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You are my destiny (मेरी किस्मत हो तुम)

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jasleen kaur

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माही डॉक्टर दंपत्ति की इकलौती बेटी थी। उसे उसका प्रेमी प्यार में धोखा दे कर कोठे पर बेच जाता है। फिर उसके जिंदगी में शेखर आता है जो उसे कोठे से निकाल कर उसके घर पहुंचाता है।दोनों को एक दूसरे से प्यार हो जाता है।पर वो कहते नहीं हैं।लेकिन उनकी किस्मत न...

Total Chapters (13)

Page 1 of 1

  • 1. You are my destiny (मेरी किस्मत हो तुम) - Chapter 1

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min

    दिल्ली के पौष इलाके में एक बड़ा सा तीन मंजिला घर। माही सेकंड फ्लोर पर रहती थी। मतलब सेकंड फ्लोर सारा उसका ही था। इसमें इसके बैडरूम के इलावा। जिम, स्टडी रूम , स्विमिंग पूल और एक प्ले रूम था। इसके इलावा दो गेस्ट रूम भी थे। माही नहा कर बाथरूम से निकली। बाहर दो नौकरानियां उसका इंतज़ार कर रही थी। एक उसके कपड़े लिए खड़ी थी और एक हेयर ड्राययर। " रूपा, लाओ मेरे कपड़े दो । " माही ने बाहर आकर कहा ।उसने टॉवल लपेटा हुआ था। वो कपड़े लेकर ड्रेसिंग रूम में चली गई। उसका ड्रेसिंग रूम भी बैडरूम जितना ही बड़ा था। "मीना, मेरे बाल सेट कर दो। " वो कपड़े बदल कर बाहर आते ही बोली। मीना ने जल्दी से उसके बाल पहले सुखाए फिर सेट भी कर दिया।उसने चहरे पर हल्का सा मेकअप किया। फिर नीचे आ गई। दस लोगों के टेबल पर वो अकेली बैठी थी। उसे पता था कि उसके मम्मी पापा हमेशा की तरह होस्पिटल चलें गए होंगें। उसके मम्मी पापा दोनों डॉक्टर थे और वो अपना होस्पिटल चलाते थे। वो चाहते थे कि बेटी भो डॉक्टर बने। पर ये पढ़ने मे ज्यादा तेज़ नहीं थी सो इसने बी.ए में एडमिशन लिया था। माही उस वक़्त फर्स्ट ईयर में थी। वो सुबह सुबह क्लास के लिए जा रही थी कि उसे कुछ सीनियर लड़कों ने घेर लिया। " यहाँ आओ। " एक बोला। माही डर गई और उनके पास चली गई। "तुम्हारा नाम क्या है ? " एक लड़के ने इसके लहराते बालों को छेडते हुए पूछा।माही और घबरा गई। तभी एक लड़के ने आकर उस लड़के का हाथ मरोड़ दिया और बोला, " तुम्हें पता नहीं है इस कॉलेज में रैगिंग करना अलाऊड नहीं है। चलो निकलो यहाँ से। " " नहीं विकास ,हम तो यूहिं इंट्रो ले रहे थे। कोई नहीं चलो भाई चलो। " कहकर वो लड़के चले गए। " देखिए आपको घबराने की जरूरत नहीं है। आप फर्स्ट ईयर में हैं। पढाई को छोड़ कर कोई भी काम हो मुझसे कहिएगा। मैं सेकंड ईयर में हूँ। मेरा नाम तो सुन ही लिया होगा आपने। जी मेरा नाम विकास है। चलिए मैं आपको आपकी क्लास तक छोड़ आऊँ। " विकास बोला। " थैंकयू। आपने मुझे इन लोगों से बचा लिया। मैं तो घबरा ही गई थी। मेरा नाम माही है।" माही बोली। माही को पहली नज़र में ही उससे प्यार हो गया था। विकास एक आवारा लड़का था। वो एक ही क्लास में दो बार फेल हो गया था। पर तीन बहनों का इकलौता भाई होने के कारण उसके माँ बाप उसकी हर बात मानते थे।सो उसे हर बार एडमिशन करा देते। स्कूल तो उसने जैसे तैसे पास कर लिया था। अब बी.ए कर रहा था। फर्स्ट ईयर तो उसे लॉक डाउन ने  पास कऱा दी। पर सेकंड ईयर में वो दो बार फेल हो गया था अब तीसरी बार एडमिशन लिया था। माही अब सेकंड ईयर में उसी के साथ आ गई थी। वो माही से कहता की तेरे साथ होने के लिए फेल हुआ हूँ। माही कॉलेज आते ही विकास के साथ घूमने निकल जाती। पैसा माही का होता था वो कभी कहीं तो कभी कहीं जाते। पर अपने माँ बाप के डर से माही कॉलेज के समय पर घर आ जाती। उस साल माही भी फेल हो गई।उसके पेरेंट्स को कुछ शक हुआ। तब जाँच करने पर उन्हें विकास के बारे में पता चला । उसके पापा ने विकास को होस्पिटल बुलाया । " अंकल जी मैं माही से बहुत प्यार करता हूँ। उसके बिना रह नहीं सकता।माही भी मेरे बिना मर जाएगी। " विकास डॉ ,उमेश (माही के पापा) से मिलते ही बोला। " ठीक है ,मैं मान लेता हूँ । चलो तुम्हारी बात मानकर मैं तुम दोनों की शादी कर देता हूँ। पर तुम उन्हें खिलाओगे क्या ? और रखोगे कहाँ ? " डॉ उमेश बोले उनकी पत्नी माही की मम्मी डॉ उषा भी वहीं खड़ी विकास की तरफ देख रही थी। " जी, जहाँ मैं रहता हूँ, वही रहेगी और जो मैं खाता हूं ,वही वो खा लेगी। " विकास अकड़ के बोला। " तुम्हारी फैमिली में कौन कौन है ?" माही की मम्मी ने पूछा। " जी ,मेरे मम्मी पापा और मेरी बड़ी बहन।" उसने सफाई से झूठ बोला। " तुम्हारे पापा क्या करते हैं ?" डॉ उषा ने फिर पूछा। " मेरे पापा बिजली डिपार्टमेंट में नोकरी करते हैं।" वो हर बात का जवाब अकड़ के दे रहा था। "और कितना झूठ बोलोगे तुम ? झूठ की भी हद होती है। उषा इसकी एक नहीं तीन तीन बड़ी बहनें हैं। इसके पिता दिहाड़ीदार मजदूर है और माँ लोगों के घरों में काम करती है। इसे पढाने के लिए उन्होंने अपनी बेटियों को दसवी के बाद नहीं पढ़ाया। वो भी यहाँ वहां काम करती हैं और एक ये है ये तीसरी बार फेल हो गया। इसे किसी की कोई परवाह ही नहीं है। ऐसे लड़के से हम अपनी बेटी की शादी नहीं कर सकते।आज के बाद माही के आसपास भी मत नज़र आना। " डॉ उमेश गुस्से से बोले। " आप मुझे रोकने वाले होते कौन हैं ? मैं आपकी रिस्पेक्ट कर रहा हूँ और आप बिना मतलब के मुझपर चढ़ते ही जा रहे हैं। इस तरह से कभी मेरे माँ बाप ने भी मुझसे बात नहीं की। " कहकर वो वहाँ से बदतमीजी से उठकर चला आया। " देखा, ये लड़का चुना है उसने। दिमाग खराब हो गया है उसका। अरे हमें इसके पेरेंट्स से कुछ लेना देना नहीं है। वो क्या करते हैं ? गरीब हैं ? अमीर हैं ? हम कुछ लेना नहीं है। जिससे हमें लेना है ये लड़का ये बिल्कुल निकम्मा है। ये हमारी बेटी को क्या सुख देगा? " डॉ उमेश गुस्से से चिल्लाए। " आप शांति रखिए। आपका बी.पी बढ़ जाएगा। आप चिंता न करें। दोनों बैठकर माही को समझाएंगे। वो समझ जाएगी। " डॉ उषा बोली। अगले दिन विकास ने कॉलेज आते ही माही को क्लास से बाहर बुलाया,माही ने आते ही पूछा , "क्या कहा पापा ने ?" " वही पुराने फ़िल्मी डॉयलॉग, हमारी बेटी से दूर रहो। उसकी तरफ देखना भी नहीं। अगर मैं गरीब हूँ तो क्या हुआ ? उनसे मांगने तो नहीं जाता।उन्हें क्या हक़ है मेरे पेरेंट्स को बुरा भला कहने की। जब उन्होंने आपको कुछ नहीं कहा, तो आप कैसे कह सकते है? माही तुम तो जानती हो न कि मैंने तुमसे प्यार तुम्हारी दौलत के लिए नहीं किया है। मैं सच में दिल से तुम्हें चाहता हूँ।मैं तुम्हारे बिना रह नहीं सकता।" विकास ने माही को गले लगाकर कहा। " हाँ ,विकास मैं जानती हूँ। तुम मुझे कितना प्यार करते हो। तुम चिंता न करो मैं उनसे बात करूंगी।" माही बोली।

  • 2. You are my destiny (मेरी किस्मत हो तुम) - Chapter 2

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min

    " हाँ ,विकास मैं जानती हूँ। तुम मुझे कितना प्यार करते हो। तुम चिंता न करो मैं उनसे बात करूंगी।" माही बोली। उस शाम घर आकर पापा ने माही को अपने पास बुलाया। वो गुस्से से भरी हुई नीचे आई। उसने पहले ही सोच लिया था कि उसे क्या कहना है। वो आकर मम्मी पापा के पास बैठ गई। " माही, हमने आज उस लड़के से बात की है। हमें वो ठीक नहीं लगा जो अपने माँ बाप से प्यार नहीं करता वो तुमसे प्यार क्या करेगा ?" पापा बोले। " पापा ये आपको लगता है। वो अपने माँ बाप को बहुत प्यार करते हैं। उसकी माँ उसकी पसन्द का खाना बनाती है और पापा उसके लिए हर वो चीज़ लाकर देते हैं जो वो मांगता है। वो तीन बार फेल हो गया पर वो कुछ नहीं कहते क्योंकि वो उसे प्यार करते हैं। पर आप ये नहीं समझ सकते क्योंकि आपको परिवार का मतलब ही नहीं पता। क्या कभी मम्मी ने आपके या मेरे लिए खाना बनाया है ? क्या कभी हमने एक साथ कोई मूवी देखी है? क्या कभी हमने एक साथ बैठ कर खाना खाया है? बचपन से आज तक मैंने आप दोनों को बस अपने बर्थडे पर देखा है। उसमें भी आप मुझपर कम और अपने दोस्तों पर ज्यादा ध्यान देते हो। मैं आज तक पास होती आई पर आपने कभी नहीं कहा कि शाबाश, बेटा ।बस हर बार यही कहा और अच्छा करो। एक बार फेल क्या हो गई ? आपने मुझ पर पाबंदियां लगानी शुरू कर दी। " विकास ने जैसे इसे भड़काया था वो उसी बहकावे में बोलती गई। " माही ! ....तुम्हें पता भी है तुम किससे बात कर रही हो ? तुम्हारे मैनर्स कहाँ गए ? मैंने तुम्हें इस तरह बोलना तो नहीं सिखाया था ? तुम हमारी बराबरी उस लड़के के माँ बाप से कर रही हो। वो मजदूर हैं और हम डॉक्टर्स है।जानती भी हो कितने लोगों की जान की जिम्मेदारी हम पर होती है। ये सब हम तुम्हारे लिए ही कर रहे हैं।तुम जो कहती हो न बर्थडे पर हम अपने दोस्तों से बातें करते हैं ,वो हमारे जैसे डॉक्टर होते हैं जो हमसे बड़ी मुश्किल से मिलते हैं तो हम उनसे केस डिसकस करते हैं वो भी औरों के लिए। तुम्हें हमारी फीलिंग्स नहीं दिखती। " उसकी मम्मी लगभग रोते हुए बोली। " और हाँ जो तुम प्यार की बात कर रही हो न तो तुम्हें बता दूं कि जब तुम पैदा हुई तो इसने तीन साल छुट्टी लेकर रखी। अगर तुम्हारे कहने के मुताबिक ये ऐसी होती तो ये भी किसी नैनी के पास तुम्हें छोड़ कर अमेरिका चली गई होती। उसने एक सुनहरा अवसर खोया तुम्हारे लिए क्योंकि ये तुम्हारा बचपन खराब नहीं करना चाहती थी । उसके बाद भी तुम्हारी पढाई तुम्हारे कपड़े सब का ध्यान इसने खुद रखा।अब तुम बड़ी हो गई तो इसने मेरे कहने पर छोड़ा है। तुम खाने की बात करती हो। कभी किसी से पुछा है जो ये रोज तुम्हारी पसन्द का ब्रेकफास्ट और लंच बना होता है वो कौन बनाता है ? वो खाना ये बनाती है। सुबह चार बजे उठकर तुम्हारे लिए बना के जाती है और तुम आज ये सिला दे रही हो इसे ? " पापा भी गुस्से से बोले। " मेरे लिए किया ?थैंक्यू,बहुत बहुत थैंक्यू। आप दोनों को एक दूसरे का किया हुआ दिखता है। बस एक मेरी ख़ुशी नहीं दिखती। मैं उसे प्यार करती हूँ ।इसलिए आपको वो बुरा लगता है। आपने मेरी पसन्द को कभी पसन्द किया ही नहीं। आप लोगों ने भी तो लव मैरिज की थी। अब मेरी बारी में आप ऐसा क्यों कर रहे हैं ?" माही को उनकी हर बात बुरी लग रही थी। " माही, हमने लव मैरिज की थी पर घरवालों की मर्जी से।वो भी दोनों के डाक्टर बनने के बाद। हमने पहले अपने फ्यूचर का सोचा था फिर प्यार का। तुमने उसके साथ अपने फ्यूचर के बारे में सोचा है ? वो बी.ए फेल है उसे काम कौन देगा? सारी जिंदगी स्ट्रगल में बीतेगी। उस वक़्त ये प्यार सब छू मंतर हो जाएगा। ये  सोचा है तुमने ? " मम्मी ने समझाया। " हमें तुम्हारे प्यार से कोई ऐतराज नहीं है। हमें तुम्हारे फ्यूचर की चिंता हैं।हमने तुम्हें दुनिया की हर तकलीफ से दूर रखा है। सबसे बड़ी बात तुम पैसों में पली बढ़ी हो तुम्हें पता ही नहीं गरीबी क्या होती है ? तुम उसके घर गई हो कभी ? नहीं न ,तो जाकर देखना। तुम्हारा बाथरूम भी उनके कमरे से बड़ा होगा। जिसमें वो सब लोग रहते हैं। फिर तुम्हे रोज नई डिशेस खानी होती हैं।कभी इटैलियन,कभी चीनी ,कभी स्पेनिश, कभी मैक्सिकन और  वहाँ दाल रोटी भी मुश्किल से नसीब होती है। कैसे रहोगी तुम वहाँ ? "पापा ने उसे समझाते हुए कहा। " तुम अपने लिए कोई ऐसा लड़का ढूंढों जो कम से कम हमारे बराबर का हो। जो तुम्हे खुश रख सके ,तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी करी। हम उसे ना नहीं करेंगे। " मम्मी बोली। " मम्मी- पापा आप दोनों सुन लो । मैंने कह दिया न कि मैं उससे प्यार करती हूँ हर हाल में उसके साथ रह लूँगी।" कहकर वो वहाँ से चली आई उसकी मम्मी उसे आवाज़ें लगाती रह गई। पर वो नहीं रुकी। धड़ाम ! .....उसने कमरे में आते ही दरवाज़ा जोर से मारा। उसके मम्मी पापा ने भी ऊपर को देखा और लाचारी जताई । " इस लड़की का क्या करें ?"  डॉ उमेश सिर पकड़ कर बोले। " देखिए आप फ़िक्र मत कीजिए। अभी बच्ची है वक़्त आने पर समझ जाएगी। " उसकी मम्मी ने उनके कंधे पर हाथ रख कर कहा। माही अपने कमरे में रो रही थी। उसे ये लग रहा था कि उसके पेरेंट्स उसकी ख़ुशी नहीं चाहते। विकास इतना हैंडसम है। पर इन्हें पता नहीं क्यों पसन्द नहीं है ? मैं किसी और को कैसे ढूंढ सकती हूँ ? जब प्यार तो मुझे विकास से है। वो सोच ही रही थी कि तभी विकास का फोन आया। माही के फोन उठाते ही वो बोला, "क्या हुआ मेरी जान ? क्या कहा उन्होंने ? " " क्या कहना था ?वही पुराना राग अलाप रहे थे। विकास को छोड़ दो, कोई और ढूंढ लो। विकास मुझे बहुत डर लग रहा है। मुझे यहाँ से ले चलो।ये लोग कहीं हमें अलग न कर दें।मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। " माही बोली। " ऐसा करते हैं, सुबह स्कूल जाने के बहाने हम भाग जाएंगे। शादी कर लेंगे तो उन्हें हमें अपनाना ही पड़ेगा। ऐसा करना तुम अपने सर्टिफिकेट्स कुछ कपड़े और पैसे लेकर आ जाना। फिर देखतें हैं। " विकास ने उससे कहा।

