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"मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)

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Mira Sharma

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Description

कुछ कहानियाँ इत्तेफ़ाक़ नहीं होतीं… वो टकराव से जन्म लेती हैं। यह कहानी है सात्विक सिंह राजपूत की, एक ऐसा व्यक्ति जिसकी आँखों में सिर्फ घमंड है, और आत्मा में ऐसा उग्रपन जो किसी के सामने झुकना नहीं जानता।वो सिर्फ अपनी सोच को एब्सोल्यूट मानता है,...

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सात्विक सिंह राजपूत

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Total Chapters (65)

Page 1 of 4

  • 1. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-1

    Words: 1567

    Estimated Reading Time: 10 min

    एक बड़े से घर में आग लगी हुई थी। आग बहुत विकराल रूप ले चुकी थी, शांत होने का नाम नहीं ले रही थी। तभी वहाँ कुछ गाड़ियाँ आकर रुकीं, जिनमें से एक औरत, उसकी सास और बच्चे बाहर आए। घर में आग लगी देखकर वे स्तब्ध होकर खड़े हो गए, जैसे बेसहारा हो चुके हों।

    बच्चे आग लगी देखकर रोने लगे। कुछ देर बाद वहाँ फायर ब्रिगेड आकर रुका और घर में लगी आग बुझाने लगा। फिर अंदर से चार बॉडीज़ निकाली गईं, जो पूरी तरह जल चुकी थीं। यह देखकर पूरा परिवार और डर गया। उनमें से एक महेंद्र जी और दादाजी की थी, बाकी घर के दो नौकरों की थीं। उन सारी बॉडीज़ को मृत घोषित कर दिया गया।

    तब वो औरत, जो 38 साल की थी, रोते हुए बोली, "अब कुछ नहीं हो सकता। सब कुछ खत्म हो गया!"

    उनकी बेटी, जो 17 साल की थी, बोली, "माँ, क्या पापा और दादा जी अब नहीं रहे?"

    तो उसकी दादी रोते हुए बोली, "हाँ बेटा, महेंद्र और तेरे दादाजी अब नहीं रहे।"

    यह सुन वो लड़की रोने लगी। तब उसकी माँ ने अपने आँसू पोछे और सब से कहा, "जो होना था, हो गया। अब रोने से कुछ नहीं होगा। मैंने फैसला कर लिया है। अब हम यहाँ नहीं रहेंगे।"

    तो उनकी सास बोली, "लेकिन मान्यता बहु, यह क्या कह रही हो? हम यहाँ नहीं रहेंगे तो कहाँ जाएँगे?"

    मान्यता बोली, "जहाँ कहीं भी जाएँगे, लेकिन अब यहाँ नहीं रहेंगे।"

    इतना कहकर मान्यता अपने बच्चों के पास गई और उनसे कहती है, "द्रक्षता, दर्शित, दृशा, मत रो। तुम सबकी मम्मा अभी जिंदा है।"

    इतना कहकर अपने बच्चों को गले लगा लेती है, जिससे कुछ देर रोने के बाद तीनों शांत हो जाते हैं। मान्यता और गरिमा जी (द्रक्षता की दादी) महेंद्र जी और दादाजी का अंतिम संस्कार करती हैं। इसके बाद मान्यता सभी को लेकर कहीं दूर चली जाती है।

    (छह साल बाद)

    (महाराष्ट्र)

    (मुंबई)

    (सुबह का समय)

    एक सामान्य सा घर, जो देखने में बहुत खूबसूरत और मध्यम वर्गीय परिवार का लग रहा था। चार कमरों का यह छोटा सा घर था। घर के अंदर एक कमरे में दो लड़कियाँ सो रही थीं। एक की उम्र तकरीबन 22 साल की होगी, पर वह बहुत खूबसूरत थी, और दूसरी की 17 साल। तभी घड़ी का अलार्म बजने लगता है, जिससे पहली लड़की की नींद टूट जाती है। तो वह जल्दी से उठकर बाथरूम में जाकर नहाती है, फिर कपड़े बदलकर कमरे में वापस आती है। तो उसकी बहन सो रही थी।

    वह उसके पास जाकर उसे उठाती है, "दिशू, उठ, सुबह हो गई। और कितना सोएगी? स्कूल नहीं जाना क्या?"

    दृशा बोली, "यार दी, प्लीज 5 मिनिट और सोने दो ना।"

    द्रक्षता: "चुपचाप उठ और तैयार हो।"

    फिर द्रक्षता अपने भाई के कमरे में जाकर उसे उठा देती है।

    उसके बाद घर में बनी छोटी सी मंदिर में जाकर पूजा करती है और अपने पापा और दादा की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर नम आँखों से उनसे कुछ बातें करने लगती है, "पापा, दादाजी, आप क्यों हमें छोड़कर चले गए? माँ और हम सभी बहुत अकेले हो चुके हैं। हमें बहुत जरूरत है आपकी। पता है आपको, आपकी द्रक्षता बहुत अकेली हो चुकी है। पढ़ाई के साथ-साथ काम करना पड़ता है। आप दोनों वापस क्यों नहीं आ जाते?"

    उसके बाद द्रक्षता किचन में जाकर नाश्ता बनाती है। उसकी दादी वहीँ हॉल में बैठी थी। उन्हें चाय लेकर देती है और कहती है, "दादी, मैं माँ के पास जा रही हूँ।"

    तभी दृशा और दर्शित वहाँ आकर डाइनिंग टेबल पर बैठ जाते हैं और नाश्ता करने लगते हैं। फिर वह अपने भाई, जो कि नाश्ता कर रहा था, से बोली, "दर्शित, अगर खाना हो जाए, तो दिशू को उसके स्कूल ड्रॉप करने चले जाना। मैं बेकरी जा रही हूँ। ठीक है?"

    दर्शित ने जवाब दिया, "हम्म, चला जाऊँगा।"

    उसका भाई कॉलेज में अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा था और उसकी छोटी बहन दृशा 12th स्टैंडर्ड में पढ़ती थी।

    उसके बाद वह बेकरी चली जाती है, जो उसके घर से लगभग 10 मिनट की दूरी पर था। उस बेकरी की ओनर उसकी माँ मान्यता थी। वहाँ वो देखती है कि मान्यता कस्टमर्स में बिजी थी। जिसे देख वो भी अपनी मान्यता की हेल्प करने लग जाती है। थोड़ी देर बाद जब कस्टमर्स कम हो जाते हैं, तो मान्यता उसे काम करते हुए देख कहती है, "एक बहुत बड़ा ऑर्डर आया है, केक्स का। तेरे पास समय हो तो तुम मेरी हेल्प कर देना। कॉलेज है तो कोई बात नहीं, मैं खुद कर लूँगी। लेकिन मदद कर देती तो ज्यादा अच्छा होता।"

    द्रक्षता: "अरे माँ, दो दिन कॉलेज नहीं जाऊँगी तो कुछ नहीं होगा। मैं आपकी मदद करूँगी। वैसे भी कुछ दिनों बाद दादा जी और पापा की बरसी है तो उसकी भी तैयारी करनी होगी।" (बोलते बोलते वह थोड़ी भावुक हो जाती है)

    मान्यता कहती है, "हाँ, 6 साल बीत गए उस हादसे को, लेकिन अभी भी उनकी कमी खलती है। राजेंद्र जी और पापा के दोषी अभी भी खुले घूम रहे हैं, जैसे उन्होंने कुछ किया ही ना हो।"

    द्रक्षता: "माँ, देखना एक दिन मैं पापा और दादाजी के दोषियों से बदला जरूर लूँगी। उन सब को भी बदतर से बदतर जिंदगी नसीब होगी।"

    मान्यता: "लेकिन बेटा, यह मत भूलना कि वे हमसे ज्यादा ताकतवर हैं। हमें हर कदम बेहद सावधानी से रखना होगा, जिससे उन्हें कोई भनक भी ना लगे।"

    द्रक्षता: "ठीक है, छोड़ो माँ यह सब बाद की बातें हैं। तब तक हम पापा और दादाजी की बरसी पर फोकस करते हैं।"

    मान्यता: "हम्म, ठीक है।"

    उन दोनों को काम करते-करते दोपहर के डेढ़ बज जाते हैं। टाइम देखते हुए वो अपनी माँ से कहती है, "माँ, अब मैं होटल जाती हूँ। यहाँ आप संभाल लेना।"

    जवाब में मान्यता कहती हैं, "ठीक से जाना और समय से आ जाना।"

    मान्यता अपने आप से कहती है, "उम्र से पहले ही मेरी बच्ची पर कितनी ज़िम्मेदारियाँ आ चुकी हैं।"

    हयात होटल में द्रक्षता वेट्रेस के तौर पर पार्ट टाइम जॉब करती थी। अपने समय के अनुसार होटल पहुँचकर अपने काम में लग जाती है। आज होटल में अन्य दिनों से ज्यादा चहल-पहल थी। अपनी एक को-वर्कर से पूछने पर उसे पता चलता है कि आज कोई बड़ा बिज़नेसमैन आने वाला है, जिसके कारण उसके वेलकम के लिए इतनी तैयारी हो रही है। इस बात पर वह ज्यादा ध्यान नहीं देती और अपना काम करने लगती है।

    होटल की मैनेजर आकर उसे कहती हैं, "मिस द्रक्षता, इस होटल की ओनर आज आने वाले हैं, तो उनका स्वागत तुम्हें करना है। क्या तुम तैयार हो?"

    द्रक्षता: "हाँ, मैं तैयार हूँ।"

    उसके बाद वह अपने काम में लग जाती है और होटल ओनर के स्वागत की तैयारी करने लगती है। कुछ 1 घंटे के बाद होटल के बाहर 3 से 4 बहुत महंगी गाड़ियाँ आकर रुकती हैं। जिसके आगे-पीछे की गाड़ियों में से काले कपड़े पहने बॉडीगार्ड निकलते हैं और हेड बॉडीगार्ड जाकर बीच वाली कार का दरवाजा खोलते हैं। जिसमें से लंबे कद का व्यक्ति बाहर आता है, जिसने टॉप टू बॉटम ब्लैक अरमानी सूट पहना हुआ था।

    वह व्यक्ति दिखने में बेहद खूबसूरत था, लेकिन उसके चेहरे के भाव शून्य थे। उसने अपनी गहरी नीली आँखों पर कार से बाहर आने पर सनग्लासेज़ चढ़ा लिए। उसका औरा काफी खतरनाक और ठंडा था।

    उसके साथ दो व्यक्ति और बाहर आते हैं। पैसेंजर सीट पर बैठा हुआ व्यक्ति उसका असिस्टेंट था और एक उसके साथ बैठा हुआ व्यक्ति उसका दोस्त था, जिसकी उम्र लगभग बराबर की थी, 27 वर्ष। उसका असिस्टेंट, जिसकी आँखों पर मोटे फ्रेम का चश्मा चढ़ा हुआ था, बोला, "सर, रूम नंबर 1269 में मिस्टर मित्तल आपका वेट कर रहे हैं।"

    असिस्टेंट की बात सुन वह बस हम्म में जवाब दिया और आगे चलने लगा।

    यह व्यक्ति राजपूत कॉरपोरेशन का सीईओ, मिस्टर सात्विक सिंह राजपूत है, जो अपनी खतरनाक औरा के लिए पहचाने जाते हैं। राजपूत परिवार के औरा और उनकी रॉयल्टी के बारे में कौन नहीं जानता? यह राजपूत खानदान के सबसे बड़े बेटे हैं। उसका दोस्त दीपक शर्मा, शर्मा इंटरप्राइजेज का भावी सीईओ था।

    होटल के एंट्रेंस पर द्रक्षता और कुछ होटल स्टाफ उनके स्वागत के लिए खड़े थे। जब वह अपने सामने इतने अत्यंत सुंदर पुरुष को देखती है, तब उसके दिल की धड़कन असामान्य गति से धड़कने लगती है। यही हाल सात्विक का भी था। वह अपनी हो रही बेचैनी का कारण समझ नहीं पा रहे थे। जब उनकी नज़र होटल के एंट्रेंस पर खड़ी लड़की पर पड़ती है, तब उनकी निगाहें उस पर ही ठहर जाती हैं। वह लड़की बेहद खूबसूरत थी। उसकी हल्की भूरी आँखें सबको अपनी ओर आकर्षित करने के लिए काफी थीं। वह अपलक उसे देखते रह जाते हैं। उनका ध्यान तब टूटता है जब उनके दोस्त दीपक उन्हें आवाज देते हैं, "क्या हुआ सात्विक, खड़े क्यों हो? अंदर जाने का इरादा नहीं है क्या?"

    सात्विक बोले, "ऐसी बात नहीं है, चलो।"

    सब एंट्रेंस पर पहुँचते हैं। तब द्रक्षता सात्विक को फूलों का बुके देते हुए कहती है, "वेलकम सर। हम कोशिश करेंगे कि हमारे होटल में आपको किसी भी प्रकार की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा। हैव अ नाइस डे, सर।"

    सात्विक सिर्फ़ ह्म्म्म में जवाब देता है और असिस्टेंट राघव और दीपक के साथ अंदर चला जाता है।

    जब वह चला जाता है, तब द्रक्षता को अपनी धड़कनों की गति पर कुछ कंट्रोल महसूस होता है। वह अपने आप से कहती है, "यह क्या हो रहा है मुझे? इनको देखते ही मेरी धड़कनें इतनी क्यों बढ़ गई थीं? दूर रहना होगा इनसे। मुझे अभी इस प्यार मोहब्बत के जाल से बचे रहना है।"

  • 2. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-2

    Words: 1387

    Estimated Reading Time: 9 min

    द्रक्षता अपने काम में व्यस्त थी। तभी मैनेजर आकर उसे रूम नंबर 1269 में सर्विस देने को कहा। द्रक्षता ऑर्डर लेकर वहाँ गई। वह एरिया वीआईपी लोगों के लिए था। उसने उस रूम का दरवाज़ा खटखटाया। कुछ देर बाद रूम का दरवाज़ा खोला गया।

    सामने खड़ा शख्स राघव था। उसने उसे अंदर आने को कहा। द्रक्षता अंदर जाकर देखती है तो एक सोफे पर सात्विक और दीपक बैठे थे और उसके ऑपोजिट सोफे पर एक मिडिल एज पर्सन और एक जवान आदमी था।

    सात्विक को देखकर उसकी धड़कनें फिर असामान्य हो गईं। सात्विक का ध्यान उस पर नहीं था क्योंकि वह अपने सामने बैठे व्यक्तियों से कुछ डिस्कशन कर रहे थे। उसने ऑर्डर को टेबल पर रख दिया।

    तब कहीं जाकर सात्विक का ध्यान उस पर गया। सात्विक की नज़रें उसे देख बेचैन हो रही थीं। उन्हें नहीं पता था कि यह क्यों और कैसे हो रहा है। फिर उसने उस पर से नज़रें हटा लीं।

    अपना काम पूरा करके द्रक्षता वहाँ से चली गई।

    सात्विक ने डिस्कशन को जारी रखते हुए कहा, "मिस्टर मेहता, क्या हमें सच में आपके प्रोजेक्ट पर इन्वेस्ट करना चाहिए? क्या हमें इससे कोई नुकसान नहीं झेलना पड़ेगा?"

    मिस्टर मेहता, जो सात्विक की कोल्ड नज़रों और ठंडे अंदाज़ से पहले ही बहुत डरे हुए थे, बोले, "हम इसमें पूरी कोशिश करेंगे कि आपको किसी भी तरह का नुकसान न झेलना पड़े।"

    सात्विक ने उन्हें घूरते हुए जवाब दिया, "मैं कोशिश में नहीं, रिजल्ट में बिलीव करता हूँ।"

    उसके इतना कहते ही मिस्टर मेहता अपने डर को कंट्रोल करते हुए बोले, "जी ऐसा ही होगा। तो क्या हम कॉन्ट्रैक्ट साइन कर सकते हैं?"

    सात्विक ने कहा, "ठीक है, लेकिन नुकसान होने पर खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहिए।"

    मिस्टर मेहता कॉन्ट्रैक्ट पेपर्स उनके सामने रख दिए। सात्विक ने उसे पढ़कर साइन कर दिया।

    फिर सारी फॉर्मेलिटी पूरी करके सात्विक उठकर दीपक और राघव के साथ चले गए।

    वह तीनों जब होटल से बाहर जा रहे थे, तब सात्विक को द्रक्षता दिख गई जो किसी कस्टमर का ऑर्डर ले रही थी। वह उसे देख ठहर गए और उसे निहारने लगे।

    "क्या है इसमें ऐसा? लेकिन कुछ तो है इस लड़की के चेहरे में जो मुझे बार-बार अपनी ओर अट्रैक्ट करता है।"

    सात्विक के मन में यह चल रहा था कि तभी दीपक की आवाज आई, "भाई, तुम आज इतने एब्नार्मल क्यों बिहेव कर रहे हो? हर समय चलते-चलते रुक जा रहे हो और सोचने लग जा रहे हो। सोचना ही है तो घर जाकर सोचो, यह भी कोई सोचने की जगह है?"

    सात्विक कुछ सोचते हुए बोले, "मुझे यह लड़की चाहिए।" उन्होंने द्रक्षता की ओर इशारा कर दिया।

    उनके इशारे को फॉलो करके दीपक और राघव दोनों हैरान रह गए क्योंकि सात्विक लड़कियों की तरफ़ नज़र उठाकर भी नहीं देखता था और आज उसे लड़की चाहिए, यह उन दोनों को डाइजेस्ट नहीं हो पा रहा था।

    राघव बोला, "सर, आप नींद में तो नहीं हैं?"

    सात्विक उसे बेहद ठंडी निगाहों से घूरने लगे।

    फिर कुछ सोचकर उसे देखते हुए बोले, "मुझे इस लड़की की सारी जानकारी चाहिए। कल तक का वक्त है तुम्हारे पास।"

    दीपक, जो अभी तक इस सदमे से बाहर नहीं आ पा रहा था, बोला, "सात्विक, तुम्हारे दिमाग में कहीं शॉर्ट सर्किट हुआ है क्या? तुम्हें और लड़की चाहिए?"

    सात्विक उसकी बात को पूरी तरह इग्नोर करते हुए बाहर चले गए।

    वहीं द्रक्षता अपना काम खत्म करके घर आ चुकी थी।

    मान्यता उसे देखती है तो उसके पास आकर कहती है, "ज़्यादा थकान हो गई क्या आज?"

    उसने कहा, "नहीं माँ, ऐसा कुछ नहीं है।"

    मान्यता बोली, "सब समझती हूँ मैं। साफ दिख रहा है तेरे चेहरे पर कि कितनी थकी हुई है। जा, जाकर जल्दी से मुँह हाथ धोकर आ। मैं खाना लगाती हूँ।"

    द्रक्षता बोली, "ठीक है माँ।"

    मान्यता खाना लगाकर सभी को खाने के लिए बुला लाई। सभी खाने बैठ गए।

    तभी दृशा सभी से बोली, "माँ, दी, कुछ दिनों में मेरे स्कूल में एनुअल प्रोग्राम्स होने वाले हैं तो उसी में मैंने पार्टिसिपेट करने का सोचा है।"

    द्रक्षता बोली, "तो इसमें इतना सोचना क्या बात है? तुम्हें जो करना है करो, कोई तुम्हें नहीं रोकेगा। किस दिन है प्रोग्राम? बता दो, उस दिन हम सभी तुम्हारे लिए जरूर जाएँगे।"

    दृशा खुश होते हुए बोली, "क्या सच में? थैंक यू दी, आप बहुत अच्छी हो। आपके तरह तो सबको होना चाहिए।"

    दर्शित, जो खाना खा रहा था, उसकी खुशी देखकर बोला, "हो गया चुड़ैल, अब खाना खा या भूखे सोने का इरादा है आज तेरा?"

    दृशा चिढ़कर मान्यता से बोली, "माँ, समझ लो अपने बेटे को। बहुत बड़बोला हो गया है।"

    मान्यता दर्शित को आँख दिखाते हुए बोली, "क्यों मेरी बेटी को चिढ़ा रहे हो तुम?"

    दर्शित थोड़ा नाटक करते हुए बोला, "आज सच में लग रहा है कि कोई मुझसे प्यार नहीं करता। सब इस बड़बोली से प्यार करते हैं। मेरी तो कोई इज्ज़त ही नहीं है यहाँ।"

    द्रक्षता उसे रोकते हुए बोली, "बस बहुत हो गया। खाना खाओ अब शांति से, सब।"

    थोड़ी देर बाद सब अपना-अपना खाना खत्म करके अपने कमरे में चले गए। द्रक्षता सारे बर्तन साफ करके अपने रूम में गई तो देखती है कि दृशा सो चुकी थी। वह भी अपने साइड में सोते हुए लाइट्स ऑफ कर देती है।

    वह आँख बंद करती है तो उसे सात्विक का चेहरा नज़र आने लगता है तो वह झट से आँखें खोल देती है। लेकिन काफी देर करवट बदलने पर जब उसे नींद नहीं आती तब वह उठकर बालकनी में चली जाती है।

    और बाहर देखते हुए सोचती है, "क्यों मुझे उस आदमी की शक्ल बार-बार नज़र आ रही है जिसे मैं जानती तक नहीं? क्यों हो रहा है मुझे ऐसा? पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ।"

    काफी देर तक वह उसी के ख़यालों में खोई रहती है। फिर अंदर आकर सो जाती है।

    यहाँ द्रक्षता सो चुकी थी और दूसरी तरफ़ किसी की नींद पूरी तरह उड़ चुकी थी।

    मुंबई के लग्ज़रियस इलाके में, जहाँ ज़्यादा से ज़्यादा 10 से 12 बंगले होंगे, उन्हीं में से एक बंगला, जो दिखने में उन सारे बंगलों में से सबसे खूबसूरत और रॉयल था। जिसके चारों तरफ़ बॉडीगार्ड घिरे हुए थे। उनके पहनावे को देखकर पता लग सकता था कि वे सब कितने बड़े परिवार की रखवाली करते हैं।

    उस बंगले के अंदर बहुत सारे रंग-बिरंगे पेड़-पौधे लगे हुए थे जो उस जगह को और अधिक मनमोहक बना रहे थे। सामने बना फव्वारा बहुत सुंदर था।

    बंगले की नक्काशी में बहुत करी मेहनत की गई होगी, यह बखूबी पता चल रहा था। सफ़ेद रंग का यह बंगला बहुत सुंदर था।

    उस बंगले के फोर्थ फ्लोर में एक आदमी, जो शर्टलेस था, वह बहुत बेचैन नज़र आ रहा था। वह लगातार स्मोक कर रहा था।

    वह अपने आप से कहता है, "क्या था तुम्हारी उन नज़रों में जो अभी तक मुझे बेचैन किए हुए हैं? लेकिन जो भी था, तुम अब मेरी हो, सिर्फ़ मेरी, सात्विक सिंह राजपूत की और अब तुम्हें मुझसे कोई अलग नहीं कर सकता। तुम्हें मेरा होना होगा, चाहे प्यार से या फिर जबरदस्ती ही सही।" उसकी आवाज़ में एक जुनून झलक रहा था।

    तभी कोई उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटाता है। वह सिगरेट ऐशट्रे में फेंक कर कमरे का डोर ओपन कर देता है तो सामने एक 48 वर्षीय महिला खड़ी थी।

    सात्विक उनसे पूछते हैं, "माँ, आप इतनी रात को मेरे कमरे में? कोई बात है क्या?"

    सुरुचि कहती है, "क्यों? मैं नहीं आ सकती यहाँ? कोई रीज़न चाहिए मुझे यहाँ आने के लिए?"

    सात्विक बोले, "नहीं माँ, ऐसी कोई बात नहीं है। आपको अब तक सो जाना चाहिए था।"

    सुरुचि बोली, "मैं यहाँ अपने बेटे से पूछने आई थी कि वह खाना खाएगा या बाहर से खाकर आया है। उसकी बीवी तो है नहीं, इसलिए माँ हूँ तो मुझे ही उसका ख्याल रखना है।"

    सात्विक परेशान होकर बोला, "माँ, आप फिर से यह शादी वाली बात बीच में घुसा रही हैं। मैंने कहा था ना, अभी मुझे इस शादी जैसी आफ़त से दूर रहना है। फिर भी आप बार-बार इसका ज़िक्र करती हैं।"

    सुरुचि उन्हें समझाते हुए बोली, "बेटा, तुम्हारी उम्र हो चुकी है शादी की। तभी तो बोल रही हूँ। और तुम्हारे जीवन में भी तुम्हारी साथी आ जाएगी जो तुम्हारा ख्याल रखेगी। मेरा भी मन करता है अपनी बहू से सेवा करवाने का, सास बनने का।"

    सात्विक को उनकी बातें सुनकर द्रक्षता का ख्याल आ जाता है।

    तो वह उनसे बोले, "माँ, मैं तैयार हूँ शादी के लिए, लेकिन आप उसी लड़की से मेरी शादी कराएँगी जो मुझे पसंद आएगी, वरना नहीं करूँगा।"

    सुरुचि उनकी बात सुनकर खुश होते हुए बोली, "सच में? तुम मान गए शादी के लिए? मैं बहुत खुश हूँ। अब मुझे भी मेरी बहू मिलेगी। हाय, मैं भी अब सास बन जाऊँगी। बेटा, तुझे कोई पसंद है क्या? तो बता, मैं कल ही उसके घर जाकर उसका हाथ तेरे लिए माँगूँगी।"

    सात्विक कुछ सोचते हुए बोला, "माँ, मैं आपको यह बात बाद में बताऊँगा और हाँ, मैंने बाहर ही खाना खा लिया था। तो आप जाकर सो जाएँ। शुभ रात्रि।"

    सुरुचि खुशी से बोली, "शुभ रात्रि। तू भी जाकर सो जा।"

  • 3. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-3

    Words: 1421

    Estimated Reading Time: 9 min

    सात्विक के जाने के बाद, रूम का दरवाज़ा लॉक कर, सात्विक बिस्तर पर मुँह के बल लेटा हुआ था। आँखों में बेहद जुनूनी भाव लिए, उसने खुद से कहा: "तुम्हें तो अब मेरा होना है... मेरे पास आना है... अब मेरा सब्र खत्म हो रहा है... जी कर रहा है... अभी तुम्हारे पास आकर तुम्हें अपने सीने से लगा लूँ... थोड़ा इंतज़ार करो... जल्द तुम्हें खुद से बाँधने आऊँगा..." इतना कहकर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और नींद ने उसे अपनी आगोश में ले लिया।

    अगली सुबह, द्रक्षता के घर में, द्रक्षता रोज़ की तरह उठकर पूजा करके नाश्ता बना रही थी। आज वह कॉलेज जाने वाली थी, इस बात से पूरी तरह अन्जान कि उसकी ज़िंदगी में कितना बड़ा तूफ़ान उसका इंतज़ार कर रहा है।

    सभी के साथ नाश्ता करने के बाद, वह कॉलेज के लिए निकल गई। द्रक्षता बीए ऑनर्स के लास्ट ईयर की स्टूडेंट थी, जिसके एग्ज़ाम कुछ महीनों बाद होने वाले थे। इन्हें पूरा करने के बाद उसकी ग्रेजुएशन पूरी हो जाती।

    कॉलेज उसके घर से काफी दूर था, इसलिए वह अपनी स्कूटी से जाती थी। कॉलेज पहुँची तो बाहर उसकी सबसे करीबी दोस्त रितिशा खड़ी थी। उसने पहले ही रितिशा को मैसेज कर बताया था कि वह आज कॉलेज आएगी, इसलिए रितिशा उसका बाहर ही इंतज़ार कर रही थी।

    रितिशा उसे देखकर खुश होती हुई उसके पास आते हुए बोली, "क्या यार... तू भी ना... एक दिन आती है, एक दिन नहीं आती... अब तो ग्रेजुएशन भी कम्पलीट होने वाला है... तू जानती है ना... तू नहीं आती तो मैं अकेले लेक्चर में बोर हो जाती हूँ।"

    द्रक्षता उसे देखते हुए बोली, "तू तो जानती है ना... मैं क्यों एब्सेंट करती हूँ... अगर माँ की हेल्प नहीं करूँगी तो वो अकेले कितना काम करेंगी।"

    रितिशा ने कहा, "अच्छा ठीक है... अब चल... ऑलरेडी लेट हो चुके हैं।"

    फिर वे दोनों क्लास में चली गईं। वे आपस में बात ही रही थीं कि उन्हीं के एज का एक लड़का आकर हेलो बोला।

    रितिशा ने कहा, "क्यों... आज बहुत जल्दी चले आए तुम, कार्तिक।"

    कार्तिक उन्हें देखते हुए बोला, "नहीं... आज ट्रैफिक बहुत था रास्ते में... इसलिए लेट हो गया।" फिर द्रक्षता को देखकर बोला, "मैंने कल तुम्हें कितनी बार फ़ोन किया... तुमने पिक क्यों नहीं किया।"

    द्रक्षता हैरानी से बोली, "क्या सच में।" अपना फ़ोन चेक करते हुए बोली, "ओह... सॉरी... क्या तुम्हें कोई ज़रूरी काम था।"

    कार्तिक ने कहा, "नहीं... मुझे बस असाइनमेंट्स चाहिए थे... तुमने कॉल नहीं उठाया तो लगा कोई प्रॉब्लम आ गई है तुम्हें।"

    द्रक्षता ने कहा, "वो मेरा फ़ोन साइलेंट रहता है... इसलिए पता नहीं चला... आगे से ध्यान रखूँगी।"

    कार्तिक, रितिशा, द्रक्षता तीनों का ग्रुप था; तीनों बहुत अच्छे दोस्त थे।

    कार्तिक द्रक्षता को सीक्रेटली लाइक करता था, लेकिन आज तक बता नहीं पाया क्योंकि उसे लगता था प्यार के चक्कर में वह अपनी दोस्ती भी न खो दे। लेकिन उसने डिसाइड किया था कि वह कॉलेज एंड होने से पहले बता देगा, और यह उससे हो नहीं पा रहा था।

    तभी प्रोफ़ेसर आ गए। उन्होंने सभी को गुड मॉर्निंग विश किया और लेक्चर लेना शुरू कर दिया।

    उनका लेक्चर खत्म होने के बाद एक लेक्चर ऑफ था, तो वे तीनों कैंटीन में जाकर एग्ज़ाम के डिस्कशन करने लगे।

    तभी वहाँ कुछ लड़कियों का ग्रुप आ गया। उन्हें देखकर कोई भी कह सकता था कि यह सब अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलाद हैं। सबको परेशान करके उन्हें खुशी मिलती है।

    वे सब अपने जूनियर्स के ऊपर बकवास कमेंट पास करने लगे और उनके पास जाकर बदतमीज़ी करने लगे। जूनियर्स डर के कारण कुछ कर भी नहीं पा रहे थे क्योंकि अगर वे सब की कंप्लेंट करते हैं तो कोई उनकी बात नहीं सुनेगा।

