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Obbsessed with Zoya,

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कहानी है जोया की अरमान और अरहम की। जोया एक मासूम लड़की है जिसके परिवार को उसका ही प्यार अरहम ने जान से मार डाला जिसके बाद जोया जान बचाकर अपनी माँ के साथ शहर भाग गयी। और करने लगी अरहम से नफरत। तो क्या सच में अरहम ही है जोया के परिवार का कातिल या है कोई...

Total Chapters (253)

Page 1 of 13

  • 1. Obbsessed with Zoya, - Chapter 1

    Words: 1542

    Estimated Reading Time: 10 min

    इस कहानी की शुरुआत एक खूबसूरत गाँव से होती है। गाँव के जमींदार की इकलौती बेटी, जोया, को बेहद लाड़-प्यार से पाला गया था। जोया, तीन भाइयों की इकलौती बहन, घर में सबसे छोटी थी। उस बड़ी-सी हवेली में हर तरह का ऐशो-आराम मौजूद था। जोया, जो एक बेहद खूबसूरत लड़की थी, को अपने ही घर में काम करने वाले खान बाबा के बेटे से मोहब्बत हो गई थी।

    अरहम, खान बाबा का इकलौता बेटा था, जो शहर से अपनी हायर स्टडीज़ पूरी करके लौटा था। वह दिखने में बेहद डैशिंग और स्मार्ट था; कोई भी लड़की आसानी से उसकी ओर आकर्षित हो जाती थी। वह बेहद खूबसूरत पर्सनैलिटी का मालिक था।

    जोया ने जब उसे देखा, तो उसे उससे मोहब्बत हो गई, और अरहम भी जोया को देखते ही उससे मोहब्बत करने लगा था। एक ओर इन दो जवान दिलों की मोहब्बत दिन पर दिन परवान चढ़ रही थी, वहीं दूसरी ओर जमींदार साहब की पुरानी दुश्मनी बाहर आ गई थी। जमींदार साहब ने अपने सगे साले, अशरफ़ अली को, जिसने उन्हीं के घर में काम करने वाली मुलाजिमा के साथ बदसलूकी की थी, पुलिस के हवाले कर दिया था।

    जिससे अशरफ़ अली के मन में अपने जीजा के खिलाफ बगावत भर गई थी। वह उनसे बदला लेने के लिए जेल में मंसूबे बनाता रहा। उसकी सज़ा पूरी होने पर वह रिहा हो गया। सबसे पहले अशरफ़ अली ने कुछ बदमाशों के साथ मिलकर, एक रात, जब सब गहरी नींद में सो रहे थे, हवेली पर हमला कर दिया।

    उसने सबसे पहले जमींदार साहब का गला चाकू से काट दिया, और फिर अपने तीनों भांजों को एक-एक करके मौत के घाट उतार दिया। और हवेली का सारा जेवर, माल, नकदी, पैसा सब लूट लिया। तब तक जोया, जो डर के मारे अपनी माँ के साथ छिपी हुई थी, अपनी और अपनी माँ की जान बचाने के लिए खान बाबा के घर जाने ही वाली थी कि अंदर से आने वाली आवाज़ों ने उसे चौंका दिया, और वह बुरी तरह काँप गई।

    अंदर से आने वाली आवाज़ों ने जोया को बुरी तरह चौंका दिया था। खान बाबा, जो हवेली की सारी सिक्योरिटी की देखरेख करते थे—जिनकी मर्ज़ी के बगैर परिंदा भी पर नहीं मार सकता था—उनकी हँसी की आवाज़ से पूरा घर गूंज रहा था। अशरफ़ अली के साथ मिलकर उन्होंने ही इस वारदात को अंजाम दिया था। जोया का दिल वहीं थम सा गया था। एक ओर वह अपनी बीमार माँ को देख रही थी, तो दूसरी ओर अपने साथ हुए धोखे से बेहाल थी। एक ही दिन में उससे उसका घर, बाप, भाई और उसका प्यार सब कुछ छिन गया था। उसने जो अरहम के साथ ज़िंदगी जीने के सपने देखे थे, वे सब टूट कर बिखर चुके थे। अब उसे बस अपनी और अपनी माँ की जान बचानी थी। उसके पास अपनी माँ और उसके बाबा के दिए एक तोहफ़े के अलावा और कुछ नहीं बचा था।

    जोया जैसे-तैसे अपने वफ़ादार रसोइये के साथ अपनी माँ को और खुद को बचाने में कामयाब रही थी। वह अपने गाँव से भागकर एक बड़े शहर में आ गई थी। वहाँ उसके लिए सब कुछ नया था; हवेली से बाहर की दुनिया उसने कभी नहीं देखी थी। और आज हालात ने उसे एक बड़े शहर में लाकर खड़ा कर दिया था।

    वहीं दूसरी ओर, जब अरहम को जोया और उसके परिवार के साथ हुए हादसे का पता चला, तब वह पागलों की तरह दौड़ता हुआ हवेली पहुँचा। वह बड़े जमींदार और उनके तीनों बेटों की लाशों को देखकर काँप उठा। उसके दिल में बस यही ख्याल आया, "जोया कहाँ है? वह कैसी है?" क्योंकि वह जोया को सचमुच बेहद चाहता था और उसे दुनिया की सारी खुशी देना चाहता था। लेकिन उसी के पिता ने उसके सब सपने तोड़ दिए थे। अपने पिता द्वारा किए गए जघन्य अपराध के बाद उसे अपने पिता से नफ़रत हो गई थी।

    अशरफ़ अली अब उस हवेली का मालिक बन बैठा था; कोई उसके खिलाफ़ जाने की हिम्मत नहीं कर सकता था, क्योंकि उसने चार लोगों को मार डाला था, जिससे सबके मन में उसके लिए दहशत बैठ गई थी। उसका प्यार उससे बिछड़ चुका था। उसने पूरा गाँव खंगाल डाला, पर जोया और उसकी माँ का कहीं कुछ पता नहीं चला।

    निराश होकर वह शहर चला गया था। अपने इकलौते बेटे को जाते देख खान बाबा अपने होश खो बैठे थे, और दिल के दौरे से उनका निधन हो गया था। अपने बेटे के भविष्य को उज्जवल करने के लिए उन्होंने अपने मालिक से दगा किया था, और वही बेटा उनसे मुँह मोड़ चुका था। वह हमेशा के लिए शहर चला गया था।

    एक पल ने जोया और अरहम दोनों की ज़िंदगी बदल कर रख दी थी। एक ओर अरहम हर हाल में, हर कीमत पर सिर्फ़ जोया को पाना चाहता था, वहीं दूसरी ओर जोया की गहरी मोहब्बत कब की शदीद नफ़रत में बदल चुकी थी। पर शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। दोनों अनजाने में एक ही शहर में आ पहुँचे थे। एक ओर रहीम खान था, जो बरसों से जमींदार की हवेली में खाना पकाने का काम देखता था, जिसने अपनी जान जोखिम में डालकर जोया और उसकी माँ की जान बचाई थी। वहीं दूसरी ओर खान बाबा, जिसने वफ़ादारी के नाम पर सिर्फ़ धोखा दिया था।

    दोनों बरसों पुराने मुलाज़िम थे। पर कौन कितना वफ़ादार है, यह सिर्फ़ वक़्त ही बताता है। जोया की माँ ना जाने कब से ये सब बातें सोच रही थी, और अपने परिवार, शौहर, बच्चों को अपने ही भाई के हाथों क़त्ल होते देखकर वह ज़िंदा होकर भी ज़िंदा नहीं थी।

    रहीम खान ने उस वक़्त अपनी वफ़ादारी साबित करके दुनिया में इंसानियत के ज़िंदा होने का सबूत दिया था। बहरहाल, अपनी माँ को बेतहाशा रोते देख जोया अपना रोना, अपना ग़म सब अपने अंदर पी गई थी। अपनी माँ के लिए अब वह इकलौता सहारा थी। या यूँ कहें, इतनी बड़ी दुनिया में वह माँ-बेटी ही एक-दूसरे का सहारा थीं।

    कमज़ोर दिल की जोया में ना जाने कहाँ से ताकत आ गई थी। वह हर हाल में अपनी माँ के लिए एकदम मज़बूत सहारा बन चुकी थी। अब सबसे बड़ी परेशानी उसके सामने थी; वह इस शहर को कैसे फ़ेस करेगी? उसने अपनी हवेली से बाहर की दुनिया बहुत कम जानी थी।

    थोड़ी-बहुत बाहर शहर की बातें कभी-कभी अरहम ही उसे बताया करता था। इस पर जोया उससे हमेशा यह कहती थी, "मैं तुम्हारा हाथ पकड़कर पूरा शहर घूमना चाहती हूँ।" तब अरहम उससे बहुत प्यार से कहता था, "मैं शहर नहीं, पूरी दुनिया तुम्हारे साथ देखना चाहता हूँ।" इस पर दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ते थे, पर अब सब कुछ बदल चुका था। जोया, जो अरहम को अपने परिवार की बर्बादी का ज़िम्मेदार मान चुकी थी, उसे लगता था कि उसके बाप के साथ अरहम भी इन सब में शामिल था।

    पर ऐसा नहीं था। अरहम को तो सपने में भी भनक नहीं थी कि ऐसा कुछ होने वाला है। उसके बाबा ने उसी दिन उसे अपनी दवाइयों का हवाला देकर उसे दवाइयाँ खरीदने के लिए शहर भेज दिया था। और जब वह अगले दिन लौटा, तो उसकी दुनिया लूट चुकी थी।

    चूँकि जोया को अब नए सिरे से अपनी ज़िंदगी की शुरुआत करनी थी, उसने अपनी माँ के लिए अपने सब दर्द और ग़म छिपा लिए थे। रहीम खान के एक कमरे के घर में उनका गुज़ारा नहीं हो सकता था। शहर में रहीम खान का बरसों पुराना एक छोटा सा घर था, जो जमींदार साहब ने यूँ ही अनजाने में किसी बात से खुश होकर रहीम खान को दिला दिया था। एक ग़रीब आदमी के लिए एक कमरे का घर, वह भी शहर में, उसके लिए बहुत बड़ी बात थी। पर वह कभी शहर आकर नहीं रह पाया। और इस हादसे के बाद अब वह जमींदार साहब की बेटी और बीवी को यहाँ ले आया था।

    रहीम खान ने जो पैसे थे, उसने घर का राशन का सामान भर दिया था। वह हर हाल में अपनी मालकिन की हर संभव मदद कर रहा था। पर जोया को पता था कि वह ज़्यादा दिन उन दोनों का बोझ नहीं ढो सकते थे। आखिर वह बिचारा बूढ़ा आदमी कब तक काम कर सकता था? जोया ने सोच लिया था कि अब उसे ही कुछ करना है; उसे कुछ न कुछ काम करके घर चलाना होगा, और साथ ही साथ अपनी माँ का इलाज भी करना है। इसलिए उसने नौकरी करने का फैसला किया था, पर उसके पास उसकी कोई डिग्री या डॉक्यूमेंट्स नहीं थे।

    इन हालात में उसे नौकरी मिलना बहुत मुश्किल था। वहीं दूसरी ओर अरहम अपने खुद के शानदार बंगले में पहुँच गया था, जो उसके बाबा ने शहर में स्टडी करते वक़्त उसे दिला दिया था। उसे बस अब जोया को ढूँढना था। इसके लिए उसने अपने अच्छे-खासे कनेक्शन्स को यूज़ करने का फैसला किया। उसने अपनी ज़िंदगी का आधा से ज़्यादा हिस्सा शहर में बिताया था; यही कारण था कि शहर का हर बड़ा आदमी उसका दोस्त-जानकार था। वह शहर के अच्छे-खासे रहिवासियों में से एक था। उसका बाप उसे दुनिया का सबसे अमीर आदमी बनाना चाहता था, और शायद इसीलिए उसने अशरफ़ के साथ मिलकर जोया के परिवार को मरवा डाला था।

  • 2. Obbsessed with Zoya, - Chapter 2

    Words: 1870

    Estimated Reading Time: 12 min

    जोया ने काम करने का फैसला किया था। इसके लिए उसने रहीम खान से कहा कि वह उसे कोई काम दिलाए। रहीम खान, जो एक रसोइया था, एक होटल गया जहाँ से वह कभी-कभी बड़े साहब के कहने पर हवेली के लिए खाना ले जाता था। जब भी हवेली में कोई फंक्शन होता था, उसकी सारी तैयारी रहीम खान ही करता था। इसलिए उसका शहर के होटल में आना-जाना लगा रहता था। वह जानता था कि वह अकेला मालकिन और जोया का ख्याल नहीं रख सकता। जोया को काम करने से वह रोकना तो चाहता था, पर रोक नहीं पाया।

    बहरहाल, रहीम खान होटल में काम करने वाले अब्दुल साहब को जानते थे। उनसे बात करके उन्होंने जोया को वेट्रेस के काम पर लगवा दिया। और काफी दुखी होकर, डरते-डरते, जोया से बोला, "बीबी साहिबा, आपके पास आपकी कोई डिग्री या डॉक्यूमेंट नहीं है, इसलिए आपको कहीं कुछ काम नहीं मिल सकता। उस होटल में मेरी अब्दुल साहब से थोड़ी जान-पहचान है। उन्होंने मेरी ज़िम्मेदारी पर आपको काम दिया है।"

    यह सुनकर जोया ने रहीम खान से कहा, "बाबा, आपने हमारी जान बचाई, हमें सही-सलामत यहाँ ले आए और अब मुझे काम भी दिला दिया। आपका बहुत बड़ा एहसान है हम पर। हम मरते दम तक नहीं भूलेंगे आपने जो हमारे लिए किया है। अगर आप हमारी मदद नहीं करते, तो ना जाने हम कब के इस दुनिया से चले गए होते। और रही बात काम की, आप परेशान मत होइए। कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता, हम कर लेंगे। हम सब सीख लेंगे और आपको शिकायत का मौका नहीं देंगे। हम पूरी मेहनत और लगन के साथ काम करेंगे। हम वादा करते हैं।"

    रहीम खान ने यह सब सुना तो वह रो दिए। महल में एक राजकुमारी की तरह रहने वाली लड़की, जिसने आज तक अपनी हवेली की किचन तक नहीं देखी, कोई काम नहीं किया, वह आज किसी के लिए खाना परोसेगी और गंदे बर्तन उठाएगी। ऊपर वाला भी ना जाने क्या-क्या दिन दिखाता है। वह सोच ही रहा था...

    तभी जोया बोली, "रहीम बाबा, अब से आप माँ का ध्यान रखने के लिए घर में रहेंगे।" जोया की माँ, जो शौहर और बेटों की मौत से सदमे में चली गई थी, उनको बस अपनी आँखों के सामने अपने शौहर और बेटों का खून ही दिखाई देता था, जिससे वह घबराकर चीखने-चिल्लाने लगती थी। इसलिए घर पर उनकी देखरेख के लिए किसी एक का होना बेहद ज़रूरी था। रहीम खान ने हाँ में सिर हिला दिया।

    दूसरी ओर, अरहम ने जोया की तलाश जोर-शोर से शुरू कर दी थी। पुलिस, मीडिया, हर जगह उसने अपने बंदे काम पर लगा दिए थे, पर जोया की उसके पास कोई तस्वीर ना होने के कारण कोई कुछ भी नहीं कर पा रहा था। अरहम के पास जोया की कोई फ़ोटो नहीं थी; उसकी सूरत तो उसके दिलो-दिमाग में छपी हुई थी। उसने हर जगह अनाउंसमेंट कराई, इनाम की राशि रखी, पर कहीं कुछ पता नहीं चला। निराश होकर अरहम ने दुआओं का रास्ता अपनाया, जगह-जगह गरीबों को खाना-पैसा सब दिया और दुआ कराई, पर ऐसा लग रहा था जैसे खुदा भी उससे रूठ गया था। कहीं से कुछ भी उसे पता नहीं चल पाया।

    वहीं, जोया ने अब काम पर जाना शुरू कर दिया था। उसका पहला दिन था। जोया को पहले दिन रहीम बाबा छोड़ने गए। जोया ने जैसे ही होटल में एंट्री की, वह वहाँ की साज-सज्जा देखती रह गई। वह शहर का नामी-गिरामी होटल था, जो बहुत ही शानदार बना हुआ था। जोया ने पहली बार कोई होटल देखा था; उसके लिए तो सब नया था। उसे वहाँ बहुत खुशी मिली थी। वह काफी चाव से सारी चीज़ों को ध्यान से देख रही थी।

    तभी अब्दुल साहब वहाँ आते हैं और रहीम खान से बोलते हैं, "क्या यह वही लड़की है जिसके बारे में आपने बात की थी?" रहीम खान हाँ में सिर हिला देते हैं। "अच्छा, तो आपका नाम क्या है, मिस?" इतने में रहीम बीच में ही बोल पड़े, "साहब, इनका नाम शनाया खान है।" इस पर जोया ने चौंकते हुए रहीम को देखा, पर कुछ बोली नहीं। तभी अब्दुल ने एक लेडी वेट्रेस को बुलाया और उससे जोया उर्फ शनाया से मिलवाया और काम समझाने को कहा। और बोला, "मेहनत से काम करना, मिस शनाया। मैंने आपको खाली अपनी ज़िम्मेदारी पर रखा है। वरना बिना आइडेंटिटी के शहर में कोई किसी को काम पर नहीं रखता।" जोया ने हाँ में सिर हिला दिया। "आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।"

    इतना कहकर अब्दुल साहब वहाँ से चले गए। उनके जाने के बाद जोया ने धीरे से रहीम से पूछा, "आपने मेरा गलत नाम क्यों बताया?" इस पर रहीम ने कहा, "आपके दुश्मन अभी आपको चारों ओर ढूँढ़ रहे हैं। कब कौन आपके मामा का आदमी निकले, कुछ पता नहीं। इसलिए आपकी पहचान छुपाने के लिए मैंने ऐसा बोला।" जोया अच्छे से समझ चुकी थी। रहीम खान बिलकुल सही थे। अपनी जगह, उसको और उसकी माँ को उसके मामा के गुंडे हर जगह ढूँढ़ रहे थे; इसलिए उसका नाम-पहचान सब छुपी रहनी ही चाहिए थी।

    इतने में रश्मि, जो काफी देर से वहाँ खड़ी थी, वह बीच में बोल पड़ी, "हैलो! मैं कब तक आप लोगों की बातें खत्म होने का इंतज़ार करूँ? मुझे और भी काम है। मैं सारा टाइम तुम पर तो बर्बाद नहीं कर सकती!"

    तभी जोया अचानक से घबराकर पलटी और माफी मांगते हुए बोली, "माफ़ कीजिए, मैं अभी आपके साथ चलती हूँ।" ऐसा कहकर उसने रहीम को घर जाकर माँ की देखरेख करने को बोला और रश्मि के साथ अंदर चली गई। रश्मि जो कि उस होटल की पुरानी मुलाज़िमा थी, उसका वहाँ पर काफी रुतबा था; इसलिए सब उसकी हर बात मानते थे। नए लोगों को क्या काम करना है, कैसे करना है, सब कुछ वही देखती थी।

    बहरहाल, जोया को अब वहाँ पर काम करना था। रश्मि उसे एक बड़े से हॉल में ले गई। जोया ने जैसे ही हॉल को देखा, वह देखती रह गई। उसने कभी अपनी ज़िन्दगी में इतनी खूबसूरत जगह नहीं देखी थी। कहने को तो उसकी हवेली भी बहुत बड़ी और शानदार थी, लेकिन वह पुरानी तौर-तरीकों से बनी हुई पुश्तैनी हवेली थी। लेकिन यह होटल नए जमाने के तमाम तामझाम के साथ, साज-सज्जा से भरपूर, बेहद आकर्षक लग रहा था। उसकी चारों ओर की काँच की दीवारों पर तरह-तरह की कलाएँ और बड़े-बड़े पानी के फुव्वारे, झरने उसमें चार-चाँद लगा रहे थे। जोया इन सब चीज़ों में खोई हुई थी कि एकाएक रश्मि उस पर झुंझलाकर बोली, "हेलो, मिस शनाया! आप यहाँ पर काम करने आई हैं या ताक-झाँक करने?"

    इस पर जोया झेंप गई। उसने कहा, "नहीं मैडम, आप बताइए मुझे क्या करना है।" रश्मि जोया को हॉल क्रॉस करते हुए बावर्चीखाने में ले गई। वहाँ पर काफी सारे लोग थे, जो अलग-अलग काम कर रहे थे; कोई खाना बना रहा था तो कोई सब्ज़ी काट रहा था। जोया हर चीज़ का मुआयना करने लगी; बदले में वहाँ मौजूद हर कोई उसे देख रहा था। हल्के नीले रंग के सलवार-सूट में करीने से दुपट्टा लपेटे हुए, वह बेहद सिम्पल और खूबसूरत लग रही थी। शायद यही कारण था कि रश्मि बात-बात पर उस पर झुंझला रही थी। जोया थी भी तो बहुत सुंदर।

    वहाँ जाकर रश्मि ने थोड़ी आवाज़ तेज करते हुए बोला, "सब ध्यान से सुनो! यह इस लड़की का नाम शनाया है। यह आज से आप लोगों के साथ काम करेगी।" सब ने हाँ में सिर हिला दिया और एक-दूसरे की ओर देखने लगे। इन सब लोगों में कुछ लड़के थे, कुछ लड़कियाँ थीं, २-४ बड़े उम्रदराज भी थे, जो शायद काफी बरसों से वहाँ खाना बनाने का काम कर रहे थे। जोया को काम समझा दिया गया। उसको तैयार हुआ खाना बाहर खाने वाले रूम में ले जाने का काम दिया गया, क्योंकि अभी उसको खाना बनाना या होटल में आए मेहमानों को खाना सर्व करना, यह सब नहीं आता था। पर यह सब काम सिखाने की ज़िम्मेदारी वहीं काम करने वाली आयशा को दे दी गई थी।

    आयशा और जोया कुछ ही देर में काफी घुल-मिल गई थीं। तभी अमन अंदर आया; अमन जो उस होटल का मैनेजर था। अमन ने रश्मि को बुलाया और बोला, "जितने भी कुकिंग स्टाफ हैं, बनाने से लेकर सर्व करने वाले तक, सबको इकट्ठा करो। मुझे कुछ ज़रूरी अनाउंसमेंट करनी है।" रश्मि ने सब मुलाज़िमों को सूचित कर दिया। कुछ ही देर में सब के सब एक-एक करके जमा हो गए। जोया और आयशा, जो अभी तक नहीं आ पाए थे, वह दोनों साथ में थे और खाने का कुछ सामान लेने स्टोर रूम चले गए थे। चूँकि उन्हें भी सबके एक साथ अनाउंसमेंट रूम में जमा होने की खबर मिल गई थी, आयशा जल्दी से जोया को रूम की ओर लेकर भागी। "जल्दी चलो! वरना जान आफ़त में पड़ जाएगी!"

