ये कहानी है एक ऐसे प्रेमी जोड़े की जो एक युग पहले बिछड़े थे। एक साज़िश के तहेत..... ❤️🔥 पर उनका प्यार मर कर भी ना मरा.... और आपने अधूरे प्यार को पुरा करने वो फिर एक बार धरती पर आए। ये कहानी है हमारे कहानी के हिरो " हृदय सिंह राणावत" और हिर... ये कहानी है एक ऐसे प्रेमी जोड़े की जो एक युग पहले बिछड़े थे। एक साज़िश के तहेत..... ❤️🔥 पर उनका प्यार मर कर भी ना मरा.... और आपने अधूरे प्यार को पुरा करने वो फिर एक बार धरती पर आए। ये कहानी है हमारे कहानी के हिरो " हृदय सिंह राणावत" और हिरोइन " गति अहुजा " की...... जहां हृदय शिमला का सबसे बड़ा बिजनेसमैन हैं। जिसके आगे हर कोई झूकने को मजबूर हो जाता है। और जो नहीं चूकते उन्हें झुकाना हृदय को आता है। रही गति एक मासूम सी लड़की जो आपने रिश्तेदार के साथ रहती है। जहां हृदय को आपने पिछले जन्म की हर बात याद है और वो अपनी राजकुमारी को ढुंढ रहा है। तो वहीं उसकी राजकुमारी ( गति ) इन सबसे अनजान हैं। क्या हृदय पा लेगा अपनी गति को... कैसा होगा इनका मिलन,, इनकी इस खुबसूरत प्यार के सफर को जानने के लिए जुड़िए हमारी कहानी से..... Rebirth Jaan 🔥💘 Junun Tare ishq ka... by. Santoshi__ Katha
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रात का समय था।
आज की रात कितनी स्याह और गहरी थी, इसका अंदाजा आसमान को देखकर लगाया जा सकता था। आज अमावस्या की रात थी और अपने चाँद के बिना आसमान भी अधूरा और नीरस लग रहा था। सफ़ेद बादलों ने अपना कब्ज़ा कर रखा था। बिजली की चमकती लकीरें, बार-बार आवाज़ करती हुई, खुद को प्रदर्शित कर रही थीं, पर बारिश का नामोनिशान नहीं था। कई बार बादलों से नज़र बचाकर झाँकते कुछ तारे टिमटिमा कर अपनी मौजूदगी जता रहे थे। हवा भी मन्द-मन्द चल रही थी।
घने जंगल का एक हिस्सा, जो एक ऊँचे टीले पर था, उसके ऊपर कुछ ऊँची चट्टानों से गिरता ठंडे पानी का एक झरना बह रहा था। जो गिरकर एक गहरी खाई में मिल रहा था।
तभी दूर कहीं से घोड़े के दौड़ते पैरों की आवाज़ आने लगी। देखते ही देखते एक युवक, जो घोड़े पर सवार था, वहीं झरने से कुछ दूर ही अपने घोड़े को रोककर उतर गया। और आसपास देखते हुए अपने घोड़े के सर को सहलाते हुए उसके कान के पास आकर बोला,
"मेघ! आप यहीं रुकिए। हमें कुछ क्षण लगेंगे, हम उनसे मिलकर आते हैं।"
उस युवक की बात पर जैसे मेघ (घोड़े) ने भी हल्की आवाज़ में अपना सर हिला दिया और युवक उसे वहीं छोड़कर झरने की तरफ़ आगे बढ़ गया। दिखने में वह युवक बिल्कुल किसी राजकुमार की तरह लग रहा था। बस कपड़े साधारण से पहन रखे थे। कमर पर एक कटार बंधी थी। ललाट (माथा) पर लाल तिलक, मुख पर राजसी तेज, आँखों में किसी से मिलने की तड़प और होंठों पर बस एक नाम... राजकुमारी!
वह वहीं झरने से कुछ दूर एक बड़े से चट्टान पर खड़ा होकर एक तरफ़ देखते हुए बड़ी उत्सुकता से किसी की प्रतीक्षा करने लगा। हर बीते क्षण (समय) के साथ उसकी व्याकुलता (बेचैनी) बढ़ती जा रही थी। वह बहुत अधीर होकर जंगल में इधर-उधर देखते हुए बोला, "यह राजकुमारी कहाँ गई? यहीं आने का तो संदेश था, फिर अब तक आई क्यों नहीं? कहीं किसी ने उन्हें...? नहीं... नहीं... कदाचित ऐसा नहीं हो सकता। उन्होंने कहा है तो वे अवश्य आएंगी। हमें कुछ क्षण और उनकी प्रतीक्षा करनी चाहिए।"
वह एक नज़र ऊपर आसमान को देखकर बोला, "आज तो दोनों ही अंबर सूने हैं अपने चाँद के बिना... (आसमान की तरफ़ इशारा करते हुए) इनके चाँद के दर्शन तो आज संभव नहीं, पर आज हम अपने चाँद के दर्शन अवश्य करेंगे।"
वह युवक वहीं बड़ी अधीरता से अपने चाँद (राजकुमारी) की प्रतीक्षा करने लगा। बहुत प्रतीक्षा के बाद भी जब वह नहीं आई तो वह तड़पकर अपनी कटार को अपनी मुट्ठी में भींच लेता है और व्याकुल होकर बोला, "इतने पहर (समय) बीत गए किन्तु राजकुमारी की अब तक कोई खबर नहीं। जाने वह महल से निकल पाई भी है या नहीं... (एक साँस भरते हुए) हम उनसे मिले बिना नहीं जाना चाहते। कदाचित आज के बाद हम उनसे कुछ दिन न मिल पाएँ... (वह अपने गले में पहने त्रिशूल के लॉकेट को छूते हुए) हे महादेव! क्या हम एक बार उनसे नहीं मिल सकते? जाते हुए हम उनकी छवि अपनी आँखों में लेकर जाना चाहते हैं। किन्तु प्रतीत होता है आज यह संभव नहीं हो पाएगा।"
वह फिर एक बार उस ओर देखकर निराशा अपने मुख पर लिए वहाँ से जाने लगा। पर कुछ कदम बढ़ाते ही उसके कानों में नूपुर (पायल) की मधुर झंकार गुंजने लगी। जिसे सुनते ही उस युवक के पैर रुक गए। उसके मुख पर प्रसन्नता खिल गई। आँखों में प्रेम उमड़ आया। वह झट से पलटकर अपने पीछे देखने लगा।
जंगल के जिस ओर वह कब से टकटकी लगाए देख रहा था, उसी दिशा से एक नाजुक सी लड़की अंधेरे को चिरती हुई, उजाला हाथ में लिए, उसके ओर बढ़ती आ रही थी। उसने हाथों में एक चिमनी (लालटेन) पकड़ी हुई थी। जिसकी रोशनी उसके मुख की सुंदरता को और निखार रही थी। वह तेज़ी से उस युवक के सामने आकर रुकी और एक-दो गहरी साँसें लेने लगी।
युवक तो मानो जम सा गया हो। वह बस एकटक उसे देखने लगा। तो युवती की भी नज़रें उससे जा मिलीं। युवक ने उसके हाथ से चिमनी अपने हाथों में ले, उसके चेहरे के पास रोशनी करते हुए बोला, "एक पल को तो लगा सचमुच एक चाँद ही हमारी ओर बढ़ा चला आ रहा है, राजकुमारी! (यह सुनते ही सामने खड़ी युवती के मुख पर लाज की लाली छा गई। उसने मुस्कुराकर अपनी नज़र झुका ली।) कितना देर कर दी आपने आने में? हमें तो लगा आपसे मिले बिना ही हमें जाना होगा। यदि एक क्षण और देर हो जाती तो शायद हम ना मिल पाते।"
यह सुनते ही राजकुमारी भावुक हो उसे देखती हुई उसके सीने से लग गई। तो उस युवक ने भी चिमनी नीचे रख, उसे अपनी बाज़ुओं में घेर लिया। दोनों एक-दूसरे की करीबी महसूस कर रहे थे, जिससे उनके मुख पर बड़ी प्यारी सी मुस्कान शोभा पा रही थी। राजकुमारी ने धीरे से कहा,
"क्षमा कर दीजिए हमें, अम्बर। किन्तु हम क्या करते? आप तो जानते ही हैं, हम कोई साधारण युवती नहीं हैं, राजकुमारी हैं। हर क्षण सबकी दृष्टि हम पर रहती है। (वह दोनों एक-दूसरे से अलग होकर एक-दूसरे को देखने लगे।) वैसे भी जाने आजकल महल में क्या चल रहा है। पहरे और सख्त किए जा रहे हैं। हर क्षण ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई हम पर दृष्टि रखे हुए हो। अभी भी अपनी दासी बेला को कक्ष में छोड़कर, सबसे दृष्टि से बचाकर आपसे मिलने आ पाई हूँ। रात्रि के इस पहर भी महल से निकलना असंभव सा प्रतीत हो रहा था।"
अम्बर ने भूमि का हाथ जोर से पकड़ते हुए कहा, "हम जानते हैं आपकी कठिनाई को और हम यह भी जानते हैं कि यह पहरे सख्त क्यों हो रहे हैं। (भूमि उसे सवालिया नज़र से देखने लगी, जिस पर उसने आगे कहा) उन्हें हमारे बारे में सब पता चल गया है और यह भी कि हम भी उनके बारे में सब जान चुके हैं।"
यह सुनते ही राजकुमारी परेशान हो गई। उनकी आँखों में एक अनकहा सा भय दिखने लगा। वह अम्बर का हाथ और कसकर पकड़ते हुए उसके थोड़ा पास आकर बोली, "अब क्या होगा? यदि उन लोगों ने हमें आपसे अलग करना चाहा तो...? नहीं... हम, हम आपसे एक क्षण के लिए भी अलग नहीं होना चाहते। हम आपके बिना मर जाएँगे..." राजकुमारी भावुक होकर अम्बर को देख रही थी, उनकी आँखों के कोर पर आँसू की बूँद चमकने लगी। जिसे देख अम्बर बेचैन हो उन्हें अपने सीने से लगाते हुए बोला,
"मरने की बात मत कीजिए, भूमि। यदि आप नहीं होंगी तो हमारा भी इस संसार में कोई अस्तित्व नहीं होगा। हम आपसे वादा करते हैं, हम आपको खुद से अलग नहीं होने देंगे। चाहे जो हो जाए, हमारा मिलन होकर रहेगा, फिर चाहे इसके लिए हमें दुबारा जन्म लेकर इस धरती पर क्यों न आना पड़े। हम आपके लिए ज़रूर आएंगे।"
अम्बर के स्वर में अपनी भूमि के लिए अथाह प्रेम और उसे पाने का जुनून, दीवानगी बोल रही थी।
राजकुमारी भावुक हो अंबर को देख रही थी। उनकी आँखों के कोर पर आँसू की बूँद चमकने लगी। इसे देख अंबर बेचैन हो उन्हें अपने सीने से लगाते हुए बोला,
"मरने की बात ना कीजिए भूमि... यदि आप नहीं होगी तो हमारा भी इस संसार में कोई अस्तित्व नहीं बचेगा। आप जानती हैं हम आपसे कितना प्रेम करते हैं। हम आपको वचन देते हैं, आपको खुद से अलग नहीं होने देंगे... चाहे जो हो जाए, हमारा मिलन होकर रहेगा। फिर चाहे इसके लिए हमें दुबारा जन्म लेकर इस धरती पर क्यों ना आना पड़े। हम आपके लिए ज़रूर आएंगे..."
अंबर के स्वर में अपनी भूमि के लिए अथाह प्रेम और उसे पाने का जुनून, दीवानगी बोल रही थी। उसने भूमि के सर को सहलाकर उसे शांत करने लगा। दोनों एक-दूसरे को थामे खड़े थे... या यूँ कहें, अंबर की बाहों में भूमि खुद को खो चुकी थी।
भूमि उससे अलग हो उसकी आँखों में देखती हुई बोली, "हमें आप पर पूरा विश्वास है। किंतु फिर भी एक बात जान लीजिए, हम केवल और केवल आपके हैं। हमें छूने का, हमसे प्रेम करने का, हमें अपना कहने का अधिकार हमने केवल आपको दिया है। हमने तन-मन और आत्मा से खुद को आपको सौंप दिया है, तो अब हम किसी और के नहीं हो पाएँगे। फिर चाहे परिस्थिति कोई भी हो, आपके अतिरिक्त किसी अन्य को स्वीकार नहीं करेंगे। आपके बिना जीने से भली हमें मृत्यु स्वीकार होगी..."
इससे पहले भूमि इससे आगे कुछ कह पाती, अंबर ने उसे मुँह पर अपना हाथ रख उसे चुप कराते हुए उत्तेजित हो बोला,
"हम आपको किसी और का होने भी नहीं दे सकते... आप केवल हमारी हैं, हमारा जीवन हैं, हमारी संपत्ति हैं और हर जन्म में हमारी ही रहेंगी... समझी आप?"
अंबर की आँखों में अपने लिए प्यार और जुनून देख भूमि की प्रसन्नता का ठिकाना ना था। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। जिसे पोंछते हुए अंबर ने उसे अपने सीने से लगा लिया और आगे बोला,
"आप यदि ऐसी बातें करेंगी तो हम आपको छोड़कर जा नहीं पाएँगे राजकुमारी... बस कुछ दिनों की बात है, एक बार हम पिता जी से मिलकर सारी बातें कर लें, फिर सब ठीक हो जाएगा। फिर शीघ्र ही आपके शत्रुओं का अंत कर..."
"हम अपनी राजकुमारी को लेने घोड़े पर बैठ, सीधे बारात लेकर आएंगे और फिर आपको सदा के लिए अपने आप से बाँध लेंगे... फिर आप कभी चाहकर भी हमारी बाहों से छूट नहीं पाएँगी।"
अंबर की बातों का कुछ-कुछ अर्थ समझ भूमि नज़र झुकाने लगी। उसे ऐसा देख अंबर को बड़ा अच्छा लग रहा था। उसने अपनी भूमि के शर्माते मुख को देखते हुए उसकी ओर थोड़ा झुककर धीरे से बोला,
"ब्याह तो करेगी ना आप हमसे...? और उसके पश्चात् हमें शीघ्र ही एक प्यारी सी राजकुमारी चाहिए, बेटी के रूप में..."
ये सुनकर तो भूमि जैसे लाज के मारे उससे आँखें ही नहीं मिला पा रही थी। उसने झट से अपना चेहरा अपनी हथेलियों में छुपा लिया। उसकी यह हरकत देख अंबर तो जैसे और दीवानें हुआ जा रहा था। उसने भी भूमि को वैसे ही अपने गले लगा लिया।
दोनों कुछ देर यूँ ही एक-दूसरे की तेज़ चलती हृदय गति को महसूस करने लगे। दोनों के मुख पर अपार सुख था। उनके लिए तो जैसे समय यहीं थम जाए तो अच्छा है।
लेकिन तभी एक अजीब सी आवाज़ ने भूमि के ध्यान को भंग कर दिया। वह अचानक अंबर से अलग हो आसपास देखने लगी। तो अंबर ने भी उस ओर देखते हुए कहा,
"क्या भूमि? क्या देख रही हैं आप?"
भूमि: "आपको कुछ आभास हुआ क्या? यूँ लगा जैसे कोई हमें देख रहा हो और यह ध्वनि..."
अंबर: "कदाचित् मेघ (घोड़ा) होगा... चलने का इशारा दे रहा है। रात्रि बहुत हो गई है... अब हमें चलना होगा भूमि। अब आप भी संभलकर महल लौट जाइए। हम शीघ्र ही पुनः मिलेंगे।"
चलने की बात पर भूमि परेशान और भावुक हो उसे देखने लगी। तो अंबर उसके मुख को देखते हुए कहा,
"ऐसा मत कीजिए राजकुमारी, हम आपको ऐसे छोड़कर नहीं जा पाएँगे। हम जाते हुए आपकी मीठी मुस्कान साथ ले जाना चाहते हैं। बस कुछ ही दिवस की बात है, हम अति शीघ्र आपसे मिलेंगे..."
भूमि ने उसका हाथ कसकर पकड़ते हुए कहा, "जाने क्यों, किंतु हमारा मन नहीं हो रहा आपको जाने देने का... हमारा मन बड़े बुरे विचारों से आशंकित हो रहा है अंबर... जैसे कुछ बहुत भयानक होने वाला है।"
अंबर भूमि को इतना व्याकुल देख उसके मुख को अपनी हथेलियों में लेकर समझाते हुए बोला,
"राजकुमारी, आप व्यर्थ में इतनी चिंता ना करें... ऐसा कुछ नहीं होगा। हमने कहा है तो हम ज़रूर आएंगे, बस आप अपना ध्यान रखिएगा और हमारी प्रतीक्षा कीजिएगा..."
"अवश्य करेंगे। केवल इस जीवन में नहीं, आने वाले हर जीवन में हम केवल आपकी ही बाट जोहेंगे अंबर... और आपको हमारे पास हर बार आना होगा।" भूमि ने बड़ी दृढ़ता से कहा।
दोनों अपनी बात कह कुछ क्षण चुप हो एक-दूसरे को देखने लगे। जैसे बिछड़ने से पहले अपनी आँखों में एक-दूसरे की छवि अंकित कर रहे हों... और फिर एक बार फिर दोनों एक-दूसरे के गले लग गए। भूमि की आँखों से आँसू निकल रहे थे, तो अंबर भी बहुत व्याकुल था।
दोनों अलग हुए तो भूमि कुछ सोचती हुई अपने गले से अपना एक लॉकेट, जिसमें कृष्ण की छवि थी, उनका नाम लिखा हुआ था, उसे अपने गले से निकाल अंबर के गले में पहनाने लगी। जिसे देख अंबर ने मुस्कुराते हुए बोला,
"राजकुमारी, यह क्या? आपको तो यह माला कितनी पसंद है, आप इसे कभी खुद से अलग नहीं करती, फिर आज यह हमें क्यों पहना रही हैं?"
"यह केवल माला नहीं, हमारी श्रद्धा है। इसमें हमारे कृष्ण बसते हैं। यह आपकी रक्षा करेंगे और यही शीघ्र हमें मिलाएँगे।"
अंबर बस भूमि को देख रहा था। फिर अपने गले में भूमि द्वारा पहनाए उस लॉकेट को देख बोला,
"आपने हमारी रक्षा का तो सोच लिया, पर आपका क्या..." अंबर अपने गले में पहने त्रिशूल के लॉकेट को निकालते हुए, "अब जब हमारी रक्षा का भार आपने अपने कृष्ण को दिया है, तो हम भी आपकी रक्षा का दायित्व अपने महादेव को सौंप देते हैं।"
ये कहते हुए अंबर ने भी उसे लॉकेट पहना दिया।
कुछ क्षणों दोनों एक-दूसरे को प्रेम से देखते रहे। दोनों के हाथ एक-दूसरे के हाथों को बड़ी मज़बूती से पकड़े हुए थे। जैसे कभी एक-दूसरे को छोड़ेंगे ही नहीं...
पर जाना तो था ही, सो दोनों ने बड़ी मुश्किल से एक-दूसरे से अपना हाथ छुड़ाया। भूमि की आँखें भीगी हुई थीं, तो अंबर भी भीतर ही भीतर व्याकुल था।
पर दोनों ने अपने-अपने मन को कठोर किया और अपने दो अलग-अलग मार्गों पर एक-दूसरे को देखते हुए चले गए।
इस बात से अनजान कि यह रात और यह मिलन उनका अंतिम मिलन था। जिसके बाद वे इस जन्म में तो कभी एक-दूसरे को नहीं देख पाएँगे...
देखते ही देखते दो अलग-अलग स्थानों से एक जैसी भयानक चीखें पुरे हवा को चीर गईं। पूरे वातावरण को दहला गईं। एक ओर महल के छत से गिरती भूमि की आवाज़ में अंबर का नाम गूँज उठा... तो वहीं दूसरी ओर उसी पहाड़ी से गहरी खाई में गिरते अंबर की चीख जिसमें वह केवल अपनी भूमि को याद कर रहा था, उस पूरी पहाड़ी को दहला गई। वहाँ मौजूद सारे जीव-जंतु उसकी चीख में अपनी कर्कश ध्वनि मिलाने लगे।
शिमला में एक चेहरा, जिसकी आँखें बंद थीं। पर उसके चेहरे के भाव हर पल बदल रहे थे, मानो वह जागते हुए ही बंद आँखों से कोई भयानक सपना देख रहा हो। गुस्से में उसके सिर की नसें इतनी तन चुकी थीं, मानो अभी बाहर आ जाएँगी।
उसने अपने दोनों हाथों की मुट्ठियाँ इतनी जोर से बँध रखी थीं कि उसके बाहों और कंधे की मांसपेशियाँ उभर आई थीं। यदि उसके हाथ में कोई कठोर चीज़ होती, तो वह अब तक चूर हो चुकी होती।
देखते ही देखते वह गुस्से में गुर्राया और अचानक एक झटके में उसने अपनी आँखें खोल लीं। उसकी आँखें गुस्से से लाल हो रही थीं। सामने दूर-दूर तक सिर्फ़ अंधेरा फैला हुआ था।
रात का घना अंधेरा, पहाड़ की एक चोटी, जिसके मुहाने पर खड़ा एक लड़का, जिसकी आँखें दहकती ज्वाला की तरह लाल हो चुकी थीं। पर फिर वह किसी को बहुत शिद्दत से याद करते हुए, अंधेरों को चीरते हुए, तेज आवाज़ में बोला:
"हर हद को पार कर जाऊँ
तेरे लिए मार दूँ, या मर जाऊँ
तुझे पाने के लिए, ले देख सनम
सौ बार मरूँ, और फिर आऊँ"
ये शब्द जैसे पूरे फ़िज़ा में ठंडी हवा के साथ, खुद में जुनून लिए लहरा रहे थे। एक लड़का, जो बाहें फैलाए पहाड़ी की चोटी और गहरी खाई के मुहाने पर खड़ा था, आकाश में आधे चाँद को देखते हुए तेज और शिद्दत भरी आवाज़ में बोल रहा था।
रात और भोर के बीच का वह समय, हड्डियों को जमा देने वाली ठंड था। फिर भी उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। उस लड़के के कुर्ते के सारे बटन खुले हुए थे। हवाएँ जैसे उसके मज़बूत सीने से टकराकर लौट जाती थीं। वह जुनून और शिद्दत से किसी को याद कर रहा था। उसकी गहरी, स्याह भूरी आँखों में किसी की खूबसूरत, पर अंतिम तस्वीर तैर रही थी।
देखते ही देखते हवा के एक तेज झोंके ने उसके शरीर से कुर्ता उड़ाकर पहाड़ी के नीचे गहरी खाई में कहीं ग़ुम कर दिया, जिससे उसकी खुली पीठ और सीना दिखने लगा। गढ़िला, कसरती बदन, ऐसा जैसे कितनी ही मार से वह कठोर हुआ हो। बाहें इतनी मज़बूत, गठीली, कि किसी को एक बार गिरफ्त में ले तो जान लेकर ही छोड़े। कंधे बिल्कुल मज़बूत, जैसे उसके इरादों को दर्शा रहे थे। उसकी पीठ पर एक बड़े से त्रिकोण के अंदर त्रिशूल का निशान बना हुआ था।
वह यूँ ही बाहें फैलाए, जुनून भरी आवाज़ में बोला:
"क्यों ये सितम हर बार करते हो
आकर सपनों में ही बस प्यार करते हो
इससे जुनून तुम्हें पाने का दुगुना हो जाता है
बस अब तो हर हाल में तुम्हें अपनी ज़िंदगी में लाने का इरादा है"
"देख लो...आपने किए वादे को पूरा करने मैं आ चुका हूँ जान... सिर्फ़ तुम्हारे लिए, और मुझे यकीन है तुम भी मेरे आस-पास ही हो, कहीं न कहीं मेरा ही इंतज़ार कर रही हो... इस बार तुम्हें मुझसे कोई दूर नहीं कर पाएगा। जो भी हमारे बीच आया, अपनी जान से जाएगा।"
उस लड़के की आवाज़ पिघलते लावा की अग्नि का तपिश लिए, किसी के लिए दिल में बेइंतिहा मोहब्बत और जुनून से उसे अपना बनाने की चाहत को दर्शा रही थी। और इसी के साथ उसकी आँखों में लावा की अग्नि किसी को जलाने के लिए भी तैयार थी।
वह ठंडी हवा में एक गहरी साँस भरकर, सिर आकाश की तरफ़ उठाए, बाहें हवा में फैलाकर जोर से चिल्लाते हुए बोला:
"आई लव यू भूमि……………"
उसकी आवाज़ हवाओं को चीरती हुई, दूर-दूर तक उस पूरे पहाड़ में खुद को दोहराने लगी।
दूसरी तरफ़...
सुनसान और अंधेरी सड़क पर खड़ी तीन बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ अपनी हैडलाइट की तेज रोशनी से पूरी सड़क और आस-पास के घने जंगल को रोशन कर रही थीं।
कुछ लोग, जो सूट-बूट पहने, हाथ बाँधे, वहाँ किसी का इंतज़ार कर रहे थे।
तभी भूमि के नाम की तेज गुंज से जैसे सब एक पल को सहम गए।
एक लड़का सिर उठाकर पहाड़ी की तरफ़ ही देखने लगा जहाँ से वह आवाज़ आ रही थी। और चिंता में उसके मुँह से धीरे से निकला:
"बॉस…!!!"
थोड़ी दूर खड़ा एक मिडिल एज आदमी अपना चश्मा ठीक करते हुए उस लड़के के पास आकर हिचकते हुए बोला:
"सर जी…ये आवाज़…?"
