वेदांत सहगल—अपने शहर का सबसे मशहूर यंग बिज़नेसमैन, एक प्लेबॉय जिसकी ज़िंदगी में पार्टियाँ हैं, लड़कियाँ हैं, मगर जज़्बातों के लिए कोई जगह नहीं। अंबर —उसकी पर्सनल असिस्टेंट, जो ना सिर्फ उसके शेड्यूल को बल्कि उसकी ज़िंदगी के बिखरे हिस्सों को भी स... वेदांत सहगल—अपने शहर का सबसे मशहूर यंग बिज़नेसमैन, एक प्लेबॉय जिसकी ज़िंदगी में पार्टियाँ हैं, लड़कियाँ हैं, मगर जज़्बातों के लिए कोई जगह नहीं। अंबर —उसकी पर्सनल असिस्टेंट, जो ना सिर्फ उसके शेड्यूल को बल्कि उसकी ज़िंदगी के बिखरे हिस्सों को भी संभालती रही है पिछले कई सालों से… चुपचाप, सलीके से। दोनों साथ काम करते हैं, मगर एक-दूसरे की ज़िंदगी से बहुत अलग हैं। एक दिल तोड़ता है, दूसरी दिल को छुपाकर रखती है। हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि अंबर को कुछ वक्त के लिए वेदांत के घर में रहना पड़ता है। घरवाले इस करीबी को शादी में बदलना चाहते हैं... मगर दोनों इंकार कर देते हैं। वेदांत के लिए शादी एक बंदिश है। अंबर के लिए वेदांत एक अधूरा सपना। फिर अंबर एक फैसला लेती है — नौकरी छोड़ने का। वो दिन उसका आख़िरी दिन होता है, और रात... उनकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल... या शायद सबसे बड़ा मोड़। एक नशे में डूबी रात, एक अनचाहा रिश्ता, और फिर... एक अधूरा सच — अंबर प्रेग्नेंट हो जाती है। वो कुछ नहीं कहती। मगर वेदांत को सब पता चल जाता है। और फिर… शुरू होता है एक रिश्ता ज़बरदस्ती का। बिना वादे, बिना मोहब्बत, सिर्फ एक मजबूरी का नाम बनती है शादी। मगर क्या एक गलती की बुनियाद पर बना रिश्ता कभी प्यार बन सकता है? क्या वेदांत उस स्त्री से प्यार करना सीख पाएगा जिसे उसने कभी सीरियसली नहीं लिया? क्या अंबर उस आदमी को अपना पाएगी जिससे वो हमेशा दूर रहना चाहती थी? या फिर ये रिश्ता टूट जाएगा उससे पहले कि जज़्बातों को कोई नाम मिले?
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दोनों नशे की हालत में सोफ़े पर बैठे हुए थे। अंबर की हालत ज़्यादा बिगड़ चुकी थी।
"मेरा बदन जलने लगा है... मुझे बहुत गर्मी लग रही है," — कहते हुए अंबर ने अपना ब्लेज़र उतारना शुरू कर दिया।
"मैं बाथरूम जाकर शावर लेती हूँ," — वह लड़खड़ाते क़दमों से खड़ी होने लगी। चलना मुश्किल हो रहा था, फिर भी किसी तरह वह बाथरूम तक पहुँच गई।
अब वेदांत को भी अजीब-सी बेचैनी महसूस होने लगी। उसका भी शरीर तप रहा था। उसने भी अपना ब्लेज़र उतार फेंका।
"तो ये सब रवि ने अंबर के लिए प्लान किया था..." वेदांत ने बड़बड़ाया, "उसे नशे में लाकर जबरदस्ती करना चाहता था।"
"हम दोनों ने वह जूस आधा-आधा पी लिया। असर थोड़ा कम है, लेकिन है तो सही।"
उसका सिर चकरा रहा था, लेकिन वह अंबर के पीछे-पीछे बाथरूम की ओर बढ़ गया। लड़खड़ाते हुए दरवाज़े तक पहुँचा और अंदर चला गया।
अंबर शावर के नीचे खड़ी थी। उसके कपड़े पूरी तरह भीग चुके थे।
"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" अंबर ने चौंकते हुए पूछा।
"पानी से तुम्हारा बदन जलना बंद हुआ?" वेदांत ने पूछा।
"नहीं..." अंबर ने धीरे से कहा। उसका एक हाथ दीवार पर टिका हुआ था ताकि वह गिर न जाए।
"यह ऐसे नहीं जाएगा," वेदांत बोला। "जो जूस रवि खन्ना ने मंगवाया था, उसमें कुछ मिला हुआ था... ये उसी का असर है।"
"तो अब क्या करें?" अंबर की आवाज़ कांप रही थी।
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अगला दृश्य
"राहुल, मिस सक्सेना को कॉल करो। अभी तक पहुँची क्यों नहीं?"
वेदांत सहगल गुस्से से बोले। "मीटिंग शुरू होने वाली है और पूरा प्रेज़ेंटेशन उसके लैपटॉप में है!"
तभी एक खूबसूरत-सी लड़की दरवाज़ा खोलकर हड़बड़ाते हुए अंदर आई।
"सॉरी सर, ट्रैफ़िक बहुत था... इसलिए देरी हो गई।"
"जल्दी से मीटिंग हॉल में पहुँचो!" वेदांत ने कहा और खुद तेज़ी से आगे बढ़ गया। राहुल और अंबर उसके पीछे चल दिए।
वेदांत सहगल, SS ग्रुप का सीईओ, डैशिंग, हैंडसम और एक घोषित प्लेबॉय। हाँ, यह अलग बात है कि वह अपने ऑफिस में कभी किसी लड़की से अफेयर में नहीं पड़ा।
बहुत-सी मॉडल्स, एक्ट्रेसेज़ और हाई-सोसाइटी लड़कियाँ उस पर जान देती थीं, और वह भी अपने दिल और पैसे दोनों में दरिया-दिली दिखाता था। मगर ऑफिस... उसके लिए एक डिसिप्लिन ज़ोन था।
पूरा ऑफिस उससे डरता था। उसके गुस्से और सख्ती की चर्चा हर जगह थी।
राहुल भाटिया और अंबर सक्सेना—दो लोग जो वेदांत के सबसे भरोसेमंद सहयोगी थे। राहुल, उसका सीनियर असिस्टेंट, और अंबर, जूनियर असिस्टेंट।
जब वेदांत ने ऑफिस ज्वाइन किया था, उसी वक्त राहुल को असिस्टेंट के तौर पर रखा गया। कुछ समय बाद वेदांत के पिता एक एक्सीडेंट के बाद रिटायर हो गए, तब उन्हें एक और असिस्टेंट की ज़रूरत महसूस हुई।
अंबर, उसके डैड के पुराने असिस्टेंट की बेटी थी। सिर्फ़ एक बार में इंटरव्यू लिया गया और वेदांत ने उसे रख लिया—बिलकुल अनमने ढंग से। उसे लगा था कि एक लड़की उसका काम नहीं संभाल पाएगी।
लेकिन अंबर ने तीन साल में अपनी काबिलियत से वेदांत को गलत साबित कर दिया।
वह सिर्फ़ ऑफिस का काम ही नहीं देखती थी, बल्कि वेदांत की सोशल लाइफ़—यहाँ तक कि उसकी गर्लफ्रेंड्स से जुड़े डिटेल्स, बर्थडे गिफ्ट्स, और होटल बुकिंग्स तक—सब कुछ संभालती थी।
इन तीन सालों में वेदांत ने कभी अंबर को एक लड़की की तरह नहीं देखा। शायद यही वजह थी कि अंबर हमेशा कंफ़र्टेबल रही।
मगर अब… सब कुछ बदलने वाला था।
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वेदांत सहगल
SS ग्रुप की शुरुआत वेदांत सहगल के दादा ने की थी, और उसके पिता बृजेश सहगल ने उसे बुलंदियों तक पहुंचाया। बृजेश सहगल के तीन बच्चे थे—दो बेटे और एक बेटी।
बड़ा बेटा, राजन सहगल, एक जाने-माने डॉक्टर थे। उनका खुद का एक बड़ा हॉस्पिटल था जो देशभर में मशहूर था। उन्हें बिज़नेस में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
बेटी, बीनू सहगल, वेदांत से छोटी थी। उसमें बिज़नेस के प्रति थोड़ी बहुत रुचि थी। उसने अभी-अभी अपनी पढ़ाई पूरी की थी और शादी से पहले कुछ समय ऑफिस में काम करना चाहती थी। जब उसने वेदांत से कहा कि वह ऑफिस ज्वाइन करना चाहती है, तो वेदांत ने उसे हाँ कह दिया। मगर एक महीना बीत गया और अब तक उसने ऑफिस आना शुरू नहीं किया था।
बृजेश सहगल का छोटा बेटा था वेदांत—कॉलेज का टॉपर, मगर गुस्सैल, घमंडी और एक घोषित प्लेबॉय। उसका कोई भी रिश्ता ज्यादा दिन नहीं टिकता था क्योंकि उसे कभी किसी की परवाह नहीं होती थी। हमेशा अपने मन की करता था।
बिज़नेस में उसकी गहरी रुचि थी। एमबीए की पढ़ाई के बाद उसने जब ऑफिस ज्वाइन किया, तभी उसके पिता का गंभीर एक्सीडेंट हो गया। तभी से वेदांत ने पूरी ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली।
उसके परिवार में उसकी माँ और दादी भी थीं। दोनों ही बेहद प्यार करने वाली औरतें थीं। लेकिन घर की असली मुखिया थी उसकी दादी, जिनकी बात को कोई टाल नहीं सकता था—ना वेदांत, और ना ही उसका पिता।
वेदांत की माँ एक बेहद सरल और सौम्य महिला थीं। उन्हें परिवार में सबकी फिक्र रहती थी और वह किसी की भी बात आसानी से मान लेती थीं।
मगर दादी—वेदांत की तरह ही घमंडी, तुनकमिज़ाज और अपने सामने किसी को कुछ ना समझने वाली औरत थीं। वह आमतौर पर किसी के मामलों में दखल नहीं देती थीं, लेकिन जब बोलती थीं, तो फिर वही अंतिम फैसला होता।
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अंबर सक्सेना
अंबर, अपने माँ-बाप की इकलौती और बेहद प्यारी बेटी थी। दिखने में बेहद खूबसूरत—दूध जैसा गोरा रंग, बड़ी-बड़ी हल्की हरे रंग की आँखें, गुलाबी होंठ, पतली सी नाक और मीठी सी बोली। वह जितनी सुंदर थी, उतनी ही समझदार भी थी।
उसके पिता, अरुण सक्सेना, एक मॉडर्न सोच रखने वाले इंसान थे। उन्होंने अंबर को पूरी आज़ादी दी हुई थी—देश-विदेश घूमना, देर तक काम करना, बॉयफ्रेंड बनाना या न बनाना—उन्होंने कभी कोई सवाल नहीं उठाया।
वहीं उसकी माँ, अनीता सक्सेना, परंपरावादी थीं। उन्होंने अंबर को अच्छे संस्कार दिए थे और हमेशा उसे सही-गलत का फर्क समझाया।
अंबर ने अपने पिता की दी हुई आज़ादी का कभी ग़लत इस्तेमाल नहीं किया। उसका कभी कोई बॉयफ्रेंड नहीं रहा। उसने हमेशा अपने प्रोफेशनलिज़्म को सबसे ऊपर रखा।
वेदांत के साथ काम करने के तीन सालों में उसके माता-पिता ने उस पर कभी किसी बात का दबाव नहीं डाला। मगर अब उसकी माँ चाहती थीं कि अंबर शादी के बारे में सोचे और यह नौकरी छोड़ दे। पिता अब भी कहते थे, "जब उसे कोई मिलेगा, वो खुद ही हमें बता देगी। हमारी बेटी अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी जीने लायक है।"
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वेदांत और अंबर के बीच की दूरी...
इतनी खूबसूरत होने के बावजूद, वेदांत ने अंबर को कभी "उस नज़र" से क्यों नहीं देखा?
क्योंकि अंबर अपने काम में इतनी प्रोफेशनल थी कि उसने कभी भी वेदांत को अपनी ओर देखने का मौका ही नहीं दिया। वह हमेशा फॉर्मल कपड़ों में, ट्राउज़र-ब्लेज़र पहनकर ऑफिस आती थी। सिर्फ़ एक हल्की सी लिपस्टिक, बाल बंधे हुए, और पैरों में फ्लैट शूज़। कभी कोई अतिरिक्त सजावट नहीं, कभी कोई एक्स्ट्रा मुस्कान नहीं।
वेदांत को वह बाकी लड़कियों के मुक़ाबले "बोरिंग" लगती थी। उसे ऐसा कभी नहीं लगा कि अंबर के पीछे दिल लगाने लायक कुछ है।
और अंबर ने भी कभी वेदांत में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।
मगर… क्या आप वाकई सोचते हैं कि जो पिछले तीन सालों में नहीं हुआ…
वो कभी भी नहीं होगा? 😉
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अंबर अपना सिर पकड़े बैठी थी। उसे अपने डैड और मॉम दोनों पर बहुत गुस्सा आ रहा था। "अब मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ जो मुझे कोई खा जाएगा। एक तरफ तो डैड आप मुझे कहते हैं कि आपने मुझे हर तरह की आजादी दी है, तो फिर यह क्या है?" उसने अपने गुस्से से अपने डैड को देखा। "बेटा, मैं तो किसी बात के खिलाफ हूँ ही नहीं। अगर तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड है तो बता दो। अगर तुम उसके साथ रहना चाहती हो तो रह सकती हो। हमें कोई प्रॉब्लम नहीं है।" "दिमाग खराब हो गया है क्या? आपके जवान बेटी से कैसी बातें कर रहे हैं? अगर इसका कोई बॉयफ्रेंड है तो बताएँ हमें। हम शादी कर देते हैं, बिना शादी के नहीं रहने देगी इसे किसी के साथ। अभी मैं जिंदा हूँ!" उसकी मॉम अनीता गुस्से में थी। "मेरा कोई बॉयफ्रेंड नहीं है और ना मुझे किसी के साथ रहने जाना है। मुझे यहीं, इसी घर में रहना है।" "मगर तीन महीने बहुत होते हैं बेटा। इस जगह अकेले रहना तीन महीने बहुत मुश्किल है। अगर बिल्डिंग में कोई फ्लैट होता तो बात अलग थी। इतने बड़े घर में अकेले रहना ठीक नहीं है।" उसके डैड कह रहे थे। "इसीलिए आपने मेरे बॉस के घर में मेरे रहने का इंतज़ाम किया है? कहीं और भी तो कर सकते थे। मैं कोई फ्लैट रेंट पर ले लेती हूँ तीन महीने के लिए।" "नहीं, हम तुम्हें तुम्हारे बॉस के यहाँ नहीं छोड़ रहे। मैं अपने दोस्त बृजेश के घर में तुझे छोड़कर जा रहा हूँ।" अरुण ने कहा। "उसने खुद ही कह दिया कि अंबर हमारे पास रहेगी।" "और वर्षा आंटी से तो तुम्हारी खूब बनती है। मैं तुम्हें उसी के पास छोड़कर जा रही हूँ।" उसके डैड के साथ उसकी मॉम भी कहने लगी। "और प्रॉब्लम क्या है? जिस बॉस के साथ तो ऑफिस में काम करती हो, अगर उसके घर में रहना भी पड़ा तो कौन सी बड़ी बात है?" उसके डैड कहने लगे। "ऑफिस में तो बॉस को झेलना पड़ता है। अगर इंसान घर आकर भी कम्फ़र्टेबल ना हो सके तो क्या फ़ायदा?" अंबर मानने को तैयार नहीं थी। "घर में आकर थोड़ी वो तुमसे ऑफिस का काम कराएगा?" उसके मॉम-डैड मानने को तैयार नहीं थे। वो अपना सिर पकड़े बैठी थी क्योंकि वह वेदांत सहगल के घर में तो हरगिज नहीं रहना चाहती थी। उसे पता था कि जब तक वह सामने रहेगा, वह कम्फ़र्टेबल हो ही नहीं सकेगी। उधर, वेदांत के घर में उसकी दादी को अंबर के घर में आने का एतराज था। "तो क्या अब इसके ऑफिस की लड़कियाँ इस घर में भी आएंगी?" उसकी दादी लक्ष्मी देवी ने कहा। "वो सिर्फ़ इसके ऑफिस में काम नहीं करती। वह तो अरुण की भी बेटी है और अरुण तो मेरा दोस्त है। अब वह दोनों, मियाँ-बीवी, तीन महीने के लिए देश से बाहर जा रहे हैं, तो मैंने खुद ही कह दिया कि अंबर हमारे पास रह लेगी। वैसे भी वह हमारे ही ऑफिस में काम करती है, तो मुझे नहीं लगता कि कोई प्रॉब्लम होनी चाहिए।" वेदांत के डैड, बृजेश सहगल ने कहा। "देखो, मैं एक बात साफ़-साफ़ बता देती हूँ, जो लड़कियाँ वेदांत के आसपास डोलती हैं ना, मुझे कभी पसंद नहीं आतीं और इन लड़कियों का एक ही मकसद है: मेरे भोले-भाले पोते को फँसाकर, शादी करके इस घर में आना।" "वह ऐसी नहीं है माँ।" वेदांत की माँ वर्षा कहने लगी। "तुम तो रहने दो। तुझ में अकल कहाँ है? तुम तो खुद उसे बहू बनकर लाना चाहती हो। मैंने तुम्हारी और बृजेश की सारी बातें सुन ली थीं। इसीलिए वह मुझे पसंद नहीं। वरना अरुण और अनीता तो मुझे हमेशा से अच्छे लगते हैं।" लक्ष्मी देवी ने कहा। उसकी बात पर बृजेश बोलने लगा। वर्षा ने उसे इशारा करके मना कर दिया। "जब बहू ढूँढनी हो, आप अपने बेटे की अपनी मर्ज़ी से ढूँढना। यह सिर्फ़ तीन महीने के लिए रहने आ रही है और प्लीज़ उस लड़की से ऐसी-वैसी कोई बात मत करना।" बृजेश ने अपनी माँ से कहा। "मैं आजकल की लड़कियों को अच्छे से जानती हूँ। मैं यह नहीं कहती कि अरुण और अनीता बुरे हैं, उन्हें मैं जानती हूँ, बहुत अच्छे लोग हैं। मगर आजकल के बच्चों पर हम भरोसा नहीं कर सकते।" "बस मैं एक बात कह देता हूँ, अगर मैंने उसे अपने बच्चे के आस-पास मँडराते देखा, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।" "वह ऑफिस में भी तो उसके साथ ही होती है।" "ऑफिस की बात और है। घर में देखना, वह कैसे रहती है।" बड़ी मुश्किल से बृजेश ने अपनी माँ को मनाया था। इस मेंशन में चार बेडरूम नीचे थे और चार बेडरूम ऊपर थे। और सबसे टॉप फ़्लोर पर, टेरेस पर एक साथ बनी हुई एक बालकनी बनी हुई थी जो चारों तरफ़ से ओपन थी, जहाँ पर वह लोग पार्टियाँ भी किया करते थे। नीचे जो चार बेडरूम थे, उनमें से जो एक दादी का बेडरूम था, उसमें रिनोवेशन का काम स्टार्ट होने वाला था। इसलिए वह कमरा तो रहने लायक नहीं था। बाकी बचे तीन कमरे, तीनों में से एक कमरा बृजेश और वर्षा का बेडरूम था। एक रूम में दादी शिफ़्ट हुई थी और जो उसके साथ एक बेडरूम था, उसका वॉशरूम और दादी माँ के कमरे का वॉशरूम एक था, तो वह दोनों कमरे आपस में अटैच्ड थे।
