो अपनी बेटी देंगे हमें इसलिए उनका तुमसे मिलना के लिए कहना जायज है."
"फिर क्यों दे रहे हैं बेटी, मुझे नहीं चाहिए. कह दीजिए उनसे मैं कॉल रख रहा हूं." दिग्विजय कॉल काटता उससे पहले सुहासिनी जी ने बड़े ही गुस्से से कहा.
"लल्ला, आधे घंटे में तुम हमे अपने सामने दिखने चाहिए, अगर नहीं आए तो भूल जाना कि हम आपकी दादी माँ है."
"दादी माँ....!" दिग्विजय बोला लेकिन तब तक सुहासिनी जी ने कॉल काट दिया था.
दिग्विजय खीजते हुए अपनी जगह से उठा और अपने कोट को उठा कर केबिन से बाहर निकल गया, असिस्टेंट एक एम्पलाई को कुछ समझा रहा था, दिग्विजय को केबिन से निकलता देख दिग्विजय के पीछे आ गया.
"बॉस, आपकी मीटिंग है बारह बजे और अभी आप जा रहे हैं."
दिग्विजय उसे एक डेथ स्टेयर दिया, तो असिस्टेंट के शब्द उसके गले में ही अटक कर रह गए.
"मैं आने की कोशिश करूंगा, अगर नहीं आया तो मेरी जगह तुम मीटिंग ले लेना." दिग्विजय लिफ्ट में चढ़ गया.
असिस्टेंट लिफ्ट के डोर को बंद होते देखा और वापस मुड़ कर, खुद से बोला. "आज बॉस का मूड सही नहीं है, उनसे दूर ही रहना सही होगा मेरे लिए." वो गहरी सांस भर कर उस एम्प्लॉय के पास चला गया.
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(राठौड़ मैंशन)
दिग्विजय जम्हाई लेते हुए अपनी गाड़ी से उतरा, और मैंशन को अजीब तरीके से घूरते हुए अंदर चला गया, उसे आते ही सुहासिनी जी के जान में जान आई. उसे देख कर वो मुस्कुराते हुए बोलीं.
"आ गए तुम लल्ला."
"हाँ!"
"अच्छा, रायसा तुम्हारा कब से इंतजार कर रही है, जाओ उसके साथ कुछ समय बिता लो." सुहासिनी जी ने रायसा के तरफ इशारा कर कहा.
"उसकी जरूरत नहीं है दादी माँ." दिग्विजय ने ठंडी आवाज में कहा और अपने रूम को ओर बढ़ गया. लेकिन तभी सुहासिनी जी की चीखती आवाज पूरे मैंशन में गूंज उठी.
"लल्ला, आप मेरी बात को काट कर यहां से जा रहे हैं, इसे मैं क्या समझूं, अपना उपहास!"
दिग्विजय के कदम जाते हुए थम गए, उसने अपनी मुट्ठियों को तेजी से भींच लिया. वो धीरे से मुड़ा और रायसा के सामने आकर खड़ा हो गया, रायसा जो शायद तब से इसी के इंतजार में थी, झट से खड़ी हो गई. तभी उसके कानो में दिग्विजय के क्रूर शब्द सुनाई दिए, जिससे उसने अपनी होठ भींच ली.
"दादी माँ आप चाहती हैं कि मैं इस लड़की से शादी करूं, जिसे कुछ दिनों पहले मैने अपने क्लाइंट के साथ डिनर करते हुए देखा था."
"लल्ला सिर्फ डिनर ही था ना और तो कुछ नहीं, इसमें तुम इतना क्रोध क्यों कर रहे हो. तुम्हारा क्लाइंट शायद उसका कोई फ्रेंड हो." सुहासिनी जी ने कहा तो रायसा के चेहरे पर एक उपाय मिल जाने से मुस्कान तैर गई. वो जल्दबाजी में बोली.
"हाँ दादी माँ, वो मेरे फ्रेंड के बड़े भैया थें. और जब दिग्विजय ने हमें साथ देखा होगा तब मेरी फ्रेंड नहीं आई होगी."
"फ्रेंड के बड़े भैया के साथ इतना क्लोज़ हुआ जाता है." दिग्विजय ने फिर से उसके ऊपर तंज कसा.
सुहासिनी जी अब दिग्विजय के बात पर एक पल को रायसा को घूरने लगी, रायसा इधर - उधर बचने के लिए देख रही थी. उसने सुहासिनी जी के नजर को खुद पर महसूस कर कहा.
