"Fated To Be Yours – Season 3" वो उसे खरीदना चाहती थी… लेकिन वो बिकने वालों में से नहीं था। एक कॉन्ट्रैक्ट… दो अजनबी… अनाया सिंघानिया – एक लड़की जिसकी दुनिया ताकत, रुतबा और पैसों से चलती है। जिसे मर्दों पर भरोसा नही और मोहब्बत उसके लिए... "Fated To Be Yours – Season 3" वो उसे खरीदना चाहती थी… लेकिन वो बिकने वालों में से नहीं था। एक कॉन्ट्रैक्ट… दो अजनबी… अनाया सिंघानिया – एक लड़की जिसकी दुनिया ताकत, रुतबा और पैसों से चलती है। जिसे मर्दों पर भरोसा नही और मोहब्बत उसके लिए धोख़ा है। अद्वैत आहूजा – एक युवा, होनहार लेकिन सीधा-सादा लड़का, जो अपनी मेहनत और ईमानदारी से ज़िंदगी बदलना चाहता था। गरीबी के बावजूद उसके दिल में था आत्मसम्मान और अपने उसूलों पर अडिग विश्वास। जिसके दिल मे बसती है बेपनाह मोहब्बत। जब अनाया ने अद्वैत को एक भारी भरकम ऑफर दिया, सोचा था वह आसानी से हां कह देगा। लेकिन अद्वैत ने साफ़ कह दिया— “मैं बिकाऊ नहीं हूँ।” पर किस्मत को कुछ और मंजूर था। मजबूरियों ने उन्हें एक कॉन्ट्रैक्ट मैरिज में बांध दिया— जहाँ प्यार नहीं, सिर्फ़ शर्तें थीं। जहाँ हर दिन एक नई लड़ाई थी—इगो की, अहंकार की, और दिलों की। क्या ये दो अलग दुनिया के लोग अपनी डील से आगे बढ़ पाएंगे? या ये रिश्ता सिर्फ़ एक खेल बनेगा—जिसमें कोई जीतता, कोई हारता?
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चांदनी चौक की तंग गलियों से एक लड़की, दुल्हन के लाल जोड़े में सजी-धजी, निकली। पीठ पर नागिन जैसी लहराती चोटी कमर तक पहुँच रही थी, जिस पर लगा गजरा अपनी खुशबू से चारों ओर महका रहा था। मांग में सजा सोने का मांगटिका भागने की वजह से उसके माथे पर इधर-उधर झूल रहा था। नाक में बड़ी सी नथ, सुर्ख लाल रंग में रंगे गुलाब की पंखुड़ियों जैसे कोमल लब धीरे-धीरे कुछ बुदबुदा रहे थे। गले में पहना भारी हार उसके हर बढ़ते कदम के साथ गर्दन पर इधर-उधर झूल रहा था। कानों में भारी सोने के झुमके, बाजू पर बाजूबंद, मेहँदी रची कलाइयों में भरा-भरा चूड़ा, पतली गोरी कमर पर बंधा मोतियों का सुंदर कमरबंद उसकी कमर पर बहुत सज रहा था। पैरों में घुंघरू वाली भारी पायल जिसकी आवाज़ सबको उसके आने का संदेश दे रही थी।
पैरों में स्पोर्ट शूज़ पहने वह चांदनी चौक की गलियों में ऐसे भाग रही थी जैसे किसी मैराथन में भाग रही हो। मार्च की चिलचिलाती गर्मी, शाम पाँच बजे का वक्त जब सूरज देवता अभी भी आसमान में जगमगा रहे थे, उस पर शादी का भारी जोड़ा और गहने। उसका सारा मेकअप पसीने से धुल चुका था, पर उसकी प्राकृतिक सुंदरता कहर ढा रही थी। पीठ पर छोटा सा पिट्ठू बैग लटकाए और अपने लेहंगे को अपनी हथेलियों से ऊपर उठाए वह बेधड़क भागी जा रही थी।
मेन रोड पर जाकर उसने एक ऑटो रुकवाया और झट से उसके अंदर बैठ गई। उसने बैग से एक दुपट्टा निकाला और अपना चेहरा ढँक लिया। ड्राइवर को रेलवे स्टेशन चलने को कहा और बैग से बोतल निकालकर पानी पीने लगी। ड्राइवर उन्नीस साल का लड़का था और लड़की की खूबसूरती उसके होश उड़ा चुकी थी। वह फ्रंट मिरर से उसे ही ताड़ रहा था।
पानी पीते हुए लड़की की नज़र उस पर पड़ी। तो उसने बोतल नीचे की ओर रखी और उसे घूरते हुए बोली,
"ओ भैया... ऐसे न घूरों, नज़र लग जाएगी मुझे। चलो चुपचाप ऑटो चलाओ। वरना तुम्हें नीचे फेंककर मैं खुद ही ड्राइव कर लूँगी और इसी ऑटो के नीचे तुम्हें कुचल दूँगी। फिर दोबारा कभी किसी लड़की को ताड़ने से पहले सौ बार सोचोगे।"
उसके एटीट्यूड और बोलने के ढंग से वह लड़का हैरान हो गया। पर जैसे ही उसकी नज़रें लड़की की आँखों पर पड़ीं, जो उसे गुस्से से घूर रही थीं, तो उसने अपना ध्यान ड्राइविंग पर लगा दिया। लड़की ने अपना फ़ोन निकाला और उसमें से सिम निकालकर उसे तोड़कर बाहर फेंक दिया और गहरी साँस छोड़ते हुए एक ईर्ष्यालु मुस्कान के साथ खुद से बड़बड़ाने लगी,
"अब ढूँढ़कर दिखाओ मुझे, बड़े आए मेरी शादी करवाने वाले। मैंने आज तक वही किया है जो मैंने चाहा है और आगे भी मेरी ज़िंदगी में वही होगा जो मैं चाहूँगी।"
ड्राइवर उसकी बात बड़े गौर से सुन रहा था। आखिर में उसने पूछ ही लिया,
"तो आप अपनी शादी से भागी हैं?"
"हाँ, भागी हूँ तो तेरे बाप का क्या जाता है? चुपचाप ऑटो ड्राइव कर, उसी के पैसे मिलेंगे तुझे। मेरी जासूसी करने के स्पेशल पैसे नहीं देने वाली मैं तुम्हें… हद होती है! ये नहीं अपने काम से काम रखें, दूसरों के फटे में टांग अड़ाना बहुत ज़रूरी होता है लोगों को।"
लड़की ने उसकी अच्छे से इज़्ज़त उतार दी। तो लड़का खामोशी से ड्राइव करने लगा। कुछ आधे घंटे बाद वे रेलवे स्टेशन पहुँचे। तो लड़की ने उसे पैसे दिए और वहाँ से जल्दी से भाग गई। अगली ट्रेन की टिकट ली और प्लेटफ़ॉर्म पर चली गई। कुछ ही देर में ट्रेन भी आ गई। तो लड़की झट से ट्रेन में चढ़ गई और एक खाली सीट देखकर बैठते हुए खुद से बोली,
"जब तक आप सबको ये पता चलेगा कि मैं भाग गई हूँ तब तक तो मैं यहाँ से बहुत दूर निकल चुकी होंगी।"
उसके लबों पर विजयी मुस्कान फैल गई। अगले ही पल उसकी नज़रें बाहर प्लेटफ़ॉर्म पर पड़ीं। तो उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। वह झट से खिड़की की ओट में हो गई। बाहर पुलिसवालों के साथ कुछ लोग भी थे, शायद किसी को या उसी को ढूँढ़ रहे थे। उनके साथ वह लड़का भी था जिसने लड़की को यहाँ ड्रॉप किया था।
उसे देखते ही लड़की ने चिढ़कर खुद से कहा,
"तो इस कमीने ने मुझे पकड़वाने का पूरा प्लान किया है… हरामखोर… तुझे तो मैं देख लूँगी, पहले यहाँ से तो निकल जाऊँ।"
वह झट से सीट के नीचे घुस गई। कुछ देर बाद वहाँ और भी लोग आकर बैठ गए और गाड़ी चल पड़ी। जैसे ही ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म से आगे निकली, लड़की झट से सीट के नीचे से बाहर निकल गई। उसे देखकर आसपास बैठे लोगों की आँखें फटी की फटी रह गईं। उनकी हैरानी की दो वजहें थीं।
पहला, लड़की ट्रेन की सीट के नीचे से निकली और दूसरी वजह थी कि वह दुल्हन के जोड़े में थी। लड़की ने सबको ऐसे घूरते देखा। तो अपनी बत्तीसी चमका दी और "सॉरी" बोलकर आगे बढ़ गई। सबसे पहले उसने बाथरूम में जाकर अपने कपड़े बदले, सारे गहने अपने बैग में डाले।
अब उसने सिंपल सा व्हाइट शॉर्ट कुर्ता और उसके नीचे ब्लैक जीन्स पहनी हुई थी, गले में दुपट्टा। एकदम अलग अंदाज़ पर उतनी ही खूबसूरत लग रही थी वह इन कपड़ों में भी। वह अब दूसरी तरफ़ चली गई। वैसे भी वह तो जनरल से थी तो ऐसे ही वक़्त काटना था उसे। एक बोगी में उसे सीट भी मिल गई। तो वह आराम से बैठ गई। इत्तफ़ाक से वह इस वक़्त मुंबई राजधानी ट्रेन में थी जो दिल्ली से मुंबई जाने वाली सबसे फ़ास्ट ट्रेन है। वह लड़की सारा वक़्त लबों पर मुस्कान और आँखों में चमक लिए बाहर देखती रही।
शाम गहराने लगी, बाहर अंधेरा हो गया, धीरे-धीरे सभी यात्री खाना खाकर सोने चले गए। लड़की एक तरफ़ बैठी रही। अगले दिन सुबह जाकर उसने हल्का-फुल्का कुछ खाया और फिर से बाहर देखने लगी। करीब ग्यारह बजे ट्रेन मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर आकर रुकी। तो सभी धीरे-धीरे नीचे उतरने लगे। लड़की ने ट्रेन के गेट से नीचे कदम रखा। फिर अपनी दोनों बाहों को फैलाकर आँखें बंद करते हुए मुस्कुरा उठी।
"वेलकम टू मुंबई मेरी जान… सपनों के शहर मुंबई में आपका स्वागत है।"
उसने अब अपनी आँखें खोली और बैग पकड़ते हुए आगे बढ़ गई। जैसे ही रेलवे स्टेशन से बाहर निकली एक तेज रफ़्तार बाइक उसके बगल से गुज़री और उस पर पीछे बैठे लड़के ने उसका बैग छीन लिया। तो लड़की उस बाइक के पीछे भागते हुए चिल्लाई,
"चोर-चोर! मेरा बैग ले गया… कोई पकड़ो उसे…"
वह चिल्लाते हुए उनके पीछे भागी पर बाइक का पीछा कब तक कर पाती? वह देखते ही देखते उसकी आँखों से ओझल हो गए। बदहवास भागते हुए वह बुरी तरह थक गई थी। तो अपनी कमर पकड़कर नीचे झुककर गहरी साँसें लेने लगी। थोड़ा रिलेक्स हुई। तो उसने आसमान की तरफ़ देखा और मुँह बिचकाकर बोली,
"बहुत अच्छा स्वागत किया है आपने मेरा इस शहर में। आते ही बैग चुरा दिया। जानते हैं पैसों से लेकर मेरा आईडी तक सब उसी में था, अब मुंबई जैसे शहर में बिना पैसों के मैं क्या करूँगी?"
उसकी आँखों में आँसू आ गए पर उसने उन्हें बाहर नहीं आने दिया। आस-पास के लोगों से पूछते हुए पुलिस स्टेशन पहुँची पर वहाँ का अलग ही नज़ारा था। कोई उसकी बात ही सुनने को राज़ी नहीं था। आखिर में दो घंटे बाद उसे बुलाया गया। सामने एक इंस्पेक्टर बैठा था।
"जी मैडम, कहिए हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं?" पुलिस वाले ने बड़े अदब से पूछा। तो लड़की झट से बोली,
"मेरी कोई सेवा नहीं करनी है, आपके शहर में कदम रखते ही उन कमीने चोरों ने मेरा बैग चुरा लिया है। उसमें मेरे डॉक्यूमेंट और पैसे… सब हैं। इसलिए कैसे भी करके मुझे बस मेरा बैग वापस दिला दीजिए।"
"जी मैडम, हम पूरी कोशिश करेंगे, आप वहाँ जाकर FIR लिखवा दीजिए और अपना कॉन्टैक्ट नंबर भी लिखवा दीजिएगा, जैसे ही हमें कुछ पता चलेगा हम आपको इन्फ़ॉर्म कर देंगे।" पुलिस वाले ने दूसरे डेस्क की तरफ़ इशारा करते हुए कहा। वही उसकी बात सुनकर लड़की ने मुँह लटकाकर कहा,
"पर मेरा फ़ोन तो उसी बैग में था।"
"कोई बात नहीं, आप FIR लिखवा दीजिए उसके बाद आप यहाँ आकर पता करती रहिएगा या अगर नया नंबर लें तो यहाँ आकर दर्ज करवा दीजिएगा। हम आपका बैग ढूँढ़ने की पूरी कोशिश करेंगे।" पुलिस वाले ने उसे आश्वासन दिया। तो वह लड़की थोड़ी रिलेक्स हुई। FIR लिखवाते हुए और वहाँ से निकलते हुए ही दोपहर के चार बज गए थे। सुबह की चाय पी हुई थी। तो अब ज़ोरों की भूख लगी थी। उसने अपने पेट पर हाथ फेरा और चल पड़ी मुंबई की सड़कों पर।
ना रास्ता पता था, न मंज़िल। बस चलती ही जा रही थी। ऐसे ही रात हो गई, पिछले कुछ दिनों से ढंग से खाना नहीं खाया था क्योंकि उसकी शादी उसकी मर्ज़ी के खिलाफ़ करवाई जा रही थी। तो वह भूखे रहकर अपना गुस्सा दिखा रही थी। फिर यहाँ आने के बाद भी कुछ नहीं मिला था। तो उसका सर घूमने लगा। उसके सामने से एक तेज रफ़्तार गाड़ी चल आ रही थी। जैसे ही वह गाड़ी उसके पास पहुँची उसने हॉर्न बजाया पर लड़की की आँखें खुल ही नहीं रही थीं।
अगले ही पल वह बीच सड़क पर मुँह के बल गिर गई। इसके साथ ही सामने से आती गाड़ी में बैठे शख्स ने उसे देखकर झटके से ब्रेक लगाया और पीछे बैठे आदमी ने अपनी दो उंगलियों को अपनी भौंहों पर फिराया, चेहरे पर झुंझलाहट और गुस्से के भाव उभर आए, भौंहें सिकुड़ गईं। अब वह शख्स बेहद खतरनाक और डरावना लग रहा था। उसके एक्सप्रेशन देखकर बगल में बैठे लड़के ने आगे बैठे ड्राइवर को देखते हुए सवाल किया,
"क्या हुआ? ऐसे झटके से गाड़ी क्यों रोकी?"
"साहब, एक लड़की गाड़ी के सामने बेहोश हो गई है।" ड्राइवर ने कुछ डरते हुए जवाब दिया। उसकी बात सुनकर उस लड़के ने अपने बगल में बैठे लड़के को देखते हुए कहा,
"सर, मैं अभी देखता हूँ।"
इतना कहकर वह जल्दी से बाहर निकल गया, ड्राइवर भी उसके साथ नीचे उतर गया। उस लड़के ने लड़की की नब्ज़ चेक की और गहरी साँसें छोड़ते हुए बोला,
"बस बेहोश है।"
वह वापस गाड़ी की तरफ़ बढ़ गया और पीछे की विंडो से अंदर झाँकते हुए बोला,
"सर, लड़की बेहोश है, उसे हॉस्पिटल लेकर जाना होगा।"
उसकी बात सुनकर उस लड़के ने गुस्से से उसे घूरा और अपनी सख्त आवाज़ में बोला,
"जल्दी करो जो करना है, वक़्त नहीं है मेरे पास।"
उसकी बात सुनकर लड़का वापस लड़की की तरफ़ दौड़ पड़ा। ड्राइवर की मदद से उसने लड़की को पीछे बिठाया, फिर खुद उसे संभालकर बैठ गया। गाड़ी फिर से स्टार्ट हो गई। आगे चलकर एक रेड लाइट पर गाड़ी रुकी। तो लड़की बेहोश होने के कारण पहले वाले लड़के की तरफ़ लुढ़क गई और सीधे उसकी गोद में जा गिरी।
लड़के की आँखें गुस्से से छोटी सी हो गईं। उसने बुरी तरह से लड़की को घूरा जो उसकी गोद में बड़े आराम से लेटी हुई थी। उसके बगल वाले लड़के ने घबराकर जल्दी से लड़की को उठाया और उसे "सॉरी" बोल दिया। पहला वाला लड़का बिना किसी भाव के फ़ोन को घूरने लगा। अचानक ही वह उस लड़की की तरफ़ पलटा जिसके चाँद से सोने मुखड़े पर खिड़की से छनकर आती चाँद की रोशनी पड़ रही थी, जिससे उसका चेहरा चमक रहा था, अलग ही कशिश उसके चेहरे पर बिखरी हुई थी।
लड़का कुछ पल एकटक उसके चेहरे को देखता रहा, कुछ तो चल रहा था उसके दिमाग में पर उसके चेहरे को देखकर इस बात का अंदाज़ा लगाना थोड़ा कठिन था कि वह क्या सोच रहा था। गाड़ी सिटी हॉस्पिटल के आगे आकर रुकी। लड़का लड़की को लेकर उतरने लगा। तो पहले वाले लड़की की कड़क आवाज़ सुनकर वह रुक गया।
"तुम यही रहना इसके पास, देखना कहीं भाग न पाए। जैसे ही इसे होश आए मुझे इन्फ़ॉर्म करना।" उसकी बात सुनकर दूसरा वाला लड़का उसकी तरफ़ मुड़ते हुए बोला,
"सर, आप क्या करने वाले हैं इनके साथ?"
"कुछ ख़ास नहीं अभी के लिए, जो कहा है वो करो, बाकी बातें बाद में पता चल जाएंगी।" उसने सख्त आवाज़ में कहा। तो दूसरा लड़का सहमति जताते हुए वहाँ से चला गया। ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
वह खड़ूस अकड़ू लड़का वहाँ से जा चुका था। दूसरे लड़के ने उस लड़की को अस्पताल में एडमिट करवाया था। लड़की ने कई दिनों से कुछ खाया नहीं था; इसलिए उसके अंदर कमज़ोरी हो गई थी, जिस वजह से वह बेहोश हो गई थी। उसे ग्लूकोज़ चढ़ाया जाने लगा था। वह लड़का उस लड़की के वार्ड के बाहर ही बैठा था।
डॉक्टर ने लड़की को नींद का इंजेक्शन दिया था, इसलिए वह सुबह ही उठने वाली थी। रात के २ बजे लड़के का फ़ोन अचानक बज उठा था, और वह चौंक गया था। नंबर देखा तो बॉस लिखा आ रहा था—मतलब कि फ़ोन उस खड़ूस लड़के का था, जिसका नाम अथर्व सिंघानिया था। और दूसरा वाला लड़का उसका असिस्टेंट और सेक्रेटरी था, अर्नव।
अर्नव ने नाम देखते ही झट से फ़ोन उठाकर कहा,
"हैलो सर, इतनी रात को फ़ोन? कोई प्रॉब्लम?"
"वह जो लड़की आज रास्ते पर हमें मिली थी, उसके बारे में सारी जानकारी निकालो। मुझे कल शाम तक उसके बारे में सारी जानकारी चाहिए। और ध्यान रहे, वह लड़की वहाँ से कहीं जा न पाए।" एक बार फिर अथर्व की सख्त रौबदार आवाज़ उसके कानों में टकराई थी, और इसके साथ ही वह हैरानी से बोल पड़ा था,
"सर, आप इस मामूली सी लड़की में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं?"
"जितना कहा है उतना करो, इन फ़ालतू के सवालों के करने के पैसे नहीं देता हूँ मैं तुम्हें। चुपचाप अपना काम करो, जब वक़्त आएगा तो तुम्हें खुद सब पता चल जाएगा।" इस बार उसकी आवाज़ में गुस्सा साफ़ झलक रहा था।
अर्नव ने अपना मुँह बंद रखने में ही अपनी भलाई समझी थी और "सॉरी सर" और "ओके सर" कहकर फ़ोन काट दिया था। फ़ोन काटते ही वह खुद से बड़बड़ाया था,
"पता नहीं अब इस शैतान के दिमाग में क्या चल रहा है। बेचारी अंजान लड़की के पीछे ही पड़ गया है... छोड़ यार अर्नव... तू बस अपना काम कर, वरना वह तुझे लात मारकर अपनी कंपनी से बाहर निकाल देगा।"
उसने अपना सर झटका था और वहीं बैठे-बैठे किसी को फ़ोन करके उनसे बात करने लगा था। कुछ देर बाद उसने फ़ोन काटा था और आँखें बंद करके बैठ गया था।
अगली सुबह के छह बजे उस लड़की ने अंगड़ाई लेते हुए अपनी आँखें खोली थीं। आस-पास नज़रें घुमाते ही वह चौंक कर उठकर बैठ गई थी।
"ये मैं कहाँ आ गई?"
उसने झट से अपने कपड़े चेक किए थे। खुद को सही-सलामत देखकर उसने चैन की साँस ली थी और फिर बेड पर से नीचे उतर गई थी। ग्लूकोज़ चढ़ने से उसकी कमज़ोरी दूर हो चुकी थी और वह काफ़ी फ्रेश एंड एनर्जेटिक फ़ील कर रही थी। उसने थोड़ा याद किया था तो उसे याद आया था कि रात को वह एक गाड़ी के आगे बेहोश हो गई थी।
वह एक बार फिर आस-पास नज़रें घुमाते हुए खुद से ही बातें करने लगी थी।
"ओह! तो मैं अस्पताल में हूँ। पर आशना तेरे पास तो बिल पे करने के पैसे ही नहीं हैं। (फिर उसने रूम में नज़रें घुमाते हुए कहा था) ये रूम देखकर तो लगता है कि बहुत महँगा अस्पताल होगा। फिर तो बिल भी मोटा-तगड़ा बनेगा... भाग बेटा भाग... इससे पहले ही यहाँ कोई आ जाए और तुझे धर दबोचे, निकल जा यहाँ से।"
उसने झट से कदम गेट की तरफ़ बढ़ाए थे और जैसे ही बाहर निकली थी, बाहर काउच पर सोते अर्नव पर उसकी नज़र पड़ गई थी, पर वह वहीं लेटा सो रहा था। दरवाज़े की आवाज़ सुनकर अर्नव ने अपनी आँखें खोली थीं और गेट की तरफ़ नज़रें घुमाई थीं। सामने लड़की को देखकर वह उठकर सीधे खड़ा हो गया था। वहीं आशना ने उसे उठते देखा था तो मन ही मन बड़बड़ाया था,
"भाग आशना भाग।"
वह तेज़ कदमों से दूसरी तरफ़ बढ़ गई थी, तो अर्नव झट से उसके पीछे जाते हुए बोला था,
"हेलो, एक्सक्यूज़ मी मैडम, आप ऐसे कहाँ भागी जा रही हैं?"
आशना ने सर घुमाकर देखा था तो अर्नव उसके पीछे ही आ रहा था। यह देखकर उसने दौड़ लगा दी थी, तो अर्नव भी उसके पीछे दौड़ पड़ा था। दोनों अस्पताल के कॉरिडोर में दौड़ने लगे थे। आशना दूसरी तरफ़ घूम गई थी और सीढ़ियों से नीचे जाने लगी थी, तो अर्नव लिफ़्ट की तरफ़ बढ़ गया था।
आशना जैसे ही ग्राउंड फ़्लोर पर पहुँची थी, अपने ठीक सामने अर्नव को खड़ा देखकर उसने मुँह बिचका लिया था। तब तक अर्नव ने उसको घूरते हुए सवाल किया था,
"क्या मैं जान सकता हूँ कि सुबह-सुबह आप मुझसे यह रेस क्यों लगा रही हैं? पकड़म-पकड़ाई खेलने का मन कर रहा है मेरे साथ या ओलंपिक में भागने की प्रैक्टिस कर रही हैं?"
उसकी बात सुनकर आशना ने अपना सर झुका लिया था और मुँह लटकाकर धीरे से बोली थी,
"नहीं, वह मेरे पास पैसे नहीं हैं, आप मुझसे पैसे माँगेंगे, इसलिए मैं आपसे भाग रही थी।"
"और आपको यह किसने कहा कि मैं आपसे पैसे माँगने वाला हूँ?" अर्नव ने एक बार फिर भौंह उठाकर सवाल किया था। उसकी बात सुनकर आशना ने क्यूट सी शक्ल बनाकर कहा था,
"आपने मुझे यहाँ एडमिट करवाया था, तो अब बिल तो मुझसे ही लेंगे ना। तभी तो आप मेरे रूम के बाहर इंतज़ार कर रहे थे।"
उसकी बात सुनकर अर्नव की हँसी छूट गई थी। आशना अचरज से उसे देखने लगी थी। अर्नव ने उसके कंफ़्यूज़ एक्सप्रेशन देखे थे तो मुस्कुराकर बोला था,
"डोंट वरी, मैं बाहर इसलिए वेट नहीं कर रहा था कि अस्पताल का बिल आपसे लूँ। बल्कि मैं आपके होश में आने का इंतज़ार कर रहा था। कल रात आप मेरी गाड़ी के आगे बेहोश हो गई थीं, मैं ही आपको यहाँ लाया हूँ और अस्पताल का बिल पहले ही पे हो चुका है, तो आपको उसकी टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं है।"
"क्या सच में आप मुझसे पैसे नहीं लेंगे?" आशना का चेहरा खुशी और एक्साइटमेंट से दमक उठा था। इस बार हैरान होने की बारी अर्नव की थी। वह मन ही मन बोला था,
"अजीब लड़की है, इतनी छोटी सी बात पर इतना खुश हो रही है।"
वह यह सोच ही रहा था, तभी आशना ने आगे कहा था,
"आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जो आप मुझे यहाँ लाए। रात भर यहाँ रुककर मेरे होश में आने का इंतज़ार किया और अब मुझसे पैसे भी नहीं ले रहे।... वह मैं ना कल ही यहाँ आई थी और आते ही आपके शहर ने मुझे एक सरप्राइज़ दे दिया... वह कमीना बाइक वाला, मेरा बैग लेकर भाग गया। मेरा सब कुछ उसी में था, तो अब मेरे पास कुछ भी नहीं है। पुलिस से कहा तो है, पर जाने कब वह मेरा बैग ढूँढकर मुझे वापिस देंगे।"
यह कहते हुए आशना ने मुँह लटकाया था, तो अर्नव को बिल पे होने के नाम पर उसके इतने खुश होने की वजह समझ आई थी। साथ ही वह यह भी समझ गया था कि जो लड़की उसके सामने खड़ी है, वह बेहद मासूम है और यहाँ की नहीं है। उसका दिल बहुत ही साफ़ है, तभी उसने उसे सब बता दिया था। उसे उदास देख अर्नव ने मुस्कुराकर कहा था,
"आपका नाम क्या है?"
"आशना... और आपका?" आशना ने तुरंत ही सवाल किया था, तो अर्नव ने भी मुस्कुराकर जवाब दिया था,
"अर्नव... वैसे डॉक्टर कह रहे थे कि आपने शायद काफ़ी दिनों से कुछ खाया नहीं है, इसलिए आप कमज़ोरी के वजह से बेहोश हो गईं थीं, तो अगर आपको कोई एतराज़ ना हो तो हम अंदर चल सकते हैं। आप कुछ खा लीजिएगा और साथ में मुझे अपनी कहानी भी सुना दीजिएगा... चिंता मत कीजिए, खाने का बिल नहीं माँगूँगा आपसे।"
अर्नव ने मुस्कुराकर कहा था, तो आशना हँस पड़ी थी और हामी भरकर कमरे की तरफ़ बढ़ गई थी।
कुछ ही मिनट बाद आशना अस्पताल बेड पर बड़े शौक से आलती-पालती मारकर बैठी हुई थी। उसके सामने ट्रे में कई सारी डिशेज़ रखी थीं, जो उसी ने ऑर्डर की थीं और अब वह अपने होंठों पर जीभ फेरते हुए ललचाई निगाहों से उन्हें देख रही थी। उसकी बच्चों जैसे हरकत देखकर अर्नव मुस्कुराए जा रहा था।
जब आशना ने कुछ देर तक खाना शुरू नहीं किया था, तो अर्नव ने मुस्कुराकर सवाल किया था,
"क्या हुआ?... खाइए ना, सब आपके लिए ही है।"
आशना ने पहले उसे देखा था और वापिस खाने को देखते हुए स्पून उठा लिया था। कई दिनों से ठीक से खाना नहीं खाया था, तो अब वह खाने पर टूट पड़ी थी और जल्दी-जल्दी खाने लगी थी। इस चक्कर में उसका खाना सरक गया था और वह ज़ोर-ज़ोर से खांसने लगी थी। अर्नव ने तुरंत पानी का ग्लास उसके तरफ़ बढ़ा दिया था,
"पानी लीजिए।"
आशना ने ग्लास पकड़ा था और पानी पीने लगी थी। तब कहीं जाकर वह कुछ शांत हुई थी। अब अर्नव ने पीछे हटते हुए कहा था,
"आराम से खाइए, कोई आपसे छिनने वाला नहीं, सारा आपका ही है।"
उसकी बात सुनकर आशना ने उसे देखा था और मुस्कुरा दी थी। बदले में अर्नव ने मुस्कुराकर खाने का इशारा किया था, तो अब आशना ने उसके तरफ़ ट्रे खिसकाते हुए कहा था,
"आप भी खा सकते हैं, यह बहुत सारा है। माना कि मैंने कई दिनों से ढंग से खाना नहीं खाया है, मुझे ज़ोरों की भूख भी लगी है, पर मैं राक्षसी नहीं हूँ जो इतना सारा एक बार में खा जाऊँ।"
इतना कहकर वह अपनी ही बात पर हँस पड़ी थी। उसकी बात सुनकर अर्नव भी मुस्कुरा दिया था और इंकार करते हुए बोला था,
"जानता हूँ आप इंसान हैं और बहुत ही इनोसेंट हैं, पर मुझे सच में अभी नहीं खाना, आप खाइए और अगर चाहे तो खाते हुए मुझे अपने बारे में भी बता सकती हैं। जैसे आप कहाँ से हैं? यहाँ आने की वजह? यहाँ किसके साथ रहने वाली हैं? अपनी फैमिली के बारे में जो भी आप बताना चाहें।"
उसकी बात सुनकर आशना की मुस्कान फीकी पड़ गई थी, अगले ही पल दर्द भरी मुस्कान उसके लबों पर फैल गई थी। उसने ट्रे साइड करते हुए कहा था,
"मेरी फैमिली को मैं फैमिली नहीं मानती। मेरे हिसाब से परिवार वह होता है जिनके बीच प्यार, विश्वास और अंडरस्टैंडिंग हो। जो एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी बनें। जो आपको समझे, आपका साथ दें, अगर आप गलत हैं तो आपको समझाएँ। यहाँ लोग बस मतलब के लिए आपके साथ हों, उसे परिवार नहीं कहते? जहाँ किसी को आपके जीने-मरने, आपके सुख-दुख, आपकी मुस्कान और आँसुओं से फ़र्क ना पड़े, वह परिवार नहीं हो सकता। जहाँ कोई आपको समझता ना हो, आप सही हों या गलत, हमेशा आपको गलत ठहराया जाता हो, वह मेरी नज़रों में परिवार कहलाने के लायक है ही नहीं। फिर भी मैं आपको अपने परिवार के बारे में बता देती हूँ... हम छह लोग थे उस परिवार में। मम्मी-पापा, एक बड़ी बहन, एक छोटी बहन और छोटा भाई। बाकियों का तो पता नहीं, पर मुझे कभी अपने मम्मी-पापा का प्यार और वक़्त नहीं मिला। बचपन से कोशिश करती थी कि मैं उन्हें खुश रख सकूँ, उनके सब काम करती कि शायद वह मुझे प्यार करें, तब छोटी थी ना तो सोचती थी कि अगर किसी का काम करो तो वह आपको प्यार करता है। पर फिर धीरे-धीरे मैं बड़ी हो गई और दिमाग आया कि अगर कोई काम के वजह से आपसे प्यार करे तो वह तो प्यार है ही नहीं। फिर भी अपना फ़र्ज़ निभाती गई, जन्म दिया था उन्होंने मुझे, यह एहसान तो उतारना ही था। बचपन में ज़्यादा नहीं बोलती थी, पर मेरी ख़ामोशी बहुत कुछ कहती थी, बस कभी कोई उसको समझ नहीं सका। मुझे घमंडी का तमगा पकड़ा दिया गया, साथ बदतमीज़ भी करार दिया गया। पहले दुख होता था, बुरा लगता था... अकेले में घंटों रोती भी थी, पर कभी कोई आया ही नहीं चुप करवाने, कभी किसी ने प्यार से सर पर हाथ रखकर पूछा ही नहीं कि बच्चे क्या हुआ? तू इतनी उदास क्यों है? चुप-चुप क्यों रहती है? उन्होंने नहीं पूछा तो मैंने भी नहीं बताया, फिर धीरे-धीरे मैंने एक बात सीखी कि ज़िंदगी आँसू बहाने का नहीं, दर्द में भी मुस्कुराने का नाम है, उसके बाद मैंने खुद को पूरा बदल लिया... और अब मैं जो हूँ, जैसी हूँ, आपके सामने हूँ।"
आशना ने मोहिनी मुस्कान लबों पर बिखेरते हुए कहा था, पर अर्नव को उसकी आँखों में नमी भी नज़र आ गई थी। उसकी खुशी के लिए उसने मुस्कुराकर कहा था,
"आप यहाँ क्यों आईं? और कहाँ से हैं?"
"मैं दिल्ली से हूँ, चाँदनी चौक में मेरी फैमिली रहती है। मेरा सपना है कि मैं इंडिया की सबसे बड़ी डांस अकादमी खोलूँ। उसके लिए मैं सालों से पैसे जमा कर रही थी, पर फिर अचानक ही मेरे पापा ने मेरे सर पर शादी नाम का बम फोड़ दिया। मुझे शादी नहीं करनी थी, मैंने मना भी किया, पर लड़का बड़ी दीदी के ससुराल का लगता है, इसलिए सबने मुझे फ़ोर्स किया। मेरा घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया गया था, गुस्से में मैंने हाँ तो बोल दी थी, पर मेरा दिल नहीं माना... बहुत दिनों से मौके की तलाश में थी। परसों शादी थी मेरी, तब कमरे में सिर्फ़ मैं थी। बाकी सब काम में लगे थे, मुझे जिस मौके की तलाश थी, वह मुझे मिल गया था और मैं कुछ कपड़े और पैसे लेकर खिड़की से कूदकर भाग गई थी। रेलवे स्टेशन जाकर मुंबई की टिकट ली थी, स्टेशन पर वह पुलिस लेकर पहुँच गए थे, पर मैं बचकर भाग गई थी। कहते हैं मुंबई सपनों की नगरी है। मैं भी यहाँ अपने सपने को पूरा करने आई थी, मेरे सारे गहने, पैसे, कपड़े सब उस बैग में थे, जो वह कमीना बाइक वाला चोर लेकर भाग गया था। अब मेरे पास इन कपड़ों के अलावा कुछ भी नहीं है। सोचा तो था कि कोरियोग्राफ़र बनकर अपना करियर शुरू करूँगी, खूब पैसे कमाऊँगी। फिर अपनी अकादमी खोल लूँगी, पर मेरे सारे सपने टूट गए। अब तो पहले रहने और खाने का जुगाड़ करना पड़ेगा, उसके लिए पैसे चाहिए और उनके लिए अब मेहनत करनी पड़ेगी। यही है मेरी कहानी।"
यह कहते हुए उसने अंगड़ाई ली थी और टेबल पर रखा काँच का ग्लास ज़मीन पर गिर गया था। आशना ने घबराकर नीचे देखा था और अपना सर पीटते हुए बोली थी,
"फैल गया रायता... आशना की बच्ची, तू कभी नहीं सुधर सकती है। तेरे ना हाथ-पैरों को बाँधकर रखना चाहिए, जब देखो कुछ ना कुछ तोड़ती-फोड़ती रहती है।"
वह खुद पर ही गुस्सा करने लगी थी, तो अर्नव उसे हैरानी से देखते हुए बोला था,
"इट्स ओके, एक ग्लास ही तो था। इतना गुस्सा करने वाली क्या बात है इसमें?"
"आपको नहीं पता। अभी तक मैंने आपको अपनी सबसे बड़ी ख़ासियत तो बताई ही नहीं है ना। चाँदनी चौक में सब मुझे चलता-फिरता भूचाल कहते थे और एक नाम है मेरा, मिस तोड़-फोड़... जहाँ जाती हूँ, कुछ ना कुछ तोड़ती-फोड़ती ही रहती हूँ। चाहे कितनी ही कोशिश करूँ, पर यह आदत छूटती ही नहीं है। (अब उसने नीचे पड़े ग्लास को देखते हुए कहा था, जो टूटकर बिखर चुका था) नमूना आपके सामने है। देखिए, बैठे-बैठे मैंने इस ग्लास का अंतिम संस्कार कर दिया।"
आशना एक बार फिर नॉनस्टॉप बोले जा रही थी। वहीं अर्नव उसे देखकर सोच में पड़ गया था कि जिस लड़की के सीने में इतना दर्द छुपा हो, क्या वह ऐसी बिंदास हो सकती है? उसने अपना दिमाग झटका था, फिर आशना को देखकर बोला था,
"इट्स ओके... एक ग्लास ही था, आप खाना खाइए।"
आशना ने उसे देखा था तो उसने मुस्कुराकर खाना खाने का इशारा कर दिया था। आशना वापिस खाना खाने लगी थी।
"आप खाना खाइए, मैं एक फ़ोन करके आता हूँ।"
आशना ने उसकी बात सुनकर हाँ में सर हिला दिया था, तो अर्नव रूम से बाहर निकल गया था। उसने अथर्व को फ़ोन लगाया था और जो भी आशना ने उसे बताया था, वह सब उसे बता दिया था। अथर्व शांति से उसकी बात सुनता रहा था, उसके बाद हमेशा वाली सख्त आवाज़ में बोला था,
"अपने आदमियों से इसकी छानबीन करवाओ, कहीं झूठ तो नहीं बोल रही?"
"सर, वह लड़की बहुत मासूम है, उसकी आँखों में मैंने सच्चाई देखी है। वह अपने दिल में कुछ नहीं रखती, सब बता देती है। मुझे नहीं लगता वह झूठ कह रही है। फिर भी मैं अपने आदमियों को काम पर लगा देता हूँ। शाम तक आपको सारी सच्चाई पता चल जाएगी।"
अर्नव ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया था। उसका जवाब सुनकर अथर्व कुछ देर खामोश रहा था, फिर आगे बोला था,
"उस लड़की का ध्यान रखना।"
अर्नव ने "ओके सर" कहा था, तो अथर्व ने फ़ोन काट दिया था। बेचारा अर्नव एक बार फिर कंफ़्यूज़ हो गया था कि उसके बॉस के दिमाग में आखिर चल क्या रहा है?
आशना अर्नव से बातें कर रही थी और वह खामोशी से उसकी बातें सुन रहा था। अचानक कमरे का दरवाज़ा खुला और कुछ लोग अंदर आने लगे। आशना आँखें बड़ी-बड़ी करके उन्हें देखने लगी। उन सब ने काली वर्दी पहनी हुई थी, हाथों में कई शॉपर्स थे। उन्होंने सारे शॉपर्स वहाँ लगे सोफ़े पर रखे और अर्नव को देखकर बोले,
"सर ने अथर्व सर ने मैडम के लिए भेजे हैं और कहा है कि वह रेडी हो जाएँ।"
अर्नव पहले ही उन्हें यहाँ देखकर हैरान था, अब तो उसकी हैरानी की कोई सीमा ही नहीं थी। अपना काम करके वे सब वहाँ से चले गए। आशना ने अर्नव को देखते हुए सवाल किया,
"ये सब कौन थे?... और आपको सर क्यों कह रहे थे?... वह दूसरे सर कौन हैं और इतनी सारी चीज़ें क्यों और किसके लिए भेजी हैं?"
अर्नव खुद ही कंफ्यूज़ था। उसे क्या समझाता? पर जवाब भी तो देना था। उसने बड़े आराम से जवाब दिया,
"कल आप जिनकी गाड़ी के सामने आई थीं, वे मेरे बॉस हैं। उन्होंने ही आपको यहाँ एडमिट करवाया है और सारे बिल भी उन्होंने ही पे किए हैं। जब आप हमारी गाड़ी के सामने बेहोश हुईं, तब मैं उनके साथ था, इसलिए उन्होंने ही मुझे यहाँ आपके साथ रुकने को कहा था। ये सब शायद उन्होंने आपके लिए ही भिजवाया होगा।"
उसकी बात सुनकर आशना ने चहकते हुए कहा,
"मतलब कॉम्पेन्सेशन? मेरा कल उनकी गाड़ी से एक्सीडेंट होने वाला था?"
अर्नव ने हाँ में सर हिला दिया। आशना झट से नीचे उतरी और सोफ़े की तरफ़ दौड़ गई। उसने शॉपर्स खोलकर चेक किए। एक से बढ़कर एक डिज़ाइनर ड्रेस वहाँ मौजूद थीं, जो देखने में ही काफी महँगी लग रही थीं। मेकअप का सामान, हेयर एक्सेसरीज़, घड़ी, सब था वहाँ।
आशना आँखों में चमक लिए सब देखते हुए बोली,
"ये सब मेरे लिए हैं?"
"जी... आप फ्रेश होकर तैयार हो जाइए, मैं बाहर आपका इंतज़ार करता हूँ।" उसने बाहर जाते हुए कहा। आशना ने हाँ में सर हिला दिया। इतने कपड़ों में से उसने सबसे सिम्पल ड्रेस ली और बाथरूम में घुस गई। वह वीआईपी रूम में थी, तो यहाँ सभी सुविधाएँ मौजूद थीं। अर्नव परेशान सा बाहर टहल रहा था।
कुछ देर में अंदर से आशना की आवाज़ आई,
"आप अंदर आ सकते हैं।"
उसके कहने पर अर्नव ने गेट खोला और अंदर कदम रखा। पर दो कदम चलते ही उसके कदम रुक गए, नज़रें सामने खड़ी आशना पर ठहर गईं। आशना ने हल्के नीले और सफ़ेद रंग के कॉम्बिनेशन से बना हुआ फुल लेंथ गाउन पहना हुआ था। बालों को मैसी बन बनाया हुआ था, जिससे कुछ लटें निकलकर उसके गालों पर झूल रही थीं। कोई मेकअप नहीं था, बस नैचुरल ब्यूटी और चेरी जैसे लाल उसके पतले-पतले होंठ, जिन पर मोहिनी मुस्कान फैली हुई थी। अर्नव की नज़रें जैसे ही उस पर पड़ीं, उसकी सारी दुनिया उसी पर ठहर गई।
आशना इतनी खूबसूरत लग रही थी कि अभी अगर कोई उसे देख ले, तो हँसते-हँसते उस पर अपनी जान वार दे। बिलकुल सुन्दर सी परी लग रही थी, जो सपनों की जादुई दुनिया से निकलकर उसके सामने आकर खड़ी हो गई हो। अर्नव को ऐसे खुद को देखता पाकर आशना की भौंहें इकट्ठी हो गईं। उसने उसे घूरते हुए कहा,
"क्या है... ऐसे ताड़ क्या रहे हो?"
उसकी बात सुनकर अर्नव ने हड़बड़ाहट में उस पर से अपनी नज़रें हटाते हुए कहा,
"सॉरी... आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं... तो बस..."
"तो आपकी नज़रें मुझ पर से हट नहीं रही थीं। आई नो।" आशना ने उसकी अधूरी बात पूरी की। अर्नव असमंजस में उसे देखने लगा। आशना ने मुस्कुराकर आगे कहा, "चाँदनी चौक में भी सब यही कहते थे, पर मैं आपको बता दूँ कि मुझे यह ज़रा भी पसंद नहीं कि कोई मुझे ऐसे ताड़े।
अभी तो मैंने आपको छोड़ दिया, क्योंकि आप मुझे डिसेंट लगे, पर अगली बार ऐसा हुआ तो मेरा पंच और आपका थोपड़ा होगा, इसलिए आगे से ध्यान रखिएगा।" उसने अपना मुक्का दिखाते हुए उसे वार्निंग दी। अर्नव ने मुस्कुराकर हामी भर दी।
"शुक्रिया आपका जो आपने मेरी इस गलती को माफ़ कर दिया। आगे से यह गलती दोबारा कभी नहीं होगी, क्योंकि मुझे आपके हाथों अपनी पिटाई बनवाने का कोई शौक नहीं है।" इतना कहकर वह हँस दिया। आशना भी खिलखिला उठी। उसकी निश्छल हँसी अर्नव का ध्यान अपनी तरफ़ खींच रही थी, पर उसने खुद को संभाल लिया।
आशना हँस ही रही थी कि एक बार फिर उसके कमरे का दरवाज़ा खुला। आशना एकदम से चुप हो गई और आँखें बड़ी-बड़ी करके और मुँह खोले सामने देखने लगी। सामने गेट से काला थ्री-पीस डिज़ाइनर सूट पहने अथर्व ने अंदर कदम रखा, अपने कोट को बड़े स्टाइल से सेट करते हुए वह आशना की तरफ़ बढ़ गया। जेल से सेट किए बाल, आँखों पर काले गॉगल्स, गुलाबी पतले होंठ, गंभीर चेहरा, हाथों में ब्रांडेड घड़ी और पैरों में महँगे ब्रांडेड बूट्स। क्या कमाल का जानलेवा एटीट्यूड था उसमें... रौबदार चेहरा, दमदार पर्सनैलिटी, अकड़ से तना सीना और फिटिंग सूट से उभरकर बाहर नज़र आती उसकी बॉडी की शेप जो किसी मॉडल से कम नहीं थी।
चलने का तरीका तो और भी अलग था, क्या स्वैग था उसका, उसके आस-पास एक अलग ही आभा बनी हुई थी, जैसे कहीं का शहंशाह वहाँ पधारा हो। आशना ने आज तक इतना हैंडसम लड़का नहीं देखा था, वह आँखें फाड़े उसे देख रही थी।
अथर्व के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। अर्नव उसे वहाँ देखकर आँखें फाड़े हैरान-परेशान सा उसे देख रहा था। अथर्व आशना के सामने जाकर खड़ा हो गया, बड़े ही स्टाइल से अपने गॉगल्स उतारे और अपनी काली-काली आँखों को उसके चेहरे पर जमाते हुए बोला,
"कैसी हैं आप?"
"जी... जी... मैं ठीक हूँ, आप कौन?" उसके अचानक सवाल करने पर पहले तो आशना हड़बड़ा गई थी। फिर उसने खुद को संभाला और आखिर में उसने अपने मन में चल रहे सवाल को पूछ ही लिया। उसके सवाल को सुनकर अथर्व ने अर्नव की तरफ़ नज़रें घुमाईं। अर्नव झट से आगे आते हुए जवाब दिया,
"मैंने आपको बताया था ना, आप मेरे बॉस की गाड़ी के आगे आकर बेहोश हो गई थीं। यही हैं मेरे बॉस, मि. अथर्व सिंघानिया, सिंघानिया ग्रुप्स के सीईओ।"
अर्नव ने उसका परिचय दिया। आशना अथर्व को ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोली,
"हम्म, पर्सनैलिटी पर नाम जचता है, काफी हैंडसम भी हो, हीरो जैसी बॉडी है, अमीर घर से आते हो। तभी चलने के ढंग, बोलने के अंदाज़ में रईसी झलकती है और यह अकड़ भी खानादानी लगती है... क्यों...?"