जो ऊपर चार बेडरूम थे, उनमें से एक बेडरूम डॉक्टर राजन और उनकी पत्नी का था। उनकी एक छोटी बेटी भी थी जो उनके साथ रहती थी। एक बेडरूम बीनू का था। अंबर उसके साथ रह सकती थी, मगर अंबर का काम बहुत ज़्यादा होता था; इसलिए किसी को उसके साथ रूम शेयर करना मुश्किल था। एक कमरा वेदांत का था, जो इस मेंशन का सबसे खूबसूरत कमरा था, और इसके साथ ही एक छोटा बेडरूम भी था। उसके साथ वाले कमरे को अंबर को देने का विचार किया जा रहा था। अंबर उसके घर में शिफ्ट होने वाली थी। वेदांत को यह बात नहीं पता थी। अंबर के माँ-बाप उसे घर में छोड़ने आए थे। दादी को तो वह फूटी आँख नहीं दिखाई दे रही थी। उसके मन में हमेशा यही वहम रहता था कि कोई उसके पोते पर डोरे ना डाल दे। बृजेश ने अपनी शादी अपनी मर्ज़ी से की थी। वर्षा बहुत ज़्यादा खूबसूरत थी। दादी ने राजन के लिए भी अपनी पसंद की लड़की ढूँढ़ी थी, और वेदांत के लिए भी वह ऐसा ही करने वाली थी। "आप बिल्कुल फ़िक्र मत करो।" वर्षा अनीता और अरुण से कहने लगी। "यह हमारे साथ बिल्कुल घर जैसा फ़ील करेगी।" वह लोग उसे छोड़कर जा चुके थे। उन्हें वहाँ से सीधा एयरपोर्ट जाना था। उनके जाते ही वर्षा ने अंबर को वेदांत के साथ वाला कमरा दिखा दिया। "बेटा, ये तुम्हारा कमरा है।" "मगर हाँ, आज तो हम दोनों सहेलियाँ साथ में रहेंगी।" बीनू, जो अभी-अभी घर आई थी और उसे अंबर के घर आने के बारे में पता चला था, वह उनके पीछे आती हुई कहने लगी। "सही बात है आंटी, आज तो मैं बीनू के साथ ही रहूँगी।" दोनों सहेलियाँ बहुत दिनों बाद इकट्ठी हुई थीं। अंबर बहुत बिज़ी रहती थी, इसलिए उसके पास बीनू से मिलने का ज़्यादा वक़्त नहीं होता था। देर तक दोनों सहेलियाँ बातें करती रहीं। वेदांत अभी तक इस बात से अनजान था कि अंबर उसके घर में शिफ्ट हो चुकी है। अगले दिन संडे था। ऑफ़िस से छुट्टी थी। लेट सोने की वजह से अंबर और बीनू दोनों ही नहीं उठी थीं। बीनू जो अक्सर वेदांत के साथ जिम जाया करती थी, वेदांत जब एक्सरसाइज़ करने के लिए जाने लगा, उसे लगा कि उसे बीनू को उठा लेना चाहिए। उसने जैसे ही कमरे के दरवाज़े को हाथ लगाया, वह खुला होने की वजह से खुल गया। उसने सामने देखा, बेड पर बीनू ऊपर ब्लैंकेट लिए हुए सो रही थी। "कुंभकरण!" कहता हुआ वह उसके पास गया। "चलो एक्सरसाइज़ करो।" मगर बीनू नहीं उठी। अब वेदांत के मन में शरारत आ गई। वह खींचकर उसकी ब्लैंकेट उतार देता है। वेदांत की इस हरकत से अंबर की आँख खुल जाती है। वह घबराकर जल्दी से उठकर बैठ गई। उसे समझ नहीं आया था कि क्या हुआ। "मिस सक्सेना! आप यहाँ?" वेदांत ने उसे हैरानी से देखकर कहा। अंबर जो अभी भी नींद में थी, उसे समझ नहीं आया कि क्या हुआ। "सर, आप यहाँ क्या कर रहे हैं?" "यह मेरा घर है। तुम मुझे बताओ मिस सक्सेना कि तुम क्या कर रही हो?" "भाई, मैं बताती हूँ।" बीनू, जो बाथरूम से बाहर आई थी, उसने कहा। "आंटी-अंकल बाहर गए हैं, तो अंबर हमारे साथ रहेगी जब तक वो वापस नहीं आ जाते।" "ठीक है, मैं तुम्हें एक्सरसाइज़ के लिए उठाने आया था।" वह बाहर जाने लगा। "चलो हम दोनों ही आते हैं, हम भी एक्सरसाइज़ करेंगे।" बीनू ने कहा। वेदांत बाहर चला गया। "चलो हम भी एक्सरसाइज़ करने चलते हैं।" बीनू ने अंबर से कहा। "तुम जाओ, मुझे नहीं जाना।" अंबर ने कहा। "क्यों नहीं चलोगी तुम?" "मैं वैसे भी योग करती हूँ, मैं जिम नहीं करती और सीरियसली सर के सामने तो मैं कभी नहीं।" अंबर भी उठ चुकी थी। "अब आ जाओ।" बीनू ने फिर उससे कहा। "मैं नीचे आ रही हूँ, मगर मैं नीचे जाकर चाय पीना पसंद करूँगी। मुझे नहीं करनी एक्सरसाइज़।" वह दोनों नीचे तो आ गई थीं। बीनू जिम में चली गई, जबकि अंबर हाल में वर्षा के पास जाकर बैठ गई। जब बीनू एक्सरसाइज़ करने पहुँची, वेदांत वहाँ पहले से ही एक्सरसाइज़ कर रहा था। "मुझे किसी ने बताया ही नहीं कि मिस सक्सेना यहाँ रहेगी।" वेदांत ने बीनू से पूछा। "मुझे क्या पता? मुझे लगा अंबर ने आपको ऑफ़िस में बता दिया होगा, और आप उसे मिस सक्सेना क्या कहते हैं? उसका नाम अंबर, इतना खूबसूरत है।" "ठीक है।" वेदांत ने कहा। "भाई, मेरी एक तमन्ना है जो आपको पूरी करनी है। मैं बहुत दिनों से आपसे कहना चाहती थी।" "कहो मेरी प्रिंसेस, क्या कहना है? क्या चाहिए तुम्हें?" वेदांत एक्सरसाइज़ करते हुए बोला। "अंबर को मेरी भाभी बनाकर हमेशा के लिए यहाँ रख लो।" एक्सरसाइज़ करते हुए वेदांत ने अपनी एक्सरसाइज़ रोक दी। उसे लगा उसे गलत सुनाई दिया। "क्या कहा तुमने? फिर कहना।" "यही कि अंबर को मेरी भाभी बना दो। वह हमेशा यहीं रह जाए।" उसकी बात पर वेदांत जोर से हँसने लगा। "पहली बात तो मुझे शादी ही नहीं करनी। दूसरी बात क्या तुम्हें सचमुच लगता है कि मैं उस बोरिंग मिस सक्सेना से शादी करूँगा?" "बोरिंग और वो...? भाई आपको क्या हो गया? आपको लड़कियों की भी पहचान नहीं।" बीनू कहने लगी। अंबर हाल में वर्षा के पास बैठी हुई चाय पीने के बाद बातें करने लगी। थोड़ी देर बाद वह अपने कमरे में वापस आ गई। उसे नहाकर चेंज करना था। तभी बीनू और वेदांत भी ऊपर आते हैं। "भाई, मैं उससे भी पूछूँ कि वह आपके बारे में क्या सोचती है।" बीनू ने कहा। "कोई मुझे थोड़ी रिजेक्ट करेगा। वेदांत सहगल कोई आम आदमी नहीं है। लड़कियाँ ख्वाब देखती हैं मेरे।" उसने कहा। "तो भाई यहीं रुको।" बीनू वेदांत को कमरे के बाहर रुकने को कहती है और वह खुद कमरे में अंदर जाती है। तब तक अंबर नहाकर चेंज कर चुकी थी। "आ गई तुम एक्सरसाइज़ करके?" अंबर ने उसे देखकर कहा। "प्लीज मेरी सीरीज़ पर कमेंट करें, साथ में लाइक करें, मुझे फ़ॉलो करना और स्टीकर देना याद रखें।"
"कोई मुझे थोड़ा रिजेक्ट करेगा। वेदांत सहगल कोई आम आदमी नहीं है।लड़कियां ख्वाब देखती हैं मेरे।" उसने कहा। "तो भाई यहीं रुको।" बीनू ने वेदांत को कमरे के बाहर रुकने को कहा और वह खुद कमरे में अंदर गई। तब तक अंबर नहाकर चेंज कर चुकी थी। "आ गई तुम एक्सरसाइज करके?" अंबर ने उसे देखकर कहा। "पता है अंबर, मेरे मन में एक विचार आया है। मैं कुछ सोच रही थी।" बीनू वहाँ लगे सोफ़े पर बैठते हुए कहने लगी। "तुम कब से सोचने लगी? ज़्यादा सोच मत कर। यह जो तेरा दिमाग है ना, इस पर इतना बोझ मत डाल।" अंबर उसे हँसने लगी। "तो मेरा मज़ाक उड़ा रही हो?" बीनू ने नकली गुस्से से कहा। "बिल्कुल भी नहीं। मैं तो तुम्हारे दिमाग का फ़िक्र कर रही हूँ। सोचने से खराब हो जाएगा।" उसने हँसते हुए कहा। अंबर की बात पर वेदांत, जो बाहर खड़ा था, उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। क्योंकि बीनू के बारे में यह बात सच थी; वह एक नंबर की आलसी थी और सोचना उसे बिल्कुल पसंद नहीं था। "चल, तूने सोच लिया है, तो बता दे मुझे।" अंबर ने फिर उससे कहा। "पता है ना हम दोनों कितनी अच्छी सहेलियाँ हैं?" "अच्छा, तो तुमने यह बात सोची? बताने के लिए तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया।" "मेरी पूरी बात सुनो पहले।" "अच्छा, बोल।" अंबर ने मुस्कुराकर कहा। "मेरे मन में एक इच्छा है कि तू हमेशा के लिए यहीं रह जाए। तुम कभी इस घर से मत जाना।" "क्यों? मैं अपने मॉम-डैड को छोड़कर यहाँ क्यों रहूँ? वे तीन महीने के लिए गए हैं, आ जाएँगे। तुम चाहो तो मेरे साथ रहने के लिए वहाँ आ जाना।" "अगर तुम्हारा कोई भाई होता, तो मैं आ जाती।" बीनू ने शरारत से कहा। "मैं उस चीज़ की बात नहीं कर रही हूँ। हमेशा यहीं रहने के लिए और भी तरीके हैं।" "अच्छा।" अंबर को उसकी बात बिल्कुल समझ नहीं आई थी। "देखो ना मेरा कितना हैंडसम सा भाई है और तुम इतनी खूबसूरत हो! तुम दोनों शादी कर लो और हमेशा के लिए इस घर में आ जाओ।" अंबर बीनू को देखने लगी। "मुझे लगता है कि तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। इसी की वजह से एक्स्ट्रा सोचने लगी हो।" अंबर ने उसकी बात को सिरे से इग्नोर करते हुए कहा। "नहीं, मैं सोच रही हूँ। अब तुम्हारी शादी की उम्र हो चुकी है और भाई की भी, तो उसमें प्रॉब्लम क्या है? तुम दोनों एक-दूसरे को जानते भी हो।" "बिल्कुल यही प्रॉब्लम है कि मैं उसके बारे में बहुत जानती हूँ और इसीलिए उसके साथ शादी करने में मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं है।" उसने रिजेक्ट कर दिया। बाहर खड़े वेदांत को गुस्सा आया। ऐसा बिल्कुल भी नहीं था कि उसे अंबर में कोई दिलचस्पी थी, मगर एकदम से ऐसे रिजेक्ट होना उसे बहुत बुरा लगा। "कारण जान सकती हूँ इन बातों का। तुम्हें मेरा भाई क्यों पसंद नहीं? तुम्हें शादी के लिए कैसा लड़का चाहिए?" "बिल्कुल। मुझे कैसा लड़का चाहिए? मुझे नहीं पता। मगर मैं जिसके साथ शादी करूँगी, मैं उसके साथ पूरी ज़िंदगी बिताना चाहूँगी। हमारा रिश्ता एक जन्म का नहीं, जन्म-जन्म का होगा। वह सात जन्मों तक मेरे साथ रहे। मुझे ऐसे आदमी से शादी करनी है और तुम्हारा भाई जिससे शादी करेगा, सात दिन भी नहीं निकाल सकेगा, उससे पहले ही तलाक ले लेगा। अगर तुम्हारा भाई नहीं मांगेगा तो वह लड़की मांग लेगी जिससे वह शादी करेगा। उसका कोई रिलेशनशिप सात घंटे से ज़्यादा नहीं चलेगा। शादी के लिए सबसे पहले ज़रूरी होती है वफ़ादारी, जो तुम्हारे भाई के आसपास से भी नहीं गुज़रती।" "मेरी असिस्टेंट होकर मेरी बुराई कर रही है। यह समझती क्या है अपने आप को? मेरी नौकरी करती है, मैं इसे पे देता हूँ।" वेदांत उन दोनों की बातें सुनते हुए सोच रहा था। "तो तुम नौकरी क्यों कर रही हो? तीन साल हो गए तुम्हें उसके पास काम करते हुए।" बीनू ने कहा। "शादी और नौकरी दो बहुत अलग-अलग चीज़ें हैं। वह एक बहुत अच्छे बिज़नेसमैन हैं। सारा बिज़नेस उन्होंने बहुत अच्छे से संभाला है। वह बहुत अच्छे बॉस हैं, मैं उनकी बहुत इज़्ज़त करती हूँ और वह मुझे रिस्पेक्ट देते हैं, जैसा वह और लड़कियों को ट्रीट करते हैं। उन्होंने मुझे वैसा कभी नहीं किया।" "तुम्हारे कहने का मतलब है कि शादी के लिए भाई रिजेक्ट है।" "बिल्कुल। इस टॉपिक पर दोबारा बात नहीं होगी।" "मैं कौन सा इसके साथ शादी करने के लिए मर रहा हूँ? मैं बोरिंग मिस सक्सेना के साथ तो कभी भी शादी नहीं कर सकता। उसने बीनू के सामने मुझे इसलिए रिजेक्ट किया क्योंकि वह जानती है कि मैं उसे रिजेक्ट ही करूँगा। बहुत स्मार्ट बोरिंग मिस सक्सेना।" वेदांत उसी के बारे में सोचता हुआ कमरे में गया। थोड़ी देर में उसने नहाकर चेंज कर लिया। आज उसे ऑफ़िस नहीं जाना था। उसने ब्लू डेनिम के साथ ब्लैक कलर की टीशर्ट पहनी और थोड़ी ही देर में नीचे आ गया। उसने बीनू के कमरे में से गुज़रते हुए उनकी बातें सुनने की भी कोशिश की, मगर वहाँ से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, तो वह भी नीचे जाने लगा। वहाँ पर दोनों पहले ही ब्रेकफ़ास्ट कर रही थीं और दोनों की हँसी की आवाज़ ऊपर से आ रही थी।
कौन सा इसके साथ शादी करने के लिए मर रहा हूँ? मैं बोरिंग मिस सक्सेना के साथ तो कभी शादी नहीं कर सकता। उसने बीनू के सामने मुझे इसलिए रिजेक्ट किया क्योंकि वह जानती थी कि मैं उसे रिजेक्ट करूँगा। बहुत स्मार्ट, बोरिंग मिस सक्सेना! वेदांत उसी के बारे में सोचता हुआ कमरे में गया। थोड़ी देर में उसने नहाकर कपड़े बदल लिए। आज उसे ऑफिस नहीं जाना था। उसने ब्लू डैनिम के साथ ब्लैक कलर की टीशर्ट पहनी और थोड़ी देर में नीचे आ गया। उसने बीनू के कमरे में से गुजरते हुए उनकी बातें सुनने की कोशिश की, मगर वहाँ से कोई आवाज नहीं आ रही थी, तो वह भी नीचे जाने लगा। वहाँ पर दोनों पहले ही नाश्ता कर रही थीं, और दोनों की हँसी की आवाज ऊपर तक आ रही थी। उन सभी में से ऊँची अंबर की आवाज थी। यह लड़की घर में कितनी डिफरेंट लग रही है! ऑफिस में तो मैंने कभी काम के अलावा आवाज तक नहीं सुनी। जैसे ही वेदांत नीचे पहुँचा, अंबर की आवाज आनी बंद हो गई। शायद उसने वेदांत को आते हुए देख लिया था। वह चुपचाप नाश्ता करने लगी। "आज तुम्हें भी कहीं जाना है?" वेदांत को तैयार देखकर वर्षा ने पूछा। "हाँ, मुझे काम है। भाई और भाभी कब तक आएंगे? उस छोटी पीहू के बिना तो बिल्कुल मन नहीं लगता।" वेदांत ने अपने बड़े भाई और भाभी के बारे में पूछा। "शायद वे संडे रात तक आएंगे।" "दादी नहीं आईं मॉम के साथ नाश्ता करने?" वेदांत ने इधर-उधर देखा; उसे दादी नज़र नहीं आईं। "बस आती ही होगी।" उसकी मॉम ने कहा। "भाई, आप बाहर जा रहे हैं? हम दोनों को छोड़ देंगे। हमें बाज़ार जाना है।" बीनू ने वेदांत से कहा। "देखो, तुम लोगों को शॉपिंग करने के लिए जाना होगा, मगर मुझे और काम है।" "भाई, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? प्लीज़ छोड़ दीजिए ना।" "तुम अपनी गाड़ी ले जाओ। हम गाड़ी नहीं लेकर जाने वाले; आते हुए हम टैक्सी ले लेंगे।" "ठीक है, मैं छोड़ दूँगा।" वेदांत ने कहा। "नहीं, कोई बात नहीं; हम लोग टैक्सी से चले जाएँगे।" अंबर ने कहा। वे सभी नाश्ता करने लगे। तभी पीछे से किसी की आवाज आई। "चाची जी, एक प्लेट मेरे लिए भी लगा दो।" वेदांत के चाचा का बेटा अजीत आया था। अजीत अपनी फैमिली के साथ उनके पड़ोस में ही रहता था। "भाई, आप सुबह-सुबह कैसे?" बीनू ने उससे पूछा। "मैं फ़ाइल देने आया था वेदांत को।" वह भी उन लोगों के साथ ही नाश्ते के लिए बैठ गया था। "अरे अंबर जी, आप यहाँ कैसे?" उसने अंबर को देखकर कहा। "अंबर अभी थोड़े दिन हमारे साथ रहेगी। इसके मॉम-डैड शहर से बाहर हैं।" वर्षा ने बताया। अजीत जानता था कि अंबर के डैड से बृजेश की पुरानी दोस्ती है। "और अंकल कहाँ हैं?" "वह अपने कमरे में है; नहा रहे हैं, आते ही होंगे।" वर्षा ने बताया। थोड़ी देर बैठने के बाद अजीत जाने के लिए खड़ा हो गया। "मैं जा रहा हूँ; मुझे बाज़ार जाना है। अपनी गाड़ी से ही आया हूँ; थोड़ा काम है।" "अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो आप हमें मार्केट में छोड़ देंगे।" उसकी बात पर अंबर ने कहा। "बिल्कुल, चलो! मुझे क्या प्रॉब्लम हो सकती है? मेरी गाड़ी बाहर ही खड़ी है।" अजीत ने मुस्कुराकर कहा। "हम चलते हैं फिर।" अंबर बीनू से कहने लगी। अंबर उठी और जल्दी से ऊपर गई। वेदांत ऊपर जाती हुई अंबर को पीछे से देख रहा था। हमेशा ऑफिस में सूट