    रितिशा उनके देखकर अजीब सा चेहरा बनाते हुए बोली, "यार... ये सब फिर आ गए।"

    द्रक्षता बोली, "चलो... अब मुझे यहाँ नहीं रहना।"

    वे तीनों उठकर वहाँ से जाने लगे। तभी उन नवाबजादियों में से एक, जो उनकी हेड लग रही थी, उन्हें जाते देख टोकते हुए बोली, "अरे... अरे... तुम लोग कहाँ जा रहे हो... हमने तुम सब को तो कुछ नहीं बोला।"

    रितिशा उसे घूरते हुए बोली, "देखो... हमारे पास तुम्हारे जैसे फ़ालतू लोगों के लिए टाइम नहीं है... तो चुपचाप अपना रास्ता नापो... और आगे से हमें टोकना मत।" यह बोलकर वह जाने लगी।

    यह बात उस लड़की को अभी हजम नहीं हो पा रही थी। उसकी चमची ने उसके कान भरते हुए कहा, "शिल्पा... वो तुम्हें फ़ालतू बोलकर जा रही है... क्या तुम सच में अपने आप को फ़ालतू मानती हो।" उसके यह बोलते ही शिल्पा गुस्से से उसे घूरती है, जिससे वह चुप हो जाती है।

    फिर शिल्पा उन्हें देखती है, जो अब तक वहाँ से जा चुके थे।

    वह अपने आप से बड़बड़ाते हुए बोली, "आज तुम लोगों ने जो मेरी बेइज़्ज़ती की है ना... उसका बदला तो मैं लेकर रहूँगी... वो भी आज ही।" वह बस गुस्से का घुट पीकर रह गई और वहाँ से चली गई।

    वे तीनों कैंटीन से बाहर आकर अपने नेक्स्ट लेक्चर के लिए चली गईं। और सारे लेक्चर्स कम्पलीट होने के बाद, जब वे तीनों पार्किंग एरिया में आकर द्रक्षता की स्कूटी के पास पहुँचीं, तो स्कूटी पंक्चर पड़ी हुई थी। इसे देख द्रक्षता घबरा गई क्योंकि उसे अब होटल जाना था और उसके पास ज़्यादा समय नहीं बचा था।

    वह परेशान होकर बोली, "ये कैसे हुआ... सुबह तो बिल्कुल ठीक था... अभी अचानक से ऐसे कैसे हो सकता है... ज़रूर ये सब उस शिल्पा ने किया होगा।"

    उसके इतना बोलते ही पीछे से शिल्पा के हँसने की आवाज़ आई, तो तीनों की नज़र उसकी तरफ़ चली गई जहाँ शिल्पा अपने चमचियों के साथ खड़ी थी।

    शिल्पा उनके पास आकर हँसते हुए व्यंग्यपूर्ण रूप से बोली, "च च च... क्यों... अब क्या हुआ... स्कूटी पंक्चर हो गई... वैसे भी कितनी खटारा हो गई है... दूसरी ले लो... मैंने तो सिर्फ़ तुम्हारी मदद की है।"

    रितिशा गुस्से से उसके पास जाने लगी, तभी द्रक्षता उसका हाथ पकड़ उसे शांत रहने का इशारा करती है।

    द्रक्षता शिल्पा को घूरते हुए बोली, "मैं अभी शांत हूँ तो मेरे सब्र का इम्तिहान ले रही हो... जिस दिन मेरा सब्र टूटा... मेरे गुस्से को बर्दाश्त करना भी तुम्हारे लिए मुश्किल होगा... मैं जल्दी किसी को कुछ नहीं बोलती... लेकिन जब बोलती हूँ तो कोई सुनने की हालत में नहीं रहता... समझी... आगे से ऐसी बचकानी हरकत करने से पहले कई बार सोच लेना।"

    रितिशा गुस्से से बोली, "अरे मैं तो कहती हूँ... इन लोगों को इनकी अकल ठिकाने लगानी ही पड़ेगी... ये सब बहुत ज़्यादा हवा में उड़ती हैं... जब ऊँचाई से सीधा ज़मीन पर आकर गिरेंगी... तब पता चलेगा गिरने का मज़ा क्या होता है।"

    द्रक्षता बोली, "छोड़ो... जाने दो... कुछ ही दिन बचे हैं हमें यहाँ... मैं कोई तमाशा नहीं चाहती।"

    कार्तिक जो उतनी देर से चुप था, बोला, "द्रक्षता... सही कह रही हैं... इन लोगों के मुँह मत लगो... चलो... स्कूटी को मैकेनिक पास दे आते हैं... और द्रक्षता मैं आज तुम्हें ड्रॉप कर देता हूँ।"

    द्रक्षता उसे परेशान ना करते हुए बोली, "नहीं... कार्तिक... इसकी कोई ज़रूरत नहीं है... मैं मैनेज कर लूँगी।"

    कार्तिक ने कहा, "नहीं... तुम चलो मेरे साथ।"

    द्रक्षता को इतना इन्सिस्ट करते देख, वह अब ज़्यादा कुछ नहीं बोल पाई। वे दोनों रितिशा को बाय बोलकर द्रक्षता की स्कूटी को मैकेनिक के पास दे आते हैं। फिर वे दोनों कार्तिक की बाइक पर बैठ जाते हैं। कार्तिक उसे खुद को पकड़ने को बोलता है, तो यह द्रक्षता को काफी अजीब लगता है, लेकिन वह उसे पकड़ लेती है।

    कुछ देर में जब वे हाईवे क्रॉस कर रहे थे, तो उनके पीछे कुछ ब्लैक कार्स चलने लगीं, जो हाई स्पीड में चल रही थीं। थोड़ी ही देर में वो कार्स उन्हें ओवरटेक कर उन्हें पीछे छोड़ देती हैं। उन्हीं में से एक कार, जो सबसे एलिगेंट और महंगी थी, उसमें बैठा एक आदमी बड़ी ही गुस्से भरी नज़रों से उन दोनों को देखे जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि वह उनको नज़रों से ही भस्म कर देंगे।

    उसके साइड बैठा दीपक उसे इतने गुस्से में देखकर बोला, "सात्विक... इतने गुस्से में क्यों हो... अभी कुछ हुआ तो नहीं।"

    सात्विक गुस्से से अपने असिस्टेंट राघव (जो पैसेंजर सीट पर बैठा था) से बोला, "मैंने तुम्हें कल कुछ काम दिया था... हुआ या नहीं।"

    उसे इतने गुस्से में देख, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह किस काम की बात कर रहे हैं। वह अपने पसीने को पोछकर अपने सारे हिम्मत को बटोरते हुए बोला, "सर... आप कौन से काम की बात कर रहे हैं... मुझे समझ नहीं आ रहा।"

    जिस पर सात्विक की आँखें और खतरनाक हो गईं। वह गुस्से से गुर्राते हुए बोला, "क्या तुम्हें सच में नहीं पता... मैं किसकी बात कर रहा हूँ।"

    तभी राघव के माइंड में क्लिक हुआ कि कल सात्विक ने उसे एक लड़की की इनफॉर्मेशन कलेक्ट करने को कहा था।

    यह बात याद आते ही वह बोला, "यस सर... मैंने उनकी इनफॉर्मेशन कलेक्ट किया है... पर ज़्यादा कुछ नहीं पता चला... जितने इनफॉर्मेशन मेरे पास हैं... मैं वो आपको ऑफिस में देता हूँ।"

    सात्विक बस उसे कुछ देर घूरते रहने के बाद अपने लैपटॉप में काम करने लगा। तभी उसकी आँखों के सामने द्रक्षता का किसी और के साथ बाइक पर जाना याद आ गया। उसकी आँखें जो कुछ शांत हुई थीं, वो फिर भड़क उठीं।

    वह मन ही मन बोला, "तुम किसी और के साथ... कैसे इतने क्लोज़ हो सकती हो... कल से मैं तुम्हारे लिए इतना बेचैन हूँ... और तुम किसी और के साथ घूम रही हो... तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई... इसकी सज़ा तो मैं तुम्हें देकर रहूँगा।"

  • 4. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-4

    Words: 1304

    Estimated Reading Time: 8 min

    यहाँ कार्तिक ने द्रक्षता को होटल छोड़ा था। द्रक्षता ने उसे धन्यवाद कहा।

    कार्तिक मुस्कुराते हुए बोला, "इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। तुम तो मेरी दोस्त हो, और दोस्तों के बीच ये 'सॉरी-थैंक्स' जैसे शब्द नहीं चलते। ठीक है, तुम जाओ। तुम्हें लेट हो रहा होगा।"

    वह वहाँ से चली गई और अंदर जाकर अपने काम में लग गई।

    कार्तिक तब तक उसे देखता रहा जब तक वह अंदर नहीं चली गई।

    अपने आप वह बड़बड़ाया, "कब वह दिन आएगा जब मैं तुम्हें अपने एहसासों के बारे में बता पाऊँगा? काश, तुम्हें बताने की हिम्मत जुटा पाता। लेकिन मैं तुम्हें ज़रूर बताऊँगा।"

    वहीं मुंबई के व्यस्त इलाकों में से एक, अंधेरी, जहाँ कई ऊँची-ऊँची इमारतें बनी हुई थीं, उनमें से सबसे ऊँची 55 मंजिला, जो कई एकड़ के क्षेत्र में फैली हुई थी, काँच से बनी हुई बिल्डिंग, जो दिखने में बेहद क्लासी और एलिगेंट लग रही थी, उसके बड़े-बड़े अक्षरों में 'राजपूत कॉरपोरेशन' अंकित था।

    उस इमारत के सबसे ऊपरी तल पर, जहाँ सिर्फ़ चार केबिन बने हुए थे, उनमें से सबसे बड़े केबिन के नेमप्लेट पर 'सीईओ' लिखा हुआ था।

    उसके सामने राघव भगवान का नाम लेते हुए खड़ा था। तभी अंदर से बेहद ठंडी और सख्त आवाज आई,

    "बाहर खड़े रहना है तो मैं तुम्हें हमेशा के लिए बाहर कर सकता हूँ।"

    यह सुनते ही राघव की साँसें अटक गईं और वह हड़बड़ाते हुए अपने चश्मे को ठीक से एडजस्ट करते हुए केबिन के दरवाज़े पर दस्तक दी, क्योंकि उसमें नियम तोड़ने की हिम्मत नहीं थी कि बिना दस्तक दिए वह अंदर जा सके। दस्तक देने पर दरवाज़ा ऑटोमेटिकली खुल गया।

    वह केबिन अंदर से इतना खूबसूरत था कि कोई भी उसे निहारता रह सकता था। सभी चीजें सलीके से अपनी जगह पर सेट थीं। केबिन के बीचों-बीच बड़े-बड़े सोफ़े लगे हुए थे। सोफ़े पर लगे गद्दों को देखकर ही पता चल सकता था कि वे कितने मुलायम होंगे। सोफ़े के बीचों-बीच काँच का टेबल लगा हुआ था। केबिन के बायीं ओर सीईओ का टेबल लगा था, जिस पर हेड चेयर किसी राजा के सिंहासन जैसा लग रहा था।

    सारे आधुनिक चीजों से लैस वह केबिन जन्नत के समान था। केबिन के अंदर का हर सामान काफी एलिगेंट, क्लासी और यूनीक था, जिसे अफोर्ड करना एक आम इंसान के लिए नामुमकिन था।

    हेड चेयर पर बैठे सात्विक अपने हाथ में पकड़े पेपरवेट को घुमा रहे थे। उनका आभा बेहद ठंडा और खतरनाक लग रहा था।

    राघव डरते हुए जाकर उनके सामने खड़ा हो गया और एक फाइल उनके आगे रख दी।

    सात्विक ने फाइल को एक नज़र देखा और उसे जाने का इशारा कर दिया। राघव वहाँ से चला गया। उसके जाने के बाद दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।

    तब उन्होंने वह फाइल उठाकर खोली तो पहले पेज पर द्रक्षता की फ़ोटो थी, जिसमें उसने एक गुलाब का फूल पकड़ रखा था। वह उसमें बेहद प्यारी और खूबसूरत लग रही थी।

    उसे देखकर उनका हृदय असामान्य गति से धड़कने लगा। उन्होंने अपने दिल पर हाथ रखा, फिर भी वह शांत नहीं हुए, तो उन्होंने कोशिश करना छोड़ दिया।

    द्रक्षता के फ़ोटो के नीचे उसका नाम लिखा हुआ था: "द्रक्षता चौहान"। यह नाम पढ़कर उन्हें बहुत सुकून का एहसास होने लगा। उनका मन पेज पलटने का ही नहीं हो रहा था; वे एकटक उसकी तस्वीर को निहार रहे थे।

    कुछ देर बाद उन्हें ध्यान आया कि उन्हें आगे भी देखना था, तब कहीं जाकर उन्होंने पेज पलटा, तो उनके सामने उसकी एक और तस्वीर आई, जो शायद उसके दसवीं के फेयरवेल की थी, जिसमें उसने गुलाबी रंग की सिम्पल सी साड़ी पहनी हुई थी। वह उस सिम्पल लुक में बहुत खूबसूरत थी। उनकी नज़र फिर उसके ऊपर ठहर गई।

    ऐसे करते-करते उन्होंने उस फाइल को देखने में पूरा एक घंटा बिता दिया। तब जाकर वह फाइल, जो मात्र 15 से 16 पेज की थी, खत्म हुई, क्योंकि उसमें द्रक्षता की 16 साल बाद की ज़िन्दगी थी। उसके बचपन के बारे में उसमें कुछ भी विस्तृत विवरण नहीं था।

    उन्होंने फाइल सामने पड़ी टेबल पर रखी, अपनी आँखें बंद कर द्रक्षता को महसूस करने लगे। तभी उनके सामने आज दोपहर का दृश्य झलक उठा, जिसमें द्रक्षता एक अजनबी के बाइक पर उसके साथ बैठी हुई थी।

    यह याद आते ही उन्होंने अपनी आँखें खोली तो उनकी आँखें पूरी तरह लाल थीं। उन्होंने अपने एक हाथ को कसकर मुट्ठी बांध ली और दूसरे हाथ से अपने सर को सहलाने लगे, जैसे अपने गुस्से को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहे हों। जब उनसे यह नहीं हुआ, तो उन्होंने सामने पड़ी फाइल उठाई और फिर से उसकी तस्वीर निहारने लगे। तब कहीं जाकर उनका गुस्सा कुछ हद तक शांत हुआ।

    उन्होंने उसकी तस्वीर से कहा, "अगर अभी तुम मेरे सामने होती तो मुझे नहीं पता मैं क्या कर जाता। शुक्र मानाओ, सामने नहीं हो!" (यह शब्द उन्होंने बेहद शिद्दत से कहा।)

    यहाँ द्रक्षता अपनी ड्यूटी पूरी कर चुकी थी और अब वह बाहर टैक्सी लेने के लिए खड़ी थी, लेकिन उसे कोई टैक्सी नहीं दिख रही थी। वह कार्तिक को डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी क्योंकि उसने उसकी बहुत मदद की थी और अब वह उससे कोई मदद नहीं लेना चाहती थी।

    तभी उसे सामने से कई सारी कारें आती हुई दिखाई दीं। उसने सोचा कि वह उनसे लिफ़्ट मांग लेगी, लेकिन उसे यह करने का मन नहीं कर रहा था। किसी अंजान से लिफ़्ट माँगना उसे सही भी नहीं लग रहा था। उसने ज़्यादा नहीं सोचा और वह गाड़ी रोकने के लिए हाथ दिखाने लगी।

    उसके हाथ दिखाने पर वह गाड़ी रुक भी गई, लेकिन उसका मिरर लगा हुआ था। वह उसे हाथ से खोलने के लिए इशारा करने लगी। अंदर बैठे आदमी, जो सात्विक थे, उसे एकटक देखने लगे। जब द्रक्षता थक गई, उसे लगा कि यह सब उसकी मदद नहीं करेंगे, तो वह फिर से अपनी जगह वापस चली गई।

    तब कहीं जाकर गाड़ी में बैठे सात्विक का ध्यान टूटा और उसके वापस चले जाने की समझ आई, तो उन्होंने अपने ड्राइवर को उसे ले जाने को कहा।

    जब द्रक्षता ने ड्राइवर को अपने पास आते देखा तो उसे कुछ समझ नहीं आया।

    ड्राइवर उसके पास आकर बोला, "सर आपको बुला रहे हैं। मेरे साथ चलिए।"

    द्रक्षता और ड्राइवर दोनों कार के पास आकर रुके तो ड्राइवर ने बैक सीट का दरवाज़ा खोल दिया। द्रक्षता उसमें बैठ गई। तब उसकी नज़र लैपटॉप पर काम कर रहे सात्विक पर पड़ी, जिन्हें देखते ही उसकी धड़कनें तेज हो गईं।

    वह मन ही मन सोचने लगी, "यह तो वही हैं जो कल होटल में आए थे। द्रक्षता कहाँ फँस गई और मेरी धड़कनें फिर से क्यों बढ़ती जा रही हैं? इनके पास होने से मुझे ऐसा क्यों होने लगता है?"

    उसका ध्यान सात्विक की आवाज़ से टूटा। वह उसे कह रहे थे, "मिस, आप होश में तो हैं या ना सुनाई देने की दिक्क़त है आपको?"

    द्रक्षता का हाल ऐसा था जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।

    वह हड़बड़ाते हुए बोली, "नहीं, मुझे कोई दिक्क़त नहीं है। वह मैं कह रही थी कि आप मुझे मेरे घर छोड़ देंगे। वह क्या है ना कि मेरी स्कूटी मैकेनिक के पास है और इतनी रात को कैब भी नहीं आ रही। प्लीज़ ड्रॉप कर दीजिये।"

    सात्विक हल्का मुस्कुरा कर बोले, "इसमें मुझे इतना एक्सप्लेन करने की क्या ज़रूरत? ड्रॉप ही तो करना है। एड्रेस ड्राइवर को दे दीजिये।"

    द्रक्षता अपना एड्रेस ड्राइवर को बता देती है और शांति से बाहर देखने लग जाती है क्योंकि उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह इस आदमी को देखे। उसे देखने का तो बहुत दिल कर रहा था, लेकिन फिर भी वह उसकी तरफ़ नहीं देखती।

    सात्विक की नज़रें उस पर से नहीं हट रही थीं। वह बीच-बीच में तिरछी नज़रों से निहार ले रहे थे।

    वह अपने मन में सोच रहे थे, "यह दूरियाँ मैं मिटाकर रहूँगा। तुम्हें अपने करीब करके रहूँगा। तुम तो खुद चलकर मेरे पास आ गईं, लेकिन अब जाओगी मेरी मर्ज़ी से!" (इतना सोचकर वह तिरछा मुस्कुरा दिए।)

    लगभग 25 से 30 मिनट में उसका घर आ गया। ड्राइवर ने उसे उसके स्टॉप के बारे में बता दिया, तो वह दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गई।

    और सात्विक से बोली, "थैंक यू मुझे ड्रॉप कर देने के लिए।"

    सात्विक ने बस "हम्म" में जवाब दिया। वह अपने घर चली गई। सात्विक उसे तब तक देखते रहे जब तक वह उनकी आँखों से ओझल न हो गई।

  • 5. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-5

    Words: 1387

    Estimated Reading Time: 9 min

    आज द्रक्षता के पापा और दादा जी की बरसी थी। इसीलिए आज मान्यता और द्रक्षता मंदिर जाकर पंडित जी को अन्न और वस्तु का दान कर रही थीं।

    अभी वे दोनों दान में व्यस्त थीं, जब एक बुजुर्ग महिला, जो कब से द्रक्षता को देख रही थी, अपनी साथ खड़ी मध्यम उम्र की महिला, जो उनकी बहू थी, से बोली: "सुरुचि, हमें ऐसा लग रहा है कि इन्हें हम जानते हैं, लेकिन याद नहीं कर पा रहे।"

    "हाँ, माँ, मुझे भी तब से यही लग रहा था," सुरुचि ने उनकी बात से सहमति जताते हुए कहा।

    द्रक्षता की नज़र अनजाने ही उन पर चली गई। जब उसने उन्हें अपने को देखते हुए पाया, तो वह भी मुस्कुरा दी। मान्यता उसके पास आई और उससे कुछ कहने लगी।

    सुरुचि और उनकी सास के चेहरे पर आश्चर्य के भाव आ गए। वे दोनों एक-दूसरे का चेहरा देखने लगीं।

    "माँ, यह तो मान्यता है, ना?" सुरुचि ने आश्चर्य से पूछा।

    उन्होंने हाँ में सिर हिला दिया।

    "क्या हम उनके पास चलें, माँ?" सुरुचि ने पूछा।

    वे दोनों मान्यता के पास चली गईं। मान्यता की नज़र जब उन पर पड़ी, तो वह खुद भी बहुत हैरान थी। द्रक्षता को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये सब इतनी हैरानी से एक-दूसरे को क्यों देख रहे हैं।

    कुछ पल की खामोशी के बाद सुरुचि बोली, "मान्यता, आप... हमें समझ नहीं आ रहा कि यह आप हैं। ऐसा लग रहा है जैसे सपने में जी रहे हों।"

    "हम भी आप दोनों को यहाँ पर देखकर हैरान हैं। कितने सालों बाद आपसे मिल रहे हैं," मान्यता ने नासमझी से कहा।

    फिर विनीता जी (सुरुचि की सास), द्रक्षता को देखते हुए बोलीं, "क्या यह तुम्हारी बेटी है, मान्यता?"

    "हाँ, यही मेरी बड़ी बेटी है," मान्यता ने कहा।

    सुरुचि, विनीता जी को एक नज़र देखकर—जो उनकी तरफ ही देख रही थीं—उनकी नज़रों को समझते हुए मान्यता से बोली, "मान्यता, अगर आप बुरा ना मानें, तो हम आपसे कुछ कहना चाहते हैं।"

    "बोलिए, सुरुचि, क्या कहना है आपको?" मान्यता ने पूछा।

    फिर द्रक्षता से, "बेटा, तुम यह काम संभालो, मैं बात कर लूँ।"

    "आप जानती हैं हम क्या कहना चाहते हैं... यही कि अब इन दोनों की शादी कर देनी चाहिए। और आपके पति ने भी हमसे यह वादा किया था कि जब द्रक्षता बड़ी हो जाएगी, तब वह द्रक्षता को हमारे खानदान की बहू बनाएँगे। वह तो रहे नहीं, अब आप बताइए," सुरुचि ने कहा।

    मान्यता ने उनके लहजे को समझते हुए कहा, "मुझे भी समझ आ रहा है, लेकिन यह फैसला मैं खुद कैसे कर सकती हूँ? यह द्रक्षता के जीवन का सवाल है। उसे यह निर्णय खुद लेने का अधिकार है। मैं अपने विचार उसके ऊपर नहीं थोपना चाहती। शादी जैसे बंधन के लिए एक लड़की को अपने आप को तैयार करना होता है। यह आप भी बहुत अच्छी तरह समझती हैं।"

    "हम जानते हैं, लेकिन आप उसकी माँ हैं। आप उससे पूछकर तो देखिए," सुरुचि ने कहा।

    "ठीक है, आप इतना कह रही हैं तो मैं ज़रूर उससे इस बारे में बात करूँगी। उसका जो भी उत्तर होगा, मैं वही आपसे कहूँगी। उस पर ज़्यादा दबाव नहीं डालना चाहती मैं," मान्यता ने कहा।

    अब तक द्रक्षता अपना काम खत्म कर वापस लौट आई थी।

    सुरुचि ने उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "अभी क्या कर रही हैं आप?"

    द्रक्षता कुछ वक्त तक अपनी माँ को देखकर हिचकिचाने के बाद कोमलता से बोली, "मैं अभी कॉलेज के लास्ट ईयर की स्टूडेंट हूँ।"

    विनीता जी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "सदा खुश रहें। बहुत दुख झेल लिए आपने इतने कम समय में।"

    द्रक्षता बस उन्हें देखती रह गई।

    मान्यता और द्रक्षता उनसे विदा लेकर वापस घर आ गईं। आज संडे था, जिस वजह से द्रक्षता का कॉलेज नहीं था। इसलिए घर आने के बाद उसने कुछ देर आराम किया, फिर अपने समय पर होटल के लिए निकल गई।

    उसकी स्कूटी अभी सिग्नल में रुकी हुई थी, जब उसने अपने साइड की कार में देखा, तब उसे एहसास हुआ कि यह तो वही आदमी है।

    उसने अपने मन में सोचा, "यह आदमी आजकल मुझे कुछ ज़्यादा ही दिख रहे हैं। रोज़ कहीं ना कहीं दिख ही जाते हैं।"

    कार में बैठे सात्विक, जो पूरी तरह अपने लैपटॉप में व्यस्त थे, अपने ऊपर किसी की नज़रें महसूस कर उस तरफ नज़र घुमा दिए।

    तभी सिग्नल खुला, तो द्रक्षता अपनी स्कूटी लेकर आगे निकल गई और आगे आए टर्न में चली गई।

    सात्विक उसके पीछे के हिस्से को देखकर समझ चुके थे कि वह द्रक्षता ही थी। उसके एक ख्याल ने ही उनका मन बहुत खुश कर दिया और होठों पर एक दिलकशी मुस्कान छा गई, जो केवल कुछ समय के लिए ही थी।


    रात के समय, द्रक्षता के घर, सबने खाना खा लिया था। द्रक्षता किचन में पड़े बर्तनों को साफ कर रही थी। जब वह सब काम खत्म कर किचन से बाहर आई, उसकी माँ सोफे पर बैठी हुई थी और कुछ गहरी सोच में खोई हुई थी। वह उसे ऐसे देखकर उसके पास चली गई। मान्यता जब द्रक्षता को अपने पास देखती हैं, तो उसे अपने पास आकर बैठने को बोलती है।

    द्रक्षता उनके पास आकर चिंतित स्वर में बोली, "माँ, आप बहुत परेशान लग रही हैं। कुछ बात है क्या?"

    मान्यता उसे देखते हुए बोली, "बात तो है, और पूरी तरह तुमसे जुड़ी हुई है।"

    द्रक्षता और परेशान होते हुए बोली, "क्या माँ? बताइए ना, इतना सस्पेंस क्यों क्रिएट कर रही हैं?"

    मान्यता उसके चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए बोली, "बेटा, जब तेरा जन्म हुआ था, तब तेरे पापा ने अपने एक बहुत करीबी दोस्त से वादा किया था कि उनके घर की बहू तू ही बनेगी।"

    द्रक्षता हैरानी से बोली, "क्या?"

    मान्यता ने उसे देखते हुए कहा, "हाँ बेटा, वह सब बहुत बड़े लोग हैं।" (कुछ समय रुककर कुछ सोचकर) "आज मंदिर में जो दो औरतें मिली थीं ना, वह उसी घर से हैं और उन्होंने मुझे यह बात याद दिलाई, जो मैं कब का भूल चुकी थी। लेकिन तेरे पापा का किया गया वादा उन्हें अब तक याद है। मैं तुझसे बस इतना पूछना चाहती हूँ कि क्या तू अभी शादी के लिए तैयार है? मैं तुझ पर कोई दबाव नहीं बनाऊँगी। आखिरी फैसला सिर्फ तेरा होगा।"

    द्रक्षता, जो इतना सब कुछ सुनकर पूरी तरह हैरान थी, बोली, "माँ, आप क्या चाहती हैं?"

    मान्यता प्यार से बोली, "मेरे चाहने न चाहने से कुछ नहीं होता। ज़िंदगी तेरी है, तुझे उस बंधन में बंधना है, शादी तुझे करनी है। तू हाँ कहेगी, तब भी तेरे साथ हूँ, ना कहेगी, तब भी।"

    द्रक्षता कुछ सोचकर बोली, "माँ, मुझे कुछ समय चाहिए... अभी मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।"

    मान्यता बोली, "तुझे जितना समय चाहिए, तू ले और सब कुछ सोच समझकर फैसला लेना।"

    द्रक्षता ने बस हाँ में सिर हिला दिया। उसके बाद दोनों अपने-अपने कमरे में सोने चली गईं।

    द्रक्षता बिस्तर पर आकर अपनी जगह पर लेट जाती है और अपनी माँ के द्वारा बताई गई बातों के बारे में सोचने लगी। बार-बार उसे अपनी आँखों के सामने सात्विक का चेहरा आने लगता है। वह बार-बार अपनी करवटें बदलने लगती है। जब काफी देर तक उसे नींद नहीं आती, तब वह उठकर बैठ जाती है।

    द्रक्षता मन ही मन सोचते हुए बड़बड़ाने लगती है, "यह क्या हो रहा है मुझे? इस शादी की बात से इतनी घबराहट क्यों हो रही है और बार-बार उस आदमी का चेहरा क्यों नज़र आ रहा है?"

    थोड़ा रुककर कुछ सोचकर, "क्या... मैं उनके लिए कुछ महसूस करने लगी हूँ? लेकिन यह कैसे हो सकता है? मैं उनसे ज़्यादा मिली भी नहीं, बात भी नहीं की।"

    फिर कुछ समय रुककर, "वह तो बहुत अमीर है। अगर मैं उनके बारे में कुछ महसूस करने लगी, तो भी हम दोनों का कोई मेल नहीं।"

    इतना सोच वह बहुत उदास हो जाती है। वह अपनी जगह से उठकर बाल्कनी में चली जाती है। ठंडी हवाओं के झोंके जब उसे छूकर जाते हैं, वह सिहर जाती है। उसकी आँखें नम हो जाती हैं।

    जो कुछ हुआ, वह सब सोच-सोचकर वह परेशान हो चुकी थी और अब यह बात उसे और परेशान कर रही थी। वह गहरी सोच में खो चुकी थी, जब उसे नींद आने लगी, वह उठकर सोने चली जाती है।


    सुबह का समय, द्रक्षता का घर। द्रक्षता उठकर नहा-धोकर तैयार हो चुकी थी। अपने घर के मंदिर में पापा और दादा जी के फोटो के सामने हाथ जोड़कर खड़ी थी, उन्हें एकटक देखते जा रही थी।

    वह बोली, "अब जो होगा, हो जाएगा। मैं यह शादी करूँगी। उस आदमी को अपने ज़हन में दुबारा आने नहीं दूँगी। मुझे नहीं पता कि यह सब कैसे होगा, पापा, दादा जी, लेकिन अब मैं यही करूँगी।"

    फिर वहाँ से उठकर डाइनिंग टेबल पर आ जाती है जहाँ पहले से उसका परिवार बैठा हुआ था। वह सबको नाश्ता परोसती है।

    मान्यता उसकी उदासी देख पा रही थी, लेकिन वह कुछ ना बोली। सब खाकर उठ चुके थे।

    तब दृशा बोली, "माँ, स्कूल के फ़ंक्शन के लिए आज रिहर्सल है, तो आने में देर हो जाएगी, तो परेशान मत होना।"

    मान्यता उसे देखकर बोली, "ठीक है, देरी का बहाना तो दे दिया तूने, लेकिन इसी का इस्तेमाल करके कहीं घूमने मत चली जाना।"

    दृशा चिढ़कर बोली, "माँ, मैं क्या आपको घुम्मकड़ लगती हूँ जो कहीं का बोल कहीं चली जाऊँगी?"

