एक वीरान घर में दो महीनों के भीतर तीन रहस्यमयी हत्याएँ हो चुकी हैं, लेकिन पुलिस अब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाई है। एक प्राइवेट डिटेक्टिव और उसकी बेस्ट फ्रेंड इस केस की गहराई में जाने का फैसला करते हैं, जबकि एक जिद्दी इंस्पेक्टर भी इस मामले की तह... एक वीरान घर में दो महीनों के भीतर तीन रहस्यमयी हत्याएँ हो चुकी हैं, लेकिन पुलिस अब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाई है। एक प्राइवेट डिटेक्टिव और उसकी बेस्ट फ्रेंड इस केस की गहराई में जाने का फैसला करते हैं, जबकि एक जिद्दी इंस्पेक्टर भी इस मामले की तह तक जाने की कोशिश में जुटा है। जाँच के दौरान, उन्हें एक मेडिकल रिसर्च सेंटर का पता चलता है, जहाँ एक खतरनाक दवा का गुप्त परीक्षण चल रहा था, जिसके कारण ही इन मौतों की कड़ी जुड़ी थी। लेकिन इस रहस्य के पीछे सिर्फ इंसानी साजिश नहीं थी—एक छुपी हुई सच्चाई थी, जिसे उजागर करने में एक अनदेखी शक्ति भी मदद कर रही थी। क्या वे इस गहरे राज से पर्दा हटा पाएंगे, या फिर यह भयानक खेल जारी रहेगा? जानने के लिए पढ़िए ये कहानी "The Haunting Murders"
Mohit
Hero
तृषा
Heroine
नीरज
Hero
मयंक
Side Hero
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1
"हम लोग इस वक्त हैं, ठीक उसी घर के बाहर; जहां से पिछले कुछ दिनों में ही एक के बाद एक तीन लाशें बरामद हुई हैं और यह वाली लाश तो उस घर के अंदर से बरामद हुई है जो कि इतने दिनों से खाली और सुनसान पड़ा है।" - हाथ में माइक पकड़े हुए वह लड़की, जो कि एक न्यूज़ रिपोर्टर लग रही थी, अपने सामने खड़े कैमरामैन के कैमरा में देख कर बोल रही थी।
तभी एक पुलिस जीप वहां पर आ कर रुकी और एक लंबा चौड़ा हैंडसम सा दिखने वाला नवयुवक इंस्पेक्टर जीप से उतरा, पुलिस की वर्दी उस पर खूब जंच रही थी, उस की पर्सनालिटी पर और उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कि पुलिस की वर्दी बनी ही है उस के लिए; उस के साथ ही एक और इंस्पेक्टर जो कि शायद उसका जूनियर था उस के साथ ही जीप के दूसरी तरफ से बाहर निकला और वह दोनों एक साथ ही उस बोलती हुई न्यूज़ रिपोर्टर के कैमरे के सामने से निकल गए।
और जितना सुनसान, वीरान व खाली वह उस जगह के बारे में दिखा रही थी या फिर बता रही थी वह उस वक्त देखने में तो वह जगह बिल्कुल भी वैसी नहीं लग रही थी, वहां पर काफी हलचल थी और लगभग दो-तीन न्यूज़ चैनल वालों की गाड़ियों के साथ,अब तो पुलिस की जीप और एक एंबुलेंस उस जगह पर नजर आ रही थी, देख कर अंदाजा लगाया जाए तो लगभग 30 - 35 लोगों की भीड़ तो इकट्ठा थी उस वक्त वहां पर,
"कई लोगों का तो यह भी मानना है कि यह जगह हॉन्टेड है और इसीलिए इस घर को कोई नहीं खरीदता और जो मर्डर हो रहे हैं, वह सारे भी साधारण मर्डर नहीं है क्योंकि मरने वालों के शरीर पर किसी तरह का कोई निशान नहीं मिलता पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी अभी तक पहले मर्डर की कोई बात सामने नहीं आई है कि अगर यह सारे मर्डर है तो खूनी मर्डर कर कैसे रहा है, और इस जगह पर ही क्यों?" - उसी तरह एक दूसरा न्यूज़ रिपोर्टर कैमरे के सामने खड़े हो कर अपने माइक पर बोला
"हटवाओ मयंक, इन लोगों को यहां से क्या नौटंकी लगा रखी है, हर चीज का सर्कस बना देते हैं।" - न्यूज रिपोर्टर्स की यह बातें जब इंस्पेक्टर नीरज के कानों में पड़े तो वह दांत पीसते हुए अपने जूनियर सब इंस्पेक्टर मयंक से बोला
"रिलैक्स सर, अपना काम ही तो कर रहे हैं वह सब भी, जैसे कि हम अपना काम करने आए हैं।" - मयंक नीरज के कंधों पर हाथ रखता हुआ बोला तो नीरज ने पीछे मुड़कर उसे घूर कर एक नज़र देखा तो नी मयंक ने उसके कंधे पर से अपना हाथ हटा लिया और बोला - "ठीक है, हटवाता हूं!" और इतना बोलते हुए वहां से अपने कॉन्स्टेबल के पास चला गया था।
और नीरज भी तेज कदमों से उस तरफ बढ़ गया जहां की लाश होने की खबर मिली थी।
यह सब तो वहां पर हो रहा था लेकिन वहां से कुछ दूर दूरी पर, उसी घर की बाउंड्री वॉल से एक बाहर के पेड़ के पीछे छिपी दो जोड़ी आंखें काफ़ी देर से इन सब पर, और वहां पर हो रही सभी हरकतों पर नजर रखे हुए थी और शायद उन सब के वहां से चले जाने के इंतजार में भी थी। वह दोनों काफी दूरी से नज़र रखे हुए थे इसलिए वहां मौजूद लोगों की बातें और हर किसी की शक्ल तो साफ दिखाई नहीं दे रही थी फिर भी जितना वह समझना चाहते थे उतना तो समझ आ ही रहा था उन दोनों को;
कुछ ही देर में वहां की भीड़ छंटने लगी और एक-एक कर के लोग भी उस जगह से जाने लगे और फिर आखिर में घर के दरवाजे और जिस जगह पर लाश मिली थी, वहां आसपास सील करने के बाद दोनों पुलिस इंस्पेक्टर भी जिस जीप से आए थे उसी में बैठ कर वापस चले गए।
पूरी तरह से तसल्ली हो जाने और एक एक इंसान को वहां से जाते हुए देख लेने के बाद, आखिर वह दो लोग भी पेड़ के पीछे से निकल कर बाहर आए और उस घर की बाउंड्री वॉल की तरफ बढ़ने लगे।
हां, अब इस वक्त क्योंकि रात काफी हो चुकी थी और अब उन दोनों के अलावा वहां पर दूर-दूर तक कोई और नज़र भी नहीं आ रहा था, तो अब यह घर बिल्कुल उस न्यूज़ रिपोर्टर के बताए अनुसार सुनसान वीरान और काफी हद तक भूतिया भी लग रहा था।
इसलिए उस घर की तरफ बढ़ते हुए उस लड़की का गला डर के मारे काफी सूख चुका था और उस के कदम आगे नहीं बढ़ रहे थे, लेकिन उस के साथ जो लड़का था वह इस तरह से वहां पर चल रहा था जैसे कि अपने घर के बगीचे में टहल रहा हूं उस की आंखों में डर या घबराहट दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रही थी अगर कुछ दिख रहा था तो जैसे कुछ नया जानने की चाहत और उत्साह!
"चल छोड़ यार मोहित अब इतनी रात हो गई है चलते हैं यहां से" - उस अजीब से दिखने वाले वीरान घर के सामने खड़ी वो लड़की इधर उधर चारों तरफ एक नज़र मारती हुई अपने साथी मोहित से बोली
"क्यों तुझे भी भूतों से डर लगता है क्या तृषा डार्लिंग ? " मोहित तृषा का मज़ाक उड़ाते हुए बोला जो कि उस पुराने से घर की थोड़ी टूटी फूटी सी बाउंड्री वॉल के चारों तरफ घूम घूम कर जैसे कुछ ढूंढ रहा था या फिर शायद अंदर झांकने की कोशिश कर रहा हो।
"तुझे पता है ना भूत वूत नहीं होते, बकवास ना कर!" - तृषा उस की बात पर लापरवाही से बोली क्योंकि मोहित उसे हमेशा ही डराने की कोशिश करते रहता था और मज़ाक भी!
"तो फिर क्या डर है तुझे, जो बार-बार वापस चलने को बोल रही है।" - मोहित दीवार पार करने के लिए इधर-उधर कोई बड़ा पत्थर ढूंढता हुआ बोला
"यहां सब का आना मना है और ऊपर से अभी जो यहां लाश मिली थी उसके बाद तो पुलिस किसी भी वक्त आ धमकती है यहां, शायद अभी फिर से वापस आ गए तो पकड़े जाएंगे मोहित तेरी इन हरकतों की वजह से..." - तृषा उसे समझाती हुई बोली
"वही तो पता करना है यार कि आखिर लाश यहां आई कैसे जब हमें अंदर जाने में इतनी मुश्किल हो रही है।" - बोलते हुए मोहित थोड़ी दूर पर दीवार से लगे एक बड़े से पत्थर पर चढ़ गया
"नो मोहित प्लीज स्टॉप , कभी तो मेरी बात सुना कर यार! " - तृषा उसे रोकते हुए बोली लेकिन मोहित कहां सुनने वाला था वह अब तक दीवार से उस पार हो चुका था।
क्रमशः
2
वह एक वीराने में काफी दिनों से बंद पड़ा घर था और उस के आसपास कई सारे जंगली पेड़ और जंगली झाड़ियां उग आए थे, साफ-सफाई का तो दूर-दूर तक कोई नामोनिशान नहीं था, बड़े-बड़े पत्थर और ईंट वगैरा बिखरी पड़ी थी साथ ही दीवार भी कई जगह से ऊंची नीची और टूटी हुई सी थी, इसलिए मोहित उस पत्थर पर चढ़ कर काफी आसानी से उस घर की बाउंड्री वॉल के अंदर कूद गया।
"तू आ रही है या मैं जाऊं अकेला ही हीरो बनने?" - दीवार के पास ही खड़े मोहित ने तृषा से कहा
"तेरे साथ ही मरना लिखा है मेरा तो, कहां फंस गई मैं? रुक आती हूं।" - बड़बड़ाती हुई तृषा भी उसी पत्थर के सहारे चढ़ कर दीवार पर बैठ गई और दूसरी तरफ से मोहित ने उसे पकड़ कर नीचे उतार लिया।
"हां तो अब..." - दीवार के पार आ कर तृषा अपना हाथ झाड़ती हुई बोली
"अब क्या... अब चलो एक रोमांटिक डिनर करते हैं ना बढ़िया सा" - मोहित फिर से अपने उसी व्यंगात्मक अंदाज में बोला
"रोमांटिक डिनर और तेरे साथ शक्ल देखी तूने अपनी" - इस बार तृषा उसका मज़ाक उड़ाती हुई बोली
"मजा़क था बस , ज्यादा पर्सनल होने की जरूरत नहीं है और मेरी शक्ल तुझ से तो अच्छी है चुड़ैल.." - मोहित चिढ़ कर तृषा के बाल खींचते हुए बोला तो तृषा ने भी उस के हाथ पर मारा
वह दोनों बचपन के दोस्त थे और आज तक हर उल्टे सीधे काम में एक दूसरे का साथ देते आए थे, चाहे हंस कर खुशी से या फिर जबरदस्ती, बेमन से, रोते, पछताते हुए लड़ झगड़ कर लेकिन जैसा भी हो आखिर वह दोस्त थे तो पार्टनर ऑफ क्राइम्स भी थे, सारी मुसीबत भी साथ में ही मोल लेते थे और फिर उस में से बाहर भी एक साथ ही निकलते थे लेकिन लड़ते झगड़ते, एक-दूसरे को ब्लेम करते हुए हर वक्त!
"पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में क्या बोला था, जल्दी बता" - मोहित आगे बढ़ता हुआ बोला तृषा भी लगभग भागती हुई उस के पीछे आई और बोली - "चिल्ला कर बताऊं क्या? मेरे लिए रुका तो कर यार!"
"एक तो तेरे ये लड़कियों वाले नखरे खत्म नहीं होते।" - मोहित थोड़ा सा इरिटेट होते हुए बोला
"हां, तो लड़की ही हूं मैं, याद रखा कर ना, और यह रही रिपोर्ट ले तू खुद ही पढ़ ले।" - अपने आईपैड में एक पेज ओपन कर के तृषा ने मोहित को थमा दिया।
"इस के हिसाब से तो घर के अंदर मिली थी लाश और उस के भी शरीर पर कोई भी चोट का निशान नहीं था, ठीक वैसे ही जैसे की पहली दो लाशों पर भी कोई चोट के निशान नहीं थे, यह कैसे हो सकता है?" - मोहित रिपोर्ट पढ़कर थोड़ा चौंकते हुए बोला
"जाहिर सी बात है ऐसी जगह पर ला कर कोई गोली तो मारेगा नहीं, कुछ और ही सोचा होगा खूनी ने ।" - तृषा मोहित से अपना आईपैड वापस लेती हुई बोली
"मतलब काफी तगड़ी प्लानिंग है।" - मोहित खुद ही में बुदबुदाया, वो और तृषा अब तक उस घर के गेट तक पहुंच चुके थे, जिस पर कोई ताला तो नहीं लगा था, लेकिन पुलिस की सील जरूर लगी थी।
"यार! तेरा यह जासूस बनने का शौक ना, मुझे बहुत भारी पड़ेगा किसी दिन..." - मोहित के पीछे ही तृषा भी उस पुलिस की लगाई हुई सील के नीचे से झुक कर निकलती हुई बोली
"चल कुछ तो भारी पड़ेगा तुझे, नहीं तो हर चीज हल्के में लेती है तू..." - मोहित फिर से उसी तरह उस की बात को हवा में उड़ाता हुआ बोला
"बाप रे! कितनी डरावनी जगह है, मेरे हिसाब से तो हार्ट अटैक ही आया होगा उस बंदे को..." - उस घर के अंदर पहुंचकर चारों तरफ देखते हुए तृषा अपने सीने पर हाथ रखते हुए बोली और फिर मोहित की तरफ मुड़ कर कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी उस ने देखा कि वह वहां पर अकेली थी मोहित वहां पर था ही नहीं...
"मोहित... मोहित... कहां चले गए तुम? देखो यह कोई मजाक करने का वक्त नहीं है, सामने आओ चुपचाप!" - तृषा अपने आगे की तरफ नपे तुले से कदम चलती हुई मोहित को आवाज लगाती हुई बोली
तभी उस घर में एकमात्र रोशनी का जरिया वह पुराना सा बल्ब भी अचानक बंद हो गया और वहां पर एक दम अंधेरा हो गया।
"आआआआआआह... मोहितत्......" - अंधेरा होते ही तृषा की ज़ोर से चीख निकल गई और वह लगभग डरती हुई फिर से चिल्लाई - "कहां हो तुम मोहित! मत करो यह सब.. " और थोड़ा संभलते हुए उस ने जल्दी से अपने मोबाइल की फ्लैश लाइट ऑन कर ली और उस की रोशनी चारों तरफ देखने लगी लेकिन उसे कुछ भी नज़र नहीं आया।
मोबाइल के फ्लैश की रोशनी में, तृषा को वहां पर अपने अलावा कोई भी और नज़र नहीं आ रहा था, लेकिन फिर भी एक अजीब सा डर उस के मन में बैठा हुआ था इसलिए वह उस जगह पर अपने अकेले होने की वजह से और ज्यादा डर रही थी, क्योंकि इतनी सारी अफवाहें जो सुन रखी थी उस ने इस घर के बारे में और इस के साथ ही अभी एक लाश भी तो मिली थी यहां पर, इस घर से ही; ऐसे हालातों में भला किस को डर नहीं लगेगा वह भी जब आप का साथी गायब हो जाए और अचानक से अंधेरा भी!
फिर भी हिम्मत कर के वह मोहित को आवाज लगाती हुई एक तरफ बढ़ रही थी, तभी उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कि उस के पीछे कोई है तो यह सोच कर ही डर के मारे उस की हलक सूख गई, तृषा ने अपने गले में फंसा हुआ थूक निगल कर अपना गला तर किया और डरते हुए उस ने एक तरफ अपने कदम बढ़ाए कि तभी उसे पीछे से अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ...
