धैर्य की ज़िंदगी ने ऐसी करवट ली कि उसकी पूरी दुनिया ही बदल गई। एक हादसा जिसने उसकी खुशियों पर गहरा दाग छोड़ दिया। दूसरी तरफ, वायु राजवंश—एक ऐसा इंसान जो कभी टूट नहीं सकता, राजवंशी खानदान का इकलौता वारिस, और एक पत्थर दिल इंसान, जिसके दिल में कोई भावना... धैर्य की ज़िंदगी ने ऐसी करवट ली कि उसकी पूरी दुनिया ही बदल गई। एक हादसा जिसने उसकी खुशियों पर गहरा दाग छोड़ दिया। दूसरी तरफ, वायु राजवंश—एक ऐसा इंसान जो कभी टूट नहीं सकता, राजवंशी खानदान का इकलौता वारिस, और एक पत्थर दिल इंसान, जिसके दिल में कोई भावना नहीं। लेकिन क्या होगा जब धैर्य और वायु की राहें टकराएँगी? ऐसा क्या हुआ था धैर्य के साथ जिसने उसकी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया? जानने के लिए बने रहिए Story Mania पर और पढ़ते रहिए Beast's Beloved!
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देहरादून, का एक छोटा-सा हॉस्पिटल, जहां दो लड़कियां और एक लड़का खड़े थे। पहली लड़की बहुत डरी हुई लग रही थी। उसने लड़के का हाथ पकड़ते हुए कहा, "राघव क्या हम ठीक कर रहे हैं।" राघव ने कहा, " तुम चिंता मत करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ। वैसे भी इतना ज्यादा समय नहीं लगेगा और तुम धैर्या को साथ क्यों लाई हो?" ज्योति ने चिढ़कर धैर्या को देख कर कहा, "मैं क्या करती? पता नहीं मम्मी के कौन से रिश्तेदार की बेटी है! मेरे गले ही पड़ी रहती है। जब से आई है तब से मुझसे चिपकी हुई है।" राघव ने धैर्या को देखा। एक छोटी सी लड़की थी, जो एक नीले रंग का सलवार सूट पहन कर बैठी थी। उसकी काली आंखें काफी सुंदर थी और वह किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। मानो सारी दुनिया की खूबसूरती उस में समाई हो। राघव ने मन में कहा, "यह अभी इतनी सुंदर है, तो बड़ी होकर तो कयामत ढा देगी।" ज्योति ने उसका वह एक्सप्रेशन देख लिया और चीढ़कर धैर्या को देख कर मन में कहा, "यह बेशर्म लड़की जानबूझकर यह सब कर रही है।" तभी वहां एक नर्स आई, जो ज्योति को अपने साथ ले जाने लगी। ज्योति ने जाने से पहले राघव को घूरकर देख कर कहा, "खबरदार जो तुम उस गांव की लड़की के पास गए।" राघव ने उससे कहा, "तुम चिंता मत करो बेबी, मैं यही हूं कोई प्रॉब्लम हो तो तुम मुझे बुला सकती हो।" वहां नर्स ज्योति को रूम में ले गई। लगभग 1 घंटे बाद नर्स ने राघव को अंदर बुलाया। ज्योति सिर झुकाए बैठी हुई थी। लेडी डॉक्टर ने राघव से कहा, " सॉरी सर, पर मैम यह प्रोसेस नहीं कर सकती हैं।" यह सुनकर राघव चौक गया था। तभी डॉक्टर ने फिर से कहा, "क्योंकि मैम पहले से ही प्रेग्नेंट है।" दोनों यह बात सुनकर परेशान हो गए थे। राघव और ज्योति बाहर आए । राघव ने ज्योति पर चिल्लाते हुए कहा, "तुमने पिल्स क्यों नहीं ली थी।" ज्योति तो कुछ बोल ही नहीं पा रही थी। राघव ने फिर कहा, "अब हम उस कॉन्ट्रैक्ट का क्या करेंगे?" ज्योति वही बेंच पर बैठ गई और कुछ सोचने लगी। तभी धैर्या उसके पास आई और कहा, "दीदी हम घर कब जाएंगे?" जैसे ही ज्योति ने सिर उठाकर धैर्या को देखा और उसके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कुराहट आ गई थी। उसने धैर्या से बड़े ही प्यार से कहा, "हम थोड़ी ही देर में जाएंगे। तुम यहां बैठो।" फिर वो राघव का हाथ पकड़कर दूर खड़ी होकर उससे कुछ बात करने लगी। ज्योति ने कहा, "क्या हुआ अगर मैं यह नहीं कर सकती? तुम उसे देख रहे हो, वह हमारे लिए काम करेगी।" राघव ने उस ओर देखा जहां ज्योति कह रही थी। वहां धैर्या बैठी हुई थी। राघव ने हैरानी से ज्योति को देखते हुए कहा, "तुम ऐसा कैसे कर सकती हो? वह तो तुम्हारी बहन है ना।" ज्योति ने चिढ़ते हुए राघव को देखकर कहा, "किसने कहा वह मेरी बहन वहन है? वह मेरी कोई नहीं है। वह सिर्फ हमारे पुराने गांव की पड़ोस की लड़की है। जिसे उन्होंने घूमने के लिए यहां भेजा है। देखो हमारे पास और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। हम पैसे ले चुके हैं।" राघव को धैर्या पर दया आ रही थी। उसने ज्योति से कहा, "ज्योति वह सिर्फ 17 साल की है।" ज्योति ने गुस्से से राघव को देखते हुए कहा, "तो तुम चाहते हो मैं वह सारे पैसे वापस कर दूँ। तुम मुझे बताओ क्या वह सारे पैसे अभी भी हमारे पास