"दादी माँ, वो बस....!"
"क्या बस? राठौड़ खानदान की होने वाली बहु किसी आदमी के साथ हिल - मिल कर खाना खाते हुए शोभा देती हैं." सुहासिनी जी की बात पर रायसा की माँ आगे आईं और एक गहरी मुस्कान लिए बोलीं. "अरे सुहासिनी जी बच्ची से गलती हो गई, और डिनर करना इतनी भी कोई बड़ी बात नहीं है."
"कैसे बड़ी बात नहीं है, राधा जी." इस बार दक्षिणा जी जो कब से उनकी बात सुन रही थीं वो बोलीं.
"अगर ये आपके खानदान के लिए दोष है, तो ठीक है! मैं रायसा को इस सारे चीजों से दूर कर दूंगी." राधा जी एक अजीब सी मुस्कान को बरकरार रखने की कोशिश कर कहीं. "दिग्विजय बेटा इस बात के लिए आप इतना क्यों गुस्सा कर रहे हैं. मैं समझा दूंगी उसे."
दिग्विजय बिना कुछ कहे सीधा अपने रूम की ओर बढ़ गया, इस बार उसे किसी ने रोका भी नहीं. बात ज्यादा ना बिगड़े इस लिए राधा जी और उनके पति रायसा की हरकत के लिए सभी से माफी मांग, थोड़ी देर भी ना ठहरे और मैंशन से निकल गए.
दक्षिणा जी और सुदेशा जी उन्हें जाते देख किचेन में आईं, सुदेशा जी ने रायसा को याद करते हुए कहा. "दीदी आपको नहीं लगता रायसा सिर्फ दिखने में सुंदर है, बाकी उसमे इस परिवार को सदस्य बनने लायक कोई बात नही है, ऐसे छोटे - छोटे कपड़े पहन कर कोई पहली बात अपने होने वाले ससुराल में आता है क्या? मुझे तो वो लड़की मेरे दिग्विजय के लिए बिल्कुल नहीं पसंद नहीं आई. ना जाने कैसे माँ जी उसे अपनी पोता बहु बनाने के लिए राजी हो गईं."
"पसंद तो मुझे भी नहीं आई वो, लेकिन माँ जो कारण नहीं बोल सकी कुछ. उनकी इज्जत करती हूं वरना उस लड़की को कुछ देर बर्दाश्त करना मुश्किल है मेरे लिए." दक्षिणा जी भी सुहासिनी जी के फैसले से असंतुष्ट दिखाई पड़ी.
दिग्विजय अपने रूम के बालकनी में आया और रायसा के परिवार की गाड़ियों को देख कर तिरछा मुस्कुरा दिया. "तुम कितनी भी कोशिशें कर लो मिस रायसा मित्तल मेरी बीवी कभी भी नहीं बन पाओगी. बीकॉज तुम ये पोजिशन डिजर्व ही नहीं करती. ब्लडी इडियट!"
वो वहां के नजारें को देखते हुए अपनी आँखें मूंद लिया, उसकी आँखों के सामने मयूरी आने लगी. उसकी मुस्कान और भी अधिक टेढ़ी होती चली गई.
"मिस मयूरी शर्मा, वेलकम टू माय लाइफ़. तुम्हारा मेरी जिंदगी में आना तुम्हारी चॉइस थी, बट अब जाना तुम्हारे बस में नहीं होगा. अब तुम मेरी ऑब्सेशन हो, जिसे मैं हर हाल हासिल करके ही दम लूंगा." दिग्विजय के चेहरे पर ऑब्सेशन साफ थी.
वो अपने रूम में आया और कुछ फाइल्स लिया और रूम से निकल गया. सुहासिनी जी अभी भी लिविंग हॉल में बैठी हुई थी, वो उसे देख कर उसे टोकने के लिए मुंह खोलती की, दिग्विजय लंबे - लंबे कदम भरते हुए बाहर निकल गया.
दिग्विजय अपने कार में बैठ कर मैंशन को घुरा और बिना ड्राइवर के ही खुद ही स्पीड बढ़ा कर निकल गया.
...!!जय महाकाल!!...
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...!!जय महाकाल!!...
अब आगे...!!