पहनने वाली अंबर ने आज जींस के साथ क्रॉप टॉप पहना हुआ था। पीछे से वह हमेशा से अलग लग रही थी। वह थोड़ी ही देर में अपना बैग उठाकर वापस आ गई। वह दोनों लड़कियाँ अजीत के साथ बाहर चली गईं। अंबर की हरकत पर वेदांत काफ़ी हैरान हुआ। "मुझे तो कह दिया कि हम टैक्सी से चले जाएँगे; अजीत से उसने खुद ही पूछ लिया जाने के लिए।" वेदांत को उन दोनों लड़कियों को साथ ले जाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, मगर उसे इग्नोर करते हुए अंबर का अजीत को इम्पॉर्टेंस देना उसे अंदर तक गुस्सा दिला गया। "मैं जा रहा हूँ।" ब्रेकफ़ास्ट छोड़ता हुआ वेदांत भी बाहर की तरफ जाने लगा। अजीत की एक गाड़ी बाहर ही रुकी हुई थी। जब तक वह गाड़ी लेकर बाहर पहुँचा, तीनों जा चुके थे। पहले उसे इस तरह शादी के लिए रिजेक्ट करना, अब उसके साथ जाने के लिए मना करना, वेदांत को बहुत बुरा लगा था। वह ना चाहते हुए भी अंबर के बारे में ही सोच रहा था। वेदांत को थोड़ा काम था। वह काम खत्म करके जल्दी ही घर वापस आ गया। वह अंबर के रिजेक्ट करने वाली बात को बिल्कुल भूल चुका था। वह अपने कमरे की बालकनी में बैठा हुआ कोई ऑफिस का काम कर रहा था। उसने देखा कि बीनू और अंबर घर के अंदर आ रही हैं; उनके दोनों के हाथ में शॉपिंग बैग थे। बालकनी में ही दादी और वर्षा बैठी हुई थीं। वे दोनों आकर बैठ गईं। वर्षा उन दोनों के लिए वहीं पर पानी और चाय मँगवाती है। वे दोनों वहीं पर बातें करने लगे। "मुझे कमरे में सामान भी सेट करना है। हम लोगों ने पूरा दिन वही बाज़ार में लगा दिया।" "कोई बात नहीं बेटा, तुम दोनों सहेलियाँ मिलकर उसे जल्दी कर लेना।" वर्षा कहने लगी। दादी को अंबर बिल्कुल अच्छी नहीं लग रही थी। "मैं अंदर जा रही हूँ।" दादी कहने लगी; दादी अंदर की तरफ जाने लगी। वे तीनों वहीं बातें कर रहे थे। "मॉम, देखो ना, अंबर इस घर में अब आ गई है! अब हमेशा के लिए इसे यहीं रख ले और जाने ही ना दें।" "मगर इसकी मॉम-डैड इसे यहाँ कैसे रहने देंगे? यह भी तो बिल्कुल अकेली है उनके पास। अरुण भाई साहब तो इसे देखकर जीते हैं।" "और कोई ऐसा तरीका हो कि वह खुद छोड़ जाए इसे; जैसे रिया भाभी रहती है जहाँ पर मेरी भाभी बनकर।" बीनू ने मुस्कुराकर कहा। अंबर समझ गई थी कि वह क्या कहने वाली है। "प्लीज़ बीनू, फिर मत शुरू हो जाओ! थोड़ा अकल से काम लो।" "मैं तो तैयार हूँ उसके लिए, अगर वेदांत और अंबर मान जाएँ।" वर्षा उसकी बात समझ गई थी। उसने मुस्कुराकर कहा। वेदांत अब तक उनकी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी, मगर अब वह भी उनकी बातें सुनने लगा। "आंटी, अब आप भी शुरू हो गईं!" "हम दोनों, तुम्हारे अंकल और मैं, और तुम्हारी मॉम-डैड तो बहुत देर से यह बात चाहते हैं कि तुम हमेशा के लिए यहीं आ जाओ; हमेशा के लिए मेरे वेदांत की बन जाओ।" वेदांत काफ़ी हैरान था कि उसकी मॉम क्या कह रही है। "देखिए आंटी, ऐसा वैसा कुछ नहीं है, और ना ही हो सकता है। भूल जाएँगी आप इस बात को, और फिर कभी नहीं कहेंगी। वरना मैं जहाँ से आई हूँ, वहाँ चली जाऊँगी।" अंबर ने सीधा-सीधा कहा। "मतलब मुझे इस तरह से रिजेक्ट किया जा रहा है?" वेदांत को गुस्सा आ गया। शायद ही उसे किसी ने ऐसे रिजेक्ट किया होगा।
वेदांत हैरान था कि उसकी मॉम क्या कह रही है। देखिए आंटी, ऐसा वैसा कुछ नहीं है। और ना ही हो सकता है। भूल जाएँगी आप इस बात को। और फिर कभी नहीं करेंगे। वरना मैं जहाँ से चली जाऊँगी। अंबर ने सीधा-सीधा कहा। "मतलब मुझे इस तरह से रिजेक्ट किया जा रहा है?" वेदांत को गुस्सा आ गया। शायद ही उसे किसी ने ऐसे रिजेक्ट किया होगा। "कोई बात नहीं माम। इसका कमरा भाई के साथ है। देख लेना, इन दोनों को प्यार हो जाएगा।" "हम दोनों ऑफिस में तीन साल से साथ हैं। समझी तुम?" अंबर ने कहा। "ऑफिस और जहाँ घर में रहने का बहुत फर्क है। तुम ऑफिस कैसे जाती हो, बोरिंग बनकर। हमेशा से वही ट्राउजर, ब्लेज़र और व्हाइट शर्ट, बंधे हुए बाल, और कोई मेकअप नहीं। मगर जब भाई तुम्हें सुबह-शाम तुम्हारी बालकनी में देखेगा, उसे एक अलग ही अंबर दिखेगी। वो तुम्हारी मीठी आवाज़ सुनेगा। अब मत कहना कि ऑफिस में भी तुम्हारी आवाज़ सुनता है। ऑफिस में और तुम्हारे अपने कमरे में बोलने का फर्क होगा।" "तो देख लेना, भाई तो तुम्हारे दीवाने हो जाएँगे और तुम भी भाई को कहाँ जानती हो। तुम भी उन्हें जान जाओगी। तो तुम्हें भी उससे प्यार हो जाएगा।" बीनू नॉनस्टॉप बोल रही थी। उसकी बात पर वर्षा मुस्कुरा रही थी। "रहने दो, जितना मैं तुम्हारे भाई को जानती हूँ ना, शायद ही कोई जानता होगा। इसलिए प्यार-व्यापार तो भूल जाओ।" अंबर ने उसे कहा और वह अंदर आ गई। यह लड़की मुझे हर बात पर रिजेक्ट कर रही है। वेदांत उनकी बातें सुन रहा था। उसे अंबर पर बेहद गुस्सा आ रहा था। कैसे मेरी माँ और मेरी छोटी बहन उसकी विनती कर रही हैं और वह हर बात पर उन्हें ना कह रही है। ना तो मुझे कहना चाहिए उसे। अंबर के अंदर आने के बाद बीनू ने अपनी मॉम के गले में बाँह डाल दी। "मॉम, सचमुच आप लोग चाहते हैं भाई और अंबर की शादी हो जाए?" "और नहीं तो क्या? अरुण और अनीता को भी वेदांत पसंद है और हमें अंबर अब। यह दोनों मानेंगे तब होगी शादी।" उसने हँसकर कहा। "मुझे कोई चक्कर तो चलना पड़ेगा।" बीनू सोचने लगी। वेदांत को बीनू के बचपने पर हँसी आ रही थी। उसे पता था कि बीनू और अंबर की दोस्ती है, मगर इन दोनों की दोस्ती इतनी गहरी है, उसे यह नहीं पता था। बीनू काफी देर तक वर्षा का दिमाग खाती रही। उसने अपनी मॉम को इतने सारे प्लान बनाकर बताए कि उसकी माँ ने हाथ जोड़ दिए। "उसके आगे बीनू, तुम्हें जो करना है करो, मगर मुझे बख्श दो।" वर्षा खड़ी हो गई। बीनू अभी तक अकेली बैठी अपने भाई और अंबर का चक्कर कैसे चलाया जाए, इसी के बारे में सोच रही थी। वह इस बात से अनजान थी कि वेदांत ऊपर बालकनी में काम करता हुआ उनकी सारी बातें सुन रहा है। सच पूछो तो उसने काम कम किया था और बीनू की बचकानी हरकतों पर हँसी ज्यादा आ रही थी। "मुझे भी अंदर जाना चाहिए। मैं अंबर की हेल्प कर देती हूँ सामान रखने में।" बीनू जल्दी से ऊपर गई। वो वेदांत के साथ वाले कमरे में जाती है, मगर कमरा खाली था। "मुझे लगता है वह मेरे कमरे में ही होगी अभी।" बीनू वहाँ से अपने कमरे में जाती है, मगर अंबर नहीं थी और ना ही उसका सामान। बीनू सोचते हुए अपने कमरे की बालकनी में बाहर निकलती है। तभी अंबर उसे नीचे दिखाई देती है और उसी वक्त वह वापस चली जाती है। "यह दादी के रूम में क्या कर रही है?" क्योंकि जहाँ वह वापस गई थी, वहाँ उसकी दादी लक्ष्मी देवी का रूम था। बीनू वापस नीचे जाती है। वह देखती है कि दादी के साथ जो कमरा था वह खुला हुआ था। बीनू उसके पास चली जाती है। अंबर अपना सामान उस कमरे में रख चुकी थी। "यह क्या? तुम यहाँ शिफ्ट हो गई?" बीनू ने कहा। "हाँ, मुझे दादी ने बताया कि यह वाला कमरा भी खाली है, तो मैं यहाँ आ गई।" अंबर ने मुस्कुराकर कहा। "तुम्हें पता है, तुम्हें यहाँ वॉशरूम शेयर करना पड़ेगा।" "तो क्या हुआ?" अंबर ने कहा। "और दादी के साथ रहना बहुत मुश्किल काम है। यह दोनों रूम बीच में अटैच हैं। देखो ना यह दरवाज़ा है जो बीच में।" "मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है।" अंबर ने कहा। "तुम ऊपर वाला कमरा छोड़कर यहाँ क्यों आईं?" "मैं तुमसे बाद में बात करती हूँ। अभी मैं थोड़ा सा रूम ठीक कर लूँ। मेरे साथ हेल्प करो।" "तुमने वह कमरा छोड़ दिया? मैं नहीं करने वाली तुम्हारी हेल्प।" बीनू पैर पटकती हुई वहाँ से चली जाती है। अंबर का काम लगभग खत्म था। उसने कमरे में सामान रखने के बाद अपना लैपटॉप उठाया और कमरे के बाहर जो सिटिंग एरिया था, वहाँ जाकर बैठ गई। थोड़ी देर बाद बीनू भी उसके पास वापस आ गई। "अच्छा हुआ तू आ गई, मुझे तो तुम्हें थैंक्स कहना है।" अंबर बोली। वेदांत का रूम साइड पर पड़ता था, तो उसे नीचे कमरे के आगे जो सिटिंग एरिया था, वो दिखाई दे रहा था और दोनों की आवाज़ भी ऊपर तक आ रही थी। "तुमने ही तो मुझे बताया कि मुझे वेदांत के साथ बालकनी शेयर करनी होगी और हमारे कमरे बिल्कुल साथ होंगे, तो मैंने अकल से काम लिया। दादी से मैंने पूछा कोई नीचे कोई कमरा हो तो, उन्होंने मुझे यह कमरा बता दिया। इसलिए मैंने यहाँ शिफ्ट हो गई।" "मतलब मेरे साथ वाला कमरा भी रिजेक्ट कर दिया? क्या समझती है यह अपने आप को? लड़कियाँ मेरे पास से गुजरने के लिए तरसती हैं!" वो गुस्से में अपना लैपटॉप उठाकर अंदर चला गया। उन दोनों के हँसने की आवाज़ ऊपर तक सुनाई दे रही थी। "यह लड़कियाँ तो पागल हो चुकी हैं! इतना जोर से कौन हँसता है? अच्छा हुआ मेरी बालकनी से चली गई।"
मतलब, मेरे साथ वाला कमरा भी रिजेक्ट कर दिया। क्या समझती है यह अपने आप को? लड़कियाँ मेरे पास से गुजरने के लिए तरसती हैं। वह गुस्से में अपना लैपटॉप उठाकर अंदर चला गया। उन दोनों के हँसने की आवाज़ ऊपर तक सुनाई दे रही थी। यह लड़कियाँ तो पागल हो चुकी हैं। इतना जोर से कौन हँसता है? अच्छा हुआ मेरी बालकनी से चली गईं। उसे दोनों लड़कियाँ दिखाई दे रही थीं। अंबर ने कपड़े बदलकर लोअर और टीशर्ट पहनी हुई थी। उसके बाल खुले थे, बिना किसी मेकअप के बैठी थी। उसके सामने टेबल पर लैपटॉप पड़ा था। वह लापरवाही से बैठी हुई, लैपटॉप को भी चला रही थी और बीनू से बात भी कर रही थी। अगला दिन सोमवार था, वर्किंग डे था। तो उनका काम का रूटीन शुरू हो चुका था। अंबर वेदांत के ऑफिस जाने से पहले निकल जाती थी; उसे ब्रेकफास्ट पर भी कभी नहीं मिलती थी और शाम को वेदांत लेट आता था। क्योंकि ऑफिस के बाद वह अक्सर क्लब चला जाता, कभी दोस्तों के साथ तो कभी किसी गर्लफ्रेंड के साथ। वह घर हमेशा लेट आता और रात का खाना खाकर आता। शनिवार तक वह दोनों घर में नहीं मिले थे। सिर्फ़ ऑफिस में ही मिलते थे और वह भी हमेशा की तरह अपने काम में लगे हुए होते। दादी को अंबर पसंद नहीं थी। अंबर को भी समझ आ गया था कि दादी उसे पसंद नहीं करती। दादी और अंबर दोनों हमेशा जल्दी उठती थीं। दादी नहाकर अपना पाठ-पूजा करती थीं। अंबर उठकर अपना योग करती थी। उसके बाद अंबर नहाकर अपने लिए चाय का कप बनाती थी; तो अंबर अपने लिए चाय के साथ उनके लिए भी चाय ले आती थी। मगर उनके साथ बैठकर उसने कभी चाय नहीं पी थी। रात को भी खाना खाकर अंबर अपने काम पर लग जाती थी, तो दादी अपने सीरियल देखती थीं। अंबर कभी दादी के काम में दखल नहीं देती थी। और दादी चाहती हुई भी अभी अंबर को बुरा नहीं कह सकी थीं। ऐसे ही शनिवार आ चुका था। राजन भाई और रिया भाभी अपनी छोटी बेटी पीहू के साथ वापस आ गए थे। वे एक हफ़्ते के लिए छुट्टी पर गए थे और पीहू के आने से ही घर में किलकारियों की आवाज़ आने लगी थी। "तुम लोग तो कल संडे को आने वाले थे," बृजेश ने राजन से पूछा। "बिल्कुल, हम लोग कल आने वाले थे। मगर कल मेरा एक बहुत ज़रूरी ऑपरेशन है इसलिए मुझे आना पड़ा।" "हमारा भी तुम लोगों के बिना बिल्कुल मन नहीं लगा।" वर्षा ने कहा। "पीहू के बिना तो बिल्कुल भी नहीं।" बीनू भी कहने लगी। वे सभी डिनर कर रहे थे कि बाहर से वेदांत आया। "यह तो भाई सरप्राइज़ है! आप लोग तो आ गए।" वेदांत ने अपनी भाभी के पैर छूते हुए कहा और फिर वह राजन के गले लग गया। "भाई, कैसे हो आप? बहुत मिस किया हमने आपको। और हमारी प्रिंसेस कहाँ है?" उसने आसपास पीहू को न देखकर कहा। "वह राधा के पास है।" राधा जो पीहू की नैनी थी। "तुम भी खाना खा लो हमारे साथ। कभी रात को डिनर नहीं करते।" "मुझे भी बहुत भूख लगी है।" वेदांत भी उन सभी के साथ बैठ गया था। वेदांत ने देखा कि अंबर खाने की टेबल पर नहीं थी। तभी पीहू को गोद में उठाए हुए अंबर नीचे आती है। उसके साथ राधिका भी थी। वेदांत खड़ा होकर उसके पास जाता है। वह पीहू को अंबर की गोद से लेने लगा। "अभी नहीं, थोड़ी देर मुझे खेलने दो। मैं लेकर आई हूँ इसे।" अंबर ने कहा। "तुम दोनों झगड़ क्यों रहे हो?" बीनू खड़ी होकर उन दोनों के पास आ गई। "आप दोनों शादी कर लो, फिर आपके भी ऐसे प्यारे-प्यारे बच्चे होंगे।" बीनू कहने लगी। वेदांत और अंबर ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा। वहाँ टेबल पर जो सभी बैठे थे, वे हँसने लगे। दादी को बीनू की बात बिल्कुल अच्छी नहीं लगी थी। "मैं अपने पोते के लिए तो कोई राजकुमारी ढूँढ कर लाऊँगी। मुझे पता है कि मुझे मेरे पोते के लिए कैसी लड़की चाहिए। इसके ऑफिस में काम करने वाली लड़की तो वह बिल्कुल नहीं होगी।" दादी के ऐसा कहने पर वहाँ बैठे जो सभी हँस रहे थे, वे एकदम चुप हो गए! क्योंकि दादी ने सरेआम अंबर की बेइज़्ज़ती की थी। तभी वेदांत के फ़ोन पर बैल हुई! वह फ़ोन उठाता हुआ बाहर की तरफ़ जाने लगा। अंबर भी चुप रहने वाली कहाँ थी! "बिल्कुल ठीक कहा दादी आपने! आपके पोते के लिए आप ऐसी लड़की ढूँढ कर लाना जो आपके बेटे-पोते को ना जानती हो, जो लोग इसे जानते हैं वे तो इससे शादी हरगिज़ नहीं करने वाले। इससे अच्छा है वो खुद ही सुसाइड कर ले।" अंबर ने दादी से कहा। वेदांत जिसका फ़ोन कट गया था और वह बाहर गया ही नहीं, उसे यह बात सुनाई दे गई। "यह समझती क्या है अपने आप को? बोरिंग मिस सक्सेना! मेरी इतनी बेइज़्ज़ती! बोरिंग मिस सक्सेना, तुम कहती हो तुम्हें मुझमें कोई इंटरेस्ट नहीं, मगर मैं देखता हूँ तुम कैसे इंटरेस्ट नहीं लोगी मुझमें! अगर मैंने तुम्हें यह कहने पर मजबूर नहीं कर दिया कि तुम्हें मुझसे शादी करनी है, मेरे बिना तुम मर जाओगी! मेरा नाम भी वेदांत सहगल नहीं है! तुम्हारा यह एटीट्यूड देखता हूँ कब तक रहता है! तैयार हो जाओ तुम! तुम मेरी मॉम और बहन को कह रही हो ना कि अगर उन्होंने मेरे बारे में बात की तो तुम घर छोड़कर चली जाओगी! अगर तुमने इन दोनों की मिन्नत नहीं की कि तुम्हें वेदांत के साथ शादी करनी है, तो देखते रहना, बड़ा ऊँचा नखरा है तुम्हारा! मगर वेदांत सहगल के आगे किसी का नखरा नहीं चलता, तुम्हारा भी नहीं चलेगा!" यह बात सच है, आदमी हमेशा उसी की तरफ़ झुकता है जो उसे रिजेक्ट करती है और शायद ही वेदांत अंबर की तरफ़ झुक रहा था। वैसे भी, लड़कियों से खेलना तो उसका शौक था। अब शायद बारी अंबर की थी। इस बात से अनजान अंबर कि वेदांत उसके लिए क्या सोच रहा है, वह पीहू के साथ खेल रही थी। अब वेदांत क्या करने वाला है? वेदांत को अंबर से सचमुच प्यार हो जाएगा? कहीं वह उसके जिस्म के साथ खेलकर उसे छोड़ तो नहीं देगा?