    "अमन: आ गए सब के सब?" इतने में ही आयशा और जोया वहाँ पहुँच गए। अमन ने जोया को देखा और पूछा, "यह कौन है?" अमन को ऐसे जोया को देखते हुए देखकर रश्मि, आयशा और जोया पर झुंझला उठी और तेज आवाज़ से बोली, "कहाँ थी तुम दोनों? तुम्हें क्या अनाउंसमेंट सुनाई नहीं दिया था? जो इतनी देर लगा दी आने में!" इतने में आयशा ने कहा, "रश्मि मैम, हम सामान लेने स्टोर रूम चले गए थे। वहीं से भागते हुए आ रहे हैं।"

    अमन, जिसकी नज़रें अभी भी जोया पर टिकी थीं, उसने फिर पूछा, "यह लड़की कौन है?" तब रश्मि बोली, "अब्दुल साहब के एक जानने वालों में से है। यह एक मामूली सी लड़की है। छोटा-मोटा काम के लिए इसको ज़रूरत ना होने के बाद भी यहाँ रख लिया है।" अमन: "ओह, अच्छा! चलो अब आप सब मेरी बात ध्यान से सुनो। आज से ठीक २ दिन बाद हमारे होटल में शहर की सबसे बड़ी पार्टी होने वाली है, जिसकी तैयारी आप सबको अभी से शुरू करनी है। पार्टी में 56 भोग बनेंगे; हर वैरायटी का खाना रेडी होगा। कुछ और दूसरे शहर से शेफ आएंगे, जो आप लोगों की खाना बनाने में मदद करेंगे। किसी तरह की कोई कमी नहीं आनी चाहिए। इस पार्टी में शहर के सब बड़े लोग शामिल होंगे; मिनिस्टर, एक्टर, टीवी रिपोर्टर, बिज़नेसमैन आदि। इसलिए आप लोग सब तैयारी शुरू कर दो। ओके?"

    सबने हाँ में सिर हिला दिया और सब अपने-अपने कामों को करने के लिए निकल गए। तभी अमन ने जोया को रोकते हुए पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है?" जोया ने थोड़ी झिझक के साथ जवाब दिया, "शनाया खान।" "ओके! तो मिस शनाया, आपको किसी तरह की मदद की ज़रूरत हो तो मुझे याद करना। ओके? नाउ गो बैक टू योर वर्क।" जोया ने हाँ में सिर हिला दिया और चली गई। दूसरी ओर, अमन का जोया को यह सब बोलना रश्मि को अंदर तक तपा गया था।

    वेल, सब पार्टी की तैयारियों में लग गए; आखिर शहर के सबसे बड़े बिज़नेसमैन अरमान ठाकुर की पार्टी थी। बाकी अगले भाग में...

  • 3. Obbsessed with Zoya, - Chapter 3

    Words: 1032

    Estimated Reading Time: 7 min

    अरमान ठाकुर शहर का सबसे बड़ा बिजनेसमैन था जिसने बहुत कम उम्र में वह मुकाम हासिल किया था, जिसे हासिल करना हर किसी का सपना होता है।

    बिजनेस में बेशुमार सफलता हासिल करने वाले अरमान ठाकुर को केवल दो ही चीजों का चस्का था: पार्टी और सफलता। ऊपर से यह उसकी बर्थडे पार्टी थी।

    और साथ ही साथ उसकी विदेश में एक बहुत बड़ी डील फाइनल होने वाली थी; विदेश से भी कुछ लोग आने वाले थे।

    इसलिए पार्टी को लेकर वह किसी तरह की कोई गलती बर्दाश्त नहीं कर सकता था। होटल वालों को अलग से यह हिदायत दे दी गई थी कि कोई किसी भी तरह की कोई गलती न हो, क्योंकि पार्टी के लिए अरमान ठाकुर ने अच्छी खासी बड़ी रकम अदा की थी।

    होटल में सब के सब जोर-शोर से पार्टी की तैयारियों में लग गए। पार्टी का सारा इंतज़ाम होटल के बड़े से हाल में हुआ।

    हॉल वैसे भी काफी खूबसूरत था, लेकिन अब इतना काफी नहीं था। उसको और आकर्षक बनाने के लिए शहर के बेस्ट से बेस्ट डेकोरेटर बुलाए गए। दूसरी ओर खाने का मेनू तैयार किया गया।

    जोया, जिसको कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, वह आयशा के साथ उसके कामों में हाथ बटा रही थी।

    अभी जोया ने कुछ बड़ा काम नहीं किया था; वह बस आयशा की ही मदद कर रही थी। रश्मि का ध्यान काम से ज़्यादा जोया पर था क्योंकि उसको उससे बहुत जलन हो रही थी।

    इसलिए वह बात-बात पर उस पर अपना हुकुम चलाती जा रही थी। खैर, जैसे-तैसे दिन बीता और जोया घर पहुँच गई।

    उसने पहली बार कहीं पर कुछ काम किया था जिससे उसको बहुत थकावट और कमज़ोरी महसूस हो रही थी। उसने सारा दिन कुछ खाया भी नहीं था। वेल, जब वह घर गई, रहीम ने पहले से ही खाना तैयार रखा था। जोया ने फ्रेश होकर सबसे पहले खाना खाया, अपनी माँ के हालचाल लिए और सीधा बिस्तर में घुस गई।

    सारा दिन थकी होने के बावजूद उसकी आँखों में दूर-दूर तक नींद नहीं थी। उसे अरहम और उसकी साथ जो कुछ हुआ, वह सब याद आ रहा था।

    उसके भाई-बाबा, जिनकी वह आँखों का तारा थी...

    कैसे भाई-बहनों की खट्टी-मीठी सी लड़ाई और बात-बात पर जोया का बाबा से शिकायत लगाना और सबकी हँसी से पूरी हवेली की दीवारें भी मुस्कुरा उठती थीं! कितना हँसता-खेलता परिवार था, और फिर इस एक तूफान ने कैसे उसकी पूरी ज़िंदगी उजाड़ दी।

    सब कुछ याद करते-करते वह इतना रोई कि पूरा तकिया कब का उसके आँसुओं से भीग चुका था और वह रोते-रोते ना जाने कब नींद की वादियों में उतर गई थी।

    दूसरी ओर अरहम, जिसकी टेबल पर अरमान ठाकुर की पार्टी का कार्ड पड़ा हुआ था, उसको ध्यान से देख रहा था। जोया के बाद उसने जैसे जीना छोड़ दिया था; वह ज़्यादा से ज़्यादा समय अपने कमरे में ही बिताता था।

    वह निराश हो चुका था। पुलिस, टीवी, मीडिया, उसके खुद के फ्रेंड्स सर्कल और जाने कहाँ-कहाँ उसने उसे तलाशा था, पर उसका कहीं कुछ भी पता नहीं चल पाया था।

    आज उसके कॉलेज दोस्त अरमान ठाकुर का इनविटेशन कार्ड देखकर वह चौंका था।

    क्योंकि उन दोनों में अब पहले जैसी दोस्ती कहाँ थी? सफल होने की रेस में अरमान ने सफलता को चुना था, दोस्ती को नहीं।

    उस दिन अरहम के फ्रेंड्स सर्कल में नवीन का एक्सीडेंट हो गया था। उसको ब्लड की बहुत ज़रूरत थी; केवल अरमान का ब्लड ही उसे बचा सकता था। लेकिन उसी दिन अरमान की ज़िंदगी की पहली मीटिंग थी, जिसके लिए उसने दिन-रात मेहनत की थी। एक ओर उसको कामयाबी थी और दूसरी ओर उसका दोस्त। अरमान ने कामयाबी को चुना था।

    उस दिन जैसे-तैसे नवीन की जान तो बच गई थी, पर अब सबके मन में अरमान के लिए वह दोस्ती नहीं थी और सबने उससे बातचीत भी ना के बराबर कर दी थी।

    वेल, इतने टाइम बाद अरमान का कार्ड देखकर अरहम को पिछली सब बातें याद आ गई थीं। उसने कितनी रिक्वेस्ट की थी उस दिन, पर अरमान नहीं आया था। पर आज यह कार्ड भेजने का मतलब क्या है? वह यह सब सोच ही रहा था कि तभी उसकी डोरबेल बजी।

    इतने में नौकर ने आकर बताया, "आपसे कोई मिलने आए हैं।" अरहम ने उनको हॉल में बिठाने को बोला और खुद थोड़ा फ्रेश होकर बाहर आया।

    उसने देखा अरमान ठाकुर खुद आया है और उसे देखकर मुस्कुरा रहा है। अरहम को ऐसे हैरानी से देखते हुए देखकर अरमान खुद उठा और उसके गले लगा।

    अरहम ने भी फ़ॉर्मेलिटी पूरी की और चाय-कॉफी पूछा।

    "अरहम, देखो मैं जानता हूँ तुम मुझसे नाराज़ हो, या मैं यह कहूँ, मुझसे नफ़रत करते हो," अरमान बोला।

    "और तुम अपनी जगह सही भी हो। लेकिन मुझे एक बात बताओ, जिस इंसान ने बचपन से ही गरीबी देखी हो, उसकी माँ-बाप को दूसरों के हाथों ज़लील होते देखा हो, एक टाइम का खाना मुश्किल से मिलता हो, वह इंसान कब तक दुनिया के बारे में सोचेगा? हाँ, मैंने अपने बारे में सोचा, अपने परिवार के लिए सोचा।"

    "अगर मैं उस दिन हॉस्पिटल चला जाता, तो मैं आज द अरमान ठाकुर नहीं बन पाता। मैं सेल्फ़िश हूँ, पर मेरे दोस्त, एक बात बता दूँ, अगर इस दुनिया में जीना है, तो थोड़ा तो सेल्फ़िश होना ही पड़ेगा।"

    "और हाँ, तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ, नवीन को मैंने अपनी स्टेनलेस वाली फ़ैक्ट्री में मैनेजर बनाया है और मैं उसे अच्छी खासी तनख्वाह देता हूँ।"

    "मैं यहाँ पर तुम्हें सफ़ाई देने नहीं आया, बस अपने अच्छे दोस्त को अपनी ज़िंदगी में वापस लेने आया हूँ। प्लीज़, मेरी बर्थडे पार्टी में अगर तुम आ गए, तो मैं समझूँगा तुमने मुझे मेरा प्यारा दोस्त लौटा दिया।"

    "मैं अब चलता हूँ। मुझे तुम्हारा बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।" इतना कहकर अरमान चला गया, और अरहम जो अभी तक हैरानी से उसे जाता हुआ देखता रहता है।

    वह हल्के से मुस्कुराया और अपने मुलाज़िम को आवाज़ लगाकर पार्टी के लिए कपड़े तैयार करने को कहा।

    बाकी अगले भाग में।

  • 4. Obbsessed with Zoya, - Chapter 4

    Words: 1350

    Estimated Reading Time: 9 min

    फ़ाइनली पार्टी का दिन आ गया था। आज रात को पार्टी थी।

    जोया ने आज हल्के पिंक कलर का गाउन पहना था, जो रहीम खान कहीं से किराए पर लाए थे। काफी हल्का वर्क था उस गाउन पर; उनका ज़्यादा हेवी बजट नहीं था, बेहद सिंपल। सिंपल और हल्के गुलाबी रंग में जोया बेहद खूबसूरत और आकर्षक दिख रही थी और ऊपर से उसकी सादगी चार चाँद लगा रही थी। और वो अंदर से बहुत नर्वस भी थी, क्योंकि ये उसकी लाइफ की पहली पार्टी थी। पार्टी उसकी हवेली में भी होती थी, पर बाहर के लोगों के सामने जोया को आने की इज़ाजत नहीं थी। पर आज तो उसको जाना ही था। वो वहाँ काम करती थी; मैनेजर ने सख्त इंस्ट्रक्शन दिए थे, किसी तरह की कोई गलती की गुंजाइश नहीं थी।

    वेल, जोया रेडी होकर होटल के लिए निकल गई थी। रहीम खान ने जोया के लिए पड़ोस में रिक्शा चलाने वाले लड़के, राजू को ही उसके लाने-ले जाने की ज़िम्मेदारी दे रखी थी। क्योंकि जोया किसी को जानती नहीं थी और उसको रास्तों का नहीं पता था, राजू उसको टाइम से ले जाता था और ले आता था; इसलिए उसको रास्तों की कोई चिंता नहीं थी।

    दूसरी ओर, अरहम ने भी आज लाइट पिंक कोट पहना था। अनजाने में ही सही, दोनों के कलर मैच हो चुके थे। अरहम अब अरमान को माफ़ कर चुका था। वो ये जान चुका था कि इंसान बुरा नहीं होता है, वक़्त और हालात उसको बुरा बनने पर मजबूर कर देते हैं।

    शाम को 8 बजे की पार्टी थी। अरहम जल्दी तैयार हो गया था। उसके पास अभी 1 घंटा बाकी था। इतने में उसने पुलिस को कॉल किया और जोया और उसकी माँ के बारे में पूछा, पर उसको निराशा ही हाथ लगी। वो एक बार फिर उसकी यादों में घिर चुका था।

    जोया टाइम से होटल पहुँच चुकी थी। उसने जैसे ही हॉल में कदम रखा, उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। वो जगह उस टाइम उसको किसी जन्नत से कम नहीं लग रही थी। उसने आज तक इतनी खूबसूरत जगह नहीं देखी थी। हॉल को एकदम दुल्हन की तरह सजाया गया था।

    वो अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से सब ध्यान से देख रही थी। इतने में होटल मैनेजर, अमन, वहाँ तैयारियों का जायज़ा लेने आया, और उसकी नज़र हल्के पिंक गाउन में खड़ी जोया पर पड़ी और उसे देखता ही रह गया। अगर उस टाइम वो जगह जन्नत लग रही थी, तो जोया भी किसी परी से कम नहीं लग रही थी।

    अमन टकटकी लगाकर उसे घूर रहा था। तभी वहाँ पर रश्मि आ गई। वो अमन को जोया को घूरते हुए देख चुकी थी। वो गुस्से में जोया के पास गई और बोली, "तुम्हारी ये ताँक-झाँक की आदत कब जाएगी? क्यों हर चीज़ को ऐसे देखती हो जैसे तुमने आज से पहले कभी देखी नहीं? यहीं खड़ी-खड़ी सारा टाइम बरबाद कर दोगी या अंदर चलकर कोई काम भी करोगी?"

    जोया झेंप गई और हॉल क्रॉस करती हुई किचन में चली गई, जहाँ पर सब के सब नए-नए तरह के पकवान बनाने में बिज़ी थे।

    आयशा जोया को देखते ही चहक उठी और उसने उसकी जमकर तारीफ़ की। वेल, आयशा और जोया जल्दी-जल्दी काम ख़त्म करने लगीं। जोया ने बहुत जल्दी सब सीख लिया था।

    सभी मुलाज़िम अपना-अपना काम करने में व्यस्त थे। 2-3 लोग मिलकर केक तैयार कर रहे थे और उन्होंने बहुत खूबसूरत केक रेडी किया था। करीब-करीब सभी काम कम्पलीट हो गए थे, तभी अमन वहाँ आ गया। और सारी तैयारी पूरी देखकर खुश हुआ। वो जोया से बात करने की कोशिश करता है, पर कोई ना कोई बीच में कुछ ना कुछ बोल देता है या पूछ लेता है।

    तभी अमन कहता है, "हैलो मिस शनाया, आज की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी मैं आपको सौंपता हूँ। आज की पार्टी में केक लेकर आप ही जाएँगी।"

    ये सुनते ही जोया काँप जाती है। उसने तो सोचा था कि किचन की खिड़की से पार्टी देखेगी, लेकिन अब तो उसे केक लेकर पार्टी में जाना था। वो मना करना चाहती थी, लेकिन बोली, "सर, मुझे तो अभी कुछ पता ही नहीं है, मैं कैसे जा सकती हूँ?"

    रश्मि, जो कि सब सुन चुकी थी, बीच में ही जोया को डाँटते हुए बोली, "हैलो मिस शनाया, हमने आपको ऑर्डर देने के लिए नहीं, हमारे ऑर्डर फॉलो करने को रखा है।"

    रश्मि जानती थी जोया नई है यहाँ पर और उससे कुछ ना कुछ गलती हो ही जाएगी। उसको बस उसकी एक गलती का इंतज़ार था ताकि वो उसको जॉब से निकलवा सके।

    बहरहाल, कोई रास्ता न देख जोया ने हाँ कह दिया था। जोया केक पार्टी में ले जाने के लिए मान गई थी।

    धीरे-धीरे शाम हो चली थी और गेस्ट आना शुरू हो गए थे। हर एक गेस्ट का भव्य स्वागत हो रहा था। अरमान ठाकुर, जिनकी पार्टी थी, वो सबसे पहले अपनी पार्टी का जायज़ा लेने पहुँच चुके थे। और वाकई पार्टी बहुत शानदार थी। वो होटल वालों से काफी इम्प्रेस हुआ था। बड़े-बड़े मिनिस्टर, एक्टर, बिज़नेसमैन, कमिश्नर, हर बड़े ओहदे का मालिक वहाँ मौजूद था।

    अरमान ठाकुर वहाँ सबके टॉपिक में थे, और होते भी क्यों ना? बहुत कम लोग इतनी कम उम्र में कामयाबी हासिल कर पाते हैं। वहाँ सब उन्हीं की बातें किए जा रहे थे। खासकर लड़कियाँ, वहाँ हर लड़की उनको अपने प्रिंस चार्मिंग के रूप में देख रही थी। आखिर इतना बड़ा बिज़नेसमैन अभी तक कुँवारा था। वेल, अरमान को बेसब्री से अरहम का इंतज़ार था, जो अभी तक पार्टी में नहीं पहुँच पाया था।

    दरअसल, वो पार्टी के लिए निकल तो चुका था, तभी अचानक पुलिस का फ़ोन आ जाने पर वह पुलिस स्टेशन चला जाता है। वहाँ पुलिस को 2 लावारिस औरतों की लाश मिलती है। वो आइडेंटिटी कराने के लिए अरहम को बुलाते हैं। अरहम काँपते हाथों के साथ डेडबॉडी देखता है और दूसरी ओर राहत की साँस लेता है। वो जोया और उसकी अम्मी नहीं थे। वेल, वो पुलिस को इन्फ़ॉर्म करके और जोया को ढूँढ़ने का कहकर पार्टी के लिए निकल जाता है।

    करीब-करीब सब मेहमान आ जाते हैं। अरहम को ना आया देखकर अरमान निराश हो जाता है। अरमान की जो डील फ़ाइनल होनी थी, वो भी हो जाती है।

    वेल, अब केक कटिंग की तैयारी होती है। अरमान अमन को केक मँगवाने के लिए बोलता है। अमन रश्मि के थ्रू जोया तक मैसेज भिजवा देता है। रश्मि जोया के पास जाती है और सख्त लहजे में जोया को कोई गलती ना करने की वार्निंग देती है और अगले 5 मिनट में केक हॉल में ले आने को कहकर चली जाती है।

    जोया अंदर ही अंदर बहुत डर रही थी। वो इतने सब लोगों को कैसे फेस करेगी? उससे कुछ गलती हो गई तो किसी ने कुछ कहा तो वो क्या करेगी? वो ये सब सोच ही रही होती है, तभी वहाँ आयशा आ जाती है। वो जोया की उलझन अच्छे से समझती है। बहरहाल, वो उसको समझाती है और कहती है, "शनाया, इतना क्यों डर रही हो? वो सब लोग भी इंसान हैं, कोई जानवर नहीं जो तुम्हें खा जाएँगे। बस तुम्हें 2 मिनट ही वहाँ रुकना है, केक देकर वापस आना है। बस 2 मिनट का काम है, तुम ज़्यादा मत सोचो और परेशान तो बिलकुल मत हो, ओके।"

    जोया उसकी बातों से काफी हद तक शांत हो जाती है और वो भी यही सोचती है, 2 मिनट की ही तो बात है, उसे बस केक देकर ही तो आना है। वेल, वो खुद को रेडी कर लेती है। और केक, जो बेहद खूबसूरत था, केक ट्रॉली पे सजा हुआ बेहद शानदार दिख रहा था। आखिर होता भी क्यों ना, बर्थडे पार्टी में केक ही सबसे इम्पॉर्टेंट था।

    वेल, जोया केक की ट्रॉली धकेलते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ती है। दूसरी ओर अरहम, जो कि रास्ते में था, किसी भी पल पार्टी में पहुँचने वाला था। जोया पार्टी हॉल में चली गई थी।

    तभी अचानक... बाकी अगले भाग में।

  • 5. Obbsessed with Zoya, - Chapter 5

    Words: 1030

    Estimated Reading Time: 7 min

    जोया पार्टी हॉल में गई थी। तभी अचानक, थीम के अनुसार, लाइट धीमी कर दी गई।

    जोया घबराकर चारों ओर देखने लगी, पर ज़्यादा कुछ देख नहीं पाई। स्पॉटलाइट में केवल जोया और उसके द्वारा धीरे-धीरे मेहमानों के बीच लाया जा रहा केक दिखाई दे रहा था।

    पार्टी में मौजूद हर शख्स की निगाह कभी जोया पर, तो कभी केक पर ठहर रही थी। केक तो शानदार था ही, साथ ही धीमी रंग-बिरंगी लाइट में जोया बेहद खूबसूरत लग रही थी।

    अरमान ठाकुर की निगाहें जोया पर अटकी हुई थीं। वह पलकें झपकना भूल गया था और एकटक जोया को देख रहा था। हल्की धीमी लाइट और लाइट पिंक गाउन जोया की खूबसूरती में चार-चाँद लगा रहे थे।

    बहरहाल, जोया सही-सलामत टेबल तक केक ले गई। अरमान, जो अभी भी उसे देख रहा था, लाइट जलने पर जैसे ख्वाबों से बाहर आया।

    अमन यह सब देख रहा था, और शायद उसे कुछ अपने अंदर तपा हुआ महसूस हो रहा था। पर वह कुछ कह नहीं पाया। उसने जोया से कहा, "मिस शनाया, आप अब जा सकती हैं।"

    लेकिन अरमान ठाकुर ने मना करते हुए मिस शनाया को केक कटिंग का हिस्सा बनने के लिए कहा। जिसे चाहकर भी कोई टाल नहीं सकता था। मजबूरी में, ना चाहते हुए भी, जोया को वहीं रुकना पड़ा।

    तभी लड़कियों में हुए अनजाने शोर की ओर सबका ध्यान गया। क्योंकि मोस्ट वॉन्टेड बॉय इन द सिटी, अरहम की एंट्री हुई।

    सब लड़कियाँ अरहम को देख पागल हो गईं। हर कोई उससे हाथ मिलाना चाहती थी। अरहम सीधा अरमान ठाकुर की ओर गया, लेकिन पास में ही खड़ा एक जाना-पहचाना चेहरा उसे रुकने पर मजबूर कर देता है।

    "क्या ये जोया है? हाँ, ये जोया है!" खुशी के मारे उसकी हालत बहुत खराब हो रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह रोए या हँसे। जिसको इतने दिनों से वह पागलों की तरह शहर-शहर, गली-गली ढूँढ रहा था, वह आज उसके सामने खड़ी थी।

    दूसरी ओर, जब जोया ने अरहम को देखा, वह सकते में आ गई। यह इंसान, जिसने मेरी पूरी ज़िंदगी खराब कर दी थी! उसे अपना पूरा बदन तपा हुआ महसूस हो रहा था।

    और गुस्से के मारे उसका बुरा हाल था। इतने में उसका दिमाग चकरा गया और वह टेबल का सहारा लेना चाहती थी खड़ा होने के लिए, पर वह खड़ी नहीं रह पाई और बेहोश हो गई। साथ ही टेबल पर रखा केक भी सारा नीचे गिर गया।

    अरमान की पार्टी अब पूरी तरह से खराब हो चुकी थी।

    अरहम भागता हुआ जोया के पास जाने लगा, लेकिन तब तक अमन रश्मि की मदद से जोया को अंदर ले जा चुका था।

    और वापस आकर अरमान से माफी माँगने लगा था। "आई एम सॉरी मिस्टर अरमान, हम जल्दी ही दूसरे केक का इंतज़ाम कराते हैं। प्लीज़ थोड़ा सा समय दीजिए।"

    लेकिन अरमान को महसूस हुआ कि वह पहली बार पार्टी खराब होने को लेकर परेशान नहीं था, बल्कि वह उस अनजान लड़की को लेकर परेशान था।

    वेल, अरमान अरहम को देखकर खुश हुआ और उससे जाकर गले लग गया। लेकिन अरहम की आँखें तो जोया को ढूँढ रही थीं।

    इतने में अमन वहाँ आया। अरहम से पहले ही अरमान उससे पूछ लेता है, "हेलो मैनेजर, वो लड़की कैसी है? क्या हुआ उसको? क्या नाम है उसका?" अरहम भी उसी के जवाब के इंतज़ार में था।

    तभी अमन बोलता है, "सर, माफ़ कीजिए। वो लड़की नई है, शनाया नाम है उसका। पहली बार भीड़-भाड़ देखकर शायद वो डर गई। इसीलिए वो चक्कर खाकर गिर गई। अभी उसको होटल के मेडिकल रूम में ले जाया गया है।"

    अरहम, जो वहीं खड़ा सब सुन रहा था, जल्दी ही मेडिकल रूम में जाना चाहता था। दूसरी ओर, जोया को होश आ चुका था। जो उसकी साथ हुआ, सब कुछ उसकी आँखों के सामने घूम रहा था।

    "वो इंसान अब फिर मेरी ज़िंदगी में कैसे आ सकता है? मैं नफ़रत करती हूँ उससे। मुझे उसकी शक्ल नहीं देखनी है।"

    जोया सब सोच ही रही थी कि तभी वहाँ पर रश्मि आ जाती है और जोया को खरी-खोटी सुनाने लग जाती है। "हे लड़की! तुम समझती क्या हो अपने आप को? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई पार्टी खराब करने की?"

