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Love Unbound : A Cry For Justice

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Dev Srivastava

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ये कहानी है रुद्राक्ष और वर्तिका की । रुद्राक्ष, जो 4 साल से कोमा में था और होश में आने के बाद हॉस्पिटल से भाग चुका है । वहीं वर्तिका, जो दिल्ली शहर की ACP है, उसे रुद्राक्ष के वजूद का कोई एहसास ही नहीं है । वो सिर्फ अपनी ड्यूटी और अपने परिवार पर ध्य...

Total Chapters (15)

Page 1 of 1

  • 1. Love Unbound : A Cry For Justice - Chapter 1 (वो भाग गया!)

    Words: 1106

    Estimated Reading Time: 7 min

    Disclaimer : ये कहानी एक ऐसी घटना पर आधारित है जिसका गवाह तो पूरा देश बना, मीडिया ने उसे बहुत लाइमलाईट दिया लेकिन इसके पीड़ित को इंसाफ और दोषी को सजा नहीं मिली और ऐसा क्यों, क्योंकि पीड़ित एक लड़का था और दोषी एक लड़की।

       ये कहानी समाज के प्रति आपके नजरिए को चुनौती दे देगी और आपको खुद से ये सवाल करने पर मजबूर कर देगी कि क्या हम एक सुरक्षित समाज में रह रहे हैं! क्या हमारे देश का कानून हमें न्याय दिलाने में सक्षम है और है, तो ऐसी घटनाएं क्यों सामने आती है!

    _________________________________    

       दोपहर का समय,    

        

       विजया हॉस्पिटल,    

        

       एक डॉक्टर अपने कैबिन में बैठा हुआ था। उसकी उम्र कोई 30-31 साल रही होगी लेकिन उसे देख कर उसकी उम्र का अंदाजा लगा पाना मुश्किल था।

        

       उसने नीले रंग की जींस के साथ बहुत ही हल्के गुलाबी रंग का शर्ट पहन रखा था। साथ में उसने डॉक्टर्स का सफेद रंग का लैब कोट भी पहना हुआ था।

        

       उसकी शर्ट के ऊपरी दो बटन खुले हुए थे जिससे उसके गले में एक चैन साफ नजर आ रहा था जिसके पेंडेंट में बड़े स्टाइल में V लिखा हुआ था। उसके पैरों में काले रंग के जूते थे।

        

       उसके बाएं हाथ में एक महंगी चैन वाली घड़ी थी। उसके दाएं हाथ में एक कलावा था और रिंग फिंगर में एक हीरे की अंगूठी। उसके बाल कुछ बड़े थे जो पसीने में भीगे होने के कारण उसके माथे पर बिखरे हुए थे।    

        

       उसके भूरे आंखों पर गोल्डन रिम का एविएटर पायलट शेप का चश्मा चढ़ा हुआ था जो उसकी पतली नाक पर सरक गया था। उसके पतले गुलाबी होठों और गोरे रंग पर उसकी हल्की दाढ़ी बहुत ही जंच रही थी।   

        

       उसके सामने टेबल पर डेस्क नेम प्लेट पर डॉक्टर विक्रांत सहाय लिखा हुआ था। वो कुर्सी पर बैठे हुए कुछ रिपोर्ट्स पढ़ रहा था कि इतने में उसका फोन बज उठा।   

        

       उसने कॉलर का नाम देखे बिना, अपनी नजरें फाइल में गड़ाए हुए ही कॉल आंसर कर दिया और इसी के साथ एक घबराई हुई आवाज उसके कानों में पड़ी, "विक्की, विक्की! वो भाग गया है।"    

        

       ये सुनते ही विक्रांत अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ। उसने वो फाइल उसकी जगह पर रख कर खड़े होते हुए कहा, "मैं, मैं अभी वहां पहुंच रहा हूं।"    

        

       इतना बोल कर वो तेजी से बाहर निकल गया। वो दौड़ते हुए एक वार्ड के बाहर पहुंचा। वो तेजी से अंदर गया तो वहां पर कुछ डॉक्टरर्स और नर्सेज खड़े थे।

        

       उसकी नजरें बेड पर गई तो बेड खाली पड़ा था। ये देख कर विक्रांत की आंखों में गुस्सा उतर आया।

        

       उसने एक डॉक्टर की ओर देख कर गुस्से में कहा, "माधव, कैसे हुआ ये सब?"   

        

       माधव ने अपना सिर पकड़ कर कहा, "पता नहीं, यार! मैं तो कुछ समझ ही नहीं पा रहा हूं।"    

        

       विक्रांत ने गंभीर आवाज में कहा, "तुमने हॉस्पिटल चेक किया!"    

        

       माधव ने टेंशन के साथ कहा, "पूरा हॉस्पिटल छान मारा, लेकिन उसका कहीं कुछ पता नहीं चला।"    

        

       विक्रांत ने फौरन बाहर की ओर जाते हुए कहा, "चलो, सी सी टी वी फुटेजेस चेक करते हैं।"    

        

       माधव ने भी कहा, "हां, चलो।"    

        

       और विक्रांत के साथ चला गया। कुछ ही पलों में वो दोनों सिक्योरिटी रूम के सामने थे। विक्रांत ने अंदर जाकर सीधे उस वार्ड की फुटेज चेक करनी शुरू की।    

        

       उस फुटेज में एक लड़का नजर आ रहा था जिसकी उम्र विक्रांत जितनी ही रही होगी। उसने पेशेंट के कपड़े पहने हुए थे और उस बेड पर सोया हुआ था।    

        

       डॉक्टर और नर्स के अपना काम करके चले जाने के बाद उस लड़के ने अपनी आंखें खोली और इधर-उधर देखने लगा। जब वो श्योर हो गया कि अब उस कमरे में कोई नहीं है तो वो उठा और मौका देख कर बाहर चला गया।   

        

       ये सब देख कर माधव ने हैरानी के साथ कहा, "ये क्या! ये तो लग रहा है कि ये इसी बात का इंतजार कर रहा था कि कब सभी लोग उसके वार्ड से बाहर जाएं और वो उठ कर भाग सके।"    

        

       विक्रांत ने अपनी नजरें स्क्रीन पर गड़ाए हुए ही टेंशन के साथ कहा, "इसका तो एक ही मतलब है। मुझे वी को इस सबसे दूर रखना होगा। उसे इस बात की भनक भी नहीं लगनी चाहिए।"    

        

       वहीं दूसरी तरफ,    

        

       कोई पुराना गोदाम,    

        

       हर तरफ सामान बिखरा हुआ था और पूरे गोदाम में सन्नाटा पसरा हुआ था। कहीं किसी का नामोनिशान तक नहीं था लेकिन 1 मिनट की शांति के बाद ही टायर्स के ढेर के पीछे से एक गोली चली जो सामने की दीवार के पास एक हाथ पर जा लगी। उस हाथ में एक गन थी।    

        

       गोली लगते ही वो गन उस हाथ से छूट कर नीचे गिर गई और वो हाथ पकड़े हुए एक आदमी बाहर आ गया। उसने काले रंग की जींस के साथ सफेद रंग की शर्ट पहनी हुई थी।    

        

       इसके साथ उसने एक काले रंग का जैकेट डाला हुआ था। उसके पैरों में काले रंग के जूते थे और बालों पर उसने एक काले रंग का कपड़ा बांध रखा था।   

        

       उसने अपने मुंह पर काला भी कपड़ा बांध रखा था जिससे सिर्फ उसकी आँखें नजर आ रही थीं जिनमें ढेर सारा सुरमा लगा हुआ था।

        

       वो आदमी उस गन को उठाने की कोशिश कर रहा था लेकिन इससे पहले कि वो उस गन को उठा पाता एक गोली उसकी पीठ में आ लगी।    

        

       उसे एक झटका लगा और वो नीचे जा गिरा। इसी के साथ कुछ कदम तेजी से अलग-अलग जगहों से बाहर निकले और दोनों तरफ से गोली बारी होने लगी।    

        

       जहां वो आदमी गिरा था उधर से वैसे ही 5-6 से आदमी फायरिंग कर रहे थे और सामने से चार लोग इन सभी पर फायरिंग कर रहे थे।

        

       उन सब ने काले रंग की पैंट के साथ काले ही रंग की हाफ टी शर्ट पहनी हुई थी जिनके अंदर बुलेटप्रूफ जैकेट्स थे। उन सबने अपने सिर पर बेस कैप पहना हुआ था और उनके मुंह पर काले रंग का मास्क लगा हुआ था।    

        

       वो चारों अपने सामने के आदमियों को भूनते हुए आगे बढ़ रहे थे। कुछ ही देर में वो सारे आदमी जिन्होंने अपने सिर पर कपड़ा बांध रखा था, वो सभी बेजान होकर जमीन पर पड़े हुए थे।    

        

       बेस कैप पहने हुए चारों लोग उन सभी के पास पहुंचे। वो सभी अपने पैरों से उन आदमियों के सिर को इधर उधर करके देख रहे थें कि कहीं कोई जिंदा तो नहीं रह गया है न! वो सभी मर चुके थें लेकिन एक आदमी अभी भी जिंदा था।    

        

       उसे देख कर एक लड़के ने दूसरे की ओर देख कर कहा, "मैम, इसे जिंदा ले चलें!"    

        

       उस लड़की ने उसकी ओर देख कर अपनी भौंहें उठा कर कहा, "क्यों ? तुम्हारा ससुर है ये, जो इसे जिंदा ले चलना है!"    

        

      

      

         जारी है...

  • 2. Love Unbound : A Cry For Justice - Chapter 2 (ACP वर्तिका सहाय!)

    Words: 1026

    Estimated Reading Time: 7 min

    उस लड़की ने अपने सामने खड़े लड़के की ओर देख कर अपनी भौंहें उठा कर कहा, "क्यों? तुम्हारा ससुर है ये, जो इसे जिंदा ले चलना है!"    

      और इसी के साथ एक गोली उस आदमी के सिर में उतार दी।    
       फिर उसने सबकी ओर देख कर कहा, "चलो, सब।"    
        
    फिर वो सब बाहर आ गए। कुछ दूर आकर उन सबने अपनी अपनी कैप उतारी तो बाकी के तीन लड़के थे और एक लड़की थी। फिर उन सबने अपना मास्क उतारा तो उनके चेहरे नजर आने लगे।    

       लड़की की उम्र 30-31 साल रही होगी। कैप उतारने के बाद उसके लंबे घने बाल हवा में लहरा रहे थे। उसकी काली आंखों में इस वक्त एक अलग ही ठंडक थी।    

       उसकी पतली नाक फक्र से ऊंची उठी हुई थी और उसके पतले गुलाबी होंठ बिल्कुल खामोश थे। उन सभी लड़कों की उम्र भी उस लड़की जितनी ही रही होगी।    
        
      उनमें से दो लड़कों के चेहरे एक जैसे ही थे। फर्क था तो सिर्फ उनके आंखों के रंग में। जहां एक की आंखों का रंग नीला था तो वहीं दूसरे के आंखों का रंग हरा।    
        
       बाकी उनकी कद काठी, रंग और बाकी सब कुछ एक जैसा ही था। तीसरे लड़के की लंबाई उन लड़कों से कुछ ज्यादा थी और उसका मिजाज थोड़ा कड़क था।    
        
       वो चारों एक साथ पीछे की ओर पलटे और उनके होठों पर एक सनक भरी मुस्कान आ गई और इसी के साथ लड़की ने तेज आवाज में कहा, "फाइव!"    
        
      फिर नीली आंखों वाले लड़के ने भी उसी तरह से कहा, "फोर!"    

       हरी आंखों वाले लड़के ने भी कहा, "थ्री!"    

       चौथे लड़के ने भी कहा, "टू!"    
        
       और फिर सबने एक साथ अपना दायां हाथ ऊपर करके धमाके का इशारा करके कहा, "बूम!"    
        
       और इसी के साथ उस गोदाम के हर हिस्से में धमाके होने शुरू हो गए। ये देख कर उन चारों की मुस्कान और बड़ी हो गई और वो मुस्कान भी ऐसी थी कि देख कर किसी के भी रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ जाए।   
     
       वो सभी अपने सामने, गोदाम को धूं-धूं करके जलते हुए देख रहे थे। आग कि लपटें आसमान छू रही थीं और उन सबको जैसे ये देख कर सुकून मिल रहा था। 
     
       वो चारों सामने देख ही रहे थे कि इतने में कुछ और उन्हीं के जैसे लोग वहां पहुंच गए। उन सभी के साथ कुछ लड़कियां भी थीं।
     
       लड़की ने उनकी ओर देख कर सिर हिला दिया तो वो सभी आगे बढ़ गए। उनके बाद वो लड़की और तीनों लड़के भी आगे बढ़ गए। 

     

       शाम का समय, 
     
       पुलिस हेडक्वार्टर के बाहर मीडिया की भीड़ लगी हुई थी क्योंकि यहां पर प्रेस कॉन्फ्रेंस होने वाली थी। सारे रिपोर्टर्स पूरी लगन के साथ रिपोर्टिंग में लगे हुए थे। 
     
       एक लड़की ने कैमरे के सामने कहा, "तो जैसा कि आप सब देख सकते हैं, ACP वर्तिका सहाय आज फिर से अपने कारनामों के वजह से सुर्खियों में हैं। 
     
       आज एक बार फिर, मुजरिम उनके हाथों में आते आते रह गए और ACP वर्तिका की पकड़ में आने से पहले ही उनकी मौत हो गई।"
     
       इतने में वो लड़की अपने साथियों के साथ हेडक्वार्टर से बाहर आई। इस वक्त वो सभी वर्दी में थे। लड़की के वर्दी पर 3 स्टार लगे हुए थे। 
     
       उसके नेम प्लेट पर ACP वर्तिका सहाय लिखा हुआ था। उसने अपने बालों का जुड़ा बना रखा था और पूरे कॉन्फिडेंस के साथ आगे बढ़ रही थी हाँलाकि उसके हाथों पर जगह जगह छोटे छोटे बैंडेज लगे हुए थे। 
     
       जिन लड़कों के चेहरे एक जैसे थें उनमें हरी आंखों वाले लड़के के नेम प्लेट पर अक्षित ठाकुर और नीली आंखों वाले लड़के के नेम प्लेट पर रक्षित ठाकुर लिखा हुआ था। 
     
       अक्षित के सिर पर पट्टी बंधी हुई थी और रक्षित के सिर पर बैण्डेज टेप लगा हुआ था। उन दोनों के भी हाथों पर जगह जगह बैंडेज थे। 
     
       तीसरे लड़के के नेम प्लेट पर अमर सक्सेना लिखा हुआ था और उसके बाएं हाथ पर एक प्लास्टर चढ़ा हुआ था। वर्तिका जाकर कुर्सी पर बैठ गई और वो सभी लड़के आकर उसके पीछे खड़े हो गए। 
     
       इसी के साथ रिपोर्टर्स ने अपने सवाल पूछने शुरू कर दिए। 

       एक रिपोर्टर ने वर्तिका से सवाल करते हुए कहा, "मैम, एक बार फिर मुजरिम आपके हाथ आते-आते रह गए और हर बार की तरह इस बार भी उनमें से एक भी जिंदा नहीं बचा। इस बारे में क्या कहना चाहेंगी आप?" 
     
       वर्तिका ने आराम से, शांत आवाज में कहा, "देखिए, हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी कि उन्हें जिंदा पकड़ सकें, लेकिन उन सबने पहले ही वहां RDX लगा रखे थें। 
     
       इससे पहले कि हम कुछ कर पातें, वहां पर धमाके होने शुरू हो गए और उसका सबूत है ये!" 
     