वह चौंक कर पीछे पलटी तो वहां पर काफी अंधेरा था, अपने कांपते हाथों से मोबाइल का फ्लैश ऊपर कर के उस ने देखा तो उस के सामने वहां पर मोहित खड़ा था।
"यू...हाउ डेयर यू मोहित! ऐसा कोई करता है क्या? वो भी ऐसी जगह पर।" - ये बोलते हुए घबराई हुई सी तृषा जल्दी से मोहित के गले लग गई।
"लेकिन मैंने क्या किया?" - मोहित ने इस तरह से पूछा जैसे कि उसे कुछ पता ही ना हो।
"कहां गायब हो गए थे तुम, इडियट कहीं के और यह लाइट्स भी तुम ने ही ऑफ की थी ना, मुझे डराने के लिए..." - मोहित के गले लगी हुई तृषा उस के कंधे पर मारती हुई बोली
"अरे पागल लड़की, मैं तो बस अभी आया हूं यहां पर, थोड़ा सा आगे चला गया था मैं उस तरफ , लेकिन तेरी चीख सुनी तो भागता हुआ आया यहां पर और...वह बल्ब.." - मोहित की नज़र जब बल्ब पर पड़ी तो उसे देखता हुआ वह चुप हो गया।
क्रमशः
3
"फ्यूज हो गया क्या बल्ब?" - तृषा ने नासमझी से सवाल किया।
"नहीं, शायद स्विच में कुछ प्रॉब्लम होगी, तु रुक यही मैं देखता हूं!" - मोहित अपनी शर्ट पर कसे हुए तृषा के हाथ हटाता हुआ बोला
"मैं भी साथ चलती हूं ना, फ्लैश दिखा दूंगी, अंधेरा है!" - तृषा ने अपने हाथ नहीं हटाएं और मोहित के साथ ही आती हुई बोली तो मोहित उस की ऐसी हालत पर मुस्कुरा दिया।
"सीधा सीधा नहीं बोल सकती कि डर लगता है तुझे मेरे बिना।" - मोहित तृषा के हाथ की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोला जो कि अभी भी मोहित के कंधे पर उस की शर्ट पर कसे हुए थे।
मोहित की बात सुन कर तृषा सकपका गई और उस ने जल्दी से अपने हाथ मोहित के कंधे से हटा लिया बोली - "अपना काम कर तु और मुझे ना डर वर नहीं लगता।"
"हां, इतनी ज़ोर से तो मैं चीखा था ना कि पास के पुलिस स्टेशन तक आवाज गई होगी।" - मोहित अपनी हंसी दबाता हुआ बोला और तभी वह बल्ब वापस जल गया, मोहित ने स्विच में कुछ किया था।
"मतलब भूत नहीं है यहां पर, इतना तो पक्का हो गया, यहां अंदर तक आ कर!" - तृषा जैसे राहत की सांस लेती हुई बोली
"भूत नहीं है तो क्या हुआ, लेकिन एक चुड़ैल तो है ना..." - सामने खिड़की के कांच पर दिखते हुए तृषा के अक्स की तरफ इशारा करता हुआ मोहित बोला
"हा हा हा वेरी फनी, वैसे तुझे मैं एक बात याद दिलाऊं चुड़ैल ना आईने में नज़र नहीं आती और मैं दिख रही हूं उस शीशे में, और अब वह काम कर लें थोड़ा, जिस के लिए यहां आए हैं इतना रिस्क उठा कर।" - तृषा चिढ़ती हुई सी बोली
"मैं ही करुंगा काम सारा, तू तो बस टाइम पास के लिए ही मेरे साथ आती है।" - मोहित आगे बढ़ कर एक एक चीज को बारीकी से देखते हुए बोला
"शुक्रिया अदा कर मेरा, कम से कम आती तो हूं मैं कोई और तो आए भी ना तेरे साथ।" - तृषा थोड़ा इतराते हुए बोली लेकिन मोहित ने उस की बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपने काम में ही लगा रहा।
उस घर में लगभग खराब हो चुके कुछ फर्नीचर ,थे जो कि कपड़ों से ढके हुए थे और उन कपड़ों पर काफी ज्यादा धूल जमा थी, मोहित ने जब एक कपड़ा हटाया तो तृषा और मोहित दोनों को खांसी आने लगी।
"अहम् अहम् ! मोहित तू काम कर रहा है या सफाई, वापस रख उसे कितनी धूल है" - तृषा खांसते हुए अपने दोनों हाथ मुंह पर रखती हुई बोली
"मतलब है तो यह भूत बंगला ही..." - मोहित थोड़ा सोचते हुए बोला
"क्या मतलब, अभी तो बोला ना भूत वूत नहीं होते हैं सब ड्रामा है और अब क्या भूत बंगला..." - तृषा बोरियत से बोली
"अरे यार! पूरी बात तो सुन पहले वह मतलब नहीं है मेरा, मैं तो इतना बोल रहा हूं रहता तो कोई नहीं होगा यहां, काफी समय से हालत देख कर ही पता चल रहा है तो फिर वह आदमी आखिर करने क्या यहां आया था, जिस की पुलिस को लाश मिली यहां से..." - मोहित अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाता हुआ बोला
"काश! वो आदमी जिंदा होता तो उस से ही जा कर पूछ आती मैं, तेरे इस सवाल का जवाब।" - तृषा उस की बात पर नाटकीय अंदाज में बोली
"जिंदा होता मतलब ओह हां, तृषा यू आर जीनियस! इस बारे में तो सोचा ही नहीं मैंने" - मोहित को तृषा की बात पर जैसे कोई बहुत ही अच्छा क्लू मिला हो या कोई आईडिया आया तो वह उसे शाबाशी देते हुए बोला
"जीनियस तो मैं हूं ही लेकिन अभी याद दिलाने की कोई वजह?" - तृषा थोड़ा सोचती हुई बोली
"ज्यादा उड़ने की जरूरत नहीं है, वह तो बस ऐसे ही बोल दिया मैंने क्योंकि मुझे एक बात समझ आई कि जरूरी नहीं है वह आदमी खुद यहां आया हो; हो सकता है कि मरने के बाद उस की लाश को यहां डाला गया हो। कोई भी जिंदा इंसान क्यों आएगा यहां जबकि इस जगह के बारे में यह अफवाह भी है कि यह प्लेस हांटेड है। " - मोहित सारी बातों पर गौर करता हुआ बोला
"हां, तो वह सिर्फ अफवाह भी तो हो सकती है ना और देख हम दोनों भी तो आए ना यहां और जो नहीं मानते कि कोई जगह हाॅन्टेड होती है वो लोग आ भी सकते हैं।।" - तृषा उस की बात पर बोली
"हां आ भी सकते हैं लेकिन कोई वजह भी तो होनी चाहिए ना जैसे कि हम दोनों के पास वजह है कि हमें तो छानबीन करनी है ना इस केस की पूरी जो कि यहां आए बिना नहीं हो सकती थी।" - मोहित ने जैसे तृषा को याद दिलाया और उसे पूरी बात समझाई।
"हां, तो अभी और कितनी देर चलेगी तेरी यह छानबीन, रोज़ी आंटी जाग गई और अगर उन्हें पता चल गया कि मैं अपने रूम में नहीं हूं, तो फिर वो वहां से निकाल ही देंगी मुझे, और फिर ना मैं तेरे ही फ्लैट में आ कर रहने लगूंगी।" - तृषा ने घड़ी की तरफ देखते हुए मोहित से कहा
"ओह हां, काफी टाइम हो गया ना, चल अब चलते हैं वापस क्योंकि तुझे नहीं झेल पाऊंगा मैं अपने फ्लैट पर।" - मोहित तृषा के सिर पर मारते हुए बोला
"दोबारा फिर से आना पड़ेगा ना यहां?" - वहां से बाहर निकलते हुए तृषा ने शक भरे लहजे में मोहित की तरफ देख कर बोला
"अभी तो बस शुरुआत है मेरी जान... पता नहीं कितने चक्कर और लगाने पड़ेंगे!" - मोहित बत्तीसी दिखाते हुए बोला और फिर वह दोनों उसी तरह कूद कर बाउंड्री वॉल से बाहर निकल गए और कुछ दूर पर खड़ी मोहित की बाइक से बैठ कर वापस अपने घर की तरफ आ गए।
******
एक बड़े से अंधेरे कमरे में, जहां पर सिर्फ नाम मात्र की रोशनी थी और बाकी पूरा कमरा अंधेरे में डूबा हुआ था, लेकिन कुछ लोगों के खड़े होने की परछाइयां फिर भी साफ नज़र आ रही थी और इस के साथ ही एक अजीब सा मनहूसियत भरा सन्नाटा पसरा था उस जगह पर, तभी एक आदमी तेज़ कदमों से चलते हुए उस कमरे के अंदर आया, बीच में पड़ी एक कुर्सी पर बैठते हुए अपने सामने खड़े गिने-चुने लोगों और साथ काम करने वालों पर गुस्से में चिल्लाता हुआ बोला - "एक काम ठीक से नहीं होता ना तुम लोगों से, जो करने बोला था वह भी अब तक नहीं हुआ ना।"
वह दिखने में ही उन सब का बाॅस लग रहा था जो कि किसी वजह से काफ़ी ज़्यादा गुस्से में लग रहा था।
क्रमशः
4
"लेकिन सर! हमने तो अपना काम कर दिया था ना ठीक तरह से और सब सही ही चल रहा है।" - उन में से एक थोड़ा डरते हुए बोला
"क्या, ठीक से हुआ था काम? ठीक से हो रहा होता तो यह हाल ना होता, जो कुछ हुआ है, इस का जवाब है तुम सब में से किसी के पास भी..." - वह आदमी गुर्राते हुए बोला
उस आदमी को इस तरह से गुर्राते और चिल्लाते देख कर अब उनमें से किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि उसकी बात पर कुछ बोलेगा उस आदमी को किसी भी तरह का कोई जवाब दें लेकिन फिर भी आखिरकार हिम्मत कर के एक अधेड़ व्यक्ति बोला - "तुम्हें भी पता है कि सब अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं और वैसे भी हम सब तो तुम्हारे साथी है इस तरह हम पर चिल्लाने से कुछ नहीं होने वाला, मैं तो कह रहा हूं कुछ दिनों के लिए यह सब रोक दो!"
उस व्यक्ति की बात सुन कर उस आदमी ने अपनी डरावनी लाल आंखें उठा कर एक नज़र गुस्से में उस आदमी को देखा लेकिन कुछ बोला नहीं, और थोड़ी सोच में पड़ गया शायद वह आदमी इस वक्त सही कह रहा था।
"बंद कर दें, इतने दिनों की जो हमारी मेहनत है वह सब ? नहीं पूरी तरह से बंद नहीं कर सकते हम, कुछ और सोचना पड़ेगा।" - वह आदमी गंभीरता से बोला
"तो फिर हमें पहले से ज्यादा होशियार रहना पड़ेगा और कुछ वक्त के लिए थोड़ा शांत भी" - उन में से एक आदमी सलाह देते हुए बोला
"हम्म् जैसे भी लेकिन मुझे अब बस काम की बात ही सुननी है और कोई बहाने नहीं।" - इतना बोल कर वो आदमी जिस तरह वहां पर आया था उसी तरस तेज़ कदमों से वहां से उठ कर भी चला गया।
उस के चले जाने के बाद बाकी लोगों ने जैसे राहत की सांस ली और फिर वह सब भी उठ उठ कर वहां से जाने लगे।
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पुलिस स्टेशन का एक सामान्य सा केबिन;
"ये इस महीने में तीसरी बार है, जब इस तरह से एक लाश उसी घर में या उस जगह के आस-पास के एरिया में मिली है। शहर में आखिर हो क्या रहा है कुछ खबर है भी तुम लोगों को या नहीं?" - कमिश्नर सत्यपाल सिंह, इंस्पेक्टर नीरज चौहान पर लगभग चिल्लाते हुए बोल रहे था और इंस्पेक्टर सर नीचे किए हुए चुपचाप उन की बातें सुन रहा था।
एक इंस्पेक्टर हो कर, आखिर कमिश्नर को वह बोल भी क्या सकता था, भले ही इन सब में नीरज की कोई गलती नहीं थी और वह अपनी तरफ से पूरी जी जान लगा कर कोशिश और इन्वेस्टीगेशन सब कुछ तो कर ही रहा था लेकिन फिर भी अब अगर खूनी इतना शातिर है और उस का कोई सबूत हाथ नहीं आ रहा तो इसमें भला नीरज की क्या गलती थी।
"हम अपना काम कर रहे हैं सर!" - नीरज के दो कदम पीछे खड़ा सब इंस्पेक्टर मयंक आखिर कार बोल पड़ा
"क्या कहा काम... इसे तुम काम कहते हो, अगर काम ठीक से ही हो रहा होता तो कम से कम कल एक और लाश नहीं मिली होती हमें!" - मयंक की बात सुन कर जैसे कमिश्नर का पारा और चढ़ गया और वह थोड़े और गुस्से में इस बार मयंक पर बरसता हुआ बोला
"सर वह एरिया बहुत ही ज्यादा सुनसान है शायद इसीलिए खूनी को इतनी आसानी हो रही है, वहां से बच कर निकल पाने में..." - इस बार नीरज सफाई देता हुआ बोला
"आह्हह... अब और बहाने नहीं सुनने हैं मुझे नीरज, तुम लोगों से अगर यह काम नहीं होता तो बोल दो मैं स्पेशल टीम को यह सब सौंप दूंगा और तुम लोग बस आराम करो पुलिस स्टेशन में बैठ कर और वही अपने हमेशा वाले पॉकेटमार और गली के गुंडे पकड़ो, बस उस से ज्यादा तो कुछ होना नहीं तुम लोगों से।" - कमिश्नर इस बार सीधा-सीधा तंजिया लहजे में बोला
"वी आर सॉरी सर! हमने आपको निराश किया लेकिन हमें बस एक और मौका दें, इस बार आप निराश नहीं होंगे।" - नीरज पूरे जोश के साथ बोला, (मन तो उस का काफी कुछ और भी बोलने को कर रहा था लेकिन उस ने जैसे तैसे अपने गुस्से को दबाया क्योंकि अपने ऊपर से यह नाकारा का इल्जाम हटाने के लिए यह एक और मौका तो उसे चाहिए ही था आखिर...)
"यस सर! हमें बस 10 दिन और चाहिए, कुछ ना कुछ तो जरूर बड़ा हाथ लगेगा ही हमारे, हम काफी करीब हैं अपने इन्वेस्टिगेशन में।" - पीछे खड़ा मयंक भी नीरज की हां में हां मिलाता हुआ बोला
"10 दिन नहीं एक हफ्ता देता हूं मैं तुम्हें 7 दिन है तुम दोनों के पास, प्रूफ करो खुद को या फिर छोड़ दो यह केस और बोल दो कि तुम लोगों से कुछ नहीं होता।" - कमिश्नर पूरी अकड़ के साथ बोला
"लेकिन सर 7 दिन तो...." - मयंक कुछ बोलने ही वाला था कि तभी नीरज ने उस की तरफ देख कर उसे चुप रहने का इशारा किया और खुद बीच में बोल पड़ा - "ठीक है सर 7 दिन भी बहुत है हमारे लिए, आप बस और एक बार विश्वास करिए। - नीरज अपनी बात रखते हुए बोला
"ओके देन मूव, क्योंकि तुम दोनों के सात दिन कल से नहीं बल्कि अभी से शुरू होते हैं और इन 7 दिनों में भी अगर तुम दोनों से कुछ नहीं हुआ तो तुम दोनों के ट्रांसफर लेटर के साथ मैं रेडी मिलूंगा तुम्हें अपने इसी केबिन में!" - कमिश्नर दूसरी तरफ अपना चेहरा फेरते हुए बोला और मयंक और नीरज दोनों ही कमिश्नर को सैल्यूट करते हुए और अपने गुस्से को दबाते हुए वहां से बाहर निकल आए।
"माना कि हम जूनियर हैं और वह हमारे सीनियर, लेकिन फिर भी यह कमिश्नर सर आखिर खुद को समझते क्या है?" - नीरज के सामने वाली चेयर पर उस के केबिन में बैठा हुआ मयंक गुस्से में बड़बड़ा रहा था।
"सवाल से पहले जवाब तो तूने खुद ही दे दिया मयंक! सीनियर है ना आखिर वैसे उन की भी गलती नहीं उन पर उन के सीनियर्स का प्रेशर रहता होगा।" - कुछ देर पहले तक नीरज खुद भी कमिश्नर सर के ऐसे धमकी भरे लहजे पर काफी गुस्सा था, लेकिन अभी शांत दिमाग से वह मयंक को समझाता हुआ वह बात बोल रहा था जो कि उस का खुद का दिमाग मानने को तैयार नहीं था।
क्रमशः
5
"इतना ही प्रेशर रहता है तो खुद क्यों नहीं कर लेते थोड़ा काम, जरूरी थोड़ी है किसी और का गुस्सा तुम भी किसी और पर ही निकालो।" - मयंक उसी तरह गुस्से में फिर से बोला
"छोड़ मयंक यह बातें, हम अगली बार से उन्हें मौका ही नहीं देंगे कि वह हमें कुछ भी बोल कर निकल पाएं, और यह केस तो मैं अब सॉल्व कर के ही दम लूंगा।" - नीरज अपनी टेबल पर पड़ी उन फाइल्स को उठाकर घूरते हुए बोला
"हां, सही कहा सर आपने पर्सनल हो गया है अब तो मैटर।" - मयंक भी उस की बात पर हामी भरते हुए बोला
"चलो फिर लगते हैं काम पर?" - नीरज ने मयंक की तरफ देखते हुए बोला
"अभी? लेकिन अभी तो रात के 1:00 बज रहे हैं सर! पहले ही इतना टाइम वेस्ट हो गया कल से शुरु करते हैं ना..." - मयंक घड़ी की तरफ देख कर अलसाई आवाज में बोला
"यही बस तुम्हारे इसी एटीट्यूड और इस आजकल के चक्कर में इतना सुनना पड़ा है हम दोनों को आज और अभी भी तुम कल से बोल रहे हो, ठीक है तुम जाओ मयंक में अकेला ही काम कर लूंगा।" - नीरज ने मयंक से साफ लफ़्ज़ों में कहा और खुद केस फाइल उठा कर फिर से रीड करने लगा।
"आई एम सॉरी सर! मैं कहीं नहीं जा रहा, लेकिन एक बात मेरी समझ नहीं आई बार-बार केस फाइल रीड करने से क्या होगा?" - मयंक कंफ्यूज सा बोला
"तार जोड़ने की कोशिश कर रहा हूं मयंक! आखिर इन तीनों में कुछ तो कॉमन मिलेगा ना..." - नीरज ने उसी तरह से केस फाइल में नजरें गड़ाए हुए मयंक की बात का जवाब दिया
"है ना सर एक चीज तो कॉमन है।" - मयंक नीरज की बात पर बोला
"क्या?" - ये सुन कर नीरज ने भी चौंक कर केस फाइल से अपनी नजरें हटाकर मयंक की तरफ देखते हुए इस तरह से पूछा जैसे कि उसे मयंक की बातों पर विश्वास ही ना हो कि आखिर मयंक को ऐसी कौन सी कॉमन चीजें मिल गई जिन पर नीरज की नज़रें अभी तक नहीं पड़ी।
"अरे सर वह अननोन फोन कॉल, जिस ने हमें कॉल करके इन तीनों लाशों के बारे में बताया, वह एक चीज तो कॉमन है ना इन तीनों में और उस के बाद ना तो नंबर का पता लगा और ना ही कॉल करने वाले का..." - मयंक बड़े ही गर्व से बोला हो जैसे कि उस ने कोई बहुत ही नई और अनोखी बात बताई जो कि नीरज को तुझ से अब तक पता ही नहीं थी।
"शट अप मयंक! उस फोन कॉल के बारे में मुझे भी पता है और मैं इन तीनों की मरने से पहले की कोई लिंक कनेक्ट करने की कोशिश कर रहा हूं और नंबर का पता भीलग गया था वह उसी घर के पुराने लैंडलाइन का नंबर था, जहां पर हमें यह तीसरी वाली लाश मिली और तीनों बार उस नंबर से ही कॉल आया था।" - नीरज लापरवाही से बोला जैसे कि इस बात से केस पर कोई भी फ़र्क नहीं पड़ता हो।
"लेकिन सर... उस तरह के लैंडलाइन फोन तो अब चलन में ही नहीं है ना और जो नंबर है मोबाइल कंपनी के अनुसार तो वह भी काफी सालों से बंद है तो कोई उस नंबर से अब भला कॉल कैसे कर सकता है? यह तो सोचने वाली बात है ना और फिर उस इंसान का भी पता नहीं लगा जिस ने हमें कॉल करके इन लाशों के बारे में खबर की।" - मयंक ने फिर से पॉइंट उठाया
तो इस बार नीरज भी थोड़ा सोच में पड़ गया, लेकिन मयंक के सामने उस की बात को तवज्जो दे कर वह उस के भाव नहीं बढ़ाना चाहता था इसलिए उस ने इस बात को भी खारिज करते हुए बोला - "तो उस नंबर का कोई और फोन होगा, या वो लैंडलाइन नंबर अब फिर से शुरू हो गया होगा इस वक्त और वह आदमी इन सब मामलों में नहीं पड़ना चाहता होगा इसलिए ही सामने नहीं आ रहा, अक्सर लोग ऐसा करते हैं। वह इतना इंपोर्टेंट नहीं है मयंक! हमें अभी केस पर ध्यान देना चाहिए।"
"अरे सर! बट मुझे तो लगा था कि इंपॉर्टेंट बात है यह आखिर कैसे तीनों बार एक ही नंबर से कॉल आया हमें और बिल्कुल सही जानकारी मिली हमें तीनों लाशों के बारे में हो सकता है या खूनी का ही काम हो।" - मयंक फिर से बोला
"हां, खूनी पागल यह सिरफिरा ही होगा फिर तो जो खुद खून करने के बाद फोन कॉल कर के हमें लाश की लोकेशन भी बताता है, अब तुम कुछ ज्यादा ही सोच रहे हो मयंक!" - नीरज को भी यह बात थोड़ी अटपटी लगी लेकिन खूनी खुद ही फोन काॅल कर के लाशों की जानकारी देगा इस बात में ज्यादा दम नहीं लगा नीरज को और फिर से वह मयंक कि इस फालतू बात को ज्यादा तूल नहीं देना चाहता था इसलिए उस ने उस के सामने ऐसा जाहिर किया कि इस बात में दम नहीं है।
"वैसे एक से एक सिरफिरे और साइको खूनी होते तो हैं लेकिन अब मुझे भी लग रहा है कि शायद मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा हूं सर! सीरियल किलिंग का केस तो नहीं है यह क्योंकि उन सीरियल कलर्स का तरीका भी काफी ज्यादा बेरहम होता है इंसान को मारने का..." - मयंक भी खुद ही अपनी बात से थोड़ा पीछे हटता हुआ बोला
"एक बार फिर से लोकेशन पर चलें क्या?" - नीरज अचानक ही बोल पड़ा
"लेकिन सर टीम के बाकी लोग कहां हैं इस वक्त..." - मयंक बोल ही रहा था कि नीरज ने उसे घूर कर देखा तो मयंक के बाकी शब्द उस के गले में अटक गए और उस का गला भी सूख गया, लेकिन फिर वह थूक निगल कर अपना गला तर करते हुए बोला - "आप का मतलब है सिर्फ हम दोनों? अरे नहीं, सर! मुझे नहीं लगता कि इस वक्त वहां जाना सेफ होगा। वैसे भी कितनी दूर है वह जगह यहां से और शहर से भी काफी दूर सुनसान वीराने में पड़ती है।"
"क्या बच्चों की तरह डर रहे हो, मयंक! मेरा 8 साल का भतीजा भी तुम से ज्यादा बहादुर है।" - डेस्क पर से अपना सामान समेटते हुए नीरज ने मयंक को ताना मारते हुए कहा
"मैं डर नहीं रहा हूं, सर! बस थोड़ा प्रैक्टिकल सोच रहा हूं, कोई भी मिल सकता है इस वक्त हमें वहां पर?" - मयंक उसी तरह डरे हुए अंदाज ने बोला
"कोई भी मतलब कि शायद खूनी भी..." - नीरज रोमांचित स्वर में बोला
क्रमशः
6
"अरे नहीं सर! आप ने सुना नहीं क्या भूत प्रेत भी हैं वहां पर ऐसा सब बोलते हैं और इसलिए ही तो शायद हमें अब तक कोई सबूत नहीं मिला क्योंकि हो सकता है वह सारे खून किसी इंसान ने नहीं बल्कि किसी...." - मयंक सब कुछ सोचता हुआ सा घबराहट में बोलता गया और उस के माथे पर पसीने की बूंदें भी उभर आई लेकिन नीरज पर जैसे उस की बातों का कोई फर्क नहीं पड़ा हो और उस ने बोरियत से एक जम्हाई ली और बोला - "इस से अच्छा तो तुम घर जा कर सो ही जाते मयंक! मुझे भी नींद आ रही है अब तो तुम्हारी बातों से..."
"अरे सर! मैं... मैं भी नहीं मानता भूत प्रेत में, लेकिन हमारे गांव में ना एक बार ऐसा हुआ था..." - मयंक फिर से कुछ बोलने को हुआ तो नीरज उसे डांट कर चुप कराता हुआ बोला - "तुम और तुम्हारे गांव के किस्से मयंक! चुप करो तुम, बस इतना बताओ मेरे साथ आ रहे हो अभी या नहीं?"