    "अब तुम यहाँ और काम नहीं कर सकती, समझी तुम?" अब्दुल साहब भी वहाँ आ जाते हैं। उन्हें सब कुछ पता चल चुका होता है। वे भी जोया को निकालने को बोल देते हैं और बोलते हैं, "मैंने रहीम खान की जुबां पर तुम्हें रखा था, पर आज तुमने होटल का नाम खराब कर दिया।"

    "तुम्हें पता है कितने बड़े आदमी का बर्थडे केक गिरा दिया तुमने? जिसको माफ़ नहीं किया जा सकता है।"

    "तुम थोड़ी देर आराम करके यहाँ से जा सकती हो।"

    जोया भीगी आँखों के साथ चुपचाप सुनती रहती है और जाने का मन बना लेती है।

    रश्मि और अब्दुल साहब चले जाते हैं। जोया आँखें बंद करके अरहम के बारे में सोचने लगती है। अभी जैसे-तैसे तो उसकी ज़िंदगी धीरे-धीरे पटरी पर आई थी, और ना जाने मेरी ज़िंदगी बरबाद करने ये फिर से चला आया। वो सोच ही रही थी कि तभी अचानक—

    उसको ढूँढता हुआ अरहम वहाँ आ जाता है। और आते ही सबसे पहले जोया से लिपट जाता है। वह जोया के बेहद करीब था और कहता जाता है, "कहाँ थी तुम? मैंने तुम्हें कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढा। मैं तो डर गया था। तुम ठीक हो ना? तुम्हें कुछ हुआ तो नहीं ना?" वो ये सब बोल रहा था।

    एक पल को तो जोया को कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या हो रहा है, लेकिन अगले ही पल वह खुद को संभाल लेती है।

    तभी जोया उसे खुद से दूर धकेल देती है और उस पर चिल्ला उठती है, "हाउ डेयर यू! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे हाथ लगाने की?" अरहम उसके इस रिएक्शन के लिए रेडी नहीं था और वह दूर जा गिरता है।

    बाकी अगले भाग में।

  • 6. Obbsessed with Zoya, - Chapter 6

    Words: 1997

    Estimated Reading Time: 12 min

    अरहम ने जोया का अपने प्रति ऐसा रिएक्शन देखकर सकते में था। उसे तो लगा था कि जोया उसे देखते ही उससे प्यार करेगी, लेकिन ऐसा नहीं था। कुछ भी पहले जैसा नहीं था। जहाँ पहले उसके लिए उसकी आँखों में ढेर सारा प्यार था, वहाँ अब नफरत के अलावा उसे कुछ भी नहीं दिख रहा था।

    वह उठा और फिर से उसने जोया को कंधों से पकड़ लिया और बोला, "जोया, प्लीज़ ट्राई टू अंडरस्टैंड, मैंने कुछ नहीं किया है, तुम मुझे गलत समझ रही हो।"

    "समझने की कोशिश करो, मैंने कुछ नहीं किया है। मुझे तो कुछ..." जोया ने उसके हाथ झटकते हुए बीच में ही रोका और बोली, "बस मिस्टर अरहम खान, बस बहुत हो गया तुम्हारा ड्रामा। बस करो अब! तुमने मुझे धोखा दिया है, मेरा भरोसा तोड़ा है। सिर्फ़ कुछ पैसों के लिए तुमने मेरे परिवार को मरवा दिया और मेरे साथ प्यार का नाटक किया। मैं सब कुछ अपने कानों से सुन चुकी हूँ। तुम लोगों की हँसी की आवाज़ें आज भी मेरे कानों में गूंजती हैं। तुम चले जाओ यहाँ से, मुझे तुम्हारी शक्ल नहीं देखनी है। आई जस्ट हेट यू!" जोया ने जोर से चिल्लाते हुए कहा। अरहम जोया की इतनी शदीद नफरत महसूस कर चुका था।

    वह जानता था कि जो भी उसके बाबा ने किया है, उसका बोझ उसे जीने नहीं देगा, लेकिन उससे उसका प्यार ही छिन जाएगा। उसने यह कभी नहीं सोचा था।

    जोया को बहुत गुस्सा आ रहा था। वह अरहम को एक मिनट के लिए भी अपने सामने बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। उसने अरहम को लास्ट वार्निंग देते हुए कहा, "अगर अब तुम यहाँ से नहीं गए, तो मैं यहाँ से कूदकर अपनी जान दे दूँगी।"

    यह सुनकर अरहम काँप गया। अरहम भीगी पलकों के साथ कहता है, "नहीं, प्लीज़ कुछ मत करना। मैं यहाँ से जा रहा हूँ। प्लीज़ अपना ध्यान रखना।"

    अरहम चला गया। जोया वहीं खड़ी हुई, बेड का कोना पकड़कर बैठ गई और बहुत देर तक रोती रही। उनकी सारी बातें अमन सुन लेता है और वह यह जान जाता है कि यह कोई मामूली लड़की नहीं है। अमन अंदर से काफी डरपोक किस्म का इंसान था। जोया और अरहम की सब बातें सुनने के बाद वह डर गया और उसको पता चल गया कि जोया हवेली की इकलौती मालकिन है, जो अपनी जान बचाने के लिए यहाँ छुपी हुई है और उसके भाई-बाप उसके मामा द्वारा मार दिए गए हैं। उसने जोया को लेके काफी सपने बुने थे, पर सच जानने के बाद वह उसका ख्याल अपने मन से निकाल देता है और बिना कुछ कहे वहाँ से चला जाता है।

    जोया ने खुद को थोड़ा संभाला और घर के लिए निकलने की सोची, क्योंकि वहाँ उसकी नौकरी नहीं थी और आज काफी कुछ हो गया था, तो वह जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहती थी। जोया अपना सामान लेने किचन की तरफ़ गई। वहाँ सभी उसका इंतज़ार कर रहे थे। इतने कम वक़्त में उसने सबके दिलों में अपनी जगह बना ली थी। आयशा के साथ-साथ सभी की आँखें भीगी हुई थीं।

    तभी वहाँ पर अरमान ठाकुर आ जाते हैं और जोया से बोलते हैं, "मिस शनाया, अब आपकी तबीयत कैसी है?" बदले में जोया तबीयत का ना बताकर उनसे केक के लिए माफ़ी मांगती है। अरमान उसकी बात काट देता है और बोलता है, "इट्स ओके, ये कोई बड़ी बात नहीं है।"

    इतने में आयशा बीच में बोल पड़ती है, "सर, ये बड़ी बात है। इस गलती की कीमत शनाया को अपनी जॉब खोकर चुकानी पड़ी।" यह सुनकर अरमान शॉक हो जाते हैं, "क्या? आपकी जॉब चली गई? ओह माय गॉड! आई एम सॉरी मिस शनाया! मेरी वजह से..."

    "वेल, नो प्रॉब्लम, आई हैव ए सॉल्यूशन। डोंट वरी। मेरे पास आपके लिए नौकरी है, सो डोंट बी सैड। आप मेरा कार्ड रखिए और कल ठीक 9 बजे मुझसे यहाँ आकर मिलिए।" कार्ड देकर अरमान चला जाता है और जोया कार्ड थामे घर आ जाती है।

    जोया घर आ जाती है और आज जो कुछ भी हुआ, वह कुछ भी सोचना नहीं चाहती थी। वह बस अब अपनी लाइफ में आगे बढ़ना चाहती थी। वह अरमान ठाकुर के कार्ड को लेकर बहुत देर तक देखती रही। आज जो हुआ वो रहीम को सब बता देती है। रहीम खान उसे तसल्ली देते हैं और कहते हैं, "ऊपर वाला एक रास्ता बंद करता है तो दूसरा रास्ता खोल भी देता है।" अब जोया आगे बढ़ने का फैसला कर चुकी थी। अरहम की यादें उसकी पलकें भीगो गई थीं, पर उसने बेरहमी से आँखों को रगड़ा था और खुद से ही बोला था, "अब और नहीं, बस उस इंसान के लिए अब मेरी आँखें नहीं रोएँगी।"

    एक नई सुबह उसका इंतज़ार कर रही थी। उसको सुबह 9 बजे अरमान के एड्रेस पर भी तो जाना था।

    जोया एक नए आत्मविश्वास के साथ अरमान के ऑफिस के लिए निकलती है। अरमान द्वारा दिए गए एड्रेस को वह राजू को दिखाती है। राजू वह जगह पहचानता था। वह बोला, "दीदी जी, ये जगह हमने देख रखी है। आइए, हम आपको अभी ले चलते हैं।"

    जोया राजू के साथ चली जाती है। राजू एक बहुत बड़ी बिल्डिंग के सामने रिक्शा रोक देता है और जोया से कहता है, "लीजिए दीदी जी, आपका स्पॉट आ गया।" जोया हैरानी से एड्रेस देखते हुए, "ओह माय गॉड! क्या हमें यही आना था? राजू जी?" "हाँ दीदी जी, इस कार्ड में जो एड्रेस है, वो यही का है।"

    जोया नीचे उतर जाती है और हैरानी से ऊपर की ओर देखती है। उसको ऐसा लग रहा था कि यह बिल्डिंग आसमान को छू रही हो। उसने इतनी चौड़ी-लंबी बिल्डिंग जिंदगी में पहली बार देखी थी। उसको इस तरह से बिल्डिंग को घूरता हुआ देख, वॉचमैन उसके पास आकर पूछता है, "कौन हैं आप और किससे मिलना है? कहाँ जाना है?" जोया थोड़ी घबराहट के साथ अरमान का कार्ड वॉचमैन को दिखा देती है।

    कार्ड देखकर वॉचमैन समझ जाता है कि इन्हें साहब ने ही बुलाया है, क्योंकि बहुत कम लोगों को अरमान ठाकुर अपना कार्ड देता है। वह उसे ऊपर जाने का रास्ता बता देता है, और जोया थोड़ी हिचकिचाहट के साथ आगे बढ़ जाती है।

    अंदर लिफ्टमैन जोया का कार्ड देखकर जोया को 10वें माले पर पहुँचा देता है। जोया पहली बार लिफ्ट में थी। डर के मारे उसका बुरा हाल था। चूँकि लिफ्टमैन भी साथ था, तो वह अपना डर उसके सामने जाहिर नहीं करना चाहती थी। बहरहाल, वे लोग 10वें माले पर पहुँच चुके थे। "लीजिए मैडम, 10वाँ फ्लोर आ गया।" जोया बाहर निकली और देखते ही चौंक गई। वहाँ 100 के करीब लोग काम कर रहे थे। इतनी ऊँचाई पर इतने लोगों का काम करना उसको हैरान कर गया था। उसने देखा सभी की अलग-अलग डेस्क बनी हुई थीं। हर जगह कंप्यूटर रखे हुए थे और यह काफी लंबा-चौड़ा हॉल सा था। सब के सब लाइन से काम कर रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे मिलिट्री की कोई ट्रेनिंग चल रही हो। तभी जोया के पास एक बहुत खूबसूरत लड़की आई और बोली, "हाउ कैन आई हेल्प यू, मैम?"

    जोया ने कुछ ना बोलते हुए अरमान का कार्ड उसको दिखा दिया। "ओहो! तो आप हैं मिस शनाया? सर आपका सुबह से वेट कर रहे हैं। आप आगे से लेफ्ट वाले रूम में चली जाइए। ओके।"

    जोया धीरे-धीरे आगे बढ़ती है और गेट पर जाकर नॉक करती है। अंदर से कमरे में आवाज़ आने पर वह अंदर जाती है। अंदर जाकर जोया देखती है कि यह ऑफिस से ज़्यादा किसी फाइव स्टार होटल का रूम लग रहा था। बड़े-बड़े सोफ़े, एक तरफ़ शोकेस में सजे हुए चमचमाते मेडल, जो शायद अरमान को उनके बिज़नेस में सफल होने पर मिले थे, सब कुछ बेहद अट्रैक्टिव लग रहा था।

    "अरमान: ओह मिस शनाया, आप आ गईं। थैंक यू सो मच आने के लिए।"
    "जोया: सर, थैंक्स तो मुझे कहना चाहिए। फिर आप क्यों बोल रहे हैं?"
    "अरमान: छोड़िए मिस शनाया, आप नहीं समझेंगी।" बेहद सिंपल से सलवार-कमीज़ में जोया उसे बेहद प्यारी लग रही थी। वह बार-बार नज़र बचाकर उसे देखे जा रहा था। अरमान उससे बातें करने का टॉपिक ढूँढने लगा था। "हाँ तो मिस शनाया, आपने कहाँ तक स्टडी की है?"

    स्टडी का नाम सुनते ही जोया सोच में पड़ जाती है। उसने अपनी हायर एजुकेशन के बारे में तो बता दिया, पर साथ ही साथ डॉक्यूमेंट्स ना होने की बात भी बता दी। इस पर अरमान चौंका, "क्यों? आपके डॉक्यूमेंट्स आपके पास क्यों नहीं हैं? क्या हुआ है?"

    "जोया: मिस्टर अरमान, मेरे पास डॉक्यूमेंट्स ना होने की मेरी अपनी पर्सनल वजह है, जो मैं नहीं बता सकती। अगर आप बिना डॉक्यूमेंट्स के मुझे जॉब नहीं दे सकते, तो कोई बात नहीं। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जो आपने मुझे अपना कीमती टाइम दिया। मैं चलती हूँ।" इतना कहते ही जोया खड़ी हो गई।

    पर अरमान उसे रोकते हुए बोला, "प्लीज़ वेट, मुझे भी बोलने का मौका दीजिए मिस शनाया। अगर आपके पास पेपर्स नहीं हैं, तो कोई बात नहीं। मैं उसके बाद भी आपको जॉब देने के लिए तैयार हूँ, क्योंकि मेरी वजह से आपकी नौकरी गई है और यह गिल्ट मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है।" पर ऐसा नहीं था, अरमान जोया को खोना नहीं चाहता था। वह पहली नज़र में ही उससे प्यार करने लगा था। एक जॉब का ही रीज़न था जो वह जोया को अपने करीब रख सकता था।

    अरमान की बातें सुनकर जोया को थोड़ी राहत हुई थी। इनफैक्ट, वह खुशी से भर गई कि उसे नौकरी मिल गई है। अब वह अपनी माँ का ध्यान अच्छे से रख पाएगी।

    अरमान जोया से कहता है, "मिस शनाया, आप आज से हमारे ऑफिस में काम करेंगी। साथ ही साथ मैं आपको बता दूँ, हमारे यहाँ काम करने वाले हर एक इम्प्लॉय को ऑफिस की ओर से हर तरह की सुविधा दी जाती है।"

    "जोया: बीच में ही टोकते हुए सॉरी सर, मैं कुछ समझी नहीं।"
    "अरमान: मेरा कहने का मतलब है कि आपको ऑफिस की ओर से एक फ्लैट और गाड़ी दी जाएगी, जिसमें आप डेली ऑफिस आया-जाया करेंगी और साथ ही साथ आपको ऑफिस के लिए 6 महीने का कॉन्ट्रैक्ट साइन करना होगा। अगले 6 महीने आप कहीं और काम नहीं कर सकतीं, आपको यही काम करना होगा। बोलिए, आपको मंजूर है?"

    जोया यह सब सुनते ही सोचती है, ऊपर वाला भी ना जाने किस-किस रूप में मदद करता है। रहीम के एक कमरे के घर में बहुत मुश्किल से गुज़ारा हो रहा था और यहाँ तो काम के साथ-साथ रहना, गाड़ी सब मिल रहा था। जोया को इन ख्यालों में गुम देख अरमान थोड़ा खांसते हुए, "हाँ तो मिस, क्या सोचा आपने?"

    जोया बिना टाइम वेस्ट किए कॉन्ट्रैक्ट साइन कर देती है। "ओह वाउ! कंग्रेटुलेशन मिस शनाया एंड वेलकम टू द ऑफिस!"

    "जोया: थैंक यू सर।" तभी अरमान कॉल करके किसी को अंदर बुलाते हैं। कुछ देर बाद दरवाज़े पर दस्तक होती है और एक बेहद मॉडर्न लड़की अंदर आती है। अरमान उससे कहते हैं, "मिस रोजी, इनसे मिलो। ये हैं मिस शनाया, जो आज से आपके साथ काम करेंगी और सीधा मुझे असिस्ट करेंगी। ओके।" रोजी अरमान की पर्सनल सेक्रेटरी थी।

    अरमान को इतना चहकता हुआ देखकर जोया काफी सोच में थी। हमेशा सख्त, गंभीर और बात-बात पर रूल-रेगुलेशन फॉलो करने वाले उनके बॉस को आज क्या हो गया था? आज वह मुस्कुरा रहे थे। रोजी ने 6 सालों में पहली बार अरमान को ऐसे देखा था।

    रोजी शनाया को लेके अपने केबिन में चली जाती है और काम समझाने लगती है। जोया जल्दी ही सारा काम सीख लेती है। रोजी उससे काफी इम्प्रेस होती है। शाम हो चली थी। जाने से पहले जोया को ऑफिस का आइडेंटिटी कार्ड और फ्लैट, गाड़ी की चाबी दे दी जाती है और वह खुशी-खुशी घर के लिए निकल जाती है। उसकी जिंदगी की नई शुरुआत हो चुकी थी।

    बाकी अगले भाग में।

  • 7. Obbsessed with Zoya, - Chapter 7

    Words: 1024

    Estimated Reading Time: 7 min

    जोया आज बहुत खुश थी। अपनी छोटी सी उम्र में उसने कितने उतार-चढ़ाव देखे थे! जोया अपना सब कुछ खो चुकी थी; वह जिंदा थी तो केवल अपनी माँ के लिए, और अब इस नई नौकरी के बाद तो जैसे उसे जीने का कोई एक रास्ता मिल गया था।

    इन्हीं सब चीजों को सोचते हुए जोया घर पहुँच गई। घर जाकर उसने यह खुशखबरी रहीम और अपनी माँ को सुनाई और फ्लैट में जाने की तैयारी करने लगी। उसकी शिफ्टिंग में मदद करवाने के लिए अरमान ने अपने दो कर्मचारी उसके साथ भेज दिए थे।

    जोया रात में ही अपनी माँ और रहीम को लेकर शिफ्ट हो गई। वह एक बहुत बड़ा और शानदार फ्लैट था; उसमें दो बेडरूम और एक गेस्ट रूम, साथ ही किचन से सटे हुए एक बड़ी सी बालकनी और एक प्यारा सा हॉल था।

    जिसमें सोफा, टीवी, हर तरह की सुविधाएँ थीं। वहाँ किसी चीज़ की कोई कमी नहीं थी। ज़्यादा चमक-धमक न होकर, सिम्पल, साधारण और करीने से सजा हुआ फ्लैट बहुत ही अच्छा लग रहा था।

    एक बेडरूम में जोया, दूसरे में उसकी माँ और गेस्ट रूम में रहीम खान शिफ्ट हो गए। ज़्यादा थकान होने के कारण वे खाना नहीं बना पाए; इसलिए जोया को वे दोनों कर्मचारी बाहर से खाना देकर चले गए।

    खाना खाकर वे तीनों सो गए। जोया को बेसब्री से अपनी नई सुबह का इंतज़ार था। अगली सुबह जोया बालकनी में खड़ी होकर आस-पास की जगह का जायज़ा ले रही थी। वह जहाँ खड़ी थी, वह काफी ऊँचाई पर था।

    जोया का फ्लैट पाँचवें माले पर था। उसने दूर तक अपनी निगाहें घुमाईं। चारों ओर से हरा-भरा इलाका बहुत ही खूबसूरत लग रहा था। जोया इन सब में कहीं खो सी गई थी। इतने में रहीम खान ने आवाज़ लगाई, "बेटा, नाश्ता तैयार है। आप जल्दी रेडी हो जाइए, वरना आपको देर हो जाएगी।"

    जोया रहीम की आवाज़ सुनकर जैसे नींद से जागी हो। "ओह, शीट! मैं तो लेट हो जाऊँगी!" और सही मायनों में तो उसका पहला दिन आज ही था। वह जल्दी से फ्रेश होकर उल्टा-सीधा कुछ खाकर जाने के लिए तैयार हो गई।

    और नीचे सीढ़ियों की ओर भागी। जोया लिफ्ट से न जाकर सीढ़ियाँ ही इस्तेमाल करती थी, क्योंकि लिफ्ट का डर उसका अभी तक निकला नहीं था।

    नीचे ऑफिस की गाड़ी खड़ी, उसका इंतज़ार कर रही थी। जोया चमचमाती ब्रांड न्यू ब्लैक कलर की गाड़ी में बैठ गई।

    और गाड़ी सड़कों पर साए-साए करती, फुल स्पीड में बीस मिनट के अंदर ही उसे ऑफिस पहुँचा देती है। ड्राइवर बोला, "लीजिए मैम, ऑफिस आ गया आपका।"

    जोया ने कहा, "ओह, थैंक यू। बड़ी जल्दी आपने पहुँचा दिया। चलती हूँ, बाय।"

    जोया लिफ्ट के पास पहुँच कर थोड़ा हिचकिचाती है, लेकिन इतने में ही अरमान ठाकुर उसके पीछे आ खड़े होते हैं। जोया उन्हें देखते ही मॉर्निंग विश करती है, "गुड मॉर्निंग सर।"

    अरमान: "वेरी गुड मॉर्निंग मिस शनाया।" अपनी घड़ी देखते हुए, "ओहो, बी ऑन टाइम, गुड!"