है? हमने उसमें से आधे खर्च कर दिए हैं। अब यही हमारा लास्ट ऑप्शन है।" राघव ने हारकर उसकी बात मान ली। वह लोग धैर्या के पास गए। ज्योति ने बड़े ही प्यार से धैर्या से कहा, "सुनो, जब हम हॉस्पिटल आए हैं तो तुम्हारा भी चेकअप करा देते हैं। क्या पता तुम्हारी तबीयत ठीक ना हो वैसे भी तुम कितना काम करती हो।" धैर्या जबसे ज्योति के घर आई थी। ज्योति उससे सारा घर का काम कराती थी। धैर्या ने ज्योति को काफी मना करने की कोशिश की पर ज्योति जबरदस्ती उसे उस रूम में ले गई। राघव ने पहले ही अंदर जाकर डॉक्टर और स्टाफ को पैसे दे दिए थे, जिससे वह उनका काम कर दे। धैर्या को कुछ समझ नहीं आ रहा था। इतनी सारी मशीनों में उसे क्यों लिटाया गया है। उसने डॉक्टर से भी पूछा, पर उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि बड़े हॉस्पिटल में ऐसे ही इलाज होता है। धैर्या एक छोटे से गांव की लड़की थी। इसीलिए उसे शहर के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता था और वह मान गई। लगभग दो-तीन घंटों के प्रोसेस के बाद वह काम हो गया। डॉक्टर ने ज्योति और राघव को धैर्या का खास ख्याल रखने को कहा फिर वह लोग घर चले गए। ज्योति की मां शोभा ने जैसे ही तीनों को अंदर आते देखा। वह पहले तो खुश हुई फिर उन्होंने जैसे ही धैर्या को देखा उनके चेहरे की सारी खुशी उड़ गई और उन्होंने गुस्से में कहा, "तुझे बोला था ना घर में कितना काम पड़ा था, पर नहीं तुझे तो बाहर घूमना है अब जल्दी जा और सारा काम कर।" धैर्या सर झुका कर अंदर जाने लगी तो ज्योति उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, "मां क्या कर रहे हो! उसकी तबीयत खराब है डॉक्टर ने उसे आराम करने को कहा है। अब आप उससे कुछ काम मत कराना।" शोभा ने हैरानी से अपनी बेटी की तरफ देखा क्योकि सबसे ज्यादा नापसंद उनकी बेटी ही धैर्या को करती थी। उसे उसकी खुबसुरती बिलकुल पसंद नहीं थी, पर उन्होंने ज्यादा सवाल नहीं किए। बस घूरकर धैर्या को देखा और अंदर चली गई । ज्योति ने धैर्या को भी उसके कमरे में जाकर आराम करने के लिए कह दिया था। राघव और ज्योति एक दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे। 2 हफ्ते बाद वो लोग फिर उसी हॉस्पिटल में थे। अंदर डॉक्टर धैर्या को चेक कर रही थी। राघव ने ज्योति को देखते हुए कहा, "उसे कुछ पता तो नहीं चलेगा।" ज्योति ने हंसते हुए कहा, "उसे क्या पता चलेगा? वह तो गंवार है। उसे तो अभी तक यह नहीं पता चला कि उसके साथ हुआ क्या था! तो अब क्या होगा?" तभी वो डॉक्टर निकलकर अपने केबिन में चली गई और राघव और ज्योति भी उनके पीछे पीछे चले गए। वो दोनों केबिन में जाकर डॉक्टर के सामने बैठ गए। डॉक्टर ने एकदम सीरियस लुक के साथ कहा, "प्रोसेस सक्सेसफुल रहा। अब वह तैयार है।" ज्योति और राघव बहुत खुश हो गए थे। डॉक्टर ने कुछ दवाइयां उन्हें लिखकर दे दी और कहा, "यह दवाइयां उसे जरूर देना, क्योंकि उसकी उम्र अभी बहुत कम है। उसकी बॉडी बहुत कमजोर है, पर जो भी हो आपने उस लड़की के साथ अच्छा नहीं किया।" यह कहते वक्त डॉक्टर के चेहरे पर एक उदासी थी। ज्योति ने चिढ़ते हुए डॉक्टर को देख कर कहा, "आप ऐसा नहीं कह सकती, आपने पैसे लिए है इसके लिए, और आप इस बात को किसी को नहीं बता सकती है। इस बात का खास ख्याल रखें।" डॉक्टर ने एक नजर ज्योति को देखा और वापस अपना काम करने लगी। राघव ज्योति को डॉक्टर की केबिन से बाहर ले आया।तब तक धैर्या भी वहां आ चुकी थी। उसने पूछा, "दीदी, हम वापस हॉस्पिटल क्यों आए हैं? मेरी तबीयत बिल्कुल ठीक है।" ज्योति ने एक नकली मुस्कान के साथ कहा, "नहीं धैर्या। डॉक्टर ने तुम्हें आराम करने को कहा है।" और वो उसे वहां से लेकर चले गए। लगातार दो हफ्तों तक धैर्या की तबीयत काफी खराब रही। उसे रोज उल्टी होती थी और चक्कर आते रहते थे। उसे भूख भी नहीं लगती थी। ज्योति इन सबका कारण जानती थी, इसीलिए वह चुप रही। एक दिन राघव को एक कॉल आया। दूसरी तरफ से किसी ने कहा, "हमें माफ कर दीजिए। अब हमें उनकी जरूरत नहीं है। माफी के तौर पर आपको आपके दिए गए अमाउंट से डबल पैसे दिए जाएंगे।" राघव बुरी तरह हैरान हो चुका था। उसने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की, पर वह लोग नहीं माने। राघव ने जब ज्योति को यह सब बताया तो