यह बात सच है, आदमी हमेशा उसी की तरफ झुकता है जो उसे रिजेक्ट करता है, और शायद ही वेदांत अंबर की तरफ झुक रहा था। वैसे भी, लड़कियों से खेलना तो उसका शौक था। अब शायद बारी अंबर की थी। इस बात से अनजान, अंबर कि वेदांत उसके लिए क्या सोच रहा है, वह पीहू के साथ खेल रही थी। अब पीहू चाचा की गोद में आएगी। वह अंबर के पास से पीहू को लेने लगा। अंबर पीहू को वेदांत की गोद में डालने लगी। पीहू को पकड़ते वक्त वेदांत अंबर के हाथ को भी टच करता है। अंबर का ध्यान इस तरफ नहीं था। उसने पीहू को पकड़ाकर वापस सभी लोगों के पास बैठ गई। रात को, खाना खाने के बाद, ऊपर बालकनी में खड़ा हुआ वेदांत, नीचे लॉन में चहलकदमी करती अंबर को देख रहा था। वेदांत उसे देखते हुए अपने दिमाग में प्लान बना रहा था, जिसके बारे में अंबर सोच भी नहीं सकती थी। जिस अंबर पर तीन साल से वेदांत ने कभी ध्यान नहीं दिया था, आज अंबर की कही हुई बातों की वजह से वह उसे अपने प्यार के जाल में फँसाने वाला था। "देखती जाओ मिस अंबर सक्सेना, मैं क्या करता हूँ।" अंबर लॉन में टहलती हुई अपने मॉम-डैड से बात कर रही थी। इस बात से अनजान, ऊपर बालकनी में खड़ा वेदांत उसे ही देख रहा था। वह अपने मॉम-डैड से बात करने के बाद अंदर कमरे में आ गई और सोने लगी। अंबर सुबह योगा करने के बाद किचन में चाय बनाने गई। वेदांत उसी वक्त किचन में पहुँच गया था। "मेरे लिए प्रोटीन शेक बना दो, अंबर।" वेदांत ने कहा। वह जिम लगाने के बाद अंबर को देखता हुआ किचन में आ गया था। "जी सर, बना देती हूँ।" अंबर कहने लगी। "घर में तो तुम मुझे मेरे नाम से बुला सकती हो।" उसकी बात पर अंबर हल्का सा मुस्कुराई। वह वेदांत को प्रोटीन शेक देते हुए कमरे में जाने लगी। "यहीं हाल में बैठकर चाय पीते हैं।" उसने अंबर से कहा। "मुझे दादी को भी चाय देनी है।" वह कमरे में चली गई। दादी को चाय देने के बाद वह अपने कमरे में आ गई। उसका वेदांत के साथ चाय पीने का कोई इरादा नहीं था। "मुझे इग्नोर कर रही हो?" वेदांत अंबर के बारे में सोचता हुआ वापस अपने कमरे में चला गया। जैसे ही अंबर जाने के लिए अपनी गाड़ी निकालने लगी, उसने देखा कि उसके गाड़ी के टायर में तो हवा ही नहीं है। वह किसी को टायर चेंज करने के लिए कहने ही लगी थी कि वेदांत वहाँ पर आ गया। "चलो अंबर, हमें एक ही जगह तो जाना है, तो मेरे साथ चल सकती हो।" "नहीं सर, कोई बात नहीं। मैं आ जाऊँगी।" "देखो, आज मीटिंग है, तुम लेट मत होना।" ना चाहते हुए भी अंबर वेदांत के साथ गाड़ी में बैठ गई। गाड़ी में बैठते ही अंबर वेदांत को अपडेट देने लगी। "आज रूबी खन्ना का जन्मदिन है, तो उनके लिए गिफ्ट और फूल उनके घर पहुँच जाएँगे।" रूबी कंपनी की मॉडल थी और साथ ही वेदांत के साथ उसका रिश्ता भी था। "किसी को कुछ भी भेजने की ज़रूरत नहीं है।" वेदांत ने उसे कहा। "ठीक है सर।" अंबर ने बिना कोई सवाल पूछे कहा। वेदांत ने इंतज़ार किया कि शायद अंबर उससे पूछेगी। मगर जब अंबर ने आगे कोई सवाल नहीं किया, तो वेदांत खुद ही कहने लगा। "मैं ज़िन्दगी में सेटल होना चाहता हूँ। इन लड़कियों के पीछे भागना बहुत हो गया। एक लड़की जो मेरे दिल में बसती है, मैं उसे कभी कह नहीं सकता। सोच रहा हूँ उससे शादी करके सेटल हो जाऊँ।" "ठीक है सर। फिर किसी और को फूल भिजवाने हैं? वह बता दीजिए।" अंबर ने नोट करने के लिए डायरी और पेन निकाल लिया। "कोई बात नहीं, जब टाइम आएगा तो मैं तुम्हें बता दूँगा।" अंबर वेदांत के साथ ही ऑफिस पहुँची। शायद ऐसा पहली बार हुआ था। अंबर खुद भी वेदांत पर हैरान थी। आज वह उसे मिस सक्सेना की जगह उसका नाम ले रहा था। अंबर को वेदांत काफी बदला-बदला लग रहा था। अंबर को ऑफिस पहुँचकर बहुत सारा काम था, तो अंबर उसमें बिजी हो गई। तकरीबन बारह बजे अंबर काफी लेकर वेदांत के केबिन में पहुँची। "सर, आपकी कॉफी।" कॉफी रखने के बाद वह वापस जाने लगी। "अंबर, कभी खुद के लिए भी कॉफी ले आया करो, मेरे साथ बैठकर पीने के लिए।" "सर, मुझे काम है।" अंबर ने कहा। वेदांत ने इंटरकॉम पर कहकर अंबर के लिए वहीं कॉफी मँगवा ली। वह बैठी कॉफी को देख ही रही थी कि राहुल वहाँ पर आया। "सर, राहुल के लिए भी कॉफी मँगवा लीजिए।" अंबर ने कहा। "नहीं, मुझे नहीं पीनी। मैं अभी पीकर आया हूँ।" "ठीक है।" वेदांत ने उससे कहा। "मैं उस टेंडर की फ़ाइल लेकर आया था।" "ऐसा करो, यह फ़ाइल मुझे दो और तुम दूसरी फ़ाइल पर काम करो।" वेदांत ने राहुल को वहाँ से भगा दिया। "तुम मुझे फ़ाइल देखकर इसके डिटेल्स बताओ।" कॉफी पीने के बाद अंबर फ़ाइल की डिटेल्स बताने लगी। आज पूरा दिन वेदांत किसी न किसी बहाने से अंबर को अपने आस-पास रखा। अंबर को सचमुच अजीब लग रहा था। ऑफिस खत्म होने के बाद अंबर ने अपने आप से कहा, "थैंक गॉड, उस आदमी से पीछा छूटा।" जैसे ही वह टैक्सी रोकने लगी, वेदांत ने उसके आगे लाकर अपनी गाड़ी लगा दी। "आ जाओ अंबर।" "सर, आप जाइए, मुझे बाज़ार में काम है। मैं काम के बाद घर जाऊँगी।" अंबर वेदांत को टालना चाहती थी। "बताओ क्या काम है, हम चलते हैं।" अंबर ना चाहते हुए भी उसके साथ बैठ गई। "देखो, तुम्हारे मॉम-डैड ने तुम्हारी रिस्पॉन्सिबिलिटी हम सभी को दी है, तो तुम ऐसे टैक्सी में कैसे घूम सकती हो?" तो वेदांत ने माल के आगे जाकर गाड़ी लगा दी।
सर, आप जाइए, मुझे बाज़ार में काम है। मैं काम के बाद घर जाऊँगी। अंबर वेदांत को टालना चाहती थी। "बताओ, क्या काम है? हम चलते हैं।" अंबर ना चाहते हुए भी उसके साथ बैठ गई। "देखो, तुम्हारे मॉम-डैड ने तुम्हारी रिस्पॉन्सिबिलिटी हम सभी को दी है, तो तुम ऐसे टैक्सी में कैसे घूम सकती हो?" वेदांत ने माल के आगे जाकर गाड़ी लगा दी। अंबर को कोई शॉपिंग नहीं करनी थी। उसने तो ऐसे ही बहाना बनाया था। उसने हमेशा वेदांत से दूरी बनाकर रखी थी, जब से उसने ऑफिस ज्वाइन किया था। पूरे ऑफिस में वह सिर्फ़ अपने काम से मतलब रखती थी। वह एक हफ़्ते से वेदांत के घर में थी और उसने वेदांत से पूरी दूरी रखी थी। उसके नज़दीक वाला कमरा भी नहीं लिया था। ना चाहते हुए भी, अंबर को गाड़ी से उतरकर माल की तरफ़ जाना पड़ा। वेदांत भी उसके साथ उतर गया। "सर, आप ऐसा कीजिए, आप चले जाइए। मैं अपने आप आ जाऊँगी। मुझे थोड़ा टाइम लग सकता है।" उसने फिर बहाना बनाया। "मैं भी फ़्री हूँ। मुझे क्या करना है? मैं भी आज शॉपिंग करने की सोच रहा हूँ। तुम मेरी हेल्प करोगी?" वेदांत कहते हुए उसके साथ जा रहा था। "चलो, पहले हम तुम्हारे लिए शॉपिंग करते हैं।" वह माल के अंदर लेडीज़ डिपार्टमेंट की तरफ़ देखते हुए वेदांत ने कहा। वेदांत लेडीज़ वेस्टर्न वियर की तरफ़ जाने लगा, मगर उसने देखा कि अंबर दूसरी तरफ़ चली गई थी। वहाँ पर इंडियन ड्रेस वेयर थे। वेदांत भी जल्दी से उसके पीछे चला गया। अंबर वहाँ पर एक सूट की तरफ़ देखने लगी। वह क्रीम रंग का अनारकली था, जिसके साथ क्रीम और रेड कॉम्बिनेशन का ख़ूबसूरत सा दुपट्टा था। उसने वह ड्रेस पसंद कर ली। वह काउंटर पर ले गई। अंबर से पहले वेदांत ने अपना कार्ड निकालकर सेल्समैन को पकड़ा दिया। वह सेल्समैन, जो वेदांत का कार्ड स्वाइप करने वाला था, उसके हाथ से पकड़ लिया। "सर, आप मेरे साथ हैं, यह बात अलग है, मगर मैं किसी से पैसे लेकर कोई शॉपिंग नहीं करती।" अंबर ने वेदांत से कहा। साथ ही, अंबर स्कैन करते हुए अपने फ़ोन से उसकी पेमेंट कर दी। "मुझे किसी के लिए गिफ़्ट लेना है। क्या तुम मेरी हेल्प करेंगी?" वेदांत ने अंबर से कहा। वह उसे लेकर वेस्टर्न वियर में चला गया। वहाँ पर वह काफ़ी ड्रेसेज़ देखता है। "इनमें से कौन सी ड्रेस बेस्ट रहेगी?" वेदांत ने पूछा। "जिनके लिए आप गिफ़्ट ले रहे हैं, उनकी चॉइस कैसी है? उस हिसाब से गिफ़्ट लेना चाहिए।" "उसकी चॉइस तो इससे अलग है, मगर मैं उसे अपनी पसंद के कपड़े पहनाना चाहता हूँ।" वहाँ पर एक ख़ूबसूरत सा रेड गाउन था। "उस पर यह अच्छा लगेगा।" "प्लीज़ अंबर, तुम इसे पहनकर दिखाओ, मुझे आईडिया हो जाएगा।" वेदांत ने ड्रेस अंबर को पकड़ा दी। अंबर कभी ड्रेस की तरफ़ देख रही थी, तो कभी वेदांत की तरफ़। वह फँस चुकी थी। वह ड्रेस पकड़ते हुए चेंजिंग रूम की तरफ़ चली गई। वेदांत बाहर खड़ा उसका वेट करने लगा। थोड़ी ही देर में अंबर ट्राई रूम का दरवाज़ा खोलकर बाहर आ गई। "तुमने वह ड्रेस क्यों नहीं पहनी?" वेदांत ने उसे पूछा। "मैं इसे नहीं पहन सकती। यह आगे और पीछे से इतना डीप है। मैं ऐसे कपड़े नहीं पहनती। आप इसे ऐसे ही पैक करा लीजिए। ऐसे कपड़े मॉडल और हीरोइन्स पर, जो आपकी दोस्त हैं, उन पर अच्छे लगते हैं।" अंबर ने मुस्कुराकर कहा। "तो फिर मैं कौन सी ड्रेस लूँ?" वेदांत ने फिर कहा। "यह ड्रेस बहुत ख़ूबसूरत है और आपकी फ़्रेंड ऐसे कपड़े पहनती है। उन पर बहुत अच्छी लगेगी। यही ले लीजिए।" "कोई बात नहीं, आज नहीं तो कल। यह ड्रेस मैं तुम्हें पहनाकर रहूँगा।" वेदांत ने वह ड्रेस खरीद ली थी। "मैं सोचता हूँ आज का खाना हम लोग बाहर खाकर जाते हैं। काफ़ी टाइम हो रहा है।" वेदांत ने माल के रेस्टोरेंट की तरफ़ देखते हुए कहा। "सर, आप आराम से खाइए। आपकी फ़्रेंड आने वाली होगी। मुझे थोड़ा सा काम है, मैं जा रही हूँ।" वह जाने लगी। "मेरी बात सुनो। मेरी कोई फ़्रेंड नहीं आने वाली। मैं तो तुम्हारे ही साथ खाना खाने में इंटरेस्टेड हूँ।" "आप आराम से खाना खाइए।" कहते हुए अंबर नीचे जाने लगी। इससे पहले कि वेदांत उसके पीछे जाता, एक लड़की वेदांत के पास आई। "सरप्राइज़ वेदांत! तुम यहाँ पर, मुझे नहीं पता था। चलो, बैठकर कॉफ़ी पीते हैं।" ना चाहते हुए भी वेदांत उसके साथ कॉफ़ी पीने चला गया था। अंबर रात को अपना फ़ोन चेक करते हुए वेदांत के बारे में सोच रही थी। "आजकल यह मुझमें कुछ ज़्यादा ही इंटरेस्ट लेने लगा है। ऐसा भी तो हो सकता है कि मेरा वहम हो। अब मैं इसी घर में रहती हूँ, तो इसीलिए उसके बिहेवियर में फ़र्क है।" अंबर ने वेदांत के बदले हुए बिहेवियर को इग्नोर करने की कोशिश की। मगर उसकी सिक्स्थ सेंस कह रही थी कि नहीं, और कोई बात है। इतने में दादी के रूम से आवाज़ आने लगी। अंबर को लगा जैसे वेदांत है, इतनी रात को, क्योंकि इतनी रात को वह कम ही आता था। "आपके पड़ोसी सो गए क्या, दादी माँ?" अंबर के कान में आवाज़ पड़ी, क्योंकि उसी के बारे में बात हो रही थी। "थोड़ी देर पहले तो जाग रही थी। तुम उसके बारे में क्यों पूछ रहे हो? मुझे एक फ़ाइल चाहिए थी, इसीलिए पूछ रहा था।" "तो उठा लो उसे।" दादी ने कहा। वेदांत उठकर जैसे ही उसने दरवाज़े को हाथ लगाया, दरवाज़ा खुल गया, क्योंकि वह बंद नहीं था। अंबर ने जानबूझकर सोने की एक्टिंग की। वेदांत को समझने में देर नहीं लगी कि वह एक्टिंग कर रही है। वह जानबूझकर उसके पास गया, उसका ब्लैंकेट ठीक करके उसके ऊपर उड़ा दिया, फिर उसके बालों को हल्का सा सहलाया और लाइट ऑफ़ करते हुए वह कमरे से बाहर आ गया। अब दादी माँ को थोड़ा अजीब लग रहा था। उसका ध्यान इस ओर था। आख़िर वह वेदांत की दादी माँ थी, उसे समझने में देर नहीं लगी। प्लीज़ मेरी सीरीज़ पर कमेंट करें, साथ में रेटिंग भी दें। मुझे सब्सक्राइब करना और स्टिकर देना याद रखें।
