प्यार एक बहुत ही खूबसूरत शब्द है और उससे भी खूबसूरत होता है इस प्यार का एहसास लेकिन एक प्यार शब्द के भी कई अलग-अलग मायने होते हैं किसी के लिए प्यार उसकी दुनिया होता है तो किसी के लिए सिर्फ फायदे का सौदा तो कोई सिर्फ एक तरफा प्यार में ही खुश रहता है औ... प्यार एक बहुत ही खूबसूरत शब्द है और उससे भी खूबसूरत होता है इस प्यार का एहसास लेकिन एक प्यार शब्द के भी कई अलग-अलग मायने होते हैं किसी के लिए प्यार उसकी दुनिया होता है तो किसी के लिए सिर्फ फायदे का सौदा तो कोई सिर्फ एक तरफा प्यार में ही खुश रहता है और किसी की दोस्ती बदलती है प्यार में। कुछ इसी तरह की है , पांच लोगों सांझी, सौम्य, अंश, श्वेता और ऋषि की यह कहानी जिस में प्यार, दोस्ती और बहुत सारे इमोशन आपको पढ़ने के लिए मिलेंगे। किसी का जुड़ेगा दिल और रिश्ता, तो किसी का टूटेगा दिल और मिलेगा किसी को प्यार में धोखा इसके अलावा और क्या-क्या होने वाला है इस रोमांचक कहानी में, ये जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी स्टोरी Love With Benefits...
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“वाह यार ऋषि! क्या पार्टी ऑर्गेनाइज़ की है! देखकर मज़ा आ गया।” ऋषि का दोस्त साहिल, ऋषि की पीठ पर हाथ मारते हुए बोला।
एक बड़ा सा पार्टी लॉन था जहाँ चारों तरफ़ डिस्को लाइट टिमटिमा रही थीं। एक कोने पर बार था और दूसरे कोने पर डिनर सेक्शन। पार्टी देखने में किसी अमीर घर की पार्टी लग रही थी, लेकिन यह पार्टी बारहवीं की परीक्षा पास करने की खुशी में थी। शहर के बड़े बिज़नेसमैन राजवीर खुराना के बेटे ऋषि खुराना ने अपनी सभी क्लासमेट्स को यह पार्टी दी थी।
सफ़ेद शर्ट, काले स्टाइलिश ब्लेज़र, हाथ में महँगी घड़ी, रीबॉक के जूते और बालों में वैक्स। गोरा, तीखे नैन-नक्श वाला ऋषि अपने महँगे स्टाइलिश चश्मे को एक हाथ से निकालते हुए, बड़े रौब के साथ बोला, “अच्छी पार्टी? अभी तुमने देखी ही कहाँ है! यह तो बस एक नमूना है। कॉलेज के एडमिशन कंप्लीट होने के बाद, जब मैं फ्रेशर्स पार्टी रखूँगा, तब देखना, वह होगी असली पार्टी।”
तभी साहिल के पीछे से एक सिम्पल टीशर्ट, जींस और स्पोर्ट्स शूज़ पहने, गेरूए रंग का गुड लुकिंग लड़का सौम्य आया। वह दिखने में ऋषि से भी ज़्यादा हैंडसम था।
सौम्य ऋषि की तरफ़ आता है और क्लब के चारों तरफ़ देखकर कहता है, “यार ऋषि! तू अपने पापा का कितना पैसा बर्बाद करता है, वह भी अपने तीन-चार दोस्तों को खुश करने के लिए?”
ऋषि अपनी भौंहें चढ़ाते हुए सौम्य के कंधे पर हाथ रखता है और चिढ़ते हुए कहता है, “देख सौम्य, पहली बात तो यह है कि मैं अपने किसी दोस्त को खुश करने के लिए पार्टी नहीं करता। मैं जो भी करता हूँ, सिर्फ़ खुद को खुश करने के लिए करता हूँ। और रही बात पैसा बर्बाद करने की, तो जब मेरे डैड को कोई प्रॉब्लम नहीं है, तो तू क्यों परेशान हो रहा है? और अब तू फिर से ज्ञान देने मत शुरू हो जाना। आज बहुत अच्छा मूड है मेरा, प्लीज़ अपनी बकवास से मेरा मूड खराब मत कर।”
सौम्य ऋषि से बड़ी ही गम्भीरता के साथ पूछता है, “अच्छा, वैसे यह पार्टी तूने बारहवीं पास होने की खुशी में दी है, तो यह तो बता, तेरे कितने परसेंट बने?”
ऋषि सौम्य की तरफ़ खीझते हुए देखता है और चिढ़कर कहता है, “देख, अगर तू स्कूल की तरह ही अपनी मॉनिटरगिरी यहाँ पार्टी में भी झाड़ने वाला है, तो मेरी बात ध्यान से सुन—अब स्कूल ख़त्म हो चुका है, अब हम कॉलेज में जाने वाले हैं, इसलिए अब तू हमारा मॉनिटर नहीं रहा, समझा! और रही बात परसेंटेज की, तो मैं तो 45% मार्क्स में भी पार्टी कर रहा हूँ, और तूने कौन सा 80% लाकर कोई तीर मार लिया है? खड़ा तो तू भी मेरी दी हुई पार्टी में ही है ना? सी नो डिफरेंस बिटवीन यू एंड मी।”
तभी ऋषि और ऋषि के पीछे खड़े साहिल और कई दोस्त सौम्य को लेकर मज़ाक उड़ाते हैं और हँसने लगते हैं।
सौम्य बिना कुछ बोले ही वहाँ से जाने लगता है। तभी अचानक पीछे से एक लड़की आती है। उसका गोरा बदन लॉन की डिम लाइट में भी चमक रहा था। उसकी आँखों में अलग सी चमक नज़र आ रही थी; तीखी नाक, गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठ, खुले बाल, फ़ुल मेकअप और सर पर चश्मा टिकाए हुए। उसने रेड क्रॉप टॉप और ब्लैक डॉट वाली मिनी स्कर्ट पहनी हुई थी; उसकी नाभि किसी भी लड़के को अपनी तरफ़ आकर्षित कर सकती थी। एक हाथ में हैंड पर्स लिए, दूसरे हाथ से सौम्य का हाथ पकड़ते हुए, वह पूछती है, “ओ हेलो! कहाँ जा रहे हो मिस्टर सौम्य? अभी तो पार्टी शुरू हुई है!”
सौम्य पीछे पलटकर देखता है और एक गहरी साँस भरकर कहता है, “सांझी, मेरा हाथ छोड़ो। मैं घर जा रहा हूँ। माय पार्टी इज़ ओवर।”
सांझी क्यूट सा मुँह बनाते हुए कहती है, “क्या यार सौम्य! मैं अभी आई हूँ और तुम चले जा रहे हो? मुझे पहले बता देते, तुम इतनी जल्दी चले जाओगे, तो मैं और थोड़ी जल्दी आने की कोशिश करती।”
सौम्य सांझी के हाथों से अपना हाथ छुड़ाते हुए और सांझी को ताना मारते हुए कहता है, “जाओ, तुम्हारा बॉयफ़्रेंड बहुत देर से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है। जाओ उससे मिल लो। और वैसे भी, मैंने बहुत पार्टी इन्जॉय कर ली।”
सांझी थोड़ा कन्फ़्यूज़ होते हुए सौम्य को देखती है और कहती है, “क्या हुआ? ऋषि ने कुछ कहा है क्या तुम्हें?”
सौम्य बोलने ही वाला था कि तभी ऋषि अपने दो-चार दोस्तों के साथ आता है जो ऋषि के पीछे-पीछे चल रहे थे। ऋषि सांझी के पास आकर रुकता है और उसे अपनी तरफ़ खींचकर गले लगाता है और सांझी के गालों पर किस करते हुए पूछता है, “कहाँ थी बेबी? कितनी देर लगा दी! अब से तुम्हारा वेट कर रहा हूँ।”
सांझी ऋषि के बालों को अपने हाथों से ठीक करते हुए कहती है, “कुछ नहीं बेबी। डैडी के साथ उनकी कार से आई थी, इसलिए थोड़ी देर हो गई।”
सौम्य अपने सामने सांझी और ऋषि को इस तरह देखकर थोड़ा चिढ़ता है और बेमन से मुस्कुराते हुए कहता है, “इन्जॉय गाइज़! मैं घर जा रहा हूँ। अब कॉलेज में मिलते हैं।”
सांझी एक बार फिर से सौम्य को रोकने ही वाली थी कि तभी ऋषि तुरंत बोलता है, “ओके बाय ब्रो! कॉलेज में मिलते हैं।”
सौम्य मुस्कुराता हुआ सांझी को देखता है और पार्टी लॉन से बाहर निकल आता है।
तभी ऋषि सांझी की कमर को कसकर पकड़ते हुए अपनी तरफ़ खींचता है और मुस्कुराते हुए कहता है, “यू लुकिंग सो हॉट! कम ऑन बेबी, लेट्स डांस।”
और सांझी को लेकर डांस फ़्लोर पर चला जाता है और दोनों डांस करने लगते हैं।
कुछ देर बाद ऋषि का फ़ोन वाइब्रेट करता है और ऋषि अपना फ़ोन निकालकर देखता है और सांझी को इशारे से कहता है, “मैं दो मिनट में आया।”
लाउड म्यूज़िक में सांझी ऋषि को थम्स अप दिखाती है और वहीं डांस फ़्लोर पर हिलते हुए डांस करने लगती है।
कुछ देर बाद एक वेटर एक ट्रे में वोडका शॉट और कुछ सॉफ़्ट ड्रिंक लेकर आता है और सबको सर्व करने लगता है। तभी सांझी डांस करते-करते एक वोडका शॉट उठाती है और एक ही बार में पी लेती है।
और तभी एक लड़का, जो सांझी के बगल में डांस कर रहा था, सांझी को देखते ही उसके पास जाता है, उसके हाथों को पकड़कर अपनी कमर पर रखवा लेता है और सांझी को आँख मारते हुए कहता है, “कम ऑन डूड, लेट्स डांस।”
वह लड़का सांझी को देखता है और हँसते हुए सांझी की कमर को कसकर पकड़ता है और मदहोश होकर डांस करने लगता है। सांझी भी बिलकुल नॉर्मल हिलते हुए डांस करती रहती है।
तभी पीछे से ऋषि आता है और सांझी को इस तरह किसी दूसरे लड़के के साथ देखकर आग-बबूला हो जाता है और डीजे बंद करवाकर, बिना कुछ पूछे ही, उस लड़के को कॉलर से पकड़ लेता है।
क्रमशः
तभी पीछे से ऋषि आया और सांझी को किसी दूसरे लड़के के साथ देखकर आग-बबूला हो गया। उसने डीजे बंद करवा दिया और बिना कुछ पूछे उस लड़के को कॉलर से पकड़कर मारना शुरू कर दिया।
तभी कुछ लोग दौड़कर वहाँ आये और बीच-बचाव करते हुए ऋषि को उस लड़के से दूर किया। सांझी ऋषि के पास गई और चिल्लाते हुए बोली, "ऋषि, तुम पागल हो क्या? बस वह मेरे साथ डांस ही तो कर रहा था, इसमें इतना गुस्सा होने वाली क्या बात थी? तुमने उसे जानवरों की तरह मारना क्यों शुरू कर दिया? इतनी छोटी-छोटी बात पर इतने हाइपर क्यों हो जाते हो तुम?"
ऋषि सांझी की तरफ गुस्से से देखते हुए बोला, "तुम्हें यह सब बड़ा नॉर्मल लग रहा है? तुम उसके साथ ऐसे चिपक कर डांस कर रही थी जैसे..." इतना बोलकर ऋषि चुप हो गया।
सांझी चिढ़ते हुए ऋषि की तरफ देखी और बोली, "चुप क्यों हो गए? बोलो ना। और इतना इनसिक्योर क्यों हो रहे हो? जब तुम दूसरी लड़कियों के साथ डांस करते हो तो मैं तुम्हें कुछ नहीं कहती, मेरे लिए वह सब नॉर्मल ही होता है, तो अब तुम्हारे लिए यह नॉर्मल क्यों नहीं है?"
ऋषि सांझी की बात का जवाब दिए बिना गुस्से में खड़ा रहा और चिल्लाते हुए सब से कहा, "पार्टी इज़ ओवर, गाइस!"
सारे लोग पार्टी लॉन से बाहर निकलने लगे। ऋषि ने एक बीयर की बोतल उठाई और एक ही साँस में उसे पी लिया।
सांझी ऋषि के पास ही खड़ी होकर उसे घूरने लगी और अपने मन में सोची, "पता नहीं ऋषि तुम कब यह सब छोड़ोगे! और आज मैं इसे नहीं रोकूंगी।"
बिना कुछ बोले सांझी ऋषि के बगल में आकर खड़ी हुई और उसने वोडका के तीन-चार शॉट्स एक के बाद एक पी लिए।
वह ऋषि के पास वाली शेयर पर चक्कर खाकर बैठ गई।
वहीं दूसरी तरफ, पीले रंग के सूट में, कानों में छोटी सी झुमकी, एक हाथ में पीली चूड़ियाँ और दूसरे हाथ में घड़ी पहने, एक सुंदर सी लड़की नहर में बह रहे पानी को शांति से निहार रही थी।
"यहाँ नहर के किनारे इतनी गुमसुम क्यों बैठी हो? क्या हुआ श्वेता? कहीं कूदने की तो नहीं सोच रही हो?" अंश ने श्वेता के कंधे पर हाथ रखकर उसे छेड़ते हुए पूछा।
"मैं मज़ाक के मूड में नहीं हूँ, अंश। जाओ यहाँ से, मुझे अभी बात नहीं करनी।" श्वेता ने बिना अंश की तरफ देखे कहा।
"मतलब थोड़े ज़्यादा नंबर क्या ले आई! मुझसे ऐसे बात करोगी?" अंश श्वेता के बगल में बैठते हुए, उसके कंधे से अपना कंधा टकराते हुए बोला।
"तुम ज़्यादा इतराओ मत। मुझे पता है तुम्हारे घरवालों ने तुम्हें शहर के कॉलेज में जाने की परमिशन दे दी है! लेकिन मेरे घरवाले तो मुझे यहाँ से बाहर, वो भी पढ़ने के लिए, कभी नहीं जाने देंगे!" श्वेता ने उदासी भरी आवाज़ में कहा।
"अरे, तुम परेशान क्यों हो रही हो, श्वेता? मैंने अपने बाबा से कहा है, वे तुम्हारे घर आयेंगे और तुम्हारे बाबा से बात कर लेंगे। मैं तुम्हें यहाँ अकेला छोड़कर नहीं जाऊँगा, पागली!" अंश ने श्वेता को साइड हग करते हुए कहा।
"सच में? काका मेरे बाबा से बात करने मेरे घर आयेंगे?" श्वेता ने उत्सुकता से अंश की तरफ देखते हुए पूछा।
"हाँ, मैंने बाबा से कहा था कि वे काका से बात कर लें। और देख लेना, जब बाबा काका से बात करेंगे तो वे उनकी बात बिल्कुल नहीं टालेंगे।" अंश ने श्वेता को दिलासा देते हुए कहा।
"भगवान करे ऐसा ही हो! और भगवान तेरे जैसा दोस्त सबको दे।" श्वेता खुश होकर अंश को गले लगा ली।
"लेकिन तेरे जैसी चुड़ैल भगवान मेरे सिवा और किसी को ना दे।" अंश हँसते हुए बोला।
"हाय राम रे! कितने बुरे हो तुम! मैं तुमसे बात ही नहीं करूँगी, जाओ।" श्वेता गुस्से से रूठते हुए बोली।
"देख लेना, तुम भी मेरे साथ कॉलेज ज़रूर चलोगी, समझी? और ऐसे परेशान होकर गुस्से में मत बैठा करो, बिल्कुल चुड़ैल लगती हो, चुड़ैल! वो पीपल के पेड़ वाली! हाहाहाहाहा।" अंश श्वेता को चिढ़ाता हुआ बोला।
"अंश, अगर तुम ना होते तो मैं क्या करती?" श्वेता अंश का हाथ पकड़कर मुस्कुराते हुए बोली।
"दीदी, जल्दी घर चलो, बाबा तुम्हें बुला रहे हैं और बहुत गुस्से में हैं।" पीछे से श्वेता की बहन शालिनी ने आवाज़ लगाई।
"बाबा बुला रहे हैं? वो भी इस समय? पंचायत से जल्दी आ गए क्या? चलो देखते हैं।" श्वेता ने अंश की तरफ देखते हुए कहा।
"लेकिन काका गुस्से में क्यों हैं? आखिर हुआ क्या?" अंश ने शालिनी की तरफ गंभीरता से देखते हुए पूछा।
"पता नहीं अंश भैया, बस बाबा जैसे ही घर आये वैसे ही पूछने लगे कि श्वेता कहाँ है?" शालिनी ने बताया।
अंश, श्वेता और शालिनी तीनों जल्दी-जल्दी घर आये और देखा कि श्वेता के बाबा अपनी आरामकुर्सी पर बैठे थे और अंश के बाबा पास वाली कुर्सी पर बैठकर कुछ कह रहे थे।
"तुमने तो कहा था काका बाबा से बात करने आयेंगे, लेकिन आज ही आ जाएंगे यह नहीं बताया था।" श्वेता ने अंश को घूरकर देखते हुए कहा।
"मुझे भी कहाँ पता था कि बाबा आज ही काका से बात करने आ जाएंगे।" अंश ने सफाई देते हुए कहा।
"नहीं सुरेश, तू हमारी बात नहीं समझ रहा है। हम श्वेता को इतनी दूर अकेले कैसे भेज दें? और तू तो जानता ही है कि शहर में कैसे-कैसे लोग रहते हैं, किसी का कोई भरोसा नहीं।" श्वेता के पिता रघुवीर ने अपने दोस्त सुरेश (अंश के पिता) से परेशान होकर कहा।
"देख रघु, हम जानते हैं तू श्वेता बिटिया को बहुत प्यार करता है और तुझे उसकी फिक्र है कि वह शहर में कहाँ और किसके घर में रहेगी, वो भी पहली बार गाँव से दूर। यही सब सोचकर ही तू श्वेता बिटिया को शहर वाले कॉलेज में नहीं जाने देना चाहता ना?" सुरेश ने रघु से सवालिया अंदाज़ में पूछा।
"हाँ, और ऐसे पहली बार गाँव से इतनी दूर दूसरे शहर में हम अपनी बिटिया को अकेली नहीं भेजेंगे। और वैसे भी इतना तो पढ़ लिया, और कौन सा श्वेता को हमारी पंचायत संभालनी है, जो पढ़ने के लिए शहर जाए।" रघुवीर ने सुरेश को घूरते हुए कहा।
"अरे, लेकिन श्वेता बिटिया अगर आगे पढ़ना चाहती है और कॉलेज जाना चाहती है तो तुम उसको काहे रोक रहे हो? और श्वेता अकेले थोड़ी ना शहर जाएगी, अंश भी तो उसके साथ जाएगा। और अंश की मौसी का घर कॉलेज के बहुत ही करीब है, दोनों वही रह लेंगे, किसी चीज़ की कोई परेशानी भी नहीं होगी।" सुरेश ने रघुवीर को समझाते हुए कहा।
"मुझे नहीं लगता बाबा काका की बात सुनेंगे इस बार, अंश मुझे तो बहुत डर लग रहा है कहीं बाबा गुस्से में कुछ उल्टा-सीधा ना बोल दें काका को।" श्वेता ने डरते हुए अंश का हाथ कस के पकड़ते हुए कहा।
"अरे श्वेता, बाबा काका इतने पक्के दोस्त हैं, बचपन से साथ रहे हैं, एक-दूसरे को बहुत अच्छे से समझते हैं। और अगर कुछ उल्टा-सीधा बोल भी देते हैं तो वो आपस में समझ लेंगे, तुम परेशान मत हो। और तुम देखना, हर बार की तरह मेरे बाबा तुम्हारे बाबा को मना ही लेंगे।" अंश ने श्वेता को दिलासा देते हुए कहा।
"लेकिन सुरेश, तू हमारी बात नहीं समझ रहा..." रघुवीर बोल ही रहा था कि तभी सुरेश उसे बीच में ही रोक देता है।
"बस, चुप कर अब तू!" सुरेश ने रघुवीर को अचानक से चुप कराते हुए कहा।
क्रमशः
"लेकिन सुरेश, तू हमारी बात नहीं समझ रहा।"—रघुवीर बोल ही रहा था कि तभी—
"बस चुप कर रघु!"—सुरेश ने रघुवीर को चुप करा दिया।
"देख रघु, तू मेरा दोस्त है और तुझे मालूम है कि मैं भी श्वेता को उतना ही प्यार करता हूँ जितना तू। इसलिए अगर तू श्वेता को नहीं जाने देगा तो मैं उसे अपनी जिम्मेदारी से पढ़ने के लिए भेज दूँगा। और तू ना परेशान मत हो, अंश है ना। वह श्वेता का पूरा ध्यान रखेगा। आखिर दोनों बचपन के दोस्त हैं और अगर दोनों साथ में पढ़ाई करेंगे, साथ में रहेंगे, तो छुट्टी में साथ ही घर भी आ जाया करेंगे। इसमें इतना कोई परेशान होने वाली बात नहीं है। इसलिए अब तू ज़्यादा अपना मुखिया वाला दिमाग मत लगा। श्वेता की खुशी के लिए उसे शहर वाले कॉलेज जाने दे।"—सुरेश ने रघु पर दोस्ती का हक़ जमाते हुए कहा।
कुछ देर बाद रघुवीर अपनी कुर्सी से उठा और श्वेता और अंश के पास आकर रुक गया।
श्वेता ने अपने बाबा को अपनी ओर आता देख डरकर अपने दोनों हाथों की मुट्ठी कस ली और आँखें नीचे कर लीं।
"श्वेता, क्या तुम सच में हम लोगों से दूर शहर जाकर पढ़ना चाहती हो?"—श्वेता के बाबा रघुवीर ने सख्त आवाज़ में पूछा।
श्वेता ने डरते-डरते अपने बाबा की ओर देखा और कहा—"हाँ बाबा, मैं और आगे पढ़ना चाहती हूँ।"
"जाओ फिर, अपना सामान बाँध लो। तुम शहर वाले कॉलेज में अपना एडमिशन करवा लो बिटिया।"—रघुवीर ने सख्त आवाज़ में श्वेता के सर पर हाथ रखते हुए कहा।
"थैंक्यू बाबा।"—श्वेता रघुवीर के गले लगकर रोते हुए बोली।
और श्वेता वहाँ से अपने कमरे में चली गई।
"देखा, मैंने कहा था ना, मेरे बाबा काका को मना ही लेंगे।"—अंश ने श्वेता के बगल में बैठते हुए कहा।
"हाँ अंश भैया, काका ने एक बार फिर अपनी बात बाबा से मनवा ही ली। अब तो तुम खुश हो ना दीदी!"—शालिनी ने श्वेता को पीछे से गले लगाते हुए कहा।
"हाँ, मैं खुश तो हूँ, लेकिन पता नहीं क्यों कुछ अजीब सा लग रहा है।"—श्वेता ने घबराते हुए अंश और शालिनी से कहा।
"तुम बेकार में परेशान मत हुआ करो। अब तो सब अच्छा-अच्छा ही होगा।"—अंश ने श्वेता के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा।
"शालिनी, बाहर जाओ। काका और बाबा को नाश्ता देकर आओ, वरना काका चले जाएँगे।"—श्वेता की माँ ने शालिनी को नाश्ते की ट्रे पकड़ाते हुए कहा।
शालिनी वहाँ से चली गई। तभी श्वेता की माँ श्वेता के पास आकर बैठी और अंश श्वेता के बगल से उठकर खड़ा हो गया।
"अरे तुम खड़े क्यों हो गए? आओ बैठो ना। वैसे भी मुझे सिर्फ़ श्वेता से नहीं, तुमसे भी बात करनी है।"—श्वेता की माँ ने अंश को देखते हुए कहा।
"मैं कहीं नहीं जा रहा था काकी, वो बस…" अंश बोल ही रहा था कि तभी श्वेता की माँ ने अंश को अपने बगल में बिठा लिया।
"देखो अंश, तुम बहुत समझदार हो और मैं तुम पर आँख बंद करके भरोसा करती हूँ। इसलिए अपनी श्वेता को तुम्हारे साथ इतनी दूर भेज रही हूँ। मैंने आज तक कभी अपनी लाडो को खुद से दूर नहीं किया और वो तुम्हारी मौसी जी के घर में रहेगी। तो तुम्हें मेरा एक काम करना होगा!"—श्वेता की माँ ने अंश को समझाते हुए कहा।
"जी काकी, बताइए क्या काम है? मैं ज़रूर करूँगा और आपका भरोसा नहीं टूटने दूँगा।"—अंश ने गंभीरता से श्वेता की माँ की ओर देखते हुए कहा।
"तुम्हें मेरी लाडो का पूरा ध्यान रखना होगा और उसे कभी वहाँ शहर में अकेले मत छोड़ना। क्योंकि मेरी श्वेता बहुत ही भोली है, कोई भी उसे अपने बहकावे में ला सकता है।"—श्वेता की माँ ने श्वेता के सर पर हाथ रखते हुए कहा।
"हाँ काकी, यह बात तो मैं भी जानता हूँ। मैं श्वेता का पूरा ध्यान रखूँगा और कभी इसे अकेला नहीं छोड़ूँगा। और अगर इस पागल लड़की को अकेला छोड़ा तो कोई भी इसे बड़ी ही आसानी से बुद्धू बना देगा।"—अंश ने श्वेता की तरफ़ देखकर हँसते हुए कहा।
"पागल नहीं हूँ मैं, समझे तुम! और माँ के सामने ज़्यादा मत इतराया करो। बहुत ज़्यादा बोलने लगे हो आजकल। और माँ, क्या आप भी इससे ये सब बोल रही हैं? मैं खुद अपना ख्याल रख लूँगी। फ़ालतू में इसे इतनी इम्पॉर्टेंस देकर उसे इतराने का मौक़ा मत दीजिए।"—श्वेता ने अंश को घूरते हुए अपनी माँ से शिकायती लहजे में बोला।
"मैं तो बोलूँगा, क्योंकि तू तो है ही पागल।"—अंश ने श्वेता को चिढ़ाते हुए बोला।
"अरे बस करो तुम लोग! अब बच्चे नहीं हो, बड़े हो गए हो। अगर ऐसे ही लड़ाई करते रहोगे तो कैसे चलेगा।"—श्वेता की माँ ने दोनों को समझाते हुए कहा।
"माँ, ये अंश मुझे ऐसे ही परेशान करता है और शुरुआत भी लड़ाई की यही करता है। मैं तो बस इसको जवाब देती हूँ।"—श्वेता ने अपनी माँ को सफ़ाई देते हुए कहा।
"अच्छा, लड़ाई में शुरुआत करता हूँ? ये तो वही बात हो गई, उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।"—अंश ने अपनी मुस्कराहट दबाते हुए श्वेता की ओर देख रहा था।
"तुम्हें तो मैं बताती हूँ, रुको।"—श्वेता अंश को घूरते हुए बोली।
श्वेता खड़ी हुई और अंश को दौड़ाने लगी। अंश दौड़ते-दौड़ते छत की तरफ़ भागने लगा। श्वेता भी उसके पीछे-पीछे छत पर गई और अचानक से अंश गायब हो गया। श्वेता छत पर जाकर अंश को इधर-उधर ढूँढ़ने लगी।
"कहाँ गायब हो गया ये अंश का बच्चा।"—श्वेता अंश को इधर-उधर देखते हुए बोली।
"अंश, अंश, कहाँ हो तुम, अंश? देखो, अगर तुम कोई मज़ाक कर रहे हो तो मैं तुम्हें बता दूँ, मेरा मज़ाक का कोई मूड नहीं है। और अगर तुम मुझे डराने की कोशिश कर रहे हो तो…" श्वेता बोल ही रही थी कि पीछे से अंश श्वेता को डराने के लिए चिल्लाया और श्वेता चौंक गई।
"हाहाहाहाहाहा! देखा, तुम कितनी डरपोक हो, डरपोक कहीं की!"—अंश ने हँसते हुए श्वेता से कहा।
श्वेता गुस्से से लाल-पीली हो गई।
"रुक जा अंश के बच्चे, मैं अभी तुझे मज़ा चखाती हूँ!"—श्वेता दौड़कर अंश को मारने ही चलती कि तभी श्वेता का पैर फिसला और वह अंश के ऊपर गिर गई।
श्वेता के बिखरे हुए बाल अंश के मुँह पर आ गए। अंश श्वेता की आँखों में देख रहा था। अंश श्वेता के बालों को समेटते हुए श्वेता के गालों को छुआ। जैसे ही श्वेता अंश की आँखों में देखी, श्वेता अपनी नज़रें चुरा ली और जल्दी से उठने की कोशिश करने लगी, लेकिन तभी श्वेता की चीख निकली और श्वेता उठ नहीं पाई।
"क्या हुआ? तुम चिल्लाई क्यों श्वेता?"—अंश ने उठते हुए श्वेता से पूछा।
क्रमशः
श्वेता के चीखने पर अंश ने उठते हुए पूछा, "क्या हुआ? तुम चिल्लाई क्यों श्वेता?"