उसे इस बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा, बल्कि वह तो इस बात से खुश थी कि उन्हें बिना कोई काम किए और ज्यादा पैसे मिलने वाले थे। राघव ने ज्योति से कहा, "ज्योति, धैर्या का क्या होगा? उसे तो कुछ नहीं पता है। अब हम क्या करें?" ज्योति ने चिढ़ते हुए राघव को देखा और कहा, "तुम्हें धैर्या की बहुत चिंता है।" राघव ने फिर कहा, "तुम्हें भी होनी चाहिए। आखिर तुम भी एक लड़की हो।" ज्योति ने कहा, "मुझे फर्क नहीं पड़ता। तुम मुझे इतना बताओ कि वह लोग पैसे कब भेज रहे हैं?" राघव ने हैरानी से ज्योति को देखा और कहा, " सच में तुम कितनी निर्दय हो।" ज्योति ने हंसते हुए राघव से कहा, "तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे इसमें तुम्हारा कोई हाथ ही नहीं है। क्या तुम वो नहीं थे जिसने इस बात के लिए अपनी हां कही थीं कि हम उसका इस्तेमाल कर सकते हैं? अब जब वह किसी काम की नहीं है। तो हम क्यों उसकी चिंता करें? और तुम टेंशन मत लो उसका इंतजाम में कर दूंगी।" दूसरे दिन धैर्या को ज्योति के पिता वनराज ने बस से उसके गांव भिजवा दिया । राघव को जब पता चला कि धैर्या को उसके गांव भेज दिया गया है तो उसे काफी बुरा लगा। उसने मन में कहा, "हमने 17 साल की लड़की की जिंदगी बर्बाद कर दी और उससे माफी भी नहीं मांग सकते।" फिर उसने अपने बगल में ज्योति को देखा, जो हंसते हुए वह पैसे गिन रही थी जो उन्हें मिले हैं।
धैर्या जैसे ही बस से उतरी, सामने बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था - 'रामगढ़ में आपका स्वागत है।' धैर्या ने अपना बैग लिया और ऑटो से निकल गई। गांव छोटा-सा था। यहां छोटे-छोटे बाजार थे। कुछ लोग अपनी गायों को ले जा रहे थे तो कुछ खेत से आ रहे थे। हर जगह हरियाली थी पर एक सुकून देने वाली हवा भी वहाँ थी। धैर्या एक छोटे से घर के पास आकर रुकी और बाहर से ही आवाज देने लगी, "अम्मा! देखो मैं आ गई।" अंदर से एक 35 साल की औरत बाहर आई और कहा, "लाडो, तु आ गई। मुझे लगा तू तो हमें भूल ही गई थी।" धैर्या ने अपनी मां लीला के गले लग कर कहा, "हम आपको कैसे भूल जाते? सबसे ज्यादा तो हमें आपकी याद आई है।" तभी अंदर से किसी की आवाज आई, "हाँ भाई अम्मा को ही याद किया जाता है, बाबा को तो कोई याद ही नहीं करता।" प्रमोद साहू बाहर आते हुए कहने लगे। जैसे ही धैर्या ने उन्हें देखा उसकी आंखों में आंसू आ गए। प्रमोद जी ने उसके आंसू पौंछते हुए कहा, "मेरी लाडो तो आते ही रोने लगी। चल अदंर!" फिर वह तीनों अंदर चले गए। घर काफी छोटा था। अंदर लकड़ी के बने सोफी रखे थे। धैर्या जाकर उधर बैठ गई, तभी अचानक से उसे अपने पेट में हलचल महसूस होने लगी। वह तुरंत उठकर बाथरूम में गई और उल्टी करने लगी। लीला जी धैर्या की ऐसी हालत देखकर काफी परेशान हो गई थी। उन्होंने प्रमोद जी से कहा, "देखिए उसकी तबीयत खराब लग रही है। वैद्य जी को बुला ले।" प्रमोद जी ने कहा, "अरे सफर से आई है इसीलिए ऐसा हो रहा है। तुम चिंता मत करो।" धैर्या ने खुद को आईने में देखते हुए कहा, "हमें हो क्या रहा है? इतने दिनों से उल्टियां हो रही है। क्या एक बार वैद्य जी को दिखा दे। नहीं-नहीं रहने देते हैं अम्मा और बाबा परेशान हो जाएंगे।" ऐसे ही चार-पांच दिन निकल गए और धैर्या की तबीयत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। प्रमोद जी और लीला काफी परेशान थे। एक दिन गांव की शादी में धैर्या और उसका परिवार भी गया हुआ था। गांव के बड़े की चौपाल में शादी रखी गई थी। पूरा गांव उसमें शामिल हुआ था। शादी खत्म होते-होते धैर्या की तबीयत फिर खराब होने लगी थी। वह एक पेड़ के पास खड़ी होकर उल्टियां कर रही थी। गांव के सभी लोगों का ध्यान उसकी तरफ जा चुका था। कुछ लोग बातें भी बना रहे थे। तभी एक बूढ़ी औरत धैर्या के पास गई और उसकी पीठ सहलाते हुए उसका हाथ पकड़ने लगी। जैसे ही उसने उसका हाथ चेक करा, वह दो कदम पीछे हट गई और जोरो से चिल्लाने लगी, "अनर्थ हो गया। यह लड़की... निकालो इसे यहां से।" किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था । तभी गांव के सरपंच आगे आए। उन्होंने उस बूढ़ी औरत से पूछा, "क्या हुआ है?" तो उसने बताया, "अरे यह लड़की! इसने पाप किया है। यह डेढ़ महीने पेट से है।" हर कोई सुन के हैरान