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Professor sweet obsession

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Scarlett

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कहते है प्यार किसी से और कही से भी हो सकता है । उस में कोई बंदिशे नहीं होती ये कहानी भी ऐसे ही दो लोगों की है जो एक दूसरे से अलग है अब देखना ये है कि इन दोनों को प्रेम कहानी पूरी होती है याह अधूरी रहती है । क्या कुदरत इनकी मोहब्बत मुक्कम्बल कर देगी य...

Total Chapters (27)

Page 1 of 2

  • 1. 1 unexpected meeting

    Words: 1098

    Estimated Reading Time: 7 min

    देहरादून।

    सुबह का समय 10.30 बजे....

    एक्सेल कॉलेज में कैंटिन में एक लड़की चेयर पर बैठे बुक पद रही थी । और साथ में किताब पढ़ रही थी। उसकी उम्र करीब 20 21 साल की होगी। उसके पास एक लड़की भागते हुए आती है । और उसको हांफते हुए कुछ बोलती है।

    "चल.... चलो ... दृष्टि"।

    दृष्टि उसको ना समझी में देखने लगती है। और उसको देखकर बोली।

    "क्या बोल रही हो माही? और इतना हाफ़ क्यों रही हो ? पानी पियो फिर बताना आराम से में कही नहीं जा रही यही हु"।

    माही टेबल पर रखी पानी की बोतल लेती है और उसको एक ही सांस में पी लेती है पीने के बाद फिर एक्साइटेड होते हुए दृष्टि को देखकर कहा।

    "अरे तुम्हे पता है न आज न्यू स्टूडेंट्स आने वाले है कॉलेज में?

    दृष्टि ने उसको बिना कोई भाव से ,

    "हा पता है फिर उसका क्या हुआ ? हमेशा ही तो आते है उस में कौनसी बड़ी बात है ?"

    माही ने फिर अपनी आंखे घूमा ली और उसको मुंह बनाते हुए कहती है ।

    "अरे बहन तो जूनियर भी तो होंगे और हैंडसम लड़के भी होंगे तो उनके मजे लेने का अच्छा मौका है न तुम्हारे पास "।

    दृष्टि ने अपने कॉफी की सिप लेते हुए बोली।

    "ओह बट आज मूड नहीं है बाकी लोगों को लेने दो मजे अपन चिल कर रहे है अभी फिलहाल तो "।

    माही ने अपनी आंखे छोटी करी। और फिर दृष्टि को मस्का लगाते हुए कहती है ।

    "अरे चलो भी .... अतीक्ष और बाकी के सब भी वहां है तुम कुछ मत करना बस देखो तो "।

    माही इतना कहकर उसको बहुत जिद्द करने लगी। दृष्टि आखिर में उसके साथ चलने केलिए तैयार होती है और उसको देखते हुए बोली।

    "चलो चलते है फिर.... आज किसी के साथ गंदी रैगिंग हो सकती है "।

    दृष्टि इतना बोलकर आगे बढ़ गए उसका ये सुनने के बाद माही मन ही मन में खुद से कहती है ।

    "अभी तो कह रही थी कि में नहीं आऊंगी और न करूंगी अब देखो झट से मान गए इसको भी मस्का लगाना पड़ता है हमेशा फिर ये आती है हद्द है चलो अच्छा है आज तो बहुत मजा आएगा "।

    दृष्टि ने पीछे मुड़कर देखा तो माही अपने खयालों में गुम थी उसे वह चिल्लाते।

    "अबे ओह अपनी खयालों की मलिका चलो अब की यही रहना है ? बाद में अपनी सपनो की दुनिया में बिजी रहना "।

    माही दृष्टि की आवाज से हड़बड़ा कर अपने ख़यालो से बाहर आती है। और उसके पिता पीछे जल्दी भागकर जाती है। दृष्टि और माही पार्किंग एरिया में जाते है जहां पे उनके दोस्त ठहरे हुए थे । पर जाते जाते दृष्टि की नजर अपनी बुलेट बाइक पर पड़ी और उसको देखकर वह जोर से चीख पड़ी।

    दृष्टि को ऐसा चीखते हुए देखकर माही भी उसी डायरेक्शन में देखने लगी तो उसके चेहरे के होश उड़ गए। और उसकी आंखे बड़ी हो गई ।

    दृष्टि का चेहरा तो गुस्से से लाल हो रखा था। वह अपनी बुलेट बाइक के पास जाती है। उसकी बुलेट बाइक की हालत किसी ने बहुत खराब करके रखी थी । एक साइड का मिरर गायब हो गया था और साथ ही में दृष्टि ने जहां पे लगाई थी वहां वह बाइक थी नहीं कही और लगा के रखी थी।

    दृष्टि ने अपनी बाइक को देखा तो उसने अपनी हाथ की मुठिया कस ली और इधर उधर देखने लगी और बौखलाते हुए कहती है।

    "किसने मेरे बाइक की ये हालत की सामने आओ हिम्मत है तो .... जानते नहीं हो किसे पंगा लिया है तुमने "।

    दृष्टि पार्किंग एरिया को स्कैन कर रही थी। तो वहां उसको थोड़ी दूरी पर जहां पे उसने अपनी बाइक लगा के रखी थी । वहां एक शख्स दिखता है। दृष्टि उसके पास जाती है और उसको आवाज देने लगी।

    "हेलो excuse me....

    पर वह शख्स दृष्टि को कोई रिस्पॉन्स नहीं देता वह अपने में ही खोया हुआ था कुछ मोबाइल पे कर रहा था । दृष्टि ने कुछ टाइम तक वेट किया और उसको पुकारने लगी पर उस शख्स का तो मानो ध्यान नहीं था।

    दृष्टि ने ध्यान से उस शख्स को देखा था । उसकी हाइट करीब 6.1 की होगी । और उसके बाल तो बड़े घने लंबे तेरे नाम मूवी में सलमान खान ने अपने बाल जैसे रखे हुए थे वैसे उसके बाल कंधों तक थोड़े बड़े हुए थे। और चेहरे पर बड़ी दाढ़ी बढ़ाई हुई थी। उसको ऐसे देखकर तो ऐसा लग रहा था कि मानो ये कोई देवदास टाइप का लड़का है ।

    दृष्टि ने उस लड़के का ऐसा हुलिया देखकर मन ही मन में बोली।

    "इसका ब्रेकअप हुआ है क्या ? जो कबीर सिंग जैसे हुलिया बना के रखा है। न कोई रहने सेंस है न कुछ क्या जमाना आगया है लोग ब्रेकअप होने के बाद पूरे देवदास बन जाते है "।

    दृष्टि फिर से एक बार और एक ट्राई करती है । क्योंकि उसे अभी तो बहुत गुस्सा आ रहा था । उसने जोर से चिल्लाते हुए और उस लड़के थोड़ा करीब जाकर बोली।

    "ओह अंकल.... हेलो में आपसे बात कर रही हु ध्यान कहा है आपका ? "

    दृष्टि की आवाज इतनी बड़ी थी कि उस लड़के के कानो तक अब उसकी आवाज चली गई थी। उसने झट से पीछे मुड़कर देखा। तो उसके सामने दृष्टि खड़ी हुई थी। दृष्टि को इतना पास खड़ा देखकर वह लड़का थोड़ा पीछे हटकर खड़ा होता है।

    उस लड़के ने बिना भाव से उसको सवाल किया।

    "बोलो क्या हुआ ? क्या काम है ?"

    दृष्टि ने उसको घूरते हुए देखा । तो उसकी आँखें नीली थी। और गोरा चेहरा। दाढ़ी बढ़ाई हुई । चेक्स का टीशर्ट पहने हुआ। उपरी हिस्से के 3 बटन खुले हुए थे। जिसे उसकी चेस्ट बॉडी थोड़ी सी उभर रही थी।

    उस लड़के ने स्लीव्स फोल्ड किए हुए थे। और ब्लैक पेंट पहने हुई थी। दृष्टि ने उससे अपनी नजरें हटाई। और साइड में इशारा करते हुए कहा।

    "यहां मेरी बुलेट थी तुमने देखा किसी को उसके साथ छेड़खानी करते हुए ? और तुम्हारी है क्या ये बाइक ?

    उस लड़के ने देखा जहां दृष्टि ने इशारा किया था । और हामी भरते हुए कहता है।

    "हा ये मेरी बाइक है पर जब में यहाँ आया था तब मुझे कोई बाइक नहीं दिखी.....

    "What कोई बाइक नहीं दिखी ? मेरी बाइक यही थी फिर वहां कैसे चली गई और इतना बुरा हाल किसने किया उसका ? दृष्टि थोड़ा गुस्से से और विफरते हुए कहती है।

    वह लड़का दृष्टि के पीछे देखता है तो उसके बुलेट का क्या हाल हो गया था । ये देखकर उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं आए । और बस कंधे उचका दिए ।

  • 2. Chapter 2

    Words: 1341

    Estimated Reading Time: 9 min

    बद्दतमीजी

    उस लड़के का ऐसा रिएक्शन देखकर दृष्टि तो और चीड़ गई। उसने अपने हाथों को फोल्ड करते हुए और उसको घूरते हुए कहती है।

    "तुम ऐसे ही सब से बाते करते हो याह बस मेरे साथ ही कर रहे हो ? याह तुम्हे बात करनी आती ही नहीं है ....

    उस लड़के ने ना समझी से दृष्टि की तरफ देखा और बोला।

    "What u mean? कहना क्या चाहती हो तुम "?

    दृष्टि ने भड़कते हुए और झल्लाते हुए कहा ।

    "अबे कबीर सिंग के 2.0 वर्जिन कब से यही पूछ रही हु की मेरी गाड़ी का ये हाल किस ने किया और अगर नहीं पता है तो किसी को देखा है तुमने उसके साथ कुछ छेड़खानी करते हुए ये पूछ रही हु में कब से ?",

    उस लड़के ने फिर से एक छोटा सा जवाब दिया ।

    "नहीं "।

    दृष्टि उस लड़के के इस रवैए से और भी इरिटेट हो रही थी और उसका गुस्सा तो और बढ़ रहा था। उसने अपना मुंह खोला ही था कि उस लड़के ने उसे कहा ।

    "देखो में ने कुछ नहीं किया और मुझे तुम्हारे साथ कोई झगड़ा करने में इंटरेस्ट नहीं है .... सो मुझे जाने दो मेरा इस में कोई रोल नहीं है "।

    इतना कहकर वह लड़का वहां से जाने लगा । पर दृष्टि ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपने सामने लाकर खड़ा करते हुए बोली।

    "अरे ऐसे कैसे जाने दु तुम्हे ? मुझे तुम्हारे सिवा यहां कोई दिख नहीं रहा और तुमसे पूछू तो ऐसे वन वर्ड में आंसर दे रहे हो "।

    वह लड़का उसे कोई भाव नहीं देता और उसके हाथ से दृष्टि का हाथ साइड करते हुए कहा।

    "में एक ही चीज बार बार नहीं रिपीट नहीं करने वाला और मुझे बक्श दो समझी"।

    इतना बोलकर वह लड़का वहां से चला गया। दृष्टि उसे जाते हुए बस देखती रही और खुद से ही बड़बड़ाते हुए कहा ।

    "इस लड़के को तो में देख लूंगी जाएगा कहा मुझसे बच के "।

    माही जो दृष्टि के बाइक के सामने खड़ी थी और उसके पिक क्लिक कर रही थी और मोबाइल पर कुछ कर रही थी । उसे ऐसा करता हुआ देखकर दृष्टि वहां जाती है। और थोड़ा भड़कते हुए कहती है।

    "ये तुम यहां फोटोज क्लिक क्यों कर रही हो ? इससे क्या होगा ? मेरी बाइक थोड़ी ठीक होगी किसने किया है ये सब उसका पता लगाओ न "।

    "अरे मेरी मां वही कर रही हु में में ने सोशल मीडिया पे डाल दिया है और अतिक्ष को भी बताया है वह ढूंढ रहा है उसने बुलाया है तुम्हे चलो "। माही ने अपने मोबाइल पर कुछ करते हुए कहा ।

    और दृष्टि का हाथ पकड़कर जाने लगी।

    कॉलेज का कंपस....

    अतीक्ष नूर और उनके दोस्त कंपस में बैठे हुए थे और एक दूसरे बात कर रहे थे ।

    नूर ने कहा।

    "Guys तुम लोगो को क्या लगता है कि किसने किया होगा दृष्टि के बाइक के साथ ऐसा ? और वह भी इतनी हिम्मत की उसने पूरी बाइक का सत्यानाश कर दिया है "।

    राहुल ने कुछ सोचते हुए कहा ।

    "ह्म्म में भी यही सोच रहा हु की ये सब किसने किया और इतनी हिम्मत कैसे आगये उस में की वह दृष्टि के बाइक के साथ छेड़खानी करे भाई साहब दृष्टि के साथ पंगा लेकर बहुत गलत किया जिसने भी ये सब किया "।

    दूसरे लड़के ने जिसका नाम हिमांशु था उसने अपने मोबाइल पर गेम खेलते खेलते कहा।

    "अब जो हुआ वह हो गया उसकी बाइक कैसे ठीक होगी इसपर ध्यान दो और अभी तो उसका माथा सटक गया होगा बहुत गुस्से में होगी ... तो ध्यान कहा डायवर्ट करे ये सोचो नहीं तो यही महाभारत होगी "।

    अतीक्ष ने हिमांशू की बात का समर्थन करते हुए बोला।

    "बात तो सही कह रहे हो भाई तुम पहले उसकी बाइक को ठीक करते है फिर किसने किया इसका देखेंगे "।

    "लो आगये दृष्टि वह देखो "। नूर ने दृष्टि को आता हुआ देखते हुए कहा ।

    उसको ये कहते हुए सुनकर सब दृष्टि और माही को देखने लगे माही तो चिल थी पर दृष्टि के चेहरे के भावों से ही समझ आ रहा था कि उसका मूड खराब है। और वह गुस्से में है बस अपना गुस्सा कंट्रोल करके रखी है ।

    दृष्टि और माही अपने दोस्तों के पास आई । दृष्टि ने सब की तरफ अपनी नजरें डालते हुए कहा।

    "तुम लोग ऐसे क्यों देख रहे हो ? तुम लोगो को पता नहीं है क्या कुछ ?"

    राहुल ने जवाब दिया।

    "हा पता तो है सब पर अभी उसपर अपना दिमाग क्यों चलाए जल्दी पता लगाएंगे डोंट वरी "।

    दृष्टि उसे बुरी तरीके से घूरने लगी। उसको ऐसा घूरता हुआ देखकर राहुल ने जबरदस्ती हंसते हुए और अपने शब्दों को सही करने की कोशिश करते हुए कहता है ।

    "मेरा वह मतलब नहीं था मेरा कहने का मतलब कि अभी वॉलीबॉल की प्रैक्टिस है तो वह करते है वैसे अतिक्ष ने सीसीटीवी की रिकॉर्डिंग मांगी है तब तक आजाएगी में ये कह रहा था ।

    दृष्टि ने अतिक्ष की तरफ देखा तो उसने कहा ।

    ", हा में ने मंगवाई है थोड़ा टाइम लगेगा चलो हम लोग वॉलीबॉल खेलते है उससे तुम्हारा मूड भी ठीक हो जाएगा और में कॉलेज छूटने के बाद बाइक गैरेज लेके चला जाऊंगा ठीक हो जाएगी वह चलो "।

    अतीक्ष ने इतना कहा और फिर वॉलीबॉल के नेट के की तरफ बढ़ने लगा साथ ही में उसने दृष्टि का हाथ भी पकड़ लिया और उसे साथ में ले गया।

    अब वॉलीबॉल खेलने केलिए 2 टीम बट गई थी। एक टीम अतीक्ष की थी और दूसरी टीम दृष्टि की दोनों टीम अब वॉलीबॉल खेलने में बिजी हो गए थी । दोनों टीम एक दूसरे पे काफी टफ फाइट दे रही थी और दृष्टि तो एक ही हाथ से बॉल को मार रही थी और वह भी इतने जोर से की किसी को भी इंज्यूरी हो सकती थी।

    यही करते करते दृष्टि का एक पंच बॉल पर इतना जोर का था कि उसको कोई मार नहीं पाया और बॉल दूसरे साइड चली गई । और बॉल का मार इतना जोर से थी । की किसी को भी लग सकती थी सब उसी बॉल को जाता हुआ देख रहे थे ।

    दृष्टि तो अपनी मस्त चिल और चुप थी जैसे उसे तो मानो कोई फरक पड़ न रहा हो। वह बॉल एक लड़के के सिर पर गिरी और वह नीचे गिर गया दृष्टि और अतिक्ष वहां चले गए ।

    अतीक्ष ने उस लड़के को उठाते हुए बोला।

    "सॉरी ब्रो हम लोगों ने जानबूझ के नहीं किया .... गलती से हुआ ज्यादा तो नहीं लगी आपको ? आप ठीक तो हो ?

    उस लड़के ने अपना सिर सहलाते हुए बोला।

    "हा ब्रो मे ठीक हु डॉन्ट वरी ज्यादा नहीं हुआ है इट्स ओक होता है खेलते टाइम "।

    दृष्टि जो बॉल को ढूंढ रही थी और उसे बॉल मिल गई । उसे ये आवाज कुछ जानिपहचानी लगी। उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हुई और उसने हैरियट से उस लड़के को देखते हुए बोली।

    "तुम इधर भी.... आगये ?"

    उस लड़के ने भी दृष्टि को देखते हुए सेम रिएक्शन से यही कहा ।

    "ये तो मुझे कहना चाहिए कि तुम यहां कैसे ? और ये बॉल?

    अतीक्ष जो इन दोनों को ऐसे बिहेव करते हुए देख रहा था । वह कंफ्यूज होते हुए उन दोनों से पूछा।

    "Guys क्या तुम दोनों एक दूसरे को पहले से ही जानते हो ? याह पहले मिले हो कही ? ऐसे क्यों रिएक्ट कर रहे हो ?"

    "यही तो है कबीर सिंग का डुप्लीकेट जिसने मेरी बाइक को तोड़ा वैसे ये मना कर रहा है कि इसने कुछ नहीं किया ... " दृष्टि ने अपने दांत को पिस्ते हुए कहा।

    उस लड़के ने बिना भाव से और थोड़ी तेज आवाज में कहा ।

    "में सच बोल रहा हु की में ने तुम्हारी बाइक के साथ ऐसा कुछ नहीं किया मुझे नहीं पता ये किसने किया .... एक मिनिट कही तुमने ही जानबूझकर तो मुझे ये बॉल नहीं मारी?

    दृष्टि ने जब ये सुना तो उसे एक सेकंड केलिए यही समझ नहीं आया कि वह इस लड़के को क्या जवाब दे ।

  • 3. Chapter 3

    Words: 1188

    Estimated Reading Time: 8 min

    शक

    मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं है कि बार बार तुम्हारे साथ लड़ाई करु और में तो मेरा गेम खेल रही थी मुझे क्या पता था कि तुम भी यही फिर से टपक पड़ोगे "। दृष्टि ने उस लड़के पर झल्लाते हुए कहा ।

    उस लड़के ने थोड़ा तेज आवाज में कहा।

    "अब यहां आना भी मुझे मना है क्या ? और ये तुम्हारी कोई प्राइवेट प्रॉपर्टी तो है नहीं कि कोई आ जा नहीं सकता कोई आ जा सकता है समझी "।

    दृष्टि ने अपना मुंह बनाते हुए कहा।

    "में ने तो ऐसा कुछ भी नहीं कहा तुम ही कह रहे हो उलटा मुझे तो तुम पर ही शक हो रहा है कि कही तुमने ही मेरी बाइक के साथ ये सब नहीं किया... पर मान नहीं रहे हो तुम "।

    उस लड़के ने अब फ्रस्ट्रेट होते हुए कहता है।

    "अब मैं ये कितने बार बताऊं कि में ने तुम्हारी बाइक के साथ कुछ भी नहीं किया है .... तुम्हे मानना है तो मानो वरना मत मानो i don't care "।

    दृष्टि ने बड़ी एटिट्यूड के साथ कहा।

    "वह तो जल्दी पता चल जायेगा किसने किया है सब और अगर मुझे पता चला और तुम्हारे खिलाफ कोई सबूत मिला तो देख लियो मैं क्या करुंगी जस्ट वैट एंड वॉच "।

    उस लड़के ने दृष्टि की तरफ एक सेकंड केलिए देखा और उसको सपाट लहजे में जवाब दिया।

    "Ok तब बात करना उससे पहले तो मुझपर शक करना बंद करो और लड़ाई भी समझी "।

    अतीक्ष ने उन दोनों के झगड़े को सुलझाते हुए और शांत करने की कोशिश करते हुए बोला।

    "अरे तुम दोनों क्या छोटे बच्चों की तरह लड़ रहे और वह भी बिना किसी सबूत के ?",

    दृष्टि ने विफरते हुए कहा ।

    "इसने ही तो पहले शुरुवात की थी उसको बोलो मुझे क्यों बोल रहे हो "।

    अतीक्ष ने उसे समझाते हुए कहा।

    "में तुम दोनों को ही समझा रहा हु "।

    और फिर उस लड़के की तरफ मुड़ते हुए बोला।

    ", सॉरी ब्रो मुझे नहीं पता तुम दोनों के बीच क्या हुआ है पर अगर आपने सच में ऐसा नहीं किया है तो अच्छी बात है पर ऐसा हुआ है तो आपको पे करना पड़ेगा क्योंकि उससे ही वह कॉलेज आती है उसके पास वही एक साधन था जिसे वह आ जा सकती थी।

    उस लड़के ने दृष्टि की तरफ घूरते हुए देखा और फिर बोला।

    "तो इस में कौनसी बड़ी बात है दुनिया में बहुत से बच्चे है जो स्कूल और कॉलेज में बस ऑटो इससे आते है वैसे ये आया करेगी पर में ने इसके बाइक के साथ कुछ भी नहीं किया "।

    दृष्टि ने जब उस लड़के की बात सुनी तो उसका गुस्सा तो और बढ़ गया वह अपने दांत किटकिट की तरह चबाते हुए अपना मुंह खोला ही था कि। अतीक्ष ने उसे शांत रहने का इशारा किया। और वह मुस्कुराते हुए उस लड़के से बोला।

    "जी जरूर अगर वह बाइक ठीक नहीं होती तो उसके पास इसके अलावा और कोई ऑप्शन नहीं है बाकी थैंक्स और सॉरी आपको बॉल लगी थी उसके लिए"।

    इतना कहकर अतीक्ष दृष्टि को वहां से ले गया। उन दोनों को जाता हुआ देखकर उस लड़के ने खुद से ही बड़बड़ाते हुए कहा।

    "आजकल के बच्चे काफी बदतमीज हो गए उन्हें बड़ों से कैसे बात करनी चाहिए ये भी नहीं आता पता नहीं मेरा इस कॉलेज में कैसे दिन जाने वाले है "।

    उस लड़के ने एक लंबी गहरी सांस ली । और अपने रास्ते आगे बढ़ गया।

    इधर सब लोग दृष्टि और अतिक्ष का इंतजार कर रहे थे उन्होंने देखा था कि वहां क्या हुआ था । जब अतीक्ष दृष्टि को साथ लेकर आता है तो सब पूछने लगते है।

    माही ने पूछा।

    "वह लड़का फिर से मिला आज क्या हो रहा है दिन भर झगड़े ही हो रहे है तुम्हारे दृष्टि?"