आशना ने भौंह उठाकर अथर्व से सवाल किया। उसके बोलने के ढंग को देखकर अथर्व की भौंहें सिकुड़ गईं। वह उसे खा जाने वाली नज़रों से घूरने लगा। आशना भी उनकी आँखों में आँखें डाले उन्हें घूरने लगी।
दोनों के लड़ने वाले खतरनाक लुक्स देखकर अर्नव बीच में आते हुए मुस्कुराकर बोला,
"सर, इनका नाम आशना है।"
उसकी बात सुनकर अथर्व ने नज़रें उसकी तरफ़ घुमाईं। उसके ठंडे लुक्स और घूरती डरावनी आँखें देखकर अर्नव थूक गटककर पीछे हट गया और खामोशी से खड़ा हो गया। इतने में एक बार फिर दरवाज़ा खुला और काला कोट पहने एक आदमी अंदर आया। अर्नव चौंक गया। यह अथर्व का वकील था जो उसके सभी लीगल काम देखता था।
वह वकील अथर्व की तरफ़ बढ़ गया। अथर्व ने उसे देखे बिना ही अपना हाथ उसकी तरफ़ बढ़ाया। वकील ने कुछ पेपर्स उसकी हथेली पर रख दिए। अथर्व ने वे पेपर्स आशना की तरफ़ बढ़ा दिए। आशना असमंजस में कभी उसे तो कभी पेपर्स को देखने लगी। जब उसने पेपर्स नहीं पकड़े, तो अथर्व ने अपने दूसरे हाथ से उसकी हथेली पकड़ी और पेपर्स उसके हाथ में थमा दिए।
आशना ने पहले कंफ्यूज़ नज़रों से पेपर्स देखे, फिर सवालिया नज़रों से उसे देखते हुए सवाल किया,
"ये क्या है?"
"देखने में अनपढ़ तो नहीं लगती, तो पढ़ना आता ही होगा... खुद पढ़ लो।" अथर्व की अकड़ में ज़रा भी कमी नहीं आई थी। उसकी बात सुनकर आशना ने मुँह बनाते हुए मन ही मन कहा, "अकड़ू कहीं का, बता देता तो क्या इसकी नाक कट जाती... पर नहीं। इसे तो अपनी अकड़ दिखानी है... हूँ।"
उसने अब पेपर्स पर नज़रें डालीं। ऊपर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा शब्द पढ़कर ही उसके होश उड़ गए। वह आँखें फाड़े पेपर्स पढ़ने लगी। जैसे-जैसे वह सब पढ़ रही थी, उसके चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे। आखिर में उसने पेपर्स बेड पर पटक दिए और अथर्व को गुस्से से घूरते हुए बोली,
"क्या बकवास है यह?"
"बकवास नहीं, पेपर्स हैं हमारी शादी के... तो साइन करो इन्हें।" एक बार फिर अथर्व ने अकड़ के साथ जवाब दिया। इसे सुनकर आशना का पारा चढ़ गया, दिमाग गुस्से से भड़क उठा और वह चीखकर बोली,
"आर यू आउट ऑफ़ योर माइंड?! शादी वह भी तुमसे, मैं करूँगी... कभी नहीं। माना तुम हैंडसम हो, अमीर हो, पर मैं बिकाउ नहीं हूँ। अगर तुम मेरे बारे में कुछ उल्टा-सीधा सोच रहे हो, तो मैं तुम्हें पहले ही क्लियर कर देती हूँ। मैं उन लड़कियों में से नहीं हूँ, जो चंद पैसों के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाती हैं। हाँ, मुझे पैसे कमाने हैं, पर उसके लिए मैं खुद को बेचने को बिल्कुल तैयार नहीं हूँ...
मुझे तो हैरानी है, इतने बड़े आदमी होकर आपकी सोच इतनी छोटी कैसे हो सकती है? मतलब हद होती है किसी चीज़ की, जान-पहचान और चले हैं मुझसे शादी करने... मिस्टर, मैं गरीब हूँ, पर अपने जिस्म का धंधा करने वाली बाज़ारू लड़की नहीं हूँ... समझे?
मैं इस जन्म तो क्या अगले सात जन्मों में से किसी एक जन्म में भी तुम जैसे बदतमीज़, अकड़ू, घमंडी और इतनी घटिया सोच वाले आदमी से शादी नहीं करूँगी। अगर तुम दुनिया के आखिरी कुंवारे लड़के हो, तब भी मैं कुंवारी मरना पसंद करूँगी, पर तुमसे शादी... कभी नहीं। मैं अपनी शादी छोड़कर यहाँ क्या इसलिए आई हूँ?... अपने पेपर्स और अपनी घटिया शक्ल लो और दफ़ा हो जाओ मेरी नज़रों के सामने से। अगर तुम कुछ देर और मेरे सामने रहे, तो जाने मैं क्या कर जाऊँ तुम्हारे साथ।"
आशना बेहद गुस्से में लग रही थी, पर उसकी बातों का अथर्व पर कोई असर नहीं हुआ था। उसने पहले वकील को, फिर अर्नव को देखा। दोनों उसका इशारा समझते हुए वहाँ से बाहर जाने लगे।
आशना ने अर्नव को जाते देखा, तो उसके पीछे जाते हुए बोली,
"अरे, इस साइको आदमी के साथ मुझे अकेला छोड़कर कहाँ जा रहे हो? मुझे भी अपने साथ ले चलो।"
वह गेट तक पहुँची ही थी कि अथर्व लंबे डग भरते हुए उसकी तरफ़ आया और वह गेट खोलकर बाहर जा पाती, उससे पहले ही उसकी बाँह पकड़कर उसे पीछे खींच लिया। आशना अब उसके सामने खड़ी थी। उसने उससे अपनी बाँह छुड़ाने की कोशिश करते हुए छटपटाने लगी,
"छोड़ो मुझे... मुझे नहीं रहना तुम्हारे साथ, मुझे भी बाहर जाना है... छोड़ो मुझे।"
"तुम तब तक यहाँ से बाहर नहीं जा सकती, जब तक तुम मेरी बात ना मान लो।" एक बार फिर अथर्व की रौबदार आवाज़ वहाँ गूंज उठी। उसकी बात सुनकर आशना भड़क गई,
"नहीं मानूँगी आपकी बात और इस कमरे से बाहर भी जाऊँगी, आप मुझे रोक नहीं सकते।"
"अच्छा तो ठीक है। छूटकर दिखाओ मेरी पकड़ से, अगर तुम यह कर पाईं तो तुम आज़ाद हो और अगर तुम हार गईं तो तुम्हें मेरी बात माननी होगी।" अथर्व ने अपने ही अंदाज़ में उसके साथ शर्त रख दी। आशना चिढ़ उठी।
"चाहते क्या हैं आप मुझसे? क्यों मेरे पीछे पड़े हैं...?" वह चिढ़कर बोली। अथर्व टेढ़ा मुस्कुराया और उसके करीब जाते हुए बोला,
"तुम्हें चाहता हूँ।"
उसकी बात सुनकर आशना जड़ हो गई और आँखें फाड़े उसे देखने लगी। उसके भाव देखकर अथर्व के लबों पर शातिर मुस्कान उभर आई,
"ऐसा मुझे दुनिया को दिखाना है कि हम साथ हैं। उसके लिए तुम्हें इन कॉन्ट्रैक्ट पेपर्स पर साइन करना होगा। वैसे तो तुमने पेपर्स पढ़े हैं, फिर भी मैं तुम्हें बताना चाहूँगा कि इस कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से अगले एक साल तक तुम मेरी पत्नी बनकर मेरे साथ मेरे घर में, मेरे बेडरूम में रहोगी। इस एक साल में हम बिलकुल वैसे ही रहेंगे जैसे हर पति-पत्नी रहते हैं, इसके बदले एक साल बाद तुम्हें मेरी प्रॉपर्टी का 25% हिस्सा मिलेगा, जिससे तुम अपने सपने पूरे कर सकती हो।
इस एक साल में तुम्हें वह सब मिलेगा जिस पर मेरी पत्नी का अधिकार है, बस एक चीज़ को छोड़कर और वह एक चीज़ हूँ... मैं खुद। तुम वहाँ रह सकती हो, सब कर सकती हो, बस मेरे करीब नहीं आ सकती... डोंट वरी, मैं भी तुम्हें छूने की, तुम्हारे करीब जाने की कोशिश नहीं करूँगा। तुम्हें दुनिया और मेरी फैमिली के सामने ऐसा दिखाना होगा कि हमारे बीच सब ठीक है, हम एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं और साथ में बहुत खुश हैं। एक साल बाद कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म, उसके बाद तुम अपने रास्ते और मैं अपने रास्ते। उसके बाद तुम्हारे और मेरे बीच में कोई संपर्क नहीं होगा।
मेरे हिसाब से तुम्हें इस कॉन्ट्रैक्ट को साइन कर लेना चाहिए, क्योंकि इसमें मुझसे कहीं ज़्यादा फ़ायदा तुम्हारा है। तुम दुनिया के सामने मिसेज़ आशना अथर्व सिंघानिया बनकर जाओगी, तुम्हें नाम और शोहरत दोनों मिलेगा, आलीशान घर में रहोगी, सारे ऐशो-आराम मिलेंगे तुम्हें। फिर एक साल बाद जो पैसे तुम्हें मिलेंगे, उससे तुम अपनी ज़िंदगी फिर से शुरू कर सकती हो। अपने उस सपने को पूरा कर सकती हो जिसके लिए तुम यहाँ आई हो, पर उसे पूरा करने की औकात नहीं है तुम्हारी।
न ही तुम्हारे पास रहने का ठिकाना है, न ही खाने-पीने का ख़र्चा उठाने भर के भी पैसे हैं। मुंबई जैसे शहर में अकेली सर्वाइव नहीं कर पाओगी तुम, उस पर अब तो तुम पर मेरे 10 लाख से भी ज़्यादा का कर्ज़ है, जिसे चुका पाना तुम्हारे लिए नामुमकिन है, इसलिए तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम चुपचाप मेरी बात मान लो।"
"10 लाख से ज़्यादा का कर्ज़, मैंने आपसे कब कर्ज़ लिया?" आशना जो खामोशी से उसकी सारी बात सुन रही थी, उसकी आखिरी बात सुनकर वह आँखें फाड़े और मुँह खोले अचंभित सी उसे देखने लगी। अथर्व अब दो कदम पीछे हट गया और दुष्ट मुस्कान के साथ बोला,
"जिस रूम में तुम कल से आराम फरमा रही हो, उसका बिल 2 लाख का है, जिसे मैंने पे किया है। तुम्हारे ट्रीटमेंट पर 1 लाख रुपए ख़र्च हुए हैं।"
"पर आपकी गाड़ी से मुझे टक्कर लगी थी, तो इसके पैसे तो आप ही देंगे ना। वैसे भी मैंने तो आपको नहीं कहा था इतने महँगे अस्पताल में लेकर आने को, किसी सस्ते से अस्पताल में भी मेरा इलाज हो सकता था... आपको शौक था अपने पैसों को उड़ाने का, तो मैं क्यों आपको वे पैसे लौटाने लगी भला?"
आशना ने झट से बात साफ़ की। अथर्व ने उसे गहरी नज़रों से देखा, फिर उसके तरफ़ बढ़ते हुए बोला,
"शायद तुम्हें याद नहीं, कल तुम्हारी टक्कर नहीं हुई थी मेरी गाड़ी से। तुम मेरी गाड़ी के आगे आकर बेहोश हो गई थीं, इसलिए गलती तुम्हारी थी और पैसे भी तुम्हीं भरोगी... रही बात सस्ते अस्पताल की, तो वे मेरे स्टेटस से मैच नहीं करते। इसलिए अस्पताल का बिल भी तुम्हें ही देना होगा... और शायद तुम्हें पता नहीं, जैसे तुम मेरी गाड़ी के आगे आई थीं, अगर मैंने तुम पर केस कर दिया कि तुमने मेरी गाड़ी के आगे आकर सुसाइड करने की कोशिश की, तो तुम्हारे साथ क्या-क्या हो सकता है?"
"आप गलत बोल रहे हैं, मैं सुसाइड नहीं कर रही थी। मैं तो बेहोश हो गई थी।" आशना ने घबराकर झट से कहा। उसकी बात सुनकर अथर्व ने शैतानी मुस्कान के साथ कहा,
"हम्म, पर यह तो तुम जानती हो, मैं जानता हूँ... पर पुलिस तो उसी को सच मानेगी ना जो मैं उन्हें बताऊँगा?"
"यू... शर्म नहीं आती तुम्हें मुझे धमकाते हुए?" आशना बमुश्किल अपने गुस्से को कंट्रोल कर रही थी। अथर्व पर इसका भी कोई असर नहीं हुआ, वह आगे बोला,
"तुम्हीं ने तो कहा कि मैं बदतमीज़ हूँ, तो अब देखो मेरी बदतमीज़ी... हाँ, मैं आगे बताना तो भूल ही गया।" अब उसने गहरी निगाहों से उसके दूध से गोरे बदन को देखते हुए कहा, "जिन प्रोडक्ट्स को इस्तेमाल करके तुम इतना चमक रही हो ना, वे प्रोडक्ट्स ही 5 लाख से ज़्यादा के हैं, जिनके पैसे अब तुम्हें मुझे देने हैं।"
"अरे... पर मैंने तो कुछ इस्तेमाल ही नहीं किया, फिर मैं क्यों दूँगी उसके पैसे? मुझे किसी प्रोडक्ट्स की ज़रूरत नहीं है, मेरी स्किन वैसे ही बहुत अच्छी है।" आशना ने झट से कहा। उसकी बात सुनकर अथर्व शॉक हुआ कि उसने कुछ इस्तेमाल नहीं किया। उसकी स्किन नैचुरली इतनी गोरी, चमकदार और मुलायम है। फिर उसने अपना ध्यान उस पर से हटाया और तिरछी मुस्कान के साथ बोला,
"ठीक है, तुमने प्रोडक्ट्स इस्तेमाल नहीं किए, पर यह जो ड्रेस पहने तुम मेरे सामने तनकर खड़ी हो ना, इसकी अकेले की कीमत 5 लाख से ज़्यादा है और तुमने इसे पहना हुआ है, तो इसके पैसे तो तुम्हें देने होंगे।"
"पाँच लाख की ड्रेस!" आशना का मुँह हैरानी से खुला का खुला रह गया और वह आँखें फाड़े उसे देखने लगी, जबकि अथर्व शातिर मुस्कान लबों पर सजाए उसे देख रहा था।
"पाँच लाख की ड्रेस!" आशना का मुँह हैरानी से खुला रह गया, और वह आँखें फाड़कर उसे देखने लगी, जबकि अथर्व शातिर मुस्कान लिए उसे देख रहा था।
"शाम तक का वक़्त है तुम्हारे पास, अच्छे से सोच लो। दो रास्ते हैं तुम्हारे पास...या तो तुम इस कॉन्ट्रैक्ट पर साइन करोगी, या फिर शाम तक मेरे सारे पैसे तैयार रखना। क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ, तो यहाँ पुलिस आएगी और तुम अपनी सारी ज़िन्दगी जेल की चारदीवारी में बिताओगी।...चॉइस इज़ योर्स... मेरे साथ मेरी पत्नी बनकर ऐशो-आराम की ज़िन्दगी बिताना चाहती हो या जेल में कैदी बनकर अपनी ज़िन्दगी बर्बाद करना चाहती हो।"
वह शातिर मुस्कान के साथ वहाँ से निकल गया। आशना मुँह खोले और आँखें फाड़कर उसे देखती ही रह गई। बाहर निकलते ही अथर्व ने अर्नव को आशना पर नज़र रखने को कहा और वकील के साथ वहाँ से निकल गया।
आशना थके कदमों से बेड की ओर बढ़ी। उसने काँपते हाथों से उन कागज़ात को उठाया ही था कि कमरे का दरवाज़ा खुला और अर्नव अंदर आ गया। जैसे ही वह एक कदम अंदर आया, एक उड़ता हुआ तकिया सीधे उसके मुँह पर लगा। वह संभल पाता उससे पहले ही एक और तकिया उसकी ओर आया, पर उसने उसे पकड़ लिया और हैरानी से सामने देखा। आशना हाथ में वज़नदार चीज़ पकड़े खड़ी थी। शायद गुस्से में उसे भी फेंकने की तैयारी में थी। उसने फेंकने के लिए हाथ ऊपर उठाया तो अर्नव अपने सर को हाथों से ढँकते हुए चीखा, "इसे मत फेंकना! मेरा सर फूट जाएगा!"
उसकी बात सुनकर आशना ने वज़नदार चीज़ गुस्से में टेबल पर पटक दी और चिल्लाकर बोली, "क्यों किया आपने मेरे साथ ऐसा?...मैंने आपको अच्छा इंसान समझकर अपने बारे में सब बता दिया, और आपने सारी बात उस राक्षस को बता दी। आप जानते थे कि वह मुझसे हर चीज़ की कीमत वसूलेंगे, फिर क्यों लाए मुझे इतने बड़े अस्पताल में?...पहले क्यों नहीं बताया मुझे कि इन चीज़ों की कीमत मेरी ज़िन्दगी है? क्यों नहीं बताया मुझे कि इनके बदले मुझे खुद को बेचना होगा?...अब मैं क्या करूँगी? कहाँ से लाऊँगी इतने पैसे?"
उसका गला भर आया, आँखों में आँसू भर आए। उसके दर्द को महसूस करते हुए अर्नव ने सर उठाकर उसे देखा। आशना थकी हुई, मायूस सी ज़मीन पर बैठ गई थी। जाने उसकी उदासी देखकर क्यों अर्नव को अच्छा नहीं लगा, वह भागकर उसके पास आया, पर वह उसे छू पाता उससे पहले ही आशना उठकर खड़ी हो गई और गुस्से से बोली,
"छूना मत मुझे...सब समझ गई हूँ मैं...ये सब आप दोनों ने मिलकर प्लान किया, मुझे अपने जाल में फँसाने के लिए...पर मैंने आपका क्या बिगाड़ा है जो आप मेरे साथ ऐसे कर रहे हैं?"
उसकी आँखों से दो बूँद आँसू उसके गालों पर लुढ़क गए। अर्नव ने आगे आकर झट से उसके आँसुओं को पोछते हुए कहा,
"आशना, मेरा विश्वास करो, मुझे नहीं पता बॉस क्या करने वाले थे। मैं तो यह भी नहीं जानता कि यहाँ ऐसा क्या हुआ है जो तुम मुझ पर इतना गुस्सा कर रही हो। मैंने इंसानियत के नाते तुम्हारा ध्यान रखा था, इसमें मेरा कोई स्वार्थ नहीं छुपा था।"
"अच्छा, तो आप कहना चाहते हैं कि आपको नहीं पता कि आपके बॉस ने मुझसे क्या कहा है और क्यों मैं इतना गुस्सा कर रही हूँ?" आशना ने गुस्से में उसका हाथ झटकते हुए सवाल किया। अर्नव ने मासूम चेहरा बनाए नासमझी से उसे देखने लगा,
"मुझे सच में कुछ नहीं पता। हुआ क्या है?...तुम इतने गुस्से में क्यों हो? क्या कहा सर ने आपको? मुझे बताओ तो सही, तभी तो मुझे कुछ पता चलेगा।"
आशना ने उसकी आँखों में सच्चाई देखी तो कुछ शांत हुई और उसे जो अंदर कमरे में हुआ सब बता दिया। फिर आगे बोली,
"आपके सर मुझे धमकी देकर गए हैं कि अगर मैंने इन पेपर्स पर साइन नहीं किए तो वह मुझे जेल भेज देंगे, क्योंकि उनको लौटाने के लिए तो मेरे पास एक रुपया भी नहीं है।"
उसने पेपर्स दिखाते हुए कहा तो अर्नव ने शक भरी नज़रों से उन पेपर्स को देखते हुए कहा, "क्या लिखा है इन पेपर्स में?"
"लीजिए और खुद पढ़िए और देखिए अपने बॉस की वाहियात हरकत का नमूना।" आशना एक बार फिर गुस्से में थी। उसने पेपर्स उसके हाथ में थमा दिए। जैसे-जैसे अर्नव पेपर्स पढ़ रहा था, उसके चेहरे का रंग उड़ता जा रहा था। अजीब सी उदासी, बेबसी और दर्द झलकने लगा था उसके चेहरे पर। उसने पेपर्स पढ़ने के बाद अपनी आँखें बंद कर लीं, फिर खुद को संयमित करते हुए सब बातों के बारे में सोचने लगा। आशना उसी को देखे जा रही थी।
कुछ देर बाद उसने अपनी आँखें खोली और उसे देखते हुए बोला, "मेरे हिसाब से आपको पेपर्स साइन कर देने चाहिए। (उसके इतना कहते ही आशना ने हैरानी से उसे देखा तो अर्नव ने उसे समझाते हुए आगे कहना शुरू किया) इससे आपको रहने के लिए सेफ़ जगह मिल जाएगी, एक साल बाद जब आप उनसे अलग होंगी तो आप उनसे मिले पैसों से अपना सपना पूरा कर सकती हैं।
वैसे भी अभी आपके पास कुछ भी नहीं है। मुंबई जैसे शहर में ऐसे बिना किसी ठिकाने के घूमना ठीक नहीं है। आप अकेली हैं, सुन्दर हैं और जवान हैं...ऐसे में आप खुद ही समझदार हैं, यह सोचने के लिए कि यह शहर आपके लिए कितना सेफ़ है। फिर आप अपना घर छोड़कर आई हैं, वापिस जाने के रास्ते भी बंद हो चुके हैं। अपना सपना पूरा करने के लिए आप यहाँ आई हैं और इस शादी की डील से आप अपने सपने को पूरा कर सकती हैं। एक बार सोचकर देखिए इस नज़रिए से, यह डील आपके लिए नुकसानदायक तो नहीं है।"
"आप पागल हो गए हैं! अगर मुझे शादी ही करनी होती तो मैं घर से भागकर यहाँ आती क्यों?" आशना ने उसकी बात सुनकर गुस्से में कहा, पर अर्नव ने बड़े आराम से जवाब दिया,
"क्योंकि आपको अपना सपना पूरा करना था और यह शादी आपके सपनों को मंज़िल तक पहुँचाने का एकमात्र रास्ता है। सर ने कहा है तो वह इस एक साल के दौरान कभी आपके करीब नहीं आएंगे, आप एकदम सेफ़ रहेंगी उनके साथ। वैसे भी सर को लड़कियों और शादी में कोई दिलचस्पी नहीं है। वह तो फैमिली प्रेशर के वजह से, वह कॉन्ट्रैक्ट मैरिज करने के लिए तैयार हुए हैं क्योंकि अगर अगले दो दिनों में उन्होंने किसी अच्छी सी लड़की से शादी नहीं की तो उनके दादा जी अपनी सारी प्रॉपर्टी ट्रस्ट में दे देंगे। उन्हें इस जायदाद का एक पैसा भी नहीं मिलेगा।
मजबूरी में उन्हें यह तरीका अपनाना पड़ा। अभी आप उन्हें नहीं जानतीं, वह सख्त दिखते हैं पर बुरे नहीं हैं, अपने एम्प्लॉयीज़ का अपने परिवार की तरह ध्यान रखते हैं। हर रिश्ते का आदर करते हैं, बस एक ही प्रॉब्लम है उनकी, जबसे उनकी एक्स-गर्लफ्रेंड से उनका ब्रेकअप हुआ है, उसके बाद से उन्होंने लड़कियों की तरफ़ देखना भी छोड़ दिया है। 27 के हो गए हैं पर शादी करने के नाम से ही उस जगह से भाग जाते हैं, इसलिए दादा जी ने यह रास्ता निकाला है। मुझे लगता है कि आपको पेपर्स साइन कर देने चाहिए। बस एक साल की बात है, उसके बाद आप दोनों के रास्ते अलग-अलग हो जाएँगे। आप अपनी ज़िन्दगी अपनी मर्ज़ी से जी सकेंगी।"
"आपकी सब बात ठीक है, पर कॉन्ट्रैक्ट मैरिज...शादी कोई खेल तो नहीं जो आज की और कल तोड़ दी। वह दुनिया के सामने मुझे अपनी पत्नी के रूप में लाना चाहते हैं, एक साल बाद जब हम अलग होंगे, उसके बाद मेरा क्या होगा? उन्हें तो कोई कुछ नहीं कहेगा, आखिर वह इतने अमीर हैं, उन पर उंगली उठाने की हिम्मत कोई कैसे कर सकता है, पर मेरा क्या? मेरे ऊपर तो छोड़-छाड़ी हुई औरत का ठप्पा लग जाएगा, मेरी तो पूरी ज़िन्दगी बर्बाद हो जाएगी।"
आशना कुछ परेशान सी बोली। उसकी बात सुनकर अर्नव ने उसकी ओर घुमाया। अर्नव ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा,
"नहीं होगी आपकी ज़िन्दगी बर्बाद। मैं आपसे वादा करता हूँ, मैं किसी दूसरी जगह आपको सेटल करवा दूँगा, आपको जब भी ज़रूरत होगी मैं आपकी मदद के लिए मौजूद रहूँगा। अगर कोई और रास्ता होता तो मैं आपको यह करने कभी नहीं कहता, पर मैं सर को बहुत अच्छे से जानता हूँ, अगर उन्होंने कुछ करने की ठान ली तो चाहे उन्हें कुछ भी क्यों न करना पड़े, वह उसे करके ही रहेंगे। मैं गारंटी लेता हूँ सर आपके साथ कुछ गलत नहीं करेंगे और उनसे अलग होने के बाद भी मैं आपके साथ कुछ गलत नहीं होने दूँगा।"
उसकी बात सुनकर आशना खुद से ही बोली, "उस राक्षस के साथ एक घर में, एक कमरे में मैं कैसे रह पाऊँगी?...और वह तो इतना हैंडसम है, अगर उसके साथ रहते-रहते मुझे उससे प्यार हो गया तो मेरा क्या होगा?...कोई नहीं समझ सकता इन बातों को। वह तो एक साल बाद मुझे छोड़ देंगे, अपनी लाइफ में खुश रहेंगे, पर मैं...मेरा क्या होगा? उनसे नाम जुड़ने के बाद उनसे अलग होकर अलग ज़िन्दगी बिताना बिलकुल आसान नहीं होगा।"
वह यही सब सोचती रही। अर्नव वहाँ से बाहर निकल गया। उसकी आँखों में नमी थी। उसने अपना हाथ दीवार पर मार दिया और गुस्से से मन ही मन बोला,
"आशना ही क्यों?...वैसे ही उसकी ज़िन्दगी में खुशियाँ नहीं हैं। अब सर ने एक और मुसीबत खड़ी कर दी है उसके लिए। यह सब जितना आसान सर के लिए है, उतना आशना के लिए नहीं होगा। वह एक आम लड़की है जिसके कुछ सपने हैं और सर उसके सपनों का गला घोंट रहे हैं। यह गलत है, इस तरह किसी को मजबूर करना ठीक नहीं है।"
उसको पता था यह गलत है, पर वह मजबूर था। अपने बॉस के ख़िलाफ़ जाता भी तो कैसे? ऊपर से उसे आशना पसंद थी, और अब अचानक जो अथर्व ने कहा, उसके बाद बेचारे का दिल टूट गया था। भले ही समझौते की शादी होने वाली थी, पर अब आशना उसके बॉस की वाइफ़ बनने वाली थी। यह सोचकर ही उसे बहुत अजीब फ़ील हो रहा था, हालाँकि अभी वह अपने एहसासों को कोई भी नाम देने में असमर्थ था। दोनों दो जगह बैठे अपनी-अपनी उलझनों के बारे में सोचते रहे। सुबह से शाम हो गई, न अर्नव अंदर जाने की हिम्मत कर पाया, न आशना बाहर आई। शाम के पाँच बजे एक बार फिर अथर्व ने वहाँ कदम रखा, तो उसे देखकर अर्नव उठकर खड़ा हो गया। अथर्व ने इशारों में ही सवाल किया तो अर्नव ने अंदर जाने का इशारा कर दिया। अथर्व ने दरवाज़ा खोला और अंदर कदम रखा तो आशना की गुस्से भरी लाल आँखें दरवाज़े की ओर उठ गईं। सामने अथर्व को देखते ही उसने नफ़रत से अपनी नज़रें फेर लीं। अथर्व तिरछा मुस्कुराया, फिर उसके तरफ़ बढ़ते हुए बोला:
"तुम्हारा टाइम ख़त्म हुआ। अब बताओ क्या फ़ैसला है तुम्हारा? मेरी पत्नी बनना चाहोगी या पुलिस को फ़ोन करूँ? क्योंकि पैसे देने की औक़ात तो तुम्हारी है नहीं।"
"मि. अथर्व सिंघानिया, मुझसे जुबान संभालकर बात करें! भले ही मेरे पास पैसे नहीं हैं, पर सेल्फ़ रिस्पेक्ट मेरी भी है। वैसे भी अभी मुझसे कहीं ज़्यादा ज़रूरत आपको मेरी है, तो बेहतर होगा कि आप मेरे साथ तमीज़ से बिहेव करें।" आशना गुस्से में गरजी और उसे घूरने लगी। उसकी बात सुनकर अथर्व ने शातिर मुस्कान के साथ उसे देखते हुए कहा:
"इम्प्रेसिव! लग तो रही हो तुम मेरी पत्नी कहलाने के लायक। सही कहा तुमने, अभी मुझे तुम्हारी ज़रूरत है, पर इसे थोड़ा और करेक्ट किया जा सकता है। तुम्हें मेरी ज़रूरत है और मुझे तुम्हारी। तो डील साइन करते हैं, दोनों खुश रहेंगे और दोनों का काम हो जाएगा। जो मुझे चाहिए वह मुझे मिल जाएगा और जो तुम्हें चाहिए वह तुम्हें। तो बोलो, डील मंज़ूर?"
"हाँ, पर मेरी कुछ शर्तें हैं।" आशना ने जवाब दिया तो अथर्व टेढ़ा मुस्कुराया, फिर उसे आगे बोलने का इशारा कर दिया:
"पहली शर्त, अगर इस एक साल के दौरान आपने कभी भी अपना वादा तोड़ा और मेरे करीब आने की कोशिश की, तो यह डील उसी वक़्त टूट जाएगी, मैं उसी वक़्त आपके घर और आपकी ज़िन्दगी से दूर चली जाऊँगी और आपके प्रॉपर्टी के 25% पर तब भी मेरा हक़ होगा।"
"मंज़ूर। क्योंकि मैं तुम्हारे करीब आने की कोशिश करूँ, यह नामुमकिन है।" अथर्व ने दृढ़ विश्वास के साथ जवाब दिया, तो आशना ने मुस्कुराकर आगे कहा:
"यह तो वक़्त बताएगा कि क्या मुमकिन है और क्या नामुमकिन है। चलिए, छोड़िए। मेरी दूसरी शर्त है कि जब तक हम साथ हैं, आप मेरे पर्सनल मैटर में दख़ल बिलकुल नहीं देंगे। हम साथ रहेंगे, पर एक-दूसरे की ज़िन्दगी में घुसने की कोशिश भी नहीं करेंगे।"
"मंज़ूर। आगे।"
"हमारे अलग होने के बाद हमारे सभी कनेक्शन ख़त्म हो जाएँगे, आप लौटकर कभी मेरी ज़िन्दगी में नहीं आएंगे और आपकी वजह से मुझे आगे कोई दिक़्कत नहीं होनी चाहिए, यह इंश्योर करना आपकी ज़िम्मेदारी है।"
"डन। आगे।"
"ना ही आप मीडिया के सामने, ना ही अपने परिवार के सामने मेरे करीब आने की कोशिश करेंगे, आपको मुझसे एक दूरी बनाकर रखनी होगी।"
"मैं तुम्हारे उतना ही करीब आऊँगा जितना कि उन्हें यह विश्वास दिलाने के लिए ज़रूरी होगा कि हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं और अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी में बेहद खुश हैं।" अथर्व ने अपने हिसाब से आशना की शर्त में मॉडिफिकेशन कर लिया, फिर उसे आगे बोलने का इशारा किया, तो उसने आगे कहा:
"हमारी शादी सिर्फ़ इन पेपर्स तक ही सीमित रहेगी, मैं वह फेरों वाली शादी नहीं करूँगी आपके साथ, जब यह नाटक है, तो इसे नाटक ही रहने दीजिए।"
"यह कोई नाटक नहीं है, हमारी कॉन्ट्रैक्ट मैरिज होगी, पर मैरिज तो होगी ही। तुम मेरी पत्नी बनकर मेरे साथ रहोगी। नॉर्मल शादी और इस शादी में फ़र्क़ बस इतना होगा कि हमारे बीच वह सब नहीं होगा जो नॉर्मल पति-पत्नी के बीच होता है और यह शादी एक साल बाद ख़त्म हो जाएगी, पर शादी पूरे रस्मों-रिवाज़ के साथ होगी, क्योंकि मुझे अपनी फैमिली को हमारी शादी की वीडियो दिखानी होगी, वरना वे मुझ पर विश्वास नहीं करेंगे।" अथर्व ने अपनी बात उसके सामने रख दी। आशना कुछ पल खामोश रही, फिर उसने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा:
"मेरी आखिरी शर्त है कि अगर...अगर इस एक साल में हमारे बीच गलती से भी वह सब होता है...चाहे वह किसी की भी गलती के वजह से हो...अगर वह सब होता है और उसके वजह से मैं...(फिर अपने माथे पर आए पसीने को अपनी हथेली से पोंछते हुए धीरे से बोली) प्रेग्नेंट...होती हूँ, तो...उस बच्चे पर सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा अधिकार होगा।"
अथर्व खामोशी से उसकी बात सुन रहा था। उसका घबराया हुआ चेहरा, इधर-उधर नाचती निगाहें, सुखते गले से तर करने की उसकी कोशिश में गले पर लगातार होते कंपन को वह महसूस कर रहा था और उसकी गहरी निगाहें आशना पर टिकी हुई थीं। आशना ने अपनी आँखें भींचकर किसी तरह अपनी बात पूरी की। उसके चुप होते ही अथर्व ने उसे घूरते हुए कहा:
"तो तुम मेरे साथ बच्चे पैदा करने की प्लानिंग कर रही हो?"
उसकी बात सुनकर आशना ने हड़बड़ाते हुए अपनी आँखें खोली और घबराकर बोली:
"नहीं! मेरा ऐसा मतलब नहीं था! न ही मैं ऐसी कोई प्लानिंग कर रही हूँ! वह मूवीज़ में होता है ना, साथ रहते-रहते गलती हो जाती है। बस इसलिए मैं पहले ही क्लियर कर रही थी।"
"वैसे तो ऐसा कभी होगा नहीं, तुम्हारा तो पता नहीं, पर मैं अपनी बात का पक्का हूँ। फिर भी तुम्हारी तसल्ली के लिए मैं तुम्हें यह क्लियर कर देता हूँ। अगर इस एक साल के दौरान हम दोनों में से किसी को भी दूसरे से प्यार हो गया, तो यह कॉन्ट्रैक्ट उसी वक़्त कैंसिल हो जाएगा। अगर हमारे बीच कुछ होता है और उसके वजह से तुम प्रेग्नेंट होती हो, तो उस बच्चे पर मेरा अधिकार होगा, क्योंकि उसके अंदर मेरा खून होगा। वह हमारे खानदान का वारिस होगा, इसलिए तुम उसे अपने साथ नहीं ले जा सकतीं। हाँ, तुम उससे जब चाहो मिल पाओगी, इतना अधिकार होगा तुम्हें।" उसने बड़े आराम से अपनी बात कही, पर उसके चुप होते ही आशना एकदम से बोली:
"यह गलत है! उस बच्चे को जन्म मैं दूँगी तो उस पर मेरा अधिकार आपसे ज़्यादा होगा। वह मेरा बच्चा होगा, तो मैं आपको अपना बच्चा क्यों दूँगी?"
"चलो, फ़ेयर डील करते हैं। अगर हम फ़्यूचर में कभी इंटीमेट होते हैं, तो जो उसकी पहल करेगा, बच्चा उसे नहीं, दूसरे वाले को मिलेगा। यह एक सज़ा होगी उसके लिए, क्योंकि उसने पहले कॉन्ट्रैक्ट का रूल ब्रेक किया होगा। अब अगर तुम्हारी शर्तें पूरी हो गई हों, तो कॉन्ट्रैक्ट साइन करो, और भी बहुत काम है मेरे पास करने को।" अथर्व की बात सुनकर आशना सोच में पड़ गई। उसे अपनी सोच में गुम देखकर अथर्व उसके पास आ गया और उसके कान के पास अपने होंठ ले जाते हुए धीमी आवाज़ में बोला:
"क्या हुआ? विश्वास नहीं है खुद पर?"
उसकी बात सुनकर आशना ने हड़बड़ाते हुए पीछे हटते हुए कहा:
"क्यों नहीं है? बिलकुल है! मुझे खुद पर पूरा विश्वास है।"
"तो कॉन्ट्रैक्ट साइन करें?" अथर्व ने पेपर्स दिखाते हुए पूछा, तो आशना ने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा:
"पेन?"
अथर्व ने अपनी कोट की अंदर वाली पॉकेट से पेन निकालकर उसकी हथेली पर रख दिया। आशना ने पेपर्स साइन करके पेन और पेपर्स उसे पकड़ा दिए। अथर्व ने उन पर साइन किया, फिर उसे देखकर मुस्कुराकर बोला:
"आज से, अभी से तुम ऑफ़िशियली मेरी वाइफ़ हो। मिसेज़ आशना अथर्व सिंघानिया।"
उसकी मुस्कान देखकर आशना बस उसे देखती ही रह गई। अब तो वह और भी ज़्यादा आकर्षक लग रहा था। अथर्व ने उस पर ध्यान नहीं दिया और पेपर्स अपने कोट की पॉकेट में डालते हुए बोला:
"सामान उठाओ और मेरे साथ चलो। आज से तुम मेरे साथ मेरे घर में रहोगी। कल सुबह हम शादी करेंगे और रात को तुम मेरे साथ मेरे घर जाओगी, मेरी फैमिली से मिलोगी।"
उसकी बात सुनकर आशना ने हाँ में सिर हिला दिया। अथर्व बाहर निकल गया और अर्नव को देखकर बोला:
"उसे और सामान को लेकर आओ, और कल सुबह शादी होगी, तो उसकी सारी तैयारियाँ करना तुम्हारी ही ज़िम्मेदारी है। शादी मेरे जुहू वाले बंगले में ही होगी, बाहर का कोई नहीं आएगा, पर पूरी शादी की वीडियो शूट होगी।"
शादी की बात सुनकर अर्नव का दिल टूट गया, पर उसने खुद को संभाला और "ओके सर" कह दिया। अथर्व वहाँ से चला गया। अर्नव ने एक गहरी साँस ली, फिर गेट खोलकर अंदर कदम रखते हुए बोला:
"मैम, सर ने आपको बुलाया है।"
उसकी आवाज़ सुनकर आशना, जो सामान उठा रही थी, उसने उसे देखा, फिर मुस्कुराकर बोली:
"मैम कहने की ज़रूरत नहीं है, आशना ही कहिए, अच्छा लगता है। वैसे भी इस रिश्ते की उम्र बहुत छोटी है और मैं आपके साथ ऐसा रिश्ता बनाना चाहूँगी जो सारी ज़िन्दगी मेरे साथ रहे।"
उसकी बात सुनकर अर्नव उसे हैरानी से देखने लगा, तो आशना ने सामान छोड़ा और उसके पास आ गई। फिर उसने उसके आगे अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा:
"आज तक मेरा कोई दोस्त नहीं बना, कोई मिला ही नहीं जो मेरी दोस्ती के पैमानों पर खरा उतर सके, पर आप मेरी हर एक्सपेक्टेशन पर खरे उतरे हैं। कहिए, दोस्ती करेंगे मुझसे? और एक बार हाथ मिलाने से पहले अच्छे से सोच लीजिए, एक बार अगर हाथ थाम लिया तो ज़िन्दगी भर हर मुश्किल में मेरा साथ देना होगा। बीच रास्ते में साथ छोड़कर भाग नहीं पाएँगे।"
उसकी बात सुनकर अर्नव के लबों पर बड़ी सी मुस्कान फैल गई। उसने उसके हाथ को थामते हुए मुस्कुराकर कहा:
"वादा रहा, ज़िन्दगी के हर मोड़ पर आप मुझे अपने साथ खड़ा पाएँगी।"
"ऐसे ही मुस्कुराते रहा कीजिए, अच्छे लगते हैं। (फिर उसने धीमी आवाज़ में फुसफुसाते हुए कहा) एक सीक्रेट बताऊँ, जब आप मुस्कुराते हैं ना, तो आप अपने बॉस से भी ज़्यादा हैंडसम लगते हैं। वह तो हमेशा सड़ी शक्ल बनाकर घूमते रहते हैं, जैसे किसी ने उन्हें सज़ा सुनाई हो कि गलती से भी लब हल्के से खींचने नहीं चाहिए, वरना काला पानी की सज़ा मिल जाएगी।" उसकी बात सुनकर अर्नव हँस पड़ा, साथ ही आशना भी खिलखिला उठी। अर्नव ने सारे शॉपिंग बैग उठाए, फिर मुस्कुराकर बोला:
"चले?"
आशना ने झट से हाँ में सिर हिला दिया और दोनों वहाँ से निकल गए।
Coming soon..........
आशना अथर्व के साथ उसके घर पहुँची। अर्नव दूसरी गाड़ी में चला गया था; उसे बहुत काम करने थे और वक़्त कम था। आशना उस बड़े से महल को आँखें फाड़कर देख रही थी। सच में, वह एक राजकुमार ही तो था जो इस आलीशान महल में रहता था जहाँ सभी सुख-सुविधाएँ मौजूद थीं। उस बड़े से पैलेस में हर चीज़ एंटीक थी; आखिर वह बहुत अमीर भी तो था। आशना अथर्व के पीछे चल रही थी और लगातार नज़रें घुमाते हुए सब कुछ देख रही थी।
उनके अंदर आते ही वहाँ मौजूद नौकर इकट्ठे होकर आपस में बातें करने लगे; आखिर पहली बार अथर्व किसी लड़की को अपने साथ लेकर आया था। अथर्व ने उन्हें देखा तो आशना की हथेली थामकर उसे अपने बराबर में खड़ा कर लिया और तेज आवाज़ में बोला:
"सबके सब यहाँ आओ! छुपकर बातें करने की ज़रूरत नहीं है!"
उसकी आवाज़ सुनकर सब नौकर बुरा फँसे थे; आखिर उनकी चोरी जो पकड़ी गई थी। वे घबराते हुए सामने आकर खड़े हो गए, तो अथर्व ने एक बार फिर अपनी रौबदार आवाज़ में कहा:
"आज सबको यहाँ बुलाया गया है क्योंकि आपको एक बहुत ही ख़ास शख़्स से मिलवाना है।"
सबकी नज़रें आशना पर अटकी हुई थीं। एक तो वह इतनी सुंदर और कोमल लग रही थी, जैसे इस दुनिया की हो ही ना, ऊपर से अथर्व ने उसका हाथ थामा हुआ था। आशना को सबकी नज़रों से घबराहट होने लगी, तो वह उसके हाथ से अपनी हथेली खींचने लगी। उसके ऐसा करते ही अथर्व ने उसे घुरा, तो वह एकदम शांत हो गई। अथर्व ने अब बाकियों को देखकर आगे कहा:
"इनसे मिलिए, यह है आपकी मैडम। आज से यह यहीं रहेंगी और जो काम होगा, इनसे पूछकर होगा। इन्हें किसी किस्म की कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए, इसका ख़ास ध्यान रखा जाए।"
फिर उसने वहाँ सबसे आगे खड़ी आंटी को देखकर कहा:
"काकी, यह मेरी पत्नी है, आशना। आपको इनकी ज़िम्मेदारी सौंपता हूँ। ध्यान रखिएगा कि मैं यहाँ रहूँ या ना रहूँ, इन्हें किसी चीज़ की परेशानी नहीं होनी चाहिए।"
उसकी बात सुनकर वह काकी मुस्कुरा उठी। वह आशना के पास आ गई, फिर प्यार से उसके गाल को छूकर बोली:
"तो आखिर आपने शादी कर ही ली। चलिए, अच्छा है। अब आप भी अपना परिवार शुरू कर सकेंगे। वैसे, आपकी पसंद करोड़ों में एक है। इतनी खूबसूरत परी हमने आज तक नहीं देखी।"
उनकी बात सुनकर आशना को कुछ समझ नहीं आया कि वह क्या करे, तो उसने झुककर उनके पैर छूने चाहे, पर काकी पीछे हट गईं और हड़बड़ाते हुए बोलीं:
"यह क्या कर रही हैं आप?"
"आशीर्वाद ले रही हूँ आपका। आप मुझसे बड़ी हैं ना, और इन्होंने आपको काकी कहा, इसका मतलब हुआ कि आप उनके माँ के समान हैं और मैं इनकी पत्नी, तो आप मेरी भी माँ हुईं ना, तो क्या अपनी बेटी को आशीर्वाद नहीं देंगी आप?"
उसने इतनी सौम्यता से अपनी बात कही कि काकी के लबों पर मुस्कान सज गई। आशना ने उनके चरण स्पर्श कर लिए, तो उन्होंने उसके सर पर हाथ रखकर मुस्कुराकर कहा:
"सदा सुहागन रहो, भगवान आपकी हर मनोकामना पूरी करे और आपकी मुस्कान हमेशा यूँ ही बनी रहे।"
आशना अब उठकर खड़ी हो गई, फिर हाथ जोड़कर बाकियों को नमस्ते किया, तो सब हैरानी से एक-दूसरे को देखने लगे, फिर उन्होंने भी मुस्कुराकर सर झुकाकर उसे नमस्ते कर दिया। अथर्व आशना को एकटक देख रहा था। वहीं काकी भी उसे देखकर मुस्कुरा रही थीं।
"बेटा, इतनी समझदार और सीधी लड़की कहाँ से मिल गई आपको, जिनके अंदर ज़रा भी अहम नहीं है?"
काकी ने आशना को देखते हुए अथर्व से सवाल किया, तो दोनों एक साथ ही बोल पड़े:
"सड़क पर..."