था। धैर्या वहीं जमीन पर बैठ चुकी थी। लीला और प्रमोद जी सदमे में थे। सभी मिलकर उनके परिवार को गांव से निकालने की बातें कर रहे थे। सरपंच ने कहा, "हम इस लड़की को इस गांव में नहीं रख सकते। यह बालीक भी नहीं हुई थी और उसने इतना बड़ा पाप कर दिया है। आपके परिवार को इस गांव से बहिष्कृत किया जाता है।" तभी धैर्या उठकर खड़ी हुई और उसने आंखों से आंसू पोंछते हुए कहा, "यह हमारी गलती है। हम इसके जिम्मेदार है। हमारे अम्मा और बाबा को इसका दोष ना दें। हम यहां से अभी चले जाएंगे और कभी इस गांव में कदम नहीं रखेंगे। ये कहकर वो वहां से जाने लगी।" लीला उसे रोकने के लिए आगे बढ़ने लगी तो प्रमोद जी ने उसका हाथ पकड़ लिया। उनकी आंखों में भी आंसू थे। उन्होंने गुस्से में कहा, "आज से तुम मेरी बेटी नहीं हो। मेरी बेटी ऐसी हो ही नहीं सकती। मैंने उसे ऐसी परवरिश नहीं दी थी। जीवन में कभी अगर मैंने तुम्हारा चेहरा देखा तो याद रखना तुम मेरी लाश देखोगी। निकल जाओ यहां से।" धैर्या तो पहले ही वहां से जा रही थी, पर यह शब्द सुनकर उसके शरीर से मानो जान ही निकल गई। वह बेसुध होकर वहां से चली गई। उसे खुद नहीं पता था कि वह कहां जा रही है? वह जाकर एक बस में बैठ गई। जब बस चलने लगी तो उसने रामगढ़ को पीछे छोड़ते हुए देखा और रोते हुए कहने लगी अम्मा बाबा माफ करना मैं नहीं जानती कि मेरे साथ क्या हुआ है? पर आपकी बेटी ने कुछ ऐसा नहीं किया है जिससे आपको शर्मिंदगी महसूस करनी पड़े। अब मैं यहां तब आऊंगी जब मेरे पास अपने सवालों के जवाब होंगे। बस चलती रही कई घंटों बाद जब वह रुकी और धैर्या से बाहर आई तो उसने देखा कि सुबह के 5:00 बज रहे हैं। हल्की-हल्की रोशनी है। धैर्या आगे बढ़ते हुए सब जगह को देखने लगी, तभी उसे एक बोर्ड दिखाई दिया लव यू इंदौर। हाँ! धैर्या इंदौर में थी, जहां उसकी नई जिंदगी शुरू होने वाली थी। जब वो फुटपाथ पर चल रही थी हर इंसान उसे ही देख रहा था। धैर्या इस वक्त एक नारंगी रंग का लहंगा पहनी हुई थी और हाथों में काफी सारी चूड़ियां थी। वह बेसुध बस आगे चले जा रही थी। वही एक ब्लैक कलर की कार साइड में खड़ी थी, जिसके अंदर से एक इंसान कब से धैर्या को ही देख रहा था। उसने अपने आगे बैठे इंसान को कुछ आर्डर दिया तो एक इंसान कार से बाहर जाकर धैर्या के पास खड़ा हो गया। धैर्या को जब अपने ऊपर किसी की परछाई महसूस हुई तो उसने ऊपर देखा। उसके सामने एक काले कलर के कपड़ों में हट्टा कट्टा इंसान खड़ा था जो दिखने में काफी डरावना था। धैर्या अपने कदम पीछे लेने लगी, उसने कहा - "दूर-दूर! हमसे...हमसे दूर रहो और वहां से भागने लगी।" वह आदमी उसके पीछे जाने लगा, पर वह वहां की भीड़ में कहीं गुम हो गई और उस आदमी को कहीं नहीं मिली। वह निराश होकर वापस उस कार के पास आ गया था। कार में बैठा इंसान उसे घूरकर देख रहा था। उसने कहा, "तुम्हें उससे बात करनी चाहिए थी। तुम ऐसे उसके सामने खड़े होंगे तो वह जरूर भागेगी ना।" उस आदमी का मुंह लटक गया। उसने धीरे से कहा, "सॉरी बॉस मेरी मिस्टेक थी। यह कहकर वो कार में बैठा और कार आगे बड़ने लगी। कार में बैठा आदमी अभी भी भीड़ में धैर्या को ही ढूंढ रहा था।" इधर धैर्या एक छोटी सी दुकान के पीछे खड़ी थी और अपनी सांसों को काबू करने की कोशिश कर रही थी। दुकान वाले ने जब धैर्या को अभी दुकान के सामने खड़ा देखा तो वह उसे भगाने लगा। धैर्या वहां से निकलकर सीधी जाने लगी। उसे तो खुद नहीं पता था कि वह कहां जाए? दिन भर घूमते रहने के बाद धैर्या जाकर एक पार्क में बैठ गई। वह छोटी बच्ची खेल रही थी, जिसे देखकर सहसा ही उसका हाथ अपने पेट पर चला गया। उसने खुद से कहा, "हमें नहीं पता कि आप हमारे अंदर कैसे आए? पर हम आपकी जान नहीं लेंगे। ईश्वर ने आपको हमारे पास भेजा है और हमारा कोई हक़ नही है किसी निर्दोष को इस दुनिया से भेजने का। आपका और हमारा साथ ईश्वर ने बांधा है और हम हर हाल में आपको सुरक्षित रखेंगे। हमारे माता-पिता का हाथ हमसे छूटा है, पर हम आपको कभी नहीं छोड़ेंगे। आप ही हमारी जीने का सहारा है।" यह कहते हुए उसकी आंखों में आंसू थे। धैर्या को पता ही नहीं चला कि कब वह उस बेंच पर बैठे-बैठे ही सो गई। उसकी नींद कुछ लड़कों की आवाजों से खुली, जो उसके सामने ही खड़े थे। अपने सामने इतने सारे लड़कों को देखकर धैर्या डर के मारे कांपने लगी। वह लड़के धैर्या को देख कर हंस रहे थे।