    द्रक्षता दृशा का समर्थन करते हुए बोली, "अरे माँ, अभी कहीं घूमने नहीं जाएगी, तो क्या बुढ़ापे में जाएगी?"

  • 6. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-6

    Words: 1330

    Estimated Reading Time: 8 min

    दृशा अपने स्कूल और दर्शित अपने कॉलेज जा चुके थे। द्रक्षता मान्यता के साथ उसके आए केक के ऑर्डर पर उसकी मदद कर रही थी क्योंकि वह अकेले नहीं कर पा रही थी और इस केक के ऑर्डर से उसे बहुत बेनिफिट होने वाला था। जिससे उस केक को खराब बिल्कुल नहीं होने देना था और बहुत सारे केक थे।

    उन्हें यह सब करते-करते लगभग द्रक्षता के होटल जाने का समय हो गया था, पर उन्होंने इतना काम कर लिया था कि अब मान्यता खुद कर सकती थी।

    द्रक्षता अब होटल आ चुकी थी और अपने काम पर वापस जुट चुकी थी। होटल मैनेजर उसके पास आकर उसे वीआईपी रूम में सर्विस देने को बोला।

    द्रक्षता उनका ऑर्डर लेकर जब वीआईपी लॉबी में गई, हर तरफ शांत वातावरण था। कहीं भी कोई आवाज नहीं आ रही थी। उसने उस रूम का दरवाजा खटखटाया तो वह रूम पहले से अनलॉक था।

    कुछ समय तक रुकने के बाद भी कोई नहीं आया तो वह हिचकिचाते हुए अंदर आई। तो हर तरफ अंधकार फैला हुआ था। ट्रे को वहीं पड़े टेबल पर रखकर जैसे ही वह जाने को मुड़ी तो वह किसी से टकरा गई। टकराने से उसके सर पर बहुत तेज दर्द फेल गया।

    उसने अपना सर उठाकर देखा तो अंधकार होने के कारण वह बस मजबूत शरीर देख पा रही थी। उसने महसूस किया कि वह शरीर उसके पास से हटकर कहीं जा रहा है।

    फिर वहाँ की लाइट्स ऑन हो गईं। द्रक्षता ने सामने देखा तो पाया कि यह वही आदमी था जो लगभग उसे हर रोज़ कहीं न कहीं दिख ही जाता था।

    सात्विक ने अपने सामने द्रक्षता को देखा तो उसका दिल खुशी से उछल उठा, लेकिन फिर भी भावहीन चेहरा लेकर उसने उससे पूछा, "आप यहां क्या कर रही हैं?"

    द्रक्षता हिचकिचाते हुए बोली, "वोह मैं आपका ऑर्डर देने आई थी सर, लेकिन दरवाजा खटखटाने पर भी कोई नहीं आया तो मैंने अंदर आकर रख दिया। सॉरी सर, अगर आपको यह पसंद ना आया हो तो!"

    सात्विक ने ज़्यादा कुछ नहीं बोला, "ह्म्म्म... अब आप जा सकती हैं।"

    द्रक्षता ने जब से उसे देखा था, उसे कंटीन्यूअस देखते जा रही थी। जब सात्विक ने उसे जाने को कहा, वह जाने लगी, लेकिन वह जाना नहीं चाहती थी।

    तभी उसे सात्विक की आवाज सुनाई पड़ी, "ठहरिए!"

    वह झट से पीछे मुड़कर उसे देखते हुए बोली, "यस सर, आपने मुझे रोका।"

    सात्विक ने हाँ में सिर हिलाकर उसके करीब आ रहा था और उसके पास आकर उसकी आँखों में बेहद शिद्दत से देखकर कहा, "क्या आप हमसे शादी करेंगी?"

    द्रक्षता यह सुनकर बड़ी ही शॉकिंग नज़रों से उसे देखने लगी। उसे अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था। क्या वह दिन में भी सपना देख रही थी? उसने अपने आप को कन्फर्म करने के लिए सात्विक से पूछा, "क्या... कहा आपने सर?"

    सात्विक उसे देखते हुए बोला, "जो आपने सुना।"

    द्रक्षता हैरानी से अपनी बड़ी-बड़ी आँखों को और बड़ा करते हुए बोली, "क्या... सच में?"

    सात्विक ने हाँ में सिर हिला दिया। द्रक्षता थोड़ी देर तक सोचती रह जाती है तो उसे अपनी माँ की बताई गई बातें याद आ गईं।

    तब उसने अपना सर ना में हिलाते हुए कहा, "नहीं सर, ऐसा नहीं हो सकता और... मेरी शादी तय हो चुकी है।"

    यह सुन सात्विक की आँखें लाल हो गईं और वह गुस्से से काँपने लगा। यहाँ तक कि उसकी हाथ की नसें भी उभरने लगीं। उससे अब अपना गुस्सा संभल नहीं रहा था।

    द्रक्षता उसे ऐसे देखकर डरकर पीछे होने लगी। तब सात्विक उसे कमर से पकड़कर खींच अपने आप से सटा लेता है। उसके ऐसे खींचने से द्रक्षता का सर उसके सीने से टकरा जाता है और वह बेहद डर से उसे देखे जा रही थी।

    सात्विक उसकी आँखों में बड़ी शिद्दत से देखते हुए अपनी बेहद ठंडी आवाज में बोला, "आपकी हिम्मत कैसे हुई किसी और से शादी करने की? यहाँ हम आपके लिए रोज़ तड़पते हैं और आप हैं कि किसी दूसरे आदमी को अपनी ज़िंदगी में लाना चाहती हैं। ऐसा हम कभी नहीं होने देंगे। आपको हमारा होना होगा, चाहे मोहब्बत से या चाहे ज़बरदस्ती से, समझी आप?"

    द्रक्षता उसकी बात सुनकर और ज़्यादा हैरानी से बोली, "यह क्या कह रहे हैं आप? हमारे ज़िंदगी के फ़ैसले लेने का आपको कोई अधिकार नहीं और आप हैं कौन हमारे जो हम आपके लिए आपका इंतज़ार करें और हम करें किसी और से शादी? आप होते कौन हैं हमें रोकने वाले?" (बोलते-बोलते वह गुस्से में आ जाती है)

    वह उसकी पकड़ से छूटने की कोशिश कर रही थी। सात्विक लगातार उसे देख रहा था, वह भी बड़ी डरावनी नज़रों से। उसके आज तक किसी ने भी इतने जवाब नहीं दिए थे।

    फिर वह कुछ सोच द्रक्षता को अपनी पकड़ से आज़ाद कर देता है। उसके ऐसा करते ही द्रक्षता उसे देखने लगी।

    तब सात्विक ने उसे घूरते हुए कहा, "अब नहीं जाना? अभी तक तो हमसे बहुत दूर होने की कोशिश कर रही थी। क्या हुआ?"

    यह सुन द्रक्षता उसके एक नज़र देखकर चुपचाप वहाँ से चली जाती है। सात्विक सोफे पर बैठकर भावशून्य होकर उस दरवाजे को देख रहा था जहाँ से अभी द्रक्षता गई थी।

    "अभी तुम्हें जहाँ जाना है जाओ, लेकिन आना तो तुम्हें मेरे पास ही है!"

    उसका फ़ोन जो टेबल पर रखा हुआ था, बजने लगा। उसने उठाकर देखा तो उसकी माँ कॉल कर रही थी। उसने कॉल रिसीव कर कान पर लगा लिया तो दूसरे तरफ से उसकी माँ की गुस्से भरी आवाज सुनाई दी।

    जो कह रही थी, "सात्विक कहाँ हो तुम? आर्या कब से तुम्हारे लिए रुकी हुई है और तुम हो कि सबको इग्नोर करते रहते हो। अरे वो बहन है तुम्हारी, उसके खातिर तो आ जाओ!"

    सात्विक बोला, "आ रहे हैं हम माँ, कुछ काम था इसलिए देर हो रही है।"

    सुरूचि बोली, "जल्दी आओ बेटा, सब वेट कर रहे हैं तुम्हारा।"

    सात्विक "ठीक है" कहकर कॉल कट कर देता है। फिर अपना कोट उठाकर पहन रूम से बाहर निकल जाता है।

    जब वह होटल के बाहर निकल रहा था, तब उसकी नज़र द्रक्षता को ढूँढने लगती है, लेकिन वह उसे कहीं नज़र नहीं आती तो उसके चेहरे पर शैतानी मुस्कान खिल जाती है।

    "कब तक छुपोगी हमसे? आना तो हमारे पास ही है!"

    राघव जो कि गाड़ी में बैठा उसका इंतज़ार कर रहा था, वह उसे आते देख दरवाजा खोल दिया तो सात्विक उसमें बैठ गया और वह लोग चले गए।

    द्रक्षता जो कि तब से होटल के किचन में थी, सात्विक को जाते देख एक चैन की साँस ली।

    उसके ड्यूटी का समय खत्म हो गया था और वह अपनी स्कूटी पार्किंग से निकाल ही रही थी कि उसका फ़ोन बजा। उसके फ़ोन के स्क्रीन पर देखा तो मान्यता उसे कॉल कर रही थी। उसने रिसीव कर लिया और बोली, "हाँ माँ, कोई दिक्कत हो गई क्या वहाँ?"

    मान्यता बोली, "अरे नहीं, कोई दिक्कत नहीं है। बस जिन्होंने केक का ऑर्डर दिया था वह तुमसे मिलना चाहती है। मैं तुम्हें एड्रेस भेज दे रही हूँ, तू आजा।"

    द्रक्षता कुछ देर रुककर बोली, "लेकिन माँ वो मुझसे क्यों मिलना चाहेंगी?"

    मान्यता उसे लगभग ऑर्डर देते हुए बोली, "बस अब मैं कुछ नहीं सुनूंगी, चुपचाप आ।"

    द्रक्षता अब कुछ नहीं बोल पाई। कुछ दो सेकंड्स के बाद उसके फ़ोन का मैसेज टोन बजा। उसने देखा उसकी माँ ने लोकेशन भेज दिया है जो यहाँ से काफी दूरी पर था। उसने अब ज़्यादा टाइम वेस्ट ना करते हुए स्कूटी स्टार्ट कर लोकेशन फ़ॉलो करते हुए चली गई।

    वहाँ पहुँचने में उसे लगभग 50 से 55 मिनट लग गए और आज ज़्यादा ट्रैफ़िक भी नहीं था।

    उसने एक बहुत बड़े घर के सामने अपनी स्कूटी रोकी। वह घर आज पूरी तरह लाइट से चमक रहा था। शायद वहाँ कोई फ़ंक्शन हो रहा था। उसने एक नज़र लोकेशन को देख सोचा,

    "क्या यही वह घर है? यह घर कहाँ से लग रहा है? यह तो महल को भी पीछे छोड़ दे। वैसे मुझे क्या? मुझे थोड़ी ना इस महल रूपी घर में ब्याहना है!"

    उसने अपने ख़यालों को झटका और अपनी माँ को फ़ोन लगाया। कुछ ही रिंग्स में कॉल रिसीव हो गई।

    तो सामने से मान्यता बोली, "आ गई तू? मैं एक मेड को भेज दे रही हूँ, तू उसके साथ अंदर आ जाना। मैं नहीं आ पाऊँगी, ठीक है।"

    द्रक्षता बस "ठीक है" बोलकर कॉल कट कर देती है और मेड का वेट करने लग जाती है। कुछ समय बाद एक मेड आती है।

    उसने उसे बोला, "क्या आप ही द्रक्षता चौहान हैं?"

    द्रक्षता हाँ में सिर हिला देती है तो वह उसे अपने साथ आने को बोलती है। द्रक्षता उसके पीछे-पीछे चल देती है।

    उस महल के अंदर सब कुछ आलीशान था जिस पर से द्रक्षता अपनी नज़र नहीं हटा पा रही थी।

    मेड उसे मान्यता के पास लेकर जाती है और खुद वहाँ से चली जाती है। मान्यता उसे वहाँ से जो उससे मिलना चाहती थी उसके पास लेके जाती है।

  • 7. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-7

    Words: 1364

    Estimated Reading Time: 9 min

    द्रक्षता उन्हें देख हैरान रह गई। उनके सामने खड़ी महिला, जो मंदिर में मिली थी, वही थी। सुरुचि उसे देख मुस्कुरा रही थी।

    "लगता है... पहचान लिया आपने हमें...!" वो द्रक्षता से प्यार से बोली।

    उनकी आवाज सुन द्रक्षता को वास्तविकता का आभास हुआ।

    तभी मान्यता बोली, "द्रक्षता... यह मिसेज सुरुचि सिंह राजपूत हैं..."

    मान्यता की बात सुन, उसने अपनी मधुर आवाज में सुरुचि से कहा, "जी आंटी... हमने आपको देखते ही पहचान लिया... एंड आपके साथ एक दादी भी थीं... वो नहीं दिख रही..."

    सुरुचि उसे एक ओर इशारा करते हुए बोली, "माँ वहाँ है... अपनी सहेलियों से बात कर रही हैं... क्या तुम्हें उनसे मिलना है...?"

    द्रक्षता ने हाँ में सिर हिलाया। तो सुरुचि, मान्यता और द्रक्षता को विनीता जी के पास ले गई। विनीता जी कुछ औरतों के साथ खड़ी थीं, जिनसे वे हँसते हुए बातें कर रही थीं।

    विनीता जी, जब सुरुचि के साथ मान्यता और द्रक्षता को देखती हैं, तो वे उन सभी औरतों से एक्सक्यूज़ मी कहकर उनके पास आ गईं।

    "आपको देखकर हमारा दिल खुशी से झूम उठा है।" वे द्रक्षता से प्यार से बोलीं, उसके गालों पर हाथ रखकर, "कितनी प्यारी और खूबसूरत हैं आप..."

    द्रक्षता को उन सबका बिहेवियर बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था। वे उसे इतने प्यार से क्यों बात कर रही थीं?

    वह उनके जवाब के बदले में सिर्फ मुस्कुरा दी।

    फिर विनीता जी ने मान्यता को देखते हुए कहा, "आप हमसे मिलने आईं... यह जानकर हमें बहुत खुशी हुई..."

    मान्यता बोली, "अरे नहीं... आंटी जी... मैं तो बस यहाँ केक का ऑर्डर देने आई थी... तो सुरुचि दिख गईं और उन्होंने मुझे द्रक्षता को बुलाने को कहा... (थोड़ा रुककर) आपको जो इससे पूछना है... आप अभी पूछ लीजिए..."

    "बेटा, जो तू चाहती है वही बताना, कोई दबाव नहीं है तुझ पर..." फिर मान्यता द्रक्षता से बोली।

    उन सब की बातों से द्रक्षता इतना तो समझ गई थी कि ये लोग उससे शादी की बात करने वाले हैं। तो उसने फिर ज्यादा नहीं सोचा और अपनी सामने खड़ी महिला के बोलने का इंतज़ार करने लगी।

    विनीता जी और सुरुचि ने एक-दूसरे को देखा। विनीता जी खुद को बोलने के लिए तैयार करने लगीं।

    फिर उन्होंने बोलना शुरू किया, "मान्यता ने आपको बता दिया होगा कि आपके पापा ने हमसे क्या वादा किया था... तो क्या हमें यह बता सकती हैं कि आप हमारे पोते से शादी करेंगी...?"

    द्रक्षता उन्हें देखते हुए बोली, "हाँ... हम तैयार हैं... (यह बोलते हुए उसे एक बार फिर सात्विक की याद आ जाती है) हम उनसे बस एक बार मिलना चाहेंगे..."

    इस बार सुरुचि बोली, "हाँ... क्यों नहीं? सात्विक आ ही रहे होंगे... आप थोड़े इंतज़ार कर लीजिए... उनसे मिल ही लेना..."

    द्रक्षता ने सिर हिला दिया।

    "ओह... तो मेरे होने वाले पति का नाम सात्विक है... कितना अच्छा नाम है... उम्म, द्रक्षता सात्विक सिंह राजपूत... वाह! कितना मैच कर रहा है हम दोनों का नाम साथ में... बस एक बार देख लूँ मैं उनको..."

    वह यह सब सोच ही रही थी कि उसकी माँ ने उसे पुकारा, तो उसका ध्यान टूटा।

    "द्रक्षता... कहाँ खो गई बेटा... चलो इनके पूरे परिवार से मिल लो..." मान्यता बोली।

    द्रक्षता ने हाँ में सिर हिला दिया और मान्यता, सुरुचि, विनीता जी के साथ उनके पीछे चली गई जहाँ एक ओर दो व्यक्ति, जो समान उम्र के लग रहे थे, और उनके साथ एक 70 वर्षीय आदमी भी था, जो बड़े रौब से खड़े आदमियों से बात कर रहे थे।

    विनीता जी उन सबको एक्सक्यूज़ मी कहकर उनका ध्यान अपनी ओर किया, तो वे सब वहाँ से चले गए। वे तीनों वहीं खड़े थे और विनीता जी को देख रहे थे।

    तो विनीता जी उन सबको द्रक्षता से मिलवाते हुए बोलीं, "धर्म जी, यह द्रक्षता है... आप तो इन्हें बेहद अच्छे से पहचानते हैं..."

    धर्म सिंह राजपूत, यह राजपूत परिवार के मुखिया थे। इनकी बात सबको सुनना पड़ता था क्योंकि सब उनकी बहुत इज़्ज़त करते थे। इनका बाहरी स्वभाव बहुत कड़क था, लेकिन भीतरी स्वभाव एकदम नर्म था। सभी से बहुत प्यार करते थे।

    मान्यता और द्रक्षता उन्हें ग्रीट करती हैं।

    धर्म जी द्रक्षता को देख कहते हैं, "इतने सालों तक कहाँ थे आप सब? हमने कितनी कोशिश की आपको ढूँढ़ने की..."

    मान्यता उनका जवाब देते हुए बोली, "अंकल जी, आप तो जानते हैं... उस समय सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि हमें कुछ सोचने-समझने का समय ही नहीं मिला... इतना सब कुछ होने के बाद हमें लगा हमारा सब कुछ खत्म हो गया है..." (कहते-कहते उसकी आवाज में नमी आ चली थी)

    धर्म जी उसे आश्वस्त करते हुए बोले, "जो हुआ सो हुआ... इतना सोचने की ज़रूरत नहीं अब... लेकिन आप पर इतनी बड़ी विपदा आन पड़ी... आपको एक बार भी हमारा ख्याल नहीं आया..."

    मान्यता बोली, "अंकल जी... ख्याल तो बहुत बार आया था... लेकिन आपके पास आने की हिम्मत ही नहीं हुई हमारी... उस समय बहुत बेचैन हो गए थे हम अंकल जी... लेकिन अब सब कुछ सही हो चुका है... अब किसी चीज़ की हमें कोई दिक्कत नहीं..."

    धर्म जी ने अब इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा और द्रक्षता से पूछा, "आपको याद हैं हम? की नहीं? इतने सालों के बाद... आप बहुत बड़ी हो चुकी हैं... कब का आपको देखना था और अब देख रहे हैं..."

    धर्म जी को देख द्रक्षता बोली, "हमने आपको तो सिर्फ़ आर्टिकल्स और मैगज़ींस में देखा है... इसके अलावा हम आपसे पहले कभी मिले हैं यह हमें नहीं याद रहा... इसके लिए हम माफ़ी चाहेंगे..."

    धर्म जी प्यार से बोले, "अरे नहीं... बेटा... हमें भी पता है... बहुत समय हो गया... इतने में याद नहीं रख पाएगा कोई..."

    विनीता जी उसे अपने बेटों से मिलवाते हुए एक 52 वर्षीय पुरुष की ओर इशारा करती हैं जो धर्म जी के साइड में खड़े हुए थे।

    "बेटा, यह है रजत, हमारे बड़े बेटे... और सात्विक के पिता... तो इस हिसाब से आपके भी पिता हुए..." विनीता जी बोलीं।

    द्रक्षता उन्हें भी हाथ जोड़कर ग्रीट करती है, तो रजत जी उसे मुस्कुराते हुए आशीर्वाद देते हैं।

    फिर विनीता जी धर्म जी के दूसरे साइड खड़े आदमी की तरफ़ इशारा कर बोलीं, "बेटा, ये शरत है... हमारे छोटे बेटे... और आपके लिए अंकल होंगे..."

    द्रक्षता उन्हें भी ग्रीट करती है। वे भी उसका मुस्कुराते हुए जवाब देते हैं।

    तभी वहाँ एक महिला आई जो बेहद सुंदर थी और उम्र लगभग 46 की थी। चेहरे पर सौम्यता साफ़ झलक रही थी।

    वह सुरुचि से बोली, "दीदी... सात्विक कब तक आएंगे? इतनी देर हो गई... आर्या अब तक रुकी हुई है... केक कटिंग हो जाती तो अच्छा होता..."

    सुरुचि उसके जवाब में बोली, "राम्या, हमने फ़ोन किया था उन्हें... आ रहे होंगे... अपनी बहन का दिल कभी नहीं दुखाते... आ जाएँगे थोड़ी देर में... आप चिंता ना करें..."

    विनीता जी राम्या से कहा, "देखिए राम्या, ये हमारी द्रक्षता है..."

    राम्या द्रक्षता को देखते हुए बोली, "सच में... कितनी प्यारी बच्ची हैं..."

    द्रक्षता सबको ग्रीट कर रही थी, उन्हें भी किया।

    तभी वहाँ एक शांति का माहौल छा गया। दरवाज़े से किसी के जूतों की आवाज़ आ रही थी जो बहुत एलिगेंट, डोमिनेटिंग और कर्कश लग रही थी।

    द्रक्षता जब उस तरफ़ देखती है तो हैरान हो जाती है।

    क्योंकि सामने सात्विक खड़ा था जिसकी नज़रें द्रक्षता के ऊपर नहीं गई थीं। उसके साथ कुछ और आदमी खड़े थे।

    उन सब को देख सुरुचि द्रक्षता से बोली, "आ गए सात्विक... खत्म हुआ आपका इंतज़ार... चलिए उनके पास..."

    द्रक्षता उनसे यह सब सुन शौक में आ चुकी थी कि क्या यही सात्विक है? अगर है तो उसकी शामत आ ही गई थी सोचो। फिर ज़्यादा नहीं सोचते हुए उसने यह सोच लिया कि उनके साथ जो आए होंगे वो होगा, यह नहीं हैं।

    अब तक द्रक्षता, सुरुचि और बाकी महिलाओं के साथ उनके पास चली गई थी।

    जब एक लड़की, जो यही कोई 20 साल की होगी, वह सात्विक के गले लग गई तो सात्विक ने भी उसे गले से लगा लिया।

    यह देख, ना जाने क्यों द्रक्षता को जलन सी महसूस होने लगी। उसने अपनी नज़र उन दोनों पर से हटा लिया। तब उसे सात्विक की आवाज़ आई।

    जो कह रहा था, "क्यों... आज हमारी बहन तो काफ़ी खूबसूरत लग रही हैं... कोई जादू-टोना तो नहीं किया ना आपने अपने चेहरे पर..."

    द्रक्षता यह सुन खुद में काफ़ी शर्मिंदगी महसूस कर रही थी कि उसने एक भाई-बहन को किस नज़रिए से देख लिया।

    उन्हें देख सुरुचि ने कहा, "आर्या बेटा... अब तो केक कट कर लो... बेटा, टाइम बहुत हो गया ना..."

    आर्या ने अपना सर हिला दिया और सभी के साथ केक कट करने लगी। उसके केक कट करते समय सब बर्थडे सॉन्ग गा रहे थे।

    आर्या ने अपना केक कट कर सबसे पहले सुरुचि और राम्या को खिलाया, फिर रजत जी और शरत जी को और उसके बाद सात्विक को, उसके बाद बाकी मेंबर्स को।

    द्रक्षता को अब यह लग रहा था कि शायद यही सात्विक सिंह राजपूत है, तभी तो उसकी बहन ने उसे केक खिलाया।

    वह यह सोच ही रही थी कि सुरुचि उसका हाथ थाम उसे सात्विक के पास ले जाती है।

    और कहती है, "बेटा द्रक्षता... यह है हमारा बेटा सात्विक सिंह राजपूत... आप मिलना चाहते थे ना इनसे... लीजिए... अब यह आपके सामने है..."

    द्रक्षता अपने डाउट को सच हुआ देख परेशान हो चुकी थी। आखिर किस चेहरे से वह इनसे बात करती?

  • 8. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-8

    Words: 1331

    Estimated Reading Time: 8 min

    द्रक्षता अब शांत हो चुकी थी। उसने अपने सामने खड़े सात्विक को देखा जो उसे ही देख रहा था, और उसके चेहरे पर तिरछी मुस्कान खिली हुई थी। यह सब देखकर उसे बेहद खुशी मिल रही थी।

    सुरुचि ने उसे पुकारा, "क्या हुआ बेटा द्रक्षता? कहाँ खो गईं आप?"

    द्रक्षता ने उन्हें देखकर कहा, "कुछ नहीं आंटी जी।"

    सुरुचि मुस्कुराते हुए बोली, "अब मुझे आंटी कहने की कोई ज़रूरत नहीं। अब से जो आप मान्यता को कहकर पुकारती हैं, उसी से मुझे भी पुकारेंगी, तो मुझे अच्छा लगेगा। नहीं तो मैं बुरा मान जाऊँगी।" (वो अपना मुँह फूला लेती है)

    द्रक्षता ने उन्हें ऐसे मुँह फुलाते देखा तो उसके चेहरे पर भी मुस्कान खिल गई।

    वोह उनसे बोली, "अरे आंटी..." (सुरुचि उसे घूर कर देखती है) "...अच्छा... अच्छा... माँ... आप ऐसे नाराज़ क्यों हो रही हैं?"

    सुरुचि खुश होते हुए बोली, "अब हुई ना बात! ऐसे ही मुझे माँ कहा करो, मुझे अच्छा लगता है। हम्म!"

    द्रक्षता ने सिर हिला दिया। सुरुचि उन दोनों को अकेला छोड़कर चली गई। द्रक्षता उन्हें रोकना चाहती थी, लेकिन वो रुकी नहीं।

    तभी सात्विक की आवाज़ आई, "क्या कहा था आपने? ज़रा आप दुबारा रिपीट कर दीजिए।"

    द्रक्षता उसे देखने लगी, लेकिन ज़्यादा समय तक नहीं। उसने अपनी नज़रें झुका लीं। उसे कुछ बोलते नहीं बन रहा था। वोह अपनी सारी हिम्मत जुटाकर उससे बोली, "हम क्यों रिपीट करें? आपको नहीं पता कि हमने क्या कहा था?"

    सात्विक की मुस्कान और ज़्यादा तिरछी हो गई।

    "क्यों? अब आप हमसे शादी करने के लिए तैयार हैं? या अभी भी कोई गिला शिकवा है आपको?" सात्विक ने कहा।

    द्रक्षता नज़रें चुराते हुए बोली, "नहीं, हमें आपसे क्यों कोई शिकायत होगी?"

    सात्विक उसे देखते हुए बोला, "अब आपको पता चल गया ना कि आपके होने वाले पति हम हैं, तो आपके ऊपर किसी और का अधिकार हमें बर्दाश्त नहीं होगा। आप हमारी हैं, हमारी रहेंगी।"

    द्रक्षता उसके मुँह से यह सुनकर सोच में पड़ गई कि इस आदमी का दिमाग सही जगह तो फ़िक्स है ना, या कोई एंटीना हिल गया है?

    द्रक्षता बस सिर हिला देती है।

    तभी उनके पास आर्या आ जाती है। वो खुश होते हुए कहती है, "वाह! आप हमारी भाभी हो ना? आप कितनी सुंदर हो! भाई ना हम सब पर अपना रौब झाड़ते रहते हैं। आप ना उन्हें सीधा कर देना!"

    यह सुन द्रक्षता मुस्कुरा देती है।

    आर्या उसे देखकर प्यार से उसके गाल छूते हुए कहती है, "भाभी, आप ना हमेशा काला टीका लगाकर रखा कीजिए, वरना आपको नज़र लग जाएगी।"

    सात्विक उसकी बात सुन मन में सोचता है, "इन्हें हमारी नज़र लग चुकी है, और किससे ही इनको नज़र लगेगी? और किसी ने ऐसी हिम्मत की भी तो उन्हें नर्क के द्वार दिखाएँगे हम!" (बेहद जुनून से)

    फिर द्रक्षता को मुस्कुराते देख, अजीब सी मुस्कान उसके चेहरे पर भी ठहर जाती है। उन दोनों को बात करते देख वो एक साइड चला जाता है।

    वहाँ कुछ उसी के उम्र के या उससे थोड़े छोटे लोग थे। उसके वहाँ आते ही,

    एक 26 वर्षीय आदमी, जो लगभग दिखने में हल्का उससे मिलता-जुलता था, बोला, "क्यों भाई, आज तो बहुत खुशी उमड़ रही होगी आपके दिलो-दिमाग में, क्योंकि भाभी ने आपसे शादी के लिए हाँ कह दिया!"

    सात्विक सीरियस होते हुए, अपने डीप वॉयस में बोला, "क्यों संभव? तुम्हें भी कोई पसंद है क्या? जो मेरी शादी के लिए तुम इतने ज़्यादा एक्साइटेड नज़र आ रहे हो ताकि मेरे बाद तुम्हारी भी नैया पार हो सके!"

    संभव हड़बड़ाते हुए बोला, "अरे नहीं भाई, आप तो दिल पर ले लिए बात को!"

    सात्विक उसे देख ज़्यादा कुछ नहीं बोला। तो संभव के साथ खड़ा 25 साल का व्यक्ति, जो बहुत मज़ाकिया, हँसमुख स्वभाव का लग रहा था,

    बोला, "क्यों भाई, संभव भाई ने कुछ गलत तो नहीं बोला ना? आप सच में उनके लिए क्रेजी हो गए थे!"

    सात्विक उसे घूरते हुए बोला, "प्रत्यूष, अपनी दिल की बात दिल में ही रखने में भलाई होती है। या तुम्हारा भी एंटीना किसी पर अटका हुआ है क्या? अगर ऐसा कुछ है तो पहले बता दो, मैं तुम्हारी शादी का रिस्क ले सकता हूँ!"