"आह्हह अंश! मेरा पैर!" श्वेता ने अपना पैर पकड़ते हुए कहा।
अंश ने श्वेता का पैर अपने हाथ में पकड़ते हुए कहा, "दिखाओ मुझे! दिखाओ! रुको, मुझे देखने दो एक बार!"
श्वेता ने अपनी एड़ी की तरफ इशारा करते हुए कहा, "यहाँ पर दर्द हो रहा है। शायद मोच आ गई है।"
अंश ने श्वेता को उठाते हुए कहा, "चलो नीचे चलो। काकी से बताकर दवा लगवाते हैं इसमें।"
"आह्हह! अंश! मुझसे मेरा पैर जमीन पर नहीं रखा जा रहा। बहुत दर्द हो रहा है! तुम माँ को यहीं ऊपर बुला लाओ ना।" श्वेता ने अपना पैर पकड़ते हुए कहा।
"मैं काकी को ऊपर बुलाकर नहीं ला रहा। तुम ही नीचे चलोगी।" इतना बोलकर अंश श्वेता को गोद में उठा लेता है और सीढ़ियाँ उतरने लगता है।
"अरे अंश! ये क्या कर रहे हो? नीचे उतारो मुझे! तुम मुझे गिरा दोगे और खुद भी गिर जाओगे! इतनी सारी सीढ़ियाँ कैसे उतरोगे मुझे लेकर? उतारो मुझे, मैं चलने की कोशिश करती हूँ।" श्वेता ने एक ही साँस में कहा।
"तुम दो मिनट अगर चुप रहोगी तो मैं जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ उतर लूँगा। और अभी तक तो मैंने नहीं सोचा था, मगर अब अगर तुमने कुछ भी बोला तो मैं तुम्हें ज़रूर गिरा दूँगा।" अंश ने श्वेता को धमकाते हुए चुप करा दिया।
श्वेता चुप हो गई और कुछ नहीं बोली। अंश श्वेता को उसके कमरे में लाया और बिस्तर पर बिठा दिया।
तभी शालिनी वहाँ आई और पूछा, "क्या हुआ भैया?"
अंश ने श्वेता को घूरते हुए शालिनी से कहा, "कुछ नहीं। यह तुम्हारी दीदी है ना, जो न करवाएँ कम है। पैर में चोट लगाकर बैठ गई।"
उधर, सांझी वही ऋषि के पास वाली चेयर पर चक्कर खाकर बैठ गई।
ऋषि ने सांझी को संभाला और सांझी का हाथ पकड़कर उसे डाँटते हुए कहा, "पागल हो गई हो क्या सांझी? ये क्या कर रही हो? तुम्हें आदत नहीं है तो इतना क्यों ड्रिंक कर रही हो?"
"तुमसे मतलब? मैं कुछ भी करूँ, तुम्हें उससे क्या? तुम कुछ भी करने से पहले मुझसे पूछते हो क्या? नहीं ना! यहाँ तक कि तुम तो मेरी कोई बात भी नहीं सुनते। तो मैं तुम्हारी बात क्यों सुनूँ?" सांझी ने अपना हाथ ऋषि के हाथों से छुड़ाते हुए गुस्से से ऋषि को घूरते हुए कहा।
ऋषि ने एक बार फिर सांझी का हाथ पकड़ा और कहा, "उठो, चलो! मैं तुम्हें घर ड्रॉप कर देता हूँ।"
"कोई ज़रूरत नहीं है। मैं खुद चली जाऊँगी! तुम्हें जहाँ जाना है, जाओ। मैं अभी घर नहीं जा रही।" सांझी ने अपना हाथ ऋषि के हाथ से छुड़ाते हुए कहा।
सांझी ने वेटर से एक और वोडका माँगी। लेकिन ऋषि ने वेटर को मना कर दिया। सांझी ने बीयर की एक बोतल उठाकर पीते हुए वहाँ से बाहर निकल आई। ऋषि भी उसके पीछे-पीछे आया।
ऋषि ने सांझी का हाथ पकड़ा, सांझी के हाथ से बीयर की बोतल छीन ली और कहा, "चलो अब बस भी करो, बहुत हुआ सांझी।"
"अभी तो मैंने शुरु किया है और तुम मुझे रोक रहे हो! लाओ मुझे मेरी बीयर की बोतल वापस करो।" सांझी ने ऋषि के हाथ से बोतल लेने की कोशिश करते हुए कहा।
ऋषि ने बीयर की बोतल जमीन पर पटककर तोड़ दी।
सांझी गुस्से से ऋषि की तरफ देखती है और ऋषि का कॉलर पकड़कर उसे अपनी तरफ खींचकर गुस्से से कहती है, "क्या समझते हो तुम खुद को? पहले तुमने सौम्य को पता नहीं क्या कहा, वह बेचारा पार्टी छोड़कर चला गया। उसके बाद तुमने बिना कुछ सोचे-समझे उस लड़के को पीट डाला, पूरी पार्टी खराब कर दी और अब यहाँ मुझ पर हक़ जता रहे हो?"
ऋषि सांझी को इस तरह गुस्से में देखकर मुस्कुराने लगा।
सांझी झल्लाते हुए कहती है, "सीरियसली ऋषि, तुम मुस्कुरा रहे हो?"
"अरे, मैं तो बस तुम्हें यूँ गुस्से में देखकर मुस्कुरा रहा हूँ। पता है बेबी, तुम गुस्से में कितनी हॉट लगती हो! मन करता है तुम्हें खा जाऊँ।" ऋषि सांझी को अपने और करीब खींचता हुआ कहता है।
"पता है ऋषि, तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है? तुम इतने ज़्यादा सेल्फिश हो कि तुम्हें अपने अलावा और कोई दिखता ही नहीं है। तुम्हारी वजह से कितने लोग हर्ट होते हैं, तुम्हें कोई आइडिया है इस बात का?" सांझी खुद को ऋषि से दूर करते हुए गुस्से से कहती है।
"देखो बेबी, मुझे बाकी का तो नहीं पता और मुझे बाकी लोगों से फ़र्क़ भी नहीं पड़ता। बस मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ, क्या मैंने तुम्हें भी हर्ट किया आज? बोलो ना बेबी?" ऋषि ने सांझी का हाथ पकड़ते हुए कहा।
"Yes, of course I'm hurt!" सांझी ने अपना हाथ ऋषि के हाथों से छुड़ाते हुए कहा और लड़खड़ाते हुए कदमों से वहाँ से जाने लगी।
ऋषि दौड़कर सांझी के सामने आया और अपने घुटनों के बल बैठ गया। अपने हाथ से कानों को पकड़ते हुए कहता है, "आई एम सॉरी बेबी! आज के बाद मैं कभी ऐसी हरकत नहीं करूँगा! मैं तुम्हें कभी हर्ट नहीं करना चाहता था, यह बात तुम भी बहुत अच्छी तरह से जानती हो। यू नो ना आई लव यू सो मच और मैं तुम्हें किसी और की बाहों में नहीं देख सकता, इस लिए शायद मैंने अपना कंट्रोल खो दिया था। आइंदा से मैं ऐसा कभी नहीं करूँगा। प्लीज बेबी, मान जाओ।"
सांझी बहुत गौर से ऋषि की तरफ देखती है और ऋषि को इस तरह घुटनों पर बैठा देखकर सांझी का गुस्सा पिघलने लगता है। सांझी ऋषि को उठाते हुए कहती है, "प्रॉमिस करो आज के बाद ऐसी हरकत कभी नहीं करोगे!"
ऋषि सांझी को गले लगाते हुए कहता है, "आई प्रॉमिस बेबी, मैं आज के बाद कभी ऐसी कोई हरकत नहीं करूँगा जिससे तुम हर्ट हो। लेकिन तुम्हें भी मुझसे ये प्रॉमिस करना होगा।"
"मुझे कैसा प्रॉमिस करना है?" सांझी ने ऋषि की तरफ देखते हुए सवालिया अंदाज़ में पूछा।
"आज के बाद तुम कभी भी इतनी ड्रिंक नहीं करोगी, वह भी गुस्से में, ओके।" ऋषि सांझी को समझाते हुए बोला।
"ठीक है, प्रॉमिस करती हूँ। लेकिन अगर तुमने अपना प्रॉमिस तोड़ा, तो मैं भी अपना प्रॉमिस तोड़ दूँगी। It's that clear?" सांझी ने थोड़ा इठलाते हुए कहा।
"ओके मेरी जान! चलो अब जल्दी से एक किस करो अपने बेबी को।" ऋषि ने सांझी की कमर पकड़कर उसे अपने करीब लाते हुए कहा।
"ओह! तुम भी ना ऋषि! हर वक़्त यही सब सूझता है तुम्हें! चलो छोड़ो मुझे, अब चलो घर चलते हैं!" सांझी ने थोड़ा शर्माते हुए कहा।
"अरे अरे! मेरी बेटू को शर्म आ रही है मुझसे?" ऋषि ने मुस्कुराते हुए सांझी को अपनी गोद में उठा लिया।
"अरे क्या कर रहे हो ऋषि? उतारो मुझे।" सांझी ने ऋषि की पीठ थपथपाते हुए कहा।
थोड़ी दूर पर एक सोफ़े पर ऋषि सांझी को बिठाता है और उसके बगल में खुद भी बैठकर कहता है, "अच्छा ये बताओ, मेरी सांझी शर्माने कब से लगी?"
"मैं कहाँ शर्मा रही हूँ।" सांझी ने अपने खुले बालों में क्लिप लगाते हुए जवाब दिया।
"अगर शर्मा नहीं रही हो तो मुझसे नज़रें क्यों चुरा रही हो? मेरी आँखों में देखो मेरी जान।" ऋषि ने सांझी का मुँह अपनी तरफ़ घुमाते हुए कहा।
सांझी ऋषि की आँखों में देखती है और एक बार फिर नज़रें चुराने लगती है। तभी ऋषि अपने दोनों हाथों से सांझी के गालों को सहलाता हुआ पकड़ता है। सांझी अपनी आँखें बंद कर लेती है और ऋषि सांझी के करीब जाता है। ऋषि को सांझी की साँसों की आवाज़ और सांझी की धड़कनें साफ़ महसूस हो रही थीं। सांझी ने ऋषि को यूँ अपने इतने करीब महसूस करके अपने हाथ की मुट्ठी कसकर बाँध ली.....
क्रमशः
सांझी ने ऋषि की आँखों में देखा और फिर नज़रें चुरा लीं। तभी ऋषि ने अपने दोनों हाथों से सांझी के गालों को सहलाते हुए पकड़ लिया।
सांझी ने अपनी आँखें बंद कर लीं। ऋषि सांझी के करीब गया। उसे सांझी की साँसों की आवाज़ और धड़कनें साफ़ महसूस हो रही थीं।
सांझी ने ऋषि को इतने करीब पाकर अपने हाथ की मुट्ठी कस ली। ऋषि ने सांझी के होठों पर अपने होठ रख दिए। सांझी कसमसाई और ऋषि को अपनी बाहों में भर लिया।
तभी अचानक वहाँ कुछ गिरने की आवाज़ आई। सांझी चौंक गई और ऋषि को खुद से दूर कर दिया। उसने पास में रखी बेंच से अपना पर्स उठाया, खड़ी हुई और अपनी ड्रेस ठीक करने लगी।
तभी ऋषि पीछे से सांझी को गले लगाकर उसके कान के पास धीरे से बोला, "क्या हुआ बेबी ऐसे...?"
सांझी ने ऋषि के मुँह पर उँगली रखते हुए कहा, "चलो अब घर चलते हैं ऋषि।"
ऋषि सांझी को देखकर मुस्कुराया और उसका हाथ कसकर पकड़कर कार की तरफ़ गया। कार का दरवाज़ा खोला और सांझी कार में बैठ गई। ऋषि सांझी को उसके घर छोड़ आया।
"ठीक से जाना। अब कॉलेज में मिलते हैं, बाय टेक केयर!" कार के शीशे से झुककर सांझी ने ऋषि से कहा।
"ओके बाय बेबी, लव यू।" ऋषि ने मुस्कुराते हुए सांझी को अलविदा कहा।
उधर, दूसरी तरफ़...
श्वेता को अंश की गोद में देखकर शालिनी ने पूछा, "क्या हुआ भैया?"
"कुछ नहीं। यह तुम्हारी दीदी है ना, जो न करवाएँ कम है। पैर में चोट लगने से बैठ गई है।" अंश ने श्वेता को घूरते हुए कहा।
"हे भगवान! कहीं बाबा ने तो नहीं देखा आप लोगों को?" शालिनी घबराकर बोली।
"नहीं, काका ने नहीं देखा है। क्यों, क्या हुआ?" अंश थोड़ा कन्फ़्यूज़ होकर पूछा।
"अरे भैया आप भी ना! ऐसे तो दीदी को बुद्धू-बुद्धू बोलते रहते हो, लेकिन दीदी से ज़्यादा बुद्धू तो आप हो!" शालिनी ने श्वेता के पैर पर दवा लगाते हुए कहा।
"क्या मतलब है तुम्हारा शालिनी!" अंश ने अपनी आवाज़ ऊँची करते हुए पूछा।
"अरे भैया, मेरा कहने का मतलब यह है कि अगर बाबा ने आपको और दीदी को इस हालत में देख लिया होता, तो वह गुस्सा करते और कहते, 'अभी घर में तो तुमसे इनका ख्याल नहीं रखा जा रहा, वहाँ इतनी दूर कैसे रखेंगे?' और बस फिर दीदी के सारे सपने यहीं धरे के धरे रह जाते।" शालिनी ने अंश को समझाया।
"मतलब अच्छा ही हुआ कि हम लोग सीधे कमरे में आ गए हैं। अगर बाहर रुकते तो फँस जाते?" अंश पास में रखी कुर्सी पर बैठते हुए बोला।
"यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है। अगर तुम मुझे डराते नहीं तो मैं तुम्हें मारने के लिए दौड़ती भी नहीं, और ना ही गिरती, और ना ही मेरे पैर में चोट लगती। देखो मुझे कितना काम है, पैकिंग करनी है, डॉक्यूमेंट्स रखने हैं। मैं वैसे ही चोट लगे पैर में यह सब कैसे कर पाऊँगी?" श्वेता ने उदास होकर कहा।
"अरे दीदी, तुम परेशान मत हो। मैं तुम्हारे सारे काम में तुम्हारी पूरी मदद करूँगी। तुम मुझे बस बताती जाओ क्या-क्या करना है, ठीक है।" शालिनी श्वेता के बगल में बैठते हुए बोली।
"यह बताओ, तुम दोनों काकी को यह बात बताना है या नहीं?" अंश ने श्वेता और शालिनी से पूछा।
"क्या बात हो रही है यहाँ पर? किसको क्या नहीं बताना है?" पीछे से आती हुई आवाज़ सुनकर श्वेता, शालिनी और अंश अपनी-अपनी जगह पर खड़े हो गए।
"कुछ नहीं काका, हम लोग ऐसे ही बात कर रहे थे। मैं श्वेता की पैकिंग में उसकी मदद करने की बात कर रहा था।" अंश डरते-डरते बोला।
"बाबा, वह दीदी को अपना क्या-क्या सामान रखना है, वही बात कर रहे थे हम लोग, और कुछ नहीं।" शालिनी ने बाबा की तरफ़ देखते हुए कहा।
"अजी आप यहाँ क्या कर रहे हैं? आप तो सुरेश भाई साहब के साथ बाहर जा रहे थे ना।" श्वेता की माँ ने अपने पति रघुवीर से कहा।
"बस जा ही रहा था कि तभी बच्चों की आवाज़ सुनकर इधर आ गया।" रघुवीर ने सख्त आवाज़ में कहा।
"जाइए सुरेश भाई साहब आपको बुला रहे हैं। मैं यहाँ पर बच्चों को देख लूँगी।" रंजना कमरे में आते हुए बोली।
रघुवीर वहाँ से चला गया।
"अरे तुम लोग खड़े क्यों हो? बैठो ना। क्या कोई भूत देख लिया जो ऐसे मूर्ति बनकर खड़े हो?" रंजना कमरे में आकर श्वेता और शालिनी के पास बैठते हुए बोली।
"वह तो हम लोग बस ऐसे ही खड़े हो गए थे, अचानक से बाबा की आवाज़ सुनकर।" श्वेता अपनी माँ के बगल में बैठते हुए बोली।
तभी शालिनी अपनी माँ के गले लगकर बोली, "बहुत सही टाइम पर आई हो माँ, बचा लिया हम लोगों को बाबा से।"
"काहे तुम लोग ऐसा क्या कर रहे थे जो बाबा को देखकर डर गए?" रंजना ने शालिनी और श्वेता को घूरते हुए पूछा।
"कुछ नहीं काकी, यह आपकी लाडली है, जो ना कराए कम है।" अंश ने श्वेता की तरफ़ घूरते हुए कहा। शालिनी ने अंश को इशारों से कुछ भी ना बताने के लिए मना किया।
"क्यों? अब क्या कर दिया मेरी लाडो ने जो तुम दोनों उसे ऐसे घूर रहे हो?" रंजना ने श्वेता के सर पर हाथ फेरते हुए कहा।
"कुछ नहीं माँ, वह अंश भैया ऐसे ही मज़ाक कर रहे हैं।" शालिनी ने बात को संभालते हुए कहा।
"नहीं माँ, यह शालिनी झूठ बोल रही है। मेरे पैर में चोट लग गई है, बहुत दर्द भी हो रहा है। हम यही बात डिस्कस कर रहे थे कि आपको अपनी चोट के बारे में बताएँ या ना बताएँ, तभी अचानक से बाबा आ गए और पूछने लगे किसको क्या नहीं बताना है, तभी हम लोग डर गए थे।" श्वेता ने सारी बातें एक ही साँस में अपनी माँ को बता दीं।
शालिनी ने अपना सर पकड़ते हुए कहा, "हाँ माँ, मैंने कहा कि अगर बाबा को पता चल गया कि दीदी के पैर में चोट लग गई है, तो गुस्सा करेंगे, इसीलिए मैं इन्हें मना रही थी।"
"खैर अब जो हो गया सो हो गया। अब क्या किया जा सकता है? काकी अब आप यह बताइए, यह जो चोट श्वेता को लगी है, कब तक ठीक होगी?" अंश ने रंजना से पूछा।
"तुम लोग हमेशा बच्चे ही रहोगे, कभी बड़े होना ही नहीं चाहते हो। अगर चोट लगी है तो बाबा से छुपा क्यों रहे हो? जाओ उन्हें बताओ और डॉक्टर के पास जाकर दवा ले आओ, वरना कहीं दर्द ज़्यादा बढ़ गया तो और आफ़त हो जाएगी।" रंजना थोड़ा गुस्सा होते हुए बोली।
तीनों (श्वेता, शालिनी और अंश) सहमे हुए रंजना को देखने लगे।
"तुम लोग जा रहे हो अपने बाबा से बताने या मैं बताऊँ?" रंजना खड़ी होते हुए बोली।
"अरे माँ रुको, मेरी बात तो सुनो।" शालिनी ने रंजना को रोकते हुए कहा।
"अरे काकी क्या कर रही हैं आप? इधर आइए, यहाँ बैठिये आप पहले और मेरी बात सुन लीजिये, उसके बाद काका के पास जाइएगा।" अंश ने रंजना का हाथ पकड़कर उसे श्वेता के बगल में बिठाया।
क्रमशः
ऋषि सांझी को उसके घर छोड़ आया और अपने घर चला गया। घर पहुँचकर ऋषि स्नान आदि करके अपने बिस्तर पर बैठ गया और सांझी के साथ बिताए रोमांटिक पलों को याद करते हुए मुस्कुराने लगा। तभी ऋषि ने झट से अपना फ़ोन उठाया और सांझी को कॉल किया।
सांझी ने कॉल रिसीव की और कहा, "हेलो बेबी, पहुँच गए घर?"
ऋषि, "हाँ, अभी-अभी आया हूँ। बस थोड़ी देर हुई। पता है बेबी, अभी मैं तुम्हें ही याद कर रहा था।"
सांझी, "अभी कुछ देर पहले तक तो मैं तुम्हारे साथ थी। इतनी जल्दी तुम मुझे याद भी करने लगे, क्या बात है?"