       इतना बोल कर उसने अमर को कुछ इशारा किया तो अमर ने अपना प्लास्टर चढ़ा हुआ हाथ आगे कर दिया। 
     
       वर्तिका ने उसका हाथ कैमरे के सामने करके और अक्षित व रक्षित के बैंडेजेस को प्वाइंट करके कहा, "ये देखिए, कैसे हमारे ऑफिसर्स भी इस धमाके का शिकार हुए हैं। अब ऐसे में मैं अपने साथियों को बचाती या उन क्रिमिनल्स को!" 
     
       उस रिपोर्टर ने फिर से अपनी आँखें सिकोड़ कर कहा, "आपकी बात सही है, मैम! पर हर बार ऐसा ही होता है। आखिर कैसे?" 
     
       वर्तिका ने अपने दोनों हाथों को आप में मिला कर टेबल पर रख दिया।
     
       उसने थोड़ा सा आगे की ओर झुक कर उस रिपोर्टर की आंखों में देख कर कहा, "इस सवाल जा जवाब जानना हो, तो हमारे अगले मिशन में आप हमारे साथ चलिएगा। जब आप खुद उस जगह पर होंगी तो आपको हमसे ये सवाल नहीं पूछना पड़ेगा।" 
     
       ये सुन कर पूरी मीडिया शॉक्ड हो गई थी। सभी लोग अपना गला तर कर रहे थें लेकिन वर्तिका को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा। वो अभी भी उस रिपोर्टर को ही देख रही थी। 
     
       उसने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "तो बोलिए, चलेंगी न हमारे साथ!" 

       ये बात सुन कर उस रिपोर्टर ने अपनी नजरें झुका लीं और इसी के साथ वो पीछे हो गई लेकिन बाकी के रिपोर्टर्स फिर से कुछ बोलने को हुए ही थे कि वर्तिका ने खड़े होते हुए कहा, "बस! अब और सवाल नहीं।" 
     
       उस रिपोर्टर ने कहा, "पर मैम..." 
     
       लेकिन वर्तिका और उसके साथी उन सभी को पूरी तरह से नजरंदाज करके आगे बढ़ गए। 

     

    जारी है...

  • 3. Love Unbound : A Cry For Justice - Chapter 3 (टीम)

    Words: 1023

    Estimated Reading Time: 7 min

    जैसे ही वर्तिका और उसके साथी गाड़ी की ओर बढ़ें वैसे ही उनके पीछे रिपोर्टर्स ने कैमरे के आगे कहा, "तो देखा आप सबने, कि कैसे ACP वर्तिका ने हर बार की तरह इस बार भी वही किया।
     
       उन्होंने उन सारी लड़कियों को तो बचा लिया जिनकी तस्करी हो रही थी लेकिन उनके क्रिमिनल्स को नहीं और वो हमारे सवालों के जवाब देने से भी बच रही हैं।" 
     
       इसी के साथ वर्तिका को उसके साथियों के साथ पुलिस की गाड़ी में बैठते हुए भी दिखाया जा रहा था।



    वहीं दूसरी तरफ, 
     
       एक लड़का किसी साइबर कैफे में बैठा हुआ था। उसने सफेद रंग की टी शर्ट के साथ काले रंग की जींस पहनी हुई थी। उसने अपने सिर पर बेस कैप पहन रखा था। 
     
       उसके मुंह पर मास्क था और आंखों पर काला चश्मा चढ़ा हुआ था। उसने बाएं हाथ में एक काले रंग की घड़ी थी और दाएं हाथ में एक कलावा बंधा हुआ था। 
     
       उसके पैरों में सफेद रंग के स्नीकर्स थे। उसके हाथ में एक कॉफी की ग्लास थी जिसकी स्ट्रॉ उसने अपने मास्क के नीचे से अपने मुंह में डाली हुई थी। 
     
       उसी कैफे में सामने टी वी पर लाइव न्यूज चल रही थी और जैसे ही वर्तिका कैमरे के सामने आई, उस लड़के ने कॉफी पीनी बंद कर दी। उसने अपनी गर्दन टी वी की ओर घुमाई और आराम से अपनी कुर्सी पर पसर कर वो न्यूज देखने लगा।
     
       जब वर्तिका अपनी गाड़ी में बैठ रही थी तो उस लड़के ने कहा, "तुमने मुझे वी से दूर रखने की बहुत कोशिश की डॉक्टर विक्रांत सहाय! पर अफसोस, तुम्हारी कोशिश थोड़ी कमजोर पड़ गई। अब मैं और वी तो मिल कर ही रहेंगे।" 
     
       फिर उसने गहरी आवाज में कहा, "और वी खुद चल कर मेरे पास आएगी।" 
     
       फिर उसने अपने कॉफी के गिलास को कस कर दबाते हुए कहा, "ये मेरा वादा है तुमसे।" 


      

    कुछ देर बाद, 
     
       पुलिस की गाड़ी एक 2 मंजिला घर के बाहर आ रुकी। उस घर की चौड़ाई 30 फीट के आस पास रही होगी। घर के सामने एक बड़ा सा गेट लगा हुआ था। 

       गेट के अंदर इतनी जगह थी कि 2-3 गाड़ियां आराम से खड़ी हो जाएं लेकिन वहां गाडियां खड़ी ना करके दीवारों के किनारे बहुत सारे फूलों के पौधे लगे हुए थे। 
     
       उन पौधों पर लगे फूलों से जो खुशबू आ रही थी वो माहौल को खुशनुमा बना रही थी। पुलिस की गाड़ी देख कर वॉचमैन ने गेट खोल दिया तो गाड़ी आगे बढ़ गई। 
     
       गाड़ी के रुकते ही वर्तिका और सारे लड़के गाड़ी से उतर कर अंदर की ओर बढ़ गए। वर्तिका ने बेल बजाई तो एक महिला ने आकर दरवाजा खोल दिया जिसकी उम्र कोई 36-37 साल रही होगी।
     
       उन सभी को देख कर उस महिला के होठों पर मुस्कान आ गई।
     
       उसे देख कर अक्षित ने हल्के से मुस्करा कर कहा, "कैसी हैं, दीदी?" 
     
       महिला ने भी हल्के से कहा, "मैं ठीक हूं, भैया। आप बताइए।" 

       इससे पहले कि अक्षित कुछ कहता, रक्षित ने कहा, "हम सब भी अच्छे ही हैं।" 
     
       फिर उसने अक्षित के गले को अपने बाजुओं की गिरफ्त में करके उसके सिर पर हल्के से चपत लगा कर कहा, "बस इसका दिमाग थोड़ा स्लो हो गया है।" 
      
    ये सुन कर अक्षित ने पहले अपनी साइड आइज से उसे घूरा और फिर गंभीर आवाज में कहा, "रक्ष, तू कुछ ज्यादा ही नहीं बोल रहा है।"

    रक्षित ने आराम से कहा, "नहीं, बल्कि मुझे तो लगता है कि मैं कम बोल रहा हूं।"

    अक्षित ने चिढ़ कर उसका हाथ झटक कर कहा, "तू शायद भूल रहा, पर मैं 5 मिनट बड़ा हूं तुझसे।"

    रक्षित ने तुरंत कहा, "और तुझे कैसे पता! तुझे क्या ऊपरवाले ने मेल करके बताया था।"

    उन दोनों की हरकतें देख कर वर्तिका ने अपना सिर ना में हिला दिया तो वहीं अमर बिना कुछ कहे उन दोनों के कान पकड़े और अंदर की ओर बढ़ गया और वो दोनों अपने कान छुड़ाने की कोशिश करते हुए अंदर चले गए।

    अंदर जाने पर सबसे पहले एक हॉल था जिसके एक तरफ किचन था तो दूसरी तरफ सीढ़ियाँ जो ऊपर की ओर जा रही थीं। वर्तिका अपने साथियों के साथ हॉल में आई तो वहां पहले से ही विक्रांत बैठा हुआ था।

    उसी के पास एक बच्ची बैठी हुई थी। जिसकी उम्र कोई 5 साल रही होगी। उस बच्ची का चेहरा वर्तिका से थोड़ा बहुत मिल रहा था।

    छोटे छोटे शॉर्ट्स और टी-शर्ट में वो बहुत ही क्यूट लग रही थी। विक्रांत बैठ कर उसका होमवर्क करा रहा था कि इतने में उसके कानों में अक्षित और रक्षित की आवाज पड़ी जो अमर को अपने कान छोड़ने के लिए बोल रहे थें।

    आवाज सुनते ही उसकी नजरें उनकी ओर घूम गईं और सामने का नजारा देख कर उसे हँसी आ गई। वहीं उस बच्ची की नजरें जैसे ही वर्तिका पर पड़ीं, वो भाग कर उसके पास आ गई।

    वर्तिका भी जमीन पर बैठ गई और जैसे ही वो बच्ची उसके पास पहुंची, वर्तिका ने उसे गोद में उठा लिया और उसे पुचकारते हुए आगे बढ़ गई।

    वहीं अमर की नजरें विक्रांत पर टिकी हुई थीं जिसके माथे पर उसे चिंता की लकीरें दिख रही थीं, लेकिन उसने अभी किसी से भी कुछ नहीं कहा।

    उसने अक्षित और रक्षित के कान छोड़ दिए तो वो दोनों अपने कान सहलाते हुए दर्द होने की नौटंकी करने लगे। अमर ने एक नजर उन दोनों को घूरा तो वो दोनों भी सीरियस हो गए।

    फिर अमर ने धीरे से उनके कान में कुछ कहा तो उन दोनों ने हाँ में सिर हिला दिया। इसके बाद वो तीनों आगे बढ़ गए।

    अमर ने विक्रांत के पास बैठते हुए उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, "और विक्की, क्या हाल है?"

    विक्रांत ने अपने होठों पर झूठी मुस्कान सजा कर कहा, "मैं ठीक हूं। तुम सब बताओ, क्या चल रहा है आजकल?"

    अक्षित ने उसके दूसरी ओर बैठते हुए कहा, "क्या बताएं यार! तेरी बीवी आज तक नहीं बदली। कॉलेज में भी गुंडी थी और आज शहर की ACP है तो भी गुंडों वाली हरकतें ही हैं इसकी।"

    इतने में वो महिला पानी लेती आई। वर्तिका ने अपनी बच्ची को उस महिला की गोद में दे दिया जिसने दरवाजा खोला था तो वो महिला उसे लेकर अंदर चली गई।

    जारी है...

  • 4. Love Unbound : A Cry For Justice - Chapter 4 (एक हफ्ते बाद!)

    Words: 1024

    Estimated Reading Time: 7 min

    वर्तिका ने अपनी बच्ची को अंदर भेजने के बाद बाकी सबकी ओर देख कर कहा, "तो तुम लोग क्या चाहते हो! उन क्रिमिनल्स को अरेस्ट करूं, ताकि कल को वो कानून के ही दांव पेंच इस्तेमाल करके बाहर निकल आएं और बाहर न भी निकल पाएं तो जेल में बैठ कर मुफ्त की बिरयानी ठूसें।"

    रक्षित ने तुरंत विक्रांत के कंधे को दो बार टैप करके कहा, "देख, देख, लैंग्वेज देख इसकी!"

    वर्तिका ने अपनी आँखें नचा कर कहा, "देखो तो, लैंग्वेज की बात कौन कर रहा है!"

    फिर उसने रक्षित की ओर देख कर अपनी भौंहें उठा कर कहा, "मैं बताऊं, तू कैसी कैसी भाषा का इस्तेमाल करता है क्रिमिनल्स के सामने।"

    रक्षित ने कहा, "वो तो वहां पर न!"

    फिर उसने कहा, "पर तू तो हर जगह ऐसे ही होती है।"

    वर्तिका ने फिर से अपनी भौंहें उठा कर कहा, "तो! कैरेक्टर है अपना, कपड़े थोड़ी न कि ऑकेजन के हिसाब से चेंज करूं।"

    इतने में अक्षित ने भी कहा, "वी..."

    लेकिन विक्रांत ने बीच में ही कहा, "अक्ष-रक्ष, तुम लोग भूल रहे हो कि ये सीनियर है तुम सबकी।"

    अक्षित ने फौरन कहा, "मैं कुछ नहीं भूला हूं। ये सीनियर होगी हमारे थाने में, यहां तो ये सिर्फ हमारी दोस्त है।"

    रक्षित ने भी कहा, "और नहीं तो क्या! ड्यूटी पर तो ये हमें कभी भूलने ही नहीं देती कि ये हमारी सीनियर है। कम से कम यहाँ तो भूलने दे।" l

    वर्तिका ने मुंह बना कर कहा, "बस, बस! अब ये दिखाने की जरूरत नहीं है कि मैं तुम सबको हिटलर की तरह ट्रीट करती हूं।"

    अमर ने तुरंत बात बदलते हुए कहा, "अच्छा, तू ये सब छोड़। तू जरा हम सबके फेवरेट समोसे बना दे न!"

    अक्षित ने भी कहा, "हां यार, बहुत दिन हो गए तेरे हाथ के समोसे खाए हुए।"

    वर्तिका ने एक गहरी सांस लेकर कहा, "ठीक है, तुम सब बातें करो। मैं समोसे बना कर लाती हूं।"

    इतना बोल कर वो उठी और किचन की ओर चली गई। उसके अंदर जाते ही वो तीनों विक्रांत के बिलकुल पास आकर बैठ गए।

    अमर ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, "विक्की, क्या हुआ? तू कुछ परेशान लग रहा है।"

    विक्रांत के होठों की हँसी एकदम से गायब हो गई और माथे पर चिंता की लकीरें आ गईं।

    उसने परेशानी के साथ कहा, "बात ही परेशानी वाली है।"

    रक्षित ने कहा, "ऐसा भी क्या हो गया!"

    विक्रांत ने अपना चश्मा उतार कर कहा, "वो हॉस्पिटल से भाग गया है।"

    ये सुनते ही बाकी तीनों के मुंह से हैरानी के साथ एक साथ निकला, "क्या!"