    "ओके, लेट्स गो।" जोया: "ओह, ओके सर।" जोया और अरमान एक साथ लिफ्ट में जाते हैं। लिफ्ट चलते ही जोया थोड़ा डरने लगती है और अपनी आँखें बंद कर लेती है। अरमान उसे डरता हुआ देख लेता है, और उसका डर भगाने के लिए उससे बातें करना शुरू कर देता है।

    "हाँ तो मिस शनाया, आप अच्छे से शिफ्ट हो गईं ना? कोई परेशानी तो नहीं हुई ना?"

    जोया: "नहीं सर, बहुत अच्छी जगह है। सब चीज़ें हैं वहाँ पर; किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया सर, आपने मेरी सारी प्रॉब्लम्स सॉल्व कर दीं।"

    इतने में, "लीजिए मिस, हमारा फ़्लोर आ गया।" जोया: "ओह, हाँ।" उसे पता भी नहीं चला और वह आ गई थी। वह अरमान के साथ ही अंदर चली गई।

    जोया ने एक हल्के ब्लू कलर का पजामा सूट पहना था। वहाँ काम कर रही लड़कियाँ जीन्स, ट्राउज़र आदि टाइप के कपड़े पहनती थीं; शहर की भाषा में वे सब मॉडर्न जमाने की लड़कियाँ थीं।

    लेकिन जोया तो बहुत सिम्पल थी और उसने साधारण से कपड़े पहन रखे थे, जिसमें उसकी सादगी उसे और भी खूबसूरत बना रही थी।

    जोया का यूँ अरमान के साथ अंदर आना ना जाने कितनी लड़कियों को खटक गया था, और सब ना जाने जोया से कैसे जलने लगी थीं, क्योंकि आज तक अरमान ने किसी को भी इतना भाव नहीं दिया था।

    और लड़कियों से तो एक चिढ़ सी थी उसको। जबसे उसने गरीबी में अपनी माँ की बेवफ़ाई देखी थी, उसने गाँठ बाँध ली थी कि कभी किसी औरत पर भरोसा नहीं करेगा। लेकिन जबसे उसने जोया को देखा था, न जाने क्यों उसकी सादगी उसे अंदर तक भा गई थी।

    वह जोया को बेहद चाहने लगा था। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसे उसके बिज़नेस के अलावा भी किसी और से प्यार हो सकता है।

    वेल, अंदर पहुँचकर अरमान जोया का सब से इंट्रोडक्शन करवाता है। सब तालियों के साथ उसका वेलकम करते हैं। जोया को सब कुछ अच्छा लग रहा था। तभी मिस रोज़ी उसको उसका केबिन दिखाती है और आज का सारा काम उसे समझा देती है।

    जोया सब कुछ भूलकर काम में जुट जाती है। बीच-बीच में अरमान जोया को अपनी विंडो से देखता रहता है। अरमान बार-बार अपनी विंडो से जोया को देख रहा था; न जाने क्यों उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था।

    लेकिन जोया का ध्यान केवल काम पर था। वह बस अपना बेस्ट देना चाहती थी। और उसको इतनी लगन से काम करता देख अरमान काफ़ी खुश था।

    तभी मिस रोज़ी अरमान के पास एक प्रोजेक्ट को डिस्कस करती है। यह उनकी कंपनी के लिए एक बहुत ही इम्पॉर्टेन्ट डील थी।

    और ठीक दो दिन बाद उनकी शाह इंडस्ट्रीज के साथ मीटिंग थी। यह मीटिंग उसकी कंपनी के लिए बेहद इम्पॉर्टेन्ट थी, और मीटिंग बड़ी हो या छोटी, अरमान के लिए वह अहम ही होती थी।

    शाह इंडस्ट्रीज के ओनर का नाम देखकर अरमान थोड़ा चौंक जाता है और एक हल्की मुस्कुराहट के साथ अपने फोन से एक नंबर डायल करने लगता है।

    बाकी अगले भाग में।

  • 8. Obbsessed with Zoya, - Chapter 8

    Words: 1020

    Estimated Reading Time: 7 min

    अरमान शाह इंडस्ट्री के ओनर को फोन लगाया।

    दूसरी ओर, अरहम ने अरमान का नंबर देखकर कॉल रिसीव किया। "हेलो अरमान, कैसे हो? कैसे याद किया?"

    "अरे कुछ नहीं जनाब, वो आपसे हमारी कल मीटिंग है, बस वही याद दिलाने को कॉल किया है।" अरमान ने मजाकिया लहजे में कहा।

    "ओह, तो तुम्हारे साथ मीटिंग है कल की? मुझे मेरे सेक्रेटरी ने बताया था, पर मैं अपने एक बहुत जरूरी काम में फँसा हुआ हूँ। मैं मीटिंग के लिए नहीं आ सकता, सॉरी।"

    "अरे ये क्या कह रहे हो तुम? पहले तो मैं शाह इंडस्ट्रीज़ के ओनर का नाम देखकर चौंक गया था। तुम कैसे और कब इतनी बड़ी कंपनी के मालिक बन गए? जबकि मैं जानता हूँ, पैसे, पोजीशन, इनको लेकर तो तुम कभी सीरियस थे ही नहीं।"

    "और आज भी देखो कितने लापरवाह हो! लाखों की डील फाइनल करने के लिए तुम्हारे पास टाइम ही नहीं है।"

    "सॉरी अरमान, मुझे टाइम मिला तो मैं कोशिश जरूर करूँगा आने की, पर अभी के लिए मैं माफ़ी चाहता हूँ। मैं अभी बहुत बिज़ी हूँ। बाद में कॉल करता हूँ। बाय।" इतना कहकर अरहम ने फोन काट दिया।

    "अरे हेलो! सुनो मेरी बात... तुम ऐसा नहीं..." पर तब तक फोन कट चुका था। अरमान गुस्से में फोन पटक दिया और बड़बड़ाया, "ये इंसान कभी नहीं सुधरेगा! पता नहीं किसने इसे मालिक बना दिया, इडियट कहीं का!"

    दूसरी ओर, अरहम जोया को लेकर परेशान था। जोया की इतनी शदीद नफ़रत देखने के बाद तो जैसे वो अंदर से टूट ही गया था। उसका शरीर बुखार से तप गया था जिसके कारण वो कई घंटे ऐसे ही पड़ा रहा था। और अरमान की कॉल के बाद जैसे वो एक गहरी नींद से जागा हो।

    उसने अब ठान लिया था, वो अपना प्यार इतनी आसानी से नहीं जाने देगा। जोया उसकी ज़िन्दगी थी, वो उसके बिना नहीं जी सकता था। अब उसे जो भी सही लगेगा वो करेगा, पर जोया को अपना बनाकर रहेगा। सबसे पहले उसने अपने बंदों को काम पर लगा दिया। उसे हर हाल में जोया चाहिए थी, वो उसके लिए कुछ भी कर सकता था। वो इतनी आसानी से जोया को हाथ से नहीं जाने देगा। जोया उसकी ज़िन्दगी है, वो उसके बिना नहीं जी सकता था। जिसकी थोड़ी सी नफ़रत देखकर उसका बुरा हाल हो गया था, उसे उसकी जान निकलते हुए महसूस हो रही थी।

    उसने अपना इरादा मज़बूत किया; वो इतनी आसानी से जोया को नहीं जाने देगा। कुछ सोचकर उसने अपने बंदों को बुलाया और मुँह माँगी कीमत देकर जोया की पूरी डिटेल्स एक घंटे के अंदर-अंदर निकलवा ली। जोया को ढूँढना अब आसान था क्योंकि वो जिस होटल में काम करती थी, वहाँ से उसकी डिटेल्स आसानी से उसके हाथ लग चुकी थीं। उसकी मेहनत रंग लाई और ठीक डेढ़ घंटे के अंदर ही जोया की पूरी डिटेल्स, नया एड्रेस और करेंट वर्किंग प्लेस, एवरीथिंग, उसके सामने टेबल पर पड़ा था।

    जोया जहाँ काम कर रही थी और उसके मालिक का नाम देखकर अरहम मुस्कुराया और बोला, "आज तो अरमान साहब से मीटिंग करनी ही पड़ेगी।" वो अपने सेक्रेटरी को मीटिंग की तैयारी करने को बोलता है और खुद रेडी होने के लिए चला जाता है।

    जोया के ऑफिस में भी मीटिंग की तैयारी जोर-शोर से शुरू हो जाती है। जोया को भी मीटिंग का हिस्सा बनना था, तो उसको भी सब चीजों की जानकारी होनी ज़रूरी थी। अरमान का हर चीज में जोया को आगे रखना रोजी को अच्छा नहीं लग रहा था। उसने अपनी ज़िन्दगी के पूरे छः साल उस कंपनी को दिए थे। वो मन ही मन अरमान को चाहती भी थी, लेकिन अरमान का रूखा और खड़ूस व्यवहार देखकर वो कभी अपने प्यार का इज़हार नहीं कर पाई थी। और आज यूँ अचानक से अरमान का किसी और को इतनी इम्पॉर्टेंस देना रोजी को अंदर तक तपा गया था। वो जहाँ पहले जोया से उसके जल्दी काम सीखने को लेकर इम्प्रेस थी, वहीँ अब वो उससे ना चाहते हुए भी नफ़रत सी करने लगी थी।

    रोजी की जलन या नफ़रत जो भी थी, आज उससे वो करवाने जा रही थी जिससे कंपनी को बहुत नुकसान पहुँच सकता था। उसने जानबूझकर जोया के सिस्टम में आज के प्रोजेक्ट की पूरी डील डिलीट कर दी और जोया को प्रेजेंटेशन की पूरी तैयारी करने को कहा। "और बोला, "अगर आज तुमने कुछ गड़बड़ की, तो आज तुम्हारा पहला दिन आख़िरी दिन भी बन सकता है। सो मेहनत से काम करना, मुझे सब कुछ रेडी चाहिए। ओके।"

    इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी पहले ही दिन उसने जोया को दे दी थी। किसी प्रोजेक्ट को वो कैसे प्रेजेंट कर पाएगी, वो भी इतने लोगों के सामने? वो ये सब सोच रही थी। उसके पास सब कुछ रेडी करने के लिए केवल दो घंटे ही बचे थे। ठीक दो घंटे बाद शाह इंडस्ट्रीज़ के साथ मीटिंग होनी थी जो कंपनी के लिए बहुत इम्पॉर्टेंट थी।

    जोया जोर-शोर से काम पर लग गई थी। जोया ने पूरे दो घंटों की कड़ी मेहनत के बाद प्रेजेंटेशन रेडी कर लिया था। उसको बस अब मीटिंग का इंतज़ार था।

    धीरे-धीरे सब स्टाफ, जिनका मीटिंग में होना ज़रूरी था, वो सब एक-एक करके मीटिंग रूम में जमा होने लगे थे। इतने में जोया के लिए एक कॉल आया। वो कॉल अटेंड करने गई। कॉल उसके घर से था। रहीम बहुत घबराया हुआ था; रहीम ने जोया को फोन किया था।

    अचानक रहीम की घबरायी हुई आवाज़ सुनकर जोया काफ़ी परेशान हो गई थी। रहीम ने दर्द भरी आवाज़ में घबराते हुए जोया से कहा, "जोया बेटी, बड़ी मालकिन को फिर से दौरा पड़ा है। आप जल्दी आ जाइए।"

    ये सुनकर जोया बेहद घबरा गई और एकदम से उसे उसकी टाँगों की जान निकलती हुई सी महसूस हुई। क्योंकि अचानक जोया की माँ को फिर से दौरा पड़ा था, वो फिर चीखने-चिल्लाने लगी थी। रहीम बिल्डिंग के सिक्योरिटी की मदद से उनको हॉस्पिटल में ले गया था। जोया ने जब ये सब सुना तो वो बेचैन हो गई और उसने अपनी परेशानी रोजी को बताई।

  • 9. Obbsessed with Zoya, - Chapter 9

    Words: 1046

    Estimated Reading Time: 7 min

    रोजी ने जोया से कहा, "मिस शनाया, अगर आप गईं तो मीटिंग में प्रोजेक्ट कौन प्रेजेंट करेगा? तुम्हें पता है ये कंपनी के लिए कितना ज़रूरी है। अगर तुम गईं, तो तुम्हें अपनी जॉब से भी हाथ धोना पड़ सकता है।"

    जोया बहुत परेशान हो गई थी। उसे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था। उसने रहीम को फोन लगाया और अपनी परेशानी बताई। रहीम खान ने कहा, "बेटी जी, आप अपनी मीटिंग कंप्लीट करके सीधा हॉस्पिटल आ जाना। और वैसे भी अभी मालकिन ठीक हैं। डॉक्टर ने उन्हें नींद का इंजेक्शन दिया है जिससे वे ढाई-तीन घंटे तक सोएँगी। इतने में आप अपना काम ख़त्म करके जल्दी आ जाना। ओके?"

    जोया ने थोड़ी राहत की साँस ली। लेकिन उसका ध्यान अब प्रोजेक्ट से हट चुका था। बार-बार उसको अपनी माँ का ख्याल आ रहा था।

    जोया बुझे मन से मीटिंग रूम की तरफ़ जाने लगी। तभी वह किसी से टकरा गई। उसने नज़रें उठाईं तो वह दंग रह गई। उसके सामने अरहम मुस्कुरा रहा था। दोनों ने कुछ पल एक-दूसरे को देखा।

    तभी जोया को जैसे होश आया। "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की? तुम मेरा पीछा कर रहे हो?" जोया ने बेहद गुस्से और नफ़रत से कहा।

    अरहम ने कहा, "हेलो मिस जोया हसन। अब आप इतनी भी खूबसूरत नहीं हैं कि मैं आपका पीछा करूँ। समझीं आप? आपको ज़रूर कोई गलतफ़हमी हुई है।" उसका इस तरह से बोलना जोया को अंदर तक सुलगा गया।

    तभी वहाँ अरमान आ गए। "ओहो, मिस्टर अरहम शाह! फ़ाइनली आपके दर्शन हो ही गए! आपने तो मीटिंग के लिए मना कर दिया था, और फिर अचानक से आपके यूँ आने की वजह जान सकता हूँ मैं?"

    "वजह तो तुम्हारे सामने खड़ी है, अरमान।" अरहम ने जोया पर एक गहरी नज़र डालते हुए मन ही मन में कहा।

    अरहम ने कहा, "अरे नहीं अरमान! ऐसी कोई बात नहीं है। वो एक्चुअली तुम्हारा कॉल आया था ना, और मीटिंग भी बेहद ज़रूरी है हम दोनों की कंपनियों के लिए, सो मैं आ गया।"

    अरमान ने कहा, "नाउ लेट्स गो फॉर द मीटिंग।"

    अरमान ने कहा, "ओह हाँ, यस। कम इनसाइड।" फिर जोया को देखते हुए, "ओह, सॉरी, आई फॉरगेट। अरहम, मीट मिस शनाया, हमारी न्यू इम्प्लाय। इन्होंने आज ही ज्वाइन किया है। एंड मिस शनाया, ये हैं मिस्टर अरहम शाह, शाह इंडस्ट्रीज़ के मालिक। आज की हमारी मीटिंग इन्हीं के साथ है।"

    जोया ने यह सुनते ही अपना मुँह खुला का खुला छोड़ दिया। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि अरहम से उसकी ऐसी मुलाक़ात होगी, जबकि वह उसे देखना भी नहीं चाहती थी।

    सब लोग मीटिंग रूम में जमा हो गए। जोया को ही सब प्रेजेंट करना था। वह थोड़ा घबरा रही थी। अरहम उसकी सिचुएशन समझ चुका था। उसने धीरे से उसके कान में कहा, "प्रेजेंटेशन तुम्हारे बस की बात नहीं है मिस जोया। तुम एक गाँव की लड़की हो। यहाँ हाई-फ़ाई लोगों के बीच तुम स्पीच नहीं दे पाओगी।"

    जोया अरहम की बातें सुनकर गुस्से से लाल हो गई और एक नए आत्मविश्वास के साथ प्रोजेक्ट प्रेजेंट किया। सभी को उसका प्रेजेंटेशन और बोलना बहुत पसंद आया।

    अरहम अंदर ही अंदर बहुत खुश हुआ। आख़िर जो वह चाहता था, वह हो गया था। सब ने जोया के लिए तालियाँ बजाईं। रोजी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जोया इतना अच्छा करेगी। वह तो सोच रही थी कि जोया सबको देखकर घबरा जाएगी और कुछ नहीं बोल पाएगी। लेकिन अब सब उल्टा हो चुका था। जोया बाजी मार चुकी थी।

    दोनों कंपनियाँ एक-दूसरे के साथ डील्स साइन कर लेती हैं। यह जोया की पहली कामयाबी थी। वह बेहद खुश थी, पर अचानक से माँ का ख्याल आने पर वह उदास हो गई। अरहम ने जोया की खुशी और अचानक से उदासीपन देख लिया। वह जानता था कि अगर वह पूछेगा तो जोया नहीं बताएगी, इसलिए उसने अरमान के कान में कुछ इस तरह से कहा कि अरमान को उसके दुःखी होने का कारण पूछना ही पड़ा।

    अरमान ने कहा, "हेलो, क्या हुआ मिस शनाया? आप खुश नहीं लग रही हो। हमारी डील फ़ाइनल हो गई, फिर भी आप दुखी लग रही हो।"

    जोया गड़बड़ा गई, "नहीं-नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं है।"

    अरमान ने फिर पूछा, "नहीं-नहीं मिस, कुछ बात तो ज़रूर है।" वह बता देती है, "सर, मेरी माँ की तबियत ख़राब है। वे हॉस्पिटल में हैं। मैं वहाँ जाना चाहती हूँ।"

    अरमान ने कहा, "ओहो मिस शनाया, आप जा सकती हैं। इसमें परेशान होने की कोई बात नहीं है। चाहिए तो मैं आपके साथ चलता हूँ।"

    जोया ने कहा, "अरे नहीं-नहीं सर, आपका बेहद शुक्रिया। मैं चली जाऊँगी।"

    अरहम ने यह सुन लिया और जल्दी ही अरमान से विदा लेकर निकल गया। जोया नीचे जाते हुए ड्राइवर को फोन करती है।

    जोया ने फोन किया, "हेलो, आप जल्दी से आ जाइए। हमें हॉस्पिटल चलना है।"

    ड्राइवर कॉल नहीं उठाता। वह दूसरी बार ट्राई करती है तब वह फोन उठाता है। ड्राइवर कहीं फँसा हुआ था। उसने जोया को आधे घंटे का टाइम दिया। पर जोया के लिए एक-एक मिनट भारी हो रहा था। तभी उसके पास एक गाड़ी आकर रुकती है। वह अरहम की गाड़ी थी। अरहम ने रिक्वेस्ट के साथ कहा,

    "जोया, प्लीज़ अंदर बैठ जाओ। मैं तुम्हें हॉस्पिटल ले चलता हूँ।" लेकिन जोया गुस्से से मुँह फेर लेती है। अरहम ने इस बार थोड़े तंजिया लहजे में कहा, "सोच लो जोया, कहीं तुम जाने में देर ना कर दो। वैसे भी माँ के अलावा तुम्हारे पास कोई नहीं है। जल्दी गुस्सा छोड़ो और चलो मेरे साथ।" इस बार जोया मज़बूरी में ही सही, उसकी गाड़ी में बैठ जाती है। गाड़ी फ़ुल स्पीड में हॉस्पिटल की ओर रवाना हो जाती है।

    हॉस्पिटल जाते हुए दोनों के बीच एक अजीब सी खामोशी थी। दोनों एक-दूसरे से ना ही लड़ते हैं और ना ही कोई बात करते हैं। जोया की आँखें भीगी हुई थीं। शायद अपनी माँ के बारे में सोच रही थी। इतने में अरहम ने इस खामोशी को तोड़ा और जोया की आँखें नम देख बोला, "बिलकुल चिंता मत करो जोया, बड़ी मालकिन को कुछ नहीं होगा।"

  • 10. Obbsessed with Zoya, - Chapter 10

    Words: 1032

    Estimated Reading Time: 7 min

    गाड़ी में जाते हुए...

    बदले में जोया ने कुछ नहीं कहा और गाड़ी से बाहर एक के बाद आती हर एक गाड़ी को देखने लगी। वह सोच रही थी, कितना अजीब शहर है, कितना शोर-शराबा है यहाँ। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी के पास भी अपनों के लिए वक्त नहीं है।

    एक ओर उसका गांव था जहाँ केवल पक्षियों की मधुर आवाज़ ही सुनाई पड़ती थी। बेहद शांति और खुशियों से भरा गांव था उसका; चारों ओर हरे-भरे खेत-खलिहान, सब कुछ बेहद खूबसूरत था। ऐसा लगता था जैसे कुदरत खुद यहाँ पूरी तरह से मेहरबान थी।

    जोया अपनी सोच में डूबी हुई थी। इसी बीच अरहम की आवाज़ सुनाई पड़ी।

    "जोया, हॉस्पिटल पहुँच गए।"

    जोया जैसे नींद से जागी हो, वह जल्दी से गाड़ी से उतरी और अंदर गई। उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

    अरहम भी उसके पीछे-पीछे आ रहा था।

    जोया सीधे रहीम से मिली और मिलते ही सवालों की बौछार कर दी।

    "मम्मा कहाँ हैं? कैसी हैं? क्या हुआ था? क्या बोला डॉक्टर ने?"

    "रहीम, शांत हो जाओ बेटा जी। मालकिन अब ठीक हैं, अंदर हैं, आराम कर रही हैं। आप जाओ मिल लो। अभी थोड़ी देर पहले ही उन्हें होश आया है।"

    यह सब सुनकर जोया ने राहत की साँस ली और अंदर गई। और माँ से लिपटकर खूब रोई।

    "अरे क्या हुआ मेरी बच्ची? क्यों रो रही हो? मैं बिलकुल ठीक हूँ। तुम परेशान मत हो मेरी जान।"

    इतने में अरहम भी कमरे में आ जाता है।

    अरहम को देखकर जोया की माँ बेहद खुश हो जाती हैं, जैसे उनमें नई जान आ गई हो।

    "अरे अरहम बेटा! तुम कब आए? तुम मुझसे मिलने आए हो। देखो ना, जोया कितना रो रही है। इसको समझाओ। मैं बिलकुल ठीक हूँ। तुम्हारी बात यह सुनेगी भी।"

    अरहम और जोया के बारे में वह जानती थीं। जोया ने अपनी मुहब्बत के बारे में पहले ही अपनी माँ को बता दिया था। जिस रात उसकी अम्मी, जोया और अरहम की बात घर में करने वाली थी, उसी रात वह हादसा हो गया था।

    "अरहम, जोया चुप हो जाओ। क्यों रो रही हो? बड़ी मालकिन अब ठीक हैं।" जोया ने अरहम को तिरछी नज़रों से देखा।

    "मैं अपना और अपनी माँ का ध्यान रख सकती हूँ, मिस्टर अरहम। अब आप जा सकते हैं।" जोया ने तंजिया लहजे में कहा।

    इस पर अरहम झेंप गया। जोया की माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, "ओहो! लगता है दोनों में फिर से झगड़ा हुआ है।"

    "नहीं बड़ी मालकिन, ऐसी कोई बात नहीं है।" इस पर उन्होंने कहा, "मुझे बड़ी मालकिन नहीं, माँ बुलाओ, जैसे जोया बुलाती है।"

    इस पर जोया चिढ़ते हुए बोली, "माँ, प्लीज़ आप बिल्कुल भी ज़्यादा मत बोलिए। डॉक्टर ने आपको रेस्ट करने के लिए बोला है।"

    इतने में नर्स आ जाती है। "आप लोग प्लीज़ बाहर जाइए। पेशेंट को इंजेक्शन देना है।"

    "जोया, सिस्टर, मैं इन्हें कब घर ले जा सकती हूँ? इन्हें कब तक यहाँ रखना होगा?"