दोनों ने हैरानी से एक-दूसरे को देखा, फिर सबके तरफ़ नज़रें घुमाईं, तो सब हैरानी से उन्हें ही देख रहे थे। अब अथर्व ने बात संभालते हुए कहा:
"सड़क पर टकराई थी काकी, फिर पसंद आ गई, तो सोचा रिस्क क्यों लेना? कहीं इतनी अच्छी लड़की हाथ से निकल गई, तो मेरा तो नुकसान हो जाता। इसलिए सीधे शादी कर ली। वैसे तो अभी कोर्ट मैरिज की है, कल सुबह यहीं होगी शादी और आप सभी उसका हिस्सा बनेंगे। तो तैयारियों में लग जाइए।"
उसकी बात सुनकर सब बेहद खुश हुए। अथर्व ने अब काकी को देखकर आगे कहा:
"काकी, दो कॉफ़ी भिजवा दीजिए कमरे में, मैं इन्हें इनका कमरा दिखा देता हूँ।"
काकी ने मुस्कुराकर हामी भर दी, तो अथर्व ने आशना का हाथ थामा और सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गया। आशना अब भी घर को देखते हुए उसके साथ चल रही थी। अथर्व एक कमरे के बाहर जाकर रुका। गेट के दोनों तरफ़ दीवार पर सुंदर सी पेंटिंग बनी हुई थीं, और वहीं स्टैंड पर एक वज़नदार चीज़ रखी हुई थी जिसमें सुंदर-सुंदर फूल लगे हुए थे। आशना ने पेंटिंग देखते ही अथर्व का हाथ छोड़ दिया। उस पेंटिंग में एक लड़की क्लासिकल डांस की मुद्रा में खड़ी थी; बेहद सुंदर पेंटिंग थी, वह ऐसा लग रहा था जैसे जीवंत हो जाएगी। आशना उसे अपनी हथेली से छूकर महसूस करने लगी; वह भी तो डांस के पीछे पागल थी। अथर्व रेलिंग से टिककर हाथ बाँधे खड़ा उसे ही देख रहा था। इस वक़्त आशना के चेहरे पर अलग ही खुशी झलक रही थी।
आशना ने उस पेंटिंग को छूते हुए अपना दूसरा हाथ उठाया, तो बगल में रखी वज़नदार चीज़ से उसका हाथ जा लगा और अगले ही पल वह वज़नदार चीज़ ज़मीन पर थी और चकनाचूर हो चुकी थी। आवाज़ सुनकर आशना डर के मारे दो कदम पीछे हट गई और ज़मीन पर बिखरे फूलों को देखकर अपना सर पकड़कर बोली:
"यहाँ भी तूने अपना हुनर दिखाना शुरू कर दिया। कहीं तो इंसानों की तरह रहा कर आशना! हर वक़्त बस तोड़-फोड़ करती रहती है। सही कहते हैं सब, तू चलती-फिरती मुसीबत है, ऐसा भूचाल है जो कब किसे अपनी चपेट में ले ले कोई नहीं जानता।"
उसका मुँह छोटा सा हो गया। अब तो वह और भी ज़्यादा क्यूट लग रही थी और उसकी बातें तो उससे भी ज़्यादा क्यूट थीं। उसकी मासूमियत देख अथर्व के लब हल्के से खिंच गए। अगले ही पल उसने उसका छोटा सा उतरा हुआ मुँह देखा, तो उसकी हथेली थामी और अंदर जाते हुए बोला:
"इट्स ओके। यहाँ तुम्हें जितनी तोड़-फोड़ करनी हो, तुम कर सकती हो, कोई तुम्हें कुछ नहीं कहेगा, तो तुम्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।"
उसकी बात सुनकर आशना उसे एकटक देखने लगी, तो अथर्व ने उसकी ओर घुमाया और भौंह उठाकर बोला:
"अब मुझे ऐसे क्यों देख रही हो?"
"आपने अभी-अभी कहा कि मैं यहाँ जितनी मर्ज़ी तोड़-फोड़ कर सकती हूँ, आप मुझे कुछ नहीं कहेंगे?"
आशना को अब भी विश्वास नहीं हुआ था कि उसने सही सुना है। उसने कंफ़्यूज़ नज़रों से उसे देखते हुए सवाल किया, तो अथर्व ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा:
"हाँ, यही कहा है मैंने।"
"पर क्यों? आप मुझे कुछ क्यों नहीं कहेंगे? अगर मैं आपकी चीज़ों को तोड़ती-फोड़ती हूँ, तो यहाँ तो सब बहुत महँगा लग रहा है।"
आशना ने एक बार फिर सवाल किया। उसकी बात सुनकर अथर्व व्यंग्य भरे लहज़े में बोला:
"यहाँ सब चीज़ बहुत महँगी है, पर क्योंकि अब तुम मेरी पत्नी हो, तो तुम्हें हक़ है जो चाहे करने का। अगर तुम दो-चार चीज़ें तोड़ भी दोगी, तब भी मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा, क्योंकि तुम्हारा पति इतना गरीब नहीं है कि इतना सा नुकसान बर्दाश्त ना कर सके।"
उसकी बात सुनकर आशना एकटक उसकी आँखों में झाँकते हुए मन ही मन बोली: पति।
अथर्व ने उसे खोया हुआ देखा, तो आगे बोला:
"मैंने कहा था ना, तुम्हें मेरी पत्नी होने का मान-सम्मान मिलेगा, सारे हक़ मिलेंगे, बस मुझे छोड़कर। मुझ पर तुम्हारा कोई हक़ नहीं होगा। इसके अलावा, इस कमरे में, इस घर पर, मेरे पैसों पर, सब पर तुम्हारा हक़ है, तो तुम जिसे जैसे चाहे इस्तेमाल कर सकती हो, कोई तुम्हें कुछ नहीं कहेगा।"
उसकी बात सुनकर आशना के दिल में एक टीस सी उठी, पर उसने उस दर्द को अपनी मुस्कान के पीछे छुपा लिया और बेड की तरफ़ बढ़ते हुए बोली:
"आपका रूम तो बहुत बड़ा है और बेड भी बहुत बड़ा है, पर अगर मैं बेड पर सोऊँगी, तो आप कहाँ सोएँगे?"
"कहाँ सोऊँगा? मतलब, पति हूँ तुम्हारा, बेड पर ही सोऊँगा, तुम्हारे साथ।"
अथर्व ने बेफ़िक्री से जवाब दिया। उसका जवाब सुनकर आशना के कदम रुक गए। वह उसकी ओर घुमी और हैरानी से बोली:
"आप मेरे साथ बेड पर सोएँगे?"
वह आँखें फाड़कर उसे देखने लगी, जबकि अथर्व बाथरूम की तरफ़ बढ़ते हुए बोला:
"जी हाँ, हम एक ही बेड पर, साथ में सोएँगे। और यह रूल कॉन्ट्रैक्ट में भी मेंशन है, इसलिए अब इसके लिए मेरे साथ बहस मत करना। अब आदत डाल लो इन चीज़ों की, अगले एक साल तक हमें ऐसे ही साथ में रहना है।"
इतना कहते ही उसने दरवाज़ा बंद कर लिया, तो आशना परेशान सी बेड पर बैठ गई और खुद से ही बोली:
"आशना, कुछ सोच! यह इंसान नहीं, कोई जादूगर है! तू तो उसे देखते ही सब भूलकर उसमें खो जाती है। लगता है यह लोगों को हिप्नोटाइज़ करना जानता है, बहुत ख़तरनाक आदमी है यह! तू तो इसे देखकर ही इसकी दीवानी हो जाती है। अगर साथ में एक ही कमरे में रहेगी, एक ही बेड पर सोएगी, तो कहीं तू कुछ गड़बड़ न कर दे। तुझे उससे दूर रहना ही होगा। भूल मत, बस एक साल की बात है, उसके बाद वह अपने रास्ते चले जाएँगे और तू अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ जाएगी। बस एक साल किसी तरह उससे दूर रह ले।"
उसने खुद को बहुत समझाया। जैसे ही दरवाज़े के खुलने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी, वह झट से उठकर खड़ी हो गई और बाथरूम के गेट की तरफ़ देखने लगी। अगले ही पल, ब्लैक कलर का घुटने से नीचे तक का बाथरोब पहने और अपने गीले बालों को तौलिये से पोंछते हुए अथर्व ने बाथरूम से बाहर कदम रखा। अब उसका एक अलग ही रूप आशना के सामने था। कुछ वक़्त पहले तक जो लड़का एकदम गंभीर लग रहा था, किसी राक्षस जैसा डरावना लग रहा था, वही लड़का अब बहुत ही क्यूट नज़र आ रहा था, बिल्कुल किसी कॉलेज गोइंग लड़के जैसा लग रहा था। आशना एक बार फिर उसमें खो गई, तभी उसके कानों में अथर्व की आवाज़ पड़ी:
"अगर फ़्रेश होना हो, तो बाथरूम में चली जाओ। अभी जो कपड़े हैं, उसी से काम चला लो। कल शॉपिंग पर लेकर चलूँगा तुम्हें, अपनी ज़रूरत का सब सामान ख़रीद लेना।"
अथर्व ने तो नज़रें उठाकर देखा तक नहीं और चेंजिंग रूम में घुस गया। उसकी बात सुनकर आशना की होश में लौटी और उसने हड़बड़ाते हुए उस पर से अपनी नज़रें हटा लीं। शॉपिंग बैग्स को चेक करने लगी, पर उसे रात के हिसाब से कुछ मिला ही नहीं, तो वह मुँह फुलाकर सोफ़े पर बैठ गई। कुछ देर बाद एक बार फिर अथर्व ने कमरे में कदम रखा। अब उसने ब्लैक वी-नेक टीशर्ट पहनी हुई थी जो उसके बदन से चिपकी हुई थी और उसके मसल्स और एब्स उभरकर नज़र आ रहे थे। नीचे ट्राउज़र डाला हुआ था। आशना ने एक नज़र उसे देखा, फिर मुँह लटकाकर बैठ गई। अथर्व की नज़र भी उस पर पड़ी, तो वह ड्रेसिंग टेबल की तरफ़ बढ़ते हुए बोला:
"क्या हुआ? मुँह क्यों सूजा हुआ है?"
"मेरे पास अभी पहनने के लिए एक भी जोड़ा नहीं है। सारे कपड़े ऐसे हैं कि अगर मैं अभी उन्हें पहनूँगी, तो रात भर सो नहीं सकूँगी।"
आशना ने मुँह लटकाते हुए ही अपनी प्रॉब्लम बता दी, तो अथर्व ने अपने बालों का ड्रायर से सुखाते हुए कहा:
"चेंजिंग रूम में मेरे नाइट ड्रेस रखे हैं, देख लो। अगर कुछ पहन सको तो आज एडजस्ट कर लो, कल ले चलूँगा तुम्हें शॉपिंग पर।"
आशना के पास कोई और चारा था ही नहीं, तो वह चेंजिंग रूम में चली गई। वहाँ सामने की पूरी दीवार अथर्व के हैंगर से भरी हुई थी, जिसमें उसके कपड़े टंगे हुए थे; ऊपर बाहर जाने वाले, तो नीचे डेली वियर्स। साइड में एक रैक था जिस पर उसके अलग-अलग डिज़ाइनर जूते रखे हुए थे। आशना तो सब हैरानी से देख रही थी; पहली बार यह सब देख रही थी। जब वह कुछ देर तक बाहर नहीं आई, तो अथर्व ने ही चेंजिंग रूम की तरफ़ कदम बढ़ा दिए।
"इतनी देर से यहाँ खड़ी-खड़ी क्या कर रही हो?"
अथर्व ने उसे वहाँ यूँ ही खड़े देखते हुए सवाल किया। अचानक उसकी आवाज़ सुनकर आशना ने चौंक कर उसे देखा और हैरानी से बोली:
"आप कब आए?"
"तभी जब तुम यहाँ स्टैचू बनी खड़ी थीं। जाने क्या देख रही थीं।"
अथर्व ने हमेशा की तरह ही सख्त लहज़े में जवाब दिया। आशना ने सामने टंगे उसके कपड़ों को देखते हुए सवाल किया:
"ये सब आपके कपड़े हैं? मतलब आपके कमरे में हैं, तो ज़ाहिर सी बात है कि आपके ही होंगे। पर क्या इन सबका नंबर आ जाता है? और ये सारे एक जैसे ही तो हैं, फिर इतने सारे लेने की क्या ज़रूरत थी? एक से ही काम चला लेना चाहिए, इतने पैसे नहीं बर्बाद करने चाहिए।"
आशना ने एकदम गंभीर होकर उसे समझाया। उसकी बात सुनकर अथर्व के लब हल्के से खिंच गए, पर उसने अपनी मुस्कान को छुपा लिया और उसे घूरते हुए बोला:
"तुम्हें हर वक़्त पैसा ही दिखता है क्या?"
"हाँ तो, पैसे बहुत ज़रूरी होते हैं जीने के लिए। आप तो इतने अमीर हैं, इसलिए आपको उसकी ज़रा भी क़द्र नहीं है। मुझ जैसे लोगों से पूछिए, जो एक-एक रुपया बचाने के लिए जाने क्या-क्या करते हैं।"
आशना एक बार फिर गंभीरता से बोली। अब अथर्व ने उसकी बाँह पकड़कर अपनी तरफ़ घुमा लिया, तो आशना असमंजस में उसे देखने लगी। अथर्व ने उसकी निगाहों में झाँकते हुए कहा:
"तुम भूल रही हो, अब तुम कोई मामूली लड़की नहीं हो। अथर्व सिंघानिया की वाइफ़ हो। तुम्हारे पास पैसों की कोई कमी नहीं है, इसलिए अब ये आदतें बदल लो।"
"बिलकुल नहीं! मैं आपकी पत्नी हूँ, इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं भी पैसों को बेवजह ही पानी की तरह बहाने लगूँ। पता भी है कितनी मेहनत लगती है पैसे कमाने में। मेरे पास पैसे नहीं हैं, तभी तो मैं यहाँ हूँ, वरना मैं आपके पैसे आपको लौटा देती और हमेशा के लिए आपकी ज़िन्दगी से चली जाती। पैसे बहुत ज़रूरी होते हैं, उनका सोच-समझकर ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मैं तो आपको भी कह रही हूँ, इतने कपड़ों की क्या ज़रूरत है? बस दो-चार जोड़ी ही ठीक रहेंगे।"
आशना एक बार फिर रेलगाड़ी की तरह बोले ही जा रही थी। उसकी बात सुनकर अब अथर्व ने उसे घूरते हुए कहा:
"तुम्हें मेरे कपड़ों से कुछ ज़्यादा ही प्रॉब्लम नहीं है?"
"अरे, आपके कपड़ों से मुझे क्या प्रॉब्लम होगी? मैं तो बस यूँ ही कह रही थी। आपको यह समझना चाहिए कि अगर आपके पास ज़रूरत से ज़्यादा पैसे हैं, इसका मतलब यह नहीं कि आप उन्हें ऐसे बर्बाद करें। उनका इस्तेमाल ग़रीबों की भलाई के लिए भी तो किया जा सकता है। ढेरों कपड़े खरीदने से हमें क्या मिलेगा? इसके बजाय अगर हम एक भी ज़रूरतमंद की मदद करते हैं, तो वह हमें ढेरों दुआएँ देंगे। देखिएगा, जब मेरी डांस अकादमी शुरू हो जाएगी ना, तो मैं सबसे पहले आपका कर्ज़ उतारूँगी, उसके बाद ग़रीबों की जितनी हो सके मदद करूँगी।"
आशना अब खोई हुई सी बोल रही थी। लबों पर संतुष्टि भरी, सौम्य सी मुस्कान फैली हुई थी। अथर्व कुछ पल उसे देखता रहा, फिर उसने आगे बढ़कर एक व्हाइट शर्ट और ब्लैक लोअर निकालकर उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा:
"सपने बाद में देखना, पहले जाकर फ़्रेश हो जाओ।"
उसकी बात सुनकर आशना ने पहले उसे देखा, फिर उन कपड़ों को देखकर बोली:
"आपको क्या, बस सफ़ेद और काला रंग ही पसंद है?"
उसकी बात सुनकर अथर्व ने उसे आँखें छोटी करके घुरा, तो उसने अपनी बत्तीसें चमकाते हुए कहा:
"वो यहाँ बस इन्हीं दो रंगों के कपड़े हैं ना, बस इसलिए पूछ लिया।"
"कितना बोलती हो तुम? थकती नहीं हो? टेप रिकॉर्डर की तरह बजती रहती हो, नॉनस्टॉप बोलती जाती है। ज़ुबान या मुँह नहीं थकता है तुम्हारा?"
अथर्व ने उसके इतना बोलने से चिढ़ते हुए सवाल किया, तो आशना ने बत्तीसें चमकाते हुए जवाब दिया:
"बिलकुल नहीं! दुखता नहीं। इनफ़ैक्ट, अगर मैं किसी दिन कम बोल जाऊँ, तब मेरा मुँह दुखने लगता है। और आप भी मेरी बातों की आदत डाल ले तो बेहतर होगा, क्योंकि मैं किसी के लिए खुद को नहीं बदलने वाली और अब पूरा एक साल आपको मुझे झेलना ही होगा। खैर, शौक़ भी आपको ही चढ़ा था मेरे साथ शादी-शादी खेलने का, तो अब भुगतिए।"
आशना ने इतराते हुए कहा और उसके बगल से निकलकर बाहर चली गई।
आशना मुस्कान लिए वहाँ से चली गई। अथर्व अपने बालों में हाथ घुमाते हुए खुद से बोला, "तुम सच में किसी मुसीबत से कम नहीं हो, पर अब रहना तो साथ ही है, तो आदत तो डालनी ही पड़ेगी।" वह यह सोचते हुए वहाँ से बाहर निकल गया। कुछ देर बाद आशना कमरे में कदम रखा। आवाज़ सुनकर अथर्व की निगाहें बाथरूम की ओर उठ गईं। सामने से आती आशना पर उसकी नज़र पड़ी, तो वह उसे एकटक निहारने लगा। आशना ने उसके ही कपड़े पहने हुए थे, जो उसे बहुत ढीले आ रहे थे; ऐसा लग रहा था जैसे कोई छोटा सा, क्यूट सा खरगोश किसी कंबल में दुबक गया हो। वह अद्वितीय रूप की स्वामिनी तो थी ही, अभी-अभी नहाकर आई थी, तो उसका गोरा चेहरा हल्का-हल्का लाल हो गया था और वह और भी ज़्यादा दिलकश लग रही थी। अथर्व के लिए उस पर से नज़रें हटा पाना मुश्किल होता जा रहा था, पर उसने खुद को संभाला और नज़रें हटा लीं।
आशना उन कपड़ों में असहज महसूस कर रही थी। वह अपनी शर्ट की बाँह को मुट्ठियों में भींचे ड्रेसिंग टेबल की ओर बढ़ गई। उसने अपने बालों को खोला, तो कमर तक लहराते लंबे सुनहरे बालों ने एक बार फिर अथर्व का ध्यान अपनी ओर खींचा, पर आशना ने उस पर ध्यान नहीं दिया। अथर्व बेड के राइट साइड, फ़ोन में नज़रें गड़ाए बैठा था, पर नाम मात्र के लिए, क्योंकि उसकी नज़रें आशना पर ही ठहरी हुई थीं। आशना ने अपने बालों को चोटी में बाँधा। जैसे ही वह पलटी, अथर्व ने तुरंत उस पर से निगाहें हटाईं और फ़ोन में घुस गया। आशना कुछ पल खामोशी से उसे देखती रही, फिर अपनी तरफ़ से चादर उठाकर बेड पर एकदम कोने में सिकुड़कर लेट गई। आज उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। घबराहट से साँसें तेज़ चल रही थीं। उसने चादर को अपनी मुट्ठियों में जकड़ा हुआ था और एकदम सिकुड़कर लेटी हुई थी। अथर्व कुछ देर खामोशी से उसे देखता रहा, फिर थोड़ा धीरे से बोला:
"इतना घबराने की ज़रूरत नहीं है तुम्हें, मैं तुम्हारे साथ कुछ नहीं करूँगा। इतना विश्वास कर सकती हो मुझ पर। आराम से सो जाओ, नहीं आऊँगा तुम्हारे करीब।"
"मैं ठीक हूँ, और मैं आपसे नहीं डर रही हूँ। यह नई जगह है और पहली बार किसी लड़के के साथ...बस इसलिए थोड़ी घबराहट हो रही है, पर मैं ठीक हूँ। आप सो जाइए।" आशना ने किसी तरह अपनी बेचैनी को काबू करते हुए कहा।
उसकी बात सुनकर अथर्व ने अपना फ़ोन साइड टेबल पर रखा, फिर बंद करके लेट गया। दोनों एक ही चादर में थे, यह सोचकर ही आशना को घबराहट के मारे पसीने आ गए। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, खुद को शांत करने की कोशिश करने लगी। दोनों जल्दी ही नींद के आगोश में चले गए।
रात के दो बज रहे थे। किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ सुनकर अथर्व चौंक कर उठा। उसने देखा कि आशना बस नीचे लुढ़कने ही वाली थी, तो वह फ़ुर्ती से उसके तरफ़ लपका और वह नीचे गिरती उससे पहले ही उसकी बाँह पकड़कर उसे अपनी तरफ़ खींच लिया। आशना उसके सीने से आ टकराई, तो पल भर को जैसे अथर्व की धड़कनें ही रुक गईं। दिल में अजीब से एहसासों ने जन्म लिया। पर उसने अपना सर झटका और आशना को खुद से अलग करके आराम से सुला लिया। खुद उसके बगल में बैठकर उसके चेहरे को देखते हुए बोला:
"और कौन-कौन उटपटांग आदतें हैं तुम्हारी? एक बार में बता देती, तुम तो ऐसे मुझे हार्ट अटैक दे दोगी। अभी गिरने वाली थी नीचे, अगर मैं वक़्त पर तुम्हें पीछे नहीं खींचता, तो चोट लग सकती थी तुम्हें, पर देखो, खुद को कैसे सुकून से सोने में लगी हो, जैसे कुछ हुआ ही ना हो। पर तुम तो गिरी नहीं, फिर आवाज़ किस चीज़ की आई थी? जिससे मेरी नींद ख़राब हो गई?"
अचानक ही उसके दिमाग में यह बात आई, तो वह उठकर आशना की तरफ़ आया। देखा तो वज़नदार चीज़, जो आशना के साइड के टेबल पर रखी हुई थी, वह नीचे गिरकर टूट चुकी थी। अथर्व ने एक नज़र सुकून से सोती आशना को देखा और खुद से ही बोला:
"तुम तो सच में चलती-फिरती आफ़त की गठरी हो! पता नहीं इस एक साल में मेरे घर में कोई सामान साबुत बचेगा भी कि नहीं? पता चले तुम ऐसे ही एक-एक चीज़ को तोड़कर रख दो। अब तो संभलकर रहना होगा, सबसे पहले तुम्हारे तरफ़ से यह सामान हटेगा। कोई भरोसा नहीं तुम्हारा, फिर से सोते-सोते कुछ गिरा दो और खुद उसके ऊपर ही गिरकर घायल हो जाओ। अभी अगर मैं सही वक़्त पर नहीं जागता, तो तुम इन काँच के टुकड़ों पर गिर जातीं और तुम्हें चोट लग जाती। घर से, और ख़ासकर हमारे रूम से अब सब काँच की चीज़ें हटवानी होंगी, वरना तुम रोज़ कुछ ना कुछ तोड़ती ही रहोगी।"
उसने एक बार फिर आशना को देखा, जो बड़े सुकून से सोने में लगी थी, और अपनी तरफ़ जाकर लेट गया। उसे लेटे कुछ ही देर हुई थी कि उसके ऊपर किसी का पैर आ गया। उसने चौंककर अपनी आँखें खोलीं, तो आँखों के ठीक सामने आशना का चाँद सा मुखड़ा आ गया। दोनों के चेहरे एक-दूसरे के आमने-सामने थे। अथर्व उसकी गरम साँसों को अपने चेहरे पर महसूस कर पा रहा था और एक पल को उसकी नज़रें आशना पर ठहर गईं थीं। अगले ही पल आशना ने अपनी बाहों को उस पर लपेटते हुए कहा:
"प्रेरणा कहाँ थी? तू इधर आ।"
उसके ऐसा करने पर अथर्व चौंक गया, पर अब तक आशना उससे पूरी तरह से लिपट चुकी थी। उसने हैरानी से इस पागल लड़की को देखा जो उसके अंदर घुसने को तैयार थी, और फिर उसके हाथ को अपने ऊपर से हटाने लगा, पर आशना की पकड़ मज़बूत थी। कुछ देर की मेहनत के बाद उसने उसके बाँहों के पाश से खुद को मुक्त किया और सीधे बेड पर से नीचे कूद गया। आशना हाथ फैलाकर किसी को ढूँढ़ते हुए कुछ-कुछ बड़बड़ाने लगी। अथर्व की तो साँसें उसके अख़्तियार से बाहर हो चली गईं। उसने खुद को रिलैक्स किया, फिर वापिस आशना को देखा, जिसके चेहरे पर अब सुकून नज़र नहीं आ रहा था। परेशान सी, नींद में ही कुछ ढूँढ़ने की कोशिश कर रही थी और धीमी आवाज़ में कुछ बड़बड़ाने में लगी हुई थी, जो न तो अथर्व को सुनाई दे रहा था, न ही समझ आ रहा था। वह कुछ पल उसे देखता रहा, फिर आगे बढ़कर एक तकिया उसकी ओर बढ़ा दिया। आशना ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और अपना एक पैर उसके ऊपर चढ़ाकर सुकून से सो गई। लबों पर सौम्य सी मुस्कान लिए वह कितनी प्यारी लग रही थी इस वक़्त। अथर्व ने उसके सोने के अंदाज़ को देखा, तो उसकी भौंहें सिकुड़ गईं। उसने अपना सर झटका और जाकर सोफ़े पर लेट गया, जिस पर वह पूरा आ भी नहीं पा रहा था। उसने किसी तरह खुद को उस पर एडजस्ट किया। सोने की कोशिश की, पर अब नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। नज़रें आशना पर ठहरी हुई थीं। वह जाने कितनी देर तक उस लड़की को देखता रहा जो नींद में भी लगातार बड़बड़ाने में लगी हुई थी। कायदे से तो अथर्व को उस पर गुस्सा आना चाहिए था, पर ऐसा नहीं हो रहा था। बल्कि अथर्व तो बड़े प्यार से उसके चेहरे को निहार रहा था, जो सोते हुए किसी छोटे बच्चे की तरह मासूम और प्यारा लग रहा था। आशना को निहारते हुए ही वह कब नींद के आगोश में चला गया, यह उसे भी पता नहीं चला।
अगले दिन आशना की आँख खुली। उसने अपनी आँखों को मसलते हुए अपनी आँखें खोलीं, फिर उठकर बैठते हुए खुद से ही बोली:
"गुड मॉर्निंग!"
"गुड मॉर्निंग! पर तुम्हारी गुड मॉर्निंग कुछ ज़्यादा देर से नहीं होती?" जैसे ही आशना के कानों में यह रौबदार आवाज़ पड़ी, उसने चौंककर आवाज़ की दिशा में आँखें बड़ी-बड़ी करके देखा, तो ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा अथर्व नज़र आया जो अपने बालों को सेट कर रहा था। आशना को तो याद ही नहीं था कि वह किसी की पत्नी है। वह किसी आदमी की आवाज़ सुनकर बुरी तरह चौंक गई थी, पर जैसे ही उसकी नज़रें अथर्व पर पड़ीं, उसे सब याद आ गया। उसने खुद को नॉर्मल किया, फिर अपने कपड़ों को ठीक करते हुए बोली:
"वैसे, मैंने वह गुड मॉर्निंग खुद को कहा था। रही बात देर से सुबह होने की, तो मुझे जल्दी उठना नहीं पसंद। मेरे तीन फ़ेवरेट काम हैं: पहला डांस, दूसरा बोलना, और तीसरा सोना और खाना भी। और मैं इनमें से किसी के भी साथ कॉम्प्रोमाइज़ करना पसंद नहीं करती। और मुझे यह भी पसंद नहीं कि कोई मेरी नींद को लेकर कुछ कहे, इसलिए आगे से मुझे टोकिएगा नहीं।"
उसने मुँह बनाते हुए कहा और बेड से नीचे उतर गई। उसके बात करने का लहजा शायद अथर्व को कुछ ख़ास रास नहीं आया था; उसकी भौंहें तन गईं। आशना ने बाथरूम की तरफ़ कदम बढ़ाया, पर अगले ही पल अथर्व उसके सामने आकर खड़ा हो गया और उसे घूरते हुए बोला:
"अगर तुम्हें याद नहीं है, तो मैं तुम्हें याद दिला दूँ कि तुम इस वक़्त मेरे घर में, मेरे कमरे में खड़ी हो और यहाँ वही होता है जो मैं चाहता हूँ। यहाँ किसी को मेरी बात काटने या इस लहज़े में मुझसे बात करने का हक़ नहीं है, तो आगे से मुझसे बात करते वक़्त अपनी लिमिट्स याद रखना। और रही बात तुम्हारे देर तक सोने के शौक़ की, तो मुझे देर तक सोने वाले लोगों से सख़्त नफ़रत है। जो लोग अपने वक़्त की क़द्र नहीं करना जानते, वक़्त उनकी क़द्र नहीं करता, इसलिए अब से तुम्हें अपनी इस आदत को बदलना होगा। यहाँ हर काम के लिए टाइम फ़िक्स्ड है और उस टाइम टेबल को तुम्हें भी फ़ॉलो करना होगा। आज तुम्हारा यहाँ पहला दिन था, इसलिए तुम्हें माफ़ कर रहा हूँ। अगर आगे से तुम छह बजे तक बिस्तर से नहीं उठीं, तो फिर तुम्हें मेरे तरीक़े से उठना होगा, जो शायद तुम्हें पसंद ना आए। अगर तुम आठ बजे से पहले रेडी होकर डाइनिंग टेबल पर नहीं पहुँचीं, तो तुम्हें ब्रेकफ़ास्ट नहीं मिलेगा। उसके बाद सारा दिन तुम जो चाहे वह कर सकती हो, जितना सोना हो सो लेना, बस सुबह छह बजे मुझे तुम जागी हुई चाहिए। आज तुम लेट हो, आठ बजने में बस पन्द्रह मिनट हैं। अगर तुम आठ बजे तक नीचे नहीं आईं, तो आज तुम्हें भूखा रहना होगा।"
अपना बात कहकर अथर्व वहाँ से जाने लगा। आशना मुँह फाड़कर और आँखें बड़ी-बड़ी करके हैरानी से उसकी बात सुन रही थी। उसकी बातों को मन ही मन याद करते हुए, जैसे ही उसे उसकी कही आखिरी लाइन याद आई, तो वह उसकी ओर पलटी और एकदम से बोली:
"आपने तो कहा था कि आज मेरा पहला दिन है, तो आज मुझे छुट्टी है। आपके नियम कल से लागू होंगे मुझ पर। फिर आपने अभी ऐसा क्यों कहा कि अगर मैं आठ बजे तक नीचे नहीं पहुँची, तो आज मुझे खाना नहीं मिलेगा? मैं इतनी जल्दी नहाकर कैसे आ पाऊँगी नीचे?"
उसकी बात सुनकर अथर्व के कदम रुक गए। उसने खामोशी से उसकी बात सुनी, फिर तिरछी मुस्कान के साथ बोला:
"अब मेरा मूड बदल गया। यह सज़ा है तुम्हारी बदतमीज़ी की। अब तुम कैसे इतनी जल्दी तैयार होगी, यह तुम्हारी प्रॉब्लम है। मुझे बस इतना पता है कि अगर तुम आठ बजे से पहले मेरे सामने नहीं आईं, तो तुम्हें ब्रेकफ़ास्ट नहीं मिलेगा।"
उसने इतना कहकर कदम आगे बढ़ा दिए, तो आशना ने उसे गुस्से से घूरते हुए मन ही मन कहा:
"राक्षस कहीं का! कैसे मुझ पर हुक्म चला रहा है! दुष्ट दानव है एक नंबर का! जब से मिला है, अड़ियल साँड़ की तरह मुझ बेचारी, मासूम सी बच्ची के पीछे ही पड़ गया है। मन तो कर रहा है मुँह नोच लूँ इसका! बहुत अकड़ भरी पड़ी है!"
वह मन ही मन उसे कोसने लगी, तभी एक बार फिर उसके कानों में अथर्व की कड़क आवाज़ पड़ी:
"अच्छा है, खड़े-खड़े मुझे कोसती रहो, जो टाइम है वह भी निकल जाएगा, उसके बाद रहना भूखे!"
इतना कहकर वह कमरे से बाहर निकल गया। वहीं, उसकी बात सुनकर आशना सर पर पैर रखकर बाथरूम में भाग गई, फिर वापिस भागती हुई बाहर आई और शॉपिंग बैग्स में से ब्रश निकालकर और कपड़े लेकर वापिस चली गई। उसने जल्दी-जल्दी ब्रश किया, ऊपर से मुँह-हाथ धोया, फिर बाहर झाँककर टाइम देखा, तो बस सात मिनट ही बचे थे। वह वापिस अंदर घुस गई और तीन मिनट बाद कपड़े बदलकर बाहर निकल गई। बाल बनाने का टाइम था ही नहीं, तो हाथों से बालों को ठीक किया और नंगे पैर ही गेट की तरफ़ दौड़ पड़ी।
अथर्व उस बड़े से डाइनिंग टेबल के सामने वाली चेयर पर राजाओं की तरह बैठा था। हाथ में न्यूज़पेपर था और वह काफी गंभीर मुद्रा में बैठा उसे पढ़ रहा था। डाइनिंग टेबल के साइड में काकी और बाकी सभी नौकर लाइन से खड़े थे। कभी वे उसे देखते, तो कभी एक-दूसरे को, फिर सीढ़ियों की ओर देखने लगते। सबके चेहरे पर परेशानी के भाव थे। शायद वे जानते थे कि अथर्व कितना स्ट्रिक्ट है, इसलिए आशना के लिए परेशान हो रहे थे क्योंकि वह अब तक नहीं आई थी, जबकि अब बस एक ही मिनट बचा था आठ बजने में। वहाँ सन्नाटा पसरा हुआ था।
अचानक ही घंटी बजी। अथर्व ने घड़ी की ओर नज़रें उठाईं; घड़ी आठ बजने का इशारा कर रही थी। अथर्व ने नौकरों को देखते हुए कहा:
"खाना लगाओ!"
उसकी सख्त आवाज़ सुनकर एक नौकर झट से आगे बढ़ गया। तभी दूसरे नौकर ने कहा:
"पर सर, मैं..."
उसने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि अथर्व की घूरती निगाहें उस पर आ पड़ीं। बेचारा चुप हो गया और उसने अपना सर झुका लिया।
"नियम सबके लिए बराबर हैं। अगर आपकी मैडम को समय की क़द्र नहीं, तो इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता। ब्रेकफ़ास्ट का वक़्त हो चुका है और वह यहाँ नहीं है, तो आज उन्हें ब्रेकफ़ास्ट नहीं मिलेगा।" अथर्व ने सबको घूरते हुए हुक्म सुनाया।
तब तक काकी मुस्कुराकर बोलीं:
"मैम..."
आवाज़ सुनकर अथर्व ने उन्हें घूरते हुए कहा:
"हाँ, आपकी मैडम को आज..."
उतना ही कहा था कि काकी ने मुस्कुराकर आगे कहा:
"सर, मैडम आ गई हैं।"
उनकी बात सुनकर अथर्व ने नज़रें सीढ़ियों की ओर घुमाईं। नज़रें आशना पर पड़ीं। उसने फूलों से घिरा लॉन्ग स्कर्ट और उसके ऊपर क्रॉप टॉप पहना हुआ था। दुपट्टे को हाथ में लपेटा हुआ था और दोनों हाथों से अपनी स्कर्ट को घुटनों तक उठाए वह सीढ़ियों से भागी चली आ रही थी। कल रात के बाँधे बाल अब ख़राब हो चुके थे और बालों की लटें उसके चेहरे पर उड़ रही थीं। उस क्रॉप टॉप में उसकी पतली, गोरी कमर साफ़-साफ़ नज़र आ रही थी।
उसे ऐसे भागता हुआ आता देख अथर्व की भौंहें तन गईं, आँखें गुस्से से छोटी हो गईं और वह उसे खा जाने वाली नज़रों से घूरने लगा। आशना ने भागते हुए ही निगाहें उठाईं। अथर्व के भाव देख उसके होश उड़ गए। डर के मारे उसके कदम लड़खड़ा गए और वह सीढ़ियों से गिरने को हुई कि सभी नौकर एक साथ चीख पड़े। वह भी डर के मारे "पापा!" कहकर चीख उठी। पर उसे गिरता देख अथर्व तेज़ गति से उसकी ओर दौड़ पड़ा। आशना सात-आठ सीढ़ी ऊपर थी, तो वह कूदते हुए उसके पास पहुँचा और उसे अपनी बाँहों में थाम लिया।
यह देखकर सब ने चैन की साँस ली। वहीं आशना ने उसके कोट को कसके पकड़ लिया, आँखें भींचे हुए वह उसकी बाँहों में झूल गई। अथर्व बहुत ही गुस्से में था उसकी लापरवाही देखकर, पर उसका सारा गुस्सा आशना का घबराया हुआ, डरा, सहमा चेहरा देखकर कहीं गायब हो गया। कुछ तो जादू था इस लड़की में कि बस उसका मासूम सा चेहरा ही काफी था अथर्व के गुस्से को शांत करने के लिए। इतनी बचकानी हरकतें थीं उसकी, फिर भी अथर्व उससे नफ़रत नहीं कर पा रहा था, जबकि उसे ऐसे लोग बिलकुल पसंद नहीं थे। शायद अगर अभी इस लड़की की जगह कोई और होती, तो वह उसे गिरने देता, पर आशना को गिरता देख तो ऐसे दौड़ पड़ा जैसे उसे एक ख़रोच भी नहीं आने देगा। कितना ही सख्त बनता था, पर जब से आशना उससे मिली थी, वह उसके लिए सॉफ़्ट पड़ जाता था। उसने अपनी बाँहों में समाई उस बेवकूफ़ लड़की को देखा और उसे ढंग से अपनी बाँहों में उठाकर ऊपर की ओर बढ़ गया।
आशना बहुत ज़्यादा डर गई थी। अब उसे एहसास हुआ कि वह गिरी नहीं है, बल्कि किसी की बाँहों में है। उसने धीरे से अपनी दाईं आँख खोली और अथर्व का चेहरा देखते ही उसने झट से दोनों आँखों को खोल दिया। घबराकर सर उठाकर पीछे देखा; सब उसे देखकर मुस्कुरा रहे थे। यह देखकर वह और भी ज़्यादा घबरा गई और उसकी बाँहों से नीचे उतरने के लिए कसमसाते हुए बोली:
"क्या कर रहे हैं आप? नीचे उतारिए मुझे! देखिए, सब देख रहे हैं।"
"देखने दो।" अथर्व ने आगे बढ़ते हुए अपनी सख्त आवाज़ में कहा। आशना का मुँह हैरानी से खुल गया। अगले ही पल वह गुस्से से बोली:
"मैंने कहा, नीचे उतारिए मुझे! सब देख रहे हैं और हमें देखकर मुस्कुरा रहे हैं।"
"तो?" अब अथर्व की घूरती नज़रें आशना के चेहरे पर पड़ीं। उसने उसे घूरते हुए ही भौंह उठाई। आशना ने उसके सीने पर मारते हुए कहा:
"अभी बताती हूँ तो क्या? शर्म नहीं आती आपको सबके सामने मुझे अपनी बाँहों में उठाने में?"
"तुम्हें आती है शर्म? मेरी पत्नी होकर ऐसे नौकरों के सामने जाने में?" अथर्व ने गुस्से में दाँत पीसते हुए सवाल किया। आशना उसे आँखें बड़ी-बड़ी करके देखती रह गई। अथर्व ने उसे घूरते हुए आगे कहा:
"अगर चाहती हो कि उनके सामने तुम्हारी इज़्ज़त बनी रहे, तो चुपचाप बैठी रहो। मुझे ज़्यादा बोलने वाले लोग भी नहीं पसंद, तो मेरे सामने उतना ही कहना जितने की ज़रूरत हो। वैसे भी अभी मुझे वैसे ही तुम पर बहुत गुस्सा आ रहा है, तो उसे हवा देने की कोशिश भी मत करना। वरना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।"
उसके गुस्से को देखकर आशना सहम गई और मुँह पर उंगली रखकर हाँ में सर हिला दिया। अथर्व सामने देखते हुए आगे चलने लगे। वह अपने कमरे की ओर बढ़ गया। कुछ सेकंड चुप रहने के बाद आशना ने धीरे से कहा:
"आप मुझे रूम में लेकर क्यों जा रहे हैं? मुझे भूख लगी है। मैं तो टाइम पर नीचे पहुँच गई थी, फिर आप इतना गुस्सा क्यों हो रहे हैं? क्या मुझे देर हो गई थी? क्या अब आप मुझे खाना नहीं देंगे?"
आशना ने अब क्यूट सी शक्ल बनाकर उसे देखा। अथर्व ने उसे जवाब नहीं दिया, बस घूरने लगा। वह मुँह बिचकाकर चुप हो गई। उसे देखकर अथर्व मन ही मन बोला:
"क्या है यह लड़की? पल में इतनी बेवकूफ़, तो अगले ही पल इतनी मासूम लगने लगती है। कभी अपनी बेवकूफ़ियाना हरकतों से इतना गुस्सा दिला देती है और अगले ही पल इतना प्यारा चेहरा बनाकर सारा गुस्सा हवा कर देती है। तुम सच में एक छोटे से बच्चे की तरह मासूम हो या यह सब छलावा है? जो भी हो, पर इस बार मैं किसी की मासूमियत के जाल में खुद को नहीं फँसाऊँगा। तुम्हें अपनी ज़िन्दगी में शामिल किया है ताकि उस इंसान को यह दिखा सकूँ कि मैं अब आगे बढ़ गया हूँ, कोई जगह नहीं है अब उसके लिए, न ही मेरे दिल में, न ही मेरी ज़िन्दगी में। पर जगह तो मैं तुम्हें भी नहीं बनाने दूँगा अपने दिल में। समझौते की शादी है हमारी, बस एक साल, उसके बाद हम हमेशा के लिए अलग हो जाएँगे।"
वह खुद को समझाते हुए कमरे में पहुँचा, फिर उसे नीचे उतार दिया। आशना तुरंत दो कदम पीछे हट गई और अपने कपड़े ठीक करने लगी। अथर्व ने उसे घूरते हुए उसकी ओर कदम बढ़ाते हुए कहा:
"मैंने तुम्हें क्या कहा था?"
उसके घूरने और गुस्से से आशना पहले ही डरी हुई थी। अब उसे अपनी ओर बढ़ता देख वह डर के मारे पीछे हटते हुए बोली:
"आठ बजे से पहले अगर तैयार होकर नीचे नहीं आई, तो खाना नहीं मिलेगा। पर मैं टाइम पर तैयार होकर नीचे पहुँच गई थी।"
"रियली? तुम तैयार होकर वक़्त पर नीचे पहुँच गई थीं? नहाया भी होगा तुमने, बाल भी बनाए होंगे, और टाइम पर नहीं पहुँच गई होगी, है ना?" अथर्व ने एक बार फिर उसे घूरते हुए सवाल किया। उसकी बात सुनकर आशना ने सर झुकाकर कहा:
"वक़्त नहीं था मेरे पास। अगर लेट हो जाती, तो आप खाना नहीं देते, इसलिए मुँह धोकर, कपड़े बदलकर नीचे चली गई थी।"
"अच्छा, चलो ठीक है, मान लेते हैं तुम्हारी बात। अब अपने कपड़ों के बारे में क्या कहना चाहोगी तुम?" अथर्व ने उसकी ओर बढ़ते हुए उसे ऊपर से नीचे तक घुरा। आशना पीछे हटते-हटते बाथरूम के बगल वाली दीवार से जा लगी। उसने घबराकर पीछे देखा, फिर सामने खड़े अथर्व को देखने लगी। उसने कुछ जवाब नहीं दिया। अथर्व ने फिर से सवाल किया:
"जवाब दो! एक लड़की, जिसकी कल ही शादी हुई हो, वह ऐसे किसी के सामने जाती है? तुमने ऐसे कपड़ों में नीचे जाने से पहले मेरी इमेज के बारे में भी एक बार भी नहीं सोचा? हुलिया देखो अपना! सब नौकरों के सामने तुम ऐसे चली गईं? क्या सोच रहे होंगे वे तुम्हारे बारे में कि कैसी गैर-ज़िम्मेदारी लड़की को उनके सर शादी करके ले आए हैं।"
"अरे, पर मैंने तो वही पहना है जो आपने दिया था। उन्हीं शॉपिंग बैग्स में से तो मैंने यह ड्रेस निकाली है जो कल अस्पताल में आपके आदमी देकर गए थे।" आशना उसके गुस्से की वजह समझ न सकी और असमंजस में उसे देखने लगी। अथर्व ने उसकी बाँह पकड़ी और उसे ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा करते हुए बोला:
"देखो खुद को! ऐसे पहनते हैं इस ड्रेस को?"
आशना ने अब खुद को देखा। उसने मासूम सा चेहरा बना लिया और सर झुकाकर बोली:
"सॉरी। वह जल्दी में ध्यान नहीं दिया।"
"अच्छा? और जल्दी में यह भी नहीं पता चला होगा ना कि कितने ऊपर तक अपनी स्कर्ट को उठाकर तुम नीचे भागी चली आ रही थीं?" अथर्व का गुस्सा ज़रा भी कम नहीं हुआ था। वहीं आशना को अब अपनी गलती समझ आ चुकी थी। उसने कान पकड़े और सर झुकाकर बोली:
"सॉरी। आगे से मैं ध्यान रखूँगी। वह आपने कहा था ना कि लेट होऊँगी तो खाना नहीं मिलेगा, इसलिए मैं भागकर नीचे आ रही थी। स्कर्ट में भागा नहीं जा रहा था, इसलिए ऊपर उठा ली थी। सॉरी।"
एक बार फिर उसकी मासूम सी शक्ल अथर्व के गुस्से को पिघला रही थी। उसने अब थोड़ा आराम से कहा:
"आज पहली और आख़िरी बार छोड़ रहा हूँ। आगे से ध्यान रखना। अब से तुम्हारी इमेज के साथ मेरी इमेज भी जुड़ी हुई है और मैं नहीं चाहता कि कोई मेरी पसंद को लेकर सवाल उठाए। जाओ, जाकर नहाकर अच्छे से रेडी हो जाओ। साथ में नीचे चलेंगे।"
उसकी बात सुनकर आशना ने सर उठाकर उसे देखा और धीरे से बोली:
"पर लेट हो जाएगा।"
"आज के लिए तुम्हें माफ़ किया, पर कल से टाइम पर उठना होगा।" अथर्व ने सोफ़े पर बैठते हुए हल्की सख्ती से कहा। आशना ने खुश होकर हाँ में सर हिला दिया और बाथरूम की तरफ़ दौड़ पड़ी, पर जाते-जाते हाथ बेड के सामने रखे टेबल से टकरा गए। उसके मुँह से "आह्ह!" निकल गई। उसने अपना पैर पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी। अथर्व ने अपने अंगूठे से अपनी भौंह को खुजाते हुए कहा:
"सच में एक नंबर की आफ़त है यह लड़की! इस एक साल में तेरे अच्छे-खासे घर को तोड़-फोड़कर कबाड़खाना बना देगी यह।"
आशना को शायद टेबल के कॉर्नर से टकराने के वजह से ज़्यादा लग गया था। वह वहीं ज़मीन पर बैठ गई और हथेली से उस जगह को सहलाते हुए सिसकने लगी। उसकी सिसकियों की आवाज़ अथर्व के कानों में पड़ी। उसने सर उठाकर सामने देखा और बेबसी से अपनी आँखें बंद करने के बाद उठकर उसकी ओर बढ़ गया।
अथर्व ने अपने अंगूठे से भौंह खुजाते हुए कहा, "सच में एक नंबर की आफ़त है यह लड़की! इस एक साल में तेरे अच्छे-खासे घर को तोड़-फोड़कर कबाड़खाना बना देगी यह।"
आशना को शायद टेबल के कोने से टकराने के कारण ज़्यादा लग गया था। वह वहीं ज़मीन पर बैठ गई और हथेली से उस जगह को सहलाते हुए सिसकने लगी। उसकी सिसकियाँ अथर्व के कानों में पड़ीं। उसने सर उठाकर देखा और बेबसी से आँखें बंद करने के बाद उठकर उसके पास बढ़ गया।
वह उसके पास ज़मीन पर ही बैठ गया और उसके हाथ को हटाते हुए बोला, "मुझे दिखाओ, क्या हुआ है?"