    विक्रांत ने कहा, "हां! और मुझे डर है कि वो वी के पास आने की कोशिश जरूर करेगा।"

    अमर ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, "तू टेंशन मत ले, विक्की। हम सब मिल कर उसे ढूंढेंगे।"

    अक्षित और रक्षित ने भी कहा, "हां विक्की, तू अकेला नहीं है। हम सब तेरे साथ हैं।"

    एक हफ्ते बाद,

    जैतपुर - साउथ दिल्ली,

    रात का समय,

    वो एक ऊंची इमारत थी। जिसके एक फ्लैट में पूरी तरह से अंधेरा था। उसी फ्लैट के एक कमरे में एक लड़का और एक लड़की आपस में खोए हुए थें।

    उनकी उम्र कोई 27-28 साल रही होगी। पूरे कमरे में उनकी सांसों का शोर गूंज रहा था। कुछ देर बाद वो लड़की बाहर आई और कार में बैठ कर वहां से चली गई।

    उसके करीब दस मिनट बाद वो लड़का टी.वी. के सामने बैठा हुआ शराब पी रहा था और टी.वी. में फिलहाल उसी वक्त की रिकॉर्डिंग चल रही थी, जब वो लड़का और लड़की साथ में थे, लेकिन उस वीडियों में उस लड़‌के का चेहरा नहीं दिख रहा था, दिख रहा था तो उस लड़की की इज्जत का तमाशा।

    उस वीडियो को देख कर उस लड़के के होठों पर एक मक्कारी भरी मुस्कान आ गई और जल्द ही उस पूरे घर में उसकी भयानक हंसी गूंजने लगी।

    वो अपनी हँसी में ही मशगूल था कि इतने में बाहर से किसी गमले के गिरने की आवाज आई जिसे सुन कर उस लड़के के कान खड़े हो गए। उसने तुरंत टी.वी. बंद किया और खिड़की की ओर बढ़ने लगा।

    उसने खिड़की के पास जाकर जैसे ही वहां का परदा हटाना चाहा वैसे ही कमरे के बाहर से कुछ गिर कर टूटने की आवाज आई। वो लड़का तुरंत उस ओर बढ़ गया।

    उसने दरवाजा खोल कर बाहर झांका लेकिन वहां कोई नहीं था। उसने आगे बढ़ कर देखना चाहा, लेकिन इतने में ही उसे अपने पीछे किसी के कदमों की आहट सुनाई दी जिसका अंदाजा होते ही वो पीछे की ओर पलट गया।

    जैसे ही वो पलटा, कोई भारी चीज उसके सिर पर आ लगी। वो वार बहुत ही तेज था। चोट लगते ही उस लड़के के कदम लड़खड़ा गए और वो अपने होश खोते हुए नीचे गिरने लगा।

    उसकी आंखें बंद होने लगीं और इसी के साथ उसे अपने सामने एक धुंधला साया नजर आया जिसने सिर से लेकर पांव तक खुद को काले कपड़ों में ढका हुआ था।

    उसके मुंह पर भी काले रंग का मास्क लगा हुआ था। उसकी एक झलक के साथ ही वो लड़का बेहोश हो गया।

    अगली सुबह,

    वर्तिका अपने बेड पर सोई हुई थी। उसने हल्के नीले रंग का नाइट सूट पहना हुआ था। उसके एक हाथ पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था।

    वो अपनी नींद में डूबी हुई थी कि इतने में साइड टेबल पर रखा हुआ अलार्म चीख पड़ा। वर्तिका ने अलार्म क्लॉक को बंद कर दिया और उबासी लेती हुई उठ बैठी।

    उसने एक अंगडाई लेने के लिए जैसे ही हाथ फैलाया वैसे ही उसके मुंह से एक हल्की सी चीख निकल गई।

    उसने अपने प्लास्टर वाले हाथ की ओर देखा और फिर ना में सिर हिलाते हुए कहा, "अब पता नहीं कब तक सबसे आराम करने के लिए सुनना पड़ेगा।"

    और फिर उसने अपने बाईं तरफ गर्दन घुमाते हुए कहा, "विक्की!"

    अभी उसने इतना ही कहा था कि उसकी आँखें सिकुड़ गईं क्योंकि विक्रांत वहां नहीं था।

    उसने खुद से ही कहा, "ये इतनी सुबह-सुबह कहाँ चला गया?"

    इतना बोलते हुए उसने घड़ी पर नजर डाली तो वो सुबह के 7 बजे का समय दिखा रही थी।

    वर्तिका ने खुद से ही कहा, "हो गया बंटाधार, विक्की जल्दी नहीं उठा है, बल्कि तू लेट उठी है, वी।"

    जारी है...

  • 5. Love Unbound : A Cry For Justice - Chapter 5 (यथा त्वं वपसि तथा लप्स्यसि!)

    Words: 1025

    Estimated Reading Time: 7 min

    अपनी बात खुद से ही बोलते हुए वर्तिका बिस्तर से नीचे उतरी तो टेबल से कुछ दूर एक ट्रॉली पर नाश्ता रखा हुआ था। उसे देख कर वर्तिका के होठों पर बरबस ही मुस्कान आ गई।

    वो अपने कदम मोड़ कर ट्रॉली के पास पहुँच गई। उसने कॉफी की मग उठाई तो उसके नीचे एक नोट पड़ा हुआ था।

    उसने वो नोट खोला तो उसमें लिखा था, "हॉस्पिटल जा रहा हूँ। इमरजेंसी है, पर कोशिश करूँगा जल्दी आने की और ये भी जानता हूं कि मानने वाली तो तुम हो नहीं।

    गोली लगी है, फिर भी ड्यूटी पर जाओगी जरूर। इसलिए तुम्हारी दवाइयां स्पेशली तुम्हारे केबिन में रख आया हूं तो याद से उन्हें खा लेना और जब तक मैं न आऊं, तब तक टेक केयर ऑफ योरसेल्फ, मेरी शेरनी।"

    वो नोट पढ़ कर वर्तिका की मुस्कान और बड़ी हो गई। उसने उसी मुस्कान के साथ कहा, "आज बड़े रोमांटिक हो रहे हो, मिस्टर विक्की!"

    फिर उसने वो कॉफी का मग वापस से उसकी जगह पर रख कर ढक दिया और तुरंत ही बाथरूम में घुस गई। लगभग 15-20 मिनट बाद वो अपने बालों को सुखाते हुए बाहर आई।

    इस वक्त उसने एक सफेद रंग का बाथरोब पहना हुआ था। बाल सुखाने के बाद उसने अलमारी खोल कर अपनी यूनिफॉर्म निकाली।

    उसने जल्दी से अपनी वर्दी पहनी और नाश्ता करके नीचे चली गई। नीचे हॉल में उसकी बेटी अपनी स्कूल यूनिफार्म पहन कर पूरी तरह से तैयार थी।

    वर्तिका ने सीढ़ियों से उतरते हुए ही किचन में काम कर रही महिला से कहा, "दीदी, विजया ने नाश्ता कर लिया!"

    उस महिला ने किचन में से ही कहा, "हाँ दीदी, नाश्ता हो गया और लंच रेडी है।"

    इतना कहते हुए वो महिला हाथ में टिफिन लिए हुए बाहर आई, लेकिन वर्तिका को देखते ही उसका मुंह खुला का खुला रह गया।

    उसने अपनी आंखें बड़ी करके कहा, "दीदी! आप, आप पुलिस स्टेशन जा रही हैं!"

    वर्तिका ने अपने जूते पहनते हुए कहा, "आपको क्या लगता है!"

    महिला ने कहा, "पहले तो आप मुझे आप कहना बंद कीजिए। कितनी बार कहा है कि सावित्री नाम है मेरा, तो उसी से बुलाइए।"

    वर्तिका ने मुस्करा कर कहा, "और दूसरी बात!"

    सावित्री ने मुंह बना कर डांटने वाले लहजे में कहा, "दूसरी बात ये, कि आपको गोली लगी है तो आपको आराम करना चाहिए।"

    वर्तिका ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, "मैं ठीक हूं, दीदी और वैसे भी हमारी ड्यूटी 24 घंटे चलती रहती है और रही बात आपको आपके नाम से बुलाने की, तो वो भूल ही जाइए। आप बड़ी हैं मुझसे तो मैं तो आपको दीदी ही कहूंगी।"

    फिर उसने खड़े होते हुए कहा, "घर का ख्याल रखिएगा।"

    फिर उसने विजया की ओर देख कर कहा, "विजया, आर यू रेडी फॉर योर स्कूल?"

    विजया ने अपनी कॉलर उठाते हुए कहा, "ऑफ कोर्स मम्मा, मैं कभी लेट हुई हूँ क्या?"

    उसकी इस बात पर वर्तिका मुस्कुरा दी। फिर उसने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा "तो चलें ना!"

    विजया ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, "बिल्कुल!"

    इतने में सावित्री ने टिफिन्स लाकर वर्तिका को पकड़ाते हुए कहा, "दीदी, आपका और विजया बेबी का लंच!"

    वर्तिका ने वो टिफिन्स लिए और फिर विजया के साथ आगे बढ़ गई।

    दोपहर का समय,

    वर्तिका अपने केबिन में बैठी हुई थी। वो अभी-अभी लंच करके उठी थी कि तभी सामने रखा हुआ टेलीफोन बज उठा।

    उसने फोन उठा कर कहा, "हेलो!" और फिर सामने जो कहा गया, उसे सुन कर उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं।

    उसने खड़े होते हुए कहा, "हाँ, हाँ, मैं पहुँच रही हूँ।"

    इतना बोल कर उसने कॉल कट किया और तुरंत अपने साथियों को मैसेज करके बाहर की ओर दौड़ पड़ी। उसके पीछे पीछे अमर, रक्षित और अक्षित भी बाहर की ओर दौड़ पड़ें।

    कुछ देर बाद,

    एक अपार्टमेंट के बाहर पुलिस की गाड़ी आकर रुकी और उसमें से वर्तिका अपने साथियों के साथ बाहर निकली। वो सब जल्दी से उस अपार्टमेंट के थर्ड फ्लोर पर पहुँच जहाँ एक रूम के बाहर बहुत ज्यादा भीड़ लगी हुई थी।

    वर्तिका और बाकि सभी ने जल्दी से रास्ता क्लियर किया और उस रूम के दरवाजे तक पहुँचे। उन्होंने देखा कि दरवाजा लॉक था।

    उन्होंने कैसे भी करके दरवाजा खोला और अंदर जाकर देखा तो एक लड़के की लाश पंखे से लटक रही थी। ये वही लड़का था जो पिछली रात उस लड़की के साथ था।

    नॉर्मली तो कोई भी उसे देख कर कह देता कि उसने आत्महत्या की है, लेकिन उस लाश की जो हालत थी वो चीख चीख कर इस बात की गवाही दे रही थी कि उसकी हत्या हुई है और ये हत्या थी भी बहुत अजीब। उस युवक के शरीर पर महिलाओं के अंडरगारमेंट्स थे।

    उसके हाथ और पैर बंधे हुए थे और उसके पेट पर लिखा हुआ था, "यथा त्वं वपसि तथा लप्स्यसि।"

    उस लाश को देख कर सबकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गई थीं, लेकिन वर्तिका और उसके साथी आगे बढ़ें।

    उन सबने पूरी सावधानी से उस लाश को उतारा और उसकी अच्छे से जांच करने के बाद वैराग्या ने अमर की ओर देख कर कहा, "अमर, इसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दो।"

    अमर ने हां में सिर हिलाया तो वो आस-पास तहकीकात करने लगी। उसके साथ अक्षित और रक्षित भी आगे बढ़ गए।

    अमर भी अपना काम कर रहा था। उसने उस लड़के की लाश को स्ट्रेचर पर रखवाया और बाहर की ओर बढ़ गया।

    वर्तिका ने भी एक नजर उस लाश पर डाली और वापस अपने काम पर ध्यान देती, लेकिन उससे पहले ही उसकी नजरों के सामने से कुछ गुजर गया।

    वर्तिका ने फिर से दरवाजे की ओर मुड़ कर तेज आवाज में कहा, "रुको।"

    उसकी आवाज इतनी तेज और अचानक से आई थी कि एक पल के लिए तो उन तीनों लड़कों के शरीर में भी सिहरन दौड़ गई।

    वहीं वो दोनों लड़के जिन्होंने उस लाश को उठा रखा था, उनके पांव वहीं के वहीं जम गए और स्ट्रेचर तो उनके हाथों से गिरते गिरते बचा था।

    लेकिन वर्तिका को इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ा। वो उन सबको इग्नोर करके आगे की ओर बढ़ गई। किसी को भी समझ नही आ रहा था कि वो क्या कर रही है।

    वहीं उसे अपने पास आता देख उन लड़कों की कंपकंपी छूट रही थी।

    जारी है...

  • 6. Love Unbound : A Cry For Justice - Chapter 6 (फर्स्ट लेटर)

    Words: 1039

    Estimated Reading Time: 7 min

    वर्तिका ने जाकर सीधे उस मरे हुए लड़के के ऊपरी कपड़े में हाथ डाल दिया जो उस लड़के के शरीर पर था। ये देख कर सभी ने अपने मुंह पर हाथ रख लिया, लेकिन अगले ही पल सबकी आंखों में हैरानी उतर आई, क्योंकि वर्तिका ने वहां से एक कागज का टुकड़ा निकाला था।

    उसने उस कागज़ को देखते हुए ही हॉस्पिटल स्टाफ के उन लड़कों को आगे बढ़ने का इशारा किया तो वो दोनों लड़के पूरी गति के साथ आगे बढ़ गए।

    वो इशारा करके पीछे की ओर मुड़ी तब जाकर सभी लोग नॉर्मल हुए। होश में आते ही अमर एम्बुलेंस की ओर बढ़ गया तो वहीं अक्षित और रक्षित वर्तिका के पास आ गए।

    अक्षित ने उस लेटर को देख कर कहा, "क्या हुआ, वी? क्या हो सकता है इस लेटर में?"

    वर्तिका ने उन दोनों की ओर देख कर भौंहें उठाईं तो उन दोनों ने ही पहले एक दूसरे को देखा और फिर वर्तिका की ओर देख कर हां में सिर हिला दिया।

    वर्तिका ने एक गहरी सांस ली और वो लेटर खोल दिया। फिर वो तीनों मिल कर उस लेटर को पढ़ने लगे।

    उस लेटर में लिखा था,

    "मिसेज वर्तिका सहाय! मुझे पता था कि ये केस आपको ही मिलेगा, इसलिए ये स्पेशल नोट आपके लिए। मुझे पता है, मैंने जो किया है वो आप सबकी नजरों में गुनाह है, पर मेरी नजरों में, ये इंसाफ है और किसी के लिए न्याय भी।

    खैर, छोड़िए इन सब बातों को। सीधा मुद्दे पर आते हैं। मैंने सुना है कि आपकी सक्सेस रेट 100% रही है, तो चलिए देखते हैं कि इस बार आप अपने मिशन में सक्सेसफुल होती हैं या नहीं। इसलिए आपको एक हिंट दे देते हैं।

    ये मर्डर आज यहाँ हुआ है, अगला कब, कहाँ, और कैसे होगा, वो आप पता लगाओ। बस इतना समझ लो, कि जिसका मर्डर होगा, वो इससे जुड़ा हुआ ही कोई इंसान होगा।

    अगर आपने सही समय पर उस इंसान‌ को ढूंढ लिया तब तो आप उसे बचा लोगी, पर अगर ऐसा नही हुआ तो नेक्स्ट लेटर के लिए तैयार रहना।"

    इसके आगे वो लेटर खाली था। वर्तिका ने वो लेटर उलट पलट कर आगे पीछे, हर ओर से देख लिया, लेकिन उस पर और कुछ नहीं लिखा था।

    ये देख कर अक्षित ने अपने हाथ की मुट्ठी बना कर हवा में दे मारी। वहीं रक्षित ने अविश्वास से कहा, "ये क्या वी! ये तो तुझे खुले आम धमकी दे रहा है।"

    वर्तिका के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। उसने चुपचाप वो लेटर अपनी जेब में रख लिया। फिर वो बाकी चीजों का जायजा लेने लगी।

    रक्षित ने उसके पीछे आते हुए कहा, "वी, तू क्या करने वाली है इस लेटर के बारे में?"

    वर्तिका जो वहां फिंगर प्रिंट्स वगैरह चेक कर रही थी, उसने सिर्फ एक बार ठंडी नजरों के साथ उसकी ओर देखा तो रक्षित ने अपनी नजरें झुका कर कहा, "सॉरी, मैम!"

    वर्तिका कुछ कहे बिना फिर से अपना काम करने लगी। अक्षित और रक्षित भी अपना काम करने लगे। कुछ देर बाद वो सबके साथ बाहर आई।

    बाहर आकर उसने वहाँ खड़े लोगों से पूछा, "आप सब में से सबसे पहले यहाँ कौन आया था?"

