Novel Cover Image

Contract Marriage with My Boss

User Avatar

Simran Ansari

Comments

48

Views

23597

Ratings

448

Read Now

Description

यह कहानी है देवांश और सुहानी की जहां पर, कुछ मजबूरी के चलते सुहानी को करनी पड़ती है देवांश से कॉन्ट्रैक्ट मैरेज जो कि उसका हैंडसम और खड़ूस बॉस है। कुछ ही महीनों पहले सुहानी ने उसकी कंपनी में ज्वाइन किया था और उसे ना चाहते हुए भी इस कॉन्ट्रैक्ट मैरेज...

Characters

Character Image

देवांश सिंह राठौर

Hero

Character Image

सुहानी वर्मा

Heroine

Total Chapters (53)

Page 1 of 3

  • 1. Contract Marriage with My Boss - Chapter 1

    Words: 1475

    Estimated Reading Time: 9 min

    "हे सुहानी!! यहां पर खड़े होकर क्या सोच रही हो? चलो... अब सोचने का टाइम नहीं है क्योंकि डिसीजन तो तुमने पहले ही ले लिया है ना?" एक बहुत ही बड़ी सी बिल्डिंग के मेन गेट पर कुछ सोचती हुई, एकदम खोई हुई सी खड़ी एक लड़की के कंधे पर पीछे से दूसरी लड़की ने हाथ रखते हुए कहा। तो उसका ध्यान उस लड़की की तरफ हुआ और उसने कहा, "हां निकिता! चल रही हूं मैं। कौन सा मना कर रही हूं? वैसे मना कर भी नहीं सकती हूं। कोई और ऑप्शन भी कहां है मेरे पास..." आखिरी सेंटेंस उस लड़की ने बहुत ही धीमी आवाज़ में कहा। उसने एकदम नॉर्मल ऑफिस वियर, कैजुअल कपड़े पहने हुए थे और उसके साथ वाली लड़की के कपड़े भी कुछ वैसे ही थे। उन दोनों लड़कियों की उम्र लगभग बराबर की लग रही थी और वे दोनों ही देखने में 22-23 साल से ज्यादा की नहीं लग रही थीं। लेकिन निकिता देखने में नॉर्मल थी जबकि सुहानी दिखने में काफी सुंदर थी। उसका वह गोल चेहरा, छोटी सी नाक और सबसे ज्यादा तो उसकी बड़ी-बड़ी खूबसूरत भूरी आंखें, जिनमें ना जाने कितने इमोशन नज़र आते थे। और वह ज्यादातर मुस्कुराती ही रहती थी हर सिचुएशन में, जिससे वह और भी प्यारी लगती थी। लेकिन आज उसके चेहरे से वह मुस्कुराहट गायब थी और वह थोड़ी परेशान लग रही थी। उसके माथे पर बल पड़े हुए थे, लेकिन परेशान से ज्यादा वह किसी बात को लेकर कंफ्यूज लग रही थी, शायद अपने उसी डिसीजन को लेकर जो कि उसने अभी लिया था। उसके पीछे वाली लड़की भी थोड़ी सीरियस ही नज़र आ रही थी। और वे दोनों ही उस जगह से थोड़ा सा आगे बढ़ीं। तभी एक ब्लैक चमचमाती मर्सिडीज कार एकदम उनके सामने आकर रुकी और उसका दरवाजा खुला। अपने सामने आकर रुकी उस कार को देखकर उन दोनों लड़कियों ने एक-दूसरे की तरफ देखा और फिर निकिता ने सुहानी की तरफ देखकर धीरे से अपना सिर हिलाया। और एक गहरी सांस छोड़ती हुई सुहानी उस कार के खुले हुए दरवाजे के अंदर चली गई। और फिर उसके बैठने के बाद निकिता भी उसके साथ ही उस कार की बैक सीट पर बैठ गई। कुछ देर बाद; वह दोनों लड़कियां एक प्राइवेट होटल रूम में बड़े से काउच पर बैठी हुई थीं। और वह रूम काफी ज्यादा लग्जरियस लग रहा था, जो कि किसी भी नॉर्मल होटल रूम के हिसाब से काफी ज्यादा बड़ा था। और काउच पर बैठी हुई वे दोनों लड़कियां थोड़ी एक्साइटमेंट से इधर-उधर देखकर वहां की सारी चीजें नोटिस कर रही थीं। तभी सुहानी ने धीमी आवाज में निकिता से पूछा, "यार निकि! हम दोनों सही जगह पर तो आए हैं ना?" निकिता ने भी उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, "हां, अब वो बॉडीगार्ड यहां पर ही छोड़ कर गया है हमें, तो सही जगह ही होगी। कौन सा हम खुद से आए हैं? सब कुछ उसकी ऑर्डर से ही हो रहा होगा ना।" उसकी बात पर एग्री करते हुए सुहानी ने भी धीरे से हां में अपना सिर हिलाया। और वह शायद कुछ और बोलने ही वाली थी कि तभी बाहर की तरफ से उस रूम का दरवाजा खुला। दरवाजे खुलने की आवाज सुनकर उन दोनों ने एक साथ अपना सिर घुमाकर दरवाजे की तरफ देखा और उन्हें दरवाजे से अंदर आते हुए चार लोग नज़र आए। जिनमें से सबसे आगे जो लड़का था, वह दिखने में बहुत ही ज्यादा हैंडसम लग रहा था। उसकी उम्र यही कोई 25-26 साल ही लग रही थी। उसने डार्क ब्लू कलर का काफी महंगा दिखने वाला डिजाइनर थ्री पीस सूट पहना हुआ था, और ब्लू कोट और वास्कोट के अंदर उसने वाइट शर्ट पहनी हुई थी जिसके ऊपर की दो बटन खुले थे। वह लड़का हैंडसम के साथ-साथ बहुत ज्यादा हॉट भी लग रहा था अपने लुक में, लेकिन उसके चेहरे पर कोई भी एक्सप्रेशन नहीं था और वह बहुत ही ज्यादा सीरियस लग रहा था किसी बात को लेकर... वह शहर के सबसे बड़े और जाने-माने बिल्डर्स में से एक था, देवांश सिंह राठौर, और बहुत ही जल्द राठौर इंडस्ट्रीज का होने वाला मालिक भी... इसके अलावा उसके साथ एक और आदमी था जिसने एकदम फॉर्मल कपड़े पहने हुए थे, हाथ में दो मोबाइल फ़ोन और कुछ सामान था। उसके पीछे एक और आदमी था जो कि देखने में वकील लग रहा था क्योंकि उसने वकील की तरह ही काला कोट पहना हुआ था और वह काफी प्रोफेशनल भी लग रहा था। और उन तीनों के पीछे एक काफी लंबा-चौड़ा सा दिखने वाला आदमी था जिसने ग्रे-ब्लैक कलर की ड्रेस जैसे कपड़े पहने हुए थे और वह दिखने में एक बॉडीगार्ड लग रहा था। वह बॉडीगार्ड वहीं दरवाजे के पास रुक गया और बाकी तीन लोग आगे आ गए थे। और उन तीनों को देखते हुए निकिता और सुहानी दोनों एकदम ही अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गईं। दोनों लड़कियों की इस तरह से उठकर खड़े होने पर देवांश ने एक नज़र उन दोनों की तरफ देखी और फिर सामने वाले सिंगल सोफे पर अपने लेग क्रॉस करके एकदम किसी राजा वाले एटीट्यूड में वहां पर बैठ गया। उसका औरा बहुत ही ज्यादा स्ट्रांग था और उसकी आंखों में एक गहराई नज़र आ रही थी क्योंकि उसकी आंखें एकदम डार्क ब्लैक कलर की थीं। "बस एटीट्यूड में कमी ना आए कभी... मिस्टर एटीट्यूड किंग!" उसका एटीट्यूड देखकर सुहानी ने अपने मुंह में ही बुदबुदाते हुए कहा। सुहानी ने यह बात भले ही धीमी आवाज में कही, लेकिन उसके बगल में ही खड़ी निकिता को यह बात सुनाई दे गई। तो उसने हल्के से सुहानी को कोहनी मारते हुए कहा, "चुप कर यार! मरवाएगी क्या?" निकिता के इस तरह से डांटने पर सुहानी ने उसकी तरफ मुंह बनाकर देखा और वह कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी सामने बैठे उस लड़के ने उन दोनों को जैसे ऑर्डर देते हुए कहा, "Just sit down you both! वैसे अभी थोड़ा टाइम लगेगा प्रोसीजर में, लेकिन तुम लोग खड़ी क्यों हो गई? इतनी जल्दी है क्या तुम दोनों को यहां से जाने की?" उस लड़के की बात सुनकर निकिता तो चुपचाप बैठ गई, लेकिन सुहानी से अब चुप नहीं रहा गया और वह कुछ कदम आगे आते हुए बोली, "कौन सा प्रोसीजर सर? और हम यहां पर क्या कर रहे हैं? हमें तो कोर्ट में होना चाहिए ना? आखिर रजिस्टर्ड मैरिज वहां से ही तो होती है।" उसकी बात सुनकर पीछे बैठी निकिता ने अपने सिर पर हाथ मारा, जबकि सामने बैठे उस लड़के के चेहरे पर एक हल्की सी तिरछी मुस्कुराहट आ गई! देवांश ने उसी तरह एकदम एटीट्यूड में कहा, "कुछ ज्यादा ही पता है तुम्हें शायद मिस सुहानी, लेकिन हमारी कोई रियल कोर्ट मैरिज नहीं हो रही। हमें बस घर में सब से यह बताना है कि हमारी रजिस्टर्ड मैरिज हुई है, जबकि असल में हमारी कॉन्ट्रैक्ट मैरिज हो रही है। यह एक मैरिज कांट्रैक्ट है, just remember this, और चुपचाप साइन करो यहां पर..." देवांश ने अपने सामने टेबल पर रखी खुली हुई उस फ़ाइल की तरफ इशारा करते हुए कहा, "ठीक है, तुम्हें जो समझना है समझो, लेकिन अभी पहले चुपचाप पेपर्स पर साइन कर दो क्योंकि इस बारे में हमारी बात पहले ही हो चुकी है, तो अभी डिले करने का कोई मतलब नहीं बनता।" उसके साथ आया हुआ वह वकील भी वहां पर ही खड़ा था और उसने ही वह सारे पेपर्स ओपन करके टेबल पर रखे थे। उसकी बात सुनकर सुहानी ने कन्फ्यूजन से बड़बड़ाते हुए कहा, "फर्क ही क्या होता है दोनों में? मेरे लिए तो दोनों ही एक जैसे हैं।" इतना बोलते हुए सुहानी अपनी जगह से वहां टेबल की तरफ बढ़ गई जहां पर सारे पेपर रखे हुए थे। उसकी बात सुनकर वकील ने जवाब दिया, "बहुत बड़ा फर्क होता है मैडम! रजिस्ट्रेशन मैरिज में कोई शर्त नहीं होती और आपका रिश्ता एकदम असल पति-पत्नी की तरह ही होता है, जैसे कि नॉर्मल फेरे वाली शादी में। लेकिन कांट्रैक्ट मैरिज में सब कुछ टर्म एंड कंडीशन पर टिका होता है, जो कि आप दोनों को ही माननी होगी, जो कुछ इसमें लिखा है।" सुहानी ने बहुत ही लापरवाही से कहा, "हां, ठीक है ठीक है। मुझे पता है। मेरी इस बारे में बात हो गई है सर से और वैसे भी मैं मैनेज कर लूंगी।" इतना बोलकर सुहानी ने वहां पर रखा हुआ पेन अपने हाथ में उठा लिया साइन करने के लिए... वह साइन करने ही वाली थी कि पीछे से देवांश ने एक तरह से उसे वार्निंग देते हुए कहा, "रुको! फिर भी एक बार सब कुछ पढ़ तो लो क्योंकि तुम्हारा यह क्लम्ज़ी बिहेवियर और लापरवाही शादी के बाद वहां पर मेरे घर में नहीं चलेगा क्योंकि सबके सामने हमें असल पति-पत्नी की तरह ही बर्ताव करना होगा और वह सब कुछ इसमें मेंशन है।" To Be Continued...

  • 2. Contract Marriage with My Boss - Chapter 2

    Words: 1530

    Estimated Reading Time: 10 min

    सुहानी उन पेपरों पर साइन करने ही वाली थी कि पीछे से देवांश ने आवाज़ लगाई, "रुको! फिर भी एक बार सब कुछ पढ़ तो लो। तुम्हारा यह लापरवाह बर्ताव और क्लम्ज़ी बिहेवियर शादी के बाद मेरे घर में नहीं चलेगा। सबके सामने हमें असल पति-पत्नी की तरह बर्ताव करना होगा, और वो सब कुछ इसमें मेंशन है।" "या व्हाटएवर..." सुहानी ने उसी लापरवाही से कहा और अनिच्छा से कॉन्ट्रैक्ट मैरिज के पेपर्स पर नज़र डाली। उसकी नज़र एक लाइन पर पड़ी जिसमें साफ़-साफ़ लिखा था कि "आपका राठौर परिवार और आपका पति की किसी भी प्रॉपर्टी पर कोई लीगल हक नहीं होगा।" वह लाइन पढ़ते ही सुहानी के चेहरे पर एक तिरछी मुस्कुराहट आ गई। उसने देवांश की तरफ देखा, लेकिन देवांश को इस बारे में कोई आईडिया नहीं था। यह एक सामान्य शर्त थी, जो इस तरह के कॉन्ट्रैक्ट मैरिज के पेपर्स में आगे जाकर किसी भी तरह के झंझट से बचने के लिए होती है। देवांश ने यह शर्त स्पेशली ऐड नहीं करवाई थी, इसलिए उसने इस पर इतना ध्यान नहीं दिया। उसे समझ नहीं आया कि सुहानी उसे इस तरह क्यों देख रही है। वो लाइन पढ़ते हुए सुहानी ने उसकी ओर देखकर कहा, "आपने बोला था कि मैं सिर्फ़ आप पर भरोसा कर सकता हूँ, इसीलिए आप मुझसे हेल्प ले रहे हैं। और यह तो दिख रहा है कि कितना भरोसा है, तभी तो ऐसी कंडीशन लिखी हुई हैं।" उसकी बात पर देवांश कन्फ्यूज़ होकर बोला, "कौन सी कंडीशन है ऐसी, जिसे पढ़कर तुम्हें इतना बुरा लग गया? इसीलिए तो बोल रहा था कि एक बार पढ़ लो।" सुहानी ने ताना मारते हुए कहा, "हाँ, पढ़ लिया। और इससे ज़्यादा पढ़ने की कोई ज़रूरत नहीं है। वैसे भी एग्ज़ाम नहीं देना है यह पढ़कर..." उसकी बात सुनकर देवांश ने बेबसी से सिर हिलाया। वह उसे अच्छी तरह जानता था। सुहानी को कुछ भी समझाना या अपने तरीके से करने के लिए कहना पत्थर पर सिर मारने के बराबर था। इसलिए उसने आगे कुछ नहीं कहा। सुहानी ने पहले उन पेपर्स पर साइन कर दिया। कुछ सोचते हुए देवांश ने भी पेन उठाया, अपनी आँखें कसकर बंद की, फिर खोली और ठंडी साँस छोड़ते हुए पेपर्स पर साइन कर दिया। उसके बाद, गवाह के तौर पर सुहानी के साथ आई निकिता ने भी साइन किया, और देवांश के साथ खड़े उसके असिस्टेंट ने भी साइन किया। उन दोनों के साइन होते ही वहाँ खड़ा वकील जल्दी से पेपर्स समेटकर फ़ाइल में रखने लगा, जैसे ये पेपर उसकी जान से ज़्यादा ज़रूरी हों। "ओके! सो हो गया कॉन्ट्रैक्ट अब..." सुहानी ने किसी बड़ी प्रॉब्लम से बाहर निकलती हुई राहत की साँस ली। लेकिन उसे नहीं पता था कि इस कॉन्ट्रैक्ट पर साइन करके उसने प्रॉब्लम खत्म नहीं, बल्कि शुरू की है अपने लिए... और देवांश के चेहरे पर आई तिरछी मुस्कुराहट यह साफ़ बता रही थी। लेकिन जैसे ही सुहानी ने उसकी तरफ देखा, उसके चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो गई। एकदम सीधा चेहरा बनाते हुए देवांश ने कहा, "कल सुबह रेडी रहना। अपने सारे सामान और जो कुछ भी लेना हो, मैं उसके साथ कल हम साथ में मेरे घर चलेंगे। समझ गई ना? और थोड़े ढंग के कपड़े पहन लेना। मेरा मतलब है, ऑफिस वियर पहनकर मत आना।" सुहानी ने सीधे जवाब दिया, "हाँ, ठीक है। शादी का जोड़ा भेज देना, जो भेजोगे ना, मैं वही पहन लूँगी।" उसकी बात सुनकर सभी – असिस्टेंट, वकील और निकिता – हैरानी से सुहानी की तरफ देखने लगे। वह देवांश से जरा भी नहीं डर रही थी। कॉन्ट्रैक्ट साइन हुए अभी दो मिनट ही हुए होंगे कि उसने उसके नाम के आगे 'सर' लगाना भी छोड़ दिया था और एकदम नॉर्मल उससे बात कर रही थी। वह पहले भी उससे नहीं डरती थी, क्योंकि देवांश ने शायद कभी कोशिश भी नहीं की उसे डराने की। वह उसके साथ भी उसी तरह पेश आता था जैसे सभी के साथ, लेकिन सुहानी इस बात को इतना इम्पोर्टेन्ट नहीं देती थी। उसे लगता था कि सबके बीच अपने आपको ऊँचा और अलग दिखाने के लिए ही देवांश ऐसा करता है। वह इतने दिनों से उसके ऑफिस में सेक्रेटरी की पोजीशन पर काम कर रही थी, लेकिन सुहानी ने कभी भी इस बात को इतना बढ़ा-चढ़ाकर नहीं देखा। देवांश आगे कुछ भी सुनना नहीं चाहता था, खासकर उन सारे लोगों के सामने। इसलिए वह गुस्से में अपने दाँत पीसते हुए बोला, "मुझे नहीं पता था इतनी ख्वाहिश है तुम्हें मेरा भेजा हुआ शादी का जोड़ा पहनने की..." "ख्वाहिश माय फुट... अभी मैं इतनी हेल्पलेस ना होती तो कभी इस कॉन्ट्रैक्ट पर साइन भी ना करती। लेकिन क्या कर सकती हूँ? अभी हालात ही ऐसे हैं। वैसे हालात तो हमेशा ही मेरे खिलाफ़ रहते हैं।" सुहानी ने यह बातें मन ही मन बोलीं और देवांश की तरफ़ घूरती रही। लेकिन जैसे ही उसने उसकी तरफ़ देखा, सुहानी इधर-उधर देखने लगी। देवांश ने अपने सनग्लासेस लगाए और आगे बढ़ते हुए बोला, "चाहो तो कल सुबह तक यहाँ रुक सकती हो। कल मैं तुम्हें लेने के लिए यहाँ आ जाऊँगा। और हाँ, कल ऑफिस आने की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि उसी टाइम हमें घर जाना है।" इतना बोलते हुए देवांश ने होटल रूम के कार्ड वहीं मेज़ पर रख दिए। उसकी बात पर सुहानी ने धीरे से सिर हिलाया। देवांश बिना कुछ बोले तेज़ कदमों से बाहर निकल गया। उसके पीछे वकील, उसका असिस्टेंट और बॉडीगार्ड भी निकल गए। उनके जाते ही दरवाज़े के बंद होने की आवाज़ आई। निकिता और सुहानी ने उस तरफ़ देखा। जब दोनों को कन्फर्म हो गया कि वह सब चले गए हैं, तो सुहानी टेंशन में अपना सिर पकड़ते हुए वहाँ बैठ गई। उसे इस तरह देखकर निकिता बोली, "अब ऐसे सिर पकड़कर बैठने से कुछ नहीं होने वाला। जो होना था वह तो हो गया, अब आगे के बारे में सोचो। और वैसे मुझे तो लगता है सर तुम्हें पसंद करते हैं, नहीं तो और कोई उनके सामने इतना बोलता ना तो..." सुहानी ने अपनी आँखें घुमाते हुए कहा, "हाँ... हाँ तो फाँसी चढ़ा देता ना वो DSR उसे... कम ऑन निकिता, तुम लोग ना कुछ ज़्यादा ही डरते हो उससे। बस इसीलिए उसका खौफ़ इतना ज़्यादा फैला हुआ है तुम लोगों में। कौन सा खा जाएगा वो तुम लोगों को?" निकिता ने डरे हुए चेहरे के साथ कहा, "अरे उसका बस चले तो खा ही जाएगा सबको। देखता तो ऐसे ही है। आँखों देखी है तूने उसकी इतनी खतरनाक और ऊपर से वो डेंजरस डार्क औरा। और वैसे भी हम लोगों को कोई शौक नहीं है तेरी तरह से मुसीबत मोल लेने का..." सुहानी ने बुरा मुँह बनाकर कहा, "हाँ, जैसे मैं तो बड़े शौक से कर रही हूँ ना ये।" निकिता ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, "अब शौक से हो, मजबूरी से या ज़बरदस्ती से, लेकिन अपने पैर पर कुल्हाड़ी तो तूने मार ही दी है। अब कुछ नहीं हो सकता।" सुहानी ने मायूसी से कहा, "हाँ... हाँ पता है मुझे। जानबूझकर ही मैंने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है शायद। और मैं तुझसे बस यह पूछ रही हूँ, वहाँ घर से सामान लेकर आने में हेल्प कर देगी क्या?" निकिता ने सिर हिलाकर कहा, "हाँ, चलो अब इतनी मदद कर दी है तो थोड़ी सी और सही। वैसे सच में तेरा यहाँ पर ही रुकने का इरादा है क्या?" चारों तरफ़ नज़र घुमाते हुए, होटल रूम को देखते हुए सुहानी ने कहा, "और क्या... अब इतना महँगा लग्ज़रीअस रूम उस DSR ने बुक किया है कल तक के लिए तो मैं क्यों जाऊँ? मैं उस जगह पर बेवजह के ताने और बातें सुनने के लिए... और वैसे भी वो चाची से कल मेरी लड़ाई हो गई थी तो चाची ने मुझे घर से निकल जाने के लिए भी बोला था। और इसीलिए तो मुझे इस कॉन्ट्रैक्ट शिट के लिए हाँ बोलना पड़ा।" सुहानी ने निकिता को पूरी बात बताई। यह बोलते हुए वह थोड़ी एक्साइटेड लग रही थी। To Be Continued क्या लगता है आप लोगों को, क्यों की है सुहानी ने देवांश से यह कॉन्ट्रैक्ट मैरिज? और देवांश क्या सच में उसे पसंद करता है? और क्यों वह यह सब कुछ कर रहा है? आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी स्टोरी। और पसंद आए तो follow और कमेंट भी ज़रूर कर लेना, क्योंकि आगे यह स्टोरी बहुत ही इंटरेस्टिंग होने वाली है!