"किसी के अंदर भरी आग बाहर आने को बेताब हो रही है। (यह कहते हुए वह कुछ कदम आगे आकर पहाड़ी की ओर देखते हुए धीरे से बोला) जाने बॉस के अंदर इतना गुस्सा, इतनी बेचैनी क्यों है? हमेशा लगता है जैसे उनकी आँखें किसी को ढूँढ़ रही हैं।"
"अअअअअअअअअअ……………"
एक और जोरदार आवाज़ ने सभी के कानों को चीर दिया, जिसे सुनते ही वह चश्मे वाला आदमी तो लड़खड़ा ही गया। तो कुछ कदम दूर खड़ा वह लड़का फिर से उस आवाज़ की तरफ़ देखने लगा; उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिख रही थीं।
आस-पास खड़े चार बॉडीगार्ड, जो अपनी-अपनी बंदूकें सम्भाले खड़े थे, पर वह आवाज़ उन्हें भी डरा रही थी।
कुछ ही देर में बड़ी तेज़ी से वह लड़का, जो पहाड़ पर था, अपने तेज कदमों से उतरकर कार की तरफ़ आने लगा। उसके खुले शरीर को देख वहाँ मौजूद सभी लोग हैरान हो गए; तो उसकी मस्कुलर बॉडी को देख वह चश्मे वाला आदमी तो सहम सा गया।
तो वह कार के पास खड़ा लड़का उसे ऐसे देखकर जल्दी से कार के अंदर से एक शर्ट निकालकर उसके पास जाकर उसे देता है। पर जैसे ही वह लड़का गुस्से में गुर्राते हुए उस शर्ट को खुद से फेंककर सीधे कार में बैठ गया।
उसके इस बर्ताव को देखते ही सब सहम गए थे। और वह सब भी कार में बैठे और एक-एक कर कार वहाँ से आगे निकलकर सड़क के मोड़ पर कहीं गुम हो गई।
यह लड़का, जिसके अंदर इतनी आग, इतना जुनून भरा है किसी को पाने का… वह कोई और नहीं, इस कहानी का मुख्य पात्र (हीरो) है।
हृदय सिंह राणावत…यह नाम नहीं, जुनून है। एक ऐसी शख्सियत, जिसके नाम का सिक्का पूरा शिमला, हिमाचल में चलता है। यहाँ का सबसे अमीर, पर सख्त स्वभाव का एक 28-29 साल का लड़का, जिसे विरासत में एक नाम और एक ना चलती हुई कंपनी ही मिली थी। पर देखते ही देखते उसने महज़ पाँच साल में ही अपनी काबिलियत के दम पर ना सिर्फ़ उसे हिमाचल की सबसे फ़ेमस और अमीर कंपनियों की लिस्ट में पहले नंबर पर पहुँचा दिया, बल्कि उसकी कंपनी देश के साथ विदेशों में भी अपनी धाक रखती है।
हृदय का एक ही लक्ष्य है: अपने तय किए लक्ष्य तक जल्द से जल्द पहुँचना। हृदय भले ही एक बिज़नेस मैन हो, पर वह बहुत खतरनाक है अपने दुश्मनों के लिए; सबसे बड़ा दुश्मन, और अपने चाहने वालों पर अपनी जान भी निछावर कर दे।
उसका जुनून ही उसे सबसे अलग बनाता है। जिसे दुनिया हृदय सिंह राणावत बुलाती है।
रात का समय था।
एक सुनसान, घना जंगल। जंगल के एक छोर पर एक कम उम्र की युवती दौड़ रही थी। वह राजकुमारी जैसी पोशाक में सजी-धजी थी; लहंगा-चोली, दुपट्टे के साथ एक मखमली शॉल ओढ़े, वह किसी रानी की तरह लग रही थी। वह अँधेरे को चीरती हुई, उजाले की ओर आ रही थी।
"अम्बर....... अम्बर......कहाँ हैं आप....??."
वह युवती किसी को पुकार रही थी। जंगल के दूसरे छोर पर एक नवयुवक, साधारण कपड़े पहने, व्याकुलता से किसी की प्रतीक्षा कर रहा था। किन्तु जैसे ही उसके कानों में युवती की मधुर आवाज़ पड़ी, उसका रोम-रोम खिल उठा और वह एक झटके से मुड़कर उसे देखने लगा।
देखते ही देखते युवती, मुख पर लज्जा लिए, भागकर उसके सामने आ खड़ी हुई। दोनों एक-दूसरे को प्रसन्नता से देख रहे थे। और अचानक युवक ने मुस्कुराती युवती को अपनी दोनों बाहों में भर लिया, उसे अपने गले से लगाकर अपने करीब कर लिया। उसके स्पर्श से ही युवती के चेहरे पर एक आकर्षक मुस्कान फैल गई और उसके गाल लाज से लाल हो गए।
दोनों की धड़कनें एक-दूसरे से जुड़कर, एक साथ धड़कने लगीं। युवक ने युवती को खुद से अलग किया और उसके मुख को अपने हाथों में भरकर, अपने मुख के करीब कर लिया। युवती ने उसकी गर्म साँसें अपने चेहरे पर महसूस की और मुस्कुराते हुए आँखें बंद कर लीं।
युवक की नज़रें पहले उसकी आँखों पर गईं, जिन्हें उसने अपने होंठों से छू लिया। उसके ऐसा करते ही युवती सिहर गई। जिससे उसके कंधे पर रखा शॉल नीचे गिर गया और उसने अपनी मुट्ठी में अपना दुपट्टा जकड़ लिया।
फिर युवक ने युवती के गालों को हल्के से चूमा।
उसके स्पर्श को महसूस करती हुई युवती केवल शर्मा रही थी, उसकी धड़कनें बेकाबू सी चलने लगी थीं। अब युवक की नज़रें युवती के होंठों पर ठहर गईं, जिन पर हया और मुस्कान दोनों ही शोभा पा रही थीं। उन्हें देखकर वह मदहोश सा हो रहा था।
युवक ने अपनी प्रेमिका को देखते हुए बड़े प्रेम से कहा, "भूमि.... आप केवल इस राज्य की राजकुमारी नहीं, हमारे हृदय, हमारे अंतर्मन की भी महारानी हैं।
हम आपको हमेशा के लिए अपना बनाना चाहते हैं। हर जन्म में केवल आपको ही पाना चाहते हैं, मरकर हर बार केवल आपके लिए जन्म लेकर आना चाहते हैं...."
यह कथन सुनते ही युवती ने एक पल में अपनी आँखें खोलीं और युवक के होंठों पर अपनी हथेली रखते हुए, उसे देखते हुए ना में सर हिलाकर उसे चुप करा दिया।
युवक ने भूमि को अपनी तेज निगाहों से देखते हुए, उसका हाथ अपने होंठों से हटाकर उसकी पीठ से लगाते हुए, उसे अपनी ओर खींचकर बाहों में भर लिया। और उसकी आँखों में अपनी छवि निहारते हुए अपना चेहरा उसकी ओर बढ़ाने लगा। भूमि केवल उसके स्पर्श को महसूस करती हुई झट से आँखें बंद कर लजाने लगी।
किन्तु तभी अचानक घोड़ों के दौड़ने की तेज आवाज़ आई। जिसे सुनकर दोनों का ध्यान टूट गया, वे अपनी मदहोशी के वातावरण से बाहर आकर आस-पास देखने लगे।
एक आदमी, जो घोड़े पर बैठा था, तेज़ी से उनकी ओर आ रहा था। और राजकुमारी को किसी गैर-मर्द के साथ देखकर वह चिल्लाते हुए क्रोध में बोला,
"बदजात.... तुने साहस कैसे किया हमारी राजकुमारी को छूने का? उन्हें हाथ कैसे लगाया तुमने...?"
वह बड़ी उम्र का पुरुष, बहुत क्रोध में, तलवार पकड़े उनके पास आया। दोनों उसे देखकर कुछ घबरा गए। वह पुरुष बड़े हक़ से भूमि (राजकुमारी) का एक हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचता है। लेकिन तभी अम्बर भूमि का दूसरा हाथ पकड़ लेता है। यह देख उस आदमी का क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया। और उसने आव देखा न ताव, अपने हाथ में पकड़ी तलवार से अम्बर के उस हाथ को, जिससे उसने भूमि का हाथ पकड़ा था, उसकी देह से अलग कर दिया।
अम्बर का हाथ कटने के बाद भी भूमि के हाथ को थामे हुए था। यह देखते ही भूमि जोर से चिल्ला पड़ी....
"आअअअअअअअ...... अम्बरररररर....."
"गति दीईई......... गति दीईई......... दीदी क्या हुआ? उठिए।" एक लड़की ने बिस्तर पर सो रही दूसरी लड़की के गाल को हल्के से थपथपाते हुए कहा। वह सोई हुई लड़की बहुत घबराई हुई थी, जैसे नींद में चिल्ला रही थी, तड़प रही थी, उसका पूरा शरीर डर के मारे काँप रहा था।
फिर वह लड़की अचानक एक झटके से बिस्तर से उठकर बैठ गई। उसकी साँसें इतनी बेकाबू थीं मानों सौ की स्पीड में चल रही हों। (उसने अभी-अभी ये सारे दृश्य एक भयानक सपने के रूप में देखा था।)
वह पूरी तरह पसीने में तर-बतर थी। उसका एक हाथ अब भी तेज़ी से काँप रहा था। आँखों से आँसू भी निकल रहे थे। उस डरी-सहमी लड़की ने जैसे ही अपने सामने बैठी उस लड़की को देखा, वह झट से उसके गले लगकर सुबकती हुई रोने लगी।
उसे ऐसे घबराया हुआ देख, उसके पास बैठी लड़की ने प्यार से अपनी बाहों में संभालते हुए और समझाते हुए बोली,
"दीईई.... दीईई रिलेक्स....!! आप शांत हो जाइए, कुछ नहीं हुआ, सब ठीक है। देखिए, कुछ नहीं है, मैं हूँ आपके पास, सब ठीक है, चुप हो जाइए, आप बस सपना देख रही थीं और कुछ नहीं.... शशशश!!! मैं हूँ आपके पास..." वह लड़की उसके सर और पीठ को सहलाते हुए, उसे शांत करती, बहलाती हुई बोल रही थी।
कुछ ही देर में वह लड़की कुछ शांत हुई तो उसके पास बैठी दूसरी लड़की ने अपनी बहन को देखते हुए कहा,
"हाए दी! आप तो मुझे डरा देते हैं! पहले तो आपके ये डरावने सपने महीने में एक-दो बार आते थे। पर आजकल तो हर दो-तीन दिन में आप बड़बड़ाने लगती हैं, चीखने लगती हैं.... आपको पता है मैं कितनी डर जाती हूँ आपको ऐसे देखकर...?" उस लड़की ने अपनी घबराई सी साँसों को काबू करते हुए कहा।
"सॉरी परी, पर... पर मैं क्या करूँ? सपने में इतने भयानक मंज़र देखती हूँ कि चीख निकल जाती है। ऐसा लगता है जैसे वो सारी घटनाएँ मेरे साथ ही हो रही हों, ऐसा ही महसूस होता है। पता नहीं ये सब मेरे साथ ही क्यों हो रहा है। मैं खुद इतनी डर जाती हूँ, जाने ये भयानक सपने मुझे ही क्यों आते हैं।
तुझे पता है आज मैंने क्या देखा_____ एक आदमी ने तलवार से एक लड़के का हाथ काट दिया, और मुझे लगा उस लड़के के उस कटे हाथ ने मेरा ही कलाई पकड़ी हो।"
गति अपने सपने को याद करते हुए बहुत घबराई सी होकर अपना हाथ परी को दिखाते हुए बोली, जो कि अब भी काँप रहा था। जिसे देख परी ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा,
"शशशशश....!!!! दी, ऐसे कुछ नहीं है, वो बस एक सपना था, भूल जाइए उसे...... और आप हमेशा ये मार-काट के ही सपने क्यों देखते हो? कभी तो कोई रोमांटिक सपना भी देख लिया कीजिए, you know someone hold your hand, some kiss you... and etcetera... etcetera....." (इस पर गति अपना हाथ उसके हाथ से छुड़ा लेती है। जिस पर परी ने उसके सर को हल्के से टच करते हुए कहा) "ऐसे सपने देखने की उम्र है आपकी और आप हैं कि... जब देखो किसी का हाथ काट दिया, किसी का गला काट दिया, कोई छत से कूद गया...... ऐसे भयानक सपने देखकर खुद भी डरती हो और मुझे भी डराती हो।" परी गति का मूड ठीक करने की कोशिश में मज़ाक करती हुई, और थोड़ा शिकायती लहजे में बोल रही थी।
इस पर गति मुँह सिकोड़ती हुई, "चचच.... चुप कर परी, कुछ भी बोलती है। ये सपने देखना मेरे हाथ में है क्या? और अब तो मुझे इस सपना नाम से ही डर लगता है।"
"It's ok di.. it just a nightmare... आपको डरने की ज़रूरत नहीं है, मैं हूँ ना।" परी गति को दिलासा देते हुए एक बार फिर गले लगा लेती है।
"अच्छा, अब वो सब छोड़िए, जल्दी से तैयार हो जाइए, आज मेरा पेपर है दी, पता नहीं क्या होगा। और आपका भी तो इंटरव्यू है.... आप मुझे कॉलेज छोड़ते हुए इंटरव्यू के लिए चली जाना।" परी उसके सामने बिस्तर पर बैठी हुई बोल रही थी।
इतने में बाहर से एक जोरदार आवाज़ आई, "अरे ओ महारानी, सुबह-सुबह चिल्लाती ही रहोगी या उठकर कुछ काम भी करोगी? पता नहीं कौन सा भूत-प्रेत का साया है इस पर, सुबह-सुबह चिल्लाती ही रहती है। पड़ोसी भी सोचते होंगे हम एक अनाथ लड़की पर कितना जुल्म कर रहे हैं। हूऊऊऊऊ....."
ये बातें सुनते ही गति बाहर की तरफ़ परेशान होती हुई देखती है तो परी बुरा सा मुँह बनाकर धीरे से बोली,
"पता नहीं मेरी माँ की प्रॉब्लम क्या है, कभी कुछ अच्छा बोल ही नहीं पाती।"
"हाँ मामी जी......!!!" (गति ने जल्दी से जवाब देते हुए बोली और उठते हुए) "परी, तू तैयार हो जा, मैं भी सारा काम निपटा देती हूँ।" इतना कह गति उठकर बाथरूम की तरफ़ चली गई।
[गति आहूजा____ उम्र 24 साल 9 महीने की लड़की, जो दिखने में बेहद नाजुक और खूबसूरत है। उसका चेहरा फूलों सा कोमल और दूध सा गोरा, आँखें हल्की नीली, जो समुद्र सी गहरी हैं। होंठ बिल्कुल पंखुड़ियों से नर्म और मुलायम... मानो वह किसी राजकुमारी से कम नहीं..... स्वभाव में बिल्कुल पानी सी सरल, कोई मिलावट नहीं, यूँ तो बात-बात पर थोड़ी घबरा जाती है, पर इरादों की पक्की है।
गति के माँ-बाप नहीं हैं। वह जब बहुत छोटी थी, तभी एक एक्सीडेंट में उसने उन्हें खो दिया था। तब उसके मामा ने उसे सहारा दिया, उसे अपने घर में एक सदस्य की तरह रखा।]
[परी शर्मा____ यह गति की बहन है। उसके मामा की इकलौती बेटी, इसकी उम्र गति से बस एक साल छोटी है। और बचपन से साथ रही इन दोनों बहनों में सहेलियों सा प्यार है। दोनों एक ही कमरे को शेयर करती हैं। परी गति से बहुत प्यार करती है, इतना कि उसके लिए वह किसी से भी लड़ जाती है, यहाँ तक कि अपनी माँ से भी..... और मामा जी भी गति को बहुत प्यार से रखते हैं। पर परी की माँ और गति की मामी उसे कुछ ख़ास पसंद नहीं करतीं, उनका बस चले तो उसे अपने घर में रहने भी न दें। पर अपने साथ उसे रखने का उनका भी अपना एक मकसद है।]
क्रमशः
"तुझे पता है आज मैंने क्या देखा? एक आदमी ने तलवार से एक लड़के का हाथ काट दिया, और मुझे लगा उस लड़के के उस कटे हाथ ने मेरा ही कलाई पकड़ी हो।"
गति ने अपने सपने को याद करते हुए, बहुत घबराई हुई, अपना हाथ परी को दिखाते हुए कहा। वह हाथ अब भी कांप रहा था। उसे देख परी ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा,
"शशशशशश…!! दीदी, ऐसे कुछ नहीं है। वो बस एक सपना था। भूल जाइए उसे… और आप हमेशा ये मार-काट के ही सपने क्यों देखती हो? कभी तो कोई रोमांटिक सपना भी देख लिया कीजिए। You know, someone hold your hand… some kiss you… and etcetera… etcetera…"
इस पर गति ने अपना हाथ उसके हाथ से छुड़ा लिया। जिस पर परी ने उसके सर को हल्के से स्पर्श करते हुए कहा,
"ऐसे सपने देखने की उम्र है आपकी और आप हैं कि… जब देखो किसी का हाथ काट दिया, किसी का गला काट दिया, कोई छत से कूद गया… ऐसे भयानक सपने देखती हो। खुद भी डरती हो और मुझे भी डराती हो।"
परी गति का मूड ठीक करने की कोशिश में, मज़ाक करती हुई, और थोड़ा शिकायती लहजे में बोल रही थी।
इस पर गति मुँह सिकोड़ती हुई बोली, "चचच… चुप कर परी! कुछ भी बोलती है। ये सपने देखना मेरे हाथ में है क्या? और अब तो मुझे इस सपना नाम से ही डर लगता है।"
"इट्स ओके दीदी। इट्स जस्ट अ नाइटमेयर… आपको डरने की ज़रूरत नहीं है। मैं हूँ ना।" परी गति को दिलासा देती हुई एक बार फिर उसे गले लगा लिया।
"अच्छा, अब वो सब छोड़िए। जल्दी से तैयार हो जाइए। आज मेरा पेपर है दीदी, पता नहीं क्या होगा। और आपका भी तो इंटरव्यू है… आप मुझे कॉलेज छोड़ते हुए इंटरव्यू के लिए चली जाना।" परी उसके सामने बिस्तर पर बैठी हुई बोल रही थी।
इतने में बाहर से एक जोरदार आवाज आई, "अरे ओ महारानी! सुबह-सुबह चिल्लाती ही रहोगी या उठकर कुछ काम भी करोगी? पता नहीं कौन सा भूत-प्रेत का साया है इस पर। सुबह-सुबह चिल्लाती ही रहती है। पड़ोसी भी सोचते होंगे हम एक अनाथ लड़की पर कितना जुल्म कर रहे हैं। हूँ हूँ हूँ…"
ये बातें सुनते ही गति परेशान होती हुई बाहर की तरफ देखती है। तो परी बुरा सा मुँह बनाकर धीरे से बोली,
"पता नहीं मेरी माँ की प्रॉब्लम क्या है। कभी कुछ अच्छा बोल ही नहीं पाती।"
"हाँ मामी जी…!!" गति ने जल्दी से जवाब देते हुए कहा और उठते हुए बोली, "परी, तू तैयार हो जा। मैं भी सारा काम निपटा देती हूँ।" इतना कहकर गति उठकर बाथरूम की तरफ चली गई।
कुछ देर बाद…
गति बाथरूम से जल्दी-जल्दी नहाकर तैयार होकर निकली और शीशे के सामने खड़ी होकर बालों में कंघी करने लगी। पर दिमाग में अभी भी उसका देखा हुआ सुबह का वो भयानक सपना चल रहा था। जिसे याद करने की कोशिश करते हुए वो एकटक खुद को आईने में देखने लगी। उसका सुबह का वो भयानक सपना, जो अब कुछ धुंधला सा ही याद था, उसे…
"सच में… ये हर बार मुझे ऐसे ही सपने क्यों आते हैं? जिसमें कुछ साफ़ तो नहीं दिखता, पर हर बार एक लड़का, लड़की की धुंधली छवि दिखती है। और कुछ शब्द… भूमि…बर…कुमारी… ये सब क्या है? और मेरे साथ क्यों है? कुछ समझ नहीं आता मुझे…"
वो खुद से ही सवाल करती हुई, खुद को ही अपने मन की बात बताती हुई, बेखयाल सी बालों में कंघी चला रही थी। तभी एक जोर से उसके नाम की पुकार ने उसका ध्यान तोड़ा। जिसे सुनकर वो हड़बड़ाती हुई जल्दी से कंघी कर, जल्दी से कानों में बाली डालते हुए एक नज़र घड़ी को देख रही थी। तभी फिर से मामी जी तेज आवाज में उसका नाम पुकारती हैं। जिस पर वो जल्दी से किचन की तरफ चली गई।
"गति दीदी… चलो! मुझे कॉलेज के लिए लेट हो रहा है।" कुछ देर बाद परी हॉल में खड़ी आवाज देती है।
"हाँ, हाँ आ गई। मेरा बैग बिस्तर पर ही है। तू ले आएगी क्या?" गति हाथ में चाय का कप लिए किचन से बाहर आते हुए परी से बोली और चाय मामी जी को देते हुए कहा,
"ये लीजिए मामी जी आपकी चाय… और मैं लगभग सब कुछ कर दिया है। और बाकी का बाद में कर दूँगी।"
मामी जी थोड़ा मुँह बना लेती हैं, "हाँ… हाँ ठीक है।"
"अ… मामी जी मुझे थोड़े पैसे चाहिए थे। वो आज दो-तीन जगह इंटरव्यू के लिए जाना है तो…" गति थोड़ा झिझक रही थी पैसे मांगते हुए।
मामी जी मुँह बिगाड़ते हुए बोलीं, "अरे चार दिन पहले ही तुझे 200 रुपये दिए थे। सारे इतनी जल्दी ख़त्म कर दिए। यहाँ तेरे माँ-बाप ने पैसों का पेड़ लगाकर नहीं गए हैं जो हर रोज़ तोड़कर तुझे दूँ। कुछ नहीं मिलेगा। और एक बात बता, तू सच में इंटरव्यू देने जाती है या आवारागर्दी करने जाती है? नौकरी तो तुझे एक पैसे की नहीं मिली आज तक…"
मामी जी की जली-कटी कड़वी बातों से गति को बहुत बुरा लगा, पर अब आदत है, वो कुछ नहीं कहती। बस वहाँ से हट गई।
परी, बैग गति को देकर अपनी माँ को देखते हुए अधिकार से बोली, "माँ, लाओ ज़रा हज़ार रुपये दो तो…"
"अब तुझे हज़ार रुपये किस खुशी में चाहिए?"
परी: "माँ, आज मेरा फाइनल पेपर है। अगर पेपर अच्छा हो गया तो दोस्त पार्टी माँगेंगे तो क्या करूँगी… और मुझे कुछ ज़रूरी चीज़ें लेनी हैं। अब जल्दी दो, मुझे लेट हो रहा है।"
"हाँ, हाँ तू तो जैसे पास होकर कलेक्टर बन जाएगी।" वो पर्स से पैसे परी के हाथ में देते हुए बोली, "ये ले, ध्यान रखना जो ज़रूरी हो उस पर ही खर्च करना।"
गति वहीं खड़ी अपनी मामी को देख रही थी। जिस पर उन्होंने मुँह बनाकर पर्स से 50 रुपये निकालते हुए कहा,
"ये ले, तू भी रख, वरना बोलेगी मामी भेदभाव करती है।"
"मामी जी, इतने में क्या होगा…" गति ने झिझकते हुए हाथ में रुपये लेकर कहा।
"बस की टिकट आएंगी ना? नहीं चाहिए तो ला वापस दे।"
गति बिना कुछ कहे अपनी बहन के साथ घर से निकल गई। गति थोड़ी मायूस थी अपनी किस्मत पर… वो कब तक ये सब झेलेगी? क्या कोई नहीं जो उसे प्यार और सम्मान दे सके? वो अपने माँ-बाप को याद करती हुई थोड़ी दुखी लग रही थी।
क्रमशः…
गति, कुछ कहे बिना, अपनी बहन के साथ घर से निकल गई। गति थोड़ी मायूस थी अपनी किस्मत पर। वो कब तक ये सब झेलती? क्या कोई नहीं जो उसे प्यार और सम्मान दे सके? वो अपने माँ-बाप को याद करती हुई थोड़ी दुःखी लग रही थी। परी उसके साथ घर के बाहर आकर चलते हुए बोली,
"दी, ये लीजिए।"
परी ने गति को 1000 रुपये दिए। इसे देख गति ने कहा,
"परी, ये तू मुझे क्यों दे रही है? मामी जी ने तुझे दिया है ना? तुझे जरूरत पड़ेगी।"
"जी नहीं दी, मेरे पास पापा की पॉकेट मनी थोड़ी बची है। ये मैंने आपके लिए ही लिया है। सो टेक इट, और हाँ, हर जगह रिक्शा से जाना, ओके? ये मुझे दे दीजिए, इससे मेरा काम हो जाएगा।" परी गति के हाथ से वह पचास रुपये का नोट लेते हुए बोली।
गति: "पर इतने में तेरा क्या होगा परी? नहीं, तू इसे रख। मुझे कोई परेशानी नहीं होगी, बस से जाने में।"
"डोंट वरी दी, मैंने कॉलेज में एक-दो बॉयफ्रेंड बना रखे हैं। जो मेरा सारा बिल भर देते हैं। वो भी टिप के साथ..." परी गति के कंधे पर हाथ रखकर मज़ाक में बोली। जिस पर गति उसके हाथ पर मारती हुई बोली,
"परी, तूने सच में ऐसा किया है क्या? देख, सच बता?"