ऋषि, "मन कर रहा है अभी तुम्हारे घर आ जाऊँ और तुम्हारे साथ रहूँ। आज तो मुझे अपने कमरे में नींद ही नहीं आएगी।"
सांझी, थोड़ा कंजूस होते हुए, "क्यों? तुम्हें नींद क्यों नहीं आएगी? हैंगओवर उतारना है तो जाओ नींबू पानी पी लो, फिर तुम्हें नींद आ जाएगी।"
ऋषि, "यह वाला हैंगओवर तो नींबू पानी से उतर जाएगा, लेकिन जो तुम्हारा हैंगओवर मुझ पर चढ़ गया है, उसे मैं कैसे उतारूँ? मेरी जान, मैं तुमसे मिलने आ रहा हूँ। अभी तुम्हारे घर।"
सांझी, "अरे नहीं बेबी, सुनो, मेरी बात सुनो। तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे। तुम सच में बिल्कुल पागल हो। चुपचाप सो जाओ। टाइम देखो, कितनी देर हो गई है।"
ऋषि, "हाँ बेबी, मैं पागल ही हो गया हूँ। मुझे बस अभी तुमसे मिलना है और मैं कुछ नहीं जानता। मैं आ रहा हूँ।"
सांझी, "नहीं नहीं, मेरी बात सुनो ऋषि। अभी तुम यहाँ नहीं आओगे, समझे तुम? मैं तुमसे कल मिलती हूँ, ओके! अगर अभी किसी ने देख लिया तो फालतू में बवाल हो जाएगा। इसलिए तुम अभी चुपचाप सो जाओ। बस समझ लो - इट्स माय ऑर्डर।"
ऋषि, "अच्छा अच्छा, ठीक है। मैं नहीं आ रहा, बट प्रॉमिस करो कल तुम पक्का मुझसे मिलोगी। और कल मैं कोई बहाना नहीं सुनूँगा। अगर तुम मुझसे मिलने नहीं आई तो मैं पक्का तुम्हारे घर आ जाऊँगा।"
सांझी, "हाँ बेबी, आई प्रॉमिस। कल हम जरूर मिलेंगे, ओके? और कहाँ मिलना है, मैं तुम्हें लोकेशन सेंड कर दूँगी। चलो अब फोन रखो और सो जाओ क्योंकि मुझे नींद आ रही है।"
ऋषि, "ओके मेरी जान। कल मिलते हैं, और कल मुझे लॉन्ग वाली किस चाहिए।"
सांझी, "मैं मारूंगी तुमको! कल अगर तुमने किस का नाम भी लिया तो!"
ऋषि, "हाँ तो ठीक है ना, तुम मार लेना बेबी। मुझे जितना मारना है, लेकिन किस तो मैं करूँगा।"
सांझी, "चलो अच्छा, फोन रखो अब। कल की कल देखेंगे। बाय, गुड नाइट।"
ऋषि, "गुड नाइट। लव यू बेबी।"
सांझी ने फोन काट दिया और मुस्कुराते हुए सोची, "मेरा बेबी तो मेरा एडिक्ट होता जा रहा है। चलो अच्छी ही बात है। अब वह मेरे अलावा किसी और लड़की को देखने की सोचेगा भी नहीं।"
सुबह का अलार्म बजा। सांझी उठकर अलार्म बंद किया और अपने कमरे से बाहर निकल कर आई।
"गुड मॉर्निंग डैड," सांझी ने अपने डैड को पीछे से गले लगाते हुए कहा।
"गुड मॉर्निंग माय प्रिंसेस। इतनी जल्दी उठ गई? कहीं जाना है क्या?" सांझी के डैड (अर्णव पाठक, जो कि एक पॉलिटिशियन हैं) ने सांझी से पूछा।
"हाँ डैड, वो आज अपने फ़्रेंड्स के साथ कॉलेज के एडमिशन के लिए डॉक्यूमेंट वेरीफ़ाई करवाने जाना है।" सांझी ने डाइनिंग टेबल से जूस का गिलास उठाते हुए कहा।
"पहले तो ठीक से बैठकर ब्रेकफ़ास्ट कर लो सांझी। और आज मैं थोड़े काम से बाहर जा रहा हूँ। शायद आते-आते लेट हो जाऊँगा। हो सकता है कल ही आऊँ। तुम्हें जहाँ जाना है, दूसरी वाली कार से चली जाना। मैंने ड्राइवर को बोल दिया है, वह तुम्हें लेकर चला जाएगा जहाँ भी तुम कहोगी।" अर्णव चेयर से खड़े होते हुए सांझी से बोले।
"ओके डैड, मैं ड्राइवर अंकल के साथ चली जाऊँगी। आप आराम से अपने काम पर फ़ोकस करिए।" सांझी ने अपने सैंडविच का एक बाइट लेते हुए कहा।
"हे प्रिंसेस, इसे रख लो। अगर बोर होना तो जाकर शॉपिंग कर लेना, ओके।" अपना डेबिट कार्ड सांझी की तरफ़ देते हुए अर्णव ने कहा।
"थैंक यू सो मच डैड। लव यू सो सो सो सो मच!" सांझी ने डेबिट कार्ड हाथ में लेकर खुशी से उछलते हुए कहा।
"अच्छा बेटा, अब मैं निकलता हूँ। और अगर कोई प्रॉब्लम आए कॉलेज के एडमिशन में तो परेशान बिल्कुल मत होना। मेरी उनसे बात करवा देना, ओके।" अर्णव ने सांझी के सर पर हाथ रखते हुए कहा।
"अरे डैड, उसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ती। आपका तो नाम सुनकर ही सारे काम हो जाते हैं। आपको कॉल करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। यू डोंट वरी, आई कैन हैंडल इट।" सांझी ने बड़े ही प्राउड के साथ कहा।
"मेरा शेर बच्चा, कितना समझदार है।" अर्णव ने सांझी के माथे को चूमते हुए कहा।
"अब मैं निकलता हूँ, वरना मेरी फ़्लाइट मिस हो जाएगी।" अपना फ़ोन अपने कुर्ते की जेब में रखते हुए अर्णव ने सांझी से कहा।
"ओके डैड। बेस्ट ऑफ़ लक। बाय।" सांझी ने मुस्कुराते हुए अपने डैड से कहा।
ब्रेकफ़ास्ट ख़त्म करके सांझी अपने रूम में आई और तैयार होकर घर से बाहर निकलकर कार में बैठते हुए ड्राइवर अंकल से बोली, "ड्राइवर अंकल, चलिए।"
"ओके बेबी जी!" ड्राइवर ने सांझी की बात पर सर हिलाते हुए कहा।
तभी सांझी का फ़ोन बजा। सांझी ने फ़ोन रिसीव किया।
सांझी, "हेलो, क्या हुआ ऋषि? इस टाइम कॉल? इतनी जल्दी उठ गए क्या तुम?"
ऋषि, "उठ क्या गया? मैं तो सारी रात सोया ही नहीं बेबी। बस तुम्हें ही याद कर रहा था मेरी जान। अब तुम ये बताओ ना हम कहाँ मिलेंगे आज?"
सांझी, "अच्छा, चलो तुम्हें थोड़ी देर में लोकेशन सेंड करती हूँ, ओके।"
ऋषि, "ओके बेबी। जब तक मैं रेडी हो जाता हूँ और रेडी होकर तुम्हें कॉल करता हूँ।"
सांझी, "ओके, बाय।"
तभी कार रुकी।
"कार क्यों रोक दी ड्राइवर अंकल?" सांझी ने ड्राइवर से पूछा।
"बेबी जी, वो आपने जो लोकेशन दी थी, वो आ गई।" ड्राइवर ने सांझी को जवाब दिया।
"ओह अच्छा, मैंने तो देखा ही नहीं।" सांझी ने कार का दरवाज़ा खोलते हुए कहा।
"आप यहीं रुकिए अंकल, मैं थोड़ी देर में आती हूँ।" सांझी ने कार का दरवाज़ा बंद किया और एक घर की तरफ़ चल दी।
सांझी ने डोर बेल बजाई।
एक 14-15 साल की लड़की, व्हाइट जींस, पिंक टॉप, दो चोटी, बड़ी-बड़ी आँखें, गोरी-चीटी लड़की, माथे पर रोली का टीका और वो दिखने में बड़ी प्यारी सी लग रही थी।
"जी, आप कौन हैं? आपको किससे मिलना है? मम्मी तो ऑफिस चली गई हैं। शाम को ही आएंगी।" उस प्यारी सी बच्ची ने सांझी को देखकर बड़ी मासूमियत से पूछा।
"हैलो, मेरा नाम सांझी है। मैं आपकी मम्मी से मिलने नहीं आई हूँ।" सांझी ने बड़े ही प्यार से उस लड़की से कहा।
क्रमशः
7
“हैलो, मेरा नाम सांझी है। मैं आपकी मम्मा से मिलने नहीं आई हूँ।” सांझी ने उस लड़की से बड़े प्यार से कहा।
“अच्छा, तो फिर आपको किससे मिलना है?” उस लड़की ने बड़ी मासूमियत से पूछा।
“मैं सौम्य की दोस्त हूँ। उसी से मिलने आई हूँ। कहाँ हैं सौम्य? और आपका क्या नाम है?” सांझी ने भी बड़े प्यार से उस लड़की के गालों को थपथपाते हुए पूछा।
“माय नेम इज कनक शर्मा। और सौम्य भैया अंदर कमरे में हैं। आप रुकिए, मैं भैया को बुलाकर लाती हूँ।” कनक ने बड़े प्यार से सांझी को बैठाते हुए कहा।
“तुम यहां क्या कर रही हो, सांझी?” पीछे से आते हुए सौम्य ने सांझी से कहा।
“सरप्राइज़! सरप्राइज़! कैसे हो, सौम्य? क्या कर रहे थे? और कैसा लगा तुम्हें मेरा सरप्राइज़?” सांझी ने बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए सौम्य की तरफ देखकर कहा।
“कनक, जाओ अंदर अपना होमवर्क कंप्लीट करो। मैं अभी आकर थोड़ी देर में चेक करता हूँ।” सौम्य ने कनक को कमरे की तरफ इशारा करते हुए कहा।
“ओके, भैया।” कनक बिना कोई सवाल किए अंदर कमरे में चली गई।
“मैंने तुमसे पूछा, तुम यहां मेरे घर में क्या कर रही हो?” सौम्य ने सांझी का हाथ पकड़कर उसे दरवाजे तक लाते हुए कहा।
“क्या कर रही हूँ से तुम्हारा क्या मतलब है? तुम्हें मेरे साथ चलना है। और क्या यार, सौम्य! एक तो मैं पहली बार तुम्हारे घर आई हूँ, ऊपर से तुम ऐसा बात कर रहे हो जैसे मैं तुम्हारी दोस्त न होकर तुम्हारी कोई दुश्मन हूँ।” सांझी ने अपना हाथ सौम्य के हाथों से छुड़वाकर, थोड़ा नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा।
“नहीं, सांझी। तुम मेरी बात नहीं समझ रही हो। तुम इस तरह से मेरे घर नहीं आ सकती। हम मिडिल क्लास लोग हैं और अगर तुम यहां आओगी तो मेरे मोहल्ले वाले हज़ार तरह की बातें करेंगे और मैं यह सब नहीं चाहता, इसलिए तुम अभी जाओ। हम कॉलेज में मिलकर बात करेंगे, या तुम मुझे कॉल कर लेना, बट अभी तुम यहां से जाओ।” सौम्य ने सांझी को समझाते हुए कहा।
“मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता तुम्हारे मोहल्ले वाले क्या बोलते हैं। मुझे बस अपने दोस्त से मिलना था, तो मैं आ गई। मिलना क्या, मैं तो तुम्हें लेने आई थी। चलो मेरे साथ।” सांझी ने बिना सौम्य की बात समझे ही सौम्य से कहा।
“तुम्हें फ़र्क़ नहीं पड़ेगा, सांझी, क्योंकि तुम कुछ देर के लिए यहां रहोगी, उसके बाद अपने घर चली जाओगी। लेकिन सांझी, मेरी बात को समझो। मुझे मेरी मम्मी और मेरी बहन के साथ यहीं रहना है। और तुम नहीं जानती यहां मोहल्ले के लोग क्या-क्या बातें बनाएँगे, इसलिए मैं तुम्हें समझा रहा हूँ। आज के बाद बिना मुझसे पूछे यहां मत आना, प्लीज़। और आज तो मैं तुम्हारे साथ कहीं नहीं जा सकता, इसलिए अब तुम जाओ।” सौम्य ने सांझी की तरफ़ अपना मुँह फेरते हुए कहा।
“क्या मतलब तुम मेरे साथ नहीं चलोगे? लेकिन मुझे तो मेरे डॉक्यूमेंट वेरिफ़ाई करवाने थे। इसलिए तुम्हें पिकअप करने आई थी। चलो ना यार, जल्दी से तैयार हो जाओ!” सांझी ने सौम्य की तरफ़ देखते हुए कहा।
“सॉरी, सांझी। पर आज मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकता क्योंकि कनक घर पर अकेली है और मम्मी को भी आज ऑफ़िस से आने में देर हो जाएगी। इसलिए तुम ऋषि के साथ चली जाओ!” सौम्य ने सांझी को मनाते हुए कहा।
“क्या यार, सौम्य! चलो ना, प्लीज़!” सांझी ने बच्चों की तरह ज़िद करते हुए कहा।
“नहीं, सांझी। मैं नहीं चल सकता। तुम्हारे साथ जाओ, तुम अपना टाइम वेस्ट मत करो!” सौम्य ने सोफ़े पर बैठते हुए सांझी से कहा।
“अच्छा, तो मतलब तुम मेरे साथ नहीं चलोगे?” सांझी ने थोड़ा गुस्सा होते हुए सौम्य से पूछा।
“आज तो नहीं चल सकता, यार। सॉरी।” सौम्य ने थोड़ी मायूसी से सांझी को जवाब दिया।
“ओके, फ़ाइन। मत चलो। बाय!” सांझी गुस्से से अपने पैर पटकते हुए सौम्य के घर से बाहर आती है।
“ड्राइवर अंकल, कॉलेज की तरफ़ ले चलिए।” सांझी ने कार का दरवाज़ा ज़ोर से बंद करते हुए कहा।
तभी ऋषि का कॉल आता है।
ऋषि- हेलो, बेबी, कहाँ हो? अभी तक तुमने लोकेशन सेंड नहीं करी।
सांझी- “मूड बहुत खराब है मेरा।”
ऋषि- “क्या हुआ मेरी बेबी को? क्यों खराब है मूड? बताओ मुझे।”
सांझी- “बेबी, अभी तक मेरे डॉक्यूमेंट वेरिफ़िकेशन नहीं हुए हैं। कॉलेज जा रही हूँ।”
ऋषि- “ओफ़्फ़ो! बस इतनी सी बात? लाओ मुझे दो, मैं अपने बंदों से बोलकर अभी करवा दूँगा।”
सांझी- “बेबी, तुम करवा सकते हो क्या?”
ऋषि- “यस, ऑफ़ कोर्स, माय डार्लिंग।”
सांझी- “अच्छा, एक काम करो, बेबी। तुम कॉलेज आ जाओ, मैं वहीं जा रही हूँ।”
ऋषि- “ओके, बेबी। बस दस मिनट में आया। ओके।”
सांझी- “ओके, बेबी।”
ऋषि फ़ोन काट देता है।
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“काकी, एक मिनट। आप मेरी बात सुनिए। यहाँ आइए।” अंश ने रंजना को बिस्तर पर बिठाते हुए बोला।
“क्या है, अंश? तुम मुझे श्वेता की बाबा को बताने से रोक क्यों रहे हो?” रंजना ने अंश को घूरकर देखते हुए पूछा।
“अरे काकी, आप तो काका के गुस्से से अच्छी तरह से वाकिफ़ हैं। अगर काका को यह पता लगा कि श्वेता के पैर में चोट लगी है, तो वह हमें डाँटेंगे तो ज़रूर! और फिर मेरे साथ श्वेता को कॉलेज भी नहीं जाने देंगे। और मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से श्वेता का सपना टूट जाए।” अंश ने रंजना को समझाते हुए कहा।
“तुम्हारी वजह से? मतलब क्या है तुम्हारा? साफ़-साफ़ बताओ मुझे, क्या कहना चाह रहे हो तुम, अंश?” रंजना ने अपनी भावनाएँ चढ़ाते हुए अंश से पूछा।
“काकी, जब हम लोग (मैं और श्वेता) छत पर गए थे, तो मैंने श्वेता को मस्ती-मस्ती में डरा दिया था और उसी वजह से श्वेता फिसल गई। तभी उसे चोट लग गई। और अगर काका को पता चला कि मेरी वजह से श्वेता को चोट लग गई है, तो वह श्वेता को कभी मेरे साथ कॉलेज नहीं जाने देंगे।” अंश ने उदास होते हुए रंजना को जवाब दिया।
“कितनी बार मैंने तुम लोगों को समझाया है कि अब तुम लोग बच्चे नहीं रहे हो। थोड़ा समझदार बनो और ये सारी बच्चों वाली हरकतें छोड़ दो।” रंजना ने अंश को डाँटते हुए कहा।
“नहीं, माँ। इसमें अंश की कोई गलती नहीं है। मेरा ही ध्यान नहीं था, पता नहीं कैसे…” इतना बोलकर श्वेता रोने लगती है।
“अच्छा, अब तुम रो मत। यह बताओ, अंश। अगर श्वेता के बाबा को यह बात पता चल गई, तो वह बहुत गुस्सा करेंगे। और अगर उन्हें बताया नहीं, तो श्वेता को डॉक्टर के यहाँ कौन लेकर जाएगा?” श्वेता की माँ ने श्वेता को चुप कराते हुए कहा।
“मैं चला जाऊँगा श्वेता को डॉक्टर के यहाँ लेकर। आप परेशान मत होइए, काकी। काका अभी बाबा के साथ बाहर गए हैं ना, आने में उन्हें थोड़ी देर तो लगेगी ही। मैं अभी श्वेता को लेकर डॉक्टर के यहाँ चला जाता हूँ और कोशिश करूँगा कि काका और बाबा के आने से पहले मैं श्वेता को डॉक्टर के क्लिनिक से वापस ले आऊँ।” अंश ने रंजना को समझाते हुए कहा।
“अच्छा, ठीक है। जाओ, जल्दी जाओ फिर तुम लोग। अगर देर हुई, तो डॉक्टर नहीं मिलेंगे। इस बार कोई बचकानी हरकत मत करना, समझे तुम दोनों।” रंजना ने श्वेता और अंश को समझाते हुए डॉक्टर के यहाँ जाने के लिए कहा।
“हाँ, काकी। अब ऐसा कुछ भी नहीं होगा। मैं पूरा ध्यान रखूँगा।” अंश ने श्वेता को अपनी गाड़ी के पीछे बिठाते हुए कहा।
अंश श्वेता को लेकर डॉक्टर के क्लिनिक पर जाता है।
“अंश, मैं ये सीढ़ियाँ नहीं चढ़ पाऊँगी।” श्वेता ने आँसू भरी आँखों से अंश का हाथ कसकर पकड़ते हुए कहा।
अंश श्वेता की आँखों में आँसू देखता है और श्वेता को गोद में उठाकर सीढ़ियाँ चढ़ने लगता है।
“सॉरी, श्वेता। मेरी वजह से तुझे इतना दर्द सहना पड़ रहा है।” अंश ने अपनी नज़रें झुकाकर बड़ी ही मायूसी से श्वेता से कहा।
“मेरी तरफ़ देखो। इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। हँसी-मज़ाक़ में तो छोटी-मोटी चोटें तो लगती ही हैं। इसका मतलब यह थोड़ी है कि तुम गिल्टी फ़ील करोगे और मुझसे नज़रें नहीं मिलाओगे।” श्वेता बड़े ही प्यार से अंश को निहारते हुए कहती है।
“तुम कुछ भी कहो, लेकिन चोट लगी तो मेरी वजह से ही है ना?” अंश ने श्वेता को बेंच पर बैठते हुए कहा। और वहाँ से जाने लगता है। तभी श्वेता अंश का हाथ पकड़ती है और कहती है- “कहाँ जा रहे हो, मुझे छोड़कर?”
“डॉक्टर से बात करने जा रहा हूँ। रुको, दो मिनट में आता हूँ।” अंश श्वेता का हाथ पकड़कर श्वेता से कहता है।
तभी अंश वहाँ से चला जाता है और श्वेता के बगल में बैठी लड़की श्वेता से पूछती है- “ये आपके भाई थे क्या?”
“जी नहीं, मेरा दोस्त है।” श्वेता ने उस लड़की को घूरकर देखते हुए कहा।
“क्या नाम है तुम्हारे दोस्त का?” लड़की ने मुस्कुराते हुए श्वेता से पूछा।
“अंश।” श्वेता लड़की को थोड़ा चिढ़कर बताती है।
“वैसे तुम्हारे दोस्त काफ़ी हैंडसम और गुड लुकिंग है। क्या तुम उसे मेरी दोस्ती करवा सकती हो?” उस लड़की ने अपने दाँत दिखाते हुए श्वेता से कहा।
“मैं यहाँ दवा लेने आई हूँ, मेरे पैर में चोट लगी है और तुम्हें यह सब सूझ रहा है।” श्वेता ने चिल्लाते हुए उस लड़की से कहा।
तभी श्वेता को इस तरह चिल्लाता देखकर अंश दौड़कर श्वेता के पास आता है और कहता है- “क्या हुआ? तुम चिल्ला क्यों रही हो? किसी ने कुछ कहा क्या?”
क्रमशः
श्वेता के जोर से चिल्लाने की आवाज़ सुनकर अंश दौड़कर उसके पास गया और कहा, "क्या हुआ? तुम क्यों चिल्लाई? किसी ने कुछ कहा?"
"नहीं, कुछ नहीं। मेरे पैर में बहुत तेज दर्द हो रहा है, अंश। प्लीज़, जल्दी डॉक्टर के पास चलो ना। मुझे यहाँ नहीं बैठना।" श्वेता ने अंश का हाथ कसकर पकड़ लिया और उस लड़की की ओर मुँह बनाकर देखा।
अंश श्वेता को गोद में उठाकर सीधा डॉक्टर के केबिन में गया और कहा, "डॉक्टर साहब, पहले श्वेता को देख लीजिये। उसके पैर में बहुत दर्द हो रहा है।"
डॉक्टर ने श्वेता का पैर देखा और पट्टी करते हुए कहा, "घबराने की कोई बात नहीं है। हल्की सी मोच है। एक-दो दिन में ठीक हो जाएगी। ये कुछ दवाइयाँ हैं, उसे ले लीजियेगा और समय पर देती रहियेगा। जल्दी आराम मिल जाएगा।"
अंश श्वेता को लेकर घर आया और उसे उसके बिस्तर पर बैठाया।
"ये लो शालिनी, तुम्हारी दीदी की दवा है। इसे समय पर दे देना।" अंश ने शालिनी को दवाइयों का पैकेट देते हुए कहा।
"अंश बेटा, क्या बताया डॉक्टर ने?" श्वेता की माँ, रंजना ने अंश से पूछा।
"काकी, डॉक्टर ने कहा है छोटी सी मोच है, एक-दो दिन में ठीक हो जाएगी।" अंश ने रंजना को बताया।
"चलो ठीक है। और मालिश करने के लिए कुछ तेल-वेल नहीं दिया क्या डॉक्टर साहब ने?" रंजना ने अंश के हाथ में दवा देखकर पूछा।
"नहीं काकी! सिर्फ़ दवा दी थी। शालिनी को दे दिया है।" अंश ने रंजना के सवाल का जवाब दिया।
"अच्छा, ठीक है।" इतना बोलकर रंजना वहाँ से चली गई।
श्वेता काफी देर से अंश को देख रही थी। तभी उसने शालिनी से कहा, "जाओ शालिनी, माँ की रसोई में मदद करो।"
"अच्छा दीदी।" शालिनी कमरे से बाहर चली गई।
अंश भी कमरे से बाहर निकलने लगा, तभी श्वेता ने कहा, "तुम कहाँ जा रहे हो? रुको, यहाँ मेरे पास आओ। क्या हुआ? तुम ऐसे मुँह बनाकर क्यों खड़े हो?"