  • 3. Contract Marriage with My Boss - Chapter 3

    Words: 1568

    Estimated Reading Time: 10 min

    सुहानी को इतनी उत्साहित देखकर निकिता ने उसे सच याद दिलाते हुए कहा, "अच्छा, तो तुझे क्या लगता है? तेरी लाइफ बहुत आसान होने वाली है उस DSR के घर में जाने के बाद..." निकिता की यह बात सुनकर सुहानी सोफे पर टेक लगाकर बैठ गई। उसने अपना सिर हल्के से पीछे किया और एक गहरी सांस लेते हुए बोली, "देख यार! आसान तो मेरी लाइफ कभी भी नहीं रही, मम्मा-पापा की डेथ के बाद से। लेकिन मुझे अब डर नहीं लगता मुश्किलों से। बस मैंने सोचा, अब जब सामने से ऑफर मिल रहा है, तो क्यों मना करना? कम से कम कुछ टाइम के लिए ही सही, थोड़ा सा माहौल बदल जाएगा। बाकी, देखेंगे जो होगा!" उसकी बातें निकिता के इतना समझ में नहीं आ रही थीं। इसलिए निकिता उठकर खड़ी हुई और बोली, "अच्छा, ठीक है। चल, अब चलते हैं। वैसे भी, ऑफिस टाइम पर पहुँच चुका है। मुझे भी घर जाना है। लेकिन मैं तेरा सामान लाने की कोशिश कर देती हूँ। वैसे, सामान तो लाने देगी ना तेरी चाची...?" सुहानी थोड़ा आगे होकर बैठते हुए बोली, "नहीं लाने देगी तो क्या? अचार डालेगी बैठकर मेरे सामान पर? और वैसे भी, उसे पता चलेगा मैं वहाँ से निकल रही हूँ, तो खुशी-खुशी खुद ही सब कुछ यहाँ पर रख जाएगी। यह सोचकर कि उसके सर से तो बला टली।" इतना बोलते हुए सुहानी बहुत ही अजीब तरह से हँसी। उसकी हँसी में दर्द भी साफ झलक रहा था, और उस दर्द को छुपाने के लिए ही वह इस तरह की बातें करती हुई हँस रही थी। निकिता ने उसकी बात सुनकर बेबसी से अपना सिर हिलाया। फिर वे दोनों उस होटल रूम से बाहर निकल गईं। होटल रूम से बाहर निकलने से पहले ही सुहानी ने ऑनलाइन कैब बुक कर दी थी। वह कैब उनके गेट तक आने से पहले ही होटल के एंट्रेंस पर आकर खड़ी हो गई थी। वे दोनों उस कैब में बैठ गईं। सुहानी ने पहले ही अपने मोबाइल फ़ोन में जाने का लोकेशन एंटर कर दिया था, जिससे कैब वाला उन्हें उनकी बताई हुई डेस्टिनेशन पर ले जाने लगा। कैब में बैठते ही निकिता ने अपना फोन निकालते हुए सुहानी की तरफ देखकर कहा, "ऑफिस का टाइम पहले ही ओवर हो गया है, और मुझे घर पहुँचने में लेट हो जाएगा। तो मैं घर पर फ़ोन करके बता देती हूँ इस बारे में, नहीं तो सब परेशान होंगे।" सुहानी ने उसकी तरफ देखकर हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, ठीक है। अच्छा है यार, कोई तुम्हारे लिए परेशान तो होता है।" निकिता ने अपना मोबाइल फ़ोन निकालकर एक नंबर डायल किया और फ़ोन अपने कान से लगाकर कॉल रिसीव होने का इंतज़ार करने लगी। कुछ देर बाद, जब वह फ़ोन पर बात कर रही थी, तो सुहानी खिड़की से बाहर की तरफ देखने लगी। लेकिन कुछ देर बाद वह वापस अपनी सीट पर पीछे होकर बैठ गई। उसने अपना सिर सीट से टिका लिया और अपनी आँखें बंद करके काफी सारी चीजों के बारे में सोचने लगी; कि आखिर कहाँ से शुरू हुआ यह सब... कब उसकी ज़िंदगी बदली? आज से छह महीने पहले, जब वह पहली बार इस ऑफिस में इंटरव्यू के लिए आई थी। उसे एक दूसरी कंपनी ने यहाँ पर रेफ़र किया था, क्योंकि उनकी कंपनी में सारी वैकेंसीज़ फुल हो गई थीं। नहीं तो खुद से तो वह शायद कभी भी राठौर इंडस्ट्रीज़ नहीं आती। सुहानी अपनी सहेली निकिता के साथ कैब में बैठकर अपने चाचा-चाची के घर जाती हुई, रास्ते में वह सब कुछ और इस बारे में सोच रही थी जहाँ से यह सब कुछ शुरू हुआ... ****** फ्लैशबैक; छह महीने पहले... राठौर बिल्डिंग इंडस्ट्रीज़ ऑफिस; देवांश सिंह राठौर, शहर का बहुत ही बड़ा, अमीर और सक्सेसफुल सीईओ था। अपने पापा की डेथ के बाद, सिर्फ़ 24 साल की उम्र में ही उसने यह पोजीशन संभाली थी। भले ही वह कभी भी अपने लिए यह पोजीशन नहीं चाहता था, लेकिन अपने ऊपर ज़िम्मेदारी आने के बाद उसने पूरा काम ईमानदारी और मेहनत से संभाला था। उसके परिवार में उसकी सौतेली माँ और सौतेला भाई था; दोनों ही उसे इतना ज़्यादा पसंद नहीं करते थे, लेकिन मुँह पर उसे पसंद करने का दिखावा करते थे, क्योंकि पूरी कंपनी और प्रॉपर्टी, सब कुछ, टेंपरेरी ही सही, लेकिन देवांश के नाम पर ही थी। ऑफिस में वह काम को लेकर बहुत ही ज़्यादा सीरियस और स्ट्रिक्ट रहता था। उसे काम में लापरवाही करने वाले लोग बिल्कुल भी पसंद नहीं थे। इसीलिए ऑफिस में उसका खौफ़ बहुत ज़्यादा फैला हुआ था। उसके रहते कोई भी अपने काम में लापरवाही करना, तो दूर, आपस में दो मिनट बात भी नहीं कर सकते थे। रोज़ की ही तरह, आज भी देवांश काफी सीरियस होकर अपने केबिन में अकेला बैठा हुआ अपना काम कर रहा था। लेकिन तभी उसे एकदम से कुछ याद आया, और उसने अपने मैनेजर का नाम लेते हुए गुस्से से चिल्लाया, "विनीत! विनीत! कहाँ हो तुम? एक काम दिया था, वह भी अब तक नहीं हुआ..." देव के केबिन का दरवाज़ा खुला हुआ था, इसलिए बाहर उसकी आवाज़ पहुँच रही थी। उसकी आवाज़ सुनते ही अपनी जगह पर बैठा हुआ विनीत एकदम हड़बड़ा गया, और उधर की वजह से उसका गला भी सूख गया। उसके नाम की आवाज़ सुनकर बाकी सारे एम्पलाइज़ ने बेबसी से अपना सिर हिलाते हुए उसकी तरफ़ देखा। विनीत जल्दी से अपना सारा काम छोड़कर उसके केबिन की तरफ़ भागा। "मे आई कम इन, सर!" आधा पैर दरवाज़े के अंदर और आधा दरवाज़े के बाहर रखते हुए विनीत ने उसकी तरफ़ देखकर जैसे-तैसे पूछा। नज़र उठाकर उसकी तरफ़ देखते हुए देव ने बहुत ही ज़्यादा गुस्से में कहा, "मैं खुद ही तुम्हें बुला रहा हूँ, इडियट! इस तरह दरवाज़े पर रुककर परमिशन लेने की ज़रूरत नहीं है, और अंदर बाद में आना। तुम पहले यह बताओ कि अब तक तुम लोगों ने मेरे लिए कोई पर्सनल असिस्टेंट क्यों नहीं रखा है? मिस तानिया को जॉब से रिजाइन किए हुए एक महीना हो गया है, और तब ही मैंने बोल दिया था। लेकिन तुम लोग हो कि अब तक लापरवाही... तुम्हें पता है ना, मुझे लापरवाह लोग बिल्कुल भी पसंद..." उसे इस तरह से गुस्से में देखकर मैनेजर का तो जैसे गला ही सूख गया डर की वजह से, और उसके मुँह से शब्द भी नहीं निकल रहे थे। वह देव के सवालों का जवाब देना चाहता था, लेकिन पता नहीं क्यों कुछ बोल नहीं पा रहा था। तभी जैसे-तैसे अंदर आते हुए उसने दबी हुई आवाज़ में बोला, "सर! सर, वह हम... हमने कई सारे लोगों का इंटरव्यू लिया है, लेकिन... लेकिन उनमें से कोई भी..." विनीत चाहकर भी अपनी बात पूरी नहीं कर पाया, और देव फिर से उसी तरह उस पर चिल्लाते हुए बोला, "कितने कैंडिडेट के इंटरव्यू ले चुके हो, और अभी कितने लोगों के और लोगे? यह बताओ! एक असिस्टेंट चुनने में कितने साल का वक़्त चाहिए तुम्हें? एक महीना तो ऑलमोस्ट होने वाले हैं, और तुम लोग हो कि एकदम बेकार, किसी काम के नहीं हो।" देव को इस तरह से गुस्से में देखकर विनीत आगे बोलना नहीं चाहता था, लेकिन उसके पास अपनी बात पूरी बताने के अलावा कोई रास्ता भी नहीं था। इसलिए उसने जैसे-तैसे अपनी बात पूरी करते हुए कहा, "सर! सर, सबसे पहली बात, आपका नाम सुनकर आधे से ज़्यादा लोग इस पोजीशन के लिए अप्लाई ही नहीं करते हैं। और जो आते हैं, उनमें से कोई भी वैसे नहीं है जैसा असिस्टेंट आपको चाहिए; हार्ड वर्किंग और जो आपकी सारी बातें चुपचाप माने। हमें कोई भी ऐसा नहीं मिला जिसमें वह सारी क्वालिटीज़ हों जो आपको चाहिए।" देव ने काफी ज़्यादा फ्रस्ट्रेशन से कहा, "पता नहीं, क्या ढूँढ रहे हो तुम लोग? इतनी सारी डिमांड तो मैंने कभी रखी ही नहीं, जितनी तुम गिना रहे हो। मुझे और खुद असिस्टेंट ना ढूँढ पाने की अपनी नाकामी का बिल भी मुझ पर ही फाड़ रहे हो।" देव के चिल्लाने पर विनीत ने जल्दी से सिर झुकाकर माफ़ी माँगते हुए कहा, "सॉरी... आई एम रियली सॉरी सर! बट मैं जल्दी ही किसी न किसी को सेलेक्ट कर लूँगा, डेफिनेटली। आज भी इंटरव्यू के लिए तीन लोग आए हुए हैं, और उनमें से एक मिहिर सर..." मिहिर का नाम आते ही देव ने उसकी तरफ़ घूरकर देखा, तो फिर विनीत अपनी बात पूरी नहीं कर पाया और एकदम चुप हो गया, और अपना सिर झुकाकर खड़ा हो गया। देव ने जैसे ऑर्डर देते हुए कहा, "तीन कैंडिडेट आए हैं, ठीक है। तुम एक-एक करके उन्हें मेरे केबिन में भेजो। आज का इंटरव्यू मैं खुद ही दूँगा। तुम लोगों पर कोई काम नहीं छोड़ना चाहिए मुझे, इतना तो समझ आ गया है।" बिना किसी बहस के विनीत बोला, "ओके सर, मैं भेजता हूँ।" To Be Continued.... क्या लगता है आपको? सुहानी बीती बातों के बारे में क्यों सोच रही है? और क्या वजह है जो वह यहाँ पर इस कंपनी में आना नहीं चाहती थी? और क्यों है देवांश ऐसा, जिसकी वजह से सब उससे डरते और घबराते हैं? और क्या वह सच में ऐसा ही है, या सिर्फ़ सबके सामने स्ट्रिक्ट बनने का दिखावा करता है? जानने के लिए मेरे साथ पढ़िए यह स्टोरी, और कमेंट में बताइए अपना ओपिनियन...

  • 4. Contract Marriage with My Boss - Chapter 4

    Words: 1624

    Estimated Reading Time: 10 min

    देवांश ने कैंडिडेट को अंदर भेजने को कहा। विनीत ने कहा, "ओके सर, मैं भेजता हूँ।" और इतना कहकर वहाँ से बाहर चला गया। बाहर आते ही उसने अपने माथे का पसीना पोंछा और छाती पर हाथ रखकर राहत की साँस ली। विनीत के बाहर आते ही उसके ऑफिस कुलीग रमन उसके पास आया और पूछा, "क्या हुआ विनीत! आज यह DSR क्यों भड़का हुआ है?" विनीत ने जवाब दिया, "अरे कुछ नहीं, बस इतना समझ लो कि शामत आई है हम सबकी।" वहीं पर एक लड़की आकर खड़ी हुई और बोली, "अरे लेकिन इसमें कौन सी नई बात है? DSR तो हमेशा ही हाईपर और फ्रस्ट्रेटेड रहता है!" विनीत ने उन्हें डाँटते हुए कहा, "क्या DSR... DSR... लगा रखते हो तुम लोग? किसी दिन गलती से उसके सामने, सर के सामने भी यही बोल दिया ना, तो बस वो आखिरी दिन होगा तुम लोगों का..." उस लड़की ने विनीत की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "अरे विनीत सर! लेकिन इसमें इतना भी गलत क्या है? आखिर उनका पूरा नाम ही देवांश सिंह राठौर है। अब अपने बॉस का नाम तो ले नहीं सकते, हम तो शार्ट फॉर्म से ही काम चलाते हैं।" रमन ने लड़की को हाई-फाई देते हुए कहा, "हाँ हाँ, लेकिन यह बहुत अच्छा है। पता नहीं हममें से किसने शुरू किया था, लेकिन इट्स रियली बेस्ट। DSR रियली सूट्स ऑन हिम!" विनीत ने बेबसी से अपना सिर हिलाते हुए फिर से चिल्लाया, "अच्छा, बकवास बंद करो तुम सब! अपनी-अपनी जगह जाकर अपना काम करो, नहीं तो अगर सामने इस तरह से तुम लोगों को बात करते देख लिया ना, तो फिर..." रमन ने उस लड़की की तरफ देखते हुए कहा, "हाँ... हाँ, हम बस जा रहे हैं।" इतना बोलते हुए वे दोनों अलग-अलग तरफ अपने काम पर चले गए। विनीत वेटिंग एरिया की तरफ गया जहाँ तीन कैंडिडेट बैठे हुए थे। उन तीनों की तरफ देखते हुए विनीत ने कहा, "रितिका, किसका नाम है? जाओ, तुम्हारा पहला नंबर है इंटरव्यू के लिए..." विनीत ने रितिका को भेजा। वहाँ पर एक लड़का और एक लड़की और भी बैठे हुए थे। रितिका ने अपना हाथ उठाया और वहाँ से बाहर चली गई। विनीत ने उसे केबिन का रास्ता दिखाया। उन दोनों के जाते ही, साइड में बैठी लड़की ने अपने आप से बात करते हुए कहा, "कहाँ आकर फँस गई हूँ मैं! वो लड़की तो कितनी ज्यादा प्रोफेशनल लग रही थी। मुझे तो लगता है मेरा नंबर ही नहीं आने वाला। और वैसे भी, उस कंपनी ने ही मुझे यहाँ पर रेफर किया, नहीं तो मैं कभी राठौर इंडस्ट्रीज नहीं आती।" कुछ देर बाद, वह लड़का और लड़की एक-एक करके वापस आ गए। अब तीसरी लड़की का नंबर था। विनीत ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, "जाओ, तुम आखिरी हो?" विनीत की बात सुनकर वह लड़की अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और बोली, "इसका मतलब इन दोनों में से किसी का भी सिलेक्शन नहीं हुआ ना?" उस लड़की ने यह बात एक्साइटेड होते हुए थोड़ी तेज आवाज में पूछ ली। विनीत और पहले के दोनों कैंडिडेट उसकी शक्ल देखने लगे। विनीत ने अपने हाथ में उस लड़की का फॉर्म पकड़ा हुआ था। फॉर्म से उसका नाम पढ़ते हुए वह एकदम प्रोफेशनली बोला, "मिस सुहानी वर्मा! यू आर नेक्स्ट। आप पहले इंटरव्यू के लिए जाइए, बाकी बातें आपको जाने की ज़रूरत नहीं है।" "ओके सर!" - सुहानी ने इतना ही कहा और वहाँ से आगे बढ़ गई। केबिन के रास्ते में अपने आप से बात करते हुए वह बोली, "हाउ रूड? पता नहीं ठीक से बात करने में क्या जाता है? इन लोगों का वज़न कम हो जाता है या सर के बाल झड़ जाते हैं? बस इतना ही तो पूछा था! और वैसे भी, अगर वो लोग सिलेक्ट हो जाते, तो मेरे इंटरव्यू का नंबर ही कहाँ आता? इतनी तो मुझे भी अक्ल है।" सुहानी अपने आप से बात करती हुई केबिन की तरफ जा रही थी। विनीत ने उसे पीछे से आते-जाते देखा, उसका नाम लेकर उसे पुकारा और उसे अपने साथ देव के केबिन तक ले गया। "तुम!" - दरवाज़ा खोलते ही सुहानी को देखकर देव के मुँह से एकदम निकला। वह बहुत शॉक्ड था क्योंकि उसे शायद सुहानी को इस तरह से यहाँ पर इंटरव्यू के लिए देखने की उम्मीद नहीं थी। सुहानी भी कुछ ऐसा ही रिएक्ट करने वाली थी, लेकिन फिर कुछ सोचकर उसने नहीं किया और चुपचाप अंदर आई। देव ने सुहानी के पीछे विनीत को भी केबिन में आते देखा। वह एकदम प्रोफेशनल एक्सप्रेशन बनाकर बैठ गया और बोला, "प्लीज सिट डाउन।" फिर देव ने विनीत से बाहर जाने को कहा। देव को पहले से सुहानी का नाम पता था, लेकिन फिर भी उसने फॉर्म उठाकर उस पर नाम पढ़ने की एक्टिंग करते हुए कहा, "सो मिस सुहानी वर्मा... क्या आप बताएँगी आपको इस जॉब की ज़रूरत क्यों है और मैं आपको यह जॉब क्यों दूँ?" सुहानी ने एकदम सीधे जवाब दिया, "देखिए, ज़रूरत तो आपको भी है पर्सनल असिस्टेंट की। और रही बात क्यों जॉब करती है कोई, पैसों के लिए। और मुझे भी पैसों की ज़रूरत है, जो कोई मुझे ऐसे ही तो देगा नहीं, तो बस..." उसके इस सीधे जवाब पर देव खासा चिढ़ गया, "व्हाट द हेल! इतना एटीट्यूड किस बात का है तुममें? बिल्कुल भी सीरियस होकर प्रोफेशनली कोई जवाब नहीं दे सकती क्या? यह क्या होता है कि पैसे चाहिए इसलिए जॉब चाहिए।" सुहानी ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, "अच्छा, तो फिर क्या आप कोई झूठा बहाना सुनना चाहते हैं मेरे मुँह से? कि मुझे बचपन से ऐसी जॉब करने का सपना था और मैं हमेशा से आपकी असिस्टेंट बनना चाहती थी? ऐसा कुछ? या फिर मैं बहुत मन लगाकर काम करूँगी और आपको कभी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा सर? बस एक बार मुझे ये चांस दीजिए। यह कैसा है?" सुहानी की बातें सुनकर देव को मन ही मन हँसी भी आ रही थी और साथ ही उस पर गुस्सा भी। वह उसे काफी इरिटेट भी कर रही थी। इसलिए देव ने कहा, "अच्छा, तो क्या साबित करना चाहती हो कि तुम बहुत ही ज़्यादा ईमानदार और सच्ची हो!" सुहानी फिर से उसी तरह सीधे बोली, "अब अगर आपको खुद ही सबसे पहले ये दो क्वालिटीज़ मेरे अंदर दिखाई दी हैं, तो डेफिनेटली ऐसा कुछ तो होगा ही ना मेरे अंदर। सो अगर आपको ऑनेस्ट और सच बोलने वाली असिस्टेंट चाहिए... सो यू कैन गिव मी दिस जॉब। और मैं प्रॉमिस करती हूँ कि जितना हो सकेगा मैं अच्छे से अपना काम करूँगी और जो कुछ नहीं आता है वो सीख भी लूँगी। लेकिन इससे ज़्यादा कुछ शायद मैं अभी नहीं बोल सकती।" सुहानी जेन्युइन लग रही थी। उसकी बातों में जरा सा भी झूठ देव को नज़र नहीं आया। उसकी तरफ देखकर उसने ना चाहते हुए भी हल्का सा मुस्कुराया और फिर बोला, "लगता है तुम्हारा पहला ही जॉब इंटरव्यू है। इससे पहले कोई एक्सपीरियंस तो नहीं होगा तुम्हें?" इस बार वो थोड़ी मायूसी से बोली, "जॉब ढूँढने का बहुत एक्सपीरियंस है, बट करने का नहीं..." देव ने एकदम स्ट्रेट फ़ेस के साथ कहा, "ओके, यू कैन गो आउट एंड वेट फॉर सम टाइम अनटिल आई डिस्कस विद सम ऑफ़ माय एम्पलाइज़!" सुहानी अपनी कुर्सी से उठते हुए बोली, "वैसे सीधे-सीधे भी मना कर सकते हैं आप। इतना बुरा नहीं लगेगा मुझे, क्योंकि यह जॉब करना कोई मेरा बचपन का सपना नहीं है जो टूट जाएगा।" उसकी इस बात पर देव ने घूरकर उसकी तरफ देखा, "आई थिंक यू टॉक टू मच एंड बी इन योर लिमिट्स, मिस सुहानी!" सुहानी जल्दी से माफ़ी माँगते हुए वहाँ से दरवाज़े की तरफ़ बढ़ गई, "आई एम सॉरी सर! आई थिंक आई कैन गो आउट!" सुहानी एकदम हड़बड़ाते हुए वहाँ से बाहर आ गई। सुहानी वापस वेटिंग एरिया में आकर बैठ गई और उसने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लिया। मन ही मन खुद को डाँटते हुए बोली, "क्या कर के आई है तू अभी-अभी अंदर? जब के लिए आई है तू यहाँ पर? पूरी कंपनी तेरे होने वाले हस्बैंड की नहीं है जो इतना एटीट्यूड दिखाया, बेवजह ही... भूल जा अब तो तुझे यह जॉब बिल्कुल भी नहीं मिलने वाली, क्योंकि वो दोनों भी अभी तक बैठे हुए हैं जो तुझसे पहले गए थे!" अपने साथ वेटिंग एरिया में बैठे बाकी दो कैंडिडेट्स की तरफ देखते हुए सुहानी ने अपने मन में देखा। उसकी शक्ल इस वक्त एकदम रोने जैसी बनी हुई थी। वह मन ही मन खुद को कोस रही थी। लेकिन अपने डर और घबराहट को छुपाने के लिए उसने एकदम कॉन्फिडेंस में उसे तरह से बात किया। उस वक्त उसने यह सब नहीं सोचा कि इसका क्या असर होगा। लेकिन अगर रिक्वेस्ट करके जॉब ले भी ले तो ऐसा उसे बिल्कुल भी मंजूर नहीं है। और देवांश के सामने तो वह खुद को कंट्रोल भी कर रही थी। To Be Continued आपको स्टोरी पसंद आ रही हो तो लाइक, कमेंट ज़रूर करिए और हमें फॉलो भी करिए जिससे आपको सारी अपडेट मिल पाएँ।

  • 5. Contract Marriage with My Boss - Chapter 5

    Words: 1590

    Estimated Reading Time: 10 min

    कुछ देर बाद, वहां का मैनेजर विनीत नहीं, बल्कि एक लड़की उस कमरे में आई। दरवाजे से अंदर जागते हुए उसने बोला, "मिस सुहानी! कौन है यहां पर?" अपने नाम की आवाज सुनते ही, अपना आधा चेहरा एक हाथ से छुपाते हुए, सुहानी ने धीमी आवाज में बुदबुदाया, "पक्का मुझे वापस जाने के लिए ही बोलेगी। सबसे पहले मुझे ही रिजेक्ट कर दिया होगा उस खडूस ने। वैसे, उसे क्या कहूं? गलती तो मेरी ही है।" "कौन है सुहानी?" कोई जवाब न मिलने पर, दरवाजे पर खड़ी उस लड़की ने दोबारा चिल्लाया। वहां मौजूद बाकी दोनों लोग भी सुहानी की तरफ देखने लगे। सुहानी एकदम धीरे अपनी जगह से उठी, खड़ी हुई और अपना हाथ उठाते हुए बोली, "मैं... मैं हूं!" सुहानी की तरफ देखकर उस लड़की ने चिल्लाया, "बहरी हो क्या? इतनी देर से बुला रही हूं, सुनाई नहीं देता क्या? चलो, तुम्हारा सिलेक्शन हो गया है।" यह बात सुनकर, एक पल के लिए सुहानी को भरोसा ही नहीं हुआ। फिर, बाकी दोनों कैंडीडेट्स की तरफ देखते हुए, उस दरवाजे पर खड़ी लड़की ने कहा, "और आप बाकी दोनों लोग जा सकते हैं!" वह दोनों ही मायूसी से उठकर वहां से चले गए। "क्या मैं सच में? मेरा सिलेक्शन हो गया है? आपको कोई गलतफहमी तो नहीं हुई ना? मेरा मतलब है..." सुहानी बहुत ही हैरानी के साथ उस लड़की की तरफ देखती हुई बोली। सुहानी को इतना ज्यादा सरप्राइस देखकर उस लड़की ने पूछा, "क्यों? तुम्हें इतना भरोसा था क्या कि तुम्हारा सिलेक्शन नहीं होगा?" "नहीं-नहीं, मेरा मतलब वह नहीं था। मुझे वो... मुझे कब से जॉइन करना है?" सुहानी ने बात बदलते हुए पूछा। "मुझे नहीं पता। यह सब हमारे सीनियर और बॉस ही डिसाइड करते हैं। आप उनसे ही मिलिए जाकर..." इतना बोलते हुए, उस लड़की ने एक तरफ इशारा किया। सुहानी चुपचाप उस तरफ बढ़ गई। सुहानी ने अगले दिन से ही कंपनी में, ऐज़ अ पर्सनल असिस्टेंट, जॉब कर ली। उसकी चाची ने पैसों के लिए उसके नाक में दम कर रखा था, और उसे घर पर पहले ही सुकून नहीं था। यहां पर देव भी उसे एक पल की चैन की सांस नहीं लेने देता था और उसे कुछ ना कुछ काम देता ही रहता था। लेकिन सुहानी के पास फिलहाल यह जॉब छोड़ने का ऑप्शन नहीं था। इससे पहले उसने कितनी ही जगह ट्राई किया था, और उसे कोई जॉब नहीं मिली थी। इसलिए, जैसे ही उसे यह जॉब मिली, मन ही मन उसने ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया। इतने बड़े सीईओ की पर्सनल असिस्टेंट बनने के लिए उसकी सैलरी भी काफी अच्छी खासी थी, जो कि उसकी उम्मीद से कहीं ज्यादा थी। इसलिए, अगर उसे थोड़ा ज्यादा काम भी करना पड़ रहा था, तो वह कहीं ना कहीं अपने मन को समझा लेती थी। हमेशा की तरह ही, आज सुबह भी घर से निकलते वक्त सुहानी का अपनी चाची से झगड़ा हो गया था। वह काफी बढ़ गया, और चाची ने उसे गुस्से में काफी कुछ कह दिया था। यहां तक कि उसने उसे मनहूस भी कहा और यह बोला कि उसकी वजह से ही उसके मम्मी-पापा की मौत हुई है, क्योंकि वह जब से उनकी जिंदगी में आई थी, तब से ही वो लोग खुश नहीं थे। यह सब कुछ सोचते हुए, सुहानी बहुत ही ज्यादा डिस्टर्ब थी। वह चाची से पीछा छुड़ाने के लिए वहां घर से निकलकर, जैसे-तैसे ऑफिस तो आ गई, लेकिन यहां पर उसका काम में भी मन नहीं लग रहा था। वह इस वक्त देवांश के साथ, उसके केबिन में बैठी हुई थी। वह उसे कुछ अपनी लैपटॉप की स्क्रीन पर दिखा रहा था, लेकिन सुहानी का ध्यान बिल्कुल भी उसकी तरफ नहीं था। इतनी देर से सुहानी चुपचाप, एकदम ब्लैंक एक्सप्रेशन से सामने की तरफ देखती हुई वहां बैठी थी। देव ने उसकी तरफ देखा तो उसे समझ आ गया कि उसका ध्यान कहीं और ही है। इसलिए उसने सुहानी का नाम लेते हुए कहा, "सुहानी! सुना तुमने? मैं क्या कह रहा हूं? यह प्रेजेंटेशन अभी तुम्हें ही एक्सप्लेन करनी है। तुम्हें नहीं आती, इसलिए मैं एक बार तुम्हें समझा रहा हूं, लेकिन यह तुम्हारा काम है।" देव की आवाज कानों में पड़ते ही, सुहानी एकदम हड़बड़ाते हुए उसकी तरफ देखकर बोली, "यस... यस... यस सर! मैं... मैं समझ गई। मैं कर लूंगी, डोंट वरी!" देव ने उसे ताना मारते हुए कहा, "तुम्हारे रहते तो यह पॉसिबल नहीं है। किसी न किसी बात को लेकर तो टेंशन हो ही जाती है।" उसकी बात सुनकर सुहानी ने माफी मांगी, "आई एम सॉरी सर। मेरी वजह से जो भी प्रॉब्लम हुई हो, बट मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही हूं।" देव ने उसकी बात पर कहा, "हां, तुम्हारी इन्हीं बातों से इम्प्रेस होकर तो मैंने तुम्हें यह जॉब दे दी थी।" सुहानी ने एक नज़र उसकी तरफ देखते हुए पूछा, "तो क्या अब आपको उस बात पर पछतावा हो रहा है? और आपको लगता है मैं अपना काम ठीक से नहीं करती?" देव ने तुरंत ही उसका जवाब दिया, "नहीं... नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है। और अगर मुझे पछतावा होता, तो फिर मैं तुम्हें तुरंत ही जॉब से निकाल देता। परमिशन लेने की जरूरत नहीं है।" एक ठंडी सांस छोड़ते हुए, सुहानी बोली, "थैंक यू सो मच सर! आपने अब तक मुझे जॉब से नहीं निकाला। कोशिश करूंगी आगे भी मैं आपको ऐसा कोई रीज़न ना दूं।" इतना बोलते हुए, सुहानी अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और वहां से बाहर जाने लगी। देव को बहुत ही अजीब लगा क्योंकि वह नॉर्मल ऐसा बर्ताव नहीं करती है। वह कुछ ना कुछ एटीट्यूड में, स्ट्रेट फॉरवर्ड जवाब देती है। लेकिन आज वह अपनी पर्सनालिटी और नेचर की बिल्कुल ऑपोजिट बिहेव करती हुई, इतना बोलकर वहां से बाहर निकल गई। "आज क्या हो गया इस लड़की को? जवाब नहीं दिया और ना ही अपनी डिफेंस में कुछ बोला, बस ऐसे चली गई।" देव इस बारे में सोच ही रहा था कि तभी उसका मोबाइल फोन रिंग हुआ। मोबाइल फोन की तरफ देखा तो उसके चेहरे पर स्माइल आ गई। वह फोन कॉल रिसीव करते हुए बोला, "हां मिहिर! क्या हुआ? आज अचानक से हमारी याद कैसे आ गई?" दूसरी तरफ से आवाज आई, "उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली बात हो गई। तू कभी मुझे कॉल नहीं करता है। ऊपर से, जब मैं करता हूं तो भी कॉल रिसीव नहीं करता है। क्या चल रहा है आजकल?" एक गहरी सांस छोड़ते हुए देवांश ने कहा, "तुझे तो सब पता ही है यार। कितना स्ट्रेस रहता है मुझे काम को लेकर। और ऊपर से यह सब कुछ करना पड़ता है। और आजकल तो घर पर भी सुकून नहीं मिलता।" दूसरी तरफ से उसके दोस्त मिहिर ने पूछा, "क्यों? क्या हो गया घर पर?" देव ने थोड़ी मायूसी से बोला, "अरे यार, मिलो कभी तो बताता हूं। ऐसे फोन पर क्या? वैसे भी अभी मैं ऑफिस में हूं।" मिहिर देव का दोस्त ही नहीं, उसका बेस्ट फ्रेंड है, और वह दोनों बिजनेस पार्टनर भी हैं। और वही एकलौता ऐसा इंसान है जिस पर देव सबसे ज्यादा भरोसा करता है। शाम का वक्त। एक बड़ा सा बंगला। उस बंगले का हाल बहुत ज्यादा बड़ा है। जहां पर काफी सारा सामान रखा हुआ है, लेकिन फिर भी वह जगह काफी खाली लग रही है। वहां पर बीच में पड़े हुए सोफे पर एक मिडिल ऐज की औरत लेग क्रॉस करके बैठी हुई है। उसने लाइट पिंक कलर की, काफी स्टाइलिश और महंगी दिखने वाली साड़ी पहनी हुई है, लेकिन उसके चेहरे पर बहुत ही अजीब से एक्सप्रेशन हैं। उसके साथ ही एक लड़का भी बैठा हुआ है, और सामने एक आदमी, जिसने काला कोट पहना है। "और यह बात आप मुझे आज बता रहे हैं वकील साहब?" उस औरत ने अपने सामने बैठे आदमी की तरफ देखते हुए कहा। "क्योंकि इससे पहले तो मुझे जरूरत महसूस नहीं हुई। आज आपने ही फोन करके इस बारे में पूछा तो मैंने आपको बता दिया।" सामने वाले सोफे पर बैठे वकील ने एकदम सीधे ही जवाब दिया। उस औरत ने थोड़े गुस्से से वकील की तरफ देखते हुए कहा, "हां, आपको क्यों कोई भी जरूरत महसूस होगी? जरूरत तो मेरी है ना? और वैसे भी, कुछ बड़ी बात मुझे इतनी देर में पता चल रही है। लेकिन कोई बात नहीं, अभी भी मैं कुछ ना कुछ तो कर ही लूंगी।" उस औरत के बगल में बैठे हुए लड़के ने भी, उसी तरह परेशान होते हुए बोला, "लेकिन आप क्या करेंगे मॉम? और इसमें आखिर आप कर क्या सकती हैं? इसमें तो साफ-साफ लिखा है ना कि सारी प्रॉपर्टी भाई और उनकी होने वाली वाइफ की हो जाएगी। और हमारे हाथ क्या लगेगा? कुछ भी नहीं। और फिर एक दिन वह दोनों मिलकर हमें इस घर से बाहर भी निकाल देंगे।" चेहरे पर एक शैतानी मुस्कुराहट के साथ वो औरत बोली, "ऐसी नौबत नहीं आएगी, क्योंकि मैंने पहले ही इसके लिए सब कुछ प्लान कर लिया है।" उसे लड़के ने शक भरी नज़र से अपनी मां की तरफ देखते हुए कहा, "और आपको लगता है आपका प्लान काम करेगा?" उस औरत ने पूरे कॉन्फिडेंस से बोला, "हां, बिल्कुल काम करेगा। मैंने इस बारे में सब कुछ प्लान कर लिया है। बस अब देवांश को ही मनाना है।" उस लड़के ने काफी एटीट्यूड में कहा, "मुझे नहीं लगता वह कभी भी आपकी बात मानेगा। और वह भी टीना से शादी करने के लिए तो कभी नहीं। वह उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं करता है।" To Be Continued