  • 3. You are my destiny (मेरी किस्मत हो तुम) - Chapter 3

    Words: 1182

    Estimated Reading Time: 8 min

    " ऐसा करते हैं, सुबह कॉलेज जाने के बहाने हम भाग जाएंगे। शादी कर लेंगे तो उन्हें हमें अपनाना ही पड़ेगा। ऐसा करना तुम अपने सर्टिफिकेट्स कुछ कपड़े और पैसे लेकर आ जाना। फिर देखतें हैं। " विकास ने उससे कहा। " विकास ,कुछ होगा तो नहीं ? शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा न ? हुह ....। " माही ने चिंता में पूछा। " तुम्हें मुझपर विश्वास है न ? मैं सब ठीक कर दूंगा। " विकास भरोसा देते हुए बोला। उस रात माही के घर में कोई नहीं सोया। नीचे मम्मी पापा के कमरे में पापा इधर उधर टहल रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि जिस बच्ची को उन्होंने बीस साल इतना प्यार दिया वो आज उनके साथ ऐसे बात करेगी। कहाँ कमी रह गई? उसकी हर बात मानी।उसकी हर जरूरत पूरी की। जब वो पैदा हुई तो छोटे से घर में रहते थे। उसकी खातिर इन्होंने दिन रात मेहनत करके ये घर बनाया। उन्हें अब भी याद है वो कैसे दिन रात एक होस्पिटल से दूसरे होस्पिटल काम करने के लिए भागते थे। कई कई दिन एक दूसरे की शक्ल भी नहीं देख पाते थे और आज ये कहती है कि थैंक्यू , आपने मेरे लिए ये सब किया। अगर यही वो किसी और लहजे में कहती तो दिल को सारी मेहनत, सारी तकलीफें भूल जाती। चल ऐसा नहीं सोचती न सही कम से कम अपने फ्यूचर के बारे में तो सोचे। हम जो कर रहें है उसके फ्यूचर के लिए ही तो कर रहें हैं। हमने सारी जिंदगी उसकी ख़ुशी के लिए ही तो सोचा है। मम्मी का हाल उससे भी बुरा था। वो बैड पर चादर से मुंह ढके सोने का नाटक कर रही थी पर असल में वो रो रही थी। उनकी बेटी , जो उनके हर सपने में शामिल थी आज कह गई कि आप मुझे खुश नहीं देखना चाहते। उसने ऐसे कैसे सब कुछ भुला दिया ? उसके हर बर्थडे पर हम हर काम छोड़ कर उसका बर्थडे मनाते थे। कितने ही बड़े केस हों, सब और डॉक्टर्स को दे देते थे क्योंकि हमें छुट्टी करनी होती थी। उसे हमाऱा बलिदान नहीं दिखता। एक डॉक्टर अगर किसी मरीज को जवाब देता है तो उसका दिल कितना दुखता है ये बात ये क्यों नहीं समझती ? मैंने हमेशा ही कोशिश कि इसके लिए खाना बनाने की और इसे पता ही नहीं कि वो मैं बनाती थी। क्या हमने इसे यही संस्कार दिए हैं ? कहाँ कमी रह गई ? वो ख्यालों में खोई थी कि उसे महसूस हुआ कि उमेश भी जाग रहे हैं।उसने चादर से मुंह निकाला और उनकी तरफ देखा। " आप लेट जाइए। कल काम पर भी जाना है। आप यूहिं चिंता कर रहे हैं। अगर उसे एक साल  के प्यार की इतनी परवाह है तो हमारे बीस साल के प्यार को जरूर याद करेगी। वो बोल तो गई, लेकिन अब पछता रही होगी। आजकल के बच्चे ऐसे ही हैं।वो हमारे जमाने और थे जब हम मम्मी पापा की आँखों से ही डर जाया करते थे। आजकल के बच्चे अपनी गलती नहीं मानते उन्हें लगता है कि जो वो कर रहे हैं वही सही है।उन्हें रोकने वाला ही गलत है। कुछ देर सोचेगी तो उसे अक्ल आ जाएगी।आप बेफजूल चिंता कर रहे हो। कल शाम उससे फिर बात करेंगे।कल मिस्टर सिंह की सर्जरी करनी है।चलो सो जाओ।  " उषा ने पकड़ कर उसे बैड पर लिटा दिया और खुद भी लेट गई। पर नींद किसे आनी थी। माही भी सोई नहीं थी। वो कुछ और ही सोच रही थी ,उसे अपने पेरेंट्स ही गलत लग रहे थे। उसे एक पल के लिए भी उनके साथ बिताए दिन याद नही आए। उसे सिर्फ विकास के साथ भागने की चिंता थी। उसे डर लग रहा था अगर पापा ने किसी को मेरे पीछे लगा दिया तो ? शादी से पहले ही उन्होंने हमें पकड़ लिया तो ? उन्होंने जबर्दस्ती मेरी शादी किसी और से करा दी तो ? नहीं ऐसा नहीं हो सकता मैं किसी और से शादी नहीं कर सकती। मुझे विकास से बात करनी ही होगी। ऐसा करना होगा कि इन्हें पता ही न चले। उसने फिर से विकास को फोन किया। विकास ने फोन उठाकर कहा, "क्या बात है ? नींद नहीं आ रही क्या? " विकास को जैसे कोई चिंता ही नहीं थी । " विकास मैं सोच रही हूँ कि अगर हम कॉलेज के बाहर से गए तो कहीं पापा हमें पकड़ न लें। मैं ड्राइवर के साथ आती हूँ। अगर उसने देखकर पापा को बता दिया तो ? और अगर पापा कॉलेज में प्रोफेसर को फोन करके पूछ लिया तो ? अगर मैं कॉलेज में न हुई तो उन्हें पता लग जाएगा। " माही ने चिंता जताई। " तू न, सोचती बहुत है। चल फिर ऐसा करते हैं कि लंच टाइम में निकल जाएंगे । किसी को पता भी नहीं चलेगा। पौने घंटे का लंच टाइम होता है। नेक्स्ट पीरियड होते होते तो हम दूर निकल जाएंगे। ठीक है अब आराम से सो जाओ। " विकास ने सलाह दी, फिर सोचते सोचते माही भी सो गई। अगले दिन माही रोज की तरह तैयार हुई और ड्राइवर के साथ कॉलेज आ गई। उसके पापा ने सेकंड पीरियड के बाद उसके प्रोफेसर को फोन करके माही की पढ़ाई के बारे में पूछा। तो उन्हें पता लगा कि वो क्लास में ही है। उन्हें तसल्ली हो गई।फिर वो सर्जरी करने चले गए। माही लंच टाइम में चुप चाप कॉलेज छोड़ कर चली गई। विकास ने उसे मैसज करके कह दिया था कि रेलवे स्टेशन पहुंच जाए। वो कॉलेज से बाहर आकर टैक्सी लेकर स्टेशन पहुंच गई। उसने चहरे पर मास्क लगा लिया था कि कोई पहचान न सके । उसे स्टेशन पर एक मास्क वाली लड़की आकर मिली। उसने उसे टिकट पकड़ाया और बोली, "हेलो मुझे विकास ने भेजा है।ये तुम्हारा टिकट है।हम दोनों लेडीज कम्पार्टमेंट में जाएंगे। विकास कॉलेज लगाकर बाद में आएगा। फिर हम आगे इकठ्ठे हो जाएंगे।" दस मिनट बाद ट्रेन आ गई और वो दोनों उसमें चढ़ गईं। माही बार बार खिड़की से बाहर देख रही थी।फिर उसने अंदर की भीड़ देखी, वो इतनी भीड़ में कभी नहीं गई थी। चाहे सब लेडीज थी। फिर भी उसे किसी के टच करने से चिढ मच रही थी। बैठने की जगह भी नहीं थी। वो लड़की उसी के साथ खड़ी थी उसने कहा, "तुम घबराओ मत, हम जल्दी ही उतर जाएंगे।" उसने माही से बैग लेकर खुद पकड़ लिया। माही बड़ी मुश्किल से खड़ी थी और यही दुआ कर रही थी कि जल्दी से स्टेशन आए और वो उतर जाए। कुछ देर में ट्रेन रुकी और काफी लेडीज उतर गई।उन्हें सीट मिल गई और वो बैठ गई। तब उसने उस लड़की से पूछा , "तुम्हारा नाम क्या है ? विकास तुम्हें कैसे जानता है ?" " ओह! मेऱा नाम माया है। मैं विकास के दोस्त की वाइफ हूँ, मतलब उसकी भाभी हूँ। विकास ने इन्हें सब बताया था। तो इन्होंने ही सलाह दी कि अगर तुम दोनों एक साथ जाते ,तो तुम्हारे घर वालों को शक हो जाएगा। हम 7.30 बजे वहाँ पहुंच जाएंगे। मैं तुम्हे वहाँ छोड़कर  वापस आ जाऊंगी।विकास आज कॉलेज अटेंड करेगा। फिर शाम को हमारे पास आ जाएगा। "  माया बोली।