    "सिस्टर, सॉरी मैडम। यह सब तो आपको डॉक्टर ही बता सकते हैं। आप जाकर मिल लीजिए। ओके।"

    "जोया, डॉक्टर साहब, मैं अपनी माँ को कब तक घर ले जा सकती हूँ?"

    "देखिए, अभी उनकी कंडीशन पहले से तो बेहतर है, लेकिन आपके भाइयों और बाप की मौत उनकी आँखों के सामने हुई है, जिससे उनकी दिमाग की नस ब्लॉक हो गई है। उनका दिमाग आपके परिवार की मौत एक्सेप्ट ही नहीं कर पा रहा है।"

    जोया की आँखें भीग गई थीं। उसने पूछा, "डॉक्टर, मेरी मम्मा कैसे ठीक होंगी?"

    "घबराइए मत। यह कुछ मेडिसिन है। जब भी उनको इस तरह का दौरा पड़े, उनको दे देना। और जितना हो सके, उनको खुश रखने की कोशिश करना। उनके सामने कोई भी ऐसी बात मत होने देना जो उन्हें उस हादसे की याद दिलाए। हम कल सुबह उन्हें डिस्चार्ज कर देंगे। डोंट वरी। वह जल्दी ठीक हो जाएंगी।"

    अरहम गेट पर खड़ा सारी बातें सुन चुका था।

    "जोया, तुम यहाँ क्या कर रहे हो? जाओ यहाँ से। तुमने मुझे हॉस्पिटल ड्रॉप किया, उसके लिए तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया। अब प्लीज़ तुम जाओ यहाँ से।"

    "जोया, प्लीज़ ऐसा मत बोलो। मैं तुम्हें इन हालातों में छोड़कर कैसे जा सकता हूँ? तुम तो जानती हो, तुम्हारे परिवार के कितने एहसान हैं मुझ पर। आज मैं जो भी हूँ, तुम्हारे बाबा की वजह से हूँ।" इस पर जोया ने चिढ़ते हुए कहा,

    "प्लीज़ अपना ड्रामा बंद कीजिए। तुम्हारे हाथ मेरे परिवार के खून से रंगे हैं और आज तुम मुझे हमारे एहसान याद दिला रहे हो।"

    इस पर अरहम को गुस्सा आ गया। उसने जोया को बाहों से पकड़ा और दीवार में लगा दिया और उसकी आँखों में आँखें डालकर बोला,

    "तुमने क्या मुझे इतना गिरा हुआ समझ लिया है जो मैं ऐसा कुछ करूँगा? मैंने कुछ नहीं किया है। मेरा यकीन करो। हाँ, यह सच है, तुम्हारे गुनाहगारों में मेरे पिता भी शामिल थे... लेकिन उन्हें अपने किए की सज़ा मिल चुकी है। वे इस दुनिया से जा चुके हैं। मैं तुमसे बेहद मुहब्बत करता हूँ। मैं कभी कोई ऐसा काम नहीं करूँगा जिससे तुम्हें इतनी सी भी तकलीफ हो।" अरहम की आँखें लाल हो गई थीं; शायद उसने अपने आँसुओं को रोक रखा था। जोया ने जोर से उसे अपने से दूर किया और बोली,

    "चलो मान लिया तुमने कुछ नहीं किया, तो कहाँ थे तुम? क्यों नहीं थे मेरे साथ? क्यों नहीं बचाया मेरे भाई को? क्यों नहीं बचाया मेरे बाबा को? क्यों उस मुसीबत में हमें अकेला छोड़कर चले गए?" जोया ऐसा कहकर तेज़-तेज़ रोने लगी और वहीं दीवार के सहारे बैठती चली गई।

    अरहम भागकर उसके पास आया। जोया बेतहाशा रो रही थी। अरहम कब का अपनी बाहों में उसे सहारा दे चुका था। वह उससे लिपटकर बहुत रो रही थी।

    काफी देर तक जोया अरहम के गले लगकर रोती रही।

    तभी किसी की आहट उन्हें सुनाई दी। तब जोया ने नोट किया कि वह अरहम की बाहों में है। उसने खुद को अलग किया और खड़ी हो गई। और अपने आप को संभाला और बिना कुछ कहे अपनी माँ के पास चली गई। उसने रहीम खान को घर जाने को कहा और बोला कि वह हॉस्पिटल रुकेगी और सुबह यहीं से ऑफिस चली जाएगी।

  • 11. Obbsessed with Zoya, - Chapter 11

    Words: 1330

    Estimated Reading Time: 8 min

    काफी देर तक जोया अरहम के गले लग कर रोती रही। तभी किसी की आहट सुनाई दी। तब जोया ने नोट किया कि वह अरहम की बाहों में है।

    उसने खुद को अलग किया और खड़ी हो गई। उसने अपने आप को संभाला और बिना कुछ कहे अपनी माँ के पास चली गई।

    उसने रहीम खान को घर जाने को कहा और बोला, "हॉस्पिटल मैं रुकूँगी और सुबह यहीं से ऑफिस चलूँगी। आप घर जाकर मेरे एक जोड़ी कपड़े ड्राइवर के साथ भिजवा देना।"

    रहीम भी रुकना चाहता था, पर जोया ने मना कर दिया और बोली, "आपकी तबियत खराब हो गई तो माँ को कौन देखेगा? आप सारा दिन से यहीं हैं, आपको आराम की बेहद ज़रूरत है। आप कल आ जाना और माँ को घर ले जाना। मैं यहीं से ऑफिस चलूँगी।"

    रहीम ने हाँ में सिर हिलाया और चला गया।

    रहीम के जाने के बाद जोया अपनी माँ के कमरे में चली गई। इस बीच अरहम कहीं नज़र नहीं आया। जोया ने सोचा वह चला गया होगा। वह अपनी माँ के पास कुछ देर बैठी, फिर पास में पड़े सोफ़े पर लेट गई। वह बहुत थक गई थी।

    तभी अरहम अंदर आ गया। उसके हाथों में दो बड़े थैले थे। उनको देखकर वह चौंक गई। उसके कुछ पूछने से पहले ही जोया की माँ ने उससे पूछ लिया, "ये क्या है बेटा तुम्हारे हाथों में?"

    अरहम थोड़ा हिचकिचाते हुए बोला, "कुछ नहीं बड़ी माँ, खाना लेके आया हूँ जोया के लिए। उसने सुबह से कुछ नहीं खाया है।"

    जोया ने उसे घूर कर देखा। उसने कहा, "मुझे कुछ नहीं खाना है। तुम चले जाओ यहाँ से।"

    अरहम जानता था जोया कुछ नहीं खाएगी; इसीलिए वह उसकी माँ का सहारा लेता है जोया को खाना खिलाने के लिए।

    अरहम बोला, "देखा आपने बड़ी माँ, आपकी लाडली मेरा गुस्सा खाने पर उतार रही है। आप ही कुछ समझाइए इसको।"

    जोया की माँ बोली, "अरे बेटा, क्या हुआ है? तुम खाना क्यों नहीं खा रही हो? तुम तो कितनी कमज़ोर भी हो गई हो। आखिर किस बात का गुस्सा खाने पर निकाल रही हो?"

    माँ के सामने जोया कुछ नहीं कहना चाहती थी क्योंकि डॉक्टर ने बोला था उन्हें हर हाल में खुश रखना है। इसीलिए उसने अरहम के हाथ से दोनों थैले ले लिए और खाना निकालने लगी।

    खाने से बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी। खाना देखकर जोया हैरान हो गई। सारा खाना उसकी पसंद का था। गरमागरम चिकन बिरयानी और साथ ही चिकन बटर मसाला, साथ में लच्छेदार बटर नान, और सलाद; सब कुछ दिखने में बेहद लज़ीज़ लग रहा था। खाना देखकर उसने अरहम की तरफ देखा। उसे याद आया एक बार बातों-बातों में अपनी पसंद का खाना उसने अरहम को बताया था।

    और आज अरहम सब ले आया था। जोया को खामोश देखकर उसकी माँ बोली, "अरे जोया, खा क्यों नहीं रही हो? देखो सारा खाना तुम्हारा पसंदीदा है और दिखने में बेहद लज़ीज़ भी लग रहा है। मेरा भी मुँह में पानी आ रहा है। मेरा भी खाने का मन कर रहा है।"

    अरहम बीच में बोल पड़ा, "हाँ हाँ बड़ी माँ, आप भी थोड़ा खाना खा सकती हो। मैंने डॉक्टर से पूछ लिया है। थोड़ा खाना आपको कोई परेशानी नहीं देगा।"

    जोया की माँ खुश हो जाती है। अरहम एक प्लेट में थोड़ा सा खाना निकाल कर उन्हें सर्व कर देता है और जोया के लिए भी खाना सर्व करने लग जाता है। जोया खाना नहीं चाहती थी, लेकिन माँ के उठते सवालों से बचने के लिए उसने खाना शुरू कर दिया और देखते ही देखते वह सारा खाना खा गई। उसने अरहम को भी नहीं दिया। उसे बहुत जोर से भूख लगी थी। और सारा खाना उसकी पसंद का था, तो वह सब खा गई थी। जोया की खाने की स्पीड देखकर अरहम मुस्कुरा रहा था। इस पर उसने जोया को छेड़ते हुए कहा, "देखा बड़ी माँ आपने, आपकी लाडली सारा खाना खा गई और मुझे कुछ भी नहीं दिया।" अरहम ने मासूम भरे लहजे में कहा था।

    तभी अरहम और उसकी माँ दोनों हँस पड़ते हैं और जोया झेंप जाती है। वह बिना कुछ कहे बाहर निकल जाती है।

    जोया की माँ बोली, "ओहो अरहम, तुमने फिर मेरी बेटी को नाराज़ कर दिया। जाओ जाकर उसको मनाकर लेकर आओ।"

    अरहम हकलाते हुए कहता है, "जी जी बड़ी माँ, मैं जाता हूँ," और वह भी उसके पीछे-पीछे बाहर चला जाता है।

    जोया हॉस्पिटल के कॉरिडोर में खड़ी बाहर की ओर देख रही थी। अरहम भी उसके पास जाकर खड़ा हो जाता है। कुछ देर दोनों के बीच कोई बात नहीं होती। फिर इस चुप्पी को अरहम तोड़ता है।

    अरहम: "जोया, क्या सोच रही हो?"

    जोया अरहम को देखते हुए कहती है, "मिस्टर अरहम, बहुत रात हो गई है। अब आपको चले जाना चाहिए।"

    अरहम: "क्या कह रही हो जोया? मैं तुम्हें इन हालातों में छोड़कर कैसे जा सकता हूँ?"

    जोया: "अरहम, प्लीज़ ये फ़ालतू की बातें मुझसे मत करो। तुम मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो। मैं तुमसे नफ़रत करती हूँ और मुझे तुम्हारा किसी तरह का कोई एहसान नहीं चाहिए। समझे तुम?"

    अरहम को गुस्सा आ गया था। उसने जोया के कंधे को जोर से पकड़ा था, जिससे जोया को शदीद दर्द हुआ था।

    जोया: "अरहम, ये क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे। मुझे दर्द हो रहा है।"

    अरहम: "हो रहा है ना दर्द? तुम्हारी बातों से मुझे इससे ज़्यादा तकलीफ़ होती है। तुम समझती क्यों नहीं हो? मैं तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊँ मेरी कोई गलती नहीं है? हाँ, उस मुसीबत में मैं तुम्हारे साथ नहीं था। उसके लिए प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो। प्लीज़।" ऐसा कहकर अरहम फूट-फूट कर रो पड़ता है। इतने लंबे-चौड़े मज़बूत इंसान को इस तरह से रोता देख जोया को अपने अंदर शदीद तकलीफ़ का एहसास होता है। वैसे भी अरहम उसे सच बता चुका था, पर जोया को उस दिन उसके साथ ना होने का बहुत एहसास था।

    पर अब उसको ऐसे रोता देख वह बहुत ज़्यादा तकलीफ़ में थी। बहरहाल, वह उस वक्त सब कुछ भूलकर उसके पास बैठ गई और खुद भी रोने लगी और रोते-रोते बोली, "तुम्हें क्या लगता है मैं तुमसे प्यार नहीं करती? मैं आज भी तुमसे प्यार करती हूँ! लेकिन तुम्हारे बाबा ने जो मेरे परिवार के साथ किया, उसके बाद मेरे दिल में तुम्हारे लिए वो प्यार ख़त्म हो चुका था। पर होटल रूम में जब तुमने मुझे सच बताया, तो मैं ये एक्सेप्ट ही नहीं कर पा रही थी। आई एम सॉरी, मैंने तुम पर विश्वास नहीं किया।"

    अरहम: "नहीं, ऐसा मत बोलो।" और दोनों एक-दूसरे के गले लगकर काफ़ी देर तक रोते हैं।

    उनके दिलों का मिलन उनके आँसुओं में धुल चुका था। रोते हुए दोनों काफ़ी करीब आ गए थे। जोया को इतने करीब पाकर अरहम होश खो बैठा था और अनायास ही उसके होंठ जोया के होंठों से जा मिले थे। दोनों एक-दूसरे को पन्द्रह मिनट तक किस करते रहे और अब उनके प्यार पर खूबसूरत मोहर लग चुकी थी।

    अगली सुबह जोया को बहुत प्यारी लग रही थी क्योंकि उसका प्यार उसकी ज़िंदगी में वापस आ गया था। वह काफ़ी खुश थी। अरहम गरमागरम नाश्ते के साथ उसके सामने था। दोनों ने साथ नाश्ता किया। फिर हॉस्पिटल की फ़ॉर्मेलिटी पूरी करने के बाद जोया की माँ को डिस्चार्ज कर दिया गया था। रहीम खान उनको अपने साथ घर ले गया था। जोया हॉस्पिटल के चेंजिंग रूम में चेंज कर चुकी थी। उसने आज लाइट पिंक कलर का सूट पहना था और आज वह खुश थी, तो उसने अपने आप को बार-बार आईने में देखा था। और आज उसने कुछ एहतियात बरती, अपने लंबे घने बालों को खुला छोड़ दिया और तैयार होकर बाहर आ गई। जोया जब बाहर आई तो अरहम उसे देखता ही रह गया। वह बेहद खूबसूरत लग रही थी। जोया के शर्म से मारे गाल लाल हो गए थे, जिन्हें देखकर अरहम जोर से हँसा था। वह दोनों एक साथ गाड़ी में ऑफिस के लिए रवाना हो जाते हैं।

    बाकी अगले भाग में।

  • 12. Obbsessed with Zoya, - Chapter 12

    Words: 1113

    Estimated Reading Time: 7 min

    गाड़ी में धीमी आवाज़ में संगीत बज रहा था। दोनों का सफ़र शुरू हो गया था।

    अरहम बार-बार जोया को देख रहा था। वह बस यही सोच रहा था कि यह सफ़र कभी न ख़त्म हो। वह बस जोया के साथ ऐसे ही चलता रहे।

    अचानक एक सुनसान जगह पर अरहम गाड़ी रोक लेता है।

    जोया हैरानी से अरहम को देखकर बोली, "क्या हुआ? गाड़ी क्यों रोक दी? ऑफ़िस तो अभी नहीं आया है।"

    अरहम हल्की सी मुस्कराहट के साथ जोया को देखते हुए बोला, "जस्ट ए मिनट जान।" कहकर वह सीधा गाड़ी की सीट पर ही जोया पर झुक गया।

    "अरहम! ये क्या कर रहे हो तुम? कोई देख लेगा।"

    "जबसे मेरी साँसें तुमसे मिली हैं, मुझसे तुमसे दूर नहीं रहा जा रहा है। तुम्हारी खुशबू से पागल हो रहा हूँ। प्लीज़ जोया, बस एक बार..." वह अपने होंठ जोया के करीब ले आया था और देखते ही देखते वह जोया के होंठों को चूमने लगा था। अरहम पागल हुए जा रहा था। जोया को इतने करीब पाकर वह अपना होश खो रहा था। किस करते-करते उसके हाथ अपने आप जोया के शरीर पर चलने लगे थे।

    जोया अरहम को नहीं रोक पा रही थी क्योंकि वह भी शायद यही चाहती थी। पर जल्दी ही उन दोनों को एहसास हो गया था कि वे कार में हैं।

    और पीछे से आने वाली गाड़ी के हॉर्न से दोनों जैसे नींद से जाग गए थे और अलग होकर एक-दूसरे के कपड़े ठीक करने लगे थे।

    जोया के गाल शर्म से लाल हो गए थे।

    कुछ ही देर में सामान्य होकर दोनों ऑफ़िस के लिए निकल गए।

    जल्दी ही जोया का ऑफ़िस आ गया।

    जोया अरहम से विदा लेकर ऑफ़िस के लिए चली गई।

    जैसे ही वह अंदर एंट्री करती है,

    तब सबसे पहले अरमान की नज़र जोया पर पड़ती है और वह उसे एकटक देखे जा रहा था। आज जोया बाकी दिनों से काफ़ी अलग और बेहद ख़ूबसूरत लग रही थी।

    रोज़ी अरमान को इस तरह जोया को देखते देख जल जाती है और जोया से गुस्से में कहती है, "कहाँ थी तुम? तुम्हें पता है ना ऑफ़िस का टाइम 9 बजे शुरू होता है? और अब साढ़े नौ हो रहे हैं। तुम पूरे 30 मिनट लेट हो। एक प्रोजेक्ट में सफलता क्या मिल गई? तुम तो हवा में उड़ने लगी!"

    "नहीं, ऐसी बात नहीं है।"

    "रोज़ी मैम, मैं हॉस्पिटल से आ रही हूँ। अपनी माँ को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कराकर सीधा ऑफ़िस आई हूँ।" जोया थोड़ा हकलाते हुए बोली।

    तभी अरमान वहाँ आ जाता है। रोज़ी का जोया को यूँ डाँटना उसे अच्छा नहीं लगा था।

    पर वह कुछ कहता नहीं, बस चुप रहता है और टॉपिक बदलते हुए जोया से पूछता है, "मिस शनाया, आपकी माँ की तबीयत कैसी है अब?"

    "जी सर, पहले से बेहतर है। इनफ़ैक्ट, उन्हें डिस्चार्ज कराने में ही थोड़ा टाइम लग गया, इसलिए ऑफ़िस आने में लेट हो गई।" जोया ने नरमी से जवाब दिया।

    "ओह, इट्स ओके। कोई बड़ी बात नहीं है।" इस पर रोज़ी ने अरमान को हैरानी से देखा था। उनका वो बॉस जो किसी का 5 मिनट लेट आना भी बर्दाश्त नहीं कर सकता था, वो आज आधे घंटे लेट आने को कोई बात नहीं कह रहा था।

    वह गुस्से में वहाँ से चली जाती है।

    "जोया, अरमान ने कहा, "सॉरी सर, मैं आगे से कभी लेट नहीं होऊँगी।"

    "मैंने बोला ना मिस शनाया, कोई बात नहीं। अब आप जाओ अपना काम शुरू करो। और हाँ, क्या आप आज शाम को फ़्री हैं?"

    "फ़्री क्यों सर?" जोया ने पूछा।

    "वो अगर आपको एतराज ना हो तो क्या आप मेरे साथ कॉफ़ी पीने चलोगी?"

    जोया ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, "सॉरी सर, मैं आज नहीं जा पाऊँगी। ऑफ़िस से सीधा मैं घर जाऊँगी क्योंकि मेरी माँ की तबीयत अभी पूरी तरह से ठीक नहीं है।"

    "ओहो हाँ, आई एम सॉरी मिस शनाया। मैं तो भूल ही गया था। आप टाइम से घर चली जाना, बल्कि आधा घंटा पहले ही चली जाना, ओके।"

    "ओह, ओके सर, थैंक यू सो मच।"

    अरमान अपने केबिन में चला जाता है और जोया अपना काम ख़त्म करने में जुट जाती है।

    शाम होते ही जोया अरहम को फ़ोन कर देती है और लिफ़्ट से नीचे जाती है। उसका लिफ़्ट का डर अब काफ़ी हद तक ख़त्म हो गया था। वह देखती है अरहम पहले से ही वहाँ खड़ा उसका इंतज़ार कर रहा था। वे दोनों एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं और जोया अरहम की गाड़ी में बैठकर चली जाती है।

    अरमान जो जोया से कुछ बात करना चाहता था, उसके पीछे-पीछे आ रहा था। वह जोया और अरहम को साथ जाते हुए देख चुका था। उन दोनों को साथ देख ना जाने कितने उलटे-सीधे सवालों ने उसे घेर लिया था। उसने ज़ोर से अपना हाथ दीवार में दे मारा था। पर उस टाइम उसके हाथ में नहीं, उसके दिल में दर्द हो रहा था।

    रास्ते में दोनों के बीच ख़ामोशी सी थी और शायद शर्म भी। भले ही वे एक-दूसरे से प्यार करते थे, लेकिन दोनों के बीच एक पर्दा अभी भी बाकी था। उन्होंने डिसाइड किया था, शादी के बाद ही वे दोनों एक होंगे।

    थोड़ी ही देर में, दूसरी ओर जोया अरहम के साथ अपने फ़्लैट में चली जाती है। वहाँ रहीम ख़ान ने उन दोनों के लिए गरमागरम खाना रेडी कर रखा था। जाते ही जोया ने उन्हें खाना लगाने को बोल दिया था। ख़ुद अपनी माँ से मिलकर वह फ़्रेश होने के लिए चली गई थी।

    वो जब तक वापस आई, तब उसने देखा रहीम के साथ अरहम भी खाना लगा रहा था। उसकी माँ भी वहीं बैठी थीं और जोया को आवाज़ दे रही थीं, "जोया जल्दी आओ, खाना ठंडा हो रहा है।" एक अच्छे खुशगवार माहौल में सब साथ मिलकर खाना खाते हैं।

    खाने से फ़्री होकर सब एक साथ हॉल में बैठकर बातें करते हैं। तभी जोया की माँ अरहम से कहती है, "अरहम बेटा, तुम तो जानते हो मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती है, इसलिए मैं चाहती हूँ तुम और जोया शादी कर लो।"

    अचानक शादी की बात से जोया और अरहम चौंक जाते हैं।

    रहीम भी हामी भर देता है, "हाँ, मैं हाँ मिला देता हूँ। आप ठीक कह रही हो मालकिन, इन दोनों की शादी कर देते हैं, फिर सब साथ खुशी-खुशी रहेंगे।"

    अरहम तो कब से जोया को अपना बनाना चाहता था। वह काफ़ी खुश हो गया था। उसने शादी के लिए फ़ौरन हाँ कह दिया था। जोया भी यही चाहती थी। ना की कोई गुंजाइश ही नहीं थी।

    ठीक एक हफ़्ते बाद जोया और अरहम की शादी की डेट रख दी गई थी।

    दोनों बहुत खुश थे।

    बाकी अगले भाग में

  • 13. Obbsessed with Zoya, - Chapter 13

    Words: 1020

    Estimated Reading Time: 7 min

    शादी की बात से जोया शर्मा गई और अपने कमरे में चली गई।

    अरहम को यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसका सपना इतनी जल्दी पूरा होने वाला था। वह जल्दी से जोया के पीछे उसके कमरे में गया।


    जोया खिड़की के पास खड़ी थी। बाहर से आने वाली हवा उसके बालों को उड़ा रही थी। अरहम चुपके से पीछे आकर उसे पकड़ लिया और अपने करीब करते हुए पीछे से उसके कान के लोब पर किस कर लिया। जोया खुद में ही सिमट सी गई।

    और धीरे से उसके कान में बोला, "बस एक हफ़्ता और, फिर हम दोनों हमेशा के लिए एक हो जाएँगे। मुझे उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा जब तुम दुल्हन बनकर मेरी बाहों में आओगी।"

    ऐसा कहकर वह चला गया। जोया भी सुनहरे सपनों में खो गई।


    इसी के साथ जोया और अरहम की शादी की तैयारी शुरू हो गई। अरहम ने जोया को ऑफिस में काम करने से मना कर दिया। उसने कहा, "जोया, मैं अब तुम्हारे साथ हूँ। अब तुम्हें काम करने की क्या ज़रूरत है?"