"अरे... दी, मज़ाक कर रही हूँ। वो सिर्फ़ मेरे दोस्त हैं। हाँ, पर बिल तो भर ही देते हैं।" परी उसके कंधे पर अपना हाथ टिकाते हुए बोली, "मैं तो कहती हूँ आप भी किसी को अपना बॉयफ्रेंड बना लो। हे दी, मैं तो कहती हूँ अगर आपको कोई हैंडसम सा बॉस मिल जाए ना, तो आप अपने बॉस को अपना बॉयफ्रेंड बना लेना... पूरे ऑफ़िस में राज करोगी।" परी मज़ाक करती हुई हँसकर बोली। जिस पर गति मुँह बनाते हुए उसके गाल खींचकर बोली,
"चुप कर बदमाश, कुछ भी बोलती है। मैं किसी को अपना बॉयफ्रेंड नहीं बनाने वाली, समझी? मैं तो बस किसी एक की होना चाहती हूँ। जो सिर्फ़ मुझे प्यार करे, मेरे लिए कुछ भी कर सके, जो कभी मुझे रुलाए नहीं, वो हमेशा मुझे अपने करीब रखे, जिसके जीने की वजह सिर्फ़ मैं रहूँ। और... मैं भी उसे बहुत प्यार करूँ।" गति अपने ख़यालों में बसे अपने भविष्य के प्यार को शब्द दे रही थी। जिसे सुनते हुए परी मुस्कुराते हुए बोली,
"हाएए दी, आप तो किसी सदियों पुरानी प्रेम कहानी को जीना चाहती हो। आज के दौर में ऐसा प्यार कोई नहीं करता।"
परी की बात पर गति थोड़ी मायूस होकर "हम्म..." कह गई। जिस पर परी उसे साइड से गले लगाते हुए बोली,
"दी, बट यू डोंट वरी। हर किसी को ऐसा प्यार करने वाला नहीं मिलता तो क्या? पर आपको ऐसा प्यार करने वाला प्रेमी ज़रूर मिलेगा, देख लेना। हो सकता है वो आपके आस-पास ही हो, क्या पता वो भी आपको ढूँढ रहा हो।"
गति परी की बात पर मुस्कुरा रही थी। इसे देख परी उसके गोरे और टमाटर से लाल गालों को छूते हुए बोली,
"ओहोओ दी... अभी तो वो मिले भी नहीं, आप तो उनके नाम पर अभी से बल्ले-बल्ले कर रही हैं।"
"चुप कर, कुछ भी। मैं कोई बल्ले-बल्ले नहीं कर रही।" गति के चेहरे पर अब भी मुस्कान थी जिसे वो दबा रही थी। फिर परी से कहा, "अच्छा सुन, अच्छे से एग्ज़ाम देना। भगवान करे तू अच्छे नंबरों से पास हो जाए और तेरी हर इच्छा पूरी हो।"
दोनों इसी तरह बात करती हुई रिक्शा रुकवाकर उसमें बैठ अपनी मंजिल की ओर निकल गईं।
दूसरी तरफ, सुबह का समय था।
दो पैर जो बड़ी तेज़ी से सीढ़ियों पर टक-टक, जूतों की आवाज़ करते हुए ऊपर आने लगे। और फिर उस लड़के ने एक कमरे का दरवाज़ा खोला। सामने एक बहुत बड़ा सा हॉल-नुमा कमरा था, जो एक शानदार जिम लग रहा था। जहाँ लगभग हर तरह के एक्सरसाइज़ और स्पोर्ट्स के सामान दिख रहे थे। पर इंसान एक भी नहीं।
उस लड़के की आँखें पूरे हॉल में किसी को ढूँढ़ने लगीं। तभी अचानक वहीं कहीं एक फ़ोन बजने लगा। आवाज़ सुनकर उस लड़के का सिर उस ओर घूम गया जिस तरफ़ से रिंग की आवाज़ आ रही थी।
देखा तो एक टेबल पर एक पानी की बोतल, तौलिया, नैपकिन और फ़ोन रखा हुआ था जो बज रहा था। वो लड़का तेज़ी से उस टेबल के पास आकर फ़ोन की स्क्रीन पर देखता है जिस पर कॉलर के नाम में 'मिसेज़ राणावत' लिखा हुआ था।
तभी उसकी नज़र लेफ़्ट साइड के कमरे पर गई जिसके अंदर से रहे-रहे कर हल्की गोलियों की आवाज़ आ रही थी। वो लड़का उस बज रहे फ़ोन को हाथ में लेकर उस कमरे की तरफ़ बढ़ गया। और जैसे ही दरवाज़ा खोला, एक जोरदार गोली चलने की आवाज़ आई।
सामने एक लड़का, जिसकी हाइट लगभग 6 फ़ुट होगी, जिसने ट्रैक सूट पहना हुआ था, कानों में साउंड प्रोटेक्ट इयरफ़ोन, आँखों में चश्मा, हाथों में दस्ताने, के साथ एक बंदूक थी जो अपने टारगेट की तरफ़ तनी हुई थी। सामने, कुछ पच्चीस फ़ुट दूर, रखा हुआ टारगेट बोर्ड था जो लगभग छलनी हो चुका था। फ़ोन पकड़े हुए वो लड़का उसके पीछे आकर खड़ा हो गया। जिसका एहसास पाते ही उस लड़के की उंगलियाँ ट्रिगर को दबाते-दबाते रुक सी गईं। पर तब तक फ़ोन कट चुका था।
"बॉस, आपके गोवा जाने की सारी तैयारियाँ हो चुकी हैं। शाम की फ़्लाइट है, और अभी कुछ देर में आपकी एक इम्पॉर्टेन्ट मीटिंग है जिसकी भी तैयारी हो चुकी है।"
अपने पीछे खड़े उस लड़के की बातें सुनकर, बिना उसे देखे ही वो लड़का बोला,
"हम्म...!!! तुम चलने की तैयारी करो, मैं आता हूँ।"
"ओके बॉस...!!!"
उस लड़के ने फिर एक बार अपने टारगेट पर नज़रें और बंदूक का निशाना साधा और वैसे ही गुरूर और सख्त आवाज़ में बोला,
"एक बात याद रखना डेविड, इस बार मुझे कोई गड़बड़ी नहीं चाहिए। इस बार हमारा निशाना अपने टारगेट पर ही लगना चाहिए, समझे ना...?! "
इस पर डेविड (पीछे खड़ा लड़का) ने सर को हाँ में हिलाते हुए बोला,
"यू डोंट वरी बॉस, इस बार हमसे कोई चूक नहीं होगी क्योंकि हमने उस वजह को पकड़ में ले लिया है जो हमें हमारे टारगेट से भटका रही थी।"
डेविड की बात सुनते ही उस लड़के के चेहरे पर ख़तरनाक एक्सप्रेशन आ गए और वो एक डेविल स्माइल के साथ अपनी बंदूक से फ़ायर कर देता है। गोली सीधे टारगेट बोर्ड को चीरती हुई जाकर सामने दीवार पर धँस गई।
इतने में डेविड के हाथ में रखा वो फ़ोन फिर बजने लगा। जिसे देखकर उसने अपने बॉस की तरफ़ उसे दिखाते हुए बोला,
"अ... बॉस, मैडम का फ़ोन है। आप बात कर लीजिए, काफ़ी सारे मिस्ड कॉल हैं।"
ये सुनते ही उस लड़के (बॉस) का चेहरा तनाव में आ गया। उसने सख्ती से कहा,
"मिसेज़ राणावत को मेरा संक्षिप्त मैसेज कर दो, उन्हें अपना जवाब मिल जाएगा। मैं दस मिनट में तैयार होकर आता हूँ, गाड़ी रेडी करो..."
ये कहकर वो बंदूक को अपनी जगह रखकर कमरे से बाहर चला गया। अपने बॉस के इस बर्ताव पर डेविड के चेहरे पर थोड़ी परेशानी झलकने लगी। उसने अपना फ़ोन निकाला और उस पर कुछ मैसेज टाइप करने लगा।
सुबह का समय था।
एक बड़ी सी बिल्डिंग के नीचे दो महंगी और बड़ी गाड़ियाँ खड़ी थीं। पहली गाड़ी के पास दो बॉडीगार्ड, दोनों दरवाजों पर, और दूसरी के पास एक बॉडीगार्ड पहले दरवाजे के पास खड़ा था। तभी बिल्डिंग के दरवाजे से हृदय सिंह राणावत, अपने रौबदार व्यक्तित्व के साथ, आँखों पर सनग्लासेज लगाए, हाथ में महँगी घड़ी पहने, व्हाइट शर्ट, ब्लैक पैंट के साथ, हाथ में अपना ब्लैक कोट लिए, बड़ी तेजी से गाड़ी की तरफ बढ़ने लगे। उनके पीछे डेविड भी तेज कदमों से आ रहा था, जिसके हाथ में कुछ फाइलें और एक ट्रॉली बैग था।
हृदय के गाड़ी के पास पहुँचते ही, उस बॉडीगार्ड-सह-ड्राइवर ने झट से पिछला दरवाजा खोल दिया, और हृदय उसमें बैठ गया। डेविड भी सामने की तरफ का दरवाजा खोलकर उसमें बैठ गया और फिर कुछ ही सेकंड में दोनों गाड़ियाँ तेजी से रास्ते पर निकल गईं।
कार में बैठा हृदय, भावशून्य चेहरे के साथ, अपनी आँखें लैपटॉप पर और उंगलियाँ उसके कीबोर्ड पर चला रहा था। तभी उसकी कार एक ट्रैफिक सिग्नल पर हल्के झटके से रुकी, पर हृदय का ध्यान बस अपने काम पर था।
इसी के साथ उसकी कार के बाजू में ही एक रिक्शा भी आकर रुकी। और उसके रुकते ही हृदय की उंगलियाँ अचानक रुक गईं। उसे बहुत खूबसूरत एहसास होने लगा, दिल की धड़कनें बेकाबू सी होकर जोर-जोर से धड़कने लगीं। एकाएक उसे भूमि का ख्याल होने लगा, जैसे वह उसके आस-पास ही हो। उसने झट से अपनी नज़र खिड़की की तरफ कर, कार का शीशा उतारकर बाहर देखने लगा।
उस पास खड़े रिक्शे में एक चूड़ियों वाले हाथ दिख रहे थे, जो बहुत ही खूबसूरत थे। उसके ऊपर की गोरी हथेली के बीच में एक खूबसूरत सा तिल था। यह देख हृदय बेचैन और बेताब हो गया। हृदय की आँखें यह देख चमकने लगीं, क्योंकि ऐसा ही तिल उसकी भूमि के हाथ पर भी था। वह उस रिक्शे में बड़ी बेताबी से झाँकने की कोशिश करने लगा, दरवाजा खोलना चाहता था, पर जगह ही नहीं थी क्योंकि उसकी कार से ही लगा एक आदमी की मोटरसाइकिल खड़ी कर दी थी। कार में सामने बैठे डेविड को हृदय को देख अजीब तो लगा, पर उसने कुछ नहीं कहा, या यूँ कहो, उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह हृदय से कुछ पूछे।
इससे पहले कि हृदय देख पाता कि वह हाथ किसका है, सिग्नल ग्रीन हो गया और सारी गाड़ियाँ एक-एक कर निकलने लगीं और इसी के साथ वह रिक्शा भी बड़ी तेजी से आगे निकल गई। यह देख हृदय ने अपने ड्राइवर को तेज मगर जुनून भरी आवाज़ में कहा,
"उस रिक्शे का पीछा करो!!!!"
डेविड और ड्राइवर हैरानी से उसे देख रहे थे, जिस पर हृदय ने गुस्से में आदेश देते हुए बोला,
"सुनाई नहीं दे रहा? उस रिक्शे का पीछा करो!!"
उसकी तेज आवाज से ड्राइवर घबराकर जल्दी से गाड़ी उसके पीछे ले लेता है। पर बीच में फिर एक सिग्नल आ गया, पर रिक्शा तो निकल चुकी थी। हृदय ने सिग्नल देखते ही उत्तेजित होकर बोला,
"रुकने की ज़रूरत नहीं है, वह रिक्शा छूटनी नहीं चाहिए।"
हृदय की आवाज में बेसब्री और आँखों में तड़प दोनों ही दिख रही थीं। पर सिग्नल तोड़ते ही पुलिस की गाड़ी उनके पीछे लग गई। यह देख डेविड थोड़ा परेशान हुआ। उन्हें जल्दी एयरपोर्ट पहुँचना है और अब यह सब...
देखते ही देखते हृदय की कार उस रिक्शे का पीछा करते हुए एक कॉलेज के पास रुक गई। हृदय गाड़ी से उतरकर खड़ा हो गया। उसकी आँखें बेताबी से उस रिक्शे से निकलने वाली लड़की को देखना चाहती थीं। जैसे ही वह लड़की उतरी, हृदय पहले उसकी शक्ल देखता है, फिर उसकी आँखें उसके हाथ पर चली गईं। तो उसने देखा इस लड़की ने तो कोई चूड़ी नहीं पहनी थी, और ना ही उसके हाथ में कोई तिल था। मतलब यह वह लड़की नहीं है जिसे देखकर हृदय को उसकी भूमि के होने का एहसास हो रहा था।
यह सोचते ही हृदय का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, भौंहें सिकुड़ गईं, माथे की नस फूल गई, मुट्ठी कस गई। उसने गुस्से में एक जोर की लात गाड़ी के टायर पर मार दी।
इधर पुलिस जो कि हृदय की तरफ बढ़ रही थी, उसके सामने गार्ड्स आकर खड़े हो गए। डेविड ने उन्हें कुछ कहा और पैसे देकर मामला निपटा दिया। वे भी सर हिलाकर जैसे आए थे वैसे ही चले गए।
"बॉस... क्या हुआ? सब ठीक है? वो... हमें एयरपोर्ट जाना था।" डेविड हृदय को परेशान और गुस्से में देख धीरे से बोला, पर हृदय गुस्से में एकटक उसे कॉलेज के बोर्ड को देखता रहा। फिर अचानक जल्दी से कार का दरवाजा खोला और उसमें बैठ गया। और फिर से उनकी गाड़ी सड़क पर अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ गई।
गोवा। शाम का समय।
शाम के करीब पाँच बज रहे होंगे। गोवा की राजधानी पणजी का एक 7 स्टार शानदार बीच (समुद्र के किनारे) व्यू होटल...
हृदय अभी-अभी अपनी पहले दिन की समिट मीटिंग को खत्म करके होटल के गार्डन एरिया में, जो कि समुद्र के किनारे से थोड़ी दूर और थोड़ी ऊँचाई पर था, कुछ लोगों के साथ बातें कर रहा था। डेविड जो कि उसके पास ही खड़ा था, बहुत चौकन्ना सा आस-पास देख रहा था। कुछ ही मिनटों में बात खत्म कर वे लोग उससे हाथ मिलाकर चले गए। तो हृदय भी जाने के लिए मुड़ा, पर तभी अचानक उसके सामने एक खूबसूरत सी लड़की आकर खड़ी हो गई। उसके हाथ में दो वाइन के ग्लास थे, जिसमें से एक को उसने हृदय की तरफ बढ़ाते हुए कहा,
"हैलो... मि. राणावत... पहचाना आपने मुझे?"
हृदय पहले उसके बढ़ाए ग्लास को थोड़ा सीरियस होकर घूरने लगा, फिर उसके चेहरे को एक नज़र देख सख्ती से बोला,
"जी... बिल्कुल नहीं, मैं आपको बिल्कुल नहीं जानता।"
"अरे ये क्या कह रहे हैं? कुछ दिन पहले ही तो हमने एक साथ रात बिताई थी।"
यह सुनते ही हृदय का पारा चढ़ गया, तो डेविड जो उसके पीछे कुछ दूर खड़ा था, वह हैरान रह गया।
"क्या बकवास है ये...?"
हृदय ने गुस्से में कहा, जिस पर वह लड़की हँसने लगी और वैसे ही बोली,
"अरे... अरे... गलत मत समझिए... मैं तो हमारे ऑस्ट्रेलिया वाले इंटरनेशनल बिज़नेस मीट की बात कर रही हूँ... वह भी तो रात को ही हुआ था। हम उसमें ही मिले थे और चूँकि मीटिंग रात को हुई थी, तो इसलिए कहा हमने साथ रात बिताई है... पर हमारे साथ और भी बहुत सारे लोग थे।"
यह बोल वह लड़की एक घूँट वाइन पीती हुई जैसे अपनी अदाएँ दिखाने लगी। इस पर हृदय को बहुत गुस्सा आया। उसने बहुत सख्ती से कहा,
"बहुत वाहियात मज़ाक था... जो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आया।"
यह कहे हृदय जाने लगा, तो उस लड़की ने फिर उसका रास्ता रोकते हुए कहा,
"अरे... आपको बुरा लगा तो सॉरी... मैं तो बस मज़ाक कर रही थी। वैसे आप चाहें तो हम शाम को मिलकर अच्छे से बात कर सकते हैं। यू नो, बीच पर शानदार डिनर के साथ एक नाइट वॉक भी हो जाएगा।"
यह बात वह बहुत धीरे मगर सिड्यूसिंग ढंग से कहती हुई हृदय के हाथों पर अपनी बड़े नाखूनों वाली उंगलियाँ फिराने लगी।
डेविड जो उनसे कुछ ही कदम दूर था, उस लड़की की हरकतों और बातों पर, और वह जैसा बिहेव कर रही थी हृदय के साथ, इस पर उसे भी गुस्सा आ रहा था। वह अगर कोई मेल (आदमी) होता, तो अब तक डेविड ने उसे हृदय से दूर कर दिया होता, पर वह एक लड़की थी और वैसे भी बिना हृदय के आदेश के वह कुछ भी नहीं कर सकता, तो वह चुप ही रहा।
पर हृदय समझ रहा था वह क्या कहने की कोशिश कर रही है, जिस पर उसे इतना गुस्सा आ रहा था कि पूछो मत। उसने गुस्से में झट से उस लड़की की उन उंगलियों को अपने पंजों में जकड़ते हुए बोला,
"औरत हो, औरत की मर्यादा में रहो। (उस लड़की को दर्द होने लगा था। उसके नाज़ुक नाखून और उंगली दोनों हृदय के मज़बूत उंगलियों से जकड़े हुए थे, और वह उसे अपनी दहकती आँखों से देखते हुए मर्यादा में ही बोल रहा था) यह सब करके तुम मेरी नज़रों में उठोगी नहीं, बल्कि और गिर जाओगी... और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की...? मुझे छूने का अधिकार सिर्फ़ उसे है जो इस हृदय के हृदय में बसती है, समझी तुम...?"
यह कहते हुए हृदय ने उस लड़की को धक्का देकर खुद से दूर कर दिया और तेज़ी से आगे चल गया। तो डेविड के चेहरे पर भी हृदय के इस बर्ताव से रौनक आ गई और वह भी हृदय के पीछे चल दिया। पर वह लड़की जैसे अपनी उंगलियाँ संभालती, सहलाती, उसे गुस्से से घूर रही थी।
क्रमशः
हृदय ने उस लड़की को धक्का देकर दूर कर दिया और तेज़ी से आगे बढ़ गया। डेविड के चेहरे पर भी हृदय के इस बर्ताव से रौनक आ गई, और वह भी हृदय के पीछे चल दिया। पर वह लड़की, जैसे अपनी उंगलियाँ संभालती हुई, उसे गुस्से से घूर रही थी। फिर अचानक, उसने गुस्से और चिढ़ में मुँह बनाती हुई जोर से कहा,
"हाउ डेयर यू, हृदय सिंह राणावत!! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी ऐसी इंसल्ट करने की...?"
यह सुनते ही अचानक हृदय के पैर वहीं जम गए। वह पलटा नहीं, पर उसकी बातें सुनकर उसके गुस्से का पारा चढ़ने लगा। तो वह लड़की भी गुस्से से उसे देखती हुई आगे बोली,
"बहुत घमंड है ना तुम्हें खुद पर, जैसे तुम्हारे लिए आसमान से कोई परी उतरकर आएगी। वो क्या कहते हैं... हाँ... राजकुमारी...!! हुउउ... तुम्हारा यही बिहेवियर रहा ना, तो कोई लड़की तुम्हारी तरफ देखेगी भी नहीं, हमेशा अकेले ही रहोगे तुम, समझे..."
यह सुनकर हृदय को इतना गुस्सा आया कि पूछो मत। उसकी आँखें, अपने गुस्से को कंट्रोल करते हुए, एक पल के लिए बंद हो गईं। मुट्ठी गुस्से में कस गई, और वह एक पल में आँखें खोलकर उस लड़की की तरफ मुड़कर तेज़ी से उसकी ओर बढ़ने लगा।
यह देख डेविड थोड़ा हड़बड़ाकर उसे रोकने के इरादे से उसके पीछे हो लिया। वह लड़की, हृदय को गुस्से में अपनी ओर आते देख, डर से कांप गई, क्योंकि अभी जो खतरनाक एक्सप्रेशन उसके चेहरे पर थे, उसे देख वह डरकर पीछे होने लगी। उसे लगा जैसे हृदय आते ही उसे एक थप्पड़ लगा देगा, इसलिए वह धीरे-धीरे पीछे हटने लगी।
हृदय पल भर में उसके सामने कुछ दूरी पर खड़ा हो गया। गुस्से में उसे उंगली दिखाते हुए, सख्ती से बोला,
"हद और औकात में रहो अपनी... मुझे मजबूर मत करो कि मैं कुछ ऐसा करूँ जो मेरी मर्यादा और मेरी शान के खिलाफ हो, समझी... मेरे साथ क्या होगा नहीं होगा, यह मेरी प्रॉब्लम है, तुम्हारी नहीं... और तुमने बिल्कुल ठीक कहा, मेरे लिए मेरी राजकुमारी ही आएगी... जो तुम जैसी लड़कियों की तरह नहीं होगी, जो हर किसी के पास आसानी से जाने को तैयार रहती है, समझीईई... और अब बिना तमाशा किए चुपचाप यहाँ से चली जाओ, वरना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।"
यह बोलते ही उसने उसकी तरफ तानी हुई उंगली को मुट्ठी में बंद कर दिया। तो वह लड़की, उसकी धमकी को सुनकर और उसे ऐसे देखकर घबराकर रोती हुई वहाँ से चली गई।
उनकी इस बहस को देखने कुछ लोग भी इकट्ठा हो चुके थे, और उनकी भुनभुनाहट से हृदय का गुस्सा और बढ़ रहा था। वह एक पल में ही वहाँ से तेज़ी से निकल गया।
हृदय गाड़ी की ड्राइवर सीट पर बैठा था। डेविड भी उसके पास वाली सीट पर बैठा था, बहुत डरा और घबराया हुआ। वह बार-बार हृदय को गाड़ी रोकने, स्पीड कम करने को कह रहा था, क्योंकि इस वक्त हृदय की गाड़ी गोवा की मेन सड़क पर बहुत तेज़ी से हवा को चीरती हुई, और सड़क के किनारे लगे नारियल और पाम के पेड़ों को पल भर में ही पीछे धकेलती हुई आगे बढ़ रही थी। डेविड के लाख कहने पर भी, हृदय गुस्से में कुछ सुनने को तैयार ही नहीं था।
"बॉस... बॉस प्लीज़ स्पीड कम कीजिए। यहाँ की सड़कों के बारे में हम कुछ नहीं जानते, बॉस। एक्सीडेंट हो जाएगा, प्लीज़..."
हृदय ने एक नज़र उसे देखकर जोर से स्टीयरिंग घुमाकर गाड़ी को एक ओर मोड़ दिया। तो मानो गाड़ी के झटके से डेविड एक तरफ गाड़ी के दरवाजे से चिपक गया। अच्छा है दरवाज़ा लॉक था, वरना बिचारा बॉस के गुस्से के चक्कर में गाड़ी से बाहर होकर सड़क पर पसर जाता।
"बॉस... आराम से... बॉस आपको चोट लग जाएगी। गाड़ी रोक दीजिए, प्लीज़..."
इतने में डेविड सामने क्या देखता है, सामने कुछ दूर पर बच्चों की एक बस आ रही है, जिसमें एक स्कूल से निकलकर बच्चे बस में चढ़ रहे हैं। यह देख मानो डेविड की धड़कनें तेज़ हो गईं। वह फिर चिल्लाते हुए बोला,
"बॉस... वहाँ स्कूल के बच्चे हैं। किसी को चोट लग सकती है, बॉस प्लीज़..."
डेविड के यह कहते ही हृदय एक नज़र सामने देखकर भी गाड़ी नहीं रोकता। डेविड परेशान हो चुका था, कि तभी वो लोग उस बस के करीब पहुँचने लगे... कि अचानक हृदय ने फिर एक बार जोर से स्टीयरिंग एक ओर मोड़ दिया और अपनी गाड़ी की दिशा बदल दी। अब उनकी गाड़ी एक बीच पर आ चुकी थी।
डेविड सामने नीला समुद्र देख पा रहा था। हृदय ने मानो सामने घूरते हुए स्पीड को और बढ़ा दिया। यह देख डेविड ने जोर से आँखें बंद कर सीट को पकड़ते हुए चिल्लाते हुए कहा, "अरे बॉस, हम मर जाएँगेएएएएए..."
तभी एक झटके से हृदय ने गाड़ी समुंदर के लहरों के एकदम नज़दीक रोक दी। उनकी गाड़ी का टायर रेत में धँस चुका था। लहरें बार-बार टायर को छूकर लौटने लगीं।
डेविड की साँसें अब भी रुकी हुई थीं। आँखें अब भी जोर से बंद थीं, पर तभी उसे गाड़ी का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई। उसने देखा तो दरवाज़े पर हृदय खड़ा हो अपना कोट निकालकर गाड़ी में फेंक दिया और अपनी स्लीव्स फोल्ड करते हुए अपनी भारी आवाज़ में कहा, "डेविड, तुम होटल जाओ, मैं बाद में तुमसे मिलता हूँ।"
यह कहकर उसने झट से दरवाज़ा बंद कर दिया, डेविड को कुछ कहने का मौका तक नहीं दिया। वह बस गाड़ी के अंदर से "बॉस... बॉस" चिल्लाता रह गया। और हृदय लहरों पर चलते हुए कहीं दूर निकल गया।
उसे ऐसे जाते हुए देख डेविड ने गहरी साँस ली और गाड़ी में रखा पानी का बोतल उठाते हुए कहा,
"बॉस, आज तो आपने जान ही ले ली थी। प्लीज़ आप गाड़ी के पीछे ही बैठिए... वरना आपके गुस्से में हुई ड्राइविंग के चक्कर में किसी दिन हम लोग निकल जाएँगे..."