  • 4. You are my destiny (मेरी किस्मत हो तुम) - Chapter 4

    Words: 1083

    Estimated Reading Time: 7 min

    ओह! मेऱा नाम माया है। मैं विकास के दोस्त की वाइफ हूँ, मतलब उसकी भाभी हूँ। विकास ने इन्हें सब बताया था। तो इन्होंने ही सलाह दी कि अगर तुम दोनों एक साथ जाते ,तो तुम्हारे घर वालों को शक हो जाता। हम 7.30 बजे वहाँ पहुंच जाएंगे। मैं तुम्हे विकास के पास छोड़कर  वापस आ जाऊंगी।विकास आज कॉलेज अटेंड करेगा। फिर शाम को हमारे पास आ जाएगा। "  माया बोली। माही कुछ नहीं बोली बस सिर हिला दिया। वो सोच रही थी कि विकास कितना सोचता है उसके बारे में ,उसे अकेले जाने के लिए भी कह सकता था,फिर भी उसने किसी को उसके साथ भेजा। उसे मेरी कितनी फ़िक्र है। सोचते सोचते उसे नींद आ गई और वो सो गई। शाम के पौने सात बज गए थे ,स्टेशन आने में आधा घंटा ही रह गया था।माया ने उसे जगाया। वो एकदम से हड़बड़ा के उठी। उसने अपने आसपास देखा। तो उसे याद आया कि वो ट्रेन में है। " तुम्हें भूख तो नहीं लगी। कुछ खा लो। " माया उसका नाम नहीं ले रही थी कि कहीं लोगों को पता न चल जाए। उसे बिस्कुट नमकीन के पैकेट माही के आगे किए। " नहीं मुझे भूख नहीं है। " कहकर माही फिर चुप हो गई। माया खुद ही बिस्कुट खोल कर खाने लगी। आधे घन्टे बाद वो लखनऊ पहुंच गए। वो जल्दी से नीचे उतरे और स्टेशन से बाहर आ गए। माया ने ऑटो किया और उसे लेकर एक होटल में आ गई। यहाँ उसने माही से पैसे मांगे।माही अपने साथ दस हज़ार रुपए लाई थी,जो उसने अपनी पॉकेट मनी से बचाए थे। उसमें से पांच हज़ार होटल वाले को दे दिए। ----- विकास छुट्टी के बाद घर आया ।उसके घर में दो ही कमरे थे।जिसमें एक कमरा इसका था और दूसरा इसकी तीन बहनों और माँ बाप का। सिर्फ इसके कमरे में ही फैन लगा था दूसरे कमरे में एक पुराना सा टेबल फैन था। घर की बिल्कुल खस्ता हालत थी। दीवारों पर लिपाई भी नहीं हुई थी।बिना दरवाजों के खुली हुई खिड़कियां थी।जिन पर फटे पुराने कपड़े डाल कर बरसात को रोकने का जुगाड़ किया हुआ था। नीचे फ़र्श की जगह ईंटें थी। रसोई के नाम पर बाहर छोटे से आंगन में चूल्हा था , जिसके आसपास छोटी सी दिवार कर रखी थी। दूसरे कोने में दो दीवारें करके बाथरूम बना रखा था जो ऊपर से खुला था। दरवाज़े के नाम पर बोरी टांग रखी थी। विकास को अपने घर को देखकर गुस्सा आता था ,वो सोचता था कि वो इस घर में क्यों पैदा हो गया ?उसने आते ही माँ को ढूंढा। वो बेचारी अभी लोगों के घरों में काम करके आई थी ,पानी ही पी रही थी कि विकास बोला, "मम्मी मुझे बीस हज़ार रूपए दो।" " बीस हज़ार? " माँ का मुंह खुला का खुला रह गया, " बेटे इतना पैसा कहाँ है अपने पास ? तेरे पापा,मेरी और तेरी दोनों बहनो की कमाई  मिलाकर भी महीने का सोलह हज़ार ही बनता है। उसी से बड़ी मुश्किल से घर खर्च चलता है। तुझे बीस हज़ार कहाँ से दूँ ? " मम्मी हड्डियों का ढांचा मात्र थी। वो बोलते हुए भी कांप रही थी। " फिर उस मुन्नी को भी कहीं लगा दो काम पर। घर पर क्या काम करती है ?बाकी मैं आपके ये दुखड़े सुनने नहीं आया।मुझे बीस हज़ार चाहिए तो चाहिए। वो जो तुम ट्रंक में छुपा कर रखती हो उसमें से दे दो।" विकास को किसी की गरीबी या लाचारी की कोई फ़िक्र नहीं थी। उल्टा कहता कि तीसरी बहन को भी काम पर लगा दो। " वो पैसे नहीं छेड़ने वो तेरी बहनों की शादी के लिए जोड़ें है। वो भी खर्च देंगे तो इनकी शादी कैसे करेंगे ?" मम्मी बोली। " इनकी शादी की फ़िक्र है अपने बेटे की कोई फ़िक्र नहीं है। इनसे किसने शादी करनी है? तुम मुझे पैसे दो। " कहकर विकास ने मम्मी से चाबी छीन कर ट्रंक में जितने पैसे पड़े थे सारे ले लिए और निकल गया। मम्मी चिल्लाती रही। तभी मुन्नी (विकास की बहन ) नहा कर आई थी मम्मी को संभालते हुए बोली , "मम्मी क्या हुआ ? क्यों चिल्ला रही हो ?" मम्मी ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया कैसे बताती कि उसका बेटा पैसे छीन कर भाग गया। वो बैठी रोती रही। ------ छुट्टी के वक़्त ड्राइवर माही को लेने आया। वो वेट करता रहा जब वो नहीं आई तो वो अंदर गया उसने पूछा तो पता चला कि माही की क्लास के सभी बच्चे चले गए हैं।उसने घर फोन किया, " हेलो, बेबी आ गई क्या ? " " नहीं ,उसे लेने तो तुम गए हो वो किसके साथ आएंगी ?" नौकऱानी बोली। " अच्छा ठीक है ।अगर आ जाती हैं तो मुझे फोन कर देना। " कहकर उसने फोन रख दिया। वो परेशान हो गया कि माही कहां गई ? वो बुरी तरह घबरा गया। उसने डॉ. उमेश को फोन किया । पर उन्होंने उठाया नहीं ।फिर उसने माही की मम्मी को फोन किया उन्होंने भी नहीं उठाया ।तो वो कार लेकर होस्पिटल पहुंच गया। उसने रिसेप्शन पर जाकर पूछा तो पता चला कि वो ऑपरेशन थिएटर में हैं। वो कुछ नहीं कर सकता था सो वो वहीं बैठ कर उनके आने की वेट करने लगा। उन्हें आने में लगभग दो घंटे बीत गए। जब वो थके हुए बाहर आए । माही के पापा अपने सिर की नसें दबा रहे थे। उन्होंने ड्राइवर को देखा तो पूछा, "क्या हुआ? तुम यहाँ क्या कर रहे हो? " पूछते हुए वो अपने कमरे में चले गए। " जी सर, वो बेबी कॉलेज में नहीं हैं। " ड्राइवर ने उनके पास होकर कहा। " क्या ? तुमने ठीक से देखा। उसकी क्लास में पता किया ? " उसके पापा ने पूछा।उनकी सारी थकान जाती रही। " जी ,मैं उनकी क्लास में गया था। वहाँ कोई नहीं था ।एक बच्चे से पूछा था तो उसने बताया कि क्लास के सभी बच्चे चले गए हैं। मैंने घर भी फोन किया था। पर घर भी नहीं गई हैं। आपको फोन किया पर आपका फोन भी बंद आ रहा था तो मैं यहाँ आ गया। " ड्राइवर एक ही साँस में सब बोल गया। डॉ.उमेश तो वही कुर्सी पर निढ़ाल से बैठ गए। तभी अंदर से माही की मम्मी आई उसने उमेश को ऐसा देखा तो जल्दी से पानी की बोतल ले आई ,उन्हें लगा कि सर्जरी के कारण थक गए।इसलिए वो उन्हें पानी देते हुए बोली, "उमेश ये लो पानी पी लो, आज कुछ ज्यादा ही समय लगा सर्जरी को। ऐसा करो कुछ देर रेस्ट कर लो। " माही की मम्मी ने उनसे कहा।

  • 5. You are my destiny (मेरी किस्मत हो तुम) - Chapter 5

    Words: 1193

    Estimated Reading Time: 8 min

    डॉ.उमेश तो वही कुर्सी पर निढ़ाल से बैठ गए। तभी अंदर से माही की मम्मी आई उसने उमेश को ऐसा देखा तो जल्दी से पानी की बोतल ले आई ,उसे लगा कि सर्जरी के कारण थक गए। इसलिए वो उन्हें पानी देते हुए बोली, "उमेश ये लो पानी पी लो, आज कुछ ज्यादा ही समय लगा सर्जरी को। ऐसा करो कुछ देर रेस्ट कर लो। " उन्हें पति की इतनी चिंता थी कि ड्राइवर की तरफ उनका ध्यान भी नहीं गया। " उषा ,माही कहीँ चली गई। ड्राइवर बता रहा है वो कॉलेज में नहीं है और घर पर भी नहीं है। हम लुट गए उषा,हम बर्बाद हो गए।उस पगली ने कुछ नहीं सोचा । एक बार तो हमारे बारे में सोचती। हम क्या मुंह दिखाएंगे लोगों को ?" कहकर वो जोर जोर से रोने लग गए। उषा के भी कदम लड़खड़ा गए । वो भी उनके बगल में बैठ गई। बैठ क्या गई एक किस्म से गिर गई। ड्राइवर ने जल्दी से दरवाज़ा बंद कर दिया। " सर, मैडम आप चिंता न कीजिए। बेबी वापस आ जाएंगी।हम मिलकर ढूंढते हैं। आप होंसला रखिए।" ड्राइवर हीरा  भी विकास के बारे में जानता था। इसलिए उसे कुछ कुछ समझ आ रहा था वो उन्हें होंसला देता हुआ बोला। " अरे! ये करने की क्या जरूरत थी कुछ तो सब्र करती। हम आखिर माँ बाप है कोई जल्लाद थोड़े ही हैं ,जो उसकी नहीं सुनते।माही, तूने ये क्या किया? हमारे प्यार का थोड़ा तो लिहाज रखती। " उषा अपना माथा पीटते हुए रोने लगी। " सर जी ,मैडम जी आप ये सब छोड़िए और उसे ढूंढिए। अभी ज्यादा दूर नहीं गई होगी।" ड्राइवर बोला। तब उन दोनों को ख्याल आया । डॉ.उमेश ने अपना फोन निकाल कर माही को फोन किया। पर उसका फोन बंद आ रहा था। उन्होंने उसके फोन की लोकेशन देखी तो वो कॉलेज में शो हो रहा था। वो माही के कॉलेज भी पता नहीं कर सकते थे। उन्होंने सुबह ही तो प्रोफेसर से बात की थी। अब दुबारा फोन करेंगे तो उन्हें बताना पड़ेगा कि माही घर नहीं आई इसलिए उसे ढूँढ़ रहे हैं। कैसे सबको बताएं कि उनकी माही चार दिन के प्यार के लिए उनके बीस साल के प्यार को छोड़ कर उस लड़के के साथ भाग गई।डॉ उमेश फिर रो पड़े। वो मुंह उठा नहीं पा रहे थे। बच्चे अच्छा काम करते हैं। तो माँ बाप का सर गर्व से ऊँचा हो जाता है।चाहे वो स्कूल में कविता बोलने में थर्ड ही क्यों ना आया हो। माँ बाप हर रिश्तेदार को ये गर्व से बताते हैं। बच्चों की जीत में उन्हें अपनी जीत दिखती है। वो ख़ुशी ही और होती है।लेकिन जब बच्चे इस तरह का काम करते हैं तो वही माँ बाप हार जाते हैं ,वो किसी के सामने सिर नहीं उठा पाते। हर कोई उनकी तरफ ऊँगली करके हँसता है कि इनकी बेटी भागी थी। ये ख्याल उमेश और उषा को खाए जा रहा था। वो जिंदगी से हार गए थे।जिंदगी में भर की उनकी सारी मेहनत सारी तपस्या एक पल में बेमायने हो गई थी।दोनों रोए जा रहे थे। " सर ,हम इस तरह नहीं बैठ सकते बेबी कहीं गलत हाथों में न पड़ जाए।सर उठिए, चलिए बेबी को ढूंढे। " हीरा ने उन्हें हिलाते हुए कहा। " उमेश ये ठीक कह रहा है। हमें उसे ढूँढना चाहिए। शायद वो हमें मिल ही जाए। हम उसे घर ले आएँगे। मान लेंगे जो वो चाहती है। चलो उस विकास के घर चलते हैं। मैं सीमा को कह देती हूँ। वो यहाँ सब संभाल लेगी। " कहकर उषा ने सीमा को फोन किया। सीमा उन्ही के होस्पिटल में एक सीनियर डॉक्टर थी। सीमा ने फोन उठाया तो उषा बोली, "डॉ सीमा ,हमें बहुत.... जरूरी काम है। अभी बता नहीं सकती ....मैं आपको ....मिलकर बताऊँगी। हम दोनों जा रहे हैं। ....होस्पिटल संभालना। मिस्टर सिंह की सर्जरी हो गई है। वो ऑब्जरवेशन में हैं ....उन्हें देख लीजिएगा। बाकि रूटीन चेक कर लेना। " सीमा के ओके कहने पर उषा ने फोन बंद कर दिया। ------- डॉ. उमेश ने एक पेपर निकाला,उस पर विकास का एड्रेस था। उन्होंने वो ड्राइवर को दिया और बोला ,"हीरा,यहाँ ले चलो।" " सर यहाँ ? ये तो बस्ती है। आप लोग वहाँ कैसे ? ...... ।" फिर वो कुछ नहीं बोला और चल दिया। वो लोग खस्ता हाल बस्ती में पहुंच गए। हीरा बोला, "सर यहाँ से पैदल जाना होगा। कार अंदर नही जाती। " सभी कार से उतर कर चल दिए। वो विकास के घर के सामने आए तो घर की हालत देख कर उषा की आंखें भर आई। वो मन ही मन माही को कोसते हुए सोच रही थी माही तुम्हें यही लड़का मिला था। एक बार इसका घर तो देख लेती। उसकी आँखों से पानी बह निकला। बाहर टुटा सा दरवाज़ा था। जिसे ईंटें रख कर खड़ा किया गया था। हीरा ने दरवाज़ा खटखटाया। दरवाज़ा विकास की बहन ने खोला । वो उन लोगों को देख कर हैरान रह गई और घबरा भी गई। इतने अमीर लोग उनके घर क्यों आए? उसने अपनी मम्मी को आवाज़ लगाई। गली में भी काफी लोग उन्हें देखकर उनके पीछे आ गए थे। वो लोग अंदर आ गए । विकास की मम्मी आई उसके साथ परिवार के बाकी के लोग भी थे। सभी के चेहरे सूखे से, लड़कियों ने लोगों के दिए कपड़े पहने थे। फिर भी उनके चेहरों से गरीबी झलक रही थी। " विकास कहाँ है ? " हीरा ने पूछा। " विकास तो यहाँ नहीं है। "विकास की माँ कांपते हुए बोली। उसे लग गया था कि विकास ने कुछ कर दिया है। " तुम्हें बता कर नहीं गया ? तुम्हारा बेटा है कहाँ जाता है, तुम्हें पता होना चाहिए। " हीरा गुस्से से बोला। " हम क्या करें जी वो हमारी सुनता ही कहाँ है ? क्या करता है ? कहाँ जाता है? ये बताना तो दूर वो तो घर में भी होता है तो हमारे साथ नहीं बैठता। आज ही अपनी माँ से सारी जमा पूंजी छीन कर भाग गया। कहाँ गया क्या पता ? हम इसका क्या करें? थक गए हम तो। " विकास का बाप रोते हुए बोला उसने धोती और फटी सी बनियान पहनी थी जिसे वो हाथ रख कर छुपाने की कोशिश कर रहा था। उमेश और उषा को इन पर तरस आ गया। उमेश बोला, "देखिए, ये हमारे नंबर हैं। जैसे ही विकास का कुछ पता चलता है। प्लीज बता दीजिएगा। " " क्या आप बताएंगे उसने क्या किया है? मार पीट तो अक्सर करता रहता है। अब क्या किया ?" उसकी माँ ने पूछा। " जी वो हमारी बेटी को भगा ले गया है। दोनों साथ ही पढ़ते थे। अगर पता चले तो बता देना । " उषा ने रोते हुए कहा। विकास की माँ सिर पकड़ कर नीचे बैठ कर रोने लगी। " पगले ये क्या किया तूने ? अरे अपनी बहनों का तो ख्याल करता। " वो जोर जोर से रोने लगी। वो लोग वापस जाने लगे तो उषा ने पर्स से कुछ पैसे निकाले और पास खड़ी लड़की को पकड़ा दिए। लड़की पकड़ नहीं रही थी। पर उषा बोली, "मेरी माही तुम्हारी उम्र की ही है। अगर उसे कुछ हो गया तो हम मर जाएंगे। " उसने सबके आगे हाथ जोड़े और वहाँ से चले आए।वो सारे रस्ते रोते आई।