    राहुल ने कहा।

    "लगता है आज का दिन खराब ही जाएगा अब इतना सब हो गया है तो लैक्चर भी पता नहीं कैसे होंगे हमारे "।

    अतीक्ष ने सब को शांत करते हुए कहता है।

    "अरे सब शांत हो जाओ अब मैटर सॉल्व करके आया हु अब तुम लोग मत शुरू होना फिर से "।

    नूर ने उसे चहकते हुए कहा।

    "वाव फिर तो बहुत अच्छी बात है तुम एक काम क्यों नहीं करते अतीक्ष कॉलेज के हेड बॉय केलिए पार्ट क्यों नहीं लेते तुम तो सब की हेल्प भी करते हो और प्रॉब्लम्स भी सॉल्व चुटकी में करते हो तुम तो परफेक्ट कैंडिडेट हो "।

    अतीक्ष ने अपना माथा पीट लिया और नूर को साफ मना करते हुए बोला।

    "बिल्कुल भी नहीं वह तो बस में अपने दोस्तों के करता हु मुझे पूरे दुनिया और कॉलेज के मैटर सॉल्व करने में कोई इंटरेस्ट है नहीं और मुझे बनना भी नहीं है हेड बॉय "।

    नूर का उसकी ये सब बाते सुनने के बाद मुंह बन गया । और फिर उसे देखते हुए कहा।

    "Ok जैसे तुम्हारी मर्जी में ने तो बस सजेस्ट किया"।

    अतीक्ष ने दृष्टि को देखते हुए बोला।

    "और तुम लोड मत लो शाम तक सब पता चल जायेगा सीसीटीवी मिल जाएगी तब तक चिल मार और ये छोटा फेस मत बना ठीक है "।

    अतीक्ष ने दृष्टि का सिर पर थपथपाने लगा। तब कॉलेज में लेक्चर स्टार्ट होने की बेल बजने लगी। हिमांशू ने अपनी बैग को लेते हुए बोला।

    "चलो आज से न्यू सेमेस्टर स्टार्ट होने वाला है सो हमे जल्दी चलना चाहिए कही हमारे प्रोफेसर हम से पहले ही न आजाएं क्लासरूम में "।

    "में ने सुना है इस बार काफी न्यू सब्जेस्ट है हम लोगों को लाइक डिजिटल साइनस भी है में तो बहुत एक्साइटेड हु क्यूंकि मुझे कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी के रिलेटेड कोई सब्जेक्ट चाहिए था और वह इन्क्लूड हो गया है तो में तो एक्साइटेड हु "। दृष्टि ने खुश होते हुए कहा।

    हिमांशू ने सोचते हुए बोला।

    "उम्मं हमारे ही प्रजापति सर रहेंगे क्यूंकि पहले वही कंप्यूटर के रिलेटेड के सारे सब्जेक्ट पढ़ाया करते थे तो वही होंगे और उनके सिवा तो अच्छा पढ़ाता नहीं है ना "।

    दृष्टि ने हिमांशू की बातों को एग्री करते हुए बोली।

    "हा वही होंगे और तुम्हारी बात सही है उनके सिवा तो और कोई अच्छा पढ़ाता नहीं है "।

    यही सब दोस्त एक दूसरे से बाते करते करते क्लासरूम की तरफ आगे बढ़ गए।

    क्लासरूम.....

    आज क्लासरूम पूरा भर गया था। जब दृष्टि और उसके दोस्त क्लासरूम में आते है तो वह थोड़े हैरान हुए क्योंकि क्लासरुम में इतने स्टूडेंट कभी आते थे नहीं। पर फिर भी वह सब अपनी अपनी सीट पे बैठ गए।

    दृष्टि और माही आगे की साइड में बैठी तो राहुल और नूर पीछे चले गए। ये उनकी हमेशा की जगह थी जो वह पीछे सीट पर ही बैठते थे वह भी खिड़की की साइड । और अतिक्ष हिमांशू वह भी अपनी सीट दृष्टि के साइड के सीट पर बैठ गए।

    दृष्टि ने अपनी नोटबुक निकाली और पेन मुंह के अंदर डाल के उसके पेजेस को पलटने लगी। अतीक्ष बुक लेके पड़ने लगा । और हमारी माही मोबाइल पर अपने फोटोज और कुछ करने लगी।

    उसी समय प्रोफ़ेसर उनके क्लासरूम के अंदर आते है। सब प्रोफेसर को आता हुआ देखकर उन्हें ग्रीट करते है पर दृष्टि और अतिक्ष ने जब उनके प्रोफेसर को देखा तो उनकी आंखे हैरानी से फैल गई।

  • 4. Chapter 4

    Words: 889

    Estimated Reading Time: 6 min

    प्रोफेसर ने पूरी क्लास में अपनी नजरें घुमाई। और अपना गला साफ करते हुए तेज और कड़क आवाज में कहा।

    "हेलो स्टूडेंट्स में हु आपका प्रोफ़ेसर त्रिशूल बजाज और में आपको पढ़ाने वाला हु डाटा फॉरेंसिक ये सब्जेक्ट I hope आप सब मुझे कॉरपोरेट करेंगे और ये सब्जेक्ट सीखने में बहुत इंट्रेस्टिंग है आपको पढ़ने में मजा आएगा"।

    त्रिशूल ने अपनी बात खत्म कर दी। और सब की तरफ मुस्कुराते हुए देखने लगा।

    त्रिशूल ने फिर बोर्ड की तरफ मुड़ा और लिखने लगा साथ साथ में स्टूडेंट्स को एक्सप्लेन भी करते जा रहा था। और बच्चे बहुत शांति से और एक्साइटेड होकर सुन रहे थे।

    पर यहां हमारी दृष्टि के तो होश उड़ गए थे । उसने अध्यक्ष की तरफ देखा और धीमी आवाज में बोली।

    "यह कबीर सिंह का डुप्लीकेट हमारा प्रोफेसर है सच में मुझे तो यकीन नहीं हो रहा भाई अब तो नहीं गई यह मेरे से चुन-चुन के बदला लेगा"।

    अतीक्ष ने उसको देखा और धीमी आवाज में बोला।

    "हां जानता हूं मैंने देखा हम अब इसके बारे में बाद में बात करते हैं तुम अभी लेक्चर पर फोकस करो"।

    अतीक्ष ने इतना कहा और लेक्चर पर फोकस करने लगा। पर दृष्टि का ध्यान तो अब उड़ गया था पर फिर भी अतीक्ष के कहने पर उसने अपना ध्यान कंसंट्रेट कर लिया और वह लेक्चर भी मन लगाकर करने लगी।

    1 घंटे बाद .....

    लेक्चर खत्म होने के बाद सब बाहर कंपाउंड में बातें करने लगे थे। अब सब लोगों को पता चल गया था की जिसके साथ दृष्टि का झगड़ा हुआ था और दृष्टि ने जिसको एब्यूज किया था मेंटल ही वही उनका प्रोफेसर है अब।

    दृष्टि ने शोक होते हुए और थोड़ा एटीट्यूड में बोली।

    "वह तो सब ठीक है पर यह कुछ बोला नहीं यही बड़ी बात है क्या यह भूल गया या मैं इसको दिख ही नहीं मुझे अभी तक यकीन नहीं हुआ कि यह कुछ बोला ही नहीं मुझे कमल है "।

    नूर ने चौंकते हुए दृष्टि से कहा।

    "हां तुम्हारी बात सही है सर ने तुम्हें कुछ भी नहीं कहा लेक्चर के बाहर लेक्चर के पहले तुम तो बड़ी स्मार्ट हो और इंटेलिजेंट भी हो इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी उन्होंने तुम्हें कुछ भी नहीं कहा"।

    राहुल कहता है।

    "हा कमाल की बात है कि सर में दृष्टि से कुछ भी नहीं कहा अगर कोई दूसरा होता तो अब तक तो दृष्टि की कोई खैर नहीं होती वैसे दृष्टि तो रैंकिंग करने में और स्टूडेंट को एब्यूजिंग करने में माहिर तो है पर यह तो पहली बार हुआ है कि उसने किसी प्रोफेसर को किया है और वह भी उसने कुछ कहा नहीं"।

    अतीक्ष ने कुछ सोचते हुए और सब की तरफ देखते हुए बोला।

    "हां अभी तो कुछ नहीं कहा है पर बाद में क्या करेगा नहीं पता इसलिए अभी ही हवा में मत तोड़ो पहले देखो कुछ करता है या नहीं फिर बोलना यह सब"।

    अतीक्ष की बात सुनकर दृष्टि उसे बुरी तरीके से घूमने लगी। उसे अपनी तरफ ऐसे घूरता हुआ देखकर अतिक्ष ने अपने कंधे उसका दिए और बोला।

    "मुझे ऐसे घूरकर देखना से कुछ नहीं होने वाला दृष्टि में सच कह रहा हूं और वह भी सब कुछ सोच कर क्योंकि अभी उसके पास हमारे मार्क्स भी है और क्या पता वह तुम्हें प्रोजेक्ट और असाइनमेंट में परेशान करें या फिर जानबूझकर मार्क्स कम कर दे इसलिए अलर्ट रहो "।

    दृष्टि अतीक्ष की बातों पर अब सोच में पड़ गई। पर उसने अपने चेहरे पर ऐसा कुछ दिखाया नहीं।

    हिमांशू ने माही को देखते हुए कहता है ।

    "माही ओह माही देवी कहा खोई हुई हो आप ?

    माही जो अपने दुनिया में डूबी हुई थी। उसने अपने सेंस में आते हुए बोली।

    "वैसे सच कहा जाए तो त्रिशूल सर बहुत अच्छा पढ़ाते है न मुझे उनकी टीचिंग स्किल और स्टाइल बहुत अच्छी लगी.... वह बाकी टीचर्स से बहुत अलग है "।

    त्रिशूल की इतनी तारीफ करता हुआ देखकर दृष्टि माही को उपर से नीचे तक देखते हुए कहती है।

    "तुम ठीक होना ? बुखार वगैरा नहीं आया न तुझे ? क्या बोल रही हो तुम तुम्हे पता भी है ?"

    ये कहकर दृष्टि ने माही का सच में माथा चेक किया। माही ने अपना मुंह बनाते हुए उसे बोली।

    "हा में ठीक हु वैसे में हुलिया देखकर किसी को जज नहीं करती न और मुझे सच में त्रिशूल सर की टीचिंग काफी अच्छी लगी .... वैसे मुझे तो ऐसा लग रहा है कही धीरे धीरे मुझे उनसे प्यार न हो जाए "।

    माही ने अपनी बात खत्म करने के बाद अपने दिल पर हाथ रख दिया। जैसे उसे सच में प्यार हो रहा हो ।

    दृष्टि उसे ऐसा करते हुए देखकर अजीब सा मुंह बना ली। और मन ही मन में कहा।

    "लड़कियों को ऐसे बड़े दाढ़ी वाले और जिसे कपड़े पहने का सेंस न हो उनसे मोहब्बत कैसे होने लगती है यही समझ नहीं आता मुझे अजीब लड़कियां है भाई इस दुनिया में "।

    दृष्टि ने अपना सिर झटका दिया और दूसरी तरफ देखने लगी क्योंकि उसे अब माही के साथ झगड़ा करने में कोई इंटरेस्ट था नहीं और उसे पता था कि माही से आगे बात करेगी तो पक्का झगड़ा होना है।

    हिमांशू ने अपनी आंखे मिचकाते हुए माही से कहा।

    "चलो अच्छी बात है क्यूंकि तुम्हे कोई भी प्रोफेसर पसंद आता है नहीं इनके वजेसे तुम पढ़ाई तो करोगी और क्या पता तुम्हारा स्कोर भी बढ़ जाए

  • 5. Chapter 5

    Words: 1303

    Estimated Reading Time: 8 min

    माही ने अपने चेहरे पर नकली मुस्कान लाए हुए हिमांशु से बोली।

    "तुम उसकी चिंता मत करो मैं देख लूंगी कैसे पढ़ना है और कैसा अपना स्कोर बढ़ाना है"।

    इतना बोलकर माही वहां से घर के लिए चली गई। उसे ऐसा जाता हुआ देखकर हिमांशु कंफ्यूज होते हुए बोला।

    "इसे क्या हुआ अचानक? यह ऐसे क्यों चली गई?"

    राहुल ने से घूरते हुए कहा।

    "हिमांशु तुम कभी-कभी ज्यादा बोल दे तो ऐसे में लगता"।

    हिमांशु ने अपना मुंह बना लिया और फिर बोला।

    "अरे भाई मैं तो उसके बाली के लिए तो बोला हमें सबको पता है ना उसके हर सब्जेक्ट में कितने कम मार्क्स आते हैं और वह अपने पेरेंट्स से कितना मार खाती है उसके वजह से दांत भी देते हैं उसको"।

    नूर ने उसे कहा।

    "हा पर तुम्हारे कहने का तरीका थोड़ा अलग था उस में टोंट था इसलिए उसको बुरा लगा हम भी सब जानते है कि तुम उसके भलाई केलिए ही बोले हो पर तुम्हारे वर्ड्स थोड़े टांटिंग भरे थे"।

    हिमांशु ने अपना मुंह टेढ़ा कर लिया और बोला।

    "भलाई का कोई जमाना ही नहीं है जिसके लिए बोलो वह गुस्सा होकर चली जाती है और उसके बीएफ पर मेरे से लड़ रहे हो तुम लोगों को जो करना है वह करो में तो चला लेक्चर करने "।

    इतना बोलकर हिमांशू लेक्चर केलिए चला गया। सब उसे जाता हुआ देख रहे थे।

    नूर ने उसे जाता हुआ देखते हुए कहती है।

    "इसे कुछ कहना ही बेकार है इसे कुछ बोलो तो ये नाराज हो जाता है वैसे दूसरा भी नाराज होता है ये इसको कब समझ आएगा ?",

    अतीक्ष ने एक गहरी लंबी सांस ली और कहता है ।

    "कोई बात नहीं थोड़ी देर में इसका मूड ठीक हो जाएगा और ये वापस चला आएगा "।

    दृष्टि ने अतिक्ष की बातों का समर्थन करते हुए बोली।

    "हा दोनों का मूड ठीक हो जाएगा तुम लोगो को पता है न वह ऐसे ही लड़ते रहते है टॉम एंड जैरी की तरह लड़ते रहते है इस बार भी सुलह हो जाएगी में कॉलेज छूटने के बाद माही से बात करूंगी अब चलो लेट हो रहा है क्लास केलिए"।

    सब अपने अपने लेक्चर अटेंड करने केलिए चले गए। ऐसे ही शाम हो गई। और कॉलेज छूट गया। दृष्टि अतीक्ष के साथ घर चली गई। जब दोनों घर में आते है तो दृष्टि पार्किंग एरिया में अपनी बुलेट देखती है।

    उस बुलेट को चूकना चूर देखकर उसके चेहरे पर उदासी छा गई। पर उसने कुछ नहीं कहा अपना सिर नीचे करके घर में चली गए। अतीक्ष ने ये सब देख लिया था पर वह भी अभी कुछ नहीं कर सकता था ।

    जब दृष्टि और अतिक्ष घर के अंदर आते है। तो अतीक्ष के पापा ने उन दोनों को आता हुआ देखकर बोले।

    "अरे तुम दोनों आगये आओ बैठो यहां में तुम दोनों का ही वेट कर रहा था "।

    जब दृष्टि ने अतिक्ष के पापा की बात सुनी तो वह उन्हें देखने लगी। फिर उसने अतीक्ष की तरफ देखा । और उसे इशारों से ही पूछा।

    "कुछ हो गया है क्या ? चाचू ने क्यों बुलाया हमे "?

    अतीक्ष ने इशारों से ही अपनी गर्दन न में हिला दी। ये है मिस्टर मेहता अतिक्ष के पापा ये दिखने में जितने स्ट्रिक्ट दिखते है उतने ये है नहीं पर ये रूल्स और अपने कामों केलिए बहुत स्ट्रिक्ट है । इन्होंने दृष्टि की जिम्मेदारी ली है याह यू कहे कि वह दृष्टि के गार्डियन है।

    मिस्टर मेहता ने अतिक्ष और दृष्टि को आपस में इशारों में बाते करते हुए देखा। तो उन्होंने उन दोनों से कहा।

    ", में तुम दोनों को डांटते नहीं वाला हु उधर आजाओ कुछ बात करनी है तुम दोनों से जल्दी "।

    उनकी बातें सुनकर दृष्टि और अतिक्ष मिस्टर मेहता के सामने की सोफे पर बैठ जाते है। मिस्टर मेहता ने अपना गला साफ किया और फिर सीरियस टोन में बोले।

    ", पता है दृष्टि तुम्हारी बुलेट को किसी ने डैमेज कर दिया है"।

    दृष्टि ने मिस्टर मेहता की तरफ देखा और उसकी आंखें भर आई। उसने उन्हें कुछ नहीं कहा। पर मिस्टर मेहता ने उसके दिल की बात जान ली थी। उन्होंने उसके सामने एक पम्पलेट रखते हुए कहा।

    "में सोच रहा था कि तुम्हारे बर्थडे पर बुलेट बाइक तुम्हे गिफ्ट करूं सो इस में से कोई चॉइस कर लो जो तुम्हे पसंद आए में ले आऊंगा तुम्हारे बर्थडे के दिन"।

    दृष्टि ने वह पम्पलेट देखा पर उसके चेहरे पर कोई एक्साइटमेंट नहीं थी। उसने उदासी भरे स्वर में मिस्टर मेहता से कहती है।

    "पर चाचू वह तो बाइक मेरे पापा की आखिरी निशानी थी उन्होंने मुझे लास्ट टाइम गिफ्ट कर रही थी और मुझे वह बाइक बहुत पसंद है चाचू पापा के आखिरी निशानी थी"।

    मिस्टर मेहता ने एक गहरी लंबी सांस लेकर उसे समझाते हुए बोले।

    "जानता हूं बेटा वह बाइक तुम्हारी बहुत फेवरेट थी और तुम्हारे पापा ने गिफ्ट दी थी पर अब क्या कर सकते हैं अब उसे वापस ठीक तो नहीं कर सकते ना और हर चीज का एक पार्टिकुलर टाइम होता है शायद उसका भी इतना ही सफर था धीरे-धीरे वक्त के साथ-साथ हमें आगे बढ़ना पड़ता है और उसे भाई के साथ की जो भी तुम्हारी यादें हैं वह तो हमेशा तुम्हारे साथ रहने वाली है ना"।

    दृष्टि ने हा में अपना सिर हिलाया। अभी दृष्टि की आंखे नम थी उसने अपनी आंखों से आते हुए आंसू को पूछा। और फिर पंपलेट को देखते हुए बॉडी।

    "चाचू मैं बता दूंगी आपको देखने के बाद आपका दोगे ना?"

    दृष्टि ने मिस्टर मेहता को सामान्य नजर से देखा।

    मिस्टर मेहता ने हंसते हुए उसे कहा।

    "हां बिटिया में कोई झूठ नहीं बोल रहा इस बार तो मैं सच में यही सोचा था कि तुम्हें बाइक गिफ्ट दे दो तुम्हारे बर्थडे पर कहो तो अपनी चाची से पूछ लो?"

    मिस मेहता जो किचन में काम कर रही थी । वह बाहर आकर दृष्टि के साइड में बैठते हुए बोली।

    "हा बिटिया इस बार तुम्हारे चाचू सच बोल रहे है तुम चॉइस कर लो फिर वही बुलेट तुम्हारे बर्थडे के दिन आएगी ठीक है। और इस बार अच्छी और महंगी ही लेना ये मत सोचना कि कितना महंगा है क्योंकि चाचू पहली बार मेहरबान हो रहे है नहीं तो वह हर चीज में कंजूसी करते रहते है "।

    मिस्टर मेहता ने घूरते हुए और टंच कसते हुए कहते है।

    "हा ये कब किया में ने ? आपको जो पसंद आता है वह हम लेके देते है ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि आपने कुछ मांगा और वह हम ने नहीं दिया हो हा थोड़ा वक्त लगा होगा ... पर लाके तो दिया हु आपको श्रीमती जी ऐसा बोल के तो आपने मुझे निराश कर दिया"।

    मिस मेहता ने चेहरे पर झूठी मुस्कान लाते हुए बोली ।

    "अरे नहीं में तो ये कह रही थी कि आप हर चीज में बार्गेनिंग करते हो इसलिए उसे कहा कही आप वहां शो रूम में भी न करे "।

    दृष्टि और अतिक्ष ने एक दूसरे को और देखा और फिर उन दोनों को क्योंकि अब लड़ाई होने के तगड़े चांसेज थे। दृष्टि ने दोनों को शांत करते हुए कहा।

    "आप दोनों बात को कहा से कहा ले जा रहे है पहले मुझे बुलेट सिलेक्ट करने दो फिर तब देखते है "।

    इतना बोलकर दृष्टि और अतिक्ष वहां से चले गए। उनके जाने के बाद मिस मेहता ने मिस्टर मेहता की तरफ देखा। और धमकी देने वाले अंदाज में बोली।

    "इस बार कोई बार्गेनिंग और कुछ न चलेगा उसे जो पसंद आए वहीं लेना नहीं तो वह तुम्हारे वजेसे चीप बाइक लेगी में भी चाहती इस बर्थडे पे वह मायूस रहे समझे "।

    इतना कहकर मिस मेहता अपने काम में लग गई। उन्हें जाता हुआ देखकर मिस्टर मेहता खुद से ही बड़बड़ाते हुए कहते है।

    "ऐसा कह रही हो जैसे में ने उसको मन चाही चीजें कभी दी नहीं अरे मेरी भी बेटी है अकेली तुम्हारी नहीं बात करती हो उसको जो लेना वह ले दूंगा न में हु "।

  • 6. Chapter 6 <br> <br>indirectly help

    Words: 1130

    Estimated Reading Time: 7 min

    दृष्टि और अतीक्ष बेडरूम में बैठकर मिस्टर मेहता का पम्पलेट देख रहे थे और कौन सी बाइक लें, इस पर चर्चा कर रहे थे। दृष्टि अभी तक तय नहीं कर पा रही थी कि उसके लिए कौन सी बाइक सही रहेगी।

    अतीक्ष उसे हर बाइक के फीचर समझा रहा था। दृष्टि ने अपना सिर खुजलाते हुए कहा, "यार, मुझे तो कुछ नहीं समझ आ रहा है! सारी बुलेट बाइक अच्छी हैं और उनके फीचर्स भी अच्छे हैं। कौन सी चुनूँ मैं?"