यह कहकर वह घूँट-घूँट कर पानी पीने लगा। बेचारे की जान हलक में आ गई थी।
रात का समय। गोवा।
रात बिल्कुल गहरी और स्याह थी। आसमान में सिवाए अंधेरे के कुछ भी नहीं दिख रहा था। हाँ, बस एक-दो तारे जो बादलों से झाँककर नटखट बच्चे की तरह फिर उन्हीं बादलों के पर्दों में छुप जाया करते थे। रात के करीब डेढ़ बज रहे होंगे। यूँ तो गोवा अपनी नाइट लाइफ के लिए मशहूर है, पर अब रात के इस पहर हर जगह खामोशी और शांति पसरने लगी थी।
पर समुंदर की तेज़ लहरें उस खामोशी को अपनी चंचल लहरों की थाप देकर एक मधुर और रोमांचक माहौल तैयार कर रही थीं। समुंदर का एक सुनसान किनारा, जहाँ दूर-दूर तक कोई भी नहीं दिख रहा था, सिवाए समुंदर के पास ही खड़ी एक गाड़ी के, जिसकी हेडलाइट की एक रोशनी समुंदर के पानी को सोने की चमकती लहरों में बदल रही थी...
क्रमशः...
समुंदर का एक सुनसान किनारा था। दूर-दूर तक कोई नहीं दिख रहा था, सिवाय समुंदर के पास ही खड़ी एक गाड़ी के। गाड़ी की हेडलाइट की पीली रोशनी समुंदर के पानी को सोने की चमकती लहरों में बदल रही थी।
उस गाड़ी के बोनट पर, बाहें फैलाए, हृदय लेटा हुआ था। उसकी आँखें लगातार स्याह आसमान में किसी की धुंधली छवि को देख रही थीं। वह उसे शिद्दत से याद कर रहा था। दिल बेचैन था। बार-बार उसके कानों में उस लड़की की बातें गूंज रही थीं।
"बहुत घमंड है तुम्हें खुद पर... जैसे तुम्हारे लिए कोई राजकुमारी आएगी... ऐसा ही रहा तो कोई लड़की तुम्हें देखेगी भी नहीं, हमेशा अकेले ही रहोगे..."
यह सोचते ही उसकी भौंहें गुस्से में सिकुड़ गईं। वह तड़पकर बोला,
"मैं तो चाहता हूँ कोई लड़की मुझे उस नज़र से ना देखे, सिवाय उसके जिसके लिए मैं यहाँ आया हूँ।"
आसमान की तरफ देखकर वह झट से बोनट से उतर गया और ऊपर देखकर बुलंद आवाज़ में बोला,
"कहाँ है आप, भूमिईईई... धरती किस कोने में छुपी है आप, जो मैं आपको ढूँढ नहीं पा रहा हूँ? कौन सी जगह बाकी है जहाँ मैंने आपको खोजा ना हो... पर अब ऐसा लग रहा है जैसे आप जानबूझकर मेरे सामने नहीं आ रही हैं, क्योंओओओ...?"
"क्या हमारे प्रेम, हमारे जन्म-जन्म साथ रहने के वादे... वो झूठे थे? एकतरफ़ा थे? क्या उसे सिर्फ़ हमने निभाया है, आपने नहीं... क्यों भूमि, क्यों...?"
वह गहरी साँसें लेने लगा, जैसे उसे साँस न आ रही हो।
"अब... अब हमसे और बर्दाश्त नहीं हो रहा है। अब यदि आपका प्रेम भी हमारे लिए सच्चा है, तो अब आप खुद हमारे सामने आएंगी... आपको आना ही होगा... वरना हम समझ लेंगे आपने हमसे कभी वैसा प्रेम नहीं किया जैसा हम करते हैं आपसे। आपके वादे झूठे थेएएए..."
जोर से चिल्लाते हुए वह बोला,
"लौट आइए भूमिईईई... देखिए आपका अंबर आज भी बाहें फैलाए सिर्फ़ आपके लिए खड़ा है... लौट आइए हमारे पास... क्योंकि आपके बिना न हम तब इस धरती पर रहना चाहते थे, न अब ही रह पाएँगे।"
"और कितना धीरज धरना होगा...
और कितनी बार तुम्हें पाने की चाह में मरना होगा..."
हृदय की तड़पती रूह से निकल रही आवाज़ें गहरे समुंदर में भी हलचल मचा रही थीं। लहरें बार-बार समुंदर छोड़कर उसके पैरों से लिपटने को आ रही थीं। गहरा स्याह आसमान भी इस अंबर की आवाज़ों में अपनी आवाज़ें मिलाने लगा। देखते ही देखते, जैसे उसकी आँखों में ठहरे आँसू अब उस विशाल और अथाह अंबर की आँखों से बहने लगे। बारिश होने लगी। बारिश में भींगते हुए एक बार फिर हृदय के हृदय से यह आवाज़ निकल गई,
"भूमिईईईईईई... लौट आइएएएएए... हमारे पास..."
उसके सच्चे हृदय और निष्कपट प्रेम के बल से निकली इन सदाओं का असर मानो मीलों दूर एक कमरे में बिस्तर पर सो रही एक लड़की के दिल तक पहुँच गया। वह लड़की बिस्तर पर गहरी नींद में थी, पर तेज़ साँसें लेने लगी। पूरा चेहरा पसीने से लथपथ हो रहा था। उसकी मुट्ठी चादरों पर कसती जा रही थी। वह नींद में ही ना में सर हिलाती हुई, "नहीं... नहीं..." कहती हुई कुछ बड़बड़ा रही थी।
कि तभी अचानक एक झटके से वह बिस्तर पर उठकर बैठ गई। घबराहट में उसके मुँह से एक बेहद हल्की आवाज़ निकल गई। वह गहरी साँस लेने की कोशिश करने लगी; उसकी धड़कनें तेज़ होने के कारण उसका बदन सिहर रहा था। उसने पहले अपने हाथों से अपने चेहरे पर आए पसीने को साफ़ किया, फिर बिस्तर के पास रखे टेबल पर रखे जग से ग्लास में पानी लेकर पीती हुई खुद को शांत करने लगी।
तभी बालकनी के दरवाज़े पर लगे एक ड्रीम कैचर में लगी घंटी हवा में उछलते हुए शोर करने लगी। इस आवाज़ से पहले तो वह लड़की थोड़ी घबरा गई, फिर अभी-अभी देखे सपने को याद करते हुए वह धीरे से बिस्तर से उतरकर बालकनी के दरवाज़े के पास आ गई और उस ड्रीम कैचर को हाथ से पकड़कर बजने से रोकते हुए बाहर अपनी छोटी सी बालकनी की तरफ़ आ गई। उसने देखा तो आसमान अब भोर की रोशनी लेने लगा था। अब सुबह की शुरुआत होने लगी थी।
वह लड़की गहरी साँस लेकर आँखें बंद करती हुई खुद से बोली,
"यह... यह... सुबह-सुबह कैसा सपना देख रही थी मैं?? ऐसा क्यों लग रहा था जैसे कोई मुझे ही पुकार रहा हो... मेरा मन इतना बेचैन क्यों हो रहा है? यह धड़कनें इतनी तेज़ क्यों हैं? कौन था वह जो इतने प्यार, तड़प और शिद्दत से किसी को याद कर रहा था? कौन है यह भूमि... क्यों बार-बार इसका नाम मुझे सपने में सुनाई देता है? हे भगवान, यह सब मेरे साथ क्या होता रहता है।"
अपने सीने पर हाथ रखकर वह बहुत परेशान सी वहीं अपनी बालकनी में लगे कुर्सी पर हाथ-पैर सिकोड़कर बैठ गई और देखते ही देखते अपनी आँखें बंद कर लीं।
तीन महीने बाद... शिमला।
परी काफ़ी देर से अपने कमरे के बाथरूम के पास खड़ी थी, दरवाज़े को देखती रही और उसे बजाते हुए आवाज़ दे रही थी,
"दीईई... अरे दीईइ! कितनी देर लगेगा आपको? प्लीज़ जल्दी निकलो ना..."
"अरे... हाँ बाबा, आ रही हूँ। दो मिनट रुक ना... इतनी क्या जल्दी है तुझे नहाने की..."
अंदर से गति ने आवाज़ दिया। वह अंदर बाथरूम में नहा रही थी।
परी मुँह सिकोड़ते हुए बोली,
"अरे दीईई..."
परी इतना ही बोली थी कि दरवाज़ा खुला और गति, सर पर तौलिया बाँधे, लम्बा सा बाथरोब पहने बाहर आई। वह परी को देखती हुई बोली,
"अरे यार परी, तू ना कितना जल्दी मचाती है। ठीक से नहाने भी नहीं देती मुझे..."
परी उसकी बात काटते हुए बोली,
"अरे यार हटो... आधे घंटे से नहा रही हो, घिस जाओगी एक दिन..."
यह बोलकर वह जल्दी से बाथरूम में घुस गई और दरवाज़ा बंद कर लिया। गति मुस्कुराकर ड्रेसिंग टेबल के पास आ गई। कुछ देर बाद परी साँस लेती हुई बाथरूम से बाहर आकर बिस्तर पर बैठ गई।
गति ने उसे एक नज़र देखा और अपने सूट का बैंक चेन बंद करने की कोशिश करते हुए बोली,
"अरे... तू तो नहाने गई थी ना, तो अभी ऐसे ही आ गई।"
परी ने मुँह बनाकर कहा,
"दीईई, नहाने की जल्दी किसको है? मुझे तो बाथरूम जाना था, और आप हैं कि आधे घंटे से बाथरूम में घुसी हुई थीं। मतलब हद है! इतनी देर क्या करती हैं आप..."
गति अपना हाथ पीठ की तरफ़ मोड़े हुए बोली,
"क्या... क्या मतलब? क्या करती हूँ? वही करती हूँ जो तू करती है, समझी... अच्छा, अब इसे बंद करने में मदद कर।"
परी खड़ी होकर गति के पास आ गई और उसके सूट का चेन बंद करती हुई बोली,
"आप उससे एक्स्ट्रा ही करती होंगी, तभी तो इतना टाइम लगता है।"
यह सुनते ही गति अजीब सा मुँह बनाकर उसे घूरती है। परी शरारत से मुस्कुराने लगी। फिर उसे आईने में देखती हुई बोली,
"वैसे दीईई... एक बात बोलूँ दीईई...?"
गति उसे आईने में देखती हुई बोली,
"हम्मम... बोलिए मैडम, आप बोलें बिना रह पाएँगी...?"
परी मुस्कुराकर पीछे से उसके गले लग गई और बोली,
"वैसे सच कहूँ दीईई... तो आज इस ब्लैक ड्रेस में आप कयामत लग रही हो... बचकर रहना, कहीं आज कोई आपके प्यार में ना गिर जाए..."
परी की बातों पर पहले तो गति शर्माकर आँखें बंद कर लेती है, फिर उसके कान खींचती हुई बोली,
"बदमाश लड़की! तुझे छेड़ने के लिए मेरे अलावा कोई और नहीं मिलता... चल जा, नहाकर जल्दी से तैयार हो जा, आज तेरा रिजल्ट है ना... और मेरा भी एक जगह सेकंड राउंड इंटरव्यू है आज। अगर सब अच्छा हुआ तो जॉब मिल ही जाएगी।"
परी ने उसके गले में अपने हाथ लपेटते हुए कहा,
"ओके दीईई, जैसा आप कहो... और अगर मेरा रिजल्ट अच्छा हुआ तो दोपहर का लंच हम बाहर करेंगे, मेरी ट्रीट... और अगर आपको जॉब मिल गई तो आप मुझे ट्रीट देगी, ओके..."
गति भी मुस्कुराकर उसके गाल पर हाथ रखकर बोली,
"अच्छा... ठीक है, मेरी तरफ़ से दूँगी ट्रीट... पर पहले जॉब तो मिल जाए। चल, जल्दी तैयार हो जा, मैं बाहर कुछ काम निपटा लेती हूँ।"
यह बोलकर गति दुपट्टा लेकर कमरे से बाहर चली गई, तो परी भी बाथरूम की तरफ़ बढ़ गई।
क्रमशः...
लंच टाइम
दोपहर का वक्त था। गति अपने इंटरव्यू से थक-हार कर, परी के फ़ोन करने पर, उसके बताए मॉल के एक रेस्टोरेंट में काफी देर से उसका इंतज़ार कर रही थी।
गति अपनी घड़ी देखते हुए बोली, "ओफ़्फ़ो..!! ये लड़की भी ना, मुझे यहाँ बुलाकर पता नहीं कहाँ रह गई।"
तभी किसी ने उसकी आँखों पर पीछे से हाथ रखा। पहले तो वह थोड़ी घबरा गई, पर फिर उसका हाथ छूते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई।
"परी! अब ये बच्चों वाली हरकतें बंद कर।" गति, परी का हाथ पकड़ अपने पास बिठाती हुई बोली, "और ये बता, क्या खबर है? रिजल्ट कैसा रहा?"
परी बैठते हुए मुँह को बच्चों सा गोल करती हुई बोली, "दीईई! अब क्या बताऊँ? मैं तो पूरी कोशिश की थी, पर...."
"पर..... पर क्या? देख, जल्दी बता। तेरे कम नंबर आए हैं क्या?"
परी ने ना में सर हिला दिया।
गति परेशान होते हुए बोली, "तो तू फ़ेल हो गई?"
परी ने फिर ना में सर हिला दिया। गति समझ नहीं पा रही थी कि तभी अचानक परी उसे गले लगाती हुई उछलती हुई बोली,
"ओ.. मेरी प्यारी बहना! आपने इतनी अच्छी तैयारी कराई थी। फ़ेल कैसे हो सकती हूँ? मैंने पूरे क्लास में टॉप किया है। यएएएएएए........."
वह बच्चों सी उछल रही थी। इस पर गति मुस्कुरा कर रेस्टोरेंट में आस-पास देखती हुई, उसका हाथ पकड़ अपने पास बिठाते हुए बोली,
"अरे क्या कर रही है, पागल! सब देख रहे हैं।" उसके गाल खींचती हुई बोली, "मैं तेरे लिए बहुत खुश हूँ। चल, अच्छा है कम से कम मेरी पढ़ाई तेरे काम आई। मेरे तो कोई काम ही नहीं आ रही..."
गति का उतरा हुआ चेहरा देख, परी उसका हाथ पकड़ते हुए बोली, "ओहह दी! क्या हुआ आपके इंटरव्यू का?"
गति ने ना में सर हिलाते हुए कहा, "पूछ मत! क्या हुआ? पहले तो लगा उन लोगों ने मुझे सिलेक्ट कर लिया है, पर फिर पता चला कंपनी के बॉस ने अपनी किसी दूर की साली को जॉब दे दी......"
यह सुनकर परी मुस्कुराने लगी और बोली,
"कोई बात नहीं दी! गई जाने दीजिए। बेचारे जीजा जी का मन लग रहा होगा ऑफ़िस में....... (यह बोल उसने एक आँख ब्लिंक कर दी, जिसे देख गति के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। उसने गति का हाथ पकड़ते हुए कहा,) देखना दीईई! बहुत जल्दी आपको बहुत अच्छी जॉब मिलेगी। अब आप यह छोड़िए, मुझे भूख लग रही है। कुछ ऑर्डर करते हैं।"
गति खड़े होते हुए बोली, "अच्छा ठीक है। तू ऑर्डर कर, मैं रेस्टरूम से आती हूँ।"
गति वहाँ से वाशरूम की तरफ़ चली गई।
रेस्टोरेंट में लेडीज़ और जेंट्स का बाथरूम एक-दूसरे के अपोजिट था। गति वहाँ आई तो उसने देखा मेन्स रूम के बाहर दो सिक्योरिटी गार्ड के साथ एक आदमी खड़ा था।
यह देख पहले तो वह थोड़ी हैरान हुई, फिर मुँह दबाकर हँसते हुए खुद से बोली,
"हे भगवान...! लगता है कोई बहुत बड़े महानुभाव हैं जिनकी सिक्योरिटी बाथरूम के बाहर भी की जा रही है।😂😂😆"
वह मुस्कुराई और लेडीज़ वाशरूम के अंदर चली गई। कुछ देर बाद जब वह बाहर आई तो वहाँ कोई नहीं था। वह रेस्टोरेंट की तरफ़ जाने लगी, इतने में उसके फ़ोन पर मामी जी का कॉल आने लगा। उसने जल्दी से कॉल लिया और बात करती हुई आगे जाने लगी।
"जी,, मामी जी! हाँ, परी मेरे ही साथ है। हम कुछ देर में घर आ रहे हैं। हाँ, वो....अअअअ....."
गति फ़ोन में खोई हुई चली जा रही थी कि तभी सामने से आते किसी शख्स का मज़बूत धक्का उसे लगा, जिससे वह पूरी तरह हिल गई। उसका फ़ोन हवा में उछल गया और वह भी गिरने लगी; कि तभी उस शख्स के मज़बूत हाथ ने झट से गति के कमर में हाथ डाल उसे संभाला, और दूसरे हाथ से उसका फ़ोन, जो हवा में नीचे गिर रहा था, उसे भी दूसरे हाथ से पकड़ लिया।
गति तो गिरने के डर से इतनी घबरा गई थी कि उसने अपनी आँखें जोर से मूँद लीं। हाथ हवा में फैल गए। उसके खुले घने बाल पूरे चेहरे पर बिखर कर उसके चेहरे को छुपा लेते हैं। घबराहट के मारे दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
तो वहीं उसे थामे हुए उस लड़के की धड़कनें भी अचानक उसको छूते ही बहुत तेज होने लगीं। उसकी आँखों में बेचैनी छा गई, जो उस लड़की के चेहरे को देखने को बेताब थी, जिसे छूते ही उसे अचानक इतने खूबसूरत और आकर्षक एहसास होने लगे थे। तभी एक हवा के झोंके ने गति के चेहरे से कुछ बालों को उड़ाकर उस लड़के की हसरत को पूरा करने में लग गया। बालों के हटते ही उस लड़की के चेहरे का कुछ हिस्सा साफ़ दिखने लगा।
सबसे पहले उस लड़के की नज़रों ने गति की बंद पलकों पर गईं, जिसकी बंद पलकें इतनी आकर्षक हैं कि वह खुलकर तो कत्ल ही करती होंगी। फिर नज़रें जरा फिसलकर उसकी छोटी सी नाक पर आ गईं और ऐसा करते हुए उसकी नज़रें सीधे आकर उसके खूबसूरत से होंठों और उसके पास दिख रहे उस काले तिल पर ठहर गए, जो उसकी खूबसूरती में नज़र का टिका था, जिससे उसकी खूबसूरती और बढ़ जाती है।
गति के चेहरे को देखते ही अचानक उस लड़के के हाथ से गति का फ़ोन फिसलकर नीचे गिर गया। उस लड़के की आँखें बड़ी हो गईं, जो एकटक गति को बेताबी और शिद्दत के साथ, हैरानी से भी देखे जा रही थीं, जिसमें सिर्फ़ गति की ही तस्वीर दिख रही थी।
उस लड़के के सिक्योरिटी में आस-पास खड़े बॉडीगार्ड और उसके साथ आया लड़का, जो यह नज़ारा देख पा रहे थे, सभी हैरान थे उन्हें ऐसे देखकर।
गति खुद को हवा में झूलता हुआ महसूस कर, घबराकर जैसे ही आँखें खोलती है, सामने एक हैंडसम से लड़के का चेहरा था, जिसकी गहरी भूरी आँखें बस उसे ही देख रही थीं। उस लड़के की आँखों में एक अलग ही चमक और भाव दिख रहे थे।
गति को जाने अचानक क्या हुआ, पर वह भी एकटक उस लड़के की आँखों में देखने लगी। उसके शरीर में जैसे एक करंट सा दौड़ रहा हो, उसकी धड़कनें बेकाबू सी चलने लगीं। वह पलकें झपकना चाहती थी, पर जैसे वह झपक नहीं पा रही थी। बस एकटक उस लड़के को देखे जा रही थी। साँसें तेज और बेकाबू सी चल रही थीं।
लड़का तो अवाक सा बस गति की हल्की नीली आँखों में अपनी छवि निहारे जा रहा था। हर पल उसके चेहरे पर रौनक तेज होने लगी, पर तभी उसे लगा जैसे गति उसके हाथ से फिसल रही है, जिसके ख्याल से ही वह बेचैन होकर अचानक गति को संभालते हुए अपने तरफ़ खींच कर लगभग उसे अपने गले से लगा लेता है। उसके ऐसा करते ही गति के मुँह से हल्की सी सिसकी निकल गई, जिसे सुनते ही लड़के का दूसरा हाथ भी गति को संभालने आ गया।
लड़के की धड़कनें गति को करीब करते ही और तेज़ी से धड़कने लगीं। दोनों एक-दूसरे की धड़कनें महसूस कर पा रहे थे। अपने कुछ इंच दूर चेहरे पर एक-दूसरे की गरम साँसें महसूस कर पा रहे थे। कुछ पल को सब ठहर सा गया था। दोनों बस कहीं खोए से एक-दूसरे को देखे जा रहे थे। मानों बरसों बाद एक-दूसरे को देख रहे हों। दोनों अलग ही दुनिया का अनुभव करने लगे थे।
गति की आँखों से अनायास ही दो बूँद आँसू बह कर उस लड़के के हाथों पर गिर गए, जिसे महसूस कर लड़के की आँखें बंद हो गईं। तो लड़के की आँखों में भी नमी उभरने लगी थी। वह कुछ कहना चाहता था, पर जैसे आवाज़ गले से बाहर ही नहीं आ पा रही हो।
इधर, जब परी की नज़र शीशे के पार गति और उस लड़के पर गई तो वह थोड़ी हैरान होकर खड़ी हो गई और अपनी बहन के पास उसे आवाज़ देते हुए पहुँची।
"दी.... दी! क्या हुआ? आप ठीक तो हैं?" परी गति का हाथ पकड़ते हुए बोली।
परी की आवाज़ सुनते ही गति जैसे किसी दूसरी दुनिया से वर्तमान में आ गई हो, उसकी पलकें एक पल में झपक गईं और उसका ध्यान टूट गया।
गति परी की तरफ़ एक नज़र देख और फिर सामने किसी अनजान को खुद के इतना करीब पाकर हड़बड़ाते हुए उसकी बाहों से छूटने को मचलने लगी। उसके कंधे पर हाथ रख उसे खुद से दूर करने लगी।
पर लड़का तो जैसे उसे छोड़ने को तैयार ही नहीं था और उसके हाथों का घेरा इतना मज़बूत था कि गति के नाज़ुक हाथ उसे तोड़ ही नहीं पा रहे थे। हालाँकि उसकी पकड़ से गति को कोई तकलीफ़ तो नहीं हो रही थी, पर अपनी बहन को पास आते देख वह थोड़ी घबरा रही थी।
तभी उस लड़के की आँखें अपने कंधे पर रखे गति के एक हाथ पर गईं, जिस पर उसने जो देखा उसे देख उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा।
"छोड़ो... मुझे प्लीज़... छोड़ो....."
गति की मधुर आवाज़ पहली बार उसके कानों पर पड़ी, जिसमें खोकर उसने एक पल को अपनी आँखें बंद कर लीं और उसकी पकड़ भी ढीली हो गई, जिसका फ़ायदा उठाकर गति ने झट से उस लड़के को धक्का देकर खुद से अलग कर दिया और तेज़ी से परी की तरफ़ बढ़ गई।
"हाँ,, हाँ! मैं ठीक हूँ। वो मैं किसी से टकरा गई थी। मेरा फ़ोन..." वह जमीन पर आस-पास देखती है। उनके टकराते ही गति का फ़ोन कब उसके हाथ से छूट गया पता ही नहीं चला उसे...वह फ़ोन उठा थोड़ी परेशान होकर बोली, "ओ नो.... इसका स्क्रीन तो टूट गया। हे भगवान! अब मैं क्या करूँगी।"
परी गति का हाथ पकड़ उसे रेस्टोरेंट की तरफ़ ले जाती हुई बोली, "It's ok Di! हम ठीक करवा लेंगे। आप ठीक हैं ना? आपको चोट तो नहीं आई...वो लड़का कौन था? उसने कुछ किया क्या आपको...?"
परी के पूछते ही गति को उसका स्पर्श याद आ गया, कैसे अपने चेहरे पर उसकी गरम साँसें, वो महसूस कर रही थी। इतने अजीब पर खूबसूरत एहसास हो रहे थे उसे।
"दी.... बोलिए ना..... अगर उसने कुछ किया है तो मैं अभी बताती हूँ उसको।"
यह कह परी पीछे देखती है। वो लड़का अब भी वहीं मूर्ति सा खड़ा बस गति को ही देखे जा रहा था। उसके पास बंदूक लिए बॉडीगार्ड को देख परी थोड़ी घबरा गई।
"दीईई! वो तो आपको ही देख रहा है। देखो उसके आस-पास खड़े आदमियों के पास बंदूक भी है...दीईई... कहीं ये कोई गैंगस्टर तो नहीं है ना?"
परी की बात सुनते ही गति थोड़ी घबरा गई। एक नज़र पीछे सर घुमा उसे देखती है। वो लड़का अभी भी बिना पलक झपकते उसे ही देख रहा था। उसकी बाज़ जैसी घूरती आँखों को देख गति डरते हुए परी का हाथ पकड़ बोली,
"तु..... तू चल यहाँ से।"
परी - "पर दी.... ऑर्डर?"
"अरे, पैक करवा लेते हैं। तू चल ना...?"
गति परी के साथ वहाँ से निकल गई। वो लड़का अब भी उसको जाते हुए शिद्दत से देख रहा था।
क्रमशः
गति परी के साथ वहाँ से निकल गई। वह लड़का अब भी उसे जाते हुए शिद्दत और जुनून से देख रहा था। उसके पास खड़ा लड़का, जो उससे कुछ साल ही बड़ा लग रहा था, उसे देखते हुए हैरान था।
"क्या हुआ, बॉस? क्या आप ठीक हैं?"
"नहीं, मैं ठीक नहीं हूँ!! अब तो सुकून इन्हें पाकर ही आएगा। मुझे वह लड़की चाहिए, जल्द से जल्द।"
यह कहकर वह लड़का एक गहरी नज़र से उस सवाल करने वाले लड़के को देखता है, जिस पर वह सिर झुकाकर हाँ कह देता है।
वह लड़का एटिट्यूड में आगे बढ़ा ही था कि उसकी नज़र पास लगे एक CCTV कैमरे पर गई, जिसे देख वह सख्ती से बोला,
"इस जगह की, अभी की सारी फ़ुटेज मुझे चाहिए। जो सिर्फ़ मेरे लिए होंगी; कोई और ना देखें उसे...."