आशना ने आँसुओं से भरी आँखों से उसे देखा, फिर उसके हाथ को हटाते हुए बोली, "नहीं, कुछ नहीं हुआ। मैं ठीक हूँ।"
उसने अपनी हथेली से आँसू पोछे, फिर उठने लगी। पर दर्द ज़्यादा था, तो उसके मुँह से "आह्ह!" निकल गया। वह वापिस बैठ गई। अथर्व उठकर खड़ा हुआ और उसे अपनी बाँहों में उठाकर चेयर पर बिठाया। वह खुद उसके पास नीचे ज़मीन पर बैठ गया।
"अब कोई नाटक करने की ज़रूरत नहीं है। मुझे देखने दो, क्या हुआ है?" उसने यह कहते हुए आशना के हाथ हटाए और उसकी स्कर्ट ऊपर करने लगा। आशना ने घबराकर उसका हाथ पकड़ लिया और नज़रें चुराते हुए बोली, "रहने दीजिए, मैं ठीक हूँ।"
उसकी बात सुनकर अथर्व ने उसे घूरते हुए कहा, "खड़ा तुमसे हुआ नहीं जा रहा और तुम ठीक हो? कुछ देर में हमारी शादी होने वाली है और तुम यहाँ दर्द से आँसू बहा रही हो। ऐसे लेकर जाऊँगा मैं तुम्हें नीचे।"
उसके गुस्से को देखकर आशना ने नज़रें झुका लीं। आँखों में कैद आँसू उसके गालों पर लुढ़क गए। अथर्व ने एक गहरी साँस छोड़ते हुए खुद को शांत किया और आराम से बोला, "आशना, अब हमें एक ही घर में, एक ही कमरे में रहना है, तो एक-दूसरे का ख़्याल तो रखना पड़ेगा ना? अगर तुम्हें मेरा छूना अजीब लग रहा है, तो मैं किसी और को बुला देता हूँ, पर फिर तुम खुद सोच लो कि वे हमारे बारे में क्या सोचेंगे? उनके नज़रों में हम पति-पत्नी हैं, एक-दूसरे से प्यार करते हैं, फिर इतनी सी बात के लिए उन्हें बुलाना क्या ठीक रहेगा?"
उसकी बात सुनकर आशना ने अपने हाथ पीछे खींच लिया। अथर्व ने धीरे से उसकी स्कर्ट ऊपर की। आशना ने अपनी आँखें भींच लीं। अथर्व भी थोड़ा हिचकिचाया। फिर उसने उसके पैरों की तरफ़ देखा। उसके घुटने के पास की गोरी स्किन एकदम लाल हो गई थी। वह इतनी गोरी और सॉफ़्ट स्किन देखकर हैरान था। यह लड़की इसी दुनिया की है या स्वर्ग से अभी-अभी नीचे उतरी है? उसने अपना दिमाग झटका और उठकर खड़ा हो गया। बेड के साइड वाले टेबल के ड्रॉवर को खोला और पेन रिलीफ़ स्प्रे लेकर वापिस आया।
"थोड़ा सा जलेगा, पर दर्द ठीक हो जाएगा।" इतना कहकर उसने जैसे ही स्प्रे किया, आशना सिसक उठी। अथर्व के हाथ तुरंत रुक गए। उसने आशना का चेहरा देखा, जिस पर दर्द झलक रहा था। फिर फ़ूँक मारते हुए स्प्रे करने लगा। आशना को जलन होने लगी। उसने उसकी हथेली कसके पकड़ ली और अपने होंठों को आपस में भींच लिया। अथर्व ने उसे देखा, फिर आराम से बोला,
"बहुत नाज़ुक हो तुम।"
"पापा भी यही कहते थे।" आशना के मुँह से अनायास ही निकल गया। फिर उसने झटके से अपनी आँखें खोलीं। अथर्व की नज़रें उसके चेहरे पर ही टिकी हुई थीं। आशना ने उस पर से अपनी नज़रें हटा लीं और अपनी स्कर्ट नीचे करते हुए बोली,
"मैं नहाकर आती हूँ।"
वह कुर्सी का सहारा लेकर खड़ी हुई। इससे पहले ही अथर्व ने उसकी हथेली पकड़कर उसे रोक लिया और वापिस चेयर पर बिठाते हुए बोला,
"रहने दो। खाना मँगवा देता हूँ। पहले खा लो, तब तक दर्द भी आराम हो जाएगा, फिर दवाई ले लेना, उसके बाद नहा लेना। वैसे भी वक़्त नहीं है, कुछ देर में ब्यूटीशियन आ जाएगी और मुझे भी नीचे की तैयारियाँ देखनी हैं।"
आशना ने हाँ में सर हिला दिया। अथर्व ने रूम में ही खाना मँगवा लिया। दोनों आमने-सामने बैठकर खाना खा रहे थे। आशना की हमेशा वाली मुस्कान ग़ायब थी। वह परेशान और उदास सी धीरे-धीरे खाना खा रही थी। अथर्व की नज़रें उसके चेहरे पर बनी हुई थीं। कुछ देर वह खामोशी से उसे देखता रहा, फिर पानी पीते हुए बोला,
"अपने पापा को मिस कर रही हो?"
उसकी बात सुनकर आशना ने हैरानी से उसे देखा, फिर नज़रें झुकाते हुए बोली,
"नहीं तो! मैं अपनी मर्ज़ी से सबको छोड़कर आई हूँ, तो मैं किसी को मिस क्यों करूँगी भला?"
उसकी बात सुनकर अथर्व मुस्कुरा उठा और उसके पास आ गया। अपनी उंगली से उसके चेहरे को ऊपर उठाया। आशना उसकी आँखों में झाँकने लगी,
"लोगों के एक्सप्रेशन्स पढ़ने में एक्सपर्ट हूँ मैं, तो मुझसे झूठ बोलने का कोई फ़ायदा नहीं है। वैसे भी तुम घर छोड़कर आई हो, उसकी अपनी वजह है, पर उन रिश्तों को तोड़कर तो नहीं आई हो। अपने सपने को पूरा करने के लिए उनसे दूर आई हो, उन्हें अपने दिल से दूर तो नहीं किया है ना? अगर याद आ रही है, तो बात कर लो उनसे।"
"नहीं, मुझे किसी से बात नहीं करनी। और मैं किसी को मिस भी नहीं कर रही हूँ। आपको गलतफ़हमी हो रही है।" आशना ने उसके हाथ को हटाते हुए कहा और उठकर खड़े होते हुए आगे बोली, "मेरा हो गया, मैं नहाने जा रही हूँ।"
वह उठने लगी, तो अथर्व ने उसकी कलाई पकड़कर उसे रोक लिया और खड़े होते हुए बोला,
"नहीं, कहता इस बारे में कुछ। खाना तो खा लो।"
"मुझे भूख नहीं है।" आशना ने अपने आँसुओं को रोकते हुए कहा और उससे हाथ छुड़ाने लगी।
"ठीक है, दवाई खा लो।" अथर्व ने एक बार फिर कोशिश की, पर आशना ने इंकार में सर हिलाते हुए कहा,
"अब दर्द नहीं हो रहा।"
अथर्व उसकी आवाज़ में आए भारीपन को महसूस कर गया। उसने उसकी कलाई छोड़ दी। आशना चीज़ों का सहारा लेते हुए बाथरूम में चली गई। अथर्व बाथरूम के बंद दरवाज़े को देखते हुए खुद से ही बोला,
"अर्नव ने बताया था कि अपनी शादी से भागकर आई है यह यहाँ, क्योंकि इसकी फैमिली इसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ इसकी शादी करवा रहे थे, पर इसे अपने सपने को पूरा करना था। तो क्या इसलिए यह उनसे नाराज़ है?"
वह यही सोचते हुए वापिस टेबल की तरफ़ बढ़ गया और पेनकिलर निकालकर सोफ़े के सामने वाले टेबल पर ग्लास के साथ रख दिया। साथ में एक चिट्ठी भी रख दी और वहाँ से चला गया।
अब तक अर्नव वहाँ आ चुका था। ज़्यादा कुछ नहीं करना था; सामान शिफ़्ट करना था और बीच में मंडप तैयार करना था जहाँ दोनों की शादी होने वाली थी। अर्नव डेकोरेशन के लिए डेकोरेटर को लेकर आया था। साथ ही ड्रेस डिज़ाइनर भी आया हुआ था और अथर्व के बताए अनुसार दोनों की ड्रेस सिलेक्ट होने के बाद उसके अल्टरिंग का काम शुरू हो चुका था। अथर्व ज्वैलर के लाए गहनों में से आशना के लिए गहने पसंद कर रहा था।
कुछ देर बाद आशना बाथरूम से नहाकर बाहर निकली। उसने बाथरोब पहना हुआ था। वह पहले ही देख चुकी थी कि अथर्व वहाँ नहीं है, तो वह वैसे ही बाहर आ गई। वह सोफ़े की तरफ़ बढ़ने लगी। वहाँ पहुँची, तो वहाँ रखे ग्लास और दवाई के पत्ते पर उसकी नज़र पड़ी। फिर उसने ग्लास के नीचे दबे पेपर को निकाला और पढ़ने लगी,
"नाराज़गी अपनी जगह है और सेहत अपनी जगह। तो कुछ खाकर दवाई खा लेना। थोड़े देर में ब्यूटीशियन आ जाएगी, तो तब तक खाना खा लेना। उसके बाद शादी के बाद ही कुछ खाने को मिलेगा।"
नोट पढ़कर आशना ने उस टेबल की तरफ़ देखा जिस पर खाना रखा था। वहाँ से पहले वाले बर्तन हट चुके थे और अब एक प्लेट रखी थी जो दूसरी प्लेट से ढकी हुई थी। वह टेबल की तरफ़ बढ़ गई, कुर्सी पर बैठी और ऊपर से प्लेट हटाई। प्लेट में रखा पोहा देखकर उसके लब हल्के से खिंच गए। उसे याद आया कि कल सुबह जब अर्नव उसके लिए पोहा लाया था, तो उसने उसे बताया था कि उसे मटर वाला पोहा बहुत पसंद है और आज फिर उसके सामने वही था। उसके लबों पर हल्की सी मुस्कान फैल गई। उसने स्पून उठाते हुए कहा,
"जितने ख़ड़ूस बनते हैं, उतने आप हैं नहीं। मेरी जासूसी करवा रहे हैं? अर्नव से यह तक पूछ लिया कि मुझे क्या पसंद है? नोट बैड, मि. ख़ड़ूस अथर्व सिंघानिया!"
वह अपनी ही बात सुनकर हँस पड़ी, फिर मज़े से पोहा खाने लगी। उसके बाद उसने दवाई खाई और जैसे ही उठकर खड़ी हुई, कमरे का गेट नॉक हो गया। बेचारी आशना की तो साँसें ही अटक गईं। उसने खुद को देखा और सोफ़े की तरफ़ दौड़ पड़ी, तभी बाहर से आवाज़ आई,
"मैडम, सर ने ब्यूटीशियन को भेजा है आपको रेडी करने।"
"काकी, बस दो मिनट।" आशना ने कपड़े पहनते हुए कहा, फिर बाथरोब बाथरूम में टाँग दिया, अपना हुलिया ठीक किया और दरवाज़े की तरफ़ बढ़ गई। सामने खड़ी काकी और ब्यूटीशियन को देखकर वह हल्का सा मुस्कुराई और साइड हट गई। काकी ने अंदर आते हुए कहा,
"मैडम, आपने खाना खा लिया?"
"खाना तो खा लिया, पर अगर आप मुझे 'मैडम' के जगह 'आशना' कहें तो मुझे ज़्यादा खुशी होगी। वह क्या है ना, आपके सर होंगे ख़ड़ूस, पर मैं बहुत फ़्रैंक हूँ, तो मेरे साथ नॉर्मल रहा कीजिए। यह सब ढोंग-शोंग मुझे पसंद नहीं।" आशना ने मुँह बनाते हुए कहा, तो काकी ने हामी भर दी और खाली प्लेट लेकर चली गई। अब ब्यूटीशियन ने उसे देखते हुए कहा,
"आपकी स्किन इतनी क्लीन और सॉफ़्ट कैसे है? कुछ ख़ास इस्तेमाल करती हैं क्या?"
"नैचुरल है। मैं कुछ नहीं लगाती। कॉस्मेटिक वग़ैरह मुझे सूट नहीं करता।" आशना ने मुस्कुराकर जवाब दिया, तो ब्यूटीशियन हैरानी से बोली,
"स्ट्रेंज! आप कुछ भी इस्तेमाल नहीं करतीं, फिर भी इतनी क्लीन और ग्लोइंग स्किन है आपकी। आपको तो तैयार की ज़रूरत ही नहीं है, ऐसे ही इतनी सुंदर लग रही हैं आप।"
"पर मुझे मेरी वाइफ़, वह इस दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत दुल्हन के रूप में देखना है, और इसलिए आप यहाँ आई हैं।" इस रौबदार आवाज़ ने दोनों का ध्यान अपनी ओर खींचा। दोनों ने आवाज़ की दिशा में देखा, तो दरवाज़े पर अथर्व खड़ा था। उसके पीछे कुछ नौकर भी थे। अथर्व ने उन्हें इशारा किया, तो वे सामान अंदर टेबल पर रखकर चले गए।
अथर्व ने अब ब्यूटीशियन को देखकर कहा,
"एक घंटा है आपके पास। मेरी वाइफ़ को ऐसे तैयार कीजिए कि जो देखे, बस देखता ही रह जाए। लगनी चाहिए कि कोई आम दुल्हन नहीं है, मिसेज़ आशना अथर्व सिंघानिया है।"
उसकी बात सुनकर ब्यूटीशियन ने मुस्कुराकर कहा,
"आपकी वाइफ़ वैसे भी कोई आम लड़की नहीं है। आज तक इतनी दुल्हनों को देखा है, पर सादगी में भी इतनी सुंदर लगने वाली लड़की आज पहली बार देख रही हूँ। यकीनन आपकी वाइफ़ इस दुनिया की सबसे हसीन दुल्हन लगेगी।"
उनकी बात सुनकर अथर्व वहाँ से चला गया। वह भी अपने काम में लग गई। अथर्व भी सब काम देखने के बाद दूसरे कमरे में जाकर तैयार होने लगा।
To be continued...
करीब एक घंटे बाद आशना के रूम का गेट नॉक हुआ और बाहर से आवाज़ आई, "आशना, आर यू रेडी?"
ये अथर्व की आवाज़ थी जिसे सुनकर ही आशना का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा था। पेपर पर साइन करके शादी करना एक अलग बात थी और अब उसकी दुल्हन बनकर, लाल जोड़े में सजकर उसके सामने जाना बिल्कुल ही अलग फीलिंग दे रहा था उसे। दिल बेचैन था, घबराहट हो रही थी, उसके मुंह से शब्द तक नहीं निकले। उसकी नर्वसनेस देखकर ब्यूटीशियन ने उसे खड़ा किया, फिर उसकी चुनरी को ढंग से सेट करते हुए बोली,"रिलैक्स, आपके हसबैंड हैं वो।"
आशना ने उसे देखा फिर हल्की सी मुस्कान के साथ नज़रें झुका लीं। अब उसे कैसे समझाती कि कैसा पति है वो, पेपर पर साइन करके जो रातों रात उसकी ज़िंदगी में शामिल हो गया है बिना उसकी मर्ज़ी के।
ब्यूटीशियन ने जाकर दरवाज़ा खोला और अथर्व को देखकर मुस्कुराकर बोली, "देख लीजिये कोई कमी तो नहीं रह गयी?"
अथर्व अब अंदर आ गया। आशना की पीठ उसके तरफ थी पर उसके सामने लगे मिरर में उसका प्रतिबिंब नजर आ रहा था।
अथर्व की नज़रें जब शीशे पर पड़ीं तो वो अपनी पलकें तक झपकाना भूल गया और एकटक उसे निहारने लगा। सुर्ख लाल डिज़ाइनर जोड़ा, लाइट मेकअप क्योंकि ज्यादा मेकअप की तो उसे ज़रूरत ही नहीं थी, माथे पर माथा मट्टी उसके बीच में लटकता मांगटीका, उसने ठीक नीचे छोटी सी लाल बिंदी, आंखों में गहरा काजल जो उसकी मछली जैसी भूरि आंखों की खूबसूरती बढ़ा रही थी।
नाक में बड़ी से नथ जिसने उसके गुलाब की पंखुड़ियों से कोमल चैरी से लाल लबों को आधा ढका हुआ था, टमाटर जैसे लाल गाल जो उसे और भी प्यारा बना रहे थे, जितना सुंदर जोड़ा उतनी ही सुंदर गहनों में सजी आशना किसी रियासत की खूबसूरत राजकुमारी लग रही थी आज।
अथर्व उसपर से नज़रें ही नहीं हटा पा रहा था। आशना उसकी नज़रों को खुद पर महसूस कर पा रही थी इसलिए और भी ज्यादा घबरा रही थी। उसने अपने दुपट्टे को कसके अपनी मुट्ठियों में भींच लिया। उसका घबराया हुआ चेहरा देखकर अथर्व ने उसपर से नज़रें हटा लीं और उसके तरफ कदम बढ़ा दिए तो आशना का दिल ज़ोरों से धड़क उठा, हर लड़की की तरह वो भी घबरा रही थी।
आखिर शादी तो उसकी भी पहली ही बार हो रही थी और ये फीलिंग ही काफी थी उसकी जान बेचैनी बढ़ाने के लिए। वो अपनी तेज़ धड़कती धड़कनों को महसूस कर रही थी।
अथर्व उसके पास आया और उसकी हथेली थामकर बोला, "रिलैक्स, इतना घबरा क्यों रही हो? हमारी शादी पहले ही हो चुकी है ये बस फॉर्मेलिटी है।"
"जो पहले हुई उसे फॉर्मेलिटी करते हैं और अब जो होने वाली है वो है रियल शादी। आप नहीं समझ सकते, रहने दीजिये।" आशना ने उसकी बात सुनकर उसे देखते हुए जवाब दिया फिर नज़रें उसपर से हटा लीं।
अथर्व उसकी बात समझ तक नहीं सका पर देर हो रही थी तो उसे लेकर आगे बढ़ गया पर ब्यूटीशियन रास्ते में आकर खड़ी हो गयी और मुस्कुराकर बोली, "पहले ये तो बताइये कि आपकी दुल्हन लग कैसी रही है?"
अथर्व ने नज़रें घुमाकर आशना को देखते हुए कहा,
"आसमान से उतरी एक परी है,
लाल जोड़े में सजी मेरे सामने खड़ी है,
क्या तारीफ करें हम उनकी,
जिनके एक दीदार से,
हमारे दिल की धड़कनें कुछ यूं बढ़ी हैं,
जैसे सीने से निकलने को बेताब हो,
जैसे उसे इसी चेहरे का बरसों से इंतज़ार हो।"
उसने शायराना अंदाज़ में आशना की तारीफ की जिसे सुनकर आशना हैरानी से उसे देखने लगी, वही ब्यूटीशियन मुस्कुराकर सामने से हट गयी तो अथर्व उसे लेकर आगे बढ़ गया।
आशना ने अब उसे ऊपर से नीचे तक देखा। गोल्डन डिज़ाइनर शेरवानी उसपर लाल दुपट्टा, पैरों में ट्रेडिशनल जूती, गले में मोतियों की सुंदर सी माला, सर पर सेहरा। आज उसका एक अलग ही रूप आशना के सामने था और उसके हर रूप की तरह उसका ये रूप भी आशना को मोहित कर रहा था, वो कुछ पल उसको निहारती रही फिर उसने अपनी नज़रें झुका लीं।
दोनों ने सीढ़ियों पर कदम रखा तो सबकी नज़रें उनपर ही ठहर गयीं, दोनों लग ही इतने हसीन रहे थे कि कोई भी उनपर से अपनी नज़रें नहीं हटा पा रहा था।
दोनों नीचे आए तो काकी ने उनकी नज़र उतारी फिर शुरू हुई शादी की रस्में। पहले वरमाला की रस्म की बारी आई, दोनों एक दूसरे के आमने सामने खड़े थे।
अर्नव ने वरमाला की थाल उनके सामने बढ़ाई तो अथर्व ने बड़े आराम से वरमाला उसके गले में डाल दी। पर आशना के लिए ये सब इतना आसान नहीं था, उसके हाथ ही नहीं उठ रहे थे। उसने किसी तरह अपने कांपते हाथों से वरमाला उठाई और उसके तरफ बढ़ा दी।
अथर्व उसके सामने झुक गया। आशना ने उसे वरमाला पहनाई तो सबने तालियां बजाई और उनपर फूल बरसाए गए। सामने खड़ा कैमरा मैन उनकी फोटो लेने लगा साथ ही दूसरा कैमरा मैन वीडियो बना रहा था। उसके बाद दोनों को मंडप पर बिठाया गया, पंडित जी ने मंत्र पढ़ने शुरू किए, दोनों अग्नि में आहुति डाल रहे थे साथ ही मंत्रों को दोहरा भी रहे थे।
पंडित जी ने कन्यादान के लिए वधु के पिता को आगे आने को कहा तो आशना की आंखे भर आईं, कैसी बेटी थी वो जिसने अपने पिता स कन्यादान का हक तक छीन लिया था। अथर्व पल में उसकी उदासी भांप गया और उसकी हथेली पर अपनी हथेली रखते हुए बोला,"वो यहां नहीं है।"
"तो कन्यादान कौन करेगा?" पंडित जी ने तुरंत ही सवाल किया तो अथर्व ने काकी को आगे आने को कहा। उन्होंने आकर कन्यादान किया, आशना की आंखों से आंसू निकलने लगे, ये तो नहीं चाहती थी वो। रस्में आगे बढ़ीं।
दोनों ने अग्नि के फेरे लेते हुए वचनों को दोहराया, जहां अथर्व सब बड़े आराम से किये जा रहा था वही आशना के लिए ये उतना ही मुश्किल था। पर अब पीछे हटने के सारे रास्ते बन्द हो चुके थे। फेरों के बाद अथर्व ने उसके गले में मंगलसूत्र पहना दिया, आशना ने अपनी आंखे भींच लीं, अथर्व ने उसकी मांग भरी तो उसकी आंखों से कुछ आंसू की बूंदें उसके गालों पर लुढ़क गए।
आखिर वो इस समझौते के रिश्ते में बंध चुकी थी जिसकी उम्र बस एक साल थी, ये सोचकर ही किसी भी लड़की का दिल टूट जाए और आशना का हाल भी कुछ ऐसा ही था।
शादी संपन्न हुई तो दोनों ने पंडित जी और काकी का आशीर्वाद लिया। अर्नव पंडित जी को पैसे देकर उन्हें छोड़ने चला गया, उसने इस दौरान आशना के तरफ देखा तक नहीं था। ब्यूटीशियन भी अपने पैसे लेकर चली गयी तो अथर्व आशना का हाथ थामे सीढ़ियों के तरफ बढ़ गया।
आशना किसी रोबोट की तरह उसके साथ चले जा रही थी, झुकी नज़रें, उदास चेहरा, सुनी आंखे ये सब उसकी उदासी को दिखा रहे थे। कमरे में जाकर अथर्व ने उसका हाथ छोड़ा, घड़ी शाम के 5 बजा रही थी। अथर्व ने अपनी शेरवानी को उतारते हुए कहा, "जाओ चेंज कर लो, पहले तुम्हारे लिए शॉपिंग करने चलेंगे, उसके बाद घर भी जाना है।"
आशना ने कोई जवाब नहीं दिया, यूंही खड़ी रही तो अथर्व उसकी तरफ मुड़ा और उसके कंधों को पकड़ते हुए बोला, "तुम ऐसे क्यों बिहेव कर रही हो जैसे मैंने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की हो?"
"नहीं की थी क्या?" आशना ने अचानक ही नज़रें उठाकर सवाल किया तो अथर्व खामोश हो गया फिर उसे छोड़ते हुए बोला, "मेरी मजबूरी थी।"
"और अब मैं मजबूर हो गयी इस समझौते के रिश्ते को निभाने के लिए जिसकी उम्र सिर्फ एक साल है।" आशना ने गुस्से में कहा तो कहा अथर्व ने उसकी बांह को पकड़ा और गुस्से से बोला,
"तुम ये पहले से जानती थी, तुम्हारी हाँ के बाद ही सब हुआ है तो अब ये नाटक बन्द करो, समझी.... ऐसे तो दिखाओ मत जैसे तुम्हारे साथ धोखा हुआ है अत्याचार किया जा रहा है तुमपर क्योंकि तुमने सब अपनी मर्ज़ी से किया है। इस समझौते के लिए अच्छी खासी रकम लेने वाली हो तुम मुझसे, तो कोई एहसान नहीं किया है तुमने मुझपर, जो किया है अपने फायदे के लिए किया है।"
"आशना, कहाँ खो गयी हो?" अथर्व की आवाज़ आशना को होश में लौटा लाई, वो सब तो उसकी इमेजिनेशन थी। उसने अथर्व को देखा तो उसने आगे कहा,"कबसे तुम्हे आवाज़ दे रहा हूँ, कहाँ खोई हुई थी तुम?"
"नहीं, कही नहीं।" आशना ने खुदको समान्य करते हुए जवाब दिया तो अथर्व ने चेंजिंग रूम के तरफ जाते हुए कहा, "चेंज कर लो पहले शॉपिंग पर चलेंगे उसके बाद घर भी जाना है, सब इंतज़ार कर रहे होंगे हमारा।"
आशना कुछ नहीं बोली, चुपचाप ड्रेसिंग टेबल के तरफ बढ़ गयी। पहले कुछ सेकंड तक खुदके इस रूप को शीशे में एकटक देखती रही, उसकी आंखों में नमी तैर गयी तो उसने आंसुओं को बाहर आने से पहले ही साफ किया और खुदसे बोली,
"नहीं आशना तू कमज़ोर नहीं पड़ सकती, अब तुझे अगले एक साल तक इस रिश्ते को निभाना ही होगा, उसके बाद तुम दोनों के रास्ते हमेशा के लिए जुदा हो जाएंगे। दूर चली जाइयो इनसे, इतनी दूर की इनकी और इस रिश्ते की परछाई भी तुझतक न पहुँच सके। याद रख तू ये सब सिर्फ अपने सपने को पूरा करने के लिए कर रही है, बस एक साल जैसे तैसे निभा ले इस समझौते की शादी को उसके बाद तुझे इससे हमेशा के लिए आज़ादी मिल जाएगी।"
उसने खुदको समझाया फिर धीरे धीरे गहनों को उतारने लगी, उसके बाद उसने अपने सर से चुनरी हटाई पर जुड़े को यूंही छोड़ दिया, वो सोफे के तरफ बढ़ गयी और सब कपड़ों को देखने लगी।
इतने में अथर्व बाहर आ गया, उसने उसे यूं परेशान नज़रों से कपड़ों को घूरते देखा तो ड्रेसिंग टेबल के तरफ बढ़ते हुए बोला, "क्या हुआ इतनी परेशान होकर कपड़ों को क्यों देख रही हो?"
उसकी आवाज़ सुनकर आशना उसके तरफ पलटी फिर मासूम सी शक्ल बनाकर धीरे से बोली, "आपके घर जाना है न तो समझ नहीं आ रहा कि क्या पहनूँ, आप ही बता दीजिये क्या पहनूँ?"
उसके सवाल पर अथर्व ने कोई जवाब नहीं दिया और वापिस चेंजिंग रूम में चला गया आशना बस उसको देखती ही रह गयी।
कुछ सेकंड बाद ही वो वापिस बाहर आया। इस वक़्त उसके हाथ में एक शोपर था, वो आशना ने तरफ आ गया और शोपर उसके तरफ बढ़ाते हुए बोला,"इसे पहनकर तैयार हो जाओ।"
आशना ने पहले शोपर को देखा फिर उसे देखने लगी तो उसने आंखों से ही लेने का इशारा कर दिया। आशना ने शोपर लिया और बाथरूम में चली गयी।
कुछ देर में फ्रेश होकर चेंज करके बाहर आई। अब उसने थ्री फॉर्थ स्लीव वाली बोट नेक ब्लाउज के साथ सुंदर सी रेड एम्ब्रॉइडेड शिफोन की साड़ी पहनी हुई थी। साड़ी को बड़ी ही खूबसूरती से बांधा हुआ था, कमर को पूरी तरह से कवर किया हुआ था।
आशना उस साड़ी में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। उसपर उसके मांग में चमकता सिंदूर उसके खूबसूरत से चेहरे के नूर को बढ़ा रहा था। गले मे बस सोने का मंगलसूत्र पहना हुआ था जो कुछ देर पहले ही अथर्व ने उसे पहनाया था। मेहंदी रचे हाथों मे अब भी भरी भरी चूड़ियाँ डाली हुई थी और पैरों में पहनी पायल अपने मधुर संगीत से उस निर्जीव कमरे को जैसे जीवंत कर रही थी।
आशना ड्रेसिंग टेबल के तरफ बढ़ गयी जहां अभी अथर्व खड़ा था। एक पल को अथर्व भी उसके इस रूप को देखता रह गया था पर जल्दी ही उसने खुदको संभाला और एक शोपर् उसके तरफ बढ़ाते हुए बोला,"ये तुम्हारे लिए मेरे तरफ से हमारी शादी का गिफ्ट।"
आशना ने हैरानी से उसे देखा तो उसने फिरसे कहा, "गिफ्ट है, ले लो... डोंट वरी इसके पैसे नहीं काटे जाएंगे।"
ये सुनकर आशना का चेहरा उतर गया, उसने गिफ्ट साइड कर दिया और अपने बालों मे से गजरे को निकालते हुए बोली, "मुझे नहीं चाहिए ... और एक बात, मैंने ये शादी पैसों के लिए नहीं की है, बस मेरे पास पैसे नहीं थे आपके कर्ज़ को उतारने के लिए इसलिए मैंने इस शादी के लिए हाँ कहा है।"
"अच्छा ठीक है, मैंने यूंही कह दिया है। ये तो ले लो।" उसने एक बार फिर शोपर उसके तरफ बढ़ा दिया तो आशना ने फिरसे उसे साइड खिसका दिया और वहाँ से हटते हुए बोली, "चलना है तो चलिए वरना मैं जाकर सो जाऊंगी थक गयी हूँ मैं।"
उसका ये अंदाज़ एक बार फिर अथर्व को गुस्सा दिला गया उसने उसकी बांह पकड़कर उसे अपनी तरफ घुमाया तो आशना ने घूरकर उसे देखा, "कॉंट्रैक्ट में ऐसा कही नही लिखा था कि मुझे आपकी सारी बात माननी होगी तो अब आप मेरे साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते, मुझे नहीं चाहिए कोई गिफ्ट।"
"मत लो, भाड़ मे जाओ। मुझे भी कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं बस तुम्हे ये बता रहा हूँ कि वहां जाकर अपनी ज़ुबान ज्यादा मत चलाना जितनी ज़रूरत हो उतना ही बोलना और फॉर गॉड सेक वहां पर प्लीज़ कोई गड़बड़ मत करना, मुझे वहां कोई तोड़फोड़ नहीं चाहिए। जितना भी तहलका मचाना हो यहां आकर मचा लेना पर वहां कोई गड़बड़ मत करना और सबसे बड़ी और इम्पोर्टेन्ट बात, वहां ऐसे बिहेव करना की उन्हें लगे कि हम एक दूसरे से प्यार करते है। उन्हें बिल्कुल भी शक नहीं होना चाहिए की हमारा रिश्ता कैसे और क्यों जुड़ा है।" उसने गुस्से से घूरते हुए अपनी बात कही और वहाँ से बाहर निकल गया।
आशना की आंखे छलक आई, उसने खुदको संभाला और उसके पीछे चल दी।
To be continued...
अथर्व गुस्से में निकल गया, आशना उसके पीछे चली गई। गेट के बाहर गाड़ी खड़ी थी; अथर्व ड्राइविंग सीट पर बैठा हुआ था। आशना उसके बगल वाली सीट पर बैठ गई और सीट बेल्ट लगाने के बाद खिड़की से बाहर देखने लगी। अथर्व को उसका व्यवहार अजीब लगा, पर उसने कुछ नहीं कहा।
कुछ देर बाद उसने एक शॉपिंग मॉल की पार्किंग में गाड़ी रोकी और उसका हाथ थामकर वीआईपी गेट से अंदर प्रवेश किया। उनके स्वागत के लिए मॉल का मैनेजर वहाँ मौजूद था। यह देख आशना हैरान हुई; फिर उसे याद आया कि वह जिसकी पत्नी का रोल प्ले कर रही है, वह एक बहुत बड़ा इंसान है। उसने लबों पर हल्की सी मुस्कान बिखेर ली।
मैनेजर उन्हें वीआईपी सेक्शन में ले गया, जहाँ अथर्व के कहे अनुसार अलग-अलग आउटफिट पहले ही तैयार थे। दोनों को वहाँ लगे सोफ़े पर बिठाया गया और सेल्स गर्ल एक के बाद एक, कपड़ों के स्टैंड लेकर उनके सामने आईं। आशना आँखें फाड़कर सब देख रही थी।
अथर्व उठकर खड़ा हुआ और अपने कोट के ऊपर के बटन खोलते हुए उन स्टैंड्स की ओर बढ़ गया। उसने कई ड्रेसेज़ देखे, फिर कुछ चुनकर उन्हें पैक करके घर भेजने को कहा और बिल चुका दिया। आशना सारा वक़्त खामोशी से देखती रही। जैसे ही वे बाहर निकले, वह बोली:
"इतनी महँगी ड्रेस क्यों खरीदी? इतनी सारी! किसी लोकल मार्केट में जाते, तो आधे से भी कम पैसों में इससे ज़्यादा चीज़ें खरीद लेते।"
"शट अप, आशना! चुपचाप मेरे साथ चलो और मैं जो कर रहा हूँ, मुझे करने दो।" अथर्व ने उसे घूरते हुए कहा। उसकी बात सुनकर आशना ने मुँह फुला लिया और खामोशी से उसके साथ चलने लगी। अथर्व ने उसके लिए बहुत सारी सैंडल और लाइट ज्वेलरी ऑर्डर की। ज़रूरी चीज़ें लेने के बाद वे वहाँ से निकल गए।
एक बार फिर आशना खामोशी से बाहर देखने लगी। अथर्व कार चलाते हुए सोच रहा था, "आज पूरे दिन में बस एक बार पुरानी आशना देखने को मिली थी और तब भी उसने उसे डाँटकर चुप करवा दिया था; अब फिर से आशना खामोश हो गई थी।"
कुछ आधे घंटे बाद गाड़ी एक बड़े से गेट के अंदर बढ़ गई, गलियारे से होते हुए पार्किंग में जाकर रुकी। वहाँ कई महँगी गाड़ियाँ खड़ी थीं। वह बंगला, बहुत बड़े एरिये में फैला हुआ था, किसी महल से कम नहीं लग रहा था। कमाल का एक्सटीरियर था। आशना आँखें फाड़कर उसे देख रही थी। उसने मन ही मन कहा:
"इतना बड़ा महल! यह तो सच में बहुत अमीर है! दो-दो इतने बड़े-बड़े महल हैं इनके! तभी इतनी अकड़ में रहते हैं।"
यह सोचते हुए उसने मुँह बनाया, पर तिरछी नज़रों से अथर्व को देखा जो सीट बेल्ट खोल रहा था। अथर्व बाहर निकला, फिर आशना का दरवाज़ा खोलकर उसके आगे हाथ बढ़ाया। आशना कुछ देर उसके हाथ को देखती रही, फिर उसने धीरे से उसकी हथेली पर अपनी हथेली रख दी; अथर्व ने उसकी हथेली को थाम लिया।
आशना बाहर निकली, तो देखा गेट पर और आस-पास गार्ड्स खड़े थे। उन्हें देखकर सब ने सर झुका लिया। अथर्व उसकी हथेली थामे दरवाज़े की तरफ़ बढ़ गया। एक गार्ड ने दरवाज़ा खोला, तो दोनों ने अंदर कदम रखा। वह सच में एक शाही महल था। आशना आँखें फाड़कर सब देखने लगी।
उस बंगले में इंटीरियर भी बहुत कमाल का था; एक से एक एंटीक चीज़ें थीं और हर कुछ दूरी पर नौकर काम कर रहे थे। सामने बड़ा सा डाइनिंग टेबल था जिस पर खाना लगाया जा रहा था। उसके ऊपर बड़ा सा झूमर लगा था; टेबल पर कई खूबसूरत वज़नदार चीज़ें रखी हुई थीं। सामने वाली दीवार पर बड़ी सी फ़ोटो लगी थी; शायद फैमिली फ़ोटो थी, जिसमें अथर्व भी था और वह एकदम कॉलेज गोइंग बॉय लग रहा था। दोनों तरफ़ से घुमावदार सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। कलर कॉम्बिनेशन भी कमाल का था; व्हाइट एंड ग्रे। यह पैलेस भी अथर्व के बंगले जैसा ही था; बेहद खूबसूरत।
आशना सब देख ही रही थी कि उसके कानों में एक आवाज़ पड़ी:
"आप आ गए! हम सब आप दोनों का इंतज़ार कर रहे हैं।"
आवाज़ सुनकर अथर्व के साथ-साथ आशना ने भी आवाज़ की दिशा में देखा; सामने सुंदर सी सिल्क की साड़ी पहने एक 40-45 साल की महिला खड़ी थी। बालों को जूड़े में बाँधा हुआ था; माँग में सिंदूर भरा हुआ था; कानों में गोल्ड के इयररिंग्स; गले में सोने का मंगलसूत्र; हाथों में डायमंड के बैंगल्स; कमाल का लुक था उनका; खूबसूरत भी बहुत थी और अलग ही क्लास नज़र आ रहा था। मुँह से अलग ही तेज झलक रहा था और प्यारी सी मुस्कान फैली हुई थी। आशना हैरानी से उन्हें देख रही थी, वहीं उन्हें देखकर अथर्व के भाव कोमल हो गए थे। यह थी अथर्व की माँ, सुहासिनी जी।
अथर्व उन्हें देखकर उनके तरफ़ बढ़ गया और धीमी आवाज़ में बोला:
"मोम।"
उसके मुँह से "मोम" सुनकर आशना ने आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखा, फिर हैरानी से सुहासिनी जी को देखने लगी। सुहासिनी जी भी उनके पास आईं, तो अथर्व उनके गले लग गया। सुहासिनी जी का चेहरा खुशी से दमक उठा था। आखिर अथर्व उनका एकलौता बेटा ही नहीं, बल्कि एकलौती औलाद था, जो उनसे दूर रहता था और वह उसकी कमी को बहुत महसूस करती थी, पर उसकी खुशी के लिए कुछ कहती नहीं थी।
कुछ देर वह अपने बेटे को अपने सीने से लगाए खड़ी रहीं, फिर उनकी नज़र अथर्व के साथ खड़ी आशना पर पड़ी, तो उनकी मुस्कान चौड़ी हो गई। वे अथर्व से अलग हुईं और आशना की तरफ़ बढ़ गईं। उनके पास आते ही आशना ने झुककर उनके पैर छू लिए, तो उन्होंने हैरानी से अथर्व को देखा। अथर्व हल्का सा मुस्कुरा दिया। अब सुहासिनी जी भी मुस्कुरा उठीं। उन्होंने बड़े प्यार से उसके सर पर हाथ रखकर मुस्कुराकर कहा:
"सदा खुश रहो, अखंड सौभाग्यवती भवः।"
उनकी बात सुनकर आशना के लबों पर दर्द भरी मुस्कान फैल गई। वह उठकर खड़ी हुई, तो सुहासिनी जी ने प्यार से उसके गाल को छूकर मुस्कुराकर कहा:
"कितनी प्यारी बच्ची है।" (फिर उन्होंने अथर्व को देखकर कहा) "उम्मीद नहीं थी हमें, पर आपने अपने लिए अच्छी लड़की ढूँढ़ी है। पहले तो हमें शिकायत थी कि आपने अकेले में, जल्दबाज़ी में शादी कर ली और हमें बताया भी नहीं, पर अब हमारी शिकायत दूर हो गई, क्योंकि आपने हमें इतनी प्यारी बहू दे दी है।"
"सही कहा, बहू ने। हमें आशा नहीं थी कि आप इतनी संस्कारी लड़की ढूँढ़ेंगे अपने लिए, पर आपने हमें गलत साबित कर दिया। यह देखकर हमें खुशी हुई। आपकी पत्नी को बड़ों का सम्मान करना आता है, यह देखकर अच्छा लगा। हमें तो लगा था कि फिर से किसी अंग्रेज़न को उठाकर घर ले आएंगे, जिन्हें ना कपड़े पहनने का सलीका आता होगा, ना ही बड़ों का आदर करना सिखाया होगा उन्हें उनके माँ-बाप ने।" एक सख़्त आवाज़ ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। आशना ने भी हैरानी से सामने देखा; सामने अथर्व की दादी खड़ी थीं।
अथर्व ने उनकी बात सुनकर चिढ़ते हुए कहा:
"दादी, वह मेरी दोस्त थी और आप सब से मिलना चाहती थी, इसलिए उसे घर लाया था। पर आप तो उसी बात को लेकर ही बैठी हैं। उसे आपकी बहू बनाने के लिए नहीं लाया था मैं, और जिसे बहू बनाकर लाया हूँ, वह हर तरह से आपकी बहू बनने के लायक है।"
"यह तय करने वाले आप कौन होते हैं? आपने अकेले-अकेले शादी कर ली और अब किसी को भी उठाकर घर ले आए, इसका मतलब यह नहीं कि हम किसी को भी अपने घर की बहू बना लेंगे। आपकी पसंद पर हमें विश्वास नहीं, इसलिए हम देखेंगे आपकी पसंद को और उसके बाद हम तय करेंगे कि वह हमारे घर की बहू बनने लायक है भी या नहीं।" दादी ने सख़्ती से कहा। उनकी बात सुनकर आशना परेशान सी अथर्व को देखने लगी; उसने पलकें झपकाकर उसे शांत रहने का इशारा किया।
दादी उनके पास आईं, तो आशना अथर्व का हाथ थामे नीचे झुक गई और उनके चरण स्पर्श करते हुए बोली:
"नमस्ते दादी माँ।"
उसकी मीठी सी आवाज़ दादी के लबों पर मुस्कान ले आई। दोनों सीधे खड़े हुए, तो दादी ने प्यार से उसके सर पर हाथ रखते हुए मुस्कुराकर कहा:
"सौभाग्यवती भवः। आप जैसी प्यारी और समझदार बच्ची इन्हें कहाँ से मिल गई? और आपको इनके अंदर ऐसा क्या दिखा जो आपने इन्हें अपने लिए पसंद कर लिया? हमें तो यह बहुत ही बदतमीज़ और घमंडी लगते हैं। गुस्सा तो हमेशा इनकी नाक पर बैठा रहता है, फिर आप जैसी समझदार और प्यारी बच्ची ने इस बिगड़ैल लड़के में ऐसा क्या देख लिया जो इनसे शादी करने को तैयार हो गई?"
उनकी बात सुनकर आशना उन्हें आँखें बड़ी-बड़ी करके हैरानी से देखने लगी। वहीं अथर्व ने मुँह बनाते हुए कहा:
"दादी, आप अपने पोते की बुराई कर रही हैं।"
"अब आप में तारीफ़ लायक कुछ है ही नहीं, तो इसमें हम क्या कर सकते हैं? (दादी ने उसे देखकर मुस्कुराकर कहा, फिर आशना को देखकर बोलीं) आपने जवाब नहीं दिया। इतना हैरान होने की ज़रूरत नहीं है आपको। दादी हैं हम उनकी, आपके पति बाद में बने हैं, पहले हमारे पोते हैं। हमारी ही गोद में खेल-कूदकर बड़े हुए हैं। उनकी कमियाँ और खूबियाँ हमसे बेहतर और कोई नहीं जानता। अब हम आपसे जानना चाहते हैं कि आपको इनकी कौन सी खूबी पसंद आई, जिसके वजह से आपने इनसे शादी करने का फ़ैसला ले लिया?" वे आशना के जवाब का इंतज़ार करने लगीं। वहीं आशना उनके सवाल को सुनकर संकट में फँस गई थी। दो दिन पहले ही मिली थी उससे, अभी तक उसे जान ही कहाँ पाई थी, तो उन्हें क्या बताती? वह सोच में डूब गई, सबकी नज़रें उसी पर टिकी हुई थीं।
अचानक ही आशना को आज सुबह उसका ख़्याल रखना याद आया; कैसे उसने उसके लिए उसकी पसंद का ब्रेकफ़ास्ट मँगवाया और उसे दवाई और खाना खाने के लिए भी कहा था। यह याद करके वह हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली:
"वैसे तो आप उनकी दादी हैं, तो आपसे बेहतर मैं उन्हें कभी नहीं जान सकती। आप उनसे बचपन से जुड़ी हैं और हमें मिले हुए ज़्यादा वक़्त नहीं हुआ, इसलिए मैं ज़्यादा कुछ तो नहीं जानती इनके बारे में। शायद आगे जाकर मैं भी उन्हें जानने लगूँ, पर अभी उनकी जो खूबी मुझे सबसे ज़्यादा पसंद है, वह है इनका केयरिंग नेचर।"
उसकी बात सुनकर अथर्व आँखें बड़ी-बड़ी उसे देखने लगा। वहीं आशना ने मुस्कुराकर आगे कहा, "आपने सही कहा था दादी, बहुत ही ख़ड़ूस हैं आपके पोते, बदतमीज़ भी हैं, अकड़ू भी हैं और गुस्सा तो पूछिए ही मत, हर वक़्त ऐसा सीरियस चेहरा लेकर घूमते हैं जैसे जाने कहाँ के राजा-महाराज हों और जाने कितने ही बड़े रियासत का भार इनके अकेले के कंधों पर हो, पर इन सबके बावजूद उनके अंदर एक खूबी है जो किसी को अपनी तरफ़ आकर्षित कर सकती है और वह है इनका केयरिंग नेचर, हालाँकि वह जल्दी से दिखाते नहीं हैं, पर है बहुत केयरिंग।"
उसकी बात सुनकर दादी की मुस्कान बड़ी हो गई। उन्होंने मुस्कुराकर कहा,
"आप हमारे टेस्ट में पास हुईं। आप उस अथर्व को जान गईं जिन्हें आज तक बस कुछ चुनिंदा लोग ही जान पाए हैं। हमें नाज़ है अपने पोते की पसंद पर कि उन्होंने इतनी प्यारी, समझदार, सुलझी हुई और संस्कारी लड़की को अपने जीवन में शामिल किया है।"
"हाँ, और हमें आप पर पूरा भरोसा है कि आप हमारे बिगड़े हुए पोते को लाइन पर ले आएंगी।" इस आवाज़ ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। सामने एक 60 साल के आस-पास के बुज़ुर्ग खड़े थे और मुस्कुराकर आशना को देख रहे थे। अथर्व आगे आकर उनके पैर छूने लगा, पर उन्होंने उसे अपने गले से लगाते हुए कहा:
"तो आखिर आपने शादी कर ही ली।"
उन्होंने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा, तो अथर्व ने भी धीमी आवाज़ में ही कहा:
"आपने ही कहा था दो दिनों के अंदर एक ऐसी लड़की ढूँढ़ूँ जो मेरी पत्नी और सिंघानिया खानदान की बहू बनने के लायक हो, उससे शादी करके उसे आपके पास लाऊँ, वरना आप सारी प्रॉपर्टी ट्रस्ट में दे देंगे। तो लीजिए, ले आया आपके लिए बहू। देख लीजिये कि आपकी बहू बनने लायक है या नहीं।"
"वह तो हम देखेंगे ही। और देखेंगे तो हम आपकी शादी की वीडियो भी। पर पहले ज़रा उनसे मिल लेते हैं जिन्हें आप हमारी बहू बनाने के लिए लाए हैं।" उन्होंने शातिर मुस्कान के साथ जवाब दिया, तो अथर्व उनसे अलग होते हुए बोला:
"दादू, वह आपकी बहू बन चुकी है। मुझसे उसकी शादी हो चुकी है।"
उसने गंभीरता से कहा, तो दादी जी ने आगे बढ़ते हुए कहा:
"इसका फ़ैसला तो हम करेंगे। आप किसी भी लड़की को उठाकर लाएँगे, तो हम आँख बंद करके उन्हें अपने खानदान की बहू तो नहीं बना लेंगे।"
उनकी बात सुनकर अथर्व हैरान हो गया। कहीं दादा जी आशना के सामने खड़े हो गए और मुस्कुराकर बोले:
"हम आपके पति के दादा जी हैं।"
आशना ने तुरंत झुककर उनके चरण स्पर्श कर लिए, तो उनके लब भी मुस्कुरा उठे, पर उन्होंने उसे छुपा लिया और गंभीरता से बोले:
"इससे काम नहीं चलेगा। सिर्फ़ अथर्व से शादी कर लेने से आपको इस घर की बहू होने का दर्जा नहीं मिलेगा। आपको इस घर की बहू बनने के लिए हमारी परीक्षा को पास करना होगा।"
"कैसा टेस्ट दादा जी?" आशना के बजाय अथर्व ने ही सवाल कर दिया, तो दादी जी ने उसे घूरते हुए कहा:
"हम आपसे बात नहीं कर रहे हैं, तो आप बीच में ना बोलें तो बेहतर होगा। वैसे भी आपको जो करना था आपने कर लिया, अब हमारी बारी। यह तो आप बस देखिए और जो हमें करना है, हमें करने दीजिए।"
To be continued...