    अतीक्ष ने बिना देखे कहा, "अब तुम्हारा बर्थडे है, तो तुम ही सिलेक्ट करोगी। हाँ, थोड़ा कन्फ्यूजिंग तो है, पर तुम्हारे पास पहले से रॉयल एनफील्ड की बाइक थी, तो तुम उसके अलावा कोई और, अलग-अलग कंपनी की बाइक्स इस्तेमाल करनी चाहिए।"

    अतीक्ष की बात सुनकर दृष्टि ने सोचते हुए कहा, "ओके, सो मैंने डिसाइड कर लिया है। मैं क्लासिकल लूंगी। मुझे उसके फीचर्स बहुत पसंद आए हैं, तो मैं वही लूंगी।"

    अतीक्ष ने दृष्टि को थम्सअप करते हुए कहा, "नाइस चॉइस! मुझे लगा ही था कि तुम यही लोगी।" इतना बोलकर अतीक्ष ने दृष्टि के सिर पर हाथ थपथपाया और उसके बाल बिगाड़ दिए।

    दृष्टि ने उसे ऐसा करते हुए देखा और झल्लाते हुए बोली, "मेरे बाल बिगाड़ो मत, नहीं तो पीट दूंगी यहीं के यहीं!"

    अतीक्ष फिर डेस्कटॉप पर जाते हुए बोला, "चलो, मैं तो चला गेम खेलने। अब मुझे डिस्टर्ब मत करना, ठीक है..."

    अतीक्ष अपनी बात पूरी कर पाता, उससे पहले ही दृष्टि ने सवाल किया, "हमारे सामने कोई नया पड़ोसी आया है क्या?"

    अतीक्ष ने उसके सवाल को अनसुना कर दिया और अपने गेम में लग गया। यहाँ दृष्टि कमरे की खिड़की से बाहर देखते हुए बोली, "इतनी सारी कारें क्यों आई हैं बाहर? लगता है कोई वीआईपी आया है हमारे इधर, वह भी इतनी सारी गाड़ियों के साथ... लगता है कोई महान शख्सियत है। कौन है पर ये?"

    दृष्टि की बातें सुनकर अतीक्ष भी थोड़ा उत्सुक हुआ। वह भी अपना गेम छोड़कर खिड़की की तरफ बढ़ा और बाहर देखने लगा। वहाँ सच में बहुत सारी कारें खड़ी थीं और सामान लाया जा रहा था।

    अतीक्ष ने थोड़ा हैरान होते हुए कहा, "ऐसा कौन आया है हमारे यहाँ जो इतनी सिक्योरिटी और गाड़ियाँ आई हैं? लगता है कोई सच में वीआईपी इंसान है। पर वो क्या यहाँ आयेंगे?"

    "होगा कुछ। शायद चाची को पता होगा। मैं पूछ के आती हूँ। उनके पास इस बंगले की चाबियाँ थीं।" दृष्टि ने अतीक्ष को जवाब दिया।

    अतीक्ष ने अपने कंधे उचका दिए और बोला, "तुम ही पता करो। वैसे भी हम जानकर क्या करेंगे? और हमें क्या मिलेगा जानकर? अपने काम में फोकस करो।"

    दृष्टि अतीक्ष की तरफ देखने लगी और 'उसका कुछ नहीं होगा' जैसा भाव लाकर नीचे लिविंग रूम में चली गई। इस वक्त लिविंग रूम में मिसेज़ मेहता ही मौजूद थीं। वह चाय पी रही थीं।

    दृष्टि उनके पास जाती है और लिविंग रूम में खड़े होकर बोली, "चाची, चाचू कहाँ चले गए? कहीं दिखाई नहीं दे रहे?"

    मिसेज़ मेहता ने दृष्टि को देखा और अपनी चाय का एक घूँट लेते हुए बोली, "वह उन्हें कुछ काम आ गया था, इसलिए वह बाहर चले गए बेटा। क्यों? कुछ काम था क्या उनके पास?"

    "अरे नहीं चाची, वह दिखे नहीं ना इसलिए मैंने आपसे पूछा कि वह कहाँ गए।" दृष्टि ने मिसेज़ मेहता को जवाब दिया।

    मिसेज़ मेहता ने सवाल किया, "तुम्हें भूख लगी है क्या? कुछ दे दूँ, बनाकर स्नैक्स खाओगी?"

    दृष्टि ने अपना सिर हिला दिया और बोली, "नहीं चाची, मुझे भूख नहीं लगी है। वह तो मैं बस ऐसे ही आ गई थी। वैसे मुझे एक बात पूछनी थी चाची।"

    श्रीमती मेहता ने उसे देखते हुए पूछा, "हाँ, पूछो ना क्या पूछना था तुम्हें?"

    "हमारे सामने कोई पड़ोसी आए हैं क्या, नया? मैं अभी खिड़की से देखा, बहुत सारे कार्स आई हुई हैं। कोई अमीर इंसान लग रहा है।" दृष्टि ने सवाल किया।

    मिसेज़ मेहता ने हाँ में जवाब दिया और बताने लगीं, "अरे बिटिया, हाँ, वहाँ एक लड़का रहने के लिए आया है। मैंने उसकी माँ से बात की थी... वह आई थी यह घर देखने और हमसे मिलकर गई। अच्छी फैमिली है और वह किसी बड़ी कंपनी चलाते हैं। मुझे तो उन्होंने इतना ही बताया। वैसे वह और उनका बेटा बहुत अच्छे लगे मुझे।"

    दृष्टि थोड़ी हैरान हुई। उसने हैरानी से पूछा, "चाची, आप एक ही मुलाकात से कैसे कह सकती हैं कि वह अच्छी फैमिली है? आपको इंसान के एक ही मुलाकात में उनका बिहेवियर और सब अच्छा है, यह कैसे लगने लगता है? क्या पता वह खुद को अच्छा दिखाने के लिए यह सब कर रहे हों? एक ही मुलाकात में हम यह तय नहीं कर सकते ना..."

    मिसेज़ मेहता दृष्टि की बात सुनकर हल्की सी मुस्कुराई और उसे पास बुलाते हुए कहा, "आओ बैठो यहाँ..."

    दृष्टि चुपचाप चाची के बगल में बैठ गई। उसके सिर पर हाथ फेरते हुए मिसेज़ मेहता ने कहा, "ऐसे बात नहीं है बिटिया... हमेशा हर कोई बुरा नहीं होता और एक मुलाकात से हम इंसानों को थोड़ा बहुत समझ सकते हैं... और हमेशा याद रखना, कभी भी किसी को उसके एक ही मुलाकात से जज नहीं करते। हर इंसान अच्छा होता है।"

    दृष्टि ने बस हाँ में जवाब दिया। मिसेज़ मेहता एक गिफ्ट का बॉक्स उसके हाथों में थामते हुए कहा, "वैसे यह पार्सल उनका गलती से यहाँ हमारे पास आया है, तो उन्हें दे के आओ। मैं खुद देती, पर अभी थोड़ा काम बाकी है, वह खत्म करना पड़ेगा। तो तुम दे आओगी और साथ में कुछ सामान ले के आना, मैं लिस्ट दे रही हूँ तुम्हें।" इतना बोलकर मिसेज़ मेहता ने उसके हाथ में लिस्ट दी और वह पार्सल भी।

    दृष्टि उस बॉक्स को देखते हुए बोली, "कुछ ज़्यादा ही भारी बॉक्स है। पार्सल है या सामान का बॉक्स है?"

    मिसेज़ मेहता ने कंधे उचकाते हुए बोली, "पता नहीं बेटा। शायद कुछ ज़रूरी सामान हो। वैसे वह पार्सल वाला हमारे नंबर्स के वजह से कन्फ्यूज हुआ था और वहाँ कोई था नहीं, तो यहाँ रख के चला गया।"

    दृष्टि मिसेज़ मेहता की बात सुनकर पार्सल उठा के ले जाती है। जब दृष्टि घर से बाहर निकलती है, वह सामने वाले बंगले की तरफ बढ़ गई। अब वहाँ पर कोई कारें नहीं थीं। बंगले के दरवाज़े के सामने दृष्टि खड़ी होकर घंटी बजाई।

    पहले तो कोई रिस्पॉन्स नहीं आया, इसलिए दृष्टि ने फिर से घंटी बजाई। अब दरवाज़ा खुला। दृष्टि सामने कौन है, यह भी देख पाई। पर उसने वह बॉक्स आगे बढ़ाते हुए कहा, "यह आपका पार्सल हमारे पास गलती से आया था... यह लीजिए।"

    सामने वाले शख्स ने बॉक्स लिया और वह साइड में रखता, उससे पहले ही दृष्टि वहाँ से चली गई थी। वह शख्स बाहर आता है और इधर-उधर देखते हुए कहता है, "कहाँ गई वह लड़की? इतने जल्दी चली बिना बात किए।"

    वह और कोई नहीं, त्रिशूल था। त्रिशूल पीछे मुड़कर घर जाने के लिए चलने ही वाला था कि उसे आवाज़ आई, "त्रिशूल जी, सुनिए।"

  • 7. chapter 7 <br> <br>atit ke raaz

    Words: 1063

    Estimated Reading Time: 7 min

    त्रिशूल ने पीछे मुड़कर देखा। वहाँ उसके बंगले के लैंडलॉर्ड, मिस्टर पांडे, खड़े थे। मिस्टर पांडे दिखने में स्वस्थ थे और उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी।

    पांडे आगे बढ़े और त्रिशूल को मुस्कुराते हुए बोले, "अरे त्रिशूल जी, आप आखिरकार आ ही गए! हम कब से आपकी राह देख रहे थे। अब आ गए तो अच्छा है।"

    त्रिशूल ने सवालिया निगाहों से उनसे पूछा, "क्यों? क्या हुआ सर? कुछ काम था क्या?"

    पांडे ने अपने हाथ में पकड़े हुए लिफाफे को त्रिशूल के सामने करते हुए कहा, "ये लीजिए, ये कुछ डॉक्यूमेंट हैं। इन्हें पढ़कर आप अपनी साइन कर देना। कल हम आएँगे... वैसे, यहाँ आने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई? सामान ला दिया आपने?"

    त्रिशूल ने लिफाफा लेते हुए कहा, "हाँ, अभी-अभी शिफ्ट हुआ हूँ यहाँ पे... और मैं ये कल पढ़कर आपको दे दूँगा, शाम तक।"

    पांडे मुस्कुरा दिए और आगे बोले, "वह तो है ना, सब समय पर और कायदे में रहकर होना चाहिए। आगे जाकर दिक्कत न हो।"

    "हाँ, मैं समझ गया आप क्या कहना चाहते हैं। वैसे, ये आपके लिए भी अच्छा है और हमारे लिए भी... वैसे, सामान अच्छे से आ गया है, कोई प्रॉब्लम नहीं आई," त्रिशूल ने मुस्कुराते हुए कहा।

    दोनों एक-दूसरे से बात ही कर रहे थे कि तभी उनके बाजू से एक बाइकर बहुत तेज गति से गाड़ी चलाते हुए निकल गया। उससे नीचे कीचड़ का पानी उन पर उड़ गया। पांडे पर ज़्यादा नहीं उड़ा, पर त्रिशूल पर बहुत ज़्यादा उड़ गया था।

    और उसके सारे कपड़े गीले हो गए थे। इस वक्त त्रिशूल ने एक थोड़ा ढीला और पारदर्शी सफ़ेद रंग का टी-शर्ट पहना हुआ था, जिसके कारण उसकी बॉडी दिखाई दे रही थी।

    पांडे ने उस बाइक वाले को देखते हुए चिल्लाते हुए कहा, "ओए! दिखता नहीं है क्या? या तो अंधे हो गए हो, बाइक चलाना नहीं आती क्या ढंग से? सारे कपड़े खराब कर दिए हमारे!"

    पर उनकी आवाज़ उस बाइक वाले तक नहीं पहुँची, वह तेज़ी से आगे बढ़ गया।

    पर पांडे की नज़र त्रिशूल के सीने पर गई और उसकी ओर इशारा करते हुए उन्होंने पूछा, "ये निशान कैसा है? किसका है ये निशान?"

    त्रिशूल ने उनकी बात सुनकर अपने सीने की ओर देखा और जल्दी से हाथों से छिपाते हुए बोला, "अह... वह बस ऐसे ही कुछ नहीं... मैं आपको ये डॉक्यूमेंट कल देता हूँ।"

    इतना बोलकर त्रिशूल वहाँ से भाग गया और बंगले में चला गया। उसे ऐसे भागते हुए देखकर पांडे हैरानी और भ्रम से देख रहे थे। उन्होंने खुद से ही कहा, "ये ऐसे क्यों भाग गया? वह निशान कैसा था? और उसके बारे में पूछने के बाद ये क्यों डर गया?"

    पांडे थोड़ी देर वहीं रुके, बाद में अपने कंधे उचकाते हुए बोले, "छोड़ो हमें क्या? हमें अपने किराये से मतलब है और वह किराया समय पर देगा, ये तो उसने पहले ही बोला है। एडवांस में किराया भी तो दिया है।"

    ये बोलकर पांडे आगे बढ़ गए।

    पर यहाँ, त्रिशूल के कमरे में आने के बाद हालात खराब हो रखे थे। उसकी साँसें तेज हो गई थीं और वह खुद को शांत करने की कोशिश कर रहा था। उसने वह लिफाफा लिविंग रूम के दराज में रख दिया और खुद का टी-शर्ट निकालकर बाथरूम में चला गया।

    त्रिशूल ने शॉवर चालू किया और उसके नीचे बीचों-बीच खड़ा रहा। उसके शरीर पर पानी की बूँदें गिर रही थीं। कीचड़ के छींटे धुल रहे थे। त्रिशूल की पीठ पर कई घाव थे। कुछ ताज़े थे तो कुछ पुराने, पर उनके निशान अभी भी मौजूद थे।

    त्रिशूल की पीठ जख्मों से पूरी भरी हुई थी। उन्हें देखकर कोई भी अनुमान लगा सकता था कि ये निशान शायद किसी जलने या किसी दुर्घटना के हो सकते थे।

    त्रिशूल नहाकर जल्दी बाहर आया और अपने बेडरूम के बिस्तर पर लेट गया। उसकी आँखों में नींद नहीं थी। पर त्रिशूल की आँखें काफी लाल हो रखी थीं, उसके आँखों के कोने से आँसू निकल आए।

    त्रिशूल ने अपनी आँखें पोंछते हुए कहा, "ये सब मेरे साथ क्यों हो रहा है? कब खत्म होगा?"

    यही बोलकर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और वहीं सो गया।

    अगले दिन...

    सुबह का समय...

    दृष्टि इस वक्त अपना नाश्ता कर रही थी और उसके साथ-साथ सब लोग भी नाश्ता कर रहे थे। अतीक्ष ऐसे खा रहा था जैसे उसके पीछे कोई पड़ा हो या फिर किसी ने उसके साथ खाने की बेट लगाई हो।

    अतीक्ष को ऐसा करते हुए देखकर मिस्टर मेहता उसे थोड़ा गुस्सा करते हुए बोले, "ये ऐसे क्यों खा रहे हो तुम? अच्छे तरीके से खाओ और खाने को हमेशा सम्मान देकर ही खाना चाहिए। ऐसे खाओगे तो न खाना डाइजेस्ट होगा और ऊपर से तुम्हारा पेट खराब होगा, वह अलग।"

    "अरे नहीं डैड, ऐसा नहीं है। आज थोड़ा जल्दी जाना है, इसलिए। नहीं तो मैं हमेशा से ही खाना अच्छे से ही खाता हूँ, आपको तो पता है ना," अतीक्ष ने ब्रेड का एक टुकड़ा अपने मुँह में डालते हुए कहा।

    मिस्टर मेहता ने उत्सुकता से उससे पूछा, "क्यों? आज क्या खास है जो तुम इतनी जल्दी-जल्दी खाना खा रहे हो? दृष्टि को देखो, कितने आराम से खा रही है।"

    मिस्टर मेहता ने दृष्टि की ओर देखा और उससे बोले, "तुम्हें कुछ पता है ये किसकी बात कर रहा है?"

    दृष्टि ने अतीक्ष की ओर देखा और फिर मिस्टर मेहता को जवाब दिया, "वह अपनी स्पोर्ट्स की प्रैक्टिस के लिए इतनी जल्दी-जल्दी खाना खा रहा है। उनके जो कोच हैं, वह समय के बहुत पाबंद हैं, इसलिए ये जल्दी वहाँ जाना चाहता है।"

    "अच्छा, ऐसी बात है। आराम से खाना खाओ, कोई जल्दी नहीं है। अगर बहुत लेट हो रहा हो तो मैं तुम दोनों को छोड़ दूँगा, ठीक है?" मिस्टर मेहता ने मुस्कुराते हुए कहा।

    अतीक्ष ने हैरानी से दृष्टि की ओर देखा और उसके कान के पास जाकर एकदम धीमी आवाज़ में कहा, "पापा को मेरी बातों पर नहीं, तुम्हारी ही बातों पर भरोसा होता है, ऐसा क्यों? मैं तो बाकी बच्चों की तरह शरारत नहीं करता, फिर भी इतना भरोसा नहीं है अपने बेटे पर।"

    दृष्टि ने अपनी आँखें घुमाते हुए उसे कहा, "क्योंकि मैं उनकी लाड़ली बेटी हूँ, इसलिए।"

    ये बोलकर दृष्टि ने अपनी दांत दिखा दिए।

    अतीक्ष ने दृष्टि की बातें सुनी तो उसका मुँह बन गया और वह चुपचाप अपना नाश्ता करने लगा। नाश्ता खत्म होने के बाद दृष्टि और अतीक्ष साथ में कॉलेज के लिए निकल गए। दृष्टि की बाइक नहीं थी, इसलिए वह अतीक्ष के साथ ही कुछ दिनों के लिए कॉलेज आने-जाने वाली थी।

  • 8. Chapter 8 <br> <br>nok jhok

    Words: 1302

    Estimated Reading Time: 8 min

    दृष्टि और अतीक्ष कॉलेज में अब आते हैं। दृष्टि लाइब्रेरी की ओर जाने लगी। उसे ऐसा जाते हुए देखकर अतीक्ष ने उसे रोकते हुए पूछा, "तुम कहाँ जा रही हो? मैच देखने नहीं आ रही?"

    दृष्टि ने उसे बताया, "अरे नहीं! मैं लाइब्रेरी से कुछ किताबें ले आई थी, उन्हें वापस करना है। और मैंने लाइब्रेरियन से कुछ किताबें माँगी थीं, देखती हूँ उन्होंने दीं या नहीं। अगर अभी नहीं देखीं, तो कोई और ले जाएगा, इसलिए अभी चलती हूँ।"

    अतीक्ष ने फिर उसे जवाब दिया, "अच्छा, फिर ठीक है। मैं चलता हूँ। तुम अपना काम करके आना।"

    दृष्टि ने उसे हाँ बोलकर लाइब्रेरी की ओर बढ़ गई। जब दृष्टि लाइब्रेरी में आई, तो वह लाइब्रेरियन के ऑफिस में गई और उन्हें अभिवादन करते हुए बोली, "गुड मॉर्निंग सर।"

    लाइब्रेरियन ने उसे देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "गुड मॉर्निंग दृष्टि।"

    दृष्टि ने अपनी बैग से किताबें निकालते हुए कहा, "सर, ये कुछ किताबें ली थीं मैंने, तो उन्हें वापस करने आई हूँ।"

    "वह किताबें जो तुमने माँगी थीं, मैं ले आया हूँ। बुक्सहेल्फ़ पर रखी हुई हैं। तुम वहाँ से ले लेना। बहुत रेयर बुक्स हैं ये। मुझे इन्हें ढूँढने में बहुत समय लगा, पर तुमने मुझसे कहा था, इसलिए तुम्हारे लिए ले आया।" लाइब्रेरियन ने उसे देखते हुए कहा।

    दृष्टि उनसे मुस्कुराते हुए बोली, "आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सर।"

    लाइब्रेरियन बस मुस्कुरा दिए।

    दृष्टि ऑफिस से बाहर आई और लाइब्रेरी में घूमने लगी। जहाँ लाइब्रेरियन ने उसे बताया था, उस बुक्सहेल्फ़ की ओर गई और किताब ढूँढने लगी। आखिरकार उसे वह किताब मिल गई और उसे लेने ही वाली थी कि तभी कोई और उसे ले गया।

    दृष्टि यह होते हुए देखकर काफी नाराज़ हो गई और ऊपर की ओर देखने लगी कि किसने यह किताब ली। सामने त्रिशूल को देखा तो उसका मुँह बिगड़ गया। और तेज आवाज़ में कहा, "अब तुम यहाँ भी आ गए?"

    त्रिशूल ने घूरते हुए देखा और बोला, "क्या मतलब?"

    दृष्टि की आवाज़ इतनी तेज और बड़ी थी कि उसके कारण लाइब्रेरी में सारे लोग उनकी ओर देखने लगे। दृष्टि अपने आस-पास देखने लगी तो उसे एहसास हुआ कि वह कहाँ है और उसे त्रिशूल से ऐसी बात नहीं करनी चाहिए थी क्योंकि इस वक्त वह उनका प्रोफ़ेसर थे। और उसे पता नहीं चलने देना था कि दृष्टि और त्रिशूल एक-दूसरे को जानते हैं। हाँ, यह बात अलग है कि उनके दोस्तों को उनके बारे में पता था।

    दृष्टि फिर उसे धीमी आवाज़ में कहती है, "सॉरी, मुझे ऐसी आवाज़ में आपसे बात नहीं करनी चाहिए थी, यहाँ तो बिल्कुल भी नहीं। पर यह किताब मैंने पहले देखी थी और इसकी डिमांड मैंने पहले ही सर से की थी, तो पहले मेरा हक़ बनता है इस पर। आप लेट हो गए।"

    त्रिशूल ने उसे घूरते हुए जवाब दिया, "हाँ, पर अभी मैंने ले ली ना? और जब मेरी पढ़कर हो जाएगी, तुम ले जाना। मेरे से अभी तो मुझे चाहिए पढ़ने के लिए।"

    त्रिशूल की बात सुनकर दृष्टि का चेहरा थोड़ा सा मुरझा गया था। पर दृष्टि तो दृष्टि थी, वह इतनी जल्दी हार मानने वाली कहाँ थी? उसने कुछ सोचते हुए कहा, "मुझे तो अभी चाहिए था, पर एक काम करते हैं... हम सर के पास जाते हैं, उनसे पूछते हैं। फिर देखते हैं, क्योंकि ये किताब मेरे लिए इम्पॉर्टेन्ट है।"

    दृष्टि त्रिशूल की कोई बात सुने बिना ही लाइब्रेरियन के ऑफिस की ओर चली गई। त्रिशूल ने उसे अपनी बात सुने बिना जाते हुए देखा तो उसने अपनी आँखें घुमाते हुए कहा, "ये लड़की इतनी ज़िद्दी क्यों है, समझ नहीं आता मुझे।"

    त्रिशूल चुपचाप लाइब्रेरियन के ऑफिस में चला गया। इस वक्त त्रिशूल, दृष्टि और लाइब्रेरियन के सामने थे। त्रिशूल ने हाथ जोड़कर खड़ा था और उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे।

    दृष्टि ने लाइब्रेरियन से कहा, "सर, मैंने आपसे कहा था मुझे किताब चाहिए, मुझे उसका काम है अभी। सर ने वह ले ली मुझसे पहले। ऐसा थोड़ी होता है? पहले मैंने माँगा था, मुझे देना चाहिए ना।"

    लाइब्रेरियन ने त्रिशूल की ओर देखा। वह आगे कुछ कहता उससे पहले ही त्रिशूल ने सपाट लहजे में कहा, "हाँ, पर मैंने पहले ले ली थी और मैं टीचर हूँ, तो मुझे यह किताब पढ़ना बहुत ज़रूरी है। As a teacher, मुझे बच्चों को पढ़ाने में किताबें पढ़कर ही मदद मिलती है और मैंने पहले ही इस स्टूडेंट को कहा था कि पढ़ने के बाद और मेरा काम होने के बाद मैं दे दूँगा। फिर ये कुछ और दिन के लिए क्यों नहीं रुक रही?"