वेदांत को समझने में देर नहीं लगी कि वह अभिनय कर रही है। वह जानबूझकर उसके पास गया। उसका ब्लैंकेट ठीक करके उसके ऊपर उड़ा दिया। फिर उसके बालों को हल्का सा सहलाया और लाइट ऑफ करते हुए वह कमरे से बाहर आ गया। अब दादी माँ को थोड़ा अजीब लग रहा था। उसका ध्यान इस ओर था। आखिर वह वेदांत की दादी माँ थी; उसे समझने में देर नहीं लगी। वो जाग रही थी। दादी माँ ने उससे पूछा, "सो रही थी?" "नहीं दादी माँ।" "वो सो गई थी। देखो ना, फालतू की लाइट जल रही थी। खुद सो रही है, बिल तो हमें भरना पड़ता है।" "वह तो मैं देख रही हूँ," दादी माँ ने उसे कहा। "दादी माँ, मुझे काम है, मैं जा रहा हूँ।" वो अपने कमरे में चला गया। इधर, अंबर हर हैरान-परेशान हुई उठकर बैठ गई थी। "उसने मुझ पर कंबल उड़ाया और मेरे बालों को भी छुआ। ऐसा क्यों किया? वो समझ गया कि मैं जाग रही हूँ। जानबूझकर किया है। वो मेरे साथ फ़्लर्ट करने की कोशिश कर रहा है। आखिर हुआ क्या है वेदांत सर को?" पिछले तीन सालों से वह दोनों साथ थे। वह उसके साथ देश से बाहर भी गई थी और आउट ऑफ़ सिटी भी। मगर ऐसा उसने कभी नहीं किया था। "अंबर, तुम्हें उस इंसान से दूर रहना है। तुम उन पर भरोसा नहीं कर सकती।" वो अपने आप से कहती हुई वापस सोने लगी। अगली सुबह, जिम के बाद उसे प्रोटीन शेक पीना था। उसने किचन में देखा, वहाँ पर एक सर्वेंट उठी हुई थी। "सुनो, अंबर मैडम कहाँ हैं?" वेदांत ने उससे पूछा। "मैंने उन्हें नहीं देखा। वो सो रही होंगी।" वेदांत दादी माँ के कमरे में आया। उसने थोड़े से खुले हुए दरवाज़े से झाँककर देखा; दादी माँ उठ चुकी थीं, पूजा-पाठ कर चुकी थीं। वो उनके कमरे में गया। "आपने चाय पी ली, दादी माँ?" "कहाँ? अब रोज़ वो लड़की चाय बनाकर ले आती है, मगर देखो आज उठी ही नहीं। रोज़ सुबह उठकर योग करती है, उसके बाद अपनी चाय के साथ मेरी चाय भी ले आती है। मगर तुम यहाँ किस लिए?" "वही तो दादी माँ, आपकी चाय के साथ-साथ मेरा प्रोटीन शेक भी बना देती है।" "ये लड़की सबकी आदतें खराब कर रही है। आज उठी नहीं, कहीं बीमार तो नहीं हो गई?" दादी माँ ने कहा। "चलो देख लेते हैं।" वो कमरे के बीच का दरवाज़ा खोलने लगा, मगर वह लॉक था। "इसने कभी अपना कमरा लॉक नहीं किया। आज क्यों लॉक कर लिया? यह रात जब सोई थी तब तो खुला था। इसका मतलब उसने रात को उठकर लॉक किया।" "चल छोड़ इसको। घर में काम करने वाले उठ चुके हैं। हम दोनों चाय पीनी है।" वह दोनों ही कमरे से बाहर लॉबी में आ गए। वेदांत अभी भी पीछे मुड़-मुड़ कर देख रहा था। "चलो ठीक है दादी माँ, आप चाय पियो जहाँ बैठकर।" वह अपना प्रोटीन शेक पकड़ता हुआ ऊपर चला गया। सभी ब्रेकफ़ास्ट कर रहे थे। वेदांत अभी नीचे नहीं आया था। अंबर जल्दी-जल्दी अपना सैंडविच उठाकर खा रही थी। "लड़की, तुझे क्या हुआ है?" दादी माँ ने कहा। "दादी माँ, मुझे बहुत ज़रूरी काम है। मुझे जाना है।" वो सैंडविच अपने हाथ में उठाते हुए जल्दी से बाहर चली गई। वेदांत नीचे आया। वह अपनी जगह बैठते हुए टेबल पर देखा। "आज मिस सक्सेना उठी नहीं क्या? उसे ऑफ़िस नहीं जाना?" "उठी थी ना भाई, अभी। जल्दी-जल्दी से चली गई। सैंडविच भी उसके हाथ में था। कह रही थी कोई ज़रूरी काम है, अभी गई है।" वेदांत ने भी थोड़ा-बहुत खाया और बहुत जल्दी से बाहर निकल गया। मगर उसके बाहर निकलने से पहले अंबर जा चुकी थी। वेदांत वापस आ गया। किसी और ने तो नोटिस नहीं किया, मगर दादी माँ का ध्यान वेदांत और अंबर पर ही था। "क्या हुआ?" दादी माँ ने पूछा। "नहीं, मैंने सोचा मैं चाय पी लूँ।" वेदांत वापस अपनी जगह पर बैठ गया। दादी माँ उसके साथ वाली चेयर पर थीं। दादी माँ ने झुककर उसके कान में कहा, "क्या हुआ? वह चली गई।" वेदांत ने दादी माँ की तरफ देखा और मुस्कुराकर कहा, "किसकी बात कर रही हैं?" वह जानबूझकर अनजान बन गया, मगर दादी माँ तो दादी माँ थीं। वह वेदांत को जाँचने वाली नज़रों से देख रही थीं। ऑफ़िस में बहुत काम था, तो वहाँ पर तो वेदांत के पास फ़्लर्ट करने का टाइम ही नहीं था। ऑफ़िस का वर्कलोड इतना था! जैसे ही शाम को ऑफ़िस का टाइम खत्म हुआ और अंबर ने जाने के लिए अपना टाइम देखा, वह ऑफ़िस से बाहर वेदांत के सामने आना ही नहीं चाहती थी। वह जल्दी-जल्दी अपनी गाड़ी की तरफ़ जा रही थी। "क्या बात है अंबर, इतनी जल्दी कहाँ जा रही हो?" वेदांत, जो अपनी गाड़ी के आगे खड़ा उसी का इंतज़ार कर रहा था, बोला। "घर जा रही हूँ।" अंबर ने जल्दी से अपनी गाड़ी में बैठकर घर आ गई। वेदांत को वह कोई मौका नहीं दे रही थी कि वो उसके साथ फ़्लर्ट करे। "क्या सचमुच उसे मुझ जैसे चार्मिंग लड़के में कोई दिलचस्पी नहीं है? रिच एंड हैंडसम, कामयाब; लड़कियाँ मुझसे बात करने के लिए तरसती हैं।" वह घर जाते हुए सोच रहा था, "मैं इसके पीछे हूँ और वह मुझे भाव ही नहीं दे रही।" अगले दिन संडे था। दादी माँ बीनू के बालों में तेल लगा रही थीं। जब उसने अंबर को देखा तो उसने कहा, "लड़की, सुन, इधर, तुम्हारे भी मैं तेल लगा दूँ।" "एक बात अच्छे से सुन लो दादी माँ, यह 'लड़की' क्या होता है? मेरा नाम अंबर है। आप मुझे इसी नाम से बुलाओ। अगर आप 'लड़की' कहेंगी तो मैं नहीं बोलने वाली।" "बड़ा नखरा है तुम्हारा।" दादी ने उसे कहा। "मैं ऐसी ही हूँ।" वह दादी माँ के पास ही सोफ़े पर आकर बैठ गई थी। "चल ठीक है, बैठ मेरे आगे। तुम्हारे बालों में तेल लगा दूँ।" "दादी माँ, आपके बालों में तेल कौन लगाता है?" अंबर ने पूछा। "मेरे कोई नहीं लगाता। मैं आपके लगा देता हूँ।" "प्लीज मेरी सीरीज पर कमेंट करें, साथ में रेटिंग भी दें। मुझे सब्सक्राइब करना और स्टीकर देना याद रखें।"
मेरे कोई तेल नहीं लगाता। मैं आपके लगा देता हूँ। अंबर बिल्कुल तेल नहीं लगाना चाहती थी। इसलिए उसने बात बदली। "सच कहती हूँ अंबर, इस घर में आज तक मुझे किसी ने नहीं कहा। तुम ही हो जिसे पहली बार मेरा ख्याल आया है।" दादी मां सोफे पर बैठी थीं। सामने टीवी चल रहा था। अंबर दादी मां के बालों में तेल लगाने लगी। "दादी मां, आप ऐसे क्यों नहीं रहतीं? सामने सीरियल में देखो कितनी जबरदस्त दादी मां है! उसके गहने देखो, उसकी साड़ी देखो! जबरदस्त तो आप बहुत हो, पूरी फैमिली आपसे डरती है। मगर यह हल्के कलर, गले में चैन और कानों में टॉप्स के अलावा कुछ और गहने पहना करो।" वह दादी मां से कहने लगी। वेदांत आजकल अंबर के चक्कर में कहीं जाना छोड़ रखा था क्योंकि उसे हर हाल में अंबर को पटाना था। इसलिए उसका सारा ध्यान उसी पर लगा हुआ था। जैसे ही वह सीढ़ियों से उतरकर नीचे पहुँचा, उसने देखा कि अंबर दादी मां के बालों में तेल लगा रही हैं। "अंबर, दादी मां के बाद मेरे बालों पर भी ऑयलिंग कर देना। बहुत दिन हो गए तेल नहीं लगाया।" उसकी बात पर दादी मां ने उसकी तरफ देखा क्योंकि दादी मां हर संडे पूरी फैमिली से तेल लगाने को कहती थीं। मगर वह कभी उनके आगे नहीं बैठता था। वह भी सोफे पर बैठकर टीवी देखने लगा था। "दादी मां, ये आप क्या बकवास सीरियल देखती हैं?" "अच्छा, जो तू करता है वही सही होता है। मेरे सीरियल तुझे बकवास लगते हैं।" दादी मां ने उसे गुस्से से कहा। "एक इस बेगानी लड़की को तो मेरे सीरियल पसंद हैं, मगर तुझे नहीं।" "दादी, मैं तो बस ऐसे ही कह रहा था। आप तो गुस्सा हो गईं।" दादी मां सोफे से खड़ी हो गईं। "दादी मां, आपका तेल।" अंबर ने कहा। "तू इसके लगा तेल। मैं कमरे में जा रही हूँ।" "दादी मां, मैं तो सीख रही हूँ। आप तेल लगाओ।" अंबर किसी भी हालत में वेदांत के बालों में तेल नहीं लगाना चाहती थी। "नहीं-नहीं, तुम तो बहुत अच्छा लगाती हो। मेरे तो सर में दर्द हो रहा था, बंद हो गया। तू लगा तेल।" वेदांत सोफे की बैक के साथ सिर लगाकर आराम से बैठ गया। ना चाहते हुए भी अंबर उसके बालों में तेल लगाने लगी। अभी अंबर ने तेल डाला ही था कि उसका फोन, जो सोफे पर पड़ा था, बजने लगा। "दादी मां, आप लगाओ तेल। मेरी मॉम का फोन है। अगर मैंने काट दिया तो वह मुझसे नाराज हो जाएगी।" अंबर तेल छोड़कर अपना फोन उठाते हुए लॉन में चली गई। दादी मां, जो कमरे में जा रही थीं, वापस आ गईं और वेदांत के बालों में तेल लगाने लगीं। "इस लड़की में नखरा बहुत है।" दादी मां ने बाहर की तरफ देखते हुए कहा। "सही कह रही हैं आप दादी मां। बहुत एटीट्यूड है इसमें।" वेदांत ने उनकी बात में सहमति जताई। "मुझे तो इसमें एटीट्यूड तुझसे भी ज्यादा लगता है। कितनी जिद्दी और नखरे वाली है।" दादी मां अभी भी अंबर की बुराई कर रही थीं। "इसका नखरा देखो! कोई चीज इसके नाक के नीचे नहीं आती।" वेदांत आँखें बंद करके दादी मां से तेल लगवा रहा था और वह दोनों ही अंबर की बुराई कर रहे थे। "मगर फिर भी बहुत अच्छी है।" दादी मां कहने लगीं। दादी मां के दिमाग में एक बात आई थी। अब वह क्या करने वाली थी, इसका अंदाजा ना अंबर को था और ना ही वेदांत को। आज संडे दोपहर के बाद बीनू और अंबर दोनों ने फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया था। वेदांत सुबह से ही अंबर के पीछे घूम रहा था। अंबर उसे अकेले बात करने, फ़्लर्ट करने का कोई मौका नहीं दे रही थी। जैसे ही वेदांत को पता चला कि दोनों सहेलियाँ बाहर जा रही हैं, तो वह बीनू के पास आया। "चलो बीनू, कहाँ जाना है तुम लोगों को? मैं फ़्री हूँ, मैं ले चलता हूँ।" "सचमुच भाई?" अंबर, जो वहीं बैठी हुई थी, उसने एक मिनट में प्लान बना लिया। "बीनू," अंबर ने कहा, "जल्दी चलो, हमें भाई लेकर जा रहे हैं।" "हमें प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ेगा। क्यों? मैं तो भूल गई थी, कल मंडे है और मैंने रात का काम ही खत्म नहीं किया अपना। मुझे सर ने प्रेजेंटेशन तैयार करने के लिए दिया था।" "तुम रात को आकर तैयार कर लेना। अगर रह जाएगा, कोई बात नहीं।" वेदांत ने कहा। "नहीं सर, ऐसा थोड़ी हो सकता है! काम सबसे पहले, फ़िल्म देखने तो फिर भी जा सकते हैं।" अंबर बिना किसी की बात सुने अपने कमरे में चली गई। बीनू ने वेदांत को गुस्से में देखा। "अब तुम मुझ पर क्यों गुस्सा हो रही हो?" "आप उससे इतना काम क्यों करवाते हो?" वह भी पैर पटकते हुए वापस ऊपर चली गई। वेदांत कल अकेला ही हाल में खड़ा इधर-उधर देख रहा था। दादी सामने कमरे में बैठी हुई थीं, जिसके कमरे का दरवाजा खुला था। वह वेदांत और अंबर दोनों के ही नाटक देख रही थीं। "अब लगता है मुझे ही कुछ करना पड़ेगा। चाहे जो हो जाए, लड़की मुझे पसंद है। मेरे इस पोते के तो यही सीधा करके रखेगी। अगर इसकी लगाम न खींची गई इस लड़के की, तो पता नहीं ये क्या कहाँ क्या-क्या करता फिरता है। जब से यह घर में आई है, वेदांत शाम को जल्दी घर आता है, छुट्टी के दिन भी घर पर रहता है। अब इन दोनों के माँ-बाप से तो मैं ही बात करती हूँ।" दादी मां ने खुशी-खुशी अपने पोते की खुशी को अपना बना लिया। असली में क्या था, इस बात से वह अनजान थीं।
"अब लगता है मुझे ही कुछ करना पड़ेगा। चाहे जो हो जाए, लड़की मुझे पसंद है। मेरे इस पोते के तो यही सीधा करके रखेगी। अगर इसकी लगाम न खींची गई, इस लड़के की, तो पता नहीं यह क्या कहाँ क्या-क्या करता फिरता है। जब से यह घर में आई है, वेदांत शाम को जल्दी घर आता था। छुट्टी के दिन भी घर पर रहता था। अब इन दोनों के माँ-बाप से तो मैं ही बात करती हूँ।" दादी माँ ने खुशी-खुशी अपने पोते की खुशी को अपना बना लिया। असल में क्या था, इस बात से वह अनजान थी। अगले दिन वेदांत और नंबर ऑफिस चले गए थे। वेदांत का बड़ा भाई राजन और उसकी पत्नी रिया, अपने हॉस्पिटल के नज़दीकी अलग अपार्टमेंट में रहते थे, उन्हें भी बुला लिया था। घर के पूरे परिवार हाल में जमा थे। सभी दादी माँ के चेहरे की तरफ देख रहे थे, क्योंकि दादी माँ कौन सा बम फोड़ दें। सभी डरते थे और कोई दादी को मना भी नहीं कर सकता था। सभी आपस में इशारों से पूछ रहे थे। सबसे पहले राजन ने कहा, "दादी माँ, आपने हम सबको यहाँ क्यों बुलाया है?" "बिल्कुल, दादी माँ। इस टाइम मुझे पेशेंट देखने होते हैं," उसकी पत्नी रिया ने भी कहा। "अच्छा, तो मेरी बात से ज़रूरी तुम दोनों के पेशेंट हो गए? और सुनो, लड़की मैंने इसलिए अपने पोते के साथ तुम्हारी शादी नहीं की थी कि तुम्हें इस घर से ज़्यादा अपने पेशेंट की फ़िक्र हो। माना तुम दोनों को हमने अलग रहने की परमिशन दे दी है, इसका मतलब यह नहीं कि मेरी चलेगी नहीं।" "आप बात को कहाँ से कहाँ लेकर जा रही हैं," बीनू बीच में कहने लगी, "भाभी तो सिर्फ़ आपसे बात पूछना चाहती हैं।" "हाँ हाँ, पता है मुझे। केवल तुम लोगों को ही काम होता है। अब बीनू की उम्र होनी है शादी के लायक," दादी माँ ने कहा। वह सभी बीनू की तरफ देखने लगे। "मगर मुझसे बड़े तो भाई हैं। पहले वेदांत भाई की शादी होगी, फिर मेरी," बीनू ने जवाब दिया। "उसी के लिए तो आज इकट्ठा हुए हैं।" "आपने भी वेदांत भाई के लिए कोई लड़की देखी है?" "देखो दादी माँ, भाई की शादी भाई की मर्ज़ी के बिना नहीं हो सकती। वह राजन भाई नहीं है, वह वेदांत भाई है," बीनू ने कहा, "जिसके साथ आप जो मर्ज़ी करें। पता है ना वेदांत भाई कैसे हैं।" "बिल्कुल पता है। जैसा वह जिद्दी है, मुझे उसके लिए वैसी ही जिद्दी और नखरे वाली लड़की चाहिए, जिसके पीछे आजकल वह घूम रहा है।" "किसके पीछे?" वर्षा, जो अब तक चुपचाप सुन रही थी, उसने कहा। "उसे अंबर पसंद है। उसी के पीछे दीवाना हुआ है वह आजकल," दादी माँ ने मुँह बनाते हुए कहा। "सच में?" वर्षा ने कहा। "अब पता नहीं कैसे उसे पसंद आ गई है। तो मुझे पता है तुम्हें भी पसंद है अंबर। उसके माँ-बाप को बुलाओ और इन दोनों की शादी फ़िक्स करो।" "मैं अभी फ़ोन करता हूँ। वैसे आपको उसने कहा क्या?" बृजेश पूछने लगा, "कमाल है माँ, उसने हमें नहीं बताया।" "मुझे कहा बताया? मगर मुझमें अकल है जो तुम लोगों में नहीं है।" "माँ, कम से कम मेरे बच्चों के सामने तो मुझे ऐसा मत कहो," बृजेश कहने लगा। "अब ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है, और उनका फ़ोन मिलाकर मेरी बात कराओ उससे।" वह अरुण का फ़ोन मिलाकर लक्ष्मी देवी को देता है। "जो फ़्लाइट सबसे पहले मिलती है, उसमें बैठकर दोनों मियाँ-बीवी आ जाओ।" "ठीक है, मगर किस लिए?" अरुण ने पूछा। "तुम्हारी बेटी मेरे पोते को पसंद आ गई है। ऐसा भी कह सकते हो, तुम्हारी बेटी ने मेरे पोते को अपने प्यार के जाल में फँसा लिया है। तो उन दोनों की शादी की बात फ़िक्स करनी है।" "ठीक है, मैं अंबर से भी बात करता हूँ," अंबर के पापा कहने लगे। "कोई ज़रूरत नहीं किसी से बात करने की। तुम लोग बना बनाया काम ख़राब कर दोगे। इसलिए बिना बच्चों को बताए चुपचाप आ जाओ। सरप्राइज़ देना है या नहीं? सरप्राइज़ का मतलब तो पता है ना, क्या होता है।" "ठीक है, हम बिना बताए आ जाते हैं," उन्होंने कहा। "मेरी अपनी बीवी से भी बात करा।" दादी माँ अनीता से बात करती है। "आपको पक्का पता है ना, बच्चे एक-दूसरे को पसंद करते हैं?" अनीता ने कहा। "मैंने यह बाल धूप में सफ़ेद नहीं किए हैं। पता है मुझे, इसलिए जो मैं कहती हूँ चुपचाप करते जाओ। तुम्हें वेदांत पसंद है अंबर के लिए।" "जी," अनीता ने आगे से कहा। "तो ठीक है, बस चुपचाप आ जाओ। पूरी बात हम लोग यहीं करेंगे।" अंबर अब तक वेदांत से बहुत परेशान हो चुकी थी। वह उसके साथ फ़्लर्ट कर रहा था। उसकी हरकतें उसके बर्दाश्त से बाहर होने लगी थीं, क्योंकि उसे काम तो दिनभर उसी के साथ करना था, तो उसने सोच लिया था कि वह उससे साफ़-साफ़ बात करेगी। लंच टाइम में जब अंबर कैंटीन में बैठी हुई लंच कर रही थी, तो अचानक से वेदांत आ गया। "क्या मैं आपका लंच ज्वाइन कर सकता हूँ?" कहते हुए चेयर खींच कर उसके पास बैठ गया। अंबर ने इधर-उधर देखा। यह सही जगह नहीं थी कि वह बात कर सके। "अगर तुम चाहो, खाना अपने ऑफ़िस में मँगवा लेते हैं," वेदांत ने कहा। "सही बात है सर। ऑफ़िस में ही चलते हैं। मुझे भी आपसे बात करनी है," अंबर ने कहा। "क्या बात करनी है?" "आपके ऑफ़िस में ही बताऊँगी।" वह दोनों ही ऑफ़िस में आ गए।