धैर्या अपने सामने इतने सारे लड़कों को देखकर घबरा गई थी। उसकी तो ऐसी हालत हो गई थी कि वह हिल भी नहीं पा रही थी। उनमें से एक लड़का आगे आया और धैर्या को देखते हुए कहने लगा, "भाई कमाल का माल मिला है आज। देख तो इसकी कमर क्या गजब ढा रही है!" धैर्या ने जो लहंगा पहना था, उसके दुपट्टे से उसकी कमर दिख रही थी। उसने जल्दी से उसे ठीक किया और खड़ी हो रही थी। तभी वो लड़का उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे वापस वहीं बिठाने लगा और बाकी सारे लड़के हंस रहे थे। धैर्या ने रोते हुए कहा, "हमें जाने दीजिए। हमने तो कुछ नहीं किया है, प्लीज जाने दीजिए।" उन्हीं लड़कों के बीच एक लड़के ने हँसते हुये कहा, "भाई! सुन तो इसकी आवाज, कितनी मीठी है। इसको तो सबसे पहले मैं भी लूंगा।" तभी एक और लड़के ने कहा, "यार, तेरा नंबर पहले नहीं आ सकता।" धैर्या उनकी बातों से बुरी तरह डर गईं थी और वहां से भागने की कोशिश कर रही थी। तभी एक लड़के ने उसे कमर से पकड़ कर खींच लिया। जिससे धैर्या बुरी तरह रो रही थी। ये देखकर एक लड़के ने धैर्या के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मारा। जिससे धैर्या जमीन पर गिर गई। जमीन पर गिरते समय उसके दोनों हाथ अपने पेट पर थे, जैसे वह अपने बच्चे को बचा रही हो। तभी वहाँ किसी औरत की आवाज आई, "स्टूपिड बॉयज! छोड़ो लड़की को।" जब लोगों ने पीछे मुड़कर देखा तो वह एक 50 साल की औरत खड़ी थी। ये देखकर एक लड़के ने हंसते हुए कहा, "आंटी, यहां से जाओ। यहां आपके काम का कुछ नहीं है।" औरत ने आगे आते हुए कहा, "अच्छा! तो मुझे भी जानना है कि तुम्हारे काम का यहाँ क्या है?" यह कहते हुए वह औरत आगे आ रही थी। ग्रुप में से एक लड़का आगे बढ़ते हुए उस औरत को बाहर निकालने वाला था कि उस औरत ने जोरदार मुक्का उस लड़का के चेहरे पर मारा, जिससे वह जमीन पर गिर गया और उसके मुंह से खून निकलने लगा। बाकी लड़के यह देखकर बौखला गए और वह भी उसके पास आने लगे। उस औरत ने एक-एक कर सबको पछाड़ दिया। सभी लड़के जमीन पर पड़े थे और दर्द से करा रहे थे । औरत धैर्या के पास गई और उसने उसे जमीन से उठाते हुए कहा, "तुम इतनी रात को यहां क्या कर रही थी?" धैर्या ने नजरें उठाकर ऊपर देखा और रोते हुए उस ओरत के गले लगकर कहा, "मैं...मैं मुझे नहीं पता कहाँ जाना है। मेरा कोई नहीं है।" उस औरत को धैर्या की मासूम शक्ल देख कर उस पर दया आ गई थी। उसने उसे उठाते हुए कहा, "अच्छा ठीक है, रो मत। मेरे साथ चलो।" जैसे ही उसने धैर्या को खड़ा किया, तभी धैर्या के दिल में तेजी से दर्द होने लगा और वह अपनी चेस्ट पर हाथ रखकर जोर-जोर से सांसें लेने लगी। जैसे ही औरत ने उसकी हालत देखी। वह तुरंत उसे अपनी गाड़ी में बिठाकर हॉस्पिटल ले गई। हॉस्पिटल में धैर्या का ट्रीटमेंट चल रहा था। इंदौर के एक फाइव स्टार होटल में एक लड़का खिड़की के पास खड़ा था और अपने दिल पर हाथ रखकर खुद से कह रहा था, "क्या तुम किसी तकलीफ में हो? तुम ठीक तो हो ना?" उसका मन बहुत बेचैन हो रहा था। तभी उसने किसी को फोन करा और कहा, "क्या वह तुम्हें मिली?" सामने से आवाज आई, "सॉरी बॉस! हमने बहुत कोशिश की, पर हमें वह नहीं मिली।" उस लड़के ने बिना बात किए फोन काट दिया, पर वापस आसमान में देखते हुए कहा, "मैं तुम्हें ढूंढ लूंगा।" इधर हॉस्पिटल में 2 घंटे के बाद एक लड़की ऑपरेटिंग रूम से बाहर आई। उसने उस औरत से कहा, "मासी, आप इसे कहां से लाये हो?" औरत ने कहा, " मैं घर जा रही थी, तभी रात में पार्क में कुछ लड़के इसे परेशान कर रहे थे और तुम तो मुझे जानती हो कि मैं कहीं जुल्म होता देख नहीं सकती।" यह सुनकर वो लड़की हंसने लगी फिर उसने कहा, "हाँ-हाँ! मैं अच्छे से जानती हूँ आपको। अपनी बॉक्सिंग कहीं भी दिखाने में बहुत मजा आता है। आप ठहरी प्रतिभा देवी, आपसे कौन पंगा लेगा!" फिर उसने बहुत सीरियस होते हुए कहा, "उसे माइनर अटैक आया था, शायद वो बहुत ज्यादा डिप्रेशन में थी और उन लड़कों से डर भी गई थी। जिससे उसके हार्ट में कुछ परेशानी हो गई थी और एक और बात है। समझ नहीं आ रहा कैसे बताऊं?" प्रतिभा देवी ने उसे अपने साथ उठाते हुए कहा, "आहना, बताओ मुझे। उस बच्ची को क्या हुआ है?" अहाना में