"कुछ नहीं हुआ, बस ऐसे ही।" अंश ने झुकी हुई नज़रों से श्वेता को जवाब दिया।
"अंश, इधर मेरी तरफ़ देखो। अगर तुम ये सोच रहे हो कि ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है, तो ऐसा बिलकुल नहीं है। ये सब मत सोचो, तुम समझे?" श्वेता ने अंश का हाथ पकड़ते हुए कहा।
"नहीं यार, पता नहीं क्यों तेरी आँखों में आँसू नहीं देखा जाता मुझसे!" अंश ने श्वेता की आँखों में देखते हुए कहा।
"अच्छा, लेकिन ऐसा क्यों?" श्वेता ने अंश को निहारते हुए कहा।
"क्यों? क्या मुझे नहीं पता!" अंश सकपकाते हुए अपना हाथ श्वेता के हाथ से छुड़ा लिया और जल्दी से खड़ा हो गया।
"अपना ध्यान रखना, मैं घर जा रहा हूँ! अगर ज़्यादा दर्द हो तो मुझे कॉल करके बुला लेना।" अंश श्वेता से अपनी नज़रें चुराता हुआ कमरे से बाहर जाने लगा।
"अच्छा। अगर दर्द ज़्यादा हुआ तो तुम क्या कर लोगे? जो तुम्हें कॉल करूँ?" श्वेता ने अंश को रोकने की कोशिश करते हुए कहा।
अंश रुककर श्वेता की तरफ़ देखा और बिना कुछ बोले वहाँ से चला गया।
श्वेता वहीं बैठी-बैठी मुस्कुराने लगी।
सांझी कॉलेज के गेट के बाहर उतरी और अंदर गई। तभी उसे वो लड़का दिखा जो पिछली रात की पार्टी में उसके साथ नाच रहा था।
सांझी उस लड़के के पास गई और बोली, "हेलो डूड, कैसे हो? सॉरी, मेरी वजह से तुम्हें इतना कुछ सहना पड़ा। मेरे बॉयफ्रेंड ने बिना सोचे-समझे तुम्हें मार दिया। उसकी तरफ़ से मैं तुमसे माफ़ी मांगती हूँ। आई एम सो सॉरी यार।"
"मुझे पता नहीं था कि तुम ऋषि की गर्लफ्रेंड हो। अगर मुझे पता होता, आई स्वेअर, मैं कभी तुम्हारे साथ डांस ही नहीं करता।" उस लड़के ने सांझी को घूरते हुए कहा।
"सॉरी यार। बाई द वे, तुम्हारा नाम क्या है?" सांझी ने उस लड़के से मुस्कुराते हुए पूछा।
"देखो, तुम्हारे बॉयफ्रेंड ने अगर इस तरह तुम्हें मुझसे बात करते हुए देख लिया, तो वो कहीं फिर से मुझे मारने न लग जाए, इसलिए तुम जहाँ जा रही थीं, प्लीज़ जाओ!" इतना बोलकर वो लड़का वहाँ से चला गया।
कुछ देर बाद ऋषि कॉलेज पहुँचा और सांझी को ढूँढने लगा।
"किसी को ढूँढ रहे हो क्या, ऋषि?" पीछे से किसी ने ऋषि के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
ऋषि पीछे मुड़कर देखा। एक गोरी, गोल-मटोल, दिखने में काफी सुंदर, तीखे नैन-नक्श, बड़ी-बड़ी आँखों वाली लड़की, सिंपल जीन्स-टॉप में, ऋषि को देखकर मुस्कुरा रही थी।
"अरे मोटू! तुम इस कॉलेज में क्या कर रही हो? कैसी हो? बड़े दिनों बाद मिली।" ऋषि ने उस लड़की को दौड़कर हग करते हुए कहा।
"हाँ, यही तो एडमिशन लिया है मैंने। तुम तो बिलकुल नहीं बदले। आज भी उतने ही हैंडसम लग रहे हो जितना स्कूल में लगते थे।" उस लड़की ने ऋषि को मुस्कुराकर देखते हुए कहा।
"हाँ, तुम्हें मैं अभी भी स्कूल जैसा ही लग रहा हूँ। मुझे तो लग रहा था मैं और ज़्यादा हैंडसम हो गया हूँ।" ऋषि ने उस लड़की को आँख मारते हुए कहा।
"ओहो, अब बस भी करो! खुद से ही अपनी तारीफ़ करना तो कोई तुमसे सीखे! वैसे, तुम किसी को ढूँढ रहे थे शायद! है ना?" उस लड़की ने ऋषि के कंधे पर हल्के से मारते हुए कहा।
क्रमशः
"ओहो, अब बस भी करो! खुद से ही अपनी तारीफ़ करना तो कोई तुमसे सीखे! वैसे, तुम किसी को ढूँढ रहे थे, शायद! है ना?" उस लड़की ने ऋषि के काँधे पर हल्के से मारते हुए कहा।
"हाँ यार पलक, मैं सांझी को ढूँढ रहा हूँ। पता नहीं कहाँ है।" ऋषि ने इधर-उधर देखते हुए पलक को जवाब दिया।
"सांझी? वही तुम्हारी स्कूल की बेस्ट फ़्रेंड, पॉलिटिशियन अर्णव पाठक की बेटी? वही सांझी?" पलक ने ऋषि को घूरते हुए पूछा।
"सांझी अब मेरी बेस्ट फ़्रेंड नहीं रही।" ऋषि ने पलक को मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"क्यों? ऐसा क्या हुआ जो अब वो तुम्हारी बेस्ट फ़्रेंड नहीं है?" पलक ने ऋषि से सवालिया अंदाज में पूछा।
"फ़्रेंड नहीं, अब सांझी मेरी गर्लफ़्रेंड बन गई है।" ऋषि ने मुस्कुराते हुए पलक को जवाब दिया।
"अच्छा, कांग्रेचुलेशन।" पलक ने मुस्कुराते हुए ऋषि को जवाब दिया।
"पता नहीं सांझी कहाँ चली गई है।" ऋषि ने परेशानी से इधर-उधर देखते हुए पलक से कहा।
"ओ हो! इतना क्या परेशान हो रहे हो ऋषि? कॉल कर लो ना उसे।" पलक ने ऋषि को सुझाव देते हुए कहा।
"अरे हाँ! देखो, बातों-बातों में, मैं फ़ोन करके पूछना तो भूल ही गया। थैंक्स यार।" ऋषि पलक की तरफ़ देखकर कहता है।
"हेलो बेबी, तुम कहाँ हो? इतनी देर से तुम्हें ढूँढ रहा हूँ।" ऋषि ने सांझी से फ़ोन पर बात करते हुए कहा।
"तुम्हारे पीछे हूँ। पीछे मुड़कर तो देखो।" सांझी ने फ़ोन काटते हुए जवाब दिया।
"अरे बेबी, कहाँ थी तुम?" ऋषि सांझी के पास जाते हुए सांझी से कहता है।
"यहीं थी। तुम्हें पलक के साथ बात करते देख रही थी।" सांझी पलक की तरफ़ देखते हुए ऋषि से कहती है।
"हेलो सांझी, कैसी हो?" पलक सांझी के पास आकर अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए पूछती है।
"आई एम फ़ाइन! तुमने भी यही एडमिशन लिया है क्या?" पलक से हाथ मिलाते हुए सांझी ने कहा।
"हाँ, मैंने भी यही एडमिशन ले लिया। वैसे भी, यह शहर का बेस्ट कॉलेज है, इसलिए मेरे भैया ने यही कॉलेज सजेस्ट किया था।" पलक ने सांझी को मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"चलो बेबी, पहले मेरे डॉक्यूमेंट वेरीफ़ाई करवा लो। उसके बाद हम शॉपिंग करने चलेंगे।" सांझी ऋषि का हाथ पकड़ते हुए कहती है।
"ओके, बाय गाइस। बाद में मिलते हैं।" पलक इतना बोलकर वहाँ से चली जाती है।
"हाँ मेरी जान, पहले तुम्हारा काम हो जाए, उसके बाद ही हम यहाँ से चलेंगे। यू डोंट वरी, ओके।" ऋषि ने सांझी के बालों को बिगाड़ते हुए कहा।
"मत करो ना बेबी, मेरे बाल ख़राब हो जाएँगे।" सांझी ने ऋषि का हाथ पकड़कर उसे मना करते हुए कहा।
"अरे बाबू, ख़राब नहीं है, ठीक कर रहा हूँ तुम्हारे बाल।" ऋषि ने अपनी हँसी छुपाते हुए कहा।
"अच्छा, ये लो डॉक्यूमेंट्स।" सांझी कुछ पेपर्स ऋषि को देते हुए कहती हैं।
"हेलो साहिल, कहाँ हो तुम? मुझे सांझी के कुछ डॉक्यूमेंट वेरीफ़ाई करवाने हैं।" ऋषि ने अपने दोस्त साहिल को फ़ोन मिलाकर साहिल से कहा।
"मैं तो बाहर हूँ अभी। एक काम करो, मैं अपना एक बंदा भेजता हूँ, वह तुम्हारा काम 2 मिनट में ही करवा देगा।" साहिल ने ऋषि से कहा।
"ओके, भेजो, हम कॉलेज के फ़र्स्ट फ़्लोर पर हैं।" और इतना बोलकर ऋषि फ़ोन काट देता है।
तभी कुछ देर बाद एक लड़का वहाँ आता है और ऋषि से डॉक्यूमेंट ले कर चला जाता है।
"चलो बेबी, तुम्हारा यह काम तो हो गया, अब हम कहीं घूमने चलते हैं।" ऋषि ने खुश होते हुए सांझी से कहा।
"थैंक्स बेबी, तुमने तो मेरी टेंशन ही खत्म कर दी। बताओ, कहाँ चलेंगे अब हम लोग?" सांझी ने ऋषि को मुस्कुराकर देखते हुए कहा।
"चलो पहले कुछ खाते हैं, मुझे भूख लगी है।" ऋषि सांझी का हाथ पकड़ते हुए कहता है।
"अच्छा, ठीक है, चलो चलते हैं।" सांझी ऋषि के साथ चलते हुए कहती है।
सांझी और ऋषि कॉलेज के बाहर निकलकर आते हैं, तभी सांझी अचानक से रुक जाती है।
"क्या हुआ बेबी? तुम यूँ अचानक से रुक क्यों गई?" ऋषि सांझी की तरफ़ देखते हुए उससे पूछता है।
"शिट यार! मैं तो भूल ही गई थी। ड्राइवर अंकल है मेरे साथ। अब मैं तुम्हारे साथ कैसे चलूँगी? बेबी, तुम एक काम करो। मैं अपने घर जा रही हूँ, तुम भी वहीं आ जाओ।" सांझी ने मुस्कुराते हुए ऋषि से कहा।
"लेकिन बेबी, मैं कैसे आऊँगा तुम्हारे घर?" ऋषि थोड़ा परेशान होते हुए कहा।
"मैं तो तुम्हें बताना ही भूल गई बेबी। डैड अपने कुछ काम से बाहर गए हैं, कल तक आएंगे। बेबी, तुम घर आ सकते हो।" सांझी ने अपनी मुस्कुराहट छिपाते हुए ऋषि से कहा।
"सच्ची? बेटू, तुमने यह बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई?" ऋषि ने सांझी की कमर पकड़कर उसको किस करते हुए कहा।
"ओ हो! इतनी-सी बात पर इतने खुश हो जाते हो? और ये क्या कर रहे हो ऋषि? कहीं भी शुरू हो जाते हो! चलो अब मुझे जाने दो, मैं घर पहुँचकर तुम्हें कॉल करती हूँ। तुम क्या खाओगे? बताओ, मैं ऑर्डर कर दूँगी। तुम्हें भूख लगी थी ना?" सांझी ऋषि को खुद से दूर करते हुए कहती हैं।
"ये तुम्हारे लिए इतनी-सी बात होगी? मेरा तो जैकपॉट है! और मैं तो तुम्हें खाऊँगा बस!" ऋषि ने सांझी को आँख मारते हुए कहा।
"उफ्फ़ो! तुम बिल्कुल पागल हो ऋषि! अच्छा, बाय। मैं घर पहुँचकर तुम्हें कॉल करती हूँ, ओके।" सांझी ने ऋषि के सर पर हल्के से मारते हुए कहा।
"हाँ, पागल तो हूँ मेरी जान, लेकिन सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे लिए।" ऋषि ने थोड़ा फ़्लर्टी अंदाज में सांझी से बोला।
सांझी बाय बोलकर अपनी कार में आकर बैठ जाती है और अपने घर पहुँचकर ऋषि को कॉल करने लगती है।
सांझी- हेलो बेबी, मैं घर आ गई हूँ।
ऋषि- हाँ बेबी, मैं भी।
सांझी- मतलब?
ऋषि- अपने रूम में तो आओ बेबी।
सांझी- हाँ, वही आ रही हूँ।
तभी सांझी अपने रूम का दरवाज़ा खोलती हैं और...
"तुम यहाँ मेरे रूम में, और मुझसे पहले कैसे आ गए ऋषि?" सांझी ने ऋषि को अपने बेड पर लेटा देखकर शॉक होकर कहा।
"हिहीही! जादू से आया मैं। मुझसे तो वेट ही नहीं हो रहा था, इसलिए मैंने तुम्हारे कॉल का वेट नहीं किया और आ गया!" ऋषि ने सांझी को दाँत दिखाते हुए कहा।
"जाओ अच्छा, अब आ गए हो तो फ़्रेश हो जाओ। जब तक मैं कुछ ऑर्डर करती हूँ। अब तो मुझे भी भूख लग रही है यार।" सांझी ने अपने फ़ोन में देखते हुए ऋषि से कहा।
तभी ऋषि सांझी के करीब आता है और सांझी का फ़ोन ले कर साइड में रखते हुए कहता है - "मैंने खाना ऑर्डर कर दिया है, बस आता ही होगा।"
"अच्छा? कब किया ऑर्डर? और क्या-क्या ऑर्डर किया?" सांझी ने ऋषि को घूरते हुए कहा।
तभी ऋषि सांझी को अपने करीब घसीटता हुआ सांझी की गर्दन पर किस करने लगता है और सांझी ऋषि को खुद से दूर करते हुए कहती है- "क्या कर रहे हो बेबी? छोड़ो। मुझे फ़्रेश तो हो जाने दो।"
सांझी खुद को छुड़वाते हुए वाशरूम की तरफ़ जाने लगती है।
तभी ऋषि भी सांझी की तरफ़ दौड़ता है और बाथरूम का दरवाज़ा अंदर से बंद कर लेता है।
To be continued।
10
सांझी ऋषि को घूर कर देखते हुए बोली, "क्या कर रहे हो बेबी? जाओ बाहर जाओ और वेट करो। मैं दो मिनट में आती हूँ।"
तभी ऋषि सांझी के करीब आया और सांझी पीछे हटने लगी। पीछे हटते-हटते वह दीवार से जा लगी और ऋषि ने सांझी का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा, "क्या हुआ? तुम मुझसे घबरा क्यों रही हो बेबी?"
"बाहर चलते हैं ऋषि।" इतना बोलकर सांझी अपना हाथ छुड़ाती हुई बाथरूम से बाहर आने लगी।
पर ऋषि ने सांझी का हाथ कसकर पकड़ कर उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा, "बेबी, तुमने कहा था किस करने दोगी—सो कैन आई?"
सांझी ने अपनी आँखें बंद करते हुए कहा, "ऋषि, बाहर जाओ। मैं चेंज करके आती हूँ।"
ऋषि ने सांझी को अपने और करीब खींचा और सांझी की गहरी-गहरी साँसों को महसूस करते हुए उसके गालों पर किस किया। फिर बोला, "ओके, मैं बाहर तुम्हारा वेट कर रहा हूँ। जल्दी आओ।"
सांझी ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोली और देखा कि ऋषि वाशरूम से बाहर जा चुका है।
एक लंबी साँस लेते हुए सांझी बोली, "जब-जब ऋषि मेरे इतने करीब आता है, पता नहीं मुझे क्या हो जाता है। मैं समझ ही नहीं पाती कि कैसे रिएक्ट करूँ।"
कपड़े बदलकर सांझी अपने कमरे में आई और देखा कि ऋषि उसके कमरे में नहीं है।
उसने अपना फ़ोन उठाया और ऋषि को कॉल करने लगी। तभी ऋषि का फ़ोन बजने लगा।
सांझी समझ गई कि ऋषि कमरे में ही कहीं छिपा है। उसने ऋषि को आवाज़ दी, "ऋषि! कहाँ चले गए मुझे छोड़कर? या फिर क्या तुम कोई प्रैंक कर रहे हो? कहाँ हो? बाहर आओ ना।"
"कहाँ जाऊँगा मैं अपनी जान को छोड़कर!" ऋषि अचानक पीछे से सांझी को गले लगाते हुए बोला।
"तुम भी ना ऋषि! कहाँ चले गए थे? मैं ढूँढ रही थी तुमको।" सांझी ने ऋषि का हाथ अपने हाथ में थामते हुए कहा।
"अरे, यह देखो हमारा खाना आ गया। यही लेने गया था।" ऋषि ने खाने के पैकेट दिखाते हुए सांझी से कहा।
"चलो फिर कुछ खाते हैं, वरना खाना ठंडा हो जाएगा।" सांझी ने खाने का पैकेट हाथ में लेते हुए कहा।
सांझी खाना सर्व करने लगी। ऋषि भी उसकी मदद करने लगा।
दोनों साथ में बैठकर खाना खाने लगे। तभी—
"कैसे बच्चों की तरह खाते हो ऋषि।" ऋषि के होंठ पर लगे खाने को साफ़ करते हुए सांझी बोली।
"हाँ तो मैं तुम्हारा बच्चा ही तो हूँ।" सांझी का हाथ पकड़ते हुए ऋषि ने कहा।
सांझी अपना हाथ ऋषि के हाथ से छुड़ाकर भागने लगी। तभी ऋषि ने उसे अपनी ओर खींचा और सांझी का पैर कार्पेट में फँस गया। ऋषि सांझी को संभालते-संभालते फर्श पर गिर गया और सांझी भी उसके ऊपर गिर गई।
सांझी के बाल ऋषि के मुँह पर आ गए। ऋषि ने सांझी के बालों को बड़े प्यार से उसके कान के पीछे करते हुए कहा, "बेबी, अगर तुम्हें मेरी धड़कनें ही सुननी थीं तो ऐसे ही बोल देतीं। यूँ मुझ पर गिरने की क्या ज़रूरत थी?"
इतना बोलकर ऋषि मुस्कराने लगा।
सांझी ने अपने बिखरे हुए बाल ठीक करते हुए उठकर कहा, "मैं कोई तुम्हारी धड़कनें नहीं सुन रही थी। वो तो मेरा पाँव कार्पेट में फँस गया, उसी वजह से मैं गिर गई।"
इतना बोलकर सांझी खड़ी हो गई। ऋषि भी उठा और सांझी की तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए बोला, "बेबी, वैसे तुम थोड़ी मोटी हो गई हो क्या? बड़ी भारी लग रही थीं।"
इतना बोलकर ऋषि हँसने लगा।
सांझी ने ऋषि को मारते हुए कहा, "अच्छा, तो मैं तुम्हें मोटी लग रही हूँ?" सांझी ने दो-तीन बार ऋषि के कंधे पर हाथ मारा।
तभी सांझी की नज़र ऋषि की कोहनी पर पड़ी। "ओह शिट! ऋषि, इधर दिखाओ मुझे। इसमें से तो खून निकल रहा है। मुझे दिखने दो? ये कैसे लग गई यार?" सांझी थोड़ा घबराकर ऋषि के हाथ को देखकर बोली जहाँ से खून निकल रहा था।
"अरे, कुछ नहीं है। बस छोटी सी खरोंच है। ठीक हो जाएगी। यू डोंट वरी बेबी, तुम इतना परेशान मत हुआ करो।" ऋषि ने बड़े प्यार से सांझी से कहा।
"कैसे परेशान ना हूँ? देखो कितना खून निकल रहा है। इधर बैठो तुम, मैं फ़र्स्ट एड बॉक्स लेकर आती हूँ।" सांझी ने ऋषि को अपने बेड पर बिठाते हुए कहा।
सांझी दौड़कर गई और जल्दी-जल्दी सारे दराज चेक करने लगी। लेकिन उसे उस समय फ़र्स्ट एड बॉक्स नहीं मिला।
सांझी नीचे गई और अपने डैड के कमरे से फ़र्स्ट एड बॉक्स लेकर अपने कमरे में आई।
"लाओ दिखाओ बेबी मुझे। सॉरी बेबी! मेरी वजह से तुम्हें इतनी चोट लग गई।" ऋषि की चोट के खून को कॉटन से साफ़ करते हुए सांझी बोली।
"यह कोई चोट नहीं है बच्चा, यह तो बस एक छोटी सी खरोंच है। तुम बेकार में परेशान हो रही हो सांझी। इतना ज़्यादा परेशान मत हुआ करो मेरी जान, वरना सच में मोटी हो जाओगी।" ऋषि ने हँसते हुए कहा।
"चुप करो तुम, बिल्कुल चुप। मुझे करने दो जो मैं कर रही हूँ।" सांझी ने ऋषि को डाँटते हुए कहा।
"बेबी, तुम कुछ ज़्यादा ही परेशान होने लगी हो आजकल। आखिर क्या बात है? बहुत प्यार आ रहा है मुझे पर।" ऋषि सांझी के बालों के साथ खेलते हुए बोला।
"मैंने तुमसे कहा ना, बिल्कुल चुप। कोई सवाल नहीं करोगे जब तक मैं तुम्हें दवा नहीं लगा देती। अपने मुँह पर उँगली रखो अभी।" इस बार सांझी ने थोड़ा गुस्सा होते हुए कहा।
ऋषि ने अपने मुँह पर उँगली रख ली और सांझी को देखकर मुस्कराने लगा।
सांझी ऋषि की कोहनी पर दवा लगाते हुए बोली, "तुम बहुत ज़्यादा ही रोमांटिक होने लगे हो आजकल। जब देखो तब कुछ ना कुछ उल्टी-सीधी हरकतें करते रहते हो। अगर तुम अभी मुझे पकड़कर अपनी ओर ना खींचते तो मेरा पाँव नहीं फिसलता, और ना ही मैं गिरती, और ना ही तुम्हें चोट लगती।"
सांझी अपनी ही धुन में सब कुछ बोले जा रही थी और ऋषि बड़े ही प्यार से उसे निहार रहा था।
तभी सांझी ने फ़र्स्ट एड बॉक्स बंद करके ऋषि की तरफ़ देखा और कहा, "अब तुम ऐसे क्यों मुस्कुरा रहे हो मुझे देखकर?"
ऋषि कुछ नहीं बोला और सांझी के गालों को अपने दोनों हाथों से पकड़कर उसे किस करने लगा।
सांझी कुछ समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करे। वह निशब्द होकर बस एक ही जगह पर बैठी रही और अपनी आँखें बंद कर लीं।
कुछ देर बाद…
"लव यू मेरी जान।" सांझी के कानों में धीरे से ऋषि ने कहा।
जैसे ही सांझी ने ऋषि की आवाज़ सुनी, उसने अपनी आँखें खोलकर ऋषि को मुस्कुराते हुए घूरने लगी।
ऋषि भी मुस्कुराया। तभी ऋषि का फ़ोन बज गया। उसने अपना कॉल रिसीव किया और सांझी का हाथ कसकर पकड़कर बैठते हुए कॉल पर बात करने लगा।
सांझी के कानों में अभी भी ऋषि के बोले हुए शब्द गूंज रहे थे और वह उसे देखकर मुस्कुरा रही थी।
तभी ऋषि ने फ़ोन साइड में रखते हुए कहा, "क्या हुआ बच्चा? ऐसे क्यों देख रही हो?"
तभी सांझी, जो अभी भी उसी ख्याल में डूबी हुई थी, अचानक बोली, "कुछ नहीं बेबी। किसका फ़ोन था?"
क्रमशः
11
सांझी जो अभी भी उसी ख्याल में डूबी थी अचानक से बोलती है-" कुछ नहीं बेबी किसका फोन था"?
ऋषि सांझी की गोद में अपना सर रखते हुए कहता है-" तुम्हारा वेरिफिकेशन वाला काम हो गया साहिल का फोन था यही बताने के लिए से कॉल की थी"।
"thankyou बेबी तुमने तो इतनी जल्दी काम करवा दिया मैं करवाती तो पता नहीं कितनी देर लगती है।" सांझी ने ऋषि के बालों को सहलाते आते हुए कहा।
"अच्छा तो अब मेरी जान मुझे थैंक्यू बोलेगी।"-ऋषि ने सांझी को घूर कर देते हुए कहा।
"अरे अच्छा तुम्हें नहीं साहिल को बोल दूंगी ठीक है"- सांझी ने मुस्कुराते हुए कहा।
"नहीं कोई जरुरत नहीं है तुम्हें किसी को थैंक्यू बोलने की। आखिर तुम ऋषि खुराना की गर्लफ्रेंड हो तुम ना किसी से सॉरी बोलोगी और ना ही थैंक्यू समझी बेटू।"-ऋषि ने सांझी के गाल को खींचते हुए कहा।
"ओके ओके अच्छा बेबी तुमने मुझे अभी थोड़ी देर पहले मोटी कहा था ना क्या मैं सच में मोटी हो गई हैं"- सांझी ने बच्चों की तरह मुंह फुलाते हुए ऋषि से पूछा?