  • 6. Contract Marriage with My Boss - Chapter 6

    Words: 1580

    Estimated Reading Time: 10 min

    वह दोनों, माँ-बेटा, आपस में बात कर ही रहे थे कि तभी उनके सामने बैठा एक वकील उठकर खड़ा हुआ और बोला, "देखिए, वसीयत तो आप लोगों के नाम है, इसलिए जब भी शादी की बात हो, तो आप मुझे इन्फॉर्म कर दीजिएगा क्योंकि फिर मुझे मिस्टर देव की पत्नी का नाम भी इसमें जोड़ना होगा।" वकील के चले जाने पर दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा। लड़का थोड़ा झुंझलाया और बोला, "सारा प्लान फेल हो गया, माँ! आपने जिस आदमी से शादी की थी, वो आपको कुछ भी नहीं छोड़कर गया। इतना चालाक आदमी था वो!" औरत ने तिरछी मुस्कुराहट के साथ कहा, "अरे, कोई बात नहीं! लेकिन देवांश मेरी सारी बातें मानता है ना? इसलिए हमें फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है। उसके सामने अच्छे बनने का नाटक करो, और वो अपनी जान भी निकाल कर दे देगा, हमें..." लड़के ने चिढ़ते हुए कहा, "लेकिन माँ, मुझसे ये जबरदस्ती अच्छा बनने का नाटक नहीं होता। अगर सब कुछ हमारे नाम हो जाता, तो ये एक्टिंग भी नहीं करनी पड़ती।" इस बार औरत ने लड़के को डांटते हुए कहा, "बस कर अविनाश! अपनी बेवकूफी भरी बातें करना छोड़। अगर इससे हमें फायदा है, तो ये करना पड़ेगा। नहीं तो क्या चाहता है तू? वो तुझे और मुझे भी यहाँ से बाहर निकाल दे?" डांट सुनकर अविनाश ने बुरा मुँह बनाकर अपनी माँ को देखा और गुस्से में पैर पटकते हुए वहाँ से बाहर चला गया। औरत ने उसे आवाज़ लगाकर रोकने की कोशिश की, लेकिन उसने न तो उसकी बात सुनी और न ही रुका। उसे बाहर जाते देखकर औरत ने बेबसी से सिर हिलाया। "क्या करूँ मैं इस लड़के का? इतना बेवकूफ क्यों है ये? कभी-कभी तो शक होता है कि ये मेरा ही बेटा है क्या?" सुहानी ने पिछले महीने की आधी से ज़्यादा सैलरी अपनी चाची को दे दी थी ताकि वो उसे ताने ना मारे। ये तब तक चलता रहा जब तक सुहानी के दिए पैसे चले। पैसे खत्म होते ही सब कुछ फिर से शुरू हो गया। वहीं दूसरी तरफ, सुहानी इन सब से बहुत परेशान थी। ऑफिस आते ही देव ने उसे लेट आने के लिए डांटा और फिर ढेर सारा काम दे दिया। रोज़ की तरह, सुहानी चुपचाप काम में लग गई। चाची के तानों की वजह से वो घर से कुछ खाकर नहीं आई थी और ज़्यादा काम की वजह से उसे लंच के लिए भी समय नहीं मिला। दोपहर का लंच टाइम था। देव अपने केबिन में बैठा हुआ बार-बार सुहानी की तरफ देख रहा था। उसका पर्सनल केबिन बहुत बड़ा था और सुहानी का डेस्क भी वहीं लगा हुआ था। पहले उसकी असिस्टेंट के काम में उसे इतनी दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन जब से सुहानी आई है, देव की नज़रें उसी पर टिकी रहती हैं। सुहानी भी कभी-कभी इस बात को नोटिस करती थी, लेकिन जब उनकी नज़रें मिलतीं, तो दोनों ही बहुत असहज हो जाते और इधर-उधर देखने लगते। शाम का वक्त था। सुहानी देर से काम कर रही थी और थोड़ी असहज महसूस कर रही थी। वो वॉशरूम जाने के लिए उठी। देव मीटिंग में गया हुआ था, एक महत्वपूर्ण क्लाइंट के साथ। सुहानी अपना बाकी का काम खत्म कर रही थी ताकि उसे देर तक ऑफिस में न रुकना पड़े। वॉशरूम से वापस आते वक्त उसे चक्कर आया। शायद भूख और कमज़ोरी की वजह से वो खुद को संभाल नहीं पाई और अपनी सीट की तरफ बढ़ी, लेकिन वहाँ पहुँचने से पहले ही उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया और वो जमीन पर गिरकर बेहोश हो गई। देव की परमिशन के बिना उसके केबिन में किसी को भी आने की इजाज़त नहीं थी, खासकर जब वो खुद नहीं होता। सुहानी पहले से ही वहाँ थी, इसलिए देव उसे कुछ नहीं कहता था। उसे सुहानी पर पूरा भरोसा था। सुहानी के बेहोश होने का किसी को पता तब तक नहीं चला जब तक देव मीटिंग खत्म करके नहीं आया। उसने जमीन पर बेहोश पड़ी सुहानी को देखा और उसका नाम लेकर भागता हुआ उसके पास आया, "सुहानी!!" वो घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया, सुहानी को सीधा किया और उसका सिर अपनी गोद में रख लिया। उसे इस तरह बेहोश देखकर वो बहुत परेशान हो गया। वो उसके गाल पर थपथपाता हुआ बार-बार उसका नाम ले रहा था, "सुहानी! सुहानी! उठो! क्या हुआ तुम्हें?" सुहानी से कोई जवाब नहीं आया। वो बेहोश थी। देव बहुत परेशान हो गया और उसने अपने बालों को पकड़कर खींचा। फिर उसने तेज आवाज़ में चिल्लाया, "विनीत, रोहित, रिया..." उसने अपने मैनेजर और कुछ कर्मचारियों को आवाज़ लगाई। उनकी आवाज़ सुनकर वो सब उसके केबिन में आ गए। विनीत सबसे आगे था। उसने दरवाज़े से ही पूछा, "क्या हुआ सर?" थोड़ा अंदर आकर विनीत ने देव को जमीन पर बैठा देखा और उसे हैरानी हुई। फिर उसने जमीन पर बेहोश पड़ी सुहानी को भी देखा। रोहित ने बेवकूफी भरे अंदाज़ में पूछा, "ये क्या हुआ इसे...? सुहानी कैसे बेहोश हो गई सर?" सुहानी को बेहोश देखकर देव खुद भी परेशान था और रोहित के सवाल से वो और भी झुंझला गया। "मुझे क्या पता बेवकूफ! जस्ट कॉल द डॉक्टर!" देव ने चिल्लाते हुए कहा। सब चौंक गए और रोहित थोड़ा पीछे हट गया। विनीत ने डॉक्टर को कॉल किया, उसी वक्त रिया बोली, "सर! आप इसे उठाकर सोफे पर लिटा सकते हैं?" रिया ने बहुत आराम से पूछा। देव ने सिर हिलाया और सुहानी को उठा लिया। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। विनीत ने कॉल डिस्कनेक्ट करते हुए कहा, "सर, मैंने डॉक्टर को बता दिया है। वो आ रहे हैं। रिया, तुम सुहानी के चेहरे पर पानी के छींटे मारकर देखो, शायद उसे होश आ जाए।" रिया ने वैसा ही किया। पानी की बूंदों से सुहानी थोड़ी सी हिली, लेकिन उसे पूरी तरह से होश नहीं आया। कुछ देर बाद डॉक्टर आ गए। उन्होंने सुहानी को इंजेक्शन दिया और चेकअप किया। कुछ मिनट बाद सुहानी ने आँखें खोली, लेकिन वो बहुत कमज़ोर थी। उसने उठने की कोशिश की, लेकिन नहीं उठ पाई। देव ने कहा, "लेटी रहो चुपचाप, उठने की ज़रूरत नहीं है।" सुहानी चुपचाप लेटी रही। क्रमशः कैसी लगी आपको ये कहानी? क्या देव के मन में सुहानी के लिए कोई भावना है? क्या लगता है आपको, उसके मन में क्या चल रहा है? क्या वो सुहानी से प्यार करता है?

  • 7. Contract Marriage with My Boss - Chapter 7

    Words: 1578

    Estimated Reading Time: 10 min

    डॉक्टर ने उन लोगों को बताया कि कमज़ोरी और सुबह से कुछ न खाने-पीने की वजह से वह बेहोश हो गई थी। यह सुनकर देव अपने गुस्से से उसकी तरफ घूर कर देखने लगा। सुहानी ने जल्दी से अपनी नज़रें नीची कर लीं। डॉक्टर ने उसके लिए प्रिस्क्रिप्शन लिखकर वहाँ से चले गए। सुहानी के बेहोश होने की खबर सुनकर ऑफिस में उसकी इकलौती दोस्त निकिता भी वहाँ आ गई। डॉक्टर के जाने के बाद वह सुहानी के साथ सोफे पर आकर बैठ गई। वह सुहानी के सामने बैठती हुई बोली, "सुहानी, तुमने कुछ क्यों नहीं खाया? लंच टाइम में भी आज तुम हमारे साथ नहीं आईं।" "हाँ, बस काम थोड़ा ज़्यादा था इसलिए मैंने सोचा बाद में लंच कर लूँगी, लेकिन फिर टाइम ही नहीं मिला।" सुहानी ने जवाब दिया और फिर चुपके से देव की तरफ देखा, जो गुस्से से उन दोनों की तरफ घूर रहा था। उसकी बात सुनते ही देव गुस्से में बोला, "अच्छा, साबित क्या करना चाहती हो तुम? कि मैं तुम्हें इतना काम देता हूँ कि तुम्हें खाने-पीने का भी टाइम नहीं मिलता।" सुहानी ने जल्दी से सफाई देने की कोशिश करते हुए कहा, "नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं है। मैं बस निकिता से..." लेकिन देव ने उसे डाँट कर चुप करा दिया। "चुप करो तुम! तुमसे तो मैं बाद में बात करूँगा। निकिता, तुम जाकर इसके लिए कैंटीन से कुछ खाने को ले आओ। मैं नहीं चाहता कि इसके भूख से मरने का इल्ज़ाम मेरे ऊपर आए।" "ओके सर, मैं अभी लेकर आती हूँ।" इतना बोलकर निकिता वहाँ से चली गई। निकिता के जाते ही सुहानी देव से माफी मांगते हुए बोली, "आई एम सॉरी सर! मैं आप पर कोई इल्ज़ाम नहीं लगा रही थी। वह बस मैं..." सुहानी के इतने लापरवाह होने की वजह से देव इस वक्त काफी गुस्से में था, लेकिन उसकी हालत देखकर वह ठीक तरह से उस पर गुस्सा नहीं कर पा रहा था। वह इस वक्त काफी कमज़ोर लग रही थी। उसकी आँखों के नीचे डार्क सर्कल्स भी नज़र आ रहे थे। उसका पूरा चेहरा और हाथ पीले पड़ गए थे। वह मायूसी से नज़र झुकाकर नीचे देख रही थी। देव को उस पर तरस आया और उसने कुछ नहीं कहा। कुछ देर बाद निकिता उसके लिए खाना लेकर आई। देव ने उसे अपने सामने ही सैंडविच खिलाया और फिर अपने डेस्क पर रखा हुआ पानी का गिलास उठाकर उसे पानी पीने के लिए दिया। सुहानी ने चुपचाप खा-पी लिया और अपने मन में सोचने लगी, "इस खड़ूस को क्या हो गया? आज ऐसा बर्ताव क्यों कर रहा है? जरा बेहोशी ही तो हुई थी मेरी..." देव का ऐसा बदला हुआ बर्ताव सुहानी को काफी परेशान कर रहा था। अगले कुछ दिनों तक वह उसके साथ काफी अच्छा बर्ताव करने लगा। भले ही वह मुस्कुराता नहीं था और पहले की तरह ही रवैये में रहता था, लेकिन उसने परोक्ष तरीकों से सुहानी का ध्यान रखना शुरू कर दिया और उसे कम काम देने लगा। साथ ही, उससे खाने-पीने के बारे में भी पूछने लगा। वह एकदम सहज, बिना किसी भाव वाले चेहरे के साथ यह सब पूछता था, लेकिन सुहानी को कहीं न कहीं उसकी इस फिक्र का एहसास अच्छा लगता था। क्योंकि उसके माता-पिता की मृत्यु के बाद उसकी ज़िंदगी में उसे इस तरह पूछने वाला कोई नहीं था। लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि अचानक ऐसा क्या हुआ? क्या सिर्फ़ उसके बेहोश होने की वजह से अपराधबोध में आकर देव उसके साथ अच्छा बर्ताव कर रहा है? क्या यह सब कुछ अस्थायी है या फिर कुछ और है? सुहानी के दिमाग में यही बातें घूमती रहती थीं। काम करते वक्त वह बार-बार देव की तरफ देखती थी, लेकिन जैसे ही वह उसकी तरफ देखता, सुहानी नज़रें चुराकर इधर-उधर देखने लगती थी। कभी-कभी देव यह बात नोटिस करके मुस्कुराता भी था, लेकिन सुहानी से नज़रें बचाकर। वह दोनों ही एक-दूसरे के साथ काफी अच्छा और सहज महसूस करने लगे थे। एक अनचाहे भाव दोनों के मन में एक-दूसरे के लिए उभरने लगे थे, लेकिन इस भाव पर वह दोनों ध्यान नहीं दे रहे थे क्योंकि वह दोनों इसे स्वीकार नहीं करना चाहते थे। सुहानी को ऑफिस में काम करते हुए तीन-चार महीने बीत गए थे। अब देव को उसका काम काफी पसंद आने लगा था और वह भी अपनी तरफ़ से पूरी मेहनत करती थी। लेकिन कभी-कभी अपने लापरवाह व्यवहार की वजह से वह अभी भी देव से डाँट खा जाती थी। वह हड़बड़ी में कभी सारे पेपर्स ज़मीन पर गिरा देती थी, तो कभी गरम कॉफ़ी देव पर गिरा देती थी। कभी वह महत्वपूर्ण दस्तावेज़ इधर-उधर रखकर भूल जाती थी, जिसकी वजह से देव को थोड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। लेकिन वह तुरंत ही माफ़ी मांग लेती थी और अपनी गलती सुधारने की कोशिश करती थी। देव को उसके आस-पास होने से अच्छा लगता था, इसलिए वह अब उस पर उतना गुस्सा नहीं करता था जितना कि बाकी कर्मचारियों पर। इस बात से सुहानी की हिम्मत बढ़ी और वह उसके साथ थोड़ी बेफ़िक्र होने लगी। ऑफिस में एक सामान्य दिन था। सुहानी मीटिंग रूम से कुछ फाइलें लेकर देवांश के केबिन की तरफ़ आ रही थी। तभी रास्ते में वह एक कर्मचारी से टकरा गई। यह उसका रोज़ का काम था; वह गिरती-पड़ती या किसी से टकराती रहती थी क्योंकि उसका ध्यान कहीं और ही रहता था और वह ज़्यादातर जल्दबाज़ी में रहती थी। जैसे ही वह सामने से आते हुए उस शख्स से टकराई, उसके हाथ में पकड़ा हुआ सारा सामान और उस आदमी के हाथ में जो सामान था, वह सब ज़मीन पर गिर गया। सुहानी ने बिना उसकी तरफ़ देखे ही कहा, "सॉरी... सॉरी! मैंने यह जानबूझकर नहीं किया। यह सब बस गलती से..." इतना बोलते हुए सुहानी तुरंत ही नीचे झुककर अपने सारे पेपर इकट्ठा करने लगी जो ज़मीन पर बिखर गए थे। लेकिन तभी उस लड़के ने भी अपने पेपर्स उठाने शुरू कर दिए। उसने सुहानी की बात सुनकर कहा, "इट्स ओके! तुम्हें माफ़ी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं है। मुझे भी समझ आ रहा है, तुमने जानबूझकर ऐसा नहीं किया। और कोई ऐसा करेगा भी क्यों? जानबूझकर? इससे तो दोनों का ही काम बढ़ गया।" उस लड़के ने काफी आराम से और सहजता से यह सारी बातें बोलीं। सुहानी ने नज़र उठाकर उसकी तरफ़ देखा तो वह लड़का मुस्कुरा रहा था। उसने जल्दी-जल्दी सब कुछ उठाने में सुहानी की मदद की। इन सब में उसका हाथ सुहानी के हाथ से छू गया। सुहानी ने उसकी तरफ़ देखा तो वह जल्दी से माफ़ी मांगते हुए बोला, "ओह सॉरी! मैंने भी जानबूझकर नहीं किया।" "इट्स ओके। वैसे, तुमने अभी एक हफ़्ते पहले ही ज्वाइन किया है ना? क्या नाम है तुम्हारा?" सुहानी उठकर खड़ी होते हुए बोली। वह लड़का भी अपना सारा सामान समेटकर उसके सामने खड़ा हो गया था। उस लड़के ने सुहानी की बात का जवाब देते हुए कहा, "अरे वाह! आपको तो सारी खबर रहती है! हाँ, मैंने एक हफ़्ते पहले ही ज्वाइन किया है, असिस्टेंट मैनेजर की पोस्ट पर। और मेरा नाम गौरव है। आई थिंक आप शायद बॉस की पर्सनल सेक्रेटरी हैं। और बाई चांस ही सही, लेकिन ये हमारा पहला इंटरेक्शन है ना?" उसकी बात सुनकर सुहानी ने हाँ में अपना सिर हिलाया और फिर मुस्कुरा कर बोली, "हाँ, मुझे तो सब कुछ पता रखना ही पड़ता है। बट तुम्हें भी तो मेरे बारे में इतना पता है। वैसे, तुम्हें अब अपने काम पर जाना चाहिए। तुम अभी नए हो ना, इसलिए यहाँ पर बॉस को नहीं जानते। वह इस तरह से बातें करते देखकर बहुत नाराज़ होता है और सारा गुस्सा कर्मचारियों पर ही निकालता है।" सुहानी ने एक तरह से उसे चेतावनी देते हुए कहा। उसकी बात पर गौरव हँसते हुए बोला, "ओह थैंक यू मुझे बताने के लिए। वैसे मुझे इस बारे में कोई आईडिया नहीं था क्योंकि बॉस से अभी तक मेरी कोई डायरेक्ट इंटरेक्शन नहीं हुई है। लेकिन आप शायद काफी अच्छी तरह से जानती हैं बॉस को..." गौरव ने बहुत ही सामान्य ढंग से हँसते हुए यह बात बोली। सुहानी भी उसकी बात पर हँसते हुए बोली, "क्या सच में? यह बात तुम्हें अभी पता चली? मुझे तो लगा था यहाँ ऑफिस में वह DSR अपने गुस्से और रवैये के लिए काफी मशहूर है। तो मुझे लगा शायद अब तक तो तुम्हें पता चल गया होगा।" To Be Continued... देव और सुहानी के प्यार की शुरुआत कैसी लगी आप लोगों को? क्या यह सच में उन दोनों के प्यार की शुरुआत है या फिर देव पहले से जानता है सुहानी को? क्या लगता है आप लोगों को? और सुहानी जान पाएगी क्या देव के मन में चल रही बात? और कैसे इन दोनों का यह रिश्ता प्यार तक पहुँचेगा? इसके साथ ही मेरी बाकी कहानी भी ज़रूर पढ़कर देखिए।

  • 8. Contract Marriage with My Boss - Chapter 8

    Words: 1659

    Estimated Reading Time: 10 min

    इतनी बात बोलकर सुहानी ने हँसते हुए उसके कंधे पर हल्के से मारा। गौरव ने भी इस बात पर इतना मन नहीं किया और बोला, "हाँ DSR, यह नाम तो मैंने काफी बार सुना है और मुझे समझ नहीं आता, सब बॉस को यह क्यों बुलाते हैं?" "अरे, बस ऐसे ही रिस्पेक्ट करते हैं ना हम उनकी? तो डायरेक्ट नाम नहीं लेते।" सुहानी ने हँसते हुए कहा। उसे इस तरह देखकर गौरव भी हँसने लगा। वे दोनों हँसते हुए एक-दूसरे से बात कर रहे थे। उन दोनों ने ही इधर-उधर नहीं देखा। लेकिन कोई था जो उन दोनों को देखकर गुस्से में उबल रहा था और उन दोनों को साथ में हँसते-बोलते देख बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। सुहानी को अच्छी तरह पता था कि देव को पसंद नहीं था कि वह या कोई भी दो लोग ऑफिस में आपस में इस तरह से बात करें। और उसका अभी काफी सारा काम भी पेंडिंग था। इसलिए उसने गौरव से कहा, "ओके बाय! सी यू लेटर। अभी मुझे काफी सारा काम कंप्लीट करना है और अगर टाइम से कंप्लीट नहीं हुआ ना, तो बॉस का सारा गुस्सा मुझ पर ही निकल जाएगा।" सुहानी ने इतना कहा तो उसकी बात पर गौरव बोला, "मैं अभी ऑफिस में नया हूँ तो मुझे इतना ज्यादा वर्क लोड नहीं रहता। अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी हेल्प कर सकता हूँ।" ऑफिस में आज पहली बार ही सुहानी को किसी ने हेल्प ऑफर की थी। इसलिए उसे यह सुनकर ही काफी अच्छा लगा और उसने मुस्कुराकर कहा, "थैंक यू सो मच! तुमने हेल्प के लिए ऑफर दिया। और अगर तुम्हारे लायक कोई काम होगा तो जरूर मैं तुमसे बोल दूँगी। आखिर मेरा भी थोड़ा काम कम हो जाएगा।" सुहानी उसकी तरफ देखकर यह सब कुछ बोल ही रही थी, तभी एकदम से देव वहाँ पर आया। उसने गुस्से में दाँत पीसते हुए कहा, "ऐसा भी क्या इम्पॉर्टेन्ट डिस्कशन चल रहा है यहाँ पर तुम दोनों के बीच? कब से और कोई काम नहीं रहता क्या तुम दोनों को? यहाँ पर गॉसिप करने की सैलरी देता हूँ मैं?" देवांश ने एकदम ही गुस्से से लाल होते हुए यह बात कही। उसे ऐसे गुस्से में आज गौरव ने पहली बार ही देखा था, तो वह थोड़ा सा घबरा गया और तुरंत ही माफ़ी मांगते हुए बोला, "आई... आई एम रियली सॉरी सर!" और इतना बोलते हुए वह तुरंत ही वहाँ से भाग गया। देव के इस तरह से गुस्सा करने पर सुहानी के चेहरे की स्माइल भी एकदम गायब हो गई। उसने एकदम सीरियस होकर कहा, "सॉरी सर, वह बस मेरी हेल्प..." "कोई सफ़ाई देने की ज़रूरत नहीं है, मैं भी देखा सब कुछ... तुम चलो अभी मेरे साथ।" इतना बोलते हुए देव ने उसका हाथ पकड़ा और उसे लगभग खींचते हुए अपने केबिन में ले आया। सुहानी को समझ नहीं आया कि वह इस तरह से इतना वियर्ड बिहेव क्यों कर रहा है! देव थोड़ा सा गुस्से में था, लेकिन फिर भी उसने सुहानी को हर्ट नहीं किया। सिर्फ़ वह अपनी डोमिनेशन और गुस्सा दिखाते हुए उसे अपने साथ लेकर केबिन में आया। आज केबिन के अंदर आते ही उसने दरवाज़ा अंदर से लॉक किया और सुहानी को तुरंत ही दोनों हाथ पकड़कर दीवार से लगाते हुए बोला, "कुछ ज़्यादा ही हँसी आ रही थी ना तुम्हें उसके साथ? ऐसी भी क्या बात कर रही थी जो इतना खुश लग रही थी?" "क्यों दूसरों की खुशी बर्दाश्त नहीं होती क्या तुमसे? और हम बस बात..." सुहानी को उसका सवाल थोड़ा सा अजीब लगा, इसलिए उसने भी थोड़े एटीट्यूड में इस बात का जवाब दिया। लेकिन वह अपनी बात पूरी कर पाती, उससे पहले ही उसे अपने होठों पर देवांश के रफ़ लिप्स फील हुए। वह उसे थोड़ा हार्शली किस कर रहा था, जिसकी वजह से सुहानी एकदम ही शॉक रह गई। उसके किस का जवाब देना तो दूर की बात है, सुहानी कुछ पल तक तो समझ भी नहीं पाई थी आखिर वह कर क्या रहा है। लेकिन दो मिनट तक उसे किस करने के बाद देवांश खुद ही उसे छोड़कर दूर हो गया। गुस्से और फ्रस्ट्रेशन के चलते उसने अपने बालों में हाथ डाला और थोड़ी तेज़ आवाज़ में चिल्लाया, "डोंट... जस्ट डोंट डू दैट अगेन! और मुझे ऐसा कुछ करने पर मजबूर मत करो जो मैं नहीं करना चाहता।" इतना बोलते हुए देवांश दूसरी तरफ़ देख रहा था, जबकि सुहानी इस तरह सदमे में अभी भी दीवार से चिपकी हुई खड़ी थी। देवांश भले ही उससे दूर हो गया, लेकिन सुहानी को अभी भी उसके लिप्स अपने लिप्स पर फील हो रहे थे। अनजाने ही उसने अपने हाथ होठों पर रख लिए और अपने होठों को इस तरह से टच करने लगी जैसे कि काफी कुछ फील करने की कोशिश कर रही हो। उसे समझ नहीं आया कि जब देवांश ने इस तरह से उसे किस किया, तो वह इंस्टेंट कुछ भी रिएक्ट क्यों नहीं कर पाई। ना ही उसे गुस्सा आया और ना ही अनकम्फ़र्टेबल फील हुआ। यहाँ तक सुहानी ने उसे खुद से दूर भी नहीं किया और उसे खुद को किस कर लेने दिया। जबकि यह उसकी पहली किस थी। आज तक उसने किसी भी लड़के को अपने इतने करीब आने की परमिशन नहीं दी थी। सुहानी गुस्से में आगे आई। देव की बात सुनकर उसे थोड़ा सा गुस्सा आया, जो कि शायद किस के लिए नहीं, लेकिन उसकी बातों की वजह से था। लेकिन फिर भी जो कुछ वह फील कर रही थी, वो उसे बात से काफी फ्रस्ट्रेटेड कर रहा था। इसलिए अपना गुस्सा आगे आकर देवांश पर निकालती हुई बोली, "हाउ डेयर यू! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मिस्टर देवांश सिंह राठौर? तुमने मेरी फ़र्स्ट किस चुरा ली! और क्या किया मैंने ऐसा? जस्ट टेल मी व्हाई? व्हाई यू किस्ड मी?" उसकी पहली किस वाली बात सुनकर देव ने अपने मन में कहा, "फ़र्स्ट किस? सीरियसली? इतना बड़ा झूठ कैसे बोल सकती है यह लड़की? इसे लगता है शायद मुझे कुछ नहीं पता इसके बारे में..." सुहानी ने उसके कंधे पकड़कर उसे जोर से धक्का देते हुए उसका चेहरा अपनी तरफ़ घुमाया और उसकी आँखों में देखकर यह सब कुछ पूछा। देव के पास शायद अपने मन में चल रहे और सुहानी के भी इन सवालों का कोई जवाब नहीं था। इसलिए वह चुपचाप नीचे की तरफ़ देखते हुए बोला, "आई... आई एम सॉरी, आई वाज़ नॉट इन माई राइट माइंड, सॉरी!" देवांश ने जैसे ही सॉरी बोला, सुहानी का गुस्सा जैसे पल भर में ही कहीं गायब हो गया। क्योंकि उसने देव की तरफ़ ध्यान से देखा तो वह खुद भी इस बात को लेकर काफी ज़्यादा कन्फ़्यूज्ड और गिल्ट में लग रहा था। इसलिए सुहानी का हाथ अपने आप ही नीचे हो गया और वह चाहकर भी उस पर गुस्सा नहीं दिखा पाई। जबकि देवांश तुरंत ही वहाँ केबिन से निकलकर कहीं चला गया और सुहानी वहाँ पर अकेले ही खड़ी रह गई इन सब चीजों के बारे में सोचते हुए। और फिर वह एकदम से ही अपना सिर पकड़कर वहाँ एक चेयर पर बैठ गई। उस दिन हुए उस किस के बाद से देव और सुहानी, उन दोनों के बीच की सिचुएशन थोड़ी ज़्यादा ऑकवर्ड हो गई थी, और ज़्यादातर सुहानी के लिए... उसे बार-बार रह-रहकर यही सब याद आता था। और जब भी वह देव को अपने सामने देखती थी, उसे ऐसा लगता था जैसे अभी भी उसे देव के किस करते हुए होंठ अपने होठों पर फील हो रहे हैं। उसके लिए यह एहसास एकदम नया था, लेकिन वह यह नहीं समझ पा रही थी कि देव ने ऐसा क्यों किया और सबसे बड़ी बात, उसे इस बात का बुरा क्यों नहीं लग रहा है, जबकि उन दोनों के बीच तो ऐसा कुछ भी नहीं था उस वक़्त... ऐसी कोई फीलिंग, कोई रिश्ता नहीं है, लेकिन फिर भी वह उसे रोक क्यों नहीं पाई। सुहानी बार-बार अपने आप से यह सारे सवाल करती रही। और उस किस के बाद अगले कुछ दिनों तक वह दोनों एक-दूसरे को इग्नोर कर रहे थे और सिर्फ़ काम की बात ही करते थे। और अकेले में एक-दूसरे के साथ टाइम स्पेंड करना और बात करना अवॉइड करते थे। देव को ऐसा लग रहा था जैसे कि उसने कुछ ज़्यादा ही ओवर रिएक्ट कर दिया अपने गुस्से और जेलेसी में, जिसकी वजह से शायद उसने सुहानी को अपने आसपास रहने से अनकम्फ़र्टेबल फील करवाया है। वह गिल्ट में था, वहीं दूसरी तरफ़ सुहानी कन्फ़्यूजन में थी। सुहानी अपने ऑफिस से निकली और वह इस बारे में ही सोच रही थी। उस बात को आज एक हफ़्ता बीत चुका है, उन दोनों के बीच हुई उस किस को, लेकिन सुहानी के दिमाग से वह निकल ही नहीं रहा है। और उसके बाद से देवांश का ऐसा बिहेवियर उसे और परेशान कर रहा है। ऑफिस बिल्डिंग से बाहर निकलकर सड़क के किनारे चलती हुई सुहानी अभी यह सब कुछ सोच रही है और उसने अपने आप से बात करते हुए कहा, "क्या सोचकर उसने मुझे किस किया? और फिर वह समझता क्या है खुद को कि वह ऐसे ही कभी भी मुझे किस कर सकता है? और फिर उसके बाद से ऐसे नज़रें चुरा रहा है जैसे कि पता नहीं क्या छिपाना चाह रहा हो या फिर रिग्रेट हो रहा है अब उसे..." क्रमशः क्या लगता है आप लोगों को? देवांश ने इस तरह से क्यों किस किया है सुहानी को? और सुहानी पूरी तरह से उस पर अपना गुस्सा क्यों नहीं दिखा पा रही है? क्या वह भी उससे प्यार करने लगी है? और इसके किस के बाद क्या-क्या चेंजेस आएंगे उन दोनों की लाइफ में? और देवांश ने सुहानी से माफ़ी क्यों मांगी? क्या सच में उसे इस बात का पछतावा है? ऐसी होने वाली है इन दोनों की आगे की स्टोरी। जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरे साथ यह इंटरेस्टिंग स्टोरी। और कमेंट और फ़ॉलो? कितना भी बोलो फिर भी आप लोग नहीं करते, क्यों? प्लीज़ कमेंट योर फ़ेवरेट पार्ट फ़्रॉम द स्टोरी...