  • 6. You are my destiny (मेरी किस्मत हो तुम) - Chapter 6

    Words: 1087

    Estimated Reading Time: 7 min

    वो लोग वापस जाने लगे तो उषा ने पर्स से कुछ पैसे निकाले और पास खड़ी लड़की को पकड़ा दिए। लड़की पकड़ नहीं रही थी। पर उषा बोली, "मेरी माही तुम्हारी उम्र की ही है। रख लो। " उसने सबके आगे हाथ जोड़े और वहाँ से चले आए।वो सारे रस्ते रोते आई। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें ? उसे कहाँ ढूंढे ? पुलिस में रिपोर्ट भी नहीं लिखा सकते थे । रिपोर्ट करेंगे तो पुलिस सबसे पूछती फिरेगी। घर में सभी नौकरों से, फिर गली मोहल्ले में और कॉलेज में , उनके होस्पिटल में सबसे पूछताछ करेगी। हर किसी को पता चल जाएगा। इससे माही और इनकी ही बदनामी होगी। वो घर आकर सिर पकड़ कर बैठ गए। उमेश का तो रोना ही नहीं रुक रहा था ।वो जोर जोर से रोता जा रहा था। अब तो घर के नौकरों को भी पता लग गया था। वो बस उसके वापस आने का इंतज़ार ही कर सकते थे। ------- माया माही को होटल के कमरे में छोड़ कर वहाँ से चली गई। बाहर अंधेरा हो चला था। माही को घबराहट होने लगी थी । वो कभी भी अकेली इतनी देर तक घर से बाहर नहीं रही थी। उसे डर लग रहा था।कहीं पापा ने विकास को पकड़ न लिया हो। वो मन में विकास को पुकारने लगी, "विकास कहाँ हो? ..... विकास अब आ भी जाओ । ..... मुझे डर लग रहा है। " किसी ने दरवाज़ा खटखटाया उसने सोचा विकास होगा उसने झट से दरवाज़ा खोला, पर ये विकास नहीं कोई और ही लड़का था। वो बोला , "मैडम आप अकेली हैं? " " नहीं ,मेरे पति आने वाले हैं। " माही बोली। " आपने डिनर करना है ? " उसने माही को गंदे से तरीके से ऊपर से नीचे तक देखा । माही कांप गई। वो लोगों की नज़रों को समझने लगी थी। " नहीं ,मुझे कुछ नहीं चाहिए। अगर कुछ चाहिए होगा तो मैं खुद मंगा लूँगी। " माही बोली। तो वो गंदी सी स्माइल वापस चला गया। उसे अब अपने मम्मी पापा याद आए।मम्मी ने एक बार समझाया था कि कहीं अकेले मत जाना,अकेली लड़की को देखकर गंदे लोग उसे नोचना खसोटना चाहते हैं। ये याद आते ही वो और घबराने लगी। करीब नो बजे फिर से किसी ने दरवाज़ा खटखटाया। उसने डरते डरते खोला। सामने विकास खड़ा था। वो उससे लिपट कर रो पड़ी। विकास ने उसे प्यार से चुप कराया। " अच्छा अब चुप हो जाओ। आओ खाना खाएं ।मैं खाना लेकर आया हूँ। मुझे पता है तुमने कुछ नहीं खाया होगा। मैं आ गया हूँ ना,अब तुम चिंता न करो। " विकास ने उसे बाँहो में भर कर चुप कराते हुए कहा। दोनों ने खाना खाया। फिर विकास बोला, "हमें कुछ दिन यहीं छुपना होगा। मैं कोर्ट जाकर आया था आज फ्राइडे है। कल और परसों की छुट्टी है। अब मंडे को कोर्ट खुलेगा। उस दिन ही शादी कर पाएंगे। फिर हमें किसी का डर नहीं होगा। " " तुम्हें मेरे पापा तो नहीं मिले ?" माही ने पूछा। " नहीं, शायद उन्हें अभी पता ही नहीं चला होगा। हमारे लिए तो ठीक ही है। अच्छा ! मैंने तुम्हें कहा था कि कुछ पैसे और गहने ले आना। लाई हो क्या ? "विकास ने पूछा। " गहने तो नहीं पैसे ले आई हूँ। ये रहे दस हज़ार रुपए हैं। मैं अपनी पॉकेट मनी ले आई हूँ। " माही ने उसे दस हज़ार रुपए पकड़ाते हुए कहा। "बस दस हजार? इतने में क्या होगा? तुम्हें पता है इस होटल का एक दिन का किराया ही पांच हज़ार रुपए है। फिर खाना पीना अलग। इससे हम तो दो दिन नहीं काट सकते। " विकास गुस्से से बोला। उसका ऐसा बर्ताव देख कर माही रो पड़ी। " अरे !तुम फिर रोने लगी। सॉरी ,मैं भी परेशान हूँ इसलिए ऐसा कहा। देख मेरे पास भी थोड़े ही पैसे हैं। अब हम दो दिन के बाद क्या करेंगे ? इसी चिंता के कारण गुस्से से ऐसा बोल दिया। कोई नहीं रोओ मत। हम कुछ न कुछ कर लेंगे। " कहकर उसने फिर से माही को गले लगा लिया और उसे चुप कराया। माही ने अब भी उसकी बात पर यकीन कर लिया। सोते वक़्त विकास उसे बाँहो में लेकर किस करने लगा। माही ने भी उसे नहीं रोका और खुद भी उसे किस करने लगी।कमरे में उनकी सांसों और धड़कन की आवाज़ के सिवा और कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। विकास के हाथ उसके बदन पर घूमने लगे। उसने उसकी शर्ट को खोलने की कोशिश की तब माही को होश आया। वो एकदम से पीछे हट गई और विकास को रोकते हुए बोली, "नहीं विकास ,ये ठीक नहीं है। मैं बेशक मॉडर्न लड़की हूँ। पर आज भी मैं इस सब के पक्ष में नहीं हूँ। किस तक तो ठीक है पर ये सब शादी के बाद । " कहकर वो जाकर सोफे पर लेट गई। विकास ने भी उसे कुछ नहीं कहा। अगले दिन विकास उठकर तैयार हो गया, "माही, मैं कोई काम ढूंढने जा रहा हूँ। काम मिलेगा तो कुछ पैसे हो जाएंगे। मेरी वेट करना। मैं नीचे कह जाऊंगा ,वो खाना दे जाएंगे। " माही ने ओके कह दिया। विकास चला गया। माही अकेली बैठी अपनी मम्मी पापा को याद करने लगी। कि इस वक़्त वो क्या कर रहे होंगे ? क्या वो मुझे ढूंढ रहे होंगें ? वो यहाँ तक तो नहीं आ सकते। अगर आ गए तो ? उसे अजीब अजीब से ख्याल आ रहे थे। उसे हर आहट पर लगता था कि कहीं पुलिस न आ जाए। जैसे तैसे दिन निकल गया। होटल का आदमी दोपहर का खाना दे गया था। उसके बाद कोई नहीं आया। शाम छह बजे से वो विकास का इंतज़ार करने लगी थी अब दस बज गए थे पर विकास नहीं आया था। वो कमरे में कैद पंछी की तरह इधर उधर चक्कर काट रही थी। रात के साथ उसका डर बढ़ता जा रहा था । वो सोफे पर बैठी इंतज़ार कर रही थी। इंतज़ार करते करते वो कब सो गई उसे पता ही नहीं चला। जब उसकी आंख खुली , उसने टाइम देखा तो सुबह के छह बज गए थे और विकास रात भर आया नहीं था। वो बहुत घबरा गई कि विकास कहाँ गया  ? वो क्यों नहीं आया ? कहीं उसे पुलिस ने तो नहीं पकड़ लिया ? उसने विकास को फोन लगाया , कुछ देर बजने के बाद विकास ने फोन उठाया और बोला, "हेलो माही, वो मैंने कल एक फैक्ट्री में मजदूरी की थी। बस में आने जाने का किराया बचाने के लिए यहीं रुक गया। आज का काम करके आ जाऊंगा। तुम नाश्ता कर लेना। "