    यह सुनते ही प्रत्यूष ने बेचारा सा मुँह बना लिया। वो अब आगे क्या बोलता, उसे खुद समझ नहीं आ रहा था। इसलिए उसने अब चुप रहना ही बेहतर समझा।

    थोड़ी देर पार्टी खत्म हो जाती है, और अब फैमिली मेंबर्स ही बचते हैं। मान्यता और द्रक्षता जाना चाहती थीं, लेकिन उन्हें जाने नहीं दिया जा रहा था।

    वो सब अभी बड़े और विशाल से डाइनिंग टेबल की कुर्सियों पर बैठे अपना-अपना डिनर कर रहे थे।

    तभी हेड चेयर पर बैठे धर्म जी ने मान्यता से कहा, "बेटा, हम चाहते हैं कि सात्विक और द्रक्षता की शादी जल्द से जल्द हो जाए। तो अच्छा हो, इसीलिए कल आप द्रक्षता की कुंडली ले आएंगे, तो हम हमारे कुल के पंडित जी से इन दोनों की शादी के लिए कोई अच्छा मुहूर्त निकाल पाएँगे। अगर द्रक्षता को अभी शादी करने में दिक्कत नज़र आ रही है तो हम केवल इंगेजमेंट कर सकते हैं।"

    द्रक्षता यह सुन खाते हुए रुक गई थी, क्योंकि वो शादी तो कर लेती, लेकिन इतनी जल्दी भी नहीं करना था उसे। यह बहुत जल्दी हो रहा था उसके लिए।

    मान्यता द्रक्षता से पूछती है, "बेटा, आपने तो सुना ना अंकल जी ने क्या कहा? आप अपनी राय दे दीजिए, तभी हम कुछ कर पाएँगे।"

    द्रक्षता थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली, "माँ, वो ये बहुत जल्दी हो रहा है। क्या शादी कुछ समय के लिए रुक नहीं सकती?"

    धर्म जी उसके हिचकिचाहट को देखते हुए बोले, "तो इसमें इतना हिचकिचाने की क्या बात है बेटा? शादी आपकी हो रही है, तो इसमें कोई जल्दबाज़ी नहीं होगी।"

    सात्विक जो उन सब की बात को बहुत गौर से सुन और समझ रहा था, लेकिन उसका चेहरा देख यह कहना मुश्किल था कि वह क्या सोच रहा है। जब उसने द्रक्षता को समय लेते देखा तो यह बात उसे रास नहीं आई, लेकिन उसने कुछ कहा नहीं।

    धर्म जी सात्विक को देखकर बोले, "सात्विक, आप अब तो कोई नखरे नहीं करेंगे ना यह शादी करने में? अगर करेंगे तो पहले बता दीजिए, हम अभी सबको इनकार कर देंगे। क्योंकि इससे आपका तो कुछ नहीं जाएगा, लेकिन द्रक्षता बेटा को आपके नखरीले व्यवहार से दिक्कत हो सकती है।"

    सात्विक शालीनता से सिर्फ़ हाँ में सिर हिला देता है। तो यह देख सब हैरान रह जाते हैं कि सच में सात्विक इतने अच्छे से उनकी बात मान रहा है।

    तभी संभव बोला, "क्यों भाई, इतने अच्छे से जवाब दे रहे हैं आप? लगता है आपको भी भाभी पसंद हैं ना!"

    उसके ऐसा कहने पर सात्विक उसे घूरकर बेहद खतरनाक तरीके से देखने लगा। तो संभव चुप हो गया।

    सब अपना-अपना खाना खत्म कर उठकर हॉल में आ गए।

    जो इतना बड़ा था कि अगर कोई नॉर्मल इंसान देखे तो वह पागल ही हो जाए। वहाँ रखा हर एक शोपीस और अन्य इस्तेमाल की जाने वाली वस्तु की कीमत लाखों या करोड़ों में होगी।

    मान्यता अब उनसे जाने की परमिशन माँगने लगी। तो धर्म जी ने सात्विक को उन्हें सफलतापूर्वक उनके घर पहुँचाने को कहा।

    यह कहते हुए कि, "अब एक तुम्हारी सास है, जो माँ के दर्जे की है, और एक तुम्हारी जीवनसंगिनी बनने वाली है, तो इनकी ज़िम्मेदारी भी तो तुम्हें लेनी चाहिए!"

    सात्विक को तो जैसे यही चाहिए था। उसने बिना किसी आनाकानी के उन्हें घर पहुँचाने चला गया।

    यह देख सब काफ़ी हैरान था कि आज सात्विक को हुआ क्या है कि यह किसी भी बात के लिए इनकार नहीं कर रहा।

    उसने बाहर आकर अपने गैरेज में से उसकी एक्सक्लूसिव एडिशन की कार निकाली और उनके बैठने के लिए दरवाज़ा भी खोला।

    द्रक्षता बैक सीट पर बैठ रही थी।

    तभी सात्विक बोला, "ड्राइवर नहीं है। हम आपके माँ के लिए दरवाज़ा खोला है हमने। उन्हें आगे बैठने से दिक्कत हो सकती है, इसीलिए।"

    द्रक्षता मुँह बनाते हुए आगे जाकर पैसेंजर सीट का डोर खोलकर बैठ गई।

    मान्यता उन दोनों को देख मुस्कुरा रही थी, उनकी अनकही झिड़की को देख।

    उसे खुशी हो रही थी कि उसकी बेटी अब एक खुशहाल जीवन जी पाएगी, और यह कौन सी माँ नहीं चाहेगी कि उसकी बेटी को एक अच्छा हमसफ़र मिले? सारी माँयें अपने बच्चों की खुशी चाहती हैं। आज जब मान्यता ने उन दोनों को साथ में देखा तो उसे अपनी बेटी की खुशी सात्विक के साथ ही नज़र आई। वो बस ऐसे ही द्रक्षता को खुश देखना चाहती थी।

    सात्विक ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गया और उसने द्रक्षता को देखा जो मुँह फुलाकर बैठी हुई थी। उसे ऐसे देख उसके होठों पर एक दिलकश मुस्कान छा गई। उसने उसे सीट बेल्ट लगाने को कहा, तो वो उसे देखने लगी क्योंकि उसे सीट बेल्ट लगाना नहीं आता था।

    उसने धीरे से कहा, "मुझे यह लगाना नहीं आता, और क्या गाड़ी से जाना ज़रूरी है? क्योंकि मैं अपनी स्कूटी से आई थी।" (फिर एक ओर इशारा कर) "देखिए, वहाँ पार्क की हुई है, तो हम उसी से चले जाएँ।"

    सात्विक उसे घूरते हुए बोला, "चुपचाप बैठे। आपकी स्कूटी कल आपको आपके घर पहुँचा दी जाएगी।"

  • 9. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-9

    Words: 1312

    Estimated Reading Time: 8 min

    सात्विक ने यह सुनकर कि उसे सीट बेल्ट लगाना नहीं आता, उसे अजीब नज़रों से देखा। फिर आगे बढ़कर सीट बेल्ट लगा दिया।

    द्रक्षता अपने घर पहुँचने तक कुछ नहीं बोली। चुपचाप बाहर देखती रही, और सात्विक छुप-छुप कर उसे देखता रहा।

    जब वे घर पहुँचे, मान्यता उतरकर अंदर चली गई। द्रक्षता उतर ही रही थी कि सात्विक ने उसका हाथ थाम लिया। द्रक्षता की धड़कनें बुलेट ट्रेन की स्पीड को भी पीछे छोड़ रही थीं।

    वह मुड़कर उसे देखने लगी, जो उसे ही देख रहा था।

    "अब से आप किसी होटल में वेट्रेस का वर्क करने नहीं जाएँगी।" उसने बेहद ठंडी आवाज़ में कहा।

    द्रक्षता को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस बात पर उसे क्या जवाब दे।

    "सुनाई दिया ना आपको? नहीं जाएँगी आप ऐसी जॉब करने!" सात्विक उसके हाथों पर दबाव बनाते हुए बोला।

    द्रक्षता पूरी तरह से हैरान हो चुकी थी। उसे यह आदमी अब पागल लगने लगा था। उसने उसे एक सुलझा हुआ आदमी समझा था, पर अब वह ऐसी हरकतें क्यों कर रहा था?

    अगर वह जॉब पर नहीं जाएगी, तो अपनी माँ को क्या बोलेगी? कि उसे सात्विक ने जाने से मना किया है? तभी उसे उसकी आवाज़ सुनाई पड़ी।

    "अगर कोई आपसे पूछे, तो सीधे कह दीजिएगा कि हमने आपको मना किया है!"

    द्रक्षता अब हारकर सर हां में हिला दी। "ठीक है। हम माँ से पूछेंगे। अगर उन्होंने ना जाने को बोला, तो नहीं जाऊँगी।" थोड़ा रुककर बोली, "अब क्या आप हमारा हाथ छोड़ सकते हैं?"

    सात्विक एक दिलकश मुस्कान के साथ उसका हाथ छोड़ देता है। द्रक्षता जल्दी से अपना हाथ छुड़ाकर कार का दरवाज़ा खोल, जल्दी से कार से निकलकर घर के अंदर जाकर दरवाज़ा बंद कर लेती है।

    सात्विक उसे तब तक देखता रहता है जब तक वह दरवाज़ा बंद नहीं कर लेती। फिर अपनी कार स्टार्ट कर अपने महल के लिए निकल जाता है।

    द्रक्षता अपने रूम में थी। वह बस करवटें बदल रही थी। इन कुछ दिनों से उसे अच्छी नींद नहीं आ रही थी। वह उठ जाती है और सोचने लगती है कि इन दिनों में उसकी ज़िंदगी कहाँ से कहाँ आ गई थी।

    द्रक्षता बेड के साइड लगे टेबल पर रखे जार को उठाकर देखती है। उसमें पानी नहीं था। वह उठकर बाहर आकर किचन में जाती है और पानी लेकर वापस आती है। उसकी माँ के रूम की लाइट्स जली हुई थीं। वह उनके रूम में जाती है तो उसकी माँ जागी हुई, कुछ गहरी सोच में डूबी हुई थी।

    द्रक्षता उनके पास आकर बैठ जाती है। मान्यता उसे अपने पास देख उसके सर को अपने गोद में रख सहलाने लगती है।

    "क्या हुआ बेटा? सोई नहीं अब तक?" मान्यता द्रक्षता से बोली।

    "माँ, नींद नहीं आ रही।" द्रक्षता उसे देखते हुए बोली।

    "बेटा, तुमने शादी के लिए हां क्यों कहा?" मान्यता उसके सर को सहलाते हुए बोली।

    "क्या मुझे हां नहीं कहना चाहिए था माँ? मैंने कुछ गलत किया?" द्रक्षता उसे देखकर बोली।

    "नहीं, तुमने कुछ गलत नहीं किया। बस मुझे लगा, अभी तुम तैयार नहीं हो शादी के लिए। लेकिन अच्छा है कि तुमने मना नहीं किया, क्योंकि उन्होंने एक समय तुम्हारे पापा की बहुत हेल्प की थी बिज़नेस में।" मान्यता बोली।

    "माँ, आप उदास हैं। कुछ हुआ है क्या?" द्रक्षता उसे देखकर बोली।

    "बेटा, तुझसे कैसे इतनी दूर रहूंगी मैं? तू मेरे पास नहीं होती ना, मुझे अच्छा नहीं लगता। जब तेरी शादी हो जाएगी, तो कैसे रहूंगी मैं? जानती है, मैंने ना तेरे बच्चों तक को इमेजिन कर लिया अब तक, कि वो तेरे जैसे होंगे या सात्विक की तरह।" मान्यता बोली।

    द्रक्षता को उसकी यह बात थोड़ी हैरान कर गई कि यहाँ अभी तक उसकी शादी भी नहीं हुई और उसकी माँ ने उसके बच्चों तक के बारे में सोच लिया।

    द्रक्षता कुछ बोल नहीं पाई। मान्यता मुस्कुराते हुए उसे देख रही थी। कुछ देर बाद उसकी आँखें नम हो जाती हैं। द्रक्षता उसे ऐसे देख कुछ समझ नहीं पाती।

    वह उठकर बैठते हुए बोली, "माँ, क्या हुआ है? क्यों रो रही हैं आप? बताएँगी नहीं तो पता कैसे चलेगा?"

    मान्यता भरी आँखों से उसे देखते हुए उसके चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए बोली, "बेटा, तू इतनी जल्दी बड़ी कैसे हो गई? फिर से मेरी गोद में आ जा।"

    "माँ, प्लीज़ मत रोइए। मैं भी रो दूँगी।" द्रक्षता बोली।

    मान्यता खुद को संभालते हुए बोली, "ना, ना, तू नहीं रोएगी। ये तो सिर्फ़ खुशी के आँसू हैं कि तू इतने बड़े परिवार की बहू बनेगी।"

    द्रक्षता उसके गले लग गई। मान्यता ने कस के उसे गले लगा लिया। कुछ देर वह दोनों शांत हो गईं। द्रक्षता वहीं सो गई।

    अगली सुबह, द्रक्षता फ्रेश हो गई थी। मान्यता ने नाश्ता तैयार कर लिया था। सब डाइनिंग टेबल पर बैठे नाश्ता कर रहे थे।

    "माँ, सुरुचि और विनीता आंटी जी मिली थीं। द्रक्षता की शादी की बात कर रही थीं और आज कुंडली लेकर बुलाया है। क्या अभी इसका शादी करना सही होगा? लेकिन मैं उन्हें मना नहीं कर पाई, क्योंकि उन्होंने बहुत उम्मीद से ये बात मेरे सामने रखी।" मान्यता अपनी सास से बोली।

    गरिमा जी कुछ सोचकर बोलीं, "बेटा, कभी न कभी तो वो द्रक्षता की शादी की बात करते ही और हम कुछ नहीं कर सकते। द्रक्षता अगर चाहेगी, तो वो परिवार बुरा नहीं है। सभी दिल के बहुत अच्छे हैं। मैं तो कहूंगी, अगर द्रक्षता की शादी हो जाएगी तो बहुत अच्छा होगा।"

    "ठीक है माँ, तो आज साथ में चलते हैं उनके घर। आप भी उनसे मिल लेना। मेरी बेटी की शादी की डेट फ़िक्स हो जाएगी। इससे अच्छा मेरे लिए क्या होगा?" मान्यता उनकी बात सुनकर बोली।

    दर्शित और दृशा उनकी बात बहुत गौर से सुन रहे थे।

    "माँ, सच में दी की शादी होगी? वॉव! मैं ना शादी में अपने सारे फ्रेंड्स को बुलाऊंगी।" दृशा खुश होकर बोली। फिर थोड़ा उदास होकर बोली, "तो क्या सच में दी, शादी के बाद अपने ससुराल चली जाएगी?"

    द्रक्षता उसे उदास देखकर बोली, "अरे मेरी प्यारी बहना, इतना उदास क्यों हो रही हो? तेरी दी की शादी है, खूब मोज-मस्ती और डांस करना शादी में। और क्या हुआ? अगर ससुराल जाऊंगी, तो मैं तुझसे हर रोज वीडियो कॉल पर बात करूंगी। अगर इससे भी नहीं हुआ, तो मैं दो-दो दिनों में वापस आ जाया करती रहूंगी। ऐसे उदास मत रह, अच्छी नहीं लगती तू।" इतना बोलकर वह उसके गले लग गई।

    दृशा ने भी उसे गले से लगा लिया। दर्शित उन्हें देखे जा रहा था। वह उठकर जाने लगा। द्रक्षता उसका हाथ पकड़ उसे रोककर बोली,

    "आ जा, तू भी। मुझे अच्छे से पता है, तू भी किसी कोने में जाकर रोएगा। इससे अच्छा मेरे पास आकर रो।"

    दर्शित भी उसके गले लगकर बोला, "क्यों कर रही हो दी शादी? मत करो ना।"

    द्रक्षता उसे देखकर बोली, "अरे पगले, तुझे तो मैं स्ट्रांग समझती थी, लेकिन तू तो इमोशनल फूल निकला। शादी तो एक ना एक दिन करनी होती है, सभी को। मैं अकेले थोड़ी ना हूँ। अब रोना बंद कर। तुम दोनों को चुप कराते-कराते कहीं मैं भी ना रो पड़ूँ।"

    मान्यता और गरिमा उन्हें देख एक-दूसरे को देखने लगीं। उनकी भी आँखें नम हो चुकी थीं, लेकिन वे बस उन तीनों को देखती रहीं।

    द्रक्षता उन दोनों को उनकी जगह पर वापस बिठाते हुए बोली, "चलो, चुपचाप नाश्ता करो। भूखे पेट कहीं जाने नहीं दूंगी।"

    दोनों ने अपना सर हिलाकर नाश्ता करना शुरू कर दिया।

    कुछ देर बाद सब अपना-अपना नाश्ता कर चुके थे। दर्शित अपने कॉलेज और दृशा अपने स्कूल चली गईं।

    कुछ समय बाद मान्यता का फ़ोन बजा। उसने स्क्रीन पर देखा तो सुरुचि उसे कॉल कर रही थी। कल ही उन दोनों ने अपना नंबर एक्सचेंज किया था।

    "हाँ, सुरुचि, क्या कोई काम है?" मान्यता कॉल रिसीव कर कान पर लगाते हुए बोली।

    "मान्यता, हम कह रहे थे, हमारे गुरुजी बस आधे-एक घंटे में आ जाएँगे, तो तुम भी आ जाओ।" सुरुचि बोली।

    मान्यता ने हाँ कहकर फ़ोन काट दिया।

    वह गरिमा जी और द्रक्षता को लेकर उनके घर के लिए निकल गईं।

    द्रक्षता कैब में बैठे रहने के कुछ देर बाद उसे सात्विक का उसे जॉब करने पर इंकार याद आया।

    "माँ, उन्होंने मुझे यह जॉब करने से मना किया है, तो मैं ना जाऊँ।" वह मान्यता से बोली।

    मान्यता उसे देखकर बोली, "मुझसे क्या पूछ रही है? सात्विक ने मना किया है, तो कुछ सोचकर ही किया होगा।"

    "मतलब मैं ना जाऊँ?" द्रक्षता बोली।

    मान्यता ने हाँ में सर हिला दिया।

    कुछ आधे घंटे बाद उनकी कैब उस महल के सामने रुकी। वे तीनों उतरकर अंदर चली गईं।

    बाहर ही उन्हें सुरुचि और राम्या मिल गईं। वे दोनों बहुत आदर के साथ उन्हें अंदर लेकर गईं। अभी गुरुजी नहीं आए थे, उन्हें कुछ समय लगता था।

    तब तक वे सभी आपस में ही बात करती रहीं। तभी वहाँ एक भारी आवाज़ सुनाई पड़ी। सब बड़े और विशालकाय दरवाज़े की ओर देखने लगे।

  • 10. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-10

    Words: 1349

    Estimated Reading Time: 9 min

    गुरुजी और उनके कुछ शिष्य दरवाजे पर खड़े थे। कुछ नौकर उन्हें लाए थे। सुरुचि ने उन्हें दरवाजे पर देखते ही जल्दी से उठकर नमन किया और उनके पैर छुए। गुरुजी ने उनके सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। तब तक सभी दरवाजे पर पहुँच चुके थे और सभी ने हाथ जोड़ लिए।

    सुरुचि ने उन्हें अंदर आने को कहा। गुरुजी अंदर आकर सोफे पर बैठ गए और अपनी माला लेकर भगवान का नाम जपने लगे।

    "प्रणाम गुरुजी!," धर्म जी ने कहा।

    गुरुजी ने सिर हिलाया।

    "गुरुजी, आप जानते हैं हम सात्विक का विवाह कर रहे हैं और आपके बिना यह अच्छा नहीं लगेगा। अगर आपकी इच्छा हो तो आप इस विवाह का अनुसरण कर दीजिए!," धर्म जी ने आगे कहा।

    "यह सब तो होता रहेगा। हम आपकी कुल वधू को देखना चाहेंगे। उनके भाग्य रेखा इस परिवार के लिए अनुकूल है या प्रतिकूल, यह मिलाना चाहते हैं हम!," गुरुजी ने कहा।

    "जैसा आप कहें। बेटा द्रक्षता, इनके पास जाओ!," धर्म जी ने कहा, सिर हिलाते हुए।

    द्रक्षता गुरुजी के पास गई और उन्हें प्रणाम करने लगी, उनके पैर छूने ही वाली थी कि गुरुजी ने उसे रोक दिया। सभी हैरानी से देखने लगे।

    "कुंवारी कन्याएँ पैर नहीं छूतीं। देवी मां रूष्ट हो जाएंगी। हम इतना बड़ा पाप अपने सर नहीं ले सकते!," गुरुजी ने द्रक्षता से कहा।

    "मुझे माफ कीजिए गुरुजी, मुझे नहीं पता था!," द्रक्षता बोली।

    गुरुजी ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा, "तुम्हें आशीर्वाद चाहिए? मैं तुम्हें देता हूँ। मैं देख पा रहा हूँ तुम्हारे जीवन में कई सारे उतार-चढ़ाव हैं, जिनसे तुम कभी मत घबराना और उनका दृढ़ मन से सामना करना।"

    द्रक्षता मुस्कुराते हुए अपना सर झुकाकर उन्हें नमन किया।

    "इनका विवाह कर दो। सात्विक के लिए इनसे अच्छी कोई सुयोग्य कन्या नहीं मिलेगी!," गुरुजी ने धर्म जी से कहा।

    "गुरुजी, आप ही बता दीजिए कौन सी तिथि इनके विवाह के लिए सबसे लाभकारी मानी जाएगी!," धर्म जी ने पूछा।

    "अगर देवी मां का आशीर्वाद रहा तो अभी इनका विवाह करा दो, असफल नहीं होगा। फिर भी तुम तिथि जानना चाहते हो तो मेरा शिष्य इनकी कुंडली देखकर तुम्हें सबसे अच्छी तिथि बता देगा!," गुरुजी ने कहा।

    गुरुजी ने अपने एक शिष्य को बुलाकर धर्म जी को दोनों की कुंडलियाँ देने को कहा। धर्म जी ने सात्विक की कुंडली दी और मान्यता से द्रक्षता की कुंडली माँगी। मान्यता ने अपने पर्स से कुंडली निकालकर दे दी।

    गुरुजी के शिष्य दोनों की कुंडली बड़े ध्यान से देख रहे थे।

    "क्या हुआ गुरुजी, कोई दिक्कत की बात है क्या?," धर्म जी ने पूछा।

    "दिक्कत तो है कि इन दोनों के विवाह का योग केवल 7 दिनों के बाद बन रहा है, उसके बाद साढ़े तीन साल बाद है। 7 दिनों वाला योग बहुत शुभ भी है!," शिष्य ने कहा।

    "लेकिन यह तो बहुत जल्द हो रहा है। इतनी जल्दी इतने सारे काम कैसे होंगे?," धर्म जी ने हैरानी से कहा।

    "हमारा काम तो आपको शुभ मुहूर्त बताना था, जो हमने बता दिया। अब आप सोचें आपको क्या करना है!," शिष्य ने कहा।

    सब सोच में पड़ गए। 7 दिन बहुत कम थे और साढ़े तीन साल बहुत ज़्यादा। अब क्या किया जाए?

    "क्या तुम्हें कोई दिक्कत है मान्यता? इतनी जल्दी से? हम मैनेज कर सकते हैं!," सुरुचि ने मान्यता से पूछा।

    मान्यता द्रक्षता को देखने लगी, जो खुद हैरान थी। गरिमा जी ने मान्यता को हाँ कहने का इशारा किया।

    "काम तो हर शादी में होते हैं सुरुचि। अब इतनी जल्दी का डेट आया है तो इसमें कुछ नहीं किया जा सकता है। कर देते हैं इनकी शादी!," मान्यता ने सुरुचि से कहा।

    सुरुचि ने हाँ में सर हिलाकर धर्म जी को अपनी सहमति बता दी। धर्म जी ने गुरुजी से कुछ विशेष बातें कर उन्हें विदा किया। गुरुजी अब सीधा शादी में आने वाले थे।

    "अब हम समधन बनने वाले हैं मान्यता! मुँह तो मीठा करना बनता है!," सुरुचि ने कहा।

    सब अपना-अपना मुँह मीठा करते हैं।

    "ठीक है, तो शादी में बहुत कम समय बचा है। सारी खरीदारी कल से ही शुरू करनी होगी। भाभी जी (मान्यता), अब कल शादी के लिए शॉपिंग करने जाएँगे, तो आप सभी को आपके घर से ही हम सब पिकअप कर लेंगे!," रजत जी ने कहा।

    "जी भाई साहब, इतनी जल्दी इतना सब कैसे होगा? उस समय तो बोल दिया मैंने, लेकिन अब समझ आ रहा है कि सच में बहुत कम समय है!," मान्यता ने कहा।

    "अरे नहीं मान्यता, सब अपने समय पर सब कुछ हो जाएगा। तुम चिंता मत करो। अब कल शॉपिंग करने चलेंगे। आखिर मेरी भी तो बहू आने वाली है मेरे पास!," सुरुचि ने कहा।

    मान्यता ने सिर हिला दिया। उन्होंने कुछ देर बात की, उसके बाद मान्यता द्रक्षता और गरिमा जी के साथ चली गई।

    अगले दिन, क्वेस्ट मॉल में, द्रक्षता और मान्यता को राजपूत परिवार ने पिकअप कर लिया था। सब अपने-अपने शॉपिंग में लगे हुए थे। सुरुचि, मान्यता, द्रक्षता एक साथ थीं। वे तीनों ज्वेलरी शॉप में द्रक्षता के लिए ज्वेलरी चुन रही थीं। सुरुचि हर तरह के महंगे-महंगे ज्वेलरीज द्रक्षता पर रख-रख कर देख रही थी। सब द्रक्षता पर अच्छे लग रहे थे और सुरुचि उन्हें पैक करवा रही थी।

    मान्यता सुरुचि को इतना सब लेने से मना कर रही थी, लेकिन वह मानने वाली नहीं थी।

    "मान्यता तुम भी ना! अरे मेरी पहली बहू है, इसे सजाने के लिए कुछ तो करने दो मुझे!," सुरुचि ने कहा।

    "लेकिन इतना सब काफी है, बहुत हो गया है! अब कुछ और ले लेते हैं!," मान्यता ने कहा।

    सुरुचि ने उसे अनदेखा कर दिया और अपना काम करने लगी। जब उसने द्रक्षता के लिए सारे ज्वेलरी ले लिए, उसने कुछ द्रक्षता के परिवार के लिए भी लिए थे। मान्यता ने उसे बहुत मना किया, फिर भी सुरुचि ना मानी। जब उसका सबके लिए ज्वेलरी लेना हो गया,

    तो वह खुश होकर मान्यता से बोली, "चलो मान्यता, अब ड्रेसेस भी तो लेने हैं। अरे जल्दी करो, बहुत कुछ लेना है अभी तो!"

    मान्यता उसे देख सोच रही थी, "सुरुचि अभी भी शॉपिंग करने की शौकीन है!"

    सात्विक जो ऑफिस से सीधा मॉल आ गया था, वह भी अपनी माँ की जल्दबाजी देख मुस्कुरा दिया और द्रक्षता को देख उसकी मुस्कान और चौड़ी हो गई।

    यहाँ द्रक्षता का फ़ोन बजा। उसने देखा कि कार्तिक उसे कॉल कर रहा था।

    "हाँ, कार्तिक बोलो!," द्रक्षता ने फ़ोन पिक करते हुए कहा।

    "बोलो...नहीं...तुम पहले यह बताओ कि मॉल में क्या कर रही हो!," कार्तिक ने कहा।

    द्रक्षता ने उसकी बात सुनकर हैरानी से इधर-उधर देखते हुए कहा, "तुम यहीं कहीं हो क्या? जो तुम्हें पता है कि मैं मॉल में हूँ!"

    तभी उसे कुछ दूर पर अपनी बहन के साथ खड़ा कार्तिक दिखाई दिया। उन्हें देख वह थोड़ी बेचैन सी हो गई क्योंकि वह अपनी शादी की बात किसी को नहीं बताना चाहती थी।

    उसने सोचा कि वह इनसे कुछ बहाना बता देगी। फिर उसके दिमाग में आया कि वह इनसे कह देगी कि अचानक से उसकी माँ के साथ यहाँ आने का प्लान बन गया और जल्दी में वो रितिशा या उसे बता नहीं पाई।

    अब तक कार्तिक उसके पास आ गया था और उसे सवालिया नज़रों से देख रहा था।

    "द्रक्षता बताओ भी, यहाँ क्या कर रही हो और आई भी तो एक बार मुझे भी बुलाती!," कार्तिक ने फिर पूछा।

    द्रक्षता ने उसे अपना बहाना बताया, "वो कार्तिक, माँ ने अचानक से यहाँ आने को कह दिया था और जल्दबाजी में तुम्हें या रितिशा को भी नहीं बता पाई। अगर तुम्हें इसका बुरा लगा है तो मुझे माफ़ कर दो!"

    कार्तिक ने उसके बात पर सिर हिलाते हुए कहा, "आंटी से मिलवाओ तब!"

    "वो माँ कुछ पर्सनल शॉपिंग करने गई है। उन्होंने मुझे अपने पीछे आने से मना किया है इसलिए मैं तुम्हें उनसे नहीं मिलवा सकती। सॉरी!," द्रक्षता ने झट से कहा।

    "जब तक आंटी अपनी शॉपिंग कर रही है तब तक तुम हमारे साथ आ जाओ!," कार्तिक ने कहा।

    द्रक्षता अपने मन ही मन सोच रही थी, "क्यों कार्तिक आज मुझे यहाँ गया? अब यह पीछा भी नहीं छोड़ रहा। अगर किसी ने इसके साथ देख लिया तो...नहीं नहीं मैं इसके साथ नहीं जा सकती!"

    वो कुछ बोलती उससे पहले कार्तिक का फ़ोन बजने लगा तो वह उसे कॉल दिखाकर साइड चला गया, लेकिन उसकी बहन वहीं थी।

    जिसे देख द्रक्षता ने कहा, "अम्म...मैं ज़रा रेस्टरूम होकर आई!"