एक लंबी सांस ली और कहा, "वह प्रेग्नेंट है।" यह सुनते ही प्रतिभा देवी हैरान रह गई थी। उन्होंने कहा, "क्या कह रही हो तुम? छोटी सी बच्ची है। तुमने अच्छे से चेक नहीं किया होगा।" आहाना ने कहा, "मैंने चेक किया है। मैंने गायनेकोलॉजिस्ट से भी चेकअप करवाया उसका। उसका बहुत ध्यान रखने की जरूरत है, उसने बताया कि उसका घर कहां है?" प्रतिभा देवी ने कहा, " उसने कहा उसका कोई नहीं है। प्यारी बच्ची दुनिया में अकेली है और इतनी बड़ी मुसीबत में भी।" तभी नर्स ने वॉर्ड से बाहर आते हुए कहा, "आहाना मैम, उस लड़की को होश आ गया है।" प्रतिभा देवी और अहाना वार्ड में चले गए। उन्होंने अपने सामने बैठी हुई छोटी-सी लड़की को देखा, जो सोलह सत्रह साल की ही दिख रही थीं। प्रतिभा देवी उसके पास जाकर बैठ गई। उन्होनें उसके सर पर हाथ फेरा और कहा, "बच्चा कैसे हो? ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा है?" धैर्या ने अपनी भरी हुई आंखों से अपने सामने बैठी औरत को देखा और कहा, "आपका धन्यवाद, आपने हमारी जान बचाई।" तभी उसे कुछ ध्यान आया और उसने अपने पेट पर हाथ रख लिया। यह देखकर आहाना ने मुस्कुराते हुए कहा, "चिंता मत करो, तुम्हारा बेबी बिल्कुल ठीक है।" धैर्या घबराई हुई आंखों से अपने सामने खड़ी उस लड़की को देखने लगी। तो आहाना ने उससे कहा, " तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है। अच्छा तुम बता सकती हो कि तुम प्रेग्नेंट कैसे हुई?" इस सवाल का जवाब तो खुद धैर्या को भी नहीं पता था। अहाना उसके फेस के एक्सप्रेशन समझ गई और उसने कहा, "मैं तुम्हें समझाती हूँ। तुम्हें सरोगेसी के जरिए प्रेग्नेंट किया गया है, मतलब किसी ने अपना बेबी तुम्हारी यूट्रस में प्लांट किया था। तुम्हें पता है यह कब हुआ था?" धैर्या को तो अभी भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था, वो एक छोटे से गांव की लड़की थी। उसे ये सब बिल्कुल नहीं पता था। धैर्या को वह दो बार हॉस्पिटल जाना याद आया और वह सब समझ गई उसकी आंखों में आंसू आ गए थे। अहाना ने उससे पूछा, "तुमने बताया नहीं?" धैर्या ने कहा, "हमारे साथ धोखा हुआ है। उन लोगो ने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? हमने तो उनके साथ कुछ गलत नहीं किया था।" यह कहते हुए रोने लगी थी। अहाना ने कहा, "तो क्या तुम अबॉर्शन कराना चाहती हो?" इस बात सुनकर धैर्या अपने दोनों हाथों से अपने पेट को छुपाते हुए कहा, "नहीं, हम अपने बच्चे को नहीं मारेंगे। वह हमारा अंश है।" अहाना ने उसे समझाते हुए कहा, "देखो, तुम बहुत छोटी हो। तुम्हारी बॉडी यह प्रेगनेंसी झेल नहीं पाएगी। इसमें बहुत खतरा है। खासकर तुम्हारी जान को।" आहना आगे कुछ कहती इससे पहले ही प्रतिभा देवी ने उसे रोकते हुए कहा, "जाने दो, उसके पास पहले ही कोई नहीं है। शायद यह भगवान की इच्छा है कि इसे कोई सहारा मिले। तुम चिंता मत करो हम हैं ना, हम तुम्हारा पूरा ख्याल रखेंगे और इस नन्हें से शैतान का भी।" यह कहते हुए वो उसके पेट पर हाथ रखने लगी। धैर्या ने रोते हुए उन्हे गले लगाया और कहा, "धन्यवाद, आप हमारे लिए इतना कर रही है। हम आपका एहसान नहीं भुलेंगे।" प्रतिभा देवी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा, "अच्छा चुप हो जाओ और बताओ तुम्हारा नाम क्या है?" धैर्या ने कहा, "हमारा नाम धैर्या साहू है।" उन्होंने उसे आराम से लेटाया और कहा, "अच्छा! थोड़ा आराम कर लो। हम कल घर जाएंगे।", ये कहकर वो वॉर्ड से बाहर आ गई।" बाहर आहाना पहले से ही उनका इंतजार कर रही थी। उसने कहा, "आप उसे कैसे इनकरेज कर सकती थी? आपने देखा नहीं वह सिर्फ 17 साल की है। यह बहुत रिस्की है।" आहाना लगातार बोली जा रही थी । प्रतिभा देवी उसके मुंह पर हाथ रखा और कहा, "अहाना चुप हो जाओ। हम संभाल लेंगे। तुमने उसकी आंखों में उम्मीद को नहीं देखा। कुछ खोने का दर्द और कुछ पा लेने की इच्छा, यह बच्चा उसकी आखिरी उम्मीद है जीने के लिए। उसने अपना सरनेम बताया है इसका मतलब उसके घर वालों ने उसे निकाल दिया है। शायद वो उसे गलत समझ रहे थे। इसके आगे की कहानी जानने के लिए आपको अगला चैप्टर पढ़ना होगा ।