  • 7. You are my destiny (मेरी किस्मत हो तुम) - Chapter 7

    Words: 1053

    Estimated Reading Time: 7 min

    जब उसकी आंख खुली तो उसने टाइम देखा तो सुबह के छह बज गए थे और विकास आया नहीं था। वो बहुत घबरा गई कि विकास कहाँ गया  ? वो क्यों नहीं आया ? कहीं उसे पुलिस ने तो नहीं पकड़ लिया ? उसने विकास को फोन लगाया , कुछ देर बजने के बाद विकास ने फोन उठाया और बोला, "हेलो माही, वो मैंने कल एक फैक्ट्री में मजदूरी की थी। बस में आने जाने का किराया बचाने के लिए यहीं रुक गया। आज का काम करके आ जाऊंगा। तुम नाश्ता कर लेना। " माही को उसके फोन से तसल्ली हो गई। उसने उठकर नहा धोकर साफ कपड़े पहन लिए। कुछ देर बाद वेटर नाश्ता ले आया।माही ने बैठकर आराम से नाश्ता किया। उसे इस बात की ख़ुशी थी कि विकास उसके लिए और उसके प्यार की खातिर मजदूरी तक कर रहा है। वो शाम का इंतज़ार करने लगी। ------- विकास उसी होटल के दूसरे कमरे में अपने दोस्त अमर के साथ बैठा था। ये होटल अमर का ही था।  यहीं से उसने फोन किया था। उसके दोस्त ने सारी बात सुनी थी। वो बोला, "अच्छा जी ये तुम मजदूरी कर रहे हो कल से यहाँ आराम कर रहे हो और उसे वहाँ छोड़ रखा है। उसके पास रहते दिन रात मौज करते । पैसे भी तो बहुत लाई होगी। " अमर ने उसे आंख मारते हुए कहा। " कहाँ यार ? वो तो बिलकुल की बेकार निकली। मैंने तो समझा था कि ढेर सारे पैसे लेकर आएगी। लेकिन सिर्फ दस हज़ार लेकर आई है। ऊपर से कहती है कि शादी से पहले नज़दीक न आना। तभी तो यहाँ आ गया। " विकास मुंह बना कर बोला। " चल एक दिन की बात है।तू कह रहा था कि इसका बाप बहुत पैसे वाला है। देख अगर इससे तेरी शादी हो गई तो सारी दौलत तेरी। अगर शादी नहीं भी करेंगे तो वो कहेंगे कि ये उठा पैसे और हमारी बेटी को छोड़ दे। तो जितना दिल करे उतने मांग लेना। फिर तेरी पांचों उँगलियाँ घी में होंगीं।" अमर बोला। " नहीं यार इसका बाप अलग ही किस्म का निकला उसने तो पुलिस को भी खबर नहीं की। वो सब कुछ छुपा के रखना चाहता है। लगता नहीं कि वो मुझे कुछ देगा। इसे फसाने में इतना समय लगाया और फायदा कुछ भी नहीं हुआ। पकड़ा गया तो पिटाई अलग से होगी। तू घी की बात करता है मेरे साथ तो वो हुआ 'खाया पिया कुछ नहीं, ग्लास तोडा बारह आना ' सच में बहुत पछता रहा हूँ। अब उसे वापस ले भी नहीं जा सकता। " विकास बोला। " मेरे पास एक आईडिया है। पैसे तो अब भी मिल सकते हैं। अगर तू ऐसा करे तो। " अमर ने उसके कान में कुछ बताया। सुनकर विकास ने उसकी तरफ देखा और पूछा, "हम फसेंगे तो नहीं ? " " कमाल है तुझे क्या लगता है मैंने ये होटल बाप की कमाई से बनाया है ? वो माया यही काम तो करती है। उसे मैं ऐसे ही भगा कर लाया था।फिर मैने उसे खुद ही उठवा दिया।बाद में आकर उसे ही सुना दिया कि कहां चली गई थी? और फिर से मिलना शुरू कर दिया। मौज ही मौज है।वो शुरू शुरू में किसी आंटी के अंडर थी अब अपना है सब कुछ। अब तुम्हारे जैसे कई लड़के लड़कियों को भगा लाते हैं।दो दिन मौज मस्ती करते हैं फिर लड़कियों को छोड़ कर भाग जाते हैं।फिर मैं उन लड़कियों को वही बेज देता हूँ । अच्छा पैसा मिलता है। हींग लगे न फटकरी रंग भी चौखा होए।" अमर बोला। " ओके ,जैसा तुम कहो। मुझे इससे छुटकारा चाहिए। " विकास बोला। " ठीक है फिर उसकी पसन्द का खाना लो"  कहकर  उन्होंने खाना मंगवाया और अमर ने उसमें कोई दवा मिला दी। फिर वेटर को वो खाना माही को देने भेज दिया। " यार ! वो सीसीटीवी तो नहीं है न होटल में ?" विकास ने डरते हुए पूछा। " तू डरता क्यों है? सब अपने हाथ में है।तू ऐसा कर ये ले पचास हज़ार और मुंबई निकल जा। अगर फिल्मों में काम मिल गया तो ठीक, नहीं तो वापस घर चले जाना। अगर कोई इसके बारे में पूछे तो कह देना कि तुम्हें नहीं पता ये भी कि तू तो अकेला गया था।  " अमर ने उसके कंधे पर हाथ मारते हुए कहा। विकास ने पचास हज़ार पकड़े और हँसते हुए आंख मार कर बोला, "बहुत हैं। मैं दोपहर की ट्रेन से निकलता हूँ। तुम इसे देख लेना। " कहकर वो निकल गया। ------ खाना खाते ही माही बेहोश हो गई। उसे पता ही नहीं चला उसे क्या हुआ? जब उसकी आंख खुली तो वो एक छोटे से,अजीब से कमरे में थी। दीवारों पर लड़कियों की अश्लील पोस्टर लगे थे।कमरे की लाल रौशनी में वो और भी अश्लील लग रहे थे। उसने अपने कपड़ों की तरफ देखा। उसने वही कपड़े पहने हुए थे जो उसने सुबह पहने थे। वो सोचने लगी की वो कहाँ है ? विकास कहाँ है? कहीं उस खाने में होटल वाले ने मुझे कुछ खिला तो नहीं दिया। उसके पास अपना सामान भी नहीं था। कमरे में न कोई घड़ी थी और ना कोई खिड़की ही थी। जिससे वो टाइम का अंदाजा लगा सके। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे ? तभी दरवाज़ा खुला और एक आंटी खाना ले कर अंदर आई । उसे देखते ही पूछा, "उठ गई ? भूख लगी होगी ?" उसने बहुत मेकअप कर रखा था और बहुत ही सेक्सी कपड़े पहन रखे थे। माही उसे देखकर बैड के एक कोने से लग कर बैठ गई। "ये कौन सी जगह है ? विकास कहाँ है ?" माही ने हिम्मत करके पूछा। "जगह कोई भी हो इससे फर्क नहीं पड़ता। बाकि तुम किस विकास की बात कर रही हो यहाँ तो जाने कितने विकास कितनी ही तेरी जैसी लड़कियों को लाकर पैसा लेकर चलते बनते हैं। तुम लड़कियां पता नहीं क्यों इनके चक्करों में पड़ जाती हो। अब बातें करना छोड़ो और खाना खा लो। "  उसने माही की तरफ प्लेट बढ़ाई। " मुझे नहीं खाना तुम्हारा खाना । "कहकर माही ने प्लेट उठाकर फेंक दी। फटाक ! उस आंटी ने उसके जोर से चांटा मारा और बोली, "अब तुझे खाना तब मिलेगा जब तू खुद मांगेगी। तेरी जैसी छत्तीस सौ लड़कियों को ठीक किया है मैंने। " कहकर वो वहाँ से निकल आई और दरवाजे को बाहर से ताला लगा दिया।

  • 8. You are my destiny (मेरी किस्मत हो तुम) - Chapter 8

    Words: 1181

    Estimated Reading Time: 8 min

    " मुझे नहीं खाना तुम्हारा खाना । "कहकर माही ने प्लेट उठाकर फेंक दी। फटाक ! उस आंटी ने उसके जोर से चांटा मारा और बोली, "अब तुझे खाना तब मिलेगा जब तू खुद मांगेगी। तेरी जैसी छत्तीस सौ लड़कियों को ठीक किया है मैंने। " कहकर वो वहाँ से निकल आई और दरवाजे को बाहर से ताला लगा दिया। माही को अब अहसास हुआ कि उसने कितनी बड़ी गलती कर दी है। उसकी बीस साल की जिंदगी में कभी उससे कोई ऊँची आवाज़ में नहीं बोला था। थप्पड़ मारना तो दूर। उसके माँ बाप ने उसे हर दुख से दूर रखा था और वो खुद ही दुखों का बीच आ फंसी। उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। वो रोए जा रही थी ,उसका अब क्या होगा? क्या वो यहाँ से कभी निकल भी पाएगी ? बिना खाने और बिना पानी से उसकी हालत खराब हो रही थी। ऊपर से कमरे की स्मेल से उसे उल्टी आ रही थी वो कमरे के साथ बने वाशरूम में बार बार जाती। उसे वाशरूम से और भी गंदी स्मेल आती। फूलों से नाज़ुक माही आज काँटों से घिरी पड़ी थी। उसका  चेहरा दर्द कर रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे ? उस घटिया औरत ने कमरे की लाइट भी बंद कर दी थी। उसे बहुत गर्मी लग रही थी और अंधेरे में उसे अपना हाथ भी नहीं दिख रहा था। वो रोते रोते सो गई। जब वो दुबारा उठी तो उसे लगा जैसे वो किसी अंधेरी गुफा में हो। भूख प्यास के मारे उससे हिला नहीं जा रहा था। ऊपर से घना अंधेरा। वो अपने मम्मी पापा को याद करके रोए जा रही थी। वो चिल्लाने लगी। "मम्मी......मुझे भूख ... लगी है। मुझे..... यहाँ .... डर लग.... रहा है। ...मम्मी मुझे .... बचा लो। पापा ....आई एम .... सॉरी.... .इस बार .... बचा लो..... आगे से ऐसा .....नहीं करूंगी। पापा आ ..... जाओ। मम्मी ......पापा .......। " वो जोर जोर से उन्हें पुकार रही थी। फिर उसमें चिल्लाने की जान नहीं रही। वो निढाल सी फ़र्श पर पड़ी थी। वो विकास को भी याद कर रही थी। उसे लग रहा था कि वो काम से लौटेगा तो उसे न पाकर उसका क्या हाल होगा ? उसे ऐसा लग रहा था कि ये सब होटल वालों का किया धरा है। क्या विकास उनसे पूछकर मुझ तक नहीं आ सकता? अक्सर फिल्मों में दिखाते हैं ऐसे मौके पर हीरो आता है और हीरोइन को  बचा कर ले जाता है। उसे भी लग रहा था कि शायद विकास आ जाए। वो कभी कुछ कभी कुछ सोचे जा रही थी। वो फिर चिल्लाने लगी। " विकास...... आ जाओ। कब......... आओगे ? तुम्हारी माही .... बुला रही ..... है। कब तक...... इंतज़ार करूँ? ....अब नहीं ..... विकास ...... अब और ..... बर्दास्त ...... नही होता।आ जाओ..... विकास।"  उसका भूख प्यास और चिल्लाने से बुरा हाल हो गया था। वो बेहोश हो गई। होश आया तो फिर वही अंधेरा । अब उससे हाथ पैर भी हिलाए नहीं जा रहे थे। वो वहीं लेटी कुछ कुछ सोचे जा रही थी उसे अब हर तरफ खाना दिखने लगा था । वो हाथ बढ़ाती तो खाना गायब हो जाता। उसे पता नहीं था। उसे इस हालत में दो दिन हो गए थे। उसे कभी मम्मी दिखाई देती कभी पापा तो कभी विकास लेकिन जब वो उनकी तरफ हाथ बढ़ाती वो गायब हो जाते। तभी दरवाज़ा खुला तेज रोशनी से उसकी आँखें चौंधिया गई। कुछ देर तो उसे कुछ नजर नहीं आया। फिर उसने देखा कि वही आंटी अंदर आई ओर बोली , "क्यों छमिया क्या हाल है ? नानी याद आई न ? " " आंटी मुझे ..... पानी .... दे .... दो। " माही से बोला ही नहीं जा रहा था । उसे लग रहा था मानो किसी ने उसका गला दबा दिया हो। " पानी भी दूँगी और खाना भी दूँगी । मगर जो मैं कहूंगी ,तुम्हें वो करना पड़ेगा। " वो बोली। माही हार गई थी उसे उनकी बात माननी पड़ी। वो बोली, "मैं करूंगी....जो तुम कहोगे..... मैं करूंगी। मुझे पानी....दे दो।" तब उस आंटी ने उसे पानी दिया। माही ने ऐसे पानी पिया मानो सदियों से प्यासी हो। फिर उसे उस आंटी ने खाना दिया। खाना खाने के बाद उसे किसी डॉक्टर को दिखाया गया। डॉक्टर उसे दवा दे गया। उसे पूरी तरह ठीक होने में तीन दिन लगे। अब वो उनकी हर बात मानने लगी थी। वो माही से छमिया बन गई थी।अब उसे सब छमिया कहते थे। वो भी उन लोगों की तरह सजने लगी। वो रोज सुबह उठती और नहा धोकर एक दुल्हन की तरह सज कर बैठ जाती। उस आंटी के सिवा अब उसके पास और लड़कियां भी आने लगी थी। वो उनसे उनकी तरह उठना बैठना और बोलना सीख गई थी। अब वो एक प्यारी सी लड़की से एक बाजारू औरत बन गई थी। वो अब कमरे से बाहर निकलने लगी थी। वो रोज देखती थी, कि कैसे यहाँ हर उम्र के लड़के और आदमी आते और अपनी पसन्द की लड़कियों के साथ समय बिताते। आंटी बोली , "तू चिंता न कर तुझे किसी ऐसे वैसे को नहीं दूँगी। तू पढ़ी लिखी है। कोई पढ़ा लिखा आएगा तो उसे दूँगी। तब तक तू आराम कर। दिल्ली माही के मम्मी पापा रोज होस्पिटल जाते। और घर आ जाते। उन्हें माही के फोन का इंतज़ार था। वो पुलिस को  बताना नहीं चाहते थे ।उन्होंने अपने दम पर काफी तलाश की। उन्हें ये तो पता चल गया कि वो विकास के साथ ही गई है। तो उन्होंने सोचा कि जब पैसे खत्म हो जाएंगे तो वो दोनों वापस आ जाएंगे। वो विकास के घर भी पता करते थे जाकर। हर फोन की आवाज़ पर उन्हें लगता कि माही का फोन होगा। हर आहट पर उन्हें लगता माही आ गई है। कॉलेज में उन्होंने कह दिया कि उसे विदेश भेज दिया है। " उमेश पुलिस को रिपोर्ट कर दो। क्या पता वो ढूंढ ही दे माही को। " उषा बोली। " ढूंढ भी लेंगे तो क्या करेंगे ? शादी तो उसने कबकी कर ली होगी। जब उसे हमारी फ़िक्र नहीं है तो हम क्यों उसकी फ़िक्र करें। " उमेश गुस्से से बोले। " लेकिन बेटी है वो हमारी ऐसे कैसे छोड़ दें।शादी कर ली हो तो करने दो। उसे घर ले आओ,हमने इतना पैसा क्या करना सब उसी का तो है। माफ़ कर दो उसे। " उषा बोली। " वो विकास यही तो चाहता है। हम माही को घर ले आएं और वो घर जवाई बनकर यहाँ बैठ जाए। नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता। तुम उन्हें माफ करने को कह रही हो। तुम्हें पता है मैं उस दिन से सिर उठा कर चल नहीं पाया हूँ ।लोग मेरी तरफ देखते है तो लगता है वो मेरा मज़ाक उड़ा रहे है कि देखो ये जा रहा है, इसकी बेटी भाग गई। या फिर वो तरस से देखते हैं, हाय! बेचारे की लड़की भाग गई। मुझसे उनसे नज़रें नहीं मिलाई जाती। जिस गलियो में सिर उठा कर छाती चौड़ी करके चलता था उसी में सिर झुका कर चलता हूँ। उसने हमें किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा और तुम कह रही हो माफ़ कर दूँ। " बोलते बोलते उमेश रोने लगा।