  • 9. Contract Marriage with My Boss - Chapter 9

    Words: 1474

    Estimated Reading Time: 9 min

    अपने मन में यह सब कुछ बोलते हुए, सुहानी ने उसके बारे में याद किया। उसकी आँखों के सामने देव का चेहरा आया और उसकी वे आँखें, जिनमें सुहानी को शायद काफी सारे एहसास छिपे हुए नज़र आते थे, जिन्हें शायद उसने कभी पढ़ने की कोशिश नहीं की थी। यह सब कुछ सोचते हुए, वह एकदम खोई हुई सी वहाँ पर चल रही थी। अपने इन्हीं ख्यालों में गुम, उसे पता ही नहीं चला कि कब वह एकदम सड़क के बीच आ गई और सड़क पर ही आगे बढ़ने लगी। कुछ देर बाद एक कार भी एकदम से उसके सामने आ गई। सुहानी ने अपने सामने ध्यान ही नहीं दिया। वह अभी भी उसी तरह से आगे बढ़ रही थी कि एकदम से कार की हेडलाइट की रोशनी उसकी आँखों में लगी। उसने अपनी आँखों के आगे हाथ लगाया। तभी उसे कार के हॉर्न की आवाज भी सुनाई दी। उसे सुनकर वह अपने ख्यालों से एकदम ही बाहर आई, लेकिन अपने सामने और इतने नज़दीक से, अपनी तरफ़ आती हुई कार देखकर वह एकदम सदमे में चली गई। उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे; वह अपनी जगह से हिल तक नहीं पाई। वह कुछ भी सोच-समझ पाने की हालत में नहीं थी। तभी उसे एक तेज धक्का लगा और वह सड़क के किनारे गिर गई। और उसके किनारे गिरते ही वह कार तुरंत वहाँ से आगे निकल गई। वहाँ पर ऑलमोस्ट सुहानी का एक्सीडेंट होते-होते बचा, लेकिन इसमें उसे कार वाले की कोई गलती नहीं थी। लेकिन फिर भी, अगर वह कार वहाँ पर रुकती, तो सारे लोग कार वाले को ही ब्लेम करते। सुहानी एक साइड के कंधे बल जमीन पर गिरी, जिससे उसके बाएँ कंधे पर चोट आ गई और उसकी जैकेट भी शोल्डर के पास थोड़ी सी फट गई। शायद वहाँ पर कोई पत्थर था, जिस पर वह अपने बाएँ शोल्डर के बल पर गिरी, लेकिन सुहानी ने उस पर ध्यान नहीं दिया। वह पत्थर लगने की वजह से सुहानी को अपने कंधे पर तेज दर्द महसूस हुआ। अपने उसी कंधे पर हाथ रखते हुए, उसके मुँह से एक दर्द भरी आह निकली। "आह्! माय शोल्डर, हू द हेल पुश..." अपना सीधा हाथ बाएँ कंधे पर रखकर, दूसरी तरफ़ मुड़कर देखते हुए, सुहानी इतना ही बोल पाई कि तभी उसे एक तेज चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। "आर यू मैड और व्हाट? आँख बंद करके चल रही थी क्या? ऐसे बीच सड़क पर, इडियट कहीं की! इतनी बड़ी कार दिखाई नहीं दी तुम्हें? और अब... क्या बोल रही हो मुझे?" इतना बोलते हुए, सामने खड़े उस आदमी ने फ्रस्ट्रेशन में अपने बालों में हाथ डाला और अपना गुस्सा कंट्रोल करते हुए, सुहानी की तरफ़ देखते हुए, उसने कसकर अपने हाथ की मुट्ठियाँ बांध लीं। वह जानी-पहचानी आवाज सुनकर सुहानी ने तुरंत ही उसकी तरफ़ देखा। उसे जिसकी उम्मीद थी, वही शख्स वहाँ पर उसके सामने खड़ा था। उसे देखकर सुहानी ने एक ठंडी साँस छोड़ी, क्योंकि वह समझ गई थी कि वह उस पर अभी और चिल्लाने वाला है। सामने कोई और नहीं, देव खड़ा था और काफी गुस्से से सुहानी की तरफ़ देख रहा था। तभी सुहानी ने उठने की कोशिश की; तब उसे पता चला कि हाथ के साथ उसका पैर भी मुड़ गया है, ऐसे अचानक से गिरने की वजह से। वह जमीन से उठने में स्ट्रगल कर रही थी, क्योंकि उसे अपनी बॉडी में तीन-चार जगह पर तेज दर्द महसूस हो रहा था। इसलिए चाहकर भी वह उठ नहीं पा रही थी। देव से देखा नहीं गया। तो फ्रस्ट्रेशन में उसने अपनी आँखें कसकर बंद करके खोलीं और फिर अपना हाथ आगे बढ़ाया। पर वह कुछ भी नहीं बोला। तो सुहानी अपनी बड़ी-बड़ी भूरी आँखों से एकटक उसकी तरफ़ ही देखने लगी। वह इस बारे में सोच रही थी कि देव का हाथ थामकर उठे या नहीं, क्योंकि उसे पता था कि उसे अभी और लेक्चर सुनने को मिलेगा। जिस तरह से वह एक्सीडेंट होते-होते बचा था, उसकी वजह से वाहन सड़क पर उन दोनों के आसपास कुछ भीड़ भी इकट्ठा हो गई थी। वह तो शाम का वक्त था, और अभी वहाँ पर लोग कम थे, इसलिए वहाँ ज़्यादा भीड़ नहीं थी। लेकिन जितने भी लोग थे, वे सब उन दोनों की ही तरफ़ देख रहे थे। सुहानी का ध्यान तो देव की ही तरफ़ था, लेकिन देव ने उन सारे लोगों को नोटिस कर लिया। सुहानी की तरफ़ देखकर, थोड़े से गुस्से में दाँत पीसते हुए, उसने बोला, "क्या सोच रही हो अब? उठो भी... यहीं पड़े रहने का इरादा है क्या?" इतना बोलते हुए उसने झुककर अपना हाथ थोड़ा सा और आगे बढ़ाया। तो उसकी तेज आवाज सुनकर सुहानी की पलकें एकदम से झपकीं और फिर जल्दी-जल्दी हाँ में अपना सिर हिलाते हुए उसने अपना हाथ आगे बढ़ाकर देव का हाथ थाम लिया। देव ने उसका हाथ पकड़कर उसे उठाया। लेकिन सुहानी पैर में दर्द होने की वजह से सीधी खड़ी नहीं हो पाई और एकदम ही लड़खड़ा गई। लेकिन गिरने से पहले उसने देव का कोट कसकर अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया। उसे लड़खड़ाते देख देव ने भी उसे सहारा देकर खड़ा किया और फिर से उसे लगभग डांटते हुए बोला, "कहाँ ध्यान था तुम्हारा? क्या कर रही थी यहाँ बीच सड़क पर... अभी मैं ना आता तो तुम्हें पता है कितना..." देव खुद ही अपनी बात पूरी नहीं कर पाया, क्योंकि इसके आगे किसी भी बुरी सिचुएशन में वह सुहानी को इमेजिन भी नहीं कर सकता था। सुहानी ने सफ़ाई देने की कोशिश करते हुए कहा, "हाँ वो... मुझे पता ही नहीं चला कि मैं कब यहाँ पर ऐसे बीच में आ गई और फिर अचानक से... आह्..." इतना बोलते हुए उसने अपना हाथ हिलाया तो उसे अपने कंधे में तेज दर्द महसूस हुआ और उसका सीधा हाथ अपने कंधे पर चला गया, जिससे देव ने भी नोटिस किया और वह समझ गया कि ज़रूर उसके कंधे पर चोट आई है। देव को उसे इस तरह दर्द में देखकर काफी तकलीफ हो रही थी, लेकिन वह ठीक तरह से अपनी केयर भी नहीं दिखा रहा था और लगातार उस पर गुस्सा कर रहा था। "कैसे पता नहीं चला? आँखें और दिमाग सही-सलामत हैं या फिर नहीं? ऑफ़िस में तो चीज़ें गिराती-पड़ाती रहती हो, लेकिन यहाँ तो खुद ही..." देव की दो-तीन बार डाँट सुनने के बाद सुहानी भी इरिटेट होते हुए बोली, "ओ प्लीज बस करिए सर, कितना चिल्लाएँगे? वैसे भी मैं खुद से नहीं गिरी, आपने ही मुझे धक्का दिया था! पता नहीं बचाने के लिए धक्का दिया था या फिर जान से मारने के लिए, इतनी चोट तो मुझे वैसे ही लग गई, आह्!" ना चाहते हुए भी सुहानी की फिर से दर्द भरी आह निकल गई। उसकी यह बात सुनते हुए, गुस्से से घूरकर देव ने उसकी तरफ़ देखा। "ये कोई नया तरीका है क्या थैंक यू बोलने का? एक तो मैंने तुम्हारी जान बचाई, नहीं तो तुम उस कार के सामने...." इतना बोलते हुए देव ने गुस्से में अपने दाँत पीस दिए, क्योंकि फिर से वह अपना सेंटेंस पूरा नहीं कर पाया। वह नहीं चाहता था कि सुहानी के साथ ऐसा कुछ भी होता, और वह मन ही मन ऊपर वाले को भी थैंक्स बोल रहा था कि वह एकदम सही टाइम पर वहाँ पहुँच गया था। सुहानी ने मुँह बनाते हुए कहा, "थैंक यू किस लिए बोलूँ मैं? आपने भले ही अपनी कार से मेरा एक्सीडेंट होने को बचाया, लेकिन फिर भी मुझे इतनी चोट तो लग गई ना कि अब मैं ठीक से चल भी नहीं पा रही हूँ।" इतना बोलकर उसने अपने पैर की तरफ़ देखा। पैर पर कोई चोट के निशान नज़र तो नहीं आ रहे थे, लेकिन फिर भी उसे काफी दर्द महसूस हो रहा था। शायद उस अचानक धक्के की वजह से, जब वह संभल नहीं पाई थी, तब ही गिरने की वजह से पैर मुड़ गया था उसका। वे दोनों बस वहाँ से थोड़ा ही आगे बढ़े। देवांश ने उसका हाथ कसकर अपने हाथों में थामा हुआ था और उसकी तरफ़ देखते हुए काफी धीरे आगे बढ़ रहा था। लेकिन थोड़ा सा आगे बढ़ते ही सुहानी को पैर में काफी तेज दर्द महसूस हुआ। उसे ऐसा लगा जैसे वह पैर जमीन पर ही नहीं रख पा रही है और उसकी आँखों में दर्द की वजह से आँसू भी आ गए। देवांश ने जैसे ही यह नोटिस किया, उसे काफी तकलीफ हुई। "नहीं चल पा रही हो तो मैं हेल्प कर तो रहा हूँ, रुको 1 मिनट..." इतना बोलते हुए, देव ने उसे बिल्डिंग के गेट के पास आते ही अपनी गोद में उठा लिया। देव के इस तरह अचानक से उसे गोद में उठा लेने की वजह से सुहानी एकदम घबरा गई और उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। "सर... सर क्या कर रहे हैं आप? नीचे उतारिए मुझे! सब लोग देख रहे हैं, हमें..." सुहानी एकदम ही हड़बड़ा गई। To Be Continued...

  • 10. Contract Marriage with My Boss - Chapter 10

    Words: 1454

    Estimated Reading Time: 9 min

    सुहानी के ऐसे मचलने पर देव ने उसे फिर से डाँटकर चुप कराते हुए कहा, "मैंने बोला ना चुप करो तुम, अभी खुद ही इतनी देर से कंप्लेंट कर रही थी कि चल नहीं पा रही हो तो बस हेल्प कर रहा हूँ और देखने दो, जो देख रहा है, आई डोंट केयर!" लेकिन वह उसके चेहरे की तरफ नहीं, बल्कि एकदम सामने देख रहा था, वह भी सीधे चेहरे के साथ। सुहानी ने एक हाथ से देव के कोट का कॉलर कसकर पकड़ लिया था और उसका दूसरा हाथ देव की आस्तीन पर कसा हुआ था। वह अभी भी उसकी गोद में थी, लेकिन उसे अपने आसपास के लोगों की नज़रें खुद पर महसूस हुईं तो उसने कहा, "बट सर, वह लोग हमारे बारे में उल्टी-सीधी बातें करेंगे और फिर मुझे सुनना पड़ेगा। आप प्लीज़ मुझे नीचे उतारिए क्योंकि मुझे फर्क पड़ता है, भले ही आपको कोई फर्क ना पड़े इसलिए..." इस बार देवांश ने उसकी तरफ देखकर बोला, "श्श्शश्श्! इतना मत सोचो, मैं बस तुम्हें कार तक ही लेकर जा रहा हूँ, नीचे पार्किंग एरिया में वैसे भी कोई नहीं होगा। So just relax!" देव की गोद में उसके इतना करीब सुहानी बहुत ही अजीब महसूस कर रही थी और उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसका दिल अभी बाहर आ जाएगा। बस इसीलिए वह उससे दूर होना चाहती थी और तरह-तरह के बहाने बना रही थी, जबकि लोगों से तो इतना फर्क उसे भी नहीं पड़ता था। "लेकिन सर, यहां पर तो लोग हैं..." सुहानी अपनी बात पूरी कर पाती, उससे पहले ही देवांश ने उसकी तरफ घूर कर देखा। सुहानी की बाकी बातें उसके मुँह में ही रह गईं और वह उसे उसी तरह गोद में उठाए हुए लिफ्ट की तरफ बढ़ गया और उसने अंडरग्राउंड पार्किंग एरिया के बटन पर प्रेस कर दिया। वह दोनों पहले ही ग्राउंड फ्लोर पर थे। तो लिफ्ट के अंदर जाते ही, सुहानी कुछ भी बोल पाती, उससे पहले ही कुछ सेकंड में लिफ्ट का गेट खुल गया और वह दोनों पार्किंग एरिया में पहुँच गए। जैसा कि देव ने कहा था, पार्किंग एरिया में इस वक्त कोई भी नहीं था। देव उसी तरह चुपचाप उसे अपनी गोद में उठाए अपनी कार की तरफ बढ़ा; वह सुहानी से आई कॉन्टैक्ट अवॉयड कर रहा था। वहीं सुहानी अपनी आँखों में बहुत सारे सवाल और जज़्बात लिए उसके सीधे एक्सप्रेशन वाले चेहरे की तरफ देख रही थी, जिसे देखकर उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। देव की तरफ देखते हुए सुहानी ने अपने मन में कहा, "पता नहीं क्या हो रहा है मुझे और देव... पता नहीं क्या हुआ इसे, इतने दिनों से तो अजीब बर्ताव कर रहा था और इग्नोर भी कर रहा था, लेकिन आज अचानक से मेरी इतनी फिक्र... मत करो देव, मुझे आदत नहीं है कि कोई मेरी इतनी फिक्र करे।" इतना बोलते हुए वह थोड़ी सी इमोशनल हो गई और आँसू भरी आँखों के साथ उसकी तरफ ही देख रही थी। तब तक देव अपनी कार के पास पहुँच गया और उसने सुहानी को धीरे से कार के पास उतारा। सुहानी अभी भी ठीक से खड़ी नहीं हो पा रही थी। लेकिन जैसे ही कार के पास खड़ा करके देव ने उसकी तरफ देखा, सुहानी ने तुरंत ही जल्दी से अपने आँसू निकलने से पहले ही पोछ लिए और अपनी जगह से थोड़ा सा पीछे हुई, जिससे कि कार से टिककर खड़ी हो जाए। लेकिन जैसे ही उसका बायाँ कंधा कार से टच हुआ, उसे काफी तेज दर्द महसूस हुआ और उसकी चीख निकल गई। "आह्! आउच..." सुहानी की दर्द भरी चीख सुनकर देव ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, "क्या... क्या कर रही हो तुम? ठीक से खड़ी भी नहीं हो सकती। बस दो सेकंड रुको, कार का गेट ही ओपन कर रहा हूँ।" इतना कहते हुए देव ने जब तक कार का गेट खोल दिया और सुहानी को अपने साथ वाली पैसेंजर सीट पर बैठने को कहा, सुहानी ना चाहते हुए भी देव के साथ वहाँ पर आ गई थी। तो फिर फॉर्मेलिटी के लिए भी उसने मना नहीं किया और चुपचाप देव का सहारा लेकर चलते हुए कार की सीट पर बैठ गई, लेकिन उसने टेक नहीं लगाया और अपना बायाँ कंधा सीट से दूर साइड में करके बैठी हुई थी। देव जैसे ही कार के अंदर ड्राइविंग सीट पर बैठा, वह कार स्टार्ट करने ही वाला था कि तभी उसकी नज़र सुहानी के बाएँ कंधे पर पड़ी, जहाँ पर उसे कपड़े के ऊपर से ही कुछ धब्बे नज़र आए। सुहानी ने लाइट ब्लू कलर की जैकेट पहनी हुई थी, तो उसे वह काफी साफ नज़र आ रहा था। और उसने ध्यान से देखा तो वह जैकेट हल्की सी फटी हुई भी थी। उसके कंधे पर खून के धब्बे देखकर देव ने हड़बड़ाते हुए पूछा, "इतनी ज़्यादा चोट लगी है तुम्हें? तुम पागल हो क्या बिल्कुल? बताया क्यों नहीं इतनी देर से?" "क्या नहीं बताया?" सुहानी ने एकदम क्लूलेस एक्सप्रेशन के साथ कहा, क्योंकि उसे इस बारे में कुछ भी नहीं पता था। लेकिन उसने देव की तरफ देखा तो इतनी देर में पहली बार ही उसे देव के चेहरे पर गुस्से से ज़्यादा फिक्र नज़र आई, वह भी अपने लिए... सुहानी की बात के जवाब में अपनी जगह से थोड़ा आगे आते हुए, देव ने सुहानी को हल्का सा एक तरफ मोड़ते हुए कहा, "ये जैकेट उतारो तुम, इसकी वजह से ही तुम्हारी तकलीफ़ बढ़ गई है। पता नहीं कितनी चोट लगी है तुम्हारे कंधे पर, उतारो इसे देखने दो मुझे...." उसकी बात सुनकर सुहानी की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं और उसे यकीन नहीं हुआ कि उसने सही सुना है। "व्हाट सर? आप ये क्या बोल रहे हैं? मैं नहीं उतार रही और मैं ठीक हूँ, इतनी भी कोई ज़्यादा..." देव एकदम गुस्से में हक़ जताते हुए बोला, "चुप करो तुम, ये कोई बहस करने का वक़्त नहीं है। अगर कट होगा स्किन पर तो कपड़े की वजह से इन्फेक्शन भी हो सकता है, just take off the jacket!" अब सुहानी को उसकी बात समझ आई, लेकिन फिर भी वह उसके सामने कार में इस तरह से जैकेट उतारने में काफी शर्मा रही थी क्योंकि ऑफिस में वह उसका बॉस था। लेकिन इस वक़्त सिचुएशन ऐसी थी और उसे कपड़े की वजह से रगड़ लग रही थी, जिसकी वजह से उसे ज़्यादा दर्द हो रहा था। इसलिए अपना हाथ उठाते हुए उसने जैकेट उतारने की कोशिश की, लेकिन वह खुद से जैकेट उतार भी नहीं पाई क्योंकि उसके हाथ में भी चोट लगी थी और उसे चोट की वजह से वह पूरा ऊपर नहीं उठ रहा था। देव ने उसे जैकेट उतारने के लिए स्ट्रगल करते हुए देखा तो उसकी तरफ देखकर काफी आराम से बोला, "May I?" "What... No..." उसकी बात का मतलब समझते ही सुहानी तुरंत मना करते हुए बोली। "क्या नहीं, हेल्प के लिए बोल रहा हूँ मैं और कुछ नहीं..." देव ने सफाई देते हुए कहा। "नहीं, मैं खुद से कर सकती हूँ, एक मिनट, let me try..." सुहानी ने भी एक बार फिर से अपना हाथ उठाने की कोशिश की। "इतनी देर से तो ट्राई कर रही हो, just stop pretending!" सुहानी को फिर से डाँटते हुए इतना बोलकर देव अपनी जगह से आगे आया और उसने सुहानी का हाथ पकड़ा और उसे दूसरी साइड पर घुमा दिया और पीछे से उसकी जैकेट एक हाथ से निकाली और फिर दूसरी तरफ से भी निकलने लगा। उसने सुहानी का कंधा देखा, जहाँ पर एकदम ताज़ा कट लगा हुआ था, जो कि शायद गिरने की वजह से था और वहाँ से खून भी निकल रहा था। काफी सारा खून उसकी जैकेट में भी लग गया था और उसकी चोट देखकर ही देव को समझ आ गया कि सुहानी इस वक़्त कितने दर्द में थी। और उसे इस तरह से देखकर देव को काफी गिल्ट महसूस हुआ, क्योंकि भले ही उसे कार के सामने से हटाने के लिए उसने धक्का दिया, लेकिन उसे नहीं पता था कि उसकी वजह से सुहानी को इतनी ज़्यादा चोट लग जाएगी। देव ने सुहानी के कंधे पर लगी हुई चोट से कुछ दूर अपना हाथ रखा और उसके इर्द-गिर्द वहाँ पर हल्के से टच किया। उसके हाथ एकदम बर्फ जैसे ठंडे थे और सुहानी को जैसे ही उसका टच अपने कंधे पर फील हुआ, उसकी आँखें एकदम ही बंद हो गईं और उसके मुँह से एक धीमी सी सिसकारी निकली, जिसे उसने कंट्रोल कर लिया और देव वह नहीं सुन पाया। देव ने बहुत ही सॉफ्टली उसके कंधे पर टच किया, लेकिन सुहानी को इसका टच बिल्कुल भी बुरा नहीं लगा और ना ही उसे अनकम्फ़रटेबल फील हुआ, बल्कि उसके टच में उसे अपने लिए केयर महसूस हो रही थी। सुहानी उसी तरह धीमी आवाज़ में बोली, "सर! आप ये क्या..." To Be Continued...