    एक आदमी ने सामने आकर कहा, "मैम, मैं सबसे पहले यहाँ आया था।" उस आदमी ने फॉर्मल कपड़े पहने हुए थे।

    वर्तिका ने उसे सवालिया नजरों से देखते हुए कहा, "आप!"

    उस आदमी ने कहा, "मैम, मेरा नाम महेन्द्र सिंह है। मैं अवध बैंक का मैनेजर हूँ।"

    फिर उसने बाहर की ओर, जिधर से वो लाश गई थी, इशारा करके कहा, "और ये भी उसी बैंक में इम्प्लॉय था। मैंने कल इसे एक जरूरी फाइल दी थी।

    आज मुझे उस फाइल की सख्त ज़रूरत थी और ये बैंक आया ही नहीं था। मैंने इसे कई बार कॉल्स भी किए, पर इसने मेरे किसी भी कॉल का जवाब भी नहीं दिया।"

    वर्तिका ने महेन्द्र सिंह को देखते हुए ठंडी आवाज में कहा, "और वो फाइल आपके लिए इतनी इम्पोर्टेंट थी कि उसे लेने के लिए आप खुद यहाँ आ गए!"

    महेन्द्र सिंह ने अपनी सफाई देते हुए कहा, "नहीं मैम, मैंने पहले एक पियून को यहाँ भेजा था। वो यहाँ आया तो दरवाजा अंदर से बंद था, लेकिन उसके कई बार बुलाने पर भी इसने कोई जवाब नहीं दिया।

    इसलिए मुझे खुद यहाँ आना पड़ा। हमने की होल से अंदर झांक कर देखा तो हमें इसके लटके हुए पैर दिखाई दे रहे थें।"

    उसकी बातें सुन कर वर्तिका कुछ सोचने लगी। फिर उसने अक्षित को कुछ इशारा किया और फिर बाहर चली गई।

    शाम का समय,

    वर्तिका अपने कैबिन में बैठी हुई थी और उसके सामने अक्षित खड़ा था।

    उसने एक फाइल वर्तिका की ओर बढ़ाते हुए कहा, "उस आदमी का नाम चैतन्य बख्शी था। उसका घर यहाँ, इसी शहर में है, पर कभी कभी वो उस अपार्टमेंट में रहता था। लेकिन इसकी वजह क्या थी, ये अभी पता नहीं चल पाया है।"

    वर्तिका ने कड़क आवाज में कहा, "उसकी हिस्ट्री निकालो। मुझे जल्द से जल्द उसकी जन्म कुण्डली मेरे हाथों में चाहिए।"

    अक्षित ने कहा, "यस मैम!" और बाहर चला गया।

    कुछ देर बाद,

    वर्तिका खुद को शांत कर घर पहुंची तो उसकी नजर सोफे पर बैठे हुए विक्रांत पर पड़ीं। वो कुछ पेपर्स पढ़ने में बिजी था।

    वर्तिका ने उसके पास जाकर बैठते हुए कहा, "क्या हुआ विक्की? क्या है रिपोर्ट्स में?"

    अचानक से उसकी आवाज सुन कर विक्रांत अपने होश में वापस आया।

    उसने हड़बड़ा कर वो पेपर्स फाइल में रखते हुए कहा, "क, कुछ नहीं। उसकी रिपोर्ट्स अभी तक आई नहीं है।"

    उसके माथे पर टेंशन साफ झलक रही थी और उसकी हड़बड़ाहट को वर्तिका ने भी नोटिस किया जिसकी वजह से उसकी भौंहें सिकुड़ गईं।

    लेकिन फिर उसने अपने सारे ख्यालों को एक तरफ करके विक्रांत से कहा, "फिर तुम इतनी टेंशन में क्यों लग रहे हो?"

    विक्रांत ने बात बदलते हुए कहा, "कुछ नहीं। वो तो बस काम का प्रेशर है।"

    वर्तिका ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, "उसकी टेंशन मत लो। तुम सब कर लोगे।"

    विक्रांत ने छोटा सा जवाब दिया, "हम्म्म!"

    इतने में वर्तिका ने अपनी नज़रें इधर-उधर दौड़ाते हुए कहा, "वैसे, आज विजया कहां है?"

    विक्रांत ने सीधे होते हुए कहा, "आज वो जल्दी सो गई।"

    वर्तिका ने कहा, "ओ के!"

    इसके बाद उसने कुछ नहीं कहा। वो बस चुपचाप बैठी हुई कुछ सोचे जा रही थी।

    जारी है...

  • 7. Love Unbound : A Cry For Justice - Chapter 7 (घड़ी)

    Words: 1043

    Estimated Reading Time: 7 min

    विक्रांत से थोड़ी बहुत बात करने बाद वर्तिका ने कुछ नहीं कहा। वो बस चुपचाप बैठी हुई कुछ सोचे जा रही थी। ये देख कर विक्रांत, जो अपने हाथ में पकड़ी हुई फाइल को दूसरी ओर रख चुका था, ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया जिससे वर्तिका अपने ख्यालों से बाहर आई।

    उसने विक्रांत की ओर देख कर कहा, "हं, हां! कु, कुछ कहा तुमने!"

    विक्रांत ने उसका हाथ अपने हाथों में लेकर कहा, "तुम्हें क्या हुआ है? कुछ परेशान लग रही हो?"

    फिर उसने अंदाजा लगाते हुए कहा, "उस लेटर की वजह से!"

    वर्तिका ने कहा, "हां, मुझे समझ नहीं आ रहा है कि उस आदमी से किसी की क्या दुश्मनी रही होगी जो उसकी ऐसी हालत कर दी। मतलब उसकी लाश देख कर मैं खुद हैरान रह गई थी और इस पर भी उस खूनी ने मुझे खुले आम चुनौती दे दी।"

    इतने में उसे कुछ याद आया तो उसने अचानक से कहा, "और हां, मुझे एक चीज और मिली है।"

    विक्रांत ने तुरंत जिज्ञासा के साथ कहा, "क्या?"

    वर्तिका ने अपने पॉकेट से एक घड़ी निकाल कर विक्रांत की ओर बढ़ाते हुए कहा, "ये देखो।"

    उस घड़ी को देखते ही विक्रांत की आंखों में डर उतर आया। वो एक सोने की घड़ी थी जिसकी पूरी चैन ‘वी’ लेटर से बनी हुई थी और ये सारे ‘वी’ लिखे भी एक खास स्टाइल में गए थे और वो भी तीन-तीन के ग्रुप्स में।

    विक्रांत अभी उस घड़ी को देख ही रहा था कि इतने में वर्तिका ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "ये घड़ी मुझे उस घर के लॉकर पर मिली, वो भी स्पेशली मेरे लिए ही रखी गई थी।"

    विक्रांत ने उसकी ओर देख कर हैरानी के साथ कहा, "क्या!"

    वर्तिका ने हां में सिर हिलाते हुए कहा, "हां, जब मैं उस घर में छान-बीन कर रही थी तो ये देखने के लिए कि कहीं कुछ गायब तो नहीं हुआ है, मैंने लॉकर चेक करने का सोचा, लेकिन वहां पहुंचते ही मुझे दिखा..."

    **Flashback**

    वर्तिका सब कुछ देखते हुए आगे बढ़ रही थी। इसी बीच वो एक कमरे में पहुंची जहां उसे एक लॉकर नजर आया।

    वर्तिका ने उसे देख कर कुछ सोचा और फिर उसी ओर बढ़ गई, लेकिन इससे पहले कि वो उस लॉकर को खोलती, उसकी नजर उस लॉकर के ऊपर एक कोने में रखे हुए एक बॉक्स पर गई।

    उसने वो बॉक्स खोल कर देखा तो उसमें सबसे पहले एक लेटर रखा हुआ था। वर्तिका ने वो लेटर उठाया तो उसकी नजर उस घड़ी पर पड़ी।

    वर्तिका कभी उस लेटर को देखती तो कभी उस घड़ी को। फिर उसने उस लेटर को खोल कर पढ़ना शुरू किया जिसमें लिखा हुआ था,

    "सरप्राइज, सरप्राइज! मिसेज वर्तिका सहाय। आप ये सोच रही होंगी कि ये लेटर मैंने आपको पहले वाले लेटर के साथ और ये घड़ी भी उसी वक्त क्यों नहीं दे दी।

    वेल, क्योंकि मैं ये चाहता था कि ये घड़ी और ये लेटर सिर्फ आपको मिलें, सिर्फ और सिर्फ आपको! क्योंकि ये आपसे भी जुड़ा है और आपके अतीत से भी।"

    इसके आगे वो लेटर खाली था। अपने अतीत की बात पढ़ कर वर्तिका का दिमाग हिल चुका था। पिछले 4 सालों से वो अपने अतीत की यादों को खोए बैठी है।

    उसने उस लेटर और उस घड़ी को उठा कर तुरंत अपने पॉकेट में रख लिया और बाकी की तहकीकात करने लगी।

    **Flashback the end**

    अपनी बात पूरी करके वर्तिका ने विक्रांत से कहा, "मुझे समझ नहीं आ रहा है कि ये खूनी है कौन जो मेरे अतीत के बारे में जानता है और मेन पॉइंट ये है कि ऐसा क्या है मेरे अतीत में, जो ये मुझे इस बात से प्रवोक कर रहा है।"

    विक्रांत ने अपने डर को छिपाते हुए वर्तिका से कहा, "ऐसा कुछ नहीं है, वी। वो बस तुम्हारा ध्यान भटका रहा है।"

    ये सुन कर वर्तिका ने उसकी ओर देखा तो विक्रांत ने अपनी बात सही साबित करने के लिए कहा, "पहले तो उसने तुम्हें प्रवोक करने के लिए तुम्हें चैलेंज किया ताकि तुम उसी बारे में सोचती रहो और केस पर ध्यान मत दे पाओ और ये अतीत वाली बात इसलिए है क्योंकि इस वजह से तुम्हारा ध्यान अपने अतीत पर जाता रहेगा।

    फिर अगर तुम इस लेटर वाली बात को इग्नोर करके आगे बढ़ भी गई तो भी तुम इस केस पर फोकस नहीं कर पाओगी।"

    वर्तिका ने कुछ सोचते हुए कहा, "हां, हो सकता है।"

    फिर उसने उस घड़ी को अपने हाथ में लेकर उसे गौर से देखते हुए कहा, "लेकिन ये घड़ी! ये भी जानी पहचानी सी लगती है।"

    विक्रांत ने वो घड़ी वर्तिका के हाथ से लेकर साइड में रख दिया। फिर उसने वर्तिका का हाथ पकड़ कर उसकी तरफ घूम कर कहा, "वी! हम सब तुम्हारे अपने हैं।"

    फिर उसके उस घड़ी की ओर इशारा करके कहा, "अगर ये घड़ी तुम्हारे लिए इतनी ही खास होती तो हमें इसके बारे में पता नहीं होता क्या!"

    वर्तिका ने भी कुछ सोच कर कहा, "हां, ये भी सही है। मुझे भी ऐसा ही लगता है कि वो खूनी मुझे भटकाना ही चाहता है।"

    विक्रांत ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "तो क्या तुम उसकी चाल पूरी होने दोगी!"

    वर्तिका ने उसकी ओर देख कर अपनी भौंहें उठा कर कहा, "तुम्हें ऐसा लगता है!"

    विक्रांत ने उसकी आंखों में देख कर कहा, "नहीं।"

    वर्तिका ने अपनी एक भौंह उठा कर कहा, "फिर!"

    विक्रांत ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, "तो चलो, अब ये टेंशन छोड़ो और जाकर फ्रेश हो जाओ।"

    वर्तिका ने भी कहा, "हम्म्म!"

    और उठ खड़ी हुई। वो सीढ़ियों की ओर बढ़ी ही थी कि इतने में विक्रांत ने कहा, "वैसे वी!"

    वर्तिका ने उसकी ओर देख कर कहा, "हां!"

    विक्रांत ने उस घड़ी की ओर इशारा करके कहा, "इसके बारे में किसी को पता तो नहीं है न!"

    वर्तिका ने ना में सिर हिला कर कहा, "नहीं।"

    विक्रांत ने कहा, "गुड।"

    ये सुन कर वर्तिका के मुंह से निकला, "हां!"

    तो विक्रांत ने बात संभालते हुए कहा, "मेरा मतलब है कि मीडिया को इसके बारे में पता होता तो और तिल का ताड़ बन जाता।"

    वर्तिका ने कहा, "हां, वो भी है।"

    विक्रांत ने कहा, "तो मैं इस घड़ी को अभी अपने पास रखता हूं। जब केस सॉल्व हो जाए तब ले लेना।"

    वर्तिका ने कहा, "ठीक है। अभी तुम ही रखो।"

    इतना बोल कर वो ऊपर चली गई।

    जारी है...

  • 8. Love Unbound : A Cry For Justice - Chapter 8 (पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट)

    Words: 1051

    Estimated Reading Time: 7 min

    वर्तिका ने अपने कमरे में जाकर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। अब उसके चेहरे के भाव पूरी तरह से बदल चुके थे। जहां अब तक शांति नजर आ रही थी, वहां अब दुनिया जहां की बेचैनी और गुस्सा नजर आ रहा था।

    उसने खुद से ही कहा, "आज विक्की इतना स्ट्रेंज बिहेव क्यों कर रहा था? क्या वो मुझसे कुछ छुपा रहा है?"

    वो खुद में ही सोचती जा रही थी, "लेकिन वो ऐसा क्यों करेगा? पर कुछ तो है जो वो छुपा रहा है। लेकिन क्या? आखिर उसे क्या जरूरत पड़ गई मुझसे कुछ छुपाने की?"

    क्या करूं? उससे सीधे पूछ लूं? नहीं, नहीं! उसे बुरा लग सकता है और क्या पता जो मैं सोच रही हूं वो मेरे मन का वहम हो। लेकिन विक्की का बिहेवियर भी तो अजीब था।"

    ये सब सोच सोच कर उसका सिर दुखने लगा था। उसने अपना सिर पकड़ कर कहा, "आह... मैं पागल हो जाऊंगी।"

    और वहीं दरवाजे के पास बैठ गई। कुछ देर वो उसी तरह से बैठी रही।

    फिर उसने अपना सिर उठा कर खुद से ही कहा, "नहीं, वी! तू ऐसे हार नहीं मान सकती। तुझे पता लगाना होगा कि आखिर बात क्या है। क्यों विक्की इतना स्ट्रेंज बिहेव कर रहा है और कौन है ये खूनी जो मेरे अतीत के बारे में जानता है।"

    वहीं नीचे हॉल में,

    वर्तिका के ऊपर जाने के बाद विक्रांत ने किसी को कॉल करके कहा, "हेलो! कल हॉस्पिटल में आकर मुझसे मिलो।" और फोन काट दिया।

    अगले दिन,

    अक्षित, रक्षित और अमर, विक्रांत के केबिन में बैठे हुए थे। उनके सामने विक्रांत भी बैठा हुआ था।

    अमर ने उसकी ओर देख कर कहा, "क्या हुआ, विक्की? तूने हम सबको यहां ऐसे, अचानक से क्यों बुला लिया?"

    विक्रांत ने कुछ सोचते हुए कहा, "मुझे लगता है कि ये मर्डर उसने किया है।"

    उन तीनों के मुंह से हैरानी से एक साथ निकला, "क्या?"

    विक्रांत ने कहा, "हां!"