  • 9. You are my destiny (मेरी किस्मत हो तुम) - Chapter 9

    Words: 1106

    Estimated Reading Time: 7 min

    " वो विकास यही तो चाहता है। हम माही को घर ले आएं और वो घर जवाई बनकर यहाँ बैठ जाए। नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता। तुम उन्हें माफ करने को कह रही हो। तुम्हें पता है मैं उस दिन से सिर उठा कर चल नहीं पाया हूँ । लोग मेरी तरफ देखते है तो लगता है जैसे वो मेरा मज़ाक उड़ा रहे है कि ये जा रहा है,इसकी बेटी भाग गई। या फिर वो तरस से देखते हैं, हाय! बेचारे की लड़की भाग गई। मुझसे उनसे नज़रें नहीं मिलाई जाती। जिन गलियो में सिर उठा कर,छाती चौड़ी करके चलता था।अब उसी में सिर झुका कर चलना पड़ रहा है। उसने हमें किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा और तुम कह रही हो माफ़ कर दूँ। " बोलते बोलते उमेश रोने लगा। " लेकिन अगर विकास ने उसके साथ कुछ गलत किया तो ....? दो हफ्ते हो गए हैं,जाने वो किस हाल में होगी ? पैसे लेकर भी गई है या नहीं? उस विकास के पास तो कुछ होगा नहीं । क्या करेंगे वो? आप पुलिस में रिपोर्ट कर दो। वो लोग कम से कम ढूंढ तो लाएंगे। " उषा भी रो रही थी। " तुम्हें पुलिस का पता नहीं है । मेरी कजिन याद है, वो नीलम ,वो भी ऐसे ही घर से भाग गई थी। मैं फूफा के साथ पुलिस स्टेशन गया था। वहाँ पुलिस का रवैया पता है, क्या था ? फूफा ने उन्हें बताया कि उनकी बेटी नहीं मिल रही है। पुलिस वाले ने लड़की की ऐज पूछी जब बताया कि अठारह साल की है तो वो सीधे ही बोला कि फिर तो किसी लड़के का मामला होगा। आ जाएगी दो दिन में। वैसे भी अब तो जो उस लड़के ने करना था वो तो कर ही लिया होगा। लड़की आज आए या कल अब पहले सी तो रही नहीं होगी। उसकी बात सुनकर सभी पुलिस वाले हँस दिए। बाकि के पुलिस वाले भी गंदी गंदी बातें कहकर मजाक उड़ाने लगे। तब हम ऐसा महसूस कर रहे थे। मानो सरे बाजार उन्होंने हमारे कपड़े उतार दिए हों। हमें ऐसा लग रहा था मानो वो भागी नहीं हमने उसे भगाया हो। फिर हम अपना सा मुंह लेकर वापस आ गए थे। फिर पुलिस ने सारे मुहल्ले भर से पूछताछ की। उसके स्कूल में भी जाकर पूछा। फूफा जी की इतनी बेईज्जती हुई की वो हार्ट अटैक से मर गए। बुआ का अलग बुरा हाल था सब यही कहते इनकी लड़की भाग गई।छह महीने बाद नीलम वापस आ गई थी उसी लड़के के साथ शादी करके पर बुआ ने उसे घर में घुसने नहीं दिया। आखिर उसके कारण फूफा जी की मौत हुई थी। उस वक़्त मैं सोचता था कि शादी ही तो की है। फूफा जी ज्यादा ही रियेक्ट कर रहे हैं। पर अब जब अपने साथ हुआ तो पता चला। मैं पुलिस में इसलिए ही रिपोर्ट नहीं करना चाहता । मैं नहीं चाहता कि माही की भी ऐसे बदनामी हो। उसे इस घर में लेने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। " उमेश पुरानी बातें याद करते हुए बोले। " वो पुराने जमाने थे ।लेकिन अब बात और है आज कल तो हर दूसरे घर में बच्चे लव मैरिज करा रहे हैं। घर वाले कुछ दिन नाराज़ होते हैं फिर उन्हें माफ़ कर देते हैं। आप भी उसे माफ कर दो।" उषा बोली। " ये जो माफ़ करना है न यही उन्हें होंसला देता है। उन्हें पता है कुछ दिन नाराज़ होकर मान ही जाएंगे। इसलिए भाग जाओ। माँ बाप पर जो बीतती है उसकी उन्हें कोई परवाह नहीं। ना उन्हें माँ बाप के प्यार की कद्र है। बिना सोचे समझे शादी कर लेते हैं फिर तलाक लेने में भी देर नहीं लगाते। उनके लिए कोई भी रिश्ते मायने ही नहीं रखते जो माँ बाप भाई बहन के अठारह- बीस साल के रिश्ते को मिनटों में भुला कर ,साल- दो साल के प्यार के पीछे सब छोड़ कर भाग जाते हैं, उन्हें उस साल भर के प्यार को भुलाने में कितना वक़्त लगेगा। उषा तुम खुद को पक्का करो। माही को भी सबक मिलना चाहिए। अगर हम उसे माफ़ कर देंगे तो उसे अपनी गलती कैसे पता चेलेगी ? " उमेश उषा को समझाते हुए बोले। ------ माही उर्फ़ छमिया अब रोज सज धज कर वहां की आंटी की सेवा करने लगी थी। आंटी पहले उसे यहाँ के माहौल में ढालना चाहती थी। माही ने खुद को इस माहौल में ढाल लिया था । उसे अब इस कमरे और वाशरूम से स्मेल भी नहीं आती थी। उसे पता लग गया था कि अब उसे कोई बचाने नहीं आएगा। अब उसे विकास से कोई उम्मीद नहीं थी और उसके माँ बाप को उसका कुछ पता नहीं था। अब उसने सोच लिया था कि जो उसकी किस्मत में होगा वो हो जाएगा। शाम को वहाँ दो पढ़े लिखे लड़के आए। "अरे ,दीपक आज बहुत दिनों बाद आए। मैंने तो सोचा कहीं और दिल लगा लिया। ये कोई नए बाबू हैं ? इसे सब समझा दिया है न कहीं कल को कोई बखेड़ा खड़ा कर दें।" आंटी ऑंखें मारते हुए अदा से बोली । " तू फ़िक्र न कर आंटी अपना यार है। यहाँ नया है, ट्रक ड्राइवर है। अच्छे से समझा दिया। ऐरे गैरे को तो मैं लाता ही न। भरोसे का आदमी है तो लाया हूँ। " दीपक बोला। " चल तेरे भरोसे भेजती हूं। जा ले जा जिसे लेकर जाना है। " आंटी बोली। " यार!  पहले तू चुन ले। " दीपक ने वहाँ लगी हुई लड़कियों की लाइन की तरफ इशारा किया। उसने सभी लड़कियों की तरफ देखा फिर आंटी के पास खड़ी माही पर उसकी नज़र पड़ी। उसने ऊँगली से माही की तरफ इशारा किया।माही सिर से पांव तक कांप गई।उसे पता था कि ऐसा एक दिन होना ही है पर उसे पता नहीं था कि ये वक़्त इतनी जल्दी आ जाएगा। आखिर काजल की कोठरी से बिना काले हुए निकलना मुश्किल होता है। "  इसे छोड़ कर कोई भी चुन ले। इसे अभी धंधे पर बिठाया नहीं है। " आंटी बोली। " अरे आंटी कमाल करती हो। अभी नहीं बिठाया तो कभी तो बिठाओगी । मोल कितना चाहिए तू वो बता। पैसे की कमी नहीं है हमारे पास। पर मेरे यार को यही लड़की दे। " दीपक बोला। " तुझसे क्या मोल भाव। चल तेरी बात मानी ली जा ले जा इसे। " उसने माही को उसकी तरफ धकेलते हुए कहा। माही कांपती हुई उसके साथ चल दी। वहाँ पड़े पानी के खाली ग्लास की ट्रे उठाकर बोली , "आप रुकिए मैं पानी लेकर आई।"  कहकर वो किचन में चली गई। उसने वहाँ से चाकू उठाकर छुपा लिया।फिर जल्दी से पानी भरा और अपने कमरे की तरफ चल पड़ी। वो ड्राइवर भी उसके पीछे चल दिया।

  • 10. You are my destiny (मेरी किस्मत हो तुम) - Chapter 10

    Words: 1053

    Estimated Reading Time: 7 min

    " तुझसे क्या मोल भाव। चल तेरी बात मानी जा ले जा इसे। " उसने माही को उसकी तरफ धकेलते हुए कहा। माही कांपती हुई उसके साथ चल दी। वहाँ पड़े पानी के खाली ग्लास की ट्रे उठाकर बोली , "आप रुकिए मैं पानी लेकर आई।"  कहकर वो किचन में चली गई। उसने वहाँ से चाकू उठाकर छुपा लिया।फिर जल्दी से पानी भरा और अपने कमरे की तरफ चल पड़ी। वो ड्राइवर भी उसके पीछे चल दिया। वो कमरे के अंदर आई तो वो लड़का उसके पीछे था। उसने कमरे में आते ही दरवाज़ा बंद करके चिटकनी लगा दी।माही की धड़कन बढ़ गई वो बहुत घबरा गई थी। उसे लगा अब सब कुछ खत्म हो जाएगा। उसने झट से ट्रे नीचे रखी और चाकू निकाल कर मारने के ढंग में उस लड़के की तरफ करके खड़ी हो गई। लड़का मुड़ा तो उसे ऐसे देख वो भी हड़बड़ा गया। " क्या हुआ ? आप ऐसे ? देखिए आप घबराइए नहीं। मैं उन लोगों जैसा नहीं हूँ। आप प्लीज इसे नीचे रख दीजिए ।नहीं तो आपका हाथ कट जाएगा। अच्छा अगर आपको मुझसे डर लगता है तो मैं चले जाता हूँ। " कहकर वो जाने लगा। तो माही बोली, "नहीं आप जाइए मत नहीं तो आंटी मुझे मारेंगी। " " ओह्ह, अच्छा ! मैं चिटकनी खोल देता हूँ। फिर ठीक है ? " उसने प्यार से पूछा। "हम्म । "माही के कहते ही लड़के ने चिटकनी खोल दी। फिर वो खड़ा माही को देख रहा था। माही चाकू लेकर बैड पर बैठ गई और लड़के को इशारा किया कि वो भी बैठ जाए। लड़के ने पास पड़ी कुर्सी ली और उस पर बैठ गया। कुछ देर दोनों ही चुप रहे फिर लड़का बोला, "जी मेरा नाम शेखर है। मैंने एम.बी.ए किया है। पढ़ लिख कर काम नहीं मिला तो टैक्सी चलाने लगा। मुझे कहानियां लिखने का शौक है। दीपक ट्रक ड्राईवर है। इसने मुझे यहाँ के बारे में बताया था। सो मैं आ गया।मैं लड़कीबाज नहीं हूँ। मैं उस मकसद से नहीं आया जिससे दीपक या उस जैसे लोग यहां आते हैं। मैं कहानी की तलाश में यहाँ आया हूँ। जब आपको देखा तो आपकी आँखों में एक अजीब सा दर्द दिखा। सो मैंने आपको चुना उस काम के लिए नहीं आपकी कहानी जानने के लिए। " शेखर ने उसे बताया। " मैं कैसे मान लूँ कि आप आंटी को कुछ नहीं बताएंगे? क्या पता आप मेरी स्टोरी सुनने के बाद जाकर आंटी को बता दो तो ? आप बस यहाँ अपना टाइम बिताइए और जाइए। मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी। " माही ने मुंह फुला कर कहा। शेखर को उसका ऐसा करना अच्छा लगा। वो बोला, "आपके सामने तो मैंने बताया था कि मैं यहाँ पहली बार आया हूँ। आपको विश्वास नहीं है तो चलो कोई नहीं। मैं आज आपको अपने बारे में बताता हूँ। आपका दिल किया तो आप अपने बारे में बता देना। " " मैंने कुछ नहीं कहना। आप कहिए जो कहना है। " माही बोली। " मैंने टैक्सी चलाना ही क्यों चुना पता है? एक दिन मैं कॉलेज से वापस आ रहा था तो मैंने देखा कि एक सुनसान जगह पे एक टैक्सी वाला एक लड़की से जबर्दस्ती कर रहा था। मैंने उस लड़की को बचा लिया और उस टैक्सी वाले को पुलिस को पकड़ा दिया। तब मैंने टैक्सी चलाने का सोचा इस तरह कम से कम कुछ लड़कियों को तो मैं सेफ्टी दे पाउँगा। "  वो अपनी सुनाता रहा। माही बीच में हूँ... हाँ... कर देती थी।धीऱे धीऱे वो उसकी बातों में इंटरेस्ट लेने लगी। " एक बार मेरी टैक्सी में एक लड़की बैठी वो कहती कि उसे स्टेशन जाना है। वो घर से भाग कर जा रही थी। मैंने उसे एक राजा की कहानी सुनाई। आप सुनोगे,बोर तो नहीं हो रहे?" उसने माही से पूछा। " नहीं आप सुनाइए। " माही को भी अब उसकी बातों में इंटरेस्ट आने लगा था। वो थोड़ा नॉर्मल हो गई थी। " हाँ, तो कहानी ऐसे थी। एक राजा था उसे एक राजकुमारी से प्यार हो गया पर उनके घर वाले उनकी शादी के खिलाफ थे तो उन्होंने भाग कर शादी करने का फैंसला किया। राजा भागने के लिए घोड़ी लेने गया। उसने घोड़े वाले से कहा कि ऐसी घोड़ी दो जो सबसे तेज़ दौड़ती हो। तो घोड़े वाला एक घोड़ी दिखाते हुए बोला कि राजा जी ये घोड़ी ले जाओ,इसकी माँ भी बहुत तेज़ दौड़ती थी और इसकी नानी भी बहुत तेज़ दौड़ती थी। " शेखर माही का रिएक्शन देखने के लिए रूका। " आगे क्या हुआ ? " माही ने पूछा। " घोड़े वाले की बात सुनकर राजा की आँखे खुल गई उसने सोचा कि अगर ये आदतें खानदानी होती हैं तो आज राजकुमारी उसके साथ भाग रही है तो कल को उसकी बेटी भी भागेगी। जब उसे ये ख्याल आया तो वो घबरा गया कि उसकी बेटी किसी के साथ भाग गई तो उसका क्या होगा ? ये सोचकर उसने राजकुमारी को सन्देश भेज दिया कि वो भागकर शादी नहीं करेगा वो अपने घर वालों को मनाने की कोशिश करेगा।" फिर शेखर चुप हो गया। " फिर क्या हुआ ? " माही ने पूछा। " मेरी इस कहानी का असर उस लड़की पर भी हुआ। उसने मुझे कहा कि मैं उसे जहाँ से लाया था,वही छोड़ दूँ और उसने उस लड़के को भी फोन करके कह दिया कि वो नहीं आएगी।फिर मुझे थैंक्यू भैया कहकर अपने घर चली गई। " कहकर उसने कहानी खत्म की । कहानी सुनकर माही के दिल में आया कि कोई उसे भी ऐसा मिला होता काश वो टैक्सी वाला भी इस जैसा होता तो ये भी बच जाती। उसे उदास देखकर शेखर जोक्स सुनाने लगा। " एक बार न एक चूहा था....... ।" वो ऐसे ही कुछ कुछ सुनाता रहा। वो हँसती रही। वो फिर कोई कहानी सुनाने लगा। कहानी सुनाते हुए उसने माही की तरफ देखा तो वो सो गई थी। वो उसे देखता रहा। फिर उसने उसके हाथ से चाकू ले कर साइड में रख दिया और उसे चादर ओढ़ा दी। वो कुर्सी पर बैठा उसे सोते हुए देखता रहा। फिर उसने टाइम देखा तीन घन्टे होने वाले थे। उसका समय खत्म हो गया था। वो उठा, एक बार माही की तरफ फिर से देखा और बाहर आकर दरवाज़ा बंद करके नीचे आ गया। दीपक उसका इंतज़ार कर रहा था। फिर उसने आंटी से कुछ बात की दीपक ने उसका साथ दिया। फिर आंटी को पैसे दिए और वापस आ गए।