" नहीं मेरी जान वह तो मैं बस तुम्हें परेशान कर रहा था तुम कहां मोटी होती हो। तुम तो इतना खाने के बाद भी दुबली -पतली ही रहती हूं वैसे तुम इतना खाती हो सब जाता कहां है"-ऋषि ने सांझी को छेड़ते हुए कहा।
" ओह गाड सीरियसली ऋषि सच में तुम को ऐसा लगता है मैं बहुत खाना खाती हूं"- सांझी ने चिढ़ते हुए ऋषि से पूछा।
"हां और नहीं तो क्या इतना सारा तो खाती हो।"- ऋषि सांझी ही गोद से उठता हुआ बोला।
"रुको मैं अभी तुम्हें बताती हूं"- तभी सांझी बेड पर पड़ा तकिया उठाती है। और ऋषि के ऊपर फेक कर मारती है।
ऋषि तकिये को कैच कर लेता है और वापिस सांझी की तरफ फेंकता है।
सांझी दौड़कर ऋषि के पास आती है और उसे तकिए से मारने लगती है।
तभी ऋषि सांझी का हाथ पकड़ता है और सांझी की कमर पकड़ कर उसे अपने करीब कर लेता है और सांझी के हाथ से तकिया छीन कर फेंक देता है।
"तुम्हें पता है बेबी मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं जानती हो ना तुम।"- ऋषि सांझी की आंखों में आंखें डालकर पूछता है।
सांझी ऋषि की आंखों में डूब जाती है और कहती है-", हां बेबी मुझे पता है तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो और मैं भी तुमसे उतना ही प्यार करती हूं"। इतना बोलकर सांझी ऋषि के कंधे पर अपना सर रख लेती है और ऋषि सांझी को हग कर लेता है और दोनों अपनी प्यारी सी दुनिया में खो जाते हैं।
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"श्वेता क्या कर रही है शालिनी ? और उसका दर्द ठीक हुआ या नहीं"- अंश ने शालिनी के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा।
"क्या भैया ऐसे पीछे से आकर डराया मत करो ना मुझे हार्ट अटैक आ जाता तो ?"-शालिनी ने चौकते हुए थोड़ा ड्रामा करते हुए अंश को जवाब दिया।
"अरे वाह वाह कितनी अच्छी ओवर एक्टिंग करती हो देखकर मजा आ जाता है अच्छा बताओ तुम्हारी दीदी कहां है?"- अंश ने शालिनी का कान खींचते हुए कहा।
"अरे जाइए देखिए अंदर अपने कमरे में ही होगी मैं तो बहुत देर से बाहर हूं"-शालिनी ने बेपरवाही से बोला।
"इसे क्या हो गया बड़ी बेरुखी से बात कर रही है खैर छोड़ो मैं श्वेता से मिलकर आता हूं"-अंश अपने मन में ही बड़बड़ता हुआ वहां से चला जाता है।
"श्वेता का पैर कैसा है काकी अब"- रंजना को श्वेता के कमरे से बाहर आता देखकर अंश ने रंजना से पूछा ।
"जाओ बेटा श्वेता अन्दर है मिला लो उससे"- रंजना अंश को देख कर मुस्कुराते हुए कहती हैं।
"अरे अंश आओ अंदर आओ ना वहां दरवाजे पर क्यों खड़े हो - श्वेता पानी का गिलास टेबल पर रखते हुए कहती हैं"।
"तुम्हारा पैर कैसा है अब? लाओ दिखाओ मुझे"-श्वेता के बगल में बैठ कर श्वेता के पैर को देखते हुए अंश ने कहा।
"ऐसे तुम मेरा पैर मत पकड़ो अंश मुझे अच्छा नहीं लग रहा"- श्वेता ने अपना पैर अंश के हाथ से छुड़वाते हुए कहा।
"अरे अगर पैर पकड़ूंगा नहीं तो तुम्हारी चोट कैसे देखूंगा? और इसमें तुम्हें क्या अच्छा नहीं लग रहा?"- अंश ने श्वेता को घूरते हुए कहा।
"मैं बता तो रही हूं ना काफी हद तक दर्द ठीक है और मैंने दवाइयां भी टाइम पर ली थी"- श्वेता ने अंश को अपना पैर दिखाते हुए कहा।
"हां अंश बेटा दर्द तो काफी कम हो गया है लेकिन फिर भी एक बार आज और डॉक्टर के यहां लेकर चले जाओ श्वेता को शायद डॉक्टर कुछ और दवाइयां दे दें"-नाश्ता लेकर आती हुई श्वेता की मां ने अंश से कहा।
"ठीक है काकी वैसे अभी तो डॉक्टर होंगे चलो श्वेता जल्दी से तैयार हो जाओ मैं अपनी बाइक लेकर आता हूं फिर चलते हैं"- अंश अपनी जगह से उठते हुए बोला।
"अरे बेटा अभी बैठो पहले नाश्ता कर लो उसके बाद जाना चलो श्वेता जब तक तुम तैयार हो जाओ"- श्वेता की मां ने नाश्ते की ट्रे अंश को देते हुई कहती हैं।
"मां आप सिर्फ मेरे लिए कपड़े निकाल दो मैं खुद से कि तैयार हो जाऊंगी"- श्वेता ने अपनी जगह से खड़े होते हुए अपनी मां से कहां।
(श्वेता जैसे ही अपनी जगह से खड़ी होकर थोड़ी दूर चलती है कि तभी लड़खड़ाकर गिरने वाली होती है कि अंश जल्दी से श्वेता को संभाल लेता है और उसे बाथरुम तक जाने में उसकी हेल्प करता है।)
श्वेता तैयार होकर अंश के पास आती है और कहती है-"चलो अंश चलते हैं वरना डाक्टर क्लीनिक बंद करके चले जाएंगे" श्वेता ने अपना दुपट्टा ठीक करते हुए अंश से कहती है।
(अंश श्वेता को देखता है और देखता ही रह जाता है क्योंकि श्वेता सिंपल से सूट में भी बहुत खूबसूरत लग रही थी)
"क्या हुआ अंश"-श्वेता अंश के कांधे पर हाथ रखते हुए कहती है।
"चलो बाहर आओ मैं अभी बाइक लेकर आता हूं "-ऋषि श्वेता का हाथ पकड़ कर उसे बाहर की तरफ लाते हुए कहता है।
(क्या सच में अंश सबको इतना हैंडसम लगता है क्या सच में अंश इतना अच्छा दिखता है।मुझे तो नहीं लगता श्वेता कल की बात सोच कर अंश को घूरते हुए देखने लगती हैं पता नहीं उस चुड़ैल को अंश में ऐसा क्या दिख गया)।
तभी अंश अपनी बाइक लेकर श्वेता के सामने आकर रुकता है और कहता है-" बैठो श्वेता"।
लेकिन श्वेता उस लड़की की बातें सोचते हुए अंश को देख रही थी।
तभी अंश श्वेता के मुंह के सामने अपना हाथ हिलाते हुए कहता है-" क्या हुआ कहां खो गई श्वेता? बैठो चलना नहीं है क्या"?
तभी श्वेता अचानक से चौंकते हुए कहती है-"हां! कुछ नहीं! चलो।"और थोड़ा लड़ाखते हुए अंश की बाइक पर बैठ जाती है।
"क्या सोच रही थी श्वेता'?- अंश ने अपनी बाइक स्टार्ट करते हुए श्वेता से पूछा?
" कुछ नहीं बस ऐसे ही चलो तुम वरना कहीं डाक्टर चले ना जाए"। अंश की बात को इग्नोर करते हुए श्वेता ने कहा।
To be continued
अंश ने अपनी बाइक स्टार्ट करते हुए श्वेता से पूछा, "क्या सोच रही हो श्वेता?"
"कुछ नहीं, बस ऐसे ही। चलो तुम, वरना कहीं डॉक्टर चले ना जाएँ।" श्वेता ने अंश की बात को अनसुना करते हुए कहा।
श्वेता पूरे रास्ते चुप रही, बस उस लड़की की बातें सोचती रही।
तभी अंश ने श्वेता से पूछा, "काका को तुम्हारी चोट के बारे में पता तो नहीं चला ना?"
श्वेता ने न तो अंश की बात सुनी और न ही कोई जवाब दिया। तब अंश ने श्वेता से तेज आवाज़ में कहा, "बैठी हो पीछे या गिर गई? मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूँ, जवाब क्यों नहीं दे रही? क्या हुआ है तुमको? और इतना अजीब बर्ताव क्यों कर रही हो?"
"कुछ नहीं हुआ। मैं कहाँ अजीब बर्ताव कर रही हूँ? नॉर्मल ही तो हूँ। और तुम्हें क्यों लग रहा है कि मैं अजीब बर्ताव कर रही हूँ?" श्वेता ने थोड़ा चौंकते हुए, जल्दी-जल्दी में बोला।
तभी अंश ने बाइक रोकी।
"अरे, क्या हुआ? बाइक क्यों रोक दी तुमने?" श्वेता ने बाइक के शीशे में अंश को देखते हुए पूछा।
"मुझे बाइक रोक-रोक कर चलाने का कोई शौक थोड़ी है। वो सामने देखो, डॉक्टर का क्लीनिक आ गया है, इसीलिए बाइक रोका है। पता नहीं कहाँ खोई हो तुम, चलो अब उतरो।" अंश ने अपना सिर दाएँ-बाएँ हिलाते हुए कहा।
"ओह्ह, सॉरी। मैंने ध्यान नहीं दिया।" श्वेता ने बाइक से उतरते हुए अंश से कहा।
"हाँ, वह तो मैं देख ही रहा हूँ कि तुम्हारा ध्यान यहाँ तो बिल्कुल नहीं है।" अंश ने बाइक स्टैंड पर लगाते हुए कहा।
"आज सीढ़ियाँ चढ़ लोगी या मैं उठाकर ले चलूँ?" अंश ने बाइक की चाबी अपनी जेब में डालते हुए कहा।
"मैं चलने की कोशिश करती हूँ, बस थोड़ी हेल्प कर दो, मैं चढ़ लूँगी।" श्वेता ने अंश का हाथ पकड़ते हुए कहा।
अंश ने श्वेता का हाथ पकड़ा और उसे सीढ़ियाँ चढ़ने में मदद की।
डॉक्टर के क्लीनिक के कमरे में पहुँचकर, डॉक्टर ने श्वेता के पैर की पट्टी खोलते हुए पूछा, "अब तुम्हारा दर्द कैसा है श्वेता?"
"काफी हद तक दर्द कम हो गया है।" श्वेता ने डॉक्टर को जवाब दिया।
"बस आज और दवा खा लो, कल तक तुम्हारा दर्द बिल्कुल ठीक हो जाएगा।" डॉक्टर ने श्वेता की पट्टी खोली और दूसरी पट्टी करने लगे।
श्वेता और अंश डॉक्टर के क्लीनिक से बाहर निकल आए। रास्ते में, श्वेता ने अंश से कहा, "रुको अंश, बाइक रोको।"
"क्या हुआ अब तुम्हें?" अंश ने बाइक रोकते हुए कहा।
"वो देखो अंश, चाट वाले काका! कितने दिनों बाद दिखे हैं।" श्वेता ने चाट के ठेले की ओर इशारा करते हुए कहा।
"अच्छा, तो मतलब अब तुम्हें चाट खानी है?" अंश ने मुस्कुराते हुए श्वेता से पूछा।
"हाँ, बहुत मन है। चलो ना, खाते हैं, प्लीज।" श्वेता ने बच्चों की तरह जिद करते हुए कहा।
"अच्छा, चलो ठीक है, खाते हैं।" अंश ने अपनी बाइक चाट के ठेले के पास रोकते हुए कहा।
श्वेता ने थोड़ा लँगड़ाते हुए चाट वाले काका के पास जाकर कहा, "नमस्ते काका, दो प्लेट चाट लगाइए, एक खट्टी और एक तीखी।"
"अरे बिटिया, क्या हुआ पैर में?" चाट वाले ने चाट बनाते हुए श्वेता से पूछा।
"अरे काका, थोड़ी चोट लग गई।" श्वेता ने अंश को देखते हुए जवाब दिया।
"अच्छा, लो बिटिया, तुम्हारी एक खट्टी और एक तीखी चाट।" चाट वाले काका ने चाट श्वेता के हाथ में देते हुए कहा।
"अरे वाह काका, बड़ी जल्दी बना दी चाट!" अंश श्वेता के बगल में बैठते हुए बोला।
अंश और श्वेता दोनों चाट खाने लगे। तभी अंश के होठों पर थोड़ी चाट लग गई।
"ठीक से खाओ अंश।" श्वेता ने अंश के होठों पर लगी चाट अपने हाथों से साफ़ करते हुए कहा।
"क्या कर रही हो श्वेता? हम सड़क पर हैं, सब लोग देख रहे हैं, मत करो।" अंश ने श्वेता को मनाते हुए कहा।
"अरे, तो मैं कौन सा तुम्हें किस कर रही हूँ जो ऐसे मना कर रहे हो? चलो अच्छा, ठीक है, नहीं साफ़ करती, खुद कर लो।" श्वेता थोड़ा मुँह बनाकर कहती है और अपनी चाट खाने लगती है।
"हाँ, मैं कर लूँगा।" अंश ने अपना रुमाल निकालकर अपना मुँह साफ़ किया और चाट वाले को पैसे देकर अपनी बाइक स्टार्ट कर ली।
श्वेता बाइक के पीछे आकर बैठ गई और घर आ गई।
अंश के बाबा ने अंश और श्वेता से पूछा, "अरे अंश और श्वेता बिटिया, तुम दोनों कहाँ गए रहे?"
"अरे बाबा, वो हम लोग..." अंश बोल ही रहा था कि तभी अंश के पापा ने उसे चुप करा दिया और कहा, "चलो चलो अंदर आओ, रघुवीर से कुछ बात करनी है।"
अंश और श्वेता घबरा गए। पता नहीं ऐसा क्या हो गया था कि बात करने के लिए काका ने बाबा को बुलाया था। दोनों घबराते हुए अंदर गए।
अंश ने श्वेता को चुपचाप उसके कमरे में जाने के लिए कहा। श्वेता सबकी नज़रों से खुद को बचाती हुई अपने कमरे में चली गई।
अंश अपने बाबा के साथ श्वेता के बाबा के कमरे में गया और वहाँ कुछ बातें कीं।
लगभग आधा घंटे बाद अंश श्वेता के कमरे में वापस आया।
"क्या हुआ अंश? बाबा ने तुम्हें क्यों बुलाया था?" श्वेता ने थोड़ा घबराकर अंश से पूछा।
"कुछ नहीं, हम लोगों की परसों की टिकट कन्फर्म हुई है, वही बताने के लिए काका ने बुलाया था। श्वेता, तुम अपनी पैकिंग कंप्लीट कर लो, परसों हमें सुबह 6:00 बजे निकलना है। अच्छा, बस इतनी ही बात हुई।" अंश ने अपनी नज़रें चुराते हुए कहा।
"सच में हमारा टिकट आ गया? इतनी सी बात करने में इतना टाइम लग गया?" श्वेता ने खुश होते हुए, लेकिन थोड़ा सवालिया लहजे में अंश से पूछा।
"हाँ हाँ, बस इतनी ही बात हुई है।" इतना बोलकर अंश श्वेता के कमरे से बाहर निकलने लगा।
"सुनो अंश।" तभी श्वेता ने अंश को आवाज़ दी।
"क्या हुआ?" अंश श्वेता की तरफ़ मुड़कर पूछा।
"थैंक यू।" श्वेता मुस्कुराते हुए अंश की तरफ़ देखकर बोली।
"लेकिन किस लिए?" अंश श्वेता के करीब आकर पूछा।
"मेरे हर फैसले पर मेरा साथ देने के लिए, मेरी सारी जिद को पूरा करने के लिए, मेरे नखरे उठाने के और मेरी हर बात बिना कहे ही समझ जाने के लिए।" श्वेता ने अंश का हाथ पकड़ते हुए कहा। और इतना बोलते-बोलते श्वेता की आँखों में आँसू आ गए।
"पागल हो गई हो क्या? रो क्यों रही हो? मैंने तो तुमसे पहले ही कहा था, मैं तुम्हें यहाँ अकेला छोड़कर नहीं जाऊँगा।" श्वेता को गले लगाते हुए अंश ने कहा।
"अगर तुम ना होते तो शायद मैं कुछ ना कर पाती।" श्वेता ने अंश को प्यार भरी निगाहों से देखते हुए कहा।
अंश ने श्वेता के माथे को चूमा।
तभी दरवाज़े पर किसी के आने की आहट सुनकर अंश अपनी जगह पर खड़ा हो गया।
"दीदी, ये देखो तुम्हारा टिकट आ गया! देखो, परसों सुबह 6:00 बजे ट्रेन है तुम्हारी, और मैं तुमको छोड़ने रेलवे स्टेशन चलूँगी, ठीक है?" शालिनी दौड़ते हुए कमरे के अंदर आकर बड़ी खुशी से कहती है।
"अब यह पागल लड़की भी चलेगी। चलो अच्छा, ठीक है, तुम भी चलना।" अंश ने शालिनी के सर पर हल्के से मारते हुए कहा।
"हाँ, तो मैं आपको छोड़ने नहीं, अपनी दीदी को छोड़ने जा रही हूँ, और पागल मैं नहीं, आप हैं, क्योंकि जो पागल होता है वही दूसरे को पागल कहता है।" शालिनी अंश को मुँह चिढ़ाते हुए कहती है।
अंश मुस्कुराने लगा।
"ऐसे बात करी जाती है अपने से बड़े लोगों से? कितनी बार कहा है ना, तुम से बड़ों से इज़्ज़त से बात किया करो।" श्वेता की माँ ने शालिनी को डाँटते हुए कहा।
"अरे नहीं काकी, मैं ही शालिनी को परेशान कर रहा था, उसको कुछ मत कहिए।" अंश ने रंजना को मनाते हुए कहा।
"माँ, बाबा ने कुछ कहा है क्या?" रंजना का उतरा हुआ चेहरा देखकर श्वेता ने पूछा।
"हाँ, तुम्हारे बाबा ना, दूसरों के बहकावे में बहुत जल्दी ही आ जाते हैं।" रंजना बोल ही रही थी कि अंश ने रंजना को इशारे से मना किया और रंजना चुप हो गई।
"क्या बात है माँ? आप दोनों मुझसे क्या छिपा रहे हैं? बताइए।" श्वेता ने अंश और रंजना की तरफ़ देखकर उनसे पूछा।
"अरे कुछ नहीं, वह काकी कोई और बात बता रही हैं। काकी, आप श्वेता को दवाइयाँ टाइम पर खिला दीजिएगा, मैं घर जा रहा हूँ।" इतना बोलकर अंश कमरे से निकलने लगा।
"रुको अंश, कहाँ जा रहे हो? मैं कुछ पूछ रही हूँ, मुझे पहले बताओ।" श्वेता बिस्तर से उतरकर अंश को रोकते हुए बोली।
क्रमशः
रुको अंश, कहाँ जा रहे हो? मैं कुछ पूछ रही हूँ, मुझे पहले बताओ।” श्वेता अपने बिस्तर से उतरकर अंश को रोकते हुए बोली।
“तुम जानती हो बिटिया, तुम्हारे बाबा कैसे हैं और गाँव के मुखिया होने की वजह से पंचायत के कुछ लोगों ने तुम्हें बाहर पढ़ने न जाने की सलाह दी थी। सलाह क्या, बहका रहे थे तुम्हारे बाबा को! तभी तुम्हारे बाबा जब पंचायत से घर लौटे, तो मुझसे कहने लगे कि श्वेता को बाहर भेजने का उनका फैसला कहीं गलत तो नहीं है। तभी सुरेश भाई साहब ने आकर सारी बात संभाली और तुम्हारे बाबा को समझाया, और फिर अंश ने भी तुम्हारी ज़िम्मेदारी ली। तब जाकर कहीं तुम्हारे बाबा को समझ आया।” रंजना ने सारी बात खुलकर श्वेता को बता दी।
“पता नहीं लोग अपने काम से काम क्यों नहीं रखते। कुछ लोगों को पता नहीं किस बात की जलन रहती है लड़कियों से। जो लड़कियों को आगे बढ़ते देखना ही नहीं चाहते।” श्वेता मायूस होकर अपना सिर पकड़ती हुई कहती है।
“अरे दीदी, तुम परेशान क्यों होती हो? हम लोग हैं ना तुम्हारे साथ।” शालिनी ने श्वेता को गले लगाते हुए कहा।
“मैंने काका को पूरी तरह से मना लिया है। अब वह किसी के बहकावे में नहीं आएंगे। तुम अपनी पैकिंग पूरी करो, हम लोगों को परसों निकलना है, समझी तुम।” श्वेता को देखकर अंश ने मुस्कुराते हुए कहा।
और ऋषि सांझी को गले लगा लेता है, और दोनों अपनी प्यारी सी दुनिया में खो जाते हैं।
तभी सांझी का फ़ोन बजता है और सांझी ऋषि से दूर हटती है और जाकर अपना कॉल रिसीव करती है।
सांझी- हेलो डैड।
अरनव- क्या कर रही है मेरी प्रिंसेस?
सांझी- कुछ नहीं डैड, बस अपने रूम में हूँ।
अरनव- अच्छा, कॉलेज से आ गई? क्या तुम्हारा काम हो गया या नहीं?
सांझी- हाँ डैड, काम हो गया।
अरनव- अच्छा, बताओ तुम्हारे लिए क्या लाऊँ? मैं घर आ रहा हूँ।
सांझी- इतनी जल्दी? आपने तो कहा था शायद कल तक आएंगे।
अरनव- हाँ, वह काम हो गया तो जल्दी आ रहा हूँ। बताओ तुम्हारे लिए क्या ले आऊँ?