    फिर उसने वर्तिका की दी हुई घड़ी और लेटर को उनके सामने रखते हुए कहा, "ये देखो, ये घड़ी उस खूनी ने वी के लिए, स्पेशली उस लड़के के लॉकर पर रखी थी, वो भी इस लेटर के साथ।"

    उस घड़ी को देख कर अक्षित, रक्षित और अमर की भी आंखें बड़ी हो गईं।

    वो सभी हैरान परेशान से उस घड़ी को देख रहे थे इतने में विक्रांत ने एक फाइल उन तीनों की ओर बढ़ा कर कहा, "ये देखो, क्या हुआ है उस लड़के के साथ!"

    उन सभी को अभी एक झटका लगा ही था कि उस फाइल को देख कर उन्हें दूसरा झटका लग गया।

    रक्षित ने विक्रांत की ओर देख कर कहा, "क्या है यार ये! कोई इतना बेरहम कैसे हो सकता है!"

    विक्रांत ने खड़े होकर कहा, "वही तो मैं भी कह रहा हूं।"

    फिर उसने केबिन में ही टहलते हुए कहा, "जिस बेरहमी से इसे मारा गया है, उससे ये बात साफ पता चलती है कि मारने वाले के दिल में इसके लिए किस हद तक गुस्सा भरा हुआ होगा। यहां तक कि इसे मारने से पहले इसका डिजिटल रेप भी किया गया है।"

    ये सुन कर सबको फिर से झटका सा लगा।

    वो तीनों आंखें फाड़े विक्रांत को देखने लगे तो विक्रांत ने एक गहरी सांस लेकर कहा, "हां, तुम लोगों ने ठीक सुना और ये बात इसी तरफ इशारा करती है कि उसे भी वही दर्द देने की कोशिश की गई है जिस दर्द से वो गुजरा था।"

    ये सुन कर रक्षित ने कहा, "ये तो टेंशन वाली बात है, यार! अगर उसे वक्त पर रोका नहीं गया तो इससे भी बुरा हो सकता है।"

    उसने अपनी बात पूरी ही की थी कि इतने में अक्षित ने कहा, "एक मिनट!"

    उसकी आवाज सुन कर सबकी गर्दन उसकी ओर घूम गई। अमर ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "क्या हुआ?"

    अक्षित ने अपनी भौंहें सिकोड़ कर नासमझी से कहा, "मुझे ये तो समझ आ गया कि ये उसका काम है पर उसने इस लड़के को क्यों मारा?"

    इससे पहले कि कोई और कुछ कहता, विक्रांत ने कहा, "क्योंकि ये उन्हीं लोगों में से एक है।"

    ये सुन कर सबको फिर से झटका लगा और सबकी गर्दन एक झटके से उसकी ओर घूम गई।

    रक्षित ने हैरानी के साथ कहा, "क्या!"

    विक्रांत ने अफसोस के साथ कहा, "हां!"

    ये सुन कर अमर ने खड़े होते हुए कहा, "फिर तो ये यही डिजर्व करता था।"

    ये सुन कर अक्षित और रक्षित, दोनों के मुंह से एक साथ निकला, "हां!"

    अमर ने थोड़ी तेज आवाज में कहा, "क्या हां! जो इंसान ऐसे काम करे, जब तक उसके खुद के साथ ऐसा नहीं होगा, तब तक वो औरों की तकलीफ क्या ही समझेगा!"

    अक्षित ने भी तुरंत खड़े होते हुए कहा, "अरे तकलीफ समझने के लिए वो जिंदा भी तो होना चाहिए न!"

    अमर ने उसकी आंखों में देख कर कहा, "तो उसने कौन सा उसे जिंदा छोड़ दिया था?"

    इतने में रक्षित ने अपने हाथ बांध कर कहा, "यानी कि तुम उसे सपोर्ट कर रहे हो।"

    अमर ने अपनी बात रखते हुए कहा, "देखो! हम उसे सपोर्ट नहीं कर रहे हैं, लेकिन ये हम भी जानते हैं कि वो गलत नहीं है, उसने सिर्फ वी के साथ गलत किया है और उसके पहले जो हुआ उसमें उसकी या किसी की भी गलती नहीं थी।"

    अक्षित ने कहा, "हां, तुम्हारी बात सही है, लेकिन अब हमें गलती नहीं, सेफ्टी देखनी है सबकी। वी हैव टू मेक श्योर दैट, वी और विजया सेफ रहें।"

    इससे पहले कि कोई और कुछ कहता, विक्रांत जो कि उनकी बहस सुन कर चिढ़ चुका था, उसने तेज आवाज में कहा, "अरे, बस करो तुम तीनों।"

    उसकी ऐसी आवाज सुन कर तीनों लड़के चुप हो गए। वहीं विक्रांत ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "मैंने यहां तुम सबको इसलिए नहीं बुलाया है कि आपस में लड़ते रहो।"

    ये सुन कर तीनों लड़के शांति से उसकी तरफ देखने लगे तो विक्रांत ने अपनी गर्दन झुका कर एक गहरी सांस ली और खुद को शांत किया। फिर वो वापस आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया।

    उसने एक फाइल निकाल कर उन तीनों के सामने रखते हुए कहा, "ये देखो।"

    _____________________

    Note - जिसे भी डिजिटल रेप का मतलब जानना हो वो हमें मैसेज करके पूछ ले क्योंकि ये वो नहीं है जो आपके दिमाग में आ रहा है। इस कहानी का उद्देश्य ऐसी किसी भी घटना को बढ़ावा देना नहीं है इसलिए इसे अन्यथा ना लें।

    ~ धन्यवाद 🙏🙏🙏

    जारी है...

  • 9. Love Unbound : A Cry For Justice - Chapter 9 (5 मौके!)

    Words: 1037

    Estimated Reading Time: 7 min

    विक्रांत ने एक फाइल निकाल कर अक्षित, रक्षित और अमर के सामने रखते हुए कहा, "ये देखो।"

    अमर ने वो फाइल लेकर खोली तो उसमें कुछ लोगों की डिटेल्स थीं। तीनों लड़कों ने वो फाइल देखते ही नासमझी से विक्रांत की ओर देखा तो विक्रांत ने उन्हें फाइल में आगे बढ़ने का इशारा कर दिया।

    तीनों लड़के विक्रांत की दी हुई फाइल देख रहे थे और 2-3 पन्ने पलटने के बाद उनके मुंह खुले के खुले रह गए। उनके सामने उस फाइल में चैतन्य बख्शी की फोटो थी।

    अमर ने विक्रांत की ओर देख कर कहा, "क्या ये... "

    इतना बोल कर वो चुप हो गया तो विक्रांत ने हां में सिर हिला कर कहा, "हां, ये वही फाइल है।"

    अक्षित ने तुरंत खड़े होते हुए कहा, "फिर तो हमें तुरंत उन्हें इनफॉर्म करना होगा।"

    और दरवाजे की ओर बढ़ने लगा लेकिन इससे पहले कि वो दरवाजा खोलता, अमर ने तेज आवाज में कहा, "रुको!"

    अक्षित के कदम जहां के तहां रुक गए और उसके हाथ जो हैंडल की ओर बढ़ रहे थे वो भी हवा में ही रह गए।

    उसने नासमझी से अमर की ओर देख कर कहा, "क्या हुआ?"

    अमर ने उसके पास आकर कहा, "ये क्या करने जा रहे हो तुम? किसे इनफॉर्म करने जा रहे हो?"

    अक्षित ने चिढ़ कर कहा, "क्या मतलब किन्हें इन्फॉर्म करने जा रहा हूं! जिनकी जान खतरे में है उन्हें बताना तो पड़ेगा ही न!"

    अमर ने उसका हाथ पकड़ कर टेबल की ओर बढ़ते हुए कहा, "कोई जरूरत नहीं है।"

    अक्षित ने अपना हाथ छुड़ाने के लिए अमर का हाथ झटक कर कहा, "क्या मतलब?"

    अमर ने अपने दांत पीसते हुए अक्षित की आंखों में देख कर कहा, "हम पुलिस ऑफिसर्स हैं। हमारा काम क्रिमिनल्स को खत्म करना है, बचाना नहीं।"

    अक्षित ने भी थोड़ी तेज आवाज में अमर की आंखों में देख कर कहा, "तुम शायद भूल रहे हो कि वो भी एक क्रिमिनल ही है जिसने अपने बदले के लिए वी की जान की भी परवाह नहीं की और इस वक्त भी वो क्राइम्स ही कर रहा है और पुलिस ऑफिसर्स होने के नाते हमारा काम सिर्फ क्रिमिनल्स को खत्म करना ही नहीं, क्राइम को रोकना भी है।"

    अमर ने अपने हाथ बांध कर कहा, "हां, मैं मानता हूं कि हमारा काम क्राइम को रोकना है लेकिन मुझे ये बताओ कि तुम जाकर उन कमीनों से कहोगे क्या!

    यही, कि 4 साल पहले उन सबने जो गुनाह किया था, उसी की सजा मिली उनके दोस्त को और एक बार को मैंने मान भी लिया कि तू जाकर उन्हें ये बता भी देगा, पर क्या वो तुझसे ये नहीं पूछेंगे कि तुझे इस सबके बारे में कैसे पता!"

    उसकी बात सुन कर अक्षित अपने जगह पर जमा रह गया। उसके पास अमर की बातों का कोई जवाब नहीं था।

    वहीं अमर ने उसके कंधे पकड़ कर झकझोर कर हिलाते हुए कहा, "तो क्या बताओगे उन्हें, हां!"

    वो बहुत गुस्से में था।

    उसे ऐसे देख कर अक्षित ने भी गुस्से में कहा, "तो क्या करूं? हाथ पर हाथ रख कर बैठा रहूं!"

    इससे पहले कि कोई और कुछ कहता, विक्रांत ने गंभीर आवाज में कहा, "नहीं।"

    उसकी आवाज सुन कर सबकी गर्दन उसकी ओर घूम गई। वहीं, विक्रांत ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "हम ऐसे बैठ कर तमाशा नहीं देखेंगे। हमें उसे पकड़ना होगा। लेकिन ऐसे नहीं..."

    इसके आगे वो चुप हो गया तो रक्षित ने उसे सवालिया निगाहों से देख कर कहा, "फिर!"

    विक्रांत ने वो फाइल उठाते हुए कहा, "हमें इन सभी पर नजर रखनी होगी।"

    फिर उसने उस फाइल में मौजूद सभी लोगों की तस्वीर तीनों लड़कों के सामने करते हुए कहा, "देखो, ये सब टोटल 6 थे। जिनमें से एक को वो मार चुका है।"

    रक्षित ने ये देख कर कहा, "यानी कि हमारे पास सिर्फ 5 मौके हैं।"

    अक्षित ने उसके सिर पर एक चपत लगा कर कहा, "तू पागल है क्या!"

    रक्षित उसे घूरते हुए अपना सिर सहलाने लगा तो अक्षित ने कहा, "हमें उसे जल्द से जल्द पकड़ना होगा क्योंकि वो वी के पास भी पहुंच सकता है।"

    अमर ने कहा, "यानी कि हमें टोटल 6 लोगों पर नजर रखनी होगी।"

    ये सुन कर अक्षित ने उसकी ओर देख कर नासमझी से कहा, "हां!"

    तो अमर ने कहा, "हां! हमें वी पर भी नजर रखनी होगी और इस बात का भी खास ख्याल रखना होगा कि वो वी के पास ना पहुंच जाए।"

    रक्षित ने तुरंत कहा, "और वो हम सब मिल कर करेंगे।"

    उसने इतना ही कहा था कि विक्रांत की घड़ी में एक बीप की आवाज हुई।

    उसने बाकी सबकी ओर देख कर कहा, "अब बाकी की बातें बाद में। अभी तुम लोग जल्दी से यहां से निकलो वरना वी को शक हो जाएगा कि तुम लोग अब तक वहां पहुंचे क्यों नहीं।"

    अमर ने हड़बड़ा कर कहा, "हां, हमें निकलना चाहिए। प्रेस कॉन्फ्रेंस के बारे में सुन कर वैसे ही उसका दिमाग खराब है। हमें लेट हुआ तो पूरी रात का गुस्सा वो हम पर ही निकाल देगी।"

    विक्रांत ने भी कहा, "हां, जल्दी जाओ।"

    वहीं दूसरी तरफ,

    एक कॉन्फ्रेंस रूम में बहुत सारे रिपोर्टर्स बैठे हुए थे और उनमें आपस में कुछ बातें हो रही थी क्योंकि उस मर्डर की खबर पूरे शहर में फैल चुकी थी।

    कुछ देर बाद,

    वर्तिका अपने साथियों के साथ उस कमरे में दाखिल हुई। उसके चेहरे पर चिढ़ साफ नजर आ रही थी। उन सभी को देखते ही सारे रिपोर्टर्स सीधे होकर बैठ गए।

    वर्तिका और उसकी टीम के बैठते ही रिपोर्टर्स ने अपने सवाल पूछने शुरू कर दिए।

    एक रिपोर्टर ने खड़े होकर कहा, "मैम! आप सबके रहते हुए भी शहर में एक आदमी का मर्डर हो गया और वो भी इतने ब्रूटल तरीके से और आप सबको इसकी भनक तक नहीं लगी!"

    वर्तिका ने कटाक्ष करते हुए कहा, "क्यों? क्रिमिनल्स क्या हमें कॉल करके पहले ही वॉर्न कर देते हैं कि हम इस जगह पर, ये क्राइम करने वाले हैं। आप इस वक्त, इस जगह पहुँच कर हमें अरेस्ट कर लेना।"

    उस रिपोर्टर ने थोड़ा चिढ़ कर कहा, "मैम! हम यहां एक सीरियस केस की बात कर रहे हैं और आप हमारी बातों को ऐसे मजाक में ले रही हैं।"

    वर्तिका ने बिल्कुल शांत आवाज में कहा, "जी, नहीं! मैं मजाक नहीं कर रही हूं। मजाक तो आप लोगों ने हमारा बना रखा है।"

    जारी है...