  • 11. Contract Marriage with My Boss - Chapter 11

    Words: 1537

    Estimated Reading Time: 10 min

    सुहानी की आवाज़ सुनते ही देव ने जल्दी से अपना हाथ हटा लिया। वह उसकी चोट देखकर थोड़ा भावुक हो गया था और उसकी तकलीफ का अंदाजा लगा रहा था। सुहानी की आवाज़ कान में पड़ते ही उसने जल्दी से कहा, "आई एम सॉरी, मैंने यह जानबूझकर नहीं किया। मैं बस..." "इट्स ओके सर! आई कैन फील द इंटेंशन," सुहानी ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा। देव को अपने लिए बहुत यकीन नज़र आ रहा था, और वह उसकी आँखों में खो सा गया। लेकिन तभी सुहानी ने कहा, "मैंने कहा था ना, इतना ज़्यादा नहीं है। आप ही ओवर रिएक्ट..." "मैं ओवर रिएक्ट नहीं कर रहा। सच में काफी ज़्यादा ज़ख्म है। और यह इतनी स्ट्रांग बनने की एक्टिंग मत करो। साफ़ नज़र आ रहा है, कितना गहरा कट लगा है। पर मैंने तुम्हें जानबूझकर वह धक्का नहीं दिया था। तुम एकदम से कार के सामने थी, और मुझे कुछ समझ नहीं आया। तो बस..." "आई नो सर। आप बस मेरी हेल्प कर रहे थे। वैसे भी गलती मेरी है। मेरा ध्यान ही पता नहीं कहाँ था," सुहानी ने बहुत सहूलियत से कहा। "अच्छा ठीक है, जो होना था वह हो गया। अब इस बारे में बात नहीं करते। चलो पहले मैं तुम्हें हॉस्पिटल लेकर चलता हूँ। उसके बाद..." देव ने बात का टॉपिक बदला। "हॉस्पिटल? इतनी सी चोट के लिए हॉस्पिटल? नहीं, मुझे एडमिट नहीं होना!" सुहानी ने तुरंत मना करते हुए कहा। उसकी बात से देव चिढ़ते हुए बोला, "शट अप! मैं तुम्हें एडमिट करवाने के लिए नहीं लेकर जा रहा हूँ, बैंडेज करवाने के लिए। और कितने नखरे करती हो तुम हर चीज में..." सुहानी ने लगभग विनती करते हुए कहा, "मैं खुद से चली जाऊंगी डॉक्टर के पास, अपने घर के पास वाले। आप प्लीज़ मुझे मेरे घर छोड़ दीजिये सर। मुझे पहले ही बहुत लेट हो रहा है। इससे ज़्यादा लेट हुई ना, तो चाची मुझे मार डालेगी।" "नहीं... तुम्हारी चाची से मैं बात कर लूँगा। ऐसा ही है तो, लेकिन पहले हम डॉक्टर के पास ही जाएँगे। उसके बाद मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूँगा। और अब चुपचाप बैठना। मुझे कोई बात नहीं करनी इस मामले में..." अपना फैसला सुनाते हुए देव ने कार स्टार्ट कर दी। कुछ ही देर में वह बिल्डिंग के पार्किंग एरिया से बाहर निकल गया। देव की बात सुनकर सुहानी ने बस अपने सिर पर हाथ मारा और आगे उससे कोई बहस नहीं की। उसे पता था, उसके बहस करने का कोई फायदा नहीं है। देव जो कहेगा, वही करेगा। पैर में चोट लगने की वजह से सुहानी को देव की ज़िद पर उसके साथ हॉस्पिटल जाना पड़ा, बैंडेज करवाने के लिए। और फिर इस वजह से उसे घर वापस आने में काफी ज़्यादा देर हो गई। देव ने उसे उसके घर तक छोड़ा। उसे अभी भी चलने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी, लेकिन डॉक्टर ने जो थेरेपी दी थी, उसके बाद वह थोड़ा-बहुत धीरे-धीरे चल ले रही थी। इसलिए उसने देव को उसके साथ घर तक आने से मना कर दिया। वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे देव के साथ देखे और उसके घर के मोहल्ले में उसके लिए कोई बातें हो। पहले ही वह अपनी चाची की बातों और तानों से परेशान रहती थी। ऐसे में वह उन्हें एक और मुद्दा नहीं देना चाहती थी बातें बनाने के लिए। देव ने भी ज़्यादा ज़िद नहीं की। उसे पहले ही लग रहा था कि इतनी देर से वह उसके लिए काफी ज़्यादा प्रोटेक्टिव और केयरिंग बिहेव कर रहा है। इसलिए आखिरकार उसने अपना एटीट्यूड और कोल्ड फेस मैनेज किया और सुहानी को वहाँ पर उतारकर अपनी कार बैक करने लगा। लेकिन उसने साइड में अपनी कार रोक ली, जहाँ से सुहानी को उसकी कार नहीं दिखी। लेकिन उसे सुहानी अपने घर की तरफ जाते हुए दिख रही थी। जब तक वह अपने घर के दरवाज़े के अंदर नहीं चली गई, तब तक देव अपनी कार में बैठा हुआ वहाँ पर रुका था और उस तरफ ही देख रहा था। सुहानी का घर; वह एक दो मंजिला पुश्तैनी मकान था, जो शहर के एक मोहल्ले में था जहाँ ज्यादातर मिडिल क्लास फैमिलीज़ रहती थीं। वह घर उनका अपना था, जो सुहानी के माँ-बाप का था। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उसके चाचा और चाची ने पूरी तरह से उसके घर पर कब्ज़ा कर लिया था। सुहानी को इस बात से ज़्यादा ऐतराज़ नहीं था, क्योंकि उसकी माँ-बाप जब ज़िंदा थे, तब भी उसके चाचा-चाची वहाँ पर ही रहते थे। लेकिन उसे समस्या तब होने लगी जब उसके ही घर में उसे किसी बाहरी की तरह ट्रीट किया जाने लगा। और उसकी चाची हमेशा उसे इस तरह से एहसान जताती, जैसे कि उसे अपने साथ घर में रखकर वह उस पर एहसान कर रही हैं। खैर, पिछले पाँच-छह सालों से सुहानी को तो यह सब सुनकर इन सब चीजों की आदत पड़ चुकी थी। अब यह सारी चीजें उसे इतना परेशान नहीं करती थीं। लेकिन उसे परेशान करने के लिए चाची हमेशा नई-नई बातें और ताने ढूँढ़ कर ले ही आती थीं। जैसे कि अभी, हाथ और पैर में बंधे हुए बैंडेज के साथ धीरे-धीरे सुहानी अपने घर के अंदर आई। वह अभी पूरी तरह से अंदर आ भी नहीं पाई थी कि तभी उसके कानों में एकदम चुभने वाली आवाज़ पड़ी, "आ गई महारानी! आरती की थाल ले आऊँ क्या तुम्हारे स्वागत के लिए... टाइम देखा है? दस बज रहे हैं। कहाँ थी अब तक? ऐसा कौन सा काम चल रहा था इतनी देर तक ऑफिस में या फिर घूम रही थी किसी के साथ..." सुहानी के चाचा उसे इतनी नफ़रत नहीं करते थे और उसे अपनी बेटी की तरह ही मानते थे। इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी की बात पर कहा, "रेखा! शुरू हो गई तुम। उसे अंदर तो आने दो पहले। और पूछ लो किस वजह से देर हुई है?" चाची ने अपने पति को भी झिड़कते हुए कहा, "चुप करो जी! तुम तो मुँह बंद ही रखा करो अपना। जैसे बाकी मामलों में तुम्हारी बोलती बंद रहती है, वैसे ही मेरे घर के मामलों में भी दखल मत दिया करो। यह घर मेरे हिसाब से ही चलता आया है और मेरे हिसाब से ही चलेगा।" अपनी चाची को चाचा से लड़ते देखकर सुहानी बीच में बोली, "चाची प्लीज़! वापसी के वक़्त रास्ते में मेरा एक्सीडेंट हो गया था। तो चोट लग गई। इस वजह से मुझे डॉक्टर के पास जाना पड़ा। बस इसमें ही देर हो गई, और कुछ नहीं है।" सुहानी की यह बात सुनकर लगभग उसी की उम्र या उसे एक-दो साल छोटी लड़की उसकी तरफ़ दौड़ती हुई आई और उसकी फ़िक्र करते हुए बोली, "क्या हुआ सुहानी दी? कहाँ चोट लगी है? दिखाओ। और मम्मी... सच में हद करती हो आप। देख भी नहीं रही कि उन्हें चोट लगी है। ये देखो, सिर पर भी बैंडेज है।" उस लड़की की बात सुनकर भी चाची ने सुहानी की तरफ़ हिकारत भरी एक नज़र डाली और फिर अपना मुँह दूसरी तरफ़ घुमा लिया। उन्हें सुहानी की एक रत्ती भर भी फ़िक्र नहीं थी और वह झूठी फ़िक्र भी दिखाने की तकलीफ नहीं करना चाहती थी। लेकिन चाचा जी अपनी जगह से उठते हुए बोले, "क्या हो गया बेटा! ज़्यादा चोट तो नहीं आई ना? और क्या बोला डॉक्टर ने?" सुहानी जानती थी कि थोड़ा-बहुत ही सही, लेकिन उसके चाचा उसकी फ़िक्र करते हैं। इसलिए उसने उन्हें बहुत ही आराम से जवाब देते हुए कहा, "नहीं, कुछ नहीं... बस यह थोड़ी सी चोट आई है, ठीक हो जाएगी। मैंने बैंडेज करवा लिया है। पर अभी भी दर्द है थोड़ा। इसलिए मैं रूम में जाकर आराम करती हूँ। क्योंकि आज मैं खाना नहीं बना पाऊँगी। और कोई बात नहीं... अगर आप मुझे खाना नहीं भी देंगी तो भी कोई बात नहीं। मेरा वैसे भी खाना खाने का मन नहीं है।" इतना बोलते हुए सुहानी उसी तरह से धीरे-धीरे चलते हुए आगे बढ़ी। तभी उस लड़की ने आगे जाकर उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, "दी! आप क्यों फ़िक्र करती हो? मैं खाना ले आऊँगी आपके लिए... और मम्मी जो भी कहे, उन्हें बोलने दो। और आप अपना ध्यान रखा करो। कैसे हो गया यह एक्सीडेंट?" इतना बोलते हुए वह लड़की उसे पकड़ कर उसके कमरे तक ले गई और फिर उसके कमरे में बेड पर उसे बिठा दिया। वह नॉर्मल साइज़ का कमरा था, जहाँ पर थोड़ी-थोड़ी दूर पर ही दो सिंगल बेड पड़े हुए थे। और उसके कमरे में काफी कम चीज़ें थीं, लेकिन सारी चीज़ें वहाँ पर लड़कियों की थीं। To Be Continued... हाँ, तो गाइज़ क्या लगता है आप लोगों को? देव क्यों कर रहा है सुहानी की इतनी फ़िक्र? और सुहानी के चाचा-चाची का बर्ताव कैसा है उसके लिए? और वह लड़की कौन है? क्या वह सुहानी की बहन है या फिर कज़िन? और आगे क्या होगा? यह जानने के लिए स्टोरी के सारे पार्ट रेगुलर पढ़ते रहिए। और अगर आप लोगों को स्टोरी पसंद आ रही है तो प्लीज़ follow और comment भी ज़रूर करिए।

  • 12. Contract Marriage with My Boss - Chapter 12

    Words: 1580

    Estimated Reading Time: 10 min

    12

    उस लड़की ने जैसे ही सुहानी को वहां पर बिठाया तो सुहानी उसकी तरफ देखते हुए बोली, "थैंक्स विनि! तुम नहीं होती तो पता नहीं मेरा क्या होता यहां पर..."

    विनी, सुहानी की चाचा-चाची की लड़की है जिसका पूरा नाम है विनीशा और वह सुहानी से सिर्फ 1 साल छोटी है और वह उसे बहुत ही प्यार करती है, बिल्कुल अपनी सगी बड़ी बहन की तरह...

    "इसीलिए तो मैं हूं दी, लेकिन आप यह बताओ कि सब हुआ कैसे?" - विनीशा ने मुस्कुराते हुए कहा।

    उसके बाद सुहानी उसे पूरी बात बताने लगी लेकिन देव ने जिस तरह से उसकी फिक्र की, वो सब सुहानी ने विनीशा को भी नहीं बताया क्योंकि उसे लगा कि इस बारे में पता चलेगा तो शायद विनीशा भी उन दोनों के रिश्ते को लेकर गलत समझ लेगी।

    दूसरी तरफ;

    राठौर मैनसन,

    सुहानी को ड्रॉप करके अपने घर वापस आते हुए देवांश को भी काफी ज़्यादा देर हो गई और रास्ते में भी उसका पूरा ध्यान सुहानी में ही लगा हुआ था और वह उसके बारे में ही सोच रहा था।

    तभी वह घर वापस आया और अब तक काफी देर हो चुकी थी, अगर वह जल्दी भी घर वापस आ जाए तो भी उसे जल्दी कोई अपना इंतजार करता हुआ वहां पर नहीं मिलता, लेकिन आज लगभग 11:00 बजने वाले हैं, फिर भी उसकी स्टेप मॉम (अंबिका राठौर) वहां पर हाॅल में ही बैठी हुई है और उन्हें देखकर लग रहा है काफी देर से वो उसका इंतजार कर रही थी, शायद इसीलिए अब उन्हें थोड़ी नींद आ गई है और एक तरफ अपना सिर झुका कर बैठे हुए ही उनकी आंखें बंद है। ऐसा लग रहा है कि वह सो रही है या फिर उनकी बस अभी झपकी लग गई है।

    देवांश ने कभी भी अपनी सगी मां को नहीं देखा और बचपन से वह अपनी स्टेप मॉम के साथ ही रहता आ रहा है तो उसे ऐसा लगता है वही उसकी असली मां है और वह उन्हें बिल्कुल अपनी तरह ही प्यार और रिस्पेक्ट देता है और उसे लगता है कि वह भी उसे बिल्कुल अपने सगे बेटे की तरह ही प्यार करती है, इसलिए उन्हें इस तरह से सोफे पर बैठे हुए ही सोता देख देवांश आगे आते हुए बोला, "मॉम! व्हाट हैपेंड? क्या हुआ... आप यहां पर क्यों ऐसे सो रही हैं!"

    देवांश की सौतेली मां बिल्कुल हल्की ही नींद में थी, इसलिए देवांश की आवाज सुनते ही तुरंत ही उनकी आंख खुल गई और वह चौंकते हुए बोली, "हां बेटा... बेटा तुम आ गए, मैं ना तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी कब से, मुझे तुमसे एक ज़रूरी बात करनी है, सुबह भी तुम जल्दी निकल जाते हो मेरे सो कर उठने से पहले ही तो मैंने सोचा मैं रात में ही तुमसे बात कर लेती हूं, आओ इधर बैठो, वैसे बहुत देर कर दी आज तुमने ऑफिस से वापस आने में, इतना भी ज़्यादा काम मत किया करो, बेटा! अपना भी ध्यान रखो।"

    देवांश की सौतेली मां उसके साथ उसके सामने हमेशा ही इसी तरह का अच्छा बर्ताव करती है जिससे कि देवांश को यह गलतफहमी है कि वह हमेशा ही उसके बारे में अच्छा सोचती है और उस सच में प्यार करती हैं।

    लेकिन उन्होंने अपना नाटक जारी रखते हुए ये सब कुछ कहा जिसे देवांश समझ नहीं पाया और वो उनकी बात का जवाब देते हुए बोला, "हां वो बस आज ऐसे ही थोड़ी देर हो गई, नहीं तो मैं टाइम पर आ जाता हूं बट आप लोग ही यहां नहीं होते, वैसे अवि कहां है?"

    अंबिका ने अपनी बात बदलते हुए कहा, "अरे वो होगा अपने कमरे में, या फिर कहीं बाहर गया होगा दोस्तों के साथ घूमने फिरने, लेकिन उसकी छोड़ बेटा और तू मेरी बात सुन, मुझे बहुत जरूरी बात करनी है तुझसे..."

    "हां मॉम! बोलिए क्या बात है?" - देव ने थोड़ा सा झिझकते हुए पूछा क्योंकि उनकी जरूरी बात का मतलब कहीं ना कहीं देव समझ रहा है, और उसे लग रहा है वह कुछ ना कुछ तो ऐसी बात करने वाली है जो देव के लिए कुछ ना कुछ प्रॉब्लम क्रिएट करेगी ही...

    तभी उन्होंने देव की तरफ देखते हुए बहुत प्यार और अपनेपन का नाटक करते हुए कहा, "देव बेटा 26 का हो गया है तू और मुझे तेरी कितनी फिक्र रहती है, तू सिर्फ काम में ही लगा रहता है, अपना घर परिवार कब शुरू करेगा, टीना तुझे इतना पसंद करती है, तू मेरी बात मान कर उससे शादी के लिए हां क्यों नहीं कर देता?"

    अभी तक तो देव बहुत ही शांति से वहां पर बैठा उनकी बात सुन रहा था, लेकिन जैसे ही उसने टीना का नाम सुना वह एकदम अपनी जगह से उठकर खड़ा होते हुए बोला, "मॉम प्लीज़! मुझे वह लड़की बिल्कुल भी पसंद नहीं है और मैं पहले भी कई बार मना कर चुका हूं, फिर भी आप क्यों उस लड़की का नाम मेरे सामने लेती हैं।"

    अंबिका ने उससे सवाल किया, "अरे लेकिन क्यों पसंद नहीं है, तुम एक बार उसके साथ थोड़ा टाइम तो स्पेंड करो बेटा! वो पहले से बिल्कुल बदल गई है और तुमसे बहुत प्यार करती है, वह तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार है और क्या चाहिए किसी को अपने लाइफ पार्टनर में, और एक मौका तो मुझे देखकर तो देखो और वैसे भी अगले 6 महीनों में तुम्हारी शादी होना बहुत जरूरी है, इसलिए ही मैंने टीना को चुना है तुम्हारे लिए, वह हमारी हर शर्त पर राजी है।"

    "अगले 6 महीनों में, क्यों... अगले 6 महीना में ऐसा क्या होने वाला है जो मेरी शादी न होने से बदल जाएगा!" - देव ने अपनी मां की तरफ देखते हुए उनसे पूछा।

    देव के इस सवाल पर अंबिका को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने मन ही मन खुद को कोसा क्योंकि 6 महीने में शादी न होने वाली बात तो उसके पति के वसीयत में लिखी हुई थी जिस बारे में अब तक देव को नहीं पता और अंबिका ने अभी गलती से उसके सामने यह बात बोल दी, तो देव के इस तरह से पूछने पर वह उससे नज़रें चुराती हुई इधर-उधर देखने लगी और साथ ही मन में सोच रही थी कि उसे आखिर क्या बताएं?

    अपनी मां के इस तरह से चुप हो जाने पर देव को उन पर थोड़ा शक हुआ और इस तरह शक भरी नजरों से उनकी तरफ देख रहा है।

    देवांश को इस तरह अपनी तरफ देखते हुए अंबिका ने थोड़ा सोचते हुए बोला, "अरे बेटा, वो तेरे पापा की वसीयत उसमें ऐसा लिखा हुआ है कि तेरे 27 में जन्मदिन से पहले तेरी शादी हो जानी चाहिए नहीं तो फिर प्रॉपर्टी में से तेरा नाम हट जाएगा और सारी प्रॉपर्टी उनके बिजनेस पार्टनर्स और कंपनी की ट्रस्टीज़ के नाम हो जाएगी।"

    "ये क्या वाहियात सी शर्त है और मैंने तो पापा की ऐसी कोई विल नहीं देखी आपको इस बारे में कहां से पता चला?" - देवांश बहुत ही ज्यादा इरिटेट होते हुए बोला और तभी उसकी सौतेली मां ने उसे इधर-उधर की बातें बनाकर झूठ बोलते हुए एक झूठी कहानी बनाई और विवान को उनकी बात पर पूरा विश्वास तो नहीं हुआ, लेकिन फिर भी वह इस बारे में सोचने लगा क्योंकि वह टीना से तो कभी शादी नहीं करना चाहता, वह लड़की उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं, वह हमेशा उससे बेवजह ही चिपकती रहती है और उसके आसपास ही मंडराती है और देवांश तो क्या किसी को भी ऐसे लोग बिल्कुल पसंद नहीं आते, इसलिए वह किसी भी कीमत पर उससे तो शादी नहीं करने वाला ये तो उसने ठान लिया है और फिर उसने सोचा कि अगर प्रॉपर्टी और विल के लिए उसे शादी करनी ही पड़ी तो वह कुछ ना कुछ तो सोच ही लेगा।

    देवांश ने अपनी मां से इस बारे में साफ मना तो कर दिया था लेकिन उसकी मां कहां मानने वाली थी, उन्होंने भी यह तय कर लिया था कि वह देवांश की शादी टीना से ही करवा कर रहेगी क्योंकि यही एक तरीका था जब कम से कम उन्हें आधी प्रॉपर्टी तो मिल पाती क्योंकि टीना और उसकी मां पहले ही लालची थी और अपने फायदे के लिए वो लोग पूरी तरह से अंबिका की बात मानने के लिए तैयार थी।

    इसलिए देवांश के मना करने के बाद भी उन्होंने टीना से यह बोल दिया कि वो किसी तरह देवांश को उससे शादी करने के लिए मना लेगी, लेकिन इसके लिए टीना को भी एफर्ट करने होंगे और टीना पहले से ही देवांश को बहुत ज्यादा पसंद करती है, क्योंकि वह हर तरह से परफेक्ट है उसे तो कोई भी लड़की पसंद करेगी और फिर उसके साथ शादी करने में टीना को हर तरफ से अपना ही फायदा नजर आता है और फ्यूचर में फाइनेंशियल सिक्योरिटी भी इसलिए वो तुरंत ही अंबिका की बात मान गई।

    ऑफिस में;

    देवांश को लगा था कि उसके मना करने के बाद कम से कम उसकी मां को समझ आ गया होगा कि वह ऐसे जल्दबाजी में या फिर किसी भी वजह से टीना से तो शादी नहीं करने वाला और यही सब सोचते हुए आज देवांश का काम में भी मन नहीं लग रहा है अपने हाथ में पेन पकड़ कर कुछ सोचता हुआ सा वो अपनी कुर्सी पर बैठा है उसके सामने कुछ डाक्यूमेंट्स रखे हुए हैं और तभी उसके केबिन का दरवाजा खुलने की आवाज होती है।

    देवांश ने सामने की तरफ देखा तो सुहानी काफी धीरे-धीरे से संभल कर चलती हुई दरवाजे से केबिन के अंदर आ रही थी, देवांश की तरफ देखकर सुहानी फॉर्मेलिटी के लिए उसे गुड मॉर्निंग बोली और फिर आकर अपनी जगह पर ही बैठ गई।

    To Be Continued

  • 13. Contract Marriage with My Boss - Chapter 13

    Words: 1587

    Estimated Reading Time: 10 min

    13

    देवांश ने उसे नोटिस किया, उसके पैर में अभी भी बैंडेज बंधा हुआ था, शायद वही जो कल वो उसे डॉक्टर के पास लेकर गया था। उसे अभी चलने में उतनी ज्यादा प्रॉब्लम नहीं हो रही है। बैंडेज बंधने के बाद से उसका दर्द कम है, लेकिन फिर भी पूरी तरह से ठीक नहीं है। तो देव उठकर उसकी तरफ जाते हुए बोला, "रेस्ट कर लेती एक दिन, इतना भी ज़रूरी नहीं था आज ऑफिस आना!"

    सुहानी ने बिना उसकी तरफ देखे ही उसकी बात का जवाब दिया, "नो... नो सर! आई एम फाइन और वैसे भी घर पर रेस्ट कहां मिलता है।"

    देव अब तक उसके एकदम सामने आकर खड़ा हो गया, लेकिन सुहानी पता नहीं क्यों उससे आई कॉन्टेक्ट अवॉइड ही कर रही है और तभी देव ने हल्का सा झुक कर उसकी आंखों में देखने की कोशिश करते हुए कहा, "क्यों, ऐसा क्या है घर पर और वैसे भी चोट लगी है तब तो रेस्ट कर ही सकती हो ना?"

    थोड़ा सा इरिटेट होते हुए सुहानी ने उसकी तरफ देखकर कहा, "सर प्लीज़! मैंने कहा ना मैं ठीक हूं और इसीलिए मैं ऑफिस आई, वैसे भी इतना काम था अगर एक दिन की छुट्टी ले लेती तो फिर कल मेरा काम ही और बढ़ जाता।"

    सुहानी की यह बात सुनकर ही देव को समझ आ रहा है कि वह काफी इरिटेटेड है, इसलिए देवांश ने भी आगे कुछ नहीं कहा और बोला, "ओके फाइन! बट आज फिर से बैंडेज करवा लेना, लापरवाही मत करना।"

    वैसे तो सुहानी को अच्छी तरह से पता है कि वह तो दोबारा से डॉक्टर के पास नहीं जाने वाली, लेकिन फिर भी उसने देव से बहस करना ठीक नहीं समझा, इसलिए बस धीरे से हां में अपना सिर हिला दिया और फिर देव को भी समझ नहीं आया कि वो आगे क्या बोले तो वो भी वापस अपनी चेयर पर आकर बैठ गया।

    सुहानी के कंधे में भी चोट लगी हुई है, तो उसे हाथ उठाकर चीजें इधर-उधर रखने में थोड़ी प्रॉब्लम हो रही है और देव चुपके से उसकी तरफ देखते हुए यह सब कुछ नोटिस कर रहा है, लेकिन जाकर भी वह बार-बार उसे मना नहीं कर सकता क्योंकि उसे लगता है कि अगर वो ज़्यादा फिक्र दिखाएगा तो फिर सुहानी उसे गलत समझेगी और इसीलिए बस वो इस तरह से बर्ताव कर रहा है जैसे कि उसने वो सब कुछ नोटिस नहीं किया और अपने लैपटॉप में ही देख रहा है।

    देव ने भी आज सुहानी को ज्यादा परेशान नहीं किया, उसने एक बार भी उसे किसी काम से अपनी जगह से उठने के लिए नहीं बोला जबकि जब उसे जरूरत हो तो वह खुद ही उसकी सीट तक चला जा रहा है क्योंकि उसे पता है सुहानी को चलने में थोड़ी प्रॉब्लम हो रही है और सुहानी भी देव की ये बात और उसका केयरिंग गेस्चर नोटिस कर रही है और सुहानी ने उसकी तरफ देखकर हल्का सा मुस्कुराया और इस वक्त देव सुहानी की चेयर के पास ही खड़ा हुआ है और हल्का सा झुककर उससे कुछ डिस्कस कर रहा है, काम से रिलेटेड ही। उन दोनों के चेहरे एकदम करीब है और सुहानी के बदन से आती वनीला परफ्यूम की स्मेल देवांश को बहुत ही ज्यादा उसकी तरफ अट्रैक्ट कर रही है जिसे देवांश पूरी तरह से इग्नोर करने की कोशिश कर रहा है, सुहानी का ध्यान उसकी तरफ नहीं है वह काफी सीरियस होकर उसे और उसकी बातों का जवाब दे रही है और तभी केबिन का दरवाजा खुला।

    दरवाजा खुलने की आवाज सुनते ही देव एकदम सीधे होकर खड़ा हो गया और उसने देखा कि दरवाजे के पास उसका मैनेजर विनीत खड़ा हुआ है।

    "सर! आर यू बिजी राइट नाउ, कैन आई कम इन?" - विनीत ने एक पैर दरवाजे से अंदर रखते हुए पूछा।

    "हां, अंदर आओ... क्या हुआ विनीत कोई ज़रूरी काम है क्या?" - देवांश ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा और फिर अपनी चेयर की तरफ बढ़ गया!

    विनीत थोड़ा सा हड़बड़ाया हुआ लग रहा है और ये बात सुहानी और देव दोनों ने ही नोटिस की।

    सुहानी ने कुछ भी नहीं बोला लेकिन उसका पूरा ध्यान उन दोनों की बातों की तरफ ही लगा हुआ है क्योंकि विनीत ने कुछ ऐसा कहा, "सर वो एक्चुअली... एक्चुअली बात ये है कि बाहर कोई आया हुआ है आपसे मिलने के लिए और वह..."

    विनीत थोड़ा सा टेंशन में यह सब कुछ बोल रहा है और उसे इस तरह से देखकर देवांश को थोड़ा सा डाउट हुआ और उसने सीधे ही पूछा, "कौन आया है कोई इन्वेस्टर है क्या, वैसे सुहानी मेरी आज कोई मीटिंग शेड्यूल थी क्या तुमने मुझे बताया नहीं?"

    देव ने पीछे मुड़कर सुहानी की तरफ देखा तो सुहानी जवाब में जल्दी-जल्दी नहीं में अपना सिर हिलाते हुए बोली, "नो सर! आपकी आज कोई भी मीटिंग शेड्यूल नहीं है, शायद कोई बिना बताए आया हो।"

    सुहानी की बात सुनकर विनीत ने अपने सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "अरे नहीं, कर कोई बिजनेस वर्क रिलेटेड नहीं है वो एक मैडम है और वो बोल रही है कि वो आपकी... आई मीन वो कह रही है कि वो आपकी फिआंसे है।"

    यह बात बोलते हुए विनीत काफी डरा हुआ लग रहा है क्योंकि वह देवांश को पिछले कई सालों से जानता है और उसके गुस्से से बहुत अच्छी तरह से वाकिफ भी है और ऐसी बातों पर तो उसे खासकर कुछ ज़्यादा ही गुस्सा आता है और फिर वो गुस्सा किसी पर भी निकल सकता है और फिलहाल विनीत देवांश के उसे गुस्से का बेवजह शिकार नहीं होना चाहता इसीलिए वो इस तरह से अटक-अटक करके बात बोल रहा था।

    लेकिन उसकी यह बात सुनकर सुहानी और देवांश दोनों ने हैरानी से विनीत की तरफ देखा और फिर जैसे ही उन दोनों की नज़रे मिली सुहानी काफी सवालिया निगाहों से देव की तरफ देख रही थी और देव भी उसकी नजरों का मतलब समझ गया।

    उसने तुरंत ही गुस्से से चिल्लाते हुए कहा, "क्या बोल रहे हो तुम विनीत? पागल तो नहीं हो गए, जाओ... ठीक तरह से पूछ कर आओ और कौन लड़की आई हुई है यहां... ऐसे कैसे तुम लोग किसी को भी यहां पर आने देते हो?"