  • 11. You are my destiny (मेरी किस्मत हो तुम) - Chapter 11

    Words: 1070

    Estimated Reading Time: 7 min

    फिर उसने टाइम देखा तीन घन्टे होने वाले थे। उसका समय खत्म हो गया था। वो उठा, एक बार माही की तरफ फिर से देखा और बाहर आकर दरवाज़ा बंद करके नीचे आ गया। दीपक उसका इंतज़ार कर रहा था। फिर उसने आंटी से कुछ बात की दीपक ने उसका साथ दिया। फिर आंटी को पैसे दिए और वापस आ गए। माही उठी तो काफी टाइम हो गया था। उसने आसपास देखा कोई भी नहीं था उसने चादर हटा कर खुद को देखा। सब ठीक था। उसने भगवान का शुक्रिया अदा किया और दुआ की कि आगे भी ऐसा ही हो। अब फिर से आंटी ने माही को शराब लाने और ग्लास भरने का काम दे दिया था। माही इसमें ही खुश थी। वो अपने जिस्म बेचने के इलावा कुछ भी करने को तैयार थी। " छमिया , तू तो हमारे लिए बहुत अच्छी साबित हुई है। उसे ऐसा क्या दे दिया? तेरे पूरे महीने के पैसे दे गया। कहता की किसी और को मत देना। ये तो एक बार में ही तेरा आशिक हो गया । अब सोचती हूँ कि तेरी कीमत ज्यादा लगानी चाहिए थी।" आंटी बोली। " क्या ? ओह, तभी मैं सोचूँ की आप मेरे पर दयाल क्यों हैं ?" माही बोली। "भई मुझे तो पैसों से मतलब है।जो ज्यादा पैसे देता है, उसकी बात मानती हूं।इसकी जगह कोई भी होता।बाकी एक महीने की ही तो बात हुई है। जैसे ही महीना खत्म हुआ ,फिर से तेरी बोली लगेगी और फिर तुझे जो मर्जी ले जाए। बस पैसों की बात है।" आंटी हँसती हुई बोली। माही के कमरे में ना तो घड़ी थी,ना ही कैलेंडर था और ना इसके पास फोन था जिससे ये दिनों का हिसाब रख पाती। काफी सोचने के बाद इसने बिंदी का पत्ता लिया। उसके पिछली तरफ एक बिंदी लगा दी और मन में बोली हर दिन के लिए एक बिंदी लगाउंगी। तो हिसाब हो जाएगा। ------ दिनों के बीतने के साथ उमेश और उषा भी माही के आने की आस छोड़ते जा रहे थे। वो खुद को ही दोष दे रहे थे। " उषा,अपने ही प्यार में कमी रह गई होगी, नहीं तो और लोगों की भी तो बेटियां है वो तो ऐसे नहीं करती। पता नहीं किस हाल में होगी ?" उमेश की आंखें हर पल गीली रहती थी। " आप ऐसा क्यों सोचते हैं। अपने प्यार में क्यों कमी नहीं रही शायद कुछ ज्यादा ही दे दिया। जिस वजह से वो संभाल नहीं पाई। बच्चे कम प्यार से बिगड़ते है वहीं अधिक प्यार भी इन्हें बिगाड़ देता है। कहीं तो कमी हुई है। " उषा भी रोने लगी। दोनों बात बात पर रो पड़ते थे।हर बात में माही याद आती थी। खाना खाने बैठते तो याद आता कि पता नहीं माही ने कुछ खाया होगा या नहीं? कपड़े बदलते तो सोचते उसके पास पहनने को कपड़े होंगें या नही ? पता नहीं रहने को जगह है भी या नहीं। उनका दिन तो काम में निकल जाता पर रात को दोनों एक दूसरे की तरफ पीठ करके माही को याद करते रहते। उनकी हालत पागलों से कम नहीं थी। दोनों पहले से बूढ़े लगने लगे थे। अब वो ज्यादा देर होस्पिटल में ही रहते। माही को भुलाने के लिए उन्होंने खुद को काम में झोंक दिया। आज माही को गए बाइस दिन हो गए थे। उषा कैलेंडर की तरफ देख रही थी। " उषा, आज के बाद इस घर में माही की कोई बात नहीं होगी। जब उसे हमारी फ़िक्र नहीं है तो हम क्यों उसे याद कर करके मरें? उसे हमसे प्यार होता तो कब की आ जाती ।" उमेश बोले। " वो आने से डर रही होगी कि कहीं हम उसे डांटे न इसलिए नहीं आ रही होगी।" उषा बोली। " डर? अगर डर होता तो जाती ही नहीं और जब इतना बड़ा कदम उठाते नहीं डरी तो अब क्या डर ? थक गया हूँ मैं सबसे झूठ बोल बोल कर । सबसे कह देता हूँ विदेश पढ़ने गई है। भागने वाले बच्चे अपने पीछे वालों के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते। वो लोगों को कैसे फेस करेंगे ? उनकी बातों का क्या जवाब देंगे ? वो कैसे जिएंगे ?" बोलते हुए उमेश ने लिविंग रूम में रखी माही की फोटोज उतार कर नौकर को उन्हें माही के कमरे में रखने को कहा। जिस दिन से वो गई थी ये उसके कमरे में नहीं गए थे। ------- माही रोज एक बिंदी लगा देती उसने दिन गिने पन्द्रह दिन हो गए थे शेखर को आए। उसे अजीब लग रहा था। वो अब अपने मम्मी पापा और विकास से ज्यादा शेखर को याद कर रही थी। वो सोच रही थी कि अगर वो महीने बाद नहीं आया तो आंटी उसे किसी और को बेच देगी। वो पता नहीं केसा होगा? फिर ये खुद को कैसे बचाएगी ? उसे ये भी अजीब लग रहा था कि शेखर उसके महीने भर के पैसे दे गया। जबकि इसने तो उससे सीधे मुंह बात भी नहीं की। उसे मुझमे क्या अच्छा लगा ? क्या पता वो क्या चाहता होगा ? आज के दौर में कोई किसी की फ्री में हेल्प नहीं करता। वो क्यों करेगा ? पक्का वो इससे कुछ चाहता होगा। माही सोच रही थी। वो रोज सुबह उठती और शेखर का इंतज़ार करती। फिर रात को उसके न आने से उदास हो जाती। जैसे जैसे दिन निकलते जाते उसकी जान भी निकलती जाती। उसने बिंदी लगाई आज उसने तीसवीं बिंदी लगाई और खुद से ही कहा आज मेरी उम्मीद का आखिरी दिन है। आप कहीं भी हो प्लीज आ जाओ। शेखर प्लीज मेरी इज़्ज़त आपके हाथ में है। भगवान उसे भेज देना ।वो कितनी देर हाथ जोड़े ऑंखें बंद किए भगवान से दुआ करती रही। वो मन में कितनी भी दुखी थी पर नीचे आकर उसे मुस्कुराना पड़ रहा था। वो सबको शराब दे रही थी। पर उसकी नज़रें बाहर दरवाज़े पर थी। शाम हो गई पर शेखर नहीं आया। अब उसका डर बढ़ने लगा था। अगर वो नहीं आया तो आंटी उसे  किसी को भी सौंप देगी उसने अपने साथ रहने वाली लड़कियों से यहाँ आने वाले लोगों की कहानियां सुनी थी, वो अब सोच के ही उसकी रूह अंदर तक कांप गई। माही की नजरें दरवाज़े पर टिकी हुई थी। रात को आंटी के कहने पर वो अपने कमरे में आ कर लेट गई। वो लेटी तो उसे नींद आ गई। दरवाज़ा के खटखटाने की आवाज़ ने उसे जगा दिया। उसका दिल कांप गया। इस वक़्त कौन आया होगा ? कहीं आंटी ने कोई नया ग्राहक तो नहीं भेज दिया।