दूसरे दिन प्रतिभा देवी और आहना धैर्या को अपने घर ले आए। उनका घर गांधी चौक के कीर्तन अपार्टमेंट के सेकंड फ्लोर पर था। कॉलोनी ज्यादा बड़ी नहीं थी, पर साफ-सुथरी और अच्छी थी। धैर्या ने घर को अंदर से देखा तो पाया कि ज्यादा चमक ना होकर वहां एक सादगी थी। बांस के कई सारी सुंदर-सुंदर चीजें बनाकर रखी गई थी। वो एक 2BHK अपार्टमेंट था। एक दीवार पर प्रतिभा देवी के परिवार के फोटो के साथ उनके बॉक्सिंग में जीते गए पुरस्कारों के भी फोटो लगे थे। अहाना ने धैर्या को सोफे पर बिठाया और उसे पानी देते हुए कहा, "मासी, यहां अकेले रहती हैं। तुम उनके साथ रह सकती हो। उनका बेटा और बहू अमेरिका में है, पर मैं तुमसे अभी भी कह रही हूँ कि तुम्हें अपनी सेहत का ख्याल रखना है।" आहना ने आपनी बात खत्म करी ही थी कि अंदर से प्रतिभा देवी की आवाज आई। उन्होनें कहा, "अब बस करो। कितना डराओगी उस बच्ची को? पहले ही बेचारी इतनी परेशान है और तुम उसे और परेशान कर रही हो।" अहाना ने मुंह बनाकर प्रतिभा देवी को देखा और कहा, "मासी, आप तो इसके आते ही मुझे भूल गई।" प्रतिभा देवी ने हंसते हुए उसकी बाजू पर मुक्का मारा और कहा, "अच्छा, मैं तुम्हें भूल गई हूँ। ठीक है तो जाकर हमारे लिए खाना बनाओ। शायद उससे मुझे तुम्हारी याद आ जाए।" अहाना उतरे हुए चेहरे के साथ किचन में चली गई। प्रतिभा देवी ने धैर्या के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा चिंता मत करो. मैं तुम्हारे माता-पिता की कमी तो पूरी नहीं कर सकती, पर तुम्हें अकेला भी महसूस होने नहीं होने दूंगी। अब तुम और यह शैतान मेरी जिम्मेदारी है।" धैर्या को इतना अपनापन देखकर अपने अंदर एक गर्माहट महसूस हुई। उसने तुरंत प्रतिभा देवी को गले लगा लिया। 8 महीने बाद देहरादून एक सबसे बड़े हॉस्पिटल में एक वीआईपी रूम के अंदर एक लड़का बेजान-सा बेड पर लेटा हुआ था। उसके सामने बेंच पर एक 55 साल की महिला बैठी थी, जो काफी रईस दिख रही थी और एक टक उस लड़के को देख रही थी। तभी उस रूम में एक आदमी अंदर आया, जो काफी लंबा था और उसने अपनी आंखों पर चश्मा चढ़ाया हुआ था। उसने अपना सर झुका कर कहा, "बड़ी मालकिन हुकुम करें।" उस औरत ने उस आदमी की तरफ देखते हुए कहा, "हेमंत! हम चाहते है तुम उन्हें दोबारा ढूंढो और यह काम हमे अगले 2 घंटे के अंदर चाहिए।" हेमंत ने सर झुका कर "हाँ" कहा और चला गया। औरत ने उस लड़के के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "हम अपना वंश इस तरह खत्म नहीं होने देंगे। वायु आपको ठीक होना होगा।" ये कहकर उस औरत की आंखों से आंसू गिरने लगे। 2 घंटे बाद हेमंत वापस आया। उसने कहा, "बड़ी मालकिन, हमें वह मिल गए हैं और खबर सही है।" वह औरत आंखों में एक चमक के साथ खड़ी हुई और उसने कहा, "हमें अभी उधर ले चलो।" देहरादून की सड़कों पर तीन चमचमाती काली कार एक साथ चल रही थी। वो सभी कार एक छोटे से घर के पास आकर रुकी। उनमें से कुछ बॉडीगार्ड उतरे और बीच में खड़ी रोल्स रॉयल कार दरवाजा खोला। जिसमें से एक क्रीम कलर की शिफॉन की साड़ी में एक औरत बाहर आई। धूप में उसके गले में पहना हुआ डायमंड का नेकलेस चमक रहा था। बॉडीगार्ड ने जाकर उस घर का दरवाजा खटखटाया। शोभा जी ने आकर दरवाजा खोला। अपने सामने खड़े इतने हटे-कट्टे लोगों को देखकर शोभा जी डर के पीछे चले गई। उन्हें लगा ज्योति ने कुछ किया होगा, क्योंकि ज्योति हमेशा ही कुछ ना कुछ परेशानी खड़ी करती रहती थी। उन्होंने मन में कहा, "अब यह क्या नई मुसीबत है!" तभी उन बॉडीगार्ड के बीच में से एक आवाज आई, "हम आपसे बात करना चाहते हैं।" शोभा ने उस तरफ देखा जहाँ से आवाज आई थी और अपने सामने एक अमीर औरत को देखकर उनकी आंखें चमकने लगी। उसने उन्हे अंदर बुलाया, वह औरत वहाँ जाकर सोफे पर बैठ गई। तब तक वनराज जी भी वहां आ गए थे और वह भी वह सब देखकर उतना ही हैरान थे जितना शोभा थी। तभी उस औरत ने कहा, "हम आपसे बात करना चाहते हैं। आप बैठ जाइए।" शोभा और वनराज बैठ गए तो उस औरत ने फिर कहा, "हमारा नाम निर्मला देवी राजवंश है। हम आपकी बेटी से मिलना चाहते हैं।" राजवंश यह नाम सुनते ही दोनों बुरी तरह चौक गए थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि ज्योति ने राजवंशों से पंगा कैसे ले लिया! वनराज जी हाथ जोड़ते हुए कहा, "मैम, अगर हमारी बेटी से कोई गलती हुई है तो हम उसकी तरफ से आपसे माफी मांगते हैं। वह बच्ची है अगर उसने आपका किसी भी तरह से अपमान किया है तो उसे माफ कर दीजिए।" निर्मला देवी कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी पीछे से किसी की आवाज आई, "मम्मी घर का सारा सामान लाने में कितनी परेशानी होती है।" पीछे ज्योति खड़ी थी। उसके दोनों हाथों में बड़े-बड़े थैले थे। उसने एक प्लाजो सूट पहना था जिसमें उसका बड़ा पेट साफ नजर आ रहा था। निर्मला देवी ने जैसे ही ज्योति को देखा उनकी आंखें खुशी से चमक उठी। वह उठ कर खड़ी हुई और उन्होंने ज्योति के पेट पर हाथ लगाकर कहा, " हमारा वंश...