"कैसा टेस्ट दादा जी?" आशना के बजाय अथर्व ने ही सवाल कर दिया। दादी जी ने उसे घूरते हुए कहा, "हम आपसे बात नहीं कर रहे हैं, तो आप बीच में न बोलें तो बेहतर होगा। वैसे भी, आपको जो करना था आपने कर लिया, अब हमारी बारी। यह तो आप बस देखिए, और जो हमें करना है हमें करने दीजिए।" उन्होंने अथर्व को घूरते हुए कहा। वह मुँह बनाकर चुप हो गया। दादा जी ने अब आशना को देखकर जवाब दिया, "बेटा, आपका नाम क्या है?"
"आशना," आशना ने तुरंत जवाब दिया। उसकी मीठी सी आवाज़ सुनकर दादी ने मुस्कुराकर आगे कहा, "बहुत प्यारा नाम है आपका, बिल्कुल आपकी तरह। किसने रखा आपका यह नाम?"
"शायद पापा ने," आशना ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया।
"आपके पापा का नाम? क्या करते हैं? और कहाँ से हैं आप?" उन्होंने जैसे ही यह सवाल किया, अथर्व ने झट से कहा, "दादा जी, शादी इससे हुई है, उसके खानदान से नहीं। आपको यही जानना है ना कि हमारे खानदान की बहू बनने लायक यह है या नहीं, तो मैं आपको बता देता हूँ। यह एक मिडिल क्लास फैमिली से है, पर खानदान अच्छा है और इसका अंदाज़ा आप इन्हें देखकर भी लगा सकते हैं। इसलिए उनकी फैमिली के बारे में कोई सवाल मत कीजिए, वह अपसेट हो जाती है क्योंकि हमारी शादी में उनकी मंज़ूरी शामिल नहीं है, उन्हें यह रिश्ता मंज़ूर नहीं था क्योंकि वह मिडिल क्लास से है और मैं अमीर हूँ।"
अथर्व ने झूठ भी इतने कॉन्फिडेंस से बोला कि किसी को भी उस पर यकीन हो जाता, पर शायद दादा जी उसके बहाने से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने अब तिरछी नज़रों से अथर्व को घूरते हुए आशना से सवाल किया, "बेटा, आप बताइए क्या जो अथर्व कह रहे हैं वह सच है?"
आशना कुछ देर खामोश रही, फिर उसने धीमी आवाज़ में कहा, "जी दादा जी।" आशना ने भी झूठ कहा। अब दादा जी ने गंभीरता से सवाल किया, "बेटा, एक बात हम सच-सच बताइए, क्या आपको अथर्व ने किसी तरह से मजबूर किया है उनसे शादी करने के लिए?" उनके सवाल को सुनकर सब चौंक गए, पर उनकी नज़रें तो बस आशना पर टिकी हुई थीं। आशना उनके सवाल को सुनकर कुछ परेशान लगने लगी थी, पर जल्दी ही उसने खुद को संभाला और मुस्कुराकर बोली, "नहीं दादा जी, ऐसा कुछ भी नहीं है। मैंने यह शादी अपनी मर्ज़ी से की है।"
"एक आखिरी टेस्ट होगा आपका, हम देखना चाहते हैं कि आगे चलकर आपको अगर इस परिवार को संभालना पड़ा तो आप यह कर सकेंगी या नहीं। बड़े बुज़ुर्ग कह गए हैं कि जो लड़की घर की रसोई का कुशलता से संभाल ले, वह घर को भी संभालकर रखने में सक्षम होती है और साथ ही उसके अंदर हर रिश्ते को संभालकर रखने का गुण भी होता है, तो हम आपका यही टेस्ट लेना चाहते हैं। हमें भी देखना है कि हमारी बहू हमारे घर को संभालने के लायक है भी या नहीं।" उन्होंने बड़े आराम से अपनी बात पूरी की। वहीं उनकी बात सुनकर अथर्व ने झट से इंकार करते हुए कहा, "दादी जी, यह आप क्या कह रहे हैं? इन्हें खाना बनाने की क्या ज़रूरत है? इतने तो नौकर हैं घर में।"
"बात खाना बनाने की नहीं है, हम देखना चाहते हैं कि आगे चलकर यह आपके घर और आपसे जुड़े रिश्तों को संभाल पाएंगी या नहीं। वैसे भी सारा खाना बना हुआ है, आपकी पत्नी को बस खाने में कुछ मीठा बनाना है, जिससे हमें यह भी पता चल जाएगा कि आपकी पसंद कितनी लायक है और साथ ही इनकी पहली रसोई की रस्म भी हो जाएगी और हम मिठास के साथ इस नए रिश्ते की शुरुआत कर पाएँगे।" दादा जी ने बड़े आराम से जवाब दिया, पर अथर्व उनकी बात सुनकर घबरा गया था। वह कुछ कहने जा ही रहा था कि आशना ने दादा जी को देखकर बड़े अदब से कहा, "ठीक है दादा जी, अगर आप देखना चाहते हैं कि मैं आपके पोते की पत्नी और आपके परिवार की बहू बनने के लायक हूँ या नहीं, तो मैं खुद को साबित ज़रूर करूँगी कि आपके पोते ने मुझे चुनकर कोई गलती नहीं की है।"
उसकी बात सुनते ही अथर्व ने उसे गुस्से से घूरते हुए कहा, "आशना, यह तुम..."
उसने इतना कहा ही था कि आशना ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए कहा, "नहीं, अब आप कुछ नहीं कहेंगे। आपने ही कहा था ना कि मैं सिर्फ आपकी पत्नी नहीं, बल्कि इस घर की बहू भी हूँ और मुझे इन रिश्तों को निभाना है, तो अब मुझे रोक क्यों रहे हैं? मैं साबित कर दूँगी कि आपने मुझे अपनी पत्नी बनाकर कोई गलती नहीं की है और फिर आपके पूरे परिवार का आशीर्वाद मिल जाएगा हमारे रिश्ते को, और बड़ों के आशीर्वाद के बिना कभी कोई रिश्ता नहीं टिक सकता, इसलिए मुझे यह करने दीजिए, please।" आशना ने आँखों से ही रिक्वेस्ट की। वहीं बातों-बातों में उसने यह भी जता दिया कि वह जो कर रही है वह उसके लिए ही कर रही है, जो उसने कहा था वही कर रही है। अथर्व उसकी बात समझकर खामोश हो गया।
वहीं आशना के चुप होते ही उसे अपने सर पर किसी के प्यार भरे स्पर्श का एहसास हुआ। उसने सर घुमाकर देखा तो सामने एक अंकल खड़े थे, बिल्कुल अथर्व जैसे ही लग रहे थे, बस उम्र ज़्यादा थी, पर उन्हें देखकर उनकी उम्र का अंदाज़ा लगाना थोड़ा मुश्किल था, उन्होंने खुद को बहुत अच्छे से मेंटेन किया हुआ था। आशना को यह समझने में वक़्त नहीं लगा कि यह अथर्व के डैड हैं। उसने झुककर उनके पैर छूते हुए कहा, "नमस्ते अंकल।"
पहले तो अधिराज जी (अथर्व के डैड) खुश हुए, पर उसके मुँह से "अंकल" सुनकर उन्होंने घूरकर अथर्व को देखते हुए कहा, "आपने इन्हें बताया नहीं कि हम आपके डैड हैं और रिश्ते में इनके भी डैड लगते हैं।"
अथर्व कुछ कहता उससे पहले ही आशना ने खड़े होते हुए मासूम सा चेहरा बनाकर कहा, "Sorry डैड।"
उसके मुँह से "डैड" सुनकर अधिराज जी मुस्कुरा उठे। उन्होंने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "God bless you, stay happy forever।" उनका आशीर्वाद सुनकर आशना मुस्कुराने लगी। उन्होंने अथर्व को देखकर मुस्कुराकर कहा, "हमें उम्मीद नहीं थी, पर मानना पड़ेगा आपकी पसंद को। भले ही एक बुरे एक्सपीरियंस के बाद, पर आखिर आपको इंसानों में फ़र्क करना आ ही गया, अब आप यह जानने लगे हैं कि कौन आपके लायक है और कौन नहीं। बहुत ही प्यारी और समझदार लड़की पसंद की है आपने। डैड भले ही इन्हें अपनी बहू स्वीकार करने के लिए इनका टेस्ट लें, पर हम तो इन्हें देखते ही समझ गए थे कि यही वह लड़की है जो हमारे सख्त बेटे को मोम की तरह पिघला सकती है, उन्हें सही रास्ता दिखा सकती है। हमें तो हमारी बहू बहुत पसंद आई। चलिए इसी बात पर हमने आपकी पुरानी सभी गलतियाँ माफ़ कीं। आइए, अगले डैड के गले नहीं लगेंगे।"
उन्होंने उसके तरफ़ कदम बढ़ाए। वहीं उनकी बातों से अथर्व कुछ अपसेट हो गया था, पर वह भी मुस्कुराकर उनके गले लग गया। अधिराज जी ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, "हमें गर्व है आप पर और आपकी पसंद पर। और हम यह बात यूँ ही नहीं कह रहे हैं कि इन्हें अब आपने चुना है, वही सही मायनों में आपकी जीवनसाथी बनने के लायक है। वर्षों का अनुभव है हमें, इंसान देखकर उन्हें पहचान लेते हैं। बहुत ही मासूम और प्यारी बच्ची है आशना, कभी गलती से भी उनका दिल मत दुखाना, आप जो नाटक कर रहे हैं ना वह हमसे छुपा हुआ नहीं है और हम इस नाटक की वजह भी जानते हैं, पर फिर भी हम आपसे बस इतना ही कहेंगे कि नाटक में ही सही, पर आपने बिल्कुल सही लड़की को अपनी पत्नी बनाने के लिए चुना है। इसलिए अपने अतीत को भूल जाइए और सही मायनों में उन्हें अपनी पत्नी का दर्जा दीजिए, आशना ही वह लड़की है जो आपकी बिखरी हुई ज़िंदगी को समेटकर आपकी खाली ज़िंदगी को अपने प्यार के एहसासों से सराबोर कर सकती है। वही वह लड़की है जो सारी ज़िंदगी आपका साथ निभा सकती है, चाहे दुख हो या सुख, वह कभी आपका साथ नहीं छोड़ेंगी।
एक बार हमारी बात के बारे में सोचकर ज़रूर देखिएगा, फिर आपको पता चलेगा कि इनसे आपने सालों पहले मोहब्बत की थी, वह कभी आपके लायक थी ही नहीं, जिन्हें भगवान ने सिर्फ़ आपके लिए बनाया है और वह आपके जीवनसाथी बनने के लायक है, वह तो अब आपकी ज़िंदगी में आई है। जिनके साथ आप खुशी-खुशी अपना जीवन बिता सकते हैं, वह अब हमेशा के लिए आपकी ज़िंदगी में शामिल हो गई है। इस रिश्ते की उम्र सिर्फ़ एक साल नहीं है, जितनी जल्दी आप यह बात समझ जाएँगे, आपके लिए उतना ही अच्छा होगा, क्योंकि अगर आपने यह समझने में ज़्यादा देर कर दी तो शायद आप उस खूबसूरत तोहफ़े को हमेशा के लिए खो देंगे जो भगवान ने बिना माँगे ही आपको दे दिया है। बिन माँगे अगर कुछ मिला है तो उसकी क़दर कीजिएगा, निरादर नहीं।"
उन्होंने उसको अपने गले लगाए हुए ही धीमी आवाज़ में उसे समझाया, फिर उससे अलग हो गए। अथर्व आँखों में सवाल लिए उन्हें देखने लगा, पर उन्होंने उसके तरफ़ ध्यान नहीं दिया और सुहासिनी जी को देखकर मुस्कुराकर बोले, "सुहासिनी जी, ज़रा हमारी बहू को रसोई तो दिखा दीजिए, हम भी बेताब हैं उनके हाथ का बना मीठा खाने के लिए।"
उनकी बात सुनकर सुहासिनी जी आशना को अपने साथ ले गईं। वहीं बाकी सब वहीं हॉल में लगे बड़े से सोफ़े पर बैठ गए। अथर्व के बगल में अधिराज जी बैठे थे।
"डैड, आपको यह सब कैसे पता?" अथर्व ने अब धीरे से सवाल किया। उन्होंने उसके तरफ़ नज़रें घुमाईं और मुस्कुराकर बोले, "आपको क्या लगता है? आप हमारे साथ नहीं रहते तो हमें आपकी ज़िंदगी में क्या हो रहा है इसकी ख़बर नहीं होगी? बाप हैं हम आपके, आपको छींक भी आती है तो हम तक ख़बर पहुँच जाती है, और यहाँ तो आपने एक अनजान लड़की से शादी कर ली, जो एक रात पहले ही आपको रोड पर मिली थी। पहले तो हमें विश्वास नहीं हुआ कि आप ऐसा कुछ भी कर सकते हैं, हम आपको ऐसा करने भी नहीं देते, फिर हमने आशना के बारे में पता लगवाया और उन्हें जानने के बाद हमें विश्वास हो गया कि वही वह लड़की है जो आपको सही रास्ते पर ला सकती है, जिस बेटे को एक लड़की ने हमसे दूर कर दिया था, उन्हें वह वापस हमारे पास ला सकती है। आपके घमंड को तोड़कर आपको खुलकर जीना सिखा सकती है, इसलिए यह जानते हुए कि आपने कैसे उन्हें मजबूर किया है इस शादी के लिए हम खामोश रहे। और जैसे अभी उन्होंने आपकी गलती पर पर्दा डाला, हमारा उन पर विश्वास और भी पक्का हो गया कि यही वह लड़की है जो हर हाल में आपका साथ निभाएंगी। समझदार है, बड़ों का आदर करती है, संस्कारी है, रिश्तों का सम्मान करना जानती है। हाँ, थोड़ी इमेच्योर है, पर आपके जैसे सीरियस आदमी के लिए ऐसी ही लड़की की ज़रूरत थी।"
उन्होंने मुस्कुराकर अपनी बात कही और सामने देखकर अपने मोम डैड से बात करने लगे। वहीं उनकी बात सुनकर अथर्व सोच में पड़ गया और आशना के बारे में सोचने लगा।
आशना को सुहासिनी जी अपने साथ ले गई थीं। अथर्व अपने पिता और दादी-दादा के साथ लिविंग रूम में बैठा था। वह बहुत कम ही वहाँ आता था; इसलिए उनके बीच बातें चल रही थीं। कुछ देर में सुहासिनी जी वहाँ आकर सबको खाने के लिए बुला लिया, और सब डाइनिंग एरिया की ओर बढ़ गए।
आशना टेबल पर बाउल रख रही थी। सब वहाँ आए तो वह सबको देखकर मुस्कुरा दी। सब अपनी-अपनी चेयर पर बैठ गए; अथर्व भी अपनी चेयर पर बैठ गया। आशना अब आगे आकर सर्व करने के लिए बढ़ी तो दादी जी ने उसे रोकते हुए कहा: "अरे बेटा, आपको यह सब करने की ज़रूरत नहीं है। आप भी हमारे साथ बैठकर खाना खाइए, सर्वेंट है, वह सर्व कर देंगे।"
"दादी माँ, मेरी माँ कहती हैं कि हमारी परंपरा है कि घर की बहू-बेटियाँ सबको खाना खिलाने के बाद खुद कुछ खाती हैं। वैसे तो मैं यह बात नहीं मानती कि औरतों को मर्दों के बाद ही खाना खाना चाहिए, पर यह बात मैं भी मानती हूँ कि घर की बेटी हो या बहू, उसे अपने परिवार को साथ बिठाकर उन्हें खाना खिलाना चाहिए। इससे परिवार एक बंधन में बँधा रहता है। फिर मैं तो आज पहली बार यहाँ आई हूँ, मेरा फ़र्ज़ बनता है कि मैं आप सबको खाना सर्व करूँ; और कुछ तो नहीं कर सकती, इतना ही कर लेने दीजिये मुझे। मुझे खुशी होगी।"
आशना ने बड़े प्यार से अपनी बात कही। उसकी बात सुनकर सुहासिनी जी ने मुस्कुराकर कहा: "बहुत खुशनसीब हैं वो माँ-बाप जिनके घर आपने बेटी के रूप में जन्म लिया है। अगर आपकी खुशी इसी में है तो हम आपको रोकेंगे नहीं, पर आपको भी हमारी बात माननी होगी। मान बस, एक बार सर्व करने के बाद हमारे साथ बैठकर खाना खाएँगी। अगर किसी को और कुछ चाहिए होगा तो नौकर है यहाँ। आपने ही कहा था कि सारे परिवार को साथ बैठकर खाना चाहिए और अब आप भी इस परिवार की सदस्य हैं।"
उनकी बात सुनकर आशना हल्का सा मुस्कुरा दी और सबको खाना सर्व करने लगी। उसने पहले दादी-दादा, फिर सुहासिनी जी और अधिराज जी को खाना सर्व किया। उसके बाद अथर्व को सर्व करने लगी तो वह धीरे से बोला:
"तुमने कुछ गड़बड़ तो नहीं की? तुम्हें खाना बनाना आता तो है ना?"
उसके सवाल पर आशना ने उसे घूरा और धीरे से बोली: "नहीं, नहीं आता मुझे कुछ बनाना। इसलिए आपको पहले ही वॉर्न कर रही हूँ, मेरा बनाया हल्का छुइयेगा भी नहीं वरना आपकी जान चली जाएगी उसे खाकर, इतना बेकार खाना बनाती हूँ मैं।"
उसकी बात सुनकर अथर्व उसको गुस्से से घूरने लगा। आशना भी उसको घूरते हुए पीछे हटने लगी, पर उसके हाथ पानी के जग से जा लगे और उसका पानी टेबल पर और अथर्व की प्लेट में जा गिरा। अथर्व चौंककर उठकर खड़ा हो गया, वहीं आशना घबराकर पीछे हट गई। अथर्व के कपड़ों पर भी पानी गिर गया था। आशना ने देखा तो उसे झाड़ते हुए बोली:
"सॉरी, सॉरी, सॉरी! मैंने जानबूझकर नहीं किया। आपने ही मुझे गुस्सा दिलाया और मेरा ध्यान भटक गया जिससे जग गिर गया। आई एम रियली वैरी वैरी सॉरी।"
वह इतनी घबरा गई थी कि उसकी आँखें नम हो गईं। उसके हाथ लगातार अथर्व के कोट को साफ कर रहे थे। सुहासिनी जी कुछ कहने को हुईं, पर अधिराज जी ने उन्हें रोक दिया। वहीं दादी को दादा जी ने शांत रहने को कहा।
पहले तो अथर्व गुस्से में उसे घूर रहा था, पर जब उसने उसका डरा-सहमा सा चेहरा देखा तो उसका सारा गुस्सा एक झटके में गायब हो गया। आशना लगातार उसके शर्ट और कोट को अपनी हथेली से साफ करते हुए सॉरी कह रही थी। अथर्व ने आशना की दोनों कलाई पकड़कर उसको रोक लिया। तो आशना ने अपनी पलकें उठाईं और आँसुओं से भरी आँखों से उसे देखते हुए धीरे से बोली:
"सॉरी, मैंने कोशिश की थी कि कोई गड़बड़ न करूँ, पर मुझसे अपने आप ही गड़बड़ हो जाती है। मैं जानबूझकर कुछ नहीं करती।"
उसके आँखों से दो बूंद आँसू निकलकर उसके गोरे-गोरे गालों को भिगाने लगे। अथर्व को उसके आँसू कुछ जचे नहीं। उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और अपने अंगूठे से उसके गालों पर ठहरी आँसुओं की बूंदों को साफ करते हुए बड़े प्यार से बोला: "रिलैक्स, कुछ नहीं हुआ है, बस पानी ही तो गिरा है, सूख जाएगा।"
"पर वो..." आशना ने मासूमियत से टेबल की ओर इशारा करते हुए कहा, तो अथर्व मुस्कुरा उठा। उसने सर्वेंट को आँखों से साफ करने का इशारा कर दिया, फिर प्यार से उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में भर लिया और उसके आँखों से बहते आँसुओं को पोंछते हुए बोला:
"वो भी साफ हो जाएगा। तुम्हें इतनी सी बात के लिए घबराने की ज़रूरत नहीं है।"
"पर आपने कहा था कि यहाँ कोई गड़बड़ नहीं करनी है, कोई तोड़फोड़ नहीं करनी है। मैंने कोशिश की, पर मुझसे गड़बड़ अपने आप हो जाती है। मैंने बताया था ना आपको, मैं चलती-फिरती आफ़त हूँ, जहाँ जाती हूँ तोड़-फोड़ कर ही देती हूँ।" वह बोलते हुए सुबकने लगी।
उसकी मासूमियत सबके लबों पर मुस्कान ले आई। वहीं अथर्व का उसके लिए कंसर्न देखकर वे सभी खुश थे। वहीं अथर्व ने उसकी बात सुनी तो मुस्कुराकर बोला:
"कुछ गड़बड़ नहीं हुई है और तुमने कुछ तोड़-फोड़ कहाँ की है? बस पानी ही तो गिरा है, साफ हो जाएगा। तुमने तो सब बहुत अच्छे से संभाला है। मुझे तो उम्मीद ही नहीं थी कि जो लड़की एक मिनट भी शांति से नहीं रह पाती, वो इतनी देर तक बिना कोई तोड़-फोड़ किए, बिना किसी चीज़ को नुकसान पहुँचाए, बिना कैसे शांति से कैसे रह रही है।"
उसकी बात सुनकर आशना ने उसका हाथ झटक दिया और नाराज़गी से मुँह फुलाकर बोली: "आप मेरा मज़ाक उड़ा रहे हैं।"
"नहीं, बता रहा हूँ कि तुम इतनी भी बड़ी आफ़त नहीं हो जितना तुम खुद को समझती हो।" अथर्व ने सौम्य सी मुस्कान के साथ जवाब दिया तो आशना खामोशी से उसे देखती ही रह गई। उसे समझ ही नहीं आया कि अथर्व उसकी तारीफ़ कर रहा है या मज़ाक उड़ा रहा है।
उसकी मासूमियत देखकर हर कोई मुस्कुरा रहा था। अथर्व ने उसे अपने बगल वाली चेयर पर बिठाते हुए आगे कहा: "अब और कुछ करने की ज़रूरत नहीं है, चुपचाप बैठकर खाना खाओ।"
आशना सर घुमाकर उसे देखने लगी तो अथर्व ने अपना भीगा हुआ कोट उतारकर चेयर के पीछे टाँगा और अपनी शर्ट की स्लीव के फोल्ड करते हुए बैठ गया। अपने सामने से प्लेट साइड की और दूसरी प्लेट लगाने लगा। फिर उसने आशना की तरफ़ खिसकाते हुए बोला: "खाओ।"
इतना कहकर वह एक बार फिर दूसरी प्लेट लगाने लगा। आशना एकटक उसे देखे जा रही थी। बाकी सबकी नज़रें भी उन दोनों पर टिकी हुई थीं और लबों पर गहरी मुस्कान ठहरी हुई थी। अथर्व ने खाने के लिए हाथ उठाया, फिर आशना की तरफ़ नज़रें घुमाईं जो उसे ही देख रही थी। उसने उसे देखकर भौंह उचकाई तो आशना ने उसका सवाल समझते हुए हाँ में सर हिला दिया और चुपचाप खाना खाने लगी। तो अथर्व ने भी खाना शुरू किया। बाकी सब भी खाना खाने लगे। खाते हुए दादी की नज़र अथर्व की प्लेट पर गई तो वह हैरानी से बोली:
"अथर्व बेटा, आपने हलवा तो लिया ही नहीं।"
"नहीं, दादी माँ, मुझे नहीं खाना मीठा।" अथर्व ने साफ़ इंकार किया तो आशना ने खड़े होकर हलवे का बाउल उठाया और एक छोटी सी कटोरी में हल्का डालकर उसके तरफ़ बढ़ाते हुए धीरे से बोली:
"माँ कहती हैं मैं खाना अच्छा बना लेती हूँ और मूंग दाल का हलवा तो आपका फ़ेवरेट है। एक बार टेस्ट कर लीजिए, शायद आपको पसंद आए।"
उसकी बात सुनकर अथर्व ने हैरानी से उसे देखा तो वह हल्का सा मुस्कुरा दी और खाना खाने लगी। अथर्व ने अब हलवे पर निगाह डाली ही सुहासिनी जी को देखा तो वह भी मुस्कुरा दीं। अथर्व ने वापिस हलवे को देखा जो देखने में ही काफ़ी टेस्टी लग रहा था और फिर स्पून लेकर थोड़ा सा अपने मुँह में डाल लिया। इसके साथ ही उसकी आँखें बंद हो गईं और मुँह से निकला:
"डिलिशियस!"
अब सबने उसे देखा और मुस्कुरा दिए। अथर्व ने अब आशना को देखकर मुस्कुराकर कहा: "नॉट बैड... खाना ठीक-ठाक बना लेती हो तुम। तीसरी औरत हो जिसके हाथ का हलवा मुझे पसंद आया है। पता है, आज तक काकी के हाथों का हलवा भी मुझे कभी पसंद नहीं आया।"
इस वक़्त वह अलग ही अथर्व लग रहा था। उसकी वह मोहिनी मुस्कान आशना के लबों पर भी मुस्कान ले आई। उसने उसे देखा और मुस्कुराकर बोली: "जानती हूँ, आपको सिर्फ़ मोम और दादी माँ के हाथों का हलवा पसंद है।"
"तुम्हें किसने बताया?" अथर्व ने भौंह उचकाकर सवाल किया तो उसने मुस्कुराकर सुहासिनी जी को देखा।
उसकी आँखों का पीछा करके जब अथर्व की नज़रें उन पर पड़ीं तो उसने नाराज़गी से कहा: "मोम, आप मेरे सीक्रेट रिवील करने लगी हैं, नॉट फेयर।"
"आशना आपकी पत्नी है, उन्हें आपके बारे में सब पता होना चाहिए और आपकी माँ होने के नाते उन्हें आपके बारे में सब बताना हमारी ही ज़िम्मेदारी है। हम तो एक अच्छी माँ और एक अच्छी सास होने का फ़र्ज़ निभा रहे हैं, ताकि आशना आपका बिल्कुल वैसे ही ख्याल रख सके जैसे हम रखा करते थे जब आप हमारे साथ रहते थे। क्योंकि माँ के बाद एक पत्नी ही है जो आदमी की ज़िंदगी को संवारती है और उसके लिए आशना का आपको जानना बहुत ज़रूरी है। हम बस इसमें उनकी थोड़ी मदद कर रहे हैं।" उन्होंने मुस्कुराकर कहा तो उनकी बात सुनकर अथर्व हल्का सा मुस्कुरा दिया।
सब खाना खाने लगे, पर अथर्व ने अपना पेट हलवे से भर लिया था। यह देखकर आशना बहुत खुश थी, उसे सिर्फ़ हलवा खाते देख। अधिराज जी ने चिंतित होकर कहा:
"यह गलत बात है बेटा, माना हलवा आपकी पत्नी ने बनाया है और आपको इतना पसंद आया कि आप वही खाए जा रहे हैं, पर आपकी पत्नी हमारी बहू भी है। भले ही उनके बनाए हलवे पर आपका हक सबसे ज़्यादा है, पर कुछ हक तो हमारा भी है। आप जैसे हलवा खाए जा रहे हैं, हमारे लिए तो कुछ बचेगा ही नहीं। हमें भी अपनी बहू के हाथों के बने हलवे का आनंद लेना है, तो थोड़ा हमारे लिए भी छोड़ दीजिए।"
"बस टेस्ट करने के लिए ही छोड़ूँगा, बाकी मैं ही खाऊँगा।" अथर्व ने कहा और फिर से हलवा लेने लगा तो आशना ने झट से उसके हाथ से बाउल ले लिया और प्लेट उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए बोली:
"मैंने सिर्फ़ आपके लिए नहीं बनाया है। अब आप खाना खाइए, हलवा नहीं मिलेगा आपको। इतना सारा खा लिया है, इतना मीठा खाएँगे तो डायबिटीज़ हो जाएगा आपको, फिर दोबारा कभी मीठा देख भी नहीं पाएँगे, खाना तो दूर की बात है।"
उसकी बात सुनकर अथर्व ने उसको घूरते हुए कहा: "मैं एकदम फ़िट हूँ, तो तुम्हें मेरी चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। चुपचाप हलवे का बाउल मुझे दो।"
"नहीं दूँगी।" आशना ने अपनी बात पर अड़ते हुए कहा और हाथ पीछे खींच लिया तो अथर्व उसके तरफ़ झुकते हुए बोला: "आशना, मैंने कहा बाउल मुझे दो।"
"मैंने भी कहा ना अब आपको और हलवा नहीं मिलेगा, अगर सारा आप ही खा जाएँगे तो बाकी सब क्या खाएँगे?" आशना ने मुँह फुलाते हुए कहा। उसकी बात सुनकर अथर्व ने उसको घूरा, पर आशना अपनी बात से टस से मस नहीं हुई। आखिर में अथर्व ने ही पीछे हटते हुए मुँह बनाते हुए कहा:
"रख लो, मुझे खाना भी नहीं है, इतना भी कोई अच्छा नहीं बना है।"
"वो तो सबको दिख गया कि कितना बुरा बना है, तभी तो आप भूखों की तरह सारा हलवा चट गए। कितना बनाया था और कितना सा बचा है।" आशना ने उसको ताना मारते हुए मुँह बनाया तो अथर्व ने उसको घूरना शुरू कर दिया। दोनों एक-दूसरे को घूरने में लगे थे, तभी उनके कानों में दादा जी की आवाज़ पड़ी:
"आप दोनों तो ऐसे लड़ रहे हैं जैसे जानी दुश्मन हो। आपको देखकर लगता नहीं है कि आपकी लव मैरेज हुई है।"
उनकी बात सुनकर दोनों ही हड़बड़ाहट में उन्हें देखा, फिर एक-दूसरे को देखकर जबरदस्ती मुस्कुराकर बोले: "नहीं, दादू/दादी जी, हम दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं, हमारा प्यार ही नोक-झोंक वाला है।"
उनकी बात सुनकर दादा जी ने शक भरी नज़रों से उन्हें घूरते हुए सवाल किया: "हम्म, अच्छा, आप दोनों ने हमें बताया नहीं कि आप दोनों की मुलाक़ात कहाँ और कैसे हुई और बात शादी तक कैसे पहुँची?"
उनका सवाल सुनकर दोनों ने एक साथ ही जवाब दिया: "सड़क पर/मॉल में..."
आशना ने तो सच ही कह दिया, वहीं अथर्व ने झूठ कहा। दोनों का अलग-अलग जवाब सुनकर सबने उन्हें हैरानी से देखा तो आशना ने घबराकर अथर्व को देखा जो उसे ही घूर रहा था। आशना ने मासूम सा चेहरा बनाया तो अथर्व ने सबको देखकर कहना शुरू किया:
"मॉल के बाहर, वही सड़क पर हमारी पहली मुलाक़ात हुई थी। उसके बाद मुलाक़ात होती गई और हमें एक-दूसरे से प्यार हो गया। इनके पापा को हमारा रिश्ता मंज़ूर नहीं था, वे किसी और से इनकी शादी करवा रहे थे तो ये अपना घर छोड़कर मेरे पास भाग गई। जल्दबाज़ी में हमने शादी कर ली ताकि वे इन्हें अपने साथ वापस ना ले जा सकें।"
अथर्व ने कुछ सच और कुछ झूठ मिलाकर एक कहानी गढ़ डाली। आशना एक बार फिर उदास हो गई थी, इसलिए किसी ने आगे कोई सवाल नहीं किया। अथर्व ने उसकी हथेली पर अपनी हथेली रख दी तो आशना ने खुद को संभाला और थोड़ा-थोड़ा खाना खाने लगी।
डिनर के बाद बाकी सबने हलवा खाया और उसकी खूब तारीफ़ भी की। उसके बाद दादा जी ने वहाँ से उठते हुए कहा: "चलिए अब ज़रा आपकी शादी की वीडियो देख लेते हैं।"
"अभी?" अथर्व ने उनकी बात सुनकर हैरानी से कहा तो उन्होंने हामी भर दी। सब हॉल में पहुँचे और सोफ़े पर बैठ गए।
सबने शादी की पूरी वीडियो देखी। उसके बाद दादा जी ने वहाँ से उठते हुए सुहासिनी जी को देखकर कहा: "सुहासिनी बहू, बहू को उनके कमरे में ले जाओ, आराम कर लेंगी, थक गई होंगी। (फिर उन्होंने अधिराज जी और दादी को देखकर कहा) आप सब भी अपने-अपने कमरों में जाओ।"
आखिर में उन्होंने अथर्व को देखकर कहा: "और आप हमारे साथ स्टडी रूम में आइए।"
जल्द ही...
आखिर में उन्होंने अथर्व को देखकर कहा,
"और आप हमारे साथ स्टडी रूम में आइए।"
अथर्व उनके पीछे चला गया। जैसे ही दोनों स्टडी रूम में पहुँचे, अथर्व ने उन्हें देखकर कहा, "दादू, अब तो मैंने आपकी शर्त पूरी कर दी है। अभी भी आपके दिए वक्त को खत्म होने में दो घंटे बाकी हैं और मैं आपकी बहू को आपके सामने ला चुका हूँ। आपने उसके टेस्ट भी ले लिए हैं और अपनी बहू भी मान चुके हैं, तो अब डील के मुताबिक़ आप मेरी कंपनी और मेरी प्रॉपर्टी मेरे नाम करेंगे। याद है आपको?"
"बिल्कुल याद है हमें और हम अपना वादा भी ज़रूर निभाएँगे। हम कल ही वकील साहब से बात करके आपके हिस्से की प्रॉपर्टी और शेयर्स आपकी पत्नी और हमारी बहू के नाम कर देंगे।" उन्होंने वहीं रखे सोफ़े पर बैठते हुए बड़े ही सहजता से अपनी बात कही।
वह बात सुनकर अथर्व आँखें फाड़कर उन्हें देखने लगा। जैसे ही वे चुप हुए, अथर्व हैरानी से बोला, "क्या कहा आपने?.....आप मेरे हिस्से की प्रॉपर्टी और शेयर्स आशना के नाम कर देंगे?"
"बिल्कुल सही सुना है आपने। हम सिर्फ़ आपकी ही नहीं बल्कि अपने हिस्से की आधी प्रॉपर्टी भी आशना के नाम करने वाले हैं।" दादा जी ने एक बार फिर बड़े आराम से जवाब दिया। उनकी बात सुनकर अथर्व सोफ़े पर से उठकर खड़ा हो गया और गुस्से से बोला,
"ये क्या बोल रहे हैं आप?.... आप मेरे और अपने हिस्से की प्रॉपर्टी उसके नाम कैसे कर सकते हैं?"
"बिल्कुल कर सकते हैं क्योंकि हम इस घर के मुखिया हैं और इस घर में किसे क्या देना है, ये फैसला लेने का हक़ अब भी हमारे पास है। इसलिए आप अपने गुस्से पर काबू रखिए, वरना आपको अपना गुस्सा भारी पड़ सकता है।"
दादा जी ने भी अब गुस्से में उसे धमकाया। उनकी बात सुनकर अथर्व ने चिढ़कर कहा, "ये चीटिंग है दादू, आपने कहा था अगर मैं अगले दो दिनों में शादी करके आपको आपकी बहू से मिलवा देता हूँ तो आप मेरी प्रॉपर्टी और कंपनी मेरे नाम कर देंगे। अब आप अपनी बात से मुकर रहे हैं।"
"नहीं, हम अपना वादा ही निभा रहे हैं। आशना आपकी पत्नी है तो प्रॉपर्टी आपके नाम हो या उनके नाम, क्या फ़र्क़ पड़ता है? वैसे भी हम आपकी रग-रग से वाकिफ़ हैं। अगर आपकी प्रॉपर्टी आपको मिल गई तो आप आशना को छोड़ने में वक़्त नहीं लगाएँगे। आपने एक साल का कॉन्ट्रैक्ट किया उनके साथ क्योंकि हमने ये शर्त रखी थी कि अगर आप एक साल तक अपनी शादी को निभा पाते हैं, तभी प्रॉपर्टी असल में आपके नाम होगी।
अगर बीच में आप अपनी पत्नी से अलग होते हैं तो प्रॉपर्टी ट्रस्ट में चली जाएगी। आपकी सारी प्लानिंग जानते हैं हम और इसलिए हम आपको मौका ही नहीं देंगे कि आप आशना को छोड़ने का ख्याल भी अपने दिमाग में लाएँ। एक कॉन्ट्रैक्ट आपने तैयार करवाया और एक कॉन्ट्रैक्ट हम बनवाएँगे जिसके अंतर्गत आपके 50% शेयर्स और प्रॉपर्टी आशना के नाम होगी। अगर अगले एक साल में आप हमें खुशखबरी देने में कामयाब नहीं हुए तो वो शेयर्स और प्रॉपर्टी ऑटोमैटिकली हमेशा के लिए आशना के नाम हो जाएगा और अगर इस एक साल में आपने हमें खुशखबरी सुना दी तो उसके बाद आप उस प्रॉपर्टी के ओनर होंगे......लेकिन सिर्फ़ तब तक जब तक कि आपकी संतान 18 साल की नहीं हो जाती। उसके बाद 25-25% शेयर का बंटवारा होगा आपके और आपकी संतान के बीच और हमारे शेयर्स जाएँगे आशना के पास ताकि आप उन्हें छोड़ने का ख्याल कभी अपने ज़हन में न ला सकें।"
उन्होंने अपना हुक्म सुनाया। इस वक़्त उनके लबों पर शातिर मुस्कान फैली हुई थी, वहीं अथर्व के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था। उसने अब मासूम सा चेहरा बनाकर कहा,
"दादू... सच-सच बताइए, मैं आपका सगा पोता हूँ या मोम डेड मुझे कहीं से उठाकर लाए थे जो आप मेरे साथ ऐसा सुलूक कर रहे हैं?.... आप जानते हैं इस बिज़नेस को यहाँ तक पहुँचाने के लिए मैंने दिन-रात मेहनत की है और एक झटके में सब मुझसे छीनकर आशना के नाम कर रहे हैं, जिससे आप कुछ घंटों पहले ही मिले हैं...वो भी मेरी वजह से।"
"आप हमारे अपने पोते हैं, तभी तो हम आपको इतने अच्छे से जानते हैं। आप बहुत समझदार हैं, हर फैसला बहुत सोच-समझकर लेते हैं। आपसे ज़्यादा अच्छे से हमारे व्यापार को कोई और संभाल ही नहीं सकता। तभी तो अपने सारे बिज़नेस को आपके हाथों में सौंपकर हम निश्चिंत हो गए हैं........
पर आपने अपनी ज़िंदगी में एक गलती की है। एक ऐसी लड़की को अपनी ज़िंदगी में शामिल करने का फैसला किया था आपने, जो आपके साथ रहकर आपकी पीठ में छुरा घोंप रही थी और आप उनके मोहजाल में ऐसे फँसे थे कि आपको उनका धोखा नज़र नहीं आ रहा था।
उन्होंने तो आपको बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी और आपको नीचा दिखाने के बाद आपके ही राइवल से शादी भी कर ली थी उन्होंने। हम दोबारा इतना बड़ा रिस्क लेने के लिए तैयार नहीं हैं। हम जानते हैं आप फिर से वही गलती कभी नहीं करेंगे, पर फिर भी हम आपको लेकर कोई रिस्क नहीं ले सकते और न ही हम चाहते हैं कि एक धोखेबाज़ लड़की की वजह से आप ताउम्र तन्हा रह जाएँ और वो अपनी जीत की खुशी मनाते रहें कि उन्होंने आपको चोट पहुँचाई।
जब आपको आपकी ज़िंदगी में किसी और के साथ खुश देखेंगे, तब उन्हें एहसास होगा कि वो जीतकर भी हार गई है और इसके लिए हमारा ये सब करना बहुत ज़रूरी है।"
अब दादा जी काफ़ी गंभीर लग रहे थे, वहीं अथर्व भी अब सर झुकाकर शांत बैठ गया था। दादा जी अब उठकर खड़े हो गए और उसके कंधे को थपथपाते हुए आगे बोले,
"आपको क्या लगता है?.... आप जो ये शादी का नाटक कर रहे हैं, हम इसके बारे में कुछ जानते नहीं हैं? हमें सब पता है, फिर भी हम खुश हैं कि भले ही समझौते के तौर पर, लेकिन आपने एक सही लड़की को अपनी ज़िंदगी में शामिल किया है। आपके लिए ये शादी भले ही एक साल का कॉन्ट्रैक्ट हो पर आप इस बात से मुँह नहीं मोड़ सकते कि आपने उस बच्ची से सभी रस्मों-रिवाज के साथ शादी की है और अब से वो सिर्फ़ आपकी पत्नी ही नहीं, इस घर की बहू भी है।
आपने सड़क से उठाकर उस लड़की से शादी कर ली इसलिए हमें उनका टेस्ट लेना पड़ा। ताकि हम ये देख सकें कि जिस रिश्ते को उन्होंने जोड़ा है वो उसके लायक़ है भी या नहीं?..... उन्हें हमारे घर की बहू होने का दर्जा दिया जा सकता है या नहीं?... और हम उनसे पूरी तरह से संतुष्ट हैं। भले ही आपने सिर्फ़ प्रॉपर्टी के लिए उनसे शादी की हो पर आप इस बात को झुठला नहीं सकते कि वो आपकी पत्नी है और हमारी बहू भी, तो उन्हें किसी किस्म की कोई तकलीफ न हो, इस बात का ध्यान रखिएगा।
अगर आपकी किसी बेवकूफी या आपके गुस्से की वजह से हमारी बहू की आँखों में एक आँसू भी आया तो हम आपको कभी माफ़ नहीं करेंगे और आपको अपनी जायदाद से बेदखल कर देंगे। हमारी बात को हमेशा याद रखिएगा। चलिए अब जाइए, आपकी पत्नी आपका इंतज़ार कर रही होंगी। जाकर अपने रिश्ते की शुरुआत कीजिए।" उन्होंने अपनी बात कही और उसके कंधे को थपथपाकर वहाँ से निकल गए।
अब अथर्व ने अपना सर उठाया, गुस्से से लाल आँखें और तमतमाता चेहरा। उसने जबड़े भींचते हुए खुद से कहा,
"अपनी ज़िंदगी की उस गलती को मैं कभी भूल ही नहीं सकता और इस शादी को करने की एक वजह वो भी है। मैं उसे दिखाकर रहूँगा कि अब न तो उसके लिए मेरे दिल में कोई जगह है और न ही वो मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बनने के लायक़ है। उसे जीतने तो मैं भी नहीं दूँगा।.....वो मुझे बर्बाद करना चाहती थी पर होगा वो जो मैं चाहता हूँ......उसे मुझे जितनी तकलीफ पहुँचानी थी उसने पहुँचा ली, अब बाज़ी मेरे हाथ में है।
मेरी तबाही के सपने देखने वालों को तो मैं बर्बाद करूँगा, वो भी मेरे हाथों।.....उसे तो मैं सड़क की खाक में मिलाकर रहूँगा पर मैं अपनी प्रॉपर्टी आशना के हाथ भी नहीं जाने दूँगा। उस धोखे के बाद मुझे दुनिया में किसी लड़की पर भरोसा नहीं है। इसलिए आशना को मैं अपनी ज़िंदगी का हिस्सा कभी नहीं बनने दूँगा।
अगर आप मेरे दादा जी हैं तो मैं भी आपका पोता हूँ, कीजिए आप सब आशना के नाम, उसके नाम से सब अपने नाम करवाना, मेरे लिए बाएँ हाथ का काम है। आपके कहने पर शादी ज़रूर की है मैंने पर न उसे अपनी पत्नी होने का अधिकार दूँगा, न ही मौका मिलेगा उसे मुझे चोट पहुँचाने का। जादूगरनी है ये लड़की, कितनी आसानी से आप सबको अपने जाल में फँसा लिया है इसने पर मैं इसके काबू में नहीं आने वाला।"
अथर्व मन ही मन निश्चय कर चुका था कि आशना भी अस्मि के तरह है, जिसने उसके साथ प्यार का नाटक करके उसकी प्रॉपर्टी को अपने नाम करवा ही लिया था और उसके बाद उसकी आँखों के सामने उसी के राइवल से शादी भी कर ली थी। आखिर उसने सब उसके कहने पर ही किया था, ताकि अथर्व को बर्बाद कर सके, पर अफ़सोस की वो अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकी। दादा जी को पहले ही उस पर शक था इसलिए उन्होंने वक़्त रहते अथर्व की प्रॉपर्टी और शेयर्स अपने नाम करवा लिए थे और दोबारा सब उसके नाम कभी किया ही नहीं।
पहले कभी अथर्व ने भी इसके लिए कुछ नहीं कहा था क्योंकि वो जानता था कि गलती उसकी थी। उसने एक धोखेबाज़ लड़की पर अंधा विश्वास किया और उसके हाथों बर्बाद भी हो जाता, पर दादा जी की वजह से बच गया। पर कुछ दिनों पहले ही दादा जी ने उसे धमकी दी थी कि अगर उसने अगले दो दिनों में शादी नहीं की तो वो उसकी प्रॉपर्टी ट्रस्ट में दे देंगे। ऐसा उन्होंने सिर्फ़ इसलिए किया था ताकि अथर्व अस्मि के दिए धोखे को भूलकर अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ जाए........