"जाने से पहले टीम को इन्फॉर्म कर देते हैं सर!" - मयंक अपनी सारी हिम्मत बटोर कर आखिरकार नीरज के साथ जाने के लिए तैयार होता हुआ बोला
"हां, ठीक है कर दो इनफॉर्म; लेकिन सिर्फ दो या तीन लोगों को ही करना, बाकी सब को इमरजेंसी होने पर ही इन्फॉर्म करने के लिए बोलना अदरवाइज नहीं..." - नीरज ने मयंक को पूरी बात समझाई
"ओके सर!" - बोलते हुए मयंक ने भी अपना कुछ सामान उठाया और दोनों आ कर जीप में बैठ गए मयंक जीप ड्राइव करने लगा और नीरज उस के बगल में बैठा कुछ सोच रहा था।
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"थैंक गॉड! रोज़ी आंटी एक बार भी चेक करने नहीं आई यहां पर..." - तृषा दबे पांव अपने कमरे के अंदर आती हुई बोली
"आई थी यार!" - तृषा की बात सुन कर उस की रूममेट आरती ब्लैंकेट से अपना चेहरा बाहर निकालती हुई बोली
वो एक सामान्य से दिखने वाले, दो मंजिला मकान का एक कमरा था जिस के एक कमरे में तृषा अपनी रूममेट आरती के साथ शेयरिंग रेंट पर रहती थी, रोज़ी आंटी उस घर की मालकिन थी।
उस कमरे में काफी कम सामान था, लेकिन जितना भी था काफी ढंग से और सलीके से रखा हुआ था और कमरे के बीच में दो सिंगल बेड पड़े हुए थे और उन में से एक बेड पर एक लड़की मुंह तक ब्लैंकेट ओढ़ कर लेटी हुई थी। तृषा की आवाज सुनकर उस लड़की ने ही जवाब दिया था। और दूसरा बेड जो कि शायद तृषा का था वह खाली ही था अब तक;
"ओ माय गॉड! फिर क्या हुआ, संभाल लिया ना तूने?" - तृषा दोनों हाथ अपने गालों पर रखती हुई बड़ी उम्मीद के साथ आरती की तरफ देखती हुई बोली
"हां, बोल दिया था कि तेरा पेट खराब है और तू बाथरूम में है।" - आरती ने उसे बताया
"थैंक गॉड यार! तू नहीं होती तो क्या होता मेरा?" - तृषा आगे बढ़कर आरती के गले लगती हुई बोली
"अब तक निकाली जा चुकी होती तो यहां से और क्या?" - आरती उस के गले लगी हुई मुस्कुराती हुई बोली
"ये मोहित का बच्चा है ना सब इस की वजह से ही होता है, उसे हमेशा हर जगह जाने का शौक शाम को सूरज ढलने के बाद ही चढ़ता है।" - तृषा अपने बेड पर बैठती हुई अपने हाथ से अपनी गर्दन और कंधे को दबाती हुई बोली
"हां, सब कुछ मोहित की वजह से ही तो है तेरी लाइफ में अच्छा भी और बुरा भी..." - आरती, तृषा की बात सुन कर बोरियत से बोली और वापस अपना चेहरा ढक कर अपने बेड पर लेट गई, लेकिन आरती की बात सुन कर तृषा के चेहरे पर एक प्यारी सी स्माइल आ गई, मोहित के नाम से लेकिन थोड़ी देर बाद ही वह स्माइल गायब हो गई और वह उस का ख्याल अपने दिमाग से झटकती हुई खुद से बोली - "सच में सारी प्रॉब्लम्स होती भी तो मोहित की वजह से ही हैं, अपनी वजह से तो मैंने कभी भी झूठ नहीं बोला!" और फिर वह भी बेड पर लेट जाती है और आंखें बंद कर के सोने की कोशिश करने लगती है, कुछ देर बाद तृषा को भी नींद आ जाती है।
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दूसरी तरफ मोहित अपने फ्लैट के एक डार्क रूम में कुछ कर रहा होता है और फिर वहां से निकल कर किचन में आ कर अपने लिए कॉफी बनाता है और उसे ले कर अपने कमरे में चला जाता है, उस का कमरा पूरी तरह से अस्त-व्यस्त और एक स्टोर रूम की तरह लगता है, लगभग हर तरफ से फैला और सामान बिखरा हुआ, कुछ बेड पर तो कुछ जमीन पर, वर्किंग डेस्क और स्टडी टेबल पर भी काफी सारा सामान फैला होता है।
इतना सब सामान बिखरा होने के बावजूद भी मोहित बेड पर आकर इस तरह से बैठ जाता है जैसे कि सारी चीजें अपनी जगह पर ही हो एकदम उस के हिसाब से जैसे कि उसे पसंद है या फिर उसे इन सब से कुछ फ़र्क ही ना पड़ता हो। रात के इस वक्त भी उसकी आंखों में नींद दूर दूर तक कहीं नजर नहीं आ रही थी।
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"देखा सर, आपने कुछ भी नहीं मिला हमें यहां पर, बेकार हुआ हमारा तो इतनी रात को यहां आना।" - मयंक पता नहीं निराश होते हुए बोला या फिर चैन की सांस लेते हुए और वो ना जाने क्या चीज नहीं मिलने की बात कर रहा था कोई सबूत या फिर कोई भूत?
"कुछ भी बेकार में नहीं होता, रिमेंबर दिस!" - नीरज मयंक की बात पर बोला
"लेकिन क्या फर्क पड़ता, अगर हम कल सुबह आ जाते तो..." - मयंक ने फिर से पूछा
"अभी कमिश्नर सर के सामने तो इतनी बड़ी बड़ी बातें बोल कर आए हो मयंक और अब जब काम करने का मौका आता है तो फिर से वही काम चोरी और बहाने ढूंढने लगते हो काम से बचने के...." - नीरज उसे जैसे ताना मार कर याद दिलाते हुए बोला
"अरे सर, कमिश्नर सर! ने क्या कम सुनाया है आज जो आप भी अब शुरू हो गए, और करता तो हूं मैं काम अपनी सैलरी से ज्यादा ही..." - ताना मारने पर मयंक मुंह बनाते हुए बोला
"हां, वह तो दिख ही रहा है तुम ही तो करते हो सारा काम; मैं तो बस घूमने टहलने आया हूं यहां।" - नीरज फिर से उसी व्यंगात्मक लहजे में बोला
लेकिन मयंक इस बार चुप ही रहा और चुपचाप नजरें घुमा कर घर के बाहर जहां पर वह लोग खड़े थे, उस तरफ काफी ध्यान से देखने लगा और कुछ ढूंढने की कोशिश करने लगा।
नीरज मयंक को ऐसे देख कर हल्के से मुस्कुराया और आगे की तरफ बढ़ने लगा, वह अंदर की तरफ ही बढ़ रहा था कि तभी नीरज की नज़र जमीन पर पड़ी हुई किसी चीज़ पर पड़ी तो वो उस तरफ ही बढ़ गया और उस ने झुक कर वो चीज जमीन से उठा ली और फिर उसे देख कर कुछ सोचने लगा।
क्रमशः
7
मोहित की आंख बस कुछ समय पहले लगी है थी कि उसके फ्लैट की डोर बेल बजी - "क्या हो गया, अब यह सुमित के बच्चे को... आज फिर से फ्लैट की कीज़ ले जाना भूल गया था क्या?"
डोर बेल की आवाज सुन कर मोहित आंखें मलते हुए बड़बड़ाता हुआ बेड से उठा और नींद में ही मेन गेट तक पहुंच कर उस ने दरवाजा खोला और ठीक से बिना देखे ही कि आखिर कौन है उस के दरवाजे पर, वह वापस मुड़ कर अंदर की तरफ आने लगा।
"अरे! ना हाय, ना हैलो, ना वेलकम... गुड मॉर्निंग तो बोल देता कम से कम? बिल्कुल मैनरलेस होता जा रहा है तु।" - पीछे से तृषा की आवाज सुन कर मोहित चौंक गया और रुक कर पीछे मुड़ा तो उस ने देखा कि सुमित नहीं, यह तो तृषा थी।
अब तक जो मोहित आधी नींद में था; अब उस की आंख लगभग पूरी तरह से खुल चुकी थी और वह तृषा की तरफ देखते हुए बोला - "पिंच मी! मैं सपना देख रहा हूं शायद..."
"शट अप मोहित! सपना नहीं है यह और तुझे कुछ बताना था और तू कॉल भी रिसीव नहीं कर रहा था इसलिए आना पड़ा..." - तृषा मोहित को अपने सामने से हटा कर साइड करती हुई फ्लैट के अंदर आई और तब जा कर मोहित को यकीन हुआ कि वह कोई सपना नहीं देख रहा है तृषा सचमुच वहां पर थी।
"लेकिन तू इतनी रात को यहां? अब नहीं पता चलेगा तेरी रोज़ी आंटी को..." - फ्लैट का मेन डोर बंद कर के मोहित तृषा के पीछे आता हुआ बोला
"मतलब तू जब तक सो रहा होता है, रात ही होती है क्या तब तक? आंखें खोल और ज़रा घड़ी की तरफ देख एक नज़र..." - मोहित का सवाल सुन कर तृषा उसे ताना मारती हुई बोली
"मतलब कि सुबह हो गई..." - बोलते हुए मोहित घड़ी की तरफ पलटा और वॉल क्लॉक में टाइम देखता हुआ कुछ बोलने ही वाला था कि तभी पीछे से आती हुई तृषा बोल पड़ी - "सुबह नहीं दोपहर बोल 11:30 बज रहे हैं।"
"अरे लेकिन मैं तो बस अभी काम खत्म कर के सोया था इतनी जल्दी 11:30 कैसे बज गए? घड़ी ख़राब हो गई है शायद..." - मोहित चकराया हुआ सा बोला
"घड़ी नहीं तेरा दिमाग खराब हो गया है शायद और अभी मतलब, कब सोया तु और पूरी रात काम कर रहा था क्या? तू ना पागल है मोहित या तो फिर हो जाएगा किसी दिन..." - तृषा मुंह बनाती हुई बोली
"अभी मतलब सुबह के 5:00 बजे, अभी थोड़ी देर पहले ही तो सोया था मैं।" - मोहित तृषा की बात का एकदम आराम से जवाब देता हुआ बोला
"यू आर इनसेन मोहित! तू और तेरे यह जासूसों वाले काम और आदतें भी सारी वैसी ही होती जा रही हैं।" - बोलते हुए तृषा अब तक मोहित के किचन में आ चुकी थी।
"हां, तो जिस में इंटरेस्ट है वैसी ही हरकतें करता हूं ना तू अपना देख कितनी कंफ्यूज रहती है। कभी बोलेगी यह करना है, कभी वह; एक चीज पर तो टिकती ही नहीं तु..." - मोहित उस के सामने खड़ा होता हुआ बोला
"ऐसा कुछ नहीं है मुझे बस जिस वक्त जो सही लगता है वह करती हूं। हां, इतनी ज्यादा पैशनेट नहीं हूं किसी चीज को लेकर तेरी तरह, लेकिन फिर भी कुछ ना कुछ तो करती ही रहती हूं ना..." - तृषा लापरवाही से बोली और अपने लिए कॉफी बनाने लगी।
"वैसे क्या इंपॉर्टेंट बताना था तुझे केस के लिए, कुछ बोल रही थी तू अंदर आते वक्त..." -; मोहित ने अब उस से सवाल किया
"हां यार! सब भूल जाती हूं मैं तेरे चक्कर में, दो बातें बतानी है सब से पहले तो यह कि इस केस के बारे में कुछ अलग पता चला है पुलिस को, पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स आने के बाद और दूसरी बात थोड़ी टेंशन वाली है..." - अपने लिए मग में कॉफी निकाल कर मोहित की तरफ आती हुई तृषा उस से नजरें चुराती हुई बोली
"वह तो तेरे बात करने के अंदाज से ही समझ आ रहा है मुझे अब बता क्या कांड कर दिया तूने बैठे-बिठाए?" - मोहित ने तृषा की तरफ शक भरी निगाहों से देखते हुए उस से पूछा
"मैंने कोई कांड वांड नहीं किया, इसलिए इस तरह तो मत ही देख तू मेरी तरफ, वह तो बस एक कंफ्यूजन है पक्का नहीं पता...." - तृषा मोहित को खुद की तरफ कैसे देखते हुए पा कर बोली
"अब सीधा सीधा बोलेगी कि क्या हुआ है या फिर इसी तरह बात को गोल गोल घुमाती रहेगी।" - मोहित ने फिर से पूछा
"यार मोहित! बात नहीं घुमा रही, वह तो मेरा ब्रेसलेट कहीं मिल नहीं रहा, पता नहीं कहां गुम हो गया?" - इस बार तृषा ने सीधा-सीधा जवाब दिया
"अब ब्रेसलेट नहीं मिल रहा तो इस में मैं क्या करूं, और वैसे कौन सा ब्रेसलेट?" - मोहित ने पहले तो लापरवाही से कहा लेकिन फिर शक भरी निगाहों से तृषा की तरफ देखते हुए पूछा
"यार वही ब्रेसलेट जो मैं हमेशा पहन कर रखती थी, वैसे तो अच्छा ही हुआ कि मेरा वह ब्रेसलेट गिर गया लेकिन कब और कहां गिरा ये मुझे भी याद नहीं आ रहा, शायद... उस मकान में... भी हो सकता है जहां हम कल रात गए थे?" - तृषा नज़रें नीची कर के कॉफी का एक सिप लेती हुई बोली
"यार तृषा क्या करती है तू? हाउ इरिस्पांसिबल यू आर! और ऊपर से पक्का भी नहीं पता तुझे, नहीं तो चलते आज रात ढूंढने वैसे एक बात बता, तूने यह क्यों बोला कि अच्छा हुआ गिर गया?" - मोहित तृषा पर गुस्सा होते हुए उसे डांट रहा था लेकिन फिर कुछ सोचते हुए बोला
"वह... वह बस ऐसे ही बोर हो गई थी उस से" - तृषा जबरदस्ती स्माइल करती हुई बोली
"बोर हो गई थी तो यह कोई तरीका होता है क्या? क्राइम लोकेशन पर अपना सामान छोड़ आओ!" - मोहित अब थोड़ा खीजता हुआ सा बोला
"अरे यार! मुझे क्या पता था, कब कहां गिर जाएगा, नहीं तो पहन कर ही ना रखती मैं?" - तृषा मासूम सा चेहरा बनाती हुई बोली
"हम्म् और पोस्टमार्टम रिपोर्ट वाली बात उस में क्या इंपॉर्टेंट है?" - मोहित ने कुछ सोचते हुए एक और सवाल किया
"अब सब मैं ही पता लगाऊं क्या? थोड़ा काम तू भी कर ले मिस्टर जासूस! बहुत ज्यादा शौक लगा है ना तुझे, डिटेक्टिव बनने का तो बस अपना दिमाग लगा और एक कॉपी हासिल कर पोस्टमार्टम ऑटोप्सी रिपोर्ट की!" - तृषा एक तरह से मोहित को चैलेंज करती हुई बोली
"हां, वह कर लूंगा मैं, वह बड़ी टेंशन नहीं है लेकिन मैं सोच रहा हूं कि पहले तेरा फैलाया हुआ रायता समेटते हैं।" - मोहित तृषा के हाथ से उस का कॉफी मग ले कर उस में से कॉफी पीते हुए बोला
"यार मोहित! मेरी कॉफी है, उस वक्त नहीं बोल सकता था क्या तेरे लिए भी बना देती..." - तृषा उस के ऐसा करने पर चिढ़ती हुई सी बोली
"नहीं, मुझे मज़ा आता है ऐसा करने में, तेरा यह रोतला सा चेहरा देख कर।" - मोहित हंसते हुए तृषा के चेहरे की तरफ देख कर बोला तो तृषा ने मुंह बना लिया
क्रमशः
8
"अच्छा, तो फिर अभी चलना है क्या?" - तृषा ने थोड़ी देर के बाद पूछा
"अरे नहीं, अभी मुझे और भी काम है और दिन में वहां जाना वैसे भी सेफ नहीं होगा किसी ना किसी की नज़रों में तो आ ही जाएंगे।" - मोहित मना करते हुए बोला
"तो मतलब है आज फिर रात को ही जाना होगा..." - तृषा कल रात का सोच कर थोड़ा डरे हुए चेहरे के साथ बोली
"तुझे डर लग रहा है तो रहने दे तू, मैं अकेला ही चला जाऊंगा।" - मोहित अंगड़ाई लेते हुए तृषा की तरफ देख कर बोलो
"मुझे कोई डर वर नहीं लगता, तू कॉल कर लेना मुझे रात में; जब भी चलना हो।" - तृषा एकदम नॉर्मल होती हुई बोली
"ओके, कर दूंगा कॉल!" - मोहित उस की बात सुनकर बोलना
"ओके, फिर मैं भी निकलती हूं, मुझे भी आज थोड़ा काम है दिन में..." - बोलती हुई तृषा अपना बैग उठा कर वहां से जाने लगी और मोहित बिना उसे बाय बोले वापस कमरे में आ कर कुछ सोचने लगा और फिर थोड़ी देर बाद उस ने किसी का नंबर डायल किया लेकिन दूसरी तरफ से किसी ने भी फोन नहीं उठाया तो उस ने फोन बेड पर रख दिया और वही मेज पर पड़े कुछ पन्ने अलट पलट कर देखने लगा।
"एक साथ तीन मर्डर और लाशें उसी घर के अंदर या बाहर मिली हैं मतलब सॉलिड कनेक्शन है उस घर से तो..." - मोहित सारे पहलुओं पर गौर करता हुआ बोला
"हम कुछ मदद करें क्या?" - बेड पर बैठे मोहित के हाथ से एक पेपर ले कर बेड पर उस के पीछे लेटता हुआ मोहित का फ्लैटमेट/फ्रेंड सुमित उस से बोला
"दरवाजा खुला ही था क्या?" - सुमित को ऐसे अचानक अपने पीछे आ कर लेटते हुए देख मोहित ने उस से पूछा
"मेरे पास भी फ्लैट की चाबियाँ होती है, रिमेंबर मिस्टर इंडियन शरलॉक होम्स!" - सुमित उठ कर बैठता हुआ मोहित से बोला
"हां, वह तृषा अभी थोड़ी देर पहले ही गई ना, तो मुझे लगा शायद डोर खुला ही रह गया होगा और मुझे बिल्कुल भी आहट नहीं लगी तेरे आने की इसलिए पूछा..." - मोहित सुमित के हाथ से वह पेपर वापस ले कर समेटकर एक फाइल में रखता हुआ बोला
"इतने ज्यादा बिजी रहोगे ऐसे मुर्दों में, तो क्या ही पता चलेगा तुम्हें किसी जिंदा इंसान के आने और जाने का?" - सुमित तंजिया लहज़े में मोहित के सवाल का जवाब देता हुआ बोला
"क्या यार सुमित! यह भी तो एक प्रोफेशन है, जॉब है और साथ में मेरा पैशन भी; लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों सारे लोग इस तरह से क्यों रियेक्ट करते हैं जैसे कि मैं कोई गलत काम कर रहा हूं या फिर कोई फालतू का काम।" - मोहित थोड़ा चिढ़ता हुआ सा बोला
"इतना भी ज्यादा नहीं डूब जाना चाहिए यार, किसी भी काम में कि खुद का और बाकी किसी का होश ना रहे, वैसे नज़र घुमाकर अपने कमरे की हालत देख यार एक बार, क्या बना रखा है यह तूने?" - सुमित मोहित को एहसास दिलाता हुआ बोला लेकिन मोहित ने उस की बात को गंभीरता से नहीं लिया और अपना सामान अपने बैग में रख कर कहीं जाने की तैयारी करने लगा।
"वह सब मैं कर लूंगा बाद में, अभी कहीं जाना है।" - बोलते हुए मोहित अपना मोबाइल फोन वही बेड पर छोड़ कर कमरे से बाहर निकला ही था कि उस का फोन रिंग हुआ और सुमित उस का फोन ले कर उस के पीछे कमरे से बाहर आया।
"तेरी ये मोबाइल भूलने की आदत भी यार! देख किस का कॉल है शायद इंपॉर्टेंट हो?" - बोलते हुए सुमित ने मोहित को उस का मोबाइल पकड़ाया और अपने कमरे में चला गया।
मोहित ने कॉल रिसीव की और बात करते-करते अपने फ्लैट से बाहर आ गया।
"चलो यह काम तो हो गया.... पोस्टमार्टम रिपोर्ट की एक कॉपी तो मिल जाएगी शाम तक लेकिन जब तक मैं तीनों मरने वालों की पर्सनल लाइफ में ताक झांक कर आता हूं थोड़ा।" - मोहित ने कॉल डिस्कनेक्ट कर के मोबाइल फोन अपनी जींस की जेब में रखते हुए कहा और अपने फ्लैट की लिफ्ट से ग्राउंड फ्लोर पर आ गया और फिर अपनी बाइक ले कर कहीं चला गया।
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"यार विशाखा, तूने तो बोला था कि मेरा सिलेक्शन हो गया है इस जॉब के लिए, फिर इतना वेट क्यों करना पड़ रहा है?" - तृषा अपने साथ बैठी एक लड़की से बोली
"यार हो गया है सिलेक्शन तभी तो तुझे कॉल आया था ना और थोड़ा सब्र रख, अभी बुलाया जाएगा तुझे भी" - विशाखा ने तृषा से कहा लेकिन तृषा कहां सब्र रखने वालों में से है वह उठ कर वहीं वेटिंग रूम में टहलने लगी और बार-बार मोबाइल में टाइम भी देख रही थी।
कुछ देर बाद गेट खोल कर किसी ने उस का नाम पुकारा तो वहां एक नज़र विशाखा की तरफ देख कर वहां से चली गई और उस के जाने के बाद विशाखा ने जैसे राहत की सांस ली।
कुछ देर बाद तृषा वापस दौड़ती हुई विशाखा की तरफ आई और खुशी से उस के गले लगती हुई बोली - "थैंक यू सो मच यार विशाखा! मैं ना सच में बोर हो गई थी अपनी पिछली रिसेप्शनिस्ट वाली जॉब से, अच्छा हुआ जो तूने मेरी यहां जॉब लगवा दी, कितना कुछ सीखने और नया करने को मिलेगा ना मुझे यहां पर!" तृषा एक्साइटिड होती हुई बोली तो विशाखा उस के चेहरे की तरफ देख कर सिर्फ मुस्कुरा रही थी और थोड़ी देर बाद बोली - "आखिर एक दोस्त ही तो दोस्त के काम आता है तूने भी तो मेरी कितनी फाइनेंशली हेल्प की थी जब मुझे जरूरत थी, तो आखिर मैं कैसे तेरे काम ना आती यार! और थैंक्यू की कोई जरूरत नहीं है, बस पार्टी दे दियो।"
"अरे पार्टी तो पक्का, कंफर्म! बोल कहां चलना है?" - तृषा विशाखा के कंधे पर हाथ रख कर चलती हुई उस ऑफिस से बाहर आती हुई बोली
"फिलहाल आइसक्रीम खिला दे बाकी बाद में.." - विशाखा ने भी फरमाइश कर दी और फिर दोनों एक साथ ही आइसक्रीम खाने चली गई आइसक्रीम खाते हुए तृषा ने विशाखा से पूछा - "वैसे तू यहां कब से काम कर रही है यार?"