  • 12. You are my destiny (मेरी किस्मत हो तुम) - Chapter 12

    Words: 1102

    Estimated Reading Time: 7 min

    रात को आंटी के कहने पर वो अपने कमरे में आ कर लेट गई। वो लेटी तो उसे नींद आ गई। दरवाज़ा के खटखटाने की आवाज़ ने उसे जगा दिया। उसका दिल कांप गया। इस वक़्त कौन आया होगा ? कहीं आंटी ने कोई नया ग्राहक तो नहीं भेज दिया। उसने डरते डरते दरवाज़ा खोला उसने देखा कि शेखर आया था। उसे देख कर माही की आँखों से आंसू बह निकले। वो दरवाज़े से साइड में होकर दिवार की तरफ मुंह करके रोने लगी। उसके अंदर की बेचैनी और घबराहट पानी बन कर बह रही थी। शेखर को कुछ समझ नहीं आया। उसने माही के कंधे पर हाथ रखने के लिए हाथ बढ़ाया लेकिन वो उसे छू कर उसे डराना नहीं चाहता था। उसने अपना हाथ पीछे कर लिया और उससे पूछा, "आप रो क्यों रही हैं ? मुझे आना नहीं चाहिए था क्या ? " " नहीं मैंने ऐसा कब कहा ? आप इतने दिनों बाद आए इसलिए रो पड़ी। मुझे लगा था आप नहीं आओगे और आंटी मुझे किसी और को बेच देंगी।" कहकर वो फिर रो पड़ी। " देखिए ,अब तो मैं आ गया हूँ। अब तो चुप हो जाइए। जाकर मुंह धोकर आइए। " शेखर ने प्यार से कहा। माही उसकी बात मान कर वाशरूम में मुंह धोने चली गई। जब वो मुंह धोकर आकर बैठ गई। शेखर ने उसे नज़रें उठाकर देखा तो देखता ही रह गया। वो बहुत ही प्यारी लग रही थी। उसका दिल उसे देखकर एक बार तो धड़कना ही भूल गया। उस बेहूदा मेकअप के उतरने के बाद माही बहुत ही सुन्दर लग रही थी। वो मेकअप करने के लिए शीशे के आगे बैठी तो शेखर बोला, "रहने दो, ऐसे ही ठीक है। आओ यहाँ बैठ जाओ। " उसने बैड की तरफ इशारा करते हुए कहा। वो खुद पहले दिन की तरह कुर्सी पर ही बैठा था। माही ने खुले हुए दरवाज़े को देखा और पहले जाकर दरवाज़ा बंद करके चिटकनी लगा दी। अब उसे शेखर से कोई डर नहीं लग रहा था। वो आकर बैड पर बैठ गई। " आप इतने दिन क्यों नहीं आए?" माही ने उसे पूछा। " यहाँ आने के लिए पैसे इकठ्ठे कर रहा था। दिन रात टैक्सी चलाई तो पैसा इकठ्ठा किया तब आ पाया। तुम्हें इस आंटी ने तंग तो नहीं किया  ?" शेखर ने पूछा। " नहीं, लेकिन अगर आप नहीं आते तो शायद कल वो मुझे किसी और को बेच देती। मैंने भगवान से बहुत दुआएं की कि आप आ जाओ। उस भगवान ने आखिर सुन ही ली। " माही बोली। " भगवान कभी अपने भख्तों को नाराज़ नहीं करते। दिल से की गई दुआ जरूर कबूल होती है।" वो बोला। " उस दिन आप मेरे बारे में पूछ रहे थे न तो आज मैं आपको अपनी स्टोरी सुनाती हूँ। " माही बोली। " ठीक है। आज आप बोलिए मैं सुनूँगा। " शेखर ने पैरों से जूते खोलते हुए कहा। " मेरा नाम माही है। मैं दिल्ली की रहने वाली हूँ। कॉलेज में मुझे एक लड़के विकास से प्यार हो गया। मेरे घर वाले तैयार नहीं थे।सो हम वहां से भाग आए। हम एक होटल में रुके थे। भागते वक़्त हमने सोचा नहीं अगले दिन शनिवार था, और उसके बाद संडे दोनों दिन कोर्ट बंद होता है तो हमें शादी के लिए मंडे तक रुकना पड़ा।फिर हमारे पास इतने पैसे भी नहीं थे इसलिए विकास दो दिन काम करने चला गया। पीछे से होटल वाले ने मुझे खाने में कुछ मिलाकर बेहोश कर दिया। होश आया तो मैं यहाँ थी। बेचारा विकास मुझे ढूंढ़ता फिर रहा होगा। " माही ने सारी कहानी एक ही सांस में सुना दी। " तुम्हारे पास उस होटल का नाम पता है ?" शेखर ने पूछा। " उसका नाम शाइन होटल था। लखनऊ में ही कहीं था। मुझे पूरा तो पता नहीं। " माही ने बताया। " लखनऊ ? आपको पक्का पता है आप  लखनऊ में थी?" शपथ ने हैरानी से पूछा। " क्यों ? मुझे अच्छे से याद है मैं दिल्ली से सीधे लखनऊ स्टेशन उतरी थी। मेरे साथ विकास की भाभी राधा थी।वहाँ से हम टैक्सी से होटल आए थे। होटल की कई मंज़िले थी। पर ज्यादा बड़ा नहीं था। हाँ ,रास्ते में लेफ्ट साइड एक पार्क भी आया था। किसी बेगम के नाम पर था। टैक्सी तेज़ थी इसलिए बस बेगम ही पढ़ पाई। " माही सोचते हुए बोली। " होटल कैसा था ? मतलब दूर तक फैला हुआ था कि कोई छोटा सा होटल था?" शेखर ने आगे पूछा। " वो मार्किट के... बीच में था। दो कमरों ..जितना चौड़ा था। ऊपर ..लिफ्ट जाती है। " माही याद करके बता रही थी। " ओके ,मैं आपके विकास को ढूंढने की कोशिश करूंगा। असल में अब आप लखनऊ से एक डेढ़ घन्टे की दूरी पर  हैं। वो लोग आपको बेहोशी की हालत में यहाँ ले आए । इसलिए शायद विकास आपको ढूंढ नहीं पाया। " शेखर बोला। " क्या ? तभी मैं सोचूँ की विकास क्यों नहीं आया ? उस बेचारे को क्या पता मैं यहाँ हूँ। वो ऐसी जगह पर कभी गया ही नहीं होगा। तो अब कैसे आता? " माही बोली। " आपके पेरेंट्स ?" शेखर ने पूछा तो माही ने सिर झुका लिया। शेखर उसे कहना चाहता था कि जो उसने किया वो गलत है। पर वो उसका चेहरा देखकर चुप हो गया। फिर वो कुछ रुक कर बोला, " मैंने अगले महीने के पैसे दे दिए हैं। मैं लखनऊ जाकर विकास को ढूंढूंगा। भगवान ने चाहा तो जरूर मिल जाएगा। " माही ने खुश होकर कहा , "सच में।प्लीज जल्दी ढूँढना। मेरा यहाँ दम घुटता है। पता नहीं यहाँ से निकल भी पाऊँगी की नहीं। उस आंटी से भी डर लगता है। अगर उसके मन में लालच बढ़ गया और उसने मुझे बेच दिया तो आप भी कुछ नहीं कर पाएंगे। " माही बोली। " हाँ ,इन लोगों के लिए पैसे से ऊपर कुछ नहीं। पर आप निश्चिन्त रहे। मैं कुछ न कुछ करूंगा। आपको यहाँ से निकाल ले जाऊंगा। " शेखर बोला। " पता नहीं मैंने कौन से अच्छे काम किए जो इस अँधेरे में आप उजाला बनकर आ गए। प्लीज आप मुझे इस दलदल से निकाल दो , मैं आपका अहसान उम्र भर नहीं भूलूंगी। " माही ने उसके आगे हाथ जोड़ते हुए कहा। " अरे, नहीं आप हाथ न जोड़िए। मैं आपको निकालने वाला कौन होता हूँ ? सब कुछ वो ऊपरवाला सोचता है और काम करने के लिए हमें आगे करके हमसे करवाता है। एक बात कहूँ भगवान सुधरने का एक मौका सब को देता है। ये हम पर है कि हम सुधरना चाहता है या जैसा है वैसा ही रहता है। जो तो अपनी गलतियों से सीख जाते हैं,वो असली इंसान बन जाते हैं। " शेखर बोला।

  • 13. You are my destiny (मेरी किस्मत हो तुम) - Chapter 13

    Words: 1054

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    " अरे, नहीं आप हाथ न जोड़िए। मैं आपको निकालने वाला कौन होता हूँ ? सब कुछ वो ऊपरवाला सोचता है और काम करने के लिए हमें आगे करके हमसे करवाता है। एक बात कहूँ भगवान सुधरने का एक मौका सब को देता है। ये हम पर है कि हम सुधरना चाहते हैं या जैसा है वैसा ही रहता है। जो तो अपनी गलतियों से सीख जाते हैं,वो असली इंसान बन जाते हैं। " शेखर बोला। " तो मैं उसी भगवान से प्रार्थना करूंगी की आपको कामयाबी दे। " माही बोली। " इसे छुपा कर रख लेना। मैं रात को फोन किया करूंगा। " शेखर उसे एक फोन देते हुए बोला। " नहीं शेखर जी ,यहाँ रोज तलाशी होती है। एक बार उस बिजली के पास से फोन मिल गया था उसके साथ इन्होंने जो जो किया मैं आपको बता भी नहीं सकती आज भी याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। आप इसे रहने दीजिए बस आप आ जाया कीजिए।मुझे आस बनी रहेगी।" माही बोली। शेखर को पता था कि माही किस आस की बात कर रही है। पर फिर भी उसे ये सुनकर अच्छा लगा । शेखर ने घड़ी देखी। रात के दो बज गए थे। " इतनी जल्दी टाइम हो गया ? " माही उसे टाइम देखते हुए देखकर बोली। " नहीं आज टाइम की लिमिट नहीं है। मैंने आंटी से बात की थी। वो कहती की मैं जब तक चाहे रह सकता हूँ। क्योंकि मैंने महीने के पैसे जो दे दिए हैं। इन्हें पैसों से ज्यादा कुछ नहीं है। आप बेफिक्र होकर सो जाइए। मैं सुबह ही चला जाऊंगा। " शेखर बोला। " ठीक है। आप भी लेट जाइए। " माही बैड के एक तरफ हो गई और खाली जगह की तरफ इशारा करते हुए बोली। अब उसे शेखर से कोई डर नहीं था। " नहीं मैं यहीं ठीक हूँ। आप सो जाइए। " कहकर शेखर ने बैड पर पैर टिकाए और कुर्सी पर ही टेडा हो गया। मन ही मन वो खुश हो रहा था कि अब माही उस पर भरोसा करने लगी है। वो ऑंखें बंद करके सो गया।माही भी कुछ देर में सो गई। जब शेखर उठा। तो पांच बज गए थे। वो धीऱे से उठा । उसने आज्ञा की तरफ देखा, वो आराम से सो रही थी। वो चुप चाप दरवाज़ा खोल कर निकल आया। वो नीचे आया तो हॉल में दीवान पर आंटी बैठी थी। वो उसके पास गया और बोला, "लाखों की नींद उड़ाने वाली मलिका आज खुद जग रही है ?" " क्या करूँ जिम्मेदारियां सोने नहीं देती। मेरी छोड़ तू अपनी बता कुछ बात बनी ? " आंटी ने पूछा। " हांजी, अब  वो मुझ पर भरोसा करने लगी है। एक दो रातें और आता हूँ।तब तक उन रईसजादों से भी बात कर लूं। कहीं वो बाद में मुकर न जाएं।" शेखर अपने बालों में हाथ फेरते हुए बोला। " मुझे तो पैसों से मतलब है। तू इसे किसी को भी दे।मुझे कोई लेना देना नहीं है ,बस मुझे दस लाख ला के दे देना। मैंने इसे पांच में लिया था। कुछ तो मुनाफा हो। " आंटी बोली। " कोई नहीं आंटी, मैं जल्द ही पैसे लेकर आता हूँ। तू बस पैसे गिनने की तैयारी कर।" शेखर ने आंख मारते हुए कहा। फिर वहाँ से चला गया। " आंटी आप हमें तो कहीं आने जाने नहीं देती।इसके साथ इतनी छूट क्यों ?" आंटी की खास वफादार लड़की जो चाय लेके आई थी, इनकी बातें सुनकर बोली। " पगली, वो तुम जैसी किसी गरीब घर की लड़की नहीं है किसी ऊँचे खानदान की लड़की है। अगर कल को इसके माँ बाप ने इसे ढूंढ लिया और पुलिस ले आए तो सारा धंधा चौपट हो जाएगा।इसलिए इसे भेज रही हूँ। हमें तो पैसों से मतलब है। ये इसके अच्छे दाम देगा। फिर ये इसे किसी को बेचे या खुद रखे हमें क्या ? " आंटी ने उसे बताया। तब उस लड़की को समझ आया कि क्या बात है ? " अच्छा, इसलिए आप उसके साथ इतनी नर्मी बरतते हो ?"  वो बोली। " हाँ ,मैं तो इसे यूहिं किसी को बेचने वाली थी। पर कोई मिल ही नहीं रहा था। अब मिल गया सो बेच दिया। बाकि अगर हम इससे शक्ति करेंगे तो कल को हमें पकड़ा दे तो। इसके साथ इसलिए जबरदस्ती नहीं की क्योंकि कल को कोई उसे पूछेगा भी तो ये कहेगी की जो किया खुद की मर्जी से किया। " आंटी बोली। वो लड़की आंटी की तारीफ में तालियां मारने लगी। " आप सच में ग्रेट हो। हम तो ये बात सोच भी नहीं सकते। " वो बोली। " तभी तो तुम वहाँ हो और मैं यहाँ हूँ। " आंटी ने अकड़ कर कहा। ------ वहाँ से निकल कर शेखर रोज की तरह रेलवे स्टेशन गया। उसने कई सवारियां ली और उन्हें उनकी मंज़िल तक पहुंचाया। शेखर ऐसे ही सारा दिन सड़कों पर बिताता था। दोपहर का खाना भी वो किसी ढाबे पर खा लेता था। उस दिन उसने आखिरी चक्कर शाम छह बजे लगाया और अपने एक कमरे के घर में आ गया। उसने नहा धो कर कपड़े बदले और वहां से चल दिया। " हेलो हाँ आ गए आप लोग ?...पैसे तैयार हैं?... ठीक है मैं कुछ देर में पहुंचता हूँ। " कहकर शेखर ने अपने फोन पर लोकेशन डाली और एक घर के बाहर टैक्सी रोक दी। उसने घर का दरवाज़ा खटखटाया । वो खुला ही था कि वो रुके बिना सीधा अंदर चला गया। वहाँ पर तीन चार अमीर से दिखने वाले लड़के बैठे शराब पी रहे थे। वो उनके पास गया और बोला, "वो मान गई है। बस दस लाख रुपए दो । मतलब पैसे पहले देने पड़ेंगे। " " ये लो, पैसे तो तैयार हैं। तुम्हें पता भी है कि वो लड़की सच में इतनी कीमत की है। पहले अच्छे से देख लेता। कहीं ऐसा ना हो पैसे भी चले जाएं और लड़की भी बेकार निकले।" उनमें से एक बोला। " उसकी चिंता तुम न करो। लड़की एक दम से पियौर है। दिखने भी बहुत ही सुन्दर है। जब मिलोगे तो मान जाओगे की मेरी कही बात सच्ची थी।लाओ पैसे दो।" कहकर उसने उनकी तरफ हाथ बढ़ाया।उन्होंने पैसे दे दिए। " ओके मैं जाता हूँ । कल उसे लेके आ जाऊंगा। तुम लोग अपना देख लेना जैसे कहा है। वैसे ही करना। कार बदल कर लाना और जहाँ कहा है वहीं चलेंगे। " कहकर उसने पैसे संभाल कर रखे और वहाँ से चल दिया।