    यह बोल वह जल्दी से वहाँ से चली गई। कार्तिक की बहन उसे देखते ही रह गई। वह उसे रोकना चाहती थी, लेकिन द्रक्षता ने उसे खुद को रोकने का मौका ही नहीं दिया।

    वहीं यह सब देखकर सात्विक की आँखें लाल हो गई थीं।

  • 11. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-11

    Words: 1324

    Estimated Reading Time: 8 min

    सात्विक उन्हें देख सोच रहा था कि वे उससे तो कभी बात नहीं करती, वह दूसरे लड़के से कैसे बात कर सकती थी। उसे यह सोच-सोचकर गुस्सा आ रहा था।

    वह सारे बॉयज जहाँ गए थे, वहाँ चला गया, क्योंकि उसे भी तो शेरवानी चाहिए थी। संभव ने उसे बताया था कि वे सब किस फ्लोर में और कहाँ हैं।

    वहीँ द्रक्षता वहाँ से निकलकर वूमेंस के कलेक्शन वाले फ्लोर पर चली गई। वह पूरे फ्लोर को अच्छे से देख रही थी। तभी उसे लहंगे देखती हुई सुरुचि, मान्यता, आर्या, राम्या, गरिमा जी, दृशा, विनीता जी दिख गईं। वह उनके पास चली आती है।

    "बेटा, आपको तब से हम सभी ढूँढ रहे हैं। कहाँ थी आप?" सुरुचि ने उसे देखते हुए कहा।

    द्रक्षता उसे परेशान देख बोली, "वो कुछ फ़्रेंडस मिल गए थे माँ, इसीलिए थोड़ा लेट हो गया।"

    सुरुचि चैन की साँस लेते हुए बोली, "ओह, तब चलो आप हमारे साथ। आपके लिए ही तो लहंगा लेना था।" फिर उसने एक खूबसूरत से लहंगे की ओर इशारा करते हुए कहा, "देखिए यह कैसा है?"

    वह खूबसूरत सा ब्राइडल लहंगा था। उस लहंगे को देखकर साफ़ पता चल रहा था कि यह बहुत हैवी है। उसके ऊपर किए गए वर्क्स उसे बहुत आकर्षक बना रहे थे। द्रक्षता की नज़र एक पल को उस पर ठहर सी गई।

    उसने सुरुचि से कहा, "माँ, यह तो बहुत सुंदर है। इसकी कीमत भी तो ज़्यादा होगी।"

    सुरुचि ने ना में सर हिलाकर कहा, "नहीं, सिर्फ़ बीस करोड़ की ही तो है। मैं तो इसके ऊपर और वर्क ऐड करवाऊँगी।"

    द्रक्षता यह सुनकर ज़्यादा कुछ नहीं बोली, "ठीक है माँ, बहुत खूबसूरत है यह।"

    तब आर्या ने अपने ऊपर एक वॉयलेट कलर का लहंगा लगाकर कहा, "बड़ी माँ, फ़्यूचर भाभी, माँ, देखिए यह लहंगा मुझ पर कैसा लग रहा है।"

    राम्या ने उसे देख प्यार से कहा, "बहुत प्यारी लग रही है मेरी बच्ची। यह लहंगा आप संगीत पर पहनना अच्छा लगेगा और उसके थीम से मैच भी होगा।"

    आर्या सिर हिलाकर अपने लिए साइड कर रख दिया और फिर से लहंगे देखने लगी, जिसमें उसकी हेल्प दृशा कर रही थी। अब तक आर्या और दृशा की अच्छी खासी दोस्ती हो चुकी थी, क्योंकि दोनों एक जैसी ही थीं। दोनों का बिहेवियर एक जैसा ही था, मस्तीखोर टाइप का।

    आर्या दृशा के ऊपर लहंगा लगा-लगा देख रही थी और दृशा उसके ऊपर। दोनों को जो पसंद आ रहा था, वह सभी को दिखा रही थीं। जिसमें सबकी अनुमति मिलती, वह लहंगा अपने लिए साइड कर रही थीं।

    सुरुचि, राम्या, मान्यता द्रक्षता के लिए लहंगा देख रही थीं। उन्हें अब द्रक्षता के हल्दी के लिए लहंगा चाहिए था। स्टाफ़ उन्हें एक से एक कलेक्शन के लहंगे दिखा रहा था, लेकिन सुरुचि उन सब में कोई न कोई नुक्स निकाल दे रही थी, जिससे अब स्टाफ़ भी परेशान हो चुका था। फिर वह अपने हल्दी में पहनने वाले पीले रंग के लहंगों में से सबसे कीमती लहंगा उनके सामने रख देता है।

    सुरुचि उस लहंगे को द्रक्षता से लगा देखती है, तो उसे यह लहंगा बहुत पसंद आता है। वह उसे साइड कर देती है। ऐसे ही करके वे सब अपने सभी फंक्शन के लिए कपड़े चुन लेते हैं।

    दूसरी तरफ़ बॉयज़ में सब परेशान थे क्योंकि सात्विक को कोई शेरवानी पसंद नहीं आ रही थी। वह आर्या को मैसेज कर द्रक्षता के लिए चुने गए लहंगे का फ़ोटो ले लेता है। वह स्टाफ़ को फ़ोटो दिखाते हुए कहता है,

    "इससे मैच करता हुआ शेरवानी चाहिए हमें।"

    स्टाफ़ लहंगे के फ़ोटो को देख, थोड़ी देर उसे एनालाइज़ करते हुए, शेरवानी के कलेक्शन में से कुछ शेरवानियाँ उसके सामने खोलकर रख देता है।

    संभव और प्रत्यूष लहंगे के पिक्चर और उन शेरवानियों को मैच कर रहे थे, क्योंकि सात्विक को यह सब बोरिंग लगता था, या यूँ कहें उसने यह सब आज तक किया नहीं था, तो उसे इस सब का आइडिया नहीं था।

    तभी प्रत्यूष उसके ऊपर एक शेरवानी लगाता है, तो सात्विक उसे घूरने लगा, क्योंकि उसे किसी का टच करना पसंद नहीं था।

    "भैया, हम तो बस देख रहे हैं कि आपके ऊपर अच्छा लग रहा है या नहीं। घूरिये मत, डर लगता है आपकी आँखों को देखकर।" प्रत्यूष दांत दिखाते हुए बोला।

    तब संभव वह शेरवानी देखकर कहता है, "यह शेरवानी उस लहंगे से बहुत ज़्यादा मैच हो रहा है। यही सही रहेगा।"

    उसकी बात से सभी सहमत होकर उस शेरवानी को पैक करवा लेते हैं। उसके बाद सभी फंक्शन की भी शॉपिंग करते हैं।

    सात्विक दर्शित, जो कि काफी चुप था, उनके बीच में था। सात्विक उसके पास आकर बोला, "क्या तुम हमारे बीच कम्फ़र्टेबल फील नहीं कर रहे? बताओ तुम्हें क्या लेना है, मैं शायद उसमें तुम्हारी हेल्प कर सकूँ।"

    सात्विक की बात सुन सभी हैरान नज़रों से उसे देखने लगते हैं, क्योंकि वह जिसको ज़्यादा नहीं जानता था, वह उस इंसान से बात तो क्या, देखता भी नहीं था और यहाँ वह दर्शित की हेल्प करने को भी राजी था। यह बात उन सब को समझ नहीं आ पा रहा था।

    दर्शित सात्विक को देख थोड़ा नर्वस होते हुए बोला, "नहीं, मुझे कोई हेल्प नहीं चाहिए।"

    सात्विक उसकी नर्वसनेस को समझते हुए बोला, "ओके, तुम्हें नर्वस होने की कोई ज़रूरत नहीं। उम्म...तुम क्या करते हो?"

    दर्शित उसकी बात का जवाब देते हुए बोला, "मैं ग्रेजुएशन कर रहा हूँ और साथ ही सीए की तैयारी भी कर रहा हूँ।"

    सात्विक उससे उसके बारे में और जानते हुए बोला, "कुछ हॉबीज़ या तुम्हें किसी पार्टिकुलर चीज़ में इंटरेस्ट है?"

    दर्शित हाँ में सिर हिलाकर बोला, "हाँ, मेरी हॉबी बहुत कुछ है, जैसे स्पोर्ट्स, ट्रैवलिंग या कुछ अलग करना मुझे पसंद है। मैंने स्पोर्ट्स में कई मेडल्स भी जीते हैं। अपने कॉलेज का टॉपर भी हूँ और बिज़नेस फ़ील्ड में अपना नाम कमाना है, विदाउट किसी की हेल्प।"

    सात्विक इम्प्रेसिव वे में बोला, "ओह, तो तुम काफी मेहनती हो।"

    दर्शित उसे देखकर बोला, "मेरी दी और मेरी माँ की मेहनत के सामने यह कुछ नहीं है। मैं उनकी मेहनत बर्बाद नहीं जाने दूँगा। उन्हें कुछ न कुछ बड़ा करके दिखाऊँगा।"

    सात्विक उसके जवाब से उसे एप्रिशिएट करते हुए बोला, "ज़रूर, तुम्हारी आने वाली फ़्यूचर के लिए तुम्हें ऑल दी बेस्ट।"

    दर्शित अपना सर हिला देता है। वे दोनों आपस में बातें करने लगते हैं।

    सब उन्हें देख काफी हैरान थे। सात्विक इतना ज़्यादा किसी से कैसे बात कर सकता है?

    दीपक संभव से बोला, "इसके दिमाग में कोई शॉर्ट सर्किट हुआ है क्या? अपने साले से कुछ ज़्यादा नहीं घुल-मिल रहा। हमसे तो वर्ड गिन-गिनकर बात करता है।"

    संभव अपने कंधे उचकाते हुए बोला, "मुझे नहीं पता। इनके मूड स्विंग एक प्रेग्नेंट लेडी से भी ज़्यादा होते हैं और मुझे नहीं पता यह अब किस मूड में जाने वाले हैं। आपको ज़्यादा इंटरेस्ट है इनका मूड जानने में, तो भाई से पर्सनली पूछ सकती हैं।"

    दीपक मुँह बनाते हुए बोला, "हाँ, ठीक है। नहीं बताना तो मत बताओ। इतने नखरे क्यों दिखा रहे हो?"

    संभव उसे अजीब नज़रों से देखते हुए बोला, "मैंने कब नखरे दिखाए? मुझे लगता है आपको दिमागी इलाज की ज़रूरत है।"

    दीपक उसे घूरते हुए बोला, "तुमने मुझे पागल कहा।"

    संभव उसे देखकर बोला, "क्यों? आपको कोई शक है क्या?"

    दीपक उसे मुँह फेरकर बोला, "मैं इसका बदला तुमसे ज़रूर लूँगा।"

    सबने अपनी-अपनी शॉपिंग कर ली थी। अब सिर्फ़ इंगेजमेंट रिंग्स लेने थे।

    सभी रिंग शॉप में आ चुके थे। सुरुचि स्टाफ़ से कपल इंगेजमेंट रिंग दिखाने को बोलती है। स्टाफ़ उनके सामने बहुत तरह के कपल रिंग्स रख देता है।

    सात्विक की नज़र एक कपल रिंग पर पड़ती है। वह उसे उठाकर देखता है। सुरुचि उसके हाथ में उस कपल रिंग को देखकर उसे लेकर खुद देखते हुए बोली, "हमें आज पता चला मेरे बेटे की पसंद इतनी अच्छी है।"

    वह द्रक्षता के हाथों के ऊपर रिंग रखकर देखती है। उसके ऊपर रिंग बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसकी हाथ की सुंदरता उस रिंग से काफी अच्छी लग रही थी।

    वह द्रक्षता से पूछी, "बेटा, तुम्हें पसंद आया?"

    द्रक्षता मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिला देती है। वह कपल रिंग पैक करवा लिया जाता है।

    सब शॉपिंग करके बेहद खुश नज़र आ रहे थे। मान्यता, द्रक्षता, गरिमा जी, दृशा, दर्शित को उनके घर ड्रॉप कर देते हैं।

    सभी बहुत खुश थे सात्विक और द्रक्षता की शादी से। अगले दिन इंगेजमेंट रखा गया था, जो राजपूत मैंशन में होने वाला था। बाकी सारे रिचुअल्स भी राजपूत मैंशन में ही होते, सिर्फ़ शादी राजपूत कॉरपोरेशन के अंडर आने वाली एक बहुत बड़े होटल में होती।

    रात के समय, राजपूत मैंशन।

    महल के भीतरी हिस्से में एक बड़ा बार था, जहाँ हर तरह के महंगे और ब्रांडेड व्हिस्की, बीयर और भी बहुत सारी वैरायटी की हार्ड ड्रिंक्स के कलेक्शन थे।

    सात्विक, संभव, दीपक, प्रत्यूष वहाँ बैठे कुछ डिस्कशन कर रहे थे। तभी सात्विक का फ़ोन बजा। उसने कॉलर आईडी देखी तो अननोन नंबर से कॉल था। वह कॉल पिकअप करता है। सामने की आवाज़ सुन उसकी आँखें गुस्से से बेहद लाल हो जाती हैं।

  • 12. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-12

    Words: 1336

    Estimated Reading Time: 9 min

    सात्विक बेहद गुस्से में था। सामने से किसी के बहुत तेज हँसने की आवाज़ें आ रही थीं, जिन्हें सुन वह अपने गुस्से को नियंत्रित नहीं कर पा रहा था।

    सात्विक बेहद गुस्से से गुर्राते हुए बोला, "राजन मल्होत्रा... छिप कर धमकी देना... नामर्दों के लक्षण हैं... अगर सच में मर्द हो... तो सामने आओ!!"

    वह आदमी, जिसका नाम राजन था, बोला, "अगर तुम में इतनी ही हिम्मत है... तो मुझे अभी तक ढूँढ क्यों नहीं पाए? पहले मुझे ढूँढो... फिर तुम्हें मेरे साथ जो करना हो... करो!!"

    सात्विक तिरछी मुस्कान मुस्कुराते हुए बोला, "अब अगर तुम सच में मुझे मिल गए... तुम्हें तो पता ही होगा... मैं किसी को दूसरा मौका नहीं देता।"

    राजन भी उसे उकसाते हुए बोला, "हाँ... पहले ढूँढ लो मुझे... फिर होशियारी दिखाना।"

    सात्विक ने फोन काटकर सोफ़े पर फेंक दिया। सभी उसे देख रहे थे। राजन मल्होत्रा नाम सुन सभी के होश उड़ चुके थे।

    दीपक थोड़ा परेशान होकर बोला, "ये राजन मल्होत्रा तो मर चुका था ना... ज़िंदा कैसे हो गया?"

    सात्विक गुस्से से बोला, "उसने मरने का नाटक रचा था... और हमें लगा वो मर चुका है। लेकिन जब उसकी बॉडी पोस्टमॉर्टम के लिए जा रही थी... मुझे तभी डाउट हुआ था कि यह मरा नहीं है... और अब यह छिप कर धमकियाँ दे रहा है। आई सवेर... जिस दिन वो मुझे दिख गया... उस दिन उसका इस दुनिया में... आखिरी दिन होगा।"

    संभव बोला, "भाई मुझे लगता है... राजन सिर्फ़ एक मोहरा है... हमारा ध्यान भटकाने का... क्योंकि अभी आपकी शादी है... ऐसे में हम अगर उसे कुछ करेंगे... तो यह अच्छा नहीं होगा... और इन सब के पीछे कोई और मास्टरमाइंड है... जिसे हमसे नफ़रत हो।"

    सात्विक उसे देखकर बोला, "मैं भी यही सोच रहा था... अभी कुछ करने से प्रॉब्लम्स ज़्यादा बढ़ जाएँगी... शादी के बाद उसका हिसाब बराबर करना ही होगा।"


    वहीं जंगली इलाके में एक खंडहर में बहुत भीतर एक कमरे में चार आदमी बैठे हुए थे। वहाँ का वातावरण बाहर के वातावरण से बिल्कुल ऑपोजिट था। कुछ लड़कियाँ उनके साथ बैठी हुई थीं। वो आदमी उन सब के शरीर के ऐसे भागों पर हाथ फेर रहे थे, जिससे महसूस कर वो लड़कियाँ भी सिहर उठतीं, लेकिन वो सब बस उनके मनोरंजन का हिस्सा थीं, इसलिए कुछ नहीं बोल पा रही थीं।

    एक सोफ़े पर बैठा आदमी, जो बहुत ड्रंक था, वो अजीब-अजीब हरकतें कर रहा था। बाकी बैठे आदमी अपना ड्रिंक करते हुए उसे ही देख रहे थे।

    उसकी हरकतों को देखते हुए उसका साथी बोला, "राजन... अगर तुमसे संभलता नहीं है... तो पीते क्यों हो? और वैसे भी हम सब अभी जीते हैं... नहीं... जो तुमने अभी से इसका जश्न मनाना शुरू कर दिया।"

    राजन उसकी बात पर हँसते हुए बोला, "जीते नहीं हैं... तो क्या हुआ? जीत जाएँगे। उसकी शादी में कुछ न कुछ तो धमाका करना पड़ेगा, हरीश।"

    राजन की बात पर दूसरे सोफ़े पर बैठा, करीब 50 साल का आदमी, गुस्से में बोला, "उस सात्विक सिंह की हिम्मत कैसे हुई... मेरी बेटी को छोड़कर किसी और से शादी कर रहा है? ये शनाया उसके प्यार में पहले से ही गोते लगा रही है... और ये इंसान उसे ठुकरा कर... उस घर की महारानी का ताज किसी और को देने जा रहा है।"

    राजन उसकी बात पर बोला, "तुम बूढ़े हो गए ना... इसलिए तुम्हारे दिमाग का स्क्रू ढीला हो गया है। तुम्हें क्या लगता है... पूरी दुनिया की लड़की खत्म हो गई थी... जो वो तुम्हारी ही बेटी से शादी करेगा? तुम्हारी बेटी तो ऐसे ही ठरकी है... जिसके बारे में सबको पता है... वो तुम्हारी बेटी से शादी करेगा? इतनी बड़ी गलतफ़हमी तुम लोग कैसे पालते हो... समझ नहीं आता।"

    उस आदमी का नाम राजेश था। उसने गुस्से से बोला, "तुम जानते हो ना क्या बोल रहे हो... और मेरी बेटी के बारे में कोई गलत शब्द बर्दाश्त नहीं करूँगा।"

    उन दोनों के झगड़े को देख एक आदमी, जो तब से शांत था, उसकी उम्र करीब 27 के आसपास होगी, बोला, "तुम सब अपने में ही झगड़ते हो... यही बात मुझे तुम सब की बिल्कुल नहीं पसंद। अरे झगड़ना ही था... तो फ़ोन कॉल पर झगड़ते... यहाँ आने की क्या ज़रूरत थी?"

    हरीश उसे देखकर बोला, "तापस मुझे लगता है... उसकी शादी में ही धमाका करना होगा... तभी हमें कुछ फायदा होगा... और ये जो अपनी बेटी के लिए तड़प रहा है... क्यों ना इसकी बेटी का ही कुछ इस्तेमाल किया जाए।"

    राजेश उसे घूरते हुए बोला, "अगर मेरी बेटी का किसी ने गलत इस्तेमाल किया ना... उसे छोड़ूँगा नहीं... मैं..."

    तापस उसे देखकर बोला, "ओ बेवड़े बूढ़े... तू कुछ देर के लिए मुँह नहीं बंद कर सकता? उसने जो कहा... उसका मतलब समझ आया तुम्हें? जो अपना मुँह चला रहा है इतना... तुझे अपनी बेटी उस सात्विक के साथ चाहिए ना (राजेश से पूछता है)?"

    राजेश ने हाँ में सिर हिला दिया।

    तापस उसे देखकर बोला, "तो जो हम करेंगे... उसमें चुपचाप मुँह बंद करके रख।"


    इधर शादी की तैयारियाँ शुरू हो गई थीं। आज इंगेजमेंट था, जिसकी तैयारी जोरों-शोरों से हो रही थी।

    सभी अपने कामों में व्यस्त थे। विनीता जी और सुरुचि सारे कैटरर्स को काम पर काम दिए जा रही थीं, किसी को भी रुकने नहीं दे रही थीं।

    सुरुचि एक स्टाफ़ से बोली, "अरे... जल्दी-जल्दी करो... वो फ्लावर वहाँ लगेगा... अच्छे से लगाना।"

    विनीता जी बोलीं, "अरे बहू... इतना क्यों चिल्ला रही हो... सब पर... काम करते रहेंगे सभी... तुम थोड़ा आराम कर लो।"

    सुरुचि मुस्कुराते हुए बोली, "माँ... सास बनने की खुशी बहुत हो रही है... अब मैं भी अपनी बहू से अपनी सेवा कराऊँगी। कितनी मुश्किलों से सात्विक को शादी के लिए राजी किया... वरना वो तो शादी के नाम से ही नफ़रत करता था।"

    विनीता जी बोलीं, "हाँ... हाँ... जानती हूँ... बहुत खुशी हो रही है... तुम्हें... लेकिन तबियत का भी तो ध्यान रखना चाहिए... जाओ जाकर खाना खा लो।" (बोलते-बोलते वो थोड़े कारक अंदाज़ में बोलने लगती हैं)

    सुरुचि बोली, "ठीक है... माँ... लेकिन आप भी इन सब पर ध्यान रखना।"

    सभी बॉयज़ स्टडी रूम में बैठे हुए थे और सभी बातें कर रहे थे। तभी प्रत्यूष का फ़ोन बजा। वह कॉल रिसीव करते हुए साइड जाकर खड़ा हो गया।

    वह कॉल पर बोला, "हाँ... शरण्या क्या हुआ?"

    दूसरी तरफ़ से एक खिलखिलाती हुई सी आवाज़ आई, "मुझे कुछ नहीं हुआ... मैं तुम्हें मिस कर रही थी... वो भी बहुत... प्लीज़... क्लब में मिलते हैं ना।"

    प्रत्यूष इंकार करते हुए बोला, "नहीं शरण्या... आज नहीं हो पाएगा... कल मिलते हैं... आज भाई की इंगेजमेंट है... तो यहाँ बिज़ी हूँ।"

    शरण्या शॉकिंग वे में बोली, "क्या... लेकिन कौन से भाई की इंगेजमेंट है? और तुमने मुझे कुछ बताया क्यों नहीं? क्या अब मैं तुम्हारे लिए इम्पॉर्टेंट नहीं रही? मन भर गया क्या मेरे साथ तुम्हारा?" (लास्ट में नाराज़ी से)

    प्रत्यूष उसे समझाते हुए बोला, "नहीं शरण्या... ऐसी कोई बात नहीं है... सात्विक भाई की शादी कल ही कन्फर्म फ़िक्स हुई है... और तब से टाइम ही नहीं मिला... अगर टाइम होता तो मैं तुम्हें पक्का बताता... और मेरे पर ट्रस्ट नहीं है क्या तुम्हें?"

    शरण्या बोली, "प्रत्यूष... मैं तुम पर खुद से ज़्यादा ट्रस्ट करती हूँ... मुझे पता है... तुम्हें सच में टाइम नहीं मिला होगा... ओके... बाय... कल पक्का क्लब में मिलेंगे।"

    प्रत्यूष बोला, "ओके... सी यू सून... स्वीटहार्ट।"

    प्रत्यूष ने कॉल कट कर सभी के पास चला गया।

    इधर द्रक्षता के घर में भी सभी बहुत जल्दी में थे, क्योंकि यहाँ का सारा काम निपटाकर उन्हें राजपूत मैंशन के लिए निकलना था।

    मान्यता ने सब से पूछा, "सब कुछ हो गया? कुछ छूटा तो नहीं है ना? दृशा एक बार फिर से चेक कर ले... और निकलने का समय भी हो गया है... द्रक्षता क्या कर रही है? बुलाओ उसे... उसी की शादी है... और वही लेट कर रही है।"

    द्रक्षता रूम से बाहर आते हुए बोली, "अरे माँ... यहीं हूँ... और आप इतनी जल्दी में क्यों हो? मुझे थोड़ी ना घोड़ी चढ़कर अपनी दुल्हन को लेने जाना है... मेरे दुल्हाराजा आयेंगे मुझे लेने... आप इतनी टेंशन मत लो... सब कुछ हो जाएगा सही से।"

    मान्यता उसे देखते हुए बोली, "कैसे टेंशन ना लूँ? मेरी पहली बेटी की शादी हो रही है... वो भी इतने बड़े खानदान में... टेंशन ना लेने से भी हो ही जाता है... अच्छा ठीक है... अब तू बातें मत बना... रेडी हो गई?" (उसे देख उसके पास आकर उसे पूरे गौर से देखते हुए) "हाँ ठीक लग रही है... एक बिंदी लगा ले और अच्छी लगेगी।" (अपनी आँख से काजल लेकर उसे कान के पीछे लगा देती है)

    द्रक्षता ने हाँ में सिर हिलाया और अंदर जाकर बिंदी लगाकर आई। वह सच में बहुत खूबसूरत लग रही थी। उसने एक क्रीम और रेड कलर की सलवार सूट पहना हुआ था। इंगेजमेंट के कपड़े उसे राजपूत मैंशन में ही पहनाया जाना था।

    वो सब कुछ सेट कर राजपूत मैंशन के लिए निकल जाते हैं। जब सब वहाँ पहुँचते हैं, उन सभी राजपूत मेंबर्स बहुत अच्छे से स्वागत करते हैं। फिर कुछ बातों के बाद द्रक्षता को रेडी होने के लिए भेज दिया जाता है। बाकी सब भी रेडी होने लगते हैं।

    शादी पूरी तरह से प्राइवेट थी, जहाँ किसी भी मीडिया या जिनसे ज़्यादा कम्युनिकेशन नहीं था, उन्हें शादी की खबर नहीं थी, क्योंकि सात्विक ने अपनी पर्सनल लाइफ़ को कभी प्रोफ़ेशनल लाइफ़ में इन्वॉल्व नहीं किया था।

  • 13. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-13

    Words: 1346

    Estimated Reading Time: 9 min

    कुछ ही देर में सगाई शुरू होने वाली थी। सात्विक अभी भी अपने लैपटॉप को पकड़े हुए, उसमें कुछ टाइप कर रहा था। जिसे देखकर सभी ने अपना सिर हिला दिया।

    तभी वहाँ रजत जी और शरत जी आए। सात्विक को ना रेडी देखकर, ऊपर से लैपटॉप में घुसे होने से, दोनों उसे घूरने लगे।

    रजत जी उसके पास आकर उसके हाथ से लैपटॉप ले लिया। उसने जो कुछ टाइप किया था, वह सेव करके बंद कर दिया।

    सात्विक ने उनकी तरफ देखा तो वह कुछ कह ना सका, क्योंकि वे उसे पहले से ही घूर रहे थे। तब जाकर सात्विक को ध्यान आया कि आज उसकी सगाई है और उसे उसके लिए तैयार होना है।

    सात्विक उठकर वाशरूम की तरफ बढ़ा।

    "सगाई है तुम्हारी, नहाकर बाहर आना," रजत जी बोले।

    सात्विक सिर हिलाकर अंदर चला गया। कुछ देर बाद वह बाहर आया। वह पूरा फ्रेश नजर आ रहा था और अपने कपड़े लेकर चेंजिंग रूम में चला गया।

    वह जब कपड़े पहनकर बाहर आया, सबकी नजर उस पर ही टिक गई। वह उस वजनदार कुर्ते में बहुत ही आकर्षक लग रहा था। सात्विक ने आज से पहले ऐसा कुर्ता नहीं पहना था, इसलिए कुर्ते में उसे काफी अजीब लग रहा था।

    रजत जी उसके पास आकर बोले, "अब लग रहा है कि तुम मेरे बेटे हो।"

    "इतने सालों से क्या आपको शक था कि मैं आपका खून नहीं हूँ?" सात्विक ने पूछा।

    उसके इस बात पर रजत जी उसे घूरने लगे, लेकिन सात्विक उनसे थोड़ा भी नहीं डरा।

    तभी शरत जी बोले, "अच्छा ठीक है। सात्विक को तुम सभी अच्छे से तैयार कर दो। कुछ देर बाद सगाई शुरू हो जाएगी।"

    "क्या भाभी और उनकी फैमिली आ गई है?" संभव ने उनसे पूछा।

    "वो सभी कब के आ चुके हैं। द्रक्षता बेटा भी तैयार हो चुकी होगी अब तक। तुम जल्दी से इसे रेडी कर दो।" शरत जी ने कहा।

    "मैं क्या आपको मेकअप आर्टिस्ट नजर आ रहा हूँ जो मुझे रेडी करने बोल रहे हैं?" संभव मुँह बनाते हुए बोला।

    "कैसे भी रेडी कर दो इसे, आज थोड़ी ना शादी है। शादी के दिन इसे चमकाएँगे, आज के लिए ज्यादा कुछ मत करना।" रजत जी बोले।

    संभव और प्रत्यूष सिर हिला दिए और सात्विक पर अपनी कलाकारी झाड़ने लगे। सात्विक को अपने चेहरे पर कोई लिपा-पुती नहीं चाहिए थी, इसलिए वह उन दोनों को घूरने लगा जिससे वे दोनों अपने दांत चमकाकर फिर से अपने काम में जुट गए।

    संभव कभी उसके ऊपर पाउडर लगाता, जो सात्विक की नाक में घुस गया जिससे उसे खांसी आनी शुरू हो गई। लेकिन तब भी संभव और प्रत्यूष उसे नहीं छोड़ रहे थे। ऐसा लग रहा था कि वे दोनों आज अपने अंदर के कलाकार को बाहर निकालकर ही रहेंगे।

    लगभग आधे घंटे बाद जब उन्हें लगा कि सात्विक अब बहुत अच्छा दिख रहा है, तो दोनों साइड में खड़े हो गए ताकि सात्विक उन पर ज्यादा ना चिल्ला सके।

    सात्विक ने अपने आप को मिरर में देखा। वह बहुत खूबसूरत दिख रहा था। वह तो पहले से ही इतना खूबसूरत था कि मर्दों की भी नज़रें उस पर से नहीं हटती थीं। थोड़ी लिपा-पुती के बाद वह स्वर्ग से उतरा हुआ अप्सरा लग रहा था।

    उन दोनों के काम का इतना शानदार नतीजा देखकर उसने कुछ नहीं कहा।

    इधर द्रक्षता को भी मेकअप आर्टिस्ट ने बहुत अच्छे से तैयार कर दिया था। द्रक्षता बहुत सुंदर लग रही थी। सुरुचि और मान्यता उसकी तरफ देख रही थीं।

    पहले सत्यनारायण भगवान की कथा होनी थी, उसके बाद सगाई। सभी पूजा और कथा के लिए मेन हॉल में आ चुके थे। सभी ने पूजा बड़े ध्यान और अच्छे से की।

    सात्विक बीच-बीच में द्रक्षता को देख रहा था क्योंकि वह इतनी सुंदर लग रही थी कि वह अपनी नज़रें उस पर से हटा ही नहीं पा रहा था।

    सभी कथा बड़े ध्यान से सुन रहे थे। कथा खत्म होने के बाद पंडित जी दोनों की अंगूठियाँ पूजा के स्थान से लेकर उन्हें दे देते हैं और सात्विक और द्रक्षता को एक-दूसरे को पहनाने के लिए कहते हैं।

    सात्विक और द्रक्षता को एक सोफे पर बैठाया जाता है। द्रक्षता सात्विक को बिल्कुल भी नहीं देख रही थी और वहीं सात्विक उसे घूर रहा था।

    मान्यता उन दोनों के सामने अंगूठी की थाल रख देती है।

    "चलो, द्रक्षता आप सात्विक को अंगूठी पहना दीजिए।" सुरुचि उन दोनों से बोली।

    द्रक्षता उसकी अंगूठी उठाकर बड़े ध्यान से उसे देखती है, फिर सात्विक की तरफ जो बेसब्री से इसका इंतज़ार कर रहा था।

    "सात्विक, हाथ आगे करो बेटा, द्रक्षता वेट कर रही है।" सुरुचि सात्विक से बोली।

    "तो यह बात हमें यह भी बोल सकती थीं।" सात्विक ने कहा।

    सुरुचि उसे घूरने लगी। द्रक्षता ने अपना सर झुका लिया और सात्विक का हाथ, जो उसने अब तक बढ़ा दिया था, जैसे ही उसने उसका हाथ पकड़ा, सात्विक के रोम-रोम खिल उठे। द्रक्षता ने उसके रिंग फिंगर में अंगूठी पहना दी।

    सभी तालियाँ बजाने लगे। अब सात्विक की बारी थी। द्रक्षता ने पहले ही अपना हाथ बढ़ा दिया था, यह सोचकर कि वह उसे कुछ सुनाए ना।

    सात्विक अंगूठी उठाकर उसका हाथ थामकर उसे भी अंगूठी पहना दी। द्रक्षता अपनी निगाहें उठाकर उसे देखने लगी। दोनों की नज़रें मिल चुकी थीं। उन दोनों की आँखों में कुछ था जो समझने की कोशिश दोनों ही कर रहे थे, लेकिन दोनों में से कोई समझ नहीं पाया।

    सभी दोनों को देखकर तालियाँ बजा रहे थे। तालियों की गड़गड़ाहट से दोनों का ध्यान टूटा। दोनों ही इधर-उधर देखने लगे जैसे सभी ने उनकी गलती पकड़ ली हो।

    सभी डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए थे और बातें कर रहे थे। वैसे तो राजपूत फैमिली का रूल था कि डाइनिंग टेबल पर बैठने के बाद कोई अपना मुँह नहीं खोलता, लेकिन आज और आने वाले कुछ दिनों की बात अलग थी। इन कुछ दिनों के बाद इस महल में उनकी बड़ी बहू आने वाली थी।

    सभी द्रक्षता से कुछ ना कुछ पूछ रहे थे, जिसका जवाब वह एक मुस्कान के साथ दे रही थी।

    "भाभी, आप क्या करना चाहती हैं? आई मीन, मेरा मतलब करियर से है।" आर्या ने उससे पूछा।

    "हमें लेक्चरर या प्रोफेसर बनने का बहुत शौक है, इसलिए हमने इंग्लिश में ऑनर्स भी किया है और इंग्लिश के ही प्रोफेसर बनना चाहते हैं।" द्रक्षता बोली।

    सात्विक उसके हर जवाब को बड़े ध्यान से सुन रहा था, हालाँकि उसके फेशियल फीचर्स देखकर लग नहीं रहा था कि वह किसी की बात पर ध्यान भी दे रहा है।

    "ओह, आप मुझे भी पढ़ा सकती हैं शादी के बाद, मेरी ऑफिशियल भाभी बनने के बाद।" आर्या खुश होकर बोली।

    द्रक्षता मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिला दी।

    अब से शादी तक द्रक्षता राजपूत महल के साइड हाउस में ही रहती, क्योंकि आने-जाने में उनको बहुत प्रॉब्लम हो जाती थी।

    द्रक्षता और उसकी फैमिली को उनका कमरा दिखा दिया गया और सभी सोने चले गए।

    कल कोई फंक्शन नहीं था, जो होता तो सीधे परसों होता।

    संभव अपने एक दोस्त से मिलने आया था, जो कि लंदन में रहता था और कुछ दिनों के लिए इंडिया आया हुआ था। संभव हमेशा हाई सिक्योरिटी में रहता था, लेकिन आज उसने अपने ज्यादा बॉडीगार्ड नहीं रखे थे।

    संभव और उसका दोस्त बार काउंटर के पास लगे चेयर पर बैठे हुए थे और बातें कर रहे थे।

    तभी एक लड़की, जो पहले से ही नशे में थी, संभव के ऊपर गिर गई। उसके हाथ में एक वाइन की भरी हुई ग्लास थी जो संभव के शर्ट पर गिरकर शर्ट को खराब कर दी। जिसे देखकर संभव का पारा हाई हो गया। वह उस लड़की को खुद से दूर करके बोला,

    "यू, तुम्हें दिखाई नहीं देता या बचपन में सर पर कोई चोट लग गई थी?"