  • 10. Love Unbound : A Cry For Justice - Chapter 10 (चैलेन्ज)

    Words: 1024

    Estimated Reading Time: 7 min

    अपने सामने मौजूद रिपोर्टर की बात सुन कर वर्तिका ने बिल्कुल शांत आवाज में कहा, "जी, नहीं! मैं मजाक नहीं कर रही हूं। मजाक तो आप लोगों ने हमारा बना रखा है। आपको सिर्फ सवाल पूछना होता है लेकिन हमें क्राइम को इन्वेस्टिगेट करके क्रिमिनल को ढूंढना होता है लेकिन आप लोग ये बात कहां समझेंगे।

    आपको तो सिर्फ अपनी TRP बढ़ानी है फिर चाहे इस सब में आप सबको हमसे फालतू के सवाल ही क्यों न पूछने पड़ें। इसी चक्कर में आप अपना और हमारा भी समय खराब करते हैं। इस वक्त भी हम यहां आप सबके सवालों के जवाब दे रहे हैं जबकि इस समय को हम उस क्रिमिनल को ढूंढने के लिए यूज कर सकते थे।"

    ये सब सुन कर उस रिपोर्टर ने कहा, "मैम! आप मीडिया की इंसल्ट कर रही हैं।"

    वर्तिका ने व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ कहा, "इंसल्ट, इज्जत वाला काम करते ही कब हैं आप लोग? बिना किसी का सच जाने, सिर्फ अपने मन को जो सही लगे, उसे हीरो और दूसरे को विलेन बनाना काम है आप सबका।"

    फिर उसने खड़े होते हुए कहा, "कोई अच्छा सवाल हो तो पूछिए, वरना मैं चलती हूं।"

    इतना बोल कर वो बाहर की ओर बढ़ी ही थी कि इतने में पीछे से किसी रिपोर्टर ने कहा, "आप उस लेटर की वजह से बौखलाई हुई हैं न जिसमें उस खूनी ने आपको चैलेंज किया है।"

    ये सुन कर वर्तिका के कदम जहां के तहां रुक गए। वो वापस अपनी जगह पर आ गई और उसके होठों पर एक तिरछी मुस्कान आ गई। इस वक्त उसकी मुस्कान बेहद डरावनी थी।

    उसने उसी मुस्कान के साथ कहा, "उस खूनी को लगता है कि वो उस लेटर के जरिए मेरा ध्यान भटका सकता है और मुझे कमजोर कर सकता है।

    फिर उसकी मुस्कान एकदम से गायब हो गई और उसने एकदम सर्द लहजे में कहा, "तो तू भी सुन ले। तू जो भी है, जहां भी है, एक हफ्ते, सिर्फ एक हफ्ते के अंदर तुझे तेरे हाथों में हथकड़ी पहना कर खुद यहां सबके सामने लाऊंगी मैं। ये मेरा वादा है तुझसे।"

    इतना बोल कर वो तेजी से बाहर चली गई और उसके जगह अब अमर सारे सवालों के जवाब दे रहा था।

    वहीं दूसरी तरफ,

    एक कमरे में TV पर वर्तिका की प्रेस कॉन्फ्रेंस चल रही थी क्योंकि ये लाइव टेलीकास्ट था। जैसे ही उसने कैमरे में देख कर उस खूनी को चुनौती दी वैसे ही उस कमरे में बैठे किसी शख्स के होठों पर एक तिरछी मुस्कान आ गई।

    वो उस TV के सामने की एक टेबल पर अकेला बैठा हुआ था। उसने भूरे रंग की पैंट के साथ सफेद रंग का हुडी पहन हुआ था। उसके बाएं हाथ में एक काले रंग की स्पोर्ट्स वॉच थी।

    उसके दाएं हाथ में एक कलावा बंधा हुआ था। उसके दाहिने हाथ के बीच वाली उंगली में एक अंगूठी थी जिस पर उसी तरह से तीन वी लिखे हुए थे जैसे कि उस घड़ी में जो वैराग्या को मर्डर स्पॉट से मिली थी।

    उसके पैरों में सफेद रंग के स्नीकर्स थे। उसके घने काले बाल उसके माथे पर बिखरे हुए थे।

    उसकी काली आंखों में एक अलग ही चमक और खुशी नजर आ रही थी। उसके होठों पर भी असली मुस्कान थी।

    जैसे ही वर्तिका ने उसे चुनौती दी वैसे ही उसने कहा, "यही तो मैं चाहता था। यही आग, यही एटीट्यूड देखना था मुझे तुम्हारे अंदर।"

    और इसी के साथ उसका चेहरा नजर आया। ये वही लड़का था जो अस्पताल से भाग गया था और जिसे विक्रम ढूंढ रहा था। अपनी बात बोल कर वो अपनी कुर्सी पर पसर गया।

    फिर उसने कॉफ़ी की एक सिप लेकर सामने टीवी की ओर देखते हुए ही कहा, "बी रेडी मिसेज वर्तिका सहाय! बहुत जल्द ही हम दोनों की मुलाकात होने वाली है।"

    वर्तिका सहाय बोलते हुए उसकी आंखों में एक अलग ही आग और गुस्सा था।

    कुछ देर बाद,

    विजया हॉस्पिटल,

    वर्तिका अपनी टीम के साथ हॉस्पिटल में मौजूद थी। चेतन के घर वाले उसकी लाश लेने आए हुए थे जिनमें से उसका बाप बहुत ही गुस्से में लग रहा था।

    वर्तिका फिलहाल अकेली ही वहां पर खड़ी थी। उसे देखते ही चेतन के बाप की आंखों में अजीब से भाव आ गए।

    उसने एटिट्यूड के साथ कहा, "क्या मैडम? तुम ही हो यहां की ACP वर्तिका सहाय!"

    वर्तिका ने अपनी नफरत को दबाते हुए शांति के साथ कहा, "जी, मैं ही हूं, ACP वर्तिका सहाय।"

    उस आदमी ने व्यंग्य भरी मुस्कान के साथ कहा, "बड़ी बिजी पर्सनालिटी हैं आप तो!"

    फिर उसने थोड़ी तेज आवाज और गुस्से में कहा, "मतलब मैं कल से बोल रहा हूं कि मुझसे आकर मिलो। समझ नहीं आ रहा!"

    वर्तिका ने शांति से कहा, "देखिए मिस्टर! मैं जानती हूं कि आपका बेटा मरा है और मुझे इस बात का दुख भी है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आप किसी की भी इंसल्ट करें।

    मैं फालतू का टाइम पास नहीं कर रही हूं। आपके बेटे के कातिल को ही ढूंढ रही हूं। इसलिए अपनी जुबान पर कंट्रोल रखिए।"

    उस आदमी ने गुस्से में कहा, "साली, मुझसे जुबान लड़ाती है।"

    और वर्तिका की ओर बढ़ गया लेकिन इससे वर्तिका को कोई फर्क नहीं पड़ा। वो बिलकुल आराम से अपनी जगह पर खड़ी रही।

    वहीं जैसे ही उस आदमी ने अपने कदम वर्तिका की ओर बढ़ाए, वैसे ही अमर उसके सामने आ गया।

    उसने अपना हाथ उस आदमी के सीने पर रख कर उसे रोकते हुए कहा, "मिस्टर! अपनी लिमिट में रहिए। आप एक ऑन ड्यूटी पुलिस ऑफिसर को गाली नहीं दे सकते हैं। इसके लिए मैं अभी, इसी वक्त आपको अरेस्ट कर सकता हूं।"

    उसकी आंखों में उस आदमी के लिए नफरत साफ दिख रही थी जिसे उस आदमी ने भी भांप लिया था।

    उसने अपने कदम पीछे लेते हुए वर्तिका की ओर देख कर कहा, "मुझे मेरे बेटे का खूनी किसी भी हाल में मेरे सामने चाहिए। वो भी 2 दिनों के अंदर वरना..."

    फिर उसने अमर की ओर देख कर कहा, "मैं क्या - क्या कर सकता हूं, ये मुझे बताने की जरूरत नहीं है।"

    इतना बोल कर वो वापस चेतन के लाश की ओर मुड़ा ही था कि इतने में वर्तिका ने कहा, "जरा आप ये बताने का कष्ट करेंगे कि आप कल कहां थें!"

    जारी है...

  • 11. Love Unbound : A Cry For Justice - Chapter 11 (चेतन बख़्शी और अमित बख़्शी)

    Words: 1020

    Estimated Reading Time: 7 min

    वर्तिका का सवाल सुन कर चेतन के पिता के कदम जहां के तहां रुक गए। उसने फिर से वर्तिका की ओर देख कर नासमझी से कहा, "क्या मतलब?"

    वर्तिका उसके सामने आकर खड़ी हो गई। उसने अपने हाथ बांध कर कहा, "आपका बेटा कल मरा है। तो आप आज क्यों आए हैं उसकी लाश लेने? कल कहां थे आप?"

    उस आदमी ने चिढ़ कर कहा, "मैं कहीं भी रहूं! उससे तुम्हें क्या?"

    वर्तिका ने उसकी आंखों में देख कर कहा, "अच्छा, तो यही बता दीजिए कि जब आपका घर इसी शहर में है तो आपका बेटा उस अपार्टमेंट में कर क्या रहा था!"

    ये सुन कर उस आदमी का चेहरा पीला पड़ गया लेकिन उसने कहा कुछ नहीं।

    वहीं वर्तिका ने उसकी आंखों में आंखें डाल कर कहा, "देखिए मिस्टर! बात ये है, कि मुझसे बद्तमीजी तो कीजिएगा मत! क्योंकि आप क्या हैं और क्या नहीं, मैं बहुत अच्छे से जानती हूं और रही बात आपके बेटे की!

    तो उसके खूनी को ढूंढना हमारा काम है और आपके बेटे और आपके लिए अच्छा यही है कि आप हमें मत सिखाए कि हमें अपना काम कब तक करना है और कैसे करना है।"

    वो आदमी फिर से कुछ कहने को हुआ ही था कि इतने में किसी की आवाज उन दोनों के ही कानों में पड़ी, "अंकल!"

    वो आवाज सुन कर उन दोनों की ही गर्दन उस दिशा में घूम गई जहां 5 लड़के खड़े थे। ये पांचों वही थे जिनकी तस्वीर विक्रांत के फाइल में थी।

    वर्तिका तो उन्हें नहीं पहचान रही थी, लेकिन अमर उन्हें देखते ही पहचान गया। वो वर्तिका को रोकने के लिए आगे बढ़ा ही था कि इतने में अक्षित और रक्षित भी वहां पहुँच गए।

    वो दोनों ही वर्तिका के पीछे जाकर खड़े हो गए जिन्हें देख कर चेतन के बाप ने कुछ नहीं कहा। वो अपने हाथों की मुट्ठियां भींचे हुए उन लड़कों की ओर बढ़ गया।

    उन्हें देख कर अक्षित, रक्षित और अमर, इन तीनों को ही उन पांचों लड़कों के नाम और उनकी की हुई हरकत याद आ रही थी। उन पांचों में पहले लड़के का नाम था, उस्मान खान।

    दूसरे लड़के का नाम था, लोकेश भारती। तीसरे लड़के का नाम था, पीटर डी' सूजा। चौथे लड़के का नाम था रहीम खान, और पांचवें लड़के का नाम था ईशान बजाज।

    वो सारे ही नम आंखों के साथ चेतन को देख रहे थे। वर्तिका की नजरें भी उसी ओर टिकी हुई थीं। वो एकटक उसी ओर देख रही थी और उसके चेहरे के भाव ऐसे थे जैसे कि वो अपने दिमाग पर बहुत जोर डाल कर कुछ याद करने की कोशिश कर रही हो।

    ये चीज अमर को भी दिखाई दे रही थी इसलिए उसने तुरंत वर्तिका के पास जाकर कहा, "वी! अब हमें चलना चाहिए। बहुत से काम पेंडिंग पड़े हैं।"

    इतना बोल कर वो वर्तिका को बाहर की ओर ले जाने लगा। वर्तिका ने पीछे की ओर देख कर कहा, "हां, लेकिन...!"

    लेकिन अमर ने उसकी बात बीच में ही काट कर कहा, "लेकिन वेकिन कुछ नहीं। अभी चल।"

    वर्तिका ने भी सारी बातों को अपने दिमाग से निकाल कर कहा, "अच्छा बाबा! चलो।"

    कुछ देर बाद,

    वो चारों पुलिस की गाड़ी में बैठे हुए थाने की ओर बढ़ रहे थे।

    वर्तिका के बगल में बैठे हुए अक्षित ने उसकी ओर देख कर हिचकिचाहट के साथ कहा, "वी!"

    वर्तिका ने सामने देखते हुए ही कहा, "हम्म!"

    अक्षित ने अभी भी उसी तरह से कहा, "तुझसे एक बात पूछूं!"

    वर्तिका ने पहले एक नजर उसकी ओर देखा और फिर सामने की ओर देख कर कहा, "पूछो।"

    अक्षित ने उससे सवाल करते हुए कहा, "तू जानती है उस आदमी को?"

    वर्तिका ने आराम से कहा, "कल इस नमूने का फोन आया था तो मैंने काट दिया।"

    ये सुन कर अक्षित के मुंह से हैरानी के साथ निकला, "क्या!"

    वर्तिका ने चिढ़ कर कहा, "क्या है अक्ष! तू इतना शॉक्ड क्यों हो रहा है?"

    अक्षित ने हड़बड़ा कर कहा, "क, क, कुछ नहीं। वो तो बस, ऐसे ही।"

    वर्तिका ने उसे इग्नोर करके बाकी सबकी ओर देख कर कहा, "तुम लोगों को कुछ पता चला कि ये अकेला वहां क्यों रहता था!"

    सबने आंखों में एक दूसरे को कुछ इशारा किया और फिर वर्तिका की ओर देख कर ना में सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं।"

    वर्तिका ने अपनी जगह पर पसरते हुए आराम से कहा, "पर मैंने पता कर लिया।"

    ये सुन कर सबके मुंह से नासमझी से एक साथ निकला, "हां!"

    वर्तिका ने नफरत से कहा, "असल में इसने वो अपार्टमेंट रंग रलियां मनाने के लिए ही लिया हुआ था।"

    रक्षित ने अपनी भौंहें सिकोड़ कर कहा, "क्या मतलब?"

    वर्तिका ने एक फाइल निकालते हुए कहा, "इसकी पूरी जानकारी लाई हूं मैं।"

    फिर उसने वो फाइल तीनों लड़कों की ओर बढ़ाते हुए कहा, "ये देखो।"

    तीनों लड़के हैरानी और परेशानी के साथ उस फाइल को देखने लगे। उस फाइल में चेतन की सारी जानकारी थी। तीनों लड़के वो फाइल देख रहे थे।

    वहीं वर्तिका ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, "इसका पूरा नाम चेतन बख्शी है। इसके बाप का नाम अमित बख्शी है। दोनों बाप बेटे एक नंबर के ठरकी और लौंडियाबाज हैं।"

    जैसे ही उसने ये बात बोली, तीनों लड़के जिनकी नजरें उस फाइल की ओर थीं, उनकी नज़रें तुरंत वर्तिका की ओर घूम गईं और वो सब उसे ऐसे देख रहे थे जैसे कि वर्तिका ने कितना बड़ा क्राइम कर दिया हो।

    इस बात का एहसास होते होते ही वर्तिका ने अपनी आँखें मिंच लीं। फिर उसने धीरे से अपनी गर्दन उन तीनों को ओर घुमा कर एक अक्वर्ड सी स्माइल के साथ कहा, "अच्छा! नहीं बोलूंगी ये शब्द।"

    लेकिन वो तीनों अभी भी उसे वैसे ही देख रहे थे। ये देख कर वर्तिका ने अपनी गर्दन दूसरी ओर करके कहा, "अब ऐसे मत देखो।"

    उसकी हरकतें देख कर तीनों लड़के चिढ़ गए थे। अमर ने चिढ़े हुए ही कहा, "आगे की बात बता।"

    वर्तिका भी तुरंत गंभीर हो गई। वो सीधी होकर बैठ गई। उसने कहा, "इसका बाप पॉलिटिशियंस तक पहुंच रखता है तो पैसे और पावर की भी कोई कमी नहीं है।"

    रक्षित ने उसे सवालिया नजरों से देख कर कहा, "फिर ये बैंक में एक मामूली सा एम्प्लॉय बन कर काम क्यों करता था?"



    जारी है...

  • 12. Love Unbound : A Cry For Justice - Chapter 12 (फाइल)

    Words: 1102

    Estimated Reading Time: 7 min

    रक्षित के सवाल का जवाब देते हुए वर्तिका ने कहा, "अपनी साफ सुथरी इमेज बनाए रखने के लिए।"

    ये सुन कर तीनों लड़कों के मुंह से निकला, "हां!"