क्योंकि अथर्व ने उस धोखे के बाद लड़कियों को देखना तक छोड़ दिया था। अपना घर छोड़कर अपने जुहू वाले बंगले में अकेले रहने लगा था इसलिए सुहासिनी जी ने अपनी ख़ास नौकर, जो उनके लिए नौकर से कहीं ऊपर थी, उन्हें अथर्व के पास भेज दिया था। तभी से काकी अथर्व का माँ के तरह ध्यान रख रही थी।
अथर्व अब गुस्से में अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गया। उसने ये निश्चय कर लिया था कि आशना भी अस्मि के तरह है, इसलिए वो कभी उसे अपने पास आने का मौका नहीं देगा।
कहीं दूसरी तरफ़ सुहासिनी जी आशना को अपने परिवार और अथर्व के बारे में छोटी-छोटी बातें बताते हुए उसे अथर्व के कमरे में ले गईं। आशना बड़े ध्यान से उनकी सब बात सुन रही थी। जैसे ही वो अथर्व के कमरे में पहुँचीं, सुहासिनी जी ने मुस्कुराकर कहा,
"लीजिए देख लीजिए, ये है आपका कमरा। यहाँ से जाने से पहले अथर्व यहीं रहता था। आज भी जब यहाँ आता है तो इसी कमरे में ठहरता है। उसके कमरे में हमारे अलावा किसी को आने की इजाज़त नहीं है। उसके कमरे को साफ़ करवाने के लिए भी हमें यहाँ खड़ा रहना पड़ता है ताकि एक भी चीज़ अपनी जगह से हिल न सके, वरना अथर्व का गुस्सा आसमान चढ़ जाएगा।
अब से ये ज़िम्मेदारी आपकी हुई। अथर्व को साफ़-सुथरा कमरा और घर पसंद है, हर चीज़ अपनी जगह पर होनी चाहिए। अब आप उनकी पत्नी हैं तो आपको इन बातों का ध्यान रखना होगा ताकि बेवजह आपके बीच कोई बहस या लड़ाई न हो।"
"मोम, ऐसा क्या हुआ था जो उन्होंने अपना परिवार, अपना घर छोड़ दिया और अकेले उस बड़े से बंगले में रहने लगे?"
आशना ने अचानक ही सवाल किया। जिसे सुनकर सुहासिनी जी ने प्यार से उसके गाल को छुआ और मुस्कुराकर बोलीं,
"आज आपके शादीशुदा जीवन की शुरुआत होने जा रही है तो इस नई ज़िंदगी की शुरुआत मीठी बातों से कीजिए। उन कड़वी यादों को याद करके आज के दिन के महत्व को कम करने की कोई ज़रूरत नहीं है आपको।......हाँ, आप अथर्व की पत्नी हैं तो हक़ है आपका उनके बारे में सब जानने का, लेकिन हर चीज़ का सही वक़्त होता है और अभी आपको इस नए रिश्ते और अथर्व पर ध्यान देना चाहिए ताकि इस रिश्ते को इतना मज़बूत बना सकें कि अतीत की बड़ी से बड़ी आंधी आने पर भी आपका और उनका रिश्ता यूँ ही बना रहे। इसलिए आप अभी इस बारे में सोचना छोड़ दीजिए, बाद में हम खुद आपको सब बता देंगे। अभी तो आप नए सपने सजाइए और उन्हें हकीकत में बदलिये। ये वक़्त और ये रात लौटकर कभी नहीं आएंगे। चलिए अब आप आराम कीजिए, हम सुबह मिलेंगे आपसे।"
आशना ने हाँ में सर हिला दिया तो वो उसके माथे को चूमकर बोलीं, "भगवान आपको दुनिया की हर खुशी दे।"
वो अब वहाँ से चली गईं तो आशना ने रूम को देखा। ये कमरा भी बिल्कुल वैसा ही था जैसे अथर्व का वहाँ वाला कमरा था। आशना बेड के कोने में बैठ गई और अथर्व के बारे में सोचने लगी। अपने और उसके रिश्ते के बारे में सोचने लगी।
जारी...
अथर्व ने मन ही मन एक निश्चय किया और अपने कमरे में आया। दरवाजे के खुलने की आवाज़ सुनकर आशना ने भी दरवाज़े की ओर देखा। दोनों की निगाहें टकरा गईं।
अथर्व ने तुरंत ही नज़रें फेर लीं। यह देखकर आशना की आँखें हैरानी से फैल गईं, पर अथर्व ने वॉर्डरोब से अपने कपड़े लिए और बाथरूम में चला गया। आशना उसे देखती ही रह गई। वह अब भी बाथरूम के बंद दरवाज़े को देख रही थी।
कुछ देर बाद अथर्व कपड़े बदलकर बाथरूम से बाहर आया। फिर बेड की ओर बढ़ते हुए बोला, "यहाँ बैठे-बैठे क्या कर रही हो? जाओ, जाकर कपड़े बदल लो।"
"पर मेरे पास कपड़े नहीं हैं।" आशना ने कुछ परेशान होकर कहा। अथर्व ने अपने अलमारी के बगल वाली अलमारी का दरवाज़ा खोल दिया और ड्रेसिंग टेबल की ओर बढ़ते हुए बोला, "माँ ने तुम्हारे लिए कुछ कपड़े रखे हैं, देख लो... अगर कुछ पसंद आए तो।"
आशना चुपचाप अलमारी की ओर बढ़ गई। जैसे ही उसने अलमारी देखी, उसकी आँखें हैरानी से फटी की फटी रह गईं। सामने पूरी अलमारी तरह-तरह के कपड़ों से भरी हुई थी। साड़ियाँ और सूट एक तरफ हैंगर में लटके हुए थे, दूसरी तरफ वेस्टर्न ड्रेसेस थीं, सब एक से बढ़कर एक। नीचे कुछ सिंपल ड्रेस फोल्ड करके रखे हुए थे।
सबसे नीचे वाले शेल्फ में सुंदर-सुंदर सैंडल रखी हुई थीं। उसने दराज़ खोला तो बाकी चीजें भी मौजूद थीं। सब देखने के बाद उसने हैरानी से अथर्व को देखते हुए कहा, "ये सब मेरे लिए हैं?"
"अब मेरी पत्नी तुम हो, यहाँ मेरे साथ तुम रहने वाली हो, तो अगर इस कमरे की अलमारी में लड़कियों के कपड़े हैं, तो सब तुम्हारे ही लिए होंगे न?" अथर्व ने भौंहें चढ़ाते हुए उसे देखा। आशना ने ऊपर-नीचे सिर हिला दिया। नीचे रखी नाईटी को उठाकर देखा तो वह घबरा गई और हड़बड़ी में उसे वापस वहीं रख दिया, क्योंकि वह काफी रिवीलिंग नाईटी थी।
उसने सब में से ढूँढ़ने के बाद एक सिंपल सा व्हाइट सूट लिया और बाथरूम में चली गई। जब बाहर आई तो अथर्व बेड पर लेटा हुआ था, आँखें बंद थीं और उसने अपनी बाहें अपनी आँखों पर रखी हुई थीं।
आशना ड्रेसिंग टेबल की ओर बढ़ गई। उसने अपना जूड़ा खोला और खुले बालों को हल्के हाथों से सँवारने के बाद बेड की ओर बढ़ गई। फिर उसने अथर्व को देखकर कहा, "मुझे सोना है।"
"जाओ, सोफे पर सो जाओ। अब से तुम बेड पर नहीं सोओगी। ढंग से सोना तक नहीं आता है तुम्हें। इंसानों वाली कोई आदत ही नहीं तुम्हारी। ऐसे उल्टे-सीधे पोजीशन में सोती हो कि दूसरे की नींद हराम कर देती हो। तुम्हारे वजह से कल रात मैंने जागकर काटी है। कभी अपना पैर लेकर मुझ पर चढ़ रही थी, तो कभी कोई प्रेरणा का नाम लेकर मुझसे चिपकी जा रही थी। तो कभी नींद में जाने क्या बोलने लगती थी। मैं तो कहता हूँ कल घर जाते वक़्त तुम्हें डॉक्टर को दिखा देंगे, पक्का तुम्हारे सिस्टम में कोई वायरस घुसा हुआ है, क्योंकि नॉर्मल इंसानों वाली हरकतें नहीं हैं तुम्हारी।"
अथर्व एकदम से उस पर भड़क गया। आशना घबरा गई, उसकी आँखें नम हो गईं, पर उसने एक शब्द नहीं कहा और सोफे की ओर बढ़ गई। अथर्व उसे गुस्से से घूरता रहा, फिर वापस लेट गया। आशना सोफे पर सिकुड़ कर लेट गई, अपने आँसुओं को बाहर नहीं आने दिया और अपनी आँखें बंद कर ली। दिन भर की थकान का असर था कि वह जल्दी ही सो गई। कुछ देर बाद अथर्व ने आँखें खोलकर उसे देखा। उसका उदास चेहरा देखकर उसे अच्छा नहीं लगा। आशना एकदम सिकुड़ कर लेटी हुई थी, जैसे उसे ठंड लग रही थी। अथर्व उठा और उठकर ब्लैंकेट लेकर उसके पास गया। उसने उसे अच्छे से ढँक दिया और एसी का टेंपरेचर भी बढ़ा दिया।
आशना को गर्माहट का एहसास हुआ तो वह ढंग से सो गई। यह देखकर अथर्व ने चैन की साँस ली और बेड पर जाकर लेट गया। थक तो वह भी गया था, तो वह जल्दी ही सो गया।
रात के करीब चार बज रहे थे। अथर्व को किसी के बड़बड़ाने की आवाज़ आई, तो उसकी नींद खुल गई। उसने उठकर हैरानी से इधर-उधर देखा तो पाया कि सोती हुई आशना कुछ बड़बड़ा रही है। इस वक़्त वह बहुत परेशान और उदास लग रही थी, चेहरा पसीने से भीगा हुआ था, शायद घबराई हुई थी।
अथर्व कुछ देर उसे देखता रहा, फिर उठकर उसके पास गया। कुछ सोचकर वह झुका और उसके होठों के पास अपना कान ले जाकर सुनने की कोशिश करने लगा कि आखिर वह क्या कह रही थी। आशना अब भी बड़बड़ा रही थी।
"पापा नहीं, मुझे शादी नहीं करनी... पापा प्लीज़, मैंने आज तक कभी आपसे कुछ नहीं माँगा, बस मेरी इतनी सी बात मान लीजिये, मुझे अभी शादी नहीं करनी... मेरे कुछ सपने हैं, मुझे उन्हें पूरा करना है... मेरे सपने मेरी ज़िन्दगी हैं, अगर मैं उन्हें पूरे नहीं कर पाई तो मैं जी नहीं पाऊँगी... घुट-घुटकर मर जाऊँगी मैं... प्लीज़ पापा... कभी तो मेरे बारे में सोचा कीजिये, मैं भी आपकी ही बेटी हूँ... आपको दीदी की खुशी दिखाई दे रही है, पर मेरे आँसू नहीं दिख रहे? ... प्लीज़ पापा, अगर मेरी उससे शादी हो गई तो मैं अपनी ज़िन्दगी में कुछ नहीं कर पाऊँगी, दीदी की तरह अपनी सारी ज़िन्दगी घर में कैद होकर निकाल दूँगी... मुझे ऐसी ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी नहीं जीनी पापा, जहाँ मैं एक-एक पैसे के लिए किसी और पर मोहताज रहूँ... प्लीज़ पापा, बस एक बार मेरी बात सुन लीजिये।"
आशना यह कहते हुए नींद में ही सिसकने लगी। अथर्व ने सारी बात सुनी तो हैरानी से उसे देखने लगा। आशना ने अब अपना चेहरा अपनी हथेली से ढँक लिया और नींद में चिल्लाने लगी।
"पापा नहीं... मैं आपकी सारी बात मानूँगी, बस मुझे मारिए मत..."
इसके बाद उसकी दर्द भरी चीखों से कमरा गूंज उठा। अथर्व उसे खाली देखने लगा। आशना का चीखना शुरू हुआ तो उसने उसके मुँह को अपनी हथेली से बंद कर दिया और धीरे से बोला,
"आशना, होश में आओ यार, कोई नहीं है यहाँ। अगर ऐसे तुम चिल्लाती रहीं तो सारा घर यहाँ इकट्ठा हो जाएगा।"
आशना को तो कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था, वह मुँह बंद करने पर नींद में ही छटपटाने लगी। अथर्व ने उसके गाल को थपथपाते हुए कहा,
"आशना, होश में आओ, कोई नहीं है यहाँ, कोई तुम्हें कुछ नहीं करेगा। आशना, होश में आओ यार, आँखें खोलो अपनी, तुम कोई सपना देख रही हो।"
उसके कुछ देर यूँ ही हिलाने पर आशना ने अचानक ही झटके से अपनी आँखें खोल दीं और उसे अपने इतने पास देखकर उसने उसे झटके से खुद से दूर धक्का दे दिया। अथर्व पीछे लुढ़क गया। उसे आशना से इसकी उम्मीद नहीं थी, इसलिए वह संभल नहीं पाया था।
अथर्व गुस्से में उठा, शायद आशना पर चिल्लाने वाला था, पर आशना का डरा-सहमा चेहरा और आँसुओं से भीगी आँखें देखकर वह शांत हो गया। आशना उठकर खुद में सिमटकर बैठ गई और बुरी तरह रो रही थी। अब भी वह कुछ-कुछ बड़बड़ा रही थी। अथर्व ने खुद को शांत किया, फिर उसके पास गया। अब उसने बड़े प्यार से उसे पुकारा,
"आशना।"
आशना ने उसकी आवाज़ सुनी तो नज़रें उठाकर उसे देखा। अथर्व ने एक बार फिर उसके पास कदम बढ़ाते हुए कहा, "तुम ठीक हो?"
"जी, मैं ठीक हूँ, शायद कोई बुरा सपना देख लिया था। सॉरी, मैंने आपको डिस्टर्ब कर दिया, आप सो जाइये, अब मैं आपको और परेशान नहीं करूँगी।"
आशना ने किसी तरह अपनी बात कही और अपने आँसुओं को साफ़ करके बालकनी की ओर बढ़ गई।
अथर्व उसे देखते हुए सोचने लगा, "यह कोई बुरा सपना नहीं था, बल्कि शायद तुम्हारी ज़िन्दगी की दर्द भरी हकीकत थी, जिसे तुम छिपाने की कोशिश कर रही हो... कुछ तो है जो तुम अपने पापा का नाम सुनते ही उदास हो जाती हो। क्या उन्होंने तुम्हारी शादी करवाने के लिए तुम्हारे साथ जबरदस्ती की थी, हाथ उठाया था तुम पर?"
वह यही सब सोच रहा था। उसने नज़रें बालकनी की ओर घुमाईं तो आशना बालकनी की रेलिंग पकड़े सामने चाँद को देख रही थी। अथर्व भी उस तरफ़ बढ़ गया।
"अगर कोई बात है जो तुम्हें परेशान कर रही है तो तुम मुझसे शेयर कर सकती हो।" अथर्व ने उसके बगल में खड़े होते हुए कहा। उसकी बात सुनकर आशना ने उसे खाली आँखों से देखते हुए कहा,
"जिनका साथ कुछ वक़्त का हो, वह कभी हमराज़ या हमदर्द नहीं बना करते।"
उसके मुँह से इतनी सीरियस बात सुनकर अथर्व ने उसकी ओर देखा तो आशना ने नज़रें वापस चाँद पर टिका दीं। अथर्व कुछ पल उसके चेहरे पर झलकते दर्द को देखता रहा, फिर उसने उसे देखते हुए गंभीरता से कहा,
"हमारा साथ एक साल का है और यह कोई छोटा वक़्त नहीं है। तो हम और कुछ नहीं तो एक-दूसरे के दर्द को तो बाँट ही सकते हैं।"
"अच्छा, तो क्या आप मुझे बता सकते हैं कि आपके अतीत में ऐसा क्या हुआ कि आपने अपने भरे-पूरे परिवार को छोड़ दिया, अपना घर छोड़ दिया और अकेले उस बड़े से महल में रहने लगे?" आशना ने उसे देखते हुए पलटकर सवाल किया तो अथर्व खामोश रह गया। उसने उस पर से अपनी नज़रें हटा लीं तो आशना के लबों पर दर्द भरी मुस्कान फैल गई। उसने चाँद को देखते हुए आगे कहा,
"हमारा साथ बस कुछ वक़्त का है, बेहतर होगा कि हम एक-दूसरे की पर्सनल लाइफ़ और अतीत से दूर रहें। फिर भी अगर आप मेरे दर्द को बाँटना चाहते हैं तो पहले मुझे यह हक़ दीजिये कि मैं आपके दर्द को कम कर सकूँ। जिस दिन आप मुझसे अपने अतीत की कड़वी यादों को बाँट लेंगे, मैं भी अपने हर दर्द में आपको शामिल कर लूँगी। तब तक मुझे मेरे दर्द के साथ अकेला छोड़ दीजिये, प्लीज़। चले जाइये यहाँ से, मुझे कुछ देर अकेले रहना है।"
उसकी बात सुनकर अथर्व चुपचाप वहाँ से चला गया। आशना कुछ देर खाली आँखों से चाँद को देखती रही, फिर रेलिंग से टिककर बैठ गई।
कुछ एक घंटे बाद अथर्व फिर से वहाँ आया तो देखा आशना रेलिंग से सिर टिकाए बैठे-बैठे ही सो गई है। उसका चेहरा अब भी दर्द से सना हुआ था। जो देखकर अथर्व के दिल में कुछ चुभता हुआ सा महसूस हो रहा था। इतनी उदास तो उसने उसे तब भी नहीं देखा था, जब उसने उसे शादी के लिए मजबूर किया था। उसने कुछ पल उसे खामोशी से देखने के बाद झुककर उसे अपनी बाहों में संभालकर उठा लिया और धीमे कदमों से अंदर की ओर बढ़ गया।
आशना ने नींद में ही उसके सीने पर अपनी हथेली रख दी, फिर उस पर अपना सिर टिका दिया। उसके हथेली के स्पर्श से अथर्व की धड़कनें तेज हो गईं। उसने घबराकर उस लड़की को देखा जो उसके दिल की बेचैनी का सबब बनकर भी कितने सुकून से सो रही थी। फिर उसने उस पर से अपनी नज़रें हटा लीं।
रूम में जाकर उसे अच्छे से आराम से बेड पर सुलाया, फिर अच्छे से ढँककर खुद दूसरी तरफ़ लेट गया। पर उसे दोबारा नींद नहीं आई। उसे आशना को सुलाए हुए कुछ देर ही हुई थी कि उसे कुछ गिरने की आवाज़ आई तो वह चिहुँककर उठ बैठा। नज़रें घुमाईं तो जिस जगह उसने आशना को सुलाया था, वह जगह खाली थी। यह देखकर उसने अपना सिर पकड़ लिया।
कुछ देर बाद उठा और दूसरी तरफ़ देखा तो आशना ज़मीन पर बड़े सुकून से सो रही थी। उसने एक गहरी साँस छोड़ी और फिर से उसे उठाकर बेड पर चढ़ा गया और बीच में उसे सुलाने के बाद उसे ढँक दिया और कोने पर पिलो लगा दिया। खुद दूसरी तरफ़ लेट गया, पर तब भी उसे चैन नहीं मिला। वह खुद से ही बोला,
"इस पागल लड़की का कोई भरोसा नहीं, गुलाटियाँ मारते हुए कोने तक पहुँच जाएगी और फिर से नीचे लुढ़क जाएगी।"
यह सोचकर वह उसके पास खिसक गया और हिचकिचाते हुए उसके हाथ को थाम लिया। कुछ देर वह फिर से सो गया।
अथर्व ने यद्यपि स्वयं को समझा लिया था कि वह आशना से दूर रहेगा, पर सच तो यही था कि दोनों के बीच कुछ था। अथर्व उसके आँसुओं को देख नहीं पाता था। उसकी उदासी देखकर वह सब भूल जाता था, या यूँ कहें कि आशना के मासूम चेहरे को देखते ही वह अपने दिमाग को छुट्टी पर भेज देता था; तब बस दिल काम करता था जो उसे आशना की ओर बढ़ने पर मजबूर कर देता था।
इन दोनों के इस समझौते के रिश्ते में शुरू से ऐसा क्या था जो उन्हें जोड़ रहा था, यह वे नहीं जानते थे। आशना का दर्द देखकर एक बार फिर अथर्व का पत्थर दिल पिघल चुका था। और उसकी चिंता और फिक्र की वजह से अथर्व उसके हाथ को थामकर ही सो गया था ताकि वह नींद में दोबारा गिर न जाएँ; अगर ऐसा होता तो उसे चोट लगने की आशंका थी और अथर्व ऐसा नहीं चाहता था। दोनों आज सुकून से सो रहे थे।
अगले दिन आशना की नींद सुबह जल्दी खुल गई। वह पाँच बजे ही उठ गई, जबकि अथर्व देर रात तक जागने के कारण अब तक सो रहा था। आशना ने जैसे ही अपनी आँखें खोलीं, उसकी नज़रें अथर्व के हैंडसम चेहरे पर पड़ गईं। दोनों नींद में एक-दूसरे के पास आ गए थे और अब दोनों का चेहरा एक-दूसरे के सामने था।
आशना उसके चेहरे को इतने पास देखकर घबरा गई और झटके से उठने लगी, पर उसी वक्त अथर्व ने दूसरी तरफ करवट ले ली। उसने अब भी आशना की हथेली को कसके थामा हुआ था, जिस वजह से आशना उसके तरफ खिंच गई। वह लगभग उसके ऊपर ही गिरने वाली थी, पर उसने अपने दूसरे हाथ की हथेली को बेड से टिका दिया, जिस वजह से वह उसके ऊपर गिरने से बच गई।
यह सब इतनी जल्दी हुआ कि उसे कुछ समझने का मौका ही नहीं मिला था। सब खुद-ब-खुद होता ही चला गया और वह बस हैरानी से अथर्व को देखती ही रह गई, जो अब भी सुकून से सो रहा था। उसके बाल उसके माथे पर लहरा रहे थे; सोते हुए वह एकदम अलग लग रहा था, बहुत प्यारा और क्यूट। चेहरा तो उसका कमाल का था ही, अब तो और भी दिलकश लग रहा था। आशना की नज़रें उसके चेहरे पर अटक गईं। वह एकटक उसके चेहरे को देखने लगी।
अचानक ही अथर्व ने उसके हाथ को एक बार फिर अपनी ओर खींच लिया और इस बार आशना संभल नहीं सकी और उसके ऊपर जा गिरी। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। अगले ही पल उसे अपनी कमर पर अथर्व की बाहों का घेरा महसूस हुआ तो बेचारी की साँसें ही अटक गईं। उसने घबराकर थोड़ा सा सिर उठाकर देखा तो अथर्व अब भी सुकून से सो रहा था।
आशना ने चैन की साँस लेते हुए कहा,
"Thank god ये सो रहे हैं, अगर जाग जाते तो क्या कहती मैं उन्हें? (फिर उसने कुछ सोचकर खुद से ही कहा) पर मैं क्यों कुछ कहती?... मेरा हाथ पकड़कर तो ये सोए हैं, मुझे अपने ऊपर खींचा भी इन्होंने और अब मुझे पकड़कर सो भी खुद ही रहे हैं, फिर मैं क्यों जवाब दूँगी?.......
जवाब तो इन्हें देना होगा कि ये मेरा हाथ पकड़कर क्यों सो रहे हैं? (फिर उसने कुछ सोचकर कहा) पर मैं तो बाहर बैठी हुई थी न, फिर मैं यहाँ कब आई? और वो भी बेड पर इनके साथ कैसे सो गई?..... लगता है मैं वहीं सो गई होंगी तो ये मुझे उठाकर अंदर लाए और नींद में गलती से मेरा हाथ पकड़ लिया होगा।"
उसने खुद से ही सवाल किए और खुद से ही जवाब भी दे दिए। उसके बाद उसे देखते हुए धीमी आवाज़ में आगे बोली,
"वैसे आप इतने बुरे नहीं हैं जितने बनते हैं।"
यह कहते हुए उसके लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैली हुई थी। उसने धीरे से उसके हाथ को अपनी कमर पर से हटाया और आराम से उससे दूर हो गई। धीरे से बेड से नीचे उतरी और धीमे कदमों से अलमारी की ओर बढ़ गई। वह बार-बार पीछे मुड़कर देख रही थी कि कहीं वह जाग तो नहीं गया। उसने बड़े ध्यान से अलमारी खोली और कपड़े लेकर बाथरूम में घुस गई।
जैसे ही बाथरूम का दरवाज़ा बंद हुआ, अथर्व ने अपनी आँखें खोल लीं और गहरी साँस छोड़ते हुए बोला,
"बच गया आज तो तू, अगर वो तुझसे ये सब सवाल कर देती तो क्या जवाब देता तू उसे?..... इसलिए कहता हूँ, दूर रह उससे। पर अजीब लड़की है, खुद ही सवाल किया और खुद से ही जवाब भी दे दिया।....... पर चलो अच्छा है अब उदास तो नहीं लग रही थी, अपने पहले वाले रूप में लौट चुकी थी....... पर हैरानी की बात है जो लड़की बिना तोड़-फोड़ किए एक काम नहीं कर पाती, उसने एक चिंटी भर की भी आवाज़ नहीं की। इतने आराम से उठी कि किसी को ख़बर भी न हो कि कोई वहाँ से गायब भी हुआ है।
पर मैं तो तभी उठ गया था, जब तुम मेरे ऊपर गिरी थी और मैंने अनजाने में तुम पर अपनी बाहों को लपेट दिया था, पर मैंने यह ज़ाहिर नहीं होने दिया क्योंकि जो गलती मुझसे हो गई थी, अगर मैंने तब अपनी आँखें खोल दी होतीं तो तुम्हारे और मेरे दोनों के लिए सिचुएशन अजीब हो जाती। फिर तुम्हारे सवालों के जवाब देने भी भारी पड़ जाते मुझे, इसलिए मैंने सोने का नाटक कर लिया।"
अथर्व यही सब सोच रहा था कि बाथरूम का दरवाज़ा खुला और आशना ने बाहर कदम रखा। कमरे में कदम रखते ही उसकी नज़रें बेड पर बैठे अथर्व पर पड़ गईं तो कुछ देर पहले के पल को याद करके उसके गाल गुलाबी हो उठे। उसने उस पर से अपनी नज़रें हटा लीं और ड्रेसिंग टेबल की ओर बढ़ गई।
अथर्व उसके चेहरे पर आए घबराहट के भावों को देख भी रहा था और समझ भी रहा था। उसे खुद भी तो उससे नज़रें मिलाने में अजीब फील हो रहा था, तो उसने माहौल को ठीक करने के लिए बेड पर से उतरते हुए सवाल किया,
"आज जल्दी उठ गई तुम।"
"Hmm आँख जल्दी खुल गई तो सोचा रेडी हो जाऊँ वरना लेट हुई तो आप खाना नहीं देंगे।" आशना ने अपने बालों को खोलते हुए जवाब दिया तो अथर्व ने कहा,
"Hmm .... अच्छी बात है।" कहकर बाथरूम में घुस गया। आशना ने अब पलटकर देखा तो बाथरूम में जाते अथर्व को देखकर उसके लब हल्के से खिंच गए।
अथर्व जब नहाकर बाहर आया तो कमरा खाली देख वो थोड़ा चौंक गया। उसने हर जगह देखा पर आशना कहीं नहीं दिखी। उसने जल्दी से कपड़े पहने, बाल सेट किए और कमरे से बाहर निकल गया। वह सीधा नीचे पहुँचा तो हॉल में अधिराज जी अखबार पढ़ रहे थे, साथ ही चाय की चुस्की भी ले रहे थे। दादा-दादी भी उनके पास ही बैठे और किसी बात पर चर्चा कर रहे थे। नौकर साफ़-सफ़ाई में लगे हुए थे।
अथर्व ने हर जगह निगाहें दौड़ाईं पर उसे आशना कहीं नहीं दिखी, साथ में सुहासिनी जी भी नज़र नहीं आईं तो कुछ सोचते हुए वह किचन की ओर बढ़ गया।
वह जैसे ही किचन के नज़दीक पहुँचा, उसके कानों में आशना की खनकती आवाज़ पड़ी,
"मॉम मुझे भी आपसे यह सब बनाना सीखना है।"
उसने इतना कहा, इसके साथ ही सुहासिनी जी की आवाज़ भी आई,
"बिल्कुल.... हम तो सारा दिन फ्री रहते हैं। आप यहीं रह जाइए हमारे साथ, हम आपको वह सब बनाना सिखा देंगे जो अथर्व को पसंद है।"
"पर वो मुझे यहाँ रहने नहीं देंगे।" आशना की आवाज़ में एक उदासी झलक रही थी। अथर्व अब उस ओपन किचन के गेट से टिककर खड़ा, उन दोनों सास-बहू की बातों को सुन रहा था।
आशना की बात सुनकर सुहासिनी जी ने मुस्कुराकर कहा,
"आप चाहती हैं हमारे साथ रुकना?"
"हाँ.... पता है, वहाँ कोई भी नहीं है। इतना बड़ा बंगला है, जैसे कोई भूत बंगला हो। अगर मैं अकेले वहाँ रह गई तो मुझे पक्का हार्ट अटैक आ जाएगा। भले ही वहाँ ढेर सारे नौकर हैं पर परिवार तो परिवार होता है न? और आप सब इतने अच्छे हैं, मैं यहाँ आप सबके साथ रहना चाहती हूँ। पर आपके बेटे मुझे यहाँ रहने नहीं देंगे।
बिल्कुल जल्लाद है वो, पता है.... ज़रा-ज़रा सी बात पर भड़क जाते हैं। मुझे तो समझ ही नहीं आता कि कब वो अच्छे मूड में होते हैं और कब खराब मूड में होते हैं। कुछ पल पहले इतने अच्छे से बात करेंगे और अगले ही पल उनकी ज़ुबान पर नीम जैसी कड़वाहट फैल जाती है। पर अब मुझे उनके साथ ही रहना होगा, उनकी पत्नी होकर मैं यहाँ उनसे दूर तो नहीं रह सकती और वो यहाँ रहने आएंगे नहीं।"
आशना इस बात से अनजान थी कि अथर्व उसकी सारी बातें सुन रहा है। वह बोली जा रही थी, जैसे ही वह चुप हुई उसके कानों में अथर्व की सख्त आवाज़ पड़ी,
"सही कहा तुमने, तुम मेरी पत्नी हो इसलिए तुम वहीं रहोगी जहाँ मैं रहूँगा, इसलिए यहाँ रहने के सपने देखना छोड़ दो और मेरी बुराई करने से पहले एक बार सोच लेना, मुझसे टकराना तुम्हें बहुत भारी पड़ सकता है।"
आवाज़ सुनकर एक पल को आशना चौंक गई, उसका चेहरा घबराहट और डर से सफ़ेद पड़ गया था, पर जैसे ही उसने उसकी बात सुनी, उसकी आँखें गुस्से से छोटी-छोटी हो गईं और वह उसके तरफ़ पलट गई।
"शर्म नहीं आती आपको ऐसे छुपकर दूसरों की बातें सुनते हुए?... और आप मुझे धमकी क्या दे रहे हैं, मैं आपसे डरती नहीं हूँ........ समझे।" आशना अपनी कमर पर हाथ रखकर उसको गुस्से से घूरने लगी। वही उसका लहज़ा एक बार फिर अथर्व को गुस्सा दिला गया। उसने उसके तरफ़ कदम बढ़ाते हुए दाँत पीसते हुए कहा,
"यह मेरा घर है मैं जहाँ चाहे जा सकता हूँ, जो चाहे कर सकता हूँ। उसके लिए मुझे किसी की इज़ाज़त लेने की ज़रूरत नहीं है। रही बात शर्म आने की.... तो शर्म तो तुम्हें आनी चाहिए, अपनी सास के सामने अपने पति की बुराई कर रही हो। कुछ ज़्यादा ही नहीं चलने लगी है आजकल तुम्हारी ज़ुबान।"
"मेरी ज़ुबान तो हमेशा से बहुत चलती है, आपको ही देर से पता चला और मुझे क्यों शर्म आएगी?... मैं अपनी मॉम से बात कर रही थी, छुप-छुपकर आप मेरी बात सुन रहे थे तो शर्म आपको आनी चाहिए।" आशना ने एक बार फिर गुस्से में उसको घूरते हुए कहा। दोनों ही खा जाने वाली नज़रों से एक-दूसरे को घूरने लगे, पर दोनों में से कोई आगे कुछ कहता उससे पहले ही सुहासिनी जी ने बीच में आते हुए कहा,
"बस कीजिये आप दोनों, इतने बड़े हो गए हैं, शादी जैसे रिश्ते में बंध गए हैं। पर बचपन अब भी नहीं गया है, कैसे इतनी सी बात पर बच्चों की तरह झगड़ रहे हैं।"
"मॉम.........." अथर्व ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि सुहासिनी जी ने उसकी बात काट दी और उसको घूरते हुए बोली,
"आप तो कुछ बोलिये ही मत। यह किस लहज़े में बात कर रहे थे आप आशना से?..... भूलिए मत, पत्नी है यह आपकी तो इज़्ज़त दिया कीजिये इन्हें.... और एक बात।
इस बार कह लिया कि यह आपका घर है, आगे से ऐसा दोबारा न हो क्योंकि आशना इस घर की बहू है और अब से उनका भी इस घर पर उतना ही हक़ है जितना कि आपका है।"
उनकी बात सुनकर अथर्व ने गुस्से से आशना को घूरा जो लबों पर विजयी मुस्कान लिए उसे देख रही थी, जैसे चिढ़ा रही हो उसे। अथर्व चिढ़कर पैर पटकते हुए वहाँ से चला गया तो उसका चेहरा याद करके आशना खिलखिलाकर हँस पड़ी। अब सुहासिनी जी ने घूरकर उसे देखा तो वह एकदम से चुप हो गई और अगले ही पल दोनों सास-बहू की हँसी से पूरा किचन गूंज उठा।
आशना ने कुछ देर बाद मुस्कुराकर उनसे कहा,
"Wow मॉम... आपने तो कमाल कर दिया, क्या झाड़ा है उन्हें। उनकी शक्ल तो देखने लायक थी। सच में मुझे तो बहुत मज़ा आया।"
वह एक बार फिर खिलखिलाकर हँस पड़ी। वही उसकी बात सुनकर सुहासिनी ने एकदम गंभीर होकर उसे घूरते हुए बोली,
"कुछ ज़्यादा ही मज़ाक नहीं उड़ा रही हैं आप हमारे बेटे का हमारे ही सामने?... भूलिए मत हम उनकी माँ हैं और आपकी सास।"
"मैं हमेशा याद रखूँगी कि आप मेरी मॉम हैं।" उनकी बात पर आशना ने मोहिनी मुस्कान के साथ कहा तो उनकी बात सुनकर वह मुस्कुरा उठीं और प्यार से उसके गाल को छूकर समझाते हुए बोलीं,
"हम जानते हैं कि वह बहुत गुस्सा करते हैं, आपको बहुत तंग भी करते होंगे, बचपन से ऐसे ही हैं गुस्सैल और चिड़चिड़े। पहले थोड़ा हँस-मुस्कुरा लेते थे, फिर उनकी ज़िन्दगी में अस्मि आई और उनके दिए धोखे ने अथर्व की मुस्कुराहट भी छीन ली। उन्होंने खुद को पत्थर जैसा सख्त बना लिया और उसी का असर है कि अब तो ऐसे हैं पर बेटा, वो दिल के बहुत अच्छे हैं। अब तो आप उनकी ज़िन्दगी में शामिल हो गई हैं तो धीरे-धीरे आप खुद समझ जाएंगी कि वो जैसे दिखते हैं वैसे हैं नहीं.......
और हमें पूरा विश्वास है कि आप ही वो लड़की हैं जो हमें हमारा पहले वाला बेटा लौटा सकती हैं। उनके दिल में जो खटास और कड़वाहट बसी हुई है, उसे आप जैसी लड़की ही मिटा सकती है जिसकी बोली में शहद सी मिठास है। इसलिए हम बस आपसे इतना कहेंगे कि उनसे लड़ा मत कीजिये, वो और चिढ़ जाएँगे। जितना हो सके उन्हें प्यार से ट्रीट कीजिये, फिर देखिएगा जल्दी ही उनके दिल में जमी बर्फ की मोटी परतें पिघल जाएँगी और उसकी जगह उनमें आपके लिए बेशुमार प्यार अपनी जगह बना लेगा।
हम जानते हैं यह शादी आपकी मर्ज़ी से नहीं हुई है। (आशना खामोशी से उनकी बात सुन रही थी। जैसे ही उन्होंने यह कहा आशना की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं, वह उन्हें हैरानी से देखने लगी तो उन्होंने मुस्कुराकर आगे कहा) माँ हैं उनकी, वो क्या कर सकते हैं क्या नहीं यह हमसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता। जानते हैं डैड की डील की वजह से उन्होंने जल्दबाज़ी में आपसे शादी कर ली है।
आपकी क्या मजबूरी थी हम नहीं जानते, पर आपको देखकर इतना तो समझ गए कि आप बहुत ही प्यारी और साफ़ दिल की चंचल सी लड़की हैं। पैसों के लिए आप उनके साथ नहीं हो सकतीं, आप बिल्कुल वैसी ही हैं जैसी पत्नी की तलाश हमें अपने बेटे के लिए थी, जो अपनी बातों से उनकी सुनी ज़िन्दगी को सजा दे, जो उनके दिल में फिर से उन एहसासों को पनपने पर मजबूर कर दे जिन्हें उन्होंने सालों पहले अपने दिल की गहराई में कहीं छुपा दिया है।
जो उनके मन में प्यार शब्द पर विश्वास जगा सके। उनकी कड़वी बातों को जो मिठास में बदलकर उनकी ज़िन्दगी प्यारे मीठे एहसासों से रूबरू करवा सके। और आप यह कर सकती हैं। आपको पहली नज़र देखकर ही हम समझ गए थे कि इस बार अथर्व ने अपने लिए बिल्कुल सही लड़की को चुना है, बस अब आपको उनके दिल से उन कड़वी यादों को निकालकर खुद को उनके दिल में बसाना है।
हम इसमें आपकी पूरी मदद करेंगे, देखिएगा यह एक साल ख़त्म होते-होते अथर्व को आपसे प्यार हो जाएगा, क्योंकि इतनी प्यारी बच्ची के साथ रहकर भी वो उनके प्यार में न पड़े, यह तो हो ही नहीं सकता। एक बार उन्हें आपसे प्यार हो गया, तो वो आपको कभी खुद से दूर नहीं करेंगे और आपको उनका साथ ज़िन्दगी भर के लिए मिल जाएगा। बताइए करेंगी ना आप उनके दिल तक पहुँचने की कोशिश अपनी मॉम के लिए?"
आशना गहरी सोच में डूब गई थी। उन्होंने सवाल किया तो आशना उन्हें देखने लगी। सुहासिनी जी उम्मीद भरी नज़रों से उसे देख रही थीं। आशना के दिमाग में इस वक़्त बहुत कुछ चल रहा था। कुछ देर सोचने के बाद उसने धीरे से हाँ में सिर हिला दिया तो सुहासिनी जी खुश हो गईं और उसे गले लगाते हुए बोलीं,
"हमें आपसे यही उम्मीद थी। अब से रोज़ अथर्व के जाने के बाद आप यहाँ आएंगी हमारे पास, हम आपको अथर्व के बारे में वो बातें बताएँगे जो आपको मदद करेंगी उनके करीब जाने में। साथ में आपको उनकी फ़ेवरेट डिशेज़ बनाना भी सिखा देंगे। पुरानी कहावत है पर आज भी काम करती है कि पति के दिल तक पहुँचने का रास्ता उसके पेट से होकर गुज़रता है।"
वह अब आशना से अलग हुईं तो आशना ने कुछ पल खामोश रहने के बाद सवाल किया,
"मॉम अस्मि कौन है? और ऐसा क्या हुआ है उनके साथ कि वो इतना बदल गए? यहाँ तक कि उन्होंने अपना घर, अपना परिवार भी छोड़ दिया?"
"अभी इस बात को करने का सही वक़्त नहीं आया है बेटा। बस इतना जान लीजिए कि अस्मि अथर्व का अतीत है और आप उनका आज और उनका भविष्य। आपको उनके दिल से उनके अतीत को निकालना है और खुद को उनके दिल में बसाना है। जब हमें लगेगा कि अब आपको सब सच बता देना चाहिए तो हम खुद आपको सारी बात बता देंगे।"
उन्होंने बड़े प्यार से उसके गाल को छूकर उसे समझाया तो आशना ने हाँ में सिर हिला दिया। दोनों वापिस खाना बनाने में लग गईं। कुछ देर बाद अथर्व ने एक बार फिर वहाँ कदम रखा और दोनों को बात करते देख मुँह बनाते हुए बोला,
"अगर बातों से फुरसत हो तो अपने पति के लिए कॉफ़ी ही बना दो, कब से बाहर इंतज़ार में बैठा हूँ पर बातों के आगे किसी को इस बात का ध्यान ही नहीं है।"
उसकी बात सीधे-सीधे आशना के लिए थी। इतने हक़ से 'पति' शब्द कहना आशना के मन के तार को झंकृत कर गया, अनजानी सी खुशी से उसका दिल उछल पड़ा। वही सुहासिनी जी भी यह देखकर मुस्कुराने लगीं कि अथर्व अनजाने में ही सही पर आशना की केयर भी करता है, उस पर पति होने का हक़ भी जताता है....... मतलब साफ़ था कि आगे चलकर उनका रिश्ता मज़बूत हो सकता है इतना कि कोई कॉन्ट्रैक्ट उसे तोड़ न सके।
आशना ने उसकी बात सुनकर पलटकर उसे देखा और मुस्कुराकर बोली,
"sorry .... आप बाहर चलिए, मैं अभी लेकर आती हूँ।"
"नहीं.... मैं यहीं खड़ा हूँ, जल्दी कॉफ़ी दो। क्या भरोसा है तुम्हारा, मैं यहाँ से चला गया तो तुम फिर से बातों में सब भूल जाओगी और मैं बाहर बैठा कॉफ़ी का इंतज़ार ही करता रह जाऊँगा।" अथर्व ने दीवार से पीठ लगाते हुए कहा और हाथ बाँधे उसे देखने लगा। आशना ने अब उस पर से अपनी नज़रें हटा लीं और कॉफ़ी के लिए दूध गरम करने लगी। फिर अथर्व की ओर मुड़कर बोली,
"कितनी चीनी?"
"One tea spoon।" अथर्व ने बड़े आराम से जवाब दिया तो आशना फिर से कॉफ़ी बनाने लगी। उसने कॉफ़ी मग में कॉफ़ी डाली और उसके तरफ़ बढ़ गई।
"आपकी कॉफ़ी।" उसने मग उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा तो अथर्व ठीक से खड़ा हो गया। मग को थामते हुए उसके तरफ़ हल्का सा झुका और धीमी आवाज़ में बोला,
"जल्दी से रूम में आओ, कुछ बात करनी है तुमसे।"
उसकी बात सुनकर आशना आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी। वही अथर्व ने तिरछी मुस्कान के साथ उसे देखा और जाने के लिए मुड़ गया। फिर उसने कॉफ़ी की सिप ली और जाते हुए मुस्कुराकर बोला,
"कॉफ़ी ठीक-ठाक बनी है।"
उसकी बात सुनकर आशना अब और भी परेशान सी उसे देखने लगी और वह वहाँ से निकल गया।
"जल्दी से रूम में आओ, कुछ बात करनी है तुमसे।"
उसकी बात सुनकर आशना आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखने लगी। वहीं अथर्व ने तिरछी मुस्कान के साथ उसे देखा और जाने के लिए मुड़ गया। फिर उसने कॉफी की एक सिप ली और जाते हुए मुस्कुराकर बोला, "कॉफी ठीक-ठाक बनी है।"
उसकी बात सुनकर आशना अब और भी ज्यादा परेशान हो गई और अथर्व शातिर अंदाज़ में मुस्कुराते हुए वहाँ से निकल गया। आशना अब भी हैरान-परेशान सी उसी दिशा में देख रही थी, जबकि अथर्व तो कब का वहाँ से जा चुका था। सुहासिनी जी की नज़र उस पर गई। उन्होंने उसे स्टैचू बने खड़े देखा तो उसके पास आ गईं।
"क्या हुआ बेटा? अथर्व तो चला गया, अब आप किसे देख रही हैं?"
उनकी बात सुनकर आशना होश में लौटी। उसने कन्फ्यूज़ नज़रों से उन्हें देखते हुए कहा, "उन्होंने मुझे कमरे में बुलाया है, कह रहे हैं कि कुछ बात करनी है।"
"तो जाइए ना, यहाँ क्या कर रही हैं? कुछ ज़रूरी काम होगा।" उन्होंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। आशना ने हामी भर दी और कन्फ्यूज़ सी वहाँ से चली गई। वह कमरे के गेट तक पहुँची, पर अंदर जाने में उसे घबराहट होने लगी। फिर उसने धीरे से थोड़ा सा दरवाज़ा खोला और चोरों जैसे सर घुसाकर झाँककर अंदर देखने लगी।
तभी अचानक पूरा दरवाज़ा खुल गया। आशना का बैलेंस बिगड़ा और संभलते-संभलते ही अंदर की तरफ़ मुँह के बल फर्श पर गिर गई। इसके साथ ही उसके मुँह से "अह्ह्ह्ह्..." निकल गया। वह जल्दी से उठकर बैठ गई और अपनी बाँह को सहलाने लगी।
तभी उसके कानों में अथर्व की सख्त आवाज़ पड़ी, "कैसा लगा? कहा था ना, मुझसे पंगा लेना तुम्हें भारी पड़ेगा।"
आवाज़ सुनकर आशना ने नज़रें सामने की तरफ़ उठाईं तो गेट बंद हो चुका था और उसके सामने दोनों हाथ अपनी पॉकेट में डाले खड़ा अथर्व बड़े ही एटीट्यूड के साथ उसे घूर रहा था। आशना ने उस पर से अपनी नज़रें हटा लीं और अपने आँसुओं को पोंछते हुए उठकर खड़ी हो गई।
अथर्व जो अभी तक उसे गुस्से से घूर रहा था, उसके आँसुओं को देखकर उसका गुस्सा पल में गायब हो गया। उसने उसके तरफ़ कदम बढ़ाते हुए कहा, "तुम रो रही हो?"
"नहीं, हँस रही हूँ।" आशना ने चिढ़कर गुस्से में कहा और अपनी बाँह सहलाते हुए जाने के लिए कदम बढ़ा दिए। अथर्व एकदम से उसके सामने आ खड़ा हुआ और भौंहें सिकोड़े गुस्से से उसे घूरते हुए बोला, "कितनी बार कहा है कि मुझसे इस लहज़े में बात मत किया करो, पर तुम्हें सीधे से बात समझ नहीं आती ना।"
"हाँ, नहीं आती आपकी कोई बात मुझे समझ। बेवकूफ़ हूँ ना, तो समझ आ भी कैसे सकती है? और आप क्या, कोई महाराज हैं, जो मैं आपकी गुलाम बनकर सर झुकाए आपकी हाँ में हाँ मिलाती फिरूँ? कॉन्ट्रैक्ट में ऐसा कुछ नहीं लिखा था कि मुझे आपकी गुलाम बनकर रहना होगा और आप मुझे बोलने का हक़ भी छीन लेंगे।" आशना ने अब उसके सामने तनते हुए कहा।
अथर्व ने गुस्से में उसकी बाँह को पकड़ लिया और उसे खुद के करीब करते हुए गुस्से से दाँत पीसते हुए बोला, "बहुत ज़ुबान चलने लगी है तुम्हारी, शायद भूल गई हो कि किससे बात कर रही हो?"