    दृष्टि ने त्रिशूल की बात सुनी तो उसे थोड़ा गुस्सा आया, पर वह अपना गुस्सा कंट्रोल करना ही उचित समझती है। यह सोचकर चेहरे पर नकली मुस्कराहट लाते हुए बोली, "जानती हूँ सर, आप एक टीचर हैं, तो आपको यह सब पढ़ना पड़ता है। पर टेक्निकली देखा जाए तो मैंने पहले इसकी ऑर्डर की थी, तभी जाकर यह किताब यहाँ पर आई, नहीं तो यह किताब यहाँ आती ही नहीं। पर लाइब्रेरी तो हम स्टूडेंट्स के लिए होती है और वहाँ की किताबें भी, ताकि हम पढ़ सकें। हाँ, अगर आपको चाहिए है तो ठीक है, कोई बात नहीं। मैं बाद में पढ़ लूँगी।"

    दृष्टि ने वह किताब लाइब्रेरी के सामने रख दी और वहाँ से जाने लगी, पर त्रिशूल ने उसे रोकते हुए कहा, "रुको! मैंने तुम्हें जाने के लिए कहाँ बोला है? मेरी अभी तक बात कहाँ खत्म हुई?"

    दृष्टि ने उसकी ओर सवालिया निगाहों से देखा पर कुछ बोली नहीं। त्रिशूल ने वह किताब दृष्टि को देते हुए बोला, "यह किताब तुम लो। तुम्हें ज़्यादा ज़रूरत है इसकी। मैं बाद में पढ़ लूँगा या फिर कहीं और से ऑर्डर कर लूँगा।"

    दृष्टि ने त्रिशूल की बात सुनी तो उसके चेहरे पर बहुत बड़ी मुस्कान आ गई। और उसने खुश होते हुए कहा, "थैंक यू सर! Thank you so much sir!" इतना बोलकर उसने त्रिशूल के हाथ से वह किताब ली और वहाँ से जल्दी भाग गई।

    "आप दोनों की लड़ाई देखकर तो मुझे ऐसा लग रहा था कि आप उसे नहीं देंगे और फ़ाइनल आपने उसे दे ही दिया। बड़ा टेंशन का माहौल था सर।" लाइब्रेरियन ने त्रिशूल की ओर देखते हुए बोला।

    त्रिशूल ने उसकी ओर देखते हुए कहा, "मैं इतना भी बुरा नहीं हूँ कि किसी स्टूडेंट को अगर किताब की ज़रूरत हो तो उसे न दूँ।"

    लाइब्रेरियन ने फिर उससे बड़ी आँखें करते हुए कहा, "फिर इतना झगड़ा करने की क्या ज़रूरत थी? उस लड़की के साथ। आपको वह किताब चाहिए नहीं थी तो।" इतना बोलकर उस लाइब्रेरियन ने अपना मुँह बना लिया।

    त्रिशूल ने उसे देखा और कोई जवाब नहीं दिया और तुरंत वहाँ से चला गया। उसे ऐसा जाते हुए देखकर उस लाइब्रेरियन ने खुद से ही बड़बड़ाते हुए कहा, "बड़ा अजीब आदमी है। कुछ पूछो तो कभी जवाब नहीं देता और हमेशा चुपचाप डम्बों की तरह रहता है। पता नहीं क्या प्रॉब्लम है इसको।"

    क्लासरूम...

    दृष्टि अपने बेंच पर बैठी लेक्चर अटेंड कर रही थी। कुछ ही मिनटों में लेक्चर खत्म हो जाता है। दृष्टि उसके बाद अपनी किताब में नोट्स बनाने लगी। माही जो उसके साथ बैठी थी, उसने उबासी लेते हुए कहा, "यार, आज के सारे लेक्चर इतने बोरिंग क्यों लग रहे हैं? मुझे तो मज़ा नहीं आ रहा उन्हें अटेंड करने में।"

    दृष्टि ने माही की ओर एक सेकंड देखा और फिर अपने नोट्स बनाने लगी। और नोट्स बनाते हुए बोली, "चिंता मत करो, अभी तुम्हारे फ़ेवरिट सर का ही लेक्चर है, आते ही होंगे। उनका लेक्चर तुम्हें बोरिंग नहीं लगेगा।"

    माही दृष्टि की बात सुनकर पहले तो शर्मा गई और उसे एक चपेट मारते हुए कहती है, "थोड़ा धीरे बोलो, कितने जोर से बोल रही हो? किसी ने सुन लिया तो क्या कहेंगे? और सर ने सुन लिया तो फिर क्या होगा? क्या सोचेंगे वह?"

    दृष्टि ने उसकी बातों को सुना और उसने पूरे क्लास की तरफ देखते हुए बोली, "ये लोग क्या कहेंगे? मुझे तो इनकी बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। तुम्हें पड़ता होगा और सच कहा जाए तो तुम्हें क्यों पड़ना चाहिए फ़र्क?"

  • 9. Chapter 9 <br> <br>quiz

    Words: 955

    Estimated Reading Time: 6 min

    माही ने उसे देखा और थोड़ी झिझक गई। उसने हकलाते हुए और थोड़ी धीमी आवाज में कहा, "मैं तुम्हारी जैसी बिंदास और स्ट्रांग लड़की नहीं हूँ। इसलिए तुम सबसे भिड़ जाती हो, मैं नहीं। और ऐसा नहीं है कि मुझे लोगों की बातों का फर्क नहीं पड़ता, पर मैं हर्ट होती हूँ।"

    दृष्टि ने माही की तरफ देखा और फिर उसे बोली, "समय के साथ-साथ हमें खुद को बदलना पड़ता है माही, और तुम ऐसे ही रहोगी तो आगे जाकर तुम्हें बहुत दिक्कत होगी। इसलिए समय रहते ही स्ट्रांग बनो।"

    "मैं कोशिश करूँगी स्ट्रांग बनने की, तुम्हारे जैसे बनने की," माही ने स्फूर्ति के साथ कहा।

    दृष्टि ने उसे मुस्कुराते हुए कहा, "मेरे जैसे नहीं, तुम जैसे हो वैसे ही अच्छी हो। बस तुम्हारे में थोड़ी स्ट्रांग बनने की पॉवर आने की ज़रूरत है। बाकी सब खुद में स्पेशल होते हैं, किसी को किसी के जैसा बनने की ज़रूरत नहीं। हर इंसान खुद में खास होता है।" दृष्टि की आँखों में ये कहते वक्त एक अलग सा जुनून था, जो उसे एक स्पेशल बना रहा था।

    नूर, जो खिड़की के पास बैठी हुई थी, उसने सबको चुप रहने का इशारा करते हुए कहा, "सब लोग चुप रहें, त्रिशूल सर आ रहे हैं।"

    नूर की बात सुनकर पूरा क्लास चुप हो गया। त्रिशूल क्लास में आया। इस वक्त त्रिशूल काफी सीरियस था। उसने सब की तरफ देखा और एक क्यूब जैसा बॉक्स टेबल पर रखते हुए कहा, "मेरे पास आपके लिए कुछ इंटरेस्टिंग है... देखना चाहोगे?" और स्टूडेंट्स को उसके पास आने का इशारा किया।

    बच्चे उत्सुकता से उसके पास गए और टेबल पर रखी क्यूब को गौर से देखने लगे। त्रिशूल ने सबको एक नज़र देते हुए कहा, "ये बहुत पुरानी क्यूब है, जो आज तक कोई भी सॉल्व नहीं कर पाया, यहाँ तक कि मैं भी नहीं। आप लोगों में से कोई इसे सॉल्व करने की कोशिश करेगा क्या? शायद आप लोगों से हो पाए, देखते हैं इसको कौन सॉल्व कर पाता है।"

    एक स्टूडेंट ने उस क्यूब को ऊपर से नीचे तक देखते हुए और हाथ में लेते हुए कहा, "सर, इसका स्ट्रक्चर देखकर ऐसा लगता है कि ये काफी पुराना है और किसी राजा के ज़माने में इस्तेमाल करते थे। तब के लोग इसे ज़्यादा यूज़ करते थे, शायद। पर यूनिक भी है।"

    त्रिशूल ने अपनी गर्दन हाँ में हिलाते हुए कहा, "हाँ, सही कहा तुमने। ये काफी पुराना है और उन लोगों के इस्तेमाल करने के बाद से किसी ने भी इसे सॉल्व नहीं कर पाया। आज तक बहुत से लोग इस क्यूब के आगे फेल हो गए हैं।"

    त्रिशूल की बातें सुनकर स्टूडेंट्स हैरान हो गए। उनके लिए तो ये कोई मिस्टीरियस सी चीज़ लग रही थी।

    त्रिशूल ने सबकी तरफ देखते हुए कहा, "ओके, सो आप सब अपने-अपने सीट्स पर बैठ जाएँ और एक-एक करके इसे सॉल्व करने की कोशिश करें।"

    स्टूडेंट्स त्रिशूल की बात सुनकर अपने-अपने सीट पर बैठ गए और एक-एक करके स्टूडेंट्स आगे आने लगे और वह क्यूब को सॉल्व करने की कोशिश करने लगे। वह अपने तरीके से उलटा-पुल्टा, अलग-अलग साइड से हिलाने की कोशिश कर रहा था।

    पर नहीं हुआ। उसने हताश होते हुए और उदास होते हुए कहा, "ये सॉल्व करना बहुत मुश्किल है सर, मैं तो कर नहीं पा रहा हूँ।"

    त्रिशूल ने उसे मुस्कुराते हुए कहा, "कोई बात नहीं, आपने कोशिश अच्छी की।" वह स्टूडेंट अपनी सीट पर जाकर बैठ जाता है।

    उसके बाद दूसरा स्टूडेंट आया और वह ट्राई करने लगा। क्यूब पर उससे भी नहीं हुआ सॉल्व। उसने तो करीब फ्रस्ट्रेट होते हुए कहा, "ये तो हो ही नहीं रहा। लगता है हमारे पूर्वजों ने इसे सोच-समझकर बनाया है। बहुत डिफिकल्ट है। ऐसा तो कोई भी सॉल्व नहीं कर पाएगा।"

    उस स्टूडेंट के बाद हिमांशु आगे आया। उसने भी ट्राई किया, उससे भी नहीं हुआ। ऐसा ही एक-एक करके पूरे क्लास ने उस क्यूब को सॉल्व करने की कोशिश की, पर किसी से भी ये क्यूब सॉल्व नहीं हुआ। पर कोई एक थी जो अभी तक वहाँ मौजूद थी।

    दृष्टि अपने सीट से उठी और आगे आई। उसने बिना कुछ कहे ही उस क्यूब को देखा, फिर उसके हाथ ऐसे तेज़ी से चल रहे थे कि उसको इस क्यूब का हल पता था। और उसके हाथों को ऐसा चलता हुआ देखकर, और वह जिस तरीके से हल कर रही थी...

    उसे देखते हुए त्रिशूल ने उसे गौर से देखते हुए कहा, "दृष्टि, तुम्हें ऐसा लगता है कि इस मेथड से ये सॉल्व हो पाएगा?"

    दृष्टि ने त्रिशूल को कोई जवाब नहीं दिया। उसने झट से क्यूब को सॉल्व करके टेबल पर रख दिया। उस क्यूब को सॉल्व हुआ देखकर पूरे क्लास के स्टूडेंट्स बहुत शॉक हुए।

    एक स्टूडेंट ने शॉक होते हुए कहा, "इसने सॉल्व कर दिया? कैसे?"

    नूर ने अपनी घड़ी को देखते हुए कहा, "और वो भी बहुत कम समय में सॉल्व किया है। 2 सेकंड में सॉल्व कर दिया दृष्टि ने तो!"

    स्टूडेंट्स के साथ-साथ त्रिशूल भी बहुत ही शॉक और सरप्राइज़ हो गया था। उसे भरोसा नहीं हो रहा था कि दृष्टि ने ये क्यूब सॉल्व कर दिया है। त्रिशूल ने एक बार श्योर करने के लिए उस क्यूब को ध्यान से देखा और फिर दृष्टि को देखते हुए कहा, "अनबिलीवेबल! तुमने ये कर दिया सॉल्व! That's great! कोई तो हमारे क्लास में इंटेलिजेंट स्टूडेंट है!"

    दृष्टि त्रिशूल की बात सुनकर बस एक स्माइल दी। और सब स्टूडेंट्स उसको कांग्रेचुलेशन करने लगे। उसी समय बेल बज जाती है। त्रिशूल सब स्टूडेंट्स को देखते हुए कहा, "ओके, सो बच्चों कल हम अगले टॉपिक पर डिस्कस करेंगे और आप एक बार पढ़ के आना ताकि आपको एक आइडिया आ जाए।"

    त्रिशूल ने जाने से पहले दृष्टि को कहा, "दृष्टि, थोड़ी देर में मेरे केबिन में आना, ओके।"

    दृष्टि ने अपनी गर्दन हाँ में हिलाई और बोली, "ओके सर।" दृष्टि का जवाब सुनकर त्रिशूल वहाँ से चला गया।

  • 10. Chapter 10 <br> <br>intelligent student

    Words: 1215

    Estimated Reading Time: 8 min

    दृष्टि केबिन के बाहर ठहरी हुई थी। उसने नॉक किया। अंदर से आवाज़ आई, "कम इन"। दृष्टि अंदर आई। त्रिशूल फाइलें साइड कर रहा था और उसने उसकी ओर मुस्कुराते हुए देखा। दृष्टि उसके सामने खड़ी रही। वह थोड़ी नर्वस और एक्साइटेड थी। त्रिशूल ने उसे क्यों बुलाया था? ये सवाल उसके दिल में था, और उसे शायद शाबाशी देने वाला था ऐसा ख्याल आया।

    त्रिशूल ने उसे देखते हुए कहा, "तुमने जो क्लासरूम में क्यूब सॉल्व किया, वह काफी डिफिकल्ट था, पर तुमने किया। इट्स वेरी इम्प्रेसिव! आज तक कोई भी उसे सॉल्व नहीं कर पाया है। तुमने यह सब कैसे किया?"

    दृष्टि के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट आई और उसने कहा, "एक्चुअली सर, मेरे पापा आर्किटेक्ट थे, तो उनके पास ऐसे बहुत सारे पजल्स और फॉर्मुलस हुआ करते थे। मैं उन्हें सॉल्व करती थी, इसलिए मुझे यह सब आता है। बचपन से यही करती आई हूँ, ना? कोई भी सॉल्यूशन नहीं तो कुछ भी दे दो, मैं सॉल्व कर लेती हूँ।"

    त्रिशूल ने दृष्टि की बात सुनी तो उसे थोड़ी हैरानी हुई। फिर उसने कुछ सोचते हुए पूछा, "तो तुम्हें ऐसे एग्जांपल्स और फॉर्मुलस सॉल्व करना पसंद है?"

    दृष्टि ने अपनी गर्दन जल्दी से हाँ में हिलाई और बोली, "हाँ, मुझे पसंद है यह सब सॉल्व करना।"

    "ओके," त्रिशूल ने कहा और एक पेज पर कुछ मैथमेटिकल फॉर्मूला लिखने लगा। वह दृष्टि के सामने करते हुए बोला, "क्या तुम इसको सॉल्व करना चाहोगी? एक बार ट्राई कर लो।"

    दृष्टि ने वह पेपर लिया और फॉर्मूला को देखने लगी। कुछ ही सेकंड में उसने वह सॉल्व कर दिया और त्रिशूल के सामने वह पेपर आगे करते हुए बोली, "यह लो।"

    त्रिशूल ने पेपर लिया। उसके चेहरे पर सीरियस एक्सप्रेशन था। वह मन ही मन कुछ कैलकुलेशन कर रहा था। थोड़ी देर बाद उसकी आँखों में चमक आई। त्रिशूल ने दृष्टि की तरफ देखते हुए कहा, "वाह! अनबेलिवेबल! यह तुमने चुटकी भर में सॉल्व कर लिया! इतना डिफिकल्ट फॉर्मूला! तुम तो बहुत इंटेलिजेंट स्टूडेंट हो!"

    दृष्टि त्रिशूल को देखते हुए बस हल्की सी मुस्कुराई। उसकी आँखों में एक अलग सा कॉन्फिडेंस था जो दिखाई दे रहा था। त्रिशूल ने दृष्टि के बारे में टीचर स्टाफ से बहुत कुछ सुना था, कि वह बहुत इंटेलिजेंट स्टूडेंट है। दृष्टि फास्ट लर्नर थी और आज यह साबित हो गया था त्रिशूल के सामने कि दृष्टि बहुत इंटेलिजेंट स्टूडेंट है।

    दृष्टि ने कहा, "थैंक्स सर।"

    त्रिशूल कुछ सोचते हुए कहा, "तुमने मैथमेटिकल रिसर्च के बारे में और उसके कंपटीशन के बारे में सुना है क्या? तुम उसमें पार्ट लेगी?"

    "एक्चुअली सर, मुझे इसके बारे में कुछ नहीं पता और मैंने कभी यह रिसर्च वगैरह कभी किया नहीं है। तो मुझे भी नहीं पता कि मैं कर पाऊँगी या नहीं। मैं तो बस नए-नए फॉर्मूला और मैथमेटिक्स के एग्जांपल सॉल्व करती हूँ। मुझे वह करना पसंद है।" दृष्टि ने थोड़ा कन्फ्यूज़ होते हुए और अपना सिर खुजलाते हुए बोली।

    त्रिशूल ने उसे मुस्कुराते हुए और एक गहरी लंबी साँस लेने के बाद कहा, "कोई बात नहीं। मैं तुम्हें गाइड करूँगा और मुझे लगता है कि तुम्हें यह करना चाहिए। इतना अच्छा मौका है और तुम तो यह सब कर सकती हो ना? बाकी बच्चों से अलग हो तुम। बाकी बच्चों को यह सब करने में टाइम लगता है और सीखने में भी। तो तुम यह कर लोगी। एक बार ट्राई करो, बाकी मैं तुम्हें खुद समझा दूँगा।"

    दृष्टि एक मिनट के लिए सोचने लगी। फिर उसने त्रिशूल की तरफ देखते हुए बोली, "ओके, आप कह रहे हो तो एक ट्राई करने में क्या जाता है? पर मुझे थोड़ा डर है। अगर इसमें हम हार गए या फिर फेल हो गए तो यह सब..."

    दृष्टि थोड़ी असहज और डरी हुई थी। उसे हारने का और अगर रिसर्च फेल हो गया तो क्या होगा इसका बहुत डर था। त्रिशूल ने दृष्टि की मन की बात जान ली। उसने उसे इनकरेज करते हुए कहा, "ट्राई करने से पहले तुम इतना क्यों सोच रही हो? और यह तुम्हारे पास अच्छी ऑपर्च्युनिटी आई है, उसके बारे में सोचो। और मैं हूँ ना, मैं तुम्हें गाइड करता रहूँगा... और कोशिश करने से पहले हार नहीं मानते। हम अपनी तरीके से पूरी कोशिश करेंगे।"

    दृष्टि के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कुराहट आई। त्रिशूल अपनी वॉच देखते हुए कहता है, "अभी तो रिसेस का टाइम हो गया है। हम लंच ब्रेक के बाद मिलते हैं, फिर डिस्कस करते हैं इसके बारे में।"

    दृष्टि ने जल्दी से अपनी गर्दन हाँ में हिलाई और त्रिशूल से अलविदा लेकर केबिन से बाहर आई। उसके चेहरे पर एक बड़ी सी स्माइल थी। वह खुशी से झूमते हुए क्लासरूम में जा रही थी।

    क्लासरूम में जब दृष्टि आई, तो अब तक लंच ब्रेक हो गया था और सब स्टूडेंट्स लंच करने के लिए कैंटीन जा रहे थे। दृष्टि झूमते हुए अपने बेंच पर आई और सामान समेटने लगी। उसे खुश देखकर माही ने उसे पूछा, "दृष्टि, क्या हुआ? तुम बहुत खुश लग रही हो? क्या बात है? और सर ने तुम्हें क्यों बुलाया था?"

    दृष्टि ने माही की तरफ देखा और क्लासरूम की चारों तरफ अपनी नजरें डालते हुए बोली, "बात ही ऐसी है, तो खुश क्यों ना हों?"

    माही ने एक्साइटेड होते हुए पूछा, "ओह, तो बताओ क्या बात है?"

    दृष्टि ने धीमी आवाज़ में उसे जवाब दिया, "इधर नहीं, तुझे कैंटीन में बताती हूँ। सीक्रेट है।"

    माही फिर ओके कहती है और चुप हो जाती है।

    कैंटीन में....

    इस टाइम दृष्टि और माही एक टेबल पर एक दूसरे के आमने-सामने बैठी अपना लंच कर रही थीं। और दृष्टि ने माही को पूरी बात बता दी थी। माही ने सरप्राइज़ होते हुए दृष्टि से कहा, "व्हाट! तुम त्रिशूल सर के साथ अब काम करोगी? उनके प्रोजेक्ट पर? यह तो बहुत बड़ी बात है, बहन! इससे बड़ी ऑपर्च्युनिटी कहीं नहीं मिल सकती! फिर तुमने क्या कहा?"

    माही की आवाज़ इतनी तेज थी कि उसकी आवाज़ पूरी कैंटीन में गूंज उठी थी। और सब उनके तरफ देखने लगे थे। दृष्टि ने उनकी नज़रों को महसूस किया और सब की तरफ एक स्माइल देकर माही को हाथ पर चिमटा काटते हुए बोली, "धीरे बोलो, बहन! सबको नहीं बताना है। अपने में सीक्रेट है यह।"

    माही ने अपने मुँह पर हाथ रख दिया और जीभ बाहर निकालते हुए कहती है, "ओह, सॉरी-सॉरी... फिर कब काम करने वाले हो इस पर? कुछ बताया उन्होंने?"