(शाम का समय)
मयूरी ऑफिस से बाहर निकल रही थी, कि अनजाने में उससे एक आदमी भीड़ गया. मयूरी का माथा ठनका और वो कुछ बोलने के लिए मुंह खोलती की पहले ही, उस आदमी ने उसे पूरा देखने के बाद अजीब तरह से सॉरी कह दिया और फिर बिल्डिंग के अंदर घुस गया. उसके साथ कुछ आदमी भी थे, काले कपड़े में. मयूरी को ये बड़ा अजीब लगा वो अपने भौहें उचका कर निकल गई.
दिग्विजय अपने कैबिन के ग्लास वॉल से नीचे ही देख रहा था, मयूरी का उस आदमी से टकराते ही उसकी आँखें छोटी हो गईं. वो अपने हाथों में पकड़े सिगरेट को नीचे फेंक कर अपने पैरों से कुचल दिया, उसका असिस्टेंट पार्ष उसके पीछे खड़ा था.
"पार्ष, अब भी किसी कंपनी के साथ हमारी मीटिंग बाकी है." दिग्विजय ने कोल्डली कहा.
पार्ष एकदम से घबरा गया और अपने आप को सम्भल कर जवाब दिया. "येस सर, हमारी सोनवानी कॉरपोरेशन के साथ दस मिनट बाद मीटिंग है."
"ओके!" दिग्विजय ने कहा और मीटिंग के केबिन से निकल गया, उसके पीछे पार्ष भी फ़ाइलों को संभालते हुए चल रहा था.
(कॉन्फ्रेंस रूम)
दिग्विजय चलते हुए अंदर आया और अपनी चेयर पर बैठ गया, वो अभी कुछ ज्यादा ही बेपरवाह नजर आ रहा था. पार्ष भी अपनी चेयर पर बैठ गया था. उनके साथ कई और ग्लोरिक्स के शेयर होल्डर्स और एम्प्लॉयज थे.
सोनवानी कॉरपोरेशन का सीईओ मिस्टर सोहेल सोनवानी वहां था, और उसके साथ उसका असिस्टेंट और कंपनी के कुछ एम्प्लॉयज थे. उनकी मीटिंग शुरू हुई जिसमें सोनवानी कॉरपोरेशन का मैनेजिंग डायरेक्टर उठ खड़ा हुआ और प्रोजेक्टर में अपने प्रोजेक्ट को ऑन कर सबको इसके बारे में बताने लगा.
जब लगभग डेढ़ घंटे तक सब कुछ समझाने के बाद वो सबसे क्वेश्चन किया. "इस प्रोजेक्ट के बारे और कोई प्रॉब्लम है किसी को?"
"हमें इससे क्या प्रॉफिट होगा?" दिग्विजय की आवाज गूंजी.
जिस पर सोहेल ने मैनेजिंग डायरेक्टर को बैठने का इशारा किया और खुद बोला. "मिस्टर राठौड़, इससे हमारी और आपकी कम्पनी दोनों कंपनीज का बराबर प्रॉफिट होगी, आपकी कम्पनी कंस्ट्रक्शन और कई सारे क्षेत्र में आगे है, इस एरिया में फुटबाल, क्रिकेट, टेनिस, और भी कई खेल के ग्राउंड बनाने से हमें कई गुना ज्यादा प्रॉफिट मिलेगा. क्योंकि हमारे पास कई सारे ऐसे प्लेग्राउंड्स हैं जहां कई खिलाड़ी खेलने आते हैं. हम वहां स्पोर्ट्स अरीना भी अरेंज कर सकते हैं और अधिक प्रॉफिट के लिए."
"डन!" दिग्विजय ने प्रोजेक्ट को काफी बारीकी से ऑब्जर्व कर तब कहा. सोहेल के असिस्टेंट ने कॉन्ट्रैक्ट की फ़ाइल पार्ष को दिया. पार्ष ने उस फाइल के एक एक पेज को बहुत अच्छे से पढ़ा और कन्फर्म हो जाने पर की कोई फ्रॉड नहीं है, वो दिग्विजय के सामने फाइल को रख दिया.
दिग्विजय ने उस फाइल को अपने हाथ में उठाया और खुद भी थोड़ी देर उसे घूरता रहा और फिर अपने पेन से सिग्नेचर कर दिया. सोहेल से हाथ मिला कर वो सीधे कॉन्फ्रेंस रूम से निकल गया.