"बिल्कुल नहीं, याद है मुझे। मैं The great अथर्व सिंघानिया से बात कर रही हूँ, जो सारी दुनिया को अपना गुलाम समझते हैं, जिन्हें ये गलतफ़हमी है कि हर कोई उनके आगे सर झुकाकर उनकी हर बात मानेगा।"
आशना ने अब भी उसकी आँखों में आँखें डालते हुए जवाब दिया। अथर्व ने अपने जबड़े भींच लिए, साथ ही उसकी पकड़ आशना की बाँह पर कस गई। आशना दर्द से तड़पते हुए बोली, "क्या कर रहे हैं? हाथ छोड़िए मेरा, मुझे दर्द हो रहा है।"
वह उसके हाथ से अपनी बाँह छुड़ाने की कोशिश करने लगी, पर अथर्व की पकड़ और भी ज़्यादा कस गई। आशना की आँखों में नमी तैर गई। उसने अपनी भीगी पलकें उठाकर अथर्व को देखा। उसके आँसू अथर्व की कमज़ोरी थे। ऐसा क्यों था, वह नहीं जानता था, पर उसकी आँखों में आँसू देखकर वह हमेशा सॉफ्ट पड़ जाता था।
इस बार भी यही हुआ। उसने उसकी बाँह पर अपनी पकड़ ढीली कर दी। आशना ने अपना हाथ पीछे खींच लिया और उस जगह को अपनी हथेली से मसलने लगी।
अथर्व खामोश सा खड़ा उसकी बाँह को देख रहा था। जिस जगह उसने पकड़ा था, उस जगह उसके हाथों का निशान उभर आया था, एकदम लाल हो रखी थी वह जगह। उसकी स्किन थी भी बहुत वाइट, सेंसिटिव और सॉफ्ट, इसलिए नील भी पड़ने लगा था।
आशना की आँखों से बहते आँसू उसके गालों पर लुढ़कने लगे। अथर्व कुछ पल शांति से उसे देखता रहा, फिर बेड की तरफ़ बढ़ गया। उसने साइड टेबल के कैबिनेट को खोलकर उसमें रखी मेडिकल कीट निकाली और एक क्रीम लेकर आशना के तरफ़ बढ़ गया। जैसे ही उसने दवा लगाने के लिए उसका हाथ पकड़ना चाहा, आशना ने उसके हाथ को झटक दिया और गुस्से से पीछे हटते हुए बोली, "छुइए मत मुझे।"
"आशना, अपना हाथ दो मुझे।" आदत से मजबूर अथर्व ने हमेशा वाले सख्त अंदाज़ में कहा। आशना गुस्से में चिल्ला उठी, "क्यों? अब भी कुछ रह गया है क्या? एक निशान तो दे दिया है और दर्द देना चाहते हैं मुझे? सिर्फ़ इसलिए क्योंकि मैंने आपकी नज़रों से नज़रें मिलाकर जवाब दिया, जो आपकी शान के खिलाफ़ था, आपका ईगो ये बर्दाश्त नहीं कर सका ना, इसलिए मुझे दर्द देना चाहते हैं।"
उसकी बातों से अथर्व को गुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर उसने गुस्से पर कंट्रोल किया और आराम से बोला, "आशना, नील पड़ गया है, दवाई लगाने दो मुझे।"
"मुझे आपका यह एहसान नहीं चाहिए। मैं अपनी फ़िक्र खुद कर सकती हूँ। आप अपना ईगो उठाइए और चले जाइए मेरी नज़रों के सामने से।" आशना एक बार फिर गुस्से से गरज़ी। अब अथर्व अपने गुस्से को और कंट्रोल नहीं कर सका। उसने गुस्से में उसकी बाँह पकड़ी। आशना उससे छोड़ने को कहती रही, कोशिश करती रही छुड़ाने की, पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ।
अथर्व उसको बेड के पास ले गया और गुस्से से घूरते हुए बोला, "बस बहुत हुआ, अब चुपचाप बैठो। ज़रा भी हिली ना, तो देख लेना।"
उसने उसको जबरदस्ती बेड पर बिठाते हुए वार्निंग भरे अंदाज़ में कहा। आशना और ज़्यादा भड़क गई। उसने गुस्से में उसका हाथ झटकते हुए कहा, "क्या क…"
आगे के शब्द उसके हलक में अटक कर रह गए और आँखें हैरानी से फटी की फटी रह गईं। हुआ कुछ यूँ था कि उसके झटकने के वजह से उसका बैलेंस बिगड़ गया था और वह पीछे लुढ़कने लगी। बचने के लिए उसने अथर्व का हाथ पकड़ना चाहा और उसके चक्कर में अथर्व भी उसके ऊपर गिर गया। दोनों बेड पर जा गिरे और आशना के खुले लब अथर्व के नेक बोर से टकरा गए, जिससे दोनों की धड़कनें बढ़ गईं।
आशना की साँसें तेज चलने लगीं और वह घबराहट में अपनी पलकें जल्दी-जल्दी झपकाने लगी। अथर्व भी सुन्न सा रह गया था। उसे तो समझने का वक़्त ही नहीं मिला कि आख़िर उसके साथ क्या हुआ? उसके लबों का गर्म एहसास उसके दिल में हलचल पैदा कर गया था। पर अगले ही पल उसने खुद को संभाला और उठकर खड़ा हो गया। झेंप तो वह भी गया था, आख़िर हुआ ही कुछ ऐसा था उनके साथ, जिसकी कल्पना दोनों में से किसी ने नहीं की थी। दोनों असहज हो गए थे।
अथर्व ने अपनी झेंप मिटाते हुए झूठे गुस्से से कहा, "तुमसे कोई काम ढंग से नहीं किया जाता ना? खुद तो गिरी ही, साथ में मुझे भी गिरा दिया। अब उठो भी, क्या सारा दिन रही पड़ी रहोगी?"
अथर्व ने उसके तरफ़ हाथ बढ़ाते हुए कहा। आशना ने हिचकिचाते हुए उसकी हथेली थाम ली। अथर्व ने उसको बिठाया तो आशना ने झट से उसका हाथ छोड़ दिया और अपने कपड़े ठीक करते हुए नज़रें नचाते हुए धीरे से कहा, "सॉरी।"
"लाओ हाथ दो अपना और, फॉर गॉड सेक, प्लीज़ अब कुछ उल्टी-सीधी हरकत मत करना।" अथर्व ने एक बार फिर झूठे गुस्से से कहा। आशना ने भी झेंपते हुए उसके तरफ़ अपना हाथ बढ़ा दिया। अथर्व की उंगलियों ने जैसे ही उस नील पड़ी जगह को छुआ, आशना की सिसकी निकल गई। अथर्व ने तुरंत अपना हाथ पीछे खींच लिया, "सॉरी, ज़्यादा दर्द हुआ क्या?"
उसकी आवाज़ में अपने लिए दर्द और फ़िक्र महसूस करते ही आशना ने अपनी आँखें खोलकर उसे देखा। अथर्व परेशान सा उसे ही देख रहा था। आशना ने उसके चेहरे को देखते हुए ना में सर हिला दिया।
अथर्व ने उसे घूरा, फिर दोबारा नज़रें उसके बाँह की तरफ़ घुमा लीं। इस बार वह बड़े आराम से फूँक मारते हुए उसे दवाई लगाने लगा और आशना एकटक उसके चेहरे को देखती रही। अथर्व ने दवाई लगाई, फिर उसके तरफ़ नज़रें उठाते हुए बोला, "हो गया, जल्दी ही ठीक हो जाएगा।"
ये कहते हुए जैसे ही उसकी नज़रें आशना की नज़रों से टकराईं, आशना ने हड़बड़ाहट में अपनी नज़रें उस पर से हटा लीं और उठकर खड़े होते हुए बोली, "थैंक्यू, मैं नीचे जाती हूँ।"
इतना कहकर वह झट से दरवाज़े की तरफ़ दौड़ गई और सीधे रूम से बाहर निकल गई। अथर्व उसकी हड़बड़ाहट की वजह समझ नहीं सका, पर कुछ पल पहले हुए हादसे को याद करके उसने अपने बालों में हाथ फेरते हुए खुद में ही बड़बड़ाया, "इतना अनकम्फ़र्टेबल क्यों फ़ील हो रहा था मुझे? इतनी अजीब फ़ीलिंग पहले कभी तो नहीं हुई। अस्मि के साथ भी तो रिलेशनशिप में था, हम इससे भी ज़्यादा क्लोज़ आए थे, पर ये एहसास अलग से थे। अथर्व, ये लड़की पागल है, इससे बचकर रह। वरना ये तुझे भी अपनी तरह पागल कर देगी।"
अथर्व ने खुद को ही समझाया, फिर कमरे से बाहर निकल गया। नीचे पहुँचा तो देखा आशना नीचे सुहासिनी जी के साथ टेबल सेट करवा रही थी और अब उसके लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैली हुई थी। अथर्व को उसकी वह बात याद आ गई कि वह यहाँ उनके साथ रहना चाहती है। उसने मन ही मन कुछ सोचा, जिससे उसके लबों पर कुछ पलों के लिए हल्की सी मुस्कान आ गई, पर उसने जल्दी ही उसे छुपा लिया और सबके पास चला गया। सब बैठे तो आशना फिर से सर्व करने के लिए तैयार हो गई, पर जैसे ही उसने बाउल उठाया, अथर्व ने उसके हाथों से बाउल लेकर नीचे रखते हुए सख्त लहज़े में कहा, "आज तुम खाना सर्व नहीं करोगी।"
उसकी बात सुनकर आशना ने हैरानी से उसे देखा। अथर्व ने आगे कहा, "तुमसे कोई काम ढंग से हो जाए, ये इम्पॉसिबल है और मैं फिर से खाने की टेबल पर कोई ड्रामा नहीं चाहता। वैसे भी अभी हमें निकलना है, तो शांति से बैठकर नाश्ता करो।"
उसकी बात सुनकर आशना का मुँह बन गया। वह कुछ कहने को हुई, तभी उसकी नज़रें अथर्व के कॉलर के पास बने लिपस्टिक के निशान पर चली गईं, जो शायद उसके होंठों के वहाँ टकराने के वजह से ही बने थे। ये देखते ही आशना की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं और चेहरा एकदम सफ़ेद पड़ गया। उसका घबराया हुआ चेहरा देखकर सभी परेशान हो गए। साथ ही अथर्व भी उसे देखकर समझने की कोशिश करने लगा कि एक पल में उसके भाव गुस्से से घबराहट में कैसे बदल गए। उसे घबराते हुए देखकर दादी ने बड़े प्यार से पूछा, "क्या हुआ बेटा? आप इतना घबरा क्यों रही हैं?"
उसके सवाल को सुनकर आशना ने नज़रें उठाकर उन्हें देखा, फिर वापिस अथर्व को देखने लगी। अब उसने भी आइब्रो चढ़ाते हुए सवाल किया, "क्या हुआ है? इतना घबरा क्यों रही हो?"
आशना ने सबको देखा, फिर यह सोचकर चैन की साँस ली कि निशान उसने देखा है, अभी तक किसी और ने नहीं देखा। उसने झट से ना में सर हिला दिया और उसके बगल में बैठ गई। अथर्व उसे शक भरी निगाहों से देखने लगा।
"बेटा, आप ठीक तो हैं?" अबकी बार दादा जी ने सवाल किया। आशना ने झूठी मुस्कान अपने लबों पर बिखेरते हुए कहा, "हाँ, दादा जी, मैं बिल्कुल ठीक हूँ।"
उसको मुस्कुराता देख सबने चैन की साँस ली, पर अथर्व अब भी उसे शक भरी नज़रों से घूर रहा था। सर्वेंट ने खाना सर्व किया तो सब खाना खाने लगे। आशना ने सबको बिज़ी देखा तो अथर्व को हल्के से कोहनी दे मारी। अथर्व ने घूरकर उसे देखा तो आशना ने उसकी गर्दन की तरफ़ इशारा किया, पर अथर्व को कुछ समझ नहीं आया। वह उसको गुस्से से घूरते हुए धीमी आवाज़ में बोला, "क्या है? पागल हो गई हो क्या?"
उसकी फुसफुसाहट सुनकर अधिराज जी ने उसे देखा तो वह हल्का सा मुस्कुरा दिया। आशना ने अब अपने मुँह पर हाथ रखकर उसके तरफ़ थोड़ा झुकते हुए धीमी आवाज़ में कहा, "आपकी गर्दन पर निशान है, साफ़ कीजिए।"
उसने फुसफुसाते हुए कहा था, जिस वजह से अथर्व को समझ नहीं आया। आशना ने सबकी नज़रों से बचते हुए दो-चार बार उसे समझाने की कोशिश की, पर अथर्व को समझ ही नहीं आया। आख़िर में आशना ने गुस्से में चम्मच को प्लेट में दे मारा और वह उछलते हुए टेबल के नीचे जा गिरा। आवाज़ सुनकर सबने उसकी तरफ़ निगाह उठाई। आशना ने क्यूट सा चेहरा बनाकर कहा, "सॉरी, गलती से हाथ से छूट गया, मैं उठा देती हूँ।"
इतना कहकर वह झुकने लगी तो सुहासिनी जी ने उसे रोकते हुए कहा, "रहने दो बेटा, दूसरा स्पून ले लो।"
"मैं उठा देती हूँ, मॉम।" कहते हुए आशना फिर से झुकने लगी तो अबकी बार अथर्व ने उसको रोक दिया, "तुम रुको, तुम्हारा कोई भरोसा नहीं है, स्पून उठाने जाओ और टेबल गिरा दो। मैं उठा देता हूँ।"
कहते हुए अथर्व झुककर स्पून उठाने लगा। आशना पहले तो अपनी इस इंसल्ट पर आँखें छोटी-छोटी करके उसे घूरने लगी, फिर वह भी नीचे झुक गई और जैसे ही उसने उसकी गर्दन को छुआ, अथर्व ने चौंक कर उसे देखा और हैरानी से बोला, "तुम यहाँ क्या कर रही हो? और मुझे छूने की कोशिश क्यों कर रही हो?"
"आपकी गर्दन पर मेरी लिपस्टिक का निशान है।" यह कहते हुए वह उसकी गर्दन पर बने निशान को अपनी हथेली से साफ़ करने लगी। वहीं उसकी बात सुनकर अथर्व ने हैरानी से कहा, "क्या?…कैसे…?"
वह कह तो सही, पर उसके मुँह से शब्द बाहर नहीं आ सके, क्योंकि आशना ने उसके मुँह को अपनी हथेली से दबा दिया था और उसे गुस्से से घूरने लगी थी। अथर्व को अब एहसास हुआ कि वह क्या करने वाला था। वहीं आशना ने उसको घूरते हुए धीमी आवाज़ में कहा,
"आप मेरे ऊपर गिरे थे, शायद तब लग गया था। अब अगर आपके सवाल का जवाब मिल गया हो तो मैं साफ़ कर दूँ?"
अथर्व ने तुरंत पलकें झपकाईं। आशना ने उसके मुँह से हाथ हटाया और निशान साफ़ करने के बाद धीमी आवाज़ में बोली, "हो गया।"
वह अब वापिस ऊपर हो गई। सब उसे देखकर मुस्कुरा रहे थे तो वह नज़रें चुराते हुए बोली, "वो चम्मच उन्हें मिल नहीं रही थी, तो वही बता रही थी।"
उसकी बात सुनकर सबने उसे अजीब सी रहस्यमयी मुस्कान के साथ देखकर हामी भर दी। बेचारी आशना ने घबराते हुए नज़रें प्लेट पर गड़ा लीं। कुछ देर बाद अथर्व भी बाहर निकला और सबको देखकर हल्की मुस्कान देने के बाद प्लेट पर नज़रें टिका ली। उसका एक हाथ उसकी गर्दन पर था। अचानक ही अधिराज जी की नज़र उसकी तरफ़ चली गई तो वह हैरानी से बोले,
"आपकी गर्दन पर क्या हुआ बेटा? आप ऐसे हाथ रखकर क्यों बैठे हैं?"
उनका सवाल सुनकर अथर्व ने हड़बड़ाहट में उन्हें देखा और ना में सर हिलाते हुए कहा, "नहीं, कुछ नहीं हुआ डैड, वो तो बस यूँ ही।"
ये कहते हुए उसने अपना हाथ गर्दन पर से हटाया और वापिस खाने पर नज़रें गड़ा लीं। लिपस्टिक का निशान अब भी हल्का-हल्का दिख रहा था और सुहासिनी जी उसे देखकर हौले से मुस्कुराते हुए खाना खाने लगी थीं। सबने ब्रेकफ़ास्ट किया, फिर अथर्व, आशना सबको बाय कहकर वहाँ से निकल गए। सबने आशना को आते रहने को कहा तो उसने भी मुस्कुराकर हामी भर दी। दोनों की गाड़ी उस बंगले से बाहर निकल गई। आशना शांत सी बैठी बाहर देख रही थी और अथर्व उसकी चुप्पी की वजह समझने की कोशिश कर रहा था।
आगे...
ब्रेकफास्ट के बाद सब लिविंग रूम में बैठे थे। आशना अथर्व के पास बैठी थी। तभी सुहासिनी जी उसके पास आकर बैठ गईं। उनके हाथ में कुछ बॉक्स थे। उन्होंने आशना का हाथ पकड़ा और ज्वेलरी के वे बॉक्स उसे पकड़ाते हुए मुस्कुराकर बोलीं, "ये हमारी तरफ से, आपकी मुंह दिखाई और पहली रसोई का नेग। रात को दे नहीं पाए थे।"
आशना की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। उसने हैरानी से कहा, "मोम, मैं इनका क्या करूँगी? मुझे नहीं चाहिए ये।"
उसने घबराकर अपना हाथ पीछे खींचना चाहा। तभी उसके कानों में दादी की आवाज़ पड़ी, "ले लीजिए बेटा, ये आपका हक है। आप इस घर की बहू हैं और ये पुश्तैनी गहने अब आपको ही संभालने होंगे।"
उनके कहने पर भी आशना ने कुछ कहना चाहा, पर अथर्व ने उसके हाथ को पकड़ लिया। आशना घबराई हुई सी उसे देखने लगी।
"इतने प्यार से दे रहे हैं, रख लो।" अथर्व ने उसकी घबराहट की वजह समझते हुए उसे लेने को कह दिया। आशना ने सुहासिनी जी को थैंक्यू कह दिया। अब दादी उसके पास आ गईं। उनके हाथों में सुंदर सा बॉक्स था। उन्होंने उसे खोला तो उसके अंदर से डायमंड के सुंदर-सुंदर बैंगल्स रखे हुए थे। आशना आँखें फाड़े उन्हें देखने लगी और उसके मुँह से हैरानी से निकला, "वाह! सो ब्यूटीफुल।"
उसकी बात सुनकर दादी मुस्कुराईं। फिर बैंगल्स लिए और उसके हाथ को थामकर उसे पहनाते हुए बोलीं, "आपके ही लिए हैं। हमने बनवाए थे अथर्व की पत्नी के लिए और आप उनकी पत्नी हैं तो आज से ये आपके हुए। इन्हें हमेशा पहनकर रखिएगा।"
उनकी बात सुनकर आशना कुछ बोल तक नहीं पाई। बस अपने हाथों में पहने उन सुंदर बैंगल्स को देखने लगी।
"कितने अच्छे लग रहे हैं आपके हाथों में और साइज़ भी एकदम सही आया है। आपके लिए ही बने हैं ये।"
सुहासिनी जी ने मुस्कुराकर कहा। उनकी बात सुनकर आशना उन्हें देखने लगी। उसकी उलझन समझते हुए उन्होंने मुस्कुराकर अपनी पलकें झपका दीं। इसके बाद दादा जी, अधिराज जी आगे आए। अधिराज जी ने उसे एक लिफ़ाफ़ा थमाया और मुस्कुराकर उसके सर पर हाथ रखते हुए बोले, "हमेशा यूँ ही हँसती-मुस्कुराती रहें आप। ये आपके डैड की तरफ़ से छोटा सा गिफ्ट। इंकार मत कीजिएगा।"
उन्होंने पहले ही मना करने से मना कर दिया था। आशना ने चुपचाप उसे ले लिया और मुस्कुराकर थैंक्यू कह दिया। उनके बाद दादा जी आगे आए और एक फ़ाइल उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए बोले, "ये आपका हक है जो हम आपको दे रहे हैं। हमारा आशीर्वाद समझकर रख लीजिएगा। इंकार मत कीजिएगा, वरना हमें लगेगा कि आप हमारी इज़्ज़त नहीं करती हैं।"
उनकी बात सुनकर बेचारी आशना का मुँह लटक गया। उसने उन्हें देखकर धीरे से सवाल किया, "इसमें क्या है दादा जी?"
"वो अथर्व आपको समझा देंगे, पर एक बात याद रखिएगा। इस फ़ाइल को अपने पास संभालकर रखिएगा, किसी को भी मत दीजिएगा।" उन्होंने उसे समझाते हुए कहा। आशना ने हाँ में सर हिला दिया। अथर्व ने सारी चीज़ें रूम में लॉकर में रखवाईं। फिर अथर्व और आशना सबको बाय कहकर वहाँ से निकल गए। सबने आशना को आते रहने को कहा। उसने भी मुस्कुराकर हामी भर दी। दोनों की गाड़ी उस बंगले से बाहर निकल गई।
आशना शांत सी बैठी बाहर देख रही थी और अथर्व उसकी चुप्पी की वजह समझने की कोशिश कर रहा था। कुछ देर बाद उसने गाड़ी ड्राइव करते हुए उससे पूछ ही लिया, "क्या हुआ? आज तुम्हारा रेडियो बंद क्यों है? अभी तो खाना खाकर आई हो, अभी तो तुम्हें फुल एनर्जी के साथ अपनी बक-बक करने का काम करना चाहिए और तुम एकदम खामोश बैठी हो, जैसे यहाँ होकर भी नहीं हो?"
उसके सवाल को सुनकर आशना ने उसके तरफ़ नज़रें घुमाईं और उदास आँखों से उसे देखते हुए बोली, "तब तो आपको खुश होना चाहिए, मैं अपनी बक-बक से आपका दिमाग जो नहीं खा रही हूँ।"
"हाँ, होना तो चाहिए, पर तुम्हारी ये खामोशी कई सवाल पैदा कर रही है मेरे मन में। बताओ, अभी तक तो तुम खुश थीं, अब इतनी उदास क्यों हो?" उसने एक बार फिर वही सवाल किया।
अब आशना ने उसे देखते हुए कहा, "कितनी अजीब बात है न? आपको मेरा बोलना पसंद नहीं है, फिर भी उसे सुने बिना आपको चैन नहीं है। मुझे शादी नहीं करनी थी, जिसके लिए मैंने अपना घर, अपनी फैमिली, सब छोड़ दिया और आज यहाँ मैं आपकी पत्नी बनी बैठी हूँ। आपके घर में सब इस बात से खुश हैं कि आपने शादी कर ली है और आप उन्हें धोखा दे रहे हैं, इस समझौते की शादी को रियल शादी दिखाकर। शादी सच में ज़िंदगी की सबसे बड़ी मुसीबत है। जो नहीं करता वो भी दुखी है, जो करता है वो भी परेशान है। जिसे करनी होती है वो भी खुश नहीं रहते और जो नहीं करना चाहते लोग उसे भी खुश नहीं रहने देते। आपकी और मेरी सिचुएशन एक जैसी ही है। आपको शादी नहीं करनी थी पर फैमिली प्रेशर था तो आपने ये रास्ता निकाला और उन्हें धोखा देने लगे और मुझे शादी नहीं करनी थी, फिर भी मेरी फैमिली मुझे फ़ोर्स कर रही थी तो मैंने बचने के लिए वहाँ से भागने का रास्ता चुना और देखिए आज हम दोनों ही इस रिश्ते में उलझ गए हैं। ना चाहते हुए भी शादी हो गई है हमारी। जो दो लोग एक-दूसरे को जानते भी नहीं हैं, अब वो पति-पत्नी हैं। जो शादी मजबूरी में हुई वो दुनिया के लिए लव मैरिज बन गई है।"
उसकी बातें सुनकर अथर्व उसे एकटक देखने लगा था। उसकी बातें बहुत गहरी थीं और उसके नेचर के हिसाब से उस पर सूट नहीं कर रही थीं। आशना अपनी बात बोलकर चुप हुई तो अथर्व ने उसे हैरानी से देखते हुए कहा, "तुम हो क्या? कभी इतनी सीरियस तो कभी एकदम बच्चों जैसी चंचल।"
"जैसी हूँ आपके सामने हूँ।" आशना ने कहा और बाहर देखने लगी। अब अथर्व ने भी कुछ नहीं कहा, पर आशना की कही बातें उसके दिमाग में घूम रही थीं। कुछ देर खामोश रहने के बाद आशना ने उसे देखते हुए कहा, "मि. सिंघानिया।"
"हम्म, क्या हुआ?" अथर्व ने तुरंत ही रिएक्ट किया। तो आशना ने गंभीरता से सवाल किया, "आप वहाँ अकेले रहते हैं, जबकि आपकी इतनी अच्छी फैमिली है। वो आपसे इतना प्यार करते हैं, आपको कभी उनकी याद नहीं आती? मन नहीं करता कि उनके साथ रहें?"
"नहीं, और इस बात से तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं है तो बेवजह अपना दिमाग मत दौड़ाओ।" अथर्व एकदम से गुस्से में आ गया था। आशना खामोशी से उसे देखने लगी। तो कुछ देर बाद अथर्व ने उसके तरफ़ नज़रें घुमाईं और उसे घूरते हुए बोला, "मुझे पढ़ने की कोशिश करना बंद करो, तुम्हारी समझ से परे हूँ मैं। इतना आसान नहीं मुझे समझना।"
"जानती हूँ, आप वो पहेली हैं जो दूर से बहुत उलझी हुई नज़र आती है, जब पास आकर देखो तो पता चलता है कि ये तो सीधी रेखाएँ हैं, बस हम ही उसे देख नहीं पाए।" आशना ने उसे देखते हुए कहा। तो एक पल को अथर्व हैरानी से उसे देखता रह गया। फिर उसने उस पर से नज़रें हटाते हुए कहा,
"तुम्हें घर छोड़ देता हूँ, उसके बाद मुझे ऑफिस जाना है तो आराम से घर में रहना, कोई काम करने की ज़रूरत नहीं है और हो सके तो कुछ तोड़-फोड़ भी मत मचाना।"
आशना ने हामी भरी और बाहर देखने लगी। कुछ देर में अथर्व उसे घर छोड़कर वहाँ से निकल गया। आशना वहीं खड़ी उसकी गाड़ी को जाते हुए देखती रही, फिर अंदर चली आई। उसे देखते ही एक सर्वेंट ने आकर उसके तरफ़ पानी का ग्लास बढ़ा दिया। आशना ने मुस्कुराकर थैंक्यू कहा। वहीं बैठ गई और उससे बात करने लगी।
आशना थी ही इतनी इंटरेस्टिंग और सिंपल कि धीरे-धीरे वहाँ सब सर्वेंट इकट्ठे हो गए। आशना सबके साथ बातें करने लगी। वो सब भी खुश थे कि उनकी मैडम इतनी अच्छी है कि उन सबको इतनी इज़्ज़त दे रही है। उनके बीच एक से एक कहानी निकलकर आ रही थी। बीच-बीच में वो मेंशन उनकी ठहाकों की आवाज़ से गूंज उठता था। सब कहानियाँ सुना रहे थे और आशना मुस्कुराकर उनकी बातें सुन रही थी। लंच में भी सबने वहीं बैठकर साथ में लंच किया और फिर बातों में लग गए।
करीब 7 बजे अथर्व की गाड़ी गेट के बाहर आकर रुकी। बाहर से ही उसकी ठहाकों की आवाज़ें सुनाई देने लगीं। उसने ड्राइवर को चाबियाँ दीं और अंदर की तरफ़ बढ़ गया। जैसे ही उसने लिविंग रूम में कदम रखा, वहाँ का नज़ारा देखकर उसकी आँखें फैल गईं। वहाँ सभी नौकर-मंडली जमाए बैठे थे, खाली बर्तन भी वहीं रखे हुए थे और उन सबके बीच बैठी हुई थी आशना। सब ज़मीन पर ही पसरे हुए थे।
आशना पसरकर बैठी हुई थी, अब भी उसने साड़ी पहनी हुई थी। बालों को बेतरतीब से जुड़े में बाँधा हुआ था और चेहरा खुशी से खिला हुआ था। उसकी उनके बीच ऐसे बैठा देख अथर्व की आँखें गुस्से से छोटी हो गईं और वो गुस्से से गरज उठा, "क्या हो रहा है यहाँ?"
उसकी आवाज़ जैसे ही सबके कानों में पड़ी, वो डर से काँप उठे। आशना भी डर गई। सबने उसके तरफ़ नज़रें घुमाईं तो सामने अथर्व उन्हें गुस्से से घूर रहा था। सब झट से उठकर खड़े हो गए और उन्होंने अपना सर झुका लिया। अब अथर्व ने आशना को गुस्से से घूरते हुए पूछा, "क्या कर रही हो यहाँ?"
"बातें।" आशना ने ऐसे जवाब दिया, जैसे उसे उसके गुस्से से कोई फ़र्क ही ना पड़ा हो, जबकि बाकियों की तो जान हलक में अटकी हुई थी। अब वो उसे हैरानी से देखने लगे। वहीं उसकी बात सुनकर अथर्व की आँखें गुस्से से और भी छोटी-छोटी हो गईं। उसने सबको घूरते हुए कहा, "ये क्या हाल बनाया हुआ है घर का? आप सबको मैं बातें करने के पैसे देता हूँ या काम करने के?"
उसका गुस्सा देखकर सबने जल्दी से "सॉरी सर" कहा और बिखरे ड्राइंग रूम को समेटने लगे। अथर्व ने आगे बढ़ते हुए ऑर्डर दिया, "पाँच मिनट के अंदर सब साफ़ हो जाना चाहिए और मेरी कॉफ़ी मेरे रूम में पहुँच जानी चाहिए।"
उन्होंने झट से हामी भर दी। अब अथर्व पीछे मुड़ा और आशना को घूरते हुए बोला, "तुम ऊपर चलो मेरे साथ।"
उसकी रौबदार आवाज़ सुनकर आशना ने हैरानी से उसे देखा, पर अथर्व अपनी बात कहकर आगे बढ़ गया। आशना अब भी वहीं खड़ी थी तो काकी ने उसके पास आकर कहा, "बेटा जल्दी जाइए, अथर्व गुस्सा करेंगे अगर आप देर से गईं तो।"
उनकी बात सुनकर आशना ने उन्हें कंफ़्यूज़ नज़रों से देखते हुए कहा, "काकी, हम तो बातें ही कर रहे थे न, फिर वो इतना गुस्सा किस बात पर हो रहे हैं?"
"बेटा, अथर्व को साफ़-सफ़ाई पसंद है और अभी घर बहुत गन्दा था और सब आपके साथ बैठकर बातें कर रहे थे, इसलिए वो गुस्सा है। अब आप जल्दी से जाइए, वरना वो आप पर भी गुस्सा करेंगे।" उन्होंने उसे समझाया। आशना सर हिलाते हुए ऊपर चली गई।
जैसे ही उसने दरवाज़ा खोलकर अंदर कदम रखा, तो देखा सामने ही अथर्व खड़ा गुस्से से उसे घूर रहा था। आशना को देखते ही उसने गुस्से से गरजते हुए कहा, "क्या कर रही थी नीचे?"
"बताया तो था, अकेले थी तो उनसे बातें करने लगी।" आशना ने एकदम आराम से जवाब दिया। पर उसकी बात सुनकर अथर्व ने उसे गुस्से से घूरते हुए कहा, "अब तक कपड़े नहीं बदले? सुबह से नीचे बैठकर गप्पे लड़ा रही होगी न।"
"कपड़े तो थे ही नहीं न। जो आपने पहले दिलाए थे वो सब गंदे हैं, उन्हें धोना है और जो नए कपड़े खरीदे थे वो तो आप अपनी गाड़ी के साथ ही लेकर चले गए थे।" आशना ने एक बार फिर आराम से जवाब दिया। उसका जवाब सुनकर अथर्व को याद आया कि कपड़े तो वो डिग्गी से निकालने की भूल गया था।
अब जाकर उसका गुस्सा कुछ शांत हुआ, पर उसने फिर भी उसे घूरते हुए कहा, "तो मुझे फोन कर सकती थी न, पर तुम्हें बात करने से फुर्सत होती तभी तो फोन करना याद रहता है।"
"मेरा फोन वो चोर बैग के साथ ही लेकर भाग गया था तो मेरे पास फोन नहीं है और आपका नंबर भी नहीं मालूम था।"
"बहाने बहुत अच्छे हैं तुम्हारे, अब यहीं रहो, मैं मँगवाता हूँ तुम्हारा सामान।" अथर्व ने सख्ती से कहा और ड्राइवर को फोन लगा दिया। वो फोन काटकर जैसे ही मुड़ा, आशना ने उसके सामने आकर कहा, "वो मुझे न अपने कपड़े धोने थे तो आप बता दीजिए वॉशिंग मशीन कहाँ है, मैं धो लूँगी।"
"चेंजिंग रूम में बास्केट रखा है, धोने वाले कपड़े उसमें रख देना। ड्राईक्लीन होने के लिए चले जाएँगे, तुम्हें धोने की ज़रूरत नहीं है।" अथर्व ने जैसे ही कहा, आशना ने अपनी आँखें बड़ी-बड़ी करके उसे देखते हुए हैरानी से देखने लगी।
"क्यों? ड्राईक्लीनर क्या फ़्री में ड्राईक्लीन करेगा? मुझे बता दीजिए कहाँ है मशीन? मैं खुद धो लूँगी, इतने पैसे क्यों वेस्ट करना है?"
"मशीन नहीं है और तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ कि जिन कपड़ों को तुम मशीन में धोने की बात कर रही हो वो मशीन में धोने से खराब हो जाएँगे। तुम क्या चाहती हो इतने महँगे-महँगे कपड़ों को मैं तुम्हें मशीन में धोने के लिए दूँ ताकि वो एक बार में ही खराब हो जाएँ?" उसकी बात सुनकर आशना का मुँह छोटा सा हो गया।
तभी उनके रूम का डोर नॉक हो गया तो अथर्व ने अंदर आने को कह दिया। दो सर्वेंट अपने हाथों में ढेर सारे शॉपर्स लेकर अंदर आए। फिर अथर्व के कहने पर उन्हें सोफ़े पर रखकर चले गए। अथर्व ने अब आशना को देखकर कहा, "मैं नहाने जा रहा हूँ, तब तक तुम अपना सामान सेट कर लो।"
इतना कहकर वो बाथरूम में घुस गया तो आशना शॉपर्स लेकर चेंजिंग रूम में चली गई और उसके सामान को साइड करके जगह बनाते हुए आधी जगह में अपने कपड़ों और सैंडल को रखने लगी। गहनों को बेड पर छोड़ दिया, ड्रेसिंग टेबल पर अपना सामान सेट किया। फिर जैसे ही पलटी, ठीक इसी वक़्त बाथरूम का दरवाज़ा खुला और अथर्व ने बाहर कदम रखा।
आशना ने उसे देखते ही अपनी नज़रें घुमा ली क्योंकि अथर्व ने सिर्फ़ तौलिया लपेटा हुआ था, ऊपर की उसकी पूरी बॉडी नज़र आ रही थी, जिस पर ठहरे पानी की बूँदें ओस की बूँदों के तरह लग रही थीं। उसकी लंबी गर्दन से होते हुए पानी की बूँदें फिसलते हुए नीचे कमर तक जा रही थीं, चौड़ा सीना, मज़बूत उभरी हुई माँसपेशियाँ। वो बहुत ही हॉट लग रहा था।
जहाँ आशना का चेहरा शर्म से लाल हो गया था उसे ऐसे देखकर, वहीं अथर्व को तो कोई फ़र्क ही नहीं पड़ा था। उसने अपने गीले बालों को पोंछते हुए सवाल किया, "सब सेट हो गया?"
"जी, वो बस ज्वेलरी रह गए हैं।" आशना ने हड़बड़ाहट में कहा। तो अथर्व ने चेंजिंग रूम की तरफ़ जाते हुए कहा,
"ठीक है, मैं उन्हें लॉकर में रख देता हूँ, पहले चेंज कर लूँ।"
आशना ने हामी भरी। अथर्व वहाँ से चला गया तो आशना ने पलटकर बंद दरवाज़े को देखते हुए अपने सीने पर हाथ रखकर कहा, "हाय बच गई, कितने हॉट लग रहे थे, मेरी तो साँसें ही अटक गई थीं और उस आदमी को कोई फ़र्क ही नहीं पड़ा।"
ये याद करते हुए उसने मुँह बना लिया। अभी के लिए कपड़े तो निकाल लिए थे तो नहाने चली गई। कुछ आधे घंटे बाद वो बाहर निकली तो अथर्व सोफ़े पर बैठा लैपटॉप पर कुछ कर रहा था। आशना ड्रेसिंग टेबल की तरफ़ बढ़ गई, बालों को खोलकर उन्हें सुलझाकर एक चोटी बना ली। फिर उसके तरफ़ मुड़ते हुए बोली, "मुझे भूख लगी है।"
"हाँ, इतनी बातें की होंगी तो भूख तो लगेगी ही।" अथर्व ने एक बार फिर तंज कसा। तो आशना ने मुँह बिचकाकर कहा, "आप मुझे ऐसे ताने क्यों मार रहे हैं? मैं अकेली सारा दिन क्या करती? तो मैं उनसे बात करने लगी, इसमें मैंने कुछ गुनाह तो नहीं किया है जो आप जब से आए हैं मुझ पर चढ़े हुए हैं।"
"प्रॉब्लम बात करने में नहीं, जैसे तुम उनके बीच बैठी हुई थी न, इसमें है। कोई कहेगा कि तुम मेरी वाइफ़ हो?" अथर्व ने हल्के गुस्से में कहा। तो आशना ने तुरंत ही मुँह बनाते हुए कहा,
"आपकी पत्नी हूँ इसका मतलब ये नहीं कि मैं आसमान में उड़ने लगूँ। मेरा नेचर ही ऐसा है, मैं सबके साथ घुल-मिल जाती हूँ। मुझे फ़र्क नहीं पड़ता कि कौन क्या है और क्या काम करता है? वैसे भी वो भी काम ही कर रहे हैं, अपनी मेहनत से अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। कोई गलत काम तो नहीं कर रहे। फिर भेदभाव क्यों? मुझे उनसे बात करना अच्छा लगा तो मैं करने लगी। वैसे भी मैं खाली बैठी थी। अकेले क्या करती? और कोई था नहीं तो उन ही से बात करती न।"
अथर्व ने फिर से कुछ कहने के लिए मुँह खोलना चाहा, पर उससे पहले ही आशना ने आगे कहा, "अब मुझे कुछ कहिएगा नहीं, मैं नहीं रह सकती चुप। आप तो थे नहीं तो क्या करती? दीवारों से बातें करती? ताकि लोग मुझे पागल समझने लगते, इसलिए उनसे बातें करने लगी और आगे भी करूँगी, आप मुझे रोक नहीं सकते।"
"गुड, अपने साथ-साथ मेरी इमेज को भी स्पॉइल कर देना। उनके बीच ऐसे बैठी हुई थी, जैसे घर की मालकिन नहीं नौकरानी हो। ऐसा हुलिया बनाया हुआ था कि पहचानना मुश्किल था कि तुम वही हो जिसे छोड़कर गया था या कोई और हो? ज़मीन पर ही पड़ी हुई थी। पर तुम्हें इन बातों से कहाँ फ़र्क पड़ता है? तुम्हें तो बस बातें करनी हैं। जाओ, अभी भी यहाँ क्या कर रही हो? जाकर बात करो उनके साथ।" अथर्व ने उसे घूरते हुए कहा और लैपटॉप लेकर रूम से बाहर निकल गया। आशना बस उसे देखती ही रह गई।
अथर्व गुस्से में वहाँ से चला गया। आशना उसकी कही बातों के बारे में सोचने लगी और पाया कि सचमुच गलती तो उसकी ही थी। बात करने का भी तो एक तरीका होता है। अथर्व की इमेज उसके कारण खराब हो गई होगी, यह सोचकर उसे बुरा लग रहा था। वह वहीं बेड पर बैठ गई।
करीब नौ बजे काकी उसे खाना खाने के लिए बुलाने लगीं। उसने उन्हें देखकर सवाल किया, "वो नहीं खाएँगे?"
"नहीं, अथर्व बाबा ने कहा है कि उन्हें भूख नहीं है, आप चलकर खा लीजिए," उन्होंने जवाब दिया। आशना ने फिर सवाल किया, "वो कहाँ हैं?"
"अपने स्टडी रूम में हैं। कह रहे थे कुछ ज़रूरी काम कर रहे हैं, तो बाद में खाना खा लेंगे। आपको भूख लगी है तो आपको खिलाकर सोने को कह दे।" काकी ने जवाब दिया। आशना मुस्कुराकर बोली, "मुझे ना अभी भूख नहीं है। मैं उनके साथ खा लूँगी, आप सब खा लीजिए और सो जाइए।"
"पर सर ने.........." उन्होंने कुछ कहना चाहा, पर आशना ने उनकी बात काटते हुए मुस्कुराकर कहा, "मुझे सच में भूख नहीं है और मैं उन्हें समझा लूँगी। वो आपको कुछ नहीं कहेंगे। आप सब खाना खाकर सो जाइए।"
उसके ज़िद करने पर काकी वहाँ से चली गईं। आशना वहीं बेड पर पीछे सिर टिकाकर बैठकर अथर्व के आने का इंतज़ार करने लगी। रात के एक बजे अथर्व ने कमरे में कदम रखा तो उसकी नज़र सीधे सामने बेड पर चली गई, जहाँ आशना एकदम कोने में बैठी हुई थी और बस नीचे लुढ़कने ही वाली थी। अथर्व यह देखते ही उसकी ओर दौड़ा। आशना जैसे ही नीचे गिरने को हुई, अथर्व ने उसे अपनी बाहों में ले लिया।
आशना नींद में ही उससे लिपटकर सो गई। अथर्व ने एक नज़र आशना को देखा और मन ही मन बोला, "ये लड़की सच में पागल है। जब पता है कि बेड पर सोना नहीं आता तो कोने में सोती ही क्यों है? ऊपर से आज तो मैडम बैठे-बैठे ही सोने लगी हैं। कोई लड़की इतनी केयरलेस कैसे हो सकती है?"
उसने यही सोचते हुए उसे बेड के बीच में लिटा दिया। फिर उससे अलग हुआ तो आशना पलटी और अपने पेट पर अपनी बाहें लपेटकर, उसे पकड़कर सिमटकर लेट गई। अथर्व ने एक नज़र उसे देखा; एकदम उदास, मुरझाया हुआ था उसका चेहरा। वह नींद में ही पेट पकड़े बेचैनी से करवट बदलने लगी। अथर्व उसे बड़े गौर से देख रहा था।
आशना ने नींद में ही मुँह बिचकाया और धीरे से बोली, "कितना गुस्सा करते हैं? एकदम अड़ियल सांड हैं। इतनी सी बात पर गुस्सा होकर चले गए, खाना खाने भी नहीं आए। उन्हें मेरी ज़रा भी फ़िक्र नहीं है। यहाँ मैं भूखे मर रही हूँ और उन्हें अपना गुस्सा दिखाना है। अब मैं भी उनसे गुस्सा हो जाऊँगी, बात भी नहीं करूँगी।"
वह नींद में ही बड़बड़ाती रही और अथर्व हैरानी से उसे देखता रहा। फिर उसने खुद से ही कहा, "इसे तो भूख लग रही थी और इसने अभी तक खाना नहीं खाया।" फिर उसने आशना को देखा जो नींद में अपने पेट को दबाए जा रही थी, शायद भूख से दर्द हो रहा होगा। अथर्व ने उसे देखते हुए आगे कहा, "तभी इसने अपना पेट पकड़ा हुआ था। अजीब बेवकूफ लड़की है, जब भूख लगी थी तो खा लेती, भूखे रहने की क्या ज़रूरत है? अब अगर इसने खाना नहीं खाया तो सारी रात ऐसे ही खुद भी परेशान होगी और मुझे भी परेशान करती रहेगी।"
अथर्व ने मन ही मन सोचा। फिर गहरी साँस छोड़ते हुए उसके तरफ़ बढ़ गया।
"आशना, उठो, खाना खाने चलो।" अथर्व ने उसके गाल को थपथपाते हुए उसे जगाने की कोशिश की, पर वह नहीं उठी। दूसरी तरफ़ करवट बदलकर सो गई। अथर्व ने दो-चार बार उसे उठाया, पर आशना नहीं उठी। आखिर में उसने पानी लिया और कुछ बूँदें उसके चेहरे पर डालीं। आशना ने हड़बड़ाते हुए आँखें खोलते हुए कहा, "बारिश आ गई, भागो........."
वह झटके से उठकर बैठ गई और जल्दी से बेड से उतरने लगी। अथर्व तो उसके रिएक्शन को आँखें फाड़े देख रहा था, पर जब आशना बेड से उतरने लगी तो उसने उसकी कलाई पकड़कर उसे रोक लिया। आशना ने पलटकर उसे देखा तो उसने आराम से कहा, "तुम कमरे में हो तो यहाँ बारिश कैसे हो सकती है? वो पानी मैंने डाला था तुम्हें जगाने के लिए। चलो अब उठकर मुँह धो लो, खाना खाने चलते हैं।"
उसकी बात सुनकर आशना को याद आया कि वह उसके कारण इंतज़ार करते-करते ही भूखी सो गई थी। यह याद आते ही उसे गुस्सा आ गया। उसने अथर्व का हाथ झटककर उससे अपना हाथ छुड़ा लिया और गुस्से से बोली, "मुझे भूख नहीं है।"
इतना कहकर वह वापस लेट गई और अपनी आँखें बंद कर ली। अथर्व ने फिर से उसे उठाकर बिठाते हुए कहा, "आशना, बेकार का नाटक करना बंद करो, भूख तुम्हारे दिमाग पर चढ़ गई है, नींद में भी भूख-भूख कर रही थी। चुपचाप उठकर खाना खाने चलो, वरना मैं तुम्हें उठाकर ले जाऊँगा।"
उसने धमकाते हुए कहा, पर उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ा; वह वैसी ही लेटी रही। अथर्व ने कुछ देर उसका इंतज़ार किया, फिर झुककर उसे अपनी बाहों में उठा लिया। जैसे ही उसने आशना को उठाया, आशना ने चौंककर अपनी आँखें खोलीं और उससे छूटने की कोशिश करते हुए बोली, "छोड़िए मुझे, मैंने कहा ना मुझे नहीं खाना, नीचे उतारिए मुझे, आप ऐसे बिना मेरी इज़ाज़त के मुझे छू नहीं सकते। मैंने कहा नीचे उतारिए मुझे, आपको सुनाई दे रहा है या नहीं? मुझे नीचे उतारिए।"
वह कहती रही, पर अथर्व को तो जैसे कुछ सुनना ही नहीं था। उसने उसे उठाए हुए ही कमरे से बाहर की तरफ़ कदम बढ़ा दिए और उसके हिलने से परेशान होकर सख्त लहज़े में बोला, "शांति से बैठो, वरना सीधे नीचे फेंक दूँगा। भूख से पागल हो गई हो, चुपचाप चलकर खाना खाओ। ज़्यादा नाटक करने की ज़रूरत नहीं है।"
"मैं कोई नाटक नहीं करती। जब मुझे भूख लगी थी और मैंने आपको कहा भी था कि मुझे भूख लगी है, फिर भी आप अपना गुस्सा दिखाने के लिए मुझे अकेला छोड़कर चले गए। खाने के टाइम नीचे भी नहीं आए और काकी को कह दिया कि मुझे खाना खिला दे। मैं क्या आपको भूत-प्रेत नज़र आती हूँ जो अकेले खाना खा लेती? मैं आपका इंतज़ार करती रही, पर आप नहीं आए। जाने इतना गुस्सा कहाँ से लाते हैं आप? आपने एक बार भी मेरे बारे में नहीं सोचा। अपना गुस्सा दिखाते रहे और यहाँ मैं आपका इंतज़ार करते हुए भूखी ही सो गई। अब क्यों आए हैं आप? जाइए, जाकर अपना काम कीजिए, गुस्सा दिखाइए। आधी रात बीत गई, तब आपको याद आया है कि मैं भूखी हूँ। आप मुझे इस घर में लाए थे, फिर आप मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? क्या मेरे प्रति आपकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं?"