    लड़की उसके पास आकर बेहद सेडक्टिव वॉयस में, उसके गालों पर हाथ फेरते हुए बोली, "अह, इतने दिनों के बाद कोई इतना हैंडसम लड़का मुझे मिला है। हेय, क्या तुम मेरे बॉयफ्रेंड बनोगे?"

    संभव इरिटेट होकर उसके हाथ को अपने गालों से हटाते हुए बोला, "क्या पागलपन है? जान-पहचान में तेरा मेहमान, तुम जानती कितना हो मुझे जो अपना बॉयफ्रेंड तक बनाना चाहती हो। जिस दिन मुझे जान गई, उस दिन खुद दूर भागेगी मुझसे।"

    वो लड़की उसका जवाब देते हुए बोली, "जिस दिन जानूंगी, उस दिन के लिए मैं अपने आज को क्यों खराब करूँ? मुझे तुम अच्छे लगे, सो मैंने तुम्हें प्रपोज किया। अगर एक्सेप्ट नहीं करना, तो मत करो, मैं भी मरी नहीं जा रही तुम्हारे लिए।"

    तभी उस लड़की की बहन आकर उसे बोली, "यार, रितिशा, कहाँ चली जाती है तू? कब से ढूँढ रही हूँ तुझे। चल।"

    इतना बोलकर वो उसे हाथ से पकड़कर ले गई।

    यहाँ संभव को उसका ऐसा जवाब देना अच्छा नहीं लगा।

    "क्यों भाई, अच्छी लगी क्या? वैसे भाभी बहुत सुंदर है।" उसका दोस्त विकृत बोला।

    संभव उसे ऐसे देखने लगा जैसे उसे कच्चा चबा जाएगा।

    "मैंने सुना तेरे भाई की शादी हो रही है, लेकिन प्राइवेट ऐसा क्यों?" विकृत बात बदलते हुए बोला।

    संभव कुछ सोचकर बोला, "हमारे बहुत से दुश्मन हैं जो इस बात का फायदा उठाएँगे, इसलिए।"

  • 14. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-14

    Words: 1333

    Estimated Reading Time: 8 min

    द्रक्षता अपने कमरे की बालकनी में खड़ी किसी को कॉल लगा रही थी।

    वह अपने आप से बड़बड़ाते हुए बोली, "यह रितिशा फोन क्यों नहीं उठा रही... एक और बार ट्राई करती हूँ।"

    इस बार कॉल अटेंड हो गया। सामने से किसी की रोने की आवाज़ आई।

    द्रक्षता घबराते हुए बोली, "क्या हुआ? रितिशा, रो क्यों रही हो?"

    रितिशा सिसकते हुए बोली, "क्या बताऊँ मैं तुम्हें अपने दिल का हाल... कुछ समझ नहीं आ रहा मुझे।"

    द्रक्षता बोली, "तुम पहले बताओ तो सही, क्या हुआ है जो रो रही हो।"

    रितिशा हिचकियां भरते हुए बोली, "आज... पहली बार इतनी हिम्मत करके... एक हैंडसम लड़के को प्रपोज किया मैंने... और उसने क्या किया... रिजेक्ट कर दिया मुझे। यहाँ मेरी फैमिली मेरी शादी के पीछे पड़ी हुई है। अगर किसी लड़के के साथ मेरा रिलेशन नहीं होगा... तो वह सब किसी से भी मेरी शादी कर देंगे। द्रक्षता, क्या करूँ मैं? तू ही बता मुझे।"

    द्रक्षता बोली, "तुम ज्यादा टेंशन मत लो। सब कुछ ठीक हो जाएगा।"

    रितिशा मायूस होकर बोली, "कब सब कुछ ठीक होगा? उस दिन का इंतज़ार मैं भी बहुत दिनों से कर रही हूँ... लेकिन कुछ हो ही नहीं रहा। अच्छा... तुम बताओ, क्यों याद किया मुझे?"

    द्रक्षता कुछ सोचते हुए बोली, "अ... वो मेरी शादी हो रही है।"

    रितिशा हैरानी से बोली, "क्या? बोल रही है? दिमाग का एंटीना कहीं से हिल गया तेरा? जो ऐसी बातें कर रही है। तेरी मम्मी को देखकर कोई नहीं कह सकता... कि वो तेरी बिना मर्ज़ी के शादी कराएँगी।"

    द्रक्षता उसकी गलतफ़हमी दूर करते हुए बोली, "अरे नहीं... मेरी मर्ज़ी से हो रहा है सब।"

    रितिशा कन्फ़्यूज़ होकर बोली, "तो तू इतनी जल्दी क्यों कर रही है शादी?"

    द्रक्षता ने उसे इन दिनों गुज़रे सब कुछ बताया।

    द्रक्षता बोली, "माँ ने मुझसे कई बार पूछा था... लेकिन वो मैं थी... जिसने इस शादी से इनकार नहीं किया। पता नहीं क्यों... मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।"

    रितिशा गहरी साँस भरकर बोली, "हम्म... अगर तू चाहती है कि तू शादी करे... तेरा दिल चाहता है... तो बेशक शादी कर सकती है।"

    द्रक्षता बोली, "मैं तुमसे बस फेवर चाहती हूँ, रितिशा।"

    रितिशा बोली, "हाँ... बोल ना... तेरे लिए मेरी जान भी हासिल है।"

    द्रक्षता मुस्कुराते हुए बोली, "नहीं, जान नहीं चाहिए... वो तो आपके पति परमेश्वर के लिए है, है ना।"

    रितिशा चिढ़कर बोली, "देख द्रक्षता... अब तू भी मुझे चिढ़ा रही है।"

    द्रक्षता बोली, "अच्छा ठीक है... तू मेरी शादी की बात किसी को मत बताना... प्लीज़... मैं तुम्हारे सामने हाथ पैर सब जोड़ दूँगी।"

    रितिशा हैरानी से बोली, "क्यों? क्या कार्तिक को भी नहीं?"

    द्रक्षता बोली, "मैंने कहा... किसी को भी नहीं... मतलब किसी को नहीं।"

    रितिशा बोली, "ठीक है।"

    फिर वो दोनों कुछ बातें कर फोन काट देती हैं। द्रक्षता सोने चली जाती है।

    अगली सुबह...

    राजपूत मैंशन...

    आज कोई फंक्शन नहीं था। सभी बैठे बातें कर रहे थे।

    लड़के अपने ऑफिस गए थे।

    टी.वी. पर रोमांटिक सीरियल चल रहा था, जिससे विनीता जी और गरिमा जी लुफ्त उठा रही थीं। बाकी उनकी बहुएँ सर नीचे कर बैठी हुई थीं।

    उनकी बहुएँ मन ही मन सोच रही थीं, "माँ जी सच में हमें शर्मिंदा करवाना चाहती हैं। ये हमारे सामने देखकर... और ये सीरियल वाले भी क्या-क्या बनाते रहते हैं। कुछ अच्छा देते तो देख भी सकते थे हम।" (लास्ट में उन्होंने सीरियल मेकर्स को कोसते हुए)

    ऐसे ही हँसी-मज़ाक में उन्होंने अपना दिन बिता दिया।

    आज द्रक्षता कॉलेज आई थी। रितिशा उसे लाइब्रेरी में ले जाती है, ज़बरदस्ती से। क्लास टाइम होने के कारण ज़्यादा कोई भी लाइब्रेरी में नहीं था।

    रितिशा उसे देख उसके गले लगते हुए सिसकते हुए कहती है, "द्रक्षता... कोई मेरी फीलिंग्स नहीं समझ रहा... मैं क्या करूँ... यू नो ना... मुझे PCOS है... एंड आज मेरा फर्स्ट डे भी है... मुझे बहुत दर्द हो रहा है... लेकिन घर में जैसी सिचुएशन है... मैं वहाँ भी नहीं रह पा रही... माँ भी मुझे इस बात के लिए नहीं समझती... शी आल्सो हर्ट्स मी... पता नहीं क्यों... लेकिन माँ मुझे बचपन से पसंद नहीं करती... मैं मनहूस हूँ उनके लिए... जो कुछ भी बुरा होता है... मेरे घर में सब का रीज़न सिर्फ़ मैं हूँ... अगर पूरी मेरे सामने आ जाए ना लड़ने... मैं लड़ लूंगी... बट अपनी खुद की फैमिली से नहीं... अब वो मेरी शादी एक अननोन पर्सन से करवा रहे हैं... जिसे मैं जानती तक नहीं... व्हाट आई डू? कुछ समझ नहीं आ रहा... कुछ भी नहीं।"

    रितिशा को देख ऐसा लग रहा था जैसे वो पूरी टूट चुकी हो। PCOS पेशेंट होने के कारण उसका शरीर हेल्दी टाइप था। वो ज़्यादा मोटी नहीं थी... लेकिन फिर भी सब उसे ही सुनाते। वो सुन्दर तो बहुत थी... उसके चेहरे पर हल्के पिम्पल्स के निशान उसे काफी सूट भी करते थे... लेकिन फिर भी उसे इन सब चीजों के लिए बहुत क्रिटिसाइज़ किया जाता... दूसरों से नहीं बल्कि खुद की फैमिली से।

    उसमें एक दिक्कत ये भी थी... वो बहुत मूडी थी... उसे बहुत मूड स्विंग्स होते... लेकिन उसे कोई समझने वाला नहीं था।

    रितिशा अपनी सारी प्रॉब्लम्स द्रक्षता से शेयर करती... और द्रक्षता से ज़्यादा बेहतर तरीके से उसे कोई समझता भी नहीं था। रितिशा सिर्फ उसके सामने ही अपनी फीलिंग्स को शो करती थी।

    उसकी माँ चाहती थी कि उसकी जल्दी शादी हो जाएगी... तो बेबीज़ होने में उतने ज़्यादा प्रॉब्लम का सामना नहीं करना होगा... उम्र होने पर उसे ज़्यादा दिक्कत का ही सामना करना होता... ऐसा उसकी माँ सोचती थी... उसकी खुद की माँ।

    अब जब उसकी फैमिली बिना उसकी मर्ज़ी के उसकी शादी कर रही थी... वो खुद को द्रक्षता से ये बताने से रोक ना पाई।

    द्रक्षता उसे वहीं पड़े बेंच पर बैठाती है... फिर वो जितना रोती है... उसे रोने देती है। उसे जब हिचकियां आने लगीं... द्रक्षता ने अपने बैग से बोतल निकाल उसके तरफ़ बढ़ा दिया। रितिशा पानी पी ली।

    द्रक्षता उसके ओर देखते हुए... उसके गालों को सहलाते हुए... उसे काल्म करने की कोशिश करती है।

    फिर उससे पूछी, "तुम अपनी फैमिली से प्यार करती हो?"

    रितिशा आँसू भरी आँखों से बोली, "प्यार करती हूँ... तभी तो वो सब मेरी फीलिंग्स का फ़ायदा उठाते हैं। मेरी सिस्टर को किसी ने आज तक कुछ नहीं कहा... बिकॉज़ उसे किसी टाइप का कोई प्रॉब्लम नहीं है। मैं जब भी माँ को बताती हूँ... कि मेरे पीरियड्स के कारण मुझे दर्द हो रहा है... वो भरोसा नहीं करती मुझ पर... कहती है... कुछ नहीं हुआ तुम्हें... दूसरी लड़कियों को देखकर... तुम भी उनकी तरह ही नाटक करना सीख गई हो। जब वो यह बोलती है... मुझे बहुत दर्द होता है... पेट में भी और हार्ट में तो सबसे ज़्यादा।"

    द्रक्षता उसकी बातें सुन खुद भी बहुत इमोशनल हो चुकी थी। वो रितिशा की सिचुएशन पर खुद को इमेजिन तक नहीं कर पा रही थी।

    रितिशा आगे बोली, "मैं अब अपनी फैमिली से हार चुकी हूँ... अब लगता है... वो जो कर रहे हैं... उन्हें करने दो।"

    द्रक्षता बोली, "रितिशा... तुम एक खेलने वाली गुड़िया नहीं हो... जो वो जो करेंगे... उन्हें करने दोगी। यू आर स्ट्रांग ना... अपने लिए लड़ो... गिव अप नहीं कर सकती... तुम इतनी जल्दी... तुम जैसी हो... खुद को ऐसे ही एक्सेप्ट करो... किसी के कुछ भी बोल देने से... वो तुम सच में नहीं हो जाती... समझी ना।"

    रितिशा अपना सर हिलाई, "मैं जानती हूँ... सब कुछ जानती हूँ... लेकिन उनके सामने खुद को बहुत कमज़ोर महसूस करती हूँ... मैं... द्रक्षता तुम बताओ... ये शादी करना सही होगा क्या मेरे लिए? बताओ मुझे।"

    द्रक्षता चुप हो जाती है और कुछ सोचने लगती है।

    रितिशा बहुत रेस्टलेस हो चुकी थी... बिकॉज़ आज उसका फर्स्ट डे था... उसके मूड स्विंग्स चरम पर थे।

    द्रक्षता को जवाब ना देता देख... वो उसे झकझोरती है।

    और कहती है, "द्रक्षता प्लीज़ आंसर मी... आई वांट योर आंसर।"

    द्रक्षता उसे देखकर बोली, "क्या तुम शादी कर के खुश रह पाओगी?"

    रितिशा बोली, "ट्राई करूंगी... और अपने से जुड़ने वाले रिश्तों को हमेशा पूरे हार्ट के साथ निभाऊंगी... तुम भी तो कर रही हो ना शादी।"

    द्रक्षता बोली, "हमारे सिचुएशन बहुत डिफरेंट हैं, रितिशा। सुनो... अगर तुम्हें लगता है... कि तुम कर पाओगी... सो ऑफ़कोर्स तुम्हारे अपकमिंग लाइफ़ के लिए... तुम्हें बहुत बधाईयाँ... लेकिन तुम नहीं कर पाओगी... सो मत करो शादी... तुम अपने से आगे चलकर जुड़ने वाले रिलेशन्स को खतरे में डाल सकती हो।"

    रितिशा उसे देखकर बोली, "शादी कर ही लेते हैं... वैसे भी एक ना एक दिन तो वैसे भी... मुझे इसको फेस करना ही होगा... अभी ही करते हैं।"

    द्रक्षता मुस्कुराते हुए उसके आँसू पोछकर बोली, "अब ज़्यादा टेंशन मत लेना... जो होना होगा... हो जाएगा... सो क्लास में चल... या फिर तुझे रेस्ट करना होगा ना... तू यहीं रुक, मैं कॉलेज के पास के फार्मेसी से हॉट वॉटर बैग लाती हूँ... यहीं बैठी रह... हाँ... मैं अभी आई।"

    वो जाने ही लगी थी... रितिशा ने उसका हाथ थाम रोक लिया... और अपना सर ना में हिला दिया।

    द्रक्षता को महसूस हुआ उसे अभी उसकी बहुत ज़रूरत है। वो वहीं उसके पास बैठकर उसके माइंड डायवर्ट करने की कोशिश करने लगी... जिससे रितिशा भी अपना दर्द कुछ कम महसूस कर रही थी।

    ऐसे ही शाम हो गई। रितिशा खुद से चलने की हालत में भी नहीं थी। द्रक्षता ने उसे अकेला छोड़ना सही नहीं समझा। द्रक्षता कैब बुक कर उसे उसके घर छोड़ आई।

  • 15. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-15

    Words: 1474

    Estimated Reading Time: 9 min

    अगले दिन रितिशा अपने घर में एक सोफे पर बैठी थी। कुछ लोग उसे देख रहे थे। उनमें से एक 46 वर्षीय महिला मुस्कुराते हुए बोली,

    "ऋचा जी, आपकी बेटी बहुत सुंदर है, बात भी बहुत अच्छी करती है। इसलिए हम शादी के लिए तैयार हैं।"

    रितिशा की माँ, ऋचा जी, मुस्कुराकर बोलीं, "अरे, हमें यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आपको मेरी बेटी पसंद आई। आएगी भी क्यों नहीं, मेरी बेटी है! अच्छा, रिश्ता पक्का करते हैं। अब से हमारी बेटी आपकी अमानत हुई। (उन्होंने हाथ जोड़ते हुए कहा) प्लीज़ इसे कोई दुख मत दीजिएगा, मीणा जी।"

    रितिशा अपनी माँ को हैरान नज़रों से देख रही थी। वह किसी के सामने हाथ जोड़ रही थी, पर क्यों?

    मीणा जी बोलीं, "अरे समधन जी, हाथ क्यों जोड़ रही हैं आप हमारे सामने? आपकी बेटी हमारे घर में बहुत खुश रहेगी।"

    रिश्ता पक्का होने से रितिशा के माता-पिता बहुत खुश थे। ना जाने क्यों, लेकिन ऋचा जी उसकी शादी जल्दी करना चाहती थीं।

    वह लोग चले गए। रितिशा वहाँ से उठकर अपने कमरे में चली गई। वह अपने पेट पर तकिया रखकर लेटी हुई थी। तभी ऋचा खाना लेकर उसके कमरे में आई।

    उसे देखते ही रितिशा उठकर बैठ गई। ऋचा उसके पास आकर बैठी, उसके गालों को अपने हाथों में भरते हुए। उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे। रितिशा शौक से उसे देखती रही। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

    ऋचा बोली, "तुम्हें लगता है मैं अच्छी माँ नहीं हूँ? मैं तुमसे भेदभाव करती हूँ? तृषा को इतनी छूट देती हूँ और तुम्हें नहीं? सच में, मैं तुम्हारे लिए एक अच्छी माँ नहीं बन पाई। जानती हो क्यों? क्या बात है इसके पीछे? मैं जब भी तुम्हें देखती हूँ, मुझे अपने साथ हुए उस रात की वारदात याद आ जाती है। उस दिन मैं सिर्फ अपने पति के साथ एक पार्टी एन्जॉय करने गई थी, और वहाँ मेरे साथ वो हुआ जो तुम अब तक समझ गई होगी। मैं कंट्रोल नहीं कर पाती जब तुम सामने होती हो। मुझे वो सब याद आने लगता है जिस कारण मैं पूरे एक महीने ट्रॉमा से गुज़री, या अभी भी गुज़र रही हूँ। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, रितिशा, लेकिन ये जताना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रहा है। एक माँ के रूप में बहुत हारी हुई महसूस करती हूँ जब तुम दिखती हो, और मैं तुम्हें जाने-अनजाने में हर्ट कर देती हूँ। रितिशा, मैंने जो किया उसकी माफ़ी तो नहीं, लेकिन कर दो मुझे माफ़..." (वो फफक कर रो पड़ी)

    रितिशा भी रो रही थी। वह किसी के द्वारा उसकी माँ पर किए गए जुल्म का परिणाम थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले जिससे उसकी माँ शांत हो जाए। उसे किसी को मनाना नहीं आता था।

    वह उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे देखती रही। ऋचा उसे देखकर उसे गले लगा लेती है।

    राजपूत मैंशन में आज द्रक्षता और सात्विक की मेहंदी की रस्म थी। सब वेडिंग डेस्टिनेशन पहुँच गए थे। कैटरर्स की मेहनत वाकई काबिले तारीफ़ थी। इतना सुंदर सजाया गया था सब कुछ, कि देखने वालों की नज़रें अटकी की अटकी रह जाती थीं। सब कुछ प्राइवेटली हो रहा था, इसमें किसी भी तरह का कोई मीडिया शामिल नहीं था।

    एक कमरे में द्रक्षता बैठी हुई थी। द्रक्षता ने डार्क ग्रीन कलर का बेहद खूबसूरत सा लहंगा पहना हुआ था और लाइट मेकअप के साथ वह बहुत सुंदर लग रही थी। वह थोड़ी नर्वस लग रही थी। सब उसकी ओर देख रहे थे।

    सात्विक भी रेडी हो चुका था। उसने भी लीफ ग्रीन कलर का स्टाइलिश कुर्ता पहना था। उसमें वह एकदम कड़क लग रहा था। सबने उसकी काफ़ी तारीफ़ की, लेकिन वह जैसे एटीट्यूड से चूर था, किसी का रिप्लाई नहीं किया। उसे तो सिर्फ़ अपनी होने वाली पत्नी से अपनी तारीफ़ सुननी थी, जो उसने किसी के सामने अपने अंदाज़ में दिखाया नहीं।

    सबके हाथों में मेहंदी लगाई जा रही थी। प्रत्यूष सब लेडीज़ के पास जा-जाकर उनके मेहंदी को स्कैन कर रहा था कि सबसे अच्छा किसका लग रहा है।

    सात्विक को एक लड़का मेहंदी लगा रहा था क्योंकि उसे लड़कियों से एलर्जी थी। वह तो मेहंदी लगवाना ही नहीं चाहता था। सबके बार-बार बोलने पर वह थोड़ा सा लगने को राज़ी हुआ था।

    उसके मेहंदी आर्टिस्ट ने उससे उसकी ब्राइड का नाम पूछा, जिस पर सात्विक उसे घूरने लगा। उसके ऐसे घूरने से आर्टिस्ट डर गया।

    पास बैठे रजत जी बोले, "सात्विक, जो पूछ रहा है, बता दो उसे।"

    सात्विक उसे घूरते हुए बोला, "द्रक्षता।"

    आर्टिस्ट ने उसके हाथ में नाम लिख दिया। उसकी मेहंदी कंप्लीट हो चुकी थी। सात्विक ने अपने हाथ को गौर से देखा तो उसके हथेलियों के बीच में हार्ट डिज़ाइन में द्रक्षता का नाम बारीकी से लिखा हुआ था।

    सात्विक की आँखें बेहद जुनूनी नज़र आने लगीं नाम को देखकर।

    "आज हथेली पर हो, कुछ दिन बाद तुम्हारी ज़िंदगी हमारी होगी।"

    प्रत्यूष वहाँ आकर उसके हाथ को देखने लगा तो सात्विक ने हाथ छुपा लिया।

    प्रत्यूष मुँह बनाते हुए बोला, "भाई, मैं सिर्फ़ आपके मेहंदी को देख रहा था, दिखाओ ना।"

    सात्विक: "नहीं।"

    प्रत्यूष वहाँ से वापस आकर अपनी माँ के पैरों के पास बैठ गया और शिकायत करने लगा, "माँ, भाई मुझे अपनी मेहंदी नहीं दिखा रहे।"

    राम्या बोलीं, "तुम्हें उसकी मेहंदी देखनी क्यों है?"

    प्रत्यूष दांत चमकाते हुए बोला, "मुझे देखना था कि भाई ने भाभी का नाम लिखवाया या नहीं।"

    राम्या: "अगर अभी मेरे हाथों में मेहंदी नहीं होती ना बेटा, तो यह तुम्हारे गाल को अभी तक लाल कर चुके होते। मुझे समझ नहीं आता कि इतना बचपना तुममें आया कैसे।"

    आर्या बीच में घुसते हुए बोली, "माँ, आप ना भाई के टाइम पर ज़रूर बादाम खाना भूल गई होंगी, इसलिए भाई के दिमाग का सारा स्क्रू ढीला है।"

    राम्या: "सही कह रही हो आर्या, इसलिए इसकी हरकतें अभी भी नहीं सुधरी, जबकि 25 साल का हो गया है। उस लड़की के ना करम फूटे होंगे जो इससे शादी करेगी।"

    द्रक्षता मुस्कुराते हुए बोली, "चाची, आप प्रत्यूष को ऐसे नहीं बोल सकतीं क्योंकि जिस दिन यह शांत, समझदार और ज़िम्मेदार हो गए, उस दिन आप भी इनके इस बिहेवियर को याद करने लगेंगी। जिस इंसान में बचपना रहता है, वही अच्छे से अपनी ज़िंदगी एन्जॉय कर पाता है।"

    द्रक्षता को अपना पक्ष लेता देख रूठ चुका प्रत्यूष बहुत खुश हो जाता है और उसके पास आकर बोला, "भाभी, आप मुझे सिर्फ़ कुछ दिनों में समझ गईं। इन लोगों के साथ मेरा २५ सालों का रिश्ता है फिर भी यह सब मुझे आज तक नहीं समझ पाए। आप बहुत अच्छी हो।"

    द्रक्षता: "मैंने सिर्फ़ सबको आपके बारे में बताया है। आप कभी इनकी बातों का बुरा मत मानना। आप ऐसे नटखट ही अच्छे लगते हो।"

    प्रत्यूष और द्रक्षता के इतने जल्दी बने बॉन्ड को देख सभी मुस्कुरा दिए।

    द्रक्षता साइड में बैठी अपनी माँ को देखती है जो मेहंदी लगवाने से इनकार कर रही थी। द्रक्षता उनके इनकार करने की वजह जानती थी। जब से उसके पापा नहीं रहे, तब से मान्यता ने यह सब करना बिलकुल ही छोड़ दिया था।

    द्रक्षता उठकर उनके पास आकर बोली, "माँ, जानती हूँ आप क्यों मना कर रही हैं, लेकिन बस आज लगा लीजिए मेरे लिए। अगर आप नहीं लगवाना चाहतीं तो ठीक है, मत लगाइए।"

    मान्यता, जिसकी आँखें नम हो गई थीं, उसकी बातें सुनकर वह मेहंदी वाली को अपने हाथ में मेहंदी लगाने दे देती है।

    द्रक्षता बस मुस्कुरा दी। मान्यता भी नम आँखों से उसे देखते हुए मुस्कुरा दी।

    दोनों के इतने अंडरस्टैंडिंग बॉन्ड को देख विनीता जी सुरुचि से बोलीं, "सात्विक-द्रक्षता की शादी का हमारा फैसला कभी गलत साबित नहीं होगा, बहु।"

    सुरुचि जी उनकी बात पर मुस्कुराते हुए सर हिला दीं।

    मेहंदी फंक्शन खत्म हो चुकी थी। सभी सोच रहे थे कि अब वह सब खाना कैसे खाएँगे।

    तब सुरुचि ने विनीता जी से कहा, "माँ, क्यों ना आज अपने हसबैंड को खाना खिलाने बोलते हैं।"

    विनीता जी ना में सर हिलाकर बोलीं, "बहु, हम सब तो अपने-अपने पतियों के हाथ से खाना खा लेंगे, लेकिन मुझे नहीं लगता मान्यता और गरिमा जी को बुरा लगेगा। वह आपत्ति नहीं जताएँगे, उन्हें कष्ट ज़रूर होगा। थोड़े देर रुक जाते हैं, बातों में समय गुज़ार लेंगे, फिर एक साथ सभी खाना खाएँगे।"

    सुरुचि को इस पर बेहद शर्मिंदगी फील हुआ कि वह कैसे ऐसा कह सकती थी।

    वह सभी आपस में बातें करने लगीं। बातों में समय इतना जल्दी गुज़रा कि किसी को ध्यान ही नहीं रहा। मेहंदी लगाए सबको ऑलमोस्ट ढाई-तीन घंटे हो ही गए थे।

    सब अपने हाथ धोकर डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गए जहाँ पहले से सारे आदमी बैठे हुए थे।

    सुरुचि ने द्रक्षता को उसका हाथ दिखाने को कहा। उसके मेहंदी का रंग मीडियम डार्क आया था।

    तो सुरुचि सात्विक को घूरते हुए बोली, "तुम मेरी बहु से प्यार नहीं करते।"

    सात्विक उन्हें देख बोला, "आप प्यार का अंदाज़ा मेहंदी के रंग से नहीं लगा सकतीं, माँ।"

    फिर बिना किसी पर ध्यान दिए अपना खाना खाने लगा।

    उसके जवाब को सुन सब के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान खिल गई।

  • 16. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-16

    Words: 1360

    Estimated Reading Time: 9 min

    अपने कमरे में बैठी द्रक्षता अपनी उंगली में पहनी अंगूठी को देख रही थी। उसके चेहरे पर मुस्कान थी। ना जाने क्या सोचकर,

    "आप और मैं कुछ दिनों में एक रिश्ते में बंध जाएँगे। हम तो आपके साथ खुद को सोच तक नहीं पा रहे हैं। कैसे रहेंगे? एक ही कमरे, एक ही बिस्तर पर!"