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एक हफ्ते की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद मयूरी अब अपने काम के लिए पूरी रेडी थी और आज उसका पहला दिन था, जब वो एज ए पर्सनल असिस्टेंट दिग्विजय के केबिन के बाहर खड़ी थी, और अपने बॉस के परमिशन मिलने का वेट कर रही थी.
"कम इन!" दिग्विजय ने भारी आवाज में कहा.
मयूरी इसकी आवाज पर ही हल्की डर गई, लेकिन उसने खुद को कंट्रोल किया और तभी ऑटोमैटिक डोर ओपन हो गया. जो ग्लास का था बट अंदर का कुछ नहीं दिख रहा था. मयूरी अंदर आई और दिग्विजय को विश की.
"गुड मॉर्निंग, सर!"
"ह्म्म्म!" दिग्विजय अपनी फ़ाइल में आँखें गड़ाए हुए कहा.
तब मयूरी उसे उसका शेड्यूल बताने लगी. "सर, आज आपकी कुल तीन मीटिंग्स हैं. ग्यारह बजे सोनवानी कॉरपोरेशन के साथ ताज होटल में, फिर तीन बजे मित्तल कम्पनी के साथ और फिर लास्ट छह बजे शर्मा टेक्सटाइल्स के साथ."
दिग्विजय ने उसके रुकने पर पहली बार मयूरी को देखा, उसे देख कर वो जल्दी से वापस अपनी नजरें अपनी फ़ाइल पर गड़ा लिया.
"पार्ष कहां है?" उसने कठोरता से पूछा.
मयूरी फट से जवाब दी. "सर, पार्ष सर आपके पेंडिंग पड़े फाइल्स को रिचेक कर रहे हैं."
"व्हाई सर, वो तुम्हारा सर नहीं है?" दिग्विजय अपनी एक भौहें उचका लिया.
"सर, वो मुझसे तो सीनियर हैं, इसलिए रिस्पेक्ट से कहा." मयूरी जवाब देने पर थोड़ी नर्वस हो गई थी.
"हुह्, तो मेरी तीन बजे के बाद की सारी मीटिंग्स को कैंसल कर दो." दिग्विजय ने अपनी हाथों में पेन को घुमाते हुए कहा.
"लेकिन सर वो तो कंपनी के लिए काफी ज्यादा ईम....!" मयूरी को रोकते हुए दिग्विजय ने उसे घूरा और एक सवाल किया. "इस कंपनी का मालिक कौन हैं?"
"ऑफकोर्स आप हैं सर." मयूरी ने नासमझी से जवाब दिया.
"तो मैं कब क्या करता हूं, इससे तुम्हे मतलब नहीं होना चाहिए. तुम्हे जो कहा गया है वो करो." दिग्विजय एक नजर उस पर डाल कर बोला.
"ओ.. ओके सर!" मयूरी बोली. "सर क्या मैं जाऊं?"
"इन फाइल्स को लेकर जाओ और सबको चेक कर दो बजे तक लेकर आओ, और अभी मेरे लिए एक कोल्ड कॉफी लेकर आओ." दिग्विजय ने कहते वक्त अपनी नजरें सिर्फ अपनी फ़ाइल पर ही गड़ाई हुईं थीं.
मयूरी "ओके" कह कर दिग्विजय के टेबल से फाइल को उठाकर केबिन से निकल गई, उसे अपना खुद का केबिन दे दिया गया था, तो वो अपने केबिन के टेबल पर सारी फाइल्स जाकर रख दी और दिग्विजय के लिए कोल्ड कॉफी लेकर उसके केबिन में देकर आई.
मयूरी अपने केबिन में आकर फाइल्स को देखी और अपने काम में लग गई, वो अपने काम में इतनी लीन हो गई थी, कि उसे ब्रेक का भी पता नहीं चला और आखिरकार उसका काम जाकर ढाई बजे खत्म हुआ. उसने फाइल रखी और टाईम देखी तो जैसे उसे शॉक लगा.
"मैं पूरे आधे घंटे लेट हो गई, सर जरूर डांटेंगे."
वो जल्दी से सारे फाइल्स लिए उठी और हड़बड़ाते हुए दिग्विजय की केबिन के सामने पहुंची, तो उसके बिना खटखटाए ही डोर खुल गया और दिग्विजय बाहर आया. अचानक से उसके सामने आ जाने पर मयूरी जल्दी से पीछे खिसक कर खड़ी हो गई.