    देव विनीत पर चिल्ला ही रहा था और विनीत तो उसकी बात के जवाब में कुछ भी बोल पाता उससे पहले ही केबिन के खुले हुए दरवाजे से अंदर आते हुए एक लड़की बोली, "उस पर क्यों चिल्ला रहे हो बेबी! मैं हूं और शायद तुमने एक्सपेक्ट नहीं किया होगा ना कि मैं यहां पर आऊंगी बट मैंने सोचा तुम्हें सरप्राइज दे दूं, कैसा लगा तुम्हें मेरा सरप्राइज?"

    उस लड़की की बात सुनकर उन सभी ने एकदम हैरानी से उसकी तरफ देखा और विनीत ने अपने आप से एकदम धीमी आवाज में कहा, "ये लड़की यहां तक आ गई, विनीत अब तू तो गया बेटा अब ये DSR तुझे नहीं छोड़ेगा।"

    उस लड़की ने डार्क ब्लू कलर की शॉर्ट स्कर्ट पहनी हुई थी जो बड़ी मुश्किल से उसकी थाईज़ तक ही आ रही थी और उसके ऊपर उसने काफी छोटा सा पिंक ब्लू क्रॉप टॉप पहना हुआ था और ऊपर से वाइट कलर की शाॅर्ट डेनिम जैकेट पहनी हुई है और मेकअप तो उसने कुछ ज्यादा ही लगाया हुआ था और अपने दांत दिखाते हुए वह एक्स्ट्रा मुस्कुरा भी रही है उसने लगभग 5 इंच की हील पहनी है फिर भी उसकी हाइट दूर से देखने में 5 फुट की ही लग रही है उसके बाल ज्यादा लंबे नहीं है और जिसे उसने कर्ल किया हुआ है तो वह सब उसके शोल्डर पर ही रखे हुए हैं।

    उस लड़की को सुहानी ने आज पहली बार ही देखा है, वो पिछले 3-4 महीने से यहां पर काम कर रही है लेकिन आज तक उसने देव के साथ कभी भी किसी लड़की को नहीं देखा और उसे इस बारे में भी कोई भनक नहीं थी कि देव की इंगेजमेंट हो चुकी है और इसीलिए वो थोड़े से सदमे में है उस लड़की की तरफ देखते हुए और सवालिया नज़रों से बार-बार देव की तरफ ही देख रही है और देव ने भी उसकी ऐसी नज़रें नोटिस कर ली है और वह नहीं चाहता कि सुहानी को उसे लेकर कोई भी गलतफहमी हो।

    इसलिए वह एकदम गुस्से में उठकर उस लड़की की तरफ बढ़ते हुए बोला, "व्हाट द हेल टीना! क्या कर रही हो तुम यहां पर और ये झूठ क्यों बोल रही हो, तुम मेरी फिआंसे नहीं हो फिर तुमने ऐसा क्यों बोला और तुम..."

    वह लड़की बहुत ही ज्यादा स्टाइल से एकदम मॉडल वॉक करती हुई देव की तरफ आगे आई और उसके चेस्ट और शोल्डर के बीच में अपना हाथ रखकर धीरे से रब करते हुए उसकी तरफ देखकर बोली, "रिलैक्स बेबी! इतना गुस्सा ना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता और क्यों नहीं हूं मैं तुम्हारी फिआंसे? वैसे भी हमारी शादी होने वाली है ना, भले ही इंगेजमेंट अभी नहीं हुई तो क्या हुआ, वो भी हो जाएगी बहुत जल्दी ही तुम्हारी मां ने मुझसे बोला है।"

    उसे लड़की की ऐसी हरकत पर सुहानी की आंखें तो हैरानी से फटी की फटी रह गए, उसने इस तरह की बोल्ड और बेशर्म लड़की पहले कभी भी नहीं देखी जो इस तरह से आकर सबके सामने ही देव से चिपक रही है और इसलिए सुहानी को उस लड़की पर काफी गुस्सा भी आ रही है, वहीं विनीत भी थोड़ा सा एम्बैरेस्ड फील कर रहा है उन दोनों को ऐसे साथ देख कर लेकिन उसने अपनी नजरें इधर-उधर कर ली।

  • 14. Contract Marriage with My Boss - Chapter 14

    Words: 1649

    Estimated Reading Time: 10 min

    14

    देव ने वहाँ अपने आसपास सुहानी और विनीत दोनों को नोटिस किया तो उसका गुस्सा जो टीना पर था, वह और भी ज्यादा बढ़ गया और वह गुस्से में उसका हाथ खुद से दूर झिटकते हुए बोला, "Behave yourself Tina! और मुझे नहीं पता मॉम ने तुमसे क्या बोला है और क्या नहीं, लेकिन तुम अभी के अभी जाओ यहाँ से... मुझे यहाँ पर कोई भी ड्रामा नहीं चाहिए और मैं तुमसे घर आकर बात करता हूँ।"

    "Why so rude baby! I'm just here to meet you, तुम मुझे मिस नहीं करते क्या, आई मिस यू सो मच..." इतनी इंसल्ट होने के बाद भी वह जबरदस्ती देव का हाथ पकड़ने की कोशिश करते हुए बोली, तो देव ने तुरंत ही अपना हाथ पीछे कर लिया और अपनी जगह से भी पीछे हट गया और फिर उसने गुस्से से दूर खड़ी टीना की तरफ देखा।

    सुहानी काफी कंफ्यूजन से देव और उस लड़की की तरफ देख रही थी। उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रहा था जब वो लड़की बार-बार इस तरह से देव को टच करने की कोशिश कर रही थी और उन दोनों की तरफ देखते हुए सुहानी गुस्से में अपने दांत पीसती हुई मन ही मन उस लड़की को गाली दे रही थी और थोड़ा गुस्सा उसे देव पर भी आ रहा था, लेकिन फिलहाल वो काफी बेबस फील कर रही थी क्योंकि वो कुछ नहीं कर पा रही थी।

    टीना के मुँह से अपने लिए बार-बार 'बेबी' शब्द सुनकर देवांश का गुस्सा और भी ज्यादा बढ़ गया और वह गुस्से में वहीं अपनी चेयर पर लात मारते हुए बोला, "Shut up, just shut up and stop calling me baby! We are not related yet so please... मुझे इरिटेट करना बंद करो और इससे पहले कि मैं गुस्से में कुछ ऐसा कर दूं जो तुम बर्दाश्त ना कर पाओ, उससे पहले चली जाओ यहां से..."

    देव ने ये बात बहुत ही ज्यादा तेज़ आवाज में चिल्ला कर कही और उसे इस तरह से चिल्लाना सुनकर उससे थोड़ी दूरी पर खड़ी सुहानी की पलकें एकदम झपक गईं जबकि वह उस पर चिल्ला भी नहीं रहा था। देव को ऐसे गुस्से में देखकर उसके सामने खड़ी टीना की हालत तो बहुत ही बुरी हो गई। वह एकदम सहम गई, डर की वजह से उसका पूरा शरीर कांपने लगा और वह अपनी जगह से कुछ कदम पीछे हट गई और फिर उसकी कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई। वो तुरंत ही वहाँ से निकल कर रोते हुए बाहर भाग गई।

    टीना के वहाँ से जाने के बाद देव ने गुस्से में साइड की दीवार पर पंच किया क्योंकि उसे टीना की हरकतों पर और उसने यहाँ पर आकर जो कुछ भी कहा किया उस पर बहुत ही गुस्सा आ रहा था और उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अपना गुस्सा कहाँ निकाले और वह नहीं चाहता था कि उसका गुस्सा बेवजह किसी इनोसेंट पर निकल जाए जिसकी इन सब में कोई भी गलती नहीं...

    उसके इस तरह से दीवार पर पंच करने की वजह से विनीत भी घबरा गया। वह पहले ही उसके गुस्से की वजह से डरा हुआ था और वह वहाँ से दबे पाँव जाने ही वाला था तभी देव ने उसका नाम लेकर रोकते हुए कहा, "विनीत! रुको..."

    विनीत हकलाते हुए अपनी जगह पर रुक गया, "य...यस यस सर!"

    देव ने अपने आप को शांत रखने की पूरी कोशिश करते हुए बोला, "ऐसे ही कोई आकर कुछ भी बोले तो उस पर भरोसा मत किया करो और अगली बार से कोई भी इस तरह सीधे मेरे केबिन में नहीं आना चाहिए मुँह उठाकर। तुम्हें इस बात का ध्यान रखना है। अगर फिर से ऐसा हुआ तो फिर तैयार रहना कंसीक्वेंसेस फेस करने के लिए, Now get out!"

    उसकी बात सुनकर विनीत ने जल्दी-जल्दी हाँ में अपना सिर हिलाया और तुरंत ही जैसे अपनी जान बचाकर वहाँ से भाग गया क्योंकि देव को इतनी ज्यादा गुस्से में देखकर वह बीच में कुछ भी बोलकर अपनी जान गंवाना नहीं चाहता था।

    विनीत के वहाँ से जाते ही देव अपना सिर पकड़ कर कुर्सी पर बैठ गया। उसने गुस्से और फ्रस्ट्रेशन में अपने बालों में हाथ डालते हुए अपने बालों को पीछे की तरफ किया और कसकर आँख बंद करके गहरी सांस लेते हुए अपना गुस्सा कम करने की कोशिश करने लगा और जब उसने आँख खोली तो उसे अपने चेहरे के सामने एक पानी का गिलास दिखा।

    सुहानी उसके सामने वह पानी का गिलास पकड़ कर खड़ी हुई थी और जैसे ही देव ने उसके चेहरे की तरफ देखा तो सुहानी बोली, "पानी पी लीजिए सर... बेटर फील होगा और वैसे भी इतना गुस्सा करके क्या फायदा, अब अगर आपकी फिआंसे यहाँ पर आ भी गई तो क्या हुआ?"

    सुहानी ने उसी तरह गिलास उसकी तरफ आगे बढ़ाए हुए यह बात बोली लेकिन देव ने वो ग्लास उसके हाथ से नहीं लिया तो गुस्से में सुहानी वो पानी का गिलास वही मेज पर पटक कर मुड़ते हुए वापस अपनी सीट की तरफ जाने लगी।

    वहीं देव एकदम कंफ्यूजन में वहाँ पर बैठा उसकी बात का मतलब ही समझने की कोशिश करने लगा।

    सुहानी ने ये बात भले ही एकदम सपाट चेहरे के साथ बोली हो लेकिन उसके बोलने के लिए शिकायत एकदम साफ झलक रही थी जिसे वह छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी लेकिन देव ये समझ गया और सुहानी वहाँ से ज्यादा आगे जा पाती उससे पहले ही देव ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया और एकदम सीरियस गहरी आवाज में बोला, "ऐसा कुछ भी नहीं है, तुम गलत समझ रही हो, सुहानी!"

    उसका हाथ पकड़ कर देव ने सफाई देते हुए यह बात बोली तो सुहानी ने तुरंत ही पीछे मुड़कर उसकी तरफ देखा जैसे कि उसकी आँखों में देखकर इस बात की सच्चाई पता करने की कोशिश कर रही हो और देव की तरफ देखकर सुहानी को ऐसा लगा जैसे कि वह बिल्कुल सच बोल रहा है लेकिन अभी-अभी जो कुछ वहाँ पर हुआ था उसे भी तो सुहानी अनदेखा नहीं कर सकती थी इसलिए उसने कड़वाहट से कहा, "कैसा नहीं है, जो नजर आ रहा था उसे झुठला रहे हैं आप, सर!"

    उसने 'सर' शब्द पर कुछ ज्यादा ही जोर देते हुए कहा तो देवांश समझ गया कि सुहानी को बुरा लगा है और इसीलिए वह तुरंत ही सफाई देने वाले अंदाज में बोला, "हाँ, क्योंकि जो सामने नजर आए वो हमेशा सही नहीं होता और मेरी बात नहीं सुनी क्या तुमने, मैंने उसके सामने भी कहा था कि वो लड़की मेरी मंगेतर नहीं है तो फिर क्यों तुम इस तरह से बोल रही हो?"

    देव की इस बात पर सुहानी ने एक नजर ऊपर से नीचे तक उसकी तरफ देखा और फिर हल्का सा मुस्कुराती हुई बोली, "वो लड़की आपकी फिआंसे हो या न हो लेकिन इस बात की सफाई आप मुझे क्यों दे रहे हैं आखिर मैं तो सिर्फ आपकी असिस्टेंट हूँ ना। मुझे नहीं लगता आपको मुझे यह सब..."

    सुहानी जबरदस्ती मुस्कुराते हुए यह सब कुछ बोल रही थी तो देव को साफ समझ में आ रहा था कि उसे कितना बुरा लगा है और इसीलिए वह आगे बोल पाती उससे पहले ही देव ने उसे खींचकर अपने गले से लगा लिया और देव कुर्सी पर बैठा हुआ था तो सुहानी भी एकदम ही लड़खड़ा गई और इस वक्त वो उसकी गोद में है। उसे समझ नहीं आया देव ने ऐसा क्यों किया लेकिन देव के गले लगे हुए उसे बहुत ही अच्छा और सुकून भरा एहसास हुआ। उसने देव की पीठ पर हाथ रखने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया लेकिन फिर पता नहीं क्या सोचकर वो सामने से उसे गले नहीं लगा पाई लेकिन जिस तरह से देव ने उसे खुद से करीब किया हुआ है वह उसकी सांसों को अपनी गर्दन पर महसूस कर पा रही है और उसके गर्माहट में जैसे पिघल रही है और उसे समझ नहीं आ रहा कि उसे क्या हो रहा है। वह देव को खुद से दूर क्यों नहीं कर पा रही जबकि देव की लाइफ में तो कोई और है और ये बात भी अब सुहानी को पता चल गई है।

    लेकिन देव का बर्ताव... जिस तरह से उसने सुहानी को अपने करीब करके गले से लगाया हुआ है वह तो कुछ और ही कह रहा है इसलिए सुहानी को समझ नहीं आया कि वो क्या करे। इस वक्त इस पल में तो उसने फिलहाल के लिए अपनी आंखें बंद कर ली और थोड़ी देर के लिए बस खुद को उसकी बाहों में ही महसूस करने लगी बाकी सारी चीजें भूल कर...

    तभी उसके कानों में देव की आवाज पड़ी, "Believe me Suhani! वो मेरी कोई भी नहीं लगती है और मैं उसे बिल्कुल पसंद नहीं करता। तुमने खुद भी देखा होगा मेरा बिहेवियर कैसा था उसके साथ और फिर भी तुम मुझ पर शक कर रही हो।"

    देव की यह बात सुनकर सुहानी ने एकदम ही अपनी आंखें खोली और जैसे ही उसे अपनी पोजीशन का एहसास हुआ कि वह देव की गोद में बैठकर उसके गले से लगी हुई है वह तुरंत ही एक झटके से उसे दूर होते हुए बोली, "सर! आप... आप यह क्या कर रहे हैं, छोड़िए मुझे और मुझे इस बारे में सफाई क्यों दे रहे हैं मैं भी आपकी कोई नहीं लगती।"

    इतना बोलते हुए सुहानी ने देव का हाथ अपनी कमर से हटाते हुए खुद को उसकी पकड़ से आजाद किया और एकदम ही उसकी गोद से उठती हुई, पीछे की तरफ उल्टे कदमों से ही चलती हुई उससे दूर जाने लगी।

    To Be Continued…

  • 15. Contract Marriage with My Boss - Chapter 15

    Words: 1626

    Estimated Reading Time: 10 min

    15

    देव ने उसकी यह बात सुनी तो उसे बहुत ही बुरा लगा और वो कुछ बोलना चाहता था या फिर शायद बहुत कुछ... लेकिन सुहानी का ऐसा बर्ताव और जिस तरह वह अचानक से उसे दूर हुई तो देव को लगा वह शायद उसने सुहानी को अनकंफरटेबल कर दिया है और इसीलिए वो अपनी नज़रें नीचे करके दूसरी तरफ देखा हुआ बोला, "सॉरी आई वाज़ जस्ट... सही कह रही हो तुम और मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था, सॉरी! बट पता नहीं क्यों मैं..."

    इतना बोलते हुए देव खुद भी नहीं समझ पाया कि वह उस से माफी क्यों मांग रहा है और उसे किस बात की सफाई देने की कोशिश कर रहा है लेकिन वह खुद ही अपनी बात पूरी नहीं कर पाया और सुहानी भी कुछ नहीं बोली वो तुरंत वहां से वापस अपनी डेस्क की तरफ ही चली गई और देव की नजदीकी की वजह से उसे अपनी सांसे तेज चलती हुई महसूस हो रही है लेकिन उस दिन की तरह ही आज भी देव ने पहले उसे पूरी तरह से अपनी बाहों में भर के गले लगाते हुए इतना स्पेशल और इतना अच्छा फील करवाया और उस के बाद फिर उसे इस तरह से माफी मांगने लगा तो सुहानी को बहुत बुरा लगा और इसीलिए उसने फिर देव से कोई भी बात नहीं की और पूरा दिन ही उसे इग्नोर किया।

    आज ऑफिस में जो कुछ भी हुआ उसके बाद से देव पता नहीं क्यों ये चाहता था कि टीना की वजह से सुहानी को उसे लेकर कोई भी गलतफहमी ना हो इसलिए वो उसे एक्सप्लेन करना चाह रहा था लेकिन सुहानी ने उसकी पूरी बात नहीं सुनी।

    शायद कुछ ज्यादा ही गुस्से में थी और देव ये बात समझ नहीं पाया।

    उसे खुद भी समझ नहीं आ रहा था कि वो सुहानी को सफाई क्यों दे रहा है जबकि वो ठीक ही तो कह रही है। बॉस और पर्सनल असिस्टेंट के अलावा तो कोई भी और रिश्ता नहीं है उन दोनों के बीच, तो फिर क्यों उसे इतना फर्क पड़ रहा है सुहानी के बिहेवियर से और क्यों वो उसके सामने सब कुछ क्लियर रखना चाहता है? स्पेशली अपना स्टेटस तो और वो नहीं चाहता कि सुहानी को ज़रा सी भी गलतफहमी हो कि वो इंगेज्ड है।

    सुहानी ने उससे उस इंसीडेंट के बाद बात नहीं की,पर जिस तरह से वो दोनों एक दूसरे के गले लग कर बैठे हुए थे और देव उसे सफाई दे रहा था, वो बातचीत सुहानी के दिमाग से निकल ही नहीं रही थी और उसे समझ नहीं आ रहा था कि देव हर बार ऐसा क्यों करता है आखिर क्यों वो उसके लिए इतनी मायने रखती है जो उसके सामने वो चीज़ें क्लियर कर रहा था।

    सुहानी कुछ भी समझे उसे फर्क नहीं पड़ना चाहिए।

    आखिर वो उसका बॉस है और उसकी अपनी पर्सनल लाइफ है। कोई भी लड़की उसकी लाइफ में हो, वो उसकी मंगेतर हो या फिर कोई भी और… सुहानी को क्या फर्क पड़ता है।

    सुहानी ने अपने आप से ये सब कुछ बोला, लेकिन इन बातों के लिए वो खुद को नहीं मना पा रही है और उसे बहुत बुरा लग रहा है। वो सब कुछ सोचकर जिस तरह से वो लड़की देव के नजदीक आने की कोशिश कर रही थी और उसे खुद की मंगेतर बता रही थी। चाह कर भी वो बातें सुहानी के दिमाग से नहीं निकल रही है और उनका गुस्सा वो अब इनडायरेक्टली देव पर ही निकाल रही है क्योंकि फिलहाल लड़की तो वहां पर है नहीं… जैसे तैसे वो दिन ओवर हुआ और सुहानी आज बाकी एंप्लॉयज के साथ ही वो ऑफिस से निकल गई जिसकी वजह से देव को छुट्टी के टाइम भी उससे बात करने का मौका नहीं मिल पाया और उसके पैर में चोट भी लगी थी और इस वजह से देव को उसकी फिक्र भी थी लेकिन फिर भी आज वो अकेले ही अपने घर चली गई।

    देव की बहुत गुस्से में अपने घर वापस आया। इस बारे में बात करनी थी क्योंकि उसे पता था उसकी मां के सपोर्ट के बिना टीना खुद से कभी भी ऑफिस नहीं आ सकती थी। और यही बात जानने के लिए वो अब जब घर आया तो उसने अपनी मां का नाम देते हुए आवाज लगाई।

    "मॉम…मॉम! कहां पर हैं आप? यहां आइए… मुझे आपसे बात करनी है।" - और फिर उसकी ये आवाज सुनकर उसकी मां अपने कमरे से निकलकर बाहर आई और बोली, "देव ये क्या हुआ है, बेटा! तू इस तरह से क्यों चिल्ला रहा है, सब ठीक तो है ना?"

    देव की बात का जवाब दे पाता उससे पहले ही उस ने देखा कि उसकी मां के साथ उनके पीछे ही उनकी सहेली अर्चना भी उनके रूम से निकल कर आई और वो अक्सर यहां पर आती जाती रहती है।

    देव को उन से कितनी कोई प्रॉब्लम नहीं है क्योंकि वो उनकी मॉम की फ्रेंड है, लेकिन उसे प्रॉब्लम है उससे जो उन दोनों के पीछे वहां पर आ रही है, टीना!"

    देव को गुस्से में देखकर तो वो अभी भी थोड़ी सी डरी हुई लग रही है इसलिए अपनी मां और उसकी मां के पीछे छिपकर चल ही है लेकिन देव का गुस्सा उसे वहां पर देखकर और भी बढ़ गया और उसने उसी तरह से चिल्लाते हुए कहा, "क्या है मॉम ये सब? मैंने कल आपसे साफ-साफ मना किया था और मैं इससे पहले भी कई बार मना कर चुका हूं तो फिर क्यों आपने इस लड़की को क्यों झूठी उम्मीदें दे कर यहां पर रखा है।"

    "कौन सी झूठी उम्मीद है, क्या बोल रहे हो बेटा तुम, मैंने तुमसे बात की थी ना… इस बारे में और तुम क्यों टीना को एक मौका नहीं देते, बेचारी कितनी अच्छी लड़की है, तुम्हें इतना पसंद भी करती है क्यों टीना?"

    इतना बोलते हुए देव की मां ने टीना की तरफ देखा तो उसने पहले तो एक नजर चुपके से देव की तरफ देखा। लेकिन वो उससे नज़रें नहीं मिला पाई और उसने धीरे से बस हां में अपना सिर हिला दिया और इस वक्त वो बहुत ही अलग लग रही है। एकदम सीधी-सादी प्यारी लड़की बन कर वहां पर खड़ी हुई है। एकदम मासूम जिसे कि कुछ भी पता ना हो जबकि ऑफिस में वो पूरी चालाक एटीट्यूड वाली हॉट सेक्सी लड़की बन कर आई थी जो कि हर चीज में माहिर लग रही थी, लेकिन अब उसका रूप रंग ढंग एकदम ही बता हुआ है और देव भी इसीलिए उसे नहीं पसंद करता क्योंकि वो उसकी असलियत जानता है वो उस के सामने कुछ और होती है तो किसी के सामने कुछ और…

    इसके अलावा वो हमेशा से जानता है कि टीना बिल्कुल भी उसके टाइप की नहीं है। वो कभी भी एक लड़के पर नहीं टिकती और देव को उस ने काफी साल पहले प्रपोज किया था और जब देव ने उसे मना कर दिया तब से लेकर उसके काफी सारे रिलेशन रहे चुके हैं। इस बारे में भी देव को पता है लेकिन देव को तब तक उस बात से कोई प्रॉब्लम नहीं है जब तक उसकी मां जबरदस्ती उसकी शादी टीना के साथ इग्नोर करने में नहीं लगी थी।

    देव ने अपनी मां की तरफ देखते हुए कहा, "माॅम प्लीज़ ! मैं आपसे पहले भी कह चुका हूं और इस बारे में, मैं अब कुछ भी नहीं सुनूंगा।" इतना बोलते हुए वो गुस्से उन सब की तरफ देखते हुए अपने कमरे की तरफ जाने लगा और उसकी मां भी उसके पीछे ही वहां पर आई।

    उन्होंने अपनी सहेली अर्चना और उसकी बेटी टीना दोनों को वहां पर ही रुकने के लिए कहा और अंबिका की बात मानकर वो दोनों वहां पर ही रुक गई।

    अंबिका अकेले ही देव के पीछे उसके कमरे में आई और देव के दरवाजे बंद करने से पहले ही वो उसके कमरे के अंदर आई और बोली, "बेटा! तुम क्यों इतना गुस्सा कर रहे हो और वैसे भी हमें भी तो अभी ज़रूरत है, तुम्हें पता है ना वसीयत के बारे में तो फिर? क्यों नहीं तो मान लेते और इतनी भी बुरी नहीं है वो बस तुम उसे गलत समझते हो। कुछ गलतफहमी होगी तुम्हे टीना को लेकर लेकिन तुम उसे थोड़ा टाइम दोगे तो समझ पाओगे।"

    देव की सौतेली मां ने अपने फायदे के लिए उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहा तो तुरंत ही देव उनकी तरफ देखते हुए बोला, "नहीं। ऐसी कोई भी शर्त नहीं होगी और अगर वो भी होगी भी तो मैं अपनी तरह से उसे मैनेज कर लूंगा। आप प्लीज उस बारे में टेंशन मत लो और मैं टीना से शादी नहीं करने वाला बस ये मेरा फाइनल डिसीजन है,आप उस लड़की को झूठी उम्मीदें देना बंद करो और आज तो हद ही हो गई थी और वहां पर उसने सबको बताया कि वो मेरी मंगेतर है। लाइक सीरियसली मॉम? वो इतना बड़ा झूठ कैसे बोल सकती है या फिर आपने उससे ये कहा था?"

    देव ने अपनी मां की तरफ देखते हुए ये सवाल किया तो उसके इस सवाल पर अंबिका एकदम ही सकपका गई क्योंकि सच तो यही था। उसने ही टीना से ये कहा था कि देव उसके साथ शादी के लिए मान गया है और उन दोनों की शादी फिक्स हो गई है तो अब से वो उसकी मंगेतर है।

    और फिर उन्होंने कहा कि उसे भी देव को अपनी तरफ अट्रैक्ट करने के लिए कुछ करना चाहिए तो इसी खुशी में टीना ऑफिस पहुंच गई थी, जानबूझकर देव को इंप्रेस करने के लिए लेकिन सब कुछ उल्टा हो गया। देव इंप्रेस होने की बजाय उस पर और ज्यादा नाराज़ हो गया।

    To Be Continued

    थैंक यू सो मच टू ऑल ऑफ़ यू जो भी मेरी स्टोरी को पढ़कर कमेंट और इसे सपोर्ट कर रहे हैं और बताइए आपको स्टोरी कैसी लग रही है स्टोरी के बारे में भी दो लाइन लिखिए नाइस स्टोरी के अलावा कुछ और भी अगर आप लिख सकते हैं तो हमें बहुत खुशी होगी।

  • 16. Contract Marriage with My Boss - Chapter 16

    Words: 1558

    Estimated Reading Time: 10 min

    16

    अंबिका ने टीना से जो कुछ भी कहा हो लेकिन अभी देव का ये सवाल सुनकर और उसे गुस्से में देखकर अंबिका ने तुरंत ही मना करते हुए कहा, "नहीं.. नहीं बेटा! ये सब क्या बोल रहे हो तुम, मैं ऐसा क्यों बोलूंगी, वो शायद उसने ऐसे ही मजाक में बोल दिया होगा क्योंकि आज नहीं तो कल तो तुम्हारी उसकी सगाई होनी ही है, ये बोला था बस मैंने उससे।"

    अंबिका ने सफाई देते हुए कहा तो देव अपनी जगह से उठ कर खड़ा होते हुए बोला, "नहीं, इस जन्म में तो नहीं, मैं उस लड़की से शादी नहीं करूंगा।"

    देव के इस तरह सीधे मना करने के बाद अंबिका ने आखिरी उम्मीद रखते हुए पूछा, "लेकिन क्यों बेटा, आखिर कोई तो रीज़न होगा, क्यों तुम उसे एक मौका भी नहीं देना चाहते हो, क्या इसके पीछे क्या वजह है?"