"हाँ, बॉस!!" पास खड़े लड़के ने कहा।
वह लड़का एक गहरी साँस लेकर, चेहरे पर ना दिखने वाली मुस्कान लिए, वहाँ से चला गया।
रात का समय _____ गति और परी का कमरा
पूरा कमरा बिल्कुल गॉर्जियस टाइप का था। कमरे में दो अलग-अलग बिस्तर थे, जो एक-दूसरे से थोड़े ही दूर थे। अटैच्ड बाथरूम के साथ प्यारी सी सजावट थी कमरे की...... जो दोनों के चंचल, बेबाक (परी) और शांत, गंभीर (गति) स्वभाव को दर्शा रही थी।
परी कमरे में अपने एक तरफ़ के बिस्तर पर बैठी, अपने पैरों में नाइट क्रीम लगा रही थी। इतने में गति बाथरूम से निकल कर अपने साइड के बिस्तर पर बैठ गई। वह थोड़ी थक चुकी थी घर और बाहर के काम से।
परी ने उसे एक नज़र देखकर कहा, "दीदी, क्या हुआ? आपकी तबियत ठीक है ना?"
"हाँ, मैं ठीक हूँ।" गति बिस्तर पर चादर ठीक करती हुई बोली, पर उसके चेहरे पर गंभीरता देख परी ने फिर पूछा,
"क्या हुआ दीदी? आप परेशान लग रही हैं। सब ठीक है ना?"
गति परेशान सी एक गहरी साँस लेकर बोली,
"क्या कहूँ यार! इतनी कोशिश कर रही हूँ पर इतने दिन से एक जॉब नहीं ढूँढ पाई। मामी जी सही कहती हैं, मैं किसी काम की नहीं हूँ।"
"कृपया दीदी, ऐसा मत बोलिए। आप बहुत अच्छी हैं और देखना, जल्दी ही आपको एक बहुत अच्छी जॉब मिल जाएगी। चिंता मत कीजिए..... चलिए अब आराम से सो जाइए।"
गति ने बस छोटा सा मुँह बनाकर हम्म कहा और अपनी रजाई पैरों के पास डालने लगी; कि तभी परी ने शरारत से मुस्कुराते और इठलाते हुए कहा,
"वैसे दीदी.... आप कहें तो मैं आपको टेडी की तरह पकड़कर सो जाऊँ क्या? बहुत मज़ा आएगा।😂😂"
"किसे.....? तुझे या मुझे?"
परी ने शरारत में मुँह गोल करते हुए कहा,
"वैसे से तो दोनों को मज़ा आएगा, पर मुझे ज़्यादा आएगा।🙈🤭"
परी की शरारत भरी बात पर गति एक पल को शर्माते हुए मुस्कुरा देती है, फिर उसे प्यार से डाँटती हुई बोली,
"चुप कर बदमाश! कुछ भी कहती है। सो जा चुपचाप, पागल लड़की...."
दोनों मुस्कुरा कर बिस्तर पर लेट गईं। परी तो बिल्कुल बच्चों की तरह तकिए को पकड़कर सो रही थी। पर गति की आँखों में नींद नहीं थी। जैसे ही उसने खुद को शांत कर आँखें बंद कीं, वैसे ही उसे मॉल में हुई अपनी और उस अनजान लड़के की मुलाक़ात याद आ गई। जिसके ख्याल से ही उसकी धड़कनें एक बार फिर तेज़ हो गईं। वह उसकी आँखें और उसका स्पर्श भूल ही नहीं पा रही थी। वह अजीब पर खूबसूरत सा एहसास, जो उसे पहली बार किसी से मिलकर हुआ था।
"कौन था वो...? क्यों ऐसा लग रहा था जैसे मैं उसे जानती हूँ। पर मैं तो उसे नहीं जानती, उसकी वो आँखें, वो.... स्पर्श, वो.... इतनी अपनी सी क्यों लग रही थी? कौन था वो...?"
गति यह सब खुद से कहती हुई कहीं खोई जा रही थी। अपने इन्हीं विचारों में खोई हुई वह अपनी बांह पर उंगलियाँ फेरती हुई, गहरी साँस लेकर आँखें बंद कर जैसे किसी मीठे सपने में खो गई।
आधी रात____ राणावत विला
रात के करीब एक बज रहे थे। सुनसान सड़क पर पसरे अंधेरों को चीरती हुई तीन गाड़ियाँ शिमला के सबसे महँगे और पॉश इलाक़े में खड़ी एक शानदार महलनुमा विला के सामने रुकीं। उन्हें देखते ही चौकीदार ने विला के मेन गेट को जल्दी से खोला और सारी गाड़ियाँ विला के अंदर जाकर एक साथ रुक गईं।
देखते ही देखते आगे-पीछे की दोनों गाड़ियों से सारे बॉडीगार्ड निकल गए और फिर बीच की गाड़ी से हृदय सिंह राणावत बड़े एटिट्यूड में गाड़ी से निकल विला के अंदर चला गया। उसके साथ उसका पर्सनल असिस्टेंट डेविड भी उसके पीछे अंदर चला गया।
विला में बड़े से हॉल में हल्की रोशनी बिखरी थी। वह बिना किसी रिएक्शन के कुर्ते के स्लीव्स को फोल्ड करते हुए, जूतों की टक-टक-टक करता आगे सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ने लगा; कि तभी अचानक विला की सारी लाइट एक साथ जल गईं,,,, और किसी ने उसे आवाज़ देते हुए कहा,
"हृदय बेटा, बहुत देर हो गई तुम्हें आने में....? मैं कितनी देर से तुम्हारी राह देख रही हूँ..."
यह सुनते ही हृदय के पैर रुक गए, पर वह बिना मुड़े या उन्हें देखे ही थोड़ा मुँह सिकोड़ते हुए रूखे शब्दों में बोला,
"पर मुझे लगता है मैं कुछ ज़्यादा ही जल्दी आ गया। थोड़ी और देर से आता तो शायद आपके टोकने से बच जाता।"
नीचे हॉल के एक तरफ़ खड़ी एक अधेड़ उम्र की औरत, जिसने सिम्पल सी नाइटी पहनी थी, उसे देखती हुई सीढ़ियों की तरफ़ आती हुई बोली,
"बेटा, मैं तो बस तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी। सोचा तुमने खाना खाया होगा या नहीं और....."
इससे पहले उस औरत की बात पूरी होती, हृदय ने बीच में ही चिढ़ते हुए बोल पड़ा,
"देखिए.... यह जो रिश्ता हमारे बीच है वह सिर्फ़ नाम का है। तो इसे वैसे ही रहने दीजिए। मेरी माँ बनने की कोशिश आप ना ही करें तो अच्छा होगा आपके लिए....."
यह सुनते ही मानो उस औरत का चेहरा उतर गया। उसे बहुत बुरा लगा; दोनों हाथ आपस में कस गए।
इससे पहले वह कुछ कहती, हृदय बड़ी रफ़्तार से सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ अपने कमरे की तरफ़ चला गया। वह औरत एक नज़र नीचे खड़े डेविड को देखती है, पर डेविड भी नज़र झुकाकर एक तरफ़ चला गया।
उसके जाते ही उसने बड़ी लाचारी से एक नज़र ऊपर कमरे की तरफ़ देख, मायूस सा चेहरा लिए अपने कमरे की तरफ़ चली गई।
हृदय कमरे में आकर दरवाज़े को धड़ से बंद कर देता है। उसकी आँखें गुस्से से लाल हो गई थीं, सर की नसें तन सी गई थीं। उसने गुस्से में दरवाज़े पर ज़ोर से पैर मार दिया और तेज़ी से अपने कमरे की बालकनी की तरफ़ आ गया, जो एक खाई की तरफ़ खुलती है। जहाँ दूर-दूर तक सिर्फ़ अंधेरा और शांति पसरी हुई थी, पर उसके गुस्से की एक ज़ोरदार चीख ने पूरे फ़िज़ा को एक खौफ़ से भर दिया।
"अअअअअअ....... अअअअअअअ....."
हृदय को अपने ही बर्ताव पर, अपने अभी किए बिहेवियर पर ही बहुत गुस्सा आ रहा था। चाहे जो हो, रिश्ते में ही सही, पर है तो वह उसकी माँ ही,,, उनसे ऐसे बात करना उसे भी पसंद नहीं, पर जो गुस्सा उसके अंदर बरसों से पल रहा है वह उसे मजबूर कर ही देता है ऐसे बर्ताव करने पर.....
उसने एक गहरी साँस ली, फिर अपने जेब से सिगरेट निकाल उसे जलाकर धुएँ को पहाड़ों से आती ठंडी हवा में उड़ाने लगा। एक-दो कश लेकर खुद को शांत करने की कोशिश में अपनी आँखें बंद कर लेता है। ठंडी हवाएँ उसके खुले सीने से टकराने लगीं। आँखें बंद करते ही उसे मॉल में हुई गति से अपनी पहली मुलाक़ात याद आने लगी।
जी हाँ, वह लड़का जो गति से टकराया था वह कोई और नहीं, हृदय सिंह राणावत ही था। गति को याद करते ही उसके चेहरे पर सुकून फैल गया। उंगलियों में सिगरेट दबाए, हाथ फैलाए खड़ा वह ठंडी हवा को महसूस करते हुए बोला,
"दफ़न हुए थे जिसकी खातिर,
बरसों जिसका इंतज़ार किया,
जिसे ढूँढा हमने हर गली फ़कीरों की तरह,
क्या पता था वो सिक्का मेरी झोली में यूँ आकर गिरेगा,
मेरा बिछड़ा महबूब मुझे मेरे ही शहर में ही मिलेगा।"
"तुम सिर्फ़ मेरी हो और हमेशा मेरी ही रहोगी भूमि....." उसकी आवाज़ में जुनून, शिद्दत और मोहब्बत जैसे इबादत सी घुली थी। क्योंकि बड़े मुद्दत के बाद उसे उसके महबूब की खबर मिली थी।
वह कमरे में आकर अपने कुर्ते को निकाल सोफ़े पर फेंक देता है और खुद को जैसे बिस्तर पर ढीला छोड़ देता है।
अपनी मज़बूत बाहों में एक तकिए को जकड़े हुए आँखें बंद कर लेता है। देखते ही देखते जैसे वह तकिया गति में बदल गया हो.... हृदय अपनी आँखें खोल, पास लेटी हुई गति को शिद्दत से देखने लगा और फिर उसे अपने करीब खींचकर अपने सीने से लगाकर बोला,
"अब तक यह ज़िन्दगी बेमानी सी लग रही थी। पर आज जब से तुम्हें देखा है, तुम्हें छुआ है, ज़िन्दगी के मायने बदल गए हैं। जिसने का मक़सद मिल गया, जिसके लिए इस धरती पर आया हूँ, वह बिछड़ा महबूब मिल गया। आज के बाद मैं तुम्हें कभी खुद से अलग होने नहीं दूँगा। तुम सिर्फ़ मेरी हो... सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी......!!!!"
"अच्छा, पहले मुझ तक पहुँचो तो सही...." यह कहते ही गति दुबारा तकिया बन गई और हृदय की आँखें खुल गईं। वह तकिए को देख, भौंहें चढ़ाकर बोला,
"तुम तक तो अब मैं पहुँच ही जाऊँगा, और बहुत जल्द तुम्हें हर तरह से अपना बनाऊँगा। बहुत इंतज़ार करवाया है तुमने, अब और इंतज़ार नहीं कर पाऊँगा।"
यह कहते हुए हृदय के चेहरे पर कातिल एक्सप्रेशन आ गए। वह फिर से तकिए को जकड़कर सो गया।
क्रमशः.........
सुबह करीब नौ बज रहे थे। गति डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगा रही थी। इतने में परी, अभी-अभी उठकर नाइट ड्रेस में, उसके पास आकर गति को पीछे से गले लगाया और गाल पर किस करते हुए, "गुड मॉर्निंग," कहा। गति ने भी मुस्कुराते हुए उसके गाल को छुआ और "गुड मॉर्निंग," कहा। परी उसे वैसे ही गले लगाए हुए, बच्चों सी बोली,
"दीईई.... आप इतनी सुबह-सुबह कैसे उठकर ये सारा काम कर लेती हैं? वो भी शिमला के ठंडे मौसम में... मुझे तो बहुत ठंड लग रही है। (उसे जोर से गले लगाते हुए) मैं तो आपको नहीं छोड़ने वाली हूँ, उऊऊऊऊ...."
"परी! कभी-कभी तू बच्चों से भी छोटी हो जाती है। चल हट, मुझे नाश्ता लगाने दे। (अपना शॉल निकालकर देते हुए) ये ले, इसे पहन ले, ठंड नहीं लगेगी।"
इतने में मामा जी भी कमरे से निकलकर आ गए। गति ने उन्हें नाश्ता देते हुए कमरे की तरफ़ देखते हुए कहा,
"मामा जी, मामी जी कहाँ हैं? वो नाश्ता नहीं करेंगी?"
"पता नहीं बेटा, अभी तक सो रही है। शायद उसकी तबीयत ठीक नहीं, तुम दोनों नाश्ता करो, वो बाद में कर लेंगी।"
मामा जी नाश्ता करके ऑफ़िस के लिए चले गए। परी नाश्ता करते हुए बोली,
"दी, आप भी नाश्ता कर लो। आपका इंटरव्यू होगा ना? मुझे भी थोड़ी देर के लिए कॉलेज जाना है।"
"नहीं, आज कोई इंटरव्यू नहीं है... वैसे भी जॉब तो मिलती नहीं और मामी जी की तबीयत भी ख़राब है, तो आज मैं घर पर ही रहूँगी। तू नाश्ता कर, मैं मामी जी को चाय देकर आती हूँ।"
मामी का कमरा
गति चाय लेकर मामी के कमरे में पहुँची। देखा तो वो मुलायम रजाई ओढ़े सो रही थीं। गति उनके पास आकर चादर हटाते हुए, धीरे से बोलीं,
"मामी जी, क्या हुआ? आपकी तबीयत तो ठीक है ना? उठिए, आपकी चाय पी लीजिए....."
मामी जी बीमार सा चेहरा बनाकर उठकर बैठीं और बोलीं,
"हाए! अब दिन भर इतना काम करूँगी तो बीमार तो पड़ूँगी ना! तेरा क्या है? तू तो बैग लेकर चली जाती है, दिन भर मस्ती करने..... हाए! मेरा सर इतना फट रहा है।"
गति को उनकी यह जल्दी-कट्टी सुनने की आदत हो गई थी, इसलिए उन्होंने बिना किसी प्रतिक्रिया के उन्हें चाय देते हुए कहा,
"आप फ़िक्र मत कीजिए, मामा जी! मैं आज कहीं नहीं जा रही। आप चाय पी लीजिए, मैं आपका सर दबा देती हूँ।"
गति ने चाय उनके हाथ में पकड़ाकर उनका सर दबाना शुरू कर दिया और मामी (आशा जी) बैठी-बैठी चाय की चुस्की ले रही थीं। इतने में परी अंदर आते हुए बोली,
"दी.... गति दी... आपके लिए फ़ोन है। लीजिए, बात कीजिए...."
"अरे! ऐसा क्या फ़ोन आ गया? देख नहीं रही, वो काम कर रही है।" आशा जी ने तपाक से कहा।
परी: "माँ, ये भी काम का ही फ़ोन है। आपको पता है आर ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ से दी को इंटरव्यू का कॉल आया है।"
आशा जी: "हाँ, तो क्या...."
परी: "माँ, आपको पता भी है वो कितनी बड़ी कंपनी है? शिमला की सबसे बड़ी कंपनी है और वहाँ से दी को सामने से फ़ोन करके इंटरव्यू के लिए बुला रहे हैं। दी, आप बात करो ना....."
परी ने अपनी माँ को समझाकर फ़ोन गति को दे दिया।
गति को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो फ़ोन लेकर उनसे कुछ दूर जाकर बात करने लगी। आशा जी ने परी का हाथ पकड़ अपने पास बिठाते हुए पूछा,
"परी, बात सुन! क्या सच में वो कंपनी बहुत बड़ी है? सैलरी क्या होगी?"
परी: "माँ... वो शिमला की सबसे बड़ी और इंडिया की टॉप टेन में शामिल कंपनी है। वहाँ तो रिसेप्शनिस्ट को भी बीस हज़ार की स्टार्टिंग सैलरी मिलती होगी।"
यह सुनते ही आशा जी की आँखें लालच से बड़ी हो गईं।
"हाएए! मतलब अगर इसे जॉब मिल गई तो हज़ारों रुपए हर महीने आएंगे..."
वो मन ही मन यह सोच ही रही थीं कि गति उनके पास आ गई।
परी: "क्या हुआ दी? क्या कहा उन लोगों ने?"
गति: "कुछ नहीं, वो आज इंटरव्यू के लिए बुला रहे हैं।"
परी: "अरे! तो सोच क्या रही है दी? जाओ, जाकर तैयार हो जाओ। मैं भी आपके साथ चलती हूँ। मुझे कॉलेज जाना है।"
गति सोचते हुए बोलीं,
"परी, पर मामी जी की तबीयत ठीक नहीं, तो मैं कैसे जाऊँ...."
"अरे! मुझे क्या हुआ है? मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ। और हाँ, तू ज़रूर जाएगी इंटरव्यू देना और भगवान के लिए नौकरी लेकर ही आना, क्योंकि तेरे मामा जी के पास कोई ख़ज़ाना नहीं है जो इतनी महँगाई में दो-दो लड़कियों को पाल सकें। समझी ना.... ऊपर से तुम दोनों के दहेज़ की चिंता अलग है हम पर.... तेरे माँ-बाप तो चले गए और तुझे हमारे भरोसे छोड़ गए।"
"माँ.... आप भी ना..." परी गति का उतरा चेहरा देख अपनी माँ को टोकते हुए बोली, जिस पर आशा जी ने थोड़ा मुँह बनाकर कहा,
"अरे.... अरे गति बेटा, बुरा मत मान! मुँह से निकल जाता है मेरे। तू जा, हाँ! अच्छे से इंटरव्यू दे और नौकरी लेकर आ हाँ....."
गति कुछ नहीं कहती, बस वहाँ से चली गई।
कुछ देर बाद
कुछ देर में परी और गति दोनों ही आर ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्री के ऑफ़िस के बाहर पहुँच गईं। एक शानदार, लम्बी सी बिल्डिंग, जो बाहर से जितनी खूबसूरत लग रही थी, अंदर से तो और भी ज़्यादा शानदार थी। गति उस बिल्डिंग को देख थोड़ी घबराई हुई थी।
परी: "क्या हुआ दी? जाइए ना....."
गति: "परी, मुझे बहुत घबराहट हो रही है। यहाँ तो लोग विदेश से पढ़कर आते हैं काम करने और मैं तो..."
परी: "दी, अगर उन लोगों ने आपको खुद बुलाया है तो कुछ सोच-समझकर ही बुलाया होगा ना? आप बस अपना बेस्ट देना। Okay? अब जाइए।"
गति ने एक नज़र परी को देखा, फिर उस बिल्डिंग के दरवाज़े को, जिसके सामने दो गेटकीपर खड़े थे। वो गहरी साँस लेकर परी को बाय बोलकर और उससे ऑल द बेस्ट सुनकर अंदर चली गई।
आर ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्री
इधर, हृदय सिंह राणावत थ्री-पीस सूट में अपनी कुर्सी पर बैठे हुए एक फ़ाइल पढ़ रहा था। डेविड, उसका पर्सनल असिस्टेंट कम बॉडीगार्ड, उसके सामने हाथ बाँधे खड़ा था। इतने में डेविड को एक फ़ोन आया, जिसे सुनकर वो हृदय को देखते हुए बोला,
"बॉस, जिनका आपको इंतज़ार था वो आ गई हैं।"
हृदय झट से फ़ाइल से सर उठाकर डेविड की तरफ़ देखने लगा। गति का नाम सुनते ही उसकी धड़कनें बेकाबू होकर शोर करने लगीं, आँखें उसे देखने को मचलने लगीं। उसने ना दिखने वाली हल्की मुस्कान से डेविड से कहा,
"Show me all camera footage."
हृदय के कहते ही डेविड सामने दीवार पर लगे लगभग पचास इंच के टीवी पर इंटरव्यू रूम का कैमरा फ़ुटेज दिखाने लगा। हृदय ने कानों में हेडफ़ोन लगा लिया, तो डेविड भी वहीं कुछ दूर हाथ बाँधे खड़ा हो गया।
गति इंटरव्यू रूम में बैठी थोड़ी नर्वस हो रही थी। वो बार-बार अपनी उंगलियों को अपने थोड़े लम्बे बालों में फँसाकर लपेट रही थी। तभी वहाँ कंपनी के मैनेजर पहुँचे। गति उन्हें देख झट से खड़ी हो गई। उन्होंने उसे बैठने का इशारा किया और वो भी सामने की कुर्सी पर बैठ गए। गति ने अपना CV फ़ाइल उन्हें दिया, जिसे मैनेजर साहब ने एक नज़र देखकर इंटरव्यू लेना शुरू कर दिया।
और कुछ ही सवालों के बाद एक फ़ाइल से एक लिफ़ाफ़ा निकालते हुए, उस फ़ाइल को गति की तरफ़ बढ़ाते हुए बोले,
"ये हमारी कंपनी के साथ आपका एक साल का कॉन्ट्रैक्ट है। आप इस पर साइन कर दीजिए और फिर हम आपको आपका जॉइनिंग लेटर दे देंगे।"
गति ने फ़ाइल खोलकर पन्ने पलटे और उसे पढ़ने लगी।
यह देख केबिन में बैठा हृदय अपनी भौंहें सिकोड़ लेता है। उसे लगा अगर गति ने सारी शर्तों को पढ़ा और नहीं मानी तो वो क्या करेगा। वो अपना अगला प्लान सोचने लगा। गति फ़ाइल पढ़ते हुए हैरान हो गई और सामने बैठे मैनेजर को घूरने लगी......
"सर, ये क्या? ये सैलरी तो....."
"क्या हुआ? कम है क्या?"
"नहीं सर, मुझे तो ये ज़्यादा लग रही है। मैं तो फ़्रेशर हूँ और मुझे कोई एक्सपीरियंस भी नहीं, फिर भी आप मुझे पचास हज़ार की सैलरी ऑफ़र कर रहे हैं?"
गति ने आश्चर्य और संदेह भरे शब्दों में कहा, जिस पर मैनेजर के साथ केबिन में बैठा हृदय और डेविड भी हैरान हो गए। हृदय मुस्कुराते हुए धीरे से बोला,
"हूऊऊ..... अजीब लड़की है! लोग कम सैलरी होने पर शिकायत करते हैं और ये ज़्यादा होने पर कम्प्लेन कर रही है।"
ऑफिस में...
इधर, मैनेजर ने गति के सवाल पर समझाते हुए कहा, "देखिए मिस, यह सैलरी आपको इसलिए दी जा रही है क्योंकि आपको काम भी बहुत ज़िम्मेदारी का है। आपको इस कंपनी के सीईओ और हमारे बॉस की पर्सनल असिस्टेंट के तौर पर नियुक्त किया गया है। और आप अनुभव की फिक्र मत कीजिए। हमारी कंपनी हर कर्मचारी को प्रशिक्षण देती है, चाहे वह अनुभवी हो या ना हो, क्योंकि इस कंपनी के काम करने का तरीका अलग है। तो आप इस अनुबंध पर हस्ताक्षर कर अपना नियुक्ति पत्र ले लीजिए।"
मैनेजर की बातें सुनती हुई गति उस फ़ाइल में लिखी शर्तों को पढ़ ही रही थी कि तभी उसका फ़ोन बजने लगा। देखा तो मामी जी का फ़ोन आ रहा था। उसने मैनेजर की ओर देखा, तो उसने फ़ोन उठाने का इशारा किया। गति ने फ़ोन उठाकर बहुत धीरे से "हैलो" कहा, पर मामी जी तो बंदूक की गोली की तरह शुरू हो गईं।
"हैलो... वो लड़की, तू ऑफ़िस पहुँच गई ना? और तुझे जॉब मिली कि नहीं?
गति कुछ कहने को करती ही है, लेकिन मामी जी तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं।
"देख, आज अगर तुझे जॉब नहीं मिली ना, तो कल से मैं तेरे लिए लड़के देखना शुरू कर दूँगी और जो पहला रिश्ता मिला, उसके साथ ही तेरी शादी करवा दफ़ा कर दूँगी। तुझे समझी ना?"
मामी जी की यह बात सुनकर गति घबरा गई। वह जानती थी कि मामी जी ऐसा कर सकती हैं। वह हड़बड़ाते हुए बोली, "नहीं, नहीं मामी जी, मुझे जॉब मिल गई है, बस मुझे एक अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर करने हैं। उसे ही पढ़ रही हूँ।"
"अरे, अब इसमें पढ़ना क्या है? वो लोग कौन सा तेरी जायदाद अपने नाम करा रहे हैं? तो जल्दी से पेपर साइन कर दे। अच्छा, सैलरी क्या दे रहे हैं?"