“सही बात है सर। ऑफिस में ही चलते हैं।” “मुझे भी आपसे बात करनी है,” अंबर ने कहा। “क्या बात करनी है?” “आपके ऑफिस में ही बताऊँगी।” वे दोनों ही ऑफिस में आ गए। “अगर पहले पता होता कि तुम मेरे साथ लंच करोगी ऑफिस में, तो मैं इसकी स्पेशल तैयारी करवा देता,” वेदांत ने जानबूझकर कहा। “वैसे तुम्हें क्या पूछना था, पूछो मुझसे।” वेदांत ने उसकी तरफ देखा। “यही पूछना है कि आप मेरे पीछे क्यों पड़े हैं? आप मेरे साथ फ्लर्ट क्यों करते हैं? हम पिछले तीन साल से एक-दूसरे के साथ काम कर रहे हैं। आपने मुझे बहुत रेस्पेक्ट दी है और जितना आपको अपने एम्प्लॉयी का ख्याल रखना चाहिए, आपने मेरा ख्याल रखा है। मगर जब से मैं आपके घर में आई हूँ, मैं देख रही हूँ आपका बिहेवियर मेरे साथ कैसा है। मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ सर। यह मेरी बर्दाश्त के बाहर है। आप चाहो तो मुझे काम छोड़ सकती हूँ, मगर ये बर्दाश्त नहीं कर सकती। मुझे तो आपके सामने आने से भी डर लगता है। आप कब मेरे साथ फ्लर्ट करना शुरू कर दें?” अंबर ने साफ़-साफ़ कहा। वेदांत उसके इस तरह साफ़ बात करने से काफी हैरान था। वह बात करने में इतनी क्लियर होगी, उसने सोचा भी नहीं था। उसकी बात पर वह मुस्कुराया। “मैं तुम्हारे पीछे इतनी मेहनत कर रहा हूँ और तुम्हें मुझ पर गुस्सा आ रहा है,” वेदांत ने उसे मुस्कुराकर कहा। “आप अब भी मेरे साथ फ्लर्ट कर रहे हैं।” वह अपनी जगह से खड़ी होने लगी। “अच्छा, बैठ जाओ। सही बात है, मैं तुम्हारे साथ फ्लर्ट कर रहा था।” “मगर किस लिए? क्यों?” अंबर ने कहा। “तुमसे बदला लेने के लिए।” “मुझसे बदला किस बात का?” “तुमने कहा था दादी से कि आपसे पोते के साथ शादी करने से अच्छा है कि कोई सुसाइड कर ले। और मैं चाहता था कि मैं तुम्हारे साथ प्यार का नाटक करूँ और तुम मुझे शादी के लिए कहो, तब मैं पूछूँगा तुमसे। मगर मुझे नहीं पता था तुम्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ा। इतना स्मार्ट हैंडसम 😁 लड़का तुम्हारे आगे-पीछे घूम रहा है, जो तुम्हारा बॉस भी है।” वेदांत अभी भी हँस रहा था। “आपको हँसी आ रही है। वैसे मैंने वह सब आपका दिल दुखाने के लिए नहीं कहा था। दादी आपको लेकर कुछ ज्यादा ही सोचती हैं। उन्हें लगता है कि हर लड़की आपके पीछे है, तो मैंने उनसे इसीलिए रूडली बात की कि मेरे बारे में वो ख्याल बदल लें। वरना मेरा और कोई इरादा नहीं था। मैं आपकी बेइज़्ज़ती नहीं करना चाहती थी। मगर तुमने मुझे एक बार नहीं, तीन बार रिजेक्ट किया और वह भी एक ही दिन में।” “तीन बार? मुझे तो और याद नहीं।” “पहले बीनू ने तुमसे पूछा था, फिर दादी ने पूछा और तुमने हर बार किस तरह से जवाब दिया मेरे बारे में। मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।” उसकी बात सुनकर अंबर मुस्कुराने लगी। “तो आप मुझसे बदला लेना चाहते थे?” “सचमुच। तुम्हें एक बार भी मुझ में इंटरेस्ट नहीं आया। मैं तुम्हारे आगे-पीछे घूम रहा हूँ। इतना हैंडसम हूँ।” “हो सकता है आपकी गलतफ़हमी हो।” अंबर मुस्कुराकर वहाँ से खड़ी हो गई। “खाना तो खा लो।” “नहीं, बात क्लियर करनी थी मुझे। अगर आप चाहते हैं कि मैं नौकरी करूँ, तो यह सब फिर मेरे साथ फिर नहीं करना। मुझे पहले वाले वेदांत सहगल पसंद है, जो मेरे इस तरह के पीछे फिरता है। उस वेदांत में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है। आपके बारे में मैं आपसे ज़्यादा जानती हूँ। आपके होटल के रूम मैं बुक करती हूँ, आपकी गर्लफ़्रेंड को जो गिफ़्ट चाहते हैं, वो सारे गिफ़्ट मेरी ही पसंद से खरीदे जाते हैं। मतलब मुझे आपके बारे में हर छोटी से छोटी डिटेल पता है। तो यह तो हो नहीं सकता ना कि मैं यह मान लूँ कि आपको मुझसे प्यार हो गया। प्यार और वेदांत सहगल दोनों एक-दूसरे से अपोजिट चीजों के नाम हैं। दोनों को भी साथ नहीं आ सकते। इतना तो अंबर जानती है।” अंबर ऑफिस से बाहर जाने लगी। वेदांत उसे हैरानी से देख रहा था। “सचमुच कैसी लड़की है!” अंबर फिर वापस आने लगी। “अब क्या हुआ?” वेदांत ने सोचा। “ज़िन्दगी में आप किसी भी लड़की से यह मत कहना कि आप उससे प्यार करते हैं। क्योंकि जो इंसान आपको जरा सा भी जानता है ना, यह बात कभी नहीं मानेगा। वेदांत सहगल को सिर्फ़ जिस्म से प्यार हो सकता है, किसी के दिल से नहीं।” अंबर वहाँ से चली गई। “यह कुछ ज़्यादा नहीं हो गया? इसके कहने का मतलब है… क्या है? वेदांत सहगल को सिर्फ़ जिस्म से प्यार हो सकता है, किसी के दिल से नहीं।” उसकी बात पर वेदांत को गुस्सा आया था। तभी राहुल वहाँ पर आया। “सर, मीटिंग का टाइम हो चुका है।” उनके ऑफिस में ही मीटिंग थी। वह लोग कोई डील करने वाले थे। वेदांत के पहुँचने से पहले ही अंबर मीटिंग हॉल में पहुँच चुकी थी। काफी बड़ा प्रोजेक्ट था, तो रात तक मीटिंग चलती रही। दोनों ही रात को लेट घर आए थे। घर वाले क्या खिचड़ी पका रहे थे, वह उन दोनों को ही पता नहीं थी। दोनों एक-दूसरे के सामने नहीं आना चाहते थे। सुबह उन दोनों में से किसी ने भी ब्रेकफ़ास्ट नहीं किया। दोनों तैयार होकर जल्दी निकल गए। “दोनों ने ही ब्रेकफ़ास्ट नहीं किया! ज़रूर ऑफिस में साथ करेंगे!” दादी ने दोनों को ही ब्रेकफ़ास्ट पर ना देखकर कहा। ऑफिस में आज पेपर वर्क चल रहा था और दोनों को ही एक-दूसरे के सामने आने की ज़रूरत नहीं थी। दोनों एक-दूसरे के सामने नहीं आए। वेदांत को अंबर की इस बात पर, कि “वेदांत सहगल को सिर्फ़ जिस्म से प्यार हो सकता है, दिल से नहीं”, इस बात पर बहुत गुस्सा था। शाम को छुट्टी के बाद दोनों ही अलग-अलग घर के लिए निकल गए थे।
ऑफिस में आज पेपर वर्क चला। दोनों को एक-दूसरे के सामने आने की ज़रूरत नहीं थी, और वे नहीं भी आए। वेदांत को अंबर की बात, कि उसे वेदांत सहगल से सिर्फ़ जिस्म से प्यार है, दिल से नहीं, बहुत गुस्सा दिला गई थी। शाम को, छुट्टी के बाद, दोनों अलग-अलग घर के लिए निकल गए। जैसे ही वे घर पहुँचे, दोनों के परिवार हाल में एक साथ बैठे हुए थे। वेदांत उन सभी से मिलते हुए ऊपर जाने लगा। अंबर, जो वेदांत के पीछे आ रही थी, अपने माता-पिता को देखकर खुश हो गई। "आपने तो सरप्राइज़ दे दिया! अचानक आपके आने का प्रोग्राम कैसे बन गया?" "अभी तो और सरप्राइज़ है।" "वेदांत, तुम भी वापस आओ।" सीढ़ियाँ चढ़ते हुए वेदांत को उसके दादा ने रोका। "क्या है, डैड?" "प्लीज़, मैं बहुत थका हुआ हूँ।" वह फिर ऊपर जाने लगा। "तुम्हारे लिए ऐसी खुशखबरी है कि तुम्हारी सारी थकावट दूर हो जाएगी।" दादी खुश होकर कहने लगीं। "सचमुच? वापस सीडीओ से वापस आ गया?" "खुशखबरी क्या है?" "समझा? बीनू की शादी फिक्स हो गई। इसीलिए इतनी स्माइल कर रही हूँ।" उसने बीनू से मज़ाक में कहा। उसके सामने ही अंबर अपने माता-पिता के बीच बैठी हुई थी, मगर उसने एक बार भी उसकी तरफ नहीं देखा। अंबर को इस बात का पता था कि वेदांत कल नाराज़ था। वह अभी तक उससे गुस्सा था। सच में उसे उस बात पर पछतावा भी बहुत था कि उसे इस तरह से नहीं कहना चाहिए था। "मेरा नहीं, भाई आपका। अब अंबर मेरी भाभी बनेगी।" वेदांत के समझ में बात नहीं आई। वो उसके चेहरे की तरफ देखने लगा। "अरे बेवकूफ! हम लोगों ने अंबर और तुम्हारा रिश्ता तय कर दिया। बताओ, सगाई का दिन कब रखें?" "क्या?" दोनों, अंबर और वेदांत, एक साथ कहने लगे। "आप क्या कह रहे हैं?" उन दोनों को ही लगा कि उन्होंने गलत सुना। "अब हम लोगों के सामने एक्टिंग करने की कोई ज़रूरत नहीं। तुम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हो, इसलिए हमने शादी फिक्स कर दी।" उसके डैड ने कहा। "आपको किसने कहा?" दोनों एक साथ फिर कहने लगे। "अब कहना क्या है? कब से तो तुम इस लड़की के पीछे घूम रहे थे?" दादी को अब गुस्सा आने लगा। "मुझे नहीं पता आप लोगों को क्या गलतफहमी हुई है। मुझे इस लड़की में कोई इंटरेस्ट नहीं है, और ना ही मेरी टाइप की है। सबसे बड़ी बात, मुझे अभी शादी नहीं करनी। इसीलिए आप जो सपने देख रहे हैं ना, मेरी शादी के, इन्हें यहीं बस स्टॉप करो।" वेदांत गुस्से में वहाँ से उठकर ऊपर जाने लगा। "आप सब लोगों के दिमाग तो ठीक हैं ना?" अंबर ने कहा, "और मॉम-डैड, आपने मुझसे पूछा? मैं उससे शादी क्यों करूँगी? कभी नहीं!" अंबर भी वहाँ से उठकर अपने कमरे की तरफ जाने लगी। "यह लड़की भी कितनी बड़ी नौटंकीबाज़ है! अब एक-दो बार बीनू ने मुझसे शादी का क्या कह दिया? यह तो सच में सपने देखने लगी, मिसेज़ वेदांत सहगल बनने के। इसे तो सब पता होगा, एक्टिंग कर रही है। इसने तो दादी को भी पटा लिया, वरना दादी कहाँ मानती थी? बस मेरे सामने ही एक्टिंग कर रही है, जैसे इसकी मर्ज़ी नहीं है। सब समझता हूँ मैं।" वेदांत सोचते हुए अपने कमरे में चला गया। वेदांत के अंदर जाते ही उसकी माँ उसके पीछे आई। "बेटा, सच-सच बता, क्या है मन में?" "सच कहती हूँ, ऐसा कुछ भी नहीं है। और पता नहीं आप लोगों को ऐसा क्यों लगा।" अनीता उसे बताती है कि कैसे दादी माँ ने कहा कि तुम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हो। "मुझे नहीं पता था कि दादी को क्यों लगा, मगर सच में ऐसा कुछ भी नहीं।" अनीता कमरे से बाहर आकर सभी को बताती है कि अंबर ने कहा है कि उसकी तरफ़ से ऐसा कुछ भी नहीं है, हो सकता है। "इन दोनों में लड़ाई हो गई है। दो-चार दिन में देख लेना, खुद ही शादी के लिए कह देंगे।" दादी ने कहा। अंबर के माता-पिता रात की फ़्लाइट से ही वापस चले गए थे। अंबर बहुत परेशान थी; मालूम नहीं क्या हो रहा था उसके साथ। अगले दिन वह ऑफिस से छुट्टी लेना चाहती थी। आज ऑफिस में उनकी डील फ़ाइनल होनी थी, और वह ना चाहते हुए भी ऑफिस चली गई। वेदांत ने अपने ऑफिस पहुँचते ही अंबर को बुलाया। "सर, जो शाम को हमें डील साइन करनी है, उसकी फ़ाइल के पेपर वैसे रेडी हैं। आप चेक कर लीजिए।" अंबर ने फ़ाइल टेबल पर रखते हुए कहा। "क्या मैं जान सकता हूँ, मिस सक्सेना, जो घर में कल हुआ, वह क्या था?" "आप अपनी दादी से पूछिए कि वह क्या था।" "वही तो मैं पूछ रहा हूँ। तुम मेरी दादी को कभी पसंद नहीं थी, फिर भी वो तुम्हारी शादी मुझे करना चाहती है। क्या कहा तुमने उनसे? मेरे सामने तो तुम कैसे रिएक्ट कर रही थी? असल में तुम्हारा सपना शादी करके मेरे घर आने का है, मिसेज़ वेदांत सहगल बनकर।" "आप अपनी हद में रहो। मेरा ऐसा कोई सपना नहीं। आपकी मॉम-डैड ने मेरे मॉम-डैड को फ़ोन करके बुलाया था। समझे आप?" "सब समझता हूँ मैं। तुम जैसी लड़कियों को... तुम तो मेरे घर में बसने के ख़्वाब देखने लगी।" "मैं नौकरी छोड़कर जा रही हूँ। अभी आपको इस्तीफ़ा मेल करती हूँ।" अंबर ने गुस्से से कहा। "बेहक, चली जाना; मगर शाम को हमारी मीटिंग है दूसरी पार्टी से। उसके बाद बेझिझक चली जाना।" "ठीक है, आज की मीटिंग के बाद मैं जहाँ से चाहूँगी, चली जाऊँगी। मैं अपना काम कभी बीच में नहीं छोड़ती।" वह लोग शाम को ऑफिस से ही सीधा जिन लोगों से वेदांत कोई माल खरीद रहा था, उन लोगों के साथ डील करने पहुँच गए थे। "क्या अंबर सचमुच चली जाएगी?" "कहीं आने वाली शाम उनकी ज़िंदगी में कोई बड़ा तूफ़ान लेकर तो नहीं आने वाली?"
ठीक है, आज की मीटिंग के बाद मैं जहां से चली जाऊँगी। मैं अपना काम कभी बीच में नहीं छोड़ती।
वह लोग शाम को ऑफिस से ही उन लोगों के साथ डील करने पहुँचे थे। डील लगभग फाइनल थी, तो दस मिनट में ही पेपर साइन हो गए थे।
"ठीक है, अब हम चलते हैं," वेदांत ने कहा। क्योंकि वेदांत का मूड बेहद खराब था, ऊपर से अंबर का भी। वे दोनों ही वहाँ से बाहर निकलने लगे। वेदांत आगे चला गया। अंबर वेदांत के पीछे आ रही थी।
"हेलो अंबर," किसी ने अंबर से कहा।
"हेलो मिस्टर खन्ना," अंबर ने उसे देखकर कहा।
"आप यहाँ अकेले?"