"फाइल्स को टेबल पर रख दो और मेरे साथ चलो." दिग्विजय ने अपनी टाई की नॉट ढ़ीली करते हुए कहा.
मयूरी सिर हिलाई और उसके टेबल पर सारी फाइल्स को रख कर इसके पीछे - पीछे चल दी, दिग्विजय ऑफिस से बाहर आया और अपनी कार में बैठ गया, मयूरी बैठने में हिचकिचा रही थी तो दिग्विजय ने कर्कश आवाज में कहा.
"बैठ भी जाओ, इतनी भी भारी नहीं हो कि सीट टूट जाएगी. और मेरे पास इतना टाईम नहीं है कि तुम्हे हिचकते देखता रहूं."
"स.. सॉरी सर!" मयूरी जल्दी से उसके साईड में बैठ गई.
और ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. मयूरी पूरी विंडो से चिपकी हुई थी, दिग्विजय उसे तिरछी मुस्कान लिए देख कर मन ही मन हँस रहा था, लेकिन चेहरे पर भाव शून्य थे.
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गाड़ी आकर सीधे राठौड़ मैंशन के गैरेज में खड़ी हुई, मयूरी इतने बड़े मैंशन को देख कर बस देखती ही रह गई. इसकी तंद्रा दिग्विजय की आवाज से ही टूटी. "तुम्हे बैठने और उठने दोनों के लिए बोलना पड़ता है क्या?"
"न.. नहीं सर!" मयूरी जल्दी से कार से निकली तो इसका बैलेंस बिगड़ा और गिरने को हुई, तो दिग्विजय ने उसकी कलाई पकड़ उसे सीधा खड़ा कर दिया.
"अंधी तो हो नहीं, तो देख क्यों नहीं पाई." दिग्विजय ने फिर से तीखे लहजे में कहा.
मयूरी थोड़े उदास चेहरे लिए दिग्विजय के साथ चलने लगी, मैंशन के अंदर आने पर रायसा का परिवार वहां उपस्थित था, और आज रायसा और दिग्विजय की एंगेजमेंट थी. जो दिग्विजय करना तो बिल्कुल नहीं चाहता था लेकिन सुहासिनी जी के कारण उसे करना पर रहा था.
आज पूरा मैंशन सजा हुआ था, चारों दिशाओं में सिर्फ रंग बिरंगे लाइट्स और फूल लगे हुए थे. जो शानदार कैटरिंग का फल थे.
दक्षिणा जी दिग्विजय के पास आई और इसके हाथ को पकड़ ली. "जाओ बेटा, अपने कमरे में तैयार हो जाओ. मैने तुम्हारे लिए कुर्ता पहले ही रखवा दिया है." उनकी नजर मयूरी पर पड़ी. "ये इतनी प्यारी बच्ची कौन है बेटा?"
"अह.. ये मेरी पर्सनल असिस्टेंट है. मैने सोचा इसे भी ले आऊं अपने साथ और पार्ष भी आयेगा थोड़ी देर में." कहकर वो अपने रूम की ओर बढ़ गया.
मयूरी उसे देखती रही, तो दक्षिणा जी ने उसे अपने साथ बुला लिया. वहीं रायसा के परिवार वाले आ चुके थे और साथ ही रायसा भी. उसकी नजर सिर्फ मयूरी पर अटकी हुई थी क्योंकि वो दिग्विजय के साथ थी. उसकी खूबसूरती देख कर वो खुद को जलने से ना रोक पाई.
वो एक बहाने से उसके पास आई और उससे फीकी मुस्कान लिए पूछी. "कौन हो तुम? और दिग्विजय के साथ क्या कर रही थी?"
मयूरी ने उसे देखा फिर अच्छी तरह से जवाब दी. "मैं दिग्विजय सर की पर्सनल असिस्टेंट मयूरी शर्मा हूं."
"ओह, पी ए. अच्छी बात है उससे जितनी हो सके उतनी दूरी बना कर रखना. ओके, यही तुम्हारे लिए अच्छा रहेगा." रायसा ने उसे खुली धमकी दी, लेकिन उसके धमकी देने का मतलब मयूरी को जरा सा भी समझ नहीं आया, इसलिए उसने उसे पागल समझ आ कुछ भी बक बक करने दिया, वरना अभी सबके सामने वो जबरदस्त चाटा खाने वाली थी.
तभी एकदम से मयूरी को किसी ने अपनी ओर खींच लिया और मयूरी उसके करीब हो कर सीने से लग गई.