वह गुस्से में नॉन-स्टॉप बोलती जा रही थी और अथर्व उसे अपनी बाहों में उठाए खामोशी से उसकी बात सुन रहा था। आशना ने अब मुँह बिचकाकर कहा, "आप बहुत बुरे हैं। माना मुझसे गलती हो गई, पर आप मुझे प्यार से भी तो समझा सकते थे ना... पर नहीं, आपको तो अपना गुस्सा दिखाना था। आपने मुझे इस घर में लाकर पटक दिया है, पर आपको मेरी ज़रा भी फ़िक्र नहीं है। पता है मुझे कितनी भूख लग रही थी, पर आप नहीं आए। अब मुझे नहीं खाना कुछ भी। छोड़िए मुझे, नहीं खाना मुझे कुछ भी और मुझे आपसे बात भी नहीं करनी, जाइए, जाकर अपना गुस्सा दिखाइए।"
वह उतरने के लिए छटपटाने लगी। अथर्व जो अब तक खामोशी से उसकी सारी बातें सुन रहा था, अब उसने उसे घूरकर देखते हुए कहा, "अगर नीचे उतरना है तो मेरी बात माननी होगी, चुपचाप चलकर खाना खाओ। वैसे भी मैंने नहीं कहा था तुम्हें भूखे रहने को, तुम अपनी मर्ज़ी से भूखी रही। उसके बावजूद मैंने तुम्हें खाना खाने के लिए जगाया, वो भी इतनी मुश्किल से। तुम्हें तो मेरा एहसान मानना चाहिए। इसलिए अब अपना नाटक बंद करो और बोलो चलकर खाना खाओगी या नहीं? अगर हाँ कहोगी तो नीचे उतार दूँगा और अगर नहीं मनोगी तो ऐसे ही नीचे जाओगी और जबरदस्ती खाना भी खाना पड़ेगा... बोलो, उतारूँ नीचे?"
अथर्व ने सवाल किया तो आशना ने गुस्से से उसे घूरा। तभी उसके पेट से आवाज़ें आने लगीं और साथ में दर्द भी शुरू हो गया। आशना ने अपना पेट पकड़ लिया और आँखें भींच लीं। अथर्व ने उसे दर्द में देखा तो तेज़ कदमों से नीचे जाने लगा। आशना के कहने पर सब नौकर सो गए थे, तो अथर्व उसे लेकर सीधे किचन में चला गया। उसे स्लैब पर बिठाकर उसने रेफ्रिजरेटर से खाना निकाला, माइक्रोवेव में खाना गर्म किया। फिर जल्दी से उसे प्लेट में निकालने के बाद एक टुकड़ा उसके तरफ़ बढ़ाते हुए बोला, "मुँह खोलो अपना।"
आशना ने अब जाकर अपनी आँखें खोलीं तो आँखों के सामने अथर्व का परेशान सा चेहरा आ गया। वह एकटक उसे देखने लगी। अथर्व ने मुँह खोलने का इशारा किया। आशना ने अब बड़ी आसानी से अपना मुँह खोल दिया। अथर्व ने कुछ-कुछ निवाले खिलाए। तब कहीं जाकर आशना का दर्द आराम हुआ तो उसने उसे रोकते हुए कहा, "मैं ठीक हूँ, खुद से खा लूँगी।"
उसके इतना कहते ही अथर्व ने उसकी प्लेट उसे दे दी और उसे देखते हुए बोला, "क्या हुआ था तुम्हें? सोते हुए भी तुमने अपना पेट पकड़ा हुआ था और चेहरे पर बिल्कुल वैसे ही एक्सप्रेशन थे, जैसे अभी-अभी थे। जैसे तुम्हें बहुत दर्द हो रहा हो।"
उसके सवाल पर आशना की नज़र एक बार फिर उस पर चली गई। अथर्व गंभीर नज़रों से उसे ही देख रहा था। आशना ने अब पानी की तरफ़ इशारा किया तो अथर्व ने पानी का ग्लास उसे थमा दिया। आशना ने थोड़ा सा पानी पिया, फिर ग्लास नीचे रखते हुए बोली, "बचपन से ये प्रॉब्लम है। जब बहुत भूख लगती है और खाना नहीं मिलता तो ऐसे ही पेट में ज़ोरों का दर्द होने लगता है, फिर चक्कर आने लगते हैं और हालत ज़्यादा ख़राब हो तो बेहोश हो जाती हूँ। उस दिन रात को जब आपको मिली थी, तब भी भूख के वजह से बेहोश हो गई थी।"
आशना ने सर झुकाते हुए अपनी बात पूरी की। अथर्व ने पूरी बात सुनी, फिर प्लेट उठाकर उसे थमाते हुए कहा, "अगर इतनी ही प्रॉब्लम थी तो भूखी क्यों रही? कहा था मैंने, मुझे टाइम लगेगा तो खाना खाकर सो जाती।"
"कहा था, पर आप मुझसे गुस्सा होकर गए थे, फिर मैं अकेले खाना कैसे खा लेती?" आशना ने मुँह लटकाते हुए आगे कहा, "आई एम सॉरी, मैंने गलत बात पर आपसे बहस की। आप ठीक कह रहे थे, अब मेरे साथ आपकी इमेज भी जुड़ी हुई है। अगर मैं ऐसे बिहेव करूँगी तो सब आपके बारे में क्या सोचेंगे कि कैसी बीवी है आपकी? जिसको कुछ भी नहीं आता, कोई क्लास ही नहीं है। मैं आगे से ध्यान रखूँगी।"
अथर्व उसकी बात सुनकर उसे एकटक देखने लगा कि सच में यह लड़की इतनी मासूम है या सब एक नाटक है? वह यही सोच रहा था कि आशना ने नज़रें उठाकर उसे देखते हुए कहा, "आप अब तो मुझसे गुस्सा नहीं हैं? अगर कोई मुझसे गुस्सा होता है तो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।"
उसकी बात सुनकर अथर्व अपनी सोच से बाहर आया और नहीं में सर हिलाते हुए बोला, "नहीं हूँ गुस्सा, तुम खाना खाओ और आगे से ऐसे भूखे रहने की ज़रूरत नहीं है।"
"आपको भूख नहीं लगी? आप नहीं खाएँगे?" आशना ने फिर सवाल किया तो अथर्व ने उसे देखा। आशना उसे आशा भरी नज़रों से देख रही थी। पहले तो वह इंकार करने वाला था, पर फिर उसकी आँखों को देखकर उसने अपने लिए भी प्लेट लगा ली। तो आशना के लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैल गई। वह खुशी-खुशी अपना खाना खाने लगी। वहीं अथर्व वहीं खड़े-खड़े खाना खा रहा था और साथ आशना के खिले हुए चेहरे को भी देख रहा था; कितनी मासूम लग रही थी वह इस वक़्त।
कुछ देर में दोनों ने खाना खाया। फिर आशना ने बर्तन धोए और दोनों वापिस ऊपर चले गए। आशना कोने में लेटने लगी तो अथर्व ने उसे रोकते हुए कहा, "वहाँ नहीं, तुम सोते-सोते नीचे गिर जाती हो। अंदर होकर सो जाओ।"
आशना ने अब अजीब नज़रों से उसे घूरा तो अथर्व ने चिढ़कर बीच में पिलो लगा दिए और दूसरी तरफ़ लेटते हुए बोला, "चिंता मत करो, फ़ायदा नहीं उठाऊँगा तुम्हारा। अगर उठाना होता तो दो दिन से मेरे साथ सो रही हो, अभी तक अनछुई नहीं रहती।"
उसकी बात सुनकर आशना ने उसे गुस्से से घूरते हुए अपनी नज़रें फ़ेर लीं और अपने तरफ़ अंदर खिसक कर सो गई। कुछ देर बाद अथर्व उठा और उसके तरफ़ जाकर पिलो लगा दिए। फिर उसे देखकर मन ही मन बोला, "कुछ और सोचना पड़ेगा उसकी इस प्रॉब्लम के लिए।"
वह यही सोचते हुए जाकर अपनी जगह लेट गया और अपनी आँखें बंद कर ली।
अगले दिन अथर्व जल्दी उठ गया। उसी फ़्लोर पर, कोने में उसका जिम बना हुआ था। अथर्व वहाँ जाकर व्यायाम करने लगा। आशना लगभग आधे घंटे बाद उठी। उसने बाथरूम में जाकर स्नान किया और फिर कमरे में आकर बिस्तर पर बैठ गई। उसके दिमाग में कुछ चल रहा था। वह कुछ देर खामोश बैठी रही, फिर उठकर पूरे कमरे को देखने लगी। गनीमत से उसे म्यूज़िक सिस्टम दिख गया; उसकी आँखों में चमक आ गई। उसने जल्दी से उसे ऑन किया और एफ़एम लगा लिया। जिस पर इस वक्त यह गाना बस शुरू ही हुआ था।
"रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर वचन ना जाई"
आशना ने अपना दुपट्टा कमर से लपेटा; उसके कदम गाने के बोल के साथ थिरकने लगे।
"(जय रघुवंशी अयोध्यापति
राम चन्द्र की जय
सियावर राम चन्द्र की, जय
जय रघुवंशी अयोध्यापति
राम चन्द्र की जय
सियावर राम चन्द्र की, जय)"
"रघुवर तेरी राह निहारें
रघुवर तेरी राह निहारें
सातों जनम से सिया
घर मोरे परदेसिया
आओ पधारो पिया
घर मोरे परदेसिया
आओ पधारो पिया"
वह अपने में मग्न, गाने के बोल पर अपने कदमों को थिरका रही थी। उसके एक्सप्रेशन, एक-एक मुद्रा कमाल की थी। वह गाने पर शास्त्रीय नृत्य कर रही थी, वह भी कमाल का। गाने की आवाज़ अथर्व के कानों तक पहुँची तो उसके पंचिंग बैग पर पड़ते हाथ रुक गए। आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं और कदम आवाज़ की दिशा में बढ़ गए। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा था, वैसे-वैसे उसके भाव बदलते जा रहे थे।
अपने कमरे के बाहर आकर उसके कदम रुक गए। आँखें अंदर गाने में मग्न नाचती आशना पर अटक गईं। वह इतनी ऊर्जा के साथ नृत्य कर रही थी कि उसके चेहरे पर पसीने की बूँदें ओस की बूँदों की तरह चमक रही थीं। पसीने से भीगकर छोटे-छोटे बाल उसके माथे और गर्दन पर चिपक गए थे; चेहरे पर अलग ही सुकून नज़र आ रहा था, जैसे वह इस दुनिया में होकर भी नहीं थी। अथर्व की निगाहें उस पर अटक गईं; वह एकटक उसे निहारने लगा।
"मैंने सुध-बुध चैन गँवा के
मैंने सुध-बुध चैन गँवा के
राम रतन पा लिया
घर मोरे परदेसिया..."
"गई पनघट पर भरण भरण पनिया दीवानी
गई पनघट पर भरण भरण पनिया
हो नैनों के, नैनों के तेरे बाण से
मूर्छित हुई रे हिरनिया
झूम झ ना ना ना ना
झना ना ना ना ना
बनी रे बनी मैं तेरी जोगनिया
घर मोरे परदेसिया..."
गाना खत्म हुआ, उसके साथ ही आशना के कदम भी रुके। इस वक्त उसकी मुद्रा और भाव कमाल के लग रहे थे; लबों पर प्यारी सी मुस्कान फैली हुई थी। इस वक्त वह बेहद दिलकश लग रही थी। गाना खत्म होने के कुछ देर बाद वह उसी मुद्रा में खड़ी रही, फिर सीधी खड़ी हुई तो नज़रें गेट के सामने खड़े अथर्व पर पड़ीं। उसे अचानक वहाँ देखकर आशना चौंक गई। उसने हड़बड़ाहट में कहा, "आ........... आप.............. या............. यहाँ............"
उसकी आवाज़ सुनकर अथर्व भी हड़बड़ाकर होश में लौटा और उस पर से नज़रें हटाते हुए बोला, "वो गाने की आवाज़ सुनकर यहाँ आया, काफी अच्छा डांस करती हो तुम तो देखने लगा।"
अब तक आशना संभल चुकी थी। उसने अपना दुपट्टा खोलकर ठीक से ओढ़ा और हल्की मुस्कान के साथ बोली, "थैंक्यू।"
अथर्व भी अब संभल चुका था। उसने "वेलकम" कहा और जाने के लिए मुड़ा तो आशना ने पीछे से कहा, "सुनिये।"
उसकी आवाज़ सुनकर अथर्व ने पलटकर उसे देखते हुए कहा, "हाँ?"
"वो मुझे मार्केट जाना था, आपके वाले मॉल नहीं, छोटी सी मार्केट और थोड़े से पैसे भी चाहिए थे।" उसने हिचकिचाते हुए अपनी बात पूरी की और अथर्व को देखने लगी, जिसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। यह बताना मुश्किल था कि उसके दिमाग में चल क्या रहा है?
अथर्व कुछ पल खामोशी से उसे देखता रहा, फिर अंदर की तरफ़ कदम बढ़ा दिए। आशना अब भी उसे ही देख रही थी। अथर्व ने टेबल पर रखा शॉपर उठाया और उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए बोला, "लो।"
आशना ने पहले असमंजस में शॉपर को देखा; वह वही शॉपर था जिसे अथर्व ने कल भी उसे दिया था, पर उसने लेने से इंकार कर दिया था। फिर उसने सवालिया नज़रों से उसे देखा तो अथर्व ने आँखों से ही उसे लेने का इशारा कर दिया। आशना ने उसके हाथों से शॉपर ले लिया। फिर उसने अंदर हाथ डाला तो दो गिफ्ट रैपर उसके हाथ लगे। उसने शॉपर साइड में रखा और उन्हें खोलने लगी। पहला पैक खोला तो उसके अंदर से सुंदर सा गोल्डन कवर वाला Apple का फ़ोन निकला जो देखने में ही बहुत महंगा लग रहा था। आशना उसे हैरानी से देखने लगी तो अथर्व ने दूसरे पैक को खोलने को कहा। आशना ने दूसरे पैक को खोला तो उसके अंदर से सुंदर सा क्लच निकला।
"खोलकर देखो।" आशना को क्लच को एकटक देखता देख, अथर्व ने उसे पर्स खोलने का इशारा किया। आशना ने उसे खोला; उसके अंदर कैश और कार्ड थे। आशना ने अब हैरानी से उसे देखा तो अथर्व ने आगे कहा,
"मेरे पास तो वक्त नहीं है, अर्नव को भेज दूँगा। जहाँ जाना हो उसके साथ जाना, उसके साथ ही रहना। अगर किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो मुझे फ़ोन कर लेना। फ़ोन में मेरा और अर्नव दोनों के नंबर सेव किए हुए हैं। कार्ड का पिन हमारी शादी की डेट है। कार्ड की लिमिट 5 लाख है, कुछ कैश भी है। अगर और पैसों की ज़रूरत हो तो निकाल लेना। अकाउंट में 1 करोड़ रुपए हैं तो बेझिझक जो लेना हो ले लेना और पैसे डलवाने हों तो बस एक कॉल कर देना। तुम्हारा जो सामान और डॉक्यूमेंट चोरी हुआ है, उसको ढूँढवाना शुरू कर चुका हूँ; जल्दी ही तुम्हारे डॉक्यूमेंट तुम्हारे पास होंगे। अगर और कुछ चाहिए हो तो बता दो, वो भी मिल जाएगा तुम्हें।"
अथर्व ने अपनी बात पूरी की, फिर उसे देखने लगा। तो आशना ने सब सामान बिस्तर पर रखते हुए कहा, "मैं ये सब नहीं ले सकती।"
"क्यों? तुम वाइफ हो मेरी, इन सब पर तुम्हारा हक है, फिर क्यों नहीं ले सकती?" अथर्व ने तुरंत ही सवाल किया। आशना ने अब धीमी आवाज़ में कहा, "अगर मैं आपके पैसे इस्तेमाल करूँगी तो आप मुझे लालची समझेंगे ना। मैं लालची नहीं हूँ, मुझे बस थोड़े से पैसे चाहिए। मैं जब अपनी डांस अकादमी शुरू कर लूँगी तो आपको आपके पैसे लौटा दूँगी।"
उसकी मासूमियत भरी बातें सुनकर अथर्व के लब हल्के से खिंच गए; आशना की मासूमियत और सच्चाई हर बार उसके दिल को छू जाती थी। उसकी बात सुनकर अथर्व ने मुस्कुराकर कहा, "नहीं समझूँगा तुम्हें लालची। वैसे भी पत्नी की ज़रूरतों को पूरा करना पति का फ़र्ज़ होता है और मैं तुम्हारा पति हूँ तो मैं बस अपना फ़र्ज़ निभा रहा हूँ, तो तुम बेझिझक सब ले सकती हो; इन सब पर तुम्हारा ही हक है। अब कोई बहस नहीं, जल्दी से नहाकर रेडी हो जाओ, कुछ देर में ब्रेकफ़ास्ट का वक्त हो जाएगा।"
इतना कहकर वह वहाँ से निकल गया; वहीं आशना सब चीज़ों को देखने लगी। फिर सबको संभालकर रखने के बाद बाथरूम में चली गई। कुछ देर में वह बाहर आई, फिर ड्रेसिंग टेबल की तरफ़ बढ़ गई। इस वक्त अथर्व यहाँ नहीं था। आशना जल्दी-जल्दी तैयार होने लगी क्योंकि 8 बजने में बस 10 मिनट ही बचे थे। उसने जल्दी से अपने बालों को समेटकर हल्के से जूड़े में बाँधा और कमरे से बाहर भाग गई। वह सीढ़ियों पर से दौड़ती हुई नीचे जाने लगी।
नीचे आज फिर डाइनिंग टेबल पर, अथर्व फैमिली के हैड वाली बड़ी सी चेयर पर बड़े ही ठाट से बैठा हुआ था और हाथों में न्यूज़पेपर पकड़े बड़े ही सीरियस लुक के साथ उसे पढ़ रहा था।
आशना के पैरों में पहनी पायल की छन-छन की आवाज़ जैसे ही उसके कानों में पड़ी, उसकी नज़रें सामने की तरफ़ उठ गईं और आशना पर जाकर ठहर सी गईं। भागने की वजह से उसका जूड़ा खुल गया था और आशना परेशान सी उसे बाँधने की कोशिश करते हुए नीचे भागी चली आ रही थी। ग्रे कलर का डिज़ाइनर अम्ब्रेला सूट, नीचे से चूड़ीदार, गले में गर्दन से एकदम चिपकाकर डाला हुआ दुपट्टा; उसके नीचे से मंगलसूत्र झाँक रहा था। माथे पर छोटी सी बिंदी और लबों पर न्यूड लिपस्टिक, कलाइयों में दादी के दिए बैंगल्स और पैरों में पतली सी पायल जो कल अथर्व ने उसे दिलाई थी, कानों में छोटे-छोटे गोल्ड के झुमके। आज वह और भी ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी।
अथर्व उसे एकटक देखता रह गया; उसका परेशान सा चेहरा और भी प्यारा और सुंदर लग रहा था। आशना भागते हुए उसके पास पहुँची और उसके बगल वाली चेयर पर बैठते हुए बोली, "आज मैं लेट तो नहीं हुई?"
यहाँ उसने सवाल किया और घड़ी ने अपना घंटा बजा दिया। उसकी आवाज़ अथर्व के कानों में पड़ी तो उसने भी अपनी नज़रें उस पर से हटा लीं, फिर आराम से बोला, "नहीं, बिल्कुल टाइम पर हो।"
"Thank god, जल्दी के चक्कर में मैं बाल भी नहीं बना पाई।" आशना ने चैन की साँस लेते हुए कहा और बालों को समेटकर फिर से जूड़े में बाँध लिया तो अथर्व की आँखें छोटी-छोटी हो गईं। आशना अब खाना देखने लगी तो सर्वेंट ने आगे आकर उन्हें खाना सर्व कर दिया।
आशना जल्दी-जल्दी खाने लगी तो अथर्व ने स्पून उठाते हुए कहा, "आराम से भी खा सकती हो, कोई तुम्हारा खाना लेकर भागने वाला नहीं है।"
"आपको नहीं पता, डांस करने के बाद मुझे कितनी भूख लगती है, मेरे पेट में इतनी देर से चूहों ने धमाचौकड़ी मचाई हुई है इसलिए अब मैं उन्हें जल्दी-जल्दी खाना दे रही हूँ ताकि वो शांत हो जाएँ।"
आशना ने खाते हुए ही जवाब दिया। उसकी बात सुनकर सब मुस्कुराने लगे; वहीं अथर्व ने मन ही मन कहा, "भूखड़।"
उसने धीरे से कहा पर आशना के कानों तक उसकी बात पहुँच गई; इसके साथ ही उसके हाथ रुक गए। उसने तिरछी निगाहों से उसे घूरते हुए कहा, "क्या कहा आपने?"
"कुछ नहीं, तुमने कुछ सुना?" अथर्व ने बदले में उसी से सवाल कर लिया तो आशना उसको गुस्से से घूरते हुए बोली, "देखिए, मुझे यह ज़रा भी नहीं पसंद कि कोई मेरे खाने को लेकर मुझे टोके इसलिए आइंदा से मैं कितना भी खाऊँ, कभी भी खाऊँ, कैसे भी खाऊँ, आप मुझे कुछ नहीं कहें तो अच्छा होगा। वैसे भी मैं इंसान हूँ, आपके तरह राक्षस नहीं हूँ जो दूसरों का खून पीकर चलते हैं, मुझे एनर्जी के लिए खाना चाहिए होता है, जैसे आपको गुस्सा करके एनर्जी मिलती है ना, बिल्कुल वैसे ही।"
आशना की बात सुनकर अथर्व उसको गुस्से से घूरने लगा; वहीं आशना ने तो अपनी बात कही और फिर से खाने में घुस गई। अथर्व ने उसको कुछ देर घूरा तो आशना खाते हुए ही बोली, "मुझे बाद में घूरते रहिएगा, यही रहूँगी आपके साथ, अभी खाना खाइए।"
उसकी बात सुनकर अथर्व गुस्से में उठने लगा तो आशना एकदम से बोली, "उठिए मत, मुझे अकेले खाना खाना अच्छा नहीं लगता। मैं फिर से रात के तरह भूखी रह जाऊँगी।"
उसने क्यूट सा चेहरा बनाकर उसे देखा तो अथर्व उसको घूरते हुए वापिस बैठ गया क्योंकि वह फिर से उसे भूख से तड़पते नहीं देखना चाहता था और वह अब तक यह भी समझ गया था कि उसके सामने जो लड़की बैठी है वह पागल है, कोई भरोसा नहीं कब क्या कर जाए, तो उसने उसकी बात मानना ही ठीक समझा।
कुछ देर में वह खाते हुए ही बोला, "आज बहुत अच्छे से तैयार हुई हो..."
इतना कहकर उसने खामोशी से आशना को देखा; वहीं उसकी बात सुनकर आशना ने भी नज़रें उसकी तरफ़ उठाईं और मुस्कुराकर बोली, "आज मैं बाहर जाने वाली हूँ ना।"
वह बहुत एक्साइटेड लग रही थी तो अथर्व ने अगला सवाल भी कर लिया, "बहुत एक्साइटेड लग रही हो, कोई खास वजह?"
"हाँ, आज मैं अपने मन की करने वाली हूँ और बहुत सारी चीज़ें भी खरीदने वाली हूँ, आप आएंगे ना तो आपको भी दिखाऊँगी।" आशना के चेहरे पर अलग ही चमक बिखरी हुई थी। अथर्व अब खामोश होकर खाना खाने लगा तो अबकी बार आशना ने सवाल किया, "आप कब तक वापिस आ जाएँगे?"
"8 से 9 बज जाएँगे।" अथर्व ने खाते हुए छोटा सा जवाब दिया जिसे सुनकर आशना उदास हो गई और प्लेट खिसकाते हुए उठकर खड़ी हो गई तो अथर्व ने हैरानी से उसे देखा।
"मेरा हो गया, मैं बाल बनाने जा रही हूँ।" इतना कहकर आशना वहाँ से निकल गई और अथर्व हैरान-परेशान सा उसे देखता ही रह गया कि आखिर उसके चेहरे पर जो उदासी थी, उसकी वजह क्या थी?
आशना उदास सी वहाँ से चली गई। अथर्व बस देखता ही रह गया कि आखिर उसकी उदासी की वजह क्या है? ऐसा क्या हुआ कि उसका खिला हुआ चेहरा एकदम से मुरझा गया? वह यही सोच रहा था कि उसके दिमाग में कुछ पल पहले की बातें चलने लगीं। वह एकदम से खड़ा हुआ, हाथ धोए और सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया।
आशना उदास सी मिरर के सामने खड़ी अपने बालों में कंघी कर रही थी। तभी अथर्व ने वहाँ कदम रखा। उसने एक नज़र उसे देखा, फिर टेबल पर से लैपटॉप और फाइल्स को बैग में रखते हुए बोला, "सात बजे तक आने की कोशिश करूँगा। अगर तुम अकेले बोर हो तो मॉम के पास जा सकती हो, पर शाम से पहले वापिस आ जाना। जब मैं घर आऊँ तो तुम मुझे यहाँ मिलनी चाहिए।"
उसकी बात सुनकर आशना की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। वह उसकी तरफ घूम गई और हैरानी से बोली, "क्या कहा आपने?"
"वही जो तुमने सुना। अब मैं दोबारा नहीं कहूँगा, रिपीट करने की आदत नहीं है मुझे।" अथर्व की आवाज़ में अब भी सख्ती और अकड़ मौजूद थी, पर आशना को तो बस उसकी बातें ही सुनाई दे रही थीं। उसका चेहरा खुशी से खिल उठा और वह चहकते हुए बोली, "क्या सच में आप जल्दी आएंगे?"
"कोशिश करूँगा।" अथर्व ने छोटा सा जवाब दिया। अब आशना ने अगला सवाल किया, "और मैं मॉम के पास जा सकती हूँ? आप मुझे रोकेंगे नहीं?"
"नहीं, पर याद रहे मेरे आने से पहले यहाँ पहुँच जाना, वरना दोबारा वहाँ जाने नहीं दूँगा।" अथर्व ने धमकाते हुए कहा। वही उसकी बात सुनकर आशना खुशी से उछल पड़ी और भागकर आकर उसके गले से लग गई और चहकते हुए बोली, "थैंक्यू सो मच! देखना, मैं जल्दी आ जाऊँगी। आपको शिकायत का मौका नहीं दूँगी।"
उसके अचानक गले लगने से बेचारे अथर्व की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। वह हैरानी से आशना को देखने लगा, जो उससे एकदम चिपकी हुई थी। अब आशना उससे अलग हुई और ड्रेसिंग टेबल की तरफ दौड़ते हुए बोली, "अब मैं जल्दी से तैयार हो जाती हूँ, शॉपिंग के बाद मॉम के पास भी तो जाना है, फिर जल्दी वापिस भी आना होगा।"
अथर्व उसे हैरानी से देखता ही रह गया, जबकि आशना पर कोई असर ही नहीं हुआ। वह तो एक बार फिर अपने बालों में कंघी करने लगी। अथर्व कुछ देर उसको देखता रहा, फिर उसने अपना सर झटका और बैग लेकर रूम से बाहर निकल गया। आशना ने जल्दी से अपने बालों को फ्रेंच चोटी में बाँधा, फिर फोन उठाकर अर्नव को कॉल लगा दी।
अर्नव ऑफिस के लिए निकल गया था। वह बाइक चला रहा था। जब उसका फोन बजा तो उसने बाइक साइड में रोकी और फोन देखा। आशना नाम देखकर वह चौंक गया। उसने पलकें झपकाकर दो-तीन बार फोन को देखा। आशना के लिए फोन नंबर और बाकी सब, उसी ने खरीदा था, इसलिए उसके पास उसका नंबर था। उसने कुछ सोचकर नंबर सेव कर लिया था, पर यह नहीं सोचा था कि आशना उसे फोन भी करेगी।
पहले तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ, पर फिर उसने खुद को संभाला और फोन पिक करके संयमित आवाज़ में बोला, "हैलो।"
"हैलो, मैं आशना बोल रही हूँ, आपकी दोस्त।" आशना झट से जवाब दिया तो अर्नव के लब मुस्कुरा उठे। उसने मुस्कुराकर कहा, "जानता हूँ।"
"हाँ, तो पता होना भी चाहिए! आपने मुझसे दोस्ती की है, सारी ज़िंदगी मेरा साथ निभाने का वादा किया है। अगर आप मुझे भूल जाते तो मैं आपका वो हाल करती कि कोई आपको पहचान भी नहीं पाता।" आशना एक बार फिर शुरू हो गई थी और अर्नव लबों पर मुस्कान सजाए उसकी बात सुन रहा था। जब आशना के चुप होने पर भी वह कुछ नहीं बोला तो आशना ने चिढ़कर आगे कहा, "कुछ सुनाई दे रहा है कि मैं क्या कह रही हूँ या बहरे हो गए हैं? कहीं आप मुझे इग्नोर तो नहीं कर रहे हैं?"
यह कहते हुए आशना गुस्से से भर उठी। वही उसकी बात सुनकर अर्नव ने मुस्कुराकर कहा, "इग्नोर नहीं कर रहा, सुन रहा हूँ आपकी बातें।"
"तो कुछ बोलिए भी तो सही, सिर्फ सुनते ही रहेंगे क्या?"
"हाँ, मुझे आपको सुनना अच्छा लगता है।" अर्नव के मुँह से बेखयाली में निकल गया। वही उसकी बात सुनकर आशना की आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं। उसने हैरानी से कहा, "क्या कहा आपने?"
अर्नव को अब ध्यान आया कि वह क्या बोल गया तो उसने बात संभालते हुए कहा, "पूरे एक दिन बाद तुम्हारी… ओह, सॉरी… आपकी आवाज़ सुनी न, तो बस सुन रहा था। बहुत मीठी आवाज़ है आपकी।"
"हम्म, यह तो है! मेरी आवाज़ है ही इतनी मीठी कि जो सुनता है, बस सुनता ही रह जाता है।" आशना ने इतराते हुए कहा तो अर्नव की हँसी छूट गई, पर उसने खुद को संभाला और मुस्कुराकर बोला, "फ़ोन कैसे किया? कुछ काम था?"
"अरे हाँ, मैं तो भूल ही गई! मैंने आपको यह बताने के लिए फोन किया था कि आज आप मुझे शॉपिंग पर लेकर जाने वाले हैं। खुद मिस्टर सिंघानिया ने कहा है मुझे यह और मैं आपका इंतज़ार कर रही हूँ, तो जहाँ पर भी हैं, जल्दी से आ जाइएगा।" आशना ने झट से पूरी बात बता दी। एक पल को अर्नव सोच में पड़ गया, फिर उसने "ओके" कहा तो आशना आगे बोली, "'एक और बात, मुझे 'तुम' कह सकते हैं आप, मुझे अच्छा लगेगा।"
आशना ने मुस्कुराकर कहा तो उसकी बात सुनकर अर्नव ने भी मुस्कुराकर कहा, "फिर तो तुम्हें भी मुझे 'आप' कहना छोड़ना पड़ेगा।"
"ओके, डन।" आशना ने खुशी से चहकते हुए झट से कहा, फिर दोनों ने बाय कहकर फोन काट दिया। अर्नव वापिस ऑफिस की तरफ बढ़ गया क्योंकि भले ही आशना ने उसे सब बता दिया हो, पर जब तक अथर्व नहीं कहता, वह आशना के साथ कैसे जा सकता था?
वह ऑफिस पहुँचा और अपने केबिन में जाकर काम में लग गया, पर ध्यान उसका आशना पर ही अटका हुआ था कि वह उसका इंतज़ार कर रही होगी। कुछ देर बाद उसके केबिन में रखा इंटरकॉम बजा तो उसने झट से फोन उठाकर "हैलो" कहा। दूसरे तरफ से अथर्व की रौबदार आवाज़ आई, "अभी इसी वक़्त मेरे केबिन में आओ।"
अर्नव ने "येस सर" कहा और इसके साथ ही वह अथर्व के केबिन की तरफ बढ़ गया।
"मे आई कम इन सर?" उसने गेट के बाहर खड़े होकर इजाज़त माँगी तो अथर्व ने "कम इन" कहा।
"आपने मुझे बुलाया सर?" उसने उसके सामने खड़े होते हुए सवाल किया तो अथर्व ने एक नज़र उसे देखा, फिर वापिस नज़रें फाइल पर गड़ाते हुए बोला, "आशना को शॉपिंग पर जाना है और मेरे पास वक़्त नहीं है। वैसे भी उसे किसी लोकल मार्केट जाना है तो बेहतर होगा कि उसके साथ तुम चले जाओ, उसे जो भी लेना हो दिला देना और ध्यान रखना उसका। कोई उसे हर्ट ना कर पाए और वह कोई उल्टी-सीधी हरकत न करे। अभी किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि वह मेरी वाइफ है, सही मौका देखकर मैं मीडिया के सामने हमारा रिलेशन रिवील कर दूँगा। घर से कार ले लेना और उसी में उसे लेकर जाना। उसे ज़रा भी तकलीफ नहीं होनी चाहिए, यह याद रखना।"
अथर्व ने आखिरी बात उसे घूरते हुए कही तो अर्नव ने हाँ में सर हिलाते हुए कहा, "ओके सर।"
अथर्व ने उसे जाने का इशारा किया तो वह जल्दी से वहाँ से निकल गया और सीधे लिफ्ट की तरफ दौड़ पड़ा। पार्किंग में जाकर अपनी बाइक स्टार्ट की और वहाँ से निकल गया। वह फुल स्पीड में बाइक दौड़ाते हुए अथर्व के मेंशन पहुँचा। जैसे ही उसने गेट के सामने अपनी बाइक रोककर अपना हेलमेट उतारा तो नज़र सामने खड़ी आशना पर चली गई जो गुस्से में मुँह फुलाए उसे ही घूर रही थी।
"कुछ ज़्यादा ही जल्दी नहीं आ गए तुम? मैं इतनी देर से यहाँ तैयार खड़ी तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ और तुम फुर्सत में आ रहे हो।" आशना ने उसे देखते हुए गुस्से से कहा तो अर्नव नीचे उतरा और उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला,
"सॉरी यार, वो सर से पूछना था न, जब तक वो नहीं कहते, यहाँ कैसे आता? बस इसलिए थोड़ा लेट हो गया।"
आशना ने पहले उसे घूरा फिर आगे बढ़ते हुए बोली, "अब जल्दी चलो, मुझे घर भी जाना है मॉम से मिलने।"
वह बाइक की तरफ बढ़ गई तो अर्नव ने हैरानी से कहा, "तुम वहाँ कहाँ जा रही हो? सर ने तो कार से जाने कहा है।"
"तुम्हारे सर का काम ही है ऑर्डर देना, पर मैं उनके ऑर्डर मानूँ यह कैसे हो सकता है? मैं वही करूँगी जो मुझे करना होगा और अभी मेरा मन तुम्हारे साथ बाइक राइड का मज़ा लेने का है। चलो अब जल्दी चलो, पहले ही बहुत लेट हो गया है।" आशना ने इतराते हुए कहा और बाइक के पास जाकर खड़ी हो गई। अर्नव अब भी उसे परेशान सा देख रहा था तो आशना ने मुस्कुराकर कहा, "अरे इतना क्या सोच रहे हो? उन्हें पता भी नहीं चलेगा। जल्दी चलो ना।"
आशना की जिद के आगे अर्नव को झुकना ही पड़ा। वह बाइक पर बैठा तो आशना झट से उसके पीछे बैठ गई। जैसे ही उसने उसके कंधे पर हाथ रखा अर्नव ने चौंक कर उसे देखा तो आशना ने मुस्कुराकर कहा, "क्या हुआ? चलाओ ना।"
अर्नव का दिल जोरों से धड़कने लगा। पहली बार कोई लड़की उसकी बाइक के पीछे बैठी थी, वह भी वह लड़की जो उसे पहली नज़र में ही पसंद आ गई थी। उस पर आशना उसके पास बैठी थी, उसका हाथ उसके कंधे पर था। उसने किसी तरह खुद को संभाला, खुद को याद दिलाया कि आशना सिर्फ़ उसकी दोस्त है और अब उसके बॉस की वाइफ है। उसने अपना ध्यान उस पर से हटाया और बाइक स्टार्ट कर दी। पहले उसने आशना के लिए हेलमेट लिया, फिर वहाँ से निकल गया।
आशना तो अपनी बाहें फैलाए ठंडी-ठंडी हवाओं का मज़ा ले रही थी और अर्नव बाइक के मिरर में उसे देखते हुए बाइक चला रहा था, लबों पर हल्की सी मुस्कान फैली हुई थी। करीब आधे घंटे के ड्राइव के बाद वे लोखंडवाला मार्केट कॉम्प्लेक्स पहुँचे। अर्नव ने बाइक साइड में पार्क की और उसके साथ मार्केट की तरफ बढ़ गया।
वहाँ दुकानें और शोरूम ही बने हुए थे। दुकानों की ग्लास वॉल से एक से एक सुंदर कपड़े, ज्वैलरी नज़र आ रहे थे जिन्हें लोगों को अट्रैक्ट करने के लिए ही लगाया हुआ था। आशना की आँखों में चमक आ गई। उसने अर्नव का हाथ पकड़ा और एक दुकान की तरफ बढ़ गई, जहाँ सुंदर-सुंदर कपड़े शो करने के लिए डमी को पहनाकर बाहर रखा हुआ था। अर्नव उसके हाथ पकड़ने से चौंक गया और उसने हैरानी से पहले अपने हाथ को फिर आशना को देखा, जिसे किसी बात की परवाह ही नहीं थी। उसकी आँखों की चमक और लबों की मुस्कान देखकर अर्नव ने कुछ नहीं कहा और उसके साथ चलने लगा।
अंदर जाकर आशना कपड़ों को देखने लगी। इसके बाद शुरू हुई उनकी शॉपिंग। आशना उसका हाथ पकड़े एक दुकान से दूसरी दुकान में घुसती रही और अपने पसंद के सिंपल और सस्ते कपड़े खरीदने लगी, पर वे देखने में महँगे कपड़ों से कम नहीं लग रहे थे। आशना ने अपने लिए सूट, कुर्ते, जीन्स, टॉप, वन पीस सब खरीदे, वह भी ऐसे जिन्हें डेली वियर में पहना जा सके। उसके बाद वह मेल सेक्शन में चली गई, उसने बहुत सोचने के बाद एक नेवी ब्लू शर्ट और व्हाइट जीन्स खरीदी, फिर साड़ियों की दुकान में चली गई, वहाँ से दो बनारसी सिल्क की सुंदर सी साड़ी खरीदी, फिर घर के सर्वेंट्स के लिए भी कुछ-कुछ खरीदा।
उसके और अर्नव के दोनों हाथ शॉपर्स से भरे हुए थे। आशना अब भी दुकानों को देखते हुए आगे बढ़ रही थी, साथ ही उसकी बकबक भी चालू थी, पर अर्नव के लबों पर मुस्कान ठहरी हुई थी। अचानक ही आशना की नज़र वॉच के शोरूम पर चली गई तो उसने चिल्लाकर कहा, "अर्नव, वहाँ चलो, मुझे घड़ी खरीदनी है।"
अर्नव खामोशी से उसके साथ चलने लगा। आशना अंदर गई, दोनों सोफ़ों पर बैठ गए, सारे शॉपिंग बैग्स साइड में रखे। अर्नव के कहने पर सेल्स मैन उन्हें वॉच दिखाने लगा। आशना ने दो एक जैसी वॉच पसंद की, फिर एक थोड़ी महंगी वॉच पसंद की और तीनों की पेमेंट कर दी। उसने उनमें से एक वॉच ली और अर्नव की तरफ़ मुड़कर मुस्कुराकर बोली, "अपना हाथ आगे करो।"
अर्नव उसे हैरानी से देखने लगा तो उसने उसे घूरते हुए कहा, "मैंने आँखें बड़ी-बड़ी करने नहीं कहा है, हाथ आगे करो ना।"
"पर क्यों?" अर्नव ने अब भी कन्फ़्यूज नज़रों से उसे देखते हुए सवाल किया तो आशना ने उसे आँखें दिखाते हुए कहा, "क्योंकि मुझे तुम्हारे हाथ बहुत अच्छे लगे इसलिए अब मैं उन्हें काटने वाली हूँ।"
उसकी बात सुनकर अर्नव उसे आँखें बड़ी-बड़ी करके देखने लगा तो अब आशना ने चिढ़कर कहा, "अरे, मैंने तुम्हारे लिए वॉच ली है, उसे पहनाकर देखनी है कि कैसी लग रही है। अब हाथ आगे करो अपना।"
"पर इसकी क्या ज़रूरत है? मेरे पास वॉच है तो सही।" अर्नव ने अब भी हाथ आगे नहीं किया तो अब आशना ने उसका हाथ पकड़कर उसकी वॉच खोली, फिर अपनी खरीदी वॉच उसे पहनाते हुए कहने लगी,
"क्योंकि यह मैं दे रही हूँ तुम्हें, समझ लो हमारी दोस्ती के लिए मेरी तरफ़ से तुम्हारे लिए एक छोटा सा गिफ़्ट है, जो तुम्हें लेना भी होगा और उसे यूज़ भी करना होगा, वरना मैं तुमसे नाराज़ हो जाऊँगी।"
आशना ने आँखें दिखाई, फिर उसकी कलाई को देखकर मुस्कुराकर बोली, "देखो, कितनी अच्छी लग रही है तुम्हारी कलाई पर?"
अर्नव ने भी अब अपनी कलाई की तरफ़ देखा तो सच में सिल्वर कलर की Titan की वह घड़ी उसके हाथ पर बहुत जच रही थी। अर्नव ने अब मुस्कुराकर कहा, "ठीक है, तुम्हारा गिफ़्ट मैं ले लेता हूँ, पर फिर तुम्हें भी मेरा दिया गिफ़्ट लेना पड़ेगा।"
"डन।" आशना ने मुस्कुराकर झट से हामी भर दी। फिर सारे शॉपर्स लेकर दोनों वहाँ से निकल गए। कुछ दूरी पर एक बुक शॉप थी। अर्नव आशना को लेकर वहाँ चला गया और काउंटर पर जाकर अपने लिए बुक देखने लगा तो आशना ने आस-पास नज़रें घुमाते हुए कहा, "तुम्हें बुक्स पढ़ना पसंद है?"
"हम्म, जब खाली होता हूँ तो पढ़ लेता हूँ। कहते हैं बुक्स बेस्ट फ्रेंड होते हैं तो उनके साथ थोड़ा वक़्त तो बिताना ही चाहिए।" अर्नव ने उसे देखकर मुस्कुराकर जवाब दिया तो आशना ने उसके हाथ में पकड़ी बुक की ओर देखते हुए बोली, "मुझे भी अच्छी सी बुक्स दिला दो, मैं सारा वक़्त खाली बैठे-बैठे बोर हो जाती हूँ।"
"ठीक है, बताओ कौन सी बुक लेनी है तुम्हें?" अर्नव ने मुस्कुराकर सवाल किया तो आशना झट से बोली, "रोमांटिक नोवेल्स मुझे बहुत पसंद हैं।"
उसकी एक्साइटमेंट देखकर अर्नव मुस्कुरा उठा। उसने लड़के से रोमांटिक नोवेल्स दिखाने को कहा, फिर आशना की तरफ़ मुड़कर बोला, "तुम्हें शादी नहीं करनी थी और प्यार भरी कहानियाँ पढ़ना पसंद है, स्ट्रेंज।"
"इसमें कौन सी बड़ी बात है? कहानियाँ बस कहानियाँ होती हैं, उसमें प्योर लव दिखाया जाता है जो आज की दुनिया में मिलना बहुत मुश्किल है, इसलिए मुझे कहानियों में ही उस प्यार को महसूस करना पसंद है।" आशना ने अपनी मुस्कराहट बड़ी करते हुए कहा। इतने में लड़का काफी सारी बुक्स ले आया। अर्नव ने कुछ बुक्स पसंद की और उन्हें पैक करवा लिया, फिर उसे देते हुए बोला, "ये लो, मेरी तरफ़ से तुम्हारे लिए गिफ़्ट।"
आशना ने मुस्कुराकर शॉपर ले लिया। दोनों वहाँ से बाहर निकले तो पास खड़े गोलगप्पे वाले को देखकर आशना खुशी से चीख उठी, "गोलगप्पे!"
उसके अचानक चीखने से अर्नव ने चौंक कर उसे देखा तो आशना ने क्यूट सी शक्ल बनाकर कहा, "मुझे गोलगप्पे खाने हैं! देखो ना शाम होने वाली है, मैंने लंच भी नहीं किया, मुझे ज़ोरों की भूख लगी और गोलगप्पे मेरे फ़ेवरेट हैं। खिला दो ना, वह भी अपने पैसों से, क्योंकि गोलगप्पे खाने का मज़ा दूसरों के पैसों से ही आता है। कितना मज़ा आता है, जितना मन चाहे खाते जाओ और पैसों की कोई चिंता ही नहीं।"
इस वक़्त उसके चेहरे पर अलग ही नूर बिखरा हुआ था, लबों पर गहरी मुस्कान फैली हुई थी और आँखों में चमक लिए वह उसे ही देख रही थी। उसकी मासूमियत जहाँ अथर्व को छलावा लगती थी, वहीं उसकी मासूमियत, उसकी चंचलता अर्नव को अलग ही एहसास करवाता था, उसे अपनी तरफ़ खींचता था। अर्नव ने मुस्कुराकर हामी भर दी तो आशना दौड़कर ठेले वाले के पास पहुँच गई और मुस्कुराकर बोली, "भैया, दो प्लेट गोलगप्पे देना, एकदम तीखे देना।"
गोलगप्पे वाले ने मुस्कुराकर प्लेट बनानी शुरु कर दी। दोनों ने शॉपर्स रेडी के पास रखे। आशना गोलगप्पे खाने लगी तो अर्नव बस उसके चेहरे को देखने लगा। आशना की नज़र जैसे ही उस पर पड़ी, उसने अपनी प्लेट नीचे रखी और उसकी प्लेट उठाकर उसे देते हुए बोली, "तुम्हारे लिए भी हैं, खाओ ना।"
अर्नव ने उसके कहने पर मुस्कुराकर गोलगप्पे खाने शुरु किए तो आशना भी अपने गोलगप्पे खाने लगी। उसने धीरे-धीरे पाँच प्लेट गोलगप्पे चट कर लिए, जबकि अर्नव एक प्लेट खत्म करने के बाद बस उसे देख रहा था। छठी प्लेट खत्म करने के बाद आशना ने प्लेट नीचे रखते हुए मुस्कुराकर कहा, "आज तो मज़ा आ गया! क्या टेस्टी गोलगप्पे थे, मेरा तो पेट भर गया।"
अर्नव ने पैसे दिए और दोनों वहाँ से निकल गए। आगे चलकर अर्नव ने पानी खरीदकर उसे दिया क्योंकि गोलगप्पे तो खा लिए थे पर अब उसे तीखा लग रहा था। आशना की बकबक पूरे वक़्त चालू थी पर अर्नव को उसकी बातें अच्छी लगती थीं।
दोनों बाइक के पास पहुँचे तो अर्नव ने शॉपर्स उसे पकड़ाए और बाइक पर बैठ गया। कुछ शॉपर्स बाइक के दोनों तरफ़ के हैंडल में टाँग लिए, बाकी आशना ने पकड़ लिए और दोनों वहाँ से निकल गए। करीब पाँच बजे शाम को वे घर पहुँचे तो आशना ने अर्नव को अंदर बुलाकर पानी पिलाया, फिर वह ऑफिस के लिए निकल गया। आशना ने सबको उनके गिफ़्ट दिए, जिससे सब खुश हो गए। काकी को भी उसने बनारसी साड़ी दी। उसके बाद क्योंकि लेट हो गया था तो बाकी शॉपर्स लेकर रूम में चली गई। सोफ़े पर सब समान रखा और कपड़े लेकर फ़्रेश होने चली गई।