    "लंच ब्रेक के बाद बुलाया है डिस्कस करने के लिए। जाऊँगी, फिर तब पता चलेगा।" दृष्टि ने जवाब दिया।

    माही ने कहा, "अच्छा, गुड लक! तुम कर लोगी, मुझे पता है।"

    दृष्टि को फिर कुछ याद आता है। उसने माही से पूछा, "ये बाकी सब कहाँ हैं? अतीक्ष और सब कहीं दिख नहीं रहे? मैं आई थी तब भी मुझे कहीं नहीं दिखे। आज इनको लंच करना नहीं है क्या? अब तक तो आ जाते हैं ये लोग।"

    माही उसे कहती है, "अरे, वह गेम की प्रैक्टिस कर रहे हैं। आज लेट हो जाएगा उनको। अतीक्ष ने तुम्हें बताया नहीं क्या?"

    दृष्टि को याद आता है कि अतीक्ष ने उसे जाते जाते सुबह ही बता दिया था कि उनको लेट होगा। यह याद करते हुए दृष्टि बोली, "हाँ, याद आया अभी। पर यह नूर उनके साथ क्यों चली गई? उसका क्या काम है वहाँ पे?"

    माही ने अपनी आँखें घुमा ली और मुँह बनाते हुए बोली, "वह तो अपनी अलग दुनिया में रहती है। तुम्हें पता है ना।"

    दृष्टि ने उसकी बात सुनी तो वह हामी में अपना सिर हिलाया।

  • 11. Chapter 11 <br> <br>Mentor

    Words: 1258

    Estimated Reading Time: 8 min

    Mentor

    लाइब्रेरी में....

    दृष्टि लाइब्रेरी में बैठकर त्रिशूल ने दिया हुआ फॉर्मूला सॉल्व करने की कोशिश कर रही थी। पर उससे सॉल्व नहीं हो रहा था। वह एक इक्वेशन पर अटकी पड़ी थी।

    त्रिशूल वहां आता है वह उसे सीरियस टोन में हमेशा की तरह बिना किसी भाव से पूछा।

    "कोई दिक्कत आ रही है सॉल्व करने में?"

    दृष्टि ने त्रिशूल की तरफ देखा और थोड़ा कंफ्यूज होते हुए बोली।

    "हां यह थोड़ा ट्रिकी है समझ में नहीं आ रहा है इसको कौन सा इक्वेशन लगेगा कब से वही ट्राय कर रही हूं पर नहीं हो रहा"।

    त्रिशूल ने फिर बुक की तरफ गौर से देखते हुए और दृष्टि को एक हिंट देते हुए कहा।

    "अगर तुम इस तरीके से करोगी तो तुम्हें आंसर मिल जाएगा करो"।

    दृष्टि त्रिशूल का हिंट पाते हैं इस डायरेक्शन में सॉल्व करने की कोशिश करती है तो उसका आंसर सही आता है। दृष्टि ने खुश होते हुए कहा।

    "आगया "।

    त्रिशूल बस एक हल्के से मुस्कुरा दिया। और फिर दृष्टि से अपने ऑफिस में आने के लिए करता है।

    इस वक्त दृष्टि और त्रिशूल ब्लैक बोर्ड पर कुछ सम और एग्जांपल सॉल्व करने की कोशिश कर रहे थे। त्रिशूल उसको बिना देखे ही उसको समझा रहा था। फिर बीच में ही वह कहीं अटक जाता है।

    दृष्टि एक चौक अपने हाथ लेती है। और लिखते हुए करती हैं।

    "अगर हम इस इक्वेशन को इसमें डालेंगे तो हमें हमारा आंसर मिल जाएगा सर"।

    त्रिशूल इस इक्वेशन को देखा है। और वैसे ही सॉल्व करता है। तो जवाब वही आता है जो दृष्टि ने उसे बताया था। त्रिशूल के चेहरे पर तो कोई भाव थे नहीं पर वह थोड़ा इंप्रेस्ड हो गया था। त्रिशूल नहीं पीना देखेगी दृष्टि से कहा।

    "Impressive तुमने तो यह एक चुटकी में और दूसरे तरीके से सॉल्व कर लिया"।

    दृष्टि में त्रिशूल की तरफ देखते हुए और अपने गहरी नजरे उसे पर रोकते हुए बोली।

    "हां अगर यह इक्वेशन हम अपनी जिंदगी में भी अप्लाई करें तो जिंदगी जीना बहुत आसान होता है मैथ्स में हमारे जिंदगी के जैसा ही तो है बस देखने का नजरिया थोड़ा अलग चाहिए"।

    "सबकी जिंदगी एक जैसे नहीं होती दृष्टि और सबका देखने का नजरिया भी अलग ही होता है हां बस किसी की जिंदगी हसीन होते हैं तो किसी की नहीं हर इंसान अपने तरीके से उसकी जीत है "। त्रिशूल ने दृष्टि से सीरियस स्टोन में कहां।

    दृष्टि में फिर उसे घूरते हुए पूछा।

    "तो इसलिए आप ऐसे इतने सीरियस रहते हो ? किसी से ज्यादा बाते नहीं करते न किसी स्टाफ के साथ घुलते मिलते हो ? हमेशा से ही सीरियस हो याह फिर बाद में बने हो सीरियस?

    त्रिशूल ने एक गहरी लंबी सांस ली। और फिर बोला।

    "अब मुझे सीरियस रहने की आदत है तो में ऐसे हमेशा से रहता हु और मुझे अपनी पर्सनल और अपनी प्रोफेशनल लाइफ अलग रखनी पसंद है और में काम की बाते करता हु किसी से भी इसलिए "।

    दृष्टि त्रिशूल की बाते बड़ी ध्यान से सुनी और फिर कहती है।

    "ओह बड़े चुपरुस्तम हो ... आप सर जी और अपनी जिंदगी एक दम रूल से जीते हो आप "।

    त्रिशूल ने फिर उसे कहा।

    "अब बाते बहुत हो गए काम पर फोकस करे ? क्यूंकि हमारे पास टाइम बहुत कम है और काम ज्यादा है जल्दी करना होगा कभी भी हमे ये प्रोजेक्ट सबमिट करने केलिए कहेंगे "।

    दृष्टि ने चौंकते हुए और थोड़ी सरप्राइस होते हुए बोली।

    "पर अभी तो हम ने स्टार्ट किया और इसके बारे में हमे अभी पता चला है ऐसे कैसे वह हमे कम टाइम दे सकते थोड़ा टाइम और उन्हें देना चाहिए था इससे तो हमारा जल्दी खत्म होगा नहीं "।

    त्रिशूल ने उसे घूरते हुए कहा।

    "तुम अगर ऐसे बाते करती रहोगी और काम नहीं करोगी तो जरूर हमे टाइम होगा इसलिए वर्क पर फोकस करो फिर हमारा काम जल्दी हो जाएगा "।

    दृष्टि ने उसे अपनी आंखे रोल कर ली और खुद से बड़बड़ाते हुए बोली।

    "में बाते कर रही हु ? भला सब चीज में मेरी ही गलती क्यों दिखती है अजीब बात है ...

    त्रिशूल उसे फिर बुरी तरीके से घूरने लगता है कहता कुछ नहीं पर दृष्टि ने उसके भावों को पड़ लिया इसलिए वह ध्यान से वाइटबोर्ड को देखने लगी।

    त्रिशूल ने बोर्ड पर लिखते हुए बोला।

    "P = ax + by c अगर ऐसा करे तो इसका डाटा और एनालिसिस हमे मिलेगा ऐसे करके "।

    दृष्टि सोचते हुए बोली।

    "अच्छा तो ऐसे मेरी जिंदगी तो एक इक्वेशन बन जाएगी पहले पढ़ाई फिर खाना फिर सोना ऐसा करके उसका आउटपुट मिलेगा पूरा दिन पढ़ाई और उसके साथ कोई एंजॉयमेंट नहीं है हद्द है ऐसे लाइफ पे "।

    त्रिशूल ने उसे कटाक्ष करते हुए कहा।

    "तुम हर इक्वेशन को अपने लाइफ से क्यों जोड़ रही हो ? हा उस में एक एड करना चाहिए था तुम्हे ?"

    दृष्टि ने त्रिशूल से एक्साइटेड होते हुए पूछा।

    "और वह क्या ? सब तो एड कर दिया में ने जो में डेली रुटीन में करती हु अब क्या रह गया ?

    त्रिशूल ने अपनी आंखे छोटी की । और उसे स्मीर्क स्माइल के साथ कहता है।

    "एटिट्यूड... एटिट्यूड को एड करना रह गया वह भी बहुत होता है तुम में एकदम कूट कूट के भरा हुआ होता है "।

    दृष्टि अपने चेहरे पर एक नकली मुस्कुराहट लाई। और बोली।

    "हा सेम टू यू आप तो कबीर सिंग के जैसे इधर उधर घूमते हो और चेहरे पर सदु सा एक्सप्रेशन होता है उसका क्या करे ? उलटा चोर कोतवाल को डांटे सही है में तो बहुत कम करती हु आपके जैसे थोड़ी हु में हु..."।

    "तुम्हे ऐसा नहीं लगता कि तुम बहुत बोलती हो कब से बोल रही हो हमारा काम पूरा हुआ नहीं इसके चक्कर में "। त्रिशूल ने उसे घूरते हुए कहा।

    दृष्टि ने अपनी बत्तीसी दिखाते हुए बोली ।

    "हा सही कहा में बहुत बोलती हु पर क्या करु आदत है न उसको हम बदल नहीं सकते न उदास होने से अच्छा है खुश और बोलते रहो जो हमें लगता है "।

    त्रिशूल ने दृष्टि की बाते सुनी तो उसने उसे इग्नोर कर दिया और अपनी कलाई पर बंदी घड़ी की तरफ देखने लगा । तो अब तक बहुत देर हो चुकी थी। शाम के 4 बज गए थे और कॉलेज में इस वक्त कोई था नहीं । उन दोनों के अलावा।

    त्रिशूल ने अपना सामान समेटते हुए बोला।

    "चलो बाकी का काम हम कल करते है अभी चलते है "।

    त्रिशूल ने खुशी से चहकते हुए बोली।

    "ओके अभी हमारी छुट्टी हुई है चलो अच्छी बात है मुझे तो भूख लगी है बहुत "।

    दृष्टि ने ये कहते कहते अपने पेट पर हाथ लगाया जैसे कि उसको बहुत भूख लगी हो। वैसे लगी तो थी क्यूंकि उसके पेट से आवाज जो आ रही थी।

    त्रिशूल ने ये सुनकर फिर अपना गला साफ करते हुए कहा।

    "तुम कहा रहती हो ? में तुम्हे ड्रॉप कर देता हु ... याह उससे पहले कॉफी पीने चलते है ठीक रहेगा "।

    दृष्टि ने अपनी आंखे बड़ी बड़ी करते हुए उसे पूछा।

    "आप क्यों भला मेरे साथ कॉफी पीने चलेंगे ? बड़े लोग आपके जैसे मेरे साथ कैसे कर सकते है ये ?

    त्रिशूल ने आगे बढ़ते हुए कहा।

    "क्यूंकि मुझे भी भूख लगी है इंसान हु इंसान की तरह रहता हु तो ओबवियसली भूख लग सकती है मुझे और चुपचाप चलो मेरे साथ एक शब्द नहीं निकालना अपने मुंह से समझी "।

    दृष्टि ने त्रिशूल को देखा और उसके पीछे पीछे चुपचाप चलने लगी। पर दृष्टि चुप रहने वाली थी कहा ? उसके दिमाग में कुछ न कुछ चलता रहता था । दृष्टि ने त्रिशूल से सवाल किया।

    "Why are you so serious always?

  • 12. Chapter 12 <br> <br>coffee date

    Words: 1277

    Estimated Reading Time: 8 min

    त्रिशूल ने दृष्टि की तरफ देखा। और फिर आगे चलते चलते हुए कहा।

    "तुम चुप रहने का क्या लोगी ? याह चुप रहना नहीं आता तुम्हे? बहुत बड़बड़ करती हो"।

    दृष्टि ने खुशी से झूमते हुए और उसके साथ चलते हुए कहती है।

    "हा में चुप नहीं रह सकती ऐसा कुछ समझो अब बताओ आप इतने सीरियस क्यों रहते हो और ये कबीर सिंग जैसा हुलिया क्यों बनाया हुआ है ? कही आपका भी उसके जैसा ब्रेकअप हुआ है क्या ?

    त्रिशूल फिर भी उसके सवाल का जवाब नहीं देता वह उसको इग्नोर कर देता है। पर हमारी दृष्टि उसको बहुत सारे सवाल कर रही थी। त्रिशूल उसके सवालों को पूरी तरह से इग्नोर किया जा रहा था फाइनली अब त्रिशूल और दृष्टि अपने डेस्टिनेशन पहुंच गए थे ।

    कॉलेज के थोड़ी सी दूरी पर एक कैफे था। दृष्टि और त्रिशूल दोनों वहां पैदल चले गए। त्रिशूल और दृष्टि कैफे के अंदर जाते है और वहां एक चेयर पर बैठते है। थोड़ी देर में वहां वेटर आता है ऑर्डर लेने केलिए आता है।

    वेटर उन दोनों को देखते हुए पूछा।

    "बताए क्या खाना चाहेंगे आप ? क्या ऑर्डर करना है आपको ?"

    त्रिशूल ने कुछ कह पाता उससे पहले दृष्टि कहती है।

    "ज्यादा कुछ नहीं एक कोल्ड कॉफी और साथ में नूडल्स और सैंडविच देना वह भी मस्त बटर लगा के और ग्रिल करके देना वह बस मेरे लिए बाकी आप इनका देख लो क्या खाना है इनको "।

    वेटर फिर त्रिशूल की तरफ देखते है । त्रिशूल उसे अपनी तरफ देखते हुए देखकर फिर उसे बोला।

    "मुझे बस चाय दीजिए "।

    वेटर ने फिर से उससे पूछा।

    "और बाकी स्टार्टर में क्या चाहिए?

    त्रिशूल ने ना में सीर हिलाते हुए बोला।

    "नहीं बस और कुछ नहीं चाहिए हमे "।

    वेटर उसके बाद वहा से चला जाता है। दृष्टि इधर उधर देखने लगी। कैफे का माहौल बहुत शांत था लोग अपना नाश्ता कर रहे थे । अब दोनों के बीच खामोशी थी। त्रिशूल अपना मोबाइल देख रहा था और दृष्टि कैफे को चारों तरफ नजरें घुमाती है। तो कभी त्रिशूल को घूरती है।

    दृष्टि ने अपना गला साफ करती है और फिर उसे देखकर बोली।

    "आप कुछ बोलेंगे भी याह फिर ऐसे ही मोबाइल में घुसे रहेंगे वैसे मुझे रहना चाहिए पर में नहीं हु आपके जैसे मोबाइल पर टुक टुक कर रही "।

    त्रिशूल ने कन्फ्यूजन से उसे पूछा।

    "क्या? टुक टुक? ये क्या होता है ?

    दृष्टि ने उसके हाथ में मोबाइल की तरफ इशारा करते हुए बोली।

    "अभी जो तुम्हारे हाथ में है और उसको चला रहे हो वह उसको टुक टुक बोलते है "।

    त्रिशूल ने अपने मोबाइल की तरफ देखा और फिर दृष्टि को देखते हुए कहा।

    "तो और क्या करु ? में कम और कुछ जरुरी हो तब बोलता हु उसके अलावा कुछ नहीं बोलता मुझे काम के सिवा बात करना पसंद है नहीं ....

    अब तक दोनों का ऑर्डर आगया था। अपना ऑर्डर सर्व होने के बाद सेंडविच का एक बाइट खाते हुए कहती है।

    ",मेरे से बात करोगे तो में कोई खा नहीं जाऊंगी तुम्हे और वैसे भी में थोड़ी चुलबुली हु और बाते करती हु वैसे मेरे साथ तुम कुछ भी शेयर कर सकते हो में किसी को नहीं बताऊंगी "।

    त्रिशूल अपनी चाय पी रहा था । तब उसके हाथ रुक गए और दृष्टि को देखने लगा। उसके आंखों में एक अनकहा दर्द झलक रहा था जो दृष्टि ने देख लिया था। दृष्टि ने उसे फिर से उसे कहा।

    "ऐसे कितने टाइम सब चीजें अपने पास अपनी ज़हन में बातों को छुपाओगे? कभी तो खुल के बात करो अपनी दिल की बात बया करो "।

    "कुछ बाते राज़ रहे तो अच्छा होता है दुनिया के सामने अगर आई तो कहर होगा और ऐसे बाते वापस याद करके बस खुद को तकलीफ होती है और कुछ नहीं "। त्रिशूल ने अपनी चाय की सिप लेते हुए कहा।

    दृष्टि ने त्रिशूल की आंखों में अपनी आंखे डालते हुए उसे कहा।

    "हा पर अगर वह बाते जो तुम्हे पहले से ही तकलीफ दे रही है और अंदर ही अंदर तुम्हे तोड़ रही हो .... तो उसको बयान करना अच्छा होता है और अगर तुम मुझसे शेयर नहीं करना चाहते तो कोई बात नहीं पर अपना दिल कही और बयान करो.... जैसे कि तुम कही लिख के अपनी दबी हुई फीलिंग्स एक्सप्रेस कर सकते हो "।

    त्रिशूल के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कुराहट आई। और उसने हा में सिर हिलाया। उसका रिएक्शन देखकर दृष्टि अपना नाश्ता करने लगी। अब त्रिशूल और दृष्टि में थोड़ी बाते बढ़ गई। और त्रिशूल भी थोड़ा ओपन होने लगा था।

    कुछ टाइम बाद दोनों का मिल खत्म हो जाता है। और वह कैफे का बिल पे करके साथ में कैफे से बाहर आते है। त्रिशूल ने कहा।

    "चलो मेरे साथ में तुम्हे ड्रॉप करता हु एड्रेस बस बताना कि कहा है तुम्हारा घर "।

    दृष्टि त्रिशूल की बात सुनती है तो वह उसे शॉक भरी नजरों से देखने लगती है। और उसी रिएक्शन से बोली।

    "तुम मुझे छोड़ोगे ? वह भी घर पे ? यकीन नहीं हो रहा मुझे की प्रोफेसर अपने स्टूडेंट को घर ड्रॉप कर देता है thats strange ।

    त्रिशूल ने उसे अपनी छोटी आंखे करते हुए कहा।

    "हा प्रोफेसर आम आदमी होता है और वह ऐसे काम कर लेते है में ऐसा मेरे पहले के स्टूडेंट्स के साथ करता था जब उनको कुछ नीड हो तब इस में इतना शॉक होने की क्या जरुरत है "।

    दृष्टि ने उसपर कटाक्ष करते हुए कहा।

    "अरे नहीं ऐसे बात नहीं है वैसे आपके नजरिए से में तो बहुत बदतमीज स्टूडेंट हु न तो इसलिए पूछा क्या पता कल फिर से कुछ मेरे बारे में बोल दो तुम "।

    "तुमने किसने कहा कि में तुम्हे बद्तमीज स्टूडेंट समझता हु ? त्रिशूल ने सवाल किया।

    दृष्टि ने एक गहरी लंबी सांस ली। और कहती है।

    "उस में किसी के बताने की जरुरत है नहीं अपने आप पता चल जाता है और कॉलेज मैं भी हम बहुत फेमस है उसकी खबरे तुम्हारे पास नहीं पहुंचती ऐसा तो कभी हो नहीं सकता "।

    त्रिशूल ने अपने पॉकेट से कार की चाबी निकालते हुए कहा।

    "हा पर में उड़ती हुई अफवाओं पर भरोसा नहीं करता और ये नेचुरल है इस एज में होता रहता है और तुम्हे ऐसा लगता होगा कि में तुम्हे बद्तमीज स्टूडेंट समझता हु तो ऐसा नहीं है तुम अच्छी हो हा बस बोलती बहुत हो "।

    दृष्टि ने त्रिशूल की आखिरी लाइन सुनी तो उसका मुंह बन गया । पर त्रिशूल ने अपनी बात आगे कंटिन्यू की।

    "और में ने तुम्हारी बाइक नहीं तोड़ी सच में .... मुझे नहीं पता किसने तोड़ी वह "।

    त्रिशूल और दृष्टि कार में बैठते है । और कार आगे बढ़ती है। दृष्टि ने उसे कहा।

    ", हा जानती हु अब मुझे न्यू बाइक मिलने वाली है तो में उस बाइक को याद नहीं कर रही वह बाइक बहुत पुरानी हो गए थी तो अच्छा है वह गए तो उसके अलावा मुझे न्यू बाइक मिल रही है।

    त्रिशूल ने दृष्टि की बात सुनी तो वह मुस्कुरा दिया। और दृष्टि उसे डायरेक्शन बता रही थी वैसे वैसे वह आगे बढ़ रहा था। पर उसे जल्दी समझ आता है कि ये डायरेक्शन उसके घर की तरफ जाता है। वह अचानक कार के ब्रेक मारता है।

    दृष्टि जो बिना सीट बेल्ट की बैठी हुई थी । वह जोर से आगे आती है और फिर पीछे चली जाती है। और ब्रेक इतना जोर का मारा हुआ था कि दृष्टि को चोट लग सकती थी। उसने थोड़ा झल्लाते हुए कहा।

    "ऐसे बीच में क्यों गाड़ी रुकवा दी तुमने ?

    त्रिशूल ने उसे थोड़ा सरप्राइस होते हुए पूछा।

    "तुम्हारा घर इस एरिया में है ? मेरे घर के सामने?

    "तुम्हारा घर ? कौनसा घर ? और तुम कब आए ? दृष्टि ने हैरियट से पूछा।

  • 13. Chapter 13 <br> <br>padosi

    Words: 1072

    Estimated Reading Time: 7 min

    त्रिशूल ने आगे की ओर इशारा करते हुए कहा, "वह सामने वाला रास्ता... उसके किनारे मेरा घर है। मैं कुछ दिन पहले ही यहां शिफ्ट हुआ हूँ।"

    दृष्टि ने उसी दिशा में देखा और थोड़ी हैरान हुई। उसने त्रिशूल से पूछा, "तुम्हारे मकान का नंबर क्या है?"

    त्रिशूल ने तुरंत जवाब दिया, "30, मेरे मकान का नंबर 30 है।"

    दृष्टि चौंकते हुए बोली, "क्या? 30 तुम्हारे मकान का नंबर है?"