    वर्तिका ने फाइल की ओर इशारा करके कहा, "हां! असल में इसका बाप सिर्फ दुनिया को दिखाने के लिए एक बिजनेस मैन है। वरना तो वो एक नंबर का चोर है। ड्रग्स, चरस, गांजा, अफीम, लड़की हर चीज की मार्केटिंग करता है।

    फिर उसने नफरत से कहा, "ये आदमी पूरे यूथ को खोखला कर रहा है और बाप से बढ़ कर तो बेटा था इन कामों में। तो बस अपनी इमेज को क्लीन रखने के लिए वो क*** बैंक में छोटी पोस्ट पर काम कर रहा था।"

    रक्षित ने समझने का नाटक करते हुए कहा, "अच्छा, तो ये बात है!"

    वर्तिका ने कहा, "हां! और रही बात अपार्टमेंट की तो उसे ये दोनों बाप बेटे मिल कर यूज करते थे। लड़कियों को बुला कर उनके साथ अय्याशी करना और फिर उनकी ही वीडियो बना कर उन्हें ब्लैकमेल करना।"

    फिर उसने अपने फोन में कुछ करते हुए कहा, "बस, कल भी ये क*** ऐसे ही किसी लड़की के साथ लगा हुआ था और वो लड़की है ये।"

    इतना बोलते हुए उसने पिछली रात वाली लड़की की एक फोटो उनके सामने कर दी। तीनों लड़के उसे भी देखने लगे।

    वर्तिका ने फिर से सामने देखते हुए ही कहा, "इसने भी अपना बयान दे दिया है।"

    उनका ड्राइवर भी ये बातें बड़े ही ध्यान से सुन रहा था जो कि वही लड़का था जो विक्रांत के हॉस्पिटल से भागा था।

    उसने गहरी आवाज में कहा, "मतलब कि ये मर्डर जिसने भी किया है उसकी बहुत बड़ी दुश्मनी रही होगी इस लड़के से।"

    सबने उसकी बात तो सुनी लेकिन उसकी आवाज पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया।

    वहीं रक्षित ने खोए हुए ही कहा, "तभी तो ऐसी हालत करके मारा उस इंसान ने।"

    ये सुन कर सबकी गर्दन उसकी ओर घूम गई जिनमें वर्तिका की नजरों में तो सवाल थे, लेकिन अमर और अक्षित के आंखों में गुस्सा कि ये बात क्यों बोल दी।

    इससे पहले कि वो दोनों कुछ कह कर बात संभालते, वर्तिका ने रक्षित से सवाल करते हुए कहा, "क्या मतलब ऐसी ही हालत करके मारा है! पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स आ गई हैं क्या?"

    अक्षित ने बात संभालते हुए कहा, "नहीं, वो एक्चुअली, रिपोर्ट्स तो नहीं आई हैं, लेकिन विक्की ने हमें बताया है कि उस लड़के के साथ डिजिटल रेप हुआ है।"

    ये सुन कर वर्तिका के मुंह से निकला, "क्या!"

    अमर ने एक गहरी सांस छोड़ कर कहा, "हमारे लिए भी इस बात पर यकीन करना मुश्किल था पर सच यही है।"

    वर्तिका ने कुछ सोचते हुए कहा, "फिर तो ये खूनी इन्हीं लड़कियों में से किसी लड़की का रिलेटिव हो सकता है।"

    तीनों लड़कों ने भी कहा, "हां, ऐसा हो सकता है।"

    अमर ने अपने मन में खुद से ही कहा, "तुझे ये सब करने की कोई जरूरत नहीं है वी। हम सब सारा सच जानते हैं, लेकिन तेरे लिए यही सही है कि तू इसी सब में उलझी रहे और उसके बारे में न जाने।"

    इतना बोल कर उसने अपनी आंखें बंद कर लीं, लेकिन इतने में न जाने उसके दिमाग में क्या आया कि उसने तुरंत अपनी आंखें खोलीं और वर्तिका की ओर देख कर कहा, "ये सब तो ठीक है, वी! लेकिन तूने इतनी जल्दी इसके बारे में ये सारी इन्फॉर्मेशन निकाली कैसे?"

    अक्षित ने भी कहा, "हां, वी! हम सबने अभी काम शुरू ही किया है। फिर तूने एक ही रात में ये सारी इन्फॉर्मेशन कैसे निकाल ली!"

    वर्तिका ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, "ये इनफॉर्मेशन मैं नहीं लाई हूं।"

    अक्षित ने नासमझी से कहा, "फिर!"

    वर्तिका ने उनकी ओर देख कर कहा, "ये मुझे मेरे घर पर ही मिली है।"

    अमर ने कंफ्यूजन के साथ कहा, "तेरे घर पर, कैसे? आई मीन किसने?"

    वर्तिका ने एक गहरी सांस छोड़ कर कहा, "यही तो पता करना है कि वो खूनी मेरे घर एक पहुँचा कैसे और वो खुद मुझे ये सारी इन्फॉर्मेशन दे क्यों रहा है!"

    अमर ने चिढ़ कर कहा, "तू साफ साफ बताएगी, बात क्या है!"

    वर्तिका ने गंभीरता के साथ कहा, "बताती हूं।"

    फ्लैशबैक

    पिछली शाम,

    वर्तिका उस घड़ी को विक्रांत को देकर अपने कमरे में चली गई। खुद से ही सब कुछ करने का वादा करके वो उठ खड़ी हुई।

    उसने अपने कदम बाथरूम की ओर बढ़ा लिये। कुछ देर बाद वो कपड़े बदल कर वापस आई। इस वक्त उसने नीले रंग का बाथरोब पहना हुआ था।

    वो वार्डरोब की तरफ बढ़ी ही थी कि इतने में उसकी नजर टेबल पर रखे हुए एक फाइल पर पड़ी और उसके कदम जहां के तहां रुक गए।

    उसने खुद से ही कहा, "ये किसकी फाइल है।"

    इतना बोलते हुए उसने वो फाइल उठा ली। उसने उस फाइल पर नाम देखा तो चेतन बख्शी लिखा हुआ था।

    वर्तिका ने फाइल खोलते हुए कहा, "लगता है पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स आ गई हैं।"

    लेकिन जैसे ही उसने फाइल खोली, उसकी आँखें बड़ी हो गईं। उसने फिर से कहा, "ये पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स तो नहीं हैं। ये तो उस लड़के की सारी इनफार्मेशन है।"

    ये बोलते हुए वो उस फाइल को पलटती जा रही थी। सारी फाइल देखने के बाद वो झटके के साथ बेड पर बैठ गई।

    उसने खुद से ही कहा, "कौन है ये जिसने इतनी जल्दी ये सारी जानकारी इकट्ठी कर ली। एंड द मेन प्वाइंट इज, कोई मेरी हेल्प क्यों करेगा।"

    उसने इतना ही कहा था कि इतने में उसकी नजर साइड टेबल पर रखे हुए एक नोट पर पड़ी। उसने वो नोट लेकर पढ़ना शुरू किया।

    "हेलो मिसेज वर्तिका सहाय! मैं फिर से आपका शुभचिंतक। गुस्सा तो बहुत आ रहा होगा मुझ पर। आखिर, फिलहाल आपकी नजरों में एक खूनी जो हूं।

    खैर छोड़िए इन बातों को। ये बातें होती रहेंगी। अभी के लिए इस फाइल पर ध्यान लगाते हैं।"

    ये पढ़ते ही वर्तिका की गर्दन अपने हाथ में पकड़ी हुई फ़ाइल की ओर घूम गई और उसकी पकड़ उस फाइल पर कस गई।

    उसे एक नजर देखने के बाद वर्तिका ने फिर से उस नोट को पढ़ना शुरू किया, "ये फाइल देख कर तो आप समझ ही गई होंगी कि ये किसकी फाइल है, लेकिन भरोसा आप करेंगी नहीं।

    तो आप खुद ही चेक कर सकती हैं कि इसमें जो भी इनफॉरमेशन दी गई है वो सही है या नहीं। मैं ये नहीं कहता कि मैंने क्राइम नहीं किया है, लेकिन मैं ये जरूर कहूंगा कि जिसे मैंने मारा है वो भी कोई दूध का धुला नहीं था।

    उसी के किए गए किसी पाप का अंश, किसी पाप का फल हूं मैं। तो ये फाइल पढ़िए और इन्वेस्टिगेशन करके पता लगाइए उस पाप का। तब तक के लिए, अलविदा!"

    फ्लैशबैक दी एंड

    जारी है...

  • 13. Love Unbound : A Cry For Justice - Chapter 13 (उदय विलास होटल)

    Words: 1005

    Estimated Reading Time: 7 min

    अपनी बातें बोल कर वर्तिका ने कहा, इस तरह से मुझे इसकी सारी इनफार्मेशन मिली।

    अमर ने चिढ़ते हुए मुंह बना कर कहा, "उस खूनी ने तुझे ये फाइल दी और तूने उसकी बातों पर यकीन कर लिया!"

    वर्तिका ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "तुम लोगों को मैं इतनी बेवकूफ दिखती हूं।"

    वर्तिका ने कहा, "मैंने अपनी स्पेशल टीम को इस सब के बारे में पता लगाने को कहा था और उन लोगों ने बताया कि ये सारी इनफार्मेशन सही है।"

    अमर ने कहा, "तो अब तूने क्या करने का सोचा है?"

    वर्तिका ने कहा, "देखो, इन लेटर्स के जरिए एक बात तो क्लियर हो चुकी है कि ये मर्डर कोई लड़का है। दूसरी बात ये है कि उसने अपने लेटर में कहा था कि अगला मर्डर इसके जान पहचान के ही किसी इंसान का होगा।"

    रक्षित ने उसकी ओर देख कर गंभीरता के साथ कहा, "यानी कि अब हमें इसका फैमिली बैकग्राउंड चेक करना होगा।"

    वर्तिका ने कहा, "हां, और वो भी जल्द से जल्द।"

    अक्षित ने जोश के साथ कहा, "ठीक है। हम स्टेशन पहुंचते ही काम शुरू करते हैं।"

    रात का समय,

    उस लड़के का कमरा,

    फिलहाल वो लड़का वहां नहीं था बल्कि एक लड़की वहां खड़ी तैयार हो रही थी। उसने लाल रंग की घुटनों से ऊपर तक की एक शॉर्ट ड्रेस पहनी हुई थी। वो आईने के आमने खड़ी होकर मेक अप कर रही थी।

    उसने बिल्कुल आराम से खुद को तैयार किया और अपना छोटा सा लाल रंग का बैग लेकर निकल गई।

    कुछ देर बाद,

    उदय विलास हॉटल,

    एक कैब उस हॉटल से कुछ दूरी पर आकर रुकी और उसमें से वो लड़की बाहर उतरी। उसके बाल खुले हुए थे। उसने कानों में बड़ी सी गोल गोल बालियां थीं। उसकी आंखों में अजीब से भाव थे और होंठ सुर्ख।

    पैरों में उसने हाई हील पहनी हुई थी और रेड कलर की उस ड्रेस में वो कहर ढा रही थी। उसने उतर कर कैब का पेमेंट क्लियर किया और उस हॉटल की ओर बढ़ गई।

    उसने होटल के अंदर जाकर किसी से कुछ कहे बिना, अपने कदम सीधे 1 कमरे की ओर बढ़ा लिये। उस कमरे के बाहर पहुंच कर वो उसने उसका दरवाजा तीन बार खटखटाया।

    एक मिनट के अंदर ही कमरे के अंदर से नशे में चूर आवाज आई, "दरवाजा खुला है। आ जाओ।"

    उस लड़की ने दरवाजे को हल्के से अंदर की तरफ धक्का दिया तो दरवाजा खुद-ब-खुद खुल गया। वो लड़की अंदर आई तो उस कमरे में चेतन के वही पांचों दोस्त मौजूद थे जो हॉस्पिटल आए हुए थे।

    वो पांचों आराम से सोफे पर बैठे हुए थे। उन सबके हाथ में शराब के गिलास थे। उनके सामने टेबल पर भी शराब की बोतलें खुली हुई थीं।

    साथ में कुछ चखना वगैरह भी रखा हुआ था। वो पांचों पूरी तरह से नशे में धुत थे। जैसे ही वो लड़की अंदर आई, उन सभी लड़कों की नजरें उस पर टिक गईं।

    वो सभी उसे ऐसे देख रहे थे जैसे भूखे को खाना मिल गया हो, लेकिन इतने में लोकेश ने अपने इमोशन्स को कंट्रोल करके कहा, "इसे किसने बुलाया बे!"

    उसकी बात सुन कर उस्मान कुछ बोलने को हुआ ही था, लेकिन तब तक वो कुछ सोच कर रुक गया। फिर उसने उस लड़की को अंदर के कमरे में जाने का इशारा किया। वो लड़की हां में सिर हिला कर अंदर चली गई।

    उसके जाने के बाद उस्मान ने लोकेश की ओर देख कर कहा, "मैंने बुलाया है उसे।"

    फिर उसने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "क्यों, तुझे कोई प्रॉब्लम है क्या?"

    लोकेश ने चिढ़ कर कहा, "साले, तू कभी नहीं सुधर सकता न! मतलब, कल ही हमारे दोस्त की मौत हुई है, मौत क्या, उसका मर्डर कर दिया है किसी ने!"

    पीटर ने भी उसकी बातों का समर्थन करते हुए कहा, "और हम आज ही उसका अंतिम संस्कार करके लौटे हैं।"

    लोकेश ने फिर से चिढ़ कर कहा, "और तूने आज ही लड़की भी बुला ली।"

    उस्मान उन दोनों की बातें सुन कर चिढ़ रहा था। उसने तेज आवाज में कहा, "अबे चुप बे, वो तो निकल लिया दुनिया से। अब उसके चक्कर में हम अपनी जवानी क्यों बर्बाद करें!"

    ईशान ने कहा, "अबे, वो दोस्त था हमारा।"

    उस्मान ने उन सबको टॉन्ट मारते हुए कहा, "सालों, दोस्ती का हवाला तो देना मत मुझे। सबको पता है कि हमने उससे दोस्ती क्यों की थी और दोस्त था तो भी क्या! क्या उसके पीछे पीछे नर्क में भी जाना है।

    वो तो चला गया, कम से कम जो बचे हैं वो तो अपनी लाइफ एन्जॉय करें, बल्कि मैं तो कहता हूं कि तुम लोग भी अपने हाथ साफ कर ही लो।"

    ईशान ने कहा, "पर ये भी तो सोच न, कि उसका मर्डर आखिर किया किसने और क्यों किया!"

    उस्मान ने अपना सिर पकड़ कर कहा, "अरे सालों इसीलिए तो मेरा दिमाग खराब हो रखा है। जब से मुझे चेतन के मर्डर की खबर मिली है, तब से मैं सोच रहा हूं कि उसे किसने मारा होगा और यही बात सोच सोच कर मेरा दिमाग ब्लॉक हो चुका है।"

    फिर उसने बाकी सबकी ओर देख कर कहा, "और इसीलिए मैंने इस लड़की को बुलाया है। अपनी सारी फ्रस्ट्रेशन यहाँ निकालूँगा तभी जाकर मैं और कुछ सोच या समझ पाऊँगा।"

    उसकी बात सुन कर बाकी लड़के सोच में पड़ गए, तो उस्मान ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "क्या बोलते हो, आओगे मेरे साथ! शराब भी है और शबाब भी। पूरी रात मौज करेंगे।"

    इससे पहले कि कोई और कुछ कहता, रहीम ने कहा, "देख भाई, मैं बायसेक्सुअल हूँ। मुझे लड़के और लड़कियाँ दोनों पसंद हैं, लेकिन इस वक़्त मुझे उस खूनी पर इतना गुस्सा आ रहा है कि मैं बहुत ज़्यादा वाइल्ड हो जाऊँगा।

    मतलब मेरा कंट्रोल ही नहीं रहेगा खुद पर और ऐसे में ये लड़कियाँ, ये बिल्कुल नाज़ुक सी कली जैसी होती हैं। मैं थोड़ा सा वाइल्ड हो गया, तो ये मुझे झेल नहीं पाती हैं, इनकी हालत ख़राब हो जाती है और मुझसे इनके नखरे झेले नहीं जाते हैं।"

    ईशान ने ठहाके लगा कर कहा, "हाँ, तेरा तो हम सबको पता है। क्या हाल किया था तूने उस लड़के का।"



    जारी है...