सांझी- कुछ भी ले आइए डैड, जो आपको ठीक लगे।
अरनव- ओके, मैं शाम तक घर आता हूँ।
सांझी- ओके बाय डैड।
सांझी फोन काट देती है और ऋषि से कहती है, “बेबी, तुम्हें जाना पड़ेगा, वो भी अभी, क्योंकि डैड बस आ ही रहे हैं।”
“अरे यार, अभी कितनी देर हुई है? थोड़ी देर और रुकने दो ना, उसके बाद मैं जाता हूँ!” ऋषि ने थोड़ा मुँह बनाते हुए सांझी से कहा।
“नहीं बेबी, अगर डैडी ने तुम्हें यहाँ मेरे रूम में देख लिया, तो फ़ालतू प्रॉब्लम क्रिएट हो जाएगी। इसलिए जाओ तुम, बाद में मिलते हैं फिर।” सांझी ने ऋषि को समझाते हुए कहा।
“ओके, मैं जा रहा हूँ। कल कॉलेज में मिलते हैं फिर।” ऋषि ने अपना मोबाइल अपनी जेब में रखते हुए कहा।
“ओके बाय बेबी।” सांझी ने ऋषि को गले लगाते हुए कहा।
ऋषि सांझी के घर से बाहर निकलकर अपनी कार में आकर बैठता है। ड्राइव करते हुए किसी को कॉल करता है और मुस्कुराते हुए कॉल पर बात करने लगता है।
“हेलो माय लव, कैसे हो?” उधर से किसी अनजान लड़की ने ऋषि का कॉल रिसीव करते हुए कहा।
“क्या कर रही हो मेरी जान?” ऋषि ने उस अनजान लड़की से मुस्कुराते हुए पूछा।
“कुछ नहीं, बैठी हूँ फ़्रेंड्स के साथ।” उस लड़की ने ऋषि को जवाब देते हुए कहा।
“अच्छा, कहाँ पर हो और किसके साथ हो? यह बताओ मुझे।” ऋषि ने उत्सुकता के साथ उस लड़की से पूछा।
“घर के पास वाले रेस्टोरेंट में हूँ, क्यों? क्या हुआ बेबी, ऐसे क्यों पूछ रहे हो?” उस लड़की ने ऋषि से सवाल करते हुए पूछा।
“तुमसे मिलने का मन कर रहा है मेरी जान। मैं बस दस मिनट में आया, तुम वहीं रहना, जाना मत, ओके!” ऋषि बड़ी प्यार भरी आवाज़ में उस लड़की से कहता है।
“लेकिन बेबी, अभी क्यों? हमने तो परसों मिलने का प्लान किया था ना।” उस लड़की ने ऋषि को मना करते हुए कहा।
“हाँ मेरी जान, मुझे याद है परसों के लिए बोला था मैंने, बट मुझे अभी मिलने का मन हो रहा है, इसलिए मैं आ रहा हूँ।” ऋषि ने उस लड़की की बात बीच में ही काटते हुए कहा।
“बेबी मेरी बात तो सुनो।” वह लड़की ऋषि को समझा ही रही थी कि तभी-
“ओके बेबी बाय, मैं आ रहा हूँ, बस दस मिनट में। तुम कहीं जाना नहीं।” ऋषि उस लड़की की बात सुने बिना ही फ़ोन काट देता है।
(ऋषि अपनी कार हाई स्पीड में ड्राइव करता है और लाउड म्यूज़िक के साथ दस मिनट के अंदर ही उस रेस्टोरेंट में पहुँच जाता है।)
“हेलो बेबी, यहाँ अकेले क्यों बैठी हो? तुम्हारी फ़्रेंड्स चली गई क्या?” दुबली-पतली, लंबी गर्दन, तीखा चेहरा, आँखों में ब्लू कलर का लेंस, सेप्टम नोज़ रिंग, गोल्डन हेयर, ग्लिटरी मेकअप, गले में चोकर और फ़ंकी (अजीब सी ड्रेस) ड्रेस में बैठी उस लड़की को ऋषि पीछे से गले लगाते हुए कहता है।
“हाँ ऋषु बेबी, उन्हें कुछ काम से घर जाना पड़ गया, इसलिए मैं भी बस जा ही रही थी कि तभी तुमने मुझे मना कर दिया कि कहीं जाना मत, मैं आ रहा हूँ, इसलिए मैं नहीं गई। कम सिट ना!” ऋषि को अपने बगल वाली सीट पर बिठाते हुए उस लड़की ने कहा।
“कुछ पियोगी बेबी? चलो आज कुछ नया ट्राई करते हैं।” ऋषि उस लड़की के बगल में बैठकर मेनू कार्ड को पलट कर देखते हुए कहता है।
“मैंने तो अभी स्कॉच पी है, मुझे तो बहुत पसंद आई, तुम भी ट्राई करके देखो ना ऋषु बेबी!” उस लड़की ने अपने हाथों से ऋषि के पैर को सहलाते हुए कहा।
“ओके मेरी जान, अगर तुम कह रही हो तो चलो ट्राई करते हैं।” ऋषि मुस्कुराकर उस लड़की की तरफ़ देखते हुए कहता है।
(तभी वेटर को बुलाकर वह लड़की दो फ़ुल स्कॉच मँगवाती है। वेटर कुछ देर बाद स्कॉच टेबल पर रखकर चला जाता है।)
ऋषि स्कॉच का एक घूँट लेता है और अजीब सा मुँह बनाते हुए कहता है, “सीरियसली बेबी, तुम्हें यह पसंद आया? कितना बेकार टेस्ट है इसका।”
“ओहो, अभी एक ही घूँट ली है तुमने। एक-दो बार और ट्राई करो, फिर अच्छा लगेगा!” उस लड़की ने अजीब तरह से मुस्कुराते हुए ऋषि को ड्रिंक ज़बरदस्ती अपने हाथ से पिला दी।
“यार, मुझे तो यह बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा। मेरा तो सिर घूम रहा है। पता नहीं मैं अब ड्राइव कैसे करूँगा और घर कैसे जाऊँगा।” ऋषि ने अपने सिर पर हाथ लगाते हुए कहा।
“कोई बात नहीं मेरी जान, मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूँगी।” और फिर से अजीब तरह से मुस्कुराते हुए उस लड़की ने ऋषि को देखते हुए कहा।
“अब और नहीं पीना, मुझे बस करो बेबी, शायद मुझे चढ़ रही है।” ऋषि ने स्कॉच अपने मुँह के पास से हटाते हुए कहा।
“इधर मेरी तरफ़ देखो मेरी जान, तुमने मुझे बताया नहीं, आज मैं कैसी लग रही हूँ।” उस लड़की ने ऋषि का मुँह अपने हाथों से अपनी तरफ़ करते हुए कहा।
“बहुत अच्छी, बिल्कुल हॉलीवुड की पॉपस्टार लग रही हो मेरी जान।” नशे की हालत में मुस्कुराते और लड़खड़ाती हुई ज़बान से ऋषि ने कहा।
“थैंक्स बेबी, तुम भी आज बहुत हॉट लग रहे हो।” उस लड़की ने ऋषि के होंठों पर फ्रेंच किस करते हुए कहा।
“लव यू बेबी, चलो ना कहीं रोमांटिक जगह चलते हैं, जहाँ सिर्फ़ हम हों, ओन्ली यू एंड मी।” ऋषि ने उस लड़की की कमर पकड़ते हुए कहा।
“ओके बेबी, बट ऐसी जगह चलने के लिए पहले हमें यहाँ से बाहर चलना होगा।” उस लड़की ने अपनी जगह पर खड़े होते हुए ऋषि से कहा।
“हाँ, चलो फिर चलते हैं।” ऋषि ने उस लड़की का हाथ पकड़कर रेस्टोरेंट से बाहर निकलते हुए कहा।
(पार्किंग लॉट में खड़ी अपनी कार के पास आकर ऋषि रुकता है।)
“बोलो बेबी, कहाँ चलना है?” ऋषि अपनी कार में बैठते हुए उस लड़की से कहता है।
“अभी तुमने ही तो कहा बेबी, ऐसी जगह चलो जहाँ कोई ना हो, सिर्फ़ हम तुम हों, तो चलो फिर ऐसी ही जगह चलते हैं।” उस लड़की ने ऋषि को आँख मारते हुए कहा।
“लेकिन ऐसी कौन सी जगह है जहाँ सिर्फ़ हम तुम होंगे?” ऋषि ने थोड़ा कन्फ़्यूज होते हुए उस लड़की से पूछा?
क्रमशः
"बोलो बेबी कहाँ चलना है।" ऋषि अपनी कार में बैठते हुए उस लड़की से कहा।
"अभी तुमने ही तो कहा बेबी ऐसी जगह चलो जहाँ कोई ना हो सिर्फ़ हम तुम हों, तो चलो फिर ऐसी ही जगह चलते हैं।" उस लड़की ने ऋषि को आँख मारते हुए कहा।
फार्महाउस पर पहुँचकर, ऋषि उस लड़की के साथ फार्महाउस के अंदर आया और हॉल में पड़े एक सोफ़े पर बैठते हुए कहा, "बेबी एक काम करो, मुझे थोड़ा नींबू पानी दे दो, मेरा सर फट रहा है।"
"जब मैं तुम्हारे पास हूँ तो तुम्हें नींबू पानी की क्या ज़रूरत है मेरी जान।" उस लड़की ने ऋषि की गोद में बैठते हुए कहा।
"पता नहीं बेबी, बस यह नशा बड़ा अजीब है।" ऋषि ने अपने सर पर हाथ लगाते हुए कहा।
"मैं बस दो मिनट में तुम्हारा नशा उतार दूँगी, डोंट वरी बेबी।" उस लड़की ने ऋषि का ब्लेज़र उतारते हुए कहा।
ऋषि उस लड़की को देखकर मुस्कुराया और वह लड़की ऋषि के गाल को चूम ली।
"गेट अप बेबी, मेरे साथ आओ।" ऋषि का हाथ पकड़कर, ऋषि को सोफ़े से उठाते हुए उस लड़की ने कहा।
"मुझे कहाँ ले जा रही हो बेबी?" ऋषि सोफ़े से उठते हुए उस लड़की से पूछा।
"तुम्हारा नशा उतारने ले जा रही हूँ, चलो ना बेबी, कितने सवाल पूछते हो।" उस लड़की ने ऋषि को एक कमरे की तरफ़ ले जाते हुए कहा।
"बेबी हम यहाँ वॉशरूम में क्या कर रहे हैं?" ऋषि ने वॉशरूम के चारों तरफ़ देखते हुए उस लड़की से पूछा।
"ओफ़्फ़ो बेबी, फिर से एक और सवाल! अब तुम बिल्कुल चुप रहोगे, कुछ नहीं बोलोगे जब तक मैं नहीं कहती।" ऋषि के कान के पास आकर धीरे से ऋषि को किस करते हुए उस लड़की ने कहा।
ऋषि उस लड़की की बात सुनकर उसे करीब खींचता है और कहता है, "बेबी तुम चाहती हो मैं कुछ ना बोलूँ तो ठीक है, मैं कुछ नहीं बोलूँगा और ना ही तुम्हें कुछ बोलने दूँगा।"
"मतलब......" वह लड़की ऋषि को देखकर मुस्कुराते हुए पूछती है।
ऋषि उस लड़की को बिना कुछ जवाब दिए उसे अपनी तरफ़ खींचता है और उसके होंठों पर अपना होंठ रख देता है और किस करने लगता है।
अंश श्वेता के कमरे से बाहर आया और दरवाज़े के पास रुककर पीछे मुड़ते हुए कहा, "शालिनी अपनी दीदी की पैकिंग में हेल्प कर देना और इसे दवाइयाँ भी खिला देना।"
"अच्छा ठीक है, भैया खिला दूँगी। वैसे आप घर जा रहे हैं क्या?" शालिनी ने अंश की तरफ़ देखकर कहा।
"हाँ, मैं घर जा रहा हूँ।" अंश ने श्वेता की तरफ़ देखकर शालिनी को जवाब दिया।
और इतना बोलकर अंश कमरे से बाहर आ गया और अपने घर की तरफ़ जाने लगा।
तभी श्वेता के पापा अंश को रोकते हुए कहते हैं, "रुको अंश, मुझे तुमसे एक और ज़रूरी बात करनी है।"
"हाँ बताइए ना काका, क्या बात है?" अंश रघुवीर के पास आकर कहता है।
"तुम्हारी ज़िम्मेदारी पर श्वेता बिटिया को भेज रहा हूँ। अगर शहर में कुछ ऊँच-नीच हुई तो हमसे बुरा कोई नहीं होगा।" रघुवीर ने अपनी सख्त आवाज़ में अंश से कहा।
"मैं श्वेता को कभी अकेला नहीं छोडूँगा, वह हमेशा मेरे साथ ही रहेगी, जहाँ जाएगी मेरे साथ जाएगी और मैं उसका पूरा ध्यान रखूँगा, आप बिल्कुल चिंता मत करिए काका।" अंश ने पूरी गंभीरता के साथ रघुवीर को जवाब दिया।
"अंश बेटा, मैं तुम्हें अपनी सबसे कीमती चीज़ दे रहा हूँ, श्वेता। मेरे लिए क्या है यह सिर्फ़ मैं ही जानता हूँ। मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ। अगर मेरी बिटिया का एक आँसू भी किसी वजह से बहा तो मैं उसकी जान ले लूँगा और तुम पर मैं इतना भरोसा करता हूँ। उम्मीद करता हूँ तुम मेरा भरोसा नहीं तोड़ोगे।" रघुवीर ने अंश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
रघुवीर की बात सुनकर पहले तो अंश थोड़ा घबरा जाता है, लेकिन फिर हिम्मत करके जवाब देता है, "काका, मैं जानता हूँ आप श्वेता को बहुत चाहते हैं और उसके लिए कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन मैं श्वेता का बचपन का दोस्त हूँ और उसे बहुत अच्छे से समझता हूँ, इसलिए आप बेफ़िक्र रहिए।"
रघुवीर मुस्कुराता हुआ अंश की पीठ थपथपाता है और वहाँ से चला जाता है।
अंश एक गहरी साँस लेता है और कहता है, "काका ने तो बिल्कुल डरा ही दिया।"
उधर कमरे में, शालिनी चिढ़ते हुए श्वेता से कहती है, "दीदी, यह अंश भैया कुछ ज़्यादा ही नहीं तेरी फ़िक्र का दिखावा करते हैं। जब देखो तब शालिनी दीदी को दवा खिला देना, शालिनी दीदी की पैकिंग करा देना, शालिनी यह कर देना, शालिनी वह कर देना। जब देखो तब मुझे तेरी सेवा में लगाकर चले जाते हैं। दीदी तू ना भैया से बोल दे कि मुझे इस तरह हुक्म दिए ना जाया करें, मैं तो वैसे भी तेरा सारा काम करवाती ही हूँ।"
"पागल है तू बिल्कुल! अंश दिखावा नहीं करता, वह सच में मेरी परवाह करता है।" श्वेता ने शालिनी को समझाते हुए कहा।
"मुझे तो नहीं लगता, बस अंश भैया बाबा और माँ को दिखाने के लिए ही दिखावा करते हैं।" शालिनी श्वेता का कुछ सामान उसके बैग में पैक करते हुए कहती है।
"अंश सही कहता है, तू सच में बिल्कुल पागल है।" श्वेता ने शालिनी के सर पर मारते हुए कहा।
"हाँ दीदी, तुम तो अब अंश भैया का ही साइड लोगी, क्योंकि तुम्हें उनके साथ कॉलेज जाना है।" शालिनी ने मुँह बनाकर श्वेता से कहा।
"नहीं पगली, ऐसा नहीं है। वैसे मैं कॉलेज जाकर तुमको बहुत मिस करूँगी और सबसे ज़्यादा बाबा और माँ को।" इतना बोलकर श्वेता की आँखों में आँसू आ जाते हैं।
"मैं भी तुमको बहुत मिस करूँगी दीदी, तुम ना मुझसे रोज़ कॉल पर बात करना।" श्वेता को गले लगाते हुए शालिनी ने कहा।
"हाँ, वह तो मैं ज़रूर करूँगी।" श्वेता ने अपने आँसू पूछते हुए कहा।
"तुम्हारा पैर का दर्द अब कैसा है? पहले यह बताओ मुझे।" रंजना ने श्वेता के कमरे में आते हुए हड़बड़ाहट से पूछा।
"हाँ, दर्द तो काफ़ी कम है। लेकिन क्या हुआ माँ, ऐसे क्यों पूछ रही हो?" श्वेता ने रंजना को घूरकर देखते हुए कहा।
"अरे मेरा मतलब है, तू चल तो लेगी ना? चलते वक़्त लड़खड़ाएगी तो नहीं।" श्वेता की माँ ने श्वेता से पूछा।
"हाँ माँ, मैं चलूँगी, लेकिन क्या हुआ?" श्वेता ने अपनी भौंहें चढ़ाते हुए अपनी माँ से पूछा।
"तेरे बाबा ने तुझे अभी इसी वक़्त अपने कमरे में बुलाया है, वह भी अकेले।" रंजना ने श्वेता के सर पर हाथ रखते हुए कहा।
"लेकिन बाबा ने दीदी को अकेले क्यों बुलाया है? और अगर दीदी लंगड़ाते हुए बाबा के कमरे में गई तो बाबा पूछेंगे, फिर तुम क्या बताओगी दीदी?" शालिनी ने घबराते हुए श्वेता से पूछा।
"वह सब मैं देख लूँगी, लेकिन बाबा ने मुझे बुलाया क्यों है माँ?" श्वेता ने घबराते हुए अपनी माँ से पूछा।
क्रमशः
श्वेता ने घबराते हुए अपनी माँ से पूछा, "वह सब मैं देख लूँगी, लेकिन बाबा ने मुझे बुलाया क्यों है, माँ?"
"अरे दीदी, अब यह तो बाबा के कमरे में जाकर ही पता चलेगा। तुम कहो तो मैं चलूँ तुम्हारे साथ," शालिनी ने श्वेता को सहारा देते हुए कहा।
रंजना ने शालिनी को रोकते हुए कहा, "नहीं, तेरे बाबा ने सिर्फ़ श्वेता को बुलाया है और खासकर यह भी कहा है कि सिर्फ़ अकेले श्वेता को ही भेजना।"
शालिनी ने अपनी माँ से सफ़ाई देते हुए कहा, "अच्छा, ठीक है माँ। मैं नहीं जा रही हूँ दीदी के साथ, लेकिन कम से कम उन्हें कमरे के बाहर तक तो छोड़ कर आ ही सकती हूँ।"
रंजना ने शालिनी को डाँटते हुए कहा, "नहीं शालिनी, तुम चुपचाप यहीं बैठो। श्वेता अकेले जाएगी। मुझे तेरी हरकतें पता हैं, तू दरवाज़े पर कान लगाकर खड़ी हो जाएगी।"
शालिनी ने गुस्से से मुँह फुलाकर, अपनी माँ की तरफ़ देखते हुए कहा, "ठीक है, मैं नहीं जा रही हूँ। जाओ दीदी, तुम अकेले ही चली जाओ।"
रंजना ने श्वेता का कंधा पकड़ते हुए कहा, "चलो श्वेता, मैं तुम्हें बाबा के कमरे तक छोड़ देती हूँ।"
श्वेता ने रंजना से कहा, "नहीं माँ, आप रहने दीजिए, मैं चली जाऊँगी।"
श्वेता अपने कमरे से बाहर निकली और रघुवीर के कमरे में भारी कदमों से चलती हुई आई।
श्वेता ने रघुवीर के कमरे का दरवाज़ा खटखटाते हुए पूछा, "बाबा, आपने मुझे बुलाया है क्या?"
रघुवीर ने बड़े प्यार से श्वेता को अंदर बुलाते हुए कहा, "हाँ बिटिया, आओ भीतर आओ। वहाँ दरवाज़े पर काहे खड़ी हो?"
श्वेता ने अपनी झुकी हुई नज़रों के साथ रघुवीर से पूछा, "बाबा, कोई काम था क्या आपको?"
रघुवीर ने श्वेता को अपने पास बिठाते हुए कहा, "नहीं बिटिया, काम नहीं, बस तुमसे कुछ बात करनी थी, इसीलिए बुलाया था तुम्हें।"
रघुवीर ने श्वेता के सर पर हाथ फेर कर उसे समझाते हुए कहा, "हम तुमको अपनी जान से भी ज़्यादा चाहते हैं और तुम्हें कभी खुद से दूर नहीं किया। और कॉलेज में तुम्हें किसी भी चीज़ की कोई परेशानी या दिक्क़त हो तो तुम मुझे सबसे पहले बताना। और अगर तुम्हें कहीं भी जाना हो तो सिर्फ़ अंश के साथ ही जाना, क्योंकि शहर में बहुत से ऐसे लोग तुम्हें मिलेंगे जो सामने मुँह पर तो बहुत अच्छे लेकिन पीठ पीछे तुम्हारी बुराई करेंगे। इसलिए वहाँ पर किसी भी इंसान पर भरोसा मत करना।"
श्वेता ने मुस्कुराते हुए रघुवीर से कहा, "जी बाबा, मैं अंश के साथ ही रहूँगी और किसी पर भरोसा नहीं करूँगी और कोई भी परेशानी हुई तो सबसे पहले आपको ही बताऊँगी।"
रघुवीर श्वेता को गले लगाकर कहता है, "मेरी बिटिया बहुत ही समझदार है। ठीक है बिटिया, अब तुम अपने कमरे में जाओ।"
श्वेता ने एक गहरी साँस ली और अपने बाबा के कमरे से बाहर निकल कर आई और अपने कमरे में आकर बिस्तर पर बैठती हुई अपनी माँ से कहा, "माँ, आपने तो मुझे ऐसे डरा दिया था जैसे बाबा मुझे डाँटने के लिए बुला रहे हैं।"
शालिनी ने बड़ी उत्सुकता के साथ पूछा, "क्या कहा दीदी, बाबा ने?"
श्वेता ने शालिनी की बात का जवाब देते हुए कहा, "कुछ नहीं, बस बाबा समझा रहे थे वही बातें जो माँ ने बताई थीं।"
रंजना कमरे से बाहर आते हुए श्वेता और शालिनी से कहती है, "चलो अच्छा, ठीक है। तुम दोनों भी अब आराम करो।"
ऋषि उस लड़की को बिना कुछ जवाब दिए अपनी तरफ़ खींचता है और उसके होंठों पर अपना होंठ रख देता है और किस करने लगता है।
वह लड़की और ऋषि एक-दूसरे की बाहों में इस तरह खो चुके थे कि उन्हें किसी का भी होश नहीं था। तभी वह लड़की ऋषि की पीठ के पीछे अपना हाथ फेरती है और पास में लगे शॉवर को ऑन कर देती है।
ऋषि उस लड़की को घूर कर देखते हुए कहता है, "अरे बेबी, शॉवर क्यों ऑन कर दिया?"
उस लड़की ने ऋषि के मुँह पर अपनी उंगली रखते हुए कहा, "शह्ह्ह्ह्ह, मैंने कहा था ना बेबी, जब तक मैं ना कहूँ तब तक कुछ नहीं बोलोगे तुम।"
ऋषि ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा, "वो तो ठीक है यार, लेकिन बेबी मेरे पास चेंज करने के लिए कुछ नहीं है। अब मैं क्या पहनूँगा?"
वह लड़की बिना कुछ बोले ही ऋषि के शर्ट के बटन खोलने लगती है।
ऋषि मुस्कुराते हुए उस लड़की की कमर में हाथ डालते हुए बोला, "इरादा क्या है बेबी? मेरी जान लोगी क्या आज?"
उस लड़की ने ऋषि के कान के पास आकर उसकी गर्दन पर किस करते हुए कहा, "हाँ बेबी, सोचा तो ऐसा ही कुछ है।"
ऋषि मदहोश होने लगता है और उस लड़की को अपने सीने से लगाते हुए कहता है, "बेबी, आई लव यू। यू आर ओनली माइन।"
उस लड़की ने शॉवर बंद करते हुए ऋषि को मुस्कुराकर जवाब दिया, "यस, ऑफ़कोर्स बेबी।"
ऋषि ने उस लड़की को अपनी गोद में उठाते हुए कहा, "चलो बेबी, रूम में चलते हैं।"
उस लड़की ने ऋषि को मुस्कुराकर देखते हुए कहा, "तुमको पता है ना बेबी, परसों हम लोग द वेस्टर्न क्लब में मिलेंगे।"
ऋषि ने उस लड़की को बेड पर लिटाकर मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ बेबी, मुझे याद है। और परसों की परसों देखेंगे ना, अभी तो बस आज की यह शाम एन्जॉय करो तुम।"
उस लड़की ने साँझी का नाम लेते हुए मुँह बनाकर ऋषि से कहा, "तुम वहाँ अपनी उस सो कॉल्ड गर्लफ्रेंड के साथ मत लेकर आना, मुझे वह लड़की बिल्कुल पसंद नहीं है।"
ऋषि ने उस लड़की की गर्दन पर किस करते हुए कहा, "ओह्ह्ह्ह बेबी, क्यों? तुम किसी और का नाम लेकर इतना अच्छा अपना मूड खराब कर रही हो? छोड़ो ना यह सब।"
उस लड़की ने ऋषि को बेड पर लिटाते हुए कहा, "आई थिंक तुम ठीक कह रहे हो बेबी, मुझे ऐसे लोगों का नाम लेकर अपना मूड खराब नहीं करना चाहिए।"
ऋषि पैशनेट होकर उस लड़की को किस करने लगता है। तभी उस लड़की का फ़ोन बजता है।
उस लड़की ने ऋषि को अपने ऊपर से हटाते हुए कहा, "बस भी करो बेबी, अब मुझे देखने दो किसकी कॉल है।"
ऋषि ने उस लड़की को मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "छोड़ो ना बेबी, जाने दो। कोई फ़्रेंड ही होगा तुम्हारा। और वैसे भी तुम शायद भूल रही हो, हम अपनी क्वालिटी टाइम में किसी का कॉल रिसीव नहीं करते हैं।"
तभी फ़ोन रिंग करना बंद कर देता है।
उस लड़की ने मुस्कुराकर ऋषि के गालों पर किस करते हुए कहा, "अच्छा ठीक है बाबा, नहीं रिसीव करती कोई कॉल, अब हैप्पी।"
ऋषि मुस्कुराते हुए उस लड़की को कस के गले लगा लेता है और एक बार फिर दोनों एक-दूसरे में खो जाते हैं।
जल्दी करो शालिनी, गाड़ी में सारा सामान रखवा दो।"—किचन से आवाज़ लगाते हुए श्वेता की माँ ने शालिनी से कहा।
"हाँ माँ, सारा सामान रखवा दिया है।"—शालिनी ने किचन में झाँकते हुए रंजना से कहा।
"देख शालिनी, श्वेता अभी तक नीचे क्यों नहीं उतरी? कितना देर लगा रही है तैयार होने में? पाँच बज चुके हैं और श्वेता अभी तक तैयार नहीं हुई क्या?"—रंजना ने शालिनी को श्वेता के कमरे में जाने के लिए कहा।
"अभी देख कर आती हूँ दीदी को।"—शालिनी दौड़ते हुए श्वेता के कमरे में गई।
"अभी तक तैयार नहीं हुई क्या दीदी? माँ गुस्सा कर रही हैं। चलो जल्दी नीचे, अभी तुम्हें नाश्ता भी करना है।"—कमरे में आते हुए शालिनी ने तेज आवाज़ में श्वेता से कहा।
"मैं तैयार हो गई हूँ, बस आ ही रही थी।"—श्वेता ने अपना दुपट्टा ठीक करते हुए कहा।
"वाह दीदी, तुम कितनी अच्छी लग रही हो! लेकिन तुमने तो कहा था यह वाला सूट तुम मुझे दे दोगी। फिर से तुमने इसे पहन लिया?"—शालिनी ने श्वेता के दुपट्टे को अपने हाथ में पकड़कर कहा।
"क्या करूँ? मुझे और कुछ समझ ही नहीं आ रहा था, इसलिए इसे ही पहन लिया।"—श्वेता ने हँसते हुए शालिनी से कहा।
"चलो अच्छा, कोई बात नहीं। चलो अब नाश्ता कर लो जल्दी से, वरना निकलने में देर हो जाएगी। और मैंने भी अभी नाश्ता नहीं किया, सोचा था तुम्हारे साथ ही कर लूँगी।"—शालिनी श्वेता को खींचते हुए नीचे लाने लगी।
"मुझसे ज़्यादा जल्दी तो तुझसे है! रुक जा, चल रही हूँ। ऐसे जल्दी-जल्दी करेगी नहीं तो मैं फिर से गिर जाऊँगी।"—श्वेता ने शालिनी के हाथ से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा।
"ओ हो! अब क्या कर रही हो दीदी? अभी भी कुछ लेना बाकी रह गया है क्या?"—शालिनी थोड़ा मुँह बनाते हुए श्वेता से कहती है।
"नहीं, कुछ नहीं। चलो तुम नाश्ता करो, मैं आ रही हूँ।"—श्वेता ने अपने ड्रॉअर से कुछ पोटली जैसा सामान अपने बैग में रखते हुए शालिनी से कहा।
कुछ देर बाद दोनों अपनी घर के मेन दरवाज़े से बाहर निकलीं और शालिनी जल्दी से गाड़ी में बैठ गई।
"जाओ श्वेता बिटिया, खूब मन लगाकर पढ़ना। अंश, मेरी बिटिया का पूरा ध्यान रखना।"—श्वेता को गले लगाते हुए रंजना ने अंश से कहा।
"आप बेफ़िक्र रहिए काकी, मैंने जो वादा आपसे और काका से किया है, मैं उसे पूरी शिद्दत से निभाऊँगा। मुझ पर भरोसा रखिए काकी।"—अंश ने रंजना से बड़ी ही गंभीरता के साथ कहा।
"चलो बच्चों, जल्दी से गाड़ी में बैठो, वरना ट्रेन छूट जाएगी।"—अंश के बाबा ने अंश और श्वेता को गाड़ी में बैठने के लिए कहा।
श्वेता और अंश गाड़ी में बैठे और स्टेशन पहुँचकर अपनी ट्रेन का इंतज़ार करने लगे। तभी ट्रेन आने की अनाउंसमेंट हुई.....