मैनेजर साहब के कुछ कहने पर गति ने मामी जी को, "घर आकर बात करती हूँ," कहकर फ़ोन रख दिया। फिर पेपर को जल्दी से एक नज़र देखते हुए, एक बार अपनी आँखें बंद कर, अपने माँ-बाप और भगवान को याद कर, पेपर पर हस्ताक्षर कर दिए।
यह देखते ही हृदय के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ गई। अब तक बेचैनी से धड़कते हुए उसके दिल को जैसे थोड़ी राहत मिली हो, वह गति को तल्लीन और शिद्दत से देखने लगा।
मैनेजर साहब ने गति को उसका नियुक्ति पत्र दिया। गति ने लेटर देखा, जिसके साथ एक चेक भी था। मैनेजर साहब ने उसे देखकर कहा, "यह आपकी अग्रिम सैलरी का चेक है। आप सोमवार से ही अपना काम शुरू कर सकती हैं।"
यह कहकर मैनेजर ने गति का हस्ताक्षर किया हुआ फ़ाइल लेकर, "एक्सक्यूज़ मी," कहकर केबिन से निकल गए।
गति तो बस लेटर और चेक को हाथ में लिए मुस्कुरा रही थी और ऊपर देखती हुई बोली, "शुक्रिया भगवान जी! अगर आज यह जॉब नहीं मिलती, तो मामी जी तो मेरी शादी ही करवा देतीं। चलो, अब जॉब है तो कम से कम मैं अपनी ज़िंदगी अच्छे से जीने की उम्मीद कर सकती हूँ।"
गति की एक-एक बात हृदय बड़े साफ़ तरीके से सुन पा रहा था। और उसके मन में कुछ चल रहा था जो उसकी गहरी आँखों के पीछे छुपा हुआ था। गति केबिन से निकल गई। हृदय ने डेविड को देखते हुए कहा, "डेविड, मैंने तुमसे कुछ कहा था, वह हो गया?"
"हाँ बॉस...
डेविड ने एक फ़ाइल उसे देते हुए कहा,
"बॉस, यह मैडम की पूरी जानकारी की फ़ाइल है। इसमें उनके बारे में कुछ ज़रूरी जानकारियाँ, जो हमें मिल सकीं, वह सब इसमें है।"
हृदय ने फ़ाइल को लेकर पन्ने पलटने शुरू कर दिए और डेविड की बात सुनने के बाद उसे जाने का इशारा कर दिया। वह भी सर झुकाकर चला गया। हृदय फ़ाइल पढ़ते हुए, गति की तस्वीरें, जो उस फ़ाइल में लगी हुई थीं, उसे देखते हुए उन पर हाथ फेरने लगा। आँखों में असीम प्रेम लिए, शिद्दत से उसे देखते हुए, वह बोला, "आखिर तुम मुझे मिल ही गईं जान... कितना ढूँढा तुम्हें... पर अब तुम मुझसे दूर नहीं जा सकतीं। चाहो तब भी नहीं, जानते हो?
एक गहरी साँस लेकर चेहरे पर मुस्कान लिए वह बोला,
"अब तुम हमेशा इस हृदय की गति बनकर रहोगी।"
गति का घर...
लगभग शाम हो चुकी थी। घर में मामी जी कब से गति के आने का इंतज़ार कर रही थीं। उनके साथ परी भी इंतज़ार में बैठी फ़ोन चला रही थी। इतने में दरवाज़े की घंटी बजी। इससे पहले कि परी उठती, मामी जी झट से जाकर दरवाज़ा खोल देती हैं और सामने गति को देख खुशी से उसे अंदर लाकर गले लगा लेती हैं। परी और गति को तो इस नज़ारे पर यकीन ही नहीं हो रहा था। यह देख परी धीरे से हँस पड़ी।
"हाय मेरी बच्ची! मैं बहुत खुश हूँ, तुझे आखिरकार जॉब मिल ही गई। अब तो इस घर में दो-दो लोग कमाने वाले हो गए। अच्छा बता, कितने की सैलरी दे रहे हैं वो लोग? और क्या काम करना है? और..."
"अरे माँ, ज़रा साँस ले लो और लेने दो बेचारी दीदी को बैठने तो दो। आप तो आते ही चढ़ गईं उन पर..." परी ने गति को अपनी माँ के चंगुल (हाथों) से छुड़ाकर बिठाया। पानी देती है तो गति ने भी थोड़ी साँस ली। उसने मन ही मन पानी पीते हुए सोचा, "ये मामी जी ने तो हिला ही दिया मुझे। कहीं सैलरी देखकर बेहोश ना हो जाएँ।"
"अरे, अब कुछ बोलेंगी। कितनी प्यासी है, कब से पानी पी रही है।"
गति ने लेटर दिखाते हुए कहा, "मामी जी, मुझे सोमवार से ही जॉइन करना है। मुझे सीईओ की पर्सनल असिस्टेंट की जॉब मिली है और... और यह अग्रिम सैलरी का चेक भी।" गति ने बिना किसी उत्साह के कहा, जिस पर मामी जी ने चमकती आँखों से चेक को झट से उसके हाथों से खींचकर देखने लगी और चेक देखते ही सोफ़े पर धड़ाम से बैठ गईं।
"माँअआआ... क्या हुआ? आप ठीक हैं?" परी ने उन्हें देखकर पूछते हुए चेक लेकर देखा और गति को देख जोर से चिल्लाती हुई गले लगाकर बोली, "दीईईईई... 25 हज़ार की एडवांस सैलरी... तो आपकी मासिक सैलरी क्या है?"
"पचास हज़ार रुपये..." यह सुनकर तो जैसे मामी जी की साँस ही अटक गई।
"प... प... पचास हज़ार! हाय राम! तेरे मामा जी की एड़ियाँ घिस गईं चालीस हज़ार की सैलरी पर आते-आते और तू... तूझे सीधे पचास हज़ार की सैलरी मिल गई। ऐसा क्या जादू किया तूने? हाँ..."
गति मामी जी की बात पर थोड़ी असहज हो कुछ बोलने को हुई ही थी कि परी बोली, "माँ, आप ना हद करती हो। आपको खुश होना चाहिए कि आखिरकार दीदी को जॉब और इतनी अच्छी सैलरी मिल रही है। उसके बजाय आप ऐसा बोल रही हैं।
गति को देख परी बोली,
"चलिए दीदी, आप कमरे में चलिए, आप थक गई होंगी।"
आशा जी खड़ी होती हुई बोली, "अरे, चेक लेकर कहाँ जा रही है? चेक तो देती जा..."
"माँ, यह दीदी की पहली सैलरी है तो इससे दीदी अपने लिए शॉपिंग करेंगी। अब इतनी बड़ी जगह काम करना है तो कपड़े भी तो अच्छे होने चाहिए ना..." परी
आशा जी: "अरे, पागल हो गई है! इतने पैसों की शॉपिंग करेंगी? ले दे, मैं तुम लोगों को थोड़े पैसे देती हूँ, उसमें जितनी चाहो शॉपिंग करना।"
"नहीं माँ, यह पैसे तो दीदी ही रखेंगी। वैसे भी मुझे पता है इसके बाद आने वाले सारे चेक आप ही रखने वाली हो... और डोंट वरी, हम इसका ख्याल रख लेंगी।" परी ने चेक हिलाते हुए कहा और गति को लेकर अंदर चली गई।
गति और परी कमरे की ओर जाते देख आशा जी उन्हें घूरती हुई मन ही मन मुँह बिगाड़ती हुई बोली, "यह मेरी बेटी कम और इस गति की चमची ज़्यादा है। पता नहीं क्या जादू किया है इसने... जब देखो तब इसके पक्ष में ही बोलती है। सारे पैसे लेकर चले गए ऊऊऊ..." आखिर के शब्द उन्होंने बिल्कुल बच्चे की तरह मुँह बनाकर कहे।
क्रमशः...
सुबह लगभग साढ़े पाँच बज रहे थे। शिमला में ठंड का पारा चढ़ने लगा था। धुंध और कोहरा इतना गाढ़ा था कि पास खड़ा इंसान भी दिखाई नहीं देता था।
इसी बीच, दूर सड़क से धुंध और धुएँ को चीरता हुआ एक लड़का जॉगिंग करता हुआ तेज़ी से आ रहा था। उसने हुडी वाला ट्रैक सूट पहना हुआ था, जिससे उसका चेहरा साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था। उसके पीछे एक गाड़ी धीमी रफ़्तार में उसके पीछे-पीछे आ रही थी। वह लड़का कुछ हद तक पसीने में तर हो चुका था, क्योंकि वह काफ़ी देर से जॉगिंग कर रहा था। वह जॉगिंग करते हुए सीधे एक पहाड़ी के किनारे रुका, जिसके नीचे गहरी खाई थी। उसने हाथ फैलाकर ठंडी हवाओं को साँसों में भरते हुए खुद से कहा,
"बस एक आज का ही दिन है जब तुम मुझसे दूर हो। कल के बाद मैं तुम्हें खुद से कभी दूर नहीं जाने दूँगा, बल्कि हर रोज़ तुम्हारे एक कदम करीब आऊँगा। बस आज का दिन कट जाए... अअअअअअअ..."
अपनी बात खत्म करते ही उसने अपनी हुडी का कैप नीचे कर तेज आवाज़ में चिल्लाया। उसकी आवाज़ हवाओं को चीरती हुई पूरे खाई और फ़िज़ा में गुंजने लगी। वह कोई और नहीं, हृदय सिंह राणावत था।
राणावत विला...
दो नौकर जल्दी-जल्दी सुबह का नाश्ता टेबल पर रख रहे थे। विजया जी उन्हें देखकर बोलीं, "अरे, ये क्या? तुम लोगों ने ऑरेंज जूस क्यों रखा? तुम्हें पता नहीं है कि हृदय जॉगिंग से आने के बाद आँवला जूस पीता है? जाओ, लेकर आओ..."
उनकी बात सुनकर नौकर किचन की तरफ़ चले गए। इतने में दरवाज़े पर गाड़ी के रुकने की आवाज़ से विजया जी को पता चल गया कि हृदय आ चुका है। वे हल्की मुस्कान के साथ दरवाज़े की ओर देखने लगीं। हृदय तेज कदमों से अंदर आया और सीधे अपने कमरे में चला गया। कुछ ही देर में वह तैयार होकर नीचे टेबल पर आकर बैठ गया। डेविड भी उसके पास ही खड़ा था।
एक नौकरानी ने उसे नाश्ता परोसा। पास की कुर्सी पर बैठी विजया जी ने उसे देखकर कहा, "हृदय, तुमसे कुछ बात करनी है।"
"हम्म..." हृदय ने बिना किसी प्रतिक्रिया के कहा।
विजया जी ने गहरी साँस लेकर कहा, "हृदय, बेटा, मैं कुछ दिनों के लिए अपनी बहन के यहाँ दुबई जाना चाहती हूँ। वहाँ उसकी शादी है, इसलिए..."
"आपको यहाँ से जाने या आने के लिए मेरी परमिशन की ज़रूरत नहीं है। तो आप यह सब मुझे क्यों बता रही हैं...?"
हृदय ने अपने रूखे अंदाज़ में कहा। विजया जी को थोड़ा बुरा लगा। वे भी सीरियस होकर उसे घूरते हुए थोड़ी सख्ती से बोलीं, "क्योंकि तुम मानो या ना मानो, तुम मेरे बड़े बेटे हो।" हृदय का हाथ जूस पीते हुए रुक गया। टेबल पर रखे उसके हाथ की मुट्ठी कस गई। "घर में क्या हो रहा है, मैं या तुम कहाँ जा रहे हैं, यह सब हमें पता होना चाहिए। और हाँ, कल अनुज भी अपनी पढ़ाई खत्म कर न्यूज़ीलैंड से वापस आ रहा है। तो तुम उसका और अपना ख्याल रखना। मैं कुछ दिनों में लौट आऊँगी..."
यह सुनते ही हृदय ने नर्म चेहरे से उन्हें देखते हुए कहा, "क्या छोटा वापस आ रहा है? यह तो आपने बहुत अच्छी बात कही।"
हृदय झट से नाश्ते की टेबल से उठते हुए डेविड को इशारा करते हुए बोला, "डेविड, गाड़ी रेडी रखो। मैं तैयार होकर आता हूँ। आज की मीटिंग के बाद हमें शॉपिंग के लिए जाना है।"
"बॉस, शॉपिंग...?" डेविड एक कदम आगे आते हुए बोला। हृदय हल्की मुस्कान के साथ बोला, "हाँ, क्योंकि छोटा इतने दिन बाद घर आ रहा है, उसके लिए वेलकम गिफ्ट तो बनता है। बी रेडी..." हृदय तेज कदमों से ऊपर अपने कमरे की तरफ़ चला गया।
उसे देखते हुए विजया जी ने मन ही मन कहा, "चलो, मुझे एक बात की खुशी है। कम से कम तुम अपने छोटे भाई और मेरे बेटे से तो नफ़रत नहीं करते। भगवान तुम दोनों भाइयों का प्यार ऐसे ही बनाए रखे।"
शाम का समय... शॉपिंग मॉल...
गति और परी शिमला के सबसे बड़े मॉल में शॉपिंग करने आई थीं। परी के ज़िद करने पर गति को आना पड़ा था। गति आस-पास की दुकानों को देखते हुए परी से बोली, "ये क्या है परी? हमें शॉपिंग करना था, पर इतने महँगे जगह पर आने की क्या ज़रूरत थी? हम कहीं और से भी तो शॉपिंग कर सकते हैं। चल ना, यहाँ से चलते हैं।"
"ओहो दीदी, आप भी ना! अरे, हमारे पास पैसे हैं ना और डोंट वरी, हम यहाँ की सबसे लो बजट शॉप में जाएँगे। ओके..." परी ने कहा।
"परी, यहाँ का लो बजट भी हमारे बजट से बाहर होगा। पैसे हैं इसका मतलब ये थोड़ी है कि हम एक बार में उड़ा दें।" गति ने कहा।
"ओहो दीदी, ये सब बाद में। अभी उधर चलते हैं।" परी गति को लेकर एक दुकान की तरफ़ चल दी।
इधर, हृदय भी गाड़ी से उतरकर मॉल के अंदर आया। उसे देखकर मॉल का मैनेजर खुद बाहर आ गया, क्योंकि हृदय इस मॉल का एक चौथाई शेयरहोल्डर था। वह मैनेजर से मिलकर आगे एक गिफ्ट शॉप में चला गया।
गति, परी को सरप्राइज़ देने के लिए उसे बिना कुछ बोले एक गिफ्ट शॉप में आ गई थी। हृदय और गति एक ही जगह पर आस-पास थे। गति एक टेडी और सॉफ्ट टॉयज़ के कॉर्नर में परी के लिए कुछ अच्छा सा सॉफ्ट टॉय ढूँढ रही थी, जिसे वह सोते समय पकड़कर सो सके। इतने में गति को लगा जैसे कोई उसका स्कर्ट खींच रहा है।
वह पीछे मुड़कर देखती है। एक छोटा सा पपी (कुत्ते का बच्चा) गति का स्कर्ट मुँह में दबाए उसे घूर रहा था। पर गति की तो मानो साँसें ही रुक गईं, क्योंकि उसे कुत्तों से बहुत डर लगता था। वह जोर से चिल्लाती हुई उस कुत्ते पर हाथ में लिए एक कुत्ते के खिलौने को फेंककर भागने लगी।
वह कुत्ता भी जैसे गुस्से में गुर्राते हुए भौंकता हुआ उसके पीछे भागा... यह देख सभी हैरान थे। गति बस पीछे देखते हुए चिल्लाती हुई भाग रही थी, और वह छोटा सा कुत्ता भी अपनी प्यारी और पतली सी आवाज़ में जोर से भौंकता हुआ उसके पीछे भाग रहा था। सभी लोग इस नज़ारे को देखकर हैरान थे, इतनी बड़ी लड़की एक छोटे से कुत्ते से इतना डर रही है। कुछ लोग हँस भी रहे थे।
कि तभी गति किसी से टकरा गई और उसे बिना देखे ही जोर से पकड़कर उसके सीने से चिपक गई। वह चिल्लाने लगी, "प्लीज़... प्लीज़ मुझे बचा लीजिए। यह कुत्ता मुझे काट लेगा।"
हृदय अचानक किसी के गले लगने से दंग रह गया, तो पास खड़ा डेविड अपना हाथ अपनी जेब पर रख लेता है, जिसमें उसकी गन थी। पर कुछ ही सेकंड में हृदय को एहसास हो गया कि वह कोई और नहीं, गति है। उसने अपना एक हाथ गति की कमर पर रखकर उसे अपने और करीब कर लिया। वह कुत्ता तेज़ी से गति के पास आकर उस पर जोर-जोर से भौंकने लगा। गति पैर पटकती, डर से चिल्लाती हुई हृदय के शर्ट को जोर से पकड़कर उसके और करीब हो गई और बिनती करते हुए बोली, "प्लीज़... प्लीज़... इसे यहाँ से हटाओ जल्दी..."
हृदय उसे अपने इतने करीब देखकर खुशी से मुस्कुरा रहा था। शायद मन ही मन उस कुत्ते के बच्चे को धन्यवाद भी दे रहा था। उसे ऐसे मुस्कुराते देख डेविड थोड़ा हैरान रह गया, क्योंकि उसने कभी हृदय को इतना खुश और किसी लड़की के इतना करीब होते हुए नहीं देखा था।
हृदय ने गति को दोनों हाथों से घेरे हुए डेविड को इशारा किया। डेविड उस भौंक रहे कुत्ते को प्यार से उठाकर उसकी मालकिन को दे देता है। गति की चीख से पूरा दुकान जैसे उसे ही देख रहा हो। यह देख हृदय सबको गुस्से से घूरने लगा।
डेविड ने सबको अपना काम करने का इशारा किया। कुछ देर बाद जब गति को अपनी कमर पर किसी का हाथ महसूस हुआ और अब कुत्ते की भी आवाज़ नहीं आ रही थी, उसने सर उठाकर ऊपर देखा तो वह हैरान हो गई। यह तो वही लड़का है जो उस दिन मिला था। यह सोचकर वह झट से हृदय से दूर हो गई और आस-पास देखने लगी...
"वो कुत्ता कहाँ गया?" गति ने पूछा।
"वो कुत्ता नहीं, उसका बच्चा था, छोटा सा।" हृदय ने कहा।
"आप... आप तो..." गति कुछ और कहती, इतने में परी उसके पास आकर बोली...
"दीदी, दीदी आप कहाँ चली गई थी मुझे छोड़कर? (आस-पास देखती हुई) और यह सब क्या हुआ?" गति परी को देखकर उसके गले लग जाती है।
"परी... वो मैं तेरे लिए गिफ्ट लेने आई थी, पर एक कुत्ता मेरे पीछे पड़ गया। वह तो अच्छा हुआ इन्होंने मेरी मदद की..." यह बोलकर गति पीछे की तरफ़ खड़े हृदय को इशारे से परी को दिखाती है। पर वहाँ कोई नहीं था।
"कौन था दीदी? यहाँ तो कोई नहीं है।" परी ने कहा।
"अरे, वो अभी यहीं था।" गति ने कहा।
"कोई बात नहीं। चलिए, आपने मेरे लिए एक बहुत अच्छी ड्रेस सेलेक्ट की है।" परी ने कहा।
"परी, हम घर चलते हैं। मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा।" गति ने कहा।
"ठीक है दीदी, कपड़े लेकर हम चलते हैं। चलिए..."
दोनों दुकान की तरफ़ बढ़ रही थीं कि रास्ते में गति की नज़र एक ज्वैलरी शोरूम के शीशे में रखी एक सुंदर सी अंगूठी पर पड़ी। वह बड़ी हसरत से उसे देख रही थी।
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कहानी जारी है...
गति एक ज्वैलरी शॉप के बाहर खड़ी थी। वह शोकेस में रखी अंगूठी को हसरत से देख रही थी। परी उसके पास आकर बोली, "क्या हुआ दीदी? चलो ना..." ये कहकर जब परी ने उस अंगूठी को देखा, तो वह भी उसे देखती रह गई। फिर गति का हाथ पकड़कर बोली,
"हाय दीदी! कितना खूबसूरत है ना! आपको पसंद है?"
गति ने कांच पर अपना हाथ फेरा और हसरत भरी निगाह से उसे देखते हुए कुछ सोचकर बोली, "हाँ, पसंद तो बहुत आया, पर क्या मतलब? पराई चीज़ देखकर क्या फायदा? हमारे बजट से कोसों दूर है। अब चलो, हमारे बस का नहीं है ये हीरे की अनूठी अंगूठी खरीदना।" गति ने अपनी मायूसी को हल्की स्माइल में दबाते हुए परी का हाथ पकड़ लिया और उसे लेकर आगे चल दी।
उनके जाते ही एक हाथ उस शीशे पर आया जहाँ गति ने कुछ देर पहले हाथ रखा था; उस पंजे ने जैसे उस अंगूठी को अपनी हथेली से ढँक लिया था। और देखते ही देखते एक हाथ ने उस अंगूठी को उठाकर अपनी हथेली पर रख दिया। और उसकी हथेली ने अंगूठी को मुट्ठी में जकड़ लिया।
इधर, कपड़ों की दुकान में पहुँचकर परी वह ड्रेस देखने लगी और शॉपकीपर से बोली, "भैया, मैंने यहाँ एक ड्रेस देखी थी, ब्लैक कलर की, वो कहाँ गई?"
शॉपकीपर: "सॉरी मैडम, वो ड्रेस तो अभी किसी ने खरीद ली है। आप कोई और ड्रेस देख लीजिए।"
"अरे, दस मिनट पहले ही तो मैंने सेलेक्ट करके आपसे पूछी थी, कहाँ थी। फिर ऐसे कैसे दे दी...?" परी नाराज़ होती हुई बोली। तब गति ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा,
"ओहो, जाने दो, कोई बात नहीं।"
परी: "नहीं दीदी, मैंने कितने मन से वो आपके लिए चुनी थी और इन्होंने किसी और को दे दी।"
गति: "परी, जो मेरी किस्मत का नहीं है वो मुझे कैसे मिलेगा? चलो, छोड़ो, मूड खराब मत करो, हम चलते हैं, कुछ और ले लेंगे।"
शॉपकीपर: "सॉरी मैम, वैसी ही एक ड्रेस ये है।" शॉपकीपर एक ड्रेस लाकर दिखाते हुए बोला। उसे देख परी खुश हो गई और उसे लेकर गति पर पहनाते हुए बोली,
"हाँ, ये तो उससे भी अच्छा है दीदी! देखो, आप पर कितना अच्छा लग रहा है।"
गति आईने में देखकर खुश हो गई। वह वाकई उस पर बहुत खूबसूरत लग रही थी, मानो उसके लिए ही बना हो। पर फिर कीमत देखते ही गति ने कहा, "ओह गॉड, परी! ये एक ड्रेस दस हज़ार की है। पागल हो गई है तू..."
"दीदी, पर वो तो सिर्फ़ तीन हज़ार की थी। ये दस हज़ार..."
"मैम, वो ड्रेस कॉपी थी, ये ओरिजिनल ब्रांडेड है।"
"सॉरी, भैया, हमें नहीं चाहिए। और तू चल मेरे साथ।"
गति परी का हाथ पकड़कर दुकान से बाहर ले आई और थोड़ा डाँटते हुए बोली,
"परी, तू ना... अब बहुत हो गया। हम अब घर जाएँगे। अब कोई शॉपिंग नहीं, जितना हो गया उतना ही ठीक है।"
"पर... दीदी।"
"कहा ना, चलो... बिल भरते हैं।"
परी मुँह बनाकर उसका हाथ पकड़ लेती है। दोनों बिल काउंटर पर अपना बिल देती हैं। इतने में मैनेजर वहाँ आकर एक गिफ्ट पैकेट उन्हें देते हुए बोला,
"एक्सक्यूज़ मी मैम, बधाई हो मैडम! आज हमारे मॉल के लकी ड्रा में आपका नंबर निकला है और इसलिए मॉल की तरफ़ से ये आपके लिए छोटा सा गिफ्ट..."
ये सुनते ही दोनों हैरान हो गईं, पर परी तो बच्चों सी उछलकर वह गिफ्ट ले लेती है। लेकिन गति ने मना करते हुए कहा, "पर सर, हमने तो किसी लकी ड्रा में भाग नहीं लिया।"
"मैम, आपके एंट्री के साथ ही आपका नंबर फ़ोटो के साथ हमारे पास आ गया था। अभी कुछ देर पहले ही रिजल्ट आया है। प्लीज़, ये गिफ्ट रख लीजिए। इट्स अ रिक्वेस्ट..." मैनेजर समझाते हुए बोला। गति को समझ नहीं आ रहा था, पर परी के ज़िद्द पर उन्होंने वह गिफ्ट लेकर पेमेंट करके वहाँ से निकल गए।
रात का समय था... गति का कमरा...
रात के लगभग साढ़े दस बज रहे होंगे। गति बेड पर बैठी किताब पढ़ रही थी। परी बाथरूम से निकलकर बेड की तरफ़ आई।
परी: "दीदी... क्या कर रही हो?"
गति: "कुछ नहीं, पढ़ रही हूँ। क्यों?"
परी: "आज सब कुछ अच्छा रहा ना दीदी, हमने कितनी अच्छी शॉपिंग की और हाँ, आपको तो गिफ्ट भी मिला... दीदी, आपने गिफ्ट खोला? क्या है उसमें?" गति ने उसकी बात सुनकर किताब को किनारे रख दिया और उठते हुए बोली...
गति: "पता नहीं। वैसे भी क्या होगा? पैकेट देखकर ही लगता है कोई कॉस्मेटिक्स या फ़ोटो फ़्रेम या कोई सस्ती सी पैंटी होंगी।"
"अरे, पर देखना तो चाहिए ना... मैं देखती हूँ।" परी ने कहा।
"हाँ, तू देख, मैं आती हूँ।" गति ने कहा।
गति बाथरूम की तरफ़ चली गई तो परी गिफ्ट खोलने लगी। पर जैसे ही उसने पैकेट खोला, वह देखकर खुशी से चीख पड़ी!
"दीईईईईईईईई..."
गति झट से बाथरूम से निकलकर बेड के पास आकर बोली, "क्या हुआ परी? तू ठीक है ना? ऐसे चिल्लाई क्यों...?"
परी एक्साइटमेंट में बोली, "दीदी, मैं तो ठीक हूँ, पर ये देखकर तो खुशी के मारे चीख निकल गई।"
"क्या है इसमें...?" गति ने भी पैकेट खोला तो वह भी चकरा गई।
"दीदी! ये तो वही ड्रेस है ना जो हमने देखी थी?" परी खुशी से बोली।
गति थोड़ी शंका और हैरानी से बोली, "हाँ, पर ये मॉल वालों ने इतनी महँगी ड्रेस फ़्री गिफ्ट में दी है। ये अजीब नहीं है... मुझे लगता है ये गलती से आ गई है। तू इसे रहने दे, मैं कल इसे वापस कर दूँगी।"
परी समझाते हुए मुँह बनाती हुई बोली, "अरे, ऐसे कैसे वापस कर दोगी? दीदी, ये मॉल वालों ने हमें खुद दी है। उन्हें पता है वो क्या कर रहे हैं। और वो इतना बड़ा मॉल है तो उसके गिफ्ट भी महँगे ही होंगे ना... आप इसे कोई वापस नहीं करने वाले। मैं तो कहती हूँ आप इसे कल पहनकर जाना ऑफ़िस, पहले दिन ही क्या इम्प्रेसन पड़ेगा!"