"पिछले 6 महीनों से, क्यों क्या हुआ तू ऐसे क्यों पूछ रही है?" - विशाखा अपनी आइसक्रीम खाना रोककर तृषा के चेहरे पर देखती हुई बोली
"कुछ नहीं यार बस ऐसे ही जनरली, आइसक्रीम पर ध्यान दे यार तू देख ना... सारी पिघल गई।" - तृषा विशाखा का ध्यान आइसक्रीम पर करती हुई बोली तो विशाखा उसकी ऐसी बात पर हंसने लगी!
क्रमशः
9
दूसरी तरफ मोहित दिन में, जब अपने फ्लैट से निकला तो थोड़ी दूर पर आगे जा कर, उस की बाइक रुक गई और फिर स्टार्ट ही नहीं हो रही थी, तो उस ने गुस्से में अपनी बाइक पर एक लात मारा जिस से बाइक का तो कोई नुकसान नहीं हुआ लेकिन उस के ही पैर में चोट लग गई; तो वह बड़बड़ाता हुआ बोला - "एक तो इतनी मुश्किल से इस आदमी का एड्रेस मिला जो सब से पहले मरा था और अब यह बाइक नखरे दिखा रही है, महारानी!" भुनभुनाते हुए मोहित ने मैकेनिक को फोन किया और फिर अपनी बाइक वहीं छोड़ कर ऑटो करने के थोड़ा आगे बढ़ा ही था कि एकदम अचानक ही एक ब्लैक लग्जरी कार उस के सामने आ कर रुकी, उस कार पर काले शीशे चढ़े हुए थे और अंदर कौन है यह बाहर से देखने पर तो बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था लेकिन फिर वो ठिठक कर वहीं पर रुक गया।
मोहित इस तरह से अचानक अपने सामने उस कार के आकर रुकने से, ठिठक कर वहीं खड़ा हो गया और सोचने लगा यह कौन हो सकता है आखिर? क्योंकि उस कार की विंडो पर काले शीशे चढ़े हुए थे और अंदर कौन है? ये मोहित को बाहर से तो बिलकुल भी नज़र नहीं आ रहा था।
तभी उस कार की विंडो के शीशे नीचे होने लगे लगे और मोहित को नज़र आया, उस कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा हुआ एक आदमी, जो की अपने ड्रेसिंग से तो उस कार का मालिक ही लग रहा था। और वो आदमी अपनी कार में अकेला था और मोहित भी शायद उसे पहली बार ही देख रहा था।
"कहीं जाना है तो मैं ड्राॅप कर सकता हूं, वैसे भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट इतनी आसानी से नहीं मिलेगा आप को इस जगह पर" - अंदर गाड़ी में बैठे उस लगभग 30 - 35 साल के आदमी ने काफी विनम्रता से कहा तो मोहित चाह कर भी मना नहीं कर पाया क्योंकि उसे भी जल्दी से कही पहुंचना था और सच में उस आदमी की कहे अनुसार उसे वहां उस सड़क पर काफी कम ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट नज़र आ रहा था।
इसलिए अपनी ज़रूरत और मौके का फायदा उठाते हुए मोहित उस आदमी का ऑफर मान कर; उस के साथ ही उस के बगल वाली सीट पर बैठ गया।
"थैंक यू सो मच सर! आपने मेरी मदद की...वैसे आप हैं कौन?" - मोहित ने अपने सवाल शुरू ही किए थे कि उस आदमी की तरफ एक नज़र उठाकर उसे इस तरह से देखा कि जैसे वह इशारे से मोहित को कोई सवाल ना करने को बोल रहा था।
"इट्स ओके, अगर आप नहीं बताना चाहते तो..." - बोल कर मोहित ने उस आदमी को पूरा ऊपर से नीचे तक एक बार अपनी डिटेक्टिव वाली नजरों से निहारा।
फॉर्मल ब्लैक 3 पीस सूट पहने वह सामान्य से चेहरे, मगर अट्रैक्टिव पर्सनैलिटी वाला व्यक्ति मोहित को कोई अमीर बिजनेसमैन या किसी कंपनी का मालिक लगा और सीधी तरह से देखा जाए, तो अब तक गलत तो उस में कुछ भी नहीं लग रहा था उस वक्त और ऊपर से वह आदमी मोहित की मदद ही तो कर रहा था इसलिए मोहित भी कुछ नहीं बोला और फिर थोड़ी देर बाद एक जगह पर उस आदमी ने गाड़ी रोक दी और बोला - "कहां जाना है आप को, यह तो बताया ही नहीं आपने?"
"लेकिन फिर भी सही जगह ही पहुंचा दिया आपने!" - मोहित खिड़की से बाहर झांक कर जगह का जायज़ा लेते हुए बोला
"ओ अच्छा! मुझे भी इस तरफ ही जाना है लेकिन यहां से थोड़ा और आगे..." - वह आदमी एकदम सपाट लहजे में बोला उसके चेहरे पर कोई भी भाव नहीं थे।
"ठीक है, फिर आप मुझे यही ड्रॉप कर दीजिए, यहां से आगे मैं पैदल ही चला जाऊंगा एंड थैंक यू फॉर योर हेल्प मिस्टर...." - बोलते हुए मोहित ने उस आदमी से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे किया लेकिन उस आदमी ने आगे बढ़ाकर मोहित से हाथ नहीं मिलाया और दोनों हाथ उसी तरह से स्टेरिंग पर रखे हुए बोला - " नमन आहूजा! मेरा नाम एंड नाइस टू मीट यू मिस्टर..." - अपना नाम बताने के बाद वह आदमी भी रुक गया जैसे कि मोहित का नाम जानना चाह रहा हो।
"मेरा नाम मोहित है।" - मोहित कार से उतरते हुए बोला और फिर से उस ने एक नज़र पूरी कार और उस आदमी पर डाली लेकिन मोहित के कार से उतरने के बाद, वह आदमी और उस की कार दोनों ही वहां पर रुके नहीं और सीधे वहां से चले गए।
मोहित भी उस कार को वहां खुद से दूर जाते हुए बिना पलक झपकाए, तब तक देखता रहा जब तक कि वह कार उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई।
"अजीब सा बंदा था, लेकिन काम आया मौके पर और मदद भी की..." - उस आदमी के बारे में सोचते हुए मोहित रास्ते पर चल रहा था और फिर कुछ ही देर में हो उस घर तक पहुंच भी गया जहां का पता उसे बड़ी मुश्किल से मिला था।
****************
तृषा विशाखा के साथ टैक्सी में बैठ कर अपने पीजी की तरफ लौट रही थी कि तभी उस का मोबाइल फोन रिंग हुआ और उस ने देखा तो मोहित का कॉल था, तृषा ने कॉल रिसीव की और बोली - "हां बोल, क्या हुआ?"
"अभी कहां है तू?" - मोहित ने पूछा
"रास्ते में हूं, वापस घर जा रही हूं।" - तृषा ने जवाब दिया
"तेरे घर से पहले जो मेन रोड है, वहां उतर जाना मैं तेरा वेट कर रहा हूं वही" - मोहित ने जल्दी से बोला
"लेकिन अब इस वक्त कहां जाना है?" - तृषा ने मोहित से पूछा
"अरे पहले मिल तो फिर बताता हूं।" - मोहित ने बोला और बिना तृषा का जवाब सुने ही कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।
"मोहित का कॉल था?" - विशाखा ने तृषा की तरफ देख कर पूछा
"हां और अब तू अकेली ही जा अपने घर, मुझे बुलाया है उस ने" - तृषा रोड आते ही टैक्सी रुकवाती हुई बोली
"ओके, ध्यान से जाना..." - बोलते हुए विशाखा ने तृषा को साइड हग किया और फिर तृषा टैक्सी से उतर गई।
वो एकदम सुनसान सी दिखने वाली सड़क थी और रात के लगभग 9:00 बज रहे होंगे, इक्का-दुक्का गाड़ियां नजर तो आ रही थी लेकिन काफी तेज़ स्पीड में आती जाती हुई।
और तृषा वहां उतर कर चारों तरफ नजरें घुमा कर मोहित को ढूंढने लगी। लेकिन मोहित उसे वहां पर कहीं भी नजर नहीं आया तो वो खुद में ही बड़बड़ाती हुई बोली - "कहां रह गया ये मोहित का बच्चा, मुझे बुला कर खुद गायब!"
"हेलो मिस!" - पीछे से किसी आदमी की आवाज सुन कर त्रिशा पलटी तो उसने देखा उसके सामने एक लगभग 30 - 32 की उम्र का आदमी अपनी जींस की जेब में हाथ डाले हुए खड़ा है और तृषा को इस तरह से देख रहा था जैसे कि उस ने कोई गुनाह कर दिया हो इस जगह पर आ कर...
क्रमशः
10
"जी... आप कौन?" - तृषा अपने सामने खड़े उस आदमी को देख कर थोड़ा हकबकाती हुई बोली क्योंकि उसे इस वक्त मोहित के अलावा किसी और के इस जगह पर मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी, तो फिर यह आदमी ऐसे अचानक यहां कैसे?
"यही तो मैं आप से पूछ रहा हूं कि आप इस वक्त यहां क्या कर रही हैं? इट्स नॉट सेफ!" - उस आदमी ने एक तरह से तृषा को वाॅर्न करने वाले लहजे से बोला
उस की बात पर तृषा ने उसे एक नज़र ऊपर से नीचे तक घूरा और पूरी तरह से नोटिस करने लगी। नॉर्मल कपड़े पहने, नॉर्मल सा दिखने वाला वह अच्छी कद काठी वाला आदमी, तृषा को किसी भी तरह से अपने लिए कोई खतरा तो बिल्कुल भी नहीं लग रहा था, लेकिन उस का इस तरह से फिक्र करना भी तृषा को खटक रहा था।
क्योंकि आखिर कितने लोग होते हैं आजकल, जो इस तरह रास्ते पर खड़ी लड़की को देख कर उसे सावधान करने के लिए चले आते हैं।
"एक्चुचली मैं.. अपने फ्रेंड का वेट कर रही हूं यहां पर!" - तृषा ने जबरदस्ती स्माइल करते हुए उस आदमी से कहा
"ओके बट फिर भी, जिस तरह से मर्डर्स हो रहे हैं आजकल इस शहर में, बस इसलिए ही मैंने बोला कि इट्स नॉट सेफ, ऐसे रात को इस तरह सड़क पर अकेले खड़े होना।" - वह आदमी एक तरह से अपनी सफाई देते हुए बोला
"थैंक्स फॉर योर कंसर्न! पर मैं अपना ख्याल रख सकती हूं और वैसे इस वक्त अकेले यहां आप भी तो हैं, आप को भी सावधान रहना चाहिए।" - तृषा उस आदमी से लगभग चिढ़कर बोली क्योंकि उसे इस तरह दूसरों की लाइफ में दखल देने वाले लोग बिल्कुल पसंद नहीं आते थे।
"हां, सही कह रही हैं आप; मैं तो बस जा ही रहा था।" - बोलते हुए उस आदमी ने अपने हाथ पीछे बंधे और मेन रोड से ऑपोजिट सड़क के किनारे की तरफ जाने लगा।
तृषा के मन में एक बार को आया कि उस आदमी से पूछ ले कि जब रास्ता इधर है, तो वह उधर दूसरी तरफ भला क्या करने जा रहा है लेकिन फिर तृषा ने अपने मन से इस खयाल को झटका और मन में बोली - "उसे क्या करना चाहे कहीं भी जाए क्या पता, उधर ही रहता हूं।"
लेकिन तृषा उस जाते हुए आदमी की बैक को भी घूर घूर कर ही देख रही थी जब तक कि वह आदमी तृषा से दूर जाता हुआ, रात के अंधेरे में कहीं गुम नहीं हो गया।
"उधर क्या देख रही है तु मैं इधर हूं यार!" - तृषा को अपने पीछे से अब एक जानी पहचानी सी आवाज आई तो वो पीछे मुड़ कर मोहित को घूरती हुई बोली - "इडियट कहीं के, कहां गायब हो जाते हो मुझे बुला कर; पता है कब से वेट कर रही हूं।" और फिर वह आगे बढ़ कर उसे मारने लगती हैं शिकायत वाला...
"अरे.. अरे बस कर यार!" - मोहित तृषा के दोनों हाथ पकड़ते हुए बोला
"सच में कितना सुनसान रास्ता है और ऊपर से अकेली खड़ी हूं मैं यहां कब से और फिर वह अजीब सा आदमी आ गया था।" - तृषा शिकायती लहजे में मोहित से बोली
"ओ माय गॉड! जिंदा तो बच गया ना वो बेचारा आदमी, अब इतनी रात गए, चुड़ैल के पल्ले पड़ जाए तो क्या पता? क्या हो उस के साथ...." - मोहित तृषा की शिकायत सुन कर उस का ही मजाक उड़ाते हुए बोला
"वह तो बच गया, लेकिन तू नहीं बचेगा आज मोहित के बच्चे.." - तृषा फिर से उसे मारती हुई बोली
"अरे मेरे बच्चे ने क्या किया अब वह तो बेचारा पैदा भी नहीं हुआ अब तक..." - मोहित ने फिर से तृषा का हाथ पकड़ते हुए कहा
"मेरा मज़ाक बनाने के लिए मुझे यहां बुलाया है, या फिर परेशान करने के लिए, इस से अच्छा तो मैं अपने रूम पर जा कर रेस्ट ही कर लेती, पता है कितना थक गई हूं आज।" - तृषा मुंह बनाती हुई बोली
"अरे नहीं, बुलाया तो काम के लिए था लेकिन तु है ना बहुत टाइम वेस्ट करती है मेरा..." - मोहित सारा इल्जाम तृषा पर लगाता हुआ बोला
"खुद पता नहीं कहां गायब थे जनाब, मुझे बुला कर और अब सारा इल्ज़ाम भी मुझ पर ही लगा रहे हैं।" - तृषा मोहित की तरफ नाराज़गी से देखती हुई बोली
"अरे यार यही था बस.... थोड़ा सा हल्का होने गया था साइड में...." - मोहित अपनी छोटी उंगली दिखाते हुए बोला
"ओह अच्छा, अब काम बता, क्या था?" - तृषा ने सीधे लफ्जों में पूछा
"काम? हां.. चल वहीं, उसी घर तक फिर चलना है हमें आज रात, तेरा ब्रेसलेट ढूंढने!" - मोहित तृषा के कंधे पर हाथ रखता हुआ बोला
"सिर्फ ब्रेसलेट ढूंढने? छोड़ ना वो इतना इंपॉर्टेंट नहीं है और ये ज़रूरी भी नहीं है कि वही उस घर में गिरा हो?" - तृषा मोहित के मज़ाक पर सोचते हुए एकदम गंभीरता से बोली तो मोहित ने अपना सिर पीट लिया।
"क्या हुआ अब तुझे? मैं तो बस...." - तृषा ने मोहित की तरफ देख कर कहा
"और भी काम है मुझे इडियट, तेरे ब्रेसलेट की तो?" - मोहित बोलते बोलते रुक गया।
"तूने ही तो कहा था अभी कि...." - तृषा फिर से कुछ बोलने को हुई
"इन्वेस्टिगेशन के लिए चलना है मेरी मां, मर्डर केस याद है ना?" - मोहित ने जैसे उसे याद दिलाते हुए कहा
"हां याद तो है लेकिन क्या पैदल चलेंगे, तेरी बाइक कहां है?" - तृषा मोहित के आगे पीछे उस की बाइक ढूंढती हुई बोली
"बाइक तो धोखा दे गई आज, दिन में ही।" - मोहित ने तृषा के सवाल का जवाब देते हुए कहा
"तो फिर कहीं, सच में पैदल ही चलने का इरादा तो नहीं है ना तेरा, यार मोहित! काफी दूर है वह जगह यहां से भी...." - परेशान सी शक्ल बनाते हुए तृषा ने जैसे उसे याद दिलाया तो उस की ऐसी शक्ल देख कर मोहित हंसते हुए बोला - "पहले तो नहीं सोचा था लेकिन अब सोचता हूं पैदल ही चलते हैं, कल सुबह तक तो बहुत पहुंच ही जाएंगे ना।"
"कोई मजाक करने का वक्त है ये?" - तृषा ने मुंह बनाते हुए मोहित को घूर कर देखते हुए कहा तभी उन दोनों के सामने एक कैब आ कर रुकी और मोहित ने उस तरफ इशारा किया।
"पहले नहीं बता सकता था कि कैब बुक कर दी है, ऑलरेडी।" - तृषा ने मोहित की तरफ देख कर शिकायती लहजे में कहा
"चल अब बैठ जल्दी, पागल नहीं हूं मैं, जो पैदल जाऊंगा इतनी दूर।" - मोहित कैब में बैठता हुआ बोला और तृषा भी उस के साथ ही बैठ गई।
"एक बात बता यार, इतना क्या इंटरेस्ट ले रहा है तू इस केस में? पुलिस इन्वेस्टिगेशन तो चल ही रही है ना।" - तृषा ने कैब में बैठे हुए मोहित से पूछा
"काम है यार! करना तो पड़ेगा ही..." - मोहित लापरवाही से बोला
"इस का मतलब किसी ने तुझे हायर किया है इस केस के लिए? है ना!" - तृषा मोहित की तरफ देख कर काफी कुछ समझती हुई बोली
"ओह! मैंने बताया नहीं था क्या यह बात तुझे अब तक?" - मोहित नासमझी के आलम में बोल गया तो इस पर तृषा उसे अपनी आंखें छोटी करके घूर कर देखने लगी।
"अरे चिल यार! भूल गया था और इतना काम होता है टेंशन में नहीं याद रहता!" - मोहित तृषा के इस तरह देखने पर सफाई देते हुए बोला
"हां... हां... फालतू लोगों को बताना तो भूल ही जाते हैं लोग, तो तुझे भी क्यों याद रहेगा!" - तृषा ने नाराज़गी वाले लहजे में कहा
"अरे यार! क्या तू भी बीवियों की तरह शिकायत कर रही है, मुझे ये क्यों नहीं बताया, मुझे वो क्यों नहीं बताया, बोला ना भूल गया था।" - मोहित, तृषा के सवालों पर थोड़ा खीजता हुआ बोला
इसलिए तृषा भी इस बार कुछ नहीं बोली और चुपचाप मुंह फुला कर सारे रास्ते बैठी रही। मोहित ने एक दो बार उस से बात करने की कोशिश भी की तो भी तृषा ने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप ही दूसरी तरफ नज़रें फेर कर बैठी रही।
थोड़ी देर बाद, वह लोग उसी घर के सामने पहुंच गए और मोहित कैब से निकल कर अंदर झांकते हुए बोला - "बाहर निकलने का इरादा है या फिर आगे ही चली जाओगी कहीं और कैब वाले भैया के साथ"
मोहित की यह बात सुन कर कैब ड्राइवर भी हंसने लगा और मोहित को घूरती हुई तृषा भी, बिना कुछ बोले ही कैब से बाहर निकल आई और तेज़ कदमों से मोहित से आगे आगे चलने लगी।
"क्या यार तृषा! अब बस भी कर, ख़त्म कर अपनी नाराज़गी, अब मैं काम करूं या फिर तुझे मनाऊं यहां बैठ कर?" - मोहित भी भाग कर उस के पीछे आता हुआ थोड़ी तेज़ आवाज़ में बोला
लेकिन तभी तृषा जल्दी से भाग कर वापस मोहित की तरफ आई और उस के मुंह पर हाथ रख कर उस की आंखों में ही देखने लगी।
क्रमशः
11
मोहित को तृषा के ऐसा कुछ करने की उम्मीद नहीं थी, इसलिए वह हैरानी से तृषा की तरफ देखता हुआ शायद कुछ बोलना चाह रहा था, लेकिन तृषा का हाथ उस के मुंह पर ही था इसलिए बोल नहीं पाया फिर उस ने इशारे से तृषा को हाथ हटाने के लिए कहा , तो तृषा ने उसे चुप रहने का इशारा किया और हाथ पकड़ कर एक साइड पर पेड़ के पीछे ले कर चली गई, जहां से वो दोनों आसानी से किसी को भी नज़र ना आए।
"अब ये सब क्या है तृषा, अभी तक तो नाराज़ थी और अब अचानक से मूड बदल गया इतनी ज्यादा रोमांटिक...." - मोहित तृषा की आंखों में देखते हुए शरारत वाले अंदाज में बोला
"शट अप यार! जब देखो तब मस्ती मजाक, सीरियस ले लिया कर कभी तो मुझे..." - तृषा उस की बांह पर मारती हुई बोली
"क्या मतलब? तू सीरियस है मुझे ले कर, प्रपोज व्रपोज तो नहीं करने वाली ना ऐसे कोने में ला कर।" - मोहित अपने मुंह पर हाथ रख कर शाॅक्ड होने की एक्टिंग करता हुआ बोला
"चुप एकदम चुप, अब कोई और बकवास नहीं और मेरी बात सुनो, वहां पर कोई और भी है और तुम इतनी तेज़ बोल रहे थे उन का ध्यान हमारी तरफ हो जाता और हमें पता भी ना चल पाता कि कौन है वह लोग? बस इसलिए तुम्हें चुप कराने के लिए ऐसा किया मैंने।" - तृषा मोहित को घूरते हुए उसे पूरी बात बताती हुई बोली
"ओह थैंक गॉड! उन लोगों से छिपने के लिए किया तुम ने यह सब मुझे तो लगा कि..." - मोहित आगे और भी कुछ बोलने वाला था लेकिन जब उस ने तृषा को खुद की तरफ घूरते हुए पाया तो चुप हो गया और सीरियस भी।
"अच्छा कहां पर दिखें, तुम्हें वह लोग और चेहरा देखा क्या तुम ने किसी का?" - मोहित ने फुसफुसाते हुए धीरे से तृषा के कान में पूछा
"वो उस तरफ तो लोग अंदर की तरफ हैं, चेहरा तो नहीं देख पाई मैं लेकिन परछाई देखी और आवाज भी सुनी, एक से ज्यादा लोग हैं शायद" - तृषा ने उंगली से इशारा करते हुए मोहित को बताया
"चल आगे चल कर देखते हैं, शायद पुलिस वाले हों, यहां ऐसे छिपे रहने से तो कुछ नहीं होगा।" - मोहित ने तृषा से कहा तो तृषा ने भी हां मेंअपना सिर हिलाया लेकिन उस के चेहरे पर चिंता की लकीरें भी साफ दिख रही थी और माथे पर उभरी पसीने की बूंदे भी...