    "हाँ, मेरे मकान का नंबर 30 है। तुम इतना हैरान क्यों हो रही हो? ऐसा क्या कह दिया मैंने? और तुम्हारा घर कहाँ है? तुमने ये नहीं बताया। कहाँ है तुम्हारा घर? बताओ!" त्रिशूल ने लापरवाही से कहा।

    त्रिशूल की बातें सुनकर दृष्टि और भी चौंक गई और उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। दृष्टि ने उसे बताया, "मेरे मकान का नंबर 29 है। मेरा घर भी वहीं है।"

    त्रिशूल ने दृष्टि की बातें सुनीं तो वह थोड़ा हैरान हुआ, पर हमेशा की तरह उसने अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखाया। उसने गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा, "इसका मतलब हम पड़ोसी हैं। अच्छी बात है ना? तुम्हारे लिए और हमारा प्रोजेक्ट भी जल्दी खत्म हो जाएगा। हम इस घर पर भी काम जारी रख सकते हैं, अगर तुम्हें कोई आपत्ति नहीं है।"

    दृष्टि ने सिर हिलाया और कहा, "हाँ, मुझे कोई दिक्कत नहीं है। हमारा प्रोजेक्ट भी जल्दी खत्म हो जाएगा..." दृष्टि कुछ सोचते हुए अचानक बोली, "वो रात में इतनी गाड़ियों की भीड़... वो तुम्हारी थी क्या? शायद वही तुम थे। चाचा बता रहे थे कि हमारे सामने कोई नया आया है। अब समझ आया कि वो तुम ही हो।"

    त्रिशूल ने दृष्टि की ओर देखे बिना, सामने देखते हुए कहा, "तुम रात की बात कर रही हो? हाँ, वो मेरी गाड़ियाँ थीं। सामान ट्रांसफर करना था, इसलिए उन्हें यहाँ ले आए थे।"

    दृष्टि ने कहा, "ओह, ऐसी बात है।"

    अब तक दोनों अपने गंतव्य पर पहुँच चुके थे। दृष्टि तुरंत कार से उतर गई और अपने घर जाने लगी। उससे पहले ही त्रिशूल ने उसे पुकारा, "सुनो..."

    दृष्टि पीछे मुड़कर देखने लगी। त्रिशूल ने अपने साइड मिरर नीचे करते हुए कहा, "मैं तुम्हें बताना भूल गया, कल या परसों तक हमारी डेडलाइन है। प्रोजेक्ट जल्दी सबमिट करना होगा। तो कल कॉलेज में जल्दी आना, प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए।"

    दृष्टि ने यह सुनते ही लगभग चीख पड़ी, "व्हाट? कल? परसों?"

    त्रिशूल ने चेहरे पर एक दुष्ट मुस्कान लिए हुए कहा, "हाँ, तुम जो सुन रही हो, वो सौ प्रतिशत सच है।"

    दृष्टि लड़खड़ाते हुए बोली, "ये... ये... कैसे हो सकता है?"

    दृष्टि और त्रिशूल जिस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे, वो काफी कठिन था। हाँ, भले ही दृष्टि का दिमाग तेज था और वो किसी भी गणितीय समस्या को तुरंत हल कर लेती थी, पर इस प्रोजेक्ट में बहुत सी चीज़ें ऐसी थीं जिनका विश्लेषण करना और डेटा इकट्ठा करना आसान नहीं था। यही सब सोचकर दृष्टि को अब चिंता होने लगी थी। वह कुछ और कह पाती, इससे पहले ही त्रिशूल अपनी कार आगे बढ़ा चुका था।

    त्रिशूल को अपने इलाके में जाते हुए देखकर दृष्टि भड़क गई और उसने खुद से बड़बड़ाते हुए कहा, "इस लड़के से पूरी बात बतानी होती है नहीं... और कुछ सुनना होता है नहीं... मन कर रहा है कि इसका सर फोड़ दूँ, पर ये नहीं कर सकती हूँ ना हम, क्योंकि ये प्रोफ़ेसर है।"

    अतीक्ष, जो पीछे से आ रहा था, उसने दृष्टि को खुद से बड़बड़ाते हुए देखा और पूछा, "क्या हुआ? ऐसे खुद से क्यों बड़बड़ा रही हो? फिर से कोई कांड हो गया क्या?"

    "कांड? कौन सा कांड? और मैं कांड नहीं करती, वो दूसरे करते हैं और मुझे फँसा देते हैं। अभी लो, हमारा प्रोफ़ेसर त्रिशूल अभी मुझे घर छोड़ने आया था, तब उसने मुझे बताया कि कल डेडलाइन है प्रोजेक्ट सबमिट करने की... आज दिन भर हम काम कर रहे थे, तब ये बताना चाहिए था ना? ऐसे ऐन मौके पर कौन बताता है?" दृष्टि ने गुस्से से कहा।

    अतीक्ष ने उसे शांति से कहा, "अब तुम इसमें कुछ कर नहीं सकती और इतना हाइपर होने से क्या होगा? कुछ नहीं होने वाला, इसलिए शांत रहो और तुम अपने तरीके से काम करो, बाकी फल की चिंता मत करो। अकेले तुम्हारे टेंशन से कुछ नहीं होने वाला, उसे भी तो होगा टेंशन।"

    दृष्टि ने झल्लाते हुए उसे कहा, "मैं हाइपर नहीं हो रही, मैं हाइपर इसलिए हो रही हूँ क्योंकि जनाब, हमारे नए पड़ोसी हैं, उनका घर सामने है, समझे?... कुछ आया समझ में? क्यों इतना गुस्सा कर रही हूँ?"

    अतीक्ष, जो अब तक बिल्कुल शांत था, दृष्टि की बातें सुनकर शॉकिंग एक्सप्रेशन में खड़ा था। उसके कानों में अभी भी दृष्टि की बातें गूँज रही थीं: "त्रिशूल सर उनके नए पड़ोसी हैं और उनका घर सामने है।" अतीक्ष ने खुद को जल्दी संभाला और उसने अपने चेहरे पर नकली और जबरदस्ती की मुस्कान लाते हुए कहा, "तो क्या हुआ इसमें? कौन सी घबराने की बात है? हमने कुछ किया है नहीं। कॉलेज में तो सर कुछ नहीं बोलेंगे। डेडलाइन को कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। हमे चिल करो।"

    दृष्टि ने अतीक्ष को घूरते हुए देखा और अपने हर शब्द पर जोर देते हुए बोली, "अच्छा बच्चू, ऐसी बात है? अब देखते हैं।"

    अतीक्ष ने उसके हाथ की थैली दिखाते हुए कहा, "हम बाद में बात करते हैं। अभी मुझे माँ ने इम्पॉर्टेन्ट सामान लाने के लिए कहा है। अगर वो नहीं लाया तो तुम्हें पता है क्या होगा घर में। इसलिए मैं चलता हूँ।" अतीक्ष ने अपनी बातें खत्म कीं और वहाँ से भाग गया।

    दृष्टि ने उसे भागते हुए जाते देखकर मुँह बनाते हुए बोली, "डरपोक कहीं का! कुछ कांड हो तब आएगा मेरे पास। इसके कांड मुझे संभालने पड़ते हैं।" यह कहकर दृष्टि घर के अंदर चली गई। अंदर मिस्टर मेहता और मिसेज़ मेहता बैठे थे और शाम की चाय पी रहे थे।

    दृष्टि को आते देखकर मिसेज़ मेहता ने खुशी से पूछा, "आ गई बिटिया... आओ नाश्ता करो।"

    दृष्टि तुरंत मिसेज़ मेहता के बगल में बैठते हुए बोली, "नहीं आंटी, भूख नहीं है। मैंने आते वक्त खा लिया था कैफ़े से। वो सर साथ में थे, तो उन्होंने ट्रीट दी मुझे।"

    मिसेज़ मेहता ने कहा, "ओह, ऐसी बात है। ठीक है फिर।"

    मिस्टर मेहता ने सवाल किया, "और लाड़ो, तुम्हारे प्रोजेक्ट का काम कैसा चल रहा है? सब ठीक हो रहा है ना? कोई दिक्कत तो नहीं आ रही?"

    दृष्टि ने अपने कंधे से बैग निकालते हुए कहा, "हाँ चाचू, अब तक तो सब ठीक है, आगे का नहीं पता... कब क्या हो जाए, बस कोशिश कर सकते हैं हम।"

  • 14. Chapter 14 <br> <br>dil ki baichaini

    Words: 1164

    Estimated Reading Time: 7 min

    मिस्टर मेहता ने दृष्टि की ओर देखा और अपने हाथ में पकड़े चाय के कप को मेज़ पर रखते हुए बोले, "अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करती रहना बेटा, बाकी फल की चिंता मत करो। हर या जीत, वो छोड़ दो। तुमने अपना बेस्ट दिया है ना, वही काफी है। और हमें तो पूरा यकीन है कि तुम सब कर लोगी।"

    दृष्टि ने एक हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "हाँ, वो मैं जानती हूँ।"

    दृष्टि ने मन ही मन में कहा, "अब ये हमारा सदु सा प्रोफेसर कैसे हैंडल करता है, उठे कम समय में कैसे कुछ होगा पता नहीं। मैं तो अपने साइड से पूरा कर दूँगी।"

    मिस्टर मेहता उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिए और तीनों की गप्पें शुरू हो गईं।

    त्रिशूल के घर...

    त्रिशूल फ्रेश होकर और कैज़ुअल कपड़े पहनकर सोफ़े पर बैठ गया था। उसने पीछे सिर टिकाते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं। कुछ देर बाद उसे दृष्टि की बातें याद आ गईं, "अपने छुपे हुए दिल की बातों को कागज़ पर उतारो" वाली।

    ये याद करके त्रिशूल अपनी आँखें खोलता है। उसी वक़्त उसका मोबाइल बजने लगता है। त्रिशूल पहले तो अपने मोबाइल को इग्नोर करता है, पर उसका मोबाइल लगातार बज रहा था।

    आखिरकार त्रिशूल बहुत इरिटेट होता है और बिना देखे ही झुंझलाहट में बोला, "क्या है? क्यों बार-बार कॉल कर रहे हो? समझ नहीं आता क्या? कि कॉल नहीं उठा रहा हूँ तो मैं कहीं बिज़ी हूँगा? इतनी तो कॉमन सेंस होनी चाहिए ना तुम लोगों में..."

    सामने से एक अधेड़ उम्र की औरत की आवाज़ आई, "अरे सॉरी बेटा, मुझे पता नहीं था कि तुम काम कर रहे हो... इस वक़्त तुम फ्री होते हो ना, तो मुझे लगा कॉल कर लूँ। और तुम्हारी याद आ रही थी तो कर लिया डायरेक्ट।"

    त्रिशूल वह आवाज़ सुनकर चौंक गया और तुरंत उसने अपना मोबाइल देखा तो उस पर 'दादी' नाम फ़्लैश हो रहा था। त्रिशूल ने अपनी आवाज़ में नरमी लाते हुए बोला, "ओह दादी, आप हो। सॉरी, मैंने कॉल आईडी नहीं देखी थी, ऐसे उठा लिया और आप पर डाँट दिया। सॉरी, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था...वो मैं अभी ऑफ़िस से आया था तो थोड़ा..."

    उस औरत ने उसकी बात काटते हुए कहा, "अरे कोई बात नहीं, होता है। मुझे भी पता नहीं था कि तुम अभी आए हो। थोड़ा लेट करना चाहिए था। वो सब छोड़ो, तुम अभी आए हो तो कुछ हल्का सा नाश्ता कर लेना। ठीक है? खाया कि नहीं? क्या कर रहे थे दूसरा?"

    त्रिशूल ने जवाब दिया, "अरे नहीं दादी, अभी भूख नहीं है। मैं आते वक़्त खा के आया था इसलिए अब भूख नहीं है। अभी काम करूँगा, उसके बाद सोने जाऊँगा।"

    उस औरत ने उसे कहा, "ठीक है, ख्याल रखना अपना।"

    त्रिशूल मोबाइल काट देता है और सोफ़े पर लापरवाही से फेंक देता है। उसके बाद ऊपर अपने बेडरूम में चला जाता है और दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ़ देखता है। इस वक़्त शाम के 7:30 बज रहे थे।

    त्रिशूल एक गहरी, लंबी साँस लेता है और खुद से कहता है, "बहुत जल्दी टाइम निकल गया, पता ही नहीं चला।"

    इतना कहकर वह अपनी गैलरी में जाता है और आसमान को देखने लगता है। उसी समय त्रिशूल की नज़र सामने जाती है। सामने दृष्टि का घर दिखाई दे रहा था और ऊपर का दृष्टि का कमरा त्रिशूल को अपनी गैलरी से साफ़ दिखाई दे रहा था।

    उसकी नज़रें वहीं ठहर गईं। वहाँ दृष्टि की परछाई दिख रही थी। दृष्टि के बेडरूम से ही एक छोटी सी गैलरी अटैच थी। वह अपनी गैलरी में आती है और वहाँ पर कुछ पौधे रखे हुए थे, उन्हें वह पानी डाल रही थी।

    त्रिशूल दृष्टि को दूर से ही देख रहा था और उसके जहन में आज दृष्टि की बातें घूम रही थीं। यहाँ दृष्टि को कोई भनक नहीं थी कि कोई उसे देख रहा है। दृष्टि पौधों को पानी डालती है और अपने रूम में चली जाती है।

    त्रिशूल दृष्टि के जाने के बाद भी वहीं देखता रहता है। ऐसा उसे पहली बार हो रहा था। त्रिशूल के दिल में एक थोड़ी सी बेचैनी और थोड़ा सा सुकून पैदा हुआ। त्रिशूल अपने कमरे में वापस आता है और डेस्क पर पड़ी हुई डायरी देखता है।

    डायरी को उठाते हुए उसने कहा, "चलो ये नुस्खा भी अपना लेता हूँ, देखते हैं क्या फ़र्क पड़ता है।"

    त्रिशूल अपनी डायरी में कुछ लिख रहा था:

    करोगे याद गुज़रे ज़माने को,

    तरसोगे हमारे साथ एक पल बिताने को,

    फिर आवाज़ दोगे हमें वापस बुलाने को,

    और हम कहेंगे,

    दरवाज़ा नहीं है, ख़ाबार से भर आने को...

    त्रिशूल ने इतना लिख दिया और अपनी डायरी बंद कर दी। उसने अपने कपड़े निकाल लिए और अब वह शर्टलेस था। उसके बॉडी पर अभी भी वही गहरे निशान थे। त्रिशूल उसके बाद अपने बेड पर लेट जाता है।

    अभी भी उसे कोई नींद नहीं आ रही थी, उसकी आँखों से मानो नींद कोसों दूर थी। पर त्रिशूल की आँखों में एक अलग सा सुकून दिखाई दे रहा था और उसे शांति मिल रही थी।

    त्रिशूल ने खुद से ही कहा, "पता नहीं आज मुझे इतना सुकून और शांति क्यों मिल रही है? ऐसा लग रहा है कि कोई अपना मेरे पास आ रहा है या फिर कोई मेरा अपना जल्दी मुझे मिलेगा।"

    कुछ ही देर बाद त्रिशूल को नींद आ जाती है।

    अगली सुबह...

    दृष्टि तैयार होकर बाहर रुकी हुई थी। फिर उसके सामने से एक पोस्टर आता है, वह आगे बढ़ती है पर फिर से पीछे आती है। दृष्टि को थोड़ा पहले शब्द लगा, पर उसने पूरा इग्नोर कर दिया था। कार की मिरर नीचे होती है और एक जानी-पहचानी आवाज़ आती है, "मैं छोड़ दूँ?"

    दृष्टि ध्यान से देखती है तो उसे कार में त्रिशूल बैठा हुआ था। दृष्टि ने फिर हल्की सी मुस्कान के साथ उसे कहा, "नहीं, आप जाओ। अध्यक्ष और मैं, हम दोनों साथ में आ रहे हैं। मैं उसका ही वेट कर रही थी, वह अभी आता ही होगा।"

    त्रिशूल ने उसे पूछा, "Are you sure?"

    दृष्टि ने हाँ में सिर हिलाया।

    उसका जवाब आते ही त्रिशूल अपनी कार आगे बढ़ा देता है। दृष्टि उसे जाते हुए देख रही थी और उसने मन ही मन में कहा, "आज का चाँद कहाँ से निकल आया? आज खुद प्रोफेसर हमें ड्रॉप करने की बात कर रहे थे। क्या बात है? नहीं तो हमेशा तो आकर ही दिखाते रहते हैं। पता नहीं क्या चलता है इनके दिमाग में। कभी प्यार से पेश आएंगे तो कभी अपना स्वरूप सा मुँह लेकर घूमेंगे।"

    अब तक अतिक्ष नीचे आ गया था। उसने अपनी बाइक निकाली और दृष्टि के सामने खड़ी कर दी और उसे इशारे से ही कहा, "चलो बैठो, किसका वेट कर रही हो और वहाँ किधर देख रही थी?"

    "कुछ ख़ास नहीं। चलो, हमारे प्रोफ़ेसर आए थे, पूछ रहे थे कि मैं छोड़ दूँ, मैंने मना कर दिया।" दृष्टि ने जवाब दिया।

    अतिक्ष ने अपनी बाइक स्टार्ट करते हुए बोला, "ओह, ऐसी बात है? आज इतने मेहरबान कैसे हुए? लगता है आज अच्छा मूड है सर का। अच्छी बात है।"

    दृष्टि बाइक पर बैठती है और अतिक्ष बाइक स्टार्ट करके आगे चलने लगा।

  • 15. Chapter 15 <br> <br>praposal

    Words: 1174

    Estimated Reading Time: 8 min

    लंच ब्रेक ...

    सारे दोस्त कंपाउंड में बैठे एक दूसरे से बातें कर रहे थे। लेक्चर खत्म हो गया था और अभी लंच ब्रेक था इसलिए सब एक दूसरे से बात कर रहे थे। कोई अपना लंच खा रहा था तो कोई अपने दोस्तों से बात करा था।

    यहां दृष्टि का ग्रुप भी एक दूसरे के साथ बातें कर रहे थे। हिमांशु ने दृष्टि से पूछा।

    "दृष्टि तुम्हारा और सर का प्रोजेक्ट कहां तक आया? तुम उनके पास गई थी ना कब सबमिट करना है उसे

    "कल सबमिट करना है उन्होंने मुझे कल बताया जब मैं जा रही थी बहुत प्रेशर है उस प्रोजेक्ट का आज तो काम हो गया है पर पता नहीं कॉलेज छूटने के बाद ज्यादा देर रुकना भी पढ़ सकता है "। दृष्टि ने अपनी आंखें रोल करते हुए कहा।

    दृष्टि की बात खत्म हो गई पर उसकी बात सुनकर सबका रिएक्शन शॉकिंग का था ।

    नूर ने सरप्राइज और चौंकते हुए कहा।

    "पर दृष्टि यह प्रोजेक्ट तो कुछ ही दिन पहले मतलब एक-दो दिन पहले ही शुरू हो गया था और सर ने तो तुम्हें कुछ ही दिन पहले बताया था ना यह फिर इतनी जल्दी डेड लाइन कैसे आ सकती है? मैथ्स का प्रोजेक्ट थोड़ा प्रैक्टिकल होता है उसमें एनालिसिस एग्जामिन में और रिसर्च करना पड़ता है यह कल तुम लोग कैसे सबमिट करोगे?"

    माही ने नूर की बातों का समर्थन करते हुए बोली।

    "हां नूर सही कह रही है तुम दोनों इतनी जल्दी कैसे सबमिट करोगे और वह भी आज ही के दिन यह तो बड़ा टास्क है तुम्हारे लिए और मुझे तो नहीं लगता कि सर इस प्रोजेक्ट में कोई भी गलती और स्पेशली तुम्हें सॉफ्ट कॉर्नर दे क्योंकि याद है ना तुमने उनके साथ क्या किया था पहले दिन"।

    दृष्टि ने परेशान होते हुए कहा।

    "हां ब्रो मुझे पता है और मुझे इसी का ही डर है की सर इसका बदला कहीं और ना निकले इन फैक्ट इसी प्रोजेक्ट के दौरान न निकले जब हम दोनों एक साथ होते हैं और काम करते हैं तो बीच-बीच में तोकते रहते हैं नहीं तो थोड़ा गुस्सा हो जाते हैं हां पर उन्होंने कभी उस इंसिडेंट के बारे में नहीं कहा सो ई विश ऐसा कुछ ना हो"।

    अतीक्ष ने उसे इनकरेज करते हुए कहा।

    "डॉन'त वरी तुम कर लोगे ठीक ज्यादा मत सोचो और अभी तक तो वह भूल ही गए होंगे उसे इंसिडेंट के बारे में पता है ना टीचर्स लोगों को कितना काम होता है और मुझे नहीं लगता कि वह उसे इंसिडेंट को लेकर अभी तक गुस्सा होंगे... और तुम अपना भेज दोगी और देना भी है ज्यादा टेंशन मत लो"।

    अध्यक्ष की बात सुनकर सब लोग दृष्टि को इनकरेज करने लगते हैं। माही ने थम्सअप करते हुए बोली।

    "डोंट वरी दृष्टि तुम इस बार भी ये प्रोजेक्ट सक्सेसफुली सबमिट कर लोगी देखना बस टेंशन मत लेना ओके और हम सब को पता है कि तुम बहुत अच्छी और ब्रिलिएंट स्टूडेंट हो इसलिए ये प्रोजेक्ट भी जल्दी सबमिट होगा "।

    नूर ने कहा ।

    "हा और क्या पता इस बार भी तुम्हारा 1से नंबर आए और तुम त्रिशूल सर को इंप्रेस कर दो अपनी वर्क से ज्यादा मत सोचो सब हो जाएगा "।

    हिमांशु ने उसे कहा।

    "हा ज्यादा लोड मत ले ठीक है "।

    दृष्टि ने सब की तरफ देखते हुए और मुस्कुराते हुए बोली।

    "शुक्रिया आप सब का की तुम लोग मुझे इतना इनकरेज कर रहे हो होप सो की सब ठीक हो जाए और ये टाइम पे पूरा हो और हम ये कंपटीशन जीत जाए "।

    हिमांशु ने कहा ।

    "जरूर जीतोगे"

    उसके बाद सब बातें कर ही रहे थे। कि अचानक से दृष्टि के सामने एक लड़का खड़ा होता है। और वह दृष्टि की आंखों में आंखें डाल के कहता है।

    "मुझे तुमसे कोई जरूरी बात करनी है"।

    दृष्टि उसे लड़के को देखने लगती है। वह उसे ऊपर से नीचे तक स्कैन करने लगे उसने उसे सवालिया निगाहों से पूछा।

    "हां बोलो चिराग क्या बात करनी थी तुम्हें?