गति: "अरे, पर इतनी महँगी है ये... उन लोगों ने पता नहीं क्यों दिया।"
"दीदी, आप ही ने कहा था ना जो आपके भाग्य का है वही आपको मिलेगा, तो ये भी आपके भाग्य का है। एंड प्लीज़, मेरे लिए कल आप यही पहनोगी, प्लीज़... प्लीज़।" परी बच्चों सा मुँह बनाकर गति को मनाने लगी। गति ने उसकी गाल पर हाथ रखकर कहा, "अच्छा, ठीक है यार... मैं कल यही पहनूँगी। अच्छा, चल अब तू इसे रख दे और सो जा, बहुत रात हो गई है। मैं आती हूँ।"
गति बाथरूम की तरफ़ दुबारा चली गई। और थोड़ी देर बाद जब निकली तो देखा परी अपनी बेड पर तकिया पकड़कर सो रही थी। परी को बच्चों सा सोता देख गति मुस्कुरा दी। फिर उसने उसे ठीक से चादर ओढ़ाई और खुद भी बेड पर लेट गई।
जैसे ही वह शांत हुई और कुछ सोचने लगी, तो अचानक उसके आँखों के आगे आज मॉल की पूरी घटना याद आ गई; खासकर उस लड़के (हृदय) के गले लगना। उसका स्पर्श... उसे याद करते ही उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई, पर क्यों, पता नहीं... वह बस आँखें बंद कर सोने की कोशिश कर रही थी कि इतने में उसे महसूस हुआ जैसे कोई उसकी रजाई में घुस रहा हो...
क्रमशः...
गति के ज़हन में आज मॉल की पूरी घटना याद आ रही थी। खासकर उस लड़के (हृदय) के गले लगना। उसका वो स्पर्श, जिसे सोचते ही उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई, पर क्यों, पता नहीं... वो आँखें बंद कर सो ही रही थी कि उसे महसूस हुआ जैसे कोई उसकी रजाई में घुस रहा हो। वो झट से आँखें खोलकर अपने पास देखा। देखा तो परी थी, जो अपना बिस्तर छोड़कर उसके पास आ गई थी सोने के लिए। वो उससे चिपक कर सोते हुए बच्चों सा मुँह बनाकर बोली,
"दीदी... मुझे वहाँ अपने बिस्तर पर नींद नहीं आ रही है। मैं आपके पास सो जाऊँ, प्लीज़..."
उसे ऐसा करते देख गति भी एक पल में मुस्कुराकर उसे अपने दोनों हाथों में समेट लिया और अपनी बाहों में सुला दिया। ठीक से चादर ओढ़ाते हुए बोली, "परी, तू ना कभी-कभी मुझे बचपन में ले जाती है। तू बड़ी हो गई है, पर बचपना नहीं गया तेरा... याद है तुझे? तू बचपन में भी ऐसा ही किया करती थी। मेरे पास सोने के कैसे-कैसे बहाने बनाती थी। कभी कमरे में भूत है दीदी... तो कभी ठंड लग रही है दीदी..." गति ने अपने बचपन के समय को याद करते हुए बड़े प्यार से कहा, जिस पर दोनों मुस्कुरा रही थीं।
परी ने उसे जोर से पकड़ते हुए कहा, "हाँ दीदी! क्योंकि आपके पास सोती हूँ तो मुझे एक सुकून मिलता है और अच्छी नींद आती है... इसलिए..."
परी ने अपने बाँहों में गति को जोर से टेडी की तरह पकड़कर आँखें बंद कर लीं। जिसे देख गति मुस्कुराकर बोली, "परी, तुझे ऐसे पकड़े बिना नींद नहीं आती ना, इसलिए आज मैं तेरे लिए एक बड़ा सा टेडी लेने उस दुकान पर गई थी। पर उस कुत्ते के बच्चे ने सब गड़बड़ कर दिया और तेरे लिए कुछ ले भी नहीं पाई।"
"ओहो दीदी! कोई बात नहीं। जब आप मेरे पास हो तो मुझे और किसी टेडी की ज़रूरत नहीं। आप ही मेरी टेडी हो... और ऐसे प्यारे टेडी को मैं नहीं छोड़ूँगी।" यह कहकर वो और ज़ोर से उसे गले लगा लेती है। जिस पर गति हल्के से "अहह्ह्ह" भरती हुई मुस्कुराते हुए बोली,
"अरे, आराम से! इंसान हूँ मैं, सच में टेडी थोड़ी हूँ। दर्द हो रहा है।"
"ओह सॉरी... दीदी... अच्छा, मेरे बालों में उंगली फेरो ना, अच्छी नींद आएगी।" यह सुनते ही गति ने उसके बाहु पर हल्के से मारते हुए कहा, "तेरे डिमांड तो ख़त्म ही नहीं होते, बदमाश..."
"ऊऊऊऊऊममम... दीदी, प्लीज़ ना।" यह कहकर परी ने गति को एक फ़्लाइंग किस दिया और उसे फिर से पकड़ लिया।
गति इस पर मुस्कुराकर बहुत प्यार और दुलार से उसके बालों को एक बार चूमकर उसके सर पर उंगली फेरने लगी और उसने भी धीरे से आँखें बंद कर लीं... कुछ देर बाद गति अपने बेड के पास की खिड़की से बाहर देखती है। बाहर बर्फ गिर रही थी, जिसे देख वो खुश होकर परी से बोली,
"परी, देख! बाहर बर्फ गिर रही है।"
गति ने देखा तो परी प्यारा सा मुँह लिए सो चुकी थी। गति भी मुस्कुराकर उसके गालों को सहलाया और बाहर देखती हुई आँखें बंद कर लेती है।
देर रात...
रात गहरी और ठंडी हो गई थी। हल्के बर्फ के रेशे आसमान से गिरकर हवा में उड़ रहे थे। रात के करीब एक बज रहा होगा। एक सुनसान पहाड़ी पर, जिसके सिर्फ़ एक तरफ़ ही रास्ता था और दूसरी तरफ़ गहरी खाई थी... तीन गाड़ियाँ, जो एक घेरा बनाकर उस पहाड़ी पर रुकी हुई थीं, और अचानक साथ ही उन सब की हेडलाइट जल गईं, जो एक ही जगह रोशनी कर रही थीं। उस रोशनी के बीच एक आदमी घुटनों के बल बैठा रो रहा था। वो थोड़ा घायल था, उसके चेहरे पर मार के निशान थे। एक सूट पहना हुआ आदमी उसके सर पर बंदूक रखकर खड़ा था।
सभी गाड़ियों के पास दो-दो बॉडीगार्ड खड़े थे। इतने में बीच वाली गाड़ी के सामने का दरवाज़ा खुला, जिसमें से डेविड निकलकर पीछे का दरवाज़ा खोलता है। दरवाज़ा खुलते ही बहुत महँगे और स्टाइलिश जूते पहने दो पैर गाड़ी से उतरे... उस आदमी ने लॉन्ग विंटर जैकेट पहना हुआ था, जिसे उसने उतरते ही उतारकर कार की सीट पर फेंक दिया और फिर एक हाथ से अपने बाल ऊपर की तरफ़ सेट किए। पूरे हवा में बर्फ की बारीक बूँदें रूई सी तैर रही थीं। वो लड़का बड़े रौब से आगे आने लगा। वो था हृदय सिंह राणावत...
हृदय को ख़तरनाक लुक में अपने पास आते हुए देख, जैसे उस घायल और बेबस आदमी की साँस ही अटक गई हो। वो तुरंत हाथ जोड़कर माफ़ी मांगते हुए बोला, "सर... सर, प्लीज़ मुझे माफ़ कर दीजिए। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दीजिए।"
हृदय थोड़े गुस्से में उसके पास आकर उसके बालों को अपनी मुट्ठी में भींच लिया, झट से उसका सर अपनी तरफ़ उठाया और उसे देखते हुए सख्ती और गुरूर से बोला, "हृदय से कोई बच नहीं सकता... वो हर किसी का इंसाफ़ करता है। तुझे क्या लगा? तू मेरी आँखों में धूल झोंक सकता है? इस हृदय सिंह राणावत को धोखा, बेईमानी और गद्दारों से नफ़रत है। और तूने तो सब कुछ किया है। सज़ा तो ज़रूर मिलेगी तुझे।"
हृदय की बेरहमी से वो आदमी दर्द से कराह रहा था। इतनी ठंड थी कि वो काँपते हुए, लड़खड़ाती आवाज़ में बोला, "सर... सर, प्लीज़ मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं... मैं लालच में आ गया था। मुझे लगा एक-दो कॉन्ट्रैक्ट जाने से आपको कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा, पर मेरा थोड़ा भला हो जाएगा। मैं... मैं बस थोड़ा ज़्यादा कमाना चाहता था सर... प्लीज़ मुझे छोड़ दीजिए। मैं फिर कभी किसी के साथ ऐसा नहीं करूँगा।"
वो आदमी रोते हुए गिड़गिड़ाने लगा और हृदय के पैरों में गिर गया, पर हृदय ने अपने पैर एक पल में पीछे खींच लिए और बोला, "आज के बाद तू इस लायक़ बचेगा ही नहीं कि तू किसी के साथ धोखा या गद्दारी कर सके। हृदय सिंह राणावत ने आज तक किसी को धोखा नहीं दिया और धोखा देने वालों को माफ़ भी नहीं किया। तूने सही कहा, एक-दो कॉन्ट्रैक्ट जाने से मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता, पर जिस तरीके से जाए, उससे फ़र्क पड़ता है।" हृदय गुस्से और रौब से बोलते हुए डेविड की तरफ़ दो कदम आगे आया और बोला,
"पता लगा कौन है वो चोर जो हृदय के साथ खेलने की कोशिश कर रहा है? शायद उसे पता नहीं है हृदय से पंगा बहुत महँगा पड़ता है।"
"येस बॉस, हमने सब पता कर लिया है। वो आपका सबसे बड़ा राइवल है, Kapoor Industries का मालिक, तमस कपूर..." डेविड ने कहा।
तमस कपूर का नाम सुनते ही हृदय के चेहरे पर एक डेविल स्माइल आ गई। वो मुस्कुराकर गुरूर से बोला, "ओह्ह, तो लगता है तमस के पास अँधेरा कुछ ज़्यादा ही हो गया है, इसलिए वो हमारे उजालों का सहारा लेने की कोशिश कर रहा है। ज़रा हम भी तो देखेंगे अँधेरे के क्या हाल हैं।" यह कहकर हृदय ने डेविड को डेविल लुक देते हुए सर हिलाकर इशारा किया और उसका इशारा पाते ही डेविड ने फ़ोन निकालकर किसी को फ़ोन करने लगा।
शिमला की रात
एक ऊँची इमारत की सबसे ऊपरी मंज़िल पर स्थित कमरे में बमुश्किल रोशनी थी। एक बड़ी, पारदर्शी काँच की दीवार के बाहर बर्फ हल्की-हल्की बरस रही थी। उसी खिड़की के नीचे, दीवार के भीतर बना एक बोनफायर धधक रहा था। उसकी हल्की सी रोशनी से कमरा थोड़ा-बहुत दिखाई दे रहा था और कमरा गर्म भी हो रहा था।
कमरे में किसी के सिसकने की अजीब सी आवाज़ गूंज रही थी। बिस्तर पर दो लोग चादरों में लिपटे, एक-दूसरे से लिपटे हुए थे।
लड़का लड़की के होंठों और गर्दन को बुरी तरह चूम रहा था, यहाँ तक कि काट भी रहा था। इससे लड़की की सिसकियाँ और आवाज़ें पूरे माहौल को रोमांचित कर रही थीं। दोनों पर बहुत कम कपड़े थे। लड़का, लड़की के ऊपर झुका हुआ, पसीने से तर-बतर था और उसे बहुत ही उग्रता से चूम रहा था। मदहोश सी लड़की अपने नाखून लड़के की पीठ पर गाड़ रही थी और उसे अपने करीब खींच रही थी; वह भी पसीने से भीग रही थी।
तभी, साइड टेबल पर रखा लड़के का फ़ोन बज उठा। पर इस माहौल में घंटी किसको सुनाई देती? दोनों एक-दूसरे में खोए हुए थे; लड़की भी उसमें पूरी तरह साथ दे रही थी। फिर फ़ोन जोर-जोर से बजने लगा, जिससे लड़के को गुस्सा आ गया। वह झट से लड़की के ऊपर से हट गया और खुद को चादर से ढँककर गहरी साँसें लेने लगा, खुद को शांत करने लगा। जैसे ही वह हटा, लड़की को भी राहत मिली हो, वह भी कराहते हुए खुद को चादर से ढँककर आँखें बंद कर गहरी साँसें लेने लगी।
फ़ोन पर नाम देखकर लड़का पहले तो हैरान हो गया और उसकी भौंहें सिकुड़ गईं। पर फिर कुछ सोचकर उसके चेहरे पर गर्व के भाव उभर आए। मुँह टेढ़ा करते हुए उसने फ़ोन उठाया और बोला,
"क्या बात है? लगता है हमारी कामयाबी और हमारे ख्याल से हृदय सिंह राणावत की नींद उड़ गई है। इसलिए उसे हमें इतनी रात को परेशान करना पड़ा।"
इधर, हृदय पहाड़ी की चोटी पर खड़ा था, हवा में उड़ते बर्फ और दूर तक फैले अंधेरे को देखते हुए, सख्त लहजे में बोला, "हृदय सिंह राणावत की नींद उड़ा सके, वो ताकत तुममें कहाँ है, तमस कपूर? या कहूँ एक चोर, जिसकी कामयाबी भी हमसे चुराई हुई है।"
हृदय के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ गई।
दूसरी तरफ, बिस्तर पर बैठा तमस, यह सुनकर गुस्से में गुर्राया, "अपनी हद में रहो, हृदय…"
"हद…? शायद तुम नहीं जानते, अंधेरे की हद और औकात होती है। हृदय तो वह है, जिसे रोकने की गलती किसी को नहीं करनी चाहिए; क्योंकि हृदय के रुकते ही इंसान लाश बन जाता है। लगता है अपना असली नाम 'चोर' है… पहली बार सुना है तुमने… हउऊऊऊ… क्या करें? चोर कितना भी चालाक क्यों ना हो, एक दिन उसका असली चेहरा सामने आ ही जाता है। और तुम्हारा भी चेहरा मेरे सामने आ चुका है।
तुम्हें क्या लगा? मेरे किसी कर्मचारी को खरीदकर तुम मुझे बहुत देर तक नुकसान पहुँचा पाओगे? शायद तुम नहीं जानते हो। हृदय तो अपनी परछाई पर भी नज़र रखता है। तो बाकियों की क्या औकात? तुम्हें सिर्फ़ इतना बताना था कि इसके बाद तुम कभी भी अपनी औकात मत भूलना, समझा…!!!!
अरे अगर बिज़नेस करना नहीं आता तो तुम गली-गली घूमकर चाय और मूँगफली क्यों नहीं बेचते? वह तुम बहुत अच्छे से कर सकते हो। बिना सहारे बिज़नेस करना तुम्हारे बस की बात नहीं…"
हृदय, तीखे शब्दों से तमस को घायल कर रहा था। यह सुनते ही, तमस दाँत पीसते हुए चिल्लाया, "हृदय… अब यह कुछ ज़्यादा ही हो रहा है। अब तक तो हमारी दुश्मनी सिर्फ़ व्यावसायिक है। पर तुम्हारी बातें कहीं इसे निजी ना बना दें।
अगर तमस कपूर अपनी निजी दुश्मनी पर उतर आया ना, तो तुम्हारे और तुम्हारे अपनों के लिए बहुत भारी पड़ेगा।"
तमस की धमकी पर हृदय गुस्से से बोला, "ख़बरदार…!! निजी दुश्मनी के बारे में तो तुम सोचना भी मत… सोचो अगर मेरी व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता ऐसी है कि तुम्हें सड़क पर ला दे, तो निजी में मैं तुम्हारी क्या हालत करूँगा?"
तमस कुछ कहने ही वाला था कि उसके पास लेटी लड़की उठकर उसके करीब आई और बोली, "यह सब क्या है? इतनी रात को कोई फ़ोन करता है क्या… छोड़ो इसे (उसका चेहरा हाथों से सहलाते हुए) चलो फिर से शुरू करते हैं।"
लड़की की बातें सुनते ही हृदय के चेहरे पर मज़ाक वाली हँसी आ गई। वह जोर से हँसते हुए बोला, "ओहोओ… लगता है तुम किसी के साथ रासलीला में व्यस्त थे। हाहाहाहाहा… चचचचच… तुम्हें परेशान किया, यार, बड़ा बुरा लग रहा है। उस लड़की के लिए जो तुमसे दूसरा राउंड एक्सपेक्ट कर रही है। (हृदय ने बहुत धीरे से मज़ाक उड़ाते हुए कहा) हाए कोई बताओ उसे कि अब हृदय से बात करने के बाद इस अंधेरे से कुछ नहीं होने वाला…" हृदय अपनी ही बातों पर जोर-जोर से हँसने लगा, तो उसके पास खड़ा डेविड भी मुस्कुरा दिया।
पर इधर तमस यह सब सुनकर जल-भुनकर राख हो रहा था। उसने गुस्से में अपनी मुट्ठी में उस लड़की का हाथ बहुत बुरी तरह जकड़ लिया, जिससे वह दर्द से कराह उठी और अपना हाथ छोड़ने को कहने लगी।
लड़की की आवाज़ सुनकर हृदय फिर से तमस को चिढ़ाते हुए बोला, "अरे… अरे क्या कर रहा है यार… थोड़ा आराम से… एक काम कर, थोड़ा हिम्मत करके फिर से ट्राई कर… अम… सॉरी… कम से कम इस मामले में तो तुझे मेरे सहारे की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। चल, गुडनाइट… हैव अ फ़न हा…"
हृदय हँसते हुए फ़ोन काट दिया और सामने देखते हुए शैतानी मुस्कान के साथ मुस्कुराया, जिस पर डेविड ने पूछा, "बॉस, इस गद्दार का क्या करना है?"
वह आदमी, जो हृदय के ऑफिस में बड़े पद पर था और जिसने हृदय को मिलने वाले प्रोजेक्ट और कॉन्टेंट्स की काफ़ी जानकारी तमस को बेच दी थी, वह हाथ जोड़कर अपनी रिहाई की भीख माँगने लगा। हृदय ने उसे बिना देखे ही उंगलियों से डेविड को इशारा किया और आगे बढ़ गया।
डेविड के इशारे पर बॉडीगार्ड उस आदमी को पहाड़ी की तरफ़ ले जाने लगे और उसकी चीखें पूरे हवा में गूंजने लगीं। और इसी के साथ एक-एक कर सारी गाड़ियाँ उस पहाड़ी से निकल गईं।
इधर, हृदय की बातों से घायल तमस, गुस्से में पागल हो रहा था। उसने अपने फ़ोन को गुस्से में सामने की तरफ़ फेंक दिया, जो जाकर सीधे बोनफायर के ऊपर रखे पानी के गिलास पर लगा और पानी गिरकर उस आग को बुझा दिया। कमरे में पूरी तरह अंधेरा हो गया और देखते ही देखते उस पूरे कमरे में उस लड़की की चीखें गूंजने लगीं। क्योंकि तमस गुस्से में अब उस लड़की को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने लगा था।
शिमला की सुबह
आज गति का काम पर पहला दिन था। वह जल्दी-जल्दी अपने ज़रूरी काम ख़त्म कर ऑफ़िस के लिए तैयार हो गई। उसने अपने कमरे में लगे अपने माता-पिता की तस्वीर के सामने दिया जलाकर, हाथ जोड़कर प्रार्थना की और आशीर्वाद लिया।
फिर बैग लेकर कमरे से बाहर आई तो देखा मामा- मामी चाय पी रहे थे। वह उनके पास आकर उनके पैर छूती है। मामाजी उसे आशीर्वाद देते हुए बोले, "अरे बेटा, मेरा आशीर्वाद तो तुम्हारे साथ हमेशा है। हमेशा तरक्की करो। (वह अपने बैग से एक पेन निकाल उसे देते हुए बोले) यह तुम्हारे लिए लाया हूँ। ऑल द बेस्ट…"
फिर वह मामी जी के भी पैर छूती है, जिस पर मामी थोड़ा मुँह बनाकर बोली, "अरे बस रहने दें। वहाँ यह आशीर्वाद नहीं, तेरा काम ही तुझे नौकरी पर बनाए रखेगा। तो कुछ भी हो, अच्छे से काम करना, अपने बॉस को खुश रखना। और हाँ, एडवांस सैलरी तो तुमने उड़ा दी, पर अब से तुम्हारी सारी सैलरी मेरे पास आनी चाहिए। मैं तुम्हें हाथ खर्च के लिए पैसे दे दूँगी, ठीक है ना…!"
गति कुछ कहने की स्थिति में नहीं थी, तो बस हाँ में सर हिला देती है और पीछे मुड़कर परी को ढूँढ़ने लगी।
मामी जी की बातें सुनकर गति कुछ कहने की स्थिति में नहीं थी। उसने बस सिर हाँ में हिला दिया और पीछे मुड़कर परी को ढूँढ़ने लगी।
वह आस-पास देखती हुई बोली, "यह परी कहाँ चली गई? मामा जी, आपने देखा?"
यह कहकर गति पीछे मुड़ी, तो सामने परी हाथ में दही-शक्कर लेकर अपनी प्यारी सी मुस्कान के साथ खड़ी थी।
"दीदी, आज आपका पहला दिन है काम का, तो आपके लिए दही-शक्कर का शगुन… ऑल द बेस्ट।"
यह कहकर उसने गति को एक चम्मच दही खिलाया और उसे ऊपर से नीचे तक देखकर बोली, "दीदी… मैंने कहा था ना, यह ड्रेस आपके लिए ही बनी है। देखिए, आप कितनी अच्छी लग रही हैं। उम्मुअअ…"
परी गति के गालों पर किस करते हुए उसके गले लग गई। गति मुस्कुरा दी।
दोनों बहनों का प्यार देख गिरधर जी (मामा जी) भी मुस्कुरा रहे थे। इसे देख मामी जी थोड़ा मुँह बिगाड़ती हुई बोली, "अरे हाँ, बस हो गया! अब यह इतना भी कोई कलेक्टर के पद पर नहीं जा रही जो इतनी नौटंकी की जा रही है। और गति, तू जा, वरना पहले ही दिन तेरे बॉस तुझे नौकरी से निकाल देंगे।"
उनकी कड़वी बात पर सभी गंभीर हो गए। गति थोड़ी मायूस हो गई। पर परी पलटकर अपनी माँ को देखते हुए उनके पास आने लगी। इसे देख उसकी माँ थोड़ा हड़बड़ाकर बोली, "अब तुझे क्या हुआ? अअअअ…"
वह यह कह ही रही थी कि परी ने एक चम्मच दही उनके मुँह में डाल दिया। इस अचानक हरकत पर सब हैरान हो गए, पर फिर गिरधर (मामा जी) और गति हँस पड़े। आशा जी अपने मुँह से गिरते दही को हाथ से पोंछती हुई, परी के बाह पर मारते हुए, चबाई हुई आवाज़ में बोली, "क्या है यह…?"
परी मुस्कुराकर बोली, "माँ, आपको भी दही खिलाया ताकि आप भी शुभ-शुभ बोलें… लीजिए, पापा, आप भी खाइए।"
यह कहकर उसने अपने पापा को भी एक चम्मच दही खिला दिया और पूरी कटोरी उनके हाथ में देकर धीरे से बोली, "और यह आप अपने हाथ से माँ को प्यार से खिलाइए… हम चलते हैं। चलो, दी… अकेला छोड़ दो लव बर्ड्स को…"
परी की बात पर गति अपने मुँह पर हाथ रखकर हँसने लगी। परी भी मुस्कुराकर उसके पास आ गई।
दोनों बहनें घर से निकल गईं। उन्हें ऐसे देख आशा जी दाँत पीसती हुई बोली, "पता नहीं इस लड़की ने क्या जादू कर रखा है मेरी बेटी पर… इसके लिए यह मुझे भी परेशान करने से बाज़ नहीं आती।"
गिरधर जी हल्की मुस्कान के साथ एक चम्मच दही आशा जी की ओर बढ़ाया। इस पर आशा जी उन्हें खा जाने वाली नज़र से देखते हुए बोली, "आप ही खाइए… हउऊऊऊ लव बर्ड…"
वह कमरे में चली गई। गिरधर जी मुँह बनाकर कंधे उचकाकर खुद दही खाने लगे।
हृदय अपने केबिन में बैठा एक फ़ाइल देख रहा था। तभी डेविड इजाज़त लेकर अंदर आया और टीवी ऑन करते हुए बोला, "बॉस, आपको यह देखना चाहिए।"
हृदय अपनी नज़रें टीवी की तरफ़ घुमा लीं। टीवी पर एक न्यूज़ आ रही थी, जिसमें कहा जा रहा था,
"दर्शकों को बता दें, हम इस वक़्त शिमला की एक सुनसान सड़क पर मौजूद हैं और यहाँ पुलिस आ चुकी है। आज सुबह ही यहाँ मिली है एक लाश… जिसे बहुत बुरी तरीके से टॉर्चर किया गया था। उसके शरीर पर बहुत से चोट के निशान थे। जानकारी के अनुसार यह आदमी शिमला की सबसे बड़ी कंपनी, आर ग्रुप ऑफ़ कंपनी के लिए काम करता था। पर कुछ दिन पहले ही इसे वहाँ से निकाल दिया गया था और आज मिली है इसकी लाश। क्या लगता है आपको, किसने इस बेचारे को इतनी बुरी मौत दी? शुरुआती जाँच की बात करें, तो पुलिस भी अपना पल्ला झाड़ रही है। क्या इसमें किसी रुतबे वाले आदमी का हाथ है? हमारे साथ बने रहें, हम पल-पल की ख़बर आपको देते रहेंगे। मएएएए…"
इतने पर ही डेविड टीवी बंद कर दिया।
हृदय सोचता हुआ डेविड को देखने लगा। डेविड बोला, "सर, आपके इशारे पर हमने उसे छोड़ दिया था। पर हमारा एक आदमी, जो उसके पीछे गया था, उसने बताया वह वहाँ से सीधे तमस कपूर के पास गया। पर वहाँ से लौटा नहीं… यह काम ज़रूर तमस कपूर ने ही किया होगा।"
हृदय कुछ कहे बिना ही कुछ सोचने लगा। उसे तमस की धमकी याद आ रही थी।
वह गुस्से से उसे याद करता हुआ बोला, "यह तमस कपूर जितना हम समझते हैं, यह उससे भी ज़्यादा गिरा हुआ और ख़तरनाक है। कल के बाद वह अपनी धमकी को पूरा करने के लिए ज़रूर कुछ ना कुछ करेगा… और यह बात इसके मरने के बाद साबित हो गई। हमें और भी सावधान रहना होगा, डेविड… तुम्हें पता है ना क्या करना है?"