कुछ दूर आगे चल कर तृषा मोहित का हाथ कस कर पकड़ती हुई बोली - "पुलिस के अलावा , खतरनाक लोग हुए या फिर वही जिन्होंने मर्डर किए हैं तो?"
"तो अच्छी बात है ना उन्हीं को तो ढूंढ रहे हैं इतने वक्त से" - मोहित एकदम बेपरवाही से बोला और आगे बढ़ता रहा, लेकिन फिर उस ने पीछे मुड़ कर तृषा के चेहरे की तरफ देखा तो वह उसे काफी परेशान और घबराई हुई लगी।
"वैसे भूत तो नहीं देखा ना तूने, क्योंकि ज्यादातर लोगों के हिसाब से तो भूतों ने ही किए हैं ना यह मर्डर।" - तृषा का ध्यान भटकाने के लिए मोहित ने यह बात बोली
"कोई भूत प्रेत नहीं होता है, तू ना फालतू मुझे डराने की कोशिश मत किया कर।" - तृषा उस की बात पर बोली और अब तक वह दोनों उस घर की बाउंड्री वॉल के उस हिस्से तक पहुंच चुके थे, जहां से बाउंड्री वॉल काफी ज्यादा टूटी हुई थी और वहां से झांक कर देखने पर कोई भी और दिखाई भी नहीं दे रहा था।
ज्यादा ऊंची नहीं थी उस तरफ की बाउंड्री वॉल, इसलिए वह दोनों आसानी से कूदकर उस घर के अहाते में आ गए।
"यहां पर तो कोई भी नहीं है, किस तरफ देखा था तूने?" - मोहित चारों तरफ नज़र घुमाता हुआ बोला
"हो सकता है चले गए हो या फिर हमें देख कर छिप गए हो?" - तृषा को भी जब वहां पर उन दोनों के अलावा कोई और दिखाई नहीं दिया तो वह भी थोड़ा सोचती हुई बोली
"चल छोड़! हम जो करने आए थे वो करते हैं।" - मोहित ने कहा और घर के दरवाजे की तरफ बढ़ने लगा, लेकिन तभी उस की नज़र जमीन में मिट्टी पर बने 2 जोड़ी पैरों के निशानों पर पड़ी, जो कि घर के अंदर की तरफ ही था रहे थे।
मोहित ने इशारे से वह पैरों के निशान तृषा को भी दिखाएं और उसे चुप रहने का इशारा करते हुए, वो दोनों दबे पांव पैर के निशानों का पीछा करने लगे।
वहां जमीन में मिट्टी से बने पैरों के निशान का पीछा करते हुए, मोहित और तृषा घर के दरवाजे के पास पहुंचे ही थे कि एक लड़की चिल्ला कर भागती हुई उन दोनों की तरफ आई और मोहित से टकरा गई, उस के पीछे एक लड़का भी था, वह भी लगभग उस लड़की की तरह ही डरा सहमा हुआ लग रहा था लेकिन उस से थोड़ा कम...
मोहित ने उस लड़की को संभाल कर खड़ा करते हुए, उस के दोनों कंधों को कसकर पकड़ लिया था और उसे शांत कराते हुए बोला - "रिलैक्स! क्या हुआ... क्या हुआ आप को और आप यहां क्या कर रही हैं?"
तृषा भी उन दोनों को अजीब नज़रों से ही घूर कर ऊपर से नीचे तक देख रही थी, लड़की के साथ ही उस लड़के के चेहरे पर भी पसीना था और साफ पता चल रहा था कि डर और घबराहट की वजह से, उन दोनों की सांसें भी तेज़ चल रही थी।
"वो... वो... अंदर वहां पर कुछ था... हां.. वहां पर था बहुत ही अजीब सा..." - वो लड़की उसी तरह से घबराती हुई सी बोली लेकिन वो लड़का अभी भी चुप था, उस के मुंह से एक लफ्ज़ भी नहीं निकला तो तृषा ने उस लड़के की तरफ देख कर कहा - "तुम गूंगे हो क्या या फिर सदमे से आवाज नहीं निकल रही ऐसा क्या देखा, बताओ तो कुछ!"
"पानी... पानी मिलेगा क्या?" - अपने माथे पर आए पसीने की बूंदों को अपने हाथों से पोंछता हुआ वह लड़का तृषा की तरफ देख कर अपनी बेतरतीब सांसो को सामान्य करते हुए बड़ी मुश्किल से सिर्फ इतना ही बोल पाया।
इस पर तृषा ने एक नज़र मोहित की तरफ देखा और फिर मोहित में जब अपनै पलकें झपका कर "हां" में इशारा किया तो तृषा ने अपने बैग से पानी की बोतल निकाल कर, उस लड़के की तरफ बढ़ा दी और फिर थोड़ा पानी पीने के बाद लड़के ने बोतल तृषा को वापस की तो तृषा ने पानी की बोतल उस लड़की की तरफ बढ़ा दी और फिर उस लड़की ने बड़ी मुश्किल से सिर्फ दो घूंट पानी पिया, वह शायद अभी तक नॉर्मल नहीं हो पाई थी।
क्रमशः
12
"चलिए यहां से, यहां इस वक्त आना बिल्कुल भी सेफ नहीं है।" - वो लड़का आगे की तरफ बढ़ता हुआ बोला तो लड़की भी उस अपने साथ वाले लड़के के पीछे ही आने लगी और मोहित और तृषा को अभी भी सही से कुछ समझ नहीं आया था, इसलिए उन दोनों को भी उन दोनों के पीछे ही आना पड़ा।
"1 मिनट, रुको तुम दोनों..." - मोहित उन के पीछे आता हुआ बोला
"हमारे सवालों के जवाब तो दो पहले..." - तृषा जल्दी से उन के सामने आ कर उन का रास्ता रोकती हुई बोली
"क्या जानना है?" - उस लड़की ने तृषा की तरफ देखते हुए कहा, अब वो पहले से काफी सामान्य लग रही थी।
"अब नाम, पता, उम्र और परिवार के बारे में तो पूछेंगे नहीं ना ऐसी सिचुएशन में? क्योंकि शादी तो करनी नहीं आप से मैडम जी हमें।" - मोहित हमेशा की तरह अपने व्यंगात्मक अंदाज में बोला तो तृषा ने उसे लगभग खा जाने वाली नजरों से घूर कर देखा।
"कौन हो तुम दोनों और यहां पर क्या कर रहे थे?" - तृषा ने आखिरकार उन दोनों से सीधे लफ्जों में पूछ ही लिया।
"और हम दोनों तुम्हें यह क्यों बताएं?" - उस लड़की के साथ खड़ा लड़का थोड़े तेढ़े स्वर में बोला
"ठीक है मत बताओ हमें, मैं पुलिस को कॉल लगाती हूं पुलिस को ही बताना सीधे।" - तृषा अपना मोबाइल निकालते हुए बोली
"पुलिस आएगी तो तुम लोगों से भी तो सवाल जवाब करेगी!" - वह लड़की काफी समझदारी से बात संभालती हुई बोली तो तृषख ने अपने नंबर डायल करते हुए हाथ रोक लिए और पहले तृषा ने उस लड़की की तरफ देखा और फिर मोहित की तरफ देखने लगी।
"वैसे आप की जानकारी के लिए बता दूं मैडम, कि हम कुछ गलत नहीं कर रहे थे यहां; इसलिए हमें पुलिस का कोई डर नहीं है।" - मोहित पूरे कॉन्फिडेंस के साथ बोला
"गलत तो कुछ हज्ञ भी नहीं कर रहे थे, बस केस बारे में थोड़ी छानबीन।" - उस लड़के ने मोहित से कहा
"हो कौन तुम दोनों?" - तृषा ने फिर से सवाल किया
"आई एम अंजलि फ्रॉम एम एन 24 चैनल मैं एक रिपोर्टर हूं और यह मेरे साथ ही काम करता है, कैमरामैन राजीव।" - अंजलि अपना और अपने साथी का संक्षिप्त परिचय देती हुई बोली
"ओह न्यूज़ चैनल वाले हो, फालतू में इतना टाइम वेस्ट कर दिया हमारा।" - मोहित निराश होते हुए बोला और बाकी तीनों को वही छोड़ कर घर के अंदर की तरफ जाने लगा।
"मेरे ख्याल से आप को अंदर नहीं जाना चाहिए क्योंकि कुछ तो गड़बड़ है वहां पर!" - अंजली मोहित को रोकती हुई बोली लेकिन मोहित अनसुना कर के फिर भी उस तरफ ही बढ़ गया।
"और क्यों नहीं जाना चाहिए उसे अंदर?" - तृषा ने अपनी एक आईब्रो अप करते हुए अंजली की तरफ देख कर सवाल किया
"क्योंकि इस घर के बारे में जो अफवाहें हैं वह अफवाह नहीं सच है अंदर सच में भूत है इस ने देखा है और मैंने भी।" - बोलते हुए राजीव के चेहरे पर फिर से वही डर नज़र आ रहा था जो कि अभी थोड़ी देर पहले भी उन दोनों के चेहरों पर था।
"भूत वूत कुछ नहीं होता, गलतफहमी हो गई होगी तुम लोगों को इतना पुराना और काफी दिनों से बंद है ना यह घर।" - तृषा उन दोनों को समझाती हुई बोली
"हां, मुझे भी पहले यही लगा था इसीलिए तो हिम्मत की रात के इस वक्त यहां पर आ कर सबूत ढूंढने और सच का पता लगाने की, लेकिन अपना आंखों देखा तो नहीं झूठला सकती ना मैं।" - तृषा की बात सुन कर अंजली एकदम सीरियस होती हुई बोली उस के चेहरे पर इस वक्त कोई भी भाव नहीं थी।
उस की तरफ देख कर, एक बार को तो तृषा भी डर गई लेकिन फिर उस की बातों को अपने दिमाग से झटकती हुई बोली - "ठीक है, तुम लोगों को नहीं जाना अब अंदर तो तुम लोग वापस जा सकते हो बस किसी से बताना मत हमारे बारे में कि हमें यहां पर देखा, हम भी इस केस के बारे में पता लगाने आए हैं।
"मोहित अंदर गया है ना वह पकड़ लेगा तुम्हारे भूत को।" - तृषा हंसती हुई बोली और उन दोनों को वहीं पर छोड़ कर मोहित के पीछे ही, घर के दरवाजे की तरफ जाने लगी अंजली और राजीव ने मायूसी से एक नज़र एक दूसरे की तरफ देखा और फिर वो दोनों उसी तरह से बाउंड्री वॉल फांद कर वहां से बाहर आ गए।
"यार मोहित! तू रुका क्यों नहीं वहां पर... क्या पता कोई और इनफॉरमेशन मिल जाती उन लोगों से, जर्नलिस्ट थे वह दोनों!" - उस घर के अंदर आती हुई तृषा ने मोहित से कहा
"मैं अपना काम दूसरों के भरोसे पर शुरू नहीं करता तृषा! और तुझे यह बात अच्छी तरह से पता है।" - मोहित बिना तृषा की तरफ देखे जमीन पर इधर-उधर बारीकी से छानबीन करता हुआ सा बोला
"हां... हां... पता है... पता है, ज्यादा महान मत बना कर तू मेरे सामने" - उस की बातें सुन कर तृषा मुंह बिचकाती हुई बोली
"यहां तो कहीं दिख नहीं रहा, ब्रेसलेट कहां गिराया था तूने अपना?" - अब मोहित ने तृषा की तरफ देख कर सवाल किया
"कैसे सवाल करता है यार तू, अगर मुझे पता होता तो आ कर खुद ही ना उठा लेती मैं सब से पहले।" - तृषा फिर से उसी तरह से बोली
"कल तो बोल रही थी कि अच्छा हुआ गिर गया और अब बोल रही है कि सब से पहले उठा लेती; कुछ समझ नहीं आता मुझे तेरा..." - मोहित ने कंफ्यूजन से उस की तरफ देखते हुए कहा
"अरे मेरा वो मतलब नहीं है... मैं तो बस इसलिए उठा लेती क्योंकि अपना कोई सामान छूटने नहीं देना चाहिए ना ऐसी जगह पर और अब तो देखा भी मैंने कि हम सिर्फ अकेले नहीं हैं जो ऐसे चोरी-छिपे आ रहें हैं यहां पर।" - तृषा मोहित की बात पर उसे समझाती हुई बोली
"चल अच्छा तेरा ब्रेसलेट ना सही, लेकिन कुछ और तो मिल ही जाएगा ध्यान से ढूंढते हैं तु उस तरफ देख और मैं इधर देखता हूं।" - मोहित ने तृषा को हाथ से इशारा करते हुए कहा
"ठीक है" - बोलती हुई तृषा भी उस तरफ ही चली गई और कुछ ढूंढने की कोशिश करने लगी कि शायद कुछ तो ऐसा मिले जो उन लोगों को इन्वेस्टिगेशन में थोड़ा आगे ले जाए।
"मोहित... मोहित... जल्दी इधर आओ उधर कुछ है उस तरफ कुछ देखा मैंने, जल्दी आओ... जल्दी..." - तृषा अपनी जगह से थोड़ा पीछे हटते हुए चिल्लाती हुई बोली
"शशश्श्श्! चुप हो जाओ तृषा, धीरे से बोलो थोड़ा, क्या पता कोई हो आस-पास ही तुम्हारी आवाज सुन लेगा तो..." - पीछे से आता हुआ मोहित अपने हाथों से तृषा का चिल्लाता हुआ मुंह बंद करते हुए बोला
लेकिन तृषा हैरानी से अपनी आंखें बंद करके एक तरफ उंगली से मोहित को इशारा कर रही थी और साथ ही मोहित का हाथ हटाने को भी बोल रही थी और जैसे ही मोहित ने अपना हाथ उस के मुंह पर से हटाया।
"मोहित वो उधर वहां पर...सांप... सांप देखा मैंने, सच में एक सांप ही था... बिलीव मी मोहित!" - मोहित के हाथ हटाते ही तृषा उसे घबरा कर पूरी बात बताती हुई बोली
क्रमशः
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"वह वह उधर है सांप उस तरफ, देखा था मैंने उधर ही कहीं चला गया" - तृषा ने चिल्ला कर एक तरफ उंगली से इशारा करते हुए मोहित से बताया
लेकिन तृषा यह बात जितना ही चिल्ला कर एक्साइटिड होते हुए यह बात बोली, मोहित उतना ही शांत और ठंडा रिएक्शन देते हुए बोला - "हां, तो कौन सी बड़ी बात है यहां पर सांप का दिखना, इतने सारे पेड़ और झाड़ियां हैं, जंगल के करीब है यह घर, शहर और आबादी से इतना दूर तो सांप का दिखना कौन सी बड़ी बात है, और इस तरह मत चिल्लाना प्लीज यार नेक्स्ट टाइम से!" - मोहित उसकी बात पर एकदम लापरवाही से बोला
"क्या यार! मुझे भी काट लेता सांप तो कल चौथी लाश क्या पता मेरी मिलती इस घर से।" - मोहित के ऐसे अंदाज़ पर तृषा मुंह बनाती हुई बोली
"डर कर भाग गया सांप तो तुझे देख कर, अब ना आने वाला जब तक तू है यहां पर।" - मोहित हंसते हुए बोला
"यहां पर कुछ और भी है लेकिन सांप जैसा ही, शायद कोई मरा हुआ सांप... देखो!" - तृषा उस तरफ से और आगे बढ़ती हुई बोली जहां पर उस ने अभी कुछ देर पहले सांप दिखा था।
"वेट तृषा! टच मत करना, किसी भी चीज को।" - मोहित जल्दी से उस की तरफ बढ़ कर उसे रोकता हुआ बोला
"लेकिन यह है क्या?" - तृषा ने उस अजीब सी चीज़ की तरफ़ देखते हुए मोहित से पूछा
"स्नेक स्किन है, जो चेंज होती है! देखने में तो वही लग रहा है यही देखा था तूने थोड़ी देर पहले भी या कोई जिंदा सांप भी था?" - इस बार मोहित ने थोड़ा सीरियस होते हुए तृषा से पूछा
"जिंदा था यार! चलते हुए देखा था, यह देख निशान भी तो बना हुआ है जमीन पर, क्योंकि इतनी धूल और मिट्टी है यहां पर।" - तृषा ने जमीन पर बने सांप के रेंगने के निशान मोहित को दिखाते हुए कहा
"सांपों का होना तो आम बात ही है ऐसी जगह पर, लेकिन फिर भी कुछ तो गलत है।" - मोहित वह सब देख कर थोड़ा सोचते हुए बोला
"अगर सांप के काटने से हुई होंगी वह तीनों मौतें, तो मर्डर केस किस पर बनेगा फिर सांपों पर?" - तृषा हंसते हुए मज़ाक में यह बात बोल गई लेकिन मोहित को उस की इस बात पर बिल्कुल हंसी नहीं आई बल्कि उल्टा वह उसे घूर कर देखने लगा।
"अच्छा सॉरी! लेकिन यह पॉसिबल भी तो हो सकता है कि सांप के काटने से मरे हो, वह तीनों लोग जो यहां पर आए थे इसीलिए तो कोई और चोट का या किसी तरह के मारने का निशान नहीं मिला पुलिस को उन की बॉडीज पर।" - तृषा भी इस बार थोड़ा सीरियस होती हुई बोली
"इतना सिंपल नहीं है यार! अगर सांप के काटने से डेथ हुई होती, तो फर्स्ट पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ही पता चल जाता और फिर यह भी तो सोचने वाली बात है वह तीनों इंसान आखिर यहां पर करने क्या आए होंगे जब कि इस घर के हांटेड होने की अफवाह और यह सांप भी है यहां पर? कोई खुद से तो मरने नहीं आएगा ना यहां, कुछ और ही बात है जो नजर में नहीं आ रही अब तक।" - तृषा के डाउट पर मोहित उसे सारी बातें समझाता हुआ बोला
"चलो मतलब सांप तो बाइज्जत बरी हुए केस से.." - तृषा फिर से थोड़े मजाकिया लहजे में बोली तो मोहित भी इस बार मुस्कुरा दिया और वह दोनों घर में और अंदर की तरफ बढ़ने लगे, लेकिन तभी उन्हें पुलिस जीप के सायरन की आवाज सुनाई दी।
तो दोनों एक दूसरे के चेहरे की तरफ देखते हुए एक साथ बोले - "पुलिस! यहां इस वक्त?"