  • 14. Love Unbound : A Cry For Justice - Chapter 14 (उस्मान खा)

    Words: 1010

    Estimated Reading Time: 7 min

    बातें करते हुए ईशान ने किसी लड़के का जिक्र किया तो लोकेश ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "किस लड़के का?"

    ईशान ने उसके सिर पर हल्के से चपत लगा कर कहा, "अबे, तुझे याद नहीं, 4 साल पहले वाला जो लड़का था।"

    लोकेश ने याद करते हुए कहा, "अच्छा वो!"

    ईशान ने बेशर्मी के साथ कहा, "हाँ, वही। कसम से अधमरा हो गया था बेचारा।"

    पीटर ने भी उसी तरह से कहा, "लेकिन मज़ा भी तो बहुत आया था।"

    इतने में रहीम ने कहा, "और तुम सब भूल गए, उसे लेकर भी मैं ही आया था।"

    पीटर ने कहा, "हाँ, तो तू ही लाएगा न! आख़िर हम सब में तू ही तो है जिसे लड़के पसंद हैं।"

    रहीम ने चिढ़ कर कहा, "हाँ, सालों! इसीलिए उस रात मुझसे ज़्यादा मजे तुम सबने किए थे।"

    उस्मान ने देखा कि सारे लड़के इसी तरह से रात बिता देंगे, तो उसने ये टॉपिक ख़त्म करते हुए कहा, "बस, बस, हो गया। उस रात की बात छोड़ो और आज की बताओ। आओगे मेरे साथ?"

    रहीम ने एक नज़र बाकी लड़कों को देखा और फिर एक गहरी साँस लेकर कहा, "देख यार, मैंने तो बता दिया कि मैं किसी लड़के को पकडूँगा, तो..."

    फिर उसने अपने दोनों हाथ उठा कर कहा, "आई एम आउट। तुम सब अपना देख लो।"

    पीटर ने भी कहा, "यार, मैं भी आता, पर आज मैं नहीं आऊँगा। कल बुला लेना किसी को, फिर मैं भी जॉइन करूँगा।"

    ईशान ने भी कहा, "यार, मैं भी आज नहीं आ पाऊँगा।"

    उस्मान ने चिढ़ कर कहा, "जाओ बे सालों! आज तुम में से कोई नहीं आएगा। आज मैं अकेला ही रहूँगा।"

    लोकेश ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, "देख यार, हमारी बात मान, आज तो तू भी रहने ही दे।"

    उस्मान ने उसे घूरते हुए कहा, "मैं क्यों रहने दूँ! तुम सब दुख मनाओ उसकी मौत का। मैं तो जो मन में आए, वो करूँगा।"

    ईशान ने अपना सिर पकड़ कर कहा, "तू हमारी बात समझ क्यों नहीं रहा है!"

    उस्मान ने गुस्से में कहा, "क्योंकि मुझे कुछ नहीं समझना है।"

    ऐसे ही वो सब आपस में बहस करने लगे। उस्मान था कि मानने को ही तैयार नहीं था और बाकी लड़के उसे सिर्फ़ आज रुकने के लिए बोल रहे थे।

    लास्ट में उस्मान ने फ़्रस्ट्रेट होकर कहा, "ठीक है। तुम सबको नहीं आना, तो तुम सब अपने-अपने कमरे में जा सकते हो।"

    लोकेश ने कहा, "पर उस्मान..."

    लेकिन उस्मान ने उसकी बात को बीच में काटते हुए कहा, "देखो, मैं तुम सबको फ़ोर्स नहीं कर रहा, तो बेटर होगा कि तुम लोग भी मुझे मत ही रोको।"

    ईशान ने खड़े होते हुए कहा, "ठीक है, हम चलते हैं। अपना ख़्याल रखना।"

    इतना बोल कर वो सभी बाहर जाने लगे। तभी पीछे से उस्मान ने कहा, "और हाँ, आज की रात मुझे डिस्टर्ब मत करने के बारे में सोच भी मत।"

    पीटर ने कहा, "ठीक है, हम तुझे डिस्टर्ब नहीं करेंगे। तू अपना ख़्याल रखना।"

    इतना बोल कर वो भी बाहर चला गया। सबके जाने के बाद उस्मान ने उठ कर दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। वहीं उस कमरे में आई हुई वो लड़की, वो दरवाज़े के पास खड़ी होकर इन पाँचों की बातें सुन रही थी।

    इस वक़्त गुस्से से उसके हाथों की मुट्ठियाँ कसी हुई थीं। उसके हाथों की नसें तक साफ़-साफ़ नज़र आ रही थीं। जैसे ही उस्मान ने दरवाज़ा बंद किया, वैसे ही वो लड़की कमरे में वापस आकर वाइन सर्व करने लगी।

    उसने अपने मन में ही कहा, "आ उस्मान, आ। आज तेरा अपने दोस्त के पास जाने का समय आ गया है।"

    अगले दिन,

    सुबह का समय,

    वर्तिका देर रात में काम करते-करते अपनी स्टडी में ही सो गई थी। विक्रांत भी घर पर नहीं था, क्योंकि वो तो उस लड़के को ढूँढने में लगा हुआ था जो उसके हॉस्पिटल से भागा था।

    पूरी रात वर्तिका स्टडी में ही रही और सुबह उसकी नींद खुली एक फोन कॉल से। उसने फोन उठा कर देखा तो पुलिस स्टेशन से कॉल था।

    उसने नींद में ही कॉल आंसर करके फोन अपने कान से लगाया तो सामने से अक्षित की पैनिक आवाज़ आई, "वी, कहाँ है तू? जल्दी आ।"

    उसकी ऐसी आवाज़ सुन कर वर्तिका की नींद एक झटके में गायब हो गई। उसने तुरंत सीधे होकर अक्षित से सवाल करते हुए कहा, "क्या हुआ? तू ऐसे पैनिक क्यों कर रहा है?"

    अक्षित ने अभी भी उसी तरह से कहा, "आज फिर किसी का मर्डर हो गया है।"

    ये सुन कर वर्तिका को झटका सा लगा। उसने तुरंत सवाल करते हुए कहा, "किसका?"

    अक्षित ने तुरंत कहा, "अरे, उस चेतन के दोस्त, उस्मान का।"

    वर्तिका ने और सवाल करते हुए कहा, "कब, कहाँ, कैसे?"

    अक्षित ने कहा, "वो सब तो वहाँ चलने के बाद पता चलेगा न! जल्दी आ।"

    वर्तिका ने कहा, "तुम लोग अब तक वहाँ नहीं पहुँचे हो!"

    अक्षित ने कहा, "अभी-अभी उसके दोस्तों का फोन आया था और हमें भी जस्ट अभी-अभी इस बारे में पता चला है।"

    वर्तिका ने कहा, "ठीक है। तुम लोग वहाँ पहुँचो। मैं भी वहीं आ रही हूँ।"

    इतना बोल कर उसने फोन रख दिया और तुरंत उठ खड़ी हुई।

    कुछ देर बाद, वर्तिका अपनी टीम के साथ उदय विलास होटल पहुँच चुकी थी। वो सभी फिलहाल उसी कमरे में खड़े थे जहाँ पर पिछली रात उस्मान ने उस लड़की को बुलाया था।

    उसके दोस्त भी वहीं पर खड़े थे। सबकी नज़रें छत से लटक रही उस्मान की लाश पर टिकी हुई थीं। उसकी हालत भी बिल्कुल चेतन की तरह ही थी।

    उसके शरीर पर महिलाओं के अंडर गारमेंट्स थे, उसके पेट पर भी लिखा हुआ था, "यथा त्वं वपसि तथा लप्स्यसि।"

    उसे ऐसे देख कर जहाँ सारे लड़के मुँह खोले खड़े थे, तो वहीं वर्तिका को चिढ़ तो मच रही थी कि वो खूनी अपने दूसरे मर्डर में भी कामयाब हो गया, लेकिन उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी।

    उसने अमर की ओर देख कर कहा, "इसकी लाश उतरवाओ।"

    अमर ने हाँ में सिर हिला कर अपना काम शुरू कर दिया। वहीं वर्तिका बाक़ी सब की तरफ़ मुड़ गई।

    उसने उस्मान के दोस्तों से सवाल करते हुए कहा, "इसकी लाश सबसे पहले किसने देखी?"

    जारी है...

  • 15. Love Unbound : A Cry For Justice - Chapter 15

    Words: 802

    Estimated Reading Time: 5 min

    लोकेश ने आगे आते हुए कहा, "हम सब एक साथ यहाँ आए थे। कल रात उस्मान ने हमसे कहा था कि रात भर कोई भी उसे डिस्टर्ब न करे, इसलिए हम सब अपने-अपने कमरों में चले गए थे।"

    आगे की बात बताते हुए पीटर ने कहा, "रात भर उसके कमरे से कोई ऐसी आवाज़ भी नहीं आई थी जिससे हमें लगे वो ख़तरे में है, इसलिए हम सबने इतना ध्यान भी नहीं दिया।"

    वर्तिका ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "तो तुम सब रात के गए हुए, सुबह में यहाँ आए हो।"

    ईशान ने कहा, "हाँ, सुबह हम सबकी नींद देर से खुली और जब फ़्रेश होकर हम सब इकट्ठे हुए, तो उस्मान वहाँ पर नहीं था। हमें लगा कि वो अभी भी सो रहा होगा, इसलिए हम उसे जगाने चले आए।"

    उसने इतना ही कहा था कि इतने में रहीम ने कहा, "एक मिनट!"

    उसकी आवाज़ सुन कर सबकी गर्दन उसकी तरफ़ घूम गई।

    ईशान ने अपनी भौंहें उठा कर उससे सवाल करते हुए कहा, "क्या हुआ?"

    रहीम ने कहा, "अबे, वो लड़की कहाँ है?"

    उसकी बात सुन कर, बाक़ी लड़कों की आँखें डर से बड़ी हो गईं।

    लोकेश ने अपने गुस्से को कंट्रोल करते हुए अपने दाँत पीसते हुए कहा, "अबे चुप!"

    इतने में वर्तिका ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, "कौन सी लड़की?"

    अब रहीम से कुछ कहते नहीं बन रहा था क्योंकि बाक़ी लड़के उसे घूर रहे थे और साथ में कुछ न बोलने का इशारा भी कर रहे थे। वहीं वर्तिका भी उसे घूरे जा रही थी। अब रहीम को समझ नहीं आ रहा था कि वो करे क्या।

    वो सोच ही रहा था कि बात को कैसे संभाले कि इतने में वर्तिका ने फिर से कहा, "बोलो, किस लड़की की बात कर रहे थे तुम?"

    अब रहीम की नज़रें कभी वर्तिका पर जा रही थीं, तो कभी अपने दोस्तों पर। एक तरफ़ वर्तिका बार-बार उस लड़की के बारे में पूछ रही थी, तो दूसरी तरफ़ उसके दोस्त उसे कुछ भी न बोलने का इशारा कर रहे थे।

    इसी हड़बड़ी में उसने बोल दिया, "वो कल रात उस्मान ने एक लड़की बुलाया था।"

    ये सुनते ही वर्तिका की भौंहें सिकुड़ गईं।

    उसने उन सभी दोस्तों की ओर देख कर अपनी एक भौंह उठा कर कहा, "लड़की, और होटल में वो भी रात के अंधेरों में!"

    इससे पहले कि उनमें से कोई भी कुछ कहता, अमर ने उनके पास आकर वर्तिका से कहा, "मैम!"

    वर्तिका ने उसकी तरफ़ देखा तो अमर ने उस्मान की लाश की तरफ़ इशारा कर दिया जो उतार कर सामने लिटाई गई थी।

    वर्तिका ने एक नज़र उन सभी दोस्तों पर डाली और फिर अमर से कहा, "इन सबको पूछताछ के लिए थाने ले चलो।"

    इतना बोल कर वो पलट कर उस्मान की लाश की ओर बढ़ गई।

    वहीं वर्तिका की बात सुनते ही अमर अपने काम पर लग गया और वो लड़के चिल्लाने लगे, "हमने क्या किया हैं? हमें क्यों पकड़ रहे हो?"

    वहीं वर्तिका ने देखा कि उस्मान की बॉडी पर भी वैसे ही निशान थे, जैसे चेतन की बॉडी पर थे। उसने बिना किसी हिचक के आगे बढ़ कर वहीं पर हाथ डाल दिया जहाँ से उसने चेतन की बॉडी पर से लेटर निकला था और जैसा कि उसे अंदाज़ा था, यहाँ भी खूनी ने एक लेटर छोड़ा हुआ था। वर्तिका ने वो लेटर लेकर पढ़ना शुरू किया।

    उस लेटर में लिखा था, "तो मिसेज़ वर्तिका सहाय, क्या हुआ आपकी बुद्धि को? मैंने कहा था, अगला नंबर इससे जुड़े हुए किसी शख़्स का है, फिर भी आपने मेरी बातों को सीरियसली नहीं लिया।

    मुझे तो शक होता है कि आपके बारे में जो बातें होती हैं, हंड्रेड पर सेंट सक्सेस रेट, द फ़ियरलेस कॉप, क्रिमिनल्स के दिल की धड़कन को रोकने के लिए बस आपका नाम ही काफ़ी है, ये सब सिर्फ़ अफ़वाहें थीं।

    असल में आपसे कुछ होने वाला नहीं है। ख़ैर, इन बातों को अभी साइड करते हैं। मुद्दे की बात ये है कि आप मुझे रोकेंगी कैसे? मैंने तो नाम सोच लिया है, अब आप पता लगा लें कि अगला नम्बर किसका है और बचा सकती हैं तो बचा लें उसे।"

    वो लेटर पढ़ कर वर्तिका की आँखें सर्द हो गईं। कुछ देर बाद, वर्तिका फिर से मीडिया के सामने थी और प्रेस कॉन्फ़्रेंस चल रही थी, लेकिन उसका ध्यान कहीं और ही था।

    वो मीडिया के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे रही थी। ये देख कर अमर ने बात संभाली और उसे वहाँ से किसी बहाने से ले गया।

    उसने कॉन्फ़्रेंस रूम से निकलने के बाद वर्तिका से कहा, "वी, क्या हुआ है तुझे?"

    लेकिन वर्तिका ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया।

    अमर ने उसके कंधे पकड़ कर ज़ोर से हिलाते हुए थोड़ी तेज़ आवाज़ में कहा, "वी!"

    उसकी आवाज़ सुन कर वर्तिका होश में आई।

    उसने हड़बड़ी में कहा, "हाँ, हाँ, क्या हुआ?"

    अमर ने कहा, "क्या, क्या हुआ? कहाँ खोई है?"