    इस पर जोया ने कहा,
    "नहीं अरहम, मैं ज़रूर काम करूँगी। तुम्हें पता है, इतने बड़े शहर में अरमान सर ने मेरी उस वक़्त मदद की थी जब मुझे सबसे ज़्यादा किसी के सहारे की ज़रूरत थी। और अब मैं अचानक से उनका भरोसा नहीं तोड़ सकती हूँ।"
    अरहम ने सिर हिलाया, "तुम सही कह रही हो जोया। तुम एक काम करो, काम मत छोड़ो, पर हाँ, कम से कम दस दिन की छुट्टी तो ले ही सकती हो।"


    जोया ने सिर हिला दिया और उसने अरमान से छुट्टी लेने के लिए बात कर ली।


    जोया सीधा ऑफिस जाकर रोजी से मिली। "गुड मॉर्निंग मैम।"
    "हम्म्म, मॉर्निंग।" उसने सरसरी सी नज़र जोया पर डाली।
    "वो मैम, एक्चुअली आपसे कुछ बात करनी थी।" "हाँ, बोलो, सुन रही हूँ।"
    "मैम, मुझे दस दिन की छुट्टी चाहिए। क्या आप प्लीज़ लीव एप्लीकेशन लिखने में मेरी मदद कर सकती हो?"
    रोजी हैरानी से बोली, "क्या बोल रही हो तुम? तुम्हें ज्वाइन किए अभी तीन-चार दिन ही हुए हैं और तुम इतनी लंबी छुट्टी की बात कर रही हो। तुम्हारा दिमाग तो ठीक है?"
    जोया थोड़ा हकलाते हुए बोली, "जी जी मैम, वो एक्चुअली नेक्स्ट वीक मेरी शादी है।"
    रोजी ने यह सुना तो वह हैरत से उसे देखने लगी और बेहद खुश भी हो गई। "शादी? अचानक?"
    "क्या हो गया?"
    "जी मैम, आपको तो पता है मेरी माँ की तबियत खराब है। इसीलिए वो मेरी शादी कराना चाहती हैं।"
    "ओहो, ओके। तो मिस शनाया, आप एक काम कीजिए, आप डायरेक्ट जाकर अरमान सर को बोलिए। आप उन्हें खुद बोलेंगी तो उन्हें अच्छा लगेगा। लीव एप्लीकेशन की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।"
    "ओके मैम, मैं जाती हूँ।"

    रोजी बेहद खुश हो गई थी। जोया की अचानक शादी की खबर से उसकी सारी परेशानी खत्म हो गई थी। उसने जानबूझकर बिना एप्लीकेशन के जोया को अरमान के पास भेजा था क्योंकि वह जानती थी कि अरमान जोया को पसंद करता है और ऐसे में अगर वो अपनी शादी की बात बताएगी तो अरमान का दिल टूट जाएगा, और फिर अरमान के टूटे दिल को रोजी सहारा देगी।

    उसने एक ही झटके में पूरी प्लानिंग कर ली थी। "जोया, मई आई कम इन सर?" "यस, कम इन।"

    "यस, मिस शनाया। कैसे आना हुआ?" अरमान थोड़ा तल्खी से बोला था।

    वह उस दिन अरहम और जोया को साथ देखने के बाद से नाराज़ था। "यस, मिस शनाया, बोलो क्या बात है?" जोया ने थोड़ा हिचकिचाते हुए अपनी छुट्टी की बात बोली, जिसे सुनकर अरमान चौंक गया। "मिस शनाया, मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूँ, यह मेरा ऑफिस है, कोई खैराती प्लेस नहीं है। मैंने आपका एक दिन लेट आना बर्दाश्त कर लिया, अब आप सीधा मेरे पास छुट्टी के लिए आ गई हैं।"

    ऐसा कहकर अरमान ने पीने के लिए पानी का गिलास उठाया।

    जोया बोली,
    "नहीं नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं है। वो एक्चुअली सर, नेक्स्ट वीक मेरी शादी है।" यह सुनते ही पानी पीते हुए अरमान के गले में फँसा सा लग गया और उसे खांसी आ गई।

    "जोया, सर आप ठीक हैं?" कहती हुई जोया उठ खड़ी हुई और अरमान के पास जाकर उसकी कमर को सहलाया।

    जोया ने पहली बार अरमान को छुआ था। उसको इतने करीब पाकर अरमान धीरे-धीरे अपना होश खो रहा था।


    जोया अरमान को काफी प्यार से संभाल रही थी।

    अचानक जोया को भी एहसास हुआ कि अरमान सर की मदद करते-करते वह उनके काफी करीब हो गई थी। दूसरी ओर, अरमान सब कुछ भूलकर उस पल का आनंद ले रहा था।

    "सर आप ठीक हैं?" जोया की आवाज़ से जैसे वह ख्वाब से बाहर आया हो।

    "ओह हाँ, मैं ठीक हूँ। तुम क्या कह रही थी?"
    "सर, मैं छुट्टी के लिए बोल रही थी। मेरी शादी है सर, इसलिए..." जोया ने थोड़ा शर्माते हुए कहा।

    अरमान के तो जैसे शरीर में जान ही नहीं बची थी। पहली बार उसे प्यार हुआ था। जोया को लेकर वह कितने ख्वाब बुन चुका था, और अचानक से शादी का सुनकर तो मानो जैसे उसके ख्वाब टूटते हुए नज़र आ रहे थे।

    "शादी? नहीं शनाया, शादी नहीं हो सकती है। वो मेरी पहली मोहब्बत है। मैं किसी भी कीमत पर उसे हाथ से नहीं जाने दे सकता हूँ, क्योंकि इसके बिना ज़िंदगी का मैंने सोचा भी नहीं है। नहीं, मैं यह शादी नहीं होने दूँगा। अपनी मोहब्बत में किसी और की नहीं होने दूँगा। यह मेरी है, सिर्फ़ मेरी।"

    अरमान कितनी देर तक अपने मन में खुद से ही सवाल-जवाब करता रहा।

    अरमान को इतनी देर से चुप देखकर जोया बोली, "सर, आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो?"

    अरमान खुद को संभालते हुए बोला, "शादी पर क्यों इतनी जल्दी, मिस शनाया? अभी तो आपने नई जॉब ज्वाइन की है, फिर अचानक से शादी क्यों?"

    इससे पहले जोया कुछ जवाब देती, इतने में दरवाज़े पर दस्तक हुई।

    अरमान अभी किसी से मिलना नहीं चाहता था। इस वक़्त गेट पर किसी का आना उसे नागवार लगा था।

  • 14. Obbsessed with Zoya, - Chapter 14

    Words: 1039

    Estimated Reading Time: 7 min

    अरमान अभी किसी से मिलना नहीं चाहता था। इस वक्त गेट पर किसी का आना उसे नागवार लगा।

    "कोन है? बाद में आना, अभी मैं जरूरी मीटिंग में हूँ," अरमान ने तल्खी से, बिना देखे, बोला।

    इतने में अरहम को दरवाज़े से अंदर आता देख जोया और अरमान दोनों चौंककर खड़े हो गए।

    अरहम आते ही अरमान के गले लगा।

    "अरहम! तुम यहाँ अचानक? कैसे आना हुआ? तुमने कॉल भी नहीं किया?" अरमान ने कहा।

    "सॉरी, बिना बताए आ गया। वो मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी थी," अरहम ने कहा।

    "अरहम, तुम यहाँ क्या कर रहे हो? मैंने बोला था ना, मैं बात कर लूँगी," जोया बीच में बोल पड़ी।

    "तुम जानते हो एक-दूसरे को? पर कब और कैसे?" अरमान ने पूछा।

    "मैं वही सब बताने के लिए तुम्हारे पास आया हूँ," अरहम ने उत्तर दिया।

    "अरमान, मैं जो तुम्हें बताने जा रहा हूँ, तुम प्लीज़ धैर्य के साथ सुनना। तुम तो मेरे गाँव के बारे में जानते हो?" अरहम ने कहा।

    "हाँ, जानता हूँ। तुम छुट्टियों में हर बार गाँव जाते थे," अरमान ने कहा।

    "हाँ, पर लेकिन इस बार जब मैं गाँव गया था..." अरहम ने कहा।

    "...तब मुझे वहाँ बड़ी हवेली के मालिक की बेटी, जोया से बेहद मुहब्बत हो गई। मेरे बाबा मालिक के लिए ही काम करते थे। लेकिन एक रात मालिक के दुश्मनों के साथ मिलकर मेरे बाबा ने मालिक और उनके तीनों बेटों को मौत के घाट उतार दिया था।"

    "जिसके बाद जोया को लगा था कि मैं भी उन गुनाहगारों के साथ मिला हुआ हूँ। जिसके बाद हम दोनों में दरार आ गई थी। उसके बाद जोया और उसकी माँ अपने एक वफ़ादार की मदद से शहर आ गई थीं। इन सबके बाद जोया और मेरे बीच काफी गलतफ़हमी आ गई थी। उसके बाद तो ऐसा लगा था जैसे मेरी दुनिया ही मुझसे रूठ गई हो। फिर अब जैसे-तैसे जोया को मेरी बात पर यकीन हुआ था और अब जाकर हम दोनों के बीच की दूरी ख़त्म हो गई है। और अब फ़ाइनली जोया और मैं शादी करने जा रहे हैं।"

    जैसे-जैसे अरहम ये सब अरमान को बता रहा था, एक बार फिर सब याद करके जोया की आँखें भीग आई थीं। अरहम जोया को इमोशनल देखकर उसके पास गया और उसके आँसू साफ़ किए।

    अरमान सब कुछ हैरत से देख और सुन रहा था।

    "ओके, तो अरहम कहाँ है जोया और तुम कब कर रहे हो शादी?" अरमान ने पूछा।

    "अरमान सर, वो दरअसल जोया मैं हूँ," जोया बीच में बोल पड़ी।

    क्या! अरमान को अचानक से बेहद कड़ा झटका लगा।

    "लेकिन तुम तो शनाया हो! फिर जोया कैसे? ये क्या हो रहा है? मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा है!" अरमान ने कहा।

    "अपने दुश्मनों से बचने के लिए जोया ने अपनी पहचान छुपाई थी। क्योंकि इसके दुश्मन आज भी गली-गली में इसको और इसकी माँ को ढूँढ रहे हैं," अरहम ने समझाया।

    अरमान की अब सब समझ में आ चुका था। उसके दिल में उस वक्त शदीद दर्द हो रहा था, पर वो अपना दर्द जाहिर नहीं करना चाहता था।

    "अरमान, एक तू ही इस शहर में मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। तो मेरी शादी में सब कुछ तुझे ही देखना है," अरहम ने कहा।

    अरमान की आँखें दर्द के मारे लाल हो गई थीं। वो इस टाइम किसी को भी फेस नहीं करना चाहता था।

    "हाँ-हाँ, बिलकुल। तुम किसी चीज़ की फ़िक्र मत करो और जाओ, जोया को ले जाओ। मैं तुम्हारे साथ हूँ," अरमान ने खुद को थोड़ा संभालते हुए कहा।

    ऐसा सुनकर जोया और अरहम खुश हो गए और दोनों अरमान से विदा लेकर चले गए। उनके दोनों के जाने के बाद अरमान ऑफिस से निकलकर सीधा अपने घर चला गया और अपने रूम में जाकर खुद को लॉक कर लिया।

    वो चीखता, चिल्लाता और बेतहाशा रोता था। उसके रोने से ऐसा लग रहा था जैसे उसके कमरे की दीवारें भी रो रही हों। बेहद गमगीन सा समाँ था वो। उसकी मोहब्बत शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो चुकी थी। इसका दर्द उसे जीने नहीं दे रहा था।

    बहरहाल, उसने खुद को संभाला और सारी बातें फिर याद करने लगा। उसकी मोहब्बत मुकम्मल नहीं हुई तो क्या हुआ? वो फिर भी जोया से ही मोहब्बत करेगा। उसने अभी तक केवल अपने बिज़नेस से ही प्यार किया था और अब वो केवल जोया से प्यार करता था।

    तभी उसे उसकी माँ की कही हुई बात याद आती है: "बेटा, ज़िन्दगी में कभी कुछ अपना नहीं होता, उसे बनाना पड़ता है। ये दुनिया बेहद बेरहम है, कुछ आसानी से नहीं देगी, इसलिए उसे छीनना पड़ता है। अपना वजूद अगर ज़िंदा रखना है तो दुनिया के हिसाब से चलो। कोई किसी को कुछ नहीं देता, अपना हक़ लेना पड़ता है।"

    उसके बाद वो सोचता और रोते-रोते सजदे में गिर गया था। वो पूरी रात उसने रोते-जागते ही गुज़ारी थी।

    नेक्स्ट मॉर्निंग, अब वो केवल यही सोच रहा था कि उसे अपनी मुहब्बत कैसे मिलेगी। पर वो ये भी जानता है, उसे जिससे लड़ना है वो कोई और नहीं, उसका अपना दोस्त था। बस यही बात उसे सबसे ज़्यादा सता रही थी।

    उसके बाद उसे अरहम की कही गई सारी बात याद आई और उसने गहरी साँस लेकर सोचा: "मेरी मोहब्बत पर बेहद जुल्म हुए हैं।"

    उसके अंदर आग सी सुलग रही थी। उसने जोया पर हुए जुल्मों का बदला लेने का फैसला कर लिया था। जिन्होंने जोया की ज़िन्दगी बर्बाद की थी, उसे अब उन सबसे जोया के साथ हुए जुल्मों का हिसाब लेना था। और उसने उसकी तैयारी करनी शुरू भी कर दी थी। वो कोई आम आदमी नहीं था, वो किसी को भी एक पल में बर्बाद कर सकता था।

    अरमान एक बेहद खतरनाक आदमी था। वो किसी को भी एक पल में आबाद और बर्बाद करने की शक्ति रखता था। उसकी ज़िन्दगी में केवल एक ही प्यार था, वो था उसका बिज़नेस। लेकिन जोया से मिलने के बाद अरमान अपना सब कुछ जोया को मान चुका था।

    उसने मन ही मन सोचा: "अरमान ठाकुर की चीज़ कोई नहीं छीन सकता है। जोया, तुम सिर्फ़ मेरी हो, सिर्फ़ मेरी।" वो ये सोचकर मन ही मन एक खतरनाक स्माइल करता है।

    और कुछ सोचकर वो अपना फ़ोन निकालता है और एक नंबर डायल करने लगता है।

  • 15. Obbsessed with Zoya, - Chapter 15

    Words: 1246

    Estimated Reading Time: 8 min

    अरमान ने अपने बॉडीगार्ड, तेजा को, कॉल किया और सब कुछ समझा दिया।

    तेजा अरमान का सबसे खतरनाक आदमी था; अरमान के केवल एक इशारे से वह किसी की भी जान ले लेता था।

    जोया को अरहम से अलग करने के लिए अरमान अपना प्लान तैयार कर चुका था।

    "माफ़ी चाहता हूँ अरहम यार, पर तुझे अपने दोस्त के लिए अपने प्यार की कुर्बानी देनी होगी," ऐसा सोचते हुए उसके चेहरे पर एक खतरनाक सी मुस्कान आ गई।

    कल जोया और अरहम की हल्दी की रस्म थी।

    अरमान ने सारी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी।

    इसलिए अरमान ने जोया और अरहम की हल्दी की रस्म एक ही हॉल में रखी थी।

    "दोनों की हल्दी साथ होगी," उसने निर्णय लिया था।

    और उसे आज हल्दी में जोया को उसका बेस्ट गिफ्ट भी देना था।

    आज जोया की हल्दी की रस्म थी।

    एक तरफ़ अरहम की हल्दी होनी थी, तो दूसरी ओर जोया की; इसलिए हॉल के बीच में एक खूबसूरत जाली के कपड़े से आधा भाग कर दिया गया था।

    एक ओर लड़की वाले थे, और दूसरी ओर लड़के वाले।

    अरहम पीले रंग के कुर्ते में बेहद डैशिंग लग रहा था।

    अगले ही पल, सीढ़ियों से उतरती हुई जोया आ रही थी। पीले गाउन में, पीले फूलों की ज्वैलरी पहने, वह बेहद खूबसूरत लग रही थी।

    जैसे ही जोया फ़ंक्शन में आई, अरमान जैसे अपनी पलक झपकना ही भूल गया था।

    जोया आज किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही थी।

    अरमान एकटक जोया को ही निहार रहा था। साथ ही, अरहम भी अपनी जगह से खड़ा हो गया था और धीरे-धीरे जोया के पास पहुँचा और सीढ़ियों से उतरती जोया को अपना हाथ दिया। जोया ने भी खुशी-खुशी अरहम का हाथ थाम लिया।

    अरमान का गुस्से से बुरा हाल था। अरहम का यूँ जोया को छूना उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था।

    बरहाल, थोड़ी ही देर में, बेहद अच्छे माहौल में, हँसी-मज़ाक, ढोल-बाजे के साथ हल्दी की रस्म शुरू हो चुकी थी।

    तभी वहाँ अचानक पुलिस को आया देखकर सभी चौंक गए।

    पुलिस वाले सीधा अरमान के पास गए और उसके पास काफ़ी धीरे से कुछ बात की। बदले में अरमान ने भी उनसे कुछ कहा, और पुलिस वाले वहाँ से चले गए।

    तभी अरहम और जोया अरमान के पास आए। दोनों एक साथ पूछने लगे,

    "अरमान, क्या हुआ? ये पुलिस वाले यहाँ क्यों आए थे?" अरहम ने पूछा।

    "क्या हुआ सर? सब ठीक है ना? अचानक पुलिस यहाँ पर क्यों आई थी?" जोया ने पूछा।

    इससे पहले कि अरमान कुछ जवाब देता, पीछे से एक आवाज़ आई।

    "मैं बताता हूँ," रहीम खान की आवाज़ पर वे तीनों पीछे की ओर पलटे।

    जोया चौंक कर बोली, "आप बताएँगे रहीम बाबा? हुआ क्या है? क्या बात है?"

    "बताता हूँ बेटा जी, आप थोड़ा धैर्य रखिए।"

    "वो बेटा जी, अरमान साहब ने मेरी गवाही के बिला पर आपका केस गुप्त रूप से सीबीआई को सौंप दिया था। क्योंकि आपके मामा ने कोई सबूत नहीं छोड़ा था, तो उस हादसे का इकलौता गवाह मैं था। तो मेरी गवाही के बिला पर आपके मामा को फाँसी की सजा मिल गई थी। फाँसी की सजा का सुनकर उसने अपने सब गुनाह कबूल कर लिए थे। और उसके बाद जब पुलिस वाले उसको जेल में ले जा रहे थे, तब उसने पुलिस कस्टडी से भागने की कोशिश की, तो पुलिस वालों ने उस पर गोलियाँ चलाईं और उसका एनकाउंटर कर दिया। अरमान साहब ने सब कुछ ठीक कर दिया है बेटा जी, और अब आपकी सारी ज़मीन-जायदाद सब कुछ आपके नाम कर दिया गया है।"

    जब रहीम यह सब बता रहा था, तब जोया की माँ सारी बातें सुन लेती है और चिल्लाकर बेहोश हो जाती है।

    उन्हें तुरंत हॉस्पिटल ले जाया जाता है।

    इसी बीच हल्दी की रस्म भी नहीं हो पाती है। सारा प्रोग्राम अब खराब हो चुका था।

    दूसरी ओर, जोया की अम्मी की तबीयत बिगड़ी हुई थी; उन्हें कोई आराम नहीं आ रहा था।

    डॉक्टर सब चेकअप करने के बाद जोया से कहते हैं, "घबराने की कोई बात नहीं है मिस जोया। अभी हमने आपकी मदर को शांत करने के लिए नींद का इंजेक्शन दिया है और बाकी हम उनके होश में आने के बाद ही बता पाएँगे।"

    जोया बेचैनी से इधर-उधर हॉस्पिटल की लॉबी में टहल रही थी। अरमान और अरहम जोया को सांत्वना देने की पूरी कोशिश कर रहे थे, पर कोई फायदा नहीं हुआ।

    इसी बीच डॉक्टर ने कुछ दवाइयों की पर्ची अरहम को थमाई और दवाई लाने को कहा।

    अरहम अरमान से जोया का ख्याल रखने को कहकर दवाई लेने चला जाता है।

    तभी अरमान एक झटके से जोया के पास जाता है और उसे संभालने की कोशिश करते हुए कहता है,

    "मुझे माफ़ कर देना जोया। सो सॉरी! ये सब मेरी वजह से हुआ है। ना मैं उन लोगों को अरेस्ट कराता, ना ये सब होता। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो।" अरमान जोया के सामने हाथ जोड़े खड़ा था। तभी जोया ने अरमान के दोनों हाथ पकड़ लिए और बोली, "सर, प्लीज़! आपने तो मेरी कितनी बड़ी मदद की है! आप नहीं जानते! आपने मेरे भाइयों के कातिल को सज़ा दिलवाई, हमें हमारा खोया हुआ मान-सम्मान, हमारी हवेली वापस दिलवाई। मैं किन शब्दों में आपका शुक्रिया अदा करूँ सर? मुझे समझ ही नहीं आ रहा है।"

    तभी डॉक्टर वहाँ आ जाते हैं और बोलते हैं, "मिस जोया, एक गुड न्यूज़ है! आपकी माँ को होश आ गया है और वो अब बिल्कुल ठीक है। अब उनका पागलपन भी ठीक हो गया है। आपके गुनाहगारों को सज़ा मिल चुकी है और शायद इसी वजह से आपकी माँ की नस जो ब्लॉक हो गई थी, वो अब ठीक हो चुकी है। बस अब आपका प्यार ही उन्हें ज़िंदा रखेगा।"

    जोया की माँ को होश आ जाता है और वे दोनों माँ-बेटी एक-दूसरे के गले लगकर बेतहाशा रोती हैं। अरमान, अरहम; उनकी आँखें भी झलक उठती हैं। वह दृश्य ही कुछ ऐसा था, वहाँ खड़े हर इंसान की आँखों में आँसू थे।

    रोज़ी को बहुत पछतावा हो रहा था अपनी सोच पर। जोया के साथ जो हुआ था, वह सुनने के बाद उसे जोया से अब केवल हमदर्दी थी; किसी तरह का कोई द्वेष उसके मन में नहीं था।

    अब सब थोड़ा-थोड़ा ठीक हो गया था। उसकी माँ सो चुकी थी; सब बाहर आ गए थे।

    तभी अचानक जोया सबके सामने अरमान के गले लग जाती है और बोलती है,

    "आपका बेहद शुक्रिया सर! आपने सब ठीक कर दिया, मेरी माँ मुझे लौटा दी, मेरे गुनाहगारों को सज़ा दिलवाई। थैंक्यू सो मच सर! थैंक यू!"