"अब हम क्या करेंगे मोहित?" - तृषा थोड़ी परेशान होती हुई बोली
"निकलो यहां से, जल्दी हमें अभी पुलिस की नज़र में नहीं आना है; नहीं तो बार-बार अड़ंगा डालेगी पुलिस हमारे रास्ते में।" - मोहित तृषा की तरफ देख कर बोला तो तृषा ने भी हां में अपना सर हिलाया।
और फिर वह दोनों वहां से बाहर निकलने की जगह ढूंढने लगे क्योंकि पुलिस तो मेन गेट से ही अंदर आएगी इसलिए वह दोनों चाह कर भी उस तरफ नहीं जा सकते थे, आखिरकार जिस कमरे में वह दोनों थे, वहां पर भी एक खिड़की दिखाई दी जो कि घर के पीछे की तरफ़ खुलती थी।
"तृषा वो उधर देखो... उस तरफ जल्दी करो।" - मोहित की नज़र जैसे ही उस खिड़की पर पड़ी, उस ने तृषा को उस तरफ दिखाते हुए कहा
"हां, चलो जल्दी निकलते हैं।" - तृषा भी जल्दी से खिड़की के पास आई और फिर वह दोनों खिड़की से कूद कर उस घर से बाहर निकल गए और बाहर निकलते वक्त उन दोनों को घर के अंदर आते हुए दो पुलिस वालों की पीठ दिखाई दी।
"सिर्फ दो पुलिस वाले..." - उन दोनों को देख कर तृषा थोड़ी हैरानी से बोली
"हर वक्त पूरी टीम ले कर थोड़ी ना आएंगे, चलो अब यहां से?" - तृषा की बात पर मोहित बोला और फिर वह दोनों छिपते हुए बाउंड्री वॉल से कूद कर बाहर आ गए और बिना पुलिस वालों की नज़रों में आए वहां से काफी दूर आ गए।
"क्या सर कोई भी तो नहीं है यहां पर, लगता है बेवकूफ बनाया किसी ने कॉल पर।" - नीरज के साथ ही खड़ा हुआ मयंक चारों तरफ नज़र घुमाते हुए बोला
"नहीं, यह बोलो कि अब कोई भी नहीं है यहां पर!" - मयंक की बात काटते हुए नीरज ने कहा
"क्या मतलब सर!" - मयंक को समझ नहीं आया तो उस ने पूछा
"मतलब हमारे आते ही या फिर उससे थोड़ी देर पहले ही यहां से चले गए वह लोग जो कोई भी था यहां पर" - नीरज ने जमीन की तरफ घूरते हुए मयंक को पूरी बात बताई
"क्या करने आए होंगे वह लोग यहां पर, सबूत मिटाने या फिर कुछ ढूंढने?" - मयंक ने सवाल किया
"या फिर कुछ और ही..." - नीरज थोड़ा सोचते हुए बोला
"लेकिन पता कैसे चलेगा?" - मयंक ने फिर से सवाल किया
"ढूंढो ध्यान से, कुछ तो मिलेगा ही" - आगे की तरफ बढ़ता हुआ बोला
"ओके सर!" - बोलते हुए मयंक भी काम पर लग जाता है।
मयंक और नीरज एक दूसरे से काफी दूर पर चले जाते हैं कि तभी वो बल्ब फिर से बंद हो जाता है और उस घर में काफी अंधेरा हो जाता है।
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"थैंक गॉड बच गए!" - घर से काफी दूर निकल आने पर तृषा अपने घुटनों पर हाथ रख कर एक जगह रुकती हुई बोली
"थैंक्स टू मोहित बोल, मैंने बचाया और मैं ही बचाता हूं हमेशा तुझे और चल यहां क्यों रुक गई।" - मोहित तृषा को रुका हुआ देखकर बोला
क्रमशः
14
"मैं नहीं चल रही अब और इतनी दूर तो आ गए, घर तक पैदल ले जाएगा क्या?" - तृषा हांफती हुई बोली
"जितना तू चली है उतना ही तो मैं भी चला हूं लेकिन तेरे नखरे यार! खत्म ही नहीं होते कभी, रुक कैब बुक करता हूं।" - बोलते हुए मोहित ने अपना मोबाइल निकाला और कैब बुक करने लगा।
"बाइक ठीक करवा ले यार अपनी, इस तरह कैब से आएंगे जाएंगे तो पुलिस को 2 मिनट भी नहीं लगने हैं हमारे बारे में पता चलने में।" - तृषा उसे एडवाइज देती हुई बोली
"लग जाने दे पता, हम कौन सा कोई मर्डर करके भाग रहे हैं हम भी तो अपना काम ही कर रहे हैं ना पुलिस की तरह।" - मोहित उस की बात का जवाब देते हुए बोला
"लेकिन फिर भी बाइक ठीक करवा ले ना अपनी, क्या है रोज़ रोज़ का..." - तृषा फिर से बोली
"हां, गेराज में ही है बन जाएगी कल तक।" - मोहित ने कहा तो उस की बात सुन कर तृषा को थोड़ी तसल्ली हुई।
और इतनी देर में मोहित की बुक की हुई कैब भी वहां पर आ गई और वह दोनों ही उस कैब में बैठ गए, मोहित ने पहले तृषा को उस के पीजी ड्राप किया और फिर अपने फ्लैट पर चला गया।
"कहां रहता है यार तू मोहित! यह ले तेरे नाम एक कुरियर आया था।" - फ्लैट के अंदर आते ही मोहित का फ्रेंड सुमित उसे एक बॉक्स पकड़ता हुआ बोला जो की पैक था।
"बस वही... काम पर ही रहता हूं, वैसे तू भी गया नहीं अब तक अपने काम पर!" - मोहित ने सुमित के हाथ से वह बॉक्स लेते हुए उस की तरफ देखकर पूछा और फिर वह बॉक्स मोहित ने टेबल पर रख दिया।
"हां, बस निकल ही रहा हूं।" - सोफे पर बैठ कर अपने जूते पहनता हुआ सुमित बोला और फिर पूरा रेडी हो कर वो वहां से निकल गया।
मोहित ने उस के जाने के बाद, फ्लैट का दरवाजा बंद किया और अपने जूते उतारने लगा।
फिर उस ने अपने लिए कॉफी बनाई, और हाॅल में बैठकर कुछ सोचते हुए कॉफी पीने लगा, तभी उसकी नज़र उसी बॉक्स पर पड़ी जो घर के अंदर आते ही सुमित ने उसे दिया था।
तो मोहित ने अपना कॉफी मग साइड में रख दिया और वह बॉक्स उठाकर उसे खोलने से पहले चारों तरफ से अलट पलट कर देखने लगा।
लेकिन फिर भी उसे बाहर से किसी का भी नाम और पता लिखा हुआ दिखाई नहीं दिया तो आखिरकार उस ने वह बॉक्स खोल कर देखा।
काफी देर तक उस बाॅक्स को अलट पलट कर देखने के बाद भी जब मोहित को उस बॉक्स के बाहर कवर पर कुछ भी नहीं मिला तो आखिर मोहित ने वो बाॅक्स खोल दिया।
और मोहित ने देखा कि उस बाॅक्स एक फाइल की और उस के साथ ही एक मुड़ा हुआ कागज भी शायद कोई चिट्ठी थी। मोहित ने फाइल निकाल कर भेज कर रखी और फाइल खोलने से पहले वह चिट्ठी पढ़ने लगा।
"यह रही पोस्टमार्टम रिपोर्ट, तुम ने कहा था तुम्हें भी एक कॉपी चाहिए तो बस इंतजाम करवा दिया, सोचा इतनी मदद तो कर ही सकती हूं मैं तुम्हारी क्योंकि तुम भी तो मेरी इतनी मदद कर रहे हो लेकिन एक बात कहना चाहूंगी कि मेरा नाम सामने नहीं आना चाहिए। इन सब में और जितना लिखा दिख रहा है, जरूरी नहीं है उतना ही सच हो, काफी चीज़ें अक्सर छूट भी जाती हैं, नज़रों से भी और दिमाग से भी!" - उस छोटे से सफेद कागज में सिर्फ इतना ही लिखा था।
इतना पढ़ने के बाद मोहित ने उस कागज को उलट पलट कर भी देखा, लेकिन उस कागज पर भी ना तो भेजने वाले का नाम था और ना ही पता, लेकिन फिर भी शायद मोहित जानता था कि यह किस ने भेजा है, इसलिए उस ने चुपचाप मोड़ पर वह चिट्ठी अपनी जेब में रख ली और फाइल खोल कर देखने लगा।
वो पिछली दो लाशों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट की एक-एक कॉपी थी जो कि पुलिस रिपोर्ट की फॉरेंसिक एक्सपर्ट डॉक्टर द्वारा बनाई गई थी और जिस ने जब कल उसे बताया था कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कोई बात सामने आई है। तब से ही मोहित को यह पोस्टमार्टम रिपोर्ट चाहिए थी अपने इन्वेस्टिगेशन को आगे बढ़ाने के लिए, आखिर मौत की वजह तो पता चले और किसी चीज़ को आधार मान कर तो वह आगे बढ़ पाए।
फाइल में गौर से देखते हुए मोहित के चेहरे पर एकदम सपाट भाव थे, उस के चेहरे को देख कर तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा था और ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि उसे कोई नई और इंटरेस्टिंग बात पता चली हो।
शायद उसे भी ज्यादा कुछ समझ नहीं आ रहा था इसलिए कुछ देर तक उन कागजों में नजरें गढ़ाने और माथापच्ची करने के बाद शायद उसे कोई काम की चीज नहीं मिली तो वह फाइल बंद कर के वापस मेज पर पटकता हुआ बोला - "आह! बकवास, कुछ भी काम का नहीं है वही सब बातें हैं जो कि मुझे पहले से ही पता हैं।"
फिर वो वहां से उठ कर अंदर अपने रूम में चला गया और निढाल सा अपने बेड पर लेट गया, थका हुआ तो वो था ही और उस के बाद पूरी रात जगा भी, और इस वक्त सुबह के 5:00 बज रहे थे और मोहित के सोने का वक्त ही यही था इसलिए उसे जल्द ही नींद आ गई।
अगली सुबह , पुलिस स्टेशन,
"क्या हुआ सर? इतना किस बारे में सोच रहे हैं?" - मयंक उबासी लेता हुआ नीरज से बोला , उसे देख कर साफ पता चल रहा था कि वह भी रात भर सो नहीं पाया इसलिए अपना हाथ गालों पर रख कर मेज के सहारे उसी से टिक कर बैठा हुआ था।
उसी के विपरीत नीरज की दोनों आंखें खुली हुई और चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ नज़र आ रही थी, उसे देख कर साफ पता चल रहा था कि वह कुछ सोच रहा है और बार-बार अपने सामने पड़ी फाइलों के पन्ने भी अलग पलट कर रहा था।
"जाओ तुम घर चले जाओ मयंक, कुछ घंटे आराम कर लेना उसके बाद वापस आ जाना।" - मयंक की तरफ एक नज़र देखते हुए नीरज उस से बोला
"अरे नहीं, सर मैं ठीक हूं।" - मयंक मना करते हुए बोला
"हां, वह तो दिख ही रहा है, कितने ज्यादा ठीक हो? - नीरज उस की नींद से भरी शक्ल और आगे देखते हुए बोला
"लेकिन सर! हमें अभी फॉरेंसिक डॉक्टर से मिलना भी तो जाना है, तीसरी लाश की रिपोर्ट आ गई होगी।" - नीरज की बात पर मयंक उसे याद दिलाते हुए बोला
"मैंने कहा ना जाओ तुम, और डॉक्टर से मिलने मैं अकेला ही चला जाऊंगा।" - नीरज ने थोड़ा सा ऑर्डर देने वाले अंदाज में कहा
"ओके सर, थैंक यू, थैंक यू सो मच!" - बोलते हुए मयंक अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और सैल्यूट करता हुआ नीरज के केबिन से बाहर चला गया।
क्रमशः
15
"क्या डाॅक्टर साहब! बस चक्कर ही लगवाएंगे क्या, हमारे पुलिस स्टेशन से लैब तक के या कुछ मदद भी करेंगे मेरी इस केस में?" - फॉरेंसिक लैब के अंदर आता हुआ नीरज फॉरेंसिक एक्सपर्ट डॉक्टर अनिल अग्रवाल से बोला
वह एक नॉर्मल सी दिखने वाली सरकारी फॉरेंसिक लैब थी, उस जगह की दीवारें सफेद रंग से रंगी हुई थी और अच्छी खासी रोशनी भी थी, जहां पर काफी सारे इक्विपमेंट्स के साथ ही कई सारे केमिकल्स और भी कई ज़रूरत की चीजें रखी हुई थी। बीच में एक नॉर्मल साइज का हॉस्पिटल बेड और उस पर एक अधेड़ उम्र के आदमी की लाश रखी हुई थी, उस लाश पर एक सफेद चादर पड़ी हुई थी (यह उसी तीसरे आदमी की लाश थी जिस की लाश हाल में ही उस घर के अंदर से पुलिस को मिली थी।) इस के अलावा साइड में एक टेबल पर दो कंप्यूटर भी लगे हुए थे और उन में से एक कंप्यूटर के आगे खड़ी थी एक लड़की जो कि शायद डॉक्टर अग्रवाल की जूनियर डॉक्टर या फिर उन की असिस्टेंट रही होगी।
वह अपने काम में पूरी तरह व्यस्त लग रही थी, लेकिन फिर भी नीरज के अंदर आते वक्त उस ने एक नज़र उठा कर भी उस की तरफ देखा और उसे देख कर मुस्कुराई; लेकिन जब नीरज ने उस की तरफ गौर ही नहीं किया तो वह वापस अपने काम में लग गई।
"आइए आइए इंस्पेक्टर साहब! वैसे आज आप अकेले, आप का साथी नहीं दिख रहा।" - नीरज की आवाज सुन कर उस के पीछे किसी को ढूंढती हुई नज़रों के साथ डॉ अग्रवाल ने कहा
"हां, वह मयंक को मैंने घर भेज दिया बाद में आएगा वह।" - डॉक्टर की बात का जवाब देते हुए नीरज बोला
"ओके इंस्पेक्टर साहब, ये रही इस तीसरे आदमी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट!" - डॉक्टर साहब एक फाइल नीरज के हाथ में पकड़ाते हुए बोले
"और क्या करूं मैं इस का, ले जा कर सजा लूं इसे भी अपनी डेस्क पर, पहले वाली बाकी दो रिपोर्ट्स के साथ क्योंकि काम का तो कुछ हाथ लग नहीं रहा।" - नीरज काफी निराशाजनक भाव से बोला
"अरे यार! निराश क्यों होते हो? हमेशा थोड़ी ना खाली हाथ भेजने के लिए बुलाता हूं मैं, काम की जानकारी पता लगी है।" - डॉ अनिल ने नीरज की बात सुन कर कहा तो यह बात सुन कर नीरज को थोड़ी तसल्ली हुई और उस की आंखों में एक अलग ही चमक आ गई।
उस के बाद डॉक्टर ने अपनी असिस्टेंट रोशनी को कुछ इशारा किया और वह बोली - "यस सर, फाइनल रिपोर्ट्स तैयार हैं।"
नीरज को डॉक्टर अनिल और रोशनी की इस तरह की बातें और इशारेबाजी ज़रा समझ नहीं आई तो उस ने सीधे ही पूछा - "मुझे भी कुछ बताओ आखिर किस बारे में बात हो रही है, यहीं पर खड़ा हूं मैं भी"
"हां भाई! दिख रहे हो तुम भी हमें, चलो मेरे साथ.." - बोलते हुए डॉ अग्रवाल, रोशनी के कंप्यूटर की तरफ बढ़ गए और रोशनी वहां से थोड़ा साइड हट गई।
नीरज भी आ कर डाॅ अग्रवाल के साथ ही खड़ा हो गया और उस ने भी अपनी नज़रें कंप्यूटर की स्क्रीन पर गड़ा दी लेकिन उस पर बहुत ही ज्यादा मशीनी और मेडिकल साइंस की भाषा में कुछ लिखा हुआ था जो कि उसे ज्यादा तो समझ नहीं आ रहा था लेकिन इतना साफ पता चल रहा था कि वह किसी बीमारी से जुड़ी प्रोग्रेस रिपोर्ट थी।
"यस! मेरा शक सही निकला।" - डॉ अग्रवाल टेबल पर हाथ मारते हुए बोले तो नीरज ने फिर से उन्हें शक भरी निगाहों से देखा क्योंकि उसे उस के सवालों के जवाब तो अभी भी नहीं मिले थे, डॉक्टर ने जैसे ही नीरज की तरफ देखा भी समझ गए कि नीरज क्या जानना चाह रहा है।
इसलिए डॉक्टर, नीरज की तरफ देख कर उसे समझाते हुए बोले - "मिल गया लिंक इन तीनों लाशों के बीच में, जो कब से तलाश रहे हो तुम?"
"क्या...क्या है वह लिंक जल्दी बताइए!" - नीरज ने उत्सुक होते हुए पूछा तो डॉक्टर अग्रवाल ने एक नज़र रोशनी की तरफ डाली और रोशनी ने बोलना शुरू किया - "एक्चुअली सर जब हमने पहली लाश का पोस्टमाॅर्टम किया था जब से ही हमें इस बात का शक था कि उस आदमी को कोई बीमारी भी थी...बीमारी मतलब कोई बड़ी बीमारी लेकिन पहले रिपोर्ट में वह साफ नहीं हो पाया।"
"क्यों क्लियर क्यों, नहीं आया रिपोर्ट में?" - रोशनी की बात सुनकर नीरज ने उलझन भरी निगाहों से हम दोनों की तरफ देखते हुए सवाल किया
"क्योंकि जब किसी बीमारी का इलाज चल रहा होता है और वह कुछ ठीक होना शुरू हो जाती ,है ऐसे वक्त में इंसान की डेथ हो तो जल्दी पता नहीं चलता दवाइयों के असर की वजह से।" - डॉ अनिल ने नीरज की उलझन दूर की।
"ओके तो फिर..." - नीरज ने आगे और जानने के इरादे से पूछा
"तो फिर क्या अब क्लियर हो गया कि यह जो तीनों लाशें तुम एक-एक कर के यहां लाए थे, उन तीनों में एक बात कॉमन थी और वो थी उन की बीमारी..." - डॉ अग्रवाल, नीरज की तरफ देख कर बोले और फिर चुप हो गए।
नीरज को पूरी बात जाननी थी, इसलिए उस ने उसी तरह उत्सुकता भरी निगाहों से बारी-बारी डॉ अग्रवाल और फिर रोशनी की तरफ देखा तो रोशनी ने मुस्कुराते हुए आगे बोलना शुरू किया - "सर के कहने का मतलब है इन तीनों को कैंसर था, वह भी स्टमक कैंसर! जिसे की मेडिकल साइंस में गैस्ट्रिक कैंसर भी बोलते हैं और स्टमक कैंसर की खासियत होती है कि वह जल्दी पता नहीं चल पाता और इस का अभी तक कोई पक्का इलाज भी उपलब्ध नहीं है मेडिकल साइंस में..."