...!!जय महाकाल!!...
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...!!जय महाकाल!!...
अब आगे...!!
मयूरी अपने सिर को उठा कर देखी तो इसे दिग्विजय का चेहरा नजर आया. वो जल्दी से अपना हाथ खींच कर सीधी खड़ी होती की दिग्विजय उसका हाथ ही नहीं छोड़ा. वो उसकी आँखों में कुछ पल झांका और फिर सामने खड़ी रायसा की ओर देखा, जो उन दोनों को साथ में देख कर कुछ बोलने ही वाली थी. दिग्विजय ने उसे हाथ दिखाया तो वो चुप हो गई.
दिग्विजय उसे घूरते हुए बोला. "तुम्हारे हाथ शायद तुम्हारे कंट्रोल में नहीं लग रहे मुझे. इसका रीजन बता सकती हो क्यों नहीं हैं वो तुम्हारे कंट्रोल में?"
रायसा उसकी आवाज एक पल को घबरा कर पीछे हट गई, लेकिन जल्द ही अपने चेहरे पर आए बालों को पीछे कर एक नकली मुस्कान लिए बोली. "दिग्विजय जैसा तुम समझ रहे हो वैसा कुछ भी नहीं है, ये लड़की खुद बदतमीजी कर रही थी मुझसे. मैने बस इस....!"
वो इसके आगे बोल नहीं पाई थी कि दिग्विजय उसे और भी बेरहमी से घूरा, फिर अचानक उसके होठों के कोर ऊपर की ओर मुड़ गए. उसकी टोन अजीब हो गई. "मैं वहां" (उसने स्टेयर्स की ओर इशारा किया) "वहां खड़ा था! जब तुम अपने पैरों को कष्ट देकर यहाँ आई हो और मेरी असिस्टेंट से उल - जुलूल सवाल कर रही हो. अब इस संदर्भ में कुछ कहना पसंद करोगी तुम. मिस....!" (वो कुछ देर रुका, फिर कोल्ड टोन में कहा) "अगर कोई शब्द नहीं बचे तुम्हारे पास, सो अपनी जगह वापस लौट जाओ!"
रायसा के होंठ भींच गए, वो काफी इंसल्टिंग महसूस कर रही थी खुद को वो भी सबके सामने, दिग्विजय की आवाज काफी लाउड थी तो आसपास के लोगों का ध्यान भी उनकी ओर ही था. सब रायसा को लेकर बातें बनाने में मग्न हो गए थे, सबकी धीमी - धीमी आवाज सुन कर रायसा से अब दिग्विजय के सामने खड़ा नहीं रहा गया और वो अपनी माँ के साथ आकर खड़ी हो गई. लेकिन उसकी माँ भी उसकी हरकत पर उसे घूर रही थी. वो कुछ देर बाद सबका ध्यान अपने तरफ ना देखीं तो रायसा को घूरते हुए अपनी आवाज को कम कर बोलीं. "क्या बकवास हरकत तुमने अभी सबके सामने, तुम्हे पता भी है कि तुम्हारे पापा को यहां तक आने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े हैं. तुम्हारे पापा की रातों की नींद उड़ी हुई थी, लेकिन नहीं बेटी को तो हर जगह बस अपनी और अपनी खानदान की बेइज्जती करानी रहती है. तुम सच में मेरे फूटे कर्म की देन हो, कभी भी कोई काम सही से नहीं होने देती."
रायसा कुछ बोलती की राधा जी ने उसे चुप रहने का इशारा किया, रायसा और दिग्विजय की एंगेजमेंट हो गई थी. रिंग पहनाने के समय लाइट डीम कर दी गई थी, और इसी समय दिग्विजय को जब रायसा अंगूठी पहना रही थी, तब दिग्विजय ने उसकी मदद करने के बहाने खुद से ही अंगूठी पहन ली थी.
मयूरी एक साईड में पार्ष के साथ खड़ी थी, वो दोनों बातें कर रहे थे. दोनों के हाथ में कोल्ड ड्रिंक की ग्लास थी, जिससे दोनों बीच - बीच में घुट भर रहे थे. दिग्विजय की नजर रुक - रुक कर मयूरी पर ही अटक जा रही थी. उन दोनों को साथ में देख कर उसकी भौहें सिकुड़ती जा रहीं थीं, वो रिंग सेरेमनी खत्म होने के बाद उठा और मयूरी की ओर कदम बढ़ा दिया.