    अपनी मां की ये बात सुनकर देव को और कुछ नहीं सूझा तो उसने झूठ बोलते हुए कहा, "हां, वजह है कि मेरी लाइफ में पहले से ही कोई और है!"

    देव की मां को जहां तक उसके उस की लव लाइफ और पर्सनल लाइफ के बारे में पता था, उन्हें तो यही लगता था कि देव की लाइफ में दूर-दूर तक अभी कोई भी लड़की नहीं है और उसके गुस्से और एटीट्यूड की वजह से कोई भी लड़की उसके साथ रिलेशन में भी टिक नहीं पाती और इसीलिए वो टीना को उसके साथ फिट करने में लगी हुई थी।

    लेकिन अभी जैसे ही देव ने ये कहा तो उन्हें जैसे थोड़ा सदमा लगा और उन्होंने कहा, "क्या… क्या तुम किसी और लड़की से प्यार करते हो, कौन है वो और तुमने तो मुझे नहीं बताया इस बारे में?"

    उनकी इस बात पर देव की आंखों के सामने एकदम ही सुहानी का चेहरा आया और उसके बारे में सोचते हुए वो बोला, "हां क्योंकि मैं इस बात को सिर्फ अपने तक रखना चाहता था, जब तक मैं श्योर नहीं हो जाता, लेकिन अब मैं श्योर हूं और वो लड़की टीना से कई गुना बेहतर है।"

    अंबिका ने तुरंत ही झूठी हमदर्दी दिखाते हुए कहा, "सिर्फ बेहतर होना काफी नहीं है क्या वह लड़की तुमसे शादी करने के लिए तैयार है और क्या तुम्हें इस बात का यकीन है कि वह तुम्हारे पैसे और प्रॉपर्टी के पीछे नहीं है, वह सच में तुमसे प्यार करती है या फिर सिर्फ अपने फायदे के लिए तुम्हारे साथ है, तुम यह सब पता नहीं लगा पाओगे बेटा, इसीलिए मैं बस तुम्हारी भलाई चाहती हूं!"

    "मैंने आपसे कहा ना मॉम, वह सब चीज में अच्छी है और मुझसे शादी करने के लिए भी रेडी है, मैं जब कहूंगा वह तब शादी कर लेगी मुझे और वह मेरे पैसों के पीछे नहीं है, इसलिए प्लीज अब आप टीना का नाम नहीं लेंगी और अगर ऐसा ही है तो अविनाश के साथ उसकी शादी करवा दीजिए!" देव ने एकदम से कहा और फिर वहां से सीधा बाथरूम में चला गया क्योंकि वह अब अंबिका से और बात नहीं करना चाहता इस बारे में क्योंकि पहले ही उसने काफी बड़ा झूठ बोल दिया है।

    एक तरफ देव इस बात से परेशान था दूसरी तरफ उसकी सौतेली मां को अपना पूरा प्लान एकदम फेल होता हुआ नज़र आ रहा था तो वो भी उसी तरह टेंशन में सोचती हुई उसके कमरे से बाहर निकल आई और नीचे हाॅल में आई जहां पर उसकी फ्रेंड अर्चना और टीना दोनों ही अंबिका का ही वेट कर रही थी लेकिन अंबिका ने उन दोनों की तरफ देखकर मायूसी से अपना सिर हिलाया जिसका मतलब कहीं ना कहीं वो दोनों भी समझ गई।

    देव ने अपने मन में यह डिसाइड कर लिया है कि चाहे कुछ भी हो जाए वो टीना से तो शादी नहीं करने वाला है और यह बात उसने अपनी मां को भी काफी अच्छी तरह से समझा दी है और इसके लिए उसने यह झूठ भी बोल दिया है कि वह किसी और से प्यार करता है और उससे ही शादी करेगा लेकिन अब इस झूठ को सच में कैसे बदलना है अभी ऑफिस में बैठकर वो इस बारे में ही सोच रहा है।

    क्योंकि वसीयत के हिसाब से उसकी शादी होना इंपॉर्टेंट है, नहीं तो वह अपनी 51% प्रॉपर्टी खो देगा और उसने यह बात वकील को फोन करके भी कंफर्म कर ली है और वकील ने उसकी मां के कहने पर उससे झूठ बोला है और शादी के बाद उसकी वाइफ के भी आधी प्रॉपर्टी नाम होने वाली बात उससे छिपाई है।

    देव ने भी ज्यादा पूछताछ नहीं की क्योंकि वह वकील उसके पापा के टाइम से है और वह उन पर पूरा भरोसा करता है, उसे बिल्कुल भी नहीं पता कि उसकी मां ने पैसे देकर उसका मुंह बंद कर रखा हुआ है और वह उसके खिलाफ इतनी बड़ी साजिश रच रही है यह सब देव को नहीं पता है।

    अभी भी ऑफिस में सुहानी उसे इग्नोर कर रही है और उस बात को आज 1 हफ्ता बीत गया है जब टीना यहां पर आई थी और उसे दिन जो कुछ भी हुआ लेकिन उसके बाद से लेकर अब तक सुहानी के बिहेवियर में बहुत ही ज्यादा चेंज आए हैं और वह अपने काम से कम रखती है उससे ज्यादा बात नहीं करती, जब तक बहुत जरूरी बात या कोई जरूरी काम ना हो।

    लेकिन ऑफिस में बाकी सब से वह काफी अच्छी तरह से बोलती है और उन सबके साथ हंस कर बातें भी करती है जिसे देखकर देव को बहुत ही गुस्सा आता है और जलन भी होती से बात करती है जब भी वो उसे बाकी लोगों के साथ ऐसे हंसते खेलते खुश देखता है और उसके सामने आते ही वो एकदम चुप हो जाती है जबकि असल में वह खुद भी कभी उसे सामने से अप्रोच नहीं कर पता है और उसके सामने एकदम कोल्ड और स्ट्रिक्ट बाॅस की तरह ही बिहेव करता है और हमेशा ही अपने DSR वाले एटीट्यूड में रहता है।

    अभी भी सुहानी अपना सारा काम कंप्लीट करके सारे डॉक्यूमेंट, i pad और पेन ड्राइव देव के सामने उसकी टेबल पर रखकर वहां से चली गई और उसने कुछ भी नहीं बोला जबकि देव को उसके ऐसे बर्ताव पर बहुत ही गुस्सा आई और वह एकदम चिढ़ गया।

    "इसे क्या हो गया है ऐसा बर्ताव क्यों कर रही है, और मुझे लगा था एक-दो दिन में शांत हो जाएगी लेकिन ये तो..." देव ने अपने आप से बात करते हुए कहा और फिर सुहानी का नाम लेकर तेज आवाज में चिल्लाया, "सुहानी... सुहानी... इधर आओ, मुझे कुछ भी नहीं मिल रहा।"

    इतना बोलते हुए उसने अपने सामने रखें डॉक्यूमेंट जो कि एकदम अरेंज करके सीरियल नंबर के हिसाब से रखे हुए थे उसे आगे पीछे कर दिया और वहां टेबल पर यहां वहां फैला भी दिया।

    उसके इस तरह से चिल्लाकर बुलाने पर सुहानी भी लगभग भागती हुई वहां पर आई और बोली, "क्या नहीं मिल रहा सर! मैंने आपको सारी चीज़ें तो दे दी है और सब कुछ टाइम पर कंप्लीट हो गया है, फिर क्या प्रॉब्लम है?"

    देव ने उसकी बात का जवाब दिया, "बहुत सारी प्रॉब्लम है मुझे, चुपचाप से यह सब अरेंज करके दो सीरियल नंबर से और जो मैं पूछता हूं वो बताओ... यहां पर बैठो और साथ ही नोट डाउन करती जाना।"

    जो कुछ भी देव अभी उसे करने के लिए बोल रहा है वह सब कुछ सुहानी पहले ही कर चुकी है लेकिन फिर भी देव उसके साथ टाइम स्पेंड करने के लिए और उसे अपने साथ ही रखना चाहता है।

    सुहानी को समझ नहीं आया कि देव आखिर क्या ढूंढने की कोशिश कर रहा है लेकिन अपने हिसाब से वह पेपर सीरीज में अरेंज करने लगी और फिर आईपैड में पेज ओपन करते हुए उसने कहा, "और क्या चाहिए सर! देखिए यह प्रेजेंटेशन भी रेडी है मैं इस पेन ड्राइव में भी सेव कर दिया है और अभी कुछ ही देर में आपकी मीटिंग भी है।"

    "मेरी नहीं हम दोनों की, तुम भी मीटिंग में मेरे साथ चल रही हो और यह प्रेजेंटेशन तुमने बनाई है ना तो सबके सामने तुम ही प्रेजेंटेशन देना, मुझे ठीक से समझ नहीं आ रहा।" देव ने जानबूझकर बहाना बनाते हुए बोला क्योंकि वह मीटिंग टाइम में भी सुहानी को साथ ही रखना चाहता है जबकि सुहानी को लगा कि शायद उसके काम में कुछ मिस्टेक रह गई इसीलिए देव को समझ नहीं आ रहा तो वह एकदम ही परेशान होती हुई बोली, "क्या... क्या समझ नहीं आ रहा है सर आपको, बताइए मैं ठीक कर देती हूं अगर कोई मिस्टेक है तो अभी भी थोड़ा टाइम है 5 मिनट में, मैं कर लूंगी।"

    उसे इस तरह से हड़बड़ाते हुए देख कर देव हल्का सा मुस्कुराया लेकिन टेंशन वाले परेशान चेहरे के साथ सुहानी ने जैसे ही उसकी तरफ देखा तो देव ने फिर एकदम सीरियस चेहरा बना लिया और थोड़े एटीट्यूड में बोला, "नहीं... कोई मिस्टेक नहीं है लेकिन ऐज़ अ पर्सनल असिस्टेंट यह भी तुम्हारा ही काम है अब तक मैं खुद ही कर लेता था इसलिए क्योंकि तुमने बस कुछ दिनों पहले ही ज्वाइन किया था और तुम्हें इतना एक्सपीरियंस नहीं था लेकिन अब तो तुम्हें 3 से 4 महीने हो रहे हैं तो अब यह प्रेजेंटेशन देना भी सीखो, मैं कब तक तुम्हारा काम करता रहूंगा।"

    देव ने एकदम ही एटीट्यूड में जवाब दिया तो फिर सुहानी थोड़ा सा रिलैक्स हुई और फिर उसकी तरफ देखते हुए अपने मन में बोली, "हां.. हां सारा काम तो जैसे मेरा ही है, खड़ूस कहीं का..."

    To Be Continued

  • 17. Contract Marriage with My Boss - Chapter 17

    Words: 1593

    Estimated Reading Time: 10 min

    17

    सुहानी अपने मन में यह बात सोचते हुए उसकी तरफ घूर कर देख रही थी और देव ने जैसे ही उसे ऐसे नोटिस किया तो पूछा, "अब क्या हुआ? कुछ लगा है क्या मेरे चेहरे पर, जो इधर ही घूर कर देख रही हो?"

    इस पर सुहानी ने जल्दी से 'नहीं' में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं... कुछ नहीं सर! आई एम ओके!"

    और फिर कुछ देर के बाद वह दोनों एक साथ ही मीटिंग रूम की तरफ बढ़े। सुहानी देव के पीछे ही चल रही थी और बाकी सारे इन्वेस्टर, ऑफिस स्टाफ, मैनेजर और कंपनी के बिज़नेस पार्टनर पहले से ही वहां पर उन दोनों का इंतजार कर रहे थे। इसके अलावा आज वहां पर कुछ नए लोग भी आए हुए थे जैसे कि वह जिनके साथ देव की कंपनी पहली बार पार्टनरशिप करने वाली है और उन लोगों के लिए ही यह प्रेजेंटेशन रेडी की गई है। अगर उन्हें यह प्रेजेंटेशन पसंद आई तो वह लोग उनके साथ इस प्रोजेक्ट पर काम करेंगे और उनका बिजनेस प्रपोजल भी एक्सेप्ट कर लेंगे।

    सुहानी आज पहली बार ही देव के साथ किसी इतनी बड़ी मीटिंग के लिए वहां पर आई है। इससे पहले वह छोटी-मोटी मीटिंग अटेंड कर चुकी है जो कि आपस में स्टाफ के साथ ही होती थी, लेकिन ऐसी कोई प्रेजेंटेशन देना इसलिए वह काफी नर्वस थी।

    देव ने यह नोटिस कर लिया और मीटिंग रूम के अंदर आते हुए उसने कहा, "रिलैक्स सुहानी! आई बिलीव इन यू..."

    देव ने यह बात धीरे से सिर्फ उसके कानों में बोली तो सुहानी ने एकदम चौंक कर उसकी तरफ देखा क्योंकि उसे देव से इस तरह के शब्दों की उम्मीद नहीं थी, लेकिन उसने बस इतना बोला तो उसके यह शब्द सुनकर ही सुहानी को बहुत हिम्मत मिली और उसकी नर्वसनेस कुछ कम हो गई और उसने हां में अपना सिर हिलाया।

    वह दोनों साथ में ही अंदर आए और वहां पर बैठे हुए नए क्लाइंट ने सुहानी को ऊपर से नीचे देखा लेकिन सुहानी का ध्यान दूसरी तरफ है, वो प्रोजेक्टर और बाकी सारा सेटअप ठीक करने में लगी हुई है इसलिए वह सेंटर टेबल के पास आ गई।

    उसकी काम में हेल्प करने के लिए ऑफिस स्टाफ से एक और लड़की वहां पर आई और उन दोनों ने मिलकर सारा सेटअप किया लेकिन वह आदमी जो कि वहां पर बैठा है उसकी नज़रें अभी भी सुहानी पर ही अटकी हुई हैं और देव ने ये बात नोटिस कर ली।

    उसे यह देखकर बहुत ही गुस्सा आया और गुस्से में उसके हाथ की मुट्ठियां एकदम ही कस गईं, उसने घूर कर अपने सामने बैठे उस आदमी की तरफ देखा लेकिन उस आदमी का ध्यान देव की तरफ बिल्कुल भी नहीं है।

    देव उसकी नजरों का मतलब समझ गया है लेकिन फिलहाल उसने कुछ नहीं कहा क्योंकि उसे लगा कि शायद वह कुछ ज्यादा ही एज्यूम कर रहा है और सुहानी प्रेजेंटेशन देने वाली है इस वजह से शायद सारे लोग ही उसकी तरफ देख रहे हैं।

    सुहानी ने प्रेजेंटेशन स्टार्ट की और काफी कॉन्फिडेंस से वह सारी प्रेजेंटेशन उन सब लोगों को एक्सप्लेन कर रही है, उसे काफी अच्छी तरह से बिना कोई गड़बड़ के अपना काम करते देखा देव ने उसकी तरफ देखकर हल्का सा मुस्कुराया लेकिन तुरंत ही अपनी मुस्कुराहट को वापस कोल्ड फेस के पीछे छुपा लिया और अपने सामने बैठे उस शख्स की तरफ देखा जो पहले से ही सुहानी को देख रहा था। वह अभी भी चेहरे पर एक तिरछी मुस्कुराहट के साथ सुहानी को देख रहा था, सिर्फ देख ही नहीं, वह उसे ऊपर से नीचे तक ऑब्जर्व कर रहा था।

    देव से अब यह बर्दाश्त नहीं हुआ इसलिए उसने एकदम से टेबल पर गुस्से में हाथ मारा और बोला, "इनफ! इट्स इनफ..."

    देव के इस तरह गुस्से में टेबल पर हाथ मार कर ये बोलने की वजह से सभी का ध्यान उसकी तरफ हुआ और उन लोगों ने पूछा, "क्या हुआ मिस्टर राठौर, इज एवरीथिंग ऑल राइट!"

    "नो नथिंग इज फाइन एंड दिस मीटिंग एंड्स हियर यू कैन ऑल गो," देव ने अपने दोनों हाथ पॉकेट में डालकर अपनी जगह से उठकर खड़े होते हुए कहा।

    उसे इस तरह से उठकर खड़े होते देख सुहानी थोड़ा सा घबरा गई, उसे लगा कि शायद उसने कोई गलती कर दी है जिसकी वजह से देव इस तरह का बर्ताव कर रहा है इसलिए उसने बीच में बोला, "आई एम सॉरी सर इफ देयर इज एनी मिस्टेक..."

    "यू शट अप सुहानी एंड यू गाइज डिडंट हियर, द मीटिंग इज ओवर!" देव ने फिर से उस तरफ वहां पर बैठे सारे लोगों की तरफ देखा और स्पेशली उसने उस नए क्लाइंट की तरफ घूर कर देखा तो वह भी काफी गुस्से में आ गया और अपनी जगह से उठकर खड़ा होते हुए बोला, "यह क्या मजाक लगा रखा है? आप हम सबको पागल समझते हैं या खुद को कुछ ज्यादा ही इंटेलिजेंट? हम सब अपना टाइम निकाल कर यहां पर आए और इस तरह से बिना किसी बात के बीच में ही मीटिंग खत्म? अभी तो प्रेजेंटेशन भी कंप्लीट नहीं हुई।"

    "प्रेजेंटेशन पर तुम्हारा ध्यान था भी कहां?" देव ने एकदम ही गुस्से से उसे सीधा जवाब देते हुए कहा तो उस आदमी का गला सूख गया और वह इधर-उधर देखने लगा, बिल्कुल इस तरह से जैसे कि उसकी कोई चोरी पकड़ी गई हो और उसे इस तरह से बगले झांकते हुए देख कर देव ने कहा, "अगर नहीं चाहते हो कि मैं इसके आगे कुछ भी बोलूं तो चुपचाप निकल जाओ यहां से, जस्ट गेट आउट! और कोई डील नहीं करनी मुझे तुम्हारी कंपनी के साथ..."

    देव ने फिर से चिल्ला कर कहा तो उसके गुस्से के सामने किसी की भी वहां पर खड़े रहने की हिम्मत नहीं हुई, यहां तक सुहानी के भी माथे पर पसीना आ गया जिसे उसने चुपचाप टिशू पेपर से पोंछा और बाकी सारे लोग वहां से निकल गए। सुहानी भी उनके पीछे ही वहां मीटिंग रूम से बाहर निकलने वाले दरवाजे की तरफ़ आई लेकिन वह दरवाजा खोल पाती उससे पहले ही पीछे से देव ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला, "तुम कहां जा रही हो, मैंने तुम्हें जाने के लिए नहीं बोला?"

    देव के इस तरह से हाथ पकड़ कर यह बात बोलने की वजह से सुहानी वहां पर ही रुक गई और उसने पीछे मुड़कर देव की तरफ देखा। वह अभी भी काफी गुस्से में लग रहा था, उसकी आंखें गुस्से की वजह से लाल थीं जिसे देखकर साफ पता चल रहा था वह अपना गुस्सा कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा है इसलिए सुहानी कुछ भी नहीं बोली और चुपचाप वहां पर खड़ी थी तभी देव आगे आया और उसने सुहानी के साइड वाली दीवार पर कसकर अपना हाथ मारा जिसकी वजह से सुहानी की पलकें एकदम ही झपक गईं और उसने डर की वजह से अपनी आंखें कसकर बंद कर लीं।

    सुहानी को पता था देव उसे हर्ट नहीं करेगा लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों उसे डर लग रहा है और इसलिए उसने अभी भी अपनी आंखें कसकर बंद की हैं क्योंकि उसे पता है वह आंखें खोलेगी तो सामने गुस्से में खड़े देव से नजरे नहीं मिल पाएंगी।

    कुछ देर के बाद जब उसे अपने हाथ पर किसी का भी हाथ फील नहीं हुआ और दरवाजा कसकर पटकने की आवाज हुई तब उसने अपनी आंख खोली तो उसे वहां पर कोई भी नजर नहीं आया।

    उसने राहत की सांस ली क्योंकि वह समझ गई देव वहां से बाहर चला गया था लेकिन यह सब क्या हुआ और देव ने ऐसा बर्ताव क्यों किया इस बारे में सुहानी को ज्यादा कुछ समझ नहीं आया।

    उस बात को कुछ दिन बीत गए थे और देव ने उस नए क्लाइंट के साथ अपनी डील भी कैंसिल कर दी थी जबकि वो भी काफी पावरफुल था लेकिन देव की कंपनी के आगे उसकी कंपनी कहीं भी नहीं दिखती इसलिए वह देव का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया। देव और सुहानी के बीच सब कुछ नॉर्मल था एकदम वैसे ही जैसे किसी बॉस और एंप्लॉई के बीच होता है लेकिन उस दिन जो कुछ भी हुआ उस बात के बारे में सुहानी ने कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं की क्योंकि वह इतना ज्यादा गुस्से में था और फिर वह उसका बॉस है तो वह उसे ऐसे ही रेंडम सारी चीज नहीं पूछ पाती।

    देव ने भी उस मामले का जिक्र नहीं किया क्योंकि उस बारे में सुहानी को बात कर वह उसे अनकंफरटेबल फील नहीं करना चाहता था और वैसे भी वो मामला अपनी तरफ से उसने पूरा खत्म ही कर दिया था।

    अभी देव किसी बात को लेकर काफी टेंशन में था और तभी उसके केबिन का दरवाजा खुला और सामने खड़े शख्स को देखकर उसने एकदम से उसकी तरफ देखकर कहा, "तुम... तुम यहां क्या कर रहे हो?"

    दरवाजे पर 6 फुट का हैंडसम दिखने वाला लड़का खड़ा हुआ था जिसने लेदर जैकेट और रिप्ड जींस पहनी हुई है और वह देखने में कुछ कुछ देव की तरह ही लग रहा है लेकिन उम्र में उससे छोटा...

    "कम ऑन भाई! अब क्या मुझे भी यहां आने के लिए आपसे अपॉइंटमेंट लेनी होगी," इतना बोलते हुए वह लड़का काफी एटीट्यूड में चलते हुए अंदर आया और वह और कोई नहीं देव का छोटा सौतेला भाई है अविनाश...

    To Be Continued...

  • 18. Contract Marriage with My Boss - Chapter 18

    Words: 1594

    Estimated Reading Time: 10 min

    18

    "नहीं... अपॉइंटमेंट लेने की तो जरूरत नहीं है तुम्हें, लेकिन तुम कभी ऑफिस में अपनी शक्ल दिखाते ही कहां हो, तुम्हारा केबिन भी हमेशा बस खाली ही पड़ा रहता है तो मुझे उम्मीद नहीं थी तुम्हारे यहां पर आने की।" देव ने बड़े ही आराम से उसे ताना मारते हुए कहा और कहीं ना कहीं देव की यह बात उसे बुरी भी लग गई।

    लेकिन फिर भी अविनाश ने इसको अपने चेहरे पर नहीं आने दिया और उसी तरह से एटीट्यूड में आकर देव के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया और अपने पैर के ऊपर पैर रखता हुआ बोला, "मैंने तो भाई पहले ही बोला था आपसे कि यह सब काम मुझे समझ नहीं आता, अब आप अगर मुझसे जबरदस्ती यह सब करवाओगे और वैसे भी मेरी पढ़ाई भी तो कंप्लीट नहीं हुई है।"

    उसकी बात पर देव ने पूछा, "हां... हां ठीक है इसीलिए मैंने भी तुझे फ़ोर्स नहीं किया, वह तो बस मॉम के कहने पर ही सब कुछ अरेंज किया था, लेकिन तब से तू शायद एक दो बार ही ऑफिस आया होगा, लेकिन आज कैसे आ गया यह तो बता।"

    बिना किसी लाग लपेट के अविनाश ने भी सीधे ही जवाब दिया, "भाई वो एक्चुअली मुझे थोड़े पैसों की जरूरत है और मॉम का तो आप जानते ही हो अगर मैं उनसे बोलूंगा तो वह कितने सवाल करती है तो बस तभी मैं यहां पर आ गया, वैसे भी बिना काम किए मेरे अकाउंट में तो पैसे आने नहीं वाले..."

    वह हमेशा से ही ऐसा करता था, उसे जब पैसों की जरूरत होती है बस तभी उसे यह याद आता है कि उसका कोई बड़ा भाई भी है, नहीं तो बाकी टाइम वह देव को बिल्कुल भी अपना भाई नहीं मानता और ना ही उसे अच्छी तरह से ट्रीट करता है, लेकिन जब उसे कोई मतलब होता है, पैसे चाहिए होते हैं या किसी काम में उसकी जरूरत होती है तब वह हमेशा ही इस तरह उसे जाकर खुद बात करता है और अपना काम निकलवाने के बाद वह फिर से गायब हो जाता है।

    अविनाश की शिकायत सुनकर देव ने एकदम सीरियस होकर कहा, "हां, यह तो कंपनी पॉलिसी है, लेकिन तुम्हारे पैसे तो तुम्हें मिल जाते हैं ना, उसके अलावा और क्या जरूरत है तुम्हें, बताओ?"

    देव ने भी पैसे देने से पहले उस सवाल किया तो अविनाश का एकदम ही मुंह बन गया और उसने कहा, "भाई अगर मुझे यही बताना होता तो फिर मैं मम्मी से ले लेता, लेकिन अभी मैं आपसे कहा ना वह इतने सवाल करती है और अब आप भी शुरू हो गए, अगर नहीं देना तो बोल दो सीधे..."

    उसे इस तरह नाक भौं सिकोड़ते हुए देख कर देव ने एकदम सीरियस चेहरे के साथ पूछा, "नाराज क्यों हो रहा है तू, मैंने कभी मना किया है क्या तुझे, बता कितने पैसे चाहिए?"

    अविनाश ने एकदम लापरवाही से कहा, "अभी के लिए बस 50 हज़ार..."

    अविनाश के इस तरह इतने पैसे मांगने पर देव ने उसकी तरफ एक नजर घूर कर देखा, लेकिन अविनाश जानबूझकर देव से आई कॉन्टेक्ट अवॉयड कर रहा है क्योंकि वह इस तरह से दिखाना चाहता है जैसे कि यह इतने पैसे उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है।

    देव ने भी कोई बहस नहीं की और अपने डेस्क के ड्राअर से 500 के नोट की एक बंडल निकाल कर उसके सामने टेबल पर रख दिया और बोला, "यह लो और जाओ अभी, लेकिन अब इस बारे में सोचना शुरू कर दो क्योंकि हमेशा ही मैं तुम्हें इस तरह से उड़ाने के लिए पैसे नहीं दे पाऊंगा।"

    देव ने एक तरह से उसे वार्निंग देते हुए यह बात कही, वह इस बात का एहसान नहीं जताना चाहता था इसलिए उसने सिर्फ इतना ही बोला और सामने पैसे पड़े हुए देखकर अविनाश की एकदम ही आंखे चमक गई और उसने जल्दी से वो पैसे अपने हाथ में लेते हुए अपनी तरफ सरका लिया और देव की बात सुनकर बोला, "या.. या व्हाट एवर?"

    इतना बोलते हुए उसने वह ₹50000 उठा कर अपनी जैकेट के अंदर वाली पॉकेट में रखे और वहां कुर्सी से उठकर तुरंत ही जाने लगा और वह दरवाजे के पास पहुंचा ही था तभी उसे दरवाजे से अंदर आई हुई एक लड़की नजर आई जिसने नेवी ब्लू जींस और ऑफ व्हाइट कलर का शर्ट पहना हुआ था, लेकिन उसके साथ ही उसने ब्लू कलर का ब्लेजर भी पहना हुआ है और काफी प्रोफेशनली मेकअप के साथ उसके बाल भी सलीके से पोनीटेल में बंधे हुए हैं और वह उसकी तरफ एकदम हैरानी से देख रही है क्योंकि उसने अभी-अभी उसे पैसे अपनी जैकेट की जेब में रखते हुए देखे हैं, उसके हाथ में एक कॉफी मग है और उसकी आंखों में कई सारे सवाल नजर आ रहे हैं।

    अविनाश ने भी उसे लड़की को दरवाजे के पास खड़ा देखकर ऊपर से नीचे तक देखते हुए उसे नोटिस किया और जब देव ने उन दोनों को वहां दरवाजे के पास आमने-सामने खड़ा देखा तो उसने सुहानी का नाम लेकर उसे आवाज लगाते हुए कहा, "सुहानी! वहां पर क्या रुक गई लाओ काॅफी मुझे दो और इतनी देर लगती है क्या एक ब्लैक कॉफी लेकर आने में, कब से सर दुःख रहा है मेरा..."