हमारा वंश अभी भी जिंदा है।" इस समय उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे तभी उनकी नजर ज्योति के हाथों में पकड़े और बड़े-बड़े बेग्स पर गई और उन्होने गुस्से में कहा, "किसकी इतनी हिम्मत थी कि हमारे वंश को जन्म देने वाली लड़की से इस तरह का काम करवाए।" शोभा वनराज तो उनकी आवाज से डर से कांपने लगे थे। निर्मला देवी ने अपने बॉडीगार्ड को कुछ इशारा किया। दो आदमी तुरंत आगे आए और उन्होंने ज्योति के हाथों में बैठ लेकर अंदर रख दिया। निर्मला देवी ने ज्योति का हाथ पकड़कर उसे बेठाते हुए कहा, "आपकी तबीयत कैसी है? क्या आपको अच्छा लगता है? आप स्वस्थ महसूस करती हैं?" ज्योति बुरी तरह कंफ्यूज थी और उसने कहा, "माफ कीजिएगा, मैंने आपको पहचाना नहीं।" निर्मला देवी ने एक आह भरते हुए कहा, "गलती हमारी है। हम आपको बताते है। हम निर्मला देवी राजवंश! राजवंश खानदान की हेड। हमारा पोता वायु राजवंश, जिसे शायद आप लोग जानते होंगे। आपकी कोख में जो बच्चा है वह हमारे पोते वायु राजवंश का है। हमारे पोते ने आपके साथ वह कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था पर कुछ कारणों से हमने उन्हें यह कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने को कहा था। हम जानते थे कि हम लड़की के जीवन के साथ खेल रहे हैं, पर शायद यह ईश्वर की इच्छा थी जो आपने हमारे आने वाले परपोते को अपने पास रखा हम आपके आभारी हैं।" ज्योति ने कहा, "तो आप क्या चाहती हैं?" निर्मला देवी ने कहा, "हम चाहते हैं कि आप हमारे साथ रहे। हम आपकी पूरी देखभाल करेंगे। यदि आप वापस जाना चाहे तो आपको आपकी इच्छा अनुसार वापस भेज दिया जाएगा। कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से हम इस बच्चे को अपने पास रखेंगे।" ज्योति के दिमाग में तो कुछ और ही प्लान चल रहा था। उसने कहा, "मैं आपके साथ चल सकती हूँ और आपको यह बच्चा भी दे सकती हूँ। पर क्या आप अपने पोते की शादी मुझसे कराएगी?" निर्मला देवी एक पल के लिए हैरान हो गई, पर यह उनके वंश का सवाल था। उन्होंने कुछ सोच कर "हाँ" कह दिया और वहां से चली गई। उनके जाने के बाद वनराज और शोभा अविश्वास से अपनी बेटी को देख रहे थे। शोभा ने कहा, "ज्योति, तुमने कहा था कि यह बच्चा राघव का है और वह औरत यहां आकर यह कह रही है कि ये उनका पोता है।" ज्योति ने सोफे पर बैठ कर पानी पीते हुए कहा, "यह लगभग आधा सच है।" फिर उसने हॉस्पिटल से लेकर धैर्या के साथ जो उन्होंने किया वह सब कुछ बताया। तो शोभा ने कहा, "पर अगर उन्हें पता चल गया कि तुमने झूठ बोला है तो क्या होगा? वह लोग काफी खतरनाक है।" ज्योति ने बड़े आराम से कहा, "मां कॉन्ट्रैक्ट मैंने साइन किया था और उन्हें कौन बताएगा कि यह उनके घर का बच्चा नहीं है। हमारे लिए एक अच्छा मौका है। हम इनकी मदद से काफी अमीर बन सकते हैं। बस आपको मेरा साथ देना होगा।" वह पूरा परिवार शैतानों की तरह मुस्कुराने लगा। इधर निर्मला देवी हॉस्पिटल रूम में बैठी थीं। उन्होनें डॉक्टर से पूछा, "रिपोर्ट में क्या है?" डॉक्टर ने निराशा से कहा, "वही जो हमने आपको पहले बताया था। मिस्टर वायु अब कभी पीता नहीं बन सकते हैं। एक्सीडेंट में उनके पैरों का पूरा हिस्सा सुन्न हो चुका था। हां कुछ ही समय में वह चल जरूर सकते हैं पर शायद ही मुमकिन है कि जीवन में कभी पिता बन सके।" निर्मला देवी ने एक लंबी आह भरी और अपने पीछे खड़े हेमंत को देखकर कहा, "तुम उस लडकी का राजवंश हवेली में रहने का इंतजाम करो।" हेमंत ने हां में सिर हिलाया । निर्मला देवी ने वायु की तरफ देखते हुए कहा, "हमें माफ कर दो बच्चे, पर यह फैसला बहुत जरूरी है। जब तुम कोमा से उठोगे तो शायद इस पर सवाल उठाओ, पर हम तुम्हें समझा देगे।"