    तभी अरहम उन दोनों के पास जाता है और बोलता है, "हाँ अरमान, मैं भी तुझे थैंक यू कहना चाहता हूँ।" जोया अरहम की आवाज़ सुनकर अरमान से अलग हो जाती है।

    "अरमान, मैंने तो इस बारे में सोचा ही नहीं था। पता नहीं मैं क्यों नहीं सोच पाया," अरहम ने कहा।

    "बरहाल, मेरे दोस्त, तूने सब ठीक कर दिया। यू आर ग्रेट यार! थैंक यू सो मच।"

    "अरे नहीं, तुम दोनों को कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं है। जो मुझे ठीक लगा, मैंने किया," अरमान ने कहा।

    "अब तुम लोग ये सब छोड़ो और सब कुछ भूलकर अपनी शादी की तैयारी करो।"

    अरहम को आज जोया का यूँ अरमान के गले लगना ना जाने क्यों बेहद बुरा लगा था, पर वह कुछ कह नहीं पाया था। उसके दिमाग में यही सब घूम रहा था।

  • 16. Obbsessed with Zoya, - Chapter 16

    Words: 1303

    Estimated Reading Time: 8 min

    अरमान आज बेहद खुश था। जोया का उससे गले लगना उसकी भावनाओं को और मज़बूत कर गया था।

    दूसरी ओर, अरहम बार-बार अरमान और जोया के गले लगने के बारे में सोच रहा था। उसे जोया का किसी और को अपने सामने छूना बर्दाश्त नहीं हो रहा था। कुछ सोचकर वह अपनी गाड़ी की चाबियाँ उठाकर चला गया।

    घर जाकर जोया बोली, "ओह नो! ये क्या हो गया मुझसे?"

    "क्या सोच रहे होंगे सर मेरे बारे में?"

    "क्यों मैं खुद पर नियंत्रण नहीं कर पाई?"

    उसे बेहद शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। उसने कुछ सोचते हुए अरमान को कॉल लगा दिया। दूसरी तरफ, जोया का नंबर देखकर अरमान मुस्कुराया और जल्दी से फ़ोन पिक किया।

    "हेलो सर," जोया बात करते वक्त हकला रही थी।

    फिर उसने हिम्मत जुटाकर अरमान से माफ़ी मांगी। "सॉरी सर, पता नहीं मुझे क्या हो गया था। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दीजिए सर।"

    "ओह नो नो, इट्स ओके। प्लीज़ डोंट से सॉरी। समय ही ऐसा था। वो... ओके," अरमान ने नरमी से जवाब दिया।

    "थैंक यू सर," ऐसा कहकर जोया ने फ़ोन काट दिया और उसने राहत की साँस ली।

    इतने में जोया ने पलट कर देखा तो अरहम दरवाजे के पास खड़ा था और उसे देख रहा था। जोया का अरमान को गले लगाना एक छोटी सी बात थी, लेकिन अरहम ने इस बात को अपनी आन का मुद्दा बना लिया था। उसकी होने वाली बीवी कैसे किसी और को छू सकती है? बस यही बात उसे खाए जा रही थी।

    इतने में जोया ने अरहम से कहा, "अरे तुम यहाँ क्या कर रहे हो? और कब आए? आओ अंदर आओ।"

    जोया को ऐसा बोलते देख अरहम अंदर चला गया। जाते ही उसने पूछा, "किससे बात कर रही थीं तुम?" अरहम का अचानक ऐसा पूछना जोया को थोड़ा अजीब लगा, पर अगले ही पल जोया ने उसे साफ़-साफ़ बता दिया। "मैंने अरमान सर को कॉल किया था। आज जो भी कुछ हुआ, बस उसी की माफ़ी माँगने के लिए कॉल किया था।"

    अरहम को फिर से गुस्सा आ गया। घर आने से पहले उसने थोड़ी ड्रिंक भी कर ली थी और वह नशे में सीधा जोया के घर पहुँचा था। जोया की बात सुनकर उसने अपनी दोनों मुट्ठियाँ बन्द कर लीं। जोया अरहम को इस हालत में देखकर चौंक गई।

    तभी उसे अलग तरह की गंध भी आ गई। "अरहम! क्या हुआ तुम्हें? तुमने शराब पी है? हाउ डेयर यू? हाउ कुड यू डू दिस?"

    ओह! अरहम गुस्से में था। "और आज तुमने जो किया, उसका क्या जोया? सबके सामने अरमान को गले लगा लिया! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई किसी और को टच करने की? जवाब दो मुझे!" उसने जोया के कंधे जोर से पकड़ लिए थे।

    जोया बर्दाश्त नहीं कर पाई। उसे बेहद दर्द हो रहा था। वह अरहम को चिल्लाकर कह रही थी, "अरहम! प्लीज़ छोड़ो मुझे!" और उसने अपने दोनों हाथों से अरहम के सीने को जोर से धक्का मारा। अरहम दूर जाकर गिर गया।

    जोया का यह रिएक्शन वह बर्दाश्त नहीं कर पाया और वापस खड़ा होकर जोया के पास आ गया। उसने जोया के जबड़ों से पकड़ लिया और बेरहमी से अपने होंठ उसके होंठों से लगा दिए। वह बेरहमी से जोया को किस कर रहा था। जोया ने अपने आप को छुड़ाने की काफी कोशिश की, पर उस वक्त वह उस मज़बूत आदमी के हाथों मजबूर थी। करीब 15 मिनट बाद अरहम ने जोया के होंठ छोड़े। अरहम ने उसके निचले होंठ पर काट भी लिया था जिससे जोया को खून आने लगा था।

    अरहम ने जोया को चेतावनी देते हुए कहा, "अगली बार किसी को छूने से पहले यह किस ज़रूर याद कर लेना।" अरहम जोया को बेरहमी से धक्का देकर चला गया।

    अरहम का ऐसा रूप जोया ने पहले कभी नहीं देखा था। वह बेहद डर गई थी और वह पूरी रात अरहम के बर्ताव को देखकर रोती रही। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हुआ था। रोते-रोते पता नहीं कब वह नींद के आगोश में चली गई।

    दूसरी ओर, अरहम नशे में गाड़ी चला रहा था। तभी अचानक सामने से दो काली मर्सिडीज़ आ गईं और एक तेज आवाज़ हुई। अरहम कुछ समझ नहीं पाया और कुछ ही देर में वह बेहोश हो गया।

    उस काली कार से कुछ लोग निकले और अरहम को अपनी गाड़ी में ले गए। देखते ही देखते एक भयानक आग लगने के कारण अरहम की कार फट गई। एक ही रात में अरहम और जोया की पूरी ज़िंदगी बिखर गई।

    अगली सुबह जोया थोड़ी देर से उठी। उठते ही उसका सिर दर्द से फट रहा था। उसके साथ कल जो हुआ था, उसे बार-बार याद आ रहा था। सब याद आने पर फिर से उसकी आँखों में आँसू आ गए। तभी गेट पर दस्तक सुनाई दी। जोया को लगा कि फिर से अरहम है, तो वह थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली, "कोन?"

    बाहर से रहीम बाबा की आवाज़ आई, "बिटिया, हम हैं। नाश्ता तैयार है। आप जल्दी नीचे आ जाओ।"

    "ओके, आप जाइए। मैं अभी आ रही हूँ।" जोया ऐसा कहकर कुछ सोचकर बाथरूम में चली गई।

    कुछ देर बाथरूम में शॉवर ऑन करके वह खड़ी हो गई और एक बार फिर अरहम की ज्यादती उसे याद आने लगी। वह काफी देर बाथरूम में खड़ी होकर रोती रही। फिर उसने कपड़े बदले और खुद को आईने में देखा। उसकी आँखें काफी सूज गई थीं और उसके होंठ के पास नील पड़ चुका था।

    "अगर ये निशान अम्मी ने देख लिया तो वो बेकार में परेशान हो जाएंगी।" यह सोचकर उसने उन निशानों को छिपाने के लिए थोड़ा कंसीलर इस्तेमाल किया। ज़्यादा नहीं, पर काफी हद तक वे निशान फीके पड़ चुके थे। हल्का मेकअप करके जोया जल्दी से नीचे आ गई और आते ही अपनी अम्मी के गले लग गई। एक-दो आँसू उसकी पलकों में आ गए थे।

    उसकी अम्मी बोली, "अरे क्या हुआ आज हमारी बिटिया को? परेशान नहीं हो बेटा। मैं अब बिलकुल ठीक हूँ।" इतने में रहीम की आवाज़ आई, "आ जाइए आप दोनों। नाश्ता कर लीजिए, फिर हमें शादी की तैयारियाँ भी करनी हैं।"

    शादी का नाम सुनकर जोया थोड़ी घबरा गई, पर कुछ बोली नहीं। और फिर हल्का-फुल्का कुछ खाकर वह अपनी माँ से बाहर जाने की इजाज़त लेती है, जिस पर उसकी माँ साफ़-साफ़ मना कर देती है।

    "बेटी, एक तो पहले ही हमारी वजह से आपको हल्दी भी नहीं लग पाई और अब कितना ही समय रह गया है शादी का। और इस वक्त आपका घर से बाहर जाना ठीक नहीं होगा। धूल-मिट्टी से आपकी रंगत भी साँवली हो जाएगी और आप दुल्हन हो बेटा। हम नहीं चाहते शादी के दिन आप कम सुंदर लगो।"

    "माँ, मुझे कुछ ज़रूरी काम है। मुझे कुछ सामान भी खरीदना है। मैं अपनी ऑफिस की फ़्रेंड शिखा को साथ लेकर जाऊँगी और जल्दी आ जाऊँगी। आप बिलकुल भी टेंशन ना लें, प्लीज़।"

    "ओके बेटा, अब आपसे हम जीत तो सकते नहीं। खैर, आप जाओ और ख़ैरियत से वापस आओ। ओके?"

    "अम्मी, थैंक यू। यू आर सो स्वीट।" कहकर जोया अपनी अम्मी को गले लगाकर गाड़ी की चाबी लेकर निकल गई।

    उसने अरहम से मिलने का फ़ैसला किया था। जो कुछ उसने उसके साथ किया था, वह बर्दाश्त नहीं करेगी। उसने डिसाइड किया था कि वह अब अरहम से शादी नहीं करेगी। जोया ने गाड़ी अरहम के घर की ओर दौड़ा दी।

    करीब 40-50 मिनट का सफ़र तय करके जोया अरहम के घर पहुँच चुकी थी। एक काली कार उसका कुछ देर से पीछा कर रही थी, उसने ध्यान ही नहीं दिया।

  • 17. Obbsessed with Zoya, - Chapter 17

    Words: 1164

    Estimated Reading Time: 7 min

    जोया का ध्यान अनायास ही उस काली कार पर गया, किन्तु उसे अनदेखा करते हुए वह अरहम के शानदार बंगले में प्रवेश कर गई।

    जोया अरहम के खूबसूरत बगीचे को पार करके शीघ्र ही अंदर पहुँची और दरवाज़ा खटखटाया।

    जोया मन ही मन डर रही थी कि कहीं अरहम से ही मुलाक़ात न हो जाए। थोड़ी देर में अब्दुल साहब ने गेट खोला।

    अब्दुल साहब अरहम के बेहद पुराने नौकर थे, जो कई सालों से अरहम के साथ रह रहे थे और वे अरहम को अपने बेटे की तरह मानते थे।

    अब्दुल साहब, जोया को देखते ही बोले, "अरे जोया बेटी! आप...?" इससे पहले कि जोया कुछ कह पाती, अब्दुल साहब ने पूछा, "बेटा अरहम बाबा साथ नहीं आए आपके?"

    "जोया: अरहम घर पर नहीं है??"

    "अब्दुल साहब: नहीं बेटा, वह तो कल रात से घर नहीं आए। हमें लगा आपके घर ही रुक गए होंगे।"

    "जोया: ये कैसे हो सकता है? अरहम तो रात ही मेरे घर से निकल चुका था।"

    "फिर वह अभी तक घर क्यों नहीं आए?" अब्दुल चाचा चिंता से बोले।

    "अब्दुल साहब: बेटी, आप अंदर तो आओ।"

    "नहीं चाचा, मुझे कुछ ज़रूरी काम है।" जोया कुछ सोचकर वहाँ से जल्दी से निकल गई और अपनी गाड़ी में आँखें बंद किए कुछ देर बैठ गई।

    उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, अरहम को कहाँ ढूँढे।

    जोया की हालत अजीब सी हो रही थी।

    उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अरहम को ढूँढे भी या नहीं, क्योंकि अरहम ने जो उसके साथ किया था, तब से जोया को अरहम से एक अजीब सी घबराहट हो गई थी।

    तभी कुछ सोचकर उसने गाड़ी स्टार्ट कर दी। एक काली कार अभी भी उसका पीछा कर रही थी, लेकिन जोया अरहम को लेकर काफ़ी परेशान थी, इसलिए उसने उस गाड़ी पर ध्यान नहीं दिया।

    लगभग एक घंटे की ड्राइव के बाद जोया ने अपनी कार एक और शानदार बंगले के पास रोकी।

    वह बंगला अरमान ठाकुर का था।

    इतना खूबसूरत बंगला जोया ने कभी नहीं देखा था। अरहम का बंगला भी काफ़ी अच्छा था, लेकिन अरमान के बंगले के सामने वह फीका पड़ जाता था।

    जोया अपनी गाड़ी थोड़ा पहले ही पार्क कर देती है क्योंकि अरमान का घर सड़क से ही शुरू हो जाता है। जोया पैदल ही सड़क पार करती हुई सीधे बंगले के प्रवेश द्वार पर पहुँच गई, किन्तु सुरक्षा गार्ड ने उसे रोक लिया।

    "गार्ड: किससे मिलना है आपको?"

    जोया थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली, "मुझे... मुझे अरमान सर से मिलना है।" जोया की जुबान थोड़ी लड़खड़ा गई थी।

    इतने में एक गार्ड थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोला, "ये लड़की! अपॉइंटमेंट है तुम्हारे पास?"

    "जोया: नहीं, मेरे पास अपॉइंटमेंट नहीं है।" तभी दूसरा गार्ड बोला, "लो भाई, एक और आ गई है अपनी ज़िन्दगी का रोना लेकर।"

    जोया मिन्नत करती हुई बोली, "देखिए, आप लोग गलत समझ रहे हैं। मेरा अरमान सर से मिलना बेहद ज़रूरी है। प्लीज़ आप मुझे जाने दीजिए।"

    "ओह, अच्छा! इन मैडम को अरमान साहब से मिलना है।" एक गार्ड दूसरे गार्ड से बोला, "हर रोज कोई न कोई भीख माँगने आ जाता है।"

    जोया को उन गार्डों के व्यवहार देखकर काफ़ी हैरानी हो रही थी।

    वे गार्ड जोया को कोई गरीब लड़की समझ रहे थे क्योंकि उसके कपड़े काफ़ी साधारण थे।

    "देखिए, आप लोग मुझे अंदर जाने दीजिए, वरना आप लोगों के लिए अच्छा नहीं होगा।" इस बार जोया ने थोड़ी तेज आवाज़ में बोला।

    तभी दूसरा गार्ड बोला, "अरे ओ मैडम! हर रोज हम यहाँ आपके जैसे काफ़ी लोगों से मिलते हैं जो अरमान सर के पास आते हैं और अपना उल्लू सीधा करके निकल जाते हैं। आप जाइए और पहले अपॉइंटमेंट लेकर आइए, समझी आप?"

    "देखिए प्लीज़, आप मुझे जाने दीजिए। मुझे बेहद ज़रूरी काम है अरमान सर से।"

    "ओ मैडम! बोला ना, आपसे बिना अपॉइंटमेंट के अरमान साहब से कोई नहीं मिल सकता। आप जाइए यहाँ से, वरना मैं आपको धक्के देकर बाहर निकाल दूँगा।"

    जोया को यकीन हो गया था कि ये सुरक्षा गार्ड उसे अंदर नहीं जाने देंगे। सोचकर उसने अरमान का नंबर डायल कर दिया।

    दूसरी ओर, अरमान सुबह-सुबह तैयार होकर नाश्ते की मेज़ पर बैठा ही था कि जोया का नंबर स्क्रीन पर देखकर उसके चेहरे पर एक खतरनाक सी मुस्कान आ गई। वह मन ही मन सोच रहा था, "मुझे पता था, स्वीटी, तुम मुझे ज़रूर फोन करोगी, और इतनी जल्दी करोगी यह नहीं पता था।"

    अरमान जानबूझकर जोया का कॉल अनसुना कर देता है और गरमागरम कॉफ़ी का घूँट लेते हुए जोया की हाल ही की फ़ोटो को ज़ूम करके देखता है और अपनी दो उंगलियों से जोया के कभी होंठ छूता है, कभी गाल, कभी नाक। वह फ़ोटो से ही अपनी आँखों को ठंडक दे रहा था।

    तभी जोया के कॉल न उठाने पर, "ये अरमान सर को क्या हो गया है? मेरा फ़ोन क्यों नहीं उठा रहे हैं? ओह गॉड! अब मैं क्या करूँ?" जोया थोड़ा जोर से बड़बड़ा रही थी। गार्ड आराम से उसकी आवाज़ सुन सकते थे।

    तभी एक गार्ड बोला, "लगता है मैडम का कॉल नहीं उठाया अरमान साहब ने। अरे, जानती होगी, तभी ना हमारे सामने खड़ी होकर बड़ी हेकड़ी दिखा रही है।"

    जोया उन गार्डों को बस घूर कर रह गई, पर कुछ नहीं बोली।

    तभी उसने एक बार फिर कॉल रिडायल किया। फ़ोटो देखते हुए जब जोया का नंबर फिर से स्क्रीन पर दिखा, तो अरमान बोला, "ओह मेरी जान को तो सब्र ही नहीं हो रहा है।" फिर अरमान ने जोया का कॉल उठा लिया।

    "जोया: हैलो! हैलो! अरमान सर, मैं जोया बात कर रही हूँ। सर, प्लीज़ मुझे आपसे मिलना है। आप प्लीज़ मेरी बात सुनें। हैलो! आप सुन रहे हैं? हैलो! अरमान सर!"

    "अरमान: जोया, रिलैक्स। जोया, क्या हुआ? क्यों मिलना है तुम्हें?"

    "जोया: सर, वो तो मैं आपसे मिलकर ही बताऊँगी। प्लीज़ आप एक बार मुझसे मिल लीजिए। मैं आपके घर के बाहर ही खड़ी हूँ।"

    "अरमान: क्या? तुम मेरे घर के बाहर खड़ी हो? तो अंदर क्यों नहीं आई?"

    "जोया: वो सर, गार्ड्स ने आने नहीं दिया।"

    "अरमान: ओह हो! तुम रुको, मैं बाहर आ रहा हूँ।"

    अरमान बेहद खुश हो गया था। जिसका फ़ोटो देखकर वह नाश्ता कर रहा था, वह अब उसके साथ होगा।

    "जोया: गार्ड्स! आप लोग मुझे अंदर जाने दीजिए। अरमान सर बाहर आ रहे हैं।"

    लेकिन वे गार्ड मानने को तैयार ही नहीं थे।

    उनमें से एक गार्ड बोला, "ये लड़की! बहुत हो गया तुम्हारा ड्रामा। झूठ-मूठ की कॉल करके हमें डराना चाहती हो।"

    "रुको, मैं अभी बताता हूँ तुम्हें।" ऐसा कहकर एक गार्ड ने जोया को बाजू से पकड़ लिया और धक्का देते हुए कहा, "जाओ यहाँ से।" जोया इस हरकत के लिए तैयार नहीं थी। वह अपना संतुलन नहीं बना पाई और लड़खड़ा कर नीचे गिरने वाली थी कि दो मज़बूत हाथ उसकी कमर पर आ गए।

  • 18. Obbsessed with Zoya, - Chapter 18

    Words: 1254

    Estimated Reading Time: 8 min

    गार्ड के धक्का देने पर जोया गिरने ही वाली थी। तभी अरमान ने उसे पकड़ लिया था। उसके हाथ जोया की कमर पर थे और जोया ने अरमान की बाँहों में अपना सिर छिपा लिया। डर के मारे जोया की आँखें बंद हो चुकी थीं।

    अरमान उसे एकटक निहार रहा था।

    और जोया को इतने करीब पाकर वह उसके होंठों के पास बने निशान को भी देख लेता है और गुस्से की वजह से अपने दोनों हाथों की मुट्ठियाँ बंद कर लेता है।

    तभी वह गार्ड, जिसने जोया को धक्का दिया था, अरमान और जोया को साथ देखकर डर के मारे काँपने लगा। वह समझ गया था कि जिसके लिए अरमान ठाकुर खुद बाहर आया है, वह कितनी खास होगी अरमान के लिए।

    और वैसे भी, आज तक बड़े-बड़े लोग—सिटी कलेक्टर, एमएलए, आईएएस अधिकारी, आईपीएस—ना जाने कितनी ऊँची पोस्ट पर बैठे लोग अरमान से मिलने कितनी बार आए थे। अरमान का मन होता था तो वह मिलता था, वरना गेट से ही चलता कर देता था।

    और यह क्या? एक साधारण सी लड़की के लिए अरमान ठाकुर खुद बाहर आया था। तो इसका मतलब साफ़ था, यह कोई आम लड़की नहीं थी।

    "जोया, आँखें खोलो। आप बिलकुल ठीक हो," अरमान ने कहा।

    अरमान की आवाज सुनते ही जोया ने अपनी आँखें खोलकर देखा और उसे जल्दी ही एहसास हो गया कि वह इस वक्त अरमान के बेहद करीब है।

    वह जल्दी से उससे अलग हुई और अपने कपड़े ठीक करती हुई सलीके से खड़ी हो गई। अरमान ने एक नज़र अपने गार्ड्स पर डाली। "जोया, आप ठीक तो हो ना? और क्या हुआ? आप अचानक..."