    देव की आवाज सुनकर सुहानी एकदम हड़बड़ाते हुए आगे बढ़ी, "यस... यस सर!"

    इतना बोलते हुए वह वहां से आगे आई और उसे इस तरह भागते हुए देव की तरफ जाते देख अविनाश की नजरों ने भी सुहानी का पीछा किया।

    उसने आज सुहानी को वहां पर पहली बार ही देखा है क्योंकि वह ज्यादातर तो ऑफिस आता नहीं है इसलिए उसे ऑफिस स्टाफ में किसी के बारे में भी कुछ नहीं पता है, लेकिन जिस तरह से देव ने उसे कॉफी के लिए डांटा तो वह समझ गया कि जरूर वो लड़की उसकी पर्सनल असिस्टेंट है।

    लेकिन अविनाश को इन सब बातों से उतना मतलब नहीं रहता, वह जिस काम के लिए आया था वह हो गया, उसे उसके पैसे मिल गए और बस अब उसे वहां से जाना था, इसलिए सुहानी के दरवाजे से हटते ही वह तुरंत ही दरवाजा खोलकर वहां से बाहर निकल गया।

    सुहानी ने देव की तरफ वह कॉफी मग बढ़ाया, लेकिन देव ने उसके हाथ से वह मग नहीं लिया और सुहानी मेज पर कप रखने ही वाली थी कि तभी देव एकदम ही बोल पड़ा, "दरवाजे पर रुक कर क्या कर रही थी और इतनी देर कहां लग गई?"

    देव ने एकदम ही उसे डांटते हुए कहा तो सुहानी के हाथ से वह कॉफी मग छूट गया और वह काफी वहां मेज पर ही गिर गई और शायद कुछ देव के ऊपर भी, लेकिन देव अपनी चेयर पीछे करते हुए तुरंत ही उठकर खड़ा हो गया और बोला, "कम ऑन सुहानी! नाॅट अगेन... इतने महीनों में कम से कम अपनी यह आदत तो बदल लो तुम्हें पता है कितने मग तोड़ चुकी हो तुम मेरे, इन चार महीनों में... यहां तक तुमने मेरा फेवरेट और लकी कॉफी मग भी तोड़ दिया है।"

    "आई... आई एम सॉरी सर बट आप क्यों मुझे इस तरह से डांटे हैं और मैं बस 5 मिनट में ही तो आ गई हूं फिर भी आपको इतनी देर लगा तो मैं क्या कर सकती हूं।" सुहानी ने बिना उसकी तरफ देख ही मत जल्दी-जल्दी माफी मांगते हुए अपनी तरफ से सफाई दी और फिर कप के टुकड़े उठाने के लिए वहां पर झुकने लगी तो देव ने उसे मना करते हुए कहा, "रहने दो तुम अभी अपने भी चोट लगा लोगी, क्लीनर को भेजो!"

    उसकी बात सुनकर सुहानी पूरी तरह से झुकते हुए रुक गई और उसने जल्दी से अपना सिर हिलाया और फिर क्लीनर को बुलाने के लिए वहां से बाहर भाग गई, कुछ ही देर में क्लीनर ने वह सब साफ कर दिया और सुहानी जब तक देव के लिए दूसरी कॉफी लेकर आई और देव जब कॉफी पी रहा था तब सुहानी ने एकदम ही उससे पूछा, "सर! क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकती हूं?"

    सुहानी की बात सुनकर कॉफी पीते हुए देव ने मुड़कर उसकी तरफ देखा, उसने अपना कप होठों से लगाया हुआ था और सुहानी के इस सवाल पर उसने अपनी एक आईब्रो उठाकर उसकी तरफ देखा और फिर कप मेज पर रखते हुए बोला, "हां... पूछ सकती हो बट..."

    देव का बस इतना बोलना था की सुहानी एकदम ही रिलैक्स होकर आराम से बैठ गई और उसने देव को अपनी बात कंप्लीट भी नहीं करने दी उससे पहले ही वो बीच में बोल पड़ी, "सर! वो लड़का कौन था जो अभी थोड़ी देर पहले यहां पर आया था और आपने उसे इतने सारे पैसे क्यों दिए, कोई आपको ब्लैकमेल कर रहा है क्या, आई मीन वह देखने में तो ऐसा ही लग रहा था वो लड़का..."

    अपने दोनों हाथ टेबल पर रखकर अपना थोड़ा चेहरा आगे लाते हुए सुहानी ने आंखें सिकोड़ कर देव की तरफ देखते हुए एकदम सीरियस रहने की कोशिश करते हुए पूछा, लेकिन उसका ऐसा चेहरा देखकर देव को मन ही मन बहुत हंसी आ रही है, लेकिन वह उसके सामने मुस्कुरा नहीं पा रहा तो उसने अपने होठों को दबाते हुए एक हाथ अपने चेहरे पर रखा और बोला, "इतना ज्यादा दिमाग है तुम्हारे पास तो काम में क्यों नहीं लगाती, कम से कम एक काम ठीक से कर लिया करो बिना कुछ गिराए पड़ाए... और वो लड़का मेरा छोटा भाई था तुमने शायद उसे आज पहली बार ही देखा है।"

    To Be Continued...

  • 19. Contract Marriage with My Boss - Chapter 19

    Words: 1654

    Estimated Reading Time: 10 min

    19

    देव की यह बात सुनकर सुहानी ने अपना चेहरा एकदम ही पीछे किया और काफ़ी शर्मिंदगी से इधर-उधर देखती हुई बोली, "ओह सॉरी... आपका भाई हां... हां आपके जैसा भी लग रहा था देखने में आई मीन पर्सनालिटी..."

    "कुछ ज्यादा ही नोटिस कर लिया तुमने तो इतनी सी देर में उसे?" देव ने इस बार काफी सीरियस आवाज में कहा तो सुहानी सफाई देती हुई बोली, "नहीं... नहीं सर! ऐसा कुछ नहीं है मैं तो बस वह पैसे की वजह से पूछ रही थी वैसे..."

    सुहानी ने एकदम ही यह बात बोल दिया तो देव उसकी तरफ देखकर बेबसी से अपना सिर हिलाते हुए बोला, "इतनी क्यों फिक्र कर रही हो उन पैसों की, तुम्हारी सैलरी नहीं दे दी मैंने उसे जो इतनी टेंशन हो रही है तुम्हे, जस्ट रिलैक्स! और ये सब इधर-उधर की चीजों पर जरा कम ही ध्यान दिया करो और जो काम करती हो ना सारा ध्यान उस पर ही रखा करो जो कल डॉक्यूमेंट मिल नहीं रहे थे वो आज मिल गए या फिर नहीं पता नहीं कहां रख कर भूल जाती हो?"

    देव ने बात बदलते हुए उसे एकदम ही यह सवाल किया तो सुहानी अपनी जगह से उठकर खड़ी होती हुई बोली, "हां सर वो... वो मिल जाएंगे मैं बस अभी ढूंढ कर लाती हूं।"

    इतना बोलते हुए वह वहां से सीधे अपनी डेस्क की तरफ भाग गई।

    उसके वहां से जाने पर उसकी सिली और बे सिर पैर की बातों के बारे में सोचता हुआ देव ना चाहते हुए भी हल्का सा मुस्कुरा दिया और फिर उसकी तरफ ही देखने लगा जो की काफी ज्यादा परेशान चेहरे और माथे पर सिकुड़न के साथ इधर-उधर देखती हुई वह पेपर ढूंढ रही थी और देव ने तभी अपनी टेबल में लगा हुआ एक ड्राअर खोला और उसमें से वो पेपर निकाल लिए और दोबारा से हल्का मुस्कुराया क्योंकि वो पेपर्स उसके पास ही थे और वो बस सुहानी को परेशान कर रहा था क्योंकि कल सुबह वह खुद ही सारे डॉक्यूमेंट उसे देने के बाद अब भूल गई है।

    अपनी शादी की बात को लेकर देव की आज फिर अपनी मां के साथ बहस हुई और वह उस लड़की से मिलने के लिए बोल रही थी जिससे वह प्यार करता है और उनकी मां ने उससे कहा कि जब तुम मेरी पसंद की लड़की से शादी नहीं करना चाहते हो तो कम से कम अपनी पसंद की लड़की से ही मुझे मिलवा दो।

    देव की मां ने उसे यह बात इसलिए पूछी क्योंकि वह उस लड़की के बारे में जानना चाहती थी कि आखिर कौन है वो, देव जिसके प्यार में पड़ गया और उससे ही शादी करना चाहता था और अगर देव किसी और लड़की से शादी कर लेता जो उनके कहने पर ना चलती तो ऐसे में उनका काफी नुकसान होने वाला था और इसी बात को लेकर वो बहुत ही ज्यादा परेशान थी लेकिन देव ने अब तक उन्हें कुछ भी नहीं बताया था और वह हमेशा बात को कोई ना कोई बहाना बनाकर टाल देता था।

    इसी बीच उसका नेक्स्ट बर्थडे आने वाला था अगले 3 महीनों में और वह इसी बात को लेकर बहुत परेशान था और ऑफिस में अपनी चेयर पर बैठा हुआ इसी बारे में सोच रहा था, उसके सामने लैपटॉप ओपन रखा हुआ था और उस पर कुछ टैब भी ओपन थे लेकिन देव का ध्यान इस वक्त उस तरफ बिल्कुल भी नहीं था।

    सुहानी अभी इस वक्त केबिन में नहीं है वो सबके साथ लंच करने कैफेटेरिया में गई हुई है, वह अभी वहां पर अकेला है इसीलिए इस बारे में और भी ज्यादा सोच रहा है नहीं तो सुहानी होती है तो उसे किसी न किसी काम में बिजी रखती है या फिर किसी न किसी बात को लेकर वह उसके साथ डिसकस करता है जिससे कि उसका भी ध्यान थोड़ा सा डिस्ट्रैक्ट होता है और वो सुहानी में लगा रहता है।

    देव अपनी सोच में काफी गहराई से डूबा हुआ था कि तभी उसका मोबाइल फोन बजा और मोबाइल रिंगटोन की आवाज कान में पड़ते ही देव अपने ख्यालों से बाहर आया और इधर-उधर देखने लगा उसका फोन वहां टेबल पर ही कॉर्नर में रखा हुआ था। देव ने कुर्सी पर बैठे हुए ही अपना हाथ बढ़ाकर अपना मोबाइल फोन उठाया और फिर स्क्रीन पर देखा तो इनकमिंग कॉलर आईडी पर लिखा हुआ नाम देखकर उसने थोड़ा सा रिलैक्स फील किया और कॉल रिसीव कर लिया।

    कॉल रिसीव करके मोबाइल फोन अपने कान से लगाते हुए देव बोला, "थैंक यू सो मच यार मिहिर! तुझे हमेशा कैसे पता चल जाता है कि मैं टेंशन में हूं और मेरी टेंशन दूर करने के लिए तू या तो आ जाता है या इसी तरह से तेरा कॉल..."

    दूसरी तरफ से उसके दोस्त मिहिर की आवाज आई, "अरे ना हेलो ना हाल-चाल सीधा थैंक यू क्या बात है चलो जो भी हो बताओ क्या टेंशन है मैं तो हूं ही तुम्हारा जिनी तुम्हारी सारी विश पूरी करने के लिए और प्रॉब्लम्स दूर करने के लिए, बोलो बच्चा...हा हा हा"

    देव ने यह बात जितने ही सीरियस अंदाज में कही थी दूसरी तरफ से उतनी ही ड्रैमेटिक आवाज आई और इतना बोलते हुए कॉल पर बात करता हुआ वो लड़का खुद ही हंसने लगा अपने जोक पर जबकि देव के चेहरे पर हल्की सी स्माइल भी नहीं आई और उसने एकदम डन फेस बनाते हुए कहा, "मिहिर! हो गया तुम्हारा हंस चुके अपने ही सड़े हुए जोक पर या फिर अभी और बाकी है।"

    दूसरी तरफ से मिहिर की आवाज आई, "मेरा जोक सड़ा हुआ नहीं है बल्कि सड़े हुए तुम हो हमेशा सड़ू जैसी शक्ल बनाई होती है अभी भी वैसी ही बनाई होगी, आई एम श्योर!"

    देव ने अपनी आइस रोल करते हुए कहा, "हां तो ऐसे सड़ू लोगों को दोस्त तुम ही बनाते हो वह भी पीछे पड़कर, अब मेरी बात सुनोगे या फिर नहीं..."

    मिहिर ने कॉल पर पूछा, "हां .. हां बोल क्या प्रॉब्लम है?"

    एक गहरी सांस लेते हुए देव ने कहा, "अरे यार प्रॉब्लम तो काफी ज्यादा है लेकिन ऐसे नहीं एक बात बता तू अभी मेरे ऑफिस के पास वाले ब्लू स्टार रेस्टोरेंट में मीटिंग के लिए आ सकता है मिलकर आराम से बात कर लेंगे।"

    मिहिर ने तुरंत कहा, "हां, ठीक है मैं वहां से पास में ही हूं तो आ जाता हूं चलो तुम भी वहां पर ही आ जाना वैसे मैं तेरे ऑफिस ही आ जाता वहां बाहर मिलने की क्या जरूरत है।"

    देव तुरंत मना करते हुए बोला, "अरे नहीं नहीं ऑफिस नहीं जो बात मुझे करनी है वह यहां पर ऑफिस में नहीं हो पाएगी बस इसलिए..."

    मिहिर ने अब परेशान होते हुए पूछा, "ऐसी क्या बात हो गई, सब ठीक तो है ना?"

    देव फिर से इस तरह गहरी सांस लेकर बोला, "सब ठीक तो नहीं है मतलब अभी तक तो ठीक है लेकिन पता नहीं कब तक रहेगा और आ जाना तू जल्दी मिलकर बताता हूं सब..."

    मिहिर ने बात खत्म करते हुए कहा, "ओके! पहुंचता हूं मैं, 10-15 मिनट लगेगा बस..."

    "ओके बाय मुझे तो बस 5 मिनट लगेगा।" इतना बोल कर देव ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी और फिर अपने आगे फैला हुआ सारा काम खत्म करने लगा उसने जल्दी-जल्दी वह सारे प्रोजेक्ट फाइल सेव किए लैपटॉप में और फिर तब क्लोज करने लगा।

    उसे पता था मिहिर से बात करके उसे इस प्रॉब्लम का कोई ना कोई सॉल्यूशन तो जरूर मिल ही जाएगा क्योंकि मिहिर के पास ऐसी सारी प्रॉब्लम के सोल्यूशन हमेशा ही मिल जाते हैं अब यह सिर्फ उसके लिए हो या सब के लिए लेकिन मिहिर उसका सिर्फ बेस्ट फ्रेंड नहीं बल्कि सच में उसका जिनी ही है जो हमेशा ही उसकी प्रॉब्लम सॉल्व कर देता है।

    देव और मिहिर के नेचर में जमीन आसमान का फर्क है जहां देव एकदम कोल्ड और स्ट्रिक्ट एटीट्यूड और रिजर्व टाइप की पर्सनैलिटी वाला बंदा है वहीं दूसरी तरफ मिहिर एकदम खुली किताब है हमेशा खुश रहने वाला हंसने बोलने वाला और उसके साथ सभी बहुत कंफर्टेबल फील करते हैं।

    वह दोनों कॉलेज टाइम से फ्रेंड है जब देव कॉलेज में था और वह ज्यादा किसी से बात नहीं करता था तब मिहिर खुद ही बार-बार उसे अप्रोच करता था और उसके फ्रेंडली नेचर को देखते हुए देव भी ज़्यादा उसे मना नहीं कर पाया क्योंकि उसे जब भी जरूरत होती थी मिहिर ने हमेशा ही उसकी मदद की और तब से लेकर अब तक वह दोनों दोस्त और बेस्ट फ्रेंड है और अब तो बिजनेस पार्टनर भी बन गए हैं मिहिर की कंपनी इतनी बड़ी नहीं है लेकिन देव उसे हमेशा ही सपोर्ट करता है।

    कुछ देर बाद;

    सुहानी अपना लंच करके कैफेटेरिया से वापस आई और इस वक्त देव सारा काम खत्म करके अपना मोबाइल पॉकेट में रखता हुआ, कार की चाबी हाथ में लेकर दरवाजे से बाहर निकल रहा था और जिस वक्त सुहानी अंदर आ रही थी ठीक उसी वक्त देव ने ही केबिन का दरवाजा अंदर से खोला तो वह दोनों दरवाजे पर एकदम ही एक दूसरे से टकरा गए और सुहानी संभाल नहीं पाई वह एकदम से हड़बड़ा गई और उसे ऐसा लगा वह गिर जाएगी तो डर की वजह से उसने अपनी आंखें कसकर बंद कर ली।

    सुहानी को इस तरह एकदम दरवाजा खुलते ही सामने देख कर देव अपनी जगह पर रुक गया लेकिन सुहानी फिर भी आगे आ गई तो उसे टकराते हुए वो एकदम ही लड़खड़ा गई लेकिन देव ने उसे गिरने से पहले ही थाम लिया और उसके हाथ को मजबूती से पकड़ लिया और उसका दूसरा हाथ उसकी कमर पर था जिससे सुहानी जमीन पर नहीं गिरी।

    To Be Continued

  • 20. Contract Marriage with My Boss - Chapter 20

    Words: 1577

    Estimated Reading Time: 10 min

    20

    वह दोनों केबिन के अंदर आ चुके थे इसलिए बाहर ऑफिस का कोई भी उन दोनों को नहीं देख पा रहा था और देव ने सुहानी के चेहरे को इतने करीब से देखा और फिर उसकी नज़रें उसके होठों पर जम गई और उसका मन हुआ कि उसे आगे बढ़कर किस कर ले लेकिन सुहानी का एकदम डरा सहमा हुआ सा चेहरा उसके आगे था, गिरने के डर की वजह से उसने उस तरह का चेहरा बनाया हुआ है और इसीलिए देव ने तुरंत ही खुद को कंट्रोल करते हुए अपना चेहरा पीछे कर लिया।

    कुछ सेकंड बाद ही सुहानी को एहसास हो गया कि वह जमीन पर नहीं गिरी बल्कि बीच हवा में ही है, उसे अपनी कमर पर एकदम जाना पहचाना सा टच फील हुआ और उसका हाथ भी अब तक देव के चेस्ट पर था तो उसने एकदम ही अपनी आंख खोली और अपने सामने देव को देखा तो उसकी आंखें एकदम खुली की खुली रह गई और वह कुछ बोल नहीं पाई।

    देव ने उसकी तरफ देख कर बिना कुछ बोले ही अपनी आईब्रो अप करते हुए आंखों से इशारा किया, सुहानी को पता नहीं क्यों देव के इतना नजदीक होने की वजह से अजीब सी फीलिंग आ रही थी क्योंकि इससे पहले उन दोनों के बीच जो भी इंटरेक्शन हुए हैं वह उस दिन देव का उसे किस करना और फिर जिस तरह से देव ने उसे गले लगाया और उस दिन मीटिंग रूम में जो हुआ, वो सब कुछ सुहानी के आंखों के सामने ही आ रहा था।

    उसे खुद नहीं पता कि देव के इतना नजदीक होकर वो आखिर क्या चाहती है लेकिन जैसे ही उसे अपनी पोजीशन का एहसास हुआ वह तुरंत ही सीधी होकर खड़ी हो गई और बोली, "सॉरी सॉरी आई एम सॉरी सर मैंने आपको देखा नहीं आते हुए..."

    उसके इस तरह से सॉरी बोलने पर अपना सिर हिलाते हुए देव ने भी उसका हाथ छोड़ा और उसकी तरफ देखते हुए बोला, "ये सब गिरना पड़ना कभी बंद होगा भी तुम्हारा या फिर ऐसे ही..."

    देव के इस तरह ताना मारते हुए बोलने पर सुहानी ने मुंह बनाकर कहा, "मैं कौन सा जानबूझकर ऐसा करती हूं और वैसे भी आपने ठीक उसी टाइम पर दरवाजा खोल दिया जब मैं अंदर आ रही थी।"

    देव ने अपनी नज़रें तेढ़ी करके उसकी तरफ देखते हुए कहा, "अच्छा तो क्या मेरी गलती है, खुद देख कर चलती नहीं और मुझे बोल रही हो।"

    सुहानी ने उससे ज्यादा बहस करना ठीक नहीं समझा लेकिन फिर भी चुप रहने वालों में से वो नहीं थी इसलिए आगे बोली, "नहीं... मैंने ऐसा कब कहा कि आपकी गलती है मैं तो बस आप मुझे क्यों ब्लेम करते हैं और कौन सा कोई जानबूझकर गिरती रहती हूं मैं वो तो गलती से और अभी... आप कहीं जा रहे हैं क्या हैं क्या?"

    उसकी बाकी सारी बातों को इग्नोर करते हुए देव ने उसके आखिरी सवाल का जवाब देते हुए बोला, "हां वो मैं एक जरूरी मीटिंग के लिए बस यही..."

    देव अपनी बात पूरी कर पाता उससे पहले ही सुहानी बीच में बोल पड़ी, "कौन सी मीटिंग, आज तो आपकी कोई भी मीटिंग नहीं है और अगर है तो फिर मुझे क्यों नहीं पता इस बारे में और आप अकेले ही जा रहे हैं क्या मीटिंग के लिए मुझे साथ नहीं ले जाएंगे।"

    सुहानी ने उसकी तरफ देखते हुए एक साथ इतने सारे सवाल किया तो देव उसके कंधे पर हाथ रखकर उसकी तरफ देखते हुए बोला, "रिलैक्स सुहानी! कोई बिजनेस मीटिंग नहीं है मैं बस मिहिर से मिलने के लिए जा रहा हूं और यही पास में ब्लू स्टार होटल... और तुम साथ आकर क्या करोगी यह कोई बिजनेस मीटिंग तो है नहीं?"

    देव ने उसे साथ आने के लिए मना किया तो सुहानी को थोड़ा बुरा लगा और वो नीचे देखते हुए बोली, "हां... पर्सनल है तो मैं आकर क्या ही करूंगी।"

    देव ने यह चीज नोटिस कर ली लेकिन फिलहाल उसका मिहिर से मिलने जाना ज्यादा इंपोर्टेंट है क्योंकि उसे 15 मिनट से ज्यादा हो गए हैं कॉल पर बात किए हुए और अभी वो सुहानी के साथ खड़ा वहां पर टाइम वेस्ट कर रहा है इसलिए उसने कहा, "तुम आराम से अपना बचा हुआ काम कंप्लीट कर लेना जब तक, कोई नहीं होगा तुम परेशान करने के लिए यहां..."

    इतना बोल कर देव वहां से चला गया लेकिन उसके पीछे सुहानी वहां पर ही खड़ी होकर धीमी आवाज में बोली, "लेकिन मुझे चाहिए कोई परेशान करने वाला, जो हमेशा ही सुहानी सुहानी... मेरा नाम लेकर मुझे बुलाता रहे और जानबूझकर मुझे अपने आसपास रखने के लिए बस मुझे कम देता रहे वह सारे काम मैं खुशी-खुशी कर लूंगी।"

    सुहानी ने यह बात वहां पर खड़े होकर बोली लेकिन इस वक्त वह वहां पर एकदम अकेली है और उसके मन की यह बात सुनने के लिए उसके आसपास कोई भी नहीं है क्योंकि देव वहां से जा चुका है।

    उसके जाने के बाद सुहानी ने एक गहरी सांस ली और फिर पीछे मुड़कर केबिन की तरफ ही देखने लगी और फिर वापस आकर अपने काम में लग गई।

    *****

    दूसरी तरफ देव होटल पहुंचा तो उसे आधे घंटे से ज्यादा हो चुका था और वह समझ गया कि मिहिर वहां पर आ चुका होगा और जब वह वहां पर पहुंचा तो उसने देखा कि मिहिर वहां होटल की एक वेट्रेस से काफी मुस्कुरा कर बात कर रहा था और वह भी उसी तरह से उसकी बात का जवाब दे रही थी, उसने हाथ में ट्रे पड़ी हुई थी शायद वह उसके लिए पानी या फिर कुछ स्नैक्स टेबल पर रखने के लिए आई होगी लेकिन अकेले बैठे हुए मिहिर ने उसे ही बात करना शुरू कर दिया, देव ने दूर से वह सब देखा और बेबसी से अपना सिर हिलाने के अलावा वह कुछ नहीं कर पाया क्योंकि वो अपने दोस्त को काफी अच्छे से जानता है।

    सुहानी का घर,

    सुहानी को काम से वापस आने में आज थोड़ी देर हो गई क्योंकि उसे कोई भी टैक्सी नहीं मिल रही थी और जब वह वापस आई तो उसकी चाची रोज की तरह ही चालू हो गई।

    सुहानी के घर के अंदर कदम रखते ही उसकी चाची ने उस पर चिल्लाते हुए कहा, "यह कोई वक्त है घर वापस आने का टाइम देखा है तुमने 11:00 बज रहे हैं तुम्हारी पीठ पीछे मोहल्ले वाले कैसी-कैसी बातें करते हैं और वह सब मुझे सुनना पड़ता है।"

    चाची की आवाज सुनकर घर के बाकी लोग भी उठ कर बैठे हुए हैं फिलहाल घर में 4 लोग ही रहते हैं सुहानी की चाचा, चाची, उनकी बेटी और उनका बेटा बाहर हॉस्टल में पढ़ता है जो की विनीशा से छोटा है।

    सुहानी ने घर के अंदर आते हुए कहा, "मुझे भी कोई शौक नहीं है इतनी देर तक घर के बाहर रहने का और काम करने के लिए भी मुझे अपने ही मजबूर किया है नहीं तो मैं यह जॉब करना भी नहीं चाहती थी और जब घर से बाहर निकलो तो कभी ना कभी देर हो ही जाती है कभी पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं मिलता तो कभी ट्रैफिक..."

    सुहानी ने अपनी सफाई में इतना बोला और अंदर आते हुए सीधा अपने कमरे की तरफ जाने लगी क्योंकि वहां पर हाल में रुकने का उसका कोई भी मन नहीं था, उसे पता था अगर वह वहां पर रुकेगी तो उसे और भी बहुत कुछ सुनना पड़ेगा और इतना थके होने के बाद वो कुछ भी सुनने के मूड में नहीं थी।

    चाची ने तुनककर जवाब दिया, "हां, तो क्या मुफ्त की रोटियां तोड़ना चाहती हो यहां तुम्हारे बाप का कोई खजाना नहीं रखा है जिसमें से निकाल निकाल कर मैं तुम्हारे खर्चे पूरे करूंगी और अपने लिए ही तो काम करती हो कौन सा मेरे लिए करती हो।"

    बात ना बढ़े इस वजह से सुहानी ने आगे कुछ नहीं बोला और वह चुपचाप आगे बढ़ गई लेकिन चाची फिर से उसके रास्ते में आ गई और बोली, "यह सब नहीं चलेगा यहां मेरे घर पर और काम करती हो तो कौन सा एहसान करती हो इसके बहाने मैं तुम्हें इतनी देर रात तक बाहर रुकने की परमिशन नहीं दे सकती वैसे भी रोज तो 8 या 9 बजे तक घर आ जाती हो तो आज 2 घंटे कहां फिर रही थी जो जाकर वहीं रहो यहां मेरे घर में वापस आने की कोई जरूरत नहीं है।"

    विनीशा ने हमेशा की तरह ही सुहानी की साइड लेते हुए कहा, "मम्मी यह तुम क्या बोल रही हो दीदी को और वैसे भी थोड़ा सा देर हो जाने पर इतनी भी क्या आफत आ गई।"

    चाची ने अपनी बेटी को भी डांट कर चुप कराते हुए कहा, "विनीशा! तू चुप कर जा तुझे कुछ नहीं पता है यह इस तरह से इतनी देर तक बाहर रहेगी और वैसे भी इतनी अपनी मनमानी करती है, बिन मां बाप की बेटी... इसके लिए तो रिश्ते आना वैसे भी मुश्किल है लेकिन यहां पर है कि ना तो फिर कल को तेरे लिए भी कोई रिश्ता नहीं आएगा।"

    इतनी देर से वहां पर खड़े होकर उन सब की बात सुन रहे चाचा जी ने भी आखिरकार बोला, "रेखा! तुम कहां की बात को कहां लेकर जा रही हो? उसने कहा ना किसी वजह से देर हुई थी फिर भी..."

    To Be Continued...