"इसका मतलब तीनों लाशों को स्टमक कैंसर था लेकिन इतनी बड़ी बात ये आप लोग पहले क्यों नहीं पता लगा पाएं।" - नीरज सोचते हुए काफी उलझन से बोला
"क्योंकि मैंने बताया ना जब कोई बीमारी का इलाज चल रहा होता है और वह कुछ ठीक हो रही होती है तो सब से पहली रिपोर्ट में साफ पता नहीं चलता लेकिन मुझे शक था इस बात का।" - डॉ अनिल ने काफी गंभीरता से नीरज को बताया
"ओके! लेकिन एक बात फिर भी मेरी समझ नहीं आई।" - नीरज थोड़ा सोचते हुए बोला
"क्या?" - डॉक्टर ने उस से पूछा
"यही कि अभी आप लोगों ने बोला कि स्टमक कैंसर का कोई पक्का इलाज अब तक अवेलेबल नहीं है तो फिर इन लोगों को कैंसर आखिर ठीक कैसे हो रहा था? कहां से इलाज करवा रहे थे यह तीनों? क्या एक ही जगह से या फिर अलग अलग कहीं से..." - नीरज ने अपना सिर खुजाते हुए पूछा क्योंकि वह बहुत ज्यादा उलझन में था इस वक्त।
क्रमशः
16
"अब यह सब पता लगाना तुम्हारा काम है, जितना मुझे पता चला मैंने बता दिया तुम्हें।" - डॉ अग्रवाल जैसे पल्ला झाड़ते हुए से बोले
नीरज इस के आगे कुछ भी बोल नहीं पाया लेकिन रोशनी उस की बात का मतलब समझती हुई बोली - "कैंसर के लिए कई सारे मेडिसिंस और कीमोथेरेपी तो होते हैं लेकिन इन लोगों पर इस तरह के कोई सिम्टम्स तो नजर नहीं आ रहे हैं, इस का मतलब इनका कैंसर किसी न्यू और अलग टाइप की मेडिसिन से ही क्योर हो रहा था।"
"उस मेडिसिन का पता चला उस का नाम या कुछ भी इंफॉर्मेशन मेडिसिन की?" - रोशनी की बातें सुन कर नीरज आस भरी निगाहों से उस की तरफ देखते हुए बोला तो रोशनी ने ना में अपना सिर हिला दिया।
इतनी जानकारी मिलने के बाद नीरज अब समझ गया कि उसे लगभग सारी बातें पता चल चुकी है जितना कि डॉक्टर को पता था इसलिए उस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट की एक कॉपी उठाई और डॉ अग्रवाल और रोशनी की तरफ देखते हुए उन्हें थैंक यू बोल कर लैब से बाहर निकल आया।
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"उस दूसरे आदमी का तो पता भी नहीं मिला मुझे अब तक?" - मोहित अपने पास मौजूद सभी जानकारियों को देखते हुए खुद से ही बोल रहा था।
"उस के बारे में काफी कुछ छूट रहा है लेकिन नहीं.. नहीं मुझे कुछ भी छोड़ना नहीं है, क्योंकि जब तक तीनों के बारे में पूरी जानकारी नहीं होगी तो वह तीनों एक दूसरे से लिंक भी नहीं हो पाएंगे, आखिर कुछ तो समानता होगी ही ना क्योंकि तीनों की मौत का तरीका और जगह तो लगभग एक ही है।" - मोहित अपने सारे सामान को उलट पलट कर के कुछ ढूंढता हुआ सा बड़बड़ाया और फिर एक नज़र घड़ी की तरफ डाल कर उस ने अपने मन में सोचा - "12:00 बज गए दिन के आज तो और ये तृषा ने अब तक एक चक्कर भी नहीं लगाया मेरे घर का, कहां रह गई ये लड़की आज?"
"एक बार कॉल कर के देख लेता हूं।" - बोलते हुए मोहित अपना मोबाइल फोन उठाता है और तृषा को कॉल करने लगता है।
पूरी बेल जाने के बाद भी तृषा कॉल रिसीव नहीं करती तो मोहित थोड़ा सा झुंझला जाता है और अपना फोन बेड पर ही पटक देता है कि तभी दरवाजे की डोर बेल बजती है वह भागते हुए दरवाजे पर पहुंचता है और दरवाजा खोलने से पहले ही बोलता है - "कहां रह गई थी तू, कॉल तो रिसीव किया कर यार!" लेकिन जैसे ही दरवाजा खोल कर सामने देखता है तो मोहित बोलते हुए चुप हो जाता है।
"लेकिन तूने मुझे कब कॉल किया, जो मैं तेरी कॉल रिसीव करता ?" - सामने तृषा नहीं बल्कि सुमित खड़ा था और वह मोहित की बात सुन कर बोला
"अरे यार तू, मुझे लगा कि..." - मोहित बोलते बोलते रुक गया
"तृषा है।" - लेकिन सुमित ने उसके अधूरे वाक्य को पूरा किया और मुस्कुराते हुए फ्लैट के अंदर आ गया।
"हां, क्योंकि तेरे पास तो कीज़ है ना फ्लैट की? इसलिए मैंने सोचा नहीं कि तू डोर बेल प्रेस करेगा।" - मोहित ने जल्दी से सफाई दी
"हां, रहती तो है चाबियां मेरे पास की लेकिन आज मैं ले जाना भूल गया था। वैसे तृषा नहीं आई क्या अब तक?" - सुमित ने मोहित से पूछा तो मोहित ने नहीं में अपना सर हिला दिया।
"यह क्या है?" - अपनी टाई की नाॅट ढीली करते हुए सुमित की नज़र सामने टेबल पर पड़ी तो उस ने पूछा
"पोस्टमार्टम रिपोर्ट की एक कॉपी है यार! उसी केस से रिलेटेड जिस पर मैं अभी काम कर रहा हूं!" - मोहित ने उसे बताया
"लेकिन तुझे कैसे मिली ये, काफी कॉन्फिडेंशियल रखती है पुलिस तो यह सब?" - सुमित ने हैरानी से एक और सवाल किया।
"सब अरेंज हो जाता है यार! वैसे तु कॉफी पिएगा, मैं अपने लिए बनाने जा रहा हूं।" - बोलते हुए मोहित किचन की तरफ चला गया
"हां यार! बना दे मेरे लिए भी।" - बोलते हुए सुमित अब तक वह फाइल उठा चुका था और पहला पेज खोल कर ध्यान से देख रहा था या शायद कुछ समझने की कोशिश कर रहा था।
"समझ भी आ रहा है उस में कुछ या फिर ऐसे ही?" - मोहित सुमित को वह पढ़ते देख कर बोला
"क्या यार फार्मोकोलॉजिस्ट हूं मैं, अभी असिस्टेंट ही सही लेकिन काम तो मेरा भी कुछ ऐसा ही है और मुझे नहीं समझ आएगा।" - मोहित की बात सुनकर सुमित ने जैसे उस को याद दिलाया।
"अरे हां यार! मैं तो भूल ही गया था तेरा फील्ड है यह तो... अच्छा देख ले ध्यान से, कुछ पता चले तो बता देना मुझे भी।" - बोलते हुए मोहित ने एक कॉफी मग सुमित के आगे रख दिया और खुद सामने वाले सोफे पर बैठने ही वाला था कि तभी उस का फोन रिंग होने की आवाज आई और वह वहां से अपने कमरे की तरफ चला गया, कॉल रिसीव करने के लिए;
सुमित आप काफी बारीकी से उस रिपोर्ट को देख रहा था और उस के चेहरे पर अलग-अलग तरह के भाव उभर रहे थे जैसे कि उसे काफी कुछ समझ आ रहा हूं उस में, इसीलिए उस ने मोहित के वहां से चले जाने पर भी ध्यान नहीं दिया।
कमरे में जा कर मोहित ने कॉल रिसीव किया तो देखा कि तृषा का कॉल था।
"क्या हुआ मोहित कॉल क्यों कर रहे थे, तीन मिस कॉल थी तुम्हारी?" - तृषा ने एकदम साफ लफ्ज़ों में पूछा
"क्यों कर रहे थे का क्या मतलब है, घर नहीं आई तू आज वही पूछने के लिए डिस्कस नहीं करना है केस पर और कुछ नया पता चला या नहीं?" - मोहित को तृषा का सवाल काफी अजीब लगा
"मोहित तू फिर भूल गया ना, इलाज करवा ले पहले तू अपनी कमजोर याददाश्त का, मैंने तुझे बताया था ना एक जगह जॉब के लिए अप्लाई किया है मैंने और कल भी मुझे वह जॉब मिल गई, तो बस आज से मैं लग गई वहां और अभी भी ऑफिस में ही हूं, काम कर रही थी इसलिए तो कॉल भी नहीं रिसीव कर पाई तेरा..." - तृषा ने थोड़ा सा खीजते हुए कहा क्योंकि वह मोहित को यह बात बता चुकी थी और मोहित फिर भी उस से इस तरह पूछ रहा था जैसे कि उसे कुछ पता ही ना हो।
"अरे याद है मुझे और तुम ने मुझे इतना बताया था कि तुम ने अपनी लास्ट जाॅब छोड़ दी है और हमेशा की तरह नई जॉब ढूंढ रही है, यह तो तेरा हमेशा का ही है हर 4, 6 महीने में, कहां तक याद रखूं मैं।" - मोहित उसे पूरी बात बताते हुए काफी बोरियत से बोला
"हां, तो मैं बोर हो जाती हूं एक ही जगह काम क रके ज्यादा दिनों तक और तुझे सच में मैंने कल नहीं बताई क्या जॉब मिलने वाली बात?" - तृषा थोड़ा सोचती हुई बोली
क्रमशः
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"हां इडियट, नहीं बताया, बताया होता तो मुझे याद होता ना।" - मोहित उस की बात सुन कर बोला
"अच्छा ठीक है, अभी तो बता दिया ना वैसे मैं शाम को आऊंगी, यहां से निकल कर सीधे तेरे घर ही।" - तृषा ने उसे बताया
"ओके, ठीक है!" - मोहित बस इतना ही बोला और उस ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी और वापस हॉल में आ कर सुमित के सामने बैठ गया।
"बड़ी अजीब बात है, यार मोहित!" - मोहित को सामने बैठता देखते ही सुमित थोड़ी उलझन में बोला
"क्या हुआ अजीब क्या है इन सब में? कुछ नया पता चला क्या?" - मोहित ने सुमित से पूछा
"ये रिपोर्ट्स देख कर मैं सोच रहा हूं कि इन बेचारों का मर्डर, यह तो वैसे भी मरने ही वाले थे।" - सुमित एकदम से बोला
"1 मिनट क्या? क्या मतलब है तेरा कि मरने वाले थे यह लोग, मतलब कि तीनों ही...?" - सुमित की बात सुन कर मोहित ने चौंकते हुए पूछा
"तीनों मतलब, यहां तो दो के ही रिपोर्ट्स हैं!"- मोहित के सवाल पर सुमित ने उसे बताया।
तीनों मतलब यहां तो दो के ही रिपोर्ट्स हैं!"- मोहित के सवाल पर सुमित ने थोड़ा सा चौंकते हुए कहा
"अरे हां यार! वह मर्डर 3 हुए हैं ना लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट अभी दो कि ही आई है मेरे पास, ठीक है तू इन दोनों के बारे में ही बता; क्या पता चला तुझे?" - मोहित ने सुमित को बताया
"देख यार! कंफर्म तो नहीं है लेकिन जहां तक मुझे समझ आया है कि जिन दो लोगों की यह पोस्टमार्टम रिपोर्ट है वह दोनों ही कैंसर पेशेंट थे, वह भी ऐसा वैसा कैंसर नहीं स्टमक या इंटेस्टाइन कैंसर जो कि बहुत ही रेयर है बहुत कम लोगों को होता है।" - सुमित मोहित को पूरी बात बताता हुआ बोला
"कैंसर? सीरियसली! आई डोंट बिलीव तुझ से कोई मिस्टेक हुई होगी यार रिपोर्ट्स देखने में।" - मोहित सुमित की बात पर काफी ना यकीनी से बोला
"मुझ से कोई मिस्टेक नहीं हुई, हां, लेकिन एक बात है कि यह बात सभी को समझ नहीं आएगी, ज्यादातर फॉरेंसिक एक्सपर्ट भी मेरी तरह यही बोलेंगे कि यह बात कंफर्म तो नहीं है, इस के लिए कुछ और टेस्ट भी करने पड़ेंगे लेकिन गैस्ट्रिक कैंसर के चांसेज सब से ज्यादा हैं।" - सुमित ने मोहित को समझाते हुए कहा
"तेरे कहने का क्या मतलब है यार! थोड़ी डॉक्टर वाली लैंग्वेज के अलावा, इंसानों वाली भाषा में समझा दे मुझे!" - मोहित अब उस की बातों में दिलचस्पी लेते हुए बोला
"मेरे कहने का यह मतलब है कि इन्हें जो बीमारी थी पहली बात तो वह जल्दी किसी को होती नहीं है, बहुत ही कम परसेंट है पूरे इंडिया में, इस टाइप के कैंसर के और दूसरी बात यह है कि इन की बीमारी या तो एकदम शुरुआती स्टेज पर थी या फिर शायद ख़त्म... ठीक से कहा नहीं जा सकता।" - सुमित थोड़ा सोचते हुए बोला
"अरे इतनी रेयर बीमारी चलो शुरुआत हो तो समझ सकते हैं कि नहीं पता लगा शायद उन्हें भी लेकिन जब इतनी रेयर बीमारी है तो इतनी आसानी से उस का इलाज कैसे मिल गया इन लोगों को जो बीमारी ठीक या खत्म हो रही थी।" - मोहित ने फिर से सवाल किया
"ठीक हो रही थी या नहीं, पक्का कुछ नहीं कह सकते हैं लेकिन कैंसर टिशूज काफी कम हो गए थे, इसलिए ही पहली रिपोर्ट में साफ साफ यह बात सामने नहीं आ पाई।" - सुमित फिर से रिपोर्ट्स के पन्ने पलट कर देखता हुआ बोला
"वैसे अवेलेबल मेडिसिन क्या है, इस बीमारी के लिए?" - मोहित ने फिर से सवाल किया
"फिलहाल कोई भी हंड्रेड परसेंट स्योर इलाज नहीं है इस बीमारी का, कई सारी रिसर्च और डेवलपमेंट का काम चल रहा है अभी इस बीमारी की मेडिसिन बनाने के लिए।" - सुमित ने फाइल वापस टेबल पर रखते हुए बोला
"तो फिर इन लोगों का इलाज कैसे हो रहा था? जो कैंसर के सिम्टम्स कम हो रहे थे इन की बॉडी से और 1 मिनट सुमित तू स्योर है ना कि इन दोनों में से किसी की भी मौत अपनी इस बीमारी की वजह से नहीं हुई है।" - मोहित ने वो फाइल उठाते हुए सुमित से सवाल किया
"इतनी ज्यादा क्लियर यह रिपोर्ट ही नहीं है इसलिए स्योरिटी तो किसी भी बात की नहीं है, लेकिन अपनी तरफ से एक बात जरुर कहना चाहूंगा कि अगर यह दोनों अपनी बीमारी की वजह से मरते तो इन की लाश किसी हॉस्पिटल या फिर अपने घर में मिलती, ऐसे इस तरह से उस अनजान जगह पर नहीं!" - सुमित ने मोहित को जैसे याद दिलाते हुए कहा
"ओहो क्या बात है, काफी जासूसों वाली खूबियां आ रही हैं तुझ में तो..." - मोहित , सुमित की बात से इंप्रेस होता हुआ उस की तरफ देख कर बोला
"हां, बस तेरे साथ का असर है शायद..." - सुमित ने मुस्कुराते हुए कहा
"इस का मतलब अपनी बीमारी से तो नहीं मरे हैं यह दोनों, कोई और ही बात है।" - मोहित थोड़ा और दिमाग लगा कर सोचते हुए बोला
"तू बैठ कर सोच और मैं चला सोने...बाद में डिसकस करते हैं इस पर..." - सुमित ने कहा और फिर वो वहां से उठ कर अपने कमरे में चला गया, रेस्ट करने के लिए और मोहित कुछ देर वहां पर अकेले ही बैठा रहा।
"काफी कुछ बता दिया सुमित ने तो, मुझे तो ये सब समझ ही ना आता रिपोर्ट देखने के बाद भी।" - बोलते हुए मोहित ने टेबल से सारा सामान उठाया और ले कर अपने कमरे में चला गया।
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"उस तरफ क्या है, इतनी अजीब सी जगह?" - अपनी जॉब के दूसरे ही दिन, अपनी आदत से मजबूर तृषा लंच टाइम में एक तरफ बढ़ती हुई खुद से बोली
तभी अचानक ही पीछे से किसी ने उस के कंधे पर हाथ रखा तो वह चिहुंक कर पीछे मुड़ी और फिर जाने पहचाने चेहरे को देख कर उस ने राहत की सांस ली और बोली - "ओह विशाखा! तुम, डरा दिया मुझे तुम ने..."
"इधर क्या कर रही है यार तू! इधर तो नॉर्मली कोई भी नहीं आता, स्टाफ में से?" - विशाखा ने तृषा की बात को इग्नोर करते हुए उस से पूछा
"हां, बस वही देख रही हूं मैं भी कि कोई क्यों नहीं आता आखिर इस तरफ? ऐसा क्या है..." - तृषा हंसती हुई बोली
"क्या यार! तू भी मरवाएगी एक दिन, अपने काम से काम रखा कर ना।" - विशाखा लाचारी से अपना से हिलाती हुई बोली
"अरे बस वही तो नहीं आता, बाकी सारा काम आता है मुझे।" - तृषा हंसते हुए विशाखा के कंधे पर हाथ रखती हुई बोली
"अच्छा, चल अब थोड़ा काम कर ले, अभी शुरुआत है तेरी यहां पर, तो इस तरह टहलते घूमते कोई देखेगा तो क्या इंप्रेशन पड़ेगा तेरा!" - विशाखा उसे समझाती हुई बोली
क्रमशः
18
"हां चल, चलते हैं लंच टाइम तो वैसे भी ओवर हो गया।" - विशाखा की बात सुन कर तृशा ने कहा और फिर दोनों अपने वर्किंग प्लेस की तरफ बढ़ने लगी, लेकिन आगे की तरफ बढ़ते हुए तृषा ने एक बार फिर से पीछे मुड़ कर देखा उस अंधेरी सी जगह पर फिर से लाइट ऑन हो गई लेकिन आगे की दीवारें और बंद दरवाजा देख कर ऐसा लग रहा था कि जैसे अंदर कोई भी नहीं हो।
"चलो खैर! आज नहीं तो फिर कभी...." - अपने मन में बोलते हुए तृषा ने फिलहाल उस तरफ जाने का ख्याल अपने दिमाग से झटका और विशाखा के साथ जा कर वापस अपने काम में लग गई।
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शाम के वक्त सुमित जब सो कर उठा और अपने कमरे से बाहर निकला तो उसे मोहित के कमरे से अभी भी थोड़ी बहुत आहट सुनाई दे रही थी।
यह आवाजें सुनकर वह समझ गया कि मोहित शायद अपने कमरे में ही है, वैसे ज्यादातर तो जब सुमित घर पर होता था तो मोहित गायब ही रहता था घर से, लेकिन आज वो घर पर ही था इसलिए सुमित उत्सुकतावश उस के कमरे की तरफ ही बढ़ गया और कमरे के अंदर दाखिल होते हुए बोला - "अरे यार मोहित तू अब तक यही है, आज कहीं जाना नहीं तुझे अपने काम से।"
सुमित कमरे के अंदर आया तो उस ने देखा कि मोहित अपने कमरे की दीवार पर लगे बोर्ड पर काफी सारे कागज चिपकाए हुए था और स्केच से कुछ निशान बनाते हुए उन सब के बीच कुछ ना कुछ जोड़ने या फिर कुछ बना कर समझने की कोशिश कर रहा था।
"गया था दिन में, जब तू सो रहा था लेकिन फिर वापस भी आ गया जल्दी ही।" - मोहित बिना सुमित की तरफ देखे ही उस की बात का जवाब देते हुए बोला
"अच्छा तो फिर बाकी और क्या पता चला तुझे, इन सब के बारे में? कोई कनेक्शन मिला या नहीं?" - सुमित ने एक और सवाल किया
"ढूंढ रहा हूं यार और तूने जो बताया फिलहाल तो वही है, बीमारी ही...और बाकी मरने वाले तीनों आदमी काम, उम्र, स्टेटस और हर चीज़ में एक दूसरे से अलग हैं, कुछ भी कॉमन नहीं मिल रहा है यहां तक कि एक का तो एड्रेस तक पता नहीं चल पाया मुझे अब तक।" - मोहित पूरी बात बताते हुए सुमित से बोला
"अच्छा, कोई नहीं मिल जाएगा कुछ ना कुछ तो वैसे बाकी दोनों का पता करना जब तक, शायद कुछ पता चले? दुश्मनी में भी तो हो सकते हैं यह मर्डर, वैसे इन में से कोई ज्यादा अमीर, नामी या पैसे वाला था क्या?" - सुमित ने मोहित को तसल्ली देते हुए एक और सवाल किया।
"हां, वह तीसरा आदमी वह बिजनेसमैन था, बाकी दूसरे के बारे में तो कुछ पता नहीं यार! और पहला वाला प्राइवेट सेक्टर में जॉब करता था शायद मिडिल क्लास ही था।" - सुमित के सवाल पर मोहित बोला
"और तुझे यह पोस्टमार्टम रिपोर्ट , यह कहां से मिली?" - सुमित ने यह बात सुन कर एक और सवाल किया
"अरे यार वह जो तीसरा आदमी है ना उसी के परिवार की एक औरत ने मुझे हायर किया है और उस ने मुझे कहा था कि मुझे कोई भी हेल्प चाहिए हो तो वह अरेंज करवा देगी तो बस मैंने उस से बोला था और उसी ने भिजवा दी।" - मोहित ने लापरवाही से बताया
"कौन औरत? उस की वाइफ है क्या..." - सुमित ने फिर से सवाल किया
"पता नहीं, वह औरत बस एक बार ही मिली है मुझ से और बाकी मेरी कॉल पर ही बात हुई है, उस ने ज्यादा बताया नहीं अपने बारे में लेकिन तीसरे आदमी के मर्डर के बाद ही कांटेक्ट किया उस ने मुझे तो उस से रिलेटेड ही होगी, पक्का!" - सुमित के सवाल पर मोहित थोड़ा सोचते हुए बोला
"और बाकी दोनों की फैमिली या इस तीसरे आदमी की भी पूरी फैमिली के बारे में तो पता करना ही चाहिए था तुझे।" - सुमित उस की बात पर बोला
"किया है सब पता किया है, लेकिन फैमिली मेंबर्स पर शक की कोई वजह नहीं बन रही बहुत ढूंढा मैंने।" - मोहित परेशान सा एक चेयर पर बैठता हुआ बोला
"ठीक है तू कंटिन्यू कर, मैं रेडी होता हूं जाकर निकलना है मुझे थोड़ी देर बाद।" - बोलता हुआ सुमित वहां से चला जाता है और मोहित पहले की ही तरह अपने काम में लग जाता है और अपने आस-पास पड़े कागज उठा कर देखने लगता है।
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"चल तृशा! साथ ही निकलते हैं।" - विशाखा ऑफिस से निकलते वक्त तृषा के पास आ कर बोली
"हां, बस हो ही गया यह फाइल सेव कर लूं।" - तृषा अप ने सामने रखे डेस्कटॉप पर अपनी उंगलियां चलाती हुई बोली
"ओके" - बोल कर विशाखा वहां पर ही खड़ी हो गई।
"हो गया..." - बोलते हुए तृषा ने सिस्टम ऑफ किया और अपना सामान समेटने लगी!