"आप अक्सर मिस्टर वेदांत के साथ होती हैं।"
"नहीं, वह चले गए हैं। मैं भी जा ही रही थी।"
"तो प्लीज बैठिए ना। देखिए, मना मत कीजिए। वैसे भी वेदांत मेरा दोस्त है।" अंबर के मन में न जाने क्या आया, वह उसके पास जाकर बैठ गई। वह वेदांत के साथ नहीं जाना चाहती थी।
गाड़ी के पास पहुँचकर वेदांत ने देखा, अंबर उसके पीछे नहीं आई थी।
"यह कहाँ रह गई?" उसने अपने आप से कहा। वह उसे देखने के लिए वापस होटल के अंदर गया। उसने देखा कि वह रवि खन्ना के साथ बैठी हुई है। उसकी नज़र में रवि खन्ना कोई अच्छा आदमी नहीं था। उस पर रेप का केस भी चल रहा था। उसे अंबर को वहाँ छोड़ना सेफ नहीं लगा। वह उन दोनों के पास चला गया।
"यहाँ क्या कर रही हो?"
"मैं तुम्हारा पार्किंग एरिया में वेट कर रही थी।"
"आज शाम तक मेरी नौकरी थी। अब मेरा काम खत्म। मैं नहीं आ रही हूँ आपके साथ।"
"मैं तुम्हें ऑफिस से लेकर आया था, तो मैं ऑफिस छोड़ दूँ और तुम्हें वहाँ से अपना सामान भी उठाना है। इसलिए चुपचाप चलो मेरे साथ," वेदांत ने उससे कहा।
"कोई बात नहीं, मैं मिस सक्सेना को ऑफिस छोड़ दूँगा," रवि खन्ना ने बीच में बोलते हुए कहा।
तभी वेटर उनके पास आया। उसकी ट्रे में दो गिलास थे। उसने जूस का गिलास अंबर के आगे और ड्रिंक का गिलास रवि खन्ना के आगे रख दिया।
"जब जूस का ग्लास खत्म होगा, मैं तब जाऊँगी। आप चाहे तो चले जाओ," अंबर ने उसे कहा।
वेदांत ने वेटर को इशारा किया और उसे एक खाली गिलास मँगवा लिया। वेदांत ने आधा जूस अपने गिलास में डाल लिया।
"मैं तुम्हारी हेल्प करता हूँ इसे खत्म करने में।" आधा गिलास वेदांत ने पी गया। अंबर को लगा अब वह उसे साथ लेकर ही जाएगा। उसने भी एक ही घूंट में वह खत्म कर दिया। तभी रवि खन्ना का फोन बजने लगा।
"आप लोग तो जा रहे हो, तो मुझे भी काम है। मैं भी जाता हूँ।" वह वहाँ से चला गया।
जैसे ही रवि खन्ना हाल से निकला, वेदांत भी अंबर को छोड़कर जाने लगा।
"अब आप कहाँ जा रहे हो?"
"मैं आ रही हूँ आपके साथ।"
"अब आओ, ना आओ, कोई फर्क नहीं पड़ता। वह आदमी अच्छा आदमी नहीं था, इसीलिए मैं रुका था।"
"तो तुम मुझे अपने इशारों पर नाचना चाहते हो?" अंबर अपना गुस्सा निकालना चाहती थी।
"इसमें इशारों वाली कौन सी बात है?" बात करते-करते अंबर का सिर घूमने लगा। उसने वेदांत का हाथ पकड़ लिया।
"सब कुछ घूम रहा है। मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा।" वेदांत ने उसे चेयर पर बैठाया।
उसे खुद भी आसपास घूमता हुआ दिखाई देने लगा। वह उसके साथ बैठ गया।
"दिखाई तो मुझे भी नहीं दे रहा।"
वेदांत अक्सर उस होटल में आता था, तो वहाँ का मैनेजर, जो काउंटर से देख रहा था, उनके पास आया।
"क्या हुआ सर?"
"सुनो, हमें एक रूम चाहिए।"
"ठीक है सर, मिल जाएगा।"
"हमें रूम में छोड़कर आओ," क्योंकि ना तो वेदांत उठ रहा था और ना ही अंबर।
मैनेजर उन दोनों को ही वहाँ कमरे में ले गया। "कुछ चाहिए हो तो फोन करो, आप इंटरकॉम पर ऑर्डर कर दीजिए," कहते हुए वह वहाँ से बाहर आ गया।
अंबर को अपना सर बहुत भारी लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसके सिर पर हथौड़े मार रहा है। उसने मुश्किल से आँखें खोलने की कोशिश की। उसने जैसे ही आँखें खोली और आसपास देखा-
"मैं कहाँ हूँ? यह मेरा कमरा तो नहीं है।" उसने देखा, साइड पर कोई और सोया हुआ था। उसकी शर्टलेस पीठ उसकी तरफ थी। वह एकदम से उठ गई। उसने अपनी हालत को देखते हुए अपने आप को ब्लैंकेट में कवर किया।
एकदम से उसके दिमाग में रात वाली बात याद आ गई। "मैंने जूस पिया था और आधा वेदांत ने। रवि खन्ना ने मेरे लिए जाल बिछाया था। मैं कितनी बड़ी बेवकूफ हूँ! मैं और वेदांत पूरी रात साथ थे।" उसे अपने आप पर पछतावा था। "मुझे इसके उठने से पहले यहाँ से चले जाना चाहिए।" उसने अपनी आँखों में आए हुए पानी को साफ किया। "यह तो है ही ऐसा। गलती मेरी है।"
उसे अपने आप पर बहुत पछतावा हो रहा था। उसका ऊँची-ऊँची रोने का मन कर रहा था। वह अपने कपड़े उठाकर बाथरूम में चली गई। वह वेदांत का सामना बिल्कुल भी नहीं करना चाहती थी। वह वेदांत के उठने से पहले ही कमरे से निकल गई।
होटल से बाहर निकलते ही टैक्सी ली और वेदांत के घर चली गई। उसने जाते ही अपना सामान पैक किया। अंबर ने जल्दी से अपना सामान समेटते हुए कमरे से बाहर निकलने लगी। सीढ़ियों से उतरती हुई वर्षा उसे देख लेती है।
"अरे बेटा, इतनी सुबह-सुबह तुम कहाँ जा रही हो? अरे, तुम रात घर नहीं आई और वेदांत भी रात बाहर था," वर्षा ने उससे पूछा। वर्षा अंबर के चेहरे की तरफ देख रही थी। उसकी आँखें सूजी हुई थीं और वह बहुत परेशानी में दिखाई दे रही थी।
"मेरी सुबह की फ़्लाइट है। मैं मॉम-डैड के पास जा रही हूँ। उनका फ़ोन आया था।"
"बाकी सभी से तो मिलते जाते।"
"नहीं, मुझे... मैं फिर आऊँगी ना। मुझे बहुत ज़रूरी काम है।" वह जल्दी से घर से निकल गई!
वह नहीं चाहती थी कि उसका सामना वेदांत से हो।
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मेरी सुबह की फ़्लाइट थी। मैं मॉम डैड के पास जा रही थी। उनका फ़ोन आया था।
बाकी सभी से तो मिलते जाती।
नहीं, मैं फिर आऊँगी। मुझे बहुत ज़रूरी काम है। वह जल्दी से घर से निकल गई!
वह नहीं चाहती थी कि उसका सामना वेदांत से हो।
अंबर के जाने के थोड़ी देर बाद वेदांत घर आ गया। वह बिना किसी से मिले चुपचाप अपने कमरे में चला गया। मुझे कुछ जूस नहीं पीना चाहिए था। चाहे जो भी था, हम लोग तीन साल से साथ थे। पक्का वह मुझ पर गुस्सा होगी। वेदांत उसी के बारे में सोच रहा था।
अंबर को शायद नशा ज़्यादा हुआ था। मगर वेदांत को रात की एक-एक बात याद थी। "मैं उससे बात करूँगा कि मेरी इसमें कोई गलती नहीं थी," वेदांत सोच रहा था। "ऑफ़िस तो वो जाएगी नहीं क्योंकि उसने काम छोड़ने का कहा था। तो शायद वह घर पर होगी।"
ब्रेकफ़ास्ट करते हुए वह अंबर की वेट कर रहा था। मगर अंबर नहीं आई। वेदांत का ध्यान दादी के कमरे की तरफ़ ही था।
"अंबर ऑफ़िस चली गई क्या?" बीनू ने पूछा।
"नहीं तो," वर्षा कहने लगी।
"फिर उसे बुला लो। क्या कर रही है वो?" बीनू ने फिर कहा।
"अपने मॉम डैड के पास चली गई है।"
"क्या?" बीनू ने हैरानी से पूछा। वेदांत भी काफ़ी हैरान था।
"हाँ, सुबह ही उसकी फ़्लाइट थी। मैंने कहा था सबसे मिलकर जाओ। उसने कहा कि जल्दी वापस आ जाऊँगी और वह चली गई।"
"मगर पता नहीं क्यों वो परेशान थी। मैं अनीता से फ़ोन करके पूछती हूँ। वो दोनों ठीक तो हैं ना?" वर्षा ने कहा।
"अगर कोई परेशानी थी तो हमें बताना चाहिए था," बृजेश ने कहा।
"सही बात है। मालूम नहीं क्या हुआ। उसकी सूजी हुई आँखें, उतरा हुआ चेहरा... मैं उसे रोकना चाहती थी, मगर उस लड़की ने बात ही नहीं सुनी। जल्दी-जल्दी में चली गई," वर्षा ने कहा।
"वेदांत, तुम्हें पता होगा... ऑफ़िस में कोई बात हुई हो... कुछ बताया हो उसने?" बृजेश वेदांत से पूछने लगा।
"नहीं, मुझे नहीं पता।" अब वेदांत क्या बताता? वो उसकी उदासी का कारण तो जानता था।
दिन बीतने लगे थे। वेदांत ने अंबर को फ़ोन करने की कोशिश भी की, मगर उसका फ़ोन बंद आ रहा था। "अजीब लड़की है। अब जो हो गया, उसको लेकर इतना बड़ा इशू! फ़ोन भी बंद है।"
वो अंबर के बारे में सोच ज़रूर रहा था। उसने अपनी रातें इतनी लड़कियों के साथ बिताई थीं, मगर अंबर उन सब से अलग थी। कोई शक नहीं था कि अंबर के साथ बिताई रात, उसकी ज़िंदगी की सबसे अच्छी रातों में आती थी।
तीन महीने हो चुके थे अंबर को गए हुए। उसका खुद का फ़ोन तो बंद था। अनीता और अरुण भी वापस नहीं आए थे। वेदांत ऑफ़िस में था कि राहुल उसके केबिन में आकर कहता है,
"बाहर अंबर की मॉम आई है। वह तुमसे मिलना चाहती है।"
"ठीक है, बुलाओ उन्हें।"
"आंटी, आप लोग तो इंडिया वापस ही नहीं आए। अंबर कैसी है?"
"ठीक है वो। मुझे कुछ काम था आपसे, इसीलिए आई हूँ। मुझे आपसे अकेले में बात करनी थी।"
"आप लोग बातें करो, मुझे काम है, मैं जा रहा हूँ।" राहुल वहाँ से चला गया।
"हाँ, आंटी, बताइए क्या हुआ? अंबर से भी बात नहीं हो पा रही। उसने वहीं पर जॉब स्टार्ट कर दी है।"
"मुझे आपसे कुछ पूछना है। अंबर तुम्हारे पास काम करती थी। क्या उसका कोई बॉयफ़्रेंड था? किसी को वह पसंद करती हो, किसी से वह प्यार करती हो?"
उसकी बात पर वेदांत ने उनकी तरफ़ मुस्कुरा कर देखा। "बिल्कुल भी नहीं। मैंने तो किसी को भी नहीं देखा। कभी अंबर नहीं बताया। इन तीन सालों में ऑफ़िस में तो कोई नहीं!" वेदांत ने बताया। "क्यों? क्या हुआ? आप क्यों पूछ रही हैं?" वेदांत को बात समझ नहीं आई थी।
"मतलब उसे कोई नहीं जानता कि वह कौन है?" अनीता ने उदास होकर कहा।
"आंटी, बताओ तो सही हुआ। क्या किया उसके बॉयफ़्रेंड ने?"
"अब तुम तो घर के बच्चे हो। तुमसे क्या छुपाना। अंबर प्रेग्नेंट है, तीन महीने हो गए। हम लोगों ने इतना पूछा कि बताओ तो सही तुम्हारा बॉयफ़्रेंड कौन है। हम तुम्हारी शादी कर देते हैं। वो बताने को तैयार नहीं। मैंने कहा, यह बच्चा गिरा दो। वह बच्चा भी गिराने को तैयार नहीं। उसके डैड उसका साथ दे रहे हैं। कहते हैं, जहाँ पर हम रहते हैं, जिस कल्चर में आम बात है... जो मेरी बेटी करना चाहती है, उसे करने दो। अगर ऐसे थोड़ी होता है! उसके आगे इतनी ज़िंदगी पड़ी है। बच्चों को भी बाप चाहिए होगा। ऐसे थोड़ी होता है!"
अनीता के एकदम से बात करने से वेदांत के दिमाग में वही रात आती है। फिर भी, वह उनसे पूछता है, "यह भी तो हो सकता है कि वह कोई इंडिया का ना हो। वहीं से हो। कोई आप लोगों के ही आसपास कोई हो।"
"नहीं, इतना तो मुझे यकीन है वह इंडिया से है। जब वह जहाँ से गई थी, बहुत परेशान थी। दो-तीन दिन तो वह बिस्तर से ही नहीं उठी। फिर थोड़ी ठीक होने लगी तो हफ़्ते दस दिन बाद इस बात का पता चला।" अनीता अपना सिर पकड़े बैठी हुई थी।
"देखो बेटा, ये बात किसी से कहना मत। अब हम लोग शायद ही वापस आएँ इंडिया। क्या कहेंगे? उसके बच्चों का जन्म हो जाने दो। फिर देखते हैं।"
"आप आंटी बच्चों क्यों-क्यों कह रही हैं? बच्चा कहिए।"
"नहीं बेटा, ट्विन्स हैं। डॉक्टर ने बताया है।" अनीता जी वहाँ से चली गई। वेदांत वहीं बैठा सोचता रहा।
"देखो बेटा ये बात किसी से कहना मत।"
"अब हम लोग शायद ही वापस आए इंडिया।"
"क्या कहेंगे उसके बच्चों का जन्म हो जाने दो।"
"फिर देखते हैं।"
"आप आंटी बच्चों क्यों कह रही हैं?"
"बच्चा कहिए।"
"नहीं बेटा, ट्विन्स हैं। डॉक्टर ने बताया है।" अनीता जी वहां से चली गईं। वेदांत वहीं बैठा सोचता रहा।
वो अंबर और बच्चों के बारे में सोचने लगा। अनीता वहां से कब गईं?
"Seriously मैं डैड बनने वाला हूं।" एक पल के लिए वेदांत खुश हो गया।
"नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।"
"अंबर इतनी बड़ी बेवकूफी नहीं करेगी बच्चे रखने की।"
"ऐसा भी तो हो सकता है वो बच्चे किसी और के हों।"
"कहीं अंबर ने जानबूझकर अपनी मां को मेरे पास तो नहीं भेजा?"
"नहीं, अगर ऐसी बात होती तो वो मेरे घर पर बात करते और घर वाले मुझे शादी के लिए मजबूर करते।"
"हो सकता है यह बात घर पर भी हुई हो।"
"क्या वो बच्चे सचमुच मेरे हैं?" सोचते हुए वेदांत का सिर दुखने लगा।
उसे समझ नहीं आ रही थी यह क्या हो रहा है। उसने अपनी टाई ढीली की और सिर पकड़कर बैठ गया। यह खबर उसके लिए काफी शॉकिंग थी। 3 महीने हो चुके थे उस बात को। अब तो वो खुद उस बात को भूलने लगा था।
"मुझे घर जाना चाहिए।"
"कहीं आंटी ने घर पर भी कोई बात तो नहीं की।" घर जाकर वह हॉल में ही बैठ गया। वह देखना चाहता था कि घर वालों को अनीता आंटी मिलकर गई हैं या नहीं।
घर पर राजन भाई मिलने आए हुए थे। सभी घर वाले पीहू के साथ खेलने में मस्त थे। किसी ने उसकी तरफ देखा भी नहीं। थोड़ी देर वो सभी को देखता है। फिर वो ऊपर जाने लगा।
"क्या भाई आज आप पीहू के साथ नहीं खेलेंगे?" बीनू ने उसे ऊपर जाते देखकर कहा।
वो वापस हॉल में आ गया। उसने पीहू को अपनी गोद में उठाया। छोटी पीहू किलकारियां मारती हुई उसके साथ खेलने लगी। थोड़ी ही देर बाद बृजेश जी बाहर से आए और उन्होंने उसकी गोद से पीहू को ले लिया।
"मेरी राजकुमारी क्या कर रही है?" वह पीहू के साथ खेलने लगे।
"कपड़े तो बदल लेते।" वर्षा जी कहने लगीं।
"कोई बात नहीं, कपड़े तो हम बाद में भी चेंज कर लेंगे।"
"मुश्किल से तो हमारी राजकुमारी आती है।"
"चलो पीहू हम कमरे में चलते हैं।" बृजेश उसे साथ लेकर खड़े हो गए।
"यह बात बिल्कुल गलत है डैड।"
"आप इसे कमरे में ले जा रहे हैं।"
"आप कपड़े चेंज करो। इसे मुझे दे दो।"
पूरी फैमिली इतनी खुश थी पीहू के साथ और पीहू एक की गोद में उतरती तो दूसरे की गोद में चली जाती।
वेदांत को अंबर की प्रेगनेंसी के बारे में ख्याल आया।
"मेरे बच्चे ऐसी फैमिली डिजर्व करते हैं।"
"कहां वो अकेले कैसे दो बच्चों की परवरिश करेगी।"
"बच्चों के लिए उसे काम भी करना पड़ेगा।"
"क्या मेरे बच्चे नाजायज कहलाएंगे?" वेदांत को घबराहट सी होने लगी।
"नहीं नहीं, मैं अपने बच्चों को नहीं छोड़ सकता।"
"उसे रात हम दोनों साथ चाहे जिस कारण से हो।"
"मगर ये सच्चाई तो नहीं बदलेगी ना कि बच्चों का डैड मैं हूं।" वह अपने कमरे में चला जाता है और किसी को फोन लगाता है।
"मैं तुम्हें एक लड़की की फोटो और बायोडाटा भेज रहा हूं।"
"इस लड़की के बारे में पूरी जानकारी चाहिए।"
"उसका बॉयफ्रेंड है और उसकी प्रेगनेंसी के बारे में मुझे पूरी रिपोर्ट चाहिए।"
एक बात तो क्लियर थी कि अनीता आंटी घर नहीं आई थीं। वह सिर्फ उससे मिलने ऑफिस में इसलिए आई थी कि वह अंबर के बॉयफ्रेंड के बारे में जानना चाहती थी। वह थोड़ी देर बाद कपड़े चेंज करके नीचे आ गया।
"भाई आज आपने छुट्टी की है क्या?"