    चिराग उसको लाल गुलाब का बुके देते हुए कहा।

    "I like you दृष्टि क्या तुम मेरे साथ डेट पर चलोगी"।

    चिराग का प्रपोजल सुनकर दृष्टि तो पहले सरप्राइज और चौंकने के भाव उसके चेहरे पर आजाते है । और दृष्टि की आंखे चौड़ी बड़ी हुई थी ।

    उस कंपाउंड में बहुत सारे स्टूडेंट्स थे। जो ये सीन देख रहे थे । वह चिराग को हुडिंग करने लगें । और सब तालिया बजाने लगें । दृष्टि अभी तक शॉक खड़ी चिराग को देख रही थी।

    चिराग ने फिर से पूछा।

    "बताओ दृष्टि तुमने अभी तक मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया ? क्या तुम मेरे साथ डेट पर चलोगी? और i एम damn sure तुम मुझे मना नहीं करोगी क्यूंकि में हु ही इतना स्मार्ट और हैंडसम मुझे कोई मना कर ही नहीं सकता "।

    दृष्टि चुपचाप खड़ी चिराग को देख रही थी। उसने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया था।

    वहीं ये सब कोई और भी देख रहा था। कंपाउंड के बाहर के साइड एक शख्स खड़ा ये सब देख रहा था। वह कोई और नहीं त्रिशूल था। उसके हाथ अभी भी पॉकेट में थे और उसकी आंखे अभी भी दृष्टि की ऊपर थी।

    दृष्टि इन सब से अंजान सामने खड़े चिराग को घूर रही थी। उसने सीरियस टोन में और अपने चेहरे पर कोई भाव न लाते हुए बोली।

    "थैंक्स पर में तुम्हे पसंद नहीं करती "।

    चिराग के चेहरे के भाव दृष्टि का जवाब सुनकर बदल गए। उसने थोड़े गुस्से में उससे पूछा।

    "क्यों? तुम क्यों मुझे पसंद नहीं करती ? और अभी पसंद नहीं हु तो क्या हुआ बाद में तो पसंद आ जाऊंगा तुम मेरे साथ कुछ टाइम स्पेंड करो.... में तुम्हे पसंद आजाऊंगा धीरे धीरे "।

    दृष्टि ने तुरंत उसे मना करते हुए बोली।

    "मुझे तुम्हारे साथ कोई टाइम स्पेंड करना नहीं है तो क्यों ये सब बोल रहे हो और में तुम्हे पसंद नहीं करती सो सॉरी फॉर दैट ",.।

    यहां त्रिशूल कोने में खड़ा सब देख रहा था। उस तक कोई आवाज नहीं पहुंच रही थी । और न उसे ये समझ आ रहा था कि दृष्टि ने उस लड़के से क्या कहा। त्रिशूल एक गहरी सांस लेता है और कंपाउंड से चला जाता है। वह अपने केबिन की तरफ बढ़ गया था।

    यहां चिराग के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। वह आगे कुछ कह पाता उससे पहले ही दृष्टि उसे मना करते हुए बोली।

    "मुझे माफ कर दो पर में तुम्हे पसंद नहीं करती और न में तुम्हारे साथ डेट करूंगी हा में तुम्हारे फीलिंग की इज्जत करती हु पर में तुम्हे पसंद नहीं करती तो तुम्हारे साथ टाइम स्पेंड करने का सवाल नहीं आता में आशा करती हु कि तुम जल्दी आगे बढ़ोगे "।

    दृष्टि इतना कहकर वहां से किसी की बात सुने बिना चली गई चिराग उसे जाता हुआ देख रहा था। उसने किसी को कुछ नहीं कहा और वह भी वहां से चला गया।

    माही ने दृष्टि के पीछे पीछे जाना चाहा। तो अतीक्ष ने उसे मना करते हुए कहा ।

    "मत जाओ उसके पास थोड़ी देर उसको अकेला छोरो वही उसके लिए अच्छा है ठीक हो जाएगी तो वापस आजाएगी "।

    उसकी बात सुनकर माही वही रुक गए ।

  • 16. Chapter 16 <br> <br>jealousy

    Words: 1051

    Estimated Reading Time: 7 min

    दृष्टि एक बेंच पर बैठी हुई थी। इस वक्त वह जमीन को शून्य में ताक रही थी। फिर एक गहरी सांस लेती है। और बेंच से उठती है। और खुद से कुछ बड़बड़ाते हुए कहती है।

    "अपना ध्यान हटाओ फिर से सब ऐसा नहीं होगा जो पहले हुआ था और तुम ऐसा कभी होने नहीं दोगी "।

    इतना कहकर दृष्टि सीधा कॉलेज के अंडर चली जाती है।

    दृष्टि त्रिशूल के केबिन के अंडर सीधा घुस जाती है बिना नॉक किए। त्रिशूल ने उसे बिना देखे सीरियस टोन में कहा।

    "कितना शोर कर रही हो समझ नहीं आता कि में यहां काम कर रहा हु ? और ऐसे बिना नॉक किए अंडर आगये?"

    दृष्टि ने अपनी आइब्रो ऊपर उचकाते हुए बोली।

    "मतलब अब मेरे आने से भी तुम्हे दिक्कत होती है पर सच कहे तो में ने आवाज कुछ किया नहीं तो तुम्हे कैसे आवाज आई डोर ओपन करने की ?

    त्रिशूल ने अपने फाइल के पेपर को पलटते हुए कहता है।

    "पर मुझे आवाज आई और तुमने बिना नॉक किए और बिना पर्मिशन के सीधा घुस गई तो में बोलूंगा "।

    दृष्टि ने अपना मुंह बनाते हुए कहा।

    "वह तो में ऐसे ही आ गई सोचा कि मेरा मूड खराब है तो तुम्हारा भी कर लू....

    "क्यों मेरा क्यों करोगी तुम मूड खराब? अपने आशिक का करती जिसने अभी तुम्हे प्रपोज किया था उसका करो "। त्रिशूल ने दृष्टि की तरफ देखते हुए और थोड़ा नाराज होते हुए बोला। इस वक्त त्रिशूल की आंखों में जलन साफ दिखाई दे रही थी।

    दृष्टि ने उसे घूरते हुए कहा।

    "ओह तो आपने वह सीन देखा? आप थे वहां पे ?"

    त्रिशूल ने दृष्टि से अपनी नजरें फेरते हुए बोला।

    "हा था वहां पे कुछ काम था तो आया था तो में ने देख लिया "।

    दृष्टि ने त्रिशूल की बाते सुनी तो उसने एक गहरी लंबी सांस ली। और अपने हाथ फोल्ड करते हुए कहा।

    "अच्छा तो तुम भी थे वहां पे .... तो तुमने रिजेक्शन देखा होगा मेरा मैं ने उस लड़के को रिजेक्ट कर दिया "।

    त्रिशूल ने जब ये बात सुनी तो उसके दिल में एक थोड़ी सी सही एक सुकून मिल गया था। पर उसके चेहरे से और न आंखों से दिखाया था। त्रिशूल ने सवाल किया।

    "वैसे क्यों मना किया तुमने ? वह अच्छा लड़का लगा मुझे तुम्हे खुश रखता .... और तुम्हारी इस एज में लड़के लड़कियां डेट करते है एक दूसरे को कोई पसंद आता है तुम्हे नहीं आया वह पसंद?

    "नहीं मुझे वह पसंद नहीं आया और मुझे इन सब चीजों में कोई इंटरेस्ट नहीं है इसलिए मैं यह इन सब में कभी नहीं पढ़ते" दृष्टि ने तुरंत उसे जवाब दिया। इस वक्त दृष्टि के चेहरे पर एक फिक्की से मुस्कुराहट थी।

    दृष्टि ने उसे घूरते हुए और कुछ नोटिस करते हुए बोली।

    "पर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम ज्वेलर्स हो गए थे तुम्हें जलन हो रही थी उसे लड़के पर सच बताओ तुम्हें जलन हो रही थी ना उसे लड़के पर और एक डर भी था कि मैं कहीं उसको हां ना कह दूं?"

    त्रिशूल ने अपने चेहरे पर एक नकली मुस्कुराहट लाते हुए कहा।

    "भला मैं क्यों उस लड़के पर जानू? और मुझे कोई हक भी नहीं है तुम पर ... तुम मेरे स्टूडेंट हो तो मैं क्यों जरूर उसे लड़के पर और तुम्हें जो करना है कर सकती हो जिसके साथ जाना है बाहर वहां जा सकती हो मैं कौन होता हूं तुम्हारा?

    दृष्टि ने उसके पास जाते हुए कहा।

    "तुम कुछ और कह रहे हो और तुम्हारी आंखें कुछ और कह रही है तुम्हें झूठ बोलना नहीं आता बस झूठ बोलने की कोशिश करते रहते हो खुद से झूठ बोल रहे हो या मेरे से?"

    इस वक्त दृष्टि त्रिशूल के बहुत करीब थी। उन दोनों में एक इंच का फैसला था त्रिशूल की गर्म सांसे दृष्टि के चेहरे पर पड़ रही थी और वह उसकी गर्म सांसों को महसूस कर रही थी।

    त्रिशूल दृष्टि को इतना अपने पास देखकर उसे दूर हो गया। त्रिशूल अपने चेयर से उठता है और थोड़ा दूरी पर खड़े होते हुए बोला।

    "तुम कुछ भी बोलती हो जो तुम्हारे मन में होता है तुम्हें समझ में ही नहीं आता कि तुम किसके सामने और क्या बात कर रही हो और मैं भला क्यों झूठ बोलूं मैं कभी झूठ नहीं बोलना सच कह तो हम दोनों में कुछ है ही नहीं मैं तुम्हारा टीचर हूं और तुम मेरे स्टूडेंट"।

    दृष्टि ने हंसते हुए और कटाक्ष उसे कहा।

    "पर मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं कहा कि हमारे बीच कुछ है... और फिक्र मत करो मैं इन चीजों में नहीं पढ़ती मुझे यह प्यार व्यार सब झूठ लगता है और मैंने ऐसा कुछ कहा ही नहीं"।

    त्रिशूल ने उसकी बातें सुनी तो उसने उसे कहा ।

    "अच्छी बात है तुम अभी इसके लिए छोटी हो अभी तो तुम्हें अपनी पढ़ाई और कैरियर पर फोकस करना चाहिए है ना"।

    दृष्टि ने हा में सिर हिलाया। और वह उसे पूछती है।

    "हमारे प्रोजेक्ट का काम आज करना है या कल ? कॉलेज छूटने के बाद मुझे रुकना पड़ेगा?

    "नहीं आज रहने दो आज ज्यादा देर तक नहीं करेंगे और तुम्हें कॉलेज के बाद रुकने की कोई जरूरत नहीं है हमें सुबह ही तो एग्जामिन कर लिया था उसका काम थोड़ा ही बाकी है तो कल हो जाएगा तुम तुम्हें कॉलेज में के बाद रुकने की कोई जरूरत नहीं है तुम जा सकती हो"। त्रिशूल ने उसे सीरियस होते हुए कहा।

    यह करने के बाद त्रिशूल अपना काम करने लगता है। उसने आगे कुछ कहा नहीं ना दृष्टि और उसके बीच आगे कुछ बातें हुई।

    दृष्टि उसे अलविदा कहानी के बाद त्रिशूल के केबिन से चली गई। दृष्टि के जाने के बाद त्रिशूल ने अपने ग्लास मिरर से ही उसे जाता हुआ देखा। उसके आंखों में बहुत सारे भाव आ चुके थे। उसने मनी मन में कहा।

    "तुम बहुत अजीब हो दृष्टि... और अच्छी भी हो बस में यह नहीं चाहता कि मेरे वजह से तुम्हें कोई प्रॉब्लम हो इसलिए मैं तुमसे दूर भागता हूं क्योंकि मेरा अतीत ना मुझे जीने दे रहा है ना मुझे करने देना है और जो भी मेरे साथ आता है उसके साथ कुछ ना कुछ बड़ा होता ही है इसलिए मैं तुम्हें मेरे पास नहीं लाना चाहता मैं कितनी भी कोशिश कर लूं मैं तुम्हारे पास खींच आता हु मुझे खुद नहीं पता कि में तुमसे क्यों अट्रैक्ट हो रहा हु ?

  • 17. Chapter 17 <br> <br>mujhe pyar se nafrat hai

    Words: 1124

    Estimated Reading Time: 7 min

    दृष्टि इस वक्त अपने दोस्तों के साथ बैठे हुई थी। वह लोग आपस में बातें कर रहे थे। कॉलेज के सारे लेक्चरर्स खत्म हो गए थे और अभी एक जो लेक्चर था वह ऑफ था। इसलिए सब कैफे में बैठे हुए थे।

    माही ने दृष्टि से पूछा।

    "दृष्टि तुमने उस लड़के को क्यों रिजेक्ट किया वह अच्छा तो दिखता था और वह तुमने लाइक भी करता था फिर भी तुमने क्यों उसको रिजेक्ट किया कोई वजह?

    दृष्टि ने एक गहरी सांस ली और उसे बोली।

    "Nice question मैंने उसे इसलिए रिजेक्ट किया क्योंकि मुझे इन सब चीजों में नहीं पढ़ना है और यह प्यार व्यार कुछ नहीं होता बस धोखा और अट्रैक्शन का मामला है"।

    नूर ने उसे कंफ्यूज होते हुए पूछा।

    "मतलब प्यार व्यार अट्रैक्शन होता है यह क्या होता है भाई? प्यार कब से अट्रैक्शन होने लगा?"

    दृष्टि ने मजाक के लहजे में उसे कहा।

    "प्यार यह अट्रैक्शन ही तो है केमिकल अट्रैक्शन जब तक उसको तुम्हारे लिए एक पार्टिकुलर टाइम के लिए फिलिंग्स होगी तब तक वह तुम्हें अटेंशन देगा बाद में वह तुम्हें कोई घंटा अटेंशन नहीं देने वाला "।

    माही ने उसकी बातों को मना करते हुए बोली।

    "ऐसा कुछ नहीं होता निभाने वाला सच्चा हो तो वह आखरी तक निभाएगा ऐसा कुछ भी नहीं होता बस जो तुम जिसे प्यार करो या जिसे अपना साथी मानो वह सच्चा होना चाहिए"।

    हिमांशु ने माही का साथ देते हुए कहा।

    "हां मैं इस बात पर एग्री करता हूं कि प्यार होता है पर हम वह किसके ऊपर कर रहे हैं यह भी तो डिपेंड करता है और अगर आपका साथी अच्छा हो और निभाने वाला हो लॉयल हो तो फिर आपको कोई एक दूसरे से अलग नहीं करेगा"।

    दृष्टि ने कोल्डरिंग का एक सीप पीते हुए बोली।

    "सबका अपना अपना नजरिया है प्यार के लिए किसी को मोहब्बत मिलती है तो किसी को मोहब्बत नहीं मिलती और वैसे भी इन सारी चीजों में मैं तो नहीं पढ़ने वाली क्योंकि मुझे मोहब्बत इस चीज से ही नफरत है"।

    दृष्टि अपनी बात आगे जारी रखती है।

    "प्यार व्यार कुछ नहीं होता बस एक धोखा होता है जो आपको दिया जाता है कुछ रीजन हो तभी लोग आपके पास आएंगे और वह आपको प्यार करने का एहसास दिलाएंगे उसके बाद वह आपको कहीं ना कहीं छोड़ देंगे फिर तुम ड्रामा में चले जाओगे उसके बाद उसे ड्रामा के से बाहर आने में तुम्हें जितना टाइम लगेगा ना उतना टाइम और और वह यादें जो तुम दोनों ने एक दूसरे के साथ बीते हुई थी वह तुम्हें पाल-पाल याद आएगी उसको बुलाने में बहुत वक्त लगेगा इसलिए मुझे इन सब चक्करों में नहीं पढ़ना"।

    इतना कहकर दृष्टि अपना कोल्ड ड्रिंक पीने लगी। सब लोग उसे ही देख रहे थे उसने जो भी कहा था कहीं ना कहीं वह सच भी था और उसके बातों में एक दर्द छुपा हुआ था जो आज बहुत वक्त के बाद बाहर निकाला था।

    हिमांशु ने उसे सीरियस होते हुए पूछा।

    "तुमने कितने लड़कों को डेट किया है?'

    दृष्टि हिमांशु को देखने लगती है। उसके चेहरे पर अभी कोई भाव नहीं थे। कुछ देर ऐसे ही चुप रहने के बाद और उसका कोई रिप्लाई ना आता हुआ देखकर हिमांशु ने फिर से उसे पूछा।

    "बताओ ना तुमने कितने लड़कों को डेट किया था क्या तुम्हारा भी दिल टूटा है? तुम प्यार से क्यों नफरत करती हो? और इतना यह सब वही कहता है जिसका दिल टूटा हो"।

    अतिक्ष जो इन लोगों की बातों को कब से इग्नोर कर जा रहा था और अभी तक उसने कुछ भी नहीं बोला था। उसने बीच में इंटरप्ट करते हुए कहा।

    "तुम लोग काम की बातें कम और फालतू की बातें ज्यादा करते हैं यह प्यार की बातें कहां से लेकर बैठ गए और उसकी मर्जी उसको रिलेशनशिप में आना है या नहीं आना है वह देख लेगी ना...

    दृष्टि ने अपना गला साफ किया। और हिमांशु को देखते हुए बोली।

    "मैं अभी तक चार लड़कों को डेट किया था उन चार रिलेशनशिप को एग्जामिन और एक्सपीरियंस करने के बाद मुझे प्यार से नफरत होने लगी है "।

    दृष्टि की बात सुनकर सब लोग शौक हो गए शिवाय अध्यक्ष की। अध्यक्ष अभी बिना भाव के वहां पर बैठा हुआ था पर बाकी लोगों के भाव शौक वाले थे।

    राहुल ने उसे खैरियत से देखते हुए पूछा।

    "तुमने चार लड़कों को डेट किया यकीन ही नहीं होता कि तुमने चार लड़कों को डेट किया वैसे ब्रेकअप कैसे हुआ अगर तुम कंफर्टेबल हो तो बता सकती हो हमें?"

    दृष्टि ने अपना सर ना में हिलाया। और बोली।

    "नहीं मुझे नहीं बताना"।

    इतना कहकर दृष्टि चुप होकर पर इस दौरान उसका मोबाइल रिंग करने लगा। दृष्टि अपना मोबाइल देखते हैं तो वह सब से excuse लेकर साइड में चली गई।

    उसके चले जाने के बाद अध्यक्ष ने सबको देखते हुए बोला।

    "आगे से प्यार की बातें मत किया करो वह दिखाई नहीं है पर यह सब उसको अफेक्ट करता है बहुत मुश्किल से वह उसे हादसे से और डिप्रेशन से बाहर निकली है वापस सब शुरू हो जाएगा और इस बार हैंडल करना बहुत मुश्किल होगा"।

    सब ने सरप्राइज होते हुए एक साथी पूछा।

    "हादसा कौन सा हादसा और किस डिप्रेशन में थी दृष्टि?

    अतिक्ष ने सबको दिखा। फिर उसे दिशा में देखा जहां पर दृष्टि फोन पर बात कर रही थी। अपनी नजरे उधर से हटाते हुए उन सब की तरफ देखते हुए बोला।

    "यह बहुत बड़ी लंबी कहानी है मैं अभी इस टाइम नहीं बता सकता और वह भी दृष्टि के सामने उसने मना किया है मुझे कि उसके अतीत के बारे में किसी को भी नहीं पता चले पर अभी बात निकली तो इसलिए मैंने कह दिया"।

    माही ने उससे पूछा।

    "पर हुआ क्या था उसके साथ जो वह इतना नफरत करती है प्यार से हमें भी पता होना चाहिए हम उसके दोस्त थे और एक दोस्त दोस्त के सुख और दुख में हमेशा साथ रहता है आगे से इस बारे में बात नहीं होगी पर हमें पता तो होना चाहिए कि उसके साथ क्या हुआ था एट लिस्ट मुझे तो पता होना चाहिए मैं तो उसकी बेस्ट फ्रेंड हूं मुझे भी ईसके बारे में नहीं पता दृष्टि ने कभी इसके बारे में नहीं बताया"।

    अध्यक्ष ने उसे जवाब दिया।

    "वह यह सब किसी को नहीं बताती और ना बताना चाहती हैं क्योंकि वह सब लम्हे और पाल वह याद ही नहीं करना चाहती इसलिए आज तक वह लड़कों से भगति आई है वह थोड़ी मजाकिया है रैंकिंग करती है लड़कों से बातें करती है फ्लर्ट करती है पर प्यार के चक्कर में कभी नहीं पढ़ते अगर पड़ेगी भी तो वह सच होगा या नहीं यह हमें नहीं पता"।

    हिमांशु ने उसे सवाल किया।

    "ऐसा क्या हुआ था उसके साथ जो दृष्टि इतना बदल गई? क्या हुआ पहले से ही ऐसे ही थी या फिर उसे हादसे के बाद ही बदल गई है"।

  • 18. Chapter 18

    Words: 1015

    Estimated Reading Time: 7 min

    अतीत के लम्हे

    अतीक्ष ने सीरियस टोन में कहा।

    "नहीं दृष्टि ऐसे पहले नहीं थी वह बहुत मासूम और खुश किस्म की लड़की थी पर जब उसे स्कूल में एक लड़का पसंद आया था तब वह उसके साथ रिलेशनशिप में आई तो उसने उसको मेंटली और फिजिकली बहुत एब्यूज किया था। उसके साथ ब्रेकअप होने के बाद 2 लड़का आया उसके जिंदगी में वह बाहर से ही सब को दिखाता था कि वह प्यार करता है पर नहीं ऐसा नहीं था वह बस दिखाने केलिए उसके साथ था। उसके बाद उसने छोर दिया दृष्टि को 3 लड़का था वह रिलेशनशिप रहने के बाद भी उसको कंट्रोल करने की कोशिश करने लगा उसके लुक्स पर मजाक बनाता था फिर दृष्टि को ये बोल के छोड़ दिया कि तुम मेरे लिए सूटेबल नहीं हो 4 लड़के ने दृष्टि को चीत किया था। और ये सब दृष्टि सहन नहीं कर पाई उस टाइम दृष्टि के मॉम और पापा की डेथ हुई थी इसलिए वह डिप्रेशन में चली गई "।

    अतीक्ष इतना कहकर चुप हो गया। उसकी बातें सुनकर सब लोग खामोश थे कोई कुछ नहीं बोल रहा था । क्या बोले ये किसी को समझ नहीं आ रहा था किसी को पता नहीं था कि दृष्टि ने इतना सब सहन किया है।

    नूर ने इमोशनल होते हुए कहा।

    "दृष्टि ने बहुत कुछ झेला है अपने जिंदगी में हमे तो पता नहीं था कि वह इतना कुछ झेल चुकी है "।

    अतीक्ष उसकी बात सुनकर हल्के से मुस्कुरा दिया। और बोला।

    "अपने मां पापा के जाने के बाद उसने तो जिंदगी जीना छोड़ दिया था वह कभी अपना बर्थडे सेलिब्रेट नहीं करती थी वह तो मेरे मॉम डैड के वजेसे उसने मनाना स्टार्ट किया है हर किसी की लाइफ सिंपल नहीं होती बहुत लोग खुद से लड़ते रहते है याह फिर बहुत लोग किन हालातों से गुजर रहे होते है ये हमे नहीं पता होता "।

    हिमांशू ने कहा।

    "सॉरी मुझे ये सब कुछ दृष्टि से पूछना नहीं चाहिए था मुझे अगर इसके बारे में पता होता तो ऐसा कुछ पूछता नहीं में "।

    अतीक्ष ने उसे देखते हुए कहा।

    "इट्स ओक कोई बात नहीं तुम्हारी कोई गलती है नहीं इस में "।

    अतीक्ष ने सब की तरफ देखते हुए बोला।

    "दृष्टि को पता नहीं चलना चाहिए कि तुम लोगो को उसके बारे में ये सब पता है अगर पता चला तो पता नहीं क्या रिएक्ट करेगी वह और मैं ने बताया है ये तो बिल्कुल मत बताना "।

    सब लोगों ने हा में सिर हिलाया। पर पीछे से drishtu की आवाज आई।

    "क्या नहीं बताना चाहिए? और किसको?",

    सब की नज़रे पीछे खड़ी दृष्टि के पास चली गई। वह कंफ्यूज होकर उन लोगों को देख रही थी। दृष्टि आगे आती है और अतिक्ष को पूछा।

    "क्या बताना नहीं चाहिए मुझे ? और किस बारे में?"