मयूरी अपने फोन में पार्ष को अपनी कोई पुरानी फोटो दिखा रही थी, पार्ष की नजर फोटो पर पड़ती उससे पहले ही उसकी आँखें पीछे खड़े आदमी पर गड़ गई, मयूरी पार्ष को देख रही थी की अचानक से उसके हाथों में किसी ने फोन खींच ली और खुद देखने लगा.
मयूरी फ्रस्ट्रेशन से पीछे मुड़ी तो वो स्तब्ध रह गई, वो अपने जगह पर ही जड़ गई. दिग्विजय उसकी पिक्चर को ज़ूम करके देख रहा था, अचानक से मयूरी ने उसके हाथ से फोन ले ली. दिग्विजय ने अपनी एक भौंह उछाल कर उसे देखा.
"मिस मयूरी, क्या तुम मेरे साथ मेरे स्टडी रूम में आओगी थोड़ी देर के लिए, बस थोड़ी देर के लिए." दिग्विजय ने कहा और वो सीधे मुड़ गया, मयूरी उसे मना करना चाहती थी लेकिन मजबूरन उसे उसके पीछे आना पड़ा.
स्टडी रूम काफी बड़ा था और जरूरत की सारे सामन वहां सलीके से सजाए हुए थे. वो पूरा पिन ड्रॉप साइलेंस में नहाया हुआ था, बाहर कितनी भी आवाजें हो रहीं थीं उसकी थोड़ी भी वहां नहीं आ रही थी. मयूरी को दिग्विजय ने सोफे पर बैठने का इशारा किया, वो बैठ गईं और उसके कुछ बोलने का इंतेज़ार करने लगी.
दिग्विजय उसकी के ऑपोज़िट सोफे पर अपने पैर पर पैर चढ़ा कर बैठ गया. कुछ देर की शांति के बाद उसने कहा. "मिस मयूरी शर्मा, मुझे बातें घुमाना नहीं आता इसलिए सीधे तौर पर कहना चाहूंगा कि 'मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं!' और तुमसे भी यही उम्मीद रखूंगा कि तुम्हारा जवाब भी हाँ ही होगा."
उसने कहा तभी मयूरी अपनी जगह से उठ खड़ी हो गई. "क्या आप पागल हो चुके हैं? मिस्टर राठौड़! अभी आप एंगेजमेंट करके ऊपर आएं हैं और मेरे सामने शादी की प्रोपोजल रख रहे हैं. क्या बकवास है! और मैं आपसे ही शादी क्यों करूंगी. आप मेरे बॉस हैं, इसलिए आपकी इज्ज़त करते हुए मैं अब तक शांत हूं वरना अभी तक कोई और होता तो वो मुझसे कितने ही थप्पड़ खा चुका होता." वो मुड़ी और जाने लगी की उसे दिग्विजय की आवाज फिर अपने कानो में सुनाई पड़ी. "तुम बहुत जल्द खुद मेरे पास आओगी, अपने पैरों से चलते हुए!"
मयूरी ने उसकी बात पूरी तरह नजर अंदाज की और हॉल में आई तो अब आधे लोग जा चुके थे. पार्ष वहीं था जैसे उसी के इंतेज़ार में खड़ा हो, मयूरी को आते देख वो एकदम से उसके सामन खड़ा हो गया और हड़बड़ाते हुए पूछा. "मयूरी क्या कहा सर ने? अ.. आई मीन कुछ जरूरी बात जो उन्होंने तुम्हे बताई हो कल की मीटिंग से रिलेटेड."
"नहीं! नहीं! नहीं! उन्होंने बस पूछा कि तुम्हे उनका बिहेवियर बुरा तो नहीं लगा." उसने रायसा की ओर इशारा किया और आगे बढ़ गई.
रायसा को देख कर पार्ष के चेहरे पर हैरानी उभर आई, वो तुरंत मयूरी के पीछे आने लगा और उससे लगातार पूछने लगा. जब रायसा और मयूरी की बात चित हुई थी तब वो वहां प्रेजेंट नहीं था, इसलिए वो उस समय यहां क्या हुआ था जानने के लिए मरा जा रहा था.
"मयूरी बताओ ना यार, क्या हुआ था यहां जब मैं नहीं था और क्या रायसा मैम ने तुम्हारे साथ कुछ गलत बिहेव किया? बताओ ना! अरे भाग क्यों रही हो, बताओ!" आखिर में पार्ष ने उसके कंधे को पकड़ कर उसे अपनी ओर घुमा ही लिया.