"जी, बॉस, आप बिल्कुल फ़िक्र मत कीजिए। आज से मैं आपकी और आपके घरवालों की सिक्योरिटी और भी बढ़ा रहा हूँ।"
"मुझे मेरी फ़िक्र नहीं है। छोटे की माँ भी दुबई गई हैं, तो मुझे उनकी भी फ़िक्र नहीं है, पर छोटा यहाँ आ रहा है। तुम्हें उसकी सिक्योरिटी पर ध्यान देना है।"
हृदय ने सख्त पर अपने भाई के लिए फ़िक्र करता हुआ कहा। डेविड भी हाँ में सर हिलाकर, "यस, बॉस," कहा।
तभी उसका फ़ोन बजा, जो रिसेप्शन से था। जिसे सुनकर वह हृदय से कहता है, "बॉस, मैडम आ चुकी हैं। आप कहें तो मैं उन्हें यहीं भेज दूँ?"
यह सुनते ही हृदय के अंदर एक सनसनी सी हुई और चेहरे पर आकर्षण आने लगा; आँखें उसे देखने को बेताब होने लगीं। पर हृदय, गति के लिए डेविड के मुँह से "मैडम" सुनकर उसे घूरते हुए पूछता है,
"तुम मिस गति को मैडम क्यों कह रहे हो?"
डेविड सर झुकाकर, हल्की मुस्कान के साथ बोला,
"क्योंकि बॉस, हमें पता है वह आगे चलकर हमारी मैडम ही बनने वाली हैं। इसलिए…"
हृदय - "ऐसा तुम्हें क्यों लगता है?"
डेविड शालीनता से बोला - "क्योंकि बॉस, मैं आपके साथ तब से हूँ जब से आपने यह कंपनी जॉइन की थी और तब से आज तक मैंने कभी आपको किसी भी लड़की की तरफ़ आँख उठाकर भी देखते हुए नहीं देखा है। उल्टा आपको उन सबसे दूर रहते हुए देखा है। पर जब से आप मैडम से मिले हो, आपके अंदर उनके लिए भावनाएँ मुझे साफ़ दिखती हैं और एक बात नोटिस की है मैंने। अब तक जो आँखें बेचैन रहा करती थीं, वह अब उनके आने से खुश और संतुष्ट दिखने लगी हैं। बस इसलिए… अगर कुछ ज़्यादा या ग़लत कहा हो तो सॉरी, बॉस…!"
हृदय के चेहरे पर डेविड के जवाब से एक डेविल लुक और मुस्कराहट फैल गई। हृदय खड़ा होकर डेविड के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला,
"शायद तुम पहले हो जो मुझे इतना जान पाया है। बिल्कुल सही कहा तुमने…"
डेविड हल्की स्माइल करता हुआ केबिन से निकल गया।
इधर, गति का पहला दिन था ऑफ़िस में। वह थोड़ी नहीं, बहुत ही नर्वस थी। उसका स्वभाव कुछ संकोची था, तो वह थोड़ी नर्वस सी ऊपर केबिन की तरफ़ बढ़ ही रही थी कि पीछे से डेविड ने आवाज़ देते हुए कहा,
"मैडम…!"
गति थोड़ा रुककर हैरत से इधर-उधर देखने लगी। डेविड ने फिर से कहा,
"जी, मैं आप ही से कह रहा हूँ। मैडम… आप मेरे साथ आइए, मैं आपको बॉस का केबिन दिखाता हूँ।"
गति को थोड़ा अजीब लग रहा था, पर वह डेविड के पीछे चली गई। डेविड उसे हृदय के केबिन के बाहर छोड़ते हुए बोला, "यह इस कंपनी के बॉस का केबिन है। आप इनके लिए ही काम करेंगी, तो आप अंदर जाइए। बॉस अंदर ही हैं।"
डेविड जाने लगा। गति थोड़ी संकोच करते हुए उसे आवाज़ देती हुई बोली, "अ… सुनिए सर, (डेविड उसे देखता है) अगर मुझे यहाँ के बारे में या काम के लिए कुछ पूछना हो तो किससे पूछ सकती हूँ मैं?"
"आपको उसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी, पर अगर कुछ भी पूछना हो तो आप बॉस या मुझसे पूछ सकती हैं। मैं डेविड, बॉस का पर्सनल बॉडीगार्ड और उनका मैनेजर… ऑल द बेस्ट, मैम… आप अंदर जाइए।"
डेविड चला गया, पर गति उसके व्यवहार से हैरान रह गई। उसने अभी काम शुरू भी नहीं किया था, और इतनी इज़्ज़त दी जा रही थी।
"लगता है बहुत अच्छे आदमी हैं डेविड सर… भगवान, अब यह बॉस भी अच्छे हों, प्लीज़…!"
यह कहकर गति ऊपर कैमरा देख, चुप कर अंदर चली गई।
अंदर कोई दिख नहीं रहा था। कुर्सी भी सामने पीठ किए हुए थी। वह आस-पास "सर… सर…" कहकर आवाज़ देती है, पर कोई जवाब ना पाकर वह खुद से ही बड़बड़ाते हुए बोली, "लगता है सर हैं नहीं। कोई नहीं, मैं वेट करती हूँ।"
क्रमशः…
गति हृदय के केबिन में उसका इंतज़ार कर रही थी। इतने में, टेबल पर रखा फ़ोन बजने लगा। वह फ़ोन उठाकर बोली, "हैलो… हैलो," पर फ़ोन के दूसरी तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया। वह मुँह गोल करके फ़ोन रखा और पीछे मुड़ी। अचानक उसने अपने सामने एक लड़के को खड़ा पाया।
उसे अचानक देखकर वह घबराकर एक कदम पीछे हटी, जिससे उसके पैर टेबल से टकरा गए। वह बैलेंस खोकर गिरने ही वाली थी कि खड़े उस शख्स ने उसकी पीठ पर हाथ रखकर उसे गिरने से रोक लिया। गति आश्चर्य और थोड़ी घबराहट से उसे देख रही थी। उसकी धड़कनें थोड़ी तेज हो गई थीं।
हृदय, जो गति को थामे हुए खड़ा था, उसकी हल्की नीली आँखों की गहराई में खोते हुए बोला,
"लगता है तुम्हें हर बार बचाना ही मेरा काम हो गया है…
जैसे यह ही मेरा सुकून और आराम हो गया है…"
गति भी उसकी गहरी आँखों में देखते हुए खोई सी बोली, "आप तो वही हैं ना… मैंने आपको पहले भी देखा है।"
गति की बात सुनकर हृदय की धड़कनें बढ़ने लगीं। क्या उसे पिछला सब कुछ याद है?
"तुम्हें याद हूँ मैं…!" हृदय ने धीरे मगर प्यार और बेसब्री से कहा। गति ने भी धीरे से, उससे नज़र हटाए बिना कहा,
"हाँ, सब याद है मुझे…"
हृदय के दिल में अब और शोर मचने लगा; चेहरे पर मुस्कान बिखरने लगी। उसने खुशी और आशा भरी निगाहों से गति को देखते हुए कहा,
"मतलब तुम्हें पिछला सब कुछ याद है?"
गति अचानक अपनी पीठ पर हृदय का हाथ महसूस कर थोड़ी हड़बड़ाकर उससे अलग होते हुए बोली,
"आप तो वही हैं ना जो रेस्टोरेंट और मॉल में मिले थे?"
यह सुनते ही हृदय के उत्साह, उम्मीद और अरमानों के गुब्बारों में जैसे पिंस चुभ गई हो। हृदय मायूस होकर तंज करते हुए बोला,
"यादाश्त अच्छी है तुम्हारी… पर काश तुम्हें इससे पहले का भी याद होता।" हृदय शिद्दत से उसे देख रहा था।
"जी, मतलब… आप यहाँ क्या कर रहे हैं?" गति ने पूछा।
"तुम्हारा पीछा कर रहा हूँ।" हृदय ने झट से कहा। गति थोड़ी डर गई और बोली,
"प… पीछा? क… क्या मतलब है आपका? आपने मेरी मदद की, वह ठीक है, पर आप मेरा पीछा कैसे कर सकते हैं? देखिए, आप जाइए यहाँ से, वरना… वरना मैं सर से शिकायत करूँगी।"
यह सुनते ही हृदय टेढ़ी मुस्कान से गति को सीरियस होकर घूरते हुए उसके पास आने लगा। उसे ऐसे पास आते देख गति पीछे हटने लगी।
"ये… ये क्या है? आप दूर हटिए।"
गति दीवार से सट गई और अपनी बड़ी-बड़ी पलकें झपकाती हुई हृदय को देखने लगी। हृदय उससे कुछ ही इंच की दूरी पर खड़ा होकर, एक हाथ उसके सर के पास दीवार पर रखते हुए बोला,
"तुम्हें शिकायत करनी है तो करो, किसने रोका है? वह है तुम्हारे बॉस।"
यह कहकर उसने दीवार पर लगी अपनी ही तस्वीर दिखाई। गति फ़ोटो देखकर हैरान हो गई।
"आप… आप हैं यहाँ के बॉस? (हृदय बस उसके मासूम चेहरे को निहारे जा रहा था) सॉरी, पर आप… आप हटिए, प्लीज़।"
हृदय उससे पास से हट गया।
गति उससे थोड़ी दूर हो गई और कुछ सोचने लगी। हृदय उसे देखते हुए बोला, "तो आज तुम्हारा पहला दिन है मेरे साथ… आज से तुम सिर्फ़ मेरी हो, मैं जो भी कहूँगा, तुम्हें मानना है। ठीक है ना…!!?" हृदय एटीट्यूड में अपने डेस्क टेबल से टिककर बैठ गया। यह सुनकर गति चौंक गई।
"क्या… क्या मतलब है आपका? आपकी हूँ? मैं आपकी सिर्फ़ एम्प्लॉई हूँ, कोई आपकी जागीर या बीवी नहीं, जो आप ऐसा बोल रहे हैं।" गति थोड़ा चिढ़कर मगर धीरे से बोली।
"नहीं… हो तो हो जाओगी।" हृदय ने भी धीरे से कहा।
"व्हाट… आप क्या बोल रहे हैं? सर, मैं समझी नहीं… प्लीज़, अगर मेरा यहाँ अभी कोई काम नहीं तो मैं बाहर जाकर और कुछ काम करती हूँ।"
इस पर हृदय ने मुट्ठी कस ली। वह बेसब्र, थोड़ा सख़्ती से बोला,
"तुम यहाँ से कहीं नहीं जाओगी। तुम यहाँ सिर्फ़ मेरे लिए आई हो, समझी तुम…"
हृदय की ऐसी अजीब बातों पर गति थोड़ा डर गई। वह मन ही मन खुद से बोली, "है भगवान! कहीं यह पागल साइको तो नहीं? यह मेरे साथ कुछ करेगा तो नहीं… कैसी अजीब बातें कर रहा है।"
हृदय की आँखें गति के चेहरे के हाव-भाव को पढ़ते हुए बोलीं, "क्यों… मेरे बारे में सोच रही हो?? (गति हैरान हो गई। इसे कैसे पता चला?) मैं तुम्हारी आँखों में देखकर तुम्हारे दिल का हाल बता सकता हूँ।"
हृदय उठकर उसके पास आ गया। वह बिल्कुल उसके सामने कुछ इंच की दूरी पर, एक हाथ जेब में डालकर खड़ा था। गति की दिल की धड़कनें थोड़ी बढ़ गई थीं उसे ऐसे सामने खड़े देखकर।
"वैसे इस ड्रेस में सच्चे में बहुत अच्छी लग रही हो, जैसे यह सिर्फ़ तुम्हारे लिए ही बनी हो…"
यह सुन गति अपने ड्रेस को देखने लगी। उसने वही ड्रेस पहना था जो उसे मॉल में गिफ़्ट के तौर पर मिला था। हृदय यह कहता हुआ उसके पीछे आ गया और धीरे से सर उसके कान के पास लगाकर धीरे से बोला, "You are looking like a Queen… भूमि…"
हृदय के ऐसे उसके कान में यह कहने से उसके पूरे शरीर में बिजली सी दौड़ गई। हृदय की गरम साँसें और "भूमि" नाम दोनों ही उसके कानों से टकराकर उसके अंदर समा गए। जैसे गति की दिल की गति अचानक से बढ़ गई।
वह झट से उससे दूर होकर पलटकर उसे हैरानगी से देखने लगी। उसे ऐसे परेशान और थोड़ा डरा हुआ देख हृदय उसे और परेशान किए बिना अपनी चेयर पर जाकर बैठ गया।
"आज तुम्हारा पहला दिन है, इसलिए कोई काम नहीं दूँगा। वैसे तुम्हें पता है ना यहाँ तुम्हें किस पोस्ट पर अपॉइंट किया गया है?"
गति खुद को संभालकर हृदय के सवाल पर हाँ में सर हिलाती हुई बोली,
"जी… मैं यहाँ आपकी पर्सनल असिस्टेंट के तौर पर आई हूँ।"
"मतलब तुम्हें मेरा और मेरे काम का ख्याल रखना है। (गति ना चाहकर भी हाँ में सर हिला देती है) आज तुम्हें सिर्फ़ मुझे देखते रहना है और ऑब्ज़र्व करना है कि मुझे कब क्या चाहिए। ठीक है ना… मैं जब भी बुलाऊँ, तुम्हें आना होगा, जैसा कहूँ, करना होगा। ठीक है ना…?"
गति उसकी बातों से कन्फ़्यूज़न में थी, पर फिर भी हाँ कह देती है। हृदय अपने फ़ोन का एक बटन प्रेस करता है और देखते ही देखते डेविड दरवाज़े पर खड़ा होकर अंदर आ गया। हृदय उसे देखकर सर लेफ्ट साइड घुमाकर कुछ इशारा करते हुए बोला, "डेविड, इन्हें इनके काम करने की जगह दिखा दीजिए और क्या करना है, वह भी समझा दो।"
डेविड हाँ में सर हिलाकर गति को चलने का इशारा करता है और गति भी उसके साथ चली गई।
हृदय उसे पीछे से देखते हुए बोला,
"अब पास आ गई हो जान,
तो जान को जाने नहीं दूँगा…
अब जो भी हो जाए,
मैं तुम्हें अपना बनाकर रहूँगा…"
डेविड गति को एक केबिन में ले आया जहाँ ऑफ़िस के एम्प्लॉई के डेस्क जैसे तीन डेस्क बने थे। वह उस बीच की डेस्क को दिखाते हुए बोला,
"मैम, यह आपके काम करने की जगह है। आप बैठिए, मैं आपको काम समझाने के लिए किसी को भेजता हूँ। कुछ भी चाहिए तो आप इस बटन को दबा दीजिएगा, मैं आ जाऊँगा।"
डेविड डेस्क पर लगे एक बटन को दिखाते हुए बोला। गति पूरे कमरे को बड़े ध्यान से देख रही थी।
उस कमरे में एक दीवार, जो डेस्क के बिल्कुल सामने थी, वह आधी कांच की थी, जिसमें उसका ही चेहरा दिख रहा था। मतलब वह गति के केबिन में एक मिरर की तरह थी।
गति कुछ कहे बिना हाँ में सर हिलाकर पास के चेयर पर बैठ जाती है, और डेविड चला गया।
दोपहर का समय था।
हृदय केबिन में बैठा, अपने बाएँ तरफ़ की दीवार को देख रहा था। यह वही दीवार थी जो गति के केबिन में भी थी; मतलब दोनों के केबिन एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। उस आधे पारदर्शी काँच की दीवार के दूसरी तरफ़ से गति साफ़-साफ़ दिख रही थी। वह क्या कर रही थी, क्या बोल रही थी—सब कुछ हृदय देख और सुन सकता था, क्योंकि उस कमरे में गति के डेस्क के आस-पास दो-तीन जगह माइक लगे हुए थे।
हृदय गति को एक पल के लिए भी अपनी नज़रों से ओझल नहीं करना चाहता था। इसलिए जानबूझकर उसे वहीं केबिन दिया गया था, हालाँकि हृदय के अलावा किसी को यह पता नहीं था कि वह कोई पारदर्शी दीवार है जिससे दूसरी तरफ़ का सब कुछ दिखता था। क्योंकि आम तौर पर उस पूरे दीवार से फाउन्टेन की तरफ़ पानी बहता रहता था, अलग-अलग लाइटें जलती रहती थीं, जिससे दूसरी तरफ़ का कुछ नहीं दिखता था। सबको वह बस कमरे के इंटीरियर का हिस्सा लगता था। पर हृदय उस फाउन्टेन को अपने फ़ोन से कंट्रोल कर सकता था।
वह बहुत देर से गति को देखने में खोया हुआ था। लेकिन इन सब में उसे यह नहीं पता था कि कोई है जो उसके ख्यालों में विघ्न डालने आ रहा था।
कम्पनी के आगे अचानक एक गाड़ी आकर झटके से रुकी और उसका दरवाज़ा खोला गया। एक बहुत हैंडसम, कम उम्र का लड़का उतरकर टक-टक करता हुआ आगे बढ़ने लगा। पर वह कोशिश कर रहा था कि वह किसी की नज़र में न आए, इसलिए एक तरह से छुपते-छुपाते हृदय के केबिन के पास आया। पर डेविड को केबिन के पास देखकर वह दीवार से लगकर छुप गया और डेविड के जाते ही धीरे से केबिन के अंदर घुस गया।
देखा तो सामने हृदय कुर्सी पर, लेफ़्ट साइड घुमाकर दीवार को निहार रहा था। उसके हाथ में नाम के लिए ही एक फ़ाइल थी। वह इतना खो चुका था कि उसे किसी के आने का एहसास ही नहीं हुआ। यूँ तो वह इतना तेज़ था कि हल्की आहट भी उसे सुनाई दे जाती थी और वह चौकन्ना हो जाता था, पर आज बात गति की थी। वह बस गति को देखने में खोया हुआ था।
इतने में वह लड़का हृदय के पीछे आकर अपनी उंगली से बंदूक बनाकर उसके सर से लगाकर सख्त आवाज़ में बोला,
"अब तुम्हारा खेल खत्म हुआ, हृदय सिंह राणावत! अब तुम मेरे कब्ज़े में हो। अपने हाथ ऊपर करो!"
हृदय जैसे एक पल में अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आ गया और धीरे से अपने हाथ को टेबल की तरफ़ बढ़ाया। इसे देखकर वह लड़का फिर से धमकाते हुए बोला,
"नहीं! कोई चालाकी करने की कोशिश मत करना, वरना यह बंदूक तुमसे बात करेगी।"
यह सुनते ही हृदय डेविल लुक में मुस्कुराकर मुँह बनाते हुए हाथ ऊपर कर दिए और धमकाते हुए बोला,
"तुम जानते हो ना तुम क्या कर रहे हो? इसका अंजाम कितना भारी पड़ेगा तुम पर। एक बार फिर सोच लो।"
"अंजाम की परवाह हम नहीं करते। हम बस अपने मन की करते हैं। और… और…" वह लड़का थोड़ा बोलते-बोलते अटक गया। इसे सुनकर हृदय मुस्कुराकर बोला,
"क्या हुआ? लगता है डायलॉग खत्म हो गया।"
"अ… ऐसी कोई बात नहीं। मैं बस कुछ सोच रहा हूँ। यूँ, डोंट मूव, ओके!!"
हृदय एटीट्यूड में स्माइल करके सर हिलाकर एक झटके में उस लड़के का हाथ (जो उसने हृदय के सर के पास रखा था) पकड़कर घुमाते हुए उसे अपनी मज़बूत बाहों में दबोच लिया और उसकी गर्दन को हल्के से दबाने लगा। उस लड़के को तो समझ ही नहीं आया क्या हुआ।
"लगता है वहाँ ट्रेनिंग ठीक से नहीं मिली, हाँ! तुझे क्या लगा हृदय को गन पॉइंट पर रखना इतना आसान है, छोटे?!" हृदय ने बड़े स्टाइल से कहा।
यह कहकर हृदय उसके सर को चूम लिया जो थोड़ा उसके चेहरे के पास ही था। और एक हाथ से फ़ोन पर एक बटन प्रेस किया जिससे उस काँच की दीवार से पानी बहने लगा, जिससे गति अब नहीं दिख रही थी।
वह लड़का हल्का कराहते हुए मुस्कुराकर बोला,
"अरे भाई! क्या कर रहे हैं? मैं तो बस मज़ाक कर रहा था। छोड़िए प्लीज़…"
हृदय उसे घुमाकर अपनी बाहों से आज़ाद कर देता है। अब दोनों आमने-सामने थे।
"भाई यार, आप तो… कमाल के लग रहे हो।" वह झट से हृदय के गले लग गया। तो हृदय भी उसे अपनी बाहों में भरकर उसके सर को सहलाते हुए बोला,
"हैंडसम तो तू भी कुछ कम नहीं है। बस बदमाश कुछ ज़्यादा हो गया है। क्यों, मि. अनुज सिंह राणावत…!"
(इस पर अनुज मुस्कुरा देता है तो हृदय के चेहरे पर भी हल्की स्माइल आ गई)
"तू तो कल आने वाला था ना, फिर आज ऐसे अचानक कैसे आया? बताया क्यों नहीं?"
"भाई यार, सप्राइज़ नाम की भी कोई चीज़ होती है। मैं बस आपको सरप्राइज़ करना चाहता था। इसलिए बिना बताए आ गया।"
—अनुज
"अच्छा किया तू आ गया। तेरे बिना ज़िन्दगी में कमी सी थी।"
—हृदय
"इसलिए आपके जीवन की कमी भरने आ गया। भाई, अब मैं कहीं नहीं जाने वाला। अब यहीं रहकर आपको परेशान करूँगा।"
—अनुज यह कहकर अपने भाई के गले लगता है। हृदय भी अपने भाई अनुज को देख बहुत खुश था।
[अनुज सिंह राणावत—यह हृदय का छोटा भाई और विजया जी का बेटा है। उसकी उम्र 25 साल की है और अंदाज़ से बहुत चुलबुला और मस्त-मौला इंसान है। बहुत हैंडसम लड़का। हृदय अनुज को जान से भी ज़्यादा प्यार करता है। विजया जी से हृदय का जो भी व्यवहार हो, पर अनुज उसे प्यार करता है।]
शाम का समय था।
शाम के करीब 7:30 बज रहे थे। गति घर आई और दरवाज़े की घंटी बजाई। पर दरवाज़ा खुलते ही वह थोड़ी हैरान हो गई, क्योंकि दरवाज़ा किसी अनजान औरत ने खोला था। वह अंदर आई तो देखा मामी जी बड़े आराम से सोफ़े पर लेटी हुई टीवी देखते हुए चाय-पकौड़े खा रही थीं। वह कुछ कहती, उससे पहले परी उसे अपने साथ कमरे में ले आई।
"परी, यह औरत कौन है? और यहाँ क्या कर रही है?"
—गति (हैरानी से)
"दी, वह हमारे घर नई नौकरानी है। सुबह से लेकर शाम तक यही काम करेगी। माँ ने रखा है।"
—परी
यह सुन गति ने एक गहरी साँस लेकर बिस्तर पर बैठ गई।
"क्या हुआ दी? आप थक गई हैं? मैं आपके लिए चाय बनाकर लाऊँ?"
—परी
"नहीं, रहने दो। मैं खुद बना लूँगी। वैसे भी इसकी ज़रूरत नहीं थी। हम मिल-जुलकर लेते सारा काम…"
—गति
"ओह दी, अच्छा है ना? अब आपको कोई काम करने की ज़रूरत नहीं है। आप आराम करो… लगता है पहले ही दिन आपने बहुत काम किया है।"
—परी (समझाते हुए)
"नहीं… यार, वैसे तो कुछ खास नहीं किया। पर फिर भी थकावट लग रही है।"
—गति
"आप आराम करो। मैं आपके लिए कुछ लेकर आती हूँ।"
—परी
परी बाहर चली गई तो गति भी बिस्तर पर लेट गई। और आँखें बंद करते ही जैसे उसे हृदय की बातें याद आने लगीं जब उसने उसे राजकुमारी भूमि बुलाया था। जिसे याद करते हुए वह जैसे उसकी गरम साँसों को अब भी अपने कानों पर महसूस कर रही थी। उसकी मुट्ठी कस गई।
"आअअ…"
गति चौंक कर उठ गई। उसकी साँसें थोड़ी तेज़ सी हो गईं। वह खुद से घबराई सी बोली,
"यह क्या हो रहा है? इस नाम को सुनकर इतना अजीब क्यों लग रहा है? मेरे सपने में भी कोई बार-बार यही नाम लेता है। लेकिन सर ने ऐसे मुझे भूमि क्यों कहा?"
वह फिर से तकिए से सर टिका लेती है और यही सब सोचने लगी।