"अंश भैय्या, मेरी दीदी का ख्याल रखना।"—शालिनी ने श्वेता को गले लगाते हुए अंश से कहा।
"अच्छा और बताइए महारानी जी, और कोई हुक्म?"—अंश ने शालिनी को चिढ़ाते हुए कहा।
"क्या भैय्या, जाते-जाते भी मुझे चिढ़ा रहे हैं आप?"—शालिनी ने शिकायती लहजे में अंश से कहा।
"हाँ तो क्या हुआ? मैं तो हमेशा तुम्हें यूँ ही चिढ़ाऊँगा, पागली शालिनी।"—अंश ने शालिनी को गले लगाते हुए कहा।
"चलिए अच्छा, अब ज़्यादा प्यार मत दिखाइए।"—शालिनी अंश को मुस्कुराते हुए देखकर कहती है।
"चल अंश बेटा, तेरा और श्वेता बिटिया का सामान रखवा दिया है, चलो तुम दोनों अपनी-अपनी सीट पर बैठो।"—सुरेश ने अंश और श्वेता से कहा।
"जाओ दोनों लोग, एक-दूसरे का ध्यान रखना।"—रघुवीर अंश और श्वेता के सर पर अपना हाथ रखते हुए कहता है।
"जी काका/जी बाबा।"—श्वेता और अंश ने सर हिलाते हुए जवाब दिया।
"मौसी के घर पहुँच कर फ़ोन कर देना अंश।"—अंश के पापा ने अंश की पीठ थपथपाते हुए कहा।
(श्वेता और अंश अपनी-अपनी सीट पर बैठे, खिड़की से बाहर देखते हुए सब लोगों से हाथ हिलाते हुए बाय-बाय करते हैं।)
"चल रघुवीर, ट्रेन चली गई। अब क्या तू ऐसे ही खड़े होकर घूरता रहेगा?"—सुरेश ने रघुवीर के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
"अरे नहीं, चलो घर चलते हैं। चलो शालिनी बिटिया, गाड़ी में बैठो।"—रघुवीर ने सुरेश की बात का जवाब देते हुए शालिनी से कहा।
"अब क्या बाहर ही देखती रहोगी?"—अंश ने श्वेता के चेहरे के सामने हाथ हिलाते हुए कहा।
"मुझे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा अंश, कि मैं इतने बड़े और नामी कॉलेज में पढ़ने जा रही हूँ।"—श्वेता ने चमकती हुई आँखों से और मुस्कुराते हुए होंठों से अंश को जवाब दिया।
"आउच! अरे क्या कर रहे हो?"—श्वेता ने अंश को घूरते हुए देखकर कहा।
"तुम्हें यकीन दिला रहा हूँ।"—अंश ने श्वेता के हाथ पर चुटकी काटते हुए कहा।
"सच में अंश, आज मैं बहुत खुश हूँ।"—श्वेता ने अंश को प्यार भरी निगाहों से देखकर कहा।
"हाँ, वो तो मैं तुम्हारे चेहरे पर देख ही रहा हूँ। वैसे बहुत अच्छी लग रही हो।"—अंश ने श्वेता को मुस्कुराकर देखते हुए कहा।
श्वेता ने मुस्कुराते हुए अपनी नज़रें झुका लीं।
तभी एक स्टेशन पर ट्रेन रुकी और अंश पानी लेने के लिए नीचे स्टेशन पर आया। तभी दो-तीन लड़के ट्रेन पर चढ़े और हल्ला-गुल्ला मचाते हुए इधर-उधर देखने लगे। तभी उनमें से एक लड़का अपने साथियों को श्वेता की तरफ़ इशारा करके श्वेता को घूरकर देखता हुआ कुछ कहता है।
श्वेता उन लड़कों को देखकर डर गई और खिड़की के बाहर से अंश को देखने लगी।
तभी उनमें से एक लड़का श्वेता के सामने आकर बैठ गया और दूसरा लड़का श्वेता के बगल में आकर बैठ गया। और तीसरा लड़का श्वेता के सामने आकर खड़ा हो गया।
श्वेता उन लड़कों को यूँ अपने इतने करीब देखकर डर की वजह से पसीने-पसीने हो गई। तभी एक लड़का सामने से श्वेता का हाथ पकड़ लेता है और कहता है—"अकेले-अकेले कहाँ जा रही हो darling?"
"कहो तो तुम्हें कंपनी दे दें।"—दूसरे लड़के ने श्वेता को घूरकर देखते हुए कहा।
क्रमशः
श्वेता उन लड़कों को इतने करीब देखकर डर से पसीने-पसीने हो गई। तभी एक लड़का सामने से श्वेता का हाथ पकड़कर बोला, "अकेले-अकेले कहाँ जा रही हो, darling?"
"कहो तो तुम्हें कंपनी दे दें," दूसरे लड़के ने श्वेता को घूरते हुए कहा।
श्वेता अपनी सीट से खड़ी होकर स्टेशन पर अंश की तरफ जाने लगी।
"अरे मैडम, कहाँ जा रही हो? हमें यूँ अकेला छोड़कर। रुको ज़रा, अभी तो हम आए हैं, और तुम यूँ हमें अकेला छोड़कर भाग रही हो।" एक लड़के ने श्वेता का हाथ पकड़ते हुए कहा।
"मेरा हाथ छोड़ो और यहाँ से चले जाओ, वरना बहुत पछताओगे।" श्वेता ने अपने हाथ को झटके से छुड़ाते हुए कहा।
"ओहो बेबी, तुम धमकी देना भी जानती हो। अच्छा, अगर तुम्हारा हाथ नहीं छोड़ेंगे तो क्या करोगी?" दूसरे लड़के ने श्वेता की कलाई कसकर पकड़ते हुए कहा।
तभी पीछे से अचानक अंश आया और जिस लड़के ने श्वेता की कलाई पकड़ी थी, उसे जोरदार मुक्का मार दिया। वह आदमी जमीन पर गिर पड़ा।
"तू है कौन, बेसाले? और तेरी हिम्मत कैसे हुई हमारे दोस्त को मारने की?" उन दोनों में से एक गुंडे ने खिसियाते हुए कहा।
"अगर किसी ने इसकी तरफ एक कदम भी बढ़ाया, तो वह अपनी जान से हाथ धो बैठेगा।" अंश ने श्वेता को अपनी पीठ के पीछे करते हुए, गुस्से से उन दोनों लड़कों को घूरते हुए कहा।
"अच्छा, तू है कौन? पहले यह तो बता।" उनमें से एक गुंडे ने अंश को घूरकर देखते हुए कहा।
"अरे रघु भाई, यह भी कोई पूछने वाली बात है? हट्टी-कट्टी बॉडी देखकर तो यह इस लड़की का बॉडीगार्ड ही लग रहा है।" लड़के ने अंश की तरफ देखकर हँसते हुए कहा।
"आईला, मतलब बॉडीगार्ड, पिच्चर वाला।" उस आदमी ने अंश का मज़ाक उड़ाते हुए हँसते हुए कहा।
"हाँ, बिल्कुल वैसे ही। अगर तुम लोग अपनी बॉडी सही-सलामत चाहते हो, तो अभी के अभी उतर जाओ, वरना मैं तुम लोगों को एक-एक करके फेंकने वाला हूँ।" अंश ने बड़ी सहूलियत से अपनी शर्ट की बाजूएँ चढ़ाते हुए कहा।
"अच्छा, तो तू हमें धमकी दे रहा है।" उस लड़के ने अंश की तरफ बढ़ते हुए कहा।
"धमकी नहीं, वार्निंग दे रहा हूँ।" अंश ने उस आदमी को घूरकर जवाब दिया।
वह आदमी अंश की तरफ बढ़ा और अंश के शर्ट का कॉलर पकड़कर धमकाते हुए बोला, "तू अभी मुझे नहीं जानता, मैं तेरे साथ क्या-क्या कर सकता हूँ।"
अंश उस आदमी को पूरी ताकत से अपनी तरफ खींचकर ट्रेन के दरवाजे से बाहर धक्का दे दिया। वह आदमी ट्रेन से बाहर गिर गया। तभी दूसरा आदमी दौड़ता हुआ अंश की तरफ आया और अंश के पेट में एक घूँसा मारा। अंश अपनी जगह से थोड़ा पीछे की तरफ लड़खड़ा गया। अंश ने खुद को संभाला और उस आदमी का सर ट्रेन के दरवाजे पर लड़ा दिया। उस आदमी के सर से खून बहने लगा और अंश ने उसे भी ट्रेन से बाहर फेंक दिया। तभी जो आदमी सबसे पहले गिरा था, वह अचानक उठा और पीछे से अंश के हाथ पर चाकू से वार किया। अंश के हाथ से खून बहने लगा। तभी अंश उस आदमी का हाथ पकड़कर उसके पेट में अपने पैरों से मारने लगा और वह आदमी डर की वजह से ट्रेन से कूदकर भाग गया।
"तुम ठीक तो हो ना, श्वेता? उन बदमाश लड़कों ने तुम्हें कहीं चोट तो नहीं पहुँचाई?" अंश ने श्वेता को उसकी सीट पर बैठाते हुए कहा।
"नहीं अंश, मुझे तो कोई चोट नहीं लगी, लेकिन तुम्हारे हाथों से खून बह रहा है!" श्वेता ने अंश के हाथ से बहते हुए खून को देखकर कहा।
"हाँ, शायद थोड़ी सी चोट लग गई है। चल, सबसे पहले पट्टी करवा लूँगा!" अंश ने अपने हाथ में लगी चोट का खून पूछते हुए कहा।
"अरे, तब तक तो काफी खून बह जाएगा! लाओ, मुझे दिखाओ।" श्वेता ने अंश की शर्ट के बटन खोलते हुए कहा।
"श्वेता, क्या कर रही हो? रहने दो, कुछ मत करो, मुझे दर्द होगा।" अंश ने श्वेता को मनाते हुए कहा।
"एक मिनट, तुम चुप रहोगे। मुझे देखने तो दो कम से कम! अगर इसका खून बहना बंद नहीं हुआ, तो और दर्द बढ़ जाएगा।" श्वेता ने अंश को गुस्से से आँख दिखाते हुए कहा।
अंश चुप होकर मुस्कुराते हुए श्वेता को प्यार भरी नज़रों से देखने लगा।
श्वेता ने अंश की शर्ट उतारी। अंश का कसा हुआ बदन देखकर श्वेता थोड़ी शर्मा गई और अपने बैग से कॉटन का रुमाल निकालकर अंश की चोट पर लगा खून साफ़ करने लगी।
"इतनी ज़्यादा मार-पीट करने की ज़रूरत नहीं थी, अंश! अगर ज़्यादा चोट लग जाती तो!" श्वेता ने अंश की छाती पर अपना एक हाथ रखते हुए और अंश की चोट पर फूँक मारते हुए कहा।
"अगर दोबारा किसी ने तुम्हारी तरफ नज़र उठाकर भी देखा, तो इस बार तो मैं उसकी जान ही ले लूँगा!" अंश ने श्वेता का दुपट्टा ठीक करते हुए कहा।
श्वेता अंश की बात सुनकर अंश को मुस्कुराकर निहारती ही रह गई।
अंश ने श्वेता के बालों की एक लट श्वेता के कान के पीछे करते हुए मुस्कुराते हुए कहा, "अब बस भी करो, और कितना घूरकर देखोगी मुझे?"
श्वेता शर्माती हुई अपना हाथ अंश के बदन से हटाकर अपनी नज़रें झुका ली।
"ओह हेलो, तुम मेरा कॉल रिसीव क्यों नहीं कर रहे थे? यह बताओ, तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है? इतना इग्नोर क्यों करने लगे हो मुझे?" सांझी ने सौम्य का हाथ पकड़कर उसे रोका और उसके सामने आकर बोली।
"मैंने तुम्हें कब इग्नोर किया? और मैं थोड़ा घर के कामों में बिजी था, इसीलिए शायद तुम्हारा कॉल रिसीव नहीं कर पाया होगा। इसमें इतना ज़्यादा कुछ सोचने वाली बात है?" सौम्य ने बड़ी शांति से अपना हाथ सांझी के हाथ से छुड़ाते हुए कहा।
"रियली, सौम्य? तुम खुद को समझते क्या हो? मैंने तुम्हें कम से कम बीस बार कॉल किया होगा, लेकिन तुमने इतनी मिस कॉल देखने के बाद भी एक बार भी मुझे कॉल बैक नहीं किया। देखना, जब कभी तुम मुझे कॉल करोगे ना, मैं भी तुम्हारा कॉल रिसीव नहीं करूँगी। तब तुम्हें पता चलेगा कैसा लगता है।" सांझी ने अपने भौंहें चढ़ाकर अपना सर नाराज़गी से इधर-उधर हिलाते हुए कहा।
"अगर कोई काम था, तो तुम मैसेज भी कर सकती थीं। इतनी कॉल पर कॉल करने की तुम्हें ज़रूरत भी क्या थी?" सौम्य ने बिना किसी एक्सप्रेशन के सांझी को देखते हुए कहा।
सांझी वहीं खड़ी बिना कुछ बोले सौम्य को घूर रही थी।
"हाय सांझी, आज तू इतनी जल्दी कॉलेज कैसे आ गई?" ब्लैक क्रॉप टॉप, शाइनी ब्लैक जीन्स और ब्लैक लेदर का जैकेट पहने एक लड़की ने सांझी के कंधे पर हाथ रखते हुए सांझी से कहा।
"हाय पंखुड़ी, यह सवाल तो मुझे तुझसे पूछना चाहिए, क्योंकि तू तो कभी स्कूल टाइम पर नहीं आती थी, आज कॉलेज टाइम से आ गई। बाय द वे, मैं जल्दी नहीं, करेक्ट टाइम पर आई हूँ।" सांझी ने सौम्य को घूरते हुए ही पंखुड़ी की बात का जवाब दिया।
"अब तू यहाँ खड़े होकर इस सौम्य को क्यों घूर रही है? चल ना, कैंटीन चलते हैं।" पंखुड़ी ने सौम्य को देखकर मुँह बनाते हुए सांझी से कहा।
"अभी तो मैं घर से ब्रेकफ़ास्ट करके आई हूँ। इतनी सुबह-सुबह मैं कैंटीन नहीं जा रही। तुझको जाना है तो तू अकेली ही चली जा।" सांझी ने पंखुड़ी की तरफ देखकर चिड़चिड़ाते हुए कहा।
"देख सांझी, तू अपनी कहीं और की भड़ास ना मेरे ऊपर मत निकाल, समझी?" पंखुड़ी ने गुस्से से अपनी आँखें लाल कर ली और सौम्य को घूरते हुए बोली।
"ओह हेलो, तुम मुझे क्यों घूर रही हो?" सौम्य ने अपनी भौंहें चढ़ाते हुए पंखुड़ी की तरफ देखकर पूछा।
क्रमशः
सौम्य ने अपनी भौंहें चढ़ाते हुए पंखुड़ी की ओर देखा और पूछा, "ओह हेलो, तुम मुझे क्यों घूर रही हो?"
"पंखुड़ी, मेरी बात सुन। अभी तू यहां से जा। मुझे अभी कुछ नहीं खाना है। मैं तुझसे क्लास में मिलती हूँ।" सांझी ने पंखुड़ी की पीठ पर हाथ थपथपाते हुए उसे जाने के लिए कहा।
पंखुड़ी सौम्य को घूरती हुई वहाँ से चली गई।
"तुम्हारी यह फ्रेंड बहुत ही ज्यादा अजीब है। यह मेरे सामने ना आए तो ज्यादा ठीक रहेगा।" सौम्य ने अपना माथा सिकोड़ते हुए सांझी से कहा।
"मुझे खाने का इरादा कर लिया है क्या तुमने, जो इतनी देर से बस घूर ही रही हो? अगर गुस्सा आ रहा है तो गुस्सा निकाल लो, चिल्ला लो, बस अब मुझे घूरना बंद करो।" सौम्य ने इस बार थोड़ा डरते हुए सांझी को देखते हुए कहा।
"जब मुझे किसी अपने की ज़रूरत होती है, उस वक्त कोई भी मेरे साथ नहीं होता। कल रात मैं घर में अकेली थी। पहले ऋषि को फोन किया, उसने फोन नहीं उठाया। फिर तुम्हें फोन किया, तुमने भी मेरा फोन रिसीव नहीं किया। अब मैं किसी को कभी कॉल नहीं करूँगी।" इतना बोलते हुए सांझी की आँखों में आँसू भर गए।
"अरे अरे सॉरी सॉरी यार! रोने लगी क्यों? तुम क्या हो गया था ऐसा जो तुम्हें कॉल करनी पड़ी? बताओ मुझे और प्लीज़ यार रोना मत, प्लीज़।" सौम्या ने सांझी को गले लगाकर बड़े प्यार से कहा।
"क्यों नहीं उठाया तुमने मेरा फोन? यह बताओ पहले।" सांझी ने सौम्य को कस के गले लगाते हुए और रोते हुए कहा।
"अरे बाबा, थोड़ा बिजी हो गया था घर के काम में। अच्छा, आज के बाद मैं कभी ऐसा नहीं करूँगा, पक्का प्रॉमिस। अब तुम रोना बंद करो।" सौम्य ने सांझी के आँसू पोछते हुए उससे कहा।
"बेबी, कहाँ हो तुम? देखो, शायद तुम्हारा फ़ोन बज रहा है।" ऋषि ने बिना अपनी आँखें खोले ही बड़बड़ाते हुए कहा।
"कहाँ हो बेबी? कितनी देर से तुम्हारा फ़ोन रिंग कर रहा है। देखो ना किसका है।" अपनी आँखें मलते हुए ऋषि उठकर बैठ गया और कमरे की चारों तरफ़ देखने लगा।
"यह तो मेरा फ़ोन है! ओ शीट! सुबह के 9:00 बज गए, लेकिन मेरी आँख क्यों नहीं खुली? और यह सर दर्द! ओह माय गॉड!" ऋषि ने अपने एक हाथ में मोबाइल लेकर दूसरे हाथ से अपना सर पकड़ते हुए कहा।
"मेरे कपड़े कहाँ हैं? और इतनी देर हो गई! मम्मी की इतनी सारी मिस कॉल और सांझी की भी! ओह शिट यार! आज तो मैं बुरा फँस गया।" ऋषि ने अपने कपड़े ढूँढते हुए खुद में ही बड़बड़ाते हुए कहा।
तभी ऋषि का फ़ोन बजा।
"हैलो बेबी, उठ गए क्या? मुझे तो लगा आज तुम सारा दिन सोने वाले हो।" उधर से उस लड़की ने हँसते हुए बोला।
"बेबी, तुमने मुझे उठाया क्यों नहीं? इतनी देर हो गई और अब मैं घर जा रहा हूँ। आज तो मेरी अच्छी तरह से बैंड बजेगी। तुमको मुझे उठाना चाहिए था ना।" ऋषि ने थोड़ी नाराज़गी भरी आवाज़ में कहा।
"हाँ मेरी जान, मैं तुम्हें उठाना तो जा रही थी, लेकिन तुम सोते हुए इतने ज़्यादा हॉट लग रहे थे कि मेरा तुम्हें उठाने का मन ही नहीं हुआ।" उस लड़की ने अपनी सेक्सी आवाज़ में बोला।
"क्या यार! तुम भी कमाल करती हो। अच्छा, फ़ोन रखो, मैं घर पहुँच गया हूँ। बाद में बात करता हूँ।" ऋषि ने उस लड़की की बात इग्नोर करते हुए फ़ोन रख दिया।
ऋषि का घर... एक बड़े से गेट के अंदर अपनी गाड़ी खड़ी करते हुए, दबे पांवों से ऋषि उस आलीशान बंगले की सीढ़ियाँ चढ़ने ही वाला था कि पीछे से एक आवाज़ सुनाई दी और ऋषि वहीं रुक गया।
"कहाँ थे तुम सारी रात? पहले यह बताओ मुझे और यू चुपके-चुपके अपने कमरे में जाने का क्या मतलब है? क्या मैं तुम्हें यहाँ बैठी हुई नहीं दिखी?" एक औरत ने सख्ती से ऋषि से पूछा।
"वो मम्मी... मैं... ना... अपने दोस्तों के साथ था।" ऋषि ने अपनी लड़खड़ाती हुई ज़बान से रुक-रुक कर कहा।
"झूठ मत बोलो ऋषि! मैंने तुम्हारे सारे फ़्रेंड्स के पास कॉल किया था, पर तुम किसी के साथ भी नहीं थे। सच-सच बताओ, सारी रात तुम कहाँ थे?" ऋषि की माँ ने ऋषि की तरफ़ जाकर उसे अपनी ओर घुमाकर देखते हुए कहा।
"नहीं मम्मी, झूठ नहीं बोल रहा हूँ। मैं सच में अपने दोस्त के साथ ही था।" ऋषि ने अपनी नज़रें चुराते हुए अपनी माँ को जवाब दिया।
"हे भगवान! यह क्या हाल बना रखा है तुमने अपना? किसी भिखारी के बच्चे लग रहे हो।" ऋषि की माँ ने ऋषि के कपड़ों को हाथ लगाकर देखा और चिल्लाते हुए कहा।
"क्या बात है यहाँ पर? क्या बातें चल रही हैं? कोई मुझे कुछ बताएगा कि किसे भिखारी का बच्चा कह रही हो मीनाक्षी?" सीढ़ियाँ उतरते हुए एक अधेड़ उम्र के हष्ट-पुष्ट इंसान ने ऋषि और ऋषि की माँ की तरफ़ देखते हुए कहा।
"एक बार अपने लाडले का हुलिया देखिए, आपको भी ऐसा ही लगेगा। देखिए, कहीं से भी यह राकेश खुराना का बेटा लग रहा है।" ऋषि की माँ (मीनाक्षी ने) उस आदमी की तरफ़ देखते हुए कहा।
"डैड, वह मैं कल अपने दोस्तों के साथ पार्टी कर रहा था, तभी पार्टी में..." ऋषि बोलते-बोलते चुप हो गया।
"क्या मीनाक्षी, तुम भी ना! आखिर वो राकेश खुराना का बेटा है। अगर वह रात-रात भर पार्टी नहीं करेगा तो और कौन करेगा? जाओ ऋषि, तुम अपने रूम में जाओ और कपड़े चेंज करके द ग्रेट राकेश खुराना के बेटे बन जाओ।" ऋषि के पापा ने मुस्कुराते हुए कहा।
"थैंक यू सो मच डैड! लव यू!" ऋषि खुश होकर राकेश को गले लगाते हुए कहता है और अपने रूम में चला जाता है।
"आपने ऋषि को बहुत ज़्यादा ही सर पर चढ़ा रखा है। इतनी ज़्यादा छूट देना भी ठीक नहीं है।" मीनाक्षी ने राकेश की तरफ़ देखकर अपना सर लाचारी से हिलाते हुए कहा।
"अरे मीनाक्षी, तुम इतना क्यों परेशान होती हो? जल्दी से ब्रेकफास्ट लगाओ, मुझे ऑफ़िस के लिए निकलना है। और रही बात ऋषि की तो अभी उसकी उम्र है यह सब करने की। अगर वह यह सब नहीं करेगा तो क्या हम तुम करेंगे?" राकेश डाइनिंग टेबल पर आकर बैठते हुए मीनाक्षी से कहता है।
"मैं कहाँ यह सब मना कर रही हूँ, लेकिन आपने ऋषि की हालत नहीं देखी। अगर बाहर किसी ने इस तरह से ऋषि को देखा तो आपकी क्या इज़्ज़त रहेगी कि इतने बड़े बिज़नेसमैन का बेटा इस हुलिये में!" मीनाक्षी ने राकेश को ब्रेकफास्ट सर्व करके समझाते हुए कहा।
"किसी की इतनी मजाल नहीं है कि राकेश खुराना के बेटे को देखकर कोई मुझ पर उँगली उठा सके। इसलिए तुम बेकार की बातें सोचकर परेशान मत हुआ करो।" ऋषि के पापा ने जूस का गिलास अपने हाथ से नीचे टेबल पर रखते हुए कहा।
"वह सब तो ठीक है, लेकिन फिर भी..." मीनाक्षी बोल ही रही थी कि राकेश मीनाक्षी को चुप करवाते हुए कहता है, "बस करो मीनाक्षी! आजकल तुम बहुत ज़्यादा सोचने लगी हो। जाओ, तुम अपनी फ़्रेंड्स के साथ किटी पार्टी ही करो। यह सब सोचते हुए तुम अच्छी नहीं लगती हो।"
(मीनाक्षी चुप हो जाती है और वहीं टेबल पर बैठकर नाश्ता करने लगती है।)
"डैड, मॉम। मैं कॉलेज जा रहा हूँ। बाद में मिलता हूँ आपसे।" सीढ़ियाँ उतरकर गेट की तरफ़ जाते हुए ऋषि ने कहा।
"इधर आओ ऋषि, पहले ब्रेकफास्ट करो, उसके बाद कॉलेज जाना।" मीनाक्षी ने ऋषि को अपने पास बुलाते हुए कहा।
"नहीं मॉम, वैसे ही बहुत लेट हो गया हूँ। मैं कैंटीन से कुछ खा लूँगा।" ऋषि ने मीनाक्षी को मना करते हुए कहा।
"अच्छा ठीक है, खा लेना। कम से कम जूस तो पी ही लो।" जूस का गिलास ऋषि की तरफ़ करते हुए मीनाक्षी ने कहा।
"ओके मॉम, लीजिए, मैं जूस पी लेता हूँ। डैड, क्या मैं आज आपकी फ़ेवरेट वाली कार से चला जाऊँ?" जूस का एक घूँट लेते हुए ऋषि ने अपने डैड से पूछा।
"इसमें पूछने वाली क्या बात है बेटा? ले जाओ ना।" मिस्टर खुराना ने ऋषि की तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए कहा।
"थैंक्स डैड! अब मैं कॉलेज के लिए निकलता हूँ। बाय! सी यू लेटर!" ऋषि जूस का गिलास टेबल पर रखकर अपने डैड को पीछे से गले लगाते हुए कहता है।
ऋषि अपने घर से कार लेकर बाहर निकलता है और कार में लाउड म्यूज़िक बजाते हुए कॉलेज गेट में एंटर होता है। ऋषि की कार को देखकर सभी लड़के ऋषि को घूर-घूर कर देखने लगते हैं और जब ऋषि अपनी कार से उतरता है तो कॉलेज की सारी लड़कियाँ ऋषि को देखती हैं और उन सब के मुँह खुले के खुले रह जाते हैं क्योंकि ऋषि अपने एक्सपेंसिव कपड़ों, वॉच और शूज़ की वजह से काफी हैंडसम लग रहा था।
ऋषि अपनी चमचमाती कार से उतरता है और सांझी को फ़ोन मिलाने लगता है।
क्रमशः
ऋषि कार से उतरा और सांझी को फोन मिलाने लगा।
ऋषि- "हेलो माय डार्लिंग।"
सांझी- "अच्छा तो अब तुम्हें मेरी याद आ ही गई।"
ऋषि- "सॉरी बेबी, कल रात को मैं थोड़ा जल्दी सो गया था। इस वजह से तुम्हारी कॉल रिसीव नहीं कर पाया।"
सांझी- "तो अब क्यों कॉल कर रहे हो? जाओ, अभी भी सो जाओ ना जाकर।"
ऋषि- "गुस्सा है क्या मेरा बच्चा मुझसे?"