"आज तो आपके ऑपरेशन का दिन होता है।" वेदांत ने पूछा।
"तो और क्या करता?"
"आज तुम्हारी भाभी को कहीं बाहर जाना था और इसकी नैनी भी जहां पर नहीं थी।"
"कोई इमरजेंसी ऑपरेशन नहीं था तो मैंने सारा प्रोग्राम चेंज कर दिया। सोचा इसी बहाने से मैं अपनी प्रिंस के साथ आज पूरा दिन गुजरूंगा।" राजन ने कहा।
"कमाल करते हो भाई।"
"आप तो अपने काम को लेकर इतने सीरियस हैं।"
"आपने अपना शेड्यूल चेंज किया।" वेदांत ने राजन से कहा।
"जिंदगी में कोई चीज इतनी प्यारी होती है कि उसके ऊपर तुम्हें कुछ भी दिखाई नहीं देता।"
"इस समय पीहू ज्यादा इंपॉर्टेंट है, मेरी लाइफ में कुछ भी नहीं।"
"मेरा प्रोफेशन भी नहीं।" राजन ने कहा।
"इस प्रोफेशन के लिए तो अपने घर में बगावत कर दी थी कि आप डैड का बिजनेस नहीं देखेंगे, बल्कि डॉक्टर बनेंगे।"
"बिल्कुल मगर पीहू के लिए तो मैं कुछ भी छोड़ सकता हूं।" वह पीहू से लाड़ करने हुआ कहने लगा।
"अब तुम्हारे एक बेटा हो जाए तो ठीक है।" दादी ने बीच में कहा।
"बिल्कुल भी नहीं।"
"उसके पास बिलकुल टाइम नहीं है और सबसे बड़ी बात अभी पीहू बहुत छोटी है।"
"कई साल के बाद देखेंगे हमें क्या करना है।"
"इस समय तो इससे ज्यादा हमें किसी की जरूरत नहीं।" राजन ने हंस कर कहा।
"आपको वेदांत को शादी की फिक्र करनी चाहिए।"
"अब अगर इसकी शादी होगी तो फिर हम बीनू के लिए भी लड़का देखने लगेंगे।"
"सही बात है, दोनों बच्चों मेरी एक बार ध्यान से सुनो।"
"तुम दोनों को अपने कोई लाइफ पार्टनर पसंद है तो बताओ।"
"वरना हम ढूंढ लेंगे।" वर्षा कहने लगी।
"तुम्हारे बच्चे ऐसे प्यार से बोलने से ठीक नहीं आएंगे।"
"अगर जब शादी करनी है तब इनको दिन बता देंगे कि इस दिन तुम्हारी शादी है।" दादी मां ने कहा।
उसकी बात से वेदांत ने हंसकर अपनी मॉम की पास देखा। सच में उनकी मॉम बहुत स्वीट थी। उन्होंने कभी किसी को किसी बात के लिए मजबूर नहीं किया था और अपने बच्चों की हर बात सुनी थी।
उसका ध्यान अंबर की तरफ चला गया।
"वह कैसी मां बनेंगी।" अचानक वो बैठा उसी के बारे में सोच रहा था।
"भाई क्या सोच रहे हो?" बीनू ने उसे टोका।
तभी वेदांत के फोन पर इस आदमी का फोन आ गया। वेदांत फोन उठाते हुए बाहर लॉन में निकल गया।
"क्या हुआ इतनी जल्दी तुम्हें इनफॉरमेशन मिल गई?"
"सर जहां पर तो उनके बारे में जानने के लिए है ही कुछ नहीं।"
"वह 3 महीने पहले इंडिया से आई थी।"
"कुछ दिन तो वह घर से बाहर ही नहीं निकली और जब वह बाहर गई तो किसी डॉक्टर के पास गई थी।"
"वहां पर पता चला कि वह प्रेग्नेंट है।"
"उसके बाद वह सिर्फ जब भी बाहर गई है तो सिर्फ डॉक्टर के पास जाने के लिए।"
"जहां पर कोई उसका दोस्त नहीं है।"
"वह कहीं आती जाती नहीं।"
"उसके मॉम डैड जहां से शिफ्ट होने के बारे में सोच रहे हैं क्योंकि तीन महीने हो चुके हैं तो अब तक तो आसपास किसी को उसके प्रेगनेंसी के बारे में पता नहीं।"
सर, जहां पर तो उनके बारे में जानने के लिए है ही कुछ नहीं।
वह 3 महीने पहले इंडिया से आई थी।
कुछ दिन तो वह घर से बाहर ही नहीं निकली और जब वह बाहर गई तो किसी डॉक्टर के पास गई थी।
वहां पर पता चला कि वह प्रेग्नेंट है।
उसके बाद वह सिर्फ जब भी बाहर गई है तो सिर्फ डॉक्टर के पास जाने के लिए।
जहां पर कोई उसका दोस्त नहीं है।
वह कहीं आती जाती नहीं।
उसके मॉम डैड जहां से शिफ्ट होने के बारे में सोच रहे हैं क्योंकि 3 महीने हो चुके हैं तो अब तक तो आसपास किसी को उसकी प्रेगनेंसी के बारे में पता नहीं।
वो वापस अंदर आ गया। पूरी फैमिली एक साथ बैठी पीहू के साथ खेल रही थी। उसने सभी की तरफ देखा।
"मुझे आपको कुछ बताना है। बहुत इंपॉर्टेंट है," वेदांत ने कहा।
सभी उसके चेहरे की तरफ देखने लगे। उसके डैड को लगा शायद वो बिजनेस की बात करेगा।
"मैंने आप सब लोगों से एक बहुत बड़ी बात छुपा कर रखी है। मैं आपको बताना चाहता हूं।"
सभी उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे।
"कहीं तुमने किसी से शादी तो नहीं की?" उसकी दादी ने कहा, "कौन है वह लड़की जिससे तुमने शादी की है?"
"हां, मैंने किसी से शादी की है," वेदांत ने कहा।
वैसे उसे अपनी दादी पर काफी हैरानी हुई कि उसके कहने से पहले ही उसे समझने लगी।
"तुम खुल कर बताओ क्या कहना है? क्या कह रहे हो?" उसके डैड कहने लगे।
वेदांत की शादी वाली बात किसी को नहीं जमी थी।
"अरे वेदांत बताओ तो सही। इतना सस्पेंस क्यों क्रिएट कर रहे हो?" राजन ने कहा।
"एक्चुअली में मैंने और अंबर ने शादी कर ली थी, बिना किसी को बताएं। यह उसके इस घर में आने से पहले की बात है। हम लोगों ने सोचा कि धीरे-धीरे घर पर बता देंगे, फिर हम दोनों के बीच लड़ाई हो गई।"
"और वह लड़ाई इस घर में आने से पहले हुई थी," उसकी दादी ने कहा, "अब समझी मैं, तुम उसको उसके पीछे मानते फिर रहे थे और वह तुमसे नाराज थी। इसीलिए उसने ऊपर का कमरा छोड़कर मेरे पास कमरा लिया, मगर ऐसी भी क्या नाराजगी कि वह तुम्हें छोड़कर ही चली गई? तो अब तुम हमें किस लिए बता रहे हो?" उसके दादा ने कहा।
"सीधी सी बात है, अब अंबर को हम इस घर में लेकर आना चाहिए। बड़ी प्यारी बच्ची है। मुझे तो बहुत पसंद है," वर्षा ने अपनी मन की बात कही।
"उसकी पूरी बात तो सुन लो। जितना तुम सोचती हो हर बात इतनी सीधी नहीं होती," उसकी दादी ने उसकी मॉम से कहा, "तो वह नौकरी छोड़कर जहां से क्यों गई? 3 महीने हो चुके हैं उसे गए हुए। अब तुम्हें बताने की जरूरत क्यों हुई?"
"वह मुझसे अभी भी नाराज है और सबसे बड़ी बात वह प्रेग्नेंट है। मेरे बच्चे की मां बनने वाली है," वेदांत ने कहा।
"क्या कह रहे हो तुम? उसका फोन आया था क्या?" राजन ने कहा।
"नहीं, उसने किसी को यह भी नहीं बताया कि बच्चा मेरा है। आज अनीता आंटी आई थी। वह उसके बॉयफ्रेंड के बारे में बात कर रही थी। अनीता आंटी उस लड़के को ढूंढ रही है जिसका वह बच्चा है। उसने गुस्से में अपने घर पर भी मेरे बारे में नहीं बताया। उन्हें नहीं पता कि हम दोनों ने शादी की थी। वह अभी भी मुझसे बहुत ज्यादा नाराज है। वो इस हालत में भी किसी को नहीं बताने को तैयार नहीं कि वह मेरे बच्चे की मां है। अब हमारी शादी हुई है, शादी तो नहीं टूट सकती ना।"
"शादी की बात तो तुम्हारी सही है, मगर वह तुम पर इतनी गुस्सा है, इसका कारण बता सकते हो?" उसके डैड ने कहा।
"असल में उसने मुझसे कहा था कि मैं अपनी सभी गर्लफ्रेंड से दूर रहूं। उसने मुझे किसी के साथ देख लिया," वेदांत ने कहा, "इसीलिए वह मुझसे बहुत नाराज है।"
"सही किया उसने, बिल्कुल ऐसी हरकतें छोड़ देनी चाहिए तुम्हें। शादी करने से पहले सोचना चाहिए था। अगर तुम्हें अपनी हरकतें बदलनी ही नहीं थी तो शादी क्यों की? शादी करनी थी तो चोरी से क्यों की? हम कब मना कर रहे थे तुम्हें शादी के लिए?"
"मैं आपको फिर बताऊंगा कि किन हालात में हमारी शादी हुई, अब यह सोचो उसे घर लेकर आना है। किसी भी तरह से वह आसानी से नहीं मानेगी। हो सकता है कि वो ऐसा भी कहे कि हमारी शादी नहीं हुई, मगर मैं अपना बच्चा कैसे छोड़ सकता हूं। मुझे वह भी अच्छी लगती है," वेदांत ने कहा।
"अगर लड़की से इतना ही प्यार था तो क्यों गलत हरकतें नहीं छोड़ी। लड़की तो बहुत अच्छी है और साथ में जिद्दी भी बहुत है। इसके लिए तो वही सही रहेगी, वरना खुद सोचो कि इतना अमीर लड़का उससे शादी कर चुका है। वह तो जहां आकर बैठ जाती कि मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं, मगर नहीं। लड़की तो यही सही है इसके लिए," दादी मां ने सोचते हुए कहा।
"मैं तो बहुत खुश हूं कि अंबर मेरी भाभी है," बीनू खुश होकर कहने लगी।
"चलो सब की टिकट बुक करो। सभी जाते हैं बहू को लेने," दादी ने कहा, "वर्षा बहू के लिए गहने और साड़ी साथ में रख लो। रिया को भी बुलाओ, बड़ी बहू भी साथ होनी चाहिए," दादी मां ने राजन से कहा।
"मैं अभी राहुल से कहता हूं," वेदांत ने कहा।
सभी की शाम की टिकट बुक हो चुकी थी अंबर के पास जाने के लिए।
वह सभी लोग तो तैयार थे जाने के लिए, मगर क्या अंबर मानेंगी इतनी आसानी से?
क्या होगा आगे?
"मैं अभी राहुल से कहता हूं," वेदांत ने कहा।
सभी की शाम की टिकट बुक हो चुकी थी अंबर के पास जाने के लिए।
वह सभी लोग तो तैयार थे जाने के लिए।
"तुम उनको फोन करके हाल-चाल पूछ लो, मगर कुछ मत बताना कि हम आ रहे हैं।" दादी ने बृजेश से कहा।
"पर तुम बिल्कुल मत फोन करना," उसकी दादी ने वेदांत की मां से कहा।
"क्यों? मैं क्यों नहीं फोन कर सकती," वर्षा ने हैरानी से पूछा।
"मैं अनीता को फोन करती हूं ना। और साथ में अपनी बहू और पोते का हाल-चाल पूछ लूंगी।"
"क्योंकि उन्हें पहले पता नहीं लगना चाहिए हम वहां आने वाले हैं। वहां पहुंचकर ही बात करेंगे। तुम तो बातों बातों में सब बता दोगी और अभी से इतनी खुश हो रही हो," दादी ने उससे कहा।
"ठीक है, मैं नहीं करूंगी," वर्षा ने धीरे से कहा।
वेदांत अपनी मॉम के पास गया।
"मॉम दादी की बात का बुरा मत मानो। वह ऐसी ही हैं। उनके मन में कुछ नहीं।"
"मैं बुरा नहीं मान रही," उसने मुस्कुराते हुए कहा।
"मैं तो खुश हूं तुम्हारे लिए।" उसने अपनी मां के गले में अपनी बाहें डाल दी।
"मॉम आप बहुत स्वीट है," उसने कहा।
रात की फ्लाइट थी। वह लोग सभी चले गए थे। 18-19 घंटे का सफर था। अगले दिन शाम को वहां पहुंचे। वैसे सहगल फैमिली का अपना हाउस था और साथ में वहां का बिजनेस के लिए ऑफिस भी था। उन्होंने अपना लगेज घर भेज दिया। पूरी फैमिली अंबर के घर चले गए।
अरुण कैनेडियन सिटीजन था, जो बृजेश के साथ काम करने के लिए इंडिया चला गया था और वहीं पर उसकी अनीता से शादी हुई थी। वह लोग जहां पर अपने किसी कागज़ी कार्रवाई के लिए रुके हुए थे क्योंकि वह जहां पर कम रहते थे तो उनकी सिटीजनशिप में कोई प्रॉब्लम आ रही थी। उनका भी जहां अपना घर था।
अनीता शाम के रात के खाने की तैयारी कर रही थी। अरुण टीवी देख रहा था। अंबर अपने कमरे में थी। तभी दरवाजे पर बेल बजी। अरुण ने बेल बजने पर कोई ध्यान नहीं दिया। जब दूसरी बार बेल हुई तो अनीता को किचन में से आना पड़ा।
"न्यूज़ सुनते हुए आपको बेल भी सुनाई नहीं देती। टीवी के तो जैसे अंदर ही चले जाओगे," वह अरुण से झगड़ती दरवाजा खोलने लगी।
जैसे ही उसने दरवाजा खोला, वह हैरान हुई क्योंकि लक्ष्मी देवी अपनी फैमिली के साथ खड़ी हुई थी।
"हम सभी को ऐसे क्यों देख रही हो? अब अंदर आने को नहीं कहोगी? यहीं पर देखती रहोगी क्या," लक्ष्मी देवी ने कहा।
वह साइड हो गई।
पूरी फैमिली अंदर चली गई। बीनू और रिया के हाथ में कुछ पैकेट थे, जो उन्होंने टेबल पर रख दिए।
वह सभी लिविंग रूम में बैठ गए। अनीता उन सबके लिए अंदर पानी लेने चली गई।
"तुम्हारी बेटी कहां है," लक्ष्मी देवी ने पूछा।
"अपने कमरे में है," अरुण ने कहा।
"अभी बुला देता हूं।"
"तुझ में थोड़ी तो अकल होनी चाहिए थी। मुझे तो पता ही नहीं था कि दिमाग तो है ही नहीं तुझ में," लक्ष्मी देवी अरूण पर गुस्सा हुई।
"मैंने क्या किया," उसने बृजेश की तरफ देखा।
उसे लक्ष्मी देवी के स्वभाव का पता था, फिर भी उसे गुस्से का कारण नहीं पता चल रहा था।
"यही तो बात है तुमने कुछ किया ही नहीं। हम अपने बहु को लेने आए हैं। कहां है वो?"
अरूण उनको उनकी बात बिल्कुल भी समझ नहीं आ रही थी।
अनीता पानी लेकर आ गई थी। अनीता ने अंबर के कमरे की तरफ देखा। उसका दिमाग थोड़ा सा चला था।
"देख तेरी बीवी की समझ में आ गया, मगर तुझे नहीं पता चला। पता नहीं कैसे काम करते थे तुम बृजेश के साथ," लक्ष्मी देवी ही बोल रही थी।
बाहर लॉबी में होता हुआ शोर सुनकर अंबर भी कमरे से बाहर आई। वह काफी हैरान थी। उसने सहगल फैमिली को बैठे देखा।
"आ जाओ आ जाओ," लक्ष्मी देवी खड़ी हो गई।
"कैसी है दादी मां आप," अंबर ने पूछा।
उसने बीनू की तरफ देखकर स्माइल की, मगर वेदांत की तरफ एक नजर तक नहीं की। वह सभी से मिलने लगी।
"यह तो ऐसा था। तुझ में तो अकल होनी चाहिए थी," उसने अंबर से कहा।
"अपना हक नहीं छोड़ा जाता। शादी होना बहुत बड़ी बात होती है।"
थोड़ा-थोड़ा अंदाजा अंबर को हुआ।
"नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता। वह खुद क्यों मानेगा," फिर अंबर ने सोचा।
"हो सकता है कोई और बात हो," वो अनीता के साथ बैठ गई।
"आप किस बहू की बात कर रहे हैं," अरुण ने कहा।
"अब अंबर ने तुम लोगों को कुछ बताया तो होगा नहीं। इन दोनों ने चोरी से शादी की और फिर झगड़ा हो गया। गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड बनने में और शादी करने में बहुत फर्क होता है, मगर इन लोगों में अकल कहां है। मैं अपनी बहू पोते को लेने आई हूं।"
"मैंने इसके साथ कोई शादी नहीं की," अंबर अपनी जगह से खड़ी हो गई और उसने वेदांत की तरफ देखा।
"अब इतना क्या गुस्सा। मान जाओ तुम। देखो जैसा तुम कहोगी मैं वैसा करूंगा। तुम्हारी हर बात मानूंगा। अब अपने घर चलो," वेदांत अंबर के आगे जाकर घुटनों पर बैठ गया।
"क्या कह रहे हो तुम? कौन सी शादी? यह क्या कह रहे हो तुम," अंबर को समझ नहीं आ रहा था कि वह किसी शादी की बात कर रहा था।
"अच्छा अगर शादी नहीं हुई तो क्या तुम प्रेग्नेंट नहीं हो? तुम मेरे बच्चे की मां नहीं बनने वाली? कह दो कि वह बच्चा मेरा नहीं है," वेदांत ने कहा।
"चलो ना भाभी अब गुस्सा छोड़ दो," बीनु भी उसके पीछे आकर खड़ी हो गई।
"बोलो अंबर यह बच्चा मेरा है ना," वेदांत ने फिर कहा।
"हां बच्चा तो तुम्हारा है लेकिन शादी," अंबर कहने लगी।
"हर बात मान रही हो, मगर शादी को नहीं। देख अब शादी हो चुकी है कुछ नहीं हो सकता। मैं अपनी बहू को लेने आई हूं। चुपचाप से मेरे साथ भेजो।"