    ये सोचकर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और गहरी नींद में सो गई।

    वहीं सात्विक बेसब्री से अपनी शादी के कितने दिन बचे हैं, गिन रहा था। बिस्तर पर शर्टलेस, वह बहुत अव्वल दर्जे का खूबसूरत व्यक्ति लग रहा था।

    सात्विक अपने हाथ में अपना फ़ोन लेकर लॉकस्क्रीन ओपन किया। तो बैकग्राउंड पर द्रक्षता की वही फ़ोटो लगी हुई थी जो उसने उसके इनफॉर्मेशन में सबसे पहले देखी थी। वह मुस्कुराती हुई, ऐसा लग रहा था जैसे उसे ही देख रही हो।

    सात्विक खुद के चेहरे पर एक जुनूनी मुस्कान लाने से रोक नहीं पाया। उसकी नशीली आँखें बेकरार थीं द्रक्षता को अपने करीब देखने के लिए। उसकी पिक्चर देखते-देखते उसे कब नींद आ गई, उसे खुद पता नहीं चला।

    अगली सुबह!

    वेडिंग डेस्टिनेशन!

    आज हल्दी थी। सात्विक और द्रक्षता दोनों रेडी होकर अपने-अपने सीट्स पर बैठे हुए थे।

    सात्विक के रस्म होने के बाद द्रक्षता की हल्दी होती। सात्विक को सबसे पहले उसकी दादी ने हल्दी लगाया।

    उसने कहा, "लल्ला, आज तो बिल्कुल अपने दादा जी की तरह लग रहे हैं। आपको उनके जवानी के दिन याद आ गए हमें। हाय! कितने हैंडसम लगते थे ये!"

    सात्विक ने उन्हें देखकर कहा, "कैसी बातें कर रही हैं आप दादी जी? आप पास के सभी आप ही को देख रहे हैं!"

    विनीता जी: "तो क्या हुआ? हाँ, तेरी दादी स्वर्ग की अप्सरा से कम है क्या? देखने दे सबको!"

    सात्विक कुछ नहीं बोला।

    बारी-बारी से सभी ने उसको हल्दी लगा दी थी। सुरुचि ने हल्दी का कटोरा आर्या को देकर मान्यता को देने को बोल दिया।

    वहाँ से कुछ देर बाद वो सभी औरतें भी द्रक्षता के हल्दी रस्म में आ गईं। द्रक्षता की रस्म भी हो रही थी।

    प्रत्यूष और आर्या वहीं कुछ दूर खड़े डीजे से गाना बजाकर डांस कर रहे थे। द्रक्षता मुस्कुराते हुए सबको देख रही थी।

    अगले दिन संगीत थी, इसलिए सभी डांस की प्रैक्टिस कर रहे थे। सब अच्छा डांस कर रहे थे; कोई किसी से कम नहीं था।

    ऐसे ही पूरा दिन बीत गया।

    आज संगीत थी, जिसमें सभी बहुत खुश थे। सात्विक और द्रक्षता एक सोफे पर बैठे सभी से बातें कर रहे थे।

    तभी वहाँ की लाइट्स ऑफ हो गईं और कुछ दूर बने स्टेज पर लाइट्स फोकस हो गईं। वहाँ आर्या और प्रत्यूष माइक हाथ में पकड़े खड़े हुए थे।

    प्रत्यूष ने माइक में कहा, "हेलो! लेडिस एंड जेंटलमैन! सो कैसे हैं आप सभी? सब बढ़िया!"

    सभी उसकी बात पर शोर कर तालियाँ बजाने लगे।

    प्रत्यूष बोला, "आज मेरे बिग ब्रो की संगीत है, तो कुछ बहुत अच्छे नाच-गाने तो होने चाहिए। क्यों ना इसकी शुरुआत मैं ही कर दूँ? क्या कहते हो!"

    सभी बेहद खुशी से उसे चियर अप करने लगे। प्रत्यूष मुस्कुरा दिया उनके रिएक्शन को देखकर।

    तभी वहाँ म्यूजिक ऑन हो गया और सब ने एक-एक कर डांस किया। सुरुचि और रजत जी को सब ने काफी फोर्स किया, तब जाकर उन्होंने एक डांस किया, वो भी कुछ ही समय तक।

    उनके बाद राम्या और शरत जी को सबने फोर्स करना शुरू कर दिया, लेकिन राम्या जी रेडी हो ही नहीं रही थीं। सबने काफी हाथ-पैर जोड़े उनके सामने, तब मानी वो, लेकिन वो भी ज्यादा समय तक डांस नहीं कर पाईं।

    ऐसे ही हँसी-खुशी से सारे रस्म हो रहे थे। आज द्रक्षता की शादी थी। मिरर के सामने बैठी वो अपने आप को निहार रही थी। वो खुश भी थी और दुखी भी। आज का दिन उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण था, जो हर एक स्त्री के लिए होता है। वह अपने आप को निहार ही रही थी।

    मान्यता आई। उसे देख उसकी आँखें बहुत ज्यादा नम हो गईं। वह अपने आँसू छुपाने की बहुत कोशिश करती है, लेकिन उससे नहीं होता।

    द्रक्षता उठकर उसके पास आकर उसके गले से लग रोने लगती है, तो मान्यता भी अपना कंट्रोल खो देती है। दोनों एक-दूसरे के सीने से लगी बहुत देर तक ऐसे रोते रहने के बाद,

    दरवाज़े पर खड़ी सुरुचि, राम्या, विनीता जी उन्हें देख खुद भी इमोशनल हो गई थीं।

    राम्या बोली, "हमारी आर्या भी एक दिन ऐसे ही हमें छोड़कर चली जाएगी!"

    विनीता जी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "देखो बहू, ये तो एक न एक दिन हर लड़की के साथ होता है। तुम चाहो या ना चाहो, आर्या को भी हमें उसके ससुराल भेजना ही पड़ेगा। जानती हूँ, काफी मुश्किल होता है वो बिछड़ने का दर्द, बहुत दुखी करता है। लेकिन अगर बेटी का परिवार उसे खुश रखे तो लगता है कि सही किया। अगर नहीं है खुश, तो जानने के बाद ऐसा लगता है कि हमसे ये क्या हो गया। लेकिन तुम चिंता मत करो, हम ना तो ऐसा द्रक्षता के साथ होने देंगे, ना ही आर्या के साथ और ना ही हमारे परिवार में आने वाली कोई भी लड़की के साथ!"

    राम्या उन्हें देखते हुए बोली, "नहीं माँ, मेरी कोई भी बहू दुखी नहीं रहेगी और ना ही मेरी बेटी!"

    सुरुचि मुस्कुराते हुए उन्हें देखते हुए उन्हें आवाज़ लगाती है। मान्यता और द्रक्षता उन्हें देखने लगती हैं।

    सुरुचि उनके पास जाकर मान्यता से बोली, "चिंता मत करो मान्यता, हम द्रक्षता को कोई भी दिक्क़त नहीं होने देंगे। उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करेंगे। मुझे पता तो नहीं है, लेकिन अंदाज़ा लगा सकती हूँ जब अपनी बेटी दूर होती है तो कितना दुःख होता है। लेकिन तुम चिंता मत करो, हमसे जितना बन पड़ेगा हम द्रक्षता के लिए उतना करेंगे!"

    मान्यता बस मुस्कुरा दी क्योंकि उसे अभी कुछ समझ नहीं आ रहा था इस सिचुएशन में क्या कहे।

    सुरुचि ने द्रक्षता की बाँहें ली और बोली, "कितनी सुंदर लग रही है! नज़र न लग जाए! मेरे बेटे के ऊपर तो बिजलियाँ गिरने वाली हैं!"

    द्रक्षता शर्म के मारे चेहरा छुपाने लगी। द्रक्षता ने वही लहंगा पहना था जो सुरुचि ने उसके लिए चुना था। उसके द्वारा एड किए गए वर्क्स उस लहंगे को और खूबसूरत बना चुके थे। द्रक्षता उसमें आसमान से उतरी अप्सरा नज़र आ रही थी।

    द्रक्षता का गुलाबी चेहरा मानो चाँद को भी टक्कर देने के काबिल था और उसके ऊपर से उसके शर्माने का अंदाज़ किसी को भी घायल करने का दम रखता था। वो एक कातिल हसीना लग रही थी, लेकिन सादगी भी उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी।

    राम्या: "मान्यता दी, कुछ ही देर में शादी के रस्म शुरू हो जाएँगे। गुरुजी भी आ चुके हैं। आपको द्रक्षता से कुछ बात करना हो तो आप बात करके नीचे आ जाएँ!"

    मान्यता मुस्कुराकर सर हिला दी। वो तीनों वहाँ से चली गईं।

    मान्यता द्रक्षता का हाथ थामकर उसकी आँखों में देखकर बोली, "बेटा, एक माँ की अपने बच्चों की शादी से बहुत सारी ख्वाहिशें होती हैं, मेरी भी हैं। आज मेरी बेटी किसी से एक रिश्ते में बंधने जा रही है। बेटा, मैं तुमसे बस इतना कहूँगी कि रिश्ते अनमोल होते हैं, इनका कोई मूल्य नहीं। जो इन्हें खो देता है, उन्हें समझ आता है वो क्या कर बैठे। मैं तुमसे कहती हूँ, चाहे कितनी भी रुकावटें आ जाएँ, तुम्हारे पति को जब तुम्हारी ज़रूरत हो, उसके सामने ढाल बन खड़े रहना। एक पत्नी का कर्तव्य, ज़िम्मेदारी होती है। अगर कभी तुम्हारे पति तुम्हें समझने में भूल करें, लेकिन तुम अपने आप को समझाने देना उन्हें। पूरी खुली किताब की तरह हो जाना, लेकिन सिर्फ़ अपने पति के लिए। एक पति ही होता है जो अपनी अर्धांगिनी के सबसे करीब होने की काबिलियत रखता है!"

    कुछ देर रुककर गहरी साँस भरकर, "कभी अगर तुम्हारा पति भूल करे तो बिन माँगे माफ़ी दे देना, पर अगर गलती ऐसी करे जो तुम्हारे स्वाभिमान को ठेस पहुँचाए, एक पल भी, एक पल भी मत ठहरना उनके पास!"

    द्रक्षता ने उन्हें देखकर कहा, "माँ, शादी के बाद एक औरत का सब कुछ सिर्फ़ उसके पति है, लेकिन अगर मेरा पति किसी दूसरी औरत का सहारा ले तब मैं क्या करूँगी?"

    मान्यता: "एक स्त्री के लिए उसके स्वाभिमान से अधिक कीमती कुछ नहीं। जहाँ तुम्हें इज़्ज़त न मिले, तुम भी इज़्ज़त के साथ उस जगह को छोड़ने में समय ना लगाना!"

    द्रक्षता मुस्कुराई, "प्यार बहुत बुरी बला है माँ!"

    मान्यता: "तुम चिंता मत करो, सात्विक बहुत अच्छा लड़का है, वो कभी गलती नहीं करेगा!"

    द्रक्षता सर हिला दी।

    गार्डन में बड़ी खूबसूरती से मंडप बना हुआ था, जो इतना खूबसूरत था कि नज़रें थम ही जाएँ। इतनी साज-सजावट, चकाचौंध देख बाहर के कुछ गेस्ट जो बहुत ही करीबी थे, बहुत हैरान थे, मन ही मन जल भी रहे थे, लेकिन कुछ कर नहीं सकते थे।

    सात्विक भी रेडी हो चुका था। मंडप पर उसे पंडित जी द्वारा बुलाया गया। वह उस शेरवानी में बहुत खूबसूरत लग रहा था।

    गेस्ट के रूप में आई लड़कियाँ उसे देख अपने मन में उसकी पत्नी के जगह में अपने आप को इमेजिन करने लगती हैं, लेकिन आज सभी का दिल टूटकर चकनाचूर होने वाला था।

    सात्विक अपने शांत बिहेवियर के अनुसार सबको इग्नोर कर अपने स्थान पर जाकर बैठ गया।

  • 17. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-17

    Words: 1305

    Estimated Reading Time: 8 min

    मंत्रों के उच्चारण के बीच सब एकत्र होकर बैठे थे। उसी समय दृशा मस्ती में वहाँ आ रही थी। कुछ अंजान लोगों ने उसे घेर लिया। एक आदमी अपने फ़ोन में फ़ोटो देख रहा था। उसने दृशा को क्लोरोफॉर्म सुँघाया और उसके चेहरे पर काला कपड़ा बाँध दिया। फिर उसे खींचते हुए एक कमरे में ले गए।

    सामने सोफ़े पर बैठा हरीश, उसे वो लड़की लाते देख खुश हो गया। उसके साथ तापस, हरीश, राजेश और राजन भी थे।

    तापस ने उस बॉडीगार्ड से कहा, "जा, इसकी बेटी को उस सात्विक के साथ बिठा दे।"

    वो लोग दृशा को द्रक्षता समझ बैठे थे क्योंकि दृशा दिखने में द्रक्षता जैसी ही लगती थी। बस उसकी थोड़ी हाइट कम थी। लेकिन एक अंजान व्यक्ति उसे ही द्रक्षता समझ सकता था, अगर उसने उसे पहले कभी नहीं देखा हो।

    इधर, पंडित जी ने द्रक्षता को बुलाने को कहा था। उसकी सास और माँ उसे लेकर आई थीं। अपनी ब्राइड एंट्री में वह सिर्फ़ चलते हुए बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसका चेहरा चुनरी से ढँका हुआ था।

    वहाँ आई सारी लड़कियाँ द्रक्षता को निहार रही थीं। द्रक्षता को उसकी जगह पर बिठा दिया गया। तभी सात्विक का फ़ोन बजा।

    उसने अटेंड किया, "क्या हुआ? अब मुझे शादी के बीच से उठना पड़ेगा?" (वह काफी धीरे बोल रहा था, लेकिन उसकी आवाज़ के तेज के कारण द्रक्षता सब कुछ साफ़ सुन पा रही थी।)

    संभव बोला, "भाई, द्रक्षता भाभी को समझो। इन लोगों ने दृशा को किडनैप कर लिया है। इन लोगों का प्लान आपकी शादी शनाया से करवाना था।"

    यह सुनते ही सात्विक गुस्से से लाल हो गया।

    वो बोला, "अभी कुछ मत करना। शादी हो जाने दो। फिर देखते हैं क्या करना है।" (इतना बोलकर उसने कॉल काट दिया।)

    द्रक्षता उसे कन्फ़्यूज़न में देख रही थी। उसने उसकी बातें तो सुनी थीं, लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आया। सात्विक की नज़र उसके कन्फ़्यूज़्ड चेहरे पर पड़ी, तो वो उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर सहलाने लगा। इन दोनों का हाथ ऐसे डायरेक्शन में था जो कोई देख नहीं पाया।

    लेकिन द्रक्षता ने उसे फिर देखा। उसने जल्दी से अपना हाथ हटा लिया। सात्विक को ये जरा भी पसंद नहीं आया, लेकिन वहाँ के माहौल को वो भी अच्छे से समझ पा रहा था, इसलिए उसने कुछ नहीं बोला।

    पंडित जी उनकी शादी की सभी रस्में करने लगे। उन्होंने दोनों को वरमाला के लिए खड़े होने को कहा। दोनों खड़े हो गए। उनके हाथों में एक-एक वरमाला दी गई।

    सात्विक उससे लंबा था, इसलिए द्रक्षता को थोड़े ज़्यादा एफ़र्ट्स डालने पड़े। उसके एफ़र्ट्स देख सात्विक के चेहरे पर एक मुस्कान खिल गई, जो कोई देख नहीं सका। लेकिन द्रक्षता ने उसे वरमाला पहना दी। वहाँ तालियों का शोर गूँज गया।

    सात्विक ने आराम से उसे वरमाला पहना दी। वरमाला पहनाने के बाद दोनों की शादी आगे बढ़ी। पंडित जी ने कन्यादान के लिए माता-पिता को बुलाया।

    सब मान्यता को जाने को बोल रहे थे। वह जाकर उसका कन्यादान करने लगी।

    धीरे-धीरे शादी के सारे रस्में हो रही थीं। पंडित जी ने सात्विक को उसकी मांग भरने और मंगलसूत्र पहनने को कहा।

    उसने मंगलसूत्र उठाकर उसके गले में पहना दिया। तब उसने नोटिस किया कि द्रक्षता आवाज़ न करते हुए रो रही थी। वह उसकी सिचुएशन समझ रहा था। जैसे-जैसे पंडित जी उसे बोलते गए, वो वैसे ही करता गया।

    पंडित जी अंत में बोले, "आज से आप दोनों पति-पत्नी हुए। आपका जीवन अब सात जन्मों के लिए बँध चुका है। अपने मध्य किसी तीसरे को आने मत दीजिएगा। आपके जीवन संगी अब से आपकी ज़िम्मेदारी है। उसके नेत्रों में आँसू ना आएँ, इस बात का ख्याल रखना है आपको और दोनों को ही। रिश्ते में आप दोनों ही बंधे हैं। जाइए, अब अपने बड़ों का आशीर्वाद ले लीजिए।"

    उन दोनों ने उनके चरण छू लिए। फिर जाकर सबके पैर छुए। सुरुचि ने द्रक्षता को गले लगा लिया।

    और बोली, "तुम हमारी बेटी जैसी हो।" (उसके आँसू पोछकर) "रो मत।"

    लेकिन द्रक्षता के आँसू रुक ही नहीं पा रहे थे। मान्यता और वह गले लगकर रो पड़ीं।

    साइड में खड़ा दर्शित के भी आँखों में आँसू आ गए थे, जिन्हें छिपाने की वह भरपूर कोशिश कर रहा था, लेकिन वह नाकामयाब रहा।

    मान्यता उसे देख अपने पास बुलाती है। दर्शित ना में सर हिला देता है। द्रक्षता खुद उसके पास चली जाती है। उसे अपने पास देख वह और कंट्रोल ना कर पाया। वो भी उसे गले लगाकर रो दिया।

    वो उसे बोला, "दीदी, मत जाओ ना। प्लीज़। मैं नहीं रह पाऊँगा आपके बिना।" (वह सिसकते हुए बोला।)

    मान्यता इधर-उधर देखते हुए बोली, "दृशा कहाँ है? बहुत समय से नहीं दिखी मुझे। आर्या बेटा, जानती हो कहाँ है दृशा?"

    आर्या बोली, "आंटी, वो तो भाभी से मिलने गई थी, लेकिन वो तो अभी तक वापस नहीं आई।"

    मान्यता को घबराहट होने लगी। सुरुचि उसके पास आकर उसे शांत करती है।

    और संभव से बोली, "बेटा, जाओ देखो कहाँ है दृशा।"

    संभव सात्विक के पास आकर धीरे से बोला, "भाई, मैंने उन लोगों को देखा था। दृशा को ले जाते हुए। उस टाइम आपकी शादी हो रही थी, इसलिए मैंने कुछ किया नहीं। अब अगर उन्होंने ज़्यादा कुछ किया तो मेरी रिवॉल्वर है मेरे पास। सीधा उड़ा दूँगा।"

    सात्विक उसे बोला, "अभी ज़्यादा कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। हमें सिर्फ़ दृशा वापस चाहिए, सही-सलामत। उनका कुछ सही नहीं है। वो कुछ भी कर सकते हैं, इसलिए ध्यान से।"

    संभव सर हिलाकर चला गया। उसके पीछे प्रत्यूष भी चला गया।

    वहीं उस कमरे में तापस उस बॉडीगार्ड को मार रहा था।

    वो गुस्से से बोला, "तुमसे एक काम भी ठीक से नहीं होता। वहाँ उस सात्विक की शादी हो गई और उसकी दुल्हनिया वो शनाया भी नहीं है। तो यह किस लड़की को उठा लाए?"

    बॉडीगार्ड डरकर बोला, "बॉस, आपने जो फ़ोटो दी थी, मैंने तो वही लड़की उठाई। मुझे नहीं पता था कि ये वो नहीं होगी।"

    दृशा को धीरे-धीरे होश आ रहा था। उसने अपने हाथ हिलाने की कोशिश की तो उसे पता चला कि उसके हाथ-पैर बंधे हुए हैं। आँखों पर पट्टी चढ़ी हुई है।

    हरीश ने जब उसके हिलते हुए शरीर को देखा, उसके पास आकर उसके चेहरे से पट्टी हटा दी। दृशा ने डर के मारे आँखें कस के बंद कर लीं।

    हरीश उसके चेहरे को देख तापस से बोला, "गलती उसकी नहीं है। इसका तो चेहरा उस सात्विक की दुल्हन जैसा है। लगता है, उस लड़की की बहन है।"

    तापस उस बॉडीगार्ड को छोड़कर इसके पास आया। उसके सुंदर चेहरे को देख सबकी नियत फिसल रही थी।

    तापस और हरीश एक-दूसरे को देख शैतानी मुस्कान मुस्कुरा दिए।

    तापस दृशा के चेहरे पर अजीब तरह से हाथ फेरते हुए बोला, "मेरे काम में तूने नुकसान पहुँचा दिया। अब क्या करेगी तू? यहाँ से भागने का तो कोई रास्ता नहीं। अब मेरा काम ना हुआ ना सही, चल मेरी प्यास बुझा।"

    दृशा उसके छूने से पूरी तरह डर गई थी। वह काँप रही थी।

    राजन के भी आँखों में साफ़ हवस दिख रही थी।

    राजेश उन सब से बोला, "अरे, तुम सब पागल हो गए हो क्या? अभी इस होटल में ही यह सब करोगे तो मारे जाओगे उस सात्विक के हाथों।"

    वह अभी बोल ही रहा था कि उस कमरे का गेट बहुत तेज आवाज़ से खुला। संभव और प्रत्यूष को सामने देख वो सब हैरान हो गए।

    तापस तिरछी मुस्कान के साथ बोला, "क्यों आ ही गए ना तुम सब? अरे, अपने उस भाई को नहीं लाए?"

    संभव उसे गुस्से से घूरते हुए बोला, "तेरे लिए हम ही काफी हैं। उनको आने की कोई ज़रूरत नहीं। उसे हमारे हवाले कर दो।"

    इस बार राजन बोला, "नहीं करेंगे। क्योंकि जो हम करने आए थे, वो हुआ नहीं, तो जो नहीं करना था, वो ही कर लेते हैं। वैसे भी यह लड़की काफी खूबसूरत है। मज़ा बहुत आएगा।"

    संभव यह सुनते ही एकदम से उसके पास आकर उसका गला दबा दिया। वह इतना तेज दबा रहा था कि राजन को लगा अब उसकी मौत हो ही जाएगी।

    संभव उससे बोला, "सीधे-सीधे कह रहा था, लेकिन तुम सब को सीधी बातें समझ कहाँ आती हैं।"

    सब उसे राजन से दूर कर देते हैं।

    तापस उससे बोला, "लड़की तो हम तुझे देंगे नहीं, चाहे तो कितनी भी कोशिश कर ले।"

    तापस के बॉडीगार्ड ने उसे और प्रत्यूष को घेर लिया था। संभव का अब पारा चढ़ चुका था। उसने एक प्रत्यूष को देख कुछ इशारा किया। फिर वो सब भिड़ गए। बॉडीगार्ड काफी ज़्यादा थे, तब भी वो उन सब पर भारी पड़ रहा था।

    उन सब की नज़र बचाकर प्रत्यूष ने अपनी वॉच की एक बटन को प्रेस कर दिया जिससे कुछ ही समय में उसके बहुत सारे बॉडीगार्ड आ गए।

    इतने सारे बॉडीगार्ड्स को देख तापस के बॉडीगार्ड्स के पसीने छूट गए। उन सब को कुछ ही देर में संभव के बॉडीगार्ड्स ने धूल चटा दी।

  • 18. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-18

    Words: 1325

    Estimated Reading Time: 8 min

    तापस और उसके साथी यह देखकर काफी गुस्से में आ गए। वे सभी अब स्वयं उससे निपटने के लिए आ गए। संभव और प्रत्यूष ने उन्हें भी मजा चखा दिया।

    वे सब नीचे गिरे हुए कराह रहे थे।

    संभव, उन्हें धमकी देते हुए बोला, "आज जिंदा छोड़ दिया, क्योंकि भाई ने ज़्यादा तमाशा करने को नहीं कहा था।"

    प्रत्यूष तब तक दृशा के हाथ-पैर खोल चुका था। वे दोनों उसे लेकर चले गए।

    मान्यता दृशा को इतना डरा हुआ देखकर उसके पास आकर पूछती है, "क्या हुआ?"

    दृशा उसे गले लगाकर रोने लगती है। मान्यता को कुछ सही नहीं लगा।

    वह संभव से पूछती है, "बेटा, इसे क्या हुआ है? कुछ बोल क्यों नहीं रही?"

    संभव उनके पास आकर कहता है, "आंटी, कुछ लोगों ने दृशा को किडनैप कर लिया था, इसलिए डरी हुई है।"

    दृशा मान्यता से कहती है, "माँ, वो लोग बहुत बुरे थे। उन्होंने मुझे बहुत गंदे तरीके से छुआ। बहुत डर लग रहा है।"

    मान्यता उसे चुप करते हुए कहती है, "कुछ नहीं हुआ मेरी दृशा को। कुछ होगा भी नहीं। चुप हो जा।"

    सभी मेहमान वहाँ नहीं थे क्योंकि शादी के बाद सब खाने जा चुके थे। दृशा बहुत डर चुकी थी। वह बहुत पैनिक कर रही थी। सभी उसे चुप करा रहे थे।

    द्रक्षता उसके पास आकर कहती है, "दृशा, देखो तुम ठीक हो।" फिर मान्यता से कहती है, "माँ, इसे घर ले जाइए। यहाँ सब कुछ हो चुका है। वैसे भी हम लोग जाने वाले हैं।"

    दृशा उसे गले लगाकर कहती है, "दी, आप मेरे साथ रहो। मुझे नहीं रहना है अकेले।"

    मान्यता उसे समझाते हुए कहती है, "बेटा, द्रक्षता की शादी हो गई ना, वो कैसे रहेगी हमारे साथ? उसकी विदाई करनी होगी ना।"

    दृशा यह सुनकर और रोने लगती है।

    सब द्रक्षता की विदाई करते हैं, जिसमें द्रक्षता के परिवार के साथ राजपूत परिवार के भी आँसू आ गए थे। उन सबको भी काफी दुख हुआ था।

    आखिर में उसकी विदाई हुई। सात्विक और द्रक्षता एक साथ कार में बैठे थे। वह रोते-रोते सो गई थी। उसका सिर विंडो से लगा हुआ था।

    सात्विक उसे बिना पलक झपकाए देख रहा था। कुछ देर बाद गाड़ी रुकी, तब उसे ध्यान आया कि वह क्या कर रहा था। सात्विक गाड़ी से निकलकर उसके साइड आकर उसके साइड का गेट खोल दिया।

    द्रक्षता अभी भी गहरी नींद में सोई हुई थी। सात्विक धीरे से उसके सर पर हाथ रखा ही था कि द्रक्षता की नींद खुल गई। सात्विक को इतने पास देख वो घबरा गई। जल्दी से उठकर बाहर आ गई।

    उसे इतनी हड़बड़ी में देख सात्विक हँस दिया, लेकिन उसकी हँसी उस तक ही सीमित थी।

    तभी वहाँ संभव और प्रत्यूष आ गए।

    उन्हें देख संभव बोला, "ऐसा लग रहा है आप दोनों आज यहीं रुकने के फिराक में हैं, तो मैं माँ को जाकर बता देता हूँ।"

    द्रक्षता घबराकर उसे रोकते हुए बोली, "अरे नहीं भैया, ऐसा मत करिए।"

    संभव उसे देखकर कहता है, "भाभी, आप मुझे भैया क्यों बोल रही हैं? मैं आपका जो लगूँगा वही बुलाया कीजिए। और जल्दी चलिए, सब आप दोनों का ही इंतज़ार कर रहे हैं।"

    द्रक्षता असमंजस से कहती है, "लेकिन आप तो मुझसे उम्र में काफी बड़े हैं, मैं कैसे आपको कुछ भी कहकर बुला सकती हूँ।"

    संभव कहता है, "अरे भाभी, अच्छा छोड़िए इस बात को। चलिए अंदर।"

    संभव और प्रत्यूष, सात्विक और द्रक्षता को लेकर हवेली के मेन डोर के पास आ जाते हैं। वहाँ पहले से ही पूरा परिवार उन दोनों के इंतज़ार में खड़ा था।

    सुरुचि दोनों को गेट पर रोककर उनकी आरती उतारती है, फिर द्रक्षता को उसके सामने रखे कलश को अपने दाहिने पैर से गिराने को कहती है।

    सुरुचि ने जैसे-जैसे कहा, द्रक्षता ने वैसा ही किया। सुरुचि ने उसे सामने रखी आलते से भरी थाली में पैर रखकर फर्श पर अपने पैरों के छाप छोड़ते हुए अंदर आने को कहा। द्रक्षता ने भी वैसा ही किया।

    द्रक्षता के ऊपर लंबा सा घूँघट था, जिससे उसे चलने में काफी परेशानी हुई, लेकिन उसने कर लिया।

    उसके अंदर आने पर सुरुचि और बाकी महिलाएँ उसे और सात्विक को लेकर हवेली में बने एक बड़े और विशालकाय मंदिर में पूजा के लिए ले गईं।

    उसके बाद सुरुचि ने एक दीवार पर उसके हाथों के हल्दी से निशान लगवाए। ऐसे कुछ रस्मों के बाद द्रक्षता को सात्विक के रूम में ले जाया गया।

    आर्या और द्रक्षता साथ में बैठी बातें कर रही थीं। सात्विक वहाँ पहुँचा। उसे देख आर्या जल्दी से रूम के दरवाजे के पास आकर उसका रास्ता रोक देती है।

    सात्विक ने उसे बेहद असमंजस से देखा।

    आर्या ने उसके सामने हाथ आगे करके कहा, "चलिए जल्दी से मुझे कुछ बहुत एक्सपेंसिव सा दीजिए, जिससे मैं आपको भाभी के पास जाने दूँगी। अगर अभी आपने थोड़ी सी भी कंजूसी की तो नहीं हटने वाली यहाँ से।"

    सात्विक अब तक वहाँ आ चुकी सुरुचि को देखा। सुरुचि ने उसे आर्या जो मांग रही थी उसे दे देने को कहा।

    सात्विक ने अपने जेब से एक चाबी निकालकर आर्या के तरफ़ उछाल दिया, जिसे पकड़ते हुए आर्या बहुत खुश हो गई।

    उसने सात्विक से बोला, "भैया, कौन सी गाड़ी की है? मर्सिडीज की लेटेस्ट एडिशन होनी चाहिए।"

    सात्विक ने उसे देखकर कहा, "उसी की है। जानता हूँ, वही चाहिए तुम्हें। इतने दिनों से उस पर नज़र गड़ाकर बैठी हो।"

    आर्या मुँह बनाकर बोली, "मैंने नज़र कब गड़ाया? बड़ी माँ देख रही है ना? भैया कैसे बोल रहे हैं मुझे।"

    सुरुचि सात्विक को बुलाती है, "सात्विक!!"