"ठीक है, मैं गेट पर तेरा वेट करती हूं जल्दी आना..." - बोलती हुई विशाखा ऑफिस के गेट की तरफ चली गई और तृषा भी सारा सामान समेट कर बस निकलने ही वाली थी तभी उसे पीछे गलियारे से किसी की आवाज आई।
"दिन में यहां पर कौन था? इतनी सी बात का ध्यान नहीं रखा जाता तुम लोगों से..." - तृषा ने दूर से आती हुई यह आवाजें सुनी और झांक कर उस तरफ ही देखने लगी।
"कौन है उस तरफ? उधर तो सब का जाना मना है ना और अभी तो कोई है भी नहीं ऑफिस में...." - तृषा ने मन ही मन खुद से कहा और फिर आवाज की तरफ ही बढ़ने लगी वह कुछ आगे ही बढ़ पाई थी तभी उसे अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ और वह ठिठक कर रुक गई।
"उधर कहां जा रही है तृषा यार! तू बाज नहीं आएगी ना अपनी इन हरकतों से, मना किया था मैंने तुझे दिन में भी।" - पीछे से आती हुई विशाखा बोली
"लेकिन वहां पर कोई है शायद, मैंने अभी आवाज सुनी।" - तृषा विशाखा को सफाई देती हुई बोली
"मोहित के साथ रह कर ,ना आधी जासूस तू भी हो गई है, थोड़ा कम कर दे यार अपनी यह जासूसी तो अच्छा रहेगा तेरे लिए भी!" - विशाखा उसे समझाती हुई बोली
"अरे लेकिन तुझे सच में अजीब सा नहीं लगता उस तरफ, या फिर तुझे पता है।" - विशाखा की बात पर तृषा उसे अजीब नजरों से घूरते हुए पूछती है
"नहीं, मुझे कुछ भी अजीब नहीं लगता और ना ही मुझे कुछ पता है और ना ही पता करना है; मैं सिर्फ अपने काम से ही काम रखती हूं, तू भी यही किया कर, अब चल यहां से इतना लेट हो रहा है।" - तृषा का हाथ पकड़ कर खींचते हुए उसे गेट तक आती हुई विशाखा बोली
क्रमशः
19
"तुझे सच में क्यूरियोसिटी नहीं होती यार! मुझ से तो रहा भी नहीं जाता, ऐसी कोई जगह देख कर बिना उस बारे में पता किया या जाने?" - तृषा विशाखा के साथ ऑफिस गेट से बाहर निकलती हुई बोली
"नहीं, सब लोग ना तेरी तरह नहीं होते कि यह भी जानना है, वह भी जानना है, ये भी करना है, वो भी करना है इसी चक्कर में 6 महीने से ज्यादा एक जॉब पर टिक नहीं पाती है तू।" - विशाखा उसे ताना मारती हुई बोली
"वह सारी जॉब तो मैं खुद ही छोड़ देती हूं, बोर हो जाती हूं ना, ज्यादा दिन एक जगह रह कर।" - तृषा हंसते हुए बोली
"हां... हां... पता है तू और यह तेरे एडवेंचर जो सारी जॉब कर कर के पूरे करती है तू।" - विशाखा फिर से उसी तरह से बोली
लेकिन तृषा ने अब कोई जवाब नहीं दिया और बोरियत से जम्हाई लेती हुई बोली - "जानती तो है तू मुझे और यह भी अच्छी तरह जानती है कि मैं ना बदलने वाली, तो फिर कोशिश ही क्यों करती है।"
"मुझे नहीं बदलना तुझे ऐसी ही रह तू, लेकिन थोड़ा ऑफिस के रूल्स मान लिया कर, जब तक काम कर रही है यहां!" - विशाखा लगभग लाचारी वाले स्वर में बोली
"ठीक है... ठीक है... अब तू इतनी रिक्वेस्ट कर रही है तो मान लेती हूं।" - तृषा ने हंसते हुए कहा और जब तक चलते हुए वह दोनों मेन रोड पर आ गई और फिर एक टैक्सी रोक कर उस में बैठ गई।
कुछ देर बाद ही तृषा ने टैक्सी रुकवाई और उतरने लगी।
"यहां कहां उतर जा रही है यार तू, तेरा पी जी तो अभी आया नहीं।" - तृषा के इस तरह एक जगह पर टैक्सी रुकवाने पर विशाखा ने उस से सवाल किया।
"मोहित का फ्लैट, है ना उस अपार्टमेंट में ही।" - तृषा ने उंगली से इशारा करते हुए विशाखा से बताया
"आज फिर से मोहित के घर, रेस्ट कब करेगी यार! तू थकती नहीं है क्या?" - विशाखा तृषा की बात पर थोड़ा खीजती हुई सी बोली
" अरे यार काम है कुछ इंपॉर्टेंट और आज टाइम ही नहीं मिला मुझे मोहित से मिलने का।" - विशाखा की बात सुन कर तृषा ने कहा
"ठीक है , लेकिन तेरी रोज़ी आंटी तो पता चला तो..." - विशाखा ने मुस्कुराते हुए सवाल किया
"आरती है ना, वह संभाल लेगी!" - तृषा आंख मारते हुए बोली
"तु नहीं सुधरने वाली, चल बाय!" - बाय बोलते हुए विशाखा लाचारी से अपना सिर हिलाती है और तृषा भी उसे बाय बोल कर अपार्टमेंट की तरफ चली जाती है।
"अच्छा, मैं निकलता हूं मैं मोहित बाय!" - यह बोलते हुए सुमित दरवाजे की तरफ आता है और फ्लैट से बाहर निकलने के लिए जैसे ही दरवाजा खोलता है, उसे अपने सामने खड़ी तृषा नज़र आती हैं जो कि डोर बेल बजाने वाली होती है लेकिन उसी वक़्त सुमित दरवाजा खोल देता है तो तृषा रुक जाती है और सुमित की तरफ देखते हुए बोलती है - "अरे वाह! कभी खुशी कभी गम, क्या बात है?"
सुमित को उस की इस बात का मतलब बिल्कुल भी समझ नहीं आता इसीलिए वह कन्फ्यूजन में पूछता है - "क्या? हाय हेलो बोलते हैं वैसे तो, किसी को दरवाजे पर देख कर लेकिन तुम ने क्या कहा अभी-अभी ?"
"अरे तुम नहीं समझे, मेरा मतलब था कि तुम्हें पहले ही पता चल गया कि मैं गेट पर हूं इसलिए मेरे डोरबेल प्रेस करने से पहले ही तुम ने गेट खोल दिया, वाह! ऐसा तो फिल्मों में ही होता है, रिमेंबर कभी खुशी कभी गम मूवी.." - तृषा हंसते हुए अपनी पूरी बात एक्सप्लेन करती है और घर के अंदर आ जाती है।
तृषा की बकवास सुन कर सुमित लाचारी से अपना सिर हिलाते हुए मुस्कुराता है और दरवाजे पर खड़ा हुआ ही बोलता है - "पहली बात तो बहुत ही बकवास थ्योरी है तुम्हारी और दूसरी बात मैं अपने काम पर जा रहा हूं इसलिए दरवाजा खोला था मैंने, तुम्हारे लिए नहीं..."
"इस वक्त, नॉर्मली इस वक्त काम से वापस आते हैं लोग और तुम अब जा रहे हो?" - सुमित की बात सुन कर तृषा ने थोड़ा चौंकते हुए पूछा
"नाइट शिफ्ट है मेरी।" - सुमित ने जवाब दिया
"ओह अच्छा, वैसे मोहित कहां है? वह भी तो नहीं गया ना कहीं नाइट शिफ्ट पर।" - तृषा ने चारों तरफ नज़र घुमा कर मोहित को ढूंढते हुए सुमित से पूछा
"अरे नहीं, वह निशाचर आज पहली बार तो इस वक्त घर पर ही है, शायद तेरा ही इंतजार कर रहा है जा कर मिल ले।" - सुमित तृषा से कहता है
"मेरा इंतजार, सीरियसली?" - तृषा थोड़ा हैरानी से बोलती है
"और नहीं तो क्या, सुबह से तेरे इंतजार में सूख कर कांटा हो गया मेरा बेचारा दोस्त; देख जाकर उसे अपने कमरे में ही है।" - सुमित हंसते हुए बोलता है तो तृषा भी उस की बात सुन कर हंसने लगती है।
"अच्छा, मैं निकलता हूं, नहीं तो लेट हो जाऊंगा, बाय!" - बोलते हुए सुमित तेज़ कदमों से वहां से निकल जाता है और तृषा भी फ्लैट का दरवाजा बंद कर के मोहित के कमरे की तरफ चली जाती है।
तृषा मोहित के कमरे में पहुंचती है, लेकिन मोहित अपने काम और अपने आप में ही काफी बुरी तरह से उलझा रहता है उस वक्त, इसलिए तृषा पर ध्यान ही नहीं देता।
तृषा आ कर साइड में बैठ जाती है और थोड़ी देर तक कुछ नहीं बोलती, उसे लगा था कि शायद मोहित ही कुछ बोलेगा लेकिन मोहित के इस तरह से इग्नोर करने पर उसे इरिटेशन होने लगती है और आखिर कार वही चिल्लाकर बोलती है - "इनविजिबल हूं क्या मैं? दिखाई नहीं दे रही तुझे!"
"दिख रही है तो क्या करूं, चुप बैठ ना थोड़ी देर!" - मोहित उस की बात सुन कर लापरवाही से बोलता है।
"ठीक है, फिर मैं वापस अपने घर ही चली जाती हूं, ऐसे यहां फालतू चुप बैठने नहीं आई थी, मुझे लगा था तुझे केस के बारे में कुछ बात करनी है या फिर शायद आज भी हमें कहीं पर साथ में जाना होगा लेकिन न, हीं तु कुछ ज्यादा ही बिजी है शायद!" - तृषा गुस्से में बोली और वहां से उठ कर जाने लगी।
"क्या यार तृषा! तेरे ड्रामे और शिकायतों का कोई अंत है भी या नहीं? इतना भी क्या बुरा लग गया तुझे?" - मोहित अब थोड़ा परेशान होता हुआ बोलता है।
"नहीं, कोई एंड नहीं है तुझे परेशान करने के लिए ही तो आई हूं मैं जॉब से सीधे यहां, अपने घर ना जा कर तेरे घर।" - मोहित की बात सुन कर तृषा मुंह बनाती हुई बोलती है।
"अच्छा, सॉरी! बस थोड़ा सा बिजी था और हां, केस के बारे में तो बात करनी ही है; काफी कुछ नया पता चला है, रुक बताता हूं।" - मोहित अपनी चेयर तृषा की तरफ करते हुए बोलता है और फिर उसे पोस्टमार्टम रिपोर्ट और उन तीनों मरने वाले आदमियों की बीमारी के बारे में बता देता है।
क्रमशः
20
और उस के बाद दिन में भी जो कुछ पर्सनल इनफॉरमेशन उस ने उन तीनों मरने वालों के बारे में इकट्ठा की थी, वह सब एक-एक कर के तृषा को बताने और दिखाने लगता है।
तृषा पहले तो पूरे इंटरेस्ट और ध्यान से मोहित की सारी बातें सुनती है, लेकिन फिर कुछ देर बाद दिनभर की थकी होने की वजह से उसे नींद आने लगती है और जैसे ही मोहित दूसरी तरफ मुड़ता है, वह बेड पर बैठे-बैठे ही टेक लगा कर सो जाती है।
कुछ देर जब तृषा की आवाज नहीं आती और कमरे में एकदम सन्नाटा हो जाता है, तो मोहित पीछे मुड़ कर तृषा को देखता है, तो उसे इस तरह बैठे-बैठे ही सोते हुए देख कर मुस्कुराने लगता है और फिर उसे ठीक से बेड पर लिटा कर ब्लैंकेट ओढ़ा देता है।
तृषा एकदम सुकून से सो रही होती है और मोहित बेड के पास ही खड़ा उसे इस तरह सोते देख कर मुस्कुरा रहा होता है, तभी तृषा का फोन रिंग होता है तो मोहित जल्दी से बिना देखे ही कॉल डिस्कनेक्ट कर देता है।
यह सोचकर की रिंगटोन की आवाज से कहीं तृषा की नींद ना खुल जाए क्योंकि वह काफी थकी हुई लग रही थी, और अभी कुछ देर पहले ही वह सोई थी, लेकिन कुछ सेकेंड बाद ही तृषा का फोन दोबारा फिर से रिंग होता है तो मोहित जल्दी से कमरे से बाहर आ कर कॉल रिसीव कर लेता है। वह तृषा कि रूम मेट आरती का कॉल होता है।
"तृषा यार कहां है तू? मैं रोज़ रोज़ झूठ नहीं बोल सकती रोज़ी आंटी से, उन्हें पता चल जाएगा कि तू रूम पर नहीं है।" - कॉल रिसीव करते ही दूसरी तरफ से आवाज आती है।
"हेलो मैं मोहित! तृषा सो गई है और अगर रोजी आंटी पूछे तो तुम बोल देना कि वह जॉब से अपने किसी रिलेटिव के घर चली गई, उन की तबीयत खराब थी।" - मोहित आरती से बोलता है।
"लेकिन तृषा... ठीक है, मैं बोल दूंगी!" - आरती मोहित से ज्यादा कुछ नहीं बोलती और कॉल डिस्कनेक्ट कर देती है।
आरती से बात कर के मोहित तृषा का फोन वही टेबल पर रख देता है और किचन में जा कर अपने लिए कॉफी बनाने लगता है क्योंकि उसे अभी कुछ देर और जाग कर काफी सारे काम निपटाने थे।
अगली सुबह....
"सर... सर... नीरज सर; कहां हैं आप?" - पुलिस स्टेशन के अंदर आते ही मयंक नीरज को ढूंढते हुए आवाज लगा रहा था।
"क्या है मयंक? इस तरह से क्यों चिल्ला रहे हो, सीधे केबिन में नहीं आ सकते थे क्या?" - मयंक की आवाज सुन कर नीरज उस की तरफ बढ़ता हुआ बोलता है
"अरे सर बात ही कुछ ऐसी है आप भी सुनेंगे तो मेरी तरह ही एक्साइटिड और खुश हो जाएंगे, साथ ही मुझे शाबाशी भी देंगे।" - मयंक दांत दिखाते हुए बोला
"क्यों खूनी का पता चल गया क्या? जो इतना ज्यादा खुश हो रहे हो!" - नीरज थोड़ा व्यंगात्मक लहजे में बोला और अपने केबिन की तरफ बढ़ गया।
"अरे सर! खूनी का पता भी चल जाएगा, लेकिन फिलहाल मुझे उस आदमी के बारे में जानकारी मिली है जिस का मर्डर दूसरे नंबर पर हुआ था और उस के बारे में अब तक हमें ज्यादा कुछ पता नहीं चला था यहां तक उसका नाम भी नहीं मुझे उस की पूरी जानकारी मिल गई है।" - मयंक भी नीरज के पीछे उस के केबिन के अंदर आता हुआ बोला
"चलो कुछ तो काम किया तुम ने, मुझे तो लगा था बस बकवास और फालतू के जोक्स क्रैक करना ही आता है तुम्हें।" - नीरज अपनी कुर्सी पर बैठता हुआ फिर से मयंक को ताना मारते हुए बोला
"वही तो सर, आप सीनियर्स की आदत होती है अपने जूनियर्स को बहुत ज्यादा अंडरेस्टीमेट करते हैं आप लोग, जबकि हम लोग तो सब से ज्यादा ही काम करते हैं बस क्रेडिट नहीं मिलता वह बात अलग है।" - मयंक बेचारे जैसा मुंह बनाते हुए बोला, तो नीरज को भी हंसी आ गई लेकिन वह अपनी हंसी दबाते हुए एकदम गंभीरता से बोला - "चलो अब बताओ जल्दी, क्या पता चला? टाइम मत वेस्ट करो!"
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"मैं.. मैं यहां.... कहां कहां हूं मैं" - सुबह आंख खुलते ही तृषा अपना सिर खुजाती हुई बेड पर उठ कर बैठते हुए बोली वह अभी भी आधी नींद में ही थी।
उस ने अपने सामने देखा तो सोफे पर मोहित सोया हुआ था और उसे देख कर तृषा की आंखें अब पूरी खुल गई और उस की नींद लगभग जा चुकी थी, वह जम्हाई लेती हुई खुद से बोली - "इस का मतलब कल रात मैं यहां पर ही सो गई, ओ गॉड ! आरती को इन्फॉर्म भी नहीं किया और रोज़ी आंटी... उन्हें कहीं पता ना चल गया हो? शिट!"
यह सब सोचते हुए तृषा उठी और अपना मोबाइल फोन ढूंढने लगी लेकिन उसे अपने बैग में और आस-पास भी कहीं अपना मोबाइल फोन नहीं मिला।
"अब मेरा मोबाइल कहां चला गया, कहां रख दिया मैंने? ऑफिस से लाई थी या वहीं भूल गई।" - अपना मोबाइल फोन ढूंढते हुए तृषा बड़बड़ा रही थी।
"ऊपर से यह मोहित का कमरा है या कोई कबाड़खाना यहां तो पूरा इंसान ही खो जाए और मिले भी ना कभी इन सब सामान के बीच, शायद मोहित ने मेरा मोबाइल कहीं रखा होगा।" - तृषा मोहित के कमरे में फैले हुए सामान को देख कर बोलती है और फिर मोहित की तरफ बढ़ने लगती है।
"मोहित.... मोहित उठ ना, मेरा मोबाइल रखा है तूने कहीं मुझे कॉल करनी है बोल ना... मोहित!" - तृषा मोहित को हिलाती हुई उस से सवाल करती है लेकिन मोहित नींद में ही उसे अपना मोबाइल फोन पकड़ाते हुए बोलता है - "यह ले मेरे फोन से कॉल कर ले और प्लीज मुझे सोने दे, अभी थोड़ी देर पहले ही सोया हूं मैं..."
मोहित की बात सुन कर तृषा समझ जाती है कि वह नहीं उठने वाला इसलिए उस के हाथ से उस का मोबाइल फोन ले लेती है और कमरे से बाहर चली जाती है।
"कॉल कर लेती हूं अपने नंबर पर, मिल जाएगा।" - बोलते हुए तृषा मोहित के फोन से अपना नंबर डायल करती है और उसे अपने मोबाइल की रिंग सुनाई देती है और सामने ही टेबल पर रखा हुआ उसे उस का मोबाइल मिल जाता है।
क्रमशः