मयूरी के एक्सप्रेशंस उतर गए थे, दिग्विजय की बात सुन कर. वो शादी ना करने के लिए ही तो जॉब कर रही थी, और वो इसे शादी के प्रोपोजल से रहा है. और ऊपर से ये उसका असिस्टेंट बार - बार पूछ कर उसका और ज्यादा दिमाग पका रहा है.
"हह! जानना चाहते हो क्या हुआ था जब तुम यहाँ नहीं थे? तो सुनो! रायसा मैम को अपने मंगेतर से ज़्यादा उनके मंगेतर की असिस्टेंट में दिलचस्पी है इसलिए मुझे बेवजह सुना रही थीं. समझे, अब प्लीज जाने दो मुझे." उसने अपने हाथ उसके सामने जोड़ लिए और मुड़ कर मैंशन से बाहर निकल गई.
पार्ष बस स्तब्ध खड़ा रह गया, उसे ध्यान आया कि मयूरी तो दिग्विजय के साथ आई है तो वो जाएगी कैसे. उसकी स्कूटर तो वो ऑफिस में पड़ी हुई होगी. वो तेजी से भाग कर बाहर आया, लेकिन तब तक मयूरी कुछ आगे निकल चुकी थी. वो अपनी कार पार्किंग से लेकर मैंशन से बाहर आ गया, तो उसकी नजर रोड के साइड में चलती मयूरी पर गई, जो बस अपने ही धुन में चलते जा रही थी. पार्ष अपनी कार लेकर, उसके सामने खड़ा कर दिया, मयूरी तब भी आगे बढ़ी और गाड़ी से टकरा गई. तब जाकर उसे वर्तमान का आभास हो आया, वो गाड़ी को देखी और कुछ कदम पिछे हट गई. तब तक पार्ष गाड़ी से निकल गया था और उसके सामने खड़ा हो गया.
"मयूरी ध्यान कहां है तुम्हारा? बारिश होने वाली है, तुम गाड़ी में बैठो, मैं तुम्हे तुम्हारे घर तक ड्रॉप कर देता हूं." पार्ष ने कहा, तो मयूरी उसे मना करते हुए बोली. "नहीं, मैं खुद चली जाऊंगी! तुम जा सकते हो."
"ओह कम ऑन! स्टूपिड मत बनो, इतना भी क्या डर! मैं खा नहीं जाऊँगा तुम्हें. बैठो, मौसम खराब हो रहा है." पार्ष ने गुस्से में कहा और मयूरी को गाड़ी में बिठा दिया.
घर पहुंचते तक रास्ते में मयूरी ने कुछ भी नहीं कहा, बस पार्ष एड्रेस पूछने पर एड्रेस बात कर चुप हो गई. पार्ष उसे उसके घर ड्रॉप कर अपने घर के लिए निकल गया.
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रात के ग्यारह बज रहे थे और मयूरी अभी अपने घर के दरवाजे पर खड़ी थी. माधुरी जी चिंता और गुस्से से मिश्रित भाव लिए कभी समय देखतीं तो कभी उसे. वो उसका हाथ पकड़ घर के अंदर लाईं और दरवाजा बंद कर दीं.
"इतनी रात हो रही है और तुम अभी तक बाहर थी." माधुरी जी ने गुस्से से पूछा लेकिन चिंता के कारण उनकी आवाज तेज नहीं थी.
मयूरी घबरा गई उनके गुस्से पर और अटकती आवाज बाहर आई उसके गले से. "आ.. आज बॉस की एंगेजमेंट थी, तो उन्होंने मुझे इनवाइट किया था इसलिए मैं वहीं थी अभी तक."
"तो तुमने हमे एक बार भी कॉल कर ये बताना जरूरी नहीं समझा, जानती भी हो कब से मैं और तुम्हारे पापा टेंशन में थे." उन्होंने कहा तब अशोक जी ने कहा. "माधुरी, बस हो गया, छोड़ दो उसे. बेटा जाओ रूम में जाकर अपने कपड़े बदल लो, खाना खाया है तुमने."
"हाँ,मैने वहीं खाना खा लिया है." मयूरी अपने रूम में जाकर दरवाजा बंद कर ली.
...!!जय महाकाल!!...
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