    सात्विक सर हिलाकर रूम में चला गया। द्रक्षता बिस्तर पर बैठी हुई थी। सात्विक उसे एक नज़र देखकर अपने अलमारी से अपने कपड़े लेकर वाशरूम में चला गया।

    द्रक्षता बहुत नर्वस फील कर रही थी। उसके कपड़े और गहने सुरुचि ने बदलवा दिए थे क्योंकि उस लहंगे में वह काफी अनकम्फ़र्टेबल थी। उसने एक रेड कलर की सिल्क की साड़ी पहनी हुई थी जो उस पर बहुत खूबसूरत लग रही थी। हल्के गहने और हल्के मेकअप में द्रक्षता बहुत सुंदर लग रही थी।

    द्रक्षता को सात्विक का ऐसे वाशरूम में चले जाना उसे कुछ पसंद नहीं आया। वह उसके इस बिहेवियर को समझने की कोशिश कर रही थी।

    कुछ देर बाद सात्विक वाशरूम से बाहर आया। वह पूरा फ्रेश नज़र आ रहा था। उसके बालों से पानी टपक रहा था जो उसे बहुत सेक्सी लुक दे रहा था।

    द्रक्षता उसे कुछ पल तक देखती है, फिर अपनी नज़रें उस पर से हटा लेती है। सात्विक कुछ सोचकर उसकी तरफ़ अपने क़दम बढ़ा देता है।

    द्रक्षता उसे अपने पास आता देख और ज़्यादा नर्वस हो जाती है। उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि यह हमेशा उसके साथ ही क्यों होता है। सात्विक उसके करीब नहीं आता तो उसे अच्छा नहीं लगता और जब आता है तो उसकी बॉडी बहुत अजीब बिहेव करने लगती थी।

    सात्विक उसके पास आकर उसे देखने लगा। द्रक्षता के लिए यह काफी अजीब सा था। वह उसकी नज़रों की तपिश बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी, जिससे द्रक्षता सात्विक को नज़र उठाकर देख तक नहीं पाई।

    सात्विक उसके करीब बैठ गया। उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में ले लिया। द्रक्षता उसके ऐसा करने पर अंदर तक सिहर गई।

    सात्विक उसके हाथों को चूमते हुए बोला, "आज मेरी पत्नी बनकर कैसा लग रहा है तुम्हें? तुमने तो साफ़ चुनौती दी थी मुझे कि किसी भी हालत में तुम मेरे साथ नहीं आ सकती।"

    द्रक्षता थोड़ी नर्वस होकर अपने हाथ को पीछे खींचने लगी, लेकिन सात्विक की पकड़ उसके हाथ पर कस जा रही थी। द्रक्षता समझ गई वो उसे नहीं छोड़ने वाला, तो द्रक्षता ने कोशिश भी छोड़ दी।

    द्रक्षता अपने चेहरे को पीछे छुपाते हुए कुछ हकलाकर बोली, "हम नहीं जानते थे कि आप ही हमारे होने वाले पति हैं, वरना हम आपसे ऐसा कुछ नहीं कहते।"

    सात्विक उसे अपने करीब खींचता है, जिससे द्रक्षता उसके सीने से लग जाती है। वह कँपने लगती है, लेकिन सात्विक उसे हिलने का भी मौका नहीं दे रहा था।

    सात्विक उसके गालों पर अपने हाथों को फेरते हुए कहता है, "तो अब तो तुम्हें पता है कि मैं तुम्हारा क्या हूँ?"

    द्रक्षता हाँ में सिर हिलाकर कहती है, "आप हमारे पति हैं।"

    सात्विक यह सुनते ही बेहद खुश हो जाता है, लेकिन अपनी खुशी जाहिर नहीं करता।

    सात्विक उसकी आँखों में शिद्दत से निहारते हुए कहता है, "क्या तुम मुझे अपने आप पर हक़ देना चाहोगी?"

    द्रक्षता को इसी का डर था जो सात्विक ने उससे कह दिया। उसके शिद्दत भरी नज़रों में अपनी नज़रें मिलाने की हिम्मत द्रक्षता से नहीं हो पा रही थी।

    द्रक्षता सात्विक के हाथों पर अपने हाथ रखकर अपनी नज़रें झुका लेती है। उससे कुछ बोला नहीं जा रहा था।

    सात्विक उसके इस एक्शन से समझ गया था कि वह रेडी है, लेकिन कह नहीं पा रही।

    द्रक्षता का चेहरा जो बेहद लाल हो गया था शर्म से, सात्विक उसके चेहरे पर अपने दोनों हाथ रखकर उसके माथे को चूम लेता है।

  • 19. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-19

    Words: 1336

    Estimated Reading Time: 9 min

    सात्विक के ऐसा करने पर द्रक्षता की आँखें मूँद चुकी थीं। वे दोनों इतने करीब थे, जितना द्रक्षता ने कभी सोचा भी नहीं था। सात्विक धीरे-धीरे उसके बेहद करीब चला आया था। ये पल दोनों के लिए काफी हसीन थे, जिनमें दोनों पूरी तरह डूब गए थे।

    कुछ देर बाद, दोनों की करीबी ने कमरे का तापमान बढ़ा दिया था। दोनों की मदहोशी भरी साँसें कमरे को बहुत ज्यादा रोमांटिक बना रही थीं।


    अगली सुबह, सात्विक के कमरे में, बेड पर द्रक्षता चैन की नींद सोई हुई थी। कल की रात उसके लिए काफी थका देने वाली थी। उसके चेहरे पर थकावट साफ झलक रही थी। सात्विक की नींद बहुत पहले ही खुल चुकी थी। वह उसे निहार रहा था। कुछ देर उसे देखते रहने के बाद, वह उठकर कमरे से बाहर चला गया।


    तकरीबन आधे घंटे के बाद द्रक्षता की नींद खुली। थोड़े कसमसाने के बाद उसने अपनी आँखें खोलीं। सीलिंग को देखकर उसे यह अनजाना सा लगा। डर से द्रक्षता उठकर बैठ गई। फिर उसे याद आया कि उसकी शादी हो चुकी है।


    द्रक्षता ने समय देखा तो सुबह के 6:30 बज रहे थे। द्रक्षता उठकर अपनी साड़ी सही कर अपने बैग के पास जा ही रही थी कि कमरे का दरवाजा खटखटाया गया।


    दरवाजे पर सुरुचि, राम्या और आर्या थीं। सुरुचि अपने हाथ में पकड़ी थाली द्रक्षता को देती है। द्रक्षता सुरुचि को प्रश्नवाचक चेहरा लिए देखती है।

    "आज तुम्हारा इस घर में पहला दिन है," सुरुचि ने उसकी नजरों का मतलब समझते हुए कहा, "तो हम चाहते हैं तुम यही पहनो। और सास होने के नाते मैं तुम्हें यह देना चाहती थी, तो तुम यह पहन तैयार हो जाओ।"


    द्रक्षता ने हाँ में सर हिला दिया।

    "हमने तुम्हें डिस्टर्ब तो नहीं किया?" राम्या ने पूछा, "कल से थकी हुई थी तुम, और अब हमने तुम्हें आकर जगा दिया।"

    "नहीं चाची," द्रक्षता ने ना में सर हिलाते हुए कहा, "आपने मुझे डिस्टर्ब नहीं किया। मैं तो उठ गई थी, बस वाशरूम ही जा रही थी नहाने के लिए।"

    "ओह," राम्या बोली, "मुझे लगा तुम सो रही थी। वैसे मैं ना अपनी शादी के अगले दिन लेट तक सोती रही। दीदी और माँ जी दरवाजा खटखटाते हुए परेशान हो गए, लेकिन मैं थी जो उठ ही नहीं रही थी।"


    द्रक्षता राम्या की बात पर हँस दी। फिर सुरुचि द्रक्षता को फ्रेश होकर नीचे आने को कहकर उनके साथ चली जाती है।


    द्रक्षता नहा-धोकर तैयार हो गई। उसने सुरुचि की दी हुई साड़ी पहनी थी। वह साड़ी पीच और रेड कलर में थी। उसके ऊपर किए गए वर्क्स से वह साड़ी काफी भारी भी थी। द्रक्षता को ज्यादा साड़ी पहनने की आदत नहीं थी, जिससे उसे काफी परेशानी भी हो रही थी, लेकिन वह जैसे-तैसे करके संभाल रही थी।


    उसने फटाफट उस थाली में रखे हल्के ज्वैलरी पहन लिए। उसे यह सब पहनना तो नहीं था, फिर भी पहन लिए क्योंकि अगर वह नहीं पहनती तो कहीं न कहीं सुरुचि को बुरा लग सकता था।


    वह रेडी होकर एक बार अपने आप को आईने में देखती है, तो थोड़े समय के लिए स्तब्ध हो गई।

    "ये मैं हूँ?" उसने अपने आप से कहा, आईने में अपने अक्स को छूते हुए, "क्या तुम सच में इतनी सुंदर हो द्रक्षता?" थोड़ा रुककर, "आज मैं किसी की पत्नी, बहू, भाभी हूँ। मैं कैसे इतने रिश्तों को लेकर चल पाऊँगी?" गहरी साँस भरकर, "लेकिन इस घर के किसी भी रिश्ते पर मेरे वजह से दरार नहीं आने दूँगी। अपनी पूरी कोशिश करूँगी कि हर कोई खुश रहे, हर किसी के रिश्ते एक-दूसरे से मजबूत रहे।"


    इतना कहकर एक नजर खुद को देख दरवाजे के पास आई तो सामने से सात्विक चला आ रहा था। उसका शरीर पूरा पसीने से भीगा हुआ था।


    सात्विक द्रक्षता को देख उसके पास आकर उसे उसके कमर से पकड़कर अपनी ओर खींच लिया। द्रक्षता उसके इस एक्शन के लिए तैयार नहीं थी, इसलिए वह उसके सीने से टकरा गई और उसके सर पर सात्विक के मजबूत सीने के कारण चोट आ गई।


    द्रक्षता उसे पीछे धकेलने लगी, जिसे इग्नोर कर सात्विक उसे अपने और करीब कर लिया और उसके गले में अपना सर घुसा लिया। सात्विक की करीबी द्रक्षता को काफी ज्यादा बेचैन कर रही थी। वह अभी बस किसी भी तरह नीचे जाना चाहती थी।

    "इतना भी हिलना-डुलना..." सात्विक मदहोशी से बोला, "खा तो नहीं जा रहा हूँ मैं तुम्हें... खामोशी से मुझे तुम्हें अपने पास रहने दो।"


    द्रक्षता उसकी बात सुनकर बिल्कुल शांत हो गई। कुछ दस मिनट बाद सात्विक धीरे से उससे अलग हुआ। द्रक्षता शर्म से अपनी नज़रें उससे नहीं मिला रही थी।


    सात्विक उसे देख तिरछा मुस्कुराकर वाशरूम चला गया।


    द्रक्षता जल्दी से अपने आप को ठीक कर बाहर चली जाती है।


    हॉल में सभी एक साथ बैठे हुए थे। द्रक्षता नीचे आकर सबको देख दादी के पास जाकर नीचे झुकने को ही थी कि विनीता जी उसे अपने पैर छूने से रोक देती हैं और अपने पास बिठा लेती हैं।

    "बेटा तुम्हारी जगह मेरे पैरों में नहीं है," विनीता जी बोलीं, "तुम बहू नहीं बेटी हो हमारे लिए। आगे से हमारे सामने कभी झुकना मत, सीधे आकर गले लग जाना।"


    द्रक्षता मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिला दी।


    फिर सुरुचि उससे पूछी, "अच्छा द्रक्षता, खाना बना पाओगी तुम? आज चूल्हा छूने की रस्म होगी तुम्हारी, इसलिए कुछ बनाना होगा तुम्हें।"

    "माँ आप शायद भूल रही हैं," द्रक्षता ने नर्म लहजे से कहा, "मैं अपनी माँ के साथ बेकरी संभालती थी, तो मुझे खाना बनाना आता है।"


    सुरुचि उसे किचन में ले जाकर उससे गैस की पूजा करवाकर उससे पहले कुछ मीठा बनाने को बोल देती है। अब द्रक्षता को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बनाए।


    इसलिए उसने सुरुचि से ही पूछा, "माँ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, आप कुछ बताइए ना क्या बनाना चाहिए या सबको ज्यादा क्या पसंद है?" (यह बोलते वक्त वह थोड़ी नर्वस थी)

    "किसी चीज का हलवा बना दो," सुरुचि ने कहा, "या हो सके तो गाजर का हलवा ही बना लो। स्पेशली सात्विक को ये काफी पसंद है। वह ज्यादा मीठा नहीं खाता, लेकिन यह हलवा बना तो वह जरूर खाएगा।"


    द्रक्षता ने सर हिला दिया।


    सुरुचि उसे नौकरों की मदद लेने को बोलकर किचन से बाहर आ गई।


    द्रक्षता सर्वेंट्स से सामान का पता पूछ-पूछकर सब कुछ करने लग जाती है। हलवा बना लेने के बाद वह सर्वेंट्स के खाना बनाने में भी मदद कर देती है।


    तब सुरुचि वहाँ आकर उसे यह सब करता देख उसके पास आकर उसे थोड़ा सा हलवा लेकर अपने साथ चलने को बोली।


    सुरुचि उसे घर के मंदिर में लेकर आई और उसके बनाए गए हलवे को मंदिर में खुद से चढ़वा दिया।


    डाइनिंग टेबल पर सब आकर बैठने लगे क्योंकि नाश्ते का समय हो गया था और राजपूत फैमिली का रूल था सबका एक साथ एक समय पर खाना या नाश्ता करने का। इस रूल को आज तक सिवाय सात्विक के किसी ने नहीं तोड़ा था।


    सर्वेंट्स नाश्ता टेबल पर लगा चुके थे। ऑलमोस्ट सभी आ गए थे। कुछ देर बाद सात्विक भी आया, लेकिन उसका ध्यान अपने कान पर लगाए फोन में बात करने पर था।


    वह भी डाइनिंग टेबल पर अपने चेयर पर बैठ गया। उसके एक्शन बहुत जल्दबाजी से भरे थे। कॉल कट करके उसने अपना पूरा फोकस नाश्ते पर कंसंट्रेट कर दिया।


    सुरुचि द्रक्षता को भी सात्विक के बगल वाली सीट पर बिठा देती है। सात्विक को अब जाकर द्रक्षता के प्रेजेंस का एहसास हुआ। तब उन दोनों ने एक-दूसरे को देखा।


    द्रक्षता ने तुरंत अपना फोकस नाश्ते पर टिका दिया। सात्विक को यह देख बेहद गुस्सा आया। उससे किसी का इग्नोर बर्दाश्त नहीं होता था, जो द्रक्षता कर रही थी।


    वह भी चुपचाप अपना नाश्ता करने लगा। सब ने नाश्ता कर ही लिया था तब सर्वेंट्स उन्हें द्रक्षता का बनाया हलवा सर्व करने लगे। सात्विक जो उठने वाला था, हलवे को देख रुक गया।


    सब ने उसके बनाए हलवे की बहुत तारीफ की, लेकिन किसी को यह नहीं पता था कि हलवा द्रक्षता ने बनाया है।

    "कैसा लगा हलवा बेटा?" सुरुचि ने सात्विक से पूछा।

    "अच्छा है," सात्विक बोला, "किसने बनाया? आपने तो नहीं बनाया है, आपके हाथ का टेस्ट जानता हूँ मैं।"

    "द्रक्षता ने बनाया है," सुरुचि मुस्कुराते हुए बोली।


    यह सुन सभी ने द्रक्षता की खूब तारीफ की। सब ने उसके पहले रसोई के तौर पर कुछ न कुछ गिफ्ट दिया, लेकिन सात्विक को ऐसा कुछ भी होता है यह तक नहीं पता था, इसलिए उसने बाद में उसे देने को बोल दिया।


    विनीता जी ने द्रक्षता को गोल्ड और डायमंड के कॉम्बिनेशन का एक कंगन दिया था।

    "दादा जी," सात्विक धर्म जी से बोला, "मुझे कुछ दिनों के लिए यू.एस. जाना होगा। वहाँ के ब्रांच में कुछ प्रॉब्लम आ गई है और जाना बहुत इम्पॉर्टेंट है।"

    "लेकिन कल ही आपकी शादी हुई है," धर्म जी ने अपनी करक आवाज में कहा, "आपको नहीं लगता आपको अपनी पत्नी के साथ भी कुछ समय बिताना चाहिए।"

  • 20. "मैं आपकी संगिनी"(तक़दीरों का इत्तेफ़ाक़)-20

    Words: 1322

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    सात्विक ने उनकी बात सुनकर द्रक्षता को देखा, जो सुरुचि से बात कर रही थी।

    फिर धर्म जी से बोला, "मैं अपनी जिम्मेदारियों को निभाना बखूबी जानता हूँ। मैं अपनी ट्रिप से आने के बाद जरूर उसके साथ समय बिताऊँगा। लेकिन फिलहाल मेरा वहाँ होना बहुत जरूरी है, और आप अब मुझे नहीं रोकेंगे, क्योंकि आप ये अच्छे से जानते हैं कि मेरे लिए मेरा काम कितना इम्पॉर्टेंस रखता है।"

    धर्म जी इस पर कुछ नहीं बोल सके। वे सात्विक के इस बिहेवियर को बहुत अच्छे से जानते थे कि चाहे जो हो जाए, सात्विक अपने मन की ही करेगा। उनका उसे रोकने की कोई भी कोशिश सफल नहीं होगी।

    सात्विक ने उन्हें एक नज़र देखा और अपने कमरे में चला गया।

    द्रक्षता, जो थोड़ी दूर खड़ी सुरुचि से बात कर रही थी, सात्विक को कमरे में जाता देख कुछ समय बाद कमरे में चली गई, क्योंकि उसे सात्विक से कुछ बात करनी थी।

    कमरे में सात्विक अपनी कुछ फाइलें ढूँढ़ रहा था। उसने ध्यान नहीं दिया कि द्रक्षता भी कमरे में है।

    द्रक्षता उसे कुछ करता देख एक तरफ चुपचाप खड़ी हो गई। सात्विक की पीठ उसकी तरफ थी। जब वह मुड़ा, उसकी नज़र सीधा द्रक्षता से मिल गई।

    सात्विक उसे अपनी तरफ देखते हुए उसके पास खुद आ गया।

    उसे देखते हुए बोला, "कुछ कहना है तुम्हें?"

    द्रक्षता थोड़ा हकलाती हुई बोली, "हाँ।"

    सात्विक ठंडे स्वभाव से बोला, "बोलो।"

    द्रक्षता बोली, "मुझे कॉलेज फिर से ज्वाइन करना है।"

    सात्विक और ठंडे भाव से बोला, "मैंने तुम्हें नहीं रोका है और न ही कभी तुम्हारे एजुकेशन के बीच रुकावट बनूँगा।"

    द्रक्षता अब सर झुकाकर खड़ी हो गई।

    सात्विक उसके बेहद करीब आ गया। द्रक्षता को उसके कमर से पकड़कर अपने सीने से लगा लिया। सात्विक को ना जाने क्या खुशी मिलती थी उसके पास रहने से, यह तो वही जानें।

    द्रक्षता सकुचाती हुई उसके और करीब आ गई। सात्विक ने अपना सर उसके गर्दन में घुसा दिया और उसकी बॉडी की फ्रैगरेंस को महसूस करने लगा। कुछ देर ऐसे ही खड़े रहने के बाद अपना चेहरा उसके चेहरे से टिका लिया।

    फिर उसकी आँखों में देखते हुए बोला, "मुझे कुछ दिनों के लिए अपने बिज़नेस ट्रिप पर फ़ॉरेन जाना है।"

    द्रक्षता अपनी नज़रें उठाकर पूछी, "कितना टाइम लगेगा?"

    सात्विक बोला, "टाइम नहीं, वीक... टू वीक्स के लिए जाना है, और अगर ज़्यादा प्रॉब्लम हुआ तो और टाइम लग सकता है।"

    द्रक्षता इस पर कुछ नहीं बोल सकी। उसे समझ नहीं आ रहा था कुछ।

    कुछ देर बाद सात्विक उससे अलग हो गया और उसकी आँखों में देखते हुए बोला, "तुम सच में काफी खूबसूरत हो। पहली बार तुम्हें देखा था तब भी, और आज तो उससे भी कहीं ज़्यादा।"

    उसकी बातों को सुन द्रक्षता के चेहरे का रंग लाल होने लगा। उसे शर्माते देख सात्विक अपने हाथ से उसके गालों को सहलाने लगा, जिससे वह और शर्माने लगी।

    सात्विक उसे गाल सहलाने के बाद वहाँ से अपनी फाइलें लेकर चला गया।

    इसी तरह कुछ तीन दिन बीते। सात्विक यूएस में था और द्रक्षता राजपूत मैंशन में। कभी-कभी द्रक्षता अपने घर जाकर सब से मिल लेती। सात्विक और द्रक्षता बीच-बीच में फ़ोन कॉल पर बात किया करते थे।

    ऐसे ही एक दिन द्रक्षता अलमारी में अपने कपड़े सेट कर रही थी जब एक डायरी गिर गई। वह डायरी दिखने में ही काफी एक्सपेंसिव लग रही थी।

    द्रक्षता उसे उठाकर वापस रखने लगी, तब उसका ध्यान उस डायरी के कवर पर गया जिसमें बहुत खूबसूरत इंग्लिश अक्षरों में "सात्विक सिंह राजपूत" लिखा हुआ था।

    द्रक्षता की क्यूरियोसिटी जाग गई। उसने खोलकर देखा तो कर्सिव राइटिंग से सारे पेज भरे हुए थे। वह किसी के द्वारा लिखा गया था।

    द्रक्षता समझ गई यह सात्विक ने ही लिखा है। उसने पढ़ा तो इसमें सात्विक ने अपने गोल्स को लिख रखा था और जो-जो उसने अचीव कर लिया था, उसने कैसे किया, उसके बारे में लिखा हुआ था।

    द्रक्षता यह सब पढ़कर सात्विक से काफी इम्प्रेस हो गई। वह मन ही मन सोची,

    "कितने मेहनती हैं ये! इतने पड़ावों को पार कर आज इस मुकाम पर हैं। मुझे ऐसा पति देने के लिए थैंक्स कान्हा जी!"

    फिर कुछ पेज उलट-पलट कर रखने लगी, तब उसमें से एक तस्वीर नीचे गिर गई जो किसी बच्चे की थी। द्रक्षता फ़ोटो को देख हैरान थी क्योंकि सात्विक की बचपन की फ़ोटो उसने देख रखी थी। वह बचपन में ऐसा नहीं दिखता था।

    द्रक्षता यह सोचकर कि शायद सात्विक के किसी रिलेटिव का हो सकता है, डायरी को उसने उसकी जगह वापस रख दिया।

    वह अपने काम में फिर से लग गई, तभी उसके दरवाजे पर किसी ने नॉक किया। दरवाजा खोलने पर सामने आर्या थी। उसने अपने हाथ में बुक और कॉपी पकड़ी हुई थी।

    आर्या द्रक्षता से बोली, "भाभी, आपका इंग्लिश ग्रामर बहुत अच्छा है। आप मुझे सिखा दो ना। कुछ दिनों बाद से मेरे एग्जाम्स हैं।"

    द्रक्षता उसे अंदर बुलाकर बोली, "क्यों नहीं आर्या, आप भी बैठिए। मैं भी अपने बुक्स लेकर आऊँ, साथ में रिविज़न हो जाएगा मेरा भी।"

    फिर दोनों साथ में पढ़ने लगीं।

    ऐसे ही यह दिन भी बीत गया।

    अगले दिन, सुबह, राजपूत मैंशन में पूरा परिवार एक साथ बैठा हुआ था। तभी बाहर कुछ गाड़ियों के रुकने की आवाज़ आई। सभी उठकर मेन डोर के पास खड़े हो गए।

    गाड़ी से एक 46 साल की एक औरत बाहर आई। दूसरे साइड से एक इक्कीस साल की लड़की निकली। दोनों का चेहरा घमंड से चूर था। दोनों के साथ एक पचास साल का आदमी भी निकला जो सौम्य स्वभाव का था।

    राम्या उन्हें देख सुरुचि से बोली, "दीदी, ये दोनों अब क्या कलेश करने आई हैं यहाँ?" (ये बात उन्होंने उन लेडिज़ के लिए बोली थी)

    सुरुचि ने उसे आँख दिखाकर चुप करा दिया।

    तीनों ने वहाँ आकर सबको ग्रीट किया। वह औरत जिसका नाम शालिनी था, सुरुचि से बोली, "भाभी, इतने दिनों बाद आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई। सात्विक की शादी पर कुछ जरूरी काम की वजह से मैं आ नहीं पाई, तो सोचा अभी जाकर मिल लेती हूँ। नई बहू से मिल भी लूँगी।"

    राम्या उसे देख मन में सोची, "हाँ, क्यों नहीं! फिर द्रक्षता के लिए षड्यंत्र भी रचेंगी। बहुत अच्छे से जानती हूँ इन लोगों को। सालों पहले मेरे और दीदी के लिए मुसीबतें खड़ी करती थीं, और अब द्रक्षता के लिए फिर आ गई हैं। लेकिन अब मैं पहली वाली राम्या नहीं हूँ। अगर ज़्यादा कुछ बोलेंगी तो मुझे भी चुप कराना आता है।"

    सुरुचि सबको अंदर बुलाती है। सभी बैठकर बातें करने लग जाते हैं।

    तभी शालिनी इधर-उधर देखते हुए बोली, "अरे भाभी, अभी तक आपकी बहू कहीं नज़र नहीं आई। उसे पता नहीं क्या है, मेहमानों के आने पर कमरे में बंद नहीं रहते हैं।"

    सुरुचि बोली, "शालिनी, उसकी तबियत थोड़ी खराब लगी मुझे, इसलिए मैंने ही उसे कमरे में आराम करने के लिए कहा है। तुम चिंता मत करो, कुछ देर बाद खुद नीचे आ जाएगी।"

    शालिनी थोड़ी नाराज़गी से बोली, "लेकिन भाभी, अगर आप अभी से उसे इतनी छूट देंगी तो बाद में कहीं आपके छूट का गलत फ़ायदा न उठाने लगे।"

    सुरुचि उसकी बात को टालते हुए बोली, "नहीं शालिनी, द्रक्षता ऐसी नहीं है। देखना, कुछ देर बाद वह खुद आ जाएगी यहाँ।"

    सुरुचि ने इतना कहा ही था कि द्रक्षता नीचे आती दिखी।

    तब उसने शालिनी से कहा, "लो आ गई मेरी बहू।"

    द्रक्षता उसकी बात सुन समझ गई कि कोई आया हुआ है। जो उसके लिए अनजाने चेहरे थे, उसने उनके पैर छू लिए।

    सुरुचि उससे पूछी, "अब तुम्हें अच्छा लग रहा है जो यहाँ आ गई और इनसे मिलो।" (शालिनी की तरफ़ इशारा कर) "ये मेरी ननद और तुम्हारी बुआ सास हैं और वो तुम्हारी ननद हैं।" (शालिनी की बेटी दिव्या की तरफ़ इशारा कर) "और ये इस घर के दामाद हैं, तो तुम्हारे फ़ूफ़ा ससुर हुए।"

    द्रक्षता हाँ में सिर हिलाते हुए बोली, "माँ, मेरी तबियत खराब ही कब हुई? वो आपने ही मुझे बेमतलब कमरे में भेज दिया।"

    सुरुचि ने उसकी बात पर शालिनी को देखा तो उसकी बोलती बंद हो गई।

    शालिनी अब द्रक्षता को अपने पास बिठाकर तरह-तरह के सवाल पूछने लगी, जैसे: खाना बनाना आता है या नहीं? कोई टैलेंट है? स्टडी करती है या नहीं? ऐसे ही पर्सनल लाइफ़ के सारे क्वेश्चंस उससे पूछ डाले थे।

    द्रक्षता को अब उससे डर लगने लगा था कि वह उसके सवालों का क्या जवाब दे, लेकिन जैसे-तैसे उसने अच्छे बिहेवियर के साथ उसके आंसर्स दिए।

    सुरुचि शालिनी को द्रक्षता से इतने सवाल करते देख उसे रोकते हुए बोली, "अरे शालिनी, हो भी गया। उस बच्ची को अभी कितने ही दिन हुए हैं इस परिवार से जुड़े हुए। उसे ऐसे भी मत डराओ।"

    शालिनी उसकी बात पर खिसियानी मुस्कान दे देती है, लेकिन कहीं न कहीं उसे सुरुचि से जलन हो रही थी कि द्रक्षता जितनी अच्छी बहू सुरुचि को मिली।