सांझी- "देखो ऋषि, मैं कॉलेज में हूँ और क्लास लेने जा रही हूँ। और मेरा तुमसे बात करने का कोई मूड नहीं है। इसलिए फोन रखो।"
सांझी गुस्से में फोन काट दिया।
(ओहो! इस लड़की के तो नखरे बढ़ते ही जा रहे हैं। क्या करूँ मैं इसका? ऋषि ने अपने मन में सोचा।)
उधर, अंश और श्वेता अपने स्टेशन पर उतरे। अंश सारे बैग उतारकर स्टेशन पर रख रहा था। तभी श्वेता ने अंश की मदद की और बैग टैक्सी स्टैंड तक ले आयी।
"मैडम, कहाँ जाना है आप लोगों को?" एक टैक्सी वाले ने श्वेता से पूछा।
"भैया, पहले किसी डॉक्टर के क्लीनिक तक हमें ले चलिए। उसके बाद मैं आपको एड्रेस बताती हूँ।" श्वेता ने कहा।
"अरे, क्या जरूरत है क्लीनिक चलने की? सीधे मौसी के घर ही चलते हैं ना। वहीं पर पट्टी करवा लूँगा।" अंश ने श्वेता को मनाते हुए कहा।
"तुम चुप रहो! पहले हम डॉक्टर के पास चलेंगे, उसके बाद ही मौसी के घर जाएँगे।" श्वेता ने अंश को घूरकर डाँटा।
"मैडम, पहले आप दोनों कंफर्म कर लीजिए कि कहाँ जाना है। उसके बाद मैं टैक्सी स्टार्ट करूँगा।" टैक्सी ड्राइवर ने अंश और श्वेता का सामान अपनी टैक्सी में रखते हुए कहा।
"हाँ भैया, आप किसी डॉक्टर के क्लीनिक ले चलिए जो यहाँ से करीब हो।" श्वेता ने अंश का हाथ पकड़ा और उसे टैक्सी में बिठाते हुए टैक्सी ड्राइवर से कहा।
"अब जितनी देर हम लोग क्लीनिक में रहेंगे, उतना टाइम वेस्ट होगा। तुम मेरी बात क्यों नहीं सुनती हो कभी श्वेता?" अंश ने मुँह फुलाकर श्वेता को घूरते हुए कहा।
"सारी बातें तो मानती हूँ तुम्हारी, बस इस बार नहीं मानूँगी।" श्वेता ने अंश को देखकर अपनी हँसी दबाते हुए कहा।
"अच्छा? कब मानी तुमने मेरी बात? मुझे याद दिलाओ, मुझे तो नहीं याद आ रहा।" अंश ने श्वेता को गुस्से से देखकर पूछा।
श्वेता ने अंश की बातें अनसुनी कर दीं।
कुछ देर बाद, श्वेता और अंश की बातें सुनकर टैक्सी ड्राइवर हँसने लगा।
"अब आप क्यों हँस रहे हो भैया?" श्वेता ने अंश की बात अनसुनी करते हुए टैक्सी ड्राइवर से पूछा।
"कुछ नहीं मैडम, आपका क्लीनिक आ गया। आप लोग जाइए, मैं यहीं वेट करता हूँ।" टैक्सी ड्राइवर ने टैक्सी रोकते हुए कहा।
"चलो अब जल्दी से। देखो कितना खून बह गया है।" श्वेता ने अंश का हाथ पकड़ते हुए कहा।
"तुम्हें पता है श्वेता, आजकल तुम बहुत ज़्यादा जिद्दी हो गई हो।" अंश ने टैक्सी से उतरते हुए कहा।
(श्वेता अंश को घूरकर देखती है और अंश का हाथ पकड़कर सीधे डॉक्टर के क्लीनिक पर जाती है।)
"आपको यह चोट कैसे लगी?" डॉक्टर ने अंश की चोट देखकर पूछा।
"वह डॉक्टर, ट्रेन में चढ़ रहा था। उसी समय यह चोट लग गई थी।" अंश ने डॉक्टर से झूठ बोला।
श्वेता अंश को घूर-घूर कर देखने लगी और सोचने लगी कि अंश ने डॉक्टर से झूठ क्यों बोला है।
"अभी मैं पट्टी कर देता हूँ और एक इंजेक्शन लगवा लीजिए। कल-परसों तक आपकी चोट ठीक हो जाएगी।" डॉक्टर ने पट्टी करते हुए कहा।
"इंजेक्शन? इंजेक्शन ज़रूरी है क्या डॉक्टर?" अंश थोड़ा घबराते हुए पूछा।
"जी हाँ, बिल्कुल ज़रूरी है।" डॉक्टर ने जवाब दिया।
अंश श्वेता की तरफ देखकर थोड़ा मुँह बनाते हुए बोला, "सब तुम्हारी वजह से हुआ है। अगर तुम सीधा मौसी के घर चलती तो मुझे इंजेक्शन नहीं लगवाना पड़ता।"
"अच्छा हुआ जो आप इन्हें यहाँ ले आईं। यह इंजेक्शन बहुत ज़रूरी होता है ऐसी चोट में। इन्फेक्शन बहुत जल्दी फैलता है, इसलिए यह इंजेक्शन लगाना ज़रूरी है।" डॉक्टर ने श्वेता से मुस्कुराते हुए कहा।
"हाँ डॉक्टर, आप इंजेक्शन ज़रूर लगाइए।" श्वेता ने अपनी हँसी दबाते हुए कहा।
"चुप रहो तुम! डॉक्टर कोई टेबलेट हो इन्फेक्शन की तो वह दे दीजिए मुझे। यह इंजेक्शन नहीं लगवाना।" अंश ने रिक्वेस्ट करते हुए कहा।
"सीरियसली? आप इतने बॉडी बिल्डर होकर भी इतने छोटे से इंजेक्शन से डर रहे हैं?" डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए पूछा।
"नहीं डॉक्टर, मैं डर नहीं रहा हूँ। बस मुझे इंजेक्शन लगवाना पसंद नहीं है।" अंश ने धीमी आवाज में कहा।
"कुछ नहीं होगा, तुम बस अपनी आँखें बंद कर लो।" श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा।
"हाँ, तुम तो चुप ही रहो। मुझे तुमसे बात ही नहीं करनी है।" अंश ने गुस्से से कहा।
"अच्छा, ठीक है। मत बात करो। डॉक्टर साहब, आप इंजेक्शन लगाइए।" श्वेता ने अंश को परेशान करते हुए कहा।
डॉक्टर इंजेक्शन लगाने के लिए सिरींज में दवा भर रहे थे। इसे देखकर अंश की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं और वह घबराकर श्वेता का हाथ इतनी कस के पकड़ लिया कि श्वेता के हाथ पर उसके निशान बन गए। श्वेता अंश की इस हरकत पर मुस्कुराई और अंश का चेहरा अपने हाथों से पकड़कर अपनी तरफ कर लिया।
"इधर देखो अंश, मेरी आँख में कुछ गया है क्या?" श्वेता ने डॉक्टर को इशारा से अंश को इंजेक्शन लगाने के लिए कहा।
"यहाँ मुझे इंजेक्शन लगने जा रहा है और तुम्हें अपनी आँख की पड़ी है? अभी नहीं देख सकता मैं कुछ।" अंश ने श्वेता का हाथ और ज़्यादा कस के पकड़ते हुए कहा।
(तभी श्वेता के हाथों पर अंश की उंगलियों के निशान बन गए।)
"मिस्टर अंश, आप तो ऐसे रिएक्ट कर रहे हो जैसे आप कोई पाँच साल का बच्चा हो। बाय द वे, ये हो गया।" डॉक्टर ने सुई लगाकर रूई श्वेता को पकड़ाते हुए कहा।
"सच में डॉक्टर, इंजेक्शन लग गया क्या?" अंश ने खुश होते हुए पूछा।
(अंश के हाथ पर उस रूई से रब करते हुए श्वेता मुस्कुराने लगी।)
"जी हाँ, लग गया इंजेक्शन। अब आप अपनी फ्रेंड का हाथ छोड़ सकते हैं।" डॉक्टर मुस्कुराते हुए कुछ लिखते हुए बोले।
(अंश हड़बड़ाते हुए श्वेता का हाथ छोड़ देता है और देखता है कि श्वेता का हाथ लाल हो चुका है और उस पर अंश की उंगलियों के निशान साफ दिखाई दे रहे हैं।)
"सॉरी यार श्वेता, वह मैंने तुम्हारा हाथ…" अंश ने श्वेता के हाथ को देखकर प्यार से कहा।
"कोई बात नहीं। वैसे मैं तो सिर्फ़ इतना जानती थी कि तुम्हें इंजेक्शन से डर लगता है, लेकिन इतना ज़्यादा डर लगता है, यह आज देखकर पता चला।" श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा।
"यह दर्द की दवा है। अगर ज़्यादा दर्द हो तो इसे रात में सोते समय ले लीजिएगा।" डॉक्टर ने एक पर्ची श्वेता को देते हुए कहा।
"थैंक्यू डॉक्टर।" श्वेता ने पर्ची लेते हुए कहा।
अंश और श्वेता डॉक्टर के क्लीनिक से बाहर निकले और टैक्सी में बैठकर अपनी मौसी के घर के लिए निकल गए।
"वैसे, जब तुम बच्चों की तरह रो रहे थे, बड़े प्यारे लग रहे थे।" श्वेता ने अंश को छेड़ते हुए कहा।
"रो नहीं रहा था मैं। बस वह तो मुझे इंजेक्शन नहीं लगवाना था, इसीलिए।" अंश ने श्वेता को घूरते हुए जवाब दिया।
श्वेता अंश की बातें सुनकर हँसने लगी।
क्रमशः…
20
श्वेता अंश की बातें सुनकर हँसने लगी।
अब हँसी क्यों रही है तुम्हें? मैंने कोई जोक सुनाया है क्या?"—इस बार अंश ने थोड़ा चिढ़ते हुए श्वेता से कहा।
"अच्छा ठीक है, लो नहीं हँसती। लेकिन अंश, ये बताओ तुमने डॉक्टर से झूठ क्यों बोला?"—श्वेता मुस्कुराना बंद कर देती है और थोड़ा सीरियस होकर अंश से पूछती है।
"मैंने डॉक्टर से इसलिए झूठ बोला था कि कोई बवाल ना खड़ा हो जाए। हम लोग आज ही यहां आए और अगर ये सब बाबा और काका को सुनने को मिला तो अलग तरह की मुसीबत खड़ी हो जाएगी।"—अंश ने बड़ी गंभीरता से श्वेता को समझाते हुए कहा।
"अच्छा, तो मतलब मौसी के घर पर भी सबको यही बताना है जो तुमने डॉक्टर को बताया?"—श्वेता ने अपनी भौंहें ऊपर नीचे करते हुए अंश से पूछा।
"हाँ, बिल्कुल सही। और तुम काकी की प्यारी बिटिया बनकर उनको भी यही बताना। सत्यवादी हरिश्चंद्र मत बनने लगना, समझी?"—अंश ने श्वेता को थोड़ा डाँटते हुए कहा।
"लेकिन मैं माँ से झूठ नहीं बोलती कभी। यह बात तो तुम भी जानते हो।"—श्वेता ने थोड़ा मुँह बनाते हुए अंश से कहा।
"हाँ, इसीलिए तो पहले से बता रहा हूँ मेरी लेडी सत्यवादी।"—अंश ने इस बार थोड़ा श्वेता को चिढ़ाते हुए कहा।
"अच्छा, तो फिर मैं माँ से इस बारे में बात ही नहीं करूँगी। हाँ, ये सही रहेगा।"—श्वेता ने अंश की बात का जवाब देते हुए कहा।
"लीजिए मैडम जी, आपका लोकेशन आ गया। यहीं उतरना है ना आप लोगों को?"—टैक्सी ड्राइवर ने टैक्सी रोककर अंश और श्वेता को फ्रंट मिरर में देखते हुए कहा।
"हाँ भैया, आप हमारा सामान निकाल दीजिए। हमें यहीं उतरना है।"—अंश ने टैक्सी का दरवाजा खोलकर बाहर आते हुए कहा।
टैक्सी ड्राइवर सामान गाड़ी से निकालकर मेन गेट के पास रख देता है और वहाँ से चला जाता है। अंश दो बेल बजाता है और कुछ ही देर में दरवाजा खुलता है। सामने एक लंबा, लेकिन दुबला-पतला सा लड़का, बड़े मोटे-मोटे चश्मे लगाए हुए, गेट खोलता है। अंश को देखकर खुश होते हुए, वह अंश को गले लगा लेता है।
"कितनी देर कर दी अंश भैया? कहाँ रह गए थे आप? आपकी ट्रेन तो सुबह 9:00 बजे ही यहाँ पहुँच गई थी।"—उस लड़के ने अंश का सामान अपने घर के अंदर लाते हुए अंश से पूछा।
"वह थोड़ा टैक्सी ढूँढने में परेशानी हो गई, इसलिए थोड़ा लेट हो गया हूँ। वैसे पीयूष, मौसी कहाँ है? नज़र नहीं आ रही है।"—अंश ने थोड़ा बात को घुमाते हुए पूछा।
"हाँ भैया, वह माँ मंदिर गई हुई है। वैसे काफी देर हो गई है, बस आती ही होंगी।"—पीयूष ने अंश के सवाल का मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"आती ही क्या होगी? यह लो, मैं आ गई।"—अंश के पीछे से अंश की मौसी ने मुस्कुराते हुए कहा।
"नमस्ते मौसी जी। कैसी हैं आप?"—अंश ने अपनी मौसी के पैर छूते हुए उनसे पूछा।
"मैं तो बहुत अच्छी हूँ। तुम कैसे हो बेटा? और कब आए?"—मौसी जी ने अंश को गले लगाते हुए कहा।
"बस अभी ही आया हूँ, दो मिनट पहले।"—अंश ने मुस्कुराते हुए अपनी मौसी को जवाब दिया।
"नमस्ते मौसी जी।"—श्वेता ने अंश की मौसी के पैर छूते हुए कहा।
"अरे मेरी बिटिया! क्या कर रही हो? हमारे यहाँ लड़कियाँ पैर नहीं छूती।"—मौसी ने श्वेता का हाथ पकड़कर गले लगाते हुए कहा।
"आइए भैया, आप लोग बैठिए। मैं आप लोगों के लिए पानी लेकर आता हूँ।"—पीयूष ने अंश और श्वेता को बैठने के लिए कहा और पानी लेने किचन की तरफ चला गया।
"अनुराधा दीदी कैसी है अंश? और सुरेश जीजा से तो मेरी बात हो ही चुकी है पहले।"—अंश की मौसी ने मुस्कुराते हुए अंश से पूछा।
"हाँ मौसी, माँ तो बहुत अच्छी हैं और आपके लिए कुछ सामान भी भेजा है।"—अंश ने बैग से कुछ सामान निकालते हुए कहा।
"श्वेता बिटिया, तुम तो बिल्कुल अपनी माँ रंजना के जैसी हो। तुम्हारी माँ की जब शादी हुई थी, वह बिल्कुल तुम्हारी तरह ही थी; सुंदर और संस्कारी।"—अंश की मौसी ने श्वेता के सर पर हाथ फेरते हुए कहा।
"वह मौसी, माँ ने मुझसे कहा था कि जब मौसी के घर पहुँच जाना तो मुझे कॉल करके बता देना। तो क्या मैं माँ को कॉल कर सकती हूँ?"—श्वेता ने थोड़ा मुस्कुराते और शर्माते हुए अंश की मौसी से पूछा।
"अरे बेटा, इसमें पूछने वाली क्या बात है? बिल्कुल जाओ, बता दो। आखिर वह तुम्हारी माँ है, परेशान हो रही होंगी।"—अंश की मौसी ने मुस्कुराते हुए श्वेता को जवाब दिया।
"मैं अभी माँ को बताकर आती हूँ।"—श्वेता ने अंश की तरफ देखा और इशारे से अपना सर हिलाते हुए कहा।
(अंश अपनी पलकें झपकाता है और श्वेता वहाँ से अपनी माँ को फोन करने के लिए चली जाती है।)
"और अंश बेटा, तुम लोगों को आने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई?"—अंश की मौसी ने अंश से मुस्कुराते हुए पूछा।
(तकलीफ क्या! मैं तो लड़ते-लड़ते पहुँचा हूँ यहाँ तक! अंश ने अपने में ही बुदबुदाते हुए कहा।)
"क्या हुआ अंश? क्या कह रहे हो?"—अंश की मौसी ने अंश को घूरते हुए पूछा।
"कुछ नहीं मौसी। ये लीजिए, माँ ने ये आपके लिए भेजा है और ये भी।"—अंश ने दो-तीन पैकेट मौसी को देते हुए कहा।
"सब कुछ मौसी ने माँ के लिए ही भेजा है? मेरे लिए कुछ भी नहीं भेजा क्या?"—पीयूष ने टेबल पर नाश्ते की ट्रे और पानी रखते हुए थोड़ा मुँह फुलाकर अंश की तरफ देखते हुए कहा।
"अरे मेरे पागल भाई! तुम्हारे लिए तो माँ और बाबा दोनों ने सामान भेजा है। ये देखो, ये है तुम्हारा सामान।"—एक बड़ा सा पैकेट पीयूष को देते हुए अंश ने कहा।
"वाओ! थैंक्यू भैया।"—पीयूष ने जल्दी से लपकते हुए अपना गिफ्ट ले लिया और जल्दी-जल्दी उसे खोलकर देखने लगा।
"अंश! एक मिनट, इधर आना।"—श्वेता ने अंश को आवाज लगाकर अपनी तरफ बुलाया।
"क्या हुआ श्वेता?"—अंश श्वेता के पास जाकर बोला।
"ये लो, माँ को तुमसे कुछ बात करनी है।"—श्वेता ने फोन अंश को पकड़ाते हुए कहा।
"हेलो काकी, नमस्ते। क्या हुआ? हम लोग यहाँ ठीक से पहुँच गए हैं।"—अंश ने फोन लेते ही रंजना से कहा।
"अंश, मेरी श्वेता का ध्यान रखना। और जब तुम लोगों का एडमिशन हो जाए तो मुझे बता देना।"—रंजना ने अंश को समझाते हुए कहा।
"जी काकी, मैं आपको सारी इंफॉर्मेशन देता रहूँगा। आप परेशान मत होइए।"—अंश ने बड़े ही प्यार से रंजना को जवाब दिया।
"घर में बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा। पूरा घर खाली-खाली लग रहा है श्वेता के वहाँ जाने के बाद।"—रंजना ने थोड़ी उदासी भरी आवाज में कहा।
"काकी, अब आप बार-बार श्वेता को ऐसे सोचेंगी तो याद तो आएगी ही। आप परेशान बिल्कुल मत होइए। मैं यहाँ पर श्वेता का पूरा ध्यान रखूँगा।"—अंश ने रंजना को दिलासा देते हुए कहा।
"बैठो श्वेता बेटी, इतनी सुबह के निकले हो तुम लोग, भूख लगी होगी। मैं तुम लोगों के खाने-पीने का इंतजाम करती हूँ। जब तक तुम बैठो और नाश्ता कर लो।"—अंश की मौसी ने श्वेता के हाथ में पानी का गिलास देते हुए कहा।
"हाँ हाँ, आप सिर्फ़ श्वेता को ही नाश्ता-पानी करवाइए। मैं तो जैसे भूखा हूँ ही नहीं।"—अंश ने बच्चों जैसे मुँह बनाकर अपनी मौसी से शिकायत लहजे में कहा।
"अरे आजा तू भी बैठकर कर लेना नाश्ता। और तू मेरी श्वेता बिटिया से जल क्यों रहा है?"—अंश की मौसी ने अंश के सर को थपथपाते हुए कहा।
"हाँ मौसी, ये अंश का बच्चा मुझसे ऐसे ही चिढ़ता है।"—श्वेता ने बिस्किट का बाइट लेते हुए तिरछी नज़रों से मुस्कुराकर अंश को देखते हुए कहा।
"अच्छा, अब तुम लोग बैठो और बातें करो। मैं थोड़ी देर में आती हूँ।"—अंश की मौसी ने किचन की तरफ जाते हुए कहा।
"क्या हुआ? माँ ने क्या कहा तुमसे?"—श्वेता ने अंश को पानी देते हुए पूछा।
"कुछ खास नहीं। बस यही कहा था कि जब तुम लोगों का एडमिशन हो जाए तो मुझे बता देना, बस।"—अंश ने पानी पीते हुए श्वेता को जवाब दिया।
"वैसे श्वेता जी, आप अंश भैया की बचपन की दोस्त हैं ना?"—पीयूष ने श्वेता की तरफ देखकर श्वेता से मुस्कुराते हुए पूछा।
क्रमशः