    सब लोग चुप हो गए। अतीक्ष को तो समझ नहीं आ रहा था वह अब क्या जवाब दे । हिमांशू ने बात को संभालते हुए कहा।

    "अरे वह तुम्हारा बर्थडे आ रहा है ना इसलिए हम सब प्लानिंग कर रहे थे की कैसे करना है क्या करना है सरप्राइज देना था हम लोगों को पर अभी तुमने सुन लिया तो काहे का सरप्राइज मैं अतीक्ष से कह रहा था अभी मत डिस्कस करो टॉप सीक्रेट रखना है पर नहीं सब लोग अभी डिस्कस कर लिए मुझे लगा ही था कि तुम वापस आओगी और कुछ ना कुछ सुन लगी और फिर पूछोगी हम लोगों से पता चल गया ना तुम्हे "।

    "तो ऐसी बात है पर मैंने ऐसा कुछ भी नहीं सुन मैं बस आ रही थी तो अतिक्ष की बात सुनी थी उसको कुछ पता नहीं चलना चाहिए कुछ बताना नहीं है इसलिए मैंने तुम लोगों से पूछा कि क्या बात कर रहे हो और किस बारे में",.। दृष्टि ने अध्यक्ष की साइड में बैठे हुए कहा।

    माही ने उसे फिर से पूछा।

    "क्या सच में तुमने इतना ही सुना? हमारी प्लानिंग नहीं सुनी ना?"

    दृष्टि ने ना में अपना सिर हिलाया और बोली।

    "अरे नहीं बाबा मैं झूठ नहीं बोल रही मैं बस इतना ही सुना तुम्हारी प्लानिंग सेफ है "।

    दृष्टि की बात सुनकर सब लोग निश्चित हो जाते हैं और दूसरे टॉपिक पर बात करने लगते हैं पर अतिक्ष कुछ और सोच रहा था उसने मनी मन में कहा।

    "अगर इसमें सच में सुना होगा ना तो मेरी तो कोई खैर नहीं यह घर पर जाकर मेरी बहन बजा देगी आई होप इसने सच में कुछ सुना नहीं हो"।

    थोड़ी देर बाद सब ने एक दूसरे से बात करी और फिर अपने घर के लिए निकल गए। बहुत टाइम हो गया था इसलिए अध्यक्ष और दृष्टि जल्दी-जल्दी घर केलिए निकल गए।

    अतिक्ष ने दृष्टि से पूछा।

    "क्या तुम्हारा सर के साथ वह प्रोजेक्ट वाला काम नहीं है क्या कल तुम लोगों को सबमिट करना है ना ऐसा कुछ बोल रही थी तुम?"

    दृष्टि में एक गहरी सांस ली और बोली।

    "नहीं आज कुछ नहीं करना है कल करेंगे अब और वैसे भी मैं बहुत थक गई हूं तो इसलिए मैं छुट्टी मांगने वाली थी उन से पर थैंक गॉड सर ने पहले से ही मना कर दिया था की कॉलेज छूटने के बाद रुकना नहीं है"।

    अध्यक्ष ने उसकी बात सुनकर फिर कुछ नहीं कहा अपनी बाइक निकाली और स्टार्ट करके दृष्टि उसके पीछे बैठकर अपने घर के लिए निकल गए।

    जब वह दोनों घर आते हैं। और लिविंग रूम में एक शख्स को देखते हैं तो उनकी आंखें खैरियत से बड़ी हो जाती है। अतीक्ष ने लड़खड़ाते हुए और सकपकाते हुए कहां।

    "तुमने मुझे बताया नहीं कि यह यहां पर आने वाला है तुम्हें पता था क्या इसके बारे में?",

    दृष्टि ने उसे घूरते हुए देखा और फिर अपने दात पिस्ते हुए बोली।

    "मुझे खुद नहीं पता कि यह यहां पर आने वाला है अगर पता होता तो उसको आने ही नहीं देती ना भाई मैं अब तो मेरी भी बैंड बजेगी वैसे यह करने क्या आया है और क्यों आया है?"

    श्रीमती मेहता ने दृष्टि और अतिक्ष को डोर पर खड़ा हुआ देखा तो वह उनको अंदर बुलाते हुए बोली।

    "अरे तुम दोनों बाहर क्यों खड़े हो अंदर आओ देखो तुम लोगों से कौन मिलने आया है?",

  • 19. Chapter 19

    Words: 1145

    Estimated Reading Time: 7 min

    दृष्टि और अतिक्ष लिविंग रूम में आते हैं। और बैठ जाते हैं। सामने त्रिशूल बैठा हुआ था उसकी नज़रें पहले तो दृष्टि की तरफ गई। त्रिशूल का चेहरा अभी इस वक्त भावहीन था।

    अतिक्ष ने थोड़ा घबराते नजरों से त्रिशूल से पूछा।

    "सर आप आज इधर अचानक से कैसे आ गए?"

    त्रिशूल निशांत लहजे में उसे जवाब दिया।

    "वह कुछ नहीं ऐसे ही आ गया मुझे पता नहीं था कि तुम लोग मेरे में पड़ोसी हो...

    त्रिशूल ने यह इतना कहा यह था की दृष्टि ने उसे घूर कर देखा और उसने घर कर देखते हुए बोली।

    "हम नए पड़ोसी आपके? याह आप हमारे नए पड़ोसी हो?"

    त्रिशूल ने फिर अपनी बातों को संभालते हुए और दृष्टि को देखते हुए कहा।

    "हां मेरा वही मतलब था कि मैं यहां पर नया आया हूं और ऊपर से मुझे इस एरिया का कुछ ज्यादा पता है तो इसलिए मैं यहां आ गया थोड़ी जान पहचान हो जाती और मुझे तुम्हारे साथ जरुरी बात करनी थी तो वह भी रीजन है "।

    मिस्टर मेहता ने सवालिया निगाहों से पूछा।

    "वैसे क्या जरूरी बात करनी थी दृष्टि से? कुछ हो गया क्या कॉलेज में? ऐसा क्या इंपॉर्टेंट आ गया?"

    त्रिशूल ने सब की तरफ देखा तो उसने सीरियस टोन में कहा।

    "अरे कोई इतनी बड़ी बात नहीं है टेंशन वाली हम वह प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं तो इसलिए मैं यहां आ गया दृष्टि से बात करने के लिए बाकी कोई टेंशन वाली बात नहीं है"।

    दृष्टि में जब त्रिशूल की बात सुनी तो उसने चैन की सांस ली। मिसेज मेहता को कुछ याद आता है और वह त्रिशूल को देखते हुए बोली।

    "क्या वह उसे लेडी के साथ आप भी थे जब वह लेडी हमारे पास आई थी मिलने क्या वह आप थे मास्क वाले?"

    त्रिशूल ने मैसेज मेहता को दिखा। और चुप हो गया कुछ सेकेंड बाद उसने उन्हें जवाब दिया।

    "अ ... हा उस वक्त में ही था ...

    इतना कहकर त्रिशूल ने अपनी नज़रें चुरा ली।

    श्रीमती मेहता ने फिर खुश होते हुए कहा।

    "अरे वह क्या आपकी मोम थी बहुत अच्छी है वह "।

    त्रिशूल ने थोड़ा सा हल्के से ही मुस्कुराते हुए कहा।

    "दरअसल वह मेरी मॉम नहीं है वह मेरी बड़ी दीदी है"।

    "तो ऐसी बात है मुझे लगा कि वह आपकी मोम है दरअसल यहां पर जो भी कोई आता है स्टूडेंट या या कोई तो उनके पेरेंट्स यहां पर आते हैं और हमसे मिलकर जाते हैं तो इसलिए मुझे ऐसा लगा कि वह आपकी मोम है"। श्रीमती मेहता ने त्रिशूल को जवाब दिया।

    "ऐसी बातें पर ऐसा कुछ भी नहीं है वह मेरी बड़ी दीदी थी सबको यही लगता है कि वह मेरी मॉम है पर ऐसा है नहीं"। त्रिशूल ने मुस्कुराते हुए कहा।

    मिस्टर मेहता ने अपना गला साफ करते हुए बोले।

    "ओके तो चलो आप हमारे साथ ही डिनर कर लीजिएगा साथ खाते हम सब मिलकर"।

    त्रिशूल ने उन्हें मना करते हुए कहा।

    "अरे नहीं सर इसकी कोई जरूरत नहीं है मुझे थोड़ा काम है वहां पर जाना है और मुझे कब से आप लोगों से मिलना था और अभी तो वह यह भी पता चला है कि यह दृष्टि का घर है तो अच्छा ही है अगर कुछ जरूरत पड़ी तो मैं आऊंगा"।

    मिस्टर मेहता ने कहा।

    "सर सर आप कभी भी आ सकते हैं आपको जब भी हमारी हमारी कोई हेल्प लगे तो आप आ जाए नहीं तो कॉल कर लीजिएगा मैंने आपको मेरा कांटेक्ट नंबर तो दे दिया है ना"।

    त्रिशूल ने हां में अपना सिर हिलाया और फिर दृष्टि की तरफ देखने लगा। और कुछ याद करते हुए बोला।

    "और हां मैंने तुम्हें डाटा सेंड कर दिया यह मेरे पर वह देख लेना मैंने प्रोजेक्ट रेडी कर लिया है कल ही हम लोगों को वह सबमिट कर देना है और प्रेजेंटेशन भी कई होगी तो तुम रेडी रहना बाकी मैं सब संभाल लूंगा"।

    दृष्टि ने बस हां में जवाब दिया। त्रिशूल सबसे अलविदा करके वहां से चला गया। पर दृष्टि किसी सच में घूम थी। उसने खुद से ही मन मन कहा।

    "यह कुछ छुपा रहा है जब भी आंटी ने उसे अपने उसे बहन फैमिली के बारे में पूछा तो उसने अपनी नज़रें चुरा ली थी क्यों?"

    यही सोचते हुए वह अपने रूम में चली गई। अतीक्ष भी अपने रूम में चला गया और सब अपने काम में लग गए।

    रात का समय....

    दृष्टि अभी इस समय लैपटॉप के सामने बैठी थी । उसने झुंझलाहट में कहा।

    "ये प्रेजेंटेशन बनाना और करना कितना डिफिकल्ट होता है पूरा दिमाग खराब करके रखा है कब से बैठी हुई हु हो नहीं रहा और कल तो ये सब मुझे करना है तो और टेंशन ",।

    दृष्टि इतना बोलकर वापस से काम में लग गए उसके चेहरे पर टेंशन साफ झलक रही थी।

    अतीक्ष ने उसे शांत करते हुए बोला।

    "रिलेक्स सब हो जाएगा बस अपने आप को शांत रखो बाकी सब हो जाएगा और तुम्हे लर्न करना होगा न तो दो में प्रेजेंटेशन बनाता हु तुम तब तक प्रिपेयर कर लो "।

    दृष्टि ने उसे देखते हुए कहती है।

    "ओके ये लो थोड़ा सा बाकी है इसको कर दो में तब तक पड़ लेती हु "।

    अतीक्ष लेपटॉप पर प्रेजेंटेशन बनाने लगा और दृष्टि पढ़ने बैठ गई।

    दूसरी तरफ त्रिशूल के घर ...

    त्रिशूल बेड पर लेता हुआ था। उसके आंखों से नींद कोसो दूर थी। उसे बार बार दृष्टि का खयाल आ रहा था। उसने खुद से बड़बड़ाते हुए कहा।

    ",ये लड़की हमेशा मुझे अपने साथ से स्पीचलेस करती है बहुत अलग लड़की है ये तुम क्या हो दृष्टि? मैं क्यों तुमसे अट्रैक्ट हो रहा हु में जितना भी तुमसे दूर भागने की कोशिश करता हु उतना में तुम्हारे करीब आने लगता हु "।

    ये कहकर त्रिशूल ने अपनी आंखे बंद कर ली। और उसके दिल में दृष्टि की बाते याद आई कि उसने क्या कहा था । और उनकी मुलाकात कैसे हुई थी।

    तुरंत त्रिशूल की आँखें खुलती है। और उसने कुछ सोचते हुए बोला।

    "दृष्टि के गाड़ी का पता नहीं चला क्या अभी तक ? इसके पीछे कौन था ? उसने भी नहीं बताया ?"

    यही सोचकर त्रिशूल बाहर गैलरी में आता है। और ऊपर आसमान की तरफ देखने लगता है। ऊपर देखते देखते त्रिशूल की नज़रे सामने दृष्टि के घर की तरफ चली गई।

    दृष्टि का बेडरुम का लाइट अभी भी चालू था । और उसके साइड से दृष्टि के बेडरुम की थोड़ी झलक दिखाई दे रही थी। दृष्टि अभी तक लेपटॉप पर काम कर रही थी और कुछ पड़ रही थी। उसको ऐसा करता देखकर त्रिशूल उसको देखता रह गया ।

    वह वापस दृष्टि को देखकर कही खो सा गया था।

    अगली सुबह...

    दृष्टि जल्दी कॉलेज पहुंच जाती है। और सीधा कॉलेज के प्रेजेंटेशन रुम में चली गई। वहां सब आए हुए थे । और अपना प्रोजेक्ट प्रेजेंट कर रहे थें ।

    दृष्टि की नज़रे किसी को खोज रही थी। पर उसको वह मिला नहीं जिसके लिए वह ढूंढ रही थी।

    पर उसे पीछे से आवाज आई।

    "दृष्टि.... तुम आगये"।

  • 20. Chapter 20

    Words: 1167

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    दृष्टी ने उसी डायरेक्शन में देखा जहां से उसे आवाज आई थी। तो वहां त्रिशूल खड़ा था। दृष्टि तुरंत उसके पास आई। और उसे ग्रीट करते हुए बोली।

    गुड मॉर्निंग सर"।

    त्रिशूल ने उसे देखते हुए पूछा।

    "Good morning प्रेजेंटेशन रेडी है ?

    दृष्टि ने अपना सिर हा में हिलाते हुए बोली।

    "हा सर सब रेडी है "।

    त्रिशूल ने एक लंबी सांस ली और सामने की तरफ इशारा करते हुए कहा।

    "ओके सो अगला नंबर तुम्हारा है स्टेज के बैक साइड मैं जाओ और ऑल द बेस्ट ओके अपने तरफ से पूरी कोशिश करना और घबराना नहीं "।

    त्रिशूल सृष्टि को इंस्ट्रक्शन दे रहा था। और दृष्टि उसे बहुत ध्यान से सुन रही थी। त्रिशूल की बातें सुनने के बाद उसने उसको थम्सअप करते हुए कहा।

    "ओके सर "।

    त्रिशूल ने आंखे झपका के उसको जवाब दिया । और दृष्टि स्टेज की तरफ आगे बढ़ गए । कुछ ही मिनिट के बाद दृष्टि सामने खड़ी थी। उसने लेपटॉप पर कुछ किया और रिमोट ऑन करके प्रेजेंटेशन देने लगी।

    त्रिशूल भीड़ के पीछे खड़ा था। और दृष्टि को देख रहा था। उसके जहन में बहुत सारी चीजें चल रही थी। और दृष्टि को देखकर वह कही खो गया था । त्रिशूल ने मन ही मन में खुद से कहा।

    "मुझे सच मैं पता नहीं था कि दृष्टि इतनी होशियार है और आज तो वह बहुत खूबसूरत लग रही है .... क्या यह हमेशा से ही ऐसे ही खूबसूरत लगती है या मुझे ही आज वह खूबसूरत लग रही है "।

    त्रिशूल सृष्टि को दूर से ही देख रहा था। उसका प्रेजेंटेशन और उसके हाव-भाव को देखकर त्रिशूल थोड़ा सा बहुत गया था। वह अपने ही ख्यालों में गम था कि उसको हाल में जोरदार तालिया की आवाज आई वह अपने सेंसस में आ जाता है और आगे देखा है की दृष्टि का प्रेजेंटेशन खत्म हो गया था।

    हाल के सभी मौजूद लोगों को और जूरिस को दृष्टि का प्रजेंटेशन बहुत पसंद आया था उनके चेहरे से साफ दिखाई दे रहा था कि वह दृष्टि के प्रेजेंटेशन से इंप्रेस हो गए हैं। त्रिशूल बस मुस्कुरा दिया और सब की तरफ देखने लगा। एक टीचर त्रिशूल के पास आती है। और वह उसे देखते हुए बोली।

    "सर... आपके कारण दृष्टि ने इतना अच्छा प्रेजेंटेशन दिया और आप दोनों इस प्रोजेक्ट पर वर्क कर रहे थे तो सब से ज्यादा आपको इसका क्रेडिट देना चाहिए वेल डन "।

    त्रिशूल ने उसे बिना किसी भाव से कहा।

    "सच कहा जाए तो दृष्टि ने इस प्रोजेक्ट पर ज्यादा मेहनत की है मैं तो बस उसको गाइड कर रहा था बाकी कुछ नहीं किया है मैं ने ज्यादा असली तारीफ की हकदार वह है आप उसको बधाई दीजिए मैं ने बस एक टीचर को जो करना चाहिए अपने स्टूडेंट्स केलिए वही किया है "।

    उस टीचर ने त्रिशूल की बात सुनकर अपने चेहरे पर एक नकली मुस्कान देते हुए कहा।

    "हा सही कह रहे है आप "।

    इतना कहकर वह टीचर वहां से चली गए । अब प्रेजेंटेशन का इवेंट खत्म हो गया था । सब लोग हॉल से बाहर चले गए थे। शाम हो रही थी और कॉलेज खत्म होने का टाइम हो गया था सब लोग चले गए थे। त्रिशूल अपने केबिन की और बाद गया ।

    दृष्टि कैंपस में थी। त्रिशूल अपना काम कर रहा था कि उसकी नजर दृष्टि पर गई वह अभी भी कैंपस में बैठी हुई अपने दोस्तों के साथ बातें कर रही थी। दृष्टि को वहां देखकर त्रिशूल ने खुद से बड़बड़ाते हुए कहा।

    "ये अभी तक नहीं गई घर, पे इधर ही है आजकल के बच्चे बहुत केरलेस हो गए है टाइम का वेस्ट करते रहते है क्या करे इनका "।

    इतना बोलकर त्रिशूल थोड़ी देर तक दृष्टि को देखता रहा और उसके दोस्तों को और एक गहरी सांस लेते हुए बोला।

    "यही तो उमर है इनकी मस्ती करने की बाद में तो अपने जिंदगी में व्यस्त हो जाएंगे फिर कौन कहा होगा क्या कर रहा होगा कुछ पता नहीं होगा किसी को "।

    त्रिशूल ने अपनी कलाई पर बंधी हुईं घड़ी को देखता है तो उस में 6 बज चुके थे । अब उसका जाने का टाइम हो गया था। उसने अपना सामान लिया और अपने घर केलिए निकल गया।

    त्रिशूल जब कंपाउंड में आता है। तो वह देखता है दृष्टि मोबाइल पर किसी को कॉल कर रही थी। त्रिशूल ने पहले उसे देखा नहीं है ऐसा प्रिटेंड किया । पर दृष्टि की नजर त्रिशूल की तरफ गई तो उसने उसे जोर से पुकारते हुए कहा।

    "अरे सर रुकिए ....

    दृष्टि दौड़ते हुए त्रिशूल उसके पास आती है उसे आता हुआ देखकर त्रिशूल के चेहरे के भाव थोड़े बदल गए । उसकी सांसे और तेजी से बढ़ने लगी । त्रिशूल ने मन ही मन में खुद से कहा ।

    "मैं कितनी भी कोशिश कर लूं इस लड़की से दूर जाने का पर ये वापस मेरे पास आती है इसको मना नहीं कर सकता मैं स्टूडेंट है मेरी ये जितना पास आती है उतना मैं आउट ऑफ कंट्रोल हो जाता हु .... पर कौन समझाए इसे "?

    त्रिशूल इसे कशमकश में था कि दृष्टि उसके पास आई । और उसको ग्रीट करते हुए बोली।

    "हेलो सर... आपको मेरा आज का प्रेजेंटेशन कैसा लगा ? आप मुझे कुछ बिना बताए और कुछ कहे चले गए वहां से ?"

    दृष्टि ने उसे सवालिया नजरों से और थोड़ा उम्मीद से पूछा।

    दृष्टि का सवाल सुनकर त्रिशूल ने एक हल्की सी स्माइल देते हुए उसे कहा।

    ",ओह हा वह कुछ काम आगया था इसलिए मुझे जाना पड़ा वैसे तुम्हारा प्रेजेंटेशन बहुत अच्छा था जूरी को और हमारे टीचिंग स्टाफ को पसंद आया ... उनकी कॉम्प्लीमेंट मैं ने सुनी थी और कुछ लोग मेरे पास आए थे ये सब बताने केलिए वेल डन "।

    त्रिशूल की तारीफ सुनने के बाद दृष्टि खुश हो गए । और उसने खुश होते हुए और एक सवाल किया।

    "थैंक्स सर वैसे इस कंपटीशन का रिजल्ट कब आएगा आपको कुछ पता है ? मुझे यही पूछना था आपसे "

    त्रिशूल ने सोचते हुए कहा।

    "अभी तक तो कोई आइडिया नहीं है पर इसको कुछ मथ्स देने पड़ते सब एग्जामिन करने के बाद वह रिजल्ट डिक्लेयर करते है तो टाइम लगेगा जब रिलीज होगा तब मैं तुम्हे बताऊंगा डोंट वरी "।

    "ओह ऐसे बात है मुझे लगा जल्दी लग जाएगा क्योंकि जल्दी सबमिट किया उन्होंने "। दृष्टि ने उसे कहा।

    त्रिशूल ने उसे पूछा।

    "ओके और कोई सवाल ?

    दृष्टि ने उसे देखा और फिर अपना सिर ना में हिलाते हुए बोली ।

    "नहीं और कोई सवाल नहीं है मुझे ... बस इतना ही पूछना था "।

    इतना बोलकर दृष्टि ने अपने दात दिखा दिए। त्रिशूल ने उसे देखा और कहता है।

    "ठीक है में चलता हु मुझे थोड़ा काम है "।

    इतना बोलकर त्रिशूल वहां से तुरंत चला गया । त्रिशूल को इतना जल्दबाजी में जाते हुए देखकर दृष्टि ने कंफ्यूज होते हुए कहती है।

    "ये इतना जल्दबाजी करते हुए कहा चला जाते है ? जब भी देखती हु हमेशा जल्दी में होते है और मुझे देखकर ऐसे भागते क्यों है यही समझ नहीं आता जैसे मैं इनको खा जाऊंगी ऐसे बिहेव करते है "।