    "सर, मैं ठीक हूँ। Actually सर, मुझे आपसे कुछ बात करनी थी, इसीलिए मैं यहाँ आई थी। बट आपके गार्ड शायद कुछ ज़्यादा ही वफ़ादार हैं। इन्होंने मुझे अंदर ही नहीं आने दिया। इनको लग रहा था मैं यहाँ आपसे पैसे माँगने आई हूँ," जोया ने तंज करते हुए कहा।

    अरमान ने एक बार फिर नज़र उठाकर पास ही खड़े एक गार्ड को घूर लिया, जिसने जोया को धक्का दिया था। अरमान के अंदर एक आग सी जल रही थी। अरमान को इस बात से फ़र्क नहीं पड़ा था कि गार्ड्स ने उसे अंदर नहीं आने दिया। अरमान को फ़र्क केवल एक बात से पड़ा था कि उस गार्ड ने जोया को छुआ था, चाहे धक्का देने के लिए ही सही, पर छुआ था।

    अरमान की आँखें देखकर गार्ड सूखे पत्ते की तरह काँपने लगा, लेकिन अरमान ने उस वक्त उसे कुछ नहीं बोला और जोया को लेकर अंदर की ओर चल दिया।

    इतना आलीशान बंगला जोया ने कभी नहीं देखा था। चारों ओर इतने गार्ड्स थे, मानों कोई प्राइम मिनिस्टर यहाँ रहता हो। जोया सरसरी सी नज़र सब पर डालते हुए आगे बढ़ रही थी।

    जल्दी ही वे दोनों मेन गेट तक पहुँच गए थे।

    अरमान ने सोचा था कि जब भी जोया पहली बार उसके घर आएगी, वह उसे अपनी बाहों में उठाकर अंदर ले जाएगा।

    लेकिन आज जोया का यूँ अचानक आना अरमान को उसका सपना टूटता हुआ महसूस हो रहा था। तभी कुछ सोचकर उसके चेहरे पर वही ख़तरनाक सी मुस्कान आ जाती है।

    जोया अरमान के पीछे-पीछे चल रही थी और वह आगे कम आसपास ज़्यादा देख रही थी। अरमान के घर का गार्डन सच में बहुत ही खूबसूरत था और बेहद सुंदर फूलों से कमाल के डिज़ाइन बनाए गए थे।

    और चारों ओर अनगिनत गार्ड्स थे। जोया हैरानी से चारों ओर देख रही थी। तभी अरमान चलते-चलते अचानक रुक जाता है।

    जोया, जो बिलकुल अरमान के पीछे थी, वह एकदम अरमान से टकरा जाती है, अपना बैलेंस खो देती है और वहीं गिर जाती है।

    अरमान जो चाहता था, वह हो गया था।

    फिर वह जोया से, "ओह, मिस जोया, आपको लगी तो नहीं?" कहकर अपना हाथ आगे बढ़ा देता है।

    जोया कुछ पल रुककर अरमान का हाथ थाम लेती है, लेकिन वह जैसे ही उठने की कोशिश करती है, उसकी एक दर्द भरी चीख निकल जाती है, क्योंकि अचानक गिरने की वजह से उसका पैर मुड़ गया था और उसे मोच आ गई थी। तब अरमान उसके पास जाता है और देखता है कि जोया का पैर सूज गया था। फिर वह उसे अपनी बाँहों में उठा लेता है।

    "नहीं सर, मैं मैनेज कर लूँगी। आप परेशान नहीं होइए," जोया कहती है।

    लेकिन अरमान उसे कोई बात नहीं सुनता और उसे उठाकर अंदर ले जाता है।

    जोया की आँखें बंगले को अंदर से देखकर बड़ी-बड़ी हो जाती हैं। अरमान का घर अंदर से किसी फ़ाइव स्टार होटल से भी ज़्यादा खूबसूरत था।

    जिस होटल में जोया ने काम किया था, वह फ़ीका पड़ गया था अरमान के घर के सामने।

    बहरहाल, अरमान ने जोया को हॉल में ही पड़े एक सोफ़े पर बिठाया और अपने एक मुलाज़िम को आवाज़ देते हुए कहा, "जाओ, जाकर फ़र्स्ट एड बॉक्स लेकर आओ, और साथ ही साथ आइस पैक भी लेके आना।"

    "सर, मैं ठीक हूँ। आप परेशान मत होइए, प्लीज़। आप मेरी बात सुनें। मुझे आपसे बात करनी है," जोया कहती है।

    अरमान बीच में ही, "शशशश... मिस जोया, थोड़ी देर चुप करके बैठो," कहता है।

    अरमान ने थोड़ी तेज आवाज़ में कहा था। जोया थोड़ा सहम जाती है और अरमान को देखने लगती है। जोया कुछ कह नहीं पाती।

    तब तक सर्वेंट दवा का बॉक्स और साथ ही आइस पैक लेकर आ गया था।

    अरमान खुद जोया के सामने नीचे घुटनों के बल बैठ गया था।

    उसने धीरे से जोया का पैर अपने घुटने पर रखा और पहले जोया की बर्फ से सिकाई की और फिर पेनकिलर स्प्रे किया।

    अब जोया को काफ़ी हद तक आराम आ गया था।

    तब जोया अरमान से कहती है, "सर, मैं ठीक हूँ। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया सर। सर, मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।"

    "हाँ हाँ, मिस जोया, हम ज़रूर बात करेंगे, पर उससे पहले आप बताइए आप क्या खाना पसंद करोगी? आप पहली बार मेरे घर आई हैं।"

    "सर, आप मेरी बात सुनें, प्लीज़। मुझे कुछ नहीं खाना है।"

    "ऐसे कैसे? कुछ नहीं खाना है? आप पहली बार मेरे घर आई हैं," अरमान कहता है।

    "नहीं सर, मुझे कुछ नहीं खाना है।" जोया को अब अरमान का व्यवहार अजीब लगने लगा था।

    और तभी अरमान जोया का हाथ पकड़कर उसे टेबल पर ले जाता है।

    टेबल पर हर वैरायटी का खाना मौजूद था।

    जोया मन ही मन में सोचती है, "नाश्ते में इतनी चीज़ें भला कौन खाता है?"

    अरमान खुद जोया को सर्व कर रहा था।

    और न चाहते हुए भी जोया को थोड़ा सा ही सही, पर खाना पड़ा।

    हॉल में मौजूद अरमान के सभी नौकर अपने मालिक को हैरानी से देख रहे थे।

    पहली बार उस बंगले में कोई लड़की आई थी और उसके लिए उनके बॉस का स्पेशल ट्रीटमेंट उन लोगों को एहसास करा चुका था कि यह लड़की उनकी होने वाली नई मालकिन है।

    तभी जोया अरमान से कहती है, "सर, मुझे आपसे बात करनी है। मैं आपसे कब से बोल रही हूँ। आप प्लीज़ मेरी बात सुनें।" इस बार जोया ने थोड़े तल्ख लहजे में बोला था।

    अरमान जोया की बात को अनसुना करता हुआ अपना फ़ोन निकालकर कुछ टाइप करने लगता है।

    जोया को अपनी बात को इस तरह से अनसुना होता देख गुस्से से खड़ी हो जाती है और अरमान से कहती है, "सर, मुझे लगता है आप कुछ ज़्यादा ही बिज़ी हैं। आप आराम से अपना काम कर लीजिए। मैं अपनी प्रॉब्लम खुद सॉल्व कर लूँगी।" ऐसा कहती हुई जोया दरवाज़े की ओर जाने के लिए बढ़ गई।

    तभी अचानक...

  • 19. Obbsessed with Zoya, - Chapter 19

    Words: 1060

    Estimated Reading Time: 7 min

    जोया को गुस्सा आ गया था। वह वहाँ से जाने लगी। तभी अचानक उसने देखा कि जिस गार्ड ने उसे धक्का दिया था, उसे पकड़े हुए दो गार्ड अंदर आ रहे थे।

    वह गार्ड चिल्ला रहा था, "मुझे जाने दो!" जोया को देखते ही वह रोने लगा और गिड़गिड़ा कर उससे माफी माँग रहा था। "मैडम, मुझे माफ कर दो। मैं आपको नहीं पहचान पाया। प्लीज मुझे छोड़ दो। मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं। प्लीज मुझे बचा लो, प्लीज!"

    जोया यह सब देखकर जैसे जम सी गई थी। वह कुछ बोल ही नहीं पा रही थी। वह कभी अरमान को देख रही थी, तो कभी उस सिक्योरिटी गार्ड को।

    तभी इस बीच अरमान की रौबदार आवाज आई, "जस्ट शट अप एंड शट योर माउथ! एक वर्ड नहीं, तुम्हारी कोई आवाज नहीं आनी चाहिए, समझे?" अरमान ने सिक्योरिटी गार्ड को वार्निंग देते हुए कहा था। वह गार्ड सहम सा गया था और बिलकुल शांत हो गया था।

    कुछ पल तक किसी की कोई आवाज नहीं आ रही थी।

    तभी अरमान जोया के पास गया और उसकी बाजू को छूते हुए बोला, "इसी जगह पकड़ा था न इसने तुम्हें?" जोया कुछ बोल ही नहीं पाई। अरमान तेज आवाज में बोला, "बोलो! यहीं छुआ था ना इसने तुम्हें?"

    जोया ने डर के मारे हाँ में अपनी गर्दन हिला दी थी। तभी अरमान जोर-जोर से हँसने लगा और अपनी कमर के पीछे से एक बड़ा सा चाकू निकाला। उसे देखकर उस गार्ड और जोया की चीख निकल गई।

    और देखते ही देखते अरमान ने उस बड़े से चाकू से उस गार्ड के हाथ को बड़ी बेरहमी से काट दिया; जिस हाथ से उसने जोया को छुआ था।

    यह देखकर जोया की चीख निकल गई थी और वह बेहोश हो गई थी।

    करीब डेढ़ घंटे बाद जोया को होश आया। उसका सर अभी भी चकरा रहा था। उसे सब कुछ एक बार फिर याद आ गया; किस बेरहमी से अरमान ने उस सिक्योरिटी गार्ड का हाथ काटा था। सब याद करके उसकी एक बार फिर से चीख निकल गई थी।

    जोया समझ ही नहीं पा रही थी कि यह हो क्या रहा है उसके साथ। पहले अरहम ने बेहद बुरा बिहेव किया और वह गायब हो गया। और अब अरमान का बिहेव बड़ा ही अजीब और डरावना था।

    वह थोड़ा खुद को संभाला और अपने आसपास देखा।

    उसने खुद को एक बेहद खूबसूरत कमरे में पाया, लेकिन कहीं बाहर जाने का रास्ता उसे दिखाई नहीं दिया था।

    वह सोच-सोच कर हताश होती जा रही थी, पर उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था।

    तभी अचानक दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई। जोया ने पलट कर देखा। अरमान हाथ में खाने की प्लेट लिए खड़ा था।

    जोया भागकर अरमान के पास गई और बोली, "सर! आपने उस आदमी का हाथ काट दिया! आप इंसान हैं या जानवर हैं? मैं तो आपके पास मदद माँगने आई थी। अरहम मिल नहीं रहा है, उसका कहीं कुछ पता नहीं चल रहा था, और यहाँ तो आपने उस आदमी का हाथ काट दिया!" जोया बदहवास सी बोल रही थी।

    खून-खराबा वह पहले भी देख चुकी थी, लेकिन इस बार इतना करीब से सब देखा था कि उसे बर्दाश्त ही नहीं हो रहा था।

    अरमान एक नज़र जोया को देखते हुए बोला, "शशश... जोया, रिलैक्स। आओ बैठो।" उसने उसे बेड पर ले गया।

    और उसके माथे पर आए बालों को पीछे करते हुए बोला, "शांत हो जाओ, जोया। डरो नहीं, मैं हूँ यहाँ। मेरे रहते तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता है। उस गार्ड ने तुम्हें छूने की हिम्मत की थी, तो सज़ा तो उसे मिलनी ही थी।"

    "आपका दिमाग खराब हो गया है क्या? आप क्या कह रहे हैं सर? और आपको हो क्या गया है?" जोया थोड़ा तल्खी से बोली थी।

    "तुम ज़्यादा सोचो मत और खाना खाओ, वरना कमज़ोर हो जाओगी।"

    जोया अरमान को इतना शांत देखकर बेहद हैरान थी। जोया तुरंत बोली, "मुझे कुछ नहीं खाना है। मुझे घर जाना है।" ऐसा कहकर वह उठ खड़ी हुई और दरवाज़े की ओर चल दी।

    तभी अरमान ने पीछे से उसका हाथ पकड़ लिया और जोर से खींचा। जोया बैलेंस नहीं बना पाई और वह सीधा अरमान के साथ बेड पर गिर गई। जोया अरमान के ऊपर थी। जोया के बाल अरमान के फेस पर गिर रहे थे।

    तभी जोया थोड़ा संभलते हुए उठी और अरमान से सीधा सवाल किया, "यह क्या बदतमीज़ी है अरमान सर? और यह हो क्या रहा है?"

    अरमान बोला, "डियर, बस तुम्हारा इतना जान लेना ही काफी होगा कि तुम अब यहाँ से कहीं नहीं जाओगी।"

    जोया की आँखें हैरत से बड़ी होती जा रही थीं। "आप कहना क्या चाहते हैं? मैं क्यों नहीं जाऊँगी? मुझे मेरे घर जाना है, मेरी अम्मी के पास। समझे आप? आप मेरा रास्ता छोड़ें और मुझे जाने दें, वरना आपके लिए अच्छा नहीं होगा। मैं आपकी शिकायत पुलिस में कर दूँगी।"

    जोया की बातें सुनकर अरमान जोर-जोर से हँसने लगा। "ओह माई गॉड! व्हाट अ जोक!"

    "डियर, तुम कहो तो पुलिस कमिश्नर को यहाँ बुला लूँ। तुम आराम से शिकायत करती रहना।"

    अब जोया खुद को काफी बेबस महसूस कर रही थी।

    फिर वह खुद को रोक नहीं पाई और बेतहाशा रोने लगी। वह रोते-रोते बोली, "आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? मैंने क्या बिगाड़ा है आपका? मुझे घर जाना है, अपनी अम्मी के पास। वह बीमार है, मेरा इंतज़ार कर रही होगी। प्लीज़ मुझे जाने दो, मैं किसी को कुछ नहीं बताऊँगी। प्लीज़ मुझे जाने दो।"

    जोया रोते-रोते अरमान के सामने गिड़गिड़ा रही थी, घर जाने की मिन्नतें कर रही थी। लेकिन अरमान को तो जैसे उसका रोना-गिड़गिड़ाना अच्छा लग रहा था। इनफैक्ट, वह पल वह एन्जॉय कर रहा था।

    तभी एकाएक अरमान उठा और जोया के बेहद करीब चला गया। उसने अपने दोनों होंठ जोया के होंठों पर रख दिए। वह बड़ी ही बेरहमी से उसे किस कर रहा था और जैसे अरहम ने जोया को काटा था, ठीक उसी जगह अरमान ने भी जोया को काट लिया था।

    उसके होंठों से एक बार फिर खून आने लगा था।

    करीब 15 मिनट तक अरमान जोया को किस करता रहा। जोया दर्द के मारे बुरा हाल थी।

    लेकिन अरमान को इससे कुछ फर्क नहीं पड़ रहा था।

    तभी अचानक एक जोरदार आवाज़ आई...

  • 20. Obbsessed with Zoya, - Chapter 20

    Words: 1031

    Estimated Reading Time: 7 min

    तभी अचानक एक जोरदार चिल्लाने की आवाज़ आई। वह आवाज़ किसी लड़की की थी।

    वह आवाज़ सुनकर, ना जाने क्यों, अरमान के माथे पर परेशानी के बल पड़ गए।

    और वह जोया को बेड पर धक्का देते हुए उठ खड़ा हुआ और दरवाज़ा बंद करके जल्दी से बाहर निकल गया। जोया को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ आखिर क्या हो रहा है और उसने किसी का क्या बिगाड़ा है। अब तो उसकी आजादी भी छिन गई थी; वह एक कमरे में कैद होकर रह गई थी।

    जोया ने खुद को आईने में देखा। उसका पूरा चेहरा खून से लाल था। रोने की वजह से उसकी आँखें सूज गई थीं।

    वह बेबसी से चारों ओर देख रही थी।

    उस वक़्त वह अपनी अम्मी को याद करके बेहद रो पड़ी। ऐसा लग रहा था मानो उस कमरे की दीवारें भी उसके साथ-साथ रो रही हों।


    दूसरी ओर, अरमान तहखाने में बने एक कमरे में गया। वहाँ एक लड़की को बाँधकर रखा गया था क्योंकि अगर उसके हाथ खुले होते, तो वह खुद को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करती।

    अरमान जल्दी से उसके पास गया और उसे गले लगाकर रोने लगा, और कह रहा था, "डरो मत, मैं हूँ यहाँ। मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा। जिसकी वजह से तुम्हारी यह हालत है, मैं उसे खून के आँसू रुलाऊँगा।"

    ऐसा कहता हुआ वह उस लड़की को संभाल रहा था, और वह लड़की पागलपन में केवल एक ही बात कह रही थी, "मुझे छोड़ दो, मुझे जाने दो, मुझे मत मारो, मुझे दर्द हो रहा है।"

    ये सब बातें सुनकर अरमान अपना इरादा और मज़बूत करते हुए बोला, "मैं तुम्हें नहीं छोड़ूँगा। मैं तुम्हारी हालत इससे भी बदतर कर दूँगा। कभी माफ़ नहीं करूँगा।" कहता हुआ वह तहखाने से निकल गया, और साथ ही उस लड़की का ध्यान रखने के लिए उस नर्स को भेज दिया। चौबीस घंटे एक नर्स उस लड़की के पास रहती थी। जब-जब उसे इस तरह के दौरे पड़ते, वह नर्स ही उस लड़की को संभालती थी।


    अरमान तेज़ी से आगे बढ़ रहा था। दूसरी ओर, जोया ने खुद को मज़बूत किया। वह कमज़ोर नहीं थी। आखिर अरमान चाहता क्या है, यह वह जानकर रहेगी। वह उसके जुल्मों के आगे घुटने नहीं टेकेगी। वह उसका सामना करेगी।

    "काश अरहम मेरी साथ होता। पर उस दिन अरहम ने जो मेरे साथ किया, शायद उससे गुस्से में हो गया होगा। वह बेहद मुहब्बत करता है मुझसे।"

    जोया खुद से ही सवाल-जवाब कर रही थी और अचानक उसके दिमाग में आया, "कहीं अरहम को अरमान ने ही तो गायब नहीं करवाया?" यह सोचते ही उसका दिमाग गुस्से से भर गया।

    तभी कुछ सोचते हुए जोया ने दरवाज़ा पीटना शुरू कर दिया।

    "दरवाज़ा खोलो! तुम मुझे यहाँ कैद करके नहीं रख सकते। खोलो दरवाज़ा! मुझे जाने दो!" जोया जोर-जोर से दरवाज़ा खटखटा रही थी।


    दूसरी ओर, अरमान तेज़ी से आगे बढ़ता हुआ उसके पास आ रहा था।


    दूसरी ओर, रहीम और उसकी माँ जोया को लेकर काफ़ी परेशान थे। रहीम उसके ऑफ़िस भी गया था, लेकिन उसे कुछ खास पता नहीं चला था। आखिर कैसे एक बुज़ुर्ग आदमी कितनी भागदौड़ कर सकता था? जोया एक घंटे के लिए बोली थी, लेकिन अब पूरे चौबीस घंटे हो गए थे जोया को गए हुए। रहीम और उसकी अम्मी ने जहाँ मुमकिन था, हर जगह तलाश किया। पुलिस स्टेशन भी गए; वहाँ भी उन दोनों गरीब लोगों के लिए किसी के पास समय नहीं था। किसी ने उनकी कोई बात नहीं सुनी।

    उन्होंने हर जगह तलाश किया था, लेकिन जोया का कहीं कुछ पता नहीं चला। जोया की माँ बीमार थी। अभी-अभी उनकी तबीयत थोड़ी ठीक हुई थी, लेकिन अचानक से जोया का यूँ जाना उन्हें बेचैन और परेशान कर गया था। आख़िरकार, जोया की अम्मी ने हार मान ली। उन्हें यकीन हो गया था कि उनकी बेटी अब दुश्मनों के हाथ लग चुकी है और वह अब कभी नहीं आएगी। अचानक उनकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। रहीम उन्हें लेकर जल्दी से हॉस्पिटल पहुँचा, लेकिन शायद खुदा को कुछ और ही मंज़ूर था।

    जोया की अम्मी हमेशा के लिए अलविदा कह गई थीं।

    रहीम बाबा का रो-रो कर बुरा हाल था।

    उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अकेला क्या करे। जोया का कहीं कुछ पता नहीं चल रहा था। कुछ सोचकर रहीम बाबा ने अपनी बड़ी मालकिन को खुद ही ज़मीन-ए-ख़ाक में सुपुर्द किया, मिट्टी दी और जितने भी तमाम काम थे, वह खुद किए और सभी कामों से फ़ारिग होकर वह हमेशा के लिए अपने गाँव वापस चले गए।


    दूसरी ओर, अरमान को जोया की माँ की खबर मिल चुकी थी।

    कुछ पल के लिए उसने कुछ सोचा और एक खतरनाक सी मुस्कान उसके चेहरे पर आ गई।

    जोया दरवाज़ा खटखटाकर थक गई थी और गेट के सहारे ही टेक लगाकर बैठ गई थी।

    तभी अचानक से दरवाज़ा खुला, और वह गेट खुलते ही गिर गई और आँखें उठाकर सामने देखा तो सामने अरमान खड़ा उसे देख रहा था।

    जोया जल्दी से उठी और उसने सीधा अरमान का गिरेबान पकड़ लिया। "आखिर तुम चाहते क्या हो? तुम मुझे यहाँ कैद करके नहीं रख सकते, समझे तुम? और मुझे लगता है अरहम को भी तुमने गायब किया है। बताओ कहाँ है मेरा अरहम?

    जवाब दो मुझे! क्या किया तुमने अरहम के साथ? बोलो!" जोया चीख-चीख कर सवाल कर रही थी और साथ ही साथ अरमान के सीने पर घूँसे मार रही थी।


    जोया के नाखून अरमान के सीने पर चुभ रहे थे। वहाँ से थोड़ा-थोड़ा खून आना भी शुरू हो गया था। अचानक अरमान जोर से चिल्लाया, "स्टॉप इट, यू फूलिश गर्ल!" और जोया का हाथ बाजुओं से पकड़कर लगभग घसीटते हुए अपने बंगले के सबसे ऊपर वाले फ्लोर पर ले जाने लगा। अरमान बड़ी बेरहमी से उसे खींचकर ले जा रहा था। वहाँ किसी नौकर को भी जाने की इजाजत नहीं थी।

    जोया दर्द से कराह रही थी, पर अरमान को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वह तो उसे बंगले के आखिरी फ्लोर पर जल्द से जल्द ले जाना चाहता था।